मम्मा मुरली मधुबन           

024. Shreshtacharee Banane Ka Gyan - 2


 

रिकॉर्ड :

आज के इस इंसान को यह क्या हो गया....
ओम शांति। अपने देश का, यह भारत देश, इसको कहा ही जाता है प्राचीन देश । प्राचीन, यह आदि सनातनी, शुरू से लेकर, तो शुरू से भारत ऐसा नहीं था जैसा आज है। बड़ा ऊंचा, ऊंचा का मतलब है लाइफ मनुष्य की बहुत ऊंची थी। ऊंची लाइफ का मतलब है कि मनुष्य को अपने लाइफ के सुख के साधन सब थे, आज तो नहीं है ना। नो हेल्थ, नो वेल्थ, एवरीथिंग में कोई हैप्पीनेस का नहीं है यह लड़ाई झगड़े ये सब देखो, तो यही अभी अभी की ही बातें, जो ब्रिटिश गवर्नमेंट के आदि के समय की बातें हैं तब का हाल, फिर अभी भले स्वतंत्र हुआ लेकिन फिर भी जो चीज बनने की थी वह तो नहीं बन पाई है ना । तो यह सभी बातें दिखाती हैं कि अपना देश दिन-ब-दिन नीचे पड़ता जा रहा है । तो आगे ऊंचा था, मनुष्य की लाइफ क्या थी इन सब बातों को भी समझना है और वह बना था तो कैसे बना था वह भी समझना है, वह कैसे बनेगा क्योंकि बनाने की तो बिचारे कोशिश तो बहुत ही करते हैं लेकिन इन बिचारों को पता नहीं है कि वह जो प्राचीन भारत जिसका नाम है और जिसमें सब बल था और हम सब सुखी थे तो वह कैसे थे, ऐसा भारत किसने बनाया अथवा जिस समय सुखी भारत था, सारी दुनिया सुखी थी, खाली भारत की बात नहीं है सारी दुनिया। तो यह भी सभी समझने की बातें हैं कि ऐसी दुनिया को सुखी किसने बनाया तो वह भी समझना है ना बातें। अभी वह बाप बैठकर के परमात्मा समझा भी रहे हैं और प्रैक्टिकल में वह चीज कैसे बनी थी, वह बना रहा है क्योंकि वह बनाई थी परमात्मा ने मनुष्य के बनाने की नहीं है । यह तो अभी सब उपाय मनुष्य के हैं ना तो वह मनुष्य नहीं कर सकेंगे । मनुष्य में सब आ गए साधु, संत, पंडित विद्वान सब आ गए , बिचारे सब तो कोशिश करते हैं ना। कोई ईश्वरीय मार्ग खोल कर बैठे हैं, कोई सांसारिक पदार्थों की और अच्छी तरह से कोशिश कर रहे हैं आज देखो ये साइंस कितनी जोर से जा रही है। चंद्रमा, सूर्य आदि बहुत ऊंचे ऊंचे जाने के सब यह प्रयास कर रहे हैं। तो मनुष्य हर तरह की कोशिशों में अपना लगा तो रहे हैं कि संसार के लिए कोई कुछ मिल जाए जिससे मनुष्य की लाइफ में कुछ आ जाए लेकिन वह चीज दिन-ब-दिन लाइफ गिरती जा रही है तो इससे सिद्ध होता है कि उसके बनाने की अथॉरिटी कोई और है । अभी और कौन सिवाय हमारे परमपिता के और कोई तो हो भी नहीं सकता इसीलिए तो उसको कहा न वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी । अभी वह अथॉरिटी बैठ करके समझा रहे हैं हम सबको और फिर वह अथॉरिटी बल दे रहा है कि किस तरह से तुम लायक बनो । तुम लायक बनो ना ऐसे सर्व सुखों को पाने के तब तो तुम्हारे पास सुख भी आए ना, अभी लायक कहां हो। नालायक बच्चे थोड़ी ही सुख पा सकेंगे इसीलिए कहते हैं