23-07-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - तुम चैतन्य हीरे हो, तुम्हारे में जो भी फ्लो (कमियां) है, वह बाप की याद से निकाल दो तो बहुत वैल्युबुल बन जायेंगे"

प्रश्नः-
कर्मातीत अवस्था के समीप पहुंचने पर कौन सी निशानियां दिखाई देंगी?

उत्तर:-
जब तुम कर्मातीत अवस्था के समीप पहुंचेंगे तो सब पुराने भ्रष्टाचारी संस्कार खाक हो जायेंगे। किसी की भी पुरानी जुत्ती (देह) के साथ लगाव नहीं रहेगा। देही अभिमानी रहेंगे। बाप के सिवाए कोई भी याद नहीं रहेगा। बुद्धि की तार एकदम जुटी हुई होगी। बुद्धि और कहाँ भी नहीं जायेगी। सब फ्लो निकल जायेगा, आत्मा प्युअर हीरा बन जायेगी।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चे ये तो जानते हैं कि हम अविनाशी धन की प्राप्ति कर रहे हैं। पुरुषार्थ तो सभी करते हैं, जो जास्ती पुरुषार्थ करते हैं वो जास्ती प्राइज़ पाते हैं। तुम बच्चे अभी दैवी बगीचा अथवा देवताओं की राजधानी बना रहे हो। जैसे ये कलियुग का बगीचा कांटों का जंगल बन गया है, ऐसे सतयुग को फूलों का बगीचा कहा जाता है। तुम बच्चे उस नये बगीचे की अथवा नये झाड़ की कलम लगा रहे हो, धीरे-धीरे कल्प पहले मुआफ़िक। तुम बच्चों में सब वैरायटी हैं, देखो बाप के पास आते हैं, कई तो बाप का मुखड़ा देखने आते हैं। कोई-कोई बच्चों को निश्चय है कि बाबा हमें विश्व का मालिक, बेहद का मालिक बना रहे हैं। बेहद का मालिक बनने में तो बहुत खुशी है, हद का मालिक बनने में दुःख ही दुःख है। यह तो बच्चे समझते हैं कि ये खेल ही सुख और दुःख का बना हुआ है।

बच्चे जानते हैं मेरे में कौन-कौन से गुण हैं और कौन-कौन से अवगुण हैं। बच्चों को अगर बाबा कहे तेरे में जो जो खामी है वो लिख करके आओ, अपने अन्दर में देखो, है तो जरूर, ऐसे तो नहीं कि सम्पूर्ण बन गये हैं। बनने हैं जरूर, कल्प-कल्प बने हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। परन्तु इस वक्त में क्या-क्या है? बच्चे सच बतायें तो बाबा उस पर समझानी देंगे। उसमें भी बाप कहते हैं सबसे बड़ी खामी ये देह-अभिमान की है। वो बहुत हैरान करती है, तंग करती है, बच्चों की अवस्था को बढ़ने नहीं देती है। इसलिए पुरुषार्थ करना है। कर्मातीत अवस्था में जाने के लिए बाप समझा रहे हैं बच्चे हीरे के बीच में कोई फ्लो नहीं होना चाहिए। बाबा जानते हैं हर एक में क्या फ्लो है। कोई जड़ चीज़ नहीं है जो मैग्नीफाय ग्लास से देखेंगे। तुम तो चैतन्य हीरे हो, तुम्हारा यह जन्म कौड़ी से हीरा बनने का है। तो चैतन्य हीरे जानते हैं हमारे में कौन सा फ्लो है, जो आगे बढ़ने नहीं देता है। है जरूर क्योंकि फ्लोलेस तो पिछाड़ी में बनना है। अगर फ्लो नहीं निकालते हैं तो वैल्यु कम हो जाती है। यह बाबा भी जौहरी है, इसने इन आंखों से बहुत हीरे देखे हैं। आप बच्चे कौड़ी से हीरा बन रहे हो, तो बाबा जानते हैं कि यह फ्लो है। सब तो पवित्र नहीं बने हैं। अभी फ्लोलेस तो कोई बना नहीं है। उस हीरे से तो फ्लो निकाल नहीं सकते, अगर निकालना होता है तो उसको कट करना पड़ता है, तुम अपना फ्लो निकाल सकते हो क्योंकि तुम चैतन्य हो।

