15-07-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 04-02-75 मधुबन
ज्ञान को स्वयं में समाने से ही अनमोल मोती और अमोघ शक्ति की प्राप्ति
अभी संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें इस समय चातक के समान है जैसे सीप के लिये कहते हैं कि हर बूँद को स्वयं में समाने से मोती बना देती हैं, ऐसे ही आप सभी भी जो ज्ञान के बोल व महावाक्य सुनते हो और धारण करते हो, वह एक-एक बोल क्या बन जाता है? आप भी उसे मोती बना देते हैं और यहाँ एक-एक बोल पदम्-पति बनाने वाला बन जाता है। एक-एक बोल अमूल्य तब बनता है जब उसे धारण करते हो। जैसे चातक बूँद को धारण कर लेते हैं, वैसे ही आप भी इस ज्ञान को सुनकर समा लेते हो। समाने का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या दिखाई देता है? ऐसे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म पदमों के जमा करने का आधार बन जाता है। अर्थात् हर सेकेण्ड के बोल में वह आत्मा पदम-पति स्वरूप में दिखाई देती है। स्थूल धन का नशा और खुशी चेहरे पर चमकती हुई दिखाई देती है लेकिन होती वह अल्पकाल की ही है परन्तु ज्ञान-चातक के चेहरे पर खुशी की झलक सदा स्पष्ट दिखाई देती है।
अपने दर्पण में, तीसरे नेत्र द्वारा, अपनी ऐसी झलक को हर समय देखते हो? हर सेकेण्ड के जमा का हिसाब चेक करते हो? प्लस कितना होता है और माइनस कितना होता है - ऐसा अपना स्पष्ट हिसाब रखने के अभ्यासी बने हो? विशेष समय निकाल कर हिसाब-किताब देखते हो? अभी-अभी कमाई, अभी-अभी गँवाई - यह उतार-चढ़ाव अगर ज्यादा होगा तो सोचने, देखने और करने का विशेष समय निकालना होगा। अगर एक-रस कमाई है, जमा ही होता जाता है, बार-बार नुकसान की कोई बात नहीं है, अर्थात् खाता क्लीयर (Clear; स्पष्ट) है तो जिस समय भी चाहे, एक सेकेण्ड में हिसाब निकाल सकते हैं? क्या रिजल्ट देखते हो? अभी तो अनेक आत्माओं के अनेक जन्मों के बने हुए खाते, जिसको पाप-कर्मों का खाता कहा जाता है, उसको भस्म कराने वाले हैं, वे स्वयं अपना ऐसा खाता बना नहीं सकते। यह तो पुराने खाते हैं। आप तो पुराने खाते समाप्त कर नया जन्म, नये खाते बनाने वाले हो। पुराने खाते सब खत्म हो रहे हैं - ऐसा अनुभव होता है? यदि पुराने खाते को पूर्ण रीति से चुकता करने की युक्ति नहीं आती है तो यह थोड़ा-सा रहा हुआ खाता बार-बार दिल को खाता रहेगा। यहाँ भी यदि माया का कोई कर्ज होता है तो कर्जदार बार-बार तंग करते हैं। ऐसे कर्ज को मर्ज कहा जाता है।
यहाँ भी माया का कोई कर्ज पुराने खाते में रहा हुआ है, तब ही माया बार-बार परेशान करती है व किसी-न-किसी मानसिक कर्ज के रूप में है। वह कर्ज चुक्ता करना पड़ता है। तो अपने खाते को चेक करो कि कोई रहा हुआ कर्ज, संकल्प व संस्कार के रूप में या स्वभाव के रूप में रहा हुआ तो नहीं है? जैसे शारीरिक रोग व कर्ज बुद्धि को एकाग्रचित नहीं करने देता, न चाहते हुए भी अपनी तरफ बार-बार खींच लेता है, ऐसे ही यह मानसिक कर्ज का मर्ज बुद्धि-योग को एकाग्र नहीं करने देता। बल्कि विघ्न रूप बन जाता है।
अभी तो समय की समाप्ति की समीपता है, तो अपने भी सब हिसाब चेक करो और समाप्त करो। हिसाब-किताब आता है ना? मास्टर नॉलेजफुल हो ना? पुराने खाते का कर्ज या तो व्यर्थ संकल्प-विकल्प के रूप में होगा या कोई संस्कार व स्वभाव के रूप में होगा। इन बातों से चेक करो कि संकल्प एक है? याद भी एक को करते हैं, अथवा करना एक को चाहते हैं, होता दूसरा है? अपनी तरफ क्या खींचता है, क्यों खिंचता है? बोझ है कोई, जो अपनी तरफ खींचता है? हल्की चीज कभी भी नीचे नहीं आयेगी, वह चढ़ती कला में ही होगी, किसी भी प्रकार का बोझ, कितना भी ऊपर करना चाहे तो ऊपर नहीं जायेगा, बल्कि नीचे ही आयेगा। ऐसे ही सारे दिन की मन्सा, वाचा, कर्मणा में, सम्पर्क और सेवा में इन बातों को चेक करो।
