25-11-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
1992 "बापदादा" मधुबन
समस्याओं के पहाड़ को उड़ती
कला से पार करो
सभी अपने पुरूषार्थ
को सदा चेक करते रहते हो? आपका पुरूषार्थ तीव्र गति का है वा समय तीव्र गति से आगे
बढ़ रहा है, क्या कहेंगे? समय तेज है और आप ढीले हो? समय रचता है या रचना है? रचना
चाहे कितनी भी पॉवरफुल हो, फिर भी रचता तो रचता ही होगा ना। तो समय का आह्वान आपको
करना है या समय आपका आह्वान करेगा? समय आपका आह्वान करे कि आओ मेरे मालिक! तो जैसे
समय की रफ्तार सदा आगे बढ़ती जाती है, रूकती नहीं है। चाहे गिरावट का समय हो, चाहे
बढ़ने का समय हो लेकिन समय कभी रूकता नहीं है, सदा आगे बढ़ता जाता है। समय को कोई
रोकना चाहें तो भी नहीं रूकता है। और आपको कोई रोके तो रूकते हो? रूक जाते हो ना।
रूकना नहीं है। कैसी भी परिस्थिति आ जाये, कैसी भी समस्याओं का पहाड़ आगे आ जाये
लेकिन आप रूकने वाले हो क्या? उड़ती कला वाले हो ना। तो पहाड़ को भी क्या करेंगे? उड़ती
कला होगी तो सेकण्ड में पार कर लेंगे। तो चढ़ती कला वाले हो या उड़ती कला वाले हो?
उड़ने वाले कभी रूकेंगे नहीं। बिना मंजिल के अगर उड़ने वाली चीज रूक जाये तो क्या होगा?
चलते-चलते प्लेन मंजिल के पहले ही रूक जाये तो एक्सीडेन्ट होगा ना। तो आप भी उड़ती
कला वाले हो। उड़ती कला वाले मंजिल के पहले कहाँ रूकते नहीं। या थक जाते हो तो रूक
जाते हो?
जहाँ प्राप्ति होती
है, प्राप्ति वाला कभी थकता नहीं। बिजनेसमेन को अनुभव है ना। ग्राहक देरी से भी आये
तो भी थकेंगे नहीं, आह्वान करते हैं-आओ.....। क्यों नहीं थकते? क्योंकि प्राप्ति
है। तो आपको कितनी प्राप्तियाँ हैं? हर कदम में पद्मों की प्राप्ति है। सारे वर्ल्ड
में ऐसा साहूकार कोई है जिसको कदम में पद्मों की कमाई हो? कितने भी नामीग्रामी हों
लेकिन इतने साहूकार कोई नहीं हैं। चक्कर लगाकर आओ। देखो, विदेश में कोई मिल जाये?
कितना भी बड़ा हो लेकिन आपके आगे वह कुछ भी नहीं है। तो इतनी बड़ी प्राप्ति वाले कभी
थक नहीं सकते। प्राप्ति को भूलना अर्थात् थकना। उस बिजनेस में तो कितनी मेहनत करनी
पड़ती है और मेहनत के बाद भी मिलेगा क्या? चलो, ज्यादा में ज्यादा करोड़ मिल जायें,
मिलते तो नहीं हैं लेकिन मिल जायें। और यहाँ तो पद्मों की बात है। तो सदा अपनी
प्राप्तियों को सामने रखो। सिर्फ पुरूषार्थ नहीं करो, पुरूषार्थ के पहले प्राप्तियों
को सामने रखो। अगर मालूम होता है कि यह मिलना है, तो पुरूषार्थ को भूल जाते हैं,
प्राप्ति को ही सामने रखते हैं। उसको पुरूषार्थ दिखाई नहीं देगा, प्राप्ति ही दिखाई
देगी। खेती का काम भी करते हैं तो क्या दिखाई देता है? मेहनत दिखाई देती है या फल
दिखाई देता है? फल की खुशी होती है ना। तो यह स्मृति रखने से कभी थकेंगे नहीं। न
थकेंगे, न गति तीव्र से धीमी होगी, सदा तीव्र गति होगी।
गुजरात वालों की तो
