ओम् शान्ति।
गीत तो बच्चों ने बहुत बार सुना है। भिन्न-भिन्न प्रकार से बच्चों को अर्थ समझाया
जाता है। जिन्होंने गीत बनाया है वह तो इन बातों को जानते नहीं। तुम अब बेहद बाप के
बच्चे बने हो। तुम बेहद बाप के बच्चे भी हो तो पोत्रे-पोत्रियां भी। ऐसे और कोई बाप
नहीं कह सकता कि तुम हमारे बच्चे भी हो तो पोत्रे-पोत्रियां भी हो। यहाँ यह वन्डर
है। हम सब आत्माएं शिवबाबा के बच्चे हैं और शिव-बाबा का बच्चा एक ब्रह्मा है साकार
में, इसलिए हम पोत्रे-पोत्रियां भी बनते हैं। बेशुमार बच्चे हैं। सब बच्चे एक बाप
के हैं। तुम अब पोत्रे-पोत्रियां बने हो वर्सा लेने के लिए, और कोई तो वर्सा ले नहीं
सकते। अगर सभी पोत्रे-पोत्रियां बन जाएं तो सब स्वर्ग का वर्सा ले लेवें। ऐसे तो हो
न सके इसलिए कोटों में कोई ही पोत्रे-पोत्रियां बनते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के लिए
तो समझाया जाता है कि ब्रह्मा को जरूर एडाप्ट करना पड़े। एक एडाप्शन होती है, यह
फिर है प्रवेश होने की बात। बच्चे कहते हैं, हम पोत्रे और पोत्रियां भी हैं। यह बात
और कोई कह न सके कि बच्चे अपने स्वीट होम को याद करो। यह किसको कहते हैं? आत्माओं
को। आत्मा इन आरगन्स द्वारा सुनती है। ऐसा कोई कह न सके कि हम आत्माओं से बात करते
हैं। आत्मा सुनती है - बाप कहते हैं मैं जो परमपिता परमात्मा हूँ सो इस ब्रह्मा के
तन में प्रवेश कर तुमको सिखलाता हूँ। नहीं तो कैसे समझाऊं। मुझे आना भी ब्रह्मा के
तन में है। नाम भी ब्रह्मा ही रखना है तब तो ब्रह्माकुमार कुमारियां कहलाओ। उन
ब्राह्मणों से पूछो तुम ब्रह्मा की सन्तान कैसे हो। तुमको बता न सकें। कहेंगे हम
ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं। परन्तु हैं तो कुख वंशावली। कहते हैं मुख वंशावली थे,
अब कुख वंशावली बने हैं। अब ऐसे तो नहीं ब्रह्मा के कुख वंशावली होंगे। तो यह बड़ी
वन्डरफुल बाते हैं। बाप कभी रांग बात नहीं सुनायेंगे। वह सत्य है। हम सत्य बन रहे
हैं। अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है। यह दादा भी कहते हैं - जब तक परिपूर्ण बनें
तब तक कुछ न कुछ हो सकता है। परन्तु तुम्हारा काम है शिवबाबा से। मनुष्य तो कुछ भी
भूलें कर सकते हैं, औरों से तुम्हारी खिटपिट हो सकती है। परन्तु बाप से तो वर्सा
लेना है ना। बहुत बच्चे बाप से भी रूठ जाते हैं। अगर कोई भाई-बहन ने कुछ कह भी दिया
परन्तु शिवबाबा की मुरली तो सुनो ना। घर में बैठे रहो, परन्तु बाप का खजाना तो लो।
खजाने के बिगर तुम क्या करेंगे! ब्राह्मणों के संग में भी जरूर आना पड़े, नहीं तो
शूद्रों के संग का असर हो जायेगा। तुम्हारी दुर्गति हो जायेगी। सतसंग तारे कुसंग
बोरे। हंस जाकर बगुलों के साथ रहते हैं तो सत्यानाश हो जाती है। खिवैया एक ही बाप
को कहा जाता है। बाकी डुबोने वाले तो अनेक हैं। कोई भी मनुष्य अपने को खिवैया अथवा
गुरू नहीं कहला सकता है। इस असार संसार, विषय सागर से निकाल स्वीट होम में ले जाने
वाला एक ही बाप है। बाप कहते हैं सुखधाम, शान्तिधाम और दु:खधाम यह तीन धाम हैं।
तुमको इस दु:खधाम से निकल शान्तिधाम जाना है। इस दु:खधाम को आग लगनी है। यह दु:ख का
भंभोर है, इसमें कुम्भकरण जैसे भ्रष्टाचारी मनुष्य रहते हैं। पतित-पावन बाप को
बुलाते हैं। पतित-पावनी गंगा को तो बुलाने की बात ही नहीं। वह तो अनादि है। स्वर्ग
में भी तो होगी ना। अगर यह गंगा पतित-पावनी हो फिर तो सभी पावन ही पावन होने चाहिए।
कुछ भी समझते नहीं।
