22-01-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 02-05-74 मधुबन

 

अब बाप-समान सर्व गुण सम्पन्न बनो

 

अपने आपको मास्टर ज्ञानसागर समझते हो? जैसे ज्ञान-सागर सर्व-शक्तियों से सम्पन्न हैं, ऐसे अपने को भी सर्व-प्राप्तियों से क्या सम्पन्न अनुभव करते हो? यह जो कहावत है, कि देवताओं के खजाने में अप्राप्त कोई भी वस्तु नहीं होती है-यह कहावत ब्राह्मणों की गाई हुई है या देवताओं की? सर्व संस्कार ब्राह्मण जीवन में ही तुम अनुभव करते हो, क्योंकि अभी तुम सर्व संस्कार अपने में भर रहे हो। तो यह गायन के संस्कार अभी से तुम अनुभव करते हो? क्योंकि इस समय ऊंच ते ऊंच बाप-दादा के तुम बच्चे हो। लेकिन तुम देवताई जीवन में मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहलावेंगे। जब कि अभी सागर की सन्तान हो, तो सागर-समान सम्पन्न अभी होंगे या भविष्य में होंगे? ज्ञानसागर बाप बच्चों को सब में सम्पन्न अभी बनाते हैं। तब ही लास्ट स्टेज का गायन किया जाता है-सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण आहिंसक। महिमा में भी सबके साथ सम्पन्न व सम्पूर्ण शब्द है। यह सम्पन्न-पन का वर्सा बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन में ही मिलता है। अब अपने वर्से के अधिकारी हो या बनना है?

 

जब से बाप के बने, तब से वर्से के अधिकारी बने। वर्सा क्या है? क्या वर्से में सर्व प्राप्ति व सर्व का अखुट खज़ाना अनुभव करते हो? जब वर्से के अधिकारी हैं तो अधिकारी की निशानी क्या है? अधिकारी बाप-समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला, साक्षात बाप-समान होगा। ऐसे अधिकारी का गायन है कि उसके जीवन में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। जो सर्व में सम्पन्न होता है, उसकी आंख व बुद्धि कोई किसी तरफ नहीं डूबती। वह सदा रूहानी नज़र में रहते हैं, अनेक व्यर्थ संकल्पों व अनेक तरफ बुद्धि व दृष्टि जाने से परे, सर्व फिक्रों से फारिग और अपने बाप द्वारा मिले हुए खजाने में सदा रमण करता रहता है। उनको दूसरा कोई अन्य संकल्प करने की भी फुर्सत नहीं रहती, क्योंकि बाप द्वारा मिले हुए खजाने को, स्वयं के प्रति व सर्व-आत्माओं के प्रति बाँटने व धारण करने में वह बहुत बिज़ी रहता है। सबसे बड़े-ते-बड़ा धन्धा, सबसे बड़े-ते-बड़ा दान या सबसे बड़े-ते-बड़ा पुण्य जो भी कहो, वह यही है। इतने श्रेष्ठ कार्य व श्रेष्ठ दान-पुण्य को छोड़कर और क्या करेंगे? क्या फुर्सत मिलती है, जो कि अन्य छोटे-छोटे व्यर्थ कार्य करने का संकल्प भी आवे या कार्य समाप्त कर लिया है क्या इसलिए फुर्सत है? समाप्त नहीं किया है, तो फिर फुर्सत कहाँ से आती है? इतने बड़े कार्य में बिज़ी रहने वाले, फिर गुड़ियों के खेल में क्या कोई एम-ऑब्जेक्ट होती है? क्या कोई रिज़ल्ट निकलता है? इतने बड़े आदमी होकर हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाले और ऐसी गुड़ियों का खेल खेलें, तो क्या इनको महान् समझदार कहेंगे? व्यर्थ संकल्प, गुड़ियों का ही तो खेल है। अभी तक भी ऐसे बचपने के संस्कार हैं क्या?