तीव्र गति है ना। गुजरात की मातायें भी तीव्र, जल्दी-जल्दी चलती हैं। देखो, गरबा
करते हो तो मोटा हो, बूढ़ा हो - कितना जल्दी-जल्दी करते हैं। दूसरे तो देखेंगे कि यह
इतना मोटा कैसे करेगा? लेकिन कितना फास्ट करते हैं! तो गुजरात वालों को तीव्र गति
की आदत है। जब शरीर तीव्र चल सकता है तो आत्मा नहीं चल सकती? गुजरात की विशेषता ही
सदा खुश रहने की है। गुजरात वाले सभी गरबा जानते हैं। बीमार को भी कहो कि रास करने
के लिये आओ-तो आ जायेंगे, बिस्तर से भी उठ पड़ेंगे। तो यह निशानी है खुशी की, मौज
मनाने की। मौज की निशानी गुजरात में झूला घर-घर में होता है। तो जैसे शरीर की मौज
मनाते हो, तो आत्मा को भी तो मौज में रहना है। तो गुजरात का अर्थ हुआ मौज में रहने
वाले, खुशी में रहने वाले। लेकिन सदा, कभी-कभी नहीं। गुजरात वालों की कभी भी खुशी
कम हो, यह हो नहीं सकता। इतना पक्का निश्चय है या कभी-कभी मूँझ भी जाते हो? जब बाप
को अपनी सब जिम्मेवारियां दे दी, तो आप मौज में ही रहेंगे ना। जिम्मेवारियाँ माथा
भारी करती हैं। जब भी खुशी कम होती है तो कहते या सोचते हो कि-क्या करें, यह भी
सम्भालना पड़ता है ना, करना पड़ता है ना, जिम्मेवारी है ना। उस समय सोचते हो ना।
लेकिन जिम्मेवार बाप है, मैं निमित्त-मात्र हूँ। मेरी जिम्मेवारी है-तो भारीपन होता
है। बाप की जिम्मेवारी है, मैं निमित्त हूँ-तो हल्के हो जायेंगे। हल्का उड़ेगा। भारी
चीज उड़ेगी नहीं, बार-बार नीचे आ जायेगी। थोड़ा भी संकल्प आया-मुझे करना पड़ता है, मुझे
ही करना है-तो भारीपन हुआ। तो डबल लाइट हो ना। या थोड़ा-थोड़ा बोझ है? सदा उड़ते रहो।
उड़ती कला अर्थात् तीव्र गति।
आप लोग तो बहुत-बहुत
भाग्यवान हो जो उड़ती कला के समय पर आये हो। जैसे आजकल के बच्चे कहते हैं ना कि हम
भाग्यवान हैं जो बैलगाड़ी के समय नहीं थे, मोटरगाड़ी के टाइम पर आये हैं। आजकल के
बच्चे पुरानों को यही कहते हैं कि-आप लोगों का जमाना बैलगाड़ी का था, हमारा जमाना
एरोप्लेन का है। तो उन्हों को कितना नशा रहता है! आपको भी यह नशा रहना चाहिये कि हम
उड़ती कला के समय पर आये हैं। समय भी, देखो, आपका सहयोग बन गया। तो अच्छी तरह से उड़ो।
अपने पास छोटे-मोटे बोझ नहीं रखो-न पुरूषार्थ का बोझ, न सेवा का बोझ, न
सम्बन्ध-सम्पर्क निभाने का बोझ। कोई बोझ नहीं। या थोड़ा-थोड़ा बोझ रखना अच्छा है? आदत
पड़ी हुई है ना। 63 जन्म से बोझ उठाते आये, बीच-बीच में वह आदत अभी भी काम कर लेती
है। लेकिन बोझ उठाने से क्या मिला? भारी रहे और भारी रहने से नीचे गिरते गये। अभी
तो चढ़ना है ना। अच्छा! गुजरात वाले कभी भी ऐसे नहीं कहेंगे कि क्या करें, कैसे करें,
माया आ गई। माया से डरने वाले हो। या विजय प्राप्त करने वाले हो? लड़ते रहेंगे तो
चन्द्रवंशी में चले जायेंगे। इसलिये सदा विजयी। हार खाने वाले नहीं। हार खाना कमजोरों
का काम है, ब्राह्मण तो सदा बहादुर हैं। अच्छा!
