30-07-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – बड़े-बड़े स्थानों पर बड़े-बड़े दुकान (सेन्टर)
खोलो, सर्विस को बढ़ाने के लिए प्लैन बनाओ, मीटिंग करो, विचार चलाओ”
प्रश्नः-
स्थूल वन्डर्स
तो सब जानते हैं लेकिन सबसे बड़ा वन्डर कौन-सा है, जिसे तुम बच्चे ही जानते हो?
उत्तर:-
सबसे
बड़ा वन्डर तो यह है जो सर्व का सद्गति दाता बाप स्वयं आकर पढ़ाते हैं। यह वन्डरफुल
बात बताने के लिए तुम्हें अपने-अपने दुकानों का भभका करना पड़ता है क्योंकि मनुष्य
भभका (शो) देखकर ही आते हैं। तो सबसे अच्छा और बड़ा दुकान कैपीटल में होना चाहिए,
ताकि सब आकर समझें।
गीत:-
मरना तेरी गली में………
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। रूद्र
भगवानुवाच भी कहा जा सकता है क्योंकि शिव माला नहीं गाई जाती है। जो मनुष्य भक्ति
मार्ग में बहुत फेरते हैं उसका नाम रखा हुआ है रूद्र माला। बात एक ही है परन्तु
राइट-वे में शिवबाबा पढ़ाते हैं। वह नाम ही होना चाहिए, परन्तु रूद्र माला नाम चला
आता है। तो वह भी समझाना होता है। शिव और रूद्र में कोई फ़र्क नहीं है। बच्चों की
बुद्धि में है कि हम अच्छी रीति पुरूषार्थ कर बाबा के माला में नजदीक आ जाएं। यह
दृष्टान्त भी बताया जाता है। जैसे बच्चे दौड़ी लगाकर जाते हैं, निशान तक जाए फिर
लौट आकर टीचर पास खड़े होते हैं। तुम बच्चे भी जानते हो हमने 84 का चक्र लगाया। अभी
पहले-पहले जाकर माला में पिरोना है। वह है ह्युमन स्टूडेन्ट की रेस। यह है रूहानी
रेस। वह रेस तुम कर न सको। यह तो है ही आत्माओं की बात। आत्मा तो बूढ़ी, जवान वा
छोटी-बड़ी होती नहीं। आत्मा तो एक ही है। आत्मा को ही अपने बाप को याद करना है, इसमें
कोई तकलीफ की बात नहीं। भल पढ़ाई में ढीले भी हो जाएं परन्तु इसमें क्या तकलीफ है,
कुछ भी नहीं। सभी आत्मायें भाई-भाई हैं। उस रेस में जवान तेज दौड़ेंगे। यहाँ तो वह
बात नहीं। तुम बच्चों की रेस है रूद्र माला में पिरोने की। बुद्धि में है हम आत्माओं
का भी झाड़ है। वह है शिवबाबा की सब मनुष्य-मात्र की माला। ऐसे नहीं कि सिर्फ 108
या 16108 की माला है। नहीं। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सबकी माला है। बच्चे समझते हैं
नम्बरवार हर एक अपने-अपने धर्म में जाकर विराजमान होंगे, जो फिर कल्प-कल्प उसी जगह
पर ही आते रहेंगे। यह भी वन्डर है ना। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। तुम्हारे में
भी जो विशालबुद्धि वाले हैं वह इन बातों को समझ सकते हैं। बच्चों की बुद्धि में यही
ख्याल रहना चाहिए कि हम सबको रास्ता कैसे बतायें। यह है विष्णु की माला। शुरू से
लेकर सिजरा शुरू होता है, टाल-टालियां सब हैं ना। वहाँ भी छोटी-छोटी आत्मायें रहती
हैं। यहाँ हैं मनुष्य। फिर सब आत्मायें एक्यूरेट वहाँ खड़ी होंगी। यह वन्डरफुल बातें
हैं। मनुष्य यह स्थूल वन्डर्स सब देखते हैं परन्तु वह तो कुछ भी नहीं है। यह कितना
वन्डर है जो सर्व का सद्गति दाता परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। कृष्ण को सर्व
का सद्गति दाता थोड़ेही कहेंगे। तुमको यह सब प्वाइंट्स भी धारण करनी है। मूल बात है
ही गीता के भगवान की। इस पर जीत पाई तो बस। गीता है ही सर्व शास्त्रमई शिरोमणी,
भगवान की गाई हुई। पहले-पहले यह कोशिश करनी है। आजकल तो बड़ा भभका चाहिए, जिस दुकान
