ओम् शान्ति।
माताओं को सौभाग्यशाली बनाने वाला जरूर पिता ही है। महिमा तो एक की ही गाई जाती है।
सभी का सद्गति दाता एक है। याद भी उस एक को करना पड़ता है। यह तो तुम बच्चों की
महिमा है। तुम जानते हो हमको दुर्भाग्यशाली से सौभाग्यशाली बनाने वाला बाप है। भारत
सौभाग्यशाली था फिर भारत 100 प्रतिशत दुर्भाग्यशाली बना है। भारत पर ही कहानी है।
इन माताओं को सौभाग्यशाली बनाने वाला बाप ठहरा, जिसको तुम बच्चे जानते हो। उनके साथ
तुम्हारा योग है। तुम जानते हो उनकी यह सारी रचना है। दूसरा कोई मनुष्य इस रचना और
रचता को नहीं जानते। यह चित्र आदि किसने बनवाये हैं? तुम कहेंगे शिवबाबा ने। किस
द्वारा? फिर भी माता वा साकार पिता द्वारा कहेंगे। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में
सारा सृष्टि रूपी झाड़ है। सृष्टि कितनी बड़ी है! वास्कोडिगामा ने सारी धरती का
चक्र लगाया, पिछाड़ी में सागर ही सागर है, आकाश ही आकाश है और कुछ नहीं। यह सब तुमने
स्कूल में भी पढ़ा होगा। बाप फिर सब बातें नटशेल में समझाते हैं। तुम जानते हो भारत
में 5000 वर्ष पहले बरोबर सतयुग था। सतयुग में सिर्फ भारत था। भारत में भी कितने
थोड़े होंगे। अभी तुम कहेंगे हम सूर्यवंशी राजधानी के थे। जमुना के कण्ठे पर
श्रीकृष्ण की राजधानी थी, ऐसा गाया जाता है। दिल्ली को ही परिस्तान कहते हैं।
पहले-पहले जरूर कोई की राजधानी होगी। तुम कहेंगे हम सूर्यवंशी राजधानी के थे। बाद
में अलग-अलग हो जाते हैं। तो प्रभाव वास्तव में, जहाँ राज्य करते हैं वहाँ होता है।
भारत का बहुत प्रभाव है। यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में टपकनी चाहिये। धारण करना
होता है।
शिवबाबा को ही फिर सोमनाथ, ज्ञान का सागर कहते हैं। सोमनाथ नाम पुजारियों ने रखा
है। असुल नाम है शिवबाबा। शिव किसको कहा जाता है? आत्माओं के बाप को। आत्मा तो
बिन्दी है। गाया जाता है परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम सोल। सोल अर्थात् आत्मा। आत्मा
बड़ी-छोटी नहीं होती है। बाप कहते हैं मैं भी इसमें प्रवेश करता हूँ तो कोई को
मालूम नहीं पड़ता है। परन्तु समझते हैं भ्रकुटी के बीच में वह छोटा सा स्टॉर है ना।
तो कहेंगे मस्तकमणी, मस्तक में मणी है। मणी आत्मा को कहा जाता है। कहते हैं सर्प के
मस्तक में भी मणी होती है। यह सब बातें वास्तव में इस समय की हैं। आत्मा रूपी मणी
प्रकाश करती है। वह भ्रकुटी के बीच में रहती है। बाप तो तुम बच्चों को रोज़ नई-नई
बातें समझाते रहते हैं। मुख्य बात समझनी है - मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ। बाप कहते
हैं मेरी जो आत्मा है जिसको परम आत्मा कहते हैं, मैं जन्म-मरण रहित हूँ। मैं आता
जरूर हूँ। निराकार का मन्दिर बना हुआ है। आगे यह ज्ञान नहीं था। जरूर निराकार ने
आकर कुछ किया है। निराकार आते ही फैमिली में हैं। लक्ष्मी-नारायण की आत्मा भी आती
है। उनको भी शरीर दिखाते हैं। लिंग रूप एक ही शिव का दिखाते हैं। शिव के मन्दिर में
शिवलिंग के साथ फिर सालिग्राम भी है। ऐसे नहीं, श्रीकृष्ण के वा लक्ष्मी-नारायण के
मन्दिर में सालिग्राम दिखाते हैं। तो सिद्ध होता है एक बाप के यह सब बच्चे हैं।
आत्मा की भी पूजा होती है, तो देवताओं की भी पूजा होती है। रुद्र यज्ञ कहते हैं।
बाप ने यह यज्ञ रचा है जीव आत्माओं द्वारा। जैसे बाप की पूजा होती है वैसे तुम्हारी
आत्मा की भी पूजा जरूर होनी चाहिए। फिर साकार में जो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, उनकी
पूजा होती है। वही नाम चला आता है। यहाँ तुम आत्मायें सर्विस कर रही हो इस शरीर
