20-10-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 16-05-77 मधुबन
माया के वार का सामना करने के लिए दो शक्तियों की आवश्यकता
बापदादा सभी बच्चों के पुरूषार्थ के रफ्तार की रिजल्ट देख रहे थे। नए अथवा पुराने, दोनों की पुरूषार्थ की रफ्तार देखते हुए, बाप को बच्चों पर अति स्नेह भी हुआ और साथ-साथ रहम भी हुआ। स्नेह क्यों हुआ? देखा कि छोटे-बड़े परिचय मिलते, परिचय के साथ अपने यथा शक्ति प्राप्ति के आधार पर पास्ट लाईफ और वर्तमान ब्राह्मण लाइफ, दोनों में महान अन्तर अनुभव करते, भटकते हुए का सहारा दिखाई देते हुए, निश्चय बुद्धि बन, एक दो के सहयोग से, एक दो के अनुभव के आधार से मंजिल की ओर चल पड़े हैं। खुशी, शक्ति, शान्ति वा सुख की अनुभूति में कोई लोक-लाज़ की परवाह न करते हुए, अलौकिक जीवन का अनुभव कदम को आगे बढ़ाता जा रहा है। प्राप्ति के आगे कुछ छोड़ रहे हैं वा त्याग कर रहे हैं, कोई सुध-बुध नहीं रहती। बाप मिला सब कुछ मिला, उस खुमारी वा नशे में त्याग भी, त्याग नहीं लगा, याद और सेवा में तन-मन-धन से लग गए। पहला नशा, पहली खुशी, पहला उमंग, उत्साह, ‘न्यारा और अति प्यारा’ अनुभव किया। यह त्याग और आदिकाल का नशा, त्रिकालदर्शी मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति का पहला जोश जिसमें कुछ होश नहीं, पुरानी दुनिया का सब कुछ तुच्छ अनुभव हुआ, असार अनुभव हुआ। ऐसी हरेक की पहली स्टेज देखते हुए अति स्नेह हुआ कि हरेक ने बाप के प्रति कितना त्याग और लगन से आगे बढ़ने का पुरूषार्थ किया है। ऐसे त्यागमूर्त्त, ज्ञान मूर्त्त, निश्चय बुद्धि बच्चों के ऊपर बाप-दादा भी अपने सर्व सम्पत्ति सहित कुर्बान हुए। जैसे बच्चों ने संकल्प किया, ‘बाबा! हम आपके हैं।’ वैसे बाप भी रिटर्न में यही कहते कि, ‘जो बाप का सो आपका’, ऐसे अधिकारी भी बने, लेकिन आगे क्या होता है? चलते-चलते जब महावीर अर्थात् रूहानी योद्धा बन माया को चैलेंज करते हैं, विजयी बनने का अधिकार भी समझते हैं लेकिन माया के अनेक प्रकार के वार को सामना करने के लिए दो बातों की कमी हो जाती है। वह दो बातें कौन सी हैं? ‘एक सामना करने की शक्ति की कमी, दूसरा परखने और निर्णय करने की शक्ति की कमी।’ इन कमियों के कारण माया के अनेक प्रकार के वार से कब हार, कब जीत होने से कब जोश, कब होश में आ जाते हैं। सामना करने की शक्ति न होने का कारण? बाप को सदा साथी बनाना नहीं आता है, साथ लेने का तरीका नहीं आता। सहज तरीका है - ‘अधिकारीपन की स्थिति।’ इसलिए कमज़ोर देखते हुए माया अपना वार कर लेती है।
परखने की शक्ति न होने का कारण? बुद्धि की एकाग्रता नहीं है। व्यर्थ संकल्प वा अशुद्ध संकल्पों की हलचल है। एक में सर्व रस लेने की एकरस स्थिति नहीं। अनेक रस में बुद्धि और स्थिति डगमग होती है। इस कारण परखने की शक्ति कम हो जाती है। और न परखने के कारण माया अपना ग्राहक बना देती है। यह माया है, यह भी पहचान नहीं सकते। यह रांग है, यह भी जान नहीं सकते। और ही माया के ग्राहक अथवा माया के साथी बन, बाप को वा निमित्त बनी हुई आत्माओं को भी अपनी समझदारी पेश करते हैं कि - यह तो होता ही है, जब तक सम्पूर्ण बनें तक यह बातें तो होंगी। ऐसे कई प्रकार के विचित्र प्वाइंटस माया के तरफ से वकील बनकर बाप के सामने वा निमित्त बने हुए के सामने रखते हैं। क्योंकि माया के साथी बनने के कारण आपोजीशन पार्टी के बन जाते हैं। मायाजीत बनने की पोजीशन छोड़ देते हैं। कारण? परखने की शक्ति कम है।
