मम्मा मुरली मधुबन           

027. Yaad Ki Yatra - Yagyan History


 

पहले प्योर हैं ना और सन ऑफ सुप्रीम सोल। प्योर सौल सन ऑफ सुप्रीम सोल, ऐसे नहीं आई एम देट प्योर, उसका मतलब है कि आई एम सुप्रीम सौल , नो यह रॉन्ग हो जाएगा । आई एम देट...अभी तो इंप्योर है ना तो इसीलिए इंप्योर आई एम देट यानी असुल हम प्योर, तो आई एम देट जो लगता है ना वह अपने लिए ही लगता है लेकिन प्योर स्टेज पर तो प्योर स्टेज हो गई ना । तो अभी इंप्योर स्टेज है फिर हमको प्योर स्टेज पकड़नी है बाकी आई एम देट नोट सुप्रीम सौल, नहीं । आई एम देट मींस और हम सो , हम सो का भी अर्थ है कि हम सो का अर्थ यह नहीं है कि आई एम सो सुप्रीम सौल , नो आई एम सो प्योर सौल, देट आई एम फर्स्ट प्योर तो इसीलिए अपनी बुद्धि को अपनी प्योर स्टेज पर रख करके और फिर हम सन ऑफ सुप्रीम सौल , यह बुद्धि की स्थिति हर वक्त बनाने का प्रयत्न रखना है । उससे हमारे हर एक्शंस में हमारे प्योर एक्शंस चलेंगे क्योंकि आई एम फर्स्ट प्योर न तो अपनी देट बुद्धि उसमें रखनी है कि आई एम प्योर सोल । और असूल प्योर हैं और सन ऑफ सुप्रीम सौल बाप, तो इसी तरह से ही याद में रहने से फिर हमारे एक्शंस भी प्योर रहेंगे कि आई एम प्योर सौल नॉट इंप्योर तो यह ख्याल रहने से हम अपने एक्शंस में संभलेंगे जल्दी कोई रॉन्ग एक्शन नहीं होगा । और जो भी देखते हैं यह भी तो सोल है, यह भी तो फर्स्ट प्योर है लेकिन अभी... ऐसे तो इंप्योरिटी के किसी से भी एक्शंस होंगे मानो हमसे ही किसी ने कुछ दो गाली करी या कोई ऐसी बात करी तो भले उसकी इंप्योर एक्शंस हैं परंतु हम समझते हैं कि है तो ये भी फर्स्ट प्योर परंतु यह जानता नहीं है बेचारा। वो आएगा न कि बेचारा जानता नहीं है तो इनको पता दे दें, इसमें इसने कहा तो इससे हम थोड़े ही कुछ कि इसने कहा तो हम भी इंप्योर के साथ इंप्योर हो जाएं। नहीं, हम अपनी प्योरिटी की स्टेज नहीं छोड़ेंगे। ऐसे नहीं इसके कारण हम भी इंप्योर एक्शंस में आ जाए। नहीं, इसने करा इस बिचारे को पता नहीं इसको पता देना चाहिए कि नहीं इससे तुम्हारे विकर्म बनेंगे, अगर दे सकते हैं, उस पर हम चला सकते हैं जैसे देखते हैं देने का है तो, अगर समझे कि नहीं हमारा कुछ कहना या कुछ इसको और ही तो चलो हम तो अपने स्टेज पर रहे ना। परंतु फर्ज है कि उनको भी प्यार से, ढंग से अगर हम उसी स्थिति में होंगे तो उसको असर बैठेगा। अगर हम अपने उस पोजीशन पर होंगे ना तो वह पोजीशन उसको पकड़ाएंगी कि नहीं वह समझेगा , वो सुनेगा तो यह सभी चीजें हैं जिसमें हमको अपनी स्टेज वह प्योर आई एम फर्स्ट प्योर तो अभी हमें प्योर तो प्योर याद रखने से हमारे एक्शन प्योर रहेंगे नहीं तो फिर बॉडी कॉन्शियस होने से फिर इंप्योरिटी आएगी तो इंप्योरिटी की एक्शंस। अभी जो भी काम क्रोध लोभ मोह आदि का भी पकड़ाव भी हो जाता है, नहीं तो उससे हम छूटे रहते हैं ना तो यह है युक्ति और प्रैक्टिकल अपनी स्टेज की धारणा जिससे हम अपने को आगे बढ़ा सकते हैं तो अभी यह अभ्यास अपना हर वक्त रखने का है। ये ऐसी चीज नहीं है कि किसी समय कोई खास बैठ करके करना, यह भी कईयों को जो नेष्ठा में बिठाया जाता है ना तो वह भी जब तलक कच्ची अवस्था है यानी अभी कच्चे हैं। कच्चे का मतलब है अभी पहली पहली है स्टेज तभी भाई उनको पहले जरा प्रैक्टिस बैठ जाए ,रस बैठ जाए परंतु वास्तव करके नहीं तो बैठाने की दरकार नहीं है। यह तो चलते फिरते खाते पीते अपना रखने का है परंतु उसको टेस्ट जरा बिठाने की और उसको जरा प्रैक्टिस इसीलिए बिठाते हैं परंतु नहीं तो वास्तव करके इसकी दरकार नहीं है क्योंकि जरूरत नहीं है । जरूरत तो बस समझा आई एम प्योर सौल, सन ऑफ सुप्रीम सोल बस इसी में स्थित रहना है और उसी स्थिति से अपना काम काज करते जो भी करते कामकाज का भी क्या करेगा जरूरी ही करेगा । ऐसा जो होगा स्थिति वाला वह जो अपना जरूरी है वह अपना शरीर निर्वाह का अथवा दूसरे के भी बनाने का , उनको भी अपनी स्टेज में लाने का बस उसी से वही काम होगा, वह तो इंप्योर एक्शंस फिर नहीं होगा, होगा ही नहीं । पता रहेगा ना आई एम, हम क्या है तो ये रहने से, तो यह है अपनी स्मृति, याद । तो अपनी भी याद और अपने बाप की भी याद तो इसको कहेंगे कि याद, रिलेशन सहित याद। इसको कहेंगे रिलेशन सहित याद, है एक ही