ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। यह बच्चे जानते हैं बाहर वाला कोई समझ न सके। वह तो कहेंगे शिव भी
शायद इनका ही नाम है। इसलिए नया कोई यहाँ बैठ नहीं सकता। जैसे कोई मेडिकल कॉलेज में
नया जाकर बैठे तो कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। यह पाठशाला ऐसी है, नये कोई की बुद्धि
में कुछ भी बैठ नहीं सकता। इसलिए नये को एलाउ नहीं किया जाता है और सतसंगों में तो
कोई भी बैठ सकता है क्योंकि वह है भक्ति। ज्ञान की वहाँ कोई बात ही नहीं। वहाँ तो
सब विकारी, शराबी जाकर बैठते हैं। यहाँ तो ऐसा कोई बैठ न सके। तुमको कोई भी ऐसी
अशुद्ध चीज़ खानी नहीं है क्योंकि तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। यह है भविष्य नई
दुनिया के लिए पढ़ाई, जो सिवाए बाप के और कोई पढ़ा न सके। मनुष्य जो कुछ पढ़ते हैं,
वह इस पुरानी दुनिया के लिए। तुम सब कुछ भविष्य के लिए करते हो। यह है 21 जन्मों के
लिए पढ़ाई। तुम इस मृत्युलोक के लिए नहीं पढ़ते हो। तुम बच्चों के सिवाए भविष्य का
किसको पता ही नहीं। इसमें मुख्य बात है - गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र जरूर बनना
है। सतयुग की स्थापना तो होनी ही है। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे और शिवबाबा के
डायरेक्शन को फालो करेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। पहले-पहले फालो इसने किया फिर इनको
देख बहुत बच्चों ने फालो किया। सरेन्डर हो गये। बस मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई।
सबको तो नहीं छोड़ना है। यह तो पहले भट्ठी बननी थी। कितने वर्ष तुम भट्ठी में रहे।
कोई मित्र सम्बन्धी से कनेक्शन नहीं। कोई धन्धाधोरी नहीं, कोई शादी मुरादी नहीं। अब
तो बच्चों को शादी मुरादी पर भी जाना पड़ता है। पहले तो भट्ठी बननी थी। उनको पकना
था। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। पहले-पहले तो सब चले आये। पिछाड़ी को मालूम पड़ता है
कि कितने कच्चे निकल पड़े। शुरू में बच्चे आदि भी ले आये थे। उनकी तकदीर में नहीं
था तो कितने चले गये। यह भी वन्डर था ना। यह भट्ठी लगाने की किसकी ताकत थी? शिवबाबा
की। कोई मनुष्य तो यह काम कर न सके। कितने कायदे और युक्ति से भट्ठी बनी। मनुष्य तो
उस समय क्या-क्या बोलते थे, बात मत पूछो। सो तो हुआ ड्रामा। जो कुछ देखा सो फिर भी
होगा 5 हजार वर्ष के बाद। यह ड्रामा का राज़ तुम ही जानते हो। तुम ड्रामा के चैतन्य
एक्टर हो। तुम जानते हो यह शरीर धारण कर हम पार्ट बजाने आये हैं। क्रियेटर,
डायरेक्टर और मुख्य एक्टर को तो जानना चाहिए। तुम्हारे सिवाए किसी को इस ज्ञान का
पता नहीं है। तुम बच्चे रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को अच्छी रीति जानते हो। कोई
तो फिर रचता को भी भूल जाते हैं। बेहद का बाप जिसको भक्ति मार्ग में इतना याद किया,
