ओम् शान्ति।
देखो कैसा गीत बनाया हुआ है परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। जैसे गीता भागवत आदि
बनाये हुए हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं। अभी तुम बच्चे इन सबका अर्थ समझते हो।
तूफान और दीवे की कहानी कैसे बनाई है। मनुष्य तो ऐसे ही सुन लेते हैं। तुम पूरे
अर्थ को जानते हो। बात यहाँ की है। छोटा दीवा तो क्या, माया का तूफान ऐसा है जो
बड़े-बड़े दीवे को बुझा देता है। कभी मुरझा जाते हैं, योग कम हो जाता है। योग को
घृत कहेंगे। जितना योग लगायें, उतनी ज्योति जगी रहे। तो यह बात अभी की है। आत्माओं
की ज्योति जगाने के लिए शमा को आना पड़ता है, जिसको ही परमात्मा कहा जाता है। परवाने
भी मनुष्य के लिए कहेंगे। तुम कहेंगे परमपिता परमात्मा हमारे सामने हाज़िर है। हम
आंखों से देखते हैं। उनका शारीरिक नाम नहीं है। शिव तो निराकार है और नॉलेज-फुल है।
नॉलेज दे रहे हैं इसलिए तुम कहेंगे हम हाज़िर देखते हैं क्योंकि उनसे हम नॉलेज लेते
हैं। सुनाने वाला है शिव। मनुष्य कहते हैं परमात्मा हाजिरा-हजूर है परन्तु पूछो कहाँ
है? कहेंगे सर्वव्यापी है। यह तो बात ही नहीं ठहरती। वह आकर राजयोग सिखलाते हैं।
तुम जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। जरूर आंखों से देखेंगे ना! आत्मा भी है
ना! तुम कहते हो हम आत्मा हैं। जरूर स्टॉर मिसल है। देखने में भी आती है। खुद आत्मा
कहती है मैं स्टॉर हूँ। बहुत महीन हूँ। आत्मा भ्रकुटी के बीच में रहती है, यह भी
जानते हैं। कोई कहते हम कैसे मानें! अच्छा भ्रकुटी में नहीं समझो आंखों में है, कहाँ
न कहाँ है तो सही ना। आत्मा ही कहती है यह मेरा शरीर है। भ्रकुटी शुद्ध स्थान है
इसलिए आत्मा का निवास स्थान यहाँ दिखाते हैं। टीका की निशानी भी यहाँ दी जाती है।
आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। इसमें संशय की तो कोई बात नहीं।
आत्मा याद करती है परमपिता परमात्मा को। अब बाप ने याद दिलाई है। तुम्हारा पार्ट
पूरा हुआ है। तुम पतित बन गये हो। तुमसे सारी नॉलेज निकल गई है। यह भी पार्ट है,
किसको दोष नहीं दे सकते। आत्मा कहती है हमारे में 84 जन्मों का पार्ट है। ड्रामा
अनुसार 84 जन्म भोगने ही पड़ते हैं। पतित होना ही पड़े। यह अभी तुम जानते हो, जब
समझाया जाता है। तुम कहते हो बाबा, बरोबर ड्रामा में तो पार्ट ही मेरा है। आपने
समझाया है यह अनादि ड्रामा है। हम ड्रामा के परवश हैं। अभी तुम ईश्वर के वश हो तो
ड्रामा को जानते हो। फिर तुम रावण के वश होने से बेताले बन जाते हो। बाबा कहते हैं
मैं तुमको कितनी नॉलेज देता हूँ। सब कहते हैं यह तो बिल्कुल नई नॉलेज है। सच और झूठ
सिद्ध कर बताया जाता है। भारत ही सचखण्ड और झूठ खण्ड बनता है। सचखण्ड में सच ही होगा।
झूठ खण्ड में झूठ का ही वार्तालाप है। अब जब तक तुमको सच की वार्तालाप न मिले तो
तुम जज कैसे करो। बाप कहते हैं - अब तुम जज करो कि मैं तुमको राइट समझाता हूँ या वह
राइट समझाते हैं।
