24-10-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 11.11.89 "बापदादा" मधुबन
दिव्यता - संगमयुगी
ब्राह्मणों का श्रृंगार है
आज दिव्य बुद्धि
विधाता, दिव्य दृष्टि दाता अपने दिव्य जन्मधारी, दिव्य आत्माओं को देख रहे हैं।
बापदादा ने हर एक बच्चे को दिव्य जीवन अर्थात् दिव्य संकल्प, दिव्य बोल, दिव्य कर्म
करने वाली दिव्य मूर्तियां बनाया है। दिव्यता आप संगमयुगी बच्चों का श्रेष्ठ
श्रृंगार है। एक है साधारणता, दूसरा है दिव्यता। दिव्यता की निशानी आप सभी जानते
हो। दिव्य-जीवनधारी आत्मा किसी भी आत्मा को अपने दिव्य नयनों द्वारा अर्थात् दृष्टि
द्वारा साधारणता से परे दिव्य अनुभूतियां करायेगी। सामने आने से ही साधारण आत्मा
अपनी साधारणता को भूल जायेगी क्योंकि आजकल के समय अनुसार वर्तमान के साधारण जीवन से
मैजारिटी आत्मायें सन्तुष्ट नहीं हैं। आगे चलकर यह आवाज सुनेंगे कि यह जीवन कोई
जीवन नहीं है, जीवन में कुछ नवीनता चाहिए। “अलौकिकता'' “दिव्यता'' जीवन का विशेष
आधार है - यह अनुभव करेंगे। कुछ चाहिए, कुछ चाहिए - इस ‘चाहिए' की प्यास से चारों
ओर ढूंढेंगे। जैसे स्थूल पानी की प्यास में तड़पता हुआ मानव चारों ओर पानी की बूंद
के लिए तड़पता है, ऐसे दिव्यता की प्यासी आत्माएं चारों ओर अंचली लेने के लिए तड़फती
हुई दिखाई देंगी। तड़पती हुई कहाँ पहुंचेंगी? आप सबके पास। ऐसे दिव्यता के खजाने से
भरपूर बने हो? हर समय दिव्यता अनुभव होती है वा कभी साधारण, कभी दिव्य? जब बाप ने
दिव्य दृष्टि, दिव्य बुद्धि का वरदान दे दिया तो दिव्य बुद्धि में साधारण बातें आ
नहीं सकती। दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण तन से साधारण कर्म कर नहीं सकता। चाहे देखने
में लोगों के लिए साधारण कर्म हो। दूसरों के समान आप सब भी व्यवहार करते हैं,
व्यापार करते हैं वा गवर्मेन्ट की नौकरी करते हैं, मातायें खाना बनाती हैं। देखने
में साधारण कर्म है लेकिन इस साधारण कर्म में भी आपका और लोगों से न्यारा “अलौकिक''
दिव्य कर्म हो। महान अन्तर इसलिए सुनाया कि दिव्य जन्मधारी ब्राह्मण तन से साधारण
कर्म नहीं करते, मन से साधारण संकल्प नहीं कर सकते, धन को साधारण रीति से कार्य में
नहीं लगा सकतेक्योंकि तन, मन और धन - तीनों के ट्रस्टी हो, इसलिए मालिक बाप की
श्रीमत के बिना कार्य में नहीं लगा सकते। हर समय बाप की श्रीमत दिव्य कर्म करने की
मिलती है। इसलिए चेक करो कि सारे दिन में साधारण बोल और कर्म कितना समय रहा और
दिव्य अलौकिक कितना समय रहा? कई बच्चे कहाँ-कहाँ बहुत भोले बन जाते हैं। चेक करते
हैं लेकिन भोलेपन में। समझते हैं - सारे दिन में कोई विशेष गलती तो की नहीं, बुरा
सोचा नहीं, बुरा बोला नहीं। लेकिन यह चेक किया कि दिव्य वा अलौकिक कर्म किया?
