05-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - तुम्हें
गृहस्थ व्यवहार में रहते सभी से तोड़ निभाना है , एक बार बेहद का संन्यास कर 21
जन्म की प्रालब्ध बनानी है
प्रश्नः-
चलते-फिरते
कौन सी एक बात याद रहे तो भी तुम रूहानी यात्रा पर हो?
उत्तर:-
चलते
फिरते याद रहे कि हम एक्टर हैं, हमको अब वापिस घर जाना है। बाप यही याद दिलाते हैं।
बच्चे मैं तुम्हें वापिस ले जाने आया हूँ, इस स्मृति में रहना ही मनमनाभव, मध्याजी
भव है। यही रूहानी यात्रा है जो तुम्हें बाप सिखलाते हैं।
प्रश्नः-
सद्गति के
लक्षण कौन से हैं?
उत्तर:-
सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण... यह जो महिमा है यही सद्गति के लक्षण हैं, जो
तुम्हें बाप द्वारा प्राप्त होते हैं।
गीत:-
धीरज धर मनुवा...
ओम् शान्ति।
बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि अब पुराना नाटक पूरा होता है। दु:ख
के दिन बाकी कुछ घड़िया हैं और फिर सदा सुख ही सुख होगा। जब सुख का पता पड़ता है तब
समझा जाता है यह दु:खधाम है, दोनों में बहुत अन्तर है। अभी सुख के लिए तुम
पुरुषार्थ कर रहे हो अथवा श्रीमत पर चल रहे हो। कोई को भी ये समझाना बहुत सहज है।
अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने आया है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान
पवित्र रहना है। तोड़ जरूर निभाना है। अगर तोड़ न निभाया तो जैसे संन्यासियों मिसल
हो गये। जो तोड़ नहीं निभाते हैं उनको निवृत्ति मार्ग अथवा हठयोग कहा जाता है। अभी
भगवान राजयोग सिखलाते हैं जो हम सीखते हैं। भारत का धर्म शास्त्र है गीता।संन्यासियों
का है हठयोग, घरबार छोड़ जंगल में चले जाना। उन्हों को जन्म बाई जन्म संन्यास करना
पड़ता है। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बार संन्यास करते हो फिर 21 जन्म उनकी
प्रालब्ध पाते हो। उन्हों का है हद का संन्यास, तुम्हारा है बेहद का संन्यास।
तुम्हारे राजयोग का तो बहुत गायन है। भगवान ने राजयोग सिखाया था। भगवान ऊंचे ते ऊंचे
को ही कहा जाता है। श्रीकृष्ण भगवान हो न सके। बेहद का बाप है ही निराकार। बेहद की
बादशाही वही दे सकते हैं। यहाँ गृहस्थ व्यवहार से ऩफरत नहीं की जाती है। बाप कहते
हैं यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। पतित-पावन कोई संन्यासी को
कह नहीं सकते। वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। वह दुनिया है एक, जिसके लिए पतित-पावन
बाप को बुलाते हैं। जबकि वह गृहस्थ व्यवहार में ही नहीं हैं तो देवताओं को भी नहीं
मानेंगे। वह कभी राजयोग सिखला न सकें। न बाप कभी हठयोग सिखला सके। यह समझने की बातें
हैं।
अब देहली में वर्ल्ड कानफ्रेन्स होनी है। वहाँ यह समझाना है, लिखत में देना है।
लिखत में होगा तो सब समझ जायेंगे। अब हम हैं ऊंचे ते ऊंच ब्राह्मण कुल के। वह हैं
शूद्र कुल के। हम हैं आस्तिक। वह हैं नास्तिक। वह हैं ईश्वर को न जानने वाले। हम
हैं ईश्वर से योग रखने वाले। तो मतभेद है ना। बाप ही आकर आस्तिक बनाते हैं। बाप का
बनने से बाप का वर्सा मिल जाता है। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। पहले-पहले तो बुद्धि
में बिठाना है कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है। उसने ही आदि सनातन देवी-देवता
