ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। अब बच्चों को घर भी याद पड़ता है। बाप तो घर की और राजधानी की बात ही
सुनायेंगे और बच्चे भी इन बातों को समझते हैं कि हम आत्माओं का घर कौन-सा है? आत्मा
क्या है? यह भी अच्छी रीति समझ गये हैं कि बाबा हमको आकरके पढ़ाते हैं। बाप कहाँ से
आते हैं? परमधाम से। ऐसे नहीं कहेंगे पावन दुनिया बनाने कोई पावन दुनिया से आते
हैं। नहीं, बाप कहते हैं मैं सतयुगी पावन दुनिया से नहीं आया हूँ, मैं तो घर से आया
हूँ, जिस घर से तुम बच्चे आये हो पार्ट बजाने। मैं भी ड्रामा प्लैन अनुसार हर 5
हजार वर्ष के बाद घर से आता हूँ। मैं रहता ही घर में, परमधाम में हूँ। बाप समझाते
भी ऐसे सहज हैं जैसे बाप शहर से आये हों। कहते हैं जैसे तुम आये हो पार्ट बजाने, हम
भी वहाँ से आये हैं पार्ट बजाने, ड्रामा प्लैन अनुसार। मैं नॉलेजफुल हूँ। सब बातों
को मैं जानता हूँ - ड्रामा प्लैन अनुसार।
कल्प-कल्प मैं यही बात तुमको सुनाता हूँ। जब तुम काम चिता पर चढ़कर काले, भस्म
हो जाते हो। आग में मनुष्य काले हो जाते हैं ना। तुम भी सांवरे हो गये हो।
सतोप्रधान वाली ताकत सारी निकल गई है। आत्मा की बैटरी ऐसी न हो जो एकदम डिस्चार्ज
हो जाये और मोटर खड़ी हो जाए। इस समय सभी के डिस्चार्ज होने का समय आ गया है, तब
बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार मैं आता हूँ जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं उन्हों
की बैटरी चार्ज होती है। तुम्हारी बैटरी अभी चार्ज होनी है जरूर। ऐसे भी नहीं सिर्फ
सुबह को यहाँ आकर बैठने से बैटरी चार्ज हो सकेगी। नहीं, बैटरी चार्ज तो उठते, बैठते,
चलते भी हो सकती है - याद में रहने से। तुम पहले पवित्र आत्मा सतोप्रधान थी। सच्चा
सोना, सच्चा जेवर थी। अभी तमोप्रधान हो गये हैं। अब फिर आत्मा सतोप्रधान बनती है तो
शरीर भी प्योर मिलेगा। यह बड़ी सहज प्योर होने लिए भट्ठी है, इसको योग की भट्ठी भी
कह सकते हैं। सोने को भी भट्ठी में डालते हैं। यह है सोने को शुद्ध बनाने की भट्ठी,
बाप को याद करने की भट्ठी। प्योर तो जरूर बनना है। याद नहीं करेंगे तो इतना प्योर
नहीं होंगे। फिर हिसाब-किताब चुक्तू करना ही है क्योंकि कयामत का समय है। सबको घर
जाना है। बुद्धि में घर की याद बैठी हुई है। और किसकी भी बुद्धि में नहीं होगा। वह
ब्रह्म को ईश्वर कह देते हैं, उसको घर नहीं समझते। तुम इस बेहद ड्रामा के एक्टर हो,
ड्रामा को तो तुम अच्छी रीति जान गये हो। बाप ने समझाया है अभी 84 का चक्र पूरा होता
है, अब घर जाना है। आत्मा अब पतित है, इसलिए घर जाने के लिए पुकारती है - बाबा आकर
पावन बनाओ। नहीं तो हम जा नहीं सकते हैं। बाप ही बैठ यह बातें बच्चों को समझाते
हैं। यह भी बच्चे समझ गये हैं, तब उनको पिता-पिता कहते हैं। टीचर भी कहते हैं।
मनुष्य तो श्रीकृष्ण को टीचर समझते हैं। तुम बच्चे समझते हो श्रीकृष्ण तो खुद पढ़ता
