ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। ऐसे तो लौकिक माँ-बाप की दुआयें अनेक लेते हैं। बच्चे पांव
पड़ते हैं माँ-बाप आशीर्वाद करते हैं। यह ढिंढोरा लौकिक माँ-बाप के लिए नहीं पिटाया
जाता है। ढिंढोरा अर्थात् जिसको बहुत सुनें। यह तो बेहद बाप के लिए ही गाया जाता है
तुम मात-पिता हम बालक तेरे... तुम्हारी कृपा वा दुआ से सुख घनेरे। भारत में ही यह
महिमा गाई जाती है। जरूर भारत में ही यह हुआ है तब तो गाया जाता है। एकदम बेहद में
चला जाना चाहिए। बुद्धि कहती है स्वर्ग का रचयिता बाप एक ही है। स्वर्ग में तो सभी
सुख हैं। वहाँ दु:ख का नाम-निशान हो नहीं सकता इसलिए ही गाते हैं कि दु:ख में सिमरण
सब करें सुख में करे न कोई। आधाकल्प दु:ख है तो सभी सिमरण करते हैं। सतयुग में अथाह
सुख हैं, तो वहाँ सिमरण नहीं करते हैं। मनुष्य पत्थरबुद्धि होने कारण कुछ भी समझते
नहीं हैं। कलियुग में तो अथाह दु:ख हैं। कितनी मारामारी है। कितने भी पढ़े लिखे
विद्धान हैं, परन्तु इन गीतों का अर्थ बिल्कुल नहीं जानते हैं। गाते हैं तुम मात
पिता... परन्तु समझते नहीं हैं कि कौन से माता पिता की महिमा है। यह तो बहुतों की
बात है ना। ईश्वर की सन्तान तो सभी हैं, परन्तु इस समय तो सभी दु:खी हैं। सुख घनेरे
तो किसको नहीं हैं। कृपा से तो सुख मिलना चाहिए। अकृपा से दु:ख होता है। बाप तो
कृपालु गाया हुआ है। साधू सन्तों को भी कृपालु कहते हैं।
अब तुम बच्चे जानते हो भक्ति मार्ग में गाते हैं तुम मात पिता... यह बिल्कुल
यथार्थ है, परन्तु कोई बुद्धिवान होगा तो पूछेगा कि परमात्मा को तो गॉड फादर कहा
जाता है, उनको फिर मदर कैसे कहते हैं? तो उनकी बुद्धि जगत अम्बा के तरफ जायेगी। जब
जगत अम्बा की तरफ बुद्धि जाती है तो फिर जगत पिता के तरफ भी बुद्धि जानी चाहिए। अब
ब्रह्मा सरस्वती यह कोई भगवान तो नहीं हैं। यह महिमा उनकी हो नहीं सकती। उनके आगे
भी माता-पिता कहना राँग है। मनुष्य गाते तो परमपिता परमात्मा के लिए हैं, परन्तु
जानते नहीं हैं कि वह मात-पिता कैसे बनते हैं। अब तुम बच्चों को कहा जाता है ले लो,
ले लो दुआयें माँ बाप की... अर्थात् श्रीमत पर चलो। अपनी चाल-चलन अच्छी हो तो अपने
पर आपेही दुआयें हो जायेंगी। अगर चलन अच्छी नहीं होगी, किसको दु:ख देते रहेंगे,
मात-पिता को याद नहीं करेंगे अथवा दूसरों को याद नहीं करायेंगे तो दुआयें मिल नहीं
सकती। फिर इतना सुख भी नहीं पा सकेंगे। बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकेंगे। इस बाप की (ब्रह्मा
की) दिल पर चढ़े तो गोया शिवबाबा की दिल पर चढ़े। यह गायन है ही उस मात-पिता का।
बुद्धि उस बेहद के मात-पिता के तरफ चली जानी चाहिए। ब्रह्मा की तरफ भी कोई की बुद्धि
नहीं जाती है। भल जगत अम्बा की तरफ कोई की जाती है। उनका भी मेला लगता है, परन्तु
आक्यूपेशन को कोई जानते ही नहीं। तुम जानते हो हमारी सच्ची-सच्ची माता कायदे अनुसार
यह ब्रह्मा है। यह भी समझना है। याद भी ऐसे करेंगे। यह माता भी है तो ब्रह्मा बाबा
भी है। लिखते हैं शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा। तो माता भी हो जाती है तो पिता भी हो जाता।
अब बच्चों को इस पिता की दिल पर चढ़ना है क्योंकि इनमें ही शिवबाबा प्रवेश होते
हैं। यह जब गैरन्टी देते हैं कि हाँ बाबा यह बच्चा बहुत अच्छा सर्विसएबुल है, सभी
को सुख देने वाला है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं देता है तब ही शिवबाबा की
