27-03-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - यह ज्ञान तुम्हें शीतल बनाता है, इस ज्ञान
से काम-क्रोध की आग खत्म हो जाती है, भक्ति से वह आग खत्म नहीं होती"
प्रश्नः-
याद में मुख्य
मेहनत कौन सी है?
उत्तर:-
बाप की
याद में बैठते समय देह भी याद न आये। आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत
है। इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देह-अभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही
देह की याद।
ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो याद के लिए एकान्त की बहुत जरूरत है। जितना तुम एकान्त वा शान्त
में बाप की याद में रह सकते हो उतना झुण्ड में नहीं रह सकते हो। स्कूल में भी बच्चे
पढ़ते हैं तो एकान्त में जाकर स्टडी करते हैं। इसमें भी एकान्त चाहिए। घूमने जाते
हो तो उसमें भी याद की यात्रा मुख्य है। पढ़ाई तो बिल्कुल सहज है क्योंकि आधाकल्प
माया का राज्य आने से ही तुम देह-अभिमानी बनते हो। पहला-पहला शत्रु है देह-अभिमान।
बाप को याद करने के बदले देह को याद कर लेते हैं। इसको देह का अहंकार कहा जाता है।
यहाँ तुम बच्चों को कहा जाता है आत्म-अभिमानी बनो, इसमें ही मेहनत लगती है। अब भक्ति
तो छूटी। भक्ति होती ही है शरीर के साथ। तीर्थों आदि पर शरीर को ले जाना पड़ता है।
दर्शन करना है, यह करना है। शरीर को जाना पड़े। यहाँ तुमको यही चिंतन करना है कि हम
आत्मा हैं, हमको परमपिता परमात्मा बाप को याद करना है। बस जितना याद करेंगे तो पाप
कट जायेंगे। भक्ति मार्ग में तो कभी पाप कटते नहीं हैं। कोई बुढ़े आदि होते हैं तो
अन्दर में यह वहम होता है - हम भक्ति नहीं करेंगे तो नुकसान होगा, नास्तिक बन
जायेंगे। भक्ति की जैसे आग लगी हुई है और ज्ञान में है शीतलता। इसमें काम क्रोध की
आग खत्म हो जाती है। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितनी भावना रखते हैं, मेहनत करते हैं।
समझो बद्रीनाथ पर गये, मूर्ति का साक्षात्कार हुआ फिर क्या! झट भावना बन जाती है,
फिर बद्रीनाथ के सिवाए और कोई की याद बुद्धि में नहीं रहती। आगे तो पैदल जाते थे।
बाप कहते हैं मैं अल्पकाल के लिए मनोकामना पूरी कर देता हूँ, साक्षात्कार कराता
हूँ। बाकी मैं इनसे मिलता नहीं हूँ। मेरे बिगर वर्सा थोड़ेही मिलेगा। वर्सा तो तुमको
मेरे से ही मिलना है ना। यह तो सभी देहधारी हैं। वर्सा एक ही बाप रचता से मिलता है,
बाकी जो भी हैं जड़ अथवा चैतन्य वह सारी है रचना। रचना से कभी वर्सा मिल न सके।
पतित-पावन एक ही बाप है। कुमारियों को तो संगदोष से बहुत बचना है। बाप कहते हैं इस
पतितपने से तुम आदि-मध्य-अन्त दुःख पाते हो। अभी सब हैं पतित। तुम्हें अभी पावन बनना
है। निराकार बाप ही आकर तुमको पढ़ाते हैं। ऐसे कभी नहीं समझो कि ब्रह्मा पढ़ाते
हैं। सबकी बुद्धि शिवबाबा तरफ रहनी चाहिए। शिवबाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम दादियों
को भी पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनकी क्या खातिरी करेंगे! तुम शिवबाबा के लिए अंगूर
आम ले आते हो, शिवबाबा कहते हैं - मैं तो अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों के लिए ही सब कुछ
