ओम् शान्ति।
बच्चों को अपार खुशी का पारा चढ़ता है जब देखते हो बापदादा सम्मुख आये हैं और यह भी
बच्चे जानते हैं कि 5 हजार वर्ष बाद फिर से शिवबाबा ब्रह्मा तन में आया हुआ है। क्या
करने? बच्चों को यह नशा चढ़ा हुआ है। सब बच्चे जानते हैं कि स्वर्ग का मालिक बनाने
बाप आया हुआ है। हमको लायक बना रहे हैं। हमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की
युक्तियां बार-बार बता रहे हैं। युक्ति है बहुत सहज। बिल्कुल सहज याद बच्चों को
सिखलाते हैं। अज्ञान काल में बाप को बच्चा होता है तो समझते हैं हमारा वारिस पैदा
हुआ। तुम जानते हो इस समय बाप आकर हम बच्चों को एडाप्ट करते हैं। यूँ तो तुम सब
शिवबाबा के बच्चे हो। परन्तु बाबा अपना कैसे बनायें, जो हमको सुना सके और हम उनसे
सुन सकें। शिवबाबा इस ब्रह्मा तन से कहते हैं मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुमको स्वर्ग
का मालिक बनाता हूँ। सिर्फ तुम्हारी आत्मा जो पतित है वह न मुक्ति में, न जीवनमुक्ति
धाम में जा सकती है। तुम सब एक बाप के बच्चे हो। सबको बाप की मिलकियत लेनी है। ढेर
के ढेर बच्चे हैं, वृद्धि होती जाती है। एडाप्ट करते जाते हैं। हे आत्मायें अब तुम
मेरी सन्तान हो। अपने को रूह आत्मा समझो, हमको बाबा मिला है, जिसको आधाकल्प याद करते
थे। यह कभी भूलो मत। आधाकल्प आत्मा इस शरीर द्वारा याद करती आई है – हे पतित-पावन,
हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता क्योंकि रावण राज्य है ना। भल जो अभी समझते हैं हम बहुत
सुखी हैं, हमको इतने पदम हैं, इतने मिल्स हैं, कारखाने आदि हैं, यह तो सब अल्पकाल
के लिए हैं। अन्त में तो बहुत त्राहि-त्राहि करने लग पड़ेंगे। दु:ख के पहाड़ गिरेंगे।
इतनी सारी मिलकियत सेकेण्ड में खलास हो जायेगी। बाप से तुमको सेकेण्ड में वर्सा
मिलता है। कहते हैं तुमको सेकेण्ड में स्वर्ग की बादशाही देता हूँ। यह पुरानी दुनिया
खत्म हो जायेगी। लड़ाईयां लगेंगी, नेचुरल कैलेमिटीज़ होगी। सफाई तो चाहिए ना।
तुम्हारी आत्मा भी अब पवित्र बन रही है। बापदादा दोनों समझ सकते हैं, बच्चे कितनी
मेहनत करते हैं। बाप से वर्सा पाने की मेहनत बिल्कुल थोड़ी देते हैं। अपने को आत्मा
समझ बाप को याद करो। वह रूहानी बाप है निराकार, हम आत्मायें उनको बुलाते हैं ना।
बाप कहते हैं तुम्हारी आत्मा जो पतित है वह पावन कैसे बनें। पतित-पावन तो एक बाप है
ना। पानी की नदी पतित-पावनी है तो झट से जाए गोता खाकर चले आना चाहिए। गंगा स्नान
बहुत करते हैं फिर भी पतित क्यों? रात-दिन यही धुन लगाते रहते हैं – पतित-पावन
सीताराम अर्थात् सब जो भक्तियां हैं अथवा सीतायें हैं, सबका रक्षक एक राम परमपिता
परमात्मा है। पतित-पावन, पतियों का पति वही है। वह जब आये तब आकर पावन बनाये। तो अब
बाप कहते हैं मेरी श्रीमत पर तुमको चलना है और किसकी मत पर न चलो। वह तो समझते हैं
भक्ति से भगवान मिलेगा, जबकि भक्ति से भगवान मिलेगा तो ऐसे क्यों कहते कि भक्तों की
रक्षा करने आयेगा। भक्तों पर क्या आपदा पड़ी है जो रक्षा करेगा? रक्षा तब की जाती
है जब कुछ आपदा होती है। बाप कहते हैं तुमने कितना दुर्गति को पाया है। यह है रौरव
नर्क, सब दु:खी रोगी हैं। घर-घर में देखो क्या लगा पड़ा है। दु:ख ही दु:ख, इसलिए
पुकारते हैं बाबा हमारे दु:ख हरो, सुख दो। भारत में ही सदा सुख था, अब दु:ख है।
भारत की बात है और खण्ड तो हैं ही अलग। वह तो आते ही बाद में हैं। कोई 60 जन्म, कोई
