ओम् शान्ति।
गॉडली स्टूडेन्ट ने यह गीत सुना। तुम बच्चे ही गॉडली स्टूडेन्ट हो। ऐसे नहीं कि सभी
स्कूलों में गॉडली स्टूडेन्ट होते हैं। नहीं, वहाँ तो मनुष्य पढ़ाते हैं। संन्यासी
भी शास्त्र सुनाते हैं। ज्ञान को वास्तव में कोई बरसात नहीं कहा जाता है। बरसात तो
पानी की होती है। परन्तु यह महिमा गाई हुई है क्योंकि परमपिता परमात्मा को ज्ञान
सागर भी कहा गया है। बाप कहते हैं - मुझे ज्ञान सागर नॉलेजफुल भी कहते हैं। नॉलेज
को बरसात, पानी वा अमृत नहीं कहा जाता। जैसे मान सरोवर का तालाब है। अमृतसर में भी
एक तालाब है जिसको वे लोग अमृत समझते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। पढ़ाई को अमृत वा
बरसात नहीं कहेंगे। समझते हैं - अमृत है, इससे दु:ख दूर हो जायेंगे। वास्तव में तो
इस नॉलेज से तुम्हारे सब दु:ख दूर होते हैं 21 जन्मों के लिये। जो पिया के साथ है
उनके लिये बरसात है। यहाँ यह बाप, टीचर, सतगुरू - तीनों ही कम्बाइन्ड हैं। यह एक
बात भी बच्चे याद रखें तो खुशी का पारा चढ़ जाये। परन्तु माया घड़ी-घड़ी भुला देती
है। यहाँ तुम बच्चे चलते हो श्रीमत पर। श्रीमत से तुम श्रेष्ठ बनते हो। भगवान है
ऊंचे ते ऊंचा बाप। ऊंचे ते ऊंच बाप की पढ़ाई से ही ऊंच ते ऊंच बन सकते हो। अब जो
पिया के सम्मुख बैठे हैं, सब स्टूडेन्ट हैं। यहाँ बैठेंगे, पढ़कर फिर अपने घर जाना
है। दिन-प्रतिदिन स्टूडेन्ट तो बहुत हो जायेंगे। अगर सभी को एक ही घर में साथ रखें
तो कितना बड़ा मकान चाहिये! सारा आबू मकान बना दें तो भी पूरा नहीं होगा। कितने
सेन्टर्स हैं? अभी तो अजुन थोड़े हैं, इससे भी हजार गुणा जास्ती होंगे। एक हजार, दो
हजार, पांच-सात हजार भी सेन्टर्स हो सकते हैं। फिर घर-घर में यह ज्ञान-गंगायें
ज्ञान की वर्षा करेंगी। इतने ढेर बच्चे हो जायेंगे। जहाँ-तहाँ देखो सेन्टर्स खोलते
रहते हैं। कोई गीता पाठशाला नाम रखते हैं, कोई ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व
विद्यालय नाम रखते हैं। वास्तव में ब्रह्माकुमारी नाम रखने से डरना नहीं चाहिये। कई
बच्चे डरते हैं कि बी.के.नाम देख हंगामा न कर दें इसलिये गीता पाठशाला नाम रख देते
हैं। गीता पाठशाला अक्षर तो कॉमन है। समझते हैं - कोई विघ्न न पड़े इसलिये
बी.के.नाम बदल दूसरा रूप दे देते हैं। वास्तव में तो बात एक ही है। अन्दर घुसने से
चित्र आदि देख झट समझ जायेंगे - यह तो वही बी.के. हैं इसलिये नाम बदलने की ऐसी
जरूरत नहीं है। इससे तो अच्छी रीति सिद्ध होता है कि वास्तव में यह ब्रह्मा की
सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। यह तो अच्छा है ना। तुम सबसे कह सकते हो -
वास्तव में तुम भी ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो। प्रजापिता ब्रह्मा को तो जानते हो।
