ओम् शान्ति।
बच्चों ने किसकी महिमा सुनी? ब्रह्मा की, सरस्वती की वा शिव की? जब कहते हैं
तुम्हारे सिवाए और कोई नहीं तो दूसरे फिर किसकी महिमा की जा सकती है। भल ब्राह्मण
चोटी हैं परन्तु उनके ऊपर शिवबाबा है ना। उनके सिवाए और कोई की महिमा नहीं है। अब
बहुतों को पीस प्राइज़ भी देते हैं। इस दुनिया के समाचार भी सुनने चाहिए। तुमको नई
दुनिया के समाचार बुद्धि में हैं। अब हम जाते हैं नई दुनिया में। तो तुम बच्चे जानते
हो कि एक के सिवाए और कोई की महिमा नहीं है। बाप कहते हैं मैं हूँ तुम पतितों को
पावन बनाने वाला। मैं नहीं होता तो तुम ब्राह्मण थोड़ेही होते। तुम ब्राह्मण अब सीख
रहे हो, बाप से वर्सा पा रहे हो। शूद्र तो वर्सा पा न सकें। तो बलिहारी एक बाप की
है। भल रूहानी सेवाधारी ब्राह्मणों का भी गायन है। देवी-देवताओं का भी गायन है।
परन्तु अगर शिवबाबा न हो तो इनका भी गायन कहाँ से आये! गाते भी हैं मेरा तो एक
शिवबाबा, दूसरा न कोई। वर्सा भी उनसे ही मिलता है। बाबा कहता है – मुझे कोई पीस
प्राइज़ नहीं मिलती है। हम तो निष्काम सेवाधारी हैं। हमको क्या मैडल देंगे? क्या
मुझे कोई मैडल देंगे! मैं प्राइज़ क्या करूँगा! कोई सोने आदि का मैडल बनाकर देते
हैं वा अखबार में डालते हैं। मेरे लिए क्या करेंगे? बच्चे मैं तो बाप हूँ। बाप का
फ़र्ज है – पतितों को पावन बनाना। ड्रामा अनुसार मुझे सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति देनी
है। सेकण्ड में जीवनमुक्ति? जैसे जनक का नाम है वह फिर अनु जनक बना। ऐसे यहाँ भी
नाम है। जैसे कोई का लक्ष्मी नाम है, अब वह जीवनबंध में है और तुम अब सच्ची लक्ष्मी,
सच्चे नारायण बन रहे हो। भारत में ही ऐसे नाम बहुतों के हैं और धर्म वालों के
ऐसे-ऐसे नाम नहीं सुनेंगे। भारत में क्यों रखते हैं? क्योंकि यह बड़ों के यादगार
हैं। नहीं तो फ़र्क देखो कितना है। यहाँ के लक्ष्मी-नारायण नाम वाले मन्दिरों में
जाकर सतयुगी लक्ष्मी-नारायण के आगे माथा टेकते हैं, पूजा करते हैं। उन्हों को कहेंगे
श्री लक्ष्मी, श्री नारायण। अपने को श्री नहीं कह सकते हैं। पतित श्रेष्ठ कैसे हो
सकता है। वह कहेंगे हम विकारी पतित हैं, यह निर्विकारी पावन हैं। हैं तो वह भी
मनुष्य। वह पास्ट होकर गये हैं। यह सब बातें और कोई नहीं जानते। तुमको बाप बैठ
समझाते हैं और हर प्रकार के डायरेक्शन भी देते हैं। अब विराट रूप का चित्र भी जरूर
होना चाहिए। देवतायें ही फिर अन्त में आकर शूद्र बनते हैं। वैरायटी है ना। दूसरे
कोई का ऐसा विराट रूप बना हुआ नहीं है। 84 जन्म भी तुम ही लेते हो। पूज्य पुजारी भी
तुम ही बनते हो। इतने ढेर पुजारियों के लिए फिर पूज्य भी बहुत चाहिए ना। तो कितने
चित्र बैठ बनाये हैं। हनुमान को भी पूज्य बना रखा है। तो विराट रूप का चित्र भी
