ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। तुम इस पाठशाला में बैठ ऊंच दर्जा पाते
हो। दिल में समझते हो हम बहुत ऊंच ते ऊंच स्वर्ग का पद पाते हैं। ऐसे बच्चों को तो
खुशी बहुत होनी चाहिए। अगर सबको निश्चय है तो सब एक जैसे तो हो न सकें। फर्स्ट से
लास्ट नम्बर तक तो होते ही हैं। पेपर्स में भी फर्स्ट से लास्ट नम्बर तक नम्बर होते
हैं। कोई फेल भी होंगे, तो कोई पास भी होते होंगे। तो हर एक अपनी दिल से पूछे – बाबा
जो हमको इतना ऊंच बनाते हैं, मैं कहाँ तक लायक बना हूँ? फलाने से अच्छा हूँ वा कम
हूँ? यह पढ़ाई है ना। देखने में भी आता है, जो कोई सब्जेक्ट में कमज़ोर होते हैं तो
नीचे चले जाते हैं। भल मॉनीटर होगा तो भी कोई सब्जेक्ट में कम होगा तो नीचे चला
जायेगा। बिरला ही कोई स्कॉलरशिप लेते हैं। यह भी स्कूल है। तुम जानते हो हम सब पढ़
रहे हैं, इसमें पहली-पहली बात है पवित्रता की। बाप को बुलाया है ना – पवित्र बनने
के लिए। अगर क्रिमिनल आई काम करती होगी तो खुद फील करते होंगे। बाबा को लिखते भी
हैं, बाबा हम इस सब्जेक्ट में कम हैं। स्टूडेन्ट की बुद्धि में यह जरूर रहता है –
हम फलानी सब्जेक्ट में बहुत-बहुत कम हूँ। कोई ऐसे भी समझते हैं हम फेल होंगे। इसमें
पहले नम्बर की सब्जेक्ट है – पवित्रता। बहुत लिखते हैं बाबा हमने हार खाई, तो उसको
क्या कहेंगे? उनकी दिल समझती होगी – अब मैं चढ़ नहीं सकूँगा। तुम पवित्र दुनिया
स्थापन करते हो ना। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। बाप कहते हैं – बच्चों, मामेकम्
याद करो और पवित्र बनो तो इन लक्ष्मी-नारायण के घराने में जा सकते हो। टीचर तो समझते
होंगे यह इतना ऊंच पद पा सकेंगे वा नहीं? वह है सुप्रीम टीचर। यह दादा भी स्कूल तो
पढ़ा हुआ है ना। कोई-कोई छोकरे (लड़के) भी ऐसे खराब काम करते हैं जो आखिर मास्टर को
सज़ा देनी पड़ती है। आगे बहुत जोर से सज़ायें देते थे। अभी सज़ा आदि कम कर दी है तो
स्टूडेन्ट्स और ही जास्ती बिगड़ते हैं। आजकल स्टूडेन्ट कितना हंगामा करते हैं।
स्टूडेन्ट को न्यु ब्लड कहते हैं ना। वह देखो क्या करते हैं! आग लगा देते हैं, अपनी
जवानी दिखलाते हैं। यह है ही आसुरी दुनिया। जवान लड़के ही बहुत खराब होते हैं, उनकी
आंखें बहुत क्रिमिनल होती हैं। देखने में तो बड़े अच्छे आते हैं। जैसे कहा जाता है
ना – ईश्वर का अन्त नहीं पाया जाता, ऐसे उनका भी अन्त नहीं पाया जाता, कि यह किस
प्रकार का मनुष्य है। हाँ, ज्ञान का बुद्धि से पता पड़ता है, यह कैसे पढ़ता है, इनकी
एक्टिविटी कैसी है। कोई तो बात करते हैं जैसे मुख से फूल निकलते हैं, कोई तो ऐसी
बात करते जैसे पत्थर निकालते हैं। देखने में बहुत अच्छे, प्वाइंट्स आदि भी लिखते
हैं परन्तु हैं पत्थरबुद्धि। बाहर का शो है। माया बड़ी दुश्तर है इसलिए गायन है
आश्चर्यवत् सुनन्ती, अपने को शिवबाबा की सन्तान कहलावन्ती, औरों को सुनावन्ती,
कथन्ती फिर भागन्ती अर्थात् ट्रेटर बनन्ती। ऐसे नहीं, होशियार ट्रेटर नहीं बनते
हैं, अच्छे-अच्छे होशियार भी ट्रेटर बन पड़ते हैं। उस सेना में भी ऐसे होता है।
ऐरोप्लेन सहित ही दूसरे देश में चले जाते हैं। यहाँ भी ऐसे होता है, स्थापना में बड़ी
मेहनत लगती है। बच्चों को भी पढ़ाई में मेहनत, टीचर को भी पढ़ाने में मेहनत होती
है। देखा जाता है यह सबको डिस्टर्ब करते हैं, पढ़ते नहीं हैं तो स्कूलों में हन्टर
लगाते हैं। यह तो बाप है, बाप कुछ भी नहीं कहते हैं। बाप के पास यह कानून नहीं है,
यहाँ तो बिल्कुल शान्त रहना होता है। बाप तो सुखदाता, प्यार का सागर है। तो बच्चों
की चलन भी ऐसी होनी चाहिए ना, जैसे देवतायें होते हैं। तुम बच्चों को बाबा सदैव कहते
हैं तुम पद्मापद्म भाग्यशाली हो। परन्तु पद्मापद्म दुर्भाग्यशाली भी बनते हैं। जो
फेल होते हैं उनको तो दुर्भाग्यशली कहेंगे ना। बाबा जानते हैं – अन्त तक यह होता
रहता है। कोई न कोई महान् दुर्भाग्यशाली भी जरूर बनते हैं। चलन ऐसी होती है समझा
जाता है यह ठहर नहीं सकेंगे। इतना ऊंच बनने लायक नहीं है, सबको दु:ख देते रहते हैं।
सुख देना जानते ही नहीं तो उनकी हालत क्या होगी! बाबा सदैव कहते हैं – बच्चे, अपनी
अच्छी रीति सम्भाल करो, यह भी ड्रामा अनुसार होने का है, और ही लोहे से भी बदतर बन
जाते हैं। सो भी अच्छे-अच्छे कभी चिट्ठी भी नहीं लिखते हैं। बिचारों का क्या हाल
होगा!
