18-01-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

यह महावाक्य शुक्रवार 18 जनवरी, पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रातः क्लास में सुनाने हैं:

 

"मीठे बच्चे - अब वाणी से परे जाना है इसलिए अशरीरी बनने का अभ्यास करो"

 

गीत - धीरज धर मनुवा...

 

ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों ने गीत सुना। सुख के दिन आयेंगे, दुःख के बादल मिट जायेंगे। सो बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं "बच्चे अशरीरी बनते जाओ", बाप को याद करते रहो। शरीर को भूलने में भी टाइम लगता है। मासी का घर नहीं है। शरीर को भूलते जाओ, अपने को आत्मा समझते जाओ। हम बाप के बच्चे अशरीरी हैं। यही बाप का डायरेक्शन है "बच्चे अशरीरी बनते जाओ," तुम्हारे सब दुख दूर हो जायेंगे। सतोप्रधान हो जायेंगे। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। यह मेहनत की बात है। जो समझाते हैं वह भी अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करते होंगे ना। इनको भी वाणी से परे घर जाना है तो जरूर यह भी अभ्यास करता होगा। फिर कोई आकर कहेंगे बाबा गुडमार्निंग। तो इनको नीचे उतरकर गुडमार्निंग करना पड़ेगा। आवाज में आना पड़ेगा। यह तो पुरुषार्थ करते रहते हैं वाणी से परे होने का क्योंकि इससे ही पाप कट जायेंगे। पाप कटते-कटते आत्मा पावन बन जायेगी। इनको भी अभ्यास करना है ना। बाप श्रीमत देते हैं बच्चों को तो यह भी उसमें आ जाता है। इनको भी सतोप्रधान बनने के लिए पुरुषार्थ करना पड़े ना। जब सतोप्रधान बनेंगे तो अशरीरी बन जायेंगे। यह समझते हैं जैसे मैं अशरीरी हो बाप को याद करूँगा, मुझे देख बच्चे भी ऐसे करने लग पड़ेंगे। बाप समझाते रहते हैं बच्चे तुम्हारा कल्याण इस एक बात में ही होना है। सुबह को सवेरे 3-4 बजे उठो। स्नान आदि कर यही ख्याल रखना चाहिए कि हम अशरीरी हो बैठें। और हम आत्मा अपने बाप को याद करते रहें। हम आत्मा अशरीरी हैं। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। कर्मातीत अवस्था होगी। फिर दुःख के बादल हटते जायेंगे। बाप जो कहते हैं वह करना चाहिए। आत्मा शिवबाबा का बच्चा हूँ। वास्तव में मैं अशरीरी हूँ फिर यहाँ पार्ट बजाने के लिए यह शरीर लिया है। चक्र पूरा किया, अब हमको वापिस जाना है। अपने को अशरीरी समझते आवाज से परे जाना है। बाबा बहुत अच्छा समझाते है - यह सिर्फ कहना नहीं है, करना भी है। तूफान तो बहुत आयेंगे। मन को बाहर के तूफानों से हटाकर अपने को आत्मा समझो। आत्मा समझने से बुद्धि कहाँ भटकेगी नहीं। याद में ही मेहनत है। मेहनत करनी तो है ना। सिर्फ कहने की बात नहीं है। अगर कोई से दिल लगाई, क्रिमिनल आई हुई तो अशरीरी बन नहीं सकेंगे। देह-अभिमान में आने से ही आँखे धोखा देती हैं, फिर उसी देहधारी की याद आती रहेगी। मंजिल बड़ी ऊंची है। यह बाबा समझाते भी हैं और खुद अभ्यास भी करते हैं। शिवबाबा को तो अभ्यास नहीं करना है। इस दादा को करना है। पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझना है। बाबा ने कहा है - तुम अशरीरी हो, शरीर के भान को तोड़ना है। बाबा खुद अभ्यास करते हैं तो बच्चों को भी सिखलाते हैं, ऐसे करो, ऐसे बैठो। थक जाओ तो फिर लेट जाओ। अशरीरी समझ बाप को याद करते रहो। पुरुषार्थ करो। तुम ऐसे पुरुषार्थ करते नहीं हो। सिर्फ कथनी है, करनी नहीं है। बाप समझाते हैं - बच्चे तुम कथनी में तो बहुत आते हो लेकिन तुम्हारी कथनी और करनी एक जैसी होनी चाहिए। अभ्यास पड़ जाने से फिर घड़ी-घड़ी तुम अशरीरी हो जायेंगे। यह टेव (आदत) पड़ने में टाइम लगता है। घड़ी-घड़ी समझो मैं तो आत्मा हूँ। आज बाबा खास इस पर ज़ोर दे रहे हैं। कर्मातीत अवस्था तो पिछाड़ी में ही होगी। जिसका बहुत पुरुषार्थ होगा वही कर्मातीत अवस्था को पा सकेंगे। बहुत मेहनत करने से पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था होनी है। इसमें कोई आसन लगाने, हठयोग आदि करने की बात नहीं है। हम आत्मा अशरीरी हैं, पीछे इस शरीर में प्रवेश किया है। अब वापिस जाना है। घर को ही याद करना पड़े। बाबा समझाते तो हैं परन्तु यहाँ से बाहर निकलते ही फिर भूल जाते हैं। देह-अभिमान में आने से कर्मेन्द्रियाँ बहुत धोखा देती रहेंगी। सेकण्ड में कुछ न कुछ विकर्म कर लेते हैं। इसलिए बाबा कहते हैं बहुत ऊंच मंजिल है। अपने को बाहर के ख्यालातों से हटाकर बाप को याद करना है। फिर गुडमार्निंग करने का भी आवाज नहीं निकलेगा। लाचारी आवाज में आये फिर चढ़ जायेंगे। रेसपान्ड करने नीचे आना पड़ता है। ऐसे अगर बच्चे अभ्यास करेंगे तो कुछ कल्याण होता जायेगा। कर्मेन्द्रियाँ वश होती जायेंगी, इसको ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। बाकी शरीर निर्वाह के लिए कर्म तो करना पड़ता है। अगर बच्चों को पैसा बहुत है, कमाई करने की दरकार नहीं तो और ही सौभाग्य, पदम भाग्य कहेंगे। एक जन्म लिए धन काफी है, अब तो हम कर्मातीत अवस्था में बैठ जायें। उस अवस्था में बैठे-बैठे शरीर छूट जाये। अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाप को याद करते घर चले जायेंगे। अब तो घर जाना है ना। ऐसे-ऐसे अभ्यास करते रहेंगे तो फायदा बहुत होगा और दुःख दूर हो जायेंगे। बाप आये ही हैं धीरज देने। तुमको अशरीरी बनना सिखलाने।

