20-09-09 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा”रिवाइज़ - 25-03-71 मधुबन
न्यारे और विश्व के प्यारे बनने की विधि
सभी अपने अलौकिक और पारलौकिक नशे और निशाने में सदैव रहते हो? अलौकिक नशा और निशाना और पारलौकिक नशा और निशाना, दोनों को जानते हो? दोनों में फर्क है वा एक है? अलौकिक नशा और निशाना हुआ इस ईश्वरीय जन्म का और पारलौकिक नशा और निशाना हुआ भविष्य जन्म का। तो ईश्वरीय जन्म का नशा और निशाना याद रहता है? साथ-साथ पारलौकिक अर्थात् भविष्य का नशा और निशाना याद रहता है? अगर दोनों ही हर समय रहें तो क्या बन जायेंगे? अलौकिक नशे और निशाने से बनेंगे न्यारे और पारलौकिक नशे और निशाने से बनेंगे विश्व के प्यारे। तो दोनों ही नशे और निशाने से न्यारे और प्यारे बन जायेंगे। समझा?
अभी सभी से न्यारा बनना है। अपनी देह से ही जब न्यारे बनना है, तो सभी बातों में भी न्यारे हो जायेंगे। अब पुरूषार्थ कर रहे हो न्यारे बनने का। न्यारे बनने से फिर स्वत: ही सभी के प्यारे बन जाते हो। प्यारे बनने का पुरूषार्थ नहीं होता है, पुरूषार्थ न्यारे बनने का होता है। अगर सबका प्यारा बनना है तो पुरूषार्थ क्या करना है? सर्व से न्यारे बनने का। अपनी देह से न्यारे तो बनते ही हो लेकिन आत्मा में जो पुराने संस्कार हैं उन्हों से भी न्यारे बनो। प्यारे बनने के पुरूषार्थ से प्यारे बनेंगे तो रिजल्ट क्या होगी? और ही प्यारे बनने की बजाय बापदादा के दिल रूपी तख्त से दूर हो जायेंगे। इसलिए यह पुरूषार्थ नहीं करना है। कोई भी न्यारी चीज़ज़ प्यारी ज़रूर होती है। इस संगठन में अगर कोई न्यारी चीज़ज़ दिखाई दे तो सभी का लगाव और सभी का प्यार उस तरफ चला जायेगा। तो आप भी न्यारे बनो। सहज पुरूषार्थ है ना। न्यारे नहीं बन पाते हैं, इसका कारण क्या है? आजकल का लगाव सारी दुनिया में किस कारण से होता है? (अट्रेक्शन पर) अट्रेक्शन भी स्वार्थ से है। इस समय का लगाव स्नेह से नहीं लेकिन स्वार्थ से है। तो स्वार्थ के कारण लगाव और लगाव के कारण न्यारे नहीं बन सकते। तो उसके लिये क्या करना पड़े? स्वार्थ का अर्थ क्या है? स्वार्थ अर्थात् स्व के रथ को स्वाहा करो। यह जो रथ अर्थात् देह-अभिमान, देह की स्मृति, देह का लगाव लगा हुआ है। इस स्वार्थ को कैसे खत्म करेंगे? उसका सहज पुरूषार्थ, ‘स्वार्थ’ शब्द के अर्थ को समझो। स्वार्थ गया तो न्यारे बन ही जायेंगे। सिर्फ एक अर्थ को जानना है, जानकर अर्थ-स्वरूप बनना है। तो एक ही शब्द का अर्थ जानने से सदा एक के और एकरस बन जायेंगे। अच्छा।
