26-05-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 31.12.99 "बापदादा" मधुबन
“नई सदी में अपने चलन
और चेहरे से फरिश्ते स्वरूप को प्रत्यक्ष करो''
आज बापदादा अपने
परमात्म पालना के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। कितने भाग्यवान हैं जो
स्वयं परमात्मा की पालना में पल रहे हैं। दुनिया वाले कहते हैं कि हमें परम आत्मा
पाल रहा है, लेकिन आप थोड़ी सी विशेष आत्मायें प्रैक्टिकल में पल रहे हो। परमात्म
पालना है, परमात्म श्रीमत है, उसी श्रीमत से चल रहे हो, पल रहे हो। ऐसे अपने को
विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? अपनी महानता को जानते हो? वर्तमान समय तो ब्राह्मण
आत्मायें महान हैं ही, और भविष्य में भी सर्व श्रेष्ठ महान हो। द्वापर में भी आपके
जड़ चित्र इतने महान बनते हैं जो कोई भी चित्रों के आगे जायेगा तो नमन करेगा। इतनी
आपकी महानता है जो आज दिन तक अगर किसी भी आत्मा को बनावटी देवता बना देते,
लक्ष्मी-नारायण बनायेंगे, श्रीराम बनायेंगे, तो जब तक वह आत्मा देवता का पार्ट बजाता
है, तो उस आत्मा को जानते हुए भी कि यह साधारण मनुष्य है, लेकिन जब देवता रूप का
पार्ट बजाते हैं तो उस साधारण आत्मा को भी नमन करेंगे। तो आपके रूप की महानता तो है
लेकिन नामधारी आत्माओं को भी महान समझते हैं। तो ऐसी महानता अनुभव करते हो? जानते
हो, समझते हो वा इमर्ज रूप में अपने को अनुभव करते हो? क्योंकि मूल आधार ही है
अनुभव करना।
बापदादा सभी बच्चों
को अनुभवी मूर्त बनाते हैं। सिर्फ सुनने वा जानने वाले नहीं। अनुभव का तो हर एक के
चेहरे से, चलन से पता पड़ जाता है। चाल से उसके हॉल का पता पड़ जाता है। तो सोचो
हमारी चाल क्या है? ब्राह्मण चाल है? ब्राह्मण अर्थात् सदा सम्पन्न आत्मा। शक्तियों
से भी सम्पन्न, गुणों से भी सम्पन्न... तो ऐसी चाल है? आपके चेहरे से दिखाई देता है
कि यह साधारण होते हुए भी अलौकिक है? आप सबकी दृष्टि, वृत्ति, वायब्रेशन्स अलौकिक
अनुभव करते हैं? जब लास्ट जन्म तक आपकी दिव्यता, महानता जड़ चित्रों से भी अनुभव
करते हैं, तो वर्तमान समय चैतन्य श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा अनुभव होता है? जड़ चित्र
तो आपके ही हैं ना!
अमृतवेले से लेकर हर
चलन को चेक करो - हमारी दृष्टि अलौकिक है? चेहरे का पोज़ सदा हर्षित है? एकरस,
अलौकिक है वा समय प्रति समय बदलता रहता है? सिर्फ योग में बैठने के समय वा कोई
विशेष सेवा के समय अलौकिक स्मृति वा वृत्ति रहती है व साधारण कार्य करते हुए भी
चेहरा और चलन विशेष रहता है? कोई भी आपको देखे - कामकाज में बहुत बिजी हो, कोई हलचल
की बात भी सामने हो लेकिन आपको अलौकिक समझते हैं? तो चेक करो कि बोल-चाल, चेहरा
साधारण कार्य में भी न्यारा और प्यारा अनुभव होता है? कोई भी समय अचानक कोई भी आत्मा
आपके सामने आ जाए तो आपके वायब्रेशन से, बोल-चाल से यह समझेंगे कि यह अलौकिक फरिश्ते
हैं? क्योंकि आज का दिन संगम का दिन है, पुराना जा रहा है, नया आ रहा है। तो क्या
नवीनता विश्व के आगे दिखाई दे? अन्दर याद रहता है वा समझते हैं, वह बात अलग है
लेकिन स्थापना के समय को सोचो - कितना समय स्थापना का बीत गया! बीते हुए समय के
प्रमाण बाकी कितना समय थोड़ा रहा हुआ है? तो क्या अनुभव होना चाहिए? बापदादा जानते
हैं कि बहुत अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी, पुरुषार्थ भी कर रहे हैं, उड़ भी रहे हैं
लेकिन बापदादा इस 21वीं सदी में नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो,
महान भी हो लेकिन बाप की प्रत्यक्षता का आधार है - साधारण कार्य में रहते हुए भी