दिल पर चढ़ सकता है। मन्सा-वाचा-कर्मणा से जो करो, जो बोलो उससे सबको सुख मिले।
दु:ख किसको नहीं देना है। दु:ख देने का विचार पहले मन्सा में आता है फिर कर्मणा में
आने से पाप बनता है। मन्सा तूफान तो जरूर आयेंगे परन्तु कर्मणा में कभी नहीं आओ।
अगर कोई रन्ज (नाराज) होता है तो बाप से आकर पूछो - बाबा इस बात से हमारे से यह
नाराज रहते हैं, तो बाबा समझायेंगे। कोई भी बात पहले मन्सा में आती है। वाचा भी
कर्मणा ही हो गया। अगर बच्चों को माँ-बाप की आशीर्वाद लेनी है तो श्रीमत पर चलना
है। यह बड़ी गुह्य बात है जो एक को ही माता पिता कहते हैं। यह ब्रह्मा बाप भी है तो
बड़ी माँ भी है। अब यह बाबा किसको माँ कहे? यह माता (ब्रह्मा) अब किसको माँ कहे? इस
माँ की तो माँ कोई हो नहीं सकती। जैसे शिवबाबा का कोई बाप नहीं, ऐसे इन्हें अपनी
कोई माँ नहीं।
मुख्य बात बच्चों को यह समझाते हैं कि अगर मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख देंगे
तो दु:ख पायेंगे और पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। सच्चे साहेब के आगे सच्चा रहना है, इनसे
भी सच्चा रहना है। यह दादा ही सर्टीफिकेट देंगे कि बाबा यह बच्चा बड़ा सपूत है। बाबा
महिमा तो करते हैं। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं तन-मन-धन से सर्विस करते हैं, कभी भी
किसको दु:ख नहीं देते हैं, वही बापदादा और माँ की दिल पर चढ़ते हैं। इनकी दिल पर चढ़े
माना उनके तख्त पर चढ़े। हमेशा सपूत बच्चों को यह विचार रहता है कि हम गद्दी नशीन
कैसे बनें। यही तात लगी रहती है। गद्दी तो नम्बरवार 8 हैं। फिर 108 फिर 16108 भी
हैं, परन्तु अभी हम ऊंच पद पायें। ऐसे तो शोभता नहीं जो दो कला कम हों तब गद्दी पर
बैठें। सपूत बच्चे बहुत पुरुषार्थ करेंगे कि हमने अगर अभी लाडले बाबा से सूर्यवंशी
का पूरा-पूरा वर्सा नहीं लिया तो कल्प-कल्प नहीं लेंगे। अभी अगर विजय माला में नहीं
पिरोये तो कल्प-कल्प नहीं पिरोयेंगे। यह कल्प-कल्प की रेस है। अभी अगर घाटा पड़ा तो
कल्प-कल्प पड़ता ही रहेगा। पक्का व्यापारी वह जो श्रीमत पर माँ बाप को पूरा फालो करे,
कभी किसको दु:ख न दे। उसमें भी नम्बरवन दु:ख है काम कटारी चलाना।
बाप कहते हैं अच्छा श्रीकृष्ण भगवानुवाच समझो, तो वह भी नम्बरवन है। उनकी बात भी
माननी चाहिए तब तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। समझते हैं श्रीकृष्ण भगवान ने श्रीमत से
शिक्षा दी है। अच्छा उनकी मत पर चलो। उसने भी कहा है कि काम महाशत्रु है, भला उनको
जीतो। इन विकारों को जीतेंगे तब ही कृष्णपुरी में आ सकेंगे। अब श्रीकृष्ण की तो बात
नहीं। श्रीकृष्ण तो बच्चा था, वह कैसे मत देंगे। जब बड़ा होकर गद्दी पर बैठेगा तब
वह मत देगा। मत देने के लायक बनेंगे तब तो राज्य चलायेंगे ना। अब शिवबाबा तो कहते
हैं मुझे निराकारी दुनिया में याद करो। श्रीकृष्ण फिर कहेंगे कि मुझे स्वर्ग में
याद करो। वह भी कहते हैं काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो। वहाँ विष नहीं मिलेगा,
तो विष को छोड़ पवित्र बनो। यह तो श्रीकृष्ण का बाप बैठ समझाते हैं। अच्छा समझो
मनुष्यों ने मेरा नाम निकाल बच्चे का नाम डाल दिया है, वह भी तो सर्वगुण सम्पन्न
है। वह भी कहते हैं, गीता में लिखा हुआ है कि काम महाशत्रु है। उनको भी मानते
थोड़ेही हैं। उन पर भी चलते थोड़ेही हैं। समझते हैं श्रीकृष्ण खुद आये तब हम उनकी
मत पर चलेंगे तब तक तो गोता ही खाते रहेंगे। संन्यासी आदि कह नहीं सकते कि मैं तुमको
