19-07-09  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 22-01-71 मधुबन

 

दिलतख्त-नशीन आत्मा की निशानी

 

आज इस संगठन को कौनसा संगठन कहेंगे? इस संगठन का क्या नाम देंगे? यह संगठन है ब्रह्मा बाप की भुजाएं। इसलिए इस संगठन को बापदादा के मददगार, वफादार, बापदादा के दिलतख्त-नशीन, मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे। अब समझा, इतने अनेक टाइटिल्स इस ग्रुप के नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं। जो दिल के तख्त नशीन होंगे उन्हों की निशानी क्या होती है? टीचर्स हैं इसलिए प्रश्न-उत्तर कर रहे हैं। तख्तनशीन की निशानी क्या है? जो तख्तनशीन हुए हैं उनकी निशानी है - एक तो जब भी कोई तख्त पर बैठते हैं तो तिलक और ताज दोनों तख्तनशीन की निशानी होती है। इस रीति दिलतख्त पर विराजमान आत्माओं की निशानी यही होती है। उनके मस्तक पर सदैव अविनाशी आत्मा क स्थिति तिलक दूर से ही चमकता हुआ नज़र आयेगा। दूसरी बात -- और सर्व आत्माओं के कल्याण की शुभ भावना उनके नयनों में वा मुख से, मुख अर्थात् मुखड़ा, फेस से दिखाई दे। मुखड़े से यह सब स्पष्ट दिखाई दे यह निशानी है। तीसरी बात -- उनका संकल्प, वचन और कर्म बाप के समान हो। चौथी बात - जिन आत्माओं की सर्विस करे उन आत्माओं में स्नेह, सहयोग और शक्ति तीनों ही गुण धारण कराने की उसमें शक्ति हो। यह चार बातें उनकी निशानी है। अभी आप अपनी रिजल्ट को चेक करो कि यह चार ही निशानियाँ कहाँ तक दिखाई देती हैं। जैसे जो स्वयं होता है वैसे ही समान बनाता है। आज टीचर्स संगठन में हैं इसलिए यह सुना रहे हैं, जिन्हों की आप सेवा करती हो वा कर रही हो उन्हों में यह सब बातें भरनी चाहिए। अब तक रिजल्ट क्या है? हरेक अपनी रिजल्ट को तो देखते ही हैं। मैजारिटी क्या दिखाई देती है? कोई में स्नेहीपन की विशेषता है, कोई में सहयोगीपन की, लेकिन शक्ति रूप की धारणा कम है। इसकी निशानी फिर क्या दिखाई देती है, मालूम है? शक्तिपन के कमी की निशानी क्या है? परखने की शक्ति कम की निशानी क्या है? एक बात तो सुनाई - सर्विस की सफलता नहीं। उनकी स्पष्ट निशानी दो शब्दों में यह दिखाई देगी - उनका हर बात ‘क्यों’, ‘क्या’, ‘कैसे’ ....? क्वेश्चन मार्क बहुत होगा। ड्रामा का फुल-स्टॉप देना उनके लिए बड़ा मुश्किल होगा। इसलिए स्वयं ही ‘क्यों, क्या कैसे’ की उलझन में होगा। दूसरी बात -- वह कभी भी समीप आत्मा नहीं बना सकेगा। सम्बन्ध में लायेंगे लेकिन समीप सम्बन्ध में नहीं लायेंगे। समझा? ब्राह्मण कुल की जो मर्यादाएं हैं उन सर्व मर्यादाओं स्वरूप नहीं बना सकेंगे। क्योंकि स्वयं में शक्ति कम होने के कारण औरों में भी इतनी शक्ति नहीं ला सकते जो सर्व मर्यादाओं को पालन कर सकें। कोई न कोई मर्यादा की लकीर उल्लंघन कर देते हैं। समझते सभी होंगे, समझने में कमी नहीं होगी। मर्यादाओं की समझ पूरी होगी। परन्तु मर्यादाओं में चलना यह शक्ति कम होगी। इस कारण जिन्हों की वह सेवा करते हैं उन्हों में भी शक्ति कम होने कारण हाई जम्प नहीं दे सकते। संस्कारों को मिटाने में समय बहुत वेस्ट करते हैं। अब इन बातों से अपने स्वरूप को चेक करो। जैसे बहुत बढ़िया और मीठा फल तब निकल सकता है जब उस वृक्ष में सब बातों का ध्यान दिया जाता है। धरती उखाड़ने का भी ख्याल, बीज डालने का, जल का, सभी का ध्यान देना पड़ता है। ऐसे श्रेष्ठ फल तैयार करने के लिए संस्कार मिटाने की शक्ति, यह हुई धरती उखाड़ने की शक्ति। उसके साथ जैसे सभी चीजें बीच डालने वाले देखते हैं, वैसे स्नेही भी बनावें, सहयोगी भी बनावें और शक्ति-स्वरूप भी बनावें। अगर कोई एक की भी कमी रह जाती है तो क्या होता? जो शुरू में सुनाया कि दिल के तख्त नशीन नहीं बन सकते। इसलिए टीचर्स को यह ध्यान एक-एक के ऊपर देना चाहिए।

