08-10-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 01.03.90 "बापदादा" मधुबन
ब्राह्मण जीवन का
फाउण्डेशन – दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि
आज दिव्य बुद्धि
विधाता और रूहानी दृष्टि दाता बापदादा चारों ओर के दिव्य बुद्धि प्राप्त करने वाले
बच्चों को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण बच्चे को यह दोनों वरदान ब्राह्मण जन्म से
ही प्राप्त है। दिव्य बुद्धि और रूहानी दृष्टि - यह बर्थ राइट में सबको मिले हुए
है। यह वरदान ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन है। जीवन परिवर्तन वा मरजीवा जन्म,
ब्राह्मण-जीवन इन दोनों प्राप्तियोँ को ही कहा जाता है। जीवन और वर्तमान
ब्राह्मण-जीवन - दोनों का अंतर इन दो बातों का ही विशेष है । इन दोनों बातों के ऊपर
संगममुगी पुरुषार्थ का नम्बर बनना है । इन दो बातों को सदा हर संकल्प में, बोल में,
कर्म में जितना जो यूज करता है उतना ही नम्बर आगे लेता है। रूहानी दृष्टि, दृष्टि
से वृत्ति, कृति स्वतः ही बदल जाती है। दिव्य बुद्धि द्वारा स्वयं प्रति, सेवा प्रति
ब्राह्मण-परिवार के सम्बंध-सम्पर्क प्रति सदा और स्वतः हर बात के लिए निर्णय यथार्थ
होता है और जहाँ दिव्य बुद्धि द्वारा यथार्थ निर्णय होता है तो निर्णय के आधार ही
स्वयं, सेवा, सम्बन्ध-समर्क यथार्थ शक्तिशाली बन जाना है। मूल बात है ही 'दिव्य
दृष्टि और दिव्य बुद्धि।'
आज बापदादा सभी बच्चों
की दिव्य बुद्धि को चेक कर रहे थे। सबसे पहली दिव्य बुद्धि की परख - वह सदा बाप को,
आपको (स्वयं को) और हर ब्राह्मण-आत्मा को जो है, जैसा है वैसे जानकर उस रूप में बाप
से जितना लेना चाहिए वह अधिकार सदा प्राप्त करता रहता है। जो बापने बनाया है, सेवा
के निमित्त रखा है, जो बाप ने ब्राह्मण-जीवन की विशेषताएँ वा दिव्यगुण दिये हैं,
जैसा निमित्त बनाया है - ऐसे अपने-आपको उस प्रमाण अपने को आगे बढ़ाता है। साथ-साथ हर
ब्राह्मण आत्मा के साथ, जो आत्मा जैसी विशेषता वाली है, जिस गुण वाली है, जिस सेवा
के योग्य है, जैसे पुरुषार्थ के गति में चलने वाली है - हर एक को, जो है, जैसा है
वैसे जान उस आत्मा से, उसी विधि से सम्पर्क में आना वा आगे बढ़ाना - इसको कहते हैं
बाप को, आप (स्वयं) को और ब्राह्मण-आत्माओं को जो है, जैसा है वैसे जान आगे बढ़ाना।
यह है दिव्य बुद्धि की पहली परख।
दिव्य बुद्धि अर्थात्
होलीहँस बुद्धि। हँस अर्थात् स्वच्छता, क्षीर और नीर को या मोती और पत्थर को पहचान
मोती ग्रहण करने वाले। जानते है कि यह कंकड़ है, यह मोती है लेकिन कंकड़ को धारण नहीं
करते। इसलिए होलीहँस संगमयुगी ज्ञान-स्वरूप विद्या देवी "सरस्वती" का वाहन है। आप
सभी ज्ञान-स्वरूप हो, इसलिए विद्यापति या विद्या देवी हो। यह वाहन दिव्य बुद्धि की
निशानी है। आप सभी ब्राह्मण, बुद्धियोग द्वारा तीनों लोकों की सैर करते हो। बुद्धि
को भी वाहन कहते है । वह दिव्य बुद्धि का वाहन सभी वाहन से तीव्रगति वाला है। दिव्य
बुद्धि को बुद्धिबल भी कहा जाता है। क्योंकि बुद्धिबल द्वारा ही बाप से सर्वशक्तियां
कैच कर सकते हो। इसलिए बुद्धिबल कहा जाता है। जैसे साइंस-बल है। साइंस-बल कितनी हद
की कमाल दिखाते है! कई बातें जो आज मानव को असम्भव लगती है वह सम्भव कर दिखाते है।
लेकिन यह विनाशी बल है। साइंस बुद्धिबल है लेकिन दिव्य बुद्धिबल नहीं है, संसारी
