07-05-06     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 11.08.88 "बापदादा"    मधुबन


सफलता का चुम्बक - ‘मिलना और मोल्ड होना'

 


सबका स्नेह, स्नेह के सागर में समा गया। ऐसे ही सदा स्नेह में समाये हुए औरों को भी स्नेह का अनुभव कराते चलो। बापदादा सर्व बच्चों के विचार समान मिलने का सम्मेलन देख हर्षित हो रहे हैं। उड़ते आने वालों को सदा उड़ती कला के वरदान स्वत: प्राप्त होते रहेंगे। बापदादा सर्व आये हुए बच्चों के उमंग-उत्साह को देख सभी बच्चों पर स्नेह के फूलों की वर्षा कर रहे हैं। संकल्प समान मिलन और आगे संस्कार बाप समान मिलन - यह मिलन ही बाप का मिलन है। यही बाप समान बनना है। संकल्प-मिलन, संस्कार-मिलन - मिलना ही निर्मान बन निमित्त बनना है। समीप आ रहे हो, आ ही जायेंगे। सेवा की सफलता की निशानी देख हर्षित हो रहे हैं। स्नेह मिलन में आये हो, सदा स्नेही बन स्नेह की लहर विश्व में फैलाने के लिए। लेकिन हर बात में चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले स्व है अपना सबसे प्यारा होम। तो पहले स्व से, फिर ब्राह्मण परिवार से, फिर विश्व से। हर संकल्प में स्नेह, नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह, दिल का स्नेह, हर संकल्प में सहानुभूति, हर संकल्प में रहमदिल, दातापन की नैचरल नेचर बन जाए - यह है स्नेह मिलन, संकल्प मिलन, विचार मिलन, संस्कार मिलन। सर्व के सहयोग के कार्य के पहले सदा सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं का सहयोग विश्व को सहयोगी सहज और स्वत: बना ही लेता है। इसलिए सफलता समीप आ रही है। मिलना और मुड़ना अर्थात् मोल्ड होना - यही सफलता का चुम्बक है। बहुत सहज इस चुम्बक के आगे सर्व आत्मायें आकर्षित हो आई कि आई!

मीटिंग के बच्चों को भी बापदादा स्नेह की मुबारक दे रहे हैं। समीप हैं और सदा समीप रहेंगे। न सिर्फ बाप के लेकिन आपस में भी समीपता का विजन (दृश्य) बापदादा को दिखाया। विश्व को विजन दिखाने के पहले बापदादा ने देखा। आने वाले आप सर्व बच्चों के एक्शन (कर्म) को देख - क्या एक्शन करना है, होना है, वह सहज ही समझ जायेंगे। आपका एक्शन ही एक्शन प्लैन है। अच्छा!

प्लैन सब अच्छे बनाये हैं। और भी जैसे यह कार्य आरम्भ होते बापदादा का विशेष इशारा वर्गीकरण को तैयार करने का था और अब भी है। तो ऐसा लक्ष्य जरूर रखो कि इस महान कार्य में कोई भी वर्ग रह नहीं जाये। चाहे समय प्रमाण ज्यादा नहीं कर सकते हो लेकिन प्रयत्न वा लक्ष्य यह जरूर रखो कि सैम्पल जरूर तैयार हों। बाकी आगे इसी कार्य को और बढ़ाते रहेंगे। तो समय प्रमाण करते रहना। लेकिन समाप्ति को समीप लाने के लिए सर्व का सहयोग चाहिए। लेकिन इतनी सारी दुनिया की आत्माओं को तो एक समय पर सम्पर्क में नहीं ला सकते। इसलिए आप फलक से कह सको कि हमने सर्व आत्माओं को सर्व वर्ग के आधार से सहयोगी बनाया है, तो यह लक्ष्य सर्व के कारण को पूरा कर देता है। कोई भी वर्ग का उल्हना नहीं रह जाए कि हमें तो पता ही नहीं है कि क्या कर रहे हो? बीज डालो। बाकी - वृद्धि जैसा समय मिले, जैसे कर सको वैसे करो। इसमें भारी नहीं होना कि कैसे करें, कितना करें? जितना होना है उतना हो ही जायेगा। जितना किया उतना ही सफलता के समीप आये। सैम्पल तो तैयार कर सकते हो ना?

