23-09-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
24.09.92 "बापदादा" मधुबन
बाप की श्रेष्ठ आशा - हर
ब्राह्मण ब्रह्मा बाप का दर्पण बने
मधुबन निवासियों को
कितने प्रत्यक्षफल मिलते हैं? मधुबन की विशेषता क्या है जो और कहाँ नहीं मिलती?
श्रेष्ठ कर्मभूमि पर रहने वाले सदा फॉलो फादर करते हैं। मधुबन की श्रेष्ठता तो यह
है कि ब्रह्मा बाप की विशेष कर्मभूमि है। तो मधुबन निवासी जो भी कर्म करते हैं वो
फॉलो फादर करते हैं। कर्मभूमि में विशेषता कर्म की है। तो कर्म में फॉलो है? जो भी
अमृतवेले से लेकर रात तक कर्म करते हो उसमें फॉलो फादर है? मधुबन निवासियों को और
एक्स्ट्रा कर्मभूमि की याद का बल है। वह कर्म में दिखाई देता है वा देना है, क्या
कहेंगे? आप अपने में देखते हो? एक-एक कदम सामने लाओ - उठना-बैठना, चलना, बोलना,
सम्बन्ध-सम्पर्क में आना - सबमें ब्रह्मा बाप के कर्म को फॉलो है? कर्मभूमि का फायदा
तो यही है ना। तो इतना लाभ ले रहे हो? शक्तियाँ क्या समझती हैं? कर्मभूमि का लाभ
जितना मधुबन ले सकता है, उतना औरों को लेने आना पड़ता है और आपको मिला हुआ है।
वरदान-भूमि है, कर्मभूमि है। तो हर कर्म वरदान योग्य है जो कोई भी देखे तो मुख से
वरदान निकले? इसको कहेंगे वरदान-भूमि का वरदान लेना। चाहे साधारण कर्म कर रहे हों
लेकिन साधारण कर्म में विशेषता दिखाई दे। यही मधुबन की विशेषता है ना। इसमें
सर्टिफिकेट लेना है। आज इन्कम-टैक्स का सर्टिफिकेट मिला है ना। तो मधुबन वालों ने
कौनसा सर्टिफिकेट लिया है? लेने वाले अधिकारी तो हो ही। विशेष ब्रह्मा बाप की अपने
कर्मभूमि में रहने वालों के प्रति यह विशेष श्रेष्ठ आश है कि मधुबन का एक-एक
ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो। तो
दर्पण में क्या दिखाई देता है? यही दिखाई देता है ना। अगर आप दर्पण में खड़े होंगे
तो हू-ब-हू आप ही दिखाई देंगे या दूसरा? तो ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण
में दिखाई दें। भाग्यवान हो-यह तो सदा सभी कहते भी हैं और हैं भी। लेकिन हर कर्म
में ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। यह सर्टिफिकेट कौन लेगा और कब लेंगे? लेना तो
है ना। या ले लिया है? जिसने यह सर्टिफिकेट ले लिया है कि हर कर्म में ब्रह्मा बाप
के कर्म दिखाई दे रहे हैं, उनका बोल, ब्रह्मा का बोल समान, उठना-बैठना, देखना,
चलना-सब समान। ऐसा सर्टिफिकेट लिया है? जिसको लेना है वो हाथ उठाओ। यह भी अच्छा है।
कहने से पहले करके दिखायेंगे। लेकिन यह लक्ष्य रखो कि हर कर्म बाप समान हो। ब्रह्मा
बाप को फॉलो करना तो सहज है ना। निराकारी बनना अर्थात् सदा निराकारी स्थिति में
स्थित होना। उसके बजाय कर्म में फॉलो करना उससे सहज है। तो ब्रह्मा बाप तो सहज काम
दे रहा है, मुश्किल नहीं। तो सभी लक्ष्य रखो कि मधुबन में जहाँ देखें, जिसको
देखें-ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। कर्म में सर्वव्यापी ब्रह्मा कर सकते हो। जहाँ
देखें ब्रह्मा समान! हो सकता है ना।
मधुबन की महिमा
अर्थात् मधुबन निवासियों की महिमा। मधुबन की दीवारों की महिमा नहीं है, मधुबन
निवासियों की महिमा है। मधुबन की महिमा चारों ओर से रोज सुनते हो ना। मधुबन निवासियों
की महिमा जो होती है वह किसकी है? आप सबकी है ना। नशा तो रहता है कि हम मधुबन निवासी
