विशेष नोट:- जनवरी 2008 से 1969 की अव्यक्त मुरलियां पुन: रिवाइज़ की जा रही हैं।
06-01-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति अव्यक्त बापदादा रिवाइज़ - 23-01-69 मधुबन
"अस्थियाँ हैं – स्थिति की स्मृति दिलाने वाली"
आज मैं आप सभी बच्चों से अव्यक्त रूप में मिलने आया हूँ। जो मेरे बच्चे अव्यक्त रूप में स्थित होंगे वही इसको समझ सकेंगे। आप सभी बच्चे अव्यक्त रूप में स्थित हो किसको देख रहे हो? व्यक्त रूप में या अव्यक्त रूप में? आप व्यक्त हो या अव्यक्त? अगर व्यक्त में देखेंगे तो बाप को नहीं देख सकेंगे। आज अव्यक्त वतन से मुलाकात करने आया हूँ। अव्यक्त वतन में आवाज नहीं परन्तु यहाँ आवाज में आया हूँ। आप सभी बच्चों के अन्दर में कौन-सा संकल्प चल रहा है? अभी यह अव्यक्त मुलाकात है। जैसे कल्प पहले मिसल बच्चों से रूहरूहान चल रही है। रूह-रूहान करने मीठे-मीठे बाबा ने आप सभी बच्चों से मिलने भेजा है। जो थे वह अब भी हैं। दो तीन दिन पहले मीठे-मीठे बाबा से रूह-रूहान चल रही थी । रूह-रूहान क्या है, मालूम है? बाबा ने बोला, वतन का अनुभव करने के लिए तैयार हो? क्या जवाब दिया होगा? यही कहा कि जो बाप की आज्ञा । जैसे चलायेंगे, जहाँ बिठायेंगे जिस रूप में बिठायेंगे । बच्चों के अन्दर यही संकल्प होगा कि बापदादा ने छुट्टी क्यों नहीं ली? बाबा को भी यह कहा । बाबा ने कहा अगर सभी बच्चों को बिठाकर छुट्टी दिलाऊँ तो छुट्टी देंगे? आप भी बच्चों को देख, सर्विस को देख बच्चों के स्नेह में आ जायेंगे । इसलिए जो बाप ने कराया वही ड्रामा की भावी कहेंगे । व्यक्त रूप में नहीं, तो अव्यक्त रूप से मुलाकात कर ही रहे हैं । सर्विस की वृद्धि वैसे ही है, बच्चों की याद वैसे ही है लेकिन अन्तर यह है कि वह व्यक्त में अव्यक्त था और यह अव्यक्त ही है । जो नयनों की मुलाकात जानते होंगे वह नयनों से इस थोड़ी सी मुलाकात में अपने प्रति शिक्षा डायरेक्शन ले लेंगे । आप सभी को वतन में तो आना ही है । बच्चों से मुला- कात करने के लिए हर वक्त, हर समय तैयार ही रहते हैं । अब जहाँ तक बच्चों की जितनी बुद्धि क्लीयर होगी, उसी अनुसार ही अव्यक्त मिलन का अनुभव कर सकेंगे । शक्ति स्वरूप में स्थित हैं? (दीदी से) जैसे साथ थे वैसे ही हैं । अलग नहीं । अभी शक्ति स्वरूप का पार्ट प्रत्यक्ष में दिखाना है । जो बाप की शिक्षा मिली है, वह प्रैक्टिकल में करके दिखाना है । शक्ति सेना बहुत है, अभी पूरा शक्ति स्वरूप बन जाना । अभी तक बच्चे और बाप के स्नेह में चलते रहे । अब फिर बाप से जो शक्ति मिली है उस शक्ति से औरों को ऐसा शक्तिवान् बनाना है । वही बाप के स्नेही बाप के साथ अन्त तक रहेंगे । अभी मीठे-मीठे बाबा दृश्य दिखला रहे हैं - आप सभी बच्चों का । आप अस्थियाँ उठा रहे थे । अस्थियों को नहीं देखना स्थिति को देखना । यह अस्थियाँ स्थिति स्वरूप हैं । एक एक रग में स्थिति थी । तो बाहर से वह अस्थियों को रखा है । परन्तु इसका अर्थ भक्ति मार्ग का नहीं उठाना । इन अस्थियों में जो स्थिति भरी हुई है, हमेशा उसको देखना है । साधारण मनुष्यों को यह बातें इतना समझ में नहीं आयेगी । बच्चों का स्नेह है और सदा रहेगा, 21 जन्म तक रहेगा । आप सभी सतयुगी दुनिया में साथ नहीं चलेंगे? राज्य साथ नहीं पायेंगे? साथ ही हैं, साथ ही रहेंगे-जन्म जन्मान्तर तक। अभी भी ऐसा नहीं समझना, बाप है दादा नहीं या दादा है तो बाप नहीं । हम दोनों एक दो से एक पल भी अलग नहीं हो सकते। ऐसे ही आप अपने को त्रिमूर्ति ही समझो। इसीलिए कहते हैं त्रिमूर्ति का बैज हमेशा साथ रखो। जब ब्रह्मा, विष्णु और शंकर तीन को देखते हो तो आपके भी त्रिमूर्ति की याद अर्थात् अपना स्वरूप और बापदादा की याद, त्रिमूर्ति की स्थिति मशहूर है। इसमें ही आप सभी बच्चों का कल्याण है। कल्याणकारी बाप जो कहते हैं, जो कराते हैं, उसमें ही कल्याण है। इसमें एक एक महावाक्य में, एक-एक नजर में बहुत कल्याण है। लेकिन स्थूल को परखने वाले कोई कोई अनन्य और महारथी बच्चे हैं। अब आप भी इतना ही शीघ्र कर्मातीत स्थिति में स्थित रहने का पुरुषार्थ करो। जैसे यहाँ हर समय बापदादा के साथ व्यतीत करते थे वैसे ही हर कर्म में, हर समय अपने को साथ ही रखा करो । बच्चे, यही शिक्षा याद रखना, कभी नहीं भूलना। सम्बन्ध, स्नेह, स्मृति स्वरूप, साथ-साथ सरलता स्वरूप, समर्पण और एक दो के सहयोगी बन सफलता को पाते रहना। सफलता आप सभी बच्चों के मस्तक के बीच चमक रही है। अब बहुत समय हुआ है और कुछ कहना है? सूक्ष्मवतन में बैठे भी हर बच्चे की दिनचर्या, हर बच्चे का चार्ट सामने रहता है। व्यक्त रूप से अभी तो और ही स्पष्ट रूप से देखते हैं। इसलिए सभी की रिजल्ट देखते रहते हैं।
जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित होंगे उतना उस अव्यक्त स्थिति से कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म ऐसा होगा जैसे श्रीमत राय दे रही है। यह अनुभव बच्चे पायेंगे। अब अपनी अव्यक्त स्थिति के आधार से ऐसा काम करना, जैसे श्रीमत के आधार से हर काम होता रहा है। जिस चीज के साथ बाप का स्नेह है उससे उतना स्नेह रखना ही अपने को सौभाग्यशाली बनाना है। रग-रग में किस के साथ स्नेह था? 5 तत्वों से नहीं। स्नेह गुणों से ही होता है । स्नेह था, नहीं । है और रहेगा । जब तक भविष्य नई दुनिया न बनी है तब तक यह अटूट स्नेह रहेगा । स्नेह आत्मा के साथ और कर्तव्य के साथ ही है तो फिर शरीर क्या! अन्त तक साथी रहेंगे । जिसका बाप के साथ स्नेह है वही अन्त तक स्थापना के कार्य में मददगार रहेंगे । इसलिए स्नेही होने की कोशिश करो । कैसी भी माया आवे, मायाजीत बनना। जैसे बैज लगाते हो वैसे मस्तक पर यह विजय का बैज लगाओ।
