11-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें संगम पर सेवा करके गायन लायक बनना
है फिर भविष्य में पुरूषोत्तम बनने से तुम पूजा लायक बन जायेंगे”
प्रश्नः-
कौन सी बीमारी
जड़ से समाप्त हो तब बाप की दिल पर चढ़ेंगे?
उत्तर:-
1.
देह-अभिमान की बीमारी। इसी देह-अभिमान के कारण सभी विकारों ने महारोगी बनाया है। यह
देह-अभिमान समाप्त हो जाए तो तुम बाप की दिल पर चढ़ो। 2. दिल पर चढ़ना है तो विशाल
बुद्धि बनो, ज्ञान चिता पर बैठो। रूहानी सेवा में लग जाओ और वाणी चलाने के साथ-साथ
बाप को अच्छी रीति याद करो।
गीत:- जाग
सजनियां जाग……..
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चों ने गीत सुना – रूहानी बाप ने इस साधारण पुराने तन द्वारा मुख से कहा। बाप
कहते हैं मुझे पुराने तन में पुरानी राजधानी में आना पड़ा। अभी यह रावण की राजधानी
है। तन भी पराया है क्योंकि इस शरीर में तो पहले से ही आत्मा है। मैं पराये तन में
प्रवेश करता हूँ। अपना तन होता तो उसका नाम पड़ता। हमारा नाम बदलता नहीं। मुझे फिर
भी कहते हैं शिवबाबा। गीत तो बच्चे रोज़ सुनते हैं। नवयुग अर्थात् नई दुनिया सतयुग
आया। अब किसको कहते हैं जागो? आत्माओं को क्योंकि आत्मायें घोर अन्धियारे में सोई
पड़ी हैं। कुछ भी समझ नहीं। बाप को ही नहीं जानते। अब बाप जगाने आये हैं। अभी तुम
बेहद के बाप को जानते हो। उनसे बेहद का सुख मिलना है नये युग में। सतयुग को नया कहा
जाता है, कलियुग को पुराना युग कहेंगे। विद्वान, पण्डित आदि कोई भी नहीं जानते। कोई
से भी पूछो नया युग फिर पुराना कैसे होता है, तो कोई भी बता नहीं सकेंगे। कहेंगे यह
तो लाखों वर्ष की बात है। अभी तुम जानते हो हम नये युग से फिर पुराने युग में कैसे
आये हैं अर्थात् स्वर्गवासी से नर्कवासी कैसे बने हैं। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते,
जिनकी पूजा करते हैं उनकी बायोग्राफी को भी नहीं जानते। जैसे जगदम्बा की पूजा करते
हैं अब वह अम्बा कौन है, जानते नहीं। अम्बा वास्तव में माताओं को कहा जाता है।
परन्तु पूजा तो एक की होनी चाहिए। शिवबाबा का भी एक ही अव्यभिचारी यादगार है। अम्बा
भी एक है। परन्तु जगत अम्बा को जानते नहीं। यह है जगत अम्बा और लक्ष्मी है जगत की
महारानी। तुमको पता है कि जगत अम्बा कौन है और जगत महारानी कौन है। यह बातें कभी
कोई जान न सके। लक्ष्मी को देवी और जगत अम्बा को ब्राह्मणी कहेंगे। ब्राह्मण संगम
पर ही होते हैं। इस संगमयुग को कोई नहीं जानते। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नयी
पुरूषोत्तम सृष्टि रची जाती है। पुरूषोत्तम तुमको वहाँ देखने में आयेंगे। इस समय
तुम ब्राह्मण गायन लायक हो। सेवा कर रहे हो फिर तुम पूजा लायक बनेंगे। ब्रह्मा को
इतनी भुजायें देते हैं तो अम्बा को भी क्यों नहीं देंगे। उनके भी तो सब बच्चे हैं
ना। माँ-बाप ही प्रजापिता बनते हैं। बच्चों को प्रजापिता नहीं कहेंगे।
लक्ष्मी-नारायण को कभी सतयुग में जगतपिता जगत माता नहीं कहेंगे। प्रजापिता का नाम
बाला है। जगत पिता और जगत माता एक ही है। बाकी हैं उनके बच्चे। अजमेर में प्रजापिता
ब्रह्मा के मन्दिर में जायेंगे तो कहेंगे बाबा क्योंकि है ही प्रजापिता। हद के
