09-03-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 09.03.94 "बापदादा" मधुबन
न्यारा-प्यारा, वन्डरफुल,
स्नेह और सुखभरा अवतरण - शिव जयन्ती
आज त्रिदेव रचता बाप
अपने पूज्य सालिग्राम बच्चों से मिलने आये हैं। जैसे बिन्दु ज्योति स्वरूप बाप की
पूजा होती है, यादगार मनाते हैं तो बाप के साथ-साथ आप सालिग्राम आत्माओं की भी पूजा
होती है। बाप एक त्रिमूर्ति शिव गाया और पूजा जाता है और आप सालिग्राम आत्मायें
अनेक हो। पूजा दोनों की होती है क्योंकि बाप ने सभी बच्चों को अपने समान पूज्य बनाया
है। कभी भी सालिग्राम को देखते हो तो क्या अनुभव करते हो? ये हम ही हैं ऐसे लगता
है? तो बाप ने बच्चों को समान तो क्या लेकिन अपने से भी श्रेष्ठ पूज्य बनाया है।
बच्चों की पूजा डबल रूप में होती है। बाप की पूजा एक ही शिवलिंग के रूप में होती
है। आप बच्चों की सालिग्राम के रूप में भी होती है और देव आत्माओं के रूप में भी
होती है। बाप से भी ज्यादा डबल रूप की पूजा के अधिकारी आत्मायें आप हो। जैसे डबल
विदेशी कहलाते हो तो डबल पूज्य भी हो। डबल ताजधारी भी आप बनते हो। निराकार बाप नहीं
बनते। कहाँ-कहाँ भक्त लोग शिव के प्रतिमा को ताज डाल देते हैं क्योंकि ताजधारी बनाया
है इसलिये कहाँ-कहाँ ताज दिखा देते हैं। लेकिन बाप कभी भी रत्न जड़ित सोने-चाँदी के
ताजधारी नहीं बनते क्योंकि ताज धारण होता है प्रैक्टिकल में, मस्तक में। तो निराकार
बाप को मस्तक है क्या! शरीर ही नहीं है तो ताज क्या धारण करेंगे! लेकिन स्नेह के
कारण ताज दिखा देते हैं। तो बाप ने बच्चों को अपने से भी आगे रखा है। इतनी खुशी और
इतनी श्रेष्ठ स्मृति रहती है? बापदादा को अपनी जयन्ती मनाने की खुशी नहीं है लेकिन
आप सबकी भी जयन्ती है, इसलिये बच्चों के जयन्ती की खुशी है क्योंकि बाप अकेला कुछ
नहीं कर सकता और आप भी अकेले कुछ नहीं कर सकते। चाहे कहीं-कहीं कोई-कोई बच्चों को
थोड़ा आ जाता है कि मैं ही करने वाला हूँ लेकिन सिवाए बाप के सफलता नहीं मिलती। तो
न बाप अकेला कुछ कर सकता, न बच्चे अकेले कुछ कर सकते हैं। अगर बाप बच्चों से मिलन
मनाने भी साकार में चाहे वा आकार में भी चाहे तो ब्रह्मा का आधार लेना ही पड़ता है।
ब्रह्मा के बिना भी कुछ कर नहीं सकता। माध्यम के बिना साकार मिलन नहीं मना सकता। तो
कितना प्यार बाप का बच्चों से है और बच्चों का बाप से है! एक-दो के बिना कुछ नहीं
कर सकते। अगर बाप को किनारा किया, साथ नहीं रखा तो अकेले कुछ कर सकते हो? बाप कर
सकता है? बाप भी नहीं कर सकता। तो ये बाप और बच्चों का साथ-साथ दिव्य जन्म लेना,
साथ-साथ विश्व परिवर्तन करना और साथ-साथ अपने स्वीट होम में जाना - ये ड्रामा की
अविनाशी नूँध है। इसको कोई बदल नहीं सकता। तो यह नूँध अच्छी है ना! प्यारी लगती है
ना! तो आज सब बाप का बर्थ डे मनाने आये हो या अपना? बाप कहेंगे आपका और बच्चे बाप
को कहेंगे कि आपका।
ये दिव्य अवतरण, जिसको
शिव जयन्ती वा शिवरात्रि कहते हैं, कितना आत्माओं के लिये स्नेहभरा, सुखभरा अवतरण
है। सतयुग में भी ऐसा बर्थ डे नहीं मनायेंगे। आत्मायें, आत्माओं का बर्थ डे मनायेंगी
लेकिन इस समय आत्मायें परम आत्मा का बर्थ डे मनाती हैं। सारे कल्प में ऐसा न्यारा
और प्यारा, वन्डरफुल बर्थ डे, जो एक ही समय पर बाप का भी हो और बच्चों का भी हो। ऐसा
कभी होता है क्या? अगर तारीख एक भी होगी तो वर्ष का या मास का या डेट का अन्तर होगा।
लेकिन ये अवतरण दिवस कितना वन्डरफुल है जो बाप और बच्चों का साथ-साथ है।
इस यादगार दिवस पर
विशेष भक्त लोग भी दो विशेषताओं से ये दिवस मनाते हैं। दो विशेषतायें कौन-सी हैं?
