20-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा
करनी है, पहले स्वयं निर्विकारी बनना है फिर दूसरों को कहना है”
प्रश्नः-
तुम महावीर
बच्चों को किस बात की परवाह नहीं करनी है? सिर्फ कौन सी चेकिंग करते स्वयं को
सम्भालना है?
उत्तर:-
अगर
कोई पवित्र बनने में विघ्न डालता है तो तुम्हें उसकी परवाह नहीं करनी है। सिर्फ चेक
करो कि मैं महावीर हूँ? मैं अपने आपको ठगता तो नहीं हूँ? बेहद का वैराग्य रहता है?
मैं आप समान बनाता हूँ? मेरे में क्रोध तो नहीं है? जो दूसरों को कहता हूँ वह खुद
भी करता हूँ?
गीत:-
तुम्हें पाके हमने……..
ओम् शान्ति।
इसमें बोलने का नहीं
रहता, यह समझने की बात है। मीठे-मीठे रूहानी बच्चे समझ रहे हैं कि हम फिर से देवता
बन रहे हैं। सम्पूर्ण निर्विकारी बन रहे हैं। बाप आकर कहते हैं – बच्चे, काम को जीतो
अर्थात् पवित्र बनो। बच्चों ने गीत सुना। अब फिर से बच्चों को स्मृति आई है – हम
बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हैं, जो कोई छीन न सके, वहाँ दूसरा कोई छीनने
वाला होता ही नहीं है। उसको कहा जाता है अद्वैत राज्य। फिर बाद में रावण राज्य दूसरे
का होता है। अभी तुम समझ रहे हो। समझाना भी ऐसे है। हम फिर से भारत को श्रीमत पर
वाइसलेस बना रहे हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान तो सब कहेंगे। उनको ही बाप कहा जाता है। तो
यह भी समझाना है, लिखना भी है भारत जो सम्पूर्ण निर्विकारी स्वर्ग था वह अब विकारी
नर्क बन गया है। फिर हम श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। बाप जो बताते हैं
उसको नोट कर फिर उस पर विचार सागर मंथन कर लिखने में मदद करनी चाहिए। ऐसा क्या-क्या
लिखें जो मनुष्य समझें भारत बरोबर स्वर्ग था? रावण का राज्य था नहीं। बच्चों को
बुद्धि में है – अभी हम भारतवासियों को बाप वाइसलेस बना रहे हैं। पहले अपने को देखना
है – हम निर्विकारी बने हैं? ईश्वर को मैं ठगता तो नहीं हूँ? ऐसे नहीं कि ईश्वर हमको
देखता थोड़ेही है। तुम्हारे मुख से यह अक्षर निकल न सकें। तुम जानते हो पवित्र बनाने
वाला पतित-पावन एक ही बाप है। भारत वाइसलेस था तो स्वर्ग था। यह देवतायें सम्पूर्ण
निर्विकारी हैं ना। यथा राजा रानी तथा प्रजा होगी, तब तो सारे भारत को स्वर्ग कहा
जाता है ना। अभी नर्क है। यह 84 जन्मों की सीढ़ी बहुत अच्छी चीज़ है। कोई अच्छा हो
तो उनको सौगात भी दे सकते हैं। बड़े-बड़े आदमियों को बड़ी सौगात मिलती है ना। तो
तुम भी जो आते हैं, उनको समझाकर ऐसी-ऐसी सौगात दे सकते हो। चीज़ हमेशा देने के लिए
तैयार रहती है। तुम्हारे पास भी नॉलेज तैयार रहनी चाहिए। सीढ़ी में पूरा ज्ञान है।
हमने कैसे 84 जन्म लिए हैं – यह याद रहना चाहिए। यह समझ की बात है ना। जरूर जो पहले
आये हैं उन्होंने ही 84 जन्म लिए हैं। बाप 84 जन्म बताकर फिर कहते हैं इनके बहुत
जन्मों के अन्त में साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। फिर इनका नाम रखता हूँ ब्रह्मा।
इन द्वारा ब्राह्मण रचता हूँ। नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से लाऊं। ब्रह्मा का बाप कभी
सुना है क्या? जरूर भगवान ही कहेंगे। ब्रह्मा और विष्णु को दिखाते हैं सूक्ष्मवतन
