ओम् शान्ति।
बच्चों की दिल में सदैव रहता है कि बाबा आकर हमको पढ़ाते हैं। यहाँ तो सम्मुख बैठे
हो। बुद्धि में आता है - हमारा बाबा आया हुआ है। कल्प पहले मुआफिक फिर से हमको
राजयोग सिखलाकर पवित्र बनाए साथ ले जायेंगे। यह भी तुम बच्चे जानते हो। हम जितना
पुरुषार्थ करेंगे उतना जाकर ऊंच पद पायेंगे। यह बुद्धि में रहता है। बच्चे जानते
हैं अभी भक्ति मार्ग खत्म होना है। भक्ति और ज्ञान दोनों इकट्ठे नहीं चलते हैं। जो
भी मनुष्य पूजा आदि करते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं, वह कोई ज्ञान नहीं है। वह भक्ति
है। बाप भी कहते हैं मीठे बच्चे वेद-शास्त्र आदि अध्ययन करना, जप-तप आदि करना, यह
जो कुछ भक्ति आधाकल्प से करते आये हो उसको ज्ञान नहीं कहेंगे। ज्ञान का सागर एक ही
बाप है। वह तुमको बिल्कुल सही रास्ता बताते हैं कि बच्चे अब मुझे याद करो तो विकर्म
विनाश हो जायेंगे। कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है। बुद्धियोग ऊपर में लटका हुआ
होना चाहिए। ऐसे नहीं कि बाबा यहाँ है तो बुद्धि भी यहाँ रहे। भल बाबा यहाँ है तो
भी तुमको बुद्धियोग वहाँ शान्तिधाम में लगाना है। ज्ञान है ही एक सेकण्ड का। भक्ति
तो आधाकल्प चली है और आधाकल्प तुमको वर्सा मिलना है। भक्ति और ज्ञान दोनों इकट्ठे
हो न सकें। दिन और रात अलग-अलग हैं। यह है बेहद का दिन और रात। ब्रह्मा का दिन सो
बी.के. का दिन। बच्चे जानते हैं हम देवता बन रहे हैं। सतयुग को कहा जाता है
जीवनमुक्तिधाम। यह है जीवनबंध धाम। इस समय सब रावण के बंधन में हैं, शोकवाटिका में
हैं। तुमको अब पता पड़ा है - शोक वाटिका किसको और अशोक वाटिका किसको कहा जाता है।
भक्ति है उतरती कला का मार्ग।
बाप कहते हैं - अब वापिस मुक्तिधाम चलना है। ऐसे कोई कह नहीं सकते कि मेरे बच्चे
अब सबको मुक्तिधाम चलना है अर्थात् जीवनबंध से लिबरेट होना है। फिर पहले कौन सा
धर्म जीवनमुक्ति में आना है? यह भी तुम बच्चे जानते हो, खेल सारा भारत पर ही है।
बाकी बीच में बाईप्लाट हैं। अपना उनसे कोई कनेक्शन नहीं है। ज्ञान और भक्ति की बातें
मनुष्य नहीं समझ सकते। उनका पार्ट ही नहीं है। पार्ट है ही तुम भारतवासियों का।
सतयुग आदि में देवी-देवता ही थे, अब कलियुग में अनेक धर्म हैं। तुम्हारा यह है लीप
जन्म, कल्याणकारी जन्म। यह संगम का सुहावना युग है ना। तुम जानते हो लौकिक बाप के
भी हम हैं फिर जीते जी पारलौकिक बाप के बने हैं। लौकिक बाप भी है और पारलौकिक बाप
भी हाज़िराहज़ूर है। तुम्हारी आत्मा कहती है बाबा आप परमधाम से आये हो हमको वापिस
ले जाने। बाप बच्चों से ही बात कर सकते हैं। जैसे आत्मा को इन ऑखों से देख नहीं सकते
हैं, वैसे परमात्मा को भी देख नहीं सकते। हाँ दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार हो सकता
है। दिखाते हैं कि विवेकानन्द को साक्षात्कार हुआ कि रामकृष्ण की आत्मा निकल मेरे
