09-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - बाप मनुष्य से देवता बनाने आये हैं तो उनकी दिल से शुक्रिया मानो श्रीमत पर चलते रहो, एक से सच्ची प्रीत रखो''

प्रश्नः-
जिन बच्चों की बाप से प्रीत है, उनकी निशानियां क्या होंगी?

उत्तर:-
बाप से सच्ची प्रीत है तो एक उन्हें ही याद करेंगे, उनकी ही मत पर चलेंगे। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देंगे। किसी के प्रति घृणा नहीं रखेंगे। अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल बाप को देंगे। कुसंग से अपनी सम्भाल करेंगे।

गीत:-
धीरज धर मनुआ...

ओम् शान्ति। ब्राह्मणों को तो जरूर धीरज़ ही होगा क्योंकि ब्राह्मणों की ही परमपिता परमात्मा के साथ प्रीत है - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सबकी एक जैसी प्रीत नहीं है। जैसे बाबा मम्मा और बच्चे अपना-अपना अनुभव सुनाते हैं। अहम् आत्मा अपने लिए कहते हैं। बाबा फिर अहम् परमात्मा कहेंगे। अहम् आत्मा कहती है मैं परमपिता परमात्मा को बहुत याद करती हूँ क्योंकि जानती हूँ - आधाकल्प हमने रावणराज्य में बहुत दु:ख देखा है। ऐसे भी नहीं शुरू से दु:ख होता है। नहीं। रावण राज्य में धीरे-धीरे दु:ख की वृद्धि होती है। कलायें कम होती जाती हैं। अहम् आत्मा को अब परमपिता परमात्मा बतलाते हैं कि पहले तुम अव्यभिचारी भक्ति में थे सिर्फ मुझे याद करते थे। फिर व्यभिचारी रजोगुणी भक्ति में आये। अभी तो तमोगुणी भक्ति हो गई है, जो आया उनको पूजते रहते हैं, इसको कहा जाता है भूत पूजा क्योंकि शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है। यह फलाना स्वामी है सिर्फ 5 तत्वों के शरीर को देख कहते हैं। उन्हों के चरणों में गिरते हैं। यह है तमोप्रधान भक्ति। अभी हम आत्मा जानते हैं परमपिता परमात्मा फिर से आये हैं हमको अपना वर्सा देने इसलिए जितना हो सके उनको याद करते हैं। उनका फरमान है निरन्तर मुझे याद करो। देही-अभिमानी भव अथवा आत्म-अभिमानी भव। बाबा सुनाते हैं घड़ी-घड़ी बाप का शुक्रिया करता हूँ। बाबा आपने मुझे अन्धियारे से निकाला है। बाबा के साथ हमारी प्रीत है। और सबकी है विनाश काले विपरीत बुद्धि, वह पूरा वर्सा ले न सके। लौकिक बच्चों की बाप से प्रीत होती है। बाप की मत पर चलते हैं तो बाप भी राज़ी होते हैं। अगर बच्चा मत पर नहीं चलता, तो बाप राज़ी नहीं रहता, जो मत पर न चले वह कपूत ठहरा। तो बेहद का बाप भी कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म भस्म होते जायेंगे। मेरे बने हो तो कोई भी पाप कर्म, कर्मेन्द्रियों से नहीं करना। कभी श्रीमत का उल्लंघन नहीं करना। बाप तुम्हें पुजारी से पूज्य बना रहे हैं तो बाप का कितना शुक्रिया मानना चाहिए। उनकी मत पर नहीं चलेंगे तो जन्म-जन्मान्तर के लिए पद भ्रष्ट कर देंगे। भल हम यहाँ भ्रष्ट मूत पलीती को कहते हैं। परन्तु वहाँ कम पद को भ्रष्ट पद कहते हैं। बाप कहते हैं, अच्छी रीति प्रीत लगाओ। जैसे स्त्री पति को याद करती है वैसे तुम मुझे याद करो। मेरी श्रीमत पर चलो। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख न दो। मन में भी किसी के लिए घृणा नहीं रखना। हर आत्मा अपना पार्ट बजा रही है।

