05-11-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे – बाप की गति सद्गति करने की मत वा राय सबसे न्यारी है, इसलिए गाते हैं तेरी गत मत तुम ही जानो, वह स्वयं अपनी मत देते हैं”‌

प्रश्नः-
ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने के अधिकारी कौन? उनका स्वभाव कैसा होगा?

उत्तर:-
जो बाप समान मीठे और प्यारे हैं, जो कभी मतभेद में नहीं आते, वही ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने के अधिकारी हैं। बी.के. का स्वभाव बहुत-बहुत मीठा होना चाहिए। अन्दर जरा भी कडुवापन अथवा देह-अभिमान न हो।

गीत:-
ओम् नमो शिवाए…

ओम् शान्ति। सब सेन्टर्स के नूरे रत्नों को बेहद का बाप समझा रहे हैं, सेन्टर्स वाले बच्चे समझेंगे और सुन सकेंगे कि बाप क्या समझाते हैं। देखो, इस दुनिया में हर एक को हर एक के लिए ऩफरत है। गोरों को कालों के लिए ऩफरत है। समझते हैं यह हमारे गांव से निकल जायें इतनी ऩफरत आती है। इतने धर्म वाले हैं, सब एक दो से लड़ते झगड़ते रहते हैं। यह है ही रावण का राज्य, उनका अब अन्त है। मनुष्य तो जानते नहीं, पुकारते रहते हैं कि हे पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता, हे लिबरेटर आओ। दु:ख तो सबको है ही। बुद्धि भी कहती है कि इनको हेविन तो नहीं कहेंगे। स्वर्ग ही सबको याद आता है, तो जरूर अभी नर्क है। नई दुनिया थी जरूर, फिर वह शान्ति के बाद सुख की दुनिया आयेगी जरूर। वहाँ इस दु:खधाम का नाम निशान नहीं होगा। अभी फिर सुख-शान्ति का नाम निशान नही है। 5 हज़ार वर्ष पहले सुखधाम था। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में रहती थी। यह भी तुम अब समझते हो जबकि तुमको परमपिता परमात्मा ने समझाया है। कहते भी हैं शल तुमको ईश्वर समझ देवे। ऐसे नहीं कहेंगे कि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अच्छी मत दें। ईश्वर का ही नाम लेते हैं। तो जरूर है कोई। इस समय ईश्वर ने ही मत दी होगी और साकार में ही आकर दी होगी। लिखा हुआ है श्रीमत भगवानुवाच सिर्फ नाम कृष्ण का डाल दिया है। वास्तव में है निराकार भगवान की मत। तो जरूर नई दुनिया स्थापन हुई होगी। भगवान ने तो सारी दुनिया में फेरा नहीं लगाया होगा? न सारी दुनिया आ सकती है। न भगवान सबके पास जा सकता है। न सब परमात्मा के सम्मुख हो सकते हैं। कितने ढेर मनुष्य हैं। कोई बड़ा आदमी आता है, उनको भी कोई सब थोड़ेही देख सकेंगे। इतनी सब मनुष्यात्माओं को बाप आकर गति वा सद्गति देते हैं। शान्तिधाम और सुखधाम अलग-अलग हैं। सुखधाम में अशान्ति नहीं होती। दु:खधाम में फिर शान्ति नहीं होती। यह सब बातें बाप समझाते हैं, जो कोई शास्त्र में नहीं होंगी। भगवान को कहा जाता है नॉलेजफुल, वह सब कुछ जानते हैं। उनकी गति वा सद्गति की मत सबसे न्यारी है। गाते भी हैं हे प्रभू तुम्हरी गत मत तुम ही जानो। जब तुम बताओ तब ही हम जानें। तो जरूर उनको आना पड़े, नहीं तो सद्गति कैसे दे। सर्व का सद्गति दाता और सर्व का बाप वह है। सब आपस में भाई-भाई हैं, न कि बाप ही बाप हैं। यह समझ की बात है। परन्तु आसुरी मत ने जो सुनाया वह मान लिया। सब आसुरी मत के अधीन हैं। तुम्हारे पास अब कितनी रोशनी है। यह लक्ष्मी-नारायण जो इतनी ऊंच सद्गति को पाये हुए हैं, उन्हों में भी यह नॉलेज नहीं रहती। त्रिकालदर्शी बाप है, उन द्वारा यह राज्य पाया है। बाप किन्हों को आकर त्रिकालदर्शी बनाते हैं? जरूर बच्चों को ही बनायेंगे। सगे बच्चों को सिखायेंगे फिर उन द्वारा और सीखेंगे। बाप का बच्चा ब्रह्मा। ब्रह्मा के बच्चे तुम ब्राह्मण। विष्णु वा शंकर के बच्चे नहीं कहा जाता। गायन है प्रजापिता ब्रह्मा तो यह ब्रह्मा भी पिता, शिव भी पिता। दोनों बाप ठहरे। जरूर ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचेंगे। गायन भी है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की स्थापना। अनेक धर्म मनुष्यों के हैं तो एक धर्म भी मनुष्यों का था। मनुष्यों की बात है। जानवरों की तो हो न सके। बाबा ने समझाया है पहला प्रश्न पूछो कि पतित-पावन कौन? परमपिता परमात्मा या गंगा जल? एक फैंसला करो। फिर इतने मेले आदि पर जो भटकते हैं, उनसे छूट जायेंगे। कहते हैं पतित-पावन, तो बुद्धि ऊपर जाती है। पतित-पावनी गंगा कहने से फिर बुद्धि पानी की तरफ चली जाती है। ज्ञान अमृत नाम सुना है तो गंगाजल को अमृत समझते हैं। तो सबसे मुख्य प्रश्न यह है।