में समा गई। परन्तु आत्मा समा तो नहीं सकती। बाकी आत्मा का साक्षात्कार होता है।
परमात्मा का भी यथार्थ रूप बिन्दी है। परन्तु गाया हुआ है वह हजारों सूर्यों से भी
तेजोमय है। तो परमात्मा अगर वह साक्षात्कार न कराये तो कोई का विश्वास न बैठे।
बिन्दी रूप के साक्षात्कार से कोई समझ न सके क्योंकि उनको कोई जानते ही नहीं। यह नई
बात बाबा ही बतलाते हैं। परम आत्मा बड़ी चीज़ तो हो न सके। वह अति सूक्ष्म से
सूक्ष्म है। उनसे सूक्ष्म कुछ भी है नहीं। यह भी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि
आत्मा और परमात्मा जो बिन्दी रूप है, उनमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है। आत्मा में 84
जन्मों का अपना-अपना पार्ट नूँधा हुआ है। कितनी विचित्र बात है। बाप बिगर कोई समझा
न सके। यह बातें तुम विलायत वालों को समझाओ तो वन्डर खायें और तुम्हारे ऊपर कुर्बान
जायें। प्राचीन भारत का ज्ञान और योग तुम ही समझा सकते हो। पहले-पहले यह समझाना है
कि आत्मा परमात्मा क्या वस्तु है। आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है। परमात्मा के लिए
नहीं कहेंगे कि वह स्टार है। आत्मा कोई छोटी बड़ी नहीं होती है। वह है ही एक बिन्दी,
जो एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है। तुम बच्चे समझते हो ड्रामा में जो कुछ
चलता है, वह नूँध है। चक्र फिरता रहता है। यह सब बुद्धि में प्रैक्टिकल आना चाहिए।
दुनिया तो इन सब बातों को जानती नहीं है। सबसे तीखी दौड़ी आत्मा की है, एक सेकण्ड
में कहाँ की कहाँ चली जाती है। सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। तो सेकण्ड में आत्मा
भी वहाँ पहुँचती है। आत्मा कहती है मेरे से तीखा और कुछ है नहीं। मेरे से छोटा और
कोई है नहीं। छोटी सी आत्मा में सारी नॉलेज है। उनको कहा जाता है गॉड इज नॉलेजफुल।
आगे कहते थे भगवान सब कुछ जानते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि एक-एक के दिल को बैठ
जानते हैं। यह तो ड्रामा में सब कुछ नूँध है।
बाप समझाते हैं मैं इस झाड़ का बीज रूप हूँ। झाड़ का बीज अगर चैतन्य हो तो समझाये
कि मैं ऐसे धरनी में रहता हूँ। गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते
हैं। बीज तो एक है ना। तुम आत्मा यहाँ शरीर धारण कर पार्ट बजाती हो। बाप कैसे आकर
प्रवेश करते हैं - यह तुम बच्चों को अब मालूम पड़ा है। बाप आकर नॉलेज देते हैं,
सदैव बैठा नहीं रहता। बाप ने समझाया है जब झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है, तब
ही मैं आता हूँ। अभी सहायता के लिए बहुत यज्ञ रचेंगे। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ।
कृष्ण ज्ञान यज्ञ हो न सके। श्रीकृष्ण तो देवता थे वह द्वापर में आ न सके। देवता
फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। श्रीकृष्ण देवता द्वापर में कैसे आ सकता?