इनसे भी कम जन्म लेते हैं। 84 जन्म देवता धर्म वाले लेते हैं। तो इस हिसाब से
आधाकल्प के बाद जो आयेंगे उनको 84 से आधे जन्म लेने पड़ेंगे। ऐसे नहीं कि सब 84 का
चक्र खाते हैं। मनुष्यों को तो जो आता है सो बोल देते हैं। अब तुम बच्चे बाप द्वारा
अविनाशी ज्ञान रत्नों की झोली भर रहे हो। रत्न तो बहुत वैल्युबुल हैं। बाप समझाते
भी बहुत सहज है। बाप कहते हैं तुम बुलाते आये हो हे पतित-पावन आकर हमें पावन बनाओ
तो बाप आये हैं। अब तुम समझते हो हम पावन बनेंगे तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। शिवबाबा
हमको पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि, पत्थरनाथ से पारसनाथ बनाने आये हैं। भक्ति मार्ग
के चित्र सब पत्थरों के बने हुए हैं। पत्थरों से माथा मारते हैं। बाप कहते हैं –
तुम भल कितनी भी मेहनत करो, फायदा कुछ नहीं होना है। आगे तो तुम बलि चढ़ते थे। फिर
भी क्या फायदा हुआ? करके देवी का दीदार होगा फिर जैसे के तैसे। पतित-पावन बाप आते
हैं – एक बार संगम पर। सतयुग में तो भक्ति मार्ग की बातें होती ही नहीं। बाप तो कहते
नहीं कि गला काटो। यह करो। भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार से क्या-क्या करते हैं। आगे
देवियों पर मनुष्य की बलि चढ़ाते थे। बाप कहते हैं तुम सुधरेले थे तो देवता थे। अब
कितने पत्थरबुद्धि बन पड़े हो। तुमको स्वर्ग की बादशाही दी थी। कितने सोने,
हीरे-जवाहरों के महल थे, अथाह धन था। वह क्या किया? अब तुम कितने दु:खी हो पड़े हो।
तुम असुल देवी-देवता धर्म के थे ना। अब सिर्फ तुम रजो तमो में आये हो। तुम तो देवता
धर्म के थे फिर अपने को हिन्दू क्यों कहलाते? और सब धर्म वाले अपने-अपने धर्म को ही
मानते हैं। धर्म तो एक ही होता है ना। मुसलमानों का मुस्लिम धर्म, क्रिश्चियन का
क्रिश्चियन धर्म चला आता है। तुमको क्या हुआ? तुम बहुत सुखी, पवित्र, सम्पूर्ण
निर्विकारी थे। अभी कितने विकारी बन पड़े हो। किसको पता ही नहीं – बरोबर हम
सम्पूर्ण निर्विकारी थे फिर सम्पूर्ण विकारी कैसे बनें? 84 जन्म लेते सतो से तमो बनें,
अब बिल्कुल ही तमोप्रधान पतित हैं। सतयुग से कलियुग जरूर आना है। सब धर्मो को
सतो-रजो-तमो में आना ही है। वृद्धि को पाना है। तुम भी झाड़ में हो ना। झाड़ में
देखो – अन्त में ब्रह्मा खड़ा है, झाड़ के ऊपर चोटी में ब्रह्मा ही 84 जन्म ले जाकर
अन्त में खड़ा है। तुम भी जो नीचे ब्राह्मण बैठे हो वही फिर अन्त में पतित शूद्र बने
हो। फिर नीचे राजयोग सीख रहे हो। तुम भी शूद्र थे, अब ब्राह्मण बने हो। यह बड़ी
समझने की बातें हैं। अभी झाड़ में बहुत अच्छी समझानी है। अभी तुम राजयोग की तपस्या
कर रहे हो, तुम्हारा ही यादगार खड़ा है। यह चैतन्य देलवाड़ा मन्दिर, वह जड़। सतयुग
में यह नहीं था। इस समय तुम अपना यादगार देखते हो। तुम प्रैक्टिकल में सच्चे-सच्चे
देलवाड़ा मन्दिर में चैतन्य में बैठे हो। स्वर्ग की स्थापना हो रही है। फिर स्वर्ग
में आयेंगे तो यह मन्दिर आदि कुछ होंगे नहीं। यह मम्मा बाबा और हम बच्चे बैठे हैं।
हूबहू यह तुम्हारा मन्दिर है। नाम ही रखा है मधुबन, चैतन्य देलवाड़ा मन्दिर। फिर जब
भक्ति मार्ग शुरू होगा तो फिर यह मन्दिर बनायेंगे। बाप ने तुमको बहुत धनवान बनाया
था तो तुम ही फिर उनका मन्दिर बनाते हो। शिव का मन्दिर एक नहीं बनाते हैं, सब बनाते
हैं, यथा योग्य यथा शक्ति।
तुम जानते हो हम पूज्य थे फिर द्वापर में पुजारी बने हैं। शिवबाबा जो इतना
