मम्मा मुरली मधुबन             

. 020. Purusharta Aur Pralabda


 

ओम शांति। इसको भी यथार्थ रीति से समझना है कि पुरुषार्थ और प्रालब्ध क्या चीज है । वैसे तो जो कुछ मनुष्य करता है वह उनकी प्रालब्ध बनती ही है लेकिन हमको पुरुषार्थ किस चीज के लिए करना चाहिए और हमारी प्रालब्ध कैसी होनी चाहिए इन सब बातों का भी यथार्थ ज्ञान होना चाहिए । ज्ञान माना समझ और इसी के ही समझ को ज्ञान कहा जाता है। यह जो ज्ञान नाम मशहूर है ना भाई ज्ञान बिना गत नहीं है वह कौन सा ज्ञान है, यही ज्ञान जिस ज्ञान से हम अपने ऊंच प्रालब्ध के पुरुषार्थ को जानें । बाकी वैसे कॉमन तो मनुष्य पुरुषार्थ करते ही रहे हैं । देखो शरीर निर्वाह के लिए, पेट की आजीविका के लिए कोशिश करते ही रहे हैं और जो जो कुछ, कुछ ना कुछ अच्छे काम या जो भी थोड़ा बहुत कुछ करते हैं वह तो करते ही हैं लेकिन यह समझना है कि आखिर भी हमारे जीवन की क्या बस यही प्रालब्ध है जो हम पा रहे हैं। कर्म जो कर रहे हैं उसका भी तो फल हमारे सामने ही है ऐसे नहीं हम जो करते हैं उसका फल कोई और दुनिया में जमा होता जा रहा है नहीं, इसी में ही पा रहे हैं । तो हम देख रहे हैं कि जो हम कर्म करते हैं उसका फल भी हमारे सामने ही है परंतु इस फल में अथवा प्रालब्ध में होते भी फिर भी हमको इच्छा रहती है कि आगे कुछ सुख शांति प्राप्त करें तो वह उनका पुरुषार्थ क्या है उसकी नॉलेज होनी चाहिए । अभी उसकी नॉलेज सिवाय परमात्मा के जो ही हमारे पुरुषार्थ और प्रालब्ध को यथार्थ जानता है उन्हीं के सिवाय और कोई इस चीज को समझाएं नहीं सकते हैं कि तुमको कौन सा पुरुषार्थ करना है जिस पुरुषार्थ को करके फिर तुमको कोई पुरुषार्थ करने की जरूरत ना पड़े। वह पुरुषार्थ कौन सा है और उसको ही कहा जाता है प्रालब्ध जिसे पा करके फिर हमको कुछ पाने की इच्छा ना रहे । यह गीता में भी, गीता के भगवान के वर्संश से है कि मैं तुमको बैठ कर के वह पुरुषार्थ कराता हूं जिसकी तुमको प्रालब्ध वह मिलेगी जिसको पा करके तुमको फिर पाने के लिए ऐसी कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहेगी तुमको मैं वो प्राप्त कराता हूं। तो वह कौन सी प्राप्ति है जिसको पा करके हा फिर हमको पाने के लिए कुछ इच्छा ना रहे। देखो अभी धन है तो भी इच्छा तो रहती है ना फिर भी सुख और शांति की। फिर भी कुछ ना कुछ करते ही रहेंगे धन है तो तो फिर पुत्र ना होगा, फिर पुत्र की इच्छा या फिर पुत्र होगा तो कोई ऐसा होगा जो धन ही और नीचे ऊंचे कर दे फिर कहेंगे भगवान इसको सुमति दे ये कर, फिर या कोई शरीर का रोग होगा, कई फिर कारण हो जाते हैं ना, परंतु नहीं बाप कहते हैं कि तुम्हारी प्रालब्ध इतनी ऊंची होनी है और हो सकती है और मनुष्य के ही पाने