मम्मा मुरली मधुबन           

022. Sadguru Se Varsa Lene Ki Vidhi


 

रिकॉर्ड :

तुम ही हो माता पिता तुम्हीं हो तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो.......
ओम शांति। ऐसी महिमा कोई मनुष्य की नहीं होती है। गीत में सुना ना कि त्वमेव माता च पिता त्वमेव अर्थात तुम मात पिता बंधु सखा सब तुम हो तो यह कोई मनुष्य की महिमा नहीं है। ऐसी महिमा कोई भी मनुष्य को नहीं दी जा सकती भले देवता हो ना तो देवता की भी ऐसी महिमा नहीं की जा सकती है क्योंकि देवता भी समझो श्रीनारायण है तो उनका बच्चा तो वह भी उसकी महिमा ऐसे थोड़ी ही तू ही माता-पिता या ऐसे कुछ जैसे हर एक के अपने मां-बाप होते हैं वैसे देवताओं के भी बच्चे वो उनके मां-बाप परंतु इस किस्म की महिमा एक ही परमात्मा की है । कोई भी देवता की या कोई मनुष्य की यह महिमा नहीं की जा सकती है । परंतु परमात्मा की भी क्यों महिमा है, किसलिए महिमा है वह समझना है । उसको हम क्यों कहते हैं तुम माता-पिता हम बालक तेरे ऐसी ऐसी महिमा क्यों देते हैं, कभी तो हमारे जरूर है कि माता पिता बंधु सखा सबका आ करके उसने संबंध का साथ दिया है तब तो गाते हैं ना बाकी ऐसे नहीं परमात्मा की कोई ऐसी ही महिमा है खाली। महिमा का भी कोई अर्थ चाहिए ना, बिना अर्थ के तो मतलब गाते रहें और बोलते रहें कोई मीनिंग नहीं हो तो उसमें भी कोई रहस्य तो रहा ही नहीं । तो जो भी हम परमात्मा की महिमा भी गाते हैं तो यह भी हमें मालूम होना चाहिए कि उसकी महिमा किस आधार पर है । कोई मनुष्य की भी महिमा होती है तो भी.., भई गांधी है उसकी महिमा है, भाई क्यों है उसने ऐसा अच्छा काम किया कि हां भई ब्रिटिश गवर्नमेंट से यह भारत को स्वतंत्र बनाया तो अच्छा काम किया जनता के लिए भारत के लिए तो चलो भाई हां भाई उसकी तभी ऐसी महिमा है, नेहरु था फलाना था जिसने भी जो जो काम किए। इसी तरह से परमात्मा की भी जो हम महिमा गाते हैं तो उनका भी तो हमें ज्ञान होना चाहिए कि क्यों उसकी महिमा किस आधार पर है, उसने हमारे लिए क्या किया है । जरूर हमारे लिए कुछ किया हो तब तो हम उसकी भी महिमा गाए तो हम परमात्मा की भी इस तरीके से जो महिमा गाते हैं तुम माता तुम पिता तुम बंधु तुम सखा तुम सब तो क्यों उनको तुम सब क्यों कहा है उसने हमारे तुम सब बन के यानी सभी संबंध का हमको क्या उसने फायदा दिया है तब तो हम उसकी महिमा भी यथार्थ समझे ना। तो अभी देखो अर्थ से अपन जानते हैं तो यह तो महिमा भक्ति मार्ग में ऐसे करते आए हैं लेकिन अपने पास अभी इसका ज्ञान है यथार्थ कि उनकी महिमा क्यों है क्योंकि उसने आ करके अभी इस टाइम पर यह जो प्रेजेंट टाइम है जिसको ही कहा जाता है कलयुग दुनिया के अंत का समय और सत्य की नई दुनिया की आदि का समय जिसको संगम का टाइम कहा जाता है तो उसी टाइम पर आ करके उसने हम आत्माओं