25-10-12  प्रात: मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सब घुटकों से छुड़ाने, तुम अभी इस शोक वाटिका से अशोक वाटिका में चलते हो, इस विषय वैतरणी नदी से पार जाते हो"

 

प्रश्नः- याद में बैठते समय किस बात का विघ्न नहीं पड़ता और किस बात का विघ्न पड़ता है?

 

उत्तर:- याद में बैठने के समय किसी भी आवाज का या शोरगुल का विघ्न नहीं पड़ता वह ज्ञान में पड़ता है लेकिन याद में माया का विघ्न जरूर पड़ता है। माया याद के समय ही विघ्न डालती है। अनेक प्रकार के संकल्प-विकल्प ले आती है इसलिए बाबा कहते हैं बच्चे सावधान रहो। माया का घूंसा मत खाओ। शिवबाबा जो तुम्हें अपार सुख देता है, सर्व संबंधों की सैक्रीन है - उसे बहुत-बहुत प्यार से याद करो। याद में तीखी दौड़ी लगाओ।

 

गीत:- रात के राही.....

 

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे बच्चे जो यात्रा पर हैं। वैसे जो बैठे हैं उनको यात्रा पर थोड़ेही कहा जाता। यह यात्रा कैसी वन्डरफुल है। शान्ति की यात्रा, शान्तिधाम में जाने की यात्रा। रावण के राज्य में घुटका खाकर मरना होता है। एक सत्यवान सावित्री की कहानी है ना कि काल से भी सावित्री, सत्यवान की आत्मा को वापिस ले आई। वास्तव में ऐसी कोई बात है नहीं। बाकी आधाकल्प काल खाता है। अन्त में घुटका आता है ना। रावण जिसको वर्ष-वर्ष जलाते रहते हैं, वह हमारा दुश्मन है, यह नहीं जानते। बाबा कहते हैं मैं आया हूँ तुमको शोक वाटिका से निकाल अशोक वाटिका में ले जाने, जहाँ घुटका खाना नहीं होता। यहाँ तो अनेक प्रकार के घुटके हैं। माँ बाप पति बच्चों के घुटके खाते रहते हैं। पति विकार में फंसाते हैं। बाप आकर इन सब घुटकों से छुड़ाते हैं और नई दुनिया में ले जाते हैं। अभी आत्मा के पंख टूट गये हैं। आत्मा उड़ नहीं सकती। फिर याद की यात्रा नहीं कर सकते हैं। बरोबर यह बुद्धियोग की यात्रा है, लिखा है ना - मनमनाभव। इसका अर्थ कोई यात्रा थोड़ेही समझते हैं। कहते हैं राम ने बन्दरों की सेना ली और बन्दरों ने पुल बनाई। बन्दर पुल कैसे बनायेंगे। यह तुम्हारी याद के यात्रा की पुल बन रही है, जिस पुल से तुम विषय वैतरणी नदी पार हो जाते हो। बाप इस नदी में तैरना सिखलाते हैं। खिवैया है ना। विषय वैतरणी नदी से पार कराए शिवालय में ले जाते हैं। कहते हैं अमृत छोड़ विष काहे को खाए। तो ज्ञान को अमृत कहा जाता है। ज्ञान से सद्गति होती है। शास्त्रों को ज्ञान नहीं कहेंगे। वह है भक्ति की सामग्री। शास्त्र पढ़ने से सतयुग आ नहीं सकता, सद्गति हो नहीं सकती इसलिए उनको ज्ञान अमृत नहीं कहेंगे, वह है भक्ति। ज्ञान में पहले 100 प्रतिशत सद्गति फिर धीरे-धीरे नीचे उतरते हैं। यह नहीं कहेंगे कि सतयुग में भी दुर्गति होती है, वहाँ दुर्गति का नाम नहीं होता। कलियुग में सबकी दुर्गति होती है।

 

