ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बच्चे अर्थात् जीव की आत्माओं ने कहा
कि हम नई दुनिया की तकदीर यानी स्वर्ग की तकदीर बनाकर रूहानी बाप के पास बैठे हैं।
अब बच्चों को रूहानी-अभिमानी अर्थात् आत्म-अभिमानी बनना है। बड़े से बड़ी मेहनत यह
है। अपने को आत्मा समझो और ऐसे समझो मुझ आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं। कभी बैरिस्टर,
कभी क्या, कभी क्या बना हूँ। आत्मा मेल है, सब ब्रदर्स हैं, न कि सिस्टर्स। आत्मा
कहती है यह मेरा शरीर है तो उस हिसाब से आत्मा मेल, यह शरीर फीमेल हो गया। हर बात
को अच्छी रीति समझना है। बाप बड़ी विशाल, महीन बुद्धि बनाते हैं। अब तुम जानते हो –
मुझ आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं। संस्कार अच्छे वा बुरे आत्मा में रहते हैं। उन
संस्कारों अनुसार शरीर भी ऐसा मिलता है। सारा मदार आत्मा पर है। यह बहुत बड़ी मेहनत
है। जन्म-जन्मान्तर लौकिक बाप को याद किया, अब पारलौकिक बाप को याद करना है। अपने
को घड़ी-घड़ी आत्मा समझना है। हम आत्मा यह शरीर लेते हैं। अभी हम आत्माओं को बाप
पढ़ाते हैं। यह है रूहानी ज्ञान, जो रूहानी बाप देते हैं। पहली-पहली मुख्य बात बच्चों
को देही-अभिमानी हो रहना है। देही-अभिमानी हो रहना, यह बड़ी ऊंची मंजिल है। ज्ञान
ऊंच नहीं है। ज्ञान में मेहनत नहीं है। सृष्टि चक्र को जानना – यह है
हिस्ट्री-जॉग्राफी। ऊंच ते ऊंच बाप है, फिर हैं सूक्ष्मवतन में देवतायें। वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी तो मनुष्य सृष्टि में होती है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन में कोई
हिस्ट्री-जॉग्राफी नहीं है। वह है ही शान्तिधाम। सतयुग है सुखधाम, कलियुग है
दु:खधाम। यहाँ रावण राज्य में किसको शान्ति मिल नहीं सकती। अब तुम बच्चों को ज्ञान
मिला है – हम आत्मा हैं ही शान्तिधाम में रहने वाली। यह आरगन्स कर्म करने के लिए
हैं। चाहे कर्म करें, चाहे न करें। हम तो आत्मा हैं, हमारा स्वधर्म शान्त है।
कर्मयोगी हैं ना। कर्म भी जरूर करना है। कर्म-संन्यासी कभी हो नहीं सकते। यह भी इन
संन्यासियों का पार्ट है। घरबार छोड़ जाते हैं, खाना नहीं पकाते, गृहस्थियों से
भिक्षा मांगते फिर भी उन गृहस्थियों के पास खाते हैं ना। घरबार छोड़कर, कर्म तो फिर
भी करते हैं। कर्म-संन्यास तो हो नहीं सकता। कर्म-संन्यास तब है जब आत्मा
शान्ति-धाम में रहती है। वहाँ कर्मेन्द्रियाँ ही नहीं हैं तो कर्म कैसे करेंगे, इसको
कर्मक्षेत्र कहते हैं। कर्मक्षेत्र पर सबको आना पड़ता है। वह है शान्तिधाम अथवा
मूलवतन। ऐसे नहीं कि ब्रह्म में आत्मा को लीन होना है। आत्मायें शान्तिधाम में रहने
वाली हैं फिर यहाँ कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाने आती हैं। यह हैं डिटेल की बातें।
नटशेल में तो कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो तो विकर्म विनाश
हो जाएं। इसको ही भारत का प्राचीन योग कहा जाता है। वास्तव में इनको योग भी नहीं,
याद कहना चाहिए, इसमें मेहनत है। योगी बहुत कम बनते हैं। योग की शिक्षा पहले चाहिए,
बाद में ज्ञान। पहले-पहले है बाप की याद।
बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो, यह है रूहानी याद की यात्रा। ज्ञान की यात्रा नहीं,
इसमें बहुत मेहनत करनी पड़े। कोई तो भल बी.के. कहलाते हैं परन्तु बाप को याद नहीं
करते। बाप आकर ब्रह्मा द्वारा तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनाते हैं। यह देह-अभिमानी
थे। अभी देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ चल रहा है। ब्रह्मा कोई भगवान नहीं है। यहाँ
तो सब मनुष्य मात्र पतित हैं। पावन श्रेष्ठाचारी एक भी नहीं। आत्मा के लिए ही कहा
