मम्मा मुरली मधुबन           

 025. Sukh Aur Shanti


 

ओम शांति । मनुष्य जीवन मैं क्या चाहते हैं। यह तो सब मानेंगे की हर एक मनुष्य जीवन में सुख और शांति चाहते ही हैं और उसी सुख और शांति के लिए ही संसार के इतने पुरुषार्थ हैं। जितने भी हैं, चाहे सांसारिक पदार्थों के चाहे ईश्वरीय मार्ग के, जितने भी सब कोशिशें हैं अनेकानेक। कोई समझते हैं सांसारिक पदार्थों से कुछ सुख मिलेगा इसीलिए उसी की कोशिश करते रहते हैं, कोई कोई समझते हैं कि नहीं ईश्वरीय कुछ मार्ग अपनाने से उनसे कुछ प्राप्ति होगी तो अनेकानेक कोशिश करते ही रहते हैं । लेकिन यह सब होते हुए भी आज नहीं हुई है होती आई है बहुत काल से लेकिन हमारे जीवन की जो सुख शांति की प्राप्ति कहें वह हमारे को मिल नहीं पा सकी है जो हम चाहते हैं । तो यह समझना है कि वह चीज मिलने की कोई और तरीके से है और उसे देने वाला भी कोई जरूर कोई और ही होगा। अभी और कौन? मनुष्य तो जो कुछ पुरुषार्थ और कोशिश कर रहे हैं उनका तो हम संसार देख रहे हैं कैसा संसार हुआ है लेकिन उसी संसार में कोई कहा जाता है अशांत और दुःख का । अशांत और दुःख है तभी तो चाहते हैं ना सुख शांति अगर सुख शांति होती तो फिर संसार ऐसे क्यों कहते वर्ल्ड पीस चाहिए विश्व शांति चाहिए, फिर तो विश्व शांति और विश्व वर्ल्ड पीस यह सभी शब्द आते ही नहीं। उसकी माना है कि वर्ल्ड में पीस नहीं है, विश्व अशांत है, विश्व, एक मनुष्य की बात नहीं है दो चार आदमियों की या लाखों आदमियों की बात नहीं है यह सारे विश्व की बात है । तो उसकी माना विश्व अशांत है तभी तो कहते हैं ना विश्व शांति चाहिए तो उसकी माना विश्व अशांत है । तो अभी विश्व की शांति और विश्व का सुख देने वाला तो विश्व का मालिक ही रहेगा ना । विश्व को सुख और विश्व को शांति देना कोई मनुष्य का काम नहीं है उसका काम है जो विश्व का मालिक है। मालिक तो एक ही है जो क्रिएटर है। अभी वह क्रिएटर फिर कैसे देता है कब देता है इन्हीं बातों को भी सबको समझना है । जो फिर स्वयं ही मालिक जो क्रिएटर है ना वो आ करके समझाता है । यह समझाए भी कौन कि तुमको कैसे मिलेगा। वह कहता है इसीलिए मुझे यही समझाने के लिए मुझे आना पड़ता है और मेरे आने का समय है यह संगम । संगम समझते हो ना, कॉन्फ्लूएंट युग जिसको कहा जाता है कॉन्फ्लूएंस युग का मतलब ही है जबकि हमारा यह चक्कर उसका अंत और फिर नए चक्कर का आदि, गोल्डन एज का आदि और कलयुग का अंत, आयरन एज की एंड और गोल्डन एज की आदि तो उसको कहा जाएगा संगम। अभी ये संगम के बात का भी बहुतों को मालूम नहीं है । चार युग तो बहुत बताएंगे, पूछेंगे कितने युग हैं तो शायद जो कुछ इन्हीं बातों में है वह बता देंगे कि भाई चार युग है। कौन से, सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग यह भी बता देंगे। अंग्रजी में भी कहते हैं गोल्डन सिल्वर कॉपर एंड आयरन लेकिन यह कॉन्फ्लूएंस युग अथवा कॉन्फ्लूएंस टाइम जिसके लिए ही परमात्मा ने कहा है कि मैं युगे युगे आता हूं वो गीता में है ना