10-01-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अल्फ और बे,
बाप और वर्सा याद रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा, यह बहुत सहज सेकेण्ड की बात है''
प्रश्नः-
बेअन्त खुशी
किन बच्चों को रहेगी? सदा खुशी का पारा चढ़ा रहे उसका साधन क्या है?
उत्तर:-
जो
बच्चे अशरीरी बनने का अभ्यास करते, बाप जो सुनाते हैं उसको अच्छी रीति धारण कर दूसरों
को कराते हैं, उन्हें ही बेअन्त खुशी रह सकती है। खुशी का पारा सदा चढ़ा रहे इसके
लिए अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते रहो। बहुतों का कल्याण करो। सदा यह स्मृति रहे
कि हम अभी सुख और शान्ति की चोटी पर जा रहे हैं तो खुशी रहेगी।
ओम् शान्ति।
बापदादा का विचार है कि एक सेकेण्ड में बच्चों से लिखाकर लेवें कि किसकी याद में
बैठे हो? इस लिखने में कोई टाइम नहीं लगता है। हरेक एक सेकेण्ड में लिखकर बाबा को
दिखा जाये। (सबने लिखकर बापदादा को दिखाया फिर बाबा ने भी लिखा। बाबा ने जो लिखा सो
कोई ने नहीं लिखा) बाबा ने लिखा अल्फ और बे, कितना सहज है। अल्फ माना बाबा, बे माना
बादशाही। बाबा पढ़ाते हैं और तुम राजाई प्राप्त करते हो। और जास्ती लिखने की दरकार
नहीं। तुमने तो लिखने में दो मिनट भी लगाया। अल्फ बे सेकेण्ड की बात है। सन्यासी
सिर्फ अल्फ को याद करेंगे। तुमको बादशाही भी याद है। याद की आदत पड़ जाती है। बुद्धि
में बैठता है तो खुशी का पारा चढ़ा रहता है। अल्फ का अर्थ कितना बड़ा हाइएस्ट चोटी
है। उससे ऊपर और कोई चीज़ ही नहीं। रहने का स्थान भी ऊंचे ते ऊंचा है। सेकेण्ड में
मुक्ति-जीवनमुक्ति का अर्थ भी कोई नहीं जानते। उसका भी ज़रूर अर्थ होगा। बच्चा पैदा
होता है तो लिखते हैं इतने घण्टे, इतने मिनट, इतने सेकेण्ड हुए। टिक-टिक चलती रहती
है। टिक हुई अल्फ बे, बस सेकेण्ड भी नहीं लगता। कहने की भी दरकार नहीं। याद तो है
ही। तुम बच्चों की इतनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए। परन्तु वह तब होगी जब याद रहेगी।
यहाँ बैठे हो तो बाप और राजाई याद रहनी चाहिए। बुद्धि देखती है, जिसको दिव्य दृष्टि
कहा जाता है। आत्मा भी देखती है। बाप को आत्मा ही याद करती होगी। तुम भी बाप को याद
करो तो राजाई इक्ट्ठी याद आ जायेगी। कितनी देरी लगती है। यहाँ भी याद में बैठेंगे
तो बहुत गद-गद हो जायेंगे। बाबा भी इस खुशी में बैठे हैं। बाप को यहाँ की कोई बात
याद ही नहीं। बाबा याद करते हैं वहाँ की बातें। बाबा और राजाई जैसेकि दर पर खड़े
हैं। बाप कहते हैं तुम बच्चों के लिए राजाई ले आया हूँ। तुम सिर्फ याद नहीं करते
इसलिए खुशी नहीं ठहरती। तुम उठते बैठते अपने को आत्मा समझो और मुझ बाप और वर्से को
याद करो। कितना ऊंचा स्थान है जहाँ तुम रहते हो। दुनिया थोड़ेही जानती है। मनुष्य
मुक्ति में जाने के लिए कितना माथा मारते हैं। अभी मुक्तिधाम है कहाँ? तुम समझते हो
आत्मा तो राकेट है। वो लोग चांद तक जाते हैं फिर है पोलार। तुम तो पोलार से भी बहुत
ऊंच जाते हो। चन्द्रमा तो इस दुनिया का है। कहा जाता है सूर्य चांद से परे, आवाज से
भी परे। इस शरीर को छोड़ देना है। तुम आते हो स्वीट साइलेन्स होम से। आने जाने में
टाइम नहीं लगता है। अपना घर है। यहाँ तो कहाँ भी जाओ तो टाइम लगता है। आत्मा शरीर
