ओम् शान्ति।
इस पुरानी दुनिया में रहते हुए तुम बच्चों का इस पुरानी दुनिया से कोई नाता नहीं रहा
है। तुम नई दुनिया के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो – बेहद के बाप से वर्सा लेने। जब तक
स्थापना हो तब तक भल पुरानी दुनिया में बैठे हैं परन्तु तुम्हारा सारा ध्यान स्वर्ग
की सच्ची कमाई तरफ है। विनाश तो होना ही है, आसार ऐसे देखने में आते हैं। यह भी
जानते हो कि इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली है। जरूर हमारे अथवा भारत
के कल्याण के लिए यह महाभारत लड़ाई लगनी है। अभी वास्तव में तुम किससे लड़ाई नहीं
करते हो। तुम तो डबल अहिंसक हो। तुम्हारे पास न काम की, न क्रोध की हिंसा है। मुख्य
हिंसा काम की कही जाती है। यह तो है ही पतित दुनिया। किस कारण पतित बने हो? विकार
के कारण। यह काम विकार आदि-मध्य-अन्त दु:ख देता है। क्रोध के लिए नहीं कहा जाता।
अपवित्रता और पवित्रता की बात है। काम ही सबको धोखा देता है। इस काम पर ही अबलाओं
पर अत्याचार होते हैं। एक पवित्र बने दूसरा न बने तो झगड़ा हो पड़ता है। बाप कहते
हैं दोनों को प्रतिज्ञा करनी है, ज्ञान चिता पर बैठने की। वह काम चिता पर बिठाते
हैं। बाप वह सौदा कैन्सिल कराते हैं। अब पवित्र दुनिया स्थापन होती है तो वह सौदा
कैन्सिल करना पड़े। ज्ञान चिता पर बैठने से पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
तुम्हारी भी लड़ाई है। उस बाहुबल की लड़ाई से वास्तव में तुम्हारी लड़ाई बड़ी
खौफनाक है क्योंकि रावण तुम्हारा बहुत पुराना दुश्मन है, उस पर जीत पानी है। जितना
एक के साथ बुद्धियोग लगायेंगे तो बल मिलेगा। सारा मदार है श्रीमत पर चलने का।
श्रीमत कहती है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनना
है। आत्मा को ही बनना है। आत्मा 16 कला सम्पूर्ण थी, अब वह 84 जन्म लेते-लेते नीचे
उतरती है। जरूर बच्चे जानते हैं देवी-देवताओं का राज्य था। रामराज्य स्थापन हुआ।
राम नाम रख दिया है। वास्तव में नाम शिव है। शिवाए नम: कहते हैं। रामाए नम: नहीं
कहते हैं। शिवबाबा अक्षर बहुत राइट है। राम को बाबा कोई कहते नहीं। शिव को बाबा कहते
हैं। राम यानी परमपिता परमात्मा, न कि रघुपति राघव राजा राम। मनुष्य जो सुनते वह
बोलते जाते हैं। अब सिवाए तुम बच्चों के और कोई भी परमपिता परमात्मा के साथ यथार्थ
योग नहीं लगाते हैं। वह तो समझते हैं कि परमात्मा तो ब्रह्म ज्योति स्वरूप है, नाम
रूप से न्यारा है। अगर ब्रह्म कहते तो भी नाम हो गया ना। कुछ भी समझते नहीं। बाप
कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ। मैं अति सूक्ष्म हूँ, इससे सूक्ष्म कोई चीज़ होती
नहीं, अति सूक्ष्म है। जैसे झाड़ का बीज सूक्ष्म होता है। देखने में कितना छोटा है।
मनुष्य सृष्टि का बीज तो सबसे सूक्ष्म है। सबसे छोटी खस-खस होती है। बहुत पतली होती
है। उनके झाड़ बहुत बड़े-बड़े होते हैं। तो परमपिता परमात्मा तो उनसे भी अति
सूक्ष्म बिन्दी है।
बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, इस रीति तुम्हारे में भी नम्बरवार जानते
हैं। कोटों में कोई ही इस राज़ को समझते हैं। शिवबाबा जैसी महिमा और कोई भी मनुष्य
आत्मा की नहीं हो सकती। कैसे आकर पतित दुनिया को पावन बनाते हैं। सम्मुख आकर बच्चों
को पढ़ाते हैं, कुछ भी जानते नहीं हैं। न मुझे जानते, न पा को जानते हैं। अभी तुम
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जानते हो। तुम्हारा इस पुरानी दुनिया की बातों से तैलुक
नहीं है। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। उनका तो धन्धा ही है अपना। तुम्हारा
धन्धा अपना है। तुम हो गये गुप्त योगबल की सेना। वह है बाहुबल की सेना। उनको तुम
