ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। बेहद का बाप परमात्मा शिव ब्रह्मा तन से बैठ समझाते हैं कि
बच्चे तुम मात-पिता के बने हो, यह बचपन भुला नहीं देना। वह लौकिक बचपन तो कभी भुलाया
नहीं जाता है। घर में मॉ बाप के साथ बच्चे रहते हैं। माता-पिता को जानते बड़े होते
जाते हैं। मॉ बाप के आक्यूपेशन आदि का उनको मालूम होता जाता है। अब यहाँ तुम बने हो
निराकार बाप के बच्चे। बाप है भण्डारी, अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते रहते हैं।
तुम अविनाशी ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरते हो, भविष्य 21 जन्मों के लिए। अगर
मात-पिता को भूल गये तो झोली फिर खाली हो जायेगी। तुम बच्चे यहाँ अपना जीवन ऊंच बना
रहे हो। बड़ा भारी वर्सा ले रहे हो। यहाँ तुम बाप के पास आते हो बहुत मालामाल बनने।
गरीब से साहूकार बनने, गरीब तो सब हैं। गरीब आते हैं, अपनी आजीविका बनाने अथवा 21
जन्मों के लिए अपना अधिकार अर्थात् वर्सा लेने लिए। तो उन्हों को अविनाशी ज्ञान
खजाना लेने लिए तुम बच्चों को हर प्रकार की सहूलियत देनी है क्योंकि यह खजाना और कहाँ
से तो मिल नहीं सकता। सभी को सुख देना है। हर एक को प्यार से चलाना है, जो कोई रूठ
न जाये और अविनाशी ज्ञान रत्नों रूपी रोटी लेने आते हैं तो उन्हों की झोली भरनी है।
लात नहीं लगानी है। बाप के पास बच्चे आते ही हैं भण्डारा भरपूर करने। गरीबों को दान
मिलता है तो कितने खुश होते हैं। कोई मनहूस होते हैं वह तो गरीबों को लात मार देते।
जो धर्मात्मा, रहमदिल होते हैं, वह बुलाकर भी कुछ न कुछ दे देते हैं। तुम बच्चे
जानते हो इस समय दुनिया में सब गरीब हैं। भल स्थूल धन है परन्तु वह भी सब कंगाल बन
जाने वाले हैं। पैसा सबका मिट्टी में मिल जाना है। उस धन का नशा होने कारण यह ज्ञान
रत्नों का खजाना लेना उन्हों के लिए बड़ा कठिन है। बाप तो है ही गरीब-निवाज़, जो भी
बच्चे बनते हैं फिर सगे वा लगे आते हैं - बाप से अपना ऊंच जीवन बनाने, 21 जन्मों के
लिए गरीब से साहूकार बनने। सतयुग में तो बहुत साहूकार रहते हैं। भल नम्बरवार गरीब
भी होते हैं परन्तु ऐसे गरीब नहीं होते जो झोपड़ियों में रहना पड़े। यहाँ तो कितना
गन्द में रहते हैं। वहाँ ऐसी बात नहीं।
तो जहाँ तुम्हारे सेन्टर्स हैं, ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं। उन्हों के पास बहुत
मनुष्य आते हैं - अपना जीयदान लेने लिए। तुम बच्चे भण्डारे खोलते जाओ, जीयदान देने
लिए। यह कितना पुण्य होता है। अगर भण्डारा खोलकर फिर बन्द कर दे तो बताओ इतने सबका
हाल क्या होगा! दु:खी होंगे। हम जानते हैं बिचारे बहुत दु:खी कंगाल हैं। यहाँ आकर
