02-01-05     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 19.03.86 "बापदादा"    मधुबन


अमृतवेला - श्रेष्ठ प्राप्तियों की वेला
 


आज रूहानी बागवान अपने रूहानी रोज फ्लावर्स का बगीचा देख रहे हैं। ऐसा रूहानी गुलाब का बगीचा अब इस संगमयुग पर ही बापदादा द्वारा ही बनता है। बापदादा हर एक रूहानी गुलाब फूल की रूहानियत की खुशबू और रूहानियत के खिले हुए पुष्पों की रौनक देख रहे हैं। खुशबूदार सभी हैं लेकिन किसकी खुशबू सदाकाल रहने वाली है और किसकी खुशबू थोड़े समय के लिए रहती है। कोई गुलाब सदा खिला हुआ है और कोई कब खिला हुआ, कब थोड़ा-सा धूप वा मौसम के हिसाब से मुरझा भी जाते हैं। लेकिन हैं फिर भी रूहानी बागवान के बगीचे के रूहानी गुलाब! कोई-कोई रूहानी गुलाब में ज्ञान की खुशबू विशेष है। कोई में याद की खुशबू विशेष है। तो कोई में धारणा की खुशबू, कोई में सेवा की खुशबू विशेष है। कोई-कोई ऐसे भी हैं जो सर्व खुशबू से सम्पन्न हैं। तो बगीचे में सबसे पहले नजर किसके ऊपर जायेगी? जिसकी दूर से ही खुशबू आकर्षित करेगी। उस तरफ ही सबकी नजर पहले जाती है। तो रूहानी बागवान सदैव सभी रूहानी गुलाब के पुष्पों को देखते हैं। लेकिन नम्बरवार। प्यार भी सभी से है क्योंकि हर एक गुलाब पुष्प के अन्दर बागवान प्रति अति प्यार है। मालिक से पुष्पों का प्यार है और मालिक का पुष्पों से प्यार है। फिर भी शोकेस में सदा रखने वाले रूहानी गुलाब वही होते जो सदा सर्व खुशबू से सम्पन्न हैं। और सदा खिले हुए हैं। मुरझायें हुए कभी नहीं। रोज अमृतवेले बापदादा स्नेह और शक्ति की विशेष पालना से सभी रूहानी गुलाब के पुष्पों से मिलन मनाते हैं।

अमृतवेला विशेष प्रभू पालना का वेला है। अमृतवेला विशेष परमात्म मिलन का वेला है। रूहानी रूह-रूहान करने का वेला है। अमृतवेले भोले भण्डारी के वरदानों के खज़ाने से सहज वरदान प्राप्त होने का वेला है। जो गायन है मन इच्छित फल प्राप्त करना, यह इस समय अमृतवेले के समय का गायन है। बिना मेहनत के खुले खज़ाने प्राप्त करने का वेला है। ऐसे सुहावने समय को अनुभव से जानते हो ना! अनुभवी ही जानें इस श्रेष्ठ सुख को, श्रेष्ठ प्राप्तियों को। तो बापदादा सभी रूहानी गुलाब को देख-देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा भी कहते हैं - ‘वाह मेरे रूहानी गुलाब’। आप वाह-वाह के गीत गाते तो बापदादा भी यही गीत गाते। समझा!

मुरलियाँ तो बहुत सुनी हैं। सुन-सुनकर सम्पन्न बन गये हो। अभी महादानी बन बांटने के प्लैन बना रहे हो। यह उमंग बहुत अच्छा है। आज यू.के. अर्थात् ओ.के. रहने वालों का टर्न है। डबल विदेशियों का एक शब्द सुन करके बापदादा सदा मुस्कराते रहते हैं। कौन-सा? - ‘थैंक यू’। थैंक यू करते हुए भी बाप को भी याद करते रहते हैं। क्योंकि सबसे पहले शुक्रिया दिल से बाप का ही मानते हैं। तो जब किसी को भी थैंक यू करते तो पहले बाप याद आयेगा ना! ब्राह्मण जीवन में पहला शुक्रिया स्वत: ही बाप के प्रति निकलता है। उठते-बैठते अनेक बार थैंक यू कहते हो। यह भी एक विधि है - बाप को याद करने की। यू.के. वाले सर्व भिन्न-भिन्न हद की शक्तियों वालों को मिलाने के निमित्त बने हुए हो ना। अनेक प्रकार के नॉलेज की शक्तियाँ हैं। भिन्न-भिन्न शक्ति वाले, भिन्न-भिन्न वर्ग वाले, भिन्न-भिन्न धर्म वाले, भाषा वाले, सभी को मिलाकर एक ही ब्राह्मण वर्ग में लाना, ब्राह्मण धर्म में, ब्राह्मण भाषा में आना। ब्राह्मणों की भाषा भी अपनी है। जो नये समझ भी नहीं सकते कि यह क्या बोलते हैं। तो ब्राह्मणों की भाषा, ब्राह्मणों की डिक्शनरी ही अपनी है। तो यू.के. वाले सभी को एक बनाने में बिजी रहते हो ना? संख्या भी अच्छी है और स्नेह भी अच्छा है, हर एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता तो है ही है लेकिन आज यू.के.का सुना रहे हैं। यज्ञ स्नेही, यज्ञ सहयोगी यह विशेषता अच्छी दिखाई देती है। हर कदम पर पहले यज्ञ अर्थात् मधुबन का हिस्सा निकालने में अच्छे नम्बर में जा रहे हैं। डायरेक्ट मधुबन की याद एक स्पेशल लिफ्ट बन जाती है। हर कार्य में, हर कदम में मधुबन अर्थात् बाप की याद है या बाप की पढ़ाई है या बाप का ब्रह्मा भोजन है या बाप से मिलन है। मधुबन स्वत: ही बाप की याद दिलाने वाला है। कहाँ भी रहते मधुबन की याद आना अर्थात् विशेष स्नेह, लिफ्ट बन जाता है। चढ़ने की मेहनत से छूट जाते। सेकण्ड में स्विच आन किया और पहुँचे।