तुम जानते हो सर्व पर दया करने वाला बाप एक ही है जिसको श्री-श्री कहा जाता है। फिर श्री श्री का टाइटल सब पर रख देते हैं। श्री कहा जाता है देवताओं को। श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री राम-सीता, तो ऐसा श्री बनाने वाले को श्री श्री कहा जाता है। तुम बाप के सामने प्रतिज्ञा करते हो कि हम कभी विकार में नहीं जायेंगे। अगर प्रतिज्ञा कर फिर भूल की तो बाप का राइट हैण्ड धर्मराज भी बैठा है। धर्मराज माफ नहीं करेगा। बाप भी गुप्त, ज्ञान भी गुप्त, मर्तबा भी गुप्त। यह सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि हमको श्रीमत देने वाला कोई मनुष्य हो नहीं सकता। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा बाप रचना रचते हैं। प्रजापिता सूक्ष्मवतन में तो होता नहीं। जरूर यहाँ ही होगा। तुम बच्चे समझ गये हो कि ब्रह्मा इस समय ब्राह्मण है। इनको भविष्य में बादशाही मिलती है। देवतायें पतित दुनिया में तो राजाई कर न सकें। तो पुरानी दुनिया का विनाश चाहिए, विनाश होना भी है जरूर। अभी थोड़ी देरी है। तुम्हारा अभी नये झाड़ का सैपलिंग ही पूरा नहीं लगा है। आगे गाते थे - त्वमेव माताश्च पिता... सबके आगे यह महिमा गाते रहते हैं। समझते कुछ भी नहीं। अच्छा विचार करो ब्रह्मा माता कैसे हो सकते? लक्ष्मी-नारायण की भी अपनी राजाई चलती है। तो उनको मात पिता कह न सकें। तो इस समय परमपिता परमात्मा प्रैक्टिकल में मात-पिता का पार्ट बजा रहे हैं। फिर भक्ति मार्ग में महिमा गाई जाती है। उसमें भी पहले-पहले शिवबाबा को त्वमेव माताश्च पिता कहते हैं। पीछे लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम सबको कहते रहते। अक्ल तो कुछ है नहीं। शिवबाबा है पीन। यह मनुष्य-मात्र सब आसुरी मत पर दु:ख ही देते हैं और मैं सबके एवज में सबसे जास्ती सुख देता हूँ। मैं दाता हूँ। मैं तुम बच्चों को श्रीमत देता हूँ कि बच्चे तुम जितना याद की यात्रा पर रहेंगे, स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे, कमल फूल समान बनेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। इन अलंकारों का अर्थ कोई समझा न सके। अलंकार तुम ही धारण करते हो। निशानी विष्णु को दे दी है। तीसरा नेत्र भी देवताओं को दे दिया है। वास्तव में तीसरा नेत्र भी तुमको मिलता है। त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी.... अक्षर है ना। इसका अर्थ भी इस समय तुम आत्मा की बुद्धि में है। आत्मा की बुद्धि में ही सब कुछ रहता है। मेरी आंख, नाक, कान भी शरीर नहीं कहता है। आत्मा कहती है यह मेरा शरीर रूपी महल है। आत्मा को मालूम पड़ा है कि मुझ आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूंधा हुआ है। कितनी गुप्त बातें हैं। आत्मा को राकेट भी कहते हैं, जिस आत्मा को शरीर छोड़ लण्डन में जाना होगा तो सेकेण्ड में चली जायेगी। उन्होंने कितना तीखा राकेट बनाया है, जो सुबह चले तो शाम को पहुँच जाये। आगे स्टीम्बर में 3-4 मास लग जाते थे। अभी भी स्टीम्बर में एक मास लग जाता है। एरोप्लेन में एक दिन। परन्तु आत्मा बहुत तीखा राकेट है, जो एक सेकेण्ड में पहुँच जाती है, जो कोई भी देख न सके। तुम आत्मा का आलराउन्ड पार्ट है। अच्छा परमात्मा का पार्ट क्या है? द्वापर से मेरा साक्षात्कार कराने का पार्ट है, जो-जो जिस भावना से मुझे याद करता है, उनकी मनोकामना पूर्ण करता हूँ। अभी मेरा ज्ञान देने का पार्ट है, पतितों को पावन बनाने का पार्ट है। तुमको मास्टर नॉलेजफुल गॉड के बच्चे मास्टर गॉड बनाता हूँ। जिन्होंने कल्प पहले पुरुषार्थ किया था, वहीं करेंगे। बच्चे कहते हैं कल्प पहले आये थे, अब फिर से वर्सा ले रहे हैं। किसके पास? मात-पिता के पास। सरस्वती सबकी माता है। उनकी माता यह ब्रह्मा। इनकी माता तो कोई है नहीं। शिवबाबा खुद कहते हैं तुम मेरी वन्नी (पत्नी) हो तो फिर मैं कहता हूँ पति बिगर खाना मैं कैसे खाऊंगा। तो अच्छा शिवबाबा और हम दोनों इकट्ठे खाते हैं। नशा तो रहता है ना। तुम भी खुद कहते हो कि बाबा दलाल बन आया है, अपने साथ सगाई कराने। तुम श्रीमत पर परमात्मा के साथ सबकी सगाई कराते हो। पण्डितों ने जो विकार का हथियाला बांधा है वह बाप कैन्सिल कराते हैं। बाप कहते हैं तुम ज्ञान चिता पर बैठो तो गोरे बनेंगे। काम चिता पर बैठ तुम काला मुँह क्यों करते हो! श्याम-सुन्दर का अर्थ तुम जानते हो। श्रीकृष्ण है सुन्दर, अभी तो वह भी श्याम है। अब बाप ने आकर अपना परिचय दिया है।