तुम कहते हो मैं आत्मा हूँ - मेरी आत्मा को क्यों तंग करते हो? आत्मा ही तंग होती
है। आत्मा अलग हो जाती है तो कोई तकलीफ नहीं होती। शरीर के साथ ही आत्मा दु:ख सुख
भोगती है। फिर निर्लेप क्यों कहते हो! परमात्मा के लिए भी कहते वह नाम-रूप से न्यारा
है। लेकिन जब परमात्मा कहते हो तो यह भी नाम हुआ ना। कोई बुदबुदा कहते हैं, कोई
ज्योति स्वरूप कहते हैं। जानते कुछ भी नहीं। यह एक ही ड्रामा है जो रिपीट होता रहता
है। हर एक एक्टर को अपना पार्ट बजाना है। एक ड्रामा है, एक रचयिता है। इन बातों को
कोई जानते नहीं। वह तो समझते आकाश में यह जो स्टार्स हैं, उसमें भी दुनिया है। वहाँ
भी जाकर हम लैण्ड करेंगे। प्लाट खरीद करेंगे। अब वह सत्य है या जो बाप समझाते हैं
वह सत्य है? बाप ही तो नॉलेजफुल, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। कोई तो बीज होगा ना -
इस कल्प वृक्ष का। बाप समझाते हैं वृक्ष भी एक ही है। यह वृक्ष अभी जड़जडीभूत अवस्था
को पाया है। अब पुराना झाड़ हो गया है। फिर नया कलम लगता है क्योंकि जो मुख्य
देवी-देवता धर्म है वह प्राय: लोप हो गया है। विस्तार तो सारा एक बीज का है ना। तो
बाप कितनी अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। फिर यह माया बिल्ली ज्योति बुझा देती है।
तूफान लगने से कितने बड़े-बड़े झाड़ गिर पड़ते हैं। लिखते हैं बाबा माया के तूफान
बहुत आते हैं, इसको विघ्न भी कहा जाता है। बाप कहते हैं बरोबर रावण की आसुरी
सम्प्रदाय विघ्न डालती है, फिर पुकारते हैं। पुकारते-पुकारते फिर माया के तूफान
विकार में गिरा देते हैं। पुराने-पुराने भी गिर पड़ते हैं। बाप कहते हैं माया के
तूफान तो आयेंगे। परन्तु तुम स्थेरियम रहना। कभी किसको गुस्सा नहीं करना। कहते हैं
बाबा हमको क्रोध भूत ने जीत लिया। बाप कहते हैं यह बॉक्सिंग हैं। घड़ी-घड़ी गिरते
रहेंगे तो कमजोर बन जायेंगे। तुमने तो विकारों का दान दिया है ना। दान देकर फिर
वापिस नहीं लेना... कोई भी प्रकार का दान देकर फिर वापिस नहीं लिया जाता है। कहानी
भी है ना - राजा हरिश्चन्द्र ने दान दिया था.. यह मिसाल बैठ बनाये हैं। हाँ, तो बाप
कहते हैं इनश्योर करना हो तो करो। नहीं करेंगे तो तुमको कुछ भी नहीं मिलेगा। वास्तव
में दान की हुई चीज़ वापिस हो नहीं सकती। समझो किसी ने दान दिया, मकान बनाने में।
मकान बन गया फिर वापस कैसे हो सकता। कन्या दान की, पैसे दिये शादी हो गई, फिर वह
वापस कैसे देंगे। दान दी हुई चीज़ वापस आ नहीं सकती।
तो बाप समझाते हैं तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। सब साधू-सन्त आदि कहते
हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। नाम रूप से न्यारा है। अब नाम रूप से न्यारी कोई चीज़
होती नहीं। आकाश का भी नाम है ना। परमात्मा का सब नाम जपते हैं। शिवलिंग की प्रतिमा
है। फिर नाम रूप से न्यारा क्यों कहते हो? परन्तु हठ से उतरते ही नहीं इसलिए बाप ने
समझाया है - पहले-पहले कोई मिले तो पूछो परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?