में हैं। बाप तो कहते हैं मैं इनके 84 जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ। एडाप्ट
किया जाता है तो नाम बदली किया जाता है। संन्यास भी कराया जाता है। संन्यासी भी जब
संन्यास करते हैं तो फौरन भूल नहीं जाते हैं, याद जरूर रहती है। तुमको भी याद रहेगी
परन्तु तुमको उनके लिए वैराग्य है क्योंकि तुम जानते हो यह सब कब्रदाखिल होने हैं
इसलिए हम उनको याद क्यों करें। ज्ञान से सब कुछ समझना है अच्छी रीति। वह भी ज्ञान
से ही घरबार छोड़ते हैं। उनसे पूछा जाए घरबार कैसे छोड़ा तो बताते नहीं। फिर उनको
युक्ति से कहा जाता है – आपको कैसे वैराग्य आया है, हमको सुनाओ तो हम भी ऐसा करें।
तुम टैम्पटेशन देते हो कि पवित्र बनो, बाकी तुमको याद सब है। छोटेपन से लेकर सब बता
सकते हो। बुद्धि में सारा ज्ञान है। कैसे यह सब ड्रामा के एक्टर्स हैं जो पार्ट
बजाते आये हैं। अभी सबके कलियुगी कर्मबन्धन टूटने हैं। फिर जायेंगे शान्तिधाम। वहाँ
से फिर सबका नया सम्बन्ध जुटेगा। समझाने की प्वाइंट्स भी बाबा अच्छी-अच्छी देते रहते
हैं। यही भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे तो वाइसलेस थे फिर 84 जन्मों
के बाद विशश बनें। अब फिर वाइसलेस बनना है। परन्तु पुरूषार्थ कराने वाला चाहिए। अभी
तुमको बाप ने बताया है। बाप कहते हैं तुम वही हो ना। बच्चे भी कहते हैं बाबा आप वही
हैं। बाप कहते हैं कल्प पहले भी तुमको पढ़ाकर राज्य-भाग्य दिया था। कल्प-कल्प ऐसे
करते रहेंगे। ड्रामा में जो कुछ हुआ, विघ्न पड़े, फिर भी पड़ेंगे। जीवन में
क्या-क्या होता है, याद तो रहता है ना। इनको तो सब याद है। बतलाते भी हैं गांवड़े
का छोरा था और बैकुण्ठ का मालिक बना। बैकुण्ठ में गांवड़ा कैसे होगा – यह तुम अभी
जानते हो। इस समय तुम्हारे लिए भी यह पुरानी दुनिया गांवड़ा है ना। कहाँ बैकुण्ठ,
कहाँ यह नर्क। मनुष्य तो बड़े-बड़े महल बिल्डिंग आदि देख समझते हैं यही स्वर्ग है।
बाप कहते हैं यह तो सब मिट्टी, पत्थर हैं, इनकी कोई वैल्यु नहीं। वैल्यु सबसे जास्ती
हीरे की होती है। बाप कहते हैं विचार करो सतयुग में तुम्हारे सोने के महल कैसे थे।
वहाँ तो सब खानियां भरी होती हैं। ढेर का ढेर सोना होता है। तो बच्चों को कितनी खुशी
होनी चाहिए। कोई समय मुरझाइस आती है तो बाबा ने समझाया है – कई ऐसे रिकार्ड हैं जो
तुमको फौरन खुशी में ला देंगे। सारा ज्ञान बुद्धि में आ जाता है। समझते हो बाबा हमको
विश्व का मालिक बनाते हैं। वह कभी कोई छीन न सके। आधा-कल्प के लिए हम सुखधाम का
मालिक बनते हैं। राजा का बच्चा समझता है हम इस हद की राजाई के वारिस हैं। तुमको
कितना नशा रहना चाहिए – हम बेहद के बाप के वारिस हैं। बाप स्वर्ग की स्थापना करते
हैं, हम 21 जन्म के लिए वारिस बनते हैं। कितनी खुशी होनी चाहिए। जिसका वारिस बनते
हैं उनको भी जरूर याद करना है। याद करने बिगर तो वारिस बन नहीं सकते। याद करे तो
पवित्र बनें तब ही वारिस बन सकें। तुम जानते हो श्रीमत पर हम विश्व के मालिक डबल
सिरताज बनते हैं। जन्म बाई जन्म हम राजाई करेंगे। मनुष्यों का भक्ति मार्ग में होता
है विनाशी दान-पुण्य। तुम्हारा है अविनाशी ज्ञान धन। तुमको कितनी बड़ी लॉटरी मिलती
