ओम् शान्ति।
यह भी गायन है इस समय का, जो फिर भक्ति मार्ग में चला आता है। इस समय जबकि तुम बाप
के पास जीते जी मरते हो तो बरोबर सारी दुनिया ही ख़त्म हो जाती है। अज्ञान काल में
मनुष्य मरते हैं तो इस ही दुनिया में जन्म लेते हैं। दुनिया कायम है। कहावत है - आप
मुये मर गई दुनिया। परन्तु उनके मरने से दुनिया का विनाश तो नहीं हो जाता। इस ही
दुनिया में फिर जन्म लेना पड़ता है। तुम मरेंगे तो यह दुनिया भी ख़त्म हो जायेगी।
तुम जानते हो हम फिर नई दुनिया में आयेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो।
ईश्वर का बच्चा होने से हमको सतयुग का बर्थ राइट मिलता है, स्वर्ग की बादशाही मिलती
है। नर्क ख़त्म हो जाता है। इसमें कोई मेहनत नहीं है। सिर्फ बाप को याद करना है।
मनुष्य जब कोई मरते हैं तब उसको कहते हैं राम-राम कहो। पिछाड़ी में उठाते समय कहते
हैं - राम नाम सत्य है। यह भगवान् को ही कहते हैं। राम-नाम सत है अर्थात् परमपिता
परमात्मा जो सत है, उसका ही नाम लेना चाहिये। माला भी राम-राम कह सिमरते हैं। यह
राम नाम की धुनि ऐसी लगाते हैं जैसे कोई साज़ बजता है। तुम बच्चों को बाप समझाते
हैं कि कोई भी आवाज़ नहीं करना है, सिर्फ बुद्धि से याद करना है। तुम जानते हो जीते
जी ईश्वर की गोद में आने से फिर यह दु:ख रूपी दुनिया ख़त्म हो जाती है। बाबा, हम
आपके गले का हार बन जायेंगे। गाया भी जाता है रुद्र माला। राम माला नहीं कहा जाता
है। तुम रुद्र माला में पिरोने के लिए इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, कल्प पहले
मुआफिक। दूसरा कोई सत्संग नहीं, जहाँ ऐसे समझते हो कि हम ईश्वर बाप के गले में
पिरोयेंगे। बाप से तो जरूर वर्सा मिलेगा। बाप कौन कहता है? आत्मा। आत्मा में ही
बुद्धि है ना। बुद्धि समझती है फिर कहती है, पहले संकल्प आता है फिर कर्मेन्द्रियों
से कहा जाता है। बरोबर हम बाबा के बने हैं, बाबा के ही होकर रहेंगे। इस अन्तिम जन्म
में गॉड फादर कहते हैं ना। फिर पूछो तुम्हारे में गॉड फादर की नॉलेज है? तो कहेंगे
गॉड तो सर्वव्यापी है। बोलो, तुम्हारी आत्मा कहती है परमपिता, तो पिता सर्वव्यापी
कैसे होगा? बच्चे में बाप आ गया क्या? बाप को सर्वव्यापी कहना बिल्कुल रांग है। यह
बातें बहुत अच्छी रीति समझकर फिर समझाना है।
रुद्र ज्ञान यज्ञ तो मशहूर है। रुद्र है निराकार। श्रीकृष्ण तो साकार है। आखरीन
भगवान् किसको कहा जाये? श्रीकृष्ण को तो नहीं कह सकते। मनुष्य तो बहुत भोले होते
हैं। कह देते हैं - गॉड इज़ ओमनी प्रेजन्ट। बाप तो अपने घर में ही रहता है, और कहाँ
रहेगा? अब बाप इस बेहद के घर में आया हुआ है। यहाँ विराजमान है। कहते हैं कि मैंने
इसमें प्रवेश किया है। जैसे ब्राह्मणों में पित्रों को बुलाते हैं। समझो, कोई अपने
बाप के पित्र को खिलाते हैं तो आत्मा कहेगी कि मैं इनमें आया हुआ हूँ। मैंने इसमें
