24-06-11 प्रातः मुरली "मातेश्वरी" रिवाइज़ - 20-06-64 मधुबन
(यह महावाक्य जगदम्बा माँ के स्मृति दिवस पर क्लास में सभी को सुनाने है)
गीत: छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...
ओम् शान्ति। हम सब जिसको याद करते हैं वह हमारा परमप्रिय परमपिता परमात्मा है। जैसे आत्मा के लिए कहा जाता है यह महान आत्मा, पुण्य आत्मा, पाप आत्मा है। तो यह सब हुई सोल्स (आत्मायें) और वह है सुप्रीम सोल (परम आत्मा)। परम आत्मा बहुत नहीं हैं, महान आत्मायें, पण्य आत्मायें तो बहुत हो सकती हैं। परम आत्मा भी है आत्मा, परन्तु उसको परम इसी हिसाब से कहते हैं कि उनका पार्ट हम सब आत्माओं से भिन्न है। आत्माओं का पार्ट भी भिन्न-भिन्न है, एक का पार्ट दूसरे से नहीं मिलता। अगर कोई का पार्ट मिले भी तो भी शक्ल एक जैसी नहीं हो सकती। भले कभी कोई बालक इकट्ठे (जुडवा) जन्म लेते हैं, उनकी शक्ल भल थोड़ी मिलती जुलती है परन्तु संस्कारों के हिसाब से कुछ न कुछ फर्क तो जरूर रहता ही है, इसलिये हरेक आत्मा का भिन्न-भिन्न पार्ट है और आत्माओं को फिर जन्म-मरण में भी आना है फिर भले कोई बहुत में बहुत 84 जन्म लेंगे, कोई 80 जन्म, कोई 70 जन्म, नम्बरवार जन्मों का फर्क हो सकता है लेकिन जन्म मरण में तो सभी आते हैं। लेकिन परमात्मा एक है जो जन्म-मरण रहित गाया जाता है इसलिये वह मनुष्य आत्माओं के सदृश्य नहीं आते हैं। वह कहते हैं मैं आता हूँ कोई प्रकृति (शरीर) का ट्रेम्मेरी आधार ले करके। तो मेरा आना, मेरा पार्ट बजाना और ढंग से हो गया ना, इसलिये सब बातों में मेरा कर्तव्य भी सभी आत्माओं से महान है। भले क्राइस्ट, बुद्ध सब आये, जिनको धर्म पितायें कहा जाता है। धर्म पिता यानी धर्म का रचयिता लेकिन उनको दुनिया का रचयिता नहीं कहेंगे। धर्म के रचयिता को क्रियेटर नहीं कहेंगे, वर्ल्ड का क्रियेटर तो परमात्मा को ही कहेंगे। इसलिए उनका काम सबसे भिन्न हो गया। यह सब चीजें समझने की हैं। यह सब परमात्मा खुद ही समझाते हैं तब तो गीतों में कहते हैं ना तू रूप बदलके आ, अपना आकाश सिंहासन छोड़। अभी वह आकाश में तो रहता नहीं है, मनुष्य बिचारे ऊपर का नॉलेज तो जानते नहीं है कि वो कहाँ रहने वाला है। वह ब्रह्म तत्व में रहने वाला है, जैसे इधर आकाश तत्व में हम मनुष्य रहते हैं, ऐसे आकाश के भी पार ब्रह्म तत्व, जिसको अखण्ड ज्योति तत्व भी कहते हैं, उसमें फिर आत्मायें और परमात्मा का निवास है। उसको निराकारी दुनिया, इनकार्पोरियल वर्ल्ड कहते हैं। हम आत्मायें निराकारी दुनिया से यहाँ शरीर लेके कार्पोरियल में एक्ट करते करते यहाँ फंस गये हैं इसलिए पुकारते हैं अभी तू आ, आ करके हम सबको माया की बॉउन्डेज (बंधन) से छुड़ा यानी बन्धन मुक्त कर क्योंकि सर्वशक्तिवान, समर्थ तो वही है। अभी हमारी तो