06-04-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति अव्यक्त बापदादा रिवाइज़ - 18-05-69 मधुबन
"रूहानी ज्ञान-योग की ज्योतिषी"
आप सभी ने बुलाया या बापदादा ने आप सभी को बुलाया है? किसने किसको बुलाया है? जो बच्चे बाप के कन्तव्य में निमित्त बने हुये हैं - उन्हों को यह बात हर वक्त याद रखनी है कि हमें हर समय हर हालत में एवररेडी और आलराउन्ड होना है। अगर यह दो बातें सभी में आ जाये तो सर्विस का सबूत श्रेष्ठ निकल सकता है। लेकिन नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यह बातें हैं। आप निमित्त बने हुए बच्चों को यह सलोगन याद रखना चाहिये कि हम जो कर्म करेंगे मुझे देख और सभी करेंगे। हर समय अपने को ऐसा समझो। जैसे ड्रामा के स्टेज पर सभी के सामने हम पार्ट बजा रहे हैं। एक होता है अपने आप से रिहर्सल। एक होता है स्टेज पर सभी के सामने पार्ट बजाना। तो स्टेज पर एक्ट करने वाले का अपने ऊपर कितना ध्यान रहता है। एक-एक एक्ट पर हर समय अटेन्शन रहता है। हाथों पर, पावों पर, आँखों पर सभी पर ध्यान रहता है। अगर कोई भी बात नीचे ऊपर होती है तो एक्टर के एक्ट में शोभा नहीं देती। तो ऐसे अपने को समझकर चलना है।
तीन मिनट का रिकार्ड जब भरते हैं तो कितना ध्यान देते हैं। आप सभी भी अपने 21 जन्मों का रिकार्ड भर रहे हो तो भरते समय बहुत ध्यान रखना है। रिकार्ड में जरा भी नीचे-ऊपर हो जाता है तो वह रिकार्ड हमेशा के लिये रद्धी हो जाता है। तुम्हारा भी 21 जन्मों के लिये सतयुगी राज- धानी का जो रिकार्ड भरता है तो वह रद्द न हो जाये। रद्द हुआ तो फिर दूर हो जाते हैं। तो यह सोचना चाहिए - हमारे हर कर्म के ऊपर सभी की आँख है। एक्टर्स जब देखते हैं, हमको सभी देख रहे हैं तो खास अटेन्शन रहता है। कोई देखने वाला नहीं होता है तो अलबेलापन रहता है। तो हमेशा समझना चाहिए हम भले अकेलेपन में कुछ करते, तो भी सृष्टि के सामने हैं। सारी सृष्टि की आत्मायें चारों ओर से हमें देख रही हैं। अगर एक-एक फूल ऐसा सम्पूर्ण और सुन्दर हो जाये तो इस बगीचे की खुशबू कितनी फैल जाती! लेकिन क्यों नहीं फैलती, उसका कारण क्या? खुशबू के साथ-साथ कहाँ-कहाँ बीच में और बात भी आ जाती है। भले खुशबू कितनी हो लेकिन खुशबू से भी जल्दी फ़ैलने वाली बदबू होती है, जो जरा सी बात सारी खुशबू को समाप्त कर देती है। अविनाशी खुशबू जिसको सदा गुलाब कहते हैं। एक होता है सदा गुलाब, दूसरा होता गुलाब, तीसरा होता है रूहें गुलाब। पहला नम्बर है रूहें गुलाब। वह रूह की स्थिति में रहता है और रूहानी रूह के हमेंशा नजदीक है। ऐसे है रूहे गुलाब। और दूसरी क्वालिटी जो है वह फिर सर्विस में बहुत अच्छे रहते हैं बाकी रूहानी स्थिति में कमी है। सर्विस में, धारणा में अच्छे हैं, संस्कार शीतल हैं। खुद अपने को क्या समझते हो? किस नम्बर का फूल समझते हो? कांटे तो यहाँ हो भी न सके। हैं तो सभी गुलाब। लेकिन गुलाब में भी फर्क है। जो रूहे गुलाब होंगे उनकी निशानी क्या होगी? आप लोगों को मस्तक की रेखा परखने आती है? ज्योतिषी बने हो वा नहीं? बापदादा जो ज्ञान और योग की ज्योतिषी दिखाते हैं उनसे क्या देखते हो? हरेक के मुखड़े से, नयनों से, मस्तक से मालूम पड़ता है। इसमें भी विशेष मस्तक और नयनों से मालूम पड़ता है। आप ज्योतिष बनकर हरेक को परख सकते हो? नयनों में