28-10-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 30-09-75 मधुबन
सारे कल्प में विशेष पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषताएँ
स्वयं को सारे कल्प के अन्दर सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें समझते हो? आप विशेष आत्माओं की आदि से अन्त तक क्या-क्या विशेषतायें हैं व आपने कौन-सा विशेष पार्ट बजाया है, उसको जानते हो? एक होता है विशेष काम करने के कारण विशेष आत्मा कहलाना, दूसरा विशेष गुणों के प्रभाव के कारण विशेष आत्मा कहलाना, तीसरा पोजीशन व स्टेटस के कारण और चौथा सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा अनेकों को विशेष प्राप्ति कराने के कारण। इन सब विशेषताओं को सामने रखते हुए देखो कि यह चार प्रकार की विशेषतायें किस स्टेज तक और कितने परसेन्टेज में हैं।
सतयुग के आदि में आप विशेष आत्माओं की फर्स्ट स्टेज कौन-सी होती है, उनकी विशेषता आज के भक्त भी गाते रहते हैं - जिसमें सम्पन्न और सम्पूर्णता का गायन है वह तो सबकी स्मृति में है ना? अब आगे चलो। सतयुग के बाद कहाँ आते हो? - (त्रेता) वहाँ की विशेषता क्या है? वहाँ की विशेषता भी इतनी ही प्रसिद्ध है, कि जो आज के कलियुगी नेता उसी राज्य का स्वप्न देखते रहते कि ऐसा होना चाहिए। कोई भी प्लान सोचते हैं, तो भी आपकी सेकेण्ड स्टेज को अति विशेष समझते हुए उसे सामने रखते हैं। और आगे चलो त्रेता के बाद कहाँ आते हैं? (द्वापर) लेकिन द्वापर में भी कहाँ पहुँचे। द्वापर में भी राज्य सत्ता तो होती है ना? वहाँ धर्मसत्ता और राज्य सत्ता दो टुकड़ों में बट जाती है। इसलिए द्वापर हो जाता है। दो पुर हो गये ना? एक राज्य-सत्ता दूसरी धर्म सत्ता। फिर भी आप विशेष आत्माओं के विशेष संस्कार गायब नहीं होते। चाहे अन्य धर्म पिता, धर्म सत्ता के आधार से धर्म की स्थापना भी करते हैं लेकिन आपकी विशेषताओं का पूजन, गायन और वन्दन आरम्भ हो जाता है। यादगार फिर भी आप विशेष आत्माओं की ही बनायेंगे। गुणगान आप विशेष आत्माओं के ही होते हैं। राज्य सत्ता में भी राजाई ठाठ और राजाई पावर्स रहती है। आपकी विशेषताओं की यादगार में शास्त्र बन जाते हैं। अपनी विशेषतायें याद आती हैं? अच्छा, इससे आगे चलो। कहाँ पहुँचे? (कलियुग) वहाँ की विशेषता क्या है? आप विशेष आत्माओं के नाम से सब काम शुरू होते हैं। हर कार्य की विधि में आपकी विशेषताओं की सिद्धि सुमिरण होती रहती है। आपके नाम से अनेक आत्माओं का शरीर निर्वाह होता है। नाम की महिमा - यह कलियुग की विशेषता है। आपका नाम सब स्थूल-सूक्ष्म प्राप्तियों का आधार बन जाता है। क्या इस विशेषता को जानते हो? अच्छा फिर आगे चलो? कहाँ पहुँचे? (संगम) जहाँ हैं वहाँ पहुँच गये।
संगम युग की विशेषताओं को तो स्वयं अब अनुभव कर ही रहे हो। सारे कल्प की विशेषताओं को सदा स्मृति में रखते हुए सदा अलौकिक विचित्र रास करते रहते हो। गोप-गोपियों की रास तो प्रसिद्ध ही है। तो निरन्तर रास करते हो अथवा प्रोग्राम से? यह है हुल्लास का रास। लेकिन इस रास में सम्पूर्ण पूर्णमासी की रास प्रसिद्ध है। इसका रहस्य क्या है? पूर्णमासी अर्थात् उसमें सम्पूर्णत: की निशानी गाई हुई है। इस रास की विशेषतायें अब तक वर्णन करते रहते हैं। वह