बापदादा को और कोई हीरे मोती तो चाहिए नहीं। बाप को स्नेह की छोटी वस्तु ही हीरे रत्न हैं। इसलिए सुदामा के कच्चे चावल गाये हुए हैं। इसका भावार्थ यही है कि स्नेह की छोटी-सी सुई में भी मधुबन याद आता है। तो वह भी बहुत बड़ा अमूल्य रत्न है। क्योंकि स्नेह का दाम है। वैल्यु स्नेह की है। चीज़ की नहीं। अगर कोई वैसे ही भल कितना भी दे देवे लेकिन स्नेह नहीं तो उसका जमा नहीं होता। और स्नेह से थोड़ा भी जमा करे तो उनका पदम जमा हो जाता है। तो बाप को स्नेह पसन्द है। तो यू.के.वालों की विशेषता - यज्ञ स्नेही, यज्ञ सहयोगी आदि से रहे हैं। यही सहज योग भी है। सहयोग, सहज योग है। सहयोग का संकल्प आने से भी याद तो बाप की रहेगी ना। तो सहयोगी, सहज योगी स्वत: ही बन जाते हैं। योग बाप से होता, मधुबन अर्थात् बापदादा से। तो सहयोगी बनने वाले भी सहजयोग की सबजेक्ट में अच्छे नम्बर ले लेते हैं। दिल का सहयोग बाप को प्रिय है। इसलिए यहाँ यादगार भी ‘दिलवाला मन्दिर’ बनाया है। तो दिलवाला बाप को दिल का स्नेह, दिल का सहयोग ही प्रिय है। छोटी दिल वाले छोटा सौदा कर खुश हो जाते और बड़ी दिल वाले बेहद का सौदा करते हैं। फाउण्डेशन बड़ी दिल है तो विस्तार भी बड़ा हो रहा है। जैसे कई जगह पर वृक्ष देखे होंगे तो वृक्ष की शाखायें भी तना बन जाती हैं। तो यू.के.के फाउण्डेशन से तना निकला, शाखायें निकलीं। अब वह शाखायें भी तना बन गई। उन तना से भी शाखायें निकल रही हैं। जैसे आस्ट्रेलिया निकला, अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका निकले। सब तना बन गये। और हर एक तना की शाखायें भी अच्छी तरह से वृद्धि को पा रही हैं। क्योंकि फाउण्डेशन स्नेह और सहयोग के पानी से मजबूत है। इसलिए विस्तार भी अच्छा है और फल भी अच्छे हैं। अच्छा –

वरदान:-
हर कन्डीशन में सेफ रहने वाले एयरकन्डीशन की टिकेट के अधिकारी भव

एयरकन्डीशन की टिकेट उन्हीं बच्चों को मिलती है जो यहाँ हर कन्डीशन में सेफ रहते हैं। कोई भी परिस्थिति आ जाए, कैसी भी समस्यायें आ जाएं लेकिन हर समस्या को सेकण्ड में पार करने का सर्टीफिकेट चाहिए। जैसे उस टिकिट के लिए पैसे देते हो ऐसे यहाँ "सदा विजयी" बनने की मनी चाहिए जिससे टिकिट मिल सके। यह मनी प्राप्त करने के लिए मेहनत करने की जरूरत नहीं, सिर्फ बाप के सदा साथ रहो तो अनगिनत कमाई जमा होती रहेगी।

स्लोगन:-
कैसी भी परिस्थिति हो, परिस्थिति चली जाए लेकिन खुशी नहीं जाए।

कुछ मुख्य भाईयों के साथ दादी जानकी जी की रूहरिहान 3-11-04
आप सब महारथी बैठे हो, घोड़ेसवार, प्यादे नहीं। घोड़ेसवार को जम्प लगाना पड़ता, महारथी बनो तो महावीर बन जाते हैं। महावीर को स्वमान भी था और निर्माण भी इतना जो सदा पांव में बैठता था।