है। भक्तों ने भोग लगाया और बांटकर खाया। मैं थोड़ेही खाता हूँ। बाप कहते हैं मैं
तो आता ही हूँ तुम बच्चों को पढ़ाकर पावन बनाने। पावन बनकर तुम इतना ऊंच पद पायेंगे।
मेरा धन्धा यह है। कहते ही हैं शिव भगवानुवाच। ब्रह्मा भगवानुवाच तो कहते नहीं हैं।
ब्रह्मा वाच भी नहीं कहते हैं। भल यह भी मुरली चलाते हैं परन्तु हमेशा समझो शिवबाबा
चलाते हैं। किसी बच्चे को अच्छा तीर लगाना होगा तो खुद प्रवेश कर लेंगे। ज्ञान का
तीर तीखा गाया जाता है ना। साइंस में भी कितनी पावर है। बॉम्बस आदि का कितना धमाका
होता है। तुम कितनी साइलेन्स में रहते हो। साइंस पर साइलेन्स विजय पाती है।
तुम इस सृष्टि को पावन बनाते हो। पहले तो अपने को पावन बनाना है। ड्रामा अनुसार
पावन भी बनना ही है, इसलिए विनाश भी नूॅंधा हुआ है। ड्रामा को समझ कर बहुत हर्षित
रहना चाहिए। अभी हमको जाना है शान्तिधाम। बाप कहते हैं वह तुम्हारा घर है। घर में
तो खुशी से जाना चाहिए ना। इसमें देही-अभिमानी बनने की बहुत मेहनत करनी है। इस याद
की यात्रा पर ही बाबा बहुत जोर देते हैं, इसमें ही मेहनत है। बाप पूछते हैं चलते
फिरते याद करना सहज है या एक जगह बैठकर याद करना सहज है? भक्ति मार्ग में भी कितनी
माला फेरते हैं, राम-राम जपते रहते हैं। फायदा तो कुछ भी नहीं। बाप तो तुम बच्चों
को बिल्कुल सहज युक्ति बतलाते हैं - भोजन बनाओ, कुछ भी करो, बाप को याद करो। भक्ति
मार्ग में श्रीनाथ द्वारे में भोग बनाते हैं, मुँह को पट्टी बांध देते हैं। ज़रा भी
आवाज़ न हो। वह है भक्ति मार्ग। तुमको तो बाप को याद करना है। वो लोग इतना भोग लगाते
हैं फिर वह कोई खाते थोड़ेही हैं। पण्डे लोगों के कुटुम्ब होते हैं, वह खाते हैं।
तुम यहाँ जानते हो हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। भक्ति में थोड़ेही यह समझते हैं कि हमको
शिवबाबा पढ़ाते हैं। भल शिव पुराण बनाया है परन्तु उनमें शिव पार्वती, शिव-शंकर सब
मिला दिया है, वह पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता है। हर एक को अपना शास्त्र पढ़ना
चाहिए। भारतवासियों की है एक गीता। क्रिश्चियन का बाइबिल एक होता है। देवी-देवता
धर्म का शास्त्र है गीता। उसमें ही नॉलेज है। नॉलेज ही पढ़ी जाती है। तुमको नॉलेज
पढ़नी है। लड़ाई आदि की बातें जिन किताबों में हैं, उससे तुम्हारा कोई काम ही नहीं
है। हम हैं योगबल वाले फिर बाहुबल वालों की कहानियां क्यों सुनें! तुम्हारी वास्तव
में लड़ाई है नहीं। तुम योगबल से 5 विकारों पर विजय पाते हो। तुम्हारी लड़ाई है 5
विकारों से। वह तो मनुष्य, मनुष्य से लड़ाई करते हैं। तुम अपने विकारों से लड़ाई
लड़ते हो। यह बातें सन्यासी आदि समझा न सकें। तुमको कोई ड्रिल आदि भी नहीं सिखलाई
जाती है। तुम्हारी ड्रिल है ही एक। तुम्हारा है ही योगबल। याद के बल से 5 विकारों
पर जीत पाते हो। यह 5 विकार दुश्मन हैं। उनमें भी नम्बरवन है देह-अभिमान। बाप कहते
हैं तुम तो आत्मा हो ना। तुम आत्मा आती हो, आकर गर्भ में प्रवेश करती हो। मैं तो इस
शरीर में विराजमान हुआ हूँ। मैं कोई गर्भ में थोड़ेही जाता हूँ। सतयुग में तुम गर्भ
महल में रहते हो। फिर रावण राज्य में गर्भ जेल में जाते हो। मैं तो प्रवेश करता
