ओम् शान्ति।
बाप भी बच्चों का शुक्रिया मानते हैं। जो मददगार बच्चे होते हैं तो बाप भी शुक्रिया
मानते हैं और बच्चों की महिमा करते हैं। अब तो बच्चे जान गये हैं कि बेहद का बाप आया
है। बाप आते ही हैं पतित दुनिया में। गाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ। तो पतित-पावन
आयेगा, जरूर पावन दुनिया स्वर्ग स्थापन करेगा, जिसमें मनुष्य थोड़े रहते हैं। पावन
दुनिया की महिमा गाई जाती है। पावन दुनिया में पुकारने वाला कोई होता नहीं है।
पुकारते इस पतित दुनिया में हैं। भक्त ही अपने को पतित समझते हैं। बरोबर एक ही भारत
है जिसमें पावन देवताओं की राजाई थी। भारत में पवित्रता थी। बड़े साहूकार थे, बहुत
सुखी थे, अब तो दु:खी हैं। शिवबाबा ही ब्रह्मा तन में बैठ समझाते हैं। तो ब्रह्मा
तन को भी याद करना पड़े ना। अगर बच्चे दूर जाते हैं, समझो तुम अपने नगरों में
जायेंगे तो तुम्हारा जो बेहद का बाप है, साजन भी है, उनको चिट्ठी तो लिखनी चाहिए
ना। शिवबाबा को लिखना पड़े थ्रू ब्रह्मा। ब्रह्मा के सिवाए तो शिवबाबा सुन न सकें।
शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा याद करना पड़े ना। कई ऐसे भी बच्चे हैं जो समझते हैं कि हम तो
शिवबाबा को याद करते रहते हैं। साकार से कोई कनेक्शन नहीं परन्तु जबकि शिवबाबा यहाँ
हैं तो जरूर बाबा को पत्र लिखना पड़े। समाचार देना पड़े - शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा।
गाया जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि और विनाश काले प्रीत बुद्धि - किसके साथ?
शिवबाबा के साथ ब्रह्मा द्वारा। ऐसे भी मंद बुद्धि हैं जो कहते हैं - हम तो शिवबाबा
को ही याद करते हैं। शिवबाबा कहते हैं ना मुझे याद करने से तुम्हारा बेड़ा पार हो
जायेगा। परन्तु वह है कहाँ? जरूर यहाँ इस तन में हैं, इस द्वारा पढ़ाते हैं।
निराकार को तुम चिट्ठी कैसे लिखेंगे? साजन सजनियों को, सजनियाँ साजन को चिट्ठी लिखती
हैं ना। सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक तो मनुष्य, मनुष्य को पत्र आदि लिखते आये। अब
आत्मायें परमात्मा के साथ मिलती हैं, उनको पत्र लिखती हैं। निराकार परमपिता परमात्मा
के साथ बात करती हैं। तो थ्रू ब्रहमा उनसे कनेक्शन रखना पड़े। ब्रह्मा द्वारा चिट्ठी
लिखें तब शिवबाबा समझे बरोबर याद करते हैं। किसकी बुद्धि को माया एकदम पकड़ लेती है
या देह-अभिमान आ जाता है तो फिर पत्र भी नहीं लिखते, भूल जाते हैं। अभी है विनाश
काले विपरीत बुद्धि। पाण्डवों की है प्रीत बुद्धि। वो लोग फिर समझते हैं कि गीता का
भगवान् श्रीकृष्ण था। अच्छा, समझो श्रीकृष्ण है तो भी उनको चिट्ठी लिखनी पड़े।
शिवबाबा को भी लिखनी है। श्रीमत जरूर लेनी पड़े। कहते हैं कि शिवबाबा को याद करते
हैं। परन्तु साकार ब्रह्मा के सिवाए तो राय मिल न सके। अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास
बच्चे लिखते हैं कि हमारा योग शिवबाबा से है, हम उनको मदद करते रहेंगे। फिर भी थ्रू
ब्रह्मा, बाप बिगर दादे का वर्सा तो ले नहीं सकते हो। कदम-कदम पर राय लेनी पड़े।
ऐसे-ऐसे बाबा के पास समाचार आते हैं। रूठ जाते हैं ब्रह्मा से वा ब्राह्मणी से। फिर
माया एकदम मुँह फेर देती है। समझना चाहिए कि कदम-कदम पर हमको शिवबाबा से श्रीमत लेनी
है - बाबा इस हालत में क्या करना चाहिए।
बाबा हमेशा पूछते रहते हैं कि - बच्चे, खुशराज़ी हो? एक होती है शारीरिक बीमारी,
दूसरी फिर है रूहानी बीमारी। कभी पत्र नहीं लिखते कि बाबा हम मौज में हैं, हमारे
ऊपर माया वार नहीं करती है। अच्छा, वह सब कुछ जानते हैं परन्तु फिर भी उनसे मत तो
लेनी पड़े ना - इस बात में भी राइट हूँ या रांग हूँ? योग पूरा नहीं है तो उल्टे हो
पड़े हैं। विनाश काले प्रीत बुद्धि बच्चों को तो बाप के पास आना है। बाप यहाँ बैठे
हैं ना। बहुत हैं जिनकी विनाश काले विपरीत बुद्धि हो जाती है तो उल्टे-सुल्टे काम
करने लग पड़ते हैं, मूँझ पड़ते हैं। श्रीमत लेने बिगर तो काम चल न सके। बिगर गाइड
अकेला पहुँच न सके। कोई रास्ता जानते ही नहीं तो जा कैसे सकते? गाइड का जरूर हाथ
चाहिए। तैरने के लिए जरूर आधार चाहिए। बच्चों को बाबा सावधानी देते रहते हैं कि कोई
भी बात में संशय उठ पड़े तो भी कम से कम इनसे तो कनेक्शन रखना पड़े। शिवबाबा की मत
भी तो इनसे मिलती है ना। बाबा ने समझाया - अकालमूर्त का यह रथ अथवा तख्त ख़ास मुकरर
है। बाबा कहते हैं - मैं इनके रथ अथवा तख्त का आधार लेता हूँ। बाकी मैं किसी में भी
कभी भी प्रवेश कर अपनी सर्विस कर लेता हूँ। बाबा ने समझाया है कि कोई हनूमान की
भक्ति करते हैं तो उनको वह साक्षात्कार कराता हूँ। उसकी भावना का भाड़ा देता हूँ।
अगर हनूमान का साक्षात्कार कराया तो वो ही भाव बैठ जायेगा। उनके पिछाड़ी लटक पड़ेंगे।
बाबा ने यह रथ तो बहुत अनुभवी लिया है। था भी यह जवाहरात का व्यापारी। यह भी अविनाशी
ज्ञान रत्नों का व्यापार है। कल्प-कल्प इस रथ में आऊं तब तो कार्य करूँ। ब्रह्मा
द्वारा ब्राह्मण रचेंगे ना। जैसे क्राइस्ट द्वारा क्रिश्चियन रचे जाते हैं। राशि
मिलती है ना। तो मुझे आना पड़े ब्रह्मा के रथ में। इनके ही जन्मों की कहानी बैठ
समझाता हूँ। पहला जन्म तो है श्रीकृष्ण का। उनके ही बहुत जन्मों के अन्त के जन्म
में आता हूँ। यह एक्यूरेट बताता हूँ। कोई पूछे तो बोलो - पहले तो ब्रह्मा जरूर
चाहिए तब तो उन द्वारा ब्राह्मण रचें। व्यक्त प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए। सूक्ष्मवतन
में तो प्रजापिता होता नहीं है। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ चाहिए और मैं आता भी भारत
में हूँ। जबकि घोर अन्धियारा होता है। आधाकल्प भक्ति का पूरा होता है।
गाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ। अगर प्रलय हो फिर तो दुनिया पावन हो न सके।