बाबा युक्तियां बहुत बताते हैं परन्तु किसको याद भी पड़े। बच्चे लिखते हैं बहुत प्रभावित हुआ परन्तु बुद्धि में बैठा कुछ भी नहीं। सिर्फ इतना समझते हैं ब्रह्माकुमारियां अच्छा रास्ता बताती हैं। घर गये खलास इसलिए प्रदर्शनी में जब आते हैं तो एक-एक बात पर अच्छी तरह समझाकर लिखाना चाहिए। सैकड़ों आते हैं, कोई की बुद्धि में एक बात भी नहीं ठहरती। बाबा के पास ऐसा समाचार नहीं आता है कि इन-इन मुख्य बातों पर भाषण किया। यह स्कूल है, टीचर पूछता है तो स्टूडेन्ट को जवाब देना पड़ता है। तुम टीचर होकर पूछेंगे तो जवाब देंगे। बच्चे बहुत खुश होते हैं। तुम बच्चे उतरती कला और चढ़ती कला पर भी समझाते हो। कोई मुक्ति में गये, कोई जीवनमुक्ति में गये, सबका भला हो गया। सबकी चढ़ती कला हो गई। अब फिर उन सतोप्रधान सतयुग वालों को तमोप्रधान में नीचे जरूर आना है। तो यह भी दिखाना पड़े कि द्वापर से उतरती कला होती है। चढ़ती कला, उतरती कला का भी स्लाइड है। परन्तु बच्चे समझाते नहीं। हर एक बात पूछना चाहिए यह पढ़ाई है, टीचर होकर बैठना चाहिए। बाकी भाषण किया, स्टेज पाट्री बना, यह तो कामन है। यहाँ तो हर एक बात पूछनी है। सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन बाप एक है वा सर्वव्यापी है? अगर सर्वव्यापी है तो फिर बाप कैसे ठहरा? बताओ, पतित-पावन, ज्ञान का सागर गीता का भगवान है या श्रीकृष्ण? भगवान किसको कहेंगे? जरूर निराकार को कहेंगे। इस हिसाब से गीता खण्डन हो गई। गीता माई बाप खण्डन तो सब शास्त्र खण्डन हो गये। तुम सिद्धकर बताओ कि सारी दुनिया झूठी है, सब पत्थरबुद्धि हैं। पारसबुद्धि होते ही हैं सतयुग में। पत्थरबुद्धि हैं तब तो बाबा आकर पारसबुद्धि बनाते हैं। जो पारसबुद्धि थे वही आकर पत्थरबुद्धि बने हैं, जबकि सृष्टि का भी अन्त है। बीच के टाइम में हम कह नहीं सकते कि तुच्छ बुद्धि वा तमोप्रधान हैं। पिछाड़ी में सब तमोप्रधान बनते हैं। क्रिश्चियन धर्म आया तो ऐसे नहीं कहेंगे कि तमोगुणी थे। नहीं। उनको भी सतो, रजो, तमो से पास करना है। इस समय सारा झाड जड़जड़ीभूत है। इनका विनाश होना है। इस पर अच्छी रीति भाषण करना है। ऐसे नहीं जो आया सो बोल दिया। बड़े अक्षरों में यह पहेली लगा दो, जो सब पढ़ें कि गीता का भगवान पुनर्जन्म रहित, ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा या श्रीकृष्ण? भगवान ने ही गीता रची और पतितों को पावन बनाया। याद भी उनको करते हैं। अब कृष्ण की आत्मा भी पावन बन रही है। इस बात को उठाते नहीं हैं। 