फरिश्ते की चाल और हाल हो। बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था,
सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई। फरिश्ता स्वरूप अर्थात्
स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं,
स्वरूप में हो। ऐसा परिवर्तन किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव
हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता है? जैसी बात वैसा अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों
बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो? परिवर्तन किसको कहा जाता
है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे
स्वरूप बने - यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन फरिश्ता अर्थात् जो पुराने
या साधारण हाल-चाल से भी परे हो।
अभी आपकी टॉपिक है ना
- “समय की पुकार''। तो अभी समय की पुकार आप विशेष महान आत्माओं के प्रति यही है कि
अभी फरिश्ता अर्थात् अलौकिक जीवन स्वरूप में दिखाई दे। क्या यह हो सकता है? टीचर्स
बोलो, हो सकता है? कब होगा? हो सकता है तो बहुत अच्छी बात है ना, कब होगा? एक साल
चाहिए, दो हजार पूरा हो जाए? जो समझते हैं कुछ समय तो चाहिए चलो एक साल नहीं, 6 मास,
6 मास नहीं तो 3 मास, चाहिए? इसमें हाथ नहीं उठाते। आपका स्लोगन क्या है? याद है?
“अब नहीं तो कब नहीं''। यह स्लोगन किसका है? ब्राह्मणों का है या देवताओं का है?
ब्राह्मणों का ही है ना! तो इस नई सदी में बापदादा यही देखने चाहते हैं कि कुछ भी
हो जाए लेकिन अलौकिकता नहीं जाए। इसके लिए सिर्फ चार शब्दों का अटेन्शन रखना पड़े,
वह क्या? वह बात नई नहीं है, पुरानी है, सिर्फ रिवाइज करा रहे हैं।
एक बात शुभचिंतक।
दूसरा शुभचिंतन, तीसरा शुभ भावना, यह भावना नहीं कि यह बदले तो मैं बदलूं। उसके
प्रति भी शुभ भावना, अपने प्रति भी शुभ भावना और 4- शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप।
बस एक शुभ शब्द याद कर लो, इसमें 4 ही बातें आ जायेंगी। बस हमको सबमें शुभ शब्द
स्मृति में रखना है। यह सुना तो बहुत बारी है। सुनाया भी बहुत बारी है। अब और
स्वरूप में लाने का अटेन्शन रखना है। बापदादा जानते हैं कि बनना तो इन्हों को ही
है। और जो आने वाले भी हैं वह साकार रूप में तो आप लोगों को ही देखते हैं।
आज वर्ष के अन्त का
दिन है ना! तो बापदादा ने मैजॉरिटी बच्चों का वर्ष का पोतामेल देखा। क्या देखा होगा?
मुख्य एक कारण देखा। बापदादा ने देखा कि मिटाने और समाने की शक्ति कम है। मिटाते भी
हैं, उल्टा देखना, सुनना, सोचना, बीता हुआ भी मिटाते हैं लेकिन जैसे आप कहते हो ना
कि एक है कॉन्सेस दूसरा है सब-कॉन्सेस। मिटाते हैं लेकिन मन की प्लेट कहो, स्लेट कहो,
कागज कहो, कुछ भी कहो, पूरा नहीं मिटाते। क्यों नहीं मिटा सकते? उसका कारण है -
समाने की शक्ति पावरफुल नहीं है। समय अनुसार समा भी लेते लेकिन फिर समय पर निकल आता,
इसलिए जो चार शब्द बापदादा ने सुनाये, वह सदा नहीं चलते। अगर मानों मन की प्लेट वा
कागज पूरा साफ नहीं हुआ, पूरा नहीं मिटा तो उस पर अगर बदले में आप और अच्छा लिखने
भी चाहो तो स्पष्ट होगा? अर्थात् सर्व गुण, सर्व शक्तियां धारण करने चाहो तो सदा और
फुल परसेन्ट में होगा? बिल्कुल क्लीन भी हो, क्लीयर भी हो तब यह शक्तियां सहज कार्य
में लगा सकते हो। कारण यही है, मैजारिटी की स्लेट क्लीयर और क्लीन नहीं है।
थोड़ा-थोड़ा भी बीती बातें या बीती चलन, व्यर्थ बातें वा व्यर्थ चाल-चलन सूक्ष्म
रूप में समाई रहती हैं तो फिर समय पर साकार रूप में आ जाती हैं। तो समय अनुसार पहले
