ओम् शान्ति।
बाप बच्चों को समझाते हैं। कौन सा बाप? वास्तव में दोनों बाप हैं। एक रूहानी, जिसको
बाबा कहा जाता, दूसरा जिस्मानी जिसको दादा कहा जाता। यह तो सभी सेन्टर्स के बच्चे
जानते हैं कि हम बापदादा के बच्चे हैं। रूहानी बाप शिव है। वह है सभी आत्माओं का
बाप और ब्रह्मा दादा है सारे मनुष्य सिजरे का हेड। उनके तुम आकर बच्चे बने हो। उनमें
भी कोई तो पक्के सगे हैं, कोई फिर लगे भी हैं। मम्मा बाबा तो दोनों ही कहते हैं
परन्तु लगे बलि नहीं चढ़ सकते। बलि न चढ़ने वालों को इतनी ताकत नहीं मिल सकती
अर्थात् अपने बाप को तन-मन-धन का ट्रस्टी नहीं बना सकते। श्रेष्ठ बनने के लिए उनकी
श्रीमत पर नहीं चल सकते। सगे बच्चों को सूक्ष्म मदद मिलती है। परन्तु वह भी बहुत
थोड़े हैं। भल सगे भी हैं परन्तु उनको भी अभी पक्के नहीं कहेंगे, जब तक रिजल्ट नहीं
निकली है। भल यहाँ रहते भी हैं, बहुत अच्छे हैं, सर्विस भी करते हैं फिर गिर भी
पड़ते हैं। यह है सारी बुद्धियोग की बात। बाबा को भूलना नहीं है। बाबा इस भारत को
बच्चों की मदद से स्वर्ग बनाते हैं। गाया हुआ भी है शिव शक्ति सेना। हरेक को अपने
से बात करनी है - बरोबर हम शिवबाबा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं। बाप से हम स्वर्ग का
वर्सा पा रहे हैं। द्वापर से लेकर हमने जो लौकिक बाप का वर्सा पाया है वह नर्क का
ही पाया है। दु:खी होते आये हैं। भक्तिमार्ग में तो है ही अन्धश्रद्धा। जब से भक्ति
शुरू हुई है तब से जो-जो वर्ष बीता हम नीचे उतरते आये। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी
थी। एक की पूजा करते थे। उसके बदले अब अनेकों की पूजा करते आये हैं। अब यह सब बातें
ऋषि, मुनि, साधु, सन्त आदि नहीं जानते कि भक्ति कब शुरू होती है। शास्त्रों में भी
है ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। भल ब्रह्मा सरस्वती ही लक्ष्मी-नारायण बनते
हैं परन्तु नाम ब्रह्मा का दिया है। ब्रह्मा के साथ बच्चे भी बहुत हैं।
लक्ष्मी-नारायण के बच्चे तो बहुत नहीं होंगे। प्रजापिता भी उनको नहीं कहेंगे। अब नई
प्रजा बन रही है। नई प्रजा होती ही है ब्राह्मणों की। ब्राह्मण ही अपने को ईश्वरीय
सन्तान समझते हैं। देवता तो नहीं समझेंगे। उनको चक्र का ही पता नहीं।
अभी तुम जानते हो हम शिवबाबा के बच्चे बने हैं। उन्होंने ही हमें 84 का चक्र
समझाया है। उनकी मदद से हम भारत को फिर से दैवी पावन राजस्थान बना रहे हैं। यह बड़ी
समझ की बात है। किसको समझाने की भी हिम्मत चाहिए। तुम हो शिव शक्ति पाण्डव सेना।
पण्डे भी हो, सबको रास्ता बताते हो। तुम्हारे बिगर रूहानी स्वीट होम का रास्ता कोई
बता न सके। वह पण्डे लोग तो करके अमरनाथ पर, कोई तीर्थ पर ले जाते हैं। तुम बी.के.
