23-04-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

 

“मीठे बच्चे - जैसे बाप गुप्त है ऐसे बाप का ज्ञान भी गुप्त है, तुम्हें दान वा सेवा भी गुप्त करना है, अहंकार आने से ताकत कम हो जाती है।”

 

प्रश्न:- ड्रामा की किस सीन को देखते हुए तुम्हें दुःख नहीं हो सकता है - क्यों?

 

उत्तर:- ड्रामा में जो महाभारी महाभारत की सीन है इसे देख तुम्हें दुःख नहीं हो सकता। तुम जानते हो यह बाम्ब्स आदि बनने ही हैं। नैचुरल कैलेमिटीज़ भी आनी ही है। यह ड्रामा बना हुआ है। सब आत्मायें पुराने शरीर छोड़ शान्तिधाम जायें - यह तो अच्छा है ना। इसमें दुःख की बात ही नहीं। जब विनाश हो तब तो मुक्ति जीवनमुक्ति का गेट खुले, दुःखधाम बदल सुखधाम बने इसलिए तुम इससे डरते नहीं हो।

 

गीत:- तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है...

 

ओम् शान्ति। बच्चे जानते हैं कि यह गीत भक्तों का गाया हुआ है। भक्त गाते ही रहते हैं और भगवान को बुलाते ही रहते हैं। सभी भक्त हैं। भक्त बहुत दुःखी हैं। भारत में ही बुलाते हैं, और कोई खण्ड में ऐसे बाप को बुलायेंगे नहीं कि आओ। भगवान के भक्त कायदे अनुसार भारत में ही होते हैं। जो पूज्य देवी-देवता थे वही पुजारी भक्त बने हैं। गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे.. तुम बच्चों को तो अब सारी नॉलेज मिली है। मनुष्य तो यह भी नहीं समझते कि भगवान आकर क्या करेंगे। जरूर कुछ तो ले आयेंगे ना। गीता में भी लिखा हुआ है। गीता है बहुत मीठा शास्त्र, सर्व शास्त्रमई शिरोमणि श्रीमद् भगवद् गीता है। कृष्ण का नाम ही नहीं। गीता को माता कहा जाता है। मात-पिता दोनों हैं ना। कहते हैं पिता आओ, इस माता द्वारा आकर हमको ज्ञान सुनाओ। इनमें प्रवेश करते हैं ना। भगवान मुख वंशावली रचेंगे तो माता जरूर चाहिए। तो इस माता द्वारा तुम बच्चों को रचता हूँ। देखने में तो मेल आते हैं। यह बड़ी गुह्य बात हैं। अब बाबा कोई गीता शास्त्र तो नहीं उठाते। उन्होंने फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दे दिये हैं। एक तरफ ब्रह्मा माता और दूसरे तरफ लिखा है विष्णु के नाभी कमल से ब्रह्मा निकला। ब्रह्मा के नाभी कमल से फिर विष्णु निकला। यह भी बात तो ठीक है। ब्रह्मा इस समय मुरली सुनाते हैं फिर जाए विष्णु बनते हैं। विष्णु सो फिर ब्रह्मा बनते हैं तो ब्रह्मा से विष्णु, विष्णु से ब्रह्मा हुआ ना। विष्णु का ही चित्र दिया है ना। तो इन चित्रों में भी कुछ सार है। बाप कहते हैं अब हम तुमको सभी वेद-शास्त्रों आदि का सार समझाता हूँ। मेरे इस ज्ञान का नाम रखा है गीता। वास्तव में गीता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। देवी देवतायें हैं सतयुग में। देवी-देवता वहाँ तो कोई शास्त्र नहीं सुनेंगे। अब वह देवतायें बने कैसे? गाते हैं मनुष्य से देवता... परन्तु कब और कैसे? ब्रह्मा के हाथ में वेद-शास्त्र दिखाते हैं परन्तु ब्रह्मा तो शास्त्र सुनाते नहीं हैं। परमात्मा ब्रह्मा तन द्वारा तुम बच्चों को सभी शास्त्रों का सार सुनाते हैं। जो समझाते हैं उसका नाम वो लोग गीता रख देते हैं। तो कहते हैं बाबा आओ, आकर सुनाओ। तुमको बैठ ज्ञान सुनाते हैं। लिखा हुआ भी है सहज राजयोग सिखाता हूँ। तो वास्तव में सर्व शास्त्रमई शिरोमणि गीता है जरूर। परन्तु गीता का राजयोग किसने सिखाया - यह नहीं जानते। बाकी जो भी धर्म शास्त्र हैं वह हो गये गीता के बच्चे अथवा पत्ते। सन्यासी लोग शास्त्रों को बहुत मानते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ी अथवा ट्रक्स भरकर सारी परिक्रमा देते हैं। बहुत बड़े जुलूस निकालते हैं। मुख्य सन्यासी परिक्रमा देते हैं। गीता भी रखते हैं। परन्तु गीता को इतना नहीं जानते, वेदों को आगे रखते हैं क्योंकि वह वेदों को मानने वाले हैं। वैसे ही जगन्नाथ में फिर देवी-देवताओं के चित्र हैं, उन्हों को भी रथ में बिठाए परिक्रमा दिलाते हैं। यह उन्हों की मान्यता है। अब तुम बच्चों को मिलती है उत्तम श्रीमत - इस ब्रह्मा द्वारा। वास्तव में ज्ञान है सारा बुद्धि में धारण करने का। इन चित्रों आदि की दरकार नहीं है। परन्तु किसको बिगर चित्र समझायें कैसे? स्कूल में तो नक्शे जरूर चाहिए ना। बाप ने कल्प पहले भी तुम बच्चों को इस सारे कल्प वृक्ष का, स्वदर्शन चक्र का राज़ समझाया है। यह सतयुग, त्रेता... का चक्र है जो फिरता ही रहता है। जरूर कलियुग दुःखधाम के बाद फिर सतयुग सुखधाम आना है। फिर सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो होना है। सबको जरूर नीचे ही जाना है। भल कोई कितना भी दान-पुण्य आदि करे तो भी भगवान किसको मिलता नहीं। दुनिया को पतित जरूर बनना है, तब तो बाप आये। अभी हैं तमोप्रधान। आत्मा में ही खाद पड़ी है। सन्यासी लोग फिर कहते हैं आत्मा निर्लेप है। आत्मा सो परमात्मा समझ लेते हैं। 'हम सो, सो हम' का अर्थ जो बाप ने समझाया है, वह सब भूल गये हैं। हम सो पूज्य देवता थे फिर हम सो पुजारी बने हैं। इन वर्गों में हम कैसे आये, यह सारी नॉलेज है। भारत पर ही सारा खेल बना हुआ है। बाकी और धर्म वाले जो आते हैं वह तो एक बाइप्लाट हैं। पूज्य से पुजारी भारतवासी ही बनते हैं। बाकी तो सब धर्म अपने-अपने समय पर आते हैं। हर एक अपने धर्म को मानते हैं। तुम जानते हो यह देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। निराकार परमपिता परमात्मा आकर इस की स्थापना करते हैं और सब धर्म स्थापक साकार मनुष्य हैं। सबके चित्र हैं। यह एक ही परमपिता परमात्मा निराकार है। वही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। उन्होंने फिर निराकार के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। अगर शिवबाबा का सबको मालूम होता तो सब धर्म वाले उन पर फूल चढ़ाते। समझते कि देवी-देवता हमारे बड़े पूज्य हैं। हम वंशावली पीछे की हैं।

