05-11-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम अभी वर्ल्ड सर्वेन्ट हो, तुम्हें किसी
भी बात में देह-अभिमान नहीं आना चाहिए”
प्रश्नः-
कौन सी एक आदत
ईश्वरीय कायदे के विरूद्ध है, जिससे बहुत नुकसान होता है?
उत्तर:-
कोई भी
फिल्मी कहानियां सुनना वा पढ़ना, नाविल्स पढ़ना… यह आदत बिल्कुल बेकायदे है, इससे
बहुत नुकसान होता है। बाबा की मना है - बच्चे, तुम्हें ऐसी कोई किताबें नहीं पढ़नी
है। अगर कोई बी.के. ऐसी पुस्तकें पढ़ता है तो तुम एक-दो को सावधान करो।
गीत:-
मुखड़ा देख ले प्राणी…..
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चों प्रति रूहानी बाप कहते हैं – अपनी जांच करो कि याद की यात्रा से हम
तमोप्रधान से सतोप्रधान तरफ कितना आगे बढ़े हैं क्योंकि जितना-जितना याद करेंगे उतना
पाप कटते जायेंगे। अब यह अक्षर कहाँ कोई शास्त्र आदि में लिखे हुए हैं? क्योंकि
जिस-जिस ने धर्म स्थापन किया, उसने जो समझाया उसके शास्त्र बने हुए हैं जो फिर बैठ
पढ़ते हैं। पुस्तक की पूजा करते हैं। अब यह भी समझने की बात है, जबकि यह लिखा हुआ
है। देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाप याद दिलाते हैं –
तुम बच्चे पहले-पहले अशरीरी आये थे, वहाँ तो पवित्र ही रहते हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति
में पतित आत्मा कोई जा नहीं सकती। वह है निराकारी, निर्विकारी दुनिया। इसको कहा जाता
है साकारी विकारी दुनिया फिर सतयुग में यही निर्विकारी दुनिया बनती है। सतयुग में
रहने वाले देवताओं की तो बहुत महिमा है। अब बच्चों को समझाया जाता है – अच्छी रीति
धारण कर औरों को समझाओ। तुम आत्मायें जहाँ से आई हो, पवित्र ही आई हो। फिर यहाँ आकर
अपवित्र भी जरूर होना है। सतयुग को वाइसलेस वर्ल्ड, कलियुग को विशश वर्ल्ड कहा जाता
है। अब तुम पतित-पावन बाप को याद करते हो कि हमको पावन वाइसलेस बनाने आप विशश दुनिया,
विशश शरीर में आओ। बाप खुद बैठ समझाते हैं – ब्रह्मा के चित्र पर ही मूंझते हैं कि
दादा को क्यों बिठाया है। समझाना चाहिए यह तो भागीरथ है। शिव भगवानुवाच है – यह रथ
मैंने लिया है क्योंकि मुझे प्रकृति का आधार जरूर चाहिए। नहीं तो मैं तुमको पतित से
पावन कैसे बनाऊं। रोज़ पढ़ाना भी जरूर है। अब बाप तुम बच्चों को कहते हैं अपने को
आत्मा समझ मामेकम् याद करो। सभी आत्माओं को अपने बाप को याद करना है। कृष्ण को सभी
आत्माओं का बाप नहीं कहेंगे। उनको तो अपना शरीर है। तो यह बाप बहुत सहज समझाते हैं
– जब भी किसी को समझाओ तो बोलो – बाप कहते हैं तुम अशरीरी आये, अब अशरीरी बनकर जाना
है। वहाँ से पवित्र आत्मा ही आती है। भल कल कोई आते तो भी पवित्र हैं, तो उनकी महिमा
जरूर होगी। सन्यासी, उदासी, गृहस्थी जिनका नाम होता है, जरूर उनका यह पहला जन्म है
ना। उनको आना ही है धर्म स्थापन करने। जैसे बाबा गुरूनानक के लिए समझाते हैं। अब
गुरू अक्षर भी कहना पड़ता है क्योंकि नानक नाम तो बहुतों का है ना। जब किसकी महिमा
की जाती है तो उस मतलब से कहा जाता है। न कहें तो अच्छा नहीं। वास्तव में बच्चों को
समझाया है – गुरू कोई भी है नहीं, सिवाए एक के। जिसके नाम पर ही गाते हैं सतगुरू
