20-04-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हें अभी नाम रूप की बीमारी से बचना है,
उल्टा खाता नहीं बनाना है, एक बाप की याद में रहना है"
प्रश्नः-
भाग्यवान बच्चे
किस मुख्य पुरुषार्थ से अपना भाग्य बना देते हैं?
उत्तर:-
भाग्यवान बच्चे सबको सुख देने का पुरूषार्थ करते हैं। मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई को
दुःख नहीं देते हैं। शीतल होकर चलते हैं तो भाग्य बनता जाता है। तुम्हारी यह
स्टूडेन्ट लाइफ है, तुम्हें अब घुटके नहीं खाने हैं, अपार खुशी में रहना है।
गीत:-
तुम्हीं हो माता-पिता..........
ओम् शान्ति।
सभी बच्चे मुरली सुनते
हैं, जहाँ भी मुरली जाती है, सब जानते हैं कि जिसकी महिमा गाई जाती है वह कोई साकार
नहीं है, निराकार की महिमा है। निराकार साकार द्वारा अभी सम्मुख मुरली सुना रहे
हैं। ऐसे भी कहेंगे अभी हम आत्मा उन्हें देख रहे हैं! आत्मा बहुत सूक्ष्म है, इन
आंखों से देखने में नहीं आती। भक्ति मार्ग में भी जानते हैं कि हम आत्मा सूक्ष्म
हैं। परन्तु पूरा रहस्य बुद्धि में नहीं है कि आत्मा है क्या, परमात्मा को याद करते
हैं परन्तु वह है क्या! यह दुनिया नहीं जानती। तुम भी नहीं जानते थे। अभी तुम बच्चों
को यह निश्चय है कि यह कोई लौकिक टीचर वा सम्बन्धी भी नहीं। जैसे सृष्टि में और
मनुष्य हैं वैसे यह दादा भी था। तुम जब महिमा गाते थे त्वमेव माताश्च पिता...... तो
समझते थे ऊपर में है। अभी बाप कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है, मैं वही इसमें
हूँ। आगे तो बहुत प्रेम से महिमा गाते थे, डर भी रखते थे। अभी तो वह यहाँ इस शरीर
में आये हैं। जो निराकार था वह अब साकार में आ गया है। वह बैठ बच्चों को सिखलाते
हैं। दुनिया नहीं जानती कि वह क्या सिखलाते हैं। वह तो गीता का भगवान कृष्ण समझते
हैं। कह देते हैं - वह राजयोग सिखलाते हैं। अच्छा, बाकी बाप क्या करते हैं? भल गाते
थे तुम मात-पिता परन्तु उनसे क्या और कब मिलता है, यह कुछ नहीं जानते। गीता सुनते
थे तो समझते थे कृष्ण द्वारा राजयोग सीखा था फिर वह कब आकर सिखलायेंगे। वह भी ध्यान
में आता होगा। इस समय यह वही महाभारत लड़ाई है तो जरूर कृष्ण का समय होगा। जरूर वही
हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी चाहिए। दिन-प्रतिदिन समझते जायेंगे। जरूर गीता का
भगवान होना चाहिए। बरोबर महाभारत लड़ाई भी देखने में आती है। जरूर इस दुनिया का
अन्त होगा। दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ पर चले गये। तो उनकी बुद्धि में यह आता होगा,
बरोबर विनाश तो सामने खड़ा है। अब कृष्ण है कहाँ? ढूँढ़ते रहेंगे, जब तक तुमसे सुनें
कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है। तुम्हारी बुद्धि में तो यह बात पक्की है। यह
तुम कभी भूल नहीं सकते। कोई को भी तुम समझा सकते हो गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव
है। दुनिया में तो कोई भी नहीं कहेगा सिवाए तुम बच्चों के। अब गीता का भगवान राजयोग
सिखलाते थे तो जरूर इससे सिद्ध होता है नर से नारायण बनाते थे। तुम बच्चे जानते हो
भगवान हमको पढ़ाते हैं। बरोबर नर से नारायण बनाते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण का स्वर्ग
में राज्य था ना। अभी तो वह स्वर्ग भी नहीं है, तो नारायण भी नहीं है, देवतायें भी
नहीं हैं। चित्र हैं जिससे समझते हैं यह होकर गये हैं। अभी तुम समझते हो इन्हों को
कितने वर्ष हुए? तुमको पक्का मालूम है, आज से 5 हज़ार वर्ष पहले इन्हों का राज्य
था। अभी तो है अन्त। लड़ाई भी सामने खड़ी है। जानते हो बाप हमको पढ़ा रहे हैं। सभी
सेन्टर्स में पढ़ते भी हैं तो पढ़ाते भी हैं। पढ़ाने की युक्ति बड़ी अच्छी है।
चित्रों द्वारा समझानी अच्छी मिल सकेगी। मुख्य बात है गीता का भगवान शिव वा कृष्ण?
