18-01-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
18 जनवरी 2006, बुधवार पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रात: क्लास में
सुनाने के लिए बापदादा
के मधुर महावाक्य
मीठे बच्चे, "ज्ञान
रत्नों से अपनी झोली भरते, कमाई जमा करते जाओ, अन्तर्मुखी बन समय को सफल करो"
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चों प्रति रूहानी बाप समझाते हैं, मीठे बच्चे - तुम्हें बहुत लवली बनना है। लवली
बाप को बहुत लव से याद करेंगे तो अपना भी कल्याण, दूसरों का भी कल्याण करेंगे।
तुम्हारी अवस्था अति मीठी बनती जायेगी। तुम्हारी बुद्धि में है कि यही हमारा एक ही
रूहानी अति मीठा बाबा है। वही हमारा शिक्षक भी है, सतगुरू भी है।
तुम बच्चे अभी बेहद
बाप के पास बैठे हो बेहद का वर्सा लेने, नई दुनिया का राज्य भाग्य लेने। यहाँ के
पुरुषार्थ अनुसार ही फिर नई दुनिया में नया शरीर लेंगे। दुनिया खत्म नहीं होती
सिर्फ एज बदलती है। गोल्डन एज, सिल्वर एज.. दुनिया तो वही चलती रहती है। नई सो
पुरानी, पुरानी सो नई होती है। बेहद का बाप ही इस पढ़ाई से तुमको राजाओं का राजा
बनाते हैं और कोई की ताकत नहीं जो ऐसा पढ़ा सके। तो तुम कितने भाग्यशाली हो। विश्व
का मालिक तुम्हारे पास मेहमान बनकर आया है। तुम बच्चों के सहयोग से ही विश्व का
कल्याण होना है। जैसे तुम रूहानी बच्चों को बाप अति प्यारा लगता है, वैसे बाप को भी
तुम रूहानी बच्चे बहुत प्यारे लगते हो क्योंकि तुम ही श्रीमत पर सारे विश्व का
कल्याण करने वाले हो। बाप का आत्माओं से लव है तो तुम आत्माओं का आपस में भी बहुत
लव होना चाहिए क्योंकि आपस में सब भाई-भाई हो, कभी लड़ना झगड़ना नहीं चाहिए। लौकिक
सम्बन्ध में तो प्रापर्टी आदि पर लड़ते-झगड़ते रहते हैं यहाँ तो लड़ने की बात ही नहीं,
हर एक का बाप से डायरेक्ट सम्बन्ध है, बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। अपनी दिल
से पूछना है हमारा आपस में रूहानी प्रेम है। तुम प्रेम के सागर के बच्चे हो तो तुमको
भी प्रेम से भरपूर गंगा बनना चाहिए। ज्ञान-रत्नों से झोली भरनी चाहिए। बाप कहते हैं
मीठे बच्चे जितनी झोली भरनी हो उतनी भर लो, टाइम वेस्ट नहीं करो। अपनी कमाई कर समय
को सफल बनाओ। बाप की याद में रहो। बाप के ही गुण गाओ, अन्तर्मुखी रहो। तुम्हारे
अन्तर्मुख होने की बात ही न्यारी है। अन्दर जो आत्मा है उनको सब एक बाप से ही सुनना
है। एक बाप का ही बनना है, एक बाप को ही बहुत प्यार से याद करना है। एक बाप में ही
ममत्व रखना है। तुम्हारी यह सच्ची-सच्ची रूहानी यात्रा है। बहादुर बच्चे वह हैं जो
कामकाज करते भी एक बाप की याद में रहते हैं। अगर कोई कहते याद करने की फुर्सत नहीं,
घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है, तो यह है बाप का डिसरिगार्ड। जो सवेरे-सवेरे उठ बाप को
प्यार से याद करते हैं वह बाप का रिगार्ड करते हैं एक बाप को याद करना - यह है
नम्बरवन ड्रिल। जब तुम सभी उस एक बाप की याद में टिक जायेंगे तो सन्नाटा छा जायेगा।
जैसे कोई शरीर छोड़ता है तो सन्नाटा हो जाता है, तो यह भी आत्मा के अशरीरी होने का
प्रभाव पड़ता है।
रूहानी बाप रूहानी
बच्चों से पूछते हैं बच्चे अब घर जाने को दिल होती है? यह तो समझते हो कि बाप आया
