25-02-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 30.03.98 "बापदादा" मधुबन
सर्व प्राप्तियों की
स्मृति इमर्ज कर अचल स्थिति का अनुभव करो और जीवन मुक्त बनो
आज भाग्य विधाता बाप
अपने विश्व में सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर बच्चे के भाग्य की
महिमा स्वयं भगवान गा रहे हैं। बाप की महिमा तो आत्मायें गाती हैं लेकिन आप बच्चों
की महिमा स्वयं बाप करते हैं। ऐसे कभी स्वप्न में भी सोचा कि हमारा इतना श्रेष्ठ
भाग्य बना हुआ है लेकिन बना हुआ था, बन गया। दुनिया के लोग कहते हैं भगवान ने हमको
रचा लेकिन न भगवान का पता है, न रचना का पता है। आप हर एक भाग्यवान बच्चा अनुभव और
फ़खुर से कहते हो कि हम शिव वंशी ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियां हैं। हमको मालूम है
कि हमें बापदादा ने कैसे रचा! चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग पाण्डव है, शक्तियां
हैं किसी से भी पूछेंगे आपका बाप कौन है, तो क्या कहेंगे? फ़लक से कहेंगे ना कि हमको
शिव बाप ने ब्रह्मा बाप द्वारा रचा इसलिए हम भगवान के बच्चे हैं। भगवान से डायरेक्ट
मिलते हैं, न सिर्फ परम आत्मा वा भगवान हमारा बाप है लेकिन वह बाप भी है, शिक्षक भी
है और सतगुरू भी है। सबको यह नशा है? (ताली बजाई) एक हाथ की ताली बजाना - अभी यह भी
एक्सरसाइज़ बुजुर्गों को सिखानी पड़ेगी। बच्चों को खुश देख बाप-दादा भी खुशी में
झूलते हैं और सदा कहते - वाह मेरे हर एक श्रेष्ठ भाग्यवान विशेष आत्मायें...। बाप
के रूप में परमात्म पालना का अनुभव कर रहे हो। यह परमात्म पालना सारे कल्प में
सिर्फ इस ब्राह्मण जन्म में आप बच्चों को प्राप्त होती है, जिस परमात्म पालना में
आत्मा को सर्व प्राप्ति स्वरूप का अनुभव होता है। परमात्म प्यार सर्व संबंधों का
अनुभव कराता है। परमात्म प्यार अपने देह भान को भी भुला देता, साथ-साथ अनेक स्वार्थ
के प्यार को भी भुला देता है। ऐसे परमात्म प्यार, परमात्म पालना के अन्दर पलने वाली
भाग्यवान आत्मायें हो। कितना आप आत्माओं का भाग्य है जो स्वयं बाप अपने वतन को छोड़
आप गॉडली स्टूडेन्ट्स को पढ़ाने आते हैं। ऐसा कोई टीचर देखा जो रोज़ सवेरे-सवेरे
दूरदेश से पढ़ाने के लिए आवे? ऐसा टीचर कभी देखा? लेकिन आप बच्चों के लिए रोज़ बाप
शिक्षक बन आपके पास पढ़ाने आते हैं और कितना सहज पढ़ाते हैं। दो शब्दों की पढ़ाई है
- आप और बाप, इन्हीं दो शब्दों में चक्कर कहो, ड्रामा कहो, कल्प वृक्ष कहो सारी
नॉलेज समाई हुई है। और पढ़ाई में तो कितना दिमाग पर बोझ पड़ता है और बाप की पढ़ाई
से दिमाग हल्का बन जाता है। हल्के की निशानी है ऊंचा उड़ना। हल्की चीज़ स्वत: ही
ऊंची होती है। तो इस पढ़ाई से मन-बुद्धि उड़ती कला का अनुभव करती है। तो दिमाग हल्का
