07-02-10 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 18-06-71 मधुबन
बुद्धि की अलौकिक ड्रिल
आवाज़ से परे रहना अच्छा लगता है वा आवाज़ में रहना अच्छा लगता है? असली देश वा असली स्वरूप में आवाज़ है? जब अपनी असली स्थिति में स्थित हो जाते हो तो आवाज़ से परे स्थिति अच्छी लगती है ना। ऐसी प्रैक्टिस हरेक कर रहे हो? जब चाहें, जैसे चाहें वैसे ही स्वरूप में स्थित हो जायें। जैसे योद्धे जो युद्ध के मैदान में रहते हैं उन्हों को जब भी और जैसा आर्डर मिलता है, वैसे करते ही जाते हैं। ऐसे ही रूहानी वारियर्स को भी जब और जैसा डायरेक्शन मिले वैसे ही अपनी स्थिति को स्थित कर सकते हैं। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल भी हो और मास्टर सर्वशक्तिमान भी हो। तो दोनों ही होने कारण एक सेकेण्ड से भी कम समय में जैसी स्थिति में स्थित होना चाहें उस स्थिति में टिक जायें, ऐसे रूहानी वारियर्स हो? अभी-अभी कहा जाये परधाम निवासी बन जाओ, तो ऐसी प्रैक्टिस है जो कहते ही इस देह और देह के देश को भूल अशरीरी परमधाम निवासी बन जाओ? अभी- अभी परमधाम निवासी से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाओ, अभी-अभी सेवा के प्रति आवाज़ में आये, सेवा करते हुए भी अपने स्वरूप की स्मृति रहे - ऐसे अभ्यासी बने हो? ऐसा अभ्यास हुआ है? वा जब परमधाम निवासी बनने चाहें तो परमधाम निवासी के बजाय बार-बार आवाज़ में आ जायें - ऐसा अभ्यास तो नहीं करते हो? अपनी बुद्धि को जहाँ चाहो वहाँ एक सेकेण्ड से भी कम समय में लगा सकते हो? ऐसा अभ्यास हुआ है? मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी अपने को समझते हो? जब आलमाइटी अथॉरिटी भी हो, तो क्या अपनी बुद्धि की लगन को अथॉरिटी से जहाँ चाहे वहाँ नहीं लगा सकते? अथॉरिटी के आगे यह अभ्यास मुश्किल है वा सहज है? जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो ना। अभी हाथ को ऊपर वा नीचे करना चाहो तो कर सकते हो ना। तो जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों का मालिक बन जब चाहो कार्य में लगा सकते हो, वैसे ही संकल्प को वा बुद्धि को जहाँ लगाने चाहो वहाँ लगा सकते हो इसको ही ईश्वरीय अथॉरिटी कहा जाता है, जो बुद्धि की लगन भी ऐसे ही सहज जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो। जैसे स्थूल हाथ-पांव को बिल्कुल सहज रीति जहाँ चाहो वहाँ चलाते हैं वा कर्म में लगाते हैं। ऐसे अभ्यासी को ही मास्टर सर्वशक्तिमान वा मास्टर नॉलेजफुल कहा जाता है। अगर यह अभ्यासी नहीं हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान वा नॉलेजफुल नहीं कह सकते। नॉलेजफुल का अर्थ ही है - जिसको फुल नॉलेज हो कि इस समय क्या करना है, क्या नहीं करना है, इससे क्या लाभ है और न करने से क्या हानि है। यह नॉलेज रखने वाले ही नॉलेजफुल हैं और साथ-साथ मास्टर सर्वशक्तिमान होने कारण सर्व शक्तियों के आधार से यह अभ्यास सहज और निरन्तर बन ही जाता है। लास्ट पढ़ाई का कौनसा पाठ है और फर्स्ट पाठ कौनसा है? फर्स्ट पाठ और लास्ट पाठ यही अभ्यास है। जैसे बच्चे का लौकिक जन्म होता है तो पहले-पहले उनको एक शब्द याद दिलाया जाता है वा सिखलाया जाता है ना। यहाँ भी अलौकिक जन्म लेते पहला शब्द क्या सीखा? बाप को याद करो। तो जन्म का पहला शब्द लौकिक का भी, अलौकिक का भी वही याद रखना है। यह मुश्किल हो सकता है क्या? अपने आपको ड्रिल करने का अभ्यास नहीं डालते हो। यह है बुद्धि की ड्रिल। ड्रिल के