मम्मा मुरली मधुबन             

.  017. Maya Jeet Kaise Bane


 

ओम शांति। हां, बच्चे ठुकराए देते हैं, होता है ना । लौकिक में भी बच्चे नालायक कहीं निकल पड़ते हैं। कुपूत, बच्चों के लिए कहा हुआ है बाप के लिए तो कभी कुपिता या कुछ ऐसी बातें नहीं आती अलौकिक में भी । बाप तो फिर भी बच्चों के ऊपर कैसा भी बच्चा है फिर भी बाप रहमदिल ही रहते हैं लौकिक में भी। यह तो है ही बेहद का बाप, उसकी तो मशहूर ही है, रहमदिल गाया ही जाता है तो इसीलिए उसकी रहमदिली तो मशहूर है और खुद भी कहता है कि जब जब ऐसे होते हैं तब तब मैं आता हूं और क्या रहम करे। ऐसे बच्चों के पास बाप आते हैं जब पतित बनते हैं दुखी होते हैं तो बाप ही आकर के बच्चों की सहायता करते हैं इसीलिए उनको सहारा,। सहायता देने वाला यह सब नाम दिए हुए हैं ना इसी कारण। तो अभी वह बाप मिला है उसी बाप को फिर ठुकराना तो यह तो उसको कहेंगे कमबख्त। बख्तावर बाप मिला और उस बाप को पाकर के भी हम उनसे प्राप्त न करें तो उसको क्या कहेंगे, ऐसे ही कहेंगे कि बख्तावर बाप का संबंध मिलते भी और उसको ठुकराना तो वह हो गया कमबख्त, तो ऐसा तो नहीं बनना चाहिए ना इसीलिए ऐसा ख्याल रखते रहना माया है बहुत । माया का अभी जोर है क्योंकि राज है ना और उनका भी पिछाड़ी का अभी जितना भी ताकत है वह अभी अपनी ताकत पूरी लगाएगी । तो इसीलिए यह है कि जितना जितना बाप के बनते जाएंगे उतना उतना माया भी फोर्स देगी, लड़ेगी। लड़ेगी उनसे ना जो उनसे लड़ेंगे तो अभी हम लड़ना सीखे हैं किससे, माया से । पहले तो पता ही नहीं था ना, पहले तो थे ही माया के अर्थात मायावश थे तो वह काहे के लिए हमारे से लड़ेगी,प्यार करेगी । अभी तो प्यार नहीं करेगी ना अभी दुश्मन बनेगी । प्यार भी करेगी तो दुश्मनी अंदर करके वो टेंप्टेशन अपनी खींचने की। तो जानते हैं अभी कि अभी माया हमारी दुश्मन है इसीलिए यह सभी बातें हमारे सामने आएंगी, हर किस्म की आएंगे , कोई बंधन नहीं होगा तो अंदर से अपना कोई मन के विकल्प, फालतू वो तंग करेंगे, हर किस्म से तंग करने का चलेगा उसका। कभी बाहर से संबंध में कभी शरीर से रोग, रोग नहीं हुआ होगा अभी होगा कहेंगे इतना समय तो हम कभी बीमार नहीं पड़े अभी बीमार पड़ गए हैं , तो अभी होगा। कुछ धन की कमी पड़े, कुछ कही बातें बिजनेस में टोटा पड़े कई बातें होंगी और भी कई किस्म की दोस्त दुश्मन बन जाए, फलाने हो जाएंगे मित्र संबंधी नहीं पूछेंगे, कहीं कुछ ऐसी उलट-पुलट कई बातें आ सकती हैं और आएंगी क्योंकि अपना अभी खाता ही उससे चुकाते हैं ना। बताया ना कि अभी यह सब जो रावण का खाता था अभी उसको हम खत्म करते हैं तो अभी उससे जब हम देह सहित देह के सर्व संबंध से अभी बुद्धि हटाते हैं तो फिर वह फिर अभी सामना भी होगा ना इसलिए संभलना है । तो ऐसी ऐसी बातों में आकर के मूंझ करके कि अरे भगवान के बने तो और ही मुसीबतें आ गई हैं ऐसे कई सोचेंगे कि जब बना हूं परमात्मा का परमात्मा मिला है मुझे, मैंने उसका सहारा पकड़ा है फिर तो मेरा सब अच्छा हो जाना चाहिए ना परंतु ऐसा नहीं, कई ऐसे ख्याल करते हैं कि भगवान के बने हैं तो सब हमारा अच्छा हो जाना चाहिए, कोई हमारे पास तकलीफ आदि नहीं आनी चाहिए परंतु ऐसा ख्याल नहीं कर बैठना। परीक्षाएं होंगी, इसीलिए उस में बहुत उलट-पुलट बातें भी आएंगी। कोई ऐसा ख्याल ना करें कि उसका मतलब शायद भगवान ही नहीं मिला है या भगवान नहीं है । पता नहीं हमको कोई उल्टे रास्ते लग पड़े हैं तभी भगवान नाराज हुआ है जो हमारे को तकलीफ हो रही है, कई कई ऐसे संकल्प आएंगे। यह सब हम बता