ओम् शान्ति।
यह है भक्ति वालों के लिए गीत। तुम तो यह गीत नहीं गा सकते हो क्योंकि कहते भी हैं
भगवान आकर पहचान दो। प्रभु ही आकर अपनी पहचान देते हैं। प्रभु, ईश्वर, भगवान बात एक
ही हो जाती है। प्रभु के बदले तुम कहते हो बाबा, तो बिल्कुल सहज हो जाता है। “बाबा''
अक्षर फैमिली का है। सारी रचना है ही बाप की, तो सब बच्चे हो गये। बाप कहना बड़ा
सहज है। सिर्फ प्रभु वा गॉड कहने से बाप नहीं समझते। यह बाप का लव अथवा बाप की
जायदाद का भी पता नहीं लगता। बाप तो स्वर्ग रचते हैं। इतनी थोड़ी सी बात को भी कोई
समझते नहीं हैं। आधाकल्प धक्के खाने में लग जाते हैं। बाबा आकर चपटी में (सेकण्ड
में) पहचान देते हैं। बाबा के सामने बच्चे बैठे भी हैं फिर भी चलते-चलते निश्चय टूट
पड़ता है। अगर पक्का निश्चय हो तो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बन जायें। हम हैं ही शिवबाबा
के पोत्रे, बाबा के घर के हो गये। समझते हैं - हम ब्राह्मण शिवबाबा के भण्डारे से
खाते हैं। ब्राह्मण हो गये तो ब्राह्मणों का ही ब्रह्मा भोजन हो गया। शिवबाबा के
भण्डारे का भोजन हो गया, यह निश्चय होना चाहिए। हम हैं ही शिवबाबा के। फारकती की
बात ही नहीं। हम ब्राह्मण हैं शिवबाबा के बच्चे। हमारा सब कुछ बाबा का है और बाप का
सब कुछ हमारा है। व्यापारियों को हिसाब करना चाहिए। हमारा सब कुछ बाप का है और बाप
का सब कुछ हमारा है तो तराजू किसकी भारी हुई? हमारे पास तो कखपन है और हम कहते हैं
बाबा का राज्य हमारा है। तो फ़र्क है ना। तुम जानते हो हम ईश्वर से विश्व का मालिक
बन जाते हैं। हमारे पास जो कुछ है वह दे देते हैं बाप को। बाप फिर कहते हैं बच्चे
तुम ही ट्रस्टी होकर सम्भालो। समझो यह शिवबाबा का है। अपने को भी शिवबाबा का बच्चा
समझकर चलो, तो सब कुछ पवित्र हो गया। घर में जैसे ब्रह्मा भोजन होता है। शिवबाबा का
भण्डारा हो जाता क्योंकि ब्राह्मण ही बनाते हैं। यूँ तो सब कहते हैं ईश्वर का दिया
हुआ है, परन्तु यहाँ तो बाप सम्मुख आया है। जब हम उनके ऊपर बलिहार जायेंगे। हम एक
बार बलिहार गये तो वह शिवबाबा का भण्डारा हो गया। उनको ही ब्रह्मा भोजन कहा जाता
है। समझा जाता है हम जो खाते हैं वह शिव के भण्डारे का है। पवित्र तो जरूर रहना ही
है। भोजन भी पवित्र हो जाता है परन्तु जब बलिहार जाये ना। देना भी कुछ नहीं है,
सिर्फ वारी जाना है। बाबा यह सब कुछ आपका है। अच्छा बच्चे ट्रस्टी होकर सम्भालो।
शिवबाबा का समझ कर खायेंगे तो जैसे शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो। अगर शिवबाबा को
भूल गये तो फिर वह पवित्र हो न सके। तुम बच्चों को अपना घरबार भी सम्भालना है।
परन्तु अपने को ट्रस्टी समझ घर में बैठे भी शिवबाबा के भण्डारे का ही खाते हो। जो
भी बलिहार हुए वह शिवबाबा का हो गया। कुछ भी समझ में न आये तो पूछो। ऐसे नहीं
शिवबाबा के खजाने से खर्च कर कोई पाप कर दो। शिवबाबा के पैसे से पुण्य करना है।
एक-एक पैसा हीरे मिसल है। उनसे बहुतों का कल्याण होना है, इसलिए बहुत सम्भाल करनी
है। कुछ भी फालतू न जाये क्योंकि इस पैसे से मनुष्य कौड़ी से हीरे जैसा बनता है।
बाबा कहते हैं हमारा भी तुम्हारा है। एक ही बाप है जो निष्कामी है। सब बच्चों की
सेवा करते हैं। बाप कहते हैं मैं क्या करूँगा, सब कुछ तुम्हारा ही है। तुम ही राज्य
करेंगे। हमारा पार्ट ही ऐसा है, जो तुम बच्चों को सुखी करता हूँ। श्रीमत भी मिलती
