07-09-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
”मीठे बच्चे – तुम अभी सच्ची-सच्ची पाठशाला में बैठे हो,
यह सतसंग भी है, यहाँ तुम्हें सत बाप का संग मिला है, जो पार लगा देता है”
प्रश्नः-
हिसाब-किताब
के खेल में मनुष्यों की समझ और तुम्हारी समझ में कौन सा अन्तर है?
उत्तर:-
मनुष्य
समझते हैं – यह जो दु:ख-सुख का खेल चलता है, यह दु:ख-सुख सब परमात्मा ही देते हैं
और तुम बच्चे समझते हो कि यह हर एक के कर्मों के हिसाब का खेल है। बाप किसी को भी
दु:ख नहीं देते। वह तो आते ही हैं सुख का रास्ता बताने। बाबा कहते हैं – बच्चे,
मैंने किसी को भी दु:खी नहीं किया है। यह तो तुम्हारे ही कर्मों का फल है।
गीत:- इस पाप
की दुनिया से……..
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चों ने गीत सुना। किसको पुकारते हैं? बाप को। बाबा आकर इस पाप की कलियुगी दुनिया
से सतयुगी पुण्य की दुनिया में ले चलो। अभी जीव आत्मायें सब कलियुगी हैं। उन्हों की
बुद्धि ऊपर जाती है। बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसा कोई नहीं जानते हैं।
ऋषि-मुनि आदि भी कहते हैं हम रचयिता मालिक अर्थात् बेहद के बाप और उनकी बेहद की रचना
के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। आत्मायें जहाँ रहती हैं वह है ब्रह्म महतत्व,
जहाँ सूर्य चांद नहीं होते हैं। न मूलवतन, न सूक्ष्मवतन में। बाकी इस माण्डवे में
तो बिजलियाँ आदि सब चाहिए ना। तो इस माण्डवे को बिजली मिलती है-रात को चांद सितारे,
दिन में सूर्य। यह हैं बत्तियाँ। इन बत्तियों के होते हुए भी अन्धियारा कहा जाता
है। रात को तो फिर भी बत्ती जलानी पड़ती है। सतयुग त्रेता को कहा जाता है दिन और
भक्ति मार्ग को कहा जाता है रात। यह भी समझ की बात है। नई दुनिया सो फिर पुरानी
जरूर बनेंगी। फिर नई होगी तो पुरानी का जरूर विनाश होगा। यह है बेहद की दुनिया।
मकान भी कोई बहुत बड़े-बड़े होते हैं राजाओं आदि के। यह है बेहद का घर, माण्डवा अथवा
स्टेज़, इनको कर्मक्षेत्र भी कहा जाता है। कर्म तो जरूर करना होता है। सब मनुष्यों
के लिए यह कर्मक्षेत्र है। सबको कर्म करना ही है, पार्ट बजाना ही है। पार्ट हर एक
आत्मा को पहले से मिला हुआ है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो इन बातों को अच्छी रीति
से समझ सकते हैं। वास्तव में यह गीता पाठशाला है। पाठशाला में कभी बूढ़े आदि पढ़ते
हैं क्या? यहाँ तो बूढ़े, जवान आदि सब पढ़ते हैं। वेदों की पाठशाला नहीं कहेंगे। वहाँ
कोई भी एम ऑब्जेक्ट होती नहीं है। हम इतने वेद-शास्त्र आदि पढ़ते हैं, इनसे क्या
बनेंगे – वह जानते नहीं। कोई भी जो सतसंग हैं, एम ऑब्जेक्ट कुछ नहीं है। अब तो उनको
सतसंग कहने से लज्जा आती है। सत् तो एक बाप ही है, जिसके लिए कहा जाता है संग तारे….
कुसंग बोरे…..। कुसंग कलियुगी मनुष्यों का। सत् का संग तो एक ही है। अभी तुमको
वण्डर लगता है। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान कैसे बाप देते हैं, तुमको तो
खुशी होनी चाहिए। तुम सच्ची-सच्ची पाठशाला में बैठे हो। बाकी सब हैं झूठी पाठशालायें,
उन सतसंगों आदि से कुछ भी बनकर निकलते नहीं। स्कूल-कॉलेज आदि से फिर भी कुछ बनकर
निकलते हैं क्योंकि पढ़ते हैं। बाकी कहाँ भी पढ़ाई नहीं है। सतसंग को पढ़ाई नहीं
कहेंगे। शास्त्र आदि तो पढ़कर फिर दुकान खोल बैठते हैं, पैसा कमाते हैं। ग्रंथ थोड़ा
सीखकर, गुरूद्वारा खोल बैठ जाते हैं। गुरूद्वारे भी कितने खोलते हैं। गुरू का द्वार
अर्थात् घर कहेंगे ना। फाटक खुलता है, वहाँ जाकर शास्त्र आदि पढ़ते हैं। तुम्हारा
गुरूद्वारा है – मुक्ति और जीवनमुक्ति धाम, सतगुरू द्वार। सतगुरू का नाम क्या है?