धर्म स्थापन किया था। भारत का देवी-देवता धर्म ही मुख्य है। भारत-वासी अपने धर्म को
भूल गये हैं। यह भी तुम जानते हो, भारतवासियों को ड्रामा-अनुसार अपना धर्म भूलना ही
है, तब तो बाप आकर फिर स्थापन करे। नहीं तो बाप आये कैसे? कहते हैं जब-जब देवी-देवता
धर्म प्राय:लोप हो जाता है, तब मैं आता हूँ। प्राय:लोप भी जरूर होना है। कहते हैं
बैल की एक टांग टूट गई है, बाकी 3 टांगों पर दुनिया खड़ी है। मुख्य हैं ही 4 धर्म।
अभी देवता धर्म की टांग टूटी हुई है अर्थात् वह धर्म गुम हो गया है इसलिए बड़ के
झाड़ का मिसाल देते हैं कि फाउन्डेशन सड़ गया बाकी टाल टालियाँ खड़ी हैं। तो इनमें
भी फाउन्डेशन देवता धर्म का है नहीं। बाकी मठ पंथ आदि बहुत खड़े हैं। तुम्हारी
बुद्धि में अब सारी रोशनी है।
बाप कहते हैं तुम बच्चे इस ड्रामा के राज़ को जान गये हो कि सारा झाड़ पुराना हो
गया है। कलियुग के बाद सतयुग को आना है जरूर, चक्र को फिरना है जरूर। बुद्धि में
रखना है कि अब नाटक पूरा हुआ है, हम जा रहे हैं। चलते-फिरते यह याद रहे कि अब हमको
वापिस जाना है। मनमनाभव, मध्याजी भव का भी यही अर्थ है। कोई भी बड़ी सभा में भाषण
आदि करना है, तो यही समझाना है कि परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं हे बच्चे, देह
सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप दग्ध होंगे।
मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद
करो। पवित्र रहो, नॉलेज को भी धारण करो। अभी सब दुर्गति में हैं। सतयुग में देवतायें
सद्गति में थे। फिर बाबा आकर सद्गति करते हैं। सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण...
यह है सद्गति के लक्षण। यह लक्षण कौन देते हैं? बाप। उनके फिर लक्षण क्या हैं? वह
ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर... है। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसे नहीं सब एक
ही एक है। एक बाप है, हम सब आत्मायें बच्चे हैं। अब नई रचना रची जाती है। हम
प्रजापिता ब्रह्मा की सब औलाद हैं। परन्तु वो लोग इन बातों को समझ नहीं सकते।
ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंच है। भारत के ही वर्ण गाये जाते हैं। 84 जन्म लेने में इन
वर्णो से पास करना होता है। ब्राह्मण हैं ही संगम पर।
अच्छा साइलेन्स तो बहुत अच्छी है। शान्ति का हार तो गले में पड़ा है। एक रानी की
कहानी है। अब शान्तिधाम अपना घर बहुत याद पड़ता है। चाहते सब हैं शान्ति घर में जायें
परन्तु रास्ता कौन बताये? शान्ति के सागर बाप के सिवाए कोई बता न सके। बाप की महिमा
अच्छी है। शान्ति का सागर, आनंद का सागर... मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, कितना रात दिन
का फ़र्क है। कृष्ण को सृष्टि का बीजरूप कह न सकें। बाप की महिमा ही अलग है।
सर्वव्यापी कहने से महिमा सिद्ध नहीं होती। ऐसे भी नहीं परमात्मा बैठ अपनी पूजा
करेंगे। परमात्मा सदैव पूज्य है, वह कभी पुजारी नहीं बनता। ऊपर से जो भी आते हैं वह
पूज्य से पुजारी बनते हैं। प्वाइन्ट्स तो बहुत हैं। अब देखो, आते तो कितने ढेर हैं।
परन्तु निकलते कोटों में कोई हैं क्योंकि मंजिल ऊंची है। प्रजा तो ढेर बनती रहेगी।
परन्तु कोटों में कोई माला का दाना बनते हैं। नारद का मिसाल...... तुम अपनी शक्ल
