02-12-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - सद्गति होती है याद की यात्रा से, योग अग्नि से ही आत्मा पावन बनेंगी, विकर्म विनाश होंगे”

प्रश्नः-
सर्विस के प्रति अगर बच्चों की बुद्धि नहीं चलती है तो बाबा क्या समझते हैं?

उत्तर:-
बाबा समझते हैं बच्चे अब तक माया के तूफानों से लड़ रहे हैं। मायाजीत नहीं बने हैं। बाबा कहते बच्चे, माया के विघ्न तो आयेंगे ही लेकिन तुम्हें इनको पार करते सर्विस में अपने को बिजी करना है, तब ही पास हो सकेंगे।

ओम् शान्ति। बच्चे जानते हैं कि बाप आये हुए हैं। क्या करने? इस पतित दुनिया को पावन बनाने अर्थात् सुख-शान्ति स्थापन करने। वो तो गाया हुआ है परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा सुख शान्ति स्थापन करते हैं और दुःख-अशान्ति की पुरानी दुनिया विनाश कराते हैं। त्रिमूर्ति में भी क्लीयर है। फिर पावन दुनिया की पालना विष्णु के दो रूप करते हैं। पालना करता विष्णु को दिखाते हैं। जरूर जो स्थापना करते हैं वही पालना करेंगे। बच्चे जानते हैं पतित-पावन है ही एक परमपिता परमात्मा, जिसको पुकारते रहते हैं। परन्तु वह कब और कैसे आते हैं? यह कोई को पता नहीं है - सिवाए तुम्हारे। यह भक्ति मार्ग में गाते हैं - पतित-पावन आओ। समझते हैं कि हम पतित हैं। अब इतने सबको निमन्त्रण कैसे दिया जाए? कैसे सिद्ध कर बतायें कि सभी भारतवासी पतित हैं? खास भारत की ही बात है। बाप भी भारत में ही आते हैं। कहा भी जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले-पहले भारतवासियों को इशारा मिलना चाहिए। भारतवासी असुल देवी-देवता धर्म के हैं जो फिर 84 जन्म लेते-लेते उतरती कला में आ जाते हैं। देवतायें सो फिर क्षत्रिय, सो वैश्य, सो शूद्र। शूद्र सो ब्राह्मण बनते हैं। ब्राह्मण फिर देवता बनते हैं। इन बातों को जो जानते हैं वह बताते हैं। दुनिया थोड़ेही जानती है, भल 84 जन्म कहते हैं परन्तु किसके और कैसे होते हैं, यह कुछ नहीं जानते हैं। देवी-देवता कहाँ गये? जरूर उतरना पड़े। 16 कला से 14 कला बनना पड़े। सूर्यवंशी ही चन्द्रवंशी बनते हैं। 16 कला सम्पूर्ण से 14 कला बन जाते हैं। उतरती कला होती रहती है। इस समय मनुष्यों की विचार शक्ति कुछ भी नहीं है। बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है। अभी तुम बच्चे जानते हो सारी दुनिया, उसमें भी भारत खास पतित है। यह स्लोगन भी अच्छा बनाया है - सर्व का पतित-पावन एक परमपिता परमात्मा है वा पतित-पावनी पानी की गंगा? सर्व का सद्गति दाता तो एक परमात्मा को ही कहा जाता है। गंगा को भल पतित-पावनी कहते हैं परन्तु सद्गति दाता तो कहते नहीं। पावन दुनिया में है सद्गति, पतित दुनिया में है दुर्गति। सद्गति होती है सतयुग में। तुम बच्चों को बाप द्वारा सद्गति अर्थात् जीवनमुक्ति मिलती है। आत्मा जब शरीर में है तब जीवनमुक्त वा जीवनबंध कहा जाता है। जीवनबंध से जीवनमुक्त बनाने वाला एक ही बाप है। जो बच्चे सर्विस पर हैं उन्हों को ख्यालात चलते हैं कि इस पर पर्चे कैसे निकाले जायें। पावन होने लिए स्नान करने जाते हैं। जहाँ-तहाँ स्नान करते हैं। अभी वास्तव में संगम होता है सागर और नदियों का। नदियों का नदियों से संगम होता नहीं। मनुष्य तो कुछ समझते नहीं। अब स्नान आदि तो सब जगह करने जायेंगे। तो यह पर्चे भी सब जगह बांटने चाहिए। तुम आये हो