बुद्धि है, इसलिए इस संसार के प्रति, प्रकृति के प्रति ही सोच सकते है और कर सकते
है। दिव्य बुद्धिबल मास्टर सर्वशक्तिवान बनाता है, परमात्म-पहचान, परमात्म-मिलन,
परमात्म-प्राप्ति की अनुभूति कराता है। दिव्य बुद्धि जो चाहो, जैसे चाहो, असंभव को
संभव करने वाली है । दिव्य बुद्धि द्वारा हर कर्म में परमात्म-प्योर (पवित्र) टचिंग
अनुभव कर हर कर्म में सफलता का अनुभव कर सकते है। दिव्य बुद्धि कोई भी माया के वार
को हार खिला सकती है। जहाँ परमात्म-टचिंग है, प्योर-टचिंग है, मिक्सचर नहीं, वहां
माया की टचिंग अथवा वार असम्मव है। माया का आना तो छोड़ो लेकिन टच भी नहीं कर सकती।
माया दिव्य बुद्धि के आगे सफलता की वरमाला बन जाती है, माया नहीं रहती। जैसे द्वापर
के रजोगुणी ऋषि-मुनि आत्माएं शेर को भी अपनी शक्ति से शांत कर देते थे ना। शेर साथी
बन जाता, वाहन बन जाता, खिलौना बन जाता - परिवर्तन हो जाता है ना। तो आप सतोप्रधान,
मास्टर सर्वशक्तिवान, दिव्य-बुद्धि- वरदानी - उन्हों के आगे माना क्या है, माना
दुश्मन से परिवर्तन नहीं हो सकती? दिव्य बुद्धि बल अति श्रेष्ठ बल है। सिर्फ इसको
यूज़ करो। जैसा समय उस विधि से यूज़ करो तो सर्व सिद्धियां आपकी हथेली है। सिद्धि कोई
बड़ी चीज़ नहीं है, सिर्फ दिव्य बुद्धि की सफाई है। जैसे आजकल के जादूगर हाथ की सफाई
दिखाने है ना। वह दिव्य बुद्धि की सफाई सर्व सिद्धियों को हथेली में कर देती है। आप
सभी ब्राह्मण आत्माओं ने सर्व सिद्धियां प्राप्त की है लेकिन दिव्य सिद्धियां
साधारण नहीं। तब आपकी मूर्ति के द्वारा आज तक भी भक्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए
जाते हैं। जब सिद्धि-स्वरूप बने हैं तब तो भक्त आपसे माँगने आते हैं। तो समझा दिव्य
बुद्धि की क्या कमाल है! स्पष्ट हुई ना दिव्य बुद्धि की कमाल। लेकिन आज क्या देखा?
क्या देखा होगा टीचर्स सुनाओ।
टीचर्स तो बाप समान
मास्टर शिक्षक हो गई ना। टीचर अर्थात् हर संकल्प, बोल और हर सेकण्ड सेवा में
उपस्थित - ऐसे सेवाधारी को ही बापदादा टीचर कहते हैं। हर समय तो वाणी द्वारा सेवा
नहीं कर सकते हो। थक जायेंगे ना। तेकिन अपने फीचर्स द्वारा हर समय सेवा कर सकते हो।
इसमें थकावट की बात नहीं है । यह तो कर सकते हैं ना, टीचर्स बोलने की सेवा तो
यथाशक्ति समय प्रमाण ही करेंगे लेकिन फरिश्ता फ्यूचर के फीचर्स हों। संगमयुग का
फ्यूचर फरिश्ता है, वह फीचर्स में दिखाई दे तो कितनी अच्छी सेवा होगी? जब जड-चित्र
फीचर्स द्वारा अंतिम जन्म तक भी सेवा कर रहे हैं, तो आप चैतन्य श्रेष्ठ आत्माएं अपने
फीचर्स द्रारा सेवा सहज कर सकते हो। आपके फीचर्स में सदा सुख की, शान्ति की, खुशी
की झलक हो। कैसी भी दुखी, अशांत आत्मा, परेशान आत्मा आपके फीचर्स द्वारा अपना
श्रेष्ठ फ्यूचर बना सकती है। ऐसा अनुभव है ना। अमृतवेले अपने फीचर्स को चेक करो।
जैसे शरीर के फीचर्स को चेक करने हो ना, वैसे फरिश्ता फीचर्स में खुशी का, शान्ति
का, सुख का शृंगार ठीक है - यह चेक करो तो स्वत: और सहज सेवा होती रहेगी। सहज लगता
है ना टीचर्स को? यह तो 12 घण्टा ही सेवा कर सकते हो। यह वाणी की सेवा तो दो-चार
घण्टा ही करेंगे। प्लेनिंग का काम, भाषण का काम करेंगे तो थक जायेंगे। इसमें तो थकने
की बात ही नहीं। नेचुरल है ना। वैसे अनुभवी सभी हो लेकिन... बापदादा ने देखा फ़ोरिन
