20-06-10 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 03-10-71 मधुबन
निर्माणता के गुण से विश्व-निर्माता
आज बापदादा किन्हों को देख रहे हैं? आप कौन हो? आज बापदादा आप को किस रूप में देख रहे हैं, यह जानते हो? मास्टर नॉलेजफुल नहीं हो? जब मास्टर नहीं हो? जब मास्टर नॉलेजफुल हो, तो यह नहीं जान सकते हो कि बाप किस हो, तो यह नहीं जान सकते हो कि बाप किस रूप में देख रहे हैं? बच्चे तो हैं ही, लेकिन किस रूप में देख रहे हैं? बापदादा देख रहे हैं कि इतने सभी विश्व-निर्माता हैं। विश्व के निर्माता हो? बाप के साथ-साथ बाप के कर्त्तव्य में मददगार हो? नई विश्व का निर्माण करना - यही कर्त्तव्य है ना। उसी कर्त्तव्य में लगे हुए हो वा अभी लगना है? तो विश्व- निर्माता नहीं हुए? सदैव यह स्मृति में रहे कि हम सभी मास्टर विश्व-निर्माता हैं। यही स्मृति सदैव रहने से कौनसा विशेष गुण आटोमेटिकली आ जायेगा? निर्माणता का। समझा? और जहॉं निर्माणता अर्थात् सरलता नेचरल रूप में रहेगी वहाँ अन्य गुण भी आटोमेटिकली आ ही जाते हैं। तो सदैव इस स्मृति- स्वरूप में स्थित रह कर फिर हर संकल्प वा कर्म करो। फिर यह जो भी छोटी- छोटी बातें सामना करने के लिए आती हैं, यह बातें ऐसे ही अनुभव होंगी जैसे कोई बुजुर्ग के आगे छोटे-छोटे बच्चे अपने बचपन के अलबेलेपन के कारण कुछ भी बोल देवें वा कुछ भी ऐसा कर्त्तव्य भी करें तो बुजुर्ग लोग समझते हैं कि यह निर्दोष, अनजान छोटे बच्चे हैं। कोई असर नहीं होता है। ऐसे ही जब मास्टर विश्व-निर्माता अपने को समझेंगे तो यह माया के छोटे-छोटे विघ्न बच्चों के खेल समान लगेंगे। जैसे छोटा बच्चा अगर बचपन के अनजानपन में नाक-कान भी पकड़ ले तो जोश आयेगा? क्योंकि समझते हैं - बच्चे निर्दोष, अनजान हैं। उनका कोई दोष दिखाई नहीं पड़ता। ऐसे ही माया भी अगर किसी आत्मा द्वारा समस्या वा विघ्न वा परीक्षा-पेपर बनकर आती है, तो उन आत्माओं को निर्दोष समझना चाहिए। माया ही आत्मा द्वारा अपना खेल दिखा रही है। तो निर्दोष के ऊपर क्या होता है? तरस, रहम आता है ना। इस रीति से कोई भी आत्मा निमित्त बन जाती है, लेकिन है निर्दोष आत्मा। अगर उस दृष्टि से हर आत्मा को देखो तो फिर पुरूषार्थ की स्पीड कब ढीली हो सकती है? हर सेकेण्ड में चढ़ती कला का अनुभव करेंगे। सिर्फ चढ़ती कला में जाने के लिए यह समझने की कला आनी चाहिए।
16 कला सम्पूर्ण बनना है ना। तो यह भी कला है। अगर इस कला को जान जाते हैं तो चढ़ती कला ही है। वह कब रूकेगा नहीं। उसकी स्पीड कब ढीली नहीं हो सकती। हर सेकेण्ड में तीव्रता होगी। और अभी रूकने का समय भी क्या है? रूक कर उन आत्माओं के कारण और निवारण को हल करने का अभी समय है? अभी तो बड़े बुजुर्ग हो गये हो। अभी तो वानप्रस्थ अवस्था में जाने का समय समीप आ रहा है। अपना घर सामने दिखाई नहीं देता है? आखरीन यात्रा समाप्त कर घर जाना है। कोई भी बात भिन्न-भिन्न रूपों, भिन्न- भिन्न बातों से सामने जब आती है, तो पहले यह समझना चाहिए कि इन समस्याओं वा भिन्न-भिन्न रूपों की बातों को कितना बार हल किया है और करते-करते अनुभवी बने हुए हो। कितने बार के अनुभवी हो, याद है? अनेक बार किया है - यह याद आता है? कल्प पहले पास किया है। क्रास किया होगा। क्रास किया था