08-08-11  प्रात: मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

“मीठे बच्चे - रोज़ अपने आपसे पूछो कि मैं आत्मा कितना शुद्ध बना हूँ, जितना शुद्ध बनेंगे उतना खुशी रहेगी, सेवा करने का उमंग आयेगा"

 

प्रश्नः- हीरे जैसा श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ क्या है?

 

उत्तर:- देही-अभिमानी बनो, शरीर में जरा भी मोह न रहे। फिकर से फारिग हो एक बाबा की याद में रहो - यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ हीरे जैसा बना देगा। अगर देह-अभिमान है तो समझो अवस्था कच्ची है। बाबा से दूर हो। तुम्हें इस शरीर की सम्भाल भी करनी है क्योंकि इस शरीर में रहते कर्मातीत अवस्था को पाना है।

 

गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी...

 

ओम् शान्ति। बाप बच्चों को समझाते हैं कि जिसके योगबल से पाप कटते हैं, उनको खुशी का पारा चढ़ जाता है। अपनी अवस्था को आपेही बच्चे जान सकते हैं। जब अवस्था अच्छी होती है तो सर्विस का शौक बहुत अच्छा होता है। जितना-जितना शुद्ध होते जायेंगे उतना औरों को भी शुद्ध अथवा योगी बनाने का उमंग आयेगा क्योंकि तुम राजयोगी वा राजऋषि हो। हठयोग ऋषि तत्व को भगवान मानते हैं। राजयोग ऋषि भगवान को बाप मानते हैं। तत्व को याद करने से उन्हों के कोई पाप नहीं कटते हैं। तत्व के साथ योग लगाने से कोई बल नहीं मिलता है। कोई भी धर्म वाले योग को जानते नहीं हैं इसलिए कोई भी सच्चा योगी बन वापिस नहीं जा सकते। अभी तुम बच्चे अपनी अवस्था खुद भी जान सकते हो। आत्मा जितना बाप को याद करेगी उतना खुशी होगी। अपनी जांच रखनी है। बच्चे भी एक दो की अवस्था को, अपनी अवस्था को जान सकते हैं। देखना है हमारा कोई शरीर में भान तो नहीं है! देह-अभिमान है तो समझो हम बहुत कच्चे हैं। बाबा से बहुत दूर हैं। बाप फरमान करते हैं बच्चे तुम्हें अब हीरे जैसा बनना है। बाप देही-अभिमानी बनाते हैं। बाप को देह-अभिमान होता नहीं। देह-अभिमान होता है बच्चों को। बाप की याद से तुम देही-अभिमानी बनेंगे। अपनी जांच करते रहो, हम कितना समय याद करते हैं। जितना याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा और अपने को लायक बनायेंगे। ऐसे भी मत समझना कि कोई बच्चे कर्मातीत अवस्था को पहुँच गये हैं। नहीं, रेस चल रही है। रेस जब पूरी होगी तब फाइनल रिजल्ट होगी। फिर विनाश भी शुरू हो जायेगा। तब तक यह रिहर्सल होती रहेगी जब तक कर्मातीत अवस्था आ जाए। हम किसी की बुराई नहीं कर सकते। अन्त में ही सबका पता पड़ेगा। अभी तो थोड़ा टाइम पड़ा है। यह दादा भी कहते हैं मीठे बच्चे, अभी थोड़ा समय पड़ा है। इस समय एक भी कर्मातीत अवस्था को पा न सके। बीमारी आदि होती है - इसको कर्मभोग कहा जाता है। भोगना का और किसको पता नहीं पड़ता है। वह अन्दर की पीड़ा होती है। अभी एकरस अवस्था किसी की बनी नहीं है। जितनी कोशिश करते हैं उतना विकल्प, तूफान बहुत आते हैं। तो बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए। विश्व का