13-09-09  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 18-03-71 मधुबन

 

विजयी बनने के लिए संग्रह और संग्राम की शक्ति आवश्यक

 

आज विशेष भट्ठी वालों के लिए बुलाया है। भट्ठी वालों ने क्या-क्या धारणायें की हैं - वह देख रहे हैं। आज खास दो बातों की धारणायें हरेक के इस साकार चित्र द्वारा देख रहे हैं। दो शक्तियों की धारणाएं देख रहे हैं कि कहां तक हरेक ने अपनी यथा शक्ति धारणा की हैं। वह दो शक्तियां कौनसी देख रहे हैं? एक तो संग्रह करने की शक्ति और दूसरी संग्राम करने की शक्ति। संग्रह करने की शक्ति भी अति आवश्यक है। तो जो भट्ठी में ज्ञान-रत्नों की धारणा मिली है, उसको बुद्धि में संग्रह रखना और इस संग्रह करने से ही लोक-संग्रह कर सकेंगे। इसलिये संग्रह करने की और फिर संग्राम करने की शक्ति-दोनों ही जरूरी हैं। दोनों शक्तियां धारण की हैं? दोनों में कोई की भी कमी होगी तो कमी वाला कभी भी सदा विजयी नहीं बन सकता। जिसमें जितनी संग्रह करने की शक्ति है उतनी ही संग्राम करने की भी शक्ति रहती है। दोनों शक्तियाँ धारण करने के लिये भट्ठी में आये हो। तो शक्तिस्वरूप बने हो? भट्ठी से कौनसे वरदान प्राप्त किये हैं? भक्ति-मार्ग में वरदान देते हैं ना - पुत्रवान भव, धनवान भव। लेकिन इस भट्ठी से क्या मुख्य वरदान मिला? शिक्षक बने वा मास्टर वरदाता भी बने? एक वरदान मिला शक्तिवान भव, दूसरा वरदान मिला सदैव अव्यक्त एकरस अवस्था का। इन दोनों वरदानों में दोनों ही बातें समाई हुई हैं। यह दोनों ही वरदान प्राप्त करके सम्पत्तिवान बनकर अपना प्रैक्टिकल सबूत दिखाने लिये जाना है। ऐसे नहीं समझना कि घर जा रहे हैं वा अपने स्थान पर जा रहे हैं। लेकिन जो शक्तियां वा वरदान लिये हैं उन्हों को प्रैक्टिकल करने के लिए विश्व स्टेज पर जा रहे हैं, ऐसे समझना है। स्टेज पर एक्टर को कौनसी मुख्य बातें ध्यान में रहती हैं? अटेन्शन और एक्यूरेसी - यह दोनों ही बातें याद रहती हैं। ऐसे ही आप लोग भी अब स्टेज पर एक्ट करके बापदादा को प्रत्यक्ष करने के लिए जा रहे हो। तो यह दोनों ही बातें याद रखना। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में अटेन्शन और एक्यूरेट। नहीं तो बापदादा को प्रत्यक्ष करने का श्रेष्ठ पार्ट बजा नहीं सकेंगे। तो अब समझा, क्या करने जा रहे हो? बापदादा को प्रत्यक्ष करने का पार्ट प्ले करने जा रहे हो। यह लक्ष्य रखकर के जाना। जो भी कर्म करो पहले यह देखो कि इस कर्म द्वारा बापदादा की प्रत्यक्षता होगी? ऐसे भी नहीं कि सिर्फ वाणी द्वारा प्रत्यक्ष करना है। लेकिन हर समय के, हर कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करना है। ऐसे प्रत्यक्ष करो जो सभी आत्माओं के मुख से यह बोल निकले कि यह तो एक- एक जैसे साक्षात् बाप के समान हैं। आपका हर कर्म दर्पण बन जाए, जिस दर्पण से बापदादा के गुणों और कर्त्तव्य का दिव्य रूप और रूहानियत का साक्षात्कार हो। लेकिन दर्पण कौन बन सकेगा? जो न सिर्फ संकल्पों को लेकिन इस देहाभिमान को भी अर्पण करेगा। जो देहाभिमान को अर्पण करता है उसका हर कर्म दर्पण बन जाता है, जैसे कोई चीज अर्पण की जाती है तो फिर वह अर्पण की हुई चीज़ज़ अपनी नहीं समझी जाती है। तो इस देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट जाता है। ऐसे समर्पण हुए हो? ऐसे समर्पण होने वालों की निशानी क्या रहेगी? एक तो सदा योगयुक्त और दूसरा सदा बन्धनमुक्त। जो योगयुक्त होगा वह बन्धन- मुक्त ज़रूर होगा। योगयुक्त का अर्थ ही है देह के आकर्षण के बन्धन से भी मुक्त। जब देह के बन्धन से मुक्त हो गये तो सर्व बन्धन मुक्त बन ही जाते हैं। तो समर्पण अर्थात् सदा योगयुक्त और सर्व बन्धन मुक्त। यह निशानी अपनी सदा कायम रखना। अगर कोई भी बन्धनयुक्त होंगे तो योगयुक्त नहीं कहलायेंगे। जो योगयुक्त होगा तो उनकी परख यह भी होगी - जो उनका हर संकल्प, हर कर्म योगयुक्त होगा। क्योंकि जो भी युक्तियाँ सर्व प्रकार की मिली हैं उन युक्तियों की धारणाओं के कारण युक्तियुक्त और योगयुक्त रहेंगे। समझा, परख की निशानी? इससे अपने आपको समझ सकते हो कि कहाँ तक पहुँचे हैं, इसलिए कहा कि संग्रह और संग्राम की शक्ति, दोनों भरकर जाना। रिजल्ट क्या देखी? सर्टिफिकेट मिला? एक, अपने आप से सेटिस्फाइड होने का सर्टिफिकेट लेना है, दूसरा, सर्व को सेटिस्फाइड करने का सर्टिफिकेट लेना है। तीसरा, सम्पूर्ण समर्पण बनने का।