चेक करो, अपने को चेक करना दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना क्योंकि दूसरे को चेक
करना सहज लगता है, अपने को चेक करना मुश्किल लगता है। तो चेक करना कि हमारे मन की
प्लेट व्यर्थ से और बीती से बिल्कुल साफ है? सबसे सूक्ष्म रूप है - वायब्रेशन के
रूप में रह जाता है। फरिश्ता अर्थात् बिल्कुल क्लीन और क्लीयर। समाने की शक्ति से
निगेटिव को भी पॉजिटिव रूप में परिवर्तन कर समाओ। निगेटिव ही नहीं समा दो, पॉजिटिव
में चेंज करके समाओ तब नई सदी में नवीनता आयेगी।
दूसरी बात बतायें क्या
देखी? बतायें या भारी डोज़ है? जैसे बापदादा ने पहले कहा है कि कैसे भी करके मुझे
अपने साथ परमधाम में ले ही जाना है, चाहे मार से चाहे प्यार से ले ही जाना है।
अज्ञानियों को मार से और आप बच्चों को प्यार से। ऐसे ही बापदादा अभी भी कहते हैं कि
कैसे भी करके दुनिया के आगे महान आत्माओं को फरिश्ते रूप में प्रत्यक्ष करना ही है।
तो तैयार हो ना? बापदादा ने सुनाया ना - कैसे भी करके बनाना तो है ही। नहीं तो नई
दुनिया कैसे आयेगी। अच्छा, दूसरी बात क्या देखी?
साल का अन्त है ना!
देखो, बापदादा मैजारिटी शब्द कह रहा है, सर्व नहीं कह रहा है, मैजारिटी कह रहा है।
तो दूसरी बात क्या देखी? क्योंकि कारण को निवारण करेंगे तब नव-निर्माण होगा। तो
दूसरा कारण - अलबेलापन भिन्न-भिन्न रूप में देखा। कोई-कोई में बहुत रॉयल रूप का भी
अलबेलापन देखा। एक शब्द अलबेलेपन का कारण - “सब चलता है''। क्योंकि साकार में तो हर
एक के हर कर्म को कोई देख नहीं सकता है, साकार ब्रह्मा भी साकार में नहीं देख सके
लेकिन अब अव्यक्त रूप में अगर चाहे तो किसी के भी हर कर्म को देख सकते हैं। जो गाया
हुआ है कि परमात्मा की हजार आंखे हैं, लाखों आंखें हैं, लाखों कान हैं। वह अभी
निराकार और अव्यक्त ब्रह्मा दोनों साथ-साथ देख सकते हैं। कितना भी कोई छिपाये,
छिपाते भी रॉयल्टी से हैं, साधारण नहीं। तो अलबेलापन एक मोटा रूप है, एक महीन रूप
है, शब्द दोनों में एक ही है “सब चलता है, देख लिया है क्या होता है! कुछ नहीं होता।
अभी तो चल लो, फिर देखा जायेगा!'' यह अलबेलेपन के संकल्प हैं। बापदादा चाहे तो सभी
को सुना भी सकते हैं लेकिन आप लोग कहते हो ना थोड़ी लाज़-पत रख दो। तो बापदादा भी
लाज़ पत रख देते हैं लेकिन यह अलबेला-पन पुरुषार्थ को तीव्र नहीं बना सकता। पास विद
ऑनर नहीं बना सकता। जैसे स्वयं सोचते हैं ना “सब चलता है''। तो रिजल्ट में भी चल
जायेंगे लेकिन उड़ेंगे नहीं। तो सुना क्या दो बातें देखी! परिवर्तन में किसी न किसी
रूप से, हर एक में अलग-अलग रूप से अलबेलापन है। तो बापदादा उस समय मुस्कराते हैं,
बच्चे कहते हैं देख लेंगे क्या होता है! तो बापदादा भी कहते हैं देख लेना क्या होता
है! तो आज यह क्यों सुना रहे हैं? क्योंकि चाहो या नहीं चाहो, जबरदस्ती भी आपको
बनाना तो है ही और आपको बनना तो पड़ेगा ही। आज थोड़ा सख्त सुना दिया है क्योंकि आप
लोग प्लैन बना रहे हो, यह करेंगे, यह करेंगे... लेकिन कारण का निवारण नहीं होगा तो
टैप्रेरी हो जायेगा, फिर कोई बात आयेगी तो कहेंगे बात ही ऐसी थी ना! कारण ही ऐसा
था! मेरा हिसाब-किताब ही ऐसा है, इसलिए बनना ही पड़ेगा। मंजूर है ना! टीचर्स मंजूर
है? फारेनर्स मंजूर है? बापदादा कहते हैं बनना ही पड़ेगा। फिर नई सदी में कहेंगे बन
गये। ऐसा है ना - कम से कम समय लेना चाहिए। लेकिन बाप-दादा एक वर्ष दे देता है फिर
तो सहज है ना। आराम से करो। आराम का अर्थ है, आ राम अर्थात् बाप को याद करके फिर
करना। वह डनलप वाला आराम नहीं करना। बापदादा का आपसे ज्यादा प्यार है, या आपका बाप
से ज्यादा प्यार है? किसका है? बाप का या आपका?
