18-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – सवेरे-सवेरे उठ यही चिंतन करो कि मैं इतनी
छोटी-सी आत्मा कितने बड़े शरीर को चला रही हूँ, मुझ आत्मा में अविनाशी पार्ट नूँधा
हुआ है”
प्रश्नः-
शिवबाबा को
कौन-सी प्रैक्टिस है, कौन-सी नहीं?
उत्तर:-
आत्मा
का ज्ञान रत्नों से श्रृंगार करने की प्रैक्टिस शिवबाबा को है, बाकी शरीर का
श्रृंगार करने की प्रैक्टिस उन्हें नहीं क्योंकि बाबा कहते मुझे तो अपना शरीर है नहीं।
मैं इनका शरीर भल किराये पर लेता हूँ लेकिन इस शरीर का श्रृंगार यह आत्मा स्वयं करती,
मैं नहीं करता। मैं तो सदा अशरीरी हूँ।
गीत:- बदल जाए
दुनिया न बदलेंगे हम……..
ओम् शान्ति।
बच्चों ने यह गीत सुना।
किसने सुना? आत्मा ने इन शरीर के कानों द्वारा सुना। बच्चों को भी यह मालूम पड़ा कि
आत्मा कितनी छोटी है। वह आत्मा इस शरीर में नहीं है तो शरीर कोई काम का नहीं रहता।
कितनी छोटी आत्मा के आधार पर यह कितना बड़ा शरीर चलता है। दुनिया में किसको भी पता
नहीं है कि आत्मा क्या चीज़ है जो इस रथ पर विराजमान होती है। अकालमूर्त आत्मा का
यह तख्त है। बच्चों को भी यह ज्ञान मिलता है। कितना रमणीक, रहस्य युक्त है। जब कोई
ऐसी रहस्ययुक्त बात सुनी जाती है तो चिन्तन चलता है। तुम बच्चों का भी यही चिन्तन
चलता है – इतनी छोटी सी आत्मा है इतने बड़े शरीर में। आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट
नूँधा हुआ है। शरीर तो विनाश हो जाता है। बाकी आत्मा रहती है। यह बड़ी विचार की बाते
हैं। सवेरे उठकर यह ख्याल करना चाहिए। बच्चों को स्मृति आई है आत्मा कितनी छोटी है,
उनको अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। मैं आत्मा कितनी वन्डरफुल हूँ। यह नया ज्ञान है।
जो दुनिया में किसको भी नहीं है। बाप ही आकर बतलाते हैं, जो सिमरण करना होता है। हम
कितनी छोटी सी आत्मा कैसे पार्ट बजाती है। शरीर 5 तत्वों का बनता है। बाबा को
थोड़ेही मालूम पड़ता है। शिवबाबा की आत्मा कैसे आती-जाती है। ऐसे भी नहीं, सदैव इसमें
रहती है। तो यही चिंतन करना है। तुम बच्चों को बाप ऐसा ज्ञान देते हैं जो कभी कोई
को मिल न सके। तुम जानते हो बरोबर यह ज्ञान इनकी आत्मा में नहीं था। और सतसंगों में
ऐसी-ऐसी बातों पर कोई का ख्याल नहीं रहता है। आत्मा और परमात्मा का रिंचक भी ज्ञान
नहीं है। कोई भी साधू-संन्यासी आदि यह थोड़ेही समझते कि हम आत्मा शरीर द्वारा इनको
मंत्र देती है। आत्मा शरीर द्वारा शास्त्र पढ़ती है। एक भी मनुष्य मात्र
आत्म-अभिमानी नहीं है। आत्मा का ज्ञान कोई को है नहीं, तो फिर बाप का ज्ञान कैसे
होगा।
तुम बच्चे जानते हो
हम आत्माओं को बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों! तुम कितना समझदार बन रहे हो। ऐसा कोई
मनुष्य नहीं जो समझे कि इस शरीर में जो आत्मा है, उनको परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते
हैं। कितनी समझने की बातें हैं। परन्तु फिर भी धन्धे आदि में जाने से भूल जाते हैं।
पहले तो बाप आत्मा का ज्ञान देते हैं जो कोई भी मनुष्य मात्र को नहीं है। गायन भी
है ना – आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल… हिसाब है ना। तुम बच्चे जानते हो आत्मा
ही बोलती है शरीर द्वारा। आत्मा ही शरीर द्वारा अच्छे वा बुरे काम करती है। बाप आकर
