11-08-13  प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 26-04-77 मधुबन

 

स्वतन्त्रता ब्राह्मणों का जन्म-सिद्ध अधिकार है

 

आवाज़ से परे रहने वाली स्थिति प्रिय लगती है, वा आवाज़ में आने वाली स्थिति प्रिय लगती है? मास्टर ऑलमाईटी अथॉरिटी इस श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित हो? आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो सकते हो? ऑलमाईटी अथॉरिटी के हर डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने की हिम्मत का अभ्यास हो गया है? बाप-दादा डायरेक्शन दे कि व्यर्थ संकल्पों को एक सेकेण्ड में स्टॉप करो, तो कर सकते हो? बाप-दादा कहे इस सेकेण्ड में मास्टर शक्ति का सागर बन विश्व को शक्ति का महादान दो, तो एक सैकण्ड में इस स्टेज पर स्थित हो, देने वाले दाता का कार्य कर सकते हो? डायरेक्शन मिलते ही मास्टर सर्वशक्तिवान बन विश्व को शक्तियों का दान दे सकते हो? ऐसे एवररेडी हो? इस स्टेज पर आने से पहले अपने आप से रिहर्सल करो। कोई भी इन्वेन्शन विश्व के आगे रखने से पहले अपने आप से रिहर्सल की जाती है। ऐसी रिहर्सल करते हो? इस कार्य में वा अभ्यास में सफल कौन हो सकता है? जो हर बात में स्वतंत्र होगा - किसी भी प्रकार की परतंत्रता न हो। बाप-दादा भी स्वतंत्र बनने की ही शिक्षा देते रहते हैं। आजकल के वातावरण प्रमाण स्वतंत्रता चाहते हैं। सबसे पहली स्वतंत्रता पुरानी देह के अन्दर के सम्बन्ध से है। इस एक स्वतंत्रता से और सब स्वतंत्रता सहज आ जाती हैं। देह की परतंत्रता अनेक परतंत्रता में, न चाहते हुए भी ऐसे बांध लेती है जो उड़ते पक्षी आत्मा को पिंजरे का पक्षी बना देती है। तो अपने आपको देखो स्वतंत्र पक्षी हैं वा पिंजरे के पक्षी हैं? पुरानी देह वा पुराने स्वभाव संस्कार व प्रकृति के अनेक प्रकार के आकर्षण वश वा विकारों के वशीभूत होने वाली परतंत्र आत्मा तो नहीं हो? परतंत्रता सदैव नीचे की ओर ले जाएगी अर्थात् उतरती कला की तरफ ले जायेगी। कभी भी अतीइन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का अनुभव नहीं करने देगी। किसी न किसी प्रकार के बन्धनों में बंधी हुई परेशान आत्मा अनुभव करेंगे, बिना लक्ष्य, बिना कोई रस, नीरस स्थिति का अनुभव करेंगे। सदा स्वयं को अनुभव करेंगे - न किनारा, न कोई सहारा स्पष्ट दिखाई देगा; न गर्मी का अनुभव, न खुशी का अनुभव - बीच में भंवर में होंगे। कुछ पाना है, अनुभव करना है, चाहिए-चाहिए में मंजिल से अपने को सदा दूर अनुभव करेंगे। यह है पिंजरे के पक्षी की स्थिति। (बिजली घड़ी-घड़ी बन्द हो जाती थी) अभी भी देखो प्रकृति के बन्धनों से मुक्त आत्मा खुश रहती है। अब अपना स्वतंत्र-दिवस मनाओ। जैसे बाप सदा स्वतंत्र है - ऐसे बाप समान बनो। बाप-दादा अभी भी बच्चों को परतंत्र आत्मा देख क्या सोचेंगे? नाम है मास्टर सर्वशक्तिवान और काम है पिंजरे का पक्षी बनना? जो अपने आपको स्वतंत्र नहीं कर सकते, स्वयं ही अपनी कमजोरियों में गिरते रहते वे विश्व परिवर्तक कैसे बनेंगे। तो अपने बन्धनों की सूची सामने रखो। सूक्ष्म-स्थूल सबको अच्छी रीति चैक करो। अब तक भी अगर कोई बन्धन रहा है तो बन्धनमुक्त कभी भी नहीं बन सकेंगे। ‘अब नहीं तो कब नहीं!’ सदा यही पाठ पक्का करो। समझा? स्वतंत्रता ब्राह्मण जन्म का अधिकार है। अपना जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त करो। अच्छा।

 

बाप समान सदा स्वतंत्र आत्माएं, सर्व प्राप्ति के अधिकारी, प्रकृति और माया को अधीन बनाने वाले, सदा अतीन्द्रिय सुख में झूलने वाले ऐसे मास्टर सुख के सागर बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

दीदी जी से मुलाकात -

 