बापदादा को आप सबमें
निश्चय है कि आप सभी बच्चे प्यार का रिटर्न अव्यक्त ब्रह्मा बाप समान अवश्य बनेंगे।
बनेंगे ना! बापदादा छोड़ेगा नहीं! प्यार है ना! जिससे प्यार होता है उसका साथ नहीं
छोड़ा जाता है। तो ब्रह्मा बाबा का आपमें बहुत प्यार है। इन्तजार करता रहता है, कब
मेरे बच्चे आयें! तो समान तो बनेंगे ना!
ब्रह्मा बाप की एक
रूहरिहान सुनाते हैं। ब्रह्मा बाप शिव बाप को कहते हैं कि आप बच्चों से डेट फिक्स
कराओ, मैं कब तक इन्तजार करूँ? यह डेट फिक्स कराओ। तो शिव बाप क्या कहेंगे?
मुस्कराते हैं। बापदादा फिर भी कहते हैं बच्चे ही डेट फिक्स करेंगे, बापदादा नहीं
करेंगे। तो ब्रह्मा बाप बहुत याद करता है। तो डेट फिक्स करेंगे?
नये वर्ष में यह समान
बनने का दृढ़ संकल्प करो। लक्ष्य रखो कि हमें फरिश्ता बनना ही है। अब पुरानी बातों
को समाप्त करो। अपने अनादि और आदि संस्कारों को इमर्ज करो। स्मृति में रखो - चलते
फिरते मैं बाप समान फरिश्ता हूँ, मेरा पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से कोई
रिश्ता नहीं। समझा। इस परिवर्तन के संकल्प को पानी देते रहना। जैसे बीज को पानी भी
चाहिए, धूप भी चाहिए तब फल निकलता है। तो इस संकल्प को, बीज को स्मृति का पानी और
धूप देते रहना। बार-बार रिवाइज करो - मेरा बापदादा से वायदा क्या है! अच्छा।
चारों ओर की महान
आत्माओं को सदा परिवर्तन शक्ति को हर समय कार्य में लगाने वाले, विश्व परिवर्तक
आत्माओं को सदा दृढ़ निश्चय से प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले ब्राह्मण सो फरिश्ते
आत्माओं को सदा एक बाप दूसरा न कोई, बाप समान बनने वालों को बापदादा के प्यार का
रिटर्न देने वाली महावीर आत्माओं को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
चारों ओर के बच्चों
को नये वर्ष, नये युग की, नये जीवन की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। इस नये
वर्ष में ब्रह्मा बाप के द्वारा उच्चारे हुए महावाक्य सदा याद रखना - निराकारी,
निरंहकारी साथ में नव निर्माणधारी। सदा निर्मान और निर्माण के कर्तव्य का बैलेन्स
रखते उड़ते रहना। इस वर्ष में विशेष स्व परिवर्तन की विशेषता को सामने रखते हुए
उड़ते और उड़ाते रहना। सदा ब्रह्मा बाप को हर कदम में फॉलो फादर करते रहना। तो
मुबारक हो, मुबारक हो। पदमगुणा मुबारक हो। अच्छा।
वरदान:-
स्व के चक्र
को जान ज्ञानी तू आत्मा बनने वाले प्रभू प्रिय भव
आत्मा का इस सृष्टि
चक्र में क्या-क्या पार्ट है, उसको जानना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। पूरे
चक्र के ज्ञान को बुद्धि में यथार्थ रीति धारण करना ही स्वदर्शन चक्र चलाना है, स्व
के चक्र को जानना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बनना। ऐसे ज्ञानी तू आत्मा ही प्रभू
प्रिय हैं, उनके आगे माया ठहर नहीं सकती। यह स्वदर्शन चक्र ही भविष्य में चक्रवर्ती
राजा बना देता है।
स्लोगन:-
हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बनें तो प्रजा जल्दी तैयार हो जायेगी।