सेवा में भी प्लान और प्रैक्टिकल में, संकल्प और कर्म में अन्तर क्यों? उस अन्तर का कारण सोचोगे तो स्पष्ट दिखाई देगा कि कोई-न-कोई कमी होने के कारण प्लैन और प्रैक्टिकल में अन्तर होता है। सर्वशक्तियों में से किसी विशेष शक्ति की कमी है। जैसे योद्धा मैदान में सर्वशस्त्रधारी नहीं बन जाते हैं तो समय पर किसी साधारण शस्त्र की भी आवश्यकता पड़ जाती है तो उन्हें साधारण शस्त्र की कमी भी बहुत नुकसान कर देती है। यहाँ भी सर्वशक्तियों का समूह चाहिए अर्थात् सर्व-शस्त्रधारी चाहिये। अपनी बुद्धि से भले ही जज करते हो कि यह तो साधारण बात है, यह कभी भी समय पर बड़ा धोखा देती है। इसलिये टाइटल ही है - मास्टर सर्व-शक्तिवान्। बाप सर्वशक्तिमान और बच्चे मास्टर सर्वशक्तिवान् नहीं? विजयी का अर्थ ही है - सर्वशस्त्रधारी। चैकिंग के साथ चेन्ज क्यों नहीं कर पाते हो? चेन्ज तब होंगे जब सर्वशक्तियाँ स्वयं में समायी होंगी, अर्थात् नॉलेजफुल के साथ-साथ पॉवरफुल दोनों का बैलेन्स चाहिए। अगर नॉलेजफुल 75% और पॉवरफुल में तीन-चार मार्क्स भी कम हैं, तो भी बैलेन्स बराबर-बराबर चाहिए। नॉलेजफुल का रिजल्ट है - प्लैनिंग, पॉवरफुल की रिजल्ट है - प्रैक्टिकल। नॉलेजफुल का रिजल्ट है - संकल्प और पॉवरफुल का रिजल्ट है - स्वरूप में आना। दोनों की समीपता और समानता ही दोनों का समान रूप बनना अर्थात् सम्पूर्ण बनना। योग में और सेवा में जितना समय स्वयं को बिजी रखोगे तो ऑटोमेटिकली कर्जदार को आने की हिम्मत व फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा!
15-07-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 05-02-75 मधुबन
पवित्रता - प्रत्यक्षता की पूर्वगामिनी है और पर्सनेलिटी की जननी
आज बाप सर्व देवों के भी देव, सर्व राजाओं के भी राजा बनाने वाले रचयिता की रचना, अर्थात् श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। आप ऊंचे-से-ऊंचे, बाप से भी ऊंची बनने वाली आत्मायें हैं। आज ऐसी ऊंची आत्माओं की विशेष दो बातें देख रहे हैं। वह कौन-सी हैं? एक रूहानी रॉयल्टी, दूसरी पर्सनेलिटी। जब हैं ही ऊंचे-से-ऊंचे बाप की ऊंची सन्तान - जिन्हों के आगे देवतायें भी श्रेष्ठ नहीं गाये जाते, राजायें भी चरणों में झुकते हैं, और सर्व नामी-ग्रामी आत्मायें भी भिखारी बन ईश्वरीय प्रसाद लेने के लिए जिज्ञासा रख आने वाली हैं तो ऐसी सर्व- आत्माओं के निमित्त बने हुए आप सभी मास्टर-ज्ञानदाता और वरदाता हो। तो ऐसी रॉयल्टी है? वास्तव में तो प्योरिटी ही रॉयल्टी है और प्योरिटी ही पर्सनेलिटी है। अब अपने को देखो कितने परसेन्ट प्योरिटी धारण की हुई है? प्योरिटी की परख व पहचान हरेक की रॉयल्टी और पर्सनेलिटी से हो रही है।
रॉयल्टी कौनसी है? रॉयल आत्मा को हद की विनाशी वस्तु व व्यक्ति में कभी आकर्षण नहीं होगा। जैसे लौकिक रीति से रॉयल पर्सनेलिटी वाली आत्मा को किन्हीं छोटी-छोटी चीजों में ऑख नहीं डूबती है, किसी के द्वारा गिरी हुई कोई भी चीज स्वीकार करने की इच्छा नहीं होती है, उनके नयन सदा सम्पन्न होने के नशे में रहते हैं, अर्थात् नयन नीचे नहीं होते हैं, उनके बोल मधुर और अनमोल अर्थात् गिनती के होते हैं और उनके सम्पर्क में खुमारी अनुभव होती है, ऐसे ही रूहानी रॉयल्टी उससे भी पदम गुणा श्रेष्ठ है।
ऐसी रॉयल्टी में रहने वाली आत्माओं की कभी भी एक-दूसरे के अवगुणों या कमजोरी की तरफ आँख भी नहीं जा सकती। जिसको दूसरा छोड़ रहा है अर्थात् मिटाने के पुरूषार्थ में लगा हुआ है, ऐसी छोड़ने वाली चीज अर्थात् गिरावट में लाने वाली चीज और गिरी हुई चीज, रूहानी रॉयल्टी वाले के संकल्प में भी धारण नहीं हो सकती व दूसरे की वस्तु की तरफ कभी संकल्प रूपी ऑख भी नहीं जा सकती। तो यह पुराने तमोगुणी स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरियाँ शूद्रों की हैं न कि ब्राह्मणों की। शूद्रों की वस्तु की तरफ संकल्प कैसे जा सकता है? अगर धारण करते हैं तो जैसे कहावत है ना कि ‘‘कख का चोर सो लख का चोर’’ - तो यह भी सेकेण्ड-मात्र व संकल्पमात्र धारण करने वाली आत्माएं रॉयल नहीं गायी जायेंगी।
