ओम् शान्ति।
गीत में गैरन्टी किसकी थी? मात-पिता के साथ बच्चों की गैरन्टी है कि बाबा हमारे तो
एक आप हो दूसरा न कोई। कितनी ऊंच मंजिल है। ऐसे श्रेष्ठ बाप की श्रीमत पर कोई चले
तो गैरन्टी है, वर्सा जरूर ऊंच पायेंगे। परन्तु बुद्धि कहती है बड़ी ऊंची मंजिल
देखने में आती है। जो कोटों में कोई, कोई में कोई सिर्फ माला के दाने बनते हैं। कहते
भी हैं तुम मात-पिता परन्तु माया इतनी दुस्तर है, जो कोई मुश्किल ही गैरन्टी पर चल
सके। हर एक अपने से पूछ सकते हैं कि सच-सच मैं मात-पिता का बना हूँ? बाप कहते हैं
नहीं। बहुत थोड़े हैं तब तो देखो माला कितनों की बनती है? कितने कोटों में सिर्फ 8
की वैजयन्ती माला बनती है, कई कहते एक हैं, करते दूसरा हैं इसलिए बाप भी कहते हैं –
देखो कैसा वन्डर है। बाबा कितना प्रेम से समझाते हैं परन्तु सपूत बच्चे बहुत थोड़े
निकलते हैं, (माला के दाने)। बच्चों में इतनी ताकत नहीं है जो श्रीमत पर चल सकें,
तो जरूर रावण मत पर हैं इसलिए इतना पद नहीं पा सकते हैं। कोई बिरले ही माला का दाना
बनते हैं, वह भी लाल छिपे नहीं रहते। वह दिल पर चढ़े रहते हैं। रात दिन सर्विस का
ही ओना रहता है। ईश्वरीय संबंध से लव रहता है। बाहर में उनकी बुद्धि कहाँ नहीं जाती।
ऐसा लव दैवी परिवार से रखना है। अज्ञान काल में भी बच्चों का बाप से, बहन-भाइयों का
आपस में बहुत ही लव रहता है। यहाँ तो कोई-कोई का रिंचक मात्र भी बाप से योग नहीं
है। गैरन्टी तो बहुत करते हैं। भक्ति मार्ग में गाते हैं, अभी तो बच्चे सम्मुख हैं।
विचार किया जाता है भक्ति मार्ग में जो गाते रहते हैं, कितना लव से याद करते हैं।
यहाँ तो याद ही नहीं करते। बाबा का बनने से माया दुश्मन बन पड़ती है। बुद्धि बाहर
चली जाती है तो माया अच्छा ही गिरा देती है। वह खुद नहीं समझते कि हम जो कुछ करते
हैं वह गिरने के लिए ही करते हैं। अपनी मत पर गिरते रहते हैं। उनको पता ही नहीं
पड़ता कि हम क्या कर रहे हैं। कुछ तो खामियाँ बच्चों में हैं ना। कहते एक हैं करते
दूसरा हैं। नहीं तो बाप से वर्सा कितना ऊंच मिलता है। सच्चाई से कितना बाप की
सर्विस में लग जाना चाहिए। परन्तु माया कितनी दुस्तर है। कोटों में कोई बाप को पूरा
पहचानते हैं। बाप कहते हैं, कल्प-कल्प ऐसे ही होता है। पूरा व़फादार, फरमानबरदार न
होने के कारण उन बिचारों का पद ऐसा हो पड़ता है। कहते भी हैं बाबा हम राजयोग सीख नर
से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। राम सीता नहीं बनेंगे। हाथ भी उठाते हैं परन्तु
चलन भी तो ऐसी चाहिए ना। बेहद का बाप वर्सा देने के लिए आये हैं, उनकी श्रीमत पर
कितना चलना चाहिए। बहुत हैं जिन्होंने कसम खाया हुआ है हम श्रीमत पर नहीं चलेंगे।
वह छिपे नहीं रहते। कोई की तकदीर में नहीं है तो देह-अभिमान पहले थप्पड़ लगाता है
फिर है काम। काम नहीं तो क्रोध, लोभ है। हैं तो सभी दुश्मन। मोह भी ऐसी चीज़ है जो