में बहुत शो होता है वहाँ मनुष्य बहुत घुसते हैं। समझेंगे यहाँ अच्छा माल होगा।
बच्चे डरते हैं, इतने बड़े-बड़े सेन्टर खोलें तो लाख दो लाख सलामी देवें, तब
दिलपसन्द मकान मिले। एक ही रॉयल बड़ा दुकान हो, बड़े दुकान बड़े-बड़े शहरों में ही
निकलते हैं। तुम्हारा सबसे बड़ा दुकान निकलना चाहिए केपीटल में। बच्चों को विचार
सागर मंथन करना चाहिए कि कैसे सर्विस बढ़े। बड़ा दुकान निकालेंगे तो बड़े-बड़े आदमी
आयेंगे। बड़े आदमी का आवाज़ झट फैलता है। पहले-पहले तो यह कोशिश करनी चाहिए। सर्विस
के लिए बड़े से बड़ा स्थान ऐसी जगह बनायें जो बड़े-बड़े मनुष्य आकर देखकर वन्डर खायें
और फिर वहाँ समझाने वाले भी फर्स्टक्लास चाहिए। कोई एक भी हल्की बी.के. समझाती है
तो समझते हैं – शायद सब बी.के. ही ऐसी हैं इसलिए दुकान पर सेल्समैन भी अच्छे
फर्स्टक्लास चाहिए। यह भी धन्धा है ना। बाप कहते हैं हिम्मते बच्चे मददे बापदादा।
वह विनाशी धन तो कोई काम नहीं आयेगा। हमको तो अपनी अविनाशी कमाई करनी है, इसमें
बहुतों का कल्याण होगा। जैसे इस ब्रह्मा ने भी किया। फिर कोई भूख थोड़ेही मरते हैं।
तुम भी खाते हो, यह भी खाते हैं। यहाँ जो खान-पान मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता।
यह सब कुछ बच्चों का ही है ना। बच्चों को अपनी राजाई स्थापन करनी है, इसमें बड़ी
विशालबुद्धि चाहिए। कैपीटल में नाम निकला तो सब समझ जायेंगे। कहेंगे बरोबर यह तो सच
बतलाती हैं, विश्व का मालिक तो भगवान ही बनायेगा। मनुष्य, मनुष्य को विश्व का मालिक
थोड़ेही बनायेगा। बाबा सर्विस की वृद्धि के लिए राय देते रहते हैं।
सर्विस की वृद्धि तभी
होगी जब बच्चों की फ्राकदिल होगी। जो भी कार्य करते हो फ्राकदिली से करो। कोई भी
शुभ कार्य आपेही करना – यह बहुत अच्छा है। कहा भी जाता है आपेही करे सो देवता, कहने
से करे वह मनुष्य। कहने से भी न करे…… बाबा तो दाता है, बाबा थोड़ेही किसको कहेंगे
यह करो। इस कार्य में इतना लगाओ। नहीं। बाबा ने समझाया है बड़े-बड़े राजाओं का हाथ
कभी बन्द नहीं रहता। राजायें हमेशा दाता होते हैं। बाबा राय देते हैं – क्या-क्या
जाकर करना चाहिए। खबरदारी भी बहुत चाहिए। माया पर जीत पानी है, बहुत ऊंच पद है।
पिछाड़ी में रिजल्ट निकलती है फिर जो बहुत मार्क्स से पास होते हैं उनको खुशी भी
होती है। पिछाड़ी में साक्षात्कार तो सबको होंगे ना, परन्तु उस समय कर क्या सकेंगे।
तकदीर में जो है वही मिलता है। पुरूषार्थ की बात अलग है। बाप बच्चों को समझाते हैं
विशाल बुद्धि बनो। अभी तुम धर्म आत्मायें बनते हो। दुनिया में धर्मात्मा तो बहुत
होकर गये हैं ना। बहुत उन्हों का नामाचार होता है। फलाना बहुत धर्मात्मा मनुष्य था।
कोई-कोई तो पैसे इकट्ठे करते-करते अचानक मर जाते हैं। फिर ट्रस्टी बनते हैं। कोई
बच्चा भी नालायक होता है तो फिर ट्रस्ट्री करते हैं। इस समय तो यह है ही पाप आत्माओं
की दुनिया। बड़े-बड़े गुरुओं आदि को दान करते हैं। जैसे कश्मीर का महाराजा था, विल
करके गया कि आर्य समाजियों को मिले। उनका धर्म वृद्धि को पाये। अभी तुमको क्या करना
है, किस धर्म को वृद्धि में लाना है? आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही है। यह भी किसको
पता नहीं है। अभी तुम फिर से स्थापन कर रहे हो। ब्रह्मा द्वारा स्थापना। अब बच्चों
को एक की याद में रहना चाहिए। तुम याद के बल से ही सारे सृष्टि को पवित्र बनाते हो
