21-11-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 17-05-72 मधुबन

 

संगठन रूपी किले को मज़बूत बनाने काज़बूत बनाने का साधन

 

पाण्डव भवन को पाण्डवों का किला कहते हैं। किले का गायन भी है। ऐसे ही जो यह ईश्वरीय संगठन है, यह संगठन भी किला ही है। जैसे स्थूल किले को बहुत मजबूत किया जाता है, जिससे कोई भी दुश्मन वार कर न सके। इस रीति से मुख्य किला है संगठन का। इसमें भी इतनी मजबूती हो जो कोई भी विकार दुश्मन के रूप से वार कर न सके। अगर कोई दुश्मन वार कर लेता है तो ज़रूर किले की मजबूती की कमी है। यह तो संगठन रूपी किला है, इसकी मजबूती के लिए तीन बातों की आवश्यकता है। अगर तीनों बातें मजबूत हैं तो इस किले के अन्दर कोई भी रूप से कभी भी कोई दुश्मन वार नहीं कर सकेंगे। दुश्मन प्रवेश भी नहीं कर सकते, हिम्मत नहीं हो सकती। वह तीन बातें कौनसी हैं, जिससे मजबूत हो सकते हैं? एक - स्नेह; दूसरा - स्वच्छता और तीसरा है रूहानियत। यह तीनों बातें अगर मजबूत हैं तो कब कोई का वार नहीं होगा। अगर कहां भी, कोई भी वार करता है, उनका कारण इन तीनों में कोई-ना-कोई कमी है। या स्नेह की कमी है या फिर रूहानियत की कमी है। तो संगठन रूपी किले को मजबूत करने के लिए इन तीन बातों पर बहुत अटेन्शन चाहिए। हरेक स्थान पर इन बातों का फोर्स रखकर भी यह लाना चाहिए। जैसे स्थूल में भी वायुमण्डल को शुद्ध करने के लिए एअर Öौश करते हैं। उससे अल्पकाल के लिए वायुमण्डल चेन्ज हो जाता है। इस रीति से इसमें भी इन बातों का प्रैशर डालना चाहिए जिससे वायुमण्डल का भी असर निकल जाए। कोई को भी आकर्षण करने की  किले की मजबूती की कमी है। यह तो संगठन रूपी किला है, इसकी मजबूती के लिए तीन बातों की आवश्यकता है। अगर तीनों बातें मजबूत हैं तो इस किले के अन्दर कोई भी रूप से कभी भी कोई दुश्मन वार नहीं कर सकेंगे। दुश्मन प्रवेश भी नहीं कर सकते, हिम्मत नहीं हो सकती। वह तीन बातें कौनसी हैं, जिससे मजबूत हो सकते हैं? एक - स्नेह; दूसरा - स्वच्छता और तीसरा है रूहानियत यह तीनों बातें अगर मजबूत हैं तो कब कोई का वार नहीं होगा। अगर कहां भी, कोई भी वार करता है, उनका कारण इन तीनों में कोई-ना-कोई कमी है। या स्नेह की कमी है या फिर रूहानियत की कमी है। तो संगठन रूपी किले को मजबूत करने के लिए इन तीन बातों पर बहुत अटेन्शन चाहिए। हरेक स्थान पर इन बातों का फोर्स रखकर भी यह लाना चाहिए। जैसे स्थूल में भी वायुमण्डल को शुद्ध करने के लिए एअर Öौश करते हैं। उससे अल्पकाल के लिए वायुमण्डल चेन्ज हो जाता है। इस रीति से इसमें भी इन बातों का प्रैशर डालना चाहिए जिससे वायुमण्डल का भी असर निकल जाए। कोई को भी आकर्षण करने की मुख्य