ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। जरूर बच्चों के रोमांच खड़े हो जाने चाहिए
क्योंकि गाया जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं। अभी तुम सभी रूहानी बच्चों को बेहद का
बाप मिला है। बेहद का बाप तो एक ही होता है और बच्चे जानते हैं जब और बच्चे बनेंगे
तो उन्हों के भी रोमांच खड़े होंगे। तुम जानते हो हमारा राज्य था फिर राज्य गँवाया,
अब फिर राज्य लेते हैं। भारतवासियों के लिए यह खुशखबरी है ना। परन्तु जबकि अच्छी
रीति सुनें और समझें। बरोबर यह खुशी की बात है ना, कल्प-कल्प बाप आते हैं। बाप का
जन्म भी यहाँ गाया जाता है। त्योहार भी जो हैं सब इस समय के हैं। बाप ने आकर तुमको
बहुत सहज रास्ता बताया है। मनुष्यों को तो अनेक प्रकार के गम हैं, यहाँ इस ज्ञान की
खुशी में वह गम दु:ख आदि सब मर्ज हो जाते हैं। जैसे कोई बीमार ठीक होने पर आता है
तो सबको खुशी होती है। बीमारी आदि दु:ख की बातें जैसे भूल जाती हैं। पियरघर, ससुरघर,
मित्र सम्बन्धी आदि सब खुशी में आ जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम सब विश्व के
मालिक थे फिर रावण ने श्राप दिया है। यह है गम की, दु:ख की दुनिया। फिर कल होगी खुशी
की दुनिया। खुशी की दुनिया याद रहने से गम दु:ख आदि सब भूल जाने चाहिए। यह है
तमोप्रधान दुनिया। भिन्न-भिन्न प्रकार का कर्मभोग है। अबलाओं पर भी कितने अत्याचार
होते हैं। अनेक प्रकार के विघ्न आते हैं। यह विघ्नों के, कर्मभोग के दिन बाकी थोड़ा
समय है। बाप धीरज़ देते हैं, बाकी थोड़े रोज़ हैं। कल्प पहले भी हुआ था। कर्मभोग का
हिसाब-किताब चुक्तू होना है। खुशी में यह सब मर्ज करते जाओ। बस बाप और वर्से को याद
करते रहो। उल्टा-सुल्टा कोई भी काम मत करो। नहीं तो और ही दण्ड पड़ जाता है, पद
भ्रष्ट हो जाता है। बच्चों का काम है एक बाप को याद करना। बाप कहते हैं - मुझे याद
करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। हिसाब-किताब चुक्तू हो जायेगा। बाकी थोड़ा
समय है, हिसाब-किताब चुक्तू करते जाओ क्योंकि तुम हो अन्धों की लाठी। तुम भी याद करो,
दूसरों को भी रास्ता बताओ। विघ्न तो बहुत पड़ेंगे। जितना हो सके, सबको यह समझाते रहो
कि बाप को याद करो। अक्षर भी नामीग्रामी हैं। मनमना-भव अर्थात् हे आत्मायें मामेकम्
याद करो तो तुम्हारे पास्ट के विकर्म भस्म होंगे। इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं।
सिर्फ बाप को याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। तुम जानते हो हमने 84
का चक्र लगाया है। चक्र लगाते आये हैं, लगाते रहेंगे। यह है पुरानी दुनिया, पुराना
चोला.... इनको भूल जाना है। यह है आत्माओं का बेहद का संन्यास। उन्हों का है हद का
संन्यास, घरबार छोड़ जाते हैं। उन्हों का भी ड्रामा में पार्ट है। फिर भी ऐसे ही
होगा। सेकेण्ड-सेकेण्ड जो पास हुआ सो ड्रामा फिर वही ड्रामा रिपीट होगा। शास्त्र सब
हैं भक्तिमार्ग के पुस्तक। भक्ति के बाद है ज्ञान। इस सीढ़ी के चित्र पर किसको भी
समझाना बहुत सहज है। मुख्य जो चित्र हैं वह अपने घर में भी रख सकते हो। त्रिमूर्ति
भी बड़ा क्लीयर है। ऊपर में शिव भी है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी है, सूक्ष्मवतन
वासी फिर ऊंच ते ऊंच है भगवान। बच्चे भी समझते हैं जहाँ बाप रहते हैं वह है हम
आत्माओं के रहने का स्थान, जिसको निर्वाणधाम कहो अथवा शान्तिधाम कहो - बात एक ही
है। शान्तिधाम नाम ठीक है अथवा निर्वाणधाम अर्थात् वाणी से परे धाम, वह शान्तिधाम
ही हो गया। वह शान्तिधाम फिर है सुख और शान्ति सम्पत्ति धाम। फिर होता है दु:ख और
अशान्तिधाम। सुखधाम में तो कारून के खजाने होते हैं अथाह। आज क्या है, कल क्या होगा।
आज कलियुग का अन्त, कल होगा सतयुग का आदि। रात दिन का फ़र्क है ना। कहते भी हैं
ब्रह्मा और ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों का दिन और फिर रात। दिन में हैं देवतायें।
रात में हैं शूद्र। बीच में हो तुम ब्राह्मण। इस संगमयुग का किसको पता नहीं है।
मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। तो घोर सोझरे में ले आना तुम बच्चों
का फर्ज है। अभी सामने वही महाभारत लड़ाई है। गाया हुआ भी है - विनाश काले विप्रीत
बुद्धि विनशन्ती। विनाश काले प्रीत बुद्धि विजयन्ती। तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको
फिर से वही राजाई देते हैं। वह हमारी राजाई कोई छीन न सके। रावण की प्रवेशता तो होगी
द्वापर से। रावण ने हमारी राजाई छीनी है, जिसको दुश्मन ही समझो क्योंकि दुश्मन का
ही एफीजी बनाकर जलाते हैं। यह बहुत पुराना दुश्मन है। कहते भी हैं - रावण राज्य
परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं आता है। तो घोर अन्धियारा कहेंगे ना। बेहद का बाप है
नॉलेजफुल। उनको ज्ञान का दाता, दिव्य चक्षु विधाता कहते हैं। अभी तुम आत्माओं को
ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। आगे तो कुछ नहीं जानते थे। अब सब जान गये हो। बाप
ज्ञान का सागर है तो जरूर ज्ञान सुनायेंगे ना। ज्ञान सुनाने बिगर सिद्ध कैसे हो!
