24-08-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 06-12-69 मधुबन
“सरल स्वभाव से बुद्धि को विशाल और दूरांदेशी बनाओ”
आज की सभा में कौनसी विशेष खुशबू भी है और विशेष आकर्षण भी है? स्नेह तो सभी का है ही। आप को किसलिए बुलाया है? ऐसे समझे कि यह जो भी सभी आये हैं वह वापस जाने के लिए तैयार होकर आये हैं। एवररेडी जो होते हैं वह सदैव तैयार ही होते हैं। बुलावा हुआ और एक सेकेण्ड में अपना रहा हुआ सभी कुछ समेट भी सकते और जम्प भी दे सकते। प्रैक्टिकल में देखा भी ना कि ड्रामा के बुलावे पर कितना टाइम लगा? एक तरफ समेटना दूसरे तरफ हाई जम्प देना। यह दोनों सीन देखी - यह ड्रामा में किसलिए हुआ? सिखलाने के लिए। तो ऐसे एवररेडी बनना पड़ेगा। अभी एवररेडी की लाइन चालू हो गई है। इस लाईन के अन्दर किसका भी नम्बर आ सकता है। जो सभी के संकल्प में है वह कभी नहीं होना है। होगा फिर भी अनायास ही। यह ब्राह्मण कुल की रीति-रस्म चालू हो चुकी है। यह रीति-रस्म भी ड्रामा में क्यों बनी हुई है, उसका भी बहुत गुप्त रहस्य है। तो ऐसा पुरुषार्थ पहले से ही कर लो जो फौरन समेट भी सको और जम्प भी के सको। समेटने की शक्ति किसमें हो सकती है? जो सरल स्वभाव वाले होंगे उसमें समेटने की शक्ति सहज आ सकती है। जो सरल स्वभाव वाला होगा वह सभी का सहयोगी भी होगा। जो सभी का स्नेही होता है उनको सभी द्वारा सहयोग प्राप्त होता है। इसलिए सभी बातों का सामना करना वा समेंना सहज ही कर सकता है। और जितना सरल स्वभाव वाले होंगे उतना माया कम सामना करेगी। वह सभी को प्रिय लगता है। सरल स्वभाव वाले का व्यर्थ संकल्प कभी नहीं चलता। समय व्यर्थ नहीं जाता। व्यर्थ संकल्प न चलने के कारण उनकी बुद्धि विशाल और दूरांदेशी रहती है। इसलिए उनके आगे कोई भी समस्या सामना नहीं कर सकती। जितनी सरलता होगी उतनी स्वच्छता भी होगी। स्वच्छता सभी को अपने तरफ आकर्षित करती है। स्वच्छता अर्थात् सच्चाई और सफाई। सच्चाई और सफाई तब होगी जब अपने स्वभाव को सरल बनायेंगे। सरल स्वभाव वाला बहुरूपी भी बन सकता है। कोमल चीज़ को जैसे भी रूप में लाओ आ सकती है। तो अब गोल्ड बने हो लेकिन गोल्ड को अब अग्नि में गलाओ तो मोल्ड भी हो सके। इस कमी के कारण सर्विस की सफलता में कमी पड़ती है। अपने को कैसे मोल्ड करे इसके लिए भट्ठी में आये हो। एक है मोड़ने की शक्ति और दूसरी है ब्रेक लगाने की शक्ति। मोड़ना भी है तो कितने समय में? भल मोड़ना आता भी है लेकिन कहाँ-कहाँ समय बहुत लग जाता है। समय न लगे वह संकल्प करना है। संकल्प किया और सिद्ध हुआ। भट्ठी से ऐसा बनकर के निकलना है जो हर संकल्प हर शब्द सिद्ध हो। वह लोग रिद्धि-सिद्धि प्राप्त करते हैं लकिन यहाँ योग की रिद्धि-सिद्धि है। याद की रिद्धि-सिद्धि क्या होती है, वह सीखना है। जो सिद्धि को प्राप्त होते है उनके संकल्प, शब्द और हर कर्म सिद्ध होता है। एक संकल्प भी व्यर्थ नहीं उठेगा। संकल्प वह उठेंगे जो सिद्ध होंगे। सर्विस-एबुल उसको कहा जाता है जिसका एक भी संकल्प बिना सिद्धि के न जाये। अथवा ऐसा कोई संकल्प न उठना चाहिए जो सिद्ध होने वाला न हो। आप के एक-एक संकल्प की वैल्यू है। लेकिन जब अपनी वैल्यू को खुद रखेंगे तब अनेक आत्मायें भी आप रत्नों की वैल्यू को परखेगी। इस भट्ठी से हरेक का चेहरा चैतन्य म्यूज़ियम बनकर निकले। और म्यूज़ियम तो बहुत बनाये लेकिन अब एक-एक को अपने चेहरे को चैतन्य म्यूजियम बनाना है। इस चैतन्य चेहरे के म्यूज़ियम में कितने चित्र है? इस चेहरे के म्यूज़ियम में कौन-कौन से चित्र फिट करेंगे? म्यूज़ियम में पहले चित्रों की फिटिंग करते हैं, बाद