02-10-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 28-06-73 मधुबन
योगयुक्त होने से स्वत: युक्तियुक्त संकल्प, बोल और कर्म होंगे
जैसे जिसमानी मिलिट्री को मार्शल ऑर्डर करते हैं - एक सेकेण्ड में जहाँ हो, जैसे हो, वहाँ ही खड़े हो जाओ। अगर वह इस ऑर्डर को सोचने में व समझने में ही टाइम लगा दे तो उसका रिजल्ट क्या होगा? विजय का प्लान प्रैक्टिकल में नहीं आ सकता। इसी प्रकार सदा विजयी बनने वाले की विशेषता यही होगी एक सेकेण्ड में अपने संकल्प को स्टॉप कर लेना। कोई भी स्थूल कार्य व ज्ञान के मनन करने में बहुत बिज़ी हैं लेकिन ऐसे समय में भी अपने आप को एक सेकेण्ड में स्टॉप कर लेना।
जैसे वे लोग यदि बहुत तेजी से दौड़ रहे हैं वा कश्म-कश के युद्ध में उपस्थित हैं, वे ऐसे समय में भी स्टॉप कहने से स्टॉप हो जायेंगे। इसी प्रकार यदि किसी समय यह संकल्प नहीं चलता है अथवा इस घड़ी मनन करने के बजाय बीज रूप अवस्था में स्थित हो जाना है। तो सेकेण्ड में स्टॉप हो सकते हैं? जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियों को एक सेकेण्ड में जैसे और जहाँ करना चाहें वह कर सकते हैं, अधिकार है न उन पर? ऐसे बुद्धि के ऊपर और संकल्पों के ऊपर भी अधिकारी बने हो? फुलस्टॉप वर्ना चाहो तो कर सको क्या ऐसा अभ्यास है? विस्तार में जाने के बजाय एक सेकेण्ड में फुलस्टॉप हो जाय ऐसी स्थिति समझते हो? जैसे ड्राइविंग का लाइसेन्स लेने जाते हैं तो जानबूझ कर भी उनसे तेज स्पीड करा के फिर फुलस्टॉप कराते हैं व बैक कराते हैं। यह भी प्रैक्टिस है ना? तो अपनी बुद्धि को चलाने और ठहराने की भी प्रैक्टिस करनी है। कमाल तब कहेंगे जब ऐसे समय पर एक सेकेण्ड में स्टॉप हो जायें। निरन्तर विजयी वह जिसके युक्ति-युक्त संकल्प व युक्ति-युक्त बोल व युक्ति-युक्त कर्म हों या जिसका एक संकल्प भी व्यर्थ न हो। वह तब होगा जब यह प्रैक्टिस होगी मानो कोई ऐसी सर्विस है जिसमें फुल विजयी होना होता है तो ऐसे समय भी स्टॉप करने का अभ्यास करो।
अभी समय ऐसा आ रहा है जो सारे भंभोर को आग लगेगी। उस आग से बचाने के लिए मुख्य दो बातें आवश्यक हैं। जब विनाश की आग चारों ओर लगेगी उस समय आप श्रेष्ठ आत्माओं का पहला कर्त्तव्य है-शान्ति का दान अर्थात् सफलता का बल देना। उसके बाद क्या चाहिए? फिर जिसको जो आवश्यकता होती है वह पूर्ण की जाती है। आप लोगों को ऐसे समय उनकी कौन-सी आवश्यकता पूर्ण करनी पड़ेगी? उस समय हरेक को अलग- अलग शक्ति की आवश्यकता होगी। कोई को सहन करने की शक्ति की आवश्यकता होगी, किसी को समेटने की शक्ति की आवश्यकता होगी, किसी को निर्णय करने की शक्ति की आवश्यकता होगी और कोई को मुक्ति की आवश्यकता होगी। जिसकी जो आशा होगी वह पूर्ण करने के लिये बाप के परिचय द्वारा एक सेकेण्ड में अशान्त आत्मा को शान्त कराने की शक्ति भी उस समय आवश्यक होगी। तो यह सभी शक्तियाँ अभी से ही इकट्ठी करनी हैं, नहीं तो उस समय जी-दान कैसे दे सकेंगे? सारे विश्व की सर्व- आत्माओं को शक्तियों का दान देना पड़ेगा। इतना स्टॉक जमा करना है जो स्वयं भी अपने को शक्ति के आधार पर चला सकें और दूसरों को भी दे सकें। कोई भी वंचिज न रहे। एक आत्मा भी यदि वंचित रही तो बोझ किस पर होगा? जो निमित्त बने हुए हैं - जी-दान देने के लिये। तो अपनी हर शक्ति के स्टॉक को चेक करो। जिनके पास शक्तियों का स्टॉक जमा है वही लक्की स्टार्स के रूप में विश्व की आत्माओं के बीच चमकते हुये नजर आयेंगे। तो अब ऐसी चेकिंग करनी है।
