27-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट है वण्डरफुल
रंग-बिरंगी दुनिया (स्वर्ग) का मालिक बनना, तो सदा इसी खुशी में हर्षित रहो, मुरझाया
हुआ नहीं”
प्रश्नः-
तकदीरवान बच्चों
को कौन-सा उमंग सदा बना रहेगा?
उत्तर:-
हमें
बेहद का बाप नई दुनिया का प्रिंस-प्रिंसेज बनाने के लिए पढ़ा रहे हैं। तुम इसी उमंग
से सबको समझा सकते हो कि इस लड़ाई में स्वर्ग समाया हुआ है। इस लड़ाई के बाद स्वर्ग
के द्वार खुलने हैं – इसी खुशी में रहना है और खुशी-खुशी से दूसरों को भी समझाना
है।
गीत:- दुनिया
रंग रंगीली बाबा……..
ओम् शान्ति।
यह किन्होंने कहा बाबा
को, कि दुनिया रंग-बिरंगी है? अब इनका अर्थ दूसरा कोई समझ न सके। बाप ने समझाया है
यह खेल रंग-रंगीला है। कोई भी बाइसकोप आदि होता है तो बहुत रंग-बिरंगी सीन-सीनरियाँ
आदि होती हैं ना। अब इस बेहद की दुनिया को कोई जानते ही नहीं। तुम्हारे में भी
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। तुम समझते हो
स्वर्ग कितना रंग-बिरंगा है, खूबसूरत है। जिसको कोई भी जानते नहीं। कोई की बुद्धि
में नहीं है, वह है वण्डरफुल रंग-बिरंगी दुनिया। गाया जाता है वण्डर ऑफ दी वर्ल्ड –
इसको सिर्फ तुम जानते हो। तुम ही वण्डर ऑफ वर्ल्ड के लिए अपनी-अपनी तकदीर अनुसार
पुरुषार्थ कर रहे हो। एम आब्जेक्ट तो है। वह है वण्डर ऑफ वर्ल्ड, बड़ी रंग-बिरंगी
दुनिया है, जहाँ हीरे-जवाहरातों के महल होते हैं। तुम एक सेकण्ड में वण्डरफुल
बैकुण्ठ में चले जाते हो। खेलते हो, रास-विलास आदि करते हो। बरोबर वण्डरफुल दुनिया
है ना। यहाँ है माया का राज्य। यह भी कितना वण्डरफुल है। मनुष्य क्या-क्या करते रहते
हैं। दुनिया में यह कोई भी नहीं समझते कि हम नाटक में खेल कर रहे हैं। नाटक अगर समझें
तो नाटक के आदि-मध्य-अन्त का भी ज्ञान हो। तुम बच्चे जानते हो बाप भी कितना साधारण
है। माया बिल्कुल ही भुला देती है। नाक से पकड़ा, यह भुलाया। अभी-अभी याद में हैं,
बहुत हर्षित रहते हैं। ओहो! हम वण्डर ऑफ वर्ल्ड स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं, फिर
भूल जाते हैं तो मुरझा पड़ते हैं। ऐसा मुरझा जाते हैं जो भील भी ऐसा मुरझाया हुआ न
हो। ज़रा भी जैसेकि समझते ही नहीं कि हम स्वर्ग में जाने वाले हैं। हमको बेहद का
बाप पढ़ा रहे हैं। जैसे एकदम मुर्दे बन जाते हैं। वह खुशी, नशा नहीं रहता। अभी
वण्डर ऑफ वर्ल्ड की स्थापना हो रही है। वण्डर ऑफ वर्ल्ड का श्रीकृष्ण है प्रिन्स।
यह भी तुम जानते हो। कृष्ण जन्माष्टमी पर भी जो ज्ञान में होशियार हैं वह समझाते
होंगे। श्रीकृष्ण वण्डर ऑफ वर्ल्ड का प्रिन्स था। वह सतयुग फिर कहाँ गया! सतयुग से
लेकर सीढ़ी कैसे उतरे। सतयुग से कलियुग कैसे हुआ? उतरती कला कैसे हुई? तुम बच्चों
की बुद्धि में ही आयेगा। उस खुशी से समझाना चाहिए। श्रीकृष्ण आ रहे हैं। कृष्ण का
राज्य फिर स्थापन हो रहा है। यह सुनकर भारतवासियों को भी खुशी होनी चाहिए। परन्तु
यह उमंग उन्हों को आयेगा जो तकदीरवान होंगे। दुनिया के मनुष्य तो रत्नों को भी
पत्थर समझकर फेंक देंगे। यह अविनाशी ज्ञान रत्न हैं ना। इन ज्ञान रत्नों का सागर है
बाप। इन रत्नों की बहुत वैल्यु है। यह ज्ञान रत्न धारण करने हैं। अभी तुम ज्ञान
सागर से डायरेक्ट सुनते हो तो फिर और कुछ भी सुनने की दरकार ही नहीं। सतयुग में यह
