19-02-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

 

“मीठे बच्चे - बाप का डायरेक्शन है, अन्तर्मुखी बनो, तुम्हें मुख से कोई भी कडुवे शब्द नहीं बोलने हैं, अशान्ति नहीं फैलानी है, किसी को भी दुःख नहीं देना है”

 

प्रश्न:- विश्व को सुख-सम्पन्न बनाने के लिए बाप कौन सी युक्ति बताते हैं?

 

उत्तर:- बच्चे विश्व को कंगाल बनाने वाले यह भूत काम क्रोध... आदि हैं। इनसे ही हीरे मोतियों के भरे हुए घड़े भी सूख गये हैं। सारी विश्व कंगाल हो गई है। तुम्हारे दुश्मन यह पांच भूत हैं जो इस समय सबमें प्रवेश हैं, इनकी प्रवेशता से ही इतना नुकसान हुआ है। बाप इन्हें निकालने की युक्ति बताते हैं बच्चे, अन्तर्मुखी बनो। सर्वशक्तिवान बाप की याद से ही तुम इन भूतों पर विजय पा सकते हो। इन भूतों पर विजय पाने से ही सुख शान्ति सम्पन्न विश्व बनेगी।

 

ओम् शान्ति। बच्चों को अन्तर्मुख बहुत रहना है। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो - यह शिक्षा बाप बैठ देते हैं। यही शिक्षा तुम बच्चों को भी देनी है और कुछ भी बोलना नहीं है। समझानी देनी है घर गृहस्थ में ऐसे रहना है, यही है मन्मनाभव। यह है पहली-पहली प्वाइंट। घर में क्रोध भी नहीं करना है। बाप ने समझाया है क्रोध के लिए कहा जाता है पानी का मटका सुखा देता है। क्रोध बहुत अशान्ति फैलाता है, दुश्मन है ना। इसलिए तुम्हें शान्ति में रहना है। भोजन मिला, खाकर अपने धन्धे वा ऑफिस आदि में चले गये। सब कहते हैं शान्ति चाहिए। बच्चों को बताया गया है कि शान्ति का सागर तो एक ही बाप है, वह देंगे कैसे? बच्चों को डायरेक्शन देते हैं कि मुझे याद करो। मुख से कुछ भी बोलना नहीं है, अन्तर्मुख रहना है। बहुत मीठा बना है। कडुवा नहीं बोलना है। कोई को दुःख नहीं दो। यह लड़ाई आदि सब क्या है? एक दो पर क्रोध करते हैं ना। कोई ने कुछ कहा तो आपस में लड़ पड़ते हैं - यह क्रोध की निशानी है। सतयुग में क्रोध आदि होता नहीं। क्रोध वाले को आसुरी सम्प्रदाय कहा जाता है। भूत आता है तो अपने को भी दुःख देते हैं और औरों को भी दुःख देते हैं। क्रोधी खुद भी तपता है और दूसरों को भी तपाता है, जिससे ही अशान्ति होती है। जिस बात से अशान्ति हो वह बोलनी नहीं चाहिए। दूसरों को तो ज्ञान है ही नहीं, वो तो क्रोध करेंगे। उनके साथ क्रोध करने से लड़ाई लग जाती है। बाप समझाते हैं बच्चे यह भी कड़ा भूत है, इनको युक्ति से भगाना है। कभी भी मुख से कडुवे वचन नहीं निकलने चाहिए। क्रोध बहुत नुकसानकारक है। लड़ाई भी क्रोध से होती है। जहाँ क्रोध होता है वहाँ अशान्ति रहती है। तुम क्रोध कर बाप का नाम बदनाम करेंगे। तुम सबको कहते हो इन भूतों को भगाना है। एक बार भगाया फिर आधाकल्प यह होंगे नहीं। अभी इन 5 विकारों का बहुत जोर है। फुल फोर्स में हैं। आंखे भी क्रिमिनल होती हैं, मुख भी क्रिमिनल होता है। खुद को भी तपाता है, घर को भी तपा देते हैं। यह बहुत बड़े दुश्मन हैं। जब तक इनको भगायेंगे नहीं तब तक शान्ति नहीं हो सकती। क्रोध वाले शान्ति में, योग में रह नहीं सकते। तो देखना है हमारे में कोई भूत तो नहीं हैं? मोह का भूत, लोभ का भूत.. यह सब भूत हैं क्योंकि रावण की सेना है ना। देही-अभिमानी बनने के लिए बाप कितनी याद की यात्रा सिखलाते हैं। बहुत हैं जो पूरी रीति समझते नहीं। मूँझते हैं क्योंकि भक्ति की है ना, भक्ति है देह-अभिमान की। उसमें चित्रों को ही याद करते हैं। आधाकल्प देह का अभिमान रहता है। देह की पूजा करते आये हैं। बाहरमुखता होने के कारण अपने को आत्मा समझ नहीं सकते। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। कई कहते हैं सामने कोई चीज़ तो है नहीं, कैसे याद करें? तो समझाया जाता है कि बाप तो निराकार है ना। वह बेहद का बाप है, उनको याद नहीं करेंगे तो शान्ति कैसे मिलेगी। मुख से कुछ भी बोलना नहीं है। अन्दर में जानते हो ना, मैं आत्मा हूँ और परमपिता परमात्मा की सब आत्मायें औलाद हैं। बाप ही शान्ति का सागर है, वर्सा भी वहीं देंगे। बाप कहते हैं मुझे याद करने से एक तो शान्ति मिलेगी और याद से जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भी विनाश होंगे। बाप कोई इतना बड़ा लिंग नहीं है। जैसे तुम आत्मा छोटी हो वैसे बाप भी बिन्दी है। कहते हैं ओ गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा यह कौन कहता है? शरीर तो नहीं कहता। आत्मा स्टार मिसल है। वह अपने बाप को याद करते हैं। वहाँ बड़ी चीज़ होती नहीं। जैसे आत्मा स्टार मिसल है, वैसे बाप भी स्टार मिसल है। आत्मा बड़ी छोटी होती नहीं। परमात्मा भी बड़ा छोटा नहीं होता। तो बाप कहते हैं मुझे याद करो और कहाँ भी बुद्धि को धक्का मत खिलाओ। कहते हैं ना बाहर में धक्का क्यों खाते हो? बाप भी कहते हैं अन्तर्मुख क्यों नहीं होते हो? भटकते क्यों हो? एक बाप की याद में रहो। यह जो कुछ देखते हो वह खत्म होना है। बाकी आत्मा अविनाशी है। आत्मा को शान्तिधाम में जाना है। अब बाप को याद करेंगे तब ही विकर्म विनाश होंगे और शान्तिधाम में जा सकेंगे। नहीं तो शान्तिधाम में जा नहीं सकेंगे। सभी कहते रहते हैं कि शान्ति कैसे मिले? यहाँ भी थोड़ी बहुत शान्ति के लिए आकर बैठते हैं। घरों में शान्ति नहीं रहती तो आश्रम पर जाते हैं। घर में सारा दिन बखेरा (झमेला) है, तो शान्ति कैसे रहेगी? कुमारी है, कोई कुमार को याद किया तो कभी मन शान्त नहीं होगा। बुद्धि चलती रहेगी। उनकी याद आती रहेगी। बाप समझाते हैं 5 भूत कम नहीं है। कहा जाता है इनमें भूतों की प्रवेशता है। एक भूत नहीं है, पांचों भूतों की प्रवेशता है। भूतों ने ही कंगाल बनाया है। भूत निकल जाते हैं तो तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। इन 5 भूतों को भगाने के लिए बाप को पुकारते हैं कि बाबा आकर हमको शान्ति दो। भूतों की प्रवेशता है। पहला नम्बर काम, फिर क्रोध। वह भूत को भगाने वाले होते हैं ना। उनको कुछ मिलता नहीं है। अच्छा एक भूत को करके भगाते हैं। यह तो 5 भूत सबमें हैं। मीठे बच्चे जानते हैं बाप आकर सारे विश्व में जो भूतों की प्रवेशता है उसको निकालते हैं। इन देवताओं में कोई भूत नहीं है। काम का भूत, क्रोध का भूत कितना बड़ा है। लोभ का भूत भी कम नहीं है। समझते हैं अपनी दिल में कि बरोबर हमारे में यह भूत हैं। देह-अभिमान का भी भूत आता है तो सारी की कमाई चट हो जाती है। क्रोध वाले का भी यह हाल हो जाता है। तुम्हारे पास तो सेमी क्रोध है। मनुष्यों में तो कितना क्रोध है। एक दूसरे को एकदम मार देते हैं। स्त्री पति को, बच्चा बाप को मार देते हैं। जेल में जाकर ऐसे बहुत केस देख सकते हो। यह तो समझते हो बरोबर भूतों की प्रवेशता के कारण भारत का क्या हाल हो गया है। जो भारत हीरों का इतना बड़ा मटका था, जिसमें हीरे-मोती भरे थे, वह सब खाली हो गये हैं। क्रोध के कारण मटका सूख जाता है। यह किसको पता नहीं। बाप आते हैं यह भूत निकालने के लिए, और कोई निकाल नहीं सकता। यह 5 भूत बड़े जबरदस्त हैं। आधाकल्प इन्हों की प्रवेशता रहती है। अभी तो बात मत पूछो। काम का भूत तो है ही, भल कोई पवित्र रहते हैं, परन्तु जन्म तो विकार से मिलेगा। तो अपनी बुद्धि से काम लो। भूत सभी में हैं ना। इन 5 भूतों ने भारत की क्या गति कर दी है, यह बाप समझाते हैं। भारत कितना कंगाल है। खाने के लिए अनाज नहीं। भारत ही सोने की चिड़िया थी। अभी फिर से तुम बच्चों को बाप कितना धन देते हैं। यह है अविनाशी पढ़ाई जो अविनाशी बाप पढ़ाते हैं। जो तुम अभी समझते हो। भारत का यह हाल बरोबर इन भूतों ने किया है। यह भी ड्रामा है। इन भूतों को ही रावण कहा जाता है। शास्त्रों में क्या-क्या कहानियां बना दी हैं। इन कहानियों ने ही सत्यानाश की है। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो, मैं पतित पावन हूँ। मेरी याद से तुम पावन बन जायेंगे। तुम ही बुलाते आये हो ओ गॉड फादर आओ। हमारा गाइड बनो। तो गाइडेन्स कहाँ के लिए देंगे? मुक्ति जीवनमुक्ति के लिए और कोई गाइडेन्स होती है क्या? बाप ही मुक्ति जीवनमुक्ति में जाने का रास्ता बताते हैं और पुरानी दुनिया से नफ़रत दिलाते हैं। परन्तु कोई खूबसूरत देखते हैं तो बात मत पूछो। यह नहीं समझते, चेहरे करके सफेद हैं। आत्मा तो काली है ना। आत्मा तमोप्रधान है। आजकल सगाई होती तो कहेंगे सफेद (गोरी) लड़की चाहिए। खुद भल काला भूत हो।

