ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझाते हैं, यह तो जरूर पक्का निश्चय हो गया होगा कि
हम आत्मा हैं और परमात्मा बाप के बच्चे हैं, तो सभी ब्रदर्स ही हैं। ब्रदर्स को बाप
ने डायरेक्शन दिया है कि मुझ पतित-पावन बाप को याद करो। तो याद करते हो या बुद्धि
का योग कहाँ और जगह भटकता है? माया भटकायेगी जरूर, न चाहते हुए भी तुम्हारी बुद्धि
कहाँ न कहाँ भागती रहेगी। बच्चों के अन्दर चलना चाहिए कि बाबा ने हमको सृष्टि चक्र
का ज्ञान दिया है, 84 जन्मों की कहानी पढ़ाई है। यह 84 का चक्र पूरा हुआ है। हम फिर
से घर जाते हैं, अनेक बार हम याद की यात्रा से पवित्र बन करके घर गये हैं। तुम्हारी
बुद्धि में आता है कि हम सब भाई-भाई हैं, इसमें जिस्म की कोई बात ही नहीं है। तुम
जिस्म को याद नहीं करो। सिर्फ हम आत्मा हैं - हम ही पावन, सतोप्रधान थे, अब पतित बने
हैं तो हीरे जैसा जीवन बनाने वाले बाप को खुशी से याद करना है, जिससे जंक निकल जाये।
तो बाप समझाते हैं बच्चे पहले-पहले अपने को आत्मा समझो, यह भी ज्ञान है फिर बाप को
याद करो - यह है विज्ञान क्योंकि आत्मा को ज्ञान से परे विज्ञान में, शान्त घर में
जाना है। आत्मा का स्वधर्म भी शान्त है और घर भी शान्त है। तो पहले हमको वहाँ
पहुंचने का है। बाबा भी वहाँ से आये हुए हैं। परन्तु मनुष्यों को इन सब बातों का पता
नहीं है।
यह पारलौकिक बाप सन्मुख बैठ करके समझाते हैं, बच्चों मैं परमधाम से तुम बच्चों
के पास आया हुआ हूँ, ड्रामा के प्लैन अनुसार। क्यों आया हूँ? तुमको वापस ले जाने के
लिये। अभी तुम पतित विकारी हो गये हो। जन्म-जन्मान्तर विकार से ही पैदा हुए हो
इसलिए भ्रष्टाचारी कहा जाता है। तो हम भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी कैसे बनें - यह
बाप समझाते हैं, बच्चे मुझे याद करो तो पवित्र श्रेष्ठाचारी बन जायेंगे। इस याद में
तुम सबकुछ कर सकते हो। ऐसे नहीं कि धन्धाधोरी नहीं कर सकते हो।
बच्चे, बाप से पूछते हैं बाबा माला के दाने कौन बनेंगे? बच्चे, माला का दाना वही
बनेंगे जो कर्मातीत अवस्था को पायेंगे। जिसको अन्त में कुछ भी याद न पड़े। कोई बहुत
धनवान हैं, अनेक कारखाने आदि हैं... तो वह सब भूलना पड़े। तुम्हारे पास तो कुछ भी
नहीं है। तुम जानते हो हम बाप के बच्चे हैं, भाई हैं। हमारा किसी में भी ममत्व नहीं
है। मेरा-मेरा तो नहीं है ना! बस यह भाई है, यही कनेक्शन है और कोई कनेक्शन नहीं।
इसे कहा जाता है रूहानी कनेक्शन। इतनी सारी आयु तो देह ही याद आई, आत्मा तो किसको
याद ही नहीं आई। यह भी ड्रामा बना हुआ है, तो यह बातें बाप समझाते हैं और पावन बनने
के लिए पुरुषार्थ कराते हैं। बाबा तुम बच्चों को टाइम तो देते हैं सिर्फ 8 घण्टा
मुझे याद करो। वह है हद की सर्विस, यह है सारे वर्ल्ड की सर्विस। जरूर खायेंगे,
पियेंगे, सोयेंगे, घूमेंगे.... सारा दिन तो कोई याद भी नहीं कर सकते। तुम बरोबर अभी
बेहद की सर्विस करते हो। जैसे बाप विचार सागर मंथन करते हैं, ऐसे तुम बच्चों को भी
मंथन करना सिखलाते हैं, करन-करावनहार है ना, तो तुमको करके ही सिखलाते हैं।
पुरुषार्थ करते-करते तुम्हारी विजयी माला बन जायेगी। सतयुग त्रेता में जो भी आते
हैं वह विजयी होते हैं। फिर सब एक्टर्स इस नाटक में पार्ट बजाने के लिए नम्बरवार आते
