ओम् शान्ति।
अब बच्चे जानते हैं बाबा हमको ज्ञान और योग सिखलाते हैं। हमारा योग कैसा है, यह तो
बच्चे ही जानते हैं। हम जो पवित्र थे, वह अब अपवित्र बने हैं क्योंकि 84 जन्मों का
हिसाब तो चाहिए ना। यह 84 जन्मों का चक्र है। यह जानेंगे भी वे ही जो 84 जन्म लेते
होंगे। तुम बच्चों को बाप द्वारा मालूम हुआ है। अब ऐसे बाप का भी अगर नहीं मानेंगे
तो बाकी किसका मानेंगे! बाप की मत मिलती है। ऐसे बहुत हैं जो बिल्कुल नहीं मानते।
कोटों में कोई मानेंगे। बाप शिक्षा भी कितनी क्लीयर देते हैं। तुम बच्चे ही मानेंगे
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सब एकरस तो नहीं मानेंगे। टीचर की पढ़ाई को सब एकरस नहीं
मानेंगे अथवा पढ़ेंगे। नम्बरवार कोई 20 मार्क्स लेते हैं, कोई कितनी मार्क्स लेते
हैं। कोई तो नापास हो पड़ते हैं। नापास क्यों होते हैं? क्योंकि टीचर की मत पर नहीं
चलते हैं। वहाँ अनेक मतें मिलती हैं। यहाँ एक ही मत मिलती है। यह है वन्डरफुल मत।
बच्चे जानते हैं बरोबर हमने 84 जन्म लिए हैं। बाप कहते हैं - मैं जिसमें प्रवेश करता
हूँ.... यह किसने कहा? शिवबाबा ने। मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ, जिसको भागीरथ कहते
हैं, वह अपने जन्मों को नहीं जानते थे। तुम बच्चे भी नहीं जानते थे। तुमको अभी
समझाता हूँ। तुम इतने जन्म सतोप्रधान थे फिर सतो-रजो-तमो में आते नीचे उतरते आये।
अब तुम यहाँ पढ़ने लिए आये हो। पढ़ाई है कमाई, सोर्स ऑफ इनकम। यह पढ़ाई है ही दी
बेस्ट। उस पढ़ाई में कहेंगे आई.सी.एस. दी बेस्ट। तुम जो 16 कला सम्पूर्ण देवता थे,
अभी कोई गुण नहीं रहा है। गाते हैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। सब ऐसे कहते रहते
हैं। समझते हैं सर्वत्र भगवान् है। देवताओं में भी भगवान् है, इसलिए देवताओं के आगे
बैठ कहते हैं मैं निर्गुण हारे में.... आपको ही तरस पड़ेगा। गाया भी जाता है बाबा
ब्लिसफुल है, मेहरबान है, हमारे ऊपर दया करते हैं। कहते हैं - हे ईश्वर, रहम करो।
बाप को बुलाते हैं, अब वो ही बाप तुम्हारे सामने आया है। ऐसे बाप को जो जानते हैं
उनको कितनी खुशी होनी चाहिए! बेहद का बाप जो हमको हर 5 हज़ार वर्ष के बाद फिर से
सारे विश्व की राजाई देते हैं, तो कितनी अथाह खुशी होनी चाहिए!
तुम जानते हो श्रीमत पर हम श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बन रहे हैं। अगर श्रीमत पर चलेंगे तो
श्रेष्ठ बनेंगे। आधाकल्प रावण की मत चलती है। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते रहते
हैं। तुमने 84 जन्म लिए हैं, तुम ही सतोप्रधान थे, अभी तुमको फिर सतोप्रधान बनना
है। यह है रावण राज्य। जब इस रावण पर जीत हो तब रामराज्य स्थापन हो। बाप कहते हैं
तुम मेरी ग्लानी करते हो। बाप का नाम गायन करने के बदले ग्लानी करते हैं! बाप कहते
हैं तुमने मेरा कितना अपकार किया है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। अब यह सब समझानी दी
जाती है कि इन सब बातों से निकलो। एक को याद करो। गायन भी है सत का संग तारे 21
जन्मों के लिए। तब डुबोये कौन? तुमको सागर में किसने डुबोया? बच्चों से ही प्रश्न
पूछेंगे ना। तुम जानते हो मेरा ही नाम बागवान, खिवैया है। अर्थ न समझने कारण बेहद
के बाप की बहुत ग्लानी की है। फिर बेहद का बाप उन्हों को बेहद का सुख देते हैं।
अपकार करने वालों पर उपकार करते हैं। वह समझते नहीं हैं कि हम अपकार करते हैं। बड़े
खुशी से कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। अब ऐसे तो हो न सके। हरेक को अपना-अपना
पार्ट मिला हुआ है। यह भी तुम जानते हो - जब देवी-देवताओं का राज्य था तो और कोई
