ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने इस गीत का अर्थ समझा। बाप आये हैं भक्ति रूपी रात का
विनाश कर दिन स्थापन करने क्योंकि बाप को ही बुलाते हैं - हे पतित-पावन आओ। समझते
हैं कोई समय हम पावन थे, अब पतित हैं। चीज़ वह माँगी जाती है जो पहले थी अब नहीं
है। तुम बच्चे जानते हो पवित्र देवी देवताओं की राजधानी थी। ज्ञान-ज्ञानेश्वरी ही
फिर राज-राजेश्वरी बनेगी। जैसे जगत अम्बा, लक्ष्मी अलग-अलग हैं। लक्ष्मी को कभी जगत
अम्बा नहीं कहेंगे। लक्ष्मी को उनके दो बच्चे ही मातेश्वरी कहेंगे। यहाँ जगत अम्बा
को सब भारतवासी जो भी रिलीजस माइन्डेड हैं, सब माँ कहते हैं। देवी-देवताओं के
मन्दिर में जाकर उनकी भक्ति करते हैं। अभी तुमको मालूम हुआ है कि हमने बहुत भक्ति
की है। दान-पुण्य आदि जितना तुमने किया है उतना और कोई ने नहीं किया होगा। तुमने
सबसे जास्ती भक्ति की है। अब तुमने अपना यादगार जीते जी देखा है। आदि देव और आदि
देवी हैं, जिसको जगत अम्बा कहते हैं। अभी तुम जानते हो जगत अम्बा धनवान बनती है।
तुम उनके बच्चे हो ना। अब तुम पढ़ रहे हो। वह है गॉडेज़ आफ नॉलेज। उस नॉलेज से कभी
राजा-रानी नहीं बनते हैं। तुम जानते हो हम आत्मायें शिवबाबा के बच्चे हैं और यह है
प्रजापिता ब्रह्मा। शिवबाबा इन द्वारा नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। गाया भी
हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह अच्छी रीति समझकर धारण करना है। कहते हैं ना
शेरनी के दूध लिए सोने का बर्तन चाहिए। यह ज्ञान भी है सर्वशक्तिमान् परमपिता
परमात्मा का। उसके लिए भी बुद्धि रूपी बर्तन सोने का चाहिए। नई दुनिया में आत्मा और
शरीर दोनों सोने के बनते हैं। अभी तुम्हारी आत्मा पत्थर का बर्तन है। तो शरीर भी ऐसा
ही है। भारत में ही श्याम और सुन्दर, पतित और पावन कहते हैं। दूसरे कोई खण्डों में
ऐसे नहीं कहेंगे कि हम पतितों को आकर पावन बनाओ। कहते हैं दु:ख से छुड़ाए, शान्ति
में ले जाओ। विवेक भी कहता है कि हम भारतवासी पावन थे, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य
था। भल कितने भी बड़े आदमी हैं। वह भी गुरू के पाँव में गिरते हैं क्योंकि गुरू ने
संन्यास धारण किया हुआ है। 5 विकारों को छोड़ा है तो विकारी निर्विकारियों को मान
देते हैं। पवित्रता का ही मान है। द्वापर से राजा-रानी और वजीर होते हैं। सतयुग में
राजा-रानी को वजीर होते नहीं। जब पतित राजा-रानी होते हैं तो एक वजीर रखते हैं, अब
तो बहुत पतित हो गये हैं तो सैकड़ों वजीर रखते हैं। यह है ड्रामा की भावी। बाबा
बतलाते हैं देखो कैसे ड्रामा की भावी बनी हुई है। तो पहले जरूर भारत ही था फिर दूसरे
धर्म वाले आये। बाप समझाते हैं इस समय तुम हो ज्ञान ज्ञानेश्वरी। जगत अम्बा है
ब्रह्मा की बेटी, गॉडेज ऑफ नॉलेज। जगत अम्बा ज्ञानवान है, जो दूसरे जन्म में धन
लक्ष्मी बनती है। तुमको अभी बाप ज्ञान सिखा रहे हैं। तुम जानते हो हम वहाँ धनवान
बनेंगे। दुनिया में यह किसको पता नहीं है कि यह लक्ष्मी-नारायण धनवान कैसे बनें।
लक्ष्मी-नारायण वही ब्रह्मा सरस्वती हैं। ब्रह्मा जगत पिता है तो जरूर ब्राह्मण
ब्राह्मणियाँ बहुत होंगे। तुम कितने ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ हो। तुम जानते हो हम इस
ज्ञान से भविष्य में ऐसे धनवान बनेंगे। एकदम गॉडेज आफ वेल्थ, इनसे अधिक वेल्थ किसके
पास हो नहीं सकती इसलिए गाया जाता है - नॉलेज इज़ सोर्स आफ इनकम, जज, बैरिस्टर आदि
नॉलेज से बनते हैं ना। तो यह इनकम है ना। कोई-कोई डॉक्टर को एक-एक केस का लाख रूपया
मिलता है। कोई राजा-रानी वा प्रिन्स बीमार हुआ, डॉक्टर ने बीमारी से छुड़ाया तो खुशी