रावणराज्य में देवतायें पैर नहीं रखते। तुम बच्चे जानते हो आत्मा अविनाशी है। आत्मा
में ही संस्कार रहते हैं। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे
संस्कार रहते हैं। अब तुम समझते हो जो भी मनुष्य मात्र हैं वह ड्रामा प्लैन अनुसार
चल रहे हैं। आगे यह नहीं समझते थे कि सृष्टि किस आधार पर चलती है। ईश्वर के आधार पर
तो है नहीं। यह तो बना बनाया खेल है जो फिरता रहता है। ऐसे नहीं ईश्वर के आधार पर
खड़ा है। जैसे तुम्हारा पार्ट है वैसे परमात्मा का भी पार्ट है। साक्षात्कार भी मैं
कराता हूँ। भक्ति मार्ग में हर एक की मनोकामना अल्पकाल के लिए पूरी होती है।
दान-पुण्य आदि जो कुछ करते हैं उसका अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। थोड़ा सा सुख मिला
फिर ऐसा कर्म करते हैं जो उनको भोगना पड़ता है। कहते हैं भावी के भूगरे (चने) भी
अच्छे। भक्तिमार्ग में मेहनत करते हैं, मिलता क्या है? चने। शिव-बाबा पर भल शरीर भी
होम देते हैं तो भी मिलते भूगरे हैं, वर्सा तो मिल न सके। काशी कलवट खाने समय
विकर्म भल नाश होंगे फिर शुरू हो जायेंगे। तो भावना के भूगरे हुए ना। ज्ञान मार्ग
में तुमको देखो कितना मिलता है। एकदम तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। यह कोई की
बुद्धि में अगर नॉलेज आ जाये तो अहो भाग्य। ज्ञान से सद्गति होती है। इसको नॉलेज कहा
जाता है। यह बाप के सिवाए कोई दे न सके। शास्त्र कितने ढेर पढ़ते हैं। बहुत होशियार
हो जाते हैं फिर वह संस्कार ले जाते हैं। अच्छा उनको मिलता क्या है? भूगरे, और तो
कुछ नहीं। नीचे गिरते ही आते हैं। समझो कोई का राजा के घर में जन्म होता है, खुशी
मनाते हैं भल वह राजकुमार है, परन्तु तुम कहेंगे उनको चने मिले। कहाँ हमको बाप
विश्व का मालिक बनाए बादशाही देते हैं, कहाँ वह भूगरे (चने)। कोई बहुत दान करते
हैं। भल जाकर राजा के पास जन्म लिया तो भी तुम्हारी भेंट में भूगरे हैं। तो अब
राजाई पद का पुरुषार्थ करना चाहिए, लौकिक बाप भी बच्चों को देख बहुत खुश होते हैं।
यह है बेहद का माँ बाप, जिससे 21 जन्मों का सुख मिलता है। आजकल देखो दुनिया में
दु:ख बढ़ता जा रहा है। अभी दु:खधाम की अन्त है। पारलौकिक बाप से बच्चों को क्या
मिलता है? लौकिक से क्या मिलता है? फ़र्क कितना है। यहाँ कर्मों अनुसार कोई गरीब
बनता है - कोई कैसे बनते हैं। वहाँ गरीब भी सुखी रहते हैं। नाम ही है सुखधाम। यह है
दु:खधाम। संन्यासी लोग कहते हैं हमने घरबार छोड़ा है, पवित्र बने हैं, भारत को
पवित्र रखने के लिए। गवर्मेन्ट भी उनका मान रखती है। परन्तु दु:खधाम को सुखधाम बनाना
- यह बाप का काम है। सर्व को शान्तिधाम, सुखधाम ले जाना है क्योंकि यह तो सारी
दुनिया का प्रश्न है। भारत जब श्रेष्ठाचारी था तब देवतायें थे। बाबा ऐस्से (निबन्ध)
देते हैं, युक्ति से लिखना चाहिए। देवतायें 84 जन्मों का चक्र लगा-कर आये हैं फिर
मनुष्य से देवता बनते हैं। मनुष्य से देवता बाप ही बनायेंगे और कोई की ताकत नहीं।
