07-01-08 प्रात: मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे – यहाँ तुम्हें सुख-दु:ख, मान-अपमान.. सब सहन करना है, पुरानी दुनिया के सुखों से बुद्धि हटा देनी है, अपनी मत पर नहीं चलना है”
प्रश्नः- देवताई जन्म से भी यह जन्म बहुत अच्छा है, कैसे?
उत्तर:- इस जन्म में तुम बच्चे शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो। यहाँ तुम अथाह कमाई करते हो, तुमने बाप की शरण ली है। इस जन्म में ही तुम अपना लोक-परलोक सुहेला (सुखी) करते हो। सुदामा मिसल दो मुट्ठी दे 21 जन्म की बादशाही लेते हो।
गीत:- चाहे पास हो चाहे दूर हो…
ओम् शान्ति। गीत का कितना अच्छा अर्थ है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं – चाहे हम इस तन से नजदीक हैं वा दूर हैं क्योंकि सम्मुख योग की शिक्षा दे रहे हैं। प्रेरणा से तो नहीं देंगे ना। चाहे मैं नजदीक हूँ, चाहे दूर हूँ – याद तो मुझे ही करना है। भगवान के पास जाने के लिए ही तो भक्ति करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं कि हे जीव की आत्मायें, इस शरीर में निवास करने वाली आत्मायें, आत्माओं से परमपिता परमात्मा बैठ बात करते हैं। परमात्मा को आत्माओं से मिलना है जरूर, इसलिए जीव आत्मायें भगवान को याद करती हैं क्योंकि दु:खी हैं। सतयुग में तो कोई याद नहीं करते। अभी तुम बच्चे जानते हो हम बहुत पुराने भक्त हैं। जबसे हमको माया ने पकड़ा है, तब से भगवान की, शिव की याद शुरू हुई है क्योंकि शिवबाबा ने हमको स्वर्ग का मालिक बनाया था, तो उनका यादगार बनाकर भक्ति करते हैं। अब तुम जानते हो बाप सम्मुख आये हैं लेने के लिए, क्योंकि अब बाप के पास जाना है। जब तक यहाँ हैं तब तक पुराने शरीर को, पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूलना है और योग में रहना है। तो इस योग अग्नि से पाप भस्म होंगे। इसमें मेहनत लगती है। पद भी तो जबरदस्त है। विश्व का मालिक बनना है। मनुष्य कहते हैं कि विश्व का मालिक तो शिवबाबा है। परन्तु नहीं, विश्व का मालिक मनुष्य ही बनते हैं। बाप बैठ बच्चों को विश्व का मालिक बनाते हैं। कहते हैं तुम ही विश्व के मालिक थे, फिर 84 जन्म लेते-लेते अब कौड़ी के भी मालिक नहीं रहे हो। पहला नम्बर जन्म और अभी का अन्तिम जन्म देखो कितना रात दिन का फ़र्क है। कोई को भी याद नहीं आ सकता, जब तक बाप आकर साक्षात्कार न कराये। ज्ञान बुद्धि से भी साक्षात्कार होता है। जो सयाने बच्चे हैं, नित्य बाप को याद करते हैं, उन्हों को बहुत मजा आयेगा। यहाँ तुम सुनते हो सब नई बातें हैं। मनुष्य तो कुछ नहीं जानते हैं। वह तो गपोड़े लगाते रहते और दर-दर धक्के खाते रहते हैं। तुमको तो भटकने से छुड़ाया जाता है। बाप कहते हैं तुम आत्मा हो, मुझ बाप को याद करते रहो। बुद्धि में यही विचार रहे कि हम आत्माओं को बाबा के पास जाना है, यह सृष्टि जैसे हमारे लिए है नहीं। यह पुरानी सृष्टि तो खत्म हो जायेगी। फिर हम स्वर्ग में आकर नये महल बनायेंगे। दिन-रात बुद्धि में यह चलना चाहिए। बाप अपना अनुभव सुनाते हैं। रात को सोता हूँ, तो यही ख्यालात चलते हैं। यह नाटक अब पूरा होता है, यह पुराना चोला छोड़ना है। हाँ विकर्मों का बोझा बहुत है, इसलिए निरन्तर बाबा को याद करना है। अपनी अवस्था को दर्पण में देखना है – हमारी बुद्धि सबसे हटी हुई है? धन्धे आदि में रहते हुए भी बुद्धि से काम ले सकते