18-01-13  प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर सुनाने के लिए बापदादा के मधुर महावाक्य

 

"मीठे बच्चे - अपना स्वभाव बहुत ही मीठा और शान्त बनाओ, बोलचाल ऐसा हो जो सब कहें यह तो जैसे देवता हैं"

 

प्रश्नः- हृदय को शुद्ध बनाने के लिए कौन सा शौक होना चाहिए?

 

उत्तर:- हृदय को शुद्ध बनाना है तो योगी बनने बनाने का शौक होना चाहिए। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। अगर देह में मोह है, देह अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो।

 

ओम् शान्ति। बच्चे जानते हैं अभी भगवान सम्मुख बैठकर हमको ज्ञान के गीत सुनाते हैं वा ज्ञान की डांस कराते हैं। इस ज्ञान डांस से तुम देवताओं मुआफिक सदा सुखी और हर्षित रहेंगे। भगवान को ही बेहद का बाप वा विश्व का रचयिता कहा जाता है। आत्मा समझती है बाबा हमारे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं। वही रचयिता है। स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए राजयोग सिखाते हैं। कहते हैं बाप को और विश्व के मालिकपने को याद करो। बाप बेहद का मालिक है तो जरूर बेहद की बड़ी दुनिया ही रचेंगे। तुम बच्चों के लिए सारी विश्व ही घर है अर्थात् पार्ट बजाने का स्थान है। बेहद का बाप आकरके बेहद का विश्व अथवा घर बनाते हैं, वह है स्वर्ग। तो ऐसे बाप का बच्चों को कितना शुक्रिया मानना चाहिए। विश्व का रचता बाप डायरेक्ट समझा रहे हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ तो तुम्हारा स्वभाव बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। तुम्हारी चलन ऐसी होनी चाहिए जो सब कहें कि यह तो जैसे देवता है। देवतायें नामीग्रामी हैं। कहते हैं इनका स्वभाव एकदम देवताई है। बिल्कुल मीठे शान्त स्वभाव के हैं। तो ऐसे बच्चों को बाप भी देख खुश होते हैं। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने आते हैं तो तुम्हें कितना मददगार बनना चाहिए। सर्विस में आपेही लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं मैं थक गया हूँ, फुर्सत नहीं है। समय पर सब काम करने में कल्याण है। यज्ञ सर्विस का इज़ाफा शिवबाबा देते हैं। बाबा बच्चों की दैवी चलन देखते हैं तो कुर्बान जाते हैं।

 

मीठे बच्चे, तुम जानते हो हमको पढ़ाने वाला कौन है! इस चैतन्य डिब्बी में चैतन्य हीरा बैठा है, वही सत-चित आनन्द स्वरूप है। सत बाप तुम्हें सच्ची-सच्ची श्रीमत देते हैं। बाप के बने हो तो कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। चुप रहना है और पढ़ना है, एक बाप को याद करना है। घड़ी-घड़ी इस बैज को देखते रहो तो बाप और वर्से की याद आयेगी। याद से ही तुम जैसे सारे विश्व को शान्ति का दान देते हो। हर एक बच्चे को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाने हैं। मुरली कोई भी मिस नहीं करनी चाहिए। बाबा बहुत प्यार से समझाते हैं - मीठे बच्चे अपने पर रहम करो, कोई अवज्ञा नहीं करो।

 

बाप की दिल अन्दर बच्चों को सदा सुखी बनाने की कितनी फर्स्टक्लास आश रहती है कि बच्चे लायक बन स्वर्ग के मालिक बनें। जो खुशबूदार फूल हैं वह खींचते हैं। जो जैसा है ऐसी सर्चलाइट लेने की कशिश करते हैं। खुशबूदार, गुणवान बच्चों को देख प्यार में खुशी में नयन गीले हो जाते हैं। कुछ तकलीफ होती है तो बाबा सर्चलाइट देते हैं।

 

बाबा समझाते हैं मीठे बच्चे, तुम्हें इस पुरानी दुनिया में कोई भी आशा नहीं रखनी है। अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है कि हम तो चलें सुखधाम। कहाँ भी ठहरना नहीं है। देखना नहीं है। आगे बढ़ते जाना है। एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी। अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है। इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है। तुम जानते हो यह प्रकृति अभी अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी। सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी। अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे। अनेक प्रकार से मौत होंगे। यह सब ड्रामा का प्लैन बना हुआ है। इसमें दोष किसी का भी नहीं है। विनाश तो होना ही है इसलिए तुम्हें इससे बुद्धि का योग हटा देना है। तुमने तो अपना सब कुछ इन्श्योर कर दिया है इसलिए तुम्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं। तुम्हारा सब कुछ सफल हो रहा है।

 

अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू वाह! जिसने हमको यह रास्ता बताया है। वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह! तुम्हारे दिल से निकलता - शुक्रिया बाबा आपका जो हमारे दो मुट्ठी चावल लेकर हमें सेफ्टी से भविष्य में सौगुणा रिटर्न देते हो। परन्तु इसमें भी बच्चों की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बच्चों को अथाह ज्ञान धन का खजाना मिलता रहता तो अपार खुशी होनी चाहिए ना। जितना हृदय शुद्ध होगा तो औरों को भी शुद्ध बनायेंगे। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। तुम बच्चों को योगी बनने बनाने का शौक होना चाहिए। अगर देह में मोह है, देह-अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो। बाबा अक्षर सबसे बहुत मीठा है। बाप बड़े प्यार से बच्चों को पलकों पर बिठाकर साथ ले जायेंगे। ऐसे बाप की याद के नशे में चकनाचूर होना चाहिए। बाप को याद करते-करते खुशी में ठण्डे ठार हो जाना चाहिए। जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं - तुम भी फालो फादर करो। सुखदाई बनो।

 

तुम बच्चे इस पढ़ाई से कितनी ऊंची कमाई करते हो। तुम पदमापदम पति बनते हो। बाबा तुम्हें कितना धनवान बनाते हैं। बाप तुमको अखुट खजाने में ऐसा वज़न करते हैं जो 21 जन्म साथ रहेगा। वहाँ दु:ख का नाम नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होगा। मौत से कभी डरेंगे नहीं। यहाँ कितना डरते हैं, रोते हैं। तुमको तो खुशी है - यह पुराना शरीर छोड़ जाए नई दुनिया में प्रिन्स बनेंगे। तुम इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाते रहो, इस देह को भी भूलते जाओ। हम आत्मा इन्डिपिडेंट हैं। बस एक बाप के सिवाए और किसी की याद न आये। जीते जी जैसेकि मौत की अवस्था में रहना है। इस दुनिया से मर गये। कहते भी हैं ना - आप मुये मर गई दुनिया। शरीर के भान को उड़ाते रहो। एकान्त में बैठ यह अभ्यास करो - बाबा बस अभी हम आपकी गोद में आये कि आये। एक की याद में शरीर का अन्त हो - इसको कहा जाता है एकान्त।

 

तुम बच्चे अभी ड्रामा के राज़ को भी जानते हो - बाप तुम्हें निराकारी, आकारी और साकारी दुनिया का सब समाचार सुनाते हैं। आत्मा कहती है अभी हम पुरुषार्थ कर रहे हैं, नई दुनिया में जाने के लिए। हम स्वर्ग में चलने लायक जरूर बनेंगे। अपना और दूसरों का कल्याण करेंगे। अच्छा-बाप मीठे बच्चों को समझाते हैं, बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। बाप का राइट हैण्ड बनना है। ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं। शुभ कार्य में राइट हाथ को ही लगाते हैं। तो बाप कहते हर बात में राइटियस बनो, एक बाप को याद करो तो फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। यह तो कब्रिस्तान है। धन्धाधोरी बच्चों आदि के चिन्तन में मरे तो मुफ्त अपनी बरबादी कर देंगे। शिवबाबा को याद करने से तुम बहुत आबाद होंगे। देह-अभिमान में आने से बरबादी हो जाती है। देही-अभिमानी बनने से आबादी होती है। धन की भी बहुत लालच नहीं रखनी चाहिए। उसी फिकरात में शिवबाबा को भी भूल जाते हैं। बाबा देखते हैं सब कुछ बाप को अर्पण कर फिर हमारी श्रीमत पर कहाँ तक चलते हैं। शुरू-शुरू में बाप ने भी ट्रस्टी हो दिखाया ना। सब कुछ ईश्वर अर्पण कर खुद ट्रस्टी बन गया। बस ईश्वर के काम में ही लगाना है। विघ्नों से कभी डरना नहीं चाहिए। जहाँ तक हो सके सर्विस में अपना सब कुछ सफल करना है। ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन रहना है। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

अव्यक्त बाप-दादा के मधुर महावाक्य

 

