21-08-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 17-05-73 मधुबन
जैसा लक्ष्य वैसा लक्षण
जो विशेषतायें बाप की हैं क्या वह अपने में अनुभव करते हो? जैसे सभी को अपनी इस पढ़ाई के मुख्य चार सब्जेक्ट्स सुनाते हो ना वैसे मुख्य विशेषतायें भी चार हैं क्या उनको जानते हो? चार सब्जेक्ट्स के प्रमाण चार विशेषतायें हैं - नॉलेजफुल, ‘पॉवरफुल’ ‘सर्विसएबल’ और ‘ब्लिसफुल’। यह मुख्य चार विशेषतायें क्या अपने में अनुभव करते हो? इन चारों की परसेन्टेज में बहुत अन्तर है या थोड़ा?
फॉलो-फादर करने वाले हो ना? चारों ही जो सब्जेक्ट्स हैं वह जीवन में नेचरल रूप में हैं कि अभी उतराई चढ़ाई का नेचरल रूप है? कितना परसेन्टेज नेचरल रूप में है? चौदह कला तक नेचरल रूप हुआ है? सम्पूर्ण स्टेज को पाने के लिए अब पुरूषार्थ की स्पीड तेज नहीं होगी, तो क्या समय के अनुसार अपने को सम्पन्न बना सकेंगे? टेम्पररी कार्य के लिए बापदादा की व अपनी मत के अनुसार जो स्टेज बनती है, वह दूसरी बात है लेकिन लास्ट स्टेज के प्रमाण क्या ऐसी स्पीड में आगे जा रहे हो? क्या अपनी स्पीड से सन्तुष्ट हो? इसके लिए भी प्लान बनता है या कि सिर्फ सर्विस के ही प्लान बनाते हो?
जैसे सर्विस के भिन्न-भिन्न प्लान्स बनाते हो तो क्या वैसे ही अपनी स्पीड से संतुष्ट रहने के लिए भी कोई प्लान बनाते हो? जो प्रैक्टिकल में प्राप्ति या सफलता होती है उसी अनुसार ही स्पीड तेज होगी। जब अपनी स्पीड से संतुष्ट हो तो फिर पॉवरफुल प्लान बनाना चाहिए ना? अगर देखते हो सर्विस में सफलता कम है तो क्या इसके लिये कुछ नई बातें सोचते हो? भिन्न-भिन्न रीति से चला कर क्या इस धरती को ठीक करने का भी प्र्यत्न करते हो? स्वयं न कर पाते हो तो संगठन के सहयोग से भी इसको ठीक करते हो ना? वैसे इस बात के लिये इतना ही स्पष्ट है? इतनी लगन है अपने प्रति? कितनी फिक्र है? क्या प्लान बनाते हो? क्या अपनी स्पीड को बढ़ाने के लिए कोई नया प्लान बनाया है? क्या एकान्त में रह, याद की यात्रा बढ़ाने का प्लान बनाते हो?