एक विशेष व्रत धारण करते हैं और दूसरा स्वयं को समर्पित न करते हुए और किसी को बलि
चढ़ाते हैं। तो बलि चढ़ाना और व्रत धारण करना ये दोनों विशेषता इस दिवस की हैं।
अनेक प्रकार के व्रत धारण करते हैं। चाहे कोई भोजन का करते हैं, कोई जागरण का करते
हैं, कोई दूर-दूर से पैदल करते हुए चलने का करते, कितना भी थक जायें लेकिन व्रत अपना
पूरा करते हैं। चाहे कितने दिन भी लग जायें, कितना समय भी लग जाये लेकिन व्रत नहीं
छोड़ते। तो यह यादगार किससे कॉपी की? आपका है ब्राह्मण जीवन का व्रत और भक्तों का
है एक दिन का व्रत। आपने भी जब ब्राह्मण जन्म वा दिव्य बर्थ लिया तो क्या व्रत लिया?
सदा अज्ञान नींद से जागरण का व्रत लिया ना कि थोड़ा-थोड़ा नींद करेंगे यह व्रत लिया?
वा थोड़े-थोड़े झुटके खा लेंगे ऐसे तो नहीं किया? तो आप सभी ने भी शिव जयन्ती वा
दिव्य बर्थ डे पर जागरण का व्रत लिया इसलिये भक्त भी यादगार रूप में जागरण करते
हैं। और आप सबने भी शुद्ध भोजन का व्रत लिया इसलिए भक्त लोग भी, कुछ भी हो जाये,
चाहे बीमार भी हो जाते हैं तो भी अन्न के व्रत को तोड़ेंगे नहीं। तो आप सब भी कोई
भी मन के आगे, तन के आगे, परिस्थितियाँ आ जाये तो व्रत तोड़ते हो क्या? कभी कुछ
मिक्स खा लिया ऐसे करते हो क्या? कोई देखता तो है नहीं, चलो खा लिया! अपना नियम
पक्का रखते हो ना? कि कच्चे हो? कभी-कभी देखकर के थोड़ी दिल होती है? एक ही जैसा
खाना खाते-खाते कभी दूसरा भी खाने की दिल होती है? अच्छा, इसमें अमेरिका,
आस्ट्रेलिया, यूरोप, एशिया वा रशिया सभी पक्के हो ना? या थोड़ा-थोड़ा कच्चे हो?
तो डबल विदेशी सभी
पास हो गये! और भारत वाले तो पास हैं ही ना! भारत वालों को फिर भी सहज है। डबल
विदेशियों को इसमें डबल मेहनत भी है। लेकिन पास हो इसकी मुबारक। तो एक बर्थ डे की
मुबारक, दूसरी पास होने की मुबारक और तीसरी कभी भी हलचल में न आए सदा अचल रहना, इसमें
पास हो? इसमें कह देते हैं क्या करें! समटाइम। आज बापदादा ने डबल विदेशियों के लिये
बहुत रमणीक भाषा इमर्ज की, क्योंकि डबल विदेशी एंज्वाय ज्यादा पसन्द करते हैं ना!