जाता है पुण्य आत्मा, पाप आत्मा। मनुष्य भी कहते हैं मेरी आत्मा को तंग नहीं करो।
परन्तु समझते नहीं हैं कि मैं कौन हूँ? पूछा जाता है – हे जीव की आत्मा, तुम क्या
धन्धा करते हो? कहेंगे मैं आत्मा इस शरीर द्वारा फलाना धन्धा करता हूँ। तो पहले-पहले
यह निश्चय कर बाप को याद करो। यह रूहानी नॉलेज सिवाए बाप के कोई दे न सके। बाप आकर
देही-अभिमानी बनाते हैं। ऐसे नहीं कि ज्ञान में कोई तीखे जाते हैं तो वह पक्के
देही-अभिमानी बने हैं। देही-अभिमानी जो हैं वह ज्ञान को अच्छी रीति धारण करते हैं।
बाकी तो बहुत हैं जो ज्ञान को अच्छी रीति समझते हैं, परन्तु शिवबाबा की याद भूल जाते
हैं। घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है, इसमें जिन्न मुआफिक बनना है।
जिन्न की कहानी है। बाप भी यह काम देते हैं – मुझे याद करो, नहीं तो माया तुझे खा
जायेगी। माया है जिन्न। जितना बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और तुमको
बहुत कशिश होगी। माया उल्टा बनाकर तुमको बहुत तूफान में लायेगी। बुद्धि में यही याद
रहे कि हम आत्मा बाप के बच्चे हैं। बस इस खुशी में रहना है।
देह-अभिमान में आने से माया चमाट लगाती है। हातमताई का खेल भी दिखाते हैं। मुहलरा
डालने से गुम हो जाते हैं। तुमको भी माया तंग नहीं करेगी, अगर बाप की याद में रहेंगे
तो। इस पर ही युद्ध चलती है। तुम पुरूषार्थ करते हो याद करने का लेकिन माया ऐसा नाक
से पकड़ेगी जो याद करने नहीं देगी, तुम तंग हो सो जायेंगे। इतना माया से युद्ध चलेगी।
बाकी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तो मोस्ट सिम्पल है। तुमको घड़ी-घड़ी कहा जाता है
हमेशा समझो अब हमारे 84 जन्म पूरे हुए, अब हम जाते हैं बाबा से मिलने। यह याद रहना
ही मुश्किल है। बाकी किसको समझाना कोई मुश्किल नहीं है। ऐसे नहीं हम तो बहुत अच्छा
समझाते हैं। नहीं, पहली-पहली बात ही है याद की। प्रदर्शनी में ढेर आते हैं।
पहले-पहले यह सबक (पाठ) सिखाना है कि अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करो तो
तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। पहले लेसन ही यह देना है। भारत का प्राचीन योग कोई
सिखा नहीं सकते। बाप जब आकर सिखाये तब सीख सकते। मनुष्य, मनुष्य को राजयोग सिखा नहीं
सकते, इम्पॉसिबुल है। सतयुग में तो हैं ही पावन, वहाँ तो प्रालब्ध भोगते हैं। वहाँ
ज्ञान-अज्ञान की बात ही नहीं। भक्ति मार्ग में ही बाप को पुकारते हैं कि आकर दु:ख
हरो सुख दो। सतयुग त्रेता में कोई गुरू गोसांई होते नहीं। वहाँ तो सद्गति पाई हुई
है। सद्गति का वर्सा 21 जन्म लिए तुम पा सकते हो। 21 पीढ़ी, कहते हैं ब्रह्माकुमारी
वह जो 21 पीढ़ी का उद्धार करे। यह भारत में ही गाया जाता है। भारत में ही तुमको 21
पीढ़ी का वर्सा मिलता है। वहाँ तुम एक ही देवी देवता धर्म वाले होते हो, दूसरा कोई
धर्म नहीं। बाप आकर तुमको मनुष्य से देवता बनाते हैं। पवित्र होने बिगर हम वापिस जा
कैसे सकते। यहाँ तो सब विकारी पतित हैं। जो-जो धर्म स्थापक हैं, वह फिर पालना करते
हैं, उनके धर्म की वृद्धि होती जाती है। वापिस कोई भी जा नहीं सकता। एक भी एक्टर
वापिस जा नहीं सकता। सबको सतोप्रधान, सतो-रजो-तमो में आना ही है। ब्रह्मा के लिए भी
कहते हैं ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात। तो क्या सृष्टि में अकेला ही ब्रह्मा होगा
क्या? अभी तुम ब्राह्मण कुल के बन रहे हो। तुम रात में थे, अब दिन में जा रहे हो।
तुमको समझाया है कि कितना समय पूज्यपने में रहते हो, कितने जन्म पुजारी बनते हो।
जब तक बाप न आये तब तक कोई भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बन न सके। भ्रष्टाचारी उनको
कहा जाता है – जो विकार से पैदा होते हैं इसलिए इसको हेल कहा जाता है। हेल और हेविन