हैं। सब इकट्ठे तो नहीं आ जायेंगे। तुम सभी एक्टर्स के रहने का स्थान ब्रह्म लोक
है, वहाँ से यहाँ आ करके शरीर लेते हो। यह सब बातें बहुत सहज हैं, जो तुम बच्चों को
ही याद रहती हैं। तुम्हारा घर स्वीट होम, साइलेन्स होम है। दूसरा कोई भी अपने घर को
नहीं जानता है। वह तो कह देते हैं हम लीन हो जायेंगे। जैसे सागर से बुदबुदा निकलता
है फिर उसी में समा जाता है, ऐसे हम भी उस ब्रह्म में लीन हो जाते हैं.. फिर कह देते
हैं जहाँ देखो वहाँ ब्रह्म ही ब्रह्म है। वो ब्रह्म को ही ईश्वर समझते हैं इसलिए
तुम्हारी बातें उनकी बुद्धि में बैठती नहीं हैं। तुम उनको उल्टा समझेंगे वो तुमको
उल्टा समझेंगे क्योंकि उनका धर्म ही अपना है। परन्तु तुम जानते हो सभी आत्मायें
शान्तिधाम में जरूर जायेंगी। बाकी हर एक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। इसको
ही तो वन्डर कहते हैं। तुम बच्चे अभी कितनी महीनता में जाते हो, आत्मा कितनी छोटी
है, कैसे पार्ट बजाती है। तो यह ज्ञान जैसे बाप के पास है, वह ज्ञान का सागर है, ऐसे
तुम बच्चों के पास भी है, तुम अभी ऐसे ज्ञानवान बनते जाते हो। वह हैं भक्तिवान, तुम
हो ज्ञानवान। भक्तिवान माना रात के रहने वाले और ज्ञानवान माना दिन के रहने वाले।
आधाकल्प तुम सुखधाम में रहते हो, आधाकल्प दु:खधाम में रहते हो, इसको कहा जाता है
दूरांदेशी, तुम्हारी बुद्धि अभी बहुत दूर-दूर जाती है - हम आत्मा स्वीट होम,
ब्रह्माण्ड के रहने वाले हैं। बाप इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, क्योंकि वह
नॉलेजफुल है, उनको झाड़ की नॉलेज है। तुम अभी शरीर का भान मिटाने के लिये अपने को
आत्मा समझते हो। दूसरी कोई भी चीज़ याद न आये। पूरा आत्म-अभिमानी बन जाना है। मैं
आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, मेरे पास कुछ है ही नहीं जो आत्मा को याद पड़े। गाया जाता
है अन्तकाल जो जो सिमरे, तो अगर कोई भी चीज़ होगी तो जरूर वह याद आयेगी। यह विचार
करने की बात है। अगर कुछ भी है, कोई मित्र सम्बन्धी आदि भी हैं तो याद आयेगा जरूर।
तुमने तो अपना सब कुछ शिवबाबा को दे दिया, फिर ऐसे नहीं समझो कि यह मेरी चीज़ है।
जब बाबा को दे दिया फिर तुमको याद ही क्यों आये, तुम भूल जाओ। अगर वह याद पड़ता रहता
है तो वो भी पिछाड़ी में नुकसान कर देगा। अभी तुमको यह सब नई-नई बातें मिलती हैं।
पुरानी कोई भी चीज़ तुम्हारे पास नहीं है। जैसे पुरानी चीजें सब करनीघोर को दे देते
हैं ना। ऐसे तुम भी अपना सब कुछ दे देते हो फिर याद नहीं आनी चाहिए। बस यही याद रहे
कि मैं भाई (आत्मा) हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, मेरे पास कुछ भी है ही नहीं। शरीर भी
नहीं है। फिर नई दुनिया में सब नई चीज़ें मिलेंगी। वहाँ तो हीरे जवाहरात के महलों
में जायेंगे। तो वह भविष्य की बात हुई। बाबा पूछते हैं बच्चे तुम क्या बनेंगे, तो
बच्चे कहते हैं बाबा हम तो नारायण बनेंगे। यह तो खुशी की बात हुई ना। परन्तु अभी जब
कोई भी पुरानी चीज़ याद न आये तब माला का दाना बनेंगे। 108 की माला तो राजाई की है।
मन्दिरों में फिर 16108 की भी माला रखी होती है। तो माला के दाने बहुत ही बनेंगे।
जितना जल्दी आयेंगे उतना सुख पायेंगे। जो पीछे आते हैं उन्होंने इतना सुख नहीं पाया
है, उनके लिए थोड़ा टाइम सुख है तो दु:ख भी कम ही पायेंगे।
