ओम् शान्ति।
रुहानी बाप बैठ रुहानी बच्चों को समझाते हैं, समझा-समझाकर कितना समझदार बना देते
हैं। पढ़ाई भी सहज है ना। वह है स्थूल पढ़ाई और यह है सूक्ष्म पढ़ाई। तुम बच्चे
जानते हो यह पढ़ाई बाप के सिवाए और कोई पढ़ा नहीं सकते हैं। बाप आये ही है पवित्र
बनाने और पढ़ाने। एम-आब्जेक्ट सामने खड़ी है, तो ऐसे बाप को याद कर खुशी में रोमांच
खड़े हो जाने चाहिए। यह भी बच्चे जानते हैं कि दिन-प्रतिदिन हमको शान्ति में ही जाना
है। शान्ति तो सबको बहुत पसन्द होती है। बड़े आदमी जास्ती नहीं बोलते हैं और न जोर
से बोलते हैं। तुम बहुत-बहुत बड़े आदमी बनते हो वास्तव में आदमी नहीं कहेंगे, तुम
तो देवता बनते हो। देवताओं का बोलना बहुत थोड़ा होता है। तुमको भी जब देवता बनना है
तो टाकी से बदल साइलेन्स में रहने का अभ्यास करो। शान्ति में रहने वाले के लिए
समझेंगे कि इनका अपने ऊपर अटेन्शन है जबकि तुमको शान्तिधाम जाना है तो बोलना भी
बहुत आहिस्ते (धीरे) है। आहिस्ते बोलते-बोलते शान्तिधाम में चले जाना है। जितना तुम
शान्ति में रहते हो उतना शान्ति फैलाते हो। तुमको बहुत शान्ति में रहना चाहिए। आवाज
से बात करना अच्छा नहीं लगता। क्रोध भी अच्छा नहीं है। बच्चों में कोई भी विकार नहीं
रहने चाहिए। देखना है - हम कोई से लड़ते-झगड़ते तो नहीं हैं! बाप ने समझाया है हियर
नो ईविल, टाक नो ईविल... जो बाते तुमको पसन्द नहीं हैं, उन बुरी बातों से तुम्हें
किनारा कर देना चाहिए तो दोनों का मुख बन्द रहेगा। हर बात में दैवी गुणों को धारण
करना है। कोई आवाज से बात करे तो बोलो शान्त, आवाज मत करो। तुम जानते हो हम शान्ति
स्थापन करते हैं। सतयुग में शान्ति रहती है ना। मूलवतन में तो है ही शान्ति। शरीर
ही नहीं तो बोलेंगे फिर कैसे। बाप बच्चों को श्रीमत तो बहुत अच्छी देते हैं, समझाते
हैं मीठे बच्चों अब तुम्हें अपने घर चलना है, टाकी से मूवी में आना है फिर साइलेन्स
में चले जायेंगे। जो भी मिले उनको यही पैगाम देना है। तुम जितना साइलेन्स में रहेंगे
उतना समझेंगे यह लोग किसी धुन में हैं। शान्त रहने का स्वभाव बहुत अच्छा है। वह
बहुत मीठे लगते हैं। फालतू बोलने से न बोलना अच्छा है।
तुम सच्चे-सच्चे पैगम्बर हो। तुम्हारी सबके ऊपर मेहर (कृपा) होनी चाहिए। मेहर
करने वाले बच्चे बड़े शान्त में बाप की याद में रहेंगे। सिर्फ पैगाम देना है कि
बेहद के बाप को याद करो तो बेहद का सुख-शान्ति मिलेगा। लौकिक बाप के पास बहुत धन है
तो बहुत वर्सा मिलेगा ना। बेहद के बाप पास तो है विश्व की बादशाही, जो हर 5000 वर्ष
बाद तुम्हें विश्व की बादशाही मिलती है।
तुम बच्चों को सभी की बहुत रूची से सर्विस करनी है। हरेक को सेवा के लायक बनना
है। जो दूसरों की प्यार से सेवा करते हैं उनको सभी प्यार करते हैं। कभी भी सेवा का
अहंकार नहीं आना चाहिए। तुम्हें बाप द्वारा ज्ञान की खशतूरी मिली है, वह दूसरों को
देनी है। एक दो को याद दिलाते रहो कि शिवबाबा याद है? इसमें खुशी भी होती है। याद
दिलाने वाले को थैंक्स देना चाहिए। याद की यात्रा से तुम बच्चे बहुत-बहुत सेफ रहेंगे।
जितना याद में रहेंगे उतना खुशी भी रहेगी और मैनर्स भी सुधरते जायेंगे। तुम्हें अपने
कैरेक्टर्स जरूर-जरूर सुधारने हैं। हरेक अपनी दिल से पूछे हमारा स्वभाव बहुत-बहुत