में कुत्ते और बिल्ली बहुत पालते हैं। ऐसे खिलौने भी यही लाते हैं। तो अनुभव बहुत
अच्छा करते हो लेकिन कभी कुत्ता आ जाता, कभी कोई बिल्ली आ जाती है। उसको निकालने
में टाइम लगा देते हो। लेकिन आज सुनाया ना कि माया आपकी सफलता की माला बन जायेंगी।
सभी निमित्त सेवाधारी के गले में माला पडी हुई है। सफलता की माला है वा कभी-कभी गले
में माला होते भी दिखाई नहीं देती है? बाहर ढूँढते रहते कि सफलता मिले। जैसे रानी
की कहानी सुनाते हैं ना - गले में हार होते हुए भी बाहर ढूँढती रही। ऐसे तो नहीं
करते हो ना। सफलता हर ब्राह्मण-आत्मा का अधिकार है। सभी टीचर्स सफलतामूर्त हो ना,
कि पुरुषार्थीमूर्त, मेहनतमूर्त हो? पुरुषार्थ भी सहज पुरुषार्थ, मेहनत वाला नहीं।
यथार्थ पुरुषार्थ की परिभाषा ही है कि नेचुरल अटेन्शन। कई कहते हैं - अटेन्शन रखना
है ना। लेकिन अटेन्शन, टेन्शन में बदल जाती है, यह पता नहीं पड़ता। नेचुरल अटेन्शन
अर्थात् यथार्थ पुरुषार्थी।
टीचर्स से बापदादा का
प्यार है, इसलिए मेहनत करने नहीं देते है। दिल का प्यार तो यही होता है ना। अच्छा,
फिर दूसरी बार सुनायेंगे कि और क्या-क्या देखा! थोड़ा-थोड़ा सुनायेंगे। सबके अंदर अपना
चित्र तो आ रहा है।
देश-विदेश में सेवा
की धूमधाम अच्छी है। भारत की कोन्फेरेंस भी बहुत अच्छी सफल रही। सफलता की निशानी है
- सफलता की खुशबू पर आने वाली आत्माएं अपने उमंग-उत्साह से संख्या में बढ़ती जाती
है। अच्छे की निशानी यह है कि सबके अंदर देखने-सुनने-पाने की इच्छा बढ़ रही है। यह
है अच्छे की निशानी। तो यह नहीं सोचो - संख्या कम होगी। अगर अच्छा करते हो तो इच्छा
बढ़ेगी, संख्या तो बढ़ेगी। चाहे फ़ोरिन की रिट्रीट में, चाहे कोन्फेरेंस में - दोनों
की रिजल्ट दिन-प्रतिदिन अच्छे-ते-अच्छी दिखाई दे रही है। सबसे अच्छी रिजल्ट यह है
कि पहले जो फ़ोरिन में कहते थे कि ब्रह्माकुमारियोँ के नाम से कोई आयेगा नहीं। "अभी
तो डायरेक्ट ब्रह्माकुमारियों के आश्रम में रिट्रीट करने जा रहे हैं, राजयोग सीखने
के लिए जा रहे हैं" यह समझते हैं। तो यह है परदे के बाहर आये, घूँघट खोला है। मधुबन
निवासी वा सेवाधारी सभी ने चाहे भारत के अनेक स्थानो से आकर सेवा की, मधुबन निवासी
वा चारों ओर के सेवाधारियोँ ने स्नेह से, बातों को न देख, आराम को न देख, अच्छी अथक
सेवा की। इसलिए बापदादा चारों ओर की अथक सेवा की सफलता को प्राप्त करने वाली विशेष
बच्चों को सेवा की मुबारक, दिल की मुबारक दे रहे हैं। आवाज़ गूँजती हुई चारों ओर फैल
रही है । अच्छा –
सर्व दिव्य बुद्धि
रूहानी वरदानी आत्माएं, सदा बुद्धि-बल को समय प्रमाण, कार्य प्रमाण यूज करने वाली
ज्ञान-स्वरूप आत्माओं को, सदा अपने फरिश्ते फीचर्स द्वारा अखण्ड सेवा करने वाले
स्वत: सहज पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा से
पर्सनल मुलाकात
सभी अमूल्य रत्न हो।
कितने अमूल्य हो? इस दुनिया में ऐसा शब्द नहीं जो आपको कहे! बहुत श्रेष्ठ रत्न हो,
इसलिए द्वापर से जब आपके मंदिर बनते है तो उसमे रत्न जड़ते है, जड-चित्रों को भी
रत्नों से सजाते है। तो जब जड़-चित्र इतने अमूल्य बने तो चैतन्य में कितने श्रेष्ठ
हो, अमूल्य हो। और अपने राज्य में जब होंगे तो यह रत्न क्या होंगे! जैसे यहाँ पत्थर
सजाते हो वैसे वही रत्न-जड़ित महल होंगे। याद है अपने राज्य में क्या-क्या किया था?