 

आप लोग जब एम-आब्जेक्ट सुनाते हो तो क्या सुनाते हो? देवता बनना यह तो लक्ष्य देते हो। देवताओं की महिमा सर्व गुण सम्पन्न। तो वह लक्ष्य रखना चाहिए। सर्व गुण एक-एक आत्मा में भरने का प्रयत्न करना चाहिए। आप टीचर्स को हरेक से मेहनत इतनी करनी चाहिए जो कोई आत्मा भी यह उलहना न दे कि हमारी निमित्त बनी हुई टीचर ने हमको इस बात के ऊपर ध्यान नहीं खिंचवाया। वह करे न करे, वह हुई उनकी तकदीर। परन्तु आप लोगों को सभी के ऊपर मेहनत करनी है। नहीं तो अब तक की रिजल्ट में कोई उलहनें अभी तक मिल रहे हैं। यह सर्विस की कमी है। इसलिए कहा कि सर्व बातें उन्हों में भरने से वह फल भी ऐसा लायक बनेगा। आप सोचो, जितना कोई बड़ा आदमी होता है, उनके सामने कौनसा फल रखेंगे? बड़ा भी हो और बढ़िया भी हो। साकार में भी कोई चीज़ लाते थे तो क्या देखते थे? तो अब बापदादा के आगे भी ऐसे जो फल तैयार करते हैं वही सामने ला सकते हैं। इसलिए यह ध्यान रखना है। जितना जो स्वयं जितने गुणों से सम्पन्न होता है उतना औरों में भी भर सकता है। हरेक रचयिता की सूरत रचना से दिखाई देती है। सर्विस आप लोगों के लिए एक दर्पण है, जिस दर्पण द्वारा अपने अन्दर की स्थिति को देख सकते हो। जैसे दर्पण में अपनी सूरत सहज और स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे सर्विस के दर्पण द्वारा अपनी फीचर्स-सूरत नहीं, सीरत का सहज स्पष्ट साक्षात्कार होता है। वह है सूरत का आइना, यह है सीरत का आइना। हरेक को अपना साक्षात्कार स्पष्ट होता है? होना चाहिए। अगर अब तक स्पष्ट साक्षात्कार नहीं होगा तो अपने को सम्पूर्ण कैसे बना सकेंगे। जब अपनी कमज़ोरियों का मालूम होगा तब तो शक्ति भर सकेंगे। इसलिए अगर स्वयं के साक्षात्कार में कोई स्पष्टीकरण न हो तो निमित्त बनी हुई बहनों द्वारा मदद ले अपना स्पष्ट साक्षात्कार करने का प्रयत्न ज़रूर करना। यह बापदादा का काम नहीं है, बापदादा का कर्त्तव्य है इशारा देना।

 