होते नहीं। न वहाँ एल.एल.बी., न सर्जन आदि बनना होता है। वहाँ यह नॉलेज ही नहीं। वहाँ
तो तुम प्रालब्ध भोगते हो। तो जन्माष्टमी पर बच्चों को अच्छी रीति समझाना है। अनेक
बार मुरली भी चली हुई है। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है, तब ही प्वाइंट्स
निकलेंगी। भाषण करना है तो सवेरे उठकर लिखना चाहिए, फिर पढ़ना चाहिए। भूली हुई
प्वाइंट्स फिर एड करनी चाहिए। इससे धारणा अच्छी होगी फिर भी लिखत मुआफिक सब नहीं
बोल सकेंगे। कुछ न कुछ प्वाइंट्स भूल जायेंगे। तो समझाना होता है, कृष्ण कौन है, यह
तो वण्डर ऑफ वर्ल्ड का मालिक था। भारत ही पैराडाइज था। उस पैराडाइज का मालिक
श्रीकृष्ण था। हम आपको सन्देश सुनाते हैं कि श्रीकृष्ण आ रहे हैं। राजयोग भगवान ने
ही सिखाया है। अब भी सिखला रहे हैं। पवित्रता के लिए भी पुरुषार्थ करा रहे हैं, डबल
सिरताज देवता बनाने के लिए। यह सब बच्चों को स्मृति में आना चाहिए। जिनकी प्रैक्टिस
होगी वह अच्छी रीति समझा सकेंगे। कृष्ण के चित्र में भी लिखत बड़ी फर्स्टक्लास है।
इस लड़ाई के बाद स्वर्ग के द्वार खुलने हैं। इस लड़ाई में जैसे स्वर्ग समाया हुआ
है। बच्चों को भी बहुत खुशी में रहना चाहिए, जन्माष्टमी पर मनुष्य कपड़े आदि नये
पहनते हैं। लेकिन तुम जानते हो कि अभी हम यह पुराना शरीर छोड़ नया कंचन शरीर लेंगे।
कंचन काया कहते हैं ना अर्थात् सोने की काया। आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र। अभी
कंचन नहीं है। नम्बरवार बन रही है। कंचन बनेंगी ही याद की यात्रा से। बाबा जानते
हैं बहुत हैं जिनको याद करने का भी अक्ल नहीं है। याद की जब मेहनत करेंगे तब ही वाणी
जौहरदार होगी। अभी वह ताकत कहाँ है। योग है नहीं। लक्ष्मी-नारायण बनने की शक्ल भी
चाहिए ना। पढ़ाई चाहिए। कृष्ण जन्माष्टमी पर समझाना बहुत सहज है। कृष्ण के लिए कहते
हैं श्याम-सुन्दर। कृष्ण को भी काला, नारायण को भी काला, राम को भी काला बनाया है।
बाप खुद कहते हैं, मेरे बच्चे जो पहले ज्ञान चिता पर बैठ स्वर्ग के मालिक बनें फिर
कहाँ चले गये। काम चिता पर बैठ नम्बरवार गिरते चले आये। सृष्टि भी सतोप्रधान, सतो,
रजो, तमो बनती है। तो मनुष्यों की अवस्था भी ऐसी होती है। काम चिता पर बैठ सब श्याम
अर्थात् काले बन गये हैं। अब मैं आया हूँ सुन्दर बनाने। आत्मा को सुन्दर बनाया जाता
है। बाबा हर एक की चलन से समझ जाते हैं – मन्सा, वाचा, कर्मणा कैसे चलते हैं। कर्म
कैसे करते हैं, उससे पता पड़ जाता है। बच्चों की चलन तो बड़ी फर्स्टक्लास होनी
चाहिए। मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। कृष्ण जयन्ती पर समझाने का बहुत अच्छा है।
श्याम और सुन्दर की टॉपिक हो। कृष्ण को भी काला तो नारायण को फिर राधे को भी काला
क्यों बनाते हैं? शिवलिंग भी काला पत्थर रखते हैं। अब वह कोई काला थोड़ेही है। शिव
है क्या, और चीज़ क्या बनाते हैं। इन बातों को तुम बच्चे जानते हो। काला क्यों बनाते
हैं – तुम इस पर समझा सकेंगे। अब देखेंगे बच्चे क्या सर्विस करते हैं। बाप तो कहते
हैं – यह ज्ञान सब धर्म वालों के लिए है। उन्हों को भी कहना है बाप कहते हैं मुझे
याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे। पवित्र बनना है। किसको भी