याद परंतु रिलेशन सहित कि आई एम सोल, अपनी भी कि मैं क्या हूं और सन ऑफ सुप्रीम सौल तो रिलेशन क्या है रिलेशन से हमको उनकी माइट वर्सा जिसको कहते हैं वह प्राप्त रहेगा इसलिए वह रिलेशन भी पकड़ना है । अगर रिलेशन नहीं पकड़ेंगे तो वर्सा नहीं मिलेगा। आई एम देट माना आई एम सुप्रीम सोल तो कहां से वर्सा मिलेगा । यू आर सुप्रीम सोल तो भाई नो इन्हेरिटेंस। कहां से मिलेगा फादर रखेंगे तो फिर फादर से मिलेगा तो रिलेशन । वैसे तो यह भी मनुष्य यह भी मनुष्य है,आपका बच्चा भी तो मनुष्य है परंतु रिलेशन से आपकी प्रॉपर्टी के ऊपर हक लगेगा, लगेगा ना, जो भी प्रॉपर्टी होगी लेकिन रिलेशन नहीं है तो वह भी मैन है वह भी मैंन है, फिर तो कोई बात ही नहीं है ना तो फिर क्या होगा । परंतु नहीं, रिलेशन जायदाद के ऊपर हक कोर्ट भी दिलाएगी । दादा का वह पोत्रा होता है तो ग्रैंडफादर के ऊपर हक हो जाता है तो ग्रैंड फादर एंड पोत्रा, ग्रैंडसन तब तो रिलेशन है ना । तो रिलेशन प्रॉपर्टी के ऊपर हक लगाता है तो रिलेशन का भी बड़ा संबंधित चीज ये भी बड़ी बात है । तो खाली आई एम सोल उससे भी काम नहीं चलेगा। सन ऑफ, तो सन ऑफ तो रिलेशन की पावर जो है ना वह भी काम करती है , जैसे यह भी मैंने यह भी मैन चलो फिर तो कोई बात नहीं न परंतु देखो ग्रैंडसन एंड ग्रैंडफादर तो रिलेशन भी पावर है ना तो यह रिलेशन माइट तो यह रिलेशन से हम उनसे अपनी पावर लेते हैं, हमारा उसकी जायदाद के ऊपर हाथ लगता है । तो देखो कोर्ट भी रिलेशन लेगी, उनकी दिखेंगी, कोई झूठा बना है रिलेशन तो वह जांच करेगी, ये करेंगी, ब्लड देखेगी यह देखेगी कई होते हैं ना कोर्ट वगैरह तो भाई इनके लड़का है, यह है तो देखो ब्लड कनेक्शन रिलेशन उसको भी कोर्ट भी अपना दावा रखेगी कि नहीं यह इनकी जायदाद है। हमारा भी तो कनेक्शन हम आई एम सन ऑफ सुप्रीम सौल तो हम भी उसकी जायदाद के ऊपर रिलेशन से अपना हक रखते हैं तो रखना है ना। यह पावर है ये माइट है और दुनिया का भी फिर देखो राजा प्रजा, राजा क्या है यह नेताएं बने यह क्या है, अरे है तो यह भी मैन वह भी मैन परंतु क्या रिलेशन पावर ले आती है ना तो उससे करते हैं, है तो वह भी मनुष्य वह भी मनुष्य जो भी मनुष्य एक एक के ऊपर चलता है तो ये भी तो माइट मिलती है ना। तो यह सब है माइट लेने का अभी इसी से हम उससे वो कंप्लीट ताकत लेते हैं जिससे फिर मनुष्य ऊंचा बनता है फिर ऊंची धारणाओं से हम भी अपने पावर में रहते हैं मनुष्य होकर के पावर में रहते हैं जिससे हमको यह पावर आती है हेल्थ वेल्थ एवरीथिंग प्राप्त होती है। तो यह माइट लेनी है ना तो माइट लेने के लिए हमको उसके साथ रिलेशन रखना है बाकी आई एम देट रहें तो माइट कहां से ले किससे लें, वो नहीं मिलेगी ऐसे । तो यह सभी चीजें हैं, कहेंगे आई एम फादर, तो फादर तो नो सन नो इन्हेरिटेंस तो वो खत्म हो जाती है ना नो सन नो इन्हेरिटेंस । आई एम फादर तो नो इनहेरिटेंस , आई एम दैट, आई एम दैट, आई एम दैट करेंगे तो आई एम फादर आई एम फादर नो रिलेशन नो इन्हेरिटेंस कट ऑफ हो जाएगा तो वह योग कटता है वो योग लगता नहीं है योग कटता है तो वह कटिंग है और यह योग लगाना है उससे माइट लेनी है तो मिलेगी तो ऐसे पावर आएगी वैसे पावर निकल जाएगी तो और ही बेमुख बनेंगे । तो यह कायदा है यह सभी सूक्ष्म बातें हैं जो सूक्ष्म बुद्धि वाले होंगे ना वह समझेंगे, उनकी बुद्धि में आएगा। वो पावर निकल जाती है तो उसे बेमुख हो जाते हैं ना, आई एम फादर तो बस उसमें तो वो पावर कहां से मिलेगी, नहीं वो लेना है, आनी है किससे। तो आनी है तो इसमें ऐसा नहीं है हम वेट करते हैं। पावर लेते हैं ना तो पावर लेने वाला और कोई देने वाला भी तो चाहिए ना । अगर हम ही लेने देने वाले तो काम कैसे होगा फिर तो मिलेगा ही नहीं ना । देने वाला भी हम तो लेने वाला भी हम ऐसे कैसे होगा ये बात नहीं बनती है । तो यह सारी चीजें हैं जिसको बहुत अच्छी तरह से यह संबंध का ड्रामा है ना देखो राजा प्रजा बाप बेटा हर चीज है स्त्री पति संसार की बनावट में भी संबंध है और संबंध से ही तो लाइफ का सुख का सबका यह संबंध है ना । सभी एक ही है सभी एक ही एक ऐसे तो कोई किसी को ना पूछें किसी की कुछ बात रहे ही नहीं। रिश्तों में भी घर में एक छोटा घर है यह बाप है यह मां है यह बच्चे हैं अगर ऐसे ना हो तो