है। कर्मों अनुसार फल मिलता है ना। कोई बड़े राजा का बच्चा बनता है तो बड़ी हद की
लॉटरी कहेंगे। सिंगल ताज वाले सारे विश्व के मालिक तो बन न सकें। डबल ताज वाले
विश्व के मालिक तुम बनते हो। उस समय दूसरी कोई राजाई है ही नहीं। फिर दूसरे धर्म
बाद में आते हैं। वह जब तक वृद्धि को पायें तो पहले वाले राजायें विकारी बनने के
कारण मतभेद में टुकड़े-टुकड़े अलग कर देते हैं। पहले तो सारे विश्व पर एक ही राज्य
था। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे यह अगले जन्म के कर्मों का फल है। अभी बाप तुम बच्चों को
श्रेष्ठ कर्म सिखला रहे हैं। जैसा-जैसा जो कर्म करेगा, सर्विस करेगा तो उसका रिटर्न
भी ऐसा मिलेगा। अच्छा कर्म ही करना है। कोई कर्म करते हैं, समझ नहीं सकते तो उसके
लिए श्रीमत लेनी है। घड़ी-घड़ी पूछना चाहिए पत्र में। अभी प्राइम मिनिस्टर है, तुम
समझते हो कितनी पोस्ट आती होगी। परन्तु वह कोई अकेले नहीं पढ़ते हैं। उनके आगे बहुत
पोटरी होते हैं, वह सारी पोस्ट देखते हैं। जो बिल्कुल मुख्य होगी, पास करेंगे तब
प्राइम मिनिस्टर के टेबुल पर रखेंगे। यहाँ भी ऐसे होता है। मुख्य-मुख्य पत्रों का
तो फौरन रेसपान्ड दे देते हैं। बाकी के लिए यादप्यार लिख देते हैं। एक-एक को अलग
बैठ पत्र लिखें यह तो हो न सके, बड़ा मुश्किल है। बच्चों को कितनी खुशी होती है –
ओहो! आज बेहद के बाप की चिट्ठी आई है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा रेसपान्ड करते हैं।
बच्चों को बड़ी खुशी होती है। सबसे जास्ती गद्-गद् होती हैं बांधेलियां। ओहो! हम
बन्धन में हैं, बेहद का बाप हमको कैसे चिट्ठी लिखते हैं। नयनों पर रखती हैं।
अज्ञानकाल में भी पति को परमात्मा समझने वालों को पति की चिट्ठी आती होगी तो उनको
चुम्मन करेंगी। तुम्हारे में भी बापदादा का पत्र देख कर कई बच्चों के एकदम रोमांच
खड़े हो जाते हैं। प्रेम के आंसू आ जाते हैं। चुम्मन करेंगी, आंखों पर रखेंगी। बहुत
प्रेम से पत्र पढ़ती हैं। बांधेलियाँ कोई कम हैं क्या। कई बच्चों पर माया जीत पा
लेती है। कोई तो समझते हैं हमको तो पवित्र जरूर बनना है। भारत वाइसलेस था ना। अब
विशश है। अभी जो वाइसलेस बनने होंगे, वही पुरूषार्थ करेंगे – कल्प पहले मिसल। तुम
बच्चों को समझाना बहुत सहज है। तुम्हारा भी यह प्लैन है ना। गीता का युग चल रहा है।
गीता का ही पुरूषोत्तम युग गाया जाता है। तुम लिखो भी ऐसे – गीता का यह पुरूषोत्तम
युग है। जबकि पुरानी दुनिया बदल नई होती है। तुम्हारी बुद्धि में है – बेहद का बाप
जो हमारा टीचर भी है, उनसे हम राजयोग सीख रहे हैं। अच्छी रीति पढ़ेंगे तो डबल
सिरताज बनेंगे। कितना बड़ा स्कूल है। राजाई स्थापन होती है। प्रजा भी जरूर अनेक
प्रकार की होगी। राजाई वृद्धि को पाती रहेगी। कम ज्ञान उठाने वाले पीछे आयेंगे। जैसा
जो पुरूषार्थ करेंगे वह पहले आते रहेंगे। यह सब बना-बनाया खेल है। यह ड्रामा का
चक्र रिपीट होता है ना। अभी तुम बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप कहते हैं पवित्र बनो।
इसमें कोई विघ्न डालता है तो परवाह नहीं करनी चाहिए। रोटी टुकड़ तो मिल सकती है ना।
बच्चों को पुरूषार्थ करना चाहिए तो याद रहेगी। बाबा भक्ति मार्ग का मिसाल बताते हैं