हुआ ना! तीनों लोकों की नॉलेज मिल जाती है। तो ऐसी पढ़ाई सारे कल्प में कोई ने पढ़ी
है। कोई पढ़ाने वाला ऐसा मिला। तो भाग्य है ना! फिर सतगुरू द्वारा श्रीमत ऐसी मिलती
है जो सदा के लिए क्या करूं, कैसे चलूं, ऐसे करूं या नहीं करूं, क्या होगा... यह सब
क्वेश्चन्स समाप्त हो जाते हैं। क्या करूं, कैसे करूं, ऐसे करूं या वैसे करूं... इन
सब क्वेश्चन्स का एक शब्द में जवाब है - फॉलो फादर। साकार कर्म में ब्रह्मा बाप को
फॉलो करो, निराकारी स्थिति में अशरीरी बनने में शिव बाप को फॉलो करो। दोनों बाप और
दादा को फॉलो करना अर्थात् क्वेश्चन मार्क समाप्त होना वा श्रीमत पर चलना। यह
मुश्किल है? पूछने की आवश्यकता पड़ती है क्या? कॉपी करना है, अपना दिमाग नहीं चलाना
है। बाप समान बनना अर्थात् फॉलो फादर करना। मुश्किल है या सहज है? सहज है ना? 30
साल वाले हाथ उठाओ, अच्छा 30 साल में मुश्किल लगा या सहज है? अभी देखो 30 साल वालों
को भी सहज लगा तो आप जो पीछे-पीछे आये उन्हों के लिए मुश्किल है या सहज है? सहज है
ना? (गर्मी के कारण सभी के हाथों में रंग-बिरंगी पंखे हैं जो हिला रहे हैं) अच्छा
है, पंखों की रिमझिम भी अच्छी लग रही है। सीन अच्छी है। नवीनता होनी चाहिए ना। तो
इस ग्रुप की यह भी नवीनता है, यह भी टी.वी. में आ गया। अच्छा है सभी भाग-भाग कर
पहुंच गये हैं, बापदादा भी स्नेह की मुबारक देते हैं। देखो, और जो भी हद के गुरू
होते हैं कितने वरदान देते हैं, एक या दस, ज्यादा नहीं देते हैं। लेकिन आपको सतगुरु
द्वारा रोज़ वरदान मिलता है। ऐसा गुरू कब देखा? नहीं देखा ना! आप लोगों ने ही देखा
लेकिन कल्प-कल्प देखा। तो सदा अपने भाग्य की प्राप्तियों को सामने रखो। सिर्फ बुद्धि
में मर्ज नहीं रखो, इमर्ज करो। मर्ज रखने के संस्कार को बदलकर इमर्ज करो। अपनी
प्राप्तियों की लिस्ट सदा बुद्धि में इमर्ज रखो। जब प्राप्तियों की लिस्ट इमर्ज होगी
तो किसी भी प्रकार का विघ्न वार नहीं करेगा। वह मर्ज हो जायेगा और प्राप्तियां
इमर्ज रूप में रहेंगी।
बापदादा जब सुनते हैं
कि आज किसी भी कारण से कोई-कोई बच्चे मेहनत करते हैं, युद्ध करते हैं, योग लगाने
चाहते लेकिन लगता नहीं है, सोल कॉन्सेस के बदले बॉडी कॉन्सेस में आ जाते हैं तो
बापदादा को अच्छा नहीं लगता है। कारण क्या? अपने भाग्य की प्राप्तियां इमर्ज नहीं
रहती, मर्ज रहती हैं। फिर जब कोई याद दिलाता है तो सोचने लगते हैं होना तो ऐसा
चाहिए...! इसलिए बहुत सहज पुरुषार्थ है - प्राप्तियों को इमर्ज रखो। जब से ब्राह्मण
बनें तब से अपने भाग्य को स्मृति में रखो। हलचल में नहीं आओ, अचल बनो क्योंकि यहाँ
आबू में यादगार क्या है? अचलघर है या हलचल घर है? अचलघर है ना? यह किसका यादगार है?
