12-07-09 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 21-01-71 मधुबन
"अव्यक्त वतन का अलौकिक निमंत्रण"
आज मिलने के लिए बुलाया है। यह अव्यक्त मिलन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर ही मना सकते हो। समझ सकते हो? आज देख रहे हैं - कौन-कौन कितने शक्ति-स्वरूप बने हैं? आप लोगों के चित्रों में नम्बरवार शक्तियों का यादगार दिखाया हुआ है। शक्तियों की परख किन चित्रों द्वारा कर सकते हैं, मालूम है? आपको अपने शक्तियों को परखने का चित्र मालूम नहीं है! भिन्न-भिन्न नम्बरवार शक्तियों का यादगार बना हुआ है। अपना चित्र भूल गये हो! शक्तियों के चित्रों में भिन्न-भिन्न रूप से और फिर भुजाओं के रूप में नम्बरवार शक्तियों का यादगार है। उन चित्रों में कहाँ कितनी भुजायें, कहाँ कितनी दिखाते हैं। कोई अष्ट शक्तियों को धारण करने वाली बनती हैं, कोई उससे अधिक, कोई उससे कम। कहाँ 4 भुजाएं, कहाँ 8 भुजाएं, कहाँ 16 भी दिखाते हैं, नम्बरवार। तो आज देख रहे हैं - हरेक ने कितनी शक्तियों की धारणा की है। मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हैं ना। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्व शक्तियों को धारण करने वाले। अपने शक्ति-स्वरूप का साक्षात्कार होता है? अव्यक्त वतन में हरेक का शक्ति रूप देखते हैं तो क्या दिखाई देता होगा? वतन में भी बापदादा की अलौकिक प्रदर्शनी है। उनके चित्र कितने होंगे? आप के चित्र गिनती में आ सकते हैं लेकिन बापदादा के प्रदर्शनी के चित्र गिन सकते हो? बापदादा निमन्त्रण देते हैं। निमन्त्रण देने वाला तो निमन्त्रण देता है, आने वालों का काम है पहुँचना। बापदादा आप सभी से करोड़ गुणा ज्यादा खुशी से निमन्त्रण देते हैं। हरेक को अनुभव हो सकता है। अव्यक्त स्थिति का अनुभव कुछ समय लगातार करो तो ऐसे अनुभव होंगे जैसे साइन्स द्वारा दूर की चीजें सामने दिखाई देती हैं, ऐसे ही अव्यक्त वतन की एक्टिविटी यहाँ स्पष्ट दिखाई देगी। बुद्धिबल द्वारा अपने सर्वशक्तिवान के स्वरूप का साक्षात्कार कर सकते हैं। वर्तमान समय स्मृति कम होने के कारण समर्थी भी नहीं है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ शब्द, व्यर्थ कर्म हो जाने कारण समर्थ नहीं बन सकते हो। व्यर्थ को मिटाओ तो समर्थ हो जायेंगे। पुरूषार्थ के भिन्न-भिन्न स्वरूप वतन में हरेक के देखते रहते हैं। बहुत अच्छा ल्गता है। हरेक अपने आप को इतना नहीं देखते होंगे जितना वतन में हरेक के अनेक रूप देखते हैं। आप लोग भी एक दिन खास अटेन्शन देकर देखना कि सारे दिन में मेरे कितने और कैसे रूप हुए। फिर बहुत हँसी आयेगी - भिन्न-भिन्न पोज़ज़ देखकर। आजकल एक के ही बहुत पोज़ ज़ निकालते हैं। तो अपने भी देखना। अपने बहु रूपों का साक्षात्कार करना। वतन में आने की दिल तो सभी की होती है लेकिन अपने आप से पूछो - जो ब्राह्मणपन के कर्त्तव्य करने हैं वह सभी किये हैं? सर्व कर्त्तव्य सम्पन्न करने के बाद ही सम्पूर्ण बनेंगे। अब का समय ऐसा चल रहा है जो एक-एक कदम अटेन्शन रखकर चलने का है। अटेन्शन न होने के कारण पुरूषार्थ के भी टेन्शन