19-08-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
30.11.92 "बापदादा" मधुबन
सर्व खज़ानों से सम्पन्न
बनो - दुआए दो, दुआए लो
आज सर्व खज़ानों के
मालिक अपने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे को अनेक प्रकार के अविनाशी
अखुट खज़ाने मिले हैं और ऐसे खज़ाने हैं, जो सर्व खज़ाने अब भी हैं और आगे भी अनेक
जन्म खज़ानों के साथ रहेंगे। जानते हो कि खज़ाने कौनसे और कितने मिले हैं? खज़ानों से
सदा प्राप्ति होती है। खज़ानों से सम्पन्न आत्मा सदा भरपूरता के नशे में रहती है।
सम्प-न्नता की झलक उनके चेहरे में चमकती है और हर कर्म में सम्पन्नता की झलक स्वत:
ही नजर आती है। इस समय के मनुष्या-त्माओं को विनाशी खज़ानों की प्राप्ति है, इसलिए
थोड़ा समय नशा रहता है और साथ नहीं रहता है। इसलिए दुनिया वाले कहते हैं-खाली होकर
जाना है। और आप कहते हो कि भरपूर होकर जाना है। आप सबको बापदादा ने अनेक खज़ाने दिये
हैं।
सबसे श्रेष्ठ पहला
खज़ाना है-ज्ञान-रत्नों का खज़ाना। सबको यह खज़ाना मिला है ना। कोई वंचित तो नहीं रह
गया है ना। इस ज्ञान-रत्नों के खज़ाने से विशेष क्या प्राप्ति कर रहे हो? ज्ञान-खज़ाने
द्वारा इस समय भी मुक्ति-जीवन्मुक्ति की अनुभूति कर रहे हो। मुक्तिधाम में जायेंगे
वा जीवन्मुक्त देव पद प्राप्त करेंगे-यह तो भविष्य की बात हुई। लेकिन अभी भी मुक्त
जीवन का अनुभव कर रहे हो। कितनी बातों से मुक्त हो, मालूम है? जो भी दु:ख और अशान्ति
के कारण हैं, उनसे मुक्त हुए हो। कि अभी मुक्त होना है? अभी कोई विकार नही आता?
मुक्त हो गये। अगर आता भी है तो विजयी बन जाते हो ना। तो कितनी बातों से मुक्त हो
गये हो! लौकिक जीवन और अलौकिक जीवन-दोनों को साथ रखो तो कितना अन्तर दिखाई देता है!
तो अभी मुक्ति भी प्राप्त की है और जीवन्मुक्ति भी अनुभव कर रहे हो। अनेक व्यर्थ और
विकल्प, विकर्मों से मुक्त बनना-यही जीवन्मुक्त अवस्था है। कितने बन्धनों से मुक्त
हुए हो? चित्र में दिखाते हो ना-कितने बन्धनों की रस्सियां मनुष्यात्माओं को बंधी
हुई हैं! यह किसका चित्र है? आप तो वह नहीं हो ना। आप तो मुक्त हो ना। तो जीवन में
रहते जीवन्मुक्त हो गये। तो ज्ञान के खज़ाने से विशेष मुक्ति-जीव-न्मुक्ति की
प्राप्ति का अनुभव कर रहे हो।
दूसरा-याद अर्थात्
योग द्वारा सर्व शक्तियों का खज़ाना अनुभव कर रहे हो। कितनी शक्तियाँ हैं? बहुत हैं
ना! आठ शक्तियाँ तो एक सैम्पल रूप में दिखाते हो, लेकिन सर्व शक्तियों के खज़ानों के
मालिक बन गये हो।
तीसरा-धारणा की
सब्जेक्ट द्वारा कौनसा खज़ाना मिला है? सर्व दिव्य गुणों का खज़ाना। गुण कितने हैं?
बहुत हैं ना। तो सर्व गुणों का खज़ाना। हर गुण की, हर शक्ति की विशेषता कितनी बड़ी
है! हर ज्ञान-रत्न की महिमा कितनी बड़ी है!