आपका यादगार है ना? तो जब भी कोई सूक्ष्म पुरुषार्थ का मार्ग मुश्किल लगे, बुद्धि
ज्यादा हलचल में हो, तो अपने यादगार को स्मृति में लाओ। कई बार बच्चे ज्ञान की
प्वाइंट बोलते भी हैं कि मैं आत्मा हूँ, ड्रामा है, यह तो विघ्न है, यह तो साइडसीन
है, बोलते भी रहते लेकिन हिलते भी रहते। हिलते-हिलते बोलते रहते। जब ऐसी बुद्धि बन
जाए जो अचल नहीं हो सके तो मधुबन का अचलघर याद रखो। यह तो स्थूल चीज़ है ना!
सूक्ष्म तो नहीं है। आंखों से देखने की चीज़ है, मेरा यादगार अचलघर है, हलचल घर नहीं
है क्योंकि बापदादा इस वर्ष को सर्व बच्चों के प्रति मुक्ति वर्ष मनाना चाहते हैं।
ऐसा नहीं हो हाथ उठवायें तो कोई का उठे, कोई का नहीं उठे, नहीं। सभी खुशी-खुशी से
हाथ की ताली बजावे, (सभी बजाने लगे) चलो अभी बजा दी तो ठीक है, लेकिन ऐसे ही बापदादा
इस वर्ष के समाप्ति में इतनी ज़ोर से ताली बजाते देखे। अभी तो बजाई अच्छा है लेकिन
तब भी बजाना। बजायेंगे? देखो हाथ की ताली बजाके तो खुश कर दिया लेकिन बापदादा नये
वर्ष में जो अपना 18 जनवरी विशेष ब्रह्मा बाप के शरीर से मुक्त होने का दिन है, तो
18 जनवरी में बापदादा फिर हाथ उठवायेगा कि मुक्ति वर्ष मनाया या सिर्फ सोचा? मनाना
है, मनाना है - सोचते तो नहीं रह गये, स्वरूप में लाया वा सोचते-सोचते लास्ट में भी
सोचते रहेंगे! यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं। दिखायेंगे? अच्छा। याद रहेगा ना!
प्राप्तियों को सामने रखो। बाप की याद के साथ, बाप ने जो दिया वह भी इमर्ज करो -
क्या बनाया और क्या मिला!
बापदादा इस वर्ष के
बाद हर बच्चे को जीवन-मुक्त स्थिति में देखेंगे। भविष्य में जीवनमुक्त होंगे लेकिन
संस्कार जीवनमुक्त के अभी से ही इमर्ज करने हैं। और निरन्तर कर्मयोगी, निरन्तर सहज
योगी, निरन्तर मुक्त आत्मा के संस्कार अभी से अनुभव में लाओ, क्यों? बापदादा ने पहले
भी इशारा दिया है कि समय का परिवर्तन आप विश्व परिवर्तक आत्माओं के लिए इन्तजार कर
रहा है। प्रकृति आप प्रकृतिपति आत्माओं का विजय का हार लेके आवाह्न कर रही है। समय
विजय का घण्टा बजाने के लिए आप भविष्य राज्य अधिकारी आत्माओं को देख रहे हैं कि कब
घण्टा बजायें, भक्त आत्मायें वह दिन सदा याद कर रही हैं कि कब हमारे पूज्य देव
आत्मायें हमारे ऊपर प्रसन्न हो हमें मुक्ति का वरदान देंगी! दु:खी आत्मायें पुकार
रही हैं कि कब दु:ख हर्ता सुख कर्ता आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी! इसलिए यह सब आपके
लिए इन्तजार वा आवाह्न कर रहे हैं इसलिए हे रहमदिल, विश्व कल्याणकारी आत्मायें अभी
इन्हों के इन्तजार को समाप्त करो। आपके लिए सब रुके हैं। आप सब मुक्त हो जाओ तो
सर्व आत्मायें, प्रकृति, भगत मुक्त हो जाएं। तो मुक्त बनो, मुक्ति का दान देने वाले