बाकी जो इण्डियन गवर्मेन्ट (भारत सरकार) को समीप लाने का श्रेष्ठ संकल्प लाया है, वह समय सर्व की बुद्धियों को समीप ला रहा है। इसलिए सर्व ब्राह्मण आत्मायें इस विशेष कार्य के अर्थ आरम्भ से अन्त तक विशेष शुद्ध संकल्प ‘‘सफलता होनी ही है'' - इस शुद्ध संकल्प से और बाप समान वायब्रेशन बनाने मिलाने से, विजय के निश्चय की दृढ़ता से आगे बढ़ते चलो। लेकिन जब कोई बड़ा कार्य किया जाता है तो पहले, जैसे स्थूल में देखा है - कोई भी बोझ उठायेंगे तो क्या करते हैं? सभी मिलकर उंगली देते हैं और एक दो को हिम्मत-उल्लास बढ़ाने के बोल बोलते हैं। देखा है ना! ऐसे ही निमित्त कोई भी बनता है लेकिन सदा इस विशेष कार्य के लिए सर्व के स्नेह, सर्व के सहयोग, सर्व के शक्ति के उमंग-उत्साह के वायब्रेशन कुम्भकरण को नींद से जगायेंगे। यह अटेन्शन जरूरी है इस विशेष कार्य के ऊपर। विशेष स्व, सर्व ब्राह्मण और विश्व की आत्माओं का सहयोग लेना ही सफलता का साधन है। इसके बीच में थोड़ा भी अगर अन्तर पड़ता है तो सफलता के अन्तर लाने में निमित्त बन जाता है। इसलिए बापदादा सभी बच्चों के हिम्मत का आवाज सुन उसी समय हर्षित हो रहे थे और खास संगठन के स्नेह के कारण स्नेह का रिटर्न देने के लिए आये हैं। बहुत अच्छे हो और अच्छे-ते-अच्छे अनेक बार बने हो और बने हुए हो! इसलिए डबल विदेशी बच्चों के दूर से एवररेडी बन उड़ने के निमित्त बापदादा विशेष बच्चों को ह्दय का हार बनाए समाते हैं। अच्छा!

कुमारियाँ तो हैं ही कन्हैया की। बस एक शब्द याद रखना - सबमें एक, एकमत, एकरस, एक बाप। भारत के बच्चों को भी बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। जैसा लक्ष्य रखा वैसे लक्षण प्रैक्टिकल में लाया। समझा? किसको कहें, किसको न कहें - सबको कहते हैं! (दादी को) जो निमित्त बनते हैं, उनको ख्याल तो रहता ही है। यही सहानुभूति की निशानी है। अच्छा!