 

बाप रोज़ बच्चों को समझाते रहते हैं, आज थोड़ा जोर से समझाते हैं। पुरुषार्थ बहुत करना है। ऊंच मंजिल समझ डरना नहीं है। कर्मातीत अवस्था में आना जरूर है। नहीं तो पद बहुत कम हो जायेगा। बहुत बच्चे हैं जो जरा भी याद नहीं करते। यथार्थ रीति अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। शरीर का भान मिटता जाये, इसमें ही मेहनत है। इतना सहज थोड़ेही डबल सिरताज बनेंगे। नर से नारायण बनने लिए कर्मातीत अवस्था चाहिए, और कुछ भी याद न पड़े। सर्प का, भ्रमरी का, कछुए का दृष्टान्त अभी का है। तुमको शरीर निर्वाह अर्थ कर्म कर फिर याद की यात्रा में अन्तर्मुख हो बैठना है। यह पुरानी खाल तो छोड़नी है, अब अशरीरी बनना है, हम आत्मा अशरीरी थी। फिर हमने 84 जन्म लिए हैं। चक्र की भी याद आ जाती है। बाप को भी याद करते हैं। यह है ज्ञान और योग। याद का चार्ट बढ़ाना चाहिए। डायरी रखनी है, कितना समय हम याद में बैठें?

