14-05-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप मनुष्य से देवता बनाने आये हैं तो उनकी
दिल से शुक्रिया मानो श्रीमत पर चलते रहो, एक से सच्ची प्रीत रखो”
प्रश्नः-
जिन बच्चों की
बाप से प्रीत है, उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:-
बाप से
सच्ची प्रीत है तो एक उन्हें ही याद करेंगे, उनकी ही मत पर चलेंगे।
मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देंगे। किसी के प्रति घृणा नहीं रखेंगे।
अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल बाप को देंगे। कुसंग से अपनी सम्भाल करेंगे।
गीत:-
धीरज धर मनुआ…
ओम् शान्ति।
ब्राह्मणों को तो जरूर धीरज़ ही होगा क्योंकि ब्राह्मणों की ही परमपिता परमात्मा के
साथ प्रीत है – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सबकी एक जैसी प्रीत नहीं है। जैसे बाबा
मम्मा और बच्चे अपना-अपना अनुभव सुनाते हैं। अहम् आत्मा अपने लिए कहते हैं। बाबा
फिर अहम् परमात्मा कहेंगे। अहम् आत्मा कहती है मैं परमपिता परमात्मा को बहुत याद
करती हूँ क्योंकि जानती हूँ – आधाकल्प हमने रावणराज्य में बहुत दु:ख देखा है। ऐसे
भी नहीं शुरू से दु:ख होता है। नहीं। रावण राज्य में धीरे-धीरे दु:ख की वृद्धि होती
है। कलायें कम होती जाती हैं। अहम् आत्मा को अब परमपिता परमात्मा बतलाते हैं कि पहले
तुम अव्यभिचारी भक्ति में थे सिर्फ मुझे याद करते थे। फिर व्यभिचारी रजोगुणी भक्ति
में आये। अभी तो तमोगुणी भक्ति हो गई है, जो आया उनको पूजते रहते हैं, इसको कहा जाता
है भूत पूजा क्योंकि शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है। यह फलाना स्वामी है सिर्फ 5 तत्वों
के शरीर को देख कहते हैं। उन्हों के चरणों में गिरते हैं। यह है तमोप्रधान भक्ति।
अभी हम आत्मा जानते हैं परमपिता परमात्मा फिर से आये हैं हमको अपना वर्सा देने
इसलिए जितना हो सके उनको याद करते हैं। उनका फरमान है निरन्तर मुझे याद करो।
देही-अभिमानी भव अथवा आत्म-अभिमानी भव। बाबा सुनाते हैं घड़ी-घड़ी बाप का शुक्रिया
करता हूँ। बाबा आपने मुझे अन्धियारे से निकाला है। बाबा के साथ हमारी प्रीत है। और
सबकी है विनाश काले विपरीत बुद्धि, वह पूरा वर्सा ले न सके। लौकिक बच्चों की बाप से
प्रीत होती है। बाप की मत पर चलते हैं तो बाप भी राज़ी होते हैं। अगर बच्चा मत पर
नहीं चलता, तो बाप राज़ी नहीं रहता, जो मत पर न चले वह कपूत ठहरा। तो बेहद का बाप
भी कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म भस्म होते जायेंगे। मेरे बने हो तो
कोई भी पाप कर्म, कर्मेन्द्रियों से नहीं करना। कभी श्रीमत का उल्लंघन नहीं करना।
बाप तुम्हें पुजारी से पूज्य बना रहे हैं तो बाप का कितना शुक्रिया मानना चाहिए।
उनकी मत पर नहीं चलेंगे तो जन्म-जन्मान्तर के लिए पद भ्रष्ट कर देंगे। भल हम यहाँ
भ्रष्ट मूत पलीती को कहते हैं। परन्तु वहाँ कम पद को भ्रष्ट पद कहते हैं। बाप कहते
हैं, अच्छी रीति प्रीत लगाओ। जैसे स्त्री पति को याद करती है वैसे तुम मुझे याद करो।
मेरी श्रीमत पर चलो। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख न दो। मन में भी किसी के लिए
घृणा नहीं रखना। हर आत्मा अपना पार्ट बजा रही है।
तुम जानते हो अभी का यह जन्म भविष्य के जन्म से भी ऊंच हैं। यहाँ हम ईश्वरीय
औलाद बने हैं। सतयुग में दैवी औलाद होंगे। यहाँ की महिमा जास्ती है। जगदम्बा से 21
जन्मों का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी से क्या मिलता है? इन बातों को नया कोई समझ न सके।
आते तो बहुत हैं परन्तु जिनको निश्चय नहीं, वह ठहर न सकें। बाबा मम्मा बच्चों के
मित्र सम्बन्धी आते तो बहुत हैं अथवा आफीसर्स आदि आते हैं, तो एलाउ किया जाता है।
कहाँ तीर लग जाये, बिचारों का कल्याण हो जाए। झट पता लग जाता है कि ईश्वरीय कुल का
है वा आसुरी कुल का है। प्रीत लगती है वा नहीं। आते यहाँ बहुत हैं, ठीक हो जाते हैं
फिर बाहर जाकर कुसंग में अथवा माया के संग में विकारी बन जाते हैं। लिखते हैं हमने
हार खाई। लेकिन अगर न बतायें तो और वृद्धि होती जायेगी। तुम्हारी अब प्रीत बुद्धि
है – बाप के साथ। हाँ तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार प्रीत बुद्धि हैं।
शिवबाबा बच्चों को समझाते हैं, कभी भी कोई विकर्म नहीं करना, श्रीमत पर चलना। बाबा
