09-01-05 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 22.03.86 "बापदादा" मधुबन
सुख, शांति और खुशी का
आधार- “पवित्रता”
आज बापदादा अपने चारों
ओर के सर्व होलीनेस और हैपीनेस बच्चों को देख रहे हैं। इतने बड़े संगठित रूप में ऐसे
होली और हैपी दोनों विशेषता वाले, इस सारे ड्रामा के अन्दर और कोई इतनी बड़ी सभा व
इतनी बड़ी संख्या हो ही नहीं सकती। आजकल किसी को भल ‘हाइनेस वा होलीनेस’ का टाइटिल
देते भी हैं लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में देखो तो वह पवित्रता, महानता दिखाई नहीं
देगी। बापदादा देख रहे थे - इतनी महान पवित्र आत्माओं का संगठन कहाँ हो सकता है। हर
एक बच्चे के अन्दर यह दृढ़ संकल्प है कि न सिर्फ कर्म से लेकिन मन- वाणी-कर्म तीनों
से पवित्र बनना ही है। तो यह पवित्र बनने का श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प और कहाँ भी रह नहीं
सकता। अविनाशी हो नहीं सकता, सहज हो नहीं सकता। और आप सभी पवित्रता को धारण करना
कितना सहज समझते हो! क्योंकि बापदादा द्वारा नॉलेज मिली और नॉलेज की शक्ति से जान
लिया कि मुझ आत्मा का अनादि और आदि स्वरूप है ही ‘पवित्र’। जब आदि अनादि स्वरूप की
स्मृति आ गई तो यह स्मृति समर्थ बनाए सहज अनुभव करा रही है। जान लिया कि हमारा
वास्तविक स्वरूप ‘पवित्र’ है। यह संग-दोष का स्वरूप ‘अपवित्र’ है। तो वास्तविक को
अपनाना सहज हो गया ना!
स्व-धर्म, स्व-देश,
स्व का पिता और स्व-स्वरूप, स्व-कर्म सबकी नॉलेज मिली है। तो नॉलेज की शक्ति से
मुश्किल अति सहज हो गया। जिस बात को आजकल की महान आत्मा कहलाने वाले भी असम्भव समझते
हैं, अननेचुरल समझते हैं लेकिन आप पवित्र आत्माओं ने उस असम्भव को कितना सहज अनुभव
कर लिया! पवित्रता को अपनाना सहज है वा मुश्किल है? सारे विश्व के आगे चैलेन्ज से
कह सकते हो कि पवित्रता तो हमारा स्व-स्वरूप है। पवित्रता की शक्ति के कारण जहाँ
पवित्रता है वहाँ सुख और शान्ति स्वत: ही है। पवित्रता फाउण्डेशन है। पवित्रता को
माता कहते हैं और सुख शान्ति उनके बच्चे हैं। तो जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति
स्वत: ही है। इसलिए हैपी भी हो। कभी उदास हो नहीं सकते। सदा खुश रहने वाले। जहाँ
होली है तो हैपी भी जरूर है। पवित्र आत्माओं की निशानी - ‘सदा खुशी’ है। तो बापदादा
देख रहे हैं कि कितने निश्चय बुद्धि पावन आत्मायें बैठी हैं। दुनिया वाले सुख शान्ति
के पीछे भाग दौड़ करते हैं। लेकिन सुख शान्ति का फाउण्डेशन ही पवित्रता है। उस
फाउण्डेशन को नहीं जानते हैं। इसलिए पवित्रता का फाउण्डेशन मजबूत न होने के कारण
अल्पकाल के लिए सुख वा शान्ति प्राप्त होती भी है लेकिन अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं
है। सदाकाल की सुख शान्ति की प्राप्ति सिवाए पवित्रता के असम्भव है। आप लोगों ने
फाउण्डेशन को अपना लिया है। इसलिए सुख-शान्ति के लिए भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती है।
सुख शान्ति, पवित्र-आत्माओं के पास स्वयं स्वत: ही आती है। जैसे बच्चे माँ के पास
स्वत: ही जाते हैं ना। कितना भी अलग करो फिर भी माँ के पास जरूर जायेंगे। तो
सुख-शान्ति की माता है - ‘पवित्रता’। जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति, खुशी स्वत:
ही आती है। तो क्या बन गये? ‘बेगमपुर के बादशाह’। इस पुरानी दुनिया के बादशाह नहीं,
लेकिन बेगमपुर के बादशाह। यह ब्राह्मण परिवार बेगमपुर अर्थात् सुख-संसार है। तो इस
सुख के संसार बेगमपुर के बादशाह बन गये। हिज होलीनेस भी हो ना। ताज भी है, तख्त भी
है। बाकी क्या कमी है! कितना बढ़िया ताज है। लाइट का ताज पवित्रता की निशानी है और
बापदादा के दिलतख्तनशीन हो। तो बेगमपुर के बादशाहों का ताज भी न्यारा और तख्त भी
न्यारा है। बादशाही भी न्यारी तो बादशाह भी न्यारे हो।
आजकल की मनुष्यात्माओं
को इतनी भाग दौड़ करते हुए देख बापदादा को भी बच्चों पर तरस पड़ता है। कितना प्रयत्न
करते रहते हैं। प्रयत्न अर्थात् भाग दौड़, मेहनत भी ज्यादा करते लेकिन प्राप्ति क्या?