आज टीचर्स के उद्घाटन का दिन है। सम्पूर्ण आहुति डालने की सामर्थ्य है? यह ग्रुप इन्चार्ज टीचर्स का है ना। अभी हैं वा बनने वाली हैं? मुख्य धारणा यही है वि सदैव अपनी सम्पूर्ण स्थिति का वा अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करते रहो। जैसे कोई का आह्वान किया जाता है तो बुद्धि में वही स्मृति में रहता है ना। इस रीति से सदैव अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करते रहेंगे तो सदैव वही स्मृति में रहेगा। और इसी स्मृति में रहने के कारण रिजल्ट क्या होगी? यह जो आवागमन का चक्र चलता रहता है; आवागमन का चक्र कौनसा? कभी ऊंच स्थिति में ठहरते हो, कभी नीचे आ जाते हो। यह जो ऊपर-नीचे आने- जाने का आवागमन का चक्र है इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे। वह लोग जन्म- मरण के चक्र से छूटने चाहते हैं और आप लोग यह जो स्मृति और विस्मृति का आवागमन का चक्र है, इससे मुक्त होने का पुरूषार्थ करते हो। तो सदैव अपने सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करने से आवागमन से छूट जायेंगे अर्थात् इन व्यर्थ बातों से किनारा करने से सदैव चमकता हुआ लक्की सितारा बन जायेंगे। इन्चार्ज टीचर बनने के लिए पहले अपनी आत्मा की बैटरी चार्ज करो। जितनी जिसकी बैटरी चार्ज है उतना ही अच्छा इन्चार्ज टीचर बन सकती है। समझा? जब यह याद आये कि मैं इन्चार्ज हूँ, तो पहले यह अपने से पूछो कि मेरी बैटरी चार्ज हुई है? अगर बैटरी चार्ज कम होगी तो इन्चार्ज टीचर में भी उतनी कमी दिखाई देगी। तो अब क्या करना है? अच्छी तरह से बैटरी चार्ज करके फिर इन्चार्ज बनकर जाना। ऐसे ही सिर्फ इन्चार्ज नहीं बन करजाना। अगर बैटरी चार्ज के बिना इन्चार्ज बनेंगी तो क्या होगा? चार्ज अक्षर के दो-तीन मतलब होते हैं। एक होता है बैटरी चार्ज, दूसरा चार्ज अर्थात् ड्यूटी भी होता है और तीसरा चार्ज अर्थात् दोष को कहते हैं। कोई पर चार्ज लगाते हैं ना। तो इन्चार्ज होने से अगर बैटरी चार्ज है तो फिर इन्चार्ज यथार्थ रीति बनते हैं। अगर बैटरी चार्ज नहीं, यथार्थ रूप नहीं तो फिर भिन्न-भिन्न चार्जेज़ ज़ लग जाते हैं। तो अब समझा, कैसे इन्चार्ज बनेंगे? धर्मराजपुरी में पहले चार्ज लगाकर फिर सज़ा ज़ा देंगे। तो अगर बैटरी चार्ज नहीं होगी तो चार्जेज लगेंगी। अभी ऐसे बनकर जाना जो सभी की निगाहों में यह ग्रुप आ जाये। सभी अनुभव करें कि बड़े तो बड़े लेकिन छोटे सुभान अल्लाह। ऐसा लक्ष्य रख, भट्ठी से ऐसे ही लक्षण धारण करके जाना। ऐसा कोमल होना है जो अपने को जहां मोड़ने चाहो वहाँ मोड़ सकते हो। कोमल चीज़ज़ को जहाँ मोड़ने चाहते हैं वहाँ मोड़ सकते हैं। लेकिन सख्त को कोई मोड़ नहीं सकेंगे। कोमल बनना है लेकिन किस में? संस्कार मोड़ने में कोमल बनो। लेकिन कोमल दिल से बचकर रहना। यह लक्ष्य और लक्षण धारण करके जाना है। इस स्नेही और सहयोगी बनने वाले ग्रुप के लिये सलोगन है - ‘अधिकारी बनेंगे और अधीनता को मिटायेंगे’। कभी अधीन नहीं बनना - चाहे संकल्पों के, चाहे माया के। और भी कोई रूपों के अधीन नहीं बनना। इस शरीर के भी अधिकारी बनकर चलना और माया से भी अधिकारी बन उसको अपने अधीन करना है। सम्बन्ध की अधीनता में भी नहीं आना है। चाहे लौकिक, चाहे ईश्वरीय सम्बन्ध की भी अधीनता में न आना। सदा अधिकारी बनना है। यह सलोगन सदैव याद रखना। ऐसा बनकर के ही निकलना। जैसे कहावत है ना कि मान सरोवर में नहाने से परियां बन जाते थे। इस ग्रुप को भी भट्ठी रूपी ज्ञानमानसरोवर में नहाकर फरिश्ता बनकर निकलना है।