शक्ति चली गई है, हमको तो माया ने पकड़ लिया। तो अभी बाप को कहते हैं कि अभी आओ और हमको इस माया के बन्धनों से, दुःख और अशान्ति से छुड़ाओ। तो अभी बाप आकरके कहते हैं कि मैं आया हूँ, जब-जब ऐसा टाइम होता है तब-तब ही मेरा पार्ट है, बाकी ऐसे नहीं मेरा पार्ट सदा ही चलता है। जैसे कई समझते हैं कि यदा यदाहि धर्मस्य का अर्थ है कि जब जब अधर्म होता है, यानि पाप कर्म होता है तब तब मैं आ करके उनमें जागृति लाता हूँ। लेकिन परमात्मा के आने का तो एक ही टाइम है। वह कहते हैं मैं तो दुनिया का क्रियेटर हूँ ना, इसलिये मेरा काम है कि जब दुनिया अधर्मी बनती है तब आ करके मैं अधर्मी दुनिया का नाश करता हूँ, एक आदमी के अधर्म की बात नहीं है। कभी किसका अधर्म नाश करूँ, कभी किसका करूँ... ऐसा करने से दुनिया कभी भी धर्म आत्माओं की बनेंगी ही नहीं। सदा दुनिया अधर्मों की, अधर्मियों की रहेगी, ऐसे ही हो जायेगा ना। परन्तु नहीं, यह भी सब चीज़े समझने की है कि दुनिया भी कोई टाइम में धर्मात्माओं की है, जिसको ही स्वर्ग कहते हैं। हेविन वर्ल्ड को कहा जाता है, ऐसे नहीं एक मनुष्य हेविन में हो, दूसरा हेल में हो। हेल एण्ड हेविन साथ-साथ तो नहीं है ना! हेविन वर्ल्ड है, हेल वर्ल्ड है। जब ल है तो सभी हेल में हैं। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कोई हेल में है, कोई हेविन में है। तो उसे हेविनली वर्ल्ड कहा जाता है और परमात्मा को हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। ऐसे नहीं कि विनली गॉड फादर कोई हेविन में रहता है। नहीं। वह हमारे लिये हेविन बनाता है। ऐसे थोड़ेही है कि हम हेल में ही रहे और वह हेविन में बैठा हो। ऐसा कभी कोई बाप देखा, जो खुद मौज करता रहे और बच्चे दुःखी रहें, क्या भी रहें। नहीं। बाप कहता है मैं बाप ही तभी हूँ जब तुम्हारे लिये मैं सुख की दुनिया बनाता हूॅं। मैं तो हूँ ही दुःख सुख से न्यारा इसलिये मैं न तो दुःख में आता हूँ, न मेरे लिये सुख की बात है।
मनुष्य कहते हैं भगवान अवतार लेता है। तो अवतार का मतलब ही है अवतरित होना अर्थात् उतरना। अभी मैं कहाँ से उतरूँ? जरूर कोई मेरी जगह है ना। अगर सर्वव्यापी होता तो मैं तो उतरा ही बैठा हूँ फिर उतरने की क्या बात है? फिर अवतार क्यों मानते हो? और अगर मेरे बैठे हुए तुम मेरे बच्चे दुःखी होते जाओ, तो मेरे बैठने का भी कोई महत्व नहीं है। तुम जानते नहीं हो, मैं बैठा नहीं हूँ, मैं बैठा होता और तुम दुःखी होते! कभी नहीं। मेरे बैठे और बच्चे दुःखी हो यह इम्पॉसिबल है। मैं तो जब आता हूँ तब तुम्हारे लिए सुख की दुनिया बनाता हूँ, तभी तो तुम मुझे याद करते हो। अगर मैं ओमनीप्रेजेन्ट होता तो तुम्हारे पास दुःख अशान्ति या पाप कर्म यह सभी बातें होती ही नहीं। पाप कर्म है तो फिर दुःख