12-05-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 02-02-76 मधुबन
भक्तों और पाण्डवों का पोतामेल
आज बाप-दादा अपने तीन प्रकार के बच्चों का पोतामेल देख रहे थे। तीन प्रकार कौन-से? एक - मुख-वंशावली ब्राह्मण जो बाप-दादा के साथ-साथ नयी दुनिया की स्थापना के कार्य में सहयोगी हैं। दूसरे - बाप-दादा के, ब्राह्मणों के सुमिरण में व पुकारने में सदा मस्त रहने वाले भक्त। तीसरे - पुरानी दुनिया के परिवर्तन करने अर्थ निमित्त बने हुए यादव। इन तीनों के सम्बन्ध से स्थापना का कार्य सम्पन्न होना है। इसलिये तीनों के कार्य का पोतामेल देख रहे थे। तो क्या देखा? कार्य-अर्थ निमित्त बने हुए तीनों प्रकार के बच्चे अपने-अपने कार्य में लगे हुए तो ज़रूर है लेकिन तीनों ही कार्यकर्त्ताओं के कार्य में जब तक तीव्रता में अति नहीं हुई है तब तक अन्त नहीं हो सकता। क्योंकि अन्त की निशानी अति है। तीनों में ही कार्य का फोर्स है, लेकिन फुल फोर्स ही कार्य के कोर्स को समाप्त करेगा।
भक्तों के पोतामेल में भक्ति के अल्पकाल का फल जो भक्तों को प्राप्त होता है उसमें देखा कि 75% भक्त सिर्फ अपने नाम, मान और शान प्रति स्वार्थ स्वरूप के भक्त हैं। इसलिये उनके कर्म के फल का खाता समाप्त हुआ पड़ा है। बाप को फल देने की आवश्यकता नहीं। बाकी 25% भक्त नम्बरवार लगन प्रमाण भक्ति कर रहे हैं। उनकी भक्ति का फल इसी पुरानी दुनिया में प्राप्त होना है क्योंकि भक्ति का खाता अब आधा कल्प के लिए समाप्त होना है। उसकी गतिविधि क्या देखी कि भक्तों को भी अपनी भक्ति का फल - अभी-अभी किया, अभी-अभी मिला। अर्थात् अल्पकाल की लगन का फल अभी ही अल्पकाल में प्राप्त हो जाता है, भविष्य जमा नहीं होता। भक्तों की प्राप्ति का रूप ऐसे है कि जैसे बारिश के मौसम में चींटियों को पंख लग जाते हैं और वे बहुत खुशी में उड़ने लग जाती हैं। लेकिन वह अल्पकाल की उड़ान उसी सीज़न में ही उनको समाप्त कर देती है। वहाँ ही प्राप्ति और वहाँ ही समाप्ति। वैसे ही अब के भक्त अर्थात् कलियुगी तमोप्रधान भक्त अल्पकाल के फल की प्राप्ति में खुश हो जाने वाले हैं। इसलिये उनके फल की प्राप्ति का कार्य ड्रामा अनुसार जैसे समाप्त हुआ ही पड़ा है। सिर्फ 5% प्राप्ति का कार्य अब रहा हुआ है, जो अब अति अर्थात् फुल फोर्स से चिल्लायेंगे। उसमें भी विशेष शक्तियों को पुकारेंगे कि - ‘‘वरदान दो, शक्ति दो, साहस और हिम्मत दो।’’ अभी यह अति में जाकर फिर समाप्त होने वाला है। तो भक्तों के पोतामेल का रजिस्टर समाप्त हुआ ही पड़ा है। जो थोड़ा-बहुत रहा है वह अभी-अभी कर्म और अभी-अभी फल के रूप में समाप्त हो जावेगा। यह था भक्तों का समाचार।