देते हैं, क्योंकि चलते हुए सब में हो रहा है ना । ऐसे ऐसे विघ्नों में आकर के बहुत हट गए हैं। कोई मुसीबत आई, कोई बात आई तो समझते हैं शायद बना हुआ है तो शायद भगवान ही नहीं है पता नहीं क्या है। यह तो और बनाऊं शायद भगवान और ही नाराज हो गया है इसीलिए यह सब उल्टी बातें आती हैं इसीलिए बेचारे डर करके फिर किसी ने थोड़ा डराया भी या किसी ने कुछ कह दिया या अपने मन के भी आ गए कुछ संकल्प तो टूट पड़ते हैं । तो यह सब होगा और होता आया है। देखो 28 वर्ष का अनुभव है ना उसमें यह सभी बातें होती आई हैं । तो बतला देते हैं कि कौन से कारणों से जो कई टूटते हैं यह यह कारण। है तो सब का कारण देह अभिमान, फिर देह अभिमान में कहां काम की गोली, कहां क्रोध की कहां लोभ की, कहां मोह की, कहां फिर यह सभी संशय अनेक प्रकार के, फिर ऐसी ऐसी बातें आ करके फिर माया हटाने की कोशिश करेगी । माया के हटाने के अस्त्र-शस्त्र यही है ना, उल्टी उल्टी बातें बुद्धि में ले आना, उल्टी बुद्धि बनाना तो उसका काम यही है और वह बनाएगी और यह सब होगा इसीलिए इसमें ही तो संभलना है ना । इसमें ही अपनी हिम्मत रखनी है इसीलिए बाप कहते हैं मेरे से बुद्धि योग रखो तो तेरी बुद्धि उल्टी ना बने, झट से उसको चेक कर सको, तो चेक करने की पावर रहे और चेकिंग पावर से अपने को सावधान रखो और सावधानी से फिर अपने को पार करो तो यह सभी बताए जाते हैं कि यह चलते-चलते विघ्न इसको कहा जाता है माया के अनेक प्रकार के विघ्न। तो यह सब होगा, अभी इसी से पार होने का है । बाकी ऐसा नहीं है कि अभी हमारा सब कुछ ठीक हो जाए, नहीं अभी तो पार होना है ना । यह अभी जो जन्म है इसमें तो हमको बदलना है इसीलिए उसमें तो हमको जरा मेहनत की जरूरत है । अगर सब कुछ अभी आराम मिल जाए तो फिर तो हम समझे यही बैकुंठ है, यही स्वर्ग है, फिर तो स्वर्ग को भी याद करना भूल जाए, फिर तो यह सब कुछ हो गया ठीक। नहीं, इसलिए बाप कहते हैं यह थोड़ा मेहनत परंतु है सब अंदर की मेहनत कोई बाहर से कुछ नहीं करना पड़ता है। यह भी विघ्न आते हैं और ऐसी ऐसी बातें आएंगी, इन सब बातों में अपना निश्चय अटल रख करके और अटल के साथ में अपना पुरुषार्थ चलाना है । तो यह सभी बातों को अच्छी तरह से अपने में रखना है , सावधान करना है ना। कोई ऐसा देखा जाता है तो फिर दूसरों को सावधान किया जाता है कि भाई देखो गिरने वाले इस तरह से फिसलते हैं। उनके पांव कैसे फिसलते हैं ऐसे फिसलते हैं तो सावधान रहना कहीं तेरा भी पांव न फिसल जाए। तो फिर फिसलने से बचाना है ना । तो देखते हैं चलते चलते कईयों के पांव ऐसे फिसले। कहां-कहां से फिसलें, पहला तो बतलाया देह अभिमान, फिर कोई काम से फिसले, कोई क्रोध से फिसले, ये सब फिसलने की है ना यानी गिरने की तो यहां से सब गिरते हैं । तो यह सभी गिरने के इन्हीं से संभलना है कि कहीं ऐसा ना हो कि यह चीजें हमें गिरावट में ले जाएं तो यह सभी बातों का अनेक प्रकार से मन के संशय, संकल्प, विकल्प सभी बातें जिसमें अपने को बहुत सावधान रखने का है और इन सब बातों को यथार्थ रीति से समझना भी है कि यह सभी जो बातें हैं वह भी आएंगी क्योंकि यह भी सब खाता हमारा बहुत जन्मों का उल्टा है। बहुत जन्मों का है ना एक जन्म का थोड़ी है बहुत जन्मों का है और हम भी कहते हैं कि यह सभी बहुत जन्मों का जो कुछ है वह अभी चुकाना है, एक ही जन्म में । एक जन्म में हम बहुत जन्मों का खाता चुकाने का पुरुषार्थ रखते हैं तो बहुत जन्मों का खाता एक जन्म में चुकाएंगे तो बहुत जन्मों के कर्जदार भी तो अभी ना आएंगे तो कब आएंगे, बताओ। वह