30-01-05 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 29.03.86 "बापदादा" मधुबन
डबल विदेशी बच्चों से
बापदादा की रूह-रूहान
आज बापदादा चारों ओर
के डबल विदेशी बच्चों को वतन में इमर्ज कर सभी बच्चों की विशेषताओं को देख रहे थे
क्योंकि सभी बच्चे विशेष आत्मायें हैं तब ही बाप के बने हैं अर्थात् श्रेष्ठ
भाग्यवान बने हैं। विशेष सभी हैं फिर भी नम्बर वार तो कहेंगे। तो आज बापदादा डबल
विदेशी बच्चों को विशेष रूप से देख रहे थे। थोड़े समय में चारों ओर के भिन्न-भिन्न
रीति-रसम वा मान्यता होते हुए भी एक मान्यता के एकमत वाले बन गये हैं। बापदादा
विशेष दो विशेषतायें मैजारिटी में देख रहे हैं। एक तो स्नेह के सम्बन्ध में बहुत
जल्दी बंध गये हैं। स्नेह के सम्बन्ध में ईश्वरीय परिवार के बनने में, बाप के बनने
में अच्छा सहयोग दिया है। तो एक स्नेह में आने की विशेषता, दूसरा स्नेह के कारण
परिवर्तन-शक्ति सहज प्रैक्टिकल में लाए। स्वपरिवर्तन और साथ-साथ हमजिन्स के
परिवर्तन में अच्छी लगन से आगे बढ़ रहे हैं। तो ‘स्नेह की शक्ति और परिवर्तन करने की
शक्ति’ - इन दोनों विशेषताओं को हिम्मत से धारण कर अच्छा ही सबूत दिखा रहे हैं।
आज वतन में बापदादा
आपस में बच्चों की विशेषता पर रूह-रूहान कर रहें हैं। अभी इस वर्ष के अव्यक्त का
व्यक्त में मिलने का सीजन कहो वा मिलन मेला कहो समाप्त हो रहा है तो बापदादा सभी की
रिजल्ट को देख रहे थे। वैसे तो अव्यक्त रूप से, अव्यक्त स्थिति से सदा का मिलन है
ही और सदा रहेगा। लेकिन साकार रूप द्वारा मिलन का समय निश्चित करना पड़ता है और इसमें
समय की हद रखनी पड़ती है। अव्यक्त रूप के मिलन में समय की हद नही है। जो जितना चाहे
मिलन मना सकते हैं। अव्यक्त शक्ति की अनुभूति कर स्वयं को, सेवा को सदा आगे बढ़ा सकते
हैं। फिर भी निश्चित समय के प्रमाण इस वर्ष की यह सीजन समाप्त हो रही है। (कहने में
ऐसे ही आता है) लेकिन समाप्त नहीं है, सम्पन्न बन रहे हैं। मिलना अर्थात् समान बनना।
समान बने ना। तो समाप्ति नहीं है, भले सीजन का समय तो समाप्त हो रहा है लेकिन स्वयं
समान और सम्पन्न बन गये। इसलिए बापदादा चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को वतन में
देख हर्षित हो रहे थे। क्योंकि साकार में तो कोई आ सकता, कोई नहीं भी आ सकता। इसलिए
अपना चित्र अथवा पत्र भेज देते हैं। लेकिन अव्यक्त रूप में बापदादा चारों ओर के
संगठन को सहज इमर्ज कर सकता है। अगर यहाँ सभी को बुलावें फिर भी रहने आदि का सब
साधन चाहिए। अव्यक्त वतन में तो इन स्थूल साधनों की कोई आवश्यकता नहीं। वहाँ तो
सिर्फ डबल विदेशी क्या लेकिन सारे भारत के बच्चे भी इकट्ठे करो तो ऐसे लगेगा जैसे
बेहद का अव्यक्त वतन है। वहाँ भले कितने भी लाख हों फिर भी ऐसे ही लगेगा। जैसे छोटा-सा
संगठन दिखाई दे रहा है। तो आज वतन में सिर्फ डबल विदेशियों को इमर्ज किया था।
बापदादा देख रहे थे
कि भिन्न रसम रिवाज होते हुए भी दृढ़ संकल्प से प्रगति अच्छी की है। मैजारिटी उमंग