और मस्तक में वह रेखायें जरूर रहती हैं। किसको परखना यह भी ज्योतिष विद्या है। तो यह जो विद्या है परखने की यह कईयों में कम है। ज्ञान और योग सीखते हैं लेकिन यह परखने की ज्योतिष विद्या भी जाननी है। कोई भी व्यक्ति सामने आए तो आप लोगों को तो एक सेकेण्ड में उनके तीनों कालों को परख लेना चाहिए। एक तो पास्ट में उनकी लाइफ क्या थी और वर्तमान समय उनकी वृत्ति, दृष्टि और भविष्य में कहाँ तक यह अपनी प्रालब्ध बना सकते हैं। यह जानने की प्रैक्टिस चाहिए। यह परखने की जो नालेज है वह बहुत कम है। यह कमी अभी भरनी चाहिए। वर्तमान समय जो आने वाला है उसमें अगर यह गुण नहीं होगा, कमी होगी तो धोखे में आ जायेंगे। कई ऐसी आत्माएं आप के सामने आयेंगी जो अन्दर एक और बाहर से दूसरी होगी। परीक्षा के लिए आयेंगी। क्योंकि कई समझते हैं कि यह सिर्फ रटे हुए हैं। तो कई रंग रूप से आर्टिफीसियल रूप में भी परखने लिए आयेंगे, भिन्न-भिन्न रूप से। इसलिये यह ध्यान रखना है कि यह किसलिये आया है? उनकी वृत्ति क्या है? और अशुद्ध आत्माओं की भी बड़ी सम्भाल करनी है। ऐसे-ऐसे केस भी बहुत होंगे दिन प्रतिदिन पाप आत्मायें तो बहुत होते हैं। आपदायें, अकाले मृत्यु, पाप कर्म बढ़ते जाते हैं तो उन्हों की वासनायें जो रह जाती हैं वह फिर अशुद्ध आत्माओं के रूप में भटकती हैं। इसलिये यह भी बहुत बड़ी सम्भाल रखनी है। कोई में अशुद्ध आत्मा की प्रवेशता होती है तो उनको भगाने लिए एक तो धूप जलाते हैं और आग में चीज को तपाकर लगाते हैं और लाल मिर्ची भी खिलाते हैं। तो आप सभी को फिर योग की अग्नि से काम लेना है। हर कर्मेन्द्रियों को योगाग्नि में तपाना है तो फिर कोई वार नहीं कर सकेंगे। थोड़ा भी कहाँ ढीलापन हुआ, कोई भी कर्मेन्द्रियाँ ढीली हुई तो फिर प्रवेशता हो सकती है। वह अशुद्ध आत्माएं भी बड़ी पावरफुल होती हैं। वह माया की पावर भी कम नहीं होती। यह बहुत ध्यान रखना है। और कई प्राकृतिक आपदायें भी अपना कन्तव्य करेगी। उसका सामना करने लिये अपने में ईश्वरीय शक्ति धारण करनी है। उस समय स्नेह नहीं रखना है। उस समय शक्ति- रूप की आवश्यकता है। किस समय स्नेहमूर्त, किस समय शक्तिरूप बनना है यह भी सोचना है। इन सभी बातों में शक्तिरूप की आवश्यकता है। अगर कोई ऐसा आया और उनको ज्यादा स्नेह दिखाया तो कहाँ नुकसान भी हो सकता है। स्नेह बापदादा और दैवी परिवार से करना है। बाकी सभी से शक्तिरूप से सामना करना है। कई बच्चे गफलत करते हैं जो उन्हों के स्नेह में आ जाते हैं। वह स्नेह वृद्धि होकर कमजोर कर देता है, इसलिये अब शक्तिरूप की आवश्यकता है। अन्तिम नारा भी भारत माता शक्ति अवतार का गायन है। गोपी माता थोड़ेही कहते हैं। अब शक्ति रूप का पार्ट है। गोपीकाओं का रूप साकार में था। अब अव्यक्त रूप से शक्ति का पार्ट है। हरेक जब अपने शक्तिरूप में स्थित होंगे तो इतने सभी की शक्ति मिलाकर कमाल कर दिखायेगी। यादगार रूप में अन्तिम चित्र कौन सा दिखाया हुआ है? पहाड़ को अंगुली देने का। अंगुली, यह शक्ति की देनी है। इससे ही कलियुगी पहाड़ खत्म होगा। इसमें हरेक की अंगुली की दरकार है। अभी वह अंगुली पुरी रीति नहीं है। उठाते जरूर हैं परन्तु कोई की कभी सीधी कोई की कभी टेढ़ी हो जाती है। जब पूरी अंगुली होगी तब प्रभाव निकलेगा। एक जैसे अंगुली देनी है। इस कलियुगी पहाड़ को जल्दी अंगुली देकर फिर सतयुगी दुनिया को लाना है।
