ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब इतने बच्चे हैं तो जरूर बेहद का बाप होगा। बाप
समझाते हैं - कहते भी हैं निराकार शिवबाबा। ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं, विष्णु वा
शंकर को बाबा नहीं कहेंगे। शिव को हमेशा बाबा कहते हैं। शिव का चित्र अलग, शंकर का
चित्र अलग है। गीत भी है शिवाए नम:। फिर कहा जाता है तुम मात-पिता........ यह भी
समझाना बहुत सहज है कि बरोबर निराकार शिव को ही बाप कहते हैं। वह है सभी आत्माओं का
बाप। शंकर वा विष्णु निराकार तो नहीं हैं। शिव को निराकार कहेंगे। मन्दिरों में उन
सबके चित्र हैं। भक्ति मार्ग में कितने चित्र हैं। ऊंच ते ऊंच चित्र दिखाते हैं
शिवबाबा का, फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का चित्र दिखाते हैं। उनका भी रूप है। जगत
अम्बा, जगत पिता का भी रूप है। लक्ष्मी-नारायण का भी साकारी रूप है। बाकी एक ही
भगवान् है निराकार। परन्तु उनको सिर्फ गॉड कहने से मनुष्य मूँझते हैं। पूछो - गॉड
तुम्हारा क्या लगता है, कहेंगे फादर। तो यह सिद्ध कर बतलाना है गॉड फादर है। फादर
रचता है तो मदर भी चाहिए। मदर बिगर फादर कैसे सृष्टि रचेंगे। वह फादर कब आयेंगे? सब
बुलाते हैं - हे पतितों को पावन बनाने वाले आओ। अभी तो सारी दुनिया पतित है। पतित
हो तब तो आकर पावन बनायेंगे ना। इससे सिद्ध होता है बाप को पतित दुनिया में आना
जरूर है। परन्तु ड्रामा अनुसार यह किसी को भी समझ में नहीं आयेगा। न समझें तब तो
बाप आकर समझाये। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। भारत में ही गाया जाता है ज्ञान और
भक्ति, फिर कहते हैं ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। रात में घोर अन्धियारा होता
है। गाया भी जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश। मनुष्यों में इतना
तो अज्ञान है जो फादर को भी नहीं जानते। इन जैसा अज्ञान और कोई होता नहीं। परमपिता,
ओ गॉड फादर अक्षर कहकर अगर उसको न जानें तो उन जैसा अज्ञान कोई नहीं। बच्चे बाबा कहें
और फिर कहें हम उनके आक्यूपेशन, नाम, रूप आदि को नहीं जानते हैं तो उनको अनाड़ी कहा
जाए ना। यही भारतवासियों की भूल है जो फादर कहते हुए फिर उनको जानते नहीं। गाते हैं
- ओ गॉड फादर, आकर पतितों को पावन बनाओ, दु:ख से छुड़ाओ, दु:ख हरकर सुख दो। बाप एक
ही बार आते हैं। यह तुम जानते हो नम्बरवार। कोई तो समझते नहीं कि हमको बाप से पूरा
वर्सा लेना है।
बाप का पूरा परिचय नहीं इसलिए कहते हैं क्या करें, बन्धन है। जीते जी मरना आ जाए
तो तुम्हारा बन्धन ख़लास हो जाए। मनुष्य अचानक मर जाते हैं तो बन्धन छूट जाते हैं।
अभी तो सबके बन्धन छूटने वाले हैं। तुम्हें जीते जी निर्बन्धन अर्थात् अशरीरी बनना
है। बाप कहते हैं इन शरीर के बन्धनों आदि को भूल जाओ। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को
याद करो। बाकी बन्धन तब लगता है जब तुम देह-अभिमानी बनते हो फिर कहते हो - कैसे छूटें?
बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो परन्तु बुद्धि में रहे - हमको वापिस जाना
है। जैसे नाटक का जब अन्त होता है तो एक्टर्स नाटक से जैसे उपराम हो जाते हैं।
पार्ट बजाते-बजाते बुद्धि में रहता है - बाकी थोड़ा टाइम है, यह पार्ट बजाकर फिर घर
जायेंगे। तुमको भी यह बुद्धि में रखना है - अभी अन्त है, हम दैवी सम्बन्ध में जाते
हैं। इस पुरानी दुनिया में रहते यह बुद्धि में रहना चाहिए कि हम बाप के पास जाते
हैं। गाते भी हैं हम तुम पर बलिहार जायेंगे। जीते जी तुम्हारा बनेंगे। बाकी जो देह
सहित देह के सम्बन्ध हैं उनको भूल हम आपके साथ ही सम्बन्ध रखेंगे। सम्बन्ध है तो
याद करो, प्यार करो। बाप से अथवा अपने प्रीतम से बुद्धि का योग लगाओ। तो तुम पर जो
जंक लगी है वह उतर जायेगी। योग तो गाया हुआ है ना। और सब जिस्मानी योग हैं - मामा,
चाचा, काका, गुरू गोसाई आदि सबसे योग रखते हैं। बाप कहते हैं इन सबसे योग हटाए मुझ
एक को याद करो। योग मुझ एक के साथ लगाओ। देह-अभिमान में नहीं आओ। देह से कर्म करते
हुए भी यह निश्चय करो कि हम पार्ट बजा रहे हैं। इस पुरानी दुनिया का अब अन्त है, अभी
हमको वापिस जाना है, देह सहित देह के सब सम्बन्धों से उपराम होना है। ऐसे-ऐसे अपने
साथ बातें करनी है। अब तो बाप के पास जाना है। किसी को स्त्री का बन्धन है, किसी को
पति का बन्धन है, किसी को कोई का बन्धन है। बाबा तो युक्तियां बहुत बतलाते हैं। बोल
दो - हमको पवित्र बन भारत को पवित्र जरूर बनाना है। हम पवित्र बन तन-मन-धन से सेवा
करते हैं। परन्तु पहले नष्टोमोहा चाहिए। मोह नष्ट हो तो गवर्मेन्ट को चिट्ठी लिखो,
तो वह भी तुमको सहयोग देंगे। भगवानुवाच - काम महाशत्रु है, हम उन पर जीत पाकर
पवित्र रहना चाहते हैं। बाप का फ़रमान है पवित्र बनो तो स्वर्ग का मालिक बनोगे। हमको
विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हुआ है, अभी पवित्र बनने में हमको यह विघ्न डालते
हैं, मारते हैं। मैं तो भारत की सच्ची सेवा में हूँ। अब मुझे एशलम दो। परन्तु पक्का
नष्टोमोहा चाहिए। संन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। यहाँ तो साथ रहते नष्टोमोहा बनना
है। संन्यासियों का मार्ग अलग है। मनुष्य कहते भी हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते
हमको ऐसा ज्ञान दो जो हम राजा जनक मुआफिक मुक्ति, जीवन-मुक्ति को पा लें। वही तो अब
तुमको मिलता है ना।
बाबा कहते हैं यह मेरी वन्नी (युगल) है, इनके मुख से मैं प्रजा रचता हूँ।
प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा ही कहते हैं। शिवबाबा तुमको कहते हैं तुम मेरे
पोत्रे हो। यह फिर कहते तुम मेरे बच्चे बन शिवबाबा के पोत्रे बनते हो। वर्सा उनसे
मिलता है। स्वर्ग का वर्सा कोई मनुष्य दे न सके। निराकार ही देते हैं। तो भक्ति अलग
चीज़ है और ज्ञान अलग है। भक्ति में तो वेद-शास्त्र पढ़ते, यज्ञ-तप, दान-पुण्य आदि
करते बहुत खर्चा होता है, यह है सारी भक्ति की सामग्री। भक्ति शुरू होती है द्वापर
से। देवी-देवता जब वाम मार्ग में आकर पतित बनते हैं तो फिर देवी-देवता नाम कहला न
सके क्योंकि देवतायें तो सम्पूर्ण निर्विकारी थे। वाम मार्ग में जाने से विकारी बन
जाते हैं। तो कहेंगे देवता धर्म वाले वाम मार्ग में आकर पतित बने हैं। पतित को देवता
कह नहीं सकते, इसलिए फिर हिन्दू नाम रखा है। वेदों-शास्त्रों में आर्य नाम रख दिया
है। आर्य नाम इस भारतखण्ड के लिए है। अभी यह अक्षर आया कहाँ से? सतयुग में तो आर्य
अक्षर है नहीं। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत में देवी-देवता बड़े
समझदार थे फिर वही देवता जब द्वापर में विकारी बनते हैं तो अन-आर्य कहा जाता है। एक
ने आर्य कहा तो बस, नाम चल पड़ता। जैसे एक ने कृष्ण भगवानुवाच कहा अथवा लिखा तो बस,
वह मानने लग पड़ते। गाते भल हैं शिवाए नम:, तुम मात-पिता........परन्तु वह कैसे
मात-पिता बनते हैं, कब रचना रचते हैं यह नहीं जानते। जरूर सृष्टि के आदि में रचते
होंगे। अब सृष्टि का आदि किसको कहा जाए? सतयुग को या संगमयुग को? सतयुग में तो बाप
आते नहीं हैं। सतयुग आदि में तो आते हैं लक्ष्मी-नारायण। उन्हों को सतयुग का मालिक
किसने बनाया? कलियुग में भी नहीं आते। यह है कल्प का संगमयुग। बाप कहते हैं मैं हर
कल्प के संगमयुगे आता हूँ जबकि सब आत्मायें पतित बन जाती हैं अथवा सृष्टि पुरानी हो
जाती है। ड्रामा का चक्र पूरा हो तब तो बाप आयेंगे ना। तुम बच्चों में बड़ी होशियारी
चाहिए, धारणा चाहिए। अब कान्फ्रेन्स करते हैं कि वेद पढ़ने से फ़ायदा क्या होता है?