मनुष्य आत्माओं को यह सहारा दिया है दुःख के टाइम पर इसीलिए उसका गायन है पतितो को पावन करने वाला आदि आदि तो उसने आकर के प्रैक्टिकल में यह सहारा दिया है तब कहते हैं ना तू सबका माता पिता बंधु सखा सबका तू एक सहारा । तो एक सहारा तो जरूर कोई सहायता की है ना किसी बात में सहारा दिया है । सहारा किसमें दिया है जो हम यह दुःख अशांति की दुनिया में जो माता-पिता लौकिक और कोई भी संबंध को सहारा नहीं दे सकता है वह तो जो जिसने जो कर्म किया है वह पाता है उसमें मां भी क्या करेगी पिता भी क्या करेगा, पति भी क्या करेगा, पत्नी भी क्या करेंगे, राजा क्या करेगा, प्रजा क्या करेगी देखो करते हैं कुछ? कोई किसी का क्या कर सकते हैं, वह तो सबको अपने अपने कर्म का खाता भोगना ही है। इसी में हां भले एक दो का मां-बाप है बच्चे का, अच्छा पढ़ाएंगे लिखाएंगे तो उसको लाइक बनाने के लिए परंतु कोई कर्म की ऐसी बात हो जाती है तो बाप होते भी क्या करेंगे, तो वो कहेंगे ना तकदीर, किस्मत तो यह सभी बातें फिर भी किस्मत और तकदीर के ऊपर आती है लेकिन यही एक बाप है जो हमारी तकदीर और किस्मत को बदला करके पल्टा करके ऊंच भी बना सकते हैं और हमारी ऊंच प्रैक्टिकल में आ करके बनाते हैं। तो उसने जो काम किया है वह किसी ने नहीं किया है , मनुष्य आत्मा के करने का नहीं है इसीलिए उसकी महिमा है कि ऐसे टाइम पर जबकि हम दुःख और अशांति में गिर चुके हैं और अभी हमारी तकदीर फूटी हुई है एकदम यानी दुःख अशांति में पड़े हैं जिसमें कोई भी हमारा अपना सहारा नहीं है उस टाइम पर आ करके तुम सहारा बनते हो कि हमारे कर्म की तकदीर जो फूटी हुई है उसको आ करके फिर जगाते हो अर्थात ऊंची तकदीर बनाते हो। तो तकदीर बनाने वाला हो गया ना, इसलिए उसकी महिमा कि तुम हमारे सब कुछ हो। माता-पिता यह सभी रिलेशंस जो है वह सभी रिलेशन अभी तुम्हारे से ही, तुम्हारे से ही हमको सभी रिलेशंश का सहारा पूरा मिलता है इसीलिए उसका गायन है । तो उनका गायन भी किसी कर्तव्य और हमारे से रिलेशन निभाने के ऊपर है बाकी ऐसे ही मुफ्त में नहीं है कि ऐसे ही उसकी महिमा करते रहें या गाते रहें तो कोई अर्थ है। अर्थ भी कैसे हैं, उसने कभी हमारा आ करके ऐसा कर्तव्य किया है वो बैठकर समझाते हैं कि ऐसे टाइम पर जैसे अभी आया हुआ हूं तो यह मैं आकर के जो कर्तव्य किया है यह उसकी यादगार है फिर अभी मेरा टाइम आया हुआ है मैं आया हूं, यह कहा है कि जब जब ऐसा टाइम होता है तब तब मैं आता हूं तो कोई कर्तव्य का संबंध रहा ना। तो देखो अभी वह संबंध प्रैक्टिकल में हम लेते भी हैं उसका जानते भी हैं और फिर इन्हीं सभी बातों के अर्थ को भी अभी समझते हैं। तो बाप बैठकर के इन्हीं का ही अर्थ बाप बैठकर के समझाते हैं की देखो भक्ति मार्ग में तुम यह जो गाते आए हो तो खाली बिना अर्थ के गाते हो। अभी प्रैक्टिकल