ओम् शान्ति।
अब यहाँ पाप आत्मायें तो सभी हैं, पुण्य आत्मायें होती ही हैं स्वर्ग में। यह है
पाप आत्माओं की दुनिया, यहाँ हैं अजामिल जैसी पाप आत्मायें और वह है स्वर्ग के
देवताओं की, पुण्य आत्माओं की दुनिया। दोनों की महिमा अलग-अलग है। हर एक जो
ब्राह्मण है वह अपने इस जन्म की जीवन कहानी बाबा पास लिख भेजते हैं कि इतने पाप किये
हैं। बाबा के पास सबकी जीवन कहानी है। बच्चों को पता है कि यहाँ सुनना और सुनाना
है। तो सुनाने वाले कितने ढेर चाहिए। जब तक सुनाने वाले नहीं बने हैं तब तक पास हो
न सकें। और सतसंगों में ऐसे सुनकर फिर सुनाने के लिए बांधे हुए नहीं हैं। यहाँ धारणा
कर फिर करानी है, फालोअर्स बनाने हैं। ऐसे नहीं एक ही पण्डित कथा सुनायेगा, यहाँ हर
एक को माँ-बाप समान बनना है। औरों को सुनायें तब पास हो और बाप की दिल पर चढ़े।
नॉलेज पर ही समझाया जाता है। वहाँ तो सब कहेंगे श्रीकृष्ण भगवानुवाच, यहाँ कहा जाता
है ज्ञान सागर पतित-पावन गीता ज्ञान दाता शिव भगवानुवाच। राधे-कृष्ण वा
लक्ष्मी-नारायण को भगवान्-भगवती नहीं कहा जा सकता, लॉ नहीं। परन्तु भगवान् ने उन्हों
को पद दिया है तो जरूर भगवान् भगवती ही बनायेंगे इसलिए नाम पड़ा है। तुम अब विजय
माला में पिरोने का पुरूषार्थ कर रहे हो। माला तो बनती है ना। ऊपर में है रूद्र।
रूद्राक्ष की माला होती है ना। ईश्वर की माला यहाँ बन रही है। यह कहते हैं हमारे
तीर्थ न्यारे हैं। वह तो बहुत धक्के खाते हैं तीर्थों पर। तुम्हारी बात ही न्यारी
है। तुम्हारी बुद्धि का योग शिवबाबा के साथ है। रूद्र के गले का हार बनना है। माला
के राज़ को भी जानते नहीं। ऊपर में है शिवबाबा फूल, फिर है जगत अम्बा, जगत पिता और
उनकी 108 वंशावली। बाबा ने देखा है बहुत बड़ी माला होती है। फिर सभी उसको खींचते
हैं। राम-राम कहते हैं। लक्ष्य कुछ नहीं। रूद्र माला फेरते हैं, राम-राम की धुनि लगा
देते हैं। यह सब हुआ भक्ति मार्ग। यह फिर भी और बातों से ठीक है, उतना समय कोई पाप
नहीं होगा। पापों से बचाने की यह युक्तियां हैं। यहाँ माला फेरने की बात नहीं है।
स्वयं माला का दाना बनना है। तो हमारे तीर्थ न्यारे हैं। हम अव्यभिचारी राही हैं -
अपने शिवबाबा के घर के। योग से हमारे जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म होते हैं।
श्रीकृष्ण को कोई दिन-रात याद करे परन्तु विकर्म कदापि विनाश हो न सकें। राम-राम कहा
तो उस समय पाप नहीं होगा, फिर पाप करने लग पड़ेंगे। ऐसे नहीं, पाप कटते हैं या आयु
बढ़ती है। यहाँ योगबल से तुम बच्चों के पाप भस्म होते हैं और आयु बढ़ती है।
जन्म-जन्मान्तर के लिए आयु अविनाशी हो जाती है।
मनुष्य से देवता बनना - इसको ही जीवन बनाना कहा जाता है। देवताओं की कितनी महिमा
है। अपने को कहेंगे हम नीच पापी हैं.... तो जरूर सब ऐसे होंगे। गाते भी हैं मुझ
निर्गुण हारे में कोई गुण नाही, आप ही तरस परोई....। यह परमात्मा की महिमा करते
हैं। वह तुमको सर्वगुण सम्पन्न श्रीकृष्ण समान बना देते हैं। तुम अब बन रहे हो। इसके
आगे कोई गुण नहीं है। एक निर्गुण बालक की संस्था भी है। अर्थ नहीं समझते - निर्गुण
