25-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – अभी तुम्हारी सुनवाई हुई है, आखिर वह दिन आ
गया जब तुम उत्तम से उत्तम पुरुष इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर बन रहे हो”
प्रश्नः-
हार और जीत से
सम्बन्धित कौन-सा एक ऐसा भ्रष्ट कर्म है जो मनुष्य को दु:खी करता है?
उत्तर:-
“जुआ”।
बहुत मनुष्यों में जुआ खेलने की आदत होती है, यह भ्रष्ट कर्म है क्योंकि हारने से
दु:ख, जीतने से खुशी होगी। तुम बच्चों को बाप का फरमान है – बच्चे, दैवी कर्म करो।
ऐसा कोई भी कर्म नहीं करना है जिसमें टाइम वेस्ट हो। सदा बेहद की जीत पाने का
पुरुषार्थ करो।
गीत:-
आखिर वह दिन आया आज……..
ओम् शान्ति।
डबल ओम् शान्ति। तुम
बच्चों को भी कहना होगा ओम् शान्ति। यहाँ फिर है डबल ओम् शान्ति। एक सुप्रीम आत्मा
(शिवबाबा) कहते हैं ओम् शान्ति, दूसरा यह दादा कहते हैं ओम् शान्ति। फिर तुम बच्चे
भी कहते हो हम आत्मा शान्त स्वरूप हैं, रहने वाले भी शान्ति देश के हैं। यहाँ इस
स्थूल देश में पार्ट बजाने आये हैं। यह बातें आत्मायें भूल गई हैं फिर आखिर वह दिन
तो जरूर आया है, जब सुनवाई होती है। कौन सी सुनवाई? कहते हैं बाबा दु:ख हरकर सुख
दो। हर एक मनुष्य सुख-शान्ति ही पसन्द करते हैं। बाप है भी गरीब निवाज़। इस समय
भारत बिल्कुल गरीब है। बच्चे जानते हैं हम बिल्कुल साहूकार थे। यह भी तुम ब्राह्मण
बच्चे जानते हो, बाकी तो सब जंगल में हैं। तुम बच्चों को भी नम्बरवार पुरुषार्थ
अनुसार निश्चय है। तुम जानते हो यह है श्री श्री, उनकी मत भी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ
है। भगवानुवाच है ना। मनुष्य तो राम-राम की ऐसी धुन लगाते हैं जैसे बाजा बजता है।
अब राम तो त्रेता का राजा था, उनकी महिमा बड़ी थी। 14 कला था। दो कला कम, उनके लिए
भी गाते हैं राम राजा, राम प्रजा,…… तुम साहूकार बनते हो ना। राम से ज्यादा साहूकार
फिर लक्ष्मी-नारायण होंगे। राजा को अन्नदाता कहते हैं। बाप भी दाता है, वह सब कुछ
देते हैं, बच्चों को विश्व का मालिक बनाते हैं। वहाँ कोई अप्राप्त वस्तु होती नहीं,
जिसके लिए पाप करना पड़े। वहाँ पाप का नाम नहीं होता। आधाकल्प है दैवी राज्य फिर
आधा-कल्प है आसुरी राज्य। असुर अर्थात् जिनमें देह-अभिमान है, 5 विकार हैं।
अभी तुम आये हो खिवैया
अथवा बागवान के पास। तुम जानते हो हम डायरेक्ट उनके पास बैठे हैं। तुम बच्चे भी
बैठे-बैठे भूल जाते हो। भगवान जो फरमाते हैं वह मानना चाहिए ना। पहले तो वह श्रीमत
देते हैं श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने के लिए। तो मत पर चलना चाहिए ना। पहली-पहली मत
देते हैं – देही-अभिमानी बनो। बाबा हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह पक्का-पक्का याद
करो। यह अक्षर याद किया तो बेड़ा पार है। बच्चों को समझाया है, तुम ही 84 जन्म लेते
हो। तुम ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो। यह दुनिया तो पतित दु:खी है। स्वर्ग को
कहा जाता है सुखधाम। बच्चे जानते हैं शिवबाबा, भगवान हमको पढ़ाते हैं। उनके हम