 

तुम जानते हो इस समय सारी दुनिया है नास्तिक। नास्तिक माना जो बाप रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते। तो बाप बच्चों को समझाते हैं अपनी दिल से पूछो - कहाँ तक अपने को आत्मा समझते हैं और मोस्ट बिलवेड बाप को याद करते हैं? आधाकल्प के भूतों पर बाप ही जीत पहनाते हैं। इसमें अन्तर्मुखता, याद का बल चाहिए। इस समय बलवान कौन है? अमेरिका। उनके पास धन दौलत, बाम्ब्स आदि बहुत हैं। वह है शारीरिक बल। कोई पर विजय कैसे पायें? उसके लिए हथियार हैं। तुम विजय पाते हो रावण पर। रावण पर जीत पाने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो, जो फिर तुम्हारे पर कोई जीत पा न सके। सर्वशक्तिमान् बाप तुमको राज्य दिलाते हैं, जो आधाकल्प कोई छीन न सके। तुमको कितना सुख मिलता है! तो ऐसे बाप को बहुत प्यार से याद करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। दुनिया में यह कोई भी नहीं जानते कि स्वदर्शन चक्र क्या है? वह फिर क्रोध की निशानी समझ लेते हैं। समझते हैं चक्र से मारते हैं। लेकिन इसमें हिंसा की तो बात ही नहीं है।

 