मीटिंग में आये हुए सभी भाई - बहनों को बापदादा ने स्टेज पर बुलाया

सभी ने बुद्धि अच्छी चलाई है। बापदादा हरेक बच्चे के सेवा के स्नेह को जानते हैं। सेवा में आगे बढ़ने से कहाँ तक चारों ओर की सफलता है, इसको सिर्फ थोड़ा-सा सोचना और देखना। बाकी सेवा की लगन अच्छी है। दिन-रात एक करके सेवा के लिए भागते हो। बापदादा तो मेहनत को भी मुहब्बत के रूप में देखते हैं। मेहनत नहीं कि, मुहब्बत दिखाई। अच्छा! अच्छे उमंग-उत्साह के साथी मिले हैं। विशाल कार्य है और विशाल दिल है, इसलिए जहाँ विशालता है वहाँ सफलता है ही। बापदादा सभी बच्चों के सेवा की लगन को देख रोज खुशी के गीत गाते हैं। कई बार गीत सुनाया है - ‘‘वाह बच्चे वाह!'' अच्छा! आने में कितने राज़ थे, राजों को समझने वाले हो ना! राज़ जाने, बाप जाने। (दादी ने बापदादा को भोग स्वीकार कराना चाहा) आज दृष्टि से ही स्वीकार करेंगे। अच्छा! सबकी बुद्धि बहुत अच्छी चल रही है और एक दो के समीप आ रहे हो ना! इसलिए सफलता अति समीप है। समीपता सफलता को समीप लायेगी। थक तो नहीं गये हो? बहुत काम मिल गया है? लेकिन आधा काम तो बाप करता है। सबका उमंग अच्छा है। दृढ़ता भी है ना! समीपता कितनी समीप है? चुम्बक रख दो तो समीपता सबके गले में माला डाल देगी, ऐसे अनुभव होता है? अच्छा! सब अच्छे-ते-अच्छे हैं।

पार्टियों से प्राण अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - बाम्बे ग्रुप

