20-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 22.01.88 "बापदादा" मधुबन
हिम्मत का पहला
कदम - समर्पणता
(ब्रह्मा बाप की जीवन कहानी)
आज स्नेह के सागर
बापदादा अपने स्नेही बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक स्नेही आत्माओं को एक
ही लग्न है, श्रेष्ठ संकल्प है कि हम सभी बाप समान बनें, स्नेह में समा जायें।
स्नेह में समा जाना अर्थात् बाप समान बनना। सभी की दिल में यह दृढ़ संकल्प है कि हमें
बापदादा द्वारा प्राप्त हुए स्नेह, शक्तिशाली पालना और अखुट अविनाशी खज़ानों का
रिटर्न अवश्य करना है। रिटर्न में क्या देंगे? सिवाए दिल के स्नेह के आपके पास और
है ही क्या? जो भी है वह बाप का दिया हुआ ही है, वह क्या देंगे। बाप समान बनना - यही
रिटर्न है और यह सभी कर सकते हो।
बापदादा देख रहे थे कि आजकल सभी के दिल में विशेष ब्रह्मा बाप की स्मृति ज्यादा
इमर्ज है। स्मृति शरीर की नही है लेकिन चरित्रों के विशेषताओं की स्मृति है क्योंकि
अलौकिक ब्राह्मण जीवन ज्ञान-स्वरूप जीवन है, ज्ञानस्वरुप होने के कारण देह की स्मृति
भी दु:ख की लहर नहीं लायेगी। अज्ञानी जीवन में किसी को भी याद करेंगे तो सामने देह
आयेगी, देह के सम्बन्ध के कारण दु:ख महसूस होगा। लेकिन आप ब्राह्मण बच्चों को बाप
की स्मृति आते समर्थी आ जाती है कि हमें भी “बाप समान'' बनना ही है। अलौकिक बाप की
स्मृति समर्थी अर्थात् शक्ति दिलाती है। चाहे कोई-कोई बच्चे दिल का स्नेह नयनों के
मोतियों द्वारा भी प्रगट करते हैं लेकिन दु:ख के आसू नहीं, वियोग के आंसू नहीं, यह
स्नेह के मोती हैं। दिल के मिलन का स्नेह है। वियोगी नहीं लेकिन राजयोगी हैं क्योंकि
दिल का सच्चा स्नेह शक्ति दिलाता है कि जल्दी से जल्दी पहले मैं बाप का रिटर्न दूँ।
रिटर्न देना अर्थात् समान बनना। इस विधि से ही अपने स्नेही बापदादा के साथ स्वीट
होम में रिटर्न होंगे अर्थात् साथ वापस जायेंगे। रिटर्न करना भी है और बाप के साथ
रिटर्न जाना भी है इसलिए आपका स्नेह वा याद दुनिया से न्यारा और बाप का प्यारा बनने
का है।
तो बापदादा बच्चों के समर्थ बनने का संकल्प, समान बनने का उमंग देख रहे थे। ब्रह्मा
बाप की विशेषताओं को देख रहे थे। अगर ब्रह्मा बाप की विशेषताओं का वर्णन करें तो
कितनी होंगी? हर कदम में विशेषतायें रहीं। संकल्प में भी सर्व को विशेष बनाने का हर
समय उमंग-उत्साह रहा। अपनी वृत्ति द्वारा हर आत्मा को उमंग-उत्साह में लाना - यह
विशेषता सदा ही प्रत्यक्ष रूप में देखी। वाणी द्वारा हिम्मत दिलाने वाले, नाउम्मीद
को उम्मीद में लाने वाले, निर्बल आत्मा को उड़ती कला की विधि से उड़ाने वाले, सेवा
