ओम् शान्ति।
सिर्फ मात-पिता वाला गीत सुनाने से नाम सिद्ध नहीं होता है। पहले शिवाए नम: का गीत
सुनकर फिर मात-पिता वाला सुनाने से नॉलेज का पता पड़ता है। मनुष्य तो मन्दिरों में
जाते हैं, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे, कृष्ण के मन्दिर में जायेंगे, सबके
आगे तुम मात-पिता........ कह देते हैं, बिगर अर्थ। पहले शिवाए नम: वाला गीत सुनाए
फिर मात-पिता वाला सुनाने से महिमा का पता पड़ता है। नया कोई भी आये तो यह गीत अच्छे
हैं। समझाने में सहज होता है। बाप का नाम ही है शिव, ऐसे तो नहीं कहेंगे शिव
सर्वव्यापी है। फिर तो सबकी महिमा एक हो जाए। उनका नाम ही है शिव। दूसरा कोई अपने
पर शिवाए नम: नाम रखा न सके। उनकी मत और गत सब मनुष्य मात्र से न्यारी है। देवताओं
से भी न्यारी है। यह नॉलेज सिखलाने वाला मात-पिता ही है। संन्यासियों में तो माता
है नहीं इसलिए वह राजयोग सिखला न सकें। शिवाए नम: तो कोई को भी कह नहीं सकते।
देहधारी को शिवाए नम: थोड़ेही कहेंगे। यह समझाने का है। परन्तु तुम बच्चों में भी
नम्बरवार हैं। कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी प्वाइन्ट्स मिस कर देते हैं। मियां मिट्ठू
तो अपने को बहुत समझते हैं, इसमें दिल की सफाई चाहिए। हर बात में सच बोलना, सच होकर
रहना है - टाइम लगता है। देह-अभिमान में आने से फिर फैमिलियरटी आदि सब बातें आ जाती
हैं। अभी ऐसे कोई कह नहीं सकता कि हम देही-अभिमानी हैं, फिर तो कर्मातीत अवस्था हो
जाए। नम्बरवार हैं। कोई तो बहुत कपूत बच्चे हैं। मालूम पड़ जाता है, कौन बाबा की
सर्विस करते हैं। जब शिवबाबा की दिल पर चढ़ें तब रुद्र माला के नजदीक हों और तख्त
के लायक बनें। लौकिक बाप की दिल पर भी सपूत बच्चे ही चढ़ते हैं, जो बाप के साथ
मददगार बन जाते हैं। यह भी बेहद के बाप का अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा है। तो
धन्धे में मदद देने वाले पर बाप भी राज़ी रहेगा। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर और
धारण कराने हैं। कोई समझते हैं हमने इन्श्योर किया है। उसका तो तुमको मिल जायेगा।
यहाँ तो बहुतों को दान करना है, बाप मुआफिक अविनाशी ज्ञान रत्नों का
फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनना है। बाप आते ही हैं ज्ञान रत्नों से झोली भरने, धन की बात नहीं।
बाप को सपूत बच्चे ही पसन्द होते हैं। व्यापार करना नहीं जानते तो वह मुरलीधर,
सौदागर का बच्चा कहला कैसे सकते? लज्जा आनी चाहिए, मैं धन्धा तो करता नहीं हूँ।
सेल्समैन जब होशियार देखा जाता है तो फिर उनको भागीदार बनाया जाता है। ऐसे ही
थोड़ेही भागीदारी मिल जाती है। इस धन्धे में लग जाने से फिर बहुत निर्मान बुद्धि हो
जाती है। सर्विस करते-करते बुद्धि रिफाइन होती है। बाबा-मम्मा अपना अनुभव सुनाते
हैं। बाबा है सिखलाने वाला, यह तो जानते हो यह बाबा अच्छी धारणा कर अच्छी मुरली
सुनाते हैं। अच्छा, समझो इसमें शिवबाबा है, वह तो है ही मुरलीधर परन्तु यह बाबा भी
तो जानता है ना। नहीं तो इतना पद कैसे पाते? बाबा ने समझाया है कि हमेशा समझो
शिवबाबा सुनाते हैं। शिवबाबा की याद रहने से तुम्हारा भी कल्याण हो जायेगा। इनमें
तो शिवबाबा आते हैं। वह मम्मा अलग बोलती है, मम्मा की हैंसियत में। उनका नाम बाला