हो। बाबा के ऊपर कितना ओना है। कितने ढेर बच्चे हैं। उन्हों का ख्याल रखना पड़ता है। बच्चों को पनाह (शरण) देनी है। दु:खी तो बहुत हैं ना! हंगामें में कितने दु:खी हो मरते हैं। यह समय बहुत खराब है। तो बच्चों को शरण देने के लिए यह मकान बन रहे हैं। यहाँ तो सब अपने बच्चे ही रहते हैं। कोई डर नहीं और फिर योगबल भी रहता है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है, जो बाप को अच्छी रीति याद करते हैं तो बाप उन्हों की रक्षा भी करता है। दुश्मन को भयंकर रूप दिखाकर भगा देते हैं। तुमको जब तक शरीर है, तब तक योग में रहना है। नहीं तो सजायें खानी पड़ेंगी। बड़े आदमी का बच्चा सजा खाता है तो उनका काँध नीचे हो जाता है। तुमको भी काँध नीचे करना पड़ेगा। बच्चों के लिए तो और कड़ी सजायें हैं। कोई ऐसे भी हैं जो कहते अभी तो माया का सुख ले लेवें, जो होगा सो देखा जायेगा। बहुतों को इस पुरानी दुनिया के सुख मीठे लगते हैं। यहाँ तो सुख-दु:ख, मान-अपमान… सब सहन करना पड़ता है। ऊंच प्राप्ति अगर चाहते हो तो फालो करना चाहिए, माँ बाप के फरमान पर चलना चाहिए। अपनी मत माना रावण की मत। सो तो तकदीर को लकीर लगाने की ही निकलेगी। बाप से पूछेंगे तो बाबा झट कहेंगे – यह आसुरी मत है। श्रीमत नहीं है। कदम-कदम पर श्रीमत चाहिए। देखना है कहाँ उल्टा काम कर बाप की निंदा तो नहीं कराते? देवी-देवता तब बनेंगे जब ऐसे लक्षण होंगे। ऐसे नहीं वहाँ ऑटोमेटिकली लक्षण आ जायेंगे। यहाँ बहुत मीठी चलन चाहिए। अगर समझो शिवबाबा ने नहीं, ब्रह्मा बाबा ने कहा तो भी रेसपान्सिबुल यह रहेगा ना! अगर कुछ नुकसान भी हुआ तो हर्जा नहीं। यह ड्रामा में था तो तुम्हारे पर कोई दोष नहीं। अवस्था बहुत अच्छी चाहिए। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में यही रहे कि हम ब्रह्माण्ड के मालिक वहाँ के रहने वाले हैं। इस रीति घर में रहते, धन्धा करते, उपराम होते जायेंगे। जैसे सन्यासी गृहस्थ से उपराम हो जाते हैं। तुम तो सारी पुरानी दुनिया से उपराम होते हो। उस हठयोग सन्यास और इस सन्यास में रात दिन का फ़र्क है। यह राजयोग बाप सिखलाते हैं। सन्यासी सिखला न सकें क्योंकि मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता है ही एक। सभी की मुक्ति अब होनी है क्योंकि सब वापिस जाने हैं। साधू लोग साधना करते हैं कि हम वापिस जायें। यहाँ दु:खी हैं। कोई फिर कहते हैं हम ज्योति-ज्योत में समायें। अनेक मत हैं।
बाबा ने समझाया है कि कोई-कोई बच्चे हैं जिन्हों को पुराने सम्बन्धी भी याद आते हैं। उस दुनिया के सुखों की आश हुई और यह मरा। फिर उसका पैर यहाँ ठहर न सके। माया बहुत लालच देती है। एक कहावत है ”भगवान को याद करो नहीं तो बाज आ जायेगा” यह माया भी बाज मिसल वार करती है। अब जबकि बाप आये हैं तो अभी भी पुरुषार्थ कर ऊंच पद नहीं पाया तो कल्प-कल्पान्तर भी नहीं पायेंगे। यहाँ बाप के पास तो तुमको कोई दु:ख नहीं है, तो पुरानी दु:ख की दुनिया को भूलना चाहिए ना। सारे दिन का पोतामेल देखना चाहिए। कितना समय बाप को याद किया? किसको जीयदान दिया? बाप ने तुमको भी जीयदान दिया है ना। सतयुग त्रेता तक तुम अमर रहते हो। यहाँ कोई मरता है तो कितना रोते पीटते हैं। स्वर्ग में दु:ख का नाम नहीं। समझेंगे पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं। यह मिसाल भी तुमसे लगता है और कोई यह मिसाल दे नहीं सकते। वह थोड़ेही पुरानी खाल को भूलते हैं। वह तो पैसे इकट्ठे करते रहते। यहाँ तुम जो बाप को देते हो तो बाप खुद थोड़ेही खाते वा अपने पास रखते हैं। उनसे बच्चों की ही परवरिश करते हैं इसलिए यह सच्चा-सच्चा शिवबाबा का भण्डारा है, इस भण्डारे से खाने वाले यहाँ भी सुखी तो जन्म-जन्मान्तर सुखी रहते हैं।