तुम राखी बांध सकते हो। यूरोपियन को भी बांध सकते हो। कोई भी हो उनको कहना है –
भगवानुवाच, जरूर कोई तन से कहेंगे ना। कहते हैं मामेकम् याद करो। देह के सब धर्म
छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाबा कितना समझाते हैं, फिर भी नहीं समझते हैं तो बाप समझ
जाते हैं इनकी तकदीर में नहीं है। यह तो समझते होंगे शिवबाबा पढ़ाते हैं। रथ बिगर
तो पढ़ा न सकें, इशारा देना ही बस है। कोई-कोई बच्चों को समझाने की प्रैक्टिस अच्छी
है। बाबा-मम्मा के लिए तो समझते हो यह ऊंच पद पाने वाले हैं। मम्मा भी सर्विस करती
थी ना। इन बातों को भी समझाना होता है। माया के भी अनेक प्रकार के रूप होते हैं।
बहुत कहते हैं हमारे में मम्मा आती है, शिवबाबा आते हैं परन्तु नई-नई प्वाइंट्स तो
मुकरर तन द्वारा ही सुनायेंगे कि दूसरे किसी द्वारा सुनायेंगे। यह हो नहीं सकता। ऐसे
तो बच्चियाँ भी बहुत प्रकार की प्वाइंट्स अपनी भी सुनाती हैं। मैगजीन में कितनी बातें
आती हैं। ऐसे नहीं कि मम्मा-बाबा उनमें आते, वह लिखवाते हैं। नहीं, बाप तो यहाँ
डायरेक्ट आते हैं, तब तो यहाँ सुनने के लिए आते हो। अगर मम्मा-बाबा कोई में आते हैं
तो फिर वहाँ ही बैठ उनसे पढ़ें। नहीं, यहाँ आने की सबको कशिश होती है। दूर रहने वालों
को और ही जास्ती कशिश होती है। तो बच्चे जन्माष्टमी पर भी बहुत सर्विस कर सकते हैं।
कृष्ण का जन्म कब हुआ, यह भी किसको पता नहीं है। तुम्हारी अब झोली भर रही है तो खुशी
रहनी चाहिए। परन्तु बाबा देखते हैं खुशी कोई-कोई में बिल्कुल है नहीं। श्रीमत पर न
चलने का तो जैसे कसम उठा लेते हैं। सर्विसएबुल बच्चों को तो जैसे सर्विस ही सर्विस
सूझती रहेगी। समझते हैं बाबा की सर्विस नहीं की, किसको रास्ता नहीं बताया तो गोया
हम अन्धे रहे। यह समझने की बात है ना। बैज में भी कृष्ण का चित्र है, इस पर भी तुम
समझा सकते हो। कोई से भी पूछो इन्हों को काला क्यों दिखाया है, बता नहीं सकेंगे।
शास्त्रों में लिख दिया है राम की स्त्री चुराई गई। परन्तु ऐसी कोई बात वहाँ होती
नहीं।
तुम भारतवासी ही
परिस्तानी थे, अब कब्रिस्तानी बने हैं फिर ज्ञान चिता पर बैठ दैवी गुण धारण कर
परिस्तानी बनते हैं। सर्विस तो बच्चों को करनी है। सबको पैगाम देना है। इसमें बड़ी
समझ चाहिए। इतना नशा चाहिए – हमको भगवान पढ़ाते हैं। भगवान के साथ रहते हैं। भगवान
के बच्चे भी हैं तो फिर हम पढ़ते भी हैं। बोर्डिंग में रहते हैं तो फिर बाहर का संग
नहीं लगेगा। यहाँ भी स्कूल है ना। क्रिश्चियन में फिर भी मैनर्स होते हैं अभी तो
बिल्कुल नो मैनर्स, तमोप्रधान पतित हैं। देवताओं के आगे जाकर माथा टेकते हैं। कितनी
उनकी महिमा है। सतयुग में सभी के दैवी कैरेक्टर थे, अभी आसुरी कैरेक्टर हैं। ऐसे-ऐसे
तुम भाषण करो तो सुनकर बहुत खुश हो जाएं। मुख छोटा बात बड़ी – यह कृष्ण के लिए कहते
हैं। अभी तुम कितनी बड़ी बातें सुनते हो, इतना बड़ा बनने के लिए। तुम राखी कोई को
भी बांध सकते हो। यह बाप का पैगाम तो सबको देना है। यह लड़ाई स्वर्ग का द्वार खोलती
है। अब पतित से पावन बनना है। बाप को याद करना है। देहधारी को नहीं याद करना है। एक
ही बाप सर्व की सद्गति करते हैं। यह है ही आइरन एजेड वर्ल्ड। तुम बच्चों की बुद्धि
में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार धारणा होती है, स्कूल में भी स्कालरशिप लेने के