पहले तुम लायक बनो तो प्रकृति अथवा सभी सुख के साधन तुम्हारे को सुख देने में आ भी सके ना। अभी तो तुम लायक नहीं हो, काहे के लिए लायक नहीं हो कि तुम्हारे कर्म भ्रष्ट हैं, जिसको कहा जाता है कर्म भ्रष्ट, भ्रष्टाचारी कहते हैं ना दुनिया को तो आज सारी दुनिया की हालत है ना । तो हां यह है भ्रष्टाचारी दुनिया, तो भ्रष्टाचारी दुनिया कहो, कर्म भ्रष्ट दुनिया कहो चाहे इनको रावण राज्य कहो बात एक ही है । रावण का मतलब ही है विकारों की दुनिया इसीलिए मानो अभी विकारों का राज्य है। मनुष्य के ऊपर अभी पावर किसकी है विकारों की, पांच विकारों पावर रख बैठे हैं मनुष्य आत्मा के ऊपर इसीलिए अभी विकारों का राज्य यानी उसके बस है मनुष्य, इसलिए जो भी काम चल रहा है संसार का विकारों से इसीलिए मानो यह रावण का राज्य हो गया ना विकारों का । तो बाप कहते हैं अभी जब तलक इन विकारों का राज्य है तब तलक तुम सुखी कैसे रह सकेंगे। यह विकार तुमको सुखी रहने नहीं देंगे और यही है तुमसे पाप कराने वाले, यही है तुमसे भ्रष्ट कर्म कराने वाले तो भ्रष्ट बनाते हैं यह विकार। अभी इसीलिए बाप कहते हैं जो चीज तुमको भ्रष्ट बना रही है, ऐसे नहीं है कि तुम सदा भ्रष्ट थे या सदा भ्रष्टाचारी हो, यह तुमको भ्रष्ट बनाया है इन विकारों ने , अभी इनको निकालो तो फिर तुम्हारे से यह भ्रष्टपन निकल जाएगा तो तुम श्रेष्ठ हो जाएंगे ना फिर श्रेष्ठ को ही तो सदा सुख मिलेगा ना । भ्रष्टाचारी को कैसे सदा सुख मिलेगा, मिल ही नहीं सकता। तो आज तुम दुःखी हो, अशांत हो, तुमको पूरा अपना मिलता ही नहीं है शरीर के जो सुख के साधन है, इसी का कारण यही है कि तुम अपने कर्मों में भ्रष्ट हो तो ऐसे के लिए तो दुःख ही रहेगा ना । इसलिए बाप कहते हैं अभी जब तलक उस चीज को अच्छी तरह से निकाला नहीं है, अभी इसी निकालने की पावर जो है ना शक्ति, वह मनुष्य नहीं दे सकेगा। भले इसके लिए आज हमारी दुनिया में वेद, शास्त्र, ग्रंथ, पुराण यह गंगा नहाना फलाना फलाना कई आधार रखे हैं कि इनसे तुम्हारे पाप साफ होंगे परंतु यह कोई आज के थोड़े ही हैं यह तो बहुत काल से चले हैं। वेद आज के हैं? बहुत काल से चले आए हैं, यह गंगा नहाना, यह सब मेले फलाने आदि जो भी होते हैं त्रिवेणी पर यह सभी बातें करते हैं ना किंतु यह सभी बातें आज की थोड़े ही हैं । यह बहुत काल से चली आई हैं लेकिन यह करते-करते देखो ये कितना यह कीर्तन, गीत आदि सब कुछ, कई त्यौहार आते हैं कितने यह सब बिचारे खर्च करते हैं। देखो दशहरा होता है वह रावण का बुत बना करके उनको बैठकरके कितने यह सब करते हैं और मैसूर में तो बहुत अच्छी तरह से उनका मनाया जाता है ना वह मैसूर का राजा भी बड़ा शौक से मनाता था लेकिन कितना देखो बरस बरस रावण को जलाते हैं लेकिन रावण जलता ही नहीं है । विकार कहां जलते हैं ? जलाते तो है