15-10-07   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


"संगमयुग की जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए सब बोझ वा बंधन बाप को देकर डबल लाइट बनो"

आज विश्व रचता बापदादा अपनी पहली रचना अति लवली और लक्की बच्चों से मिलन मेला मना रहा है। कई बच्चे सम्मुख हैं, नयनों से देख रहे हैं और चारों ओर के कई बच्चे दिल में समाये हुए हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के तीन सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक भाग्य है - बापदादा की श्रेष्ठ पालना का, दूसरा है शिक्षक द्वारा पढ़ाई का, तीसरा है सतगुरू द्वारा सर्व वरदानों का चमकता हुआ सितारा। तो आप सब भी अपने मस्तक पर चमकते हुए सितारे अनुभव कर रहे हो ना! सर्व सम्बन्ध बापदादा से है फिर भी जीवन में यह तीन सम्बन्ध आवश्यक हैं और आप सभी सिकीलधे लाडले बच्चों को सहज ही प्राप्त हैं। प्राप्त हैं ना! नशा है ना! दिल में गीत गाते रहते हैं ना - वाह! बाबा वाह! वाह! शिक्षक वाह! वाह! सतगुरू वाह! दुनिया वाले तो लौकिक गुरू जिसको महान आत्मा कहते हैं, उस द्वारा भी एक वरदान पाने के लिए कितना प्रयत्न करते हैं और आपको बाप ने जन्मते ही सहज वरदानों से सम्पन्न कर दिया। इतना श्रेष्ठ भाग्य क्या स्वप्न में भी सोचा था कि भगवान बाप इतना हमारे ऊपर बलिहार जायेगा! भक्त लोग भगवान के गीत गाते हैं और भगवान बाप किसके गीत गाते? आप लक्की बच्चों का।

अभी भी आप सभी भिन्न-भिन्न देशों से किस विमान में आये हो? स्थूल विमानों में कि परमात्म प्यार के विमान में सब तरफ से पहुंच गये हैं! परमात्म विमान कितना सहज ले आता है, कोई तकलीफ नहीं। तो सभी परमात्म प्यार के विमान में पहुंच गये हो इसकी मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बापदादा एक एक बच्चे को देख चाहे पहले बार आये हैं, चाहे बहुतकाल से आ रहे हैं। लेकिन बापदादा एक-एक बच्चे की विशेषता को जानते हैं। बापदादा का कोई भी बच्चा चाहे छोटा है, चाहे बड़ा है, चाहे महावीर है, चाहे पुरूषार्थी है, लेकिन हर एक बच्चा सिकीलधा है, क्यों? आपने तो बाप को ढूंढा मिला नहीं, लेकिन बापदादा ने आप हर बच्चे को बहुत प्यार, सिक, स्नेह से कोने-कोने से ढूंढा है। तो प्यारे हैं तब तो ढूंढा। क्योंकि बाप जानते हैं मेरा कोई एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जिसमें कोई भी विशेषता नहीं हो। कोई विशेषता ने ही लाया है। कम से कम गुप्त रूप में आये हुए बाप को पहचान तो लिया। मेरा बाबा कहा, सब कहते हो ना मेरा बाबा! कोई है जो कहता है नहीं तेरा बाबा, कोई है? सब कहते हैं मेरा बाबा। तो विशेष है ना। इतने बड़े बड़े साइन्सदान, बड़े बड़े वी.आई.