 

जिसका अपनी आवश्यक और समीप की चेतन शक्तियों, संकल्पों और बुद्धि अथवा मन और बुद्धि पर कन्ट्रोल नहीं, अधिकार नहीं या विजय नहीं तो क्या, विश्व के स्वराज्य का अधिकारी व विजयी रत्न बन सकता है? जिस राज्य के मुख्य अधिकारी अपने अधिकार में न हों, क्या वह राज्य अटल, अखण्ड, और निर्विघ्न चल सकता है? यह मन और बुद्धि आप आत्मा की समीप शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं, व कार्य अधिकारी हैं, यदि वह भी वश में नहीं, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? महान् विजयी या महान् कमज़ोर? तो अपने आपको देखो कि क्या मेरे मुख्य राज्य-अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं? अगर नहीं, तो विश्व राज्य अधिकारी अथवा राजन् कैसे बनेंगे? अपने ही छोटे छोटे कार्यकर्त्ता अपने को धोखा दें, तो क्या ऐसे को महावीर कहा जायेगा? चैलेन्ज तो करते हो, कि हम लॉ और ऑर्डर सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं। तो चैलेन्ज करने वाले के यह छोटे-छोटे कार्यकर्ता अर्थात् कर्मेन्द्रियाँ अपने ही लॉ और आर्डर में नहीं, और वे स्वयं ही कार्यकर्त्ता के वशीभूत हों तो क्या ऐसे वे विश्व में लॉ और ऑर्डर स्थापित कर सकते हैं? हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक अपने अधिकार में हैं? यह चैक करो और अभी से विजयीपन के संस्कार धारण करो। बाप-दादा का नाम बाला करने वाले ही बापसमान सम्पन्न होते हैं। अच्छा!

 

ऐसे इशारे से समझने वाले, हर कार्यकर्त्ता को अपने इशारे पर चलाने वाले, हर आत्मा को बाप की तरफ इशारा देने वाले, सदा अपने अधिकार को अनुभव में लाने वाले, सदा सम्पन्न, और सदा विजयी ऐसे समझदार बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार, गुडनाईट और नमस्ते।

 

दुसरी मुरली - 16-05-74

 

महारथीपन के लक्षण

 

इस समय सबके अन्दर सुनने की इच्छा है व समान बनने की इच्छा है? सुनने के बाद, हर बात समाने से समान बन जाते हैं और समाने से सामना करने की शक्ति स्वयं ही सहज आ जाती है। सामना करने की शक्ति से सर्व-कामनाओं से स्वत: ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है। क्या ऐसे अपने को मुक्त आत्मा अनुभव करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करता? बन्धन-मुक्त ही योग-युक्त हो सकता है। यदि कोई भी स्वभाव, संस्कार, व्यक्ति अथवा वैभव का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करता है, तो बाप की याद की आकर्षण सदैव नहीं रह सकती। किसी के भी वश होते समय, उस आत्मा के प्रति यही शब्द कहा जाता है कि, यह ‘वशीभूत’ है। वशीभूत होना, यह भी पाँच भूतों के साथ-साथ रॉयल रूप का भूत है। जैसे भूतों की प्रवेशता से अपना स्वरूप, अपना स्वभाव, अपना कर्त्तव्य, और अपनी शक्ति भूल जाती है, वैसे ही किसी बात के वशीभूत होने से, यही रूपरेखा बनती है। वशीकरण मन्त्र देने वाले कभी भी वशीभूत नहीं हो सकते। तो अब यह चैक करो कि कहीं वशीभूत तो नहीं हो?