आप सभी विशेष आत्माएं बाप-दादा के कार्य में सहयोगी हो। सहयोग के रिटर्न में विशेष सर्व और सहज प्राप्तियां होती हैं। जितना समय जो सर्व प्रकार से सहयोगी बनते हैं, उसका प्रत्यक्ष-फल सर्व प्राप्तियों का अनुभव सहज होता है। जैसे समय प्रति समय बाप के सहयोगी बनते हैं तो बाप भी रिटर्न में मदद करते हैं। हिम्मत का संकल्प एक बच्चे का और हज़ार श्रेष्ठ संकल्पों का सहयोग बाप का। ऐसा सहयोग समय पर देते रहते हैं। बच्चों ने सोचा और बाप के सहयोग से हुआ। यह है विशेष आत्माओं को सहयोगी बनने का प्रत्यक्ष फल। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने वाली आत्मा कब मुश्किल का अनुभव नहीं करेगी - इतना सहज लगेगा जैसे अभी-अभी की हुई बात को रिपीट कर रहे हैं। कल्प पहले की है - नहीं, अभी-अभी की है, अभी-अभी रिपीट कर रहे हैं। कल की बात को भी सोचना पड़ेगा, खेंचना पड़ेगा - लेकिन अभी-अभी की है। इसमें बुद्धि पर बोझ नहीं आयेगा। करना है, कैसे होगा यह बोझ भी नहीं। अभी-अभी किया है और अभी-अभी रिपीट करना है। ऐसा प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है। तो प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो ना भविष्य के आधार पर सोच रहे हो। भविष्य तो है ही। लेकिन भविष्य से भी श्रेष्ठ ‘प्रत्यक्ष फल’ है। प्रत्यक्ष को छोड़ भविष्य के इन्तजार में नहीं रहना है। अभी-अभी बाप के बने और अभी-अभी मिला। बाप से दूर रहने वाली आत्माएं भविष्य अर्थात् दूर की बातें सोचेंगे। समीप रहने वाली आत्माएं सदा प्रत्यक्षफल का अनुभव करेंगी। एक का लाख गुणा के रूप में रिटर्न में अनुभव करेंगी। ऐसे होता है ना।

 

चल नहीं रहे हैं लेकिन कोई चला रहा है। अपनी गोदी में बिठाकर चला रहे हैं, तो मुश्किल थोड़े ही होगा! जैसे बच्चा अगर बाप की गोदी में घूमता है तो उसको कब थकावट नहीं होगी, मजा आयेगा। अपने पांव से चले तो थकेगा भी, रोयेगा भी, चिल्लायेगा भी। यह तो बाप चलाने वाला चला रहा है। बाप की गोदी में बैठे हुए चल रहे हैं। कितना अति इन्द्रिय सुख व आनन्द का अनुभव होता है! जरा भी मेहनत वा मुश्किल का अनुभव नहीं। प्राप्ति है वा मेहनत है? संगमयुगी सदा साथी बनने वाली आत्माओं को मेहनत क्या होती है, वह ‘अविद्या मात्रम्’ होते हैं। ऐसे बहुत थोड़े होंगे जिन्हों को मेहनत अविद्या मात्रम् होगी। यह है फाईनल स्टेज की निशानी। उसके समीप आ रहे हैं। पुरूषार्थ भी एक नैचुरल कर्म हो जाए। जैसे और कर्म नैचुरल है ना। उठना, बैठना, चलना, सोना नैचुरल कर्म हैं, वैसे स्वयं को सम्पन्न बनाने का पुरूषार्थ भी नैचुरल कर्म अनुभव हो तब इस नेचर को परिवर्तन कर सकेंगे। अभी तो वह सर्विस रही हुई है। अभी आप सब जा रहे हो, सभी को फाईनल पेपर देने लिए तैयार करने। क्योंकि आप सब निमित्त हो ना। ऐसे एवररेडी बन जाओ जो कोई भी छोटी वा बड़ी परीक्षा में अचल रहे। अभी तो छोटे पेपर में हलचल में आ जाते हैं। स्वयं के पेपर्स द्वारा ही हलचल में हैं। तो अब ऐसी तैयारी कर भेजना जो पुराने यहाँ आवें तो एवररेडी दिखाई पड़े। बाप-दादा ने रियलाइजेशन कोर्स दिया है तो उसकी रिजल्ट भी लेंगे। अनुभवी बनाते जाओ। उच्चारण करने वाले बन जाते हैं लेकिन अनुभवी कम बनते हैं। अगर अनुभवी मूर्त्त बन जाए तो अनुभवी कब धोखा नहीं खायेंगे। धोखा खाना अर्थात् अनुभवी नहीं। ऐसा ही लक्ष्य रख करके सभी में ऐसे लक्षण भरते जाओ। यह रिजल्ट देख लेंगे। अभी तो यही उमंग सर्व का होना चाहिए कि ‘सम्पन्न बन विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न करेंगे।’ नहीं तो विश्व परिवर्तन का कार्य भी हलचल में है। अभी-अभी बादल भरते हैं, थोड़ा बरसते हैं - फिर बिखर जाते हैं। कारण? स्थापना करने वाले विश्व परिवर्तक ही हिलते रहते हैं। अपने निशाने से बिखर जाते हैं तो परिवर्तन के बादल भी बिखर जाते हैं। गरजते हैं लेकिन बरसते नहीं। अच्छा।

