04-01-09 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 14-05-70 मधुबन
“समर्पण का गुह्य अर्थ”
आज वतन से एक सौगात लाये हैं। बताओ कौन सी सौगात लाये हैं, मालूम है? अव्यक्त रूप में सौगात भी अव्यक्त होगी ना। आज वतन से दर्पण ले आये हैं। दर्पण किसलिए लाया है? आप सभी जिस विशेष प्रोग्राम के लिए आये हुए हो वह कौन सा है? समर्पण कराने आये हो व सम्पूर्ण होने आये हो? वतन से दर्पण लाया है सभी को अर्पणमय का मुखड़ा देखने के लिए और दिखाने के लिए। समर्पण हो चुके हो? सभी हो चुके हो? इस सभा के अन्दर कौन समझते हैं कि हम समर्पण हो चुके हैं? समर्पण किसको कहा जाता है? देह अभिमान में समर्पण हुए हो। समर्पण वा सम्पूर्ण अर्पण हुए? हाँ वा ना बोलो। देह अभिमान से सम्पूर्ण अर्पण हुए हो? इसमें हाँ क्यों कहते हो? स्वभाव अर्पण हुए हैं? (इसमें पुरुषार्थ है) स्वभाव अर्पण का समारोह कब करेंगे? आप लोग कन्या समर्पण समारोह मनाने आये हो लेकिन बापदादा वह समारोह मनाना चाहते हैं। वह कब मनाएंगे? इसके लिए कहा कि दर्पण ले आये हैं। उसमें तीन बातें देख रहे हैं। एक स्वभाव समर्पण, दूसरा देह अभिमान का समर्पण और तीसरा संबंधों का समर्पण। देह अर्थात् कर्मेन्द्रियों के लगाव का समर्पण। तीन चीज़े दर्पण में देख रहे हैं। जब स्वभाव समर्पण समारोह होगा तब सम्पूर्ण मूर्त्त का साक्षात्कार होगा। और दहेज़ क्या मिलेगा? जब यह सम्पूर्ण सुहाग प्राप्त होगा तो श्रेष्ठ भाग्य का दहेज़ स्वतः ही मिलेगा। अपने सुहाग सदा भाग्य। जो जितना सुहागिन रहते हैं। उतना ही श्रेष्ठ भाग्यवान बनते हैं। सुहाग की निशानी होती हैं बिन्दी। चिन्दी और बिन्दी दोनों ही होती हैं। तो जो सदा सुहागिन हैं उनकी बिन्दी रूप की स्मृति सदा कायम रहती है। अगर यह बिंदी रूप की स्थिति सदा साथ है तो वही सदा सुहागिन है। तो अपने सुहाग से भाग्य को देखो। जितना सुहाग उतना भाग्य। अविनाशी सुहाग तो अविनाशी भाग्य। सदा अपने सुहाग को कायम रखने के लिए चार बातें याद रखनी हैं। कौन सी चार बातें? चार बातों में से कोई एक बात भी बताओ। जैसे स्थूल दहेज तैयार करके आये हो ना। वैसे इसका कौन से पुरुषार्थ का दहेज चाहिए। कौन सी चार बातें हैं? एक तो सदैव जीवन का उद्देश्य सामने हो, दूसरा बापदादा का आदेश, तीसरा सन्देश और चौथा स्वदेश। जीवन का उद्देश्य सामने होने से पुरुषार्थ तीव्र चलेगा और बापदादा के आदेश की स्मृति रखकर के पुरुषार्थ करने से पुरुषार्थ में भी सफलता मिलती है। सभी को सन्देश देना है जिसको सर्विस कहा जाता है और अब क्या याद रखना है? स्वदेश कि अब घर जाना है। अब वापस जाने का समय है। समय समीप आ पहुंचा है। इन चार बातों में कोई भी बात की कमी है तो उस कमी का नाम ही कमज़ोर पुरुषार्थी है। कमी को भरने के लिए यह चार शब्द सामने रखो। बापदादा बच्चों को आज एक नया टाइटल दे रहे