19-11-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 03.04.96 "बापदादा" मधुबन
“सेवाओं के साथ-साथ बेहद
की वैराग्य वृत्ति द्वारा पुराने वा व्यर्थ संस्कारों से मुक्त बनो''
आज बेहद का बाप अपने
बेहद के सदा सहयोगी साथियों को देख रहे हैं। चारों ओर के सदा सहयोगी बच्चे, सदा बाप
के दिल पर दिल-तख्तनशीन, निराकार बाप को अपना अकाल तख्त भी नहीं है लेकिन तुम बच्चों
को कितने तख्त हैं? तो बापदादा तख्तनशीन बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं - वाह
मेरे तख्तनशीन बच्चे! बच्चे बाप को देख खुश होते हैं, आप सभी बापदादा को देख खुश
होते हो लेकिन बापदादा कितने बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि हर एक बच्चा विशेष
आत्मा है। चाहे लास्ट नम्बर भी है लेकिन फिर भी लास्ट होते भी विशेष कोटों में कोई,
कोई में कोई की लिस्ट में है इसलिए एक-एक बच्चे को देख बाप को ज्यादा खुशी है वा
आपको है? (दोनों को) बाप को कितने बच्चे हैं! जितने बच्चे उतनी खुशी और आपको सिर्फ
डबल खुशी है, बस। आपको परिवार की भी खुशी है लेकिन बाप की खुशी सदाकाल की है और आपकी
खुशी सदाकाल है या कभी नीचे ऊपर होती है?
बापदादा समझते हैं कि
ब्राह्मण जीवन का श्वांस खुशी है। खुशी नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं और अविनाशी खुशी,
कभी-कभी वाली नहीं, परसेन्टेज़ वाली नहीं। खुशी तो खुशी है। आज 50 परसेन्ट खुशी है,
कल 100 परसेन्ट है, तो जीवन का श्वास नीचे ऊपर है ना! बापदादा ने पहले भी कहा है कि
शरीर चला जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। तो यह पाठ सदा पक्का है या थोड़ा-थोड़ा कच्चा
है? सदा अण्डरलाइन है? कभी-कभी वाले क्या होंगे? सदा खुशी में रहने वाले पास विद्
ऑनर और कभी-कभी खुशी में रहने वालों को धर्मराजपुरी पास करनी पड़ेगी। पास विद् ऑनर
वाले एक सेकेण्ड में बाप के साथ जायेंगे, रुकेंगे नहीं। तो आप सब कौन हो? साथ चलने
वाले या रुकने वाले? (साथ चलने वाले) ऐसा चार्ट है? क्योंकि विशेष डायमण्ड जुबली के
वर्ष में बापदादा की हर एक बच्चे के प्रति क्या शुभ आशा है, वह तो जानते हो ना?
बापदादा ने सभी बच्चों
का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा कि वर्तमान समय के प्रमाण एक बात का विशेष और
अटेन्शन चाहिए। जैसे सेवा में बहुत उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हो और डायमण्ड जुबली
में विशेष सेवा का उमंग-उत्साह है, इसमें पास हो। हर एक यथा शक्ति सेवा कर रहे हैं
और करते रहेंगे। लेकिन अब विशेष क्या चाहिए? समय समीप है तो समय की समीपता के
अनुसार अब कौन सी लहर होनी चाहिए? (वैराग्य की) कौन सा वैराग्य - हद का या बेहद का?
