23-05-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ – 11-09-71 मधुबन

 

डबल रिफाइन स्टेज

 

आज बोलना है क्या? वा देखना है? क्या देखना ही बोलना नहीं है? ऐसा अनुभव है कि जो-कुछ बोलना हो वह मुंह से न बोल नयनों से बोलें? ऐसे हो सकता है? ऐसे होता भी है? आज यह मास्टर नॉलेजफुल, पावरफुल, सक्सेसफुल, सर्विसएबल की सभा है। तो क्या नयनों से नहीं जान सकेंगे? अपने मन की भावना वा बुद्धि के संकल्पों को नैनों से प्रकट नहीं कर सकते। यह भी तो पढ़ाई का पाठ है। तो बताओ, आज बापदादा क्या बोलने चाहते हैं? जानते हो ना। मास्टर नॉलेजफुल हो ना!

 

तो यह पाठ जब पढ़ चुके हो, तो इसी पाठ का पेपर देने के लिये तैयार हो? महावीर तो हो ही। यह महावीरों का ग्रुप है ना। औरों की बैटरी को चार्ज करने वाले इन्चार्ज हैं। बापदादा तो देख रहे हैं कि यह सभी नम्बरवार पास हुए ग्रुप हैं। कई बातों को, कई अनुभवों को देखते, पास करते-करते पास नहीं हो गये हो? तीन प्रकार के ‘पास’ हैं। तो इन तीनों प्रकार के पास शब्द में पास होना है। एक होता है कोई बात वा रास्ते को पास करना, एक होता है पढ़ाई में पास होना और नज़दीक को भी पास कहते हैं। नजदीक अर्थात् समीप रत्न। तो तीनों प्रकार के पास शब्द में ‘पास’ हो? त्रिशूल का तिलक अर्थात् तीनों ही प्रकार के ‘पास’ शब्द में पास। यह तिलक नहीं दिखाई देता है? इस ग्रुप के मस्तक पर यह त्रिशूल का तिलक आप लोगों को दिखाई देता है? बापदादा को आज की सभा क्या दिखाई दे रही है, यह जानती हो? अपना साक्षात्कार तो होता ही है ना। अभी-अभी का अपना साक्षात्कार हो रहा है? (दादी को) देखो, यह है साक्षात्कारमूर्त और आप हो साक्षी। तो बताओ, इन्हों के ग्रुप का कौनसा एक साक्षात्कार हो रहा है? यह (दादी) माइक है, आप (दीदी) माइट हो। ऐसे? यह माइट देती है, वह माइक बोलता है। बापदादा को क्या साक्षात्कार हो रहा है? क्यों, अभी डबल ताज नहीं है क्या? अगर डबल क्राउन धारण नहीं करेंगे तो भविष्य में भी डबल क्राउन तो मिल ही नहीं सकता। तो आज डबल ताजधारी, तिलकधारी, तख्तनशीन, राजऋषि दरबार देख रहे हैं। भविष्य की दरबार तो इस दरबार के आगे फीकी लगती है। अगर अभी-अभी अपना संगमयुगी ताज, तिलक और तख्तनशीन पुरूषोत्तम, मर्यादा सम्पन्न स्वरूप देखो और साथ-साथ अपना भविष्य स्वरूप भी देखो; तो दोनों से कौनसा रूप स्पष्ट, आकर्षणमूर्त, अलौकिक, दिव्य वा रूहानी देखने में आयेगा? अभी का वा भविष्य का? तो अपने स्वरूपों का सदा साक्षात्कार करते और कराते रहते हो कि अभी पर्दे के अन्दर तैयार हो रहे हो? स्टेज पर नहीं आये हो? वर्तमान समय स्टेज पर किस रूप में रहते हो? अभी की अपनी स्टेज को कहां तक समझते हो?

