ओम् शान्ति।
पतित-पावन शिव भगवानुवाच। बाप ने समझा दिया है कि देहधारी मनुष्य को कभी भी भगवान्
नहीं कहा जा सकता। मनुष्य यह भी जानते हैं, पतित-पावन भगवान् ही है। श्रीकृष्ण को
पतित-पावन नहीं कहेंगे। बिचारे बहुत मूँझे हुए हैं। भारत में जब सूत मूँझ जाता है
तब शिवबाबा को आना पड़ता है। बाप के बिना उसे कोई सुलझा न सके। वो ही पतित-पावन
शिवबाबा है, जिसको सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो। सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
भल यहाँ बैठे हैं, रोज़ सुनते हैं तो भी ध्यान में यह नहीं आता है कि हम शिवबाबा के
पास बैठे हैं, वह इनमें विराजमान हैं, हमको पढ़ा रहे हैं, पावन बना रहे हैं, युक्ति
बतला रहे हैं।
तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन रचता और रचना की नॉलेज पाकर काम को जीत जगतजीत बनते
हो। तो वह बाप पतित-पावन भी ठहरा। नई रचना का रचता भी ठहरा। अभी बेहद का राज्य पाने
के लिए तुम पुरुषार्थ करो। हरेक समझते हैं हम शिवबाबा से राज्य-भाग्य ले रहे हैं।
यह भी यथार्थ रीति समझ नहीं सकते। कोई थोड़ा जानते, कोई तो बिल्कुल ही नहीं जानते।
शिवबाबा तो कहते हैं पतित-पावन मैं हूँ। मेरे से अगर कोई आकर पूछे तो मैं अपना
परिचय दे सकता हूँ। तुमको भी तो बाप ने अपना परिचय दिया है ना। शिवबाबा कहते हैं
मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। यह साधारण तन है। झाड़ के अन्त में खड़ा है।
पतित दुनिया में खड़ा है और फिर नीचे तपस्या कर रहे हैं। इनको भी तपस्या शिवबाबा
सिखला रहे हैं। राजयोग शिवबाबा सिखाते हैं। नीचे आदि देव, ऊपर में आदि नाथ। तुम
बच्चे समझा सकते हो हम ब्राह्मण शिवबाबा की सन्तान हैं। तुम भी शिवबाबा के बच्चे हो
परन्तु जानते नहीं हो। भगवान् एक है, बाकी सब ब्रदर्स हैं। बाप कहते हैं मैं अपने
बच्चों को ही पढ़ाता हूँ। जो मुझे पहचानते हैं उन्हों को ही पढ़ाकर देवता बनाता
हूँ। भारत ही स्वर्ग था, अब नर्क है। जो काम को जीतेगा वही जगतजीत बनेगा। मैं
गोल्डन वर्ल्ड की स्थापना कर रहा हूँ। अनेक बार यह भारत गोल्डन एज में था, फिर आइरन
एज में आया - यह कोई भी जानते नहीं। रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त को कोई जानते
नहीं। मैं नॉलेजफुल हूँ। यह है एम ऑब्जेक्ट। मैं इनके साधारण तन में प्रवेश होकर
नॉलेज देता हूँ। अब तुम भी पवित्र बनो। इन विकारों को जीतने से तुम जगतजीत बनेंगे।
यह सब बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हैं। तन-मन-धन से रूहानी सेवा करते हैं, जिस्मानी नहीं।
इनको स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है। यह भक्ति नहीं है। भक्ति का युग है
द्वापर-कलियुग, जिसको ब्रह्मा की रात कहा जाता है और सतयुग-त्रेता को ब्रह्मा का
दिन कहा जाता है। कोई गीतापाठी आये तो उनको भी समझायेंगे गीता में भूल है। गीता
किसने सुनाई, राजयोग किसने सिखाया, किसने कहा है काम पर जीत पाने से तुम जगत-जीत बन
जायेंगे? यह लक्ष्मी-नारायण भी जगतजीत बने हैं ना। इनके 84 जन्मों का राज़ बैठ
समझाये। कोई भी हो, नॉलेज लेने के लिए तो यहाँ आना पड़ेगा ना। मैं तो बच्चों को
पढ़ाता हूँ। परन्तु तुम्हारे में भी कोई इतना नहीं समझते हैं, इसलिए गायन है कोटों
में कोई........। मैं जो हूँ, जैसा हूँ कोई तो यह 5 परसेन्ट भी नहीं जानते। तुम्हें
बाप को जानकर पूरी रीति याद करना है। मामेकम् याद क्यों नहीं करते हो? कहते हैं बाबा
याद भूल जाती है। अरे, तुम बाबा को याद नहीं कर सकते हो। यूँ तो बाप समझते हैं यह
मेहनत का काम है, फिर भी पुरुषार्थ कराने के लिए पम्प करते रहते हैं। अरे, जो बाप