सभी एवररेडी और ऑलराउण्डर हो? एवररेडी माना ऑर्डर आया और चल पड़े अर्थात् ऑर्डर मिला और हाँ जी । क्या करें कैसे करें - नहीं। क्या होगा, कैसे होगा, चल सकेंगे या नहीं चल सकेंगे, ऐसा संकल्प आया तो एवररेडी नहीं कहा जायेगा। तीव्र पुरूषार्थी की विशेषता है ही एवररेडी और ऑलराउण्डर। मन्सा सेवा का चान्स मिले या वाचा सेवा का चान्स मिले या कर्मणा सेवा का चान्स मिले लेकिन हर सबजेक्ट में नम्बरवन। ऐसे नहीं वाचा में नम्बरवन, कर्मणा में नम्बर टू और मन्सा में नम्बर थ्री। जितना स्नेह से वाचा सेवा करते हो उतना ही मन्सा सेवा भी कर सकें। मन्सा सेवा का अभ्यास बढ़ाओ। वाचा सेवा तो 7 दिन के कोर्स वाले भी कर सकते हैं। आपका कार्य है - वायुमण्डल को पॉवरफुल बनाना। अपने स्थान का, शहर का, भारत का व विश्व का वायुमण्डल पॉवरफुल बनाओ। चेक करो मन्सा सेवा में सफलता मिलती है! अगर मन्सा सेवा में सफलता होगी तो सदा स्वयं और सेवाकेन्द्र निर्विघ्न और चढ़ती कला में होगा। चढ़ती कला यह नहीं कि संख्या वृद्धि को पाये। चढ़ती कला संख्या में भी, क्वालिटी भी और वायुमण्डल भी तथा स्वयं साथियों में भी चढ़ती कला। इसको कहा जाता है - चढ़ती कला। तो ऐसे अनुभव करते हो? अमृतवेला स्वयं का पॉवरफुल है? ऐसे तो नहीं अमृतवेले में अलबेलापन विघ्न बनता हो। ऐसा पॉवरफुल अमृतवेला है जो विश्व को लाईट और माईट का वरदान दो ? अमृतवेले की याद से आप अपने-आप से सन्तुष्ट हो ?

 

मुख्य सबजेक्ट है ही याद की। बाप-दादा अमृतवेले जब चक्र लगाते हैं तो थोड़ा पॉवरफुल वायब्रेशन की कमी दिखाई देती है। नेमीनाथ तो बन जाते हैं, लेकिन अनुभवी मूर्त बनो। नियम प्रमाण तो ज़बरदस्ती हो गया ना। अगर अनुभव हो गया तो अपनी लगन में बैठेंगे। जिस बात का अनुभव होता है तो न चाहते भी वह बात अपनी तरफ खींचती है। जैसे वाचा सर्विस से खुशी का अनुभव होता है, तो न चाहते भी उस तरफ दौड़ते हो ना। ऐसे ही अमृतवेले को पॉवरफुल बनाओ, जिससे मन्सा सेवा का अनुभव बढ़ा सकेंगे। लास्ट में वाचा सेवा का चान्स नहीं होगा। मन्सा सेवा पर सर्टीफिकेट मिलेगा क्योंकि इतनी लम्बी क्यू होगी जो बोल नहीं सकेंगे। जैसे अभी भी मेला करते हो तो भीड़ के समय क्या करते हो? शान्ति से उनको शुभ भावना, शुभ कामना से दृष्टि देते हो ना। तो अन्त में भी जब प्रभाव निकलेगा तो क्या होगा? अभी तो स्थूल लाईट के प्रभाव से आते हैं फिर उस समय आप आत्मा की लाईट का प्रभाव होगा, उस समय मन्सा सेवा करनी पड़ेगी। नज़र से निहाल करना पड़ेगा। अपनी वृत्ति से उनकी वृत्ति बदलनी होगी। अपनी स्मृति से उनको समर्थ बनाना पड़ेगा। फिर उस समय भाषण करेंगे क्या? तो मन्सा सेवा का अभ्यास ज़रूरी है। अनुभवी मूर्त बन जाओ। जो दूसरों को कहो, वह स्व अनुभव के आधार से कहो, समझा! मन्सा सेवा को बढ़ाओ। अभी निर्विघ्न वायुमण्डल बनाओ जिसमें कोई भी आत्मा की हिम्मत न हो विघ्न रूप बनने की। विघ्न आया उसको हटाया, यह भी टाइम वेस्ट हुआ। तो अब किले को मज़बूत बनाओ। आपस में स्नेही सहयोगी बनकर चलो तो सभी फालो करेंगे। स्वयं जो करेंगे वैसे सब फालो करेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।

 

वरदान:- अपने मस्तक बीच सदा बाप की स्मृति इमर्ज रखने वाले मस्तकमणि भव

 

मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप की याद रहे, इसी को ही ऊंची स्टेज कहा जाता है। अपने को सदा ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा समझ आगे बढ़ते रहो। जो इस ऊंची स्टेज पर रहते हैं वह नीचे की अनेक प्रकार की बातों को सहज पार कर लेते हैं। समस्यायें नीचे रह जाती हैं और स्वयं ऊपर हो जाते। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है इसलिए नीचे नहीं आना, सदा ऊपर रहो।

 

स्लोगन:- बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करना है तो मेरे को तेरे में परिवर्तन कर दो।