28-01-07     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 25.02.91 "बापदादा"    मधुबन


सोच और कर्म में समानता लाना ही परमात्म प्यार निभाना है
 


आज बापदादा अपने सर्व स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि स्वराज्य अधिकारी वही अनेक जन्म विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं। तो आज डबल विदेशी बच्चों से बापदादा स्वराज्य का समाचार पूछ रहे हैं। हर एक राज्य अधिकारी का राज्य अच्छी तरह से चल रहा है? आपके राज्य चलाने वाले साथी सहयोगी साथी, सदा समय पर यथार्थ रीति से सहयोग दे रहे हैं कि बीच-बीच में कभी धोखा भी दे देते हैं? जितने भी सहयोगी कर्मचारी कर्मेन्द्रियाँ, चाहे स्थूल हैं, चाहे सूक्ष्म हैं, सभी आपके आर्डर में है? जिसको जिस समय जो आर्डर करो उसी समय उसी विधि से आपके मददगार बनते हैं? रोज अपनी राज्य दरबार लगाते हो? राज्य कारोबारी सभी 100 आज्ञाकारी, वफादार, एवररेडी हैं? क्या हालचाल है? अच्छा है व बहुत अच्छा है व बहुत, बहुत, बहुत अच्छा है? राज्य दरबार अच्छी तरह से सदा सफलतापूर्वक होती है वा कभी-कभी कोई सहयोगी कर्मचारी हलचल तो नहीं करते हैं? इस पुरानी दुनिया की राज्य सभा का हालचाल तो अच्छी तरह से जानते हो - न लॉ है, न आर्डर है। लेकिन आपकी राज्य दरबार लॉ फुल भी है और सदा हाँ जी, जी हाजिर - इस आर्डर में चलती है। जितना राज्य अधिकारी शक्तिशाली है उतना राज्य सहयोगी कर्मचारी भी स्वत: भी सदा इशारे से चलते, राज्य अधिकारी ने आर्डर दिया कि यह नहीं सुनना है और यह नहीं करना है, नहीं बोलना है, तो सेकेण्ड में इशारे प्रमाण कार्य करें। ऐसे नहीं कि आपने आर्डर किया - नहीं देखो और वह देख करके फिर माफी मांगे कि मेरी गलती हो गई। करने के बाद सोचे तो उसको समझदार साथी कहेंगे? मन को आर्डर दिया कि व्यर्थ नहीं सोचो, सेकेण्ड में फुल स्टॉप, दो सेकेण्ड भी नहीं लगने चाहिए। इसको कहा जाता है - युक्तियुक्त राज्य दरबार। ऐसे राज्य अधि-कारी बने हो? रोज राज्य दरबार लगाते हो या जब याद आता है तब आर्डर देते हो? रोज दिन समाप्त होते अपने सहयोगी कर्मचारियों को चेक करो। अगर कोई भी कर्मेन्द्रियों से वा कर्मचारी से बार-बार गलती होती रहती है तो गलत कार्य करते-करते संस्कार पक्के हो जाते हैं। फिर चेंज करने में समय और मेहनत भी लगती है। उसी समय चेक किया और चेंज करने की शक्ति दी तो सदा के लिए ठीक हो जायेंगे। सिर्फ बार-बार चेक करते रहो कि यह रांग है, यह ठीक नहीं है और उसको चेंज करने की युक्ति व नॉलेज की शक्ति नहीं दी तो सिर्फ बार-बार चेक करने से भी परिवर्तन नहीं होता। इसलिए पहले सदा कर्मेन्द्रियों को नॉलेज की शक्ति से चेंज करो। सिर्फ यह नहीं सोचो कि यह रांग है। लेकिन राइट क्या है और राइट पर चलने की विधि स्पष्ट हो। अगर किसी को कहते रहेंगे तो कहने से परिवर्तन नहीं होगा लेकिन कहने के साथ-साथ विधि स्पष्ट करो तो सिद्धि हो। जो आत्मा स्वराज्य चलाने में सफल रहती है तो सफल राज्य अधिकारी की निशानी है वह सदा अपने पुरूषार्थ से और साथ-साथ जो भी सम्पर्क में आने वाली आत्माएं हैं वह भी सदा उस सफल आत्मा