26-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - ऊंच पद पाना
है तो आत्मा में ज्ञान का पेट्रोल भरते जाओ, सवेरे-सवेरे उठकर बाप को याद करो, कोई
भी उल्टी चलन नहीं चलो''
प्रश्नः-
बाबा हर बच्चे
की जन्म-पत्री जानते हुए भी सुनाते नहीं, क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि बाबा कहते मैं हूँ शिक्षक, मेरा काम है तुम बच्चों को शिक्षा देकर सुधारना,
बाकी तुम्हारे अन्दर क्या है, यह मैं सुनाऊंगा नहीं। मैं आया हूँ आत्मा को
इन्जेक्शन लगाने न कि शारीरिक बीमारी ठीक करने।
प्रश्नः-
तुम बच्चे अभी
किस बात से डरते नहीं हो, क्यों?
उत्तर:-
तुम अभी इस पुराने शरीर को छोड़ने से डरते नहीं हो क्योंकि तुम्हारी बुद्धि में है
- हम आत्मा अविनाशी हैं। बाकी यह पुराना शरीर भल चला जाए हमें तो वापिस घर जाना है।
हम अशरीरी आत्मा हैं। बाकी इस शरीर में रहते बाप से ज्ञान अमृत पी रहे हैं इसलिए
बाबा कहते बच्चे सदा जीते रहो; सर्विसएबुल बनो तो आयु बढ़ती जायेगी।
गीत:-
बचपन के दिन
भुला न देना......
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। जिसको अब मम्मा बाबा कहते हैं उनको भुलाना नहीं है। गीत
जिन्होंने बनाया है वह तो अर्थ को समझते नहीं हैं। यह निश्चय ही नहीं है कि हम उस
परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। उस परमपिता परमात्मा को, पतितों को पावन बनाने के
लिए आना पड़ता है। कितनी ऊंची सर्विस पर आते हैं। उनको कोई अभिमान नहीं है, उसको कहा
जाता है निरंहकारी। उनको निश्चयबुद्धि वा देही-अभिमानी होने की बात नहीं। वह कब
संशय में आते नहीं। देह-अभिमानी बनते ही नहीं। मनुष्य देह-अभिमानी बनते हैं तो फिर
देही-अभिमानी बनने में कितनी मेहनत लगती है। बाबा कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
मनुष्य तो कह देते हैं अपने को परमात्मा समझो। कितना फर्क है। एक तरफ याद करते हैं
पतित-पावन को, फिर कहते हैं सबमें परमात्मा है। उनको जाकर समझाना है। बाबा देखो कहाँ
से आया है तुम बच्चों को सुधारने के लिए। जिनको पक्का निश्चय है वह तो कहते हैं
बरोबर आप हमारे मात-पिता हो। हम आपकी श्रीमत पर चल श्रेष्ठ देवता बनने के लिए यहाँ
आये हैं। परमात्मा तो सदैव पावन ही पावन है। उनको बुलाते हैं - पतित दुनिया में आओ।
तो जरूर पतित शरीर में ही उसको आना पड़ेगा। पतित दुनिया में तो पावन शरीर होता ही
नहीं। तो बाप देखो कितना निरहंकारी है, पतित शरीर में आना पड़ता है। हम अपने को
सम्पूर्ण नहीं कहेंगे, अब बन रहे हैं।
अब बेहद का बाप कहते हैं बच्चे, श्रीमत पर चलो। बाप श्रीमत देते हैं - सवेरे
उठकर याद करो तो पाप भस्म हो जायें। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो विकर्म विनाश नहीं
होंगे। बन्दर के बन्दर ही रह जायेंगे और फिर बहुत कड़ी सज़ा खानी पड़ेगी। जानवर आदि
