25-05-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 19-07-69 मधुबन
ज़ीरो और हीरो बनो
आज किसलिये बुलाया है? (बल भरने लिये), बल भरने के लिये बुलाया है तो किस बात की निर्बलता समझती हो? विशेष किस बात में बल भरना है? सर्विस में भी बल किससे भरेगा? वह तो अपने में कितना बल भरा है वह सिर्फ देखना है। आप सभी का नाम ही है शिव शक्ति। तो शक्तियों में शक्ति तो है ही वा शक्ति स्वरूप बन रही हो? बापदादा तो आये ही हैं देखने कि कौन सा जेवर बापदादा के सृष्टि के श्रृंगार करने लिये तैयार हुये हैं। अभी जेवर तो तैयार हो गये। लेकिन तैयार होने वाला क्या होता है? पालिश। अभी सिर्फ पालिश होनी है। मुख्य बात जिसकी पालिश होनी है वह यही है, सभी को ज्यादा से ज्यादा अव्यक्त स्थिति में रहने का विशेष समय देना है। अव्यक्त स्थिति की पालिश ही बाकी रही है। आपस में बातचीत करते समय आत्मा रूप में देखो। शरीर में होते हुए भी आत्मा को देखो। यह पहला पाठ है इसकी ही आवश्यकता है। जो भी सभी धारणायें सुनी है उन सभी को जीवन में लाने लिये यही पहला पाठ पक्का करना पड़ेगा। यह आत्मिक दृष्टि की अवस्था प्रैक्टिकल में कम रहती है। सर्विस की सफलता ज्यादा निकले, उसका भी मुख्य साधन यह है कि आत्म-स्थिति में रह सर्विस करनी है। पहला पाठ ही पालिश है। इसकी ही आवश्यकता है। कब नोट किया है सारे दिन में यह आत्मिक दृष्टि, स्मृति कितनी रहती है? इस स्थिति की परख अपनी सर्विस की रिजल्ट से भी देख सकते हो। यह अवस्था शमा है। शमाँ पर परवाने न चाहते हुए भी जाते हैं।
आप सभी टीचर तो हो ही। बाकी टीचर से क्या बनने लिये भट्टी में आये हो? आप लोग बहुत सोचते हो। परन्तु है बहुत सहज। अपने समान बनाने लिये बुलाया है। अपने समान अर्थात् जीरो बनाने। जीरो में बीज वा बिन्दी भी आ जाती है। और फिर साथ-साथ कोई ऐसा कार्य हो जाता है तो उनको भी जीरो बनाना है। तो खास जीरो याद करने लिये बुलाया है। टीचर का रूप तो बहुत बड़ा है लेकिन बहुत बड़ा फिर बहुत छोटा बनाने आया हूँ। सभी से छोटा रूप है बाप का। और आप सभी का भी। तो अब जीरो को याद रखेंगे तो हीरो बनेंगे। हीरो एक्टर भी होता है और बापदादा का प्रिय भी है। रत्न को भी हीरा कहा जाता है। और मुख्य एक्टर को भी हीरो कहा जाता है। तो अब समझा किसलिए बुलाया है? सिर्फ दो अक्षर याद करने लिए बुलाया है - जीरो और हीरो। यह दो बातें याद रखेंगे तो बाप के समान सर्व गुणों से सम्पन्न हो जायेंगे। विस्तार को समाया जाता है ना। 15 दिन इतनी स्टडी की है, बहुत कापियाँ भरी हैं। बापदादा फिर आपके विस्तार को बीज में सुना रहे हैं। और सभी भूल भी जाये। यह तो नहीं भूलेगा। यह याद रखो फिर देखना सर्विस में कितनी जल्दी चेंज आती है। आप सभी की इच्छा यही है कि हम भी बदले और समय भी बदले। अपने घर चले। जब घर चलने की इच्छा है तो फिर यह दो बात याद रखो। फिर कमियों के बजाय कमाल कर दिखाओ। कमियाँ खत्म हो जावेंगी और जहाँ भी देखेंगे, सुनेंगे तो कमाल ही कमाल देखेंगे तो अब इस भट्टी से क्या बनकर जायेंगे? जीरो। जीरो में कोई बात ही नहीं होती। कोई पिछले संस्कार नहीं। यहाँ छोड़ने भी आये हो। तो फिर अच्छी तरह से जो कुछ छोड़ना था। वह छोड़ चले हो वा थोड़ा साथ में भी ले जायेंगे? क्या छोड़ा है और कितने तक छोड़ा है। थोड़े समय के लिये छोड़ा है वा सदा के लिये छोड़ा है, यह भी देखना है। संगठन की शक्ति में छोड़ दिया है वा स्वयं की शक्ति से छोड़ा है? संगठन की शक्ति सहारा तो देती है लेकिन संगठन की शक्ति के साथ स्वयं की भी शक्ति चाहिए। जब भी जो छोड़ा है वह सदा काल के लिये।