क्योंकि साधारण बोल वा कर्म जमा नहीं होता, न मिटता है, न बनता है। वर्तमान का
दिव्य संकल्प वा दिव्य बोल और कर्म भविष्य का जमा करता है। जमा का खाता बढ़ता नहीं
है, तो जमा करने के हिसाब में भोले बन जाते हैं, खुश रहते हैं कि मैंने वेस्ट नहीं
किया। लेकिन सिर्फ इसमें खुश नहीं रहना है। वेस्ट नहीं किया लेकिन बेस्ट कितना बनाया?
कई बार बच्चे कहते हैं - मैंने आज किसको दु:ख नहीं दिया। लेकिन सुख भी दिया? दु:ख
नहीं दिया - इससे वर्तमान अच्छा बनाया। लेकिन सुख देने से जमा होता है। वह किया वा
सिर्फ वर्तमान में ही खुश हो गये? सुखदाता के बच्चे सुख का खाता जमा करते। सिर्फ यह
नहीं चेक करो कि दु:ख नहीं दिया लेकिन सुख कितना दिया? जो भी सम्पर्क में आये
मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे। इसको कहा जाता है दिव्यता वा
अलौकिकता। तो चेकिंग भी साधारण से गुह्य चेकिंग करो। हर समय यह स्मृति रखो कि एक
जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है। तो सब खाते चेक करो - तन से कितना जमा किया?
मन के दिव्य संकल्प से कितना जमा किया? और धन को श्रीमत प्रमाण श्रेष्ठ कार्य में
लगाकर कितना जमा किया? जमा के खाते तरफ विशेष अटेन्शन दो क्योंकि आप विशेष आत्माओं
का जमा करने का समय इस छोटे से जन्म के सिवाए सारे कल्प में कोई समय नहीं है। और
आत्माओं का हिसाब अलग है। लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए - “अब नहीं तो कब नहीं''।
तो समझा क्या करना है? इसमें भोले नहीं बनो। पुराने संस्कारों में भोले मत बनो।
बापदादा ने रिजल्ट देखी। कितनी बातों की रिजल्ट में जमा का खाता बहुत कम है, उसका
विस्तार फिर सुनायेंगे।
सभी स्नेह में सब कुछ
भुलाकर के पहुंच गये हैं। बापदादा भी बच्चों का स्नेह देख एक घड़ी के स्नेह का
रिटर्न अनेक घड़ियों की प्राप्ति का देता ही रहता है। आप सभी को इतने बड़े संगठन
में आने के लिए क्या-क्या पक्का कराया? पहले तो पटरानी बनना पड़ेगा, 4 दिन ही रहना
पड़ेगा। आना-जाना ही पड़ेगा। तो सब बातें सुनते हुए भी स्नेह में पहुंच गये। यह भी
अपना लक समझो जो इतना भी मिल रहा है फिर भी जड़ मूर्तियों के दर्शन के समान खड़े-खड़े
रात तो नहीं बिताते हो ना। तीन पैर पृथ्वी तो सबको मिली है ना। यहाँ भी आराम से बैठे
हो। जब आगे वृद्धि होगी तो स्वत: ही विधि भी परिवर्तन होती रहेगी। लेकिन सदैव यह
अनुभव करो कि जो भी मिल रहा है, वह बहुत अच्छा है क्योंकि वृद्धि तो होनी ही है और
परिवर्तन भी होना ही है। तो सभी को आराम से रहना-खाना मिल रहा है ना। खाना और सोना-दो
चीजें ही चाहिए। माताओं को तो बहुत खुशी होती है क्योंकि बना बनाया भोजन यहाँ मिलता
है। वहाँ तो बनाओ, भोग लगाओ - फिर खाओ। यहाँ बना हुआ, भोग लगा हुआ भोजन मिलता है।
इसलिए माताओं को तो अच्छा आराम है। कुमारों को भी आराम मिलता है क्योंकि उन्हों के
लिए भी बड़ी प्राब्लम खाना बनाने की ही है। यहाँ तो आराम से बना हुआ भोजन खाया ना।
सदैव ऐसे इज़ी रहो। जिसके संस्कार इज़ी रहने के होते हैं, उनको हर कार्य सहज अनुभव
होने के कारण इजी रहते हैं। संस्कार टाइट हैं तो सरकमस्टांस भी टाइट हो जाते हैं,
