24-01-10 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 11-06-71 मधुबन
तीनों लोकों में बापदादा के समीप रहने वाले रत्नों की निशानियाँ
यह कौनसा ग्रुप है? इस ग्रुप को सज़ाकर क्या बनाया है? बदलकर और बनकर जा रही हैं ना! तो इन्हों को बदलकर क्या बनाया है? अपना जब साक्षात्कार करेंगी कि हम क्या बने हैं तब तो औरों कोज़ाकर क्या बनाया है? बदलकर और बनकर जा रही हैं ना! तो इन्हों को बदलकर क्या बनाया है? अपना जब साक्षात्कार करेंगी कि हम क्या बने हैं तब तो औरों को बनायेंगी। यह ग्रुप समझता है कि हम रूहानी सेवाधारी बनकर जा रहे हैं। सभी अपने को सेवाधारी समझकर सेवा-स्थान पर जा रही हो वा अपने-अपने घर में लौट रही हो? क्या समझ के जाती हो? अगर अपने लौकिक परिवार में जाओ तो उसको क्या समझेंगी? वह भी सेवा-स्थान है वा सिर्फ सेन्टर ही सेवा-स्थान है? अगर घर को भी सेवा-स्थान समझेंगी तो स्वत: सेवा होती रहेगी। जो सेवाधारी होते हैं उन्हों के लिए हर स्थान पर सेवा है। कहाँ भी रहें, कहाँ भी जावें लेकिन सेवाधारी को हर समय और हर स्थान पर सेवा ही दिखाई देगी और सेवा में ही लगे रहेंगे। घर को भी सेवा-स्थान समझकर रहेंगे। बुद्धि में सेवा याद रहने से, इस स्मृति की शक्ति से कर्मबन्धन भी सहज और शीघ्र खत्म हो जायेगा। इसलिए जबकि सेवाधारी बनके जा रही हो तो हर संकल्प में सेवा करनी है। एक सेकेण्ड वा एक संकल्प भी सेवा के सिवाय नहीं जा सकता। इसको कहते हैं सच्चा रूहानी सेवाधारी। रूहानी सेवाधारी तो रूह अथवा आत्मा से भी सेवा कर सकते हैं। जैसे लाइट-हाउस एक स्थान पर होते हुए भी चारों ओर अपनी लाइट द्वारा सेवा करते हैं। इसी प्रकार जो सेवाधारी हैं वह भी कोई एक स्थान पर होते हुए भी बेहद सृष्टि के बेहद सर्विस में तत्पर रहते हैं। तो लाइट-हाउस और माइट-हाउस बनी हो? दोनों ही बनी हो या लाइट-हाउस बनी हो और माइट-हाउस अभी बनना है? ज्ञान स्वरूप हैं लाईट-हाउस और योगयुक्त अवस्था है माइट-हाउस। तो सभी ‘ज्ञानी तू आत्मा’, ’योगी तू आत्मा’ बनकर जा रही हो ना। कि अभी कुछ रह गया? पूरा श्रृंगार किया? वैसे भी कुमारी अवस्था में स्वच्छता और अपने को ठीक रीति सजाने का रहता ही है। तो यहाँ भट्ठी में भी पूरी तरह ज्ञान, गुणों के श्रृंगार से सजा-सजाया है। सजकर जा रही हैं वा वहाँ जाकर अभी और कुछ करना है? पूरे अस्त्र-शस्त्र से तैयार होकर युद्ध के मैदान में जा रही हैं। जो अस्त्र-शस्त्रधारी होंगे वह सदैव विजयी होंगे। शस्त्र शत्रु को सामने आने नहीं देंगे। तो शस्त्रधारी बनी हो जो शत्रु दूर से ही देखकर भाग जाये। सभी ऐसे बने हैं? मधुबन वरदान-भूमि के प्रभाव में बोल रही हो वा अविनाशी शस्त्रधारी वा श्रृंगारी अपने को बनाया है? कल नीचे उतरेंगी तो स्टेज वही ऊंची रहेगी? यह भी पक्का कर दो कि कहाँ भी जायेंगे लेकिन जो अपने आप से अथवा मधुबन के संगठन बीच, ईश्वरीय दरबार के बीच जो प्रतिज्ञा की है वह सदा कायम रहेगी। ऐसी अविनाशी छाप हरेक ने अपने आपको लगाई है? निश्चय की विजय अवश्य है और हिम्मत रखने वालों की बापदादा और सर्व ईश्वरीय परिवार की आत्मायें मददगार रहती हैं। कितना भी कोई आपकी हिम्मत को हिलाने की कोशिश करे लेकिन प्रतिज्ञा जो की है उस प्रतिज्ञा की शक्ति से जरा भी पांव हिलाना नहीं। पाँव कौनसे? जिस