चौथी बात-सेवा द्वारा
सदा खुशी के खज़ाने की अनुभूति करते हो। जो सेवा करते हो उससे विशेष क्या अनुभव होता
है? खुशी होती है ना। तो सबसे बड़ा खज़ाना है अविनाशी खुशी। तो खुशी का खज़ाना सहज,
स्वत: प्राप्त होता है।
पांचवा-सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा ब्राह्मण परिवार के भी सम्पर्क में आते हो, सेवा के
भी सम्बन्ध में आते हो। तो सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा कौनसा खज़ाना मिलता है? सर्व की
दुआओं का खज़ाना मिलता है। यह दुआओं का खज़ाना बहुत बड़ा खज़ाना है। जो सर्व की दुआओं
के खज़ानों से भरपूर है, सम्पन्न है उसको कभी भी पुरूषार्थ में मेहनत नहीं करनी पड़ती।
पहले है मात-पिता की दुआए और साथ में सर्व के सम्बन्ध में आने से सर्व द्वारा दुआए।
सबसे बड़े ते बड़े तीव्र गति से आगे उड़ने का तेज यन्त्र है-’दुआए’। जैसे-साइन्स का
सबसे बड़े ते बड़ा तीव्र गति का रॉकेट है। लेकिन दुआओं का रॉकेट उससे भी श्रेष्ठ है।
विघ्न जरा भी स्पर्श नहीं करेगा, विघ्न-प्रूफ बन जाते। युद्ध नहीं करनी पड़ती। सहज
योगयुक्त, युक्तियुक्त हर कर्म, बोल, संकल्प स्वत: ही बन जाते हैं। ऐसा यह दुआओं का
खज़ाना है। सबसे बड़ा खज़ाना इस संगमयुग के समय का खज़ाना है।
वैसे खज़ाने तो बहुत
हैं। लेकिन जो खज़ाने सुनाये, सिर्फ इन खज़ानों को भी अपने अन्दर समाने की शक्ति धारण
करो तो सदा ही सम्पन्न होने कारण जरा भी हलचल नहीं होगी। हलचल तब होती है जब खाली
है। भरपूर आत्मा कभी हिलेगी नहीं। तो इन खज़ानों को चेक करो कि सर्व खज़ाने स्वयं में
समाये हैं? इन सभी खज़ानों से भरपूर हो? वा कोई में भरपूर हो, कोई में थोड़ा अभी
भरपूर होना है? खज़ाने मिले तो सभी को हैं ना। एक द्वारा, एक जैसे खज़ाने सभी को मिले
हैं। अलग-अलग तो नहीं बांटा है ना। एक को लाख, दूसरे को करोड़ दिया हो-ऐसे तो नहीं
है ना? लेकिन एक हैं सिर्फ लेने वाले-जो मिलता है लेते भी हैं लेकिन मिला और
खाया-पिया, मौज किया और खत्म किया। दूसरे हैं जो मिले हुए खज़ानों को जमा
करते-खाया-पिया, मौज भी किया और जमा भी किया। तीसरे हैं-जमा भी किया, खाया-पिया भी
लेकिन मिले हुए खज़ाने को और बढ़ाते जाते हैं। बाप के खज़ाने को अपना खज़ाना बनाए बढ़ाते
जाते। तो देखना है कि मैं कौन हूँ-पहले नम्बर वाला, दूसरे वा तीसरे नम्बर वाला?