देखो लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? राजा तो थोड़े बनेंगे। एक राजा की ढेर प्रजा बनती
है। पुरुषार्थ करना चाहिए - ऊंच बनने का। राजाओं में भी कोई बड़ा राजा, कोई छोटा।
भारत के कितने राजायें हैं, कितनी राजाईयां चली आती हैं। सतयुग में भी बहुत राजायें,
महाराजायें होते हैं, महाराजाओं के फिर प्रिन्स प्रिन्सेज भी होते, उनके पास बहुत
प्रापर्टी होती है, राजाओं के पास कम प्रापर्टी होती। अभी है प्रजा का प्रजा पर
राज्य। अभी राजधानी स्थापन हो रही है। यह है श्री लक्ष्मी-नारायण बनने की नॉलेज।
उसके लिए ही तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। पूछते हैं लक्ष्मी-नारायण का पद पायेंगे वा
राम सीता का? तो सब कहते हैं लक्ष्मी-नारायण का। बाप से पूरा वर्सा लेंगे। वन्डरफुल
बातें हैं और कोई जगह यह बातें नहीं हैं। न कोई शास्त्र में ही हैं। अब तुम्हारी
बुद्धि का ताला खुल गया है। बाप समझाते हैं चलते फिरते अपने को एक्टर समझो। अब हमको
वापिस जाना है, यह सदैव याद रहे - इसको ही मनमनाभव, मध्याजी भव कहा जाता है। बाप
घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं, बच्चे तुमको वापिस ले जाने आया हूँ। यह है रूहानी यात्रा।
यह बाप के सिवाए और कोई करा नहीं सकते। भारत की महिमा भी करनी है। यह भारत होलीएस्ट
लैण्ड है। सर्व के दु:ख हर्ता सुख कर्ता, सबके सद्गति दाता बाप का बर्थ प्लेस है।
वही बाप सबका लिबरेटर भी है। यह बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। भारतवासी भल शिव के
मन्दिर में जाते हैं परन्तु वह बाप को जानते नहीं हैं। गांधी को जानते हैं, समझते
हैं वह बहुत अच्छा था, इसलिए उन पर जाकर फूल चढ़ाते हैं। लाखों खर्चा करते हैं। अब
इस समय है उन्हों का राज्य। जो चाहे सो कर सकते हैं। यह तो बाप बैठ गुप्त धर्म की
स्थापना करते हैं। भारत में पहले देवताओं का राज्य था। दिखाते हैं असुरों और देवताओं
की लड़ाई लगी। परन्तु ऐसी बात है नहीं। यहाँ युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाई
जाती है। माया पर जीत तो जरूर सर्वशक्तिमान बाप ही पहनायेंगे। बाप ही रावण राज्य से
छुड़ाए रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं। बाकी वहाँ लड़ाई आदि की बात होती नहीं। अभी
देखो मनुष्यों में शक्तिवान क्रिश्चियन लोग हैं। वह सब पर जीत पहन सकते हैं। परन्तु
वह विश्व का मालिक बनें, यह कायदा नहीं है। इस राज़ को तुम ही जानते हो। इस समय
सर्वशक्तिमान राजधानी क्रिश्चियन की है। नहीं तो उन्हों की संख्या सबसे कम होनी
चाहिए क्योंकि लास्ट में आये हैं, परन्तु तीनों धर्मो में यह सबसे तीखा है। सबको
हाथ में कर बैठे हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। इन द्वारा ही फिर हमको राजधानी मिलनी
है। कहानी भी है दो बन्दर लड़े माखन तीसरे को मिल जाता है। वह आपस में लड़ते हैं -
माखन भारतवासियों को मिल जाता है। कहानी तो पाई पैसे की है। अर्थ कितना बड़ा है।
मनुष्य एक्टर होते भी ड्रामा को नहीं जानते। इस ज्ञान को समझते फिर भी गरीब हैं।
साहूकार लोग कुछ भी नहीं समझते। गरीब-निवाज़ पतित-पावन बाप ही गाया हुआ है। अब
प्रैक्टिकल में पार्ट बजा रहे हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं में तुमको समझाना है। विवेक कहता
