ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। बुद्धि में बैठा। साजन कहो या बाप कहो, उनको पतियों का पति क्यों
कहा जाता है? अंग्रेजी में ब्राइड्स भी कहते हैं। साजन को ब्राइडग्रुम कहते हैं। वह
है निराकारी साजन। यहाँ साकारी साजन की कोई बात नहीं। निराकारी साजन को भी सजनी
जरूर चाहिए। नहीं तो निराकार साजन भी सजनी बिगर रचना कैसे रचे। बच्चे जानते हैं कि
वह निराकार किस सजनी द्वारा रचना रचते हैं। वह परमपिता परमात्मा इसमें प्रवेश कर सभी
को जगा रहे हैं। बरोबर नवयुग अर्थात् सतयुग सचखण्ड में जाने लिए हम यहाँ आये हैं।
पुराना युग कहा जाता है कलियुग को। तो तुम बच्चों को अनुभव हो रहा है हम यहाँ आये
हैं ज्ञान सागर के पास रिफ्रेश होने के लिए, सम्मुख धारणा के लिए। बच्चों को सम्मुख
जितना मजा आता है उतना सेन्टर्स पर नहीं। तुम बच्चे सम्मुख हो और सेन्टर्स वाले दूर
हैं। यह बच्चों को समझाया है कि हर एक आत्मा रथी है और परमपिता परमात्मा इस तन में
रथी है। उनको कहा जाता है परमपिता परम आत्मा। है तो आत्मा ना। वह सदैव परे ते परे
रहने वाला है। भगवान को जब याद करते हैं तो नज़र जरूर ऊपर ही जायेगी। ओ परमपिता
परमात्मा रहम करो। सभी को पता है कि वह ऊपर रहने वाला है। बाप अपने मुकरर किये हुए
रथ में आये हैं। कहते हैं मैं कल्प-कल्प इसमें रथी हूँ क्योंकि इस ब्रह्मा रथ द्वारा
ब्राह्मण कुल स्थापन करता हूँ। अगर श्रीकृष्ण के तन में आये तो फिर दैवी कुल हो जाए।
सतयुग हो जाये। श्रीकृष्ण का शरीर सतयुग में होता है। बच्चे समझते हैं हमको बेहद का
बाप बैठ तीनों कालों का ज्ञान दे त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। ड्रामा के
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दे रहे हैं। जो घड़ी बीत चुकी वह हू-ब-हू रिपीट होगी। जैसे
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर रिपीट होगा। क्राइस्ट को भी अपना पार्ट रिपीट करना
है। फिर उस ही नाम, रूप, देश, काल में आने वाले हैं। बाप कहते हैं - मैं भी अपना
निराकार रूप बदलकर साकार रूप में आया हूँ। जरूर मनुष्य तन में आयेगा तब तो सुनायेगा।
शास्त्रों में तो कच्छ-मच्छ अवतार लिख दिया है। सर्वव्यापी के ज्ञान से समझते हैं
कि वह सबमें प्रवेश करता है।
अब बाप स्वयं कहते हैं - सजनियाँ, मैं आया हूँ तुमको जगाने, नई दुनिया स्थापन
करने। जो सतयुग था वह अब फिर रिपीट होगा। अब नवयुग आने वाला है। दुनिया समझती है
नवयुग आने में 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं। यह मनुष्यों की बड़ी भूल है। अभी बच्चे
निश्चयबुद्धि हो गये हैं। दुनिया वालों के लिए जरूर नया ज्ञान है। सतयुग में
देवी-देवता होंगे और धर्मों का पता भी नहीं रहेगा। अभी और सब पुराने धर्म हैं। नया
देवी-देवता धर्म गुम हो गया है फिर अब उस नये धर्म की स्थापना होती है। देवताओं के
कुछ न कुछ चित्र हैं। समझते हैं सतयुग में बरोबर राज्य करते थे। वहाँ तुमको यह पता
नहीं रहेगा कि लक्ष्मी-नारायण के बाद कोई राम का राज्य आने वाला है। जो कुछ होता
जायेगा तुम देखते जायेंगे। फिर कहेंगे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड.. पीछे वालों को
यह मालूम रहेगा कि फर्स्ट, सेकेण्ड एडवर्ड होकर गये हैं। आगे फिर कब होंगे - यह नहीं
जानेंगे। ड्रामा का पार्ट इमर्ज होता रहेगा। ड्रामा की नॉलेज बाबा ही समझाते हैं।
वह भक्ति मार्ग की तीर्थ यात्रा बिल्कुल ही न्यारी है। यह है ज्ञान - बाप और वर्से
को याद करना। अभी तुम जानते हो सतयुग में इतना समय राज्य होगा फिर त्रेता में
राम-सीता राज्य करेंगे। बच्चों को सीन-सीनरियाँ देखने में आती हैं। तुमने 84 जन्म
पूरे किये - यह बुद्धि में है। यह है नई नॉलेज। बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग
पर आता हूँ। इस संगम पर परमपिता परमात्मा रथी बना है, हम रथी आत्मा को वापिस ले जाने।