स्टूडेण्ट हैं। वह बाप भी है, टीचर भी है, तो पढ़ना भी अच्छी रीति चाहिए। दैवी कर्म
भी चाहिए। कोई भ्रष्ट कर्म नहीं करना चाहिए। भ्रष्ट कर्म में जुआ भी आ जाता है। यह
भी दु:ख देते हैं। हारा तो दु:ख होगा, जीता तो खुशी होगी। अभी तुम बच्चों ने माया
से बेहद की हार खाई है। यह है भी बेहद के हार और जीत का खेल। 5 विकारों रूपी रावण
से हारे हार है, उन पर जीत पानी है। माया ते हारे हार है। अब तुम बच्चों की जीत होनी
है। अब तुमको भी जुआ आदि सब छोड़ देना चाहिए। अब बेहद की जीत पाने पर पूरा अटेन्शन
देना चाहिए। कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना है, टाइम वेस्ट नहीं करना है। बेहद की जीत
पाने के लिए पुरुषार्थ करना है। कराने वाला बाप समर्थ है। वह है सर्वशक्तिमान्। यह
भी समझाया है सिर्फ बाप सर्वशक्तिमान् नहीं है। रावण भी सर्वशक्तिमान् है। आधाकल्प
रावण राज्य, आधा-कल्प राम राज्य चलता है। अभी तुम रावण पर जीत पाते हो। अब वह हद की
बातें छोड़ बेहद में लग जाना है। खिवैया आया है। आखिर वह दिन आया तो है ना। पुकार
की सुनवाई होती है ऊंच ते ऊंच बाप के पास। बाप कहते हैं – बच्चे, तुमने आधाकल्प
बहुत धक्के खाये हैं। पतित बने हो। पावन भारत शिवालय था। तुम शिवालय में रहते थे।
अभी तुम वेश्यालय में हो। तुम शिवालय में रहने वालों को पूजते हो। यहाँ इन अनेक
धर्मों का कितना घमसान है। बाप कहते हैं इन सबको मैं खलास कर देता हूँ। सबका विनाश
होना है और धर्म-स्थापक विनाश नहीं करते हैं। वह सद्गति देने वाले गुरू भी नहीं
हैं। सद्गति ज्ञान से ही होती है। सर्व का सद्गति दाता ज्ञान-सागर बाप ही है। यह
अक्षर अच्छी रीति नोट करो। बहुत हैं जो यहाँ सुनकर बाहर गये तो यहाँ की यहाँ रह जाती
है। जैसे गर्भ जेल में कहते हैं – हम पाप नहीं करेंगे। बाहर निकले, बस वहाँ की वहाँ
रही। थोड़ा बड़ा हुआ पाप करने लग पड़ते। काम कटारी चलाते हैं। सतयुग में तो गर्भ भी
महल रहता है। तो बाप बैठ समझाते हैं – आखिर वह दिन आया आज। कौन-सा दिन? पुरुषोत्तम
संगमयुग का। जिसका कोई को पता नहीं है। बच्चे फील करते हैं हम पुरुषोत्तम बनते हैं।
उत्तम ते उत्तम पुरुष हम ही थे, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ धर्म था। कर्म भी श्रेष्ठ ते
श्रेष्ठ थे। रावण राज्य ही नहीं होता। आखरीन वह दिन आया जो बाप आया है पढ़ाने। वही
पतित-पावन है। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए ना। अभी है कलियुग का अन्त। थोड़ा
टाइम भी चाहिए ना, पावन बनने के लिए। 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ कहते हैं। 60 तो लगी
लाठ। अभी तो देखो 80 वर्ष वाले भी विकारों को छोड़ते नहीं। बाप कहते हैं मैं इनकी
वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश कर इनको समझाता हूँ। आत्मा ही पवित्र बन पार जाती है।
आत्मा ही उड़ती है। अभी आत्मा के पंख कटे हुए हैं। उड़ नहीं सकती है। रावण ने पंख
काट दिये हैं। पतित बन गई है। कोई एक भी वापिस जा न सके। पहले तो सुप्रीम बाप को
जाना चाहिए। शिव की बरात कहते हैं ना। शंकर की बरात होती नहीं। बाप के पिछाड़ी हम
