17-09-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 14.01.90 "बापदादा" मधुबन
पुरुषार्थ की तीव्रगति
में कमी के दो मुख्य कारण
आज ब्राह्मणों के के
अनादि रचता बापदादा विशेष अपनी डायरेक्ट समीप रचना, श्रेष्ठ रचना - ब्राह्मण बच्चों
को देख रहे हैं। बापदादा की अति प्यारी रचना ब्राह्मण आत्माएं हो जो समीप और समान
बनने के लक्ष्य को सदा स्मृति में रख आगे बढ़ रहे हो। जो आज ऐसी आदि रचना को विशेष
रूप से देख रहे थे। सर्व तीव्र पुरुषार्थी और पुरुषार्थी दोनों की गतिविधि को देख
रहे हैं। बापदादा द्वारा मिली हुई श्रेष्ठ सहज विधि द्वारा कब तीव्र गति व कब तीव्र,
कभी कम गति - दोनों ही प्रकार के ब्राह्मण बच्चों को देखा। पढ़ाई, पालना और प्राप्ति
- सबको एक जैसी एक द्वारा मिल रही है, फिर गति में अंतर क्यों? तीव पुरुषार्थी
अर्थात् फर्स्ट डिवीजन वाले और पुरुषार्थी अर्थात् सेकण्ड डिवीजन में पास होने वाले
। आज विशेष सभी का चार्ट चेक किया। कारण बहुत है लेकिन विशेष दो कारण है । चाहना
सबकी फर्स्ट डिवीजन की है, सेकण्ड डिवीजन में आना कोई नहीं चाहता। लेकिन लक्ष्य और
लक्षण, दोनों में अंतर पड़ जाता है। विशेष दो कारण क्या देखें?
एक - संकल्प शक्ति जो
सबसे श्रेष्ठ शक्ति है उसको यथार्थ रीति स्वयं प्रति वा सेवा प्रति समय प्रमाण
कार्य में लगाने की यथार्थ रीति नहीं है । दूसरा कारण - वाणी की शक्ति को यथार्थ
रीति, समर्थ रीति से कार्य में लगाने की कमी। इन दोनों में कमी का कारण है - यूज़ के
बजाय लूज़। शब्दो में अंतर थोड़ा है लेकिन परिणाम में बहुत अंतर पड़ जाता है। बापदादा
ने सिर्फ ३-४ दिन की रिजल्ट देखी, टोटल रिजल्ट नहीं देखी । हर एक की ३-४ दिन की
रिजल्ट में क्या देखा? ५०% अर्थात् आधा-आधा। संकल्प और बोल में दोनों शक्तियों के
जमा का खाता ५०% आत्माओं का ठीक था लेकिन बिल्कुल ठीक नहीं कह रहे है और ५०% आत्माओं
का जमा का खाता ४०% और व्यर्थ वा साधारण का खाता ६०% देखा। तो सोचो जमा कितना हुआ!
ज्यादा वजन किसका हुआ? इसमें भी वाचा के कारण मन्सा पर प्रभाव पड़ता है। मन्सा, वाचा
को भी अपनी तरफ खींचती है। आज बापदादा वाणी अर्थात् बोल की तरफ विशेष अटेंशन दिला
रहे हैं। क्योंकि बोल का सम्बन्ध अपने साथ भी है और सर्व के साथ भी है। औरे देखा
क्या? मन्सा द्वारा याद में रहना है - उसके लिए फिर भी बीच-बीच में प्रोग्राम रखते
हैं। लेकिन बोल के लिए अलबेलापन ज्यादा है, इसलिए बापदादा इस पर विशेष अण्डरलाइन करा
रहे हैं। दो वर्ष पहले बापदादा ने विशेष पुरुषार्थ में सेवा में आगे बढ़ने वाले
महारथी आत्माओं को और सभी को तीन बातें ‘बोल' के लिए कही थी - 'कम बोलो, धीरे बोलो
और मधुर बोलो। '' व्यर्थ बोलने की निशानी है - वह ज्यादा बोलेगा, मजबूरी से समय
प्रमाण, संगठन प्रमाण अपने को कण्ट्रोल करेगा लेकिन अन्दर ऐसा महसूस करेगा जैसे कोई
ने शान्ति में चुप रहने लिए बाँधा है। व्यर्थ बोल बडे-ते-बड़ा नुकसान क्या करता हैं?
