28-03-06   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


"विश्व की आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने के लिए मन्सा सेवा को बढ़ाओ, सम्पन्न और सम्पूर्ण बनो"

आज सर्व खज़ानों के मालिक बापदादा अपने चारों ओर के सर्व खज़ाने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे को सर्व खज़ाने का मालिक बनाया है। एक ही देने वाला और सर्व को एक जैसे सर्व खज़ाने दिये हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं दिये हैं। क्यों? बाप अखुट खज़ाने के मालिक हैं। बेहद का खज़ाना है इसलिए हर एक बच्चा अखुट खज़ाने का मालिक है। बापदादा ने सर्व बच्चों को एक जितना एक जैसा दिया है। लेकिन धारण करने वाले कोई सर्व खज़ाने धारण करने वाले हैं और कोई यथा शक्ति धारण करने वाले हैं। कोई नम्बरवन हैं और कोई नम्बरवार हैं। जिन्होंने जितना भी धारण किया है उन्हों के चेहरे से, नयनों से खज़ानों का नशा स्पष्ट दिखाई देता है। खज़ाने से भरपूर आत्मा चेहरे से, नयनों से भरपूर दिखाई देती है। जैसे स्थूल खज़ाना प्राप्त करने वाली आत्मा के चलन से, चेहरे से मालूम पड़ जाता है, तो यह अविनाशी खज़ानों का नशा, खुशी स्पष्ट दिखाई देती है। सम्पन्नता का फखुर बेफिकर बादशाह बना देती है। जहाँ ईश्वरीय फखुर है वहाँ फिकर हो नहीं सकता, बेफिकर बादशाह, बेगमपुर के बादशाह बन जाते हैं। तो आप सभी ईश्वरीय सम्पन्नता के खज़ाने वाले बेफिकर बादशाह हो ना ! बेगमपुर के बादशाह हो। कोई फिकर है क्या? कोई गम है? क्या होगा, कैसा होगा इसका भी फिकर नहीं। त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहने वाले जानते हो जो हो रहा है वह सब अच्छा, जो होने वाला है वह और अच्छा। क्यों? सर्वशक्तिवान बाप के साथी हो, साथ रहने वाले हो। हर एक को नशा है, फखुर है कि बापदादा सदा हमारे दिल में रहते हैं और हम सदा बाप के दिलतख्त पर रहते हैं। तो ऐसा नशा है ना! जो दिलतख्त नशीन हैं उसके संकल्प तो क्या स्वप्न में भी दु:ख की लहर, लैस भी नहीं आ सकती उसमें। क्यों? सर्व खज़ानों से भरपूर हो, जो भरपूर चीज़ होती है उसमें हलचल नहीं होगी।

तो चारों ओर के बच्चों की सम्पन्नता देख रहे थे, हर एक का बापदादा ने जमा का खाता चेक किया। खज़ाना तो अखुट मिला है लेकिन जो मिला है उस खज़ाने को कार्य में लगाते खत्म किया है वा मिले हुए खज़ाने को कार्य में भी लगाया है लेकिन और ही बढ़ाया है? कितनी परसेन्ट में हर एक के खाते में जमा है? क्योंकि यह खज़ाना सिर्फ अब इस समय के लिए नहीं है, यह खज़ाना भविष्य में भी साथ में चलना है। जमा हुआ ही साथ जायेगा। तो परसेन्टेज देख रहे थे। क्या देखा? सेवा तो सभी बच्चे यथा योग वा यथा शक्ति कर रहे हैं लेकिन सेवा का फल जमा होना उसमें अन्तर हो जाता है। कई बच्चों का जमा खाता देखा, सेवा बहुत करते लेकिन सेवा करने का फल जमा हुआ या नहीं, उसकी निशानी है - अगर सेवा करने वाली आत्मा चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा तीनों में 100 परसेन्ट मार्क