10-01-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 08-06-71 मधुबन

 

जीवन के लिए तीन चीजों की आवश्यकता - खुराक, खुशी और खज़ाना

 

जीवन में मुख्य तीन चीजों की आवश्यकता होती है। वह कौनसी है? चाहे लौकिक जीवन, चाहे अलौकिक जीवन दोनों में तीन चीजों की आव-श्यकता है। वह कौनसी? एक चाहिए खुराक, दूसरा खुशी और तीसरा खज़ाना। यह तीनों बातें आवश्यक हैं। खज़ाने के बिना कुछ नहीं होता, खुशी के बिना भी जीवन नहीं और खुराक भी आवश्यक है। तो यह तीनों चीजें यहाँ भी आवश्यक हैं। खुराक किसको कहेंगे? खुशी तो हुई प्राप्ति की, बाकी खुराक कौनसी है? खज़ाना कौनसा है? खज़ाना है ज्ञान का, खुराक है याद से जो शक्ति भरती है। जीवन की इनर्जा खुराक है। तीनों ही प्राप्तियां हो चुकी हैं वा हो रही हैं? खज़ाना भी पूरा मिल चुका है ना। खुराक भी मिल चुकी है। खुशी तो है ही। अखुट खजाना मिला है ना। अच्छा, उस अखुट खज़ाने को बहुत सहज अगर किसको गिनती करके सुनाओ कि क्या-क्या मिला है, तो किस रीति सुना सकती हो? किसको वर्णन करके सुनाओ तो ऐसे सुनाओ जिससे सहज रीति सारा खजाना आ जाये। सागर को गागर में समाकर दिखाओ। खज़ाने का वर्णन ज़रूर ‘एक, दो, तीन.......’ ऐसे गिनती कर सुनायेंगे ना कि इतना खजाना हमारे पास है। यहाँ भी ‘एक, दो, तीन, चार, पाँच......... के अन्दर ही सारा खज़ाना गिनती कर सुना सकती हो। ‘एक’ में इकट्ठी बातें आ जाती हैं। एक बाप है, एक ही ज्ञान है। ऐसे ‘एक’ का ही वर्णन करो तो कितनी प्वाइन्ट्स आ जायेंगी। ‘दो’ का वर्णन करो तो दो में भी कितनी प्वाइन्ट्स हैं। तीन को वर्णन करो तो भी कितनी प्वाइन्ट्स हैं। तो एक, दो, तीन, चार, पाँच - इसमें ही सारा ज्ञान वर्णन कर सकती हो। जैसे खज़ाने को अंगुलियों पर गिनती करते हैं ना। ऐसे आप भी ज्ञान खज़ाने को इन 5 गिनती में वर्णन कर सुना सकती हो। यह क्लास कराना। फिर देखना, 5 के अन्दर सारी प्वाइन्ट्स आ जाती हैं। ऐसे-ऐसे मंथन करना चाहिए, जिससे सहज भी हो जाये और वही ज्ञान रमणीक भी बन जाये। 5 में सारा ज्ञान वर्णन कर सुनाओ। खज़ाने को भी वर्णन करके सुनाने के लिए सहज तरीका यह है। छोटे बच्चे को भी एक, दो, तीन.... ऐसे सिखाते हैं ना। तो इन पाँच में ही सारे खज़ाने का वर्णन हो। और जितना बार खज़ाने को वर्णन करते हैं वा मनन में लाते हैं इतनी खुशी ज़रूर होती है। और खजाने को मनन करने से मग्न अवस्था आटोमेटीकली होती है। खुशी भी मिल जाती है, खुराक भी मिलती है और खज़ाने की स्मृति भी आ जाती है। तीनों ही बातें स्मृति में हैं। इस जीवन को श्रेष्ठ जीवन कहा जाता है। याद की यात्रा में रहने से कोई करामात आती है? (शक्तियों की प्राप्ति होती है) शक्तियों की प्राप्ति को करामात कहें? जैसे वह लोग कई अभ्यास करते हैं तो उनमें रिद्धि-सिद्धि की करामात आती है। इस प्राप्ति को करामात कहें? जिस शक्ति के आधार से आप कर्त्तव्य करती हो उसको करामात कहें? (करामात नहीं कहेंगे) करामात समझकर प्रयोग नहीं करते हो लेकिन कर्त्तव्य समझ कर शक्ति का प्रयोग करते हो। कर्त्तव्य करने का तो फर्ज है। इस कारण स्वीकार नहीं होता है। यहाँ करामात की बात नहीं। इसको श्रीमत का प्रैक्टिकल कर्त्तव्य समझकर चलते हो। उन मनुष्यों के पास करामात होती है। आप लोगों की बुद्धि में आयेगी श्रीमत। तो श्रीमत और करामात में फर्क है। आप लोगों को शक्तियां प्राप्त होंगी तो स्मृति में आयेगा - श्रीमत द्वारा अथवा इस मत की यह गति प्राप्त हुई। करामात नहीं लेकिन श्रीमत समझेंगे। करामात समझ शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे, कर्त्तव्य समझ शक्तियों का प्रयोग करेंगे। शक्तियां आनी ज़रूर हैं। मुख से बोलने की भी ज़रूरत नहीं, संकल्प से कर्त्तव्य सिद्ध कर देंगे। जैसे मुख द्वारा कर्त्तव्य सिद्ध करने के अभ्यास में भी पहले आप लोगों को ज्यादा बोलना पड़ता था तब सिद्धि मिलती थी। अभी कम बोलने से भी कर्त्तव्य होता है। तो जैसे यह अन्तर्यामी वैसे फिर यह प्रैक्टिस हो जायेगी। आपका संकल्प कर्त्तव्य को पूरा करेगा। संकल्प से किसको बुला सकेंगे, किसको संकल्प से कार्य की प्रेरणा देंगे। यह भी शक्तियां है लेकिन उनको कर्त्तव्य समझ प्रयोग करना है।

