ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। गाया जाता है ऊंचे ते ऊंचा भगवान्। अब भगवान् का नाम तो
मनुष्यमात्र नहीं जानते। भक्त भगवान् को नहीं जानते, जब तक कि भगवान् आकर भक्तों को
अपनी पहचान न दे। यह तो समझाया गया है - ज्ञान और भक्ति। सतयुग त्रेता है ज्ञान की
प्रालब्ध। अभी तुम ज्ञान सागर से ज्ञान पाकर पुरुषार्थ से अपनी सदा सुख की प्रालब्ध
बना रहे हो फिर द्वापर-कलियुग में भक्ति होती है। ज्ञान की प्रालब्ध सतयुग-त्रेता
तक चलती है। ज्ञान का सुख तो 21 पीढ़ी चलता है। वह हैं स्वर्ग के सदा सुख। नर्क का
है अल्पकाल क्षण भंगुर सुख। बच्चों को समझाया जाता है सतयुग-त्रेता ज्ञान मार्ग था,
नई दुनिया, नया भारत था। उसको स्वर्ग कहा जाता है। अभी तमोप्रधान भारत नर्क हो गया
है। अनेक प्रकार के दु:ख हैं। स्वर्ग में दु:ख का नाम-निशान नहीं रहता। गुरू करने
की दरकार ही नहीं। भक्तों का उद्धार भगवान् को ही करना है। अभी कलियुग का अन्त है,
विनाश सामने खड़ा है। बाप आकर ब्रह्मा द्वारा ज्ञान देकर स्वर्ग की स्थापना करते
हैं और शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना कराते हैं। परमात्मा के कर्तव्य को
कोई समझते नहीं। मनुष्य को पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है, पाप परमात्मा,
पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता। महात्मा को भी महान् आत्मा कहेंगे, महान् परमात्मा
नहीं कहेंगे। आत्मा पवित्र बनती है। बाप ने समझाया है - पहले-पहले मुख्य है देवी
देवता धर्म, उस समय सूर्यवंशी ही राज्य करते थे, चन्द्रवंशी नहीं थे, एक धर्म था।
भारत में सोने-चांदी के महल थे, हीरे जवाहरों से छतें-दीवारें सब सजी हुई थी। भारत
हीरे जैसा था, वही भारत अब कौड़ी मिसल बना है। बाप कहते हैं मैं कल्प के अन्त में,
सतयुग आदि के संगम पर आता हूँ। भारत को माताओं द्वारा फिर से स्वर्ग बनाता हूँ। यह
है शिव शक्ति, पाण्डव सेना। पाण्डवों की प्रीत एक बाप से है। उन्हों को बाप पढ़ाते
हैं। शास्त्र आदि हैं सब भक्ति मार्ग की सामग्री। वह है भक्ति कल्ट। अभी बाप आकर
सबको भक्ति का फल ज्ञान देते हैं, जिससे तुम सद्गति में जाते हो। सद्गति दाता सबका
बाप एक ही है। बाप को ही ज्ञान सागर कहा जाता है। बाकी मनुष्य, मनुष्य को
मुक्ति-जीवनमुक्ति दे नहीं सकते। यह ज्ञान कोई शास्त्रों में नहीं है। ज्ञान सागर
एक बाप को ही कहा जाता है, उनसे तुम वर्सा लेते हो फिर सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला
सम्पूर्ण बन जायेंगे। यह देवताओं की महिमा है। लक्ष्मी-नारायण हैं 16 कला सम्पूर्ण,
राम-सीता हैं 14 कला। यह पढ़ाई है। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। सत है ही एक, वही
आकर सत समझाते हैं। यह है ही पतित दुनिया। पावन दुनिया में पतित होते ही नहीं, पतित
दुनिया में पावन होते नहीं। पावन बनाने वाला एक ही बाप है। आत्मा कहती है शिवाए नम:,
आत्मा ने अपने बाप को कहा नमस्ते। अगर कोई कहते शिव मेरे में है तो फिर नमस्कार
किसको करते हैं। यह अज्ञान फैला हुआ है। अब तुम बच्चों को बाप त्रिकालदर्शी बनाते
हैं। तुम जानते हो सब आत्मायें जहाँ रहती हैं वह है निर्वाणधाम, स्वीट होम। मुक्ति
को तो सभी याद करते हैं, जहाँ हम बाप के साथ रहते हैं। अभी तुम बाप को याद करते हो।
सुखधाम में जायेंगे तो बाप को याद नहीं करेंगे। अभी यह है ही दु:खधाम, सभी दुर्गति
में हैं। नई दुनिया में भारत नया था, सुखधाम था, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राज्य था।