 

बाप मीठे बच्चों को श्रीमत देते हैं, श्रेष्ठ बनने के लिए। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। सतोप्रधान पवित्र आत्मा को, तमोप्रधान पतित आत्मा को कहा जाता है। यहाँ मनुष्यों को धन आदि बहुत है तो अपने को स्वर्ग में समझते हैं परन्तु है नर्कवासी। यहाँ कोई अपने को स्वर्गवासी हैं कह न सके। कलियुग में स्वर्ग फिर कहाँ से आया। तुम जानते हो हम अभी स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं। परन्तु सिर्फ कहने से तो नहीं मिल जायेगी। मेहनत करनी पड़े। यहाँ एकान्त का बहुत अच्छा स्थान है। ऐसा अभ्यास बाहर में तो कर नहीं सकेंगे। यहाँ तुम टाइम वेस्ट मत करो। टाइम सफल करना सीखो। मुख्य बात अपने को आत्मा समझ अशरीरी हो बैठो। मैं देह नहीं आत्मा हूँ। पहले आत्मा का पक्का निश्चय करो। नहीं तो आंखे धोखा देती रहेंगी, ऊंच मर्तबा पा नहीं सकेंगे। कहाँ भी बैठे यह अभ्यास कर सकते हो। ऐसे भी नहीं यहाँ रहने से अभ्यास होगा। बाबा आज जोर से समझाते हैं - "बच्चे अपने ऊपर रहम करो।" तुम प्युअर थे तो पीस भी थी, प्रॉसप्रटी भी थी। तुम ऐसे (लक्ष्मी-नारायण) थे। फिर बनना है जरूर।

 

तो बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे गफ़लत मत करो। बाबा वारनिंग देते हैं बच्चे याद की यात्रा में रहना है, रात को अभ्यास बढ़ाओ। अपना कल्याण करना है तो श्रीमत पर चलते चलो, कोई भी पाप कर्म मत करो। किसी को भी दुःख नहीं दो। तुम्हें सबको सुख देना है। बाप और घर का रास्ता बताना है। अच्छा -

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

राजऋषि आत्माओं प्रति अव्यक्त बापदादा बोले:

 

आवाज़ में आने के लिए वा आवाज़ को सुनने के लिए कितने साधन अपनाते हो? बापदादा को भी आवाज़ में आने के लिए शरीर के साधन को अपनाना पड़ता है। लेकिन आवाज़ से परे जाने के लिए इन साधनों की दुनिया से पार जाना पड़े। साधन इस साकार दुनिया में हैं। सेवा के अर्थ आवाज़ में आने के लिए कितने साधनों को अपनाते हो? लेकिन आवाज़ से परे स्थिति में होने के अभ्यासी सेकण्ड में इन सबसे पार हो जाते हैं। ऐसे अभ्यासी बने हो? अभी-अभी आवाज़ में आये, अभी-अभी आवाज़ से परे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर अपने में अनुभव करते हो? संकल्प शक्ति को भी, जब चाहो तब संकल्प में आओ, विस्तार में आओ, जब चाहो तब विस्तार को फुलस्टाप में समा दो। स्टार्ट करने की और स्टॉप करने की दोनों ही शक्तियां समान रूप में हैं?

 

हे कर्मेन्द्रियों के राज्य अधिकारी अपनी राज्य सत्ता अनुभव करते हो? राज्य सत्ता श्रेष्ठ है वा कर्मेन्द्रियों अर्थात् प्रजा की सत्ता श्रेष्ठ है? प्रजा पति बने हो? क्या अनुभव करते हो? स्टॉप कहा और स्टॉप हो गया। ऐसे नहीं कि आप कहो स्टॉप और वह स्टार्ट हो जाए। सिर्फ हर कर्मेन्द्रिय की शक्ति को आंख से इशारा करो तो इशारे से ही जैसे चाहो वैसे चला सको। ऐसे कर्मेन्द्रिय जीत बनो तब फिर प्रकृतिजीत बन कर्मातीत स्थिति के आसनधारी सो विश्व राज्य अधिकारी बन सकेंगे। तो अपने से पूछो पहली पौढ़ी कर्मेन्द्रिय जीत बने हैं? हर कर्मेन्द्रिय "जी हजूर" "जी हाज़िर" करती हुई चलती हैं? आप राज्य अधिकारियों का सदा स्वागत अर्थात् सलाम करती रहती है? राजा के आगे सारी प्रजा सिर झुकाकर सलाम करती है?