ऐसे वन्डरफुल और रमणीक केस बाप-दादा के सामने बहुत आते हैं। प्वाईन्टस भी बड़ी अच्छी-अच्छी होती हैं। इनवेन्शन भी बहुत नई-नई करते हैं, क्योंकि बैकबोन माया होती है। जब बच्चें की ऐसी स्थिति देखते हैं तो रहम आता है, बाप सिखाते हैं और बच्चे छोटी सी गलती के कारण क्या करते रहते हैं? छोटी सी गलती है, श्रीमत में मनमत मिक्स करना। उसका आधार क्या है? ‘अलबेलापन और आलस्य।’ अनेक प्रकार के माया के आकर्षण के पीछे आकर्षित होना। इसीलिए जो पहला उमंग और उत्साह अनुभव करते हैं, वह चलते-चलते, मायाजीत बनने की सम्पूर्ण शक्ति न होने के कारण कोई पुरूषार्थ हीन हो जाते हैं। क्या करें, कब तक करें, यह तो पता ही नहीं था? ऐसे व्यर्थ संकल्पों के चक्कर में आ जाते हैं। लेकिन यह सब बातें साइडसीन अर्थात् रास्ते के नज़ारे हैं। मंजिल नहीं है। इनको पार करना है, न कि मंजिल समझकर यहाँ ही रूक जाना है। लेकिन कई बच्चे इसको ही अपनी ही मंजिल अर्थात् मेरा पार्ट ही यह है, वा तकदीर ही यह है, ऐसे रास्ते के नज़ारे को ही मंजिल समझ वास्तविक मंजिल से दूर हो जाते हैं। लेकिन ऊँची मंजिल पर पहुँचने से पहले आँधी तूफान लगते हैं, स्टीमर को उस पर जाने के लिए बीच भँवर में क्रास करना ही पड़ता है। इसलिए जल्दी में घबराओ मत, थको मत, रूको मत। भगवान को साथ बनाओ तो हर मुश्किल सहज हो जाएगी। हिम्मतवान बनो तो मदद मिल ही जायेगी। सी फादर करो। फॉलो फादर करो तो सदा सहज उमंग उल्लास जीवन में अनुभव करेंगे। रास्ते चलते कोई व्यक्ति वा वैभव को आधार नहीं बनाओ। जो आधार ही स्वयं विनाशी है, वह अविनाशी प्राप्ति क्या करा सकता। ‘एक बल एक भरोसा’ इस पाठ को सदा पक्का रखो, तो बीच भँवर से सहज निकल जायेंगे। और मंजिल को सदा समीप अनुभव करेंगे।
सुना, यह थी पुरूषार्थियों की रिजल्ट। मैजारिटी बीच भँवर में उलझ रहे हैं, लेकिन बाप कहते हैं यह सब बातें अपने मंजिल में आगे बढ़ने की गुड साइन समझो। जैसे विनाश को ‘गुड साइन’ कल्याणकारी कहते हो, यह परीक्षाएं भी परिपक्व करने का आधार है। मार्ग क्रास कर आगे बढ़ रहे हैं - यह निशानियां हैं। इस सब बातों को देखते हुए घबराओ मत। सदा यही एक संकल्प रखो कि अब मंजिल पर पहुँचे कि पहुँचे। समझा? जैसे बिजली की हलचल पसन्द नहीं आती, एक रस स्थिति पसन्द आती है, ऐसे बाप को भी बच्चों की एकरस स्थिति पसन्द आती है - यह प्रकृति खेल करती है लेकिन ऐसा खेल नहीं करना - सदा अचल, अटल, अड़ोल रहना।
ऐसे मास्टर नॉलेजफुल, सदा सक्सेसफुल सदा हर्षित रहने वाले, माया के सर्व आकर्षण से परे रहने वाले, मंजिल के समीप पहुँची हुई आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