हुआ है ले जाने के लिए। बाप को निमन्त्रण पर बुलाया है - बाबा आओ, हमको घर अथवा
शान्तिधाम में ले जाओ। घर चलने के लिए पावन जरूर बनना है। पतित तो कोई जा न सकें।
अब बाप पूछते हैं बच्चे घर चलने का विचार है? बच्चे कहते हैं बाबा इसके लिए ही तो
इतनी भक्ति की है। जो भी जीव आत्मायें हैं सभी को पावन बनाए बाप को ले जाना है। घर
जाने का रास्ता जो सब भूल गये थे अब बाप रास्ता बता रहे हैं। अब इस पुरानी दुनिया
से जाना है। इसलिए इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। दिल लगानी है एक रूहानी
माशूक से। बाप गैरन्टी करते हैं बच्चे मुझे याद करो तो बिगर सज़ा खाये तुम घर चले
जायेंगे। एक जन्म पवित्र बनने से 21 जन्मों के लिए तुम विश्व के मालिक बनेंगे। कितनी
बड़ी प्राइज़ तुमको मिलती है। तुमको कितना वन्डरफुल गाइड मिला है, मुक्ति जीवनमुक्ति
में ले जाने के लिए। एक बाप का ही गायन है, दुःख हर्ता सुख कर्ता, कितना अपार सुख
देते हैं। ऐसे मोस्ट बिलवेड बाप को सवेरे-सवेरे उठ याद करो, यही विश्व के लिए
योगदान है। सवेरे नींद से नहीं उठते तो बाप समझते यह बख्तावर नहीं। सवेरे का समय
बहुत सतोप्रधान होता है, उस समय बहुत प्यार से एक रूहानी माशूक को याद करो तो पाप
दग्ध होंगे। याद नहीं करेंगे तो ऊंच पद भी नहीं पा सकेंगे। कभी भी अचल अडोल अवस्था
नहीं बन सकेगी। बाप को याद करते-करते सतोप्रधान बनने से ही आयु बढ़ेगी। बाप आयु
बढ़ाने की युक्ति बता रहे हैं, बनाते नहीं है लेकिन युक्ति बताते हैं। पुरूषार्थ तो
तुमको ही करना है। तुम ही सभी को मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताने वाले लाइट हाउस
हो, उठते-बैठते, चलते फिरते तुम लाइट हाउस होकर रहो।
तुम बच्चे कितने लकी
हो। तुम्हारी यह युनिवर्सिटी कितनी ऊंची है। पढ़ाई भी कितनी सहज और कितनी ऊंची है।
सारे विश्व पर राज्य करने की शक्ति तुम बच्चों को इस पुरुषोत्तम कल्याणकारी संगमयुग
पर ही मिलती है। सर्व शक्तिवान बाप से तुम सर्व शक्तियाँ प्राप्त करते हो।
तुम बच्चे जानते हो
रूहानी बाप हम बच्चों के साथ रूहरिहान कर रहे हैं, शिक्षा दे रहे हैं। टीचर का काम
है शिक्षा देना। और गुरू का काम है मंजिल बताना। मंजिल है मुक्ति जीवनमुक्ति की।
मुक्ति के लिए याद की यात्रा बहुत जरूरी है और जीवनमुक्ति के लिए रचना के आदि मध्य
अन्त को जानना जरूरी है। अब 84 का चक्र पूरा होता है, अब वापिस घर जाना है। ऐसी-ऐसी
अपने साथ बातें करने से बड़ी खुशी आयेगी और फिर दूसरों को भी खुशी में लायेंगे। दूसरों
पर भी मेहर करनी है रास्ता बताने की। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने की। बाबा ने तुम
बच्चों को पुण्य और पाप की गहन गति भी समझाई है। पुण्य क्या और पाप क्या है। सबसे
बड़ा पुण्य है - बाप को याद करना और दूसरों को भी याद दिलाना। पाप है - संगदोष में
आकर अपना और दूसरों का खाना खराब करना। सेन्टर खोलना, तन-मन-धन दूसरों की सेवा में
लगाना यह है पुण्य। बाप बच्चों को यही शिक्षा देते हैं मीठे बच्चे कभी भी पाप कर्म
नहीं करना। विकारों की चोट खाने से बचकर रहना। विचार करो हम इतना याद में रहते हैं
जो पुराना हिसाब खत्म हो और नया जमा भी हो। विचार करो - हमारे में कितना योगबल है!