तुमको क्षीरसागर में ले जाते हैं, विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको भूल जाते हो! माया
भुलायेगी भी जरूर। टाइम लगेगा। ऐसे भी नहीं कि माया को भुलाना ही है, इसलिए ठण्डे
होकर बैठ जाओ। नहीं, पुरुषार्थ जरूर करना है। काम पर जीत पानी है। मामेकम् याद करो
तो विकर्म विनाश होंगे। जैसे तुम बच्चों को बोलता हूँ वैसे कोई भी बड़े से बड़ा जज
आयेगा, उनको भी बाप बोलेंगे ना - “बच्चे'' क्योंकि मैं तो ऊंचे से ऊंचा भगवान् हूँ।
ऊंचे से ऊंची पढ़ाई मैं ही पढ़ाता हूँ, प्रिन्स-प्रिन्सेज पद पाने के लिए। बाप कहते
हैं मैं इनको पढ़ा रहा हूँ। यही फिर श्रीकृष्ण बनते हैं। ब्रह्मा-सरस्वती, वो ही
फिर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। यह प्रवृत्ति मार्ग चला आता है। निवृति मार्ग वाले
राजयोग सिखला न सकें। राजा-रानी दोनों चाहिए। विलायत में जाकर कहते हैं हम राजयोग
सिखलाते हैं। परन्तु वह तो सुख को काग विष्टा समान कहते हैं फिर राजयोग कैसे
सिखायेंगे। तो बच्चों को उछल आनी चाहिए। परन्तु बच्चे अजुन छोटे हैं, बालिग नहीं बने
हैं। बालिगपने की हिम्मत चाहिए।
बाप बतलाते हैं - यह है रावण सम्प्रदाय। तुम पुकारते हो पतित-पावन आओ। तो यह
पतित दुनिया है या पावन दुनिया है? तुम समझते हो ना कि हम नर्कवासी हैं। क्या यह
दैवी सम्प्रदाय है? रामराज्य है? तुम रावण राज्य के नहीं हो? अब रावण राज्य में सबकी
आसुरी बुद्धि है। अब आसुरी बुद्धि को दैवी बुद्धि बनाने वाला कौन? ऐसे 4-5 प्रश्न
पूछो तो मनुष्य सोच में पड़ जायें। तुम बच्चों का काम है बाप का परिचय देना। झाड़
तो धीरे-धीरे बढ़ता है। फिर बहुत वृद्धि को पायेंगे। माया भी चकरी लगाकर एकदम गिरा
देती है। बॉक्सिंग में भी बहुत मरते हैं, इसमें भी बहुत मर जाते हैं। विकार में गया
और मरा। फिर नयेसिर पुरुषार्थ करना पड़े। विकार एकदम मार डालता है। जो कुछ जंक
निकाल पतित से पावन बना, वह की कमाई चट हो जाती है। फिर नयेसिर मेहनत करनी पड़े। ऐसे
नहीं, उनको एलाउ नहीं करना है। नहीं, उनको समझाना है जो कुछ याद की यात्रा की, पढ़ा
वह सब ख़लास हो गया। एकदम नीचे गिर पड़ते हैं। फिर भी घड़ी-घड़ी अगर गिरते रहेंगे
तो कहेंगे गेट आउट। एक-दो बारी अजमाया जायेगा। दो बारी म़ाफी मिली, फिर केस होपलेस
हो जाता है। फिर आयेगा भी लेकिन एकदम डर्टी क्लास में। भेंट में तो ऐसे कहेंगे ना।
जो बिल्कुल कम पद पाते हैं उनको कहेंगे डर्टी क्लास। दास-दासियां, चण्डाल, प्रजा के
भी नौकर-चाकर सब बनते हैं ना। बाप तो जानते हैं मैं इन्हों को पढ़ा रहा हूँ। हर 5
हजार वर्ष के बाद पढ़ाता हूँ। वह लोग लाखों वर्ष कह देते हैं। आगे चलकर यह भी कहने
लग पड़ेगे कि बरोबर 5 हजार वर्ष की बात है। वो ही महाभारी लड़ाई है। परन्तु याद की
यात्रा में रह न सकें। दिन प्रतिदिन टूलेट होते जायेंगे। गाया भी जाता है बहुत गई
थोड़ी रही........। यह सब इस समय की बातें हैं। बाकी थोड़ा समय है पावन बनने में।
लड़ाई सामने खड़ी है। अपने दिल से पूछना है - हम याद की यात्रा पर हैं? जब कोई नया
आता है तो बच्चों को फॉर्म जरूर भराना है। जब फॉर्म भरे तब उनको समझाया जाये। अगर
किसको समझना ही नहीं है तो फॉर्म ही क्या भरेगा? ऐसे तो ढेर आते हैं। बोलो, बाप को
पुकारते हो - पतित-पावन आओ तो जरूर यह पतित दुनिया है, तब तो कहते हैं कि आकर पावन
बनाओ। फिर कोई बनते हैं, कोई नहीं बनते हैं। बाबा के पास पत्र तो ढेर आते हैं। सब
लिखते हैं शिवबाबा केयर-आफ ब्रह्मा। शिवबाबा भी कहते हैं - मैं साधारण तन में
प्रवेश करता हैं। इनको 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ। और कोई भी मनुष्य रचता और
रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। अब बाप ने ही तुमको बताया है। यह चित्र