तो सजा नहीं खाते हैं। सज़ा मनुष्य के लिए है। अगर बैल किसको मारता है, वह मर भी
जाये तो क्या उनको जेल में डालेंगे! मनुष्य को तो फौरन जेल में डाल देंगे। बाप
समझाते हैं इस समय मनुष्य तो उनसे भी बदतर हैं। उनको फिर मनुष्य से देवता बनना है।
बाबा समझाते हैं, यह लक्ष्मी-नारायण भी गीता का ज्ञान नहीं जानते हैं। वहाँ दरकार
ही नहीं क्योंकि बाप है रचयिता। वहाँ कोई त्रिकालदर्शी होते ही नहीं। अभी यह लोग
त्रिकालदर्शी न होते हुए भी कह देते हैं हम भगवान हैं। तो बड़े अक्षरों में लिख दो
कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है न कि श्रीकृष्ण। मूल यह एकज़ भूल ही किसकी
बुद्धि में नहीं बैठती है। न बच्चे किसकी बुद्धि में बिठाते हैं। भारत ही स्वर्ग
था, यह भूल गये हैं। कल्प की आयु ही लाखों वर्ष कह दी है इसलिए कोई पुरानी चीज़
मिलती है तो कहते हैं यह लाखों वर्ष की है। कभी कोई-कोई कहते भी हैं - क्राइस्ट से
3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। तुम जानते हो हम भी देवता थे। माया ने बिल्कुल ही
कौड़ी तुल्य बना दिया है। कोई भी मूल्य नहीं है। तो अब तुम बच्चों को भी घोर
अन्धियारे से निकलना चाहिए। कभी कोई ऐसा कर्तव्य नहीं करना चाहिए जो तुमको भी कहना
पड़े कि तुम कोई बन्दर हो। मैं कितना दूरदेश से आता हूँ, तुम्हारे मैले कपड़े धोने
के लिए, तुम्हारी आत्मा बिल्कुल मैली हो गई है। अब मुझे याद करो तो तुम्हारी ज्योति
जग जाये। ज्ञान का पेट्रोल भरते जाओ। तो वहाँ भी कुछ पद पाओ। वहाँ जाकर दास-दासी बनो,
यह तो अच्छा नहीं है। यह है राजयोग तो पद पाना चाहिए ऊंचा। दास-दासी जाकर बने तो
भगवान से क्या वर्सा पाया, कुछ भी नहीं। बाबा से कोई पूछे तो फट से बाबा बता सकते
हैं। काम करना चाहिए इशारे से। बिगर कहे जो काम करे सो देवता..। कहने से जो करे सो
मनुष्य। तुमको अब श्रीमत मिलती है देवता बनने की। श्रेष्ठ बनाने वाला बाप कहते हैं
कि प्रदर्शनी में बड़े-बड़े अक्षरों में ऐसा बोर्ड लगा दो तो सबकी ऑख खुले कि
श्रीकृष्ण भगवान नहीं है, वह तो पुनर्जन्म में आते हैं। वह समझते हैं श्रीकृष्ण
जन्म-मरण में नहीं आते हैं, वह तो हाज़िरा-हजूर है। हनूमान का पुजारी कहेगा -
हनुमान हाज़िरा-हज़ूर है। यहाँ तो एक ही बाप से वर्सा लेना है। गीता का भगवान हीरे
जैसा बनाते हैं। उनका नाम बदलने से भारत का यह हाल हुआ है। यह बात अजुन (अभी) इतनी
जोर से समझाई नहीं है। ज्ञान का सागर तो एक ही है। वही पतित-पावन है। वो लोग फिर
गंगा को पतित-पावनी कहते हैं। अब सागर से तो गंगा निकली है, तो क्यों नहीं सागर में
जाकर स्नान करें। उनको समझाने के लिए बच्चों में परिस्तानी गुण चाहिए। सबको समझाना
चाहिए - हम तो बाप की ही महिमा करते हैं। निराकार परमात्मा को तो सब मानते हैं।
परन्तु सिर्फ सर्वव्यापी कह देते हैं। कहते भी हैं हे राम, हे परमात्मा। माला सिमरते