अमृत वेले से उठकर अपने को अटेन्शन के पट्टे पर चलाना है। पटरी पर गाड़ी ठीक चलेगी ना? तुम्हारे ऊपर सारे विश्व की जिम्मेवारी है, सिर्फ भारत की नहीं। श्रेष्ठ आत्माओं का हर कर्म महान् है ना? तो यह चेकिंग करनी है। सारे दिन में कोई ऐसा बोल तो नहीं बोला? व मन्सा में कोई व्यर्थ संकल्प तो नहीं चला या कोई कर्म राँग तो नहीं हुआ? हर संकल्प पर पहले से ही अटेन्शन रहे। योग-युक्त होने से ऑटोमेटिकली युक्ति-युक्त संकल्प, बोल और कर्म होगा। अच्छा।
दुसरी मुरली - बाबा और बच्चे - 30-06-73
यह संगठन कौन-सा संगठन है? क्या इस रूहानी पहेली को जानते हो? जान गये हो वा जान रहे हो? जान गये हो तो जानने के साथ जो जाना है उसको मानकर चल रहे हो? पहली स्टेज है जानना, दूसरी है मानना और तीसरी स्टेज है चलना। तो किस स्टेज तक पहुँचे हो? क्या लास्ट स्टेज तक पहुँचे हो? जिन्होंने हाँ की उनसे प्रश्न है कि लास्ट स्टेज अर्थात् तीसरी स्टेज क्या एवर लास्टिंग है? तीसरी स्टेज तक पहुँचना तो सहज है और पहुँच भी गये हैं। लेकिन लास्ट स्टेज को अण्डर लाईन करके एवर-लास्टिंग बनाओ। ‘मैं कौन हूँ’? यह अमूल्य जीवन अर्थात् श्रेष्ठ जीवन के अपने ही भिन्न नाम और रूप को जानते हो न? मुख्य स्वरूप और मुख्य नाम कौन-सा है? जैसे बाप के अनेक नाम, अनेक कर्त्तव्यों के आधार पर गायन करते हो फिर भी मुख्य नाम तो कहेंगे ना? वैसे आप श्रेष्ठ आत्माओं के भी अनेक नाम, अनेक कर्त्तव्यों के आधार पर व गुणों के आधार पर बाप द्वारा गाये हुये हैं, उनमें से मुख्य नाम कौन-सा है? जब ब्रह्मा-मुख द्वारा जन्म लिया तो बाप ने किस नाम से बुलाया? पहले जब तक ब्राह्मण नहीं बने तब तक कोई भी कर्त्तव्य के निमित्त नहीं बन सकते। पहले ब्रह्मा-मुख वंशावली, ब्रह्मा के नाते से जन्म लेकर ब्राह्मण बने अर्थात् ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ बने। सरनेम ही अपना यह लिखते हो। अपना परिचय किस नाम से देते हो और लोग आपको किस नाम से जानते हैं? - ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारियाँ। इस मरजीवा जीवन की पहली-पहली छाप यह लगी-ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ अर्थात् श्रेष्ठ ब्राह्मणपन की।
पहले जन्म लिया अर्थात् ब्राह्मण बने तो यह पहला नाम ब्राह्मणपन का व ब्रह्माकुमारियों का पड़ा जो कि तीसरी स्टेज तक एवर-लास्टिंग है। एवरलास्टिंग अर्थात् हर संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क और सेवा सभी में ब्राह्मण स्टेज के प्रमाण प्रैक्टिकल लाइफ में चल रहे हो? संकल्प में भी व बोल में भी शूद्रपन का अंशमात्र भी दिखाई न दे। ब्राह्मणों का संकल्प, बोल, संस्कार, स्वभाव और कर्म क्या होता है यह तो पहले भी सुनाया है। क्या उसी प्रमाण एवर-लास्टिंग स्टेज है व ब्राह्मण रूप में हर कर्म व हर संकल्प ब्रह्मा बाप के समान है? जैसा बाप वैसे बच्चे। जो स्वभाव, संस्कार या संकल्प बाप का है क्या वही बच्चों का है? क्या बाप के व्यर्थ संकल्प चलते हैं व कमजोर संकल्प उत्पन्न हो सकते हैं? अगर बाप के ही नहीं हो सकते तो फिर ब्राह्मणों के क्यों? बाप अचल, अटल, अडोल स्थिति में सदा स्थित है तो ब्राहमणों का व बच्चों का फर्ज क्या है? लायक बच्चे का फर्ज कौन-सा होता है?- फॉलो फादर ।