तुम्हारा यह जन्म बहुत दुर्लभ है। देवताई जन्म से भी तुम यहाँ सुखी हो क्योंकि बाप की शरण में हो। यहाँ से ही तुम अथाह कमाई करते हो जो फिर जन्म-जन्मान्तर भोगेंगे। सुदामें को भी दो मुट्ठी के बदले 21 जन्मों के लिए महल मिल गये। यह लोक भी सुहैला (सुखी) तो परलोक भी सुहैला, जन्म-जन्मान्तर के लिए इसलिए यह जन्म बहुत अच्छा है। कोई कहते जल्दी विनाश हो तो हम स्वर्ग में चलें। परन्तु अभी तो बहुत खजाना बाप से लेना है। अभी राजधानी कहाँ बनी है। फिर जल्दी विनाश कैसे करायेंगे! बच्चे अभी लायक कहाँ बने हैं! अभी तो बाप पढ़ाने के लिए आते रहते हैं। बाबा की सर्विस तो अपरमअपार है। बाप की महिमा भी अपरमअपार है। जितना ऊंच हूँ, सर्विस भी उतनी ऊंच करता हूँ, तब तो मेरी यादगार है। ऊंच ते ऊंच बाबा की गद्दी है जो जितना पुरुषार्थ करते हैं, वह अपना भाग्य बनाते हैं। यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई, जो वहाँ अथाह धन बन जाता है। तो बच्चों को पुरुषार्थ बहुत अच्छा करना है। बाप को यहाँ भी याद करो तो वहाँ भी याद करो। सीढ़ी तो है ना। दिल दर्पण में देखना है मैं कितना बाप का सपूत बच्चा हूँ। अन्धों को रास्ता बताता हूँ। अपने से बातें करने में खुशी होती है। जैसे बाबा अनुभव बताते हैं – सोता हूँ तो भी बातें करता हूँ। बाबा आपकी तो कमाल है। भक्ति मार्ग में फिर हम आपको भूल ही जायेंगे। इतना वर्सा आपसे पाते हैं फिर सतयुग में यह भूल जायेंगे। फिर भक्ति मार्ग में आपका यादगार बनायेंगे। परन्तु आपका आक्यूपेशन बिल्कुल भूल जाते हैं। जैसे बुद्धू, अज्ञानी बन जाते हैं। अब बाप ने कितना ज्ञानी बनाया है। रात दिन का फ़र्क है। ईश्वर सर्वव्यापी है, यह कोई ज्ञान थोड़ेही है। ज्ञान तो सृष्टि चक्र का चाहिए। अब हम 84 का चक्र पूरा कर वापिस जाते हैं फिर हमको जीवनमुक्ति में आना है। ड्रामा से बाहर थोड़ेही निकल सकते हैं। हम हैं ही जीवनमुक्ति के राही। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह नाटक अब पूरा हो रहा है इसलिए इस पुरानी दुनिया से उपराम रहना है। श्रीमत पर अपनी तकदीर ऊंच बनानी है। कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करनी और करानी है। एक बाप की याद में रह सपूत बच्चा बन अनेकों को रास्ता बताना है।
वरदान:- हर आत्मा से आत्मिक अटूट प्यार रख स्नेह सम्पन्न व्यवहार करने वाले सफलतामूर्त भव
जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है ऐसे ब्राह्मण आत्माओं से आत्मिक प्यार अटूट और अखण्ड हो। किसी के कैसे भी संस्कार हो, चलन हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सारे कल्प में अटूट संबंध है, ईश्वरीय परिवार है, बाप ने हर आत्मा को चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है, यह स्मृति रहे तो आत्मिक प्यार अटूट होने से स्नेह सम्पन्न व्यवहार होगा और सहज सफलतामूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:- अन्तर्मुखी वह है जो जिस समय चाहे आवाज में आये और जिस समय चाहे आवाज से परे हो जाए।