मधुबन का नक्शा सारे वर्ल्ड के सामने म्युजियम के रूप में होना चाहिए। अविनाशी भण्डारा है इसका और भी ज्यादा शो करना है। जैसे सभी बच्चे पत्र लिखते थे वैसे ही लिखते रहना। जैसे डायरेक्शन लेते थे वैसे ही लेना। शरीर की बात दूसरी है। सर्विस वही है। इसलिए जो भी बात हो मधुबन में लिखते रहना। अपना पूरा कनेक्शन रखना। दूसरों को भी अपनी अवस्था का सबूत देना। आपको देख और भी ऐसे करेंगे।
(विदाई के समय)
यह तो आप बच्चे जानते हो कि जो भी ड्रामा का पार्ट है इसमें कोई गुप्त रहस्य भरा हुआ है। क्या रहस्य भरा हुआ है वह समय प्रति समय सुनाते जायेंगे। अब तो आपका वही यादगार जो आकाश में है, दुनिया वाले इन आँखों से देखेंगे कि यह धरती के सितारे किसकी श्रीमत से चल रहे हैं। बाबा ने कहा है - ज्यादा समय वहाँ नहीं बैठना।
2 - "समर्पण की ऊँची स्टेज – श्वांसों श्वांस स्मृति" - 25-01-69
अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर अव्यक्त को व्यक्त में देखो । आज एक प्रश्न पूछ रहे हैं । सर्व समर्पण बने हो? (सर्व समर्पण हैं ही) यह सभी का विचार है या और कोई का कोई और विचार है? सर्व समर्पण किसको कहा जाता है? सर्व में यह देह का भान भी आता है। देह ले लेंगे तो देनी भी पड़ेगी। लेकिन देह का भान तोड़कर समर्पण बनना है। आप क्या समझते हो? देह के अभिमान से भी सम्पूर्ण समर्पण बने हो? मर गये हो वा मरते रहते हो? देह के सम्बन्ध और मन के संकल्पों से भी तुम देही हो। यह देह का अभिमान बिल्कुल ही टूट जाए तब कहा जाए सर्व समर्पणमय जीवन। जो सर्व त्यागी, सर्व समर्पण जीवन वाला होगा उनकी ही सम्पूर्ण अवस्था गाई जायेगी। और जब सम्पूर्ण बन जायेंगे तो साथ जायेंगे। आपने शुरू में संकल्प किया था ना कि बाबा जायेंगे तो हम भी साथ जायेंगे। फिर ऐसा क्यों नहीं किया? यह भी एक स्नेह है। और संग तोड़ एक संग जोड़ने की यह चैन है जो अन्त समय की निशानी है। जब कहा था तो क्यों नहीं शरीर छोड़ा? छोड़ सकते हो? अभी छूट भी नहीं सकता। क्योंकि जब तक हिसाब-किताब है, अपने शरीर से तब तक छूट नहीं सकता। योग से या भोग से हिसाब-किताब चुक्तू जरूर करना पड़ता है। कोई भी कड़ा हिसाब-किताब रहा हुआ है तो यह शरीर रहेगा। छूट नहीं सकता। वैसे तो समर्पण हो ही लेकिन अब समर्पण की स्टेज ऊँची हो गई है। समर्पण उसको कहा जाता है जो श्वांसों श्वांस स्मृति में रहे। एक भी श्वांस विस्मृति का न हो। हर श्वांस में स्मृति रहे और ऐसे जो होंगे उनकी निशानी क्या है? उनके चेहरे पर क्या नजर आयेगा? क्या उनके मुख पर होगा, मालूम है?