एक तो शारीरिक एनर्जी समाप्त होती क्योंकि खर्च होता है और दूसरा - समय व्यर्थ जाता
है। व्यर्थ बोलने वाले की आदत क्या होगी? छोटी-सी बात को बहुत लंबा-चौड़ा करेगा और
बात करने का तरीका कथा माफिक होगा। जैसे रामायण, महाभारत की कथा.. इंट्रेस्ट से
सुनाते हैं ना। खुद भी रुचि से बोलेगा, दूसरे की भी रुचि पैदा कर लेगा। लेकिन
रिजल्ट क्या होती? रामायण, महाभारत की रिजल्ट क्या है? राम बनवास गया और कौरवों और
पाण्डवों की युद्ध हुई - जैसी दिखाते है ? सार कुछ भी नहीं लेकिन साज़ बहुत रमणीक
होता है। इसको कहने हैं कथा । व्यर्थ बोलने वाले माया के प्रभाव के कारण जो कमज़ोर
आत्मा हैं, उन्हों को सुनने और सुनाने के साथी बहुत जल्दी बनाते हैं। ऐसी आत्मा
एकांतप्रिय हो नहीं सकती। इसलिए वह साथी बनाने में बहुत होशियार होगा। बाहर से
कभी-कभी ऐसे दिखाई देता हैं कि इन्हों का संगठन पावरफुल और ज्यादा लगता है। लेकिन
एक बात सदा के लिए याद रखो कि ' 'माया के जाने का अंतिम चरण हैं, इसलिए विदाई
लेते-लेते भी अपना तीर लगाती रहती हैं। '' इसलिए कभी-कभी, कहीं-कहीं माया का प्रभाव
अपना काम कर लेता है। वह आराम से जाने वाली नहीं है । लास्ट घड़ी तक डायरेक्ट नहीं
तो इण्डायरेक्ट कडुवा रूप नहीं तो बहुत मीठा रूप और नया-नया रूप धारण कर ब्राह्मणों
की ट्रायल करती रहती हैं । फिर भोले-भाले ब्राह्मण क्या कहते ? वह तो बापदादा ने
सुनाया ही नहीं था कि इस रूप में भी माया आती है! अलबेलेपन के कारण अपने को चेक भी
नहीं करते और सोचते कि बापदादा तो कहते हैं कि माया आयेगी.. । आधा अक्षर याद रखने
हैं कि माया आयेगी लेकिन मायाजीत बनना है - यह भूल जाते हैं ।
और बात - व्यर्थ वा
साधारण बोत के भिन्न-भिन्न रूप देखे।
एक - सीमा से बाहर
अर्थात् लिमिट से परे हँसी-मज़ाक,
दूसरा – टांटिंग वे (Tonting
way) ।
तीसरा - इधर-उधर के
समाचार इकट्ठा कर सुनना और सुनाना,
चौथा - कुछ
सेवा-समाचार और सेवा समाचार के साथ सेवाधारियों की कमजोरी का चिंतन - यह मिक्स चटनी
और
पाँचवा -
अयुक्तियुक्त बोल, जो ब्राह्मणों की डिक्शनरी में है ही नहीं। यह पाँच रूप रेखायें
देखी । इन पांचो को ही बापदादा 'व्यर्थ बोल' में गिनती करते हैं। ऐसा नहीं समझो -
हँसी-मज़ाक अच्छी चीज़ है। हँसी-मज़ाक अच्छा वह है जिसमें रूहानियत हो और जिससे
हँसी-मज़ाक करते हो उस आत्मा को फायदा हुआ, टाइम पास हुआ वा टाइम वेस्ट गया? रमणीकता
का गुण अच्छा माना जाता हैं लेकिन व्यक्ति, समय, संगठन, स्थान, वायुमण्डल के प्रमाण
रमणीकता अच्छी लगती है। अगर इन सब बातों में से एक बात भी ठीक नहीं तो रमणीकता भी
व्यर्थ की लाइन में गिनी जायेंगी और सर्टिफिकेट क्या मिलेगा कि हँसाते बहुत अच्छा
है लेकिन बोलते बहुत हैं । तो मिक्स चटनी हो गई ना। तो समय की सीमा रखो। इसको कहा
जाता हैं - मर्यादा पुरुषोत्तम। ' कहते हैं - मेरा स्वभाव ही ऐसा हैं । वह कौन-सा
स्वभाव है ? बापदादा वाला स्वभाव हैं? तो इसको भी 'मर्यादा पुरुषोत्तम ' नहीं कहेंगे