भी है इसलिये कहता हूँ अभी माया 5 विकार सर्वव्यापी हैं। मैं तो आता हूँ तुम्हें दुःखों से छुड़ाने के लिये अथवा इस माया की बॉउन्डेज से छुड़ाने के लिये। तो मेरा धाम है, मैं घर-घाट वाला हूँ। ऐसे नहीं कि सबमें मेरा ही स्थान है। नहीं। जैसे तुम आत्मा को भी अपना-अपना शरीर है, ऐसे थोड़ेही है एक ही आत्मा सबमें बैठी है। तुम आत्मा अपने शरीर में हो, हरेक आत्मा को अपना शरीर है, अपने अपने शरीर के कर्म के हिसाब से एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लिया फिर तीसरा लिया, ऐसे कई शरीर लेते हैं लेकिन वह आत्मा का अपने शरीरों का हिसाब है। ऐसे नहीं है कि एक ही आत्मा सभी में है। नहीं। इसी तरह से बाप कहते हैं मेरा भी अपना पार्ट है, ऐसे थोड़ेही है सबका जो पार्ट है वही मेरा पार्ट है। तो यह सभी बातें बाप बैठ समझाते हैं। यह जो सर्वव्यापी की बात है ना, यह बिचारे न जानने के कारण कह देते हैं कि सब परमात्मा के ही रूप हैं। जैसे कोई चीज़ नहीं जानी जाती है तो कह देते हैं कि हाँ, यही समझ लो, तो उन्होंने भी ऐसा धुक्का लगा दिया कि हाँ, यह सब परमात्मा समझ लो। अभी सब परमात्मा क्या? चींटी, मकोड़ी, फलाना... कण-कण में, पत्थर आदि सब में परमात्मा है? न जानने के कारण ऐसा समझ लो परमात्मा है, तो कण-कण भी परमात्मा हो गया। इसलिये देखो सर्वव्यापी की बात ने कितना रोला कर दिया है। बाप कहते हैं देखो, तुमने मुझे कण-कण, पत्थर-ठिक्कर, जानवर, पशु पंक्षी आदि सबमें कह मुझे 84 लाख योनियों से भी बाहर ढकेल दिया है, सबमें एकदम पीस दिया। अपने लिये फिर भी अन्दाज रखा 84 लाख। हैं तो 84 लाख भी नहीं केवल 84 जन्म हैं। देखो, बड़े-बड़े विद्वान, बड़े-बड़े आचार्य, बड़े-बड़े पण्डित सभी इन बातों में मूँझ पड़े हैं इसलिए अब मैं ही आकर समझाता हूँ कि मैं क्या हूँ और उसके साथ तू भी क्या हो? क्योंकि तुम मेरी क्रियेशन हो। क्रियेटर ही तो क्रियेशन को जानेगा ना! तो बाप कहते हैं यह सब तुम्हारी भी बातें और अपनी भी बातें जो हैं मैं समझाता हूँ, इसलिये क्रियेटर ही मैं हूँ और मैं जानता हूँ। और तुम गाते भी ऐसे हो तू जानी जाननहार है, नॉलेजफुल है, यह महिमा मेरी करते हो ना! तो मैं आ करके तुमको ज्ञान देता हूँ, ऐसे भी नहीं कि मैं सबमें प्रवेश हो करके अन्दर-अन्दर में सर्वव्यापी हो ज्ञान दूँगा! भगवान का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ, शास्त्रों में उसकी यादगार भी दिखलाते हैं कि उसने बोला। अगर बोला नहीं होता तो शास्त्र कैसे बनते! प्रेरणा का थोड़ेही शास्त्र बनता है। क्या क्राइस्ट ने प्रेरणा से बोला क्या? बाइबल कैसे बना? बोला है ना। नॉलेज समझाया, जो कुछ समझाया, जो कुछ किया तो उसका उन्होंने बैठ करके शास्त्र बना दिया। तो बाप भी कहते हैं कि अभी