ओम् शान्ति।
यह किन्हों ने कहा? जीव की आत्माओं ने कहा, जो सम्मुख बैठे हो। यहाँ यह नहीं कह सकते
कि आत्मा बैठी है। नहीं, जीव आत्मायें बैठी हैं। बाप ने समझाया है कि आत्मा ही शरीर
द्वारा हर कार्य करती है, इसको कहा जाता है देही-अभिमानी। देह में रहने वाले अपने
परमप्रिय परमात्मा को कहते हैं कि हम आत्मा अब आपके गले का हार बनेंगे अर्थात् हम
यह शरीर छोड़ आपके पास आ जायेंगे। बाप ने समझाया है जैसे मनुष्य का जीनालॉजिकल ट्री
है। ब्रह्मा सरस्वती, आदम ईव आदि उन्हों का सिजरा बनता है। वैसे तुमने देखा है
मूलवतन में भी सिज़रा है। पहले-पहले है शिव। तुम आत्मा मेरे गले का हार कैसे बनेंगी?
मुझे याद करने से। जितना जो मुझे याद करते हैं उतना तीखी दौड़ी पहनते हैं। मेरे साथ
बहुत प्रेम है। मेरे पास आने बिना रह नहीं सकते क्योंकि आत्मा को इस शरीर के साथ
सुख नहीं, दु:ख है। अब भगवान तो है निराकार। कहते भी हैं निराकार आत्माओं को। वह
परमपिता परमात्मा ही सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हैं, त्रिकालदर्शी हैं। और
कोई मनुष्य भल कितना बड़ा पण्डित हो, वेद शास्त्र पढ़ा हुआ हो परन्तु उनको इस सृष्टि
के आदि मध्य अन्त का ज्ञान नहीं है। नास्तिक होने के कारण त्रिकालदर्शी हो नहीं सकते।
तुम बच्चे अभी आस्तिक हो। बाप ने तुमको परिचय दिया है, इसलिए तुम बाबा कहने के
हकदार हो। वह तो कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है, फिर इससे क्या मिला! कुछ भी नहीं।
बाप तो ज्ञान का सागर है। वह ऐसे नहीं कहते कि मैं सर्वव्यापी हूँ। फिर तो सब फादर
हो जाते। फादर हुड कहा जाता है क्या? एक बाप के बच्चे हैं। उनको प्रभु ईश्वर भी कहते
हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर को रचने वाला है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहना रांग है।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप वह शिव है। उसने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है। तुम
भी जानते हो ब्रह्मा के मुख से परमपिता परमात्मा शिव द्वारा हम त्रिकालदर्शी वा
स्वदर्शन चक्रधारी बन रहे हैं। स्व अर्थात् आत्मा का ज्ञान। आत्मा को ही स्वराज्य
मिलता है। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। आत्मा ही अच्छे वा बुरे सभी संस्कार
धारण करती है। तुम जानते हो हम आत्मा अभी तमोप्रधान हैं। कहा भी जाता है पतित आत्मा
वा पावन आत्मा। शरीर का नाम नहीं लिया जाता है। पुण्य आत्मा, महान आत्मा। आत्मा की
ही महिमा की जाती है। आत्मा परमपिता परमात्मा बाप से बैठ सुनती है। दुनिया में कोई
को पता नहीं कि बाप ऐसे बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। अभी तुम समझते हो कि हम बाप के
बने हैं। बाप से हमको वर्सा लेना है। दूसरे से हमारा कोई काम नहीं। आत्मा कहती है
मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। स्टूडेन्ट समझेंगे मेरा तो एक टीचर… तुम्हारा एक
ही बाप, शिक्षक है। वह पतित-पावन बाप है। सभी आत्माओं का कनेक्शन उस बाप, शिक्षक से
ही है। भल कोई ब्राह्मणी पढ़ाती है। परन्तु वह भी मुझ बाप से ही पढ़ी हुई है। बाप
कहते हैं तुम मुझे याद करो, न कि ब्राह्मणी को। अब तुम बच्चे मुझ बाप को जान गये
हो, पहचान गये हो। अब तुम आस्तिक बने हो। जो नहीं जानते वह हैं नास्तिक, निधनके।
बाप का नाम, रूप, देश, काल क्या है? कुछ भी नहीं जानते। कह देते उसका कोई नाम रूप
नहीं है। अब तुम जानते हो जरूर उनका नाम है शिव। वह अपना शरीर तो धारण करते नहीं,
इसलिए उनका नाम कभी बदल नहीं सकता। तुम जानते हो हमारे 84 जन्मों का नाम-रूप बदलता
जाता है। उनका नाम तो है ही शिव। जैसे आत्मा का रूप है वैसे परमात्मा का भी रूप है।
ऐसे नहीं कि परमात्मा कोई अखण्ड ज्योति बहुत बड़ा है। बाप कहते हैं जैसे आत्मा