से सन्तुष्ट होंगी और सदा दिल से उस आत्मा के प्रति शुक्रिया निकलता रहेगा। सर्व के दिल से, सदा दिल के साज से वाह-वाह के गीत बजते रहेंगे, उनके कानों में सर्व द्वारा यह वाह-वाह का शुक्रिया का संगीत सुनाई देगा। यह गीत आटोमेटिक है। इसके लिए टेपरिकार्डर बजाना नहीं पड़ता। इसके लिए कोई साधनों की आवश्यकता नहीं। यह अनहद गीत है। तो ऐसे सफल राज्य अधिकारी बने हो? क्योंकि अभी के सफल राज्य अधिकारी भविष्य में सफलता का फल विश्व का राज्य प्राप्त करेंगे। अगर सम्पूर्ण सफलता नहीं, कभी कैसे हैं, कभी कैसे हैं, कभी 100 सफलता है, कभी सिर्फ सफलता है। 100 सफल नहीं हैं तो ऐसे राज्य अधिकारी आत्मा को विश्व का, राज्य का तख्त, ताज प्राप्त नहीं होता लेकिन रॉयल फैमिली में आ जाता है। एक हैं तख्तनशीन और दूसरे हैं तख्तनशीन रॉयल फैमिली। तख्त नशीन अर्थात् वर्तमान समय भी सदा डबल तख्तनशीन रहे। डबल तख्त कौन सा? एक अकाल तख्त और दूसरा बाप का दिल तख्त। तो जो अभी सदा डबल तख्त नशीन है, कभी-कभी वाला नहीं, ऐसे सदा दिलतख्तनशीन विश्व का भी तख्तनशीन होता है। तो चेक करो - सारे दिन में डबल तख्तनशीन रहे? अगर तख्तनशीन नहीं तो आपके सहयोगी कर्मचारी कर्मेन्द्रियाँ भी आपके आर्डर पर नहीं चल सकतीं। राजा का आर्डर माना जाता है। राज्य (तख्त) पर नहीं हो और वह आर्डर करे तो माना नहीं जाता है। आजकल तो तख्त के बजाए कुर्सी हो गई है, तख्त तो खत्म हो गया। योग्य नहीं है तो तख्त गायब हो गया है। कुर्सी पर हैं तो सब मानेंगे। अगर कुर्सी पर भी नहीं हैं तो सब नहीं मानेंगे। लेकिन आप तो कुर्सी वाले नेता नहीं हो। स्वराज्य अधिकारी राजे हो। सभी राजा हो कि कोई प्रजा भी है? राजयोगी अर्थात् राजा। देखो कितने पद्म पद्म पद्म भाग्यवान हो! दुनिया, उसमें भी विशेष विदेश हलचल में है। वह वार और हार की दुविधा में है। कोई हार रहा है, कोई वार कर रहा है और कोई हालचाल सुन करके उसी हलचल में है। तो वह है हार और वार की हलचल में और आप हो बापदादा के प्यार में। परमात्म प्यार दूर-दूर से खिंचकर लाया है। कैसी भी परिस्थितियाँ हो लेकिन परमात्मा प्यार के आगे परिस्थितियाँ रोक नहीं सकतीं। परमात्म प्यार बुद्धिवान की बुद्धि बन परिस्थिति को श्रेष्ठ स्थिति में बदल लेता है। डबल विदेशियों में भी देखो पहले पोलेण्ड वाले कितने प्रयत्न करते थे, असम्भव लगता था और अभी क्या लगता है? रशिया वाले भी असम्भव समझते थे, चाहे 24 घण्टा भी लाइन में खड़ा रहना पड़ा, पहुँच तो गये ना। मुश्किल सहज हो गया। तो शुक्रिया कहेंगे ना। ऐसे ही सदा होता रहेगा। कई सोचते हैं अन्त में विमान बन्द हो जायेंगे फिर हम कैसे जायेंगे? परमात्म प्यार में वह शक्ति है जो किसी की आंखों में ऐसा जादू कर देगी जो वह आपके भेजने लिए परवश हो जायेंगे लेकिन सिर्फ प्यार करने वाले नहीं, लेकिन निभाने वाले हों। निभाने वाली आत्माओं से बाप का भी वायदा है - अन्त तक हर समस्या को पार करने में प्रीति की रीति निभाते रहेंगे। कभी-कभी प्रीत करने वाले नहीं बनना। सदा निभाने वाले। प्रीत करना अनेकों को आता है लेकिन निभाना कोई-कोई को आता है इसलिए आप कोई में कोई हो।