(हर्षितमुख) हर्षितमुखता के सिवाए और भी कुछ होगा? जो जितना सहनशील होगा उनमें उतनी शक्ति बढ़ेगी। जो श्वांसों श्वांस स्मृति में रहता होगा उसमें सहनशीलता का गुण जरूर होगा और सहनशील होने के कारण एक तो हर्षित और शक्ति दिखाई देगी। उनके चेहरे पर निर्बलता नहीं। यह जो कभी-कभी मुख से निकलता है, कैसे करें, क्या होगा, यह जो शब्द निर्बलता के हैं, वह नहीं निकलने चाहिए। जब मन में आता है तो मुख पर आता है। परन्तु मन में नहीं आना चाहिए। मनमनाभव मध्याजी भव। मनमनाभव का अर्थ बहुत गुह्य है। मन, बिल्कुल जैसे ड्रामा का सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जिस रीति से, जैसा चलता है, उसी के साथ-साथ मन की स्थिति ऐसे ही ड्रामा की पटरी पर सीधी चलती रहे। जरा भी हिले नहीं। चाहे संकल्प से, चाहे वाणी से। ऐसी अवस्था हो, ड्रामा की पटरी पर चल रहे हो। परन्तु कभी-कभी रुक जाते हो। मुख कभी हिल जाता है। मन की स्थिति हिलती है - फिर आप पकड़ते हो। यह भी जैसे एक दाग हो जाता है। अच्छा- फिर भी एक बात अब तक भी कुछ वाणी तक आई है, प्रैक्टिकल में नहीं आई है। कौन सी बात वाणी तक आई है प्रैक्टिकल नहीं? यही ड्रामा की ढाल जो सुनाई। लेकिन और बात भी बता रहे थे। वह यह है जैसे अब समय नजदीक है, वैसे समय के अनुसार जो अन्तर्मुखता की अवस्था, वाणी से परे, अन्तर्मुख होकर, कर्मणा में अव्यक्त स्थिति में रहकर धारण करने की अवस्था दिखाई देनी चाहिए, वह कुछ अभी भी कम है। कारोबार भी चले और यह स्थिति भी रहे। यह दोनों ही इक्ट्ठा एक समान रहे। अभी इसमें कमी है। अब साकार तो अव्यक्त स्थिति स्वरूप में स्थित है। लेकिन आप बच्चे भी अव्यक्त स्थिति में स्थित होंगे तो अव्यक्त मुलाकात का अलौकिक अनुभव कर सकते हो। एक मुख्य बात और भी है, वर्तमान समय ध्यान पर देते हैं, जो तुम्हारे में होनी चाहिए। वह कौन सी? कोई को आता है? जो मुख्य साकार रूप में भी कहते थे - अमृतवेले उठना। अमृतवेले का वायुमण्डल ऐसा ही रहेगा। साकार में अमृतवेले बच्चों से दूर होते भी मुलाकात करते थे। लेकिन अभी जब अमृतवेले चक्र लगाने बाबा आते हैं तो वह वायुमण्डल देखा नहीं है। क्यों थक गये? इस अमृतवेले के अलौकिक अनुभव में थकावट दूर हो जाती है। परन्तु यह कमी देखने में आती है। यह बापदादा की शुभ इच्छा है कि जल्दी से जल्दी इस अव्यक्त स्थिति का हर एक बच्चा अनुभव करे। वैसे तो आप जब साकार से साकार रीति से मिलते थे तो आप की आकारी स्थिति बन जाती थी। अब जितना-जितना अव्यक्त आकारी स्थिति में स्थित होंगे उतना ही अलौकिक अनुभव करेंगे।
वरदान:- अटेन्शन और अभ्यास के निजी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त भव
ब्राह्मण आत्माओं का निजी संस्कार "अटेन्शन और अभ्यास" है। इसलिए कभी अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना। सदा स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो। जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो। कमजोर नहीं बनो। अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं।
स्लोगन:- ज्ञानयुक्त रहमदिल बनो तो कमज़ोरियों से दिल का वैराग्य आयेगा।