हैं। लॉ मेकर्स। वह लोग पीस मेकर्स टाइटल देते हैं। लेकिन आज बापदादा सभी बच्चों को टाइटल देते हैं की आप सभी लॉ मेकर्स हो। सतयुगी जो भी लॉ चलने वाले है उसे बनाने वाले आप हो। हम लॉ मेकर्स हैं – यह स्मृति में रखेंगे तो कोई भी कदम सोच समझ कर उठाएंगे। आप जो कदम उठाते हो वह मानो लॉ बन रहे हैं। जैसे जस्टिस वा चीफ़ जस्टिस होते हैं वह जो भी बात फाइनल करते हैं तो वह लॉ बन जाता है। तो यहाँ भी सभी जस्टिस बैठे हुए हैं। लॉ मेकर्स हो। इसलिए ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना है। जब हैं ही लॉ मेकर्स तो जो संकल्प आप करेंगे, जो कदम आप उठाएंगे, आप को देख सा विश्व फॉलो करेगा। आप लोगों की प्रजा आप सभी को फॉलो करेगी। तो ऐसे अपने को समझ फिर हर कर्म करो। इसमें भी नंबर होते हैं। लेकिन है तो सभी लॉ मेकर्स।
आज बापदादा इस सभा को देख हर्षित हो रहे थे। कितने लॉ मेकर्स इकट्ठे हुए हैं। ऐसा अपने को समझकर चलते हो? इतनी बड़ी जिम्मेवारी समझकर चलने से फिर छोटी-छोटी बातें स्वतः ही ख़त्म हो जाती हैं। स्लोगन भी है जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख सभी करेंगे। यह स्लोगन सदैव याद रखेंगे तब ही कार्य ठीक से कर सकेंगे। अपने को अकेला नहीं समझो। आप एक-एक के पीछे आपकी राजधानी है। वे भी आप को देख रहे हैं। इसलिए यह याद रहे कि जो कर्म मैं करूंगा मुझे देख सभी करेंगे। इससे क्या होगा कि सभी के स्वभाव वा संस्कारों का समर्पण समारोह जल्दी हो जायेगा। अब इस समारोह को स्टेज पर लाने के लिए जल्दी-जल्दी तैयारी करनी है। अच्छा।
दो कुमारियों का समर्पण समारोह
आज किस कार्य के लिए बुलाया है? सतयुग में माता-पिता राजसिंहासन पर बिठाते हैं। संगम पर कौन सा राजतिलक मिलता है, मालूम है? संगम का तिलक लगाया हुआ है वा लगाना है? संगम के तख़्तनशीन हुए हो? सर्विस की जिम्मेवारी का ताज है, तख़्त कौन सा है? संगम के तख़्तनशीन होने के बाद ही सतयुग के तख़्तनशीन होंगे। सर्व गहनों से श्रृंगार कर लिया है कि वह भी कर रहे हो? इस घड़ी गहनों से सजे हुए हो। संगमयुग से ही यह सभी रस्मरिवाज़ आरम्भ हो रही है। क्योंकि संगमयुग है सर्व बातों का बीज डालने का समय। जैसे बीज बोने का समय होता है ना। वैसे हर दैवी रस्म का बीज डालने का यह संगमयुग है। बीजरूप द्वारा सर्व बातों का बीज पड़ता है। उस बीजरूप के साथ-साथ आप सभी भी बीज डालने की मदद करना। आज के दिवस ऐसे ही साधारण फंक्शन नहीं हो रहा है। लेकिन सुनाया ना कि आप सभी लॉ-मेकर्स हो। यह रीति रस्म का बीज डालने का दिवस है। इतना नशा है? इसकी सारी रस्म ब्राह्मणों द्वारा होती है। कितना बड़ा कार्य करने के निमित्त हो(विश्व को पलटाने के) कितने समय में विश्व पलटेंगे? अपने को कितने समय में तैयार करेंगे? एवररेडी हो? आज सभी अपने को किस रूप में अनुभव कर रहे हो? किस रूप में