बातें यही होती हैं। स्नेह से, स्वच्छता से प्रभावित तो हो जाते हैं लेकिन मुख्य तीसरी बात रूहानियत की जो है, यह है मुख्य। दो बातों से प्रभावित होकर गए। यह तो उन्हों के प्रति विशेष वृति और दृष्टि में अटेन्शन रहा। उसकी रिजल्ट में यह लेकर के गए। तो जैसे लोगों को भी यह मुख्य बातें आकर्षण करने के लिए निमित्त बनती हैं ना। वैसे एक दो को संगठन में लाने के लिए वा संगठन में शक्ति बढ़ाने के लिए आपस में भी यह तीन बातें एक दो को देकर के अटेन्शन दिलाने की आवश्यकता है। अगर तीनों में से कोई भी बात की कमजोरी है तो ज़रूर कोई ना कोई विकनेस है। जो  कोई ना कोई विकनेस है। जो सफ़लता होनी चाहिए वह नहीं हो पाती, ज़रूर कोई कमी है। तो यह बातें बहुत ध्यान में रखनी हैं। किले की मजबूती होती है एक दो के संगठन से। अगर किले की दीवार में एक भी ईंर्ट वा पत्थर का सहयोग पूरा ना हो तो वह किला सेफ नहीं हो सकता।  कोई कमी है। तो यह बातें बहुत ध्यान में रखनी हैं। किले की मजबूती होती है एक दो के संगठन से। अगर किले की दीवार में एक भी ईंर्ट वा पत्थर का सहयोग पूरा ना हो तो वह किला सेफ नहीं हो सकता। ज़रा भी हिला तो कमजोरी आ जाएगी। भले कहने में तो एक ईंट की कमी है लेकिन कमजोरी चारों ओर फैलती है। तो वैसे ही मजबूती के लिए तीन बातें बहुत  भी हिला तो कमजोरी आ जाएगी। भले कहने में तो एक ईंट की कमी है लेकिन कमजोरी चारों ओर फैलती है। तो वैसे ही मजबूती के लिए तीन बातें बहुत ज़रूरी हैं। फिर कोई वायब्रेशन भी टच नहीं कर सकता। अपने ऊपर अटेन्शन कम है। जैसे साकार बाप साकार रूप में लाइट-हाउस, माइट-हाउस दूर से ही दिखाई देते थे, ऐसे रूहानियत की मजबूती होने से कोई भी अन्दर आएंगे तो लाइट-हाउस, माइट-हाउस का अनुभव करेंगे। जैसे स्नेह और स्वच्छता बाहर के रूप में दिखाई देती है, वैसे ही रूहानियत वा अलौकिकता बाहर रीति से प्रत्यक्ष दिखाई दे, तब जय-जयकार होगी। ड्रामा प्रमाण जो भी कुछ चल रहा है उसको यथार्थ तो कहेंगे ही लेकिन साथ-साथ शक्ति रूप का भी अनुभव होना चाहिए। यह अलौकिकता  हैं। फिर कोई वायब्रेशन भी टच नहीं कर सकता। अपने ऊपर अटेन्शन कम है। जैसे साकार बाप साकार रूप में लाइट-हाउस, माइट-हाउस दूर से ही दिखाई देते थे, ऐसे रूहानियत की मजबूती होने से कोई भी अन्दर आएंगे तो लाइट-हाउस, माइट-हाउस का अनुभव करेंगे। जैसे स्नेह और स्वच्छता बाहर के रूप में दिखाई देती है, वैसे ही रूहानियत वा अलौकिकता बाहर रीति से प्रत्यक्ष दिखाई दे, तब जय-जयकार होगी। ड्रामा प्रमाण जो भी कुछ चल रहा है उसको यथार्थ तो कहेंगे ही लेकिन साथ-साथ शक्ति रूप का भी अनुभव होना चाहिए। यह अलौकिकता ज़रूर होनी चाहिए। होनी चाहिए।

