19-04-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - सबसे अच्छा दैवीगुण है शान्त रहना, अधिक
आवाज़ में न आना, मीठा बोलना, तुम बच्चे अभी टॉकी से मूवी, मूवी से साइलेन्स में
जाते हो, इसलिए अधिक आवाज़ में न आओ"
प्रश्नः-
किस मुख्य
धारणा के आधार से सर्व दैवीगुण स्वतः आते जायेंगे?
उत्तर:-
मुख्य
है पवित्रता की धारणा। देवतायें पवित्र हैं, इसलिए उनमें दैवीगुण हैं। इस दुनिया
में कोई में भी दैवीगुण नहीं हो सकते। रावण राज्य में दैवीगुण कहाँ से आये। तुम
रॉयल बच्चे अभी दैवीगुण धारण कर रहे हो।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला......
ओम् शान्ति।
अभी बच्चे समझते हैं
कि बिगड़ी को बनाने वाला एक ही है। भक्ति मार्ग में अनेकों के पास जाते हैं। कितनी
तीर्थ यात्रायें आदि करते हैं। बिगड़ी को बनाने वाला, पतितों को पावन बनाने वाला तो
एक ही है, सद्गति दाता, गाइड, लिबरेटर भी वह एक है। अब गायन है परन्तु अनेक मनुष्य,
अनेक धर्म, मठ, पंथ, शास्त्र होने कारण अनेक रास्ते ढूँढते रहते हैं। सुख और शान्ति
के लिए सतसंगों में जाते हैं ना। जो नहीं जाते वह मायावी मस्ती में ही मस्त रहते
हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि अभी कलियुग का अन्त है। मनुष्य यह नहीं जानते कि
सतयुग कब होता है? अभी क्या है? यह तो कोई बच्चा भी समझ सकता है। नई दुनिया में सुख,
पुरानी दुनिया में जरूर दुःख होता है। इस पुरानी दुनिया में अनेक मनुष्य हैं, अनेक
धर्म हैं। तुम कोई को भी समझा सकते हो। यह है कलियुग, सतयुग पास्ट हो गया है। वहाँ
एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, और कोई धर्म नहीं था। बाबा ने बहुत बार समझाया
है, फिर भी समझाते हैं, जो आये उनको नई दुनिया और पुरानी दुनिया का फ़र्क दिखाना
चाहिए। भल वह क्या भी कहे, कोई 10 हज़ार वर्ष आयु कहते हैं, कोई 30 हज़ार वर्ष आयु
कहते हैं। अनेक मतें हैं ना। अब उन्हों के पास तो है ही शास्त्रों की मत। अनेक
शास्त्र, अनेक मत। मनुष्यों की मत है ना। शास्त्र भी लिखते तो मनुष्य हैं ना।
देवतायें कोई शास्त्र नहीं लिखते। सतयुग में देवी-देवता धर्म होता है। उन्हों को
मनुष्य भी नहीं कहा जा सकता। तो जब कोई मित्र-सम्बन्धी आदि मिलते हैं तो उनको बैठ
यह सुनाना चाहिए। विचार की बात है। नई दुनिया में कितने थोड़े मनुष्य होते हैं।
पुरानी दुनिया में कितनी वृद्धि होती है। सतयुग में सिर्फ एक देवता धर्म था। मनुष्य
भी थोड़े थे। दैदीगुण होते ही हैं देवताओं में। मनुष्यों में नहीं होते हैं। तब तो
मनुष्य जाकर देवताओं के आगे नमस्ते करते हैं ना। देवताओं की महिमा गाते हैं। जानते
हैं वह स्वर्गवासी हैं, हम नर्कवासी कलियुगवासी हैं। मनुष्य में दैवीगुण हो न सके।
कोई कहे फलाने में बहुत अच्छे दैवोगुण हैं! बोलो - नहीं, दैवीगुण होते ही हैं
देवताओं में क्योंकि वह पवित्र हैं। यहाँ पवित्र न होने कारण कोई में दैवीगुण हो न
सकें क्योंकि आसुरी रावण राज्य है ना। नये झाड़ में दैवी गुण वाले देवतायें रहते
हैं फिर झाड़ पुराना होता है। रावण राज्य में दैवीगुण वाले हो न सके। सतयुग में आदि
सनातन देवी-देवताओं का प्रवृत्ति मार्ग था। प्रवृत्ति मार्ग वालों की ही महिमा गाई
हुई है। सतयुग में हम पवित्र देवी-देवता थे, सन्यास मार्ग था नहीं। कितनी प्वाइंट्स