पतित से पावन बनने के लिए। स्नान करने से सिद्ध है कि तुम जरूर पतित हो। सर्व को पतित से पावन बनाने वाला तो परमपिता परमात्मा है। तुम गाते भी हो पतित-पावन सीताराम फिर नदियों का पानी कैसे पावन बना सकता है? एक की बात तो नहीं है। सर्व को पावन बनाने वाला परमपिता परमात्मा ही गाया हुआ है फिर तुम इस संगम पर क्यों आते हो? इससे सिद्ध करते हो कि हम पतित हैं। यह स्नान तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो फिर फ़ायदा क्या हुआ? यह नदियाँ तो अनादि हैं। सतयुग में भक्ति की बातें होती नहीं। पतित यहाँ हैं। परन्तु गंगा जल तो किसको पावन कर न सके। ज्ञान सागर और ज्ञान नदियाँ ही पावन बना सकती हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो इस योग अग्नि से तुम पावन हो सकते हो। तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यह समझ की बात है। बड़ी युक्ति से शार्ट में लिखना है। यह है पतित दुनिया। भारत पावन था, अभी पतित है। फिर पतित से पावन बनाना बाप का ही काम है। भक्ति से किसकी सद्गति हो नहीं सकती। भक्तों को भगवान ही आकर सद्गति देते हैं। आधाकल्प भक्ति करनी ही है। ऐसे नहीं कि मेहनत करते हैं तो उनका फल मिलना चाहिए। यह तो ड्रामा बना हुआ है। जब ज्ञान सागर आते हैं तो ब्रह्मा का दिन हो जाता है। सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में रहता है और क्लीयर कर लिखना है। क्या तुम भूल गये हो - क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत पावन था, देवी-देवताओं का राज्य था। उन्हों को पावन किसने बनाया? परमपिता परमात्मा ही पावन दुनिया बनाने वाला है। संगम पर आकर पतित दुनिया को पावन बनाए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। सद्गति होती है याद की यात्रा से। तो बुद्धि चलनी चाहिए कि कैसे पर्चे छपायें। यह पहले अखबार में डाल सकते हैं। वह स्नान आदि तो करते ही आये हैं। पावन दुनिया तो परमपिता परमात्मा ही स्थापन करते हैं। वास्तव में सच्चा-सच्चा यह ज्ञान स्नान सिद्ध कर बताना है। अब बाप कहते हैं - विचार करो तुमको पतित से पावन बनाने वाला मैं सर्व का बाप हूँ या वह गंगा? ऐसे-ऐसे पर्चे लाखों की अन्दाज में छपाकर गांव -गांव में बांटने चाहिए। जहाँ भी मेला लगता है। लाखों से अगर दो चार को भी तीर लग जाय तो कहेंगे ठीक है। ज्ञान तो बहुत अच्छा है तो आकर कुछ समझेंगे। मौका मिलता है तो युक्ति रचनी चाहिए। भारतवासी असुल आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे। प्राचीन भारत में देवी-देवताओं का राज्य था, न कि हिन्दू। देवी-देवता नाम निकाल हिन्दू नाम क्यों रखा गया? क्योंकि इस समय कोई देवताओं जैसा पवित्र तो है नहीं, इसलिए अपना नाम हिन्दू रख दिया है। देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है। जब प्राय: लोप हो तब तो मैं आकर फिर स्थापन करूँ। जब अपवित्र बनते हैं तो अपने को हिन्दू कहलाने लग पड़ते हैं, फिर अपने को देवता धर्म का तब समझें जब फिर आकर पतित से पावन बनें। भारत पतित बना है तब नाम हिन्दू रख दिया है। यह ड्रामा की भावी ऐसी बनी हुई है। धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन गये हैं। भारत धर्म श्रेष्ठ, कर्म श्रेष्ठ था। अभी कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं। विकारों में गिर पड़े हैं।