सभी शान्ति की शक्ति के अनुभवी बन गये हो ना! शान्ति की शक्ति बहुत सहज स्व को भी परिवर्तन करती और दूसरों को भी परिवर्तन करती है। याद के बल से विश्व को परिवर्तन करते हो। याद क्या है? शान्ति की शक्ति है ना। इससे व्यक्ति भी बदल जायेंगे तो प्रकृति भी बदल जायेगी। इतनी शान्ति की शक्ति अपने में जमा की है? व्यक्तियों को तो बदलना है ही लेकिन साथ में प्रकृति को भी बदलना है। प्रकृति को मुख का कोर्स तो नहीं करायेंगे। व्यक्तियों को तो कोर्स करा देते हो लेकिन प्रकृति को कैसे बदलेंगे? वाणी से या शान्ति की शक्ति से? योगबल से बदलेंगे ना। तो योग में जब बैठते हो तो क्या अनुभव करते हो? शान्ति का संकल्प भी जब शान्त हो जाते हैं, एक ही संकल्प "बाप और आप" इसी को ही योग कहते हैं। अगर और भी संकल्प चलते रहेंगे तो उसको योग नहीं कहेंगे। ज्ञान का मनन नहीं कहेंगे। तो जब पावरफुल योग में बैठते हो तो संकल्प भी शान्त हो जाते हैं, सिवाए एक बाप और आप। बाप के मिलन की अनुभूति के सिवाए और सब संकल्प समा जाते हैं। ऐसे अनुभव है ना? समाने की शक्ति है ना या विस्तार करने की शक्ति ज्यादा है? कई ऐसे कहते हैं ना कि जब याद में बैठते हैं तो और और संकल्प बहुत चलते हैं, इसको क्या कहेंगे? समाने की शक्ति कम और विस्तार करने की शक्ति ज्यादा। लेकिन दोनों शक्ति चाहिए। जब चाहें जैसे चाहें, विस्तार में आने चाहें विस्तार में आयें और समेटना चाहें तो समाने की शक्ति सेकण्ड में यूज कर सकें इसको कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिवान। तो इतनी शक्ति है या आर्डर करो समेटने की शक्ति को और काम करे विस्तार की शक्ति! स्टाप कहा और स्टाप हो जाए, फुल ब्रेक लगे, ढीली ब्रेक नहीं। अगर ब्रेक होती है तो लगाते यहाँ हैं और लगेगी कहाँ? तो ब्रेक पावरफुल हो। कन्ट्रोलिंग पॉवर हो। चेक करो - कितने समय के बाद ब्रेक लगता है? 5 मिनट के बाद या 10 मिनट के बाद। फुलस्टॉप तो सेकण्ड में लगना चाहिए ना। अगर एक सेकण्ड के सिवाए ज्यादा समय लग जाता है तो समाने की शक्ति कमजोर है। बहुत जन्म विस्तार में जाने की आदत पड़ी हुई है। इसलिए विस्तार में बहुत जल्दी चले जाते हैं लेकिन ब्रेक लगाने वा समेटने में टाइम लग जाता है। तो टाइम नहीं लगना चाहिए क्योंकि बापदादा ने सुनाया है - लास्ट में फाइनल पेपर का क्वेश्चन ही यह होगा सेकण्ड में फुल स्टॉप, यही क्वेश्चन आयेगा। इसी में ही नम्बर मिलेंगे। तो इम्तहान में पास होने के लिए तैयार हो? सेकेण्ड से ज्यादा हो गया तो फेल हो जायेंगे। तो टाइम भी बता रहे हैं - एक सेकण्ड और क्वेश्चन भी सुना रहे हैं और कोई याद नहीं आये बस फुलस्टाप। एक बाप और मैं, तीसरी कोई बात नहीं। यह कर लूँ, यह देख लूँ... यह हुआ, नहीं हुआ। यह क्यों हुआ, यह क्या हुआ कोई बात आई तो फेल। यह क्वेश्चन सहज है या मुश्किल? बाप क्वेश्चन भी सुना रहे हैं, टाइम भी बता रहे हैं, फिर भी देखो कितने नम्बर बन जाते हैं। कहाँ 8 दाने का पहला नम्बर और कहाँ 16 हजार का लास्ट नम्बर! कितना फर्क हुआ! क्वेश्चन सेकण्ड का वही होगा - पहले नम्बर के लिए भी तो 16,000 के लास्ट नम्बर वाले के लिए भी क्वेश्चन एक ही होगा और कितने समय से सुना रहे हैं? तो सभी नम्बरवन आने चाहिए ना! इसी को ही अपने यादगार में नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप कहा है। बस, सेकेण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई। इस सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएं, हिले नहीं। यह भी नहीं - सेकेण्ड तो हो गया, यह सोचा तो भी फेल हो जायेंगे। कई बार जो पेपर देते हैं, वह इसी बात में ही फेल हो जाते हैं। क्वेश्चन पर जो लिखा हुआ होता है कि यह क्वेश्चन 5 मिनट का, यह 10 मिनट का, तो यही देखते रहते हैं कि 5 मिनट, 10 मिनट हो तो नहीं गया। समय को देखते, क्वेश्चन का उत्तर देना भूल जाते हैं। तो यह अभ्यास चलते-फिरते, बीच-बीच में करते रहो। कोई भी संकल्प न आये, फुलस्टॉप कहा और स्थित हो गये। क्योंकि लास्ट पेपर अचानक आना है। अचानक के कारण ही तो नम्बर बनेंगे ना। लेकिन होना एक सेकण्ड में है। तो कितना अभ्यास चाहिए? अगर अभी से नष्टोमोहा हैं, मेरा-मेरा समाप्त है तो फिर मुश्किल नहीं है, सहज है। तो सभी पास होने वाले हो ना! जो निश्चयबुद्धि हैं उनकी बुद्धि में यह निश्चित रहता है कि मैं विजयी बना था, बनेंगे और सदा ही बनेंगे। बनेंगे या नहीं बनेंगे, यह ववेश्चन नहीं होता है। तो ऐसे बुद्धि में निश्चित है कि हम ही विजयी हैं? लेकिन बहुतकाल का अभ्यास जरूर चाहिए। अगर उस समय कोशिश करेंगे, बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो मुश्किल हो जायेगा। बहुतकाल का अभ्यास अन्त में मदद देगा। अच्छा।