आदि भी बाबा ने दिव्य दृष्टि देकर सब बनवाये हैं।
बाबा तुम आत्माओं को ही पढ़ाते हैं। आत्मायें झट अशरीरी हो जाती हैं। इस शरीर से
अपने को अलग समझना है, बाबा कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी भव, अशरीरी भव। मैं
आत्माओं को पढ़ाता हूँ। यह मेला है आत्माओं और परमात्मा का, इसे संगम का मेला कहा
जाता है। बाकी कोई पानी की गंगा पावन नहीं बनाती है। साधू, सन्त, ऋषि, मुनि आदि सब
जाते हैं स्नान करने। अब गंगा पतित-पावनी हो कैसे सकती? भगवानुवाच है ना - काम
महाशत्रु है, इस पर जीत पाने से तुम जगतजीत बन जायेंगे। गंगा वा सागर तो नहीं कहते।
यह तो ज्ञान सागर बाप समझाते हैं, इन पर जीत पाने के लिए मामेकम् याद करो तो तुम
पावन बन जायेंगे। दैवीगुण धारण करो, किसको दु:ख मत दो। पहला नम्बर दु:ख है काम कटारी
चलाना। यही आदि, मध्य, अन्त दु:ख देने वाला है। सतयुग में यह होता नहीं। वह है पावन
दुनिया, वहाँ कोई पतित रहता ही नहीं। जैसे तुम योगबल से राज्य लेते हो, वैसे वहाँ
योगबल से बच्चा पैदा होता है। रावण राज्य ही नहीं। तुम लोग रावण को जलाते हो, पता
ही नहीं पड़ता कि कब से जलाते आये हो। रामराज्य में रावण होता नहीं। यह बड़ी समझने
की बातें हैं, जो बाप बैठ समझाते हैं। समझाते तो बहुत अच्छा हैं परन्तु कल्प-कल्प
जो जितना पढ़े हैं, उतना ही पढ़ते हैं। पुरुषार्थ से सारा मालूम पड़ जाता है। स्थूल
सेवा की भी सब्जेक्ट है, मन्सा नहीं तो वाचा, कर्मणा। वाचा तो बहुत सहज है। पहले है
मन्सा अर्थात् मन्मनाभव, याद की यात्रा में रहना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद
करना है। बाबा से शिक्षा लेनी है। बहुत हैं जो बाप को याद नहीं कर सकते। ऐसे नहीं
कहेंगे कि ज्ञान को याद नहीं कर सकते। मामेकम् याद नहीं कर सकते। याद नहीं करेंगे
तो त़ाकत कैसे मिलेगी। बाप सर्वशक्तिमान् है, उनको याद करने से ही शक्ति आयेगी, इसको
ही जौहर कहा जाता है। कर्मणा भी कोई अच्छी करे तो पद मिले। कर्मणा भी नहीं करते तो
फिर पद क्या मिलेगा। सब्जेक्ट होती है ना। यह है गुप्त समझने की बातें। वो लोग
योग-योग कहते रहते हैं परन्तु समझते नहीं कि योग से तुम विश्व की बादशाही लेते हो।
योगबल से ही वहाँ बच्चा पैदा होता है। यह भी किसको पता नहीं है। तुमको समझाया जाता
है फिर भी आधाकल्प के बाद तुम माया के मुरीद (चेला) बन जाते हो। फिर माया तुमको अभी
भी नहीं छोड़ती है। अब तुमको शिव-बाबा के मुरीद बनना है। कोई भी देहधारियों का
मुरीद नहीं बनना है। बहन-भाई भी अब कहा जाता है - पवित्र बनने के लिए। फिर तो इससे
भी ऊपर जाना है। भाई-भाई समझना है। भाई-बहन की दृष्टि भी नहीं।
ड्रामा अनुसार जो कुछ चलता है, बिल्कुल एक्यूरेट। ड्रामा बहुत एक्यूरेट है। बाप
तो बेफिक्र है, इनको तो फिक्र जरूर रहेगा। बेफिक्र तब रहेंगे जब कर्मातीत अवस्था
होगी, तब तक कुछ न कुछ होता है। योग अच्छा चाहिए। योग के लिए बाबा अब जोर देते हैं।
इसके लिए कहते हैं घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बाप उल्हना देते हैं, जो बाप तुमको इतना
खजाना देते हैं उनको तुम भूल जाते हो। बाप जानते हैं किसमें ज्ञान है, किसमें नहीं
है। ज्ञानी कभी छिपा नहीं रहेगा। वह झट सर्विस का सबूत देगा। तो यह सब समझने की बातें
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) माया की बॉक्सिंग में हार नहीं खानी है। पुरुषार्थ में ठण्डा हो बैठ
नहीं जाना है। हिम्मत रख सेवा करनी है।
2) यह ड्रामा एक्यूरेट बना हुआ है, इसलिए किसी भी बात का फिक्र नहीं करना है।
कर्मातीत अवस्था को पाने के लिए एक बाप की याद में रहना है, किसी देहधारी का मुरीद
नहीं बनना है।