जितना सेवा का उमंग-उत्साह है, उतना समय की आवश्यकता प्रमाण स्व-स्थिति में बेहद का
वैराग्य कहाँ तक है? क्योंकि आपके सेवा की सफलता है जल्दी से जल्दी प्रजा तैयार हो
जाए इसलिए सेवा करते हो ना? तो जब तक आप निमित्त आत्माओं में बेहद की वैराग्य वृत्ति
नहीं है, तो अन्य आत्माओं में भी वैराग्य वृत्ति नहीं आ सकती और जब तक वैराग्य
वृत्ति नहीं होगी तो जो चाहते हो कि बाप का परिचय सबको मिले, वह नहीं मिल सकता।
बेहद का वैराग्य सदाकाल का वैराग्य है। अगर समय प्रमाण वा सरकमस्टांश प्रमाण
वैराग्य आता है तो समय नम्बरवन हो गया और आप नम्बर दो हो गये। परिस्थिति या समय ने
वैराग्य दिलाया। परिस्थिति खत्म, समय पास हो गया तो वैराग्य पास हो गया। तो उसको
क्या कहेंगे - बेहद का वैराग्य या हद का? तो अभी बेहद का वैराग्य चाहिए। अगर
वैराग्य खण्डित हो जाता है तो उसका मुख्य कारण है - देह-भान। जब तक देह-भान का
वैराग्य नहीं है तब तक कोई भी बात का वैराग्य सदाकाल नहीं होता है, अल्पकाल का होता
है। सम्बन्ध से वैराग्य - यह बड़ी बात नहीं है, वह तो दुनिया में भी कईयों को दिल
से वैराग्य आ जाता है लेकिन यहाँ देह-भान के जो भिन्न-भिन्न रूप हैं, उन
भिन्न-भिन्न रूपों को तो जानते हो ना? कितने देह-भान के रूप हैं, उसका विस्तार तो
जानते हो लेकिन इस अनेक देह-भान के रूपों को जानकर, बेहद के वैराग्य में रहना।
देह-भान, देही-अभिमान में बदल जाए। जैसे देह-भान एक नेचुरल हो गया, ऐसे देही-अभिमान
नेचुरल हो जाए क्योंकि हर बात में पहला शब्द देह ही आता है। चाहे सम्बन्ध है तो भी
देह का ही सम्बन्ध है, पदार्थ हैं तो देह के पदार्थ हैं। तो मूल आधार देह-भान है।
जब तक किसी भी रूप में देह-भान है तो वैराग्य वृत्ति नहीं हो सकती। और बापदादा ने
देखा कि वर्तमान समय जो देह-भान का विघ्न है उसका कारण है कि देह के जो पुराने
संस्कार हैं, उससे वैराग्य नहीं है। पहले देह के पुराने संस्कारों से वैराग्य चाहिए।
संस्कार स्थिति से नीचे ले आते हैं। संस्कार के कारण सेवा में वा सम्बन्ध-सम्पर्क
में विघ्न पड़ते हैं। तो रिजल्ट में देखा कि देह के पुराने संस्कार से जब तक
वैराग्य नहीं आया है, तब तक बेहद का वैराग्य सदा नहीं रहता। संस्कार भिन्न-भिन्न
रूप से अपने तरफ आकर्षित कर लेते हैं। तो जहाँ किसी भी तरफ आकर्षण है, वहाँ वैराग्य
नहीं हो सकता। तो चेक करो कि मैं अपने पुराने वा व्यर्थ संस्कार से मुक्त हूँ? कितनी
भी कोशिश करेंगे, करते भी हैं कि वैराग्य वृत्ति में रहें लेकिन संस्कार कोई-कोई के
पास या मैजारिटी के पास किस न किस रूप में ऐसे प्रबल हैं जो अपनी तरफ खींचते हैं।
तो पहले पुराने संस्कार से वैराग्य। संस्कार न चाहते भी इमर्ज हो जाते हैं क्यों?
चाहते नहीं हो लेकिन सूक्ष्म में संस्कारों को भस्म नहीं किया है। कहाँ न कहाँ अंश
मात्र रहे हुए हैं, छिपे हुए हैं वह समय पर न चाहते हुए भी इमर्ज हो जाते हैं। फिर
कहते हैं - चाहते तो नहीं थे लेकिन क्या करें, हो गया, हो जाता है... यह कौन बोलता
है - देह-भान या देही-अभिमान?
