ओम् शान्ति।
बच्चों को ओम् शान्ति के अर्थ का तो पता है कि मैं आत्मा हूँ और मुझ आत्मा का
स्वधर्म है शान्ति। मैं आत्मा शान्त स्वरूप, शान्तिधाम की रहने वाली हूँ। यह लेसन
पक्का करते जाओ। यह कौन समझाते हैं? शिवबाबा। याद भी करना है शिवबाबा को। उनको अपना
रथ नहीं है इसलिए उनको बैल दे देते हैं। मन्दिर में भी बैल रख दिया है। इसको कहा
जाता है पूरा अज्ञान। बाप समझाते हैं बच्चों को अथवा रूहों को। यह है रूहों का बाप
शिव, इनके नाम तो बहुत हैं। परन्तु बहुत नाम से मूंझ पड़े हैं। वास्तव में इसका नाम
है शिव। शिव जयन्ती भी भारत में मनाई जाती है। वह निराकार बाबा है, आकर पतितों को
पावन बनाते हैं। कोई ने भागीरथ, कोई ने नंदीगण कह दिया है। बाप ही बताते हैं कि मैं
कौन से भाग्यशाली रथ में आता हूँ। मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश करता हूँ। ब्रह्मा
द्वारा भारत को स्वर्ग बनाता हूँ। तुम सब भारतवासी जानते हो ना कि लक्ष्मी-नारायण
का राज्य था। तुम सब भारतवासी बच्चे आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे। स्वर्गवासी
थे। 5 हजार वर्ष पहले जब मैं आया था तो सभी को सतोप्रधान स्वर्ग का मालिक बनाया था।
फिर पुनर्जन्म जरूर लेना पड़े। बाप कितना सीधा बताते हैं। अब जयन्ती मनाते हो, (इस
2021 में लिखेंगे 85 वीं शिवजयन्ती), बाबा की पधरामणी हुए अभी 85 वर्ष हुए। फिर
साथ-साथ ब्रह्मा विष्णु शंकर की भी पधरामणी है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा की जयन्ती कोई
दिखाते नहीं हैं, दिखाना जरूरी है क्योंकि बाबा कहता है मैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना
फिर से करता हूँ। ब्राह्मण बनाता जाता हूँ। तो ब्रह्मा और ब्राह्मण वंशियों का भी
जन्म हुआ। फिर दिखाता हूँ कि तुम सो विष्णुपुरी के मालिक बनेंगे। बाप की याद से ही
तुम्हारी खाद निकलेगी। भल भारत का प्राचीन योग मशहूर है परन्तु वह किसने सिखाया था,
यह कोई नहीं जानते। खुद कहते हैं हे बच्चे तुम अपने बाप को याद करो। वर्सा तुमको
मेरे से मिलता है। मैं तुम्हारा बाप हूँ। मैं कल्प-कल्प आता हूँ, आकर तुमको मनुष्य
से देवता बनाता हूँ क्योंकि तुम देवी-देवता थे फिर 84 जन्म लेते-लेते आकर पतित बने
हो। रावण की मत पर चल रहे हो। ईश्वरीय मत से तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो।
बाप कहते हैं मैं कल्प पहले भी आया था। जो कुछ पास होता है, वह कल्प-कल्प होता
ही रहेगा। बाप फिर भी आकर इनमें प्रवेश करेंगे, इस दादा को छुड़ायेंगे। फिर इन सबकी
परवरिश करायेंगे। तुम जानते हो कि हम ही सतयुग में थे। हम भारतवासियों को ही 84
जन्म लेना पड़े। पहले-पहले तुम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण थे। यथा राजा रानी
तथा प्रजा नम्बरवार। सब तो राजा नहीं बन सकते। तो बाप समझाते हैं सतयुग में तुम्हारे
8 जन्म, त्रेता में 12 जन्म… ऐसे ही अपने को समझो कि हमने यह पार्ट बजाया है। पहले
सूर्यवंशी राजधानी में पार्ट बजाया फिर चन्द्रवंशी में फिर नीचे उतरते वाम मार्ग
में आये। फिर हमने 63 जन्म लिए। भारतवासियों ने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं और कोई
धर्म वाले इतने जन्म नहीं लेते हैं। गुरूनानक को 500 वर्ष हुए, करीब उनके 12-14
जन्म होंगे। यह हिसाब निकाला जाता है। क्रिश्चियन ने 2 हजार वर्ष में 60 पुनर्जन्म
लिये होंगे, वृद्धि होती जाती है। पुनर्जन्म लेते जाते हैं। बुद्धि में यह विचार करो
तो हमने ही 84 जन्म भोगे हैं, फिर सतोप्रधान बनना है। जो कुछ पास हुआ ड्रामा। जो
ड्रामा बना हुआ है वह फिर रिपीट होगा। बेहद की हिस्ट्री में तुमको ले जाते हैं। तुम
पुनर्जन्म लेते आये हो। अब तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं। अब फिर बाप ने याद दिलाई
