23-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 14-09-75 मधुबन
अकाल तख्त-नशीन और महाकाल-मूर्त्त बन समेटने की शक्ति का प्रयोग करो
अपने को हर परिस्थिति से पार करने वाले, शक्तिशाली स्थिति में अनुभव करते हो? शक्तिशाली परिस्थितियों को मास्टर सर्व-शक्तिवान् स्थिति वाले ही सहज पार कर सकते है। दिन-प्रतिदिन प्रकृति द्वारा विकराल रूप से परिस्थितियाँ दिखाई देती जायेंगी। अब तक यह साधारण परिस्थितियाँ हैं। विकराल रूप तो प्रकृति अब धारण करेगी जिसमे विशेष आपदाओं का वार अचानक ही होगा। अभी तो थोड़ा समय पहले मालूम पड़ जाता है। लेकिन प्रकृति का विकराल रूप क्या होगा? एक ही समय प्रकृति के सभी तत्व साथसाथ और अचानक वार करेंगे। किसी भी प्रकार के प्रकृति के साधन बचाव के काम के नहीं रहेगे और ही साधन समस्या का रूप बनेंगे। ऐसे समय पर प्रकृति के विकराल रूप का सामना करने के लिये किस बात की आवश्यकता होगी? अपने अकाल-तख्त नशीन अकालमूर्त बनने से महाकाल बाप के साथ-साथ ‘मास्टर महाकाल’ स्वरूप में स्थित होंगे तब ही सामना कर सकेंगे। महाविनाश देखने के लिये मास्टर महाकाल बनना पड़ेगा। मास्टर महाकाल बनने की सहज विधि कौन-सी है? अकालमूर्त्त बनने की विधि है -- हर समय अकाल-तख्त नशीन रहना। जरा-सा भी देहभान होगा, तो अकाले मृत्यु के समान अचानक के वार में हार खिला देगा!
जैसे प्रकृति के पाँच तत्व विकराल रूप को धारण करेंगे, वैसे ही पाँच विकार भी अपना शक्तिशाली रूप धारण कर अन्तिम वार अति सूक्ष्म रूप में ट्रायल करेंगे अर्थात् माया और प्रकृति दोनों ही अपना फुल फोर्स का अन्तिम दाव लगायेंगे। जैसे किसी भी स्थूल युद्ध में भी अन्तिम दृश्य ह्रास पैदा करने वाला होता है और हिम्मत बढ़ाने वाला भी होता है, ऐसे ही कमज़ोर आत्माओं के लिये भी हृस पैदा करने वाला दृश्य होगा - मास्टर सर्वशक्तिवान् आत्माओं के लिये वह हिम्मत और हुल्लास देने वाला दृश्य होगा।
ऐसे समय में जैसी स्थिति सुनाई उसके लिये विशेष कौनसी शक्ति की आवश्यकता होगी? सेकेण्ड के हार-जीत के खेल में कौन-सी शक्ति चाहिए? ऐसे समय में समेटने की शक्ति आवश्यक है। जो अपने देह-अभिमान के संकल्प को, देह की दुनिया की परिस्थितियों के संकल्प को, क्या होगा? - इस हलचल के संकल्प को भी समेटना है। शरीर और शरीर के सर्व सम्पर्क की वस्तुओं को भी वा अपनी आवश्यकताओं के साधनों की प्राप्ति के संकल्प को भी समेटना है। घर जाने के संकल्प के सिवाय अन्य किसी संकल्प का विस्तार न हो - बस यही संकल्प हो कि अब अपने घर गया कि गया। शरीर का कोई भी सम्बन्ध व सम्पर्क नीचे न ला सके। जैसे इस समय साक्षात्कार में जाने वाले साक्षात्कार के आधार पर अनुभव करते हैं कि मैं आत्मा इस आकाश तत्व से भी पार उड़ती हुई जा रही हूँ, ऐसे ही ज्ञानी एवं योगी आत्मायें ऐसा अनुभव करेंगी। उस समय ट्रान्स की मदद नहीं मिलेगी। ज्ञान और योग का आधार चाहिए। इसके लिये अब से अकाल-तख्त-नशीन होने का अभ्यास चाहिए। जब चाहे अशरीरीपन का अनुभव कर सकें, बुद्धियोग द्वारा जब चाहे तब शरीर के आधार में आयें। ‘‘अशरीरी भव!’’ का वरदान अपने कार्य में अब से लगाओ।
