28-09-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 23-01-70 मधुबन
सेवा में सफलता पाने की युक्तियाँ
ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कि सर्विस के कारण मज़बूरी से बोलना पड़ता है? लेकिन सर्विस समाप्त हुई तो आवाज़ की स्थिति भी समाप्त हो जाएगी (बम्बई की एक पार्टी बापदादा से बम्बई में होनेवाले सम्मेलन के लिए डायरेक्शन ले रही थी) यह जो आजकल की सर्विस कर रहे हो उसमे विशेषता क्या चाहिए? भाषण तो वर्षों कर ही रहे हो लेकिन अब भाषणों में भी क्या अव्यक्त स्थिति भरनी है? जो बात करते हुए भी सभी ऐसे अनुभव करें कि यह तो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं। अब इस सम्मलेन में यह नवीनता होनी चाहिए। यह स्पीकर्स और ब्राह्मण स्पीकर्स दूर से ही अलग देखने में आयें। तब है सम्मेलन की सफ़लता। कोई अनजान भी सभा में प्रवेश करे तो दूर से ही महसूस करे कि अनोखे बोलनेवाले हैं। सिर्फ वाणी का जो बल है व तो कनरस तक रह जाता है। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर जो बोलना होता है वह सिर्फ़ कनरस नहीं लेकिन मनरस भी होगा। कनरस सुनानेवाले तो बहुत हैं लेकिन मनरस देने वाला अब तक दुनिया में कोई नहीं है। बाप तो तुम बच्चों के सामने प्रत्यक्ष हुआ लेकिन तुम बच्चों को फिर बहार प्रत्यक्ष होना है। तो यह सम्मेलन कोई साधारण रीति से नहीं होना है। मीटिंग में भी बोलना – कि चित्रों में भी चैतन्यता हो। जैसे चैतन्य व्यक्त भाव को स्पष्ट करते हैं वैसे ही चित्र चैतन्य बनकर साक्षात्कार करायें। जब चित्र में चैतन्यता का भाव प्रत्यक्ष होता है, वाही चित्र अच्छा लगता है। बहार की आर्ट की बात नहीं है लेकिन बहार के साथ अन्दर भी ऐसा ही हो। बापदादा यही नवीनता देखना चाहते हैं। कम बोलना भी कर्त्तव्य बड़ा कर दिखाए। यही ब्राह्मणों की रीति रस्म है। यह सम्मेलन अनोखा कैसे हो यह ख्याल रखना है। चित्रों में भी अव्यक्ति चैतन्यता हो। जो दोर्र से ही ऐसी महसूसता आये। नहीं तो इतनी प्रजा कैसे बनेगी। सिर्फ़ मुख से नहीं लेकिन आन्तरिक स्थिति से जो प्रजा बनेगी उसे ही आन्तरिक सुख का अनुभव कहा जाता है। आप लोगों ने अब तक रिजल्ट देखि कि जो अव्यक्त स्थिति के अनुभव से आये वह शुरू से ही सहज चल रहे हैं, निर्विघ्न है। और जो अव्यक्त स्थिति के साथ फिर और भी कोई आधार पर चले हैं उन्ही के बिच में विघ्न, मुश्किलातें आदि कठिन पुरुषार्थ देखने में आता हैं। इसलिए अभी ऐसी प्रजा बनानी है जो अव्यक्त शक्ति की फाउंडेशन से बहुत थोड़े समय में और सहज ही अपने लक्ष्य को प्राप्त हो। जितना खुद सहज पुरुषार्थी होंगे, अव्यक्त शक्ति में होंगे उतना ही औरों को भी आप समान बना सकेंगे। तो इस सम्मेलन की रिजल्ट देखनी है। टॉपिक तो कोई भी हो लेकिन स्थिति टॉप की चाहिए। अगर टॉप की स्थिति है तो टॉपिक्स को कहाँ भी मोड़ सकते हो। अब भाषण पर नहीं लेकिन स्थिति पर सफलता का आधार कहा जाता है। क्योंकि भाषण अर्थात् भाषा की प्रवीणता तो दुनिया में बहुत है। लेकिन आत्मा में शक्ति का अनुभव करानेवाले तो तुम ही हो। तो यही अभी नवीनता लानी है। जब भी कोई कार्य करते हो तो पहले वायुमण्डल को अव्यक्त बनाना आवश्यक है। जैसे और सजावट का ध्यान रखते हो वैसे मुख्य सजावट यह है। लेकिन क्या होता है? चलते-चलते उस समय बहर्मुखता अधिक हो जाती है तो जो लास्ट