ओम् शान्ति।
बाप की याद में तो बच्चे आपेही रहते हैं। घड़ी-घड़ी कहने की भी दरकार नहीं रहती।
बाप का डायरेक्शन है कि चलते-फिरते, उठते-बैठते बाप को याद करो तो रावण जिसने तुमको
पतित बना दिया है, उन पर जीत पा लेंगे। तुमको कोई हथियार आदि नहीं देते, सिर्फ
योगबल से तुम रावण पर जीत पाते हो। जीत पानी है जरूर और संगम पर ही पाते हो, जबकि
रावण राज्य खत्म हो रामराज्य की स्थापना होनी है। बाप हिंसा तो कभी सिखला न सकें।
देवताओं का है ही अहिंसा परमोधर्म। दुनिया यह नहीं जानती कि वहाँ काम कटारी की हिंसा
होती नहीं। जो कल्प पहले निर्विकारी बने होंगे वही तुम्हारी बातों को मानेंगे। अभी
तुम युद्ध के मैदान में हो। गाया भी हुआ है शिव शक्ति सेना। तुम हो गुप्त वारियर्स,
हर एक अपने लिए कर रहे हैं। माया जीत जगतजीत बनना है। तुम अपने लिए करते हो, गोया
अपने भारत देश के लिए करते हो। इसमें जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं वह पाते
हैं। जो 5 विकारों पर जीत पायेंगे वही जगतजीत बनेंगे और कोई चीज़ पर जीत पानी नहीं
है। तुम्हारा है ही रावण राज्य पर जीत पाना अर्थात् दैवीगुण धारण करना। सिवाए
दैवीगुण धारण किये सतयुग में जा नहीं सकते। तो अपने से पूछना है कि कहाँ तक हमने
दैवीगुण धारण किये हैं? दैवीगुण धारण करना माना रावण पर जीत पाना। कहते हैं
रामराज्य था तो एक राम ने तो राज्य नहीं किया होगा? प्रजा भी तो होगी। यहाँ राजा,
रानी तथा प्रजा सब रावण पर जीत पा रहे हैं। दैवी-गुण धारण कर रहे हैं। दैवीगुणों
में खान-पान, बोलना करना सब शुद्ध पवित्र होता है। हर बात में सच बताना है। बाप है
ही सत्य। तो ऐसे बाप के साथ कितना सच्चा बनना चाहिए। अगर सच्चे नहीं बनेंगे तो कितनी
बुरी गति होगी। गति तो ऊंच पानी चाहिए। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनना है। कहा
भी जाता है – तुम्हरी गति मत तुम ही जानो। बाप जो मत देते, उससे कितनी ऊंच गति होती
है। ऊंचे ते ऊंचा बाप ऊंचे से ऊंची गति प्राप्त कराते हैं। तो अब श्रीमत पर चलकर
दैवीगुण धारण करने हैं। जन्म-जन्मान्तर के पाप योगबल बिना कट नहीं सकते इसके लिए
याद की यात्रा बड़ी अच्छी चाहिए। याद अच्छी रहेगी – अमृतवेले। उस समय वायुमण्डल
अच्छा होता है। दिन में भल कितना समय भी बैठो, परन्तु अमृतवेले जैसा समय नहीं है।
अपनी बातें गुप्त हैं। अंग्रेजी में कहते हैं “वी आर एट वार” हमारी युद्ध है रावण
के साथ। यह है नम्बरवन दुश्मन। राम सम्प्रदाय ने रावण सम्प्रदाय पर जीत पाई है
श्रीमत से। बाप सर्वशक्तिमान् है ना। दुनिया तो बिचारी इस समय घोर अन्धियारे में
है। उनको मालूम ही नहीं कि हमने हार खाई है। माया से हारे हार है, माया किसको कहा
जाता है – यह भी कोई नहीं जानता है। सारी लंका पर रावण का राज्य था। शास्त्रों में
भक्ति मार्ग की कितनी दन्त कथायें लिख दी हैं, जो जन्म-जन्मान्तर पढ़ी हैं। अब भी
कहते हैं शास्त्र तो जरूर पढ़ने चाहिए। जो नहीं पढ़ते उनको नास्तिक कहा जाता है और