मनुष्यों को तो यह पता नहीं है कि लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण का क्या कनेक्शन
है? वह राजकुमारी, वह राजकुमार अलग-अलग राज्य के हैं। ऐसे नहीं कि दोनों ही आपस में
भाई-बहिन हैं। वह अलग अपनी राजधानी में थी, श्रीकृष्ण अपनी राजधानी का राजकुमार था।
उन्हों का स्वयंवर होता है तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। सतयुग में हर चीज सुख देने
वाली है, कलियुग में हर चीज दु:ख देने वाली है। सतयुग में किसी की अकाले मृत्यु नहीं
होती। तुम बच्चे जानते हो हम अपने परमपिता परमात्मा बाप से सहज राजयोग सीखते हैं -
नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने के लिये। यह स्कूल है। उन सतसंगों आदि में तो
कोई एम आब्जेक्ट नहीं होती। वेद-शास्त्र आदि सुनाते रहते हैं। बाप के द्वारा तुम इस
मनुष्य सृष्टि चक्र को अब जान गये हो। बाप को ही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, रहमदिल कहा
जाता है। गाते हैं - ओ बाबा, आकर रहम करो। हेविनली गॉड फादर ही आकर हेविन स्थापन
करते हैं संगम पर।
हेविन में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी इतने सभी कहाँ जायेंगे? बाप सभी को
मुक्तिधाम में ले जाते हैं। स्वर्ग में सिर्फ भारत ही था, फिर भी भारत ही रहेगा।
भारत सचखण्ड यहाँ गाया हुआ है। अभी तो भारत कंगाल बन गया है। पैसे-पैसे के लिए भीख
मांगते रहते हैं। भारत हीरे जैसा था, अब कौड़ी मिसल है। यह ड्रामा के राज़ को समझना
है। तुम रचयिता बाप को और उनकी रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। मनुष्य गाते भी
हैं वन्दे मातरम्, परन्तु वन्दना पवित्र की ही की जाती है। परमात्मा ही आकर वन्दे
मातरम् कहना शुरू करते हैं। शिवबाबा ने ही आकर कहा है - नारी स्वर्ग का द्वार है।
शक्ति सेना है ना। यह स्वर्ग का राज्य दिलाने वाली है, जिसको ही वर्ल्ड आलमाइटी
अथॉरिटी राज्य कहा जाता है। तुम शक्तियों ने स्वराज्य स्थापन किया था, अब फिर से
स्थापन हो रहा है। रामराज्य कहा जाता है सतयुग को। अभी भी कहते हैं रामराज्य हो।
परन्तु वह कोई मनुष्य तो कर न सके। इनकारपोरियल गॉड फादर ही आकर पढ़ाते हैं। उनको
भी जरूर शरीर चाहिए। जरूर ब्रह्मा तन में आना पड़े। शिवबाबा तो तुम सब आत्माओं का
बाप है। प्रजापिता भी गाया हुआ है। पिता तो बाप ठहरा ना। ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट
ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। आदि देव और आदि देवी दोनों बैठे हैं, तपस्या कर रहे हैं।
तुम भी तपस्या कर रहे हो। यह है राजयोग। संन्यासियों का है हठयोग। वह कभी राजयोग
सिखला नहीं सकते। गीता आदि जो भी शास्त्र हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री।
पढ़ते आये हैं परन्तु तमोप्रधान बन गये हैं। यह वही महाभारत लड़ाई है जिससे विनाश
होना है। साइन्स कोई वेदों में नहीं है। उनमें तो ज्ञान की बातें हैं। यह साइन्स
बुद्धि का चमत्कार है जो इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। विमान आदि बनाते हैं सुख के
लिए। फिर पिछाड़ी में इनके द्वारा ही विनाश होता है। यह सुख का हुनर भारत में रह
जायेगा। दु:ख का हुनर, मारने आदि का ख़लास हो जायेगा। साइन्स का अक्ल चला आता है।
यह बाम्ब्स आदि कल्प पहले भी बने थे। पतित दुनिया का विनाश फिर नई दुनिया की स्थापना
होनी है। बाप कहते हैं तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं, अब इस देह का अहंकार छोड़ मुझ
