ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। उल़फत कहा जाता है प्यार को, अब तुम बच्चों का प्यार बांधा हुआ
है बेहद के बाप शिव के साथ। तुम बी.के. उनको दादा कहेंगे। ऐसे कोई मनुष्य नहीं होगा
जो अपने बापदादा के आक्यूपेशन को न जानता हो। ऐसी कोई संस्था नहीं जहाँ इतने ढेर के
ढेर कहें कि हम ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं। मातायें तो कुमारी नहीं हैं फिर
ब्रह्माकुमारी क्यों कहलाती हैं? यह तो हैं ब्रह्मा मुख वंशावली। इतने
ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं प्रजापिता ब्रह्मा की मुख वंशावली। एक बाप की बच्चियां
हैं। ब्रह्मा के आक्यूपेशन को भी जानना है। ब्रह्मा किसका बच्चा है? शिव का। शिव के
तीन बच्चे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सूक्ष्मवतन वासी हैं। अब प्रजापिता ब्रह्मा तो
स्थूलवतन वासी होना चाहिए। इतने सब कहते हैं प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली हैं।
कुख वंशावली तो हो न सकें। यह कोई गर्भ की पैदाइस नहीं है। और फिर तुमसे पूछते भी
नहीं कि इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां कैसे कहलाते हो? माताएं भी ब्रह्माकुमारियां
हैं तो जरूर ब्रह्मा के बच्चे हुए ब्रह्मा के मुख वंशावली। यह सब हैं ईश्वर की
सन्तान। ईश्वर कौन है? वह है परमपिता परमात्मा, रचता। किस चीज़ की रचना करते हैं?
स्वर्ग की। तो जरूर अपने पोत्रे-पोत्रियों को स्वर्ग का वर्सा देते होंगे। उनको
शरीर चाहिए जो राजयोग सिखाये। ऐसे थोड़ेही पाग रख देंगे। शिवबाबा बैठ ब्रह्मा मुख
वंशावली को फिर से राजयोग सिखलाते हैं क्योंकि फिर से स्वर्ग की स्थापना करते हैं।
नहीं तो फिर इतने ब्रह्माकुमार-कुमारियां कहाँ से आयें? वन्डर है, कोई हिम्मत रख
पूछते भी नहीं! कितने सेन्टर्स हैं! पूछना चाहिए आप हैं कौन, अपना परिचय दो? यह तो
साफ है प्रजापिता ब्रह्मा के कुमार-कुमारियां और शिव के पोत्रे-पोत्रियां हैं। हम
उनके बच्चे बने हैं। उनसे हमारा प्यार है। शिवबाबा भी कहते हैं सबसे प्यार अथवा
बुद्धियोग हटाए मुझ एक के साथ रखो। मैं तुमको ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखला रहा हूँ
ना और तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी सुन रहे हो ना। कितनी सहज सीधी सी बात है। पूछो तो
सही। तो यह हो गई गऊशाला। शास्त्रों में ब्रह्मा की गऊशाला भी गाई हुई है। वास्तव
में शिवबाबा की गऊशाला है, शिवबाबा इस नंदीगण में आता है तो गऊशाला अक्षर के कारण
शास्त्रों में फिर गऊ आदि दिखा दी है। शिव जयन्ती है तो जरूर शिव आया होगा। जरूर
किसी तन में आया होगा। तुम जानते हो यह गॉड फादर का स्कूल है। शिव भगवानुवाच। ज्ञान
सागर पतित-पावन वह है। श्रीकृष्ण तो स्वयं पावन है, उनको क्या पड़ी है जो पतित तन
में आये। गाया भी जाता है दूर देश का रहने वाला आया देश पराये.....। शरीर भी पराया
है। तो जरूर शिवबाबा ने इनको रचा होगा तब तो मनुष्य सृष्टि रची जाए। तो सिद्ध हुआ
कि यह बापदादा है। प्रजापिता ब्रह्मा है आदि देव, महावीर क्योंकि माया पर जीत पाते
हैं। जगदम्बा भी गाई हुई है। श्री लक्ष्मी भी गाई हुई है। दुनिया को पता नहीं कि
जगदम्बा कोई ब्रह्मा की बेटी सरस्वती है। वह भी ब्रह्माकुमारी है। यह भी
ब्रह्माकुमारी है। शिवबाबा ने ब्रह्मा मुख से इनको अपना बनाया है। अब इन सभी के
बुद्धि का योग (उल़फत) उनके साथ है। कहा भी जाता है उल़फत परमात्मा के साथ रखो। और
सब साथ तोड़ एक साथ जोड़ो। वह एक है भगवान्। परन्तु जानते नहीं। जाने भी कैसे? जब
बाप आकर अपना परिचय दे, तब निश्चय हो। आजकल तो सिखला दिया है - आत्मा सो परमात्मा.....