अकाल… वह अकालमूर्त है अर्थात् जिसको काल न खाये, वह है आत्मा, तब यह कहानियां आदि
बैठ बनाई हैं। फिल्मी कहानियों की किताब, नाविल्स आदि भी बहुत पढ़ते हैं। बाबा बच्चों
को खबरदार करते हैं। कभी भी कोई नाविल आदि नहीं पढ़ना है। कोई-कोई को आदत होती है।
यहाँ तो तुम सौभाग्यशाली बनते हो। कोई बी.के. भी नाविल्स पढ़ते हैं इसलिए बाबा सब
बच्चों को कहते हैं – कभी भी किसको नाविल पढ़ता देखो तो झट उठाकर फाड़ दो, इसमें
डरना नहीं है। हमको कोई श्राप न दे वा गुस्से न हो, ऐसी कोई बात नहीं। तुम्हारा काम
है – एक-दो को सावधान करना। फिल्म की कहानियां सुनना या पढ़ना बेकायदे है। बेकायदे
कोई चलन है तो झट रिपोर्ट करनी चाहिए। नहीं तो सुधरेंगे कैसे? अपना नुकसान करते
रहेंगे। खुद में ही योगबल नहीं होगा तो यहाँ क्या बैठ सिखलायेंगे। बाबा की मना है।
अगर फिर ऐसा काम करेंगे तो अन्दर दिल जरूर खाती रहेगी। अपना नुकसान होगा इसलिए कोई
में भी कोई अवगुण देखते हो तो लिखना चाहिए। कोई बेकायदे चलन तो नहीं चलते? क्योंकि
ब्राह्मण इस समय सर्वेन्ट हैं ना। बाबा भी कहते हैं बच्चे नमस्ते। अर्थ सहित समझाते
हैं। बच्चियाँ पढ़ाने वाली जो हैं – उनमें देह-अभिमान नहीं आना चाहिए। टीचर भी
स्टूडेण्ट का सर्वेन्ट होता है ना। गवर्नर आदि भी चिट्ठी लिखते हैं, नीचे सही करेंगे
आई एम ओबीडियन्ट सर्वेन्ट। बिल्कुल सम्मुख नाम लिखेंगे। बाकी क्लर्क लिखेगा – अपने
हाथ से। कभी अपनी बड़ाई नहीं लिखेंगे। आजकल गुरू तो अपने आपको आपेही श्री-श्री लिख
देते। यहाँ भी कोई ऐसे हैं – श्री फलाना लिख देते हैं। वास्तव में ऐसे भी लिखना नहीं
चाहिए। न फीमेल श्रीमती लिख सकती है। श्रीमत तब मिले जब श्री-श्री स्वयं आकर मत देवे।
तुम समझा सकते हो कि जरूर कोई की मत से यह (देवता) बने हैं ना। भारत में किसको भी
यह पता नहीं कि यह इतना ऊंच विश्व के मालिक कैसे बने। तुमको तो यही नशा चढ़ना चाहिए।
यह एम आब्जेक्ट का चित्र सदैव छाती से लगा होना चाहिए। किसको भी बताओ – हमको भगवान
पढ़ाते हैं, जिससे हम विश्व का महाराजा बनते हैं। बाप आये हैं इस राज्य की स्थापना
करने। इस पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। तुम छोटी-छोटी बच्चियां तोतली भाषा
में किसको भी समझा सकती हो। बड़े-बड़े सम्मेलन आदि होते हैं, उनमें तुमको बुलाते
हैं। यह चित्र तुम ले जाओ और बैठकर समझाओ। भारत में फिर से इन्हों का राज्य स्थापन
हो रहा है। कहाँ भी भरी सभा में तुम समझा सकते हो। सारा दिन सर्विस का ही नशा रहना
चाहिए। भारत में इनका राज्य स्थापन हो रहा है। बाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। शिव
भगवानुवाच – हे बच्चों, तुम अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। तो तुम यह बन जायेगे
21 पीढ़ी के लिए। दैवी गुण भी धारण करने हैं। अभी तो सबके आसुरी गुण हैं। श्रेष्ठ
बनाने वाला तो एक ही श्री श्री शिवबाबा है। वही ऊंच ते ऊंच बाप हमको पढ़ाते हैं।
शिव भगवानुवाच, मनमनाभव। भागीरथ तो मशहूर है। भागीरथ को ही ब्रह्मा कहा जाता है,
जिसको महावीर भी कहते हैं। यहाँ देलवाड़ा मन्दिर में बैठे हुए हैं ना। जैनी आदि जो