बिल्कुल ही सत्यानाश कर देता है। लोभ भी कम नहीं है। बड़े कड़े दुश्मन हैं। पाई-पैसे
की चीज़ चोरी कर लेंगे। यह भी लोभ है ना। चोरी की बहुत गन्दी आदत है। अन्दर में दिल
खाना चाहिए कि हम पाप करते रहते हैं तो क्या पद पायेंगे। शिवबाबा के यज्ञ में आकर
बाबा के पास हम ऐसे काम कैसे कर सकते हैं। माया बहुत उल्टे काम कराती है। कितना भी
समझाओ फिर भी आदत मिटती नहीं है। कोई नाम रूप में फँस पड़ते हैं। देह-अभिमान के
कारण नाम रूप में भी आ जाते हैं। हर एक सेन्टर का बाबा को सारा मालूम रहता है ना।
बाबा भी क्या करे, समझाना तो पड़े। कितने सेन्टर्स हैं। कितने बाबा के पास समाचार
आते हैं। फिकरात तो रहती है ना। फिर समझाना पड़ता है, माया कम नहीं है। बहुत तंग
करती है। अच्छे-अच्छे बच्चों को कहा जाता है बड़ा कहावना बड़ा दु:ख पाना। यहाँ तो
दु:ख की कोई बात नहीं है। जानते हैं कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। ईश्वर का बनकर फिर भी
माया के वश हो जाते हैं। कोई न कोई विकर्म कर लेते हैं, तब बाप कहते हैं प्रतिज्ञा
तो बहुत बच्चे करते हैं कि बाबा हम आपकी श्रीमत पर जरूर चलेंगे, परन्तु चलते नहीं
हैं इसलिए माला देखो कितनी छोटी बनती है, बाकी तो है प्रजा। कितनी बड़ी मंजिल है,
इसमें दिल की बड़ी सफाई चाहिए। कहावत भी है – सच तो बिठो नच। अगर बाप के साथ सच्चा
चलता रहे तो सतयुग में कृष्ण के साथ जाकर डांस करेंगे। सतयुग में कृष्ण का डांस ही
मशहूर है। रास लीला, राधे कृष्ण की ही दिखाते हैं। पीछे रामलीला दिखाते हैं। परन्तु
नम्बरवन में राधे कृष्ण की रास लीला है क्योंकि इस समय वह बाप से बहुत ही सच्चे बनते
हैं तो कितना ऊंच पद पाते हैं। हाथ तो बहुत उठाते हैं, परन्तु माया कैसी है।
प्रतिज्ञा करते हैं तो उस पर चलना पड़े ना। माया के भूतों को भगाना है। देह-अभिमान
के पीछे सब भूत चटक जाते हैं। बाबा कहते हैं देही-अभिमानी बन बाप को याद करो। उसमें
भी सवेरे-सवेरे बैठ बातें करो। बाबा की महिमा करो। भक्तिमार्ग में भल याद करते हैं
परन्तु महिमा तो कोई की है नहीं। कृष्ण को याद करेंगे। महिमा करेंगे – माखन चुराया,
उनको भगाया। अकासुर, बकासुर को मारा, यह किया। बस और क्या कहेंगे। यह है सब झूठ। सच
की रत्ती नहीं। फिर रास्ता क्या बतायेंगे! मुक्ति को ही नहीं जानते। इस समय सारे
विश्व पर रावण का राज्य है। सब इस समय पतित हैं। मनुष्य भ्रष्टाचारी का अर्थ भी नहीं
समझते हैं। यह भी नहीं जानते कि सतयुग में निर्विकारी देवतायें थे। गाते भी हैं
सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण। परन्तु फिर कह देते – वहाँ भी रावण, कंस,
जरासन्धी आदि थे। कहा जाता है पवित्र बनो, तो कहते हैं देवताओं को भी तो बच्चे आदि
थे ना। अरे, तुम गाते हो सर्वगुण सम्पन्न..सम्पूर्ण निर्विकारी फिर विकार की बात
कैसे हो सकती। तुम भी निर्विकारी बनो तो कहते हैं सृष्टि कैसे बढ़ेगी। बच्चे कैसे
