03-02-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - सदा ज्ञान की मस्ती में रहो, तो भविष्य नई दुनिया के ख्यालात स्वतः बुद्धि में आते रहेंगे"

प्रश्नः-
देव पद प्राप्त करने वाले बच्चों को कौन सी बात अपने अन्दर से निकाल देनी चाहिए?

उत्तर:-
अभी तक जो देह-अभिमान की बांस है, इस बांस को निकाल दो। इस पुराने शरीर में मोह नहीं रखो क्योंकि इस पुराने रोगी शरीर को तो छोड़ना ही है। तुम मन्दिर में बैठने वाले देवता बनते हो तो देवताओं में यह बातें नहीं होनी चाहिए। बाबा को बच्चों का देह-अभिमान बिल्कुल अच्छा नहीं लगता इसलिए बच्चे देही अभिमानी भव।

गीत:-
भोलेनाथ से निराला...

ओम् शान्ति। सर्विसएबुल बच्चे जानते हैं कि भोलानाथ शिवबाबा ही है। गाया भी जाता है गॉड फादर। गॉड जो है वह फादर है। फादर का कर्तव्य है रचना रचने का। पहले स्त्री भी रचनी है। तो गॉड फादर को माता-पिता जरूर कहना पड़े। फादर तो निराकार ही हुआ। साकारी रचना रचनी है तो जरूर साकारी मदर चाहिए। निराकार को साकारी मदर कैसे मिले यह एक खूबी है। यह भी बाप के सिवाए और कोई तो समझा न सके। भारत में मानते भी हैं - मात-पिता है। तो बाप ही आकर समझाते हैं मैं कैसे मदर को बनाता हूँ। एडाप्ट करता हूँ। गुरू लोग भी फालोअर्स को एडाप्ट करते हैं। मुख से कहा आप हमारे गुरू हो। तो बाप भी कहते हैं मैं इसमें प्रवेश कर रचता हूँ। ब्रह्मा द्वारा ही मनुष्य सृष्टि रची जाती है। रचयिता है परमपिता परमात्मा। फादर है तो मदर जरूर चाहिए। मदर से ही बच्चे पैदा होते हैं। वह तो फालोअर्स को एडाप्ट करते हैं। वह बच्चे नहीं कहेंगे। अब बाबा इनमें प्रवेश होकर कहते हैं हे आत्मायें तुम मेरे बच्चे हो। तुम सम्मुख बैठे हो। मैं तुम्हारा बाप हूँ, इन द्वारा तुमको एडाप्ट किया है। एक तो बड़ा जरूर चाहिए जिससे मनुष्य सृष्टि रची जाती है। उनको कहते हैं पतित पावन। तो इससे सिद्ध है कि पतित सृष्टि में ही बाप को आना पड़ता है। फिर क्या करते हैं? वह विस्तार कुछ भी नहीं है। कहानियां बना दी हैं। पत्ते पर हड्डी मांस वाला बच्चा कहाँ से आयेगा! बाप समझाते हैं प्रलय तो कभी होती नहीं। जब सृष्टि पतित हो जाती है तब मैं आता हूँ। तुम अभी पावन बन रहे हो। कहते हो हम पावन बन पावन दुनिया पर राज्य करेंगे। कहाँ विघ्न भी पड़ते हैं क्योंकि मनुष्य बहुत पतित, कामी हैं। तीर्थो पर भी वैश्यायें रहती हैं। गाने वाली भी वहाँ होती हैं। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ पतित दुनिया में फिर पावन शिवालय बनाता हूँ। बाप तो है ही पूज्य.. देवतायें हैं पूज्यनीय... पूज्य एक ही बाप है। ऊंचे ते ऊंचा पूज्य बाबा फिर हमको पूज्यनीय लायक बनाते हैं। फिर आधाकल्प के बाद हम पुजारी बन जाते हैं। अभी हम पूज्य नहीं हैं, पूज्य एक बाबा है। पूज्य हमेशा बड़े को कहा जाता है। तो शिवबाबा है पूज्य, हमको पूजन लायक बनाते हैं। वह तो कभी पुजारी बनते ही नहीं। हम पूज्यनीय बन फिर पुजारी बनते हैं। कितनी सहज बातें हैं, परन्तु वन्डर है किसको धारणा नहीं होती। बाबा ने समझाया है तुम प्रश्न ही यह पूछो कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? सो भी परमात्मा की महिमा फुल लिखनी है। पतित-पावन सर्व के सद्गति दाता, सबका लिबरेटर गाइड है। कहते हैं मैं कालों का काल भी हूँ, मुझे अकालमूर्त कहते हैं। कहते हैं ना - भगवान ने काल को भेज दिया। आत्मा को काल ले गया। इस पर भी एक कहानी है। बाप कहते हैं - मैं कालों का काल हूँ। सबको वापिस ले जाने वाला हूँ। तुम सब इस समय दुःखी हो, चाहते हो वापिस शान्तिधाम, सुखधाम में जायें। डायरेक्ट बच्चों से आकर बात करते हैं। बाहर वालों के आगे बाबा को नहीं बोलना है। वह तो अनेक धर्म वाले कभी तो गाली देने में देरी नहीं करेंगे। दरकार ही क्या है, हम तो बच्चों के साथ बात करता हूँ। डायरेक्शन भी बच्चों को ही देता हूँ। इसमें दूसरे का क्या जाये। सारी दुनिया पतित है। कहते हैं पतित पावन आओ। दुनिया यह नहीं जानती कि भारत वाइसलेस था। यह 5 भूत प्रवेश हुए हैं। रावण सर्वव्यापी होने के कारण सब रावण मत पर चलते हैं। आसुरी राज्य में है ही आसुरी मत, ईश्वरीय राज्य में है ही ईश्वरीय मत। सतयुग को ईश्वरीय राज्य कहेंगे। उन्हों को राज्य देने वाला जरूर ईश्वर बाप ही होगा। इससे सिद्ध होता है - शिवबाबा द्वारा पढ़ाई से यह राज्य भाग्य मिला है। तुम भी राजयोग सीख रहे हो, तुमको राज्य मिलेगा अमरलोक में। यह तो मृत्युलोक है। हम जब अमरलोक में रहते हैं, वहाँ कभी काल खा नहीं सकता। बाप आशीर्वाद करते हैं जीते रहो बच्चे। 21 जन्म तुमको कभी काल नहीं खायेगा। तुम किसको भी समझा सकते हो कि हमको बाप काल से बचाते हैं। शरीर जब पुराना होता है तो छोड़ते भी हैं, फिर लेते हैं। (सर्प का मिसाल) परन्तु वहाँ कभी काल नहीं खाता। वहाँ काल होता ही नहीं जो खावे। जब टाइम होता है तो पुराना शरीर छोड़ देते हैं। यह तो अच्छा ही है। पुरानी चीज़ को कोई पसन्द थोड़ेही करते हैं। यहाँ भी जब बूढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ में जाने की तैयारी करते हैं। दुनिया से किनारा करते हैं। अभी तो सब पतित हैं। बाप बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं। त्रिनेत्री का अर्थ भी समझाया है। बुद्धि का तीसरा नेत्र खुलता है। तुम्हारा अब ज्ञान का तीसरा नेत्र खुला है।