उत्साह में चल रहे हैं। कोई-कोई खेल दिखाने वाले होते ही हैं लेकिन रिजल्ट में यह
अन्तर देखा कि अगले वर्ष तक कनफ्यूज ज्यादा होते थे। लेकिन इस वर्ष की रिजल्ट में
कई बच्चे पहले से मजबूत देखे। कोई-कोई बापदादा को खेल दिखाने वाले बच्चे भी देखे।
कनफ्यूज होने का भी खेल करते हैं ना। उस समय का वीडियो निकाल बैठ देखो तो अपको
बिल्कुल ड्रामा लगेगा। लेकिन पहले से भी अन्तर है। अभी अनुभवी बनते हुए गम्भीर भी
बन रहे हैं। तो यह रिजल्ट देखी कि पढ़ाई से प्यार और याद में रहने का उमंग भिन्न
रीति-रसम मान्यता को सहज बदल देता है। भारतवासियों को परिवर्तन होने में सहज है।
देवताओं को जानते हैं, शास्त्रों के मिक्स नॉलेज को जानते हैं तो मान्यतायें
भारतवासियों के लिए इतनी नवीन नहीं है। फिर भी टोटल चारों ओर के बच्चों में ऐसे
निश्चय बुद्धि, अटल, अचल आत्मायें देखीं। ऐसे निश्चय बुद्धि - औरों को भी
निश्चयबुद्धि बनाने में एक्जाम्पुल बने हुए हैं। प्रवृत्ति में रहते भी पावरफुल
संकल्प से दृष्टि, वृत्ति परिवर्तन कर लेते। वह भी विशेष रत्न देखे। कई ऐसे भी बच्चे
हैं जो जितना ही अपनी रीति प्रमाण अल्पकाल के साधनों में, अल्पकाल के सुखों में
मस्त थे, ऐसे भी रात-दिन के परिवर्तन में अच्छे तीव्र पुरूषार्थियों की लाइन में चल
रहे हैं। चाहे ज्यादा अन्दाज न भी हो लेकिन फिर भी अच्छे हैं। जैसे बापदादा ‘झाटकू’
का दृष्टान्त देते हैं। ऐसे मन से त्याग का संकल्प करने के बाद फिर आँख भी न डूबे
ऐसे भी हैं। आज टोटल रिजल्ट देख रहे थे। ब्रह्मा बाप भी सभी बच्चों को देख विशेष
खुश हो रहे थे। शक्तिशाली आत्माओं को देख बापदादा मुस्कराते हुए रूह-रूहान कर रहे
थे कि ब्रह्मा की रचना दो प्रकार की गाई हुई है। एक ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण
निकले। और दूसरी रचना - ब्रह्मा ने संकल्प से सृष्टि रची। तो ब्रह्मा बाप ने कितने
समय से श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प किया! है तो बाप दादा दोनों ही। फिर भी रचना के
लिए शिव की रचना नहीं कहेंगे। शिव वंशी कहेंगे। शिवकुमार शिवकुमारी नहीं कहेंगे।
ब्रह्माकुमार-कुमारी कहेंगे। तो ब्रह्मा ने विशेष श्रेष्ठ संकल्प से आह्वाहन किया
अर्थात् रचना रची। तो यह ब्रह्मा के शक्तिशाली संकल्प से आह्वाहन से साकार में
पहुँच गये हैं।
संकल्प की रचना भी कम
नहीं हैं। जैसे संकल्प शक्तिशाली है तो दूर से भिन्न पर्दों के अन्दर से बच्चों को
अपने परिवार में लाना था, श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प ने प्रेर कर समीप लाया। इसलिए
यह शक्तिशाली संकल्प की रचना भी शक्तिशाली है। कईयों का अनुभव भी है - जैसे बुद्धि
को विशेष कोई प्रेर कर समीप ला रहा है। ब्रह्मा के शक्तिशाली संकल्प के कारण ब्रह्मा
के चित्र को देखते ही चैतन्यता का अनुभव होता है। चैतन्य सम्बन्ध के अनुभव से आगे
बढ़ रहें हैं। तो बापदादा रचना को देख हर्षित हो रहें हैं। अभी आगे और भी शक्तिशाली