थोड़ी कहेंगे फिर पीछे दूसरे जन्म में चुका लूंगा थोड़ा। आगे तो था , अच्छा इस जन्म में कुछ , कुछ दूसरे जन्म में, कुछ तीसरे जन्म में क्योंकि जन्म जन्म हम उनके थे तो हमारा ऐसे भी नहीं है कि एक ही जन्म में हम सब चुकाते थे, नहीं कुछ थोड़ा चुकाते थे कुछ रह जाता था फिर कुछ थोड़ा दूसरे जन्म में, फिर तीसरे जन्म में ऐसा हमारा स्टॉक होता आया बहुत खाते का, अभी तो एक ही जन्म है ना तो हम भी दावा रखते हैं कि हम इसी जन्म में पूरा हिसाब किताब चुकाएंगे । तो जब हमने भी इसी जन्म का पूरा रखा है तो माया भी कहेगी कि अब तो एक ये ही जन्म है । अभी इसका हमारा जो सारा कर्ज है बहुत जन्मों का वह भी तो अभी ही चुकाए न तो कब चुकाए, तो वह भी तो अभी घेरा करेगी ना। तो सब आएंगे और जोर से आएंगे । खाली इस जन्म का हिसाब नहीं है बहुत जन्मों का जो भी है वह सब , तो कर्जदार बहुत हो जाएंगे ना कई जन्म के निकल पड़ेंगे। समझ में आएगा कि हमने अभी तो ऐसा कुछ किया ही नहीं है, ऐसा दुश्मन हमारा यह क्यों बना , यह बात ऐसी क्यों आई, हमने इस जन्म में तो, कोई बुरा किया ही नहीं है ऐसा हमारा यह सब क्या हुआ, यह रोग क्यों आया, यह बात क्यों हुई, ऐसा समझेंगे परंतु नहीं है तो कई जन्मों के और चुकाने वाले भी आज ही ना आएंगे तो कब आएंगे, कल को तो तू चला जाएगा ना । उनका हो गया फिर तो ग्राफ ही चला जाएगा तो उनके लिए भी तो अभी है ना इसीलिए वह आएंगी माया हर तरह से , तो उसमें बहुत दिखाई पड़ेगा ना कि हमारे तो और ही भगवान के बने तो और ही बहुत यह आ गए हैं तो इसलिए वह डर जाएंगे तो यह सभी परीक्षाएं, इसको कहेंगे परीक्षाएं । अभी इन्हीं सभी बातों से अपने को संभालना समझना यह नॉलेज है । ज्ञान तो इसी का नाम है ना कि कर्म की गति क्या है। यह बैठकर के डिटेल से विस्तार से बाप समझाते हैं कि कर्म का हिसाब कैसा होता है, कैसे बिगड़ता है, कैसे संवरता है और संवर करके फिर क्या बनते हो यह सभी बातें तो बाप ही बैठकर के समझाते हैं ना इसलिए यह सभी क्या-क्या होगा , होता है वो सभी बाप समझाते हैं क्योंकि हमारे सारे कर्म की नॉलेज को अथवा करम गति को , दुर्गति कैसे हुई , दुर्गति से अभी छूटें भी कैसे, फिर हमारी गति फिर सद्गति, यह सारा चक्कर का भी नॉलेज है । तो बाप बैठकर समझाते हैं ना इसलिए इसी सभी बातों का जिसके पास पूरा ज्ञान है नॉलेज है वह हिलेगा नहीं । अगर ज्ञान और नॉलेज ना रहा तो फिर हिलेगा उनके पांव फिर ढीले पड़ेंगे , फिर डरेंगे, डर आ गया तो फिर कहां वो टूट पड़ेंगे, जैसे टूटते जाते भी तभी तो हैं न आश्चर्यवत बनंति सुनंती कथंती भागंती , देखो सुनंती, कथांति बोलते बोलते भी, बहुत बोलने वाले भी, और आश्चर्य साक्षात्कार करंती, देखने वाले भी सब तरह के टूट पड़ते हैं ना। तो यह सभी होता भी आया है इसीलिए इन्हीं सभी बातों से संभलने के लिए यह सावधानी भी दी जाती है कि हां अपने पांव कैसे मजबूत रखना है उसी मजबूती के लिए यह सब हिलाने के आएंगे हर किस्म से लेकिन उसमें हिलना नहीं है । अपना जो पांव रखा है उसको मजबूत रख करके और अपना निभा करके बाप से पूरा पूरा अपना अधिकार पाना है । तो अधिकार पाने वालों का यह बतलाते हैं कि उन्हों को कितना हिम्मत और भरोसे और बल से अपना काम लेना है । देखो यह भी हम वॉरियर्स है ना । यह अपनी है रूहानी लड़ाई, कोई हाथ पांव से तो नहीं है ना। तो हम भी वॉरियर्स हैं परंतु गुप्त हैं, हमारी लड़ाई भी गुप्त हैं । हम हाथ पाव से तो किसी से लड़ते नहीं हैं लेकिन हां हमारी अंदर अंदर की युद्ध है और उससे युद्ध कर करके हम