 

तुम हो पतित-पावन गॉड फादर के स्टूडेन्ट। तो यह पाठशाला है। पाठशाला में पढ़ाई होती है। मेहनत करनी पड़ती है और उन सतसंगों में मेहनत नहीं है। वहाँ तो गीता सुनी, ग्रंथ सुना और घर गया। वहाँ कोई थोड़ेही कहता है कि पवित्र बनो, यात्रा करो। आगे चल यह सब जिस्मानी यात्रायें आदि बन्द हो जायेंगी। बर्फ पड़ी वा एक्सीडेन्ट हुआ तो कोई जायेंगे नहीं क्योंकि तुम्हारी यात्रा जोर होती जायेगी। हमारी यात्रा है शिवालय तरफ। पहले शिव की पुरी शिवालय में जायेंगे। फिर शिव की स्थापन की हुई पुरी शिवालय (स्वर्ग) में जायेंगे। शिवपुरी और विष्णुपुरी दोनों को शिवालय कहेंगे क्योंकि मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों शिवबाबा ही देते हैं। तो सतयुगी दैवी घराना शिवबाबा स्थापन करते हैं।

 

अच्छा - याद में आवाज का विघ्न पड़ नहीं सकता। ज्ञान सुनने में शोर का विघ्न पड़ेगा। मनुष्य तो कहते हैं शान्ति करो, नहीं तो याद में विघ्न पड़ेगा। परन्तु योग में आवाज विघ्न नहीं डालता। विघ्न डालती है माया। बच्चों के साथ माया की युद्ध है। बच्चों को युद्ध के मैदान में हार नहीं खानी चाहिए। माया तो घूंसा लगाती रहती है। माया ने नाक पर घूंसा लगाया तो यह गिरा। फिर खड़े हुए फिर नाक पर लगाया तो यह गिरे। तो बाप कहते हैं यह माया काम क्रोध के घूंसे मारती है, इससे तुम्हें बहुत-बहुत सावधान रहना है। घूंसे नहीं खाने हैं। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) ज्ञान के सब अलंकारों को धारण कर स्वदर्शन चक्रधारी, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी अर्थात् मास्टर गॉड बनना है।

 

2) बाप के राइट हैण्ड धर्मराज़ को स्मृति में रख कोई भी विकर्म नहीं करने हैं। पावन बनने की प्रतिज्ञा करके विकार में नहीं जाना है।

 

वरदान:- स्मृति के महत्व को जान अपनी श्रेष्ठ स्थिति बनाने वाले अविनाशी तिलकधारी भव

 

भक्ति मार्ग में तिलक का बहुत महत्व है। जब राज्य देते हैं तो तिलक लगाते हैं, सुहाग और भाग्य की निशानी भी तिलक है। ज्ञान मार्ग में फिर स्मृति के तिलक का बहुत महत्व है। जैसी स्मृति वैसी स्थिति होती है। अगर स्मृति श्रेष्ठ है तो स्थिति भी श्रेष्ठ होगी। इसलिए बापदादा ने बच्चों को तीन स्मृतियों का तिलक दिया है। स्व की स्मृति, बाप की स्मृति और श्रेष्ठ कर्म के लिए ड्रामा की स्मृति-अमृतवेले इन तीनों स्मृतियों का तिलक लगाने वाले अविनाशी तिलकधारी बच्चों की स्थिति सदा श्रेष्ठ रहती है।

 

स्लोगन:- सदा अच्छा-अच्छा सोचते रहो तो सब अच्छा हो जायेगा।