ओम् शान्ति।
"शिव भगवानुवाच" बाप को ऐसे कहना नहीं है परन्तु बच्चों को समझाया जाता है शिव
भगवान ही है। तो शिव भगवानुवाच बच्चों प्रति, शिव को सुप्रीम रूह भी कहते हैं। अब
शिव का परिचय बच्चों को अच्छी रीति समझाया गया है। फिर भी समझाया जाता है सर्व का
सद्गति दाता शिव है। उनको ईश्वर भगवान प्रभू भी कहते हैं। बहुत नाम रख दिये हैं।
शिव को अन्तर्यामी भी कहते हैं। वास्तव में अन्तर्यामी कहना यह भी रांग है ।
अन्तर्यामी अर्थात् सबके अन्दर को जानने वाला। शिवबाबा कहते हैं मैं किसके अन्दर को
जानने वाला नहीं हूँ। मैं तो तुम्हारा बाप हूँ। मैं आता ही कल्प-कल्प, कल्प के
संगमयुगे हूँ। अब मेरा नाम शिव है। परम आत्मा कहते हैं। तुम्हारी भी आत्मा है ना।
परन्तु तुम्हारे शरीर पर नाम पड़ता है। आत्मा का नाम वही है। अब परमपिता परमात्मा
का भी नाम चाहिए ना। उनका नाम ही शिव है। वह है निराकार, उनको शरीर का नाम नहीं है।
यह आत्मा वह भी परम आत्मा यानी परमात्मा है। तो बाप समझाते हैं मेरा नाम शिव है।
आत्मा पर नाम धरा जाता है शिव। उसका नाम एक ही शिव है। परम होने कारण परम आत्मा शिव
कहा गया है। सिर्फ ईश्वर वा प्रभू कहना यह कोई नाम नहीं है। बाप कहते हैं - मैं
सुप्रीम सोल हूँ, परन्तु नाम तो चाहिए ना। इसलिए ड्रामा प्लैन अनुसार नाम शिव रखा
हुआ है। वह है परे ते परे रहने वाला परम आत्मा। वह सबसे ऊंच ते ऊंच भी है, सबसे
न्यारा प्यारा भी है। वह परम आत्मा इस शरीर द्वारा कहते हैं कि मुझ अपने बाप शिव को
याद करो। गॉड फादर कहते हैं ना। फादर का नाम है शिव। वो लोग गॉड फादर शिव नहीं कहते
हैं। जानते ही नहीं कि उनका नाम शिव है। शिव जयन्ती भी मनाते हैं - सब जगह लिंग को
पूजते हैं। लिंग का नाम ही है शिव वह ज्ञान का सागर है, तो शिवाचार्य हो गया।
शिवाचार्यवाच। तो भक्ति मार्ग में अनेक नाम रखने कारण मुँझारा कर दिया है। बेहद का
बाप बैठ समझाते हैं। तुम सब आत्माओं को यह अपना अपना शरीर मिला हुआ है पार्ट बजाने
के लिए। शिवबाबा भी आकर श्रीमत अथवा राय देते हैं, इसलिए कहा जाता है श्रीमत
भगवानुवाच। फर्क हो जाता है ना। शिव के तो बच्चे हैं। अब कृष्ण को प्रजापिता नहीं
कह सकते। प्रजापिता ब्रह्मा को ही कहा जाता है। एक है शिवबाबा फिर प्रजापिता ब्रह्मा।
शिवबाबा है रचना रचने वाला, उनसे ही वर्सा मिलता है। वही आकर ज्ञान देते हैं। ज्ञान
का सागर है, उनका वर्सा है स्वर्ग सर्व को जीवनमुक्ति देने वाला बाप ही है।
जीवनमुक्ति एक ही अक्षर सबके साथ लगता है। सबके जीवन को दुःख से मुक्त करते हैं।
फिर समझाते हैं कि पहले तुम ही जीवनमुक्ति में आते हो, तुम्हारा पार्ट है। पहले
क्राइस्ट आदि यूरोप की तरफ चले गये। यहाँ तुम भारत में ही आते हो। भारत में ही गॉड
गॉडेज का राज्य होता है। भगवती श्री लक्ष्मी, भगवान श्री नारायण कहते हैं। परन्तु
भगवान नहीं कह सकते। वह है आदि सनातन देवी-देवता धर्म, जो अभी प्रायः लोप हो गया
है। देवताओं के चित्र हैं परन्तु उन्हों को यह सतयुग का वर्सा किसने दिया - वह कोई
नहीं जानते। तुम अभी जानते हो भारत में देवी-देवताओं से ही वर्ल्ड की हिस्ट्री शुरू
होती है। पहले पहले देवी-देवता धर्म वाले आते हैं। बाप समझाते हैं उन्हों की यह
प्रालब्ध पाई हुई है। जरूर आगे जन्म में ऐसा पुरूषार्थ किया है। सृष्टि तो चलती रहती
है ना। गाया हुआ है - बाप आकर ब्राह्मण, देवता और क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते
हैं। बाप इस समय ब्राह्मणों को बैठ पढ़ाते। तुम पहले शूद्र थे। फिर से ब्राह्मण,
