31-07-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 04-05-73 मधुबन
अधिकारी और अधीन
जितनी आवाज़ में आने की प्रैक्टिस निरन्तर और नेचरल रूप में है, ऐसे ही आवाज़ से परे अपनी आत्मा के स्वधर्म, शान्त स्वरूप की स्थिति का अनुभव भी नेचरल रूप में और निरन्तर करते हो? दोनों अभ्यास समान रूप में अनुभव करते हो या 84 जन्मों के शरीरधारी बनने के संस्कार बहुत कड़े हो गये हैं? 84 जन्म वाणी में आते रहते हो और 84 जन्मों के संस्कारों को एक सेकेण्ड में परिवर्तन कर सकते हो अर्थात् वाणी से परे स्थिति में स्थित हो सकते हो या वे संस्कार बार-बार अपनी तरफ आकर्षित करते हैं? क्या समझते हो? 84 जन्मों के संस्कार प्रबल हैं या इस सुहावने संगमयुग के एक सेकेण्ड में अशरीरी, वाणी से परे अपनी अनादि स्टेज का अनुभव भी प्रबल है? उसकी तुलना में वह स्टेज पॉवरफुल है जो अपनी तरफ आकर्षित कर सके या 84 जन्मों के संस्कार पॉवरफुल हैं? वह 84 जन्म हैं और यह एक सेकेण्ड का अनुभव है। फिर भी पॉवरफुल अनुभव कौन-सा है? क्या समझते हो? ज्यादा आकर्षण कौन करता है? वह अनुभव या यह अनुभव? वाणी में आने का संस्कार या वाणी से परे होने का अनुभव?
वास्तव में यह एक सेकेण्ड का अनुभव बहुत समय के अनुभव का आधार है, एक सेकेण्ड में अनेक प्राप्तियों को अनुभव कराने वाला है। इसलिये यह एक सेकेण्ड अनेक वर्षों के समान है। ऐसा अनुभव करते हो ना? जब चाहें और जैसे अपने मुख को चलाना चाहें वैसे चलायें। सेकेण्ड इसको कहा जाता है। इस शरीर को चलाने वाले मास्टर मालिकपन की स्टेज। तो मालिक बने हो? शरीर के मालिक बने हो? मालिक कौन बन सकता है, यह जानते हो? मालिक वह बन सकता है जो पहले बालक बन जाये। अगर बालक नहीं बनते तो आप अपने शरीर का मालिक भी नहीं बन सकते। सर्वशक्तिवान् के बालक अपनी प्रकृति के मालिक नहीं होंगे? जब यह स्मृति स्वरूप हो जाते हैं कि हम बालक सो मालिक हैं, अभी इस प्रकृति के मालिक हैं और फिर विश्व का मालिक बनना है अर्थात् जितना बालकपन याद रहेगा उतना मालिक-पन का नशा रहेगा, खुशी रहेगी, और इस मस्ती में मग्न रहेंगे। अगर किसी भी समय प्रकृति के आधीन हो जाते हैं तो उसका कारण क्या है? अपनी मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज को भूल जाते हैं। अपने अधिकार को सदैव सामने नहीं रखते हैं। अधिकारी कभी किसी के आधीन नहीं होते।
अपने को एवर-रेडी और ऑलराउण्डर समझते हो? एवर-रेडी का अर्थ क्या है? कैसी भी परिस्थिति हो, कैसी भी परीक्षायें हों लेकिन श्रीमत प्रमाण जिस स्थिति में स्थित होना चाहते हो, क्या उसमें स्थित हो सकते हो? ऑर्डर पर एवर-रेडी हो? ऑर्डर अर्थात् श्रीमत। तो ऐसे एवर-रेडी हो जो संकल्प भी श्रीमत प्रमाण चले? ऐसे एवररेड़ी हो? श्रीमत है-एक सेकेण्ड में साक्षी अवस्था में स्थित हो जाओ, तो उस साक्षी अवस्था में स्थित होने में एक सेकेण्ड के बजाय अगर दो सेकेण्ड भी लगाये तो क्या उसको एवररेडी कहेंगे? जैसे मिलिट्री को ऑर्डर होता है - स्टॉप तो फौरन स्टॉप हो जाते हैं। स्टॉप कहने के बाद एक पाँव भी आगे नहीं बढ़ा सकते हैं। इसी प्रमाण श्रीमत मिले व डायरेक्शन मिले और एक सेकेण्ड में उस स्थिति में स्थित हो जायें दूसरा सेकेण्ड भी न लगे-इसको कहा जाता है एवर-रेडी। ऐसी स्टेज में एक सेकेण्ड में उस स्थिति में स्थित हो जायें।
