ओम् शान्ति।
गीत-कवितायें, भजन, वेद-शास्त्र, उपनिषद, देवताओं की महिमा आदि तुम भारतवासी बच्चे
बहुत ही सुनते आये हो। अभी तुमको समझ मिली है कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
पास्ट को भी बच्चों ने जाना है। प्रेजन्ट दुनिया का क्या है, वह भी देख रहे हो। वह
भी प्रैक्टिकल में अनुभव किया है। बाकी जो कुछ होना है – सो अभी प्रैक्टिकल में
अनुभव नहीं किया है। पास्ट में जो हुआ है उसका अनुभव किया है। बाप ने ही समझाया है,
बाप बिगर कोई समझा न सके। अथाह मनुष्य हैं परन्तु वो कुछ भी नहीं जानते हैं। रचयिता
और रचना के आदि-मध्य-अन्त को कुछ नहीं जानते। अभी कलियुग का अन्त है, यह भी मनुष्य
नहीं जानते। हाँ आगे चल अन्त को जानेंगे। मूल को जानेंगे। बाकी सारी नॉलेज को नहीं
जानेंगे। पढ़ने वाले स्टूडेन्ट ही जान सकते हैं। यह है मनुष्य से राजाओं का राजा
बनना। सो भी न आसुरी राजायें परन्तु दैवी राजायें, जिन्हों को आसुरी राजायें पूजते
हैं। यह सब बातें तुम बच्चे ही जानते हो। विद्वान, आचार्य आदि जरा भी नहीं जानते।
भगवान, जिसको शमा कह पुकारते हैं उसको जानते नहीं। गीत गाने वाले भी कुछ नहीं जानते।
महिमा सिर्फ गाते हैं। भगवान भी कोई समय इस दुनिया की महफिल में आया था। महफिल
अर्थात् जहाँ बहुत इकट्ठे हों। महफिल में खाना-पीना, शराब आदि मिलता है। अभी इस
महफिल में तुमको बाप से अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना मिल रहा है अथवा ऐसे कहें
हमको बैकुण्ठ की बादशाही बाप से मिल रही है। इस सारी महफिल में बच्चे ही बाप को
जानते हैं कि बाप हमको सौगात देने आये हैं। बाप महफिल में क्या देते हैं, मनुष्य
महफिल में एक-दो को क्या देते हैं, रात-दिन का फ़र्क है। बाप जैसे हलुआ खिलाते हैं
और वह सस्ते में सस्ती वस्तु चने खिलाते हैं। हलुआ और चना – दोनों में कितना फ़र्क
है। एक-दो को चने खिलाते रहते हैं। कोई कमाता नहीं है तो कहा जाता है – यह तो चने
चबा रहे हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप हमको स्वर्ग की राजाई का वरदान दे रहे हैं।
शिवबाबा इस महफिल में आते हैं ना। शिव जयन्ती भी तो मनाते हैं ना। परन्तु वह क्या
आकर करते हैं – यह किसको भी पता नहीं है। वह बाप है। बाप जरूर कुछ खिलाते हैं, देते
हैं। मात-पिता जीवन की पालना तो करते हैं ना। तुम भी जानते हो वह मात-पिता आकरके
जीवन की सम्भाल करते हैं। एडाप्ट करते हैं। बच्चे खुद कहते हैं बाबा हम आपके 10 दिन
के बच्चे हैं अर्थात् 10 दिन से आपके बने हैं। तो समझना चाहिए कि हम आपसे स्वर्ग की
बादशाही लेने का हकदार बन चुके हैं। गोद ली है। जीते जी किसी की गोद ली जाती है तो
अन्धश्रद्धा से तो नहीं लेते हैं। मात-पिता भी बच्चे को गोद में देते हैं। समझते
हैं हमारा बच्चा उनके पास जास्ती सुखी रहेगा और ही प्यार से सम्भालेंगे। तुम भी
लौकिक बाप के बच्चे यहाँ बेहद के बाप की गोद लेते हो। बेहद का बाप कितना रुचि से
गोद लेते हैं। बच्चे भी लिखते हैं बाबा हम आपका हो गया। सिर्फ दूर से तो नहीं कहेंगे।
प्रैक्टिकल में गोद ली जाती है तो सेरीमनी भी की जाती है। जैसे जन्म दिन मनाते हैं
ना। तो यह भी बच्चे बनते हैं, कहते हैं हम आपके हैं तो 6-7 दिन बाद नामकरण भी मनाना
चाहिए ना। परन्तु कोई भी मनाते नहीं। अपनी जन्माष्टमी तो बड़े धूमधाम से मनानी
चाहिए। परन्तु मनाते ही नहीं। ज्ञान भी नहीं है कि हमको जयन्ती मनानी है। 12 मास
होते हैं तो मनाते हैं। अरे पहले मनाया नहीं, 12 मास के बाद क्यों मनाते हो। ज्ञान
ही नहीं, निश्चय नहीं होगा। एक बार जन्म दिन मनाया वह तो पक्के हो गये फिर अगर जन्म