मालिक बनना कोई कम बात है क्या? मनुष्य साहूकार हैं बड़े-बड़े बंगले हैं, तो खुशी रहती है क्योंकि सुख बहुत है। अभी भी तुम बाप से अथाह सुख लेते हो। जानते हो बाबा से हम राजाई लेंगे। शान्ति में इतना खुशी नहीं होती, जितनी धन में खुशी होती है। संन्यासी घरबार छोड़ जाए जंगल में रहते थे। कभी पैसा हाथ में नहीं रखते थे, सिर्फ रोटी लेते थे। अभी तो कितने धनवान हो गये हैं। सबको पैसे की चिंता बहुत है। वास्तव में राजा को प्रजा का ओना रहता है इसलिए लड़ाई का सामान रखते हैं। सतयुग में तो लड़ाई आदि की बात होती नहीं। अभी तुम बच्चों को खुशी होती है - हम अपनी राजाई में जाते हैं। वहाँ डर की कोई बात नहीं होती। टैक्स आदि की बात नहीं। यह शरीर की फिकरात यहाँ रहती है। गाया जाता है फिकर से फारिग स्वामी... तुम जानते हो फिकर से फारिग होने के लिए अभी हम इतना पुरूषार्थ करते हैं। फिर 21 जन्म लिए कोई फिकरात नहीं रहेगी। बाबा को याद करने से तुम बहुत अडोल रहेंगे। रामायण की कथा भी तुम्हारे पर है। तुम ही महावीर बनते हो। आत्मा कहती है हमको रावण हिला नहीं सकता। वह अवस्था पिछाड़ी को आयेगी। अभी तो कोई भी हिल जायेंगे। फिकरात रहेगी। जब विश्व में लड़ाई लगेगी तब समझेंगे अब टाइम आ गया है। जितना बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे उतना फायदा होगा। पुरुषार्थ करने का अभी ही समय है। फिर तो विनाश की धूमधाम होगी। अभी तो शरीर में भी मोह रहता है ना। बाबा खुद कहते हैं शरीर की सम्भाल रखो। अन्तिम शरीर है, इसमें ही पुरूषार्थ कर कर्मातीत अवस्था को पाना है। जीते रहेंगे, बाप को याद करते रहेंगे। बाप समझाते हैं बच्चे जीते रहो। जितना जियेंगे उतना बाप को याद कर ऊंच वर्सा लेंगे। अभी तुम्हारी कमाई होती रहती है। शरीर को निरोगी तन्दरूस्त रखो, ग़फलत नहीं करनी है। खान-पान की सम्भाल रखेंगे तो कुछ नहीं होगा। एकरस चलन से शरीर भी तन्दरूस्त रहेगा। यह अमूल्य तन है। इसमें पुरूषार्थ कर देवी-देवता बनते हो तो बलिहारी इस समय की है। खुशी रहनी चाहिए। जितना बाप और वर्से को याद करेंगे उतना नारायणी नशा चढ़ा रहेगा। बाप की याद से ही तुम ऊंच ते ऊंच पद पायेंगे। देखना है हम कितना खुशी में, कितना फखुर में रहते हैं। गरीबों को तो और ही खुशी रहनी चाहिए। साहूकारों को तो धन का फिकर रहता है। तुम्हारे में कुमारियों को तो कोई फिकर नहीं है। हाँ कोई के मित्र-सम्बन्धी गरीब हैं, तो सम्भाल रखनी पड़ती है। जगाते भी रहना है। अगर नहीं जगते हैं तो फिर कहाँ तक मदद करते रहेंगे। बाबा कहते हैं ना - तुम सर्विसएबुल खुद बनो वा स्त्री को रूहानी सर्विस में दो। तुम हो बाबा के मददगार। मदद तो सबको चाहिए ना। अकेला बाप भी क्या करेगा, कितनों को मन्त्र दे! हम तुमको देते हैं - तुमको फिर औरों को देना है, कलम लगाना है। बच्चों को कहते रहते हैं जितना हो सके मददगार बनो, मन्त्र देते जाओ। तुम्हारे शास्त्रों में भी है कि सबको पैगाम दिया था कि बाप आये हैं वर्सा लेना है तो बाप को याद