01-10-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 20.01.90 "बापदादा" मधुबन
ब्रह्मा बाप के विशेष
पॉंच कदम
आज विश्व स्नेही बाप
अपने विशेष अति स्नेही और समिप बच्चों को देख रहे है। स्नेही सभी बच्चे है लेकिन अति
स्नेही वा समीप बच्चे वही है जो हर कदम में फालो करने वाले है। निराकार बाप ने
साकारी बच्चों को साकार रुप में फालो करने के लिए साकार ब्रह्मा बाप को बच्चों के
आगे निमित्त रखा जिस आदि आत्मा ने ड्रामा में 84 जन्मो के आदि से अंत तक अनुभव किये,
साकार रूप मैं माध्यम बन बच्चों के आगे सहज करने के तिए एग्ज़ाम्पल बने। क्योंकि
शक्तिशाली एग्ज़ाम्पल को देख फालो करना सहज होता है। तो स्नेही बच्चों के लिए स्नेह
की निशानी बाप ने ब्रह्मा बाप को रखा और सर्व बच्चों को यही श्रेष्ठ श्रीमत दी कि
हर कदम में 'फालो फादर।' सभी अपने को फालो फादर करने वाले समीप आत्मये समझते हो?
फालो करना सहज लगता या मुश्किल लगता है? ब्रह्मा बाप के विशेष कदम क्या देखे?
1 - सबसे पहला कदम –
‘सर्वंश त्यागी’ न सिर्फ तन से और लौकिक सम्बन्ध से लेकिन सबसे बड़ा त्याग, पहला
त्याग मन-बुद्धि से समर्पण । अर्थात् मन-बुद्धि में हर समय बाप और श्रीमत की हर
कर्म मैं स्मृति रही। सदा स्वयं को निमित्त समझ हर कर्म में न्यारे और प्यारे रहे।
देह के सम्बन्ध से, मैं-पन का त्याग। जब मन-बुद्धि की बाप के आगे समर्पणता हो जाती
है। तो देह के सम्बन्ध स्वत: ही त्याग हो जाते है। तो कदम - ' सर्वंश त्यागी।'
2 - दूसरा कदम – सदा
आज्ञाकारी रहे। हर समय एक बात में - चाहे स्व पुरुषार्थ में, चाहे यज्ञ-पालना में
निमित्त बने। क्योंकि स्व ही ब्रह्मा विशेष आत्मा है जिसका ड्रामा में पार्ट नूंधा
हुआ है। एक ही आत्मा – माता भी है, पिता भी है। यज्ञ-पालना के निमित्त होते हुए भी
सदा आज्ञाकारी रहे। स्थापना का कार्य विशाल होते हुए भी किसी भी आज्ञा का उल्लंघन
नहीं किया। हर समय 'जी हाज़िर' का प्रत्यक्ष स्वरूप सहज रूप में देखा।
3 - तीसरा कदम - हर
संकल्प में भी वफादार। जैसे पवित्रता नारी एक पति के बिना और किसी को स्वप्न में भी
याद नहीं कर सकती, ऐसे हर समय 'एक बाप दूसरा न कोई' - यह वफादारी का प्रत्यक्ष
स्वरूप देखा। विशाल नई स्थापना की जिम्मेवारी के निमित्त होतें भी वफादारी के बल
से, एक बल एक भरोसे के प्रत्यक्ष कर्म में हर परिस्थिति को सहज पार किया और कराया।
4 - चौथा कदम - विश्व
सेवाधारी। सेवा की विशेषता - एक तरफ अति निर्मान-वर्ल्ड सर्वेंट; दूसरे तरफ ज्ञान
की अथार्टी। जितना ही निर्मान उतना ही बेपरवाह बादशाह। सत्यता की निर्भयता - यही
सेवा की विशेषता है। कितना भी सम्बंधिया ने, राजनेताओ ने, धर्म-नेताओ ने नये ज्ञान
के कारण ऑपोजीशन किया लेकिन सत्यता और निर्भयता की पोजीशन से ज़रा भी हिला न सके।