 

समर्पण यह नहीं कि आबू में आकर बैठ जाएं। तो समर्पण होने का भी सर्टिफिकेट लेना है। चौथा, जो भी ज्ञान की युक्तियाँ मिलीं उनको संग्रह करने की शक्ति का सर्टिफिकेट भी लेना हैं। यह चार सर्टिफिकेट अपनी टीचर से लेकर जाना। कोई बात में 100 मार्क्स भी इस ग्रुप को हैं। वह कौनसी बात? पुरूषार्थ के भोलेपन में 100 प्रतिशत हैं। पुरूषार्थ में भोलापन ही अलबेलापन है। और एक विशेष गुण भी है। वह यह है कि सभी को अपने में परिवर्तन करने की तीव्र इच्छा ज़रूर है। इसलिए बापदादा इस ग्रुप को उम्मीदवार ग्रुप समझते हैं। लेकिन उम्मीदें तब पूरी कर सकेंगे जब सदैव नम्रचित्त होकर चलेंगे। उम्मीदवार क्वालिटी हो लेकिन जो क्वालिटीज़ ज़ मिली हैं उनको धारण करते चलेंगे तो प्रत्यक्ष सबूत दे सकेंगे। समझा?

 

ज्ञान का साज सुनने में और राज सुनने में अच्छा है, लेकिन अब क्या करना है? राजयुक्त बनना है। योग अच्छा है लेकिन योगयुक्त बनना है। बन्धनमुक्त बनने की इच्छा है लेकिन पहले देह-अभिमान का बन्धन तोड़ना है। फिर सर्व बन्धनमुक्त आपेही बन जायेंगे। समझा? अभी यही कोशिश करना। सबूतमूर्त्त और सपूत बनना है। शक्तिवान और सम्पत्तिवान बने हो? हरेक ने अपने आप से प्रतिज्ञा भी की है। जो प्रतिज्ञा की जाती है उसको पूर्ण करने के लिए पावर भी अवश्य इकट्ठी करेंगे। कितना भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा को पूरा करना ही है। ऐसी प्रतिज्ञा की है? भले सारे विश्व की आत्माएं मिलकर भी प्रतिज्ञा से हटाने की कोशिश करें, तो भी प्रतिज्ञा से नहीं हटेंगे लेकिन सामना करके सम्पूर्ण बनकर के ही दिखायेंगे। ऐसी प्रतिज्ञा करने वालों का यादगार बना हुआ है - अचलघर। तो सदैव यह याद रखना कि जैसा हमारा यादगार है वैसा अब बनना ही है। यह तो सहज है ना। स्थूल निशानी को याद रखने से नशा और निशाना याद रहेगा। यह ज़रूर अपने को समझना है कि सारे विश्व से चुने हुए हम विशेष आत्मायें हैं। जितनी विशेष आत्मायें उतनी उनके हर कर्म में विशेषता होती है। विशेष आत्मा हो ना। कम नहीं हो।

 

सभी मधुबन-निवासियों को अपने को प्रैक्टिकल विशेष आत्माएं दिखाकर अपने इस ग्रुप का नाम बाला करना है। ऐसा ही लक्ष्य रखना कि कहेंगे कम, लेकिन करके दिखायेंगे। आपके इस ग्रुप की यह विशेषता देखेंगे। स्टेज पर जाकर ऐसा पार्ट बजाना जो सभी वन्स मोर (once more; एक बार और) भी करें। समझा? आपकी निमित्त टीचर आपके ग्रुप को बार-बार निमंत्रण दें। और ग्रुप्स को एक एग्जाम्पल बनकर दिखाना है। कोई अच्छा कर्म करके जाता है तो वह बार-बार याद आता है। तो यह ग्रुप भी ऐसा कमाल करके दिखाये। अच्छा।

 

वरदान:- चलन और चेहरे से पवित्रता के श्रृंगार की झलक दिखाने वाले श्रंगारी मूर्त भव

 

पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रंगार है। हर समय पवित्रता के श्रंगार की अनुभूति चेहरे वा चलन से औरों को हो। दृष्टि में, मुख में, हाथों में, पांवों में सदा पवित्रता का श्रंगार प्रत्यक्ष हो। हर एक वर्णन करे कि इनके फीचर्स से पवित्रता दिखाई देती है। नयनों में पवित्रता की झलक है, मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट है। और कोई बात उन्हें नज़र न आये – इसको ही कहते हैं – पवित्रता के श्रंगार से श्रंगारी हुई मूर्त।