मेरी भी बात समझो, मैं भी आऊंगा तो समझाने के लिये, तो मुझे समझाने के लिये बोलना पड़ेगा, नहीं तो कैसे समझाऊं। टीचर बनके आ करके टीच करूँगा ना! समझाने का और कोई तरीका तो होता ही नहीं है। समझाना होता ही है बोलने से। अर्जुन को भी भगवान ने ज्ञान सुनाया ना! अन्दर अन्दर से अर्जुन को प्रेरणा दी क्या? ऊपर से कोई आवाज आया? नहीं। सम्मुख में समझाया है। तो अभी मैं आके कहता हूँ मेरी टीचिंग्स लो, उसको सुनो, समझो और फिर उसको अमल में लाओ। ऐसे नहीं खाली सुनते ही रहो, प्रैक्टिकल में भी लाना है, जो कहता हूँ वो करो तो फिर तुम स्वर्ग के अधिकारी बनेंगे और ऐसे सुख को पायेंगे। ठीक है ना! सारा मदार है प्रैक्टिकल लाइफ के ऊपर।
पहले तो आत्मा हो अपने घर शान्तिधाम में जाना है पीछे फिर सुखधाम में आना है। अभी हम सबका पिता आया है और हमारे लिए सुख की दुनिया बनाता है इसलिये कहते हैं पहले चलो मेरे धाम में, जहाँ से आये थे तब तलक यहाँ सफाई हो जायेगी। यह सब डिस्ट्रक्शन से साफ हो करके फिर सब यहाँ अच्छा हो जायेगा फिर आ करके तुम अच्छी दुनिया का सुख पायेंगे। अच्छी बात है ना क्योंकि बाप अच्छी राय देता है और अच्छा साथ देता है, मदद करता है। सिर्फ कहता है थोड़ी हिम्मत करो। हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा। अच्छा। मीठे-मीठे सभी लवली लक्की बच्चों को माँ का यादप्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
मीठी जगदम्बा माँ की विशेषतायें:- (दादियों के अनुभवों से)
(1) मीठी मम्मा बाबा की हर बात को इतना ध्यान से सुनती जैसे उसी समय एक-एक बात का स्वरूप बनती जा रही है इसलिए मम्मा सदा अचल अडोल, एकरस स्थिति में रही। मम्मा की स्थिति कभी नीचे ऊपर नहीं देखी। पुरुषार्थ भी कोई मेहनत वाला हार्ड नहीं किया। मम्मा के चेहरे से सदा प्युरिटी की रॉयल्टी झलकती थी। इस प्युरिटी की पर्सनैलिटी के कारण ही जगदम्बा के रूप में मम्मा का इतना गायन और पूजन आज तक है।
(2) अटल निश्चय किसको कहा जाता है, वह मम्मा की सूरत से देखा। कभी भी मम्मा ने श्रीमत में अपनी मत मिक्स नहीं की होगी। मेरा विचार यह है, मैं यह समझती हूँ... यह मम्मा ने कभी नहीं कहा। परन्तु बाबा ने यह कहा है, बाबा ने यह समझाया है। वह भी बताने में ऐसा रस जो हर एक को सहज समझ में आ जाए कि बाबा ने किस रहस्य से कहा है।
(3) मम्मा की चलन कभी साधारण नहीं देखी, सदा रॉयल इसलिए मम्मा शिवबाबा की पोत्री, ब्रह्मा बाबा की बेटी बनने से सर्व की मनोकामना पूर्ण करने वाली कामधेनु माँ बन गई। मम्मा ने अपने लिए कोई कामना नहीं रखी। बाप के दिये हुए खजाने से सदा सम्पन्न रही।