तो एकदम सभी से दूर परमधाम ले जाते हो। वह जिस्मानी गाइड हैं - धक्के खिलाने वाले।
तुम सभी को बाप के पास शान्तिधाम ले जाते हो। तो सदैव यह याद करना पड़े - हम भारत
को फिर से दैवी राजस्थान बना रहे हैं। यह तो कोई भी मानेंगे। भारत का आदि सनातन
देवी-देवता धर्म था। भारत सतयुग में बेहद का दैवी पावन राजस्थान था, फिर पावन
क्षत्रिय राजस्थान बना, फिर माया की प्रवेशता होने से आसुरी राजस्थान बन जाता है।
यहाँ भी पहले राजा रानी राज्य करते थे, परन्तु बिगर लाइट के ताज वाली राजाई चलती आई
है। दैवी राजस्थान के बाद हुआ आसुरी पतित राजस्थान, अभी तो पतित प्रजा का स्थान है,
पंचायती राजस्थान। वास्तव में इनको राजस्थान कह नहीं सकते, परन्तु नाम लगा दिया है।
राजाई तो है नहीं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र तुमको बहुत
काम आयेंगे। इन पर समझाना है, भारत ऐसा डबल सिरताज था। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य
था, छोटेपन में राधे कृष्ण थे, फिर त्रेता में रामराज्य हुआ, फिर द्वापर में माया आ
गई। यह तो बिल्कुल सहज है ना। भारत की हिस्ट्री-जॉग्राफी नटशेल में समझाते हैं।
द्वापर में ही फिर पावन राजा-रानी लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बने। देवतायें स्वयं तो
वाममार्ग में चले गये। पतित होने लग पड़े। फिर जो पावन देवतायें होकर गये हैं, उनके
मन्दिर बनाकर पूजा शुरू की। पतित ही पावन को माथा टेकते हैं। जब तक ब्रिटिश
गवर्मेन्ट का राज्य था तो राजा-रानी थे। जमींदार भी राजा रानी का लकब (टाइटल) ले
लेते थे, इससे उनका दरबार में मान होता था। अभी तो कोई राजा नहीं है। पीछे जब आपस
में लड़े हैं तब मुसलमान आदि आये हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो फिर से कलियुग का
अन्त आ गया है। विनाश सामने खड़ा है। बाप फिर से राजयोग सिखला रहे हैं। कैसे स्थापना
होती है, सो तो तुम जानते हो, फिर यह हिस्ट्री-जॉग्राफी मिट जाती है। फिर भक्ति में
वो लोग अपनी गीता बना देते हैं, उसमें बहुत फ़र्क पड़ जाता है। भक्ति के लिए उन्हों
को देवी-देवता धर्म का पुस्तक जरूर चाहिए। सो ड्रामा अनुसार गीता बना दी है। ऐसे नहीं
भक्ति मार्ग की उस गीता से कोई राजाई स्थापन करेंगे वा नर से नारायण बनेंगे।
बिल्कुल नहीं।
अब बाप समझाते हैं तुम हो गुप्त सेना। बाबा भी गुप्त है। तुमको भी गुप्त योगबल
से राजाई प्राप्त करा रहे हैं। बाहुबल से हद की राजाई मिलती है। योगबल से बेहद की
राजाई मिलती है। तुम बच्चों को दिल अन्दर यह निश्चय है कि हम अभी भारत को वही दैवी
राजस्थान बना रहे हैं। जो मेहनत करता है, उसकी मेहनत छिपी नहीं रह सकती। विनाश तो
होना ही है। गीता में भी यह बात है। पूछते हैं, इस समय की मेहनत अनुसार हमको भविष्य
में क्या पद मिलेगा? यहाँ भी कोई शरीर छोड़ता है तो संकल्प चलेगा कि यह किस पद को
प्राप्त करेगा। सो तो बाप ही जाने कि इसने किस प्रकार से तन-मन-धन की सेवा की है!