बैठे हो? जैसा दिन वैसा रूप होता है ना। यह संगम की दरबार सतयुगी दरबार से भी ऊँची है। आज सभी अपने को सर्व श्रृंगार से सजे हुए देख रहे हो या सिर्फ इन्हीं(कुमारियों) को ही देख रहे हो। आप एक-एक के संगमयुग के श्रृंगार सारी सतयुगी श्रृंगार से भी श्रेष्ठ हैं। तो बापदादा सभी श्रृंगारी हुई मूर्तियों को देख रहे हैं। सतयुगी ताज इस ताज के आगे कुछ नहीं है। संगम का ताज पड़ा हुआ है? यह ताज और तख़्त सदैव कायम रहे इसलिए क्या प्रयत्न करेंगे? इसके लिए तीन बातें याद रखनी हैं। यह जो स्वयंवर का समारोह होता है, जो ताजपोशी में जो रीति-रस्म होती है वह सभी यहाँ संगम पर ही किस न किस रूप में होती है। मालूम है आज की दुनिया में क्या रीति रस्म है? कितने प्रकारों की रस्म है? एक ब्राहमणों द्वारा होती है, दूसरा कोर्ट द्वारा, तीसरा मंदिरों और गुरुओं द्वारा। इन तीनों रस्मों का किस न किस रूप में यहाँ बीज पड़ता है। यह मधुबन मंदिर भी है, चैतन्य मंदिर है। इस मंदिर के बीच आत्मा और परमात्मा की लगन होती है। साथ साथ कोर्ट का जो रिवाज़ है वह भी यहाँ से शुरू होता है। सुनाया ना कि आप लॉ-मेकर्स हो। इन्हों के आगे यह वायदा करेंगे तो यह कोर्ट हुई ना। तीनों ही रस्म इस संगम पर अलौकिक रूप से होती है। जिसका यादगार स्थूल रूप में चलता रहता है।
अच्छा, तीन बातें कौन सी याद रखनी है? एक तो अपने को उपकारी समझकर चलना है, दूसरा निरहंकारी, तीसरा अधिकारी। अधिकार भी सामने रखना है और निरहंकार का गुण भी सामने रखना है और उपकार करने का कर्त्तव्य भी सामने रखना है। यह तीन बातें सदैव याद रखना है। कितना भी कोई अपकारी हो लेकिन अपनी दृष्टि और वृत्ति उपकारी हो। अधिकारी भी समझकर चलना है लेकिन निरहंकारी भी। जितना अधिकारी उतना निरहंकारी। तब यह ताज और तख़्त सदैव कायम रहेगा। समझा। अच्छा।
दुसरी मुरली 21-05-70
“भिन्नता को मिटाने की युक्ति”
आज हरेक बच्चे की दो बातें देख रहे हैं वह दो बातें कौन सी देख रहे हैं? बापदादा के देखने को भी देख रहे हो? ऐसी अवस्था अब आने वाली है। जो कोई के संकल्प को ऐसे ही स्पष्ट जान लेंगे जैसे वाणी द्वारा सुनने के बाद जाना जाता है। मास्टर जानी-जाननहार यह डिग्री भी यथायोग्य यथा शक्तिशाली को प्राप्त होती है ज़रूर। तो आज क्या देख रहे हैं? हरेक पुरुषार्थी के पुरुषार्थ में अभी तक मार्जिन क्या रही हुई है – एक तो उस मार्जिन को देख रहे हैं दूसरा हरेक की माईट को देख रहे हैं। मार्जिन कितनी है और माईट कितनी है। दोनों का एक दो से सम्बन्ध हैं। जितनी माईट है उतनी मार्जिन है। तो माईट और मार्जिन दोनों ही हरेक पुरुषार्थी की देख रहे हैं। कोई बहुत नजदीक तक पहुँच गए हैं। कोई बहुत दूर तक मंजिल को देख रहे हैं। तो भिन्न-भिन्न पुरुषार्थियों की भिन्न-भिन्न स्थिति देख क्या सोचते होंगे? भिन्नता को देख क्या सोचते होंगे?