मिलती हैं। परन्तु सभी प्वाइंट्स किसकी बुद्धि में रह न सके। प्वाइंट्स भूल जाती
हैं इसलिए फेल होते हैं। दैवीगुण धारण नहीं करते हैं। एक ही दैवीगुण अच्छा है।
जास्ती कोई से न बोलना, मीठा बोलना, बहुत थोड़ा बोलना चाहिए क्योंकि तुम बच्चों को
टॉकी से मूवी, मूवी से साइलेन्स में जाना है। तो टॉकी को बहुत कम करना चाहिए। जो
बहुत थोड़ा धीरे से बोलते हैं तो समझते हैं यह रॉयल घर का है। मुख से सदैव रत्न
निकलें।
सन्यासी अथवा कोई भी
हो तो उनको नई और पुरानी दुनिया का कान्ट्रास्ट बताना चाहिए। सतयुग में दैवीगुण वाले
देवतायें थे, वह प्रवृत्ति मार्ग था। तुम सन्यासियों का धर्म ही अलग है। फिर भी यह
तो समझते हो ना - नई सृष्टि सतोप्रधान होती है, अभी तमोप्रधान है। आत्मा तमोप्रधान
होती है तो शरीर भी तमोप्रधान मिलता है। अभी है ही पतित दुनिया। सबको पतित कहेंगे।
वह है पावन सतोप्रधान दुनिया। वही नई दुनिया सो अब पुरानी होती है। इस समय सभी
मनुष्य आत्मायें नास्तिक हैं, इसलिए ही हंगामें हैं। धणी को न जानने के कारण आपस
में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। रचयिता और रचना को जानने वाले को आस्तिक कहा जाता है।
सन्यास धर्म वाले तो नई दुनिया को जानते ही नहीं। तो वहाँ आते ही नहीं। बाप ने
समझाया है, अभी सब आत्मायें तमोप्रधान बनी हैं फिर सभी आत्माओं को सतोप्रधान कौन
बनाये? वह बाप ही बना सकते हैं। सतोप्रधान दुनिया में थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी
सब मुक्तिधाम में रहते हैं। ब्रह्म तत्व है, जहाँ हम आत्मायें निवास करती हैं। उनको
कहा जाता है ब्रह्माण्ड। आत्मा तो अविनाशी है। यह अविनाशी नाटक है, जिसमें सभी
आत्माओं का पार्ट है। नाटक कब शुरू हुआ? यह कभी कोई बता न सके। यह अनादि ड्रामा है
ना। बाप को सिर्फ पुरानी दुनिया को नई बनाने आना पड़ता है। ऐसे नहीं कि बाप नई
सृष्टि रचते हैं। जब पतित होते हैं तब ही पुकारते हैं, सतयुग में कोई पुकारते नहीं।
हैं ही पावन दुनिया। रावण पतित बनाते हैं, परमपिता परमात्मा आकर पावन बनाते हैं।
आधा-आधा जरूर कहेंगे। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात आधा-आधा है। ज्ञान से दिन
होता है, वहाँ अज्ञान है नहीं। भक्ति मार्ग को अन्धियारा मार्ग कहा जाता है। देवतायें
पुनर्जन्म लेते-लेते फिर अन्धियारे में आते हैं इसलिए इस सीढ़ी में दिखाया है -
मनुष्य कैसे सतो, रजो, तमो में आते हैं। अभी सबकी जड़जड़ीभूत अवस्था है। बाप आते हैं
ट्रांसफर करने अर्थात् मनुष्य को देवता बनाने। जब देवता थे तो आसुरी गुण वाले
मनुष्य नहीं थे। अभी इन आसुरी गुण वालों को फिर दैवीगुणों वाला कौन बनाये? अभी तो
अनेक धर्म, अनेक मनुष्य हैं। लड़ते-झगड़ते रहते हैं। सतयुग में एक धर्म है तो दुःख
की कोई बात नहीं। शास्त्रों में तो बहुत दन्त कथायें हैं जो जन्म-जन्मान्तर पढ़ते
आये हैं। बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं, उनसे मुझे प्राप्त कर नहीं
सकते। मुझे तो स्वयं एक ही बार आकर सबकी सद्गति करनी है। ऐसे वापिस कोई जा न सके।
बहुत धैर्य से बैठ समझाना चाहिए, हंगामा भी न हो। उन लोगों को अपना अहंकार तो रहता
है ना। साधू-सन्तों के साथ फालोअर्स भी रहते हैं। झट कह देंगे इनको भी
ब्रह्माकुमारियों का जादू लगा है। सयाने मनुष्य जो होंगे वह कहेंगे यह विचार करने
