03-06-11  प्रात: मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

“मीठे बच्चे - अपने को आत्मा समझ आत्मा से बात करो तो फूल में खुशबू आती जायेगी, देह-अभिमान की बदबू निकल जायेगी"

 

प्रश्नः- अपनी खुशबू चारों ओर फैलाने वाले सच्चे फूल वा परवाने कौन हैं?

 

उत्तर:- सच्चे फूल वह जो अनेकों को आप समान खुशबूदार फूल बनायें। श्रीमत पर चल शमा पर जल मरने वाले अर्थात् पूरा-पूरा बलिहार जाने वाले, जीते जी मरने वाले सच्चे परवानों की वा ऐसे फूलों की खुशबू स्वत: ही चारों ओर फैलती है।

 

गीत:- महफिल में जल उठी शमा...

 

ओम् शान्ति। जैसे परवानों ने गीत सुना। परवाने कहो वा फूल कहो बात एक ही है। बच्चे समझते हैं हम सचमुच परवाने बने हैं या सिर्फ फेरी पहन कर चले जाते हैं? शमा को भूल जाते हैं। हर एक को अपनी दिल से पूछना है कि हम कहाँ तक फूल बने हैं और ज्ञान की खुशबू फैलाते हैं? अपने जैसा फूल किसको बनाया है? यह तो बच्चे जानते हैं - ज्ञान का सागर बाप है, उनकी कितनी खुशबू है? जो अच्छे फूल वा परवाने हैं उनकी जरूर अच्छी खुशबू आयेगी। वह सदैव खुश रहेंगे औरों को भी आप समान फूल वा परवाने बनायेंगे। फूल नहीं तो कली बनायेंगे। पूरे परवाने वह हैं जो जीते जी मरते हैं। बलि चढ़ते हैं अथवा ईश्वरीय औलाद बनते हैं। कोई साहूकार, किसी गरीब के बच्चे को गोद में लेते हैं तो बच्चों को उस साहूकार की गोद में आने से फिर वही माँ-बाप याद आते रहते हैं और गरीब की याद भूल जायेगी। जानते हैं कि हमारे माँ-बाप गरीब हैं परन्तु याद साहूकार माँ-बाप को करेंगे, जिससे धन मिलता है। साधू-संन्यासी आदि हैं वह साधना करते हैं मुक्तिधाम में जायें। सब मुक्ति के लिए ही पुरूषार्थ करते हैं परन्तु मुक्ति का अर्थ नहीं समझते। कोई कहते हैं ज्योति ज्योत समायेंगे। कोई समझते हैं पार निर्वाणधाम जाते हैं। निर्वाण-धाम में जाने को ज्योति में समाना या मिल जाना नहीं कहा जाता। तुम समझते हो - हम दूर देश के रहने वाले हैं। इस गन्दी दुनिया में रहकर क्या करेंगे। बच्चों को समझाया है जब कोई से मिलो तो यह समझाना पड़े कि यह बना बनाया ड्रामा है। सतयुग त्रेता... फिर संगमयुग। यह भी समझाया है सतयुग के बाद त्रेता का संगम होता है। वह युग फिरता है और यह कल्प फिरता है। बाप युगे-युगे नहीं आते हैं। जैसे मनुष्य समझते हैं। बाप कहते हैं - जब, सब तमोप्रधान बन जाते हैं, कलियुग का अन्त होता है, उस कल्प के संगम पर आता हूँ। युग पूरा होता है तो कलायें कम होती हैं। यह तो जब पूरा ग्रहण लग जाता है तब मैं आता हूँ। मैं युगे-युगे नहीं आता हूँ। यह बाप बैठ परवानों को समझाते हैं। परवानों में भी नम्बरवार हैं। कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहनकर चले जाते हैं। श्रीमत पर तुम ही चल सकते हो। अगर कहाँ भी श्रीमत पर न चले तो माया पिछाड़ती रहेगी। श्रीमत का बहुत गायन है। श्रीमत भगवत गीता कहा जाता है। शास्त्र तो बाद में बैठ जिन्होंने बनाये तो उस समय बुद्धि रजो होने कारण समझा कि कृष्ण द्वापर में आया। मैं आता ही तब हूँ जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है। बाकी सब धर्म रहते हैं। ऐसे नहीं कि वह देवता धर्म वाले मनुष्य गुम हो जाते हैं परन्तु यह भूल जाते हैं कि हम देवी-देवता धर्म के