संन्यासियों से भारत को कुछ फ़ायदा है। पवित्र रहते हैं, आगे तो रचता रचना के लिए
कहते थे बेअन्त है, हम नहीं जानते हैं। अभी तो कह देते हैं हम भगवान हैं। तत्व को
याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाप के महावाक्य हैं मामेकम् याद करो तो
तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। पतित-पावन मैं हूँ। सारी दुनिया को आकर पावन बनाता
हूँ। सारे भंभोर को आग लगनी है। सारी दुनिया अज्ञान निंद्रा में सोई हुई है। ड्रामा
प्लैन अनुसार सारी दुनिया नास्तिक है। बाप कहते हैं मैं आकर सबको आस्तिक बनाता हूँ।
अभी जो बिल्कुल तमोप्रधान बने हैं वो अपने को भगवान कह देते हैं। तुम तो इस सृष्टि
चक्र के राज़ को जानने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। महावीर बनते हो। तुमको तो
प्रालब्ध में माल मिलते हैं। उनको क्या मिलता है? चने। तुम माया पर जीत पाते हो।
स्वदर्शन चक्र तुम ब्राह्मणों को है। विष्णु के मन्दिर को नर नारायण का मन्दिर कहते
हैं। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण को तो दो, दो भुजायें चाहिए। परन्तु उनको भी 4
भुजायें दे देते हैं। लक्ष्मी-नारायण तो अलग ठहरे ना। अगर वह 4 भुजाओं वाले हैं तो
उनकी सन्तान भी 4 भुजा वाली आती। ऐसे तो है नहीं। देखो, बाप कितना अच्छी रीति समझाते
हैं। अब तुम समझदार, मास्टर नॉलेजफुल बन गये हो। पतितों को पावन बनाना है। घर वालों
को उठाना है। घर को भी मन्दिर बनाना है। बच्चे कहते हैं बाबा फलाने की बुद्धि का
ताला खोलो। अब मैं सिर्फ यह काम करने के लिए बैठा हूँ क्या? तुम तो ब्राह्मणियाँ
हो, भूँ-भूँ तुमको करनी है। ब्राह्मणों को सर्विस करनी है। पद भी तुमको पाना है।
मैं निष्काम सेवाधारी हूँ और कोई निष्काम हो नहीं सकता। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक
बनाता हूँ। मैं नहीं बनता हूँ। मकान भी तुम बच्चों के लिए बनाये हैं। मैं तो पुरानी
कुटिया में बैठा हूँ। मेरे लिए पुराना मकान, पुराना शरीर है। शिवबाबा पुराने तन में
रहता है तो यह फिर कहाँ जायेगा? निष्काम सेवा एक बाप ही कर सकता है। तुम जानते हो
बाबा से हम विश्व के मालिकपने का वर्सा लेते हैं तो खुशी से झोली भरनी चाहिए। देखो,
ज्ञान कितना ऊंचा है। भक्ति में तो क्या-क्या दान-पुण्य, जप-तप आदि करना पड़ता है।
सद्गति दाता तो एक बाप है। बाप ने आकर ज्ञान घृत डाला है। सतयुग में सबकी ज्योति जगी
रहती है। परन्तु वहाँ पर ज्ञान नहीं रहता है कि हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हैं।
वह है प्रालब्ध, नयेसिर चक्र शुरू होता है। यह अनादि है। सूर्य निकलता है फिर जाता
है, यह धरती का फेरा है। ऐसे नहीं ईश्वर फेरता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) घर-घर को मन्दिर बनाना है। परिवार वालों की भी सेवा करनी है। ऊंचे
ज्ञान का सिमरण कर खुशी से झोली भरनी है।
2) किसी भी देहधारी को याद नहीं करना है। अपना बुद्धियोग ऊपर लटकाना है। सुहावने
संगमयुग पर जीते जी पारलौकिक बाप का बनना है।