राज्य नहीं था। भारत सतोप्रधान था। अब है तमोप्रधान। बाप आते ही हैं दुनिया को
सतोप्रधान करने। सो भी तुम बच्चों को ही मालूम है। सारी दुनिया को अगर मालूम पड़े
तो यहाँ कैसे आयेंगे पढ़ने के लिए। तो तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए। खुशी
जैसी खुराक नहीं। सतयुग में तुम बहुत खुश रहते हो। देवताओं का खान-पान आदि बहुत
सूक्ष्म होता है। बहुत खुशी रहती है। अभी तुमको खुशी मिलती है। तुम जानते हो हम
सतोप्रधान थे। अब फिर बाबा हमको ऐसी फर्स्टक्लास युक्ति बताते हैं। गीता में भी
पहला-पहला अक्षर है मनमनाभव। यह गीता एपीसोड है ना। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल
सारा मुँझारा कर दिया है। वह है भक्ति मार्ग। बाप भी नॉलेज समझाते हैं, इनमें कोई
खिटपिट की बात नहीं। सिर्फ तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। यह तमोप्रधान दुनिया
है। कलियुग में देखो मनुष्यों का क्या हाल हो गया है। ढेर मनुष्य हो गये हैं। सतयुग
में एक धर्म, एक भाषा और एक बच्चा होता है। एक ही राज्य चलता है। यह ड्रामा बना हुआ
है। तो एक है सृष्टि चक्र का ज्ञान, दूसरा है योग। ज्ञान का धुरिया और होली। मुख्य
बात बाप समझाते हैं - इस समय सबकी तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था है, विनाश सामने खड़ा
है। अब बाप कहते हैं तुमने हमको बुलाया ही है कि हमको पावन बनाने आओ। तुम पतित बन
गये हो। पतित-पावन मुझे ही कहते हैं। अब मेरे साथ योग लगाओ, मामेकम् याद करो। मैं
तुमको सब-कुछ राइट ही बताऊंगा। बाकी जन्म-जन्मान्तर तुम अनराइटियस बनते ही आये हो।
सतोप्रधान से तमोप्रधान बन पड़े हो।
बाप बच्चों से बात करते हैं - मीठे बच्चे, अभी तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बनी है।
किसने बनाई? 5 विकारों ने। मनुष्य तो इतने प्रश्न पूछते हैं जो माथा ही खराब कर देते
हैं। शास्त्रार्थ करते हैं तो आपस में लड़ पड़ते हैं। एक-दो को लाठी भी लगाते हैं।
यहाँ तो बाप तुमको पतित से पावन बनाते हैं, इसमें शास्त्र क्या करेंगे। पावन बनना
है ना। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर आना है। सतोप्रधान भी जरूर बनना है। बाप कहते
हैं अपने को आत्मा समझो। तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बनी है तो शरीर भी तमोप्रधान
मिलता है। सोना जितना कैरेट होगा, जेवर भी ऐसा बनेगा। खाद पड़ती है ना। अब तुमको 24
कैरेट सोना बनना है। देही-अभिमनी भव। देह-अभिमान में आने से तुम छी-छी बन पड़े हो।
कोई खुशी नहीं है। बीमारियां रोग आदि सब-कुछ है। अब पतित-पावन मैं ही हूँ। मुझे
तुमने बुलाया है। मैं कोई साधू-सन्त आदि नहीं हूँ। कोई आते हैं, कहते हैं गुरू जी
का दर्शन करें। बोलो गुरू जी तो हैं नहीं और दर्शन से भी कोई फ़ायदा नहीं। बाप तो
हर बात सहज समझाते हैं। जितना याद करेंगे उतना तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। फिर
देवता बन जायेंगे। तुम यहाँ फिर से देवता सतोप्रधान बनने के लिए आये हो। बाप कहते
हैं मेरे को याद करने से तुम्हारी कट निकल जायेगी। सतोप्रधान बनेंगे। पुरुषार्थ से
ही बनेंगे ना। उठते बैठते चलते बाप को याद करो। क्या स्नान करते बाप को याद नहीं कर
सकते हो? अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो कट निकलेगी और खुशी का पारा चढ़ेगा।
तुमको कितना धन देता हूँ। तुम आये हो विश्व का मालिक बनने। वहाँ तुम सोने के महल
बनायेंगे। कितने हीरे जवाहर होंगे। भक्ति में जो मन्दिर बनाते हैं उसमें कितने हीरे
जवाहरात होते हैं। बहुत राजायें मन्दिर बनाते हैं। इतना हीरा सोना कहाँ से आता है?