फिर सब कहे हम तो फिर ऐसा कैसे चलेगा। कौन किसकी देखें, कौन किसकी रेखे, कौन किसकी कुछ करें तो कुछ होगा ही नहीं तो सब बाप ही बाप तो चलो बाप ही बाप , फिर क्या होगा नथिंग कुछ उससे नहीं होगा । हम हद में भी देखते हैं तो हर एक का स्टेज है, रिश्ता है यह सब है सब बनावट तो वह भी तो हमारे फादर है ना, सुप्रीम सौल तो अभी उससे लेना है । बस एक रिश्ता फादर एंड सन। हम सभी आत्माएं आई एम सन, नॉट डॉटर आई एम सन क्योंकि आत्मा है ना तो आई एम सन यू आर भी सन । सन ऐसे नहीं बॉडी के हिसाब से, बॉडी तो आपकी मेल है हमारी भले फीमेल है लेकिन आत्मा जो है ना तो आई एम सन तो सन को तो हक मिलेगा ना हक लेना है । तो सन को मिलेगा प्रॉपर्टी का तो आई एम सन नॉट डॉटर परंतु हां फिर आते हैं ब्रह्मा तक में आते हैं ना तो फिर ब्रह्मा के द्वारा बैठ करके यह रचना रची है तो फिर दादा तो दादा की तो जरूर मिलेगी। वह ग्रैंडफादर हो गया ना । किसके ग्रैंडसन है सुप्रीम सोल, हेवेनली गॉड फादर तो हेवन के हैं तो फिर हम हेवन के हकदार हो जाते हैं ना । तो बाप कहते हैं बच्चे अभी देखो तुमको वो हक दे रहा हूं तो यह अंदर में खुशी रहनी चाहिए कि हम फादर से ग्रैंडफादर से क्या हासिल करते हैं। ये अंदर की बातें हैं अपने से और उस खुशी में उस नशे में और उसमें रहते कहां फिर कोई दुख की बात आएगी न इधर, लगेंगी नहीं, फील नहीं होगी, महसूस नहीं होगी । समझेंगे चलो कोई रोग आया समझेंगे ये कर्म भोग है पिछले खाते का है ना वो तो मैने उल्टा बनाया है ना ।बाप को छोड़ करके रिलेशन छोड़ करके हम माया के रिलेशन में चले गए तो हमने उल्टा बनाया तो भोगेंगे नहीं तो क्या करेंगे, चलो अभी यह चुकाना है तो खुशी में वह इतना फील नहीं होगा क्योंकि अभी ये इसका लास्ट है अब तो नहीं बनाना है ना तो फिर हां इसको समझेंगे कर्म भोग है। कोई ऐसी बात आ गई चलो इसका भी लेना-देना हिसाब किताब है, तो क्या है उसकी फीलिंग्स और उसकी महसूस नहीं रहेगी। मेहसूस्ता वो जोर से बैठती है ना खुशी की महसूसता । वह खुशी की महसूसता जोर से है इसीलिए फिर यह महसूसता जो है ना वह इतनी लगेगी नहीं तो ऐसे रहने से अंत मति सो गति। ऐसी ऐसी अवस्था खड़ी रहने से फिर हम उसी अवस्था को पाते हैं। तो यह अपनी-अपनी बनाने की कि हम किस अवस्था में है । अभी कहते हैं ना हां मम्मा अनुभव सुनाओ तो ये अपना अनुभव बस कि बस किसमें रहना है कैसे रहना है तो हां इसी तरीके से । यह अंदर अंदर का बाहर से तो कुछ कहने की या करने की तो बात नहीं है ना यह अंदर की, अभी अंदर की यह अपनी रखने की है और उसी में रह करके काम तो करना ही है यह भी तो हम काम ही करते है ना। आप लोगों को सुनाना, करना जो भी है देखो कितने सब हैं, उन्हों की सबकी संभाल तो रखनी पड़ती है ना । उनके कपड़े की भी तो उनके बीमारी की भी उनके सबकी । आप दो चार बच्चे संभालते हो बाबा मम्मा के कितने बच्चे हैं, सब की देखरेख जिस्मानी, रुहानी दोनो रेखदेख करनी है। आप तो खाली जिस्मानी करते हो, शरीर की किसके रूह की क्या संभाल करते हो । वो बिचारा मरता है गिरता है क्या करता है उसका तो पता भी नहीं की उनकी आत्मा की कोई हानि हो रही है । उसकी आप रिस्पांसिबिलिटी नहीं पकड़ते हो । बहुत करके जिस्म की, बीमार होगा डॉक्टर के पास इलाज करा देंगे , उसकी पढ़ाई लिखाई का , इधर तो देखो इनकी जिस्मानी कि हां यह स्टेटस पाने के लिए अपनी धारणा बना रहे हैं तो रूहानी और जिस्मानी भी रखनी पड़ती है। उनको कपड़ा लत्ता, बीमार कुछ होगा तो ऐसे थोड़ी छोड़ देंगे, उनका इलाज दवा क्योंकि समझते हैं ना पिछले खाते का है तो उनकी संभाल करनी है तो उनकी जिस्मानी भी चलती है रूहानी भी चलती है डबल काम है । आप लोगों को तो सिंगल काम और सो भी दो चार बच्चे, करके बहुत में बहुत किसी को छः होगा आठ होगा, बारह होगा बस ना और क्या? इधर तो देखो कितने बच्चों का रेखदेख। तो अपनी भी तो प्रवृत्ति है ना ऐसे नहीं है कि हम प्रवृत्ति को छोड़ देते हैं। वह दो चार बच्चों की प्रवृत्ति है और यहां सैकड़ों की बैठकरके संभाल होती है। तो इसमें तो ऐसे नहीं ना बुद्धि हिले, नहीं मिलने की कोई बात नहीं है । आप आएंगे ना माउंट आबू देखना, जब एक एक सौ दो दो सौ इकट्ठे होते हैं, उनकी संभाल करना, सबको खिलाना पिलाना कोई बीमार पड़ जाएगा कोई