 

यह प्राप्ति श्रीमत से हुई। यह जैसे बटन दबाने से सारा नज़ारा टेलीविजन में आता है, वैसे ही आप संकल्प यहाँ करेंगे, वहाँ उसकी बुद्धि में क्लियर चित्र खिंच जायेगा। ऐसे कनेक्शन चलेगा। यह सभी शक्तियों की प्राप्ति होगी। इस प्राप्ति के लिए जब तक बुद्धि में और सभी बातें समाप्त हों और सिर्फ श्रीमत की आज्ञा जो मिली हुई है वही चलती रहे। और कुछ भी मिक्स न हो। व्यर्थ संकल्प श्रीमत नहीं है, यह अपनी मनमत है। तो जब ऐसी बुद्धि हो जाये जिसमें सिवाय श्रीमत के कुछ भी मिक्स न हो, तब शक्तियां आयेंगी। नज़दीक आ रही हो। गायन शक्तियों का ज्यादा है। कर्त्तव्य के सम्बन्ध में शक्तियों का गायन ज्यादा है। क्योंकि साकार में अन्तिम कर्त्तव्य की समाप्ति शक्तियों द्वारा है। इसलिए कर्त्तव्य की स्मृति वा यादगार भी शक्तियों का ज्यादा है। दिन- प्रतिदिन भविष्य में देवताओं के स्वरूप का पूजन वा यादगार कम होता जायेगा, शक्तियों का पूजन गायन बढ़ता जायेगा। गायन होते-होते ही प्रत्यक्ष हो जायेंगे। अच्छा।

 