जैसे जो विशेष सर्विस की स्टेज पर आने वाले हैं उन को अपने हर कार्य को सेट करने का अनुभव करने का प्लान बनाना पड़ता है ना? वैसे ही अमृत वेले अपने पुरूषार्थ की उन्नति का प्लान सेट करना है। आज किस विषय पर वा किस कमजोरी पर विशेष अटेन्शन देकर इसकी परसेन्टेज बढ़ावे। हर-एक अपनी हिम्मत के अनुसार वह प्लान-बुद्धि में रखे कि आज के दिन में क्या प्रैक्टिकल में लायेंगे और कितनी परसेन्टेज तक इस बात को पुरूषार्थ में लायेंगे? अपनी दिनचर्या के साथ यह सेट करो और फिर रात को यह चेक करो कि अपनी सेट की हुई प्वॉइन्ट को कहाँ तक प्रैक्टिकल में और कितनी परसेन्टेज तक धारण कर सके? यदि नहीं कर सके तो उसका कारण? और किया तो किस-किस विशेष युक्ति से अपने में उन्नति का अनुभव किया? यह दोनों रिजल्ट सामने लानी चाहिये और अगर देखते हो कि जो आज का लक्ष्य रखा था उस में उतनी सफलता नहीं हुई वा जितना प्लान बनाया उतना प्रैक्टिकल नहीं हो पाया तो उसको छोड़ नहीं देना चाहिये।
जैसे स्थूल कार्य में लक्ष्य रखने से अगर किसी कारण वश वह अधूरा हो जाता है तो उसको सम्पन्न करने का प्रयत्न करते हो न? वैसे ही रोज के इस कार्य को लक्ष्य रखते हुए सम्पन्न करना चाहिए। एक बात में विशेष अटेन्शन होने से विशेष बल मिलेगा। कोई भी कार्य करते हुए स्मृति आयेगी और स्मृति-स्वरूप भी हो ही जायेंगे। जैसे एक्स्टर्नल नॉलेज में भी अगर कोई पाठ पक्का किया जाता है तो जैसे उसको दोबारा, तीसरी बार, चौथी बार पक्का किया जाता है और उसे छोड़ नहीं दिया जाता, तो ऐसे ही इसमें भी अपना लक्ष्य रख कर एक-एक बात को पूरा करते जाओ। इसमें अलबेलापन नहीं चाहिए। सोच लिया, प्लान बना लिया, लेकिन प्रैक्टिकल करने में यदि कोई परिस्थिति सामने आये तो संकल्प की दृढ़ता होगी कि करना ही है तो उतनी ही दृढ़ता सम्पूर्णता के समीप लावेगी। वर्तमान समय प्लान भी है लेकिन इसमें कमी क्या है? दृढ़ता की। दृढ़ संकल्प नहीं करते हो। विशेष रूप में अटेन्शन देकर दिखावे की वह कमजोरी है। महारथियों को अर्थात् सर्विसएबल श्रेष्ठ आत्माओं को सर्विस के साथ सेल्फ-सर्विस का भी अटेन्शन चाहिए।
एक है सेल्फ-सर्विस दूसरी विश्व-कल्याण के प्रति सर्विस। क्या दोनों का बैलेन्स ठीक रहता है? अभी इस प्रमाण अपने श्रेष्ठ संकल्प को प्रैक्टिकल में लाओ। सिर्फ सोचो नहीं। जैसे लोगों को भी कहते हो ना कि सोचते-सोचते समय न बीत जाए। इसी प्रकार अपनी उन्नति के प्लान सोचने के साथ-साथ प्रैक्टिकल में दृढ़-संकल्प से करो। अगर रोज एक विशेषता को सामने रखते हुए अपने प्लान को प्रैक्टिकल में लाओ तो थोड़े ही दिनों में अपने में महान् अन्तर महसूस होगा। इस विशेष वरदान भूमि में अपनी उन्नति के प्रति भी कुछ प्लान बनाते हो वा सिर्फ सर्विस करके, मीटिंग कर के चले जाते हो। अपनी उन्नति के लिए रात का समय तो सभी को है। जब विशेष सर्विस प्लान प्रैक्टिकल में लाते हो तो क्या उन दिनों में निद्राजीत नहीं बनते हो? अपनी उन्नति के प्रति अगर निद्रा का भी त्याग किया तो क्या समय नहीं मिल सकता है? यहाँ तो और कार्य ही क्या है? जैसे और प्लान्स बनाते हो वैसे अपनी उन्नति के प्रति भी कोई विशेष प्लान प्रैक्टिकल में लाना चाहिए। यहाँ जो भी उन्नति का साधन प्रैक्टिकल में लायेंगे उसमें सभी तरफ से सहयोग की लिफ्ट मिलेगी। जो लक्ष्य रखते हो इस प्रमाण प्रैक्टिकल में लक्षण नहीं हो पाते, जब कि कारण को भी और निवारण को भी समझते हो?