सुख भी होगा तो सुख के साथ कोई न कोई दुख भी मिला हुआ होगा। और कुछ नहीं तो अल्पकाल
के सुख के साथ चिंता और भय यह दो चीज़े तो हैं ही है। तो जहाँ चिंता है वहाँ चैन नहीं
हो सकता। जहाँ भय है वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। तो सुख के साथ यह दुःख-अशान्ति के
कारण है ही है। और आप सबको दुख का कारण और निवारण मिल गया। अभी आप समस्याओं को
समाधान करने वाले समाधान स्वरूप बन गये हो ना। समस्याएँ आप लोगों से खेलने के लिए
खिलौने बन कर आती है। खेल करने के लिए आती हैं, न कि डराने के लिए। घबराने वाले तो
नहीं हो ना? जहाँ सर्व शक्तियों का खज़ाना जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया तो बाकी कमी क्या
रही, भरपूर हो ना! मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे समस्या कोई नहीं। हाथी के पांव के
नीचे अगर चींटी आ जाए तो दिखाई देगी? तो यह समस्याएँ भी आप महारथियों के आगे चींटी
समान है। खेल समझने से खुशी रहती। कितनी भी बड़ी बात भी छोटी हो जाती। जैसे आजकल
बच्चों को कौन से खेल कराते हैं, बुद्धि के। वैसे बच्चों को हिसाब करने दो तो तंग
हो जायेंगे। लेकिन खेल की रीति से हिसाब खुशी-खुशी करेंगे। तो आप सबके लिए भी समस्या
चींटी समान है ना! जहाँ पवित्रता, सुख शान्ति की शक्ति है वहाँ स्वप्न में भी दुख
अशान्ति की लहर आ नहीं सकती। शक्तिशाली आत्माओं के आगे यह दुख और अशान्ति हिम्मत नहीं
रख सकती आगे आने की। पवित्र आत्मायें सदा हर्षित रहने वाली आत्मायें हैं, यह सदा
स्मृति में रखो। अनेक प्रकार की उलझनों से भटकने से दुख अशान्ति की जाल से निकल आये।
क्योंकि सिर्फ एक दुख नहीं आता है। लेकिन एक दुख भी वंशावली के साथ आता है। तो उस
जाल से निकल आये। ऐसे अपने को भाग्यवान समझते हो ना!
आज आस्ट्रेलिया वाले
बैठे हैं। आस्ट्रेलिया वालों की बापदादा सदा ही तपस्या और महादानी-पन की विशेषता
वर्णन करते हैं। सदा सेवा की लगन की तपस्या अनेक आत्माओं को और आप तपस्वी आत्माओं
को फल दे रही है। धरनी के प्रमाण विधि और वृद्धि दोनों को देख बापदादा एक्सट्रा खुश
हैं। आस्ट्रेलिया हैं ही एक्सट्रा आर्डनरी। त्याग की भावना, सेवा के लिए सभी में
बहुत जल्दी आती है इसलिए तो इतने सेन्टर्स खोले हैं। जैसे हमको भाग्य मिला है ऐसे
औरों का भाग्य बनाना है। दृढ़ संकल्प करना यह तपस्या है। तो त्याग और तपस्या की विधि
से वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। सेवा-भाव अनेक हद के भाव समाप्त कर देता है। यही
त्याग और तपस्या सफलता का आधार बना है, समझा। संगठन की शक्ति है। एक ने कहा और दूसरे
ने किया। ऐसे नहीं एक ने कहा और दूसरा कहे यह तो हो नहीं सकता। इसमें संगठन टूटता
है। एक ने कहा दूसरे ने उमंग से सहयोगी बन प्रैक्टिकल में लाया, यह है संगठन की
शक्ति। पाण्डवों का भी संगठन है, कभी तू मैं नहीं। बस, ‘बाबा-बाबा’ कहा तो सब बातें
समाप्त हो जाती है। खिटखिट होती ही है - तू मैं, मेरा तेरा में। बाप को सामने रखेंगे
तो कोई भी समस्या आ नहीं सकती। और सदा निर्विघ्न आत्मायें तीव्र पुरूषार्थ से
उड़ती-कला का अनुभव करती हैं। बहुत काल की निर्विघ्न स्थिति, मजबूत स्थिति होती है।
बार-बार विघ्नों के वश जो होते उन्हों का फाउण्डेशन कच्चा हो जाता है और बहुत काल
की निर्विघ्न आत्मायें फाउण्डेशन पक्का होने के कारण स्वयं भी शक्तिशाली, दूसरों को