स्टॉर मिसल है, वैसे मैं भी हूँ। परन्तु मेरे में ज्ञान है इसलिए मेरी महिमा है।
सत-चित-आनंद स्वरूप, ज्ञान का सागर है। चैतन्यता है, तब तो ज्ञान सुनाते हैं। वह है
चैतन्य बीज रूप। वह जड़ बीज तो कुछ सुना न सके। मनुष्य ही जानते हैं। जैसे बाप की
बुद्धि में सारे मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, वैसे तुम्हारी बुद्धि में है। कितना
वैराइटी है। एक का भी फीचर न मिले दूसरे से। हर एक का फीचर अलग-अलग है। हर एक का
अपना-अपना पार्ट है। बाप समझाते हैं कितना बड़ा बेहद का नाटक है। कितने वैराइटी
फीचर्स हैं। सभी इस ड्रामा में एक्टर्स हैं। जबकि यह ड्रामा अविनाशी है तो कोई भी
एक्टर बदली नहीं हो सकता। तुमको मालूम पड़ा है कि हमारे 84 जन्मों के 84 नाम पड़ते
हैं। अभी नाम भी पूरे हुए तो वर्ण भी पूरे हुए। अब फिर रिपीट होगा अर्थात् गीता
एपीसोड रिपीट हो रहा है। पहले-पहले श्रीमत भगवान की गाई हुई है। परन्तु भगवान को
भूल गये हैं। शिवबाबा की जयन्ती हो तब कृष्ण की हो। ऐसे थोड़ेही कि बाप की जयन्ती
ही गुम हो जाए और बच्चे की जयन्ती हो जाए। तुम बच्चों को समझाया जाता है कि
लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। उन्होंने यह वर्सा कैसे पाया? परमपिता परमात्मा
से। परमपिता परमात्मा ही राजयोग सिखलाते हैं। कब? बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प
के संगमयुग पर आता हूँ। जबकि आसुरी राज्य का विनाश, दैवी राज्य की स्थापना होती है।
जो आस्तिक बने हैं, उन्हों को वर्सा मिल रहा है। नास्तिक को वर्सा मिल न सके। बाप
आये हैं सबको दु:ख से मुक्त करते हैं, अब यह सुखधाम में जाते हैं तब और बाकी आत्मायें
हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस चली जाती हैं। निराकार बाप सर्व आत्माओं को घर ले जाने
के लिए आये हैं। ले जाने वाले को महाकाल, कालों का काल कहा जाता है। कालों का काल
महाकाल का भी मन्दिर है। महाकाल शिव है वा सोमनाथ, रूद्र कहो। सम्मुख कहते हैं मैं
इन सभी आत्माओं का गाइड हूँ। सभी को साथ ले जाऊंगा। बाप कहते हैं तुमको इस रावण के
राज्य से लिबरेट करता हूँ। यह है रावण राज्य। अब रावण राज्य मुर्दाबाद हो रामराज्य
जिंदाबाद होना है। राम राज्य चाहते तो सब हैं ना। तो जरूर रावण के राज्य का विनाश
चाहिए।
बाप समझाते हैं अब यह पुरानी दुनिया ही खत्म होनी है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म
को बिल्कुल ही भूल गये हैं। यह वही गीता एपीसोड चल रहा है। यादव कौरव भी बरोबर हैं।
यादव वही यूरोपवासी हैं। मूसल इनवेंट करने वाले हैं, यह भी लिखा है इन्टरनेशनल
लड़ाई में सब खत्म होंगे। कोई अपने आदि सनातन देवी-देवता धर्म को नहीं जानते। गाया
भी जाता है रिलीजन इज़ माइट। रिलीजस आदमी को अच्छा माना जाता है। इरिलीजस को बुरा
माना जाता है। तुम जानते हो भारत रिलीजस था। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। अभी
भारत इरिलीजस बना है। अपने धर्म को छोड़ दिया। यह ड्रामा अनुसार ऐसे छोड़ना ही है।
वहाँ तो महाराजा महारानी का राज्य चलता है। वजीर आदि वहाँ होते ही नहीं। कायदा नहीं।
जब पतित बनते हैं तब वजीर आदि की दरकार रहती है। अभी तो एक-एक राजधानी को कितने
वजीर (मंत्री) हैं। एक की मत न मिले दूसरे से, कितना मतभेद में आते रहते हैं। अभी
तुम बच्चे जानते हो कि बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, मनुष्य से देवता बनाने। बाप कहते
हैं सभी अपने को आत्मा समझो। देह के इन सब सम्बन्धों को भूल जाओ। एकदम बेगर बन गये,
सब कुछ दे दिया। शरीर भी दे दिया बाकी क्या रहा। कुछ भी नहीं। परमपिता परमात्मा कहते
हैं मैं आत्माओं से बात करता हूँ। आत्माओं को ले जाना है। इस शरीर के भान को भूलते
जाओ, इसमें ही मेहनत है।
बाप कहते हैं मीठे बच्चों, सारा कल्प तुम देह-अभिमानी रहे हो। लौकिक बाप को ही
