09-11-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – अभी तुम सत्य बाप द्वारा सत्य देवता बन रहे
हो, इसलिए सतयुग में सतसंग करने की जरूरत नहीं”
प्रश्नः-
सतयुग में
देवताओं से कोई भी विकर्म नहीं हो सकता है, क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि
उन्हें सत्य बाप का वरदान मिला हुआ है। विकर्म तब होता है जब रावण का श्राप मिलने
लगता है। सतयुग-त्रेता में है ही सद्गति, उस समय दुर्गति का नाम नहीं। विकार ही नहीं
जो विकर्म हो। द्वापर-कलियुग में सबकी दुर्गति हो जाती इसलिए विकर्म होते रहते हैं।
यह भी समझने की बातें हैं।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं – यह सुप्रीम बाप भी है, सुप्रीम टीचर भी है,
सुप्रीम सतगुरू भी है। बाप की ऐसी महिमा बताने से ऑटोमेटिकली सिद्ध हो जाता है कि
कृष्ण किसी का बाप हो नहीं सकता। वह तो छोटा बच्चा, सतयुग का प्रिन्स है। वह टीचर
भी नहीं हो सकता। खुद ही बैठकर टीचर से पढ़ते हैं। गुरू तो वहाँ होता नहीं क्योंकि
वहाँ सब सद्गति में हैं। आधाकल्प है सद्गति, आधाकल्प है दुर्गति। तो वहाँ है सद्गति,
इसलिए ज्ञान की वहाँ दरकार नहीं रहती। नाम भी नहीं है क्योंकि ज्ञान से 21 जन्मों
के लिए सद्गति मिलती है फिर द्वापर से कलियुग अन्त तक है दुर्गति। तो कृष्ण फिर
द्वापर में कैसे आ सकता। यह भी किसको ध्यान में नहीं आता है। एक-एक बात में बहुत ही
गुह्य राज़ भरा हुआ है, जो समझाना बहुत जरूरी है। वह सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर है।
अंग्रेजी में सुप्रीम ही कहा जाता है। अंग्रेजी अक्षर कुछ अच्छे होते हैं। जैसे
ड्रामा अक्षर है। ड्रामा को नाटक नहीं कहेंगे, नाटक में तो अदली-बदली होती है। यह
सृष्टि का चक्र फिरता है-ऐसा कहते भी हैं, परन्तु कैसे फिरता है, हूबहू फिरता है या
चेंज होती है, यह किसको भी पता नहीं है। कहते भी हैं बनी-बनाई बन रही……जरूर कोई खेल
है जो फिर से चक्र खाता रहता है। इस चक्र में मनुष्यों को ही चक्र लगाना पड़ता है।
अच्छा, इस चक्र की आयु क्या है? कैसे रिपीट होता है? इसको फिरने में कितना समय लगता
है? यह कोई नहीं जानते। इस्लामी-बौद्धी आदि यह सब हैं घराने, जिनका ड्रामा में
पार्ट है।
तुम ब्राह्मणों की
डिनायस्टी नहीं है, यह है ब्राह्मण कुल। सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल कहा जाता है।
देवी-देवताओं का भी कुल है। यह तो समझाना बहुत सहज है। सूक्ष्मवतन में फरिश्ते रहते
हैं। वहाँ हड्डी-मांस होता नहीं। देवताओं को तो हड्डी-मांस है ना। ब्रह्मा सो विष्णु,
विष्णु सो ब्रह्मा। विष्णु की नाभी कमल से ब्रह्मा क्यों दिखाया है? सूक्ष्मवतन में
तो यह बातें होती नहीं। न जवाहरात आदि हो सकते, इसलिए ब्रह्मा को सफेद पोशधारी
ब्राह्मण दिखाया है। ब्रह्मा साधारण मनुष्य बहुत जन्मों के अन्त में गरीब हुआ ना।
इस समय हैं ही खादी के कपड़े। वह बिचारे समझते नहीं सूक्ष्म शरीर क्या होता है।
तुमको बाप समझाते हैं – वहाँ हैं ही फरिश्ते, जिनको हड्डी-मांस होता नहीं।
सूक्ष्मवतन में तो यह श्रृंगार आदि होना नहीं चाहिए। परन्तु चित्रों में दिखाया है