द्वारा याद की यात्रा करते हो। चाहे सृष्टि क्यों न हिलावे लेकिन आप सारे सृष्टि की आत्माओं से शक्तिशाली हैं। एक तरफ सारी सृष्टि हो, दूसरे तरफ आप एक भी हो - तो भी आपकी शक्ति श्रेष्ठ है। क्योंकि सर्वशक्तिमान बाप आपके साथी हैं। इसलिए गायन है शिव-शक्तियाँ। जब शिव और शक्तियाँ दोनों ही साथी हैं तो सृष्टि की आत्मायें उसके आगे क्या हैं? अनेक होते भी एक समान नहीं हैं। इतना निश्चयबुद्धि वा प्रतिज्ञा को पालन करने की हिम्मत रखने वाली बनकर जा रही हो ना। प्रैक्टिकल पेपर होगा। थ्योरी का पेपर तो सहज होता है। किसको सप्ताह कोर्स कराना वा म्यूजियम या प्रदर्शनी समझाना है थ्योरी का पेपर। लेकिन प्रैक्टिकल पेपर में जो पास होते हैं वही ‘पास विद् ऑनर’ होते हैं। जो ऐसे पास होते हैं वही बापदादा के पास रहने वाले रत्न बनते हैं। तो पास में रहना पसन्द करती हो वा दूर से देखना पसन्द आता है? ‘पास विद् ऑनर’ बनेंगे। यह भी हिम्मत रखनी है ना। इस हिम्मत को अविनाशी बनाने के लिए एक बात सदैव ध्यान में रखनी है।
कोई भी संगदोष में अपने को लाने के बजाय, बचाते रहना। कई प्रकार के आकर्षण पेपर के रूप में आयेंगे, लेकिन आकर्षित नहीं होना। हर्षितमुख हो हो पेपर समझ पास होना है। संगदोष कई प्रकार का होता है। माया संकल्पों के रूप में भी अपने संग का रंग लगाने की कोशिश करती है। तो इस व्यर्थ संकल्पों के वा माया की आकर्षण के संकल्पों में कभी फेल नहीं होना। और फिर स्थूल संबंधी का संग, उसमें न सिर्फ परिवार का सम्बन्ध होता है लेकिन परिवार के साथ-साथ और भी कोई सम्बन्ध का संग। सहेली का संग भी सम्बन्ध का संग है। तो कोई भी सम्बन्धी के संग में नहीं आना। कोई के वाणी के संगदोष में भी नहीं आना। वाणी द्वारा भी उलटा संग का रंग लग जाता है। इससे भी अपने को बचाना। और फिर अन्न का संगदोष भी है। अगर कभी भी किसके भी समस्या अनुसार वा कोई सम्बन्धी के स्नेह के वश भी अन्नदोष में आ गई तो यह अन्न भी अपने मन को संग के रंग में लगा देता है। इसलिए इससे भी अपने को बचाते रहना। कर्म का संग भी होता है। इसलिए इससे भी अपने को बचाते रहना। तब ‘पास विद् ऑनर’ बनेंगी। संगदोष के पेपर में पास हो गई तो समझो समीप आ सकती हो। अगर संगदोष में आ गई तो दूर हो जायेंगी। फिर न निराकारी वतन में, न अभी संगमयुग में, न भविष्य में पास रह सकेंगी।
एक संगदोष तीनों लोकों में दूर हटा देता है। एक संगदोष से बचने से तीनों लोकों में, तीनों कालों में बाप के समीप रहने का भाग्य प्राप्त कर सकती हो। इस ग्रुप को बापदादा हंसों का संगठन कहते हैं। हंसों का कर्त्तव्य वा स्वरूप क्या होता है? हंसों का स्वरूप है प्योरिटी और कर्त्तव्य है सदैव गुणों रूपी मोती ही धारण करेंगे। अवगुण रूपी कंकड कभी भी बुद्धि में स्वीकार नहीं करेंगे। यह है हंसों का कर्त्तव्य। लेकिन इस कर्त्तव्य को पालन करने के लिए बापदादा से सदैव आज्ञा मिलती रहती है। वह कौनसी आज्ञा? जिस आज्ञा का आपका चित्र भी बना हुआ है। बुरा न देखना, बुरा न सुनना, न बोलना, न सोचना। अगर इस आज्ञा को सदैव स्मृति में रखेंगे तो फिर सच्चा हंस बनकर, बाप जो सर्व गुणों का सागर है, सागर के किनारे पर सदैव बैठे रहेंगे। तो अपनी बुद्धि को सिवाय ज्ञान-सागर बाप के और कहाँ भी ठिकाना न देना। क्योंकि हंसों का