रूहानी रॉयल्टी वाली आत्माओं के बोल महावाक्य होते हैं। ये वाक्य गोल्डन वर्शन्स होते हैं, जिन्हें सुनने वाले भी गोल्डन एज के अधिकारी बन जाते हैं। एक-एक बोल रत्न के समान वेल्युएबल होता है वे दु:ख देने वाले, गिराने वाले या पत्थर के समान बोल नहीं होते, साधारण और व्यर्थ भी नहीं होते, समर्थ और स्नेह के बोल होते हैं। सारे दिन के उच्चारण किये हुए बोल ऐसे श्रेष्ठ होते हैं कि हिसाब निकालने पर स्मृति में आ सकते हैं कि आज ऐसे और इतने बोल बोले। रॉयल्टी वाले की निशानी व विशेषता यह है कि पचास बोल बोलने वाले विस्तार के बजाय दस बोल के सार में बोले, क्वॉन्टिटी को कम कर क्वॉलिटी में लाये। रूहानी रॉयल्टी वाले के सम्पर्क में जो भी आत्मा आये, उसे थोड़े समय में भी, उस आत्मा के दातापन की व वरदातापन की अनुभूति होनी चाहिए, शीतलता व शान्ति की अनुभूति होनी चाहिए जो हर-एक के मन में यह गुणगान हो कि यह कौन-सा फरिश्ता था, जो सम्पर्क में आया। थोड़े समय में भी उस तड़पती हुई और भटकती हुई आत्मा को बहुत काल की प्यास बुझाने का साधन व ठिकाना दिखाई देने लगे। इसको कहा जाता है - पारस के संग लोहा भी पारस हो जाए, अर्थात् रूहानी रॉयल्टी वाले की रूहानी नजर से निहाल हो जाए। ऐसी रॉयल्टी अनुभव करते हो?
अब सेवा की गति तीव्र चाहिए। वह तब होगी, जब ऐसी रूहानी रॉयल्टी चेहरे से दिखाई देगी। तब ही सर्व-आत्माओं का उलाहना पूर्ण कर सकेंगे। ऐसी प्योरिटी की पर्सनेलिटी हो कि जो मस्तक द्वारा शुद्ध आत्मा और सतोप्रधान आत्मा दिखाई दे अर्थात् अनुभव कर सके, नयनों द्वारा भाई-भाई की वृत्ति अर्थात् शुद्ध, श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा वायुमण्डल व वायब्रेशन परिवर्तित कर सको। जब लौकिक पर्सनेलिटी अपना प्रभाव डाल सकती है तो प्योरिटी की पर्सनेलिटी कितनी प्रभावशाली होगी? शुद्ध स्मृति द्वारा निर्बल आत्माओं को समर्थी स्वरूप बना सकते हो? ऐसी रॉयल्टी और पर्सनेलिटी स्वयं में प्रत्यक्ष रूप में लाओ। तब स्वयं को व बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे! अब विशेष रहमदिल बनो। स्वयं पर भी और सर्व पर भी रहमदिल! सहज ही सर्व के स्नेही और सहयोगी बन जायेंगे। समझा? ऐसे भाग्य का सितारा चमक रहा है न? ऐसे धरती के सितारों को सब चमकता हुआ देखना चाहते हैं।
अच्छा, गोल्डन वर्शन्स द्वारा गोल्डन एज लाने वाले, सर्व के प्रति सदा रहमदिल, सर्वगुणों से सम्पन्न, सर्व प्राप्ति करने वाले, एक आत्मा को भी वंचित नहीं रखने वाले ऐसे सदा दाता, रूहानी रॉयल्टी और पर्सनेलिटी में रहने वाले, सदा चमकते हुए सितारों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!
वरदान:- हद की इच्छाओं का त्याग कर अच्छा बनने की विधि द्वारा सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव
जो हद की इच्छायें रखते हैं, उनकी इच्छायें कभी पूरी नहीं होती। अच्छा बनने वालों की सभी शुभ इच्छायें स्वत: पूरी हो जाती हैं। दाता के बच्चों को कुछ भी मांगने की आवश्यकता नहीं है। मांगने से कुछ भी मिलता नहीं है। मांगना अर्थात् इच्छा। बेहद की सेवा का संकल्प बिना हद की इच्छा के होगा तो अवश्य पूरा होगा इसलिए हद की इच्छा के बजाए अच्छा बनने की विधि अपना लो तो सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हो जायेंगे।
स्लोगन:- याद और नि:स्वार्थ सेवा द्वारा मायाजीत बनना ही विजयी बनना है।