बापदादा सभी को मास्टर नॉलेजफुल बनाने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। प्रैक्टिकल में भगवान् के जितना साकार सम्बन्ध में नजदीक आएंगे उतना पुरुषार्थ में भी नजदीक आयेंगे। अपने पुरुषार्थ और औरों के पुरुषार्थ को देख क्या सोचते हो? बीज तो अविनाशी है। अविनाशी बीज को संग का जल देना है। तो फिर फल निकल आयेगा। तो अब फल स्वरुप दिखाना है। वृक्ष से मेहनत फल के लिए करते हैं ना। तो जो ज्ञान की परवरिश ली है उनकी रिजल्ट फलस्वरुप बनना है। तो यह जो भिन्नता वो कैसे मिटेगी? भिन्नता को मिटाने का सहज उपाय कौन सा है? जो अभी की भिन्नता है वह अंत तक रहेगी वा फर्क आएगा? सम्पूर्ण अवस्था की प्राप्ति के बाद अब के पुरुषार्थी जीवन की भिन्नता रहेगी? आजकल की जो भिन्नता है वह एकता में लानी है। एकता के लिए वर्तमान की भिन्नता को मिटाना ही पड़ेगा। बापदादा इस भिन्नता को देखते हुए भी एकता को देखते हैं। एकता होने का साधन है – दो बातें लानी पड़ें। एक तो एक्नामी बन सदैव हर बात में एक का ही नाम लो, एक्नामी और इकॉनमी वाले बनना है। इकॉनमी कौन सी? संकल्पों की भी इकॉनमी चाहिए और समय की भी और ज्ञान के खजाने की भी इकॉनमी चाहिए। सभी प्रकार की इकॉनमी जब सिख जायेंगे। फिर क्या हो जायेगा? फिर मैं समाकर एक बाप में सभी भिन्नता समा जाएगी। एक में समाने की शक्ति चाहिए। समझा। यह पुरुषार्थ अगर कम है तो इतना ही इसको ज्यादा करना है। कोई भी कार्य होता है उसमें कोई भी अपनापन न हो। एक ही नाम हो। तो फिर क्या होगा? बाबा-कहने से माया भाग जाती है। मैं-मैं कहने से माया मार देती है। इसलिए पहले भी सुनाया था कि हर बात में भाषा को बदली करो। बाबा-बाबा की ढाल सदा सदैव अपने साथ रखो। इस ढाल से फिर जो भी विघ्न हैं वह ख़त्म हो जायेंगे। साथ-साथ इकॉनमी करने से व्यर्थ संकल्प नहीं चलेंगे। और न व्यर्थ संकल्पों की टक्कर होगा। यह है स्पष्टीकरण। अच्छा। जो भी जानेवाले हैं वह क्या करके जायेंगे? जो कोई जहाँ से जाते हैं तो जहाँ से जाना होता है वहां अपना यादगार देकर जाना होता है। तो जो भी जाते हैं उन्हों को अपना कोई न कोई विशेष यादगार देकर जाना है।
सरल याद किसको रहती है? मालूम है? जितना जो स्वयं सरल होंगे उतना याद भी सरल रहती है। अपने में सरलता की कमी के कारण याद भी सरल नहीं रहती है। सरल चित्त कौन रह सकेगा? जितना हर बात में जो स्पष्ट होगा अर्थात् साफ़ होगा उतना सरल होगा। जितना सरल होगा उतना सरल याद भी होगी। और दूसरों को भी सरल पुरुषार्थी बना सकेंगे। जो जैसा स्वयं होता है वैसे ही उनकी रचना में भी वही संस्कार होते हैं तो हरेक को अपना विशेष यादगार देकर जाना है। अच्छा।
वरदान:- श्रेष्ठ कर्म द्वारा दिव्य गुण रूपी प्रभू प्रसाद बांटने वाले फरिश्ता सो देवता भव
वर्तमान समय चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं, दोनों को आवश्यकता गुण-दान की है। तो अब इस विधि को स्वयं में वा ब्राह्मण परिवार में तीव्र बनाओ। ये दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है, इस प्रसाद को खूब बांटो, जैसे स्नेह की निशानी एक दो को टोली खिलाते हो ऐसे दिव्य गुणों की टोली खिलाओ तो इस विधि से फरिश्ता सो देवता बनने का लक्ष्य सहज सबमें प्रत्यक्ष दिखाई देगा।
स्लोगन:- योग रूपी कवच को पहनकर रखो तो माया रूपी दुश्मन वार नहीं कर सकता।