 

स्लोगन:- व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क भी एकाउन्ट को खाली कर देता है इसलिए व्यर्थ को समाप्त करो।

 

ओम् शान्ति 22-07-09 मधुबन

 

टीचर्स बहिनों की भट्ठी के दूसरे ग्रुप प्रति प्राण अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश (गुल्ज़ार दादी)

 

आज आप सब बाबा की सिकीलधी टीचर्स की यादप्यार लेते हुए वतन में बापदादा के पास पहुंची तो सदा के सदृश्य दूर से बापदादा स्नेह भरी दृष्टि और मधुर मुस्कान से मिलन मना रहे थे। मैं भी अलौकिक मिलन मनाते सम्मुख पहुंच गई और बापदादा के अमूल्य बांहों के हार में समा गई।

 

कुछ समय के बाद बाबा बोले बच्ची, आज क्या समाचार लाई हो? मैं बोली बाबा आज तो। आपकी सेवा साथी टीचर्स का यादप्यार लाई हूँ। बाबा बोले, बापदादा भी चक्कर लगाते देखते हैं कि बच्चों में यहाँ भट्ठी में उमंग और हिम्मत बहुत अच्छी है। दृढ़ संकल्प भी करते हैं लेकिन यही उमंग, हिम्मत सदा रहे, इसके लिए बच्चों को अब स्व के ऊपर बार-बार अटेन्शन रखने की आवश्यकता है जिससे बेहद का वैराग्य आवे और चलते फिरते स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा बन, करावनहार बनकर कर्मेन्द्रियों से हर कर्म करावें क्योंकि बच्चे जानते हैं कि अब समय प्रमाण फास्ट पुरुषार्थ और फास्ट सेवा की आवश्यकता है, इसलिए बापदादा ने फास्ट गति की सेवा का सहज साधन बताया है कि चलते फिरते समय निकाल मन्सा द्वारा विश्व की आत्माओं को सुख शान्ति की अंचली दो, यही फास्ट पुरुषार्थ वा फास्ट सेवा की सहज विधि है। इसमें पुरुषार्थ की सफलता और सेवा दोनों समाई हुई हैं, इसमें ही बिजी रहने से समस्यायें भी समाप्त हो जाती हैं और मन का प्रभाव वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध सम्पर्क पर भी सहज पड़ता है इसलिए बापदादा की यही। आशा है कि यह ग्रुप भल दूसरा है लेकिन इसे इस फास्ट सेवा में नम्बरवन लेकर दिखाना है, तो सब ब्राह्मण परिवार और बापदादा, दादियाँ वाह वाह करेंगे। बोलो, बापदादा की आशाओं के दीपक ग्रुप, इतनी हिम्मत और उमंग उत्साह वाले बच्चे हो ना! तो फास्ट पुरुषार्थ में आगे बढ़कर दिखाओ।

 

उसके बाद बाबा बोले, बाप को तो हर बच्चा अति प्यारा है इसलिए इस ग्रुप को भी बाबा वतन में बुलाता है। बस बाबा का कहना था और सारा ग्रुप वतन में इमर्ज हो गया। सभी अर्ध चन्द्रमा के रूप में दो लाइनों में खड़े हो गये। सारे ग्रुप को बापदादा बहुत स्नेह से दृष्टि दे रहे थे और सभी बहिनें भी स्नेह में लवलीन थी। बाबा बोले, बच्ची इन्हों को भी वतन का सैर कराते हैं। तो सब बाबा के साथ चलते चलते लाइट की पहाड़ी पर पहुंच गये। फिर बाबा ने कहा कि आज बापदादा आप सभी बच्चों को अनुभव करके दिखाता है कि विश्व की दुःखी अशान्त आत्माओं को सुख शान्ति की किरणें कैसे देनी हैं! तो क्या देखा कि बाबा के दोनों नयनों द्वारा और मस्तक से किरणें निकल रही थी, जो पहाड़ी के नीचे खड़ी हुई दुःखी अशान्त आत्माओं तक पहुंच रही थी। बाबा बोले, अब आप सभी भी ऐसे अपने मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में स्थित होकर लाइट माइट दो। तो आप सभी के नयनों और मस्तक द्वारा भी किरणें निकलने लगी। यह अभ्यास बाबा ने सभी को अनुभव कराया, आप सभी भी बहुत-बहुत शक्ति रूप में थे। थोड़े समय के बाद बाबा बोले, ऐसे अभ्यास सदा करते रहना कि मैं मास्टर शक्ति दाता की बच्ची शक्ति देने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो विश्व परिवर्तन और स्व परिवर्तन हो ही जायेगा। ऐसे सभी को अनुभव कराया और साथ में एक एक को अपनी बांहों में समाते, दृष्टि देते टोली खिलाई और वतन से विदाई दी। हमें भी विदाई दी, हम स्थूल वतन में पहुंच गई। अच्छा ओम् शान्ति।