वह रचयिता है मनुष्य सृष्टि का। निराकार परमपिता परमात्मा कोई आत्माओं का रचता नहीं,
वह तो आत्माओं का अनादि बाप है। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो अनादि है। आत्माओं का बाप
इनमें आते हैं। आकर ब्रह्मा को एडाप्ट करते हैं - प्रजा रचने के लिये। ब्रह्मा
द्वारा ब्राह्मण कुल रचना है। यह तो समझाने में और ही सहज होगा। परन्तु डरते हैं।
कहेंगे बी.के. के पास मत जाओ। गीता पाठशाला में भल जाओ। घर-घर में ज्ञान-गंगा का
अर्थ भी मनुष्य नहीं समझते हैं।
भक्ति मार्ग में नारद को मुख्य गिना जाता है। झांझ बजाने वाला भक्त था। ऐसे नहीं,
नारद कोई ऐसे रूप वाला है जैसे चित्र दिखाते हैं। वास्तव में बन्दर तो तुम सभी थे।
सूरत मनुष्य की, सीरत बन्दर की थी। यूँ तो सब नारद हैं। सब भक्त हैं ना। समझ सकते
हैं - जब तक हम दैवीगुण वाले मनुष्य न बनें तब तक हम लक्ष्मी को वर न सकें। सभी मेल
अथवा फीमेल भक्त नारद हैं। कहा जाता है - अपनी सीरत तो देखो, तुम तो बन्दर हो
क्योंकि तुम्हारे में 5 विकार हैं, इसलिये लक्ष्मी को वर नहीं सकेंगे। है सारी यहाँ
की बात। बाबा ने समझाया है कि सभी दुशासन अथवा दुर्योधन हैं। द्रोपदियों के चीर हरते
हैं इसलिये मातायें पुकारती हैं - हमको नंगन होने से बचाओ, रक्षा करो। कन्यायें कहती
हैं - लाज रखो गिरधारी। नाम तो बहुत रख दिये हैं। मनुष्यों का बुद्धियोग चला जाता
है श्रीकृष्ण तरफ। परन्तु किसी भी देहधारी को याद करने से विकर्म विनाश नहीं हो सकते।
सिर्फ चाहते हैं साक्षात्कार हो। अच्छा, साक्षात्कार हो जाये परन्तु मनुष्य से देवता
बनने की नॉलेज तो मिल न सके। जब ब्राह्मण बनें और ज्ञान को समझें तब देवता बन सकें।
ब्राह्मण बनने से भक्ति छूट जाती है। पहले एक हफ्ता इसमें देने से हम मनुष्य को
मन्दिर लायक बना सकते हैं। परन्तु टाइम तो लगता है। यह तो बरोबर है - तुम बाप के
साथ हो। बाबा के पास आते हो, फिर जाते हो तो कितना दिल अन्दर दु:ख होता है! लेकिन
सब तो साथ में नहीं रह सकेंगे, यह हो न सके। कोई कहाँ से, कोई कहाँ से भाग आते हैं।
यह रस्म यहाँ ही है। साधू-सन्त आदि पास तो ढेर जाकर इकट्ठे होते हैं। कोई भी किसको
मना नहीं करते। यहाँ तो पवित्र बनने की बात आती है इसलिए रोकते हैं। संन्यसियों में
तो सिर्फ मेल्स घरबार छोड़ चले जाते हैं। यहाँ तो कुमारियाँ-मातायें सभी हैं।
कन्याओं को माँ-बाप, डॉक्टर आदि कहते हैं - शादी नहीं करेंगी तो बीमार हो जायेंगी।
उनको समझाना चाहिये - अरे, संन्यासी कितने बनते हैं। बहुत छोटे-छोटे ब्रह्मचारी वहाँ
रहते हैं। फिर वह ब्रह्मचारी तो कभी बीमार नहीं होते। यहाँ क्यों बीमार होंगे? शादी
बिगर तो ढेर रहते हैं। संन्यासियों के ऊपर भी कोई केस कर न सके। कभी कोई स्त्री उनसे
घर खर्च नहीं मांगती है। वह तो भाग जाते हैं। स्त्री खर्च कहाँ से लाये फिर आस-पास