पैदा होंगे। मन्दिरों में जाकर महिमा गाते हैं। घर में आने से वह महिमा भी भूल जाते
हैं। भल तुम जांच करके देखो। घर में जाकर समझाओ तो मानेंगे नहीं। वहाँ की बात वहाँ
ही रही। पवित्र बनने के लिए कहो तो कहेंगे वाह! इसके बिगर दुनिया कैसे चलेगी। उनको
पता ही नहीं कि वाइसलेस दुनिया कैसे चलती है।
बच्चों ने गीत भी सुना। प्रतिज्ञा करते हैं – तुम्हारी मत पर चलेंगे क्योंकि
श्रीमत पर चलने में कल्याण है। बाप तो कहते रहते हैं श्रीमत पर चलो, नहीं तो आखिर
मौत आ जायेगा। फिर ट्रिब्युनल में सब बताना पड़ेगा। तुमने ही यह पाप किये हैं। अपनी
मत पर चलकर फिर कल्प-कल्प का दाग लग जायेगा। ऐसे नहीं कि एक बार फेल हुआ तो दूसरे
तीसरे वर्ष में पढ़ेगा। नहीं। अभी नापास हुआ तो कल्प-कल्प होता रहेगा, इसलिए
पुरूषार्थ बहुत करना है। कदम-कदम श्रीमत पर चलो। अन्दर कुछ भी गन्द न रहे। हृदय को
शुद्ध बनाना है। नारद को भी कहा ना – अपनी शक्ल आइने में देखो। तो देखा मैं तो
बन्दर मिसल हूँ। यह एक दृष्टान्त है। अपने से पूछना है कि हम कहाँ तक श्रीमत पर चल
रहे हैं। बुद्धियोग कहाँ बाहर तो नहीं भटकता है? देह-अभिमान में तो नहीं हूँ?
देही-अभिमानी तो सर्विस में लगा रहेगा। सारा मदार योग पर है। भारत का योग मशहूर है।
वह तो निराकार बाप ही निराकार बच्चों को समझाते हैं। इसको कहा जाता है सहज राजयोग।
लिखा हुआ भी है निराकार बाप ने सहज राजयोग सिखाया। सिर्फ कृष्ण का नाम डाल दिया है।
तुम जानते हो हमको ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनना है। पुण्य आत्मा बनना है। पाप की कोई
बात नहीं। बाप की याद में ही रहकर उनकी सर्विस में रहना है। इतना ऊंच पद पाना है तो
कुछ तो मेहनत करेंगे ना। संन्यासी आदि तो कह देते गृहस्थ व्यवहार में रह कमल फूल
समान रहें, यह हो नहीं सकता। सम्पूर्ण बनने में बहुत फेल हो जाते हैं क्योंकि याद
नहीं कर सकते हैं। अभी प्राचीन योग बाप सिखला रहे हैं। बाप कहते हैं योग तो मैं
स्वयं ही आकर सिखलाता हूँ, अब मुझे याद करो। तुमको मेरे पास आना है। यह है याद की
यात्रा। तुम्हारा स्वीट साइलेन्स होम वह है। यह भी जानते हैं कि हम भारतवासी ही
आयेंगे भारत में और पूरा वर्सा पायेंगे। तो बाप बार-बार समझाते हैं, प्रतिज्ञा पर
पूरे रहो। भूल हो जाती है तो बाप से क्षमा लेनी चाहिए।
देखो, यह बच्चा क्षमा लेने लिए खास बाबा के पास एक दिन के लिए आया है। थोड़ी भूल
हुई है तो भागा है क्योंकि दिल को खाता है तो समझा सम्मुख जाकर बाबा को सुनायें।
कितना बाप के प्रति रिगार्ड है। बहुत बच्चे हैं जो इससे भी जास्ती विकर्म करते रहते
हैं, पता भी नहीं पड़ता। हम तो कहते हैं वाह बच्चा, बड़ा अच्छा है। थोड़ी सी भूल की
क्षमा लेने आया है। बाबा का हमेशा कहना है कि भूल बताकर क्षमा ले लो। नहीं तो वह
पाप वृद्धि को पाते रहेंगे। फिर गिर पड़ेंगे। मुख्य योग से ही बच सकेंगे। जिस योग
