08-06-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 24-07-69 मधुबन
“बिंदु रूप की प्रैक्टिस”
मीठे-मीठे बच्चे किसके सामने बैठे हो? और क्या होकर बैठे हो? बाप तो तुम बच्चों को बिन्दी रूप बनाने आये हैं । मैं आत्मा बिन्दु रूप हूँ । बिन्दी कितनी छोटी होती है और बाप भी कितना छोटा है । इतनी छोटी सी बात भी तुम बच्चों की बुद्धि में नहीं आती है? बाप तो बच्चों के सामने ही है । दूर नहीं । दूर हुई चीज को भूल जाते हो । जो चीज सामने ही रहती है उस चीज को भूलना यह तुम बच्चों को तो शोभा नहीं देता है । अगर बच्चे बिन्दी को ही भूल जायेंगे तो बोलो किस आधार पर चलेंगे? आत्मा के ही तो आधार से शरीर भी चलता है । मैं आत्मा हूँ यह नशा होना चाहिये कि मैं बिन्दु-बिन्दु की ही संतान हूँ । संतान कहने से ही स्नेह में आ जाते हैं । तो आज तुम बच्चों को बिन्दु रूप में स्थित होने की प्रैक्टिस करायें? मैं आत्मा हूँ, इसमें तो भूलने की ही आवश्यकता नहीं रहती है । जैसे मुझ बाप को भूलने की जरूरत पड़ती है? हाँ परिचय देने के लिये तो जरुर बोलना पड़ता है कि मेरा नाम रूप, गुण, कर्तव्य क्या है । और मैं फिर कब आता हूँ? किस तन में आता हूँ? तुम बच्चों को ही अपना परिचय देता हूँ । तो क्या बाप अपने परिचय को भूल जाते हैं? बच्चे उस स्थिति में एक सेकेण्ड भी नहीं रह सकते हैं? तो क्या अपने नाम रूप देश को भी भूल जाते हैं? यह पहली-पहली बात है जो कि तुम सभी को बताते हो कि मैं आत्मा हूँ ना कि शरीर । जब आत्मा होकर बिठाते हो तभी उनको फिर शरीर भी भूलता है । अगर आत्मा होकर नहीं बिठाते हो तो क्या फिर देह सहित देह के सभी सम्बन्ध भूल जाते । जब उनको भुलाते हो तो क्या अपने शरीर से न्यारा होकर, जो न्यारा बाप है, उनकी याद में नहीं बैठ सकते हो?
अब सब बच्चे अपने को आत्मा समझ कर बैठो, सामने किसको देखें? आत्माओं के बाप को । इस स्थिति में रहने से व्यक्त से न्यारे होकर अव्यक्त स्थिति में रह सकेंगे । मैं आत्मा बिन्दु रूप हूँ, क्या यह याद नहीं आता है? बिन्दी रूप होकर बैठना नहीं आता? ऐसे ही अभ्यास को बढ़ाते जाओगे तो एक सेकेण्ड तो क्या कितने ही घंटों इसी अवस्था में स्थित होकर इस अवस्था का रस ले सकते हो । इसी अवस्था में स्थित रहने से फिर बोलने की जरूरत ही नहीं रहेगी । बिन्दु होकर बैठना कोई जड़ अवस्था नहीं है । जैसे बीज में सारा पेड़ समाया हुआ है वैसे ही मुझ आत्मा में बाप की याद समाई हुई है? ऐसे होकर बैठने से सब रसनायें आयेंगी । और साथ ही यह भी नशा होगा कि हम किसके सामने बैठे हैं! बाप हमको भी अपने साथ कहाँ ले जा रहे हैं! बाप तुम बच्चों को अकेला नहीं छोड़ता है । जो बाप का और तुम बच्चों का घर है, वहाँ पर साथ में ही लेकर जायेंगे । सब इकट्ठा चलने ही है । आत्मा समझकर फिर शरीर में आकर कर्म भी करना है । परन्तु कर्म करते हुये भी न्यारा और प्यारा होकर रहना है । बाप भी तुम बच्चों को देखते हैं । देखते हुए भी तो बाप न्यारा और प्यारा है ना। अच्छा।
ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने पर गुल्जार दादी द्वारा वतन से प्राप्त दिव्य सन्देश (जनवरी 1969)