आत्माओं को कितना गुल-गुल बनाते हैं। पहले-पहले तो बाप कहते हैं सवेरे-सवेरे उठकर
यही प्रैक्टिस वा ख्याल करो कि आत्मा क्या है? जो इस शरीर द्वारा सुनती है। आत्मा
का बाप परमपिता परमात्मा है, जिसको पतित-पावन, ज्ञान का सागर कहते हैं। फिर कोई
मनुष्य को सुख का सागर, शान्ति का सागर कैसे कह सकते। क्या लक्ष्मी-नारायण को कहेंगे
सदैव पवित्रता का सागर? नहीं। एक बाप ही सदैव पवित्रता का सागर है। मनुष्य तो सिर्फ
भक्ति मार्ग के शास्त्रों का बैठ वर्णन करते हैं। प्रैक्टिकल अनुभव नहीं है। ऐसे नहीं
समझेंगे हम आत्मा इस शरीर से बाप की महिमा करते हैं। वह हमारा बहुत मीठा बाबा है।
वही सुख देने वाला है। बाप कहते हैं – हे आत्मायें, अब मेरी मत पर चलो। यह अविनाशी
आत्मा को अविनाशी बाप द्वारा अविनाशी मत मिलती है। वह विनाशी शरीरधारियों को विनाशी
शरीरधारियों की ही मत मिलती है। सतयुग में तो तुम यहाँ की प्रालब्ध पाते हो। वहाँ
कभी उल्टी मत मिलती ही नहीं। अभी की श्रीमत ही अविनाशी बन जाती है, जो आधाकल्प चलती
है। यह नया ज्ञान है, कितनी बुद्धि चाहिए इसको ग्रहण करने की। और एक्ट में आना
चाहिए। जिन्हों ने शुरू से बहुत भक्ति की होगी वही अच्छी रीति धारण कर सकेंगे। यह
समझना चाहिए – अगर हमारी बुद्धि में ठीक रीति धारणा नहीं होती है, तो जरूर शुरू से
हमने भक्ति नहीं की है। बाप कहते हैं कुछ भी नहीं समझते हो तो बाप से पूछो क्योंकि
बाप है अविनाशी सर्जन। उनको सुप्रीम सोल भी कहा जाता है। आत्मा पवित्र बनती है तो
उनकी महिमा होती है। आत्मा की महिमा है तो शरीर की भी महिमा होती है। आत्मा
तमोप्रधान है तो शरीर की भी महिमा नहीं। इस समय तुम बच्चों को बहुत गुह्य बुद्धि
मिलती है। आत्मा को ही मिलती है। आत्मा को कितना मीठा बनना चाहिए। सबको सुख देना
चाहिए। बाबा कितना मीठा है। आत्माओं को भी बहुत मीठा बनाते हैं। आत्मा कोई भी
अकर्तव्य कार्य न करे – यह प्रैक्टिस करनी है। चेक करना है कि मेरे से कोई अकर्तव्य
तो नहीं होता है? शिवबाबा कभी अकर्तव्य कार्य करेंगे? नहीं। वह आते ही हैं उत्तम से
उत्तम कल्याणकारी कार्य करने। सबको सद्गति देते हैं। तो जो बाप कर्तव्य करते हैं,
बच्चों को भी ऐसा कर्तव्य करना चाहिए। यह भी समझाया है, जिसने शुरू से लेकर बहुत
भक्ति की है, उनकी बुद्धि में ही यह ज्ञान ठहरेगा। अभी भी देवताओं के ढेर भक्त हैं।
अपना सिर देने के लिए भी तैयार रहते हैं। बहुत भक्ति करने वालों के पिछाड़ी, कम
भक्ति करने वाले लटकते रहते। उनकी महिमा गाते हैं। उनका तो स्थूल में सब देखने में
आता है। यहाँ तुम हो गुप्त। तुम्हारी बुद्धि में सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का सारा
ज्ञान है। यह भी बच्चों को मालूम है – बाबा हमको पढ़ाने आये हैं। अब फिर हम घर
जायेंगे। जहाँ सब आत्मायें आती हैं, वह हमारा घर है। वहाँ शरीर ही नहीं तो आवाज़
कैसे हो। आत्मा के बिना शरीर जड़ बन जाता है। मनुष्यों का शरीर में कितना मोह रहता
है! आत्मा शरीर से निकल गई तो बाकी 5 तत्व, उन पर भी कितना लव रहता है। स्त्री पति
की चिता पर चढ़ने लिए तैयार हो जाती है। कितना मोह रहता है शरीर में। अभी तुम समझते
हो नष्टोमोहा होना है, सारी दुनिया से। यह शरीर तो खत्म होना है। तो उनसे मोह निकल
जाना चाहिए ना। परन्तु बहुत मोह रहता है। ब्राह्मणों को खिलाते हैं। याद करते हैं