साकार के साथ स्नेह है तो जल्दी-जल्दी इस पुरानी दुनिया से चलने की तैयारी करो। आप कहेंगे अभी सर्विस कहाँ हुई है लेकिन सर्विस भी किसके लिये रुकी है? अगर आप हरेक शक्तिरूप में स्थित हो जाओ तो आप के जो भूले भटके भक्त हैं, न चाहते भी चकमक (चुम्बक) के आगे आ जायेंगे, देरी नहीं लगेगी। अच्छा।
पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-
1- अमृतवेला सदा शक्तिशाली है। अमृतवेला शक्तिशाली है तो सारा दिन शक्तिशाली रहेगा। अमृतवेला कमजोर है तो सारा दिन कमजोर। अमृतवेले नियम प्रमाण बैठते हो? यह वरदानों का समय है। वरदानों के समय अगर कोई सोया रहे, सुस्ती में रहे वा विस्मृति रहे, कमजोर होकर बैठे तो वरदानों से वंचित रह जायेगा। तो अमृतवेले का महत्व सदा याद रहता है ना? उस समय नींद तो नहीं करते हो? झुटके तो नहीं खाते हो ना? कभी-कभी कोई नींद की अवस्था को भी शान्ति की अवस्था समझते हैं। उन्हों से पूछते हैं कैसे बैठे थे तो कहते हैं बहुत शान्ति में। तो ऐसी चेकिंग करो - कभी भी शक्तिशाली स्टेज के बीच में यह माया तो नहीं आती है। जो शक्तिशाली हैं उसके आगे माया कमजोर हो जाती है।
युगलों से:- सदा प्रवृत्ति में रहते इस वृत्ति में रहते हो कि हम न्यारे और सदा बाप के प्यारे हैं? यही वृत्ति सदा प्रवृत्ति में रहती है? वैसे प्रवृत्ति को पर वृत्ति भी कह सकते हैं। पर माना न्यारे। प्रवृत्ति में रहते प्रवृत्ति के बन्धन से परे अर्थात् पर वृत्ति वा न्यारे और प्यारे। ऐसे बन्धनमुक्त बन प्रवृत्ति के कार्य को निभाने वाले हो ना! बन्धन में बन्धने वाले नहीं लेकिन बन्धनमुक्त हो कर्म करने वाले। मन का भी बन्धन नहीं। एक है तन का बन्धन, दूसरा है मन का बन्धन तीसरा है सम्बन्ध का बन्धन, व्यवहार का बन्धन। तो सब बन्धनों से मुक्त। निर्बन्धन आत्मा बंध नहीं सकती। सारे बन्धन लगन की अग्नि से भस्म करने वाले। लगन अग्नि है। अग्नि में जो चीज़ डालें सब भस्म, ऐसी बन्धनमुक्त आत्मा उड़ने के सिवाए रह नहीं सकती। बन्धन फँसाता है, निर्बन्धन उड़ाता है। बन्धन का पिंजड़ा खुला तो पंछी उड़ेगा ना! कोई कितना भी गोल्डन पिंजड़ा लेकर आये उस पिंजड़े में भी फँसने वाले नहीं। यह माया सोने का रूप धारण करके आती है। सोना माना आकर्षण करने वाला। यादगार में भी दिखाते हैं माया सोना हिरण बनकर आई। तो सोने का हिरण अच्छा तो नहीं लगता? जब उड़ता पंछी हो गये तो सोना हो या हीरा हो लेकिन पिंजड़े के पंछी नहीं बन सकते।
अधरकुमारों से:- सदा अपने को विजय के तिलकधारी आत्मायें अनुभव करते हो? विजय का तिलक सदा लगा हुआ है? कभी मिट तो नहीं जाता? माया कभी मिटा तो नहीं देती? रोज़ अमृतवेले इस विजय के तिलक को स्मृति द्वारा ताजा करो तो सारा दिन विजय का तिलक लगा रहेगा। विजय का तिलक है तो राज्य का, भाग्य का भी तिलक है। इसीलिए भक्त भी बहुत बड़े-बड़े तिलक लगाते हैं। तिलक भक्ति की निशानी समझते हैं। प्रभु प्यार है इसकी निशानी तिलक लगा देते हैं। आपको कितने तिलक हैं? राज्य का तिलक, भाग्य का तिलक, विजय का तिलक.... यह सब तिलक मिले हैं ना? तिलकधारी ही तख्तधारी हैं। बाप का दिलतख्त जो अभी मिला है ऐसा तख्त भविष्य में भी नहीं मिलेगा। यह बहुत श्रेष्ठ तख्त है। तख्त मिला, तिलक मिला और क्या चाहिए?
