ओम् शान्ति।
प्रदर्शनी के लिए यह गीत बहुत अच्छा है, ऐसे नहीं प्रदर्शनी में रिकार्ड नहीं बजाये
जा सकते। इस पर भी तुम समझा सकते हो क्योंकि पुकारते तो सब हैं। परन्तु यह नहीं
जानते हैं कि जाना कहाँ है और कौन ले जायेगा। जैसेकि ड्रामा अथवा भावी वश भक्तों को
भक्ति करनी है। जब भक्ति पूरी होती है तब ही बाप आते हैं। कितने दर-दर भटकते हैं।
मेले मलाखड़े लगते हैं। दिन-प्रतिदिन वृद्धि को पाते जाते हैं, श्रद्धा से तीर्थो
पर जाना भटकना चलता ही आता है। बहुत समय हो जाता है तो भी गवर्मेन्ट स्टैम्प आदि
बनाती रहती है। साधुओं आदि के भी स्टैम्प बनाती है। बर्थ डे मनाते हैं। यह सब है
रावण-राज्य का अथवा माया का भभका, उनका भी मेला मलाखड़ा चाहिए। आधाकल्प से तुम
रावणराज्य में भटकते रहे। अब बाबा आकर रावणराज्य से छुड़ाए रामराज्य में ले जाते
हैं। दुनिया यह नहीं जानती कि आपेही पूज्य आपेही पुजारी यह महिमा किसकी है। पहले 16
कला सम्पूर्ण, पूज्य रहते हैं फिर 2 कला कम हो जाती है तो उनको सेमी कहेंगे। फुल
पूज्य फिर दो कला कम होने से सेमी पूज्य कहेंगे। तुम जानते हो पुजारी से फिर पूज्य
बन रहे हैं। फिर सेमी पूज्य बनेंगे। अब इस कलियुग के अन्त में हमारा पुजारी पने का
पार्ट खत्म होता है। पूज्य बनाने लिए बाबा को आना पड़ता है। अब बाबा विश्व का मालिक
बनाते हैं। विश्व तो यह भी है, वह भी होगी। वहाँ मनुष्य बहुत थोड़े होते हैं। एक
धर्म होता है। अनेक धर्म होने से भी हंगामा होता है।
अब बाबा आया है लायक बनाने। जितना बाबा को याद करेंगे उतना अपना भी कल्याण करेंगे।
देखना है कि कल्याण करने का कितना शौक रहता है! जैसे आर्टिस्ट हैं उनको ख्याल रहता
है ऐसे-ऐसे चित्र बनायें जिससे मनुष्य अच्छी रीति समझ जायें। समझेंगे हम बेहद के
बाप की सर्विस करते हैं। भारत को स्वर्ग बनाना है। प्रदर्शनी में देखो कितने ढेर आते
हैं। तो प्रदर्शनी के ऐसे चित्र बनायें जो कोई भी समझ जायें कि यह चित्र एक्यूरेट
रास्ता बताने वाले हैं। मेले मलाखड़े आदि जो हैं वह तो उनके आगे कुछ भी नहीं हैं।
आर्टिस्ट जो इस ज्ञान को समझते हैं, उनकी बुद्धि में रहेगा – ऐसे-ऐसे चित्र बनायें
जो बहुतों का कल्याण हो जाये। रात-दिन बुद्धि इस बात में लगी रहे। इन चीज़ों का
बहुत शौक रहता है। मौत तो अचानक आता है। अगर जुत्ती आदि की याद में रहे, मौत आ गया
तो जुत्ती जैसा जन्म मिलेगा। यहाँ तो बाप कहते हैं देह सहित सबको भूलना है। यह भी
तुम समझते हो कि बाप कौन है? कोई से पूछो आत्माओं के बाप को जानते हो? कहते हैं नहीं।
याद कितना करते हैं, मांगते रहते हैं। देवियों से भी जाकर मांगते हैं। देवी की पूजा
की और कुछ मिल गया तो बस उन पर कुर्बान हो जाते हैं। फिर पुजारी को भी पकड़ लेते
हैं, वह भी आशीर्वाद आदि करते हैं। कितनी अन्धश्रद्धा है। तो ऐसे-ऐसे गीतों पर
प्रदर्शनी में भी समझा सकते हो। यह प्रदर्शनी तो गाँव-गाँव में जायेगी। बाप गरीब
निवाज़ है। उन्हों को जोर से उठाना है। साहूकार तो कोटों में कोई निकलेगा। प्रजा तो
ढेर है। यहाँ तो मनुष्य से देवता बनना है। बाप से वर्सा मिलता है। पहले-पहले तो बाप
को जानना चाहिए कि वह हमको पढ़ाते हैं। इस समय मनुष्य कितने पत्थर बुद्धि हैं। देखते
भी हैं इतने सेन्टर्स पर आते हैं, सबको निश्चय है! बाप टीचर सतगुरू है, यह भी समझते
नहीं हैं।
एक दूसरा गीत भी है कि इस पाप की दुनिया से….. वह भी अच्छा है, यह पाप की दुनिया
तो है ही। भगवानुवाच – यह आसुरी सम्प्रदाय है, मैं इनको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ।
फिर मनुष्यों की कमेटियाँ आदि यह कार्य कैसे कर सकती। यहाँ तो सारी बात ही बुद्धि
की है। भगवान कहते हैं तुम पतित हो, तुमको भविष्य के लिए पावन सो देवता बनाता हूँ।
इस समय सभी पतित हैं। पतित अक्षर ही विकार पर है। सतयुग में वाइसलेस वर्ल्ड थी। यह
है विशश वर्ल्ड। कृष्ण को 16108 रानियां दे दी हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है। जो
भी शास्त्र बनाये हुए हैं, उनमें ग्लानि कर दी है। बाबा जो स्वर्ग बनाते हैं उनके
लिए भी क्या-क्या कहते हैं। अभी तुम जानते हो बाबा हमको कितना ऊंच बनाते हैं। कितनी
अच्छी शिक्षा देते हैं। सच्चा-सच्चा सतसंग यह है। बाकी सब हैं झूठ संग। ऐसे को फिर
परमपिता परमात्मा आकर विश्व का मालिक बनाते हैं। बाप समझाते हैं बच्चे, तुमको अब
अन्धों की लाठी बनना है। जो खुद ही सज्जे नहीं हैं वह फिर औरों की लाठी क्या बनेंगे!
