ओम् शान्ति।
रूहानी यात्रियों ने यह गीत सुना। तुम बच्चे हो रूहानी यात्री। वह जो यात्रा पर जाते
हैं उनको कहा जाता है जिस्मानी यात्री। वह जिस्मानी यात्रा भी आधाकल्प चलती है।
जन्म बाई जन्म तुम यात्रायें करते रहे हो। वह जिस्मानी यात्रायें करके फिर भी लौटकर
घर में आ जाते हैं। तुम्हारी यह है रूहानी यात्रा। वह होते हैं जिस्मानी पण्डे। तुम
हो रूहानी पण्डे। तुम पण्डों का उस्ताद कौन है? निराकार परमपिता परमात्मा। उनको कहा
जाता है पाण्डव सेना का आदि पिता। तुम जानते हो हम देह-अभिमानी थे, अभी बाप आकर
देही-अभिमानी बनाते हैं, आत्माओं को वापिस घर ले जाने के लिए। अब तुम रूहानी यात्रा
पर हो, इसमें कर्मेन्द्रियों की बात नहीं रहती। यात्रा पर हमेशा पवित्र रहते हैं
फिर लौट कर आते हैं तो विकारी बन जाते हैं। यात्रा पर जाना भी गृहस्थियों को है।
निवृत्ति मार्ग वास्तव में गृहस्थ धर्म से न्यारा है। यात्रा पर ले जाने वाले हमेशा
ब्राह्मण होते हैं। गीत भी है – 4 धाम में फेरा किया, परन्तु फिर भी बाप से दूर रहे।
अब बाप यात्रा पर ले जाने के लिए तुमको पवित्र बनाते हैं। मुक्तिधाम, जीवन
मुक्तिधाम में ले जायेंगे, फिर इस पतित दुनिया में आना ही नहीं है। वह जिस्मानी
तीर्थ करके फिर लौट आते, आकर गन्दे धन्धे करते हैं। यात्रा पर क्रोध की भी मना करते
हैं। खास वह टाइम पतित नहीं बनते हैं। चार धाम की यात्रा करने में 3-4 मास लग जाते
हैं। अभी तुम जानते हो हम आत्मायें जा रही हैं। बाप का फरमान है जितना हो सके मेरी
याद में रहो। यह है मुक्तिधाम की यात्रा। तुम वहाँ जा रहे हो। वहाँ के रहवासी हो।
बाप रोज़-रोज़ कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम आगे जाते रहेंगे,
घर बैठे तुम यह यात्रा करते हो तो वन्डरफुल यात्रा हुई ना। योग अग्नि से सब पाप कटते
हैं। आधाकल्प तुमने जिस्मानी यात्रा की है। पहले अव्यभिचारी यात्रा थी फिर व्यभिचारी
यात्रा हुई है। पूजा भी पहले एक शिव की करते हो फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर की, फिर
लक्ष्मी-नारायण आदि की। अभी तो देखो कुत्ते बिल्ली ठिक्कर भित्तर आदि सबको पूजते
रहते हैं। बाप समझाते हैं-बच्चे यह सब है गुड़ियों की पूजा। शिवबाबा के और देवी
देवताओं के आक्यूपेशन को जानते नहीं हैं। गुड़ियों का आक्यूपेशन नहीं होता है।
शिवबाबा के आक्यूपेशन को न जानना वह जैसे पत्थर पूजा हो गई। फिर भी कुछ न कुछ
मनोकामना पूरी होती है। सतयुग में जिस्मानी यात्रा होती नहीं। वहाँ मन्दिर आदि कहाँ
से आये। यह तो है भ्रष्टाचारी दुनिया। अपने को पतित समझते हैं तब तो पावन होने लिए
गंगा स्नान करते हैं। कुम्भ के मेले का भी राज़ समझाया है। यह है सच्चा-सच्चा संगम।
गाया भी जाता है आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल, सुन्दर मेला कर दिया… सतगुरू
पतित-पावन दलाल के रूप में आकर मिलते हैं। उनको अपना शरीर तो है नहीं। इस दलाल
द्वारा तुम आत्माओं की अपने साथ सगाई कराते हैं अथवा बच्चों को अपना परिचय देते
हैं। बच्चे मैं आया हूँ तुमको शान्ति-धाम की यात्रा पर ले जाने, पावन दुनिया में ले
जाने। बच्चे जानते हैं भारत पावन था। एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। आर्य
धर्म नहीं था। आर्य और अन-आर्य। अगर देवताओं को आर्य कहें तो आर्य धर्म में राज्य
कौन करते थे? आर्य कहा जाता है पढ़े हुए को। इस समय सब अन-आर्य, अनपढ़े हैं। बापदादा
