ओम् शान्ति।
बच्चों को समझाया गया है कि आत्माओं का निवास स्थान है टावर आफ साइलेन्स यानी शान्ति
की चोटी। जैसे हिमालय पहाड़ी की चोटी है ना। वह बहुत ऊंची होती है। तुम रहते भी ऊंच
ते ऊंच हो। वो लोग पहाड़ी पर चढ़ने की प्रैक्टिस करते हैं, रेस करते हैं। पहाड़ी पर
चढ़ने में भी कोई होशियार होते हैं। सब नहीं चढ़ सकते। तुम बच्चों को इसमें रेस आदि
करने की दरकार नहीं। आत्मा जो पतित है, उनको पावन बन ऊपर जाना है। इसको कहा जाता है
टावर ऑफ साइलेन्स। और वह फिर है टावर आफ साइंस। उनके बड़े-बड़े बाम्बस होते हैं,
उनका भी टावर होता है। वहाँ रखते हैं खौफनाक चीज़ें। जहर आदि बाम्बस में डालते हैं।
बाप कहते हैं बच्चे तुमको तो उड़ना है घर की तरफ। वह फिर घर बैठे ऐसे बाम्बस फेकते
हैं जो सब खत्म कर देंगे। तुमको तो यहाँ से ऊपर जाना है टावर ऑफ साइलेन्स। वहाँ से
तुम आये हो फिर जायेंगे तब जब सतोप्रधान बन जायेंगे। सतोप्रधान से तमोप्रधान में आये
हो फिर सतोप्रधान बनना है। जो सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करते वह फिर औरों को भी
रास्ता बताते हैं। तुम बच्चों को अब सुकर्म करना है। कोई भी विकर्म नहीं करना है।
बाप ने कर्मों की गति भी समझाई है। रावण राज्य में तुम्हारी दुर्गति हुई है। अब बाप
सुकर्म सिखाते हैं। 5 विकार बड़े दुश्मन हैं। मोह भी विकर्म है। कोई भी विकार कम नहीं
है। मोह रखने से भी देह-अभिमान में फँस पड़ते हैं इसलिए बाप कन्याओं को बहुत समझाते
हैं। कन्या पवित्र को कहा जाता है, माताओं को भी पवित्र बनना है। तुम सब
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हो। भल बुढ़िया हो परन्तु ब्रह्मा के तो बच्चे हो ना।
बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों, अब कुमार कुमारी की स्टेज से भी ऊपर जाओ। जैसे
पहले शरीर में आये फिर निकलकर जाना है, मेहनत करनी है। अगर ऊंच पद पाने चाहते हो तो
और कोई की स्मृति न आये। हमारे पास है ही क्या। हाथ खाली आये हैं ना, कुछ भी नहीं।
अपना यह शरीर भी नहीं है। अब इस शरीर को भूलना है। अनासक्त, कर्मातीत बन जाना है।
ट्रस्टी बनो। बाप कहते हैं भल घूमो फिरो, बाकी फालतू खर्चा मत करो। मनुष्य दान भी
बहुत करते हैं। अखबार में पड़ता है फलाना बहुत दानी है। हॉस्पिटल, धर्मशाला आदि
बनाई है। जो बहुत दान करते हैं उनको फिर गवर्मेन्ट से टाइटिल मिलता है। पहले-पहले
टाइटिल होते हैं हिज होलीनेस, हर होलीनेस। होली पवित्र को कहा जाता है। जैसे देवतायें
पवित्र थे ऐसे बनना है। फिर आधाकल्प पवित्र रहेंगे। बहुत कहेंगे यह कैसे हो सकता
है। वहाँ भी बच्चे पैदा होते हैं। तो फट से बोलो वहाँ रावण नहीं है। रावण द्वारा ही
विकारी दुनिया होती है। राम बाप आकर पावन बनाते हैं। वहाँ पतित कोई हो नहीं सकता।
कोई कहते हैं पवित्रता की बात भी नहीं करनी चाहिए। शरीर कैसे चल सकेगा। यह पता ही