 

यह स्थान अन्य स्थानों से भिन्न है। स्वच्छता वा स्नेह तो दुनिया में भी अल्पकाल का मिलता है लेकिन रूहानियत कम है। यह ईश्वरीय कार्य चल रहा है, कोई साधारण बात नहीं है -- यह अनुभव यहां आकर करना चाहिए। वह तब होगा जब अपने अलौकिक नशे में रहकर के निशाना लगाएंगे। यह लक्ष्य ज़रूर रखना है -- अपने चरित्र द्वारा, चलन द्वारा, वाणी द्वारा, वृत्ति द्वारा, वायुमण्डल द्वारा, सभी प्रकार के साधनों से बाप के प्रैक्टिकल पार्ट की प्रत्यक्षता अवतरण-भूमि पर तो प्रत्यक्ष मिलनी चाहिए। सिर्फ स्नेह, स्वच्छता की प्रशंसा तो कहां भी कर सकते हैं, छोटे-छोटे स्थानों में भी प्रभाव पड़ सकता है लेकिन कर्म-भूमि, चरित्र-भूमि द्वारा भूमि में आने की विशेषता होनी चाहिए। जैसे कोई को घेराव डालकर के चारों ओर उसको अपने तरफ  रखना है -- अपने चरित्र द्वारा, चलन द्वारा, वाणी द्वारा, वृत्ति द्वारा, वायुमण्डल द्वारा, सभी प्रकार के साधनों से बाप के प्रैक्टिकल पार्ट की प्रत्यक्षता अवतरण-भूमि पर तो प्रत्यक्ष मिलनी चाहिए। सिर्फ स्नेह, स्वच्छता की प्रशंसा तो कहां भी कर सकते हैं, छोटे-छोटे स्थानों में भी प्रभाव पड़ सकता है लेकिन कर्म-भूमि, चरित्र-भूमि द्वारा भूमि में आने की विशेषता होनी चाहिए। जैसे कोई को घेराव डालकर के चारों ओर उसको अपने तरफ आकर्षित करने लिए करते हैं। तो बाप के साथ स्नेह में भी समीप लाने की प्वाईंट्स का घेराव डालो। इसके लिए विशेष इस भूमि पर सम्पर्क में आने वालों को सम्बन्ध में समीप लाना चाहिए। जो सम्पर्क में आने वाले हैं वही सम्बन्ध में समीप आ सकते हैं।

 

चारों ओर यही आवाज कानों में गूंजता रहे, चारों ओर यही वायुमण्डल उन्हों को भले देता रहे, इसके लिए तीन बातों की आवश्यकता है। अब तक जो हुआ वह तो कहेंगे ठीक हुआ। अच्छा तो सभी होता है। लेकिन अब की स्टेज प्रमाण अब होना चाहिए अच्छे से अच्छा। जबकि चैलेन्ज करते हो - 4 वर्ष में विनाश की ज्वाला प्रत्यक्ष हो जाएगी; तो स्थापना में भी ज़रूर बाप की प्रत्यक्षता होगी तब तो कार्य होगा ना। अच्छा! कमाल यह है जो विस्तार द्वारा बीज को प्रगट करें। विस्तार में बीज को गुप्त कर देते हैं। अब तो वृक्ष की अन्तिम स्टेज है ना। मध्य में गुप्त होता है। अन्त तक गुप्त नहीं रह सकता। अति विस्तार के बाद आखरीन बीज ही प्रत्यक्ष होता है ना। मनुष्य आत्माओं की यह नेचर होती है जो वैराइटी में  बाप की प्रत्यक्षता होगी तब तो कार्य होगा ना। अच्छा! कमाल यह है जो विस्तार द्वारा बीज को प्रगट करें। विस्तार में बीज को गुप्त कर देते हैं। अब तो वृक्ष की अन्तिम स्टेज है ना। मध्य में गुप्त होता है। अन्त तक गुप्त नहीं रह सकता। अति विस्तार के बाद आखरीन बीज ही प्रत्यक्ष होता है ना। मनुष्य आत्माओं की यह नेचर होती है जो वैराइटी में आकर्षित अधिक होते हैं। लेकिन आप लोग किसलिए निमित हो? सभी आत्माओं को वैराइटी वा विस्तार के आकर्षण से अटेन्शन निकालकर बीज तरफ आकर्षित करना। अच्छा!