की है जिसमें तुमको कोई अप्राप्त वस्तु ना हो यानी सब कुछ प्राप्त हो संपत्ति, शारीरिक सुख, हर तरह की जो भी सब है जिसके ही साथ सुख का संबंध है। सुख का संबंध किसके साथ है रोग ना हो, अकाले मृत्यु ना हो, संपत्ति की हीनता ना हो, यह सभी बातें ना हो, लड़ाई झगड़े ना हो , तो फिर तो जीवन ठीक रहे ना। शरीर में रोग होता है, अकाले कोई मरता है तो दुःख होता है, रोग होता है तो दुःख होता है, धन की हीनता है तो दुःख है, लड़ाई झगड़े हैं तो दुःख है लेकिन यह सभी बातें ना हो फिर तो प्रालब्ध ठीक है ना, तो उसी प्रालब्ध का पुरुषार्थ कौन सा । तो इसीलिए बाप कहते हैं वह पुरुषार्थ और वह प्रालब्ध मैं समझाता हूं कि तुमको उसके लिए क्या पुरुषार्थ करना है जिसमें सब कुछ एवर हेल्दी, एवर वेल्थी, एवर हैप्पी यानी सब कुछ साधन जो है सुख के वह तुमको प्राप्त रहे तो उनका पुरुषार्थ बैठ करके बताते हैं। यह देखो उनकी कॉलेज है, स्कूल है, जो बैठकर के इन्हीं सभी बातों के संपूर्ण प्राप्ति का जो प्रालब्ध है उसको कैसे पाएं उसका बैठ करके यह नॉलेज सिखा रहे हैं । अभी वह तो सीखने और समझने की बात है, ऐसी कोई चीज नहीं है बनी बनाई कि दे देवें। ऐसी कोई चीज होती तो अभी दे देते भाई यह चीज है ले लो या यह चीज है खा लो या यह चीज है ऐसे कर लो, नहीं। यह तो समझना है तो समझने के लिए टाइम देना पड़े तो उस बातों को आ करके समझ करके और उसी समझ से अपने कर्मों को राइटियस वे चलाना है क्योंकि हमारा प्रालब्ध का आधार ही कर्म के ऊपर है । जो हम कर्म कर्म करते हैं उससे हमारी प्रालब्ध बनती है । तो जिसके आधार पर हमारे कर्मों के आधार पर हमारी प्रालब्ध का आधार है तो उसी कर्म का नॉलेज होना चाहिए यथार्थ कि हम क्या करें, क्या करने से हम अपना पूर्ण प्रालब्ध जिसमें हमारी, देखो कोई कुछ होता है शरीर को रोग तो मनुष्य कहते हैं यह भी हमारे कर्म का हिसाब है l, कोई निर्धनता होती है धन की हीनता तो भी कहते हैं यह भी हमारी किस्मत कर्म का है, कोई अकाले मरते हैं तो भी कहते हैं कि यह भी उसके कर्म का हिसाब का किस्मत का है तो फिर भी किस्मत कर्म हर बात में कहने में आता है परंतु उसका ज्ञान होना चाहिए ना कि यह हमारी किस्मत अथवा कर्म कौन से है जिससे यह हमारी उल्टी बातें बनती है। क्यों ना हमको नॉलेज हो तो हम इसका सुलटा बनाए कि हमारे जीवन में ऐसी बातें ना आवे । तो ऐसे नहीं है कि हमारे जीवन में ऐसी जीवन नहीं थी थी, थी परंतु एक ही मनुष्य की नहीं, हमारी दुनिया ही ऐसी थी। दुनिया में कभी रोग नहीं था, ऐसे नहीं है कि अच्छा बेटे को रोग होगा तो बाप को दुःख नहीं होगा ? होगा, अकाले मरेगा तो भी दुःख होगा परंतु नहीं यह तो हर एक चाहिए ना। हर एक ऐसा बलवान चाहिए , हर एक के