होती हैं। तीनों में 100 हैं। सेवा तो की लेकिन अगर सेवा करने के समय वा सेवा के बाद स्वयं अपने मन में, अपने से सन्तुष्ट हैं और साथ में जिनकी सेवा की, जो सेवा में साथी बनते हैं वा सेवा करने वाले को देखते हैं, सुनते हैं वह भी सन्तुष्ट हैं तो समझो जमा हुआ। स्व की सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता नहीं है तो परसेन्टेज जमा का कम हो जाता है। यथार्थ सेवा की विधि पहले भी बताई है तीन बातें विधि पूर्वक हैं तो जमा है, वह सुनाया है - एक निमित्तभाव, दूसरा निमार्कण भावना, तीसरा निर्मल स्वभाव, निर्मल वाणी। भाव, भावना और स्वभाव, बोल अगर यह तीन बातों से एक बात भी कम है, एक है दो नहीं है, दो हैं एक नहीं है तो वह कमज़ोरी जमा की परसेन्टेज कम कर देती है। तो चार ही सबजेक्ट में अपने आप चेक करो - क्या चार ही सबजेक्ट में हमारा खाता जमा हुआ है? क्यों? बापदादा ने देखा कि कईयों की चार बातें जो सुनाई, भाव, भावना.... उस प्रमाण कई बच्चों का सेवा समाचार बहुत है लेकिन जमा का खाता कम है। हर खज़ाने को चेक करो - ज्ञान का खज़ाना अर्थात् जो भी संकल्प, कर्म किया वह नॉलेजफुल हो करके किया? साधारण तो नहीं हुआ? योग अर्थात् सर्व शक्ति का खज़ाना भरपूर हो। तो चेक करो हर दिन की दिनचर्या में समय प्रमाण जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसी समय वह शक्ति आर्डर में रही? मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है मालिक। ऐसे तो नहीं समय बीतने के बाद शक्ति का सोचते ही रह जायें। अगर समय पर आर्डर पर शक्ति इमर्ज नहीं होती, जब एक शक्ति को आर्डर में नहीं चला सकते तो निर्विघ्न राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे? तो शक्तियों का खज़ाना कितना जमा है? जो समय पर कार्य में लगाते हैं, वह जमा होता है। चेक करते जा रहे हो? मेरा खाता क्या है? क्योंकि बापदादा को सभी बच्चों से अति प्यार है, बापदादा यही चाहते हैं कि सभी बच्चों का जमा का खाता भरपूर हो। धारणा में भी, धारणा की निशानी है हर कर्म, गुण सम्पन्न होगा। जिस समय जिस गुण की आवश्यक्ता है वह गुण चेहरे, चलन में इमर्ज दिखाई दे। अगर कोई भी गुण की कमी है, मानों सरलता के गुण की कर्म के समय आवश्यकता है, मधुरता की आवश्यकता है, चाहे बोल में, चाहे कर्म में अगर सरलता, मधुरता के बजाए थोड़ा भी आवेशता या थकावट के कारण मधुर नहीं है, बोल मधुर नहीं है, चेहरा मधुर नहीं है, सीरियस है तो गुण सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना। कैसे भी सरकामस्टॉन्स हो लेकिन मेरा जो गुण है, वह मेरा गुण इमर्ज होना चाहिए। अभी शार्ट में सुना रहे हैं।