अकाल मूर्त। सतगुरू को अकाल मूर्त कहते हैं, वह आकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का द्वार
खोलते हैं। अकाल-मूर्त हैं ना। जिसको काल भी खा नहीं सकता। आत्मा है ही बिन्दी, उनको
काल कैसे खायेगा। वह आत्मा तो शरीर छोड़कर भाग जाती है। मनुष्य समझते थोड़ेही हैं
कि एक पुराना शरीर छोड़ फिर जाए दूसरा लेगी फिर इसमें रोने की क्या दरकार है। यह
तुम जानते हो-ड्रामा अनादि बना हुआ है। हर एक को पार्ट बजाना ही है। बाप ने समझाया
है – सतयुग में हैं नष्टोमोहा। मोहजीत की भी कहानी है ना। पण्डित लोग सुनाते हैं,
मातायें भी सुन-सुन कर फिर ग्रंथ रख बैठ जाती हैं – सुनाने के लिए। बहुत मनुष्य
जाकर सुनते हैं। उनको कहा जाता है कनरस। ड्रामा प्लैन अनुसार मनुष्य तो कहेंगे हमारा
दोष क्या है। बाप कहते हैं तुम हमको बुलाते हो कि दु:ख की दुनिया से ले जाओ। अब मैं
आया हूँ तो मेरा सुनना चाहिए ना। बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं, अच्छी मत मिलती है
तो वह लेनी चाहिए ना। तुम्हारा भी कोई दोष नहीं है। यह भी ड्रामा था। राम राज्य,
रावण राज्य का खेल बना हुआ है। खेल में कोई हार जाते हैं तो उनका दोष थोड़ेही है।
जीत और हार होती है, इसमें लड़ाई की बात नहीं। तुमको बादशाही थी। यह भी आगे तुमको
मालूम नहीं था, अभी तुम समझते हो जो सर्विसएबुल हैं, जिसका नाम बाला है। देहली में
सबसे नामीग्रामी समझाने वाला कौन है? तो झट नाम लेंगे जगदीश का। तुम्हारे लिए
मैगजीन भी निकालते हैं। उसमें सब कुछ आ जाता है। अनेक प्रकार की प्वाइंट्स लिखते
हैं, बृजमोहन भी लिखते हैं। लिखना कोई मासी का घर थोड़ेही है। जरूर विचार सागर मंथन
करते हैं, अच्छी सर्विस करते हैं। कितने लोग पढ़कर खुश होते हैं। बच्चों को भी
रिफ्रेशमेंट मिलती है। कोई कोई प्रदर्शनी में बहुत माथा मारते हैं, कोई-कोई
कर्मबन्धन में फंसे हुए हैं, इसलिए इतना उठा नहीं सकते हैं। यह भी कहेंगे ड्रामा,
अबलाओं पर भी अत्याचार होने का ड्रामा में पार्ट है। ऐसा पार्ट क्यों बजाया, यह
प्रश्न ही नहीं उठता। यह तो अनादि बना बनाया ड्रामा है। उनको कुछ कर थोड़ेही सकते
हैं। कोई कहते हैं हमने गुनाह क्या किया जो ऐसा पार्ट रखा है। अब गुनाह की तो बात
नहीं। यह तो पार्ट है। अबलायें कोई तो निमित्त बनेंगी, जिन पर सितम होंगे। ऐसे तो
फिर सब कहेंगे हमको यह पार्ट क्यों? नहीं, यह बना-बनाया ड्रामा है। पुरूषों पर भी
अत्याचार होते हैं। इन बातों में सहनशीलता कितनी रखनी पड़ती है। बहुत सहनशीलता
चाहिए। माया के विघ्न तो बहुत पड़ेंगे। विश्व की बादशाही लेते हो तो कुछ मेहनत करनी
पड़े। ड्रामा में आपदायें, खिटपिट आदि कितनी है। अबलाओं पर अत्याचार लिखा हुआ है।
रक्त की नदियाँ भी बहेंगी। कहाँ भी सेफ्टी नहीं रहेगी। अभी तो सुबह को क्लास आदि
में जाते हो, सेन्टर्स पर। वह भी समय आयेगा जो तुम बाहर निकल भी नहीं सकेंगे।
दिन-प्रतिदिन जमाना बिगड़ता जाता है और बिगड़ना है। दु:ख के दिन बहुत ज़ोर से आयेंगे।
बीमारी आदि में दु:ख होता है तो फिर भगवान को याद करते, पुकारते हैं। अभी तुमको
मालूम है बाकी थोड़े दिन हैं। फिर हम अपने शान्तिधाम, सुखधाम जरूर जायेंगे। दुनिया
को तो यह भी पता नहीं है। अभी तुम बच्चे फील करते हो ना। अभी बाप को पूरी रीति जान