याद किया है, अब देही-अभिमानी बन मेरे को याद करो। मेरी याद से ही बल मिलेगा। हे
बच्चे, हे आत्मायें मामेकम् याद करो, दूसरा न कोई। भूले चूके भी और कोई को याद नहीं
करना है। तुम यह प्रतिज्ञा करते हो। बाबा मेरे तो आप एक ही हो। हम आत्मा हैं, आप
परमात्मा हो। आपने बतलाया है। आत्मा हमारे बच्चे हो। अब रावण के दु:ख से तुमको
लिबरेट कर वापिस ले जाने आया हूँ। अब बच्चों को धीरज धरना है। जब राजधानी स्थापन हो
जायेगी तो फिर यह महाभारी महाभारत की लड़ाई लगेगी। तब ही कलियुग बदल सतयुग हो सकता।
तो मैं कालों का काल ठहरा ना। मैं बाप भी हूँ तो शिक्षक भी हूँ, पतित-पावन भी हूँ,
फिर मैं महाकाल भी हूँ। कहाँ ले जाऊंगा? मीठे बच्चे मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। यहाँ
से मुक्त होंगे तो स्वर्ग में आयेंगे। तुम पढ़ते हो – भविष्य में देवी-देवता बनने।
अब तुम ब्राह्मण ईश्वरीय सन्तान हो। सब कहते हैं हम ब्राह्मण ईश्वरीय सन्तान हैं।
ब्रह्मा की औलाद भाई बहन हैं। विकार में जा नहीं सकते। हम ईश्वरीय पोत्रे पोत्रियाँ
हैं, उनसे हम वर्सा ले रहे हैं। जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे।
कल्प-कल्प पुरुषार्थ किया होगा तो अब तुम पुरुषार्थ करने लग पड़ेंगे। इसमें साक्षी
रहने का अभ्यास चाहिए। साक्षी होकर देखो हर एक कितना पुरुषार्थ करते हैं, कहाँ तक
फालो करते हैं। कोई के नाम-रूप में नहीं अटकना है। सिवाए बाप के और कोई याद न आये।
बाबा कहते हैं बच्चे मैं तुम्हें राजयोग सिखलाए पावन बनाकर साथ ले जाऊंगा। अभी तुम
समझते हो बरोबर कल्प-कल्प हमको बाप से शिक्षा मिलती है ड्रामा अनुसार। तुम द्रोपदियाँ
हों, यह कोई सुख का राज्य नहीं है। इस पर कहानी भी बनाई हुई है। अब बाप तो रीयल्टी
में समझाते हैं। तुम अब बाप से वर्सा ले रहे हो, सबको दुबन (दलदल) से निकालते हो।
सब काम चिता पर बैठ जल मरे हैं। तुम्हारे सिर पर तो ज्ञान की वर्षा हो रही है। बाप
कहते हैं यह मेरे बच्चे जलकर खाक हो गये हैं। मैं आया हूँ सबको लिबरेट कर साथ ले
जाऊंगा। मनुष्यों को यह पता नहीं। अब तुम घोर अन्धियारे से निकल आये हो। अब बाप कहते
हैं मुझे याद करो, घर को याद करो। तुम आत्मायें घर को भूल गई हो। गाते भी हैं
मूलवतन, सूक्ष्मवतन। मूलवतन में सभी आत्मायें रहती हैं। आत्मा क्या है, परमात्मा
क्या है, मूलवतन क्या है…, कुछ भी नहीं जानते। वह तो आत्मा सो परमात्मा कह सब खेल
ही खलास कर देते हैं। बाबा कहते हैं यह भी ड्रामा में नूँध है। इस समय जो भी होता
है, जो सेकेण्ड बीतता वह ड्रामा फिर से रिपीट होता है। बाप बैठ पढ़ाते हैं। यह
रिपीटेशन का राज़ भी बाप ने समझाया है। ऐसे नहीं कि ड्रामा में जो मेरा भाग्य होगा,
वह मिलेगा। ड्रामा अनुसार एक्ट चलती है तो हम पुरुषार्थ क्या करें, ऐसा समझने वाले
भी हैं। परन्तु नहीं, पुरुषार्थ तो करना है ना। बाप आये ही हैं पुरुषार्थ कराने।
तुम बच्चों को पूरा पुरुषार्थ करना है। साक्षी हो देखना भी है। कौन तीव्र पुरुषार्थ
करते हैं, कौन अच्छा पद पा सकेंगे? बाप द्वारा कौन पूरा वर्सा लेते हैं? साक्षी हो
पुरुषार्थ करना और कराना है और साक्षी हो देखना है कि यह कितनी सर्विस करते हैं।
कितनों को आप समान बनाते हैं। बाप का परिचय देते हैं औरों के पुरुषार्थ को देख खुद
भी तीव्र पुरुषार्थ करना है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह और देह के सम्बन्धों को भूल पूरा बेगर बनना है, मेरा कुछ नहीं।
देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है। किसी के नाम रूप में नहीं अटकना है।
2) ड्रामा में होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे, ऐसा सोचकर पुरुषार्थ-हीन नहीं बनना
है। साक्षी हो दूसरों के पुरुषार्थ को देखते तीव्र पुरुषार्थी बनना है।