वा किया होगा? यह नहीं समझते कि अगर अनेक बार यह अनुभव नहीं किया होता तो आज इतने समीप कैसे आते? यह हिसाब लगाना नहीं आता? पांडव तो हिसाब में होशियार होने चाहिए। लेकिन शक्तियां नम्बरवन हो गइंर्। यह स्मृति स्पष्ट और सरल रूप में रहे। खैंचना न पड़े। अगर कल्प पहले की बात अभी तक बुद्धि में खैंचकर लाते रहते हो तो क्या कहेंगे? ज़रूर कोई माया की खिंचावट अभी है, इसलिए बुद्धि में कल्प पहले वाली स्मृति स्पष्ट और सरल रूप में नहीं आती है और इसलिए ही विघ्नों को पार करने में मुश्किल अनुभव होता है। मुश्किल है नहीं।
जितना पुरूषार्थ का समय चला है, जितना नॉलेज की लाइट और माइट मिली है उस प्रमाण वर्तमान समय सरल और स्पष्ट होना चाहिए। इतना स्पष्ट हो जैसे एक मिनिट पहले अगर कोई कार्य किया तो वह याद रहता कि वह भी भूल जाता है? तो ऐसे ही 5000 वर्ष के बाद ऐसे स्पष्ट अनुभव हो जैसे एक मिनिट पहले किया हुआ कार्य है। जैसे पावरफुल कैमरा होती है तो एक सेकेण्ड में कितना स्पष्ट चित्र खैंच लेती है। कितना भी दूर का दृश्य हो, वह भी स्पष्ट सम्मुख आता जाता है। तो क्या पावरफुल कैमरामैन नहीं बने हो? कैमरा है कि दूसरे का लोन पर लेकर यूज़ करते हो? पावरफुल है? कल्प पहले के चित्र उसमें स्पष्ट आ जाते हैं?
यह जो मन है यह एक बड़ी कैमरा है। हर सेकेण्ड का चित्र इसमें खैंचा नहीं जाता? कैमरा तो सभी के पास है लेकिन कोई कैमरा नज़दीक के चित्र को खींच सकती है और कोई कैमरा चन्द्रमा तक भी फोटो खैंच लेती है। है तो वह भी कैमरा, वह भी कैमरा। और यहाँ की छोटी- मोटी भी कैमरा तो है ना। तो हरेक के पास कितना पावरफुल कैमरा है? जब वह लोग चन्द्रमा से यहाँ, यहाँ से वहाँ का खैंच सकते हैं; तो आप साकार लोक में रहते निराकारी दुनिया का, आकारी दुनिया का वा इस सारी सृष्टि के पास्ट वा भविष्य का चित्र नहीं खैंच सकते हो? कैमरा को पावरफुल बनाओ जो उसमें जो बात, जो दृश्य जैसा है वैसा दिखाई दे, भिन्न-भिन्न रूप में दिखाई नहीं दे। जो है जैसा है, वैसे स्पष्ट दिखाई दे। इसको कहते हैं पावरफुल। फिर बताओ कोई भी समस्या, समस्या का रूप होगा या खेल अनुभव होगा? तो अब की स्टेज के अनुसार ऐसी स्टेज बनाओ, तब कहेंगे तीव्र पुरुषार्थी। अगर ऐसे कैमरा द्वारा चित्र पहले खींचते जाते हैं, उसके बाद साफ कराने के बाद मालूम पड़ता है कि कैसे खींचे हैं। इसी रीति से सारे दिन में जो अपने-अपने आटोमेटिक कैमरा द्वारा अनेकानेक चित्र खैंचते रहते हो, रात को फिर बैठ कर क्लीयर देखना चाहिए कि किस प्रकार के चित्र आज इस कैमरे द्वारा खींचे? और जो जैसे हैं वैसे ही चित्र खींचे वा कुछ नीचे-ऊपर भी हो गया? कभी-कभी कैमरा ठीक न होने के कारण सफेद चीज भी काली हो जाती है, रूप बदल जाता है, फीचर्स भी कब बदल जाते हैं। तो यहाँ भी कभी-कभी कैमरा ठीक क्लीयर न होने के कारण बात समस्या बन जाती है। उनकी रूपरेखा बदल जाती है, उनका रंग-रूप भी बदल जाता है। यथार्थ का अयथार्थ रूप भी कब खैंचा जाता है। इसलिए सदैव अपने कैमरा को क्लीयर और पावरफुल बनाओ। अपने को सेवाधारी समझने से त्याग, तपस्या सभी आ जाता है। सेवाधारी हूँ और सेवा के लिए ही यह जीवन है, यह समझने से सेकेण्ड भी सेवा बिगर नहीं जायेगा। तो सदा अपने को सेवाधारी समझते चलो। और अपने को बुजुर्ग समझना चाहिए, तो फिर छोटी-छोटी बातें खिलौने दिखाई देंगी, रहमदिल बन जायेंगे। तिरस्कार के बदले तरस आयेगा। अच्छा।
