ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों ने गीत सुना अर्थात् रूहों ने इस शरीर की कान रूपी कर्मेन्द्रिय
द्वारा गीत सुना – दूरदेश से मुसाफिर आया है। तुम सब मुसाफिर हो ना। जो सब मनुष्य
मात्र आत्मायें हैं वह सभी मुसाफिर हैं। आत्माओं का कोई भी घर नहीं है। आत्मा है
निराकार। निराकारी दुनिया में रहने वाली निराकारी आत्मायें हैं। उसको कहा जाता है
निराकारी आत्माओं का घर, देश वा लोक। इसको जीव आत्माओं का देश कहा जाता है। वह है
आत्माओं का देश फिर जब आत्मायें यहाँ आकर शरीर में प्रवेश करती हैं तो निराकार से
साकार बन जाती हैं। ऐसे नहीं कि आत्मा का कोई रूप नहीं है। रूप भी जरूर है, नाम भी
है। इतनी छोटी आत्मा कितना पार्ट बजाती है – इस शरीर द्वारा। हर एक आत्मा में पार्ट
बजाने का कितना रिकॉर्ड भरा हुआ है। रिकॉर्ड एक बार भर जाता है फिर कितना भी रिपीट
करो, वही चलेगा। वैसे आत्मा इस शरीर के अन्दर रिकॉर्ड है, उसमें 84 जन्मों का सारा
पार्ट भरा हुआ है। जैसे आत्मा निराकार है वैसे बाप भी निराकार है। कहाँ-कहाँ
शास्त्रों में लिख दिया है वह नाम-रूप से न्यारा है। परन्तु नाम-रूप से न्यारी कोई
वस्तु होती नहीं। आकाश भी पोलार है, नाम-रूप तो है ना। बिगर नाम के कोई भी चीज़ होती
नहीं। मनुष्य समझते हैं परमपिता नाम-रूप से न्यारा है। अगर नाम नहीं तो रूप भी नहीं,
देश भी नहीं। फिर तो कुछ भी नहीं हो सकता। बुलाते भी हैं दूरदेश का रहने वाला
परमपिता परमात्मा। अब दूरदेश में आत्मायें रहती हैं, यह साकार देश है, इसमें दो का
राज्य चलता है – रामराज्य और रावण राज्य। आधाकल्प है रामराज्य, आधाकल्प है रावण
राज्य। यह बच्चों को समझाया गया है कि सतयुग से ईश्वरीय राज्य शुरू होता है,
रामराज्य स्थापन करने वाला परमपिता परमात्मा है। वह कभी रावण राज्य स्थापन कर न सके।
बाप बच्चों के लिए कभी दु:ख का राज्य थोड़ेही बनायेंगे। कहते हैं ईश्वर ही दु:ख सुख
देते हैं। बाप कहते हैं मैं बच्चों को दु:ख कैसे दे सकता हूँ। मेरा तो नाम ही है
दु:ख हर्ता सुखकर्ता। यह तो मनुष्यों की भूल है। ईश्वर कभी दु:ख नहीं देंगे। इस समय
है ही दु:खधाम। आधाकल्प रावण-राज्य में दु:ख ही मिलता है। सुख की रत्ती नहीं।
सुखधाम में कभी दु:ख होता नहीं। बाप स्वर्ग का रचयिता है। अभी तुम हो संगम पर। इनको
नई दुनिया तो कोई भी नहीं कहेंगे। नई दुनिया का नाम ही है स्वर्ग। वही फिर पुरानी
दुनिया बनती है। नई चीज़ जब पुरानी, खराब दिखाई पड़ती है तो पुरानी चीज को खलास किया
जाता है। मनुष्य विष (विकारों) को ही सुख समझते हैं। गाया भी जाता है अमृत छोड़ विष
काहे को खाए। ग्रंथ में गुरूनानक के भी अक्षर हैं। अशंख चोर… बाप की महिमा गाते
हैं, आप जो आकर करेंगे उससे भला ही होगा। नहीं तो रावणराज्य में मनुष्य बुरा काम ही
करेंगे। बाप ही आकर मूत पलीती कपड़े धोते हैं। ग्रंथ में बहुत लिखा हुआ है। सिन्धी
लोग ग्रन्थ रखते हैं। अब यह तो कोई सिक्ख धर्म वाले हैं नहीं। यह तो हैं आदि सनातन
देवी-देवता धर्म के। सिक्खों का है गुरूनानक, उनको दाढ़ी बाल थे। तो सब सिक्खों को
दाढ़ी बाल होने चाहिए। आजकल तो दाढ़ी रखते नहीं। बहुत फैशनबुल बन गये हैं। नहीं तो
फॉलो करना चाहिए ना। हम गुरूनानक के फॉलोअर्स हैं तो गुरूनानक को फॉलो करना चाहिए
ना। यह तो बच्चों को अभी पता पड़ा है कि गुरूनानक को 500 वर्ष हुए फिर कब आयेंगे?