साधारण पुरुष कहेंगे । बोल सदैव ऐसे हो जो सुनने वाले चात्रक हो कि यह कुछ बोले और
हम सुनें - इसको कहा जाता हैं 'अनमोल महावाक्य । ' महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब
चाहे तब बोलता रहें - इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। तो सतगुरु के बच्चे - मास्टर
सतगुरु के महावाक्य होते हैं, वाक्य नहीं। व्यर्थ बोलने वाला अपनी बुद्धि में
व्यर्थ बातें, व्यर्थ समाचार, चारों ओर का कूड़ा-किचडा जरूर इकट्ठा करेगा क्योंकि
उनको कथा का रमणीक रूप देना पड़ेगा। जैसे शास्त्रवादियों की बुद्धि है ना। इसलिए जिस
समय और जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक है, युक्तियुक्त हैं, स्वयं के और दूसरी आत्माओं
के लाभ-लायक हैं, वही बोल बोलो। बोल के ऊपर अटेंशन कम है। इसलिए इस पर डबल
अण्डरलाइन।
विशेष इस वर्ष बोल के
ऊपर अटेंशन रखो। चेक करो - बोल द्वारा एनर्जी और समय कितना जमा किया और कितना
व्यर्थ गया? जब इसको चेक करेंगे तो स्वत: ही अंतर्मुखता के रस को अनुभव कर सकेंगे।
अतर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात-दिन का अंतर हैं। अंतर्मुखी सदा भृकुटी
की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। समझा!
समझना अर्थात् बनना।
जब कोई बात समझ में आ जाती है तो वह करेगा ज़रूर, समझेगा ज़रूर। टीचर्स तो हैं ही
समझदार। तब तो भाग्य मिला हैं ना। निमित्त बनने का भाग्य - इसका महत्व अभी कभी-कभी
साधारण लगता है, लेकिन यह भाग्य समय पर अति श्रेष्ठ अनुभव करेंगे। किसने निमित्त
बनाया, किसने मुझ आत्मा को इस योग्य चुना - यह स्मृति ही स्वत: श्रेष्ठ बना देती है
। "बनाने वाला कौन"!- अगर इस स्मृति में रहो तो बहुत सहज निरन्तर योगी बन जायेंगे।
सदा दिल में, बनाने वाले बाप के गुणों के गीत गाते रहो तो निरन्तर योगी हो जायेंगे
। यह कम बात नहीं है! सारे विश्व की कोटों की कोट आत्माओं में से कितनी निमित्त
टीचर्स बनी हो! ब्राह्मण परिवार में भी टीचर्स कितनी हैं । तो कोई-में-कोई हो गई
ना! टीचर अर्थात् सदा भगवान और भाग्य के गीत गाती रहें। बापदादा को टीचर्स पर नाज़
होता है लेकिन राज़युक्त टीचर्स पर नाज़ होता है अच्छा –
प्रवृत्ति वाले भी मजे
में रहते हैं ना। मूंझने वाले हो या मजे में रहने वाले हो? ब्राह्मण-जीवन के हर
सेकण्ड तन, मन, धन, जन का मज़ा ही मज़ा है । आराम से सोते हो, आराम से खाते हो। आराम
से रहना, खाना, सोना और पढ़ना। और कुछ चाहिए क्या? पढना भी ठीक है या अमृतवेले सो
जाते हो ? ऐसे कई बच्चे करते हैं, कहेंगे- सारी रात जाग रहे थे, सुबह को नींद आ गई
। या एक सेवा करेंगे तो अमृतवेले को छोड़ देंगे। तो मज़ा क्या हुआ? एक्स्ट्रा जमा तो
हुआ नहीं। एक तरफ सेवा की, दूसरे तरफ अमृतवेला मिस किया। तो क्या हुआ? लेकिन
नेमीनाथ माफिक ऐसे झुटका खाते नहीं बैठना । वह टी .वी. बहुत अच्छी होती है । जैसे