ना – फलाने का श्राध है। अब वह थोड़ेही खा सकते हैं। तुम बच्चों को तो अब इन बातों
से अलग हो जाना चाहिए। ड्रामा में हर एक अपना पार्ट बजाते हैं। इस समय तुमको ज्ञान
है, हमको नष्टोमोहा बनना है। मोहजीत राजा की भी कहानी है ना और कोई मोह जीत राजा
होता नहीं। यह तो कथायें बहुत बनाई हैं ना। वहाँ अकाले मृत्यु होती नहीं। तो पूछने
की भी बात नहीं रहती। इस समय तुमको मोहजीत बनाते हैं। स्वर्ग में मोह जीत राजायें
थे, यथा राजा रानी तथा प्रजा ऐसे हैं। वह है ही नष्टोमोहा की राजधानी। रावण राज्य
में मोह होता है। वहाँ तो विकार होता नहीं, रावण राज्य ही नहीं। रावण की राजाई चली
जाती है। राम राज्य में क्या होता है, कुछ भी पता नहीं। सिवाए बाप के और कोई यह बातें
बता न सके। बाप इस शरीर में होते भी देही-अभिमानी है। लोन अथवा किराये पर मकान लेते
हैं तो उसमें भी मोह रहता है। मकान को अच्छी रीति फर्निश करते हैं, इनको तो फर्निश
करना नहीं है क्योंकि बाप तो अशरीरी है ना। इनको कोई भी श्रृंगार आदि करने की
प्रैक्टिस ही नहीं है। इनको तो अविनाशी ज्ञान रत्नों से बच्चों को श्रृंगारने की ही
प्रैक्टिस है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। शरीर तो अपवित्र ही है,
इनको जब दूसरा नया शरीर मिलेगा तो पवित्र होंगे। इस समय तो यह पुरानी दुनिया है, यह
खत्म हो जानी है। यह भी दुनिया में किसको पता ही नहीं है। धीरे-धीरे मालूम पड़ेगा।
नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश – यह तो बाप का ही काम है। बाप ही
आकर ब्रह्मा द्वारा प्रजा रच नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। तुम नई दुनिया में
हो? नहीं, नई दुनिया स्थापन होती है। तो ब्राह्मणों की चोटी भी ऊंच है। बाबा ने
समझाया है, बाबा के सम्मुख आते हो तो पहले यह याद करना है कि हम ईश्वर बाप के
सम्मुख जाते हैं। शिवबाबा तो निराकार है। उनके सम्मुख हम कैसे जायें। तो उस बाप को
याद कर फिर बाप के सम्मुख आना है। तुम जानते हो वह इसमें बैठा हुआ है। यह शरीर तो
पतित है। शिवबाबा की याद में न रह कोई काम करते हो तो पाप लग जाता है। हम शिवबाबा
के पास जाते हैं। फिर दूसरे जन्म में दूसरे सम्बन्धी होंगे। वहाँ देवताओं की गोद
में जायेंगे। यह ईश्वरीय गोद एक ही बार मिलती है। मुख से कहते हैं बाबा हम आपका हो
चुका। बहुत हैं जिन्होंने कभी देखा भी नहीं है। बाहर में रहते हैं, लिखते हैं
शिवबाबा हम आपकी गोद के बच्चे हो चुके हैं। बुद्धि में ज्ञान है। आत्मा कहती है-हम
शिवबाबा के बन चुके। इनके पहले हम पतित की गोद के थे। भविष्य में पवित्र देवता की
गोद में जायेंगे। यह जन्म दुर्लभ है। हीरे जैसा तुम यहाँ संगमयुग पर बनते हो।
संगमयुग कोई उस पानी के सागर और नदियों को नहीं कहा जाता। रात दिन का फ़र्क है।
ब्रह्मपुत्रा बड़े ते बड़ी नदी है, जो सागर में मिलती है। नदियां जाकर सागर में
पड़ती हैं। तुम भी सागर से निकली हुई ज्ञान नदी हो। ज्ञान सागर शिवबाबा है। बड़े ते
बड़े नदी है ब्रह्मपुत्रा। इनका नाम ब्रह्मा है। सागर से इनका कितना मेल है। तुमको
मालूम है नदियां कहाँ से निकलती हैं। सागर से ही निकलती हैं, फिर सागर में पड़ती
हैं। सागर से मीठा पानी खींचते हैं। सागर के बच्चे फिर सागर में जाकर मिलते हैं।
तुम भी ज्ञान सागर से निकली हो फिर सब वहाँ चली जायेंगी, जहाँ वह रहते हैं, वहाँ