ऐसे ही सेवा - सेवा में सबसे अच्छी निशानी सेवाधारी की है - स्वयं भी सदा हल्का, लाइट और खुशनुमा दिखाई दे। सेवा का फल है खुशी। अगर सेवा करते खुशी गायब हो जाती है तो सेवा का खाता जमा नहीं होता। सेवा की, समय लगाया, मेहनत की तो थोड़ी परसेन्टेज में वह जमा होगा, फालतू नहीं जायेगा। लेकिन जितनी परसेन्टेज में जमा होना चाहिए उतना नहीं होता। ऐसे ही सम्बन्ध-सम्पर्क की निशानी - दुआओं की प्रप्ति हो। जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उनके मन से आपके प्रति दुआयें निकलें - बहुत अच्छा। बाहर से नहीं, दिल से, दिल से दुआयें निकले और दुआयें अगर प्राप्त हैं, तो दुआयें मिलना यह बहुत सहज पुरूषार्थ का साधन है। भाषण नहीं करो। चलो मन्सा सेवा भी इतनी पावरफुल नहीं है। कोई नये-नये प्लैन नहीं बनाने आते हैं, कोई हर्जा नहीं। सबसे सहज पुरूषार्थ का साधन है दुआयें लो, दुआयें दो। ऐसे कई बच्चों के बापदादा मन के संकल्प रीड करते हैं। कई बच्चे समय अनुसार, सरकामस्टॉन्स अनुसार कहते हैं कि अगर कोई खराब काम करता है तो उसको दुआयें कैसे दें? उस पर तो क्रोध आता है ना, दुआयें कैसे देंगे? चलो क्रोध के बाल-बच्चे भी तो बहुत हैं। लेकिन उसने खराब काम किया, वह खराब है आपने ठीक समझा कि यह खराब है। यह अच्छा है निर्णय तो अच्छा किया, समझा अच्छा लेकिन एक होता है समझना, दूसरा होता है उनके खराब काम, खराब बातों को अपने दिल में समाना। समझना और समाना फर्क है। अगर आप समझदार हो, क्या समझदार कोई खराब चीज़ अपने पास रखेगा ! लेकिन वह खराब है, आपने दिल में समाया अर्थात् आपने खराब चीज़ अपने पास रखी, सम्भाली। समझना अलग चीज़ है, समाना अलग चीज़ है। समझदार बनना तो ठीक है, बनो लेकिन समाओ नहीं। यह तो है ही ऐसा, यह समा लिया। ऐसे समझ करके व्यवहार में आना, यह समझदारी नहीं है।

तो बापदादा ने चेक किया, अभी समय समीप आना नहीं है, आपको लाना है। कई पूछते हैं थोड़ा सा इशारा तो दे दो ना - 10 साल लगेंगे, 20 साल लगेंगे, कितना समय लगेगा ! तो बाप बच्चों से प्रश्न करता है, बाप से तो प्रश्न बहुत करते हैं ना, तो आज बाप बच्चों से प्रश्न करता है समय को समीप लाने वाले कौन? ड्रामा है लेकिन निमित्त कौन? आपका एक गीत भी है, किसके रोके रूका है सवेरा। है ना गीत? तो सवेरा लाने वाला कौन? विनाशकारी तो तड़प रहे हैं कि विनाश करें, विनाश करें... लेकिन नवनिमार्कण करने वाले इतना रेडी हैं? क्या पुराना खत्म हो जाए, नया निमार्कण हो नहीं तो क्या होगा? इसलिए बापदादा ने अभी बाप के बजाए टीचर का रूप धारण किया है। होमवर्क दिया है ना? कौन होमवर्क देता है? टीचर। लास्ट में है सतगुरू का पार्ट। तो अपने आपसे पूछो सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज कहाँ तक बनी है? क्या आवाज से परे वा आवाज में आना, दोनों ही समान हैं? जैसे आवाज में आना जब चाहो सहज है, ऐसे ही आवाज से परे हो जाना जब चाहे, जैसे चाहे वैसे है? सेकण्ड में आवाज में आ सकते हैं, सेकण्ड में आवाज से परे इतनी प्रैक्टिस है? जैसे शरीर द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो ना। ऐसे मन बुद्धि द्वारा जब चाहो जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो? क्योंकि अन्त में पास मार्क्स उसको मिलेगी जो सेकण्ड में जो चाहे जैसा चाहे, जो आर्डर करना चाहे उसमें सफल हो जाए। साइन्स वाले भी यही प्रयत्न कर रहे हैं, सहज भी