कुछ होगा , आगे तो रहते थे अपने पास। शुरू शुरू में तो कई बरस पौने चार सौ रहते थे, पौने चार सौ एक ही में रहते थे लेकिन मकान इतना बड़ा नहीं था कराची में । पाकिस्तान में थे ना पहले तो कराची में इतना मकान नहीं था जो हम उसमें, एक ही में रहे लेकिन आठ मकान थे। आठ मकान और खाना एक स्थान पर बनता था, आठों को पहुंचाना परंतु प्रबंध था सारा, मोटर बक्से सब था । दो बसेस थीं छः मोटर थीं छः कार्स थीं तो सब प्रबंध था तो देखो कितना। तो उस समय ऐसा था खाना एक स्थान पर बनता था और सबके पास जाता था। पीछे फिर खाना भी अपना-अपना सबका कर दिया था परंतु नहीं तो वह भी टाइम था । तो सबका वहां देखरेख करना, बच्चों का अलग बच्चियों का अलग , छोटी-छोटी आई थीं ना इनकी सब , कोई बच्चे भी ले आई । हां ये सब लबाहुत छोटे छोटे छोटे छोटे थे, अठाईस बरस हो गए ना। इतने इतने आए तो छोटे-छोटे थे तो इन सबकी संभाल होती थी ना कितना, पौने चार सौ की संभाल तो यह सब की देखरेख । आप दो चार बच्चे संभालते हो बिजी हैं, क्या करें, बच्चे हैं यह है वह है देखो कितना बहाने लगाते हो और इधर पौने चार सौ की रेखदेख उनके दुःख की उनके कपड़े की उनके सबकी हर तरह से और सो भी रूहानी जिस्मानी, कोई मन में संकल्प तो नहीं है। ऐसे तो नहीं माया कहां इनको हैरान कर रही है सबकी देखरेख। रोज कचहरी रात को। रात को सबको से पूछते हैं, कोई सेलवेशन किसीको, ऐसे ना हो थोड़ी किसी को चीज ना मिले किसी कारण बिचारे का माइंड डिस्टर्ब रहे और योग टूट जाए तो सबसे पूछना क्योंकि चार्जेस पर तो दूसरे मुकर्रर भी रहते हैं ना परंतु कहां कोई चार्ज वाला नीचा ऊंचा कर देवे तो फिर भाई बहनें हैं ना तो आपस में कभी हो जाती है तो ना मालूम किसी ने किसी चीज पर पूरा अटेंशन ना दिया हो तो फिर रोज रात को पूछना और उसकी रेख देख करना । कोई भी बात है तो हर तरह से किसी ने भूल की तो हां कचहरी। कचहरी समझते हो ना ? उनका भूल का क्लास होता था सब से पूछते थे फिर उन्हों को सजा भी मिलती थी । और हां सजाएं फिर कोई दूसरी नहीं, फिर हां मुरली बंद। यह ज्ञान क्लास खाना तुम्हारा बंद । तो यह खाना ना मिले तो फिर देखो कितना उसका दंड है। यहां ऐसे नहीं कि बस ऐसे ही कॉमन चलने का है ये तो पढ़ाई है ना इसमें तो पूरा बनने का है तो ऐसी कोई भी मिस्टेक करे तो बहुत उन्हों की संभाल भी रहती थी और कचहरी, सेलवेशन अभी तक भी, आप आएंगे माउंट आबू ना तो हां जब आकरके कट्ठे होते हैं तो रोज पूछते हैं रात को कोई किसी को दिक्कत तो नहीं पड़ी, किसीने किसीको ऐसा तो नहीं कि आपस में किसी का हो जाए कुछ तो, नहीं सब संभाल, अच्छी तरह से तो यह सभी रखना होता है । तो देखो इतने बच्चों की संभाल करते कोई बाबा तो कहते नहीं न हमारे क्या करें बिजी हैं, कैसे करें, नहीं वह भी करना ही है ना तो काम तो हम भी करते हैं, कर्मयोगी तो हम भी हैं ना । ऐसे थोड़ी हम छोड़ कर बैठे हुए हैं हां दो चार का नहीं है तो बहुतों का है । वो भी तो बहुतों की है जिसमें सब तरह से अपनी जीवन बनावे । तो यह सभी चीजें अपने प्रैक्टिस की हैं और अपनी धारणा में ले आने की है । तो फिर अपनी धारणाएं ऐसे बनाने से ही तभी तो हम अपना सौभाग्य पा सकेंगे ना। सब काम अपना हम सब अपने हाथ से ही करते थे। कपड़ा भी जो अपने है ना सब, धोबी को नहीं देते थे क्योंकि पता नहींगंडे बिचारे किन्हों के कपड़े कैसे होंगे क्या होंगे सब । अपने घर में भट्टी थी धोबी हम थे सब, अपन धोते थे । तो इतनी काशमोटे थी वो हम सब वो क्या कहते हैं क्लीन हम सब करते थे सब । चप्पल पहने का है ना वो चप्पल हम अपने बनाते थे , सह अपना अंदर था सब । (पूछते हैं कि कोई अब्सेंट होता था तो पनिशमेंट दी जाती थी?) अब्सेंट तो वह तो रहते साथ थे न, भले अब्सेंट होंगे कारण से कभी कोई बीमार हो परंतु हमारा है बीमार हो तो भी भले खाट पर लेटे रहो, तो हां भले लेटे रहो सुनो भी । उनको आराम से ईजी चेयर पर बिठाएंगे कोई ऐसा होगा तो लेटे रहेंगे बाकी कोई कारण से हुआ तो कारण होंगा ना बाकी ऐसे ही कोई करेंगे तो हां उनको कहेंगे की ये सुस्ती लेज़ी अभी क्या ये माया खा गई, देखो तुमको माया ने लगाया ये भी एक छठा विकार है हां सुस्तपना । ये पांच विकार ये छठा विकार, उसको हम छठा विकार कहते हैं, लेजीपना सुस्तपना तो फिर हां उनको