11-06-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा टाइम बहुत वैल्युबुल है, इसलिए
फालतू बातों में अपना टाइम वेस्ट मत करो”
प्रश्नः-
मनुष्य से
देवता बनने के लिए बाप की कौन-सी श्रीमत मिली हुई है?
उत्तर:-
बच्चे,
तुम जबकि मनुष्य से देवता बनते हो तो कोई आसुरी स्वभाव नहीं होना चाहिए, 2. कोई पर
क्रोध नहीं करना है, 3. किसको भी दु:ख नहीं देना है, 4. कोई भी फालतू बातें कान से
नहीं सुननी हैं। बाप की श्रीमत है हियर नो ईविल. . . .।
ओम् शान्ति।
तुम बच्चों का बैठना
सिम्पुल है। कहाँ भी बैठ सकते हो। चाहे जंगल में बैठो, पहाड़ी पर बैठो, घर में बैठो
या कुटिया में बैठो, कहाँ भी बैठ सकते हो। ऐसे बैठने से तुम बच्चे ट्रांसफर होते
हो। तुम बच्चे जानते हो अभी हम मनुष्य, भविष्य के लिए देवता बन रहे हैं। हम कांटों
से फूल बन रहे हैं। बाबा बागवान भी है, माली भी है। हम बाप को याद करने से और 84 का
चक्र फिराने से ट्रांसफर हो रहे हैं। यहाँ बैठो, चाहे कहाँ भी बैठो तुम ट्रांसफर
होते-होते मनुष्य से देवता बनते जाते हो। बुद्धि में एम ऑब्जेक्ट है, हम यह बन रहे
हैं। कुछ भी काम-काज करो, रोटी पकाओ, बुद्धि में सिर्फ बाप को याद करो। बच्चों को
यह श्रीमत मिलती है - चलते-फिरते सब कुछ करते सिर्फ याद में रहो। बाप की याद से
वर्सा भी याद आता है, 84 का चक्र भी याद आता है। इसमें और क्या तकलीफ है, कुछ भी नहीं।
जबकि हम देवता बनते हैं, तो कोई आसुरी स्वभाव भी नहीं होना चाहिए। कोई पर क्रोध नहीं
करना, किसको दु:ख नहीं देना, कोई भी फालतू बातें कान से सुननी नहीं हैं। सिर्फ बाप
को याद करो। बाकी संसार की झरमुई-झगमुई तो बहुत सुनी। आधाकल्प से यह सुनते-सुनते
तुम नीचे गिरे हो। अब बाप कहते हैं यह झरमुई-झगमुई न करो। फलाना ऐसा है, इनमें यह
है। कोई भी फालतू बातें नहीं करनी है। यह जैसेकि अपना टाइम वेस्ट करना है। तुम्हारा
टाइम बहुत वैल्युबुल है। पढ़ाई से ही अपना कल्याण है, इनसे ही पद पायेंगे। उस पढ़ाई
में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इम्तहान पास करने विलायत में जाते हैं। तुमको तो कोई
तकलीफ नहीं देते। बाप आत्माओं को कहते हैं मुझ बाप को याद करो, एक-दो को सामने
बिठाते हैं, तो भी बाप की याद में रहो। याद में बैठते-बैठते तुम कांटों से फूल बनते
हो। कितनी अच्छी युक्ति है, तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए ना। हर एक की अलग-अलग
बीमारी होती है। तो हर एक बीमारी के लिए सर्जन है। बड़े-बड़े आदमियों के खास सर्जन
होते हैं ना। तुम्हारा सर्जन कौन बना है? भगवान। वह है अविनाशी सर्जन। कहते हैं हम
तुमको आधाकल्प के लिए निरोगी बनाते हैं। सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
तुम 21 जन्म के लिए निरोगी बन जायेंगे। यह गांठ बांध देनी चाहिए। याद से ही तुम
निरोगी बन जायेंगे। फिर 21 जन्म लिए कोई भी रोग नहीं होगा। भल आत्मा तो अविनाशी है,
शरीर ही रोगी बनता है। लेकिन भोगती तो आत्मा है ना। वहाँ आधाकल्प तुम कभी भी रोगी
नहीं बनेंगे। सिर्फ याद में तत्पर रहो। सर्विस तो बच्चों को करनी ही है। प्रदर्शनी
में सर्विस करते-करते बच्चों के गले घुट जाते हैं। कई बच्चे फिर समझते हैं हम