रहती है। कोई कन्या शादी करने चाहती है तो कहेंगे ज्ञान में नहीं आती है तो जाने
दो। बच्चा अगर आज्ञाकारी नहीं है तो वर्से का हकदार नहीं है। श्रीमत पर नहीं चलते
तो श्रेष्ठ नहीं, हकदार नहीं। फिर सजा भी खानी पड़ेगी। बाप की आज्ञा है अन्धों की
लाठी बनो। वह तो कुछ भी समझते नहीं।
तुम जानते हो हम भी पहले बिल्कुल बन्दर मिसल पतित थे। बाबा ने अब हमारी सेना ली
है। हमको शिक्षा देकर मन्दिर लायक बना रहे हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं। बाकी सबको
सजायें देकर मुक्तिधाम में भेज देते हैं। बेहद के बाप की सब बातें बेहद की हैं। एक
राम-सीता की बात नहीं। बाप बैठ सब शास्त्रों का सार समझाते हैं। मनुष्य पढ़ते तो
बहुत हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं। तो वह जैसे पढ़ा न पढ़ा हो जाता है। पढ़ते-पढ़ते
और ही कलायें कम होते पतित भ्रष्टाचारी बन पड़े हैं। कहते हैं पतित-पावन आओ। फिर
गंगा में खड़े होकर कहते हैं दान करो। अरे हमको तो पावन बनना है, इसमें दान की क्या
बात है। गंगा के पानी में दान करते हैं। बड़े-बड़े राजायें अशर्फी फेंकते हैं, फिर
पुजारी लोग आजीविका के लिए कुछ न कुछ सुनाते हैं। तुम्हारी तो 21 जन्मों की आजीविका
बाप बना देते हैं। बाप कितना अच्छी रीति समझाकर पावन बनाते हैं। भारत ही पावन था,
अब पतित बना है। बाबा बैठ तुम बच्चों को परिचय देते हैं कि तुम जो भी ब्राह्मण हो,
सरेन्डर हो तो तुम शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो। सरेन्डर नहीं हो तो आसुरी भण्डारे
से खाते हो। बाबा ऐसे थोड़ेही कहते हैं अपनी जिम्मेवारी आदि यहाँ ले आओ, सम्भालो
तुम परन्तु ट्रस्टी होकर। निश्चयबुद्धि हो तो तुम जैसे शिवबाबा के भण्डारे से खाते
हो। तुम्हारा हृदय शुद्ध होता जायेगा। गाते भी हैं ब्राह्मण देवी-देवता नम:, यही
ब्राह्मण नम: करने लायक हैं। तुम जानते हो ब्रह्मा द्वारा बाबा हमको शूद्र से
ब्राह्मण बनाते हैं। कल्प-कल्प बाबा हमको आकर रावण राज्य से छुड़ाकर सुखी बनाते
हैं। वहाँ दु:ख का नाम ही नहीं है। भारत में कितने ढेरों के ढेर गुरू विद्वान
पण्डित हैं। एक-एक स्त्री का पति भी गुरू है। कितने ढेर गुरू हो गये हैं। कितनी
उल्टी कारोबार चलाई हुई है। एग्रीमेन्ट कराते हैं कि पति ही तुम्हारा सब कुछ है।
इनकी ही आज्ञा में रहना है। पहले आज्ञा की कुमारी जो पूज्य थी वह फट से पुजारी बन
पड़ती है। सबके आगे माथा टेकना पड़ता है। फिर दूसरी आज्ञा की काम कटारी चलाओ। तो
कितना फ़र्क हो गया। यहाँ तो बाप कहते हैं मुझे मददगार बच्चे चाहिए। वह पैरों पर
क्यों पड़ें। बच्चे वारिस हैं। नम्रता दिखाने के लिए पैरों पर पड़ने की दरकार नहीं
है। नमस्ते कह सकते हैं। तुम कहते हो हम बाबा से वर्सा लेने आये हैं फिर माया एकदम
भुला देती है। फारकती दे देते हैं। बुद्धि को माया खत्म कर देती है। आज बाबा ने
समझाया जिसने शिव के भण्डारे से खाया, पिया, वह भण्डारा भरपूर तो काल कंटक सब हो गया
दूर। अमर हो जाते हैं। तुम बलि चढ़े तो शिवबाबा का सब कुछ हो गया, पक्का निश्चय
चाहिए। कोई कुकर्म कर दिया तो बड़ा पाप चढ़ जायेगा। कदम-कदम पर राय लेनी है, लम्बी
चढ़ाई है। कितने गिर पड़ते हैं। बाबा-बाबा कह 8-10 वर्ष रह फिर भी माया थप्पड़ लगा
देती है। बाबा कहते हैं कदम-कदम पर कहाँ भी मूँझो तो राय पूछो। कई बच्चे पूछते हैं
