25-12-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – जब तक जीना है बाप को याद करना है, याद से
ही आयु बढ़ेगी, पढ़ाई का तन्त (सार) ही है याद”
प्रश्नः-
तुम बच्चों का
अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है, क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि
तुम सदा ही बाबा की याद में खुशियाँ मनाते हो, अभी तुम्हारी सदा ही क्रिसमस है।
तुम्हें भगवान पढ़ाते हैं, इससे बड़ी खुशी और क्या होगी, यह रोज़ की खुशी है इसलिए
तुम्हारा ही अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है।
गीत:-
नयन हीन को राह दिखाओ
प्रभू……..
ओम् शान्ति।
ज्ञान का तीसरा नेत्र
देने वाला रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र सिवाए बाप
के कोई दे नहीं सकता। तो अभी बच्चों को ज्ञान का नेत्र मिला है। अभी बाप ने समझाया
है कि भक्ति मार्ग है ही अन्धियारा मार्ग। जैसे रात में सोझरा नहीं होता है तो
मनुष्य धक्के खाते हैं। गाया भी जाता है ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन। सतयुग में
यह नहीं कहेंगे कि हमको राह बताओ क्योंकि अभी तुमको राह मिल रही है। बाप आकरके
मुक्तिधाम और जीवनमुक्ति धाम की राह बता रहे हैं। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। अभी
जानते हो कि बाकी थोड़ा समय है, दुनिया तो बदलने वाली है। यह तो गीत भी बने हुए हैं
दुनिया बदलने वाली है…. परन्तु मनुष्य बिचारे जानते नहीं हैं कि दुनिया कब बदलनी
है, कैसे बदलनी है, कौन बदलाते हैं क्योंकि तीसरा नेत्र तो ज्ञान का है नहीं। अभी
तुम बच्चों को यह तीसरा नेत्र मिला है जिससे तुम इस सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त
को जान गये हो। और यही तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान की सैक्रीन है। जैसे थोड़ी-सी
सैक्रीन बहुत मीठी होती है वैसे यह ज्ञान के दो अक्षर ‘मनमनाभव….’ यही सबसे मीठी
चीज़ है, बस बाप को याद करो।
बाप आते हैं और आकरके
रास्ता बताते हैं। कहाँ का रास्ता बताते हैं? शान्तिधाम और सुखधाम का। तो बच्चों को
खुशी होती है। दुनिया नहीं जानती है कि खुशियाँ कब मनाई जाती हैं? खुशियाँ तो नई
दुनिया में मनाई जायेंगी ना। यह तो बिल्कुल कॉमन बात है कि पुरानी दुनिया में खुशियाँ
कहाँ से आई? पुरानी दुनिया में मनुष्य त्राहि-त्राहि कर रहे हैं क्योंकि तमोप्रधान
हैं। तमोप्रधान दुनिया में खुशियाँ कहाँ से आई? सतयुग का ज्ञान तो कोई में भी नहीं
है, इसलिए बिचारे यहाँ खुशियां मनाते रहते हैं। देखो, क्रिसमस की खुशियां भी कितनी
मनाते हैं। बाबा तो कहते हैं कि अगर खुशियों की बात पूछनी हो तो गोप-गोपियों से (मेरे
बच्चों से) पूछो क्योंकि बाप बहुत सहज रास्ता बता रहे हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते
हुए, अपने धन्धेधोरी का कर्तव्य करते हुए कमल फूल के समान रहो और मुझे याद करो। जैसे
आशिक-माशूक होते हैं ना, वह भी धन्धाधोरी करते एक-दो को याद करते रहते हैं। उनको
साक्षात्कार भी होते हैं जैसे लैला-मजनू, हीरा-रांझा, वो विकार के लिए एक-दो के
आशिक नहीं होते हैं। उनका प्यार गाया हुआ है। उसमें एक-दो के आशिक होते हैं। लेकिन
यहाँ वह बात नहीं है। यहाँ तो तुम जन्म-जन्मान्तर उस माशूक के आशिक ही रहे हो। वह
माशूक तुम्हारा आशिक नहीं है। तुम उनको बुलाते हो यहाँ आने के लिए, हे भगवान नयन
हीन को आकरके राह बताओ। तुमने आधाकल्प बुलाया है। जब दु:ख ज्यादा होता है तो जास्ती
बुलाते हैं। जास्ती दु:ख में जास्ती सिमरण करने वाले भी होते हैं। देखो, अभी कितने
याद करने वाले ढेर के ढेर हैं। गाया हुआ है ना – दु:ख में सिमरण सब करें…… जितना
देरी होती जाती है, उतना तमोप्रधान ज्यादा होते जाते हैं। तो तुम चढ़ रहे हो, वह और
ही उतर रहे हैं क्योंकि जब तक विनाश हो तब तक तमोप्रधानता वृद्धि को पाती रहती है।