प्रवेश किया हुआ है, कुछ पूछना हो तो पूछो। आगे पित्रों को बुलाने का बहुत रिवाज
था। पित्र तो आत्मा है ना। पित्र को यानी आत्मा को खिलाया जाता है। कहेंगे आज हमारे
दादे का पित्र है, आज फलाने का पित्र है। तो आत्मा को बुलाया जाता है, खिलाया जाता
है। समझो किसका स्त्री से प्यार है, शरीर छोड़ दिया तो उसकी आत्मा को बुलाते हैं।
कहते हैं हमने हीरे की फुल्ली पहनाने का वायदा किया था, तो ब्राह्मण को बुलाकर उनको
हीरे की फुल्ली पहनाते हैं। बुलाया तो आत्मा को। शरीर थोड़ेही आयेगा। यह रस्म भारत
में ही है। जैसे तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, कोई मर गया, उनका भोग लगाते हो तो
सूक्ष्मवतन में वह आत्मा आती है। यह है बिल्कुल नई बातें। जब तक कोई अच्छी रीति समझ
न जाये तब तक मनुष्यों को संशय पड़ता है कि यह क्या करते हैं?, ब्राह्मणों की
रस्म-रिवाज देखो कैसी है! सभी मन्दिरों आदि में भोग लगाते हैं। पित्र को भोग लगाते
हैं। गुरुनानक की आत्मा को भोग लगाया, अब वह कहाँ है? यह समझ नहीं सकते। तुम तो
जानते हो जिन्होंने धर्म स्थापन किया हुआ है, वह सब यहाँ हैं। जैसे बाबा कहते हैं
मैं तो ब्राह्मण धर्म स्थापन करता हूँ। यह तो पतित-पावन है। पावन आत्मा ही आकर धर्म
स्थापन करती है। परन्तु सतोप्रधान आत्मा को फिर सतो, रजो, तमो में आना ही है। इस
समय सभी आत्मायें कब्रदाखिल हैं। बाबा तो है ही पतित-पावन। वह कभी कब्रदाखिल नहीं
होते। मनुष्य को पतित-पावन नहीं कहेंगे। पतित-पावन माना सारी दुनिया का पतित-पावन।
पतित दुनिया को पावन बनाने वाला एक बाप के सिवाए कोई हो नहीं सकता। वह तो आते हैं
अपने-अपने धर्म स्थापन करने। क्रिश्चियन धर्म का सारा सिजरा वहाँ है। पहले क्राइस्ट
आया फिर उनके पिछाड़ी सब आते रहेंगे, वृद्धि को पाते रहेंगे। वह कोई पतित को पावन
नहीं बनाते। नम्बरवार उन्हों की संख्या आती है। पतित-पावन तो इस समय चाहिए, जबकि सभी
कब्रदाखिल हो जाते हैं। सबको पावन बनाने वाला एक वही है।
यह तुम समझते हो बरोबर इस समय सारी दुनिया जड़जड़ीभूत है। बनेन ट्री का मिसाल
देते हैं, बहुत बड़ा झाड़ है, उसका फाउन्डेशन सड़ा हुआ है, बाकी टाल-टालियां सारी
खड़ी हैं। यह भी झाड़ है। देवी-देवता धर्म का जो फाउन्डेशन है, उनकी जड़ एकदम कट गई
है। बाकी सब हैं। बीज हो तो फिर से स्थापन करे ना। बाप कहते हैं, मैं फिर से आकर
स्थापना कराता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश। बरोबर अनेक धर्मों
का विनाश हुआ था। महाभारत लड़ाई के समय जो राजयोग सीखे, उनकी फिर राजधानी स्थापन हो
गई। तुम जानते हो अभी हम बाप के पास जायेंगे फिर नई दुनिया में आयेंगे। फिर झाड़
वृद्धि को पाता जायेगा। देवी-देवता धर्म जो था वह प्राय:लोप हो गया है। बाप कहते
हैं मैं फिर से आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। भारत जो ऊंचे
ते ऊंच था उनको अब ग्रहण लगा हुआ है। काम चिता पर बैठने से इस समय तुम्हारी आत्मा