सर्विस करते-करते चले जायेंगे बाबा के पास। यह भी बहुत अच्छा है, सर्विस का तरीका।
प्रदर्शनी में भी बच्चों को समझाना है। प्रदर्शनी में पहले-पहले यह लक्ष्मी-नारायण
का चित्र दिखाना चाहिए। यह ए वन चित्र है। भारत में आज से 5 हज़ार वर्ष पहले बरोबर
इनका राज्य था। अथाह धन था। पवित्रता-सुख-शान्ति सब थी। परन्तु भक्ति मार्ग में
सतयुग को लाखों वर्ष दे दिये हैं तो कोई भी बात याद कैसे आये, यह लक्ष्मी-नारायण का
फर्स्टक्लास चित्र है। सतयुग में 1250 वर्ष इस डिनायस्टी ने राज्य किया था। आगे तुम
भी नहीं जानते थे। अभी बाप ने तुम बच्चों को स्मृति दिलाई है कि तुमने सारे विश्व
पर राज्य किया था, क्या तुम भूल गये हो। 84 जन्म भी तुमने लिये हैं। तुम ही
सूर्यवंशी थे। पुनर्जन्म तो लेते ही हैं। 84 जन्म तुमने कैसे लिये हैं, यह बड़ी
सिम्पल बात है समझने की। नीचे उतरते आये, अब फिर बाप चढ़ती कला में ले जाते हैं।
गाते भी हैं चढ़ती कला तेरे भाणे सबका भला। फिर शंख आदि बजाते हैं। अब तुम बच्चे
जानते हो हाहाकार होगा, पाकिस्तान में देखो क्या हो गया था - सबके मुख से यही निकलता
था हे भगवान, हाय राम अब क्या होगा। अब यह विनाश तो बहुत बड़ा है, पीछे फिर जय
जयकार होनी है। बाप बच्चों को समझाते हैं - इस बेहद की दुनिया का अब विनाश होना है।
बेहद का बाप बेहद का ज्ञान तुमको सुनाते हैं। हद की बातें हिस्ट्री-जॉग्राफी तो
सुनते आये हो। यह किसको भी पता नहीं था कि लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे किया। इन्हों
की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई भी नहीं जानते। तुम अच्छी रीति जानते हो-इतने जन्म राज्य
किया फिर यह धर्म होते हैं, इनको कहा जाता है स्प्रीचुअल नॉलेज, जो स्प्रीचुअल फादर
बच्चों को बैठ देते हैं। वहाँ तो मनुष्य, मनुष्य को पढ़ाते हैं, यहाँ हम आत्माओं को
परमात्मा आप समान बना रहे हैं। टीचर जरूर आपसमान बनायेंगे।
बाप कहते हैं मैं
तुमको अपने से भी ऊंच डबल सिरताज बनाता हूँ। लाइट का ताज मिलता है याद से, और 84 के
चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती बनते हो, अभी तुम बच्चों को कर्म-अकर्म-विकर्म की
गति भी समझाई है। सतयुग में कर्म-अकर्म होता है। रावण राज्य में ही कर्म विकर्म होता
है। सीढ़ी उतरते आते हैं, कला कम होते-होते उतरना ही है। कितना छी-छी बन जाते हैं।
फिर बाप आकर भक्तों को फल देते हैं। दुनिया में भक्त तो सब हैं। सतयुग में भक्त कोई
होता नहीं। भक्ति कल्ट यहाँ है। वहाँ तो ज्ञान की प्रालब्ध होती है। अभी तुम जानते
हो हम बाप से बेहद की प्रालब्ध ले रहे हैं। कोई को भी पहले-पहले इस लक्ष्मी-नारायण
के चित्र पर समझाओ। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले इनका राज्य था, विश्व में
सुख-शान्ति-पवित्रता सब थी, और कोई धर्म नहीं था। इस समय तो अनेक धर्म हैं, वह पहले
धर्म है नहीं फिर इस धर्म को आना है जरूर। अब बाप कितना प्यार से पढ़ाते हैं। कोई
लड़ाई की बात नहीं, बेगर लाइफ है, पराया राज्य है, अपना सब कुछ गुप्त है। बाबा भी
गुप्त आया हुआ है। आत्माओं को बैठ समझाते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। शरीर द्वारा