ऐसे समय में श्रीमत कैसे लेंगे? टेलीफोन व टेलीग्राम से वायरलेस (बिना तार के विद्युत-चुम्बकीय तरंगों द्वारा समाचार भेजने का यंत्र) सेट है- चाहिये तो वायरलेस लेकिन सेट है? वायरलेस की सेटिंग कैसे होगी? बिल्कुल वाइसलेस (पाप-रहित) वाइसलेस बनना ही वायरलेस सेट की सेटिंग है। जरा अंश के भी अंश-मात्र विकार, वायरलेस के सेट को बेकार कर देगा। इसलिये महीन रूप से स्वयं के स्वयं ही चेकर बनो। तब ही प्रकृति और पाँच विकारों की अन्तिम विदाई के वार को विजयी बन सामना कर सकेंगे। यही प्रकृति वार करने के बजाय बधाई के नजारे सामने लायेगी। चारों ओर जयज यकार की शहनाइयाँ बजायगी। और बापदादा के विजय माला के मणके विश्व के बीच प्रसिद्ध होंगे। सारा विश्व ‘‘अमर भव!’’ का नारा लगायेगा। ऐसे समय के लिये तैयार हो? अथवा समय आपको तैयार करेगा कि आप समय का आह्वान करेंगे? समय पर जागने वाले को क्या टाइटल देते हैं? समय पर कौन जागा? अगर समय पर जागेंगे या यह सोचेंगे कि समय तैयार कर ही देगा या समय पर हो ही जायेगा तो ब्राह्मण वंश की बजाय क्षत्रिय वंश के हो जायेंगे। इसलिये यह आधार भी नहीं लेना। समझा?
प्रश्न करते हैं कि अब आगे क्या होने वाला है - विनाश होगा या नहीं होगा? विनाश ज्वाला प्रकट करने वाले इस हलचल में होंगे तो विनाश के निमित्त बनी हुई विनाशकारी आत्माओं के बने हुए प्लैन में भी हलचल हो जाती है। जैसे निमित्त बनी हुई आत्मायें सोचती हैं कि होगा या नहीं होगा - अब होगा या कब होगा? वैसे ही विनाशकारी आत्मायें इसी हलचल में है अब करे या कब करें, करें या न करें? जैसे यादगार चित्र कलियुगी पर्वत को अंगुली देने का है, वैसे ही विनाश कराने के निमित्त बनी हुई सर्व आत्माओं के अन्दर यह संकल्प दृढ हो कि होना ही है। यह संकल्प रूपी अंगुली जब तक सभी की नहीं हुई है, तब तक विनाश का कार्य भी रूका हुआ है। इसी अंगुली से ही कलियुगी पर्वत खत्म होने वाला है। अच्छा।
ऐसे विकराल रूप को, मास्टर महाकाल स्थिति से सामना करने वाले, सदा अकाल तख्त-नशीन, प्रकृति को अधीन करने वाले, बाप की सर्व प्राप्ति के अधिकारी बच्चों को बापदादा की याद-प्यार और नमस्ते।
23-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 18-09-75 मधुबन
माया के चक्करों से परे, स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में छत्रधारी
आज बापदादा सब ब्राह्मण बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी है। वर्तमान चक्रधारी और भविष्य में छत्रधारी। चक्रधारी नहीं तो छत्रधारी भी नहीं। जिन बच्चों का इस संगम युग का यह थोड़ा-सा अमूल्य समय, निरन्तर सदाकाल चक्र चलता रहता है अर्थात् अविनाशी चक्रधारी हैं, वही आत्मायें सदाकाल छत्रधारी बन सकती हैं। चक्रधारी बनने वाली आत्मा सदा माया अधिकारी होगी-माया अधिकारी आत्मायें ही बाप के बेहद वर्से की अधिकारी बनती हैं - अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी बनती हैं। सदैव चक्र और छत्र दिखाई देता है?