मन्दिर बनाने वाले हैं वह कोई भी जानते थोड़ेही हैं। तुम छोटी-छोटी बच्चियां कोई से
भी विजिट ले सकती हो। अभी तुम बहुत श्रेष्ठ बन रहे हो। यह भारत की एम आब्जेक्ट है
ना। कितना नशा चढ़ना चाहिए। यहाँ बाबा अच्छी रीति नशा चढ़ाते हैं। सब कहते हैं हम
तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। राम-सीता बनने के लिए कोई भी हाथ नहीं उठाते। अभी तो तुम
हो अहिंसक, क्षत्रिय। तुम अहिंसक क्षत्रियों को कोई भी नहीं जानते। यह तुम अभी समझते
हो। गीता में भी अक्षर हैं मनमनाभव। अपने को आत्मा समझो। यह तो समझने की बात है ना
और कोई भी समझ नहीं सकते। बाप बैठ बच्चों को शिक्षा देते हैं – बच्चे आत्म-अभिमानी
बनो। यह आदत तुम्हारी फिर 21 जन्म के लिए चलती है। तुमको शिक्षा मिलती ही है 21
जन्मों के लिए।
बाबा घड़ी-घड़ी मूल
बात समझाते हैं – अपने को आत्मा समझकर बैठो। परमात्मा बाप हम आत्माओं को बैठ समझाते
हैं, तुम घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हो फिर घरबार आदि याद आ जाता है। यह होता
है। भक्ति मार्ग में भी भक्ति करते-करते बुद्धि और तरफ चली जाती है। एक टिक सिर्फ
नौधा भक्ति वाले ही बैठ सकते हैं, जिसको तीव्र भक्ति कहा जाता है। एकदम लवलीन हो
जाते हैं। तुम जैसे याद में बैठते हो तो कोई समय एकदम अशरीरी बन जाते हो। जो अच्छे
बच्चे होंगे – वही ऐसी अवस्था में बैठेंगे। देह का भान निकल जायेगा। अशरीरी हो उस
मस्ती में बैठे रहेंगे। यह आदत पड़ जायेगी। संन्यासी हैं तत्व ज्ञानी वा ब्रह्म
ज्ञानी। वह कहते हैं हम लीन हो जायेंगे। यह पुराना शरीर छोड़ ब्रह्म तत्व में लीन
हो जायेंगे। सबका अपना-अपना धर्म है ना। कोई भी दूसरे धर्म को नहीं मानते हैं। आदि
सनातन देवी देवता धर्म वाले भी तमोप्रधान बन गये हैं। गीता का भगवान कब आया था? गीता
का युग कब था? कोई भी नहीं जानते। तुम जानते हो इस संगमयुग पर ही बाप आकर राजयोग
सिखलाते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। भारत की ही बात है। अनेक धर्म भी
थे जरूर। गायन है एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश। सतयुग में था एक धर्म।
अभी कलियुग में हैं अनेक धर्म। फिर एक धर्म की स्थापना होती है। एक धर्म था, अभी नहीं
है। बाकी सब खड़े हैं। बड़ के झाड़ का मिसाल भी बिल्कुल ठीक है। फाउण्डेशन है नहीं।
बाकी सारा झाड़ खड़ा है। वैसे इसमें भी देवी देवता धर्म है नहीं। आदि सनातन देवी
देवता धर्म जो तना था – वह अब प्राय:लोप हो गया है। फिर से बाप स्थापना करते हैं।
बाकी इतने सब धर्म तो पीछे आये हैं फिर चक्र को रिपीट जरूर करना है अर्थात् पुरानी
दुनिया से फिर नई दुनिया होनी है। नई दुनिया में इन्हों का राज्य था। तुम्हारे पास
बड़े चित्र भी हैं, छोटे भी हैं। बड़ी चीज़ होगी तो देखकर पूछेंगे – यह क्या उठाया
है। बोलो, हमने वह चीज़ उठाई है, जिससे मनुष्य बेगर टू प्रिन्स बन जायें। दिल में
बड़ा उमंग, बड़ी खुशी रहनी चाहिए। हम आत्मायें भगवान के बच्चे हैं। आत्माओं को
भगवान पढ़ाते हैं। बाबा हमको नयनों पर बिठाए ले जायेंगे। इस छी-छी दुनिया में तो
हमको रहने का नहीं है। आगे चल त्राहि-त्राहि करेंगे, बात मत पूछो। करोड़ों मनुष्य