पास इतनी ऊंच प्रालब्ध चाहिए जो हमारा संसार में सभी सुखी हों तभी तो मनुष्य सुखी हो सकते हैं ना। नहीं तो फिर अगर राजा है प्रजा में कुछ होगा तो दुःख होगा, प्रजा का राजा को कुछ होगा तो दुःख होगा एक दो का संबंध है ना तो हमारे सभी संबंध वालों में सुख की प्राप्ति हो तभी मनुष्य सुखी रह सकता है । तो ऐसी दुनिया थी जिसको ही कहा जाता था हेवेन। हेवेन माना ही क्या, हेवेन में कोई एक आदमी थोड़ी खाली सुख शांति वाला होगा, हेवेन माना हेवेन वर्ल्ड है ना तो वर्ल्ड में माना जो भी मनुष्य है सभी सुखी थे। उनके पास कभी रोग, कभी अकाले मृत्यु, कभी कोई भी लड़ाई झगड़े, यह सभी दुःख के कारण थे नहीं, तभी तो उसको हेवेन कहते हैं ना तो हेवेन भी तो इसी वर्ल्ड का नाम है ना, जैसे हेल, अभी देखो हेल है , हेल कोई दूसरी दुनिया नहीं है या हेवेन कोई ऊपर दुनिया है, कई समझते हैं हेल शायद नीचे है हेवेन ऊपर है ऐसे समझते हैं परंतु नहीं। हेवेन एंड हेल यही वर्ल्ड है, इस वर्ल्ड की स्टेज लाइफ की जैसी बनती है उनको हेल एंड हेवन कहा जाता है । तो अभी कौन सी लाइफ है इसको हेल कहेंगे रोग, निर्धनता, दुःख, अशांति इसको हेल कहेंगे बाकी कोई ऐसी नीचे कोई दुनिया है जिसमें जाकर के हम जीव जंतु बनते हैं, कई ऐसे समझते हैं और हेवेन में ऊपर जाना है ऐसी कोई बात नहीं है। ना ऊपर कोई दुनिया है ना नीचे की बात है, दुनिया यही है लेकिन इसमें लाइफ। हमारी लाइफ नीचे आई है, ऐसे नहीं हम कोई नीचे कोई दुनिया में हैं, चले गए हैं, नहीं हमारी लाइफ नीचे चली गई है अभी फिर उस लाइफ को ऊंचा करने से फिर हमारी ही दुनिया हेवेन होती है तो वह समझना है । अभी हेवेन नहीं है, ऐसे नहीं है हेवेन हेल अभी है। अभी हेल ही है सारी वर्ल्ड, सब अभी हेल निवासी हैं अर्थात हेल के रहने वाले हैं । बाकी जब हेवेन थी तो फिर हेल का नाम निशान नहीं था जैसे रात है तो दिन का नाम निशान नहीं है, जब दिन है तो रात का नाम निशान नहीं है, तो हर एक का अपना-अपना टाइम है ना इसी तरह से जब हेवेन था तो फिर यह दुःख और अशांति की बातें नहीं थी। कभी हे भगवान यह दे, हे भगवान रहम कर, हे भगवान यह कहने की भी दरकार नहीं पड़ती थी, क्यों कहे ? सब कुछ प्राप्त था, जीवन में प्रालब्ध ऊंची थी तो यह सभी चीजों को भी समझना है। तो हमारी, मैं जो आत्मा हूं उनके पास इतना बल था तो यह सभी बातें समझने की है ना। बाकी जो कई समझते हैं कि नहीं आत्मा कोई मोक्ष या कहां जाकर के रहेगी। वहां फिर यह शरीर में ही नहीं होगी तो कोई दुःख ही नहीं पाएगी। नहीं, सुख भी कंप्लीट शरीर में ही है और दुःख भी कंप्लीट शरीर में ही है तो यह सारी चीजों को समझना है। ऐसे नहीं है कि शरीर के बिना हम होंगे तभी सुखी होंगे नहीं, वह कोई स्टेज