किसको कहते हैं। तुम बच्चे जानते हो श्रीकृष्ण वा लक्ष्मी-नारायण के गुणों की ही
महिमा गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न... अब फिर तुम वह बन रहे हो। और कोई सतसंग ऐसा नहीं
होगा जहाँ ऐसे कहें। यहाँ बाप पूछते हैं तुम लक्ष्मी-नारायण को वरेंगे वा राम-सीता
को? बच्चे भी बेसमझ तो नहीं हैं। झट कहते हैं बाबा हम तो पूरा इम्तहान पास करेंगे।
शुभ बोलते हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि सभी एक समान बन सकेंगे। फिर भी हिम्मत दिखाते
हैं। मम्मा-बाबा हैं शिवबाबा के मुरब्बी बच्चे। हम उनको पूरा फालो कर गद्दी पर
बैठेंगे। यह शुभ कामना अच्छी है। फिर इतना पुरूषार्थ करना चाहिए। इस समय का
पुरूषार्थ कल्प-कल्प का बन जायेगा, गैरन्टी हो जायेगी। अब के पुरूषार्थ से पता
पड़ेगा कि कल्प पहले भी ऐसे किया था। कल्प-कल्प ऐसा पुरूषार्थ चलेगा। जब इम्तहान
होने का समय होता है तो पता पड़ जाता है - हम कहाँ तक पास होंगे। टीचर को तो झट पता
लग जाता है। यह है नर से नारायण बनने की गीता पाठशाला और गीता पाठशालाओं में ऐसे कभी
नहीं कहेंगे कि हम नर से नारायण बनने आये हैं, ना टीचर ही कह सकते हैं कि मैं नर से
नारायण बनाऊंगा। पहले तो टीचर को नशा चाहिए कि मैं भी नर से नारायण बनूँगा। गीता के
प्रवचन करने वाले तो ढेर होंगे। परन्तु कहाँ भी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम शिव-बाबा
द्वारा पढ़ते हैं। वो तो मनुष्यों द्वारा पढ़ते हैं। तुम तो जानते हो ऊंच ते ऊंच है
परमपिता परमात्मा शिव, जो ही स्वर्ग का रचयिता नॉलेजफुल है, वही आकर पतितों को पावन
बनाते हैं। गुरु नानक ने भी उनकी महिमा गाई है - जप साहेब को तो सुख मिले। अब तुम
जानते हो ऊंचे से ऊंचा सच्चा साहेब वह है, वह खुद कहते हैं मुझ बाप को याद करो। मैं
तुम्हें सच्ची अमरकथा, तीजरी की कथा सुनाता हूँ। तो यह नॉलेज है तीसरा नेत्र मिलने
की वा नर से नारायण बनने की। हे पार्वतियां, मैं अमरनाथ तुमको अमरकथा सुना रहा हूँ।
ऊंचे से ऊंचा शिवबाबा है फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, फिर स्वर्ग में लक्ष्मी-नारायण,
फिर चन्द्रवंशी...नम्बरवार चले आओ। समय भी सतो-रजो-तमो होता है। यह बातें कोई भी नहीं
जानते। बाबा बहुत गुह्य बातें सुना रहे हैं। आत्मा में अविनाशी पार्ट है। एक-एक
जन्म का पार्ट भरा हुआ है। वह कभी विनाश को नहीं पाता है। बाप कहते हैं मेरा पार्ट
भरा हुआ है, तुम सुखधाम में रहते हो तो हम शान्तिधाम में हैं। सुख और दु:ख तुम्हारे
नसीब में है। सुख और दु:ख में कितने-कितने जन्म मिलते हैं, वह भी समझा दिया है। मैं
तुम्हारा निष्कामी बाप हूँ। तुम सबको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। अगर मैं भी पतित
बनूं तो तुमको पावन कौन बनाये? सभी की पुकार कौन सुने? पतित-पावन किसको कहें? यह
बाप समझाते हैं, कोई गीता-पाठी ऐसे नहीं समझा सकते, वो तो त्रिलोकी का अर्थ
भिन्न-भिन्न प्रकार से करते हैं। मनुष्य कहते हैं वेद-शास्त्रों से भगवान् से मिलने