हैं ना। ऊपर में है फूल। उसका भी अर्थ नहीं समझते। फूल और मेरू युगल दाना। माता-पिता
प्रवृत्ति मार्ग है ना। रचना रचेंगे तो जरूर माता-पिता चाहिए। तो इन द्वारा बैठ
लायक बनाते हैं, जो फिर माला सिमरी जाती है। परमात्मा का, आत्मा का रूप क्या है। वह
भी नहीं जानते हैं। तुमने नई बात सुनी है। परमात्मा एक छोटी बिन्दी है। वन्डर है ना
- इतनी छोटी बिन्दी को कोई ज्ञान सागर मानेंगे? मनुष्य को मानते हैं। परन्तु वह तो
मनुष्यों को मनुष्य द्वारा ही ज्ञान मिलता है - जिससे दुर्गति ही हो गई है। यहाँ तो
भगवान खुद आकर ज्ञान दे सद्गति करते हैं अर्थात् राजाओं का राजा बनाते हैं। तुम
वन्डर खाते हो। आत्मा छोटी सी बिन्दी है, अति सूक्ष्म है। तो बाप भी ऐसा ही होगा
ना। और है कितनी बड़ी अथॉरिटी। कैसे पतित दुनिया और पतित शरीर में आकर पढ़ाते हैं।
लोग क्या जानें इन बातों को। वह तो उल्टे लटके हुए हैं। अब बाप फरमान करते हैं जो
मेरी मत पर चलेंगे वही स्वर्ग का मालिक बनेंगे, इसमें डरने की बात ही नहीं। हम आत्मा
अशरीरी हैं। अब वापिस जाना है। मैं तो अविनाशी आत्मा हूँ। बाकी यह पुराना शरीर भल
चला जाये। हाँ बाबा ज्ञान अमृत पिलाते हैं इसलिए भल जीते रहें। वह भी जो सर्विसएबुल
होंगे उनकी आयु बढ़ेगी। प्रदर्शनी में बहुत सर्विस होनी है, बहुत इप्रूवमेन्ट होगी।
श्रीकृष्ण की महिमा और परमात्मा की महिमा में बहुत फ़र्क है। बाप कहते हैं तुम
स्वर्ग में पावन थे। अब पतित कैसे बने हो, जानना चाहिए ना। बाप आकर पत्थर बुद्धि को
पारस बनाते हैं।
ईश्वरीय सन्तान को कभी भी किसको मन्सा-वाचा-कर्मणा दु:ख नहीं देना चाहिए। बाप
कहते हैं दु:ख देंगे तो महान दु:खी होकर मरेंगे। हमेशा सबको सुख देना चाहिए। घर में
मेहमानों की बहुत अच्छी सेवा की जाती है। यह पुराना शरीर है, भोगना भोग,
हिसाब-किताब चुक्तू करना है, इसमें डरना नहीं है। नहीं तो फिर सजा खानी पड़ेगी।
बहुत मीठा बनना है। बाप कितना प्यार से समझाते हैं। कमाई में कभी उबासी वा झुटका नहीं
आना चाहिए। बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम सदा निरोगी बन जायेंगे। तुमको स्वर्ग
में ले चलने आया हूँ, तो कोई भी कुकर्म मत करो। संकल्प तो बहुत आयेंगे - फलानी चीज़
उठाकर खा लें। इनको भाकी पहन लेवें। अरे बाप तो बच्चों की जन्म-पत्री जानते हैं,
इसलिए मैनर्स अच्छे धारण करने हैं। बाप कहते हैं मैं सभी की जन्म-पत्री जानता हूँ।
परन्तु एक-एक को बैठ सुनाऊंगा क्या कि तुम्हारे अन्दर क्या है। मेरा काम है शिक्षा
देना। मैं तो टीचर हूँ। ऐसे नहीं बाबा तो जानते हैं - हमारी दवाई आपेही भेज देंगे।
बाबा कहेंगे बीमारी है तो डाक्टर के पास जाओ। हाँ सबसे अच्छी दवाई है योग। बाकी मैं
कोई डाक्टर थोड़ेही हूँ जो बैठ दवाई दूँगा। हाँ कभी दे भी देता हूँ, ड्रामा में कुछ