भल करके ज्ञान का विनाश नहीं होता। एक बारी माँ बाप कहा तो कुछ न कुछ मिलना चाहिए।
परन्तु नम्बरवार पद तो है ना। चलन से भी कुछ मालूम पड़ जाता है। फिर भी पुरुषार्थ
कराया जाता है। ऐसे नहीं जो मिला सो ठीक। पुरुषार्थ से ऊंच प्रालब्ध मिलनी है। बिगर
पुरुषार्थ तो पानी भी न मिले। इसको कर्मक्षेत्र कहा जाता है, यहाँ कर्म बिगर मनुष्य
रह न सके। कर्म संन्यास अक्षर ही रांग है। बहुत हठ करते हैं। पानी पर, आग पर चलना
सीखते हैं। परन्तु फायदा क्या मिला? मुफ्त आयु गँवाते हैं। भक्ति की जाती है रावण
के दु:ख से छूटने के लिए। छूटकर फिर वापिस जाना है इसलिए सब याद करते हैं, हम
मुक्तिधाम में जायें अथवा सुखधाम में जायें। दोनों ही पास्ट हो गये हैं। भारत
सुखधाम था, अब नर्क है तो नर्कवासी कहेंगे ना। तुम खुद कहते हो फलाना स्वर्गवासी
हुआ। अच्छा तुम तो नर्क में हो ना। हेविन के अगेन्स्ट हेल है। बाकी वह तो है
शान्तिधाम। बड़े-बड़े लोग इतना भी समझते नहीं है। अपने को आपेही सिद्ध करते हैं हम
हेल में हैं। बड़ी युक्ति से सिद्ध कर बताना है। यह प्रदर्शनी तो बहुत काम कर
दिखायेगी। इस समय मनुष्य कितने पाप करते हैं। स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। वहाँ
तो प्रालब्ध है। तुम फिर से अब स्वर्ग में चलते हो, तुम कहेंगे अनेक बार इस विश्व
के मालिक हम बने हैं, फिर अब बन रहे हैं। दुनिया में किसको भी पता नहीं। तुम्हारे
में भी कोई समझते हैं। इस खेल से कोई छूट नहीं सकते। मोक्ष भी मनुष्य तब चाहते हैं,
जब दु:खी होते हैं। बाबा तो कहते हैं – अच्छी रीति पुरुषार्थ करो। माँ बाप को फालो
कर अच्छा पद पा लो, अपनी चलन को सुधारो। बाप तो राह बताते हैं फिर उस पर क्यों नहीं
चलते हो। जास्ती तमन्नायें नहीं रखनी चाहिए। यज्ञ से जो मिले सो खाना है। हबच (लालच)
है, कर्मेन्द्रियाँ वश में नहीं है तो पद भी ऊंचा नहीं पा सकते। तो ऐसे-ऐसे गीत
प्रदर्शनी में बजाए उस पर तुम समझा सकते हो।
तुम हो शिवबाबा के परिवार। शिवबाबा के ऊपर तो कोई है नहीं। और सबके ऊपर तो कोई न
कोई निकलेंगे। 84 जन्म में दादा, बाबा भी 84 मिलते हैं। शिवबाबा है रचता, अब नई रचना
रच रहे हैं अर्थात् पुरानी को नया बनाते हैं। तुम जानते हो हम सांवरे से गोरे बनते
हैं, स्वर्ग में श्रीकृष्ण है नम्बरवन। फिर लास्ट में उनका जन्म है। फिर यही पहला
नम्बर बनता है। पूरे-पूरे 84 जन्म श्रीकृष्ण ने लिये हैं। सूर्यवंशी दैवी सम्प्रदाय
ने पूरे 84 जन्म लिये। बाप कहते हैं जो श्रीकृष्ण पहला नम्बर था, उनके ही अन्तिम
जन्म में प्रवेश कर फिर उनको श्रीकृष्ण बनाता हूँ। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कोई भी विनाशी तमन्नायें नहीं रखनी है। अपना और सर्व का कल्याण करना
है।
2) देह सहित सब कुछ भूल वापस घर चलना है – इसलिए चेक करना है कि बुद्धि कहीं पर
भी अटकी हुई न हो।