वह पिता हुआ ना। तुम बच्चे कहाँ भी सर्विस कर सकते हो। शिव के मन्दिर में जाकर पूछो
- तुम्हारा परमपिता परमात्मा से क्या सम्बन्ध है? सामने शिव का मंदिर खड़ा है। यह
आपका क्या लगता है? पिता है, तो पिता कभी नाम रूप से न्यारा वा सर्वव्यापी हो सकता
है क्या? कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझने की हैं। पिता कहते हो तो जरूर उनका नाम रूप
भी है। बन्दगी करते हो, याद करते हो तो जरूर उनसे कुछ प्राप्ति होनी चाहिए। इन सब
बातों को तुम्हारे में भी सब नहीं समझते हैं। भल यहाँ सम्मुख बैठे हैं, वह भी सब
इतना निश्चय नहीं कर सकते। आज हैं, कल नहीं रहेंगे। तुम सुनेंगे फलाने चले गये।
देखते हो कितने रफू-चक्कर हो जाते हैं। तूफान में गिर पड़ते हैं। वास्तव में सारा
ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में रहता है। जैसे बाबा बीज है उनकी बुद्धि में सारा ड्रामा
का ज्ञान है। जो सिखाया है वह तुम्हारे पास भी है, जो तुम कोई को भी समझा सको।
नम्बरवार तो हैं। कोई की बुद्धि सतो है, कोई की रजो, तमो... बाबा से कोई पूछे तो
बाबा बता सकते हैं। यह ब्रह्मा भी कहते हैं हम बता सकते हैं कि तुम्हारी बुद्धि
सतोप्रधान है वा रजो तमो है। सारा सर्विस के ऊपर मदार है। कोई को ज्ञान की अच्छी
धारणा होती है तो कहेंगे सतोप्रधान बुद्धि है। हर एक खुद भी समझ सकते हैं कि मैं
क्या करता हूँ। पूछते हैं बाबा हमारी कोई भूल है? बाबा कहेंगे नम्बरवन भूल तो यह है
जो तुम सर्विस नहीं करते हो। जिस कारण पद भ्रष्ट हो जायेगा। सर्विस तो देखने में आती
है ना। कितना समझाया जाता है कि मंदिरों आदि में जाकर समझाओ। भल गपोड़ा मारते हैं -
हम सर्विस बहुत कर सकते हैं। परन्तु बाबा जानते हैं कि यह सर्विस कर नहीं सकते हैं।
है बहुत सहज। झाड़, ड्रामा का ज्ञान बहुत सहज है। सिर्फ पूछा जाता है परमपिता
परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? बाप है तो वर्सा जरूर मिलना चाहिए। जरूर उनके
तुम बच्चे हो, उनसे वर्सा मिला होगा, जो अब गंवाया है। हमने भी गंवाया हुआ वर्सा
फिर से पाया है। निश्चय होने से झट वर्सा पाने लग पड़ेंगे। परन्तु किसकी तकदीर में
नहीं है तो मानेंगे भी नहीं। तदबीर कर नहीं सकते। यह भी जानते हैं वह बाबा है
अन्तर्यामी, मैं हूँ बाहरयामी। ऐसे नहीं सारी दुनिया के अन्दर क्या है वह बैठकर
बतायेंगे। हां, यह जानते हैं कि सबके अन्दर 5 भूत प्रवेश हैं, इसलिए कहते हैं रावण
सर्वव्यापी है। तुमने अभी भूतों का दान दिया ही नहीं, पुरानी दुनिया के देह सहित सब
सम्बन्ध से बुद्धियोग निकाल एक बाप को याद करने में ही बड़ी मेहनत है। यह मेहनत रात
को अच्छी रीति हो सकती है। अभी से प्रैक्टिस करेंगे तब याद कर सकेंगे, तो अमृतवेले
का असर अच्छा चलेगा। सवेरे जागना पड़े। सवेरे-सवेरे उठकर भक्ति मार्ग में माला फेरते
हैं। कोई राम-राम जपते हैं, कोई क्या जपते हैं। अनेक मंत्र हैं। काशी का पण्डित होगा