नॉलेजफुल तो हो गए हो बाकी कमी क्या है जो कि प्रैक्टिकल में नहीं हो पाता? पॉवरफुल न होने के कारण नॉलेज को प्रैक्टिकल में नहीं कर पाते हो। पॉवरफुल बनने के लिए क्या करना पड़े?- प्रैक्टिकल प्लान बनाओ। अगर अभी तक आप लोग ही तैयार नहीं होंगे तो आप लोगों की वंशावली कब तैयार होगी? प्रजा कब तैयार होगी? इस बारी प्रैक्टिकल में कुछ करके दिखाना। पुरूषार्थ में हरएक के बहुत अच्छे अनुभव होते हैं। जिस अनुभव के लेन-देन से एक-दूसरे की उन्नति के साधन सुनते अपने में भी बल भर जाता है। ऐसा क्लास कभी करते हो? अच्छा। ओम् शान्ति।
दुसरी मुरली - 25-05-73
भविष्य प्लान
अपने को विश्व-परिवर्तक व विश्व-कल्याणकारी समझते हो? विश्व की हर आत्मा को सन्देश देने वाले समझते हुए विश्व में कहाँ तक सन्देश दे पाये हैं, इसका हिसाब-किताब निकालते रहते हो? जहाँ-जहाँ सन्देश देने का कर्त्तव्य अब होने वाला है, इसके लिये नये-नये प्लान्स् बना रहे हो? जो जिस्का कर्त्तव्य वा जिम्मेवारी होती है, उस कर्त्तव्य के प्रति उसके सदैव प्लान्स चलते रहते हैं।
कहीं भी सन्देश देने के लिए वा बाप के परिचय का आवाज़ फैलाने के लिए अभी-तक जो भी भिन्न-भिन्न प्लान्स प्रैक्टिकल में लाते हो उन में मुख्य प्रयत्न यही करते हो कि जिस धरती पर वा जिस स्थान पर सन्देश देना है वहाँ पहले तो स्टेज तैयार करते हो, स्पीच तैयार करते हो और पब्लिसिटी के भिन्न-भिन्न साधन अपनाते हो जिस द्वारा उसी स्थान की आत्माओं को सन्देश देने का कर्त्तव्य करते रहते हो। लेकिन इन साधनों द्वारा अभी तक विश्व की अंश-मात्र आत्माओं को ही सन्देश दे पाये हो। अभी थोड़े समय के अन्दर, जब सारी विश्व की आत्माओं को सन्देश देने, ज्ञान और योग का परिचय दे बाप की पहचान कराने का कर्त्तव्य करना ही है, साथ-साथ इस प्रकृति को भी पावन बनाना है, तब ही विश्व-परिवर्तन होगा। इसके लिये थोड़े समय में बहुत बड़ा कार्य करने के लिए भविष्य कौन-सा प्लान बनाया है? वह रूप-रेखा बुद्धि में आती है? अभी जो कर रहे हो, वही रूप रेखा है या वह कुछ भिन्न है? वह क्या है, वह इन एडवॉन्स देखते हो या वह चलते-चलते देखेंगे? अगर स्पष्ट है तो दो शब्दों में सुनाओ।
जब समय भी शॉर्ट है तो प्लान भी शार्ट चाहिए। शार्ट हो लेकिन पॉवरफुल हो। वह दो शब्द कौन-से हैं? भविष्य प्लान प्रैक्टिकल रूप में दो शब्दों के आधार पर ही होना है। वह दो शब्द पहले भी सुनाये थे। एक तो ‘साक्षात् बाप-मूर्त्त’ और दूसरा ‘साक्षी और साक्षात्कार-मूर्त्त’। जब तक यह दोनों मूर्त्त न बनी हैं, तब तक सारे विश्व का परिवर्तन थोड़े समय में कर नहीं पायेंगे। इस प्लान को प्रैक्टिकल में लाने के लिये जैसे अब भी स्टेज और स्पीच तैयार करते हो, वैसे ही आप को अपनी स्थिति की स्टेज तैयार करनी पड़े।
