ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना कि हमारे तीर्थ न्यारे हैं। हमारा तीर्थ बहुत दूर है इसलिए बच्चों
को कहा जाता है दूरादेशी भव। दूरदेश में रहने वाले फिर कहते हैं विशालबुद्धि भव।
सबकी बुद्धि इस समय तुच्छ है ना। माया ने तुच्छ बुद्धि बना दिया है। तो बच्चों की
है दूरादेशी बुद्धि अर्थात् दूर के रहने वाले की याद और विशालबुद्धि अर्थात् सारे
सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। और सब हैं अल्पज्ञ बुद्धि अर्थात्
अल्प बुद्धि, सिर्फ कहते हैं परमात्मा, परन्तु जानते नहीं। यहाँ कोई महात्मा नहीं
है। यह तो बाप आकर दूरादेशी बनाते हैं, परन्तु दूरादेशी बच्चे कम हैं। भल ज्ञान
बहुत है परन्तु दूरादेशी कम हैं अर्थात् बाप की याद में कम रहते हैं। बाकी साधू तो
साधना करते हैं यथा राजारानी तथा प्रजा सारी दुनिया इस समय पतित है। भल महात्मा नाम
डाल देते हैं परन्तु महान आत्मा कोई है नहीं। कई फिर कृष्ण को महात्मा कहते हैं। यह
फिर भी राइट है क्योंकि वहाँ श्रेष्ठाचारी दुनिया है। यह तो है भ्रष्टाचारी दुनिया।
यथा राजा रानी तथा प्रजा परन्तु इस समय राजा कोई है नहीं। प्रजा का प्रजा पर राज्य
है। बाप कहते हैं शास्त्र पढ़ने से तुम मेरे से मिल नहीं सकते और ना ही कोई मुक्ति
में जा सकते हैं। जब तक मेरे द्वारा कोई मेरे को न जाने और जब तक कल्प के अन्त में
मैं न आऊं। मनुष्य तो कृष्ण को याद करते हैं वह तो इस देश का है। दूरादेशी है नहीं।
तो बाप को याद करना माना दूरादेशी बनना। मनमनाभव का अर्थ है दूरादेशी भव। जो बाप को
जानते नहीं तो बाप से वर्सा कैसे मिले। अगर आये नहीं तो रास्ता कैसे मिले। बड़ी समझ
की बात है। साजन से बड़ा प्यार चाहिए। कहते हैं एक तू जो मिला तो सब कुछ मिला। तो
एक से ही सब कुछ प्राप्ति हो जाती है। ऐसे साजन से बहुत लव चाहिए। यह है बेहद की
नॉलेज। विराट ड्रामा अर्थात् वैराइटी, जिसमें अनेक मतभेद हैं तभी कहते हैं द्वेत
राज्य, द्वेत या दैत्य एक ही बात है। दैत्य कहा जाता है रावण को। देवता बनाने वाला
एक ही बाप है। कहते हैं मनुष्य से देवता, कितनी सहज बात है। तुम हो विशाल बुद्धि।
शास्त्र पढ़ने वाले को विशाल बुद्धि नहीं कहेंगे। वह है भक्ति। ज्ञान अलग चीज़ है,
भक्ति अलग चीज़ है। ज्ञान तो ज्ञान सागर बाप देते हैं। तुम हीरे जैसा थे, अब कौड़ी
जैसे बन गये हो। अब बाप हीरे जैसा बनाते हैं। तुम विशाल बुद्धि होने से विश्व पर
राज्य करते हो। वहाँ अखण्ड अटल राज्य है, तो विशाल बुद्धि ज्ञान में होते हैं।
तुम जानते हो सतयुग में सुख था फिर धीरे-धीरे नीचे सीढ़ी उतरनी है। चढ़ने में एक
सेकेण्ड जम्प लगाना पतित से पावन बनने की छलांग लगाना। उतरने में 5 हजार वर्ष। तुम
सब नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार विशालबुद्धि बने हो। यह ज्ञान अभी मिलता है, सतयुग
में यह ज्ञान होता नहीं। संगम पर बाप आते हैं – हूबहू कल्प पहले मुआफिक। सतयुग में
विशालबुद्धि नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म भी सतयुग में नहीं कहेंगे। हीरे जैसा जन्म
इस समय है क्योंकि इस समय तुम हो ईश्वरीय सन्तान। ईश्वर तुमको पढ़ाते हैं। यह महिमा
बाप की है जबकि परमात्मा पतित-पावन है तो सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। परन्तु