तुम जानते हो हम मूलवतन से आते हैं पार्ट बजाने। फिर 84 जन्म पूरे कर वापिस जाना है। यह भी किसकी बुद्धि में नहीं आता है। तुम बच्चों को मालूम पड़ा है। 84 जन्म भी दैवी धर्म वाले ही लेते हैं और कोई नहीं। दैवी धर्म वालों का ही सैपलिंग लगेगा, आते जायेंगे। सबको पता लगता जायेगा। यथा राजा रानी तथा प्रजा वहाँ सबकी आयु बड़ी रहती है। बाकी हाँ मर्तबे तो नम्बरवार हैं। बाप आकर बच्चों को अमर-लोक स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। प्रजा भी मालिक ही ठहरी। यहाँ भी कहते हैं हमारा भारत, हमारा राज्य परन्तु राज्य में मर्तबे कितने हैं। कोई तो अशोका होटल में बैठे हैं, कोई को तो दो रोटी भी न मिले। रावण राज्य में है ही दुःख। बाप कहते हैं तुम्हारा देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। आधाकल्प तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। यह कोई कम थोड़ेही है। बहुत साहूकारों को भी सोने, हीरे के महल होंगे और कोई-कोई राजाओं के महलों में हीरे जवाहर भी लगे हुए होंगे। नम्बरवार तो हैं ना। धन के अनुसार होते हैं। प्रजा में भी किसके पास बहुत धन होगा तो सोने के महल बना सकते हैं। कोई-कोई प्रजा भी बहुत साहूकार होती है क्योंकि उन्होंने धन की मदद बहुत की है तो लायक बने हैं। कोई के सोने के महल होंगे। कोई के चांदी के कोई के ईट पत्थर के भी होंगे। वहाँ ईटें आजकल जैसी नहीं होंगी। वह ईटें भी सुनहरी होंगी। देखो बाबा के कैसे-कैसे ख्याल चलते हैं। भविष्य के लिए भी समझते हैं फिर से महल बनायेंगे, यह करेंगे। जो बच्चे ज्ञान की मस्ती में रहते हैं उनके भी ऐसे ख्यालात चलने चाहिए। जैसे डॉक्टरी पास करते हैं तो ख्यालात चलते हैं यह करेंगे, यह बनायेंगे। तुम जानते हो हम पास होंगे तो गोल्डन स्पून इन दी माउथ होगा। जो बहुत धन दान करते हैं, उनके लिए यह समझते हैं कि साहूकार पास जन्म लेंगे तो गोल्डन स्पून इन दी माउथ मिलेगा। यह समझने की बात है ना। अब बाकी थोड़े रोज़ हैं। हम भविष्य में जाकर प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। दिल में आना चाहिए हम वहाँ राजाई महल बहुत अच्छे बनायेंगे। वहाँ भी ढेर राजायें होंगे तो अन्दर ख्यालात आनी चाहिए हम ऐसे-ऐसे महल बनायेंगे। हमारे बाबा का ऐसा महल होगा। अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों का ही गाया हुआ है। वह भी तुम ही हो। परन्तु वह खुशी बच्चों में दिखाई नहीं पड़ती। ऐसे भी नहीं सिर्फ कोई मुख मीठा करना है। प्रैक्टिकल चलन भी ऐसी होनी चाहिए। देखना है कि हमने कितने कांटों को फूल बनाया। कोई वाढ़ा (कारपेन्टर) होगा तो उनकी बुद्धि में यह चलेगा की फलानी खिड़की बहुत फर्स्टक्लास बनाऊंगा, यह करूंगा। सब अपना-अपना अक्ल शो करते हैं।