नहीं है कि पवित्र दुनिया भी थी। अब अपवित्र दुनिया है। यह खेल है, वेश्यालय,
शिवालय.. पतित दुनिया, पावन दुनिया। पहले है सुख फिर है दु:ख। कहानी है कैसे राजाई
ली फिर कैसे गंवाई। यह अच्छी तरह से समझना है। हमने हार खाई है, हमको ही जीत पानी
है। बहादुर बनना चाहिए। अपनी अवस्था को जमाना चाहिए। घरबार होते, सम्भाल करते
पवित्र जरूर बनना है। कोई भी अपवित्र काम नहीं करना है। मोह भी बहुतों में होता है।
अपने को देखना चाहिए हमने प्रतिज्ञा की है कि आपके सिवाए किसको भी प्यार नहीं करेंगे
फिर दूसरों को क्यों प्यार करते हो! जो प्यारे ते प्यारी चीज़ है वह याद आनी चाहिए।
फिर और सब देह के सम्बन्ध भूल जायेंगे। सबको देखते ऐसे समझो हम अब स्वर्ग में जा रहे
हैं। यह सब कलियुगी बंधन है। हम दैवी सम्बन्ध में जा रहे हैं। और कोई मनुष्य की
बुद्धि में यह ज्ञान नहीं। तुम बाप की याद में अच्छी तरह रहो तो खुशी का पारा चढ़ा
रहेगा। जितना हो सके बन्धन कम करते जाओ। अपने को हल्का कर दो। बन्धन बढ़ाने की
ज़रूरत नहीं। इस राज्य पाने में खर्चे की ज़रूरत नहीं। बिगर खर्चे विश्व की राजाई
लेते हो। उन्हों का बारूद, लश्कर आदि पर कितना खर्चा होता है। तुम्हारे पास खर्चा
कुछ भी नहीं। तुम जो कुछ बाप को देते हो वह देते नहीं परन्तु लेते हो। बाप तो है
गुप्त। वह श्रीमत देते रहते हैं कि म्युज़ियम खोलो, हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलो,
जिससे तुम नॉलेज प्राप्त करते हो। योग से तुम सदैव के लिए निरोगी बन जाते हो। हेल्थ,
वेल्थ उनके साथ हैपीनेस तो है ही - 21 जन्मों के लिए। एक सेकेण्ड में मुक्ति
जीवनमुक्ति कैसे मिलती है वह आकर समझो। द्वार पर ही समझा सकते हो। जैसे दरवाजे पर
भीख मांगने आते हैं ना। तुम भी जैसे भीख देते हो जिससे मनुष्य एकदम मालामाल बन जाते
हैं। कोई भी हो बोलो तुम क्या भीख मांगते हो। हम तुमको ऐसी भीख देते हैं जो तुम
जन्म-जन्मान्तर भीख मांगने से ही छूट जायेंगे। बेहद के बाप और सृष्टि चक्र को जानने
से तुम यह बनते हो।
तुम्हारा यह बैज भी कमाल कर सकता है। सेकेण्ड में बेहद का वर्सा इनसे तुम कोई को
भी दे सकते हो। सर्विस करनी चाहिए। बाप सेकेण्ड में विश्व का मालिक बनाते हैं। फिर
है पुरूषार्थ पर। छोटे बड़े सबको कहा जाता है बाप को याद करो। ट्रेन में भी तुम बैज
पर सर्विस कर सकते हो। बैज सदा लगाकर रहो, इस पर तुम सबको समझा सकते हो कि तुमको दो
बाप हैं। दो से ही वर्सा मिलता है। ब्रह्मा से वर्सा नहीं मिलता है। वह तो दलाल है।
इन द्वारा बाप तुमको सिखलाते हैं और वर्सा देते हैं। मनुष्य, मनुष्य देखकर समझाना
चाहिए। यात्रा पर भी बहुत जाते हैं। वह सब है जिस्मानी यात्रायें। यह है रूहानी।
इससे तुम विश्व के मालिक बनते हो। जिस्मानी यात्रा से तो धक्के खाते रहते हैं। सीढ़ी
का चित्र भी साथ में हो। सर्विस करते रहो फिर उनको भोजन आदि की भी दरकार नहीं रहेगी।