मरते हैं। यह तो तुम बच्चों की बुद्धि में है। हम इन आंखों से जो देखते हैं यह कुछ
भी रहना नहीं है। यहाँ तो मनुष्य हैं कांटों मिसल। सतयुग है फूलों का बगीचा। फिर
हमारे नयन ही ठण्डे हो जायेंगे। बगीचे में जाने से नयन ठण्डे शीतल हो जाते हैं ना।
तो तुम अभी पद्मापद्म भाग्यशाली बन रहे हो। ब्राह्मण जो बनते हैं उनके पांव में
पद्म हैं। तुम बच्चों को समझाना चाहिए – हम यह राज्य स्थापन कर रहे हैं, इसलिए बाबा
ने बैज बनवाये हैं। सफेद साड़ी पहनी हुई हो, बैज लगा हो, इससे स्वत: सेवा होती रहेगी।
मनुष्य गाते हैं – आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल…परन्तु बहुकाल का अर्थ कोई भी
समझते नहीं हैं। तुमको बाप ने बताया है कि बहुकाल अर्थात् 5 हजार वर्ष के बाद तुम
बच्चे बाप से मिलते हो। तुम यह भी जानते हो कि इस सृष्टि में सबसे नामीग्रामी हैं
यह राधे कृष्ण। यह सतयुग के फर्स्ट प्रिन्स प्रिन्सेज हैं। कभी किसके ख्याल में भी
नहीं आयेगा कि यह कहाँ से आये। सतयुग के आगे जरूर कलियुग होगा। उन्होंने क्या कर्म
किये जो विश्व के मालिक बनें। भारतवासी कोई इन्हों को विश्व का मालिक नहीं समझते
हैं। इनका जब राज्य था तो भारत में और कोई धर्म था नहीं। अभी तुम बच्चे जानते हो –
बाप हमको राजयोग सिखा रहे हैं। हमारी एम आब्जेक्ट यह है। भल मन्दिरों में उन्हों के
चित्र आदि हैं। परन्तु यह थोड़ेही समझते हैं कि इस समय यह स्थापना हो रही है।
तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते हैं। कोई तो बिल्कुल ही भूल जाते हैं। चलन ऐसी होती
है जैसे पहले थी। यहाँ समझते तो बहुत अच्छा हैं, यहाँ से बाहर निकले खलास। सर्विस
का शौक रहना चाहिए। सबको यह पैगाम देने की युक्ति रचें। मेहनत करनी है। नशे से बताना
चाहिए – शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करो तो पाप मिट जायेंगे। हम एक शिवबाबा के सिवाए
और किसको याद नहीं करते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एम आब्जेक्ट का चित्र सदा साथ रखना है। नशा रहे कि अभी हम श्रीमत पर
विश्व का मालिक बन रहे हैं। हम ऐसे फूलों के बगीचे में जाते हैं – जहाँ हमारे नयन
ही शीतल हो जायेंगे।
2) सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है। बड़े दिल वा उमंग से बड़े-बड़े चित्रों पर
सर्विस करनी है। बेगर टू प्रिन्स बनाना है।
वरदान:-
तीन प्रकार की विजय का मैडल प्राप्त करने वाले सदा
विजयी भव
विजय माला में नम्बर प्राप्त करने के लिए पहले स्व पर
विजयी, फिर सर्व पर विजयी और फिर प्रकृति पर विजयी बनो। जब यह तीन प्रकार की विजय
के मैडल प्राप्त होंगे तब विजय माला का मणका बन सकेंगे। स्व पर विजयी बनना अर्थात्
अपने व्यर्थ भाव, स्वभाव को श्रेष्ठ भाव, शुभ भावना से परिवर्तन करना। जो ऐसे स्व
पर विजयी बनते हैं वही दूसरों पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं। प्रकृति पर विजय
प्राप्त करना अर्थात् वायुमण्डल, वायब्रेशन और स्थूल प्रकृति की समस्याओं पर विजयी
बनना।
स्लोगन:-
स्वयं
की कर्मेन्द्रियों पर सम्पूर्ण राज्य करने वाले ही सच्चे राजयोगी हैं।