के योग्य बनाने वाले, हर बोल अनमोल, मधुर, युक्ति-युक्त थे। ऐसे ही कर्म में बच्चों
के साथ हर कर्म में साथी बन कर्मयोगी बनाया। सिर्फ साक्षी होकर देखने वाले नहीं
लेकिन स्थूल कर्म के महत्व को अनुभव कराने के लिए कर्म में भी साथी बने। जो कर्म
मैं करूँगा, मुझे देख बच्चे स्वत: ही करेंगे - इस पाठ को सदा कर्म करके पढ़ाया।
सम्बन्ध-सम्पर्क में छोटे बच्चों को भी सम्बन्ध से बच्चों समान बन खुश किया।
वानप्रस्थ को भी वानप्रस्थ रूप से अनुभवी बन सम्बन्ध-सम्पर्क से सदा उमंग-उत्साह
में लाया। बाल से बाल रूप, युवा से युवा रूप और बुजुर्ग से बुजुर्ग रूप बन सदा आगे
बढ़ाया, सदा सम्बन्ध-सम्पर्क से हरेक को अपनापन अनुभव कराया। छोटा बच्चा भी कहेगा
कि “जितना मुझे बाबा प्यार करता, उतना किसको नहीं करता!'' तो हर एक को इतना प्यार
दिया जो हरेक समझे कि बाबा मेरा है। यह है सम्बन्ध-सम्पर्क की विशेषता। देखने में
हर एक आत्मा की विशेषता वा गुण को देखना। सोचने में देखो, सदा जानते हुए कि यह
लास्ट नम्बर के दाने हैं लेकिन ऐसी आत्मा के प्रति भी सदा आगे बढ़ें - ऐसा हर आत्मा
प्रति शुभ चिन्तक रहे। ऐसी विशेषतायें सभी बच्चों ने अनुभव कीं। इन सभी बातों में
समान बनना अर्थात् फालो फादर करना है। यह फालो करना कोई मुश्किल है क्या? इसी को ही
स्नेह, इसी को ही रिटर्न देना कहा जाता है।
तो बापदादा देख रहे थे कि हर एक बच्चे ने अभी तक कितना रिटर्न किया है? लक्ष्य तो
सभी का है लेकिन प्रत्यक्ष जीवन में ही नम्बर है। सभी नम्बरवन बनना चाहते हैं। दो-तीन
नम्बर बनना कोई पसन्द नहीं करेंगे। यह भी लक्ष्य शक्तिशाली अच्छा है लेकिन लक्ष्य
और लक्षण समान होना - यही समान बनना है। इसके लिए जैसे ब्रह्मा बाप ने पहला कदम
हिम्मत का कौन-सा उठाया जिस कदम से ही पद्मापद्म भाग्यवान आदि से अनुभव किया? पहला
कदम हिम्मत का - सब बात में समर्पणता। सब कुछ समर्पण किया। कुछ सोचा नहीं कि क्या
होगा, कैसे होगा। एक सेकण्ड में बाप की श्रेष्ठ मत प्रमाण बाप ने ईशारा दिया, बाप
का ईशारा और ब्रह्मा का कर्म वा कदम। इसको कहते हैं हिम्मत का पहला कदम। तन को भी
समर्पण किया। मन को भी सदा मन्मनाभव की विधि से सिद्धि-स्वरूप बनाया इसलिए मन
अर्थात् हर संकल्प सिद्ध अर्थात् सफलता स्वरूप बनें। धन को बिना कोई भविष्य की चिंता
के निश्चिन्त बन धन समर्पित किया क्योंकि निश्चय था कि यह देना नहीं है लेकिन
पद्मगुणा लेना है। ऐसे सम्बन्ध को भी समर्पित किया अर्थात् लौकिक को अलौकिक सम्बन्ध
में परिवर्तन किया। छोड़ा नहीं, कल्याण किया, परिवर्तन किया। मैं-पन की बुद्धि,