जरूरी है। हिसाब चाहिए ना। किस हिसाब से हम 84 जन्म लेते हैं। ऊपर में चोटी भी जरूर
देनी पड़े। विष्णु का रूप भी ठीक है क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना। ब्राह्मणों की
चोटी भी क्लीयर कर बतानी चाहिए। चित्र इतना बड़ा बनाना चाहिए जो लिखत भी आ जाए।
समझानी तुम बहुत सहज दे सकते हो। वास्तव में बाबा को प्राइज़ कुछ भी नहीं मिलती।
प्राइज़ तुमको मिलती है। प्योरिटी, पीस और प्रासपर्टी का राज्य तुम ही स्थापन करते
हो। तुम किसको भी कह सकते हो – हम यह स्थापना कर रहे हैं। हम जो इतनी सर्विस करते
हैं, उनकी प्राइज़ हमको मिलती है – विश्व की बादशाही। कितनी अच्छी समझने की बात है।
बाकी यहाँ किसको पीस प्राइज़ क्या मिलेगी? तुम लिख सकते हो कि हम प्योरिटी पीस
प्रासपर्टी 2500 वर्ष के लिए स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। परन्तु बच्चों को इतना
नशा चढ़ा हुआ नहीं है। नशा किसको चढ़ेगा? क्या शिवबाबा को? जिनको पूरा नशा चढ़ता
है, वह उस नशे से समझाते हैं। पहले तो नशा ब्रह्मा को चढ़ता है, इसलिए शिवबाबा कहते
हैं फालो फादर। तुमको भी इतना ऊंच पुरुषार्थ कर यह बनना है। यह बाबा कहते हैं हमको
बाप से शिक्षा मिल रही है। तुम भी शिवबाबा को याद करो। हम तो पुरुषार्थी हैं।
शिव-बाबा कहते हैं मेरी तो ड्युटी है पावन बनाने की, इसमें मेरी महिमा क्या करेंगे।
मुझे प्राइज़ क्या देंगे? कोई भी मेरी यह ड्युटी ले कैसे सकते। आजकल बहुतों को पीस
प्राइज़ मिलती रहती है। तो तुम राय दे सकते हो – आप पीस स्थापन कर सकेंगे क्या? पीस
स्थापन करने वाला तो एक ही बाप है। पहले चाहिए प्योरिटी। पीस तो है शान्तिधाम,
सुखधाम में। इनकारपोरियल वर्ल्ड में या कारपोरियल पैराडाइज़ में। यह भी समझाना पड़े।
पीस स्थापन करने वाला कौन है? तुम बुलाते भी हो कि आकर पावन दुनिया स्थापन करो। यह
कौन समझाते हैं? दोनों इकट्ठे हैं ना! चाहे दोनों का नाम लो, चाहे एक का नाम लो।
बच्चू बादशाह, पीरू वजीर। तुम क्या समझते हो? विचार सागर मंथन कौन करता है? शिवबाबा
करेगा या ब्रह्मा? हैं तो दोनों इकट्ठे ना। यह बातें गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने।
तुमको पता नहीं पड़ता कि कौन डायरेक्शन दे रहा है चित्र बनाने और समझाने के लिए। हम
जो रूहानी सर्विस कर रहे हैं वह भी ड्रामानुसार। पढ़ने और पढ़ाने वाले कभी भी छिपे
नहीं रह सकते। हाँ, तूफान तो जरूर आयेंगे। यह 5 विकार ही तंग करते हैं। रावणराज्य
में बुद्धि रांग काम ही कराती है क्योंकि बुद्धि को ताला लग जाता है। माया ने सबको
ताला लगा दिया है। ज्ञान का तीसरा नेत्र अभी मिला है।
बाप बैठ समझाते हैं तुम भारतवासी क्या बन पड़े हो। यह ब्रह्मा भी समझते हैं हम
क्या थे फिर 84 जन्मों के बाद क्या बनते हैं। भारत में 84 जन्म इन लक्ष्मी-नारायण
के ही गिनेंगे। बाप भी यहाँ ही आये हैं। शिव जयन्ती भी भारत में ही होती है। बाबा
