16-01-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 10-06-72 मधुबन
सूक्ष्म अभिमान और अनजानपन
वर्तमान समय चारों ओर के पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में मुख्य दो बातों की कमज़ोरी वा कमी दिखाई देती है, जिस कमी के कारण जो कमाल दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा पाते, वह दो कमियां कौनसी हैं? एकज़ोरी वा कमी दिखाई देती है, जिस कमी के कारण जो कमाल दिखानी चाहिए वह नहीं दिखा पाते, वह दो कमियां कौनसी हैं? एक तरफ है अभिमान, दूसरी तरफ है अनजानपन। यह दोनों ही बातें पुरूषार्थ को ढीला कर देती हैं। अभिमान भी बहुत सूक्ष्म चीज़ है। अभिमान के कारण कोई ने ज़रा भी कोई उन्नति के लिए इशारा दिया तो सूक्ष्म में न सहनशक्ति की लहर आ जाती है वा संकल्प आता है कि यह क्यों कहा? इसको भी अभिमान सूक्ष्म रूप में कहा जाता है। कोई ने कुछ इशारा दिया तो उस इशारे को वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए उन्नति का साधन समझकर के उस इशारे को समा देना वा अपने में सहन करने की शक्ति भरना - यह अभ्यास होना भी कोई उन्नति के लिए इशारा दिया तो सूक्ष्म में न सहनशक्ति की लहर आ जाती है वा संकल्प आता है कि यह क्यों कहा? इसको भी अभिमान सूक्ष्म रूप में कहा जाता है। कोई ने कुछ इशारा दिया तो उस इशारे को वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए उन्नति का साधन समझकर के उस इशारे को समा देना वा अपने में सहन करने की शक्ति भरना - यह अभ्यास होना चाहिए। सूक्ष्म में भी वृति वा दृष्टि में हलचल मचती है - क्यों, कैसे हुआ...? इसको भी देही-अभिमानी की स्टेज नहीं कहेंगे। जैसे महिमा सुनने के समय वृति वा दृष्टि में उस आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, वैसे ही अगर कोई शिक्षा का इशारा देते हैं, तो उसमें भी उसी आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिन्तक की भावना रहती कि यह आत्मा मेरे लिए बड़ी से बड़ी शुभचिन्तक है, ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी। अगर देही- अभिमानी नहीं हैं तो दूसरे शब्दों में अभिमान कहेंगे। इसलिए अपमान को सहन नहीं कर सकते। और दूसरे तरफ है बिल्कुल अनजान, इस कारण भी कई बातों में धोखा खाते हैं। कोई अपने को बचाने के लिए भी अनजान बनता है, कोई रीयल भी अनजान बनता है। तो इन दोनों बातों के बजाए स्वमान जिससे अभिमान बिल्कुल खत्म हो जाए और निर्माण, यह दोनों बातें धारण करनी हैं। मन्सा में स्वमान की स्मृति रहे और वाचा में, कर्मणा में निर्माण अवस्था रहे तो अभिमान खत्म हो जाएगा। फिलोसोफर हो गए हैं लेकिन स्प्रीचुअल नहीं बने हैं अर्थात् यह स्पिरिट नहीं आई है। तो जो आत्मिक स्थिति में, आत्मिक खुमारी में रहते हैं - इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल। आजकल फिलासफर ज्यादा दिखाई देते हैं, स्प्रीचुअल पावर कम है। स्पिरिट एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखा सकती है! जैसे जादूगर एक सेकेण्ड में क्या से क्या कर दिखाते हैं, वैसे स्प्रीचुअल्टी वाले में भी कर्त्तव्य की सिद्धि आ जाती। उनमें हाथ की सिद्धि होती है। यह है हर कर्म, हर संकल्प में सिद्धि-स्वरूप। सिद्धि अर्थात् प्राप्ति। सिर्फ प्वाईंट्स सुनना, सुनाना - इसको फिलोसोफी कहा जाता है। फिलासाफी का प्रभाव अल्पकाल का पड़ता है, स्प्रीचुअल्टी का प्रभाव सदा के लिए पड़ता है। तो अभी अपने में कर्म की सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूहानियत लानी है। अनजान बनने का अर्थ है कि जो सुनते हैं उसको स्वरूप तक नहीं लाते हैं। योग्य टीचर उसको कहा जाता है जो अपने शिक्षा-स्वरूप से शिक्षा देवे। उनका स्वरूप ही शिक्षा सम्पन्न होगा। उनका देखना-चलना भी किसको शिक्षा देगा। जैसे साकार रूप में कदम-कदम, हर कर्म शिक्षक के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। जिसको दूसरे शब्दों में चरित्र कहते हो। किसको वाणी द्वारा शिक्षा देना तो कामन बात है। लेकिन सभी अनुभव चाहते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति से अनुभव कराना है। अच्छा।