वायुमण्डल होने के कारन रिजल्ट वह नहीं निकलती। आप लोग सोचते बहुत हो, ऐसे करेंगे, यह करेंगे। लेकिन लास्ट समय कर्त्तव्य ज्यादा देख बाहरमुखता में आ जाते हो। वैसे ही सुनने वाले भी उस समय तो बहुत अच्छा कहते हैं परन्तु फिर झट बाहरमुखता में आ जाते हैं। इसलिए ऐसा ही प्रोग्राम रखना है जो कोई भी आये तो पहले अव्यक्त प्रभाव का अनुभव हो। यह है सम्मेलन की सफलता का साधन। कुछ दिन पहले से ही यह वायुमण्डल बनाना पड़े। ऐसे नहीं कि उसी दिन सिर्फ करना है। वायुमंडल को शुद्ध करेंगे तब कुछ नवीनता देखने में आएगी। साकार शरीर में भी अलौकिकता दूर से ही देखने में आती थी ना। तो बच्चों के भी इस व्यक्त शरीर से अलौकिकता देखने में आये।
प्रेस कांफ्रेंस की रिजल्ट अगर अछि है तो करने में कोई हर्जा नहीं है। लेकिन पहले उन्हों से मिलकर उन्हीं को मददगार बनाना – यह तो बहुत ज़रूरी है। समय पर जाकर उन्हों से काम निकालना और समय के पहले उन्हों को मददगार बनाना इसमें भी फर्क पड़ता है। बहुत करके समय पर अटेंशन जाता है। अभी अपनी बुद्धि की लाइन को क्लियर करेंगे तो सभी स्पष्ट होता जायेगा। जैसे आप लोगों का प्रदर्शनी में है ना – स्विच ऑन करने से जवाब मिलता है। वैसे ही पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होने से संकल्प का स्विच दबाया और किया। ऐसा अनुभव करते जायेंगे। सिर्फ व्यर्थ संकल्पों की कंट्रोलिंग पॉवर चाहिए। व्यर्थ संकल्प चलने के कारण जो ओरिजिनल बापदादा द्वारा प्रेरणा कहें वा शुद्ध रेस्पोंस मिलता है वह मिक्स हो जाता है क्योंकि व्यर्थ संकल्प अधिक होते हैं। अगर व्यर्थ संकल्पों को कण्ट्रोल करने की पॉवर है तो उसमें एक वही रेस्पोंस स्पष्ट देखने में आता हैं। वैसे ही अगर बुद्धि ट्रांसलाइट है तो उसमे हर बात का रेस्पोंस स्पष्ट होता जाता है और यथार्थ होता है। मिक्स नहीं। जिनके व्यर्थ संकल्प नहीं चलते वह अपने अव्यक्त स्थिति को ज्यादा बढ़ा सकते हैं। शुद्ध संकल्प भी चलने चाहिए। लेकिन उनको भी कण्ट्रोल करने की शक्ति होनी चाहिए। व्यर्थ संकल्पों का तूफ़ान मेजोरिटी में ज्यादा है।
कोई कभी कार्य शुरू किया जाता है तो सैंपल बहुत अच्छा बनाया जाता है। यह भी सम्मेलन का सैंपल सभी के आगे रखना है।
अव्यक्त स्थिति क्या चीज़ होती है, इसका अनुभव कराना है। आप की एक्टिविटी में सभी समय की घड़ी को देखें। समय की घड़ी बनकर जा रहे हो। जैसे साकार भी समय की घड़ी बने ना। वैसे शरीर के होते अव्यक्त स्थिति के घंटे बजाने की घड़ी बनना है। यह सर्विस सभी से अछि है। व्यक्त में अव्यक्त स्थिति का अनुभव क्या होता है, वह सभी को प्रैक्टिकल में पाठ पढ़ना है। अच्छा।
बापदादा और दैवी परिवार सभी के स्नेह के सूत्र में मणका बनकर पिरोना है। स्नेह के सूत्र में पिरोया हुआ मैं मणका हूँ – यह नशा रहना चाहिए। मणकों को कहाँ रखा जाता है? माला में मणकों को बहुत शुद्धि से रखा जाता है। उठाते भी बहुत शुद्धि पूर्वक हैं। हम भी ऐसा अमूल्य मणका हैं, यह समझना है। (कोई ने सर्विस के लिए राय पूछी) उन्हों की सर्विस वाणी से नहीं होगी। लेकिन जब चरित्र प्रभावशाली होंगे, चेंज देखेंगे तब वह स्वयं खींचकर आएंगे। कोई-कोई को अपना अहंकार भी होता है ना। तो वाणी से वाणी अहंकार के टक्कर में आ जाती है। लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ के टक्कर में नहीं आ सकेंगे। इसलिए ऐसे-ऐसे लोगों को समझाने के लिए यही साधन है। वायुमंडल को अव्यक्त बनाओ। जो भी सेवाकेंद्र हैं, उन्हों के वायुमंडल को आकर्षणमय बनाना चाहिए जो उन्हों को अव्यक्त वतन देखने में आये। कोई भी दूर से महसूस करे कि यह इस घर के बिच में कोई चिराग है। चिराग दूर से ही रौशनी देता है। अपने तरफ आकर्षित करता है। तो चिराग माफिक चमकता हुआ नज़र आये तब है सफलता।