चक्रधारी आत्मा की निशानी क्या दिखाई देगी? अपनी निशानी आप सबने देखी है? चक्रधारी अब भी लाइट के छत्रधारी दिखाई देंगे। चक्र की निशानी लाईट का चक्र दिखाई देगा। ऐसा चक्रधारी सदैव माया के अनेक प्रकार के चक्रों से मुक्त होगा। जैसे अपनी देह की स्मृति के अनेक व्यर्थ संकल्पों के चक्र से, लौकिक और अलौकिक सम्बन्धों के चक्र से, अपने अनेक जन्मों के स्वभाव और संस्कारों के चक्र से और प्रकृति के अनेक प्रकार के आकर्षण के चक्र से वह सदैव मुक्त होगा। सिवाय स्वदर्शन चक्र के वह और कोई चक्र में आ नहीं सकेगा। अन्य आत्माओं को भी बाप से प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा अनेक चक्करों से सहज ही छुड़ा देगा।
माया के अनेक प्रकार के चक्करों की निशानी क्या होगी? जैसे चक्रधारी आत्मा लाइट के ताजधारी होंगी और बाप के वर्से की अधिकारी होंगी वैसे माया के अनेक प्रकार के चक्कर में आने वाले की निशानी क्या होगी? जैसे उनके सिर पर लाईट का ताज है, वैसे उनके सिर पर अनेक प्रकार के विघ्नों का बोझ होगा। ताज नहीं। सदैव किसी-न-किसी प्रकार का बोझ उनके सिर पर अर्थात् बुद्धि में महसूस होगा। ऐसी आत्मा सदैव कर्जदार और मर्जदार होगी - उनके मस्तक पर, मुख पर, सदैव क्वेश्चन मार्क होंगे। हर बात में क्यों, क्या और कैसे, यह क्वेश्चन्स होंगे। एक सेकेण्ड भी बुद्धि एकाग्र अर्थात् फुलस्टॉप में नहीं होगी। फुलस्टॉप की निशानी बिन्दी (.) होती है। अर्थात् मन्सा में भी बिन्दु स्वरूप की स्थिति नहीं होगी। वाचा और कर्मणा में भी बीती सो बीती, नाथिंग न्यू, जो होता है वह कल्याणकारी है, ऐसा फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी लगानी नहीं आयेगी। क्वेश्चन मार्क की निशानी देखने में भी टेढ़ी आती है फुलस्टॉप लिखना सहज है - फुलस्टॉप लिखने से क्वेश्चन मार्क लिखना जरा मुश्किल होता है। तो अनेक प्रकार के क्वेश्चन करना, चाहे स्वयं से अथवा दूसरों से या बाप से - यही निशानी है कि यह आत्मा स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी नहीं।
ऐसी आत्मा हर संकल्प में सदा स्वयं से भी क्वेश्चन करती रहेगी कि क्या मैं सफलता मूर्त्त बन सकती हूँ? मैं सर्व के सम्पर्क में सफलता प्राप्त कर समीप आत्मा बनूँगी? मैं सर्व के स्वभाव-संस्कारों में चल सकूँगी? सर्व को सन्तुष्ट कर सकूँगी? ऐसे अनेक प्रकार के क्वेश्चन स्वयं के प्रति भी होंगे और अन्य के प्रति भी होंगे। यह मेरे से ऐसे क्यों चलते, मुझे विशेष सहयोग क्यों नहीं मिलता - मेरा नाम, मेरा मान क्यों नहीं होता? इसी प्रकार के अन्य के प्रति क्वेश्चन होंगे। ऐसे ही बाप के प्रति भी क्वेश्चन होंगे। जब बाप सर्व शक्तिवान् है तो मेरी बुद्धि को क्यों नहीं पलटाते? नजर से निहाल करने वाले मेरी तरफ नजर क्यों नहीं रखते? जबकि बाप है तो जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ, उनकी ही हूँ, उनकी ज़िम्मेवारी है, मुझे पार कराना - जब दाता है तो मैं जो चाहती हूँ वह क्यों नहीं देता? त्रिकालदर्शी है, मेरे तीनों कालों को जानता है, तो मुझे स्वयं ही अपनी शक्ति से श्रेष्ठ पद क्यों नहीं दिलाता? ऐसी मीठी-मीठी शिकायतें बाप के आगे रखते हैं। एक तरफ जन्म-जन्म का बोझ, दूसरी तरफ बाप के बच्चे होने के नाते, बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व अधिकार का रिटर्न करने का फर्ज पालन न करने के कारण अथार्त् अपना फर्ज न पालन करने के कारण फर्ज के बजाय कर्ज बन जाता है। कर्ज का बोझ आत्मा की सर्व कमजोरियों के मर्ज के रूप ले लेता है। ऐसे डबल बोझ वाले स्वदर्शन चक्रधारी कैसे बन सकेंगे?