अब तो है नहीं। यह ड्रामा भी तुम जानते हो कि कैसे चक्र फिरता है। यह बैठेगा भी उनकी
बुद्धि में जिन्होंने सबसे जास्ती भक्ति की है। नम्बरवार ही समझेंगे। यह पता पड़ेगा
कि कौन बहुत सर्विस करते हैं, बहुत खुशी में रहते हैं, योग में रहते हैं। वह अवस्था
पिछाड़ी में होगी। योग भी जरूरी है। सतोप्रधान बनना है। बाप आया हुआ है तो उनसे
वर्सा लेना है। यह भी कहते हैं बाबा तो हमारे साथ है। मैं सुन रहा हूँ। तुमको सुनाते
हैं तो मैं भी सुनता जाता हूँ। किसको तो सुनायेगा ना। ज्ञान अमृत का कलष तुम माताओं
को मिलता है। मातायें सबको बांटती हैं। सर्विस करती हैं। तुम सब सीतायें हो। राम एक
है। तुम सब ब्राइड्स हो, मैं हूँ ब्राइडग्रूम। तुमको श्रृंगार कर ससुराल घर भेज देते
हैं। गाते भी हैं वह बापों का बाप है, पतियों का पति है। एक तरफ महिमा करते हैं,
दूसरी तरफ ग्लानी करते हैं। शिवबाबा की महिमा अलग है, श्रीकृष्ण की महिमा अलग है।
पोजीशन सबका अलग-अलग है। यहाँ सबको मिलाकर एक कर दिया है। अन्धेर नगरी.... तुम अब
बाबा का बने हो। शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियां हो। तुम सबका हक लगता है, इस बाबा के
पास तो प्रापटी है नहीं। प्रापर्टी मिलती है हद की और बेहद की। तीसरा कोई है नहीं
जिससे वर्सा मिले। यह कहते हैं हम भी उनसे वर्सा लेते हैं। पारलौकिक परमपिता
परमात्मा को सब याद करते हैं। सतयुग में याद नहीं करते। सतयुग में है एक बाप और
रावण राज्य में हैं दो बाप। संगम पर हैं तीन बाप - लौकिक, पारलौकिक और तीसरा है
वन्डरफुल अलौकिक बाप। इन द्वारा बाप वर्सा देते हैं। इनको भी उनसे वर्सा मिलता है।
ब्रह्मा को एडम भी कहते हैं। ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। शिव को तो फादर ही कहेंगे।
सिजरा मनुष्यों का ब्रह्मा से शुरू होता है, इसलिए उनको ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर
कहा जाता है। नॉलेज तो बहुत सहज है। तुमने 84 जन्म लिए हैं। समझाने लिए चित्र भी
हैं। अब इसमें उल्टा सुल्टा प्रश्न करने की दरकार नहीं है। ऋषि-मुनियों से भी पूछते
थे तो वे भी नेती-नेती कह देते थे। अब बाप आकर अपना परिचय देते हैं। तो ऐसे बाप को
कितना प्यार से याद करना चाहिए।
अब धीरे-धीरे तुम बच्चे ऊपर चढ़ते जाते हो ड्रामा अनुसार। कल्प-कल्प नम्बरवार कोई
सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो बनते हैं। ऐसा ही पद वहाँ मिलता है इसलिए बाप कहते हैं -
बच्चे, अच्छी रीति पुरुषार्थ करो जो सज़ायें न खाओ। पुरुषार्थ जरूर कराते हैं। भल
समझते हैं बनेंगे वही जो कल्प पहले बने होंगे परन्तु पुरुषार्थ जरूर करायेंगे। जो
नज़दीक वाले होते हैं, पूजा भी अच्छी तरह वही करते हैं। पहले-पहले तुम मेरी ही पूजा
करते हो। फिर देवताओं की पूजा करते हो। अब तुमको देवता बनना है। तुम अपना राज्य
योगबल से स्थापन कर रहे हो। योगबल से तुम विश्व की बादशाही लेते हो। बाहुबल से कोई
विश्व की बादशाही ले न सके। वह लोग भाई-भाई को आपस में लड़ाते रहते हैं। कितना
बारूद बनाते हैं। उधार में एक-दो को देते रहते हैं। बारूद है ही विनाश के लिए।
परन्तु यह किसको बुद्धि में नहीं आता क्योंकि वह समझते हैं कल्प लाखों वर्ष का है।
घोर अन्धियारे में हैं। विनाश हो जायेगा और सब कुम्भकरण की नींद में सोये रहेंगे।
जागेंगे नहीं। तुम अभी जागे हो। बाप है ही जागती ज्योत, नॉलेजफुल। तुम बच्चों को आप
समान बनाते हैं। वह है भक्ति, यह है ज्ञान। ज्ञान से तुम सुखी बनते हो। तुमको आना
चाहिए कि हम फिर से सतोप्रधान बन रहे हैं। बाप को याद करना है। इसको कहा जाता है
बेहद का संन्यास। यह पुरानी दुनिया तो विनाश होने वाली है। नैचुरल कैलेमिटीज भी मदद
करती है। उस समय तुमको खाना भी पूरा नहीं मिलेगा। हम अपने खुशी की खुराक में रहेंगे।
जानते हो यह सब खलास होना है। इसमें मूँझने की बात नहीं हैं। मैं आता ही हूँ तुम
बच्चों को फिर से सतोप्रधान बनाने। यह तो कल्प-कल्प का मेरा ही काम है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं भगवान् हमारे पर मेहरवान हुआ है, वह हमें पढ़ा रहे हैं, इस नशे
में रहना है। पढ़ाई सोर्स ऑफ इनकम है इसलिए मिस नहीं करना है।
2) अथाह खुशी का अनुभव करना और कराना है। चलते-फिरते देही-अभिमानी बन बाप की याद
में रह आत्मा को सतोप्रधान जरूर बनाना है।