बाप को याद करो तो याद की योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे। रावण ने तुमसे बहुत
विकर्म कराये हैं। पावन बनने का तो एक ही उपाय है। तुम आत्मा तो हो ही। कहते भी हो
मैं आत्मा, ऐसे नहीं कहेगे मैं परमात्मा हूँ। कहते हो मेरी आत्मा को रंज (नाराज) मत
करो। आत्मा सो परमात्मा कहना यह तो बहुत बड़ी भूल है। अभी है तमोप्रधान व्यभिचारी
भक्ति। जो आया उनको बैठ पूजते हैं। अव्यभिचारी एक की याद को कहा जाता है। अब
व्यभिचारी भक्ति का भी अन्त होना है। बाप आकर बेहद का वर्सा देते हैं। सभी को सुख
देने वाला एक बाप है, दूसरा न कोई। बाप कहते हैं मुझ एक के साथ बुद्धियोग जोड़ने से
ही अन्त मती सो गति हो जायेगी। मैं हूँ ही स्वर्ग का रचयिता। यह कांटों की दुनिया
है। एक-दो में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अभी यह पुरानी दुनिया बदल रही है। ज्ञान अमृत
का कलष माताओं पर रखते हैं। यह है नॉलेज। परन्तु विष की भेंट में अमृत कहा गया है।
कहा भी जाता है अमृत छोड़ विष काहे को खाए.....। श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे।
परमपिता परमात्मा आकर श्रीमत देते हैं। श्रीकृष्ण भी श्रीमत से ऐसा बना है। यह समझने
की बातें हैं। इस सारी पुरानी दुनिया को भूल एक बाप को याद करना है। बलिहार भी अभी
जाना होता है, इनको ही जीते जी मरना कहा जाता है। भक्ति मार्ग की बातें अलग हैं। वह
है भक्ति कल्ट। भक्ति के तो ढेर गुरू हैं। परन्तु सद्गति दाता एक ही निराकार परमपिता
परमात्मा है। साकार मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कर नहीं सकते। सदा के लिए सुख दे नहीं
सकते। सदा सुख देने वाला बाप है। यह पाठशाला है। एम आब्जेक्ट भी बाप बतलाते हैं।
कहते हैं तुमको स्वर्ग के सुख का वर्सा मिलेगा। बाकी सब मुक्ति-धाम में चले जायेंगे।
शान्तिधाम, सुखधाम और यह है दु:खधाम। यह चक्र फिरता रहता है, इसको स्वदर्शन चक्र कहा
जाता है। इस ड्रामा के चक्र से कोई छूट नहीं सकता है। बना बनाया अविनाशी पार्ट है
हरेक का। बाप तुमको पढ़ाकर मनुष्य से देवता बना रहे हैं। फिर जितना जो पढ़ेंगे, तो
कोई राजा बनेंगे, कोई प्रजा बनेंगे। सूर्यवंशी डिनायस्टी है ना। सतयुग में सूर्यवंशी
थे तो और कोई नहीं थे। भारत खण्ड ही ऊंच ते ऊंच सचखण्ड था, अब झूठ खण्ड बना है, इसको
रौरव नर्क कहा जाता है। पैसे के लिए कितनी मारामारी होती है। वहाँ तो कोई अप्राप्त
वस्तु नहीं रहती, जिसकी प्राप्ति के लिए कोई पाप करना पड़े। बाप ही इस भ्रष्टाचारी
दुनिया को श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं, इन माताओं द्वारा। इन्हों को बाप वन्दे मातरम्
कहते हैं। संन्यासी नहीं कहते वन्दे मातरम्। उनका है हद का संन्यास। यह है बेहद का
संन्यास। सारी दुनिया का बुद्धि से संन्यास करना है। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना
है। दु:खधाम को भूल जाना है। बाप का यह फ़रमान है। बाप आत्माओं को समझाते हैं, तुम
इन कानों से सुनते हो। शिवबाबा इन आरगन्स द्वारा तुमको समझाते हैं। वह है ज्ञान
सागर। यह कोई साधू, सन्त, महात्मा नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप पर पूरा बलिहार जाना है। देह का अहंकार छोड़ योग अग्नि से विकर्म
विनाश करने हैं।
2) एम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रखकर पढ़ाई करनी है। बने बनाये ड्रामा को बुद्धि
में रखकर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।