थे। अपना हिन्दू धर्म कह देते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है। जब भूलें तब तो फिर मैं आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना करूँ। यह एक ही बाप है जो आकर दु:खधाम से सुखधाम का मालिक बनाते हैं। तुम कहेंगे अभी हम नर्क के मालिक हैं। दुनिया को तमोप्रधान तो बनना ही है। सब पतित हैं तब तो पावन के आगे जाकर नमस्ते करते हैं। अब बाप कहते हैं, श्रीमत पर चलो। जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर बहुत है। नहीं तो त्राहि-त्राहि करना पड़ेगा। वह तो समझते हैं, आत्मा निर्लेप है परन्तु नहीं, आत्मा ही सुख-दु:ख देखती है। यह कोई समझते नहीं। बाबा बार-बार समझाते हैं - मंजिल बहुत भारी है। इस समय तुम पुरूषार्थ करते हो जबकि दु:खी हो। जानते हो, सतयुग में हम बहुत सुखी रहेंगे। वहाँ यह पता नहीं रहेगा कि हमको फिर दु:खधाम में जाना है। हम सुख में कैसे आये हैं, कितने जन्म लेंगे, कुछ भी नहीं जानते। अभी तुम जानते हो तो ऊंच कौन ठहरे? तुम ईश्वर की औलाद होने के कारण जैसे ईश्वर नॉलेजफुल है, ऐसे तुम भी नॉलेजफुल ठहरे। अभी तुम ईश्वरीय औलाद हो परन्तु नम्बरवार। कोई तो बड़े मस्त हैं, समझते हैं हम बाबा की मत पर चलते रहते हैं। जितना मत पर चलेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। बाप सम्मुख बैठ बच्चों को समझाते हैं। बच्चे देह-अभिमान छोड़ दो, देही-अभिमानी बनो, निरन्तर याद करो। बाप तो सदैव है ही सुखदाता। ऐसे नहीं कि दु:ख भी बाप ही देते हैं। बाप कभी बच्चों को दु:ख नहीं देंगे। बच्चे अपनी उल्टी चलन से दु:ख पाते हैं। बाप दु:ख नहीं दे सकते। कहते हैं हे भगवान बच्चा दो तो कुल वृद्धि को पायेगा। बच्चे को बहुत प्यार करते हैं। बाकी दु:ख अपने कर्मो का ही पाते हैं। अब बाप तुम बच्चों को बहुत सुखी बनाते हैं। कहते हैं श्रीमत पर चलो। आसुरी मत पर चलने से तुम दु:ख पाते हो। बच्चे, बाप अथवा टीचर अथवा बड़ों की आज्ञा न मानने से दु:खी होते हैं। दु:खदाई खुद बनते हैं, माया के बन पड़ते हैं। ईश्वर की मत अब ही तुमको मिलती है। ईश्वरीय मत की रिजल्ट 21 जन्म चलती है फिर आधाकल्प माया की मत पर चलते हैं। ईश्वर एक ही बार आकर मत देते हैं। माया तो आधाकल्प से मत देती ही रहती है। बाप, एक ही बार मत देते हैं। माया की मत पर चलते 100 परसेन्ट दुर्भाग्यशाली बन पड़ते हैं। तो जो अच्छे-अच्छे फूल हैं वह उसी खुशी में सदैव मस्त रहेंगे। नम्बरवार हैं ना। परवाने कोई तो बाप के बन श्रीमत पर चल पड़ते हैं। गरीब ही अपना पोतामेल लिखते हैं। साहूकारों को डर लगता है कि यहाँ हमारे पैसे ले न लेवें। साहूकारों के लिए बड़ा मुश्किल है। बाप कहते हैं - मैं गरीब निवाज हूँ। दान भी हमेशा गरीबों को ही दिया जाता है। सुदामा की बात है ना - चावल चपटी ले उनको महल दे दिये। तुम हो गरीब। समझो कोई के पास 25-50 रूपये हैं, उनमें से 20-25 पैसे देता है। साहूकार 50 हजार दे तो भी इक्वल हो जाता है इसलिए गरीब निवाज़ नाम गाया हुआ है। साहूकार लोग भी कहते हैं, हमको फुर्सत नहीं मिलती क्योंकि पूरा निश्चय नहीं हैं। तुम हो गरीब। गरीबों को धन मिलने से खुशी होती है। बाबा ने समझाया है यहाँ के गरीब वहाँ साहूकार बन जाते हैं और यहाँ के साहूकार वहाँ गरीब बन जाते हैं।