पी. पहचान नहीं सके, लेकिन आप सबने तो पहचान लिया ना। अपना बना लिया ना। तो बाप ने भी अपना बना लिया। इसी खुशी में पलते हुए उड़ रहे हो ना! उड़ रहे हो, चल नहीं रहे हो, उड़ रहे हो क्योंकि चलने वाले बाप के साथ अपने घर में जा नहीं सकेंगे। क्योंकि बाप तो उड़ने वाले हैं, तो चलने वाले कैसे साथ पहुंचेंगे! इसलिए बाप सभी बच्चों को क्या वरदान देते हैं? फरिश्ता स्वरूप भव। फरिश्ता उड़ता है, चलता नहीं है, उड़ता है। तो आप सभी भी उड़ती कला वाले हो ना! हो? हाथ उठाओ जो उड़ती कला वाले हैं, कि कभी चलती कला, कभी उड़ती कला? नहीं? सदा उड़ने वाले, डबल लाइट हो ना! क्यों? सोचो, बाप ने आप सभी से गैरन्टी ली है कि जो भी किसी भी प्रकार का बोझ अगर मन में, बुद्धि में है तो बाप को दे दो, बाप लेने ही आये हैं। तो बाप को बोझ दिया है या थोड़ा-थोड़ा सम्भाल के रखा है? जब लेने वाला ले रहा है, तो बोझ देने में भी सोचने की बात है क्या? कि 63 जन्म की आदत है बोझ सम्भालने की, तो कई बच्चे कभी कभी कहते हैं चाहते नहीं हैं, लेकिन आदत से मजबूर हैं। अभी तो मजबूर नहीं हो ना! मजबूर हो कि मजबूत हो? मजबूर कभी नहीं बनना। मजबूत हैं। शक्तियां मजबूत हो या मजबूर? मजबूत हैं ना? आगे बैठी हुई क्या हैं? मजबूत हैं ना! बोझ रखना अच्छा लगता है क्या? दिल लग गई है, बोझ से दिल लग गई है? छोड़ो, छोड़ो तो छूटो। छोड़ते नहीं हैं तो छूटते नहीं हैं। छोड़ने का साधन है - दृढ़ संकल्प। कई बच्चे कहते हैं दृढ़ संकल्प तो करते हैं, लेकिन, लेकिन.... कारण क्या है? दृढ़ संकल्प करते हो लेकिन किये हुए दृढ़ संकल्प को रिवाइज नहीं करते हो। बार-बार मन से रिवाइज करो और रियलाइज करो, बोझ क्या और डबल लाइट का अनुभव क्या! रियलाइजेशन का कोर्स अभी थोड़ा और अण्डरलाइन करो। कहना और सोचना यह करते हो, लेकिन दिल से रियलाइज करो - बोझ क्या है और डबल लाइट क्या होता है? अन्तर सामने रखो क्योंकि बापदादा अभी समय की समीपता प्रमाण हर एक बच्चे में क्या देखने चाहते हैं? जो कहते हैं वह करके दिखाना है। जो सोचते हो वह स्वरूप में लाना है क्योंकि बाप का वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है मुक्ति और जीवनमुक्ति। सभी को निमन्त्रण भी यही देते हो ना तो आकर मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो। तो अपने से पूछो क्या मुक्तिधाम में मुक्ति का अनुभव करना है वा सतयुग में जीवनमुक्ति का अनुभव करना है वा अब संगमयुग में मुक्ति, जीवनमुक्ति का संस्कार बनाना है? क्योंकि आप कहते हो कि हम अभी अपने ईश्वरीय संस्कार से दैवी संसार बनाने वाले हैं। अपने संस्कार से नया संसार बना रहे हैं। तो अब संगम पर ही मुक्ति जीवनमुक्ति के संस्कार इमर्ज चाहिए ना! तो चेक करो सर्व बंधनों से मन और बुद्धि मुक्त हुए हैं? क्योंकि ब्राह्मण जीवन में कई बातों से जो पास्ट लाइफ के बन्धन हैं, उससे मुक्त हुए हो। लेकिन सर्व बन्धनों से मुक्त हैं या कोई कोई बंधन अभी भी अपने बन्धन में बांधता है? इस ब्राह्मण जीवन में मुक्ति जीवनमुक्ति का अनुभव करना ही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठता है क्योंकि सतयुग में जीवनमुक्त, जीवनबंध दोनों का ज्ञान ही नहीं होगा। अभी अनुभव कर सकते हो, जीवनबंध क्या है, जीवनमुक्त क्या है, क्योंकि आप सबका वायदा है, सबका वायदा है, अनेक बार वायदा किया है, क्या करते हो वायदा, याद है? किसी से भी पूछते हैं आपके इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या जवाब देते हो? बाप समान बनना है। पक्का है ना? बाप समान बनना है ना? कि थोड़ा थोड़ा बनना है? समान बनना है ना! बनना है समान? कि थोड़ा भी बन गये तो