तुम देखते हो बाप ज्ञान सुनाते हैं, जिस ज्ञान से फिर आधाकल्प सद्गति होती है। भक्ति
को ही आधाकल्प चलना है। ज्ञान से सद्गति संगम पर ही होती है। कोई भी बात बच्चों की
कब छिप नहीं सकती। बाप कहते हैं- कोई भी बुरा काम हो जाए तो बताओ। बाबा जानते हैं
कईयों से बुरे कर्म होते रहते हैं। रावण राज्य है ना। माया चमाट मारती है, परन्तु
छिपाते हैं बहुत। बाबा कहते हैं कोई भी भूल होती है तो फौरन बतलाने से आगे के लिए
युक्ति मिलेगी। नहीं तो वृद्धि होती जायेगी। काम महाशत्रु है। बाबा को लिखते हैं -
बाबा माया का बहुत आपोजीशन होता है। सदैव तो किसका योग नहीं रहता जो माया से बच सके।
देह-अभिमान बहुत आता है। बहुत हैं जो माया के थप्पड़ खाते हैं। बाबा के पास समाचार
तो सब तरफ से आते रहते हैं ना। अखबारों आदि में तो उल्टा-सुल्टा भी कितना डाल देते
हैं। आजकल मनुष्य बातें तो कितनी भी बना सकते हैं, तमोप्रधान हैं ना। व्यास की जब
रजो बुद्धि थी तो क्या-क्या बातें बैठ लिखी हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं
सुनी-सुनाई बातों पर कभी भी विश्वास कर बिगड़ो मत। फलाने ने ऐसे कहा, यह किया...
माथा ही फिर जाता है। समझते नहीं तमोप्रधान दुनिया है। माया गिराने की कोशिश करेगी।
कोई भी झूठ-मूठ बातें सुनाये तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल दो। औरों को भी यही
पैगाम देते रहो। बाप कहते हैं - मैं पैगाम ले आता हूँ। अब हे आत्मायें श्रीमत पर चलो।
हमारा पैगाम सुनो। सिर्फ मामेकम् याद करो। जो याद करेंगे वह अपना ही कल्याण करेंगे।
याद आत्मा को करना है, भूली भी आत्मा है। अब बाप की श्रीमत मिलती है, इसमें
आशीर्वाद वा रहम आदि कुछ भी नहीं माँगना है। सिर्फ बाप को याद करना है और कोई बात
पूछने करने की भी दरकार नहीं है। सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है - यह तो सुना। इसमें
खिटखिट की कोई बात नहीं। घोर अन्धियारे में ही बाप आते हैं इसलिए शिव रात्रि मनाते
हैं। कृष्ण का भी जन्म रात्रि को मनाते हैं। खीर-पूरी आदि मन्दिरों में बनती है रात
को। अब शिव के लिए क्या बनायेंगे? वह तो है निराकार। किसको पता भी नहीं है, बाबा
किस घड़ी आते हैं और कैसे चले जाते हैं। सदैव तो सवारी नहीं करते हैं। आयेंगे और चले
जायेंगे। अभी तुम जानते हो हम शिवबाबा के पोत्रे हैं। वर्सा उनसे मिलता है। ब्रह्मा
को भी वर्सा उनसे मिलता है। यह तो मनुष्य हैं ना। सद्गति में पहला नम्बर है यह
श्रीकृष्ण। यह सबको प्यारा है क्योंकि सतोप्रधान बाल अवस्था है ना। थोड़ा बड़ा होता
है तो उनको सतो कहा जाता है। फिर रजो तमो। श्रीकृष्ण राधे ही फिर लक्ष्मी-नारायण
बनते हैं, जिनको बाप ने ज्ञान दिया है उनको ही देंगे। भारत में ही देवी-देवता होकर
गये हैं तो मन्दिर भी भारत में बहुत हैं। क्रिश्चियन की चर्च में क्राइस्ट ही
क्राइस्ट देखेंगे। देवताओं के कितने ढेर मन्दिर हैं। बाप आये हैं हमको मनुष्य से
देवता बनाने अथवा भारत को स्वर्ग बनाने। हम बाप को याद कर पावन बन रहे हैं। बाप के
साथ हम भी भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। जैसे हम बाप के साथ आये हैं। भक्ति मार्ग
