30-09-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
13.10.92 "बापदादा" मधुबन
अकल्याण की सीन में भी
कल्याण दिखाई दे
बाप में निश्चय है कि
वही कल्प पहले वाला बाप फिर से आकर मिला है? ऐसे ही अपने में भी इतना निश्चय है कि
हम भी वही कल्प पहले वाले बाप के साथ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्माए हैं? या बाप
में निश्चय ज्यादा है, अपने में कम है? अच्छा, ड्रामा में जो भी होता है उसमें भी
पक्का निश्चय है? जो ड्रामा में होता है वह कल्याणकारी युग के कारण सब कल्याणकारी
है। या कुछ अकल्याण भी हो जाता है? कोई मरता है तो उसमें कल्याण है? वो मर रहा है
और आप कल्याण कहेंगे- कल्याण है! बिजनेस में नुकसान हो गया- यह कल्याण हुआ? तो
नुकसान भी कल्याणकारी है! ज्ञान के पहले जो बातें कभी आपके पास नहीं आई, ज्ञान के
बाद आई तो उसमें कल्याण है? माया नीचे-ऊपर कर रही है, कल्याण है? इसमें क्या कल्याण
है? माया आपको अनुभवी बनाती है। अच्छा, तो ड्रामा में भी इतना ही अटल निश्चय हो।
चाहे देखने में अच्छी बात न भी हो लेकिन उसमें भी गुप्त अच्छाई क्या भरी हुई है, वो
परखना चाहिए। जैसे कई चीजें होती हैं, उनका बाहर से कवर (ढक्कन) अच्छा नहीं होता है
लेकिन अन्दर बहुत अच्छी चीज होती है। बाहर से देखेंगे तो लगेगा-पता नहीं क्या है?
लेकिन पहचान कर उसे खोलकर अन्दर देखेंगे तो बढ़िया चीज निकल आयेगी। तो ड्रामा की हर
बात को परखने की बुद्धि चाहिए। निश्चय की पहचान ऐसे समय पर आती है। परिस्थिति सामने
आवे और परिस्थिति के समय निश्चय की स्थिति, तब कहेंगे निश्चय बुद्धि विजयी। तो तीनों
में पक्का निश्चय चाहिए-बाप में, अपने आप में और ड्रामा में। दर्द में तड़प रहे हो
और कहेंगे-वाह ड्रामा वाह! उस समय चिल्लायेंगे या ‘वाह-वाह’ करेंगे? ‘हाय बाबा
बचाओ’-यह नहीं कहेंगे? जब निश्चय है, तो निश्चय का अर्थ ही है-संशय का नाम-निशान न
हो। कुछ भी हो जाए लेकिन अटल-अचल निश्चयबुद्धि, कोई भी परिस्थिति हलचल में नहीं ला
सकती। क्योंकि हलचल में आना अर्थात् कमजोर होना।
कोई भी चीज ज्यादा
हलचल में आ जाए, हिलती रहे-तो टूटेगी ना! तो संकल्प में भी हलचल नहीं। ऐसे अटल-अचल
आत्माए अटल राज्य के अधिकारी बनती हैं। सतयुग-त्रेता में अटल राज्य है, कोई उस
राज्य को टाल नहीं सकता। कोई और राजा लड़ाई करके राज्य छीन ले-यह हो ही नहीं सकता।
इसलिए यह अविनाशी अटल राज्य गाया हुआ है। अनेक जन्म यह अटल-अखण्ड राज्य करते हो।
लेकिन कौन अधिकारी बनता? जो यहां संगम पर अचल-अखण्ड रहते हैं, खण्डित नहीं होते। आज
निश्चय है, कल निश्चय डगमग हो जाए-उसको कहते हैं खण्डित। तो खण्डित चीज कभी पूज्य
नहीं होती। अगर मूर्ति भी कभी खण्डित हो जाए तो पूजा नहीं होगी। म्युजियम में भले