लेकिन और ही दिन-ब-दिन, अभी तो और भी बड़े-बड़े बनाते जाते हैं क्योंकि विकार और ही बढ़ते जाते हैं ना सौ सौ फुट के ये बड़े इनके एफईजी, एफीजी कहते हैं ना कुछ, तो बनाते हैं इनके बड़े बड़े सौ फुट के लंबे क्योंकि अभी विकार लंबे होते जाते हैं ना, बड़े-बड़े होते जाते हैं ना ऊंचे ऊंचे तो बनाते बड़े बड़े हैं जलाते तो बरस बरस है लेकिन जलते ही नहीं है क्योंकि यह कोई इससे जलाने से थोड़े ही जल जाएंगे। तो जलाते क्यों हैं, और तो देखो देवताओं का उनका पूजन करते हैं, भले उनको है तो भी जाकर के देवियों के भी पूजन करते हैं ना तो जा करके फिर उनको भी डुबोते हैं। मालूम है ना उनमें बंगाल तरफ में बहुत अच्छी-अच्छी देवियां बनाते हैं । जब नवरात्रे होते हैं ना, नवरात्रि समझते हो ना? नौ दिन देवियों का पूजन करते हैं बहुत जो देवियों को मानने वाले होंगे उनको बहुत अच्छी तरह से श्रृंगारते हैं, बनाते हैं उनको कपड़े वपड़े पहनाते हैं, खिलाते पिलाते हैं भोग वोग लगाते हैं, फिर हां जब उनका पूरा होता है नो दिन या कुछ जो भी है फिर जाकरके "हरि बोल" डुबो देते हैं। तो यह तो है इसको कहा जाता है गुड़ियों का खेल । गुड़ियों समझते हैं, गुड़िया होते हैं ना, बच्चे होते हैं छोटे,. हां डॉल, तो बच्चे होते हैं गुड़िया बनाते हैं शादी भी कर आते हैं आपस में फिर खेल वेल करके फिर खत्म , तो इनको कहा जाता है यह अंधश्रद्धा में, यह सब तो बहुत काल से ही सब चीजें चली आई है परंतु इन्हीं सब बातों से कोई हमारे पाप दग्ध का या इन सभी बातों से कुछ नहीं है। यह तो है कि जाकर के कोई बुरे कर्म करे ना उससे अच्छा है यह गुड़ियों से खेल कर ले तो भी ठीक है। कोई बुरे काम जाकरके करें, कोई विकारों के तरफ जा करके कोई गंदे काम करें उससे अच्छा है। कहते हैं ना कि बिल्कुल नास्तिक से भगत अच्छा परंतु भगत से फिर ज्ञानी श्रेष्ठ गिना हुआ है ना, ज्ञान श्रेष्ठ रखा हुआ है। तो ज्ञानी भगत से श्रेष्ठ है और फिर नास्तिक से भगत अच्छा है, फिर भी जाकर के कोई बुरा काम करें उससे तो अच्छा है फिर भी उल्टा की सीधा, जैसा कि वैसा, कुछ ना कुछ भगवान को तो करते रहते हैं न फिर किसी भी तरीके से। हां फिर भी कम से कम थोड़ा अच्छा तो सोच रहेगा ना कि हमको बुरा कुछ न करना है,कुछ ना कुछ तो अच्छाई आती है परंतु एक यथार्थ रीति की अच्छाई और किस तरह से हम अपने पापों को नाश करें और किस तरह से हम इन विकारों से छुटकारा पाएं यह विकार ही है हमारे हानिकारक इन बातों के लिए तो कोई परमात्मा कहते हैं वह यथार्थ ज्ञान जो है उस चीज का मैं देता हूं और उसके लिए बल भी मैं देता हूं, नहीं तो कोई मनुष्य का बल थोड़े ही। देखो बहुत साधु सन्यासी हैं, ऐसे नहीं है कि विकारों के लिए वह नहीं कहते हैं। कहते हैं , आप जाएंगे तो कहेंगे भले भाई निर्विकारी रहो, क्योंकि खुद भी