अभिमान की बुद्धि समर्पित की इसलिए सदा तन, मन, बुद्धि से निर्मल, शीतल, सुखदाई बन
गये। कैसे भी लौकिक परिवार से वा दुनिया की अन्जान आत्माओं से परिस्थितियाँ आई
लेकिन संकल्प में भी, स्वप्न में भी कभी संशय के सूक्ष्म स्वरूप “संकल्पमात्र'' की
हलचल में नहीं आये।
ब्रह्मा की विशेष इस बात की कमाल रही जो आप सबके आगे साकार रूप में ब्रह्मा बाप
एग्जैम्पल था लेकिन ब्रह्मा के आगे कोई साकार एग्जैम्पल नहीं था। सिर्फ अटल निश्चय,
बाप की श्रीमत का आधार रहा। आप लोगों के लिए तो बहुत सहज है! और जितना जो पीछे आये
हैं, उनके लिए और सहज है! क्योंकि अनेक आत्माओं के परिवर्तन की श्रेष्ठ जीवन आपके
आगे एग्जैम्पल है। यह करना है, बनना है - क्लीयर है। इसलिए आप लोगों को “क्यूं, क्या''
का क्वेश्चन उठने की मार्जिन नहीं है। सब देख रहे हो। लेकिन ब्रह्मा के आगे
क्वेश्चन उठने की मार्जिन थी। क्या करना है, आगे क्या होना है, राइट कर रहा हूँ वा
रांग कर रहा हूँ - यह संकल्प उठना सम्भव था लेकिन सम्भव को असम्भव बनाया। एक बल एक
भरोसा - इसी आधार से निश्चयबुद्धि नम्बरवन विजयी बन गये। इसी समर्पणता के कारण
बुद्धि सदा हल्की रही, बुद्धि पर बोझ नहीं रहा। मन निश्चिन्त रहा। चेहरे पर सदा ही
बेफिकर बादशाह के चिन्ह स्पष्ट देखे। 350 बच्चे और खाने के लिए आटा नहीं और टाइम पर
बच्चों को खाना खिलाना है! तो सोचो, ऐसी हालत में कोई बेफिकर रह सकता है? एक बजे
बेल (घन्टी) बजना है और 11.00 बजे तक आटा नहीं, कौन बेफिकर रह सकता? ऐसी हालत में
भी हर्षित, अचल रहा। यह बाप की जिम्मेवारी है, मेरी नहीं है, मैं बाप का तो बच्चे
भी बाप के हैं, मैं निमित्त हूँ - ऐसा निश्चय और निश्चिन्त कौन रह सकता? मन-बुद्धि
से समर्पित आत्मा। अगर अपनी बुद्धि चलाते कि पता नहीं क्या होगा! सब भूखे तो नहीं
रह जायेंगे, यह तो नहीं होगा, वह तो नहीं होगा! ऐसे व्यर्थ संकल्प वा संशय की
मार्जिन होते हुए भी समर्थ संकल्प चले कि सदा बाप रक्षक है, कल्याणकारी है। यह
विशेषता है समर्पणता की। तो जैसे ब्रह्मा बाप ने समर्पण हाने से पहला कदम “हिम्मत''
का उठाया, ऐसे फालो फादर करो। निश्चय की विजय अवश्य होती है। तो टाइम पर आटा भी आ
गया, बेल भी बज गया और पास हो गये। इसको कहते हैं क्वेश्चन मार्क अर्थात् टेढ़ा
रास्ता न ले सदा कल्याण की बिन्दी लगाओ। फुल-स्टाप। इसी विधि से ही सहज भी होगा और
सिद्धि भी प्राप्त होगी। तो यह थी ब्रह्मा की कमाल। आज पहला एक कदम सुनाया है, फिकर
के बोझ से भी बेफिकर बन जाओ। इसको ही कहा जाता है स्नेह का रिटर्न करना। अच्छा!