अभी तुम बच्चों को समझाया है। तो समझते हो - नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार, क्योंकि
बच्चों में खामियां हैं, अशुद्ध अहंकार, काम क्रोध हर एक में है। हर एक को अपनी दिल
से पूछना चाहिए कि हमारे में क्या खामी है। बाप को बताना चाहिए - बाबा मेरे में यह
खामी है। नहीं तो वह खामी वृद्धि को पायेगी। यह कोई श्राप नहीं देते हैं। परन्तु एक
लॉ है, खामियों का दान देकर फिर कोई भूल हो जाए तो बताना चाहिए। बाबा हमने यह भूल
की, फलाने चीज़ की चोरी की। शिवबाबा के भण्डारे में सब कुछ मिलता है, अविनाशी ज्ञान
रत्न भी मिलते हैं तो शरीर निर्वाह अर्थ भी सब कुछ मिलता है। बुद्धि की खुराक, शरीर
की खुराक सब कुछ मिलता है। फिर भी कुछ चाहिए तो मांग सकते हैं। अगर बिगर पूछे कुछ
उठायेंगे तो तुमको देख और भी ऐसे करेंगे। मांग कर लेना ठीक होता है। जैसे बच्चे बाप
से जो कुछ मांगते हैं तो बाप दे देते हैं। साहूकार होगा तो सब कुछ मंगा देंगे, गरीब
क्या करेगा। यह तो शिवबाबा का भण्डारा है, कोई चीज़ चाहिए तो मांग सकते हो। यथा
योग्य सबको मिलना ही है। बाबा मम्मा और अनन्य बच्चों से रीस नहीं करनी चाहिए। बाबा
भी महिमा करते हैं, फलाने बच्चे बहुत अच्छी सर्विस करते हैं। तो तुम बच्चों को भी
उनका रिगार्ड रखना चाहिए। सारा मदार ज्ञान और योग पर है। सेन्सीबुल बच्चे बड़ा
युक्ति से चलते हैं, जानते हैं यह बरोबर हमसे ऊंच हैं। तो उनको रिगार्ड से देखना
चाहिए। फीमेल्स भी कोई पढ़ी लिखी बड़ी शुरूड होती हैं, जो आप-आप कह बात करेंगी। कोई
तो अनपढ़, तुम-तुम कह बात करती हैं। यह मैनर्स चाहिए। बाप के आगे तो किसम-किसम के
आते हैं। बाप कोई को भी कहेंगे - तुम राजी खुशी हो? कोई आफीसर आदि को रिगार्ड देना
पड़ता है। पोप आया - उनको भी बताना है कि यह कांटों का जंगल है, आप जिसको पैराडाइज
कहते हैं वह गॉर्डन आफ फ्लावर है। वहाँ तो जरूर अच्छे फरिश्ते रहते होंगे। यह कांटों
का जंगल है, जंगल में कांटे और जानवर ही रहते हैं। यह बाबा तो कोई को कुछ भी कह सकते
हैं। बच्चे तो नहीं कह सकते। अब पैराडाइज स्थापन हो रहा है, यह आइरन एज है। गॉर्डन
ऑफ अल्लाह की स्थापना होती है। सतयुग है गॉर्डन आफ अल्लाह, यह है कांटों का जंगल।
यह बातें बड़ी समझने की हैं। तकदीरवान ही अच्छी तरह समझ सकते हैं और समझा सकते हैं।
बाबा बच्चों को अच्छी राय देते हैं तो 5 विकारों पर जीत पानी है। इससे विदाई तो
अन्त में होनी है, तब तक कुछ न कुछ खामियां रहती हैं। उनको हटाने का पुरुषार्थ करना
है, देही-अभिमानी बनना है। याद करना है शान्तिधाम और सुखधाम को, तो खुशी रहेगी। हम
सुखधाम जाते हैं वाया शान्तिधाम, तब तक सारी सफाई हो जायेगी। फिर स्वर्ग में हर चीज़
फर्स्ट क्लास मिलेगी। हीरे जवाहरों के महल आकर बनायेंगे, यह करेंगे। तुमको भी बुद्धि
में रहता है, हम आत्मा हैं। यहाँ आये हैं अपनी राजधानी स्थापन करने। फिर शिवबाबा के
साथ चले जायेंगे। हम राजयोग सीख रहे हैं, फिर जाकर सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राजा रानी
बनेंगे। महल तो बनाने पड़ेंगे ना। यह बातें अन्दर सिमरण कर बहुत खुशी होनी चाहिए।
खामियां तो बहुत हैं, देह-अभिमान में बहुत आते हैं। यह पिछाड़ी का पुराना चोला है,
नया चोला सतयुग में मिलेगा। बाप बैठ मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं, आधाकल्प तुमने
भक्ति की है - भगवान के साथ मिलने के लिए। भक्ति की ही जाती है एक भगवान के साथ
मिलने के लिए या अनेकों से मिलने के लिए? भक्ति भी एक की करनी होती है फिर व्यभिचारी
