11-03-07     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 10.04.91 "बापदादा"    मधुबन


दिलतख्तनशीन और विश्व तख्तनशीन बनने के लिए सुख दो और सुख लो
 


आज विश्व के मालिक, अपने बालक सो मालिक बच्चों को देख रहे हैं। सभी बच्चे इस समय भी स्व के मालिक हैं और अनेक जन्म भी विश्व के मालिक हैं। परमात्म-बालक मालिक बन जाते हैं। ब्राह्मण आत्माएं अर्थात् मालिक आत्माएं। इस समय सर्व कर्मे-न्द्रियों के मालिक हो, अधीन आत्माएं नहीं हो। अधिकारी अर्थात् मालिक हो। कर्मेन्द्रियों के वशीभूत नहीं हो, इसलिए बालक सो मालिक हो। बालकपन का भी ईश्वरीय नशा अनुभव करते हो और स्वराज्य के मालिकपन का नशा भी अनुभव करते हो। डबल नशा है। नशे की निशानी है अविनाशी रूहानी खुशी। सदा अपने को विश्व में खुशनसीब आत्माएं समझते हो? वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् श्रेष्ठ नसीब! खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते हो। साथ-साथ सदा खुशी के झूले में झूलते रहते हो। औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो। ऐसे अमूल्य हीरे तुल्य जीवन बनाने वाले हो। बन गये हैं या अभी बनना है? ब्राह्मण जीवन का अर्थ ही है - खुशी में रहना, खुशी की खुराक खाना और खुशी के झूले में रहना। ऐसे ब्राह्मण हो ना? सिवाए खुशी के और जीवन ही क्या है! जीवन ही खुशी है। खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। खुश रहना ही जीना है।

ज बापदादा सर्व बच्चों का पुण्य का खाता देख रहे थे। क्योंकि आप सभी पुण्य आत्माएं हो। पुण्य का खाता अनेक जन्मों के लिए जमा कर रहे हो। सारे दिन में पुण्य कितना जमा किया? यह स्वयं भी चेक कर सकते हो ना। एक है दान करना, दूसरा है पुण्य करना। दान से भी पुण्य का ज्यादा महत्व है। पुण्य कर्म निस्वार्थ सेवाभाव का कर्म है। पुण्य कर्म दिखावा नहीं होता है, लेकिन दिल से होता है। दान दिखावा भी होता है, दिल से भी होता है। पुण्य कर्म अर्थात् आवश्यकता के समय किसी आत्मा के सहयोगी बनना। अर्थात् काम में आना। पुण्य कर्म करने वाली आत्मा को अनेक आत्माओं के दिल की दुवाएं प्राप्त होती है। सिर्फ मुख से शुक्रिया वा थैंक्स नहीं कहते लेकिन दिल की दुवाएं गुप्त प्राप्ति जमा होती जाती हैं। पुण्य आत्मा, परमात्म दुवाएं, आत्माओं की दुवाएं - इस प्राप्त हुए प्रत्यक्षफल से भरपूर होते हैं। पुण्य आत्मा की वृत्ति, दृष्टि औरों को भी दुआयें अनुभव कराती हैं। पुण्य आत्मा के चेहरे पर सदा प्रसन्नता, सन्तुष्टता की झलक दिखाई देती है। पुण्य आत्मा सदा प्राप्त हुए फल के कारण अभिमान और अपमान से परे रहती है। क्योंकि वह भरपूर बादशाह है। अभिमान और अपमान से बेफिकर बादशाह है। पुण्य आत्मा पुण्य की शक्ति द्वारा स्वयं के हर संकल्प, हर समय की हलचल को, हर कर्म को सफल करने वाले होते हैं। पुण्य का खाता जमा होता है। जमा की निशानी है - व्यर्थ की समाप्ति। ऐसी पुण्य आत्मा विश्व के राज्य के तख्तनशीन बनती है। तो अपने खाते को चेक करो कि ऐसे पुण्य आत्मा कहाँ तक बने हैं? अगर पूछेंगे कि सभी पुण्य आत्मा हो? तो सब हाँ जी कहेंगे ना। है भी सभी पुण्य आत्मा। लेकिन नम्बरवार है, कि सब नम्बरवन है? नम्बरवार है ना। सतयुग-त्रेता के विश्व के तख्त पर कितने बैठेंगे? सभी इकट्ठे बैठेंगे? तो नम्बरवार है ना। नम्बर क्यों बनते हैं - कारण? एक विशेष बात बापदादा ने बच्चों की चेक की। और वही बात नम्बरवन बनने में रूकावट डालती है।