तुम जानते हो अभी का यह जन्म भविष्य के जन्म से भी ऊंच हैं। यहाँ हम ईश्वरीय औलाद बने हैं। सतयुग में दैवी औलाद होंगे। यहाँ की महिमा जास्ती है। जगदम्बा से 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी से क्या मिलता है? इन बातों को नया कोई समझ न सके। आते तो बहुत हैं परन्तु जिनको निश्चय नहीं, वह ठहर न सकें। बाबा मम्मा बच्चों के मित्र सम्बन्धी आते तो बहुत हैं अथवा आफीसर्स आदि आते हैं, तो एलाउ किया जाता है। कहाँ तीर लग जाये, बिचारों का कल्याण हो जाए। झट पता लग जाता है कि ईश्वरीय कुल का है वा आसुरी कुल का है। प्रीत लगती है वा नहीं। आते यहाँ बहुत हैं, ठीक हो जाते हैं फिर बाहर जाकर कुसंग में अथवा माया के संग में विकारी बन जाते हैं। लिखते हैं हमने हार खाई। लेकिन अगर न बतायें तो और वृद्धि होती जायेगी। तुम्हारी अब प्रीत बुद्धि है - बाप के साथ। हाँ तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार प्रीत बुद्धि हैं। शिवबाबा बच्चों को समझाते हैं, कभी भी कोई विकर्म नहीं करना, श्रीमत पर चलना। बाबा के बने हो तो तुम्हारी चलन भी ऐसी होनी चाहिए। बाबा को पूरा मालूम होना चाहिए। बाबा मुक्ति-जीवनमुक्ति, विश्व की बादशाही देते हैं और बच्चों के पास क्या है, वह बाप को पता नहीं है। बाप के पास तो पूरा पोतामेल आना चाहिए। मेरे को देने से तुम्हारा नुकसान नहीं होगा। वह तो सब पैसे आदि अपने काम में ले लेते हैं, मैं तो हूँ निराकार। तुम बच्चों के ही काम में लगाता हूँ। जैसे गाँधी जी देश के काम में लगाते थे, इसलिए उनका नाम बाला है। बरोबर गांधी ने कांग्रेस राज्य स्थापन किया। नहीं तो यहाँ राजाओं का राज्य था। अभी बाप फिर से नई राजधानी, रामराज्य स्थापन कर रहे हैं - यह बात सभी बच्चों की बुद्धि में बैठती नहीं है, अगर बैठे तो खुशी का पारा भी चढ़े। बाबा के साथ योग लगाते रहें। बाबा कहते हैं परमधाम में रहने वाले बाप को वहाँ याद करो, जहाँ जाना है। अब ड्रामा पूरा होना है। ड्रामा को कोई जानते ही नहीं। न कोई की मेरे साथ प्रीत है। कहते हैं हम परम्परा से गंगा स्नान करते आये हैं। क्या सतयुग में भी करते थे? परम्परा का भी अर्थ नहीं समझते हैं। बाबा कहते हैं अब तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं। तुम्हारी बुद्धि में धीरज है। कोई तो कुछ भी समझते नहीं हैं। यहाँ से समझकर जब बाहर जाते हैं तो माया सारा ही खा जाती है। जैसे मक्खी मरती है तो चींटियाँ सारा उनको हप कर लेती हैं। यहाँ भी मरते हैं तो चीटिंयाँ लेकर सारा हप कर लेती हैं। माया भी बलवान है, कम नहीं है। बड़ी लड़ाई लगती है। यहाँ रहते भी क्लास में नहीं आते हैं तो समझा जाता है यह स्वर्ग के मालिक नहीं बन सकते। कृष्णपुरी में जा न सकें। कुछ भी वैल्यु नहीं। तुम जो हीरे जैसे बनते हो उन्हों की ही वैल्यु है। तुम जानते हो हम वर्थ पाउण्ड बन रहे हैं। एक घर में एक हंस, एक बगुला होगा तो खिटपिट जरूर चलेगी। यहाँ तो बगुले से किनारा होता है। मूत पलीती के हाथ का तुम खा भी नहीं सकते हो। परन्तु बच्चों का बाप से इतना लव तो है नहीं, इसलिए सोचते हैं कि पेट कहाँ से भरेगा। अरे भील लोग कहाँ से खाते हैं। आजकल तो कोई कफनी पहन ले तो मुफ्त में पैसे मिलते रहते हैं। सब पाँव पड़ते रहते हैं, जो आयेगा मूर्ति के आगे पैसा रखता जायेगा, बहुत इज़ी। यह दुनिया ही ऐसी है। बच्चों को ख्याल करना चाहिए। यह दुनिया जल्दी खलास हो तो स्वर्ग में जायें, परन्तु लायक भी बनें ना। पद भी पाना है ना। वहाँ भी पोजीशन का फ़र्क रहता है। पढ़ाने वाला एक ही है। कोई राजा रानी, कोई नौकर चाकर, कोई साहूकार प्रजा। राजधानी स्थापन हो रही है और धर्म स्थापक राजाई नहीं स्थापन करते हैं इसलिए बाबा कहते हैं खबरदार रहो। विनाश काले पूरी प्रीत बुद्धि चाहिए। जितनी प्रीत होगी उतना बाप से वर्सा लेंगे। याद करने का भी सिखाया जाता है। बाबा बतलाते हैं, बाबा को और चक्र को याद करो। स्वर्दशन चक्र फिराओ। हम लाइट हाउस हैं, खिवैया हमारी नईया को पार ले जाता है। एक ऑख में शान्तिधाम, एक ऑख में सुखधाम रखना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर एक पार्टधारी के पार्ट को देखते हुए, किसी से भी घृणा नहीं करना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है।

2) बाप को अपना पूरा पोतामेल देना है। विनाश काले पूरा प्रीत बुद्धि बनना है। श्रीमत पर अपनी चलन श्रेष्ठ बनानी है। कुसंग से सम्भाल करनी है।