दुसरी मुरली - 16-06-72
हर्षित रहना ही ब्राह्मण जीवन का विशेष संस्कार
सदा हर्षित रहने के लिए कौन-सी सहज युक्ति है? सदा हर्षित रहने का यादगार रूप में कौन-सा चित्र है, जिसमें विशेष हर्षितमुख को ही दिखाया है? विष्णु का लेटा हुआ चित्र दिखाते हैं। ज्ञान को सिमरण कर को ही दिखाया है? विष्णु का लेटा हुआ चित्र दिखाते हैं। ज्ञान को सिमरण कर हर्षित हो रहा है। विशेष, हर्षित होने का चित्र ही यादगार रूप में दिखाया हुआ है। विष्णु अर्थात् युगल रूप। विष्णु के स्वरूप आप लोग भी हो ना। नर से नारायण वा नारी से लक्ष्मी आप ही बनने वाले हो या सिर्फ बाप बनते हैं? नर और नारी, दोनों ही जो ज्ञान को सिमरण करते हैं वह ऐसे हर्षित रहते हैं। तो हर्षित रहने का साधन क्या हुआ? ज्ञान का सिमरण करना। जो जितना ज्ञान को सिमरण करते हैं वह उतना ही हर्षित रहते हैं। ज्ञान का सिमरण ना चलने का कारण क्या है? व्यर्थ सिमरण में चले जाते हो। व्यर्थ सिमरण होता है तो ज्ञान का सिमरण नहीं होता। अगर बुद्धि सदा ज्ञान के सिमरण में तत्पर रखो तो सदा हर्षित रहेंगे, व्यर्थ सिमरण होगा ही नहीं। ज्ञान सिमरण करने के लिए, सदैव हर्षित रहने के लिए खज़ाना तो बहुत मिला हुआ है। जैसे आजकल कोई बहुत धनवान होते हैं - तो कहते हैं इनके पास तो अनगिनत धन है। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना जो मिला है वह गिनती कर सकते हो? इतना अनगिनत होते हुए फिर छोड़ क्यों देते हो? कोई कमी के कारण ही उस चीज़ का न होना सम्भव होता है। लेकिन कमी न होते भी चीज़ न हो, यह तो नहीं होना चाहिए ना। ज्ञान के खज़ाने से वह बातें ज्यादा अच्छी लगती हैं क्या? जैसे समझते हो कि यह बहुत समय की आदत पड़ी हुई है, इसलिए ना चाहते भी आ जाता है। तो अब ज्ञान का सिमरण करते हुए कितना समय हुआ है? संगम का एक वर्ष भी कितने के बराबर है? संगम का एक वर्ष भी बहुत बड़ा है! इसी हिसाब से देखो तो यह भी बहुत समय की बात हुई ना। तो जैसे वह बहुत समय के संस्कार होने के कारण ना चाहते भी स्मृति में आ जाते हैं, तो से वह बातें ज्यादा अच्छी लगती हैं क्या? जैसे समझते हो कि यह बहुत समय की आदत पड़ी हुई है, इसलिए ना चाहते भी आ जाता है। तो अब ज्ञान का सिमरण करते हुए कितना समय हुआ है? संगम का एक वर्ष भी कितने के बराबर है? संगम का एक वर्ष भी बहुत बड़ा है! इसी हिसाब से देखो तो यह भी बहुत समय की बात हुई ना। तो जैसे वह बहुत समय के संस्कार होने के कारण ना चाहते भी स्मृति में आ जाते हैं, तो यह भी बहुत समय की स्मृति नेचरल क्यों नहीं रहती? जो नई बात वा ताजी बात होती है वह तो और ही ज्यादा स्मृति में रहनी चाहिए, क्योंकि प्रेजेन्ट है ना। वह तो फिर भी पास्ट है। तो यह प्रेजेन्ट की बात है, फिर पास्ट क्यों याद आता? जब पास्ट याद आता है तो पास्ट के साथ-साथ यह भी याद आता है कि इससे प्राप्ति क्या होगी? जब उससे कोई भी प्राप्ति सुखदायी नहीं होती है तो फिर भी याद क्यों करते हो? रिजल्ट सामने होते हुए भी फिर भी याद क्यों करते हो? यह भी समझते हो कि वह व्यर्थ है। व्यर्थ का परिणाम भी व्यर्थ होगा ना। व्यर्थ परिणाम समझते भी फिर प्रैक्टिकल में आते हो तो इसको क्या कहा जाए? निर्बलता। समझते हुए भी कर ना पावें - इसको कहा जाता है निर्बलता। अब तक निर्बल हो क्या? अथॉरिटी वाले की निशानी क्या होती है? उसमें विल-पावर होती है, जो चाहे वह कर सकता है, करा सकता है। इसलिए कहा जाता है - यह अथॉरिटी वाला है। बाप ने जो अथॉरिटी दी है वह अभी प्राप्त नहीं की है क्या? मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी हो? आलमाइटी अर्थात् सर्व शक्तिवान। जिसके पास सर्व शक्तियों की अथॉरिटी है वह समझते भी कर ना पावे तो उनको आलमाइटी अथॉरिटी कहेंगे? यह भूल जाते हो कि मैं कौन हूँ?