परमपिता परमात्मा है स्वर्ग का रचयिता। अभी तो यह बेहद की पुरानी दुनिया है फिर नया बनाना बाप का ही काम है। जो बेहद का बाप है उनका फर्ज़ है दुःखी दुनिया को सुखी बनाना। कहते हैं हमारा यह पार्ट है। तुम सब पतित भ्रष्टाचारी हो, तुम क्या करेंगे। जरूर इस कर्तव्य के लिए बाप ही चाहिए जो पावन श्रेष्ठाचारी बनावे। कल्प-कल्प बाप भारत को ही आकर श्रेष्ठाचारी देवता बनाते हैं। वहाँ भ्रष्टाचारी कोई होते नहीं। कयामत के समय सब हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस चले जाते हैं। सबको मैं वापिस ले जाता हूँ। बहुतों का शरीर में मोह होने के कारण, देह-अभिमान होने के कारण बाप को याद नहीं करते। देही अभिमानी बनते ही नहीं। सारा दिन देह की ही तात लगी हुई है। यह कपड़ा अच्छा चाहिए। यह मोटा है, पतला है सारा दिन इसमें ही माथा मारते हैं। देह-अभिमान की बांस आती है। कहाँ मन्दिर में बैठने वाले गोरे देवतायें, कहाँ यह देह-अभिमानी। यज्ञ से तुम्हें जो कुछ मिले उनमें राजी होना चाहिए। अरे तुम बाप को याद करो। तुम फूल बने हो तो औरों को बनाओ। नहीं तो गोया कांटे हो। देह-अभिमान बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। हम तो अभी वनवाह में हैं। आगे तो बाबा कहते थे 8 चत्ती वाला कपड़ा पहनों तो देह-अभिमान छूट जाये। कहते भी हैं - बाबा आप जो देंगे, जो खिलायेंगे, जो पहनायेंगे। आपके फरमान पर ही चलेंगे। कोई तो फरमान नहीं मानते, बहुत देह-अभिमान की बांस है। इस रोगी पुराने शरीर को तो छोड़ना ही है। सर्प में भी अक्ल है। योग में रहने वाले बच्चे बहुत मस्त रहते हैं सर्विस में। कई बच्चे लिखते हैं बाबा हम कांटों को फूल बनाकर दिखायेंगे। सर्विस बिगर हमको आराम नहीं। तो बाबा समझते हैं अच्छा बच्चा है। बाबा की सर्विस का इनको बहुत ओना है। पिछाड़ी के समय बच्चियां ध्यान में जाकर बताती रहेंगी। फलाना यह, यह बनेंगे। स्कूल में भी पिछाड़ी को सब मालूम पड़ जाता है कि फलाना किस नम्बर में आयेगा। कोई गैलप कर अच्छा पढ़ते हैं तो बहुत अच्छा नम्बर ले लेते हैं। ऊंच पद पाने का शौक तो सबको रहता है ना। इतना ऊंच पद पायें, तो कल्प-कल्प पाते रहेंगे। यह कल्प-कल्प की बाज़ी है। यह भूल जाते हैं कि मम्मा बाबा कहते हैं तो ऐसी चलन भी दिखायें। नहीं तो कहा जाता है जिन सोया तिन खोया। कल्प-कल्प पद खो देंगे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानो बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के फरमान पर कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। स्वयं में जो कांटें हैं उन्हें निकाल देना है। खुशबूदार फूल बनना है।

2) ईश्वरीय मत पर चल बाप की आशीर्वाद का पात्र बनना है। काल पर जीत पानी है।

वरदान:-
बहानेबाज़ी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी भव

जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे - ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता। इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी..... अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है। दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न बनूं, नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। इस भावना से मास्टर दातापन के स्वमानधारी बन जायेंगे।

स्लोगन:-
जब मैं और मेरे पन के भावों से वैराग्य हो तब कहेंगे बेहद के वैरागी।