छोड़ती है तो सेकेण्ड में कहाँ का कहाँ चली जाती है। एक शरीर छोड़ दूसरे में जाकर
प्रवेश करती है। तो अपने को आत्मा समझना है। तुम बहुत ऊंच चोटी पर जाते हो। मनुष्य
शान्ति चाहते हैं। शान्ति की हाइएस्ट चोटी है निराकारी दुनिया और सुख की भी हाइएस्ट
चोटी है स्वर्ग। ऊंचे ते ऊंच को टावर कहा जाता है। तुम्हारा घर भी कितना ऊंचा है।
दुनिया वाले कभी इन बातों पर ख्याल नहीं करते। उनको यह बातें समझाने वाला कोई है नहीं।
उसको कहा जाता है शान्ति का टावर। मनुष्य तो कहते रहते हैं विश्व में शान्ति हो।
परन्तु इसका अर्थ नहीं जानते कि शान्ति कहाँ है। यह लक्ष्मी-नारायण सुख के टावर में
हैं वहाँ कोई लोभ, लालच नहीं। वहाँ का खान पान, बोलना बड़ा रॉयल होता है और फिर सुख
भी हाइएस्ट। उन्हों की महिमा देखो कितनी है क्योंकि उन्होंने बहुत मेहनत की है। यह
एक नहीं है, सारी माला बनी हुई है। वास्तव में 9 रत्न गाये हुए हैं। ज़रूर उन्होंने
गुप्त मेहनत की होगी। बाप और वर्से की याद रहे तब ही विकर्म विनाश होंगे। परन्तु
माया याद करने नहीं देती। कभी काम, कभी क्रोध ..बहुत तूफानों में लाती है। अपनी
नब्ज देखनी है। नारद को भी कहा शक्ल देखो। तो वह अवस्था अभी है नहीं, बनानी है। बाबा
एम आबजेक्ट ज़रूर बतायेंगे। अन्दर में पुरूषार्थ करते रहो। आगे चलकर वह अवस्था
तुम्हारी होगी। अशरीरी रहने की प्रैक्टिस करनी है। अब जाना है वापिस। बाबा ने कहा
है मुझे याद करो। याद नहीं करेंगे तो सजायें भी बहुत खानी पड़ेगी और फिर पद भी कम।
यह हैं बहुत सूक्ष्म बातें। वो लोग साइंस में कितना डीप जाते हैं। क्या-क्या बनाते
रहते हैं। वह भी संस्कार तो चाहिए ना, जो फिर वहाँ भी जाकर यह चीज़ें बनायेंगे।
सिर्फ यह दुनिया बदली होनी है। यहाँ के संस्कार अनुसार ही जाकर जन्म लेंगे। जैसे
लड़ाई वालों की बुद्धि में लड़ाई के संस्कार रहते हैं, तो वह संस्कार ले जाते हैं।
लड़ने बिगर रह नहीं सकते। आफीसर के पास क्यू लगी रहती है। भरती करते समय जांच करते
हैं, कोई बीमारी तो नहीं है। ऑख - कान आदि सब ठीक हैं। लड़ाई में तो सब ठीक चाहिए।
यहाँ भी देखा जाता है कि कौन-कौन विजय माला का दाना बनेंगे। तुम्हें पुरूषार्थ कर
कर्मातीत अवस्था को पाना है। आत्मा अशरीरी आई है, अशरीरी बन जाना है। वहाँ शरीर का
कोई सम्बन्ध नहीं। अब अशरीरी बनना है। आत्मायें वहाँ से आती हैं, आकर शरीर में
प्रवेश करती हैं। ढेर की ढेर आत्मायें आती रहती हैं। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ
है। जो नई पवित्र आत्मायें आती हैं, उनको ज़रूर पहले सुख मिलना है इसलिए उनकी महिमा
होती है। बड़ा झाड़ है ना। कितने नामीग्रामी बड़े आदमी हैं। अपनी-अपनी ताकत अनुसार
बहुत सुख में होंगे। तो अब बच्चों को मेहनत करनी है, कर्मातीत अवस्था में पवित्र
होकर जाना है। अपनी चाल को देखना है किसको दु:ख तो नहीं देते हैं! बाप कितना मीठा
है। मोस्ट बील्वेड है ना। तो बच्चों को भी बनना है। यह तो तुम बच्चे जानते हो कि
बाप यहाँ है। मनुष्यों को थोड़ेही यह मालूम है कि बाप यहाँ स्थापना कर रहे हैं फिर
भी जन्म-जन्मान्तर उनको याद करते रहते हैं। शिव के मन्दिर में जाकर कितनी पूजा करते
