15-02-13  प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

“मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मण ही गॉडली स्टूडेन्ट हो, तुम्हें बाप ने रचता और रचना का ज्ञान देकर मास्टर जानी-जाननहार बनाया है, अभी तुम सब कुछ जान जाते हो"

 

प्रश्नः- दूसरों को समझाने की फलक किन बच्चों में रहेगी?

 

उत्तर:- जिनके पास ज्ञान की पूँजी है। जो स्वयं हर बात को समझकर धारण करते हैं वही दूसरों को फ़लक से समझा सकते हैं। तुम्हें फ़लक से सबको बाप का परिचय दे उनसे वर्सा लेने की विधि बतानी है।

 

गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ...

 

ओम् शान्ति। वास्तव में यह गीत गाने की जरूरत नहीं है। परन्तु बहलाने के लिए यह आवाज करना पड़ता है। वास्तव में आत्मा को आवाज करने की दरकार नहीं। आत्मा तो आवाज से परे निर्वाणधाम जाने चाहती है। बहुत बाजे गाजे तालियां आदि सुनकर आत्मा थकी हुई है इसलिए अब बाप को याद करती है - हे भगवान मुझे ले जाओ। बच्चे जानते हैं यह बाप हमको समझा रहे हैं। जैसे घर में बाप और दादा दोनों बच्चे-बच्चे कहते हैं। दादा ऐसे नहीं कहेंगे कि पोत्रे इधर आओ। दोनों ही कहेंगे बच्चे इधर आओ। यहाँ तो बाप और दादा, साकार और निराकार दोनों इकट्ठे हैं। वास्तव में सभी मनुष्य-मात्र का यह बाप और दादा है। तो जरूर परमपिता परमात्मा को सृष्टि रचने आना पड़े। तुम्हारा नाम बहुत अच्छा रखा हुआ है - ब्रह्माकुमार कुमारियां। आबू में भी अधर देवी और कुंवारी कन्या के मन्दिर हैं। तो एक कन्या तो नहीं होगी ना, जरूर बहुत होंगे। दोनों का अलग-अलग मन्दिर है। अधरकुमारी किसको कहा जाता है, कुंवारी कन्या किसको कहा जाता है - यह तो तुम ही जानते हो। यह है शिव शक्तियां। अन्दर बहुत बड़ा मन्दिर बना हुआ है। बहुत कोठरियां हैं तो मन्दिर भी साक्षी देता है कि कुमारियां और अधर-कुमारियां बहुत हैं। चित्र जो बनाते हैं वह भी यादगार है, जो होकर गये हैं। जैसे देवी देवताओं के चित्र हैं, जरूर होकर गये हैं। वे विश्व के मालिक थे। अब नहीं हैं। विश्व के रचता ने ही भारत को विश्व का मालिक बनाया। कैसे? सो अब प्रैक्टिकल बन रहे हैं। अभी कलियुग है। सतयुग है एक आदि सनातन देवी देवता धर्म। कलियुग में अनेक धर्म और अनेक प्रजा का राज्य है। तुम बच्चे जब सुनते हो तो समझते हो बाबा यथार्थ रीति ठीक समझाते हैं। परन्तु कोई कारणवश हमको धारणा नहीं होती है इसलिए औरों को भी धारणा नहीं करा सकते हैं। कोई न कोई विघ्न है। हम डल स्टूडेन्ट हैं। बाकी बाप तो बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। अनेक मनुष्य, अनेक धर्म हैं। 5000 वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। बहुत थोड़े मनुष्य थे। सिर्फ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी वह आत्मायें परमधाम से आई थी, अपना पार्ट बजाने। बाकी सभी धर्मों की आत्मायें निर्वाणधाम में थी। अभी अनेक धर्म हैं बाकी देवी-देवता धर्म प्राय:लोप है, तो जरूर फिर सतयुग बनेगा। परमपिता परमात्मा को ही आकर स्वर्ग रचना पड़े। भक्त जो भगवान को याद करते हैं तो उन्हों को भक्ति का फल देने के लिए भी यहाँ आना पड़ेगा। बाकी सबको वापिस मुक्तिधाम ले जाना होता है। और तो कोई वापिस ले जा नहीं सकता। अगर एक भी गुरू गति सद्गति का रास्ता जानता होता तो फिर उनके पिछाड़ी लाखों शिष्य भी जाते। उन यात्राओं में तो जाकर फिर लौट आते हैं। परन्तु मुक्तिधाम से