फर्क तो बहुत है ना। सद्गति दाता स्वर्ग की स्थापना करने वाला अथवा आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की फिर से स्थापना करने वाला शिव या श्रीकृष्ण? मुख्य है ही 3 बातों
का फैसला। इस पर ही बाबा जोर देते हैं। भल ओपीनियन लिखकर देते हैं कि यह बहुत अच्छा
है परन्तु इससे कुछ भी फायदा नहीं। तुम्हारी जो मुख्य बात है उस पर जोर देना है।
तुम्हारी जीत भी है इसमें। तुम सिद्ध कर बतलाते हो भगवान एक होता है। ऐसे नहीं कि
गीता सुनाने वाले भी भगवान हो गये। भगवान ने इस राजयोग और ज्ञान द्वारा देवी-देवता
धर्म की स्थापना की।
बाबा समझाते हैं -
बच्चों पर माया का वार होता रहता है, अभी तक कर्मातीत अवस्था को कोई ने पाया नहीं
हैं। पुरुषार्थ करते-करते अन्त में तुम एक बाबा की याद में सदैव हर्षित रहेंगे। कोई
मुरझाइस नहीं आयेगी। अभी तो सिर पर पापों का बोझा बहुत है। वह याद से ही उतरेगा।
बाप ने पुरुषार्थ की युक्तियां बतलाई हैं। याद से ही पाप कटते हैं। बहुत बुद्धू हैं
जो याद में न रहने कारण फिर नाम-रूप आदि में फँस पड़ते हैं। हर्षितमुख हो किसको
ज्ञान समझायें, वह भी मुश्किल हैं। आज किसको समझाया, कल फिर घुटका आने से खुशी गुम
हो जाती है। समझना चाहिए यह माया का वार होता है। इसलिए पुरुषार्थ कर बाप को याद
करना है। बाकी रोना, पीटना वा बेहाल नहीं होना है। समझना चाहिए माया पादर (जूता)
मारती है इसलिए पुरुषार्थ कर बाप को याद करना है। बाप की याद से बहुत खुशी रहेगी।
मुख से झट वाणी निकलेगी। पतित-पावन बाप कहते हैं कि मुझे याद करो। मनुष्य तो एक भी
नहीं जिसको रचता बाप का परिचय हो। मनुष्य होकर और बाप को न जानें तो जानवर से भी
बदतर हुआ। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है तो बाप को याद कैसे करें! यही बड़ी
भूल है, जो तुमको समझानी है। गीता का भगवान शिवबाबा है, वही वर्सा देते हैं।
मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता वह है, और धर्म वालों की बुद्धि में बैठता नहीं। वह तो
हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस चले जायेंगे। पिछाड़ी में थोड़ा परिचय मिला फिर भी
जायेंगे अपने धर्म में। तुमको बाप समझाते हैं तुम देवता थे, अभी फिर बाप को याद करने
से तुम देवता बन जायेंगे। विकर्म विनाश हो जायेंगे। फिर भी उल्टे-सुल्टे धन्धे कर
लेते हैं। बाबा को लिखते हैं आज हमारी अवस्था मुरझाई हुई है, बाप को याद नहीं किया।
याद नहीं करेंगे तो जरूर मुरझायेंगे। यह है ही मुर्दों की दुनिया। सभी मरे पड़े
हैं। तुम बाप के बने हो तो बाप का फरमान है - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं।
यह शरीर तो पुराना तमोप्रधान है। पिछाड़ी तक कुछ न कुछ होता रहेगा। जब तक बाप की
याद में रह कर्मातीत अवस्था को पायें, तब तक माया हिलाती रहेगी, किसको भी छोड़ेगी
नहीं। जांच करते रहना चाहिए कि माया कैसे धक्का खिलाती है। भगवान हमको पढ़ाते हैं,
यह भूलना क्यों चाहिए। आत्मा कहती है - हमारा प्राणों से प्यारा वह बाप ही है। ऐसे
बाप को फिर तुम भूलते क्यों हो! बाप धन देते हैं, दान करने के लिए। प्रदर्शनी-मेले