सब बच्चे जाते हैं। बाबा आया हुआ है लेने के लिए। शरीर सहित तो नहीं ले जायेंगे ना।
आत्मायें सब पतित हैं। जब तक पवित्र न बनें तब तक वापिस जा न सकें। प्योरिटी थी तो
पीस और प्रासपर्टी थी। सिर्फ तुम अदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही थे। अभी और सब
धर्म वाले हैं। डिटीज्म है नहीं। इनको कल्प वृक्ष कहा जाता है। बड़ के झाड़ से इनकी
भेंट की जाती है। थुर है नहीं। बाकी सारा झाड़ खड़ा है। वैसे यह भी देवी-देवता धर्म
का फाउन्डेशन है नहीं। बाकी सारा झाड़ खड़ा है। था जरूर परन्तु प्राय: लोप हो गया
है फिर रिपीट होगा। बाप कहते हैं मैं फिर आता हूँ एक धर्म की स्थापना करने, बाकी सब
धर्मों का विनाश हो जाता है। नहीं तो सृष्टि चक्र कैसे फिरे? कहा भी जाता है वर्ल्ड
की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट। अभी पुरानी दुनिया है फिर नई दुनिया को रिपीट होना है।
यह पुरानी दुनिया बदल नई दुनिया स्थापन होगी। यही भारत नया सो पुराना बनता है। कहते
हैं जमुना के कण्ठे पर परिस्तान था। बाबा कहते हैं तुम काम चिता पर बैठ कब्रिस्तानी
बन पड़े हो। फिर तुमको परिस्तानी बनाते हैं। श्रीकृष्ण को श्याम-सुन्दर कहते हैं –
क्यों? किसकी भी बुद्धि में नहीं होगा। नाम तो अच्छा है ना। राधे और कृष्ण – यह हैं
न्यु वर्ल्ड के प्रिन्स-प्रिन्सेज। बाप कहते हैं काम चिता पर बैठने से आइरन एज में
हैं। गाया हुआ भी है, सागर के बच्चे काम चिता पर जल मरे। अब बाप सब पर ज्ञान वर्षा
करते हैं। फिर सब चले जायेंगे गोल्डन एज में। अभी है संगमयुग। तुमको अविनाशी ज्ञान
रत्नों का दान मिलता है, जिससे तुम साहूकार बनते हो। यह एक-एक रत्न लाखों रूपये का
है। वो लोग फिर समझते हैं – शास्त्रों के वरशन्स लाखों रूपये के हैं। तुम बच्चे इस
पढ़ाई से पद्मपति बनते हो। सोर्स ऑफ इनकम है ना। इन ज्ञान रत्नों को तुम धारण करते
हो। झोली भरते हो। वह फिर शंकर के लिए कहते हैं – हे बम बम महादेव, भर दो झोली।
शंकर पर कितने इल्ज़ाम लगाये हैं। ब्रह्मा और विष्णु का पार्ट यहाँ है। यह भी तुम
जानते हो 84 जन्म विष्णु के लिए भी कहेंगे, लक्ष्मी-नारायण के लिए भी। तुम ब्रह्मा
के लिए भी कहेंगे। बाप बैठ समझाते हैं – राइट क्या है, रांग क्या है, ब्रह्मा और
विष्णु का पार्ट क्या है। तुम ही देवता थे, चक्र लगाए ब्राह्मण बने फिर अब देवता
बनते हो। पार्ट सारा यहाँ बजता है। वैकुण्ठ के खेल-पाल देखते हैं। यहाँ तो वैकुण्ठ
नहीं है। मीरा डांस करती थी। वह सब साक्षात्कार कहेंगे। कितना उनका मान है।
साक्षात्कार किया, कृष्ण से डांस की। सो क्या, स्वर्ग में तो नहीं गई ना। गति-सद्गति
तो संगम पर ही मिल सकती है। इस पुरूषोत्तम संगमयुग को तुम समझते हो। हम बाबा द्वारा
अब मनुष्य से देवता बन रहे हैं। विराट रूप की भी नॉलेज चाहिए ना। चित्र रखते हैं,
समझते कुछ भी नहीं। अकासुर-बकासुर यह सब इस संगम के नाम हैं। भस्मासुर भी नाम है।
काम चिता पर बैठ भस्म हो गये हैं। अब बाप कहते हैं – मैं सबको फिर से ज्ञान चिता पर