कौन-सी विशेषतायें? उस समय गोप-गोपियों की विशेषता क्या थी? आपकी ही बातें हैं ना? मुख्य विशेषता क्या थी, तीन बातें सुनाओ? एक विशेषता रात को दिन बनाया हुआ था। दिन अर्थात् हर एक गोप-गोपी के जीवन में सतोप्रधानता का सूर्य उदय था। लोगों के लिये कुम्भकरण के नींद की रात थी अर्थात् तमोप्रधानता थी। दूसरी विशेषता सारा समय जागती ज्योति थे। माया एक संकल्प-रूप में भी आ नहीं पाती थी। मायावी लोग अर्थात् माया मूर्छित थी और बेहोश थी। क्योंकि सर्व जागती ज्योति निरन्तर बाप के साथ लगन में मग्न थे। तीसरी विशेषता सर्व का हाथ में हाथ मिला हुआ था और ताल से ताल मिला हुआ था अर्थात् संस्कार मिले हुए थे। स्नेह और सहयोग का संगठन था। रास में सार्किल अर्थात् चक्र लगाते हैं ना? सार्किल अर्थात् चक्र - यह शक्ति स्वरूप प्रकृति और माया को घेराव डालने की व किले की निशानी है। यह है विशेषतायें इसलिये इस रास का विशेष महत्व गाया हुआ है। यह हुआ संगमयुग की विशेषताओं का गायन। तो ऐसी रास निरन्तर होनी चाहिए। कितनी बार यह रास की है? अनेक बार की हुई है, फिर कभी भूल क्यों जाते हो? जब संस्कार मिलाना अर्थात् ताल से ताल मिलाना, ऐसी कोई परिस्थिति आती है तो क्या कहते हो? उस समय भक्त अर्थात् कमज़ोर बन जाते हो। संस्कार मिलाना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, झुकना पड़ेगा, सुनना पड़ेगा और सहन करना पड़ेगा - यह कैसे होगा? - ऐसे-ऐसे कहने से भक्त बनते हो। इसलिए अब उस भक्तपन के वंश के अंश को भी खत्म करो, तब ही इस रास मण्डल के अन्दर पहुँच सकेंगे। नहीं तो देखने वाले बन जायेंगे। जो करने में मजा है, वह देखने में नहीं। तो अपनी सर्व-विशेषतायें सुनी ना? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्मायें हो? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्माओं के लिये बापदादा को भी आना पड़ता है। अच्छा।
ऐसी विशेष आत्मायें जो बापदादा को भी मेहमान बनाने वाली है, ऐसी महान् आत्मायें जिन्हों का हर संकल्प अनेकों को महान् बनाने वाला है, ऐसी तकदीरवान जिनके मस्तक पर सदैव तकदीर का सितारा चमकता है और ऐसी पदमा-पदम भाग्यशाली आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
राशि मिलने वाले ही मणके के दाने
ऐसे रास करने वाले तैयार हुए हैं? संस्कारों का मिलना अर्थात् रास से रास मिलना। रास में अगर कोई का हाथ ऊपर, कोई का हाथ नीचे होगा, तो रास में मजा नहीं आयेगा। रास अर्थात् राशि मिलना। जैसे कोई भी कनेक्शन जोड़ते हैं व मिलन करते हैं, तो राशि मिलाते हैं ना? अगर राशि नहीं मिलती तो जोड़ी नहीं मिलाते हैं। एक-दो में राशि मिलना अर्थात् स्वभाव, संस्कार, गुण और सेवा साथ-साथ मिलने में दिखाई दे। समान तो नहीं हो सकता। नम्बर तो होंगे लेकिन जरा-सा अन्तर जो न के बराबर दिखाई दे-ऐसी राशि मिलने वाले कितने तैयार हुए हैं? क्या आधी माला? जितने भी तैयार हुए हैं, होना तो है, हुई पड़ी है सिर्फ घूँघट के अन्दर है। अच्छा।
(कुछ मुख्य भाई बहिनों से बापदादा की रूहरिहान)
महारथी और सब बच्चे अमृतवेले जब रूह-रूहान करते हैं तो महारथियों की रूह-रूहान और मिलन-मुलाकात और अनेक आत्माओं के मिलन और रूह-रूहान में क्या अन्तर होता है?