करना है क्योंकि फीमेल को लिफ्ट दी जाती है। कहते हैं ना जैसी है, वैसी है, मेरी
है, सम्भालना ही है। पुरुष लोग ही ऐसे कहते हैं। स्त्री ऐसे नहीं कहती, जैसे हैं,
वैसे हैं........। बाप भी कहते बच्चे जैसे हो, वैसे हो, सम्भालना ही है। नाम भी बाला
बाप का ही होता है। यहाँ बाप का नाम तो बाला है ही। फिर शक्तियों का नाम बाला होता
है। उन्हों को सर्विस का अच्छा चांस मिलता है। दिन-प्रतिदिन सर्विस बहुत सहज हो जानी
है। ज्ञान और भक्ति, दिन और रात, सतयुग-त्रेता दिन, वहाँ है सुख, द्वापर-कलियुग है
रात, दु:ख। सतयुग में भक्ति होती नहीं। कितना सहज है। परन्तु तकदीर में नहीं है तो
धारणा नहीं कर सकते। प्वाइन्ट्स तो बहुत सहज मिलती हैं। मित्र-सम्बन्धियों के पास
जाकरके समझाओ, अपने घर को उठाओ। तुम तो गृहस्थ व्यवहार में रहने वाले हो, तो बहुत
सहज रीति से कोई को भी समझा सकते हो। सद्गति दाता तो एक ही पारलौकिक बाप है। वही
शिक्षक भी है, सद्गुरू भी है। बाकी सब बरोबर दुर्गति करते आये हैं, द्वापर से लेकर।
भ्रष्टाचारी, पाप आत्मायें कलियुग में हैं। सतयुग में पाप आत्मा का नाम नहीं, यहाँ
ही अजामिल, गणिकायें, अहिल्यायें, पाप आत्मायें हैं। आधाकल्प स्वर्ग कहा जाता है।
फिर भक्ति शुरू होती है तो गिरना शुरू हो जाता है। गिरना भी है जरूर। सूर्यवंशी
गिरकर चन्द्रवंशी बनते हैं। फिर गिरते ही आयेंगे। द्वापर से सब गिराने वाले ही मिलते
आये हैं। यह भी तुम अभी जानते हो। दिन-प्रतिदिन तुम्हारे में ताकत आती जायेगी।
साधुओं आदि को समझाने के लिए भी युक्तियाँ निकालते रहते हैं। आखरीन समझेंगे जरूर कि
बरोबर परमपिता परमात्मा सर्वव्यापी कैसे हो सकता है? समझाने लिए प्वाइन्ट्स बहुत
हैं। भक्ति पहले अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी बनती है। कलायें कम होती हैं। अभी कोई कला
नहीं रही है। झाड़ व गोले में भी दिखाया है कि कलायें कैसे कम होती हैं? मोस्ट इज़ी
है समझाना, परन्तु तकदीर में नहीं है तो समझा नहीं सकते। देही-अभिमानी बनते नहीं
हैं। पुरानी देह में अटके रहते हैं। बाप कहते हैं - इस पुरानी देह से ममत्व तोड़
अपने का आत्मा समझो। देही-अभिमानी नहीं बनेंगे तो पद भी ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
स्टूडेन्ट ऐसे थोड़ेही चाहेंगे कि लास्ट में बैठे रहें। मित्र-सम्बन्धी, टीचर,
स्टूडेन्ट आदि सब समझ जायेंगे, इनका पढ़ाई में ध्यान नहीं है। यहाँ भी समझते हैं
श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो फिर यही हाल होगा। कौन प्रजा बनेंगे, कौन दास दासी, सब
समझ जाते हैं। बाप समझाते हैं अपने मित्र-सम्बन्धियों का कल्याण करो। यह कायदा होता
है। घर में बड़ा भाई होता है तो छोटे भाई को मदद देना उनका फ़र्ज है - इसको कहा जाता
है चैरिटी बिगन्स एट होम। बाप कहते हैं धन दिये धन ना खुटे........ धन देंगे नहीं
तो मिलेगा भी नहीं, पद पा नहीं सकेंगे। चांस बहुत अच्छा मिलता है। रहमदिल बनना है।
तुम संन्यासियों, साधुओं पर भी रहमदिल बनते हो। कहते हो आकर समझो। तुम अपने
पारलौकिक बाप को नहीं जानते हो, जो बाप भारत को हर कल्प सदा सुख का वर्सा देते हैं।
कोई भी जानते नहीं। कहते हैं ऑफीसर्स भी भ्रष्टाचारी हैं, तो फिर श्रेष्ठाचारी कौन
बनायेंगे?