पितायें बच्चे पैदा करते हैं तो वह हद के प्रजापिता ठहरे। यह है बेहद का। शिवबाबा
तो सब आत्माओं का बेहद का बाप है। यह भी तुम बच्चों को कान्ट्रास्ट लिखना है। जगत
अम्बा सरस्वती है एक। नाम कितने रख दिये हैं – दुर्गा, काली आदि। अम्बा और बाबा के
तुम सब बच्चे हो। यह रचना है ना। प्रजापिता ब्रह्मा की बेटी है सरस्वती, उनको अम्बा
कहते हैं। बाकी हैं बच्चे और बच्चियां। हैं सब एडाप्टेड। इतने सब बच्चे कहाँ से आ
सकते हैं। यह सब हैं मुख वंशावली। मुख से स्त्री को क्रियेट किया तो रचता हो गया।
कहते हैं यह मेरी है। मैंने इनसे बच्चे पैदा किये हैं। यह सब है एडाप्शन। यह फिर है
ईश्वरीय, मुख द्वारा रचना। आत्मायें तो हैं ही। उनको एडाप्ट नहीं किया जाता है। बाप
कहते हैं तुम आत्मायें सदैव मेरे बच्चे हो। फिर अभी मैं आकर प्रजापिता ब्रह्मा
द्वारा बच्चों को एडाप्ट करता हूँ। बच्चों (आत्माओं) को नहीं एडाप्ट करते, बच्चे और
बच्चियों को करते हैं। यह भी बड़ी सूक्ष्म समझने की बातें हैं। इन बातों को समझने
से तुम यह लक्ष्मी-नारायण बनते हो। कैसे बनें, यह हम समझा सकते हैं। क्या ऐसे कर्म
किये जो यह विश्व के मालिक बनें। तुम प्रदर्शनी आदि में भी पूछ सकते हो। तुमको
मालूम है इन्हों ने यह स्वर्ग की राजधानी कैसे ली। तुम्हारे में भी यथार्थ रीति हर
कोई नहीं समझा सकते। जिनमें दैवीगुण होंगे, इस रूहानी सर्विस में लगे हुए होंगे वह
समझा सकते हैं। बाकी तो माया की बीमारी में फँसे रहते हैं। अनेक प्रकार के रोग हैं।
देह-अभिमान का भी रोग है। इन विकारों ने ही तुमको रोगी बनाया है।
बाप कहते हैं मैं
तुमको पवित्र देवता बनाता हूँ। तुम सर्वगुण सम्पन्न……पवित्र थे। अभी पतित बन गये
हो। बेहद का बाप ऐसे कहेंगे। इसमें निंदा की बात नहीं, यह समझाने की बात है।
भारतवासियों को बेहद का बाप कहते हैं मैं यहाँ भारत में आता हूँ। भारत की महिमा तो
अपरमअपार है। यहाँ आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं, सबको शान्ति देते हैं। तो ऐसे बाप
की भी महिमा अपरमअपार है। पारावार नहीं। जगत अम्बा और उनकी महिमा को कोई भी नहीं
जानते। इनका भी कान्ट्रास्ट तुम बता सकते हो। यह जगत अम्बा की बायोग्राफी, यह
लक्ष्मी की बायोग्राफी। वही जगत अम्बा फिर लक्ष्मी बनती है। फिर लक्ष्मी सो 84 जन्मों
के बाद जगत अम्बा होगी। चित्र भी अलग-अलग रखने चाहिए। दिखाते हैं लक्ष्मी को कलष
मिला परन्तु लक्ष्मी फिर संगम पर कहाँ से आई। वह तो सतयुग में हुई है। यह सब बातें
बाप समझाते हैं। चित्र बनाने के ऊपर जो मुकरर हैं उनको विचार सागर मंथन करना चाहिए।
तो फिर समझाना सहज होगा। इतनी विशाल बुद्धि चाहिए तब दिल पर चढ़े। जब बाबा को अच्छी
रीति याद करेंगे, ज्ञान चिता पर बैठेंगे तब दिल पर चढ़ेंगे। ऐसे नहीं कि जो बहुत
अच्छी वाणी चलाते हैं, वह दिल पर चढ़ते हैं। नहीं, बाप कहते हैं दिल पर अन्त में
चढ़ेंगे, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार जब देह-अभिमान खत्म हो जायेगा।
बाप ने समझाया है
ब्रह्म ज्ञानी, ब्रह्म में लीन होने की मेहनत करते हैं परन्तु ऐसे कोई लीन हो नहीं
सकता। बाकी मेहनत करते हैं, उत्तम पद पाते हैं। ऐसे-ऐसे महात्मा बनते हैं जो उनको
प्लेटेनियम में वज़न करते हैं क्योंकि ब्रह्म में लीन होने की मेहनत तो करते हैं