जितना खज़ाने को स्व
के कार्य में या अन्य की सेवा के कार्य में यूज़ करते हो उतना खज़ाना बढ़ता है। खज़ाना
बढ़ाने की चाबी है-यूज करना। पहले अपने प्रति। जैसे-ज्ञान के एक-एक रत्न को समय पर
अगर स्व प्रति यूज़ करते हो, तो खज़ाना यूज़ करने से अनुभवी बनते जाते हो। जो खज़ाने की
प्राप्ति है वह जीवन में अनुभव की ‘अथॉरिटी’ बन जाती है। तो अथॉरिटी का खज़ाना एड (Add,जमा)
हो जाता है। तो बढ़ गया ना। सिर्फ सुनना और बात है। सुनना माना लेना नहीं है। समाना
और समय पर कार्य में लगाना-यह है लेना। सुनने वाले क्या करते और समाने वाले क्या
करते-दोनों में महान अन्तर है।
सुनने वालों का
बापदादा दृश्य देखते हैं तो मुस्कुराते हैं। सुनने वाले समय पर परिस्थिति प्रमाण वा
विघ्न प्रमाण, समस्या प्रमाण प्वाइन्ट को याद करते हैं कि बापदादा ने इस विघ्न को
पार करने के लिए ये-ये पॉइंट्स दी हैं। ऐसा करना है, ऐसा नहीं करना है-रिपीट करते,
याद करते रहते हैं। एक तरफ प्वाइन्ट रिपीट करते रहते, दूसरे तरफ वशीभूत भी हो जाते
हैं। बोलते हैं-ऐसा नहीं करना है, यह ज्ञान नहीं है, यह दिव्य गुण नहीं है, समाने
की शक्ति धारण करनी है, किसको दु:ख नहीं देना है। रिपीट भी करते रहते हैं लेकिन फेल
भी होते रहते हैं। अगर उस समय भी उनसे पूछो कि ये राइट है? तो जवाब देंगे-राइट है
नहीं लेकिन हो जाता है। बोल भी रहे हैं, भूल भी रहे हैं। तो उनको क्या कहेंगे? सुनने
वाले। सुनना बहुत अच्छा लगता है। प्वाइन्ट बड़ी अच्छी शक्तिशाली है। लेकिन यूज़ करने
के समय अगर शक्तिशाली प्वाइन्ट ने विजयी नहीं बनाया वा आधा विजयी बनाया तो उसको क्या
कहेंगे? सुनने वाले कहेंगे ना।
समाने वाले जैसे कोई
परिस्थिति या समस्या सामने आती है तो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित हो स्व-स्थिति
द्वारा पर-स्थिति को ऐसे पार कर लेते जैसे कि कुछ था ही नहीं। इसको कहा जाता है
समाना अर्थात् समय पर कार्य में लगाना, समय प्रमाण हर शक्ति को, हर प्वाइन्ट को, हर
गुण को ऑर्डर से चलाना। जैसे कोई स्थूल खज़ाना है, तो खज़ाने को स्वयं खज़ाना यूज़ नहीं
करता लेकिन खज़ाने को यूज़ करने वाली मनुष्यात्माए हैं। वो जब चाहें, जितना चाहें,
जैसे चाहें, वैसे यूज़ कर सकती हैं। ऐसे यह जो भी सर्व खज़ाने सुनाए, उनके मालिक कौन?
आप हो वा दूसरे हैं? मालिक हैं ना। मालिक का काम क्या होता है? खज़ाना उसको चलाये या
वो खज़ाने को चलाये? तो ऐसे हर खज़ाने के मालिक बन समय पर ज्ञानी अर्थात् समझदार,
नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी होकर खज़ाने को कार्य में लगाओ। ऐसे नहीं कि समय आने पर
ऑर्डर करो सहन शक्ति को और कार्य पूरा हो जाये फिर सहन शक्ति आये। समाने की शक्ति
जिस समय, जिस विधि से चाहिए-उस समय अपना कार्य करे। ऐसे नहीं-समाया तो सही लेकिन
थोड़ा-थोड़ा फिर भी मुख से निकल गया, आधा घण्टा समाया और एक सेकेण्ड समाने के बजाए
बोल दिया। तो इसको क्या कहेंगे? खज़ाने के मालिक वा गुलाम?