हैं। जैसे यह नशा है वैसे यह नशा भी प्रत्यक्ष दिखाई दे कि यह ब्रह्मा बाप के समान
फॉलो फादर करने वाले हैं। अच्छा! सभी सन्तुष्ट हो? कुछ सैलवेशन चाहिये? सैलवेशन की
भूमि में बैठे हो। कितने बेफिक्र बैठे हो! शरीर की मेहनत करते हो, और तो सब बना
बनाया मिलता है। जो शरीर की मेहनत नहीं करते हैं उनको एक्सरसाइज की मेहनत कराते
हैं। आप तो लक्की हो ना जो एक्सरसाइज नहीं करना पड़े। हाथ-पांव चलते रहते हैं। जितना
जो हार्ड वर्क (कठिन परिश्रम) करता है उतना वह सेफ है-माया से भी और शरीर की
व्याधियों से भी। बुद्धि तो बिजी रहती है ना। और फालतू तो कुछ नहीं चलेगा। तो जो सदा
बिज़ी रहते हैं वे बहुत लक्की हैं। इसलिये अपने को फ्री नहीं करना। चलो, बहुत समय कर
लिया, अब फ्री हो जायें। बिज़ी रहना खुशनसीब की निशानी है। खुशनसीब हो ना। अपने को
सदा बिज़ी रखना। अच्छा! मधुबन निवासियों को पहला चांस मिला है। यह भी लक्क है। अभी
बापदादा को करके दिखाना। समझा?
2 - ‘‘मेरा बाबा’’
स्मृति में लाना अर्थात् सर्व प्राप्तियों के भण्डारे भरपूर होना
सबसे सहज सदा
शक्तिशाली रहने की विधि क्या है जिस विधि से सहज और सदा निर्विघ्न भी रह सकते हैं
और उड़ती कला का भी अनुभव कर सकते हैं? सबसे सहज विधि है-और कुछ भी भूल जाये लेकिन
एक बात कभी नहीं भूले-’’मेरा बाबा।’’ ‘‘मेरा बाबा’’ दिल से मानना-यही सबसे सहज विधि
है आगे बढ़ने की। मेरा-मेरा मानने का संस्कार तो बहुत समय का है ही। उसी संस्कार को
सिर्फ परिवर्तन करना है। ‘अनेक’ मेरे को ‘एक’ मेरा बाबा उसमें समाना है। एक को याद
करना सहज है ना और एक मेरे में सब-कुछ आ जाता है। तो सबसे सहज विधि है-’’मेरा बाबा’’।
‘मेरा’ शब्द ऐसा है जो न चाहते भी याद आती है। ‘मेरे’ को याद नहीं करना पड़ता लेकिन
स्वत: याद आती है। भूलने की कोशिश करते भी ‘मेरा’ नहीं भूलता। योग अगर कमजोर होता
है तो भी कारण ‘मेरा’ है और योग शक्तिशाली होता है तो उसका भी कारण ‘मेरा’ ही है।
‘‘मेरा बाबा’’-तो योग शक्तिशाली हो जाता है और मेरा सम्बन्ध, मेरा पदार्थ-यह ‘‘अनेक
मेरा’’ याद आना अर्थात् योग कमजोर होना। तो क्यों नहीं सहज विधि से पुरूषार्थ में
वृद्धि करो।
विधि से ही सिद्धि
प्राप्त होती है। रिद्धि-सिद्धि अल्पकाल की होती है लेकिन विधि से सिद्धि जो
प्राप्त होती है वह अविनाशी होती है। तो यहाँ रिद्धि-सिद्धि की बात नहीं है लेकिन
विधि से सिद्धि प्राप्त करनी है। विधि को अपनाना आता है या मुश्किल लगता है? कम-जोर
बनना अर्थात् मुश्किल अनुभव होना। बिना कमजोरी के मुश्किल नहीं होता है। तो कमजोर
हो क्या? या माया कभी-कभी कमजोर बना देती है? अगर ‘‘मेरा बाबा’’ याद आता है, तो बाप
सर्वशक्तिवान है ना, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। ‘‘मेरा बाबा’’ याद आने से अपना मास्टर
सर्वशक्तिवान का स्वरूप याद आता है। ‘‘मेरा बाबा’’ कहने से ही बाप कौन है, वह स्मृति
में आता है। तो मास्टर सर्वशक्तिवान बनने से न कमजोर बनेंगे, न मुश्किल अनुभव करेंगे।
सदा सहज। जितना आगे बढ़ते जायेंगे उतना सहज से सहज अनुभव करते जायेंगे। एक ही बात को
सदा स्मृति में रखना-’’मेरा बाबा’’। ‘‘मेरा बाबा’’ स्मृति में आना और सर्व
प्राप्तियों के भण्डार अनुभव होना। तो भण्डारे भरपूर हैं ना। सब खज़ाने भरपूर हैं?