बाप कहते हैं – मैं आया हूँ सर्व का कल्याण करने। आज सर्व की सद्गति करता हूँ,
कल फिर दुर्गति हो जाती है। तुम कहेंगे हम कल विश्व के मालिक थे, आज गुलाम बन गये
हैं। अभी सारा झाड़ तुम बच्चों की बुद्धि में है। यह वण्डरफुल झाड़ है। मनुष्यों को
यह भी पता नहीं है। अभी तुम जानते हो कल्प माना पूरे 5 हज़ार वर्ष का एक्यूरेट झाड़
है। एक सेकेण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। इस बेहद के झाड़ की तुम बच्चों को अभी
नॉलेज मिल रही है। नॉलेज देने वाला है वृक्षपति। बीज कितना छोटा होता है, उनसे फल
देखो कितना बड़ा निकलता है। यह फिर है वण्डरफुल झाड़, इनका बीज बहुत छोटा है। आत्मा
कितनी छोटी है। बाप भी बहुत छोटा, इन आंखों से देख भी नहीं सकते। भल विवेकानंद का
बतलाते हैं – उसने कहा ज्योति उनसे निकल मेरे में समा गई। ऐसी कोई ज्योति निकलकर
फिर समा थोड़ेही सकती है। क्या निकला? यह समझते नहीं। ऐसे-ऐसे साक्षात्कार तो बहुत
होते हैं, परन्तु वो लोग मान देते हैं, फिर महिमा भी लिखते हैं। भगवानुवाच – कोई भी
मनुष्य की महिमा है नहीं। महिमा है तो सिर्फ देवताओं की है और जो ऐसा देवता बनाने
वाला है उसकी महिमा है। बाबा ने कार्ड बहुत अच्छा बनाया था। जयन्ती मनाना हो तो एक
शिवबाबा की। इन (लक्ष्मी-नारायण) को भी ऐसा बनाने वाला तो शिवबाबा है ना। बस एक की
ही महिमा है, उस एक को ही याद करो। यह खुद कहते हैं ऊंच ते ऊंच बनता हूँ फिर नीचे
भी उतरता हूँ। यह किसको पता नहीं है – ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण ही फिर 84 जन्मों
के बाद नीचे उतरते हैं, तत् त्वम्। तुम ही विश्व के मालिक थे, फिर क्या बन गये!
सतयुग में कौन थे? तुम ही सब थे, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। राजा-रानी भी थे,
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी डिनायस्टी के भी थे। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। इस
सृष्टि चक्र का ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में चलते-फिरते रहना चाहिए। तुम चैतन्य
लाइट हाउस हो। सारी पढ़ाई बुद्धि में रहनी चाहिए। परन्तु वह अवस्था हुई नहीं है,
होने की है। जो पास विद् ऑनर होंगे उनकी यह अवस्था होगी। सारा ज्ञान बुद्धि में होगा।
बाप के लाडले, लवली बच्चे भी तब कहलायेंगे। ऐसे बच्चों पर बाप स्वर्ग की राजाई
कुर्बान करते हैं। कहते हैं मैं राजाई नहीं करता हूँ, तुमको देता हूँ, इसको निष्काम
सेवा कहा जाता है। बच्चे जानते हैं बाबा हमको सिर के ऊपर चढ़ाते हैं, तो ऐसे बाप को
कितना याद करना चाहिए। यह भी ड्रामा बना हुआ है। बाप संगम पर आकर सबको सद्गति देते
हैं, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। नम्बरवन हाइएस्ट बिल्कुल पवित्र, नम्बर लास्ट
बिल्कुल अपवित्र। याद-प्यार तो बाबा सबको देते हैं।
बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं, कभी भी मिथ्या अहंकार नहीं आना चाहिए। बाप
कहते हैं – खबरदार रहना है, रथ का भी रिगार्ड रखना है। इस द्वारा ही तो बाप सुनाते
हैं ना। इसने तो कभी गाली नहीं खाई थी। सब प्यार करते थे। अभी तो देखो कितनी गाली
खाते हैं। कई ट्रेटर बन भागन्ती हो गये तो फिर उनकी गति क्या होगी, फेल होंगे ना!