में डेकोरेशन होता है फिर उद्घाटन कराना होता है फिर ओपीनियन लेना होता है। तो आप के इस चैतन्य म्यूज़ियम में तीन मुख्य चित्र हैं। भृकुटी, नयन और मुख। इन द्वारा ही आपकी स्मृति, वृत्ति दृष्टि और वाणी का मालूम पड़ता है। जैसे त्रिमूर्ति, लक्ष्मी नारायण और सीढ़ी यह तीन मुख्य चित्र हैं ना। इसमें सारा ज्ञान आ जाता है। वैसे ही इस चेहरे के अन्दर यह चित्र अनादि फिट हैं। इनकी ऐसी डेकोरेशन हो जो दूर से यह चित्र अपने तरफ आकर्षण करे। आकर्षण होने के बिना रह नहीं सकेंगे। आप लोग म्यूज़ियम बनाते हो तो कोशिश करते हो ना कि चित्र ऐसे डेकोरेट हो जो दूर से आकर्षण करे। किसको बुलाना भी न पड़े। वैसे ही आप हरेक को अपना म्यूज़ियम ऐसा तैयार करना है। जो कुछ सुना है उसको गहराई से सोचकर के एक-एक रंग में समा देना है। जिन्होंने जितना गहराई से सुना है उतना अपने चलन में प्रत्यक्ष रूप में लाया है? उन संस्कारों को प्रत्यक्ष करने के लिए एक-एक बात की गहराई में जाओ और अपने एक-एक रग में वह संस्कार समाओ। कोई भी चीज़ को किसमें समाना होता है तो क्या करना होता है? एक तो गहराई में जाना होता है और अन्दर दबाना होता है। कूटना पड़ता है। कूटना अर्थात् हरेक बात को महीन बनाना। इस भट्ठी से संस्कारों को प्रत्यक्ष रूप में लाने की प्रतिज्ञा कर के निकलना है। जितना बाप को प्रत्यक्ष करेंगे उतना खुद को प्रत्यक्ष करेंगे। बाप को प्रत्यक्ष करने से आप की प्रत्यक्षता बाप के साथ ही है। ऐसा बनना और फिर बनाना है। समझा।
इस संगठन में ऐसी शक्ति है जो चाहे वह कर सकते हैं। सिर्फ संकल्प करे तो सृष्टि बदल सकती है। ऐसी शक्तिशाली आत्मायें हैं। लेकिन अब संकल्प कौनसा पावरफुल करना है? उसको फिर से रिफ्रेश करना है।
इस मधुबन के लिए ही गायन है कि कोई ऐसा-वैसा पाँव नहीं रख सकता। मधुबन है सौभाग्य की लकीर। उसके अन्दर और कोई पाँव नहीं रख सकता। आप सभी को बापदादा समझाते हैं कि यह स्नेह की लकीर है जिस स्नेह के घेराव के अन्दर बापदादा निवास करते हैं। इसके अन्दर कोई आ नहीं सकता। चाहे भल अपना शीश भी उतार कर रखे। साकार रूप में स्नेह मिलना कोई छोटी बात नहीं है। उसके लिए तो आगे चलकर जब रोना देखेंगे तब आप लोगों को उसकी वैल्यू का मालूम होगा। रो-रोकर आप के चरणों में गिरेंगे। स्नेह की एक बूँद की प्यासी हो चरणों में गिरेंगे। आप लोगों ने स्नेह के सागर को अपने में समाया है। वह एक बूँद के भी प्यासे रहेंगे। ऐसा सौभाग्य किसका हो सकता है? सर्व सम्बन्धों का सुख, रसना जो आप आत्माओं में भरी हुई है वह और कोई में नहीं हो सकती। तो ड्रामा में अपने इतने ऊँच भाग्य को सदैव सामने रखना। सामने रखने से रिटर्न देना आप ही याद आयेगा। अच्छा।
सर्विस में नवीनता लाने की विधियां:-
अभी सर्विस में क्या नवीनता लानी है? जैसे अपने में नवीनता लाते हो वैसे सर्विस में भी नवीनता लानी है। नवीनता लाने की 5 बातें याद रखनी हैं। सभी के मुख से यह निकले कि यह कहाँ से आई हैं। जैसे शुरू में निकलता था, परन्तु शुरू में वाणी का बल नहीं था, अभी तो वाणी का बल है लेकिन अलौकिक स्थिति का बल गुप्त हो गया है। छिप गया है। इसलिए अब फिर से ऐसी अलौकिकता सभी को दिखानी है जो सभी महसूस करें कि जैसे शुरू में भट्ठी से निकली हुई आत्मायें कितनी सेवा के निमित्त बनी, अब फिर से सृष्टि के दृश्य को चेंज करने के निमित्त बनी हैं। उनसे अभी की सर्विस बड़ी है। तो ऐसा शक्तिरूप और स्नेह रूप बन जाना है। कितने भी हजारों के बीच खड़े हो तो भी दूर से अलौकिक व्यक्ति नजर आओ। जैसे साकार रूप के लिए वर्णन करते हैं, कोई भी अन्जान समझ सकता