रखें लेकिन पूजा नहीं होगी। तो अखण्ड निश्चयबुद्धि आत्माए। ऐसे निश्चयबुद्धि सदा ही
विजय की खुशी में रहते हैं, उनके अन्दर सदा खुशी के बाजे बजते रहते हैं। आज की
दुनिया में भी जब विजय होती है तो बाजे बजते हैं ना। तो ऐसे सदा निश्चयबुद्धि आत्मा
के मन में सदा खुशी के बाजे-गाजे बजते रहते हैं। बार-बार बजाने नहीं पड़ते, आटोमेटिक
बजते रहते हैं। ऐसे अनुभव करते हो? या कभी बाजे-गाजे बन्द हो जाते हैं? भक्ति में
कहते हैं अनहद गीत-जिसकी हद नहीं होती, आटोमेटिक बजता रहे। तो अनहद गीत बजते रहें।
डबल विदेशियों के पास आटोमेटिक गीत बजते हैं? सदा बजते हैं या कभी-कभी? सदा बजते
हैं।
सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना
खुशी का अभी मिलता है। सम्भालना आता है ना। सम्भाल करने की विधि है-सदा बाप को साथ
रखना। अगर बाप सदा साथ है तो बाप का साथ ही बड़े ते बड़ा सेफ्टी का साधन है। तो खज़ाना
सेफ रखना आता है या माया चोरी करके जाती है? छिप-छिप कर आती तो नहीं है? वो भी चतुर
है। आने में वो भी कम नहीं है। लेकिन बाप का साथ माया को भगाने वाला है। तो आप कौनसी
आत्माए हो? निश्चयबुद्धि विजयी आत्माए हो! सदा विजय का तिलक मस्तक पर लगा हुआ है,
जिस तिलक को कोई मिटा नहीं सकता। अविनाशी तिलक है ना! या माया का हाथ आ जाता है तो
मिट जाता है? अच्छा!
सभी महान आत्मायें हो
ना। कहाँ के भी हो लेकिन इस समय तो सभी मधुबन निवासी हो। मधुबन कहने से खुशी होती
है ना। क्यों? मधुबन कहने से मधुबन का बाबा याद आता है। इसीलिए मधुबन निवासी बनना
पसन्द करते हो। सब चाहते हो ना-यहीं रह जायें। वो भी दिन आ जायेंगे। खटिया नहीं
मिलेगी, तकिया नहीं मिलेगा-फिर नींद कैसे आयेगी? तैयार हो ऐसे सोने के लिए? अपनी
बांह को ही तकिया बनाना पड़ेगा, पत्थर पर सोना पड़ेगा। कितने दिन सोयेंगे? अभ्यास सब
होना चाहिए। अगर साधन मिलता है तो भले सोओ, लेकिन नहीं मिले तो नींद नहीं आवे-ऐसा
अभ्यास नहीं हो। अभी तो किसी को खटिया चाहिए, किसी को अलग कमरा चाहिए। इसलिए ज्यादा
नहीं मंगाते। अगर सभी पट पर सोओ तो कितने आ सकते हैं? डबल संख्या हो सकती है ना।
फिर कोई नहीं कहेगा-टांग में दर्द है, कमर में दर्द है, बैठ नहीं सकती हूँ? क्या भी
मिले, खाना मिले, नहीं मिले-तैयार हो? वो भी पेपर आयेगा। डबल विदेशी पट में सो
सकेंगे? इतने पक्के होने चाहिए-अगर बिस्तरा मिला तो भी अच्छा, नहीं मिला तो भी अच्छा।
‘हाय-हाय’ नहीं करेंगे। सहन करने में माताए होशियार होती हैं। पाण्डव भी होशियार
हैं। जब इतना साथ होगा तो संगठन की खुशी सब-कुछ भुला देती है। तो निश्चय है ना।
ब्राह्मण जीवन अर्थात् मौज ही मौज-उठें तो भी मौज में, सोयें तो भी मौज में। अच्छा!