 

तुम बच्चे समझते हो पिछाड़ी में क्या होने वाला है। विनाश का समय है। कितने अब झगड़े हैं। खूने नाहेक खेल है। बाप को बुलाते हैं तो जरूर आया होगा। तुम बच्चे जानते हो अब बाबा आया हुआ है। कहते हैं मैं तुम्हारा बाप ज्ञान का सागर, रहमदिल, ब्लिसफुल हूँ। तुम बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ। बाकी सबको सदा शान्त बना देता हूँ। सतयुग-त्रेता गोल्डन एज - जरूर बाप ही स्थापन करते होंगे। बाप ही नई दुनिया रचेंगे। तुम समझा सकते हो भगवान तो सबका एक बाप है। परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा। वह स्टार रूप है। यह बड़ी गुह्य बात है। बुद्धि में पूरी रीति नहीं होगी तो किसको निश्चय से समझा नहीं सकेंगे। वो लोग तो शिवलिंग का रूप ही बनाते हैं। वास्तव में है स्टार। परमपिता परमात्मा परमधाम में रहते हैं। तुम भी आत्मा हो ना। जरूर तुम्हारा बाप होगा, जिसको ही पुकारते हैं कि हे परमपिता परमात्मा। परन्तु वह कौन है - यह नहीं जानते। सभी उनको पुकारते हैं। दुःख में सिमरण सब आत्मायें करती हैं, सुख में तो कोई याद नहीं करते। अभी तुम जानते हो बरोबर परमपिता परमात्मा आकर हम आत्माओं को सुखधाम का अथवा विश्व का मालिक बनाते हैं। गीता तो यह बाबा भी बहुत पढ़ते थे। श्री लक्ष्मी-नारायण को सिमरने वाला भी नम्बरवन यह था। बाबा सुनाते हैं ना एक लक्ष्मी-नारायण का चित्र था जिसमें लक्ष्मी नारायण के पाँव दबाती है। तो हमने उस चित्र से लक्ष्मी को निकाल दिया। बाकी क्षीर सागर में विष्णु लेटा है, वह रहने दिया। रोज़ सवेरे उठ याद करते थे, परन्तु कुछ समझते थोड़ेही थे। अभी तो समझते हैं हम श्री नारायण बन रहे हैं। खुशी की बात है। यह है गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ। माना गॉड पढ़ाते हैं। जैसे बैरिस्टरी स्टूडेन्ट लाइफ, सर्जनरी स्टूडेन्ट लाइफ होती है वैसे यह है गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ। यह भूलना क्यों चाहिए? परन्तु माया दुश्मन भुला देती है। तुम्हारे इस जीवन के लिए ही गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपी-वल्लभ के गोप-गोपियों से पूछो। तुम्हारा यह हीरे जैसा जन्म है। देवताओं की तो प्रालब्ध है। इस समय तुम बहुत गुप्त सेवा कर रहे हो। गुप्त दान अच्छा होता है ना। तुम्हारी सेवा भी गुप्त है। बाप भी गुप्त है। कोई अहंकार आता कि मैंने यह किया तो उसकी ताकत आधी हो जाती है। बाप गुप्त, उनका ज्ञान भी गुप्त है। मनुष्य समझ नहीं सकते। कहते हैं - बाबा आओ, तो जरूर सुख दिया होगा ना। सो तो गीता में भी क्लीयर है। महाभारी महाभारत लड़ाई है। तो इसमें तुम डरते क्यों हो? कहते हैं इस लड़ाई को बन्द करा दें। परन्तु ऐसे तो हो नहीं सकता। यह बाम्ब्स आदि बनाने ही हैं। प्रेरक खड़ा है। नहीं तो हम राजधानी कहाँ करेंगे? नैचुरल कैलेमिटीज़ भी आनी है। बाप कहते हैं - मैं कभी किसको दुःख नहीं देता हूँ। यह तो ड्रामा बना हुआ है। सब आत्मायें शरीर छोड़ शान्तिधाम चली जायें - यह तो अच्छा है ना। इसमें दुःख की तो बात ही नहीं। तुम जब समझायेंगे तो कहेंगे यह तो अच्छा है। भल विनाश हो तब तो मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुलें। तुम कहते हो कल्प पहले भी यह लड़ाई लगी थी। दुःखधाम बदल सुखधाम बना था। यह ड्रामा का अनादि चक्र है। वर्ल्ड की हिस्ट्री जॉग्राफी मस्ट रिपीट। रिपीट तो जरूर शुरू से करेंगे ना। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आयेगा। है भी सत, होसी भी सत.... यह अनादि चक्र फिरना ही है। जरूर जब पुरानी दुनिया का अन्त हो तब फिर नई दुनिया रिपीट होगी ना। क्रियेटर तो एक बाप ही है ना। खुद भी कहते हैं मैं आया हूँ, अनेक बार मैंने यह पार्ट बजाया है। तुम भी जानते हो अनेक बार हमने यह पार्ट बजाया है, जीत पायी है और फिर हार खाते हैं। जीत और हार, सुख और दुःख का खेल चलता रहता है। यह बन्द नहीं होता है, इनको पांच हजार वर्ष लगते हैं। अब नया झाड़ स्थापन हो रहा है। सैपलिंग लग रहा है। वह गवर्मेंट भी झाड़ों की कलम लगाती है। जो कलम पहले सतोप्रधान थी, वह अब तमोप्रधान बनी है। फिर वे ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। जिन्होंने अव्यभिचारी से व्यभिचारीपन तक पूरी भक्ति की है वे सभी आयेंगे फिर आकर पूज्य बनेंगे। ड्रामा को बड़ा अच्छी रीति समझना है। ड्रामा में कितने एक्टर्स हैं अनगिनत। इस बेहद ड्रामा को समझकर बुद्धि में रखना है। है बड़ा सहज। परन्तु माया भुला देती है। परमात्मा तो रचता है, इसमें सर्वव्यापी की बात ही नहीं। बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। तुम बच्चों की बुद्धि में रहे कि हमको सत बाप, सत टीचर, सतगुरू पढ़ाते हैं तो भी खुशी बहुत रहे। भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर भगवान भगवती बनायेंगे। सतगुरू ही सद्गति देंगे। उसको ही याद करते हैं। तुम अब सतगुरू के बच्चे आकर बने हो। तुम बच्चे भी हो, स्टूडेन्ट भी हो, फालोअर भी हो। शिवबाबा अपने साथ शान्तिधाम ले जायेंगे। बाप कहते हैं पूरा फालो करो। रजिस्टर बिल्कुल खराब न हो। अच्छे बच्चों को स्कूल में मानीटर बनाते हैं। यहाँ भी अच्छे बच्चों को तुम जानते हो। परन्तु यहाँ नम्बरवार बिठा नहीं सकते। तो जो तीखे हैं उनको देख ऐसा बनना पड़े।

 

अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) बेहद ड्रामा के हर राज़ को बुद्धि में स्पष्ट रखना है। अपना रजिस्टर खराब होने नहीं देना है।

 

2) हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं, हमारा यह जीवन हीरे समान है, अतीन्द्रिय सुख का गायन हमारा है - इस स्मृति में रहना है। कभी भी अहंकार में नहीं आना है।

 

वरदान:- अशान्ति वा हंगामों के बीच शान्ति कुण्ड की अनुभूति कराने वाले शान्ति स्वरूप भव

 

जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आये कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है, शान्ति कुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ, शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मन्सा से शान्ति कुण्ड की प्रत्यक्षता कर सकते हो। सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से शान्ति मिलेगी। तो ऐसा वायुमण्डल बनाओ।

 

स्लोगन:- स्वयं की और सर्व की चिन्ताओं को मिटाना ही शुभचिन्तक बनना है।