(निर्मलशान्ता दादी बापदादा के सम्मुख बैठी हैं) कलकत्ता में सर्विस का साधन तो स्थापन कर लिया है, लेकिन जैसे सर्विस के साधन की स्थापना की है वैसे पालना का रूप अभी विस्तार को पाना चाहिए। कलकत्ते के म्यूजियम द्वारा सभी आत्माओं को कैसे शान्ति का वरदान प्राप्त हो सके। क्योंकि कलकत्ता में अशान्ति ज्यादा है ना। तो इतना आवाज़ फैलना चाहिए जो गवर्नमेन्ट तक यह आवाज़ जाये कि इस स्थान द्वारा शान्ति सहज प्राप्त हो सकती है। गवर्नमेन्ट द्वारा शान्ति-दल के रूप में ऑफर हो सकती है। जैसे जेल आदि में भाषण के लिए ऑफर करते हैं। क्योंकि पापात्माओं को पुण्यात्मा बनाने का साधन है, तब निमन्त्रण देते हैं। ऐसे ही कहाँ अशान्ति होगी तो यह शक्ति-दल शान्ति-दल, समझा जायेगा। ऐसी भी गवर्नमेन्ट द्वारा ऑफर होगी, तब तो आफरीन गाई जायेगी। ऐसा कुछ प्लैन बनाओ जो आवाज़ फैले चारों ओर। अशान्ति के बीच यह शान्ति-दल सेफ्टी का साधन है - ऐसे तुम प्रसिद्ध हो जायेंगे। जैसे भट्ठी के प्रोग्राम का गायन है। आग जलते हुए भी वह स्थान सेफ्टी का साधन रहा। चारों ओर आग होगी लेकिन यह एक ही स्थान शान्ति का है - ऐसा अनुभव करेंगे। इसी स्थान से ही हमको सेफ्टी वा शान्ति मिल सकती है। यह पालना का कर्त्तव्य बढ़ाओ। वह तब होगा जब कोई एक स्थान बनाओ जो विशेष (योग) अभ्यास का हो, जिसमें जाने से ही ऐसा अनुभव करें कि ना मालूम हम कहाँ आ गये हैं। स्थान भी अवस्था को बढ़ाता है। मधुबन का स्थान ही स्थिति को बढ़ाता है ना। तो ऐसा कोई स्थान बनाओ जो कोई कभी भी परेशान-दु:खी आत्मा हो, चिन्ता में डूबी हुई हो तो वह आने से ही महसूस करे कि हम कहाँ आये हैं। ऐसा प्लैन बनाओ। अपने को सफलतामूर्त समझते हो? सफलतामूर्त बनने के लिए मुख्य कौनसा गुण धारण करने से सफलतामूर्त बन जायेंगे? सफलतामूर्त बनने के लिए मुख्य गुण चाहिए सहनशीलता। सहनशीलता और सरलता कोई भी कार्य को सफल बना देंगी। जैसे कोई धैर्यता वाला मनुष्य सोच समझकर कार्य करते है तो सफलता प्राप्त होती है। वैसे ही सहनशील जो होते हैं वह अपनी ही सहनशीलता की शक्ति से, कैसा भी कठोर संस्कार वाला हो वा कैसे भी कठिन कार्य हो, उनको शीतल बना देते हैं वा सहज कर देते हैं। सहनशीलता का गुण जिसमें होगा वह गम्भीर भी ज़रूर होगा। जो गम्भीर होता है वह गहराई में जाने वाला होता है और जो गहराई में जाने वाला होता है वह कोई भी कार्य में कभी