योग्य बातें हैं। मेले प्रदर्शनी में अनेक प्रकार के आते हैं ना। प्रदर्शनी आदि में
कोई भी आये तो उसे बड़े धैर्य से समझाना चाहिए। जैसे बाबा धीरज से समझा रहे हैं।
बहुत ज़ोर से बोलना नहीं चाहिए । प्रदर्शनी में तो बहुत इकट्ठे हो जाते हैं ना। फिर
कह देना चाहिए - आप कुछ टाइम देकर एकान्त में आकर समझेंगे तो आपको रचयिता और रचना
का राज़ समझायेंगे। रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान रचयिता बाप ही समझाते हैं। बाकी
तो सब नेती-नेती ही करके जाते हैं। कोई भी मनुष्य जा न सके। ज्ञान से सद्गति हो जाती
फिर ज्ञान की दरकार नहीं होती। यह नॉलेज सिवाए बाप के कोई समझा न सके। समझाने वाला
कोई बुजुर्ग होगा तो मनुष्य समझेंगे यह भी अनुभवी है। जरूर सतसंग आदि किया होगा।
कोई बच्चे समझायेंगे तो कहेंगे यह क्या जानें। तो ऐसे-ऐसे को बुजुर्ग का असर पड़
सकता है। बाप एक ही बार आकर यह नॉलेज समझाते हैं। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते
हैं। मातायें बैठ उनको समझायेंगी तो खुश होंगे। बोलो ज्ञान सागर बाप ने ज्ञान का
कलष हम माताओं को दिया है जो हम फिर औरों को देते हैं। बहुत नम्रता से बोलते रहना
है। शिव ही ज्ञान का सागर है जो हमको ज्ञान सुनाते हैं। कहते हैं मैं तुम माताओं
द्वारा मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खोलता हूँ, और कोई खोल न सके। हम अभी परमात्मा
द्वारा पढ़ रहे हैं। हमको कोई मनुष्य नहीं पढ़ाते हैं। ज्ञान का सागर एक ही परमपिता
परमात्मा है। तुम सब भक्ति के सागर हो। भक्ति की अथॉरिटी हो, न कि ज्ञान की। ज्ञान
की अथॉरिटी एक मैं ही हूँ। महिमा भी एक की करते हैं। वहीं ऊंच ते ऊंच है। हम उनको
ही मानते हैं। वह हमको ब्रह्मा तन से पढ़ाते हैं इसलिये ब्रह्माकुमार-कुमारियां गाये
हुए हैं। ऐसे बहुत मीठे रूप में बैठ समझाओ। भल कितना भी पढ़ा हुआ हो। ढेर प्रश्न
करते हैं। पहले-पहले तो बाप पर ही निश्चय कराना है। पहले तुम यह समझो रचता बाप है
वा नहीं। सभी का रचयिता एक ही शिवबाबा है, वही ज्ञान का सागर है। बाप, टीचर, सद्गुरु
है। पहले तो यह निश्चयबुद्धि हो कि रचता बाप ही रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते
हैं। वही हमको समझाते हैं, वह तो जरूर राइट ही समझायेंगे। फिर कोई प्रश्न उठ न सके।
बाप आते ही हैं संगम पर। सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो पाप भस्म हो जाएं। हमारा
काम ही है पतित को पावन बनाने का। अभी तमोप्रधान दुनिया है। पतित-पावन बाप बिगर कोई
को जीवनमुक्ति मिल न सके। सभी गंगा स्नान करने जाते हैं तो पतित ठहरे ना। मैं तो
कहता नहीं हूँ कि गंगा स्नान करो। मैं तो कहता हूँ मामेकम् याद करो। मैं तुम सभी
आशिकों का माशुक हूँ। सभी एक माशुक को याद करते हैं। रचना का क्रियेटर एक ही बाप
है। वह कहते हैं देही-अभिमानी बन मुझे याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश
होंगे। यह योग बाप अभी ही सिखलाते हैं जबकि पुरानी दुनिया बदल रही है। विनाश सामने
खड़ा है। अभी हम देवता बन रहे हैं। बाप कितना सहज बताते हैं। बाप के सामने भल सुनते
हैं परन्तु एकरस हो नहीं सुनते। बुद्धि और-और तरफ भागती रहती है। भक्ति में भी ऐसे
होता है। सारा दिन तो वेस्ट जाता है बाकी जो टाइम मुकरर करते हैं, उसमें भी बुद्धि
कहाँ-कहाँ चली जाती है। सबका ऐसा हाल होता होगा। माया है ना!