वरदान:-
सूक्ष्म पापों से मुक्त बन सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

कई बच्चे वर्तमान समय कर्मो की गति के ज्ञान में बहुत इजी हो गये हैं इसलिए छोटे-छोंटे पाप होते रहते हैं। कर्म फिलासाफी का सिद्धान्त है - यदि आप किसी की ग्लानी करते हो, किसी की गलती (बुराई) को फैलाते हो या किसी के साथ हाँ में हाँ भी मिलाते हो तो यह भी पाप के भागी बनते हो। आज आप किसी की ग्लानी करते हो तो कल वह आपकी दुगुनी ग्लानी करेगा। यह छोटे-छोटे पाप सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करने में विघ्न रूप बनते हैं इसलिए कर्मो की गति को जानकर पापों से मुक्त बन सिद्धि स्वरूप बनो।

स्लोगन:-
आदि पिता के समान बनने के लिए शक्ति, शान्ति और सर्वगुणों के स्तम्भ बनो।

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

“निराकारी दुनिया अर्थात् आत्माओं के रहने का स्थान''

जब हम निराकारी दुनिया कहते हैं तो निराकार का अर्थ यह नहीं कि उनका कोई आकार नहीं है, परन्तु कोई दुनिया जरूर है, उसका स्थूल सृष्टि मुआफिक आकार नहीं है, जैसे परमात्मा निराकार है लेकिन उनका अपना सूक्ष्म रूप अवश्य है। हम आत्मा और परमात्मा का धाम निराकारी दुनिया है। तो जब हम दुनिया अक्षर कहते हैं, तो इससे सिद्ध है वो दुनिया है और वहाँ कोई रहता है तभी तो दुनिया नाम पड़ा है। अब दुनियावी लोग तो समझते हैं परमात्मा का रूप भी अखण्ड ज्योति तत्व है, लेकिन वह तो परमात्मा के रहने का ठिकाना है, जिसको रिटायर्ड होम कहते हैं। तो हम परमात्मा के घर को परमात्मा नहीं कह सकते हैं। अब दूसरी है आकारी दुनिया, जहाँ ब्रह्मा विष्णु शंकर देवतायें आकारी रूप में रहते हैं और यह है साकारी दुनिया, जिनके दो भाग हैं - एक है निर्विकारी स्वर्ग की दुनिया जहाँ आधाकल्प सदा पवित्रता सुख और शान्ति है। दूसरी है विकारी कलियुगी दु:ख और अशान्ति की दुनिया। अब यह दो दुनियायें क्यों कहते हैं? क्योंकि यह जो मनुष्य कहते हैं स्वर्ग और नर्क दोनों परमात्मा की रची हुई दुनिया है, इस पर परमात्मा के महावाक्य हैं बच्चे, मैंने कोई दु:ख की दुनिया नहीं रची, जो मैंने दुनिया रची है वो सुख की रची है। अब यह जो दु:ख और अशान्ति की दुनिया है, वो मनुष्य आत्मायें अपने आपको और मुझ परमात्मा को भूलने के कारण यह हिसाब-किताब भोग रहे हैं। बाकी ऐसे नहीं जिस समय सुख और पुण्य की दुनिया है, वहाँ कोई सृष्टि नहीं चलती। हाँ, अवश्य जब हम कहते हैं कि वहाँ देवताओं का निवास स्थान था, तो जरूर वहाँ प्रवृत्ति चलती थी परन्तु विकारी पैदाइस नहीं थी, जिस कारण कोई कर्म-बन्धन नहीं था। उस दुनिया को कर्मबन्धन रहित स्वर्ग की दुनिया कहते हैं। तो एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है आकारी दुनिया, तीसरी है साकारी दुनिया।

“भगवान के आने का अनादि रचा हुआ प्रोग्राम''

यह जो मनुष्य गीत गाते हैं ओ गीता के भगवान अपना वचन निभाने आ जाओ। अब वो स्वयं गीता का भगवान अपना कल्प पहले वाला वचन पालन करने के लिये आये हैं और कहते हैं हे बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ, अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ। सभी युगों में तो कोई धर्म ग्लानि नहीं होती, धर्म ग्लानि होती ही है कलियुग में, तो मानो परमात्मा कलियुग के समय आता है। और कलियुग फिर कल्प कल्प आता है तो जरूर वह कल्प-कल्प आता है। कल्प में फिर चार युग हैं, उसको ही कल्प कहते हैं। आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरुरत नहीं। और द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरुआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है, इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है। उसी समय परमात्मा आए अधर्म विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करते हैं। अगर द्वापर में आया हुआ होता तो फिर द्वापर के बाद सतयुग होना चाहिए फिर कलियुग क्यों? ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा ने घोर कलियुग की स्थापना की, अब यह तो बात नहीं हो सकती इसलिए परमात्मा कहते हैं मैं एक हूँ और एक ही बार आए अधर्म का विनाश कर कलियुग का विनाश कर सतयुग की स्थापना करता हूँ तो मेरे आने का समय संगमयुग है। अच्छा - ओम् शान्ति।