हैं। कितनी ऊंची चोटी पर बद्रीनाथ आदि के मन्दिर में जाते हैं। कितने मेले लगते हैं
क्योंकि बहुत मीठा है ना। गाते भी हैं ऊंचे ते ऊंचा भगवान। बुद्धि में निराकार ही
याद आयेगा। निराकार तो है ही। फिर है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर। उनको भगवान नहीं कहेंगे।
अभी तुम बच्चे समझते हो कि हम ही सतोप्रधान देवता थे, जब हम विश्व के मालिक थे
तो इतने ढेर मनुष्य थे ही नहीं। सिर्फ भारत में ही इनका राज्य होगा। बाकी सब चले
जायेंगे-शान्तिधाम में। यह सब तुम देखते रहेंगे, इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए। वहाँ
तुमको पहाड़ी आदि पर जाने की दरकार नहीं। वहाँ कोई भी एक्सीडेंट आदि नहीं होते। वह
है ही वन्डर ऑफ स्वर्ग। जब वह स्वर्ग का वन्डर नहीं है तो माया के वन्डर्स बनते
हैं। यह बातें दुनिया वाले नहीं समझ सकते। अब तुम स्वर्ग में जाने के लिए पुरूषार्थ
कर रहे हो। वह है सुख का टावर। यह है दु:ख का टावर। लड़ाई में कितने मनुष्य रोज़
मरते हैं फिर जन्मते भी होंगे। गाया जाता है ईश्वर का अन्त नहीं पाया जाता। अब
ईश्वर तो है बिन्दी, उनका अन्त क्या पायेंगे। बाप कहते हैं इस रचना के आदि मध्य
अन्त को कोई नहीं जानते। साधू सन्त कोई रचता और रचना का अन्त नहीं पा सकते हैं।
तुमको बाप पढ़ाते हैं, इसको पढ़ाई कहा जाता है। सृष्टि चक्र के राज़ को तुम बच्चे
ही जानते जा रहे हो। वह तो कहते हैं हम नहीं जानते या तो लाखों वर्ष कह देते हैं।
अब बाप ने समझाया है यह जो कुछ तुम यहाँ देखते हो - ये वहाँ नहीं रहेगा। स्वर्ग
है टॉवर आफ सुख। यहाँ है दु:ख ही दु:ख। अचानक मौत ऐसा आयेगा जो सब खत्म हो जायेंगे।
मौत देखना मासी का घर नहीं है, इनको कहा जाता है दु:ख की चोटी। वह है सुख की चोटी।
बस तीसरा कोई अक्षर नहीं। तुम्हारे में भी बहुत हैं जो सुनते हैं परन्तु धारणा नहीं
होती है। धारणा तब हो जब बुद्धि गोल्डन एज हो। धारणा नहीं होती तो खुशी भी नहीं रहती।
एकदम हाइएस्ट पढ़ाई वाले भी हैं तो लोएस्ट भी हैं। पढ़ाई में फ़र्क तो है ना। उन्हों
को कितना भी बेहद का बाप समझाये परन्तु कभी भी नहीं समझेंगे। याद बिगर तो तुम
पवित्र कभी नहीं बन सकेंगे। बाप ही चुम्बक है। वह एकदम हाइएस्ट पावर वाला है। उन पर
कभी कट चढ़ नहीं सकती, बाकी सब पर कट चढ़ी हुई है, उनको उतार फिर सतोप्रधान बनना
है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई में ममत्व न रहे। साहूकारों को तो सारा
दिन धन दौलत ही सामने आता रहेगा। गरीबों को तो कुछ है नहीं परन्तु गरीब भी कुछ
समझदार हों जो धारणा कर सकें। याद बिगर किचड़ा कैसे निकलेगा। हम पवित्र कैसे बनेंगे।
तुम यहाँ आये हो ऊंच चोटी पर जाने। जानते हो बाप की शिक्षा पर चलने से हम ऊंच सुख
की चोटी पर जायेंगे। इसमें मेहनत है। बाप आते हैं टावर पर ले जाने। तो श्रीमत पर
चलना पड़े। पहले नम्बर में इन लक्ष्मी-नारायण का ही गायन है। वह एकदम टावर में होंगे।
फिर कुछ न कुछ कम। नई दुनिया को ही टावर आफ सुख कहा जाता है। वहाँ कोई मैली चीज़ नहीं
होती। ऐसी मिट्टी नहीं, ऐसी हवायें वहाँ लगती नहीं जो मकानों को खराब करें। स्वर्ग
की तो बहुत महिमा है। उसके लिए पुरूषार्थ करना है। लक्ष्मी-नारायण कितने ऊंच हैं,
उनको देखने से ही दिल खुश हो जाती है। आगे चलकर बहुतों को साक्षात्कार होते रहेंगे।