अनगिनत बार की बात याद नहीं है! अपने वर्तमान समय को ही देखो तो यह जीवन कौड़ी से
क्या बन गई है? हीरे तुल्य जीवन है ना! यह हीरे-रत्न आपके लिए अनगिनत हो जायेंगे ।
सदा अपने वर्तमान श्रेष्ठ जीवन के आधार पर भविष्य सोचो कि कर्म का फल क्या मिलेगा,
कितना शक्तिशाली कर्म रूपी बीज डाल रहे हो। तो फल भी अच्छा मिलेगा ना! इससे अच्छा
फल और किसी को मिल नहीं सकता। यह नशा रहता है ना! अच्छा!
सभी बिजी रहते हो ना।
जो बिजी होता है उसके पास माया नहीं आती। क्योंकि आपके पास उसे रिसीव करने का टाइम
ही नहीं है। तो इतने बिजी रहते हो या कभी-कभी रिसीव कर लेते हो? ब्राह्मण बने ही
क्यों? बिजी रहते के लिए ना। बापदादा हँसी में कहते है कि बिजी रहने वाले ही
बडे-ते-बडे बिजनिसमैन हैं। सारे दिन में कितना बड़ा बिजनेस करते हो! जानते हो हिसाब?
हिसाब रखना आता है? हर कदमो में पढ़ाई की कमाई है। कदम मैं पदम् - सारे कल्प में ऐसा
बिजनेस कोई नहीं कर सकता। तो जितना जमा होता है उस जमा की खुशी होती है। सबसे ज्यादा
खुशी किसको रहती है? नशे से कहो - 'हम नहीं खुश होंगे तो कौन होगा!' यह नशा भी हो
किन्तु निर्माण। जैसे अच्छे वृक्ष की निशानी है - फल वाला होगा लेकिन झुका होगा। ऐसा
नशा है? तो दोनों साथ-साथ हो। आप सबकी नेचुरल जीवन ही यह हो गई है - किसी को भी
देखेंगे तो उसी स्मृति से देखेंगे कि यह एक ही परिवार की आत्माएं है। इसलिए नुकसान
वाला नशा नहीं है। हर आत्मा के प्रति दिल का प्यार स्वत: ही इमर्ज होता है। कभी किसी
के प्रति घृणा नहीं आ सकती। कभी कोई गाली देवे तो भी घृणा नहीं आ सकती, क्वेश्चन नहीं
उठ सकता। जहाँ क्वेश्चन मार्क होगा वही हलचल जरूर होगी। फुलस्टॉप लगाने वाले फुल
पास होते है। फुलस्टॉप वही लगा सकते है - जिनके पास शक्तियों का फुलस्टॉक हो। अच्छा!
वरदान:-
समस्याओं को
चढ़ती कला का साधन अनुभव कर सदा सन्तुष्ट रहने वाले शक्तिशाली भव
जो शक्तिशाली आत्मायें
हैं वह समस्याओं को ऐसे पार कर लेती हैं जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते
हैं। समस्यायें उनके लिए चढ़ती कला का साधन बन जाती हैं। हर समस्या जानी पहचानी
अनुभव होती है। वे कभी भी आश्चर्यवत नहीं होते बल्कि सदा सन्तुष्ट रहते हैं। मुख से
कभी कारण शब्द नहीं निकलता लेकिन उसी समय कारण को निवारण में बदल देते हैं।
स्लोगन:-
स्व-स्थिति में स्थित
रहकर सर्व परिस्थितियों को पार करना ही श्रेष्ठता है।