में आते भी हो और प्रैक्टिकल में इन बातों को जानते भी हो । तो अभी देखो हम जानते भी हैं की भक्ति मार्ग में भी प्रेक्टिकल जो हम गाते आए उनका अर्थ क्या था वह भी जानते हैं और अभी प्रैक्टिकल में फिर उनके संबंध में भी आते हैं तो वह हमारे बाप भी और टीचर भी और सतगुरु भी और वही धर्मराज भी है। वही जानते भी हैं ना कि जो भी कुछ हमारे पाप कर्म है उनकी सजा आदि की भी अथॉरिटी तो वही है ना भले ही करन करावनहार है जैसे विनाश शंकर द्वारा, स्थापना ब्रह्मा द्वारा, पालना विष्णु के द्वारा यह सभी है करन करावनहार है इसी तरह धर्मराज के द्वारा सजाएं परंतु अथॉरिटी तो वही है ना । तो अथॉरिटी तो उसको ही कहेंगे कि वही एक अथॉरिटी है जो हमारे सभी बातों के अथॉरिटी वाला उनको ही कहा जाता है इसीलिए कहा जाता है मैं वो अथॉरिटी अभी स्वयं आ करके तुम्हारा बाप भी बनता हूं और टीचर अभी देखो शिक्षा दे करके ये देखो अभी शिक्षक भी बनता हूं। मैंने कॉलेज अथवा स्कूल यूनिवर्सिटी कहो ये खोला है इस नॉलेज के लिए तो मैं टीचर भी हो गया ना इस विद्या को देने वाला। तो शिक्षक भी हूं और बाप भी हूं और सद्गुरु तो हूं ही गति सदगति तुम्हारे को पूरा माया से लिब्रेट करके लिब्रेटर तो देखो मैं बनता हूं ना, तो गुरु भी गति सद्गति दाता उसको ही कहा जाता है जो माया की बॉन्डेज से छुडावे। तो माया की बॉन्डेज यानी विकारों का यह जो बंधन चढ़ा है उससे छुड़ाने वाला एक ही है ना उनको ही गुरु कहते हैं। गुरु का अर्थ ही है गति सद्गति करने वाला । गुरु का और कोई मीनिंग ही नहीं है । वैसे तो बहुत गुरु हैं, डॉक्टर भी डॉक्टरी का गुरु है, इंजीनियर भी इंजीनियरी का गुरु है क्योंकि इंजीनियरी नॉलेज देता है, भाई काहे का गुरु, किसका देने वाला है भई..... ऐसे गुरु कहें तो बल्कि भारत में तो हिंदू नारी का पति भी गुरु है। भई कहते हैं ना, नारी को कहते हैं भाई तेरा पति गुरु भी है, परमेश्वर है, परमात्मा है, सब कुछ है तुम्हारा सब कुछ है । हिंदू नारी के लिए तो सब पति गुरु ही हो गया गुरुओं की तो ऐसे कमी नहीं है। परंतु नहीं गुरु नाम जिसका है ना गति सद्गति दाता जिसको कहा जाता है वह एक ही है और गुरु कहना अर्थ भी उसको ही है, जैसे परमात्मा एक को ही कहा जा सकता है कोई मनुष्य को परमात्मा कहने का हक नहीं है और कह भी नहीं सकते हैं और ना परमात्मा कोई मनुष्य है, नहीं परमात्मा तो एक ही है ना इसी तरह से गुरु भी वही है। किसी को हक नहीं है गति सद्गति का गुरु कहलाने का परंतु आज कहलाने वाले बहुत हैं । भाई कॉमन भी कई गुरु करते हैं तो समझते हैं कि भाई गति सद्गति के लिए करते हैं । काहे के लिए गुरु करते हैं भाई गति सद्गति के लिए नहीं तो हमारा मोक्ष कैसे होगा। वह समझते हैं खाली नाम मात्र गुरु कर देने से हमारा मोक्ष हो जाएगा , रास्ता क्लियर हो जाएगा , मरेंगे तो ठीक चले जाएंगे उधर वह ऐसे समझते हैं इसीलिए गुरु कर लेते हैं। परंतु नहीं, गुरु खाली नाम मात्र करने की तो कोई बात ही नहीं है ना। गुरु तो वही है जो हमको गति सद्गति का मार्ग प्रैक्टिकल बतलाते हैं, नॉलेज देते हैं और जिस पर फिर प्रैक्टिकल हम चपकरके और अपनी गति सद्गति हम करते हैं तो उनको ही कहा जाएगा ना गति सद्गति दाता । तो यह चीजें समझने की है इसलिए परमात्मा भी एक है तो गुरु भी एक है यानी वही परमात्मा ही गुरु है और फिर हमारे को भी जो सारी नॉलेज है उसको देने वाला भी वही है, दूसरा कोई यह ज्ञान दे नहीं सकता। ज्ञानदाता जो है वही गति सद्गति दाता है , ऐसे नहीं ज्ञान दूसरे देंगे और गति सद्गति वो करेंगे , नहीं ज्ञान भी वही देता है उसकी नॉलेज भी वही समझाएगा तो ज्ञान दाता भी वो और गति सद्गति दाता भी वही । तो यह सभी चीजें हैं जिसको बुद्धि में रखना है अच्छी तरह से और उसी को ही हमने पाया है अर्थात हमारा संबंध अभी उनके साथ हुआ है कोई कॉमन मनुष्य के साथ नहीं है अभी उनके द्वारा हम ये नॉलेज को पा करके अपना प्रेक्टिकल गति सद्गति प्राप्त करने का ये यत्न रख रहे हैं। तो यह सभी चीजें बुद्धि में होनी चाहिए कि जैसे कॉमन गुरु हम करते हैं या कॉमन सत्संगों में जाते हैं बहुत तो यह कोई उसी तरीके से भी कोमल आश्रम है या कोई संस्था है या यह भी कोई अपना धर्म प्रचार करने वाली एक संस्था निकली है जैसे कई ऐसे समझते हैं तो यह कोई हमको अपने धर्म का प्रचार करना है या कोई ये एक धर्म कोई नया निकला है ऐसी भी बात नहीं है । यह तो परमात्मा अपना आकर के नई दुनिया स्थापन करने का काम कर रहा है। इसमें कोई नए धर्म जैसे कई धर्म ये आर्य समाज धर्म, राधास्वामी धर्म पिता काशी धर्म बहुत अनेकानेक नाम है ना वह समझते हैं यह भी एक धर्म ब्रम्हाकुमारीयों का एक धर्म निकला है। तो ऐसा नहीं कि ब्रह्माकुमारियों का कोई धर्म अपना निकला है या जैसे और कॉमन सत्संग या और भी कई बातें निकलती हैं या कई आश्रम खुलते हैं तो यह भी एक नया आश्रम खुला है या कोई धर्म निकला है या कोई ऐसी बात नहीं , यह तो स्वयं परमात्मा जो हमारे रचता हैं और जिसने ही कहा है कि मैं आता हूं जब अधर्म विनाश करने का टाइम है और तब आ करके मैं अपना सत धर्म स्थापन करता हूं तो यह इनका कार्य हो गया ना । बाकी ये कोई कॉमन संस्था या आश्रम मत समझना । तो यह भी चीजें बुद्धि में होनी चाहिए क्योंकि कई बिचारे ऐसे समझ करके आते हैं परंतु नहीं यह कोई कॉमन आश्रम नहीं है क्योंकि यह परमात्मा का कर्तव्य है और परमात्मा का बहुत थोड़ा टाइम विजिट है । तो वह हमारे विजिट पर आए हुए हैं यानी भारत में पधारे हैं परमात्मा अपना उसका जन्म स्थान भारत है। वह अपना अवतरण कहते हैं ना "यदा यदा ही धर्मस्य... कहा हैं ना गीता में भी, जब जब अधर्म होता है तब मैं