2 - हम कल्प-कल्प के
विजयी हैं - इस निश्चय से बड़ी बात को भी छोटा बनाओ
सभी को सबसे ज्यादा
कौनसी खुशी है? सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि जिनके ऊपर दुनिया के आत्माओं की
कोई नज़र नहीं उनके ऊपर परम आत्मा की नज़र पड़ गई! आजकल के जमाने में चुनाव होता है
ना। तो आपको किसने चुना? चुनाव में कोई गड़बड़ हुई है क्या? कोई खर्चा करना पड़ा है
क्या? तो बाप ने हम आत्माओं को चुन लिया, अपना बना लिया। दुनिया की नज़र में अति
साधारण आत्माए थीं, लेकिन बाप की नज़र में महान आत्माए, विशेष आत्माए हो। तो इसी खुशी
में रहो-कल क्या थे और आज क्या बन गये, किसकी नजर में आ गये! दुनिया-वालों ने ठुकरा
दिया और बाप ने अपना बना लिया। कितनी ठोकरों से बचा लिया! 63 जन्म ठोकरें ही खाई
ना। चाहे भक्ति की, तो भी ठोकरें खाई। अपनी प्रवृत्ति की लाइफ में भी भिन्न-भिन्न
प्रकार की ठोकरें खाते रहे। और बाप ने आकर ठिकाना दे दिया। जब ठिकाना मिल जाता है
तो ठोकर खाना बन्द हो जाता है। तो ठिकाना मिल गया है ना। तो क्या थे और क्या बन गये!
स्वप्न में था कि इतना महान बनेंगे? लेकिन कितना सहज बन गये! कुछ भी मुश्किल नहीं
देखनी पड़ी। कितना श्रेष्ठ भाग्य है! तो कौनसा गीत गाते हो? पाना था वो पा लिया। यह
गीत आटोमेटिक चलता रहता है। मुख से गाने की आवश्यकता नहीं है लेकिन दिल गाती रहती
है। यह दिल की टेपरिकॉर्ड कभी खराब नहीं होती, बार-बार चलाना नहीं पड़ता, स्वत: ही
चलती रहती है ना। अच्छा!
सभी ने माया को जीत
लिया है? सभी मायाजीत बन गये हो? कि अभी विजयी बनना है? माया का काम है खेल करना और
आपका काम है खेल देखना। खेल में घबराना नहीं। घबराते हैं तो वह समझ जाती है कि ये
घबरा तो गये हैं, अब लगाओ इसको अच्छी तरह से। माया भी तो जानने में होशियार है ना।
कुछ भी हो जाये, घबराना नहीं। विजय हुई ही पड़ी है। इसको कहा जाता है सम्पूर्ण
निश्चयबुद्धि। पता नहीं क्या होगा, हार तो नहीं जाऊंगा, विजय होगी वा नहीं........-
ये नहीं। सदैव यह नशा रखो कि पाण्डव सेना की विजय नहीं होगी तो किसकी होगी! कौरवों
की होगी क्या? तो आप कौन हो? पाण्डवों की विजय तो निश्चित है ना।
कोई भी बड़ी बात को
छोटा बनाना या छोटी बात को बड़ी बनाना अपने हाथ में है। किसका स्वभाव होता है छोटी
बात को बड़ा बनाने का और किसका स्वभाव होता है बड़ी बात को छोटा बनाने का। तो माया की
कितनी भी बड़ी बात सामने आ जाये लेकिन आप उससे भी बड़े बन जाओ तो वह छोटी हो जायेगी।
आप नीचे आ जायेंगे तो वह बड़ी दिखाई देगी और ऊपर चले जायेंगे तो छोटी दिखाई देगी।
कितनी भी बड़ी परिस्थिति आये, आप ऊंची स्व-स्थिति में स्थित हो जाओ तो परिस्थिति छोटी-सी
बात लगेगी और छोटी-सी बात पर विजय प्राप्त करना सहज हो जायेगा। निश्चय रखो कि अनेक
बार के विजयी हैं। अभी कोई इस कल्प में विजयी नहीं बन रहे हैं, अनेक बार विजयी बने
हैं। इसलिए कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है। लेकिन उस समय याद आये। ऐसे
नहीं-टाइम बीत जाये, पीछे याद आये कि ये तो छोटी बात है, मैंने बड़ी क्यों बना दी।
समय पर याद आवे कि मैं कल्प-कल्प का विजयी हूँ।
माताओं को नशा है?