मास्टर दाता बनो। अभी विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी आत्मायें बनो।
जिम्मेवार हो ना! बाप के साथ मददगार हो। क्या आपको रहम नहीं आता, दिल में दु:ख के
विलाप महसूस नहीं होते। हे विश्व परिवर्तक आत्मायें अभी अपने जिम्मेवारी की ताजपोशी
मनाओ।
बापदादा ने पहले भी
कहा 100 हिमालय जितने बड़े ते बड़े विघ्न भी आ जाएं तो भी हटेंगे नहीं, हार नहीं
खायेंगे, ताजपोशी मुक्ति वर्ष अवश्य मनायेंगे। बापदादा रोज़ चार्ट देखेगा। ऐसे नहीं
यहाँ से जाओ तो ट्रेन में ही कहो पता नहीं क्या हो गया, घर में गये तो बगुले और हंस
की लड़ाई लग गई, ऐसे नहीं कहना यह हो गया, यह हो गया...। यह नहीं सुनेंगे। आपके
पत्र वेस्ट पेपर बॉक्स में डालेंगे, सुनेंगे नहीं। दृढ़ संकल्प करो - होना ही है।
जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता नहीं हो, असम्भव है। तो सभी दृढ़ संकल्प वाले हैं ना।
टीचर्स हाथ उठाओ, टीचर्स बहुत हैं। सारे सेन्टर्स खाली करके आये हैं क्या?
देखो एक खुशखबरी
सुनाते हैं - बापदादा ने देखा, अभी देखा है, सुना है कि सर्व मधुबन वालों ने अपने
परिवर्तन का लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है, लक्षण तो देखेंगे लेकिन लक्ष्य बहुत अच्छा
रखा है, अपने में अन्तर जो आया है वह भी लिखा है लेकिन बापदादा को खुशी है अन्तर आना
शुरू हुआ, आगे होता रहेगा। लेकिन सभी ने अपने दृढ़ संकल्प का उमंग-उत्साह अच्छा
दिखाया है। अभी कागज में है लेकिन कागज में भी पहला कदम तो है। तो बापदादा को खुशी
हुई क्यों? सारे वर्ल्ड के लिए हे अर्जुन मधुबन निवासी हैं। निमित्त मधुबन निवासी
हैं, सेकेण्ड नम्बर देश-विदेश की निमित्त सेवाधारी टीचर्स हैं और सर्व सहयोगी साथी
सारा परिवार ब्राह्मण आत्माये हैं। तो मधुबन का नक्शा बापदादा देखेंगे कि बिल्कुल
बदला हुआ दिखाई दे। मधुबन वाले तो कम आये होंगे। कईयों ने तो लिखा ही नहीं है। आगे
बैठने वालों ने कम लिखा है, बहुत बिजी रहे हैं। लेकिन जब काम मिलता है तो लिखने में
भी मार्क्स जमा होती हैं। अगर नहीं लिखा तो मार्क्स एक्स्ट्रा कम हो गई, नुकसान कर
दिया। जो भी डायरेक्शन मिलते हैं, डायरेक्ट बाप द्वारा मिलते हैं, चाहे निमित्त
आत्मायें दादियों द्वारा मिलते हैं, उसको रिगार्ड देना अति आवश्यक है। इसमें न बहाना
देना, न अलबेलापन करना। आगे के लिए बापदादा बता देता है कि मार्क्स जमा नहीं हुई
इसलिए इसको महत्व देना अर्थात् महान बनना। हल्की बात नहीं करो। बच्चे बड़े चतुर
हैं, कहेंगे बापदादा तो जानते ही हैं ना। जानते तो हैं लेकिन कहा क्यों? जानते हुए
कहा ना! तो ऐसे छुड़ाना नहीं चाहिए, बहुत ऐसे कार्य हैं, छोटे-छोटे जिसको हाँ जी
करने में एक्स्ट्रा मार्क्स जमा होती हैं। कई ऐसे स्टूडेन्ट्स हैं जो किसी भी पास्ट