तुम झट बतायेंगे। कोई से भी पूछो यह तो बताओ कि गुरूनानक कब आयेंगे? तो कहेंगे उनकी
आत्मा ज्योति ज्योत समा गई। आयेंगे फिर कैसे। तुम कहेंगे आज से 4500 वर्ष बाद
गुरूनानक फिर आयेंगे। तुम्हारी बुद्धि में सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी चक्र
लगाती रहती है। बुद्ध, क्राइस्ट आदि सबके लिए कहेंगे इस समय तमोप्रधान हैं,
कब्रदाखिल हैं। इनको कयामत का समय कहा जाता है। सब मनुष्य मात्र जैसे मरे पड़े हैं।
सबकी ज्योत जैसे बुझी हुई है। बाप आते हैं सबको जगाने। बच्चे जो काम-चिता पर बैठ
भस्म हो गये हैं उन्हों को अमृत वर्षा से जगाकर साथ ले जायेंगे। माया ने काम-चिता
पर बिठाए कब्रदाखिल कर दिया है। सो गये हैं। अब बाप अमृत छकाते (पिलाते) हैं।
अमृतसर नाम इसीलिए रखा है। बाप आकर अमृत छकाते हैं। अब कहाँ ज्ञान अमृत, कहाँ पानी
की बात! सिक्ख लोगों का बड़ा दिन होता है तो बड़ी धूम-धाम से तालाब को साफ करते
हैं, मिट्टी निकालते हैं इसलिए नाम ही रखा है-अमृतसर। अमृत का तालाब। अब गुरूनानक
साहेब तो कोई ज्ञान सागर है नहीं, उसने भी बाप की महिमा की है। खुद कहते हैं
एकोअंकार, सतनाम, वह सदैव सच बोलने वाला है। सत्य नारायण की कथा है ना। सिन्धुवर्ती
लोग बाहर जाते हैं तो सत्य नारायण की कथा कराते हैं। समझते हैं सत्य नारायण की कथा
से सेफ्टी से पार हो जायेंगे। अमरकथा, तीजरी की कथा कितनी भक्ति मार्ग में कथायें
सुनते आये हैं। कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई। वह तो सूक्ष्मवतन में रहने
वाला वहाँ फिर कथा कौन सी सुनाई? यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। वास्तव में तुमको
अमरकथा सुनाकर अमरलोक में मैं ले जाने आया हूँ। मृत्युलोक से अमरलोक में मैं ले जाता
हूँ। बाकी सूक्ष्मवतन में पार्वती ने क्या दोष किया जो आकर उनको कथा सुनायेंगे। अभी
तुम समझते हो हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं। यह है अमरलोक में जाने के
लिए सच्ची सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा। तुम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा
नेत्र मिला है।
बाप समझाते हैं तुम ही गुल-गुल पूज्य थे फिर 84 जन्मों के बाद तुम ही पुजारी बने
हो इसलिए गाया हुआ है – आपेही पूज्य आपेही पुजारी। बाप कहते हैं- मैं तो सदैव पूज्य
हूँ। तुमको आकर पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। कहते हैं हे राम आकर हमको पावन बनाओ। सब
भगत पुकारते हैं। आत्मा पुकारती है ना – हे पतित-पावन। अभी तुम समझते हो कि गीता
कोई कृष्ण ने नहीं सुनाई है, पावन बनाने वाला एक ही परमपिता परमात्मा है। एक ही राम।
तो बाप समझाते हैं कि ओपीनियन लेते रहो कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है। गीता का भगवान
शिव है, न कि कृष्ण। पहले तो पूछो भगवान किसको कहा जाता है – निराकार को वा साकार