तो बाबा कहते हैं बच्चे यह ख्याल रखो कि पिछाड़ी में कुछ भी याद न आये। जो अर्पण
किया हुआ है वह भी याद नहीं आना चाहिए। बाप कहते हैं मैं ऐसी कोई चीज़ नहीं लेता
हूँ जो रह जावे और उसका वहाँ भरकर देना पड़े, क्योंकि मैं गरीब निवाज़ हूँ। कई हैं
जो देकरके फिर जब कोई कारण से भागन्ती हो जाते हैं तो मांगने लग पड़ते हैं। माया
उनको एकदम डस लेती है। नहीं तो कहते हैं चाहे मारो चाहे प्यार करो, यह मस्ताना
तुम्हारा दर कभी नहीं छोड़ेगा। कभी नहीं भूलेगा। तुम बच्चे यहाँ नर से नारायण बनने
के लिये आये हो, तुम्हें कितना बड़ा वर्सा मिलता है, फिर यह क्यों कहते हो कि हम
देते हैं। तुम तो लेते हो ना। कौन कहता है तुम कुछ दो। बाकी कोई एक पैसा भी देंगे
तो वहाँ उनके लिए महल बन जायेगा। जैसे सुदामा ने चावल मुट्ठी दी। तो बच्चे सुदामा
मिसल दाल चावल ले आते हैं, समझते हैं कि हमको महल मिल जायेंगे। ऐसे बच्चों पर बाप
बहुत खुश होते हैं वाह! इनके नई दुनिया में महल बनने वाले हैं क्योंकि बहुत प्यार
और सद्भावना से ले आते हैं। अहो भाग्य ऐसे बच्चों का, बहुत ऊंचा पद पायेंगे।
अभी ड्रामा के प्लैन अनुसार बाबा और तुम बच्चों की कदम-कदम वही चाल चलती है जो
कल्प-कल्प चली है। तुम्हारे कदम-कदम में पदम हैं। देवताओं के पैर में पदम दिखाते
हैं तो इसका भी कोई अर्थ होगा ना। अभी तुम्हारी पदमों की आमदनी होती रहती है। तुम
बाबा के पास पदमापदमपति बनने के लिए आते हो। तो तुम इतने महान, महान, महान भाग्यशाली
हो परन्तु उसमें भी फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं। तुम्हारा पुरुषार्थ
कल्प-कल्प वही ड्रामा के प्लैन अनुसार चलता है, जैसेकि ड्रामा तुमको पुरुषार्थ कराता
रहता है। ईश्वर भी ड्रामा के अनुसार तुम्हें मत देते हैं। तो ड्रामा के वश हुए ना।
फिर यह ड्रामा किसके वश है? बच्चे, ड्रामा अनादि बना हुआ है, यह कोई नहीं कह सकता
है कि ड्रामा कब बना? यह तो चलता ही रहता है। ड्रामा में नम्बरवन मत मिलती है ईश्वर
की इसलिए उसको कहा जाता है - ईश्वरीय मत, जो तुम्हें देवता बनाती है और मनुष्य की
मत छी-छी बनाती है। ईश्वरीय मत से तुम मनुष्य से देवता बनते हो। फिर 21 जन्मों के
बाद मनुष्य मत पर मनुष्य बन जाते हो। अभी यह गीता का एपीसोड संगमयुग है जबकि दुनिया
बदलती है। तो यह बच्चों की बुद्धि में होना चाहिए और बच्चों को बहुत-बहुत मीठा बनना
चाहिए। प्यार से चलना होता है। जो बच्चे शान्त और मीठे हैं, उनका पद भी ऊंचा होगा।
अभी तुम्हें ईश्वरीय बुद्धि मिली है, तुम समझते हो कि हम बेहद के बाबा की सन्तान बने
हैं, बाबा से वर्सा ले रहे हैं। तो अथाह खुशी होनी चाहिए। बाप कहते हैं बच्चे
स्वर्ग से भी यहाँ तुम्हारा बहुत-बहुत ऊंच पद है। बाप सिर्फ तुमको पढ़ाते हैं।
भगवानुवाच, मैं तुमको डबल सिरताज राजाओं का राजा बनाता हूँ, तो अपनी तकदीर पर तुमको
बहुत खुश रहना चाहिए। वाह! बाबा आ करके क्या हमारी तकदीर बनाते हैं, जो पत्थर जैसे
जीवन को हीरे जैसा बना देते हैं! अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऊंच पद पाने के लिए बहुत-बहुत शान्तचित्त रहना है, मीठा बनना है, सबके
साथ प्यार से चलना है।
2) जो कुछ बाबा को अर्पण कर दिया, उसे भूल जाना है, उसकी याद भी न आये। कभी यह
संकल्प भी न आये कि हम बाबा को देते हैं।