चलेगा! चलेगा? उसको समान तो नहीं कहेंगे ना। तो बाप मुक्त है, या बंधन है? अगर किसी भी प्रकार का चाहे देह का, चाहे कोई देह के सम्बन्ध, माता पिता बंधु सखा नहीं, देह के साथ जो कर्मेन्द्रियों का सम्बन्ध है, उस कोई भी कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध का बंधन है, आदत का बंधन है, स्वभाव का बंधन है, पुराने संस्कार का बंधन है, तो बाप समान कैसे हुए? और रोज वायदा करते हो बाप समान बनना ही है। हाथ उठवाते हैं तो सभी क्या कहते हैं? लक्ष्मी नारायण बनना है। बापदादा को खुशी होती है, वायदा बहुत अच्छे अच्छे करते हैं लेकिन वायदे का फायदा नहीं उठाते हैं। वायदा और फायदा का बैलेन्स नहीं जानते। वायदों का फाइल बापदादा के पास बहुत बहुत बहुत बड़ा है, सभी का फाइल है। ऐसे ही फायदे का भी फाइल हो, बैलेन्स हो, तो कितना अच्छा लगेगा। यह सेन्टर्स की टीचर्स बैठी है ना। यह भी सेन्टर निवासी बैठे हैं ना? तो समान बनने वाले हुए ना। सेन्टर निवासी निमित्त बने हुए बच्चे तो समान चाहिए ना! हैं? हैं भी लेकिन कभी-कभी थोड़ा नटखट हो जाते हैं?

बापदादा तो सभी बच्चों का सारे दिन का हाल और चाल दोनों देखते रहते हैं। आपकी दादी भी वतन में थी ना, तो दादी भी देखती थी तो क्या कहती थी? पता है, कहती थी बाबा ऐसा भी है क्या? ऐसा होता है, ऐसे करते हैं, आप देखते रहते हैं? सुना, आपकी दादी ने क्या देखा। अभी बापदादा यही देखने चाहते हैं कि एक-एक बच्चा मुक्ति जीवनमुक्ति के वर्से का अधिकारी बने, क्योंकि वर्सा अभी मिलता है। सतयुग में तो नेचरल लाइफ होगी, अभी के अभ्यास की नेचुरल लाइफ, लेकिन वर्से का अधिकार अभी संगम पर है। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक स्वयं चेक करे अगर कोई भी बंधन खींचता है, तो कारण सोचो। कारण सोचो और कारण के साथ निवारण भी सोचो। निवारण बापदादा ने अनेक बार भिन्न-भिन्न रूप से दे दिये हैं। सर्वशक्तियों का वरदान दिया है, सर्वगुणों का खज़ाना दिया है, खज़ाने को यूज करने से खज़ाना बढ़ता है। खज़ाना है, सबके पास है, बापदादा ने देखा है। हर एक के स्टॉक को भी देखता है। बुद्धि है स्टॉक रूम। तो बापदादा ने सबका देखा है। है, स्टॉक में है लेकिन खज़ाने को समय पर यूज नहीं करते हैं। सिर्फ प्वाइंट के रूप से सोचते हैं, हाँ यह नहीं करना है, यह करना है, प्वाइंट के रूप से यूज करते हैं, सोचते हैं लेकिन प्वाइंट बनके प्वाइंट को यूज नहीं करते हैं। इसीलिए प्वाइंट रह जाती है, प्वाइंट बनके यूज करो तो निवारण हो जाए। बोलते भी हैं, यह नहीं करना है, फिर भूलते भी हो। बोलने के साथ भूलते भी हो। इतना सहज विधि सुनाई है, सिर्फ है ही संगमयुग में बिन्दी की कमाल, बस बिन्दी यूज करो और कोई मात्रा की आवश्यकता नहीं। तीन बिन्दी को यूज करो। आत्मा बिन्दी, बाप बिन्दी और ड्रामा बिन्दी है। तीन बिन्दी यूज करते रहो तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं। लगाने चाहते हो बिन्दी लेकिन लगाने के समय हाथ हिल जाता, तो क्वेश्चन मार्क हो जाता या आश्चर्य की रेखा बन जाती है। वहाँ हाथ हिलता, यहाँ बुद्धि हिलती है। नहीं तो तीन बिन्दी को स्मृति में रखना क्या मुश्किल है? है मुश्किल है?

