27-08-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 02.01.90 "बापदादा" मधुबन
सारे ज्ञान का सार -
स्मृति
आज समर्थ बाप अपने
चारों ओर के सर्व समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक समर्थ बच्चा अपनी समर्थी
प्रमाण आगे बढ़ रहे हैं। इस समर्थ जीवन अर्थात् सुखमय श्रेष्ठ सफलता संपन्न अलौकिक
जीवन का आधार क्या हैं? आधार है एक शब्द- स्मृति' । वैसे भी सारे ड्रामा का खेल है
ही विस्मृति और स्मृति' का। इस समय स्मृति का खेल चल रहा है । बापदादा ने आप
ब्राह्मण आत्माओं को परिवर्तन किस आधार पर किया? सिर्फ स्मृति दिलाई कि आप आत्मा
हो, न कि शरीर। इस स्मृति ने कितना अलौकिक परिवर्तन कर लिया। सब कुछ बदल गया ना!
मानव जीवन की विशेषता है ही 'स्मृति' । बीज है स्मृति, जिस बीज से वृत्ति, दृष्टि,
कृति सारी स्थिति बदल जाती है। इसलिए गाया जाता है - जैसी 'स्मृति वैसी स्थिति' ।
बाप ने फाउण्डेशन स्मृति को ही परिवर्तन किया। जब फाउण्डेशन श्रेष्ठ हुआ तो स्वत:
ही पूरी जीवन श्रेष्ठ हो गई । कितनी छोटी-सी बात का परिवर्तन किया कि तुम शरीर नहीं
आत्मा हो - इस परिवर्तन होते ही आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान होने के कारण स्मृति आते
ही समर्थ बन गई । अब यह समर्थ जीवन कितना प्यारा लगता है! स्वयं भी स्मृति-स्वरूप
बने और औरों को भी यही स्मृति दिलाए क्या से क्या बना देते हो! इस स्मृति से संसार
ही बदल लिया। यह ईश्वरीय संसार कितना प्यारा है । चाहे सेवा अर्थ संसारी आत्माओं के
साथ रहते हो लेकिन मन सदा अलौकिक संसार में रहता है । इसको ही कहा जाता है ‘स्मृति
स्वरूप' । कोई भी परिस्थिति आ जाए लेकिन स्मृति-स्वरूप आत्मा समर्थ होने कारण
परिस्थिति को क्या समझती? यह तो खेल है। कभी घबरायेगी नहीं। भल कितनी भी बड़ी
परिस्थिति हो लेकिन समर्थ आत्मा के लिए मंजिल पर पहुँचने के लिए यह सब रास्ते के
साइड सीन्स हैं अर्थात् रास्ते के नज़ारे है। साइड सीन्स तो अच्छी लगती है ना | खर्चा
करके भी साइड सीन देखने जाते हैं। यहाँ भी आजकल आबू-दर्शन करने जाते हो ना! अगर
रास्ते में साइड सीन्स न हो तो वह रास्ता अच्छा लगेगा? बोर हो जायेंगे । ऐसे
स्मृति-स्वरूप, समर्थ-स्वरूप आत्मा के लिए परिस्थिति कहो, पेपर कहो, विघ्न कहो,
प्रॉब्लम्स कहो, सब साइड सीन्स हैं । स्मृति में है कि यह मंजिल के साइड सीन्स
अनगिनत बार पार की है । नथिंग न्यू इसका भी फाउण्डेशन क्या हुआ? 'स्मृति' । अगर यह
स्मृति भूल जाती अर्थात् फाउण्डेशन हिला तो जीवन की पूरी बिल्डिंग हिलने लगती है ।
आप तो अचल है ना!