सन्यासी तो विकारों से छूट करके चले जाते हैं ना परंतु बल थोड़े ही है उन्हों को कि ऐसे निर्विकारी बनाए। बना नहीं सकते वह कहेंगे भले परंतु हां बिचारे बने ना बने बस आए सुने, बस उनका भी काम चल गया, उन्हों का भी काम होता रहता है बस ऐसे ही काम चलता रहता है । देखो उनके भी आजीविका का काम निपट जाता है और वह लोग भी समझते हैं कि हम घंटे आधे घंटे गए, दो वचन सुने, साधु जी की कथा सुना, साधु जी का दर्शन किया बस हमारा यह एक घंटा सफल हुआ ऐसे समझते हैं इसीलिए वह समझते हैं हमारा इसी से काम निपटा और वह समझता है हमारा भी काम हो गया है, हमारे भी आजीविका का कुछ बेटा भोग चढ़ा उससे हमारा भी काम निपट जाता है तो दोनों का काम वो समझते हैं ऐसे निपट गया परंतु इससे कुछ निपटता थोड़े ही है । यह तो प्रैक्टिकल लाइफ, अभी यह प्रैक्टिकल लाइफ बनाने के लिए तो कोई बलवान चाहिए ना, यह मनुष्य नहीं काम कर सकते । वह हिम्मत से नहीं कहेंगे कि ऐसे बनो क्योंकि इसमें तो बनने में बड़ा हिम्मत का काम है ना तो कराएगा भी बड़ा बलवान। इसीमें तो देख रहे हो ना, देखो उसमें स्त्री पति दोनों पवित्र चाहिए और फिर दोनों पवित्र में अगर एक पवित्र रहे दूसरा ना चाहे तो फिर देखो उसमें हो जाती है ना तो इसमें तो बहुत बातें हैं ,इसमें बड़ी हिम्मत की और साहस की इसमें चाहिए बड़े का बल। तो इसीलिए बाप कहते हैं इस काम के लिए मुझे ही आना पड़ता है तब तो मैंने कहा है ना अधर्म विनाश और धर्म स्थापना के लिए मैं आता हूं क्योंकि उसमें यह प्योरिटी का बल चाहिए । इसीलिए प्योरिटी धारण कराना और फिर तुम्हारे पापों को भी नाश करने की जो ताकत है ना वह मेरे योग में है अर्थात मेरी याद में है। मेरी याद से तुम्हारे पास जो है ना वह अग्नि की तरह से नष्ट होंगे जैसे अग्नि जलाती है ना हर चीज को, इसी तरह से यह योग भी एक अग्नि का काम करता है अर्थात तुम्हारे पापों का नाश करना, भस्म करना परंतु वह किसका योग, कोई देवता का योग नहीं, कोई देवता की याद नहीं, कोई मनुष्य की याद नहीं, कोई साधु की याद नहीं, कोई संत की याद नहीं, कोई भी मनुष्य की नहीं। तो कहते हैं मनुष्य की याद से तुम्हारे पाप नहीं दग्ध होंगे। कई होते हैं ना गुरु की जाकर के फोटो देते हैं कि तुम मेरा ध्यान करते रहो, यह करते रहो तो बाप कहते हैं हां अब उनसे तो चलो तुम्हारी कोई बुराई की तरफ ना चले तो चलो तुम फिर भी उसमें अपना लगाकर बैठो लेकिन उनसे तुम्हारे पाप नहीं दग्ध होंगे। पाप नाश करने का जो पावर है, शक्ति है वह मेरे से मिलेगी इसीलिए यथार्थ रीति से तुम मुझे जान करके मुझे याद रखेंगे ना तो पापों को नाश करने का बल मेरे से रहेगा इसलिए पाप को नाश करने का भी बल और विकारों को भी निवृत्त विकारों से करने का जो बल है वह दोनों मेरे से मिलता है। इसी कारण से इन्हीं सभी बातों