रचना का प्रत्यक्ष सबूत देते रहेंगे। डबल विदेशियों की सेवा के समय के हिसाब से अब
बचपन का समय समाप्त हुआ। अभी अनुभवी बन औरों को भी अचल- अडोल बनाने का, अनुभव कराने
का समय है। अभी खेल करने का समय समाप्त हुआ। अब सदा समर्थ बन निर्बल आत्माओं को
समर्थ बनाते चलो। आप लोगों में निर्बलता के संस्कार होंगे तो दूसरों को भी निर्बल
बनायेंगे। समय कम है और रचना ज्यादा-से-ज्यादा आने वाली है। इतनी संख्या में ही खुश
नहीं हो जाना कि बहुत हो गये। अभी तो संख्या बढ़नी ही है। लेकिन जैसे आपने इतना समय
पालना ली और जिस विधि से आप लोगों ने पालना ली अब वह परिवर्तन होता जायेगा।
जैसे 50 वर्षों की
पालना वाले गोल्डन जुबली वालों में और सिल्वर जुबली वालों में अन्तर रहा है ना! ऐसे
पीछे आने वालों में अन्तर होता जायेगा। तो थोड़े समय में उन्हें शक्तिशाली बनाना है।
स्वयं उन्हों की श्रेष्ठ भावना तो होगी ही। लेकिन आप सभी को भी ऐसे थोड़े समय में आगे
बढ़ने वाले बच्चों को अपने सम्बन्ध और सम्पर्क का सहयोग देना ही है। जिससे उन्हों को
सहज आगे बढ़ने का उमंग और हिम्मत हो। अभी यह सेवा बहुत होनी है। सिर्फ अपने लिए
शक्तियाँ जमा करने का समय नहीं है। लेकिन अपने साथ औरों के प्रति भी शक्तियाँ इतनी
जमा करनी हैं जो औरों को भी सहयोग दे सको। सिर्फ सहयोग लेने वाले नहीं लेकिन देने
वाले बनना है। जिन्हों को दो वर्ष भी हो गया है उन्हों के लिए दो वर्ष भी कम नहीं
हैं। थोड़े टाइम में सब अनुभव करना है। जैसे वृक्ष मे दिखाते हो ना, लास्ट आने वाली
आत्मायें भी 4 स्टेजेस से पास जरूर होती हैं। फिर चाहे 10-12 जन्म भी हों या कितने
भी हों। तो पीछे आने वालों को भी थोड़े समय सर्वशक्तियों का अनुभव करना ही है।
स्टूडेन्ट लाइफ का भी और साथ-साथ सेवाधारी का भी अनुभव करना है। सेवाधारी को सिर्फ
कोर्स कराना या भाषण करना नहीं है। सेवाधारी अर्थात् सदा उमंग-उत्साह का सहयोग देना।
शक्तिशाली बनाने का सहयोग देना। थोड़े समय में सर्व सबजेक्टस पास करनी हैं। इतना
तीव्रगति से करेंगे तब तो पहुँचेंगे ना। इसलिए एक दो का सहयोगी बनना है। एक दो के
योगी नहीं बनना। एक दो से योग लगाना नहीं शुरू करना। सहयोगी आत्मा सदा सहयोग से बाप
के समीप और समान बना देती है। आप समान नहीं लेकिन बाप समान बनाना है। जो भी अपने
में कमज़ोरी हो उनको यहाँ ही छोड़ जाना। विदेश में नहीं ले जाना। शक्तिशाली आत्मा बन
शक्तिशाली बनाना है। यही विशेष दृढ़ संकल्प सदा स्मृति में हो। अच्छा।
चारों ओर के सभी बच्चों
को विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार दे रहे हैं। सदा स्नेही, सदा सहयोगी और शक्तिशाली
ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।’’
सभी को यह खुशी है ना
कि वैराइटी होते हुए भी एक के बन गये। अभी अलग-अलग मत नहीं हैं। एक ही ईश्वरीय मत
पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। ब्राह्मणों की भाषा भी एक ही है। एक बाप के हैं