 

एक है फाइनल स्टेज। तो फाइनल है? फाइन है? रिफाइन है? आजकल मालूम है कि रिफाइन भी डबल रिफाइन होता है? तो अभी रिफाइन है? डबल रिफाइन होना है वा रिफाइन होना है? एक बार का रिफाइन तो पूरा हो गया ना। अभी डबल रिफाइन होने आये हो। फाइनल की डेट कौनसी है? अगर पहले से नहीं होगी तो आप लोगों के भक्त और प्रजा आपके सम्पूर्ण स्वरूपों का साक्षात्कार कैसे करेंगे? फिर नहीं तो आप के चित्र भी टेढ़े-बांके बनायेंगे! अगर आपके सम्पूर्णता का, फाइनल स्टेज का साक्षात्कार नहीं करेंगे तो चित्र क्या बनायेंगे? चित्र भी रिफाइन नहीं बनायेंगे। तो पहले से ही अपना सम्पूर्ण साक्षात्कार कराना है। अभी आपके भक्तों में गुणगान करने के संस्कार भरेंगे तो द्वापरयुग में उतरते ही आपके चित्रों के आगे गुणगान करेंगे। सब आत्माओं में सर्व रीति-रस्म के संस्कार तो अभी से ही भरने हैं ना, भरने का समय है। फिर है प्रैक्टिकल करने का समय। जैसे-जैसे आप आत्मा में सारे कल्प के पूज्य और पुजारीपन के दोनों ही संस्कार अभी भर रहे हैं। जितना पूज्य बनेंगे उसी प्रमाण पुजारीपन की स्टेज भी आटोमेटिकली बनती जायेगी। तो जैसे आप आत्माओं में सारे कल्प के संस्कार भरते हैं। वैसे ही आपके भक्तों में भी अभी ही संस्कार भरेंगे। तो जैसे आपका स्वरूप होगा वैसे ही संस्कार भरेंगे। इसलिए अभी जल्दी-जल्दी अपने को फाइनल स्टेज पर ले जाओ। ऐसी फाइनल स्टेज बनाओ जो अब भी फाइन न पड़े। जो डबल रिफाइन हो जायेंगे उनको फाइन नहीं पड़ेगा। फाइनल वाले का कोई फाइल नहीं रह जाता। इसलिए जो भी कुछ फाइल रहा हुआ है उसको खत्म करो। अगर महावीरों को भी फाइन भरना पड़े तो महावीर ही क्या? इसलिए सुनाया कि आज बाेलना नहीं है। इशारे से ही समझने वाले हैं। यह तो ताज, तख्तनशीन ग्रुप है, तो वह सुनने से कैसे समझेंगे। अगर अभी भी कहने से करेंगे तो कहने से करने वाले तो मनुष्य होते हैं। आप लोग तो देवताओं से भी श्रेष्ठ हो। ब्राह्मण कहो वा फरिश्ते कहो। फरिश्ते ईशारे से समझते हैं। फर्श निवासी कहने से समझते हैं। अच्छा।

 