अपने फीचर्स द्वारा फ्यूचर का साक्षात्कार करने के लिए, जैसे भिन्न-भिन्न पॉइन्ट्स सोचते हुए स्टेज तैयार करते हो वैसे ही इस सूरत के बीच जो भी मुख्य कर्मेन्द्रियाँ हैं, उन कर्मेन्द्रियों द्वारा बाप के चरित्र, बाप के कर्त्तव्य का साक्षात्कार हो, बाप के गुणों का साक्षात्कार हो। यह भिन्न-भिन्न पॉइन्ट्स तैयार करनी पड़े। नयनों द्वारा नजर से निहाल कर सको। अर्थात् नयनों की दृष्टि द्वारा उन आत्माओं की दृष्टि, वृत्ति, स्मृति और कृति चेन्ज कर दो। मस्तिष्क द्वारा अपने व सभी के स्वरूपों का स्पष्ट साक्षात्कार कराओ। होंठों द्वारा रूहानी मुस्कराहट से अविनाशी खुशी का अनुभव कराओ। सारे चेहरे द्वारा वर्तमान श्रेष्ठ पोजीशन और भविष्य पोजीशन का साक्षात्कार कराओ। अपने श्रेष्ठ संकल्प द्वारा अन्य आत्माओं के व्यर्थ संकल्पों व विकल्पों की बहती हुई बाढ से और अपनी शक्ति से अल्प समय में किनारा कर दिखाओ। व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तित कर डालो। अपने एक बोल द्वारा अनेक समय की तड़पती हुई आत्माओं को अपने निशाने का, अपनी मंजिल के ठिकाने का अनुभव कराओ। वह एक बोल कौन-सा? ‘शिव बाबा।’ शिव बाबा कहने से ही ठिकाना व निशाना मिल जाय। अपने हर कर्म अर्थात् चरित्र द्वारा, चरित्र सिर्फ बाप के नहीं हैं, आप हर श्रेष्ठ आत्मा के श्रेष्ठ कर्म भी चरित्र हैं। साधारण कर्म को चरित्र नहीं कहेंगे। तो हर श्रेष्ठ कर्म रूपी चरित्र द्वारा बाप का चित्र दिखाओ। जब ऐसी रूहानी प्रैक्टिकल स्पीच करेंगे तब थोड़े समय में विश्व का परिवर्तन करेंगे। इसके लिए स्टेज भी चाहिए।
स्टेज की तैयारी में क्या-क्या मुख्य साधन अपनाते हो। वह तो जानते हो न? वह आप लोगों की विशेष निशानी है। स्टेज को सफेद करते हो, यही आप लोगों की मुख्य निशानी अथवा सिम्बल है। जैसे ड्रेस प्रसिद्ध है ना। तो जैसी आत्मा की स्टेज, वैसी बाहर की स्टेज को भी रूप देते हो। तो यह बातें जो स्थूल स्टेज पर रखने का प्रयत्न करते हो। उनमें से अगर एक चीज भी स्मृति में न रहती है वा सही रूप में नहीं होती है तो स्टेज की झलक अच्छी नहीं दिखाई देती। इसी प्रमाण जब अपनी स्थिति की स्टेज द्वारा प्रैक्टिकल स्पीच करनी है तो इसके लिये भी इन सभी बातों की तैयारी चाहिए, लाइट चाहिए अर्थात् डबल लाइट स्वरूप की स्टेज चाहिए। यह तो जानते हो न? दोनों ही लाइट। अगर स्टेज पर कोई हल्का न हो, उठने बैठने में भारी हो तो स्पीच सुनने के बजाय लोग उसको ही देखने लग जायेंगे। तो यहाँ पर डबल लाइट की स्थिति चाहिए। और माइक ऐसा पॉवरफुल हो, जो दूर तक आवाज़ स्पष्ट रूप में पहुंच जाये। तो माइक में भी माइट हो। एक संकल्प करो, एक नजर डालने से ही वह नजर और वह संकल्प लाइट हाउस का कार्य करे। एक स्थान पर होते हुए भी अनेक आत्माओं पर आप के श्रेष्ठ संकल्प और दिव्य नजर का प्रभाव पड़े। ऐसा पॉवरफुल माइक बनाना पड़े। तो माइक कौनसा हुआ - ’संकल्प और नजर’, ‘दिव्य और रूहानी दृष्टि।’ ऐसे ही व्हाइटनेस अर्थात् स्वच्छ बुद्धि चाहिए उनमें जरा भी कोई दाग न हो। अगर स्टेज पर कोई दाग होगा, व्हाइटनेस नहीं होगी तो सभी का अटेन्शन न चाहते भी उस तरफ जायेगा। और बात में स्लोगन्स का श्रृंगार चाहिये। इस स्थिति की स्टेज पर कौन-से सलोगन का श्रृंगार चाहिये? - स्थिति की स्टेज और प्रैक्टिकल मन, वाणी, कर्म की स्पीच। ऐसी स्टेज के लिये सलोगन कौन-से चाहिये?