दिन मनाते हुए भागन्ती हो गये तो समझा जायेगा यह मर गया। जन्म भी कोई तो बहुत
धूमधाम से मनाते हैं। कोई गरीब होगा तो गुड़ चने भी बांट सकते हैं। जास्ती नहीं।
बच्चों को पूरी रीति समझ में नहीं आता है इसलिए खुशी नहीं होती है। जन्म दिन मनायें
तो याद भी पक्का पड़े। परन्तु वह बुद्धि नहीं है। आज फिर भी बाप समझाते हैं जो-जो
नये बच्चे बने, उनको निश्चय होता है तो जन्म दिन मनायें। फलाने दिन हमको निश्चय हुआ,
जिससे जन्माष्टमी शुरू होती है। तो बच्चे को बाप और वर्से को पूरा याद करना चाहिए।
बच्चा कभी भी भूलता थोड़ेही है कि मैं फलाने का बच्चा हूँ। यहाँ कहते हैं कि बाबा
आप हमको याद नहीं पड़ते हो। ऐसे अज्ञानकाल में तो कभी नहीं कहेंगे। याद न पड़ने का
सवाल भी नहीं उठता। तुम बाप को याद करते हो, बाप तो सबको याद करते ही हैं। सब हमारे
बच्चे काम-चिता पर जलकर भस्म हो गये हैं। ऐसे और कोई गुरू वा महात्मा आदि नहीं
कहेंगे। यह भगवानुवाच ही है कि मेरे सब बच्चे हैं। भगवान के तो सब बच्चे हैं ना। सब
आत्मायें परमात्मा बाप के बच्चे हैं। बाप भी जब शरीर में आते हैं तब कहते हैं – यह
सब आत्मायें हमारे बच्चे हैं। काम-चिता पर चढ़ भस्मीभूत तमोप्रधान हो पड़े हैं।
भारतवासी कितने आइरन एजेड हो गये हैं। काम-चिता पर बैठ सब सांवरे बन पड़े हैं। जो
पूज्य नम्बरवन गोरा था, सो अब पुजारी सांवरा बन गया है। सुन्दर सो श्याम है। यह
काम-चिता पर चढ़ना गोया सांप पर चढ़ना है। बैकुण्ठ में सांप आदि नहीं होते हैं जो
किसको डसें। ऐसी बात हो न सके। बाप कहते हैं – 5 विकारों की प्रवेशता होने से तुम
तो जैसे जंगली कांटे बन गये हो। कहते हैं बाबा हम मानते हैं यह है ही कांटों का
जंगल। एक-दो को डसकर सब भस्मीभूत हो गये हैं। भगवानुवाच मुझ ज्ञान सागर के बच्चे
जिनको मैंने कल्प पहले भी आकर स्वच्छ बनाया था वह अब पतित काले हो गये हैं। बच्चे
जानते हैं हम गोरे से सांवरे कैसे बनते हैं। सारे 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी
नटशेल में बुद्धि में है। इस समय तुम जानते हो कोई 5-6 वर्ष से लेकर अपनी बायोग्राफी
जानते हैं – नम्बरवार बुद्धि अनुसार। हर एक अपने पास्ट बायोग्राफी को भी जानते हैं
– हमने क्या-क्या बुरा काम किया। मोटी-मोटी बातें तो बताई जाती हैं – हमने क्या-क्या
किया। आगे जन्म की तो बता ही नहीं सकते। जन्म-जन्मान्तर की बायोग्राफी कोई बता न सके।
बाकी 84 जन्म कैसे लिए हैं सो बाप बैठ उन्हों को समझाते हैं, जिन्होंने पूरे 84
जन्म लिए हैं, उनकी ही स्मृति में आयेगा। घर जाने के लिए मैं तुमको मत देता हूँ
इसलिए बाप कहते हैं यह नॉलेज सब धर्म वालों के लिए है। अगर मुक्तिधाम घर जाने चाहते
हो तो बाप ही ले जा सकते हैं। सिवाए बाप के और कोई भी अपने घर जा नहीं सकते। कोई के
पास यह युक्ति है नहीं जो बाप को याद कर और वहाँ पहुंचे। पुनर्जन्म तो सबको लेना
है। बाप बिगर तो कोई ले जा नहीं सकते। मोक्ष का ख्याल तो कभी भी नहीं करना है। यह
तो हो नहीं सकता। यह तो अनादि बना-बनाया ड्रामा है, इससे कोई भी निकल नहीं सकते।
सबका एक बाप ही लिबरेटर, गाइड है। वही आकर युक्ति बतलाते हैं कि मुझे याद करो तो
तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो सजायें खानी पड़ेंगी। पुरुषार्थ नहीं करते
हैं तो समझते हैं यहाँ का नहीं है। मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता तुम बच्चे नम्बरवार
पुरुषार्थ अनुसार जानते हो। हर एक के समझाने की रफ्तार अपनी-अपनी है। तुम भी तो कह
सकते हो – इस समय पतित दुनिया है। कितना मारामारी आदि होती है। सतयुग में यह नहीं
होगा। अभी कलियुग है। यह तो सब मनुष्य मानेंगे। सतयुग त्रेता… गोल्डन एज, सिलवर एज…