दूसरा - यादव-सेना का समाचार। उनके पोतामेल में क्या देखा? हर कदम पर उनके क्वेश्चन-मार्क्स देखे। स्पीड तेज करने के बहुत चात्रक देखे। लेकिन जितना स्पीड को तेज करते, उतना ही क्वेश्चन-मार्क की दीवार बार-बार आने के कारण स्पीड को तीव्र नहीं कर पाते। क्वेश्चन मार्क्स कौन-से? एक तो आरम्भ कौन करे - मैं करूँ या वह करे? दूसरा - अब करें या कब करें? तीसरा- इसकी रिजल्ट क्या होगी? कभी क्रोध-अग्नि प्रज्वलित होती, कभी फिर ‘क्या होगा’ का संकल्प रूपी पानी छींटे समान अग्नि शीतल कर देता है। चौथा क्वेश्चन यह सब कराने वाला कौन, प्रेरक कौन? इसमें कन्फ्यूज़ हो जाते। उनकी गतिविधि क्या देखी? अपने आप को ही नहीं समझ रहे हैं। होश और जोश - इसी दुविधा में हैं। इसलिये स्वयं से ही परेशान हो जाते हैं। एकान्तवासी बनना चाहते, लेकिन बुद्धि एकाग्र नहीं होती। इसलिये बार-बार जोश में आ जाते। बहुत तेजी से प्लैन बनाते, फुल तैयारी भी कर लेते, समय, सेना, शस्त्र और स्थान सब सेट कर लेते हैं, ऐसे ही समझते कि अभी हुआ कि हुआ। बहुत फास्ट तैयारी में रहते। लेकिन लास्ट प्रैक्टिकल के समय में कन्फ्यूज्ड रूपी सिग्नल लग जाता। इसलिये उनकी तैयारी में सिर्फ प्रेरक की प्रेरणा के एक सेकेण्ड का फर्क है। इन्तज़ाम है लेकिन उस सेकेण्ड की प्रेरणा के इन्तज़ार में हैं। उनकी गतिविधि सेकेण्ड तक पहुँची है। इन्तज़ाम समाप्त कर इन्तज़ार कर रहे हैं। तो उनका पोतामेल सम्पन्न तैयारियों का देखा। अब सिर्फ एक कार्य में लगे हुए हैं - रिफाइन है लेकिन अपने विवेक द्वारा अपनी तैयारी को फाइनल कर रहे हैं। फाइनल करने की एक फाइल अभी रही हुई है। यह था यादवों का समाचार। अभी अपना सुनने की इच्छा है?
प्रेरणा लेने वाले तो तैयार हैं लेकिन प्रेरणा देने वालों का क्या हाल है? वैसे कहावत है - ‘देने वाला दे, लेने वाला थक जाये।’ लेकिन इस बात में लेने वाले, न मिलने के कारण थक रहे हैं। लेने वाले लेने के लिए तैयार हैं और देने वाले स्वयं में ही अब तक लगे हुये हैं। तो ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राह्मणों का पोतामेल क्या हुआ है? वो जानते होया सुनायें? ब्राह्मणों के रजिस्टर में विशेषता क्या देखी? विश्व-परिवर्तन व विश्व-कल्याण की शुभ भावना मैजॉरिटी के पास इमर्ज है, लेकिन चलते-चलते जैसे यादवों की स्पीड क्वेश्चन-मार्क्स के कारण तीव्र नहीं होती, ऐसे ब्राह्मणों की श्रेष्ठ भावना का प्रत्यक्ष फल प्राप्त होने वाला ही होता है तो बीच में कोई-न-कोई रॉयल रूप की कामना शुभ कामना को मर्ज कर देती है। तो ब्राह्मणों की गतिविधि में शुभ भावना और रॉयल रूप की कामना - इन दोनों की कलाबाज़ी चल रही है। जैसे पके हुये फल को पंछी समाप्त कर देते हैं वैसे भावना के प्राप्त हुये फल को कामना रूपी पंछी समाप्त कर देता है। तो ब्राह्मणों के परिवर्तन करने की विधि सिद्धि-स्वरूप न बनने का कारण भावना बदल ‘कामना’ हो जाना है। इसलिये पुरूषार्थ ज्वाला रूप में नहीं होता है। ब्राह्मणों का ज्वाला-रूप विनाशज्वाला को प्रज्वलित करेगा। इसलिये ब्राह्मणों के पोतामेल में अब लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थ ज्वाला-रूप का ही रहा हुआ है। यादवों का कार्य जैसे सम्पन्न हुआ ही पड़ा है, पाण्डवों का कार्य सम्पन्न होने वाला है। पाण्डवों के कारण यादव रूके हुए हैं। पाण्डवों की श्रेष्ठ शान, रूहानी शान की स्थिति यादवों के परेशानी वाली परिस्थिति को समाप्त करेगी। तो अपनी शान से परेशान आत्माओं को शान्ति और चैन का वरदान दो। समझा? तीनों का पोतामेल सुना? अच्छा!