में तुम बहुतों को दान कर सकते हो। आपेही शौक से भागना चाहिए। अभी तो बाबा को ताकीद
करनी पड़ती है, जाकर समझाओ। उसमें भी अच्छा समझा हुआ चाहिए। देह-अभिमानी का तीर
लगेगा नहीं। तलवारें भी अनेक प्रकार की होती हैं ना। तुम्हारी भी योग की तलवार बड़ी
तीखी चाहिए। सर्विस का हुल्लास चाहिए। बहुतों का जाकर कल्याण करें। बाप को याद करने
की ऐसी प्रैक्टिस हो जाए जो पिछाड़ी में सिवाए बाप के और कोई याद न पड़े, तब ही तुम
राजाई पद पायेंगे। अन्तकाल जो अलफ़ को सिमरे और फिर नारायण को सिमरे। बाप और नारायण
(वर्सा) ही याद करना है। परन्तु माया कम नहीं है। कच्चे तो एकदम ढेर हो पड़ते हैं।
उल्टे कर्मों का खाता तब बनता है जब किसी के नाम रूप में फँस पड़ते हैं। एक-दो को
प्राइवेट चिट्ठियाँ लिखते हैं। देहधारियों से प्रीत हो जाती है तो उल्टे कर्मों का
खाता बन जाता है। बाबा के पास समाचार आते हैं। उल्टा-सुल्टा काम कर फिर कहते हैं
बाबा हो गया! अरे, खाता उल्टा तो हो गया ना! यह शरीर तो पलीत है, उनको तुम याद क्यों
करते हो। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो सदैव खुशी रहे। आज खुशी में हैं, कल फिर
मुर्दे बन पड़ते हैं। जन्म-जन्मान्तर नाम-रूप में फँसते आते हैं ना। स्वर्ग में यह
बीमारी नाम-रूप की होती नहीं। यहाँ तो मोहजीत कुटुम्ब होता है। जानते है हम आत्मा
है, शरीर नहीं। वह है ही आत्म अभिमानी दुनिया। यहाँ है देह-अभिमानी दुनिया। फिर आधा
कल्प तुम देही-अभिमानी बन जाते हो। अब बाप कहते हैं देह-अभिमान छोड़ो। देही-अभिमानी
होने से बहुत मीठे शीतल हो जायेंगे। ऐसे बहुत थोड़े हैं, पुरुषार्थ कराते रहते हैं
कि बाप की याद न भूलो। बाप फरमान करते हैं मुझे याद करो, चार्ट रखो। परन्तु माया
चार्ट भी रखने नहीं देती है। ऐसे मीठे बाप को तो कितना याद करना चाहिए। यह तो पतियों
का पति, बापों का बाप है ना। बाप को याद कर और फिर दूसरों को भी आपसमान बनाने का
पुरुषार्थ करना है, इसमें दिलचस्पी बहुत अच्छी रखनी चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को तो
बाप नौकरी से छुड़ा देते हैं। सरकमस्टांश देख कहेंगे अब इस धन्धे में लग जाओ। एम
ऑब्जेक्ट तो सामने खड़ी है। भक्ति मार्ग में भी चित्रों के आगे याद में बैठते हैं
ना। तुमको तो सिर्फ आत्मा समझ परमात्मा बाप को याद करना है। विचित्र बन विचित्र बाप
को याद करना है। यह मेहनत है। विश्व का मालिक बनना, कोई मासी का घर नहीं है। बाप
कहते हैं - मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ, तुमको बनाता हूँ। कितना माथा मारना
पड़ता है। सपूत बच्चों को तो आपेही ओना लगा रहेगा, छुट्टी लेकर भी सर्विस में लग
जाना चाहिए। कई बच्चों को बन्धन भी है, मोह भी रहता है। बाप कहते हैं तुम्हारी सब
बीमारियाँ बाहर निकलेंगी। तुम बाप को याद करते रहो। माया तुमको हटाने की कोशिश करती
है। याद ही मुख्य है, रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान मिला, बाकी और क्या
चाहिए। भाग्यवान बच्चे सबको सुख देने का पुरुषार्थ करते हैं, मन्सा, वाचा, कर्मणा