था, सतयुग में। श्रीकृष्ण कभी किसका टीचर बना नहीं है। ऐसे भी नहीं - पढ़कर फिर
टीचर बना। श्रीकृष्ण की बचपन से लेकर बड़ेपन तक की कहानी तुम बच्चे ही जानते हो।
मनुष्य तो श्रीकृष्ण को भगवान् समझकर कह देते हैं जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है। राम
के भक्त कहेंगे जिधर देखो राम ही राम है। धागा (सूत) ही मूँझ गया है। तुम अब जानते
हो भारत का प्राचीन योग और ज्ञान मशहूर है। मनुष्य कुछ नहीं जानते। ज्ञान सागर एक
बाप है वह तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं। तो तुमको भी मास्टर ज्ञान सागर कहेंगे।
परन्तु नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सागर कहें या नदी कहें? तुम हो ज्ञान गंगायें,
इसमें भी मनुष्य मूँझते हैं। मास्टर ज्ञान सागर कहना बिल्कुल ठीक है।
बाप बच्चों को पढ़ाते हैं, मेल-फीमेल की बात नहीं। वर्सा भी तुम सब आत्मायें लेती
हो इसलिए बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। जैसे मैं परम आत्मा ज्ञान सागर वैसे तुम
भी ज्ञान सागर हो। मुझे परमपिता परमात्मा कहा जाता है, मेरी ड्युटी सबसे ऊंची है।
राजा-रानी की ड्युटी भी सबसे ऊंची होती है ना। तुम्हारी भी ऊंची रखी गई है। यहाँ
तुम जानते हो हम आत्मायें पढ़ती हैं, परमात्मा पढ़ाते हैं इसलिए देही-अभिमानी भव।
सब ब्रदर्स हो जाते हैं। बाप कितनी मेहनत करते हैं। अभी तुम आत्मायें ज्ञान ले रही
हो। फिर वहाँ जायेंगी तो प्रालब्ध चलती है। वहाँ सबका ब्रदर्ली प्रेम रहता है।
ब्रदर्ली प्रेम बहुत अच्छा चाहिए। किसको रिगार्ड देना, किसको न देना.... ऐसा नहीं।
वो लोग कहते हैं - हिन्दू-मुसलमान भाई-भाई परन्तु एक-दो को वह रिगार्ड नहीं देते
हैं। बहन-भाई नहीं, भाई-भाई कहना ठीक है। ब्रदरहुड। आत्मा यहाँ पार्ट बजाने आई है।
वहाँ भी भाई-भाई होकर रहती है। घर में जरूर सब भाई-भाई होकर रहेंगे। बहन-भाई, यह
चोला तो यहाँ छोड़ना पड़ता है। भाई-भाई का ज्ञान बाप ही देते हैं। आत्मा भ्रकुटी के
बीच रहती है। तुमको भी नज़र यहाँ डालनी है। हम आत्मा शरीर रूपी तख्त पर बैठे हैं।
यह आत्मा का सिंहासन वा अकाल तख्त है। आत्मा को कभी काल खाता नहीं। सबका तख्त यह है
- भ्रकुटी के बीच। इस पर वह अकाल आत्मा बैठी है। कितनी समझने की बातें हैं। बच्चे
में भी आत्मा जाती है तो भ्रकुटी के बीच में बैठती है। वो छोटा तख्त फिर बड़ा होता
जाता है। यहाँ गर्भ में आत्मा को भोगना भोगनी पड़ती है तब पश्चाताप् करते हैं - हम
कभी पाप आत्मा नहीं बनेंगे। आधाकल्प पाप आत्मा बनते हैं। अब बाप द्वारा पावन आत्मा
बनते हैं। तुम तन-मन-धन सब कुछ बाप को देते हो, इतना दान कोई जानते नहीं। दान लेने
और देने वाला भी भारत में ही आता है। यह सब महीन बातें हैं समझने की। भारत कितना
अविनाशी खण्ड बना है और सब खण्ड खत्म होने वाले हैं। यह बना-बनाया ड्रामा है। यह