बाप कहते हैं – शास्त्र पढ़ते-पढ़ते सब नास्तिक बन पड़े हैं। यह बातें बच्चों को
अच्छी तरह समझानी चाहिए कि भारत जब सतोप्रधान था तो उसको स्वर्ग कहा जाता था। वही
भारतवासी 84 जन्म लेते-लेते अब पतित तमोप्रधान बने हैं। अब फिर पावन कैसे बनें। बाप
कहते हैं – मुझे याद करो तो सतोप्रधान पावन बन जायेंगे, और कोई भी देहधारी को याद
नहीं करो। किसको गुरू नहीं बनाओ। कहा जाता है गुरू बिना घोर अन्धियारा। ढेर के ढेर
गुरू हैं। परन्तु सब अन्धियारे में ले जाने वाले हैं। बाप कहते हैं – ज्ञान सूर्य
जब आये तब घोर अन्धियारा दूर हो। संन्यासी भल पावन बनते हैं परन्तु जन्म तो विकार
से लेते हैं ना। देवी-देवता तो विकार से पैदा नहीं होते। यहाँ सबके शरीर मूत पलीती
हैं। बाप ऐसे मूत पलीती कपड़े साफ करते हैं। आत्मा पवित्र बने फिर शरीर भी अच्छा
मिले। उसके लिए पुरुषार्थ करना है। अपनी जांच रखनी है – मेरे से कोई बुरा काम तो नहीं
होता है। ईश्वरीय कायदे भी कड़े हैं। कोई बुरा काम करे तो उनकी सजा बहुत कड़ी है।
कयामत का समय है। सब हिसाब-किताब चुक्तू करना है – योगबल से। अगर चुक्तू नहीं किया
तो मोचरा खाना पड़ेगा। फिर कहा भी जाता है – मोचरा और मानी। मानी तो (रोटी तो) सबको
मिलनी है। मुक्ति और जीवनमुक्ति की मानी सबको देंगे। कोई पास विद् ऑनर, कोई को मोचरा
मिलेगा फिर थोड़ी मानी मिलेगी, बेइज्जती से। तख्त पर तो वह बैठ न सकें। कोई भी बुरा
काम किया तो बेइज्जती होगी, सो भी बाप के आगे। शिवबाबा बैठे हैं ना। तुमको
साक्षात्कार करायेंगे कि हम इसमें था, तुमको कितना समझाते थे। अभी मैं सम्पूर्ण (ब्रह्मा)
में हूँ। तुम बच्चियाँ सम्पूर्ण बाबा के पास जाती हो। उस द्वारा शिवबाबा डायरेक्शन
आदि देते हैं ना। तुमको बाबा साक्षात्कार करायेगा कि इसमें बैठकर तुमको कितना पढ़ाते
थे, समझाते थे कि दैवीगुण धारण करो, सर्विस करो। किसी की निंदा नहीं करो। तुमने फिर
भी यह काम किये, अब खाओ सजा। जितने-जितने पाप किये होंगे तो सजा खानी पड़ेगी। कोई
बहुत सजायें खाते हैं, कोई कम। उनमें भी नम्बरवार हैं, जितना हो सके योगबल से
विकर्मो को काटते रहना है। यह बड़े ते बड़ा फुरना बच्चों को रखना है कि हम सम्पूर्ण
पक्का सोना कैसे बनें? उठते बैठते यही बुद्धि में रहे, जितना याद करेंगे उतना ऊंच
पद पायेगे। माया के तूफानों की परवाह नहीं करनी है, जितना समय मिले बाप को याद करना
है। मुझे तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। बाप को याद करेंगे तो पाप कट जायेंगे।
कोई पाप भी नहीं करना चाहिए। नहीं तो सौगुणा बन जायेगा। माफी नहीं ली तो फिर वृद्धि
को पाते-पाते सत्यानाश हो जाती है। पाप पिछाड़ी पाप माया कराती रहेगी। बेहद के बाप
से बे-अदबी हो जाती है। यह भी बहुतों को पता नहीं पड़ता है। बाबा हमेशा समझाते हैं
ऐसे समझो कि शिवबाबा मुरली चलाते हैं। शिवबाबा डायरेक्शन देते हैं तो याद भी रहे,