किसी को दुःख नहीं देते हैं, शीतल होकर चलते हैं तो भाग्य बनता जाता है। अगर कोई नहीं
समझते हैं तो समझा जाता इनके भाग्य में नहीं है। जिनके भाग्य में है वह अच्छी रीति
सुनते हैं। अनुभव भी सुनाते हैं ना - क्या-क्या करते थे। अब मालूम पड़ा है, जो कुछ
किया उससे दुर्गति ही हुई। सद्गति को तब पायें जब बाप को याद करें। बहुत मुश्किल
कोई घण्टा, आधा घण्टा याद करते होंगे। नहीं तो घुटका खाते रहते हैं। बाप कहते हैं
आधाकल्प घुटका खाया अब बाप मिला है, स्टूडेन्ट लाइफ है तो खुशी होनी चाहिए ना।
परन्तु बाप को घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
बाप कहते हैं तुम
कर्मयोगी हो। वह धन्धा आदि तो करना ही है। नींद भी कम करना अच्छा है। याद से कमाई
होगी, खुशी भी रहेगी। याद में बैठना जरूरी है। दिन में तो फुर्सत नहीं मिलती है
इसलिए रात को समय निकालना चाहिए। याद से बहुत खुशी रहेगी। किसको बंधन है तो कह सकते
हैं हमको तो बाप से वर्सा लेना है, इसमें कोई रोक नहीं सकता। सिर्फ गवर्मेन्ट को
जाए समझाओ कि विनाश सामने खड़ा है, बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
और यह अन्तिम जन्म तो पवित्र रहना है इसलिए हम पवित्र बनते हैं। परन्तु कहेंगे वह
जिनको ज्ञान की मस्ती होगी। ऐसे नहीं कि यहाँ आकर फिर देहधारी को याद करते रहें।
देह-अभिमान में आकर लड़ना-झगड़ना जैसे क्रोध का भूत हो जाता है। बाबा क्रोध करने
वाले की तरफ कभी देखते भी नहीं। सर्विस करने वालों से प्यार होता है। देह-अभिमान की
चलन दिखाई पड़ती है। गुल-गुल तब बनेंगे जब बाप को याद करेंगे। मूल बात है यह। एक-दो
को देखते बाप को याद करना है। सर्विस में तो हड्डियाँ देनी चाहिए। ब्राह्मणों को
आपस में क्षीरखण्ड होना चाहिए। लूनपानी नहीं होना चाहिए। समझ न होने के कारण एक-दो
से नफ़रत, बाप से भी नफ़रत लाते रहते हैं। ऐसे क्या पद पायेंगे! तुमको साक्षात्कार
होंगे फिर उस समय स्मृति आयेगी - यह हमने गफ़लत की। बाप फिर कह देते हैं तकदीर में
नहीं है तो क्या कर सकते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निर्बन्धन बनने के लिए ज्ञान की मस्ती हो। देह-अभिमान की चलन न हो।
आपस में लूनपानी होने के संस्कार न हों। देहधारियों से प्यार है तो बंधनमुक्त हो नहीं
सकते।
2) कर्मयोगी बनकर रहना है, याद में बैठना जरूर है। आत्म-अभिमानी बन बहुत मीठा और
शीतल बनने का पुरूषार्थ करना है। सर्विस में हड्डियाँ देनी है।
वरदान:-
विश्व कल्याण के कार्य में सदा बिजी रहने वाले विश्व
के आधारमूर्त भव
विश्व कल्याणकारी बच्चे स्वप्न में भी फ्री नहीं रह सकते।
जो दिन रात सेवा में बिजी रहते हैं उन्हें स्वप्न में भी कई नई-नई बातें, सेवा के
प्लैन व तरीके दिखाई देते हैं। वे सेवा में बिजी होने के कारण अपने पुरुषार्थ के
व्यर्थ से और औरों के भी व्यर्थ से बचे रहते हैं। उनके सामने बेहद विश्व की आत्मायें
सदा इमर्ज रहती हैं। उन्हें जरा भी अलबेलापन नहीं सकता। ऐसे सेवाधारी बच्चों को
आधारमूर्त बनने का वरदान प्राप्त हो जाता है।
स्लोगन:-
संगमयुग का
एक-एक सेकण्ड वर्षों के समान है इसलिए अलबेलेपन में समय नहीं गंवाओ।