टीचर्स के फीचर्स कैसे होने चाहिए? टीचर्स को अपने फरिश्तेपन के फीचर्स द्वारा सर्विस करनी चाहिए। टीचर्स द्वारा यह शब्द अब तक नहीं निकलने चाहिए कि यह मेरी नेचर है। यह कहना शक्तिहीनता की निशानी है। ‘पुरूषार्थ’ शब्द, पुरूषार्थ शब्द से यूज़ नहीं करते हैं। परन्तु ‘पुरूषार्थ’ शब्द पुरूषार्थ से छुड़ाने का साधन बना दिया है। इसलिए आप लोगों के शब्द रचना द्वारा भी आपके सामने आते हैं। इसलिए सदैव ऐसे समझो जैसे कोई गुम्बज़ में जो आवाज़ किया जाता है वह लौटकर अपने पास आ जाता है। इतना अटेन्शन अपने संकल्पों पर भी रखना है। कहाँ-कहाँ से यह समाचार आते हैं, कौनसे? कि आजकल स्टूडेन्ट्स सुनते नहीं हैं। मेहनत करते हैं लेकिन आगे नहीं बढ़ते हैं, वहाँ के वहाँ खड़े हैं। यह रिजल्ट क्यों? यह भी अपनी स्थिति का रिटर्न है। क्योंकि स्टूडेन्ट भी चलते- चलते निमित्त बनी हुई टीचर्स की कमज़ारियों को परख कर उसका एडवान्टेज उठाते हैं। अच्छा।

 

पार्टियों से मुलाकात:-

 

बालक बनना अच्छा है या मालिक बनना अच्छा है? जितना हो सके सर्विस के सम्बन्ध में बालकपन, अपने पुरूषार्थ की स्थिति में मालिकपन। सम्पर्क और सर्विस में बालकपन, याद की यात्रा और मंथन करने में मालिकपन। साथियों और संगठन में बालकपन और व्यक्तिगत में मालिकपन - यह है युक्तियुक्त चलना।

 

सदा उमंग हुल्लास में एकरस रहने के लिए कौन सी पॉइन्ट याद रहे? उसके लिए जो सदैव सम्बन्ध में आते - चाहे स्टूडेन्ट, चाहे साथी सभी को सन्तुष्ट करने की उत्कंठा हो। उत्साह में रहने से जो ईश्वरीय उमंग उत्साह है वह सदा एकरस रहेगा। जिसको देखो उससे हर समय गुण उठाते रहो। सर्व के गुणों का बल मिलने से सदाकाल के लिए उत्साह रहेगा। उत्साह कम होने का कारण औरों के भिन्न-भिन्न स्वरूप, भिन्न-भिन्न बातें देखना, सुनना, गुण देखने की उत्कण्ठा हो तो एकरस उत्साह रहे। गुण चोर होने से और चोर भाग जायेंगे। सर्व पर विजयी बनने की युक्ति क्या है? विजयी बनने के लिए हरेक के दिल के राज़ ज़ को जानना है। जब हरेक के मुख के आवाज़ को देखते हो, तो आवाज़ देखने से उनके दिल के राज़ज़ को नहीं जान सकते। दिल के राज़ ज़ को जानने से सर्व के दिलों के विजयी बन सकते हो। दिल के राज़ ज़ को जानने के लिए अन्तर्मुखता चाहिए। जितना राज़ ज़ को जानेंगे उतना सर्व को राज़ी ज़ी कर सकेंगे। जितना राज़ी ज़ी करेंगे उतना राज़ ज़ को जानेंगे। तब विजयी बन सकेंगे।

 