सम्बन्ध-सम्पर्क वाले भी टाइट व्यवहार करते हैं। टाइट अर्थात् खींचातान में रहने
वाले। तो सभी ड्रामा के हर दृश्य को देख-देख हर्षित रहने वाले हो ना। वा कभी
अच्छे-बुरे के आकर्षण में आ जाते हो? न अच्छे में, न बुरे में - किसी में आकर्षित
नहीं होना है, सदैव हर्षित रहना है। अच्छा।
सदा हर कदम में
दिव्यता अनुभव करने वाले और कराने वाले दिव्य मूर्तियों को, सदा अपने जमा के खाते
को बढ़ाने वाले नॉलेजफुल आत्माओं को, सदा हर समस्या को इज़ी स्थिति द्वारा इज़ी पार
करने वाले - ऐसे समझदार बच्चों को, अनेक आत्माओं के जीवन की प्यास को बुझाने वाले
मास्टर ज्ञान सागर श्रेष्ठ आत्माओं को, ज्ञान सागर बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
बाम्बे ग्रुप:-
बाम्बे निवासी बच्चे
सर्व खजानों से सम्पन्न हो ना। सदा अपने को सम्पन्न आत्मा हूँ - ऐसे अनुभव करते हो
ना? सम्पन्नता, सम्पूर्णता की निशानी है। सम्पूर्णता की चेकिंग अपनी सम्पन्नता से
कर सकते हो क्योंकि सम्पूर्णता माना सर्व खजानों से फुल होना। जैसे चन्द्रमा जब
सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता उसकी सम्पूर्णता की निशानी होती है। इससे और आगे नहीं
बढ़ेगा, बस इतनी ही सम्पूर्णता है। जरा भी किनारी कम नहीं होती है, सम्पन्न होता
है। तो आप सभी ज्ञान, योग, धारणा, सेवा - सभी में सम्पन्न, इसी को ही सम्पूर्णता कहा
जाता है। इससे जान सकते हो कि सम्पूर्णता के समीप हैं या दूर हैं! सम्पन्न हो
अर्थात् सम्पूर्णता के समीप हो। तो सब समीप हो? कितने समीप हो? 8 तक, 100 तक या
16000 तक। 8 की समीपता, फिर 100 की समीपता और फिर 16000 की समीपता। कितने समीपता
वाले हैं - यही चेक करना है। अच्छा है। फिर भी दुनिया के कोटों से आप बहुत-बहुत
भाग्यवान हो। वह तड़पने वाले हैं और आप सम्पन्न आत्मायें हो। प्राप्ति स्वरूप
आत्मायें हो। यह खुशी है ना। रोज़ अपने से बात करो कि हमारे सिवाए और कौन खुश रह
सकता है? तो यही वरदान सदा स्मृति में रखना कि समीप हैं, सम्पन्न हैं। अभी तो समीप
मिलना भी हो गया। जैसे स्थूल में समीप अच्छा लगता है, वैसे स्थिति में भी सदा समीप
अर्थात् सदा सम्पन्न बनो। अच्छा।
गुजरात-पूना ग्रुप:-
सभी दृष्टि द्वारा
शक्तियों के प्राप्ति की अनुभूति करने के अनुभवी हो ना। जैसे वाणी द्वारा शक्ति की
अनुभूति करते हो। मुरली सुनते हो तो समझते हो ना - शक्ति मिली। ऐसे दृष्टि द्वारा
शक्तियों की प्राप्ति के अनुभूति के अभ्यासी बने हो या वाणी द्वारा अनुभव होता है,
दृष्टि द्वारा कम? दृष्टि द्वारा शक्ति कैच कर सकते हो? क्योंकि कैच करने के अभ्यासी
होंगे तो दूसरों को भी अपने दिव्य दृष्टि द्वारा अनुभव करा सकते हैं। आगे चलकर वाणी
द्वारा सबको परिचय देने का समय भी नहीं होगा और सरकमस्टांस भी नहीं होंगे तो क्या
करेंगे? वरदानी दृष्टि द्वारा, महादानी दृष्टि द्वारा महादान, वरदान देंगे। दृष्टि
द्वारा शान्ति की शक्ति, प्रेम की शक्ति - सुख वा आनंद की शक्ति सब प्राप्त होती
है। जड़ मूर्तियों के आगे जाते हैं तो जड़ मूर्ति बोलती तो नहीं है ना। फिर भी भक्त
आत्माओं को कुछ-न-कुछ प्राप्ति होती है तब तो जाते हैं ना। कैसे प्राप्ति होती है?