घबरायेगा नहीं। गहराई में जाकर सफलता प्राप्त करेगा। सहनशीलता वाले बाहरमुखता के वायब्रेशन को ही नहीं, लेकिन मन के संकल्प भी जो उत्पन्न होते हैं उन संकल्पों की उत्पत्ति को देखकर भी घबरायेंगे नहीं। अपनी सहनशीलता से सामना करेंगे। और सहनशीलता के गुण वाले की सूरत से क्या दिखाई देगा? जिसमें सहनशीलता का गुण होता है वह सूरत से सदैव सन्तुष्ट दिखाई देगा। उनके नैन-चैन कभी भी असन्तुष्टता के नहीं दिखाई देंगे। तो जो स्वयं सन्तुष्टमूर्त रहते हैं वह औरों को भी सन्तुष्ट बना देंगे। और चलते-फिरते वह फरिश्ता अनुभव होगा। सहनशीलता बहुत मुख्य धारणा है। जितनी सहनशीलता अपने में देखेंगे उतना समझो स्वयं से भी सन्तुष्ट हैं, दूसरे भी सन्तुष्ट हैं। सन्तुष्ट होना माना सफलता पाना। जो कोई भी बात को सहन कर लेता है तो सहन करना अर्थात् उसकी गहराई में जाना। जैसे सागर के तले में जाते हैं तो रत्न लेकर आते हैं। ऐसे ही जो सहनशील होते हैं वह गहराई में जाते हैं, जिस गहराई से बहुत शक्तियों की प्राप्ति होती है। सहनशील ही मनन-शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। सहनशील जो होता है वह अन्दर ही अन्दर अपने मनन में तत्पर रहता है और जो मनन में तत्पर रहता है वही मग्न रहता है। तो सहनशीलता बहुत आवश्यक है। उनका चेहरा ही गुणमूर्त बन जायेगा। सहनशीलता की धारणा पर इतना अटेन्शन रखना है। सहनशील ही ड्रामा की ढाल पर ठहर सकता है। सहनशीलता नहीं तो ड्रामा की ढाल को पकड़ना भी मुश्किल है। सहनशीलता वाला ही साक्षी बन सकता है और ड्रामा की ढाल को पकड़ सकता है। इतना अटेन्शन इस पर है? सदैव कोई-न-कोई गुण सामने देख उनकी गहराई में जाना है। जितना-जितना गहराई में जायेंगे उतना ही गुण की वैल्यू का पता पड़ेगा और जितना जिस चीज़ की वैल्यू का मालूम होता है उतना ही हर गुण को ग्रहण करना वा वर्णन करना सहज है। लेकिन एक-एक गुण की गहराई कितनी है - यह जो जानते हैं वही इतने वैल्यूएबल बनते हैं, उनका ही गायन सर्व गुण सम्पन्न का होता है अर्थात् गुणों के आधार पर ही इतनी वैल्यू है। तो जिन गुणों के आधार से इतने वैल्यूएबल बने, उस एक-एक गुण की कितनी वैल्यू होगी! ऐसी गहराई में जाना है और जितना स्वयं को वैल्यू का पता मालूम होगा उतना ही औरों को भी उस वैल्यू से सुनायेंगे। अच्छा। अपने को वैल्युएबल की लिस्ट में समझते हो? वैल्युएबल का मुख्य लक्षण क्या होता है?