एक तो है चक्रधारी, दूसरे हैं बोझदारी। ऐसे बोझ वाली आत्मायें डबल लाइटधारी कैसे बनेंगी? इसलिये उनकी बार-बार एक ही आवाज निकलती है, कि अनुभव नहीं होता। सुनते भी रहते, चलते भी रहते लेकिन प्राप्ति की मंज़िल नजर नहीं आती है। बड़ा मुश्किल है - ऐसी आवाज बाप सुने और ऐसे बच्चों को देखे तो बाप क्या करेंगे? मुस्करायेंगे और क्या करेंगे? फिर भी रहमदिल बाप के सम्बन्ध के कारण बार-बार हिम्मत और उल्लास दिलाते रहते हैं कि तुम ही बच्चों ने अनेक बार विजय प्राप्त की है - हिम्मत आपकी, मदद बाप की। फिर भी चलते चलो। रूको नहीं। कल्प पहले मुआफिक फिर से विजयी बन जाओ। सिर्फ एक सेकेण्ड भी सच्चे दिलसे, सर्व सम्बन्धों से याद करो तो उस एक सेकेण्ड में मिलने की अनुभूति व प्राप्ति सारे दिन में बार-बार सब तरफ से दूर कर बाप तरफ आकर्षित करती रहेगी। भले कितने भी निर्बल हो - लेकिन एक सेकेण्ड की याद इतना तो कर सकते हैं? ऐसी निर्बल आत्माओं को एक सेकेण्ड की याद रखने की हिम्मत के रिटर्न (बदले) में बाप हजार गुना मददगार बनेंगे। इससे सहज और क्या करेंगे? या आपकी तरफ से योग भी बाप ही लगायें? नाज़ुक बच्चे हैं न? नाज़ुक बच्चे बाप से भी नाज करते हैं, इसलिए नाज-युक्त नहीं बनो-लेकिन राज-युक्त और युक्ति-युक्त बनो। समझा? अच्छा।
ऐसे चक्रधारी सो छत्रधारी स्वयं को और सब को निर्बल से महा-बलवान बनाने वाले, सर्व कमज़ोरियों की सेकेण्ड में संकल्प में बलि देने वाले, ऐसे महाबलि चढ़ाने वाले महाबलवान अर्थात् मास्टर सर्वशक्तियों को शस्त्र समान कर्त्तव्य में लाने वाले ऐसे कर्मयोगी, सहज योगी आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- विश्व से अंधकार को मिटाकर रोशनी देने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव
मास्टर ज्ञान सूर्य वह हैं जो विश्व से अंधकार को मिटाकर रोशनी देने वाले हैं। वह स्वयं भी प्रकाश स्वरूप, लाइट-माइट रूप हैं और दूसरों को भी लाइट-माइट देने वाले हैं। जहाँ सदा रोशनी होती है वहाँ अंधकार का सवाल ही नहीं, अंधकार हो ही नहीं सकता। जो विश्व को रोशनी देने वाले हैं वह स्वयं अंधकार में नहीं रह सकते। सम्पूर्ण पवित्रता अर्थात् रोशनी। उनके पास अंधकार अर्थात् विकारों का अंश भी नहीं रह सकता।
स्लोगन:- स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध-सम्पर्क में लाइट रहना ही मिलनसार बनना है।