का रास्ता मिलता है। बाप कहते यह सब शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के लिए। ज्ञान मार्ग
वालों के लिए शास्त्र हैं नहीं। ज्ञान सुनाने वाला ज्ञान सागर मैं हूँ। बाकी सब है
भक्ति मार्ग की सामग्री। मैं ही आकर इस ज्ञान से सर्व को सद्गति देता हूँ। वह तो
समझते हैं बुदबुदा पानी से निकल फिर समा जाता है। परन्तु मिलने की तो बात ही नहीं।
आत्मा इमार्टल है, वह कभी जलती, कटती, घटती नहीं। बाप इन सभी बातों की समझानी देते
हैं। तुम बच्चों को पैर से चोटी तक खुशी रहनी चाहिए - हम योगबल से विश्व के मालिक
बन रहे हैं। यह खुशी भी नम्बरवार है। एकरस हो नहीं सकती। इम्तहान भल एक ही है,
परन्तु पास भी कर सकें ना। राजधानी स्थापन हो रही है, उसका प्लैन बता देते हैं।
सूर्यवंशी में इतनी गद्दी, चन्द्रवंशी में इतनी गद्दी, जो नापास होते हैं वह हैं
दास-दासी। दास-दासियों से फिर नम्बरवार राजा-रानी बनते हैं। अनपढ़े अन्त में पद पाते
हैं। बाबा समझाते तो बहुत हैं, कुछ भी न समझो तो पूछ सकते हो। विवेक कहता है नहीं
तो वह कहाँ जन्म लेते, वहाँ भी कोई कम सुख है क्या। बड़ा मान रहता है। बड़े महलों
के अन्दर रहते हैं। बड़े-बड़े बगीचे होते हैं। वहाँ दो तीन मंजिल बनाने की दरकार नही
रहती। जमीन बहुत पड़ी रहती है। पैसे की कमी नहीं, बड़ा शौक रहता है बनाने का। जैसे
यहाँ मनुष्यों को शौक रहता है ना। न्यू देहली बनाई तो वह समझते, यह नया भारत है।
वास्तव में तो नया भारत स्वर्ग को, पुराना भारत नर्क को कहा जाता है। वहाँ जितना
जिसको चाहिए.... होगा तो सब ड्रामा अनुसार। महल आदि जो कल्प पहले बनाये होंगे, वही
बनेंगे। यह ज्ञान दूसरा कोई समझ न सके परन्तु जिसकी तकदीर में है, उनकी बुद्धि में
ही बैठता है। बच्चों को पुरूषार्थ करना है, पूरा योग में रहना है। भक्ति मार्ग में
श्रीकृष्ण के योग में ही रहते आये, स्वर्ग के मालिक तो बने नहीं। अब तो स्वर्ग
तुम्हारे सामने है। तुम परमपिता परमात्मा की बायोग्राफी, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की
बायोग्राफी भी जानते हो। ब्रह्मा कितने जन्म लेते हैं, यह तुमको मालूम है।
बाप कहते हैं यह मातायें स्वर्ग का द्वार खोलने वाली हैं, बाकी सब नर्क में पड़े
हुए हैं। मातायें ही सबका उद्धार करेंगी। हम परमात्मा की महिमा करते हैं। तुम समझकर
कहते हो शिवबाबा आपको नमस्ते। आप आकर हमें वारिस बनाते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाते
हैं, ऐसे शिवबाबा आपको नमस्ते। बाप को तो बच्चे नमस्ते करते ही हैं। फिर बाप भी कहते
- बच्चे नमस्ते। तुम भी मुझे पाई पैसे का वारिस बनाते हो, कौड़ी का वारिस बनाते हो,
हम तुमको हीरे का वारिस बनाते हैं। शिव बालक को वारिस बनाते हो ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग,
नमस्ते, सलाम मालेकम्। वन्दे मातरम्।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शिवबाबा के घर का अव्यभिचारी राही बन योगबल से विकर्मों को दग्ध करना
है। ज्ञान का सिमरण कर अपार खुशी में रहना है।
2) बाप समान गद्दी नशीन बनने की शुभ कामना रखते हुए बाप को पूरा फालो करना है।