01-07-07     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 15.04.92 "बापदादा"    मधुबन


"सत्यता के साथ सभ्यता को धारण करो"
 


वर्तमान समय कई बच्चों के समाचार आते हैं? बाप को भी चैलेन्ज कर रहे हैं कि बापदादा ने कहा है ना कि टीचर्स को चेन्ज करेंगे अभी देखेंगे बाबा क्या करता है? जो कहा है वह करता है या नहीं करता है। बाप ने कहा है तो बाप पर है। बाप करे या न करे। या ऐसे चैलेन्ज करनी है कि कहा है तो करना ही है। बाप को जो करना है वह न किसके कहने से करेंगे। वा किसके ना कहने से नहीं करेंगे। लेकिन बाप को भी चैलेन्ज के बहुत अच्छे पत्र आते हैं। जो टीचर्स से नाराज है उन्हों को यह चांस बड़ा मिल गया है। कल्याणकारी बाप हर कार्य में जो भी करेगा वह कल्याणकारी ही होता है। यह भूल जाते हैं फिर डायरेक्शन के पत्र लिख रहे हैं कि आप जरूर करना, बाप के भी शिक्षक बहुत बन गये ना तो बाप अपने ऐसे बच्चों को भी मुबारक देते हैं। लेकिन सदा संयम में स्वयं को आगे बढ़ाते चलो। सभ्यता पूर्वक बोल, सभ्यता पूर्वक चलन, इसमें ही सफलता होती है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं है तो सफलता नहीं मिलती है। और सफलता नहीं मिलती तो और जोश में आते हैं। और जब जोश में कोई होश नहीं रहता। क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं वह भी होश नहीं आता और जब होश नहीं होता तो माया को चांस मिल जाता है बेहोश करने का। इसलिए अगर कोई असत्य बात देखते भी हो, सुनते भी हो तो असत्य वायुमण्डल नहीं फैलाओ। कई कहते हैं यह पाप कर्म है ना पाप कर्म देखा नहीं जाता और स्वयं वायुमण्डल में असत्यता की बाते फैलाना यह क्या है? इसको क्या कहेंगे? पुण्य कर रहे हैं ना वे, असत्य देखा वा सुना, फिर भी परिवार है, लौकिक परिवार में भी अगर कोई ऐसी बात देखी जाती है, सुनी जाती है तो क्या किया जाता है?फैलाया जाता है? अखबार में डाला जाता है? कि कान में सुना और दिल में छिपाया। तो यह भी व्यर्थ बातों का फैलाव करना यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप जो होते हैं वह अपनी उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। क्योंकि सबसे भारी ते भारी है पाप। अगर पाप का अंश भी है तो उड़ेगा कैसे? बोझ वाला उड़ेगा? आजकल बहुत रॉयल भाषा में फैलाव करते हैं। कहते हैं यह नया समाचार लाया हूँ। आप तो बहुत बुद्धू हो आपको कोई समाचार का पता नहीं पड़ता। हम देखो नॉलेजफुल हैं कितने समाचार का पता है। ऐसे समाचार सुनने वालों के ऊपर भी पाप और सुनाने वाले के ऊपर और ज्यादा पाप। इसीलिए तपस्या वर्ष में यह सूक्ष्म पापों का बोझ समाप्त रो तब समान बन सकेंगे। नहीं तो सोचते हैं कि हमने तो कोई गलती की नहीं लेकिन यह रॉयल गलती बहुत करते हैं। इसको रॉयल समझते हैं। मैंने सुना तो ऐसे ही सुना दिया। भाव कोई नहीं था मेरा। लेकनि रिजल्ट क्या है। फैलाना अर्थात् बोझ के अधिकारी बनना। तो आजकल यह भी एक रिवाज हो गया है। आपस में मिलेंगे ना तो पहले तो समाचार सुनायेंगे, नये नये समाचार। कहेंगे किसको सुनाना नहीं सिर्फ आपको ही सुना रहे हैं। लेकिन बाप ने तो सुना। रजिस्टर में दाग तो हुआ या नहीं? इसलिए इस बात का भी अटेन्शन अन्डरलाइन करो। ऐसे नहीं समझो कि बापदादा को पता हीं नहीं पड़ता। दादियाँ तो कोने में बैठी हैं उनको क्या पता। दादियों को नहीं पता लेकिन आपके रजिस्टर में आटोमेटिक नोट हो जाता है। जब आजकल के कम्प्युटर में सारा रिकार्ड भर जाता है तो क्या आपके रजिस्टर में आटोमेटिक यह रिकार्ड भर नहीं जायेगा। दादियाँ नहीं देखती, और नहीं देखते लेकिन रजिस्टर देख रहा है। तो ऐसा परिवर्तन करो। क्योंकि बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि तपस्या पॉवरफुल न होने का कारण क्या है? सदा विजयी बनने में विघ्न रूप क्या है? इन विघ्नों को स्वयं से समाप्त करो। दूसरा बदले तो मैं बदलूं, इनको चेंज करो तो हम चेंज होंगे, यह भाषा यथार्थ है? बड़ों के आगे बात रखना इसके लिए सबको हक है लेकिन सत्यता और सभ्यता पूर्वक।