बापदादा इस ग्रुप को सारे विश्व के सामने क्या समझते हैं? जो हो वही बताना है। यह तो सारी सृष्टि को शरणागत करने वाली हैं, न कि होने वाली। बापदादा के सामने भी शरणागत होने वाली नहीं हैं। बाप को सर्वेन्ट बनाने वाली हैं। तो शरणागत हुई वा शरणागत करने वाली हुई? सारी सृष्टि में जो भी महिमा करने योग्य शब्द हैं वह सभी हो। आज बापदादा सम्पूर्ण रूप देख रहे हैं। सदा फरमानबरदार उसको कहते हैं जो एक संकल्प भी बिगर फ़रमॉं के न करे। यह ग्रुप तो इसमें पास है ना। सदैव अपने को फरमानबरदार के स्वरूप में स्थित कर फिर कोई संकल्प करो। ऐसे जो सम्पूर्ण फरमानबरदार हैं वही सम्पूर्ण वफादार भी होते हैं। यह ग्रुप तो सम्पूर्णता के समीप है ना। सम्पूर्ण वफादारी किसको कहते हैं? वफादार का मुख्य गुण क्या होता है? उनका मुख्य गुण होता है जो अपनी भले जान चली जाये लेकिन हर वस्तु की सम्भाल करेंगे। तो कोई भी चीज़ व्यर्थ नुकसान नहीं करेंगे। अगर संकल्प, समय, शब्द और कर्म - इन चारों में से कोई को भी व्यर्थ गंवाते हो वा नुकसान के खाते में जाता है तो उसको क्या सम्पूर्ण वफादार कहेंगे? क्योंकि जब से जन्म लिया अर्थात् फरमानबरदार, आज्ञाकारी बने, ईमानदार बने हैं? एक छोटे से पैसे में भी ईमानदार होता है। तो जब से जन्म लिया है तब से मन अर्थात् संकल्प, समय और कर्म जो भी करेंगे वह बाप के ईश्वरीय सेवा अर्थ करेंगे। यह प्रतिज्ञा की? सर्व समर्पण हुए हो? तो यह सभी बाप के ईश्वरीय सेवा अर्थ हो गई। अगर ईश्वरीय सेवा की बजाय कहाँ संकल्प वा समय वा तन द्वारा व्यर्थ कार्य होता है तो उनको क्या कहेंगे? उनको सम्पूर्ण वफादार कहेंगे? यह नहीं समझना कि एक वा एक सेकेण्ड क्या बड़ी बात है। अगर एक नये पैसे की भी वफादारी नहीं तो उसको सम्पूर्ण वफादार नहीं कहेंगे। यह ग्रुप तो सम्पूर्ण फरमानबरदार, सम्पूर्ण वफादार है ना। ऐसे सम्पूर्ण वफादार, फरमानबरदार, ईमानदार, आज्ञाकारी ग्रुप को क्या कहेंगे? नमस्ते। नमस्ते के बाद फिर क्या होता है? बाप तो सम्पूर्ण आज्ञाकारी है। एक-दो को देख हर्षित हो रहे हो ना। संगमयुग के दरबार का यह श्रृंगार है। अच्छा।

 

दूसरी मुरली, रिवाइज: 25-08-71

 

मुख्य 7 कमजोरियां और उनको मिटाने के लिए 7 दिन का कोर्स

 

एक सेकेण्ड में वाणी से परे स्थिति में स्थित हो सकते हो? जैसे और कर्मेन्द्रियों को जब चाहो जैसे चाहो वैसे हिला सकते हो, ऐसे ही बुद्धि की लगन को जहाँ चाहो, जब चाहो वैसे और वहाँ स्थित कर सकते हो? ऐसे पावरफुल बने हो? यह विधि वृद्धि को पाती जा रही है? अगर विधि यथार्थ है तो विधि से सिद्धि अर्थात् सफलता और श्रेष्ठता अवश्य ही दिन- प्रति-दिन वृद्धि को पाते हुए अनुभव करेंगे। इस परिणाम से अपने पुरूषार्थ की यथार्थ स्थिति को परख सकते हो। यह सिद्धि विधि को परखने की मुख्य निशानी है। कोई भी बात को परखने के लिए निशानियां होती हैं। तो इस निशानी से अपने सम्पूर्ण बुद्धि की निशानी को परख सकते हो? आजकल जो पुरूषार्थ पुरूषार्थियों का चल रहा है, उसमें मुख्य कमजोरियां कौनसी दिखाई देती हैं? (1) एक तो स्मृति में समर्थी नहीं रही है। (2) दृष्टि में दिव्यता वा अलौकिकता यथा शक्ति नम्बरवार आई हुई है। (3) वृत्ति में विल पावर न होने का कारण वृत्ति एकरस न हो, चंचल होती है। (4) निराकारी अवस्था का अटेन्शन कम होने के कारण मुख्य विकार देह-अभिमान, काम और क्रोध - इन तीनों का वार समय प्रति समय होता रहता है। (5) संगठन में रहते वा संपर्क में आते वायुमण्डल, वायब्रेशन अपना इम्प्रेशन डालता है। (6) अव्यक्त फरिश्तेपन की स्थिति कम होने कारण अच्छी वा बुरी बातों की फीलिंग आने से फेल हो जाते हैं। (7) अपनी याद की यात्रा से सन्तुष्ट कम। यह है पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ की नम्बरवार रिजल्ट।

