ओम् शान्ति।
भक्ति मार्ग में महिमा करते हैं – शिवाए नम: . ….. ऊंच ते ऊंच शिव, उनको ही शिव
परमात्माए नम: कहा जाता है। ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहा जाता है और
शिव परमात्माए नम: ….. फ़र्क हुआ ना। परमात्मा एक है, वह ऊंच ते ऊंच है। उनकी महिमा
भी ऊंच है। इस समय ऊंचे ते ऊंचा कर्तव्य करते हैं। उनका धाम भी ऊंचे ते ऊंचा है।
नाम भी ऊंच है और किसको परमात्मा नहीं कहते। परमात्मा के लिए ही गायन है – हे
पतित-पावन, आते भी हैं पतित दुनिया और पतित शरीर में। पतित शरीर का नाम है प्रजापिता
ब्रह्मा। इसमें प्रवेश कर कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त वाले साधारण मनुष्य तन
में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्मवतन वासी सम्पूर्ण ब्रह्मा में नहीं आते हैं। खुद कहते
हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आता हूँ। बहुत जन्म लेते ही हैं
राधे-कृष्ण। उनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म साधारण है। ऐसे तो कहते नहीं हैं कि
मैं पावन शरीर में प्रवेश करता हूँ। भगवानुवाच मैं साधारण तन में आता हूँ। अब भगवान
जरूर आकरके इस साधारण तन द्वारा आत्माओं को बैठ समझाते हैं कि मैं परमपिता परमात्मा
हूँ। मैं कृष्ण की आत्मा नहीं हूँ, न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की आत्मा हूँ। मैं
परमपिता परमात्मा हूँ, जिसको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। मैं इसमें आया हूँ।
मैं सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा में प्रवेश नहीं करता हूँ। मुझे तो यहाँ पतितों को
पावन बनाना है। मेरे द्वारा ही वह सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा पावन बना है, इसलिए उनको
सूक्ष्म में दिखाया है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु मनुष्य सुनी अनसुनी कर
उल्टी बातों पर चलते रहते हैं। आसुरी बुद्धि से सुनते हैं। ईश्वरीय बुद्धि से सुनें
तो संशय सब मिट जायें। त्रिमूर्ति का चित्र दिखाने बिगर समझाना मुश्किल है। उन्होंने
त्रिमूर्ति ब्रह्मा नाम रख दिया है क्योंकि शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई
दुनिया की रचना रचते हैं। तुम बच्चे अभी सम्मुख बैठे हो। सब पतित से पावन बन रहे
हैं। जितना जो बनेगा वह सर्विस से दिखाई पड़ेगा। यह अच्छा पुरुषार्थी है, इनमें
अजुन अवगुण हैं। देवताओं में दैवीगुण थे। हर एक अपने आसुरी गुण और उन्हों के
दैवीगुण वर्णन करते हैं। अभी आसुरी अवगुणों को छोड़ना है। नहीं तो ऊंच पद नहीं पा
सकेंगे।
बाप समझाते हैं – बच्चे दैवीगुण धारण करो। खान-पान, चलन में फ़ज़ीलत चाहिए। पतित
मनुष्यों को बदफज़ीलत कहेंगे। देवतायें फ़ज़ीलत (मैनर्स) वाले हैं, तब तो उन्हों का
गायन है। हर एक को पुरुषार्थ करना है – जो करेगा, सो पायेगा। अब भगवान तुमको सहज
राजयोग और ज्ञान सिखला रहे हैं। ज्ञान सागर एक बाप है, जो तुम्हें ज्ञान देकर सद्गति
में ले जाते हैं। उन्हें ही सुखदेव भी कहा जाता है। तो यहाँ की सब बातें न्यारी
हैं। जो ब्राह्मण बनने वाले होंगे उन्हों की ही बुद्धि में यह ज्ञान बैठेगा। बहुत
करके पूछते हैं – दादा को ब्रह्मा क्यों बनाया है? बोलो, इन बातों को बैठकर समझो।