सर्व शक्तियाँ बाप के
अधिकार का खज़ाना है, वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है। तो जन्मसिद्ध अधिकार का कितना
नशा होता है! छोटा-सा राजकुमार होगा, क्या खज़ाना है, उसका पता भी नहीं होगा लेकिन
थोड़ा ही स्मृति में आने से कितना नशा रहता-मैं राजा का बच्चा हूँ! तो यह मालिकपन का
नशा है ना। तो खज़ानों को कार्य में लगाओ। कार्य में कम लगाते हो। खुश रहते हो-भरपूर
है, सब मिला है। लेकिन कार्य में लगाना, उससे स्वयं को भी प्राप्ति कराना और दूसरों
को भी प्राप्ति कराना-उसमें नम्बरवार बन जाते हैं। नहीं तो नम्बर क्यों बने? जब देने
वाला भी एक है, देता भी सबको एकरस है, फिर नम्बर क्यों? तो बापदादा ने देखा-खज़ाने
तो बहुत मिले हैं, भरपूर भी सभी हैं, लेकिन भरपूरता का लाभ नहीं लेते। जैसे लौकिक
में भी कइयों को धन से आनन्द या लाभ प्राप्त करने का तरीका आता है और कोई के पास
होगा भी बहुत धन लेकिन यूज़ करने का तरीका नहीं आता, इसलिए होते हुए भी जैसे कि नहीं
है। तो अन्डरलाइन क्या करना है? सिर्फ सुनने वाले नहीं बनो, यूज़ करने की विधि से अब
भी सिद्धि को प्राप्त करो और अनेक जन्मों की सद्गति प्राप्त करो।
दिव्य गुण भी बाप का
वर्सा है। तो प्राप्त हुए वर्से को कार्य में लगाना क्या मुश्किल है। ऑर्डर करो।
ऑर्डर करना नहीं आता? मालिक को ही ऑर्डर करना आता। कमजोर को ऑर्डर करना नहीं आता,
वह सोचेगा-कहूँ वा नहीं कहूँ, पता नहीं मदद मिलेगी वा नहीं मिलेगी...। अपना खज़ाना
है ना। बाप का खज़ाना अपना खज़ाना है। या बाप का है और हमारा नहीं है? बाप ने किसलिए
दिया? अपना बनाने के लिए दिया या सिर्फ देखकर खुश होने के लिए दिया? कर्म में लगाने
के लिए मिला है। रिजल्ट में देखा जाता है कि सभी खज़ानों को जमा करने की विधि कम आती
है। ज्ञान का अर्थ भी यह नहीं कि प्वाइन्ट रिपीट करना या बुद्धि में रखना। ज्ञान
अर्थात् समझ-त्रिकालदर्शी बनने की समझ, सत्य-असत्य की समझ, समय प्रमाण कर्म करने की
समझ। इसको ज्ञान कहा जाता है।
अगर कोई इतना समझदार
भी हो और समय आने पर बेसमझी का कार्य करे-तो उसको ज्ञानी कहेंगे? और समझदार अगर
बेस-मझ बन जाये तो उसको क्या कहा जायेगा? बेसमझ को कुछ कहा नहीं जाता। लेकिन समझदार
को सभी इशारा देंगे कि-यह समझदारी है? तो ज्ञान का खज़ाना धारण करना, जमा करना
अर्थात् हर समय, हर कार्य, हर कर्म में समझ से चलना। समझा? तो आप महान समझदार हो
ना। ‘ज्ञानी तू आत्मा’ हो या ‘ज्ञान सुनने वाली तू आत्मा’ हो? चेक करो कि ऐसे ज्ञानी
तू आत्मा कहाँ तक बने हैं-प्रैक्टिकल कर्म में, बोलने में...। ऐसे तो सबसे हाथ
उठवाओ तो सब कहेंगे-हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। कोई नहीं कहेगा कि हम राम-सीता बनेंगे।
लेकिन कोई तो बनेंगे ना। सभी कहेंगे - हम विश्व-महाराजा बनेंगे। अच्छा है, लक्ष्य
ऐसा ही ऊंचा रहना चाहिए। लेकिन सिर्फ लक्ष्य तक नहीं, लक्ष्य और लक्षण समान हों।
लक्ष्य हो विश्व-महाराजन् और कर्म में एक गुण या एक शक्ति भी ऑर्डर नहीं माने, तो
वह विश्व का महाराजा कैसे बनेंगे? अपना ही खज़ाना अपने ही काम में नहीं आये तो विश्व