द्वारा इसलिए तुम आत्माओं की पूजा होती है। शिवबाबा कहते हैं मैं भी इनसे बहुत भारी
सर्विस करता हूँ इसलिए पहले-पहले मेरी पूजा होती है। फिर जिन आत्माओं द्वारा सर्विस
करता हूँ, सारे विश्व को पवित्र बनाता हूँ, उन्हों की भी पूजा जरूर होनी चाहिये।
सबकी पूजा करते हैं। कम से कम लाख सालिग्राम बनाते हैं। सेठ लोग रुद्र यज्ञ रचवाते
हैं तो कोई 5 हजार, कोई 10 हजार, कोई लाख सालिग्राम भी बनवाते हैं। यह है परमात्मा
और आत्माओं की पूजा। बाप समझाते हैं - तुम आत्मायें इस पतित शरीर द्वारा सेवा कर रही
हो। सबसे जास्ती सर्विस शिवबाबा करते हैं और फिर तुम्हारे द्वारा कराते हैं तो तुम
आत्माओं की पूजा होती है। बाप के साथ पहले-पहले तुम्हारी महिमा आनी चाहिए। जानते
कोई भी नहीं हैं। न रुद्र को, न सालिग्रामों को जानते हैं, जिन्होंने राज्य पाया।
अभी तुम राज्य पा रहे हो। पूजा मुख्य की होती है, वह है लक्ष्मी-नारायण, जिनकी
डिनायस्टी गाई हुई है। उन्होंने यह भी राज्य कोई की मदद से लिया होगा ना। तुम बच्चों
की मदद से राजधानी स्थापन होती है। बड़ी मीठी बातें हैं। नटशेल में बाबा समझाते रहते
हैं ताकि धारण भी कर सको। मुख्य धारणा की बात है - मुझ बाप को याद करो।
तुम्हारी आत्मा में भी झाड़ और चक्र की नॉलेज है। नम्बरवन सबसे पूज्य शिवबाबा
आत्माओं का बाप है, जो तुमको बैठ ऐसा लायक बनाते हैं। तुम आत्माओं की पूजा होती है।
हम पूज्य और पुजारी कैसे बनते हैं सो अब समझते हो। भारतवासी ही पूज्य और पुजारी बनते
हैं। अभी सब पुजारी हैं फिर पूज्य होंगे। वहाँ फिर कोई पुजारी भक्त नहीं होगा। उन्हों
को भगवती भगवान् जरूर भगवान् ने ही बनाया होगा। अब भगवान् निराकार है या साकार?
साकार में ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण हैं, उन्हों को ऐसा बनाने वाला है निराकार,
इसलिए निराकार की पूजा होती है। यह सब बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं।
पहले-पहले बाप में निश्चय रखना है। बरोबर हम आत्माओं का बाप वह है। कोई कहे - हे
भगवान, हे परमपिता तो बोलो यह किसने याद किया और किसको? एकदम पकड़ना चाहिए। तुमको
कितने बाप हैं? तुम किसको पुकारते हो? भगवान किसको कहते हो? कहेंगे गॉड फादर। तो
जरूर दो फादर हैं। आत्मा याद करती है गॉड फादर को। तुम्हारी आत्मा भी है और शरीर भी
है। शरीर का तो लौकिक बाप है। आत्मा का बाप कौन है? जिसको कहते हैं परमपिता परमात्मा।
यह किसने और किसको पुकारा? उस बेहद के बाप का परिचय देना है। उनसे ही वर्सा मिलता
है। यह भी उनको याद करते हैं। भिन्न-भिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नाम भी रख दिये
हैं। कोई गॉड कहते हैं, कोई परमात्मा, कोई खुदा कहते हैं। सभी धर्म वाले याद जरूर
एक को ही करते हैं। वह है सभी आत्माओं का बाप। वर्सा बाप से ही मिलता है। तुम आत्मा
उनको पुकारती हो। दो बाप का परिचय देना है - हद का बाप और बेहद का बाप। भक्ति मार्ग
में भक्त भगवान को याद करते हैं तो भगवान कहते हैं - मैं आता हूँ, आकर तुमको
शान्ति-सुख देता हूँ। फिर मुझे कभी याद करने की भी दरकार नहीं रहेगी। तो
पूज्य-पुजारी, पावन-पतित भारतवासी ही बनते हैं। बाकी बीच में और धर्म स्थापन होते
हैं। फिर वृद्धि को पाते-पाते पिछाड़ी में वह भी सब तमोप्रधान बन जाते हैं। पिछाड़ी
में सारा झाड़ आ जायेगा। वहाँ खाली होगा तब तो फिर वापिस जायेंगे। तो अभी है पतित
दुनिया। गाते हैं पतित-पावन...... तो जरूर पतित हैं ना। भारत पावन था, अभी पतित है।
शिवबाबा आते जरूर हैं, परन्तु कब आया, कैसे आया - वह भूल गये हैं। श्रीकृष्ण नहीं