है कि धीरे-धीरे वाह-वाह निकलेगी। लास्ट मोमेन्ट में डंका बजना है। अभी तो बच्चों
पर गृहचारी बैठती रहती है। लाइन क्लीयर नहीं है। विघ्न पड़ते रहते हैं। जितना
पुरुषार्थ करेंगे उतनी ऊंच प्रालब्ध मिलेगी। पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते
थे - अभी का यह गायन है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि वही फिर विश्व के मालिक
बनेंगे। प्रैक्टिकल में तुम बच्चे अब जानते हो, इसमें अ़फसोस नहीं किया जाता है।
कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। ड्रामा के पट्टे पर खड़ा रहना है। हिलना नहीं चाहिए। अब
नाटक पूरा होता है। चलते हैं सुखधाम में। पढ़ाई ऐसी पढ़ें जो ऊंच पद पा लेवें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और
गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात का अ़फसोस नहीं करना है। अपनी बुद्धि की लाइन सदा क्लीयर
रखनी है। गृहचारी से अपनी सम्भाल करनी है।
2) गृहस्थ व्यवहार से तोड़ निभाना है, ऩफरत नहीं करनी है। कमल फूल समान रहना
है। आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाना है।
वरदान:-
बड़ी दिल रख
सेवा का प्रत्यक्षफल निकालने वाले विश्व कल्याणकारी भव
जो बच्चे बड़ी दिल रखकर
सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्षफल भी बड़ा निकलता है। कोई भी कार्य करो तो स्वयं
करने में भी बड़ी दिल और दूसरों को सहयोगी बनाने में भी बड़ी दिल हो। स्वयं प्रति
वा साथी सहयोगी आत्माओं प्रति संकुचित दिल नहीं रखो। बड़ी दिल रखने से मिट्टी भी
सोना हो जाती है, कमजोर साथी भी शक्तिशाली बन जाते हैं, असम्भव सफलता सम्भव हो जाती
है। इसके लिए मैं-मैं की बलि चढ़ा दो तो बड़ी दिल वाले विश्व कल्याणकारी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
कारण
को निवारण में परिवर्तन करना ही शुभ-चिंतक बनना है।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
तुम मात पिता हम
बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे... अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है? अवश्य
पर-मात्मा के लिये गायन है क्योंकि परमात्मा खुद माता पिता रूप में आए इस सृष्टि को
अपार सुख देता है। जरूर परमात्मा ने कब सुख की सृष्टि बनाई है तभी तो उनको माता पिता
कहकर बुलाते हैं। परन्तु मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि सुख क्या चीज़ है? जब इस
सृष्टि पर अपार सुख थे तब सृष्टि पर शान्ति थी, परन्तु अब वो सुख नहीं हैं। अब
मनुष्य को यह चाहना उठती अवश्य है कि वो सुख हमें चाहिए, फिर कोई धन पदार्थ मांगते
हैं, कोई बच्चे मांगते हैं, कोई तो फिर ऐसे भी मांगते हैं कि हम पतिव्रता नारी बनें।
हर एक की चाहना तो सुख की ही रहती है ना। तो परमात्मा भी कोई समय उन्हों की आश
अवश्य पूर्ण करेंगे। तो सतयुग के समय जब सृष्टि पर स्वर्ग है तो वहाँ सदा सुख है,
जहाँ स्त्री कभी विधवा नहीं बनती, तो वो आश सतयुग में पूर्ण होती है, जहाँ अपार सुख
है। बाकी तो इस समय है ही कलियुग। इस समय तो मनुष्य दु:ख ही दु:ख भोगते हैं। बाकी
जब मनुष्य अति दु:ख भोगते हैं तो कह देते हैं कि प्रभु का भाना मीठा करके भोगना है।
परन्तु जब स्वयं परमात्मा आकर हमारे सारे कर्मों का खाता चुक्तू करता है, तब ही हम
कहेंगे तुम माता पिता.. अच्छा। ओम् शान्ति।