में रहते हैं। एक तरफ वातावरण का टेन्शन रहता है, दूसरे तरफ पुरूषार्थ का भी टेन्शन रहता है। इसलिए सिर्फ एक शब्द ऐड करो - अटेन्शन। फिर यह बहुरूप एक ही सम्पूर्ण रूप बन जायेगा। इसलिए अब कदम-कदम पर अटेन्शन। सुनाया था कि आजकल सर्व आत्मायें सुख और शान्ति का अनुभव करने चाहती हैं। ज्यादा सुनने नहीं चाहती हैं। अनुभव कराने के लिए स्वयं अनुभव-स्वरूप बनेंगे तब सर्व आत्माओं की इच्छा पूर्ण कर सकेंगे। दिन-प्रतिदिन देखेंगे - जैसे धन के भिखारी भिक्षा लेने के लिए आते हैं वैसे शान्ति के अनुभव के भिखारी आत्मायें भिक्षा लेने के लिए तड़पेंगी। अब सिर्फ एक दु:ख की लहर आयेगी तो जैसे लहरों में लहराती हुई आत्मायें वा लहरों में डूबती हुई आत्मा एक तिनके का भी सहारा ढूँढ़ती है, ऐसे आप लोगों के सामने अनेक भिखारी आत्मायें यह भीख मांगने के लिए आयेंगी। तो ऐसी तड़पती हुई या भिखारी प्यासी आत्माओं की प्यास मिटाने के लिए अपने को अतीन्द्रिय सुख वा सर्व शक्तियों से भरपूर किया हुआ अनुभव करते हो? सर्व शक्तियों का खज़ाना, अतीन्द्रिय सुख का खज़ाना इतना इकठ्ठा किया है जो अपनी स्थिति तो कायम रहे लेकिन अन्य आत्माओं को भी सम्पन्न बना सको। सर्व की झोली भरने वाले दाता के बच्चे हो ना। अब यह दृश्य बहुत जल्दी सामने आयेगा।
डाक्टर लोग भी कोई को इस बीमारी की दवाई नहीं दे सकेंगे। तब आप लोगों के पास यह औषधि लेने के लिए आयेंगे। धीर-धीरे यह आवाज़ फैलेगा कि सुख-शान्ति का अनुभव ब्रह्माकुमारियों के पास मिलेगा। भटकते-भटकते असली द्वार पर अनेकानेक आत्मायें आकर पहुँचेंगी। तो ऐसे अनेक आत्माओं को सन्तुष्ट करने के लिए स्वयं अपने हर कर्म से सन्तुष्ट हो? सन्तुष्ट आत्मायें ही अन्य को सन्तुष्ट कर सकती हैं। अब ऐसी सर्विस करने के लिए अपने को तैयार करो। ऐसी तड़फती हुई आत्मायें सात दिन के कोर्स के लिए भी ठहर नहीं सकेंगी। तो उस समय उन आत्माओं को कुछ-न-कुछ अनुभव की प्राप्ति करानी होगी। इसलिए कहा कि अब अपने ब्राह्मणपन के कर्त्तव्य को सम्पन्न करने के लिए अपने को सम्पूर्ण बनाते रहो। अब समझा-कौनसी सर्विस करनी है? जब तक आप व्यक्त में बिज़ी ज़ी हो, बापदादा अव्यक्त में भी मददगार तो हैं ना। हिम्मते बच्चे मददे बाप। तो बताओ ज्यादा बिज़ी ज़ी कौन होगा? जैसे शुरू में वतन का अनुभव कराते थे ना। ऐसा अनुभव करते थे जो ध्यान में जाने वालों से भी अच्छा होता था (बाबा आप अभी भी अनुभव कराओ) अनुभव करो। बुद्धि का विमान तो है ही। कोई-कोई बच्चे कोई बात की जिद्द करते हैं तो बाप को कहना मानना पड़ता है। अब अनुभव करने की जिद्द करो। अच्छा।
पार्टियों से मुलाकात (22-01-71)
प्रजा तो त्रेता के अन्त वाली चाहिए। द्वापर युग के लिए भक्त चाहिए। भक्त भी बनाओ और प्रजा भी बनाओ। अब तो ऐसा समय आयेगा -- देते जाओ, झोली भरते जाओ। इतनी तड़पती हुई आत्मायें आयेंगी, उन्हें बूँद भी देंगे तो खुश हो जायेंगी। ऐसा समय अब आने वाला है। जैसे वह सुनाते हैं मिनट मोटर (सिक्के पर छाप की मशीन), ऐसी मशीनरी चलेगी। दृष्टि, वृत्ति, स्मृति, वाणी सभी से सर्विस चलेगी। आपका घर भी आश्रम है। उनमें से जो भी