का खज़ाना क्या सम्भालेंगे? इसलिए सर्व खज़ानों से सम्पन्न बनो और विशेष वर्तमान समय
यही सहज पुरूषार्थ करो कि सर्व से, बापदादा से हर समय दुआए लेते रहें।
दुआए किसको मिलती
हैं? जो सन्तुष्ट रह सबको सन्तुष्ट करे। जहाँ सन्तुष्टता होगी वहाँ दुआए होंगी। और
कुछ भी नहीं आता हो - कोई बात नहीं। भाषण नहीं करना आता है-कोई बात नहीं। सर्व गुण
धारण करने में मेहनत लगती हो, सर्व शक्तियों को कन्ट्रोल करने में मेहनत लगती हो -
उसको भी छोड़ दो। लेकिन एक बात यह धारण करो कि दुआए सबको देनी हैं और दुआए लेनी हैं।
इसमें कोई मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। करके देखो। एक दिन अमृतवेले से लेकर रात तक यही
कार्य करो - दुआए देनी हैं, दुआए लेनी हैं। और फिर रात को चार्ट चेक करो - सहज
पुरूषार्थ रहा या मेहनत रही? और कुछ भी नहीं करो लेकिन दुआए दो और दुआए लो। इसमें
सब आ जायेगा। दिव्य गुण, शक्तियाँ आपे ही आ जायेंगी। कोई आपको दु:ख दे तो भी आपको
दुआए देनी हैं। तो सहन शक्ति, समाने की शक्ति होगी ना, सहनशीलता का गुण होगा ना।
अन्डरस्टूड है।
दुआए लेना और दुआए
देना - यह बीज है, इसमें झाड़ स्वत: ही समाया हुआ है। इसकी विधि है - दो शब्द याद रखो।
एक है ‘शिक्षा’ और दूसरी है ‘क्षमा’, रहम। तो शिक्षा देने की कोशिश बहुत करते हो,
क्षमा करना नहीं आता। तो क्षमा करनी है। क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा।
शिक्षा देते हो तो क्षमा भूल जाते हो। लेकिन क्षमा करेंगे तो शिक्षा स्वत: आ जायेगी।
शिक्षक बनना बहुत सहज है। सप्ताह-कोर्स के बाद ही शिक्षक बन जाते हैं। तो क्षमा करनी
है, रहमदिल बनना है। सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है। क्षमा करेंगे-अभी से यह संस्कार
धारण करेंगे तब ही दुआए दे सकेंगे। और अभी से दुआए देने का संस्कार पक्का करेंगे तभी
आपके जड़ चित्रों से भी दुआए लेते रहेंगे। चित्रों के सामने जाकर क्या कहते हैं? दुआ
करो, मर्सी (रहम) दो....। आपके जड़ चित्रों से जब दुआए मिलती हैं तो चैतन्य में
आत्माओं से कितनी दुआए मिलेंगी! दुआओं का अखुट खज़ाना बापदादा से हर कदम में मिल रहा
है, लेने वाला लेवे। आप देखो, अगर श्रीमत प्रमाण कोई भी कदम उठाते हो तो क्या अनुभव
होता है? बाप की दुआए मिलती हैं ना। और अगर हर कदम श्रीमत पर चलो तो हर कदम में
कितनी दुआए मिलेंगी, दुआओं का खज़ाना कितना भरपूर हो जायेगा!
कोई भल क्या भी देवे
लेकिन आप उसको दुआए दो। चाहे कोई क्रोध भी करता है, उसमें भी दुआए हैं। क्रोध में
दुआए हैं कि लड़ाई है? चाहे कोई कितना भी क्रोध करता है लेकिन आपको याद दिलाता है कि
मैं तो परवश हूँ, लेकिन आप मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो दुआए मिली ना। याद दिलाया कि
आप मास्टर सर्वशक्तिवान हो, आप शीतल जल डालने वाले हो। तो क्रोधी ने दुआए दी ना। वह
क्या भी करे लेकिन आप उस से दुआए लो। सुनाया ना - गुलाब के पुष्प में भी देखो कितनी
विशेषता है, कितनी गन्दी खाद से, बदबू से खुद क्या लेता है? खुशबू लेता है ना।
गुलाब का पुष्प बदबू से खुशबू ले सकता और आप क्रोधी से दुआए नहीं ले सकते?