 

दुसरी मुरली  परिवर्तन का आधार - दृढ़ संकल्प रिवाइज़ - 24-05-72

 

आज सर्व पुरुषार्थी आत्माओं को देख-देख खुश हो रहे हैं क्योंकि जानते हैं कि यही श्रेष्ठ आत्मायें सृष्टि को परिवर्तन करने के निमित बनी हुई हैं। एक-एक श्रेष्ठ आत्मा नंबरवार कितनी कमाल कर रही है। वर्तमान समय भले कोई भी कमी वा कमजोरी है लेकिन भविष्य में यही आत्मायें क्या से क्या बनने वाली हैं और क्या से क्या बनाने वाली हैं! तो भविष्य को देख, आप सभी की सम्पूर्ण स्टेज को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी से बड़े ते बड़े रूहानी जादूगर हो ना। जैसे जादूगर थोड़े ही समय में बहुत विचित्र खेल दिखाते हैं, वैसे आप रूहानी जादूगर भी अपनी रूहानियत की शक्ति से सारे विश्व को परिवर्तन में लाने वाले हो, कंगाल को डभले ताजधारी बनाने वाले हो। परन्तु इतना बड़ा कार्य स्वयं को बदलने अथवा विश्व को बदलने का, एक ही दृढ़ संकल्प से करने वाले हो। एक ही दृढ़ संकल्प से अपने को बदल देते हो। वह कौनसा एक दृढ़ संकल्प, जिस एक संकल्प से अनेक जन्मों की विस्मृति के संस्कार स्मृति में बदल जाएं? वह एक संकल्प कौनसा? है भी एक सेकेण्ड की बात जिससे स्वयं को बदल लिया। एक ही सेकेण्ड का और एक ही संकल्प यह धारण किया कि मैं आत्मा हूं। इस दृढ़ संकल्प से ही अपने सभी बातों को परिवर्तन में लाया। ऐसे ही, दृढ़ संकल्प से विश्व को भी परिवर्तन में लाते हो। वह एक दृढ़ संकल्प कौन-सा? हम ही विश्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त हैं अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हैं। इस संकल्प को धारण करने से ही विश्व के परिवर्तन के कर्त्तव्य में सदा तत्पर रहते हो। तो एक ही संकल्प से अपने को वा विश्व को बदल लेते हो, ऐसे रूहानी जादूगर हो। वह जादूगर तो अल्पकाल के लिए चीजों को परिवर्तन में लाकर दिखाते हैं, लेकिन आप रूहानी जादूगर अविनाशी परिवर्तन, अविनाशी प्राप्ति करने-कराने वाले हो। तो सदा अपने इस श्रेष्ठ मर्तबे और श्रेष्ठ कर्त्तव्य को सामने रखते हुए हर संकल्प वा कर्म करो तो कोई भी संकल्प वा कर्म व्यर्थ नहीं होगा। चलते-चलते पुराने शरीर और पुरानी दुनिया में रहते हुए अपने श्रेष्ठ मर्तबे को और श्रेष्ठ कर्त्तव्य को भूल जाने के कारण अनेक प्रकार की भूलें हो जाती हैं। अपने आपको भूलना - यह भी भूल है ना। जो अपने आपको भूलता है वह अनेक भूलों के निमित्त बन जाते हैं। इसलिए अपने मर्तबे को सदैव सामने रखो। जैसे सच्चे भक्त लोग जो होते हैं वह भी दुनिया की तुलना में, जो दुनिया वाले नास्तिक, अज्ञानी लोग विकर्म करते हैं, विकारों के वश होते हैं, उनसे काफी दूर रहते हैं। क्यों? कारण क्या होता है कि जो नवधा अर्थात् सच्चे भक्त हैं वह सदैव अपने सामने अपने इष्ट को रखते हैं। उनको सामने रखने कारण कई बातों में सेफ रह जाते हैं और कई आत्माओं से श्रेष्ठ बन जाते हैं। जब भक्त भी भक्ति द्वारा इष्ट को सामने रखने से नास्तिक और अज्ञानी से श्रेष्ठ बन सकते हैं, तो ज्ञानी तू आत्माएं सदा अपने श्रेष्ठ मर्तबे और कर्त्तव्य को सामने रखें तो क्या बन जाएंगी? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ आत्माएं। तो अपने आप से पूछो, देखो कि सदा अपना मर्तबा और कर्त्तव्य सामने रहता है? बहुत समय भूलने के संस्कारों को धारण किया, लेकिन अब भी अगर बार-बार भूलने के संस्कार धारण करते रहेंगे तो स्मृति-स्वरूप का जो नशा वा खुशी प्राप्त होनी चाहिए वह कब करेंगे? स्मृति-स्वरूप का सुख वा स्मृति-स्वरूप की खुशी का अनुभव क्यों नहीं होता है? उसका मुख्य कारण क्या है? अभी तक सर्व रूपों से नष्टोमोहा नहीं हुए हो। नष्टोमोहा हैं तो फिर भले कितनी भी कोशिश करो लेकिन स्मृतिस्वरूप में आ जाएंगे। तो प्हले ‘‘नष्टोमोहा कहां तक हुए हैं’’ - यह अपने आपको चेक करो। बार-बार देहअभिमान में आना यह सिद्ध करता है -- देह की ममता से परे नहीं हुए हैं वा देह के मोह को नष्ट नहीं किया है। नष्टोमोहा ना होने कारण समय और शक्तियां जो बाप द्वारा वर्से में प्राप्त हो रही हैं, उन्हों को भी नष्ट कर देते हो, काम में नहीं लगा सकते हो। मिलती तो सभी को हैं ना। जब बच्चे बने तो जो भी बाप की प्रापर्टा वा वर्सा है उसके अधिकारी बनते हैं। तो सर्व आत्माओं को सर्व शक्तियों का वर्सा मिलता ही है लेकिन उस सर्व शक्तियों के वर्से को काम में लगाना और अपने आप को उन्नति में लाना, यह नंबरवार पुरूषार्थ अनुसार होता है। इसलिए बेहद बाप के बच्चे और वर्सा हद का लेवें, तो क्या कहेंगे? बेहद मर्तबे के बजाए हद का वर्सा वा मर्तबा लेना - यह बेहद के बच्चों का कर्त्तव्य नहीं है। तो अभी भी अपने आपको बेहद के वर्से के अधिकारी बनाओ। अधिकारी कब अधीन नहीं होता है। अपनी रचना के अधीन नहीं होता है, अपनी रचना के अधीन होना, इसको अधिकारी कहेंगे? बार-बार विस्मृति में आने से अपने आप को ही कमजोर बना देते हो। कमजोर होने के कारण छोटी-सी बात का सामना नहीं कर पाते हो। तो अब आधे कल्प के इन विस्मृति के संस्कारों को विदाई दो। आज बाप दादा भी आप सभी से प्रतिज्ञा कराते हैं। जैसे आप लोग दुनिया वालों को चैलेन्ज करते हो कि विनाश में 4 वर्ष हैं; तो क्या 4 वर्ष के लिए भी अपने आपको सतोप्रधान नहीं बना सकते हो? जैसे दुनिया को चैलेन्ज करते हो वैसे आप भी 4 वर्ष के लिए विस्मृति के संस्कारों को विदाई नहीं दे सकते हो? दुनिया को चैलेन्ज करने वाले स्वयं अपने लिए 4 वर्ष के लिए माया को चैलेन्ज नहीं कर सकते हो? 