निकलेंगे वह स्वयं सेन्टर पर जाने के लिए रूक नहीं सकेंगे। इन्होंने तो सर्विस की स्थापना में धक्के खाये हैं। आप लोग तो बने-बनाये पर आये हो। इन्होंने मेहनत कर मक्खन निकाला, आप खाने पर आ गये लेकिन मक्खन खाने वाले कितने शक्तिशाली होने चाहिए? सदैव यह ख्याल रखो कि जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको जो आवश्यकता है वह मिले। रोटी की आवश्यकता वाले को पानी दे दो तो... किसको मान देना पडता है, उसको कहो जाकर दरी पर बैठो तो कैसे बैठेगा! कोई को दरी पर बिठाकर कोर्स कराया जाता है कोई को सोफे पर। अभी गवर्नर आया तो क्या किया? रिगार्ड दिया ना। अगर रिवाजी रीति से चलाओ तो चल न सके। कहाँ रिगार्ड देकर लेना पड़ता है। सभी को एक जैसा डोज़ज़ देने से बीमार भी पड़ जाते हैं। आजकल डाक्टर्स के पास पेशेन्टस जाते हैं तो लम्बा कोर्स नहीं चाहते हैं। आया इन्जेक्शन लगाया और खलास। यहाँ भी ऐसे है, आया और उनको उड़ाया। ऐसी सर्विस करते हो? स्वभाव से भी सर्विस कर सकते हो। ड्रामा अनुसार किसको स्वभाव भी अच्छा मिलता है तो उस स्वभाव की भी मदद है। सहेली बनाकर किसको अनुभव से भी प्रभावित कर सकते हैं। छोड़ न दो कि यह ज्ञान सुनते नहीं हैं। पहले सम्पर्क में लाकर फिर सम्बन्ध में लाओ। स्वभाव से भी किसको समीप ला सकते हो। इसका प्रयोग करो।
तुम सभी विश्व के कल्याण के आधारमूर्त हो। अपने को आधारमूर्त समझेंगे तो बहुतों का उद्धार कर सकेंगे। जो ऐसी सर्विस करते हैं वह उस खाते में, जैसे बैंक में भिन्न-भिन्न खाते होते हैं, जो जो जिसकी सर्विस करने के निमित्त बनते हैं वह उस समय ऐसे ही खाते में जमा होते हैं। फाउन्डेशन जितना गहरा डालेंगे उतना मज़बूत होगा। फाउन्डेशन तो डालते हैं लेकिन गहराई में डालने से, जैसे सुनाया कि सम्पर्क में तो लाया है परन्तु सम्बन्ध में लाना है। जो अनेकों को सम्बन्ध में लाता है वह नज़दीक सम्बन्ध में आयेगा। जो अनेकों को सम्पर्क में लाते हैं वह वहाँ भी नज़दीक सम्पर्क में आयेगा।ज़बूत होगा। फाउन्डेशन तो डालते हैं लेकिन गहराई में डालने से, जैसे सुनाया कि सम्पर्क में तो लाया है परन्तु सम्बन्ध में लाना है। जो अनेकों को सम्बन्ध में लाता है वह नज़दीक सम्बन्ध में आयेगा। जो अनेकों को सम्पर्क में लाते हैं वह वहाँ भी नज़दीक सम्पर्क में आयेगा।ज़दीक सम्बन्ध में आयेगा। जो अनेकों को सम्पर्क में लाते हैं वह वहाँ भी नज़दीक सम्पर्क में आयेगा।ज़दीक सम्पर्क में आयेगा।
2. सारे दिन के पोतामेल को ठीक रीति से निकाल सकते हो? यह मालूम पड़ता है कि मेल गाड़ी की रफ्तार है? बापदादा के संस्कारों से मेल करना है। आप लोगों को, जिन्होंने साकार रूप से साथ रहकर सेकेण्ड के संकल्प, संस्कार का अनुभव किया है, उनसे मेल करना है। औरों को बुद्धियोग से खींचना पड़ता है। आप लोगों को सिर्फ सामने लाना पड़ता है। इसलिए संकल्प, संस्कार को मिलाते जाना है। समय नष्ट नहीं करना है, फौरन निर्णय करना है कि क्या करना है, क्या नहीं करना है? इसमें समय की भी बचत है और बुद्धि की शक्ति भी जो नष्ट होती है उसकी भी बचत है। अपने पुरूषार्थ से सन्तुष्ट हो? सम्पूर्ण होने का क्या प्लैन बनाया है? अपने को जब बदलेंगे तब औरों की सर्विस करेंगे। सन्तुष्टता में सर्टिफिकेट मिला है? मनपसन्दी के साथ-साथ लोक पसन्द बनना है। सर्टिफिकेट एक तो जो रेसपान्सिबुल हैं उन्होंने दिया तो लोकपसन्द हुए, रचना को भी सन्तुष्ट रखना है। उन्हों की चलन से ही कैच करना है कि सन्तुष्ट हैं? जब कोई मधुबन में आते हैं तो निमित्त बनी हुई बहनों द्वारा अपना सर्टिफिकेट ले जावें।