ऐसे ज्वाला-स्वरूप सर्व विनाशी कामनाओं को श्रेष्ठ और शुभ भावना में परिवर्तन करने वाले, भक्तों के अल्पकाल के अन्तिम फल महादानी, वरदानी रूप में देने वाले दाता और वरदाता बाप समान सदा देने वाले और सर्व की मनोकामनाओं को सम्पन्न करने वाले सम्पूर्ण फरिश्ता आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात
बाप-स्नेही बनने की निशानी- फरिश्ता-स्वरूप बनना
सदा अपना फ्युचर सामने रहता है? जितना निमित्त बनी हुई आत्मायें अपने फ्युचर को सदा सामने रखेंगी, उतना अन्य आत्माओं को भी अपना फ्युचर बनाने की प्रेरणा दे सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट नहीं तो दूसरों को भी स्पष्ट बनाने का रास्ता नहीं बता सकेंगी। अपना फ्युचर स्पष्ट है? महाराजा या महारानी - जो भी बने, लेकिन उससे पहले अपना भविष्य फरिश्तेपन का, कर्मातीत अवस्था का - वह सामने स्पष्ट आता है? ऐसा अनुभव होता है कि मैं हर कल्प में फरिश्ते स्वरूप में ये पार्ट बजा चुकी हूँ और अभी बजाना है? वो झलक सामने आती है। जैसे दर्पण में अपने स्वरूप की झलक देखते हो, ऐसे नॉलेज के दर्पण में अपने पुरूषार्थ से फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है? जब तक फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई नहीं देगी, तब तक भविष्य भी स्पष्ट नहीं होगा। यह संकल्प आता ही रहेगा कि शायद मैं ये बनूँ या वो बनूँ? लेकिन फरिश्तेपन की झलक स्पष्ट दिखाई देगी तो वह भी स्पष्ट दिखाई देगी। तो वह दिखाई देता है या अभी घूँघट में है? जैसे चित्र का अनावरण कराते; हो तो अपने फरिश्ते स्वरूप का अनावरण कब करेंगे? आपेही करेंगे या चीफ गेस्ट को बुलायेंगे? यह पुरूषार्थ की कमजोरी का पर्दा हटाओ तो स्पष्ट फरिश्ता रूप हो जायेगा।
अभी तो चलते-फिरते ऐसे अनुभव होना चाहिये जैसे साकार को देखा - चलते-फिरते या तो फरिश्ते रूप का या भविष्य रूप का अनुभव होता था, तभी तो औरों को भी होता था। मैं टीचर हूँ, मैं सेवाधारी हूँ - यह तो जैसा समय, वैसा स्वरूप हो जाता है। अब स्वयं को फरिश्ते रूप में अनुभव करो तो साक्षात्कार होगा। साक्षात्कार का रूप कौन-सा है? फरिश्ता रूप बनना। चलते फिरते ‘फरिश्ता स्वरूप’। अगर साक्षात् फरिश्ते नहीं बनेंगे तो साक्षात्कार कैसे करा सकेंगे? तो टीचर्स के लिये अब विशेष पुरूषार्थ कौन-सा है? यही कि फरिश्ता इस साकार सृष्टि पर आया हूँ सेवा अर्थ। फरिश्ते प्रकट होते हैं, फिर समा जाते हैं। फरिश्ते सदा इस साकारी सृष्टि पर ठहरते नहीं, कर्म किया और गायब! तो जब ऐसे फरिश्ते होंगे तो इस देह और देह के सम्बन्ध व पुरानी दुनिया में पाँव नहीं टिकेगा। जब कहते हो कि हम बाप के स्नेही हैं; तो बाप सूक्ष्मवतन-वासी और आप सारा दिन स्थूलवतन-वासी, तो स्नेही कैसे? तो सूक्ष्मवतन-वासी फरिश्ते बनो। सर्व आकर्षणों या लगावों के रिश्ते और रास्ते बन्द करो तो कहेंगे कि बाप स्नेही हो। यहाँ होते हुए भी जैसे कि नहीं है - यह है लास्ट