29-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – एकान्त में बैठ अब ऐसा अभ्यास करो जो अनुभव
हो मैं शरीर से भिन्न आत्मा हूँ, इसको ही जीते जी मरना कहा जाता है”
प्रश्नः-
एकान्त का
अर्थ क्या है? एकान्त में बैठ तुमको कौन-सा अनुभव करना है?
उत्तर:-
एकान्त
का अर्थ है एक की याद में इस शरीर का अन्त हो अर्थात् एकान्त में बैठ ऐसा अनुभव करो
कि मैं आत्मा इस शरीर (चमड़ी) को छोड़ बाप के पास जाती हूँ। कोई भी याद न रहे।
बैठे-बैठे अशरीरी हो जाओ। जैसेकि हम इस शरीर से मर गये। बस हम आत्मा हैं, शिव बाबा
के बच्चे हैं, इस प्रैक्टिस से देह भान टूटता जायेगा।
ओम् शान्ति।
बच्चों को बाप
पहले-पहले समझाते हैं कि मीठे-मीठे बच्चों जब यहाँ बैठते हो, तो अपने को आत्मा समझ
बाप को याद करते रहो और कोई तरफ बुद्धि नहीं जानी चाहिए। यह तुम बच्चे जानते हो हम
आत्मा हैं। पार्ट हम आत्मा बजाती हैं इस शरीर द्वारा। आत्मा अविनाशी, शरीर विनाशी
है। तो तुम बच्चों को देही-अभिमानी बन बाप की याद में रहना है। हम आत्मा हैं चाहें
तो इन आरगन्स से काम लेवें वा न लेवें। अपने को शरीर से अलग समझना चाहिए। बाप कहते
हैं अपने को आत्मा समझो। देह को भूलते जाओ। हम आत्मा इन्डिपिन्डेंट हैं। हमको सिवाए
एक बाप के और कोई को याद नहीं करना है। जीते जी मौत की अवस्था में रहना है। हम आत्मा
का योग रहना है अब बाप के साथ। बाकी तो दुनिया से, घर से मर गये। कहते हैं ना आप
मुये मर गई दुनिया। अब जीते जी तुमको मरना है। हम आत्मा शिवबाबा के बच्चे हैं। शरीर
का भान उड़ाते रहना चाहिए। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और मुझे याद करो। शरीर
का भान छोड़ो। यह पुराना शरीर है ना। पुरानी चीज़ को छोड़ा जाता है ना। अपने को
अशरीरी समझो। अभी तुमको बाप को याद करते-करते बाप के पास जाना है। ऐसे करते-करते
फिर तुमको आदत पड़ जायेगी। अभी तो तुमको घर जाना है फिर इस पुरानी दुनिया को याद
क्यों करें। एकान्त में बैठ ऐसे अपने साथ मेहनत करनी है। भक्ति मार्ग में भी कोठरी
में अन्दर बैठ माला फेरते हैं, पूजा करते हैं। तुम भी एकान्त में बैठ यह कोशिश करो
तो आदत पड़ जायेगी। तुमको मुख से तो कुछ बोलना नहीं है। इसमें है बुद्धि की बात।
शिवबाबा तो है सिखलाने वाला। उनको तो पुरूषार्थ नहीं करना है। यह बाबा पुरूषार्थ
करते हैं, वह फिर तुम बच्चों को भी समझाते हैं। जितना हो सके ऐसे बैठकर विचार करो।
अभी हमको जाना है अपने घर। इस शरीर को तो यहाँ छोड़ना है। बाप को याद करने से ही
विकर्म विनाश होंगे और आयु भी बढ़ेगी। अन्दर यह चिन्तन चलना चाहिए। बाहर में कुछ
बोलना नहीं है। भक्ति मार्ग में भी ब्रह्म तत्व को या कोई शिव को भी याद करते हैं।
परन्तु वह याद कोई यथार्थ नहीं है। बाप का परिचय ही नहीं तो याद कैसे करें। तुमको
अब बाप का परिचय मिला है। सवेरे-सवेरे उठकर एकान्त में ऐसे अपने साथ बातें करते रहो।
विचार सागर मंथन करो, बाप को याद करो। बाबा हम अभी आया कि आया आपकी सच्ची गोद में।
वह है रूहानी गोद। तो ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी चाहिए। बाबा आया हुआ है। बाबा
कल्प-कल्प आकर हमको राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं – मुझे याद करो और चक्र को
याद करो। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। बाप में ही सारा ज्ञान है ना चक्र का। वह फिर