और बाप की नॉलेज औरों को भी दे सर्व को एक बाप का बनाना है। कितना बड़ा श्रेष्ठ
परिवार है। जहाँ जाओ, जिस भी देश मे जाओ तो यह नशा है कि हमारा अपना घर है। सेवा
स्थान अर्थात् अपना घर। ऐसा कोई भी नहीं होगा जिसके इतने घर हों। अगर आप लोगों से
कोई पूछे - आपके परिचित कहाँ-कहाँ रहते हैं, तो कहेंगे सारे वर्ल्ड में हैं। जहाँ
जाओ अपना ही परिवार है। कितने बेहद के अधिकारी हो गये! सेवाधारी हो गये। सेवाधारी
बनना अर्थात् अधिकारी बनना। यह बेहद की रूहानी खुशी है। अभी हर एक स्थान अपनी
शक्तिशाली स्थिति से विस्तार को प्राप्त हो रहा है। पहले थोड़ी मेहनत लगती है। फिर
थोड़े एक्जाम्पुल बन जाते तो उन्हों को देख दूसरे सहज आगे बढ़ते रहते।
बापदादा सभी बच्चों
को यही श्रेष्ठ संकल्प बार-बार स्मृति में दिलाते हैं कि सदा स्वयं भी याद और सेवा
के उमंग उत्साह में रहो, खुशी-खुशी से आगे तीव्रगति से बढ़ते चलो और दूसरों को भी ऐसे
ही उमंग उत्साह से बढ़ाते चलो, और चारों ओर के जो साकार में नहीं पहुँचे हैं उन्हों
के भी चित्र और पत्र सब पहुँचे हैं। दिल के समाचार भी सबके पहुँचे हैं। सबके
रेसपान्ड में बापदादा सभी को पद्मापदम गुणा दिल से याद प्यार भी दे रहें हैं। जितना
अभी उमंग उत्साह खुशी है उससे और पद्मगुणा बढ़ाओ। और कोई-कोई ने अपनी कमज़ोरियों का
समाचार भी लिखा है उन्हों के लिए बापदादा कहते, लिखा अर्थात् बाप को दिया। दी हुई
चीज़ फिर अपने पास नहीं रह सकती। कमज़ोरी दे दी फिर उसको संकल्प में भी नहीं लाना।
तीसरी बात कभी भी किसी भी स्वयं के संस्कार वा संगठन के संस्कारों वा वायुमण्डल की
हलचल से दिलशिकस्त नहीं होना। सदा बाप को कम्बाइन्ड रूप में अनुभव कर दिलशिकस्त से
शक्तिशाली बन आगे उड़ते रहो। हिसाब किताब चुक्तु हुआ अर्थात् बोझ उतरा। खुशी-खुशी से
पिछले बोझ को भस्म करते जाओ। बापदादा सदा बच्चों के सहयोगी हैं। ज्यादा सोचो भी नहीं।
व्यर्थ सोच भी कमज़ोर कर देता है। जिसके व्यर्थ संकल्प ज्यादा चलते हैं तो दो चार
बार मुरली पढ़ो। मनन करो। पढ़ते जाओ। कोई न कोई प्वाइंट बुद्धि में बैठ जायेगी। शुद्ध
संकल्पों की शक्ति जमा करते जाओ तो व्यर्थ खत्म हो जायेगा। समझा।
वरदान:-
सर्व
प्राप्तियों के अनुभव द्वारा पावरफुल बनने वाले सदा सफलतामूर्त भव
जो सर्व प्राप्तियों
के अनुभवी मूर्त हैं वही पावरफुल हैं, ऐसी पावरफुल सर्व प्राप्तियों की अनुभवी
आत्मायें ही सफलतामूर्त बन सकती हैं क्योंकि अभी सर्व आत्मायें ढूंढेगी कि सुख
शान्ति के मास्टर दाता कहाँ हैं। तो जब आपके पास सर्वशक्तियों का स्टॉक होगा तब तो
सबको सन्तुष्ट कर सकेंगे। जैसे विदेश में एक ही स्टोर से सब चीजें मिल जाती हैं ऐसे
आपको भी बनना है। ऐसे नहीं सहनशक्ति हो सामना करने की नहीं। सर्वशक्तियों का स्टॉक
चाहिए तब सफलतामूर्त बन सकेंगे।
स्लोगन:-
मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं, कदम पर कदम रखना माना मंजिल के समीप
पहुंचना।