डर भी रहे। बहुत पाप करते रहते हैं। साफ बोलना चाहिए कि बाबा हमसे यह भूल हुई। बाप
समझाते हैं पापों का बोझा सिर पर बहुत है। जो कुछ किया है वह बताओ। सच बताने से आधा
कम हो जायेगा।
बाबा ने समझाया है जो नम्बरवन पुण्य आत्मा बनते हैं, वही फिर पाप आत्मा भी
नम्बरवन बनते हैं। बाबा खुद कहते हैं – तुम्हारा बहुत जन्मों के भी अन्त का जन्म
है। तुम पुण्य आत्मा थे, सो अब पाप आत्मा बने हो फिर पुण्य आत्मा बनना है। अपना
कल्याण तो करना है। यहाँ तुम्हें माथा आदि टेकने की भी दरकार नहीं है, सिर्फ बाप को
याद करना है। भल यह भी बुजुर्ग है, नमस्ते करते हैं। बच्चे घर में घड़ी-घड़ी थोड़ेही
नमस्ते करते हैं। एक बार नमस्ते किया फिर रेसपान्ड में भी किया जाता है। बाप कहते
हैं – तुम मुझे बड़ा समझकर नमस्ते करते हो, मैं फिर तुमको विश्व का मालिक समझ नमस्ते
करता हूँ। अर्थ है ना। मनुष्य तो राम-राम कह देते हैं परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते।
वास्तव में राम अर्थात् शिवबाबा। राम वह रघुपति नहीं, यह राम निराकार है। उनका नाम
है शिवबाबा। शिव के आगे कोई ऐसा नहीं कहेगा कि मैं राम की पूजा करता हूँ। अब बाप
कहते हैं तुम मन्दिरों में जाकर समझाओ कि यह भी मनुष्य थे। तुम इन्हों के आगे जाकर
महिमा गाते हो – आप निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, हम पापी नींच हैं। यह तन भी
मनुष्य का है और वह तन भी मनुष्य का है लेकिन उसमें दैवीगुण हैं इसलिए देवता है।
तुम खुद कहते हो – हमारे में आसुरी गुण हैं इसलिए बन्दर हैं। सूरत दोनों की एक है।
सीरत में फ़र्क है। भारतवासी ही सिरताज थे। अभी नो ताज, गरीब भी भारतवासी ही हैं।
बाप भी भारत में ही आते हैं, जहाँ स्वर्ग बनाना है वहाँ बाप आयेगा ना। कहा जाता है
कलंगी अवतार, कितने कलंक लगाये हैं। अगर और धर्म वाले भी कुछ कहते हैं, वह भी
भारतवासियों को फालो करते हैं। पत्थरबुद्धि होने के कारण मुझे भी पत्थर-भित्तर में
कह देते हैं। बाप को जानते ही नहीं कि बाप इसमें प्रवेश कर भारत को कितना सिरताज
बनाते हैं। भारत की कितनी सेवा करते हैं। बाप कहते हैं मेरी तुम ग्लानि करते हो।
मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। तुम कितना अपकार करते हो। रावण ने तुम्हारी
मत कितनी मार डाली है। बुरी गति हो गई है, तब बुलाते हैं पतित-पावन आओ। समझानी कितनी
सहज मिलती है। फिर भी कई बच्चे भूल जाते हैं। योग नहीं तो धारणा भी नहीं होती है
इसलिए बाबा कहते हैं बांधेलियाँ सबसे जास्ती याद करती हैं। शिवबाबा की याद में सहन
भी करती हैं। भारतवासियों में जो देवी-देवता बनने वाले हैं वही यहाँ आयेंगे। आर्य
समाजी तो देवताओं की मूर्तियों को मानते ही नहीं। झाड़ के पिछाड़ी में टाली है, 2-3
जन्म भी मुश्किल होंगे।
बहुत लोग समझते हैं – विकार बिना दुनिया कैसे चलेगी। अरे देवताओं को सम्पूर्ण
निर्विकारी कहा जाता है ना। यह भी किसको पता नहीं कि वहाँ विकार होता ही नहीं है।