भी तो ठीक करना है ना। वो तो कोई रॉन्ग है उनका कारण तो फिर उन्हें समझाना भी है । तो यह सभी चीजें हैं तो यह अपना सब है स्कूल में बोर्डिंग था ना जैसे बोर्डिंग होता है सब अपना था अंदर। तो इतना समय यह सभी कामकाज चलते तो ऐसे नहीं खाली ऐसे ही यह सब चल रहे हैं नहीं, यह सब। तो उन्हीं में अपना योग अपना ज्ञान अपनी धारणाएं और प्रेक्टिकल संगठन में ही फिर चलना देखो, माताओं को संभालना बड़ा मुश्किल है उनके बीच में रह करके यह सभी इतना सब बातों का तो यह सभी चला हुआ है। अभी तो सब सर्विस में निकल गई है ना । अभी तो कोई किधर कोई किधर देखो दो चार इधर है दो चार किधर है दो चार किधर, अब तो सब फैल गई हैं सर्विस में अपना-अपना कहां सर्विस में लगे हैं। पाकिस्तान में तो सब एक ही जगह पर थे ना वो भट्टी में पक रहे थे अब तो सब सर्विस में गए इधर उधर तो सब फैल गई हैं । फिर भी अभी सीजन होती है ना तो माउंट आबू कराते हैं सभी इकट्ठे होते हैं, तभी आप लोगों को भी कहते हैं आप आएंगे ना बेंगलुरु वाले, भूपालम, आएंगे ना? हां आएंगे, हां आएंगे तो दिखाएंगे तो सब इकट्ठे रहते हैं और कैसे, किस तरह से। परंतु हां आने वाले भी बड़े अच्छे चाहिए ना। बी प्योर एंड भी योगी ऐसे चाहिए तब उन्हों को आनंद आएगा । तो यह सभी धारणाएं हैं बाकी अपना कोई ऐसा ही नहीं है बस, यह प्रैक्टिस है प्रैक्टिकल किस तरह से अपने उसी प्रैक्टिस में रहे । ऐसी बहुत सी अपने अनुभव की बातें हैं उसी अनुभव में रह करके और उसी अनुभव के साथ अपना जीवन चलाने का है तो यह सभी प्रैक्टिकल जीवन बनाने की बात है यह सिर्फ ऐसे कॉमन आया गया सुना बस उसी की ही चीज नहीं है। यह तो अपना उससे संबंध है, अपना जो बाप बेहद का कैसे हम बच्चों को यह नॉलेज भी दे रहे हैं, हमारा बाप भी है, टीचर भी है और सतगुरु भी वही है ना। गति सद्गति दाता भी वही है इसीलिए अभी बाप कहते हैं मैं बाप टीचर और सतगुरु कैसे प्रैक्टिकल बनता हूं वह बन करके अभी, हम क्या कहेंगे हमारी पालना कौन करता है , डायरेक्ट उनसे तो हमको खिलाने वाला कौन ? वह तो ऐसे भक्ति मार्ग में तो ऐसे सब कहते हैं परंतु वह तो अपने कर्म का है ना, खिलाने वाला वह है तो किसी को अच्छा किसी को बिचारा खा भी नहीं सकते हैं तो यह तो अपने कर्म का हिसाब है ना, हम तो सच-सच अभी परमात्मा के क्योंकि अभी हम उनके हैं प्रैक्टिकल इसीलिए प्रैक्टिकल उनके होकर के अभी उनके द्वारा अपना लेते हैं तो याद कौन रहेगा? बाप रहेंगे । हमें कौन खिला रहा है बाप का खा रहे हैं, पढ़ाता कौन हैं बाप पढ़ाता है तो हमारी बुद्धि में एक की ही याद रहेगी। ऐसे नहीं जैसे लौकिक तरह से टीचर एक रहेगा, बाप दूसरा रहेगा, गुरु तीसरा रहेगा , तीसरे मनुष्य को याद रखना पड़ेगा ना परंतु इधर तो एक ही को और एक भी कौन जो है ही एक, वह उसकी याद। अभी हमको यह नॉलेज सुना रहा है कौन , डायरेक्ट उनकी याद आती है ना , हमको कोई शास्त्र थोड़ी कोई गीता थोड़ी ही याद रखनी पड़ती है । गीता शास्त्र नहीं, वेद शास्त्र नहीं या कोई भी शास्त्र नहीं। गीता पाठी बैठकर सुनाएगा तो उसको क्या याद आएगा यह गीता सुनाने वाले हैं ना बहुत, हां भाई फलाने फलाने सुनाते हैं तो उनको क्या याद आएगा उनको गीता याद आएगी और फिर कृष्ण भगवान, अभी कृष्ण को तो भगवान तो देखो बुद्धि उल्टी जाती है ना । अभी अपनी बुद्धि किसके पास जाएगी परमपिता परमात्मा के पास, सुनाने वाला कौन है। भले मम्मा सुनाती है परंतु मम्मा भी कहां से सुनकर सुनाती है, सुना तो उसका है ना, नॉलेज तो उसका है ना तो बुद्धि में कौन आएगा यह बाप की नॉलेज फिर जिसने धारण किया है वह धारण किया हुआ फिर बतलाते हैं परंतु है तो उनकी ना, हमने कहा अपना थोड़े ही कोई वेद, शास्त्र या अपने-अपने कोई भी अंदर से, नहीं उनका सुन कर के उनका धारण कर रखा है तो बुद्धि में क्या आएगा कि हां बाबा का नॉलेज सुनते हैं । जिन्होंने उस पॉइंट को धारण किया है या कुछ किया है तो वह फिर बतलाते हैं बाबा का यह है समझाना, बाबा ऐसा समझाता है, बाबा ऐसा बताया है परंतु बताया तो बाबा है ना, नॉलेज दी तो उसने है ना तो बुद्धि में याद सबको क्या आएगा, बाप आएगा तो। इसमें बाप ही याद रहेगा, उसमें कोई मनुष्य की या किसी के याद की बात नहीं है । तो उसमें है मन वचन कर्म से अभी जैसे कि हम उनके हैं