11-11-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
1992 "बापदादा" मधुबन
सदा सहज पुरूषार्थ की
विधि क्या है? सहज पुरूषार्थ का अनुभव है? क्या विधि अपनाई जो सहज हो गया? ‘एक’ को
याद करना-यह है सहज विधि। क्योंकि ‘अनेकों’ को याद करना मुश्किल होता है। लेकिन एक
को याद करना तो सहज है। सहजयोग का अर्थ ही है-’एक’ को याद करना। एक बाप, दूसरा न
कोई। ऐसा है? या बाप के साथ और भी कोई है? कभी-कभी देह-अभिमान में आ जाते हो। जब
‘मेरा शरीर’ है तो याद आता है, लेकिन मेरा है ही नहीं तो याद नहीं आता। तो तन-मन-धन
तेरा है या मेरा है? जब मेरा है ही नहीं तो याद क्या आता? देहभान में आना,
बॉडी-कॉन्सेस में आना अर्थात् मेरा शरीर है। लेकिन सदैव यह याद रखो कि मेरा नहीं,
बाप का है, सेवा अर्थ बाप ने ट्रस्टी बनाया है। नहीं तो सेवा कैसे करेंगे? शरीर तो
चाहिए ना। लेकिन मेरा नहीं, ट्रस्टी हैं। मेरापन है तो गृहस्थी और तेरापन है तो
ट्रस्टी। ट्रस्टी अर्थात् डबल लाइट। गृहस्थी को मेरे-मेरे का कितना बोझ होता है-मेरा
घर, मेरे बच्चे, मेरे पोत्रे.....! लम्बी लिस्ट होती है। यह बोझ है।
ट्रस्टी बन गये तो
बोझ खत्म। ऐसे बने हो? या बदलते रहते हो? जब है ही कोई नहीं, एक बाप दूसरा न कोई-तो
क्या याद आयेगा? सहज विधि क्या हुई? ‘एक’ को याद करना, ‘एक’ में सब-कुछ अनुभव करना।
इसलिए कहते हो ना कि बाप ही संसार है। संसार में सब-कुछ होता है ना। जब संसार बाप
हो गया तो ‘एक’ की याद सहज हो गई ना। मेहनत का काम तो नहीं है ना। आधा कल्प मेहनत
की। ढूंढ़ना, भटकना-यही किया ना। तो मेहनत करनी पड़ी ना। अभी बापदादा मेहनत से छुड़ाते
हैं। अगर कभी किसी को भी मेहनत करनी पड़ती है, तो उसका कारण है अपनी कमजोरी। कमजोर
को सहज काम भी मुश्किल लगता है और जो बहादुर होता है उसको मुश्किल काम भी सहज लगता
है। कमजोरी मुश्किल बना देती है, है सहज। तो बाप क्या चाहते हैं? सदा सहजयोगी बनकर
चलो।
सदा सहजयोगी अर्थात्
सदा खुश रहने वाले। सहजयोगी जीवन अर्थात् ब्राह्मण जीवन। पक्के ब्राह्मण हो ना। सबसे
भाग्यवान आत्माए हैं-यह खुशी रहती है? आप जैसा खुश और कोई संसार में होगा? तो सदा
क्या गीत गाते हो? ‘‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!’’-यह गीत गाना सभी को आता है। क्योंकि
मन का गीत है ना। तो कोई भी गा सकता है और सदा गा सकता है। ‘‘वाह मेरा भाग्य!’’ कहने
से भाग्यविधाता बाप स्वत: ही याद आता है। तो भाग्य और भाग्यविधाता-इसी को ही कहा
जाता है सहज याद। सहज-सहज करते मंजिल पर पहुँच जायेंगे।
अभी आन्ध्रा वालों को
संख्या बढ़ानी है। हमजिन्स को जगायेंगे तो दुआए मिलेंगी। भटकती हुई आत्माओं को रास्ता