फॉलो फादर का यह अर्थ नहीं कि सिर्फ ईश्वरीय सेवाधारी बन गये। लेकिन फॉलो फादर अर्थात् हर कदम पर, व हर संकल्प में फॉलो फादर। क्या ऐसे फॉलो फादर हो? जैसे बाप के ईश्वरीय संस्कार, दिव्य स्वभाव, दिव्य वृति व दिव्य दृष्टि सदा है, क्या वैसे ही वृत्ति, दृष्टि, स्वभाव व संस्कार बने हैं? ऐसे ईश्वरीय सीरत वाली सूरत बनी है? जिस सूरत द्वारा बाप के गुणों और कर्त्तव्यों की रूप-रेखा दिखाई दे इसको कहा जाता है - ‘फालो फादर।’ जैसे बाप के गुणगान करते हो या चरित्र वर्णन करते हो क्या वैसे ही अपने में वह सर्वगुण धारण किये हैं? अपने हर कर्म को चरित्र समान बनाया है? हर कर्म याद में स्थित रह करते हो? जो कर्म याद में रह कर करते हैं, वह कर्म यादगार बन जाता है। क्या ऐसे यादगार-मूर्त्त अर्थात् कर्मयोगी बने हो? कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योग-युक्त, युक्ति-युक्त, शक्ति-युक्त हो। क्या ऐसे कर्मयोगी बने हो? या बैठने वाले योगी बने हो? जब विशेष रूप से योग में बैठते हो, उस समय योगी जीवन है अर्थात् योग-युक्त है या हर समय योग-युक्त है? जो वर्णन में है कर्मयोगी, निरन्तर योगी और सहजयोगी, क्या वही प्रैक्टिकल में है? अर्थात् एवर लास्टिंग है? क्या कर्मयोगी को कर्म आकर्षित करता है या योगी अपनी योगशक्ति से कर्मइन्द्रियों द्वारा कर्म कराता है? अगर 89 कर्म योगी को कर्म अपनी तरफ आकर्षित कर ले तो क्या ऐसे को योगी कहा जाय? जो कर्म के वश होकर चलने वाले हैं उन को क्या कहते हो? ‘कर्मभोगी’ कहेंगे ना? जो कर्म के भोग के वश हो जाते हैं अर्थात् कर्म के भोग भोगने में अच्छे वा बूरे में कर्म के वशीभूत हो जाते हैं। आप श्रेष्ठ आत्माएं कर्मातीत अर्थात् कर्म के अधीन नहीं, कर्मों के परतन्त्र नहीं। स्वतन्त्र हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हो? जब कोई भी आप लोगों से पूछते हैं कि क्या सीख रहे हो या क्या सीखने के लिये जाते हो तो क्या उत्तर देते हो? सहज ज्ञान और राजयोग सीखने जा रहे हैं। यह तो पक्का है न कि यही सीख रहे हो। जब सहज ज्ञान कहते हो तो सहज वस्तु को अपनाना और धारण करना सहज है तब तो सहज ज्ञान कहते हो न? तो सदा ज्ञान स्वरूप बन गये हो? जब सहज ज्ञान है तो सदा ज्ञान स्वरूप बनना क्या मुश्किल है? सदा ज्ञान स्वरूप बनना यही ब्राह्मणों का धन्धा है।
अपने धर्म में स्थित होना नेचरल चीज होती है न? इसी प्रकार राजयोग का अर्थ क्या सुनाते हो? सर्वश्रेष्ठ अर्थात् सभी योगों का राजा है और इससे राजाई प्राप्त होती है। राजाओं का राजा बनने का योग है। आप सभी राजयोगी हो या राजाई भविष्य में प्राप्त करनी है? अभी संगमयुग में भी राजा हो या सिर्फ भविष्य में बनने वाले हो? जो संगमयुग में राज्य पद नहीं पा सकते वह भविष्य में क्या पा सकते हैं? तो जैसे सर्वश्रेष्ठ योग कहते हो, ऐसा ही सर्वश्रेष्ठ योगी जीवन तो होना चाहिये न? क्या पहले अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बने हो? जो स्वयं