ना। तो मेहनत का भी फल मिलता है। बाकी मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती। तुम बच्चे
जानते हो अब यह पुरानी दुनिया गई कि गई। इतने बॉम्ब्स बनाये हैं – रखने के लिए
थोड़ेही बनाये हैं। तुम जानते हो पुरानी दुनिया के विनाश लिए यह बॉम्ब्स काम आयेंगे।
अनेक प्रकार के बॉम्ब्स हैं। बाप ज्ञान और योग सिखलाते हैं फिर राज-राजेश्वर डबल
सिरताज देवी-देवता बनेंगे। कौन-सा ऊंच पद है। ब्राह्मण चोटी हैं ऊपर में। चोटी सबसे
ऊपर है। अभी तुम बच्चों को पतित से पावन बनाने बाप आये हैं। फिर तुम भी पतित-पावनी
बनते हो – यह नशा है? हम सबको पावन बनाए राज-राजेश्वर बना रहे हैं? नशा हो तो बहुत
खुशी में रहें। अपनी दिल से पूछो हम कितने को आपसमान बनाते हैं? प्रजापिता ब्रह्मा
और जगत-अम्बा दोनों एक जैसे हैं। ब्राह्मणों की रचना रचते हैं। शूद्र से ब्राह्मण
बनने की युक्ति बाप ही बताते हैं। यह कोई शास्त्रों में नहीं है। यह है भी गीता का
युग। महाभारत लड़ाई भी बरोबर हुई थी। राजयोग एक को सिखाया होगा क्या। मनुष्यों की
बुद्धि में फिर अर्जुन और कृष्ण ही हैं। यहाँ तो ढेर पढ़ते हैं। बैठे भी देखो कैसे
साधारण हो। छोटे बच्चे अल्फ बे पढ़ते हैं ना। तुम बैठे हो तुमको भी अल्फ बे पढ़ा रहे
हैं। अल्फ और बे, यह है वर्सा। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम विश्व के मालिक
बनेंगे। कोई भी आसुरी काम नहीं करना है। दैवीगुण धारण करने हैं। देखना है हमारे में
कोई अवगुण तो नहीं हैं? मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। अभी निर्गुण आश्रम भी
है परन्तु अर्थ कुछ भी नहीं। निर्गुण अर्थात् मेरे में कोई गुण नहीं। अब गुणवान
बनाना तो बाप का ही काम है। बाप के टाइटिल की टोपी फिर अपने ऊपर रख दी है। बाप कितनी
बातें समझाते हैं। डायरेक्शन भी देते हैं। जगत अम्बा और लक्ष्मी का कान्ट्रास्ट
बनाओ। ब्रह्मा-सरस्वती संगम के, लक्ष्मी-नारायण हैं सतयुग के। यह चित्र हैं समझाने
के लिए। सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है। पढ़ते हैं मनुष्य से देवता बनने के लिए। अभी
तुम ब्राह्मण हो। सतयुगी देवता भी मनुष्य ही हैं परन्तु उन्हों को देवता कहते,
मनुष्य कहने से जैसे उनकी इन्सल्ट हो जाती है इसलिए देवी-देवता वा भगवान-भगवती कह
देते हैं। अगर राजा-रानी को भगवान-भगवती कहें तो फिर प्रजा को भी कहना पड़े, इसलिए
देवी-देवता कहा जाता है। त्रिमूर्ति का चित्र भी है। सतयुग में इतने थोड़े मनुष्य,
कलियुग में इतने बहुत मनुष्य हैं। वह कैसे समझायें। इसके लिए फिर गोला भी जरूर
चाहिए। प्रदर्शनी में इतने सबको बुलाते हैं। कस्टम कलेक्टर को तो कभी कोई ने
निमंत्रण नहीं दिया है। तो ऐसे-ऐसे विचार चलाने पड़ें, इसमें बड़ी विशालबुद्धि
चाहिए।
बाप का तो रिगार्ड
रखना चाहिए। हुसेन के घोड़े को कितना सजाते हैं। पटका कितना छोटा होता, घोड़ा कितना
बड़ा होता है। आत्मा भी कितनी छोटी बिन्दी है, उनका श्रृंगार कितना बड़ा है। यह
अकालमूर्त का तख्त है ना। सर्वव्यापी की बात भी गीता से उठाई है। बाप कहते हैं मैं
आत्माओं को राजयोग सिखलाता हूँ फिर सर्वव्यापी कैसे होंगे। बाप-टीचर-गुरू सर्वव्यापी
कैसे होंगे। बाप कहते हैं मैं तो तुम्हारा बाप हूँ फिर ज्ञान सागर हूँ। तुमको बेहद