मनुष्य अल्पज्ञ बुद्धि हैं, कितना भी समझाओ, समझते नहीं हैं। तो समझो वह ब्राह्मण
कुल का नहीं है। जो देवता कुल का होगा वही ज्ञान को समझ ब्राह्मण बनेंगे। बाप ज्ञान
का सागर है। तुम भी ज्ञान के सागर बनते हो, फिर तुम सुख शान्ति के सागर बनते हो।
सतयुग में सुख अपार रहता है। तो बाप द्वारा तुमको सर्व सुखों की प्राप्ति होती है।
सो भी अन्त में ज्ञान, सुख, शान्ति के सागर बनेंगे क्योंकि औरों को भी देते हो। अभी
देखो कितना दु:ख अशान्ति है। बड़ों-बड़ों को नींद नहीं आती है। तुम बच्चों को तो
कितनी खुशी है क्योंकि तुम बाप को जानते हो। दुनिया कहती है ओ गॉड फादर, परमपिता
परमात्मा परन्तु जानती नहीं। कितने समय से भक्त भक्ति करते, याद करते आये हैं, जानते
कुछ नहीं। बाप अपना और अपनी रचना का परिचय खुद आकर देते हैं। तुमको औरों को देना
है। तुम जानते हो यह बाप है, कोई महात्मा नहीं है। बाबा को ख्याल आया, फार्म में
लिखा हो तो आप किससे मिलने आये हो? तो कहेंगे महात्मा से। बोलो, महात्मा तो यह है
नहीं। नाम है ब्रह्माकुमार कुमारियाँ तो इनका बाप प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना। तो
महात्मा कैसे हुआ। आरग्यू करने वाले अच्छे चाहिए। बुद्धि वाला चाहिए। समझो वह लिखकर
भी जाते हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं, बिल्कुल बुद्धू हैं। शक्ल से मालूम पड़ जाता
है – बुद्धि में ज्ञान नहीं है। शिवबाबा तो जानते हैं, अन्तर्यामी है। यह बाबा तो
बाहरयामी हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही उस तन में हूँ जो पहला नम्बर है। अब लास्ट
में है। इनमें प्रवेश करता हूँ क्योंकि इनको फिर वही नारायण बनना है। तो इनको इस तन
को देने की किराया मिलती है तब तो कहते हैं सौभाग्यशाली रथ, भागीरथ ने कोई पानी की
गंगा नहीं लाई। यह गुह्य ज्ञान की बातें हैं, जो रावण मत पर होने कारण मनुष्य समझते
नहीं हैं। अब तुमने समझा है तो औरों को समझाने की युक्ति निकालो। तुमको ख्याल आना
चाहिए कि औरों को कैसे दूरादेशी बनायें। कैसे बाप का परिचय दें। वह ब्रह्म को याद
करते हैं। ब्रह्म तो तत्व है जहाँ परमात्मा रहते हैं। परन्तु वह ब्रह्म को ही
परमात्मा समझते हैं। जैसे हिन्दू कोई धर्म नहीं है। हिन्दुस्तान में रहने के कारण
हिन्दू नाम रख दिया है। वास्तव में हिन्दुस्तान तो रहने का स्थान है। ब्रह्म तत्व
भी परमात्मा के रहने का स्थान है। परन्तु मनुष्यों की अल्प बुद्धि होने के कारण
समझते नहीं। यहाँ ज्ञान की बात है। दुनिया की बातों को तो सब अच्छी तरह जानते हैं।
यह खुद जौहरी था तो सब कुछ जानता था। बाकी ज्ञान की बातों में अल्प बुद्धि, तुच्छ
बुद्धि थे, कुछ नहीं जानते थे। तो बाबा आकर पहचान देते हैं। जब तक कोई ब्राह्मण न
बनें तो बाप से वर्सा ले न सके, प्रजा तो बननी है। किसी ने भी थोड़ा सुना तो प्रजा
बन जायेंगे। अगर विकार में जाता रहेगा तो उनको सजा भोगनी पड़ेगी। फिर आकर साधारण
प्रजा बनेंगे। अभी सबका मौत है। कब्रदाखिल होना ही है। कब्रिस्तान बनना ही है। इस
समय मनुष्यों की कोई वैल्यू नहीं है। तुम्हारी भी नहीं थी। अब वैल्यु बन रही है।
बाकी जब विनाश होगा तो मच्छरों सदृश्य मरेंगे। जैसे दीपावली पर मच्छर कितने मरते