1. आज जब हम वतन में गई तो शिवबाबा बोले - साकार ब्रह्मा की आत्मा में आदि से अन्त तक 84 जन्मों के चक्र लगाने के संस्कार हैं तो आज भी वतन से चक्र लगाने गये थे। जैसे साइंस वाले राकेट द्वारा चन्द्रमा तक पहुँचे - और जितना चन्द्रमा के नजदीक पहुँचते गये उतना इस धरती की आकर्षण से दूर होते गये। पृथ्वी की आकर्षण खत्म हो गई। वहाँ पहुँचने पर बहुत हल्कापन महसूस होता है। जैसे तुम बच्चे जब सूक्ष्मवतन में आते हो तो स्थूल आकर्षण खत्म हो जाती है तो वहाँ भी धरती की आकर्षण नहीं रहती है। यह है ध्यान द्वारा और वह है साइंस द्वारा। और भी एक अन्तर बापदादा सुना रहे थे - कि वह लोग जब राकेट में चलते हैं तो लौटने का कनेक्शन नीचे वालों से होता है लेकिन यहाँ तो जब चाहें, जैसे चाहें अपने हाथ में है। इसके बाद बाबा ने एक दृश्य दिखाया - एक लाइट की बहुत ऊँची पहाड़ी थी। उस पहाड़ी के नीचे शक्ति सेना और पाण्डव दल था। ऊपर में बापदादा खड़े थे। इसके बाद बहुत भीड़ हो गई। हम सभी वहाँ खड़े ऐसे लग रहे थे जैसे साकारी नहीं लेकिन मन्दिर के साक्षात्कार मूर्त खड़े हैं। सभी ऊपर देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऊपर देख नहीं सके। जैसे सभी बहुत तरस रहे थे। फिर थोड़ी देर में एक आकाशवाणी की तरह आवाज आई कि शक्तियों और पाण्डवों द्वारा ही कल्याण होना है। उस समय हम सबके चहरे पर बहुत ही रहमदिल का भाव था। उसके बाद फिर कई लोगों को शक्तियों और पाण्डवों से अव्यक्त ब्रह्मा का साक्षात्कार, शिवबाबा का साक्षात्कार होने लगा। फिर तो वह सीन देखने की थी कोई हसँ रहा था, कोई पकड़ने की कोशिश कर रहा था, कोई प्रेम में आंसू बहा रहा था। लेकिन सारी शक्तियाँ आग के गोले समान तेजस्वी रूप में स्थित थी। इस पर बाबा ने सुनाया कि अन्त समय में तुम्हारा यह व्यक्त शरीर भी बिल्कुल स्थिर हो जायेगा। अभी तो पुराना हिसाब-किताब होने के कारण शरीर अपनी तरफ खींचता है लेकिन अन्त में बिल्कुल स्थिर, शान्त हो जायेगा। कोई भी हल- चल न मन में, न तन में रहेगी। जिसको ही बाबा कहते हैं देही अभिमानी स्थिति। दृश्य समाप्त होने के बाद बाबा ने कहा - सभी बच्चों को कहना कि अभी देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो। जितना सर्विस पर ध्यान है उतना ही इस मुख्य बात पर भी ध्यान रहे कि देही अभिमानी बनना है।
2. आज जब मैं वतन में गई तो बापदादा हम सभी बच्चों का स्वागत करने के लिए सामने उपस्थित थे। और जैसे ही मैं पहुँची तो जैसे साकार रूप में दृष्टि से याद लेते थे वैसे ही अनुभव हुआ लेकिन आज की दृष्टि में विशेष प्रेम के सागर का रूप इमर्ज था। एक-एक बच्चे की याद नयनों में समाई हुई थी। बाबा ने कहा याद तो सभी बच्चों ने भेजी है, लेकिन इसमें दो प्रकार की याद है। कई बच्चों की याद अव्यक्त है और कईयों की याद में अव्यक्त भाव के साथ व्यक्त भाव मिक्स है। 75 बच्चों की याद अव्यक्त थी लेकिन 25 की याद मिक्स थी। फिर बाबा ने सभी को स्नेह और शक्ति भरी दृष्टि देते गिट्टी खिलाई। फिर एक दृश्य इमर्ज हुआ - क्या देखा सभी बच्चों का संगठन खड़ा है और ऊपर से बहुत फूलों की वर्षा हो रही है। बिल्कुल चारों और फूल के सिवाए और कुछ देखने में नहीं आ रहा था। बाबा ने सुनाया - बच्ची, बाप- दादा ने स्नेह और शक्ति तो बच्चों को दी ही है लेकिन साथ-साथ दिव्य गुण रुपी फूलों की वर्षा शिक्षा के रूप में भी बहुत की है। परन्तु दिव्य गुणों की शिक्षा को हरेक बच्चे ने यथाशक्ति ही धारण किया है। इसके बाद फिर दूसरा दृश्य दिखाया - तीन प्रकार के गुलाब के फूल थे एक लोहे का, दूसरा हल्का पीतल का और तीसरा रीयल गुलाब था। तो बाबा ने कहा बच्चों की रिजल्ट