सरलचित्त की निशानी क्या है? जो स्वयं सरलचित्त रहता है वह दूसरों को भी सरलचित्त बना सकता है। सरलचित्त माना जो बात सुनी, देखी, की, वह सार-युक्त हो और सार को ही उठाये और जो बात वा कर्म स्वयं करे उसमें भी सार भरा हुआ हो। तो पुरूषार्थ भी सरल होगा और जो सरल पुरुषार्थी होता है वह औरों को भी सरल पुरुषार्थी बना देता है। सरल पुरुषार्थी सब बातों में आलराउन्ड होगा। कोई भी बात की कमी दिखाई नहीं देगी। कोई भी बात में हिम्मत कम नहीं होगी। मुख से ऐसा बोल नहीं निकलेगा कि यह अभी नहीं कर सकते हैं। यह एक मुख्य अभ्यास प्रैक्टिकल में लाने से सब बातों में सैम्पुल बन सकते हैं। सर्व बातों में सैम्पल बनने से पास विद् आनर बन सकते हैं। ऐसा कभी कोई बात में कहते हो, अभ्यास नहीं है। आलराउन्ड बनना दूसरी बात है, यह हुई कमाई। आलरा- उन्ड एग्ज़ाम्पल बनना दूसरी बात है। हर बात अन्य के आगे सैम्पुल बनकर दिखाना। हर बात में कदम आगे बढ़ाना अपने द्वारा सभी को कमाई में हुल्लास दिलाना - यह है आलराउन्ड एग्जाम्पुल बनना।ज़ाम्पल बनना दूसरी बात है। हर बात अन्य के आगे सैम्पुल बनकर दिखाना। हर बात में कदम आगे बढ़ाना अपने द्वारा सभी को कमाई में हुल्लास दिलाना - यह है आलराउन्ड एग्जाम्पुल बनना।

 