अभ्यासी जो होते हैं तो पहले-पहले दर्द भी बहुत महसूस होता है और मुश्किल लगता है लेकिन जो अभ्यासी बन जाते हैं वह फिर ड्रिल करने के सिवाय रह नहीं सकते। तो यह भी बुद्धि की ड्रिल कराने का अभ्यास कम होने के कारण पहले मुश्किल लगता है। फिर माथा भारी रहने का वा कोई न कोई विघ्न सामने बन आने का अनुभव होता रहता है। तो ऐसे अभ्यासी बनना ही है। इसके सिवाय राज्य-भाग्य की प्राप्ति होना मुश्किल है। जिन्हों को यह अभ्यास मुश्किल लगता है, तो प्राप्ति भी मुश्किल है। इसलिए इस मुख्य अभ्यास को सहज और निरन्तर बनाओ। ऐसे अभ्यासी अनेक आत्माओं को साक्षात्कार कराने वाले साक्षात् बापदादा दिखाई दे। जैसे वाणी में आना कितना सहज है। वैसे यह वाणी से परे जाना भी इतना सहज होना है। अच्छा।
दुसरी मुरली - 25-06-71
सेवा और तपस्या की समानता
अपने को वृक्षपति की सन्तान समझते हो? वृक्ष की निशानी भक्ति-मार्ग में भी चली आती है। जब तपस्वी तपस्या करते हैं तो वृक्ष के नीचे तपस्या करते हैं। इसका रहस्य क्या है? वृक्ष के नीचे तपस्या क्यों करते हैं? उसका कारण क्या है, यह शुरू क्यों हुआ, इसका बेहद का रहस्य क्या है इस सृष्टि रूपी वृक्ष में भी आप लोगों का निवास स्थान कहां है? वृक्ष के नीचे जड़ में बैठे हो ना। चित्र जो अभी ज्ञान सहित बनाये जाते हैं वही फिर यादगार भक्ति-मार्ग में चलता रहता है। वृक्ष के चित्र में दूर से क्या दिखाई देता है? तपस्वी तपस्या कर रहे हैं, जैसे वृक्ष के नीचे तपस्वी बैठे हैं। वृक्ष के नीचे बैठने से आटोमेटिकली वृक्ष की सारी नॉलेज बुद्धि में आ जाती है। वृक्ष के नीचे बैठेंगे तो न चाहते हुए भी फल, फूल, पत्तों आदि में अटेन्शन जाता ही है। तो यह भी जब कल्पवृक्ष के नीचे फाउन्डेशन में बैठते हो, तो सारे वृक्ष का नॉलेज बुद्धि में आटोमेटिकली रहता है। जैसे बीज में वृक्ष की सारी नॉलेज रहती है, इसी रीति अपने को इस कल्पवृक्ष का फाउन्डेशन अथवा वृक्ष के नीचे जड़ में अपने को समझते हो तो सारे वृक्ष की नॉलेज आटोमेटिकली बुद्धि में आ जाती है। यह जो आपकी स्टेज है, उसका यादगार भक्ति-मार्ग में चलता आया है। यह है प्रैक्टिकल, तपस्या कर रहे हो। भक्ति-मार्ग में फिर स्थूल वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करते हैं। देखो, शुरू-शुरू में आपको नशा रहता था कि हम वृक्ष के ऊपर बैठे हैं। सारा वृक्ष नीचे है, हम ऊपर हैं। ऊपर भी ठहरे ना। अगर वृक्ष को उलटा कर देंगे तो ऊपर हो जायेंगे। तो जैसे पहले नशा बहुत रहता था कि हम इस वृक्ष के ऊपर बैठकर सारे वृक्ष को देख रहे हैं, ऐसे ही अभी भी यह भिन्न-भिन्न प्रकार से तपस्या का नशा रहता है? पहले की खुमारी इस खुमारी से ज्यादा थी वा अभी ज्यादा है? वह सिर्फ तपस्या का रूप था। अभी तपस्या और सेवा साथ-साथ हो गई है। वह नशा सिर्फ तपस्या का ही रहता था। नीचे उतरने का कोई कारण नहीं था। और अभी तपस्या और सेवा - दोनों ही साथ-साथ चलती हैं। दोनों कार्य चल रहे हैं। तो बीच-बीच में अपने आपको नशा चढ़ाने का खास अटेन्शन रखना चहिए। इसको ही बैटरी चार्ज कहते हैं। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे सच-सच वृक्ष सारा इमर्ज रूप में है और हम साक्षी होकर इस वृक्ष को देख रहे हैं। यह भी नशा बहुत खुशी दिलाता है, शक्ति दिलाता है। इसलिए वृक्षपति और वृक्ष का गायन बहुत है। तो ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा करते हुए भी तपस्या का बल अपने में आपेही भरते रहना है। जिससे तपस्या और सेवा-दोनों कम्बाइन्ड और एक साथ रहेंगे। ऐसे नहीं कि सेवा में आ गये तो तपस्या भूल गये। नहीं, दोनों साथ-साथ रहें। कम्बाइन्ड रूप है ना। तो इसकी बीच-बीच में चेकिंग करनी पड़ेगी। जब तक चेकर नहीं बने हो तब तक मेकर नहीं बन सकते। वर्ल्ड-मेकर वा पीस-मेकर - यह जो गायन है वह तब तक नहीं बन सकते जब तक चेकर नहीं बने हो। अपने ऊपर चेकिंग बहुत चाहिए। दूसरा कितना भी चेक करे तो भी इतना नहीं कर सकते, लेकिन अपने आप को चेक करने से ही अपनी उन्नति कर सकते हो। अपने आपको चेक करना है। चेकिंग करने में समय नहीं चाहिए। जब नेचरल अभ्यास पड़ जाता है तो समय की भी आवश्यकता नहीं, आटोमेटिकली चलता रहता है। फिर चेकिंग करने में एक सेकेण्ड भी नहीं लगता। अगर अपने आप को चेक करो तो उसमें कितना समय लगेगा? एक सेकेण्ड तो कैसे भी बिज़ी होते भी निकल सकते हो। सिर्फ अभ्यास की आवश्यकता है। चेकिंग मास्टर बनना है। सभी में मास्टर बनना है। जैसे मास्टर सर्वशक्तिमान, मास्टर नॉलेजफुल हो वैसे चेकिंग मास्टर भी बनना है। अच्छा।
ड्रामा अनुसार सभी ठीक तो चल ही रहा है। लेकिन ठीक चलते हुए भी चेकिंग करनी पड़े। कल्याणकारी युग है - यह भी जानते हो, फिर भी हरेक को अपने और दूसरे के कल्याण का प्लैन सोचना भी पड़ता है। ऐसे कुछ नये- नये प्लैन निकालो, जिसमें अवस्थाएं कुछ जम्प दें। सभी चल तो रहे हैं और चलते रहेंगे। लेकिन बीच-बीच में एक्स्ट्रा फोर्स प्लैनिंग वा सहयोग का मिलने से जम्प आ सकता है। जैसे राकेट को भी अग्नि का फोर्स दिया जाता है तब ही उड़ जाता है। ऐसे ही लाइट और माइट का फोर्स मिले, जिससे जम्प लगा सकें। इसके लिए एक्स्ट्रा फोर्स के सहयोग से हमको शक्ति की प्राप्ति का अनुभव होता है। यह भी जरूरी है। एक तो मनन शक्ति की बहुत कमजोरी है। इसलिए मैजारिटी की यही रिपोर्ट है कि व्यर्थ संकल्पों को कन्ट्रोल कैसे करें? इस मुख्य कमजोरी को कैसे-चेक अप करके इसको खत्म करें, इसके लिए प्लैन सोचना है। कमजोरियों का तो मालूम पड़ ही जाता है। उस पर समझानी मिलने से अन्दर दब तो जाती हैं लेकिन संस्कारों को खत्म नहीं कर सकते। इसलिए थोड़े समय के बाद मैजारिटी की फिर यही रिपोर्ट होती है। भट्ठी आदि से भी एक्स्ट्रा फोर्स मिलता है, कुछ-न-कुछ परिवर्तन होता है। लेकिन यह जो फोर्स यहां से ले जाते हैं वह सदाकाल रहे, इसके लिए प्लैन सोचो। बहुतों की कम्पलेन्ट रहती है कि शक्ति नहीं है। नॉलेज है, लेकिन नॉलेज को जो लाइट और माइट कहा जाता है, तो नॉलेज द्वारा अपने में शक्ति कैसे भरें, वह तरीका नहीं आता है। जैसे अपने पास माचिस हो लेकिन माचिस से आग निकालने का तरीका न आने के कारण कार्य सिद्ध नहीं कर सकते हैं। तो नॉलेज सभी को है, लेकिन नॉलेज से कोई तो लाइट और माइट का अनुभव करते हैं और कोई सिर्फ नॉलेज को समझ वर्णन करते हैं। नॉलेज द्वारा अपने में माइट कैसे लायें - वह भिन्न-भिन्न युक्तियों द्वारा बल भरना है, जिससे जम्प खायें। अच्छा।
वरदान:- लोहे समान आत्मा को पारस बनाने वाले मास्टर पारसनाथ भव
आप सब पारसनाथ बाप के बच्चे मास्टर पारसनाथ हो - तो कैसी भी लोहे समान आत्मा हो लेकिन आप के संग से लोहा भी पारस बन जाए। यह लोहा है-ऐसा कभी नहीं सोचना। पारस का काम ही है लोहे को पारस बनाना। यही लक्ष्य और लक्षण सदा स्मृति में रख हर संकल्प, हर कर्म करना, तब अनुभव होगा कि मुझ आत्मा के लाइट की किरणें अनेक आत्माओं को गोल्डन बनाने की शक्ति दे रही हैं।
स्लोगन:- हर कार्य साहस से करो तो सर्व का सम्मान प्राप्त होगा।