या कोई हैं, कोई नहीं हैं? ऐसे नहीं-सुख का अनुभव तो होता है लेकिन शान्ति का नहीं
होता है, शक्ति का नहीं होता। सर्व खज़ानों के मालिक के बालक हैं। बाप के खज़ाने सो
मेरे खज़ाने हैं। तो जितना भरपूर रहेंगे, उतना जो भरपूर चीज होती है वह कभी हलचल में
नहीं आती। थोड़ा भी खाली होता है तो हलचल होती है। तो सदा भरपूर अर्थात् सदा अचल।
हलचल नहीं। कभी बुद्धि चंचल हो नहीं सकती है। किसी भी विकार के वश होना अर्थात्
बुद्धि चंचल होना। अचल हैं और सदा अचल रहेंगे। अच्छा!
3 - याद से सब कार्य
स्वत: सफल होते हैं, कहने वा मांगने की आवश्यकता नहीं
सदा और सहज याद कौन
आता है? (बाबा) बाबा भी क्यों याद आता है? (प्यारा है) तो जो प्यारा होता है उसे
याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। उससे दिल का प्यार है, सच्चा प्यार है,
निस्वार्थ प्यार है। तो सबसे प्यारा कौन? बाप। तो बाप को भुलाना मुश्किल है या याद
करना मुश्किल है? जब कोई ऐसी परिस्थिति आती है फिर स्थिति कैसी होती है? फिर याद
करना पड़ता है या याद स्वत: आती है, क्या होता है? परिस्थिति का अर्थ ही है -
पर-स्थिति। स्व नहीं है, पर है। दूसरे द्वारा आने वाली स्थिति - उसको कहते हैं
पर-स्थिति। तो पर-स्थिति शक्तिशाली होती है या स्व-स्थिति शक्तिशाली होती है? लेकिन
उस समय क्या होता है? उस समय पर-स्थिति पावरफुल हो जाती है और याद करना पड़ता है।
मेरा बाबा, प्यारा बाबा - तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। और निस्वार्थ प्यार
सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता। आत्मा को कोई न कोई अपने प्रति स्वार्थ
रहता है। लेकिन परम आत्मा निस्वार्थ है, क्यों? क्योंकि परम आत्मा दाता है, आत्मा
लेकर देने वाली है। आत्मा स्वयं दाता नहीं है लेकिन लेकर दे सकती है और परम आत्मा
स्वयं दाता है।
आप कौन हो? मास्टर
दाता हो ना। वास्तव में देना अर्थात् बढ़ना। जितना देते हो उतना बढ़ता है। विनाशी
खज़ाना देने से कम होता है और अविनाशी खज़ाना देने से बढ़ता है-एक दो, हजार पाओ। तो
देना आता है कि सिर्फ लेना आता है? दे कौन सकता है? जो स्वयं भरपूर है। अगर स्वयं
में ही कमी है तो दे नहीं सकता। तो मास्टर दाता अर्थात् सदा भरपूर रहने वाले,
सम्पन्न रहने वाले। तो सहज याद क्या हुई? ‘‘प्यारा बाबा’’। मतलब से याद नहीं करो।
मतलब से याद करने में मुश्किल होता है, प्यार से याद करना सहज होता है। मतलब से याद
करना याद नहीं, फरियाद होती है। तो फरियाद करते हो? ऐसा कर देना, ऐसा करो ना, ऐसा
होना चाहिए ना....-ऐसे कहते हो? याद से सर्व कार्य स्वत: ही सफल हो जाते हैं, कहने
की आवश्यकता नहीं। सफलता जन्मसिद्ध अधिकार है। अधिकार मांगने से नहीं मिलता, स्वत:
मिलता है। तो अधिकारी हो या मांगने वाले हो? अधिकारी सदा नशे में रहते हैं-मेरा
अधिकार है। मांगना तो बन्द हो गया ना। बाप से भी मांगना नहीं है। यह दे दो, थोड़ी
खुशी दे दो, थोड़ी शान्ति दे दो....-ऐसे मांगते हो? बाप का खज़ाना मेरा खज़ाना है। जब
मेरा खज़ाना है तो मांगने की क्या दरकार है। तो अधिकारी जीवन का अनुभव करने वाले हो
ना। अनेक जन्म भिखारी बने, अभी अधिकारी बने हो। सदा इसी अधिकार के नशे में रहो।
परमात्म-प्यार के अनुभवी आत्माए हो। तो सदा इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते चलो।
अधिकारी आत्मायें स्वप्न में भी मांग नहीं सकतीं। बालक सो मालिक हो। अच्छा!