जब फरिश्ता बन गया तो फरिश्ते अर्थात् प्रकाशमय काया। इस देह की स्मृति से भी परे। उनके पांव अर्थात् बुद्धि इस पांच तत्व के आकर्षण से ऊंची अर्थात् परे होती है। ऐसे फरिश्तों को माया व कोई भी मायावी टच नहीं कर सकेंगे। तो ऐसे बनकर जाना जो न कोई मायावी मनुष्य, न माया टच कर सके। कुमारियों की महिमा बहुत गाई हुई है। लेकिन कौनसी कुमारी? ब्रह्माकुमारियों की महिमा गाई हुई है। ब्रह्माकुमारी अर्थात् ब्रह्मा बाप को प्रत्यक्ष करने वाली कुमारी। जो टीचर्स बनती हैं उन्हों को सिर्फ प्वाइन्ट बुद्धि में नहीं रखनी है वा वर्णन करनी है लेकिन प्वाइन्ट रूप बनकर प्वाइन्ट वर्णन करनी है। अगर स्वयं प्वाइन्ट स्थिति में स्थित नहीं होंगे तो प्वाइन्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए प्वाइन्ट् इकट्ठी करने के साथ अपना प्वाइन्ट रूप भी याद करते जाना। जब कापियां भरती हो तो कापी को देख यह सब चेक करना कि साकार ब्रह्मा बाप के चरित्रों की कापी बनी हूँ? कापी जो की जाती है वह तो हूबहू होगी ना। ऐसे बाप समान दिखाई पड़ो। सुनाया था ना कि जितनी समानता होगी उतनी सामना करने की शक्ति होगी। समानता लाने से सामना करने की शक्ति स्वत: आ जायेगी। अच्छा।
यह ग्रुप कम नहीं है। इतना बड़ा शक्तिदल जब कोने-कोने में सर्विस पर फैल जायेगा तो क्या होगा? आवाज़ बुलन्द हो जायेगा - ब्रह्माकुमारियों की जय। अभी तो गालियां देते हैं ना। यहां ही आप लोगों के सामने महिमा के पुष्प चढ़ायेंगे। इसलिए कहा कि ऐसे बनकर के जाना जो देखते ही सभी के मुख से यह आवाज़ बुलन्द हो निकले। इस ग्रुप को यह प्रैक्टिकल पेपर देना है। चारों ओर बापदादा और मददगार बच्चों की जय-जयकार हो जाये। ऐसी शक्ति है? एक के संग में रहने से संगदोष से छूट जायेंगे। सदैव चेविंग करो कि बुद्धि का संग किसके साथ है? एक के साथ है? अगर एक का संग है तो अनेक संगदोष से छूट जायेंगे। संगदोष कई प्रकार के दोष पैदा कर देते हैं। इसलिए इसका बहुत ध्यान रखना। एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति होगी तो फिर सदैव आप लोगों के मस्तक से तीसरे नेत्र का साक्षात्कार होगा। यहाँ का जो यादगार है उसमें योग की निशानी क्या दिखाई है? तीसरा नेत्र। अगर बुद्धि में तीसरा कोई आ गया तो फिर तीसरा नेत्र बन्दी जायेगा। इसलिए सदैव तीसरा नेत्र खुला रहे, इसके लिए यह याद रखना कि तीसरा न कोई। अच्छा।
वरदान:- एक बाप को कम्पैनियन बनाने वा उसी कम्पन्नी में रहने वाले सम्पूर्ण पवित्र आत्मा भव