की बहुत कमी है। ज्ञान तो बहुत सहज है। यह तो जैसे एक कहानी है। आज से 5 हजार वर्ष
पहले किसका राज्य था, कैसे राज्य किया। कितना समय किया फिर राज्य करते-करते कैसे
विकारों में फँसे। कोई ने चढ़ाई नहीं की। चढ़ाई तो बाद में जब वैश्य बनें तब हुई
है। उन्हों से तो रावण ने राज्य छीना। तुम फिर रावण पर जीत पाकर राज्य लेते हो, यह
भी किसकी बुद्धि में मुश्किल बैठता है। जो बाप से पूरे वफादार, फरमानबरदार हैं।
अज्ञानकाल में भी कोई वफादार, फरमानबरदार होते हैं। कोई नौकर भी बड़े इमानदार होते
हैं। लाखों रूपये पड़े रहें, कभी एक भी उठायेंगे नहीं। कहते हैं – सेठ जी आप चाबियाँ
छोड़ गये थे, हम सम्भाल कर लिये बैठे हैं। ऐसे भी होते हैं। बाप तो बहुत अच्छी रीति
समझाते रहते हैं। विवेक कहता है कि इस कारण से माला का दाना नहीं बनते हैं। फिर वहाँ
जाकर दास दासिंयाँ बनेंगे। नहीं पढ़ने से जरूर यह हाल होता होगा। श्रीमत पर नहीं
चलते हैं। बाप समझाते हैं तुम्हारी मंजिल सारी है योग की। माया एकदम नाक से पकड़
योग लगाने नहीं देती। योग हो तो सर्विस बहुत अच्छी करें। पापों का डर रहे। जैसे यह
बच्चा तो बहुत अच्छा है। सच्चाई हो तो ऐसी। अच्छे-अच्छे बच्चों से इनका पद अच्छा
है। और जो सर्विस करते रहते हैं, वह कहाँ न कहाँ फँसे रहते हैं। कुछ भी बताते नहीं
हैं। कहने से छोड़ते भी नहीं हैं। गीत में तो देखो, प्रतिज्ञा करते हैं कि कुछ भी
हो जाए, कभी ऐसी भूल नहीं करेंगे। मूल बात है देह-अभिमान की।। देह-अभिमान से ही भूलें
होती हैं। बहुत भूलें करते हैं इसलिए सावधानी दी जाती है। बाप का काम है समझाना। न
समझाये तो कहेंगे हमको कोई ने समझाया थोड़ेही। इस पर एक कहानी भी है। बाप भी कहते
हैं बच्चे खबरदार रहो। नहीं तो बहुत सजा खानी पड़ेगी। फिर ऐसे नहीं कहना कि हमको
समझाया क्यों नहीं। बाप साफ समझाते हैं थोड़ा भी पाप करने से बहुत वृद्धि हो जाती
है। फिर बाप के आगे सिर भी नहीं उठा सकेंगे। झूठ बोलने से तो तोबां-तोबां करनी
चाहिए। ऐसे नहीं समझो कि शिवबाबा हमको देखते थोड़ेही हैं। अरे अज्ञान काल में भी वह
सब जानते हैं तब तो पाप और पुण्य का एवजा देते हैं। साफ कहते हैं कि तुम पाप करेंगे
तो तुम्हारे लिए बहुत बड़ी कड़ी सजा है। बाप से वर्सा लेने आये हो, तो उसके बदले
दोनों कान तो नहीं कटाना चाहिए ना। कहते एक हैं और याद करते हैं दूसरों को। बाप को
याद नहीं करते तो बताओ उनकी गति क्या होगी? सच खाना, सच बोलना, सच पहनना….. यह भी
अभी की बात है। जबकि बाप आकर सिखाते हैं तो उनसे हर बात में सच्चा रहना चाहिए। अच्छा।
ऐसे सच्चे व़फादार, फरमानबरदार बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चाई से बाप की सर्विस में लग जाना है। पूरा वफादार, फरमानबरदार
बनना है। ईश्वरीय परिवार से सच्चा लव रखना है।
2) श्रीमत में मनमत वा रावण की मत मिक्स नहीं करनी है। एक बाप दूसरा न कोई इस
गैरन्टी में पक्का रहना है। हृदय को शुद्ध पवित्र बनाना है।