भक्ति हो जाती है। फिर तुम जन्म-जन्मान्तर गुरू करते हो, पुनर्जन्म लिया फिर दूसरा
गुरू करना पड़े। अब बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग में ले चलता हूँ। वहाँ तुमको
जन्म-जन्मान्तर गुरू करने की दरकार नहीं रहेगी। अव्यभिचारी भक्ति के बाद व्यभिचारी
भक्ति बननी ही है क्योंकि अभी है उतरती कला। तो बाप कहते हैं बच्चे अब घर चलना है।
मेरे लिए गाते हैं लिबरेटर है, खिवैया है, बागवान है। स्वर्ग है ही फूलों का बगीचा।
फिर खिवैया चला जायेगा। सब तो स्वर्ग में नहीं जायेंगे। पहले-पहले जो भी आते हैं,
उनके लिए जैसेकि गॉर्डन आफ अल्लाह है, बहुत सुख भोगते हैं। अल्लाह ही सबको सुख देते
हैं। यह तो कोई भी कहेंगे कि सतयुग गॉर्डन आफ अल्लाह था। भारत ही प्राचीन खण्ड है।
जब सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राज्य करते थे, उस समय सब आत्मायें स्वीट होम में थी, जिसके
लिए ही भक्ति करते हैं कि मुक्ति में जायें। जीवन-मुक्ति देने वाला तो गुरू कोई है
नहीं। शिवबाबा ही मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं। अभी यह है दु:खधाम,
भंभोर को आग लगनी है। लाखों वर्ष का कल्प होता नहीं। लाखों वर्ष समझ कुम्भकरण की
नींद में सोये हुए हैं। अभी ईश्वर ने आकर जगाया है, तुमको फिर औरों को भी जगाना है।
सर्विस बिगर तो ऊंच पद नहीं मिलेगा। बच्चों पर बाबा को रहम आता है कि पूरा वर्सा नहीं
पाते हैं। बाप तो सबको पूरा पुरुषार्थ करायेंगे। क्यों न तुम बाबा की विजय माला में
पिरो जाओ। है बहुत सहज, किसको भी समझाना। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा
दु:खधाम का विनाश। अब सुखधाम के लिए पुरुषार्थ करना है लेकिन सुखधाम को कोई जानते
नहीं। अगर जानते हो तो वहाँ पहुंच जायें। कोई जानते नहीं तो पहुंच भी नहीं सकते।
पंख टूटे हुए हैं। तुम बच्चे काल पर विजय पाते हो। कालों का काल बाप ही काल पर विजय
पहनायेंगे। तो यह सब धारणा कर पतितों को पावन बनना है। सिर्फ प्रभावित होकर जायेंगे,
उससे क्या फायदा। पूरा रंग तब चढ़े जब 7 दिन का कोर्स करें। कोई-कोई बच्चे चलते-चलते
ब्राह्मणी से भी रूठने के कारण फिर शिवबाबा से भी रूठ पड़ते हैं। भगवान से रूठना -
क्या यह अक्लमंदी है? औरों से रूठे तो रूठने दो, मेरे से रूठे तो मुर्दा बन जायेंगे।
शिवबाबा से तो न रूठो। खजाना लेते रहो, धन दिये धन ना खुटे... संग भी चाहिए।
ब्राह्मण कुल में तो बहुत क्षीरखण्ड होने चाहिए। धूतियां और धूते भी होते हैं, (परचिंतन
करने वाले) उनसे बहुत सम्भाल चाहिए।
बाप समझाते हैं - बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए। डूबे हुए को बाहर निकालना
है। इसमें भी चैरिटी बिगन्स एट होम। बाप भी पहले-पहले ब्रह्मा बच्चे को उठाते हैं।
तुम फिर अपने बच्चों को उठाओ। जीयदान दो। पढ़ाई तो अन्त तक पढ़नी है। कितनी
अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स बाप देते हैं। जीते जी मरकर वर्सा पाना है, बाबा हम आपका
हूँ। आपके ही थे फिर आपका ही बना हूँ। आप से पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेगे। इस
दु:खधाम के भंभोर को आग लगनी है। हम सुखधाम में जा रहे हैं, तो कितनी खुशी होनी
चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जो ज्ञान योग में तीखे हैं, अच्छी सर्विस करते हैं, उन्हें बहुत-बहुत
रिगार्ड देना है। आप-आप कह बात करनी है। आपस में भी कभी रूठना नहीं है।
2) ब्राह्मण कुल में बहुत-बहुत क्षीरखण्ड होकर रहना है। धूतेपन, परचिंतन से अपनी
सम्भाल करनी है। सतसंग जरूर करना है।