जीत प्राप्त करते हैं तो यह है गुप्त लड़ाई । अपने ही विकारों से, अपने ही विकारी खाते से यह युद्ध है ना तो यह है गुप्त और कराने वाला भी गुप्त है । वह भी तो गुप्त बैठकरके यह सभी गुप्त बल भर रहा है ना और सावधान कर रहा है कि बच्चे सावधान होकर रहना, यह माया की पछाड़, फोर्स तुम्हारे ऊपर आएगा बहुत इसलिए इन सब बातों से हिलना नहीं । तो अभी उन्हीं बातों को समझ करके अपने पुरुषार्थ को बहुत हिम्मत और धारणाओं के साथ चलाना है और उसमें अपना उल्लास उमंग रखते बाप से क्या प्राप्त करना है उसका देखो कितना प्राप्ति का भी उल्लास रहना चाहिए कि हां चीज क्या मिलती है। कोई कम चीज नहीं है , बहुत ऊंची चीज है और ऐसी चीज है जो आराम से चलते रहे कोई कोई दुख और अशांति का बात ही नहीं है। तो ऐसी चीज पाने के लिए तो बहुत उल्लास और उमंग भी रखना चाहिए ना । ऐसे नहीं लाचारी से, चलो अभी यह तो करना ही है ऐसे लाचारी से पुरुषार्थ । कई ऐसे चलते हैं जैसे लाचारी से, उसके ऊपर जैसे मेहरबानी करते हैं, नहीं किसी के ऊपर या उनके ऊपर कोई हमारी मेहरबानी थोड़ी ही है यह तो अपने ऊपर है ना, अगर मेहरबानी है तो अपने ऊपर करते हैं , अपने लिए है ना तो जो अपने लिए रह करके समझते और चलते, पुरुषार्थ करते हैं ना उन्हों का पुरुषार्थ ठीक रहेगा क्योंकि हम अपने लिए करते हैं और किसी के लिए नहीं करते हैं। अगर हां बिगाड़ते हैं तो भी अपना बिगाड़ते हैं सुधारते हैं तो भी अपना सुधारते हैं तो इसीलिए अपने प्रति जो खड़े हैं ना अच्छी तरह से वह अपने पुरुषार्थ में अच्छे रहेंगे और हर अटेंशन पर अपने पर अटेंशन देंगे दूसरे का नहीं देखेंगे, इसने ऐसा किया उसने ऐसा किया। भाव स्वभाव की भी बहुत बातें आती है, इधर भी दैवीय परिवार का भी, वह बाहर का तो सुनना करना बड़ा सहज है कि इसने ऐसा किया, भई अज्ञानी है वो है ना भाई अज्ञानी है, अभी यहां जो आते हो ब्राह्मण कुल के यहां वालों में से किसी ने कहा एक दो को भाई कहेंगे यह क्या, आपस में यहां भी,.... फिर यहां भी आपस में तो उसका बड़ा लगता है ना परंतु नहीं, यही तो माया है ना। माया इधर भी घुसेगी, कहेंगे देखो तुमने यह साथी बनाया ना अभी उसको छोड़कर अभी इन साथियों में भी इसको टक्कर खिलाए, इसमें टक्कर में आ करके यह छोड़ देंगे ना। जहां बुद्धि जुटाई है उसमें लगाए तो उनमें लगाने की युक्ति करेंगी इधर भी आएंगे क्योंकि हिसाब किताब तो इधर भी होगा ना। देखो यह आया है, यह भी आया है हो सकता है इन दोनों का कोई पिछला हिसाब भी इनके साथ हो ना तो इधर आ करके कुछ हिसाब किताब टक्कर करेगा परंतु यह नॉलेज है ना कि यह जो हिसाब किताब की टक्कर है यह पिछली है इसीलिए ऐसे नहीं है कि अरे भाई यहां तो यह दोनों कहते हैं हम दोनों भगवान के बच्चे हैं, अभी भगवान के बच्चे हो करके यह क्या है तो उसमें फिर दूसरा देख करके उसमें हिले, नहीं यह हमें ज्ञान है कि हां यह भी इनका हिसाब किताब है परंतु उनको काटना है योग और ज्ञान से । ऐसे नहीं टक्कर खाकरके काटना है नहीं, वह तो हमारा विकर्म बन जाएगा ना तो उसमें संभलना है। परंतु यह ज्ञान देखने वालों में अथवा जो हैं उन्हीं सभी बातों को समझना है , नहीं तो इसमें फिर कई संशय में आ जाते हैं कि भाई देखो क्या ये ज्ञान में आकर के देखो , देखने वालों को भी आ जाएगा , अगर ज्ञान नहीं है तो कहेंगे देखो यह इधर और जो हिसाब किताब में है वह भी अपनी बातों को ना समझ करके उसमें टक्कर खा बैठते हैं तो है तो अज्ञान ना । तो यह सभी अज्ञान निकल जाना चाहिए। यह समझाया क्यों जाता है क्योंकि ऐसी ऐसी बातें