नूँध है तो। बाकी मैं तुम्हारी आत्मा को इन्जेक्शन लगाने आया हूँ। ड्रामा में है तो
कभी दवा भी देते हैं। बाकी ऐसे नहीं बाबा समर्थ है, हमारी बीमारी को क्यों नहीं छुड़ा
सकते हैं। भगवान तो जो चाहे सो कर सकता है। नहीं, बाप तो आये ही हैं पतितों को पावन
बनाने। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को कभी दु:ख नहीं देना है। कर्म-भोग से डरना
नहीं है। खुशी-खुशी से पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करना है।
2) संकल्पों के वश हो कोई भी कुकर्म नहीं करना है। अच्छे मैनर्स धारण करने हैं।
देवता बनने के लिए हर बात इशारे से समझ करनी है। कहलवाना नहीं है।
वरदान:-
बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और रूहानी नशे में
रहने वाले सर्वश्रेष्ठ, सम्पत्तिवान भव
वर्तमान समय आप बच्चे ऐसे
श्रेष्ठ सम्पूर्ण अधिकारी बनते हो जो स्वयं आलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर आपका अधिकार है।
परमात्म अधिकारी बच्चे सर्व संबंधों का और सर्व सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त कर लेते
हैं। इस समय ही बाप द्वारा सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान मिलता है। आपके पास
सर्व गुणों की, सर्व शक्तियों की और श्रेष्ठ ज्ञान की अविनाशी सम्पत्ति है, इसलिए
आप जैसा सम्पत्तिवान और कोई नहीं।
स्लोगन:-
सदा
अलर्ट रहो तो अलबेलापन समाप्त हो जायेगा।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - “परमात्मा के बारे में अनेक मनुष्यों की मत का
आखरीन फैंसला''
अभी तो यह सारी दुनिया जानती है कि परमात्मा एक है, उस ही परमात्मा को कोई शक्ति
मानते हैं, कोई कुदरत कहते हैं, मतलब तो कोई न कोई रूप में जरुर मानते हैं। तो जिस
वस्तु को मानते हैं अवश्य वह कोई वस्तु होगी तब तो उनके ऊपर नाम पड़े हैं परन्तु उस
एक वस्तु के बारे में इस दुनिया में जितने भी मनुष्य हैं उतनी मतें हैं, परन्तु चीज़
फिर भी एक ही है। उसमें मुख्य चार मतें सुनाते हैं - कोई कहता है ईश्वर सर्वत्र है,
कोई कहता है, ब्रह्म ही सर्वत्र है। कोई कहता ईश्वर सत्यम् माया मिथ्यम्, कोई कहता
ईश्वर है ही नहीं, कुदरत ही कुदरत है। वो फिर ईश्वर को नहीं मानते। अब यह हैं इतनी
मतें। वो तो समझते हैं जगत् प्रकृति है, बाकी कुछ है नहीं। अब देखो जगत् को मानते
हैं परन्तु जिस परमात्मा ने जगत् रचा, उस जगत् के मालिक को नहीं मानते! दुनिया में
जितने अनेक मनुष्य हैं, उन्हों की इतनी मतें, आखरीन भी इन सभी मतों का फैंसला स्वयं
परमात्मा आकर करता है। इस सारे जगत् का निर्णय परमात्मा आकर करता है अथवा जो
सर्वोत्तम शक्तिवान होगा, वही अपनी रचना का निर्णय विस्तारपूर्वक समझायेगा, वही हमें
रचता का भी परिचय देते हैं और फिर अपनी रचना का भी परिचय देते हैं। अच्छा - ओम्
शान्ति।