वह योग के आसन करते हैं ना - अनेक प्रकार के पोज़ बदलते रहते है । तो यहाँ भी ऐसे हो
जाते हैं । सोचते हैं - सहज योग है ना, इसलिए आराम से बैठो । कइयों की तो ट्यून भी
बापदादा के पास सुनने में आती है । बापदादा के पास वह भी कैसेट है । तो अब डबल
अण्डरलाइन करेंगे ना। फिर बापदादा सुनायेंगे कि रिजल्ट में कितना अन्तर पड़ा। अच्छा
–
चारों ओर के श्रेष्ठ
लक्ष्य और श्रेष्ठ लक्षण धारण करने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा अपने बोल
को समय और संयम में रखने वाले पुरुषोत्तम आत्माओं को, सदा महावीर बन माया के सर्व
रूपों को जानने वाले नालेजफुल आत्माओं को सदा हर सेकण्ड मौज में रहने वाले बेफिक्र
बादशाहों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
जोन वाइज़ ग्रुप से
अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1. साइलेन्स की शक्ति
को अच्छी तरह से जानते हो? साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने स्वीट होम, शान्तिधाम
में पहुँचा देती है । साइंस वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र निकालने का प्रयत्न कर
रहे हैं । लेकिन आपका यंत्र कितनी तीव्रगति का है! सोचा और पहुंचा! ऐसा यंत्र साइंस
में है जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाएँ? वो तो एक-एक यंत्र बनाने में कितना
खर्चा करते है, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने क्या किया? बिना खर्चे
मिल गया। 'यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है । ' आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है,
दिव्य बुद्धि मिली हैं । शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि से पहुँच जाते हो । जब चाहो तब
लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ । साइंस वालों को तो मौसम भी देखनी पड़ती हैं । आपको तो
वह भी नहीं देखना पड़ता कि आज बादल हैं, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो - बादल तो क्या
थोड़ी-सी फोगी भी होती है तो भी प्लेन नहीं जा सकता। और आपका विमान एवररेडी हैं या
कभी फोगी आती है? एवररेडी हैं? सेकंड में जा सकते हैं - ऐसी तीव्रगति है? माया कभी
रुकावट तो नहीं डालती है? मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता। जहाँ
सर्वशक्तियॉ है वहाँ कौन रोकेगा । कोई भी शक्ति की कमी होती है तो समय धोखा मिल सकता
है । मानो सहनशक्ति आप में है लेकिन निर्णय करने की शक्ति कमज़ोर है, तो जब ऐसी कोई
परिस्थिति आयेगी जिसमें निर्णय करना हो, उस समय नुकसान हो जायेगा। होती एक ही घड़ी
निर्णय करने की है – हाँ या ना, लेकिन उसका परिणाम कितना बड़ा होता है! तो सब शक्तियाँ
अपने पास चेक करो। ऐसे नहीं ठीक है, चल रहे हैं योग तो लगा रहे है। लेकिन योग से जो
प्राप्तियाँ है - वह सब है? या थोड़े में खुश हो गये कि बाप दो अपना हो गया। बाप तो
अपना है लेकिन प्रॉपर्टी(वर्सा) भी अपनी है ना या सिर्फ बाप को पा लिया - ठीक है?