फिर वापिस आये ही क्यों? एक को रास्ता मिले तो सबको ले जाएं। अब एक बाप आया है तो तुम सबको रास्ता मिलता है ना। सभी को दु:ख की दुनिया से छुड़ाते हैं, इसलिए उनको लिब्रेटर कहते हैं। उस निराकार को आने लिए शरीर चाहिए। तो नई दुनिया को रचने लिए प्रजापिता भी चाहिए। रचना यहाँ रचनी है। तो ब्रह्मा भी यहाँ का मनुष्य चाहिए। सूक्ष्मवतन से उतर नीचे तो नहीं आयेगा। कहते भी हैं अभी ब्रह्मा की रात है, तो ब्रह्मा मुख वंशावली की भी रात है। अब अन्त में बाप आये हैं दिन करने। ब्रह्मा की रात पूरी होती है तो बी.के. की रात भी पूरी होती है। प्रजापिता ब्रह्मा तो ठीक है। वास्तव में सभी मनुष्य आत्माओं का बाप परमात्मा को कहा जाता है। सभी उनको गॉड फादर परमपिता परमात्मा कहते हैं। सेन्सीबुल मनुष्य जब गॉड फादर कहते हैं तो कोई मनुष्य को याद नहीं करते। कोई तो कहते हैं वह ज्योति स्वरूप है, ब्रह्म है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को तो ब्रह्म नहीं कहेंगे। तो पहले-पहले परिचय देना है अपना कि हम बी.के. हैं। ब्रह्मा को भी परमपिता परमात्मा रचते हैं फिर ब्रह्मा मुख से ब्राह्मणों को रचा। प्रजापिता है तो जरूर बहुत सन्तान होंगी। इस रीति सिजरा बढ़ता जाता है। ब्राह्मणों का वर्ण बदल सतयुगी देवता बनते हैं क्योंकि बाप बैठ ब्राह्मणों को राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं तुम मेरे द्वारा मुझे और मेरी रचना को जानने से सब कुछ जान जाते हो। बाकी कुछ जानने के लिए नहीं रहता। इतना बड़ा इम्तहान पास कर लेते हो अर्थात् मास्टर जानी जाननहार बन गये। गॉडली स्टूडेन्ट सिर्फ ब्राह्मण ही होते हैं। देवतायें, वैश्य वा शूद्र कोई भी गॉडली स्टूडेन्ट नहीं होते हैं। भगवानुवाच होता ही ब्राह्मणों प्रति है। अगर कृष्ण भगवानुवाच हो तो भी किन्हों प्रति? जरूर ब्राह्मण चाहिए। तो प्रजापिता द्वारा ब्राह्मण रचते हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ भी ब्रह्मा ही रचते हैं। कृष्ण ज्ञान यज्ञ तो कभी नहीं कहते। तो पहले-पहले समझाना है कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं परमपिता परमात्मा है जो ही ज्ञान सागर है। वही हमारा बाप टीचर सतगुरू है, फिर इसमें कोई उल्टा सुल्टा प्रश्न उठाने की दरकार ही नहीं। इतने ढेर बी.के. हैं कोई एक दो नहीं हैं। पहले-पहले पढ़ाना ही अल्फ है। अल्फ बिगर मनुष्य कुछ भी जान नहीं सकते। उन्हों को समझाना चाहिए कि परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा मुख द्वारा ब्राह्मण रच रहे हैं। अकेला ब्रह्मा तो रचता नहीं है। यह प्वाइंट्स धारण करने की हैं। बाबा के पास ज्ञान है तो तुमको डिलेवरी करते हैं। तुम हो ज्ञान गंगायें। सागर तो एक ही है। यह ब्रह्मा भी ज्ञान कण्ठ करते हैं, तो यह भी ज्ञान गंगा हुई। ज्ञान कण्ठ करने वाले को ज्ञान गंगा कहा जाता है। उसमें मेल फीमेल दोनों आ जाते हैं। ज्ञान सागर तो एक ही बाप है। यहाँ देखो पानी के सागर को तो टुकड़ा-टुकड़ा कर दिया है। सतयुग में जब एक ही सूर्यवंशी राजाई थी तो सागर के टुकड़े नहीं थे। कहाँ भी जाकर सैर कर आते थे। वहाँ कोई कह न सके कि मेरी हद में न आओ अथवा पानी न लो। यहाँ तो एक दो का पानी ही बन्द कर देते हैं। कितने टुकड़े हो गये हैं। अब हम एक ही सचखण्ड स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। बाप का भी विचार सागर मंथन होता है तब तो समझाते हैं। ब्रह्मा भी कहेंगे सभी