अव्यक्त भट्ठी में आकर के अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है? यह अनुभव जो यहाँ होता है फिर उनको क्या करेंगे? साथ लेकर जायेंगे व यहाँ ही छोड़ जायेंगे। उनको ऐसा साथी बनाना जो कोई कितना भी इस अव्यक्त आकर्षण के साथ को छुड़ाने चाहे तो भी नहीं छूटे। लौकिक परिवार को अलौकिक परिवार बनाया है। जरा भी लौकिकपण न हो। जैसे एक शारीर छोड़ दूसरा लेते हैं तो उस जन्म की कोई भी बात स्मृति में नहीं रहती है ना। यह भी मरजीवा बने हो न। तो पिछले जीवन की स्मृति और दृष्टि ऐसे ही ख़त्म हो जानी चाहिए। लौकिक में अलौकिकता भरने से ही अलौकिक सर्विस होती है। अलौकिक सर्विस क्या करे हो? आत्मा का कनेक्शन पॉवर हाउस के साथ करने की सर्विस करते हो। कोई तार का तार के साथ कनेक्शन करना होता है तो रब्बर उतारना होता है ना। वैसे ही आप का भी पहला कर्त्तव्य है कि अपने को आत्मा समझ शरीर के भान से अलग बनाना। यहाँ की मुख्य सब्जेक्ट कितनी हैं और कौन-सी हैं? सब्जेक्ट मुख्य हैं चार। ज्ञान, योग, धारणा और सेवा। इनमे भी मुख्य कौन से हैं? यहाँ से ही शांति का स्टॉक इकठ्ठा किया है? आशीर्वाद मालूम है कैसे मिलती है? जितना-जितना आत्माभिमानी बनते हैं उतनी आशीर्वाद न चाहते हुए भी मिलती है। यहाँ स्थूल में कोई आशीर्वाद नहीं मिलती है। यहाँ स्वतः ही मिलती है। अगर बापदादा का आशीर्वाद नहीं होता तो यहाँ तक कैसे आते। हर सेकंड बापदादा बच्चों को आशीर्वाद दे रहे हैं। लेकिन लेने वाले जितनी लेते हैं, उतनी अपने पास कायम रखते हैं।
आप का और भी युगल है? सदा साथ रहनेवाला युगल कौन है? यहाँ सदैव युगल रूप में रहेंगे तो वहां भी युगल रूप में राज्य करेंगे। इसलिए युगल को कभी अलग नहीं करना है। जैसे चतुर्भुज कंबाइंड होता है वैसे यह भी कंबाइंड है। शिवबाबा को अपने से कभी अलग नहीं करना। ऐसे युगल कभी देख, 84 जन्मों में 84 युगलों में ऐसा युगल कब मिला? तो जो कल्प में एक बार मिलता है उनको तो पूरा ही साथ रखना चाहिए ना। अभी याद रखना कि हम युगल हैं। अकेले नहीं हैं। जैसे स्थूल कार्य में हार्डवर्कर हो। वैसे ही मन की स्थिति में भी ऐसे ही हार्ड हो जो कोई भी परिस्थिति में पिघल न जाएँ। हार्ड चीज़ पिघलती नहीं है। तो ऐसे ही स्थिति और कर्म दोनों हार्ड हो। जिसके साथ अति स्नेह होता है सको साथ रखा जाता है ना। तो सदा ऐसे समझो कि मैं युगल मूर्त हूँ। अगर युगल साथ होगा तो माया आ नहीं सकेगी। युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है। कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है। शक्ति रहती है फिर माया आएगी नहीं।
