मम्मा मुरली मधुबन             

. 019. Parmatma Ka Katavya - Voice Is Not Good


 

आज गुरुवार अप्रैल की 22 तारीख है , प्रात: क्लास में प्राण मां की मुरली सुनते हैं

रिकॉर्ड:

तू प्यार का सागर है

हमारी आत्माओं अथवा हम आत्माओं के साथ क्या निभाया है अर्थात उसने आत्माओं के साथ क्या संबंध में आकर के क्या कर्तव्य किया है जिसके लिए ही उसकी महिमा है और फिर से अभी वही कर्तव्य करने के लिए अभी अपना पार्ट एक्ट कर रहा है तो मानो अभी परमपिता परमात्मा अभी एक्टर भी है। डायरेक्टर, क्रिएटर और एक्टर तो अभी मानो खुद क्रिएट करने का एक्ट अभी प्रैक्टिकल कर रहे हैं । तो क्रिएटर का एक्टिंग अथवा उसका एक्टर बन करके अभी फिर से नई दुनिया को क्रिएट कर रहे हैं । ऐसे नहीं है कि वह अनादि ऐसे ही क्रिएटर है बस, नहीं उसने प्रैक्टिकल कल्प कल्प क्रिएट करता है। वह कैसे करता है उसका पार्ट है। जैसे और सभी आत्माओं का पार्ट है वैसे ही उसी परमपिता परमात्मा का भी पार्ट है तो उसके पार्ट को भी समझना है ना कि वह भी एक बार अपने डायरेक्टरपन का और क्रिएटरपन का एक्ट करता है। तो अभी इस टाइम वह अपनी नई दुनिया को क्रिएट करने का एक्ट कर रहा है तो उसका भी पार्ट चल रहा है तो इसीलिए वो भी एक्टर बन करके अपना कार्य कर रहा है । तो यह तो बुद्धि में है ना अभी कि किस तरह से दुनिया को क्रिएट करता है। ऐसे नहीं दुनिया कभी क्रिएट हो चुकी हुई है, नहीं। वह अभी कैसे समझाते हैं कि मैं आकर के कैसे यह विनाश और स्थापना इसीलिए स्थापना एस्टेब्लिशमेंट यह अक्षर से सिद्ध करता है कि दुनिया है जिसके ऊपर फिर परमात्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना होती है। ऐसे नहीं कहेंगे कि दुनिया ही नहीं है। जैसे कई समझते हैं दुनिया ही नहीं है वह प्रकट होती है । नहीं, दुनिया है लेकिन वह आकर के पुराने को, तो पुराने किसको, पुरानी दुनिया को फिर नया बनाते हैं तो कैसे नया बनाते हैं तो उसका तरीका फिर खुद ही आकर के समझाते हैं। लेकिन मनुष्य तो समझते हैं कभी दुनिया है ही नहीं उसने शायद ऐसे ही बैठ करके दुनिया को रचा अथवा बनाया है। नहीं, वह कैसे क्रिएटर है, कैसे डायरेक्टर है तो अभी देखो डायरेक्शंस भी देते रहते हैं और क्रिएट भी कैसे करते हैं उसका अभी वह एक्ट बना हुआ है। तो परमात्मा भी अभी एक्टर है। उसका भी अभी पार्ट चल रहा है नई दुनिया रचने का। उस नई दुनिया में पहली पहली जो रचना है ना नई वो अभी हम हैं । समझते हो, नशा बैठा हुआ है ना अच्छी तरह से कि हम उस बाप की डायरेक्ट मुखवंशावली अथवा नई रचना अभी हम उसमें से नई रचना में से हम अभी नई रचना है । पहली-पहली जो मुखवंशावली हैं वह हम हैं। पीछे तो देवताऐं होंगे, जेनरेशंस में चलेंगे उसको तो वंशावली तो नहीं कहेंगे ना। अभी हम ब्राम्हण मुखवंशावली हैं और बाप के द्वारा अभी जो नई रचना रची जा रही है उसकी पहली-पहली नई रचना अभी हम हैं । तो अभी बाप ने शुद्र से ब्राम्हण बनाया। ऐसे नहीं नई