यह बच्चे नहीं जान सकते, बापदादा जाने। बताया भी जा सकता है, इस प्रकार की सेवा
तुमने की है। ज्ञान उठाया या नहीं, परन्तु मदद तो बहुत की है। जैसे मनुष्य दान करते
हैं तो समझते हैं संस्था बहुत अच्छी है। अच्छा कार्य कर रही है। परन्तु मेरे में
पावन रहने की ताकत नहीं है। मैं यज्ञ को मदद करता हूँ। तो उसका भी रिटर्न उनको मिल
जाता है। जैसे मनुष्य कालेज बनाते हैं, हॉस्पिटल बनाते हैं औरों के लिए। ऐसे नहीं
कहेंगे कि मैं बीमार पडूँ तो हॉस्पिटल में जाऊं। जो कुछ बनाते हैं दूसरों के लिए।
तो उसका फल भी मिलता है, उसको दान कहा जाता है। यहाँ फिर क्या होता है। आशीर्वाद
देते हैं तुम्हारा लोक परलोक सुहेला हो। सुखी हो। लोक और परलोक, सो तो इस संगमयुग
की बात है। यह है मृत्युलोक का जन्म और अमरलोक का जन्म, दोनों सफल हों। बरोबर
तुम्हारा अभी यह जन्म सफल हो रहा है, फिर कोई तन से कोई मन से कोई धन से सेवा करते
हैं। बहुत हैं जो ज्ञान नहीं उठा सकते हैं, कहते हैं बाबा हमारे में हिम्मत नहीं
है। बाकी मदद कर सकते हैं। तो बाप बतायेंगे कि तुम इतना धनवान बन सकते हो। कोई भी
बात हो तो पूछ सकते हो। फालो फादर करना है तो पूछना भी उनसे है, इस हालत में हम क्या
करें? श्रीमत देने वाला बाप बैठा है। उनसे पूछना है, छिपाना नहीं है। नहीं तो बीमारी
बढ़ जायेगी। कदम-कदम श्रीमत पर न चले तो रोला पड़ जायेगा। बाबा कोई दूर थोड़ेही है।
सम्मुख आकर पूछना चाहिए। ऐसे बापदादा के पास घड़ी-घड़ी आना चाहिए। वास्तव में ऐसे
मोस्ट बिलवेड बाप के साथ तो इकट्ठा रहना चाहिए। साजन को चटक जाना चाहिए, वह है
जिस्मानी, यह है रूहानी। इसमें चटकने की बात नहीं, यहाँ सबको बिठा नहीं देंगे। यह
ऐसी चीज़ है, बस सामने बैठे ही रहें, सुनते ही रहें। उनकी मत पर चलते ही रहें। परतु
बाबा कहेंगे यहाँ बैठ नहीं जाना है। गंगा नदी बनो, जाओ सर्विस पर। बच्चों का लव ऐसा
होना चाहिए - जैसे मस्ताना होता है। परन्तु फिर सर्विस भी तो करनी है। निश्चयबुद्धि
तो एकदम लटक पड़ते हैं। बच्चे लिखते हैं फलाना बहुत अच्छा निश्चयबुद्धि है। मैं
लिखता हूँ कुछ भी नहीं समझा है। अगर निश्चयबुद्धि है कि स्वर्ग का मालिक बनाने वाला
बाप आ गया है तो एक सेकेण्ड भी मिलने बिगर रह न सके। बहुत ही बच्चियाँ हैं जो तड़पती
हैं। फिर घर बैठे उनको साक्षात्कार होते हैं ब्रह्मा और कृष्ण का। निश्चय हो कि बाप
परमधाम से हमें राजधानी देने आये हैं तो फिर आकर बाबा से मिलें। ऐसे भी आते हैं फिर
समझाया जाता है कि ज्ञान गंगा बनो। प्रजा तो बहुत चाहिए। राजधानी स्थापन हो रही है।
यह चित्र समझाने लिए बहुत अच्छा है। तुम किसको भी कह सकते हो कि हम फिर से राजधानी
स्थापन कर रहे हैं। विनाश भी सामने खड़ा है। मरने से पहले बाप से वर्सा लेना है। सभी
चाहते हैं वन आलमाइटी गवर्मेन्ट हो। अब सब मिलकर एक थोड़ेही बन सकते हैं। एक राज्य
था जरूर, जिसका गायन भी है। सतयुग का नाम बहुत बाला है। फिर से उसकी स्थापना हो रही
है। कोई इन बातों को झट मानेंगे, कोई नहीं मानेंगे। पाँच हजार वर्ष पहले
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर इन राजाओं का राज्य हो गया। राजायें भी अब पतित हो
गये हैं। अब फिर पावन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा। तुम्हारे लिए तो समझाना बहुत