वह अब आया है। जितना उनकी श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे, जो करेगा सो पायेगा।
कई बच्चे चलते-चलते थक जाते हैं तो पढ़ाई को ही छोड़ देते हैं। ऐसी ऊंची पढ़ाई को
छोड़ना थोड़ेही चाहिए। यह है ईश्वरीय पढ़ाई। जहाँ तक जीना है तो ऐसे बाप से पढ़ते
रहना है। बहुत है जो पढ़ाई को छोड़ माया से हार खाकर बैठ जाते हैं। बहुत ऐसे हैं जो
खुद सेन्टर खोल खुद नहीं पढ़ते। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह ऊंच पद पायेंगे। बाकी
हाँ; बहुतों के कल्याण की भी आशीर्वाद मिल जाती हैं, उसमें भी कोई शक नहीं। सेन्टर
खोल देते हैं। कहते हैं - हमको फुर्सत नहीं औरों का कल्याण भल हो। हम पवित्र नहीं
रह सकते, बाकी मदद कर सकते हैं। जितनी हम मदद करेंगे, प्रजा में तो साहूकार बनेंगे।
मान भी हो सकता है। बीज बोने का एवजा तो मिलेगा यह बाप जाने और दादा जाने। बच्चों
को थोड़ेही पता पड़ता है। तुम बच्चों को पढ़ाई का बहुत बहुत नशा होना चाहिए कि हमको
भगवान पढ़ाकर भगवान और भगवती बना रहे हैं और 21 जन्मों के लिए एवरहेल्दी, एवरवेल्दी,
एवरहैपी बनेंगे। ऐसी पढ़ाई में तो एकदम लग जाना चाहिए। ऐसे भी नहीं 5-7 घण्टे बैठकर
पढ़ना है। नहीं, पढ़ाई तो बुद्धि में है कि हमको देही-अभिमानी बनना है। चलते-फिरते
याद में रहना है। बाबा आया है, हमको पढ़ा रहा है। पतित से पावन बनने की सहज युक्ति
बता रहे हैं। बरोबर कल्प पहले हम राजयोग सीखे थे, बाबा कहते हैं अपने को आत्मा समझ
मेरे साथ योग लगाना है। आत्मा ही सब एक्ट करती है। यह शरीर तो विनाशी है। आत्मा
अविनाशी है तो तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है। इस शरीर से ही आत्मा यह धन्धा
करती है। हम आत्मा दुःख-सुख सहन करती हैं। सब कुछ आत्मा को ही फील होता है। कहा भी
जाता है पुण्य आत्मा, पाप आत्मा। मनुष्य बिचारे परमात्मा को न जानने कारण कह देते -
हम ही परमात्मा हैं। जैसे बच्चे से पूछो तुम्हारा बाप कौन है? कहेगा फलाना, उनका
बाप कौन है? आखरीन न जानने के कारण कह देंगे हम। तो भगवान को भी न जानने के कारण कह
देते हम ही भगवान। अब पतित-पावन को बुलाते ही हैं पावन होने के लिए। बरोबर पावन
दुनिया थी। वहाँ और कोई धर्म नहीं था। अभी तो करोड़ों मनुष्य हैं। सतयुग में कितने
थोड़े होने चाहिए। बाद में झाड़ वृद्धि को पाता है ना। समझाना कितना सहज है। भारत
में इन लक्ष्मी नारायण का राज्य था तो कितनी थोड़ी प्रजा थी। चन्द्रवंशी भी नहीं थे
जो पीछे आयेंगे, उनके जन्म भी कम होते जायेंगे। कोई 80-82 जन्म लेंगे। जो अच्छा
पुरुषार्थ करेंगे वह पहले आयेंगे। सब थोड़ेही सतयुग में आयेंगे। यह सारा हिसाब
तुम्हारी बुद्धि में है। बाप है ज्ञान सागर। वही सत्य है, चैतन्य है, मनुष्य सृष्टि
का बीजरूप है। परन्तु उसका भी अर्थ थोड़ेही समझते हैं। जरूर उसने पार्ट बजाया है,
तब तो महिमा गाई जाती है ना। बाप कहते हैं अब फिर मैं आया हूँ। मैं मनुष्य सृष्टि
का बीजरूप हूँ, नॉलेजफुल हूँ। चैतन्य हुआ ना। उस झाड़ का बीज नीचे होता है, उनको