सारी पढ़ाई के चारों
सब्जेक्ट्स का आधार भी 'स्मृति' है । सबसे मुख्य सबजेक्ट है याद । याद अर्थात्
स्मृति – मैं कौन, बाप कौन? दूसरी सब्जेक्ट है 'ज्ञान' । रचता और रचना का ज्ञान मिला।
उसका भी फाउण्डेशन स्मृति दिलाई के अनादि क्या हो और आदि क्या हो और वर्तमान समय
क्या हो - ब्राह्मण सो फरिश्ता। फरिश्ता सो देवता और भी कितनी स्मृतियाँ दिलाई हैं
तो ज्ञान की स्मृति हुई ना? तीसरी सब्जेक्ट है 'दिव्य गुण' । दिव्यगुणों की भी
स्मृति दिलाई कि आप ब्राह्मणों के यह गुण हैं। गुणों की लिस्ट भी स्मृति में रहती
है तब समय प्रमाण उस गुण को कार्य में, कर्म में लगाते हो। कोई समय स्मृति कम होने
से क्या रिजल्ट होती! समय पर गुण यूज़ नहीं कर सकते हो। जब समय बीत जाता फिर स्मृति
में आता है कि यह नहीं करना चाहता था लेकिन हो गया, आगे ऐसा नहीं करेंगे। तो दिव्य
गुणों को भी कर्म में लाने के लिए समय पर स्मृति चाहिए। अभी-अभी ऐसे अपने पर भी
हँसते हो। वैसे भी कोई बात वा कोई चीज़ समय पर भूल जाती है तो उस समय क्या हालत होती
है? चीज़ है भी लेकिन समय पर याद नहीं आती, तो घबराते हो ना! ऐसे यह भी समय पर स्मृति
न होने के कारण कभी-कभी घबरा जाते हो। तो दिव्य गुणों का आधार क्या हुआ? सदा
स्मृति-स्वरूप। निरन्तर और नेचुरल दिव्य गुण सहज हर कर्म में, कार्य में लगता रहेगा।
चौथी सबजेक्ट है 'सेवा' । इसमें भी अगर स्मृति-स्वरूप नहीं बनते कि मैं
विश्व-कल्याणकारी आत्मा निमित्त हूँ, तो सेवा में सफलता नहीं पा सकते। सेवा द्वारा
किसी आत्मा को स्मृति-स्वरूप नहीं बना सकते। साथ-साथ सेवा है ही - स्वयं की और बाप
की स्मृति दिलाना।
तो चार ही सब्जेक्ट्स
का फाउण्डेशन स्मृति' हुआ ना! सारे ज्ञान के सार का एक शब्द हुआ - स्मृति। इसलिए
बापदादा ने पहले से ही सुना दिया है कि लास्ट पेपर का क्वेश्चन भी क्या आने वाला
है? लम्बा-चौड़ा पेपर नहीं होना है । एक ही क्वेश्चन का पेपर होना है और एक ही
सेकण्ड का पेपर होना है । क्वेश्चन कौन-सा होगा' नष्टोमोहा स्मृति-स्वरूप। क्वेश्चन
भी पहले से ही सुन लिया है ना फिर तो सभी पास होने चाहिए । सभी नम्बरवन पास होंगे
या नम्बरवार पास होंगे?
डबल विदेशी किस नम्बर
में पास होंगे? (नम्बरवन) तो माला को खत्म कर दें? या अलग माला बना दें? उमंग तो
बहुत अच्छा है । डबल फोरेनर को विशेष चांस है - लास्ट सो फास्ट जाने का। यह मार्जिन
है। अलग माला बनायें तो जो पिकनिक के स्थान बनेंगे वहाँ जाना पड़ेगा। यह पसन्द हो तो
अलग माला बनायें ' आप लोगों के लिए माला में आने की मार्जिन रखी है, आ जायेंगे।
अच्छा।
सभी टीचर्स तो
स्मृति-स्वरूप है ना! चारों ही सब्जेक्ट्स में स्मृति-स्वरूप। मेहनत का काम तो नहीं
है ना! टीचर्स का अर्थ ही है अपने स्मृति-स्वरूप फीचर्स से औरों को भी
स्मृति-स्वरूप बनाना। आपके फीचर्स ही औरों को स्मृति दिलाये कि मैं आत्मा हूँ,
मस्तक में देखे ही चमकती हुई आत्मा वा चमकती हुई मणि। जैसे साँप की मणि देख करके
साँप की तरफ कोई का ध्यान नहीं जायेंगा, मणि के तरफ जायेंगा। ऐसे अविनाशी चमकती हुई
मणि को देख देहभान स्मृति में नहीं आये, अटेंशन स्वत: ही आत्मा की तरफ जायें।
टीचर्स इसी सेवा के निमित्त हो। विस्मृति वालों को स्मृति दिलाना - यही सेवा है ।
समर्थ तो हो या कभी-कभी घबराती हो? अगर टीचर्स घबरा जायेंगी तो स्टूडैण्ट क्या होंगे?