तुमको देते हैं। तुमको त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। तीनों कालों अर्थात्
आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। बाप भी है परम आत्मा। उनको शरीर तो है नहीं। अभी इस
शरीर में बैठ तुमको समझाते हैं। यह वन्डरफुल बात है। भागीरथ पर विराजमान होंगे तो
जरूर दूसरी आत्मा है। बहुत जन्मों के अन्त का जन्म इनका है। नम्बरवन पावन वही फिर
नम्बरवन पतित बनते हैं। वह अपने को भगवान, विष्णु आदि तो कहते नहीं। यहाँ एक भी
आत्मा पावन है नहीं, सब पतित ही हैं। तो बाबा बच्चों को समझाते हैं, ऐसे-ऐसे विचार
सागर मंथन करो तो इससे तुमको खुशी भी रहेगी, इसमें एकान्त भी जरूर चाहिए। एक की याद
में शरीर का अन्त होता है, उनको कहा जाता है एकान्त। यह चमड़ी छूट जायेगी। सन्यासी
भी ब्रह्म की याद में वा तत्व की याद में रहते हैं, उस याद में रहते-रहते शरीर का
भान छूट जाता है। बस हमको ब्रह्म में लीन होना है। ऐसे बैठ जाते हैं। तपस्या में
बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। भक्ति में तो मनुष्य बहुत धक्के खाते हैं, इसमें
धक्के खाने की बात नहीं। याद में ही रहना है। पिछाड़ी में कोई याद न रहे। गृहस्थ
व्यवहार में तो रहना ही है। बाकी टाइम निकालना है। स्टूडेण्ट को पढ़ाई का शौक होता
है ना। यह पढ़ाई है, अपने को आत्मा न समझने से बाप-टीचर-गुरू सबको भूल जाते हैं।
एकान्त में बैठ ऐसे-ऐसे विचार करो। गृहस्थी घर में तो वायब्रेशन ठीक नहीं रहता है।
अगर अलग प्रबन्ध है तो एक कोठरी में एकान्त में बैठ जाओ। माताओं को तो दिन में भी
टाइम मिलता है। बच्चे आदि स्कूल में चले जाते हैं। जितना टाइम मिले यही कोशिश करते
रहो। तुमको तो एक घर है, बाप को तो कितने ढेर के ढेर दुकान हैं, और ही वृद्धि होती
जायेगी। मनुष्यों को तो धन्धे आदि की चिंता होती है तो नींद भी फिट जाती है। यह
व्यापार भी है ना। कितना बड़ा शर्राफ है। कितना बड़ा मट्टा-सट्टा करते हैं। पुराने
शरीर आदि लेकर नया देते हैं, सबको रास्ता बताते हैं। यह भी धन्धा उनको करना है। यह
व्यापार तो बहुत बड़ा है। व्यापारी को व्यापार का ही ख्याल रहता है। बाबा ऐसे-ऐसे
प्रैक्टिस करते हैं फिर बतलाते हैं – ऐसे-ऐसे करो। जितना तुम बाप की याद में रहेंगे
तो स्वत: ही नींद फिट जायेगी। कमाई में आत्मा को बहुत मज़ा आयेगा। कमाई के लिए
मनुष्य रात में भी जागते हैं। सीज़न में सारी रात भी दुकान खुला रहता है। तुम्हारी
कमाई रात को और सवेरे को बहुत अच्छी होगी। स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे, त्रिकालदर्शी
बनेंगे। 21 जन्म के लिए धन इकट्ठा करते हैं। मनुष्य साहूकार बनने के लिए पुरूषार्थ
करते हैं। तुम भी बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे, बल मिलेगा। याद की
यात्रा पर नहीं रहेंगे तो बहुत घाटा पड़ जायेगा क्योंकि सिर पर पापों का बोझा बहुत
है। अब जमा करना है, एक को याद करना है और त्रिकालदर्शी बनना है। यह अविनाशी धन
आधाकल्प के लिए इकट्ठा करना है। यह तो बहुत वैल्युबुल है। विचार सागर मंथन कर रत्न
निकालने हैं। बाबा जैसे खुद करते हैं, बच्चों को भी युक्ति बतलाते हैं। कहते हैं
बाबा माया के तूफान बहुत आते हैं।
बाबा कहते हैं जितना
हो सके अपनी कमाई करनी है, यही काम आनी है। एकान्त में बैठ बाप को याद करना है।
फुर्सत है तो सर्विस भी मन्दिरों आदि में बहुत कर सकते हो। बैज जरूर लगा रहे। सब
