ओम् शान्ति।
इस गीत में जैसेकि अपनी महिमा करते हैं। अपनी महिमा वास्तव में की नहीं जाती है। यह
तो सब समझने की बातें हैं जो भारतवासी बहुत समझदार थे, अभी बेसमझ बने हैं। अब
प्रश्न उठता है, समझदार कौन थे? यह कहाँ भी लिखा हुआ नहीं है। तुम हो गुप्त। कितनी
वण्डरफुल बातें हैं। एक तो बाप कहते हैं मेरे द्वारा ही बच्चे मुझे जान सकते हैं।
फिर मेरे द्वारा सब कुछ जान जाते हैं। सृष्टि के आदि मध्य अन्त का जो खेल है, उनको
समझ जाते हैं। और कोई भी नहीं जानते और एक मुख्य भूल की है जो निराकार परमपिता
परमात्मा शिव के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। पहला नम्बर शास्त्र जिनको श्रीमत
भगवत गीता कहते वही रांग हो गया है इसलिए पहले-पहले तो सिद्ध करना है कि भगवान एक
है। फिर पूछना है गीता का भगवान कौन? भारत का आदि सनातन देवी देवता धर्म है। अगर नया
धर्म कहें तो ब्राह्मण धर्म ही कहेंगे। पहले चोटी है ब्राह्मण फिर देवतायें। ऊंच ते
ऊंच ब्राह्मण धर्म है। जो ब्राह्मण ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा रचते हैं, वही
ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं। मुख्य बात है भगवान सबका बाप है, नई दुनिया का रचयिता।
जरूर नई दुनिया ही रचेंगे ना। नई दुनिया में नया भारत होता है। जन्म भी भारत में
लिया है। भारत को ही स्वर्ग बना रहे हैं ब्रह्मा द्वारा। तुमको अपना बनाकर फिर
पढ़ाते हैं मनुष्य से देवता बनाने। पहले तुम शूद्र वर्ण के थे फिर आये ब्राह्मण
वर्ण में फिर दैवी वर्ण में। पीछे वृद्धि होती रहती है। एक धर्म से अनेक धर्म हो
जाते हैं। टाल टालियाँ भी सब धर्मो की बन जाती हैं, हर एक धर्म से निकलती हैं। तीन
ट्युब्स होती हैं ना। यह है मुख्य। हर एक से अपनी-अपनी शाखायें निकलती हैं। मुख्य
है फाउण्डेशन फिर तीन ट्युब्स हैं मुख्य। थुर है आदि सनातन देवी देवता धर्म का। जो
अभी सब राजयोग सीख रहे हो। देलवाड़ा मन्दिर बड़ा अच्छा बना हुआ है, उनमें सारी
समझानी है। बच्चे यहाँ बैठे हैं कल्प पहले भी तुमने राजयोग की तपस्या की थी। जैसे
क्राइस्ट का यादगार क्रिश्चियन देश में है। वैसे तुम बच्चों ने यहाँ तपस्या की है
तब तुम्हारा भी यादगार यहाँ है। है बड़ा सहज। परन्तु कोई भी जानते नहीं हैं।
संन्यासी लोग तो कह देते हैं यह सब कल्पना है, जैसी जो कल्पना करे। तुम्हारे लिए भी
कहते हैं यह चित्र आदि सब कल्पना से बनाये हैं। जब तक बाप को जानें, कल्पना ही समझते
हैं। नॉलेजफुल तो एक बाप है ना। तो मुख्य है बाप का परिचय देना। वह बाप स्वर्ग का
वर्सा देते हैं, कल्प पहले भी दिया था। फिर 84 जन्म लेना पड़े। भारतवासियों के ही
84 जन्म होते हैं। फिर संगमयुग पर बाप आकर राजधानी की स्थापना करते हैं। तुम बच्चों
ने बाप द्वारा समझा है। जब अच्छी रीति समझें, बुद्धि में बैठे तब खुशी भी रहे।
यह पढ़ाई बड़ी सोर्स ऑफ इनकम है। पढ़ाई से ही मनुष्य बैरिस्टर आदि बनते हैं।
लेकिन यह पढ़ाई मनुष्य से देवता बनने की है। प्राप्ति कितनी भारी है। इन जैसी
प्राप्ति कोई करा न सके। ग्रंथ में गाया हुआ है – मनुष्य से देवता किये करत न लागी
वार। परन्तु मनुष्यों की बुद्धि चलती नहीं। जरूर वह देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो
गया है, तब तो लिखते हैं मनुष्य से देवता बनें। देवतायें सतयुग में थे। उन्हों को
जरूर भगवान ने संगम पर रचा होगा। कैसे रचा? यह नहीं जानते। गुरू नानक ने भी परमात्मा
की महिमा गाई है। उन जैसी महिमा कोई ने नहीं गाई है इसलिए ग्रंथ को भारत में पढ़ते
हैं। गुरूनानक का कलियुग में अवतार होता है। वह है धर्म स्थापक। राजाई तो पीछे हुई
है। बाप ने तो यह देवी देवता धर्म स्थापन किया है। वास्तव में नई दुनिया ब्राह्मणों
