01-11-09  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 29-04-71 मधुबन

 

बेहद के पेपर में पास होने का साधन

 

आज भट्ठी की समाप्ति है वा भट्ठी के प्रैक्टिकल पेपर का आरम्भ है? अभी आप कहाँ जा रहे हो? पेपर हाल में जा रहे हो या अपने-अपने स्थानों पर? जब पेपर हाल समझेंगे तब प्रैक्टिकल में पास होकर दिखायेंगे। ऐसे नहीं समझना कि अपने घर जा रहे हैं। नहीं। बड़े से बड़ा कोर्स पास करके बड़े से बड़ा इम्तहान देने के लिए पेपर हाल में जा रहे हैं। सेन्टर्स पर जब तक पढ़ाई करते हो तो वह हो गई स्कूल की पढ़ाई। लेकिन जब मधुबन वरदान भूमि में डायरेक्ट बापदादा वा निमित्त बने हुए सभी बड़े महारथियों द्वारा ट्रेनिंग लेते हो वा पढ़ाई करते हो तो मानो कालेज वा युनिवार्सिटी का स्टूडेण्ट हूँ। स्कूल के पेपर और यूनिवार्सिटी के पेपर में फर्क होता है। पढ़ाई में भी फर्क होता है, तो इस भट्ठी में ट्रेनिंग लेना अर्थात् यूनिवार्सिटी का स्टूडेण्ट बनना है। तो अभी यूनिवार्सिटी की पढ़ाई का पेपर देने के लिए जा रहे हैं। युनिवार्सिटी के पेपर के बाद ही स्टेट्स की प्राप्ति होती है। ऐसे ही भट्ठी में आने के बाद जो प्रैक्टिकल पेपर में पास हो निकलते हैं उन्हों को वर्तमान और भविष्य स्टेट्स और स्टेज प्राप्त होती है। तो यह कॉमन बात नहीं समझना। भले पहले सेन्टर्स पर पढ़ाई करते रहे हो और पेपर भी देते रहे हो लेकिन यह यूनिवार्सिटी का पेपर है। बापदादा द्वारा तिलक वा छाप लगाने के बाद अगर कोई प्रैक्टिकल पेपर में फेल हो जाते हैं तो क्या होगा? जन्म-जन्मान्तर के लिए फेल का दाग रह जायेगा। इसलिए अगर कोई भी फेल होने का संस्कार वा अपनी चलन महसूस होती हो तो आज के दिन में वह रहा हुआ दाग वा कमज़ोरी की चलन वा संस्कार मिटा कर जाना। जिससे कि पेपर हाल में जाये पेपर में फेल न होने पायें। समझा? वह पेपर तो दे दिया। वह तो सहज है लेकिन फाइनल नम्बर वा मार्क्स प्रैक्टिकल पेपर के बाद ही मिलते हैं। तो यह स्मृति और दृष्टि -- दोनों को परिवर्तन में लाकर जाना है। स्मृति में क्या रहे कि हर सेकेण्ड मेरा पेपर हो रहा है। दृष्टि में क्या रहे कि पढ़ाने वाला बाप और पढ़ने वाला मैं स्टूडेण्ट आत्मा हूँ। यह स्मृति, वृत्ति और दृष्टि बदलकर जाने से फेल नहीं होंगे लेकिन फुल पास होंगे। तो भट्ठी कोई साधारण बात नहीं समझना। यह भट्ठी की छाप और तिलक सदा कायम रखना है। जैसे यूनिवार्सिटी का सर्टिफिकेट सर्विस दिलाता है, पद की प्राप्ति कराता है। ऐसे ही यह भट्ठी का तिलक वा छाप सदा अपने पास प्रैक्टिकल में कायम रखना - यह बड़े से बड़ा सर्टिफिकेट है। जिसको सर्टिफिकेट नहीं होता है वह कभी भी कोई स्टेट्स नहीं पा सकते। इस रीति से यह भी एक सर्टिफिकेट है। भविष्य वा वर्तमान पद की प्राप्ति वा सफलता का सर्टिफिकेट है। सर्टिफिकेट को सदैव सम्भाला जाता है। अलबेलेपन से खो जाता है। कभी भी माया के अधीन यानी वश होकर पुरूषार्थ में अलबेलापन नहीं लाना। नहीं तो आप समझेंगे हमको सर्टिफिकेट है लेकिन माया वा रावण सर्टिफिकेट चुरा लेती है। जैसे आजकल के डाकू वा पाकेट काटने वाले ऐसा युक्ति से काम करते हैं जो बाहर से कुछ भी पता नहीं पड़ता है, अन्दर खाली हो जाता है। इसी प्रकार अगर पुरूषार्थ में अलबेलापन लाया तो रावण अन्दर ही अन्दर सर्टिफिकेट चुरा लेगा और आप स्टेट्स पा नहीं सकेंगे। इसलिए अटेन्शन! समझा?

