22-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – भिन्न-भिन्न युक्तियां सामने रख याद की
यात्रा पर रहो, इस पुरानी दुनिया को भूल अपने स्वीट होम और नई दुनिया को याद करो”
प्रश्नः-
कौन सी एक्ट
अथवा पुरूषार्थ अभी ही चलता है, सारे कल्प में नहीं?
उत्तर:-
याद की
यात्रा में रह आत्मा को पावन बनाने का पुरूषार्थ, सारी दुनिया को पतित से पावन बनाने
की एक्ट सारे कल्प में सिर्फ इसी संगम समय पर चलती है। यह एक्ट हर कल्प रिपीट होती
है। तुम बच्चे इस अनादि अविनाशी ड्रामा के वण्डरफुल राज़ को समझते हो।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी
बच्चों को समझाते हैं इसलिए रूहानी बच्चों को देही-अभिमानी या रूहानी अवस्था में
निश्चयबुद्धि होकर बैठना वा सुनना है। बाप ने समझाया है – आत्मा ही सुनती है इन
आरगन्स के द्वारा, यह पक्का याद करते रहो। सद्गति और दुर्गति का यह चक्र तो हर एक
की बुद्धि में रहना ही चाहिए, जिसमें ज्ञान और भक्ति सब आ जाती है। चलते-फिरते
बुद्धि में यह रहे। ज्ञान और भक्ति, सुख और दु:ख, दिन और रात का खेल कैसे चलता है।
हम 84 का पार्ट बजाते हैं। बाप को याद है तो बच्चों को भी याद में रहने का
पुरूषार्थ कराते हैं, इससे तुम्हारे विकर्म भी विनाश होते हैं और तुम राज्य भी पाते
हो। जानते हो यह पुरानी दुनिया तो अब खलास होनी है। जैसे कोई पुराना मकान होता है
और नया बनाते हैं तो अन्दर में निश्चय रहता है – अभी हम नये मकान में जायेंगे। फिर
मकान बनने में कभी वर्ष दो लग जाते हैं। जैसे नई देहली में गवर्मेन्ट हाउस आदि बनते
हैं तो जरूर गवर्मेन्ट कहेगी हम ट्रांसफर हो नई देहली में जायेंगे। तुम बच्चे जानते
हो यह सारी बेहद की दुनिया पुरानी है। अब जाना है नई दुनिया में। बाबा युक्तियां
बताते हैं – ऐसी-ऐसी युक्तियों से बुद्धि को याद की यात्रा में लगाना है। हमको अब
घर जाना है इसलिए स्वीट होम को याद करना है, जिसके लिए मनुष्य माथा मारते हैं। यह
भी मीठे-मीठे बच्चों को समझाया है कि यह दु:खधाम अब खत्म होना है। भल तुम यहाँ रहे
पड़े हो परन्तु यह पुरानी दुनिया पसन्द नहीं है। हमको फिर नई दुनिया में जाना है।
भल चित्र आगे कोई भी न हो तो भी तुम समझते हो अब पुरानी दुनिया का अन्त है। अब हम
नई दुनिया में जायेंगे। भक्तिमार्ग के तो कितने ढेर चित्र हैं। उनकी भेंट में
तुम्हारे तो बहुत थोड़े हैं। तुम्हारे यह ज्ञान मार्ग के चित्र हैं और वह सब हैं
भक्ति मार्ग के। चित्रों पर ही सारी भक्ति होती है। अब तुम्हारे तो हैं रीयल चित्र,
इसलिए तुम समझा सकते हो – रांग क्या, राइट क्या है। बाबा को कहा ही जाता है
नॉलेजफुल। तुमको यह नॉलेज है। तुम जानते हो हमने सारे कल्प में कितने जन्म लिए हैं।
यह चक्र कैसे फिरता है। तुमको निरन्तर बाप की याद और इस नॉलेज में रहना है। बाप
तुमको सारे रचता और रचना की नॉलेज देते हैं। तो बाप की भी याद रहती है। बाबा ने
समझाया है – मैं तुम्हारा बाप, टीचर, सतगुरू हूँ। तुम सिर्फ यह समझाओ – बाबा कहते
हैं तुम मुझे पतित-पावन, लिब्रेटर, गाइड कहते हो ना। कहाँ का गाइड? शान्तिधाम,
मुक्तिधाम का। वहाँ तक बाप ले जाकर छोड़ेंगे। बच्चों को पढ़ाकर, सिखलाकर, गुल-गुल
बनाकर घर ले जाए छोड़ेंगे। बाप के सिवाए तो कोई ले जा नहीं सकते। भल कोई कितना भी