पार्ट बजाती है। वह अभी देह-अभिमान में आई है। अब बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो।
बाप और कोई ज़रा भी तकलीफ नहीं देते हैं। बाप जब गुप्त रूप में आते हैं तो तुम बच्चों
को गुप्त दान में विश्व की बादशाही देते हैं। तुम्हारा सब गुप्त है इसलिए रसम के
रूप में कन्या को जब दहेज देते हैं तो गुप्त ही देते हैं। वास्तव में गाया जाता है
- गुप्त दान महापुण्य। दो-चार को मालूम पड़ा तो वह ताकत कम हो जाती है।
बाप कहते हैं बच्चे
तुम प्रदर्शनी में पहले-पहले इस लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर सबको समझाओ। तुम चाहते
हो ना-विश्व में शान्ति हो। परन्तु वह कब थी, यह किसकी बुद्धि में नहीं है। अभी तुम
जानते हो-सतयुग में पवित्रता, सुख, शान्ति सब थी, याद भी करते हैं फलाना स्वर्गवासी
हुआ, समझते कुछ नहीं। जिसको जो आया कह देते, अर्थ कुछ नहीं। यह है ड्रामा। मीठे-मीठे
बच्चों को बुद्धि में ज्ञान है कि हम 84 का चक्र लगाते हैं। अभी बाप आये हैं - पतित
दुनिया से पावन दुनिया में ले जाने। बाप की याद में रहते ट्रांसफर होते जाते हैं।
कांटे से फूल बनते हैं। फिर हम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। बनाने वाला बाप है। वह परम
आत्मा तो सदैव प्योर है। वही आते हैं प्योर बनाने। सतयुग में तुम खूबसूरत बन जायेंगे।
वहाँ नैचुरल ब्युटी रहती है। आजकल तो आर्टीफिशयल श्रृंगार करते हैं ना। क्या-क्या
फैशन निकला है। कैसी-कैसी ड्रेस पहनते हैं। आगे फीमेल्स बहुत पर्दे में रहती थी, कि
कोई की नज़र न पड़े। अभी तो और ही खुला कर दिया है, तो जहाँ तहाँ गंद बढ़ गया है।
बाप कहते हैं - हियर नो ईविल।
राजा में पावर रहती
है। ईश्वर अर्थ दान करते हैं तो उसमें पावर रहती है। यहाँ तो कोई में पावर है नहीं,
जिसको जो आया करते रहते हैं। बहुत गन्दे मनुष्य हैं। तुम बहुत सौभाग्यशाली हो जो
खिवैया ने हाथ पकड़ा है। तुम ही कल्प-कल्प निमित्त बनते हो। तुम जानते हो पहले
मुख्य है देह-अभिमान, उसके बाद ही सब भूत आते हैं। मेहनत करनी है अपने को आत्मा समझ
बाप को याद करो, यह कोई कड़ुवी दवाई नहीं है। सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप
को याद करो। फिर कितना भी पैदल बाबा की याद में करते जाओ, कभी टांगे थकेंगी नहीं।
हल्के हो जायेंगे। बहुत मदद मिलती है। तुम मास्टर सर्वशक्तिमान बन जाते हो। तुम
जानते हो हम विश्व का मालिक बनते हैं, बाप के पास आये हैं और कोई तकलीफ नहीं देते
हैं। सिर्फ बच्चों को कहते हैं हियर नो ईविल। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं उनके मुख से
तो सदैव ज्ञान रत्न ही निकलेंगे। ज्ञान की बातों के सिवाए और कोई बात मुख से नहीं
निकल सकती। तुम्हें वाह्यात झरमुई-झगमुई की बातें कभी नहीं सुननी है। सर्विस करने
वालों के मुख से सदैव रत्न ही निकलते हैं। ज्ञान की बातों के सिवाए बाकी है पत्थर
मारना। पत्थर नहीं मारते तो जरूर ज्ञान रत्न देते हैं या पत्थर मारेंगे या अविनाशी
ज्ञान रत्न देंगे, जिसकी वैल्यु कथन नहीं कर सकते। बाप आकर तुमको ज्ञान रत्न देते
हैं। वह है भक्ति। पत्थर ही लगाते रहते हैं।
बच्चे जानते हैं बाबा