 

यह ग्रुप सर्विसएबल तो है, अभी क्या बनना है? जैसे तो है, अभी क्या बनना है? जैसे सर्विसएबल हो वैसे ही अभी हो वैसे ही अभी सर्विस में एक तो त्रिकालदर्शीपन का सेन्स भरना है और दूसरादर्शीपन का सेन्स भरना है और दूसरा रूहानियत का इसेन्स भरना है। तब तीनों बातें मिल जायेंगी - सर्विस, सेन्स और इसेन्स। इसेन्स सूक्ष्म होता है ना। तो यह रूहानियत का इसेन्स और त्रिकालदर्शीपन का सेन्स भरने से दर्शीपन का सेन्स भरने से सर्विसएबल के साथ सक्सेसफुल हो जायेंगे। तो सेन्स और इसेन्स कहाँ तक हरेक ने अपने अन्दर भरा है - वह चेक करना है। अभी समय है। जैसे पेपर हाल में जाने से पहले दो घंटे आगे भी तैयारी करके जाते हैं। आपको भी पेपर हाल में जाने के पहले अपने को तैयार करने के लिए अभी समय है। जैसे सुनाया था कि ब्रह्माकुमार के साथ में तपस्वी कुमार भी दिखाई दे। वह अपने नयनों में, चेहरे में रूहानियत धारण की है, जो जाते ही अलौकिक न्यारे और सब के प्यारे के साथ सक्सेसफुल हो जायेंगे। तो सेन्स और इसेन्स कहाँ तक हरेक ने अपने अन्दर भरा है - वह चेक करना है। अभी समय है। जैसे पेपर हाल में जाने से पहले दो घंटे आगे भी तैयारी करके जाते हैं। आपको भी पेपर हाल में जाने के पहले अपने को तैयार करने के लिए अभी समय है। जैसे सुनाया था कि ब्रह्माकुमार के साथ में तपस्वी कुमार भी दिखाई दे। वह अपने नयनों में, चेहरे में रूहानियत धारण की है, जो जाते ही अलौकिक न्यारे और सब के प्यारे नज़र आओ? न सिर्फ भट्ठी वालों को लेकिन जो भी मधुबन में आते हैं, उन सभी को यह धारणायें विशेष रूप से करनी हैं। भट्ठी सक्सेस रही? इन्हों की पढ़ाई की रफ्तार से आप सन्तुष्ट हो? आप भट्ठी की पढ़ाई से अपने पुरूषार्थ में सन्तुष्ट हुए? कुछ रहा तो नहीं है ना? (अभी न रहा है) फिर कब रहेगा क्या?

 

यह अपनी सेफ्टी का साधन ढूँढ़ते हैं। समझते हैं कि कुछ भी हो जायेगा तो यह कह सकेंगे ना। लेकिन इससे भी फिर कमज़ोरी आ जाती है। इसलिए फिर यह भी कभी नहीं सोचना। कभी भी फेल नहीं होंगे -- ऐसा सोचो। अभी भी हैं और जन्म-जन्मान्तर की गारन्टी -- कभी भी फेल नहीं होंगे। इसको कहा जाता है फुल पास। कुमारों की विशेषता है कि जो चाहे वह कर सकते हैं। यह विल-पावर जरूर है। लेकिन हर संकल्प और हर सेकेण्ड विल करने की विल-पावर चाहिए। बच्चे को सभी विल किया जाता है ना। जो-कुछ होता है वह विल करते हैं। तो आप लोग भी वारिस बनाते हो और बनते भी हो। तो जैसे और विल-पावर है वैसे सभी कुछ विल करने की विल पावर चाहिए। यह यहाँ से भरकर जाना। जब सभी कुछ विल कर दिया तो क्या बन जायेंगे? नष्टोमोहा। जब मोह नष्ट हो जाता है तो बन्धनमुक्त बन जाते हैं और बन्धनमुक्त ही योगयुक्त व जीवन्मुक्त बन सकता है। समझा? संगमयुग का आपके पास अभी खज़ाना कौनसा है? ज्ञान खज़ाना तो बाप ने दिया लेकिन अपना-अपना खज़ाना कौन-सा है? यह समय और संकल्प। जैसे बाप ने पूरा ही अपने को विल किया, वैसे आप लोगों की जो स्मृति है उसको भी पूरा विल करना है। जैसे स्थूल खज़ाने से जो चाहें वह प्राप्त कर सकते हैं। वैसे ही इस समय का से जो चाहें वह प्राप्त कर सकते हैं। वैसे ही इस समय का यह खज़ाना ‘समय और संकल्प’ -- इससे भी आप जो प्राप्त करना चाहो वह इन्हीं द्वारा प्राप्त कर सकते हो। सारी प्राप्ति का आधार संगमयुग का समय और श्रेष्ठ स्मृति अर्थात् याद है। यही खज़ाना है। इसको ही विल करना है। पूरा ही विल करके जा रहे हो या कुछ जेब-खर्च रखा है? आईवेल के लिए थोड़ा बहुत कोने में छिपाकर तो नहीं रखा है, जेब बिल्कुल खाली है?