तो बापदादा ने देखा
कि संस्कारों से वैराग्य वृत्ति में कमजोरी है। खत्म किया है लेकिन अंश भी नहीं हो,
ऐसा खत्म नहीं किया है और जहाँ अंश है तो वंश तो होगा ही। आज अंश है, समय प्रमाण
वंश का रूप ले लेता है। परवश कर देता है। कहने में तो सभी क्या कहते हैं कि जैसे
बाप नॉलेजफुल है वैसे हम भी नॉलेजफुल हैं, लेकिन जब संस्कार का वार होता है तो
नॉलेजफुल हैं या नॉलेज पुल हैं? क्या हैं? नॉलेजफुल के बजाए नॉलेज पुल बन जाते हो।
उस समय किसी से भी पूछो तो कहेंगे - हाँ, समझती तो मैं भी हूँ, समझता तो मैं भी
हूँ, होना नहीं चाहिए, करना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है। तो नॉलेजफुल हुए या नॉलेज
पुल हुए? (नॉलेजपुल अर्थात् नॉलेज को खींचने वाले) जो नॉलेजफुल है उसे कोई भी
संस्कार, सम्बन्ध, पदार्थ वार नहीं कर सकता।
तो डायमण्ड जुबली मना
रहे हो, डायमण्ड जुबली का अर्थ है - डायमण्ड बनना अर्थात् बेहद के वैरागी बनना।
जितना सेवा का उमंग है उतना वैराग्य वृत्ति का अटेन्शन नहीं है। इसमें अलबेलापन है।
चलता है... होता है... हो जायेगा... समय आयेगा तो ठीक हो जायेगा... तो समय आपका
शिक्षक है या बाबा शिक्षक है? कौन है? अगर समय पर परिवर्तन करेंगे तो आपका शिक्षक
तो समय हो गया! आपकी रचना आपका शिक्षक हो - ये ठीक है? तो जब ऐसी परिस्थिति आती है
तो क्या कहते हो? समय पर ठीक कर लूँगी, हो जायेगा। बाप को भी दिलासा देते हैं -
फिकर नहीं करो, हो जायेगा। समय पर बिल्कुल आगे बढ़ जायेंगे। तो समय को शिक्षक बनाना
- यह आप मास्टर रचयिता के लिए शोभता है? अच्छा लगता है? नहीं। समय रचना है, आप
मास्टर रचयिता हो। तो रचना मास्टर रचयिता का शिक्षक बनें यह मास्टर रचयिता की शोभा
नहीं। तो अभी जो बापदादा ने समय दिया है, उसमें वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो क्योंकि
सेवा की खींचातान में वैराग्य वृत्ति खत्म हो जाती है। वैसे सेवा में खुशी भी मिलती
है, शक्ति भी मिलती है और प्रत्यक्ष फल भी मिलता है लेकिन बेहद का वैराग्य खत्म भी
सेवा में ही होता है इसलिए अब अपने अन्दर इस वैराग्य वृत्ति को जगाओ। कल्प पहले भी
बने तो आप ही थे कि और थे? आप ही हैं ना। सिर्फ मर्ज है, उसको इमर्ज करो। जैसे सेवा
के प्लैन को प्रैक्टिकल में इमर्ज करते हो, तब सफलता मिलती है ना। ऐसे अभी बेहद के
वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। चाहे कितने भी साधन प्राप्त हैं और साधन तो आपको दिन
प्रतिदिन ज्यादा ही मिलने हैं लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की साधना मर्ज नहीं हो,
इमर्ज हो। साधन और साधना का बैलेन्स, क्योंकि आगे चलकर के प्रकृति आपकी दासी होगी।
सत्कार मिलेगा, स्वमान मिलेगा। लेकिन सब कुछ होते वैराग्य वृत्ति कम नहीं हो। तो
बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल स्वयं में अनुभव करते हो कि सेवा में बिजी हो
गये हो? जैसे दुनिया वालों को सेवा का प्रभाव दिखाई देता है ना! ऐसे बेहद के
वैराग्य वृत्ति का प्रभाव दिखाई दे। आदि में आप सभी की स्थिति क्या थी? कराची में
जब थे, बाहर की कोई सेवायें नहीं थी, साधन थे लेकिन बेहद की वैराग्यवृत्ति के
वायुमण्डल ने सेवा को बढ़ाया। तो जो भी डायमण्ड जुबली वाले हैं उन्हों में आदि
संस्कार हैं, अब मर्ज हो गये हैं। अब फिर से इस वृत्ति को इमर्ज करो। आदि रत्नों के
बेहद के वैराग्य वृत्ति ने स्थापना की, अभी नई दुनिया की स्थापना के लिए फिर से वही
वृत्ति, वही वायुमण्डल इमर्ज करो। तो सुना क्या जरूरत है?