टीचर्स अर्थात् सदा नेचुरल, निरन्तर स्मृति-स्वरूप सो समर्थ-स्वरूप। जैसे ब्रह्मा
बाप फ्रंट में रहा तो टीचर्स भी आगे हो ना। निमित्त माना आगे। जैसे सेवा प्रति
समर्पण होने में हिम्मत रखी, समर्थ बनी। तो यह स्मृति क्या है, यह तो त्याग का
भाग्य है। त्याग कर लिया, अभी भाग्य की क्या बड़ी बात है! त्याग तो किया लेकिन त्याग,
त्याग नहीं है क्योंकि भाग्य बहुत ज्यादा है । त्याग क्या किया? सिर्फ सफ़ेद साड़ी
पहनी, वह तो और भी ब्यूटीफुल बन गई हो, फरिश्ते, परियाँ बन गई हो और क्या चाहिए ।
बाकी खाना-पीना छोड़ा.. वह तो आजकल डॉक्टर्स भी कहते है - ज्यादा नहीं खाओ, कम खाओ,
सादा खाओ। आजकल तो डॉक्टर्स भी खाने नहीं देते। बाकी क्या छोड़ा? पहनना छोड़ा.. .आजकल
तो गहनों के पीछे चोर लगते है । अच्छा किया जो छोड़ दिया, समझदारी का काम किया।
इसलिए त्याग का पद्म गुणा भाग्य मिल गया। अच्छा!
अभी-अभी बापदादा को
एथेन्स वाले याद आ रहे है (एथेन्स में सेवा का बड़ा कार्यक्रम चल रहा है) वह भी बहुत
याद कर रहे हैं । जब भी कोई विशाल कार्य होता है, बेहद के कार्य में बेहद का बाप और
बेहद का परिवार याद जरूर आता है। जो भी बच्चे गये हैं, हिम्मत वाले बच्चे हैं। जो
निमित्त बने है, उन्हों की हिम्मत कार्य को श्रेष्ठ और अचल बना देती हैं । बाप के
स्नेह और विशेष आत्माओं की शुभ भावना, शुभ कामना बच्चों के साथ है। बुद्धिवानों की
बुद्धि किसी द्वारा भी निमित्त बनाए अपना कार्य निकाल देते है । इसलिए बेफिक्र
बादशाह बन लाइट-हाउस, माइट-हाउस बन शुभ भावना, शुभ कामना के वाइब्रेशन फैलाते रहो ।
हर एक सर्विसएबुल बच्चे को बापदादा नाम और विशेषता सहित यादप्यार दे रहे है । अच्छा!
सदा निरन्तर
स्मृति-स्वरूप समर्थ आत्माओं को, सदा स्मृति-स्वरूप बन हर परिस्थिति को साइड सीन
अनुभव करने वाले विशेष आत्माओं को, सदा बाप समान चारों ओर स्मृति की लहर फैलाने वाले
महावीर बच्चों को, सदा तीव्रगति से पास-विद-आनॅर होने वाले महारथी बच्चों को बापदादा
का यादप्यार और नमस्ते।
दिल्ली जोन से
अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
सदा अपने भाग्य को
देख हर्षित होते हो! सदा 'वाह-वाह' के गीत गाते हो? 'हाय-हाय' के गीत समाप्त हो गये
या कभी दु:ख ही लहर आ जाती है? दुःख के संसार से न्यारे हो गये और बाप के प्यारे हो
गये, इसलिए दुःख की लहर स्पर्श नहीं कर सकती। चाहे सेवा अर्थ रहते भी हो लेकिन कमल
समान रहते हो। कमल पुष्प कीचड़ से निकल नहीं जाता, कीचड़ में ही होता है, पानी में ही
होता है लेकिन न्यारा होता है । तो ऐसे न्यारे बने हो? न्यारे बनने की निशानी है -
जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे बनेंगे, स्वतः ही बाप का प्यार अनुभव होगा और वह
परमात्म-प्यार छत्रछाया बन जायेंगी। जिसके उपर छत्रछाया होती है वह कितना सेफ रहता
है! जिसके ऊपर परमात्म-छत्रछाया है उसको कोई क्या कर सकते हैं! इसलिए फखुर में रहो
कि हम परमात्म-छत्रछाया में रहने वाले है। अभिमान नहीं है लेकिन रूहानी फ़खुर है ।
बॉडी-कोन्सेस होगा तो अभिमान आयेगा, आत्म-अभिमानी होंगे तो अभिमान नहीं आयेगा लेकिन
रूहानी फखुर होगा और जहां फखुर होता है वहाँ विघ्न नहीं हो सकता। या तो है फिक्र या
है फखुर। दोनों साथ नहीं होते। दाल-रोटी अच्छे ते अच्छी देने के लिए बापदादा बंधा
हुआ है। रोज़ 36 प्रकार के भोजन नहीं देंगे लेकिन दाल-रोटी प्यार की जरूर मिलेगी ।
निश्चित है, इसको कोई टाल नहीं सकता। तो फिक्र किस बात का! दुनिया में फिक्र रहता
है कि हम भी खायें , पीछे वाले भी खायें । तो आप भी भूखे नहीं रहेंगे, आपके पीछे
वाले भी भूखे नहीं रहेंगे। बाकी क्या चाहिए? डनलप के तकिये चाहिए क्या! अगर डनलप के
तकिये वा बिस्तर में फिक्र की नींद हो तो नींद आयेगी? बेफिक्र होंगे तो धरनी पर भी
सोयेंगे तो नींद आ जायेंगी। बॉहो को अपना तकिया बना लो तो भी नींद आ जायेंगी। जहाँ
प्यार है वहां सूखी रोटी भी ३६ प्रकार का भोजन लगेगी। इसलिए बेफिक्र बादशाह हो । यह
बेफिक्र रहने की बादशाही सब बादशाहियों से श्रेष्ठ है । अगर ताज पहनकर बैठ गये और
फिक्र करते रहे तो तख़्त हुआ या चिंता हुई? तो भाग्य विधाता भगवान ने आपके मस्तक
श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खिंच दी है। बेफिक्र बादशाह हो गये हो! वह टोपी या कुर्सी
वाले बादशाह नहीं । बेफिक्र बादशाह । कोई फ़िक्र है ' पोत्रो-धोत्रो का फिक्र है?
आपका कल्याण हो गया तो उन लोगों का जरूर होगा। तो सदा अपने मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य
की लकीर देखते रहो - वाह मेरा श्रेष्ठ ईश्वरीय भाग्य! धन-दौलत का भाग्य नही,
ईश्वरीय भाग्य। इस भाग्य के आगे धन तो कुछ नहीं है, वह तो पीछे-पीछे आयेगा। जैसे
परछाई होती है वह आपेही पीछे-पीछे आती है या आप कहते हो पिछे आओ । तो यह सब परछाई
हैं लेकिन भाग्य है - 'ईश्वरीय भाग्य' । सदा इसी नशे में रहो - अगर पाना है तो सदा
का पाना है। जब बाबा और आत्मा अविनाशी है तो प्राप्ति विनाशी क्यों? प्राप्ति भी
अविनाशी चाहिए ।
ब्राह्मण-जीवन है ही
खुशी की। खुशी से खाना, खुशी से रहना, खुशी से बोलना, खुशी से काम करना। उठते ही
आँख खुली और खुशी का अनुभव हुआ। रात को ऑख बंद हुई, खुशी से आरामी हो गये - यही
ब्राह्मण जीवन है। अच्छा!