ब्रह्मा मुख वंशावली बने हो। वह है बाबा, यह है दादा। जब तक ब्रह्मा वंशी नहीं बनें
तब तक आत्मा बाप से वर्सा नहीं पा सकती है। ब्रह्मा को एडम भी कहते हैं। ब्रह्मा
सरस्वती आदम और बीबी... यह तो सबके मात-पिता ठहरे। जो भी मनुष्य मात्र हैं –
प्रजापिता ब्रह्मा को सबका बड़ा कहेंगे। ब्राह्मण धर्म फिर उनसे देवता धर्म फिर
देवता धर्म से दूसरा तीसरा धर्म हैं।
बच्चों को कहा जाता है - शिवबाबा को याद करो। ऐसे नहीं कहना है कि ईश्वर को वा
परमात्मा को याद करो। नहीं, वह बाप है। तुमको समझाया है आत्मा भी बिन्दी है, परम
आत्मा भी बिन्दी है। इस बिन्दी का नाम है आत्मा। उस बिन्दी का नाम है परम आत्मा शिव।
शिव के मन्दिर भी बहुत नामीग्रामी हैं। बच्चों को यह समझना है हम आत्मा हैं। एक
शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते हैं। शिवबाबा को भी पार्ट बजाना
है। कहते हैं हे भगवान आकर हमको लिबरेट करो, पतित से पावन बनाओ। यह कोई नहीं जानते
कि शिवबाबा ही पतित से पावन बनाने वाला है। ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। वह
बैठ नॉलेज देते हैं कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। मुख्य चित्र दो हैं - झाड़ और
गोला। चक्र में कांटा भी दिखाया है। जिससे मालूम पड़ता है बाकी कितना समय है।
कलियुग में कितने ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में बहुत थोड़े होंगे फिर वृद्धि को पाना
है। यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में आ गया है। इसलिए स्वदर्शन चक्र भी तुमको दिया
गया है। शंख भी तुम्हारा है। यह है मुख से ज्ञान सुनाने की बात। ज्ञान का शंख बजाते
हो। बाप समझाते हैं हे आत्मा अपने बाप को याद करो। गाया भी जाता है जब सतगुरू मिला
दलाल के रूप में.. बाप खुद इसमें बैठ तुम आत्माओं की सगाई कराते हैं, तुमको भी
सिखलाते हैं। तुम दलाल बनते हो। यह भी कहते हैं शिवबाबा को याद करो। शिवबाबा ब्रह्मा
द्वारा कहते हैं मुझ बाप को याद करो। तुम भी कहते शिवबाबा को याद करो तो विकर्म
विनाश हों। अल्फ को याद करने से यह राजाई मिलेगी। उनकी आत्मा को फिर 84 जन्म भोगने
पड़ेंगे। तुमको स्वदर्शन चक्र का मालूम हुआ है। कैसे हम 84 जन्म लेते हैं। जगत अम्बा,
जगत की माता ठहरी। तो जरूर जगत पिता भी चाहिए। ऐसे नहीं कि यह स्त्री, पुरूष हैं।
ब्रह्मा की बेटी है सरस्वती। ब्रह्मा के सब बच्चे हैं। ब्रह्मा की स्त्री नहीं है।
ब्रह्मा की बेटी सरस्वती गाई जाती है। उनको ही जगत अम्बा, ब्रह्मा को जगत पिता कहते
हैं। सरस्वती है मुख्य इसलिए सम्भालने के लिए वह मुकरर की जाती है। उनका पार्ट ही
ऐसा है। अभी तुम जानते हो शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा हमको ज्ञान दे रहे हैं। तुम
मात-पिता हम बालक तेरे... यह महिमा उनकी गाई जाती है। वह है फादर। मदर तो है नहीं।
शिवबाबा है ना। तो बाप आकर इनमें प्रवेश कर इन द्वारा बच्चों को एडाप्ट करते हैं।
परन्तु मेल है इसलिए माता को कलष दिया है। उन्होंने फिर दिखाया है - सागर मंथन किया,
कलष निकला, जो लक्ष्मी को दिया। वह भी रांग है। कलष माता के सिर पर रखते हैं।
ज्ञान-ज्ञानेश्वरी जगदम्बा है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ज्ञान देते हैं। ईश्वर ज्ञान
देते हैं तो तुम भी ज्ञान-ज्ञानेश्वरी हो गये ना। फिर बनेंगे राज राजेश्वरी। तुम
कहेंगे हम राजऋषि हैं। ऋषि अक्षर पवित्रता पर पड़ता है। सच्चे-सच्चे राजऋषि तुम हो।