ही सहज है। हम दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, शिवबाबा की श्रीमत से और उनकी मदद
से। शिवबाबा से शक्ति भी मिलती है। यह नशा रहना चाहिए। तुम वारियर्स हो। मन्दिरों
में भी तुम जाकर समझा सकते हो तो स्वर्ग की स्थापना जरूर रचयिता द्वारा ही होगी ना।
तुम जानते हो बेहद का बाप एक है। तुम्हारे सम्मुख तुमको ज्ञान श्रृंगार कर रहे हैं।
राजयोग सिखला रहे हैं। वो गीता सुनाने वाले कभी राजयोग सिखला न सकें। यह अभी तुम
बच्चों की बुद्धि में नशा चढ़ाया जाता है। बाबा आया है स्वर्ग की स्थापना करने।
स्वर्ग में है ही पावन राजस्थान। मनुष्य तो लक्ष्मी-नारायण के राज्य को ही भूल गये
हैं। अब बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं, तुम कोई भी गीता पाठशाला आदि में चले जाओ। सारी
हिस्ट्री-जॉग्राफी अथवा 84 जन्मों का समाचार कोई सुना न सके। लक्ष्मी-नारायण के
चित्र साथ राधे कृष्ण का भी हो तो समझाने में सहज होगा। यह है करेक्ट चित्र। लिखत
भी उनकी अच्छी हो। तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र याद है। साथ में चक्र को समझाने
वाला भी याद है। बाकी निरन्तर याद के अभ्यास में मेहनत बहुत है। निरन्तर याद ऐसी
पक्की हो जो अन्त में कोई किचड़पट्टी याद न आये। बाप को कभी भूलना नहीं है। छोटे
बच्चे बाप को बहुत याद करते हैं फिर बच्चा बड़ा होता है तो धन को याद करते हैं।
तुमको भी धन मिलता है। जो अच्छी रीति धारण कर फिर दान करना चाहिए। पूरा
फ्लेन्थ्रोफिस्ट बनना है। मैं सम्मुख आकर राजयोग सिखाता हूँ। वह गीता तो जन्म
जन्मान्तर पढ़ी, कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई। यहाँ तो तुमको नर से नारायण बनाने लिए
यह शिक्षा दे रहा हूँ। वह है भक्ति मार्ग। यहाँ भी कोटों में कोई निकलेगा जो
तुम्हारे दैवी घराने का होगा। फिर ब्राह्मण बनने जरूर आयेंगे, फिर चाहे राजा रानी
बनें, चाहे प्रजा। उसमें भी कई तो सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो जाते हैं। जो बच्चा
बन फिर फारकती देते हैं, उन पर बहुत बड़ा दण्ड है। कड़ी सजा है। इस समय ऐसा कोई कह
नहीं सकता कि हम निरन्तर याद करते हैं। अगर कोई कहे तो चार्ट लिखकर भेजे तो बाबा सब
समझ जायेंगे। भारत की सेवा में ही तन-मन-धन लगा रहे हैं। लक्ष्मी-नारायण का चित्र
हमेशा पाकेट में पड़ा हो। बच्चों को बहुत नशा होना चाहिए।
सोशल वर्कर्स तुम्हारे से पूछते हैं तुम भारत की क्या सेवा कर रहे हो? बोलो, हम
अपने तन-मन-धन से भारत को दैवी राजस्थान बना रहे हैं। ऐसी सेवा और कोई कर नहीं सकता।
तुम जितनी सर्विस करेंगे उतनी बुद्धि रिफाइन होती जायेगी। ऐसे भी बहुत बच्चे हैं जो
ठीक रीति नहीं समझा सकते हैं तो नाम बदनाम होता है। कोई-कोई में क्रोध का भूत भी है
तो यह भी डिस्ट्रेक्टिव काम किया ना। उनको कहेंगे तुम अपना मुँह तो देखो। तुम
लक्ष्मी या नारायण को वरने लायक बने हो? ऐसे जो आबरू (इज्जत) गँवाने वाले बच्चे
हैं, वह क्या पद पायेंगे। वह प्यादों की लाइन में आ जाते हैं। तुम भी सेना हो ना।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अविनाशी ज्ञान रत्नों का महादानी बनना है। तन-मन-धन से भारत को
स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है।
2) कोई भी डिस्ट्रेक्टिव (विनाशकारी) कार्य नहीं करना है। निरन्तर याद के अभ्यास
में रहना है।