कि तो कइयों ने उसका अर्थ ऐसे समझ लिया है कि युगे युगे माना सतयुग में भी आता है त्रेता युग में भी आता है कलयुग द्वापर युग में हर एक युग में आता है तो इसलिए समझते हैं युगे युगे का मतलब है हर एक युग में आता है लेकिन हर एक युग में क्या करेगा आ करके। युग में हर एक युग में तो काम ही नहीं है ना सतयुग में क्या करेगा । सतयुग में तो है ही सतयुग उसमें क्या आकर के बनाएगा। वह आता ही है अधर्म विनाश और धर्म की स्थापना के लिए तो सतयुग तो है ही धर्म आत्माओं का युग तभी तो उनको सतयुग, गोल्डन एज कहते हैं ना । और सिल्वर एज में भी दरकार नहीं है उसमें भी चंद्रवंशी राजाओं का राज्य है जिसके लिए गांधीजी कहते थे रामराज्य बने तो उसमें भी तो दरकार नहीं थी । द्वापर काल में भी दरकार नहीं है क्योंकि द्वापर के बाद तो कलयुग आने का है ना इसीलिए आना है उनको कलयुग के एंड में और सतयुग के आदि में वो उसको कहा है संगम युग यानी संगम युगे युगे यानी संगम संगम का जब टाइम होता है यानी चक्कर के एंड और आदि का जब संगम का टाइम है तो मैं संगम संगम पर आता हूं तो कहने का भाव ऐसा है लेकिन गीता में युगे यूगे खाली अक्षर डाला है संगम युगे न डालने के कारण तो संगम नाम ना होने के कारण वो युगे युगे का अर्थ बहुत ले गए हैं कि सतयुग और त्रेता सभी युगों में आते हैं । अभी सभी युगों में तो जरूरत ही नहीं है ना, देखो चार युग का इसीलिए यह दिखलाया हुआ है इसमें । अभी सतयुग में क्या करेगा आ करके, वह तो है ही उसी समय देवताओं का राज्य तो आना है उसमें भई कलयुग एंड और सतयुग आदि के संगम कॉन्फ्लूएंस टाइम जिसको कहा जाता है । तो यह अभी वो टाइम है, अभी का समय, जो अभी प्रेजेंट समय है इनको कहा जाएगा संगम युग तो अभी पांच युग हो गए ना एक सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग और संगम युग। तो चार युग तो सभी बताएंगे पांचवा युग कोई नहीं बताएंगे भाई पांच युग। तो यह जो पीरियड है अभी का इसीलिए ही परमात्मा ने कहा है कि मैं आता हूं और इसी को ही कहा है ना रात ना दिन यानी हमारी गीता में भी है ना ब्रह्मा की रात ब्रह्मा का दिन तो दो युग है ब्रह्मा की रात है दो युग है ब्रह्मा के दिन । दिन कौन सा है सतयुग और त्रेता ब्रह्मा का दिन और द्वापर और कलयुग ब्रह्मा की रात तो कहते हैं ना मैं ब्रह्मा की रात में आता हूं ना ब्रह्मा के दिन में आता हूं मैं संगम में यानी रात की एंड और दिन का आरंभ का टाइम तो उसका हुआ संगम इसीलिए मैं संगम पर आता हूं । तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए यह अभी वो टाइम है और इसको ही कहा जाता है औसपीसिएस युग।