और उनका ही हमारे से मन वचन कर्म का चल रहा है तो यह सभी चीजें समझने की है। तो यह है बाप का अच्छी तरह से समझ करके और बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार लेना तो अधिकार लेने वाले भी अच्छे चाहिए ना बाकी ऐसे थोड़ी बस ऐसे ही, नहीं वह अपने ऊपर धारणा रखना, वो संबंध रखना और उसी सभी में आनाz उसके मत पर चलना। अभी हम किसकी मत पर हैं उन्हीं के । कोई भी कार्य करेंगे, कुछ भी करेंगे कुछ भी होगा उसी के डायरेक्शन पर उसकी मत पर , तो क्या हमारे बुद्धि में वही याद रहेगी ना, उनकी ही याद रहेगी दूसरे किसी की नहीं । कोई मनुष्य की याद नहीं, बस उनकी याद क्योंकि उनके डायरेक्शंस पर हैं उनकी मत पर है । तो इनकी इतनी बुद्धि उसके लगन चाहिए तब हमारा योगी, याद और रिलेशन और वो लव वो सभी लगेगा बाकी खाली थोड़ी बैठ करके बस कहने की कुछ है या बैठकर के रहना हैं, नहीं । तो यह सभी कहने करने वाली सिर्फ बातें नहीं है यह प्रैक्टिकल रिलेशनशिप प्रैक्टिकल चाहिए ना संबंध में तभी हमको वह सुख और वह आनंद और शांति और उसी के आधार पर फिर हम भविष्य भी अपना प्रालब्ध बनाते हैं तो अभी इतना है ईश्वरीय संबंध पीछे तो देवता संबंध हो जाएगा देवताओं का आपस का, अभी ईश्वरीय तो यह रिलेशन श्रेष्ठ है। इन्हीं को ही कहा जाता है ब्राह्मण वो देवता। तो ब्राह्मणों का देवताओं से ऊंचा पद है क्योंकि हम ब्राम्हण अभी ऊंचे हैं क्योंकि हमारा रिलेशन डायरेक्ट ईश्वर से संबंध में रिलेशन है और वह देवता तो फिर देखो लक्ष्मीनारायण फिर अपना अपना देवी देवताओं का आपस में रहा न। यह तो अभी हमारा ब्राह्मणों का हम मुख वंशावली किसके रिलेशन में है डायरेक्ट उनके । तो वह नशा है वह खुशी है और इस जन्म को महत्व इसीलिए कहते हैं यह जन्म जो है ना सब जन्मों से देवताओं से भी, कहते हैं ना देवताए भी इच्छा रखते हैं मनुष्य जन्म में आने की, वह कौन सा जन्म ? यह जन्म कि हम यहां से ही तो ब्राह्मण से ही तो देवता बने हैं वो याद रखेंगे ना कि भाई यहां से ही हम ऐसे बने हैं। तो जहां से बना जाता है तो उसको याद रखा जाता है ना असुल यही हमारी स्टेज लाइफ की जिसमें से हम ऐसे बने तो इसीलिए बलिहारी इस जन्म की। कहते हैं ना सबसे यही मनुष्य जन्म जो है वह दुर्लभ है , ऐसे कहते हैं मनुष्य जन्म दुर्लभ है परंतु वह समझते हैं चौरासी लाख योनियों से पशु पक्षी जनावर बन करके पीछे आ करके मनुष्य बने हैं , नहीं मनुष्य अपने बहुत नीचे के जन्मों से फिर यह जो जन्म है ना श्रेष्ठ, इससे हम श्रेष्ठ बनते हैं ना। वह तो प्रालब्ध हो गई, उसमें तो हम प्रालब्ध खाते हैं, बनते यहां हैं। यह मेहनत का है तो यह मेहनत की लाइफ है जिसमें हम इंप्योरिटी से प्योरिटी में आते हैं इसीलिए ब्राह्मणों का महत्व है। तो यह सभी चीजें समझने की है ना तो हम डायरेक्ट अभी ईश्वरीय संतान और अभी कहने में नहीं सिर्फ प्रैक्टिकल है संबंध में तो अपना संबंध चाहिए ना प्रैक्टिकल, खानी कहने में नहीं भगवान का बच्चे हैं या हम उसकी संतान हैं , वह फिका फिका नहीं प्रैक्टिकल चाहिए ना। संबंध है तो संबंध चाहिए प्रैक्टिकल तो अभी अपन प्रैक्टिकल चलते हैं । तो यह सभी चीजों को अच्छी तरह से समझ करके और उसी बाप से अपना बेहद का वर्सा लेना है । कैसा, एक पॉइंट सुनाई है परंतु यह पॉइंट बहुत बड़ी है। इसको अगर कोई प्रैक्टिकल में लाए ना तो बेड़ा पार हो जाए उसका । तो यह है प्रैक्टिकल में लाने की खाली सुनने की नहीं है। अच्छा, आप लोगों का टाइम जरा होता है इसीलिए टाइम को भी देखना होता है क्योंकि काम धंधे पर आप लोगों को जाना होता है। अच्छा दो टोली दो । बाकी है अच्छे बैंगलोर के जरूर है कि बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार लेने के लिए पूरा पूरा प्रयत्न रखेंगे । कैसे भूपालम ? कुछ आता है समझ में ना? कुछ ना आए समझ में तो पूछो, डायरी रखो, नोट करो, पूछो भाई यह बात कैसी है और अच्छी तरह से सभी बातों को समझना। ऐसे नहीं अंधविश्वास में हां हां करना है , ना कुछ बात समझ में नहीं आती है तो पूछना है समझना है। कैसा है श्यामसुंदर ? इसीलिए अपना एक पूछेगा और बहुतों का शंका निवारण होगी इसमें कोई हर्ज नहीं है। हम खुश होते हैं, जब कोई पूछते हैं परंतु हां समझने के ख्याल से। फालतू कोई....