बाप कहते हैं बच्चे अब यह शरीर बिल्कुल याद न आये, कोई भी मित्र सम्बन्धी, फलाना सबसे बुद्धि परे, क्लीयर हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ मामेकम् याद करो, दूसरा कोई याद न आये। गृहस्थ व्यवहार तो सभी छोड़कर नहीं आयेंगे ना। यह तो भट्ठी बननी थी क्योंकि सर्विस करने वाले तो फ्री चाहिए। यह भी जानते हो जो आदि से निकले हैं वो अच्छी मेहनत कर रहे हैं, अक्सर करके पुराने तो थोड़े बच्चे हैं, उसमें नये एड हुए हैं। अभी उनमें फ्लो तो है। समझते भी हैं कि बाबा हमारी अवस्था बनाने के लिए एमआबजेक्ट बताते हैं, हमें इस मंजिल तक पहुंचना है। अब तुम्हें देह होते देही बनकर जाना है, कोई भी देहधारी, कोई भी आंखों से देखने वाली चीज़ें पिछाड़ी में नहीं आवें। जैसे कहते हैं लाठी भी छोड़ो, यहाँ कोई उस लाठी की बात नहीं है, परन्तु साथ तो कुछ भी लेकर नहीं जाना है। जैसे आये थे वैसे ही प्युअर बनकर जाना है। एक बाप के सिवाए पुराने सम्बन्ध की कोई भी बात याद न आये। ऐसी याद से ही पाप कटेंगे, आत्मा एकदम प्युअर हीरा बनेंगी।

तुम बच्चों का बाबा से बहुत लव है, दुनिया में तो लव मैरेज करते हैं। यह लव मैरेज की बात नहीं है यह है लवली बाप से योग रखना। इससे सब कुछ मिल जाता है क्योंकि योग लगाने से तुम लवली बन जाते हो। बाप आत्मा को लवली बनाने के लिए, प्युअर बनाने के लिए कहते हैं बच्चे जितना मुझे याद करेंगे उतना तुम बहुत लवली बन जायेंगे। अभी बनेंगे तो कल्प-कल्प तुम्हारी पूजा होगी। तो अपनी जांच करते रहो कि हम कितना लवली बने हैं? बाप को इतना लव से याद करते हैं, जो बैठे-बैठे आंसू निकल आयें। बाबा हम आपको इतना याद करेंगे, कोई भी हमारे सामने माया का तूफान न आये। हमारा लव सिवाए बाप के और किसी तरफ न जाये। भल कोई कितनी भी अच्छी चीज़ हो लेकिन इस जैसा प्यारा कोई है ही नहीं।