को? कृष्ण तो है साकार, शिव है निराकार। वह सिर्फ इस तन का लोन लेता है। बाकी माता
के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। पहले नम्बर गर्भ में आने वाली है कृष्ण की आत्मा।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी सूक्ष्म शरीरधारी हैं। शिव को शरीर नहीं है। यहाँ इस लोक
में स्थूल शरीर है। बाप की महिमा है पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता। सर्व का
लिबरेटर, दु:ख हर्ता सुख कर्ता। अच्छा सुख कहाँ हो सकता है? सुख मिलेगा दूसरे जन्म
में। जब रावण की दुनिया खत्म हो स्वर्ग की स्थापना हो जायेगी। अच्छा लिबरेट किससे
करते हैं? रावण के दु:ख से। यह तो दु:खधाम है ना। अच्छा फिर गाइड भी बनते हैं। यह
शरीर तो यहाँ ही खत्म हो जाते हैं। बाकी आत्माओं को ले जाते हैं। सबको दु:ख से
छुड़ाय, पवित्र बनाए घर ले जाते हैं। मनुष्य जब शादी कर आते हैं तो पहले होता है पति,
पीछे होती है ब्राइड। फिर बरात होती है। अब तुम्हारी माला भी ऐसी ही है। ऊपर में है
शिवबाबा फूल, पहले फूल को नमस्कार करेंगे। फिर युगल दाना ब्रह्मा-सरस्वती, फिर हो
तुम, जो बाबा के मददगार बच्चे हो। फूल शिवबाबा की याद से ही सूर्यवंशी विष्णु की
माला बनी है। ब्रह्मा-सरस्वती सो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। देवता, क्षत्रिय… फिर
शूद्र से ब्राह्मण बन यह नॉलेज लेकर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। यह माला उन्हों की बनी
हुई है। यह ब्रह्मा-सरस्वती ही राजा-रानी बनेंगे। उन्होंने मेहनत की है, तब पूजे
जाते हैं। कोई को पता नहीं है कि माला क्या चीज़ है। ऐसे ही माला फेरते रहते हैं।
16108 की भी माला होती है। बड़े-बड़े मन्दिरों में रखी जाती है। फिर कोई कहाँ से
खींचेगा, कोई कहाँ से। बाबा बाम्बे में लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाते थे। माला
जाकर फेरते थे, राम-राम जपते थे। फूल शिवबाबा है ना। फूल को ही राम-राम कहते हैं
फिर सारी माला पर माथा टेकते हैं। ज्ञान तो कुछ भी है नहीं। पादरी लोग भी हाथ में
माला फेरते रहते हैं। पूछो किसकी माला फेरते रहते हो? कहेंगे क्राईस्ट की याद में
माला फेरते हैं। उन्हों के बड़े पोप पादरी होते हैं तो वह फिर पोपों की माला होगी।
उन सबके चित्र हैं। पोपों का कितना मान है। उनको खुद पता नहीं है कि क्राइस्ट की
आत्मा कहाँ है! तुम जानते हो कि क्राइस्ट की आत्मा भी अभी बेगर रूप में है। तुम भी
अभी बेगर टु प्रिन्स बन रहे हो। भारत ही प्रिन्स था, अभी बेगर है फिर प्रिन्स बनते
हैं। बनाने वाला है एक रूहानी बाप। बेगर से प्रिन्स बनते हो। एक प्रिन्स-प्रिन्सेज
का कॉलेज भी है, जहाँ जाकर वह पढ़ते हैं। तुम यहाँ पढ़कर 21 जन्मों के लिए
प्रिन्स-प्रिन्सेज स्वर्ग में बनते हो। नॉलेज से तुम मनुष्य से देवता बनते हो।