रचना का मतलब है रचना थी ही नहीं । नहीं , रचना है वह तो अनादि है परंतु उसको शूद्र से अभी ब्राह्मण कैसे बनाया और फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे । तो यह तो अभी सारा राज अच्छी तरह से बुद्धि में है ना कि कैसे अभी ट्रांसफर अपन को कर रहे हैं। हम आत्माएं अभी ट्रांसफर हो रही हैं बाकी ऐसे नहीं है कि हम आत्माएं हैं नहीं, जिसको बैठकर के परमात्मा ने बनाया है या शरीर कभी है ही नहीं जिसको बैठ करके परमात्मा ने बनाया । आत्मा है तो आत्मा के संस्कारों के अनुसार उनका फिर सब चलता ही है तो यह सभी चीजें अभी बुद्धि में है हर एक बात का इसीलिए अभी बाप भी आकर के कैसे क्रिएट करता है , पुरानी को नई बनाता है वह अभी जानते हैं कि देखो अभी यह नई तो हम हैं उसकी नई दुनिया की नई रचना। तो परमात्मा ने कैसी दुनिया बनाई, कैसे उसने रचा वह भी हम देख रहे हैं इन आंखों से कि भगवान ने दुनिया कैसे रची वह सारा इन आंखों से अभी देखते हैं । कहते हैं ना किसी ने क्या देखा कि भगवान ने कभी दुनिया कैसे रची। अभी हम तो कहते हैं इन आंखों से भगवान ने दुनिया कैसे रची तो जानते भी हैं और इन आंखों से अभी देख भी रहे हैं कि भगवान दुनिया कैसे रचता है तो यह है उनका फाउंडेशन। फाउंडेशन कहो, सेप्लिंग कहो अभी यह नई दुनिया की लग रही है जिसमें से ये कैसे अभी नई जेनरेशन का ये अभी आरंभ हो रहा है और फिर यही अपना अनेक पुनर्जन्मों में तो अभी इसी तरीके से सदा सुख को पाते चलेंगे । तो भगवान ने दुनिया कैसे रची किसी ने देखी, अपन अभी देख रहे हैं कि भगवान ने दुनिया कैसे रची तो हम कितने सौभाग्यशाली और भाग्यशाली गिने जाएंगे कि हम अभी जानते हैं और देख रहे हैं कि भगवान दुनिया कैसे रच रहे है । तो हां उस दुनिया की पहली पहली रचना में हम हैं तो हां कैसा, यह नशा बैठता है हमारी दिल्ली कि हां हमारी नई दुनिया में अभी आते हैं अर्थात शूद्र से अभी ब्राह्मण बनते हैं सच्चे ब्राह्मण । वो तो नाम रखाऐं है ब्राह्मण जो धामें खाते हैं और यह सब करते हैं, वह तो नाम जात रखा है , अपना नाम रख दिया है जाति का लेकिन अभी अपन प्रैक्टिकल सच-सच पवित्र दुनिया का फाउंडेशन डालने के लिए बाप ने अपनी जो मुख वंशावली रची है अभी मुख से माना मुख से निकलेंगे थोड़े ही , यह बैठकर के नॉलेज जो सुनाया है उसी नॉलेज के बल से अपन प्यूरीफाइड हो करके अभी नई जेनरेसंश में आते हैं तो मानो हम मुख वंशावली हो गए ना । तो अभी उनमें से हम मुख वंशावलियों में से हम मुखवशावली हैं उनकी डायरेक्ट परमात्मा की रचना। तो यह भी एक दिमाग में जैसे कोई पोजीशन का, कोई पढ़ाई का, भाई दिमाग में नशा तो रहता है ना तो अपना भी अभी हम किस पोजीशन वाले हैं, किस खानदान वाले हैं, हम किसके पैदा किए हुए हैं तो अभी डायरेक्ट परमात्मा की जो मुखवंशावली है वह हम हैं तो अभी उन मुख वंशावलियों को अपना कितना नशा होना चाहिए और उनकी चाल चलन और उनकी रहन-सहन और उनकी सब धारणाओं के ऊपर कितना अटेंशन