क्योंकि तुम्हारे लिए तो पवित्र सृष्टि चाहिए। इनको आग लगने से पवित्र बनती है।
खराब चीज़ को आग में पवित्र बनाते हैं। इनमें सब अपवित्र वस्तु पड़कर फिर अच्छी
होकर निकलेगी। तुम जानते हो यह बहुत छी-छी तमोप्रधान दुनिया है। फिर सतोप्रधान होनी
है। यह ज्ञान यज्ञ है ना। तुम हो ब्राह्मण। यह भी तुम जानते हो शास्त्रों में अनेक
बातें लिख दी हैं, यज्ञ पर फिर दक्ष प्रजापिता का नाम दिखाया है। फिर रूद्र ज्ञान
यज्ञ कहाँ गया। इसके लिए भी क्या-क्या कहानियां बैठ लिखी हैं। यज्ञ का वर्णन
कायदेसिर है नहीं। बाप ही आकर सब कुछ समझाते हैं। अभी तुम बच्चों ने ज्ञान यज्ञ रचा
है श्रीमत से। यह है ज्ञान यज्ञ और फिर विद्यालय भी हो जाता है। ज्ञान और यज्ञ दोनों
अक्षर अलग-अलग हैं। यज्ञ में आहुति डालनी है। ज्ञान सागर बाप ही आकर यज्ञ रचते हैं।
यह बड़ा भारी यज्ञ है, जिसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है।
तो बच्चों को सर्विस
का प्लैन बनाना है। भल गाँवड़ों आदि में भी सर्विस करो। तुमको बहुत कहते हैं गरीबों
को यह नॉलेज देनी चाहिए। सिर्फ राय देते हैं, खुद कोई काम नहीं करते। सर्विस नहीं
करते सिर्फ राय देते हैं कि ऐसा करो, बहुत अच्छा है। परन्तु हमको फुर्सत नहीं है।
नॉलेज बहुत अच्छी है। सबको यह नॉलेज मिलनी चाहिए। अपने को बड़ा आदमी, तुमको छोटा
आदमी समझते हैं। तुमको बहुत खबरदार रहना है। उस पढ़ाई के साथ फिर यह पढ़ाई भी मिलती
है। पढ़ाई से बातचीत करने का अक्ल आ जाता है। मैनर्स अच्छे हो जाते हैं। अनपढ़े तो
जैसे भुट्टू होते हैं। कैसे बात करनी चाहिए, अक्ल नहीं। बड़े आदमी को हमेशा “आप” कह
बात करनी होती है। यहाँ तो कोई-कोई ऐसे भी हैं जो पति को भी तुम-तुम कह देंगी। आप
अक्षर रॉयल है। बड़े आदमी को आप कहेंगे। तो बाबा पहले-पहले राय देते हैं कि देहली
जो परिस्तान थी, फिर से इसे परिस्तान बनाना है। तो देहली में सबको सन्देश देना
चाहिए, एडवरटाइजमेंट बहुत अच्छी करनी है। टॉपिक्स भी बताते रहते हैं, टापिक की
लिस्ट बनाओ फिर लिखते जाओ। विश्व में शान्ति कैसे हो सकती है आकर समझो, 21 जन्मों
के लिए निरोगी कैसे बन सकते हो, आकर समझो। ऐसी खुशी की बातें लिखी हुई हो। 21 जन्मों
के लिए निरोगी, सतयुगी डबल सिरताज आकर बनो। सतयुगी अक्षर तो सबमें डालो।
सुन्दर-सुन्दर अक्षर हो तो मनुष्य देखकर खुश हो। घर में भी ऐसे बोर्ड चित्र आदि लगे
हुए हों। अपना धंधा आदि भल करो। साथ-साथ सर्विस भी करते रहो। धन्धे में सारा दिन
थोड़ेही रहना होता है। ऊपर से सिर्फ देखभाल करनी होती है। बाकी काम असिस्टेंट
मैनेजर चलाते हैं। कोई सेठ लोग फ्राकदिल होते हैं तो असिस्टेंट को अच्छा पगार (मजदूरी)
देकर भी गद्दी पर बिठा देते हैं। यह तो बेहद की सर्विस है। और सब हैं हद की सर्विस।
इस बेहद की सर्विस में कितनी विशालबुद्धि होनी चाहिए। हम विश्व पर जीत पाते हैं।
काल पर भी हम जीत पाकर अमर बन जाते हैं। ऐसी-ऐसी लिखत देखकर आयेंगे और समझने की
कोशिश करेंगे। अमरलोक का मालिक तुम कैसे बन सकते हो आकर समझो, बहुत टॉपिक्स निकल
सकती हैं। तुम किसको विश्व का मालिक बना सकते हो। वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं रहता।
बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा हमको फिर से क्या बनाने आये हैं! बच्चे जानते
हैं पुरानी सृष्टि से नई बननी है, मौत भी सामने खड़ा है। देखते हो लड़ाई लगती रहती