बाप समझाते हैं माया ऐसी है इसलिए बहुत खबरदारी रखते रहो। माया किसको भी छोड़ती नहीं
है। सब प्रकार की आग लगा देती है। बाप कहते हैं मेरे सब बच्चे काम चिता पर चढ़ काले
कोयले बन गये हैं। सब तो एक जैसे नहीं होते हैं। न सबका एक जैसा पार्ट है। इनका नाम
ही है वेश्यालय, कितना बार काम चिता पर चढ़े होंगे। रावण कितना जबरदस्त है, बुद्धि
को ही पतित बना देता है। यहाँ आकर बाप से शिक्षा लेने वाले भी ऐसे बन जाते हैं। बाप
की याद बिगर क्रिमिनल आंखें कभी बदल नहीं सकती इसलिए सूरदास की कहानी है। है तो
बनाई हुई बात, दृष्टान्त भी देते हैं। अभी तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिलता
है। अज्ञान माना अन्धियारा। कहते हैं ना तुम तो अन्धे, अज्ञानी हो। अब ज्ञान है
गुप्त, इसमें कुछ बोलने का नहीं है। एक सेकेण्ड में सारा ज्ञान आ जाता है, सबसे इजी
ज्ञान है। फिर भी अन्त तक माया की परीक्षा चलती रहेगी। इस समय तो तूफान के बीच में
हैं, पक्के हो जायेंगे फिर इतना तूफान नहीं आयेंगे, गिरेंगे नहीं। फिर देखना
तुम्हारा झाड़ कितना बढ़ता है। नामाचार तो होना ही है। झाड़ तो बढ़ता ही है। थोड़ा
विनाश होगा तब फिर बहुत खबरदार रहेंगे। फिर बाप की याद में एकदम चटक जायेंगे।
समझेंगे टाइम बहुत थोड़ा है। बाप तो बहुत अच्छा समझाते हैं – आपस में बहुत प्यार से
चलो। आंख नहीं दिखाओ। क्रोध का भूत आने से शक्ल ही एकदम बदल जाती है। तुमको तो
लक्ष्मी-नारायण जैसी शक्ल वाला बनना है। एम आब्जेक्ट सामने है। साक्षात्कार पिछाड़ी
को होता है, जब ट्रांसफर होते हैं। जैसे शुरू में साक्षात्कार हुए ऐसे अन्त समय में
भी बहुत पार्ट देखेंगे। तुम बहुत खुश रहेंगे। मिरूआ मौत मलूका शिकार.. पिछाड़ी में
बहुत सीन-सीनरी देखनी है तब तो फिर पछतायेंगे भी ना – हमने यह किया। फिर उनकी सज़ा
भी बहुत कड़ी मिलती है। बाप आकर पढ़ाते हैं, उनकी भी इज्ज़त नहीं रखते तो सज़ा
मिलेगी। सबसे कड़ी सज़ा उनको मिलेगी जो विकार में जाते हैं या शिवबाबा की बहुत
ग्लानि कराने के निमित्त बनते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। स्थापना में क्या-क्या
होता है। तुम तो अभी देवता बनते हो ना। सतयुग में असुर आदि होते नहीं। यह संगम की
ही बात है। यहाँ विकारी मनुष्य कितना दु:ख देते हैं, बच्चियों को मारते हैं, शादी
जरूर करो। स्त्री को विकार के लिए कितना मारते हैं, कितना सामना करते हैं। कहते हैं
संन्यासी भी रह न सके, यह फिर कौन है जो पवित्र रह दिखाते हैं। आगे चल समझेंगे भी
जरूर। सिवाए पवित्रता के देवता तो बन नहीं सकते। तुम समझाते हो – हमको इतनी प्राप्ति
होती है तब छोड़ा है। भगवानुवाच – काम जीते जगतजीत। ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनेंगे तो
क्यों नहीं पवित्र बनेंगे। फिर माया भी बहुत पछाड़ती है। ऊंची पढ़ाई है ना। बाप आकर
पढ़ाते हैं – यह सिमरण अच्छी रीति बच्चे नहीं करते हैं तो फिर माया थप्पड़ लगा देती
है। माया अवज्ञायें भी बहुत कराती है फिर उनका क्या हाल होगा। माया ऐसा बेपरवाह बना
देती है, अहंकार में ले आती है बात मत पूछो। नम्बरवार राजधानी बनती है तो कोई कारण
से बनेंगी ना। अभी तुमको पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का ज्ञान मिलता है तो कितना अच्छी
रीति ध्यान देना चाहिए। अहंकार आया यह मरा। माया एकदम वर्थ नाट ए पेनी बना देती है।
बाप की अवज्ञा हुई तो फिर बाप को याद कर नहीं सकते। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।