तुम आत्मायें भी रहती हो। ज्ञान सागर आकर तुमको पवित्र मीठा बनाते हैं। आत्मा जो
खारी बन गई है उनको मीठा बनाते हैं। 5 विकारों रूपी छी-छी नमकीन तुमसे निकल जाती
है, तो तुम तमोप्रधान से सतो-प्रधान बन जाते हो। बाप पुरूषार्थ बहुत कराते हैं। तुम
कितने सतोप्रधान थे, स्वर्ग में रहते थे। तुम बिल्कुल छी-छी बन गये हो। रावण ने
तुमको क्या बनाया है। भारत में ही गाया जाता है हीरे जैसा जन्म अमोलक।
बाबा कहते रहते हैं
तुम कौड़ियों पिछाड़ी क्यों हैरान होते हो। कौड़ियां भी जास्ती थोड़ेही चाहिए। गरीब
झट समझ जाते हैं। साहूकार तो कहते हैं अभी हमारे लिए यहाँ ही स्वर्ग है। तुम बच्चे
जानते हो – जो भी मनुष्यमात्र हैं सबका इस समय कौड़ी जैसा जन्म है। हम भी ऐसे थे।
अभी बाबा हमको क्या बनाते हैं। एम-ऑब्जेक्ट तो है ना। हम नर से नारायण बनते हैं।
भारत अब कौड़ी जैसा कंगाल है ना। भारतवासी खुद थोड़ेही जानते। यहाँ तुम कितने
साधारण अबलायें हो। कोई बड़ा आदमी होगा तो उनको यहाँ बैठने की दिल नहीं होगी। जहाँ
बड़े-बड़े आदमी संन्यासी गुरू आदि लोग होंगे वहाँ की बड़ी-बड़ी सभाओं में जायेंगे।
बाप भी कहते हैं मैं गरीब निवाज हूँ। कहते हैं भगवान गरीबों की रक्षा करते हैं। अभी
तुम जानते हो – हम कितने साहूकार थे। अभी फिर बनते हैं। बाबा लिखते भी हैं तुम
पदमापदमपति बनते हो। वहाँ पर मारा-मारी नहीं होती है। यहाँ तो देखो पैसे के पीछे
कितनी मारामारी है। रिश्वत कितनी मिलती है। पैसे तो मनुष्यों को चाहिए ना। तुम बच्चे
जानते हो बाबा हमारा खजाना भरपूर कर देते हैं। आधाकल्प के लिए जितना चाहिए उतना धन
लो, परन्तु पुरूषार्थ पूरा करो। गफलत नहीं करो। कहा जाता है ना फालो फादर। फादर को
फालो करो तो यह जाकर बनेंगे। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी, बड़ा भारी इम्तहान है।
इसमें जरा भी ग़फलत नहीं करनी चाहिए। बाप श्रीमत देते हैं तो फिर उस पर चलना है।
कायदे कानून का उल्लंघन नहीं करना है। श्रीमत से ही तुम श्री बनते हो। मंजिल बहुत
बड़ी है। अपना रोज़ का खाता रखो। कमाई की या नुकसान किया? बाप को कितना याद किया?
कितने को रास्ता बताया? अन्धों की लाठी तुम हो ना। तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता
है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जैसे बाप मीठा है,
ऐसे मीठा बन सबको सुख देना है। कोई भी अकर्तव्य कार्य नहीं करना है। उत्तम से उत्तम
कल्याण का ही कार्य करना है।
2) कौड़ियों के पिछाड़ी
हैरान नहीं होना है। पुरूषार्थ कर अपनी जीवन हीरे जैसी बनानी है। गफलत नहीं करनी
है।
वरदान:-
अपनी रूहानी लाइटस द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने
की सेवा करने वाले सहज सफलतामूर्त भव
जैसे साकार सृष्टि में जिस रंग की लाइट जलाते हो वही
वातावरण हो जाता है। अगर हरी लाइट होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है। लाल
लाइट जलाते हो तो याद का वायुमण्डल बन जाता है। जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को
परिवर्तन कर देती है तो आप लाइट हाउस भी पवित्रता की लाइट व सुख की लाइट से
वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। स्थूल लाइट आंखों
से देखते हैं, रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे।
स्लोगन:-
व्यर्थ
बातों में समय और संकल्प गँवाना - यह भी अपवित्रता है।