हम सब रथी हैं। अपने को आत्मा समझना है। तुम बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। हम
आत्माओं ने 84 जन्म का पार्ट बजाया। अब बाबा आया है - हमको सारा राज़ समझाते हैं।
पतित से आप समान पावन बनाते हैं। यह बेहद का एक ही बाप है जो बच्चों को आप समान
बनाते हैं। लौकिक बाप कभी बच्चों को आप समान नहीं बनाते हैं। एक ही बाप के बच्चे
कोई कारपेन्टर होंगे तो कोई सर्जन, कोई इन्जीनियर होंगे। यहाँ ऐसा नहीं है। यहाँ
तुम सभी मनुष्य से देवता बनते हो। तुम बैरिस्टर, सर्जन आदि नहीं बनते हो। तुम जानते
हो परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं, जिससे हम पढ़कर सो देवता बनते हैं। ऐसा स्कूल
कहाँ भी नहीं देखा होगा, जो सब कहें हम सो देवता पद पाने लिए पढ़ रहे हैं।
दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती रहती है। फिर मकान भी वृद्धि को पाते जायेंगे। बच्चों का
प्रभाव निकलेगा तो बहुत बुलायेंगे। यहाँ आकर हमको मनुष्य से देवता बनाने का राजयोग
सिखाओ। बहुत वृद्धि होती जायेगी। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं - रात को अथवा
अमृतवेले जागो, इसमें बहुत कमाई है। मनुष्य जो बहुत कमाई करने के शौकीन होते हैं
उनको रात को भी ग्राहक मिल जाते हैं तो जागते हैं। मनुष्य को सम्पत्ति 24 घण्टे मिल
जाए तो अपनी नींद भी फिटा देते हैं। कमाई में फिर नींद नहीं आती। कमाई नहीं होती तो
फिर उबासी, नींद आ जाती है। कमाई में बहुत खुशी होती है। पैसे बढ़ाने का ही मनुष्य
प्रयत्न करते हैं कि हम सुखी रहें। बाकी पेट तो एक पाव रोटी ही मांगता है।
तुम बच्चों को इस दुनिया में ममत्व नहीं रखना है। ज्यादा लोभ में नहीं जाना है।
उसमें भी बुद्धि-योग भागता है, फिर अविनाशी कमाई से वंचित हो जाते हैं। नहीं तो इस
कमाई का बहुत ख्याल रखना है। तुम्हारी कमाई सेकेण्ड बाई सेकेण्ड है। फिर अगर
चलते-फिरते बाप को याद करो तो बहुत भारी कमाई है। और कमाईयाँ ऐसे चलते-फिरते होती
हैं क्या? यह तो वन्डरफुल कमाई है। इन्डिपेन्डेन्ट अपने लिए कमाई करते हो। लौकिक
बाप को बच्चों का ख्याल रहता है - बच्चे सुखी रहें, खाते रहें। इसमें बाल-बच्चों का
ख्याल नहीं रहता। अपने लिए 21 जन्मों की कमाई करें। कैसा मज़े का ज्ञान है! हरेक
बच्चे को अपने लिए कमाई करनी है। बाल-बच्चे, मित्र-सम्बन्धियों को भी याद नहीं करना
है। अपनी देह को भी याद नहीं करना है। बाबा को भले इस देह में आना पड़ता है परन्तु
है तो देही-अभिमानी। इस समय देह में आते हैं, आकर तुम आत्माओं को नॉलेज देते हैं
अथवा सहज कमाई का रास्ता बताते हैं। अगर तुम प्रैक्टिस करते रहो तो बहुत कमाई कर
सकते हो। बाबा भी प्रैक्टिस करते हैं बाप को याद करें तो आदत पड़ जाती है। अपने को
भूल शिवबाबा याद रहता है क्योंकि शिवबाबा की इसमें प्रवेशता है। यह बाबा समझता है
मैं ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। लौकिक बाप के बच्चे को रहता है ना कि हम बाप की
मिलकियत के हकदार हैं। तो इस ब्रह्मा बाबा को भी रहता है कि हम ब्रह्माण्ड के मालिक
हैं। बाबा की प्रवेशता है ना। तो वह नशा रहता है - हम ब्रह्माण्ड के मालिक हैं,
प्रापर्टी का भी मालिक हूँ। शिवबाबा खुद तो विश्व का मालिक नहीं बनते हैं। मैं
ब्रह्माण्ड का मालिक तो विश्व का भी मालिक बनता हूँ। बाबा सिर्फ ब्रह्माण्ड का
मालिक है। तुम भी विश्व के मालिक बनते हो ना। राजा चाहे प्रजा - समझते हैं हम विश्व
के मालिक हैं, जान गये हैं हम विश्व के मालिक हैं। यह समझने से भी खुशी का पारा चढ़ा
रहेगा। गाया हुआ भी है - अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोपी-वल्लभ के गोप-गोपियों से
पूछो। ऐसे नहीं कि गोपी-वल्लभ से पूछो। वल्लभ बाप को कहा जाता है। वल्लभ (बाप) को