होना चाहिए कि हमको कोई जैसे वैसे कॉमन जैसे चलते थे वैसे नहीं, अभी हम किसकी संतान है और डायरेक्ट उनकी संतान जो हर्ता और कर्ता, हर्ता भी है और कर्ता भी है तो क्या हर्ता है और क्या करता है वह अभी सब बुद्धि में है । उसकी अभी हम डायरेक्ट मुख वंशावली हैं तो ऐसे मुख वंशावली को भी तो अपना अच्छी तरह से अपने को भी संभालना है ना। ऐसे नहीं है कि बस खाली वह बस हम हैं उनके बस इतना ही काम है। हैं उनके तो अपने में भी तो इतना बल चाहिए ना। अपने जैसे बाप के गुण, बाप के कर्तव्य वैसे हमारे भी गुण और अपने भी कर्तव्य को इतना महान ऊंच बनाने का है। तो अटेंशन रखने का है कि हम भी इतने अपने महान ऊंच कर्तव्य के लायक हैं तब तो हम बाप के बच्चे सपूत अथवा कहलाने वाले की हां हम बाप को फॉलो करते हैं तो ऐसे जो धारणाओं को पकड़ करके चलने वाले हैं तो वही हक रख सकते हैं बाप की प्रॉपर्टी के ऊपर । अगर नहीं जो फिर तो बाप की जो मिलना है वह तो नहीं मिलेगा , फिर तो कोई हक भी नहीं रख सकते हैं जबकि फॉलो नहीं करते हैं या धारणा नहीं है तो बापके द्वारा जो कुछ मिलना है उस मिलने के ऊपर भी कोई कैसे आंख रख सकता है । तो यह भी समझने की बातें हैं इसीलिए इतना अपना सौभाग्य किसके द्वारा और क्या मिल रहा है वह प्रैक्टिकल अभी चल रहा है तो उसी प्रैक्टिकल चीज को अच्छी तरह से समझ करके और प्रैक्टिकल अपने में अपनाने का पूरा अटेंशन रखने का है तभी हम जो कुछ पाने का है पा सकेंगे तो यह ख्याल रखना और ऐसे पुरुषार्थ करने का अपना पूरा पूरा ध्यान रखते रहना तब अपना जो सौभाग्य है, जो जिस आस में है पुरुषार्थ कर रहे हो ना कोई बड़ी आस है । छोटी आस नहीं है बहुत बढ़िया है इसलिए बहुत बहुत बड़ी आस आ करके बाप ने बताई है इसीलिए कई समझते हैं ऐसे हम कैसे हो सकते हैं चलो कइयों को उसमें भी विश्वास नहीं बैठता है कि ऐसे हम सो देवता और ऐसी दुनिया यह कभी हो नहीं सकती है। वह समझते हैं कि दुनिया तो ऐसी होगी तो करके थोड़ी बहुत अच्छी होगी, करके थोड़ा लड़ाई झगड़ा अभी बहुत है ग्लानि दुख बहुत है करके थोड़ा कम होगा परंतु सदा ही ना हो और सदा सुख हो, सदा शांति हो ऐसा कभी दुनिया में होता ही नहीं है कइयों को तो बिचारों को ऐसा बैठता ही नहीं है लेकिन अभी बाप तो समझाते हैं ना और अभी विवेक में भी आता है ऐसे थोड़ी अंधविश्वास में, नहीं तो बाकी जीवन क्या है। जब रोग और दुख अशांति है तो सुख शांति भी होनी चाहिए नहीं तो उसको शांति वाले कहने की बात ही क्या है । जैसे दुख अशांति भी प्रैक्टिकल है तो सुख शांति भी तो प्रैक्टिकल होनी चाहिए ना। तो प्रैक्टिकल लाइफ होनी चाहिए ना बाकी कहने के लिए थोड़ी है खाली। तो प्रैक्टिकल कैसा होगा, जैसे दुख अशांति प्रैक्टिकल है रोग आदि फलाना फलाना, यह सब होता है उससे दुख है लेकिन यह ना होवे तभी तो सुख होता है ना। ऐसे थोड़ी है कि थोड़ा कम पड़ेगा तो सुख होगा, नहीं होवे ही ना ना । तो ये ही विवेक कहता है कि होना चाहिए ना तो