19-01-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सदा खुशी
में रहो और दूसरों को भी खुशी दिलाओ, यही है सब पर कृपा करना, किसी को भी रास्ता
बताना यह सबसे बड़ा पुण्य है।''
प्रश्नः-
सदा खुशमिज़ाज़
कौन रह सकते हैं? खुशमिज़ाज़ बनने का साधन क्या है?
उत्तर:-
सदा
खुशमिज़ाज़ वही रह सकते जो ज्ञान में बहुत होशियार हैं, जो ड्रामा को कहानी की तरह
जानते और सिमरण करते हैं। खुशमिज़ाज़ बनने के लिए सदा बाप की श्रीमत पर चलते रहो।
अपने को आत्मा समझो और बाप जो भी समझाते हैं उसका अच्छी तरह मंथन करो। विचार सागर
मंथन करते-करते खुशमिज़ाज़ बन जायेंगे।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों के साथ रूहरिहान कर रहे हैं। यह तो आत्मायें जानती हैं कि
एक ही हमारा बाप है और शिक्षा भी देते हैं, टीचर का काम हैं शिक्षा देना। गुरू का
काम है मंजिल बताना। मंजिल को भी बच्चे समझ गये हैं। मुक्ति जीवनमुक्ति के लिए याद
की यात्रा बिल्कुल ज़रूरी है। हैं दोनों सहज। 84 जन्मों का चक्र भी फिरता रहता है।
यह याद रहना चाहिए अभी हमारा 84 का चक्र पूरा हुआ है, अब वापिस जाना है। परन्तु पाप
आत्मायें मुक्ति जीवनमुक्ति में वापिस जा नहीं सकती। ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करना
है। जो करेंगे सो पायेंगे। खुशी में भी वही आयेंगे और दूसरों को भी खुशी में वही
लायेंगे। औरों पर भी कृपा करनी है - रास्ता बताने की। तुम बच्चे जानते हो यह
पुरूषोत्तम संगमयुग है। यह भी कोई को याद रहता है, कोई को नहीं। भूल जाता है। यह भी
याद रहे तो खुशी का पारा चढ़ा रहे। बाप टीचर गुरू के रूप में याद रहे तो भी खुशी का
पारा चढ़ा रहे। परन्तु चलते-चलते कुछ रोला पड़ जाता है। जैसे पहाड़ों पर नीचे ऊपर
चढ़ना होता है, वैसे बच्चों की अवस्था भी ऐसे होती है। कोई बहुत ऊंच चढ़ते हैं फिर
गिरते हैं तो आगे से भी जास्ती गिर पड़ते हैं। की कमाई चट हो जाती है। भल कितना भी
दान पुण्य करते हैं परन्तु फिर पुण्य करते-करते अगर पाप करने लग पड़ते हैं तो सब
पुण्य खत्म हो जाते हैं। सबसे बड़ा पुण्य है - बाप को याद करना। याद से ही पुण्य
आत्मा बनेंगे। अगर संग के रंग से भूल ही भूल करते जायें तो आगे से भी जास्ती नीचे
गिर जाते। फिर वह खाता जमा नहीं रहेगा। ना (घाटा) हो जायेगा। पाप का काम करने से ना
हो जाता। बहुत पाप का खाता चढ़ जाता है। मुरादी सम्भाली जाती है ना। बाप भी कहते
हैं तुम्हारा खाता पुण्य का था, पाप करने से वह सौ गुणा हो जाता है और ही घाटे में
आ जायेगा। पाप भी कोई बहुत बड़ा, कोई हल्का होता है। काम है बहुत कड़ा, क्रोध है
सेकेण्ड नम्बर, लोभ उनसे कम। सबसे जास्ती काम वश होने से जो जमा हुआ वह ना हो जाता
है। फायदे के बदले नुकसान हो जाता है। सतगुरू का निंदक ठौर न पाये। बाप का बनकर फिर
छोड़ देते हैं। क्या कारण हुआ? अक्सर करके काम की चोट लगती है। यह है कड़ा दुश्मन।
उनका ही बुत बनाकर जलाते हैं। क्रोध, लोभ का बुत नहीं बनायेंगे। काम पर ही पूरी जीत
पानी है तब जगतजीत बनेंगे। बुलाते भी हैं कि हम जो रावण राज्य में पतित बने हैं,
हमको आकर पावन बनाओ। गाते तो सब हैं पतित-पावन। हे पतितों को पावन बनाने वाले सीताओं
के राम आओ। परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं। यह भी जानते हैं कि बाप ज़रूर नई दुनिया
स्थापन करने आयेंगे। परन्तु बहुत टाइम देने से घोर अन्धियारा हो गया है। ज्ञान और
अज्ञान है ना। अज्ञान है भक्ति जिसकी पूजा करते उनको जानते ही नहीं। तो उनके पास
पहुँचेंगे कैसे? इसलिए दान पुण्य आदि निष्फल हो जाता है। करके कुछ अल्पकाल के लिए
काग विष्टा के समान सुख मिलता है। बाकी तो दु:ख ही दु:ख है। अब बाप कहते हैं मामेकम्
याद करो तो तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। अब देखना है हम कितना याद करते हैं,
जो पुराना खत्म हो नया जमा हो। कोई तो कुछ भी जमा नहीं करते। सारा मदार है याद पर।
याद बिगर पाप कैसे मिटे अथवा कटें। पाप तो बहुत हैं - जन्म-जन्मान्तर के। इस जन्म
की जीवन कहानी सुनाने से कोई जन्म-जन्मान्तर के पाप कट नहीं जायेंगे। सिर्फ इस जन्म
की हल्काई हो जाती है। बाकी तो मेहनत बहुत करनी है, इतने जन्मों का जो हिसाब किताब
है - वो योग से ही चुक्तू होने वाला है। विचार करना चाहिए कि हमारा योग कितना है?
हमारा जन्म सतयुग के आदि में हो सकेगा? जो बहुत पुरूषार्थ करेंगे वही सतयुग के आदि
में जन्म लेंगे। वह छिपे नहीं रह सकते। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे। पिछाड़ी में
जाकर थोड़ा पद पाते हैं। अगर पहले आते भी हैं तो नौकरी करते हैं। यह तो कामन बात है
समझने की, इसलिए बाप को बहुत याद करना है। तुम जानते हो हम नई दुनिया के लिए विश्व
का मालिक बनने आये हैं। जो याद करेंगे उनको ज़रूर खुशी रहेगी। अगर राजा बनना है तो
प्रजा भी बनानी पड़े। नहीं तो कैसे समझेंगे कि हम राजा बनने वाले हैं। जो सेन्टर
खोलते हैं, सर्विस करते हैं उनकी भी कमाई होती। उनको भी बहुत फायदा मिलता है। उनको
भी उजूरा मिल जाता है। कोई 3-4 सेन्टर भी खोलते हैं ना। जो जो करते हैं उनका हिस्सा
तो आता है ना। मिलकर माया के दु:ख का छप्पर उठाते हैं तो इसमें कंधा सब देते हैं।
तो सबको उजूरा मिलता है। जो बहुतों को रास्ता बताते हैं, जितनी मेहनत करते हैं उतना
ऊंच पद पाते हैं। उनको खुशी बहुत होती है। दिल जानती है हमने कितनों को रास्ता बताया
है? कितनों का उद्धार किया है? सब कुछ करने का समय तो यही है। खान-पान तो सबको मिलता
ही है। कोई तो कुछ भी काम नहीं करते हैं। जैसे मम्मा ने कितनी सर्विस की। सर्विस से
उनका बहुत कल्याण हो गया। इसमें भी सर्विस बहुत चाहिए। योग की भी सर्विस है ना।
कितने डीप डायरेक्शन मिलते रहते हैं। अभी तो आगे चलकर क्या-क्या प्वाइंट्स निकलेंगी।
दिन प्रतिदिन उन्नति होती जायेगी। नई-नई प्वाइंट्स निकलेगी। जो सर्विस में तत्पर
रहते हैं, वह झट पकड़ लेते हैं। जो सर्विस नहीं करते उनकी बुद्धि में कुछ बैठेगा नहीं।
बिंदी रूप कैसे समझें? तुम कोई से पूछो आत्मा कितनी बड़ी है? आत्मा का देश काल बताओ
तो कभी नहीं बता सकेंगे। मनुष्य परमात्मा का नाम रूप देश काल पूछते हैं। तुम आत्मा
का पूछो तो मूँझ जायेंगे। किसको भी मालूम नहीं है। आत्मा इतनी छोटी बिन्दी उसमें
इतना सारा पार्ट भरा हुआ है। यहाँ भी बहुत हैं जो आत्मा परमात्मा को जानते ही नहीं।
सिर्फ विकारों का सन्यास किया है, वह भी कमाल है। संन्यासियों का धर्म अलग है। यह
ज्ञान तुम्हारे लिए है। बाप समझाते हैं तुम पवित्र थे फिर अपवित्र बने, अब फिर
पवित्र बनना है। तुम ही 84 का चक्र लगाते हो। दुनिया में ज़रा भी इन बातों को नहीं
जानते। ज्ञान अलग, भक्ति अलग है। ज्ञान चढ़ाता है भक्ति गिराती है। तो रात दिन का
फ़र्क है। मनुष्य भल कितना भी अपने को वेदों शास्त्रों की अथॉरिटी समझते हैं परन्तु
जानते कुछ नहीं। तुमको भी अभी मालूम पड़ा है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। भूलने
कारण ही खुशी गुम होती है। नहीं तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाबा से तुमको यह वर्सा
मिल रहा है। बाबा साक्षात्कार करा देते हैं। परन्तु साक्षात्कार किया, श्रीमत पर नहीं
चले तो फायदा ही क्या! बाप को दु:ख में सिमरण करते हैं। बाप को कहते हैं लिबरेटर,
हे राम, हे प्रभू कहते हैं। परन्तु वह कौन है, जानते नहीं। भक्ति में कोई ऐसे नहीं
कहते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बिल्कुल नहीं। अगर कहते होते तो
परम्परा चला आता। भक्ति तो चली आती है ना। भक्ति अथाह है। ज्ञान है एक। मनुष्य समझते
हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। परन्तु कैसे, कब? यह नहीं जानते। भक्ति कब शुरू होती
है, कौन जास्ती भक्ति करते हैं - यह कोई नहीं जानते। क्या इतना 40 हज़ार वर्ष और
भक्ति करते रहेंगे? एक तरफ मनुष्य भक्ति कर रहे हैं दूसरे तरफ तुम ज्ञान पा रहे हो।
मनुष्यों से कितना माथा मारना पड़ता है। इतनी प्रदर्शनी करते हो फिर भी निकलते कोटों
में कोई हैं। कितनों को आप समान बनाकर ले आते हैं। सच्चे-सच्चे ब्राह्मण कितने हैं
- यह हिसाब अभी निकाल नहीं सकते। बहुत झूठे बच्चे भी हैं। ब्राह्मण लोग कथा सुनाते
हैं। बाबा गीता की कथा सुनाते हैं। तुम भी सुनाते हो यथा बाबा तथा बच्चे। बच्चों का
भी काम है सच्ची-सच्ची गीता सुनाना। शास्त्र तो सबके हैं। वास्तव में जो भी शास्त्र
आदि हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के। ज्ञान का पुस्तक एक ही गीता है। गीता है माई बाप।
बाप ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। मनुष्य फिर ऐसे बाप की ही ग्लानि करते हैं।
शिवबाबा की जयन्ती है हीरे तुल्य। ऊंच ते ऊंच भगवान ही सद्गति दाता है। बाकी और किसी
की महिमा कैसे हो सकती है। देवताओं की महिमा करते हैं परन्तु देवता बनाने वाला एक
बाप ही है। हमारा कन्स्ट्रक्शन भी होता है तो डिस्ट्रक्शन भी होता है। बहुत हैं जो
कुछ समझा नहीं सकते तो स्थूल काम करो। मिलेट्री में सब काम करने वाले होते हैं। कहा
भी जाता है पढ़े के आगे अनपढ़े को भरी ढोनी पड़े। मम्मा बाबा जो करते हैं उनसे सीखो।
तुम भी समझ सकते हो अनन्य बच्चे कौन हैं। बाबा से पूछेंगे तो बाबा भी नाम बतायेंगे
कि फलाने को फालो करो। जो सर्विसएबुल नहीं वह औरों को क्या सिखलायेंगे। वह तो और ही
टाइम वेस्ट कर देंगे। बाबा समझाते हैं अपनी उन्नति करने चाहते हो तो यहाँ कर सकते
हो। चित्र रखे हैं हमने 84 जन्म कैसे लिये, यह अब समझा है तो दूसरों को समझाओ। कितना