को जानते ही नहीं। ऊंच ते ऊंच है ही शिवबाबा फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर फिर प्रजापिता
ब्रह्मा तो जगत अम्बा भी प्रजा माता ठहरी। इन द्वारा ब्राह्मणों की रचना होती है।
यह हैं एडाप्टेड चिल्ड्रेन। कौन एडाप्ट करते हैं? परमपिता परमात्मा। तुम जानते हो
हम उनकी सन्तान हैं। परन्तु बाप को भूल आरफन बन पड़े हैं। गॉड फादर का कोई भी
आक्यूपेशन नहीं जानते। बाप आकर फिर ऐसे को पावन बनाते हैं। बाप ही तुम बच्चों को
पवित्रता की शिक्षा देते हैं। अब जहाँ जाना है, उसको याद करना है। माया घड़ी-घड़ी
भुला देती है। युद्ध का मैदान है ना। तुम बाप के बनते हो, माया फिर अपना बनाती है।
प्रभु और माया का नाटक है। बाबा का बनकर फिर आश्चर्यवत, सुनन्ती… भागन्ती हो जाते
हैं। माया भी बड़ी पहलवान है। यह बुद्धियोग बल की युद्ध बाप के सिवाए कोई सिखला न
सके। सर्व शक्तिमान् बाप से योग लगाने से ही ताकत मिलती है। तुम जानते हो अब पवित्र
बन फिर वापिस घर जाना है। यहाँ पार्ट बजाने के लिए यह शरीर लिया है। हमने 84 जन्म
पूरे किये हैं। यह है पिछाड़ी का छोटा सा महान कल्याणकारी युग। तुम सब ज्ञान गंगायें
ज्ञान सागर से निकली हो।
बाप कहते हैं बाप को याद करते रहो तो तुम्हारी आयु भी बढ़ेगी और भविष्य 21 जन्मों
के लिए भी तुम अमर बनेंगे। अकाले मृत्यु कभी नहीं होगा। समय पर आपेही एक शरीर छोड़
दूसरा लेते हो। चलते-फिरते बाप की याद में रहना है। इस याद से तुम सृष्टि को पवित्र
बनाते हो। बाप आये ही हैं पावन बनाने। सैपलिंग भी उनका लगेगा जो देवता थे। अब शूद्र
बने हैं, और-और धर्मों में भी कनवर्ट हो गये हैं वह सब निकलते आयेंगे। सबके
अपने-अपने सेक्शन हैं। यहाँ भी सबकी अपनी रसम है। यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म का
सैपलिंग लग रहा है। जो पहले ब्राह्मण बने थे वही आयेंगे। ब्राह्मण बनने बिगर देवता
बन नहीं सकते। ब्रह्मा का न बनें तो शिवबाबा से वर्सा पा नहीं सकते। जो देवता धर्म
के हैं वह ब्राह्मण धर्म में जरूर आयेंगे। अभी तुम कांटे से फूल बने हो। कोई को
दु:ख नहीं देते। सबसे बड़ा दुश्मन है रावण। 5 विकारों रूपी दुश्मन गुप्त है।
आधा-कल्प से सबको लड़ाकर गिराए पतित बना दिया है। अभी बाप ने यज्ञ रचा है। बेहद के
बाप ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है – जिसमें सब स्वाहा करना है। जिस घोड़े पर आत्मा
विराजमान है। नाम ही है – राजस्व, राजाई के लिए रूद्र ज्ञान यज्ञ। कितना बड़ा यज्ञ
रचा है – स्वर्ग की स्थापना के लिए। जानते हो अब यह दुनिया ट्रांन्सफर होनी है। दिल
में नशा रहता है। बाबा ने यज्ञ रचा है – इनको अच्छी रीति सम्भालना है। जो श्रीमत पर
चलेंगे उनको बहुत अच्छी दक्षिणा मिलेगी। यज्ञ की अच्छी सम्भाल करते हो तो तुम विश्व
के मालिक बनते हो। जिस जागीर के लिए तुमने आधाकल्प धक्का खाया है, बाप आते हैं देने
तो ऐसे बाप को फिर फारकती दे देते, बाप वन्डर खाते हैं। सजनियां गाती थी आप पर
बलिहार जाऊं। अब आया हूँ तो तुम मेरे बनकर फिर फारकती दे देते। वह फिर ऊंच चढ़ने के
बदले नीचे गिर पड़ते। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस… फ़र्क तो है ना। कहाँ
प्राइममिनिस्टर आदि और कहाँ गरीब भील लोग। तो अब पुरूषार्थ कर बाप से राजाई लेनी
चाहिए। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। इसमें नाम कृष्ण का डाल दिया है। भक्ति मार्ग के