हमारा जन्म कब होगा! सतयुग आदि में हो सकेगा? बहुत पुरुषार्थ करेंगे वही सतयुग आदि
में जन्म ले सकेंगे। कम कमाई करते तो देरी से आयेंगे। राजा बनना है तो प्रजा भी
बनानी है, नहीं तो राजा कैसे बनेंगे। कोई सेन्टर खोलते हैं तो उनकी कमाई भी बहुत
अच्छी होती है। जो करते हैं, उनका हिसाब उसमें आ जाता है। तुम सब मिलकर दुःख की
दुनिया का छप्पर उठाते हो। सभी का कंधा मिलता है।
बाप कहते हैं बच्चे
अब टाइम थोड़ा है, टाइम थोड़ा है, गाया भी जाता है एक घड़ी आधी घड़ी... जितना हो सके
एक बाप को याद करने लग जाओ और फिर चार्ट को बढ़ाते रहो। अच्छा -
मीठे-मीठे सिकीलधे लकी
और लवली ज्ञान सितारों को मातपिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
कमज़ोरियों का समाप्ति
समारोह करने वाले ही तीव्र पुरुषार्थी (अव्यक्त महावाक्य - रिवाइज)
अपने को एवररेडी समझते
हो? जो एवररेडी होंगे, उन्हों का प्रैक्टिकल स्वरूप एवर हैपी होगा। कोई भी परिस्थिति
रूपी पेपर, प्राकृतिक आपदा द्वारा आया हुआ पेपर वा कोई भी शारीरिक कर्म भोग रूपी
पेपर आवे तो भी सभी प्रकार के पेपर्स में फुल पास वा अच्छी मार्क्स में पास होंगे,
ऐसे अपने को एवररेडी समझते हो? अथवा एवररेडी की निशानी जो एवर हैपी है, वह अनुभव
करते हो? अपना इन्तजाम ऐसा किया है जो किसी भी घड़ी कोई पेपर हो जाये तो तैयारी है?
ऐसे एवररेडी हो? आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए आप लोगों द्वारा जो अन्य आत्माएं
नम्बरवार वर्सा पाने वाली हैं, उन्हों के लिए बाकी थोड़ा-सा समय रहा हुआ है। समय की
रफ्तार तेज है। जैसे समय किसके लिए भी रूकावट में रूकता नहीं चलता ही रहता है, वैसे
ही अपने आपसे पूछो कि स्वयं भी कोई माया की रूकावट में रूकते तो नहीं हैं? कोई भी
माया के सूक्ष्म वा स्थूल विघ्न आते हैं वा माया का वार होता है तो एक सेकेण्ड में
अपनी श्रेष्ठ शान में स्थित होंगे तो माया दुश्मन पर निशाना भी ठीक रहेगा, अगर
श्रेष्ठ शान नहीं तो निशाना न लगने के कारण परेशान हो जायेंगे। अभी परेशानी होती
है? अगर अब तक किसी भी प्रकार की परेशानी होती है तो अन्य आत्माओं की परेशानी को
कैसे मिटायेंगे? परेशानियों को मिटाने वाले हो वा स्वयं भी परेशान होने वाले हो?
जैसे जो भी भट्ठी करते हो तो उसका समाप्ति समारोह वा परिवर्तन समारोह मनाते हो। तो
यह जो बेहद की भट्ठी चल रही है उसमें कमजोरियों की समाप्ति का समारोह वा परिवर्तन
समारोह कब मनायेंगे? इसकी कोई फिक्स डेट है? (ड्रामा करायेगा) ड्रामा तो सर्व
आत्माओं का पुरानी दुनिया से समाप्ति समारोह करायेगा लेकिन आप तीव्र पुरुषार्थी
श्रेष्ठ आत्माओं को तो पहले ही कमजोरियों के समाप्ति समारोह को मनाना है ना कि आप
भी अन्य आत्माओं के साथ अन्त में करेंगे। जैसे और सेमिनार आदि करते हो, उसकी डेट
फिक्स करते हो। उसी प्रमाण तैयारी करते हो और उस कार्य को सफल कर सम्पन्न करते हो।
ऐसे यह कमियों को मिटाने के सेमीनार की डेट फिक्स नहीं हो सकती? यह सेमीनार होना
सम्भव है? जैसे कोई यज्ञ रचते हैं तो बीच-बीच में आहुति तो डालते ही रहते हैं लेकिन
अन्त में सभी मिलकर सम्पूर्ण आहुति डालते हैं तो क्या ऐसे सभी आपस में मिलकर
सम्पूर्ण आहुति डाल सकते हैं? सर्व कमजोरियों को स्वाहा नहीं कर सकते हो? जब तक सभी
मिल करके सम्पूर्ण आहुति नहीं डालेंगे तो सारे विश्व के वायुमण्डल वा सर्व आत्माओं
की वृत्तियों वा वायब्रेशन परिवर्तन में कैसे आयेंगे और जो आप सभी ने जिम्मेवारी ली