कल्प पहले वाले झट समझ जाते हैं। गायन भी है; भगवानुवाच – काम महाशत्रु है। परन्तु
भगवान ने कब कहा था – यह किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चे जगतजीत बन रहे हो। परन्तु
ऊंच पद पाने के लिए मेहनत करनी है। बाप कहते हैं – गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ
बुद्धियोग मेरे से लगाओ। जबकि बाप के बन गये हो तो बाप से लव होना चाहिए। बाकी औरों
के साथ काम निकालने के लिए प्यार रखना है। बुद्धि में यह ख्याल रखना है कि बिचारों
को स्वर्गवासी कैसे बनायें। सच्ची यात्रा पर चलने की युक्ति बतायें। वह है जिस्मानी
यात्रा, जो जन्म-जन्मान्तर करते आये हैं। यह एक ही याद की यात्रा है। अभी हमारे 84
जन्म पूरे हुए फिर सतयुग की हिस्ट्री रिपीट होनी है। पतित तो घर जा नहीं सकते। पावन
बनाने के लिए पतित-पावन बाप चाहिए। भल संन्यासी पावन बनते हैं परन्तु वापिस जा नहीं
सकते। सबको ले जाने वाला बाप ही है। बाप आकर सबको रावण से छुड़ाए मुक्त कर देते
हैं। सतयुग में दु:ख देने वाली कोई चीज़ होती नहीं। नाम ही है सुखधाम। यह है
दु:खधाम। वह क्षीरसागर, यह है विषय सागर।
अभी तुम जानते हो स्वर्ग में कितने सुख आराम से रहते हैं। क्षीर सागर से निकल
विषय सागर में कैसे आते हैं, यह कोई नहीं जानते। बाप समझाते हैं श्रीमत पर चलना है
फिर जवाबदार वह है। श्रीमत कहती है – हाँ भल जाओ, बच्चों को सम्भालो। उनको भूँ-भूँ
करते रहो, तो कुछ न कुछ कल्याण हो जायेगा। स्वर्ग में तो आ जायेंगे। बाप आकर
नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं 21 जन्म के लिए। यह भी तुम्हारी बुद्धि में है।
मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। यह भी पहले कुछ नहीं जानते थे। जैसे इनके 84 जन्मों
की कहानी है – “तत्त्वम्” यह भी राजयोग सीख रहे हैं। तुम हो राजऋषि। वह हैं हठयोग
ऋषि। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहकर राजाई प्राप्त कर रहे हो। तुम सब शरणागति होने आये
हो ना। अब समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं। दुनिया में है माया का पाम्प। जब
तक नर्क का विनाश न हो तब तक स्वर्ग कैसे हो सकता है। मायावी पुरुष इसको ही स्वर्ग
समझ बैठे हैं। बाबा को नई दुनिया स्थापन करने में कितनी मेहनत लगती है। पूरे
नर्कवासी हैं। स्वर्गवासी बनते ही नहीं हैं। बाप कितना प्यार से समझाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे बच्चों रावण पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे। उसके लिए पूरा
पुरुषार्थ करना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऐसा कोई काम नहीं करना है जो बेइज्जती हो। सजायें खानी पड़ें। माया
के तूफानों की परवाह न कर जितना समय मिले बाप को याद करना है। एक बाप से सच्चा-सच्चा
लव रखना है।
2) अपनी ऊंच गति बनाने के लिए सच्चे बाप से सच्चा रहना है। कोई भी बात छिपानी नहीं
है।