के बने हो तो तुम्हारी चलन भी ऐसी होनी चाहिए। बाबा को पूरा मालूम होना चाहिए। बाबा
मुक्ति-जीवनमुक्ति, विश्व की बादशाही देते हैं और बच्चों के पास क्या है, वह बाप को
पता नहीं है। बाप के पास तो पूरा पोतामेल आना चाहिए। मेरे को देने से तुम्हारा
नुकसान नहीं होगा। वह तो सब पैसे आदि अपने काम में ले लेते हैं, मैं तो हूँ निराकार।
तुम बच्चों के ही काम में लगाता हूँ। जैसे गाँधी जी देश के काम में लगाते थे, इसलिए
उनका नाम बाला है। बरोबर गांधी ने कांग्रेस राज्य स्थापन किया। नहीं तो यहाँ राजाओं
का राज्य था। अभी बाप फिर से नई राजधानी, रामराज्य स्थापन कर रहे हैं – यह बात सभी
बच्चों की बुद्धि में बैठती नहीं है, अगर बैठे तो खुशी का पारा भी चढ़े। बाबा के
साथ योग लगाते रहें। बाबा कहते हैं परमधाम में रहने वाले बाप को वहाँ याद करो, जहाँ
जाना है। अब ड्रामा पूरा होना है। ड्रामा को कोई जानते ही नहीं। न कोई की मेरे साथ
प्रीत है। कहते हैं हम परम्परा से गंगा स्नान करते आये हैं। क्या सतयुग में भी करते
थे? परम्परा का भी अर्थ नहीं समझते हैं। बाबा कहते हैं अब तुम्हारे सुख के दिन आ रहे
हैं। तुम्हारी बुद्धि में धीरज है। कोई तो कुछ भी समझते नहीं हैं। यहाँ से समझकर जब
बाहर जाते हैं तो माया सारा ही खा जाती है। जैसे मक्खी मरती है तो चींटियाँ सारा
उनको हप कर लेती हैं। यहाँ भी मरते हैं तो चीटिंयाँ लेकर सारा हप कर लेती हैं। माया
भी बलवान है, कम नहीं है। बड़ी लड़ाई लगती है। यहाँ रहते भी क्लास में नहीं आते हैं
तो समझा जाता है यह स्वर्ग के मालिक नहीं बन सकते। कृष्णपुरी में जा न सकें। कुछ भी
वैल्यु नहीं। तुम जो हीरे जैसे बनते हो उन्हों की ही वैल्यु है। तुम जानते हो हम
वर्थ पाउण्ड बन रहे हैं। एक घर में एक हंस, एक बगुला होगा तो खिटपिट जरूर चलेगी। यहाँ
तो बगुले से किनारा होता है। मूत पलीती के हाथ का तुम खा भी नहीं सकते हो। परन्तु
बच्चों का बाप से इतना लव तो है नहीं, इसलिए सोचते हैं कि पेट कहाँ से भरेगा। अरे
भील लोग कहाँ से खाते हैं। आजकल तो कोई कफनी पहन ले तो मुफ्त में पैसे मिलते रहते
हैं। सब पाँव पड़ते रहते हैं, जो आयेगा मूर्ति के आगे पैसा रखता जायेगा, बहुत इज़ी।
यह दुनिया ही ऐसी है। बच्चों को ख्याल करना चाहिए। यह दुनिया जल्दी खलास हो तो
स्वर्ग में जायें, परन्तु लायक भी बनें ना। पद भी पाना है ना। वहाँ भी पोजीशन का
फ़र्क रहता है। पढ़ाने वाला एक ही है। कोई राजा रानी, कोई नौकर चाकर, कोई साहूकार
प्रजा। राजधानी स्थापन हो रही है और धर्म स्थापक राजाई नहीं स्थापन करते हैं इसलिए
बाबा कहते हैं खबरदार रहो। विनाश काले पूरी प्रीत बुद्धि चाहिए। जितनी प्रीत होगी
उतना बाप से वर्सा लेंगे। याद करने का भी सिखाया जाता है। बाबा बतलाते हैं, बाबा को
और चक्र को याद करो। स्वर्दशन चक्र फिराओ। हम लाइट हाउस हैं, खिवैया हमारी नईया को
पार ले जाता है। एक ऑख में शान्तिधाम, एक ऑख में सुखधाम रखना है। अच्छा –
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर एक पार्टधारी के पार्ट को देखते हुए, किसी से भी घृणा नहीं करना
है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) बाप को अपना पूरा पोतामेल देना है। विनाश काले पूरा प्रीत बुद्धि बनना है।
श्रीमत पर अपनी चलन श्रेष्ठ बनानी है। कुसंग से सम्भाल करनी है।
वरदान:-
सदा हर संकल्प और कर्म में ब्रह्मा बाप को फॉलो करने
वाले समीप और समान भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ़ संकल्प से हर कार्य में सफलता
प्राप्त की, एक बाप दूसरा न कोई - यह प्रैक्टिकल में कर्म करके दिखाया। कभी
दिलशिकस्त नहीं बनें, सदा नथिंगन्यु के पाठ से विजयी रहे, हिमालय जैसी बड़ी बात को
भी पहाड़ से रूई बनाए रास्ता निकाला, कभी घबराये नहीं, ऐसे सदा बड़ी दिल रखो,
दिलखुश रहो। हर कदम में ब्रह्मा बाप को फॉलो करो तो समीप और समान बन जायेंगे।
स्लोगन:-
अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है तो गोपी वल्लभ की सच्ची-सच्ची गोपिका बनो।
"प्राण अव्यक्त
बापदादा के अति मधुर अनमोल महावाक्य"
(रिवाइज़-प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न:-
लगन में मग्न रहने के
साथ-साथ निर्विघ्न अवस्था का अनुभव कब होगा?