( कौन से सीजन में जाने का प्रोग्राम है) क्या? कौन से सीजन में ? पूछते हैं जाने का प्रोग्राम है क्या। सीजन में ? देखो वहां जब होती है ना गर्मी होती है ना बच्चों की छुट्टी में बहुत आते हैं। अप्रैल से आते हैं अप्रैल मई जून। अभी मार्च भी अच्छा है उधर का। मार्च भी अच्छा है क्योंकि सीजन अच्छी होती है वहां तो मार्च-अप्रैल मई जून, जुलाई में बारिश चालू हो जाती है फिर जुलाई-अगस्त यह जरा थोड़ा बाकी फ्रेश मार्च-अप्रैल मई ठीक है, तो आते हैं इनमें। हां हां सब आते हैं, सब सेंटर्स हैं न है सबके तो छुट्टियां होती हैं तो काफी आकर के वहां इकट्ठे होते हैं, आते हैं । तो अभी मार्च-अप्रैल मई में आते हैं । अब हम जाएंगे यहां से हम भी अप्रैल तक पहुंच जाएंगे, अप्रैल एंड में । परंतु हां बी प्योर बी योगी ऐसा जो आएगा उसको आनंद आएगा। फिर कोई नो प्यार नो योगी तो उसको आनंद नहीं आएगा वह तो कहेंगे यह क्या, वह क्या, वो क्या फिर उल्टा उठा उठाते रहेंगे परंतु जो रहेंगे पवित्रता की धारणा में होंगे उनको रस बैठेगा, जो योगी होंगे उनको रस बैठेगा तो प्रैक्टिकल लाइफ होनी चाहिए ना क्योंकि यह तो अपना संबंध है, रियल है ना, कोई आर्टिफिशियल तो नहीं है ना तो उसी संबंध का लव, उसी संबंध में सुख वो ईश्वरीय सुख की भी भासना उन्हों को आएगी फीलिंग जिन्हों को अपना होगा संबंध, होगा नहीं तो वह उनको वह मजा नहीं आएगा । यह तो फिर आते हैं सब तो अच्छा ही होता क्योंकि इकट्ठे होते हैं ना फिर सब कोई इधर उधर से आते हैं न तो एक दो का अनुभव सुनना करना कॉन्टेस्ट होता है ना तो पता चलता है भाई कैसा देखो भाई ऐसा, इनकी कैसे पहले पास्ट लाइफ थी तो ऐसे ऐसे अनुभव सुनने से आता है कि नहीं कुछ तो है ना , नहीं तो कोई ऐसी चीज छूटना बड़ा मुश्किल है। कोई आदत पक्की हो जाती है ना छूटना परंतु कोई तो ताकत है या किसी के आधार से ऐसी कोई चीज मिलती है तब तो होता है ना, तो कई ऐसे अनुभव एक दो के सुनने से बहुत ही बढ़ता है और इजी लगता है कि सहज है । वह तो मनुष्य समझते हैं बहुत डिफिकल्ट है, बहुत डिफिकल्ट है । डिफिकल्ट, डिफिकल्ट करते बैठ ही जाते हैं। नहीं, ये ईजी है ईजी कहते हैं क्योंकि बाप का पता चला ना तो फिर बाप मिला तो बाकी फूंक मारो सबको, फिर तो निकल जाता है ना यानी कोई बड़ी बात नहीं है जबकि इतनी बड़ी चीज , कोई बड़ी चीज मिलती है, दो पैसा मिलता है तभी एक पैसा छूटेगा ऐसे तो नहीं ना । ऐसे नहीं है कि बस हम आए एक पैसा ऐसे ही छूट जाए मिले कुछ नहीं। जरूर कुछ मिलता है तब तो छूट सकता है तो जरूर है कि कुछ मिलता है तभी छूटता है तो जरूर है कि उनके अनुभव से कुछ उसको मिला है । ज्यादा कुछ मिला है जिसके आधार पर वह फूंक मारो इसको क्या यह छोटी मोटी चीज है, गंदगी क्या लगा बैठे है तभी तो छूटता है ना । तो जरूर है कोई अनुभव में ऐसी चीजें आई है तो अनुभव सुनना है एक दो का। उससे भी अपनी लाइफ में बहुत कुछ मिलता है। तो यहां तो खाली आप बैंगलोर वाले ही आपस में हो ना थोड़े बहुत ,वहां आने से और और भी सब तरह के देखेंगे मिलेंगे तो क्या-क्या अपनी कैसे-कैसे लाइफ बनाई है । कैसे देखो यंग रह करके अपना पवित्र रहते हैं तो कोई बुड्ढा होगा तो उसको आएगा ना कि मैं नहीं रह सकता हूं । तो इतने यह रह रह रहे हैं क्या लज्जा आएगी न । देखेंगे ना हमारे जैसा कोई कर सकता है हम क्यों नहीं कर सकते हैं तो आएगा तो एक दो को देख करके होता है ना जो इंपॉसिबल मनुष्य समझते हैं वह पॉसिबल है तो यह कर सकता है हम क्यों नहीं कर सकते हैं, इतना छोटा कर सकते हैं हम नहीं कर सकते हैं तो आएगा ना । तो यह एक दो के अनुभव से अच्छी अच्छी बातें हैं मिलती है तो यह कांटेस्ट में आना, कांटेक्ट रखना हम तो कहते हैं बहुतों को कि आप आओ, मिलो सब से पूछो अनुभव आप लोगों को देखो पेशेंट्स को किसको शफा होती है तो उससे पता चलता है भाई हां इससे बहुतों को फायदा मिला है डॉक्टर से, ये डॉक्टर कुछ अच्छी दवा देता है । तो ऐसे होता है ना भाई तुमको फायदा पड़ा, तुमको ऐसा रोग तुम्हारा भी मिट गया तो हां उनसे होता है। तो हां पूंछों उन पेशेंट्स से पेशेंट्स शो डॉक्टर ऐसा होगा ना तो डॉक्टर का शो निकलेगा । पेशेंट्स शो डॉक्टर तो उससे पता चलेगा देखो अगर पेशेंट्स को कोई सफा मिली है तब तो डॉक्टर समझो नहीं तो ना समझो, चलो उसमें क्या