जाता है उल्टा झाड़, चित्र में सुल्टा करके बनाया है। उल्टे से समझ नहीं सकेंगे। तो
वह चैतन्य बीजरूप भी है। बेहद का बाप भी है। तुम बच्चों को सृष्टि के आदि मध्य अन्त
की नॉलेज सुनाते हैं। पढ़ने वाले नम्बरवार तो होते ही हैं। टीचर अथवा माँ बाप भी
समझ जाते हैं - यह कितनी मार्क्स से पास होंगे। रजिस्टर रहता है ना। यह है गुप्त।
हर एक खुद जान सकते हैं, हम कैसे पढ़ रहे हैं। बाप को पूरा याद नहीं करता हूँ। बाबा
का फरमान है कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। कितना सहज उपाय है। धन्धा आदि
भी भल करो फिर जो टाइम मिले तो मुझे याद करो। कहते हैं कम कार डे, दिल यार डे
क्योंकि फिर भी गृहस्थ व्यवहार में रहना होता है इसलिए कर्म भी करो फिर मुझे याद करो
तो विकर्म विनाश होंगे। कितनी सिम्पल बात है। पवित्र बनना है। इसमें खबरदारी बहुत
रखनी पड़ती है क्योंकि काम महाशत्रु है। ऐसी चलन मत चलो जो गिर पड़ो। बहुत हैं जो कह
देते हैं हम तो बाप के बन गये, हम हाथ लगाने भी नहीं देंगे। ढेर बच्चे हैं - हर एक
को राय लेनी होती है। यह दुनिया तो बड़ी विकारी है। विकार बिना तो रह नहीं सकते।
बहुत तंग करते हैं। कई तो स्त्रियाँ भी ऐसी होती हैं। शास्त्रों में भी नाम है
सूपनखायें, पूतनायें, अकासुर, बकासुर, यह बाबा ने ही समझाया था। अब फिर समझा रहे
हैं। यह भी राजधानी स्थापन हो रही है। कोई राजा बनते, कोई साहूकार बनते, कोई प्रजा।
चलन से भी समझा जाता है। बाप तो जानते ही हैं मौत तो सिर पर खड़ा है। बाप कहते हैं
तुमको काल पर जीत पाना सिखलाते हैं। वहाँ कभी अकाले मृत्यु होता नहीं। टाइम पर शरीर
छोड़ देते हैं। काल पर विजय पहनाने वाला एक बाप है इसलिए उनको अकालमूर्त, कालों का
काल कहा जाता है। अकालतख्त भी है ना। अब अकाल तो आत्मा है ना। उनका यह तख्त है। बाप
भी अकालमूर्त, कालों का काल है। उनका भी यह तख्त है। मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं।
मौत सामने खड़ा है। सृष्टि बदलने वाली है। बरोबर महाभारी लड़ाई लगी थी तो भगवान आया
था। राजयोग सिखलाया था। कृष्ण को भगवान नहीं कह सकते हैं। ज्ञान, भक्ति आधा-आधा है।
आधाकल्प रावणराज्य चलता है। हर वर्ष रावण को जलाते हैं। फिर बनाते भी हैं, जिसको
मारा उनको फिर जलाते हैं। देवियां भी हर वर्ष बनाते, लाखों रूपया खर्च करते हैं। आगे
तो जेवर आदि भी पहनाते थे। वह सारी आमदनी ब्राह्मणों को होती थी। यह है गुड़ियों की
पूजा। काली देखो कैसी भयानक बनाते हैं। ऐसी कोई हथियारों वाली देवियां होती थोड़ेही
हैं। यहाँ तो तुम योगबल वाले हो। इसको ज्ञान खड़ग, ज्ञान-कटारी कहा गया। वह फिर
स्थूल रूप में ले गये हैं। भक्ति मार्ग फिर भी होगा। बनी बनाई बन रही... जिसको मरना
होगा वह तो मरेंगे, जाकर दूसरा पार्ट बजायेंगे। इसमें चिंता की कोई बात ही नहीं।
बाबा कहते हैं खबरदार रहना। रोया तो खेल खलास। तुमको बाप मिला फिर क्या परवाह!