साधन ही नहीं है और
कहो, हमको तो वैराग्य है, तो कौन मानेगा? साधन हो और वैराग्य हो। पहले के साधन और
अभी के साधनों में कितना अन्तर है? साधना छिप गई है और साधन प्रत्यक्ष हो गये हैं।
अच्छा है साधन बड़े दिल से यूज़ करो क्योंकि साधन आपके लिए ही हैं, लेकिन साधना को
मर्ज नहीं करो। बैलेन्स पूरा होना चाहिए। जैसे दुनिया वालों को कहते हो कि कमल
पुष्प समान बनो तो साधन होते हुए कमल पुष्प समान बनो। साधन बुरे नहीं हैं, साधन तो
आपके कर्म का, योग का फल हैं। लेकिन वृत्ति की बात है। ऐसे तो नहीं कि साधन के
प्रवृत्ति में, साधनों के वश फंस तो नहीं जाते? कमल पुष्प समान न्यारे और बाप के
प्यारे। यूज़ करते हुए उन्हों के प्रभाव में नहीं आये, न्यारे। साधन, बेहद की
वैराग्य वृत्ति को मर्ज नहीं करे। अभी विश्व अति में जा रही है तो अभी आवश्यकता है
- सच्चे वैराग्य-वृत्ति की और वह वायुमण्डल बनाने वाले आप हो, पहले स्वयं में, फिर
विश्व में।
तो डायमण्ड जुबली वाले
क्या करेंगे? लहर फैलायेंगे ना? आप लोग तो अनुभवी हैं। शुरू का अनुभव है ना! सब कुछ
था, देशी घी खाओ जितना खा सकते, फिर भी बेहद की वैराग्य वृत्ति। दुनिया वाले तो देशी
घी खाते हैं लेकिन आप तो पीते थे। घी की नदियां देखी। तो डायमण्ड जुबली वालों को
विशेष काम करना है - आपस में इक्ट्ठे हुए हो तो रूहरिहान करना। जैसे सेवा की मीटिंग
करते हो वैसे इसकी मीटिंग करो। जो बापदादा कहते हैं, चाहते हैं सेकेण्ड में अशरीरी
हो जायें - उसका फाउण्डेशन यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है, नहीं तो कितनी भी कोशिश
करेंगे लेकिन सेकेण्ड में नहीं हो सकेंगे। युद्ध में ही चले जायेंगे और जहाँ
वैराग्य है तो ये वैराग्य है योग्य धरनी, उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता। तो
क्या करना है? सभी को फील हो कि बस हमको भी अभी वैराग्य वृत्ति में जाना है। अच्छा।
समझा क्या करना है? सहज है या मुश्किल है? थोड़ा-थोड़ा आकर्षण तो होगी या नहीं?
साधन अपने तरफ नहीं खींचेंगे?