वह हैं हठयोगी। तुम राजाई के लिए विकारों का सन्यास करते हो। अभी तुम हो संगम पर।
यह है कुम्भ। तुम ज्ञान स्नान कर रहे हो और योग भी सीखते हो। ज्ञान सिखलाते हैं, यह
सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। बाप नॉलेजफुल है, तुम भी मास्टर नॉलेजफुल हो। यह राजधानी
स्थापन हो रही है। नम्बरवार पास होते हैं। राम को बाण क्यों दिये हैं। यह भी पता नहीं।
यह समझाने के लिए देना पड़ता है। नहीं तो मनुष्य समझेंगे – बाण चलाना यह तो हिंसक
चित्र है। जैसे देवियों को भी हिंसक बाण आदि हथियार दे देते। समझाया जाता है इस समय
सब क्षत्रिय युद्ध के मैदान में हैं। परन्तु तुम्हारी युद्ध है माया के साथ। याद
में पूरा न रहने के कारण माया रावण को जीत नहीं सकते। कर्मातीत अवस्था को पा नहीं
सकते। तुम्हारी यह है युद्ध स्थल। युद्ध में स्थिर रहने वाले का नाम युद्धिष्ठिर रखा
है। ऐसे-ऐसे नाम बैठ बनाये हैं। युद्धिष्ठिर और धृतराष्ट्र दिखाते हैं। वह पाण्डवों
का था, वह कौरवों का। यह सब कहानियाँ बैठ बनाई हैं। ऐसे नाम हैं नहीं।
यह तुम्हारी पढ़ाई कितनी सिम्पल है। उसमें जो जितना जास्ती पढ़ते हैं तो ऊंच पद
पाते हैं। यहाँ भी तुम जितना योग लगायेंगे और पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। इसमें
अटेन्शन जास्ती होना चाहिए। इम्तहान में नापास होते हैं तो पैसे ही बरबाद हो जाते
हैं। इसमें भी अच्छी रीति अटेन्शन दे पढ़ना चाहिए। तुम गॉडली स्टूडेन्ट हो। तुम्हारी
तो बड़ी युनिवर्सिटी होनी चाहिए। ब्रह्माकुमारीज़ गॉडली युनिवर्सिटी। तुम सारे
युनिवर्स का नॉलेज दे रहे हो - आदि-मध्य-अन्त का। इसलिए तुम लिख सकते हो - गॉड
फादरली युनिवर्सिटी। बाप बैठ सिखलाते हैं - कितना ऊंच ते ऊंच पद तुम पाते हो। यह बड़ी
भारी पढ़ाई है। बच्चों को युक्ति से समझाना चाहिए। हम गॉड फादरली युनिवर्सिटी लिखते
हैं क्योंकि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रीपीट है, यह चक्र कैसे फिरता है, वह
समझायेंगे। जिससे वो लोग भी समझें कि यह गॉडली युनिवर्सिटी तो ठीक है। युनिवर्स
अर्थात् सारे विश्व की नॉलेज यहाँ मिलती है। भारत शुरू में क्या था। तुम कैसे मालिक
बने, इसमें बुद्धि बड़ी पवित्र चाहिए। तुम्हारी बुद्धि को अब नॉलेज मिल रही है।
शेरणी का दूध सोने के बर्तन में... इसमें गोल्डन एजेड बुद्धि चाहिए। बाप को याद करने
से तुम्हारी बुद्धि गोल्डन एज बन जायेगी। याद नहीं करते हैं तो आइरन एज़ेड बन पड़ते
हैं। घड़ी-घड़ी बाप को भूल जाते हैं। इस मेहनत में टाइम लगता है कल्प पहले मुआफ़िक,
जो ब्राह्मण कुल के हैं वह आते जायेंगे। सैपलिंग लगता जायेगा। कल्प पहले मुआफ़िक
तुम सैपलिंग लगा रहे हो - मनुष्य को देवता बनाने का। यह है देवता धर्म का सैपलिंग।
वह मनुष्य तो जंगल का ही सैपलिंग लगाते हैं, जंगल को बढ़ाने लिए। नहीं तो लकड़ियां
मिल न सकें। न जानवर रह सकें। यहाँ तुम देवता धर्म की सैपलिंग लगा रहे हो। तुम बाप
की मत पर दैवी फूलों की सैपलिंग लगा रहे हो। हम कोई सेरीमनी आदि नहीं करते। यह तो
समझने की बातें।
अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऊंच ते ऊंच पद पाने के लिए पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। इस युद्ध
स्थल पर माया को जीत कर कर्मातीत अवस्था को पाना है। हार नहीं खानी है।
2) अपनी बुद्धि को गोल्डन एजेड पवित्र बनाने के लिए बाप की याद में रहना है। देवी
फूलों की सैपलिंग लगानी है, स्वर्ग की स्थापना करनी है।