बापदादा सदैव डबल विदेशी बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि हिम्मत से बाप की मदद के पात्र बन अनेक प्रकार की माया के बान्डेज और अनेक प्रकार के रीति, रिवाज और रस्म के बाउन्ड्रीज़ को पार करके पहुँच गये हैं। यह हिम्मत भी कम नहीं है। हिम्मत सभी ने अच्छी रखी है। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, दोनों बैठे हैं। बहुत पुराने से पुराने भी हैं और इस कल्प के नये भी हैं। दोनों की हिम्मत अच्छी है। इस हिम्मत में तो सभी नम्बरवन हो फिर नम्बर किस बात में है? डबल विदेशी विशेष पुरूषार्थ करते हैं और रूहरिहान में भी कहते हैं - 108 की माला में जरूर आयेंगे। कोई क्वेश्चन करते हैं कि आ सकते हैं? आने अवश्य हैं। डबल विदेशियों के लिए भी माला में सीट रिजर्व्ड है। लेकिन कौन और कितने - वह आगे चल सुनायेंगे। तो नम्बर क्यों बनते हैं? हर एक अपने अधिकार से कहते हो - मेरा बाबा है। तो अधिकार भी पूरा है फिर भी नम्बर क्यों? जो नम्बरवन होगा और नम्बर आठ होगा, दोनों में अन्तर तो होगा ना! इतना अन्तर क्यों पड़ता? 16 हजार की तो बात छोड़ो, 108 में भी देखो - कहाँ एक, कहाँ 108। तो क्या अन्तर हुआ? हिम्मत में सब पास हो लेकिन हिम्मत के रिटर्न में जो बाप और ब्राह्मण परिवार द्वारा मदद मिलती है, उस मदद को प्राप्त कर कार्य में लगाना और समय पर मदद का यूज़ करना, जिस समय जो मदद अर्थात् शक्ति चाहिए उसी शक्ति द्वारा समय पर काम लेना, यह निर्णय शक्ति और कार्य में लगाने की कार्य शक्ति इसमें अन्तर हो जाता है। सर्वशक्तिवान बाप द्वारा सर्व शक्तियों का वर्सा सभी को मिलता है। कोई को 8 शक्ति, कोई को 6 शक्ति नहीं मिलती। सर्वशक्तियाँ मिलती हैं। पहले भी सुनाया ना कि विधि से सिद्धि होती है। कार्य शक्ति की विधि - एक है बाप के बनने की विधि, दूसरी है बाप से वर्सा प्राप्त करने की विधि और तीसरी है प्राप्त किये हुए वर्से को कार्य में लगाने की विधि। कार्य में लगाने की विधि में अन्तर हो जाता है। प्वाइन्ट्स सबके पास है। एक टॉपिक पर वर्कशॉप करते हो तो कितने प्वाइन्ट्स निकालते हो! तो एक प्वाइन्ट बुद्धि में रखना, यह है एक विधि, और दूसरा है प्वाइन्ट बन प्वाइन्ट को कार्य में लगाना। प्वाइन्ट रूप भी हो और प्वाइन्ट्स भी हों। दोनों का बैलेन्स हो। यह है नम्बरवन विधि से से नम्बरवन सिद्धि प्राप्त करना। कभी प्वाइन्ट के विस्तार में चले जाते हो। कभी प्वाइन्ट रूप में टिक जाते हैं। प्वाइन्ट रूप और प्वाइन्ट साथ-साथ चाहिए। कार्य शक्ति को बढ़ाओ। समझा। नम्बरवन आना है तो यह करना पड़ेगा।