दिन-प्रतिदिन माया भी तमोप्रधान, वृद्धि को पाती जाती है। इस समय बाप भी
सर्वशक्तिमान् है, तो माया भी फिर सर्वशक्तिमान् इस समय में है। वह भी जबरदस्त है।
तुम बच्चे इस समय
ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण हो। तुम्हारा है सर्वोत्तम कुल, इसको कहा
जाता है ऊंच ते ऊंच कुल। इस समय तुम्हारा यह जीवन अमूल्य है इसलिए इस जीवन की (शरीर
की) सम्भाल भी करनी चाहिए क्योंकि पांच विकारों के कारण शरीर की भी आयु तो कमती होती
जाती है ना। तो बाबा कहते हैं इस समय पांच विकारों को छोड़कर योग में रहो तो आयु
बढ़ती रहेगी। आयु बढ़ते-बढ़ते भविष्य में तुम्हारी आयु 150 वर्ष की हो जायेगी। अभी
नहीं इसलिए बाप कहते हैं कि इस शरीर की भी बहुत सम्भाल रखनी चाहिए। नहीं तो कहते
हैं यह शरीर काम का नहीं है, मिट्टी का पुतला है। अभी तुम बच्चों को समझ मिलती है
कि जब तक जीना है बाबा को याद करना है। आत्मा बाबा को याद करती है – क्यों? वर्से
के लिए। बाप कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करो और दैवी गुण धारण करो
तो तुम फिर ऐसे बन जायेंगे। तो बच्चों को पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी चाहिए। पढ़ाई में
सुस्ती आदि नहीं करनी चाहिए नहीं तो नापास हो जायेंगे। बहुत कम पद पायेंगे। पढ़ाई
में भी मुख्य बात यह है जिसको तन्त कहा जाता है कि बाप को याद करो। जब प्रदर्शनी
में या सेन्टर पर कोई भी आते हैं तो उनको पहले-पहले यह समझाओ कि बाबा को याद करो
क्योंकि वह ऊंच ते ऊंच है। तो ऊंचे ते ऊंचे को ही याद करना चाहिए, उनसे कम को
थोड़ेही याद करना चाहिए। कहते हैं ऊंचे से ऊंचा भगवान। भगवान ही तो नई दुनिया की
स्थापना करने वाले हैं। देखो, बाप भी कहते हैं नई दुनिया की स्थापना मैं करता हूँ
इसलिए तुम मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायें। तो यह पक्का याद कर लो क्योंकि
बाप पतित-पावन है ना। वह यही कहते हैं कि जब तुम मुझे पतित-पावन कहते हो तो तुम
तमोप्रधान हो, बहुत पतित हो, अभी तुम पावन बनो।
बाप आकरके बच्चों को
समझाते हैं कि तुम्हारे अभी सुख के दिन आने वाले हैं, दु:ख के दिन पूरे हुए हैं,
पुकारते भी हो – हे दु:ख हर्ता, सुख दाता। तो जानते तो हो ना कि बरोबर सतयुग में सब
सुखी ही सुखी हैं। तो बाप बच्चों को कहते हैं कि सभी शान्तिधाम और सुखधाम को याद
करते रहो। यह है संगमयुग, खिवैया तुमको पार ले जाते हैं। बाकी इसमें कोई खिवैया या
नईया की बात है नहीं। यह तो महिमा कर देते हैं कि नईया को पार लगाओ। अब एक की नईया
तो पार नहीं लगनी है ना। सारे दुनिया की नईया को पार लगाना है। यह सारी दुनिया जैसे
एक बहुत बड़ा जहाज है इनको पार लगाते हैं। तो तुम बच्चों को बहुत खुशी मनानी चाहिए
क्योंकि तुम्हारे लिए सदैव खुशी है, सदैव क्रिसमस है। जब से तुम बच्चों को बाप मिला
है तुम्हारी क्रिसमस सदैव है इसलिए अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है। देखो, यह सदैव खुश
रहते हैं, क्यों? अरे बेहद का बाप मिला है! वह हमको पढ़ा रहे हैं। तो यह रोज़ की
खुशी होनी चाहिए ना। बेहद का बाप पढ़ा रहे हैं वाह! कभी कोई ने सुना? गीता में भी
भगवानुवाच है कि मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, जैसे वह लोग बैरिस्टरी योग, सर्जनरी
योग सिखलाते हैं, मैं तुम रूहानी बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ। तुम यहाँ आते हो तो
बरोबर राजयोग सीखने आते हो ना। मूंझने की तो दरकार नहीं। तो राजयोग सीखकर पूरा करना
चाहिए ना। भागन्ती तो नहीं होना चाहिए। पढ़ना भी है तो धारणा भी अच्छी करनी है।
टीचर पढ़ाते हैं धारणा करने के लिए।
हर एक की अपनी-अपनी
बुद्धि होती है – किसकी उत्तम, किसकी मध्यम, किसकी कनिष्ट। तो अपने से पूछना चाहिए
कि मैं उत्तम हूँ, मध्यम हूँ या कनिष्ट हूँ? अपने को आपेही परखना चाहिए कि मैं ऐसे