जानते हो, तुमको कोई नहीं जानते। वो लोग (साइंसदान) स्टॉर पर जाने की कोशिश करते
हैं। देखा है तो समझते हैं हम क्यों नहीं जा सकते! हम समुद्र का अन्त क्यों नहीं पा
सकते! इसलिए पुरूषार्थ करते हैं। बाकी जो इन आंखों से नहीं देखा जा सकता, उनका
पुरूषार्थ कर नहीं सकते। उनकी बुद्धि में तो स्थूल चीजें आती हैं, उनके लिए
पुरूषार्थ करते हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्म परमात्मा को तो जानते ही नहीं है। खुद ही
आकर बच्चों को अपना परिचय देते हैं। तुमने चित्र बड़ा ज्योर्तिलिंगम् बनाया है तो
तुम्हारी बुद्धि में भी वह आता है। बाप बच्चों को समझाते रहते हैं कि जैसे बाप की
गत मत न्यारी है वैसे तुम्हारी सद्गति की मत सारी दुनिया से न्यारी है। तुम्हारा और
कोई बात से तैलुक नहीं है। तुम सच्चे ब्राह्मण बने हो। ब्राह्मणों का विस्तार तो
कुछ है नहीं। वो ब्राह्मण लोग कहेंगे – हम ब्रह्मा की औलाद हैं। ब्रह्मा तो हुआ
प्रजापिता। उनका बाप कौन? वह तो कोई जानते नहीं। वह तो त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते
हैं। ब्रह्मा के तीन रूप कैसे हो सकते। यह तो तीन देवतायें हैं। तीनों की एक्टिविटी
अलग है। रचयिता तो एक ही शिव है। हम सब उनकी रचना वहाँ रहने वाली हैं। ऊंच ते ऊंच
बाप ही सुप्रीम सोल है। सुप्रीम सोल एक निराकार बाप को कहा जाता है। ऐसे नहीं कि वह
भी निराकार परमात्मा और हम आत्मायें भी निराकार, सब एक ही हैं, सब उनके ही रूप हैं।
नहीं। बाप अलग है बच्चे अलग हैं। तुमको बाप ने नॉलेज दी है। शास्त्रों में तो यह
बातें हैं नहीं कि ब्रह्मा-वंशी ब्राह्मणों को परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते हैं।
परमात्मा ने आकर यह ब्रह्मा मुख वंशावली रची है। जब चक्र पूरा हो संगम होता है तो
बाप आकर पतित दुनिया की अन्त और पावन दुनिया की आदि करते हैं। तो जरूर संगम पर ही
आना पड़े। पावन बनने में टाइम लगता है। आधाकल्प से सिर पर पापों का बोझा है। योग
अग्नि से जो आत्मा में खाद पड़ी है वह निकलती है। तुमको सतोप्रधान बनना है। हम जो
पतित बने हैं, याद से ही हम पावन बनते जायेंगे। कितना सहज है। हमको फिर से 84 जन्मों
का चक्र लगाना है। बच्चों को यह नॉलेज मिली है। बाप भी कहते हैं हम तुमको फिर से
राजयोग सिखलाने आये हैं। बाप वर्सा देते हैं, रावण श्राप देते हैं। यह बाप ही बैठ
समझाते हैं। इस समय बाप आकर सब मनोकामनायें पूरी करते हैं। अशुभ कामनायें तो माया
पूरी करती है। आजकल रिद्धि सिद्धि वाले बहुत पैसा कमाते हैं। वह कामनायें माया पूरी
करती है, उनकी भी किताब आदि होती है। तुमको तो कोई किताब नहीं, शास्त्र आदि नहीं
पढ़ना है। तुम्हें बाप की श्रीमत है-बच्चे पावन बनो और पावन बनाओ, तुम्हें कभी पतित
नहीं बनना है। तुम्हारी यह डिपार्टमेंट ही अलग है। कल्प पहले जो आकर ब्राह्मण बने
होंगे वही पुरूषार्थ करेंगे। देवताओं का देखो कैसे सैपलिंग लग रहा है। ब्राह्मण बनते
जाते हैं। जो थोड़ा भी सुनकर जाते तो प्रजा में आ जायेंगे। राजधानी में आ जायेंगे
ना। मौत सामने खड़ा है। खिटपिट थोड़ा जोर भी भर सकती है, बन्द भी हो सकती है। बुद्धि
कहती है कि अजुन अभी थोड़ा देरी है। राजधानी अभी कहाँ स्थापन हुई है। राजाओं,
सन्यासियों आदि को अजुन ज्ञान कहाँ दिया है। विवेक कहता है – विनाश में थोड़ा देरी
है। बाकी रिहर्सल होती रहेगी। वन्डर है ना। वह यज्ञ रचते हैं – लड़ाई बन्द करने के
लिए और भगवान ने यज्ञ रचा है सारी दुनिया का परिवर्तन करने के लिए (विनाश के लिए)
थोड़ा शान्ति होगी तो कहेंगे हमने यज्ञ रचा इसलिए शान्ति हो गई। एक बार यज्ञ सफल