प्रलय अक्षर रांग हैं। जब बहुत दु:खी पतित होते हैं तब मैं आता हूँ। पावन दुनिया है
सतयुग-त्रेता, द्वापर-कलियुग है पतित दुनिया। यहाँ कितने करोड़ों मनुष्य हैं, सतयुग
में तो इतने नहीं चाहिए। दिखाते हैं पेट से मूसल निकले, जिससे अपने ही कुल का नाश
किया... यह सब कहानियाँ बैठ बनाई हैं। पेट से कोई चीज़ नहीं निकली है, यह तो बुद्धि
का काम है। साइंस से भी अभी देखो कितना सुख हो गया है। आगे यह गैस बिजली आदि कुछ नहीं
था। बाबा तो अनुभवी है। कहते भी हैं कि मैं वृद्ध तन में आता हूँ, श्रीकृष्ण का तो
वृद्ध तन नहीं है। श्रीकृष्ण पतित थोड़ेही है। कहते हैं कि पतित-पावन आओ तो पतित
दुनिया, पतित शरीर में आना पड़े। पतित दुनिया में पावन शरीर होता ही नहीं। यहाँ
आत्मायें भी तमोप्रधान तो शरीर भी तमोप्रधान हैं। गोल्डन एज, सिल्वर एज कहा जाता है
ना। पहले है गोल्डन एज। वहाँ आत्मा और शरीर दोनों पावन हैं। फिर आत्मा पतित बन जाती
है। उन्हों को आकर वाइसलेस (पावन) बनाता हूँ। माया ऐसी है जो अच्छे-अच्छे
फर्स्टक्लास का भी कान पकड़ लेती है। ब्राह्मणी से या ब्रह्मा से नाराज़ हुआ, संशय
पड़ा, यह गया। माया मुँह फेर देती है। प्रीत बुद्धि से विपरीत बुद्धि बन पड़ते हैं।
फिर शिवबाबा से पढ़ना छोड़ देते हैं। कोई पढ़ते हैं परन्तु पूरी धारणा नहीं होती तो
बाबा कहते हैं हर्जा नहीं। सिर्फ दो बातें मजबूत कर लो। बाबा को याद करना है। अभी
तुम्हारी बुद्धि यहाँ और वहाँ (घर में) रहनी चाहिए। एक जिन्न का मिसाल है ना। उसने
कहा कि काम दो नहीं तो खा जाऊंगा। बाबा भी कहते हैं कि मैं यह याद करने का काम देता
हूँ। अगर याद नहीं करेंगे तो माया कच्चा खा जायेगी। याद के लिए कुछ समय तो निकालना
चाहिए ना। पहले थोड़ा समय फिर बहुत प्रैक्टिस होती जायेगी। बाबा कहते हैं कि चुप रहो,
सिर्फ याद करते रहो। तुम जानते हो कि बाबा ऊपर में भी है, यहाँ भी है। हमको बाबा के
पास जाना है। अभी तुमको समझ है बाबा इस शरीर में आया हुआ है। याद नहीं करेंगे तो
माया कच्चा खा जायेगी। कहानियां तो बहुत बना दी हैं।
आगे बेसमझ थे अभी बाबा समझाते हैं कि मैं चला जाता हूँ फिर तुम विश्व के मालिक
बनते हो। तुम्हारी आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही इम्तहान पास करती है - शरीर
के द्वारा। अभी बाप कहते हैं कि देही-अभिमानी बनो। गृहस्थ व्यवहार में रहते अपने को
अशरीरी आत्मा समझो। जितना बाप को याद करेंगे उतना फ़ायदा है। इसी का नाम योग रख दिया
है। नहीं तो यह है याद, आत्माओं की बाप से प्रीत। याद करते हैं। आशिक-माशूक का भी
एक-दो के शरीर से प्यार होता है। आशिक-माशूक दोनों ही देहधारी होते हैं। आशिक के
सामने जैसे कि माशूक खड़ा है। माशूक को फिर आशिक दिखाई पड़ेगा। अभी तुम आशिक हो
परमपिता परमात्मा के। एक है माशूक, बाकी सब आत्मायें हैं आशिक। वह निराकार बाप तुमको