दुसरी मुरली / रिवाइज़ 05-10-71
सम्पूर्णता की निशानी 16 कलायें
सभी के पुरूषार्थ का लक्ष्य कौनसा है? (सम्पूर्ण बनना) सम्पूर्णता की स्टेज किसको कहा जाता है? कौनसा नक्शा सामने है जिसको सम्पूर्ण स्टेज समझते हो? बाप ने भी जो सम्पूर्ण स्टेज धारण की उसमें क्या बातें थीं? जब दूसरों को सुनाते हो तो सम्पूर्ण स्टेज का क्या-क्या वर्णन करते हो? उन्हों को समझाती हो ना कि इस नॉलेज द्वारा सर्व गुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी बनते हैं। यह सम्पूर्ण स्टेज वर्णन करती हो ना। भविष्य में तो प्राप्ति होगी, लेकिन सम्पूर्ण स्टेज तो यह कहेंगे ना। आत्मा में बल तो अभी से भरेगा ना। 16 कला सम्पूर्ण कहा जाता है, तो कलाएं अभी भरेंगी ना। सर्व र्गुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, 16 कला सम्पूर्ण, यह शब्द कहते हो ना। यह सम्पूर्ण स्टेज है। सर्व गुण क्या हैं, वह तो समझते हो गुणों की लिस्ट है। परन्तु यह जो 16 कला कहा जाता है, उनका भाव-अर्थ क्या है? यह है सम्पूर्ण स्टेज की निशानी। जैसे देखा - किसमें कोई भी विशेषता होती है तो कहने में आता है ना इनमें यह कला है। किसी में रोते हुए को हंसाने की कला अर्थात् विशेषता होती है, कोई में हाथ के सफाई की कला, कोई में बुद्धि के चमत्कारी की कला होती है ना। तो यह 16 कला सम्पूर्ण अर्थात् उसका जो भी कर्म होगा वह हर कर्म कला के समान दिखाई देगा। उनकी हर चलन - देखना, बोलना, चलना जैसे कला के माफिक दिखाई देगा। जैसे कोई की कला को देखने लिए कितना रूची से जाते हैं। इस रीति से जो सम्पूर्ण स्टेज को प्राप्त हुई आत्माएं होती हैं उनकी हर चलन कला के रूप में होती है और चरित्र के रूप में भी हो जाती है। तो विशेषता हुई ना। जैसे साकार के बोलने में, चलने में, सभी में विशेषता देखी ना। तो यह कला हुई ना। उठने-बैठने की कला, देखने की कला, चलने की कला थी। सभी में न्यारापन और विशेषता थी। हर कर्म कला के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। तो 16 कला अर्थात् हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई दे, इसको कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण। तो सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यही होगी जो उनका हर कर्म कला के माफिक दिखाई देगा अर्थात् उसमें विशेषता होगी। इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज।
तो 16 कला सम्पूर्ण बनने का जो लक्ष्य रखा है उसका स्पष्टीकरण यही है। यह चेक करना चाहिए कि - ‘‘मेरे देखने में कला है? मेरे बोलने में कला भरी हुई है?’’ वैसे कहते हैं - कला-काया ही चट हो गई है। तो कला एक अच्छी चीज होती है। कला-काया खत्म हो गई है अर्थात् कर्म में जो आकर्षण करने की शक्ति है, विशेषता है वह खत्म हो गई। तो हर कर्म हमारा कला के समान है वा नहीं - यह चेक करना है। जैसे कोई बाजीगर होते हैं, तो वह जितना समय बाज़ीज़ी दिखाते हैं उतना समय हर कर्म कला के रूप में दिखाई देता है। चलते कैसे हैं, चीज़ज़ कैसे उठाते हैं - वह सभी कला के रूप में नोट करते हैं। तो