समझ जायेंगे यह रूहानी मिलेट्री है। तुम लिखते भी हो – हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे
हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, अब नहीं है जो फिर स्थापन करते हैं। यह
लक्ष्मी-नारायण एम-ऑब्जेक्ट है ना। कोई समय यह ट्रांसलाइट का चित्र बैटरी सहित
उठाकर परिक्रमा देंगे और सबको कहेंगे, यह राज्य हम स्थापन कर रहे हैं। यह चित्र सबसे
फर्स्ट क्लास है। यह चित्र बहुत नामीग्रामी हो जायेगा। लक्ष्मी-नारायण सिर्फ एक तो
नहीं थे, उन्हों की राजधानी थी ना। यह स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं। अब बाप कहते हैं
मन-मनाभव। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। कहते हैं हम गीता का सप्ताह
मनायेंगे। यह सब प्लैन कल्प पहले मुआफिक बन रहे हैं। परिक्रमा में यह चित्र लेना पड़े।
इनको देखकर सब खुश होंगे। तुम कहेंगे बाप को और वर्से को याद करो, मनमनाभव। यह गीता
के अक्षर हैं ना। भगवान शिवबाबा है, वह कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों।
84 के चक्र को याद करो तो यह बन जायेंगे। लिटरेचर भी तुम सौगात देते रहो। शिवबाबा
का भण्डारा तो सदा भरपूर है। आगे चलकर बहुत सर्विस होगी। एम ऑब्जेक्ट कितनी क्लीयर
है। एक राज्य, एक धर्म था, बहुत साहूकार थे। मनुष्य चाहते हैं एक राज्य, एक धर्म
हो। मनुष्य जो चाहते हैं सो अब आसार दिखाई पड़ते हैं फिर समझेंगे यह तो ठीक कहते
हैं। 100 प्रतिशत पवित्रता, सुख, शान्ति का राज्य फिर से स्थापन कर रहे हैं फिर
तुमको खुशी भी रहेगी। याद में रहने से ही तीर लगेगा। शान्ति में रह थोड़े अक्षर ही
बोलने हैं। जास्ती आवाज़ नहीं। गीत, कविताएं आदि कुछ भी बाबा पसन्द नहीं करते। बाहर
वाले मनुष्यों से रीस नहीं करनी है। तुम्हारी बात ही और है। अपने को आत्मा समझ बाप
को याद करना है, बस। स्लोगन भी अच्छे हों जो मनुष्य पढ़कर जागें। बच्चे वृद्धि को
पाते रहते हैं। खजाना तो भरपूर रहता है। बच्चों का दिया हुआ फिर बच्चों के काम में
ही आता है। बाप तो पैसे नहीं ले आते हैं। तुम्हारी चीजें तुम्हारे काम में आती हैं।
भारतवासी जानते हैं हम बहुत सुधार कर रहे हैं। 5 वर्ष के अन्दर इतना अनाज होगा जो
अनाज की कभी तकलीफ नहीं होगी। और तुम जानते हो – ऐसी हालत होगी जो अन्न खाने के लिए
नहीं मिलेगा। ऐसे नहीं अनाज कोई सस्ता होगा।
तुम बच्चे जानते हो
हम 21 जन्म के लिए अपना राज्य-भाग्य पा रहे हैं। यह थोड़ी बहुत तकलीफ तो सहन करनी
ही है। कहा जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं। अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों का गाया हुआ
है। ढेर बच्चे हो जायेंगे। जो भी सैपलिंग वाले होंगे वह आते जायेंगे। झाड़ यहाँ ही
बढ़ना है ना। स्थापना हो रही है। और धर्मों में ऐसा नहीं होता है। वह तो ऊपर से आते
हैं। यह तो जैसेकि झाड़ स्थापन हुआ ही पड़ा है, इसमें फिर नम्बरवार आते जायेंगे,
वृद्धि को पाते जायेंगे। तकलीफ कुछ नहीं। उन्हों को तो ऊपर से आकर पार्ट बजाना ही
है, इसमें महिमा की क्या बात है। धर्म स्थापक के पिछाड़ी आते रहते हैं। वह शिक्षा
क्या देंगे सद्गति की? कुछ भी नहीं। यहाँ तो बाप भविष्य देवी-देवता धर्म की स्थापना
कर रहे हैं। संगमयुग पर नया सैपलिंग लगाते हैं ना। पहले पौधों को गमले में लगाकर
फिर नीचे लगा देते हैं। वृद्धि होती जाती है। तुम भी अब पौधा लगा रहे हो फिर सतयुग
