ओम् शान्ति।
बाबा आकर छोटे-छोटे बच्चों को ही समझाते हैं। कोई छोटे हैं, कोई मीडियम हैं, कोई बड़े
हैं। बड़े उनको कहा जाता है जो ज्ञान को अच्छी रीति समझ और समझा सकते हैं। जो नहीं
समझा सकते उनको छोटे बच्चे कहा जाता है। छोटा बच्चा तो फिर पद भी छोटा, यह तो समझने
की बात है। मनुष्य पानी में स्नान करते हैं, कुम्भ मेला मनाते हैं। अभी कुम्भ माना
संगम। संगम का मेला तो है ही एक बड़े ते बड़ा, जिसको ज्ञान सागर और ज्ञान नदी का
मेला कहते हैं। पानी की नदियां तो बहुत हैं। वह भी सब सागर में ही पड़ती हैं। परन्तु
उनका इतना मेला नहीं होता, ब्रह्मपुत्रा नदी है बड़ी, जो कलकत्ते तरफ सागर में जाकर
मिलती है। ऐसे तो सरस्वती, गंगा आदि बहुत नदियां हैं, जो सागर में जाती हैं। नदियों
से फिर तलाब आदि बनते हैं। तो बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर एक शिवबाबा है। यह ब्रह्मा
भी ज्ञान नदी ठहरी। इनका और ज्ञान सागर का मेला है, वास्तव में इनको ही सच्चा कुम्भ
कहा जाता है। सबसे बड़ा मेला है यहाँ ज्ञान सागर के पास आना। यह ब्रह्मपुत्रा बड़े
ते बड़ी नदी है। पहले-पहले यह निकली है। इनका है संगम। पिछाड़ी में जाकर मिले हैं
तो जरूर पहले उनसे निकले हैं। तो ज्ञान सागर से पहले निकला यह ब्रह्मा। फिर सतयुग
में पहले नम्बर में भी यह जाते हैं। सरस्वती और ब्रह्मा का मेला नहीं है।
ब्रह्मपुत्रा और सागर का मेला है। मनुष्य कुम्भ के मेले पर जाते हैं, वहाँ जाकर
स्नान करते हैं। नदियाँ तो बहुत मिलती हैं। यहाँ कितनी ज्ञान गंगायें आकर मिलती
हैं। बाबा ने समझाया बहुत अच्छा है। यह जो नदियों पर रोज़ स्नान करते रहते हैं अब
उनसे बचावे कौन? बाप कहते हैं यह कोई ज्ञान गंगायें नहीं हैं, इनमें तो कच्छ मच्छ
सब स्नान करते हैं। जो रोज़ स्नान करने जाते हैं उन्हों को समझाना चाहिए कि तुम यह
करते-करते कंगाल बन पड़े हो, तीर्थो पर मनुष्य बहुत खर्चा करते हैं। यहाँ खर्चे की
तो बात नहीं। जब मै आता हूँ तो आकर सबकी सद्गति करता हूँ। नॉलेज देता हूँ। कौन सी
नॉलेज? मनमनाभव। मुझे याद करो तो इस याद की योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश
होंगे। तुम पावन बनेंगे। योग से ही तुम पावन बन सकते हो, न कि पानी के स्नान से।
वास्तव में यह ज्ञान स्नान है। वह पानी की नदियां, यह ज्ञान नदियां इसमें सिर्फ बाबा
को याद करना है। इसको स्नान भी नहीं कहा जाए। यह तो बाप मत देते हैं। ज्ञान से
सद्गति होती है। तुम 21 जन्मों के लिए सद्गति में जाकर फिर दुर्गति में आते हो।
सतोप्रधान से सतो रजो तमो में जरूर आना है। यह सब बातें तुम बच्चे ही समझते हो और
यहाँ बच्चे ही आते हैं रिफ्रेश होने के लिए और नया तो कोई आ न सके।
बाप कहते हैं – मैं बच्चों के आगे ही आता हूँ। यह तो गुप्त माँ हो गई। तुम बच्चे
कोई से प्रदर्शनी मेले का उद्घाटन कराते हो तो उनको कुछ समझाकर फिर कराना चाहिए। ऐसा
न हो कुछ उल्टा सुल्टा बोल दे। यह तो लाचारी कराना पड़ता है उठाने के लिए। कुछ समझें
तो कह सकें – यह संस्था बहुत अच्छी है। मनुष्य से देवता बनाने वाली है। परन्तु इतना
कोई समझाते नहीं हैं, न किसकी बुद्धि में बैठता है। जिन-जिन से उद्घाटन कराया है,
उन्हों ने कोई बात समझी नहीं है। कोई को भी निश्चय नहीं हुआ, इतने जो आये उन्हों