एक ‘मैं आत्मा विश्व-कल्याण के श्रेष्ठ कर्त्तव्य के प्रति सर्वशक्तिवान् बाप द्वारा निमित्त बनी हुई हूँ’ - यह सलोगन स्मृति में रहे। इस स्थिति में अगर यह सलोगन याद न रहेगा तो स्टेज सुन्दर नहीं लगेगी। विशेष धारणाओं के ही सलोगन्स हैं। दूसरा सलोगन, मैं आत्मा महादानी और वरदानी हूँ। जिन भी आत्माओं को दान लेने का वा देने का साहस नहीं हैं उन को भी वरदाता बाप द्वारा मिले हुए वरदानों द्वारा अपनी स्थिति के सहयोग द्वारा वरदान देना है। तो सलोगन क्या हुआ? ‘मैं महादानी और वरदानी हूँ’ - यह है स्पष्टीकरण। तीसरी बात मुझ आत्मा को अपने चरित्र, बोल व संकल्प द्वारा अपने मूर्त्त में सभी आत्माओं को बापदादा की सूरत और सीरत का साक्षात्कार कराना है। इस प्रकार जो स्टेज को सुन्दर बनाने का सलोगन है वह भी स्मृति में रखना है। ऐसी अपनी स्टेज और स्पीच को तैयार करो। स्टेज पर कुर्सी पर बैठो अर्थात् अपनी स्टेटस की कुर्सी पर बैठो। तो स्टेज, स्पीच, और स्टेट्स ये तीनों ही आवश्यक हैं, फिर थोड़े समय में विश्व को परिवर्तित कर लेंगे। यह करना तो आता है न? लेकिन यह भी ध्यान रखना कि स्टेज ऐसी मज़बूत हो, एक-रस, अचल और अडोल हो जो कोई भी तूफान और कोई भी वातावरण उसको हिला न सके। ऐसी अपनी तैयारी करो, क्या ऐसी प्रैक्टिस है? क्या ऐसे एवररेडी हो और एवर हैप्पी हो? जो एक सेकेण्ड में जैसी स्थिति, जैसा स्थान और जैसी आत्माओं की धरती उसी प्रमाण थोड़े समय में अपनी स्टेज तैयार कर प्रैक्टिकल स्पीच कर सको। समझा? यह है भविष्य प्लान।
अच्छा, ऐसे सदा अपनी स्टेज द्वारा, स्टेट्स द्वारा सर्व आत्माओं को अपने सम्पूर्ण स्टेज और अपने वास्तविक स्टेट्स का साक्षात्कार कराने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, विश्व-कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- सदा फरमान के तिलक को धारण कर फर्स्ट प्राइज़ लेने वाले फरमानवरदार भव
जिन बच्चों के मस्तक पर फरमानबरदारी की स्मृति का तिलक लगा हुआ है, एक संकल्प भी फरमान के बिना नहीं करते उन्हें फर्स्ट प्राइज़ प्राप्त होती है। जैसे सीता को लकीर के अन्दर बैठने का फरमान था, ऐसे हर कदम उठाते हुए, हर संकल्प करते हुए बाप के फरमान की लकीर के अन्दर रहो तो सदा सेफ रहेंगे। कोई भी प्रकार के रावण के संस्कार वार नहीं करेंगे और समय भी व्यर्थ नहीं जायेगा।
स्लोगन:- किसी से भी लगाव है तो वह लगाव पुरूषार्थ में अलबेला अवश्य बनायेगा।