में वृद्धि को पाए राज्य-भाग्य पायेंगे। तुम नई दुनिया की स्थापना कर रहे हो।
मनुष्य समझते हैं – अजुन कलियुग में बहुत वर्ष पड़े हैं क्योंकि शास्त्रों में लाखों
वर्ष लिख दिये हैं। समझते हैं कलियुग में अभी 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। फिर बाप आकर
नई दुनिया बनायेंगे। कई समझते हैं यह वही महाभारत लड़ाई है। गीता का भगवान भी जरूर
होगा। तुम बतलाते हो कृष्ण तो था नहीं। बाप ने समझाया है – कृष्ण तो 84 जन्म लेते
हैं। एक फीचर्स न मिले दूसरे से। तो यहाँ फिर कृष्ण कैसे आयेंगे। कोई भी इन बातों
पर विचार नहीं करते हैं। तुम समझते हो कृष्ण स्वर्ग का प्रिन्स वह फिर द्वापर में
कहाँ से आयेगा। इस लक्ष्मी-नारायण के चित्र को देखने से ही समझ में आ जाता है –
शिव-बाबा यह वर्सा दे रहे हैं। सतयुग की स्थापना करने वाला बाप ही है। यह गोला, झाड़
आदि के चित्र कम थोड़ेही हैं। एक दिन तुम्हारे पास यह सब चित्र ट्रांसलाइट के बन
जायेंगे। फिर सब कहेंगे हमको ऐसे चित्र ही चाहिए। इन चित्रों से फिर विहंग मार्ग की
सर्विस हो जायेगी। तुम्हारे पास बच्चे इतने आयेंगे जो फुर्सत नहीं रहेगी। ढेर आयेंगे।
बहुत खुशी होगी। दिन-प्रतिदिन तुम्हारा फोर्स बढ़ता जायेगा। ड्रामा अनुसार जो फूल
बनने वाले होंगे उनको टच होगा। तुम बच्चों को ऐसे नहीं कहना पड़ेगा कि बाबा इनकी
बुद्धि को टच करो। टच कोई बाबा थोड़ेही करते हैं। समय पर आपेही टच होगा। बाप तो
रास्ता बतायेंगे ना। बहुत बच्चियां लिखती हैं – हमारे पति की बुद्धि को टच करो। ऐसे
सबकी बुद्धि को टच करेंगे फिर तो सब स्वर्ग में इकट्ठे हो जायें। पढ़ाई की ही मेहनत
है। तुम खुदाई खिदमतगार हो ना। सच्ची-सच्ची बात बाबा पहले से ही बता देते हैं –
क्या-क्या करना है। ऐसे चित्र ले जाने पड़ेंगे। सीढ़ी का भी ले जाना पड़े। ड्रामा
अनुसार स्थापना तो होनी ही है। बाबा सर्विस के लिए जो डायरेक्शन देते हैं, उस पर
ध्यान देना है। बाबा कहते हैं बैजेस किस्म-किस्म के लाखों बनाओ। ट्रेन की टिकेट
लेकर 100 माइल तक सर्विस करके आओ। एक डिब्बे से दूसरे में, फिर तीसरे में, बहुत सहज
है। बच्चों को सर्विस का शौक रहना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विचार सागर मंथन कर अच्छे-अच्छे रत्न निकालने हैं, कमाई जमा करनी है।
सच्चा-सच्चा खुदाई खिदमतगार बन सेवा करनी है।
2) पढ़ाई का बहुत शौक रखना है। जब भी समय मिले एकान्त में चले जाना है। ऐसा
अभ्यास हो जो जीते जी इस शरीर से मरे हुए हैं, इस स्टेज का अनुभव होता रहे। देह का
भान भी भूल जाए।
वरदान:-
सर्व समस्याओं की विदाई का समारोह मनाने वाले समाधान
स्वरूप भव
समाधान स्वरूप आत्माओं की माला तब तैयार होगी जब आप अपनी
सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होंगे। सम्पूर्ण स्थिति में समस्यायें बचपन का खेल अनुभव
होती हैं अर्थात् समाप्त हो जाती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप के सामने यदि कोई बच्चा
समस्या लेकर आता था तो समस्या की बातें बोलने की हिम्मत भी नहीं होती थी, वह बातें
ही भूल जाती थी। ऐसे आप बच्चे भी समाधान स्वरूप बनो तो आधाकल्प के लिए समस्याओं का
विदाई समारोह हो जाए। विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है।
स्लोगन:-
जो सदा
ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।