इसको कहते है निर्मानता और अथॉर्टी का बैलेस। इसकी रिजल्ट आप सभी देख रहे हो। गाली
देने वाले भी मन से आगे झुक रहे है। सेवा की सफलता का विशेष आधार निर्मान-भाव,
निमित्त-भाव, बेहद का भाव। इसी विधि से ही सिद्धिस्वरूप बने।
5 - पाँचवा कदम -
कर्मबंधन मुक्त, कर्म-सम्बन्ध मुक्त। अर्थात् शरीर के बंधन से मुक्त फरिश्ता,
अर्थात् कर्मातीत। सेकण्ड में नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप समीप और समान।
तो आज विशेष संक्षेप
में पाँच कदम सुनाये। विस्तार तो बहुत है लेकिन सार रूप में इन पाँच कदमो के ऊपर
कदम उठाने वाले को ही फालो फादर कहा जाता है। अभी अपने से पूछो - कितने कदमो में
फालो किया है? समर्पित हुए हो या सर्वंश सहित समर्पित हुए हो? सर्वंश अर्थात्
संकल्प, स्वभाव और संस्कार, नेचर में भी बाप समान हो। अगर अब तक भी चलते-चलते समझते
हो और कहते हो- मेरा स्वभाव ऐसा है, मेरी नेचर ऐसी है वा न चाहते भी संकल्प चल जाते
है, बोत निकल पड़ते है - तो इसको सर्वंश त्यागी नहीं कहेंगे। अपने को समर्पित कहलाते
हो लेकिन सर्वंश समर्पण - इसमें मेरा-तेरा हो जाता है। जो बाप का स्वभाव, स्व का
भाव अर्थात् आत्मिक भाव। संस्कार सदा बाप समान स्नेह, रहम, उदारदिल का, जिसको बड़ी
दिल कहते हो। छोटी दिल अर्थात् हद का अपनापन देखना - चाहे अपने प्रति, चाहे अपने
सेवा-स्थानो के प्रति, अपने सेवा के साथियो के प्रति। और बड़ी दिल - सर्व अपनापन
अमुभव हो। बड़ी दिल मैं सदा हर प्रकार के कार्य- चाहे तन के, चाहे मन, चाहे धन के,
चाहे समन्ध में सफलता की बरकत होती है। बरकत अर्थात् ज्यादा फायदा होता है। और छोटी
दिल वाले को मेहनत ज्यादा, सफलता कम होती है। पहले भी सुनाया था कि छोटी दिल वालों
के भण्डारे और भण्डारा - सदा बरकत की नहीं होती। सेवा-साथी दिलासे बहुत देंगे - आप
ये करो हम करेंगे लेकिन समय सरकमस्टांस सुनाने शुरू कर देंगे। इसको कहते है बड़ी दिल
तो बड़ा साहेब राजी। राजयुक्त पर साहेब सदा राजी रहता है। टीचर्स सभी बड़ी दिल वाली
हो ना! बेहद के बड़े-ते-बडे कार्य अर्थ ही निमित्त हो। यह तो नहीं कहने हो ना - हम
फलाने एरिया के कल्याणकारी है या फलाने देश के कल्याणकारी है? विश्व-कल्याणकारी हो
ना। इतने बड़े कार्य के लिए दिल भी बड़ी चाहिए ना? बड़ी अर्थात् बेहद। वा टीचर्स कहेगी
कि हमको तो हद बनाकर दी गई है? हद भी क्या बनाई गई है, कारण? छोटी दिल। कितना भी
एरिया बनाकर दे लेकिन आप सदा बेहद का भाव रखो, दिल में हद नहीं रखो। स्थान की हद का
प्रभाव दिल पर नहीं होना चाहिए। अगर दिल में हद का प्रभाव है तो बेहद का बाप हद की
दिल में नहीं रह सकता। बड़ा बाबा है तो दिल बड़ी चाहिए ना। कभी ब्रह्मा बाप ने मधुबन
में रहते यह संकत्य किया कि मेरा तो सिर्फ मधुबन है, बाकी पंजाब, यु.पी., कर्नाटक