तो बच्चों को समझना चाहिए हमारे में आधाकल्प के जो भूत हैं, उन्हों ने नीचे गिराया है। तुम कहते हो बाबा आप वही हो, आपने राज्य दिया था। बाप भी कहते हैं तुम वही बच्चे हो जिन्हों को राज्य दिया था। अपनी हालत इस जन्म की भी देखो, दूसरे जन्म को भी देखो। मनुष्य भल कितनी भी भक्ति करते हैं, परन्तु यह भूत नहीं निकाल सकते। काम का भूत कितना बड़ा है! दिल होती है भाकी पहनूँ। बात करूँ। बाबा को तो ऐसे बच्चों का मुख भी देखना अच्छा नहीं लगता है। वह जैसे अछूत हैं। बाप कहते हैं देह सहित मरना है। बाप के बने हो तो तुम अपने को आत्मा समझो ना, जरा भी भूत न हो। तुम देवता बनते हो ना। अपनी जांच रखनी है मेरे में क्रोध तो नहीं है? मैजारिटी में क्रोध है। गाली देने बिगर रहेंगे नहीं। कोई शान्त में रहते हैं, कोई जवाब दे देते हैं या हाथ चला देते हैं। क्रोध ऐसा खराब है। अब तुम बच्चों को तो एकदम सम्पूर्ण पावन बनना है। शरीर भी याद न रहे तब पद पा सकेंगे। अभी तुम पत्थर से रत्न बनते हो। तुमको ज्ञान रत्न मिलते हैं ऐसा रत्न बनने के लिए। भारत में भल 33 करोड़ देवतायें कहते हैं। उनमें भी 8 रतन पास विद् ऑनर होंगे। उनको प्राइज मिलेगी। तुम समझते हो मंजिल बड़ी भारी है। चलते-चलते गिर पड़ते हैं। भूत की प्रवेशता हो जाती है। फिर कहते हैं अच्छा सूर्यवंशी नहीं तो चन्द्रवंशी राज्य ही अच्छा। प्रजा, दास दासियां भी तो बनने ही हैं। 33 करोड़ अन्दाज है। वास्तव में हिन्दुओं की आदमशुमारी जास्ती होनी चाहिए क्योंकि वह असुल देवी-देवता थे। तो विवेक कहता है कि उनकी संख्या जास्ती होनी चाहिए। परन्तु क्रिश्चियन की संख्या बढ़ गई है, क्योंकि उनके पास पैसे बहुत हैं। मनुष्य सुख चाहते हैं तो जाकर कनवर्ट हो जाते हैं इसलिए उनकी संख्या ज्यादा है। होनी तुम्हारी चाहिए क्योंकि शुरू से लेकर तुम हो। तो बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों इन भूतों को कैसे भी करके भगाना है। इन भूतों ने तुम्हारी सत्यानाश कर दी है। यह है ही भ्रष्टाचारी दुनिया। वहाँ भ्रष्टाचार होता नहीं। रावण को भी कोई समझते नहीं हैं। रावण बड़ा दुश्मन है। तुम उस पर जीत पाते हो। तुम हो शिव शक्तियां, वन्दे मातरम्। जीत भी तुमने ही पहनी है, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। भक्ति मार्ग में भल सतसंग करते हैं परन्तु 5 भूतों को भगाने की युक्ति कोई नहीं बताते। वह बताने वाला एक ही मीठा बाबा है। गाते भी हैं बाबा आप आयेंगे तो हम कुर्बान जायेंगे। तो जाना चाहिए ना। यह सच-सच कुर्बान गया, इसलिए कहा जाता है सच तो बिठो नच... अन्दर में खुशी बहुत रहेगी। इसलिए बाप की शिक्षा को अमल में लाओ, लड़ना झगड़ना कभी नहीं चाहिए। अच्छा।

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) अन्तर्मुखी बन अपनी जांच करके अन्दर में जो भूत हैं, उन्हें भगाना है। बाह्यमुखी नहीं बनना है। शान्त में रहना है।

 

2) मुख से मीठे बोल बोलने हैं, रत्न निकालने हैं, कडुवा नहीं बोलना है। देह सहित सब कुछ भूलना है।

 

वरदान:- प्राप्तियों की इच्छा से इच्छा मात्रम् अविद्या बन सदा भरपूर रहने वाले निष्काम सेवाधारी भव

 

जो निष्काम सेवाधारी हैं उनके सामने सर्व प्राप्तियां स्वतः आती हैं। लेकिन प्राप्ति आपके आगे भल आये, आप प्राप्तियों को स्वीकार नहीं करो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्तियां होते भी कमी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे। इसलिए इच्छा मात्रम अविद्या बन सर्व प्राप्तियों से भरपूर रहो। संगमयुग पर बापदादा द्वारा जो भी अविनाशी प्राप्तियां हुई हैं, उन्हीं प्राप्तियों के झूले में सदा झूलते रहो तो कोई भी भूलें नहीं होंगी।

 

स्लोगन:- अपनी अव्यक्त स्थिति से अव्यक्त आनन्द, अव्यक्त स्नेह व अव्यक्त शक्ति प्राप्त कर सकते हो।