हम तुमको इनके 84 जन्मों की कहानी सुनायें। सब ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियाँ पावन
बन देवता बन जायेंगे। पावन बनने बिगर वर्सा मिल नहीं सकता। भगवान ऊंच ते ऊंच
निराकार शिवबाबा है। वर्सा देने के लिए जरूर ब्रह्मा तन में आयेगा। यह प्रजापिता
ब्रह्मा है, सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। वहाँ थोड़ेही प्रजा
रचेंगे। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ साकार में हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा भी साकार
में है। यह राज़ आकर समझो। हम इस दादा को भगवान नहीं कहते। यह प्रजापिता है, इनके
तन में शिवबाबा आते हैं, पावन बनाने। यहाँ कोई पावन है नहीं। त्रिमूर्ति शिव के बदले
त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह दिया है। परन्तु त्रिमूर्ति ब्रह्मा का कोई अर्थ नहीं है।
ब्रह्मा को मनुष्यों का रचयिता भी कहते हैं इसलिए प्रजापिता कहा जाता है। इसमें वह
निराकार प्रवेश कर वर्सा देते हैं। सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा पावन है। वह पतित से
पावन बनते हैं। हम ब्राह्मण भी पतित से पावन देवता बनते हैं। शिव परमात्माए नम: कहा
जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है। भगवान ही भक्तों का रक्षक
है। वही सबको सद्गति देंगे। पतित-पावन हैं तो जरूर आकर पतितों को पावन बनायेंगे।
पहले-पहले पावन हैं लक्ष्मी-नारायण। वे जरूर पुनर्जन्म लेते होंगे। 84 जन्म पूरे
होने से फिर साधारण मनुष्य बन जाते हैं। उनमें फिर बाप प्रवेश करते हैं। तो यह
व्यक्त ब्रह्मा, वह अव्यक्त ब्रह्मा। सूक्ष्मवतन में सृष्टि नहीं रची जाती है।
अक्सर करके लोग इस बात पर मूँझते हैं तो तुमको समझाना है, बाप कहते हैं मैं बहुत
जन्मों अर्थात् 84 जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। भारत में पहले
देवी-देवता आये, वह फिर पिछाड़ी में हो जायेंगे। फिर पहले वही जाकर देवी-देवता
बनेंगे। विराट रूप का चित्र भी जरूर होना चाहिए। बच्चों ने अर्थ सहित बनाया है।
ब्राह्मण चोटी, देवता सिर, क्षत्रिय भुजायें, वैश्य पेट, शूद्र पैर। शूद्र के बाद
फिर ब्राह्मण। वर्णों का भी चक्र हुआ ना। यह भी समझना और समझाना है।
बाबा ने बहुत बार समझाया है कि अखबार में पड़ता है फलाना स्वर्गवासी हुआ, तो उनको
चिट्ठी लिखनी चाहिए कि स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था। और अब है ही नर्क तो
जरूर पुनर्जन्म नर्क में लेंगे। अगर स्वर्ग में गया फिर तुम उनको बुलाकर नर्क का
भोजन क्यों खिलाते हो? तुम रोते क्यों हो? परन्तु इतनी बुद्धि नहीं है जो समझें कि
स्वर्ग की स्थापना तो बाप ही आकर करते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। तुम ब्राह्मण संगम
पर बाप से वर्सा ले रहे हो, बाकी सब हैं कलियुग में। संगम पर आत्मा परमात्मा मिल रहे
हैं, इनको कुम्भ का मेला कहा जाता है। तुम ज्ञान गंगायें ज्ञान सागर से निकली हो।
भक्ति में समझते हैं – गंगा में स्नान करने से पावन बन जायेंगे। पावन बनाना तो
तुम्हारी मिशन का कर्तव्य है। यह है ईश्वरीय मिशन। तुम ही पतित मनुष्य को पावन देवता
बनाते हो श्रीमत पर। श्रीकृष्ण पतित-पावन नहीं है। वह पूरे 84 जन्म लेते हैं। पहले