कोई-कोई बच्चे बाप के
सामने बैठे ध्यान में चले जाते हैं, यह भी टाइम वेस्ट हुआ ना। कमाई तो नहीं हुई।
बाप तो कहते हैं याद में रहो, जिससे विकर्म विनाश हों। ध्यान में जाने से बुद्धि
में बाप की याद नहीं रहती है। इन सब बातों में बहुत घोटाला है। तुमको तो आंखे बन्द
भी नहीं करनी है। याद में बैठना है ना। आंखें खोलने से डरना नहीं चाहिए। आंखे खुली
हों। बुद्धि में माशुक ही याद हो। आंखे बन्द करके बैठना, यह कायदा नहीं। बाप कहते
हैं याद में बैठो। ऐसे थोड़ेही कहते हैं आंखे बन्द करो। आंख बन्द कर, कांध ऐसे नीचे
कर बैठेंगे तो बाबा कैसे देखेंगे। आंखे कभी बन्द नहीं करनी चाहिए। आंखे बन्द हो जाती
है तो कुछ दाल में काला होगा, और कोई को याद करते होंगे। बाप तो कहते हैं और कोई
मित्र-सम्बन्धियों आदि को याद किया तो तुम सच्चे आशिक नहीं ठहरे। सच्चा आशिक बनेंगे
तब ही ऊंच पद पायेंगे। मेहनत सारी याद में है। देह-अभिमान में बाप को भूलते हैं,
फिर धक्के खाते रहते हैं और बहुत मीठा भी बनना चाहिए। वातावरण भी मीठा हो, कोई आवाज़
नहीं। कोई भी आये तो देखे - बात कितनी मीठी करते हैं। बहुत साइलेन्स होनी चाहिए।
कुछ भी लड़ना-झगड़ना नहीं। नहीं तो जैसे बाप, टीचर, गुरू तीनों की निंदा कराते हैं।
वह फिर पद भी बहुत कम पायेंगे। बच्चों को अब समझ तो मिली है। बाप कहते हैं हम तुमको
पढ़ाते हैं ऊंच पद पाने। पढ़कर फिर औरों को पढ़ाना है। खुद भी समझ सकते हैं, हम तो
कोई को सुनाते नहीं हैं तो क्या पद पायेंगे! प्रजा नहीं बनायेंगे तो क्या बनेंगे!
योग नहीं, ज्ञान नहीं तो फिर जरूर पढ़े हुए के आगे भरी ढोनी पड़ेगी। अपने को देखना
चाहिए इस समय नापास हुए, कम पद पाया तो कल्प-कल्पान्तर कम पद हो जायेगा। बाप का काम
है समझाना, नहीं समझेंगे तो अपना पद भ्रष्ट करेंगे। कैसे किसको समझाना चाहिए - वह
भी बाबा समझाते रहते हैं। जितना थोड़ा और आहिस्ते बोलेंगे उतना अच्छा। बाबा सर्विस
करने वालों की महिमा भी करते हैं ना। बहुत अच्छी सर्विस करते हैं तो बाबा की दिल पर
चढ़ते हैं। सर्विस से ही तो दिल पर चढ़ेंगे ना। याद की यात्रा भी जरूर चाहिए तब ही
सतोप्रधान बनेंगे। सजा जास्ती खायेंगे तो पद कम हो जायेगा। पाप भस्म नहीं होते हैं
तो सजा बहुत खानी पड़ती है, पद भी कम हो जाता है। उसको घाटा कहा जाता है। यह
व्यापार है ना। घाटे में नहीं जाना चाहिए। दैवीगुण धारण करो। ऊंच बनना चाहिए। बाबा
उन्नति के लिए किस्म-किस्म की बातें सुनाते हैं, अब जो करेंगे सो पायेंगे। तुमको
परिस्तानी बनना है, गुण भी ऐसे धारण करने हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी बहुत नम्रता और धीरे से बातचीत करनी है। बोलचाल बहुत मीठा
हो। साइलेन्स का वातावरण हो। कोई भी आवाज़ न हो तब सर्विस की सफलता होगी।
2) सच्चा-सच्चा आशिक बन एक माशुक को याद करना है। याद में कभी आंखे बन्द कर कांध
नीचे करके नहीं बैठना है। देही-अभिमानी होकर रहना है।
वरदान:-
स्व स्थिति द्वारा परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने
वाले संगमयुगी विजयी रत्न भव
परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने का साधन है स्व-स्थिति।
यह देह भी पर है, स्व नहीं। स्व स्थिति व स्वधर्म सदा सुख का अनुभव कराता है और
प्रकृति-धर्म अर्थात् पर धर्म या देह की स्मृति किसी न किसी प्रकार के दुःख का
अनुभव कराती है। तो जो सदा स्वं स्थिति में रहता है वह सदा सुख का अनुभव करता है,
उसके पास दुःख की लहर आ नहीं सकती। वह संगमयुगी विजयी रत्न बन जाते हैं।
स्लोगन:-
परिवर्तन शक्ति
द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फोर्स समाप्त करो।