03-08-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 13-11-69 मधुबन

 

“बापदादा की उम्मीदें”

 

अशरीरी होकर फिर शरीर में आने का अभ्यास पक्का होता जाता है। जैसे बापदादा अशरीरी से शरीर में आते है वैसे ही तुम सभी बच्चों को भी अशरीरी होकर के शरीर में आना है। अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर फिर व्यक्त में आना है। ऐसा अभ्यास दिन-प्रतिदिन बढ़ाते चलते हो? बापदादा जब आते है तो किससे मिलने आते है? (आत्माओं से) आत्माएं कौन सी? जो सारे विश्व में श्रेष्ठ आत्माएं है। उन श्रेष्ठ आत्माओं से बापदादा का मिलन होता है। इतना नशा रहता है – हम ही सारे विश्व में श्रेष्ठ आत्मायें है। श्रेष्ठ आत्माओं को ही सर्वशक्तिमान के मिलन का सौभाग्य प्राप्त होता है। तो बापदादा भृकुटी के बीच में चमकते हुए सितारे को ही देखते हैं। तुम सितारों को किस-किस नाम से बुलाया जाता है? एक तो लक्की सितारे भी हो और नयनों के सितारे भी और कौनसे सितारे हो? जो कार्य अब बच्चों का रहा हुआ है उस नाम के सितारे को भूल गये हो। जो मेहनत का कार्य है वह भूल गये हो। याद करो अपने कर्तव्य को। बापदादा के उम्मीदों के सितारे। बापदादा के जो गाये हुए हैं वही कार्य अब रहा हुआ है? बापदादा जो उम्मीदें बच्चों से रखते है वह कार्य पूरा किया हुआ है? बापदादा एक-एक सितारे में यही उम्मीद रखते हैं कि एक-एक अनेकों को परिचय देकर लायक बनाये। एक से ही अनेक बनने हैं। यह चेक करो कि हम ऐसे बने हैं। अनेकों को बनाया है? उसमें भी क्वान्टिटी तो बन रहे है। क्वालिटी बनाना है। क्वान्टिटी बनाना सहज है लेकिन क्वालिटी वाले बनाना - यह उम्मीद बापदादा सितारों में रखते हैं। अभी यह कार्य रहा हुआ है। क्वालिटी बनाना है। क्वान्टिटी बनाना यह तो चल रहा है। लेकिन अभी ऐसी क्वालिटी वाली आत्मायें बनाने की सर्विस रही हुई है। क्वालिटी वाली एक आत्मा क्वान्टिटी को आपेही लायेगी। एक क्वालिटी वाला अनेकों को ला सकते है। क्वालिटी, क्वान्टिटी को ला सकती है। अभी यही कार्य जो रहा हुआ है उसको पूरा करना हे। अपनी सर्विस की क्वालिटी से आप खुद सन्तुष्ट रहते हो? क्वान्टिटी को देख खुश तो होते हो लेकिन क्वालिटी को देख सर्विस से सन्तुष्ट होना है। क्वालिटी कैसे लायेंगे? जितनी-जितनी जिसमें डिवाइन क्वालिटी होगी उतना ही क्वालिटी वालों को लायेगी। कई बच्चों को सभी प्रकार की मेहनत बहुत करनी पड़ती है। अपने पुरुषार्थ में भी तो सर्विस में भी। कोई को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है कोई को कम। इस कारण क्या है? कभी उसी को ही मेहनत लगती है कभी फिर उन्हीं को ही सहज लगता है। यह क्यों? धारणा की कमी के कारण मेहनत लगती है? कई कर्तव्यों में तो लोग कह देते हैं कि इनके भाग्य में ही नहीं है। यहाँ तो ऐसे नहीं कहेंगे। किस विशेष कमी के कारण मेहनत लगती है? श्रीमत पर चलना है। फिर भी क्यों नहीं चल पाते? कोई भी कार्य में चाहे पुरुषार्थ, चाहे सर्विस में मेहनत लगने का कारण यह है कि बातें तो सभी बुद्धि में हैं लेकिन इन बातों की महीनता में नहीं जाते। महीन बुद्धि को कभी मेहनत नहीं लगती। मोटी बुद्धि कारण बहुत मेहनत लगती है। श्रीमत पर चलने के लिए भी महीन बुद्धि चाहिए। महीनता में जाने का अभ्यास करना है। दूसरे शब्दों में यह कहेंगे कि जो सुना है वह करना है अर्थात् उसकी महीनता में जाना है। जैसे दही को बिलोरकर महीन करते हैं तब उसमें मक्खन निकलता है। तो यह भी महीनता में जाने की बात है। महीनता की कमी के कारण मेहनत होती है। महीनता में जाने की बजाए उस बात को मोटे रूप में देखते हैं। सर्विस के समय भी महीन बुद्धि हो, ज्ञान की महीनता में जाकर उसको सुनायें और उसज्ञा न की महीनता में ले जाये तो उनको भी मेहनत कम लगे। और अपने को भी कम लगे। इस महीनता की ही कमी है। अब यही पुरुषार्थ करना है।