तत्व ज्ञानी वा ब्रह्म ज्ञानी हो। वह समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
तुम्हारी बुद्धि में है कि शान्तिधाम तो हमारा घर है। वहाँ जाकर फिर नई दुनिया में
हम पहले-पहले आयेंगे। वह सब बाद में आने वाले हैं। तुम जानते हो कैसे सब धर्म
नम्बरवार आते हैं। सतयुग-त्रेता में किसका राज्य है। उन्हों का धर्म शास्त्र क्या
है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी का तो एक ही शास्त्र है। परन्तु वह गीता कोई रीयल नहीं है
क्योंकि तुमको जो ज्ञान मिलता है वह तो यहाँ ही खत्म हो जाता है। वहाँ कोई शास्त्र
नहीं। द्वापर से जो धर्म आते हैं उन्हों के शास्त्र कायम हैं। चले आ रहे हैं। अब
फिर एक धर्म की स्थापना होती है तो बाकी सब विनाश हो जाने हैं। कहते रहते हैं एक
राज्य, एक धर्म, एक भाषा, एक मत हो। वह तो एक द्वारा ही स्थापन हो सकता है। तुम
बच्चों की बुद्धि में सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक सारा ज्ञान है। बाप कहते हैं अब
पावन बनने के लिए पुरूषार्थ करो। आधाकल्प लगा है तुमको पतित बनने में। वास्तव में
सारा कल्प ही कहें, यह याद की यात्रा तो तुम अभी ही सीखते हो। वहाँ यह है नहीं।
देवतायें पतित से पावन होने का पुरुषार्थ नहीं करते। वह पहले राजयोग सीख यहाँ से
पावन हो जाते हैं। उसको कहा जाता है सुखधाम। तुम जानते हो सारे कल्प में सिर्फ अब
ही हम याद की यात्रा का पुरूषार्थ करते हैं। फिर यही पुरूषार्थ अथवा जो एक्ट चलती
है – पतित दुनिया को पावन बनाने लिए – फिर कल्प बाद रिपीट होगी। चक्र तो जरूर
लगायेंगे ना। तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें हैं – कि यह नाटक है, सभी आत्मायें
पार्टधारी हैं जिनमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। जैसे वह ड्रामा चलता रहता है।
परन्तु वह फिल्म घिसकर पुरानी हो जाती है। यह है अविनाशी। यह भी वण्डर है। कितनी
छोटी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है। बाप तुम्हें कितनी गुह्य-गुह्य महीन बातें
समझाते हैं। अभी कोई भी सुनते हैं तो कहते हैं यह तो बड़ी वण्डरफुल बातें समझाते
हो। आत्मा क्या है, वह अभी समझा है। शरीर को तो सब समझते हैं। डाक्टर लोग तो मनुष्य
के हार्ट को भी निकालकर बाहर रखते फिर डाल देते हैं। परन्तु आत्मा का किसको पता नहीं
है। आत्मा पतित से पावन कैसे बनती है, यह भी कोई नहीं जानते। पतित आत्मा, पावन आत्मा,
महान् आत्मा कहते हैं ना। सब पुकारते भी हैं कि हे पतित-पावन आकर मुझे पावन बनाओ।
परन्तु आत्मा कैसे पावन बनेगी – उसके लिए चाहिए अविनाशी सर्जन। आत्मा पुकारती उसको
है जो पुनर्जन्म रहित है। आत्मा को पवित्र बनाने की दवाई उनके पास ही है। तो तुम
बच्चों के खुशी में रोमांच खड़े हो जाने चाहिए – भगवान पढ़ाते हैं, जरूर तुमको
भगवान-भगवती बनायेंगे। भक्ति मार्ग में इन लक्ष्मी-नारायण को भगवान-भगवती ही कहते
हैं। तो यथा राजा-रानी तथा प्रजा होगी ना। आपसमान पवित्र भी बनाते हैं। ज्ञान सागर
भी बनाते हैं फिर अपने से भी जास्ती, विश्व का मालिक बनाते हैं। पवित्र, अपवित्र का
कम्पलीट पार्ट तुमको बजाना होता है। तुम जानते हो बाबा आया हुआ है फिर से आदि सनातन