में आकर बड़ा-बड़ा मकान बनाने के लिए पैसा दे देते हैं। कितनी इनकम हुई। तो पढ़ाई
से ही पद पाते हैं। यह तुम्हारी पढ़ाई भी है, धन्धा भी है।
तुम मीठे बच्चे अब सौदा करने आये हो। कखपन दे लाख कमाते हो। बाप अविनाशी सर्जन
भी है, सदैव हेल्दी बनने के लिए बाबा योग सिखा रहे हैं। बाबा कहते हैं मैं गैरन्टी
करता हूँ - तुम एवरहेल्दी 21 जन्मों के लिए बनेंगे। तो ऐसे सर्जन की दवाई अर्थात्
श्रीमत पर क्यों नहीं चलना चाहिए। बाप की मत मानो। मुझे याद करो। कहते हैं ना
सिमर-सिमर सुख पाओ, कलह क्लेष मिटे सब तन के। भक्ति मार्ग में कोई कलह-क्लेष मिटता
नहीं है। बहुत संन्यासी लोग भी बीमारी में अर्धांग में पड़े रहते हैं। जैसे पागल हो
जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो हम एवरहेल्दी बनेंगे। वहाँ
आयु एवरेज 125-150 वर्ष रहती है। ऐसे नहीं कि द्वापर में एकदम 35 वर्ष की हो जाती
है। नहीं, पहले 100-125 होगी। फिर 70-80 की होगी, अब तो 35-40 वर्ष तक आकर पहुँची
है। छोटेपन में ही मर पड़ते हैं क्योंकि भोगी हैं। तुम जानते हो - अभी भोगी से योगी
बन रहे हैं। वहाँ आयु इतनी बड़ी होगी जो अकाले मृत्यु कब होगी नहीं। बाप स्मृति
दिलाते हैं, तुमको कितना राज्य भाग्य था। अब रावण ने लूट लिया। वहाँ यह मन्दिर आदि
होते नहीं। तुम्हारा स्लोगन भी है - भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म जिंदाबाद,
बाकी सब मुर्दाबाद अर्थात् अनेक धर्म विनाश। वहाँ सिर्फ एक ही भारत खण्ड था। एक
खण्ड में मनुष्य भी जरूर थोड़े होंगे। तुम लिख सकते हो थोड़े समय में भारत की आबादी
9 लाख होगी और सब खत्म हो जायेंगे। एक धर्म की स्थापना अब हो रही है। न्यु डीटी
राज्य में एक ही भाषा, एक ही रसम-रिवाज होगा। यहाँ हर एक की रसम अपनी। वहाँ वन
राज्य, वन कम्युनिटी थी। तुम ऐसे-ऐसे स्लोगन अखबार में भी डाल सकते हो। बाबा से राय
लेते हैं कि पैसा खर्च कर अखबार में डालें? बाबा कहेंगे भल डालो। मनुष्यों को मालूम
पड़े कि क्या हो रहा है। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। वन
रिलीजन, वन कम्युनिटी थी, सूर्यवंशी देवी-देवताओं की। इस महाभारत लड़ाई के बाद
स्वर्ग के गेट खुले थे। अखबार में डालो नाम बी.के. का हो। परन्तु बी.के. तब कहला
सकते हैं जब पवित्र रहें। बाप को बुलाया है। अब बाप आये हैं तो अब बाप से प्रतिज्ञा
करो। भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाये, यज्ञ, तप, दान आदि किया। पहले एक शिव की
भक्ति करते थे फिर देवताओं की, अभी तो व्यभिचारी बन पड़े हैं। अब बाप तुमको सब दु:खों
से छुड़ाते हैं। बाप तुम बच्चों को नॉलेज दे कितना ऊंच, मनुष्य से देवता बनाते हैं।
सतयुग में तुम्हारे पास सब कुछ सोने का होगा। बाप तुमको श्रीमत दे स्वर्ग का मालिक
बनाते हैं। तुम फिर श्रीमत पर क्यों नहीं चलते हो। बाप जमघटों की फाँसी से छुड़ाते
हैं, गर्भजेल की सजाओं से छुड़ाते हैं। तुम स्वर्ग में गर्भ महल में रहते हो। यहाँ
है जेल क्योंकि मनुष्य पाप कर्म करते हैं। वहाँ 5 विकार ही नहीं फिर भी राजा-रानी
प्रजा के मर्तबे में तो फर्क होगा ना। पैसा कमाने के लिए मनुष्य मेहनत तो करते हैं
ना। वहाँ वजीर नहीं क्योंकि तुम यहाँ की प्रालब्ध पाते हो। अब बाप कहते हैं बच्चे
तुम श्रीमत पर चलो। मैं दूरदेश से आया हूँ - पतित शरीर में, पतित राज्य में। यह है
रावण का देश, तुम बच्चों को आकर वर्सा देता हूँ। ऐसे बाप की आज्ञा न मानना, वह तो
कपूत ठहरा। विकार के पीछे इतना थोड़ेही हैरान होना चाहिए। बाबा कहते हैं - यह विकार
दु:ख देने वाले हैं। पतितों को पावन बनाना - यह मेरा काम है। कितना प्यार से समझाते