ऊंचे ते ऊंचा इम्तहान पास करके ऊंच पद पाने के लायक हूँ? मैं सर्विस करता हूँ? बाप
कहते हैं – बच्चे, सर्विसएबुल बनो, बाबा को फालो करो क्योंकि मैं भी तो सर्विस करता
हूँ ना। आया ही हूँ सर्विस करने के लिए और रोज़-रोज़ सर्विस करता हूँ क्योंकि रथ भी
तो लिया है ना। रथ भी मज़बूत, अच्छा है और सर्विस तो इनकी सदैव है। बापदादा तो इनके
रथ में सदैव है। भले इनका शरीर बीमार पड़ जाये, मैं तो बैठा हूँ ना। तो मैं इनके
अन्दर में बैठ करके लिखता भी हूँ, अगर यह मुख से नहीं भी बोल सके तो मैं लिख सकता
हूँ। मुरली नहीं मिस होती है। जब तक बैठ सके, लिख सकें, तो मैं मुरली भी बजाता हूँ,
बच्चों को लिखकरके भेज देता हूँ क्योंकि सर्विसएबुल हूँ ना। तो बाप आकरके समझाते
हैं कि तुम अपने को आत्मा समझ करके निश्चयबुद्धि होकरके सर्विस में लग जाओ। बाप की
सर्विस, ऑन गॉड फादरली सर्विस। जैसे वह लिखते हैं ऑन हिज़ मैजिस्टी सर्विस। तो तुम
क्या कहेंगे? यह मैजिस्टी से भी ऊंची सर्विस है क्योंकि मैजिस्टी (महाराजा) बनाते
हैं। यह भी तुम समझ सकते हो कि बरोबर हम वर्ल्ड का मालिक बनते हैं।
तुम बच्चों में जो
अच्छी रीति पुरूषार्थ करते हैं उनको ही महावीर कहा जाता है। तो यह जांच करनी होती
है कि कौन महावीर हैं जो बाबा के डायरेक्शन पर चलते हैं। बाप समझाते हैं कि बच्चे
अपने को आत्मा समझो, भाई-भाई को देखो। बाप अपने को भाइयों का बाप समझते हैं और भाइयों
को ही देखते हैं। सभी को तो नहीं देखेंगे। यह तो ज्ञान है कि शरीर बिगर तो कोई सुन
न सके, बोल न सके। तुम तो जानते हो ना कि मैं भी यहाँ शरीर में आया हूँ। मैंने यह
शरीर लोन लिया हुआ है। शरीर तो सबको है, शरीर के साथ ही आत्मा यहाँ पढ़ रही है। तो
अभी आत्माओं को समझना चाहिए कि बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। बाबा की बैठक कहाँ है? अकाल
तख्त पर। बाबा ने समझाया है कि हर एक आत्मा अकाल मूर्त है, वह कभी विनाश नहीं होती
है, कभी भी जलती, कटती, डूबती नहीं है। छोटी-बड़ी नहीं होती है। शरीर छोटा-बड़ा होता
है। तो दुनिया में जो भी मनुष्य मात्र हैं, उनमें जो आत्मायें हैं उनका तख्त यह
भ्रकुटी है। शरीर भिन्न-भिन्न हैं। किसका अकाल तख्त पुरूष का, किसका स्त्री का,
किसका बच्चे का। तो जब भी किससे बात करो तो यही समझो कि हम आत्मा हैं, अपने भाई से
बात करते हैं। बाप का पैगाम देते हैं कि शिवबाबा को याद करो तो यह जो जंक लगी हुई
है वह निकल जाये। जैसे सोने में अलाए पड़ती है तो वैल्यु कम होती है तो तुम्हारी भी
वैल्यु कम हो गई है। अभी बिल्कुल ही वैल्यु लेस हो गये हैं। इसको देवाला भी कहा जाता
है। भारत कितना धनवान था, अभी कर्जा उठाते रहते हैं। विनाश में तो सबका पैसा खत्म
हो जायेगा। देने वाले, लेने वाले सभी खत्म हो जायेंगे बाकी जो अविनाशी ज्ञान रत्न
लेने वाले हैं वह फिर आकर अपना भाग्य लेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप को फालो कर बाबा के समान सर्विसएबुल बनना है। अपने को आपेही परखना
है कि मैं ऊंचे से ऊंचा इम्तहान पास करके ऊंच पद पाने के लायक हूँ?
2) बाबा के डायरेक्शन पर चलकर महावीर बनना है, जैसे बाबा आत्माओं को देखते हैं,
आत्माओं को पढ़ाते हैं, ऐसे आत्मा भाई-भाई को देखकर बात करनी है।
वरदान:-
प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ देने
वाले धर्मयुद्ध में विजयी भव
अभी धर्म युद्ध की स्टेज पर आना है। उस धर्म युद्ध में
विजयी बनने का साधन है आपकी प्रैक्टिकल जीवन, क्योंकि परमात्म ज्ञान का प्रूफ ही
प्रैक्टिकल जीवन है। आपकी मूर्त से ज्ञान और गुण प्रैक्टिकल में दिखाई दें क्योंकि
आजकल डिसकस करने से अपनी मूर्त को सिद्ध नहीं कर सकते लेकिन अपनी प्रैक्टिकल धारणा
मूर्त से एक सेकण्ड में किसी को भी शान्त करा सकते हो।
स्लोगन:-
आत्मा
को उज्जवल बनाने के लिए परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त करो।