4 - एकरस स्थिति बनाने
के लिये एक की याद में रहो, ट्रस्टी बनो
सदा एकरस स्थिति में
स्थित रहने की सहज विधि क्या है? एक की याद एकरस स्थिति बनाती है। एक बाबा, दूसरा न
कोई। क्योंकि एक में सब समाये हुए हैं। जैसे बीज में सब समाया हुआ होता है ना।
वृक्ष की एक-एक चीज को याद करना मुश्किल है लेकिन एक बीज को याद करो तो सब सहज है।
तो बाप भी बीज है। जिसमें सर्व सम्बन्धों का, सर्व प्राप्तियों का सार समाया हुआ
है। एक बाप को याद करना अर्थात् सार-स्वरूप बनना। तो एक बाप, दूसरा न कोई। यह एक की
याद एकरस स्थिति बनाती है। ऐसे अनुभव करते हो? या प्रवृत्ति में रहते हो तो
दूसरा-तीसरा तो होता है? मेरा बच्चा, मेरा परिवार-यह नहीं रहता है? फिर एक बाप तो
नहीं हुआ ना। ‘मेरा’ परिवार है या ‘तेरा’ परिवार है? ट्रस्टी बनकर सम्भालते हो या
गृहस्थी बनकर सम्भालते हो? ट्रस्टी अर्थात् तेरा और गृहस्थी अर्थात् मेरा। तो आप
कौन हो? मेरा-मेरा मानते क्या मिला? मेरा ये, मेरा ये.... मेरे-मेरे के विस्तार से
मिला क्या? कुछ मिला या गंवाया? जितना मेरा-मेरा कहा, उतना ही मेरा कोई नहीं रहा।
तो ट्रस्टी जीवन कितनी प्यारी है! सम्भा-लते हुए भी कोई बोझ नहीं, सदा हल्के। देखो,
गृहस्थी बन चलने से बोझ उठाते-उठाते क्या हाल हुआ-तन भी गंवाया, मन भी अशान्त किया
और सच्चा धन भी गंवा दिया। तन को रोगी बना दिया, मन को अशान्त बना लिया और धन में
कोई शक्ति नहीं रही। आज का एक हजार पहले के एक रूपये के बराबर है। तो धन की ताकत चली
गई ना। अभी जब बोझ उठाने का भी अनुभव कर लिया और हल्के रहने का भी अनुभव कर लिया,
तो अनुभवी कभी धोखा नहीं खाता। कभी भी, किसी भी बात में अगर माया से धोखा खाते तो
धोखा खाने की निशानी क्या है? दु:ख की लहर। जरा भी दु:ख की लहर संकल्प में भी आती
है तो जरूर कहाँ धोखा खाया है। तो चेक करो कि किस बात में धोखा मिला, क्यों दु:ख की
लहर आई? सुखदाता के बच्चे हो। तो सुखदाता के बच्चे को दु:ख की लहर आ सकती है?
स्वप्न भी बदल गये। सुख के स्वप्न आयें, खुशी के स्वप्न आयें, सेवा के स्वप्न आयें,
मिलन मनाने के स्वप्न आयें। संस्कार भी बदल गये तो स्वप्न भी बदल गये। अच्छा!
वरदान:-
निमित्त पन की
स्मृति से हर पेपर में पास होने वाले एवररेडी, नष्टोमोहा भव
एवररेडी का अर्थ ही
है नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप। उस समय कोई भी संबंधी अथवा वस्तु याद न आये। किसी में
भी लगाव न हो, सबसे न्यारा और सबका प्यारा। इसका सहज पुरुषार्थ है निमित्त भाव।
निमित्त समझने से "निमित्त बनाने वाला" याद आता है। मेरा परिवार है, मेरा काम है -
नहीं। मैं निमित्त हूँ। इस निमित्त पन की स्मृति से हर पेपर में पास हो जायेंगे।
स्लोगन:-
ब्रह्मा बाप
के संस्कार को अपना संस्कार बनाना ही फालो फादर करना है।