है ही नहीं । हां जब तलक हमारा पार्ट नहीं है तो उसको कहेंगे साइलेंस, नो दुःख न सुख, वह कोई स्टेज नहीं है। जैसे यह जड़ है । इसको न दुःख है ना सुख है, यह जड़ है तो वह एकदम आत्मा साइलेंस बिल्कुल जितना समय पार्ट नहीं है। वह भी ऐसे नहीं है कि हमको सदा ऐसे रहना है, जितना टाइम वहां हैं क्योंकि ये तो संख्या बढ़ती है ना तो जितना टाइम जिसका पार्ट नहीं है तो साइलेंट में है आत्मा यानी आत्मा बॉडी नहीं लिया है तब तलक। परंतु वह कोई स्टेज सुख की या दुःख की दोनों ही नहीं है ना, ना दुःख ना सुख तो वह फीलिंग नहीं कुछ इसीलिए उस स्टेज को कोई बड़ी ऊंची स्टेज नहीं कहेंगे। स्टेज तब है जब जीवन में मुक्त जिसको जीवनमुक्ति कहा जाता है यानी जीवन में रहते ये सभी दुःख के जो कर्म है इन सबसे मुक्त तो उसको कहेंगे जीवनमुक्त, वह स्टेज तो उसी को हेवेन कहा जाता है। वह साइलेंस में आत्मा बैठी है वह हेवेन नहीं है वह नो हेल नो हेवेन । हेल एंड हेवन नहीं जब तलक पार्ट नहीं है। हेवेन एंड हेल वर्ल्ड का नाम है और वर्ल्ड पर है हेवन एंड हेल। तो इसीलिए कई जो बेचारे मोक्ष का नाम सुना है ना तो वह समझते हैं शरीर से मोक्ष है यानी शरीर से मोक्ष नहीं, हमको दुःख से मुक्ति चाहिए । तो इसका मतलब शरीर कोई हमारे दुःख का ही कारण है ऐसी बात नहीं है इसीलिए कई समझते हैं शरीर से ही मोक्ष ले तो इसका मानो दुःख से ही मोक्ष हो गया परंतु नहीं हम शरीर में होते सदा सुखी थे जिसको जीवनमुक्त कहा जाता है यानी जीवन में दुःख से मोक्ष तो हमको चाहिए दुःख से मोक्ष न ना कि शरीर से मोक्ष। शरीर से भी हम मोक्ष लेना तभी चाहते हैं क्योंकि हमको शरीर में समझते हैं दुखी है ना इसीलिए समझते हैं इसमें रोग, इसमें अकाले मृत्यु इसमें यह, ऐसी ऐसी बातें समझी है तभी समझते हैं इससे मोक्ष हो जाए परंतु मोक्ष कोई हमको शरीर से नहीं होना है और होना भी नहीं है, आत्मा को आना भी है शरीर में परंतु मोक्ष हमको किससे चाहिए दुःख से। तो दुःख से मोक्ष कैसे हो उसी का उपाय समझना हैं । तो राइट बस समझनी है ना, जब तलक बुद्धि में राइट बात ना होवें कि हमको मोक्ष किससे होना है तो कई बिचारे मोक्ष शब्द का भी अर्थ नहीं समझते हैं कि मोक्ष किससे? क्या शरीर से, दुनिया से या हमको दुःख से तो यह समझना है । तो ऐसे नहीं है कि दुनिया माना दुःख ही है क्योंकि आज दुनिया में देखा ही दुःख है ना तो समझते हैं दुनिया है ही दुःख की , जिसने जो देखा है वह समझते ऐसे हैं परंतु ऐसे नहीं हैं । कभी किसी ने सुख देखा ही नहीं है ना, अभी बहुत जनरेशन से दुःख ही देखते आए हैं ना तो समझते हैं शायद दुनिया में है ही दुःख इसीलिए समझते हैं शरीर में है ही शायद दुःख क्योंकि शरीर दुःख के ही देखे हैं ना। परंतु