गये हैं। वह सब तो समझते हैं परमात्मा लिंग है। शिवलिंग की पूजा भी करते हैं। तुम
शिव के मन्दिर में जाते थे, कभी यह ख्याल किया कि शिवलिंग क्या चीज़ है? जरूर यह जड़
है तो चैतन्य भी होगा! यह तब क्या है? भगवान तो रचता है ऊपर में। उनकी निशानी है
सिर्फ पूजा के लिए। पूज्य होंगे तो फिर यह चीज़ें नहीं होंगी। शिव काशी के मंदिर
में जाते हैं, किसको पता थोड़ेही है भगवान निराकार है। हम भी उनके बच्चे हैं। बाप
के बच्चे होकर फिर हम दु:खी क्यों हैं? विचार करने की बात है ना। आत्मा कहती है हम
परमात्मा की सन्तान हैं फिर हम दु:खी क्यों हैं? बाप तो है ही सुख देने वाला। बुलाते
भी हैं – हे भगवान, हमारे दु:ख मिटाओ। वह कैसे मिटाये? दु:ख-सुख यह तो अपने कर्मों
का हिसाब है। मनुष्य समझते हैं सुख का एवजा सुख, दु:ख का एवजा दु:ख परमात्मा ही देते
हैं। उन पर रख देते हैं, बाप कहते हैं मैं कभी दु:ख नहीं देता हूँ। मैं तो आधा-कल्प
के लिए सुख देकर जाता हूँ। यह फिर सुख और दु:ख का खेल है। सिर्फ सुख का ही खेल होता
फिर तो यह भक्ति आदि कुछ न हो, भगवान से मिलने के लिए ही यह भक्ति आदि सब करते हैं
ना। अब बाप बैठ सारा समाचार सुनाते हैं। बाप कहते हैं तुम बच्चे कितने भाग्यशाली
हो। उन ऋषि-मुनियों आदि का कितना नाम है। तुम हो राजऋषि, वह हैं हठयोग ऋषि। ऋषि
अर्थात् पवित्र। तुम स्वर्ग के राजा बनते हो तो पवित्र जरूर बनना पड़े। सतयुग-त्रेता
में जिनका राज्य था उनका ही फिर होगा। बाकी सब पीछे आयेंगे। तुम अभी कहते हो हम
श्रीमत पर अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। पुरानी दुनिया का विनाश होने में भी समय
तो लगेगा ना। सतयुग आना है, कलियुग जाना है।
कितनी बड़ी दुनिया
है। एक-एक शहर मनुष्यों से कितना भरा हुआ है। धनवान आदमी दुनिया का चक्र लगाते हैं।
परन्तु यहाँ सारी दुनिया को कोई देख न सके। हाँ सतयुग में देख सकते हैं क्योंकि
सतयुग में है ही एक राज्य, इतने थोड़े राजायें होंगे, यहाँ तो देखो कितनी बड़ी
दुनिया है। इतनी बड़ी दुनिया का चक्र कौन लगाये। वहाँ तुमको समुद्र में जाने का नहीं
है। वहाँ सीलॉन, बर्मा आदि होंगे? नहीं, कुछ भी नहीं। यह करांची नहीं होगी। तुम सब
मीठी नदियों के किनारे पर रहते हो। खेती बाड़ी आदि सब होती है, सृष्टि तो बड़ी है।
मनुष्य बहुत थोड़े रहते हैं फिर पीछे वृद्धि होती है। फिर वहाँ जाकर अपना राज्य
स्थापन किया। धीरे-धीरे हप करते गये। अपना राज्य स्थापन कर दिया। अभी तो सबको छोड़ना
पड़ता है। एक भारत ही है, जिसने किसी का भी राज्य छीना नहीं है क्योंकि भारत असुल
में अहिंसक है ना। भारत ही सारी दुनिया का मालिक था और सब पीछे आये हैं जो
टुकड़े-टुकड़े लेते गये हैं। तुमने कोई को हप नहीं किया है, अंग्रेजों ने हप कर लिया
है। तुम भारतवासियों को तो बाप विश्व का मालिक बनाते हैं। तुम कहाँ गये थोड़ेही हो।
तुम बच्चों की बुद्धि में यह सारी बातें हैं, बूढ़ी मातायें तो इतना सब समझ न सकें।
बाप कहते हैं अच्छा है जो तुम कुछ भी पढ़ी नहीं हो। पढ़ा हुआ सब बुद्धि से निकालना
पड़ता है, एक बात सिर्फ धारण करनी है – मीठे बच्चे बाप को याद करो। तुम कहते भी थे