ठिकाना है ही सागर। तो अपने को हंस समझकर अपनी प्रतिज्ञाओं को पालन करती रहना। समझा? मोती और कंकड़ - दोनों को छांटना सीखा है? कंकड़ क्या होता है, रत्न क्या होते हैं? नॉलेजफुल तो बनी हो ना! अब देखेंगे यह हंस क्या कमाल कर दिखाते हैं। हंसों का संगठन न चाहते हुए भी अपने तरफ तो बनी हो ना! अब देखेंगे यह हंस क्या कमाल कर दिखाते हैं। हंसों का संगठन न चाहते हुए भी अपने तरफ आकर्षित करता है। तो संगदोष से बचना है और ईश्वरीय संग में रहना है। अनेक संग छोड़ना, एक संग जोड़ना है। ईश्वरीय संग सिर्फ शरीर से नहीं होता लेकिन बुद्धि द्वारा भी ईश्वरीय संग में रहना है। बुद्धि सदैव ईश्वरीय संग में रहे और स्थूल सम्बन्ध में भी ईश्वरीय संग रहे। इस संग के आधार पर अनेक संगदोष से बच जायेंगे। सिर्फ ट्रांसफर करना है। कोमलता को कमाल में परिवर्तन करना। कोमलता दिखाना नहीं। सिर्फ संस्कारों को परिवर्तन करने में कोमल बनना है। कर्म में कोमल नहीं बनना। इसमें तो शक्ति रूप बनना है। अगर शक्ति-स्वरूप का कवच सदैव धारण नहीं करेंगी तो कोमल को तीर बहुत जल्दी लग जायेगा। तीर भी कोमल स्थान पर ही लगाते हैं। इसलिए अगर शक्ति-स्वरूप का कवच धारण करेंगी तो शक्ति रूप बन जायेंगी। फिर माया का कोई तीर लग नहीं सकेगा। कर्म में कोमल नहीं बनना। सिर्फ मोल्ड होने के लिए रीयल गोल्ड बनना है। चेहरे से, नैन-चैन से कोमलता नहीं लाना। यह सभी बातें स्मृति में रख ‘पास विद् ऑनर’ बनना है। इस ग्रुप में प्रैक्टिकल सबूत दे सबूत बनने वाले उम्मीदवार रत्न दिखाई देते हैं। हरेक को एक दो से आगे जाना है। दूसरे को आगे जाता देख हर्षित नहीं होना है, सिर्फ दूसरे को देखते रहेंगे तो भक्त हो जायेंगे। भक्त लोग सिर्फ देख-देख उनके गुण गाते खुश होते हैं। तुमको भक्त नहीं बनना है। ज्ञान-स्वरूप और योगयुक्त, ‘ज्ञानी तू आत्मा’ और ‘योगी तू आत्मा’ बनना है। अब पेपर की रिजल्ट देखेंगे। जो प्रैक्टिकल सबूत देंगे वह फर्स्ट नम्बर आयेंगे। जो सोचते रहेंगे तो बाप भी राज्य-भाग्य देने के लिए सोचेंगे। जो स्वयं को स्वयं ही आफर करते हैं उनको बापदादा भी विश्व की राजधानी का राज्य-भाग्य पहले आफर करते हैं। अगर अपने को आफर नहीं करेंगे तो बापदादा भी विश्व का तख्त क्यों आफर करेंगे। अपने को आपेही आफर करो तो आफरीन कही जायेगी। गैस के गुब्बारे नहीं बनना। वह बहुत तेज उड़ते हैं लेकिन अल्पकाल के लिए। यहाँ अपने में अविनाशी एनर्जी भरना। टैम्प्रेरी आक्सीजन का आधार नहीं लेना। अच्छा।
वरदान:- साइलेन्स की शक्ति द्वारा सेकण्ड में मुक्ति और जीवनमुक्त का अनुभव कराने वाले विशेष आत्मा भव
विशेष आत्माओं की लास्ट विशेषता है - कि सेकण्ड में किसी भी आत्मा को मुक्ति और जीवन-मुक्ति के अनुभवी बना देंगे। सिर्फ रास्ता नहीं बतायेंगे लेकिन एक सेकण्ड में शान्ति का वा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करायेंगे। जीवनमुक्ति का अनुभव है सुख और मुक्ति का अनुभव है शान्ति। तो जो भी सामने आये वह सेकण्ड में इसका अनुभव करे-जब ऐसी स्पीड होगी तब साइंस के ऊपर साइलेंस की विजय देखते हुए सबके मुख से वाह-वाह का आवाज निकलेगा और प्रत्यक्षता का दृश्य सामने आयेगा।
स्लोगन:- बाप के हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाले सच्चे परवाने बनो।