जिससे संबंध ही टूट गया है। अब तुम बच्चे वास्तव में सच्ची-सच्ची सत्य नारायण की कथा
सुनते हो। वह है सुखदेव और तुम हो व्यास। गीता में भी व्यास का नाम है ना। वह तो
मनुष्य ठहरा। परन्तु सच्चे व्यास तुम हो। तुम जो गीता बनाते हो वह भी विनाश हो
जायेगी। झूठी और सच्ची गीता अभी है। सचखण्ड में झूठ का नाम नहीं रहता। तुम वर्सा ले
रहे हो दादे से। इस बाबा की प्रापर्टी नहीं है। स्वर्ग का रचता है शिवबाबा, न कि
ब्रह्मा। ब्रह्मा मनुष्य सृष्टि का रचयिता है। ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण वर्ण रचा
गया। तुम हो शिव के पोत्रे अर्थात् ईश्वरीय सम्प्रदाय। उनको अपना बनाया है। गुरू
पोत्रे कहलाते हैं ना। अब तुम हो सतगुरू पोत्रे और पोत्रियां। वह तो सिर्फ पोत्रे
हैं अर्थात् मेल्स हैं। पोत्रियां हैं नहीं। सतगुरू तो एक शिवबाबा है। गाया जाता है
सतगुरू बिन घोर अन्धियारा। तुम्हारा ब्रह्माकुमार-कुमारी नाम बड़ा वन्डर-फुल है।
बाप कितना समझाते हैं परन्तु कई बच्चे समझते नहीं। बाप कहते हैं मुझ बेहद के बाप को
जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे। सतयुग-त्रेता में सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राज्य था।
फिर रावण राज्य में ब्रह्मा की रात शुरू होती है। प्रैक्टिकल में
ब्रह्माकुमार-कुमारियां तुम हो। सतयुग को ही स्वर्ग कहा जाता है जहाँ घी दूध की नदी
बहती है। यहाँ तो घी मिलता नहीं। बाप कहते हैं बच्चे यह पुरानी दुनिया अब विनाश होनी
है। एक दिन इस भंभोर को आग लगेगी, सब खत्म हो जायेंगे फिर मेरे से वर्सा तो पा नहीं
सकेंगे।
मैं आऊं तो जरूर शरीर का लोन लेना पड़े। मकान तो चाहिए ना। बाबा कितना अच्छा,
रमणीक रीति से समझाते हैं। तुम अब मेरे द्वारा सब कुछ जान गये हो। यह सृष्टि चक्र
कैसे चलता है, यह कोई को भी पता नहीं। 84 जन्म कौन लेते हैं? सब तो नहीं लेंगे।
जरूर पहले आने वाले देवी-देवता ही 84 जन्म लेंगे। अब उनको फिर से मैं राजयोग सिखाता
हूँ। भारत को फिर से नर्क से स्वर्ग बनाने मैं आता हूँ। इनको लिबरेट मैं करता हूँ।
फिर गाइड बन वापिस भी ले जाता हूँ। मुझे ज्योति स्वरूप भी कहते हैं। ज्योति स्वरूप
को भी आना पड़े, स्वयं कहते बच्चे मैं तुम्हारा बाप हूँ। मेरी ज्योति कभी बुझती नहीं।
वह स्टॉर है जो भ्रकुटी के बीच रहते हैं। बाकी सब आत्मायें एक शरीर छोड़ दूसरा लेती
हैं। तो आत्मा रूपी स्टॉर में 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूंधा हुआ है। 84 जन्म
भोग फिर पहले नम्बर से शुरू करते हैं। यथा राजा रानी तथा प्रजा। नहीं तो भला बताओ
आत्मा में इतना पार्ट कहाँ से भरा हुआ है। इसको कहा जाता है बहुत गुह्य वन्डरफुल
बात है। सारी मनुष्य सृष्टि की आत्माओं का पार्ट नूंधा हुआ है। कहते हैं मेरे में
यह पार्ट है, वह भी अविनाशी है। उसमें कोई तबदीली (अदली-बदली) नहीं हो सकती। मेरे
पार्ट को ब्रह्माकुमार-कुमारियां जानते हैं। पार्ट को बायोग्राफी कहा जाता है।
प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर जगदम्बा भी होगी। वह भी शूद्र से ब्राह्मण बनी है। तो
तुम बच्चे जानते हो हमारी उल़फत बाप के साथ है और हमारा एक के ही साथ प्यार है।
अव्यभिचारी प्यार होने में देरी नहीं लगती है। माया बिल्ली भी कम नहीं है। कई