एक सेकेण्ड में अपने को स्थित करने के इस पुरूषार्थ को ही तीव्र पुरूषार्थ कहा जाता है। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो ना? पुरुषार्थी की स्टेज से अभी पार हो गये हो ना? क्या सभी अभी तीव्र पुरुषार्थी की स्टेज पर पहुंच गये हैं? ऐसे अपने को अनुभव करते हो? जरा भी संकल्पों की हलचल न हो, ऐसी स्टेज अनुभव करते जा रहे हो? इसी हिसाब से सभी एवर-रेडी हो? शक्ति सेना तो एवर-रेडी बन गई ना? शस्त्रधारी शक्ति सेना इस स्थिति तक पहुंच गयी है, या पहुँचे कि पहुँचे? क्या अभी पहुंचे नहीं हैं? क्या समझते हो? इसमें पाण्डव नम्बर वन हैं या शक्तियाँ? कमाल यह है कि पाण्डव वातावरण व वायुमण्डल के सम्पर्क में आते हुए भी अपनी स्थिति को ऐसा बना लें जैसे अपनी कार हो या कोई भी सवारी हो तो उसको जहाँ चाहो, वहाँ रो सकते हो कि नहीं? ऐसे अपनी हर कर्म-इन्द्रियों को जब चाहो जैसे चाहो वहाँ लगाओ और जब न लगाना हो तो कर्म-इन्द्रियों को कन्ट्रोल कर सको। अपनी बुद्धि को जहाँ चाहो, जितना समय चाहो, उतना समय उस स्थिति में स्थित कर सकते हो ना? क्या पाण्डव फर्स्ट नहीं हैं? या जिस बात में अपना बचाव हो उसमें शक्तियों को आगे करते हैं और क्या शक्तियों को ढाल बनाते हो? शक्तियाँ भी कम नहीं। शक्तियाँ पाण्डवों को एकस्ट्रा हैल्प दे देंगी। शक्तियाँ महादानी हैं तो ऐसे एवर-रेडी बनाना है।
अच्छा, ऑलराउण्डर का अर्थ समझते हो? ऑलराउण्डर का अर्थ क्या है? ऑलराउण्डर तो हो ना? सम्पूर्ण स्टेज में ऑलराउण्डर की स्टेज कौनसी है? इसमें तीन विशेष बातें ध्यान में रखने की हैं। जो ऑलराउण्डर होगा वह एक तो सर्विस में रहेगा, दूसरा स्वभाव व संस्कार में भी सभी से मिक्स हो जाने का उसमें विशेष गुण होगा। तीसरा कोई भी स्थूल कार्य जिसको कर्मणा कहा जाता है उसी कर्मणा की सब्जेक्ट में भी जहाँ उसको जिस समय फिट करना चाहे वहाँ ऐसे फिट हो जाये जैसे कि बहुत समय से इसी कार्य में लगा हुआ है, कोई नया अनुभव न हो। हर कार्य में अति पुराना और जानने वाला दिखाई दे। जो तीनों ही बातों में जो हर समय फिट हो जाते व लग जाते हैं उसको कहा जाता है - ऑलराउण्डर। क्योंकि इस एक-एक बात के आधार पर कर्मों की रेखायें बनती हैं व आत्मा में संस्कारों का रिकार्ड भरता है। इसलिये इन सभी बातों का प्रारब्ध से बहुत कनेक्शन है।
अगर किसी भी बात में 90 प्रतिशत है, 10 प्रतिशत की कमी है तो प्रारब्ध में भी इतनी थोड़ी-सी कमी का भी प्रभाव पड़ता है। इस सूक्ष्म कमी के कारण ही नम्बर घट जाते हैं। वैसे देखेंगे कि जो हम-शरीक पुरुषार्थी दिखाई देते हैं उनमें मुख्य बातें एक-दूसरे में समान दिखाई देंगी लेकिन यदि महीन रूप से देखेंगे तो कोई- न-कोई परसेन्टेज में कमी होने के कारण हम-शरीक (बराबरी के) दिखाई देते हुए भी नम्बर में फर्क पड़ जाता है। तो इससे अपने नम्बर को जान सकते हो कि हमारा नम्बर कौन-सा होगा? तीनों ही बातों में परसेन्टेज कितनी है? तीनों ही बातें मुझ में हैं, सिर्फ इसमें ही खुश नहीं होना है। इससे नम्बर नहीं बनेंगे। कितनी परसेन्टेज में हैं उस प्रमाण नम्बर बनेंगे। तो ऐसे एवररेड़ी और ऑलराउण्डर बने हैं?