बिठाए ले जाता हूँ। आत्मायें सब भाई-भाई हैं। कहते भी हैं हिन्दू-चीनी भाई-भाई,
हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई हैं। अब भाई-भाई भी आपस में लड़ते रहते हैं। कर्म तो आत्मा
करती है ना। शरीर द्वारा आत्मा लड़ती है। पाप भी आत्मा पर लगता है, इसलिए पाप आत्मा
कहा जाता है। बाप कितना प्यार से बैठ समझाते हैं। शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा दोनों को
हक है बच्चे-बच्चे कहना। बाप, दादा द्वारा कहते हैं – हे बच्चों! समझते हो ना, हम
आत्मा यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं। फिर अन्त में बाप आकर सबको पवित्र बनाए साथ ले जाते
हैं। बाप ही आकर नॉलेज देते हैं। आते भी यहाँ ही हैं। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। शिव
जयन्ती के बाद फिर होती है कृष्ण जयन्ती। श्रीकृष्ण ही फिर श्रीनारायण बनते हैं।
फिर चक्कर लगाए अन्त में सांवरा (पतित) बनते हैं। बाप आकर फिर गोरा बनाते हैं। तुम
ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। फिर सीढ़ी उतरेंगे। यह 84 जन्मों का हिसाब और कोई की
बुद्धि में नहीं होगा। बाप ही बच्चों को समझाते हैं। गीत भी सुना – आखरीन भक्तों की
सुनवाई होती है। बुलाते भी हैं – हे भगवान आकर हमको भक्ति का फल दो। भक्ति फल नहीं
देती। फल भगवान देता है। भक्तों को देवता बनाते हैं। बहुत भक्ति तुमने की है।
पहले-पहले तुमने ही शिव की भक्ति की। जो अच्छी रीति इन बातों को समझेंगे, तुम फील
करेंगे यह हमारे कुल का है। किसकी बुद्धि में ठहरता नहीं है तो समझो भक्ति बहुत नहीं
की है, पीछे आया है। यहाँ भी पहले नहीं आयेंगे। यह हिसाब है। जिसने बहुत भक्ति की
है उनको बहुत फल मिलेगा। थोड़ी भक्ति थोड़ा फल। वह स्वर्ग के सुख भोग नहीं सकते
क्योंकि शुरू में शिव की भक्ति थोड़ी की है। तुम्हारी बुद्धि अब काम करती है। बाबा
भिन्न-भिन्न युक्तियाँ बहुत समझाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)
एक-एक अविनाशी ज्ञान रत्न जो पद्मों के समान हैं, इनसे अपनी झोली भर, बुद्धि में
धारण कर फिर दान करना है।
2) श्री श्री की
श्रेष्ठ मत पर पूरा-पूरा चलना है। आत्मा को सतोप्रधान बनाने के लिए देही-अभिमानी
बनने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है।
वरदान:-
अनुभवों के गुह्यता की प्रयोगशाला में रह नई रिसर्च
करने वाले अन्तर्मुखी भव
जब स्वयं में पहले सर्व अनुभव प्रत्यक्ष होंगे तब
प्रत्यक्षता होगी - इसके लिए अन्तर्मुखी बन याद की यात्रा व हर प्राप्ति की गुह्यता
में जाकर रिसर्च करो, संकल्प धारण करो और फिर उसका परिणाम वा सिद्धि देखो कि जो
संकल्प किया वह सिद्ध हुआ या नहीं? ऐसे अनुभवों के गुह्यता की प्रयोगशाला में रहो
जो महसूस हो कि यह सब कोई विशेष लगन में मगन इस संसार से उपराम हैं। कर्म करते योग
की पावरफुल स्टेज में रहने का अभ्यास बढ़ाओ। जैसे वाणी में आने का अभ्यास है ऐसे
रूहानियत में रहने का अभ्यास डालो।
स्लोगन:-
सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखने वाले ही सन्तुष्टमणि हैं।