हैं - खाओ, पियो सुखी रहो, यह याद रखो हम शिवबाबा के पास आये हैं, उनसे हमारी पालना
होती है। अगर मित्र-सम्बन्धियों आदि की चीज़ पहनेंगे तो वह याद आयेंगे, पद भ्रष्ट
हो जायेगा। यहाँ शिवबाबा के भण्डारे से, पतित-पावन बाप के यज्ञ से परवरिश होनी है,
न कि पतित घर से। और किसी की दी हुई चीज़ होगी तो वह याद आयेगा। उसके लिए गायन है
अन्तकाल जो स्त्री सिमरे... कितनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में रहते
बुद्धि से समझना है कि यह सब खत्म हुए पड़े हैं। हमारा तो एक बाबा है। अब बाप की कभी
माला सिमरी जाती है क्या? मैं तुम बच्चों को स्मृति दिलाता हूँ कि मुझे याद करो,
तुमको बहुत बल मिलेगा, विकर्म विनाश होंगे, बलवान बन जायेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण
बलवान हैं ना। जो बलवान होते हैं वह राजाई पाते हैं। बाबा अपना मिसाल बताते हैं।
मैंने 12 गुरू किये, गुरू ने कहा सुबह को उठकर 1000 मालायें जपो। हम कहते थे कोई और
टाइम बताओ। सारा दिन धन्धा-धोरी से थक जाते हैं। जैसे तुम भी कहते हो - बाबा सवेरे
उठ नहीं सकते। बाप कहते हैं - ऐसे मत कहो हम पवित्र नहीं रह सकते, याद में नहीं रह
सकते। याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश कैसे होंगे। तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान
जरूर बनना है। यह अन्तिम जन्म है जरूर पवित्र बनो। बाप की श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो
क्या पद पायेंगे। आधाकल्प से मुझे बुलाया। अब मैं कहता हूँ पावन बनकर मुझे याद करो।
औरों को भी रास्ता बताते रहो, मैसेज देते रहो। बाप कहते हैं मन्मनाभव। मौत सामने खड़ा
है। तुमको ही मैसेन्जर अथवा पैगम्बर कहा जाता है। तुम ब्राह्मणों के सिवाए कोई
मैसेन्जर बन नहीं सकता। पतित-पावन शिवबाबा आते हैं। किसमें प्रवेश करते हैं, यह भी
लिखा हुआ है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह समझते थोड़ेही है। सूक्ष्मवतन में
प्रजापिता ब्रह्मा होगा क्या? यहाँ ही पतित से पावन बनते हैं। साइलेन्स बल से
स्थापना होती है, साइंस बल से विनाश। सभी कहते हैं शान्ति कैसे मिले। अब आत्मा तो
है ही शान्त स्वरूप। यहाँ आये हैं पार्ट बजाने, यहाँ शान्त कैसे रहेंगे। वह शान्ति
शान्तिधाम में मिलेगी, यहाँ तो दु:ख मिलेगा। सतयुग में सुख-शान्ति दोनों होंगे।
अब तुम बच्चे यहाँ सम्मुख सुनते हो। बाप कहते हैं - पतित मेरे साथ कब न मिलें।
नहीं तो ले आने वाली ब्राह्मणी पर पाप चढ़ेगा। (इन्द्र सभा की परी का मिसाल) वास्तव
में इन्द्र सभा यह है। यह ज्ञान सब्ज परियाँ, पुखराज परियाँ हैं। तो और ही धक्का
लगेगा। बाबा सख्त मना करते हैं। कोई पतित को ले नहीं आना है। आगे बाबा हमेशा पूछते
थे कि प्रतिज्ञा किया है। कहते थे पुरुषार्थ कर रहा हूँ। जब पक्का निश्चय हो तब मिले।
अगर मिलकर विकार में गया तो सौ गुना दण्ड पड़ेगा। बाप समझेगा शायद इनकी तकदीर में
नहीं है। बाप तो तदबीर बताते हैं तकदीर बनाने के लिए। फिर ऐसे बाप का कहना न माने
तो क्या गति होगी! बाप को तरस पड़ता है, बाप कहते हैं - अपने को करेक्ट करते जाओ।
ऐसे न हो चलते-चलते मर जाओ। डर रहना चाहिए, हम बाप को याद कर पापों का बोझा उतारें।
अच्छा!
सबकी सद्गति करने वाला एक ही शिवबाबा है, उनका तो फोटो निकाल नहीं सकते उनको
दिव्य दृष्टि से ही देख सकते हैं। बाकी जाना जा सकता है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसी अवस्था बनानी है जो अन्तकाल में एक बाप की याद आये। दूसरा कोई
याद न आये, बुद्धि में रहे यह सब विनाश होने वाला है।
2) अपने आप को करेक्ट करना है, इस अन्तिम जन्म में पवित्र जरूर बनना है। डर रखना
है कि हमसे कोई पाप कर्म न हो जाए।