तो बाबा उसका ही साक्षात्कार कराए फिर अर्थ समझाते हैं। जैसे हनूमान का साक्षात्कार
कराते हैं। अब हनूमान जैसा कोई मनुष्य होता नहीं। भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के
चित्र बनाये हैं, जिनका विश्वास बैठ गया है उनको ऐसा कुछ बोलो तो बिगड़ पड़ते।
देवियों आदि की कितनी पूजा करते हैं फिर डुबो देते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग। भक्ति
मार्ग के दलदल में गले तक डूबे हुए हैं तो फिर निकाल कैसे सकेंगे। निकालना ही
मुश्किल हो जाता है। कोई-कोई तो औरों को निकालने निमित्त बन खुद ही डूब जाते हैं।
खुद गले तक दुबन में फंसते अर्थात् काम विकार में गिर पड़ते हैं। यह है सबसे बड़ी
दुबन (दलदल)। सतयुग में यह बातें होती नहीं। अभी तुम सत्य बाप द्वारा सत्य देवता बन
रहे हो। फिर वहाँ सतसंग होते नहीं। सतसंग यहाँ भक्ति मार्ग में करते रहते हैं, समझते
हैं सब ईश्वर के रूप हैं। कुछ भी नहीं समझते। बाप बैठ समझाते हैं-कलियुग में हैं सब
पाप आत्मायें, सतयुग में होते हैं पुण्य आत्मायें। रात-दिन का फर्क है। तुम अभी
संगम पर हो। कलियुग और सतयुग दोनों को जानते हो। मूल बात है इस पार से उस पार जाने
की। क्षीरसागर और विषय सागर का गायन भी है परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते। अभी बाप बैठ
कर्म-अकर्म का राज़ समझाते हैं। कर्म तो मनुष्य करते ही हैं फिर कोई कर्म अकर्म होते
हैं, कोई विकर्म होते हैं। रावण राज्य में सब कर्म विकर्म हो जाते हैं, सतयुग में
विकर्म होता नहीं क्योंकि वहाँ है रामराज्य। बाप से वरदान पाये हुए हैं। रावण देते
हैं श्राप। यह सुख और दु:ख का खेल है ना। दु:ख में सब बाप को याद करते हैं। सुख में
कोई याद नहीं करते। वहाँ विकार होते नहीं। बच्चों को समझाया है-सैपलिंग लगाते हैं।
यह सैपलिग लगाने की रसम भी अभी पड़ी है। बाप ने सैपलिंग लगाना शुरू किया है। आगे जब
ब्रिटिश गवर्मेन्ट थी तो कभी अखबार में नहीं पड़ता था कि झाड़ों का सैपलिंग लगाते
हैं। अब बाप बैठ देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाते हैं, और कोई सैपलिंग नहीं लगाते।
बहुत धर्म हैं, देवी-देवता धर्म प्राय: लोप है। धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट होने के
कारण नाम ही उल्टा-सुल्टा रख दिया है। जो देवता धर्म के हैं उन्हों को फिर उसी
देवी-देवता धर्म में आना है। हर एक को अपने धर्म में ही जाना है। क्रिश्चियन धर्म
का निकलकर फिर देवी-देवता धर्म में आ नहीं सकेंगे। मुक्ति तो हो न सके। हाँ, कोई
देवी-देवता धर्म का कनवर्ट होकर क्रिश्चियन धर्म में चला गया होगा तो वह फिर लौटकर
अपने देवी-देवता धर्म में आ जायेगा। उनको यह ज्ञान और योग बहुत अच्छा लगेगा, इससे
सिद्ध होता है कि यह अपने धर्म का है। इसमें बड़ी विशालबुद्धि चाहिए समझने और समझाने
की। धारणा करनी है, किताब पढ़कर नहीं सुनानी है। जैसे कोई गीता सुनाते हैं, मनुष्य
बैठकर सुनते हैं। कोई तो गीता के श्लोक एकदम कण्ठ कर लेते हैं। बाकी तो इनका अर्थ
हर एक अपना-अपना बैठ निकालते हैं। श्लोक सारे संस्कृत में हैं। यहाँ तो गायन है कि