आता हूं, कहां आता है? तो यह भी समझना है कि उनका आने का है ही भारत में क्योंकि वह आते ही है भारत का आदि सनातनी धर्म स्थापन करने बाकी कोई क्रिश्चियन धर्म या बुद्धिज्म धर्म या इस्लामी धर्म नहीं बनाने आते हैं वह आता ही है भारत का आदि सनातनी धर्म स्थापन करने जिस धर्म को ही कहा है सत धर्म यानी वही धर्म श्रेष्ठ था सबसे तो परमात्मा श्रेष्ठ काम करने आएंगे ना, वो क्रिश्चियन धर्म तो क्राइस्ट से होगा ना वह तो क्राइस्ट के द्वारा स्थापन हुआ है उसका अभी एंड हो करके फिर भी स्थापन होगा तो क्राइस्ट आकर के करेंगे बाकी उन धर्मों के लिए नहीं कहा है । उन्होंने कहा है वह जो दुनिया में एक धर्म और एक राज्य वाला जो धर्म था वह कौन सा था, यह देवी-देवता धर्म तो इसीलिए बाप कहते हैं मैं आता ही हूं उसके लिए । तो यह अभी उनका काम है तो यह उनकी कोई ये आश्रम कॉमन नहीं है, ना कोई बहुत टाइम जैसे आश्रम चलते रहते हैं सत्संग बहुत काल से चलते रहते हैं यह कोई बहुत काल चलने वाली है नहीं। कहें तो अगर एक ही सत्संग है, सत का संग, सत कहा ही जाता है परमात्मा को बाकी तो सब मनुष्य असत्य ही हैं ना फिर उसमें गुरु भी आ गए, सब आ गए क्योंकि वह भी तो जन्म मरण में आने वाले हैं ना, वह गुरु तो जन्म मरण में नहीं आने वाला है ना तो वह सतगुरु, तो सतगुरु का ही सत्संग एक ही बार होता है तो वास्तव में सत्संग एक बार होता है बाकी सत्संग है ही नहीं। वह तो है ही बाकी जन्म मरण में आने वालों का संग उसको कहेंगे असत्य संग बाकी सत का संग तो मिलता ही एक बार है । तो अगर सत्संग कहें ना तो एक ही बार होता है । अभी बस यही सत्संग है बाकी तो कोई सत्संग है ही नहीं ना। सत का संग ही अभी मिलता है , सत बाप, सत टीचर सतगुरु तो मिलता ही अभी है। वह कहते हैं मैं आता ही अपने टाइम पर हूं मैं कोई आगे आता ही थोड़ी रहा हूं नहीं, मैं आया ही अभी हूं तो तुमको मिला कहां से इसीलिए कोई सतगुरु मिला ही नहीं ना तुमको, मैं ही अभी आया हुआ हूं और मैं मिलता ही अभी हूं इसीलिए सत्संग भी अभी होता है । नहीं तो इतना समय यह जो भक्ति मार्ग के जो भी नाम सत्संग देते आए हैं वह तो असत्य संग है यानी मनुष्य का थोड़ा कुछ ना कुछ शास्त्र का फलाने का फलाने का कुछ ना कुछ सहारा कोई रामायण सुनाएगा कोई गीता सुनाएगा कोई वेद सुनाएगा चलो कुछ ना कुछ यह करते आए वह तो सब अल्प काल की ये तो भक्ति मार्ग का है लेकिन सत जो बाप है जब उनका संग मिलता है वह तो बेड़ा पार कर देते हैं ना वह तो एकदम पार गति सद्गति में ले ही जाता है। बाकी मनुष्य जो है वह कोई गति सद्गति में ले नहीं जाते हैं इसीलिए उनको सत्संग नहीं कहेंगे। तो यह सभी चीजें समझने की है कि सत्संग होता ही एक बार है। तो अभी यह है सत का संग। सतगुरु आया है, जब सतगुरु आवे तभी सत्संग होवे, सतगुरु के बिना सत्संग