शुरू में कितने साक्षात्कार होते थे। कितना बाबा ने जलवा दिखाया। ताज आदि पहन-कर आते
थे। वह चीज़ें तो यहाँ मिल न सकें। बाबा तो जौहरी है। आगे जो 50 हज़ार में मणी लेते
थे वह अब 50 लाख में भी न मिले। तुम स्वर्ग के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो। वहाँ अथाह
सुख है। बाप इतना पढ़ाते हैं परन्तु बच्चों में रात दिन का फ़र्क पड़ जाता है। कहाँ
राजा रानी कहाँ दास दासियाँ। जो अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं वह छिपे नहीं रह
सकते हैं। झट कहेंगे बाबा हम फलानी जगह जाकर सर्विस करते हैं। सर्विस तो ढेर पड़ी
है। तुम्हें इस जंगल को मंगल (मन्दिर) बनाना है। रोटी टुक्कड़ खाया न खाया, यह भागे
सर्विस पर। धन्धे वाले लोग ऐसे करते हैं। अच्छा ग्राहक आ जाता है तो फिर खाया न खाया
भागे। धन कमाने का शौक रहता है। यह तो बेहद के बाप से अथाह धन मिलता है। भल थोड़ा
टाइम पड़ा है परन्तु कल शरीर छूट जाए, कोई भरोसा नहीं है। विनाश तो होना ही है।
तुम्हारे लिए तो मिरूआ मौत मलूका शिकार। तुम्हारी खुशी का पारावार नहीं। तुमको
बेअन्त खुशी होनी चाहिए। तुमको बहुतों का कल्याण करना है। पिछाड़ी को कर्मातीत
अवस्था होनी है। तुम याद करते-करते अशरीरी बन जायेंगे तब अनायास ही उड़ेंगे। यह बड़ी
मेहनत है। कोई तो बहुत सर्विस करते हैं। सारा दिन म्युजियम समझाने पर खड़े हैं। दिन
रात सर्विस में तत्पर हैं। सैकड़ों म्युजियम खुल जायेंगे। लाखों लोग तुम्हारे पास
आयेंगे, तुमको फुर्सत नहीं मिलेगी। सबसे जास्ती तुम्हारे दुकान निकलेंगे - इन
अविनाशी ज्ञान रत्नों के। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान की धारणा करने के लिए पहले अपनी बुद्धि गोल्डन एज की बनाओ। बाप
की याद के सिवाए और किसी भी चीज़ में ममत्व न रहे।
2) कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कर घर जाने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करो।
अपनी चाल भी देखो कि किसको दु:ख तो नहीं देते हैं। बाप समान मीठे बने हैं।
वरदान:-
सहनशक्ति की
धारणा द्वारा सत्यता को अपनाने वाले सदा के विजयी भव
दुनिया वाले कहते हैं कि
आजकल सच्चे लोगों का चलना ही मुश्किल है, झूठ बोलना ही पड़ेगा, कई ब्राह्मण आत्मायें
भी समझती हैं कि कहाँ-कहाँ चतुराई से तो चलना ही पड़ता है, लेकिन ब्रह्मा बाप को
देखा सत्यता व पवित्रता के लिए कितनी आपोजीशन हुई फिर भी घबराये नहीं। सत्यता के
लिए सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। सहन करना पड़ता है, झुकना पड़ता है, हार माननी
पड़ती है लेकिन वह हार नहीं है, सदा की विजय है।
स्लोगन:-
प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना - यह है दुआयें देना और दुआयें लेना।
अव्यक्ति साइलेन्स
द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
मेरा तो एक बाबा
और मेरा सब कुछ इस एक मेरे मे समा जाए। जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो उतना
समय मन एकाग्र हो जाए, इसको कहा जाता है मन वश में है। इस एकाग्रता अर्थात् एकरस
स्वीट साइलेन्स की स्थिति द्वारा सहज ही डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति होती
है।