 

आजकल बाप-दादा विशेष कार्यक्रम में बिज़ी रहते हैं। वह कौन-सा कार्य होगा? कोई भी कार्य में बाप के साथ बच्चों का सम्बन्ध होगा ना? तो अपने से सम्बन्धित कार्यक्रम को नहीं जानते हो? अमृत वेले जब बाप से गुडमार्निग व रूह-रूहान करने आते हो, तो उस समय अनुभव नहीं करते हो या उस समय लेने में ही ज्यादा बिजी रहते हो? क्या टच  होता है? वर्तमान समय समाप्ति का समय, समीप आ रहा है। समाप्ति में लास्ट और फास्ट दोनों का प्रत्यक्ष रूप में साक्षात्कार होता है, बाप-दादा हर राज़ हरेक की सैटिंग और फिटिंग ये दोनों ही बातें देखते हैं। कोई-कोई अपने आपको सैट करने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन फिटिंग ठीक न होने के कारण, सैटिंग भी नहीं होती। फिटिंग क्या और सैटिंग क्या-यह तो आप जानते हो ना? ईश्वरीय मर्यादाओं में अपने आपको चलाना, यह ईश्वरीय मर्यादायें हैं फिटिंग। इन मर्यादाओं के आधार से स्थिति की सैटिंग होती है। बाप-दादा जब नम्बरवार महावीरों को देखते हैं व महारथियों के महारथी सैट की सैटिंग करते हैं, तो क्या देखते हैं? कोई न कोई बात की व मर्यादा की फिटिंग न होने के कारण, सीट पर सैट नहीं हो सकते। अभी-अभी सीट पर हैं और अभी-अभी सीट के बजाय कोई-न-कोई साईट पर दिखाई पड़ते हैं। तो बापदादा इसी कार्य में बिजी रहते हैं। उम्मीदवार दिखाई बहुत देते हैं और लाईन भी बहुत बड़ी दिखाई देती है लेकिन प्रमाण स्वरूप कोई कोई होता है।

 

उम्मीदवार बनने के लिए मुख्य कौन-सा पुरूषार्थ है? है बहुत सहज पुरूषार्थ, लेकिन अपनी कमज़ोरियों के कारण सहज को मुश्किल बना देते हैं। उम्मीदवार बनने का सहज पुरूषार्थ यही है कि हर बात में बाप की जो बच्चों के प्रति उम्मीद है, वह बाप की उम्मीद पूरी करना ही, उम्मीदवार बनना है। बाप की उम्मीदें पूरी करना, बच्चों के लिए मुश्किल होता है क्या? बच्चे का जन्म होता ही है, बाप की उम्मीदें पूरी करने के लिए। बच्चे का अपने जीवन का लक्ष्य ही यह होता है, बाप की उम्मीदें पूरी करना। इसको ही दूसरे शब्दों में ‘सन शोज़ फादर’ कहते हैं। तो ऐसा उम्मीदवार बनना आपके ब्राह्मण जीवन का मुख्य लक्ष्य है। जबकि बाप-दादा एक कदम के पीछे, लाखों कदम स्वयं भी सहयोगी बनकर हिम्मत और उल्लास बढ़ाते हैं, फिर मुश्किल क्यों? जबकि दुनिया कि सर्व मुश्किलातों को आप स्वयं ही मिटाने वाले हो, मुश्किल बात सहज अनुभव कराने वाले हो, ऐसे अनुभवी मूर्त के लिए कोई भी बात मुश्किल है, ऐसा सोच भी नहीं सकते। प्यादों का अनुभव, मुश्किल जानना ठीक है। लेकिन अभी अपने को किसी-न-किसी बात में, एक दो से कम नहीं समझते हो अर्थात् कोई प्रकार से अपने को महारथी समझते हो, लास्ट वाले भी ‘लास्ट इज फास्ट’ का लक्ष्य रखते हैं, तो महारथी हुए ना? किसी भी बात में, अपने को किसी के आगे झुकाना व अपनी कमजोरी महसूस करना, अच्छा नहीं समझते। अपने को प्रसिद्ध करने के लिए, हर बात को सिद्ध करते हो, तो इसको क्या कहा जायेगा? अपने को प्यादा समझते हो या किसी-न-किसी रूप में महारथी समझते हो? सिद्ध करने वाला कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता। वास्तव में प्रसिद्ध होने वाला कोई भी बात को सिद्ध नहीं करेगा। अर्थात् जिद्द करने वाला, ऐसा कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता। जिद् करने वाला, कभी सिद्धि को पा नहीं सकता। सिद्धि को पाने वाले, स्वयं को नम्रचित्त, निर्मान, हर बात में अपने आपको गुणग्राहक बनावेगा। लक्ष्य रखते हो प्रसिद्ध होने का और पुरूषार्थ करते हो दूर होने का, तो ऐसी चैकिंग अपनी करो। चैकिंग भी महीन चाहिए।