4 वर्ष के लिए मायाजीत नहीं बन सकते हो? जब उन्हों को हिम्मत दिलाते हो, उल्लास में लाते हो, तो क्या अपने आपमें अपने प्रति अपने आपको हिम्मत-उल्लास नहीं दे सकते हो? तो आज से सिर्फ 4 वर्ष के लिए प्रतिज्ञा करो कि कभी किस रूप में भी, किस परिस्थिति में भी माया से हारेंगे नहीं लेकिन लड़ेंगे और विजयी बनेंगे। तो 4 वर्ष के लिए यह कंगन नहीं बांध सकते हो? जिन्हों को नॉलेज नहीं, शक्ति नहीं उन्हों को भी राखी बांध-बांध करके प्रतिज्ञा कराते हो और जो बहुत काल से नॉलेज, सम्बन्ध और शक्ति को प्राप्त करने वाले हों वह श्रेष्ठ आत्मायें, महावीर आत्मायें, शक्तिस्वरूप आत्मायें, पाण्डव सेना क्या यह प्रतिज्ञा की राखी नहीं बांध सकते हो? क्या अन्त तक कमजोरी और कमी को अपना साथी बनाने चाहते हो? आजकल साइन्स द्वारा भी एक सेकेण्ड में कोई भी वस्तु को भस्म कर लेते हैं। तो नॉलेजफुल मास्टर सर्वशक्तिवान एक सेकेण्ड के दृढ़ संकल्प से वा प्रतिज्ञा से अपनी कमजोरियों को भस्म नहीं कर सकते हो? वह भी सिर्फ 4 वर्ष के लिए कह रहे हैं। 4 वर्ष की प्रतिज्ञा सहज है वा मुश्किल है? औरों को तो बड़े फोर्स, फलक से यह प्वाइन्ट देते हो। तो जैसे औरों को फलक और फखुर से कहते हो वैसे अपने आप में भी विजयी बनने की फलक और फखुर नहीं रख सकते हो? तो आज से कमजोरियों को कम से कम 4 वर्ष के लिए तो विदाई दे दो। 4 वर्ष आप के लिए 4 सेकेण्ड हैं ना। अभी यहां हो, अभी- अभी वहां हो; अभी-अभी पुरुषार्थी, अभी-अभी फरिश्ता रूप -- इतना समीप अपनी सम्पूर्ण स्थिति दिखाई नहीं दे रही है? जब समय इतना नजदीक है तो सम्पूर्ण स्थिति भी तो नजदीक है। इससे भी पुरूषार्थ में भले भरेगा। जैसे कोई को मालूम पड़ जाता है कि मंजिल अभी सिर्फ इतनी थोड़ी-सी दूर है, मंजिल पर पहुंचने की खुशी में सभी बात भूल जाते हैं। यह जो चलते-चलते पुरूषार्थ में थकावट वा छोटी-छोटी उलझनों में फंसकर आलस्य में आ जाते हो, उन सभी को मिटाने के लिए अपने सामने स्पष्ट समय और समय के साथ-साथ अपनी प्राप्ति को रखो तो आलस्य वा थकावट मिट जायेगी। जैसे हर वर्ष का सर्विस प्लैन बनाते हो वैसे हर वर्ष में अपनी चढ़ती कला वा सम्पूर्ण बनने का वा श्रेष्ठ संकल्प वा कर्म करने का भी अपने आप के लिए प्लैन बनाओ और प्लैन के साथ हर समय प्लैन को सामने देखते हुए प्रैक्टिकल में लाते जाओ। अच्छा!

 

ऐसी प्रतिज्ञा कर अपने सम्पूर्ण स्वरूप को और बाप को प्रत्यक्ष करने वालों को नमस्ते।

 

वरदान:- बाप और प्राप्ति की स्मृति से सदा हिम्मत-हुल्लास में रहने वाले एकरस, अचल भव

 

बाप द्वारा जन्म से ही जो प्राप्तियां हुई हैं उनकी लिस्ट सदा सामने रखो। जब प्राप्ति अटल, अचल है तो हिम्मत और हुल्लास भी अचल होना चाहिए। अचल के बजाए यदि मन कभी चंचल हो जाता है वा स्थिति चंचलता में आ जाती है तो इसका कारण है कि बाप और प्राप्ति को सदा सामने नहीं रखते। सर्व प्राप्तियों का अनुभव सदा सामने वा स्मृति में रहे तो सब विघ्न खत्म हो जायेंगे, सदा नया उमंग, नया हुल्लास रहेगा। स्थिति एकरस और अचल रहेगी।

 

स्लोगन:- किसी भी प्रकार की सेवा में सदा सन्तुष्ट रहना ही अच्छे मार्क्स लेना है।