करो। देह-धारियों को याद नहीं करो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और वर्सा मिल जायेगा। गीता तो बहुत सुनते सुनाते हैं। उसमें प्रसिद्ध अक्षर है मनमनाभव। बाप को याद करो तो मुक्ति को पायेंगे। संन्यासी भी यह पसन्द करेंगे। मध्याजी भव अर्थात् जीवनमुक्ति। बच्चे बाप के बनते हैं तो बाप कहते हैं- बच्चे तुम्हारी आत्मा पतित है, पतित चल नहीं सकेंगे। यह समझने की बातें हैं। तुम भारतवासी सतोप्रधान थे, तमोप्रधान बने अब फिर सतोप्रधान बनना है तो बाप कहते हैं पुरूषार्थ करो तो ऊंच पद मिलेगा। भक्ति तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो। तुम जानते हो - पहले-पहले अव्यभिचारी भक्ति शुरू हुई। अभी कितनी व्यभिचारी भक्ति है। शरीरों की भी पूजा होती है, वह है भूत पूजा। देवतायें फिर भी पवित्र हैं। परन्तु इस समय तो सब तमोप्रधान हैं। तो पूजा भी तमोप्रधान होती जाती है। अभी बाप को याद करना है। भक्ति का अक्षर कोई नहीं बोलना है। हाय राम - यह भी भक्ति का अक्षर है। ऐसे कोई पुकार नहीं करनी है। इसमें कुछ भी उच्चारण करने की बात नहीं। ओम् शान्ति भी घड़ी-घड़ी नहीं कहना है। शान्ति माना अहम् आत्मा शान्त स्वरूप हैं। सो तो हैं ही। इसमें बोलने की बात नहीं रहती। दूसरे कोई मनुष्य को कहेंगे ओम् शान्ति, वह तो अर्थ जरा भी नहीं समझेंगे। वो लोग तो ओम् की बड़ी-बड़ी महिमा करते हैं। तुम तो अर्थ समझते हो फिर ओम् शान्ति कहना भी फालतू है। हाँ एक दो से ऐसे पूछ सकते हो - शिवबाबा की याद में हो? जैसे हम भी बच्ची से पूछता हूँ यह किसका श्रृंगार करती हो? बोलती है शिवबाबा के रथ का। यह शिवबाबा का रथ है ना। जैसे हुसैन का रथ होता है ना। घोड़े को श्रृंगार करते हैं। घोड़े का अर्थ नहीं समझते हैं। धर्म स्थापन करने वाले जो आते हैं उनकी आत्मायें पवित्र होती हैं। पुरानी पतित आत्मा धर्म स्थापन कर न सके। तुम धर्म स्थापन नहीं करते हो, शिवबाबा तुम्हारे द्वारा करते हैं। तुमको पवित्र बनाते हैं। वो लोग भक्ति मार्ग में बहुत श्रृंगार आदि करते हैं। यहाँ श्रृंगार पसन्द नहीं करते। बाप कितना निरहंकारी है। खुद कहते हैं हम बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में आता हूँ। पहले सतयुग में होगा श्री नारायण। श्री लक्ष्मी से भी पहले श्री नारायण आयेगा। वह तो बड़ा होगा ना इसलिए कृष्ण का नाम गाया हुआ है। नारायण से भी कृष्ण की महिमा जास्ती करते हैं। कृष्ण की ही जन्माष्टमी मनाते हैं। नारायण का बर्थ डे नहीं मनाते। यह कोई नहीं जानते कि कृष्ण सो नारायण। नाम तो बचपन का ही चलेगा ना। फलाने ने जन्म लिया, उसका बर्थ डे मनाते हैं इसलिए कृष्ण का ही मनाते हैं। नारायण का किसको पता नहीं। पहले-पहले शिवजयन्ती फिर है कृष्ण जयन्ती फिर राम की... शिव के साथ गीता का भी जन्म होता है। शिवबाबा आते ही हैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में। बुजुर्ग अनुभवी रथ में ही आते हैं। कितना अच्छा समझाया हुआ है, तो भी किसकी बुद्धि में नहीं आता।