लिए बहुत मेहनत करते हैं। यहाँ भी कितनी बड़ी स्कालरशिप है। सर्विस बहुत है। मातायें
भी बहुत सर्विस कर सकती हैं, चित्र भी सब उठाओ। कृष्ण का काला, नारायण का काला,
रामचन्द्र का भी काला चित्र उठाओ, शिव का भी काला…. फिर बैठ समझाओ। देवताओं को काला
क्यों किया है? श्याम-सुन्दर। श्रीनाथ द्वारे जाओ तो बिल्कुल काला चित्र है। तो
ऐसे-ऐसे चित्र इकट्ठे करने चाहिए। अपना भी दिखाना चाहिए। श्याम-सुन्दर का अर्थ
समझाकर कहो कि तुम भी अब राखी बांध, काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठेंगे तो गोरा
बन जायेंगे। यहाँ भी तुम सर्विस कर सकते हो। भाषण बहुत अच्छी रीति कर सकते हो कि
इन्हों को काला क्यों किया है! शिवलिंग को भी काला क्यों किया है! सुन्दर और श्याम
क्यों कहते हैं, हम समझायें। इसमें कोई नाराज़ नहीं होगा। सर्विस तो बहुत सहज है।
बाप तो समझाते रहते हैं – बच्चे, अच्छे गुण धारण करो, कुल का नाम बाला करो। तुम
जानते हो अभी हम ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण कुल के हैं। फिर राखी बंधन का अर्थ तुम कोई को
भी समझा सकते हो। वेश्याओं को भी समझाकर राखी बांध सकते हो। चित्र भी साथ में हों।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो – यह फरमान मानने से तुम गोरे बन जायेंगे। बहुत
युक्तियाँ हैं। कोई भी नाराज़ नहीं होगा। कोई भी मनुष्य मात्र किसकी सद्गति कर नहीं
सकते सिवाए एक के। भल राखी बंधन का दिन न हो, कभी भी राखी बांध सकते हो। यह तो अर्थ
समझना है। राखी जब चाहे तब बांधी जा सकती है। तुम्हारा धन्धा ही यह है। बोलो, बाप
के साथ प्रतिज्ञा करो। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो पवित्र बन जायेंगे। मस्जिद
में भी जाकर तुम उनको समझा सकते हो। हम राखी बांधने के लिए आये हैं। यह बात तुमको
भी समझने का हक है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पाप कट जायेंगे, पावन बन पावन
दुनिया का मालिक बन जायेंगे। अभी तो पतित दुनिया है ना। गोल्डन एज थी जरूर, अब आइरन
एज है। तुमको गोल्डन एज में खुदा के पास नहीं जाना है? ऐसे सुनाओ तो झट आकर चरणों
पर पड़ेंगे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)
ज्ञान रत्नों के सागर से जो अविनाशी ज्ञान रत्न प्राप्त हो रहे हैं, उनकी वैल्यु
रखनी है। विचार सागर मंथन कर स्वयं में ज्ञान रत्न धारण करने हैं। मुख से सदैव रत्न
निकालने हैं।
2) याद की यात्रा में
रहकर वाणी को जौहरदार बनाना है। याद से ही आत्मा कंचन बनेंगी इसलिए याद करने का
अक्ल सीखना है।
वरदान:-
सेवा द्वारा अनेक आत्माओं की आशीर्वाद प्राप्त कर सदा
आगे बढ़ने वाले महादानी भव
महादानी बनना अर्थात् दूसरों की सेवा करना, दूसरों की सेवा
करने से स्वयं की सेवा स्वतः हो जाती है। महादानी बनना अर्थात् स्वयं को मालामाल
करना, जितनी आत्माओं को सुख, शक्ति व ज्ञान का दान देंगे उतनी आत्माओं के प्राप्ति
की आवाज या शुक्रिया जो निकलता वह आपके लिए आशीर्वाद का रूप हो जायेगा। यह आशीर्वादें
ही आगे बढ़ने का साधन हैं। जिन्हें आशीर्वादें मिलती हैं वह सदा खुश रहते हैं। तो
रोज़ अमृतवेले महादानी बनने का प्रोग्राम बनाओ। कोई समय वा दिन ऐसा न हो जिसमें दान
न हो।
स्लोगन:-
अभी का
प्रत्यक्षफल आत्मा को उड़ती कला का बल देता है।