कुछ होना चाहिये, कुछ एंज्वाय हो, ऐसे शान्त शान्त क्या रहें! तो बापदादा शिवरात्रि
पर इन शब्दों का सभी से दृढ़ व्रत कराते हैं। व्रत लेने के लिये तैयार हो? या जब
सुनेंगे तब कहेंगे कि ये तो थोड़ा, थोड़ा मुश्किल है! पहले तो ‘मुश्किल' शब्द
संकल्प में भी नहीं लायेंगे - यह व्रत लेने के लिये तैयार हो? तो बापदादा ने देखा
कि जब तक संकल्प में दृढ़ता नहीं तब तक सफलता नहीं होती। संकल्प होता है लेकिन दृढ़
नहीं होता तो कमजोरी आती है। बहुत करके कमजोरी के यही शब्द कहते हैं कि क्या करें!
व्हाट। तो अभी व्हाट नहीं कहना लेकिन व्हाट के बजाय क्या कहेंगे? फ्लाय (उड़ना)। तो
जब भी व्हाट शब्द आये तो ब्राह्मण डिक्शनरी में व्हाट के बजाए फ्लाय शब्द है। दूसरा
शब्द क्या बोलते हो? व्हाई (क्यों), तो व्हाई को क्या करेंगे? बाय-बाय। सदा के लिये
बाय-बाय करेंगे या थोड़े टाइम के लिये? और तीसरा शब्द क्या बोलते हैं? हाउ। तो हाउ
(कैसे) नहीं, नो (ऐसे), जानते हैं, कैसे नहीं, नो अर्थात् जानने वाले। जब
त्रिकालदर्शी बन जायेंगे, जानने वाले बन जायेंगे तो फिर हाउ कहेंगे क्या? हाउ कहना
माना हौव्वा आना। तो हौव्वा अच्छा लगता है क्या? इसीलिये यही शब्द हैं जो कमजोरी
लाते हैं। यही शब्द हैं जो व्यर्थ संकल्प का गेट खोलते हैं। सोचो! जब भी व्यर्थ
संकल्पों की क्यू लगती है तो किस शब्द से लगती है? इन्हीं शब्दों से लगती है ना! या
क्यों होगा, या क्या वा कैसे होगा। ये कैसे हुआ! ये कैसे कहा! ये क्यों कहा! अब क्या
करें!... कैसे करें! तो कमजोरी के या व्यर्थ संकल्पों के गेट ये शब्द हैं। इसको
डिक्शनरी में चेंज कर दो। फिर क्या होगा? आप भी चेंज हो जायेंगे ना! तो भक्त लोग
आपको ही कॉपी कर रहे हैं। आपकी बेहद की बात है और उन्होंने हद के रूप में यादगार रखा
है। तो यह दृढ़ व्रत रखना यही शिव जयन्ती वा शिवरात्रि मनाना है। मनाना अर्थात् बनना।
ऐसे नहीं, सिर्फ केक काट लिया, लाइट जला ली, दीपक जला लिया, तो ये मनाना नहीं, ये
मनोरंजन भी आवश्यक है लेकिन इसके साथ-साथ कुछ काटना है और कुछ जलाना भी है।
एक तरफ दीपक वा
मोमबत्ती जलाते हो, दूसरा केक काटते हो, तीसरा झण्डा लहराते हो, चौथा गीत गाते हो,
पांचवा डांस भी करते हो। और क्या करते हो? मीठा बांटते और खाते हो। तो अभी ये 6 बातें
ही करनी पड़ेंगी। पहले तो दृढ़ संकल्प का अपने मन में दीप जलाओ कि अब से दृढ़ता
द्वारा सफलता को पाना ही है। देखेंगे, पता नहीं, पता नहीं, नहीं। होना ही है, करना
ही है, गे शब्द नहीं, है। और दूसरा केक कौन-सा काटेंगे? केक पूरा नहीं खाया जाता,
काटकर खाया जाता है। तो क्या काटेंगे? जो भी सम्पन्न बनने में या सम्पूर्ण बनने में
कोई भी संकल्प मात्र भी रुकावट हो उसको अब से काट लो, खत्म। और जो कमजोरी हो उसके