में देवताओं के मन्दिर मूर्तियों आदि पर कितना खर्चा कर बनाते हैं। उत्पत्ति कर,
पालना कर, फिर विनाश कर देते। 9 रोज़ के अन्दर ही डूबो देते हैं। बहुत उनमें प्रेम
होता है। नवरात्रि कलकत्ते में बहुत मनाते हैं। इन सब बातों पर अभी वन्डर लगता है।
आगे तो हम भी पार्टधारी थे। करोड़ों रूपया खर्च करते हैं। कितनी अन्धश्रद्धा है।
रामायण से कितना प्यार होता है। बातें सुनकर आंखों से आंसू बहा देते हैं। यह सब है
भक्ति मार्ग, इससे फायदा कुछ नहीं। बाबा अब हमको कितना समझदार बनाते हैं। तो यह सब
सुनकर यहाँ का यहाँ भूल न जाओ, सब बातें याद करो। पूरा रिफ्रेश होकर जाओ। अपने को
आत्मा समझ देह सहित जो कुछ देखते हो सब भूल जाओ। यह सब कब्रिस्तान है। देहली में
बिड़ला मन्दिर में लिखा हुआ है - भारत परिस्तान था, जो धर्मराज ने स्थापन किया था।
अभी तुम बच्चे जानते हो यह दुनिया कब्रिस्तान बननी है।
बाप कहते हैं - सब काम चिता पर बैठ एकदम जल मरे हैं।। क्रोध चिता नहीं कही जाती।
काम चिता कहा जाता है। उसमें भी हल्का नशा, सेमी नशा भी होता है। बच्चों को ही बाप
बैठकर समझाते हैं। घर में अगर कोई कपूत बच्चा होगा तो कहेंगे ना - यह क्या बाप की
आबरू गँवाते हो। बाप की इज्जत जाती है ना। बेहद का बाप भी कहते हैं तुम काला मुँह
करते हो तो ब्राह्मण कुल भूषण जो देवता बनते हैं, उनका नाम बदनाम करते हो। तुम बच्चे
जानते हो - हम पवित्रता की ताकत से ही भारत को फिर से श्रेष्ठाचारी देवता बनाते
हैं। तुम्हारे लिए तो जैसे कॉमन बात है। देखते हो महाभारत लड़ाई भी खड़ी है, इनसे
ही स्वर्ग के गेट खुलते हैं। शास्त्रों में महाभारत लड़ाई तो दिखाई है। उसके बाद
क्या हुआ - यह दिखाया नहीं है। कह देते हैं प्रलय हो गई। अब कृष्ण का एक तरफ तो माता
के गर्भ से जन्म दिखाया है और दूसरे तरफ फिर कहते हैं कि पीपल के पत्ते पर अंगूठा
चूसता आया, कुछ भी समझते नहीं। वहाँ तो गर्भ महल में रहते हैं बड़े विश्राम से। बाकी
सागर में थोड़ेही पत्ते पर हो सकता। यह तो इम्पासिबुल है। तो यह सब ड्रामा बना हुआ
है, जिसको तुम जानते हो। कल्प-कल्प ऐसे होता ही है। अब बच्चों को अपना कल्याण करना
है और दूसरों का भी कल्याण करना है। मूल बात है यह। बाप तो स्वर्ग का रचयिता है।
उसको कहा ही जाता है हेविनली गॉड फादर। तो फिर हम बच्चे स्वर्ग के मालिक होने चाहिए
ना। शिव जयन्ती भी भारत में ही मनाते हैं तो जरूर भारत को कुछ दिया होगा। अभी तुमको
स्वर्ग की बादशाही दे रहे हैं ना। बाप है ही सद्गति दाता। ज्ञान का सागर, नॉलेज बाप
ही आकर देते हैं। अभी बाप तुमको नॉलेज दे रहे हैं। 5 हजार वर्ष बाद फिर यहाँ ही
आयेंगे। बच्चों को निश्चय है जो-जो इस ब्राह्मण कुल के होंगे वह आते जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर अपना और दूसरों का कल्याण करना है। कोई कुछ झूठी बात सुनाये
तो सुनी-अनसुनी कर देना है। उस पर बिगड़ना नहीं है।
2) कभी भी देवता बनने वाले ब्राह्मण कुल भूषणों का नाम बदनाम न हो - इसका ध्यान
रखना है। कोई उल्टा कर्म कभी नहीं करना है। पिछले हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।