से लिब्रेट करने वाला लिब्रेटर जो हूं ना मैं हूं तो यह बल सिवाय मेरे और कोई नहीं दे सकता। अभी यह बल के सिवाय फिर तुम्हारा काम नहीं बनेगा । सदा सुख का जो जीवन है ना बिना इस प्योरिटी के काम नहीं बन सकता है इसीलिए यह चीज जरूरी चाहिए तो इसीलिए बाप बैठकर के समझाते हैं कि इसका गाइड भी मैं हूं। देखो इसकी नॉलेज, समझ वह भी तो देता हूं और फिर उससे मुक्त करके विकारों से अथवा पापों से मुक्त करके मैं तुमको सदा पवित्र जीवन का अधिकारी भी मैं बनाता हूं इसीलिए यह सभी बातें सिवाय मेरे और कोई ना समझा जा सकेगा, ना ऐसा बना सकेंगे इसीलिए मेरा बल चाहिए। तो अभी बैठ करके वह अपना बल अथवा ये अपनी नॉलेज दे करके अब अपना साथ संबंध जुटवाय रहा है। तो अभी जोड़ना है ना, उससे रिलेशन जोड़ना है । वैसे तो हां हम सब उसकी संतान है ही परंतु खाली कहने से मुंह मीठा थोड़ी हो जाएगा, प्रैक्टिकल चाहिए ना। प्रैक्टिकल उसकी संतान हैं तो फिर बच्चे भी तो ऐसे होना चाहिए ना। देखो मां-बाप है, अगर बच्चे लायक नहीं है तो फिर क्या है मां-बाप कहेंगे देखो हमारी ग्लानि कराएंगे ना , वह बच्चे बच्चे नहीं हैं । जो अच्छे बाप होते हैं ना , अगर सपूत बच्चा नहीं होगा तो कहेंगे सपूत बच्चे के सिवाय और मेरे बच्चे... बताया था ना एक कथा भी कि एक बाप था उसको चार बच्चे थे । किसी ने पूछा कि तुम को कितने बच्चे हैं तो उसने कहा हमको एक बच्चा है । उसने कहा भाई आपको तो चार बच्चे हैं, आप एक बच्चे कैसे कहते हो। तो कहा जो मेरा आज्ञाकारी बच्चा है ना वह मेरा बच्चा है बाकी मेरे आज्ञाकारी बच्चे नहीं हैं तो वह मेरे बच्चे ही नहीं हैं । तो वह बाप भी ऐसा कहेगा ना जो सपूत है, जो मेरी आज्ञा का पालन करने वाले हैं वह मेरे बच्चे हैं । तो बच्चे बनने का मतलब यह नहीं है, उनसे पूरा आज्ञाकारी, फरमानबरदार और उनके कहे फरमान चलना है ना तो वह बच्चे, जो नहीं चलते हैं वह बच्चे थोड़े ही है। ऐसे तो परमात्मा को सब कहते हैं हमारे पिता है , हम उसकी संतान है परंतु वह कहने का खाली मुंह मीठा थोड़े ही, कहने से थोड़े ही मुंह मीठा हो जाएगा खाने से होगा ना। खाएंगे, मीठा खाएंगे, पेट भरेगा तभी उसके स्वाद का पता चलेगा । खाएंगे नहीं खाली कहेंगे यह बहुत मीठा है, बहुत स्वादिष्ट है बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा अच्छा कहने से हो जाएगा ? नहीं। तो खाली कहने की बातें नहीं है, करने की बातें हैं । हां फादर, आई एम फादर नो रिलेशन, नो इन्हेरिटेंस तो वो योग कटता है योग लगता नहीं है वह कटता है, तो वह कटिंग है और वह योग लगाना है उससे माइट लेनी है ,वह मिलेगी , वह ऐसे पावर आएंगे । वैसे पावर निकल जाएगी तो और ही बेमुख बनेंगे कहेंगे आई एम क्योंकि यह कायदा है यह सभी सूक्ष्म बातें हैं । ये सूक्ष्म जो बुद्धि वाले होंगे ना वह