वाले लोग उनको सम्भाल लेते हैं। गरीब जास्ती भागते हैं। दु:खी होते हैं तो फिर
वैराग्य आता है। तुम भल दु:खी थे परन्तु वह वैराग्य की बात नहीं। तुमको तो पहले
हथेली पर बहिश्त दिखाया जाता है। पवित्र बनने बिगर बैकुण्ठ कैसे जा सकेंगे? बहादुर
बनना चाहिये इसलिये ही शिवशक्ति सेना नाम है। शिवबाबा साथ योग लगाने से शक्ति मिलती
है। ज्ञान की धारणा होने के बाद फिर समर्पण होना है। ज्ञान की धारणा नहीं होगी,
नष्टोमोहा नहीं होंगे तो माया आकर पथकायेगी। शादी करने की दिल होगी तो फिर सारा
ब्रह्माकुमारियों का नाम बदनाम हो जाता है। पहले नष्टोमोहा बनना पड़े। तुम लोग इतने
भट्ठी में रहे तो भी कितने नष्टोमोहा नहीं बने, याद आती रही। यहाँ से गये,
मित्र-सम्बन्धियों का मुँह देखा और लट्टू हो बैठ गये। मोह ने घेर लिया। यह भी ड्रामा
की भावी। अभी भी बाप कहते हैं - पहले-पहले तो नष्टोमोहा बनो। एक मोस्ट बील्वेड बाप
के बन जाओ। कुछ भी हो जाये, हम तो बाप की ही सर्विस पर रहेंगे। कहा जाता है ना - चढ़े
तो चाखे बैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। ऐसे नहीं कि छोड़कर आ जायें फिर मोह सताये।
ऐसे बहुत संन्यासी लोग जाकर फिर वापस लौट आते हैं। संन्यासी घर में वापिस आयें तो
आसपास वाले निरादर करते हैं। समझते हैं - यह काम के लिये भागा है। यहाँ भी समझा जाता
है - यह पूरा नष्टोमोहा नहीं बना था, विकारों ने घेर लिया। बाबा के पास कोई खान-पान
की तकलीफ नहीं है। शुरू से लेकर कितनी सम्भाल करते आये हैं। गरीब-साहूकार एक समान
हैं। मम्मा-बाबा भी सबको सिखलाने लिये बर्तन मांजते थे। झाड़ू लगाते थे। देह-अभिमान
तोड़ने के लिये किया जाता है। संन्यासी भी ऐसे कराते हैं। कोई बड़ा आदमी होगा तो
उनसे लकड़ी आदि कटायेंगे - देह-अभिमान तोड़ने लिये। यहाँ तो बड़ी भारी मिलकियत मिलती
है! एक सेकेण्ड में 21 जन्म की बादशाही! संन्यासियों के पास तो कुछ भी प्राप्ति नहीं
है। बाकी पवित्र हैं इसलिये अपवित्र माथा टेकते हैं। यह तो राजयोग है, विश्व का
मालिक बनते हैं।
विकार में नहीं जाना है। मीरा भी पवित्र रहना चाहती थी ना। वह तो भक्ति मार्ग
में थी। श्रीकृष्ण का दीदार करती थी। उसकी दिल लगी श्रीकृष्ण से, तो भला वह विकार
में कैसे जायेगी? सो भी एक जन्म। करके मीरा दूसरे जन्म में भी भक्ति मार्ग में गई
हो। ऐसे भी कह सकते हैं - वह भक्ति मार्ग में गई क्योंकि अन्त मती सो गति होती है।
श्रीकृष्ण से दिल थी तो भक्त ही बन जायेगी। परन्तु भक्ति मार्ग में कुछ मिला तो नहीं।
ज्ञान मार्ग में तो 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। भक्ति भी पहले शिव की करते हैं
फिर देवताओं की। अभी तो देखो - चूहे-बिल्ली आदि सबकी भक्ति करने लग पड़े हैं।
श्रीकृष्ण को छोड़ हनूमान-गणेश आदि की भक्ति करने लग पड़ते। सतयुग-त्रेता में भी