की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझने से बेहद का राज्य मिल जायेगा। दैवीगुण भी धारण करने
चाहिए। माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। चलन गन्दी हो पड़ती फिर लिखते हैं ऐसी-ऐसी
भूल हो गई। हमने काला मुँह कर लिया। यहाँ तो पवित्रता सिखाई जाती है फिर अगर कोई
गिरेंगे भी तो फिर उसमें बाप क्या कर सकते हैं। घर में कोई बच्चा गन्दा हो पड़ता
है, काला मुँह कर देता है तो बाप कहते हैं तुम तो मर जाते तो अच्छा है। बेहद का बाप
भल ड्रामा को जानते हैं फिर भी कहेंगे तो सही ना। तुम औरों को शिक्षा देकर खुद गिरते
हो तो हज़ार गुणा पाप चढ़ जाता है। कहते हैं माया ने थप्पड़ मार दिया। माया ऐसा
घूँसा मारती है जो एकदम अक्ल ही गुम कर देती है।
बाप समझाते रहते हैं,
आंखें बड़ी धोखेबाज हैं। कभी भी कोई विकर्म नहीं करना है। तूफान तो बहुत आयेंगे
क्योंकि युद्ध के मैदान में हो ना। पता भी नहीं पड़ता कि क्या होगा। माया झट थप्पड़
लगा देती है। अभी तुम कितने समझदार बनते हो। आत्मा ही समझदार बनती है ना। आत्मा ही
बेसमझ थी। अब बाप समझदार बनाते हैं। बहुत देह-अभिमान में हैं। समझते नहीं कि हम
आत्मा हैं। बाप हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। हम आत्मा इन कानों से सुन रही हैं। अब
बाप कहते हैं कोई भी विकार की बात इन कानों से न सुनो। बाप तुम्हें विश्व का मालिक
बनाते हैं, मंजिल बहुत बड़ी है। मौत जब नज़दीक आयेगा तो फिर तुमको डर लगेगा। मनुष्यों
को मरने के समय भी मित्र-सम्बन्धी आदि कहते हैं ना – भगवान को याद करो या कोई अपने
गुरू आदि को याद करेंगे। देहधारी को याद करना सिखलाते हैं। बाप तो कहते हैं मामेकम्
याद करो। यह तो तुम बच्चों की ही बुद्धि में है। बाप फरमान करते हैं – मामेकम् याद
करो। देहधारियों को याद नहीं करना है। माँ-बाप भी देहधारी हैं ना। मैं तो विचित्र
हूँ, विदेही हूँ, इसमें बैठ तुमको ज्ञान देता हूँ। तुम अभी ज्ञान और योग सीखते हो।
तुम कहते हो ज्ञान सागर बाप द्वारा हम ज्ञान सीख रहे हैं, राज-राजेश्वरी बनने के
लिए। ज्ञान सागर ज्ञान भी सिखलाते हैं, राजयोग भी सिखलाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) समझदार बन माया के तूफानों से कभी हार नहीं खाना है। आंखें धोखा देती
हैं इसलिए अपनी सम्भाल करनी है। कोई भी विकारी बातें इन कानों से नहीं सुननी हैं।
2) अपनी दिल से पूछना है कि हम कितनों को आपसमान बनाते हैं? मास्टर पतित-पावनी
बन सबको पावन (राज़-राज़ेश्वर) बनाने की सेवा कर रहे हैं? हमारे में कोई अवगुण तो
नहीं है? दैवीगुण कहाँ तक धारण किये हैं?
वरदान:-
मेरेपन के सूक्ष्म स्वरूप का भी त्याग करने वाले सदा
निर्भय, बेफिकर बादशाह भव
आज की दुनिया में धन भी है और भय भी है। जितना धन उतना ही
भय में ही खाते, भय में ही सोते हैं। जहाँ मेरापन है वहाँ भय जरूर होगा। कोई सोना
हिरण भी अगर मेरा है तो भय है। लेकिन यदि मेरा एक शिवबाबा है तो निर्भय बन जायेंगे।
तो सूक्ष्म रूप से भी मेरे-मेरे को चेक करके उसका त्याग करो तो निर्भय, बेफिकर
बादशाह रहने का वरदान मिल जायेगा।
स्लोगन:-
दूसरों
के विचारों को सम्मान दो - तो आपको सम्मान स्वतः प्राप्त होगा।