दिखाना-यह बड़ा पुण्य का काम है। आन्ध्रा की विशेषता क्या है? एज्युकेटेड (Educated-शिक्षित)
लोग बहुत होते हैं। तो ऐसे एज्युकेटेड लोग निकालो जो सेवा में आगे बढ़ें। ऐसा कोई
आन्ध्रा में निमित्त बनाओ जो अनेकों को जगाए।
2 - परमात्म-प्यार
प्राप्त करना है तो न्यारे बनो
सदा अपने को रूहानी
रूहे गुलाब समझते हो? रूहानी रूहे गुलाब अर्थात् सदा रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न
आत्मा। जो रूहे गुलाब होता है उसका काम है सदा खुशबू देना, खुशबू फैलाना। गुलाब का
पुष्प जितना खुशबूदार होता है उतने कांटे भी होते हैं, लेकिन कांटों के प्रभाव में
नहीं आता। कभी कांटों के कारण गुलाब का पुष्प बिगड़ नहीं जाता है, सदा कायम रहता है।
कांटे हैं लेकिन कांटों से न्यारा और सभी को प्यारा लगता है। स्वयं न्यारा है तब
प्यारा लगता है। अगर खुद ही कांटों के प्रभाव में आ जाए तो उसे कोई हाथ भी नहीं
लगायेगा। तो रूहानी गुलाब की विशेषता है, किसी भी प्रकार के कांटे हों-छोटे हों या
बड़े हों, हल्के हों या तेज हों-लेकिन हो सदा न्यारा और बाप का प्यारा। प्यारा बनने
के लिए क्या करना पड़े? न्यारापन प्यारा बनाता है। अगर किसी भी प्रभाव में आ गये तो
न बाप के प्यारे और न ब्राह्मण परिवार के। अगर सच्चा प्यार प्राप्त करना है तो उसके
लिए न्यारा बनो-सभी हद की बातों से, अपनी देह से भी न्यारा। जो अपनी देह से न्यारा
बन सकता है वही सबसे न्यारा बन सकता है।
कई सोचते हैं-हमको
इतना प्यार नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता? क्योंकि न्यारे नहीं
हैं। नहीं तो परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता
है। लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना। विधि नहीं आती तो
सिद्धि भी नहीं मिलती। कई बच्चे कहते हैं-बाबा से मिलन मनाना चाहते हैं लेकिन अनुभव
नहीं होता है, रूहरि-हान करते हैं लेकिन जवाब नहीं मिलता है। कारण क्या है? पहले
न्यारे बने जो प्यार मिले? प्यार प्राप्त करने का फाउन्डेशन अगर पक्का है, तो
प्राप्ति की मंजिल प्राप्त न हो-यह हो ही नहीं सकता। क्योंकि बाप की गारन्टी है।
गारन्टी है-एक बात आप करो, बाकी सब मैं करूँ। एक बात-मुझे दिल से याद करो, मतलब से
नहीं। कोई विघ्न आयेगा तो 4 घण्टा योग लगायेंगे और विघ्न खत्म हुआ तो याद भी खत्म
हो गई। तो यह मतलब की याद हुई ना। इच्छा पूर्ण करने के लिए याद नहीं, अच्छा बनकर
याद करना है। यह काम हो जाये, इसके लिए याद करूँ-ऐसे नहीं। पात्र बन परमात्म-प्यार
का अनुभव कर सकते हो।
रूहानी गुलाब अर्थात्
परमात्म-प्यार की पात्र आत्माए। परमात्म-प्यार के आगे आत्माओं का प्यार क्या है?