किसका होगा हां? बाकियों का तो सत्संग नहीं है ना। वह तो कुछ ना कुछ जैसे कोई कुछ पढ़ाते हैं वैसे ही yah शास्त्र ग्रंथ थोड़ा बहुत पढ़ाते हैं लेकिन उनको कोई सत संग, सत्य का कोई प्रैक्टिकल संग हो जाए और उससे प्राप्त हो जाए वह चीज नहीं है । तो इसीलिए सत का संग सत खुद ही आ करके कराता है जो सतगुरु है इसीलिए सतगुरु ही अभी आया है और ये उसने अपना सत का भी संग दे रहा है तो उनके ही सत के संग को सत्संग कहेंगे। तो यह सभी चीजों को भी समझना है इसलिए बाप कहते हैं यह बहुत टाइम नहीं चलने का है। मैं आता हूं तो बस एक ही बार उसमें सब प्राप्ति करा करके फिर सदा के लिए तुमको सुख रहता है, फिर तो तुमको बैठकर सत्संग करना या यह माथा खोटी करने की दरकार नहीं है । मुझे भी याद करने कि फिर तुम्हें जरूरत नहीं है क्योंकि मुझे याद करना ही तब पड़ता है जब दुःख और अशांति में हो तभी हे भगवान कहते हो। फिर तुमको सदा सुख होगा तो कहते हैं ना सुख में सिमरन करने की दरकार ही नहीं रहती है। दुःख में फिर याद करते हो, सुख में मुझे जरूरत नहीं है तो इसीलिए मैं आता हूं तुमको सदा सुखी बना करके और सदा सुख में रहते हो। ऐसे कर्म बुरे करते ही नहीं हो फिर जो तुमको कुछ बुराई का दंड पाना पड़े और जो दुःखी हो और फिर चिल्लाओ तो फिर चिल्लाने की बात रहेगी ही नहीं। तो यह सभी चीजें हैं जिसको अच्छी तरह से समझ करके अभी उसी चीज का लाभ लेना है तो बाप की भी महिमा को यथार्थ समझने का है ना। तो ऐसे बाप की महिमा को खाली समझना नहीं है, बाप से संबंध रखने का है और उसका प्रैक्टिकल बनकरके सपूत बच्चा बनकर के प्रैक्टिकल एक्शंस में अथवा कर्म में आने का है अथवा अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाना है। तो अभी बना रहे हो ना अच्छी तरह से, ध्यान देते हो ना अपने पर क्योंकि यह खाली ऐसे ऐसे सुनने का नहीं है, प्रैक्टिकल आने का है ना तो अपना सारा दिन अपने प्रैक्टिकल कर्म के ऊपर अटेंशन रखना है कि आज मैंने सारे दिन में क्या किया, अच्छा बिताया ? कोई लोभवश कोई मोहवश, कोई कामवश, कोई क्रोधवश ऐसा तो कोई उल्टा काम नहीं किया? तो सारा दिन का अपना रखना है पोता मेल, हिसाब किताब, चार्ट, दिनचर्या पूरा हिसाब अपने पास तभी हमारी जीवन आगे बढ़ती चलेगी । अच्छा 2 मिनट साइलेंस । यह तो हम अपने कर्म को बुरे बनाते हैं तो उसकी पनिशमेंट तो जरूर मिलेगी ना। तो अपने पर दया करने की है ना उससे दया मांगने की तो वह तो है ही दयालु उसको कहते ही है। वह कोई हमारे से या ऐसे ही थोड़ी कुछ करता है, वह तो हम अपने बुरे कर्म बनाते हैं तो उनकी सजा पानी ही है। तो इसीलिए उनको कहना कि तू हमारे पर दया की दृष्टि, वो कोई हमारे पर दया थोड़े ही करते हैं, उनकी तो है ही दया परंतु यह भक्ति मार्ग में बेचारे दया करो कृपा करो, जाएंगे ना किसी गुरु