हो रही है और होती हैं ना तो इन्हीं सभी बातों में सावधान किया जाता है कि ऐसे ना हो जो कई ऐसी ऐसी बातों से कभी अपना बाप से जो तकदीर लेनी है वह तकदीर लेना भूल जाए और ऐसी बातों में आ करके फिर अपना बेहद बाप से बेहद का वर्सा पाने का वो छोड़ दें है । इसीलिए बाबा हमेशा समझाते हैं न कि भले आपस में कुछ आए लेकिन ऑलवेज सी फादर । तो बाप को देखो और बाप से जो वर्सा लेना है मतलब तो उससे ही है ना इसलिए जिससे मतलब है उसको तो पकड़ के रखो ना उससे काहे के लिए टक्कर खाते हो । टकरते आपस में हो और छोड़ते उसको हो, उसने क्या कसूर किया। आपस में टकरो और छोड़ो उसका साथ, वह तो तुम्हारा नुकसान है ना । उसको छोड़ेंगे तो तुम क्या पाएंगे नुकसान तेरा होगा। तो टकरते आपस में हो छोड़ते उसको काहे को हो उसमें तो तेरा वर्सा चला जाएगा ना तो यह तो महामूर्खता हो गई ना इसको कहेंगे महामूर्ख, मूर्ख नहीं परंतु महामूर्ख। मूर्ख तो पहले ही है कि पता ही नहीं था, जब पता ही नहीं था तो मूर्ख हो कर के बैठे थे, अभी पता होते और फिर उसको छोड़ना तो उसको क्या कहेंगे अरे महामूर्ख तो ऐसा तो नहीं बनना है ना। तो इसीलिए अपना समझते रहना तो यह सभी चीजें हैं अपने को सावधान रखने की तो इधर भी देखो अभी ब्राह्मण कुल में इधर हो ना तो इधर भी माया घुस आती है। ऐसा नहीं है कि बस यहां गेट के अंदर आए सेफ हो गए, नहीं सेफ्टी तो अपनी अपने पास रखने की है ना। धारणा नहीं है तो फिर इधर भी माया घुस आएगी, इधर भी टक्कर खिलाएगी कोई के भाव से कोई के स्वभाव से ऐसा वैसा तो ऐसी बातों में आकर के फिर कई हिल जाते हैं कि क्या है, इधर भी यही है, ऐसा ही है फिर ऐसा ऐसा,अरे! बाप है इधर, बाप पढ़ाता है, वह भूल जाएगा , यह टक्कर वक्कर की बातों में फिर गिर पड़ेंगे तो इसीलिए सावधान! यह सभी सावधानी दी जाती है। एक को गिरता हुआ देखेंगे तो दूसरों को सावधान करेंगे कि भाई देखना यहां फिसलने का है संभलना , आगे बढ़ो तो देखना, संभलना सावधान रहना तो यह करना अपना धर्म है ना। तो यह बताते हैं कि कहां-कहां से कौन-कौन कैसे कैसे खिसकते हैं वह आप लोगों को ध्यान में दिया जाता है इन एडवांस कि हां फिर आप चल रहे हो तो खबरदारी से चलना तो खबरदारी रखने की है । तो यह सभी चीजें हैं जिसको बुद्धि में रख कर के और बाप से अपना पूरा पूरा पाना है तो फिर पूरा पूरा पांव दबके दबके चलने का है कि कहां पांव ऐसा ऐसा ना हो। तो दबके , कहते हैं ना पांव दबके और पूरी पूरी जो दृढ़ता है उसी दृढ़ता का पूरा पूरा रखते चलने का है। ऐसा नहीं की क्यों, यही तो मंजिल है, कहां है ना बड़ी मंजिल ऊंची है परमात्मा की ज्ञान की बहुत ऊंची है। ऊंची कोई ऊंची , ऐसी ऊंची थोड़ी सी है , नहीं यह ऊंचाई , यही जो बातें आती हैं इन सभी बातों को तय करना, इससे पार होना और अपना प्राप्त करना यही है, इन्हीं सभी बातों में अपने को संभालना है । तो यह सबके लिए है , देखो सब जो पुराने हैं, जो नए हैं सबके लिए है ना कोई एक के लिए थोड़े ही होती है सबके लिए। तो हर एक को अपने दिल पर रख करके और समझने की बात है सब। देखो यहां पच्चीस अट्ठाइस बरस बीस बरस और नए पुराने सबके ऊपर माया का आता है ना । ऐसे थोड़ी है हम कहेंगे सब हम अभी माया प्रूफ हो गए हैं नहीं माया प्रूफ हो गए हैं तो फिर तो यहां बैठे ही नहीं होते ना फिर तो यह शरीर नहीं फिर तो पवित्र शरीर मिलना चाहिए, हमारा प्रूफ फिर वह है कि अगर हम कंप्लीट हैं, आत्मा कंप्लीट हो गई तो शरीर भी कंप्लीट होना चाहिए परंतु नहीं, अभी यह अनकंप्लीट शरीर में बैठे हैं उसका मतलब