आदि बच्चों का है? ब्रह्मा बाप से तो सबको प्यार है ना। प्यार का अर्थ हें - बाप को
फालो करना।
सभी टीचर्स फालो फादर
करने वाली हो या मेरा सेंटर, मेरे जिज्ञासू, मेरी मंडोगरी और स्टूडैण्ट भी समझते -
मेरी टीचर है? फालो फादर अर्थात् मेरे को तेरे में समाना, हद को बेहद में समाना। अभी
इस कदम-पर-कदम रखने की आवश्यकता है। सबके संकल्प, बोल, सेवा की विधि बेहद की अनुभव
हो। कहते हो ना - अभी क्या करना है इस वर्ष। तो स्व-परिवर्तन के लिए हर एक को सर्व
वंश सहित समाप्त करो। जिसको भी देखो वा जो भी आपको देखे - बेहद के बादशाह का नशा
अनुभव हो। हद की दिल वाले बेहद के बादशाह बन नहीं सकते। ऐसे नहीं समझना कि जितने
सेंटर्स खोलते वा जितनी ज्यादा सेवा करते हो इतना बड़ा राजा बनेंगे। इस पर स्वर्ग की
प्राइज नहीं मिलनी है। सेवा भी हो, सेंटर्स भी हौ लेकिन हद का नाम-निशान न हो। उसको
नम्बरवार विश्व के राज्य का तख्त प्राप्त होगा। इसलिए अभी-अभी थोड़े समय के लिए अपनी
दिल खुश करके नहीं बैठना। बेहद की खुशबू वाला बाप समान और समीप अब भी है और २१ जन्म
भी ब्रह्मा बाप के समीप होगा। तो ऐसी प्राइज चाहिए या अभी की? बहुत सेंटर्स है,
बहुत जिज्ञासु है... इस बहुत-बहुत में नहीं जाना। बड़ी दिल को अपनाओ। सुना, इस वर्ष
क्या करना है? इस वर्ष स्वयं में भी किसके हद का संस्कार उत्पन्न न हो। हिम्मत है
ना? एक-दो को फालो नहीं करना, बाप को फालो करना।
दूसरी बात - बापदादा
ने वाणी के ऊपर भी विशेष अटेंशन दिलाया था। इस वर्ष अपने बोल के ऊपर विशेष डबल
अटेंशन। सभी को बोल के लिए डायरेक्शन भेजा गया है। इस पर प्राइज मिलनी है।
सच्चाई-सफाई से अपना चार्ट स्वयं ही रखना। सच्चे बाप के बच्चे हो ना। बापदादा सभी
को डायरेक्शन देते है - जहाँ देखते हो सेवा स्थिति को डगमग करती है, उसे सेवा में
कोई सफलता मिल नहीं सकती। सेवा भले कम करो लेकिन स्थिति को कम नहीं करो। जो सेवा
स्थिति को नीचे ले आती है उसको सेवा कैसे कहेंगे। इसलिए बापदादा सभी को फिर से यही
कहेंगे कि सदा स्व-स्थिति और सेवा अर्थात् स्व-सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ सदा करो।
स्व-सेवा को छोड़ पर-सेवा करना - इससे सफलता नहीं प्राप्त होती। हिम्मत रखो। स्व-सेवा
और पर-सेवा की। सर्वशक्तिवान बाप मददगार है। इसलिए हिम्मत से दोनों का बैलेस रख आगे
बढ़ो। कमज़ोर नहीं बनो। अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो। ऐसी विजयी
आत्माओं के लिए कोई मुश्किल नहीं, कोई मेहनत नहीं। अटेंशन और अभ्यास - यह भी सहज और
स्वत: अनुभव करेंगे। अटेंशन का भी टेंशन नहीं रखना। कोई-कोई अटेंशन को टेंशन में
बदल लेते हैं। ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार 'अटेंशन' और 'अभ्यास' है। अच्छा!