सम्पूर्ण पवित्र आत्मा वह है जिसके संकल्प और स्वप्न में भी ब्रह्मचर्य की धारणा हो, जो हर कदम में ब्रह्मा बाप के आचरण पर चलने वाला हो। पवित्रता का अर्थ है – सदा बाप को कम्पै-नियन बनाना और बाप की कम्पन्नी में ही रहना। संगठन की कम्पन्नी, परिवार के स्नेह की मर्यादा अलग चीज है, लेकिन बाप के कारण ही यह संगठन के स्नेह की कम्पन्नी है, बाप नहीं होता तो परिवार कहाँ से आता। बाप बीज है, बीज को कभी नहीं भूलना।
स्लोगन:- किसी के प्रभाव में प्रभावित होने वाले नहीं, ज्ञान का प्रभाव डालने वाले बनो।
ओम् शान्ति 31-07-09 मधुबन
मुख्य बड़े भाईयों की तथा टीचर्स बहिनों के तीसरे ग्रुप की भट्ठी प्रति प्राण अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश (गुल्जार दादी)
आज बापदादा के पास दोनों भट्ठी में आये हुए भाई-बहनों की और सर्व देश-विदेश के बच्चों की यादप्यार लेते हुए वतन में पहुंची तो क्या देखा कि बापदादा आज सामने दिखाई नहीं दिये। मैं सोचने लगी आज बापदादा कहीं चक्र लगाने गये हैं। लेकिन थोड़े ही समय में बापदादा ने अपनी तरफ खींच लिया और क्या देखा कि बाबा कमरे में बैठे कोई कार्य कर रहे हैं। कुछ समय तो दूर से ही देखती रही लेकिन कुछ समय के बाद बाबा की बहुत शक्तिशाली दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी और बाबा ने अपनी तरफ बुलाए साथ में बिठा लिया। बाबा की दृष्टि आज बहुत ही किरणों भरी थी। बाबा बोले, बच्ची आज बापदादा सर्व बच्चों के पुरुषार्थ की विधि और सिद्धि को देख रहे थे, तो समय अनुसार कहाँ तक सिद्धि स्वरूप बने हैं।
मैं बोली बाबा क्या रिजल्ट देखी? बाबा बोले बच्ची, बच्चे यथा शक्ति यथा सफलता तो प्राप्त कर रहे हैं। बापदादा बच्चों का पुरुषार्थ देख खुश तो होता है। स्नेह भी आता है कि कैसे माया के सूक्ष्म रूप की हलचल में भी आते अचल भी बनते हैं लेकिन समय की गति, प्रकृति के हलचल की गति, आत्माओं के पांपों की गति, दुःख अशान्ति की गति तीव्रगति से आगे जा रही है। उस अनुसार बच्चों के पुरुषार्थ की गति और तीव्र होना आवश्यक है। अभी तक पुरुषार्थ है लेकिन हर समय सदा तीव्र पुरुषार्थ की आवश्यकता है। जैसे बच्चे जानते हैं कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, उस अधिकार के नेचुरल रूप को सदा अनुभव कम करते हैं। बापदादा स्नेही रूप में देखते हैं कि यह बच्चे ही तो बापदादा के दिलतख्त नशीन, भविष्य राज्य के अधिकारी हैं। यह बच्चे ही विश्व कल्याणी, विश्व परिवर्तक, विश्व के पूर्वज पूज्य हैं, हर कल्प के यही बच्चे अधिकारी हैं।
तो समय अनुसार अब अचल और हलचल यह दोनों खेल करने का समय गया। अब तो पुरुषार्थ का समय नहीं लेकिन तीव्रगति से तीव्र पुरुषार्थ की आवश्यकता है। चल रहे है नहीं, अब तो संकल्प किया और हुआ। ऐसे उड़ती कला की आवश्यकता है। मेरे दिल के दुलारे विश्व के नूरे रत्न बच्चे अब रॉयल रूप के अलबेलेपन और आलस्य से मुक्त बन आगे उड़ो और उड़ाओ।