वर्स के मालिक बनना है ना? बाप की प्रापर्टी है 'सर्वशक्तियॉ' इसलिए बाप की महिमा
ही है सर्वशक्तिवान आलमाइटी अथार्टी। ' सर्वशक्तियो का स्टॉक जमा है? या इतना ही
हें - कमाया और खाया, बस! बापदादा ने सुनाया है कि आगे चलकर आप मास्टर सर्वशक्तिवान
के पास सब भिखारी बनकर आयेंगे । पैसे या अनाज के भिखारी नहीं लेकिन ‘शक्तियों’ के
भिखारी आएंगे। तो जब स्टाक होगा तब तो देंगे ना! दान वही दे सकता जिसके पास अपने से
ज्यादा है । अगर अपने जितना ही होगा तो दान क्या करेंगे? तो इतना जमा करो । संगम पर
और काम ही क्या है? जमा करने का ही काम मिला है । सारे कल्प में और कोई युग नहीं है
जिसमें जमा कर सको । फिर तो खर्च करना पड़ेगा, जमा नहीं कर सकेंगे । तो जमा के समय
अगर जमा नहीं तो अन्त में क्या कहना पड़ेगा - '' अब नहीं तो कब नहीं '' फिर टू लेट
का बोर्ड लग जायेगा। अभी तो लेट का बोर्ड है, टू लेट का नहीं ।
सभी माताओं ने इतना
जमा किया है? शिव-शक्तियाँ हो या घर की माताएं हो? शिव-शक्ति कहने से शक्तियाँ याद
आती है । किन माताओं को बाप ने शक्तियाँ बना दिया है! अगर कोई शक्ल आकर देखे तो क्या
कहेंगे! ऐसी शक्तियॉ होती है क्या! लेकिन बाप ने पहचान लिया कि वह आत्माएं शक्तिशाली
है। बाप तो आत्माओं को देखता है, न बूढ़ा देखता, न जवान देखता, न बच्चा देखता। आत्मा
तो बूढ़ी वा छोटी है ही नहीं । तो यह खुशी हें ना कि हमको बाबा ने शिव-शक्ति' बना
दिया । दुनिया में कितनी पढ़ी-लिखी माताएं हैं लेकिन बाप को गाँव वाले ही पसंद हैं,
क्यों पसंद है? “सच्ची दिल पर साहेब राजी” । बाप को सच्ची दिल प्यारी लगती है । जो
भोले होंगे उन्हें झूठ-कपट करने नहीं आयेगा। जो चालाक, चतुर होते है उसमें यह सब
बातें होती है। तो जिसकी दिल भोली है अर्थात् दुनिया की मायावी चतुराई से परे हैं,
वह बाप को अति प्रिय है । बाप सच्ची दिल को देखता है। बाकी पढ़ाई को, शक्ल को, गाँव
को, पैसे को नहीं देखता है। सच्ची दिल चाहिए, इसलिए बाप का नाम दिलवाला है।। अच्छा!
वरदान:-
संशय के
संकल्पों को समाप्त कर मायाजीत बनने वाले विजयी रत्न भव
कभी भी पहले से यह
संशय का संकल्प उत्पन्न न हो कि ना मालूम हम फेल हो जायें, संशयबुद्धि होने से ही
हार होती है। इसलिए सदा यही संकल्प हो कि हम विजय प्राप्त करके ही दिखायेंगे। विजय
तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, ऐसे अधिकारी बनकर कर्म करने से विजय अर्थात् सफलता
का अधिकार अवश्य प्राप्त होता है, इसी से विजयी रत्न बन जायेंगे। इसलिए मास्टर
नॉलेजफुल के मुख से नामालूम शब्द कभी नहीं निकलना चाहिए।
स्लोगन:-
रहम की भावना
सहज ही निमित्त भाव इमर्ज कर देती है।