कि तुम्हारा घर है शान्तिधाम। आत्मा का रूप क्या है? बिन्दी। वहाँ जैसे बिन्दियों
का झाड़ है। आत्माओं का भी नम्बरवार झाड़ है। नम्बरवार नीचे आना होता है। परमात्मा
भी बिन्दी है। ऐसे नहीं कि इतना बड़ा लिंग है। बाप कहते हैं कि तुम हमारे बच्चे बनते
हो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ, पहले तुम हमारे बने फिर मैं तुमको
पढ़ाता हूँ। कहते हो बाबा हम तुम्हारे हैं। साथ-साथ पढ़ना भी है। हमारे बने और
तुम्हारी पढ़ाई शुरू हो गई।
बाबा कहते कि यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, कमल फूल समान पवित्र बनो। बच्चे वायदा
करते हैं बाबा हम आपसे वर्सा लेने लिए कभी पतित नहीं बनेंगे। 63 जन्म तो पतित बने
हैं। यह 84 जन्मों की कहानी है। बाबा आकर सहज कर बताते हैं। जैसे लौकिक बाप बताते
हैं ना। तो यह है बेहद का बाप। वह आकर रूहों से बच्चे-बच्चे कह बात करते हैं।
शिवरात्रि भी मनाते हैं ना। यह है आधाकल्प का दिन और आधाकल्प की रात। अभी है रात का
अन्त और दिन के आदि का संगम। भारत सतयुग था तो दिन था। सतयुग त्रेता को ब्रह्मा का
दिन कहा जाता है। तुम ब्राह्मण हो ना। तुम ब्राह्मण जानते हो कि हमारी अब रात्रि
है। तमोप्रधान भक्ति है। दर दर धक्के खाते रहते हैं, सबकी पूजा करते रहते हैं।
टिवाटे की भी पूजा करते हैं। मनुष्य के शरीर की भी पूजा करते हैं। संन्यासी लोग अपने
को शिवोहम् कह बैठ जाते हैं फिर मातायें जाकर उनकी पूजा करती हैं। बाबा बहुत अनुभवी
है। बाबा कहते हमने भी बहुत पूजा की है। परन्तु उस समय ज्ञान तो था नहीं। फल चढ़ाते
थे, लोटी चढ़ाते थे मनुष्य पर। यह भी ठगी हुई ना। परन्तु यह सब फिर भी होगा। भक्तों
का रक्षक है भगवान क्योंकि सभी दु:खी हैं ना। बाप समझाते हैं कि द्वापर से लेकर तुम
गुरू करते आये हो और भक्ति मार्ग में उतरते आये हो। अभी तक भी साधू लोग तो साधना
करते हैं। बाप कहते हैं कि उन्हों का भी मैं उद्धार करता हूँ। संगम पर तुम्हारी
सद्गति हो जाती है फिर तुम 84 जन्म लेते हो। बाप को कहा जाता है ज्ञान का सागर,
मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। सत् चित् आनन्द स्वरूप है। वो कब विनाश नहीं होता, उनमें
ज्ञान है। ज्ञान का सागर, प्यार का सागर है, जरूर उनसे वर्सा मिलना चाहिए। अभी तुम
बच्चों को वर्सा मिल रहा है। शिवबाबा है ना। वह भी बाबा है, यह भी तुम्हारा बाप है
फिर शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा तुमको पढ़ाते हैं इसलिए प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां
कहा जाता है। कितने ढेर बी.के. हैं। कहते हैं कि हमको डाडे से वर्सा मिलता है। बच्चे
कहते हैं बाबा हमको नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं। कहते हैं हे बच्चे – मामेकम्
याद करो तो तुम्हारे सिर पर जो पापों का बोझा है वह भस्म हो जायेगा। फिर तुम
सतोप्रधान बन जायेंगे। तुम सच्चा सोना, सच्चे जेवर थे। आत्मा और शरीर दोनों
सतोप्रधान थे। आत्मा फिर सतो रजो तमो होती है तो शरीर भी ऐसा तमोगुणी मिलता है। बाप
तुमको राय देते हैं कि बच्चे मुझे याद करो। मुझे बुलाते हो ना कि हे पतित-पावन आओ।
भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है। वह अब तुमको सिखला रहा हूँ कि मेरे साथ योग रखो
तो इससे तुम्हारी खाद जल जायेगी। जितना याद करेंगे उतनी खाद निकलती जायेगी। याद की
ही मुख्य बात है। नॉलेज तो बाप ने दी है – सतयुग में यथा राजा रानी तथा प्रजा सब
पवित्र थे, अभी सब पतित हैं। बाप कहते हैं कि इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में
मैं प्रवेश करता हूँ। इसको कहा जाता है भाग्यशाली रथ। यह पढ़कर फिर पहले नम्बर में