सदा हर कदम में बाप को फालो करने वाले, हर कदम में स्नेह का रिटर्न करने वाले, सदा
निश्चयबुद्धि बन, निश्चिन्त बेफिकर बादशाह रहने वाले, मन-वाणी-कर्म-सम्बन्ध में बाप
समान बनने वाले, सदा शुभचिन्तक, सदा हर एक की विशेषता देखने वाले, हर आत्मा को सदा
आगे बढ़ाने वाले, ऐसे बाप समान बच्चों को स्नेही बाप का स्नेह सम्पन्न यादप्यार और
नमस्ते।
पार्टियों से
मुलाकात :-
1. अपने को ऊंचे ते ऊंचे बाप की ऊंचे ते ऊंची ब्राह्मण आत्मायें समझते हो? ब्राह्मण
सबसे ऊंचे गाये जाते हैं, ऊंचे की निशानी सदा ब्राह्मणों को चोटी दिखाते हैं। दुनिया
वालों ने नाम-धारी ब्राह्मणों की निशानी चोटी दिखा दी है। तो चोटी रखने वाले नहीं
लेकिन चोटी की स्थिति में रहने वाले। उन्होंने स्थूल निशानी दिखा दी है, वास्तव में
है ऊंची स्थिति में रहने वाले। ब्राह्मणों को ही पुरुषोत्तम कहा जाता है।
पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों से उत्तम, साधारण मनुष्यात्माओं से उत्तम। ऐसे
पुरुषोत्तम हो ना। पुरुष आत्मा को भी कहते हैं, श्रेष्ठ आत्मा बनने वाले अर्थात्
पुरुषों से उत्तम पुरुष बनने वाले। देवताओं को भी पुरुषोत्तम कहते हैं क्योंकि
देव-आत्मायें हैं। आप देव-आत्माओं से भी ऊंचे ब्राह्मण हो - यह नशा सदा रहे। दूसरे
नशे के लिए कहेंगे - कम करो, रूहानी नशे के लिए बाप कहते हैं - बढ़ाते चलो क्योंकि
यह नशा नुकसान वाला नहीं है, और सभी नशे नुकसान वाले हैं। यह चढ़ाने वाला है, वह
गिराने वाले हैं। अगर रूहानी नशा उतर गया तो पुरानी दुनिया की स्मृति आ जायेगी। नशा
चढ़ा हुआ होगा तो नई दुनिया की स्मृति रहेगी। यह ब्राह्मण संसार भी नया संसार है।
सतयुग से भी यह संसार अति श्रेष्ठ है! तो सदा इस स्मृति से आगे बढ़ते चलो।
2. सदा अपने को विश्व-रचता बाप की श्रेष्ठ रचना अनुभव करते हो? ब्राह्मण जीवन
अर्थात् विश्व-रचता की श्रेष्ठ रचना। हर एक डॉयरेक्ट बाप की रचना है - यह नशा है?
दुनिया वाले तो सिर्फ अन्जान बनके कहते हैं कि हमको भगवान ने पैदा किया है। आप सभी
भी पहले अन्जान होकर कहते थे लेकिन अभी जानते हो कि हम शिववंशी ब्रह्माकुमार/कुमारी
हैं। तो अभी ज्ञान के आधार से, समझ से कहते हो कि हमको भगवान ने पैदा किया है, हम
मुख वंशावली हैं। डायरेक्ट बाप ने ब्रह्मा द्वारा रचना रची है। तो बापदादा वा
मात-पिता की रचना हो। डायरेक्ट भगवान की रचना - यह अभी अनुभव से कह सकते हो। तो
भगवान की रचना कितनी श्रेष्ठ होगी! जैसा रचयिता वैसी रचना होगी ना। यह नशा और खुशी
सदा रहती है? अपने को साधारण तो नहीं समझते हो? यह राज़ जब बुद्धि में आ जाता है तो
सदा ही रूहानी नशा और खुशी चेहरे पर वा चलन में स्वत: ही रहती है। आपका चेहरा देख
करके किसको अनुभव हो कि सचमुच यह श्रेष्ठ रचता की रचना हैं। जैसे राजा की राजकुमारी
होगी तो उसकी चलन से पता चलेगा कि यह रायल घर की है। यह साहूकार घर की या यह साधारण
घर की है। ऐसे आपके चलन से, चेहरे से अनुभव हो कि यह ऊंची रचना है, ऊंचे बाप के
बच्चे हैं!