खुशनसीब बनते हैं। उनके लिए सदैव दरवाजा खुला रहना चाहिए। भविष्य 21 जन्मों का वर्सा
मिलता है। सदा सुखी बनते हैं तो कितना दान देना चाहिए। शिवबाबा जो तुमको अविनाशी
ज्ञान रत्न देते हैं वह फिर औरों को देना है। राजधानी स्थापन हो रही है ना।
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, अब नहीं है फिर हिस्ट्री रिपीट होगी। तो बाप राजयोग
सिखलाते हैं। तुमको फिर औरों को सिखाना है। ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए - जहाँ बहुत
मनुष्य आकर अपना सौभाग्य बनायें। सबको जीयदान देना है। अगर जीयदान देने से लात
मारेंगे तो बहुत पाप चढ़ जायेगा। बहुत-बहुत प्यार से समझाना है। माया ऐसी है जो
एकदम बेहोश कर देती है। ट्रेटर बनते हैं तो पहले से भी बदतर हो जाते हैं। हर एक सेना
में ट्रेटर बनते हैं। कितनी जासूसी करते हैं। अपनी तो लड़ाई है ही माया के साथ। जो
बच्चे बनकर फिर माया तरफ चले जाते हैं तो ट्रेटर बन जाते हैं। बहुतों को दु:खी करते
हैं। कितनी अबलायें, कन्यायें बिचारी कैद हो जाती हैं। अपना ज्ञान है जबरदस्त। मॉ
बाप का वर्सा विष पीना पिलाना बन्द हो जाता है। यह बहुत बुरा धन्धा है, इसलिए बीती
सो बीती। आधाकल्प तो सब पतित बनते आये हैं, अब बाप कहते हैं बच्चे इनसे तुम्हारी
बहुत बुरी गति हुई है। अब इस धन्धे को बन्द करो, यह पतित दुनिया है इसे कोई 16 कला
सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया तो नहीं कहेंगे। सम्पूर्ण निर्विकारी थे
सूर्यवंशी। राम सीता को भी चन्द्रवंशी, क्षत्रिय कहेंगे। मनुष्य तो उन्हों को भी
भगवान समझ लेते हैं। तुम बच्चे जानते हो सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी में रात दिन का
फ़र्क है। वह 16 कला सम्पूर्ण नई दुनिया के मालिक वह 14 कला सम्पूर्ण, दो कला कम हो
जाती हैं। दुनिया कुछ पुरानी हो जाती है। सूर्यवंशी का नाम बाला है। बच्चे कहते भी
हैं बाबा हम तो सूर्यवंशी बनेंगे। दो कला कम भी क्यों हो। स्कूल में अगर कोई नापास
होते हैं तो माँ बाप का भी नाम बदनाम करते हैं। पास होते हैं तो खुश होते हैं।
नापास होते तो दिल घबराती है। कोई-कोई तो डूब मरते हैं। जो फुल पास होते हैं वह
सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण के घराने में जाते हैं। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। बरोबर
इस समय बाप आकर पहले ब्राह्मण कुल स्थापन कर उनको बैठ पढ़ाते हैं, जो फिर सूर्यवंशी,
चन्द्रवंशी बनते हैं, इसमें पढ़ना और पढ़ाना है। नहीं तो पढ़े हुए के आगे फिर भरी
ढोयेंगे। यहाँ तुम्हारे सामने एम आबजेक्ट है। यहाँ अन्धश्रधा हो नहीं सकती। समझाया