मीठा है? कभी किसी को नाराज़ तो नहीं करते। ऐसा वातावरण कभी न हो जो कोई नाराज़ हो
जाए। ऐसी कोशिश करनी है क्योंकि तुम बच्चे बहुत ऊंच सर्विस पर हो। तुम्हें इस सारे
माण्डवे को रोशनी देनी है। तुम धरती के चैतन्य सितारे हो। कहा भी जाता है नक्षत्र
देवता... अब वह सितारे कोई देवता नहीं हैं, तुम तो उनसे महान बलवान हो क्योंकि तुम
सारे विश्व को रोशन करते हो, तुम ही देवता बनने वाले हो। जैसे ऊपर सितारों की
रिमझिम है, कोई सितारा बहुत तीखा होता है और कोई हल्का। कोई चन्द्रमा के नज़दीक होता
है। तुम बच्चे भी योगबल से सम्पूर्ण पवित्र बनते हो तो चमकते हो।
अभी तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों की लाटरी मिल रही है तो कितनी खुशी रहनी
चाहिए। अन्दर में खुशी की उछलें मारते रहो। यह तुम्हारा जन्म हीरे जैसा गाया जाता
है। तुम ब्राह्मण ही नॉलेजफुल बनते हो तो तुमको नॉलेज की ही खुशी रहती है। इन
देवताओं से भी तुम श्रेष्ठ हो। तो तुम्हारा चेहरा सदा खुशी से खिला रहे। बाप बच्चों
को आशीर्वाद करते हैं मीठे बच्चे सदा शान्त भव! चिरन्जीवी भव! अर्थात् बहुत जन्म
जियो। आशीर्वाद तो बाप से मिलती है फिर भी हरेक को अपना पुरुषार्थ करना है कि हम
चिरन्जीवी कैसे बनें। बाप को याद करने से तुम चिरन्जीव बन रहे हो। यह आशीर्वाद बाप
देते हैं। ब्राह्मण लोग भी कहते हैं आयुश्वान भव। बाप भी कहते हैं बच्चे सदा जीते
रहो। तुम्हें आधाकल्प के लिए काल नहीं खायेगा। सतयुग में मरने का नाम नहीं होता। यहाँ
तो मनुष्य मरने से डरते हैं ना। तुम तो पुरुषार्थ कर रहे हो मरने लिए। तुम जानते हो
बाबा को याद करते-करते हम यह शरीर छोड़ अपने शिवबाबा के पास जायेंगे, फिर स्वर्गवासी
बनेंगे।
अभी तुम मोस्ट बिलवेड बाप के बच्चे बने हो तो तुमको भी बाप जैसा बहुत-बहुत मीठा
बहुत प्यारा बनना है। बाबा पत्रों में भी लिखते हैं मीठे-मीठे लाडले सिकीलधे बच्चों...
बाबा बहुत मीठा है ना। प्रैक्टिकल में अनुभव करते हो कि बाबा कितना मीठा, कितना
प्यारा है। हमें भी ऐसा बनाते हैं। यह भी तुम जानते हो कि हम कितने मीठे, कितने
प्यारे थे। हम ही पूज्य से फिर पुजारी बनें तो खुद को पूजते रहे। यह भी बड़ी
वन्डरफुल समझने की बातें हैं।
तुम बच्चे जानते हैं आधाकल्प के हमारे सब दु:ख दूर करने वाला बाबा अभी आया हुआ
है। कहते हैं हर-हर महादेव। अब वह महादेव तो नहीं है। दु:ख तो बाप ही रहेंगे। दु:ख
हरकर सुख देने वाला बाप है। आधाकल्प तुमने बहुत दु:ख देखे हैं। 5 विकारों की बीमारी
बहुत बढ़ गई है, इस बीमारी ने बहुत दु:खी किया है, इसलिए बाप कहते हैं मीठे बच्चे,
यह जो कर्मो का खाता है, उनको अब ठीक करो। व्यापारी लोग भी 12 मास का खाता रखते हैं
ना।
बाप समझाते हैं बच्चे, अभी सारी सृष्टि पर देखो कितना किचड़ा है, यह है ही नर्क,
तो बाप को आना पड़ता है नर्क को स्वर्ग बनाने। बाबा बहुत उकीर (प्रेम) से आते हैं,
जानते हैं मुझे बच्चों की सेवा में आना है। मैं कल्प-कल्प तुम बच्चों की सेवा पर
उपस्थित होता हूँ। जब खुद आते हैं तब बच्चे समझते हैं बाप हमारी सेवा में उपस्थित
हुए हैं। यहाँ बैठे सभी की सेवा हो जाती है। सारी सृष्टि का कल्याणकारी दाता तो एक
ही है ना। बाप जानते हैं सारी दुनिया की जो भी आत्मायें हैं सबको मैं ही वर्सा देने