2 - अपनी श्रेष्ठ शान
में रहो तो परेशानियां समाप्त हो जायेंगी
सभी अपनी स्थूल सीट
पर सेट हो गये। सेट होने में खुशी होती है ना! अपसेट होना अच्छा नहीं लगता है और
सेट होना अच्छा लगता है। तो ऐसे ही सदा मन और बुद्धि की स्थिति की सीट पर सेट रहते
हो? या अपसेट भी होते हो? अपसेट होने से परेशानी होती है और सेट होने से खुशी होती
है, आराम मिलता है। तो सदा खुशी में रहते हो या थोड़ा-थोड़ा परेशान होते हो? अपनी शान
को भूलना अर्थात् परेशान होना। तो संगमयुग पर सबसे बड़े ते बड़ी आप ब्राह्मणों की शान
कौनसी है? ईश्वरीय शान है ना-सर्वश्रेष्ठ आत्माए हैं। तो सर्वश्रेष्ठ बनने का शान
है। तो याद रहता है कि हम ही ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे ऊंचे ते ऊंचे हैं। जब ये
शान याद रहता है तो कभी भी परेशान नहीं होंगे। चाहे कोई कितना भी परेशान करे लेकिन
आप नहीं होंगे क्योंकि आपका शान सबसे ऊंचा है। तो कभी-कभी व्यवहार में, कभी वातावरण
के कारण परेशान होते हो? परेशान 63 जन्म रहे। भटकना माना परेशान होना। भक्ति में
भटकते रहे ना! तो आधा कल्प परेशान रहने का अनुभव कर लिया। अभी तो शान में रहेंगे
ना!
देवताई शान से भी ऊंचा
ये ब्राह्मण शान है। देवताई ताज और तख्त से ऊंचा तख्त अभी है। तो तख्त पर बैठना आता
है या खिसक जाते हो नीचे? सभी को तख्त और तिलक मिला है, ताज भी मिला है। सेवा का
ताज मिला है। तो ताज माथे में रूकता है या उतर जाता है? तो तख्तनशीन आत्माए कभी
परेशान नहीं हो सकतीं। तख्त कोई छीन लेता है तो परेशान होते हैं। तो सदा अपनी
प्राप्तियों की स्मृति में रहो। सदा अपनी बुद्धि में सर्व प्राप्तियों की लिस्ट रखो।
कॉपी में नहीं, बुद्धि में रखो। अगर प्राप्तियों की लिस्ट सामने रहे तो सदा अपना
श्रेष्ठ शान स्वत: स्मृति में रहेगा। एक भी प्राप्ति को सामने रखो तो कितनी शक्ति
आती है! और सर्व प्राप्तियां स्मृति में रहें तो सर्वशक्तिवान स्थिति सहज हो जायेगी।
जब प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में होगी तो स्वत: ही मन से, दिल से गीत
गायेंगे-पाना था वो पा लिया...! सदा खुशी में नाचते रहेंगे-पा लिया! दुनिया वाले
पाने के लिए भटक रहे हैं और आप कहेंगे-पा लिया, ठिकाना मिल गया, भटकना समाप्त हो गया।
अभी मन व्यर्थ संकल्पों में भटकता है? जब भी मन या बुद्धि भटकती है तो यह गीत
गाओ-पाना था सो पा लिया...! बाप मिला सब-कुछ मिला। इसी नशे में रहो। समझा?
यह नहीं याद रखो कि
हम दिल्ली के हैं या हम बनारस के हैं। कभी भी प्रवृत्ति में या घर में रहते-यह नहीं
सोचो। सेवा-स्थान पर रह रहे हो। सेवा-स्थान समझने से न्यारे-प्यारे रहेंगे। घर समझने
से मेरा-मेरा आएगा और सेवा-स्थान है तो ट्रस्टी रहेंगे। गृहस्थी अर्थात् मेरापन और
ट्रस्टी अर्थात् तेरा। सेवा-स्थान समझने से सदा सेवा याद रहेगी। प्रवृत्ति है तो
प्रवृत्ति को निभाने में ही लग जायेंगे। सेवाधारी सदा न्यारे रहेंगे। सब-कुछ बाप के
हवाले कर दिया। इसलिए सब तेरा। जब संकल्प कर लिया कि मैं बाबा की और बाबा मेरा, तो
जो संकल्प है वही साकार रूप में लाना है। सिर्फ संकल्प नहीं लेकिन साकार स्वरूप
में, हर कर्म में ‘‘मेरा बाबा’’ मानकर के चलना। मेरा बाबा है बीज, बीज में सारा
वृक्ष समाया हुआ है। अच्छा!