तो कहेगा शिव-शिव कहो... संन्यासी आदि सब लोग भक्त हैं। साधू साधना करते हैं, घरबार
छोड़ जंगल में जाते हैं। यह भी साधना है ना। हठयोग मार्ग भी ड्रामा में है। यह तो
जानना चाहिए कि स्वर्ग का आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहाँ चला गया! देवताओं की पूजा
करते हैं, परन्तु यह नहीं जानते - हम किस धर्म के हैं। हम भी पूजा लक्ष्मी-नारायण
की करते थे, धर्म फिर हिन्दू कह देते थे। अभी तो हम लिखते हैं हमारा ब्राह्मण अथवा
देवी-देवता धर्म है फिर भी वह हिन्दू लिख देते क्योंकि भारतवासी सब हिन्दू हैं।
मुसलमानों का अलग लिखेंगे। बाकी सब हिन्दुओं की लाइन में आ जाते हैं। यह वण्डरफुल
राज़ है।
अब तुम्हारी बुद्धि में बेहद की नॉलेज है। इस सृष्टि चक्र को ड्रामा ही कहेंगे।
ड्रामा रिपीट होता है, नाटक नहीं। उस नाटक में कोई एक्टर न हो तो बदले में कोई और
एक्टर डाल देते हैं। कोई बीमार हो तो रिप्लेस कर देंगे। चैतन्य नाटक होते हैं, इनको
नाटक भी नहीं, इनको ड्रामा (फिल्म) कहेंगे। इनमें कोई चेंज नहीं हो सकती। मनुष्य
कहते हैं हम मुक्ति को पायें। परन्तु ड्रामा में यह चेंज हो नहीं सकती। यह कोई जानते
नहीं कि यह ड्रामा हैं इससे कोई निकल नहीं सकता। यह बड़ी समझने की बातें हैं। है भी
पुराना, अनेक बार पार्ट बजाया है। चक्र लगाया है। इन बातों को कोई समझने की भी
कोशिश नहीं करते। समझते भी हैं कि बरोबर एक गॉड है और यह वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। परन्तु जानने की कोशिश करें, उसकी फुर्सत नहीं
है। पुराने बच्चों की ही बुद्धि में नहीं रहता। तूफान लगते रहते हैं। आगे चल वृद्धि
को पाते रहेंगे। बहुत आयेंगे, समझने की कोशिश करेंगे। मौत जब नजदीक आयेगा तब जल्दी
समझेंगे। तुम तो कहते हो कि विनाश आया कि आया। इनसे पहले वर्सा लेना है। फिर तुम
कहेंगे कितना देरी से आये हो। अभी तो रात-दिन योग में रहो तब विकर्म विनाश हो।
विकर्म बहुत हैं। टाइम लगता है। इनको भी कितना समय लगा है। अब तक प्वाइंट्स रही हुई
हैं। हम तो ढिंढोंरा पीटते आये हैं कि मौत आया कि आया। जैसे शेर की एक कहानी है ना।
वह समझते यह गपोड़ा मारते हैं। एक दिन विनाश तो आ ही जायेगा। फिर भागेंगे, परन्तु
टू लेट। है यह बेहद की बात, फिर इनसे वह कहानियां बना दी हैं। विकर्म विनाश के लिए
योग अग्नि बहुत चाहिए। हां, नये-नये बहुत ऐसे भी निकलेंगे जो पुरानों से भी तीखे
जायेंगे। मार्जिन है। बाप कहते हैं - भल घर में रहते हुए रात को जागो। जितना जो दौड़े।
भल रात को नींद भी नहीं करो। बहुत तीखे जायेंगे। यह कितनी तरावट की नॉलेज है। बेड़ा
ही पार हो जाता है। सब कामनायें सिद्ध हो जाती हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विनाश के पहले बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेना है। रात-दिन योग में रह
विकर्म विनाश कर नम्बर आगे लेना है।
2) देह सहित पुरानी दुनिया के सब सम्बन्धों को बुद्धि से भूल एक बाप को याद करना
है। जो चीज़ दान दे दी, उसे वापस नहीं लेना है।