तुम बच्चे पुरुषार्थ भी नम्बरवार करते हो, तो सर्विस भी नम्बरवार करते हो। बड़े आदमियों पर तुम कितनी मेहनत करते हो, गरीबों पर इतनी मेहनत नहीं करते। तुम जानते हो बड़ा इतना नहीं उठेगा, जितना गरीब उठेगा, तो क्या तुम्हारी मेहनत व्यर्थ जायेगी? नहीं, वो जाकर कम दर्जा पायेंगे। समझो कोई तुम्हारे पास आते हैं और कहते हैं हमको सुबह में आना है, बाबा की मुरली सुननी है तो तुम्हें पहले उनको सात-आठ रोज़ अलग से समझाना है फिर बाबा के सामने बैठेंगे तो कोई हर्जा नहीं है। तुम उनसे फार्म भराते हो ना, फार्म भराने से उनकी सारी हिस्ट्री मालूम पड़ जाती है। बाकी अगर कोई बड़ा आदमी ऐसे ही आकर सभा में बैठ जाये तो बाबा उसको दृष्टि थोड़ेही देंगे, दृष्टि तो तुम बच्चों को ही देंगे। बाबा तुम बच्चों का श्रृंगार करते हैं, तुम फिर बहुतों को श्रृंगार कराते हो। तुम ही दूसरों का श्रृंगार कराके ले आते हो। तुमने जैसा-जैसा अपना श्रृंगार किया है, उससे भी अच्छा औरों का श्रृंगार करा सकते हो। बहुत बच्चे पुरानों से भी बहुत तीखे लगते हैं, मीठे लगते हैं। बहुत रसीला समझाते हैं। ऐसे अच्छे-अच्छे सर्विसएबुल बच्चों को फ्रन्ट में बैठना चाहिए, पीछे बैठते हैं तो बाबा ढूंढते रहते हैं कि हमारा वो फूल कहाँ है। यह बच्चे भी समझते हैं कि बाबा को फर्स्टक्लास खुशबूदार बच्चे चाहिए। बाप के आगे बच्चों को बहुत प्यार से बैठना चाहिए। ऐसे नहीं कि जब बाप देखते हैं तो आंखे बन्द कर लो। बाबा जब देखते हैं यह बच्चा बड़ा एकाग्र होकर बैठा है तो बाप को भी अथाह खुशी होती है। बच्चों को अपने संस्कार बड़े अच्छे बनाने हैं, अन्दर कोई भी जाली वा फ्लो है तो उसे निकाल देना है।

तुम बच्चे अभी श्रीमत पर चलकर वन्डर आफ दी वर्ल्ड स्थापन कर रहे हो। तुम बच्चों को यह जरूर होना चाहिए कि अभी हमारे पास कुछ नहीं है, हम बस बाबा के बने हैं, फिर ऐसे विश्व के मालिक बनेंगे। यहाँ कई कुमार भी हैं जो समझते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है सब बाबा का है, हम तो ट्रस्टी हैं, बाबा ही मालिक है। साहूकारों की बुद्धि में तो यह सब आयेगा ही नहीं। तुम कुछ भी करो, सिर्फ बाबा को इशारा करते रहो कि बाबा हम ये करें, बच्चे पूछते हैं बाबा मैं मकान बनाऊं, बाबा कहते हैं हाँ बच्चे भले बनाओ। जब जायेंगे तो सब इकट्ठे जायेंगे। फिर बाबा कहते हैं तुम वहाँ से चले आयेंगे, मैं तो वहीं रह जाऊंगा क्योंकि मैं सारे चक्र को जानता हूँ। मुझे कल्प-कल्प आना है, पावन बनाके ले जाना है। तुम जानते हो बाबा वहाँ (मूलवतन में) बैठ जाते हैं, फिर जब बच्चों को दुःख होता है तब आते हैं। सारी दुनिया में तो बहुत दुःख है, बच्चों को थोड़ा दुःख है। भक्ति मार्ग में भी तुम बहुत साहूकार रहते हो तब तो इतने बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हो। तुम्हें सुख जास्ती है, दुःख थोड़ा है। यह खेल ही तुम बच्चों के लिए है। तो बच्चों को यह खुशी रहनी चाहिए कि अभी दुःख के दिन पूरे हुए, अभी बाबा सुख लेकर आया है।