विश्व-महाराजन गुलाब का पुष्प बनना चाहिये या आपको बनना चाहिए? यह कभी भी नहीं सोचो
कि यह ठीक हो तो मैं ठीक होऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक होऊं। कभी सागर के आगे
जाकर कहेंगे-’’हे लहर! आप बड़ी नहीं, छोटी आओ, टेढ़ी नहीं आओ, सीधी आओ’’? यह संसार भी
सागर है। सभी लहरें न छोटी होंगी, न टेढ़ी होंगी, न सीधी होंगी, न बड़ी होंगी, न छोटी
होंगी। तो यह आधार नहीं रखो - यह ठीक हो जाये तो मैं हो जाऊं। तो परिस्थिति बड़ी या
आप बड़े?
बापदादा के पास तो सब
बातें पहुँचती हैं ना। यह ठीक कर दो तो मैं भी ठीक हो जाऊं। इस क्रोध करने वाले को
शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं। इस खिटखिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर
ठीक हो जायेगा। ऐसे रूहरिहान नहीं करना। आपका स्लोगन ही है - "बदला न लो, बदल कर
दिखाओ।’’ यह ऐसा क्यों करता है, ऐसा नहीं करना चाहिए, इसको तो बदलना ही पड़ेगा....।
परन्तु पहले स्व को बदलो। स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन वा अन्य का परिवर्तन। या
अन्य के परिवर्तन से स्व परिवर्तन है? स्लोगन रांग तो नहीं बना दिया है? क्या करेंगे?
स्व को बदलेंगे या दूसरे को बदलने में समय गंवायेंगे? ‘‘चाहे एक वर्ष भी लगाकर देखो
- स्व को नहीं बदलो और दूसरों को बदलने की कोशिश करो। समय बदल जायेगा लेकिन न आप
बदलेंगे, न वो बदलेगा।’’ समझा? सर्व खज़ानों के मालिक बनना अर्थात् समय पर खज़ानों को
कार्य में लगाना।अच्छा!
सर्व खज़ानों से
सम्पन्न आत्माओं को, सर्व खज़ानों को कार्य में लगाने वाले, बढ़ाने वाले ‘ज्ञानी तू
आत्माए’ बच्चों को, सर्व खज़ानों को मालिक बन समय पर विधिपूर्वक कार्य में लगाने वाली
श्रेष्ठ आत्माओं को, हर शक्ति, हर गुण की अथॉरिटी बन स्वयं में और सर्व में भरने
वाली विशेष आत्माओं को, सदा दुआओं के खज़ाने से सहज पुरूषार्थ का अनुभव करने वाली
सहजयोगी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।
वरदान:-
नॉलेजफुल बन
व्यर्थ को समझने, मिटाने और परिवर्तन करने वाले नेचरल योगी भव
नेचरल योगी बनने के
लिए मन और बुद्धि को व्यर्थ से बिल्कुल फ्री रखो। इसके लिए नॉलेजफुल के साथ-साथ
पावरफुल बनो। भले नॉलेज के आधार पर समझते हो कि ये रांग है, ये राइट है, ये ऐसा है
लेकिन अन्दर वह समाओ नहीं। ज्ञान अर्थात् समझ और समझदार उसको कहा जाता है जिसे समझना
भी आता हो, मिटाना और परिवर्तन करना भी आता हो। तो जब व्यर्थ वृत्ति, व्यर्थ
वायब्रेशन स्वाहा करो तब कहेंगे नेचरल योगी।
स्लोगन:-
व्यर्थ से
बेपरवाह रहो, मर्यादाओं में नहीं।