तुम गोडली स्टूडेंट हो? डबल स्टूडेंट बनकर के फिर आगे का लक्ष्य क्या रखा है? उंच पद किसको समझते हो? लक्ष्मी-नारायण बनेंगे? जैसा लक्ष्य रखा जाता है तो लक्ष्य के साथ फिर और क्या धारणा करनी पड़ती है? लक्षण अर्थात् दैवी गुण। लक्ष्य जो इतना उंच रखा है तो इतने उंच लक्षण का भी ध्यान रखना है। छोटी कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती है। अपनी प्रैक्टिकल स्थिति में स्थित हो किसको बैठ सुनाये तो उनका असर बड़ों से भी अधिक हो सकता है। सदैव लक्ष्य यही रखना है कि मुझ छोटी को कर्त्तव्य बहुत बड़ा करके दिखाना है। देह भल छोटी है लेकिन आत्मा की शक्ति बड़ी है। जो जास्ती पुरुषार्थ करने की इच्छा रखते हैं उनको मदद भी मिलती है। सिर्फ अपनी इच्छा को दृढ़ रखना, तो मदद भी दृढ़ मिलेगी। कितनी भी कोई हिलाए लेकिन यह संकल्प पक्का रखना। सकल्प पक्का होगा तो फिर सृष्टि भी ऐसी बनेगी। भाल जिस्मानी सर्विस भी करते रहो। जिस्मानी सर्विस भी एक साधन है इसी साधन से सर्विस कर सकते हो। ऐसे ही समझो कि इस सर्विस के सम्बन्ध में जो भी आत्माएं आती हैं उनको सन्देश देने का यह साधन है। सर्विस में तो कई आत्माएं कनेक्शन में आती हैं। जैसे यहाँ जो आये उन्हीं को भी सर्विस के लिए सम्बन्धियों के पास भेजा ना। ऐसे ही समझो कि सर्विस के लिए यह स्थूल सर्विस कर रहे हैं। तो फिर मन भी उसमें लगेगा और कमाई भी होगी। लौकिक को भी अलौकिक समझ करो। फिर कोई और वातावरण में नहीं आयेंगे। जैसे जैसे अव्यक्त स्थिति होती जाएगी वैसे बोलना भी कम होता जायेगा। कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा। फिर इस योग की शक्ति से सर्विस करेंगे। योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है। अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है। योगबल गुप्त है। लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी। सरे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा? फिर मालूम पद जायेगा कि अंतर कितना है। सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे। दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती। ठीक चल रहे हैं। अथक और एकरस दोनों ही गुण हैं। सदैव फॉलो फ़ादर करना है। जैसे साकार रूप में भी अथक और एकरस, एग्जाम्पल बनकर दिखाया। वैसे ही औरों के प्रति एग्जाम्पल बनना है। यही सर्विस है। समय भाल न भी मिले सर्विस का, लेकिन चरित्र भी सर्विस दिखला सकता है। चरित्र से भी सर्विस होती है। सिर्फ वाणी से नहीं होती। आप के चरित्र उस विचित्र बाप की याद दिलाएं। यह तो सहज सर्विस है न। जैसे कई लोग अपने गुरु का वा स्त्री अपने पति का फोटो लॉकेट में लगा देती है न। यह एक स्नेह की निशानी है। तो तुम्हारा या मस्तक जो है यह भी उस विचित्र का चरित्र दिखलायें। यह नयन उस विचित्र का चित्र दिखाएं। ऐसा अविनाशी लॉकेट पहन लेना है। अपनी स्मृति भी रहेगी और सर्विस भी होगी।
वरदान:- बोल पर डबल अन्डरलाइन कर हर बोल को अनमोल बनाने वाले मा. सतगुरू भव
आप बच्चों के बोल ऐसे हों जो सुनने वाले चात्रक हों कि यह कुछ बोलें और हम सुनें – इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य। महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे – इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। आप सतगुरू के बच्चे मास्टर सतगुरू हो इसलिए आपका एक-एक बोल महावाक्य हो। जिस समय जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक है, युक्तियुक्त है, स्वयं और दूसरी आत्माओं के लाभदायक है, वही बोल बोलो। बोल पर डबल अन्डरलाइन करो।
स्लोगन:- शुभचिंतक मणी बन, अपनी किरणों से विश्व को रोशन करते चलो।