कहा जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं। धन नहीं होगा तो उनको घड़ी-घड़ी भूख लगती रहेगी।
धनवान राजाओं का जैसे पेट भरा रहता है। बड़ी रॉयल चलन होती है। बातचीत भी
फर्स्टक्लास। तुम समझते हो हम क्या बन रहे हैं! वहाँ खान पान आदि बड़ी रॉयल्टी से
होता है। बे-टाइम कभी खाते नहीं। बड़ा रायॅल्टी से शान्ति से खाते हैं। तुम्हें सब
गुण सीखने चाहिए। निराकार की महिमा देवताओं की महिमा और अपनी महिमा तीनों की जाँच
करो। अब तुम बाबा के गुणों वाले बन रहे हो फिर बनेंगे देवताओं के गुण वाले। तो वह
गुण अभी धारण करने चाहिए। अब तुम दैवीगुण धारण कर रहे हो। गाते हैं शान्ति का सागर,
प्रेम का सागर.. जैसे बाप पूजा जाता है वैसे तुम भी पूजे जाते हो। बाप तुमको नमस्ते
करते हैं। तुम्हारी तो पूजा भी डबल होती है। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं।
तुम्हारी महिमा भी समझाते हैं कि पुरूषार्थ कर ऐसा बनो। दिल से पूछना चाहिए कि हम
ऐसे बने हैं? जैसे हम अशरीरी आये हैं वैसे अशरीरी होकर जाना है। शास्त्रों में भी
है, लाठी भी छोड़ो। परन्तु इसमें लाठी की बात नहीं। यहाँ तो शरीर को छोड़ने की बात
है। बाकी सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। यहाँ सिर्फ बाप को याद करना है। बाप बिगर
दूसरा न कोई।
तुम बच्चों को ज्ञान मिला है, तुम जानते हो मनुष्य कितना गुरूओं की जंजीरो में
फँसे हुए हैं। अनेक प्रकार के गुरू हैं। अब तुम्हें न गुरू चाहिए, न कुछ पढ़ना ही
है। बाप ने एक ही मंत्र दे दिया है - मामेकम् याद करो। वर्से को याद करो और दैवीगुण
धारण करो। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है। यहाँ आते हो रिफ्रेश होने के
लिए। यहाँ समझेंगे हम बाबा के सम्मुख बैठे हैं। वहाँ समझेंगे कि बाबा मधुबन में बैठे
हैं। जैसे हमारी आत्मा तख्त पर बैठी है वैसे बाबा भी इस तख्त पर बैठे हैं। बाबा कोई
गीता शास्त्र आदि हाथ में नहीं लेते हैं। ऐसे भी नहीं इसने कोई कण्ठ किया हुआ है।
वह तो संन्यासी आदि कण्ठ करते हैं। यह तो है ज्ञान का सागर। ब्रह्मा द्वारा सब राज़
समझाते हैं। शिवबाबा कभी कोई स्कूल में सतसंग में गया है क्या? बाप तो सब कुछ जानते
ही हैं। कोई कहे भला साइंस जानते हैं? बाबा कहते हैं साइंस से हमको क्या करना है।
मुझे बुलाते ही हैं कि आकर पतितों को पावन बनाओ, इसमें साइंस क्यों सीखूंगा। कहेंगे
शिवबाबा फलाना शास्त्र पढ़े हैं? अरे उनके लिए तो कहा जाता है ज्ञान का सागर। यह तो
भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं। विष्णु के हाथ में शंख, चक्र आदि दे दिया है। अर्थ का
कुछ भी पता नहीं। वास्तव में यह अलंकार ब्रह्मा को और ब्राह्मणों को देना चाहिए।
सूक्ष्मवतन में तो यह शरीर ही नहीं। ब्रह्मा का साक्षात्कार भी घर बैठे बहुतों को