 

कई कहते हैं, हम यज्ञ का ख्याल रखें वा कुटुम्ब का ख्याल रखें? बाबा कहते हैं तुम अपने कुटुम्ब की बहुत अच्छी सम्भाल करो। अच्छा है जो तुम इस समय गरीब हो। साहूकार होते तो बाप से पूरा वर्सा ले नहीं सकते। संन्यासी ऐसे नहीं कहेंगे। वह तो पैसे लेकर अपनी जागीर बनाते हैं। शिवबाबा थोड़ेही बनायेंगे। यह मकान आदि सब तुम बच्चों ने अपने लिए बनाये हैं। यह किसकी जागीर नहीं, यह तो टैप्रेरी है क्योंकि अन्त समय बच्चों को यहाँ आकर रहना है। हमारा यादगार भी यहाँ है। तो पिछाड़ी में यहाँ आकर विश्राम लेंगे। बाप के पास भागेंगे वह जो योगयुक्त होंगे। उन्हों को मदद भी मिलेगी। बाप की बहुत मदद मिलती है। तुमको यहाँ बैठ विनाश देखना है। जैसे शुरू में बाबा ने तुम बच्चों को बहलाया है फिर पिछाड़ी में बहलाने शुरू करेंगे। बहुत प्यार करेंगे। जैसे वैकुण्ठ में बैठे हैं, बहुत नजदीक होते जायेंगे। यह तो समझते हैं कि हम यात्रा पर हैं। थोड़े समय के बाद विनाश होगा। तुम बहुत खुश हो जायेंगे। बस हम जाकर प्रिन्स बनेंगे। किसम-किसम के फूल हैं। हर एक बच्चे को समझना चाहिए - मैं कितनी ज्ञान की खुशबू दे रहा हूँ! किसको ज्ञान और योग की शिक्षा देता हूँ! जो करते हैं वह अन्दर प्रफुल्लित रहते हैं। बाबा जान जाते हैं कि यह किस अवस्था में रहते हैं। इनकी अवस्था कहाँ तक गैलप करेगी! गैलप उनकी करेगी जो परवाना बन चुका होगा। बाप समझाते हैं - माया के तूफान तो बहुत आयेंगे, उनसे अपने को बचाना है। अभी यह राजयोग परमपिता परमात्मा आकर सिखलाते हैं। परमात्मा आकर आत्माओं को समझाते हैं। आत्मा को ज्ञान है - मैं आत्मा अपने इस ब्रदर आत्मा को समझाती हूँ। जैसे परमात्मा बाप हम आत्मा बच्चों को समझाते हैं। हम भी आत्मा हैं। बाबा हमको सिखलाते हैं, हम फिर इन आत्माओं को समझाता हूँ परन्तु यह आत्मा-पन का निश्चय न होने से अपने को मनुष्य समझ, मनुष्य को ही समझाते हैं। मैं परम आत्मा तुम आत्माओं से बात करता हूँ। तुम आत्मा को सुनाते हो। ऐसे तुम देही-अभिमानी होकर किसको सुनायेंगे तो वह तीर झट लगेगा। अगर खुद ही देही-अभिमानी नहीं रह सकते तो धारणा करा नहीं सकते। यह बड़ी ऊंची मंजिल है। बुद्धि में यह रहना चाहिए कि हम इन आरगन्स से सुनते हैं। बाप कहते हैं - हम आत्माओं (बच्चों) से बात करते हैं। बाबा का फरमान है अशरीरी (नंगे) बनो। देह-अभिमान छोड़ो, मेरे को याद करो - यह बुद्धि में आना चाहिए। हम आत्मा से बात करता हूँ, शरीर से नहीं। भल फीमेल है, उनकी भी आत्मा से बात करते हैं। तुम बच्चे समझते हो - हम बाबा के तो बन गये परन्तु नहीं, इसमें बड़ी सूक्ष्म बुद्धि चलती है। मैं आत्मा हूँ, मैं इनकी आत्मा को समझाता हूँ। यह हमारा भाई है, इनको रास्ता बताना है। आत्मा समझ रही है। ऐसे