में भी किसको सेमी निश्चय कहेंगे। जो फिर आकर कुछ न कुछ समझने की कोशिश करते हैं।
हजारों समझने के लिए आते हैं, उनमें से 5-7 निकलते हैं तब कहा जाता है कोटों में
कोई। जब कोई प्रदर्शनी मेला आदि करते हैं तो 5-6 निकल आते हैं। नहीं तो मुश्किल कभी
कोई आता है। अक्सर करके पुराने ही आते रहते हैं। उसमें भी कोई को आधा निश्चय, कोई
को चौथा, कोई को 10 परसेन्ट। वास्तव में स्कूल में पूरे निश्चय बिगर तो कोई बैठ नहीं
सकता। निश्चय हो तो समझे, बैरिस्टर बनना है तो इम्तिहान जरूर पास करना है। यहाँ तो
संशयबुद्धि भी बैठ जाते हैं। समझते हैं धीरे-धीरे निश्चय हो जायेगा कि मनुष्य से
देवता बनते हैं। यहाँ निश्चय होने के लिए बैठते हैं। फिर चलते-चलते टूट भी पड़ते
हैं। 4-5 वर्ष पढ़ते-पढ़ते फिर संशय आ जाता है तो निकल जाते हैं। यह पढ़ाई है बहुत
ऊंची और इसमें माया रावण के विघ्न पड़ते हैं। माया समझने नहीं देती। माया बच्चों की
पढ़ाई में विघ्न भी डालती है। यह स्कूल बड़ा वन्डरफुल है। देलवाड़ा मन्दिर भी कितना
अच्छा यादगार बना हुआ है, वह है जड़ मंदिर, जो स्वर्ग स्थापन अर्थ होकर गये हैं –
जगत अम्बा, जगत पिता, और उनके बच्चे उन्हों के ही जड़ यादगार बनते हैं। जैसे शिवाजी
आदि सब चैतन्य में थे, अब उन्हों का यादगार है। अब जगत अम्बा और जगत पिता चैतन्य
में आये हैं। 5 हजार वर्ष के बाद फिर वही एक्ट करेंगे जो उनके चित्र निकलेंगे। पहले
तो जरूर चित्र नहीं होंगे। यह सब चित्र आदि खत्म हो जायेंगे फिर पहले चित्र बनने
शुरू होंगे। यादगार भी तो पहले-पहले शिवबाबा का ही बनेगा फिर उनके बाद त्रिमूर्ति
ब्रह्मा विष्णु शंकर के, फिर जो तुम अभी सेवा कर रहे हो, उनके भी निकलेंगे। सब
पतित-पावन को याद करते हैं – परन्तु समझते नहीं कि हम पतित हैं। वास्तव में
सच्चा-सच्चा ज्ञान यह है जिससे सद्गति मिलती है। ज्ञान तो गुरू द्वारा मिलता है।
पानी की नदियां कोई गुरू थोड़ेही हैं। यह सब अन्धश्रद्धा है। आक्यूपेशन समझने के
बिगर कुछ भी पा नहीं सकते। ऐसे नहीं दर्शन करूँ… यह सब फालतू है। दर्शन की कोई बात
नहीं। यह तो कोई नये से मिलना पड़ता है क्योंकि बड़े का बड़ा आवाज निकलता है। परन्तु
देखा गया है बड़े लोग आवाज़ नहीं कर सकते। गरीब कर सकते हैं। हाँ कोई ज्ञान धन में
भी साहूकार हो जाए तो आवाज कर सकते हैं। यह पानी की नदियों में तो स्नान करते ही आये
हैं। इस गंगा स्नान से सद्गति नहीं मिल सकती है। पतित-पावन सद्गति दाता तो एक ही
बाप है, वह आकर सर्व की सद्गति करते हैं। बाप कहते हैं सद्गति तो एक सेकेण्ड में
मिल सकती है। श्रीमत कहती है मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। इसको योग
अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म विनाश होंगे इसलिए बाप कहते हैं मुझे याद करो तो
एवरहेल्दी बनेंगे फिर मैं हूँ ही स्वर्ग स्थापन करने वाला। इस चक्र को याद करने से
तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बाप और वर्से को याद करो। अभी हमको वापिस जाना है
बाबा के पास। कल्प-कल्प बाप एक ही बार आकर सद्गति करते हैं। वह सर्व के सद्गति दाता
हैं। तुम किसकी सद्गति नहीं कर सकते। तो शिवबाबा से यह सच्ची-सच्ची ज्ञान गंगायें
निकली हैं। शिव काशी विश्वनाथ गंगा। वह फिर पानी की गंगा समझ लेते हैं। उनको समझाना