 

शारीरिक शक्ति भी कब आती है? जब भोजन महीन रूप से खाओ, तो उस भोजन की शक्ति बनती है। भोजन का महीन रूप क्या बनता है? खून। जब खून बन जाता है तब शक्ति आ जाती है। तो अब सिर्फ बाहर के, ऊपर के रूप को न देखते हुए अन्दर जाने की कोशिश करो।

 

जितना हर बात में अन्दर जायेंगे, तब रत्न देखने में आयेंगे। और हर एक बात की वैल्यूका पता पड़ेगा। जितना ज्ञान की वैल्यू, सर्विस की वैल्यू का मालूम होगा उतना आप वैल्यूबल रत्न बनेंगे। ज्ञान रत्नों की वैल्यू कम करते हो तो खुद भी वैल्यूबल नहीं बन सकते। एक-एक रत्न की वैल्यू को परखने की कोशिश करो। आप बापदादा के वैल्यूबल रत्न हो ना! वैल्यूबल रत्न को क्या किया जाता हे? (छिपाकर रखना होता है) बापदादा के जो वैल्यूबल रत्न हैं उन्हो को बापदादा छिपाकर रखते हैं। माया से छिपाते हैं। माया से छिपाकर फिर कहाँ रखते हैं? जितना-जितना जो अमूल्य रत्न होंगे उतना-उतना बापदादा के दिल तख्त पर निवास करेंगे। जब दिल तख्तनशीन बनेंगे तब राज्य के तख्तनशीन बनेंगे। तो संगमयुग का कौन सा तख्त है? तख्त है वा बेगर हो? संगमयुग पर कौनसा तख्त मिलता है। बापदादा के दिल का तख्त। यह सारे जहान के तख्तों से श्रेष्ठ है। कितना भी बड़ा तख्त सतयुग में मिले लेकिन इस तख्त के आगे वह क्या है? इस तख्त पर रहने से माया कुछ नहीं कर सकती। इस पर उतरना चढ़ना नहीं पड़ेगा। इस पर रहने से माया के सर्व बन्धनों से मुक्त रहेंगे। अच्छा।

 

बापदादा के स्नेह और सम्बन्ध को प्रत्यक्ष करो

(पिछली मुरली का शेष भाग)

 