उनके दिव्यता के वायब्रेशन से और दिव्य नयनों की दृष्टि को देख वायब्रेशन लेते हैं।
कोई भी देवता या देवी की मूर्ति में विशेष अटेन्शन नयनों के तरफ देखेंगे। फेस (चेहरे)
की तरफ अटेन्शन जाता है क्योंकि मस्तक के द्वारा वायब्रेशन मिलता है, नयनों द्वारा
दिव्यता की अनुभूति होती है। वह तो हैं जड़ मूर्तियां। लेकिन किसकी हैं? आप चैतन्य
मूर्तियों की जड़ मूर्तियां हैं। यह नशा है कि हमारी मूर्तियां हैं? चैतन्य में यह
सेवा की है तब जड़ मूर्तियां बनी हैं। तो दृष्टि द्वारा शक्ति लेना और दृष्टि द्वारा
शक्ति देना, यह प्रैक्टिस करो। शान्ति के शक्ति की अनुभूति बहुत श्रेष्ठ है। जैसे
वर्तमान समय साइन्स की शक्ति का कितना प्रभाव है, हर एक अनुभव करते हैं लेकिन साइंस
की शक्ति निकली किससे? साइलेन्स की शक्ति से ना! जब साइंस की शक्ति अल्पकाल के लिए
प्राप्ति करा रही है, तो साइलेन्स की शक्ति कितनी प्राप्ति करायेगी। तो बाप के
दिव्य दृष्टि द्वारा स्वयं में शक्ति जमा करो। तो फिर जमा किया हुआ समय पर दे सकेंगे।
अपने लिए ही जमा किया और कार्य में लगा दिया अर्थात् कमाया और खाया। जो कमाते हैं
और खाकरके खत्म कर देते हैं उनका कभी जमा नहीं होता। और जिसका जमा का खाता नहीं होता
उसको समय पर धोखा मिलता है। धोखा मिलेगा तो दु:ख की प्राप्ति होगी। ऐसे ही साइलेन्स
की शक्ति जमा नहीं होगी, दृष्टि के महत्व का अनुभव नहीं होगा तो लास्ट समय श्रेष्ठ
पद प्राप्त करने में धोखा खा लेंगे। फिर दु:ख होगा, पश्चाताप होगा इसलिए अभी से बाप
की दृष्टि द्वारा प्राप्त हुई शक्तियों को अनुभव करते जमा करते रहो। तो जमा करना आता
है? जमा होने की निशानी क्या होगी? नशा होगा। जैसे साहूकार लोगों के चलने, बैठने,
उठने में नशा दिखाई देता है और जितना नशा होता उतनी खुशी होती है। तो यह है रूहानी
नशा। इस नशे में रहने से खुशी स्वत: होगी। खुशी ही जन्म सिद्ध अधिकार है। सदा खुशी
की झलक से औरों को भी रूहानी झलक दिखाने वाले बनो। इसी वरदान को सदा स्मृति में रखना।
कुछ भी हो जाए - खुशी के वरदान को खोना नहीं। समस्या आयेगी और जायेगी लेकिन खुशी नहीं
जाये क्योंकि खुशी हमारी चीज़ है, समस्या परिस्थिति है, दूसरे के तरफ से आई हुई है।
अपनी चीज़ को तो सदा साथ रखते हैं ना। पराई चीज़ तो आयेगी भी और जायेगी भी।
परिस्थिति माया की है, अपनी नहीं है। अपनी चीज को खोना नहीं होता है। तो खुशी को
खोना नहीं। चाहे यह शरीर भी चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। खुशी से शरीर भी जायेगा
तो बढ़िया मिलेगा। पुराना जायेगा नया मिलेगा, तो गुजरात और महाराष्ट्र वाले इस
महानता में सदा रहना। खुशी में महान बनना। अच्छा।
आंध्र प्रदेश-कनार्टक
ग्रुप:- इस
ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं - ऐसे अनुभव करते हो?