माताओं का तो भाग्य खुल गया। माताए क्या से क्या बन गई! जिन माताओं को लोगों ने नीचे
गिराया, पांव की जुती बना दी, तो पांव सबसे नीचे होता है और जुती तो पांव के भी नीचे
होती है, और बाप ने सिर का ताज बना दिया। माताओं को ज्यादा खुशी है ना! तो खुशी में
नाचना होता है। तो नाचती हो? पांव से नहीं, मन से खुशी में नाचो। बाप मिला, सब-कुछ
मिला। जब बाप को खुशी होती है तो बच्चों को भी खुशी होगी ना। आज के विश्व में और
सब-कुछ मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती। और आपको सच्ची खुशी मिली। बाप
को याद भी इसलिए करते हो क्योंकि प्राप्ति है। बाप प्यारा तब लगता है जब वर्सा दे।
बाप ने खुशी का खज़ाना दे दिया। इसलिए खुशी-खुशी से याद करते हो। चाहे कोई पद्म खर्च
करे लेकिन यह खुशी नहीं मिल सकती। तो आपने क्या खर्चा किया? कोई कौड़ी लगाई? ‘बाबा’
कहा और खज़ाना मिला! तो बिन कौड़ी बादशाह बन गये! लगाया कुछ नहीं और बन गये बादशाह!
सबसे बड़े ते बड़ा
बादशाह कौनसा है? (बेफिक्र बादशाह) तो आप बेफिक्र बादशाह हो? या यहाँ आकर बेफिक्र
हो, वहाँ जाकर फिक्र होगा? माताओं को फिक्र होगा-बच्चों को क्या करें, पोत्रों को
क्या करें? यहाँ भी नहीं है, वहाँ भी नहीं होगा। आजकल के बादशाह हैं फिक्र के
बादशाह और आप हो बेफिक्र बादशाह। बच्चे को कोई फिक्र होता है क्या? जब बाप बैठा है
तो बच्चे बेफिक्र होते हैं। तो बेफिक्र बादशाह बन गये हो। वैसे भी कोई भी बात का
फिक्र करो तो फिक्र करने वाले को कभी भी सफलता नहीं मिलती। फिक्र करने वाला समय भी
गंवाता, स्वयं को भी गंवाता, क्योंकि एनर्जी (Energy; शक्ति) वेस्ट होती है, और काम
को भी गंवा देता-जिस काम के लिए फिक्र करता वह काम भी बिगाड़ देता। तो सफलता अगर
चाहिए तो उसकी विधि है-बेफिक्र बनना। ऐसे बादशाह!
सेवाओं की कोई नई
इन्वेन्शन निकालो। लक्ष्य रखने से टाचिंग स्वत: ही होती है। सेवा में आगे बढ़ना
अर्थात् स्वयं के पुरूषार्थ में भी आगे बढ़ना। जो सच्ची दिल से सेवा करते हैं वो सदा
उन्नति को प्राप्त करते हैं। अगर मिक्सचर सेवा करते हैं तो सफलता नहीं होती,
स्वउन्नति भी नहीं होती। अच्छा!
वरदान:-
बुराई में भी
बुराई को न देख अच्छाई का पाठ पढ़ने वाले अनुभवी मूर्त भव
चाहे सारी बात बुरी
हो लेकिन उसमें भी एक दो अच्छाई जरूर होती हैं। पाठ पढ़ाने की अच्छाई तो हर बात में
समाई हुई है ही क्योंकि हर बात अनुभवी बनाने के निमित्त बनती है। धीरज का पाठ पढ़ा
देती है। दूसरा आवेश कर रहा है और आप उस समय धीरज वा सहनशीलता का पाठ पढ़ रहे हो,
इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। अच्छाई उठाने की
सिर्फ बुद्धि चाहिए। बुराई को न देख अच्छाई उठा लो तो नम्बरवन बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सदा
प्रसन्नचित रहना है तो साइलेन्स की शक्ति से बुराई को अच्छाई में परिवर्तन करो।