कुछ भी नहीं। जब परमात्म-प्यार के अनुभवी बनते हो तो दिल से क्या निकलता है? कौनसा
गीत गाते हो? पा लिया, और कुछ नहीं रहा। ऐसे प्राप्ति के अधिकारी आत्मा बनो। पात्र
की निशानी है-प्राप्ति होना। अगर प्राप्ति नहीं होती, कम होती है-तो समझो पात्र कम
हैं। क्योंकि देने वाला तो दाता है और अखुट खज़ाना है। तो क्यों नहीं मिलेगा? पात्र
योग्य है तो प्राप्ति भी सब हैं। सदा बाबा मेरा है तो प्राप्ति भी सदा होगी ना। कभी
भी, किसी भी हद के प्रभाव से न्यारा रहना ही है, कभी प्रभाव में नहीं आना। फिर
बार-बार पात्र बनने का अभ्यास माना मेहनत करनी पड़ती है। इसलिये हद के प्रभाव में न
आकर सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहो। सदा चेक करो कि-रूहानी गुलाब सदा
रूहानियत की खुशबू में रहता हूँ, न्यारा रहता हूँ, प्यार का पात्र बनता हूँ? क्योंकि
आत्माओं द्वारा प्राप्ति तो 63 जन्म कर ली, उससे रिजल्ट क्या निकली? गंवा लिया ना।
अभी पाने का समय है । हद की प्राप्तियां अर्थात् गंवाना, बेहद की प्राप्ति अर्थात्
जमा होना। अच्छा!
3 - स्वराज्य का तिलक
ही भविष्य के राजतिलक का आधार है
सभी अपने को विजयी
रत्न अनुभव करते हो? विजय प्राप्त करना सहज लगता है या मुश्किल लगता है? मुश्किल है
या मुश्किल बना देते हो, क्या कहेंगे? है सहज लेकिन मुश्किल बना देते हो। जब माया
कमजोर बना देती है तो मुश्किल लगता है और बाप का साथ होता है तो सहज होता है।
क्योंकि जो मुश्किल चीज होती है वह सदा ही मुश्किल लगनी चाहिए ना। कभी सहज, कभी
मुश्किल-क्यों? सदा विजय का नशा स्मृति में रहे। क्योंकि विजय आप सब ब्राह्मण
आत्माओं का जन्मसिद्ध अधिकार है। तो जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त करना मुश्किल होता है
या सहज होता है? कितनी बार विजयी बने हो! तो कल्प-कल्प की विजयी आत्माओं के लिए फिर
से विजयी बनना मुश्किल होता है क्या? अमृतवेले सदा अपने मस्तक में विजय का तिलक
अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ। भक्ति-मार्ग में तिलक लगाते हैं ना। भक्ति की निशानी
भी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है। राज्य प्राप्त करने की निशानी भी
राजतिलक होता है। कभी भी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने चाहते हैं तो जाने
के पहले तिलक देते हैं। तो आपको राज्य प्राप्ति का राज्य-तिलक भी है और सदा श्रेष्ठ
कार्य और सफलता है, इसलिए भी सदा तिलक है। सदा बाप के साथ का सुहाग है, इसलिए भी
तिलक है। तो अविनाशी तिलक है। कभी मिट तो नहीं जाता है? जब अविनाशी बाप मिला तो
अविनाशी बाप द्वारा तिलक भी अविनाशी मिल गया। सुनाया था ना-अभी स्वराज्य का तिलक है
और भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक है। स्वराज्य मिला है कि मिलना है? कभी गंवा
भी देते हो? सदैव फलक से कहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं ही!
इस समय स्वराज्य
अधिकारी और भविष्य में हैं विश्व-राज्य अधिकारी और फिर द्वापर-कलियुग में पूजनीय के
अधिकारी बनेंगे, इसलिए पूज्य अधिकारी। आप सबकी पूजा होगी। अपने मन्दिर देखे हैं?