काली हो गई है। अब फिर तुम ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हो। तुम जो श्याम बन गये
थे, श्याम को सुन्दर गोरा बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। उनकी श्रीमत मिलती है।
परमपिता परमात्मा की आत्मा एवर प्योर गोरी है। आत्मा में ही खाद पड़ती है। (सोने का
मिसाल) अभी तुम जानते हो - इस पुरानी दुनिया का विनाश होना है, सभी का मौत है। फिर
तुमको कहने वाला कोई नहीं रहेगा कि राम-राम कहो। अब देखो, नेहरू मरा तो उनकी राख को
सब जगह गिराया। समझा, अच्छी खाद मिलेगी। झाड़ में कीड़ा आदि पड़ जाता है तो उसमें
राख डालते हैं। अभी इस सारी पृथ्वी को कितनी राख मिलेगी। बड़े-बडे
संन्यासी-महात्माएं मरते हैं तो उन्हों की राख ऐसे नहीं डालते हैं। सबसे उत्तम हैं
संन्यासी। अभी तो कितने मरेंगे! कितनी खाद मिलेगी! तो क्यों नहीं सृष्टि फर्स्ट
क्लास अनाज आदि देगी। सतयुग में सब हरे भरे सब्ज होते हैं। इस सृष्टि को नया बनाने
में टाइम लगता है। तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो, कितने बड़े-बड़े फल तुमको दिखाते
हैं, शूबी-रस पिलाते हैं। तुम विचार करो - कितनी खाद मिलेगी! सो भी ख़ास भारत को।
वहाँ कितनी अच्छी-अच्छी चीजें निकलेंगी नई दुनिया के लिये। खाद पड़कर सारी दुनिया
नई हो जायेगी। सूक्ष्मवतन में बैकुण्ठ का शूबीरस तुमको पिलाते हैं। बगीचे आदि का
साक्षात्कार कराते हैं। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। शूबीरस पीकर आते हैं।
प्रिन्स-प्रिन्सेस बगीचे से फल ले आते थे। अब सूक्ष्मवतन में तो बगीचा हो न सके।
जरूर बैकुण्ठ में गये होंगे। एक-एक को साक्षात्कार नहीं करायेंगे। जो निमित्त बनते
हैं, उनको साक्षात्कार कराते हैं। हो सकता है अगर तुम याद में रहेंगे, बाबा के बच्चे
बनकर रहेंगे तो पिछाड़ी में तुमको भी साक्षात्कार होगा। यह तो पहले गऊशाला बननी थी,
भट्ठी में पकना था तो बहुत आ गये।
बच्चों को समझाया है सिर्फ कोई को लिटरेचर देने से समझ नहीं सकेंगे। समझाने वाला
टीचर जरूर चाहिए। टीचर सेकेण्ड में समझायेगा - यह तुम्हारा बाबा है, यह दादा है, यह
बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। सिर्फ कोई को लिटरेचर दिया तो देखकर फेंक देंगे,
कुछ भी समझेंगे नहीं। इतना जरूर समझाना है कि बाप आया है। यह ढिंढोरा पिटवाना
तुम्हारा फ़र्ज है। बरोबर यादव-कौरव भी हैं, महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है। जरूर
राजयोग सिखलाने वाला भी होगा। जरूर स्वर्ग की स्थापना भी होगी। एक धर्म की स्थापना,
अनेक धर्मों का विनाश होगा। तुम जानते हो हम नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते
हैं। यह है हमारी एम ऑब्जेक्ट। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। देवता सिर्फ
सूर्यवंशी को कहा जाता है। चन्द्रवंशी को क्षत्रिय कहा जाता है। पहले तो देवता बनना
चाहिए ना। नापास होने से क्षत्रिय हो जाते हैं। तो बाप कहते हैं - मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चे। कितने ढेर सिकीलधे बच्चे हैं! देखो, किसका बच्चा गुम हो जाता है, 6-8 मास के
बाद आकर मिलता है तो कितना प्यार से आकर मिलेगा! बाप को कितनी खुशी होगी! यह बाप भी
कहते हैं - लाडले सिकीलधे बच्चे, तुम 5 हजार वर्ष के बाद आकर मिले हो। लाडले बच्चे,
तुम बिछुड़ गये थे, अब फिर आकर मिले हो बेहद का वर्सा लेने लिये। डीटी वर्ल्ड
सावरन्टी इज योर गॉड फादरली बर्थ राइट। बाबा तुमको बेहद की बादशाही देने आया है। यह
है हेविनली गॉड फादर। कहते हैं तुम बच्चों के लिये कितनी बड़ी सौगात लाई है! परन्तु
इतना लायक बनना है, श्रीमत पर चलना है। मम्मा-बाबा कहकर फिर अगर भूल जाये या फ़ारकती
दे तो गले का हार नहीं बनेंगे। बच्चों को कितना प्यार किया जाता है! बाप बच्चों को
सिर पर रखते हैं। बेहद के बाप को कितने बच्चे हैं। बाबा कितना ऊंच माथे पर चढ़ाते
हैं। पांव में जो गिरे हुए हैं उन्हों को माथे पर चढ़ाते हैं। तो कितना खुशी में
रहना चाहिये! और श्रीमत पर चलना चाहिए। एक की श्रीमत पर चलना है। अपनी मनमत पर चला
तो यह मरा। श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे।
बाबा पूछते हैं ना कि कितने नम्बर में पास होंगे? बाप भी कहते हैं सूर्यवंशी बनो।
तो मम्मा-बाबा को फालो करना पड़े। आप समान स्वदर्शन चक्रधारी बनाना है। शिवबाबा के
आगे ले आते हैं तो बाबा पूछते हैं कितने को आप समान बनाया है? कितने मज़े की बातें
हैं। तुम ही समझ सकते हो, नया कोई बिल्कुल ही नहीं समझ सकेगा कि यह कोई मनुष्य से
देवता बनने की कॉलेज है। कोई को तो 7 रोज़ में बहुत अच्छा रंग चढ़ जाता है। कोई को
बिल्कुल नहीं चढ़ता। बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पहली-पहली बात बच्चों को समझाई कि
पहले सबको बोलो कि बेहद के बाप को जानते हो? कहते हैं - हाँ, वह मेरे में भी है,
सर्वव्यापी है। फिर तो पूछने की दरकार ही नहीं है। जब बाप कहते हो तो बाप तुम्हारे
में वा मेरे में कैसे हो सकता है? बाप से तो वर्सा लिया जाता है। तो पहले-पहले अल्फ़
पर समझाओ।
बाप कहते हैं - “मेरे सिकीलधे बच्चे।'' ऐसे कोई साधू-संन्यासी कह न सके। तुम
जानते हो बरोबर हम शिवबाबा के सिकीलधे बच्चे हैं, 5 हजार वर्ष के बाद फिर आकर मिले
हैं स्वर्ग का वर्सा लेने लिये। जानते हो हम ही स्वर्ग के मालिक थे फिर हम ही बनते
हैं। स्वर्ग में जाना जरूर है। फिर पुरुषार्थ अनुसार ऊंच पद पाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मात-पिता को फालो कर आप समान बनाने की सेवा करनी है। स्वदर्शन
चक्रधारी बनना और बनाना है।
2) बाप के गले का हार बनने के लिये बुद्धि से बाप को याद करना है, आवाज़ नहीं
करनी है। याद की धुन में रहना है।