है कुछ आत्मा अनकंप्लीट है तो उसका प्रूफ यही है । तो इसका मतलब यह नहीं है कि कोई अपनी हम बड़ाई करें कि हां हम प्रूफ है, प्रूफ है तो बैठे ही नहीं रहें फिर तो हमको कंप्लीट शरीर कंप्लीट दुनिया सब प्रालब्ध मिलनी चाहिए। उसका मतलब है कुछ मार्जन है पुरुषार्थ की तब तो बैठे हैं ना पुरुषार्थ करने पर। तो क्या करना है, क्या बनने के लिए पुरुषार्थ है वह एम समझाई जाती है पूरी पूरी अपने में रखने की है बुद्धि में । तो भी अपने को संभालना तो है ऐसे नहीं घड़ी-घड़ी माया की अंगुरी खानी है । खाने से तो फिर चोट लगती है ना । फिर घड़ी घड़ी मार्क्स कम पड़े तो उससे तो रजिस्टर अच्छा नहीं रहेगा तो उसकी संभाल रखनी है क्योंकि रजिस्टर में तो नोट होता है ना दो बार गिरा, इस सब्जेक्ट में तो इतना फेल हुआ, यह हुआ वह सब फिर नाम तो खराब रहेगा ना, तो नहीं हमको अपना ठीक रखना है। ऐसे नहीं है कि काम से, क्रोध से या लोभ से या मोह से कोई भी बात से हम किसी भी शत्रु से अंगूरी खाएं। अंगूरी समझते हो ना, वह मल्लयुद्ध वाले होते हैं ना वह लड़ाने का लगाते हैं टांग कि ऐसे पकड़ेंगे ऐसे पकड़ेंगे गिराने के लिए उसको अंगूरी कहते हैं, आप लोगों की भाषा में कुछ और कहते होंगे वह करते हैं,ऐसे रम से पकड़ते हैं जो गिर जाए, पीछे बैठ करके उसको । वो मल्ल युद्ध देखी है बड़े पहलवान लड़ते हैं तो लड़ते हैं पहलवान गिराने के लिए वह ऐसे ऐसे नहीं करेंगे वो ऐसे तरकीब से, युक्ति से उसकी टांग को उसको ऐसे करेंगे जैसे गिरे फिर बैठ करके उसको दबाने की कोशिश करेंगे तो माया भी ऐसी है पता नहीं लगने देगी तो ऐसे थोड़ा गिराती है तो वह मल युद्ध की तरह से। (परमधाम पहलवान ही है) अच्छा पहलवान है,वह जानता होगा कैसे गिराते हैं। तो पहलवानों की जो लड़ाई होती है मल्ल युद्ध की वह बड़े तरकीब से तो तरकीब लेते हैं युक्ति गिराने की, तो माया भी ऐसी है युक्तिबाज फिर बाबा भी कोई कम थोड़ी ही है युक्तिबाज वह फिर से सिखलाते हैं कि ऐसे से फिर तुम कैसे युक्ति अपनाओ क्योंकि युद्ध है ना यही तो लड़ाई है । अभी लड़ाई देखो कैसी है और शास्त्रों में बैठकर के वह कौरव पांडव फलाने फलाने देखो कैसी-कैसी युद्ध का रख दिया है । अभी कौरव पांडव जैसे हम कोई कौरव से लेट थोड़ी हीं है। हमारी कोई गौरव से लड़ाई थोड़े ही है हमारी माया से है । बाकी कौरव पांडव की कोई युद्ध हुई नहीं है यह तो पांडवों ने माया से युद्ध रखी है और कौरव आपस में यह सब यमन आदि , उन्होंने देखो यमन कहा जाता है दूसरी मुसलमानो को यह भी शास्त्रों में है तो देखो यह मुसलमानों का भी तो बना है ना पाकिस्तान और यह सभी। यह पार्टीशन हुआ, यह ना होता तो फिर ये यवनों का लड़ना मरना यह भी बात ना होती । तो देखो है शास्त्रों में तो वह भी सिद्ध है। बाकी होने में तो देरी नहीं है अभी दुश्मन जो बैठे हैं तो दुश्मन बैठे थोड़े ही रहेंगे वह काम करके ही रहेंगे । एक बार बस कोई कहां से थोड़ी चिंगारी लगी ना तो बस अभी तो आग भड़कने में देरी नहीं है। यह लकड़ियां मानो तैयार होती जाती हैं यहां लोहड़ी कहते हैं ना बनाते हैं तो बनाते हैं , लकड़ियां इकट्ठे रखते हैं फिर थोड़ी चिंगारी होती है तो सब लकड़ी भंबबस हो जाती है तो यह सब लकड़ियां इकट्ठी होती जाती हैं । एक चिंगारी से काम तमाम हो जाने का है । तो यह लकड़ीयां अभी समीप होती जाती है अच्छी तरह से बड़ा भांबट होना तो जल्दी काम करें, ऐसे नहीं एक लकड़ी जले तो फिर दूसरी जले, नहीं एक ही साथ सब काम हो जाए ना, तो यह सभी ऐसी तैयारी में भी तो थोड़ा टाइम तो लगेगा ना । अभी