 

(कुमारों ने एक गीत बाबा को सुनाया) आजकल तो मधुबन का हर कोना खाली नहीं है लेकिन हर स्थान पर सितारों की रिमझिम नज़र आती है। तो खाली क्यों कहते हो? जब सूर्य व्यक्त से अव्यक्त होता है तब सितारे स्पष्ट दिखाई देते हैं। तो बाप व्यक्त से अव्यक्त हुए हैं विश्व को सितारों की रिमझिम दिखाने के लिए। तो खाली क्यों कहेंगे? स्थूल सूर्य को कहते हैं अस्त हो गया लेकिन यह ज्ञान-सूर्य व्यक्त से अव्यक्त रूप है लेकिन सितारों के साथ है। साकार रूप से सदा साथी नहीं बन सकते। साकार में होते हुए भी सदा साथ में रहने के लिए अव्यक्त स्थिति और अव्यक्त साथी समझते थे। तो अब भी सदा साथ अव्यक्त रूप में ही हो सकता है। क्योंकि अव्यक्त रूप व्यक्त शरीर के बन्धन से मुक्त है। तो आप सभी को भी सदा साथ देने के लिए इस शरीर की स्मृति से दूर करने के लिए, यह अव्यक्त पार्ट चल रहा है। बापदादा तो हर समय सर्व बच्चों के साथ है ही। पहले-पहले एक गीत बनाया था कि ‘‘क्यों हो अधीर माता...’’। (यह गीत बहनों ने सुनाया) अभी भी हर एक का सदा साथी हूँ। लेकिन जो चाहे अनुभव करे। अभी अनुभव करने के लिए जैसे बाप अव्यक्त है वैसे अव्यक्त बनकर के ही अनुभव कर सकते हो। यह अलौकिक अनुभव करने के लिए सदा व्यक्त भाव से परे, व्यक्त देश की स्मृति से उपराम अर्थात् साक्षी बनने से ही हर समय साथ का अनुभव कर पायेंगे। समझा? अच्छा।

 

ईश्वरीय सेवा के बंधन द्वारा समीप संबंध में आने वाले रॉयल फैमिली के अधिकारी भव

 

ईश्वरीय सेवा का बंधन नजदीक सम्बन्ध में लाने वाला है। जितनी जो सेवा करता है उतना सेवा का फल समीप सम्बन्ध में आता है। यहाँ के सेवाधारी वहाँ की रॉयल फैमिली के अधिकारी बनेंगे। जितनी यहाँ हार्ड सेवा करते उतना वहाँ आराम से सिंहासन पर बैठेंगे और यहाँ जो आराम करते हैं वह वहाँ काम करेंगे। एक-एक सेकण्ड का, एक एक काम का हिसाब-किताब बाप के पास है।

 

स्लोगन:- स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन का वायब्रेशन तीव्रगति से फैलाओ।

 

ओम शान्ति 13-09-09 मधुबन

 

प्राण अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश - गुल्जार दादी

(विशेष रशिया निवासी ब्राह्मण परिवार प्रति)

 

आप सबके दिल के स्नेह का रिस्पान्ड देने के लिए बाबा ने हमें वतन में बुलाया। तो सदा के माफिक जैसे हम जाते हैं तो बाबा दूर से ही खड़ा हुआ मिलता है। दूर से ही अपने मधुर मुस्कान और नयनों की रुहानियत से मिलन मनाते हैं। बाबा ने दृष्टि देते हुए बहुत रुहानियत की राहत देते हुए, दूर से ही मिलन मनाया और हम भी उसी रूप का अनुभव करते हुए बाबा के सम्मुख पहुंच गये।

 