जब अपने को विशेष आत्मा समझते हैं तो बनाने वाला बाप स्वत: याद रहता है, याद सहज
लगती है क्योंकि ‘सम्बन्ध' याद का आधार है। जहाँ सम्बन्ध होता है वहाँ याद स्वत:
सहज हो जाती है। जब सर्व सम्बन्ध एक बाप से हो गये तो और कोई रहा ही नहीं। एक बाप
सर्व सम्बन्धी है - इस स्मृति से सहजयोगी बन गये। कभी मुश्किल तो नहीं लगता? जब माया
का वार होता है तब मुश्किल लगता है? माया को सदा के लिए विदाई देने वाले बनो। जब
माया को विदाई देंगे तब बाप की बधाइयां बहुत आगे बढ़ायेंगी। भक्ति मार्ग में कितनी
बार मांगा कि दुआयें दो, ब्लैसिंग दो। लेकिन अभी बाप से ब्लैसिंग लेने का सहज साधन
बता दिया है - जितना माया को विदाई देंगे उतनी ब्लैसिंग स्वत: मिलेंगी।
परमात्म-दुआयें एक जन्म नहीं लेकिन अनेक जन्म श्रेष्ठ बनाती हैं। सदा यह स्मृति में
रखना कि हम हर कदम में बाप की, ब्राह्मण परिवार की दुआयें लेते सहज उड़ते चलें।
ड्रामा में विशेष आत्मायें हो, विशेष कर्म कर अनेक जन्मों के लिए विशेष पार्ट बजाने
वाले हो। साधारण कर्म नहीं विशेष कर्म, विशेष संकल्प और विशेष बोल हों। तो आंध्र
वाले विशेष सेवा यही करो कि अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा, अपने श्रेष्ठ परिवर्तन द्वारा
अनेक आत्माओं को परिवर्तन करो। अपने को आइना बनाओ और आपके आइने में बाप दिखाई दे।
ऐसी विशेष सेवा करो। तो यही याद रखना कि मैं दिव्य आइना हूँ, मुझ आइने द्वारा बाप
ही दिखाई दे। समझा। अच्छा।
वरदान:-
सदा एकरस
स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले बापदादा के दिलतख्त नशीन भव
सभी से श्रेष्ठ तख्त
बापदादा के दिलतख्त नशीन बनना है। लेकिन इस तख्त पर बैठने के लिए अचल, अडोल, एकरस
स्थिति का तख्त चाहिए। अगर इस स्थिति के तख्त पर स्थित नहीं हो पाते तो बापदादा के
दिल रूपी तख्त पर स्थित नहीं हो सकते। इसके लिए अपने भृकुटी के तख्त पर अकालमूर्त
बन स्थित हो जाओ, इस तख्त से बार-बार डगमग न हो तो बापदादा के दिल तख्त पर विराजमान
हो सकेंगे।
स्लोगन:-
शुभचिंतन द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करो।