 

अब इन सात बातों को मिटाने के लिए फिर से 7 दिन का कोर्स कराना पड़े। इन सातों बातों को सामने रख सात दिन का कोर्स जो औरों को कराते हो वह अपने आप को रिवाइज़ कराना। जैसे मुरलियों को रिवाइज़ कर रहे हो, तो रिवाइज़ करने से नवीनता और शक्ति बढ़ने का अनुभव करते हो ऐसे अब एकान्त में बैठ अमृतवेले, जो सात बातें सुनाइंर्, उन पर एक एक बात का निवारण हर दिन के पाठ में कैसे समाया हुआ है, वह मनन करके मक्खन अर्थात् सार निकालना और आपस में लेन-देन करना। कोर्स तो किया है लेकिन जैसे जिज्ञासुओं को कोर्स कराने के बाद हर पाठ की युक्ति बताते हो वा अटेन्शन दिलाते हो, वैसे आप हर एक रेगुलर गॉडली स्टूडेन्ट अब फिर से एक सप्ताह एक पाठ को प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल में लाओ। जैसे साप्ताहिक पाठ करते हैं ना। आप लोग भी सर्विस में ‘पवित्रता सप्ताह’ वा ‘शान्ति सप्ताह’ का प्रोग्राम रखते हो ना। वैसे ही अपनी प्रोग्रेस के लिए हर पाठ का साप्ताहिक पाठ प्रैक्टिकल और प्रैक्टिस में लाओ। तो रिवाइज होने से क्या होगा? सफलता समीप, सहज और स्पष्ट दिखाई देगी। तो श्रेष्ठ तो बन ही जायेंगे। अपने आप को हर संकल्प वा कर्म में महान् बनाने के लिए सभी से सहज युक्ति की तीन बातें सुनाओ। मन, वचन, कर्म में महानता के लिए ही पूछ रहे हैं।

 

महान् बनने के लिए एक तो अपने को पुरानी दुनिया में मेहमान समझो। दूसरी बात - जो भी संकल्प वा कर्म करते हो, तो महान् अन्तर को बुद्धि में रख संकल्प और कर्म करो। तीसरी बात कि बाप के वा अपने दैवी परिवार की हर आत्मा के गुण और श्रेष्ठ कर्त्तव्य की महिमा करते रहो। 1. मेहमान, 2. महान् अन्तर और 3. महिमा। यह तीन बातें चलती रहें तो जो 7 कमियां हैं वह समाप्त हो जाएं। मेहमान न समझने के कारण कोई भी रूप वा रंगत में अट्रेक्शन और अटेन्शन जाता है। महान् अन्तर को सामने रखने से कभी भी देह-अहंकार वा क्रोध का अंश वा वंश नहीं रह सकता। तीसरी बात - बाप की वा हर आत्मा के गुणों की महिमा वा कर्त्तव्य की महिमा करते रहने से किसी द्वारा किसी बात की फीलिंग नहीं आ सकती। और सदैव गुणों और कर्त्तव्यों की महिमा करने से याद की यात्रा, असन्तुष्टता भी निरन्तर वा सहज याद में परिवर्तन हो जायेगी। इन तीनों शब्दों को सदा स्मृति में रखो तो समर्थीवान हो जायेंगे। दृष्टि, वृत्ति, वायुमण्डल सभी परिवर्तन हो जायेंगे।

 