बापदादा ने तो दूसरी भी सहज युक्ति बताई है, वह क्या? दुआ दो और दुआ लो। अच्छा, योग शक्तिशाली नहीं लगता, धारणायें थोड़ी कम होती हैं, भाषण करने की हिम्मत नहीं होती है, लेकिन दुआ दो और दुआ लो, एक ही बात करो और सब छोड़ो, एक बात करो, दुआ लेनी है दुआ देनी है। कुछ भी हो जाए, कोई कुछ भी दे लेकिन मुझे दुआ देनी है, लेनी है। एक बात तो पक्की करो, इसमें सब आ जायेगा। अगर दुआ देंगे और दुआ लेंगे तो क्या इसमें शक्तियां और गुण नहीं आयेंगे? आटोमेटिकली आ जायेंगे ना! एक ही लक्ष्य रखो, करके देखो, एक दिन अभ्यास करके देखो, फिर सात दिन करके देखो, चलो और बातें बुद्धि में नहीं आती, एक तो आयेगी। कुछ भी हो जाए लेकिन दुआ देनी और लेनी है। यह तो कर सकते हैं या नहीं? कर सकते हैं? अच्छा, तो जब भी जाओ ना तो यह ट्रायल करना। इसमें सब योगयुक्त आपेही हो जायेंगे। क्योंकि वेस्ट कर्म करेंगे नहीं तो योगयुक्त हो ही गये ना। लेकिन लक्ष्य रखो दुआ देना है, दुआ लेनी है। कोई कुछ भी देवे, बददुआ भी मिलेगी, क्रोध की बातें भी आयेंगी क्योंकि वायदा करेंगे ना, तो माया भी सुन रही हैं, कि यह वायदा करेंगे, वह भी अपना काम तो करेगी ना। मायाजीत बन जायेंगे फिर नहीं करेंगी, अभी तो मायाजीत बन रहे हैं ना, तो वह अपना काम करेगी लेकिन मुझे दुआ देनी है और दुआ लेनी है। हो सकता है? हो सकता है? हाथ उठाओ जो कहते हैं हो सकता है। अच्छा, शक्तियां हाथ उठाओ। हाँ, हो सकता है! तो सब तरफ की टीचर्स आई हैं ना। सब तरफ की टीचर्स आई है ना। तो जब आप अपने देश में जाओ तो पहले पहले सभी को एक सप्ताह यह होमवर्क करना है और रिजल्ट भेजनी है, कितने जने क्लास के मेम्बर कितने हैं, कितने ओ.के. हैं और कितने थोड़े कच्चे और कितने पक्के हैं, तो ओ.के. के बीच में लाइन लगाना बस ऐसे समाचार देना। इतने जने ओ.के., इतने जनों में ओ.के. में लकीर लगी है। इसमें देखो डबल फारेनर्स आये हैं तो डबल काम करेंगे ना। एक सप्ताह की रिजल्ट भेजना फिर बापदादा देखेंगे, सहज है ना, मुश्किल तो नहीं है। माया आयेगी, आप कहेंगे बाबा मेरे को पहले तो कभी नहीं आता था, अभी आ गया, यह होगा, लेकिन दृढ़ निश्चय वाले की निश्चित विजय है। दृढ़ता का फल है सफलता। सफलता न होने का कारण है दृढ़ता की कमी। तो दृढ़ता की सफलता प्राप्त करनी ही है।

डबल फारेनर्स नम्बर वन हो जाना। डबल है ना, डबल फारेनर्स हैं ना, तो कमाल दिखाना। विदेश के कितने आये हैं? (90 देशों से 300 सेन्टर्स के आये हैं) तो 90 कमाल करेंगे ना? 90 देश के डबल फारेनर्स हैं, और 10इन्डिया के एड हो जायेंगे तो 100 हो जायेंगे। तो करेंगे? जो भी आये हैं, कुछ भी हो, करके ही दिखाना है। है इतने दृढ़ कि सोचते हैं देखेंगे, कोशिश करेंगे.... कोई है ऐसा, जो समझते हैं कोशिश करेंगे, कोशिश वाले हाथ उठाओ। कोई नहीं। तो मुबारक हो, ताली बजाओ। दादियां कहाँ हैं? पक्का है। अच्छा है। क्योंकि डबल फारेनर्स का वैसे नेचर, संस्कार भी गाये हुए हैं कि जो सोचते हैं करना है, वह करके ही छोड़ते हैं, यह डबल फारेनर्स की नेचर गाई हुई है, अभी इस