ना बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे, कुर्बान जायेंगे। तुम्हें फिर हमारे पर
कुर्बान जाना है। लेन-देन होती है ना। शादी के टाइम स्त्री-पुरूष एक दो के हाथ में
नमक देते हैं। बाप को भी कहते हैं, हम पुराना सब कुछ आपको देते हैं। मरना तो है, यह
सब खत्म होना है। आप हमको फिर नई दुनिया में देना। बाप आते ही हैं सबको ले जाने।
काल है ना। सिन्ध में कहते थे – यह कौन सा काल है जो सबको भगाकर ले जाते हैं, तुम
बच्चे तो खुश होते हो। बाप आते ही हैं ले जाने। हम तो खुशी से अपने घर जायेंगे। सहन
भी करना पड़ता है। अच्छे-अच्छे बड़े-बड़े घर की मातायें मारें खाती हैं। तुम सच्ची
कमाई करते हो। मनुष्य थोड़ेही जानते हैं, वह हैं ही कलियुगी शूद्र सम्प्रदाय। तुम
हो संगमयुगी, पुरूषोत्तम बन रहे हो। जानते हो पहले नम्बर में पुरूषोत्तम यह
लक्ष्मी-नारायण हैं ना। फिर डिग्री कम होती जायेगी। ऊपर से नीचे आते रहेंगे। फिर
आहिस्ते-आहिस्ते गिरते रहेंगे। इस समय सब गिर चुके हैं। झाड़ पुराना हो चुका है, तना
सड़ गया है। अब फिर स्थापना होती है। फाउन्डेशन लगता है ना। कलम कितना छोटा होता है
फिर उनसे कितना बड़ा झाड़ बढ़ जाता है। यह भी झाड़ है, सतयुग में बहुत छोटा झाड़
होता है। अब कितना बड़ा झाड़ है। वैराइटी फूल कितने हैं, मनुष्य सृष्टि के। एक ही
झाड़ में कितनी वैराइटी है। अनेक वैराइटी धर्मों का झाड़ है मनुष्यों का। एक सूरत न
मिले दूसरे से। बना-बनाया ड्रामा है ना। एक जैसा पार्ट कोई का हो नहीं सकता। इनको
कहा जाता है कुदरती बना-बनाया बेहद का ड्रामा, इनमें भी बनावट बहुत है। जो चीज़
रीयल होती है वह खत्म भी होती है। फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद रीयल्टी में आयेंगे।
चित्र आदि भी कोई रीयल बने हुए थोड़ेही हैं। ब्रह्मा की भी शक्ल फिर 5 हज़ार वर्ष
बाद तुम देखेंगे। इस ड्रामा के राज़ को समझने में बुद्धि बड़ी विशाल चाहिए। और कुछ
न समझो सिर्फ एक बात बुद्धि में रखो – एक शिवबाबा दूसरा न कोई। यह आत्मा ने कहा –
बाबा, हम आपको ही याद करेंगे। यह तो सहज है ना। हाथों से कर्म करते रहो और बुद्धि
से बाप को याद करते रहो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सहनशीलता का गुण धारण कर माया के विघ्नों में पास होना है। अनेक
आपदायें आयेंगी, अत्याचार होंगे-ऐसे समय पर सहन करते बाप की याद में रहना है, सच्ची
कमाई करनी है।
2) विशाल बुद्धि बन इस बने बनाये ड्रामा को अच्छी रीति समझना है, यह कुदरती
ड्रामा बना हुआ है इसलिए प्रश्न उठ नहीं सकता। बाप जो अच्छी मत देते हैं, उस पर चलते
रहना है।
वरदान:-
अपने हर कर्म वा विशेषता द्वारा दाता की तरफ इशारा
करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
सच्चे सेवाधारी किसी भी आत्मा को सहयोग देकर स्वयं में
अटकायेंगे नहीं। वे सबका कनेक्शन बाप से करायेंगे। उनका हर बोल बाप की स्मृति दिलाने
वाला होगा। उनके हर कर्म से बाप दिखाई देगा। उन्हें यह संकल्प भी नहीं आयेगा कि मेरी
विशेषता के कारण यह मेरे सहयोगी हैं। यदि आपको देखा, बाप को नहीं तो यह सेवा नहीं
की, बाप को भुलाया। सच्चे सेवाधारी सत्य की तरफ सबका सम्बन्ध जोड़ेंगे, स्वयं से नहीं।
स्लोगन:-
किसी
भी प्रकार की अर्जी डालने के बजाए सदा राज़ी रहो।