अब कितने होम वर्क मिले। इस वर्ष में ऐसे कोई रजिस्टर में सूक्ष्म दाग भी नहीं आने चाहिए। तब बाप कहेगा कि हाँ बाप से प्यार है, नहीं तो समझते हैं कि यह बाप को भी खुश करते हैं, अपने को भी खुश करते हैं। व्यर्थ समाचार बिल्कुल समाप्त होने चाहिए। यह एक हॉबी बहुत बढ़ती जा रही है। और यही तपस्या का विघ्न है। हर एक समझे कि इस हॉबी को स्वयं में समाप्त करने की मैं जिम्मेवारी लूँ। समझा! दूसरे कर रहे थे, तो मैंने भी कर लिया, चार बोल रहे थे तो मैंने भी एक शब्द बोल दिया। तो क्या यह राईट है? इस शौक को खत्म करने की हिम्मत है? यह अभी नया फैशन निकला है ब्राह्मण कुल में। लेकिन है उल्टा फैशन। तो इसका समाप्ति समारोह करने की हिम्मत है? जो कहते हैं कोशिश करेंगे, ट्राई ट्राई करने वाले हाथ उठाओ। अभी देखना बापदादा सेन्टर का नाम एनाउन्स करेगा। इस सेन्टर पर इस स्थान पर यह वातावरण है। यह पसन्द है या डरेंगे? यह डर अच्छा है, कि हमारा नाम नहीं आवे। देखना हाथ उठाया है फिर धर्मराज पुरी में भी यह हाथ उठेगा। बाप का साथी धर्मराज भी देख रहा है कि सभी ने हाथ उठाया है। लेकिन फायदा किसको। जितना कायदा उतना फायदा है। जो कायदे में चलते हैं उनको स्वयं ही अन्दर ही अन्दर फायदा होता है। बाहर से कोई फायदा देवे, न देवे लेकिन जो अन्दर का हल्कापन और अन्दर की खुशी होती है वह फायदा सबसे ज्यादा है। कोई अच्छा कहे, न कहे लेकिन स्वयं में अच्छे बनने की शक्ति आ जाती है। समझा! वर्ष की रिजल्ट सुनी, अभी क्या करेंगे? स्व परिवर्तन करना। दूसरे के परिवर्तन की चिन्ता नहीं करना। इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। फिर कहते हैं हम चिन्ता नहीं करते हैं, शुभ चिन्तक है ना! लेकिन स्व को भूल दूसरे के शुभ चिन्तक बनना इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। सर्व के साथ पहले स्व होना चाहिए। स्व नहीं और सर्व के शुभ चिन्तक बनने चलो तो तीर नहीं लगेगा, सफलता नहीं मिलेगी। पहले स्व और स्व के साथ सर्व यही बापदादा का बच्चों से दिल का प्यार है। प्यार की निशानी है कि प्यार करने वाले की कोई कमी देख नहीं सकते। कोई कमी सुन नहीं सकेंगे उसको भी सम्पन्न बनायेंगे। यह है दिल का सच्चा प्यार। बापदादा दिलवाला है। इसलिए दिल का प्यार है, हर एक बच्चे को समान और श्रेष्ठ देखने चाहते हैं। हर एक बच्चे को सफलता मूर्त देखना चाहते हैं। मेहनत मूर्त नहीं, सफलतामूर्त। अच्छा। आज तो बड़ा ड़ोज मिला है। हजम करने की शक्ति है ना? घबरा तो नहीं गये कि आज बापदादा ने यह क्या कह दिया। अच्छा।