नहीं हमारे शरीर बड़े अच्छे थे और हमारी दुनिया बहुत अच्छी थी जिन्ही का नाम तो हेवेन था ना । तो वह हमारी जो लाइफ थी ना वह सदा सुख की थी और उसी को ही कहेंगे कि हमारा दुःख से मोक्ष जिसको जीवनमुक्ति कहा जाता है। तो यह सभी चीजें को समझना है इसीलिए आत्मा की कंप्लीट स्टेज क्या है, आत्मा क्या है और मोक्ष क्या है, सभी बातों को भी अच्छी तरह से समझना है कि आत्मा को शरीर से मोक्ष की बात नहीं है, आत्मा को दुःख के इस बंधन से मोक्ष चाहिए, तो वह कैसे छूटे। आत्मा का कोई क्वालिटी दुःख नहीं है, आत्मा प्यूरीफाइड है और प्यूरीफाइड का सुख का ही है परंतु आत्माएं इम्परीफाइड हुई है उसके कारण उसके पास दुखा आया है । अभी इंप्यूरिफिकेशन से आत्मा अपने को अलग कर देवें यानी प्यूरीफाइड हो जावे तो फिर हां आत्मा को सुख प्राप्त रहेगा लेकिन वह कैसे होवे इन सभी बातों को समझना है तो हमको मोक्ष किससे चाहिए इससे इंप्योरीफिकेशन से। इंप्यूरिफिकेशन ही कारण है दुःख सुख का, प्यूरिफिकेशन सुख का कारण है इसीलिए कहने में भी आता है ना प्योरिटी तो पीस एंड प्रोस्पेरिटी नो प्योरिटी देन नो पीस नो प्रोस्पेरिटी। तो हमको फर्स्ट क्या चाहिए आत्मा में , प्योरिटी तो प्योरिटी के आधार से ही हम सदा सुख को पा सकते हैं । तो अभी हमको मोक्ष किससे चाहिए, आत्मा को शरीर से नहीं, आत्मा को दुःख से । तो हमको दुःख से मोक्ष कैसे मिले, दुःख देने वाला शरीर नहीं है चीज, दुःख किसने दिया है, विकारों ने, इंप्यूरिफिकेशन क्या है ये विकार। तो हमको मोक्ष किससे चाहिए, विकारों से, रावण से । बदलाया ना वह रावण ये जो दस शीश का दिखलाते हैं न यह विकारों का सिंबल है। तो यह सिंबल जो है विकारों का तो इन विकारों से हमको मोक्ष चाहिए परंतु शरीर से मोक्ष की बात नहीं है । इसीलिए कई जो हठयोग, प्राणायाम या कई साधन करते हैं कि हम शरीर से ही निकल जाए, नहीं। हमको शरीर से निकलने की बात नहीं है, हमको है दुखों से छूटना तो दुःख से छूटना माना इंप्यूरिफिकेशन से छूटना । वह कैसे छूटे उसका उपाय चाहिए । अभी उसकी यह कॉलेज है । यह इंप्यूरिफिकेशन को कैसे नाश किया जाए और प्यूरिफिकेशन को कैसे अपने में लाया जाए तो प्यूरिफिकेशन से पावर आएगी और उसी पावर से हम अपनी ऊंच प्रालब्ध को बना सकते हैं तो यह सारी चीजों को समझना है । अभी इसके लिए जरा टाइम चाहिए क्योंकि कभी-कभी नए आते हैं तो जरा यह समझाना होता है एंड ऑब्जेक्ट, कि अपनी लाइफ की ऐम क्या है लेकिन उसके लिए हमें क्या करना चाहिए वह तो फिर बकायदा आ करके, टाइम दे करके, सुनेंगे, समझेंगे तो काफी अपने जीवन में फर्क महसूस करेंगे, परिवर्तन और समझेंगे कि हमारी लाइफ आगे चलती जा रही है और समझना जरूरी है, अच्छा 2 मिनट साइलेंस।