आजकल साइन्स की शक्ति, साइन्स के साधनों द्वारा कार्य-शक्ति कितनी तेज कर रही है! जो चैतन्य मनुष्य कार्य कर सकता है, जितने समय और जितना यथार्थ चैतन्य मनुष्य कर सकता है उतना साइन्स के साधन कम्प्युटर कितना जल्दी काम करता है। चैतन्य मनुष्य को भी करेक्शन करता है। तो जब साइन्स के साधन कार्य-शक्ति को तीव्र बना सकते हैं, कई ऐसी इन्वेन्शन निकली भी हैं और निकल भी रही हैं, तो ब्राह्मण आत्माओं की साइलेन्स की शक्ति कितना तीव्र कार्य यथार्थ सफल कर सकती है। सेकेण्ड में निर्णय हो, सेकेण्ड में कार्य को प्रैक्टिकल में सफल करो। सोचना और करना - इसका भी बैलेन्स चाहिए। कई ब्राह्मण आत्माएं सोचती बहुत है, लेकिन करने के समय जितना सोचते हैं उतना करते नहीं हैं और कई फिर करने में लग जाते हैं - सोचते पीछे हैं कि ठीक किया वा नहीं किया? क्या करना है अभी? तो सोचना और करना - दोनों साथ-साथ हो। नहीं तो क्या होता है? सोचते हैं कि यह करना है लेकिन सोच के करेंगे और सोचते सोचते कार्य का समय और परिस्थिति बदल जाती है। फिर कहते हैं करना तो था, सोचा तो था..। जब साइन्स के साधन तीव्र गति के हो रहे हैं, एक सेकेण्ड में क्या नहीं कर लेते हैं! विनाश के साधन तीव्र गति के तरफ जा रहे हैं तो स्थापना के साइलेन्स के शक्तिशाली साधन क्या नहीं कर सकते! अभी तो प्रकृति आप मालिकों का आह्वान कर रही है। आप लोग उनको आर्डर नहीं करते तो प्रकृति कितनी धमाल कर रही है! मालिक तैयार हो जाओ तो प्रकृति आपका स्वागत करे। ऐसे तैयार हो? कि अभी तैयार कर रहे हो? सम्पूर्ण तैयारी की महिमा आपके भक्त लोग अब तक कर रहे हैं। अपनी महिमा को जानते हो? अब चेक करो कि इन सबमें सर्वगुण सम्पन्न भी हो, सम्पूर्ण निर्विकारी भी हो, सम्पूर्ण आहिंसक और मर्यादा पुरूषोत्तम भी हो, 16 कला सम्पन्न भी हो? सभी बातों में फुल है तो समझो मालिक तैयार हैं और इसमें परसेन्टेज है तो मालिक तैयार नहीं। बालक है लेकिन मालिक नहीं बने हैं। तो प्रकृति आप मालिक का स्वागत करेगी। बाप के बालक हैं। वह तो ठीक है। इसमें पास हो। लेकिन इन पांचों ही बातों में सम्पन्न बनना अर्थात् मालिक बनना। प्रकृति को आर्डर करें? अच्छा। तपस्या वर्ष में तो तैयार हो जायेंगे ना? फिर तो आर्डर करें ना? यह तपस्या वर्ष लास्ट चांस है या फिर है और थोड़ा चांस दो। फिर तो नहीं कहेंगे ना! अच्छा।

चारों ओर के सर्व राज्य अधिकारी आत्माओं को, सदा डबल तख्तनशीन विशेष आत्माओं को, सदा सोचना और करना दोनों शक्तियों को समान बनाने वाली वरदानी आत्माओं को, सदा परमात्म प्यार निभाने वाले सच्चे दिल वाले बच्चों को दिलाराम बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-
सर्व खजानों को कार्य में लगाकर बढ़ाने वाले योगी सो प्रयोगी आत्मा भव

बापदादा ने बच्चों को सर्व खजाने प्रयोग के लिए दिये हैं। जो जितना प्रयोगी बनते हैं, प्रयोगी की निशानी है प्रगति। अगर प्रगति नहीं होती है तो प्रयोगी नहीं। योग का अर्थ ही है प्रयोग में लाना। तो तन-मन-धन वा वस्तु जो भी बाप द्वारा मिली हुई अमानत है, उसे अलबेलेपन के कारण व्यर्थ नहीं गंवाना, बल्कि उसे कार्य में लगाकर एक से दस गुना बढ़ाना, कम खर्च बाला नशीन बनना - यही योगी सो प्रयोगी आत्मा की निशानी है।

स्लोगन:-
विकर्मों और विकारों का त्याग करना ही सच्चा त्याग है।