जाता है हम पाठशाला में पढ़ते हैं मनुष्य से देवता बनने। साक्षात्कार भी किया है तब
तो कहते हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। सो ऐसे थोड़ेही बनेंगे। सिवाए बाप के कोई बना
न सके। वह गीता सुनाने वाले भी कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हम राजाओं का राजा बनाते
हैं। मनमनाभव, मेरे बच्चे बनो। वह तो प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा ही कह सकते हैं।
अपने को कोई प्रजापिता ब्रह्मा भी कह न सके। कितना भी झूठा वेश बनावे परन्तु यह बातें
समझा न सके। यह तो शिवबाबा ही समझाते हैं। मनुष्य थोड़ेही कहेंगे मनमनाभव, वो चक्र
का राज़ थोड़ेही समझायेंगे कि कल्प कितने वर्ष का होता है। चक्र कैसे फिरता है। कोई
नहीं जानते। तुम बच्चों को बहुत नॉलेज मिलती है। मोटी बुद्धि इतना पढ़ नहीं सकेंगे।
इम्तहान है बहुत कड़ा। आई.सी.एस. इम्तहान में भी बहुत थोड़े साहस रखते हैं।
गवर्मेन्ट भी समझती है इम्तहान कड़ा रखें तो कम पास होंगे। यहाँ भी लिमिट है। 8
नम्बर वन में जाते हैं फिर 108 हैं। इस समय करोड़ों भारतवासी होंगे। उनमें भी जो
देवी-देवता धर्म के होंगे वह निकलेंगे। 33 करोड़ देवतायें गाये जाते हैं। उनमें 8
नम्बरवन सूर्यवंशी बनते हैं। प्रिन्स प्रिन्सेज भी बहुत होंगे ना। इम्तहान बहुत बड़ा
भारी है। 8 विजय माला के दाने बनते हैं। इसमें भी एक तो है मम्मा कुमारी और यह फिर
है बूढ़ा। मम्मा जवान है। अच्छा पढ़कर पद पाती है। यह भी बूढ़े पन में पढ़कर
इम्तहान तो पास करते हैं ना। बाप से वर्सा लेने में मेहनत की बात है। तुम बच्चों को
भगवान पढ़ाते हैं, यह तो बड़े ही भाग्य की बात है, जो भगवान का बनकर फिर उनकी
सर्विस में लग जाएं। सिन्ध में तुम सब आये फिर उनसे कितने तो टूट गये। बाकी जो तीखे
निकले उनकी तो कमाल है। कितने को आप समान बना रहे हैं। तो आफरीन देनी पड़े ना। भट्ठी
से 300 निकले नम्बरवार। अब तो हजारों में हो गये हैं। नये-नये सेन्टर्स खुलते जाते
हैं। कितने मनुष्य आकर अपनी जीवन हीरे जैसी बनाते हैं। बनकर फिर औरों को बनाना
चाहिए। मुरझाये हुए को सुरजीत करना है। बड़े प्यार से एक-एक को हाथ करना होता है।
कहाँ बिचारे के पैर खिसक न जायें। जितना जास्ती सेन्टर्स होंगे उतना जास्ती आकर
जीयदान पायेंगे। पावन हीरे जैसा जीवन बनायेंगे। अभी तो पतित कौड़ी जैसा है। तो बाप
कहते हैं पुरुषार्थ कर सूर्यवंशी में आ जाओ। बाप को याद करो। ऐसे नहीं कहते कि
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को याद करो। बहुत मनुष्य पूछते हैं शंकर का क्या पार्ट है?