5 विकारों के डायलाग बहुत करते हैं। विहंग मार्ग की सर्विस करनी चाहिए। अपने को अक्लमंद बहुत समझते हैं परन्तु ख्याल करना चाहिए कि अक्लमंद कैसे हो सकते हैं? अभी तो कच्चे हैं। हर एक मर्चेन्ट, हर एक धर्म वालों को तुम्हें अलग-अलग निमंत्रण देना है। रामकृष्ण वालों का बड़ा मठ है। हरिजन की भी एसोशियेसन है, उनके जो मुख्य हैं सबको निमंत्रण देकर बुलाना चाहिए। ऐसे काम करने वाले कोई हों जो इसमें लगे रहें। आपस में राय करनी चाहिए। बाप श्रीमत देते हैं। मुख्य प्रोब की बात उठानी है। तुम माताओं को अच्छी तरह ललकार करनी चाहिए। कमजोर नहीं बनना चाहिए। लेकिन कई ब्राह्मणों की भी आपस में नहीं बनती है। मतभेद के कारण आपस में बात भी नही करते हैं। देह-अभिमान बहुत है। रामराज्य में जाने के लिए तो लायक बनना पड़े ना। यह है ईश्वरीय राज्य, इसमें आसुरी स्वभाव वाले रह न सकें। उनको बी.के. कहलाने का भी हक नहीं है। बाप कितना मीठा प्यारा है, तो बाप समान बनना चाहिए। कोई-कोई बच्चे कितने कड़ुवे बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं यह तो जंगली कांटे हैं। तो एक-एक बात पर अच्छी तरह पूछकर फिर लिखाना चाहिए। पतित-पावन परमात्मा या गंगा? सर्व का सद्गति दाता परमपिता परमात्मा या पानी की गंगा? ऐसे चित्र बनाने चाहिए। प्रोजेक्टर में भी पहेलियां आ सकती हैं। अब जज़ करो गीता का भगवान कौन? बाप तो डायरेक्शन देते हैं। पहली मूल बात सिद्ध करो। अल्फ को जाना तो सब कुछ जान जायेंगे। बीज को जानने से झाड़ को जान जायेंगे। तुम बच्चों को बहुत मेहनत करनी है, सिर्फ कहते हैं बी.के. बहुत अच्छी सर्विस कर रही हैं, मनुष्यों को लाभ लेना चाहिए। आता एक भी नहीं है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आपस में राय कर विंहग मार्ग की सेवा करनी है। कभी मतभेद में नहीं आना है।

2) टीचर बन सभी को अल्फ की पहचान देनी है। चढ़ती कला और उतरती कला का राज़ समझाना है। ज्ञान की पहेलियां पूछकर सत्यता को सिद्ध करना है।

वरदान:-
सत्यता के साथ सभ्यता पूर्वक बोल और चलन से आगे बढ़ने वाले सफलतामूर्त भव

सदैव याद रहे कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। यदि आप में सत्यता की शक्ति है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो। सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। सभ्यता की निशानी है निर्मान और असभ्यता की निशानी है जिद। तो जब सभ्यता पूर्वक बोल और चलन हो तब सफलता मिलेगी। यही आगे बढ़ने का साधन है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं तो सफलता मिल नहीं सकती।

स्लोगन:-
सम्बन्ध-सम्पर्क और स्थिति में लाइट रहो - दिनचर्या में नहीं।