(4) मम्मा ने हम बच्चों की पालना करने में इतना सर्वोत्तम श्रेष्ठ पार्ट बजाया, इस कारण गॉडेज ऑफ नॉलेज कहलाई, यह टाइटिल मम्मा के सिवाए किसी को नहीं मिल सकता। शिवबाबा की नॉलेज को इतना धारण किया है तब विद्या की देवी बनी है, इसलिए विद्या धारण करने के लिए सरस्वती को याद करते हैं।
(5) मम्मा को स्वमान, स्वधर्म में रहने का सदा नशा रहा। स्वधर्म हमारा शान्त है, उसमें मम्मा शक्ति अवतार रही। बाबा ने जो कहा मम्मा की बुद्धि ने माना। मम्मा ने कभी नहीं कहा होगा - मैंने यह किया, सदा बाबा के तरफ इशारा किया। मैं बेटी हूँ, मात-पिता वह है, मम्मा इतनी निरंहकारी थी।
(6) मम्मा है ब्रह्मा की बेटी। संबंध में इतनी स्वच्छता, पवित्रता की शक्ति थी जो जगदम्बा बन गई। और साथ-साथ मम्मा को भविष्य का, हम सो का ऐसा नशा था जो नैन चैन से, चेहरे से वह नशा दिखाई देता था जैसे सचमुच श्रीलक्ष्मी है। जैसे वह संस्कारों में भर गया - किसकी हूँ और भविष्य मेरा क्या है!
(7) मम्मा सदा एकान्त में रहती थी, रोज़ 2 बजे सवेरे उठकर बाबा की यादों में एकान्त में चली जाती, इसी पुरुषार्थ से मम्मा का सम्पूर्ण स्वरूप कई बार दिखाई पड़ता था।
(8) मम्मा नम्बरवन आज्ञाकारी रही, मम्मा ने बाबा के हर इशारे को समझा और हम बच्चों को बहुत सरल करके स्पष्ट करके सुनाया। मम्मा के महावाक्यों में एक-एक बात का स्पष्टीकरण है। बाबा के साथ लगन कैसी हो, वह भी मम्मा की सूरत बताती थी।
(9) मम्मा हमेशा कहती थी कि शक्ति जमा करने में आप लोग कितनी मेहनत करते हो और फालतू खर्च कितनी जल्दी कर लेते हो। फालतू बातों में शक्ति खर्च करके फिर उदास, कमज़ोर हो जाते हो। कमाई करने में इतना टाइम नहीं देते लेकिन सारा दिन खर्चा ही खर्चा, फिर देवाला हो जाता और जब कोई बात सामने आती है तो कहते बहुत मुश्किल है क्योंकि ताकत नहीं है।
(10) मम्मा सदा कहती थी - 1- "हर घड़ी हमारी अन्तिम घड़ी है"। 2- हुक्मी हुक्म चला रहा है। यह दो मन्त्र मम्मा हमेशा याद रखती और सबको याद दिलाती। इसी मन्त्र से हम सहज नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप हो जायेंगे, किन्हीं झंझटों में नहीं जायेंगे। और अपनी बुद्धि को सब बातों से फ्री रख बाबा की आशाओं को पूर्ण कर सकेंगे।
वरदान:- विस्तार को सार में समाकर अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले बाप समान लाइट माइट हाउस भव
बाप समान लाइट, माइट हाउस बनने के लिए कोई भी बात देखते वा सुनते हो तो उसके सार को जानकर एक सेकण्ड में समा देने वा परिवर्तन करने का अभ्यास करो। क्यों, क्या के विस्तार में नहीं जाओ क्योंकि किसी भी बात के विस्तार में जाने से समय और शक्तियां व्यर्थ जाती हैं। तो विस्तार को समाकर सार में स्थित होने का अभ्यास करो - इससे अन्य आत्माओं को भी एक सेकण्ड में सारे ज्ञान का सार अनुभव करा सकेंगे।
स्लोगन:- अपनी वृत्ति को पावरफुल बनाओ तो सेवा में वृद्धि स्वत: होगी।