राजयोग सिखलाने आया हूँ। यह तो बाप ही समझाते हैं और संगम की ही बात है। श्रीकृष्ण
है सतयुग में। उनको भी ऐसा लायक बनाने वाला कोई तो होगा ना। तो शिवबाबा खुद कहते
हैं श्रीकृष्ण और उनके सारे घराने को अब मैं स्वर्ग में जाने लायक बना रहा हूँ। बाबा
कितनी मेहनत करते हैं कि बच्चे स्वर्ग में चल ऊंच पद पायें। नहीं तो पढ़े लिखे के
आगे जाकर भरी उठायेंगे। बाप से तो पूरा वर्सा लेना है। अपने से पूछो हम इतने सपूत
हैं? सपूत भी नम्बरवार होते हैं। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट। उत्तम तो कभी छिपे नहीं रहते।
उनकी दिल में रहम आयेगा हम भारत की सेवा करें। सोशल वर्कर्स भी नम्बरवार होते हैं -
उत्तम, मध्यम, कनिष्ट। कई तो बहुत लूटते हैं, माल बेचकर खा जाते हैं। फिर उनको सपूत
सोशल वर्कर कैसे कहेंगे? सोशल वर्कर्स तो अपने को बहुत कहलाते हैं क्योंकि सोसायटी
की सेवा करते हैं। सच्ची सेवा तो बाप ही करते हैं।
तुम कहते हो कि हम भी बाबा के साथ रूहानी सर्वेन्ट हैं। सारी सृष्टि तो क्या
तत्वों को भी पवित्र करते हैं। संन्यासी तो यह नहीं जानते कि तत्व भी इस समय
तमोप्रधान हैं, इनको भी सतोप्रधान बनाना है। सतोप्रधान तत्वों से तुम्हारा शरीर भी
सतोप्रधान बन जायेगा। बाबा समझाते तो बहुत हैं परन्तु बच्चे फिर भी भूल जाते हैं।
याद उनको रहेगा जो औरों को सुनाते रहेंगे। दान नहीं करेंगे तो धारणा भी नहीं होगी।
जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनका बापदादा भी नाम बाला करते हैं। यह तो बच्चे भी जानते
हैं कि सर्विस में कौन-कौन तीखे हैं। जो सर्विस पर हैं वह दिल पर चढ़ते हैं। सदैव
फालो माँ-बाप को करना है। उनके ही तख्तनशीन बनना है। जो सर्विस पर होंगे वह दूसरों
को सुख देंगे। अपना मुँह दर्पण में देखो कि बाबा का सपूत बच्चा बना हूँ? खुद भी लिख
सकते हैं कि हमारी सर्विस का यह चार्ट है। मैं यह-यह सर्विस कर रहा हूँ, आप जज करो।
तो बाप को भी मालूम पड़े। खुद भी जज कर सकता है कि मैं उत्तम हूँ, मध्यम हूँ या
कनिष्ट हूँ? बच्चे भी जानते हैं कौन महारथी हैं, कौन घोड़ेसवार हैं। कोई भी छिपा नहीं
रह सकता है। बाप को पोतामेल भेजे तो बाबा सावधान भी करे। बिगर पोतामेल भी सावधानी
तो मिलती रहती है। अब जितना वर्सा लेना हो पूरा-पूरा ले लो। फिर बापदादा से भी
सर्टीफिकेट मिलेगा। यह बड़ी माँ बैठी है, इनसे सर्टीफिकेट मिल सकता है। इस
वन्डर-फुल मम्मी को कोई मम्मी नहीं। जैसे उस बाप को कोई बाप नहीं। फिर मम्मा
फीमेल्स में नम्बरवन है। ड्रामा में जगत अम्बा गाई हुई है। सर्विस भी बहुत की है।
जैसे बाबा जाते हैं, मम्मा भी जाती थी। छोटे-छोटे गांवों में सर्विस करती थी। सबमें
तीखी गई। बाबा के साथ तो बड़ा बाबा है, इसलिए बच्चों को इनकी सम्भाल रखनी पड़ती है।
सतयुग में प्रजा बहुत सुखी रहती है। अपने महल, गायें, बैल आदि सब कुछ होते हैं।
अच्छा - बच्चे, खुश रहो आबाद रहो, न बिसरो न याद रहो क्योंकि याद तो शिवबाबा को
करना है। अपने शरीर को भी भूल जाना है तो औरों को कैसे याद करें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कोई को भी नाराज नहीं करना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा सबको सुख दे बाप की
और परिवार की दुआयें लेनी हैं।
2) सपूत बच्चा बन भारत की रूहानी सेवा करनी है। रहमदिल बन रूहानी सोशल वर्कर बनना
है। तन-मन-धन से सेवा करनी है। सच्चे साहेब के साथ सच्चा रहना है।