ओम् शान्ति।
बापदादा दोनों हैं ना। अब यह तो बच्चे जानते हैं कि आत्माओं का बाप शिवबाबा है। यह
भी तुम जानते हो कि मैं पतित-पावन हूँ, मैं निराकार हूँ। तुम भी निराकार हो, शान्त
स्वरूप हो। निराकार बाप भी शान्त स्वरूप है, आत्मा भी शान्त स्वरूप है। आत्मा का
स्वधर्म है ही शान्ति। तुम्हारा निवास स्थान है – शान्तिधाम। जब यज्ञ आदि रचते हैं
तो कहते हैं शान्तिदेवा क्योंकि शान्ति का सागर तो वह परमात्मा है। सारी दुनिया को
शान्ति देने वाला वह बाप है। ऐसे बहुत हैं जिसको शान्ति के पीछे प्राइज़ मिलती है।
कभी किसको प्राइज मिलती है तो कहेंगे यह शान्ति स्थापन करने के निमित्त बने हुए
हैं। इसमें बड़ों-बड़ों के नाम लेते हैं। अब शान्ति तो चाहिए – सारी दुनिया में। नहीं
तो अशान्त में रहने वाले औरों को भी अशान्त करेंगे। यह है ही रावण राज्य। रावण
दुश्मन है ना, राम को दुश्मन नहीं कहेंगे। राम की कभी एफीजी नहीं जलायेंगे। न त्रेता
वाले राम की, न परमपिता परमात्मा की। रामराज्य तो सब चाहते हैं परन्तु रामराज्य
किसको कहा जाता है, यह भी कोई नहीं जानते। सिर्फ कहते हैं नई दुनिया हो, नई देहली
में रामराज्य हो। नई देहली कहते हैं, नाम तो बहुत रखे जाते हैं। देहली सबकी कैपीटल
रहती है। देहली ही परिस्तान था। राधे-कृष्ण को भी वहाँ ही दिखाते हैं। यह दोनों ही
मुख्य प्रिन्स और प्रिन्सेज हैं। सिर्फ दोनों नहीं हैं जरूर और भी होंगे। 8 राजाई
तो गाई जाती हैं, बुद्धि से काम लेना है। सतयुग में जरूर राजाई और भी होगी। यहाँ भी
देखो कितनी राजाई है, वृद्धि होते-होते ढेर हो जाते हैं। फलाने-फलाने गाँव का
महाराजा, छोटे-छोटे गांव भी बहुत हैं ना। सतयुग में इतने थोड़ेही थे। वहाँ तो
लक्ष्मी-नारायण का ही नाम बाला है। 2500 वर्ष उन्हों का राज्य चला है। मनुष्य कहते
हैं लाखों वर्ष हुए, विचार की बात है। यह है आत्माओं के लिए भोजन। बाप यह रूहानी
भोजन देते हैं – तुम्हारी बुद्धि को, आत्मा को। तुम्हारी बुद्धि का ताला अब खुला
है। ऋषि-मुनि आदि सब कहते थे – हम रचता और रचना को नहीं जानते हैं। अब तुम बच्चे ऐसे
नहीं कहेंगे। तुम तो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुम अपने 84 के
चक्र को जान गये हो। आदि में तुम देवी-देवता थे। फिर मध्य में रावण की प्रवेशता होने
से विकारी बन गये हैं। अब है अन्त। तुम जानते हो अभी पुरानी दुनिया का विनाश हो फिर
आदि होगी। आदि में होगा – रामराज्य। मध्य से रावण राज्य शुरू होता है। अब रावण
राज्य पूरा हो फिर रामराज्य शुरू होगा। नर से नारायण बनना है ना। यह है सत्य नारायण
की कथा। तुम जानते हो – सर्व शास्त्र मई शिरोमणी श्रीमत गीता है। श्रीमत मिलती है –
श्रेष्ठ बनने के लिए। श्री कहते हैं श्रेष्ठ को। बच्चे जानते हैं एक गीता शास्त्र
है जिसे देवी-देवता धर्म का शास्त्र कहा जाता है, जिससे देवता धर्म की स्थापना होती
है, संगम पर। सतयुग में तो कोई पतित होते नहीं जो पावन बनायें। अब तुमको बाप समझाते
हैं गीता को पतित-पावनी कह नहीं सकते। गीता द्वारा पावन नहीं बन सकते हैं। गीता के
भगवान को पतित-पावन कहते हैं। यह अच्छी रीति याद करो। गीता है आदि सनातन देवी-देवता
धर्म का शास्त्र। गीता के समय ही महाभारी महाभारत लड़ाई भी लगी थी, जिससे अनेक धर्म
विनाश हुए और एक धर्म की स्थापना हुई। गीता के लिए कहते हैं – देवी-देवता धर्म का
शास्त्र। ब्राह्मणों का शास्त्र नहीं कहते हैं। ब्राह्मणों का नाम गीता में है नहीं।
परमपिता परमात्मा ही आकर ब्रह्मा द्वारा इन सभी वेदों शास्त्रों आदि का सार बताते
हैं। अब तुम समझते हो सतयुग में तो ब्राह्मण होते नहीं। वहाँ हैं लक्ष्मी-नारायण,