तुम्हारी बुद्धि में है। दुनिया नहीं जानती, इनको नॉलेज कहना अच्छा है। नॉलेज इज
सोर्स ऑफ इनकम, इनसे इनकम बहुत होती है। बाप को याद करो, यह भी नॉलेज देते हैं फिर
सृष्टि चक्र की भी नॉलेज देते हैं। इसमें मेहनत है। हम आत्माओं को अब वापिस जाना है
इसलिए इस पुरानी दुनिया और पुराने शरीर से उपराम रहना है। देह सहित जो कुछ देखते हो
सब खलास हो जाना है। अभी हम ट्रांसफर होते हैं। यह तो बाप ही बता सकेंगे। यह बहुत
बड़ा इम्तहान है, जो बाप ही पढ़ाते हैं। इसमें किताब आदि की दरकार नहीं। बाप को याद
करना है। बाप 84 का चक्र समझा देते हैं। ड्रामा की ड्युरेशन को तो कोई जानते नहीं।
घोर अन्धियारे में हैं। तुम अभी जगे हो, मनुष्य तो जगते नहीं हैं। कितनी तुम मेहनत
करते हो, विश्वास नहीं करते कि भगवान् आकर इन्हों को पढ़ाते हैं। जरूर कोई में तो
आयेंगे ना। अब बाप आत्माओं को राय देते हैं - ऐसे-ऐसे करो जो मनुष्य समझ जायें।
तुम्हारे लिए तो सहज है, नम्बरवार तो हैं ही। स्कूल में भी नम्बरवार होते हैं।
पढ़ाई में भी नम्बरवार होते हैं। इस पढ़ाई से बड़ी राजाई स्थापन हो रही है।
पुरूषार्थ ऐसा करना है जो हम राजा बने। इस समय जो तुम पुरूषार्थ करेंगे वह
कल्प-कल्पान्तर करते रहेंगे। इसको ईश्वरीय लॉटरी कहा जाता है। किसको थोड़ी, किसको
बड़ी लॉटरी होती है। राजाई की भी लॉटरी है। आत्मा जैसा कर्म करती है, ऐसी लॉटरी
मिलती है। कोई गरीब बनते हैं, कोई साहूकार बनते हैं। इस समय तुम बच्चों को सारी
लॉटरी बाप से मिलती है। इस समय के पुरूषार्थ पर बहुत मदार है। नम्बरवन पुरूषार्थ है
याद का। तो पहले योगबल से स्वच्छ तो बनें। तुम जानते हो जितना हम बाप को याद करेंगे
उतनी नॉलेज की धारणा होगी और बहुतों को समझाकर अपनी प्रजा बनायेंगे। भल कोई भी धर्म
वाला हो, जब आपस में मिलते हो तो बाप का परिचय दो। आगे चल वह देखेंगे कि विनाश सामने
खड़ा है। विनाश के समय मनुष्यों को वैराग्य आता है। हमको सिर्फ कहना है - तुम आत्मा
हो। हे गॉड फादर! किसने कहा? आत्मा ने। अब बाप आत्माओं को कहते हैं कि मैं तुम्हारा
गाइड बनकर तुमको ले जाऊंगा, मुक्तिधाम में। बाकी आत्मा का कभी विनाश नहीं होता तो
मोक्ष का भी क्वेश्चन नहीं। हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है। आत्मायें सब हैं
इमार्टल, कभी भी विनाश नहीं होंगी। बाकी वहाँ जाने के लिए बाप को याद करो तो विकर्म
विनाश होंगे। घर चले जायेंगे। आखरीन बड़े-बड़े संन्यासी भी समझेंगे, वापिस तो सबको
जाना है। तुम्हारा पैगाम सबकी बुद्धियों में ठका करेगा, तब तो गायन है - अहो प्रभू...तुम्हरी
गत मत, तो जरूर किसको मत देंगे या अपने पास रखेंगे? उनकी मत से सद्गति कैसे होती
है, सो जरूर बतायेगा ना। फिर वह कहते हैं तुम्हरी गति-मत तुम जानो, हम नहीं जानते
हैं। यह भी कोई बात है! बाप कहते हैं इस श्रीमत से तुम्हारी गति हो जाती है।