बापदादा को आप सभी प्रिय तो हो ही। क्योंकि बाप भी तुम बच्चों की मदद से कार्य करा रहे हैं। तो कार्य में मददगार होने वाले प्रिय तो रहते ही हैं। लेकिन मददगार के साथ हिम्मवान कहाँ कम बनते हैं। यहाँ हिम्मत छोड़ देते हैं। अगर हिम्मत हो तो मदद जरूर मिलेगी। तो इसलिए मददगार के साथ कुछ हिम्मतवान भी बनो। छोटी-छोटी बातों में हिम्मतहीन नहीं बनना है। हिम्म- तवान बनने से फिर आप सभी की जो इच्छा है, वह पूर्ण होगी। अभी हिम्मत की आवश्यकता है। हिम्मत कैसे आयेगी? हर समय, हर कदम पर, हर संकल्प में बलिहार होने से। जो बलिहार होता है उसमें हिम्मत ज्यादा होती है तो जितना-जितना अपने को बलिहार बनायेंगे उतना ही गले के हार में नजदीक आयेंगे। अभी बलिहार होंगे फिर बनेंगे प्रभु के गले का हार। अगर बलिहार बनकर के ही कर्म करेंगे तो दूसरों को भी बलिहार बनायेंगे। जिसको वारिस कहा जाता है। अभी प्रजा बहुत बनती हैं। वारिस कम बनते है। जितना बहुत बनायेंगे उतना ही नजदीक आयेंगे। तो अब वारिस बनाने का प्लान सोचो। अच्छा -
मर्यादा के बंधन में रहो तो अनेक बन्धनों से स्वतः मुक्त हो जायेंगे - 22-07-69
सब खुशराज़ी हैं? खुश-खैराफत पूछने की आवश्यकता है? बापदादा तो समझते हैं - अब यह पूछने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि सब बालिग बच्चे बन गये हैं। हर एक ने नर्क से स्वर्ग बनाने की जिम्मेवारी का ताज तो पहन ही लिया है। ताजधारी खुद औरों से खुश खैराफत पूछते हैं। सतयुग में आप जब राजे बनेंगे तो अपने प्रजा से खुश खैराफत पूछेंगे। तो वह संस्कार यहाँ ही भरने हैं ना। अभी जो संस्कार भरे जाते हैं वही फिर अनेक जन्म चलेंगे। उसमें मुख्य संस्कार है जिसको कहा जाता है 'निराधार'। निर-आधार का मतलब यह नहीं कि दैवी सम्बन्ध के नियमों का भी आधार नहीं लेना है। नियमों में पूरा ही परिपक्व रहना है। नियमों में भी पूरे रहें और निराधार भी पूरा रहें। ऐसी अवस्था कब और कहाँ देखी है? साकार रूप का सबूत सबने देखा। जितना ही नियमों में सम्पूर्ण उतना ही निराधार। निराधार होते हुए भी कोई भी बात को रखने लिए बच्चों की राय बिना नहीं करते थे। यह है नियमों का पालन कर सिखलाना। कई बच्चे निराधार तो हो जाते हैं लेकिन निराधार होते-होते कहाँ छोटे-छोटे नियमों से छूट जाते हैं। लेकिन दोनों ही बातें एक साथ चलना यह है ब्राह्मण कुल की मर्यादा के अन्दर रहना। ब्राह्मणों का मुख्य काम क्या होता है? दूसरे को भी बन्धन में बांधना। दूसरों को बांधना अर्थात् खुद भी उसमें बंधे रहना। जितना ही मर्यादा में बंधे हुए रहते उतना ही फिर न्यारे और प्यारे भी रहते। ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं पर कहाँ तक चल रहे हैं यह हर एक को देखना है। ब्राह्मणों की मुख्य मर्यादा कौन सी है? मर्यादा जो होती है उनके अन्दर रहना पड़ता है। तो श्रीमत पर चलना ही मर्यादा के बंधन में बंधना है। अगर कोई मर्यादा तोड़ देता है तो उनको कुल से निकाला जाता है। कलियुग में कुल से निकाल देते हैं लेकिन यहाँ निकाला नहीं जाता है, यहाँ स्वयं ही निकल जाते हैं। तो इस मुख्य मर्यादा में कहाँ तक हम चल रहे हैं, उसकी भी पूरी जांच रखनी चाहिए। सारे दिन में जो भी कर्म होते हैं, उनकी चेकिंग होनी चाहिए। ब्राह्मण कुल की मर्यादा अनुसार