कलायें कम होती जाती हैं और भक्ति में भी कलायें कम होती जाती हैं। अभी तो कोई काम
के नहीं रहे हैं। जब ऐसी हालत होती है तब बाप आकर समझाते हैं। आधा कल्प ऊंच चढ़ते
हैं फिर आधा कल्प के बाद गिरना शुरू होता है। मनुष्य समझते हैं - गिरना ही है तो
फिर ज्ञान लेकर क्या करें? परन्तु ईश्वरीय नॉलेज बिगर मनुष्य तो कोई काम के नहीं
हैं। हम-तुम क्या थे, कुछ भी नहीं। ज्ञान जरूर चाहिये। शरीर निर्वाह अर्थ पढ़ते हैं
ना। कन्याओं को भी आजकल शरीर निर्वाह अर्थ पढ़ना पड़ता है। आगे यह कायदा नहीं था।
कन्यायें घर सम्भालती थी, बच्चे नौकरी के लिये पढ़ते थे। अब बेहद का बाप तुम बच्चों
को पढ़ा रहे हैं। अगर सभी यहाँ बैठ जायें तो फिर मित्र-सम्बन्धियों आदि को ज्ञान
कैसे देंगे? जाना पड़े। पढ़ना और पढ़ाना है। कोई तो बिल्कुल पढ़ते ही नहीं। तो समझना
चाहिये - यह हमारे ब्राह्मण कुल का नहीं है। रंग लगाने की कोशिश जरूर करनी चाहिये।
इसमें डरने की बात नहीं। कोशिश करने से फिर कोई न कोई को रंग लग जायेगा। भल कोई
इन्सल्ट करे, गाली दे, तुम पुरुषार्थ करके देखो, किस न किस पर असर जरूर होगा। बिच्छू
चलता है तो नर्म चीज देख वहाँ डंक मार देता है। जांच करता है। यहाँ भी बच्चों को
बहुत एक्सपर्ट बनना चाहिये। अविनाशी धन कहाँ व्यर्थ किसको नहीं देना है। पात्र देख
दान करना है। अगर किसको दान दिया और उसने कोई विकर्म कर लिया तो उनका पाप उस दान
देने वाले पर आ जायेगा। यहाँ बड़ी खबरदारी चाहिये। पैसा तो बड़ी सम्भाल से किसको
देना है पूछकर। यहाँ तो जो भी बना रहे हैं यह सब जल्दी ही टूट-फूट जायेंगे। यह मकान
भी बच्चों के रहने लिये बने हैं। यह तो जानते हैं - सब टूटने हैं। अर्थक्वेक होगी
तो मन्दिर आदि सब टूटेंगे। हमारी राजधानी में यह कुछ होगा नहीं। न अमेरिका, रशिया
आदि होगी। सिर्फ भारत खण्ड रहना है - यह तुम जानते हो। बाकी दुनिया तो घोर अन्धियारे
में है। बाबा का यह कितना बड़ा स्कूल है! इसमें टीचर्स भी नम्बरवार हैं। सभी एक
समान तो होते नहीं। इसमें तुम देखेंगे सबसे बड़ा टीचर तो शिवबाबा है। फिर है यह
ब्रह्म पुत्रा नदी। कहते भी हैं त्वमेव माताश्च पिता........ तो यह माता ठहरी ना।
फिर सरस्वती का भी नाम है। ब्रह्मा की राशि पर ब्रह्मपुत्रा नाम ठीक है। दिखाते भी
हैं - सागर और ब्रह्मपुत्रा नदी का मेला होता है, यहाँ फिर आत्मा और परमात्मा का यह
मेला है, इसका ही यादगार भक्ति मार्ग में गाया जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मोस्ट बील्वेड बाप का बनने के पहले पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। जब
अवस्था पक्की हो तब सेवा में लगना है।
2) इस दुनिया से दिल का वैराग्य रख पवित्र बनने में बहादुर बनना है। दान बहुत
खबरदारी से पात्र को देखकर करना है।