यह संगमयुग विशेष कर्म रूपी कला दिखाने का है। सदैव ऐसा महसूस हो कि हम स्टेज पर हैं। ऐसे 16 कला सम्पूर्ण बनना है। जिसका हर कर्म कला के रूप में होता है उनके हर कर्म अर्थात् गुणों का गायन होता है, इसको दूसरे शब्दों में कहा जाता है हर कर्म चरित्र समान। जिस कला के रूप को देख औरों में भी प्रेरणा भरती है। उनके कर्म भी सर्विसएबल होते हैं। जैसे कोई कला दिखाते हैं, तो कला कमाई का साधन होता है। इस रीति से वो जो हर कर्म कला के रूप में करते हैं, उनके वह कर्म अखुट कमाई के साधन बन जाते हैं और दूसरों को आकर्षण करते हैं। हर कर्म कला के रूप में होगा तो वह एक चुम्बक बन जायेगा। आजकल के जमाने में कोई छोटे-मोटे कला दिखाने वाले भी रास्ता चलते कला दिखाते हैं तो सभी इक होते हैं। जैसे कोई कला दिखाते हैं, तो कला कमाई का साधन होता है। इस रीति से वो जो हर कर्म कला के रूप में करते हैं, उनके वह कर्म अखुट कमाई के साधन बन जाते हैं और दूसरों को आकर्षण करते हैं। हर कर्म कला के रूप में होगा तो वह एक चुम्बक बन जायेगा। आजकल के जमाने में कोई छोटे-मोटे कला दिखाने वाले भी रास्ता चलते कला दिखाते हैं तो सभी इकट्ठे हो जाते हैं। यह तो है श्रेष्ठ कला। तो क्या आत्माएं आकर्षित नहीं होंगी? अभी इतने तक चेकिंग करनी है। जो भी श्रेष्ठ आत्माएं बनती हैं उनके हर कर्म के ऊपर सभी का अटेन्शन रहता है, क्योंकि उनके हर कर्म में कला भरी हुई है। तब तो हर कर्म के कला का मंदिरों में पूजन होता है। जो बड़े-बड़े मंदिर होंगे उनके उठने के चरित्र का दर्शन अलग होगा, सोने का अलग होगा, खाने का अलग, नहाने का अलग होगा। बहुत थोड़े मन्दिर जहाँ सभी कर्मों के दर्शन होते हैं। उसका कारण क्या है? क्योंकि हर कार्य कला के रूप में किया, इसलिए यादगार चलता है। साकार में भी हर कर्म को देखने की रूचि क्यों होती है? इतने वर्ष साथ रहते हुए, जानते हुए, समझते हुए, देखते हुए भी फिर-फिर देखने की रूचि क्यों होती है? एक कर्म भी देखना मिस नहीं करना चाहते थे। जैसे जादूगर कला दिखाते हैं तो समझते हैं - एक बात भी मिस की तो बहुत कुछ मिस होगा। क्योंकि उनके हर कर्म की कला है। इस रीति यह भी देखने की इच्छा रहती थी कि देखें कैसे सोये हुए हैं। सोने में भी कला थी। हर कर्म में कला थी। इसको कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण। अच्छा, ऐसी स्टेज बनी है। लक्ष्य तो इसी स्टेज का है ना? लक्ष्य से लक्षण धारण करने पड़ेंगे। हर कर्म कला के रूप में होता रहे। तो 16 कला सम्पूर्ण बनने से सर्व गुणों की धारणा भी आटोमेटिकली हो जायेगी। अच्छा।
वरदान:- सदा मोल्ड होने की विशेषता से सम्पर्क और सेवा में सफल होने वाले सफलतामूर्त भव
जिन बच्चों में स्वयं को मोल्ड करने की विशेषता है वह सहज ही गोल्डन एज की स्टेज तक पहुंच सकते हैं। जैसा समय, जैसे सरकमस्टांश हो उसी प्रमाण अपनी धारणाओं को प्रत्यक्ष करने के लिए मोल्ड होना पड़ता है। मोल्ड होने वाले ही रीयल गोल्ड हैं। जैसे साकार बाप की विशेषता देखी – जैसा समय, जैसा व्यक्ति वैसा रूप – ऐसे फालो फादर करो तो सेवा और सम्पर्क सबमें सहज ही सफलतामूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- जहाँ सर्वशक्तियां हैं वहाँ निर्विघ्न सफलता साथ है।