जाते हैं। नम्बरवार तो बनते हैं ना। मुख्य एक नाम होता है। बाप ने बच्चों को 84
जन्मों का राज़ अच्छी रीति समझाया है। तुम आदि सनातन देवी देवता धर्म के हो, न कि
हिन्दू धर्म के। तुम कर्म श्रेष्ठ, धर्म श्रेष्ठ थे। फिर रावण के प्रवेश होने से
धर्म-कर्म भ्रष्ट हो गये हो। अपने को देवी-देवता कहलाने में लज्जा आती है इसलिए
हिन्दू नाम रख दिया है। वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे। तुमने 84 जन्म
लिए हैं फिर पतित बन गये हो। 84 का चक्र भारतवासियों के लिए है। वापिस जाना तो सबको
है। पहले तुम जायेंगे। जैसे बारात जाती है ना। शिवबाबा को साजन भी कहते हैं। तुम
सजनियाँ इस समय छी-छी तमोप्रधान हो, उनको गुल-गुल बनाकर ले जायेंगे। आत्माओं को
पावन बनाकर ले जायेंगे। इसको लिबरेटर, गाइड कहा गया है। बेहद का बाप ले जाता है।
उनका नाम क्या है? शिवबाबा। नाम शरीर पर पड़ता है परन्तु परमात्मा का शिव ही नाम
है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का तो सूक्ष्म शरीर है। शिवबाबा का तो कोई शरीर है नहीं।
उनको शिवबाबा ही कहते हैं। बच्चे कहते हैं, हे मात-पिता हम आपके बालक बने हैं। दूसरे
तो पुकारते रहते हैं क्योंकि उन्हों को पता नहीं है। अगर सबको पता पड़ जाए तो मालूम
नहीं क्या हो जाए। दैवी झाड़ का अभी सैपलिंग लगता है। हीरे से कौड़ी बनने में 84
जन्म लगते हैं। फिर नये सिरे से शुरू होगा। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी।
बाप समझाते हैं कि तुमने पूरे 84 जन्म लिए हैं। 84 लाख तो हो न सके। यह बड़ी भूल
है। 84 लाख जन्म समझने कारण कल्प की आयु लाखों वर्ष कह दी है। यह है बिल्कुल झूठ।
भारत अब झूठखण्ड है, सचखण्ड में तुम सदा सुखी थे। इस समय तुम 21 जन्म का वर्सा लेते
हो। सारा तुम्हारे पुरूषार्थ पर है। राजधानी में जो चाहो वह पद लो, इसमें जादू आदि
की कोई बात नहीं है। हाँ मनुष्य से देवता जरूर बनते हैं। यह तो अच्छा जादू है ना।
तुम सेकेण्ड में जान लेते हो कि हम बाबा के बच्चे बने हैं। कल्प-कल्प बाबा हमको
स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। आधाकल्प भटकते आये हो, स्वर्गवासी तो कोई भी हुआ नहीं।
बाप आकर तुम बच्चों को लायक बनाते हैं। बरोबर यहाँ महाभारत लड़ाई लगी थी और राजयोग
सिखाया था। शिवबाबा कहते हैं कि मैं ही आकर तुमको सिखाता हूँ, न कि क्राइस्ट। अभी
तुम्हारा बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है, मूँझो नहीं। तुम भारतवासी हो। तुम्हारा
धर्म बहुत सुख देने वाला है और धर्म वाले तो बैकुण्ठ में आ नहीं सकते। यह भी ड्रामा
अनादि चलता रहता है। कब बना, यह कह नहीं सकते। इसकी नो एण्ड। वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। यह है संगमयुग, छोटा युग। चोटी है ब्राह्मणों की।
बाप तुम ब्राह्मणों को देवता बना रहे हैं। तो ब्रह्मा के बच्चे जरूर बनना पड़े।
तुमको वर्सा मिलता है डाडे से। जब तक अपने को बी.के. नहीं समझें तब तक वर्सा कैसे
मिले। फिर भी कोई कुछ न कुछ ज्ञान सुनते हैं तो साधारण प्रजा में आ जायेंगे। आना तो
जरूर है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते
हैं। सिवाए गीता के दूसरा कोई भी शास्त्र है नहीं। गीता है ही सर्वोत्तम दैवी धर्म
का शास्त्र जिससे 3 धर्म स्थापन होते हैं। ब्राह्मण भी यहाँ बनना है। देवता भी यहाँ
ही बनेंगे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर एक के निश्चित पार्ट को जान सदा निश्चिंत रहना है। बनी बनाई बन रही……ड्रामा
पर अडोल रहना है।
2) इस छोटे से संगमयुग पर बाप से पूरा वर्सा लेना है। याद के बल से खाद निकाल
स्वयं को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है। मीठे झाड के सैपलिंग में चलने के लिए लायक
बनना है।