हम मिलेट्री में सर्विस करते हैं। वहाँ का भोजन खाना पड़ता है। बाबा कहते हैं कर ही
क्या सकते हैं। बाप से मत ली तो रेस्पॉन्सिबुल बाबा है। बहुत पूछते हैं बाबा विलायत
में जाना है, पार्टी में बैठना पड़ता है। भल वेजीटेरियन मिलता है, परन्तु हैं तो
विकारी ना। तुम कोई भी बहाना कर सकते हो। अच्छा चाय पी लेते हैं। अनेक प्रकार की
युक्तियाँ मिलती रहती हैं। इनका राइटहैण्ड धर्मराज भी बैठे हैं। इस समय कदम-कदम पर
श्रीमत लेनी है। बड़ा ऊंचा पद है। किसको स्वप्न में भी याद नहीं होगा - हम विश्व के
मालिक बन सकते हैं। बिल्कुल ही जानते नहीं। कितने हीरे जवाहरों के महल थे। सोमनाथ
मन्दिर में कितने माल थे, सब ऊंट भरकर ले गये। अब समय ऐसा आने वाला है जो किसकी दबी
रही धूल में..., कहते हैं ना - राम नाम सत्य है। सच्ची कमाई करने वालों का हाथ
भरपूर रहेगा। बाकी सब हाथ खाली जायेंगे। बाप कहते हैं तुम्हारी चीज़ तो तुम्हारे
लिए है। हम तो निष्कामी हैं। ऐसा निष्कामी कोई है नहीं। इस समय सबको तमोप्रधान पतित
बनना है। पूरा पतित बन फिर पूरा पावन बनना है। बाप कहते हैं मुझे संकल्प उठा कि नई
दुनिया रचूँ। मैं अपना पार्ट बजाने आया हूँ। जो भी बड़े-बड़े मुख्य हैं वह सब
ऐसे-ऐसे टाइम पर पार्ट बजाते हैं। अभी तुम जानते हो नॉलेजफुल बाप तुम बच्चों को भी
नॉलेजफुल बना रहे हैं। आगे थोड़ेही यह नॉलेज थी। अभी तुम सबकी बायोग्राफी को जानते
हो। धर्म स्थापक भी मुख्य हैं ना। ऊपर से लेकर ऊंचे ते ऊचा है शिवबाबा रचयिता। फिर
ब्रह्मा विष्णु शंकर, फिर ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचते हैं। और कोई क्या जाने कि
यह जगत अम्बा सरस्वती ब्राह्मणी है। आगे भी इस ही समय इसने तपस्या की थी। राजयोग
सिखाया था। अब भी वही कार्य कर रहे हैं। इस नॉलेज में रमण करना चाहिए। रहना अपने घर
में हैं। सब यहाँ तो नहीं बैठ जायेंगे। हाँ पिछाड़ी में फिर आकर सभी वह रहेंगे जो
बाप की सर्विस में तत्पर रहते हैं। वह बहुत वन्डरफुल पार्ट देखेंगे। वैकुण्ठ के झाड़
नजदीक आते जायेंगे। बैठे-बैठे साक्षात्कार करते रहेंगे। तुम पूरे फरिश्ते यहाँ ही
बनते हो। जो भी मनुष्यात्मायें हैं सब शरीर छोड़ेंगी। आत्मायें वापिस चली जायेंगी।
बाबा पण्डा बनकर सबको वापिस ले जायेंगे। यह ज्ञान भी अभी है। सतयुग में ज्ञान का
नाम नहीं है। वहाँ है प्रालब्ध, अभी है पुरुषार्थ।
तुम पुरुषार्थ करते हो 21 जन्म बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने। तुम समझा सकते हो
हम ब्राह्मण हैं। मित्र सम्बन्धी आदि को तुम बाप की याद में रह भोजन बनाकर खिलाओ तो
उनका हृदय भी शुद्ध हो जायेगा। पिछाड़ी में जो बचेंगे वह बहुत मजे देखेंगे। बाबा
घड़ी-घड़ी अपना घर आदि सब कुछ दिखाते रहेंगे। शुरू-शुरू में तुमने बहुत कुछ देखा है
फिर अन्त में बहुत कुछ देखना है। जो चले जायेंगे वह कुछ भी नहीं देखेंगे। इन विकारों
को पूरी रीति तजना है तब ही हीरे जवाहरों से सजना है। तजेंगे नहीं तो इतना सजेंगे
भी नहीं। अभी तुम ज्ञान रत्नों से सज रहे हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्ची कमाई कर हाथ भरतू करके जाना है। एक बाप से सच्चा सौदा करने वाला
सच्चा व्यापारी बनना है।
2) हृदय को शुद्ध बनाने के लिए बाप की याद में रह ब्रह्मा भोजन बनाना है।
योगयुक्त भोजन खाना और खिलाना है। विकारों को तज ज्ञान रत्नों से सजना और सजाना है