संत महात्मा के पास तो भी कहेंगे दया करो कृपा करो, बस वो हिरे हुए हैं ना तो दया करो, दया करो की तो बात ही नहीं है। वह तो है ही दयालु, उसको कहना दया करो तो क्या अदया करते हैं क्या जो दया करें। किसके ऊपर अकृपा करता हो तो कहे भाई मेरे पर कृपा करो, वह तो है ही कृपालु ना, उसके लिए तो जनरली और सबके लिए है ही वह, उनके लिए ऐसा कहना कि करो तो उसकी माना किसीके ऊपर अकृपा करता हो तभी तो कहते हो ना मेरे पर कृपा करो , नहीं वह तो है ही । वह कहते हैं अपने पर कृपा करो। तू अपना कर्म अच्छा बना तो तेरा उससे ही तो यही कृपा है ना, तो कृपा भी कोई ऐसा नहीं आशीर्वाद दया कृपा उसका ऐसा अर्थ नहीं है। यह दया कृपा भी यही पुरुषार्थ है । अपने को भी पुरुषार्थ करना है और दूसरा भी तो पुरुषार्थ ही कराएगा ना बाकी दया करो, क्या करें? वह भी कहेगा भई पुरुषार्थ करो, अच्छे कर्म बनाओ बस यही दया है ना और क्या? बाकी क्या और कोई हाथ फिराना कुछ उसकी तो बात ही नहीं है। पुरुषार्थ करना वह अपनी दया है और कराने वाला भी पुरुषार्थ कराएगा वह उसकी दया है । तो यह सभी अर्थ को समझने का है । अच्छा। जिनको दो आंखें हैं वह होते भी जैसे अंधे हैं हम तो ना होते हम सब जानते हैं तो उनको खुशी रहती है कि हम सब नॉलेज को जानते हैं । बाप को याद तो बुद्धि से करना है ना कोई आंखों से तो देखने की बात नहीं है तो यह सभी चीजें समझने की है। तो अपना थर्ड आई ऑफ विजडम जिसको है उसको ज्ञान नेत्र वह सज्जा है। यह नेत्र होते भी जो जानते नहीं तो होते भी अंधकार में है । तो कहेंगे होते भी अंधे हैं इसीलिए सारी दुनिया अभी ब्लाइंड है क्योंकि यह जानती नहीं है ना और जो जानते हैं वह तो, उनको तो यह थर्ड आई ऑफ विजडम के ऊपर ही मदार है । तो ज्ञान नेत्र तो मिला है ना अच्छी तरह से, उसको पकड़ के रखो अच्छी तरह से। यह तो कर्म के हिसाब से है कोई हिसाब किताब से यह सभी कर्म का आंख के ऊपर, कान के ऊपर, नाक के ऊपर, कान के ऊपर आता है। इसीलिए तो यह कर्मों के खाते को भी अच्छा बना रहे हैं ना फिर हम को सब प्रूफ मिलेगा यानी कभी किसमें खराबी नहीं होगी ना आंख में न कान में किसी में नहीं सब रूष्ट पुष्ट, तंदुरुस्त। शरीर भी अच्छा कभी कोई रोग नहीं, कोई तकलीफ नहीं सब कंप्लीट। तो यह कंप्लीट सब तब होगा जब पहले हम आत्मा कंप्लीट प्यूरीफाइड बन जाएंगे । अच्छा। अच्छा, कैसे हैं माताजी? माताजी आ गए हैं हां, कभी-कभी आते हैं । अभी यह भी आती है शायद दो-तीन है तभी आज एक दिखाई पड़ती हैं । अच्छा।अरे किसी चीज का शौक होता है ना तो कितनी भी दूर हो ना तो भागेंगे, ऐसा है ना । कभी कोई चीज का लगन होता है , शौक होता है तो कितना भी दूर हो , लंदन में देखो तो कोई पढ़ाई पढ़नी है तो फिर लंदन भी चली जाएंगे , दूर है ? सीखना है, कुछ पाना है तो फिर तो कोई बड़ी बात नहीं है।