उत्तर:-
जब अपने को लवली और
लक्की अनुभव करेंगे। यदि सिर्फ लक्की हैं लेकिन लवली नहीं तो लगन में मग्न रहेंगे
परन्तु निर्विघ्न अवस्था का अनुभव नहीं कर सकेंगे। दोनों ही अनुभूतियां चाहिए।
प्रश्न:-
लक्की और लवली
बनने के लिए कौन सी तीन बातें आवश्यक हैं?
उत्तर:-
1- नॉलेजफुल 2-
केयरफुल और 3- चियरफुल। नॉलेजफुल अर्थात् हर संकल्प और हर शब्द, हर कर्म ज्ञान
स्वरुप हो और साथ-साथ केयरफुल भी हो। यदि केयरफुल नहीं तो छोटी बड़ी भूल होने से न
स्वयं लवली रहेगा, न दूसरों का लवली बन सकेगा और यदि चियरफुल नहीं तो सक्सेसफुल
अर्थात् लक्की नहीं।
प्रश्न:-
असफलता का
स्वरूप देखते हुए कौन सी स्मृति आनी चाहिए?
उत्तर:-
यदि पुरुषार्थ करने
के बाद भी असफलता दिखाई देती है तो समझना चाहिए कि यह परीक्षा है, इससे पार होने के
बाद परिपक्वता आने वाली है। वह असफलता नहीं लेकिन अपने पुरुषार्थ के फाउन्डेशन को
पक्का करने का एक साधन है। उस असफलता में भी सफलता समाई हुई है।
प्रश्न:-
दुःख अशान्ति के
वातावरण में सेवा करने का सहज साधन क्या है?
उत्तर:-
चियरफुल चेहरा। मुख
से ज्ञान सुनाने से इतना प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन चियरफुल चेहरा स्वयं चुम्बक का
स्वरूप बन जाता है। चियरफुल अर्थात् संकल्प में भी दुःख की लहर न हो। जब ऐसे
चियरफुल रहेंगे तो सभी समीप आयेंगे। उत्कण्ठा होगी यह ऐसा कैसे रहते हैं।
प्रश्न:-
केयरलेस होने का
मुख्य कारण क्या है? वर्तमान समय मुख्य केयर किस बात की चाहिए?
उत्तर:-
केयरलेस होने का कारण
है मर्यादाओं का उल्लघंन। मुख्य केयर ईश्वरीय मर्यादाओं की करनी है। जो इस लकीर से
बाहर निकल जाते हैं तो उनकी स्थिति फकीर मिसल बन जाती है। वह कहेंगे कृपा करो,
आशीर्वाद करो, सहयोग दो, स्नेह दो.. तो गोया फकीर हो गये।
प्रश्न:-
यदि संकल्प में भी
किसी मर्यादा का उल्लघंन होता है तो उसकी निशानी क्या दिखाई देगी?
उत्तर:-
संकल्प में भी
मर्यादा का उल्लघंन हुआ तो चियरफुल नहीं रह सकते। यदि कोई भी विघ्न अर्थात् तूफान,
परेशानी वा उदासी आती है तो जरूर मर्यादा का उल्लघंन है। जरा भी बुद्धि रूपी पांव
को मर्यादा की लकीर से बाहर निकाला तो शक्तिशाली स्टेज खत्म हो जायेगी। भल ज्ञान
बोलता रहे, पुरुषार्थ करता रहे परन्तु लकीर के फकीर के समान होगा। अच्छा - ओम्
शान्ति।