बाम्बे को सबसे ज्यादा प्राप्ति की सिटी कहते हैं। बिजनेस सिटी है ना। तो बिजनेस माना प्राप्ति। ब्रह्मा बाप ने भी 'नरदेसावर' का टाइटल दिया है। इसका भी अर्थ है प्राप्ति वाला देश। तो बाप के संसार में बाम्बे वाले इसमें भी नम्बरवन हैं ना! जरा भी कमी न हो, सबमें भरपूर। खाली होंगे तो हलचल होगी, भरपूर होंगे तो अचल होंगे। तो सदा इसी वरदान को याद रखना कि सदैव सर्व खजानों से सम्पन्न अचल-अडोल रहने वाली आत्मा हैं। माया को हिलाने वाले हैं, स्वयं हिलने वाले नहीं। माया को सदा के लिए विदाई देने वाले हैं। सदा मौज में रहने वाले हैं। मौज से उड़ते चलो। मूंझते हुए नहीं, मौज से उड़ते चलो। मूझने वाले तो रुक जायेंगे। अच्छा।

वारगंल ग्रुप - अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? जो डबल लाइट है उस आत्मा में माइट अर्थात् बाप की शक्तियां साथ हैं। तो डबल लाइट भी हो और माइट भी है। समय पर शक्तियों को यूज कर सकते हो या समय निकल जाता है, पीछे याद आता है? क्योंकि अपने पास कितनी भी चीज है, अगर समय पर यूज नहीं किया तो क्या कहेंगे? जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उस शक्ति को उस समय यूज कर सकें - इसी बात का अभ्यास आवश्यक है। कई बच्चे कहते हैं कि माया आ गई। क्यों आई? परखने की शक्ति यूज़ नहीं की तब तो आ गई ना! अगर दूर से ही परख लो कि माया आ रही है, तो दूर से ही भगा देंगे ना! माया आ गई - आने का चांस दे दिया तब तो आई। दूर से भगा देते तो आती नहीं। बार-बार अगर माया आती है और फिर युद्ध करके उसको भगाते हो तो युद्ध के संस्कार आ जायेंगे। अगर बहुतकाल युद्ध का संस्कार होगा तो चन्द्रवंशी बनना पड़ेगा। सूर्यवंशी बहुतकाल के विजयी और चन्द्रवंशी माना युद्ध करते-करते कभी विजयी, कभी युद्ध में मेहनत करने वाले। तो सभी सूर्यवंशी हो ना! चन्द्रमा को भी रोशनी देने वाला सूर्य है। तो नम्बरवन सूर्य कहेंगे ना! चन्द्रवंशी दो कला कम हैं। 16 कला अर्थात् फुल पास। कभी भी मन्सा में, वाणी में या सम्बन्ध-सम्पर्क में, संस्कारों में फेल होने वाले नहीं - इसको कहते हैं सूर्यवंशी। ऐसे सूर्यवंशी हो? अच्छा। सभी अपने पुरूषार्थ से सन्तुष्ट हो? सभी सब्जेक्ट में फुल पास होना - इसको कहते हैं अपने पुरूषार्थ से सन्तुष्ट। इस विधि से अपने को चेक करो। यही याद रखना कि मैं उड़ती कला में जाने वाला उड़ता पंछी हूँ। नीचे फंसने वाला नहीं। यही वरदान है। अच्छा।

वरदान:-
संगमयुग के श्रेष्ठ चित्र को सामने रख भविष्य का दर्शन करने वाले त्रिकालदर्शी भव

भविष्य के पहले सर्व प्राप्तियों का अनुभव आप संगमयुगी ब्राह्मण करते हो। अभी डबल ताज, तख्त, तिलकधारी, सर्व अधिकारी मूर्त बनते हो। भविष्य में तो गोल्डन स्पून होगा लेकिन अभी हीरे तुल्य बन जाते हो। जीवन ही हीरा बन जाता है। वहाँ सोने, हीरे के झूले में झूलेंगे यहाँ बापदादा की गोदी में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हो तो त्रिकालदर्शी बन वर्तमान और भविष्य के श्रेष्ठ चित्र को देखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव करो।

स्लोगन:-
कर्म और योग का बैलेन्स ही परमात्म ब्लैसिंग का अधिकारी बना देता है।