है । हां तो वह अपने अनुभव से भी हर एक का होता ही है ना और यह प्रैक्टिकल है इसमें तो और कोई बात ही नहीं है यहां कोई गुप्त या छिपाने की । बाकी उनका काम कैसे चलता है, गुप्त चलता है । जितना है सर्व समर्थ वह अपनी प्रत्यक्ष ताकत नहीं दिखाएगा, प्रत्यक्ष क्या दिखाएगा मुर्दा पड़ा हो जिंदा कर दे तभी तो हां भगवान है, ऐसी तो बात नहीं है ना । नहीं, यही मुर्दे, लाइफ मुर्दा हुई पड़ी थी ना उस लाइफ को आ करके जिंदा किया है तो यह है मुर्दे को जिंदा बनाना बाकी उस मुर्दे को जिंदा करेगा तो फिर मुर्दा नहीं बनेगा? बनना तो है ना शरीर को तो छोड़ेंगे तो वह बात नहीं है यह है कि हमारी लाइफ जो मुर्दाबाद हुई पड़ी है उस लाइफ को आ करके वह जिंदाबाद करते हैं तो यह है मुर्दे को जिंदा बनाने का ऐसा । अच्छा आज दादा को तकलीफ देते हैं....मम्मा आज....कहां (मधुबन में) अरे ठहरो तो सही पहले तो बी प्योर बी योगी में हाथ उठाए पीछे तो, मधुबन में कोई ऐसा थोड़ी, नोट अलाउड। (इनमें तो भले जाए कोई ये पवित्र हैं) हम जो अभी जो नए आते हैं न उसको मंगाएंगे, किसी दिन मंगाएंगे सबको फिर पूछेंगे हाल चाल अच्छी तरह से । कौन प्योरिटी में अच्छी तरह से अभी चला है, किस तरह से वो सब पूछेंगे, ये तो हाल चाल तोड़ अकेला पूछना चाहिए न, मन में कोई बिचारे सुनने में करेंगे। हां तो फिर पूछेंगे(मम्मा अभी अपने बताया ब्रह्मा बाबा हमेशा शिव बाबा बाबा करता था हमें शिव दादा कहना चाहिए ?) हां शिव दादा। दादा ग्रैंड फादर को कहते हैं वो तो ठीक है । जब बाप के संबंध में इनके आते हैं तो उसको दादा ही कहना है, ग्रैंड फादर वो तो ठीक है, कहते हैं, ऐसे भी कहते हैं परंतु हमको बाप याद रखने का है इसीलिए बाबा भी कहते हैं और बड़े बाप को भी दादा कहते हैं ना तो बाबा माना बाबा ग्रैंडफादर, याद उसको रखना है। याद उसको रखना है नॉट ब्रह्मा को, याद उसको बाकी हां इसका भी तो बीच में है ना यह ना होता तो हम कहां से बच्चे होते, फिर हम कहां से हमारा हक कहां से लगता। इनके बिना भगवान हमको भी पोत्रे भी पैदा नहीं कर सकता बाप के बिना। तो पहले बाप हो तब तो हम पोत्रे भी बने ना। हम पोत्रे पैदा नहीं हो सकते इनके बिना, ब्रह्मा के बिना। ब्रह्मा ना हो तो हमको पोत्रे भी ना हो क्योंकि कोई मनुष्य के द्वारा ही तो मनुष्यों की रचना बनाएगा ना। तो वह कैसे रचते हैं, परमात्मा कैसे रहते हैं तो वो आ करके उस मनुष्य का आधार लेकरके करते हैं । अच्छा, बाबा तो बीज रूप है हम तो कहेंगे ना यह परिवार है सारा देखो दैवीय है। शिव बाबा की सर्विस में है तो दादा को तो सर्टिफिकेट देना ही पड़ेगा। अच्छा हां फिर उधर आएंगे और सबको देखो जो पवित्र रहते हैं ना उससे खाना बनवाते हैं, मेल से भी बनाते हैं उधर, एक दिन उसका रखते हैं फिर सब मिलकर के बनाते हैं एक सौ का सौ का खाना बनाना, रोटी बनाना करना तो सब प्रैक्टिस उधर कराएंगे । तो अपने हाथ से योग में रह करके फिर प्रैक्टिस करेंगे । बाबा की याद में रहकर के काम करो देखें कैसे करते हो, आता है । प्रैक्टिस कराते हैं, खाना बनवाते हैं और काम भी कराते हैं। ऐसे नहीं काम करे तो बाबा की याद भूल जाए , ना प्रैक्टिस कराते हैं फिर वहां आएंगे आप तो आपकी प्रैक्टिस देखेंगे उठते बैठते खेलते। हां खेलते भी ऐसे नहीं खेल करे तो याद भूल जाए। खेलते हैं बैडमिंटन करते हैं, क्रिकेट खेलते हैं , खेल करते भी उसकी याद। ऐसे ना हो खेल करें तो उसके याद भूल जाए । हां, बॉल कैच करें तो जैसे बाबा का वर्सा कैच करते हैं। यह बॉल देखो बॉल टाइप है ना दुनिया का गोला तो बुद्धि में भी एक बाबा की याद तो वह खुशी भी रहती है। स्टूडेंट इज बेस्ट वैसे भी कहा जाता है, उसमें भी यह गॉडली स्टूडेंट्स लाइफ इज द बेस्ट। गोडली स्टूडेंट वैसे भी कहा जाता है स्टूडेंट लाइफ इज द बेस्ट परंतु उसने भी यह बेस्ट क्योंकि यह गॉडली लाइफ है ना यह स्टूडेंट लाइफ है। स्टूडेंट वैसे भी बिचारे है खुश होते हैं, घूमना फिरना पढ़ना तो इसलिए स्टूडेंट लाइफ को बेस्ट कहा जाता है। यह तो गॉडली स्टूडेंट्स है ना तो गॉडली स्टूडेंट बनना कोई कम थोड़ी है अभी आपका। अच्छा, बाप दादा और मां की मीठे मीठे बहुत अच्छे और ऐसी गोडली स्टूडेंट लाइफ में चलते रहने वाले बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।