कुमारियों
से:-
कन्यायें 100
ब्राह्मणों से उत्तम गाई हुई है यह महिमा क्यों हैं? क्योंकि जितना स्वयं श्रेष्ठ
होंगे, उतना ही औरों को भी श्रेष्ठ बना सकेंगे। तो श्रेष्ठ आत्मायें हैं - यह खुशी
रहती है? तो कुमारियाँ सेवाधारी बन सेवा में आगे बढ़ते चलो क्योंकि यह संगमयुग है
ही थोड़े समय का युग, इसमें जितना जो करने चाहे, उतना कर सकता है। तो श्रेष्ठ
लक्ष्य और श्रेष्ठ लक्षण वाली हो ना? जहाँ लक्ष्य और लक्षण श्रेष्ठ हैं, वहाँ
प्राप्ति भी सदा श्रेष्ठ अनुभव होती है। तो सदा इस ईश्वरीय जीवन का फल “खुशी'' और “शक्ति''
दोनों अनुभव करती हो? दुनिया में खुशी के लिए खर्चा करते, तो भी प्राप्त नहीं होती।
अगर होती भी है तो अल्प-काल की और खुशी के साथ-साथ दु:ख भी होगा। लेकिन आप लोगों की
जीवन सदा खुशी की हो गई। दुनिया वाले खुशी के लिए तड़पते हैं और आपको खुशी
प्रत्यक्ष-फल के रूप में मिल रही है। खुशी ही आपके जीवन की विशेषता है! अगर खुशी नहीं
तो जीवन नही। तो सदा अपनी उन्नति करते हुए आगे बढ़ रही हो ना? बापदादा खुश होते हैं
कि कुमारियाँ समय पर बच गई, नहीं तो उल्टी सीढ़ी चढ़कर फिर उतरनी पड़ती। चढ़ो और
उतरो - मेहनत है ना। देखो, कोई भी प्रवृत्ति वाले हैं, तो भी कहलाना तो
ब्रह्माकुमार/ब्रह्माकुमारी पड़ता, ब्रह्मा अधरकुमार तो नहीं कहते। फिर भी कुमार/कुमारी
बने ना। तो सीढ़ी उतरे और आपको उतरना नहीं पड़ा, बहुत भाग्यवान हो, समय पर बाप मिल
गया। कुमारी ही पूजी जाती है। कुमारी जब गृहस्थी बन जाती है तो बकरी बन सबके आगे
सिर झुकाती रहती है। तो बच गई ना। तो सदा अपने को ऐसे भाग्यवान समझ आगे बढ़ते चलो।
अच्छा!
माताओं से:-
सभी शक्तिशाली मातायें हो ना? कमज़ोर तो नहीं? बापदादा माताओं से क्या चाहते हैं?
एक-एक माता “जगतमाता'' बन विश्व का कल्याण करे। लेकिन मातायें चतुराई से काम करती
हैं। जब लौकिक कार्य होता है तो किसी न किसी को निमित्त बनाकर निकल जाती और जब
ईश्वरीय कार्य होता तो कहेंगी - बच्चे हैं, कौन सम्भालेगा? पाण्डवों को तो बापदादा
कहते - सम्भालना है क्योंकि रचता हैं, पाण्डव शक्तियों को फ्री करें। ड्रामा अनुसार
वर्तमान समय माताओं को चांस मिला है, इसलिए माताओं को आगे रखना है। अभी बहुत सेवा
करनी है। सारे विश्व का परिवर्तन करना है तो सेवा पूरी कैसे करोगे? तीव्र गति चाहिए
ना। तो पाण्डव शक्तियों को फ्री करो तो सेवाकेन्द्र खुलें और आवाज बुलन्द हो। अच्छा!
वरदान:-
सर्व रूपों
से, सर्व सम्बन्धों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करने वाले सच्चे स्नेही भव
जिससे अति स्नेह होता
है, तो उस स्नेह के लिए सभी को किनारे कर सब कुछ उनके आगे अर्पण कर देते हैं, जैसे
बाप का बच्चों से स्नेह है इसलिए सदाकाल के सुखों की प्राप्ति स्नेही बच्चों को
कराते हैं, बाकी सबको मुक्तिधाम में बिठा देते हैं, ऐसे बच्चों के स्नेह का सबूत है
सर्व रूपों, सर्व संबंधों से अपना सब कुछ बाप के आगे अर्पण करना। जहाँ स्नेह है वहाँ
योग है और योग है तो सहयोग है। एक भी खजाने को मनमत से व्यर्थ नहीं गंवा सकते।
स्लोगन:-
साकार कर्म
में ब्रह्मा बाप को और अशरीरी बनने में निराकार बाप को फालो करो।
सूचनाः-
आज मास का तीसरा
रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, बाबा के सभी बच्चे सायं 6.30 से 7.30 बजे तक
विशेष अपने ईष्ट देव, ईष्ट देवी (पूज्य स्वरूप) में स्थित हो, भक्त आत्माओं की
पुकार सुनें, उपकार करें। रहमदिल दाता स्वरूप में स्थित हो उन्हें सुख शान्ति की
अंचली देने की सेवा करें।