सहज है - यह बनना है। कल इनकी भक्ति करते थे, आज नहीं। नॉलेज मिल गई। ऐसे बहुत आकर
नॉलेज लेंगे। जितना तुम सेन्टरों का जास्ती घेराव डालेंगे तो बहुत आकर समझेंगे।
सुनने से उनको खुशी का पारा चढ़ जायेगा। नर से नारायण बनना है। सच्ची सत्य नारायण
की कथा भी है, भक्ति से तो गिरते ही जाते हैं। उनको पता ही नहीं पड़ता - ज्ञान क्या
चीज़ है। तुमको बेहद का बाप यथार्थ समझाते हैं। बाबा कहते हैं कल तुमको राजाई दी
फिर तुम्हारी राजाई कहाँ गई? यह तो खुद जानते हैं। यह तो खेल है। एक ही बाप है जो
सारे खेल का राज़ बताते हैं। हम कहते हैं बाबा आप बांधेले हो ड्रामा में, आपको आना
ही पड़े, पतित दुनिया और पतित शरीर में। ईश्वर की बहुत महिमा करते हैं। बच्चे कहेंगे
बाबा हमने आपको बुलाया तो आपको आना ही पड़ा - हमारी सर्विस करने अथवा हमको पतित से
पावन बनाने। कल्प-कल्प हमको सो देवता बनाकर आप चले जाते हो। यह जैसे एक कहानी है,
जो होशियार हैं उन्हों के लिए तो एक कहानी है। तुम बच्चों को खुशमिजाज़ होना चाहिए।
बाबा भी ड्रामा अनुसार सर्वेन्ट बना है। बाप कहते हैं मेरी मत पर चलो। अपने को आत्मा
समझो। देह-अभिमान छोड़ो। नई दुनिया में तुमको नया शरीर मिलेगा। बाप जो समझाते हैं
उनको अच्छी तरह मंथन करो। बुद्धि से समझते हो हम आये हैं - यह बनने के लिए। एम
आबजेक्ट सामने खड़ी है। भगवानुवाच, वो लोग भगवान को मनुष्य समझ लेते हैं या निराकार
कहते हैं। तुम आत्मायें भी सब निराकारी हो। शरीर लेकर पार्ट बजाती हो, बाबा भी
पार्ट बजाते हैं। जो अच्छी सर्विस करेंगे उनको ही निश्चय होगा कि हम माला का दाना
अवश्य बनेंगे। नर से नारायण बनना है। भगवान पढ़ाते हैं तो अच्छी तरह पढ़ना चाहिए।
परन्तु माया का आपोजीशन बहुत होता है। माया तूफान में लाती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विचार सागर मंथन कर अपार खुशी का अनुभव करना है। औरों को भी रास्ता
बताने की कृपा करनी है। संग के रंग में आकर कोई भी पाप कर्म नहीं करना है।
2) माया के दु:खों का छप्पर उठाने के लिए मिल करके कंधा देना है। सेन्टर्स खोल
अनेकों के कल्याण के निमित्त बनना है।
वरदान:-
अपने बोल की
वैल्यु को समझ उसकी एकॉनामी करने वाले महान आत्मा भव
जैसे महान आत्माओं को कहते
हैं - सत वचन महाराज। तो आपके बोल सदा सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले
वचन हो। ब्राह्मणों के मुख से कभी किसी को श्रापित करने वाले बोल नहीं निकलने चाहिए।
इसलिए युक्तियुक्त बोलो और काम का बोलो। बोल की वैल्यु को समझो। शुभ शब्द सुख देने
वाले शब्द बोलो, हंसीमजाक के बोल नहीं बोलो, बोल की एकॉनामी करो तो महान आत्मा बन
जायेंगे।
स्लोगन:-
यदि
श्रीमत का हाथ सदा साथ है तो सारा ही युग हाथ में हाथ देकर चलते रहेंगे।
अव्यक्ति साइलेन्स
द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
जैसे लाइट के
कनेक्शन से बड़ी-बड़ी मशीनरी चलती है। आप सभी हर कर्म करते कनेक्शन के आधार से स्वयं
भी डबल लाइट बन चलते रहो। जहाँ डबल लाइट की स्थिति है, वहाँ मेहनत और मुश्किल शब्द
समाप्त हो जाता है। अपने-पन को समाप्त कर ट्रस्टीपन का भाव और ईश्वरीय सेवा की भावना
हो तो डबल लाइट बन जायेंगे।