 

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात -

 

जैसे लौकिक में हद के रचता कहलाए जाते हो, वैसे ब्राह्मण जीवन में अपने को इस प्रकृति वा माया के रचता समझ करके चलते हो? रचता कभी भी अपनी रचना के वशीभूत, अधीन नहीं होता। रचता अर्थात् मालिक। मालिक कभी अधीन नहीं होता, अधिकारी होते हैं। 63 जन्म तो पिंजरे में रहे, अब बाप आ करके पिंजरे से मुक्त करते हैं। जब मुक्त आत्मा बन गए फिर पिंजरे में क्यों जाए? अर्थात् बन्धन में क्यों आए? निर्बन्धन हो? कभी भी क्या करे - माया आ गई! चाहते नहीं थे - लेकिन हो गया; ऐसे तो नहीं बोलते या सोचते? पुरुषार्थी हैं, अभी थोड़ा बहुत तो रहेगा ही, कर्मातीत तो नहीं है - यह पुरूषार्थहीन बनाने के संकल्प है। बाप द्वारा प्राप्त हुआ खज़ाना और उस खज़ाने के सुख व आनन्द का अनुभव अभी नहीं किया तो सतयुग में भी नहीं करेंगे। सतयुग में, बाप द्वारा यह खज़ाना प्राप्त हुआ है, यह स्मृति इमर्ज नहीं होगी। अभी त्रिकालदर्शी ही बाप के सम्मुख हो; फिर बाप वानप्रस्थ में चले जायेंगे।

 

अभी जो पाना है, वह अभी ही पाना है। पा लेंगे, नहीं। सारा दिन खुशी में ऐसे खोये हुए रहो जो माया देख भी न सके। दूर से ही भाग जाए। जैसे आजकल की बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती जो मनुष्य नजदीक से दूर जाकर पड़ता। शॉक आता है ना। ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे। ऐसी करेन्ट होनी चाहिए। लेकिन करेन्ट किसमें होगी? जिसका कनेक्शन ठीक होगा। अगर कनेक्शन ठीक नहीं तो करेन्ट नहीं आयेंगी। कनेक्शन शब्द का अर्थ यह नहीं, जिस समय याद में बैठते उस समय कनेक्शन जुट जाता, लेकिन चलते-फिरते हर सेकेण्ड कनेक्शन जुटा हुआ हो। ऐसा अटूट कनेक्शन है जो करेन्ट आये? पाण्डवों का टाईटिल है - ‘विजयी’। कल्प-कल्प के विजयी हैं, यह पक्का है। यादगार देखकर खुशी होती है ना।

 

रोज अमृतवेले बाप वरदान देते हैं; अगर रोज वरदान लेते रहो तो कभी भी कमज़ोर नहीं हो सकते। वरदान लेने के सिर्फ पात्र बनना। जो भी चाहिए अमृतवेले सब मिल सकता है। ब्राह्मणों के लिए स्पेशल समय फिक्स है जैसे कितना भी कोई बड़ा आदमी हो, लेकिन फिर भी अपने फैमली के लिए विशेष टाईम जरूर रखेंगे। तो अमृतवेला विशेष बच्चों के प्रति है, फिर विश्व की आत्माओं प्रति। पहला चान्स बच्चों का है। तो सब अच्छी तरह से चान्स लेते हो? इसमें अलबेले नहीं बनना।

 

मायाजीत बच्चों को देख बाप-दादा को भी खुशी होती है। जो बार-बार चढ़ते और गिरते रहते तो बाप भी देख रहम दिल होने कारण विशेष उन आत्माओं को रहम की दृष्टि से देखते कि यह कब मायाजीत बन जाए। अच्छा।

 

वरदान:- हर एक को प्यार और शक्ति की पालना देने वाले प्यार के भण्डार से भरपूर भव

 

जो बच्चे जितना सभी को बाप का प्यार बांटते हैं उतना और प्यार का भण्डार भरपूर होता जाता है। जैसे हर समय प्यार की बरसात हो रही है, ऐसे अनुभव होता है। एक कदम में प्यार दो और बार-बार प्यार लो। इस समय सबको प्यार और शक्ति चाहिए, तो किसको बाप द्वारा प्यार दिलाओ, किसको शक्ति ...जिससे उनका उमंग-उत्साह सदा बना रहे - यही विशेष आत्माओं की विशेष सेवा है।

 

स्लोगन:- जो मायावी चतुराई से परे रहते हैं वही बाप को अति प्रिय हैं।