बाबा ने कहा आओ दिलतख्तनशीन बच्ची आओ आज क्या समाचार लाई हो? मैंने कहा बाबा आज रशिया की सेवाओं के 20 वर्ष पूरे हुए हैं इसलिए इन्हों की सेरीमनी हो रही है। तो अचानक ही मैं वहाँ से आई हूँ। बाबा ने कहा देखो बच्ची, रशिया में बाबा के बच्चे छिपे हुए थे। बच्चे तो बाप को पहचान नहीं सकते, बाप ही बच्चों को पहचान सकते हैं। तो यह जो बच्चे छिपे हुए थे, बाबा ने उन्हों को घर-घर से, कोने-कोने से पहचानके, छांटके निकाला है। बच्चों को पूछना, तो हरेक बच्चे को यह नशा रहता है, कि मुझे बाबा ने खुद आके ढूंढा है? हमारे एरिया में इतने रहे पड़े हैं। लेकिन बाबा की नजर हम पर पड़ी, मैंने भी बाबा को पहचाना, हम बाबा के बने और बाबा को अपना बनाया। यह नशा है कि बाबा की नजर मेरे ऊपर ही पड़ी? बाबा को मैं पसन्द आ गई/आ गया। यह नशा है ना! रशिया में कितने लोग हैं। आप कहाँ-कहाँ छिपे हुए थे लेकिन कमाल है बाबा की जो बाबा ने आपको अपना बना लिया! बाबा ने कहा, रशिया से बाबा की भी दिल का प्यार है क्यों? क्योंकि बाबा जानते हैं कि भविष्य में भी रशिया का भाग, हमारे सतयुग में राजधानी के समय भी कुछ मिक्स होगा। इसलिए बाबा को इन्हों का भविष्य भी याद है, जानते हैं, इसलिए रशिया वालों से प्यार है। आपको पता है कि रशिया का कुछ हिस्सा सतयुग में पिकनिक का स्थान बनेगा? इस धरनी को आपने ऐसा प्यारा और शुभ बनाया है जो सतयुग में भी हमारे काम आयेगी। तो दिल में क्या आता है, वाह! बाबा वाह! वाह! मेरा भाग्य!

 

इसके बाद बाबा ने कहा अच्छा आज इनकी खास सेरीमनी है, तो सेरीमनी के दिन खास घूमते फिरते हैं तो आज इन सब बच्चों को वतन में बुलाता हूँ। तो बाबा ने आप सबको वहाँ वतन में इमर्ज किया। आप सभी दो वी  (V) के रूप में खड़े हुए थे। आप अभी बुद्धि से वहाँ वतन में पहुंचे? दोनों वी के बीच में बाबा बैठे थे, आप सामने थे, बाबा दृष्टि दे रहे थे। फिर बाबा ने कहा, अच्छा क्या देखेंगे अभी? अपना भविष्य रूप देखेंगे? दृष्टि देने के बाद बाबा ने कहा अच्छा चलो अभी ले चलता हूँ। एक हॉल था जिसमें बैठने की सीट लगी हुई थी, सीट सिंहासन के माफिक थी। सफेद रंग के सिंहासन थे। बाबा ने कहा सभी अपने सिंहासन पर बैठ जाओ। संगम का ताज तो सभी को है ही। तो सिंहासन पर बैठने से लगा कि सभी ताजधारी बैठे हैं। उसके बाद बाबा ने सामने बैठ के सभी को दृष्टि दी। जैसे ही बाबा की दृष्टि पड़ी तो हरेक के तीन रूप प्रकट हो गये। इसी सीट पर पहले ब्राह्मण, फिर फरिश्ता रूप फिर देवता रूप, एक-एक के तीन रूप प्रकट हो गये। बाबा ने कहा जैसे बाबा के तीन रूप हैं, बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरु भी है। ऐसे आपके भी तीन रूप हैं, इन्हीं तीनों रूप में से किसी न किसी रूप की स्मृति में सदा रहो। तो आप सब किस स्मृति में रहते हैं? बाबा ने कहा ब्राह्मण तो हो ही लेकिन जब तक फरिश्ता नहीं बनेंगे तब तक देवता पद नहीं पायेंगे। इसलिए चलते-फिरते फरिश्तेपन की ड्रेस पहन लो, फरिश्ता हूँ फिर तो देवता जाके बनूंगा इसलिए फरिश्तापन की स्मृति सदा रखो। तो फरिश्तारूप याद रहता है? ऐसे बाबा ने तीन रूपों का अनुभव कराया फिर बाबा आगे-आगे जा रहा था हम सभी बाबा के पीछे-पीछे चल रहे थे। सभी के मस्तक पर बिन्दी-बिन्दी आत्मा के रूप में चमकती हुई दिखाई दे रही थी, ऐसे दृष्टि देते हुए बाबा ने आप सबको मर्ज कर दिया। उसके बाद हम मिले। बाबा ने कहा, बापदादा की तरफ से पदम-पदम पदमगुणा इन्हों को बीस वर्ष की बधाई देना। फिर हम भी वतन से यहाँ पहुंच गये। ओम् शान्ति।