प्रेरणा से कैसे विनाश कराते हैं? बोलो, यह तो गाया हुआ है, चित्र भी हैं। इस पर
समझाया जाता है वास्तव में तुम्हारा कोई इन बातों से कनेक्शन है नहीं। पहले तो समझो
हमको बाप से वर्सा लेना है। मनमनाभव हो जाओ। शंकर क्या करता, फलाना क्या करता, इसमें
जाने की दरकार क्या है। तुम सिर्फ दो अक्षर पकड़ लो बाप और वर्से को याद करो तो
राजधानी मिल जायेगी। बाकी शंकर को गले में सांप क्यों दिया है, योग में ऐसे क्यों
बैठता.... इन बातों से कुछ कनेक्शन नहीं। मुख्य बात है ही बाप को याद करना। बाकी
ऐसे-ऐसे तो ढेर प्रश्न उठायेंगे, इससे तुम्हारा क्या फ़ायदा। तुम सब बातें भूल जाओ।
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। हम बाप का सन्देश देते हैं।
याद नहीं करेंगे तो विकर्माजीत नहीं बनेंगे, फिर ज्ञान की धारणा कैसे होगी। उल्टे
सुल्टे प्रश्न कोई पूछे तो बोलो पहले नॉलेज तो समझो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करो। बाकी सब बातें छोड़ दो। आगे चल समझते जायेंगे। वर्सा लेने की हिम्मत दिखाओ। हम
बाप का सन्देश देते हैं फिर करो न करो तुम्हारी मर्जी। बाप के पास पवित्र बन जायेंगे
तो फिर नई पावन दुनिया में ऊंच पद दिलायेंगे। स्वदर्शन चक्र फिराओ। 84 जन्मों के
चक्र को याद करो बस। जितना जो याद करेंगे वही विजय माला में पिरोये जायेंगे और कुछ
जप तप आदि नहीं करना है, इन सबसे छुड़ा देते हैं। द्वापर से लेकर तो हद का वर्सा
लेते आये। अभी बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेना है। अभी तुम जो वर्सा लेते हो वह
21 जन्मों के लिए अविनाशी बन जाता है। वहाँ तुमको कोई यह पता नहीं पड़ता है कि हमने
यह वर्सा कैसे पाया है वा यह अविनाशी वर्सा है। यह तुम अभी जानते हो कि हम 21 जन्म
राज्य-भाग्य करेंगे। वहाँ तो सुख की ही मौज है। मनुष्य समझेंगे वर्सा हर एक को बाप
से ही लेना है। परन्तु वहाँ है तुम्हारे अभी के पुरुषार्थ की प्रालब्ध, जो 21 जन्म
चलती है। ऐसे नहीं कि उसी समय कोई अच्छे कर्म करते हो। यहाँ तो ऐसे अच्छे कर्म सीखते
हो, जन्म बाई जन्म फिर तुम राजाई में आयेंगे। बाप फरमान करते हैं एक तो पवित्र बनो
और मुझे याद करो। परन्तु माया भुला देती है। सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है वह याद
करने से हम चक्रवर्ती राजा रानी बनते हैं। कितनी सहज बात है। कन्याओं के लिए तो सबसे
सहज है। अधर कुमारियों को फिर सीढ़ी उतरने में मेहनत लगती है। जहाँ तहाँ से कुमारियां
जास्ती निकलती हैं। इस समय शादी करना तो पूरी बरबादी है। यहाँ शिव साजन के साथ सगाई
करने से पूरी आबादी हो जायेगी, स्वर्ग में। तुम अभी गॉड फादरली सर्विस पर हो, इससे
उजूरा क्या मिलेगा? तुम विश्व का मालिक बनेंगे। यह है सच्ची कमाई। तुम ब्राह्मण हाथ
भरतू कर जायेंगे। यह तुम्हारी सच्ची कमाई है। बाकी सबकी है झूठी कमाई, तो हाथ खाली
ही जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे .. देखो सिकीलधे अक्षर का अर्थ कितना अच्छा है। ऐसे और कोई कह
न सके। बहुत सिक-सिक से मिलते हैं। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. तुम 5 हजार
वर्ष बाद फिर आकर मिले हो, इनको कहते हैं बेहद के सिकीलधे बच्चे। बरोबर अब कल्प के
संगम पर बाप से आकर मिले हो। फिर भिन्न नाम रूप में मिलेंगे। जिन्होंने कल्प पहले
यह पढ़ा था उन्हों को ही बाबा पढ़ायेंगे फिर कल्प-कल्प पढ़ते रहेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति बापदादा का यादप्यार और
गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मुरझाये हुए को सुरजीत बनाना है। प्यार से एक-एक को सम्भालना है। किसी
भी कारण से किसी के पैर खिसकने न पायें - यह ध्यान रखना है।
2) पावन दुनिया में ऊंच पद के लिए दूसरे सब प्रश्नों को छोड़ बाप और वर्से को
याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। बहुतों को जीयदान देने की सेवा करनी है।