अभी तुम समझते हो जो श्रीकृष्ण सतयुग का प्रिन्स था सो 84 जन्मों के बाद बेगर बना
है। 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवतायें कितने साहूकार थे। अभी वही कंगाल बेगर बने हैं।
यह बातें सिर्फ तुम ही सुन सकते हो। भगवानुवाच – वह सबका फादर है। तुम गॉड फादर से
सुनते हो। गीता में सिर्फ भूल यह कर दी है जो शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण
भगवानुवाच नाम डाल दिया है इसलिए गाया जाता है झूठी दुनिया। इस समय सारी दुनिया
कांटों का जंगल बन गई है। बाम्बे में बबुलनाथ का मन्दिर है। बाप आकर इन कांटों को
फूल बनाते हैं। सब एक-दो को कांटा लगाते हैं अर्थात् काम-कटारी चलाते हैं, इसलिए
इनको कांटों का जंगल कहा जाता है। सतयुग को गार्डन ऑफ अल्लाह कहा जाता है। वही
फ्लावर्स, कांटे बनते हैं फिर कांटों से फूल बनते हैं। सतयुग में कभी रावण को नहीं
जलाते। रावण पुराना दुश्मन है भारत का। तुम्हारी लड़ाई है रावण से, जिसने आधाकल्प
दु:ख दिया है। आखरीन बड़ी लड़ाई भी होगी। सच्चा-सच्चा दशहरा होना है। रावणराज्य ही
खलास हो जायेगा, तुमको फिर सोने के महल मिल जायेंगे। अभी तुम रावण पर जीत पहन
स्वर्ग के मालिक बनते हो। बाबा सारे विश्व का राज्य भाग्य देते हैं इसलिए उनको शिव
भोला भण्डारी कहते हैं। गणिकायें, अहिल्यायें, कुब्जायें सबको बाप विश्व का मालिक
बनाते हैं। कितना भोला है। आते भी पतित दुनिया में, पतित शरीर में हैं। बाकी जो
स्वर्ग के लायक नहीं हैं वह विकारों को छोड़ नहीं सकते। बाप कहते हैं – बच्चे अभी
यह अन्तिम जन्म तुम पावन बनो। यह विकार प्वाइज़न हैं जो तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:खी
बनाते हैं। क्या तुम यह एक अन्तिम जन्म इन्हें छोड़ नहीं सकते? मैं तुमको अमृत
पिलाए अमर बनाता हूँ। फिर भी तुम पवित्र नहीं बनते हो। विकारों बिगर, सिगरेट बिगर,
शराब बिगर रह नहीं सकते हो। मैं बेहद का बाप कहता हूँ तुम एक जन्म पवित्र बनो तो
मैं स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा।
तुम जानते हो बाप आया ही है सारी दुनिया को दु:ख से लिबरेट कर सुखधाम, शान्तिधाम
में ले चलने। अभी सब धर्मों का विनाश हो जायेगा। एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की
स्थापना होती है। ग्रंथ में भी परमपिता परमात्मा को अकालमूर्त कहते हैं। बाप है
महाकाल। वह काल तो एक दो को ले जायेंगे, मैं तो सब आत्माओं को ले जाऊंगा, इसलिए
महाकाल कहते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तिम जन्म में ज्ञान अमृत पीकर अमर बनना है। स्वयं को स्वर्ग
में चलने के लायक बनाना है। बुरी आदतों को छोड़ देना है।
2) अभी पढ़ाई पढ़कर 21 जन्मों के लिए स्वर्ग में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनना है।
सच्ची-सच्ची सत्यनारायण की कथा सुन नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ करना है।