साहूकार बनाते हैं, भक्ति में फिर तुम ही उनका मन्दिर बनायेंगे। इन बातों को अभी
तुम ही जानते हो। तो अब पुरुषार्थ कर फिर राजाओं का राजा बनना चाहिए। सतयुग में कहा
जाता है महाराजायें। त्रेता में कहा जाता है राजा। फिर दुनिया पतित बनती है तो
महाराजायें भी पतित, राजायें भी पतित होते हैं। वह निर्विकारी, महाराजाओं का मन्दिर
बनाकर पूजते हैं। पहले-पहले शिव का मन्दिर बनाते हैं फिर देवताओं का बनाते, खुद ही
मन्दिर बनाकर पूजते हैं, 84 जन्म तो भोगते हैं ना। आधाकल्प तुम पूज्य फिर आधाकल्प
पुजारी बनते हो। मनुष्य फिर समझते हैं भगवान आपेही पूज्य आपेही पुजारी है। सब कुछ
आपेही देते हैं, आपेही छीन लेते हैं। अच्छा जबकि उसने दिया और लिया फिर तुमको क्यों
चिंता लगती है। तुम तो ट्रस्टी हो गये। फिर रोने की क्या दरकार है! बाप बैठ आत्माओं
को समझाते हैं। अब तुम आत्म-अभिमानी बनते हो, नम्बरवार। कोई तो बिल्कुल बाप को याद
करते ही नहीं है। देही-अभिमानी रहते ही नहीं हैं। यहाँ कितना समझाया जाता है – अरे
तुम आत्मा हो, परमात्मा तुमको पढ़ाते हैं। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। आत्मा ही
बैरिस्टर आदि बनती है, आत्मा मैजिस्ट्रेट बनती है। कल क्या बनेंगे? अगर आत्मा बाप
को अच्छी रीति याद करती रहेगी तो फिर अमरलोक में जाकर जन्म लेगी। मृत्युलोक में फिर
दूसरा जन्म नहीं लेंगे। अगर कुछ हिसाब-किताब रहा हुआ होगा तो सज़ा खानी पड़ेगी।
कर्मभोग, भोग कर चुक्तू करना होगा फिर पद ऊंच नहीं मिलेगा। यह कर्मो की गुह्य गति
बाप बच्चों को ही बैठ समझाते हैं। यह भी बच्चे जानते हैं – सतयुग है सतोप्रधान। हर
चीज़ वहाँ सतोप्रधान होती है। कहते हैं कृष्ण गऊ सम्भालते थे। राजायें गऊ सम्भालते
हैं क्या? ऐसी बात तो हो नहीं सकती है। यह दिखाते हैं – सतयुग में गऊयें भी बड़ी
फर्स्टक्लास होती हैं, उनको कामधेनु कहा जाता है। जगत अम्बा सरस्वती भी कामधेनु है।
21जन्म लिए सबकी मनोकामनायें पूरी करती है। तुम भी कामधेनु हो। वही नाम फिर गऊ पर
रख दिया है, जो बहुत दूध देती है। राजाओं के घर में बड़ी फर्स्टक्लास गायें होती
हैं। जबकि यहाँ भी राजाओं के पास ऐसी अच्छी-अच्छी हैं तो स्वर्ग में कैसी सुन्दर
होंगी! वहाँ कोई बांस (बदबू) आदि बिल्कुल नहीं होती है।
अब बाप बच्चों को कहते हैं कि मैं आया हूँ तुमको गुल-गुल बनाकर साथ ले जाऊंगा।
मुझे बुलाते ही हैं हे पतित-पावन आओ। पतित दुनिया, पतित शरीर में आओ। यह है पतित,
वह है पावन फरिश्ता। भेंट दिखलाते हैं। तुम भी पतित से ऐसा पावन फरिश्ता बनेंगे।
सतयुगी देवताओं को डीटी कहते हैं। सूक्ष्मवतनवासी हैं फरिश्ते। अब तुम फरिश्ते
पवित्र बनते हो। बाप कितनी सहज शिक्षा देते हैं। यहाँ जब आते हैं तो कोई भी बाहर
वाले मित्र सम्बन्धी, घरघाट धन्धाधोरी आदि याद नहीं करना है। बाप के सम्मुख आये हो
ना। यहाँ आये ही हो – योग की कमाई करने तो इसमें लग जाना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सजाओं से मुक्त होने के लिए पुराने सब हिसाब-किताब योगबल से चुक्तू
करने हैं। ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालना है। किसी भी बात की चिंता नहीं करनी है।
आत्म-अभिमानी बनना है।
2) यह कमाई का समय है, इसमें घरघाट, धन्धाधोरी आदि याद नहीं करना है। फरिश्ता
बनने के लिए एक बाप की याद में रहने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है।