ओम् शान्ति।
यह गीत बहुत कॉमन गाते हैं, हे भगवान अन्धों की लाठी बनो क्योंकि भक्ति मार्ग में
ठोकरें बहुत खाते हैं, परन्तु बाप को नहीं पाते। आत्मा कहती है हे बाबा मैं आपसे
मिलने के लिए इस शरीर द्वारा बहुत ही भटकी। आपका रास्ता बहुत ही कठिन है। यह तो
जरूर मनुष्य समझते हैं कि जन्म-जन्मान्तर हम भक्ति करते आये हैं। यह नहीं जानते कि
हमको ज्ञान मिलना है, तब हम नयन हीन से सज्जे बनेंगे। भक्ति मार्ग का कायदा है भक्ति
करना, धक्का खाना। आधाकल्प धक्के खाये हैं। तुमने अब धक्के खाने बन्द कर दिये हैं।
तुम भक्ति नहीं करते, न शास्त्र पढ़ते। जब भगवान मिल गया फिर यह सब क्यों करें! जबकि
भगवान हमको अपने साथ ले जाने वाला मिला है तो फिर हम धक्के क्यों खायें! भगवान आयेगा
तो जरूर सबको साथ ले जायेगा। सभी धक्के भी खाते रहते हैं और एक दो को आशीर्वाद भी
करते रहते हैं, समझते कुछ भी नहीं। पोप साधू सन्त जो आते हैं उनके लिए समझते हैं तो
यह गुरू लोग हमको रास्ता बतायेंगे - भगवान से मिलने का। परन्तु वो गुरू लोग खुद भी
रास्ता नहीं जानते तो फिर दिखायेंगे कैसे! आशीर्वाद देते हैं तो भी सिर्फ इतना कह
देते हैं भगवान को याद करो। राम-राम कहो। जैसे रास्ते में कोई से पूछो फलाना स्थान
कहाँ है? तो कहेंगे इस रास्ते से चले जाओ, तो पहुँच जायेंगे। ऐसे नहीं कहेंगे साथ
ले चलते हैं। तुमको रास्ता चाहिए - वह बता देते हैं, परन्तु साथ में कोई गाइड तो
चाहिए ना। बिगर गाइड तो मूँझ पड़ेंगे। जैसे तुम भी एक दिन फागी के कारण जंगल में
मूंझ पड़े थे। यह माया की फागी बड़ी जबरदस्त है। स्टीमर वालों को फागी के कारण
रास्ता दिखाई नहीं देता। बड़ी खबरदारी रखते हैं, तो यह फिर है माया की फागी। कोई को
रास्ते का पता नहीं पड़ता। जप, तप, तीर्थ आदि करते रहते हैं। जन्म-जन्मान्तर भगवान
से मिलने लिए भक्ति करते आये। अनेक प्रकार की मत भी मिलती है, जैसा संग वैसा रंग।
हर जन्म में गुरू भी करना पड़े। अब तुम बच्चों को सतगुरू मिला है। वह खुद कहते हैं
मैं कल्प-कल्प आकर तुम बच्चों को वापिस घर ले जाता हूँ, फिर विष्णुपुरी में भेज
देंगे।
अब हम बाबा से वर्सा ले रहे हैं। मानो कोई गुरू वा पण्डित आदि आकर यह ज्ञान लें
और दूसरों को कहें कि मन-मनाभव, शिवबाबा को याद करो। तो उनके शिष्य आदि पूछेंगे
तुमने यह ज्ञान कहाँ से लिया! वह झट समझेंगे कि इसने दूसरा रास्ता ले लिया है। उनका
दुकान खत्म हो जायेगा। मान्यता खत्म हो जायेगी। कहेंगे तुमने ब्रह्माकुमारियों से
ज्ञान लिया तो हम क्यों न बी.के. के पास जायें। खुद गुरू लोग भी कहते हैं - सब
जिज्ञासू हमको छोड़ देंगे। फिर हम कहाँ से खायेंगे। सारा धन्धा खत्म हो जायेगा। सारा
मान खत्म हो जायेगा। यहाँ तो 7 रोज़ भट्ठी में रख फिर सब कुछ कराना पड़ेगा। रोटी
पकाओ, यह करो.. जैसे संन्यासी लोग भी कराते हैं तो देह-अभिमान टूट जाए। तो फिर ऐसे
का ठहरना बड़ा मुश्किल है। दूसरी बात जो बाहर से आते हैं उनको पहले-पहले बाप का
परिचय देना है कि हम मात-पिता से विश्व के मालिकपने का वर्सा ले रहे हैं। बाबा है
विश्व का रचयिता। हमारी एम आब्जेक्ट है कि हमको नर से नारायण बनना है। तुमको भी