था कि यह कोई अलौकिक व्यक्ति है। हजारों के बीच में वह हीरा चमकता था, तो फालो फादर। उन्हों के वायब्रेशन अपने में नहीं लाना, अपने वायब्रेशन से उन्हों को अलौकिक बनाना यही नवीनता लानी है। अभी सर्विस के कारण कुछ संसारी लोगों में मिक्स लगते हैं। सर्विस के प्रति सम्बन्ध में रहते भी न्यारे रहने का जो मंत्र है- उसको नहीं भूलना। अभी वह संबंध जो रखना था सो रख लिया, अभी इस रीति संबंध रखने की भी आवश्यकता नहीं। सर्विस कारण अपने को हल्का करने की भी जरूरत नहीं। वह समय बीत चुका। अभी लौकिक के बीच अलौकिक नज़र आओ। अनेक व्यक्तियों के बीच अव्यक्त मूर्त लगे। वह व्यक्त देखने में आयें, आप अव्यक्त देखने में आओ, यह है परिवर्तन। शुरू में कोई के वायब्रेशन अथवा संग में अपने में परिवर्तन लाते थे? इसलिए कहते थे ब्रह्माकुमारी में हठ बहुत है लेकिन वह हठ अच्छा था ना | यह है ईश्वरीय हठ, इसलिए अब वायब्रेशन के बीच रहते अपने को न्यारा और प्यारा बनाना है। सिर्फ वाणी से कुर्बान नहीं होते। आप लोगों ने कैसे कुर्बानी की? आन्तरिक आत्म-स्नेह से। प्रजा तो बहुत बनाई लेकिन अब कुर्बान कराना है। यह सर्विस रही हुई है। वारिस कम और प्रजा ज्यादा बनाई है क्योंकि वाणी से प्रजा बनती है लेकिन ईश्वरीय स्नेह और शक्ति से वारिस बनते हैं, तो वारिस बनाने हैं। यह फर्स्ट स्टेज का पुरुषार्थ है। वाणी से किसी को पानी नहीं कर सकते लेकिन स्नेह और शक्ति से एक सेकेण्ड में स्वाहा करा सकते हैं। यह भी अन्त में मार्क्स मिलते हैं। वारिस कितने बनाये, प्रजा कितनी बनाई। वारिस भी किस वैराइटी की और प्रजा भी किस वैराइटी की और कितने समय में बनें। फाइनल पेपर आज सुना रहे हैं। किस-किस क्वेश्चन पर मार्क्स मिलते हैं एक तो यह क्वेश्चन अन्तिम रिजल्ट में होगा, दूसरा सुनाया अन्त तक सर्विस का शो। और तीसरी बात थी आदि से अन्त तक जो अवस्था चलती आई है उसमें कितना बारी फेल हुए हैं, पूरा पोतामेल एनाउन्स होगा। कितने बारी विजयी बने और कितने बारी फेल हुए और विजय प्राप्त की तो कितने समय में? कोई भी समस्या को सामना करने में कितना समय लगा? उनकी भी मार्क्स मिलेगी। तो सारे जीवन की सर्विस और स्व स्थिति और अन्त तक सर्विस का सबूत यह तीन बातें देखी जाती हैं। यहाँ भी हर एक, एक दो के सामने स्पष्ट देखेंगे कि इन तीन बातों का क्या-क्या पोतामेल रहा है? और उनको सामने लाकर के अपनी रिजल्ट को भी पहले से ही चेक कर सकते हो और जो कमी रह गई है, उनको रिवाइज कर पूर्ण कर सकते हो। अभी भी अगर इन बातों की कमी हो तो भर लो। मेकप कर सकते हो। आधा घण्टा में भी गाड़ी मेकप हो जाती है। जो 6 घण्टा भी नहीं चलते वह आधा घण्टा में हो जाते हैं। इसलिए अब मेकप करने का लास्ट चांस है। अब रिजल्ट देखेंगे। जैसे शुरू से समाचार आते थे कि कितनी ऊंच आत्मायें से हमारे पास आ पहुंची हैं। ऐसा समाचार फिर से आना चाहिए। भट्ठी का अर्थ ही है बदलना। अच्छा।
वरदान:- एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव करने वाले वरदानी मूर्त भव
सिर्फ एक का पाठ पक्का करके वरदाता को राज़ी कर लो तो अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते, चलते, उड़ते रहेंगे। वह एक का पाठ है – एक बल एक भरोसा, एकमत, एकरस, एकता और एकान्तप्रिय… यह ”एक” शब्द ही बाप को प्रिय है। जो इस एक का पाठ पक्का कर लेते हैं उन्हें कभी मुश्किल का अनुभव नहीं होता। ऐसी वरदानी आत्मा को विशेष वरदान प्राप्त होता है इसलिए वे निराकार-आकार को जैसे साकार अनुभव करते हैं।
स्लोगन:- किसी से किनारा करके अपनी अवस्था बनाने के बजाए सर्व का सहारा बनो।