समझेंगे, उन्हों को बुद्धि में आएगा । वह पावर निकल जाती है तो उससे बेमुख हो जाते हैं कि आई एम फादर तो बस उसमें कहां से मिलेगी, नहीं वो लेना है आनी है किसीसे तो आनी है, इसमें ऐसा नहीं है कि हम वेट करते हैं पावर लेते हैं ना । तो पावर लेने वाला और कोई देने वाला भी तो चाहिए ना । अगर हम ही लेने देने वाले तो फिर काम कैसे होगा, फिर तो मिलेगा ही नहीं ना। देने वाला भी हम तो लेने वाला भी हम ऐसे कैसे होगा, यह बात नहीं बनती है । तो यह सारी चीजें हैं जिसको बहुत अच्छी तरह से यह संबंध का भी ड्रामा है ना देखो राजा प्रजा बाप बेटा हर चीज स्त्री पति संसार की बनावट में भी संबंध है और संबंध से ही तो लाइफ का सुख का सबका यह संबंध है ना। सब एक ही है, सब एक ही एक ऐसे तो फिर कोई किसी को ना पूछे , किसी की कुछ बात रहेगी ही नहीं। रिश्ते में भी घर पर भी एक छोटा घर है यह बाप है यह मां है यह बच्चे हैं अगर ऐसे ना हो तो सब कहे हम, हम ही बाप हैं, हम ही बाप हैं, तो सब बाप ही बाप , बाप ही बाप तो कैसे काम चलेगा । कौन किसकी देखें ,कौन किसकी रेखे कौन किसकी कुछ करें कुछ होगा ही नहीं । फिर हर एक बाप ही बाप तो चलो बाप ही बाप फिर क्या होगा नथिंग कुछ उससे..., नहीं यह सब, हम हद में भी देखते हैं तो हर एक का स्टेज है, रिश्ता है यह सब है इनका बनावट फिर वो भी तो हमारे फादर है ना सुप्रीम सौल, अभी उनसे लेना है। बस एक रिश्ता फादर एंड सन। सन, हम सब आत्माएं आई एम सन, नोट डॉटर क्योंकि आत्मा है ना तो आई एम सन यू आर भी सन । सन ऐसे नहीं बॉडी के हिसाब से, बॉडी तो आपकी मेल है हमारी भले फीमेल है लेकिन आत्मा जो है ना तो आई एम सन, तो सन को तो हक मिलेगा ना, हक लेना है । तो सन को मिलेगा प्रॉपर्टी का तो आई एम सन, नॉट डॉटर । परंतु हां फिर आते हैं ब्रह्मा तन में आते हैं ना तो फिर ब्रह्मा के द्वारा बैठ कर के यह रचना रची है तो फिर दादा, तो फिर दादे की तो जरूर मिलेगी। फिर ग्रैंडफादर हो गया अर्थात बाप को याद करो । आई एम सोल , साइलेंस और फिर टॉकी में आते हैं। तो अभी बाप कहते हैं फिर चलना है साइलेंस वर्ल्ड में तो अभी साइलेंस वर्ल्ड को याद करो, जहां से आए हो । अब उसको याद करो और अपना कर्म को भी पवित्र बनाते रहो जिससे तुम्हारे फिर पवित्र कर्म की प्रालब्ध तुमको मिलेगी । तो दोनों काम को अच्छी तरह से समझो। बतलाया ना बी प्योर एंड बी योगी। अच्छा। नहीं तो हम बच्चे आपस में समझ भी नहीं सके ना । बच्चे समझते हैं किसीको भाई यह भी आत्मा है तो आत्मा किसका , परमात्मा का तो आत्मा के साथ परमात्मा जरूर आता है कि परमात्मा की हम आत्माएं संतान, क्रिएशन हैं । अच्छा। अच्छा, ऐसा बाप दादा, दादा को जानते हो ना अभी? बापदादा और मां के मीठे मीठे सिकिलधे, बहुत सपूत बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।