हो और समय भी कम में हो। तो ऐसी स्थिति है? क्या मिनटों तक आये हैं, सेकण्ड तक आये हैं, कहाँ तक पहुंचे हैं? जैसे लाइट हाउस माइट हाउस सेकण्ड में ऑन करो और अपनी लाइट फैलाते हैं, ऐसे आप सेकण्ड में लाइट हाउस बन चारों ओर लाइट फैला सकते हो? यह स्थूल ऑख एक स्थान पर बैठे दूर तक देख सकती है ना! फैला सकती है ना अपनी दृष्टि! ऐसे आप तीसरे नेत्र द्वारा एक स्थान पर बैठे चारों ओर वरदाता, विधाता बन नजर से निहाल कर सकते हो? चेक कर रहे हो अपने को सब बातों में? इतना तीसरा नेत्र क्लीन और क्लीयर है? अगर थोड़ी भी कमज़ोरी है, सभी बातों में तो कारण पहले ही सुनाया है। यह हद का लगाव ‘‘मैं और मेरा’’, जैसे मैं के लिए स्पष्ट किया था - होमवर्क भी दिया था। दो मैं को समाप्त कर एक मैं रखनी है। सभी ने यह होमवर्क किया? जो सफल हुए, इस होमवर्क में, वह हाथ उठाओ। सफल हुए, बापदादा ने सबको देखा है। हिम्मत रखो ऐसी, डरो नहीं। अच्छा है मुबारक मिलेगी। बहुत थोड़े हैं। किया है तो हाथ उठाओ। यह टी.वी. में हाथ दिखाओ। पीछे भी दिखाओ। बहुत थोड़े ने हाथ उठाया है। अभी क्या करें? सभी को अपने ऊपर हँसी भी आ रही है।

अच्छा - दूसरा होमवर्क था, क्रोध को छोड़ना है, यह तो सहज है ना! तो क्रोध को किसने छोड़ा, क्रोध नहीं किया इतने दिनों में? (इसमें बहुतों ने हाथ उठाया) इसमें थोड़े ज्यादा हैं। जिन्होंने क्रोध नहीं किया, आपके आस पास रहने वालों से भी पूछेंगे। बहुत हैं। क्रोध नहीं किया है? संकल्प में, मन में क्रोध आया? चलो, फिर भी मुबारक हो, अगर मन में आया मुख से नहीं किया तो भी मुबारक है। बहुत अच्छा। तो आप ही देखो रिजल्ट के हिसाब से क्या स्थापना का कार्य, स्व को सम्पन्न बनाना और सर्व आत्माओं को मुक्ति का वर्सा दिलाना, यह सम्पन्न हुआ है? स्वयं को जीवनमुक्ति स्वरूप बनाना और सर्व आत्माओं को मुक्ति का वर्सा दिलाना - यह है स्थापना कर्ता आत्माओं का श्रेष्ठ कर्म। तो बापदादा इसीलिए पूछता है कि सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवनमुक्त की स्टेज पर संगम पर ही पहुंचना है वा सतयुग में पहुंचना है? संगमयुग में सम्पन्न होना है या वहाँ भी राजयोग करके सीखना है? सम्पन्न तो यहाँ बनना है ना? सम्पूर्ण भी यहाँ ही बनना है। संगमयुग के समय का भी सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना है। तो किसके रोके रूका है सवेरा? बताओ। तो बापदादा क्या चाहते हैं? क्योंकि बाप की आशाओं का दीपक बच्चे ही हैं। तो अपना खाता चेक करो अच्छीतरह से। कई बच्चों को तो देखा कई बच्चे तो मौजीराम हैं, मौज में चल रहे हैं। जो हुआ सो अच्छा। अभी तो मौज मना लो। सतयुग में कौन देखता, कौन जानता। तो जमा के खाते में ऐसे मौजीलाल कहो, मौजीराम कहो, ऐसे भी बच्चे देखे। मौज कर लो। दूसरों को भी कहते अरे क्या करना है, मौज करो। खाओ, पिओ मौज करो। कर लो मौज, बाप भी कहते कर लो। अगर थोड़े में राजी रहने वाले हो तो थोड़े में राजी हो जाओ। विनाशी साधनों की मौज अल्पकाल की होती है। सदाकाल की मौज को छोड़ अगर