 

जैसे बापदादा को त्रिमूर्ति कहते हैं वैसे आप एक-एक के एक मूर्त से तीन मूर्त का साक्षात्कार होता है। बाप तो तीन देवताओं का रचयिता होने के कारण त्रिमूर्ति कहलाते हैं। लेकिन आप एक-एक के मूर्त्त से तीन मूर्त्त का साक्षात्कार होता है? वह तीन मूर्त कौनसी हैं? शक्तियों द्वारा कौनसी तीन मूर्तियों का साक्षात्कार होता है? आप लोगों द्वारा अभी तीन कर्त्तव्य होते हैं। कई आत्माओं के अन्दर दैवी संस्कारों की रचना वा स्थापना कराते हो। तो यह स्थापना का कार्य भी करते हो। और कई आत्माओं के संस्कार ऐसे हैं जो कुछ निर्बल हैं’। अपने संस्कारों का परिवर्तन नहीं कर सकते वा अपने संस्कारों को सेवा में नहीं लगा सकते, उन्हों को मदद दे आगे बढ़ाना - यह है पालना। पालना में छोटे से बड़ा करना होता है। और फिर कई आत्मायें जो अपनी शक्ति से पुराने संस्कारों को मिटा नहीं सकती, उन्हों के भी मददगार बन उनके विकर्मों को नाश करने में मददगार बनते हो। तीनों कर्त्तव्य चल रहे हैं। इन तीन कर्त्तव्यों के लिए तीन मूर्त कौनसी हैं? जिस समय कोई आत्मा में नये दैवी संस्कारों की रचना कराती हो, उस समय बनती हो ज्ञानमूर्त्त। और जिस समय पालना कराती हो तो उस समय रहम और स्नेह दोनों मूर्ति की आवश्यकता है। अगर रहम नहीं आता है तो स्नेह भी नहीं। तो पालना के समय एक रहमदिल और स्नेह मूर्त। और जिस समय कोई के पुराने संस्कारों का नाश कराती हो उस समय शक्ति-स्वरूप और दूसरा रोब के बजाय रूहाब में। जब तक रूहाब में नहीं ठहरते तब तक उनके विकर्मों का विनाश नहीं करा सकते। जैसे अज्ञान-काल में कोई की बुराई छुड़ाने के लिए रोब रखा जाता है। यहाँ रोब तो नहीं लेकिन रूहाब में ठहरना पड़ता है। अगर रूहाब में न ठहरो तो उनके पुराने संस्कारों का नाश नहीं करा सकेंगी। शक्ति रूप में विशेष इस रूहाब की धारणा करती हो। इन गुणों द्वारा यह तीन कर्त्तव्य करती हो। कोई में अगर रूहाब की कमी है तो पालना कर सकती हो लेकिन उनके संस्कारों को नाश नहीं कर सकती। सिर्फ तरस और स्नेह है तो विनाश कराने का कर्त्तव्य नहीं। स्नेह, रहम नहीं तो पालना का कर्त्तव्य नहीं। रूहाब ज्यादा है लेकिन रहम कम है तो पालना में इतना मददगार नहीं, लेकिन कोई के विकर्मों का नाश कराने में मददगार हैं। और फिर नॉलेजफुल नहीं हैं तो नये संस्कारों की रचना नहीं करा सकती। कोई में कौनसा विशेष गुण है, कोई में कौनसा विशेष गुण है। लेकिन चाहिए तीनों ही। अगर तीनों में ही प्रैक्टिकल में समानता है तो फिर सफ़लता बहुत जल्दी मिलती है। नहीं तो कोई बात की कमी होने कारण जो सम्पूर्ण सफ़लता होनी चाहिए और जल्दी होनी चाहिए उसमें टाइम लग जाता है। तो अभी लक्ष्य यह रखना है कि तीनों कर्त्तव्य करने के लिए यह मुख्य गुण मूर्त बनना है। उसमें कमी न हो। फिर समय को नज़दीक लायेंगे। यह समानता लानी है, जो बाप में सर्व गुणों की समानता है। अभी कोई में कौनसा गुण, कोई में कौनसी विशेषता है। फर्क है ना।

 

वरदान:- ऊंचे ते ऊंचे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले शुभ और श्रेष्ठ कर्मधारी भव

 

जैसे राइट हैण्ड से सदा शुभ और श्रेष्ठ कर्म करते हैं। ऐसे आप राइट हैण्ड बच्चे सदा शुभ वा श्रेष्ठ कर्मधारी बनो, आपका हर कर्म ऊंचे ते ऊचे बाप को प्रत्यक्ष करने वाला हो क्योंकि कर्म ही संकल्प वा बोल को प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में स्पष्ट करने वाला होता है। कर्म को सभी देख सकते हैं, कर्म द्वारा अनुभव कर सकते हैं इसलिए चाहे रूहानी दृष्टि द्वारा, चाहे अपने खुशी के, रूहानियत के चेहरे द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो - यह भी कर्म ही है।

 

स्लोगन:- रूहानियत का अर्थ है - नयनों में पवित्रता की झलक और मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट हो।