• हम सबके दिल में पवित्रता ऐसी हो जो अपवित्र संकल्प कभी छू भी न सकें। व्यर्थ संकल्प भी न चलें। हम सदा श्रीमत पर चलते रहें। यह श्रीमत पर नहीं चलते - यह भी याद न आये। जैसे याद के लिए कहते एक के सिवाए किसकी याद न आये, ऐसे धारणा में भी किसकी याद न आये, बाबा जो कहता है वह हमें धारण करना है। कईयों का ध्यान औरों पर ज्यादा जाता है, अपने पर कम है। हमारी स्थिति ऐसी हो जो औरों का ध्यान भी बाबा की तरफ खिंचवायें।

• सेवा बाबा की है, ब्राह्मण परिवार अपना है। सब समझें कि यह हमारे पूर्वज हैं। उनको अपना-पन लगे। इसमें दिल बड़ी विशाल चाहिए।

• वैसे हर शक्ति महान है लेकिन सहनशीलता और सन्तुष्टता जिसमें है उसमें सर्व शक्तियाँ स्वतः काम करती हैं। सहनशीलता सब कुछ समा लेती है। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी - इसने यह ठीक नहीं किया - यह हमारी शक्ल पर न आये। अगर यह भी शक्ल पर आया तो मेरे स्वमान की कमी है। यह अच्छा है, यह अच्छा नहीं है - यह सोचना भी स्वमान नहीं हैं।

• पवित्रता ऐसी हो जिसमें जरा भी कोई दाग न हो तो सत्यता काम करेगी, वाणी में मधुरता होगी। मधुरता तब आयेगी जब धीरज का गुण होगा। अधैर्य हुए तो सत्यता की शक्ति खींच नहीं सकते। पवित्रता हृदय को शुद्ध बना देती है, फिर गहराई में जा सकते हैं। जिसमें पवित्रता की शक्ति है वो कभी जल्दी रियेक्ट नहीं करते, रिजेक्ट भी नहीं करते।

• अधैर्यता का अवगुण स्थिति को नीचे ऊपर कर देता है। दूसरों को स्नेह में आगे आने नहीं देता। सदा स्नेह में समाया रहूँ, यह सम्पत्ति सदा साथ रहे। स्नेह का संकल्प बहुत सुखदाई है। सारे विश्व को दादियों का यह स्नेह ही सुख दे रहा है।

• ज्ञान सुनाने वाले तो बहुत अच्छे-अच्छे हैं। बहुत अच्छी प्वाइंटस देते हैं, हम सिर्फ स्नेह देना सीख लूँ। रूखी-सूखी न बनूं। कारण कुछ भी हो जाए हमारी शक्ल छोटी न हो जाए।

• अगर मेरे मन को कुछ हुआ तो शरीर पर इफेक्ट आता है। फिर शक्ल से दिखाई देता है। जब हमें साक्षात्कार मूर्ति, साक्षात् बाप समान बनना है तो शक्ल पर पूरा ध्यान रहे। घड़ी-घड़ी शक्ल चेंज न हो।

• पवित्रता, सत्यता, धैर्यता, मधुरता और नम्रता ही महानता है। सोचा, बात को बड़ा किया, फिर कोई को सुनाया, यह भी समय गंवाया।

• कई हैं जो सन्तुष्टता में हाथ उठा देते हैं लेकिन सन्तुष्ट जिसे कहा जाता है, ऐसा सन्तुष्ट एक परसेन्ट भी नहीं हैं। सन्तुष्टता अर्थात् अप्राप्त नहीं कोई वस्तु, बाबा से सब प्राप्तियां हो गई।

• अगर हम कोई कारण देकर अपने को राइट सिद्ध करते हैं तो यह भी स्वमान की कमी है। जैसा मैं दूसरों के लिए सोचूंगी, ऐसा दूसरे भी मेरे प्रति सोचेंगे, जैसे बोल मैं बोलूंगी, दूसरे भी मेरे लिए ऐसा ही बोलेंगे। यह प्रूफ है। कोई की बात कोई सुनाये, मैं सुनूं, मान लूं, मैं किसी दो के बीच में आऊं तो यह मेरी गलती होगी। वह चक्कर में या टक्कर में है और तुम गुस्सा कर रही हो... टक्कर उसका है तुम अपना माथा क्यों टकराती हो।

• अपनी स्थिति मम्मा बाबा जैसी बनाओ, मैं इतना लायक बनूं जो हमारे से कोई गलती न हो। मैं किसकी गलती न देखूं। साक्षी हो जाना, न्यारा हो जाना यह भी राइट नहीं है। मेरी उसके प्रति सदा ऊंची भावना रहे, फ्रैण्डशिप रहे तब शुभ कामना काम करेगी। ओम् शान्ति।