बहुत-बहुत मीठा है, आधाकल्प गाते आते हैं, तुम मात-पिता…. परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं
समझते थे। तोते मिसल सिर्फ गाते रहते थे। तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। बाबा
हमको बेहद का वर्सा विश्व की बादशाही देते हैं। 5 हज़ार वर्ष पहले हम विश्व के
मालिक थे। अभी नहीं हैं, फिर बनेंगे। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं।
ब्राह्मण कुल चाहिए ना। भागीरथ कहने से भी समझ न सकें इसलिए ब्रह्मा और उनका फिर
ब्राह्मण कुल है। ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं इसलिए उनको भागीरथ कहा जाता है।
ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण हैं चोटी। विराट रूप भी ऐसा होता है, ऊपर
में बाबा फिर संगमयुगी ब्राह्मण जो कि ईश्वरीय सन्तान बनते हैं। तुम जानते हो अभी
हम ईश्वरीय सन्तान हैं फिर दैवी सन्तान बनेंगे तो डिग्री कम हो जायेगी। यह
लक्ष्मी-नारायण भी डिग्री कम है, क्योंकि इनमें ज्ञान नहीं है। ज्ञान ब्राह्मणों
में है। परन्तु लक्ष्मी-नारायण को अज्ञानी नहीं कहेंगे। इन्होंने ज्ञान से यह पद
पाया है। तुम ब्राह्मण कितने ऊंच हो फिर देवता बनते हो तो कुछ भी ज्ञान नहीं रहता,
उनमें ज्ञान होता तो दैवी वंश में परम्परा से चला आता। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को
सब राज़, सब युक्तियां बतलाते हैं। ट्रेन में बैठे भी तुम सर्विस कर सकते हो। एक
चित्र पर ही आपस में बैठ बात करेंगे तो ढेर आकर इकट्ठे होंगे। जो इस कुल का होगा वह
अच्छी रीति धारणा कर प्रजा बन जायेगा। चित्र तो बहुत अच्छे-अच्छे हैं सर्विस के लिए।
हम भारतवासी पहले देवी-देवता थे, अभी तो कुछ नहीं हैं। फिर हिस्ट्री रिपीट होती है।
बीच में यह है संगमयुग, जिसमें तुम पुरूषोत्तम बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान की बातों के सिवाए और कोई बात मुख से नहीं निकालनी है।
झरमुई-झगमुई की बातें कभी नहीं सुननी है। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें, पत्थर नहीं।
2) सर्विस के साथ-साथ याद की यात्रा में रह स्वयं को निरोगी बनाना है। अविनाशी
सर्जन स्वयं भगवान हमें मिला है 21 जन्म के लिए निरोगी बनाने.. इसी नशे में वा खुशी
में रहना है।
वरदान:-
मनमनाभव की विधि द्वारा बन्धनों के बीज को समाप्त
करने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप भव
बन्धनों का बीज है संबंध। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़
लिए तो और किसी में मोह कैसे हो सकता। बिना सम्बन्ध के मोह नहीं होता और मोह नहीं
तो बंधन नहीं। जब बीज को ही खत्म कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। यदि
अभी तक बंधन है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है, कुछ जोड़ा है। इसलिए मनमनाभव की विधि
से मन के बन्धनों से भी मुक्त नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो फिर यह शिकायतें समाप्त
हो जायेंगी कि क्या करें बंधन है, कटता नहीं।
स्लोगन:-
ब्राह्मण जीवन का सांस उमंग-उत्साह है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में उमंग-उत्साह का
प्रेशर कम न हो।