 

महारथी को कोई बात मुश्किल अनुभव हो, वह महारथी ही नहीं। महारथी अपने सहयोग से और बाप के सहयोग से औरों की मुश्किल भी सहज करेंगे। महारथियों के संकल्प में भी कभी ‘यह कैसे, ऐसे क्यों?’ यह प्रश्न नहीं उठ सकता। ‘कैसे’ के बजाए ‘ऐसे’ शब्द आयेगा। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हो ना? इन बातों को चैक करो। कैसे करूँ? कैसे होगा? यह न स्वयं प्रति न दूसरों के प्रति चले। दोनों ही रूप में प्रश्न समाप्त हों। ऐसा ही सदा प्रसन्नचित्त व हर्षित रहता है। अब समझा। महारथी के लक्षण क्या हैं? करने में कम नहीं। जब एक दो के सम्पर्क में आते हैं, तो एक-दो से स्वयं को कम नहीं समझते, समझने में हरेक अपने को अथॉरिटी समझते हैं और अपना हक रखते हैं। समझने और करने इन दोनों में हकदार बनो, तब ही विश्व के, इस ईश्वरीय परिवार की प्रशंसा के हकदार बनेंगे। कोई भी बात के मांगने वाले मंगता नहीं बनो, दाता बनो। मान, शान, प्रशंसा, बड़ापन आदि मांगने की इच्छा मत करो। मांगेंगे तो जैसे आजकल के मांगने वाले को कोई भी प्राप्ति नहीं कराते, और ही दूर से उसे भगावेंगे। इसी प्रकार यह रॉयल मांगने वाले स्वयं को सर्व आत्माओं से स्वत: ही दूर करते हैं। ऐसा महारथी सीट पर सैट नहीं होता। इसलिए अब आप सभी महारथी हो? घोड़े सवार व प्यादों का समय गया, अब हर महारथी को अपने महारथीपन के लक्षण सामने रखते हुए स्वयं में समाने हैं। अच्छा!

 

ऐसे सर्व इच्छाओं को समाने वाले, बाप-समान सर्वशक्तियों के अथॉरिटी, सदा एक लगन, एक रस स्थिति में स्थित होने वाले, एक बल एक भरोसा, सदा एकाग्र, एकान्त निवासी, अन्तर्मुखी और बाप-दादा के उम्मीदों के सितारों को बाप-दादा का याद प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।

 

वरदान:- यथार्थ विधि द्वारा व्यर्थ को समाप्त कर नम्बरवन लेने वाले परमात्म सिद्धि स्वरूप भव

 

जैसे रोशनी से अंधकार स्वत: खत्म हो जाता है। ऐसे समय, संकल्प, श्वांस को सफल करने से व्यर्थ स्वत: समाप्त हो जाता है, क्योंकि सफल करने का अर्थ है श्रेष्ठ तरफ लगाना। तो श्रेष्ठ तरफ लगाने वाले व्यर्थ पर विन कर नम्बरवन ले लेते हैं। उन्हें व्यर्थ को स्टॉप करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यही परमात्म सिद्धि है। वह रिद्धि सिद्धि वाले अल्पकाल का चमत्कार दिखाते हैं और आप यथार्थ विधि द्वारा परमात्म सिद्धि को प्राप्त करते हो।

 

स्लोगन:- अपकारी पर भी उपकार करने वाला ही ज्ञानी तू आत्मा है।