देवी-देवता धर्म स्थापन करने। जिसके लिए ही कहते हैं यह धर्म प्राय:लोप हो गया है।
उनकी बड़ के झाड़ से ही भेंट की गई है। शाखायें ढेर निकलती हैं, थुर है नहीं। यह भी
कितने धर्मों की शाखायें निकली हैं, फाउन्डेशन देवता धर्म है नहीं। प्राय:लोप है।
बाप कहते हैं वह धर्म है परन्तु धर्म का नाम फिरा दिया है। पवित्र न होने के कारण
अपने को देवता कह न सकें। न हो तब तो बाप आकर रचना रचे ना। अभी तुम समझते हो हम
पवित्र देवता थे। अभी पतित बनें हैं। हर चीज़ ऐसे होती है। तुम बच्चों को यह भूलना
नहीं चाहिए। पहली मुख्य मंजिल है बाप को याद करने की, जिससे ही पावन बनना है। बोलते
सब ऐसे हैं, हमको पावन बनाओ। ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको राजा-रानी बनाओ। तो तुम बच्चों
को बहुत फखुर होना चाहिए। तुम जानते हो हम तो भगवान के बच्चे हैं। अभी हमको जरूर
वर्सा मिलना चाहिए। कल्प-कल्प यह पार्ट बजाया है। झाड़ बढ़ता ही जायेगा। बाबा ने
चित्रों पर भी समझाया है कि यह है सद्गति के चित्र। तुम ओरली भी समझाते हो, चित्रों
पर भी समझाते हो। तुम्हारे इन चित्रों में सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ आ जाता
है। बच्चे जो सर्विस करने वाले हैं, आपसमान बनाते जाते हैं। पढ़कर पढ़ाने की कोशिश
करनी चाहिए। जितना जास्ती पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाप कहते हैं मैं तदबीर तो
कराता हूँ, परन्तु तकदीर भी हो ना। हर एक ड्रामा अनुसार पुरुषार्थ करते रहते हैं।
ड्रामा का राज़ भी बाप ने समझाया है। बाप, बाप भी है, टीचर भी है। साथ ले जाने वाला
सच्चा-सच्चा सतगुरू भी है। वह बाप है अकाल मूर्त। आत्मा का यह तख्त है ना, जिससे यह
पार्ट बजाते हैं। तो बाप को भी पार्ट बजाने, सद्गति करने के लिए तख्त चाहिए ना। बाप
कहते हैं मुझे साधारण तन में ही आना है। भभका वा ठाठ कुछ भी नहीं रख सकता हूँ। वो
गुरूओं के फालोअर्स लोग तो गुरू के लिए सोने के सिंहासन, महल आदि बनाते हैं। तुम
क्या बनायेंगे? तुम बच्चे भी हो, स्टूडेन्ट भी हो। तो तुम उनके लिए क्या करेंगे? कहाँ
बनायेंगे? यह है तो साधारण ना।
बच्चों को यह भी
समझाते रहते हैं – वेश्याओं की सर्विस करो। गरीबों का भी उद्धार करना है। बच्चे
कोशिश भी करते हैं, बनारस में भी गये हैं। उन्हों को तुमने उठाया तो कहेंगे वाह
बी.के. की तो कमाल है – वेश्याओं को भी यह ज्ञान देती हैं। उनको भी समझाना है अभी
तुम यह धंधा छोड़ शिवालय की मालिक बनो। यह नॉलेज सीखकर फिर सिखलाओ। वेश्यायें भी
फिर औरों को सिखला सकती हैं। सीखकर होशियार हो जायेंगे तो फिर अपने ऑफिसर्स को भी
समझायेंगे। हाल में चित्र आदि रख बैठकर समझाओ तो सब कहेंगे वाह वेश्याओं को शिवालय
वासी बनाने के लिए यह बी.के. निमित्त बनी हैं। बच्चों को सर्विस के लिए ख्यालात चलने
चाहिए। तुम्हारे ऊपर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है। अहिल्यायें, कुब्जायें, भीलनियां,
गणिकायें इन सबका उद्धार करना है। गायन भी है साधुओं का भी उद्धार किया है। यह तो
समझते हो साधुओं का उद्धार होगा पिछाड़ी में। अभी वह तुम्हारे बन जाएं तो भक्ति
मार्ग ही सारा खत्म हो जाए। रिवोलूशन हो जाए। संन्यासी लोग ही अपना आश्रम छोड़ दें,
बस हमने हार खाई। यह पिछाड़ी में होगा। बाबा डायरेक्शन देते रहते हैं – ऐसे-ऐसे करो।