आजकल तो साधू समाज का बड़ा मान है। तुम लिखते हो - बाप इन सब पर भी रहम करते
हैं, तो वह वन्डर खायेंगे। आगे चल तुम्हारा नाम बाला होगा। तुम्हारे पास बहुत आते
रहेंगे। प्रदर्शनी भी होती रहेगी। आखरीन कोई जागेंगे जरूर। संन्यासी लोग भी जागेंगे।
जायेंगे कहाँ, एक ही हट्टी है। बड़ी इप्रूवमेंट होती रहेगी। अच्छे-अच्छे चित्र
निकलेंगे समझाने के लिए, जो कोई भी आकर पढ़े। जब भंभोर को आग लगेगी तब मनुष्य
जागेंगे, परन्तु टू लेट। बच्चों के लिए भी ऐसा है। पिछाड़ी में कितना दौड़ सकेंगे।
रेस में भी कोई पहले आहिस्ते-आहिस्ते दौड़ते हैं। विन की प्राइज थोड़ों को ही मिलती
है। यह तुम्हारी भी घुड़दौड़ है। रूहानी यात्रा की दौड़ी पहनाने के लिए भी ज्ञानी
तू आत्मा चाहिए। बाप को याद करो, यह भी ज्ञान है ना। यह ज्ञान और किसको नहीं है।
ज्ञान से मनुष्य हीरे जैसे बनते हैं। अज्ञान से कौड़ी जैसे बनते हैं। बाप आकर
सतोप्रधान प्रालब्ध बनाते हैं। फिर वह थोड़ी-थोड़ी होकर कमती होती जाती है। यह सब
प्वाइन्ट्स धारण कर एक्ट में आना है। तुम बच्चों को महादानी बनना है। भारत को
महादानी कहते हैं क्योंकि यहाँ ही तुम बाप के आगे तन-मन-धन सब अर्पण करते हो। तो
बाप भी फिर सब कुछ अर्पण कर देते हैं। भारत में बहुत ही महादानी हैं। बाकी मनुष्य
सब अन्धश्रधा में फँसे हुए रहते हैं। यहाँ तो तुम ईश्वर की शरणागति में आये हो।
रावण से दु:खी हो आकर राम की एशलम ली है। तुम सब शोक वाटिका में थे। अब फिर अशोक
वाटिका में अर्थात् स्वर्ग में चलना है। स्वर्ग स्थापन करने वाले बाप की शरणागति ली
है। कोई तो छोटेपन में ही जबरदस्ती आ गये हैं, तो उन्हों को यहाँ शरणागति में सुख
नहीं आता। तकदीर में नहीं है, उन्हों को माया रावण की शरण चाहिए। ईश्वर की शरणागति
से निकल कर माया की शरण में जाना चाहते हैं। आश्चर्य की बात है ना।
यह शिवाए नम: वाला गीत अच्छा है। तुम बजा सकते हो। मनुष्य तो इसका अर्थ समझ न सकें।
तुम कहेंगे हम श्रीमत पर यथार्थ अर्थ समझा सकते हैं। वह तो गुड़ियों का खेल करते
हैं। ड्रामा अनुसार इन गीतों की भी मदद मिलती है। बाप का बनकर और सर्विसएबुल न बना
तो दिल पर कैसे चढ़ सकते हैं। कई बच्चे कपूत बन पड़ते हैं तो कितना न दु:ख देते
हैं। यहाँ तो अम्मा मरे तो हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ, रोयेंगे पीटेंगे नहीं।
ड्रामा पर मजबूत रहना चाहिए। मम्मा-बाबा भी जायेंगे, अनन्य बच्चे भी एडवान्स में
जायेंगे। पार्ट तो बजाना ही है। इसमें फिक्र की क्या बात है? साक्षी होकर हम खेल
देखते हैं। अवस्था सदैव हर्षित रहनी चाहिए। बाबा को भी ख्यालात आते हैं, लॉ कहता है
आयेंगे जरूर। ऐसे नहीं कि मम्मा-बाबा कोई परिपूर्ण हो गये हैं। परिपूर्ण अवस्था
अन्त में होगी। इस समय कोई भी अपने को परिपूर्ण कह न सके। यह नुकसान हुआ, कोई
खिटपिट हुई, अखबार में बी.के. के लिए हाहाकार हुआ, यह सब भी कल्प पहले हुआ था।
फिक्र की क्या बात, 100 परसेन्ट अवस्था अन्त में होनी है। बाप की दिल पर तब चढ़ेंगे
जब रहमदिल बनेंगे, आपसमान बनायेंगे। इन्श्योर किया वह बात अलग है। वह तो अपने लिए
ही करते हैं। यह तो ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है। बाप को पूरा याद नहीं
करेंगे तो विकर्मों का बोझा जो सिर पर है, वह खुल पड़ेगा। प्रदर्शनी में भी समझाने
वाले लायक चाहिए। होशियार बनना चाहिए। मजा आता है रात को याद करने में। इस रूहानी
साजन को फिर प्रभात में याद करना है। बाबा आप कितने मीठे हो, क्या से क्या बना रहे
हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिल से सदा सच्चा रहना है। सच बोलना है, सच होकर चलना है। देह-अभिमान
के वश स्वयं को मियां मिट्ठू नहीं समझना है। अहंकार में नहीं आना है।
2) साक्षी होकर खेल देखना है। ड्रामा पर मजबूत रहना है। किसी भी बात का फिक्र नहीं
करना है। अवस्था सदा हर्षित रखनी है।