हैं लक्ष्मी-नारायण फिर अन्त में ब्रह्मा सरस्वती। आदि देव, आदि देवी बनते हैं, अभी
यह बातें किसने समझाई? शिव परमात्माए नम: गाते भी हैं – हे परमपिता परमात्मा आपकी
गत मत सबसे न्यारी है। वह श्रीमत देते हैं गति के लिए। गति और सद्गति। दुगर्ति वालों
की सद्गति करने वाला। उनकी श्रीमत सब मनुष्यों से न्यारी है। बाकी भक्ति मार्ग है
घोर रात्रि, आधाकल्प है ज्ञान दिन। शिवबाबा कहते हैं मैं अन्धियारी रात में आता
हूँ, रात को दिन बनाने। यह ज्ञान एक ही ज्ञान सागर शिवबाबा के पास है। ऋषि मुनि आदि
सब कहते आये हैं कि परमात्मा बेअन्त है। बाप को नहीं जानते तो गोया नास्तिक ठहरे।
आधाकल्प है नास्तिक, आधाकल्प है आस्तिक। तुम अब बाप को, बाप की रचना के
आदि-मध्य-अन्त को जानते हो और कोई नहीं जानते इसलिए कहा जाता है – निधन के। अनेक
धर्म अनेक मतें हो गई हैं। अब बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया का सन्यास करना है।
याद करना है शान्तिधाम और सुखधाम को। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। गृहस्थ
व्यवहार में भल रहो सिर्फ पवित्र बनो। धन्धे बिगर गृहस्थ कैसे चलेगा। सिर्फ पवित्र
बनना है और बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं सोनार भी हूँ। तुम्हारी आत्मा और
शरीर दोनों ही पतित हैं इसलिए तुम्हारी आत्मा जब पावन बनें तब फिर शरीर भी पावन मिले।
सच्चे सोने का जेवर भी ऐसा बनेगा ना। अब तो आत्मा और शरीर दोनों ही आइरन एजड हैं।
फिर पावन बनाने की युक्ति बाप बताते हैं इसलिए कहते हैं तुम्हारी गत मत, श्रीमत सबसे
न्यारी है। अभी तुम जानते हो यह सद्गति का रास्ता कोई बतला नहीं सकते हैं। गायन होता
है तो जरूर कुछ करके गये हैं। अभी कलियुग है फिर सतयुग होना है। संगम पर तुम बैठे
हो। तुम ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण हो। कमल फूल सम पवित्र रहते हो। तुम्हारी माया के
साथ युद्ध है। माया से ही कई फेल हो जाते हैं। काम का घूँसा जोर से लगता है। बाबा
कहते हैं खबरदार रहो। अगर गिरा तो फिर किसी को कह नहीं सकेंगे कि काम महाशत्रु है।
बाप कहते हैं फिर भी पुरुषार्थ करो, एक बार हराया, दूसरी बार हराया फिर अगर तीसरी
बार हराया तो खत्म। पद भ्रष्ट हो जायेगा। प्रतिज्ञा की है तो उस पर पूरा रहना है।
प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना चाहिए। परन्तु सब तो प्रतिज्ञा पर कायम नहीं रहते
हैं। गिरते भी रहते हैं। कोई फिर बाप को छोड़ भी देते हैं। बहुत भागने वाले भी हैं।
अन्त में तुमको पूरा साक्षात्कार होगा कि कौन क्या बनेंगे! पुरुषार्थ पूरा करना
चाहिए। जो दु:ख देते हैं वह दु:खी होकर मरते हैं। बाप तो सबको सुख देने वाला है।
तुम्हारा भी काम है सबको सुख देना। कर्मणा में भी किसको दु:ख दिया तो दु:खी होकर
मरेंगे। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बेहद के बाप के साथ पूरा फरमानबरदार, व़फादार होकर
रहना है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के साथ व़फादार, फरमानबरदार होकर रहना है। कभी किसी को दु:ख नहीं
देना है।
2) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए पवित्र बनने का पुरुषार्थ करना है। काम की चोट
कभी नहीं खानी है। इससे बहुत सावधान रहना है।