देह-अभिमान के कारण ही रोते रहते हैं। धन्धे में भी देवाला मारते हैं तो मनुष्यों
को कितना दुःख होता है। आजकल तो बहुत देवाला मारने वाले हैं। अच्छे-अच्छे धनवान को
भी जेल में डाल देते हैं। एक तो है काम की मारामारी। दूसरी है पैसे की मारामारी।
काम के लिए स्त्री को भी मार देते हैं। यह है ही पतित दुनिया। तुम जानते हो हम तो
पढ़कर बाबा से पूरा ही वर्सा लेंगे, राजगद्दी पर बैठेंगे। राजाई पद पाना है तो आप
समान भी बनाना है। सर्विस करनी है। जो कुछ होता है साक्षी होकर देखना है। बाप साक्षी
होकर देखते भी हैं तो पार्ट भी बजाते हैं। बच्चों को श्रीमत भी देते हैं। हर एक के
कर्मों का हिसाब किताब अलग-अलग है। तुम बाप की राय पर चलो तो जवाबदार बाप हो जायेगा।
कोई में क्रोध का स्वभाव है, कुछ भी है। हर एक पुरुषार्थी है। तुम अपनी जांच करो।
अपने पांव पर खड़े रहो, दूसरे का चिंतन क्यों करते हो। वह तो बाप को सारी दुनिया का
चिंतन है। बाप जानते है हमको पतित दुनिया में आकर सबको पावन बनाना है। यह 5 तत्व भी
पवित्र होने हैं। मेरा भी पार्ट है। बाकी जानवरों की बातों में तुम्हारा क्या जाता
है। समझाया जाता है - सतयुग में ऐसे दुःख देने वाले जानवर होते ही नहीं। वहाँ कोई
बीमार आदि होता नहीं। अब देखो बीमारियां कितनी बढ़ गई हैं। कितने जानवर आदि हैं।
सतयुग में इतने होंगे क्या! यह बड़ी समझने की बातें हैं। साइंस की डिपार्टमेंट अलग
है। यह है साइलेंस की डिपार्टमेंट। बाबा की याद में रह कोई भी कर्म करना है। मुख से
कभी राम-राम वा शिव-शिव नहीं कहना है। हम आत्मा बाबा को याद करते हैं, वो लोग कितनी
मालायें आदि फेरते हैं, अर्थ कुछ नहीं जानते। अर्थ बिगर शिवाए नम: कहते रहते हैं।
यह सब है भक्ति मार्ग।
तुम बच्चों को कितना समझाया है - कोई तो अच्छी रीति धारण करते हैं। कोई तो भूल
जाते हैं। पुरुषार्थ ही कम करते हैं। बाबा कहते हैं भल घूमो फिरो पवित्र रहो।
पवित्रता पर ही झगड़ा चलता है। विघ्न तो बहुत पड़ेंगे। ऐसे थोड़ेही राजाई स्थापन हो
जायेगी, जो जितना पुरुषार्थ करेंगे उस अनुसार पद पायेंगे। कोई भी बात में मूँझो तो
बाबा से पूछो। बाबा तो आया ही है बच्चों का कल्याण करने। फिर से राज्य भाग्य देते
हैं। जानते हैं रावण ने छीन लिया है। फिर से बाप दिलाते हैं। चाहते भी हैं रामराज्य
हो। नई दुनिया, नई देहली। उसमें तो सूर्यवंशी राज्य था, जमुना का कण्ठा था। तुमको
हमेशा श्रीमत पर चलते रहना है। बाबा को याद करना है। ऐसे नहीं यहाँ सिर्फ बैठना है।
चलते फिरते याद में रहना है। एक जगह बैठ योग करेंगे तो वह भी हठयोग हो जायेगा। तुम
तो कहाँ भी बैठो बाबा को याद करो। याद से ही तुमको एवरहेल्दी बनाते हैं। इसमें ही
मेहनत है। 4-6 घण्टा याद में रहना कोई मासी का घर नहीं है। इस पर ही तुम्हारी मेहनत
चलती है। थकते भी इसमें ही हैं। पवित्र होने के लिए याद के सिवाए और कोई उपाय नहीं
है। अच्छा।
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बनी बनाई बन रही... इसलिए किसी भी बात की चिंता नहीं करनी है। साक्षी
होकर हरेक का पार्ट देखना है।
2) हर एक पुरुषार्थी है, इसलिए दूसरे का चिंतन न कर अपने पांव पर खड़े रहना है।
श्रीमत पर चलना है।