बजाय शक्ति धारण करने का केक मुख में डालो। पहले काटो, फिर मुख में खाओ। समझा! झण्डा
कौन-सा लहरा-येंगे? ये तो यादगार के रूप से झण्डा लहराते हैं लेकिन अपने दिल में
बाप को हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा सदा प्रत्यक्ष करने का झण्डा दिल में लहराओ।
कोई भी संकल्प, बोल और कर्म ऐसा नहीं हो जो बाप को प्रत्यक्ष करने का नहीं हो
क्योंकि सबके दिल में बाप के स्नेह के कारण यही संकल्प है कि बाप को प्रत्यक्ष करना
है। तो कैसे करेंगे? सदा अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा दिल में प्रत्यक्ष करने
का झण्डा लहराओ और सदा खुश रहने की डांस करते रहो। कभी खुश, कभी उदास यह नहीं। जब
उदास होते हो तो उस समय भी अपना एक फोटो निकालो। और जब खुश होते हो तो भी फोटो
निकालो। फिर दोनों फोटो साथ रखो। फिर देखो अच्छा क्या है? मैं ये हूँ या वो हूँ? तो
सदा हर्षित रहने का, खुश रहने का डांस करो। कुछ भी हो जाये, कोई कितना भी खुशी
चुराने की कोशिश करे क्योंकि माया किसी के द्वारा ही तो करायेगी ना! कुछ भी हो जाये,
कितना भी कोई किसी भी प्रकार से खुशी कम करने या खुशी गुम करने का प्रयत्न करे
लेकिन जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। यह पक्का व्रत लिया है ना। क्या नहीं कर
सकते हो! विल पॉवर है ना! तो जिसके पास विल पॉवर है वो क्या नहीं कर सकता! अगर आप
मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कर सकेंगे तो और कौन करेगा! कोई और पैदा होने वाले हैं
या आप ही हो? माला के मणके आपको ही बनना है या औरों का इंतज़ार कर रहे हो? फर्स्ट
डिवीजन में आना है ना! कि सेकेण्ड भी चलेगा? तो यह दृढ़ संकल्प अर्थात् व्रत लो कि
जब तक जीना है तब तक खुश रहना है। और जो खुश रहेगा वो खुशी की मिठाई बांटता रहेगा।
उस मिठाई से तो सिर्फ मुख मीठा होता है और इससे मन, तन, दिल सब खुश हो जाते हैं। तो
यह मीठा बांटना है। और गीत सदा क्या गाते हो? मीठा बाबा, प्यारा बाबा, मेरा बाबा यही
गीत गाते हो ना! सदा यह गीत ऑटोमेटिक बजता रहे। ऐसे नहीं, सेल खत्म हो जायें तो गीत
खत्म हो जाये। बैटरी स्लो हो जाये। नहीं। जब बैटरी स्लो होती है, तो पता है कैसे
गीत गाते हो? सबको अनुभव तो है ना। फिर क्या होता है? मेरा है तो बाबा, तो तो आ जाता
है। सिर्फ मेरा बाबा नहीं कहेंगे, मेरा है तो बाबा। मिक्स हो गया ना। बैटरी स्लो
होती है तो आवाज़ स्लो हो जाता है और उसमें तो तो शब्द एड हो जाता है। मेरा बाबा
फ़लक से नहीं, मेरा है तो बाबा।
तो शिवरात्रि मनाना
अर्थात् ये दृढ़ व्रत लेना। ऐसी शिवरात्रि मनाई ना? या सोचकर पीछे जवाब देंगे! अच्छा,
बहुत होशियार हो, अभी-अभी सोच लिया। डबल विदेशी हो इसीलिये डबल होशियार हो। अच्छा!