 

हे राज्य अधिकारी, आप सबकी राज्य कारोबार कैसी है? मंत्री, उपमंत्री कहाँ धोखा तो नहीं देते हैं? चेक करते हो अपनी राज्य कारोबार को? राज्य दरबार रोज़ लगाते हो या कभी-कभी? क्या करते हो? राज्य अधिकारी के यहाँ के संस्कार भविष्य में कार्य करेंगे, चेक करते हो कि वर्तमान समय मुझ आत्मा के राज्य अधिकारी के संस्कार हैं अर्थात् हद के राज्य अधिकारी के संस्कार हैं वा बेहद विश्व महाराजन के संस्कार हैं वा उनसे भी लास्ट पद दास-दासी के संस्कार हैं? साकार में भी सुनाया था कि दास-दासी बनने की निशानी क्या है? जो किसी भी समस्या वा संस्कार के अधीन बन उदास रहता है तो उदास वा उदासी ही निशानी है - दास दासी बनना। तो मैं कौन? यह स्वयं ही स्वयं को चेक करो। कहाँ किसी भी प्रकार की उदासी की लहर तो नहीं आती है? उदास अर्थात् अभी भी दास हैं? तो ऐसे को राज्य अधिकारी कैसे कहेंगे?

 

इसी तरह से साहूकार प्रजा भी होगी। तो यहाँ भी कई राजे नहीं बने हैं लेकिन साहूकार बने हैं क्योंकि ज्ञान रत्नों का खजाना बहुत है, सेवा करके पुण्य का खाता भी बहुत जमा किया है। लेकिन समय आने पर स्वयं को अधिकारी बनाकर सफलतामूर्त बन जाएं वह कन्ट्रोलिंग पावर और रूलिंग पावर नहीं है अर्थात् नॉलेजफुल हैं लेकिन पावरफुल नहीं हैं। शस्त्रधारी हैं लेकिन समय पर शस्त्र कार्य में नहीं ला सकते हैं। स्टाक है लेकिन समय पर न स्वयं यूज़ कर सकते और न औरों को यूज़ करा सकते हैं। विधान आता है लेकिन विधि नहीं आती है। ऐसे भी संस्कार वाली आत्मायें हैं अर्थात् साहूकार संस्कार वाली हैं। जो राज्य अधिकारी आत्माओं के सदा समीप के साथी जरूर होते हैं लेकिन स्व अधिकारी नहीं होते। समझा? अभी आप ही सोचो कि वर्तमान समय अब तक मैं क्या बना हूँ? अभी भी बदल सकते हो। अभी भी फाइनल सीट के सेटिंग की सीटी नहीं बजी है। फुल चांस है। लेकिन औरों को भी क्या कहते हो? अब नहीं तो कब नहीं क्योंकि कुछ समय पहले के संस्कार चाहिए। लास्ट समय के नहीं। इसलिए गोल्डन चांस लेने वाले चांसलर बनो। अच्छा।

 

सदा कर्मेन्द्रिय जीत, प्रकृति जीत, सूक्ष्म संस्कार जीत अर्थात् मायाजीत, स्वराज्य अधिकारी, सो विश्व राज्य अधिकारी ऐसे राज्य वंशी, राजऋषि आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

 

वरदान:- “पहले आप" के विशेष गुण द्वारा सर्व के प्रिय बनने वाले सफल मूर्त भव

 

एक दो को आगे बढ़ाने का गुण अर्थात् "पहले आप" का गुण परमार्थ और व्यवहार दोनों में ही सर्व का प्रिय बना देता है। बाप का भी यही मुख्य गुण है। बाप कहते हैं बच्चे "पहले आप"। तो इसी गुण में फालो फादर करो, यही सफलता प्राप्त करने की विधि है। जो बाप के प्रिय, ब्राह्मण परिवार के प्रिय और विश्व सेवा के प्रिय हैं वही एवररेडी हैं।

 

स्लोगन:- मनन शक्ति के आधार से ज्ञान खजाने को अपना बना लो तो विघ्न विदाई ले लेंगे।