कहते हैं मैं पतित शरीर में प्रवेश कर पतित दुनिया में ही आता हूँ। नम्बरवन पावन
फिर नम्बरवन पतित। इस समय पतित तो सभी हैं ना। सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में सारा
दिन यही नॉलेज रहती है। बाप कहते हैं – गृहस्थ व्यवहार में रहते एक तो पवित्र रहो
और बाबा को याद करो। सतसंग भी सुबह और शाम को होते हैं। दिन में तो व्यवहार में रहते
हैं, भक्ति करते हैं। कोई किसकी पूजा करते, कोई किसकी। वास्तव में स्त्री को तो कहते
हैं पति ही तुम्हारा सब कुछ है फिर उनको तो किसकी पूजा करनी नहीं है। पति को ही गुरू
ईश्वर समझते हैं। परन्तु यह विकारी के लिए थोड़ेही कहा जा सकता है। पतियों का पति,
गुरूओं का गुरू तो एक ही निराकार परमपिता परमात्मा है। तुम सब हो ब्राइड्स, एक ही
ब्राइडग्रुम है। वह फिर पति को समझ लेते हैं। वास्तव में बाप तो आकर माताओं का
मर्तबा ऊंच करते हैं। गाया भी जाता है पहले लक्ष्मी, पीछे नारायण। तो लक्ष्मी की
इज्जत जास्ती ठहरी। तो स्वर्ग का मालिक बनने का कितना नशा होना चाहिए, कल्प पहले भी
शिव जयन्ती मनाई थी। बाबा आया था स्वर्ग की स्थापना की थी। बाप आकर राजयोग सिखलाते
हैं। हम राज्य भी लेते हैं और पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है। और कोई की बुद्धि
में यह बातें हो न सकें। बुद्धि में यह सब बातें धारण रहें तो खुशनुम: रहें। हिम्मत
और प्रिट चाहिए। इसमें बोलने की प्रैक्टिस करनी होती है, बैरिस्टर लोग भी प्रैक्टिस
करते हैं तो अच्छे बन जाते हैं। नम्बरवार तो होते हैं। फर्स्ट क्लास, सेकेण्ड क्लास,
थर्ड क्लास, फोर्थ क्लास तो होते ही हैं। बच्चों की अवस्थायें भी ऐसी हैं। बच्चों
में तो बहुत मिठास चाहिए। मधुरता और स्पष्ट शब्दों में बात करने से प्रभाव पड़ेगा।
तो पीस स्थापन करने वाला एक ही बाप है, बुलाते भी उनको हैं। बाप कहते हैं मुझे
प्राइज़ क्या देंगे! मैं तो तुम बच्चों को प्राइज़ देता हूँ। तुम पीस, प्रासपर्टी
स्थापन करते हो रीयल। परन्तु तुम हो गुप्त। आगे चलकर प्रभाव निकलता रहेगा। समझते भी
हैं बी.के. बड़ी कमाल करते हैं। दिन-प्रतिदिन सुधरते भी जायेंगे। कोई के पास धन
जास्ती होता है तो मकान भी अच्छे-अच्छे मार्बल के बनाते हैं। तुम भी जास्ती सीखते
जायेंगे तो फिर यह चित्र आदि भी आलीशान बनते जायेंगे। हर बात में टाइम लगता है। यह
तो बहुत बड़ा इम्तहान है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। बस और कोई से हमारा
तैलुक ही नहीं। तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनें, वह युक्ति बाप बैठ बताते हैं।
गीता में भी है – मनमनाभव। परन्तु इनका अर्थ नहीं समझते। अब बाप सम्मुख बैठ समझाते
हैं। बच्चे जानते हैं – आधाकल्प है भक्ति, आधाकल्प है ज्ञान। सतयुग त्रेता में भक्ति