अब तुम बच्चे जानते हो बाप दैवी श्रेष्ठाचारी देवता बनाने आये हैं। यह बाप का ही काम है। बाप कहते हैं कल्प-कल्प आकर भ्रष्टाचारी भारत को श्रेष्ठाचारी देवता बनाता हूँ। उन्होंने फिर देवताओं और दैत्यों की युद्ध दिखा दी है। परन्तु युद्ध तो है नहीं। बाप कहते हैं - श्रीमत पर चलो। पारलौकिक बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम श्रेष्ठाचारी देवता बन जायेंगे। सेन्सीबुल जो होंगे उनकी बुद्धि में यह सब बातें बैठेंगी। जो देवता धर्म का होगा उनको ही तीर लगेगा। बाबा ने ऐसे (निबन्ध) दे दिया है। स्कूलों में बच्चों को काम दिया जाता है फिर रिफाइन कर आते हैं। पीछे नम्बर भी मिलते हैं। इस काम में सेन्सीबुल बच्चे ही अटेन्शन देते हैं। पास भी वहीं होंगे जो सर्विस पर उपस्थित हैं। उनको सर्विस का ओना रहता है। बाकी तो एक कान से सुन, दूसरे से निकाल देते हैं। बाबा कहते हैं टाइम शार्ट होता जाता है। उसमें जो बड़े हैं उनको जाकर समझाना चाहिए। एक दो के ऊपर भी बहुत हैं। यह चीज़ है एरोप्लेन से फेंकने की, तो फिर तुम्हारा बहुत नाम होगा। मनुष्य समझेंगे जरूर ऐसी ऊंची चीज़ है तब तो एरोप्लेन से गिराते हैं। अखबारों में बी.के. का नाम बहुत पड़ता है। राइट तरफ़ भी लिखते हैं तो रांग भी लिखते हैं। जब वह ऐसी चीजें देखेंगे तो समझेंगे जरूर कुछ है। यह बहुत नई चीज़ है। परन्तु कायदे अनुसार न होने कारण सर्विस फलीभूत नहीं होती है। फिर दूसरा तीसरा वारी ट्रायल कर फलीभूत कर लेते हैं। चलते-चलते आखरीन तुम्हारी बात सुनेंगे। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम मेरे पास आ जायेंगे। आधाकल्प दुर्गति का पूरा होता है फिर बाप आकर सद्गति करते हैं। मनुष्य यह नहीं जानते कि सब पतित हैं। भ्रष्टाचार से जन्म तो सब लेते हैं। भ्रष्टाचार कहा जाता है विकार को। बाप भी कहते हैं - काम महाशत्रु है, इन पर विजय पहनो। सन्यासी भी पवित्र बनते हैं तो अपवित्र मनुष्य उनको माथा झुकाते हैं। भारत में देवी-देवतायें थे। उन्हों को कहेंगे फर्स्ट नम्बर के सतोप्रधान पवित्र। यह सन्यासी हैं रजोप्रधान। अभी तो सब तमोप्रधान बन गये हैं। आगे सर्वव्यापी नहीं कहते थे। रचता और रचना का राज़ तुम ब्राह्मणों के सिवाए कोई भी नहीं जानते हैं। फिर यह ज्ञान प्रायः लोप हो जाता है। सद्गति मिल जाती है तो फिर ज्ञान की दरकार ही नहीं रहती है। ज्ञान से ही सद्गति होती है। ज्ञान मिलता है संगम पर, जब दुर्गति पूरी होती है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं - आधाकल्प भक्ति चलती है, उस समय देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं। आधाकल्प तो रावण का नाम निशान भी नहीं रहता है। रावण राज्य में पहले सुख फिर दुःख मिलता है। ऋषि मुनि आदि पहले तो बहुत नामीग्रामी थे। पहले बहुत अच्छे थे। अब वह भी पतित बन गये हैं। यह हैं सब समझने की बातें। महारथियों को आपस में राय करनी है। बाबा को अपनी राय लिखकर भेजनी है। तो समझें इनकी बुद्धि चलती है। बच्चों को तूफान भी अनेक प्रकार के आते हैं। नहीं तो परीक्षा कैसे होगी। युद्ध में अच्छी रीति लड़ना पड़ता है। जिस समय जो कर्तव्य करना है उस तरफ ख्यालात चलाना पड़े। जब चांस मिलता है तो तुम बी.के. सिद्धकर समझाओ फिर बी.के. का नाम बहुत होगा। पर्चे बहुत छपाने पड़े। याद की यात्रा बिगर कोई पावन बन न सके। यहाँ तो तुम याद में बैठे हो तो कितने विघ्न पड़ते हैं। सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। कोई नया जिज्ञासु आया यह भागा उनकी सर्विस करने। पहले देखो हमारे धर्म का है वा नहीं। इसलिए पहले फार्म भराया जाता है। फार्म भराने समय ही समझाते रहें। फार्म से ही मालूम पड़ जाता है कि लायक है या नहीं। लायक न हो तो रवाना कर देना चाहिए। मुख्य बात है बाप का परिचय देना।

अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) टाइम बहुत थोड़ा है इसलिए सेन्सीबुल बन सेवा पर उपस्थित रहना है। दूरादेशी बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है।

2) सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ रचनी हैं। कायदे अनुसार श्रीमत पर सर्विस करनी है। पावन बनने के लिए याद की मेहनत करनी है।

वरदान:-
सतगुरू द्वारा प्राप्त हुए महामन्त्र की चाबी से सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव

सतगुरू द्वारा जन्मते ही पहला-पहला महामन्त्र मिला - “पवित्र बनो-योगी बनो”। यह महामन्त्र ही सर्व प्राप्तियों की चाबी है। अगर पवित्रता नहीं, योगी जीवन नहीं तो अधिकारी होते हुए भी अधिकार की अनुभूति नहीं कर सकते, इसलिए यह महामन्त्र सर्व खजानों के अनुभूति की चाबी है। ऐसी चाबी का महामन्त्र सतगुरू द्वारा जो श्रेष्ठ भाग्य में मिला है उसे स्मृति में रख सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बनो।

स्लोगन:-
संगठन में ही स्वयं की सेफ्टी है, संगठन के महत्व को जानकर महान बनो।