स्त्रियां होती हैं जिनकी आपस में ईर्ष्या हो जाती है। हम भी शिवबाबा से प्यार रखते
हैं तो माया को ईर्ष्या हो जाती है इसलिए तूफान लाती है। तुम चाहते हो पऊंबारा डालें
(चौपड़ का खेल) परन्तु माया बिल्ली तीन दाने डाल देती है। तुम गृहस्थ व्यवहार में
रहते हो सिर्फ तुम्हारा बुद्धियोग देह सहित देह के सब सम्बन्धों से हटाए कहते हैं
मेरे को याद करो। मैं तुम्हारा मोस्ट बिलवेड बाप हूँ। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक
बनाऊंगा, यदि मेरी श्रीमत पर चलेंगे तो। ब्रह्मा की राय भी मशहूर है। तो जरूर
ब्रह्मा के बच्चों की भी मशहूर होगी। वे भी ऐसी राय देते होंगे। यह सारे सृष्टि
चक्र का समाचार तो बाप ही बतलाते हैं। भल बच्चों आदि को सम्भालो परन्तु बुद्धियोग
बाप के साथ हो। समझो यह कब्रिस्तान है, हम परिस्तान में जाते हैं। कितनी सहज बात
है। बाप समझाते हैं कि कोई भी साकारी वा आकारी देवता से बुद्धियोग नहीं लगाओ। बाप
दलाल बनकर कहते हैं। गाते हैं ना आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल। अब बहुकाल से
अलग तो देवी-देवता हैं। वही पहले-पहले पार्ट बजाने आते हैं। सुन्दर मेला कर दिया जब
सतगुरू मिला दलाल। दलाल के रूप में कहते हैं मामेकम् याद करो और प्रतिज्ञा करो कि
हम काम चिता से उतर ज्ञान चिता पर बैठेंगे। फिर तुम राज्य भाग्य ले लेंगे। अपने पास
रिकार्ड रखो कि हम कितना समय ऐसे मोस्ट बिलवेड बाप को याद करते हैं। कन्या दिन-रात
पति को याद करती है ना। बाप कहते हैं - हे नींद को जीतने वाले बच्चे, अब पुरूषार्थ
करो। एक घड़ी आधी घड़ी..... शुरू करो फिर धीरे-धीरे बढ़ाते जाओ। मेरे से योग
लगायेंगे तो पास विद् आनर हो जायेंगे। यह रेस है बुद्धि की। समय लगता है, बुद्धियोग
से ही पाप कटेंगे। और फिर तुम अटल, अखण्ड, सुख-शान्तिमय 21 जन्म राज्य करेंगे। कल्प
पहले भी किया था, अब फिर राज्य-भाग्य लो। कल्प-कल्प हम ही स्वर्ग बनाते, राज्य करते
हैं। फिर हमको ही माया नर्क-वासी बनाती है। अभी हम हैं राम सम्प्रदाय। हमारा उनसे
प्रेम है। बाप ने हमको अपनी पहचान दी है। बाप है स्वर्ग का रचयिता। हम उनके बच्चे
हैं तो फिर हम नर्क में क्यों पड़े हैं? जरूर स्वर्ग में कभी थे। बाप ने तो स्वर्ग
रचा है। ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं सबको प्राण दान देने वाले। उनके प्राणों को कभी
काल आकर बेकायदे, अकाले नहीं ले जायेंगे। वहाँ अकाले मृत्यु होना असम्भव है। वहाँ
रोना भी होता नहीं। तुमने साक्षात्कार में भी देखा है कि श्रीकृष्ण कैसे जन्म लेते
हैं। एकदम बिजली चमक जाती है। सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है ना। श्रीकृष्ण है नम्बरवन
सतोप्रधान, फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। जब तमो जड़जड़ीभूत शरीर होता है तो फिर
एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं। यह प्रैक्टिस यहाँ की जाती है। बाबा, अब हम आपके
पास आते हैं फिर वहाँ से हम स्वर्ग में जाकर नया शरीर लेंगे। अब तो वापिस बाबा के
पास जाना है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अकाले मृत्यु से बचने के लिए सबको प्राण दान देने की सेवा करनी है।
रावण सम्प्रदाय को राम सम्प्रदाय बनाना है।
2) दिल की उल़फत (प्यार) एक बाप से रखना है। बुद्धियोग भटकाना नहीं है, नींद को
जीत याद को बढ़ाते जाना है।