यह तो स्वयं की पोजीशन है ना। तो क्या अपने आपको भूल जाते हो? असली को भूल नकली में आ जाते हो। जैसे आजकल अपनी सूरत को भी नकली बनाने का फैशन है। कोई-न-कोई श्रृंगार करते हैं जिसमें असलियत छिप जाती है। इसको कहते हैं आर्टिफिशल आसुरी श्रृंगार। असल में भारतवासी फिर भी सभी धर्मों की आत्माओं की तुलना में सतोगुणी हैं। लेकिन अपना नकली रूप बना कर, आर्टिफिशल एक्ट और श्रृंगार कर दिन-प्रतिदिन अपने को असुर बनाते जा रहे हैं। आप तो असलियत को नहीं भूलो। असलियत को भूलने से ही आसुरी संस्कार आते हैं। लौकिक रूप में भी, जो पावरफुल बहुत होता है उसके आगे जाने की कोई हिम्मत नहीं रखते। आप अगर आलमाइटी अथॉरिटी की पोजीशन पर ठहरो तो यह आसुरी संस्कार वा व्यर्थ संस्कारों की हिम्मत हो सकती है क्या आपके सामने आने की? अपनी पोजीशन से क्यों उतरते हो? संगमयुग का असली संस्कार है जो सदा नॉलेज देता और लेता रहता है उसको सदा ज्ञान स्मृति में रहेगा और सदा हर्षित रहेगा। ब्राह्मण जीवन के विशेष संस्कार ही हर्षितपने के हैं। फिर इससे दूर क्यों के हैं। फिर इससे दूर क्यों हो जाते हो? अपनी चीज़ को कब छोड़ा जाता है क्या? यह संगम की अपनी चीज़ है ना। अवगुण माया की चीज़ है जो संगदोष से ले ली। अपनी चीज़ है दिव्य गुण। अपनी चीज़ को छोड़ देते हो। सम्भालना नहीं आता है क्या? घर सम्भालना आता है? हद के बच्चे आदि सब चीजें सम्भालने आती हैं और बेहद की सम्भालना नहीं आती? हद को बिल्कुल पीठ दे दी कि थोड़ा-थोड़ा है? जैसे रावण को सीता की पीठ दिखाते हैं, ऐसे ही हद को पीठ दे दी? फिर उनके सामने तो नहीं होंगे? कि फिर वहां जाकर कहेंगे क्या करें? अभी बेहद के घर में बेहद का नशा है, फिर हद के घर में जाने से हद का नशा हो जायेगा। अभी उमंग-उल्लास जो है वह हद में तो नहीं आ जायेगा? जैसे अभी बेहद का उमंग वा उल्लास है, उसमें कुछ अन्तर तो नहीं आ जायेगा ना। हद को विदाई दे दी कि अभी भी थोड़ी खातिरी करेंगे? समझना चाहिए - यह अलौकिक जन्म किसके प्रति है? हद के कार्य के प्रति है क्या? अलौकिक जन्म क्यों लिया? जिस कार्य अर्थ यह अलौकिक जन्म लिया वो कार्य नहीं किया तो क्या किया? लोगों को कहते हो ना - बाप के बच्चे होते बाप का परिचय ना जाना तो बच्चे ही कैसे? ऐसे ही अपने से पूछो - बेहद के बाप के बेहद के बच्चे बन चुके हो, मान चुके हो, जान चुके हो फिर भी बेहद के कार्य में ना आवें तो अलौकिक जन्म क्या हुआ? अलौकिक जन्म में ही लौकिक कार्य में लग जावें तो क्या फायदा हुआ? अपने जन्म और समय के महत्व को जानो तब ही महान् कर्त्तव्य करेंगे। गैस के गुब्बारे नहीं बनना है। वह बहुत अच्छा फूलता है और उड़ता है, लेकिन टेम्प्ररेरी। तो ऐसे गुब्बारे तो नहीं हो ना। अच्छा।
वरदान:- अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा पतित वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले मास्टर पतित-पावनी भव
कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन स्वयं की शक्तिशाली वृत्ति वायुमण्डल को बदल सकती है। वायुमण्डल विकारी हो लेकिन स्वयं की वृत्ति निर्विकारी हो। जो पतितों को पावन बनाने वाले हैं वो पतित वायुमण्डल के वशीभूत नहीं हो सकते। मास्टर पतित-पावनी बन स्वयं की पावरफुल वृत्ति से अपवित्र वा कमजोरी का वायुमण्डल मिटाओ, उसका वर्णन कर वायुमण्डल नहीं बनाओ। कमजोर वा पतित वायुमण्डल का वर्णन करना भी पाप है।
स्लोगन:- अब धरनी में परमात्म पहचान का बीज डालो तो प्रत्यक्षता होगी।