के संस्कार के वश बहुत अच्छे उमंग-उत्साह में बढ़ते हैं लेकिन कोई न कोई सुनहरी धागा,
बहुत महीन धागा उनको आगे बढ़ने नहीं देता। वह समझते भी हैं कि यह महीन धागा रहा हुआ
है, लेकिन... लेकिन ही कहेंगे। लेकिन ऐसे भी पुरुषार्थी हैं जो छोटी-छोटी कॉमन बातों
में हाँ जी करने से मार्क्स ले लेते हैं। और हो सकता है कि वह थोड़ी-थोड़ी मार्क्स
इकट्ठी होते हुए वह आगे भी निकल सकते हैं, ऐसे भी बापदादा के पास एक्जैम्पुल के रूप
में हैं इसलिए सहज तरीका है छोटी-छोटी हाँ जी करने में मार्क्स जमा करते जाओ। कट नहीं
करो, जमा करो। बाकी बापदादा ने देखा मैजारिटी ने अपना उमंग-उत्साह अच्छा दिखाया है
इसलिए दृढ़ संकल्प के लिए विशेष उन मधुबन निवासी बच्चों को बापदादा हाँ जी करने की
मुबारक देते हैं। यादप्यार भी दे रहे हैं। लाख-लाख गुणा यादप्यार दे रहे हैं। क्यों?
मधुबन है बापदादा के स्वरूप को प्रत्यक्ष करने का शीशमहल। तो एक बात की तो खुशी है,
अभी कागज में आया हुआ, कर्म में लाना ही है। ठीक है ना! अच्छा। मुबारक हो।
अभी अगर आप सभी को
अचानक डायरेक्शन मिले कि अभी-अभी अशरीरी बन जाओ तो बन सकते हो कि हलचल होगी? क्यों?
लास्ट समय का यही अभ्यास पास विद ऑनर बनायेगा। तो अभी बापदादा भी कहते हैं एक
सेकेण्ड में सब बातों को किनारे कर अशरीरी भव। (ड्रिल) अच्छा।
चारों ओर के अति
श्रेष्ठ भाग्यवान, परमात्म पालना के अधिकारी आत्मायें, परमात्म पढ़ाई के अधिकारी,
परमात्मा सतगुरू के वरदानों के अधिकारी, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता के अधिकारी, सदा
अखण्ड योगी, अचल योगी, सदा विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा सर्व
प्राप्तियों को इमर्ज रूप में अनुभव करने वाले ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का
यादप्यार और नमस्ते।
अभी मुक्त वर्ष में
नम्बरवन मधुबन निवासी। ठीक है? हो सकता है या मुश्किल है? (हाँ जी) फिर तो बापदादा
मधुबन वालों को भी गोल्डन बैज देगा। मधुबन वालों को बैज देना है और सभी को दिया है
मधुबन वालों को मुक्त वर्ष की प्राइज़ देंगे। अच्छा बैज देंगे आपको। अच्छा।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन
में एक बाप को अपना संसार बनाने वाले स्वत: और सहजयोगी भव
ब्राह्मण जीवन में सभी
बच्चों का वायदा है - “एक बाप दूसरा न कोई''। जब संसार ही बाप है, दूसरा कोई है ही
नहीं तो स्वत: और सहजयोगी स्थिति सदा रहेगी। अगर दूसरा कोई है तो मेहनत करनी पड़ती
है। यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए। लेकिन एक बाप ही सब कुछ है तो बुद्धि कहाँ जा नहीं
सकती। ऐसे सहजयोगी, सहज स्वराज्य अधिकारी बन जाते हैं। उनके चेहरे पर रूहानियत की
चमक एकरस एक जैसी रहती है।
स्लोगन:-
बाप समान अव्यक्त वा विदेही बनना - यही अव्यक्त पालना का प्रत्यक्ष सबूत है।