कुमारियों से:- सभी देवियाँ हो ना! कुमारी अर्थात् देवी। जो उल्टे रास्ते में जाती वह दासी बन जाती और जो महान आत्मा बनती वह देवियाँ हैं! दासी झुकती है। तो आप सब देवियाँ हो, दासी बनने वाली नहीं। देवियों का कितना पूजन होता है। तो यह पूजन आपका है ना! छोटी हो या बड़ी सब देवियाँ हो। बस यही सदा याद रखो कि हम महान आत्मायें, पवित्र आत्मायें हैं, बाप का बनना यह कम बात नहीं है, कहने में सहज बात हो गई है। लेकिन किसके बने हो? कितने ऊंचे बने हो? कितनी विशेष आत्मायें बने हो? यह चलते-फिरते याद रहता है कि हम कितनी महान कितनी ऊंची आत्मायें हैं। भाग्यवान आत्माओं को सदा अपना भाग्य याद रहे। कौन हो? देवी। देवी सदा मुस्कराती रहती है। देवी कभी रोती नहीं। देवियों के चित्रों के आगे जाओ तो क्या दिखाई देता? सदा मुस्कराती रहती हैं! दृष्टि से, हाथों से सदा देने वाली देवी। देवता या देवी का अर्थ ही है देने वाला। क्या देने वाली हो? सभी को सुख शान्ति आनन्द, प्रेम सर्व खजाने देने वाली देवियाँ हो। सभी राइट हैण्ड हो। राइट हैण्ड अर्थात् श्रेष्ठ कर्म करने वाली।
माताओं से:- सभी मातायें, जगत मातायें हो गई ना! जगत का उद्धार करने वाली जगत मातायें। हद के गृहस्थी की मातायें नहीं। सदा विश्व कल्याणकारी। जैसे बाप विश्व कल्याणकारी है वैसे बच्चे भी विश्व कल्याणकारी। तो घर में रहती हो या विश्व की सेवा के स्थान पर रहती हो? विश्व ही आपकी सेवा का स्थान है। बेहद में रहने वाली, हद में रहने वाली नहीं। ज्यादा समय किसमें जाता है, हद की प्रवृत्ति में या बेहद में? जितना बेहद का लक्ष्य रखेंगी तो हद के बन्धनों से सहज मुक्त होती जायेंगी। जो अभी संकल्प आता है कि समय नहीं मिलता, इच्छा है लेकिन शरीर नहीं चलता, शक्ति नहीं है... यह सब बन्धन है। जब दृढ़ संकल्प कर लेते कि बेहद की सेवा में आना ही है, लगना ही है तो यह बन्धन सेकण्ड में समाप्त हो जाते हैं। समय स्वतः मिल जायेगा। शरीर आपेही चलने लग जायेगा। यह अनुभव है भी और भी कर सकती हो। श्रेष्ठ कार्य के लिए समय न मिले, शरीर काम न करे यह हो नहीं सकता। पहिये लग जायेंगे। जब उमंग उत्साह के पहिये लग जाते हैं तो न चलने वाले भी चलने लग पड़ते हैं। बीमारी भी खत्म हो जाती है। जैसे लौकिक में कोई आवश्यक काम करना होता है तो क्या करते हो? उतना समय बीमारी भाग जाती है ना। बाद में भले ही सो जाओ लेकिन उस समय मजबूरी से भी करती हो ना! तो जैसे हद के कार्य में न चाहते भी चल पड़ते, ऐसे यहाँ भी खुशी-खुशी से चल पड़ेंगे। जब मजबूरी के पहिये भी चला सकते हैं तो यह खुशी के पहिये क्या नहीं कर सकते। तो उमंग उत्साह और खुशी के पहिये लगाकर यह हद के बन्धन काटो। पति का बन्धन, बच्चों का बन्धन तो खत्म हुआ अभी इन सूक्ष्म बन्धनों से भी मुक्त बनो। उड़ो और उड़ाओ। यह ऐसा है, वह ऐसा है.. यह भी रस्सी है। इसको भी तोड़ो यह भी नीचे ले आती है। तो बन्धनमुक्त उड़ते पंछी बनो।
वरदान:- अपनी चलन और चेहरे द्वारा सेवा करने वाले निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी भव
सदा इस स्मृति में रहो कि बाप को जानने और पाने वाली कोटों में कोई हम आत्मायें हैं, इसी खुशी में रहो तो आपके यह चेहरे चलते फिरते सेवाकेन्द्र हो जायेंगे। आपके हर्षित चेहरे से बाप का परिचय मिलता रहेगा। बापदादा हर बच्चे को ऐसा ही योग्य समझते हैं। तो चलते फिरते, खाते पीते अपनी चलन और चेहरे द्वारा बाप का परिचय देने की सेवा करने से सहज ही निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बन जायेंगे।
स्लोगन:- जो अंगद समान सदा अचल अडोल एकरस रहते हैं, उन्हें माया दुश्मन हिला भी नहीं सकती।