है। बड़ी लड़ाई लगी तो खेल ही खलास हो जायेगा। तुम तो अच्छी रीति जानते हो। बाप
बहुत प्यार से कहते हैं – मीठे बच्चों, विश्व की बादशाही तुम्हारे लिए है। तुम
विश्व के मालिक थे, भारत में तुमने अथाह सुख देखे। वहाँ रावण राज्य ही नहीं। तो इतनी
खुशी चाहिए। बच्चों को आपस में मिलकर राय निकालनी चाहिए। अखबारों में डालना चाहिए।
देहली में भी एरोप्लेन से पर्चे गिराओ। निमंत्रण देते हैं, खर्चा कोई बहुत थोड़ेही
लगता है, बड़ा ऑफीसर समझ जाए तो फ्री भी कर सकते हैं। बाबा राय देते हैं, जैसे
कलकत्ता है वहाँ चौरंगी में फर्स्टक्लास एक ही बड़ा दुकान हो रॉयल, तो ग्राहक बहुत
आयेंगे। मद्रास, बाम्बे बड़े-बड़े शहरों में बड़ा दुकान हो। बाबा बिजनेसमैन भी तो
है ना। तुमसे कखपन पाई पैसे लेकर एक्सचेंज में क्या देता हूँ! इसलिए गाया जाता है
रहमदिल। कौड़ी से हीरे जैसा बनाने वाला, मनुष्य को देवता बनाने वाला। बलिहारी एक
बाप की है। बाप न होता, तो तुम्हारी क्या महिमा होती।
तुम बच्चों को फ़खुर
होना चाहिए कि भगवान हमको पढ़ाते हैं। एम ऑब्जेक्ट नर से नारायण बनने की सामने खड़ी
है। पहले-पहले जिन्होंने अव्यभिचारी भक्ति शुरू की है, वही आकर ऊंच पद पाने का
पुरूषार्थ करेंगे। बाबा कितनी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स समझाते हैं, बच्चों को भूल जाती
हैं, तब बाबा कहते हैं प्वाइंट्स लिखो। टॉपिक्स लिखते रहो। डॉक्टर लोग भी किताब
पढ़ते हैं। तुम हो मास्टर रूहानी सर्जन। तुमको सिखलाते हैं आत्मा को इन्जेक्शन कैसे
लगाना है। यह है ज्ञान का इन्जेक्शन। इसमें सुई आदि तो कुछ नहीं है। बाबा है अविनाशी
सर्जन, आत्माओं को आकर पढ़ाते हैं। वही अपवित्र बनी है। यह तो बहुत इज़ी है। बाप
हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको हम याद नहीं कर सकते हैं! माया का आपोजीशन
बहुत है इसलिए बाबा कहते हैं – चार्ट रखो और सर्विस का ख्याल करो तो बहुत खुशी होगी।
कितनी भी अच्छी मुरली चलाते हैं परन्तु योग है नहीं। बाप से सच्चा बनना भी बड़ा
मुश्किल है। अगर समझते हैं हम बहुत तीखे हैं तो बाबा को याद कर चार्ट भेजें तो बाबा
समझेंगे कहाँ तक सच है या झूठ? अच्छा, बच्चों को समझाया – सेल्समैन बनना है, अविनाशी
ज्ञान रत्नों का। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एम ऑब्जेक्ट को
सामने रख फ़खुर में रहना है, मास्टर रूहानी सर्जन बन सबको ज्ञान इन्जेक्शन लगाना
है। सर्विस के साथ-साथ याद का भी चार्ट रखना है तो खुशी रहेगी।
2) बातचीत करने के
मैनर्स अच्छे रखने हैं, ‘आप’ कह बात करनी है। हर कार्य फ्राकदिल बनकर करना है।
वरदान:-
बाबा शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तन
करने वाले सदा अचल अडोल भव
कोई भी परिस्थिति जो भल हलचल वाली हो लेकिन बाबा कहा और
अचल बनें। जब परिस्थितियों के चिंतन में चले जाते हो तो मुश्किल का अनुभव होता है।
अगर कारण के बजाए निवारण में चले जाओ तो कारण ही निवारण बन जाए क्योंकि मास्टर
सर्वशक्तिमान् ब्राह्मणों के आगे परिस्थितियां चींटी समान भी नहीं। सिर्फ क्या हुआ,
क्यों हुआ यह सोचने के बजाए, जो हुआ उसमें कल्याण भरा हुआ है, सेवा समाई हुई है..
भल रूप सरकमस्टांश का हो लेकिन समाई सेवा है - इस रूप से देखेंगे तो सदा अचल अडोल
रहेंगे।
स्लोगन:-
एक बाप
के प्रभाव में रहने वाले किसी भी आत्मा के प्रभाव में आ नहीं सकते।