और-और भाषाओं में भी कोई नाम कहते जरूर होंगे। इंगलिश तो सब जानते हैं। डिक्शनरी भी
होती है – इंगलिश हिन्दी की। अंग्रेज लोग बहुत समय राज्य करके गये तो उन्हों की
इंगलिश काम में आती है।
मनुष्य इस समय यह तो मानते हैं कि हमारे में कोई गुण नहीं है, बाबा आप आकर रहम
करो फिर से हमको पवित्र बनाओ, हम पतित हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो कि पतित आत्मायें
एक भी वापिस जा नहीं सकती। सबको सतो-रजो-तमो में आना ही है। अब बाप इस पतित महफिल
में आते हैं, कितनी बड़ी महफिल है। मैं देवताओं की महफिल में कभी आता ही नहीं हूँ।
जहाँ माल-ठाल, 36 प्रकार के भोजन मिल सके, वहाँ मैं आता ही नहीं हूँ। जहाँ बच्चों
को रोटी भी नहीं मिलती, उन्हों के पास आकर गोद में लेकर बच्चा बनाए वर्सा देता हूँ।
साहूकारों को गोद में नहीं लेता हूँ, वे तो अपने ही नशे में चूर रहते हैं। खुद कहते
है कि हमारे लिए तो स्वर्ग यहाँ ही है फिर कोई मरता है तो कहते हैं कि स्वर्गवासी
हुआ। तो जरूर यह नर्क हुआ ना। तुम क्यों नहीं समझाते हो। अभी अखबार में भी
युक्तियुक्त कोई ने डाला नहीं है। बच्चे भी जानते हैं हमको ड्रामा पुरुषार्थ कराता
है, हम जो पुरुषार्थ करते हैं – वह ड्रामा में नूँध है। पुरुषार्थ करना भी जरूर है।
ड्रामा पर बैठ नहीं जाना है। हर बात में पुरुषार्थ जरूर करना ही है। कर्म योगी,
राजयोगी हैं ना। वह हैं कर्म संन्यासी, हठयोगी। तुम तो सब कुछ करते हो। घर में रहते,
बाल-बच्चों को सम्भालते हो। वह तो भाग जाते हैं। अच्छा नहीं लगता है। परन्तु वह
पवित्रता भी भारत में चाहिए ना। फिर भी अच्छा है। अभी तो पवित्र भी नहीं रहते हैं।
ऐसे नहीं कि वह कोई पवित्र दुनिया में जा सकते हैं। सिवाए बाप के कोई ले नहीं जा
सकते। अभी तुम जानते हो – शान्तिधाम तो हमारा घर है। परन्तु जायें कैसे? बहुत पाप
किये हुए हैं। ईश्वर को सर्वव्यापी कह देते हैं। यह इज्जत किसकी गॅवाते हैं? शिवबाबा
की। कुत्ते बिल्ली, कण-कण में परमात्मा कह देते हैं। अब रिपोर्ट किसको करें! बाप
कहते हैं मैं ही समर्थ हूँ। मेरे साथ धर्मराज भी है। यह सबके लिए कयामत का समय है।
सब सजायें आदि भोग कर वापिस चले जायेंगे। ड्रामा की बनावट ही ऐसी है। सजायें खानी
ही हैं जरूर। यह तो साक्षात्कार भी होता है। गर्भजेल में भी साक्षात्कार होता है।
तुमने यह-यह काम किये हैं फिर उनकी सजा मिलती है, तब तो कहते हैं कि अब इस जेल से
निकालो। हम फिर ऐसे पाप नहीं करेंगे। बाप यहाँ सम्मुख आकर यह सब बातें तुम्हें
समझाते हैं। गर्भ में सजायें खाते हैं। वह भी जेल है, दु:ख फील होता है। वहाँ सतयुग
में दोनों जेल नहीं होती, जहाँ सजा खायें।
अब बाप समझाते हैं बच्चे मुझे याद करो तो खाद निकल जायेगी। यह तुम्हारे अक्षर
बहुत मानेंगे। भगवान का नाम तो है। सिर्फ भूल की है जो कृष्ण का नाम डाल दिया है।
अब बाप भी बच्चों को समझाते हैं – यह जो सुनते हो, सुनकर अखबार में डालो। शिवबाबा
इस समय सबको कहते हैं – 84 जन्म भोग तमोप्रधान बने हो। अभी फिर मैं राय देता हूँ –
मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे फिर तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम में चले जायेंगे।
बाप का यह फरमान है – मुझे याद करो तो खाद निकल जायेगी। अच्छा- बच्चे कितना समझाए
कितना समझायें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर बात के लिए पुरुषार्थ जरूर करना है। ड्रामा कहकर बैठ नहीं जाना
है। कर्मयोगी, राजयोगी बनना है। कर्म संन्यासी, हठयोगी नहीं।
2) बिगर सजा खाये बाप के साथ घर चलने के लिए याद में रहकर आत्मा को सतोप्रधान
बनाना है। सांवरे से गोरा बनना है।