तो विश्व के मालिकपने का सुख पाना नहीं है। बाप कितना ऊंचा उठाते हैं। यह (ब्रह्मा)
कहते हैं मैं भी अपने को ब्रह्माण्ड का मालिक समझता हूँ। सारी दुनिया में यह कोई भी
समझ नहीं सकते कि मैं ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ। ऐसे नहीं कि ब्रह्म में लीन हो
जायेंगे। कहाँ ब्रह्म में लीन होना, कहाँ ब्रह्माण्ड का मालिक बनना - बहुत फ़र्क
है। तुम जानते हो बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। खुद बाप कहते हैं जागो सजनियाँ।
मैं हर एक बात तुमको नई समझाता हूँ। क्या तुम ब्रह्माण्ड के मालिक नहीं बने थे? फिर
पार्ट बजाया, अब फिर तुम ब्रह्माण्ड के मालिक बनते हो, फिर तुम विश्व के मालिक बनने
वाले हो - यह याद स्थाई रखनी है। इसको कहा जाता है विचार सागर मंथन। इससे तुमको खुशी
का पारा बहुत चढ़ेगा। यह तो निश्चय करना चाहिए कि यह हमारा बाप है। बाप के सिवाए ऐसी
बातें कोई समझा न सके। दिल में नोट करना चाहिए। यहाँ नोट्स लेते हैं स्मृति में रखने
के लिए। फिर यह काम नहीं आयेंगे। बैरिस्टर के पास बहुत किताब रहते हैं। शरीर छूटा,
खलास। पता नहीं दूसरे जन्म में क्या बनेंगे। तुम बच्चों की तो एक ही पढ़ाई है। तुम
जानते हो स्वयं ब्रह्माण्ड का मालिक बाप, हमको ब्रह्माण्ड और विश्व का मालिक बनाते
हैं। फिर भी खुशी का पारा क्यों नहीं चढ़ता? बाबा ने समझाया है यह गीत घर में अपने
को रिफ्रेश करने लिए रखने चाहिए।
कोई-कोई समझते हैं ज्ञान में आने से हमको घाटा पड़ा है। घाटा-फ़ायदा तो पुरानी
दुनिया में है ही। आज कोई वजीर है, किसी ने सूट किया तो खलास। सबको घाटा पड़ता रहता
है। किनकी दबी रही धूल में... सबको घाटा है। सिर्फ तुम बच्चों को सदाकाल के लिए
फ़ायदा है भविष्य में। सो भी 21 जन्म के लिए। बाकी सारी दुनिया है घाटे में। यह सब
है रुण्य के पानी मिसल (मृगतृष्णा समान)। किसको भी मालूम नहीं यह सब मिट्टी में मिल
जाना है। सब कब्रदाखिल भस्मीभूत हुए पड़े हैं। तुम यह सब कुछ जानते हो। तुम्हारे
में भी जो बहुत होशियार हैं उनको मालूम है यह दुनिया जैसे भंभोर है। सब कब्रदाखिल
हो जायेंगे। यादव-कौरव सब कब्रदाखिल हुए थे। बाकी पाण्डवों की विजय हुई थी। विश्व
पर अर्थात् नई दुनिया पर विजय पाई क्योंकि तुम पाण्डव ईश्वर को जानते हो। उससे
प्रीत रखते हो। जितना जो प्रीत रखते हैं, जितना जो याद करते हैं उतनी वह कमाई करते
हैं - ऐसा कभी सुना? भारत का प्राचीन योग बहुत नामीग्रामी है। यह बाबा भी नहीं जानते
थे, अब सब बातें बुद्धि में आ गई हैं। बाबा कहते हैं - सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का
ज्ञान जो तुमको सुनाता हूँ वह सतयुग में नहीं रहेगा। वहाँ तो तुम्हारी प्रालब्ध के
सुख का पार्ट जो कल्प पहले चला था वही चलेगा। यह ज्ञान बाप एक ही बार आकर देते हैं
और अन्त तक देते ही रहेंगे। तुम भल कहाँ भी हो, शरीर छूटे तो शिवबाबा की याद हो,
त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान हो। ज्ञान-अमृत मुख में हो, स्वदर्शन-चक्र याद हो तब
प्राण तन से निकले। कहाँ वह भक्तिमार्ग की कहावत, कहाँ यह ज्ञान की बातें। मनुष्य
जब मरने पर होते हैं तो हाथ में माला देते हैं। कहते हैं राम-राम कहो तो सद्गति हो
जायेगी। परन्तु राम कौन है, कहाँ है - कोई जानते नहीं। कोई राम को, कोई हनूमान को
याद करते हैं। अनेकों को याद करना - इसको भक्ति कहा जाता है। अब तुम एक को ही याद
करते हो - जो तुमको ज्ञान दे, तुम्हारी सद्गति करते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्थाई खुशी में रहने के लिए विचार सागर मंथन करना है। नशे में रहना
है कि हम ब्रह्माण्ड और विश्व के मालिक बनने वाले हैं।
2) एक बाप से सच्ची प्रीत रख कमाई करनी है। हम आत्मा इस देह में रथी हैं। रथी
समझ देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करना है।