01-07-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 29-01-75 मधुबन
परखने की शक्ति के प्रयोग से सफलता
आज की यह सभी राजऋषियों की सभा है। जैसे मधुबन शब्द दो बातों को सिद्ध करता है - एक मधुरता को और बेहद की वैराग्य वृत्ति को, ऐसे ही राज-ऋषि शब्द है जिसका अर्थ है - राज्य करने वाले। तो राजऋषि हैं - बैगर टू प्रिन्स । जितना ही अधिकार उतना ही सर्वत्याग। सर्व त्यागी, अर्थात् समय के ऊपर, संकल्प के ऊपर, स्वभाव और संस्कार के ऊपर अधिकार प्राप्त करने वाले। जैसे चाहे वैसे अपने समय, स्वभाव और संस्कार को परिवर्तन कर सकें अर्थात् जैसा समय, वैसा अपना स्वरूप व स्थिति धारण कर सकें। ऐसे राज-ऋषि अर्थात् सर्वअधिकारी और सर्व त्यागी बने हो? जन्म लेते ही कर्म-प्रमाण, श्रेष्ठ स्वमान-प्रमाण राजऋषि का मर्तबा (पद) बापदादा द्वारा प्राप्त हुआ है ना? सर्व-अधिकारी बन गये हो या अभी बनना है? क्या समझते हो? आप सबका विशेष नारा कौन-सा है? जब जन्म-सिद्ध अधिकार है तो जन्म लेने से ही प्राप्त है - तब अधिकारी तो बन ही गये ना?
नॉलेजफुल अर्थात् मास्टर ज्ञान-सागर। जब मास्टर ज्ञान-सागर बन गये तो नॉलेज अर्थात् समझ से अधिकार प्राप्त होता है। समझ कम तो अधिकार भी कम। नॉलेजफुल तो हो ना? अब लास्ट स्टेज क्या है? उसको जानते हो? कर्मातीत बनने की स्टेज की निशानी क्या है? सदा सफलता-मूर्त। समय भी सफल, संकल्प भी सफल, सम्पर्क और सम्बन्ध भी सदा सफल - इसको कहते हैंस फलता मूर्त। ऐसे सफलतामूर्त बनने के लिए वर्तमान समय-प्रमाण विशेष कौनसी शक्ति की आवश्यकता है जिससे कि सब बातों में सदा सफलता मूर्त बन जायें? वह कौन-सी शक्ति है? सर्व शक्तियाँ प्राप्त हो रही हैं, फिर भी वर्तमान समय-प्रमाण विशेष आवश्यकता परखने की शक्ति की है।
अगर परखने की शक्ति तीव्र है तो भिन्न-भिन्न प्रकार के आये हुए विघ्न, जो लगन में विघ्न बनते हैं, उन विघ्नों को पहले से ही जानकर, उन द्वारा वार होने से पहले ही उन्हें समाप्त कर देते हैं। इस कारण व्यर्थ समय जाने के बदले समर्थ में जमा हो जाता है। ऐसे ही सेवा में हर-एक आत्मा की मुख्य इच्छा और उसका मुख्य संस्कार जानने के कारण, उसी प्रमाण, उस आत्मा को वही प्राप्ति कराने के कारण सेवा में भी सदा सफल रहते हैं।
तीसरी बात यह है कि दूसरों के सम्बन्ध में आने का जो मुख्य सब्जेक्ट है, उसमें भी हर-एक आत्मा के संस्कार तथा स्वभाव को जानते हुए, उसी-प्रमाण उसे सदा सन्तुष्ट रखेंगे।
चौथी बात है समय की गति। किस समय कैसा वातावरण व वायुमण्डल है और क्या होना चाहिए - इसको परखने के कारण समय-प्रमाण ही स्वयं को भी और अन्य आत्माओं को भी तीव्र-गति में ला सकेंगे और जैसा समय, वैसा स्वरूप धारण करने का उमंग और उत्साह भी भर सकेंगे तथा समय-प्रमाण नॉलेजफुल और लॉफुल या लवफुल भी बन तथा बना सकेंगे और इस प्रकार सदा सफल बन सकेंगे, क्योंकि कभी लॉफुल बनना है और कभी लवफुल बनना है, इसलिये यह परख होने के कारण सदा सहज ही सफल रहेगे।
ऐसे सफलतामूर्त के सामने प्रकृति व परिस्थिति भी दासी बन जाती है। अर्थात् वे प्रकृति और परिस्थिति के ऊपर सदा विजयी बनते हैं। वे प्रकृति व परिस्थिति के वशीभूत नहीं होते। ऐसे विजयी को ही सदा सफलता-मूर्त कहा जाता है। इसके लिए तीन स्वरूप से बाप की बात याद रखो। तीनों स्वरूप अर्थात् निराकार, आकार और साकार। जैसे तीन सम्बन्धों में सत्-बाप, सत्शिक्षक और सद्-गुरू की शिक्षायें स्मृति में रखते हो, वैसे ही तीन स्वरूपों से तीन मुख्य बातें स्मृति में रखो।
इन तीन स्वरूपों से विशेष तीन वरदान कौन-से हैं? निराकारी स्वरूप की मुख्य शिक्षा का वरदान कौन-सा है? कर्मातीत भव। आकारी स्वरूप अथवा फरिश्तेपन का वरदान कौन-सा है? डबल-लाइट भव! डबल लाइट अर्थात् सर्व कर्म-बन्धनों से हल्के और लाइट अर्थात् सदा प्रकाश-स्वरूप में स्थित रहने वाले। तो आकारी स्वरूप का विशेष वरदान है-डबल लाइट भव! इससे ही डबल ताजधारी भी बनेंगे। साकार स्वरूप का विशेष वरदान कौन-सा है? साकार स्वरूप का विशेष वरदान है - साकार समान निरहंकारी और निर्विकारी भव! ये तीन वरदान सदा स्मृति में रखने से सदा के लिये सहज ही सफलता-मूर्त्त बन जायेगे। समझा?