जैसे तीन बरस के बाद में एक मंथ आता है ना इसको कहते हैं क्या कहते हैं उसको लीप युग परंतु उसको हिंदी में भी कहते हैं पुरुषोत्तम, उसको पुरुषोत्तम नाम से हिंदी में कहते हैं और उसको लीप मंथ कुछ ऐसा देते हैं अंग्रेजी में कुछ कहते हैं। तो इसी तरह से यह चार युगों में यह छोटा सा टाइम का जो है जिसमे परमात्मा आते हैं इसको कहेंगे औस्पीशीयस युग इसमें परमात्मा आते हैं । अभी यह संगम का टाइम है, अभी संगम। अभी यह इसका अभी जो टाइम चल रहा है इसको संगम कहेंगे क्योंकि नई दुनिया का अथवा हमारी गोल्डन एज के आरंभ का अभी यह फाउंडेशन अथवा कलम कहो सेपलिंग कहो अभी यह लग रहा है और उधर यह डिस्ट्रक्शन की तैयारियां हो रही है इसको कहेंगे कॉन्फ्लूएंस टाइम। तो यह बात परमात्मा बैठ करके समझाते हैं कि इसी अपने आने के टाइम भी मैं समझाता हूं । मेरे आने का टाइम भी कौन सा है वह भी मैं जानता हूं इसीलिए आ करके समझाता हूं तो देखो नई बात है ना। तुम समझ बैठे हो कि सतयुग में आएगा, त्रेता में आया, द्वापर में आया, यह आता ही आता है युग युग में परंतु नहीं मैं कोई भी युग में नहीं आता हूं आता ही संगम पर हूं क्योंकि मेरा काम हो अभी होगा ना, मेरा काम सतयुग में है ही नहीं क्यों आऊंगा । वहां तो बैठे हैं, वह तो है ही सुख शांति उधर क्या है मैं आता ही हूं अधर्म के टाइम पर । अधर्म का भी जब एंड हो न। अधर्म शुरू हो तभी आऊं तो फिर क्या है, अधर्म के बीच में भी नहीं आ सकता हूं, अधर्म की जब एंड हो तो जब एंड हो तभी तो आकर के अधर्म नाश करूं तो इसीलिए मैं आता ही उसी टाइम पर हूं। तो यह सभी चीजें समझने की है और अपना भारतवासियों का भी जो वर्ण है ना वह भी समझने का है कि हां जो कहते हैं चार वर्ण, कहते हैं ना ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अभी अपने भारतवासियों के भी जो वर्ण है ना यह चार जो वर्ण कहे हैं वास्तव कर करके उसको भी कहेंगे पांच वर्ण, कौन से? सतयुग में देवता, पीछे त्रेता में क्षत्रिय फिर वैश्य फिर शूद्र फिर ब्राम्हण, अभी ब्राम्हण यह संगम में जो है ना तो संगम पर आ करके परमात्मा यह ब्रह्मा तन से यह मुख वंशावली जो बैठकर के नॉलेज सुनाते हैं तो वह जो प्योरिटी को धारण करते हैं उन्हों को कहेंगे ब्राम्हण । वह तो एक ब्राह्मण जाति है वह जो अपने को ब्राह्मण नाम से कहलाते रहते हैं तो वह तो अपना लगा रखा है एक जात के ऊपर परंतु नहीं, ब्राह्मण जिसका महत्व है वह ब्राह्मण है जो परमात्मा ने आकर के नई दुनिया जब रची है ब्रह्मा दी क्रिएटर भी कहा हुआ है ना तो उनके द्वारा वह जो मुख वंशावली रची है यानी मुख से नॉलेज सुना करके जो प्योरिटी की जेनरेशंस की सेप्लिंग लगाई है तो जिन्हों से सेप्लिंग लगाई है उन्हीं सेपलिंग लगाने वालों को ब्राह्मण कहा जाता है तो यह अभी की बात है। अभी वह जो सेप्लिंग प्योरिटी की जो लगाते हैं वह ब्राम्हण हो गए तो अभी हम कौन हैं? हम ब्रह्माणिया और ब्राह्मण ऐसे कहेंगे यानी जो प्योरिटी को अपना रहे हैं नई जेनरेशंश के लिए। तो यह बैठकर के बाप समझाते हैं कि ब्राह्मण फिर जाकर के सतयुग में देवता बनेंगे, ब्राह्मण सो देवता इसीलिए कहते हैं ब्राह्मण देवताए नमः , कहते हैं ना इकट्ठे कहते हैं ब्राह्मण देवताए नमः तो अभी यह ब्राह्मण अभी जाकर के देवता बनते हैं तो ब्राह्मण देवताए नमः क्योंकि यह ब्राह्मण बनने से फिर हम देवता जाकर के बनते हैं । तो यह सारी चीजें