हुआ तो चलता रहेगा। बरसात के लिए यज्ञ रचा, बारिष हुई तो खुशी होगी। बारिष नहीं होगी
तो कहेंगे ईश्वर की भावी। जैसे कोई शरीर छोड़ता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। फिर
तो शोक करने की दरकार ही नहीं है। स्वर्ग पधारा तो अहो सौभाग्य समझो ना। माया रावण
ने सबकी बुद्धि को ताला लगा दिया है। तुम जानते हो – हम कल्प पहले मुआफिक फिर से
पुरूषार्थ कर रहे हैं।
भारत अविनाशी खण्ड है और कोई दूसरा धर्म नहीं था। यह तो बाद में इन्हों ने निकाले
हैं। यह भी ड्रामा की भावी कहेंगे। रक्त की नदियां यहाँ ही बहती हैं। एक दो में
लड़ते रहते हैं। भल भाई-भाई होकर बहुत समय से रहे पड़े हैं। परन्तु हिन्दू और
मुसलमान धर्म तो अलग-अलग है ना। वह आये ही बाद में हैं तो लड़ाई इन्हों की आपस में
है। तुम्हारा इससे कोई तैलुक नहीं है। तुमको अपनी सर्विस में तत्पर रहना है। सिर्फ
तीन पैर पृथ्वी ले यह रूहानी हॉस्पिटल खोलना है। फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती जायेगी।
बूँद बूँद से तलाव ऐसे होगा ना। घर में भी यह चित्र रखो। बेहद के बाप से 21 जन्मों
का वर्सा कैसे पा सकते हो – आओ तो समझायें। मौत तो सामने खड़ा है। अब सिर्फ बेहद के
बाप और वर्से को याद करो, इनको मृत्युलोक कहा जाता है। बाप कहते हैं मुझे याद करो
तो मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। तब तो कहते हैं ना – मैं कालों का काल महाकाल हूँ।
अकाल तख्त है ना। तुम अकाल आत्मा हो। बच्चे समझते हैं कि हम इस दुनिया से बिल्कुल
न्यारे हैं। यहाँ पढ़ाने वाला विचित्र है। आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही सुनती
है, आत्मा ही इस मुख द्वारा सुना रही है। आत्मा इन कानों द्वारा सुन रही है। हम
आत्मा इस शरीर से यह करते हैं। आत्मा को रसना मिलती है। आत्मा ही कहती है – यह मीठा
है, यह खट्टा है। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। आत्माओं को बाप कहते हैं – अब घर
वापिस जाना है। तुमने 84 जन्म लिए हैं, अब यह शरीर छोड़ना है, इनसे ममत्व निकालना
है। सर्प भी ममत्व नहीं रखता है। पुरानी खल छोड़ नई ले लेते हैं। तुम्हारी भी यह
पुरानी खल है, इसको ऐसे ही छोड़ देना है। भ्रमरी का भी मिसाल तुम्हारे से लगता है।
वास्तव में सन्यासी यह मिसाल दे नहीं सकते। इस पतित दुनिया में सब विकारी कीड़े
हैं। तुम ब्राह्मणियां उन्हों को भूँ भूँ कर पतित से पावन बनाती हो। कहती हो शिवबाबा
को याद करो। मनुष्य को देवता बनाने की जादूगरी है। जादूगर, सौदागर, रतनागर यह सब
उनके नाम हैं।
अच्छा बच्चों को समझाते तो बहुत हैं। फिर भी कहते हैं बाप और वर्से को याद करो।
बाप कहते हैं अगर तुम एक बार मुझ पर बलिहार जायेंगे तो मैं 21 बार तुम पर बलिहार
जाऊंगा। यह सौदा तो अच्छा है ना। शिवबाबा तो दाता है। तुमको युक्ति बतलायेंगे कि
ममत्व कैसे निकालो। गृहस्थ व्यवहार में रहते श्रीमत पर चलो, इसमें पवित्रता है
फर्स्ट। यह रूहानी यात्रा है। सारा मदार यात्रा पर है। मनुष्य तो ढ़ेर के ढ़ेर
जिस्मानी यात्रायें करते रहते हैं। तुम्हारी एक ही रूहानी यात्रा है, जो रूह बैठ
रूहों को सिखलाते हैं। इसमें सारी बुद्धि की बात है। तुम बच्चों के पास दु:ख आ नहीं
सकता। तुम जानते हो इतना बड़ा विनाश हमारे लिए हो रहा है। तो तुम्हें अन्दर में
ह्रास (दु:ख) नहीं आ सकता। अगर आता है तो कच्चे हैं, ज्ञान की पूरी अवस्था नहीं है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर रूपी पुरानी खाल से ममत्व निकाल देना है। बुद्धि से रूहानी
यात्रा पर तत्पर रहना है।
2) पुरानी दुनिया की किसी भी बात से तैलुक न रख, ज्ञान चिता पर बैठ पावन बन बाप
से पूरा वर्सा लेना है।