नेचर को इस कार्य में लगाना। ठीक है ना! करके ही दिखाना है, कुछ भी हो जाए। सहनशक्ति का वरदान विशेष लेके जाना। लेकिन बापदादा ने समय प्रति समय बच्चों की एक सीन देखी है, बच्चों की सीन बाप देखता रहता है ना तो क्या देखा! कि बच्चों ने सहन बहुत अच्छा किया, बापदादा वाह! वाह! कर रहे थे बहुत अच्छा बहुत अच्छा देख रहे थे ना, लेकिन बाद में क्या किया, सहन कर लिया, पास हो गये लेकिन पीछे समाने की शक्ति कम होने के कारण, समा नहीं सके ना, तो जहाँ तहाँ वर्णन करते रहे, समाने की शक्ति नहीं थी, सहन करने की शक्ति थी, पार्ट अच्छा बजाया लेकिन समाने की शक्ति कम होने के कारण फिर वर्णन करने लगे ऐसा हुआ, ऐसा हुआ तो गंवा दिया ना। तो ऐसे नहीं करना। बापदादा बहुत दृश्य देखते हैं बच्चों के, पहले ताली बजाते हैं फिर चुप हो जाते हैं, तो ऐसे नहीं करना। सहनशक्ति, समाने की शक्ति, सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है, इसीलिए बाप को सर्वशक्तिवान कहा है, शक्तिवान नहीं कहा है, आपका भी टाइटल मास्टर सर्वशक्तिवान है, शक्तिवान है क्या? सर्वशक्तिवान है ना? तो सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है इसीलिए यह अटेन्शन रखना। अच्छा।

बापदादा खुश है, डबल फारेनर्स ने अपने अपने स्थानों में वृद्धि की है। प्रैक्टिकल में रहमदिल मर्सीफुल का पार्ट अच्छा बजा रहे हैं। बापदादा के पास समाचार तो आते रहते हैं। बापदादा ने अभी भी सुना अफ़्रीका और रशिया दोनों ही तरफ जो भी रहे हुए स्थान हैं, उसमें सन्देश अच्छा दे रहे हैं और भारत में हर एक वर्ग वाले अच्छे हिम्मत और उमंग से अपने अपने वर्ग के तरफ से मर्सीफुल बन आत्माओं को सन्देश देने का, परिचय देने का और सम्बन्ध जोड़ने का कार्य अच्छे उमंग उत्साह से कर रहे हैं। इसकी भी बापदादा मुबारक दे रहे हैं। हाँ ताली बजाओ भले।

जैसे इसकी ताली बजाई ना अभी 6 मास बापदादा देते हैं क्योंकि अभी सीजन तो शुरू होनी ही है, तो 6 मास, ज्यादा टाइम दे रहे हैं। जैसे सेवा उमंग-उत्साह से कर रहे हैं ऐसे स्वयं को भी स्व के प्रति सेवा, स्व सेवा और विश्व सेवा, स्व सेवा अर्थात् चेक करना और अपने को बाप समान बनाना। कोई भी कमी, कमज़ोरी बाप को दे दो ना, क्यों रखी है, बाप को अच्छा नहीं लगता है। क्यों कमज़ोरी रखते हो? दे दो। देने के टाइम छोटे बच्चे बन जाओ। जैसे छोटा बच्चा कोई भी चीज़ सम्भाल नहीं सकता, कोई भी चीज़ पसन्द नहीं आती है तो क्या करता है? मम्मी पापा यह आप ले लो। ऐसे ही कोई भी प्रकार का बोझ, बंधन जो अच्छा नहीं लगता, क्योंकि बापदादा देखता है, एक तरफ यह सोच रहे हैं है तो अच्छा नहीं, ठीक तो नहीं है लेकिन क्या करूं, कैसे करूं, तो यह तो अच्छा नहीं है। एक तरफ अच्छा नहीं है कह रहे हैं, दूसरे तरफ सम्भाल के रख रहे हैं, तो इसको क्या कहें! अच्छा कहें? अच्छा तो नहीं है ना। तो आपको क्या बनना है? अच्छे ते अच्छा ना। अच्छा भी नहीं, अच्छे ते अच्छा। तो जो भी कोई ऐसी बात हो, बाबा हाजिरा हजूर है, उसको दे दो, और अगर वापस आवे तो अमानत समझके फिर दे दो। अमानत