लिए यह सब चीजें शास्त्र आदि बने हुए हैं। भगवान तो एक ही है जिनको पतित-पावन कहा
जाता है। शान्तिधाम और सुखधाम में कोई भी पुकारते नहीं। तो बच्चों को पूरा नशा चढ़ना
चाहिए। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। इनके बाद कोई यज्ञ नहीं रचा जाता। वह जिस्मानी यज्ञ
रचते हैं आफतों को मिटाने के लिए। बाप कितनी बड़ी आधाकल्प के लिए आफतें मिटाते हैं।
यह कोई साधु सन्त नहीं जानते। मुख्य गीता माता जो भगवान ने गाई उसमें नाम कृष्ण का
डाल दिया है। तो अब मनुष्यों को सावधान करना है क्योंकि उन्हों का बुद्धि योग कृष्ण
से जुट गया है। कृष्ण तो ऐसे नहीं कहते मनमनाभव मुझे याद करो तो साथ ले जाऊंगा। यह
बाप बैठ यहाँ लायक बनाते हैं। सांवरे से गोरा बनाते हैं। तुम श्याम बन गये थे, बाबा
फिर सुन्दर स्वर्ग का लायक बनाते हैं। चलते फिरते बुद्धि में बाबा को याद करना है।
बस यह अवस्था जम जाए तो तुम्हारा कितना बेड़ा पार हो जाए। हेल्थ वेल्थ हैपीनेस। बाबा
से तुम इतना वर्सा लेते हो तो ऐसे बाप को कितना याद कर उनकी शिक्षा पर चलना चाहिए।
कांटों को फूल बनाना है। अभी तुम फूल बन रहे हो, यह बगीचा है। अभी है फारेस्ट ऑफ
थार्नस। अकासुर, बकासुर यह संगम के नाम हैं। उद्धार तो सबका होना है। जो जितना
पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे श्रीमत पर चलते रहेंगे, बाप से 21 पीढ़ी का वर्सा पायेंगे। तुम
सदा सुखी बन जायेंगे। अभी तुम्हारी 100 परसेन्ट चढ़ती कला है। फिर कलायें कम होती
जाती हैं। इस समय कलायें बिल्कुल खत्म हो गई हैं। गाते भी हैं मैं निर्गुण हारे में
कोई गुण नाही। बाप को रहमदिल कहते हैं ना। कल्प-कल्प संगम पर आते हैं। भारत स्वर्ग
होगा तो सब सुखी हो जायेंगे। अभी बच्चों को श्रीमत पर चलना है, आसुरी मत पर नहीं।
बाप कहते हैं मेरी सबसे जास्ती ग्लानी करते हैं या तो कहते हैं नाम रूप से न्यारा
या तो फिर कण-कण में कह देते हैं। यह सब ड्रामा में नूंध है। तुम अब त्रिकालदर्शी
बने हो और बाप को जान बाप से वर्सा ले रहे हो। अभी तो खूने नाहेक खेल होना है।
नाहेक सब आफतें आयेंगी, कितने मरेंगे। भक्ति मार्ग में तो कितने देवियों के चित्र
बनाते हैं। खर्चा करते हैं। देवियां बनाकर पूजा कर फिर डुबो देते हैं। तो गुड़ियों
की पूजा हुई ना। काली का कैसा चित्र बनाते हैं, ऐसे कोई मनुष्य थोड़ेही होते हैं।
तुम यहाँ बैठे हो तो यात्रा पर हो। ट्रेन पर बैठे भी रूहानी यात्रा पर हो। बुद्धि
यात्रा पर लगी हुई है। अगर बुद्धियोग लगा हुआ नहीं है तो वह टाइम वेस्ट हो जाता है।
बाप कहते हैं टाइम वेस्ट नहीं करना। तुम्हारा टाइम बहुत वैल्युबुल है। सेकेण्ड भी
कमाई बिगर छोड़ो नहीं। बाप तो फुल पुरूषार्थ कराते हैं। बाबा ने विश्व को स्वर्ग
बनाने के लिए यह यज्ञ रचा है। बाबा-बाबा करते रहना है तो बेड़ा पार होगा। हम
ब्राह्मण हैं, हमारे ऊपर बहुत बड़ी रेसपान्सिबिलिटी है। बाप कहते हैं बच्चे
आत्म-अभिमानी बनो। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं देना है, बहुत मीठा बनो।
क्रोध से बड़ी डिससर्विस कर लेते हो। सम्पूर्ण तो कोई बने नहीं है। भूत बड़े खराब
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह टाइम बहुत वैल्युबुल है इसलिए एक सेकेण्ड भी इसे कमाई बिगर नहीं
छोड़ना है। आत्म-अभिमानी रहने का पूरा पुरूषार्थ करना है।
2) चलते-फिरते बाप को याद कर अपनी अवस्था जमानी है। बहुत मीठा बनना है। किसी को
भी दु:ख नहीं देना है।