अल्पकाल के साधन की मौज में रहना चाहते हैं तो बापदादा क्या कहेगा? इशारा देगा और क्या करेगा? कोई हीरों की खान पर जाये और दो हीरे लेकर खुश हो जाए उसको क्या कहेंगे? तो ऐसे नहीं बनना। अतीन्द्रिय सुख के मौज के झूले में झूलो। अविनाशी प्राप्तियों के झूले की मौज में झूलो। ड्रामा में देखो, माया का पार्ट भी विचित्र है। इसी समय ऐसे ऐसे साधन निकले हैं, जो पहले थे ही नहीं। लेकिन बिना साधन के भी जिन्होंने साधना की, सेवा की वह भी तो एक्जैम्पुल सामने हैं ना! क्या यह साधन थे? लेकिन सेवा कितनी हुई? क्वालिटी तो निकली ना! आदि रत्न तो तैयार हो गये ना! यह साधनों की आकर्षण है। साधनों को यूज करना रांग नहीं कहते हैं लेकिन साधना को भूल साधन में लग जाना, इसको बापदादा रांग कहते हैं। साधन जीवन के उड़ती कला का साधन नहीं है, आधार नहीं है। साधना आधार है। अगर साधना के बजाए साधनों को आधार बनाया तो रिजल्ट क्या होगी? साधन विनाशी हैं, रिजल्ट क्या? साधना अविनाशी है, उसकी रिजल्ट क्या होगी? तो बापदादा बच्चों से प्रश्न पूछता है - कब तक हर एक स्वयं को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनायेंगे? दूसरे को नहीं देखो, यह अलबेलापन आ जाता है। दूसरे भी करते हैं, मैंने किया तो क्या हुआ! यह अलबेलापन है। मुझे स्व को सम्पन्न बनाना है। अब इसके लिए कितना टाइम चाहिए? इसका भी हिसाब रखें या नहीं? संगठन है, बाप जानते हैं, संगठन में बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है, देखना भी पड़ता है, बहुत कुछ चलने में भी सामने बातें आती हैं, लेकिन यह तो आयेंगी। बातें खत्म हों तो सम्पन्न बनें, वह होना नहीं है। जितना आगे बढ़ेंगे, रूप जरूर चेंज होगा लेकिन बातें तो आयेंगी। लास्ट पेपर में ही देखो कितनी बातें हैं। बातें दिखाई न दें, बाबा दिखाई दे। बाबा ने क्या कहा, बातें क्या करती हैं, बातें क्या कहती हैं, नहीं। बाबा ने क्या कहा। बाबा को फॉलो करना है। फॉलो बातें करना है, या फॉलो फादर करना है? और बापदादा अभी यह देखने चाहते हैं, अगर वतन में स्विच ऑन करें तो सब बच्चे चाहे देश में, चाहे विदेश में, चाहे गांवों में, चाहे बड़े शहरों में सब बच्चे सम्पन्न रूप में राजा बच्चे दिखाई दें। अभी बाप की हर एक बच्चे में यही श्रेष्ठ आशा है। तो आप सभी बाप के आशा के दीपक बनेंगे? बनेंगे? हाथ उठाओ। ऐसे नहीं हाथ उठाओ। फाइल में पत्र डाल दें हाँ का, नहीं फाइनल। सभी पूरी करेंगे। अच्छा मुबारक हो। जिसने नहीं उठाया वह उठाओ। कोई है? अच्छा इन्हों को टाइम चाहिए? एक साल चाहिए? तीव्र पुरूषार्थ करो। करना ही है, होना ही है। मैजारिटी ने तो उठाया है। बापदादा को यह खुशी है और दिल की दुआयें दे रहे हैं, अब प्रैक्टिकल करके दिखाना। फिर बापदादा आयेगा। अभी टीचर बनेगा। ऐसे नहीं आयेगा। अभी तो बीच में समय है। जब पहला टर्न बापदादा आवे, पहला टर्न फॉरेन वालों को मिलता है, तो पहले फॉरेन वालों को तैयार होना पड़ेगा। रेडी। फॉरेन वाले तैयार हो जायेंगे? अगर फॉरेन तैयार नहीं होगा तो पहला टर्न इन्डिया को देंगे। पहले मधुबन वालों को तैयार होना पड़ेगा क्योंकि बापदादा को मधुबन में ही आना है ना और तो कहाँ भी जाते नहीं। बापदादा को फॉरेन वालों पर फेथ है, ऐसे नहीं इन्डिया वालों पर नहीं है। लेकिन फॉरेन का पहला टर्न होता है तो फॉरेन वाले बनकर ही दिखायेंगे। ठीक है ना! आप बोलो, फॉरेन के लिए (दादी जानकी से) साकार में तो निमित्त आपको बनना पड़ेगा।