होती नहीं। ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। मनुष्य का ही दिन और रात होता है। यह है
बेहद की बात। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। दिन में देखो लक्ष्मी-नारायण की
राजधानी है ना। अभी है रात। यह पहेली कितनी अच्छी है। ब्रह्मा बनने में 5 हजार वर्ष
लगते हैं। 84 जन्म लेते हैं ना। तुम कहेंगे हम सो देवता बनते हैं। यह तो बुद्धि में
अच्छी रीति याद करना चाहिए। सृष्टि चक्र बुद्धि में रहना चाहिए। इन लक्ष्मी-नारायण
के चित्र को देख बहुत खुश होना चाहिए। यह है एम आब्जेक्ट। राजयोग सीख रहे हैं – नर
से नारायण बनने के लिए। कृष्ण सतयुग का प्रिन्स था। वहाँ थोड़ेही बैठ गीता सुनायेंगे।
कितनी भूल है। यह भूल बाप के बिगर कोई बता न सके। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो और
तो सब विषय सागर में गोते खाते रहते हैं। बहुतों को तो माया एकदम गले से पकड़ गटर
में डाल देती है। बाप कहते हैं – गटर में मत गिरो। नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा।
पछताना न पड़े इसलिए बाप समझाते हैं। कईयों को तो बहुत जोश आता है, झट मान लेते
हैं। कई लिखते हैं बाबा पहले से ही सगाई की हुई है। अब क्या करें? बाबा कहते हैं –
तुम कमाल करके दिखाओ। उनको पहले से ही बोल दो। तुमको पति की आज्ञा पर चलना पड़ेगा।
यह गैरन्टी करनी होगी कि हम पवित्र रहेंगी। पहले से ही लिख दे, जो हम कहेंगे वह
मानेंगी। लिखाकर लो फिर कोई परवाह नहीं। कन्या तो लिखवा न सके। उनको पुरुषार्थ करना
चाहिए हमको शादी नहीं करनी है। कन्याओं को तो बहुत खबरदार रहना है। अच्छा।
बाबा कहते हैं तुमने मुझे क्या समझा, जो कहते हो – हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ,
क्या मेरा यही धन्धा है! बाप बच्चों से हॅसीकुड़ी करते हैं। तुम बुलाते हो बाबा हम
पतित हो गये हैं, आकर पावन बनाओ। बाबा पराये देश में आते हैं। यह पतित दुनिया है
ना! मुझे इनमें प्रवेश होकर पावन बनाना है। यह तो फिर आकर पावन शरीर लेंगे। मेरी
तकदीर में तो यह भी नहीं है। मुझे पतित शरीर में ही आना पड़ता है। यह नॉलेज सुनकर
बहुतों को खुशी बहुत होती है। यह कितनी भारी नॉलेज है। तो पुरुषार्थ भी पूरा करना
चाहिए। अच्छे पुरुषार्थियों के नाम तो बाबा गायन करते हैं। मनुष्य तो मौज उड़ाते
हैं। समझते हैं हम जैसे स्वर्ग में बैठे हैं। यहाँ तो सहन करना पड़ता है। जो बाप
खिलावे, पिलावे, जहाँ भी बिठावे। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) याद शिवबाबा को करना है, फालो ब्रह्मा बाबा को करना है। ब्रह्मा बाप
के समान ऊंच पुरूषार्थ करना है। ईश्वरीय नशे में रहना है।
2) तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है, बाकी किसी बात की परवाह नहीं करनी है।
कदम-कदम श्रीमत पर चलना है।