देवतायें, ब्रह्मा के बाद है विष्णु। चित्रों में भी दिखाया है – ब्रह्मा द्वारा
स्थापना विष्णुपुरी की। ब्रह्मा और विष्णु इकट्ठे तो नहीं होंगे। ब्रह्मा द्वारा
देवी-देवता धर्म की स्थापना होगी। यह डिटेल में समझने की बातें हैं। अभी तुम बच्चे
शिवबाबा से स्वर्ग का वर्सा लेते हो। हकदार ठहरे ना! मुख्य धर्म शास्त्र हैं 4,
श्रीमत भगवत गीता है नम्बरवन शास्त्र जिससे नम्बरवन धर्म की स्थापना होती है। फिर
होते हैं इस्लामी, बौद्धी। एक गीता ही है – जिसमें श्रीमत भगवत गीता लिखा हुआ है और
कोई शास्त्र में श्रीमत नहीं है। श्रीमत इस्लामी वा श्रीमत बौद्धी शास्त्र नहीं गाया
जाता। श्रीमत भगवत गीता है ही एक। उससे कौन सा धर्म स्थापन किया? आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई और स्थापना होती है अन्त में। यह समझने की बातें
हैं। अभी बाबा हमको टीचर के रूप में पढ़ाते हैं – यह बुद्धि में रहना चाहिए। बाबा
हमारा बाप है और टीचर भी है। बाबा पढ़ाई से सर्व की सद्गति करते हैं तो सतगुरू भी
ठहरा। बाप को सभी याद करते हैं। अब गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है। वह तो ज्ञान
का सागर है नहीं। उनको ज्ञान के सागर बाप ने ऐसा बनाया है तो वह टीचर भी है। यहाँ
तुम नई बातें सुनते हो, शास्त्र आदि तो बहुत पढ़ते सुनते आये। अब तुम बाप द्वारा
डायरेक्ट सुनते हो। आगे सब शरीरधारी मनुष्यों द्वारा सुना था। अभी तुम समझते हो –
हम आत्मा असुल में अशरीरी थे। पीछे फिर शरीर धारण किया है। बाबा भी अशरीरी है।
शिवलिंग बनाते हैं ना। आत्मा शरीर द्वारा उनको पूजती है। पुकारते भी हैं हे परमपिता
परमात्मा आकर हम पतितों को पावन बनाओ। लिंग की पूजा करते हैं परन्तु यह थोड़ेही
समझते हैं कि यह पतित-पावन बाप है, जिसको हम पुकारते हैं। शिव भगवान है, ईश्वर है।
बस ऐसे ही याद करते हैं। उनको बाबा कहें तो बुद्धि में आये कि बाबा से वर्सा मिलना
चाहिए। हमको वर्सा मिला है तब हम पूजते हैं। भारतवासियों को वर्सा मिला जरूर है। कब
मिला, यह भूल गये हैं। अब तुम बच्चे समझते हो, बच्चे कहते हैं हम बाबा के पास आये
हैं। शिवबाबा ब्रह्मा तन में आकर समझाते हैं। त्रिमूर्ति का नाम बाला है। त्रिमूर्ति
मार्ग नाम भी रखा है। बाप की महिमा बहुत है। गीत में भी सुना प्यार का सागर है…,
सर्व का सद्गति दाता है। सर्व को सुख शान्ति देने वाला है। सर्व का दु:ख हर्ता, सुख
कर्ता है। बहुत प्यारा है ना। उनसे प्यारी चीज़ कोई और होती नहीं। जो बाप स्वर्ग का
मालिक बनाये, वह जरूर प्यारा होगा ना। वह है बेहद का बाप। कहते हैं बच्चों मेरे से
स्वर्ग की बादशाही मिलती है ना। तुम आत्मायें भाई-भाई हो। अभी बाप द्वारा सुन रहे
हो। सभी आत्मायें बाप को याद करती हैं, बाबा हमको आकर पावन बनाओ। अब आत्मा कहती है
बाबा आया हुआ है पावन बनाने। कहते हैं बच्चों, 5 हजार वर्ष पहले तुमको पावन बनाने
आया था। अब मुझ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम्हारे सब दु:ख
दूर हो जायेंगे। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ अथवा तालियां बजाते रहते हैं,
रड़ियां मारते रहते हैं पतित-पावन सीताराम… तो खुद पतित ठहरे ना। यह है ही नर्क,
इसको रौरव नर्क कहा जाता है। गरूड़ पुराण में तो रोचक बातें बहुत लिख दी हैं कि यह
करने से यह बनेंगे, यह होगा… फिर कह देते – गऊ का पूँछ पकड़ने से स्वर्ग में चले
जायेंगे। ऐसा कुछ लिखा हुआ है। अब जानवर की तो बात नहीं। तुम गऊ माता हो ना।
तुम्हारी पूँछ अथवा तुम्हारी पीठ जब तक कोई न पकड़े तब तक रास्ता मिल न सके। पूँछ
तो है नहीं। कहते भी हैं तुम्हारी पूँछ पकड़कर तर जायेंगे। अब यहाँ पूँछ तो पकड़ना