भी इस प्रकार है। जो लोहे का फूल हैं - यह बच्चों के कड़े संस्कार की निशानी थे। जैसे लोहे को बहुत ठोकना पड़ता है, जब तक गर्म न करो, हथोड़ी न लगाओ तो मुड़ नहीं सकता। इस तरह कई बच्चों के संस्कार लोहे की तरह है जो कितना भी भट्टी में पड़े रहें लेकिन बदलते ही नहीं। दूसरे है जो मोड़ने से वा मेहनत से कुछ बदलते हैं। तीसरे वह जो नैचुरल ही गुलाब हैं। यह वही बच्चे हैं जिन्होंने गुलाब समान बनने में कुछ मेहनत नहीं ली। ऐसे सुनाते- सुनाते बाबा ने रीयल गुलाब के फूल को अपने हाथ में उठाकर थोड़ा घुमाया। घुमाते ही उनके सारे पत्ते गिर गये। और सिर्फ बीच का बीज रह गया। तो बाबा बोले, देखो बच्ची जैसे इनके पत्ते कितना जल्दी और सहज अलग हो गये - ऐसे ही बच्चों को ऐसा पुरुषार्थ करना है जो एकदम फट से पुराने संस्कार, पुराने देह के सम्बन्धियों रूपी पत्ते छट जायें। और फिर बीजरूप अवस्था में स्थित हो जायें। तो सभी बच्चों को यही सन्देश देना कि अपने को चेक करो कि अगर समय आ जाए तो कोई भी संस्कार रूपी पत्ते अटक तो नहीं जायेंगे, जो मेहनत करनी पड़े? कर्मातीत अवस्था सहज ही बन जायेगी या कोई कर्मबन्धन उस समय अटक डालेगा? अगर कोई कमी है तो चेक करो और भरने की कोशिश करो।
3. आज बाबा को मधुबन में आने के लिए निमन्त्रण देने के लिए गई - तो बापदादा के ईशारों से अनुभव हुआ कि आज बाबा का विचार नहीं है। इतने में ही बाबा बोले अच्छा बच्ची सभी बच्चों ने बुलाया है तो बापदादा बच्चों का सेवाधारी है। यह सुनकर संकल्प चला कि बाबा ने अभी-अभी ना की और अभी-अभी हाँ की क्यों? दिल के संकल्प को जानकर बाबा बोले - यह जानबूझ कर कर्म करके बाबा सिखला रहे हैं कि तुम बच्चों को भी एक दो की राय, एक दो के विचारों को रिगार्ड देना चाहिए। भल समझो कोई विचार देता है और तुमको नहीं जचता है तो भी उनके विचार को फौरन ठुकरा नहीं देना चाहिए। पहले तो उनको रिगार्ड दो कि हाँ, क्यों नहीं। बहुत अच्छा। जिससे उनके विचार का फोर्स कम हो जाऐं। तो फिर आप जो उन्हें समझायेंगे वह समझ सकेंगे। अगर सीधा ही उनको कट करेंगे तो दोनों फोर्स टक्कर खायेंगी और रिजल्ट में सफलता नहीं निकलेगी। इसलिए एक दो के विचार अर्थात् राय को पहले रिगार्ड देना आवश्यक है। इससे ही आपस में स्नेह और संगठन चलता रहेगा।
4. आज जब वतन में गई तो जैसे ही हम पहुँची तो बापदादा सामने थे ही लेकिन क्या देखा कि ब्रह्मा बाबा के गले में ढेर की ढेर मालायें पड़ी हुई थी। फिर बाबा ने कहा यह माला उतार कर देखो। माला उतारी तो कोई बड़ी माला थी कोई छोटी। हमने कहा बाबा इसका रहस्य क्या है? बाबा बोले बच्ची, यह सभी के उल्हनों की माला है। क्योंकि हरेक बच्चे जब एकान्त में बैठते हैं तो बाबा को स्नेह में उल्हना ही देते हैं। हरेक बच्चे ने बाप को उल्हनों की माला जरूर पहनाई है। बाबा ने कहा बच्चों को ड्रामा भल याद है लेकिन प्यारे ते प्यारी चीज तो जरूर है। तो अचानक ड्रामा को वंडरफुल देख हरेक बच्चा दिल ही दिल में उल्हना देते रहते हैं। यूँ तो ज्ञान बच्चों को है लेकिन ज्ञान के साथ प्रेम का स्नेह भी है इसलिए इन उल्हनों को गलत नहीं कहेंगे। फिर हमने पूछा बाबा, आपने इसका रेसपान्ड क्या दिया? तो बाबा बोले जैसा बच्चा वैसा रेसपान्ड। बाबा ने कहा मैं भी रेसपान्ड में बच्चों को उल्हनों की माला ही पहनाता हूँ। वह कौन सी? फिर बाबा ने सुनाया - जो बाप की आश बच्चों में थी वह साकार रूप