आता हूँ। बेहद के बाप की नज़र दुनिया की आत्माओं तरफ जाती है। भल यहाँ बैठे हैं
परन्तु नज़र सारे विश्व पर और सारे विश्व के मनुष्यमात्र पर है, क्योंकि सारी विश्व
को ही निहाल करना है। ड्रामा प्लैन अनुसार कल्प पहले मिसल सारे विश्व की आत्मायें
निहाल हो जाने वाली हैं। बाप सब बच्चों को याद करते हैं, नज़र तो जाती है ना।
संगमयुग पर ही बाप बच्चों की सेवा में उपस्थित होते हैं उनकी भेंट में कोई भी सेवा
कर न सके। उनकी है बेहद की सेवा। तुम बच्चे भी बाप का शो तब कर सकेंगे जब उन जैसी
सेवा करेंगे। सेवा करने वालों को फल भी बहुत भारी मिलता है। बच्चों को नशा भी चढ़ता
है कि हम श्रीमत पर सारे विश्व के मनुष्यों को सुख देते हैं।
बाप कहते हैं मीठे बच्चे, अब ज्ञान रत्नों से अपनी खूब झोली भरो, जितनी भरनी है
भरो। अपना टाइम बरबाद न करो। बाप की याद में टाइम को आबाद करो। जो अच्छी रीति धारणा
करते हैं वह फिर औरों की भी अच्छी सर्विस जरूर करेंगे। समय बरबाद नहीं करेंगे। बच्चों
को पुरुषार्थ कर अन्तर्मुखी बनना है। अन्तर आत्मा है ना। यह निश्चय करना है कि हम
आत्माओं को बाप समझा रहे हैं। सोलकानसेस हो रहना ही सच्चा-सच्चा अन्तर्मुखी बनना
है। अन्तर्मुखी अर्थात् अन्दर जो आत्मा है, उनको सब कुछ बाप से ही सुनना है। बाप
प्यार से बार-बार समझाते हैं। मात-पिता और जो भी अच्छे अनन्य बड़े भाई-बहन हैं, जो
अच्छी सर्विस करते हैं उनसे सीखते जाओ। अन्दर में यह निश्चय करो कि हमें फालतू टाइम
नहीं गँवाना है। शरीर निर्वाह भी करना है, अपनी रचना को भी देखना है। सिर्फ ममत्व
नहीं रखना है। ममत्व रखने से नुकसान हो जायेगा। ममत्व एक बाप में रखो। यहाँ तुम बाप
के सम्मुख हो। आत्मायें और परमात्मा सम्मुख हैं क्योंकि यहाँ स्वयं बाप आत्माओं को
पढ़ाते हैं। वहाँ आत्मायें आत्माओं को पढ़ाती हैं।
यह सब बातें तुम बच्चों के अन्दर मंथन होनी चाहिए। स्टूडेन्ट की बुद्धि में सारा
दिन पढ़ाई रहती है ना। तुम्हारी बुद्धि में भी सारी पढ़ाई है। यह है रुहानी पढ़ाई।
अच्छे स्टूडेन्ट जो होते हैं वह सदैव एकान्त में जाकर पढ़ते हैं। स्टूडेन्ट आपस में
मिलते-जुलते हैं, तो पढ़ाई पर ही वार्तालाप करते हैं। इस बेहद की पढ़ाई में तो और
ही खुशी से लग जाना चाहिए।
तुम बच्चे अभी बाप के मददगार बनते हो। याद में रहना ही मदद करना है क्योंकि याद
की यात्रा माना शान्ति की यात्रा इसलिए कहा जाता है हर एक अपने घर को स्वर्ग बनाओ।
हरेक की बुद्धि में अल्फ और बे है। अल्फ को याद करो तो बादशाही मिलेगी। और कुछ करना
नहीं है। सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो राजाई तुम्हारी। तुम बच्चे -
सबको यही पैगाम देते रहो कि बाप को याद करो तो स्वर्ग की राजाई मिलेगी। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से
यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद में अपना टाइम आबाद करना है। यह अमूल्य समय कहाँ भी बदबाद
नहीं करना है। पुरुषार्थ कर अन्तर्मुखी अर्थात् सोलकान्सेस होकर रहना है।
2) अभी हम देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मण हैं, अभी बाप द्वारा अविनाशी ज्ञान
रत्नों की लाटरी मिली है, नॉलेजफुल बने हैं तो चेहरा सदा खुशी से खिला रहे। अन्दर
में खुशी की उछलें मारते रहो।