हैं, तो सबको मरना है ही क्योंकि सबको घर वापिस जाना है। सतयुग में यह नहीं कहेंगे
कि यह मरा क्योंकि वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। काल पर जीत पाते हैं। मरना शब्द वहाँ
नहीं होता। सतयुग में जानते हैं कि हम मरते नहीं हैं। सिर्फ एक पुराना चोला छोड़,
नया लेते हैं – सो भी समय पर। सर्प का मिसाल है कि पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं तो
सर्प का मिसाल सतयुग से लगता है, यहाँ से नहीं। भ्रमरी का मिसाल यहाँ का ही है,
सन्यासी भी यह मिसाल देते हैं क्योंकि यहाँ का ही यादगार भक्ति मार्ग में चलता है।
अभी तुम बच्चे जितनी-जितनी धारणा करेंगे उतना विशाल बुद्धि बनेंगे, उतनी कमाई
करेंगे। जैसे सर्जन जितनी विशाल बुद्धि वाला होता है, जितनी दवाई आदि बुद्धि में
अधिक रखता है उतना कमाई करता है। तो यहाँ भी ऐसे हैं। कोई 250 रूपया कमाई करते, कोई
तो फिर हजारों कमाते हैं। कोई राजा को ठीक कर दिया तो लाख-लाख भी दे देते हैं। यहाँ
भी ऐसे ही है। कोई को तो ज्ञान के प्वाइंट्स की धारणा नहीं और कोई तो बड़े दूरादेशी,
विशालबुद्धि हैं तो औरों को भी बनाते हैं। पहले दूरादेशी पीछे विशाल बुद्धि कहेंगे।
समझने की बात है ना। ब्राह्मणों जैसा सौभाग्यशाली कोई है नहीं। एकदम सबको ऊपर ले
जाते हैं। ऊपर में परमात्मा है ना, तो उसका परिचय देते हो। तो तुम जानकार हो ना।
बच्चों को तो बाप की जानकारी होती ही है। अब पारलौकिक बाप आये हैं तुमको पावन बनाकर
वापस ले जाने के लिए। एक खेरूत (खेती करने वाले) बच्ची की कहानी है ना – कि राजा
बच्ची को ले आया उसे अच्छा नहीं लगा, तो उनको वापिस भेज दिया। यहाँ भी ऐसे हैं।
जिनकी बुद्धि में ज्ञान की धारणा नहीं होती है तो वह खुद ही चले जाते हैं, इसमें
बाप क्या करे। समझाने वाला है तो परमपिता परमात्मा। वह ब्रह्मा द्वारा वेदों
शास्त्रों का सार सुनाते हैं कि वेद शास्त्र कोई धर्म शास्त्र है नहीं। यह तो पत्ते
हैं, बाल बच्चे हैं। मुख्य धर्म हैं चार। उसमें ब्राह्मण धर्म भी है मुख्य। हीरे
जैसा जन्म देवताओं का नहीं कहेंगे क्योंकि यह कल्याणकारी लीप धर्माऊ युग है। लीप
मास, धर्माऊ को कहते हैं। यह है संगमयुग, कल्याणकारी और जितने भी युग हैं वहाँ
अकल्याण ही होता है क्योंकि डिग्री कम होती जाती है। दिनप्रतिदिन कला कम ही होती
जाती है। यह युग ही है कल्याणकारी। तो हर एक को माथा मारना पड़े कि औरों को कैसे
समझायें। यूं तो उस्ताद बता रहे हैं कि रास्ता कैसे बताओ फिर हर एक का धन्धा
अपना-अपना है। तो यह आना चाहिए कि कैसे औरों को दुबन (दलदल) से निकालूँ। कई तो
दल-दल से निकालने जाते फिर खुद फंस जाते हैं। तो समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। पहले
अल्फ को समझाओ तो बे बादशाही को भी जान जायें और सृष्टि चक्र को भी जान जायें। पहले
अल्फ को तो जानो। कोई हजार दफा लिखकर दें कि अल्फ कौन है, तब यहाँ बैठ सके। कई तो
ब्लड से भी लिखकर देते हैं फिर चले जाते है। माया कोई कम थोड़ेही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूरादेशी बन बाप की याद में रहना है और दूसरों को दूरदेश में रहने
वाले बाप का परिचय देना है।
2) कल्याणकारी युग में सभी का कल्याण करने की युक्ति निकालनी है। सबको दुबन (दलदल)
से निकालने की सेवा करनी है।