अभी तुम यहाँ बैठे दूसरों का चिंतन क्यों करते हो? तुम्हें अपने हमजिन्स ब्राह्मण कुल की वृद्धि करनी है, जब तक ब्राह्मण नहीं बनें तब तक देवता कैसे बनेंगे। शिवबाबा से योग लगायेंगे, शिवबाबा के खजाने में बीज डालेंगे तब तो साहूकार बनेंगे। बाबा की यह अविनाशी बैंक है, यह सभी बैंके जो भी हैं यह तो पाई पैसे की हैं। यह तो अविनाशी बैंक है, इस बैंक से तुम 21 जन्म खाते हो, यह बड़ी जबरदस्त बैंक है। ये शिवबाबा की बैंक है, ब्रह्मा की बैंक नहीं। बच्चों को यह नशा रहना चाहिए कि अभी हम आधाकल्प के लिए पैराडाइज़ में जाने वाले हैं। वहाँ तो ढेर हीरे जवाहरात होंगे, यहाँ तो उसकी भेंट में कुछ भी नहीं हैं। अभी तुम देवता बनेंगे तो ये कपड़ा पहनेंगे क्या? तुम विचार करो जब हम यह शरीर छोड़ेंगे तो क्या बनेंगे? बच्चे कहते हैं बाबा हम तो नर से नारायण बनेंगे। तो जरूर पहले शहजादा बनेंगे, ये तो बुद्धि में खुशी होनी चाहिए ना! हम बाबा को जितना याद करेंगे उतना ऊंचा प्रिन्स बनेंगे, उतना पहले आयेंगे। प्रिन्स तो त्रेता में भी होते हैं, तो फर्स्टक्लास से एयरकन्डीशन में क्यों न जावें। राजाई में एक दो नम्बर तो होते हैं, जो बच्चे शिवबाबा को याद करेंगे, बाबा के खजाने में सब कुछ जमा करेंगे वह साहूकार बनेंगे। परन्तु ज्ञान योग का भी नशा चाहिए। गरीब की कौड़ी और साहूकार का हजार एक जैसा बन जायेगा।

सारा मदार है योग में रह करके टिकलू-टिकलू करने का। अन्दर एकदम तार जुटी हुई हो, बुद्धि और कहाँ भी न जाये। अगर जाती है तो तोबां, तोबां... बाबा यह फ्लो कैसे निकले! बाबा कहते बच्चे तुम्हारा सब फ्लो निकल जायेगा, सिर्फ याद करते रहो, पुरुषार्थ करो। ऐसे नहीं समझो कि कल्प पहले जो किया होगा..., ना, ना, ऐसे नहीं कहना, खूब याद करो। भले किसी की चमड़ी सुन्दर हो, यह तो खत्म होने वाली छी-छी चमड़ी है, उनके ऊपर तुम्हें फिदा नहीं होना है।

अभी तुम सब हरीजन हो, हरी नाम परमात्मा का है, तुम उस दुःख हरने वाले के साथ योग लगाते हो। यह याद रखना कि अगर किसी की देह के साथ लगाव है तो छी-छी के साथ है क्योंकि पुरानी जुत्ती है। तभी तो बाप कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़, देह सहित सब कुछ भूल अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, इससे प्युअर बन जायेंगे। शरीर तो पुराने हैं ना। तो बाप बच्चों को समझाते हैं बच्चे देही-अभिमानी बनो। तुम्हारी आत्मा नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था में जायेगी फिर तुम्हारे सब भ्रष्टाचारी संस्कार खाक हो जायेंगे। अगर भ्रष्टाचारी संस्कार रह गये तो श्रेष्ठाचारी शरीर कैसे मिलेगा! सतयुग में आत्मा भी श्रेष्ठाचारी चाहिए और शरीर भी श्रेष्ठाचारी चाहिए। तो ये बड़ी डीप बात है, है बड़ी सहज। बाप कहते हैं मुझे याद करो और चक्र को याद करो, बाप की याद के सिवाए और कोई भी याद न आये। बाबा बच्चों को एकदम डीप में समझाते हैं, बच्चे मेहनत बहुत करनी है। ऐसे नहीं समझो हम तो बहुत अच्छी मुरली चलाते हैं, अगर कोई मूल बात को नहीं समझा और तुमसे प्रभावित हुआ तो जरूर कहेंगे तुम्हारे समझाने से, तुम्हारे कपड़ों से प्रभावित हुआ, तुम्हारी महिमा की बस, खुद को तो महिमा लायक नहीं बनाया ना।