के राजा नहीं वह विश्व के राजा कैसे बनेंगे? क्या स्थूल कर्मेन्द्रियों व आत्मा की श्रेष्ठ शक्तियाँ मन, बुद्धि, संस्कार अपने कन्ट्रोल में हैं? अर्थात् उन्हों के ऊपर राजा बनकर राज्य करते हो? राजयोगी अर्थात् अभी राज्य चलाने वाले बनते हो। राज्य करने के संस्कार व शक्ति अभी से धारण करते हो। भविष्य 21 जन्म में राज्य करने की धारणा प्रैक्टिकल रूप में अभी आती है। सहज ज्ञान और राजयोग तीसरी स्टेज तक आया है? संकल्प को ऑर्डर करो स्टॉप तो स्टॉप कर सकते हो? बुद्धि को डाइरेक्शन दो कि शुद्ध संकल्प व अव्यक्त स्थिति व बीज रूप स्थिति में स्थित हो जाओ तो क्या स्थित करसकते हो? ऐसे राजा बने हो? ऐसे राजयोगी जो हैं उनको कहा जाता है - ‘फालो फादर।’
जैसे राजा के पास अपने सहयोगी होते हैं जिस द्वारा जिस समय जो कत्तर्व्य कराना चाहे वह करा सकता है। वैसे ही यह संगमयुगी विशेष शक्तियाँ, यही आपके सहयोगी हैं। तो जैसे राजा कोई भी सहयोगी को ऑर्डर करता है कि यह कार्य इतने समय में सम्पन्न करना है वैसे ही अपनी सर्वशक्तियों द्वारा आप भी हर कार्य को सहज ही सम्पन्न करते हो या ऑर्डर ही करते हो? सामना करने की शक्ति आये तो क्या किनारा कर देते हैं? सहज योगी अर्थात् सर्वशक्तियाँ क्या आपके पूर्ण रूप से सहयोगी हैं? जब चाहों जिस द्वारा चाहो क्या कार्य करा सकते हो? ऐसे राजा हो? जैसे पुराने राजाओं के दरबार में आठ या नव रत्न प्रसिद्ध होते थे अर्थात् सदा सहयोगी होते थे, ऐसे ही आपकी आठ शक्तियाँ सदा सहयोगी हैं? इससे ही अपने भविष्य प्रारब्ध को जान सकते हो। यह है दर्पण जिसमें अपनी सूरत और सीरत देखने से मालूम पड़ सकता है।
छ: मास जो दिये हैं वह विनाश की तारीख नहीं दी है। लेकिन हरेक संगमयुगी राजा अपने राज्य कारोबार अर्थात् सदा सहयोगी शक्तियों को एवररेडी बनाकर तैयार कर सके उसके लिए यह समय दिया है। क्योंकि अब से अगर राज्य कारोबार सम्भालने के संस्कार नहीं भरेंगे तो भविष्य में भी बहुत समय के लिए राजा बन राज्य नहीं कर सकेंगे। छ: मास का अर्थ समझा? अपने हर सहयोगी को सामने देखो और अपने संकल्पो को स्टॉप करके देखो। अपनी बुद्धि को डायरेक्शन प्रमाण चलाकर देखो। इस रिहर्सल के लिए छ: मास दिये हैं। समझा?
अच्छा, सदा सहज ज्ञान स्वरूप, सदा राजयोगी, निरन्तर योगी, सहज-योगी, सर्व शक्तियों को अपना सहयोगी बनाने वाले, बाप समान संकल्प, संस्कार और कर्म करने वाले, ऐसे संगमयुगी सर्व राजाओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते!
वरदान:- साइलेन्स की शक्ति द्वारा सेकण्ड में हर समस्या का हल करने वाले एकान्तवासी भव
जब कोई भी नई वा शक्तिशाली इन्वेन्शन करते हैं तो अन्डरग्राउण्ड करते हैं। यहाँ एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है। जो भी समय मिले, कारोबार करते भी, सुनते-सुनाते, डायरेक्शन देते भी इस देह की दुनिया और देह के भान से परे साइलेन्स में चले जाओ। यह अभ्यास वा अनुभव करने कराने की स्टेज हर समस्या का हल कर देगी, इससे एक सेकण्ड में किसी को भी शान्ति वा शक्ति की अनुभूति करा देंगे। जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा।
स्लोगन:- व्यर्थ संकल्प वा विकल्प से किनारा कर आत्मिक स्थिति में रहना ही योगयुक्त बनना है।