सेवाधारी ग्रुप
कितना भविष्य जमा किया? सेवा का मेवा मिलता ही है अर्थात् जो करते हैं उसका पदमगुणा ज्यादा जमा हो जाता है। जैसे एक बीज डाला तो फल कितने निकलते, एक तो नहीं निकलता? बीज एक डाले, फल हर सीजन में मिलता रहता। यह भी सेवा का मेवा पदम गुणा जमा हो जाता है और हर जन्म में मिलता रहता । मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों प्रकार की सेवा हरेक ने की? वाणी और कर्म की सेवा के साथ-साथ मन्सा शुभ संकल्प वा श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा भी बहुत सेवा कर सकते हो। अगर तीनों सेवाएं साथ-साथ नहीं तो फल इतना फलीभूत नहीं होगा। वर्तमान समय प्रमाण तीनों साथ-साथ होनी चाहिए - अलग-अलग नहीं। वाणी में भी शक्ति तब आती जब मन्सा शक्तिशाली हो। नहीं तो बोलने वाले पंडित समान हो जाते। पंडित लोग कथा कितनी बढ़िया करते, लेकिन पंडित क्यों कहते, क्योंकि तोते मुआफ़िक पढ़कर रिपीट करते हैं। ज्ञानी अर्थात् समझदार, समझ कर सर्विस करने से सफलता होगी। समझदार बच्चे तीनों प्रकार की सेवा साथ-साथ करेंगे। चित्र कानसेस हीं लेकिन बाप कानसेस हो तो तीनों ही सेवा साथ में हो जाएगी।
ड्यूटी समझकर अगर सेवा करेंगे तो आत्माओं को आत्मिक स्मृति नहीं आएगी। वह भी एक सुनने की ड्यूटी समझ चले जाएंगे। अगर रहम दिल बन कल्याण की भावना रखकर सर्विस करते तो आत्माएं जाग्रत हो जातीं। उन्हों को भी अपने प्रति रहम आता है कि हम कुछ करें। बाप तो बच्चों को सदैव आगे बढ़ने का ईशारा देते। बाकी जितना किया वह ड्रामानुसार बहुत अच्छा मेहनत किया, समय दिया उससे वर्तमान भी हुआ और भविष्य भी जमा हुआ। अच्छा।
पार्टियों के साथ:-
1) सदैव एक मंत्र याद रखो - बाप को दिल का सच्चा साथी बनाकर रखेंगे तो सदा अनुभव करेंगे खुशियों की खान मेरे साथ है। सदा इस संग का रूहानी रंग लगा रहेगा। क्योंकि बड़े से बड़ा संग ‘सर्वशक्तिवान’ का है। सत्संग की महिमा है तो सदा बुद्धि द्वारा सत् बाप, सत् शिक्षक, सत् गुरू का संग करना - यही ‘सत्संग’ है। इस सत्संग में रहने से सदा हर्षित और हल्के रहेंगे। किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव नहीं होगा। निश्चय बुद्धि हो - यह तो ठीक है। लेकिन निश्चय का रिटर्न है- बाप को सदा का साथी बनाकर रखना। पल-पल बाप का साथ हो। सदा साथ के अनुभव से सम्पन्न का अनुभव करेंगे। ऐसे लगेगा जैसे भरपूर हैं। जब बाप को अपना बनाया तो बाप का जो भी हैं, सब अपना हो गया।
2) सदा ईश्वरीय नशे में और भविष्य देवपद के नशे में रहते हो? संगम युग की प्रालब्ध क्या है? बाप को पाना। और भविष्य की प्रालब्ध देवपद पाना। तो दोनों प्रालब्ध की स्मृति रहती है? जिसको बाप मिल गया उसको नशा कितना होगा, बाप से ऊपर और कुछ नहीं! बाप मिला सब कुछ मिला। सदा याद में रहने से जो भी प्राप्ति है, उसका अनुभव कर सकते हो। याद नहीं तो प्राप्ति का अनुभव नहीं। सदा प्राप्ति के नशे में रहो मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। शक्तियां बाप की प्रॉपर्टी हैं तो बच्चे का उस पर अधिकार है। अधिकारी बच्चों के मन से सदैव यही गीत निकलेंगे जो पाना था पा लिया।