बापदादा से भी बच्चे शक्तिवान् हैं क्योंकि वे सर्व शक्तिमान् को प्रत्यक्ष करने के निमित बने हैं। क्या वे ज्यादा शक्तिमान् नहीं हैं? सर्वशक्तिमान् को सर्व-सम्बन्धों से अपना बना देना वा अपने स्नेह की रस्सी में बाँध लेना तो क्या ज्यादा शक्तिवान् नहीं हुए? बल्कि ऑथारिटी को वर्ल्ड सर्वेंट बना देना-इसके निमित कौन? समीप व सहयोगी बच्चे।
ऐसे सर्व श्रेष्ठ सदा बापदादा को हर कर्म और हर कदम द्वारा प्रख्यात करने वाले, हर आत्मा को बाप के साथ मिलन मनाने के निमित्त बनाने वाले, सदा बाप और सेवा में लवलीन रहने वाले, लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, साक्षात् बाप-समान बन सर्व को बाप का साक्षात्कार कराने वाले, ऐसे लवफुल और लॉफुल आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
01-07-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 30-01-75 मधुबन
सेकेण्ड में व्यक्त से अव्यक्त होने की स्पीड
सभी इस समय जिस एक ही लगन, एक ही संकल्प में बैठे हुए हो, वह एक ही संकल्प व लगन कौनसी है? बाप का आह्वान करना व बाप-बच्चे के मिलन का मेला मनाना? जब सर्व शक्तिवान् बाप का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हो तो क्या स्वयं में जिस भी शक्ति की कमी या कमजोरी महसूस करते हो, उस शक्ति का अपने में आह्वान नहीं कर सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त बना सकते हो, केवल याद से, स्नेह के बल से, अधिकार प्राप्त होने के बल से और समीप सम्बन्ध के बल से तो ऐसे ही हर शक्ति को वा स्वयं को भी व्यक्त से अव्यक्त नहीं बना सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त में लाना सहज है तो स्वयं को अव्यक्त बनाना मुश्किल क्यों?
पुराने जमाने की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं कि ताली बजाने से वस्तु व व्यक्ति हाजिर हो जाते थे व परियाँ प्रत्यक्ष हो जाती थीं। यह परियों की कहानी प्रसिद्ध है। ये कहानियाँ किन के बारे में हैं? ज्ञान-परियाँ व तीनों लोकों में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न? ज्ञान और याद के दोनों पंख लगे हुए हैं ना? आप ज्ञान और याद के बल से एक सेकेण्ड में, अर्थात् - इन पंखों के आधार से साकार लोक से निराकार लोक तक पहुँच जाते हो न? ऐसे फरिश्ते-समान परियों को एक सेकेण्ड में जिस शक्ति की आवश्यकता हो, संकल्प किया व आह्वान किया और वह शक्ति स्वरूप में आ जाये - ऐसी ताली बजानी आती है? ऐसी परियाँ बनी हो जिन्हों का हर कल्प गायन होता आया है।
वर्तमान समय का पुरूषार्थ एक सेकेण्ड की गति का होना चाहिए। तब कहेंगे कि समय और स्वयं, दोनों की रफ्तार समान है। इसको ही फास्ट या फर्स्ट स्टेज कहा जाता है। संगम युग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये। स्वयं में शस्त्र-समान शक्तियाँ हों, जो जब चाहो कर्त्तव्य में ला सको। समझा? अच्छा।
वरदान:- अपने चलन और चेहरे द्वारा भाग्य की लकीर दिखाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
आप ब्राह्मण बच्चों को डायरेक्ट अनादि पिता और आदि पिता द्वारा यह अलौकिक जन्म प्राप्त हुआ है। जिसका जन्म ही भाग्यविधाता द्वारा हुआ हो, वह कितना भाग्यवान हुआ। अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हुए हर्षित रहो। हर चलन और चेहरे में यह स्मृति स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में स्वयं को भी अनुभव हो और दूसरों को भी दिखाई दे। आपके मस्तक बीच यह भाग्य की लकीर चमकती हुई दिखाई दे - तब कहेंगे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा।
स्लोगन:- योगी तू आत्मा वह है जो अन्तर्मुखी बन लाइट-माइट रूप का अनुभव करता है।