नहीं है, परन्तु फालो करना है। संन्यासियों के फालोअर्स तो बहुत हैं परन्तु फालो
करना अर्थात् पवित्र बनना। तुम तो सच्चे-सच्चे फालोअर्स हो। शिवबाबा कहते हैं मैं
आया हूँ तुम सबको वापिस ले जाने। तुम मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे।
पावन बनने बिगर फालो कर नहीं सकेंगे। शिवबाबा को पूरा फालो करना है। तुम यहाँ बैठे
हो – फालो करने के लिए। भक्ति मार्ग में भी मुझे याद करते आये हो। तुम जानते हो
आत्मायें आशिक हैं – परमात्मा माशूक है। आत्मायें उनको याद करती हैं और वह आये हैं
लेने लिए। कहते हैं मुझे फालो करो तो तुम्हारे को साथ ले जाऊंगा। कैसे फालो करो वह
भी समझाते हैं – मैं हूँ पावन, तुम हो पतित। तो जरूर पावन बनना पड़े, जरूर फालो करना
पड़े। विकारी तो फालो कर न सकें। फालो करने के लिए मेरे समान पवित्र बनो। क्या मैं
पतितों को अपने साथ शान्तिधाम ले जाऊंगा। इतने सब मनुष्य भक्ति, तप, दान-पुण्य आदि
करते हैं – मुक्ति पाने के लिए क्योंकि यहाँ दु:ख है और चाहते हैं – हम अपने घर
वापिस जायें। बाप कहते हैं – पवित्र जरूर बनना पड़ेगा। मैं पावन हूँ, तब तो तुमको
पावन बनाता हूँ। आऊंगा भी ब्रह्मा के तन में। मैं रचता हूँ, मैं इस ब्रह्मा के तन
में आता हूँ। दिखाते भी हैं ब्रह्मा द्वारा बाप देवी-देवता धर्म की स्थापना करते
हैं। तुम बी.के. हो। अब जानते हो शिवबाबा को फालो करना है। बाप कहते हैं – मुझे याद
करो तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ – पावन दुनिया में ले चलूँगा। और कोई उपाय है नहीं।
कहते हैं पतित-पावन… या तो दृष्टि ऊपर जाती है या तो पानी के तरफ देखते हैं। गंगा
तो पतित-पावनी है नहीं। यह तो सागर से निकली हुई नदियां हैं। अब पूँछ तो तुम्हारा
पकड़ना चाहिए।
बाप कहते हैं – तुमको पावन बनना है, मेरे को फालो करना है, तब ही साथ चल सकेंगे।
बाप कहते हैं – तुम मेरे साथ रहने वाले थे, अब 84 का चक्र लगाए पतित बने हो। अब फिर
मेरे को याद करो तो पावन बनेंगे। संन्यासी भी गृहस्थी को कहते हैं – फालो करना है
तो घरबार छोड़ो। बाप कहते हैं – मैं परमधाम में रहता हूँ, तुम भी चलेंगे या यहाँ ही
विषय सागर में रहना अच्छा लगता है। तुम तो पुकारते आये हो – हे पतित-पावन आओ। अब
बाप आये हैं साथ ले जाते हैं। कल्प-कल्प आकर तुमको साथ ले जाता हूँ। फिर सतयुग में
तुम बहुत सुखी रहते हो। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे ना। इन्हों को इतना
सुख देने वाला कौन? हेविनली गॉड फादर। बाप याद दिलाते हैं तुम हमारी जयन्ती मनाते
हो। परमपिता परमात्मा की जयन्ती सभी भारतवासी मनाते हैं। हमारा यह बर्थ प्लेस है।
क्रिश्चियन थोड़ेही मानेंगे। वह तो क्राइस्ट को मानेंगे। शिव जयन्ती भारतवासी मनाते
हैं। यह सर्व के पतित-पावन बाप का बर्थ प्लेस है। बाप सबको सुख देने वाला है। सर्व
को लिबरेट करने वाला है। तो भारत कितना ऊंच है।
बाप जानते हैं ड्रामा अनुसार जब हमारे बच्चे बहुत दु:खी हो जाते हैं तब मैं आता
हूँ – वर्सा देने। बाप है ज्ञान का सागर, सुख का सागर… बच्चों को वर्सा दे रहे हैं।
कहते हैं मुझे फालो करो। यह जानते हो हम आत्मा विकारी हैं इसलिए शरीर भी विकारी ही
है। सतयुग में आत्मा पवित्र है तो शरीर भी पवित्र मिलता है। अब बाप कहते हैं बच्चे
पावन बनो। याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने के लिए “मैं आत्मा भाई-भाई हूँ” – यह
पक्का करना है। बहुत प्यार से रहना है। जैसे बाप प्यारे ते प्यारा है, ऐसे प्यारा
बनना है।
2) बाप समान पावन बनकर बाप को पूरा-पूरा फालो करना है। बाप के साथ वापिस घर
शान्तिधाम चलने के लिए पावन जरूर बनना है।