चाहिए। तुम योगयुक्त होंगे तो सर्विस भी कर सकेंगे। नष्टोमोहा, अच्छी योगिन जो होगी
वह पूरी सर्विस कर सकेगी। पिछाड़ी में तुम्हारी बहुत सर्विस होगी। साधुओं आदि का भी
तुम्हें उद्धार करना है। उन्हों को समझाना है – सद्गति दाता एक ही है। वही कहते हैं
अब तुम मेरे को याद करो तो मेरे पास चले आयेंगे। मुक्ति तो एक सेकेण्ड में मिल सकती
है। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति तो है ही। यह बड़ी समझने की बातें हैं। ऐसे नहीं सबको
एक जैसी धारणा हो सकती है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार धारणा होती है। प्वाइंट्स
बहुत अच्छी-अच्छी हैं। प्वाइंट्स भी धारण हो तो नशा भी चढ़े।
बाबा बहुत सहज ते सहज तरीका बताते हैं फिर भी कोई-कोई लिखते हैं बाबा कृपा करो।
बाबा शक्ति दो। तो बाबा समझ जाते हैं यह भगत बुद्धि है। भगत तो ढेर हैं और सब गाते
हैं – पतित-पावन आओ। याद तो सब करते हैं, कहते हैं ओ गॉड फादर परन्तु समझते नहीं
हैं तो मर्सी, कृपा फिर कैसे होगी। वास्तव में त्रिमूर्ति है यह। ऊपर में शिवबाबा
फिर ब्रह्माकुमार कुमारियां तो यहाँ मौजूद हैं, स्त्री पुरुष दोनों कहते हैं हम
ब्रह्माकुमार कुमारी हैं। तो दोनों भाई-बहन हो गये। तुम भी प्रजापिता ब्रह्मा की
सन्तान थे परन्तु अभी नहीं हो। जानते नहीं हो। गाते तो हैं कि परमपिता परमात्मा
प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं तो जरूर पहले-पहले ब्राह्मण धर्म
होगा। जब सृष्टि रची जाती है तब ब्रह्माकुमार कुमारियां होते हैं। फिर उस धर्म की
स्थापना हो और अनेक अधर्मों का विनाश हो जाता है। इस समय तुम ब्रह्माकुमार और
कुमारियां हो फिर बनेंगे दैवीकुमार-कुमारियां। फिर कभी विष्णु कुमार, कभी क्या, कभी
क्या जन्म लेते और बनते रहते हो। अभी हो तुम ईश्वरीय कुमार फिर दैवी कुमार…. बाद
में देखो नाम भी कैसे-कैसे रखते हैं – बसरमल, बैगनमल आदि। सतयुग में ऐसे नाम नहीं
होते। अब तुम्हारे नाम कितने रमणीक बाबा ने भेजे। तुम बच्चों को अभी बाबा के
डायरेक्शन पर अमल करना चाहिए। तुम्हारी सौदागरी भी बेहद की है। बड़ा सौदा करेंगे तो
बड़ा पद मिलेगा – 21 जन्मों के लिए। बहुत करके गरीब अबलायें ही अच्छा वर्सा पाती
हैं। धनवान नहीं पाते। धनवानों में फिर भी स्त्रियां कुछ पाती हैं। पुरूषों का तो
पैसे में ममत्व रहता है। मेरा-मेरा करते रहते हैं। लौकिक बाप के वारिस तो बच्चे ही
बनते हैं। यहाँ तो बाप कहते हैं – मेल, चाहे फीमेल दोनों ही वर्सा पा सकते हैं। देखा
जाता है – मातायें जास्ती वर्सा पाती हैं, इसलिए शक्ति नाम गाया हुआ है। कन्यायें
मातायें अच्छा पद पाती हैं इसलिए बाप को कन्हैया भी कहा जाता है।
यह देलवाड़ा मन्दिर तुम्हारा पूरा यादगार है। समझाने से बड़ा नशा चढ़ना चाहिए।
तीर्थो पर और ही जास्ती सर्विस हो सकती है। अभी तो प्वाइंट्स बहुत मिली हुई हैं।
सद्गति तो ज्ञान सागर से ही होगी, न कि पानी से। सद्गति दाता, गीता का भगवान ही है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान धन में साहूकार बन बाप का नाम बाला करने की सेवा करनी है। पूरा
निश्चयबुद्धि बनना है। किसी भी बात में संशय नहीं लाना है।
2) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए “मेरे-मेरे” में जो ममत्व है उसे छोड़ देना
है। लौकिक वर्से का नशा नहीं रखना है।