स्टेज। विशेष सेवार्थ निमित्त हो, तो पुरूषार्थ में भी विशेष होना चाहिये। जब दूसरों को चलते-फिरते यह अनुभव होगा कि आप लोग फरिश्ते हैं, तो दूसरे भी प्रेरणा ले सकेंगे। अगर साकार सृष्टि की स्मृति से परे हो जाओ तो जो छोटी-छोटी बातों में टाइम वेस्ट करते हो, वह नहीं होगा। तो अब हाई जम्प लगाओ - साकार सृष्टि से एकदम फरिश्तों की दुनिया में व फरिश्ता स्वरूप इसको कहते हैं हाई जम्प। तो छोटी-छोटी बातें शोभेंगी नहीं। तो यह बाप की विशेष सौगात है। सौगात लेना अर्थात् फरिश्ता स्वरूप बनना। तो बाप भी यह फरिश्ता स्वरूप का चित्र सौगात में देते हैं। इस सौगात से पुरानी बातें सब समाप्त हो जायेंगी। क्या और क्यों की रट नहीं लगानी है। निर्णय-शक्ति, परखने की शक्ति, परिवर्तन-शक्ति - जब ये तीनों शक्तियाँ होंगी तो ही एकदूसरे को खुशखबरी सुनायेंगे। अगर खुद में परिवर्तन नहीं तो दूसरों में भी परिवर्तन नहीं ला सकेंगे।
प्रश्न:- किसी भी प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने के लिये विशेष कौन-सी शक्ति की आवश्यकता है?
उत्तर:- परिवर्तन करने की शक्ति। जब तक परिवर्तन करने की शक्ति नहीं होगी, तब तक निर्णय को भी प्रैक्टिकल में नहीं ला सकते हैं। क्योंकि हर स्थान पर, हर स्थिति में, चाहे स्वयं के प्रति व सेवा के प्रति हो, परिवर्तन ज़रूर करना पड़ता है। जैसे सफलतामूर्त्त बनने के लिए संस्कार व स्वभाव परिवर्तन करना पड़ता है, वैसे ही सेवा में अपने विचारों को कहीं-न-कहीं परिवर्तन करना पड़ता है। परिवर्तन-शक्ति वाला कैसी भी परिस्थिति में सफल हो जाता है क्योंकि वह बहुरूपी होता है। प्लैन को सेवा में लायेंगे और प्वाइन्ट्स को प्रैक्टिकल जीवन में लायेंगे - तो दोनों के लिये परिवर्तन करने की शक्ति चाहिये। नॉलेजफुल होने के नाते यह तो निर्णय कर लेते हैं कि ‘ये होना चाहिये’ लेकिन परिवर्तन नहीं होता है। इसका कारण है परिवर्तन-शक्ति की कमी। जिसमें परिवर्तन-शक्ति है, वे सर्व के स्नेही होंगे और सदा सफल भी होंगे। संकल्प में दृढ़ता लाने से प्रत्यक्ष फल निकल आता है। परिवर्तन करके सफल बनना ही है - यह है दृढ़ संकल्प। सफलता सफलता-मूर्तों का आह्वान कर रही है कि सफलता-मूर्त्त आवें तो मैं उनके गले की माला बनूँ। अच्छा! ओम् शान्ति।
वरदान:- श्रेष्ठ कर्म रूपी डाली में लटकने के बजाए उड़ती पंछी बनने वाले हीरो पार्टधारी भव
संगमयुग पर जो श्रेष्ठ कर्म करते हो - यह श्रेष्ठ कर्म हीरे की डाली है। संगमयुग का कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के बंधन में भी फंसना अथवा हद की कामना रखना - यह सोने की जंजीर है। इस सोने की जंजीर अथवा हीरे की डाली में भी लटकना नहीं है क्योंकि बंधन तो बंधन है इसलिए बापदादा सभी उड़ते पंछियों को स्मृति दिलाते हैं कि सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर हीरो पार्टधारी बनो।
स्लोगन:- अन्दर की स्थिति का दर्पण चेहरा है, चेहरा कभी खुश्क न हो, खुशी का हो।