की ही कहें। चोटी भल ब्राह्मणों की है परन्तु राजधानी देवी देवताओं से शुरू होती
है। तुम ब्राह्मण रचे हुए हो। तुम्हारी राजधानी नहीं है। तुम अपने लिए राजधानी
स्थापन करते हो। बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। मनुष्य तो कुछ नहीं जानते हैं। पहले-पहले
अपने को मालूम हुआ तो अपने द्वारा दूसरों को मालूम होता है। तुम शूद्र से ब्राह्मण
बने हो। ब्रह्मा को भी अभी बाप द्वारा मालूम पड़ता है। एक को बताया तो बच्चों को भी
बताना होता है। उनके तन द्वारा तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं। यह है अनुभव की बातें।
शास्त्रों से तो कोई कुछ भी समझ न सके। बाप कहते हैं सारे कल्प में एक ही बार मैं
ऐसे ही आकर समझाता हूँ। और अनेक धर्मो का विनाश, एक धर्म की स्थापना कराता हूँ। यह
5 हजार वर्ष का खेल है। तुम बच्चे जानते हो हमने 84 जन्म लिए हैं। विष्णु की नाभी
से ब्रह्मा दिखाते हैं। ब्रह्मा और विष्णु यह किसके बच्चे हैं? दोनों बच्चे ठहरे
शिव के। वह है रचयिता, वह रचना। इन बातों को कोई समझ न सके। बिल्कुल नई बात है। बाबा
भी कहते हैं यह नई बातें हैं। कोई शास्त्रों में यह बातें हो न सके। ज्ञान का सागर
बाप है, वही गीता का भगवान है। भक्ति मार्ग में शिव जयन्ती भी मनाते हैं। सतयुग
त्रेता में नहीं मनाते। तो जरूर संगम पर ही आते होंगे। यह बातें तुम समझते जाते हो
और समझाते रहते हो। जो समझाने वाले बाप की महिमा है, वह बच्चों की होनी चाहिए। तुमको
भी मास्टर ज्ञान का सागर बनना है। प्रेम का सागर, सुख का सागर यहाँ बनना है। किसको
दु:ख नहीं देना है। बहुत मीठा बनना है। तुम जो कड़ुवे एकदम जहर मिसल थे, सो तुम
वाइसलेस ब्राह्मण बन रहे हो। ईश्वर की सन्तान बन रहे हो। विशश से वाइसलेस देवता बन
रहे हो। आधाकल्प तुम पतित बनते-बनते अभी बिल्कुल जड़जड़ीभूत अवस्था को पाये हुए हो।
सड़े हुए कपड़ों को सटका लगाने से फटकर चीर-चीर हो जाते हैं। यहाँ भी ज्ञान के सटके
लगाओ तो पुर्जा-पुर्जा हो जाते हैं। कोई कपड़ा ऐसा मैला है जो साफ करने में बहुत
टाइम लगता है। फिर वहाँ भी हल्का पद मिल जाता है। बाबा धोबी है। तुम भी साथ में
मददगार हो। धोबी भी नम्बरवार होते हैं। यहाँ भी नम्बरवार हैं। धोबी अच्छे कपड़े साफ
न करे तो कहेंगे ना कि यह तो जैसे हज़ाम है। आजकल कपड़े साफ धुलाने सीखे हैं। आगे
गांवड़ों में तो बहुत मैले कपड़े धुलाई होते थे। यह हुनर भी बाहर वालों से आया है।
बाहर वाले कुछ इज्जत देते हैं। पैसे आदि की मदद करते हैं। जानते हैं यह बहुत बड़ी
बिरादरी वाले हैं। अब नीचे गिरे हैं। गिरने वालों पर तरस पड़ता है ना। बाप कहते हैं
तुमको कितना धनवान बनाया था। माया ने क्या हालत कर दी है। तुम अभी समझते हो हम विजय
माला के थे, फिर 84 जन्म ले क्या जाकर बने हैं। वन्डर है ना। तुम समझा सकते हो, तुम
भारतवासी तो स्वर्गवासी थे। भारत ही स्वर्ग था फिर नीचे गिरते-गिरते नर्कवासी भी
बनना पड़े। अब बाप कहते हैं – पवित्र बन स्वर्गवासी बनो। मनमनाभव। शिव भगवानुवाच
मामेकम् याद करो। याद की यात्रा से तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जायेंगे। शास्त्रों में
लिखा है – कृष्ण ने भगाया, पटरानी बनाने। तुम सब पढ़ रहे हो, पटरानी बन रहे हो।
परन्तु इन बातों को कोई समझ नहीं सकते हैं। अब बाप ने आकर बच्चों को समझाया है। बाप
कहते हैं मैं कल्प-कल्प तुमको समझाने आता हूँ तो पहले भगवान एक है, यह सिद्ध कर फिर
बताओ गीता का भगवान कौन है। राजयोग किसने सिखाया है? भगवान ही ब्रह्मा द्वारा
स्थापना कराते हैं और विनाश फिर पालना कराते हैं। यह जो ब्राह्मण हैं वही फिर देवता
बनते हैं। यह बातें भी समझ में उन्हों को आयेंगी जिन्होंने कल्प पहले समझा है।
सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो हुआ इस समय तक समझेंगे। ड्रामा में तुम्हें बहुत पुरूषार्थ
करना है। यह तो बच्चे समझते हैं अभी हमारी वह अवस्था नहीं हुई है। टाइम लगेगा।
कर्मातीत अवस्था हो जाए तो फिर सब नम्बरवन पास हो जाएं फिर तो लड़ाई भी लग जाती।
आपस में खिटपिट चलती ही रहेगी। तुम जानते हो जहाँ तहाँ देखो लड़ने की तैयारियाँ कर
रहे हैं। सब तरफ तैयारियाँ कर रहे हैं। तुमने जो कुछ दिव्य दृष्टि से देखा है वह
फिर इन आंखों से देखना है। विनाश का साक्षात्कार किया है फिर वैसे आंखों से देखेंगे।
स्थापना का भी साक्षात्कार किया है फिर प्रैक्टिकल में राजाई भी देखेंगे। तुम बच्चों
को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। यह तो पुराना तन है। योग से आत्मा पवित्र बन जायेगी,
फिर यह पुराना शरीर भी छोड़ना है। 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है फिर जरूर सबको नये
शरीर मिलेंगे। यह भी समझने की बहुत सहज बातें हैं। समझा भी सकते हैं, कलियुग के बाद
सतयुग जरूर होगा। अनेक धर्मो का विनाश जरूर होगा। फिर आदि सनातन देवी देवता धर्म की
स्थापना अर्थ बाप को आना पड़े। अभी तुम ब्राह्मण बने हो देवता बनने के लिए। दूसरे
कोई हो न सके। तुम जानते हो हम शिवबाबा के बने हैं, शिवबाबा हमको वर्सा दे रहे हैं।
शिव जयन्ती माना ही भारत को वर्सा मिला। शिवबाबा आया, क्या आकर किया। इस्लामी,
बौद्धी आदि ने तो आकर अपना धर्म स्थापन किया। बाप ने आकर क्या किया? जरूर स्वर्ग की
स्थापना की। कैसे स्थापना की, कैसे स्थापना होती है सो तुम अभी जानते हो। फिर सतयुग
में यह सब भूल जायेंगे। यह भी समझते हो 21 जन्मों का वर्सा अभी हम ले लेते हैं। यह
ड्रामा में नूँध है। भल वहाँ समझेंगे यह बाप है, यह बच्चा है। बच्चे को वर्सा मिलता
है। परन्तु यह प्रालब्ध है अभी की। सच्ची कमाई कर 21 जन्मों के लिए तुम वर्सा अभी
पा रहे हो। 84 जन्म तो लेने ही हैं। सतोप्रधान से फिर सतो रजो तमो में आयेंगे। यह
अच्छी रीति याद करने से फिर खुशी में भी रहेंगे। समझाने में बड़ी मेहनत लगती है। जब
समझ जाते हैं तो उनको बड़ी खुशी होती है। जो बच्चे अच्छी रीति समझते हैं वह फिर
बहुतों को समझाते रहते हैं। काँटों को फूल बनाते रहते हैं। यह है बेहद की पढ़ाई।
वर्सा भी बेहद का मिलता है। फिर इसमें त्याग भी बेहद का है। गृहस्थ व्यवहार में रहते
सारी दुनिया का त्याग करना है क्योंकि तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
अब नई दुनिया में जाना है इसलिए बेहद का संन्यास कराते हैं। संन्यासियों का है हद
का संन्यास और उनका है हठयोग। इसमें हठ की बात नहीं रहती। यह तो पढ़ाई है। पाठशाला
में पढ़ना है, मनुष्य से देवता बनने के लिए। शिव भगवानुवाच – कृष्ण हो न सके। कृष्ण
कब नई दुनिया बना न सके। उनको हेविनली गाड फादर नहीं कहेंगे। हेविनली प्रिन्स कहेंगे
तो कितनी मीठी-मीठी बातें समझने और धारण करने की हैं। दैवी लक्षण भी चाहिए। कभी भी
सुनी सुनाई बातों पर नहीं लगना चाहिए। व्यास की लिखी हुई बातों पर लगते-लगते बुरी
गति हुई है ना। सिवाए ज्ञान के और कुछ सुनाते हैं तो समझो यह हमारा दुश्मन है।
दुर्गति में ले जाते हैं। कभी भी परमत पर नहीं लगना चाहिए। मनमत, परमत पर चला तो यह
मरा। बाप समझाते रहते हैं झूठी बातें बोलने वाले तो बहुत हैं। तुमको बाप से ही सुनना
है। हियर नो ईविल, सी नो ईविल….. बापदादा आये ही हैं मनुष्य से देवता बनाने तो उनकी
श्रीमत पर चलना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यहाँ बाप समान सुख का सागर, प्रेम का सागर बनना है। सर्वगुण धारण करने
हैं। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) सुनी-सुनाई बातों पर कभी विश्वास नहीं करना है, परमत पर नहीं चलना है। हियर
नो ईविल, सी नो ईविल….