यह सभी चीजें अभी बैठकर के बाप समझाते हैं और जब भी अभी समझ में आती हैं तो ऐसी प्राप्ति के लिए पूरा पूरा उसके ऊपर अपना लगाना चाहिए। तो यह सभी ध्यान रखने की बातें हैं और ऐसा अटेंशन रखकर के पुरुषार्थ रखने का है । अच्छा आज शायद गुरुवार है । गुरुवार कहो और देखो आज सतगुरु, सत तो है ही एक। वैसे गुरु तो बहुत है लेकिन उन्हों को कहेंगे जन्म मरण में आने वाले असत्य बाकी एक ही सत है जो जन्म मरण रहित है और वही मुक्ति जीवनमुक्ति दाता हो सकता है अथवा गति सद्गति दाता हो सकता है क्योंकि वह आत्मा नहीं परमात्मा है ना । बाकी आत्माएं तो सब गति दुर्गति सद्गति सब इस चक्कर में चलने वाली है ना इसीलिए वह तो जन्म मरण में आने वाली है। तो वह तो जन्म रहित तो गुरु भी उसको ही कहा जा सकता है। जैसे परमात्मा एक वैसे गुरु भी एक, गुरु बहुत नहीं है । जैसे गॉड इज वन गुरु इज वन यानी गुरु भी गति सद्गति दाता एक ही है । तो अभी वह एक जो है सद्गुरु वह अभी बैठ करके अपना हमको गति सद्गति का मार्ग बता रहे हैं तो अभी उनकी हम उनको पकड़ा है तो जैसे वैसे कॉमन मनुष्य की बात नहीं है अभी वह अथॉरिटी, तो उस अथॉरिटी को अच्छी तरह से धारण करके, उसके द्वारा जो पाना है उसका पुरुषार्थ रखना है। उसको याद रखते रहो और उसके द्वारा जो लेना है वह लेने का भी पुरुषार्थ करते रहना है। अभी ना लेंगे तो फिर कभी ना लेंगे। यह चांस एक ही बार मिलता है, अब नहीं तो कभी नहीं इसीलिए यह भी ध्यान रखना है अच्छी तरह से । जितना अपने में है उतना अपनी समर्थी लगाते चलो। कौन सी समर्थी है तन से करो धन से करो, मन को तो लगाना ही है और धन से है तो धन से करो जितनी है जिसकी उतना अपना करते चलो और करना ही है और करने से ही बनेंगे। यह चीज बहुत अच्छी तरह से बुद्धि में रखने की है । किसी को दिखाना तो नहीं है, ना शो तो नहीं करना है ना। भगवान को दिखाकर कि तेरे लिए हम करते हैं नहीं, यह तो अपने लिए करना है अपने ही करने की बात है। उस चीज को समझने का पुरुषार्थ करने का ऐसा रखो इसलिए ऐसा चांस मिलता है ना सर्विस में तो ठंडे नहीं रहो, यह चांस थोड़ी घड़ी घड़ी आते हैं यह सब इससे भी पूरा अटेंशन देना है। अभी यह एक सप्ताह का चल रहा है प्रोग्राम , चार-पांच रोज थोड़ा अपना जो समझाना जानते हो और जिन्हों को शौख हो और जिन्हों को प्रैक्टिस करनी हो और जो भी अच्छी तरह से सर्विस करने के लायक भी हैं तो उन्हों को जरा अटेंशन ज्यादा देना चाहिए । चार पांच रोज थोड़ा अटेंशन देकर के टाइम दे करके, शाम के टाइम में सर्विस वाले भी कुछ फ्री रहते हैं और माताएं तो फ्री है ही , रसोई वसोई तो पक जाती है सुबह को फिर शाम का भी कुछ पकाया कुछ किया बाकी थोड़ा बहुत कुछ आ करके अच्छे ढंग से चार पांच दिन का प्रोग्राम रख करके थोड़ा अटेंशन देना। बापदादा और मां की मीठे मीठे सिकिलधे, बहुत अच्छे सपूत बच्चे प्रति और सर्विसेबल, कैसा तुलसीराम? ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग ।