04-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – बाबा आये हैं तुम्हें बहुत रुचि से पढ़ाने,
तुम भी रुचि से पढ़ो – नशा रहे हमको पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है”
प्रश्नः-
तुम
ब्रह्माकुमार-कुमारियों का उद्देश्य वा शुद्ध भावना कौनसी है?
उत्तर:-
तुम्हारा उद्देश्य है – कल्प 5 हज़ार वर्ष पहले की तरह फिर से श्रीमत पर विश्व में
सुख और शान्ति का राज्य स्थापन करना। तुम्हारी शुद्ध भावना है कि श्रीमत पर हम सारे
विश्व की सद्गति करेंगे। तुम नशे से कहते हो हम सबको सद्गति देने वाले हैं। तुम्हें
बाप से पीस प्राइज़ मिलती है। नर्कवासी से स्वर्गवासी बनना ही प्राइज़ लेना है।
ओम् शान्ति।
स्टूडेण्ड जब पढ़ते
हैं तो खुशी से पढ़ते हैं। टीचर भी बहुत खुशी से, रुचि से पढ़ाते हैं। रूहानी बच्चे
यह जानते हैं कि बेहद का बाप जो टीचर भी है, हमको बहुत रुचि से पढ़ाते हैं। उस
पढ़ाई में तो बाप अलग होता है, टीचर अलग होता है, जो पढ़ाते हैं। कोई-कोई का बाप ही
टीचर होता है जो पढ़ाते हैं तो बहुत रुचि से पढ़ाते हैं क्योंकि फिर भी ब्लड
कनेक्शन होता है ना। अपना समझकर बहुत रुचि से पढ़ाते हैं। यह बाप तुम्हें कितना रुचि
से पढ़ाते होंगे तो बच्चों को भी कितना रुचि से पढ़ना चाहिए।। डायरेक्ट बाप पढ़ाते
हैं और यह एक ही बार आकर पढ़ाते हैं। बच्चों को रुचि बहुत चाहिए। बाबा भगवान हमको
पढ़ाते हैं और हर बात अच्छी रीति समझाते रहते हैं। कोई-कोई बच्चों को पढ़ते-पढ़ते
विचार आते हैं यह क्या है, ड्रामा में यह आवागमन का चक्र है। परन्तु यह नाटक रचा ही
क्यों? इससे क्या फायदा? बस सिर्फ ऐसे चक्र ही लगाते रहेंगे, इससे तो छूट जाएं तो
अच्छा है। जब देखते हैं यह तो 84 का चक्र लगाते ही रहना है तो ऐसे-ऐसे ख्यालात आते
हैं। भगवान ने ऐसा खेल क्यों रचा है, जो आवागमन के चक्र से छूट ही नहीं सकते, इससे
तो मोक्ष मिल जाए। ऐसे-ऐसे ख्यालात कई बच्चों को आते हैं। इस आवागमन से, दु:ख सुख
से छूट जायें। बाप कहते हैं यह कभी हो नहीं सकता। मोक्ष पाने के लिए कोशिश करना ही
वेस्ट हो जाता है। बाप ने समझाया है एक भी आत्मा पार्ट से छूट नहीं सकती। आत्मा में
अविनाशी पार्ट भरा है। वह है ही अनादि अविनाशी, बिल्कुल एक्यूरेट एक्टर्स हैं। एक
भी कम जास्ती नहीं हो सकते। तुम बच्चों को सारी नॉलेज है। इस ड्रामा के पार्ट से
कोई छूट नहीं सकता। न कोई मोक्ष पा सकता है। सब धर्म वालों को नम्बरवार आना ही है।
बाप समझाते हैं यह बना बनाया अविनाशी ड्रामा है। तुम भी कहते हो बाबा अब जान गये,
कैसे हम 84 का चक्र लगाते हैं। यह भी समझते हो पहले-पहले जो आते होंगे, वह 84 जन्म
लेते होंगे। पीछे आने वाले के जरूर कम जन्म होंगे। यहाँ तो पुरूषार्थ करने का है।
पुरानी दुनिया से नई दुनिया जरूर बननी है। बाबा हर एक बात बार-बार समझाते रहते हैं
क्योंकि नये-नये बच्चे आते रहते हैं। उनको आगे की पढ़ाई कौन पढ़ाये। तो बाप नये-नये
को देख फिर पुरानी प्वाइंट्स ही रिपीट करते हैं।
तुम्हारी बुद्धि में
सारी नॉलेज है। जानते हो शुरू से लेकर कैसे हम पार्ट बजाते आये हैं। तुम यथार्थ रीति
जानते हो, कैसे नम्बरवार आते हैं, कितने जन्म लेते हैं। इस समय ही बाप आकर ज्ञान की
बातें सुनाते हैं। सतयुग में तो है ही प्रालब्ध। यह इस समय तुमको ही समझाया जाता
है। गीता में भी शुरू में फिर पिछाड़ी में यह बात आती है – मनमनाभव। पढ़ाया जाता है
स्टेट्स पाने के लिए। तुम राजा बनने के लिए अब पुरूषार्थ करते हो। और धर्म वालों का
तो समझाया है – कि वह नम्बरवार आते हैं, धर्म स्थापक के पिछाड़ी सबको आना पड़ता है।
राजाई की बात नहीं। एक ही गीता शास्त्र है जिसकी बहुत महिमा है। भारत में ही बाप
आकर सुनाते हैं और सबकी सद्गति करते हैं। वह धर्म स्थापक जो आते हैं, वो जब मरते
हैं तो बड़े-बड़े तीर्थ बना देते हैं। वास्तव में सबका तीर्थ यह भारत ही है जहाँ
बेहद का बाप आते हैं। बाप ने भारत में ही आकर सर्व की सद्गति की है। बाप कहते हैं
मुझे लिबरेटर, गाइड कहते हो ना। हम तुमको इस पुरानी दुनिया, दु:ख की दुनिया से
लिबरेट कर शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा हमें शान्तिधाम,
सुखधाम ले जायेंगे। बाकी सब शान्तिधाम जायेंगे। दु:ख से बाप आकर लिबरेट करते हैं।
उनका जन्म-मरण तो है नहीं। बाप आया फिर चला जायेगा। उनके लिए ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि
मर गया। जैसे शिवानंद के लिए कहेंगे शरीर छोड़ दिया फिर क्रियाकर्म करते हैं। यह
बाप चला जायेगा तो इनका क्रियाकर्म, सेरीमनी आदि कुछ भी नहीं करना होता। उनके तो आने
का भी नहीं पता पड़ता। क्रियाकर्म आदि की तो बात ही नहीं है। और सब मनुष्यों का
क्रियाकर्म करते हैं। बाप का क्रियाकर्म होता नहीं, उनको शरीर ही नहीं। सतयुग में
यह ज्ञान भक्ति की बातें होती नहीं। यह अभी ही चलती हैं और सब भक्ति ही सिखलाते
हैं। आधाकल्प है भक्ति फिर आधाकल्प के बाद बाप आकर ज्ञान का वर्सा देते हैं। ज्ञान
कोई वहाँ साथ नहीं चलता। वहाँ बाप को याद करने की दरकार ही नहीं रहती। मुक्ति में
हैं। वहाँ याद करना होता है क्या? दु:ख की फरियाद वहाँ होती ही नहीं। भक्ति भी पहले
अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी। इस समय तो अति व्यभिचारी भक्ति है, इसको रौरव नर्क कहा
जाता है। एकदम तीखे में तीखा नर्क है फिर बाप आकर तीखा स्वर्ग बनाते हैं। इस समय है
100 प्रतिशत दु:ख, फिर 100 प्रति-शत सुख-शान्ति होगी। आत्मा जाकर अपने घर विश्राम
पायेगी। समझाने में बड़ा सहज है। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब नई दुनिया की
स्थापना कर पुरानी का विनाश करना होता है। इतना कार्य सिर्फ एक तो नहीं करेंगे।
खिदमतगार बहुत चाहिए। इस समय तुम बाप के खिदमतगार बच्चे बने हो। भारत की खास सच्ची
सेवा करते हो। सच्चा बाप सच्ची सेवा सिखलाते हैं। अपना भी, भारत का भी और विश्व का
भी कल्याण करते हो। तो कितना रुचि से करना चाहिए। बाबा कितनी रुचि से सर्व की सद्गति
करते हैं। अभी भी सर्व की सद्गति होनी है जरूर। यह है शुद्ध अहंकार, शुद्ध भावना।
तुम सच्ची-सच्ची सेवा
करते हो – परन्तु गुप्त। आत्मा करती है शरीर द्वारा। तुम से बहुत पूछते हैं – बी.के.
का उद्देश्य क्या है? बोलो बी.के. का उद्देश्य है विश्व में सतयुगी सुख-शान्ति का
स्वराज्य स्थापन करना। हम हर 5 हज़ार वर्ष बाद श्रीमत पर विश्व में शान्ति स्थापन
कर विश्व शान्ति की प्राइज़ लेते हैं। यथा राजा-रानी तथा प्रजा प्राइज़ लेते हैं।
नर्कवासी से स्वर्गवासी बनना कम प्राइज़ है क्या! वह पीस प्राइज़ लेकर खुश होते रहते
हैं, मिलता कुछ भी नहीं। सच्ची-सच्ची प्राइज़ तो अभी हम बाप से ले रहे हैं, विश्व
के बादशाही की। कहते हैं ना भारत हमारा ऊंच देश है। कितनी महिमा करते हैं। सब समझते
हैं हम भारत के मालिक हैं, परन्तु मालिक हैं कहाँ। अभी तुम बच्चे बाबा की श्रीमत से
राज्य स्थापन करते हो। हथियार पंवार तो कुछ नहीं हैं। दैवीगुण धारण करते हैं इसलिए
तुम्हारा ही गायन पूजन है। अम्बा की देखो कितनी पूजा होती है। परन्तु अम्बा कौन है,
ब्राह्मण है वा देवता…. यह भी पता नहीं। अम्बा, काली, दुर्गा, सरस्वती आदि…… ऐसे
बहुत नाम हैं। यहाँ भी नीचे अम्बा का छोटा-सा मन्दिर है। अम्बा को बहुत भुजायें दे
देते हैं। ऐसे तो है नहीं। इसको कहा जाता है ब्लाइन्ड फेथ। क्राइस्ट बुद्ध आदि आये,
उन्होंने अपना-अपना धर्म स्थापन किया, तिथि-तारीख सब बताते हैं। वहाँ ब्लाइन्डफेथ
की तो बात ही नहीं। यहाँ भारतवासियों को कुछ पता नहीं है – हमारा धर्म कब और किसने
स्थापन किया? इसलिये कहा जाता है ब्लाइन्डफेथ। अभी तुम पुजारी हो फिर पूज्य बनते
हो। तुम्हारी आत्मा भी पूज्य तो शरीर भी पूज्य बनता है। तुम्हारी आत्मा की भी पूजा
होती है फिर देवता बनते हो तो भी पूजा होती है। बाप तो है ही निराकार। वह सदैव
पूज्य है। वह कभी पुजारी नहीं बनते हैं। तुम बच्चों के लिए कहा जाता है आपेही पूज्य
आपेही पुजारी। बाप तो एवर पूज्य है, यहाँ आकर बाप सच्ची सेवा करते हैं। सबको सद्गति
देते हैं। बाप कहते हैं – अब मामेकम् याद करो। दूसरे कोई देहधारी को याद नहीं करना
है। यहाँ तो बड़े-बड़े लखपति, करो-ड़पति जाकर अल्लाह-अल्लाह कहते हैं। कितनी
अन्धश्रद्धा है। बाप ने तुमको हम सो का अर्थ भी समझाया है। वह तो कह देते शिवोहम्,
आत्मा सो परमात्मा। अब बाप ने करेक्ट कर बताया है। अब जज करो, भक्तिमार्ग में राइट
सुना है या हम राइट बताते हैं? हम सो का अर्थ बहुत लम्बा-चौड़ा है। हम सो ब्राह्मण,
देवता, क्षत्रिय। अब हम सो का अर्थ कौनसा राइट है? हम आत्मा चक्र में ऐसे आती हैं।
विराट रूप का चित्र भी है, इसमें चोटी ब्राह्मण और बाप को दिखाया नहीं है। देवतायें
कहाँ से आये? पैदा कहाँ से हुए? कलियुग में तो है शूद्र वर्ण। सतयुग में फट से देवता
वर्ण कैसे हुआ? कुछ भी समझते नहीं। भक्ति मार्ग में मनुष्य कितना फंसे रहते हैं।
कोई ने ग्रंथ पढ़ लिया, ख्याल आया, मन्दिर बना लिया बस ग्रंथ बैठ सुनायेंगे। बहुत
मनुष्य आ जाते, बहुत फालोअर्स बन जाते हैं। फायदा तो कुछ भी नहीं होता। बहुत दुकान
निकल गये हैं। अब यह सब दुकान खत्म हो जायेंगे। यह दुकानदारी सारी भक्ति मार्ग में
है, इनसे बहुत धन कमाते हैं। संन्यासी कहते हैं हम ब्रह्म योगी, तत्व योगी हैं। जैसे
भारतवासी वास्तव में हैं देवी-देवता धर्म के परन्तु हिन्दू धर्म कह देते हैं। वैसे
ब्रह्म तो तत्व है, जहाँ आत्मायें रहती हैं। उन्होंने फिर ब्रह्म ज्ञानी तत्व ज्ञानी
नाम रख दिया है। नहीं तो ब्रह्म तत्व है रहने का स्थान। तो बाप समझाते हैं कितनी
भारी भूल कर दी है। यह सब है भ्रम। मैं आकर सब भ्रम दूर कर देता हूँ। भक्ति मार्ग
में कहते भी हैं हे प्रभू तेरी गति मत न्यारी है। गति तो कोई कर न सके। मतें तो
अनेकानेक की मिलती हैं। यहाँ की मत कितनी कमाल कर देती है। सारे विश्व को चेंज कर
देती है।
अभी तुम बच्चों की
बुद्धि में है, इतने सब धर्म कैसे आते हैं! फिर आत्मायें कैसे अपने-अपने सेक्शन में
जाकर रहती हैं। यह सब ड्रामा मे नूँध है। यह भी बच्चे जानते हैं – दिव्य दृष्टि दाता
एक बाप ही है। बाबा को कहा – यह दिव्य दृष्टि की चाबी हमको दे दो तो हम कोई को
साक्षात्कार करा दें। बोला – नहीं, यह चाबी किसको मिल नहीं सकती। उनके एवज में तुमको
फिर विश्व की बादशाही देता हूँ। मैं नहीं लेता हूँ। मेरा ही पार्ट है साक्षात्कार
कराने का। साक्षात्कार होने से कितना खुश हो जाते हैं। मिलता कुछ भी नहीं। ऐसे नहीं
कि साक्षात्कार से कोई निरोगी बन जाते हैं या धन मिल जाता है। नहीं, मीरा को
साक्षात्कार हुआ परन्तु मुक्ति को थोड़ेही पाया। मनुष्य समझते हैं वह रहती ही
वैकुण्ठ में थी। परन्तु वैकुण्ठ कृष्णपुरी है कहाँ। यह सब हैं साक्षात्कार। बाप बैठ
सब बातें समझाते हैं। इनको भी पहले-पहले विष्णु का साक्षात्कार हुआ तो बहुत खुश हो
गया। वह भी जब देखा कि मैं महाराजा बनता हूँ। विनाश भी देखा फिर राजाई का भी देखा
तब निश्चय बैठा ओहो! मैं तो विश्व का मालिक बनता हूँ। बाबा की प्रवेशता हो गई। बस
बाबा यह सब आप ले लो, हमको तो विश्व की बादशाही चाहिए। तुम भी यह सौदा करने आये हो
ना। जो ज्ञान उठाते हैं उनकी फिर भक्ति छूट जाती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दैवीगुण धारण कर श्रीमत पर भारत की सच्ची सेवा करनी है। अपना, भारत
का और सारे विश्व का कल्याण बहुत-बहुत रुचि से करना है।
2) ड्रामा की अनादि अविनाशी नूँध को यथार्थ समझ कोई भी टाइम वेस्ट करने वाला
पुरूषार्थ नहीं करना है। व्यर्थ ख्यालात भी नहीं चलाने हैं।
वरदान:-
गोल्डन एजेड स्वभाव द्वारा गोल्डन एजेड सेवा करने
वाले श्रेष्ठ पुरुषार्थी भव
जिन बच्चों के स्वभाव में ईर्ष्या, सिद्ध और जिद्द के भाव
की अथवा किसी भी पुराने संस्कार की अलाए मिक्स नहीं है वे हैं गोल्डन एजेड स्वभाव
वाले। ऐसा गोल्डन एजेड स्वभाव और सदा हाँ जी का संस्कार बनाने वाले श्रेष्ठ
पुरुषार्थी बच्चे जैसा समय, जैसी सेवा वैसे स्वयं को मोल्ड कर रीयल गोल्ड बन जाते
हैं। सेवा में भी अभिमान वा अपमान की अलाए मिक्स न हो तब कहेंगे गोल्डन एजेड सेवा
करने वाले।
स्लोगन:-
क्यों
क्या के प्रश्नों को समाप्त कर सदा प्रसन्नचित रहो।