में ख्यानत नहीं की जाती है। क्योंकि आपने तो दे दी, तो बाप की चीज़ हो गई, बाप की चीज़ या दूसरे की चीज़ आपके पास गलती से आ जाए, आप अलमारी में रख देंगे? रख देंगे? निकालेंगे ना। कैसे भी करके, निकालेंगे, रखेंगे नहीं। सम्भालेंगे तो नहीं ना। तो दे दो। बाप लेने के लिए आया है। और तो कुछ आपके पास है नहीं जो दो। लेकिन यह तो दे सकते हो ना। अक के फूल हैं, वह दे दो। सम्भालना अच्छा लगता है क्या? तो 6 मास जैसे अभी उमंग से कर रहे हैं सेवा, रशिया का भी समाचार सुना, और अफ़्रीका का भी समाचार सुना, औरों का भी समाचार सुनते रहते हैं, कर रहे हैं।

अभी स्व सेवा के प्रति खास समय दे रहे हैं। अभी देख तो लिया, बापदादा ने कितने समय से दो शब्द बार-बार रिवाइज कराये हैं, वह दो शब्द कौन से हैं? अचानक और एवररेडी। याद है ना! याद है? आपकी बहुत अच्छी दादी चन्द्रमणि, अचानक गई थी, याद है? तभी से, कितना टाइम हो गया, (10 साल) और उसके बाद कितने अचानक के हुए हैं? आपकी दादी कैसे गई? अचानक गई ना। अच्छा दादी से प्यार है, तो यह अचानक का पाठ दादी को याद करके याद करो। जैसे दादी अपने लक्ष्य को पूरा करके गई, ऐसे नहीं गई। उसको सर्टीफिकेट मिला, कर्मातीत, कर्मेन्द्रियों ने भी अपनी आकर्षण में नहीं बांधा, साक्षी होके कर्मेन्द्रियां शीतल होती रही, होती रही। आकर्षण ने नहीं खींचा, न कर्मेन्द्रियों ने खींचा, न किसी आत्मा के मोह ने खींचा, निर्मोही, नष्टोमोहा, नहीं तो कई लोग जाते जाते याद में बोल पड़ते हैं, फलाना, फलाना, फलाना... लेकिन दादी नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप में गई, कर्मेन्द्रियां जीत बनके गई। कोई कर्मेन्द्रिय ने अपने तरफ दु:ख की लहर में नहीं खींचा। तो दादी कहते हो, याद आती है ना, आनी ही चाहिए क्योंकि नम्बरवन थी ना। तो वन नम्बर ने विन तो किया ना। लेकिन जब भी दादी की याद आवे तो सिर्फ चित्र नहीं देखना लेकिन यह याद करो कि मैं भी एवररेडी हूँ। मुझे भी अचानक का पाठ याद है? अभी-अभी मैं भी अचानक चली जाऊं, तो नष्टोमोहा, प्रकृतिजीत हूँ? यही दादी की सौगात सब अपने पास रखो। समझा।

अच्छा - चारों ओर के आये हुए पत्र सन्देश ईमेल सब बापदादा के पास पहुंच गये हैं। सबने अपने प्यार की निशानी, खुद नहीं आ सके तो पत्र द्वारा ईमेल द्वारा भेज दी है। बापदादा ने एक-एक दिल के प्यार के पत्र सन्देश सौगात स्वीकार की और हर एक को बापदादा अपने नयनों में इमर्ज कर, प्यार का रेसपान्ड यादप्यार के रूप में दे रहे है। अच्छा है यह परमात्म प्यार बहुत पुरूषार्थ में सहयोग देता है। तो हर एक बच्चा प्यारा है, प्यारे रहेंगे और प्यार के झूले में झूलते हुए बापदादा के साथ अपने घर चलेंगे। वह भी टाइम आ जायेगा। जो सब साथ चलेंगे, साथ चलने वाले हो ना। पीछे पीछे नहीं आना, मजा नहीं आयेगा। मजा है हाथ में हाथ, साथ में साथ, हाथ है श्रीमत, श्रीमत बुद्धि में होगी, आत्मा परमात्मा का साथ होगा और घर चलेंगे। चलने वाले हो ना सभी, रह नहीं जाना। अभी भी साथ है, चाहे किसी भी कोने में हो, लेकिन बाप साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और फिर ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे। पक्का वायदा है ना। बीच में नहीं रह जाना। कोई कस्टम की चीज़ होगी तो रूक जायेगी। रावण की चीज़ हुई ना कस्टम। कोई भी रावण का संस्कार, स्वभाव वह धर्मराज पुरी कस्टम में फंसा देगी। और बाप के साथ चले जायेंगे, और कोई अगर होगा तो कस्टम में रूकना पड़ेगा, अच्छा लगेगा। नहीं लगेगा ना? बाप को भी अच्छा नहीं लगेगा। जब वायदा है साथ का, तो सदा साथ रहना। पीछे वाले वायदा है ना पक्का, पीछे वाले हाथ उठाओ, पक्का वायदा है! अच्छा, ठीक है। जो भी आये हैं, जहाँ से भी आये हैं, एक तो साथ नहीं छोड़ना, हर समय बाप और आप, कितना मजा आयेगा। बाप और आप, मजा है ना। टीचर्स मजा है ना इसमें। कि कभी कभी अलग-अलग भी हो जाएं, अच्छा है, बाबा का साथ छोड़ देंगे! नहीं छोड़ना, पक्का? एक सेकेण्ड भी नहीं। इसी को ही सच्चा प्यार कहा जाता है। ठीक है ना? पक्का, पक्का, पक्का है! यह फोटो निकल रहा है आपका, वतन में निकल रहा है। इस कैमरा में तो आयेगा नहीं, वतन में निकल रहा है, बहुत अच्छा।

अच्छा, चारों ओर के सभी बापदादा के दिल पसन्द बच्चे, दिलाराम है ना, तो दिलाराम के दिल पसन्द बच्चे, प्यार के अनुभवों में सदा लहराने वाले बच्चे, एक बाप दूसरा न कोई, स्वप्न में भी दूसरा न कोई, ऐसे बापदादा के अति प्यारे और अति देहभान से न्यारे, सिकीलधे, पदमगुणा भाग्यशाली बच्चों को दिल का यादप्यार और पदम-पदमगुणा दुआयें हों, साथ में बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का नमस्ते।

अफ्रीका के 28 देशों से जो पहली बार आये हैं वह खड़े हुए:- बहुत अच्छा, भले पधारे। अफ्रीका के निमित्त बने हुए कहाँ है! देखो, आप कितने भाग्यवान हैं, स्वयं बाप ने आप बच्चों को याद किया और कोई न कोई द्वारा सन्देश भिजवाया। तो अपने भाग्य को देख करके खुश हो रहे हो ना! सभी आपको देखके खुश हो रहे हो, क्योंकि ब्राह्मण परिवार में वृद्धि हो गई ना। परिवार में कोई भी बढ़ता है तो खुशी होती है ना। तो सब देखो खुश हो रहे हैं आप सबको देख करके। दूसरे देशों से जो पहली बार आये हैं वह उठो:- मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

दादियों से:- सिकीलधी दादियां हैं ना। दादियां हैं या साथी हैं, लेकिन सिकीलधी हैं। (दादी जानकी से) बैठो। अभी तो सीट पर सेट हो ना। बापदादा ने निमित्त बनाया है। इस बच्ची को (गुल्जार दादी को) भी निमित्त बनाया है, दोनों तीनों मिलकर बहुत अच्छी रीति से स्व पुरूषार्थ और विश्व सेवा में और विधि से सिद्धि प्राप्त कराने के निमित्त बनेंगी। वह तो रिद्धि सिधि वाले हैं अल्पकाल के, आपकी है विधि से सिद्धि। विधि से सिद्धि के बजाए उन्होंने रिधि सिद्धि कर दी है। बापदादा ने दादी जानकी के सिर पर हाथ रखा) ठीक है ना। सभी मिलकर करेंगे, सभी मिल करके संगठन को उमंग-उत्साह में लायेंगे। यह तो निमित्त पहला नम्बर, दूसरा नम्बर, तीसरा नम्बर दे देते हैं लेकिन हैं सभी सेवा के साथी। एक दो को उमंग दिलाते आगे बढ़ेंगे