बाबा के पास कई बच्चे आते हैं, यह भी नहीं समझते कि हम किससे मिल रहे हैं। बाबा को हाथ जोड़ते हैं, बाबा तो हाथ नहीं जोड़ेंगे, बाबा तो अशरीरी होकर शान्ति में टिक जाते हैं, यह दुनिया ही भूल जाती है, फिर आत्मा को दृष्टि देते हैं कि यह आत्मा शरीर से डिटैच हो जाए। ऐसे बहुत होते हैं जो बाबा के पास कई प्रश्न लेकर आते हैं, लेकिन बाबा के सामने आने से वो भूल जाते हैं। ये तो अभी ऐसे होता है लेकिन आगे चलकर जैसे-जैसे इनकी अवस्था होगी तो आने से ही एकदम गुम हो जायेंगे। जैसे ये दुनिया है ही नहीं, खलास हुई पड़ी है। फिर सतयुग में आयेंगे तब ये दुनिया सतोगुणी होगी। तुम घर जाकर चक्कर लगाकर आयेंगे, कोई विश्राम भी पायेंगे, दुःख से छूट जायेंगे ना। लास्ट लाइफ से फर्स्ट लाइफ में आना होगा। वहाँ तो (सतयुग में) रेस्ट भी है, शान्ति भी है, सुख भी है, सब कुछ है। तुम जब वहाँ रहते हो तो शान्तिधाम को याद करते हो? कहते हो कि हमको शान्ति चाहिए? वहाँ कुछ भी नहीं चाहिए। यहाँ चाहना ही दुःख देती है, वहाँ कोई चाहना होती ही नहीं, सब कुछ मिल जाता है। तो ऐसा पुरुषार्थ अच्छी तरह से करना चाहिए, ऐसे नहीं जो नसीब में होगा, जो मिलना होगा, मिलेगा। तुम्हारे दिल में यह होना चाहिए कि हम खुद अपने लिए श्रीमत पर बादशाही स्थापन कर रहे हैं। अभी स्थापन करने का समय है तो पुरुषार्थ जोर से करना चाहिए, यह बड़ी वन्डरफुल नॉलेज है धारण करने और कराने की। बाबा समझते हैं तुमने जो पार्ट बजाया, बिल्कुल एक्यूरेट बजाया, जो पास्ट हुआ कल्प पहले भी किया था। ऐसे नहीं तुम कोई दो चार को देखकर खुश होते हो, नहीं। यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। तो क्या राजा सिर्फ अपने बच्चों को देखकर खुश होता है क्या? वह तो सारी प्रजा को देखकर खुश होता है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सब अपने-अपने पुरुषार्थ से बन रहे हैं। अभी हम जंगल के कांटे से फूल बन रहे हैं। हमें कांटे से फूल बनाने वाला बाप मिला है, ड्रामा प्लैन अनुसार। बाबा कोई मेहरबानी नहीं करता है, वो बांधा हुआ है तुम्हारी सर्विस के लिए, कल्प में एक बार।

अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चें को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा की अविनाशी बैंक बड़ी जबरदस्त है, उसमें अपना सब कुछ जमा कर, अपना बीज डाल 21 जन्मों के लिए मालामाल (साहूकार) बनना है।

2) किसी की चमड़ी पर फिदा नहीं होना है। बहुत-बहुत लवली और प्युअर बनना है। अपने संस्कार बहुत अच्छे बनाने हैं।

वरदान:-
कोई भी कार्य करते सदा दिलतख्तनशीन रहने वाले बेफिक्र बादशाह भव

जो सदा बापदादा के दिलतख्तनशीन रहते हैं वे बेफिक्र बादशाह बन जाते हैं क्योंकि इस तख्त की विशेषता है कि जो तख्तनशीन होगा वह सब बातों में बेफिक्र होगा। जैसे आजकल भी कोई-कोई स्थान को विशेष कोई न कोई नवीनता, विशेषता मिली हुई है तो दिलतख्त की विशेषता है कि फिक्र आ नहीं सकता। यह दिलतख्त को वरदान मिला हुआ है, इसलिए कोई भी कार्य करते सदा दिलतख्तनशीन रहो।

स्लोगन:-
नम्बर आगे लेना है तो स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति रूप धारण करो।