दाखिल होना है तो 8 रोज़ आकर पढ़ना होगा। बड़ी भारी मेहनत है। इतना अभिमान कोई तोड़
न सके। ऐसे-ऐसे आदमी जल्दी आ नहीं सकते। बाप समझाते हैं कि तुम भाई बहिन हो। एक दो
को समझा सकते हो। समझो कोई बच्चे हैं जो बहुत अच्छी सर्विस करते थे, बहुतों को
समझाते थे। अब बाबा का हाथ छोड़ दिया है। अब यह तो तुम जानते हो कि शिवबाबा हमको
पढ़ाते हैं ब्रह्मा द्वारा। डायरेक्ट तो नहीं पढ़ा सकते हैं। तो बाबा कहते हैं
ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराता हूँ। राजयोग सिखलाता हूँ। अगर कोई ने ब्रह्मा का हाथ
छोड़ा तो गोया शिव का भी छोड़ा। विचार किया जाता है फलाने ने छोड़ा क्यों? नसीबदार
बनने के बदले बदनसीब क्यों बने हो? तुम रूठे किससे? बहनों से रूठे होंगे। तुम जो
इतना वर्सा लेने वाले थे फिर क्या हुआ! क्या सिखलाने वाले बाप ने तुमको कुछ कहा जो
पढ़ाई छोड़ दी और बदनसीब बन गये! बाबा भी पूछ सकते हैं - तुमने राजयोग सीखना क्यों
छोड़ा! तुम भी आश्चर्यवत बाबा का बनन्ती, कथन्ती, भागन्ती में आ गये। अपनी तकदीर को
लकीर लगा दी! समय देख उनको लिखाना चाहिए। हो सकता है - पत्र पढ़ने से फिर जग जाए।
गिरते हुए को बचाना होता है। डूबने से किसको बचाया जाता है तो आफरीन देते हैं। यह
भी डूबने से बचाना है। ज्ञान की ही बातें हैं। लिखना चाहिए - तुमने खिवैया का हाथ
छोड़ा है तो डूब मरेंगे। तारू (तैरने वाले) लोग अपनी जान को जोखिम में रख दूसरों को
बचाते हैं। कोई पूरा तारू नहीं होता है तो खुद भी गुम हो जाता है। तुम भी कोई को
डूबता हुआ देखते हो तो 10-20 चिट्ठियां लिखो, यह कोई इनसल्ट नहीं है। तुमने इतना
समय हाथ पकड़ा, औरों को भी समझाया फिर तुम कैसे डूबते हो। तुम प्रेम से लिखो। बहन
जी, तुम तो राजयोग सीख पार जाने वाली थी - अब तुम डूब रही हो। तरस पड़ता है तो
बिचारे को बचावें। फिर कोई बचता है वा नहीं - यह तो हुई उनकी तकदीर। दूसरी बात यह
जो प्रदर्शनी में ओपीनियन लिख कर देते हैं कि यहाँ नर से नारायण बनने का मार्ग बताया
जाता है। यह राजयोग बहुत अच्छा है। बस लिखा बाहर निकला तो भूल गया इसलिए जो लिखते
हैं उनकी पीठ करनी चाहिए कि तुमने यह ओपीनियन लिखकर दिया परन्तु क्या किया! न अपना
फायदा किया, न दूसरों का! पहली मुख्य बात है मात-पिता की पहचान देनी है इसलिए बाबा
ने प्रश्नावली बनाई है तो पूछो - परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
क्या वर्सा मिलता है! यह लिखाना चाहिए। बाकी सारी प्रदर्शनी समझाए पिछाड़ी में लिखने
से कोई फायदा नहीं। मुख्य बात हैं मात-पिता का परिचय देना। अब समझा है तो लिखो, नहीं
तो गोया कुछ नहीं समझा। हड्डी (जिगरी) समझाकर फिर लिखाना चाहिए। बरोबर यह जगत अम्बा,
जगत पिता है। वह लिख दे कि बरोबर बाप से वर्सा मिलता है। यह लिखकर दे तब समझो कि
तुमने कुछ सर्विस की है। फिर अगर न आये तो चिट्ठी लिखनी है बरोबर यह जगत अम्बा और
जगत पिता है तो फिर वर्सा लेने क्यों नहीं आते! अचानक काल खा जायेगा। मेहनत करनी
चाहिए। प्रदर्शनी की, उससे मुश्किल कोई 2-4 निकले तो फायदा क्या हुआ! बच्चों को
पुरुषार्थ करना चाहिए। आना छोड़ दे तो चिट्ठी लिखनी चाहिए। तुम बेहद के बाप से वर्सा