वेद पढ़ना चाहिए तो क्यों? फैंसला कुछ भी कर नहीं सकेंगे। फिर वही कान्फ्रेन्स दूसरे
वर्ष करेंगे। फैंसला करने बैठते हैं परन्तु होता कुछ भी नहीं है। विनाश की तैयारियां
भी होती रहती हैं। बाम्ब्स बनाते रहते। अभी है ही कलियुग। यह बातें तुम बच्चे ही
जानते हो। तुम्हारी बातें ही निराली हैं। तुम जानते हो मनुष्य, मनुष्य को गति-सद्गति
दे न सके। गाते भी हैं पतित-पावन, तो अपने को पतित क्यों नहीं समझते? यह है पतित
दुनिया, विषय सागर। सब थोड़ेही खिवैया बन सकते हैं।
अभी तुम बच्चों में वह ताकत आई नहीं है जो पूरा समझा सको। अभी तुम इतना होशियार
नहीं बने हो। योग भी नहीं है। अब तक छोटे बच्चों मुआफिक रोते रहते हैं। माया के
तूफान में ठहर नहीं सकते हैं। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी बनते नहीं। बाबा तो
बार-बार कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। अभी हमको वापिस जाना है। सभी एक्टर्स जो
अपना-अपना पार्ट बजाते हैं, सब शरीर छोड़कर वापिस घर जायेंगे। तुम साक्षी होकर देखो।
देहधारी सम्बन्धों में, देह में मोह क्यों रखते हो? विदेही बनते नहीं। फिर विकर्म
विनाश नहीं होते। बाप को याद करते रहें तो खुशी का पारा चढ़े। हमको शिवबाबा पढ़ाते
हैं फिर हम देवी-देवता बनेंगे तो अपार खुशी होनी चाहिए ना।
तुम जानते हो भारतवासी जब सुख में थे तो बाकी सब मनुष्य निर्वाणधाम, शान्तिधाम
में थे। अभी तो कितने करोड़ों मनुष्य हैं। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो, जीवनमुक्ति
पाने का। बाकी सब वापिस चले जायेंगे। पुरानी दुनिया बदल नई दुनिया बननी है। नया तो
बाप ही बनायेगा। सैपलिंग लग रही है। यह है दैवी फूलों का सैपलिंग। कांटे से तुम फूल
बनते हो। बगीचा पूरा तैयार हो जायेगा तो यह कांटों का जंगल ख़त्म हो जायेगा। इनको
आग लगनी है। फिर हम फूलों के बगीचे में चले जायेंगे। क्यों न मम्मा-बाबा को फालो करें।
गाया हुआ है फालो फादर-मदर। जानते हो यह मम्मा-बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
इन्होंने ही 84 जन्म बिताये हैं। तुम्हारा भी ऐसे ही है। इनका मुख्य पार्ट है। लिखा
भी जाता है बाप आकर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी स्वराज्य फिर से स्थापन कर रहे हैं। कितना
समझाया जाता है, तो भी देह-अभिमान टूटता नहीं है। मेरा पति, मेरा बच्चा........ अरे,
यह तो पुरानी दुनिया के पुराने सम्बन्ध हैं ना। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। सभी
देहधारियों से ममत्व मिट जाना बड़ा मुश्किल होता है। बाप समझ जाते हैं, इनका ममत्व
मिटना मुश्किल दिखता है। शक्ल ही ऐसे देखने में आती है। कुमारियां अच्छी मददगार बनती
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह सहित सबसे मोह निकाल विदेही बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है। हर
एक्टर का पार्ट साक्षी हो देखना है। बन्धन-मुक्त बनना है।
2) इस पुरानी दुनिया से उपराम होना है, अपने आपसे बातें करनी है कि हमें तो अब
वापस जाना है। अब पुरानी दुनिया के अन्त का समय है, हमारा पार्ट पूरा हुआ।