सागर को स्याही बना दो, सारा जंगल कलम बना दो तो भी ज्ञान का अन्त नहीं होता। गीता
तो बहुत छोटी है। 18 अध्याय हैं। इतनी छोटी गीता बनाकर गले में पहनते हैं। बहुत पतले
अक्षर होते हैं। गले में पहनने की भी आदत होती है। कितना छोटा लॉकेट बनता है।
वास्तव में है तो सेकण्ड की बात। बाप का बना जैसेकि विश्व का मालिक बना। बाबा हम
आपका एक दिन का बच्चा हूँ, ऐसे भी लिखने शुरू करेंगे। एक दिन में निश्चय हुआ और फट
से पत्र लिखेंगे। बच्चा बना तो विश्व का मालिक हुआ। यह भी कोई की बुद्धि में
मुश्किल बैठता है। तुम विश्व का मालिक बनते हो ना। वहाँ और कोई खण्ड नहीं रहता है,
नाम-निशान गुम हो जाता है। कोई को मालूम भी नहीं रहता कि यह खण्ड थे। अगर थे तो
जरूर उनकी हिस्ट्री-जॉग्राफी चाहिए। वहाँ यह होते ही नहीं इसलिए कहा जाता है तुम
विश्व के मालिक बनने वाले हो। बाबा ने समझाया है – मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, ज्ञान
का सागर हूँ। यह तो बहुत ऊंच ते ऊंच ज्ञान है जिससे हम विश्व के मालिक बनते हैं।
हमारा बाप सुप्रीम है, सत्य बाप, सत्य टीचर है, सत्य सुनाते हैं। बेहद की शिक्षा
देते हैं। बेहद का गुरू है, सबकी सद्गति करते हैं। एक की महिमा की तो वह महिमा फिर
दूसरे की हो नहीं सकती। फिर वह आप समान बनाये तब हो सकते। तो तुम भी पतित-पावन ठहरे।
सत नाम लिखते हैं। पतित-पावनी गंगायें यह मातायें हैं। शिव शक्ति कहो शिव वंशी कहो।
शिव वंशी ब्रह्माकुमार-कुमारियां। शिव वंशी तो सब हैं। बाकी ब्रह्मा द्वारा रचना
रचते हैं तो संगम पर ही ब्रह्माकुमार-कुमारियां होते हैं। ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट
करते हैं। पहले-पहले होते हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। कोई भी एतराज उठाते हैं तो
उसको बोलो, यह प्रजापिता है, इनमें प्रवेश करते हैं। बाप कहते हैं बहुत जन्मों के
अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ। दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला। अच्छा
विष्णु फिर किसकी नाभी से निकला? उसमें एरो का निशान दे सकते हो कि दोनों ओत-प्रोत
हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। यह उनसे, वह उनसे पैदा हुआ है। इनको
लगता है एक सेकेण्ड, उनको लगता है 5 हज़ार वर्ष। यह वन्डरफुल बातें हैं ना। तुम बैठ
समझायेंगे। बाप कहते हैं लक्ष्मी-नारायण 84 जन्म लेते हैं फिर उनके ही बहुत जन्मों
के अन्त में मैं प्रवेश कर यह बनाता हूँ। समझने की बात है ना। बैठो तो समझायें कि
इनको ब्रह्मा क्यों कहते हैं। सारी दुनिया को दिखाने के लिए यह चित्र बनाये हैं। हम
समझा सकते हैं, समझने वाले ही समझेंगे। नहीं समझने वाले के लिए कहेंगे यह हमारे कुल
का नहीं है। बिचारा भल वहाँ आयेगा परन्तु प्रजा में। हमारे लिए तो सब बिचारे हैं
ना-गरीब को बिचारा कहा जाता है। कितनी प्वाइंट्स बच्चों को धारण करनी हैं। भाषण करना
होता है टॉपिक्स पर। यह टॉपिक कोई कम है क्या। प्रजापिता ब्रह्मा और सरस्वती, 4
भुजाएं दिखाते हैं। तो 2 भुजा बेटी की हो जाती हैं। युगल तो है नहीं। युगल तो
वास्तव में बस विष्णु ही है। ब्रह्मा की बेटी है सरस्वती। शंकर को भी युगल नहीं है,