और जो दादी का संकल्प रहा है, बाप को प्रत्यक्ष करने का, दादी ने भी बटन तो हाथ में लिया है लेकिन दबायेंगे तो आप ना। आप ही दबायेंगे ना। तो सभी मिलके, जो भी निमित्त बने हुए हैं, सभी मिलके एक दो में राय करके, क्योंकि संगठन की शक्ति बहुत जल्दी सहज कार्य कर लेती है। हाँ जी, हाँ जी करते विश्व को अपने चरणों में हाँ जी कराना है। तो संगठन तो अच्छा है। हर एक की विशेषता है, और विशेषता को आप लोग आपस में वर्णन भी करते हो। क्लास करते हो ना विशेषताओं का। बस विशेष हैं, विशेषतायें देखनी हैं, विशेषतायें देनी हैं। विशेष कार्य करने के लिए विशेषता देखो, विशेषता का एक दो में सहयोग दो। अच्छा है (दादी जानकी से) भारी तो नहीं हो ना। भारी तो नहीं होती ना! (भारी रहने का अक्ल ही नहीं है) अक्ल नहीं है, यही अच्छा है। यह बच्ची (गुल्जार दादी) भी आपको साथ देती है, यह सब साथी हैं। (परदादी भी खुशी में नाचती रहती है) अच्छा खुश रहती है, नाचती रहती है। (अच्छे गीत गाती है) दादी भी गीत गाती थी ना। बचपन के साथी हैं ना। (मनोहर दादी से) ठीक है ना। इसकी विशेषता यह है जो साकार बाप के समय सब तरफ चक्र लगाने में नम्बरवन थी। बापदादा कहता था चक्कर लगाओ, चक्कर लगाओ तो पहला नम्बर आप तैयार होती थी। अभी भी पहला नम्बर क्लास कराने में पहला नम्बर, संगठन में पहुंचने में, हर कार्य में पहला नम्बर। (अभी शांत ज्यादा रहती है) अभी बचपन को याद करो, बीमारी को नहीं, बचपन याद करो। (किडनी में स्टोन हो गया है) आजकल यह बीमारियां तो कामन है, बैठे बैठे भी हो जाता है। सोते, बैठते हो जाता है। न सोना है न बैठना है चक्कर लगाना है।

विदेश की मुख्य बड़ी बहिनों से:- अच्छा फॉरेन ग्रुप आया है। बापदादा को खुशी होती है कि निमित्त फॉरेन में भी इन्डिया की बहनें ही बनी हैं। इन्डिया ने फारेन में रौनक लाई है। लेकिन इन्डिया की समझके नहीं रहती हो, विश्व की समझके रहती हो तभी सेवा हो सकी है अगर इन्डिया का भान हो ना तो सेवा नहीं हो सके, लेकिन यह अच्छा किया है कि फॉरेन में जाते विश्व सेवा का लक्ष्य रखा है। बेहद में गई, हद में नहीं। इसीलिए बापदादा खुश है। और उन्हों को भी साथ लेकर चलते हो ना तो वह भी अपने को आगे से आगे समझते हैं। तो संगठन भी अच्छा एक दो में लेन देन भी अच्छी करते हो, ठीक है बापदादा को पसन्द है। सर्टीफिकेट अच्छा है। सारी विश्व कितना याद करती है। और यह भी अच्छा है लक्ष्य जो रखा है एक दो के तरफ चक्कर लगाने का, यह बहुत अच्छा किया है। जैसे एक देश की दूसरे देश में, बीच बीच में चक्कर लगाते हो यह रिफ्रेशमेंट बहुत जरूरी है। चाहे छोटी बहन हो लेकिन वह दूर से आके क्लास करायेगी चेंज होता है ना तो सबको अच्छा लगता है। बड़ी होते भी छोटी क्लास कभी कभी कराती है तो रौनक आती है। इसलिए यह सिस्टम अच्छी रखी है चक्कर लगाने की। तो अच्छा चल रहा है ना। अच्छा है। (इस बारी और कोई नवीनता आवे) (जर्मनी में बुक फेयर बहुत अच्छा रहा) दिन प्रतिदिन अनुभवी भी होते जाते हो ना, अनुभव भी काम करता है। तो अच्छा है। अच्छा चला रहे हैं।