अभी अभ्यास चाहिए -
जब चाहे, जहाँ चाहे, जैसा चाहिए - वहाँ स्थिति को सेकेण्ड में सेट कर सके। सेवा में
आना है तो सेवा में आये। सेवा से न्यारे हो जाना है तो न्यारे हो जाएं। ऐसे नहीं,
सेवा हमको खींचे। सेवा के बिना रह नहीं सकें। जब चाहें, जैसे चाहें, विल पॉवर चाहिए।
विल पॉवर है? स्टॉप तो स्टॉप हो जाए। ऐसे नहीं लगाओ स्टॉप और हो जाए क्वेश्चनमार्क।
फुलस्टॉप। स्टॉप भी नहीं फुलस्टॉप। जो चाहें वह प्रैक्टिकल में कर सकें। चाहते हैं
लेकिन होना मुश्किल है तो इसको क्या कहेंगे? विल पावर है कि पावर है? संकल्प किया -
व्यर्थ समाप्त, तो सेकेण्ड में समाप्त हो जाए।
बापदादा ने सुनाया ना
कि कई बच्चे कहते हैं - हम योग में बैठते हैं लेकिन योग के बजाए युद्ध में होते
हैं। योगी नहीं होते, योद्धे होते हैं और युद्ध करने के अगर संस्कार बहुतकाल रहे तो
क्या बनेंगे? सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी? सोचा और हुआ। सोचना और होना, सेकेण्ड का काम
है। इसको कहते हैं - विल पॉवर। विल पॉवर है कि प्लैन बहुत अच्छे बनाते लेकिन प्लैन
बनते हैं 10 और प्रैक्टिकल में होते हैं 5, ऐसे तो नहीं होता? सोचते बहुत अच्छा हैं
- यह करेंगे, यह होगा, यह होगा लेकिन प्रैक्टिकल में अन्तर पड़ जाता है। तो अभी ऐसी
विल पॉवर हो, संकल्प किया और कर्म में प्रैक्टिकल में हुआ पड़ा है, ऐसे अनुभव हो।
नहीं तो देखा जाता है अमृतवेले जब बाप से रूहरिहान करते, बहुत अच्छी-अच्छी बातें
बोलते हैं, यह करेंगे, यह करेंगे... और जब रात होती तो क्या रिजल्ट होती? बाप को
खुश बहुत करते हैं, बातें इतनी मीठी-मीठी करते हैं, इतनी अच्छी-अच्छी करते हैं, बाप
भी खुश हो जाता, वाह मेरे बच्चे! कहते हैं - बाबा, बस आपने जो कहा ना, होना ही है।
हुआ पड़ा है। बहुत अच्छी-अच्छी बातें करते हैं। कई तो बाप को इतना दिलासा दिलाते
हैं कि बाबा हम नहीं होंगे तो कौन होगा। बाबा कल्प-कल्प हम ही तो थे, खुश हो जाते।
(हॉल में पीछे बैठने वालों से) पीछे बैठने वाले अच्छी तरह से सुन रहे हो ना?
आगे वालों से पहले
पीछे वाले करेंगे? बैठे पीछे हो लेकिन सबसे समीप दिल पर हो। क्यों? दूसरे को चांस
देना यह सेवा की ना! तो सेवाधारी सदा बाप के दिल पर हैं। कभी भी ऐसे नहीं सोचना कि
हम भी अगर दादियां होती ना तो जरा सा... लेकिन सामने तो क्या दिल पर हो। और दिल भी
साधारण दिल नहीं, तख्त है। तो दिलख्तनशीन हैं ना। कहाँ भी बैठे हो, चाहे इस कोने
में बैठे हो, चाहे नीचे बैठे हो, चाहे कैबिन में बैठे हो... लेकिन बाप के दिल पर
हो। अच्छा।
चारों ओर के तख्तनशीन
श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें, सदा बेहद के वैराग्य वृत्ति से वायुमण्डल बनाने वाले
विशेष आत्मायें, सदा अपने श्रेष्ठ विशेषताओं को कार्य में लगाने वाले विशेष आत्मायें,
सदा एक बाप के साथ और श्रीमत के हाथ को अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का
यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
एकव्रता के
राज़ को जान वरदाता को राज़ी करने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
वरदाता बाप के पास
अखुट वरदान हैं जो जितना लेने चाहे खुला भण्डार है। ऐसे खुले भण्डार से कई बच्चे
सम्पन्न बनते हैं और कोई यथा-शक्ति सम्पन्न बनते हैं। सबसे ज्यादा झोली भरकर देने
में भोलानाथ वरदाता रूप ही है, सिर्फ उसको राज़ी करने की विधि को जान लो तो सर्व
सिद्धियां प्राप्त हो जायेंगी। वरदाता को एक शब्द सबसे प्रिय लगता है - एकव्रता।
संकल्प, स्वप्न में भी दूजा-व्रता न हो। वृत्ति में रहे मेरा तो एक दूसरा न कोई,
जिसने इस राज़ को जाना, उसकी झोली वरदानों से भरपूर रहती है।
स्लोगन:-
मन्सा और वाचा दोनों सेवायें साथ-साथ करो तो डबल फल प्राप्त होता रहेगा।