है विश्व परिवर्तन की वा विश्व नवनिर्माण की, वह कैसे होगी? तो अपनी जिम्मेवारी को
पूरा करने के लिए वा अपने कार्य को पूरा सम्पन्न करने के लिए सम्पूर्ण आहुति ही
डालनी पड़ेगी। इसके लिए अपने को एवररेडी बनाने के लिए कौन-सी युक्ति अपनाओ जो सहज
ही कमजोरियों से मुक्ति हो जाये? युक्तियां तो बहुत मिली हैं, फिर भी आज और युक्ति
बता रहे हैं।
जो भी संकल्प वा कर्म
करते हो वा वचन बोलते हो, उस हर वचन और कर्म को चेक करो कि वह वचन वा बोल ऐसा है जो
हमारी यादगार बने, यादगार वह कर्म वा बोल होते हैं जो याद में रह करके करते हो। जैसे
कोई चीज़ दुनिया के आगे रखनी होती है तो कितनी सुन्दर और स्पष्ट बनाई जाती है।
साधारण चीज़ को किसी के आगे नहीं रखेंगे। कोई विशेषता होती है तब किसी के आगे रखी
जाती है। तुम्हारे यह अभी के हर कर्म वा हर बोल विश्व के आगे यादगार के रूप में आने
वाले हैं। ऐसा अटेन्शन रखते हुए व ऐसी स्मृति रखते हुए हर कर्म वा बोल बोलो जो कि
यादगार बनने के योग्य हो। अगर यादगार बनने के योग्य नहीं है तो वह कर्म नहीं करो यह
स्मृति सदा रखो। जो व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ बोल वा साधारण कर्म होते हैं, उनका
यादगार बनेगा क्या? यादगार बनने के लिये याद में रह कर कर्म करो। जैसे बाप को देखो
कि याद में रहते हुए कर्म करने से ही कर्म आज आप सभी के दिल में यादगार बन गया है
ना। ऐसे ही अपने कर्मो को भी विश्व के सामने यादगार रूप बनाओ। यह तो सहज है ना? जबकि
निश्चय है कि यह सभी अनेक प्रकार के यादगार हमारे ही हैं तो किये हुये अनेक बार के
श्रेष्ठ कर्म व यादगार स्वरूप अब फिर से याद में रहकर रिपीट करो। अभी भी देखो अगर
कोई यादगार युक्तियुक्त नहीं बनाते हैं तो ऐसे यादगार को देख कर संकल्प आयेगा कि यह
युक्तियुक्त नहीं बना है। कोई देवियों वा शक्तियों का चित्र युक्तियुक्त नहीं बनाते
हैं तो देखते हुए सभी को संकल्प आता है कि यह ठीक नहीं है। ऐसे ही अपने कर्मों को
देखो। अपने हर समय के रूप व रूहाब को देखो कि इस समय के मेरे रूप और रूहाब का
यादगार क्या बनेगा? क्या युक्तियुक्त यादगार बनेगा? जब युक्तियुक्त यादगार चित्र
होता है तो उस चित्र की भी कितनी वैल्यु होती है। तो ऐसे देखो हमारे हर समय के हर
चरित्र की वैल्यु है? अगर नहीं तो यादगार चित्र भी वैल्युबुल नहीं बन सकता। समझा?
तो ऐसा समय समीप आ गया है जो आपके हर संकल्प के चरित्र रूप में यादगार बनेंगे, आपके
एक-एक बोल सर्व आत्माओं के मुख से गायन होंगे। तो अपने को ऐसे पूज्यनीय और गायन
योग्य समझकर हर कर्म करो। अच्छा -
हर कर्म याद में रह
सदा यादगार बनाने वाले लवली और लक्की सितारों को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
सम्पूर्ण
समर्पण की विधि द्वारा अपने पन का अधिकार समाप्त करने वाले समान साथी भव
जो वायदा है कि साथ
रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ में राज्य करेंगे - इस वायदे को तभी निभा सकेंगे जब साथी
के समान बनेंगे। समानता आयेगी समर्पणता से। जब सब कुछ समर्पण कर दिया तो अपना वा
अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है। जब तक किसी का भी अधिकार है तो सर्व समर्पण में
कमी है इसलिए समान नहीं बन सकते। तो साथ रहने, साथ उड़ने के लिए जल्दी-जल्दी समान
बनो।
स्लोगन:-
अपने समय, श्वांस और संकल्प को सफल करना ही सफलता का आधार है।