डबल विदेशियों का मन्दिर है? दिलवाला मन्दिर में आप बैठे हो? क्योंकि जो ब्राह्मण
बनते हैं वो ब्राह्मण देवता बनेंगे और देवताओं की पूजा होगी। अगर पक्के ब्राह्मण हो
तो पक्का ही पूजन होगा। कच्चे ब्राह्मण हैं तो शायद पूजन होगा। डबल विदेशी सभी पक्के
हो? पक्के थे, पक्के हैं और पक्के रहेंगे-ऐसे है ना। अच्छा! सभी पक्के हो? अनुभवी
बन गये ना। अनुभवी कभी धोखा नहीं खाते। देखने वाले, सुनने वाले धोखा खा सकते हैं
लेकिन अनुभव की अथॉरिटी वाले धोखा नहीं खा सकते। हर कदम में नया-नया अनुभव करते रहते
हो। रोज नया अनुभव। उमंग-उत्साह वाले हो ना। उमंग-उत्साह-यही उड़ती कला के पंख हैं।
कभी उमंग-उत्साह कम हुआ अर्थात् पंख कमजोर हो गये। अच्छा, जो अभी तक किसी ने नहीं
किया हो वह करके दिखाओ, तब कहेंगे नवीनता। सेन्टर खोलना, फंक्शन करना-यह तो सभी करते
हैं। जैसे बाप को रहम आता है कि भटकती आत्माओं को ठिकाना दें, तो बच्चों के मन में
भी यह रहम आना चाहिए। तो अभी ऐसा कोई नया साधन निकालो जिससे अनेक आत्माओं को सन्देश
मिल जाये।
दादियों से मुलाकात
बापदादा सेकेण्ड में
कितनी बातें कर सकता है? समय कम और बातें बहुत क्योंकि फरिश्ते इशारों से ही समझते
हैं। तो यह दृष्टि की भाषा फरिश्तेपन की निशानी है। यह भी बापदादा सिखाते रहते हैं।
आजकल के समय प्रमाण अगर वाणी द्वारा किसको सुनाओ तो समय भी चाहिए, साहस भी चाहिए।
अगर मीठी दृष्टि द्वारा समझाने का प्रयत्न करते हैं तो कितना सहज हो जाता है! समय
अनुसार यह दृष्टि द्वारा परिवर्तन होना और परिवर्तन कराना - यही काम में आयेगा।
सुनाते हैं तो सब कहते हैं - हमको पहले से ही पता है। लेकिन मीठी दृष्टि और शुभ
वृत्ति - यह एक मिनट में एक घण्टा समझाने का कार्य कर सकता है। आजकल यही विधि
श्रेष्ठ है और अन्त में भी यही काम में आयेगी। फालो फादर करते जायेंगे। विघ्न को भी
मनोरंजन समझकर चलते रहते हैं। वाह ड्रामा वाह! चाहे किसी भी प्रकार का दृश्य हो
लेकिन 'वाह-वाह' ही हो। अच्छा है, बापदादा बच्चों की हिम्मत, उमंग उल्लास देख खुश
हैं और बढ़ाते रहते हैं। यही निमित्त बनने की लिफ्ट की विशेष गिफ्ट है। अच्छा!
वरदान:-
क्या, क्यों,
ऐसे और वैसे के सभी प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित्त भव
जो प्रसन्नचित आत्मायें
हैं वे स्व के संबंध में वा सर्व के संबंध में, प्रकृति के संबंध में, किसी भी समय,
किसी भी बात में संकल्प मात्र भी क्वेश्चन नहीं उठायेंगी। यह ऐसा क्यों वा यह क्या
हो रहा है, ऐसा भी होता है क्या? प्रसन्नचित आत्मा के संकल्प में हर कर्म को करते,
देखते, सुनते, सोचते यही रहता है कि जो हो रहा है वह मेरे लिए अच्छा है और सदा अच्छा
ही होना है। वे कभी क्या, क्यों, ऐसा-वैसा इन प्रश्नों की उलझन में नहीं जाते।
स्लोगन:-
स्वयं को
मेहमान समझकर हर कर्म करो तो महान और महिमा योग्य बन जायेंगे।