इस कारण शिव-शंकर कह देते हैं। अब शंकर क्या करते हैं? विनाश तो एटॉमिक बाम्ब्स से
होता है। बाप कैसे बैठ बच्चों का मौत करायेंगे, यह तो पाप हो जाए। बाप तो और ही सबको
शान्तिधाम वापिस ले जाते हैं, बिगर मेहनत। हिसाब-किताब चुक्तू कर सब घर जाते हैं
क्योंकि कयामत का समय है। बाप आते ही हैं सर्विस पर। सबको सद्गति दे देते हैं। तुम
भी पहले गति में फिर सद्गति में आयेंगे। यह बातें समझने की हैं। इन बातों को ज़रा
भी कोई नहीं जानते। तुम देखते हो कोई तो बहुत माथा खपाते, बिल्कुल समझते नहीं। जो
कुछ अच्छा समझने वाले होंगे, वह आकर समझेंगे। बोलो, एक-एक बात पर समझना है तो टाइम
दो। यहाँ तो सिर्फ हुक्म है, सबको बाप का परिचय दो। यह है ही कांटों का जंगल क्योंकि
एक-दो को दु:ख देते रहते हैं, इसको दु:खधाम कहा जाता है। सतयुग है सुखधाम। दु:खधाम
से सुखधाम कैसे बनता है यह तुमको समझायें। लक्ष्मी-नारायण सुखधाम में थे फिर यह 84
जन्म ले दु:खधाम में आते हैं। यह ब्रह्मा का नाम भी कैसे रखा। बाप कहते हैं मैं इसमें
प्रवेश कर बेहद का संन्यास कराता हूँ। फट से संन्यास करा देते हैं क्योंकि बाप को
सर्विस करानी है, वही कराते हैं। इनके पिछाड़ी बहुत निकले जिसका नाम बैठ रखा। वह
लोग फिर बिल्ली के पूंगरे बैठ दिखाते हैं। यह सब हैं दन्त कथायें। बिल्ली के पूंगरे
हो कैसे सकते। बिल्ली थोड़ेही बैठ ज्ञान सुनेगी। बाबा युक्तियां बहुत बतलाते रहते
हैं। कोई बात किसको समझ में न आये तो उनको बोलो-जब तक अल्फ को नहीं समझा है तो और
कुछ समझ नहीं सकेंगे। एक बात निश्चय करो और लिखो, नहीं तो भूल जायेंगे। माया भुला
देगी। मुख्य बात है बाप के परिचय की। हमारा बाप सुप्रीम बाप, सुप्रीम टीचर है जो
सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं, जिसका कोई को पता नहीं है। इस
समझाने में टाइम चाहिए। जब तक बाप को नहीं समझा है तब तक प्रश्न उठते ही जायेंगे।
अल्फ नहीं समझा है तो बे को कुछ नहीं समझेंगे। मुफ्त संशय उठाते रहेंगे-ऐसे क्यों,
शास्त्र में तो ऐसे कहते हैं इसलिए पहले सबको बाप का परिचय दो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कर्म, अकर्म और विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई विकर्म
नहीं करने हैं, ज्ञान और योग की धारणा करके दूसरों को सुनाना है।
2) सत्य बाप की सत्य नॉलेज देकर मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है। विकारों
के दलदल से सबको निकालना है।
वरदान:-
बाप की हर श्रीमत का पालन करने वाले सच्चे स्नेही
आशिक भव
जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में लवलीन रहते हैं, उन्हें
बाप का हर बोल प्यारा लगता है, क्वेश्चन समाप्त हो जाते हैं। ब्राह्मण जन्म का
फाउन्डेशन स्नेह है। जो स्नेही आशिक आत्मायें हैं उन्हें बाप की श्रीमत पालन करने
में मुश्किल का अनुभव नहीं होता है। स्नेह के कारण सदा यही उमंग रहता कि बाबा ने जो
कहा है वह मेरे प्रति कहा है - मुझे करना है। स्नेही आत्मायें बड़ी दिल वाली होती
हैं, इसलिए उनके लिए हर बड़ी बात भी छोटी हो जाती है।
स्लोगन:-
कोई भी
बात को फील करना - यह भी फेल की निशानी है।