बच्चों ने मैजारिटी परिवर्तन का संकल्प अच्छा किया है लेकिन दुनिया का और नम्बरवार ब्राह्मण परिवार के वायब्रेशन वायुमण्डल के प्रभाव का असर दृढ़ संकल्प को हल्का कर देता है। यह रॉयल रूप की माया का प्रभाव दृढ़ संकल्प को बदलकर करना तो है, होना तो है, तो-तो की भाषा में बदल देता है। अब करना है, अब ही बहुत काल के अभ्यासी बनना है, कब नहीं अब करना है, ऐसे अटल-अचल स्वरूप बनना है। रहमदिल बापदादा बच्चों के पुरुषार्थ की लीला को देख कभी-कभी यह सोचता है कि बच्चों को अभी-अभी इस कमजोरी की लीला से एकस्ट्रा सहयोग दे छुड़ा दूँ लेकिन बच्चे की बुद्धि क्लीन और क्लीयर नहीं होने के कारण उस एकस्ट्रा सहयोग को कैच नहीं कर सकते हैं। तो बापदादा ऐसे पुरुषार्थ की भिन्न-भिन्न लीलायें साक्षी हो देखते रहते हैं इसलिए बापदादा हर बच्चे को चाहे छोटा है वा बड़ा है, शक्ति है वा पाण्डव है, फॉरेनर्स है या भारतवासी है, सबको यही याद दिलाते हैं कि अब रिटर्न जर्नी का समय है, घर जाना है इसलिए मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट हो सदा स्वराज्य अधिकारी स्थिति में करावनहार बन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्मयोग करते स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन करना है। सेट से अपसेट नहीं होना है, यही तीव्र पुरुषार्थ का लक्ष्य और लक्षण समान बनाना है। अब समझा बच्ची कि आज बापदादा क्या कर रहे थे और क्या चाहते हैं? अब हर बच्चे को यह खुशखबरी देनी है कि हम बाबा की इस चाहना को पूर्ण करके ही दिखायेंगे।
उसके बाद बाबा बोले, दोनों भट्ठी में बच्चे आये हुए हैं, उमंग-उत्साह से भट्ठी कर रहे हैं तो बच्चों को क्या सौगात देंगी? बाबा का अति स्नेह भी है और अब समय अनुसार बाबा के पास भिन्न भिन्न राखियाँ भी आ रही हैं तो बाबा भी बच्चों को अद्भुत राखी सौगात देते हैं। तो क्या देखा? बाबा का कहना और सौगातें हाजिर हो गई। वह क्या थी? बड़ी शक्तिशाली सुन्दर राखी। वतन में तो सब चमकती हुई चीजें दिखाई देती हैं। जैसे राखी होती है, वैसे राखी थी लेकिन राखी के बीच में एक रोज फ्लावर था जिसमें बीच में लिखा हुआ था “दृढ़ता सफलता"।
बाबा ने दोनों भट्ठी के बच्चों को इमर्ज किया। एक तरफ अर्ध चन्द्रमा में बहनें और दूसरे तरफ अर्ध चन्द्रमा के रूप में भाई थे और सबके साथ बाबा ने दादी जानकी और जो राखी के सेवाधारी बड़ी बहनें, मोहिनी, मुन्नी सबको इमर्ज किया, जो बाबा के साथ-साथ बैठे थे। बाबा ने पहले छोटी बहनों को अपने पास बुलाया और बहुत मीठी-मीठी और शक्तिशाली दृष्टि दे अपने हाथ से राखी दी फिर भाईयों को भी बहुत स्नेह और शक्तिशाली दृष्टि देते हुए राखी दी। हर एक जैसे स्नेह में समा जाता था, ऐसे सभी को दृष्टि दी और राखी दी। उसके बाद सभी को मर्ज कर दिया। और मुझे भी साकार वतन भेज दिया। अच्छा ओम् शान्ति।