यह जो गायन है कि ‘आत्मा, परमात्मा में लीन हो जाती है’, यह कहावत किस रूप में राँग है। क्योंकि एक शब्द बीच से निकाल दिया है। सिर्फ लीन शब्द नहीं है लेकिन लवलीन। एक शब्द है लीन। एक लव में लीन। जो कोई अति स्नेह से मिलते हैं, तो उस समय स्नेह के मिलन के शब्द क्या निकलते हैं? यह तो जैसे कि एक-दूसरे में समा गए हैं या दोनों मिलकर एक हो गए हैं। ऐसे-ऐसे स्नेह के शब्दों को उन्होंने इस रूप से ले लिया है। यह जो गायन है कि वे एक-दूसरे में समाकर एक हो गये यह है जैसे कि महारथियों का मिलन। बाप में समा गये अर्थात् बाप का स्वरूप हो गये। ऐसा पॉवरफुल अनुभव महारथियों को ज्यादा होगा। बाकी और जो हैं वह खींचते हैं। स्नेह, शक्ति खींचने की कोशिश करते हैं - युद्ध करते-करते समय समाप्त कर देंगे-लेकिन महारथी बैठे और समाये। उनका लव इतना पॉवरफुल है जो बाप को स्वयं में समा देते हैं। बाप और बच्चा समान स्वरूप की स्टेज पर होंगे। जैसे बाप निराकार वैसे बच्चा। जैसे बाप के गुण, वैसे महारथी बच्चों के भी समान गुण होंगे। मास्टर हो गये ना? तो महारथी बच्चों का मिलन अर्थात् लवलीन होना। बाप में समा जाना। समा जाना अर्थात् समान स्वरूप का अनुभव करना। उस समय बाप और महारथी बच्चों के स्वरूप और गुणों में अन्तर नहीं अनुभव करेंगे। साकार होते हुए भी निराकार स्वरूप के लव में खोये हुए होते हैं, तो स्वरूप भी बाप समान हो गया। अर्थात् अपना निराकारी स्वरूप प्रैक्टिकल स्मृति में रहता है। जब स्वरूप-बाप-समान है तो गुण भी बाप समान। इसलिए महारथियों का मिलना अर्थात् बाप में समा जाना। जैसे नदी सागर में समा, सागर स्वरूप हो जाती है अर्थात् सर्व बाप के गुण स्वयं में अनुभव होते हैं, जो ब्रह्मा का अनुभव साकार में था, वह महारथियों का भी होगा। ऐसा अनुभव होता है? यह है सागर में समा जाना अर्थात् स्वयं के सम्पूर्ण स्टेज का अनुभव करना। यह अनुभव अब ज्यादा होना चाहिए।
हर संकल्प से वरदानी, नजर से वरदानी, नजर से निहाल करने वाले - बापदादा हर बच्चे की समीपता को देखते हैं। समीप अर्थात् समा जाना। अमृत वेले का टाईम है विशेष, ऐसा पॉवरफुल अनुभव करने का है। ऐसे अनुभव का प्रभाव सारा दिन चलेगा। जो अति प्यारी वस्तु होती है वह सदा समाई हुई रहती है। यह है महारथियों का मिलन अमृत वेले का। बाप दादा भी चेक करते हैं कौन-कौन कितना समीप है। जैसे मंदिर का पर्दा खुलता है दर्शन करने के लिए। वैसे अमृत वेले की सीन भी होती है। पहले मिलन मनाने की। हर बच्चा अमृत वेले का मिलन मनाने लिए, फर्स्ट नम्बर मिलन मनाने की दौड लगाने में तत्पर होता हैं। बाप चकमक है ना। तो ऑटोमेटिकली जो स्वयं स्वच्छ होते हैं, वह समीप आते हैं। बाहर की रीति से चाहे कोई कितना भी प्रयत्न करे लेकिन चकमक की तरफ समाने वाली स्वच्छ आत्मायें ही होती हैं। वह दृश्य बड़ा मजे का होता है। साक्षी होकर दृश्य देखने में बड़ा मजा आता है।
बच्चों को संकल्प उठता है कि बाप वतन में क्या करते रहते हैं-ब्रह्मा बाप साकार रूप से भी अव्यक्त रूप में अभी दिन-रात सेवा में ज्यादा सहयोगी बनने का पार्ट बजा रहे हैं। क्योंकि अब बाप-समान जन्म-मरण से न्यारा कर्म-बन्धन से मुक्त, कर्मातीत हैं। सिद्धि स्वरूप है। इस स्टेज में हर संकल्प से सिद्धि प्राप्त होती है। जो संकल्प किया वह सत्। इसलिए चारों ओर संकल्प की सिद्धि रूप से सहयोगी हैं। वाणी से संकल्प की गति तीव्र होती है। साकार से आकार की गति तीव्र है। तो संकल्प से सेवा का पार्ट है - वह भी सत-संकल्प। शुद्ध संकल्प। आपकी है ज्यादा वाणी द्वारा सेवा, मन्सा से भी है लेकिन ज्यादा वाणी से है, लेकिन ब्रह्मा बाप की अब सत्-संकल्प की सेवा है। तो तीव्र गति होगी ना? तो अभी सेवा का पार्ट ही चल रहा है। सेवा के बन्धन से मुक्त नहीं हैं, कर्म-बन्धन से मुक्त हैं। अच्छा।
वरदान:- बेफिक्र बादशाह की स्थिति में रह वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर रचयिता भव
जैसे बाप को इतना बड़ा परिवार है फिर भी बेफिक्र बादशाह है, सब कुछ जानते हुए, देखते हुए बेफिक्र। ऐसे फालो फादर करो। वायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालो, वायुमण्डल का प्रभाव आपके ऊपर नहीं पड़े क्योंकि वायुमण्डल रचना है और आप मास्टर रचयिता हो। रचता का रचना के ऊपर प्रभाव हो। कोई भी बात आये तो याद करो कि मैं विजयी आत्मा हूँ, इससे सदा बेफिक्र रहेंगे, घबरायेंगे नहीं।
स्लोगन:- प्रसन्नता की छाया द्वारा शीतलता का अनुभव करो तो निर्मल और निर्माण रहेंगे।