जीव आत्मायें हमारे बच्चे हैं। आदि देव अथवा आदम सभी का बाप है। ऐसे नहीं उस समय कोई मनुष्य नहीं थे फिर आदम ने आदमी पैदा किये। नहीं, निराकार बाप को पहले जरूर आदम में आना पड़े तब तो मुख वंशावली रचे। बाकी ऐसे नहीं कोई मुख से निकल आये वा नासिका या पवन से पैदा हुए। यह सब हैं भक्ति की बातें। मनुष्य तो कच्छ-मच्छ को भी पूजते रहते हैं। तो पहली-पहली बात है कि आत्माओं का बाप कौन है? वह जरूर स्वर्ग रचता होगा। अब तो नर्क है। अभी हम स्वर्ग के लिए राजयोग सीख रहे हैं, परमपिता परमात्मा द्वारा। ब्रह्मा भी उन द्वारा पढ़ रहे हैं। परमपिता परमात्मा सभी आत्माओं का बाप है। ब्रह्मा जीव आत्माओं का बाप है। हम उनकी मुख वंशावली ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियां हैं। हमको ज्ञान फिर भी ज्ञान सागर बाप ही देते हैं। हम श्रीमत पर चलते हैं, वह तो नामीग्रामी है। ब्रह्मा की मत मशहूर है। ऐसे कभी नहीं कहा जाता कि विष्णु भी उतर आये तो भी तुम नहीं मानेंगे। यह ब्रह्मा के लिए ही कहा जाता है। उनको ज्ञान देता है शिव। तुम भी श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनते हो। बाप समझाते हैं कि मैं आकर देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। यह जो आर्य समाजी इतनी खिटपिट करते हैं उनको बोलो तुम देवताओं को तो मानते नहीं हो, उनको खण्डन करने वाले हो। हम हैं देवी-देवता धर्म के। तुम्हारा धर्म अलग, देवी-देवता धर्म अलग है। हरेक को फ्रीडम है अपने धर्म में कुछ भी करे। मुसलमानों का धर्म अलग है। वह बहुत डिबेट करते हैं कि तुम ऐसे क्यों करते हो। वैसे हमारा धर्म आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, उसका ही प्रचार करते हैं। तुम इन्टरफियर क्यों करते हो? उन्हों को भी युक्ति से समझाना है। उनसे डिस्कश करने की जरूरत नहीं। उससे वह समझेंगे नहीं। जो भी कोई आये तो बाप का परिचय दो। हम बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी लेना हो तो आओ। बाप अमरलोक स्थापन कर रहा है इसलिए तुमको पावन जरूर बनना पड़े। बाप कहते हैं इस रावण पर जीत जरूर पानी है। हम शक्ति सेना जीत पा रही हैं। हमारा उस्ताद कैसे हमको जीत पाना सिखला रहे हैं, सो आओ तो हम तुमको समझायें। अगर तुमको जीत पानी है तो तुम भी शक्तिदल में शामिल हो जाओ। बाकी फालतू बातें मत करो। परन्तु यह फ़लक से कह वही सकेंगे जिनके पास ज्ञान की पूँजी होगी। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) ज्ञान को कण्ठ कर मास्टर ज्ञान सागर अथवा ज्ञान गंगा बन पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है।

 

2) हर एक को बहुत युक्ति से समझाना है, किसी से भी डिसकस नहीं करनी है। सबको बाप का परिचय देना है।

 

वरदान:- भाग्य और भाग्य विधाता बाप की स्मृति में रह भाग्य बांटने वाले फ्राकदिल महादानी भव

 

भाग्य विधाता बाप और भाग्य दोनों ही याद रहें तब औरों को भी भाग्यवान बनाने का उमंग-उत्साह रहेगा। जैसे भाग्यविधाता बाप ब्रह्मा द्वारा भाग्य बांटते हैं ऐसे आप भी दाता के बच्चे हो, भाग्य बांटते चलो। वे लोग कपड़ा बांटेंगे, अनाज बांटेंगे, कोई गिफ्ट देंगे.. लेकिन उससे कोई तृप्त नहीं हो सकते। आप भाग्य बांटो तो जहाँ भाग्य है वहाँ सब प्राप्तियां हैं। ऐसे भाग्य बांटने में फ्राकदिल, श्रेष्ठ महादानी बनो। सदा देते रहो।

 

स्लोगन:- जो एकनामी रहते और एकॉनामी से चलते हैं वही प्रभू प्रिय हैं।