कहते कि मैं शरीर धारण कर तुमको समझाता हूँ। यह तो निराकार बाप कहते हैं मैं इस
द्वारा तुमको समझाता हूँ, तो वह अलग हो गया। श्रीकृष्ण को तुम खुद ही गीता का भगवान
मानते हो। यह तो कहते हैं मैं साधारण वानप्रस्थ वाले तन में प्रवेश करता हूँ। बाप
कहते हैं - मैं तुम्हारे जन्मों को जानता हूँ। शिवबाबा इसमें प्रवेश करते हैं।
श्रीकृष्ण को भगवान, पतित-पावन, ज्ञान सागर कह नहीं सकते। भल गीता हाथ में उठाते
हैं फिर भी कहते हैं पतित-पावन सब सीताओं का राम, राधे का कृष्ण नहीं कहते।
राम अर्थात् परमपिता परमात्मा। त्रेता का राम कहें तो उनसे ऊंच तो
लक्ष्मी-नारायण हैं फिर उनका नाम क्यों नहीं लेते? परन्तु नहीं। है बात परमात्मा
की। हेविनली गॉड फादर निराकार को ही कहेंगे। लिबरेटर, गाइड बाप को ही कहते हैं।
क्राइस्ट थोड़ेही सबको लिबरेट करेगा। किसी का भी नाम नहीं ले सकते हैं। बाप ही आकर
दु:ख से लिबरेट करते हैं। वही फिर गाइड बनते हैं, कहते हैं मैं तुमको रास्ता बताता
हूँ। तुमको बाप ने आकर अपना बनाया है। तुम्हारा यह है ईश्वरीय जन्म। तुमको शिवबाबा
से शक्ति मिलती है। तुम्हारा है साइलेन्स बल, उनका है साइन्स बल। वह बुद्धि से काम
लेते हैं, उन्हें साइन्स घमण्डी कहा जाता है, जिससे विनाश करते हैं। सुख भी साइन्स
बहुत देती है फिर विनाश भी कर देती है। तुमको तो वहाँ एरोप्लेन आदि सब होंगे। हुनर
तो रहता है ना। यह सब चीजें फिर तुमको काम में आयेंगी। विलायत में बत्तियां ऐसी हैं
जो बत्ती दिखाई नहीं पड़ेगी, सिर्फ रोशनी दिखाई पड़ेगी। सतयुग में भी ऐसे रोशनी रहती
है। वैभव जो अभी यहाँ हैं वह तुमको वहाँ भी रहते हैं। तुमने साक्षात्कार किया हुआ
है। वहाँ तो एक्सीडेन्ट आदि की बात नहीं रहती है। दु:ख की बात नहीं होती। बाप आकर
तुम्हारी सुख और शान्ति की मनोकामना पूरी करते हैं।
मनुष्य शान्ति के लिए भटकते हैं, उनसे पूछना है तुमको अशान्त किसने किया है? यह
तुम जानते हो। अशान्त यह 5 विकार ही करते हैं। परन्तु यह समझते नहीं, यह भूल गये
हैं। आत्मा शान्त स्वरूप है। हे आत्मा, तुम आई हो शान्ति देश से फिर यह आरगन्स लिए
हैं। अभी तुम उनसे अलग हो जाओ, डिटैच हो जाओ। इसमें और कुछ प्राणायाम आदि करने की
बात नहीं। कहाँ तक गुफा में बैठेंगे। आत्मा कहती है मैं इन आरगन्स से डिटैच हो जाती
हूँ क्योंकि मैं थक गई हूँ। अभी इस शरीर को भूल जाती हूँ। अभी बाप कहते हैं तुम अपने
स्वधर्म और स्वदेश को याद करो। तुम असुल वहाँ के रहने वाले हो। अपने घर को याद करो।
कर्म तो करना ही है। कर्म बिना रह नहीं सकते। वह समझते हैं हम भोजन अपने हाथ से नहीं
पकाते हैं इसलिए कर्म संन्यासी नाम है। परन्तु कर्म का संन्यास तो हो नहीं सकता।
उनका तो धर्म ही ऐसा है। गृहस्थियों के पास उनको खाना पड़ता है इसलिए फिर गृहस्थियों
के पास जन्म ले निवृत्ति मार्ग में जाना है क्योंकि भारत को पवित्र बनाना है। भारत
में ही प्योरिटी थी। सब प्योर थे। अब सब पतित हैं। बाप बैठ यह राज़ समझाते हैं। फिर
कहते हैं - बच्चे, और कुछ न करो, सिर्फ बाप को याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म
विनाश हो जायेंगे और तुम मेरे पास चले आयेंगे। ड्रामा पूरा होना है। सतो, रजो, तमो
से पास होकर अभी सबको वापिस जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के बीच चमकती हुई मणी समझना है।
स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
2) अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव करना है। बुद्धि को भटकाना
नहीं है। इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है।