डबल विदेशियों ने
मधुबन में कौन-सी विशेष सेवा की? क्या किया? ब्रह्मा बाबा को प्रत्यक्ष किया।
स्टैम्प का फंक्शन मनाया। विशेष योग भी लगाया ना। पॉवरफुल योग लगाया तो विघ्न
विनाशक हो गये ना। चाहे मधुबन निवासियों के योग ने, चाहे डबल विदेशियों के योग ने,
चाहे चारों ओर ब्राह्मण बच्चों के योग ने कमाल की ना क्योंकि चारों ओर सबका यह एक
ही संकल्प था कि ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करना ही है। फिर कोई ने भाग-दौड़ की सेवा
की, कोई ने मंसा सेवा की, कोई ने वाचा सेवा की, लेकिन जिन्होंने जो भी योगयुक्त
होकर सेवा की ऐसे सेवाधारियों को सफलता की मुबारक। कितनी खुशी हुई! क्योंकि ब्रह्मा
बाप से सबका दिल का अति सूक्ष्म प्यार है। सभी ने ब्रह्मा बाप को देखा है या जानते
हो? क्या कहेंगे देखा है या जाना है? जो कहते हैं हमने देखा है वह हाथ उठाओ। जो कहते
हैं जाना तो है लेकिन अभी देखना है वो हाथ उठाओ। (थोड़े लोगों ने उठाया) अच्छा,
अनुभव किया है? ब्रह्मा हमारा बाप है यह अनुभव किया है? क्योंकि अनुभव भी एक आंख
है, जैसे स्थूल आंखों से देखा जाता है तो सबसे बड़ी आंख है अनुभव। अनुभव की आंख से
देखा तो भी देखा कहेंगे। अगर अनुभव भी नहीं किया और अव्यक्त रूप से, अव्यक्त स्थिति
द्वारा देखा नहीं तो फिर अपना नाम दादियों को नोट कराना तो वो अनुभव करा देंगी। रह
नहीं जाना क्योंकि दूसरों को स्टैम्प द्वारा ब्रह्मा बाप का अनुभव करा रहे हो और
खुद नहीं करो तो अच्छा नहीं है ना। इसलिये जब ब्रह्मा बाप के चित्र के आगे बैठते हो
तो चित्र से चैतन्यता के मिलन की, अनुभव की अनुभूति नहीं होती है! रूहरिहान का
रेसपॉन्स नहीं मिलता है? मिलता है ना। तो बाप है तभी तो सुनता है और देता है। फिर
भी इस अनुभव से वंचित नहीं रह जाना। समझा! तो सभी ने जो सेवा की, विशेष भारतवासियों
ने ज्यादा सेवा का चांस लिया तो बापदादा नाम नहीं लेते हैं लेकिन सभी अपने सेवा के
रिटर्न में नाम सहित मुबारक स्वीकार करें। डबल विदेशियों को भी सेवा का चांस मिल गया।
अच्छा लगा ना! नाच रहे थे ना! अच्छा!
चारों ओर के ब्राह्मण
जन्म के दिव्य जन्म के अधिकारी आत्माओं को, सदा बाप और आप साथ-साथ रहने वाले समीप
आत्माओं को, सदा डबल पूज्य स्वरूप के स्मृति में रहने वाले समर्थ आत्माओं को, सदा
दृढ़ संकल्प वा दृढ़ व्रत को निभाने वाले सफलता के अधिकारी आत्माओं को, सदा खुश रहने
वाले और औरों को भी खुश करने वाले खुशनसीब बच्चों को, त्रिदेव रचता बाप की और
ब्रह्मा बाप की विशेष बर्थ डे की मुबारक भी हो और याद-प्यार भी। साथ-साथ
सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।
वरदान:-
अपनी श्रेष्ठ
स्थिति द्वारा भटकती हुई आत्माओं को श्रेष्ठ ठिकाना देने वाले लाइट स्वरूप भव
जैसे स्थूल रोशनी (लाइट)
पर परवाने स्वत: आते हैं, ऐसे आप चमकते हुए सितारों पर भटकी हुई आत्मायें फास्ट गति
से आयेंगी। इसके लिए अभ्यास करो - हर एक के मस्तक पर सदा चमकते हुए सितारे को देखने
का। शरीरों को देखते भी न देखो। सदा नज़र चमकते हुए सितारे (लाइट) तरफ जाये। जब ऐसी
रूहानी नज़र नेचुरल हो जायेगी, तो आपकी इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा भटकती हुई आत्माओं
को यथार्थ ठिकाना मिल जायेगा।
स्लोगन:-
सेवा के महत्व को जान कोई न कोई सेवा में बिजी रहने वाले ही आलराउन्ड सेवाधारी हैं।