द्वापर से लेकर आज तक अपनी और अपने दैवी परिवार की आत्माओं की महिमा करते आये हो, कीर्तन करते आये हो। अब फिर चैतन्य परिचित हुई आत्माओं के अवगुणों को वा कमियों को क्यों देखते हो वा बुद्धि में धारण क्यों करते हो? अभी भी सारे विश्व से चुनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं के गुण-गान करो। बुद्धि द्वारा ग्रहण करो और मुख द्वारा एक-दो के गुणगान करो। फिर दृष्टि वा वृत्ति चंचल होगी? किसकी भी कमी की फीलिंग होगी? अभी अनुभव किया है कि कोई भी मन्दिर की मूर्ति कितनी भी अट्रैक्टिव वा सुन्दर सजी हुई हो, तो कभी भी दृष्टि उनकी सुन्दरता वा सजावट के तरफ संकल्प मात्र भी चंचल नहीं होती है। और वहाँ ही अगर कोई सिनेमा वा कोई ऐसी किताबों में से कोई अट्रेक्शन वा सजावट देखते हैं वा कोई बोर्ड भी देखते हैं तो वृत्ति और दृष्टि चंचल हो जाती है, क्यों? अट्रेक्शन तो मूर्तियों में भी है। सजावट, फीचर्स और नेचर्स की ब्यूटी मूर्तियों में भी है, फिर भी वृत्ति और दृष्टि चंचल क्यों नहीं होती? दोनों ही चित्र सामने रखो वा एक ही कमरे में रखो तो एक सेकेण्ड में उस तरफ जाने से वृत्ति चंचल होती है और उस तरफ जाने से वृत्ति पवित्र बन जाती है। यह पवित्रता और अपवित्रता का कारण क्या होता है? स्मृति। स्मृति है कि यह देवी है; तो यह स्मृति दृष्टि और वृत्ति को पवित्र बनाती है। और स्मृति है कि यह फीमेल है; तो वह स्मृति वृत्ति और दृष्टि अपवित्रता की तरफ खैंचती है। वहाँ रूप को देखेंगे और वहाँ रूहानियत को देखेंगे। ऐसा पास्ट का अनुभव तो होगा ना। वर्तमान भी परसेन्टेज में है। लेकिन इसको मिटाने के लिए कभी भी कहाँ भी देखते हो, किससे भी बोलते हो तो स्मृति में क्या रखो? आत्मा समझना, वह तो हुई फर्स्ट स्टेज। लेकिन कर्म में आते, सम्पर्क में आते, सम्बन्ध में आते यही स्मृति रखो कि यह सभी जड़ चित्रों की चैतन्य देवी वा देवताओं के रूप हैं। तो देवी का रूप स्मृति में आने से जैसे जड़ चित्रों में कभी संकल्प मात्र भी अपवित्रता वा देह का अट्रेक्शन नहीं होता है, ऐसे ही चैतन्य रूप में भी यह स्मृति रखने से संकल्प में भी यह कम्पलेन नहीं रहेगी और कम्पलीट हो जायेंगे। समझा? यह हैं वर्तमान पुरूषार्थियों की कम्पलेन के ऊपर कम्पलीट बनने की युक्तियां।

 

अच्छा भट्ठी वाले अपनी उन्नति कर रहे हैं। स्पीड भी तीव्र है? ऐसे नहीं कि समाप्ति के बाद नीचे उतरते स्पीड कम हो जाये। ऐसा ही पुरूषार्थ कर रहे हो ना। अच्छा।

 

वरदान:- स्नेह और सहयोग की विधि द्वारा यज्ञ सहयोगी बनने वाले सहज योगी भव

 

बापदादा को बच्चों का स्नेह ही पसन्द है जो यज्ञ स्नेही और सहयोगी बनते हैं वह सहजयोगी स्वत:बन जाते हैं। सहयोग सहजयोग है। दिलवाला बाप को दिल का स्नेह और दिल का सहयोग ही प्रिय है। छोटी दिल वाले छोटा सौदा कर खुश हो जाते और बड़ी दिल वाले बेहद का सौदा करते हैं। वैल्यु स्नेह की है चीज़ की नहीं इसलिए सुदामा के कच्चे चावल गाये हुए हैं। वैसे भल कोई कितना भी दे लेकिन स्नेह नहीं तो जमा नहीं होता। स्नेह से थोड़ा भी जमा करते तो वह पदम हो जाता है।

 

स्लोगन:- समय और शक्ति व्यर्थ न जाए इसके लिए पहले सोचो पीछे करो।