3 - डबल हीरो हैं -
इस पोजीशन की स्मृति से हर कर्म श्रेष्ठ होगा
सभी अपने को इस ड्रामा
के अन्दर पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? जैसे बाप ऊंचे
ते ऊंचा है, ऐसे ऊंचे ते ऊंचा पार्ट बजाने वाली आप श्रेष्ठ आत्माए हो। डबल हीरो हो।
हीरे तुल्य जीवन भी है और हीरो पार्टधारी भी हो। तो कितना नशा हर कर्म में होना
चाहिए! अगर स्मृति में यह श्रेष्ठ पार्ट है, तो जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति
होती है और जैसी स्थिति होगी वैसे कर्म होंगे। तो सदा यह स्मृति रहती है? जैसे शरीर
रूप में जो भी हो, जैसा भी हो-वह सदा याद रहता है ना। तो आत्मा का ऑक्यूपेशन, आत्मा
का स्वरूप जो है, जैसा है-वह भी याद रहना चाहिए ना। शरीर विनाशी है लेकिन उसकी याद
अविनाशी रहती है। आत्मा अविनाशी है, तो उसकी याद भी अविनाशी रहती है? जैसे यह आदत
पड़ गई है कि मैं शरीर हूँ। है उल्टा, रांग है। लेकिन आदत तो पक्की हो गई। तो भूलने
चाहते भी नहीं भूलता। वैसे यथार्थ अपना स्वरूप भी ऐसे पक्का होना चाहिए। शरीर का
ऑक्यूपेशन स्वप्न में भी याद रहता है। कोई क्लर्क है, कोई वकील है, बिजनेस करने वाला
है-तो भूलता नहीं। ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का ऑक्यूपेशन कि मैं हीरो पार्टधारी हूँ-यह
पक्का होना चाहिए और नेचुरल होना चाहिए। तो चेक करो कि ऐसे नेचुरल जीवन है?
जो नेचुरल चीज होती
है वह सदा होती है और जो अननेचुरल (अस्वाभाविक) होती है वह कभी-कभी होती है। तो यह
स्मृति सदा रहनी चाहिये कि हम डबल हीरो हैं। इस नशे में नुकसान नहीं है, दूसरे नशे
में नुकसान है। यह हद का नशा नहीं है, बेहद का रूहानी नशा है। उस नशे में भी सब बातें
स्वत: ही भूल जाती हैं, भूलनी नहीं पड़ती हैं। यह रूहानी नशा जब होता है तो हद की
बातें भूल जाती हैं, भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। जब यह स्मृति रहती है कि
मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ-तो स्वत: ही हर कर्म श्रेष्ठ होता है। हर कर्म से सभी
को अनुभव होगा कि यह कोई विशेष आत्मा है, साधारण नहीं। ऐसे समझते हो? वा जैसे सब
हैं वैसे हम हैं? न्यारे लगते हो? चाहे कितने भी अज्ञानी हों लेकिन अनेक अज्ञानियों
के बीच आप ‘ज्ञानी आत्मा’ प्यारी अनुभव हो। इसको कहा जाता है हीरो पार्टधारी। ऐसे
है? दूसरे भी अनुभव करें। ऐसे नहीं-सिर्फ अपने को समझें। अन्दर से समझें कि ये
न्यारे हैं। न चाहते हुए भी सभी आपके आगे अपना सिर झुकायेंगे।
वरदान:-
सर्व
प्राप्तियों को सामने रख श्रेष्ठ शान में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव
हम सर्व श्रेष्ठ
आत्मायें हैं, ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं - यह शान सर्वश्रेष्ठ शान है, जो इस
श्रेष्ठ शान की सीट पर रहते हैं वह कभी भी परेशान नहीं हो सकते। देवताई शान से भी
ऊंचा ये ब्राह्मणों का शान है। सर्व प्राप्तियों की लिस्ट सामने रखो तो अपना
श्रेष्ठ शान सदा स्मृति में रहेगा और यही गीत गाते रहेंगे कि पाना था वो पा लिया....
सर्व प्राप्तियों की स्मृति से मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्थिति सहज बन जायेगी।
स्लोगन:-
योगी और
पवित्र जीवन ही सर्व प्राप्तियों का आधार है।