अभी तो टाइम है, 5-6 मास है। नहीं तो फिर ऐसा करेंगे, राय बताओ कि जो सच्ची दिल से लिखते हैं, बापदादा तो देखता है ना, बापदादा के पास भी दिखाई देता है, कि थोड़ा मिक्स है। तो जो लिखेंगे एवररेडी, उन्हों से बापदादा मिलेंगे, औरों से नहीं। चाहे मधुबन में हो चाहे कहाँ भी हो। ठीक है? मधुबन वाले ठीक है? डबल फॉरेनर्स तो एवररेडी होंगे ना! बापदादा सबका सम्पन्न स्वरूप देखेगा। एवररेडी होंगे? ठीक है? मैजारटी ने तो हाथ उठाया है। मुबारक हो। सभी को मुबारक एडवांस में दे रहे हैं। फिर सभी एक दो को मुबारक देंगे, वाह! सम्पूर्ण वाह! वाह! सम्पन्न वाह! क्योंकि बहुत दु:ख बढ़ रहा है, आप आवाज नहीं सुनते हो ना, बापदादा सुनता है। बिल्कुल हिम्मतहीन, दिलशिकस्त हो गये हैं। मन्सा सेवा से, जैसे साइन्स वाले अपने जगह पर रहते हुए जहाँ अपना यन्त्र भेजने चाहें वहाँ भेज सकते हैं, ऐसे आप मन्सा सेवा को बढ़ाओ। वाचा तो करनी है लेकिन सारी विश्व की आत्माओं को वर्सा दिलाना, दु:ख से छुड़ाना, उसके लिए आपको सम्पन्न बनना पड़ेगा। और मन्सा सेवा चारों ओर फैलाओ तब विश्व का कल्याण होगा। मन्सा सेवा कर सकते हो? जिन्हों को मन्सा सेवा का अभ्यास है, चाहे थोड़ा है चाहे बहुत है लेकिन अभ्यास है, कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ। इसमें तो सब पास हैं। इतनी आत्मायें अगर मन्सा सेवा से वायुमण्डल फैला सकते हो तो क्या बड़ी बात है! जितना मन्सा सेवा में बिजी रहेंगे उतना समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे क्योंकि आपका मन बुद्धि बिजी रहेगी। फ्री नहीं होगी तो माया आयेगी कहाँ, वापस चली जायेगी। समस्या हिम्मत नहीं रख सकती। तो मन्सा सेवा को बढ़ाओ। समझा।

अच्छा। अभी एक मिनट के लिए सभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति द्वारा विश्व में अपनी लाइट माइट फैलाओ। अच्छा - ऐसा अभ्यास समय प्रति समय कार्य में होते हुए भी करते रहो। बापदादा ने सुना लण्डन के प्रोग्राम के लिए टॉपिक बहुत अच्छी रखी है। सुनाओ सभी को (जस्ट ए मिनट- एक मिनट में साइलेन्स का अनुभव, अपने परिवर्तन का अनुभव, विश्व के लिए) अच्छी टॉपिक रखी है और ऐसा अभ्यास उस समय सब इन्डिया में वा फॉरेन में ब्राह्मण भी करेंगे ना! (यह विचार है सब जगह विश्वव्यापी यह प्रोग्राम हो) अच्छा है, यह अभ्यास जरूरी है। एक मिनट भी अगर यह चारों ओर वायुमण्डल बन जाए तो यह भी सभी को मालूम पड़ जायेगा कि ब्रह्माकुमारियां क्या चाहती हैं, क्या करती हैं। यह भी फैलेगा अच्छा। अगर चारों ओर यह साथ साथ हो जाए तो सेवा का साधन अच्छा है। अच्छा। आज टर्न किसका है?