एक बात यह भी याद रखना कि जैसे बापदादा ने आप सभी बच्चों को सृष्टि के सामने प्रत्यक्ष किया है तो अब आप बच्चों का भी काम है कि हर कर्तव्य से, हर बात से बापदादा को अनेक आत्माओं के आगे प्रत्यक्ष करना है। वह है आपका कर्तव्य। यह भी अपना चार्ट देखो कि अब तक हमने बाप का संदेश तो दिया लेकिन उस संदेश से आत्माओं के अन्दर बापदादा के स्नेह और सम्बन्ध को प्रत्यक्ष किया? नहीं। तो वह सर्विस क्या रही? अधूरी सर्विस नहीं करनी है। अभी सम्पूर्ण समर्पण हुए हो तो सर्विस भी सम्पूर्ण करनी है। इसलिए हरेक को यह भी चेक करना है कि आज मैंने मन्सा, वाचा, कर्मणा कितनी आत्माओं के अन्दर बापदादा के स्नेह और सम्बन्ध को कहाँ तक प्रत्यक्ष किया है? सिर्फ संदेश देना सर्विस नहीं। संदेश देना अर्थात् उनको अपने सम्बन्धी बनाना। अपना सम्बन्धी बनाना अर्थात् शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारी बनाना। यह है अपना सम्बन्धी बनाना। अपना सम्बन्धी तब बनायेंगे जब उनको स्नेही बनायेंगे। स्नेही बनने से सम्बन्धी बन जायेंगे। सिर्फ संदेश देना तो चींटी मार्ग की सर्विस है, यह विहंग मार्ग की सर्विस है। दुनिया के अन्दर यह आवाज फैलाओ कि बापदादा अपने कर्तव्य को कैसे गुप्त वेश में कर रहे हैं। उनको इस स्नेह, सम्बन्ध में लाओ। हैं तो सभी आपके सम्बन्धी ना। तो सम्बन्धियों को अपना सम्बन्ध याद दिलाओ। बिछुड़ी आत्माओं को स्नेही बनाओ। अभी सर्विस का गुप्त रूप चल रहा है, प्रत्यक्ष रूप नहीं चल रहा है। म्यूजियम में आते हैं बाहर का प्रत्यक्ष रूप और चीज है। लेकिन सर्विस का रूप अभी गुप्त है। सर्विस का रूप जब प्रत्यक्ष होगा तब प्रत्यक्षता होगी। सर्विस कैसे वृद्धि को पाये उसके लिए नये-नये प्लैन्स भी बनाओ। आवाज कैसे हो। बेधड़क होकर सूचना देने, संदेश देने के लिए जाओ। प्रदर्शनी भी करते जाओ लेकिन बाद में उनको जो कहते हो वह तुम भी करो। आपस में मिलकर सोचो। दुनिया को यह कैसे मालूम हो कि अभी समय क्या है और कर्तव्य क्या हो रहा है? किसी भी रीति आवाज पहुँच जाये। पेपर द्वारा सर्विस होनी चाहिए, वह हुई नहीं हैं। एक संगठन के रूप में, एक दो को समझ, सहयोगी बन बेहद की सर्विस में बेहद का रूप लाना है।

 

इस ग्रुप में इमर्ज रूप में सभी को यह उमंग है कि जैसे बापदादा चाहते हैं वैसे ही हम 100 परसेन्ट करके दिखायेंगे। जैसे यह इमर्ज रूप में है, पूरा हो जायेगा। सभी के मन में जो है कि टोटली लौकिक कार्य से सभी सरेन्डर हो जायें वह दिन भी नज़दीक है। लेकिन वह तब होगा जब मन से सरेन्डर होंगे। फिर लौकिक कार्य से सरेन्डर होने में देरी नहीं लगेगी। इस बारी मन से सरेन्डर हो जाओ। जिसकी रिजल्ट अच्छी देखेंगे उस अनुसार नम्बर देंगे। भट्ठी का प्रोग्राम भल हो न हो लेकिन मधुबन तो है ही भट्ठी। मधुबन आते रहेंगे और अपना अमर बनने का सबूत देते रहेंगे। सभी से बड़ा सरेन्डर होना है - संकल्पों में कोई व्यर्थ संकल्प न आये। इन संकल्पों के कारण ही समय और शक्ति वेस्ट होती है। तो संकल्प से भी सम्पूर्ण समर्पण होना है। मन के उमंगों को अब प्रैक्टिकल में लाना है। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

वरदान:- मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्व शक्तियों की किरणें देने वाले विश्व कल्याणकारी भव

 

जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है ऐसे आप सभी भी मास्टर ज्ञान सूर्य हो तो अपने सर्व शक्तियों की किरणें विश्व को देते रहो। यह ब्राह्मण जन्म मिला ही है विश्व कल्याण के लिए तो सदा इसी कर्तव्य में बिजी रहो। जो बिजी रहते हैं वो स्वयं भी निर्विघ्न रहते और सर्व के प्रति भी विघ्न-विनाशक बनते। उनके पास कोई भी विघ्न आ नहीं सकता।

 

स्लोगन:- जिम्मेवारी सम्भालते हुए सब कुछ बाप को अर्पण कर डबल लाइट रहना ही फरिश्ता बनना है।