अभी तुम जानते हो बाबा जो जानते हैं वह हमको सिखलाते हैं। तुम कहेंगे हम बाबा को
जानते हैं। वो गाते हैं तुम्हरी गति-मत तुम जानो। परन्तु तुम ऐसे नहीं कहेंगे।
बुद्धि में सारा ज्ञान बैठ जाये, इसमें भी टाइम लगता है। सम्पूर्ण तो अभी कोई बना
नहीं है। सम्पूर्ण बन जाये तो यहाँ से चले जायें। जाना तो है नहीं। अब सब पुरूषार्थ
कर रहे हैं। बाबा को भल पहले जोर से वैराग्य आया, देखा डबल सिरताज बनता हूँ - यह भी
ड्रामा अनुसार बाबा ने दिखाया। मैं तो झट खुश हो गया। खुशी के मारे सब कुछ छोड़ दिया।
विनाश भी देखा तो चतुर्भुज भी देखा। समझा अभी राजाई मिलती है। थोड़े रोज़ में विनाश
हो जायेगा। ऐसा नशा चढ़ गया। अभी तो समझते हैं यह तो ठीक है, राजधानी बनेंगी। यह
बहुतों को राजाई मिलनी है। एक हम जाकर क्या करेंगे। यह ज्ञान अभी मिलता है। पहले
खुशी का पारा चढ़ गया। पुरूषार्थ तो सबको करना है। तुम पुरूषार्थ के लिए बैठे हो।
सुबह को याद में बैठते हो। यह बैठना भी अच्छा है। जानते हो बाबा आया है। बाप आया या
दादा आया, यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। एक-एक बच्चे को देखते रहेंगे। एक-एक
को बैठ सकाश देते हैं। योग की अग्नि है ना। योग अग्नि से उनके विकर्म भस्म हो जाएं।
जैसे कि बैठकर लाइट देते हैं। एक-एक आत्मा को सर्चलाइट देते हैं। जैसे बाप कहते हैं
मैं हर एक आत्मा को बैठ करेन्ट देता हूँ तो ताकत भरती जाए। अगर किसकी बुद्धि बाहर
में होगी तो फिर करेन्ट को कैच नहीं कर सकेंगे। बुद्धि कहाँ न कहाँ भटकती रहेगी।
उनको मिलेगा फिर क्या? कहते हैं मिठरा घुर त घुराय, तुम प्यार करेंगे तो प्यार
पायेंगे। बुद्धि बाहर भटकती रहेगी तो बैटरी चार्ज नहीं होगी। बाप बैटरी चार्ज करने
आता है, उनका फर्ज है सर्विस करना। बच्चे सर्विस स्वीकार करते हैं वा नहीं यह तो
उनकी आत्मा जाने। किस ख्यालात में बैठे हैं, यह सब बातें बाप समझाते हैं। मैं भी
परम आत्मा हूँ। मुझ बैटरी के साथ योग लगाते हो। मैं भी सकाश दूंगा। बहुत प्यार से
एक-एक को सकाश देता हूँ। तुम तो बैठेंगे बाप को याद करने। बाबा कहते हैं मैं एक-एक
आत्मा को सकाश देता हूँ। सामने बैठ लाइट देता हूँ। तुम तो ऐसे नहीं करेंगे। जो
पकड़ने वाले होंगे वह पकड़ेंगे और उनकी बैटरी चार्ज़ होगी। बाबा दिन-प्रतिदिन
युक्तियां तो बताते रहते हैं। बाकी समझा, न समझा - यह तो नम्बरवार स्टूडेन्ट पर
मदार है। तुम्हें बहुत तरावटी माल मिल रहा है। कोई हज़म भी करे ना। बड़ी लॉटरी है।
जन्म-जन्मान्तर, कल्प-कल्पान्तर की लॉटरी है। इस पर पूरा अटेन्शन देना है। बाबा से
हम करेन्ट ले रहे हैं। बाप भी भ्रकुटी के बीच में बैठा है, बाजू में। तुमको भी अपने
को आत्मा समझ बाबा को याद करना है, न कि ब्रह्मा को। हम उनसे योग लगाकर बैठे हैं,
इनको देखते भी हम उनको देखते हैं। आत्मा की ही बात है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-