हमारी मन्सा-वाचा कर्मणा चली? अगर ब्राह्मण कुल की मर्यादा प्रमाण नहीं चलते तो जिस समय ऐसा कर्म होता है, उस समय जैसे कुल से बाहर निकल जाते हैं। ब्राह्मण-पने का नशा नहीं रहता है, विस्मृति हो जाती है। समझना चाहिए कि हम मर्यादा में रहेंगे तब औरों को मर्यादा सिखला सकेंगे। नामधारी जो ब्राह्मण हैं उनका यही कर्तव्य चलता है। जो भी कर्तव्य होता है उसकी मर्यादायें ब्राह्मण ही आकर सिखलाते हैं और कराते हैं। तुम ब्राह्मण अभी मर्यादाओं में चले हो तब यह यादगार अब तक चलता आ रहा है। जो खुद सीखे हुए होंगे वही औरों को सिखलायेंगे। श्रीमत है एक शब्द। लेकिन उनका रहस्य बहुत है। श्रीमत प्रमाण संकल्प उठें, श्रीमत ने यह भी बताया है संकल्प क्या करना है, देखना कैसे है, बोलना क्या है, कर्म किस स्थिति में स्थित होकर करना है, भोजन कैसे करना है, अगर सोना है तो भी कैसे? यह सब श्रीमत मिली हुई है। याद में रहकर सोना, अपना चार्ट देखकर सोना। यह भी श्रीमत की मर्यादा है। संकल्प तक मर्यादायें क्या हैं, सब पता है। उसमें सब आ जाता है। तो हर कर्म को चेक करो। वृत्ति, दृष्टि, स्मृति कैसे रहती है। हर बात मर्यादा के अन्दर होनी चाहिए। किन बातों से छूटना होता है, किन बातों में फिर बंधना भी होता है। यह थोड़े समय का मीठा बन्धन अनेक बन्धनों से मुक्त करने वाला है। अभी यह आधार न रखो कि कोई हमारा चार्ट देखकर रिजल्ट पूछेगा तब हम आगे बढ़ेंगे। नहीं। अब अपने आपको ही देखते आगे बढ़ते चलो। बापदादा का सहारा तो है ही लेकिन फिर भी छोटी-छोटी बातों में अपने आपको ही ध्यान रखना है। रोज़ का चार्ट अपना देख खुद ही चेकिंग कर आगे बढ़ना है। सब होवनहार राज्य सम्भालने वाले हो। तो जो औरों को सम्भालने वाला होता है वह अपने को नहीं सम्भाल सकेंगे? अगर अपना पोतामेल नहीं सम्भाल सकेंगे तो राजधानी कैसे सम्भालेंगे। अच्छा - कुमारियाँ सोच रही हैं, हमारी रिजल्ट कब निकलेगी? रिजल्ट निकालने योग्य हो? ऐसी रिजल्ट है जो आधे पास हों। कैसा भी कड़ा इम्तहान लेवें तो आधा अन्दाज पास हो जायेगी? इम्तहान भी बड़ा लेना है। यूँ इम्तहान का पेपर सुनाया नहीं जाता है लेकिन यहाँ सुना भी देते हैं। एक इम्तहान तो यह लेंगे कि 8 घण्टा याद में रह सकते हैं? वाचा का भी इम्तहान लेंगे। तीन मिनट में सारे ज्ञान की मुख्य पाइंटस कैसे स्पष्ट हो जाएं। तीन मिनट में सारे ज्ञान का सार ऐसा किसको समझाओ जो दूसरे दिन इच्छुक हो जरूर सुनने आये। कर्मणा का भी कड़ा इम्तहान लेंगे। फिर रिजल्ट निकालेंगे। न सिर्फ यहाँ तक लेकिन जहाँ भी जायेंगी वहाँ से एक मास की रिजल्ट का पता पड़ेगा तब फाइनल मार्क्स मिलेंगी। ऐसी तैयारी करनी है फिर देखेंगे रिजल्ट में कितने पास हुए। अच्छा -
वरदान:- सब कुछ बाप हवाले कर संगमयुगी बादशाही का अनुभव करने वाले अविनाशी राजतिलक अधिकारी भव
आजकल की बादशाही या तो धन दान करने से मिलती है या वोटों से मिलती हैं लेकिन आप बच्चों को स्वयं बाप ने राजतिलक दे दिया। बेपरवाह-बादशाह – यह कितनी अच्छी स्थिति है। जब सब कुछ बाप के हवाले कर दिया तो परवाह किसको होगी? बाप को। लेकिन ऐसे नहीं कि थोड़ा-थोड़ा कहीं अपनी अथॉरिटी को या मनमत को छिपाकर रखा हो। अगर श्रीमत पर हैं तो बाप हवाले हैं। ऐसे सच्चे दिल से सब कुछ बाप हवाले करने वाले डबल लाइट, अविनाशी राजतिलक के अधिकारी बनते हैं।
स्लोगन:- एक-एक वाक्य महावाक्य हो, कोई भी बोल व्यर्थ न जाए तब कहेंगे मास्टर सतगुरू।