होता है। श्रीकृष्ण का भी होता है। इसका अर्थ है इस ब्रह्मा के पास जाओ तो
श्रीकृष्ण जैसा बन जायेंगे वा श्रीकृष्ण की गोद में आ जायेंगे। वह सिर्फ प्रिन्स का
साक्षात्कार होता है। अगर तुम अच्छी रीति पढ़ेंगे तो यह बन सकते हो। यह है एम
आबजेक्ट। सैम्पुल तो एक का बतायेंगे ना। उसको मॉडल कहते हैं। तुम जानते हो बाबा आया
है सत्य नारायण की कथा सुनाने, नर से नारायण बनाने। पहले तो जरूर प्रिन्स बनेंगे।
शास्त्रों में दिखाया है श्रीकृष्ण ने माखन खाया, वास्तव में यह है विश्व की बादशाही
का गोला। बाकी चन्द्रमा आदि कैसे मुख में दिखायेंगे। कहते भी हैं दो बिल्ले आपस में
लड़े, बीच में जो सृष्टि का मालिक बना उनको माखन दिखा दिया है। अब अपने को देखो हम
ऐसे बने हैं वा नहीं। यह पढ़ाई है ही राजाई पद के लिए। प्रजा पाठशाला थोड़ेही कहेंगे।
यह है नर से नारायण बनने की पाठशाला। गॉडली युनिवर्सिटी। भगवान पढ़ाते हैं। बाबा ने
कहा लिखो ईश्वरीय विश्व विद्यालय, ब्रैकेट में लिखो युनिवर्सिटी। परन्तु यह लिखना
भूल जाते हैं। तुम कितना भी लिटरेचर दो तो भी कुछ समझेंगे नहीं। इसमें सम्मुख समझाना
पड़ता है। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। जन्म जन्मान्तर तुम हद का वर्सा
लेते आये हो। तुम बैज पर सर्विस कर सकते हो। भल कोई हंसी भी करे। दो बाप की बात
अच्छी है। ऐसे बहुत अपने बच्चों को समझाते हैं। बच्चे भी बाप को समझा लेते हैं।
स्त्री पति को ले आती है। कहाँ-कहाँ फिर झगड़ते हैं। अब तुम जानते हो, तुम सब
आत्मायें बच्चे हो। वर्से के हकदार हो। लौकिक सम्बन्ध में बच्ची शादी करके दूसरे घर
में जाती है, उनको कन्या दान कहा जाता है। दूसरे को देते हैं ना। अभी तो वह काम नहीं
करना है। वहाँ स्वर्ग में भी कन्या दूसरे घर में जाती है परन्तु पवित्र रहती है। यह
है पतित दुनिया और वह सतयुग है शिवालय, पावन दुनिया। तुम बच्चों पर अब है बृहस्पति
की दशा। तुम स्वर्ग में तो ज़रूर जायेंगे यह तो पक्का-पक्का है। बाकी पुरूषार्थ से
ऊंच पद पाना है। दिल से पूछना है कि हम फलाने मिसल सर्विस करते हैं। ऐसे नहीं
ब्राह्मणी (टीचर) चाहिए, टीचर तुम खुद बनो। अच्छा!
बच्चों को पुरूषार्थ करना है। बाकी बाबा किससे पैसे ले करके क्या करेंगे। तुम
जाकर म्युजियम आदि खोलो। मकान आदि तो सब यहाँ खत्म हो जायेंगे। बाबा तो व्यापारी है
ना। शर्राफ भी है। दु:ख की जंजीरों से छुड़ाए सुख देने वाला है। अब बाप कहते हैं
बहुत गई थोड़ी रही.. तुम देखते रहेंगे, बहुत हंगामे होंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ट्रस्टी और अनासक्त बनकर रहो। कोई भी फालतू (व्यर्थ) खर्चे मत करो।
स्वयं को देवताओं जैसा पवित्र बनाने का पुरूषार्थ करते रहो।
2) एक प्यारे ते प्यारी चीज़ (बाप) को याद करो। जितना हो सके कलियुगी बन्धन को
हल्का करते जाओ, बढ़ाओ मत। सतयुगी दैवी सम्बन्ध में जा रहे हैं, इस खुशी में रहो।