चारों ओर के सदा निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा निश्चय और विजय को समानता में लाने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा स्वमान में रह स्व परिवर्तन और सर्व के परिवर्तन के यथार्थ कल्याण की भावना रखने वाली आत्माओं को, सदा बाप के समान बन प्यार का सबूत देने वाली आत्माओं को, सदा यथार्थ रूहरिहान कर बातों को समाप्त करने वाली आत्माओं को दिलवाला बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

निर्विघ्न सीजन सम्पन्न हुई। साक्षी होकर भिन्न-भिन्न खेल देखने में मजा आता है ना। और खेल का अर्थ ही है भिन्नता। अगर भिन्नता नहीं हो तो खेल में मजा नहीं। इसलिए हर बात में अच्छा अच्छा कहते अच्छा बनते जाते और हर बात में अच्छाई समाई हुई जरूर होती है। चाहे सारी बात बुरी हो लेकिन एक दो अच्छाई भी जरूर होती है। वह अच्छा ही पाठ पढ़ाती है। दूसरे का आवेश हो, दूसरा आवेश कर रहा हो लेकिन आप क्या पाठ पढ़ रही हो? जितना वह आवेश करता उतना ही वह बात आपको धीरज सिखाती है। सहनशीलता सिखाती है। इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्दा और जो होना है वह और अच्छा। अच्छाई उठाने की सिर्फ बुद्धि चाहिए बस। बुराई को न देख अच्छाई उठा लें। इससे ही नम्बर मिलते हैं ना। अच्छा।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