सेन्स में ज्यादा रहते हो या इसेन्स में? सेन्सिबल जो होते हैं वह इतने सफलतामूर्त नहीं बन सकते हैं, इसेन्स में रहने वालों की खुशबू अधिक समय चलती है। उनका प्रभाव सदाकाल चलता है। जो सिर्फ सेन्स में रहते हैं उनका प्रभाव तो रहता है परन्तु हर समय नहीं। सभी के गले में विजय माला पड़ी है लेकिन नम्बरवार। कोई के गले में बड़ी तो कोई के गले में छोटी। इसका कारण क्या है? जितना-जितना शुरू से लेकर मन्सा में, वाचा में, कर्मणा में आई हुई समस्याओं या विघ्नों के ऊपर विजयी बने हैं, उस अनुसार विजय माला हरेक की बनती है। शुरू से लेकर देखो तो मालूम पड़ सकता है कि मेरी विजय माला कितनी बड़ी है! आजकल छोटी माला भी बनाते तो बड़ी भी बनाते हैं। जो जितना-जितना विजयी बनते हैं उतना ही बड़ी विजयमाला पहनते हैं। यह जो चतुर्भुज में विजय माला की निशानी है सिर्फ एक की नहीं, यह विजयी रत्नों की निशानी है। तो हरेक अपनी-अपनी विजय माला का साक्षात्कार कर सकते हो। जितना विजय माला पहनने के अधिकारी बनेंगे उतना ही ताज तख्त उस प्रमाण प्राप्त होगा। तो इस समय विजय माला के प्रमाण अपना भविष्य तख्त भी समझ सकते हो। यहाँ ही अब सभी को साक्षात्कार होना है। साक्षात्कार सिर्फ दिव्य दृष्टि से नहीं, प्रत्यक्ष साक्षात्कार भी होना है। प्रत्यक्ष का प्रमाण यह भी साक्षात्कार है। इसलिए पूछा कि कितनी बड़ी है - विजय माला। एक है सर्विस का बल, दूसरा है स्नेह का बल, इसलिए एक्स्ट्रा बल मिलने कारण विशेष सर्विस हो रही है। जो स्वयं में शारीरिक के हिसाब से शक्ति नहीं समझते हैं लेकिन यह बल होने के कारण जैसे और कोई चला रहा है। ऐसा अनुभव करते हैं। निमित्त बनने से बहुत एक्स्ट्रा बल मिलता है। जैसे साकार रूप में निमित्त बनने से एक्स्ट्रा बल था। ऐसे इसमें भी है। अतीन्द्रिय सुख का अनुभव होने से क्या होता है? अतीन्द्रिय सुख मिलने से जो इन्द्रियों के सुख का आकर्षण है वह समाप्त हो जाता है। जो दु:ख देने वाली चीज है, वह कौनसी है? इन्द्रियों का आकर्षण, सम्बन्ध का आकर्षण वा कोई भी कर्मेन्द्रियों के वश होने से जो भिन्न-भिन्न आकर्षण होते हैं वह अतीन्द्रिय सुख वा हर्ष दिलाने में बन्धन डालते हैं। एक ठिकाने बुद्धि टिक जाने से एकरस अवस्था रहती है। इसलिए सदैव बुद्धि को एक ठिकाने में टिकाने की जो युक्ति मिली है वह स्मृति में रखो। हिलने न दो। हिलना अर्थात् हलचल पैदा करना। फिर समय भी बहुत व्यर्थ जाता है। युद्ध में समय बहुत जाता है। शक्तियों के चित्र में शक्तियों की निशानी क्या दिखाते हैं? एक तो वह अलंकारी हैं, दूसरा संहारी भी हैं। अलंकार किसलिए हैं? संहार करने के लिए। ऐसे ही अलंकारी संहारकारी मूर्त अपने को समझकर चलते चलो। जब यह स्मृति में रहेगा कि मैं संहार मूर्त हूँ तो वे माया के वश कभी नहीं होंगे। सदैव यह चेक करना है कि अलंकार सभी ठीक रीति से धारण किये हुए हैं! कोई भी अलंकार अगर धारण नहीं किये हुए हैं तो विजयी नहीं बन सकते हैं। जैसे सुहागिन होती है, वह सदैव अपने सुहाग की निशानी को कायम रखती है। जैसे देखो कभी भी अपना स्थूल श्रृंगार कम हो जाता है, नीचे ऊपर होता है तो उसको बार-बार ठीक करते हैं। इसलिए कोई भी अलंकार रूपी श्रृंगार बिगड़ा हुआ है तो उसको ठीक करना है। जो अति पुराने होते हैं उनको पूरा अधिकार लेकर जाना है। अधिकार लेने के लिए ही अपने ऊपर छाप लगाने लिए मधुबन में आते हैं। यह मधुबन है फाइनल ठप्पा वा छाप लगाने का स्थान। जैसे पोस्ट आफिस होती है, उसमें जब फाइनल ठप्पा लगाते हैं तब चिट्ठी जाती है। यह भी स्वर्ग के अधिकारी बनने का छाप मधुबन है। मधुबन में आना अर्थात् करोड़ गुणा कमाई करना। जो विघ्न-विनाशक होते हैं वह विघ्नहार नहीं बन सकते। कम्बाइन्ड अपने को समझो। बापदादा तो सेकेण्ड, सेकेण्ड का साथी है। जब से जन्म लिया है तब से लेकर साथ है। यहाँ जन्म भी इस समय होता है, साथी भी इस समय मिलता है। लौकिक में जन्म पहले होता है और साथी बाद में। यहाँ अभी-अभी जन्म, अभी-अभी साथी। नहीं बन सकते। कम्बाइन्ड अपने को समझो। बापदादा तो सेकेण्ड, सेकेण्ड का साथी है। जब से जन्म लिया है तब से लेकर साथ है। यहाँ जन्म भी इस समय होता है, साथी भी इस समय मिलता है। लौकिक में जन्म पहले होता है और साथी बाद में। यहाँ अभी-अभी जन्म, अभी-अभी साथी।

 

वरदान:- पवित्रता की गुह्यता को जान सुख-शान्ति सम्पन्न बनने वाली महान आत्मा भव

 

पवित्रता के शक्ति की महानता को जान पवित्र अर्थात् पूज्य देव आत्मायें अभी से बनो। ऐसे नहीं कि अन्त में बन जायेंगे। यह बहुत समय की जमा की हुई शक्ति अन्त में काम आयेगी। पवित्र बनना कोई साधारण बात नहीं है। ब्रह्मचारी रहते हैं, पवित्र बन गये हैं… लेकिन पवित्रता जननी है, चाहे संकल्प से, चाहे वृत्ति से, वायुमण्डल से, वाणी से, सम्पर्क से सुख-शान्ति की जननी बनना – इसको कहते हैं महान आत्मा।

 

स्लोगन:- ऊंची स्थिति में स्थित हो सर्व आत्माओं को रहम की दृष्टि दो, वायब्रेशन फैलाओ।