लेते थे फिर माया ने तुमको पकड़ लिया है। प्रभू का तरफ छोड़ देते हो। यह तो तुम अपना
पद भ्रष्ट कर देंगे। जो महावीर होगा वह झट संजीवनी बूटी देंगे। यह बेहोश हो गया।
माया ने नाक से पकड़ लिया तो उनको बचावें, इतनी मेहनत करें तब कोटो में कोई निकलें।
जांच करनी पड़े कि यह सैपलिंग कैसा है। बच्चियां लिखती हैं कि हमारा गला घुट गया
है। परन्तु तुम जास्ती बातों में जाओ ही नहीं। पहली मुख्य बात समझाकर लिखाओ फिर और
बात। एक ही त्रिमूर्ति के चित्र पर पूरा समझाना है। निश्चय करते हो तो तुम्हारे माँ
बाप है, इनसे वर्सा मिलना है। कोई कितना भी बूढ़ा हो - यह दो अक्षर तो सबको समझा
सकते हैं ना। अगर यह दो अक्षर भी धारण नहीं होते तो बाबा समझ जाते हैं कि इनकी
बुद्धि कहाँ किचड़े में फँसी हुई है। मुख से ज्यादा नहीं बोलना है। सिर्फ बाबा और
वर्से को याद करो। वर्सा है विष्णुपुरी, जिसके तुम मालिक बनते हो। बाबा अति सहज कर
समझाते हैं। अहिल्यायें, कुब्जायें कैसे भी हों, वर्सा पा सकती हैं। सिर्फ श्रीमत
पर चलें। देही-अभिमानी बनना तो सहज है। किसको गृहस्थ व्यवहार नहीं है, अकेला है तो
बहुत सर्विस कर सकते हैं। कोई-कोई को देह-अभिमान रहता है। मोह की रग टूटती नहीं है।
देही-अभिमानी शरीर में मोह नहीं रखेंगे! बाबा युक्ति बताते हैं तुम अपने को आत्मा
समझो। यह पुरानी दुनिया है, इनसे ममत्व मिटाना है। एक बाप को याद करना है। वर्से को
याद करने से रचता भी याद आ जाता है। कितनी कमाई है, खुद भी करो और औरों को भी कराओ।
माँ बाप बच्चों को लायक बना देते हैं फिर बच्चे का काम है बाप की सम्भाल करना। फिर
माँ बाप छूटे। यहाँ बहुत हैं जिनकी रग जाती है। कोई को अपना बच्चा नहीं तो धर्म के
बच्चे में मोह जाता है फिर वह पद पा नहीं सकेंगे। सर्विस के बदले डिससर्विस करते
हैं। प्रदर्शनी में मुख्य बात यह समझानी है - जो निश्चय हो जाए कि बरोबर यह हमारा
बाप है। इनसे राजयोग द्वारा 21 जन्म का वर्सा मिलता है। नई दुनिया की रचना कैसे होती
है! कैसे हम मालिक बनते हैं, यह है एम आबजेक्ट। परन्तु बच्चे पूरा समझाते नहीं हैं।
तुम बच्चों को रात दिन खुशी रहनी चाहिए कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं। वहाँ विष्णु की
दैवी सन्तान को इतनी खुशी नहीं होगी जितनी अब तुम ईश्वरीय सन्तान को है।
अभी तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो फिर तुम ही विष्णु की सन्तान बनेंगे, परन्तु खुशी
अभी है। देवताओं को ईश्वरीय सन्तान से ऊंचा नहीं कहेंगे। तो ईश्वरीय सन्तान को कितनी
खुशी होनी चाहिए। परन्तु यहाँ से बाहर निकलते ही माया बिल्कुल ही भुला देती है। तो
समझो तकदीर में राजाई नहीं है, बहुत मेहनत करनी चाहिए। माया ऐसी है जो वहाँ का वहाँ
ही थप्पड़ लगाकर भुला देती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मोह की सब रगें तोड़ इस पुरानी देह और दुनिया से ममत्व निकाल सर्विस
में लग जाना है। बाप और वर्से को याद कर कमाई जमा करनी है।
2) अच्छा तैरने वाला बन सबको पार लगाने की सेवा करनी है। श्रीमत पर चलना है,
बुद्धि किचड़े में नहीं लगानी है।