बाकी रही
विश्व-कल्याण की सेवा की बात। तो इस वर्ष हर एक सेवाकेन्द्र जितने भी संदेश वा
संपर्क वाले हैं, उन्हों को निमंत्रण देकर यथाशक्ति स्नेह-मिलन करो। चाहे वर्गीकरण
के हिसाब से करो वा स्नेह-मिलन करो लेकिन उन आत्माओं की तरफ़ विशेष अटेन्शन दो।
पर्सनल मिलो। सिर्फ पोस्ट भेज देते हो तो उससे भी रिजल्ट कम निकलती है। अपने ही आने
वाले स्टूडेंट्स के ग्रुप बनाओ और उन्हों को थोड़े लोगों के पर्सनल समीप आने के
निमित्त बनाओं। तो सब स्टूडेंट्स भी बिजी होगे और सेवा की सिलेक्शन भी हो जायेगी,
जिसको आप लोग कहते हो- पीठ नहीं होतीं। ऐसी आत्माओं को भी कोई नई बात सुनाने की
चाहिए। अभी तक तो बेटर बर्ल्ड क्या होगीं। उसके इकट्ठे किये हैं। अब फिर उन्हो को
अपनी तरफ अटेंशन दिलाओ। उसका विशेष टॉपिक रखो 'सेल्फ प्रोग्रेस' और 'सेल्फ
प्रोग्रेस का आधार'। यह नई विषय रखो। यह स्व-प्रोग्रेस के लिए स्प्रिटुअल बजट बनाओ
और बजट में सदैव बचत की स्कीम बनाई जानी है। तो स्प्रिटुअल बचत का खाता क्या है!
समय, बोल, संकल्प और एनर्जी को 'वेस्ट से बैस्ट में चेंज' करना होगा। सभी को अब स्व
तरफ अटेंशन दिलाओ। बच्चों ने टापिक निकाली थी - फॉरसेल्फ ट्रांसफरमेशन। लेकिन इस
वर्ष हर एक सेवाकेद्र को फ्रीडम है - जितनी जो कर सके अपनी स्व-उनति के साथ-साथ
पढ़ाई स्वयं के बचत की बजट बनायें और साथ में सेवा में औरों को इस बात का अनुभव कराये।
अगर कोई बड़े प्रोग्राम्स रख सकते है तो रखे अगर नहीं कर सकते तो भले छोटे
प्रोग्राम्स करे। लेकिन विशेष अटेंशन स्व-सेवा और पर-सेवा का बैलेन्स वा विश्व सेवा
का बैलेन्स हो। ऐसे नहीं कि सेवा में ऐसे बिज़ी हो जाओ जो स्व-उनति का समय नहीं मिले।
तो यह स्वतंत्र वर्ष है सेवा के लिए। जितना चाहो उतना करो। दोनों प्लैन स्मृति में
रख और भी एडीशन कर सकते हो और प्लेन में रत्न जड़ सकते हो। बाप सदैव बच्चा को आगे
रखता है। अच्छा!