सेवा का टर्न महाराष्ट्र, बम्बई और आंध्र प्रदेश :- जिसका टर्न होता है, आधा क्लास उन्हों का ही होता है। अच्छा - महाराष्ट्र सदा महान स्थिति में रहने वाले और विश्व में जीवन की महानता प्रत्यक्ष करने वाले, अच्छा है, संख्या भी काफी है। लेकिन अभी तक 9 लाख नहीं पूरे हुए हैं ना। 9 लाख पूरे हुए हैं? नहीं हुए हैं? तो महाराष्ट्र को जब संख्या भी इतनी है तो जब दूसरी सीजन में बापदादा आवे तो जितने भी आये हैं, कितनी संख्या है आने वालों की (महाराष्ट्र 5500 आये हैं), तो महाराष्ट्र सामने बैठे हो तो काम भी तो करेंगे ना। तो जितने आये हो दूसरी सीजन में एक-एक को एक तैयार करके लाना है। अच्छा तैयार करना, क्योंकि 6 मास है, आपका नियम एक वर्ष का है। तो 6 मास में इतना तैयार करो जो एक वर्ष जितना हो। 9 लाख तो पूरा करना चाहिए, कितने हैं। टोटल संख्या कितनी है? (8 लाख 12 हजार,) तो बाकी थोड़े ही चाहिए, तो ऐसे करो। अभी मीटिंग है ना। हर जोन को अपने-अपने जोन के हिसाब से संख्या बांटना और बापदादा आवे तो यहाँ रूबरू भले नहीं आवें लेकिन तैयार करके आवे, वह लिस्ट लेके आवे। तो यह होमवर्क ठीक है? जोन वाले? करेंगे जोन वाले। अच्छा, 9 लाख तो पूरा करो। क्या बड़ी बात है। डबल फॉरेनर्स चाहे इन्डिया 9 लाख इस बारी पूरी करना ही है। होना चाहिए ना कि अभी पीछे होना चाहिए? मधुबन वाले भी करेंगे, आस पास सेवा तो करते हो ना, तैयार करके आना सब जोन। यहाँ नहीं हैं तो भी सुनेंगे तो सही। और मीटिंग में फाइनल करना, फिर अच्छा है, बापदादा को इतनी संख्या देख करके भी खुशी होती है। (9 लाख ब्राह्मण होंगे ना। करोड़ों को सन्देश देना है ना) वह प्रोग्राम तो करते हो ना! वह तो करना ही है। लेकिन पहले स्व को सम्पन्न बनाना है साथ में यह सेवा करनी है। वह तो हाथ उठाया है ना। तैयार करेंगे ना! अभी धीरे-धीरे चलने का समय गया, अभी उड़ो, जब चाहो जहाँ चाहो सेवा में हाजिर हो जाओ। अच्छा। आप सभी भी तैयार करके आयेंगे ना, और ज्यादा नहीं एक-एक। अगर ज्यादा करेंगे तो मुबारक हो। अच्छा है महाराष्ट्र ने गोल्डन चांस लिया है, स्वयं को सम्पूर्ण बनाने का, क्योंकि यहाँ का वायुमण्डल सहज ही अशरीरी बनने में मदद करता है। तो जो भी जोन चांस लेता है, उसको यह गोल्डन प्राप्ति होती है। कर्मणा का भी फल और वायुमण्डल में स्थिति का भी फल मिलता है। डबल फल की प्राप्ति हो जाती है। अच्छा है। बापदादा को हर बच्चा एक दो से प्यारा लगता है। कैसा भी बच्चा हो लेकिन परमात्म प्यार के पात्र तो बनता ही है। और यह परमात्म प्यार सिर्फ अभी मिलता है। प्यार तो सभी का बापदादा से 100 परसेन्ट है, या कम है? जो समझते हैं प्यार में 100 परसेन्ट है, वह हाथ उठाओ। 