समझने की है इसीलिए बाप कहते हैं कि यह सच सच जो ब्राह्मण हैं सच्चे ब्राह्मण, वो तो नाम रख दिया उन्होंने परंतु सच्चे ब्राम्हण तो मैं आ करके रचता हूं ना। कैसे रखता हूं, इसी तरीके से कि मैं जो बैठकर के मुख से नॉलेज सुनाता हूं उसी नॉलेज अथवा ज्ञान और योग से यह है वह राजयोग जिससे बैठ करके इस योग और ज्ञान से मैं यह राजाई देवताओं वाली सूर्यवंशी चंद्रवंशी स्थापन करता हूं इसी को कहा है राजयोग । तो इस योग से अथवा इस योगबल से हम यह राजाई प्राप्त करते हैं । तो यह है वह सूर्यवंशी चंद्रवंशी राजाई प्राप्त करने का योग जिसमें हम सदा सुखी थे अर्थात पूर्ण सुख थे, उसी समय विश्व सुखी था। उसमें पूर्ण सुख था हेल्थ, वेल्थ एवरीथिंग सब एवर थी, कोई दुख नहीं था इसीलिए कहते हैं जब विश्व शांति विश्व का सुख पूरा था तो उसी समय यही देवी देवताओं का राज्य था तो अभी फिर से जब वह राज्य अथवा वो धर्म हो तभी तो विश्व शांति हो न विश्व सुख हो ना । अभी अनेक धर्म है अनेक राज्य हैं उसके होते विश्व शांति और विश्व सुख कैसे होगा, नहीं हो सकता इसीलिए कहते हैं यह अनेक धर्म का नाश और एक आदि सनातनी देवी-देवता धर्म का स्थापना करता हूं तभी फिर विश्वशांति अथवा विश्वकप वाला रहेगा । तो अभी विश्व को सुखी बनाने के लिए परमात्मा अभी वह उपाय अर्थात फिर वही देवी देवताओं का राज्य अथवा देवी देवताओं का धर्म की स्थापना करते हैं। देवी देवताओं का मतलब ही है मनुष्य प्यूरीफाइड जो थे उन्हों का नाम देवी-देवता धर्म था, राज्य था जिसमें सदा मनुष्य प्योर थे और प्योर होने के कारण सुखी भी थे । प्योरिटी है तो पीस एंड प्रोस्पेरिटी भी है, नो प्योरिटी नो पीस एंड प्रोस्पेरिटी तो अभी ऐसी जब प्योरिटी अपनाएं तब तो न सेप्लिंग लग रहा है इसीलिए अभी ब्राह्मण फिर वो जेनरेशंस में फिर तो आत्मा भी पवित्र और शरीर भी पवित्र मिलेगा ना, अभी तो पवित्र हो रहे हैं इसलिए अभी ब्राम्हण पीछे देवता । तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए बाप बैठकर के अभी जो बेहद का बाप है जो इसी सभी नॉलेज को जानता है वह बैठ करके हमको अपने वर्णों का और अपने यह युग आदि का भी नॉलेज समझाते हैं, अभी कौन सा टाइम है वह बतला करके अभी कहते हैं उसी टाइम का फायदा लो । तो अभी कौन सा समय है, इसी समय अभी क्या करना चाहिए, उसके मुताबिक अपना पुरुषार्थ रख करके आने वाले नई दुनिया के लिए तैयार हो जाओ । अभी आने वाली नई दुनिया, क्या आने की है, कैसी है, तो उसमें भी हम उस जैसे लायक बनेंगे तब तो नई दुनिया की प्रालब्ध पा सकेंगे ना। कर्म के आधार पर मनुष्य के जीवन का आधार है ना, तो हमारा जब जीवन का आधार कर्मों के ऊपर है तो हमको अपने कर्म से श्रेष्ठ बन करके अभी ऐसे जीवन का अथवा जैनरेशंस का प्रालब्ध पाने का अपने को लायक बनाना है तो उसके लिए अभी प्रिपेयर होना है। किसमें प्रिपेयर होना है क्या करना है वह यह सिखाया जा रहा है। उसका तो कॉलेज है, स्कूल है तो यह सब समझना है। अच्छा अभी टाइम हुआ है इसलिए दो मिनट साइलेंस।