लक्ष्य तो सभी का फर्स्ट का है ना? लास्ट में भी अगर आये तो क्या हर्जा, ऐसा लक्ष्य तो नहीं है ना? अगर यह लक्ष्य भी रखते हैं कि जितना मिला उतना ही अच्छा तो उसको क्या कहा जायेगा? ऐसी निर्बल आत्मा का टाइटल कौन-सा होगा? ऐसी आत्माओं का शात्रं में भी गायन है। एक तो टाइटल बताओ कौन-सा है, दूसरा बताओ उनका गायन कौन-सा है? ऐसी आत्माओं का गायन है कि जब भगवान् ने भाग्य बाँटा तो वे सोये हुए थे। अलबेलापन भी आधी नींद है। जो अलबेलेपन में रहते हैं, वह भी नींद में सोने की स्टेज है। अगर अलबेले हो गये तो भी कहेंगे कि सोये हुए थे? ऐसे का टाइटल क्या होगा? ऐसे को कहा जाता है - ‘आये हुए भाग्य को ठोकर लगाने वाले’। भाग्यविधाता के बच्चे भी बने अर्थात् अधिकारी भी बने, भाग्य सामने आया अर्थात् बाप भाग्यविधाता सामने आया। सामने आये हुए भाग्य को बनाने की बजाय ठोकर मार दी तो ऐसे को क्या कहेंगे?-’भाग्यहीन’। वे कहीं भी सुख नहीं पा सकते। ऐसे तो कोई बनने वाले नहीं हैं ना? अपनी तकदीर बनाने वाले हो? जैसी तकदीर बनायेंगे वैसा भविष्य प्रारब्ध रूपी तस्वीर बनेगी!
अपनी भविष्य तस्वीर को जानते हो? अपनी तस्वीर बनाने वाले आार्टिस्ट हो ना? तो कहाँ तक अपनी तस्वीर बना चुके हो, स्वयं तो जानते हो ना? अभी तस्वीर बना रहे हो या सिर्फ फाइनल टचिंग की देरी है? तस्वीर बना चुके हो तो वह ज़रूर सामने आयेगी। अगर सामने नहीं आती तो बनाने में लगे हुये हो। बन गई तो वह फिर बार-बार सामने आयेगी। तो सभी नम्बर वन आार्टिस्ट हो, सेकेण्ड या थर्ड तो नहीं हो? कोई-कोई आार्टिस्ट अच्छे होते हैं। लेकिन फराकदिल नहीं होते तो कुछ कमी कर देते हैं। तो जैसे आार्टिस्ट अच्छे हों, सामान भी बहुत अच्छा मिला हुआ हो तो वैसे फराकदिल भी बनो। अर्थात् अपने संकल्प, कर्म, वाणी, समय, श्वास सभी खजानों को फराकदिल से यूज़ करो तो तस्वीर अच्छी बन जायेगी। कइयों के पास होते हुए भी वे यूज़ नहीं करते हैं। एकॉनामी करते हैं। इसमें जितना फराकदिल बनेंगे उतना फर्स्ट क्लास बनेंगे। समय की भी एकॉनामी नहीं करनी है। इसी कार्य में लगाने में एकॉनामी नहीं करनी है। व्यर्थ कार्य में लगाने में एकॉनामी करो। श्रेष्ठ कार्य में एकॉनामी नहीं करनी है। सुनाया था ना! यथार्थ एकॉनामी कौन-सी है? एकनामी बनना। एक का नाम सदा स्मृति में रहे। ऐसा एकनामी ‘एकॉनामी’ कर सकता है। जो एकनामी नहीं वह यथार्थ एकॉनामी नहीं कर सकता। कितना भी भले प्रयत्न करे। अच्छा।
ऐसे सदा स्वधर्म अर्थात् वाणी से परे स्थिति में स्थित रहते हुए वाणी में आने वाले व सदैव सर्वशक्तियों को कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान्, एवर-रेडी, ऑलराउण्डर बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी। ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह- अभिमान की चंचलता न हो। तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी। देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं। यह नैन साक्षात्कार के साधन बन जायेंगे।
लोगन:- सेवा के उमंग-उत्साह के साथ, बेहद की वैराग्य वृत्ति ही सफलता का आधार है।