किसी भी प्रकार का विघ्न रास्ते चलते आवे तो निर्विघ्न रहने का तरीका आ गया है? विघ्न को हटाना सहज है वा मुश्किल? जब बाप का हाथ छोड़ते तो मुश्किल लगता। अगर बाप सदा साथ रहे तो कोई मुश्किल नहीं। बाप का साथ छोड़ने से कमज़ोर हो जाते। कमज़ोर को छोटी बात भी बड़ी लगती। बहादूर को बड़ी बात भी छोटी लगती। जब बाप साथ देने के लिए तैयार है, लेने वाले न लें तो बाप क्या करे? किनारा नहीं करो तो सदा सहज लगेगा।
पाण्डव अर्थात् बाप के साथ की स्मृति में रहने वाले। कल्प पहले भी पाण्डवों की स्मृति की विशेषता क्या गाई हुई है? पाण्डवों को नशा था बाप हमारे साथ है। बाप के साथ का नशा होने के कारण चैलेन्ज करने वाले बने। चैलेन्ज की ना कि हम विजयी बनेंगे। चैलेन्ज का आधार था बाप का साथ। तो जब पाण्डवों के साथ की यह विशेषता गाई हुई हो तो प्रेक्टीकल में कितना नशा होगा? माया के बड़े-बड़े महावीर की पाण्डवों के आगे क्या रिजल्ट हुई? विनाश को प्राप्त हुए। ऐसे माया के विघ्नों को पार करने वाले अनुभव करते हो कि माया से घबराते हो? किसी भी प्रकार के माया के विघ्न आवे लेकिन त्रिकालदर्शी हो अर्थात् माया क्यों आती है और उसको भगानो का तरीका क्या है - यह सब जानने वाले। माया आ गई क्या करे, ऐसे घबराने वाले नहीं। पाण्डवों का चित्र भी ग्वालों के रूप में दिखाते हैं। सदा ग्वालबाल साथ रहते थे। चैतन्य अपना जड़ यादगार देख रहे हैं - यह वन्डरफुल बात है ना।
शक्तियों का या गोपिकाओं का यादगार है, ‘खुशी में नाचना।’ पांव में घुंघरू डालकर नाचते हुए दिखाते हैं। जो सदा खुशी में रहते उनके लिए कहते - खुशी में नाच रहा है। नाचते हैं तो पांव ऊपर रखते हैं। ऐसे ही जो खुशी में नाचने वाले होंगे उनकी बुद्धि ऊपर रहेगी। देह की दुनिया व देहधारियों में नहीं, लेकिन आत्माओं की दुनिया में, आत्मिक स्थिति में होंगे। ऐसे खुशी में नाचते रहो। सदा खुशी किसको रहेगी? जो अपने को गोपिका समझेंगे। गोपिका का अर्थ है - जिसकी लगन सदा गोपी वल्लभ के साथ हो। अपने को गृहस्थी माता नहीं लेकिन ‘गोपिका’ समझो, गृहस्थी शब्द ही अच्छा नहीं लगता। गोपिकाओं का नाम लेते ही सब खुश हो जाते हैं। जब नाम लेने से दूसरे खुश हो जाते तो स्वयं गोपिकाएं कितना खुश होंगी! अच्छा।
वरदान:- अटूट याद द्वारा सर्व समस्याओं का हल करने वाले उड़ता पंछी भव
जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेरा होता है वह स्वत: याद रहता है। याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। मेरा बाबा और मैं बाबा का -इसी को कहा जाता है सहजयोग। ऐसे सहजयोगी बन एक बाप की याद के लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हल करके उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी।
स्लोगन:- मनन शक्ति के अनुभवी बनो तो ज्ञान धन बढ़ता रहेगा।