समझो तब आत्मा को तीर लगे। देह को देखकर सुनाते हो तो आत्मा सुनती नहीं है। पहले यह वारनिंग दो कि मैं आत्मा से बात करता हूँ। आत्मा को न तो मेल, न फीमेल कहेंगे। आत्मा तो न्यारी है। मेल-फीमेल शरीर से नाम पड़ता है। जैसे ब्रह्मा-सरस्वती को मेल-फीमेल कहेंगे। शिवबाबा को न मेल, न फीमेल कहेंगे। तो बाप आत्माओं को समझाते हैं। बड़ी मंजिल है। प्वाइंट बड़ी कड़ी है। आत्मा को इन्जेक्शन लगाना है, तब देह-अभिमान टूटता है। नहीं तो खुशबू नहीं आयेगी, ताकत नहीं रहेगी। बात बहुत छोटी है। हम आत्मा से बात कर रहे हैं। बाप कहते हैं - तुमको वापिस जाना है इसलिए देही-अभिमानी बनो। मनमनाभव। फिर आटोमेटिकली मध्याजी भव आ जाता है। अभी बड़ी सूक्ष्म बुद्धि मिलती है। सवेरे में बैठ विचार सागर मंथन करना है। दिन में तो सर्विस करनी है क्योंकि कर्मयोगी हैं। लिखा भी हुआ है नींद को जीतने वाले बनो। रात को जागकर कमाई करो। दिन में तो माया का बड़ा बखेरा है। अमृतवेले वायुमण्डल अच्छा है। बाबा को यह तो लिखते नहीं कि फलाने टाइम पर उठकर विचार सागर मंथन करते हैं। बड़ी मेहनत है। विश्व के तुम मालिक बनते हो। यहाँ तो हद के मालिक हो। पानी की हद पर भी कितना झगड़ा चलता रहता है। दुश्मनी लगी पड़ी है। आपस में एक दो को ब्रदर्स समझते नहीं। सिर्फ ऐसे ही कह देते हैं कि हम सब एक हैं। एक तो हो न सकें। अनेक आत्मायें हैं, सबका अपना-अपना पार्ट है। तुम यहाँ बैठे हो। कल्प पहले भी बैठे होंगे। पत्ता हिला ड्रामा अनुसार। ऐसे नहीं पत्ते-पत्ते को परमात्मा हिलाते हैं। ऐसी-ऐसी बातें समझकर फिर समझाओ। हर एक समझ सकते हैं कि हम परवाना बने हैं! हम बाबा की मत पर चलते रहते हैं! फालतू बातें तो नहीं करते हैं! कहाँ अपना पैसा पाप की तरफ तो नहीं लगा रहे हैं? अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) स्वयं को आत्मा समझ आत्मा से बात करनी है। देही-अभिमानी बनकर सुनने-सुनाने से धारणा अच्छी होगी।

 

2) नींद को जीतने वाला बनना है, रात को जागकर कमाई करनी है। विचार सागर मंथन करना है। किसी भी फालतू बातों में अपना समय नहीं गँवाना है।

 

वरदान:- लाइट हाउस की स्थिति द्वारा पाप कर्मो को समाप्त करने वाले पुण्य आत्मा भव

 

जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है। तो सदा लाइट हाउस स्थिति में रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती, सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती। जहाँ पाप होता है वहाँ बाप की याद नहीं होती। तो दृढ़ संकल्प करो कि मैं पुण्य आत्मा हूँ, पाप मेरे सामने आ नहीं सकता। स्वप्न वा संकल्प में भी पाप को आने न दो।

 

स्लोगन:- जो हर दृश्य को साक्षी होकर देखते हैं वही सदा हर्षित रहते हैं।