अभी तपस्या वर्ष में सभी का लक्ष्य सम्पूर्ण बनने का है या नम्बरवार बनने का है? सम्पूर्ण बनना है ना। आप सभी एक स्लोगन बोलते भी हो और लिखकर लगाते भी हो। वह है - सुख दो और सुख लो। दु:ख न दो, न दु:ख लो। यह स्लोगन पक्का है। तो रिजल्ट में क्या देखा? दु:ख न दो - इसमें तो मैजारिटी का अटेन्शन है। लेकिन आधा स्लोगन ठीक है। देने के लिए सोचते हैं, देना नहीं है। लेकिन लेने के लिए कहते हैं कि उसने दिया इसलिए हुआ। इसने यह कहा, इसने यह कहा, इसलिए यह हुआ। ऐसी जजमेन्ट देते हो ना। अपना ही वकील बन करके केस में यही बताते हो। तो आधा स्लोगन के ऊपर अटेन्शन ठीक है और भी होना चाहिए अन्डरलाइन। फिर भी आधे स्लोगन पर अटेन्शन है लेकिन और जो आधा स्लोगन है उस पर अटेन्शन नाम मात्र है। उसने दिया लेकिन आपने लिया क्यों? किसने कहा आप लो? बाप की श्रीमत है क्या कि दु:ख लो। झोली भरो दु:ख से। तो न दु:ख दो, न दु:ख लो। तभी पुण्य आत्मा बनेंगे, तपस्वी बनेंगे। तपस्वी अर्थात् परिवर्तन तो उनके दुख को भी आप सुख के रूप में स्वीकार करो। परिवर्तन करो तब कहेंगे तपस्वी। ग्लानि को प्रशंसा समझो। तब कहेंगे पुण्य आत्मा। जगत अम्बा माँ ने सदैव सभी बच्चों को यही पाठ पक्का कराया कि गाली देने वाले या दु:ख देने वाली आत्मा को भी अपने रहमदिल स्वरूप से, रहम की दृष्टि से देखो। ग्लानि की दृष्टि से नहीं। वह गाली देवे, आप फूल चढ़ाओ। तब कहेंगे पुण्य आत्मा। ग्लानि वाले को दिल से गले लगाओ। बाहर से गले नहीं लगाना। लेकिन मन से। तो पुण्य के खाते जमा होने में विघ्न रूप यही बात बनती है। मुझे दुख लेना भी नहीं है। देना तो है ही नहीं, लेकिन लेना भी नहीं है। जब अच्छी चीज नहीं है तो फिर किचड़ा लेकर जमा क्यों करते हो? जहाँ दु:ख लिया, किचड़ा जमा हुआ, तो किचड़े से क्या निकलेंगे? पाप के अंश रूपी जर्म्स। अभी मोटे पाप तो नहीं करते हो ना। अभी पाप का अंश रह गया है। लेकिन अंश भी नहीं होना चाहिए। कई बच्चे बड़ी मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं। रूहरिहान तो सभी करते हैं ना? एक स्लोगन तो सभी को पक्का हो गया है - ‘‘चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया...।'' जब आप नहीं चाहते तो और कौन चाहता? जो कहते हो, हो गया! और कोई आत्मा है! होना नहीं चाहिए, लेकिन होता है - यह कौन बोलता है? और कोई आत्मा बोलती है, कि आप बोलते हो? तो तपस्या इन बातों के कारण सिद्ध नहीं कर सकेंगे। जो होना नहीं चाहिए, जो करने नहीं चाहते वह न होना ही, न करना ही पुण्य आत्मा की निशानी है। बापदादा के पास रोज बच्चों की अनेक ऐसी कहानियाँ आती हैं। बोलने में इतनी इन्टरेस्ट वाली कहानियाँ करके बताते जो सुनते रहो। कोई लम्बी कहानी बताने में आदती हैं, कोई छोटी बताते। लेकिन कहानियाँ बहुत बताते हैं। आज इस वर्ष के मिलन की अन्तिम टुब्बी है ना। सभी टुब्बी लगाने आये हो ना। जबकि भक्ति मार्ग में भी डुबकी लगाते हैं तो कोई न कोई संकल्प जरूर करते हैं, चाहे कुछ स्वाहा करते हैं, चाहे कुछ स्वार्थ रखते हैं। दोनों से संकल्प करते हैं। तो तपस्या वर्ष में यह संकल्प करो कि सारा दिन संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्म द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य करेंगे, और पुण्य की निशानी बताई कि पुण्य का प्रत्यक्षफल है हर आत्मा की दुआएं। हर संकल्प में पुण्य जमा हो। बोल में दुआएं जमा हो। सम्बन्ध-सम्पर्क से दिल से सहयोग की शुक्रिया निकले - इसको कहते हैं तपस्या। ऐसी तपस्या विश्व परिवर्तन का आधार बनेगी। ऐसी रिजल्ट पर प्राइज मिलेगी। फिर कहानी नहीं सुनाना कि ऐसा हो गया..! वैसे पहला नम्बर प्राइज़ सभी टीचर्स को लेना चाहिए और साथ में मधुबन निवासियों को लेना चाहिए। क्योंकि मधुबन की लहर, निमित्त टीचर्स की लहर प्रवृत्ति वालों तक, गॉडली स्टूडेन्ट्स तक सहज पहुँची है। तो आप सब नम्बर आगे तो हो ही जायेंगे। अब देखेंगे कि किस-किस के नाम प्राइज़ में आते हैं? टीचर्स के आते या मधुबन वालों के या गॉडली स्टूडेन्ट्स के आते हैं? डबल विदेशी भी तीव्र पुरूषार्थ कर रहे हैं। बापदादा के पास प्राइज बहुत हैं, जितना चाहो ले सकते हो। प्राइज की कमी नहीं हैं। भण्डारे भरपूर हैं। अच्छा।