बाबा तो कहाँ बाहर नहीं जा सकते। बाप कहेंगे बच्चों से जाकर सीखो। समझाने की
युक्तियां तो सब बच्चों को बताते रहते हैं। ऐसा कार्य करके दिखाओ जो मनुष्यों के
मुख से वाह-वाह निकले। गायन भी है शक्तियों में ज्ञान बाण भगवान ने भरे थे। यह हैं
ज्ञान बाण। तुम जानते हो यह बाण तुमको इस दुनिया से उस दुनिया में ले जाते हैं। तो
तुम बच्चों को बहुत विशाल बुद्धि बनना है। एक जगह भी तुम्हारा नाम हुआ, गवर्मेन्ट
को मालूम पड़ा तो फिर बहुत प्रभाव निकलेगा। एक जगह से ही कोई अच्छे 5-7 ऑफिसर्स
निकले तो वह अखबारों में डालने लग पड़ेंगे। कहेंगे यह बी.के. वेश्याओं से भी वह धंधा
छुड़ाए शिवालय का मालिक बनाती हैं। बहुत वाह-वाह निकलेगी। धन आदि सब वह ले आयेंगे।
तुम धन क्या करेंगे! तुम बड़े-बड़े सेन्टर्स खोलेंगे। पैसे से चित्र आदि बनाने होते
हैं। मनुष्य देखकर बड़ा वण्डर खायेंगे। कहेंगे पहले-पहले तो तुमको प्राइज़ देनी
चाहिए। गवर्मेन्ट हाउस में भी तुम्हारे चित्र ले जायेंगे। इन पर बहुत आशिक होंगे।
दिल में चाहना होनी चाहिए – मनुष्य को देवता कैसे बनायें। यह तो जानते हो जिन्होंने
कल्प पहले लिया है वही लेंगे। इतना धन आदि सब कुछ छोड़ दे, मेहनत है। बाबा ने बताया
– हमारा अपना घरघाट मित्र-सम्बन्धी आदि कुछ भी नहीं, हमको क्या याद पड़ेगा, सिवाए
बाप के और तुम बच्चों के कुछ नहीं है। सब कुछ एक्सचेंज कर दिया। बाकी बुद्धि कहाँ
जायेगी। बाबा को रथ दिया है। जैसे तुम वैसे हम पढ़ रहे हैं। सिर्फ रथ बाबा को लोन
पर दिया है।
तुम जानते हो हम
पुरूषार्थ कर रहे हैं, सूर्यवंशी घराने में पहले-पहले आने के लिए। यह है ही नर से
नारायण बनने की कथा। तीसरा नेत्र आत्मा को मिलता है। हम आत्मा पढ़कर नॉलेज सुन देवता
बन रहे हैं। फिर सो राजाओं का राजा बनेंगे। शिवबाबा कहते हैं मैं तुमको डबल सिरताज
बनाता हूँ। तुम्हारी अभी कितनी बुद्धि खुल गई है, ड्रामा अनुसार कल्प पहले मुआफिक।
अब याद की यात्रा में भी रहना है। सृष्टि चक्र को भी याद करना है। पुरानी दुनिया को
बुद्धि से भूलना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि में रहे अब हमारे लिए नई स्थापना हो रही है, यह दु:ख की पुरानी
दुनिया खत्म हुई कि हुई। यह दुनिया बिल्कुल पसन्द नहीं आनी चाहिए।
2) जैसे बाबा ने अपना सब कुछ एक्सचेंज कर दिया तो बुद्धि कहाँ जाती नहीं। ऐसे
फालो फादर करना है। दिल में बस यही चाहना रहे कि हम मनुष्य को देवता बनाने की सेवा
करें, इस वेश्यालय को शिवालय बनायें।
वरदान:-
अनेक प्रकार की प्रवृत्ति से निवृत्त होने वाले
नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप भव
स्व की प्रवृत्ति, दैवी परिवार की प्रवृत्ति, सेवा की
प्रवृत्ति, हद के प्राप्तियों की प्रवृत्ति इन सभी से नष्टोमोहा अर्थात् न्यारा बनने
के लिए बापदादा के स्नेह रूप को सामने रख स्मृति स्वरूप बनो। स्मृति स्वरूप बनने से
नष्टोमोहा स्वत: बन जायेंगे। प्रवृत्ति से निवृत्त होना अर्थात् मैं पन को समाप्त
कर नष्टोमोहा बनना। ऐसे नष्टोमोहा बनने वाले बच्चे बहुतकाल के पुरूषार्थ से बहुतकाल
के प्रालब्ध की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे।
स्लोगन:-
कमल
फूल समान न्यारे रहो तो प्रभू का प्यार मिलता रहेगा।