100 परसेन्ट प्यार है? तो प्यार में तो थोड़ा बहुत है वह कुर्बान करना सहज है। मुबारक हो। प्यार का प्रमाण है कुर्बान होना। तो सपूत बच्चे हो ना, तो सपूत बच्चा वही है जो प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाता है। बापदादा को बच्चों का प्यार तो पहुँचता है लेकिन शक्तिशाली स्थिति कम पहुंचती है। प्यार में बापदादा भी अच्छी परसेन्ट देखते हैं लेकिन अभी शक्ति स्वरूप सम्पन्न स्वरूप में सबसे ज्यादा मार्क्स लेनी हैं। तो महाराष्ट्र नम्बरवन जायेगा? जायेगा? अच्छा है। जो ओटे वह अर्जुन। अर्जुन नम्बरवन। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों के पुरूषार्थ और प्यार के समाचार पत्र बापदादा को मिले हैं, बापदादा बच्चों का उमंग-उत्साह देख यह करेंगे, यह करेंगे, यह समाचार सुन खुश होते हैं। अभी सिर्फ जो हिम्मत रखी है, उमंग-उत्साह रखा है, इसको बार-बार अटेन्शन दे प्रैक्टिकल में लाना। यही सभी बच्चों के प्रति बापदादा के दिल की दुआयें हैं और सभी चारों ओर के संकल्प, बोल और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पन्न बनने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्वदर्शन करने वाले, स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों को, सदा दृढ़संकल्प द्वारा मायाजीत बन बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करने वाले और विश्व के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले सर्विसएबुल, नॉलेजफुल, सक्सेसफुल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल से पदमपदमगुणा दुआयें हो, नमस्ते हो। नमस्ते।

दादियों से:- आपका भी लक्ष्य यही है ना कि जल्दी से जल्दी प्रत्यक्षता हो। इसीलिए बापदादा होमवर्क देता है। सतगुरू का पार्ट चलेगा तो समाप्ति हो जायेगी। इसके लिए सबको तैयार कर रहे हैं। (हमारे सामने तीनों हैं) बापदादा को स्वरूप आफीशल धारण करना पड़ता है। है तो सदा ही तीन रूप में। अभी बापदादा यही चाहते हैं कि सभी कहें विजयी हो गये। होना है, हो रहे हैं, नहीं। हो गये। सबके मस्तक में चमकता हुआ सितारा स्पष्ट अनुभव हो। यह अनुभव की आंख अभी दूसरों को अनुभव करायेगी। अभी अनुभव चाहते हैं। स्वयं भी हर शक्ति, हर गुण के अनुभवी बनें, तभी अनुभव करा सकेंगे। तो अपने अनुभव को बढ़ाओ तो औरों को अनुभव हो ही जायेगा। अच्छा है। आप सभी की दिल की आशायें पूर्ण होनी ही हैं। ठीक है ना! ठीक है? कितना अच्छा है। अच्छा है, ब्राह्मण कुल की शोभा हो। सभी दादियों को देखकर खुश होते हैं ना! देखो इन्हों की कमाल यह है, कि बिना साधनों के सफलता प्राप्त की। (कितना पैदल चले होंगे, न मोटर न गाड़ी..) इसी तपस्या ने इतना विस्तार पैदा किया। अभी थोड़े साधन प्राप्त हुए हैं ना, तो थोड़ी आकर्षण होती है। अच्छा।