सभी मेले में पहुँच गये हैं। मेला अच्छा लगा कि तकलीफ हुई? बारिश ने भी स्वागत किया, प्रकृति का भी आपसे प्यार है। घब-राये तो नहीं ना? ब्रह्मा भोजन तो अच्छा मिला ना। 63 जन्म तो धक्के खाये हैं। अभी तो और ही ठिकाना मिला ना। तीन पैर पृथ्वी तो मिली ना। इतना बड़ा हाल जो बनाया है तो हाल की भी शोभा बढ़ाई ना। हाल को सफल किया ना। किसी को भी तकलीफ तो नहीं हुई ना। लेकिन ऐसे नहीं मेला करते रहना। रचना के साथ साधन भी साथ ही आते हैं। अच्छा।

सर्व बालक सो मालिक श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा हर कदम में पुण्य का खाता जमा करने वाली पुण्य आत्माओं को, सदा दिलत-ख्तनशीन और विश्व के तख्त अधिकारी विशेष आत्माओं को सदा सुख देने और सुख लेने वाले मास्टर सुख के सागर आत्माओं को, सदा खुशी में रहने वाले और खुशी देने वाले मास्टर दाता बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से :- बापदादा ने देखा कि सभी महारथियों ने दिल से सबको शक्तिशाली बनाने की सेवा बहुत अच्छी की। इसके लिए शुक्रिया क्या करें लेकिन खाता बहुत जमा हुआ। बहुत बड़ा खाता जमा हुआ। बापदादा महावीर बच्चों की हिम्मत और उमंग-उल्लास देख पद्मगुणा से भी ज्यादा हर्षित होते हैं। हिम्मत रखी है, संगठन सदा स्नेह के सूत्र में रहा है इसलिए इसकी सफलता है। संगठन मजबूत है ना! छोटी माला मजबूत है। कंगन तो बना है। माला तो नहीं बने, कंगन तो है ना। इसलिए छोटी माला भी पूजी जाती है। बड़ी अच्छी तैयार हो रही है, वह भी हो जायेगी, होनी ही है। सुनाया था ना - बड़ी माला दाने तैयार है लेकिन दाने से दाना मिलने में थोड़ी सी मार्जिन है। लेकिन छोटी माला अच्छी तैयार है। इसी माला के कारण ही सफलता सहज है और सफलता सदा माला के मणकों के गले में पिरोई हुई है। विजयी का तिलक लगा हुआ है। बापदादा खुश है, पद्मगुणा मुबारक है। निमित्त तो आप हैं ना। बाप तो करावनहार है। करने वाला कौन है? करने के लिए निमित्त आप हो, बाप तो बैकबोन है। इसलिए बहुत अच्छी प्रीति की रीति भी निभाई और पालना की रीति भी अच्छी निभाई। अच्छा।

वरदान:-
एक पास शब्द की स्मृति द्वारा किसी भी पेपर में फुल पास होने वाले पास विद आनर भव

किसी भी पेपर में फुल पास होने के लिए उस पेपर के क्वेश्चन के विस्तार में नहीं जाओ, ऐसा नहीं सोचो कि यह क्यों आया, कैसे आया, किसने किया? इसके बजाए पास होने का सोचकर पेपर को पेपर समझकर पास कर लो। सिर्फ एक पास शब्द स्मृति में रखो कि हमें पास होना है, पास करना है और बाप के पास रहना है तो पास विद आनर बन जायेंगे।

स्लोगन:-
स्वयं को परमात्म प्यार के पीछे कुर्बान करने वाले ही सफलतामूर्त बनते हैं।