इस साकार द्वारा बैठ मत देते हैं। तुम तो न आत्मा को, न परमात्मा को देख सकते हो।
कभी-कभी कोई को आत्मा का साक्षात्कार होता है। मनुष्य तो कुछ समझ नहीं सकते। बाबा
लाइट का साक्षात्कार करा देते हैं क्योंकि भावना बैठी हुई है। कहते हैं ना बहुत
लाइट तेजोमय है, बस करो, हम सहन नहीं कर सकते हैं। लाल-लाल आंखे हो जाती हैं। बाबा
समझाते हैं कि मैं तो स्टार हूँ। जैसे जुगनू होता है ना फायरफ्लाई। जैसे उनकी लाइट
चमकती है वैसे स्टार मुआफिक आत्मा निकल जाती है। (विवेकानंद का मिसाल) तो जैसे जिसकी
भावना बैठी हुई होगी उसे वैसा ही साक्षात्कार हो जायेगा। बाबा बैठ समझाते हैं कि यह
तुम्हारी भावना चली आती है। तो मैं उसी रूप में साक्षात्कार कराता हूँ। जैसी आत्मा
है वैसा परमात्मा। परन्तु वह ज्ञान का सागर है। आत्मा भी चैतन्य है। सब संस्कार
आत्मा में हैं। बाप में भी संस्कार हैं - स्थापना, विनाश, पालना के कर्तव्य करने
के। त्रिमूर्ति हैं ना। शिवबाबा को भी कोई जानते नहीं। तो त्रिमूर्ति के ऊपर शिव
रचता को भूल गये हैं। वास्तव में गीता का भगवान् है त्रिमूर्ति शिव परन्तु वह फिर
कह देते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा। अरे, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का भी कोई रचता होगा ना?
ब्रह्मा का नाम अलग, शिवबाबा का नाम अलग है। नहीं तो किसको कहते हो कि वह रचता है।
किसकी भी समझ में नहीं आता है।
बाप आकर बच्चों को समझाते हैं। तुम्हारी है प्रीत बुद्धि। कोई की विपरीत बुद्धि
हो जाती है तो जैसे कौरव बन जाते हैं। भल यहाँ आते हैं परन्तु पद कम हो जाता है। जो
कुछ जमा हुआ वो ना हो जाता है। फिर प्रजा में जाकर कम पद पायेंगे। इस समय देखो -
पढ़ाई से क्या-क्या बन सकते हैं। बाबा कहते हैं कि - बच्चे, देवता बनना है तो इस
खराब चीज़ को (विष को) छोड़ना है। एक बाप ही सच्चा सतगुरू है जो मुक्ति-जीवनमुक्ति
में ले जाने वाला है। जाना तो सबको एक ही समय है। ऐसे नहीं कोई बीच से चला जायेगा।
हर एक को अपना-अपना पूरा पार्ट बजाना है। जरूर फिर अन्त में मच्छरों सदृश्य वापिस
जाना है। गीता में भी लिखा हुआ है, परन्तु श्रीकृष्ण भगवानुवाच लिखने से गीता का
महत्व ही चट हो गया है। बाप न आये तो मुक्तिधाम कैसे जायें? फिर अपने समय पर आकर
अपना पार्ट बजाते हैं। यह हुआ विस्तार से समझाना। नटशेल में कहते हैं कि मुझे याद
करो। बस, गॉड इज वन। बाकी सब हैं बच्चे। अभी तुम त्रिकालदर्शी बने हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा खुश राज़ी रहने के लिए कदम-कदम पर बाप से राय लेनी है। शिवबाबा
को ब्रह्मा के थ्रू याद करना है। अपना समाचार देते रहना है।
2) कभी भी किसी बात में संशय नहीं उठाना है। ब्राह्मणी से या ब्रह्मा बाप से
रूठकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। सदा प्रीत बुद्धि रहना है।