यह सभी सर्टिफिकेट धर्मराज पुरी में काम आयेंगे। जैसे रास्ते में कार चलाने वाले को सर्टिफिकेट होता है तो दिखा देने से रास्ता पार कर लेते हैं। ऐसे धर्मराजपुरी में भी यह सर्टिफिकेट काम में आयेगा। इसलिए जितना हो सके सर्टिफिकेट लेते जाओ। क्योंकि ट्रिब्युनल में भी यही महारथी बैठते हैं। इन्हों की सर्टिफिकेट काम में आयेगी। यहाँ से सर्टिफिकेट ले जाने से दूसरी आत्माओं को सैटिस्फाय करने की विशेषता आयेगी। अनुभवी बहनें अनेकों को सैटिस्फाय करने की शिक्षा देती हैं। अनेकों को सैटिस्फाय करने की युक्ति है सर्टिफिकेट।
स्नेही बनना आता है या शक्ति बनना आता है? शक्ति भरने वाले जो रचयिता हैं उनकी रचना भी शक्तिशाली होने के कारण पुरूषार्थ में कब कैसे, कब कैसे डगमग नहीं होंगे। अगर स्टूडेन्ट डगमग होते हैं तो उससे परख सकते हैं कि शक्ति भरने की युक्ति नहीं है। समीप लाना यही विशेषता है। शक्तिशाली बनाना जो माया से मुकाबला कर लें। यह ऐड कर देना। विघ्न आवे भी लेकिन ज्यादा समय न चले। आया और गया - यह है शक्ति रूप की निशानी। जो अपने से सन्तुष्ट होता है वह दूसरों से भी सन्तुष्ट रहता है। और कोई असन्तुष्ट करे भी परन्तु स्वयं सन्तुष्ट हैं, तो सभी उनसे सन्तुष्ट हो जायेंगे। दूसरे की कमी को अपनी कमी समझकर चलेंगे तो खुद भी सम्पूर्ण बन जायेंगे। यह कभी नहीं सोचो कि इस कारण से मेरा पुरूषार्थ ठीक नहीं चलता। मेरी कमजोरी है, ऐसा समझने से उन्नति जल्दी हो सकती है। नहीं तो दूसरे की कमी के फैसले में ही समय बहुत जाता है।
साकार स्नेही हो या निराकार स्नेही हो? निराकार स्नेही जो होते हैं उनकी यह विशेषता ज्यादा होती है कि वह निराकारी स्थिति में ज्यादा स्थित होंगे, साकार स्नेहीचरित्रवान होंगे। उनका एक-एक चरित्र सर्विसएबुल होगा। दूसरा वह औरों को भी स्नेह में ज्यादा ला सकेंगे। निराकारी, निरहंकारी दोनों समान चाहिए। होगा। दूसरा वह औरों को भी स्नेह में ज्यादा ला सकेंगे। निराकारी, निरहंकारी दोनों समान चाहिए।
वरदान:- मन-बुद्धि को आर्डर प्रमाण विधिपूर्वक कार्य में लगाने वाले निरन्तर योगी भव
निरन्तर योगी अर्थात् स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन मन और बुद्धि है। मंत्र ही मन्मनाभव का है। योग को बुद्धियोग कहते हैं। तो अगर यह विशेष आधार स्तम्भ अपने अधिकार में हैं अर्थात् आर्डर प्रमाण विधि-पूर्वक कार्य करते हैं। जो संकल्प जब करना चाहो वैसा संकल्प कर सको, जहाँ बुद्धि को लगाना चाहो वहाँ लगा सको, बुद्धि आप राजा को भटकाये नहीं। विधिपूर्वक कार्य करे तब कहेंगे निरन्तर योगी।
स्लोगन:- मास्टर विश्व शिक्षक बनो, समय को शिक्षक नहीं बनाओ।