अपने को ज्ञान सूर्य के बच्चे मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? सूर्य का कार्य क्या होता है? अन्धकार मिटाना, प्रकाश देना। ऐसे ही आप सभी भी अज्ञान अन्धेरा मिटाने वाले हो ना। कभी स्वयं भी अन्धियारे में तो नहीं आ जाते? स्वयं से अन्धियारा समाप्त हो गया। स्वयं भी आत्मा ज्योति अर्थात् प्रकाश स्वरूप है और कार्य भी है प्रकाश फैलाना। अन्धकार में मनुष्य आत्माएं भटकती हैं - यहाँ जाएं, वहाँ जाएं, यह रास्ता ठीक है, यह स्थान ठीक है वा नहीं है, भटकते रहेंगे और रोशनी में सेकेण्ड में ठिकाना दिखाई देगा। तो सभी को रोशनी द्वारा अपना निजी ठिकाना दिखाने के निमित्त हो। भटकती हुई आत्माओं को ठिकाना देने वाले। अगर कोई बहुत समय भटकता रहे और उसको कोई द्वारा ठिकाना मिल जाये तो ठिकाना दिखाने वाले को कितनी दुआएं देगा! तो आप भी जब आत्माओं को रोशनी द्वारा ठिकाना दिखाते हो, दिखाने का अनुभव कराते हो तो आत्माओं द्वारा कितनी दुआएं निकलती हैं और जिसको दुआएं मिलती हैं वह सदा आगे बढ़ता जाता है। उसकी हर बात में प्रोग्रेस होती है क्योंकि दुआएं लिफ्ट का काम करती हैं। सदा सहज आगे बढ़ते जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसलिए भक्ति मार्ग में भी जब भटकते-भटकते थक जाते हैं तो बाप को कहते हैं - अभी कोई दुआ करो, कृपा करो। तो अनेक आत्माओं की दुआएं आप आत्माओं को सहत उड़ती कला का अनुभव करायेंगी। एक बाप की दुआएं और आत्माओं की भी दुआएं मिलती हैं। माँ-बाप बच्चों को दुआएं करते हैं - उड़ते रहो, बढ़ते रहो। लेकिन दुआएं लेने वाले पात्र होने चाहिए। बाप सभी को देता है लेकिन लेने वाले पात्र हैं तो अनुभव करते हैं और पात्र नहीं है तो दाता देता है लेकिन लेने वाला नहीं लेता। पात्र बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि। स्वच्छ मन और स्वच्छ बुद्धि। जिसकी स्वच्छ बुद्धि स्वच्छ मन है वह हर समय बाप की, आत्माओं की दुआएं स्वत: ही अनुभव करते हैं। लौकिक दुनिया में भी देखो अगर कोई ऐसे समय किसको सहारा देता है, मुश्किल के समय आधार बन जाता है तो मुख से दुआएं निकलती हैं ना - तुम सदा जीते रहो, तुम सदा जीवन में सफल रहो, यह दुआएं जरूर निकलती हैं। तो अपने से पूछो कि बाप की दुआएं, आत्माओं की दुआएं अनुभव होती है या मेहनत बहुत करनी पड़ती है? बहुत सहज विधि है - दुआएं लेते जाओ और सदा भरपूर रहो। क्योंकि जिसे दुआएं मिलती हैं वह सदा भरपूर होगा, कभी अपने को खाली नहीं समझेगा। तो सभी भरपूर हो या कि कभी-कभी खाली हो जाते हो? ऐसे नहीं, यहाँ से भरपूर होकर जाओ और वहाँ जाओ तो खाली हो जाओ। 63 जन्म खाली हुए अभी इस समय भरपूर हो रहे हैं। तो भरपूर होने के समय खाली नहीं होना। भरते जाओ। भरे हुए में भरो। खाली होकर नहीं भरो। अभी खाली होन का समय समाप्त हुआ।

सभी खुश रहते हो? कैसी भी परिस्थिति आ जाए, कितना भी बड़ा विघ्न आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। विघ्न आता है तो चला जायेगा। लेकिन अपनी चीज़ क्यों चली जाए। वह आया, वह जाए। अपनी चीज़ तो नहीं जाए ना। आने वाला जायेगा या रहने वाला भी चला जायेगा? तो खुशी अपनी चीज़ है। बाप का वर्सा है ना खुशी। तो विघ्न आता और चला जाता है। जब भी विघ्न आये ना तो यह सोचो यह आया है चले जाने के लिए। कोई घर का मेहमान आता है तो ऐसे नहीं, मेहमान होकर आया और सारी चीजें लेकर जाये। ध्यान रखेंगे ना। तो विध्न आया और चला जायेगा। लेकिन आपकी खुशी तो नहीं ले जाये। यदा खुशी साथ रहे। बाप है अर्थात् खुशी है। अगर पाप है तो खुशी नहीं, बाप है तो खुशी है। तो सदा खुश रहो। हर एक समझे कि मैं खुश रहने वाला हूँ। खुश रहने वाले को देख दूसरा भी खुश हो जाता है। रोने वाले को देखेंगे तो दूसरे को भी रोना आ जाता है। अच्छा।

वरदान:-
परवश आत्माओं को रहम के शीतल जल द्वारा वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव

यदि कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये, तो उसे परवश समझ अपने रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तेल के छींटे नहीं डालो, अगर किसी के प्रति क्रोध की भावना भी रखी तो तेल के छींटें डाले, इसलिए वरदानी मूर्त बन सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। जब अभी चैतन्य में यह संस्कार भरेंगे तब जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनेंगे।

स्लोगन:-
परमात्म मिलन मेले की मौज में रहो तो माया के झमेले समाप्त हो जायेंगे।