हूँ। इसको दिव्य जन्म कहा जाता है। ड्रामा अनुसार मुझे इसमें आना पड़ता है। इनका
नाम ब्रह्मा रखता हूँ क्योंकि मेरा बना है ना। एडाप्ट होते हैं तो नाम कितने
अच्छे-अच्छे रखते हैं। तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे। लिस्ट बड़ी वन्डरफुल
आई थी, सन्देशी द्वारा। बाबा को सब नाम थोड़ेही याद हैं। नाम से तो कोई काम नहीं।
शरीर पर नाम रखा जाता है ना। अब तो बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो।
बस। तुम जानते हो हम पूज्य देवता बनते हैं फिर राज्य करेंगे। फिर भक्ति मार्ग में
हमारे ही चित्र बनायेंगे। देवियों के बहुत चित्र बनाते हैं। आत्माओं की भी पूजा होती
है। मिट्टी के सालिग्राम बनाते हैं फिर रात को तोड़ डालते हैं। देवियों को भी सजाकर,
पूजा कर फिर समुद्र में डाल देते हैं। बाप कहते हैं मेरा भी रूप बनाकर, खिला पिलाकर
फिर मुझे कह देते ठिक्कर-भित्तर में है। सबसे दुर्दशा तो मेरी करते हैं। तुम कितने
गरीब बन गये हो। गरीब ही फिर ऊंच पद पाते हैं। साहूकार मुश्किल उठाते हैं। बाबा भी
साहूकारों से इतना लेकर क्या करेंगे! यहाँ तो बच्चों के बूँद-बूँद से यह मकान आदि
बनते हैं। कहते हैं बाबा हमारी एक ईट लगा दो। समझते हैं रिटर्न में हमको सोने-चांदी
के महल मिलेंगे। वहाँ तो सोना ढेर रहता है। सोने की ईंटें होगी तब तो मकान बनेंगे।
तो बाप बहुत प्यार से कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, अब मुझे याद करो, अब नाटक पूरा
होता है।
बाप गरीब बच्चों को साहूकार बनने की युक्ति बताते हैं - मीठे बच्चे, तुम्हारे पास
जो कुछ भी है ट्रांसफर कर दो। यहाँ तो कुछ भी रहना नहीं है। यहाँ जो ट्रॉसफर करेंगे
वह नई दुनिया में तुमको सौ गुणा होकर मिलेगा। बाबा कुछ मांगते नहीं हैं। वह तो दाता
है, यह युक्ति बताई जाती है। यहाँ तो सब मिट्टी में मिल जाना है। कुछ ट्रॉंसफर कर
देंगे तो तुमको नई दुनिया में मिलेगा। इस पुरानी दुनिया के विनाश का समय है। यह कुछ
भी काम में नहीं आयेगा इसलिए बाबा कहते हैं घर-घर में युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल खोलो।
जिससे हेल्थ और वेल्थ मिलेगी। यही मुख्य है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं
आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।
2) ड्रामा को अच्छी तरह समझकर हर्षित रहना है। अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए
ट्रांसफर करना है।
वरदान:-
अपनी पावरफुल स्थिति द्वारा मन्सा सेवा का
सर्टीफिकेट प्राप्त करने वाले स्व अभ्यासी भव
विश्व को लाइट और माइट का वरदान देने के लिए अमृतवेले याद
के स्व अभ्यास द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तब मन्सा सेवा का सर्टीफिकेट प्राप्त
होगा। लास्ट समय में मन्सा द्वारा ही नज़र से निहाल करने की, अपनी वृत्ति द्वारा
उनकी वृत्तियों को बदलने की सेवा करनी है। अपनी श्रेष्ठ स्मृति से सबको समर्थ बनाना
है। जब ऐसा लाइट माइट देने का अभ्यास होगा तब निर्विघ्न वायुमण्डल बनेगा और यह किला
मजबूत होगा।
स्लोगन:-
समझदार वह हैं जो मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों सेवायें साथ-साथ करते हैं।