भी शक्तिशाली बनाती हैं। कोई भी चीज़ टूटी हुई चीज़ को जोड़ने से वह कमज़ोर हो जाती है।
बहुतकाल की शक्तिशाली आत्मा,निर्विघ्न आत्मा अन्त में भी निर्विघ्न बन पास विद आनर
बन जाती है या फर्स्ट डिवीजन में आ जाती है। तो सदा यही लक्ष्य रखो कि बहुतकाल की
निर्विघ्न स्थिति का अनुभव अवश्य करना है। ऐसे नहीं समझो - विघ्न आया, मिट तो गया
ना। कोई हर्जा नहीं। लेकिन बार-बार विघ्न आना और मिटाना इसमें टाइम वेस्ट जाता है।
एनर्जी वेस्ट जाती है। वह टाइम और एनर्जी सेवा में लगाओ ते एक का पदम जमा हो जायेगा।
इसलिए बहुतकाल की निर्विघ्न आत्मायें, विघ्न विनाशक रूप से पूजी जाती हैं। ‘विघ्न
विनाशक’ टाइटिल पूज्य आत्माओं का है। ‘मैं विघ्न विनाशक पूज्य आत्मा हूँ’ - इस
स्मृति से सदा निर्विघ्न बन आगे उड़ती कला द्वारा उड़ते चलो और उड़ाते चलो। समझा। अपने
विघ्न विनाश तो िकये लेकिन औरों के लिए विघ्न विनाशक बनना है। देखो आप लोगों को
निमित्त आत्मा भी ऐसी मिली है (निर्मला डाक्टर) जो शुरू से लेकर किसी भी विघ्न में
नहीं आये। सदा न्यारे और प्यारे रहे हैं। थोड़ा सा स्ट्रिक्ट रहती। यह भी जरूरी है।
अगर ऐसी स्ट्रिक्ट टीचर नहीं मिलती तो इतनी वृद्धि नहीं होती। यह आवश्यक भी होता
है। जैसे कड़वी दवाई बीमारी के लिए जरूरी होती है ना। तो ड्रामा अनुसार निमित्त
आत्माओं का भी संग तो लगता ही है और जैसे स्वयं आने से ही सेवा के निमित्त बन गये
तो आस्ट्रेलिया में आने से सेन्टर खोलने की सेवा में लग जाते। यह त्याग की भावना का
वायब्रेशन सारी आस्ट्रेलिया और जो भी सम्पर्क वाले स्थान हैं उनमें उसी रूप से
वृद्धि हो रही है। तपस्या और त्याग जिसमें है - वही श्रेष्ठ आत्मा है। तीव्र
पुरुषार्थी तो सभी आत्मायें हैं लेकिन पुरुषार्थी होते हुए भी विशेषताएँ अपना
प्रभाव जरूर डालती हैं। सम्पन्न तो अभी सब बन रहे हैं ना। सम्पन्न बन गये, यह
सार्टिफिकेट किसको भी मिला नहीं है। लेकिन सम्पन्नता के समीप पहुँच गये हैं। इसमें
नम्बरवार हैं। कोई बहुत समीप पहुँच गये हैं। कोई नम्बरवार आगे पीछे हैं। आस्ट्रेलिया
वाले लकी है। त्याग का बीज भाग्य प्राप्त करा रहा है। शक्ति सेना भी बापदादा को अति
प्रिय है। क्योंकि हिम्मत-वाली है। जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की मदद सदा ही साथ
है। सदा सन्तुष्ट रहने वाले हो ना। सन्तुष्टता सफलता का आधार है। आप सब सन्तुष्ट
आत्मायें हो तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। समझा। जो नियरेस्ट और डियरेस्ट
होता है उनको अपना समझ, हमेशा पीछे, लेकिन आस्ट्रेलिया वालों के ऊपर एक्स्ट्रा
हुज्जत है। अच्छा!
वरदान:-
देह, सम्बन्ध
और वैभवों के बन्धन से स्वतन्त्र बाप समान कर्मातीत भव
जो निमित्त मात्र
डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति को सम्भालते हुए आत्मिक स्वरूप में रहते हैं, मोह के
कारण नहीं, उन्हें यदि अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे। बिगुल बजे और
सोचने में ही समय न चला जाए तब कहेंगे नष्टोमोहा। इसलिए सदैव अपने को चेक करना है
कि देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन अपनी ओर खींचता तो नहीं है। जहाँ बंधन होगा
वहाँ आकर्षण होगी। लेकिन जो स्वतन्त्र हैं वे बाप समान कर्मातीत स्थिति के समीप
हैं।
स्लोगन:-
स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति रूप बनो तो राजधानी में नम्बर आगे मिल जायेगा।