– पूजा के टाइम बुद्धियोग बाहर में जाता था तो अपना कान पकड़ते थे, चमाट लगाते थे।
अब तो यह है ज्ञान। इसमें भी मुख्य बात है याद की। याद न रहे तो अपने को थप्पड़
मारना चाहिए। माया मेरे ऊपर जीत क्यों पाती। क्या मैं इतना कच्चा हूँ। मुझे तो इन
पर जीत पानी है। अपने आपको अच्छी रीति सम्भालना है। अपने से पूछो मैं इतना महावीर
हूँ? औरों को भी महावीर बनाने का पुरूषार्थ करना है। जितना बहुतों को आपसमान
बनायेंगे तो ऊंच दर्जा होगा। अपना राज्य-भाग्य लेने के लिए रेस करनी है। अगर हमारे
में ही क्रोध है तो दूसरे को कैसे कहेंगे कि क्रोध नहीं करना है। सच्चाई नहीं हुई
ना। लज्जा आनी चाहिए। दूसरों को समझायें और वह ऊंच बन जाए, हम नीचे ही रह जायें, यह
भी कोई पुरूषार्थ है! (पण्डित की कहानी) बाप को याद करते तुम इस विषय सागर से क्षीर
सागर में चले जाते हो। बाकी यह सब मिसाल बाप बैठ समझाते हैं, जो फिर भक्ति मार्ग
में रिपीट करते हैं। भ्रमरी का भी मिसाल है। तुम ब्राह्मणियाँ हो ना – बी.के., यह
तो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण हुए। प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ है? जरूर यहाँ होगा ना। वहाँ
थोड़ेही होगा। तुम बच्चों को बहुत होशियार बनना चाहिए। बाबा का प्लैन है मनुष्य को
देवता बनाने का। यह चित्र भी हैं समझाने के लिए। इनमें लिखत भी ऐसी होनी चाहिए। गीता
के भगवान का यह प्लैन है ना। हम ब्राह्मण हैं चोटी। एक की बात थोड़ेही होती है।
प्रजापिता ब्रह्मा तो चोटी ब्राह्मणों की हुई ना। ब्रह्मा है ही ब्राह्मणों का बाप।
इस समय बड़ा भारी कुटुम्ब (परिवार) होगा ना। जो फिर तुम दैवी कुटुम्ब में आते हो।
इस समय तुमको बहुत खुशी होती है क्योंकि लॉटरी मिलती है। तुम्हारा नाम बहुत है।
वन्दे मातरम्, शिव की शक्ति सेना तुम हो ना। वह तो सब हैं झूठे। बहुत होने के कारण
मूँझ पड़ते हैं इसलिए राजधानी स्थापन करने में मेहनत लगती है। बाप कहते हैं यह
ड्रामा बना हुआ है। इनमें मेरा भी पार्ट है। मैं हूँ सर्व शक्तिमान। मेरे को याद
करने से तुम पवित्र बन जाते हो। सबसे जास्ती चुम्बक है शिवबाबा, वही ऊंच ते ऊंच रहते
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी नशे वा खुशी में रहना है कि हम 21 जन्मों के लिए बेहद बाबा
के वारिस बने हैं, जिनके वारिस बने हैं उनको याद भी करना है और पवित्र भी जरूर बनना
है।
2) बाप जो श्रेष्ठ कर्म सिखला रहे हैं, वही कर्म करने हैं। श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:-
अटल भावी को जानते हुए भी श्रेष्ठ कार्य को
प्रत्यक्ष रूप देने वाले सदा समर्थ भव
नया श्रेष्ठ विश्व बनने की भावी अटल होते हुए भी समर्थ भव
के वरदानी बच्चे सिर्फ कर्म और फल के, पुरुषार्थ और प्रालब्ध के निमित्त और निर्माण
के कर्म फिलॉसाफी अनुसार निमित्त बन कार्य करते हैं। दुनिया वालों को उम्मींद नहीं
दिखाई देती। और आप कहते हो यह कार्य अनेक बार हुआ है, अभी भी हुआ ही पड़ा है।
क्योंकि स्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे और कोई प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं।
साथ-साथ परमात्म कार्य सदा सफल है ही।
स्लोगन:-
कहना
कम, करना ज्यादा - यह श्रेष्ठ लक्ष्य महान बना देगा।