दोनों में अगर दु:ख हो तो फिर तो उनको हेविन ही न कहा जाए। जब तक पूरा समझा नहीं
है, तो उल्टे-सुल्टे प्रश्न करेंगे। तुमको समझाना है भारत बहुत ऊंच था। जैसे ईश्वर
की महिमा अपरमअपार है, वैसे भारत की भी महिमा अपरमअपार है। भारत क्या था, ऐसा किसने
बनाया? बाप ने, जिसकी महिमा गाते हैं। बाप ही आकर बच्चों को विश्व का मालिक बनाते
हैं। मनुष्य मात्र को दुर्गति से सद्गति में ले जाते हैं। शान्तिधाम में ले जाते
हैं, जिसके लिए ही मनुष्य पुरूषार्थ करते हैं। उसको अटल सुख, अटल शान्ति, अटल
पवित्रता कहा जाता है। वहाँ तुम सुख में भी हो, शान्ति में भी हो और बाकी आत्मायें
शान्ति में रहती हैं। मैक्सीमम जन्म तुम लेते हो। बाकी मिनिमम वाले अटल शान्ति में
रहते हैं। वह जैसे मच्छरों सदृश्य आये, एक आधा जन्म पार्ट बजाया, यह क्या? उनकी कोई
वैल्यु नहीं। मच्छरों की क्या वैल्यु है। रात को जन्मते हैं, रात को ही मर जाते
हैं। इस समय बहुत करके शान्ति ही चाहते हैं क्योंकि इस समय के गुरू लोग हैं, शान्ति
में जाने वाले।
तुम यहाँ आये हो – स्वर्गवासी बनने के लिए। स्वर्गवासी को शान्तिवासी नहीं कहेंगे।
शान्तिवासी निराकारी दुनिया को कहा जाता है। मुक्ति अक्षर गुरूओं से सीखते हैं।
मातायें व्रत नेम रखती हैं – बैकुण्ठ पुरी में जाने के लिए। कोई मरता है तो भी कहते
हैं – स्वर्गवासी हुआ। कोई होता नहीं है लेकिन भारतवासी हेविन को ही मानते हैं।
समझते हैं – भारत पैराडाइज़ था। शिवबाबा भारत में ही आकर स्वर्ग की रचना रचते हैं
तो जरूर यहाँ ही रचेंगे। स्वर्ग में तो नहीं आयेंगे। कहते हैं – मैं आता हूँ स्वर्ग
और नर्क के संगम पर। कल्प-कल्प के संगम पर आते हैं। उन्होंने फिर युगे-युगे लिख दिया
है। कल्प का अक्षर भूल गये हैं। यह भी खेल बना हुआ है, फिर वही रिपीट होगा। इस
अन्तिम जन्म में तुम बाप को और सृष्टि चक्र को जानते हो। कैसे स्थापना होती है
नम्बरवार, सो अब तुम जानते हो। यह सारा खेल तुम भारतवासियों पर ही बना हुआ है। अभी
तुम बाप द्वारा राजयोग सीखते हो। बाप की याद से ही राज्य पाते हो। चित्र भी खड़े
हैं ना। यह सब चित्र किसने बनाये! इनको कोई गुरू गोसाई तो है नहीं। अगर कोई गुरू
होता तो भी गुरू को एक शिष्य थोड़ेही होता। अनेक होते ना। यह नॉलेज सिवाए एक बाप के
और कोई जान न सके। बहुत लोग पूछते हैं यह चित्र तुम्हारे दादा ने बनवाये हैं? यह तो
बाप ने दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया है। बैकुण्ठ का भी साक्षात्कार कराया है।
वहाँ कैसे स्कूल चलती है, क्या भाषा होती है, सब साक्षात्कार किये हैं। बच्चे भट्ठी
में थे तो बाबा बच्चों को बहलाते थे। कराची में सिर्फ तुम ही अलग रहे हुए थे, जैसे
अपनी राजाई थी। अपनी तात, अपनी बात….दूसरा कोई समझ न सके। समझते थे – यह खुदाप्रस्त
हैं। बाबा ने समझाया है – तुम हो नन्स। नन बट वन। एक बाप के सिवाए और कोई को याद नहीं
करना। वह नन्स क्राइस्ट को ही जानती हैं, उनके सिवाए कोई को नहीं।
तुम जानते हो वर्सा एक शिवबाबा से मिलता है। शिवबाबा तो है बिन्दी। वह भी कोई
द्वारा ही समझायेंगे ना। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ होगा। बाप कहते हैं इनके
बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में पतित शरीर में प्रवेश करता हूँ। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान को अच्छी रीति धारण कर देही-अभिमानी बनना है। यही मेहनत है। यही
ऊंची मंजिल है। इस मेहनत से आत्मा को सतोप्रधान बनाना है।
2) जिन्न बनकर याद की यात्रा करनी है। माया कितने भी विघ्न डाले लेकिन मुख में
मुलहरा डाल देना है। माया से तंग नहीं होना है। एक की याद में रहकर तूफान हटा देने
हैं।