क्योंकि प्रैक्टिकल नाटक है ना कोई आर्टिफिशियल थोड़ी ही है दो घंटे का हो जाएगा। नहीं, यह तो प्रैक्टिकल है, यह दुनिया की सारी हिस्ट्री और ये सभी कैसा चलता है तो यह सभी बातों को भी अच्छी तरह से और समझ करके उसके मुताबिक अभी हमें क्या करना है उसी में अपने को सेफ करते जाओ । अपने को कैसे सेफ रखो और फिर अपना तन मन धन सेफ डिपॉजिट ऑलमाइटी डिपॉजिट कहो, ऑलमाइटी बैंक कहो अब कैसे उधर अपना इंश्योर करते चलो क्योंकि उसके इंश्योरेंस कंपनी जो है ना उनसे तो बहुत कुछ मिलने का है इसीलिए बाप कहते हैं अभी यह सब यहां की बातें जो है यहां की सब कुछ अभी खत्म होने का है और अभी मेरे पास सब जमा करो, जमा का ऐसे नहीं दे दो, अपना कर्म श्रेष्ठ से बनाते चलो । जैसे जिसके तन में आया ना उसने क्या किया, उसने भी अपने हाथों से अपने कर्मों से अपना अपना तन मन धन जो सेवा में लगाया वही उसका फल बना। तो उसके हाथों से कराया ना, मैंने थोड़ी ही लिया उसका लेकर के मैं कहां, नहीं रखेगा। ना कोई उनके हाथ में रखने की बात है जो करेगा सो पाएगा यह तो फिर कराने का डायरेक्शन सबको है तो जो करेगा । तो जैसे जैसे देखो करते हैं ना तो करते हैं वह अपना बनाते हैं तो यह सभी चीजें हैं जिसको बहुत अच्छी तरह से समझते और बाप से अपना पूरा जन्मसिद्ध अधिकार पाने से उसमें ही कल्याण है। तो अभी बाप से सबको अपना बाप से संबंध पूरा रखने का है इसीलिए हम दूसरे का देख ही क्यों । सब पुरुषार्थी हैं चलो उसने कुछ नहीं सोचा किया, चलो मेरे से ही किया तो अभी क्या हुआ। मेरे से ही किया तो उसने अपना ही कुछ बिगाड़ा, इसमें हमारा क्या हुआ। भले मेरे से उसने कुछ ऐसा ऐसा किया लेकिन बिगड़ा किसका, मेरा थोड़ी ही बिगड़ा उन्हीं का ही जिसने किया इसलिए हम क्यों ऐसा ऐसा करें तो फिर हमारा भी बिगड़ जाएगा इसीलिए ऐसा नहीं । हमको अपना बाप को देखना है हम उसको और भी अच्छी तरह से समझा दे अगर समझाने की हमारे में भी सामर्थ्य है और देखें कुछ समझने वाला भी है तो प्यार से समझा दें कि भाई ऐसा करने से जरा यह जरा ठीक नहीं है, इसीलिए आप जरा रखेंगे तो देखो तुम्हारे विकर्म बनेंगे, फिर यह भी तुम्हारा पाप है इसीलिए ऐसे पापों से ही तो हमको छूटना है, यही तो हमारे सुख के कारण हैं तो प्यार से समझा दो । कोई समझे तो, ना समझे तो ऐसा नहीं है उसके कारण हम अपना बिगाड़े, अपने को तो सावधान रखना ही है। तो यह सब चीजें अपनी बुद्धि में रखने की है जिससे हम अपने को सेफ बनाते चले । कैसा, तो यह हैं धारणा जो हैं अपने में लगाने के लिए धारणाएं। दूसरी धारणाएं मिलती हैं जो दूसरों को समझाने के लिए मिलती है यह अपने को समझाने के लिए । है तो सब अपने लिए ही, दूसरों को भी हम समझाते हैं तो अपने लिए ही है ना, हम आपको समझाते हैं तो यह कोई हम आपके लिए खाली समझाने के लिए , नहीं । हम दूसरे को कहे बीड़ी मत पियो पहले हम अपनी बीड़ी बंद करेंगे तभी तो कहने का हक है ऐसे नहीं हम बीड़ी पिएं और तुमको कहे बीड़ी मत पियो यह तो कोई लॉ ही नहीं है ना नहीं, वह अंदर खाएगा कॉन्शियस बाइट करेगा। परंतु नहीं , अभी तो मिला है ना । समझ भी मिली है कि क्या रॉन्ग है क्या राइट है तो दूसरों को समझाना माना अपने को समझाना, इसलिए बाबा भी कहते हैं ना बच्चे सर्विस, क्योंकि दूसरे को खबरदार करेंगे तो खुद खबरदार रहेगा तो यह आएगा अंदर में तो उठते चलेंगे। तो यह सभी चीजें हैं इसको अच्छी तरह से रखते अपना पुरुषार्थ रखने का है। कैसा, ऐसी रफ्तार से चलते हो ना ? अच्छा, अभी टाइम हुआ है आजकल छुट्टी तो नहीं है ना तो फिर टाइम