में बाप को नहीं दिखलाई, जो अब अव्यक्त रूप में दिखलानी है। बाबा ने कहा यह उल्हना भी मीठी रूहरूहान है। यह भी एक खेलपाल बच्चों का है। साकार रूप में जो बापदादा ने श्रृंगार कराया वह अब अव्यक्त वतन में बापदादा देखेंगे। यह सीन पूरी हो गई। फिर भोग स्वीकार कराया फिर मैंने बाबा से पूछा - बाबा आप सारा दिन वतन में क्या करते हो? बाबा ने कहा चलो मैं तुमको वतन का म्युजियम दिखलाऊँ तुम तो म्युजियम बनाने के पहले प्लैन बनाते हो बाबा का म्युजियम तो एक सेकेण्ड में तैयार हो जाता है। फिर क्या देखा? एक बहुत बड़ा हाल था। एक ही हाल में हम बच्चे ढेर की ढेर माडल के रूप में खड़े थे। हमने कहा बाबा यह तो हम ही म्यूजियम में खड़े हैं। बाबा ने कहा - बच्ची बाबा का म्युजियम यही है। अभी तुम जाओ जाकर एक माडल को देखो कि बापदादा ने क्या-क्या सजाया है? जैसे आर्टिस्ट मूर्ति को सजाते हैं तो बाबा ने कहा देखो, बापदादा ने क्या-क्या सजाया है? हम जब माडल के पास गई तो हमको कुछ खास दिखाई नहीं पड़ा। पूरी सजी हुई मूर्ति दिखाई पड़ रही थी। बाबा ने कहा जो मोटा श्रृंगार है वह तो साकार में ही बच्चों का करके आये हैं। परन्तु अब अव्यक्त रूप में क्या सजा रहे हैं? सभी श्रृंगार तो है, जेवर भी है परन्तु जेवर में बीच में नग लगा रहे हैं। बाबा के कहने के बाद कोई-कोई में जैसे एकस्ट्रा नग दिखाई पड़े। बाबा ने कहा बच्चों के प्रति मुख्य शिक्षा यही है कि अव्यक्त स्थिति में स्थित रहकर व्यक्त भाव में आओ। जब एकान्त में बैठते हैं तो अव्यक्त स्थिति रहती है लेकिन व्यक्त में रहकर अव्यक्त भाव में स्थित रहें वह मिस कर लेते हैं इस- लिए एकरस कर्मातीत स्थिति का जो नग है, वह कम है। तो जिसके जीवन में जो कमी देखता हूँ वह सजा रहा हूँ। जैसे साकार रूप में यह कार्य करता था वही फिर अव्यक्त रूप में करता हूँ। तो बच्चों से जाकर पूछना कि सारे दिन में जैसे बाप बच्चों को सजाते हैं, ऐसे बच्चों को भासना आती है? उस टाइम जो योंगयुक्त बच्चे होंगे उनको भासना आयेगी कि बाबा अब मेरे से बात कर रहे हैं, सजा रहे हैं। जैसे मैं अव्यक्त वतन में बच्चों से मिलता, बहलता रहता हूँ। अव्यक्त रूप वाले बच्चे यह अनुभव कर सकते हैं। मैं भी खास समय पर खास बच्चों को याद करता हूँ। ऐसी टचिंग बच्चों को होती ही होगी। मैंने कहा बाबा आप सभी को अव्यक्त वतन में क्यों नहीं बुला लेते? - यहाँ ही बड़ा सेन्टर खोल दो। अभी तो सभी बच्चे उपराम हो गये हैं। बाबा ने कहा यह उपराम अवस्था होनी ही चाहिए। हमेशा तैयार रहना चाहिए। यह भी याद की यात्रा को बल मिलता है। यह उपराम अवस्था सहज याद का तरीका है। अब बच्चों को कहना ज्यादा समय नहीं है। बाबा कभी भी किसको बुला लेंगे।
वरदान:- करावनहार की स्मृति द्वारा सदा बेफिक्र बादशाह बनने वाले निश्चयबुद्धि निश्चिंत भव
ब्राह्मण जीवन अर्थात् बेफिक्र बादशाह। जैसे ब्रह्मा बाप बेफिक्र बादशाह बने तो यही गीत गाते रहे – पाना था सो पा लिया, काम क्या बाकी रहा…सेवा का काम भी जो बाकी रहा हुआ है वह भी करावनहार करा रहे हैं और कराते रहेंगे। सदा स्मृति रहे बाप करावनहार बन हमारे द्वारा करा रहे हैं तो बेफिक्र हो जायेंगे। निश्चय है यह कार्य होना ही है, हुआ ही पड़ा है इसलिए निश्चयबुद्धि, निश्चिंत, बेफिकर रहो।
स्लोगन:- अपनी सर्व कमजोरियों से किनारा करना है तो बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण करो।