पूना- बीदर ग्रुप:-
रोज़ अमृतवेले दिलखुश
मिठाई खाते हो? जो रोज़ अमृतवेले दिलखुश मिठाई खाते हैं वो स्वयं भी सारा दिन खुश
रहते हैं और दूसरे भी उनको देख खुश होते हैं। यह ऐसी खुराक है जो कोई भी परिस्थिति
आ जाए लेकिन यह दिलखुश खुराक परिस्थिति को छोटा बना देती है, पहाड़ को रूई बना देती
है। इतनी ताकत है इस खुराक में! जैसे शरीर के हिसाब से भी जो तन्दरूस्त वा शक्तिशाली
होगा वह हर परिस्थिति को सहज पार करेगा और जो कमजोर होगा वह छोटी सी बात में भी घबरा
जायेगा। कमजोर के आगे परिस्थिति बड़ी हो जाती है और शक्तिशाली के आगे परिस्थिति
पहाड़ से रूई बन जाती है। तो रोज़ दिलखुश मिठाई खाना माना सदा दिलखुश रहें। यह
अलौकिक खुशी के दिन कितने थोड़े हैं! देवताई खुशी और ब्राह्मणों की खुशी में भी
फ़र्क है। यह ब्राह्मण जीवन की परमात्म-खुशी, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति देवताई
जीवन में भी नहीं होगी। इसलिए इस खुशी को जितना चाहे मनाओ। रोज़ समझो आज खुशी मनाने
का दिन है। यहाँ आने से खुशी बढ़ गई है ना! यहाँ से नीचे उतरेंगे तो कम तो नहीं होगी?
उड़ती कला अभी है, फिर तो जितना पाया उतना खाते रहेंगे। तो सदा यह स्मृति में रखो
कि हम दिलखुश मिठाई खाने वाले हैं और दूसरों को खिलाने वाले हैं क्योंकि जितना देंगे
उतना और बढ़ती जायेगी। देखो, खुशी का चेहरा सबको अच्छा लगता है और कोई दुःख अशान्ति
में घबराया हुआ चेहरा तो अच्छा नहीं लगेगा ना! जब दूसरों का अच्छा नहीं लगेगा तो
अपना भी नहीं लगना चाहिए। तो सदैव खुशी के चेहरे से सेवा करते रहो। मातायें ऐसी सेवा
करती हो? घर वाले आपको देखकर खुश हो जाएं। चाहे कोई ज्ञान को बुरा भी समझते हो फिर
भी खुशी की जीवन को देखकर मन से अनुभव जरूर करते हैं कि इनको कुछ मिला है जो खुश
रहते हैं। बाहर अभिमान से न भी बोलें लेकिन अन्दर महसूस करते हैं और आखिर तो झुकना
ही है। आज गाली देते हैं कल चरणों पर झुकेंगे। कहाँ झुकेंगे? “अहो प्रभू" कहकर झुकना
जरूर है। तो ऐसी स्थिति होगी तब तो झुकेंगे ना! कोई भी किसी के आगे झुकता है तो उसमें
कोई बड़ापन होता है, कोई विशेषता होती है - उस विशेषता पर झुकता है। ऐसे तो कोई नहीं
झुकेगा ना। दिखाई दे - इन जैसी जीवन कोई की है ही नहीं, सदा खुश रहते हैं। रोने की
परिस्थिति में भी खुश रहें, मन खुश रहे। ऐसे नहीं हंसते रहो, लेकिन मन खुश हो।
पाण्डव क्या समझते हैं? ऐसा अनुभव दूसरों को होता है या अभी कम होता है? खुशमिजाज़
रहने वाले अपने चेहरे से बहुत सेवा करते हैं। मुख से बोलो, नहीं बोलो लेकिन आपकी
सूरत, ज्ञान की सीरत को स्वतः प्रत्यक्ष करेगी। तो यही याद रखना कि दिलखुश मिठाई
खानी है और औरों को भी खिलानी है। जो स्वयं खाता है वह खिलाने के बिना रह नहीं सकता
है। अच्छा!
वरदान:-
मनमनाभव की
स्थिति द्वारा मन के भावों को जानने वाले सफलता स्वरूप भव
जो बच्चे मनमनाभव की
स्थिति में स्थित रहते हैं वह औरों के मन के भाव को जान सकते हैं। बोल भल क्या भी
हो लेकिन उसका भाव क्या है, उसे जानने का अभ्यास करते जाओ। हर एक के मन के भाव को
समझने से उनकी जो चाहना वा प्राप्ति की इच्छा है, वह पूरी कर सकेंगे। इससे वे
अविनाशी पुरूषार्थी बन जायेंगे फिर सर्विस की सफलता थोड़े समय में बहुत दिखाई देगी
और आप पुरूषार्थी स्वरूप के बजाए सफलता स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सोते समय सब
कुछ बाप हवाले कर खाली हो जाओ तो व्यर्थ वा विकारी स्पप्न नहीं आयेंगे।