पर छुट्टी देनी पड़ती है। बाकी लेसंस तो मिले हुए हैं वह तो पक्के याद रखने हैं, अपना सारा चार्ट, अपना सारे दिन की दिनचर्या, अपने बाबा की याद का वह सब पूरा रखते रहो और बाकी सर्विस करो, बाकी तो अपना धंधा धोरी जो है शरीर निर्वाह का काम वह भी करना है लेकिन हां अभी जैसे वह लोग, लालच बहुत तो नहीं है हम खाएं, बच्चे खाएं, बच्चों के बच्चे, बच्चों के बच्चे, बच्चों के बच्चे इतना स्टॉक करें अभी वह तो नहीं है। अभी अपने पेट की आजीविका ही जितना काम चलाना है तो अभी वो काम चलाना है बाकी जो टाइम है बाकी जो अपना है बुद्धि बल अपना जितना भी कर सकते हैं तन से धन से मन से वो बाकी अभी उसकी ओर लगाने से फायदा ही है क्योंकि उससे अभी जमा होगा बाकी जो यहां करेंगे वहां सब खोते जाएंगे क्योंकि अभी वह एंड है ना इसीलिए बाप कहते हैं कि बच्चे अभी अपना वहां जमा करो जहां से तुमको सौ गुना, हजार गुना होकर के मिले तो ऐसा करना चाहिए ना । अच्छा कैसा है यह , इसका नाम क्या बताया उस दिन? राजपुत्रा आती है ना बातें, धारणा अच्छी चलती रहती है ना? अच्छा, आजकल कुछ कम दिखाई पड़ते हैं क्लास में, क्या कुछ ठंडे हो गए हैं या ठंडी लग गई है क्या हुआ है? थक गए हैं, आते-आते थक गए । नहीं पूछो , कोई कारण होगा कोई विचारों का क्या है। टाइम बहुत रहते हैं? नहीं कारण। हां कारण तो बहुत है परंतु जो अगर लगन है किसी चीज की तो फिर कारण, थोड़ा सा सुबह का टाइम तो है अगर कोई चाहे तो सवेरे भी क्लास कर सकते हो जो आने वालों को सहल पड़े परंतु कोई कारण हो तो भी पता होने से फिर उनकी सहूलियत कर सकते हैं क्योंकि क्लास तो सवेरे भी कर सकते हो, क्लास तो जैसे भी समझे तो टाइम आगे भी हो सकता है क्योंकि अभी आजकल टाइम चेंज होते हैं ना कोई सर्विस किसी के टाइम का चेंज हुए होंगे , क्या हुआ होगा तो पूछ लेना है उनसे तो फिर उसी सहूलियत से फिर कर सकते हैं। अच्छा, बाकी यहां वाले बाजू वाले क्या कुछ बिजी रहते हैं, पूछना है उन्हों से? अच्छा, अच्छा रोज़ी खिलाएंगी, मेहनत करो हां, रोज फ्लावर । हां बाबा मम्मा कभी बच्चों को देखते हैं अच्छा है बच्चा तो हां खिलाओ उसको,यह तो होता ही है वह तो गीता में भी है ना ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय है तो उसका मतलब है हां प्रिय कहा है तो कोई अप्रिय भी है तब तो भेंट में कहा ना प्रिय, तो भगवान को दो आंखें थोड़ी थी लेकिन यह तो जरूर है ना। लौकिक में भी जो सपूत बच्चा होता है तो प्रिय लगता है तो उस बाप को भी जो सपूत है वो प्रिय तो लगेंगे ना , नहीं तो सपूत पन का मान क्या रहा, फिर तो सबूत पन बनने का बाकी क्या रहा। नहीं, जरूर है सपूत का फायदा है तब तो फिर सपूत कुपूत यह सभी बातें आती है ना। उसमें भी कहा ना गीता में आसुरी संप्रदाय दैवी संप्रदाय तो देखो दो का नाम लिया ना। वह संप्रदाय विनाश दैवीय संप्रदाय का स्थापना करता हूं, और ऐसे ही मुझे प्रिय है यह सब बातें क्यों कही। तो यह तो होता ही है। अभी तुमको ज्यादा दें, मेहनत की है तो डबल। जमा करें तुम्हारा? लालच है बहुत? यह कहती है हमारा जमा करो। हम ले लेते हैं ये समझती हैं कि हमारा जमा होगा तो वहां इंटरेस्ट ज्यादा मिलेगा और यहां कम, यहां तो खाली यही मिला, उधर तो फिर जमा करने से एक का सौ गुना, हजार गुना तो यह लालच रखना अच्छी है ना? यह शुद्ध लालच है अच्छी लालच।अच्छा बाप दादा और मां की मीठे-मीठे बहुत सपूत सपूत बच्चों प्रति और ऐसे सावधान जो अच्छी तरह से रह करके चल रहे हैं ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।