चारों ओर के सर्व फालो
फादर करने वाली श्रेष्ठ आत्माएं, सदा डबल सेवा का बैलेस रखने वाले बाप की ब्लैसिग
के अधिकारी आत्माओं को, सदा बेहद के बादशाह - ऐसे राजयोगी, सहजयोगी, स्वत: योगी, सदा
अनेक बार के विजय के निश्चय और नशे में रहने वाले अति सहयोगी स्नेही बच्चों को
बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा से
पर्सनल मुलाकात:
सदा अमृतवेले से लेकर
रात तक यह कार्य चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक.. सब कार्य सहज और सफल हो, उसकी सहज विधि
क्या है? कोई भी कर्म करते हो तो पहले 'त्रिकालदर्शी' बन फिर कोई कर्म करो। क्योंकि
त्रिकालदर्शी बनकर काम करने से, तीनों कालो का ज्ञान बुद्धि मैं रहने से कोई कर्म
नीचे-ऊपर नहीं होगा। वैसे भी ज्ञानी का अर्थ ही है जो आगे-पीछे सोच-समझ कर कर्म करे,
कर्म के पहले उसकी रिजल्ट को जाने। ऐसे नहीं - जल्दी-जल्दी जो आया वह कर लिया। उसमें
सफलता नहीं होती। पहले परिणाम को सोचो फिर कर्म करो तो सदा श्रेष्ठ परिणाम निकलेगा।
श्रेष्ठ परिणाम को ही सफलता कहा जाता है। ऐसे नहीं - बहुत बिज़ी था, जो काम सामने आया
वह करना शुरू कर दिया। नहीं। जैसे बापदादा ने श्रीमत दी है कि भोजन करने के पहले
भोग लगाओ, पीछे खाओ। भोग लगाने का कर्म अगर नहीं करते और जल्दी-जल्दी में खा लिया
तो परिणाम क्या होगा? याद भूलने से जो ब्रह्मा-भोजन का, अन्न का मन पर प्रभाव पड़ना
चाहिए वह नहीं होगा। एक तो प्रभाव नहीं पड़ेगा और दूसरा बाप की श्रीमत न मानने का
नुकसान होगा। क्योंकि अवज्ञा हो गई ना। उसका भी उल्टा फल मिलना है। अगर कर्म करने
से यह आदत पड़ जाए कि पहले तीनो काल सोचना है, त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर,
फिर कर्म करो तो कोई भी कर्म व्यर्थ नहीं होगा, साधारण नहीं होगा। लौकिक में भी
सफलता प्राप्त करेंगे और अलौकिक में सफलता-ही-सफलता है। तो त्रिकालदर्शी के स्मृति
की स्थिति रूपी तख्त पर बैठो, फिर निर्णय करो कि क्या करना है, क्या नहीं करना है,
कैसे करना है! फिर कोई भी कर्म फल नहीं देवे - यह हो नहीं सकता। बीज अगर शक्तिशाली
होगा तो फल अवश्य मिलेगा। लेकिन जल्दी-जल्दी में कमज़ोर कर्म करते हो तो फल भी
थोड़ा-बहुत मिल जाता है, जितना मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता, जितना चाहते हो उतना नहीं
मिलता। तो हर कर्म की सफलता का आधार है त्रिकालदर्शी स्थिति, ऐसे नहीं - सिर्फ याद
रखो कि मास्टर त्रिकालदर्शी हूँ.... और कर्म करने के समय भूल जाओ। इसे यूज़ करना। इस
अभ्यास में कभी भी अलबेले नहीं बनो। यह अभ्यास करो। क्योंकि 21 जन्म के लिए जमा करना
है। एक जन्म में 21 जन्म का जमा करना है तो कितना अटेंशन देना पड़ेगा! टेंशन नहीं
लेकिन सदा अटेंशन रखो। अलबेलेपन का अब परिवर्तन करो। दाता दे रहा है तो पुरा लो!
देने वाला दे और लेने वाला थोड़ा लेकर खुश हो जाए तो रिजल्ट क्या होगी? फिर नहीं
मिलेगा। इसलिए पूरा अटेंशन दो। अच्छा।
वरदान:-
सदा पुण्य का
खाता जमा करने और कराने वाले मास्टर शिक्षक भव
हम मास्टर शिक्षक
हैं, मास्टर कहने से बाप स्वत: याद आता है। बनाने वाले की याद आने से स्वयं निमित्त
हूँ – यह स्वतः स्मृति में आ जाता है। विशेष स्मृति रहे कि हम पुण्य आत्मा हैं,
पुण्य का खाता जमा करना और कराना - यही विशेष सेवा है। पुण्य आत्मा कभी पाप का एक
परसेन्ट संकल्प मात्र भी नहीं कर सकती। मास्टर शिक्षक माना सदा पुण्य का खाता जमा
करने और कराने वाले, बाप समान।
स्लोगन:-
संगठन के महत्व को
जानने वाले संगठन में ही स्वयं की सेफ्टी का अनुभव करते हैं।