 

बाप कहते यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। जब मैं आकर सुनाऊं तब तुम भी सुना सकते हो। अभी तुम बच्चे जानते हो हम भविष्य में एक्यूरेट यह (देवी-देवता) बनेंगे। बाबा ने 2-3 प्रकार के साक्षात्कार किये थे। यह बनूँगा, ताज वाला बनूँगा, पगड़ी वाला बनूँगा। 2-4 राजाई के जन्मों का साक्षात्कार किया था। अभी तुम समझ सकते हो - इन बातों को दुनिया में और कोई समझ नहीं सकते। हाँ, इतना समझते हैं अच्छा कर्म करेंगे तो अच्छा जन्म मिलेगा। अभी तुम पुरूषार्थ ही भविष्य के लिए कर रहे हो। नर से नारायण बनने का। तुम जानते हो - हम यह पद पायेंगे। यह खुशी जास्ती उनको रहेगी जो कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरूषार्थ करते रहते होंगे। कहते हैं बाबा हम तो मम्मा बाबा को फालो करेंगे तब तो तख्त पर बैठ सकेंगे। यह भी समझ चाहिए, कितनी हम सर्विस करते हैं और कितना खुशी में रहते हैं। खुद खुशी में रहेंगे तो दूसरों को भी खुशी में लायेंगे। अन्दर कोई खराबी होगी तो दिल खाती रहेगी। कोई-कोई आकर कहते हैं - बाबा हमारे में क्रोध है। यह भूत है हमारे में। फिकर की बात हुई ना। भूत को रहने नहीं देना चाहिए। क्रोध क्यों करें! प्यार से समझाना होता है। बाबा कोई पर क्रोध थोड़ेही करेंगे। शिवबाबा की महिमा है ना। बहुत फालतू झूठी महिमा भी करते हैं। मैं करता क्या हूँ! मुझे कहते हैं आकर पतित से पावन बनाओ। जैसे डॉक्टर को कहते हैं हमारी बीमारी दूर करो। वह दवाई दे इन्जेक्शन लगाते हैं, सो तो उनका काम ही है। बड़ी बात थोड़ेही है। पढ़ते ही हैं सर्विस के लिए। जास्ती पढ़ते हैं तो जास्ती कमाई करते हैं। बाप को तो कोई कमाई नहीं करनी है। उनको तो कमाई कराना है। बाबा कहते मुझे तुम अविनाशी सर्जन भी कहते हो, यह जास्ती महिमा कर दी है। पतित-पावन को कोई सर्जन नहीं कहा जाता। यह सिर्फ महिमा है। बाप तो सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बस। मेरा पार्ट ही है तुमको यह समझाने का कि मामेकम् याद करो, जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। यह है ही राजयोग का ज्ञान। गीता जिन्होंने पढ़ी है, उनको समझाना सहज होता है। तुम पूज्य राजाओं के राजा बनते हो, फिर पुजारी बनेंगे। तुमको मेहनत करनी है। तुम विश्व को पवित्र बनाते हो। कितना भारी मर्तबा है। तुम सब अंगुली देते हो - कलियुगी पहाड़ को पलटाने। बाकी पहाड़ आदि कुछ भी है नहीं। अब तुम जानते हो - नई दुनिया आनी है, इसलिए राजयोग जरूर सीखना है। बाप ही आकर सिखलाते हैं। सतोप्रधान बनना है। जो कल्प पहले बने होंगे उनको समझाने से जंचेगा। बात तो ठीक कहते हैं। बरोबर बाप ने कहा था - मनमनाभव। अक्षर संस्कृत है। बाप तो हिन्दी में कहते हैं मुझे याद करो। अभी तुम समझते हो हम कितने ऊंच धर्म, ऊंच कर्म वाले थे तब तो गायन है 16 कला... अब फिर ऐसा बनना है। अपने को देखना है कहाँ तक हम सतोप्रधान बने हैं, पावन बने हैं। कहाँ तक नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने की सेवा करते हैं। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) बाप समान निरहंकारी बनना है। इस शरीर की सम्भाल करते हुए शिवबाबा को याद करना है। रूहानी सर्विस में बाप का मददगार बनना है।

 

2) अन्दर में कोई भी भूत को रहने नहीं देना है। कभी किसी पर क्रोध नहीं करना है। सबसे बहुत प्यार से चलना है। मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनना है।

 

वरदान:- नये जीवन की स्मृति से कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले मरजीवा भव

 

जो बच्चे पूरा मरजीवा बन गये उन्हें कर्मेन्द्रियों की आकर्षण हो नहीं सकती। मरजीवा बने अर्थात् सब तरफ से मर चुके, पुरानी आयु समाप्त हुई। जब नया जन्म हुआ, तो नये जन्म, नई जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश हो कैसे सकते। ब्रह्माकुमार-कुमारी के नये जीवन में कर्मेन्द्रियों के वश होना क्या चीज़ होती है - इस नॉलेज से भी परे। शूद्र पन का जरा भी सांस अर्थात् संस्कार कहाँ अटका हुआ न हो।

 

स्लोगन:- अमृतवेले दिल में परमात्म स्नेह को समा लो तो और कोई स्नेह आकर्षित नहीं कर सकता।