27-05-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – अपने को राजतिलक देने के लायक बनाओ, जितना
पढ़ाई पढ़ेंगे, श्रीमत पर चलेंगे तो राजतिलक मिल जायेगा”
प्रश्नः-
किस स्मृति
में रहो तो रावणपने की स्मृति विस्मृत हो जायेगी?
उत्तर:-
सदा स्मृति रहे कि हम स्त्री-पुरूष नहीं, हम आत्मा हैं, हम बड़े बाबा (शिवबाबा) से
छोटे बाबा (ब्रह्मा) द्वारा वर्सा ले रहे हैं। यह स्मृति रावणपने की स्मृति को भुला
देगी। जबकि स्मृति आई कि हम एक बाप के बच्चे हैं तो रावणपने की स्मृति समाप्त हो
जाती है। यह भी पवित्र रहने की बहुत अच्छी युक्ति है। परन्तु इसमें मेहनत चाहिए।
गीत:-
तुम्हें पाके हमने……..
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी
बच्चों को समझाते हैं। देखो सब तिलक यहाँ (भृकुटी में) देते हैं। इस जगह एक तो आत्मा
का निवास है, दूसरा फिर राजतिलक भी यहाँ दिया जाता है। यह आत्मा की निशानी तो है
ही। अब आत्मा को बाप का वर्सा चाहिए स्वर्ग का। विश्व का राज्य तिलक चाहिए।
सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी महाराजा-महारानी बनने के लिए पढ़ते हैं। यह पढ़ना गोया अपने
लिए अपने को राजतिलक देना है। तुम यहाँ आये ही हो पढ़ने लिए। आत्मा जो यहाँ निवास
करती है वह कहती है बाबा हम आपसे विश्व का स्वराज्य अवश्य प्राप्त करेंगे। अपने लिए
हर एक को अपना पुरूषार्थ करना है। कहते हैं बाबा हम ऐसे सपूत बनकर दिखायेंगे। आप
हमारी चलन को देखते रहना कि कैसे चलते हैं। आप भी जान सकते हो हम अपने को राजतिलक
देने लायक बने हैं या नहीं? तुम बच्चों को बाप का सपूत बन कर दिखाना है। बाबा हम
आपका नाम जरूर बाला करेंगे। हम आपके मददगार सो अपने मददगार बन भारत पर अपना राज्य
करेंगे। भारतवासी कहते हैं ना – हमारा राज्य है। परन्तु उन बिचारों को पता नहीं है
कि अभी हम विषय वैतरणी नदी में पड़े हैं। हम आत्मा का राज्य तो है नहीं। अभी तो
आत्मा उल्टी लटकी पड़ी है। खाने का भी नहीं मिलता है। जब ऐसी हालत होती है तब बाबा
कहते हैं अब तो हमारे बच्चों को खाने लिए भी नहीं मिलता है, अब हम जाकर इन्हों को
राजयोग सिखलाऊं। तो बाप आते हैं राजयोग सिखाने। बेहद के बाप को याद करते हैं। वह है
ही नई दुनिया रचने वाला। बाप पतित-पावन भी है, ज्ञान सागर भी है। यह सिवाए तुम्हारे
और कोई की बुद्धि में नहीं है। यह सिर्फ तुम बच्चे जानते हो – बरोबर हमारा बाबा
ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। यह महिमा पक्की याद कर लो, भूलो नहीं। बाप की महिमा
है ना। वह बाप पुनर्जन्म रहित है। कृष्ण की महिमा बिल्कुल न्यारी है। प्राइम
मिनिस्टर, प्रेजीडेण्ट की महिमा तो अलग-अलग होती है ना। बाप कहते हैं मुझे भी इस
ड्रामा में ऊंच ते ऊंच पार्ट मिला हुआ है। ड्रामा में एक्टर्स को मालूम होना चाहिए
ना कि यह बेहद का ड्रामा है, इनकी आयु कितनी है। अगर नहीं जानते तो उनको बेसमझ
कहेंगे। परन्तु यह कोई समझते थोड़ेही हैं। बाप आकर कान्ट्रास्ट बतलाते हैं कि
मनुष्य क्या से क्या हो जाते हैं। अभी तुम समझ सकते हो, मनुष्यों को बिल्कुल पता नहीं
है कि 84 जन्म कैसे लिये जाते हैं। भारत कितना ऊंच था, चित्र हैं ना। सोमनाथ मन्दिर
से कितना धन लूटकर ले गये। कितना धन था। अभी तुम बच्चे यहाँ बेहद के बाप से मिलने
आये हो। बच्चे जानते हैं बाबा से राजतिलक श्रीमत पर लेने आये हैं। बाप कहते हैं
पवित्र जरूर बनना पड़ेगा। जन्म-जन्मान्तर विषय वैतरणी नदी में गोते खाकर थके नहीं
हो! कहते भी हैं हम पापी हैं, मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही, तो जरूर कभी गुण
थे जो अब नहीं हैं।
अभी तुम समझ गये हो –
हम विश्व के मालिक, सर्वगुण सम्पन्न थे। अभी कोई गुण नहीं रहा है। यह भी बाप समझाते
हैं। बच्चों का रचयिता है ही बाप। तो बाप को ही तरस पड़ता है सभी बच्चों पर। बाप
कहते हैं मेरा भी ड्रामा में यह पार्ट है। कितने तमोप्रधान बन गये हैं। झूठ पाप,
झगड़ा क्या-क्या लगा पड़ा है। सब भारतवासी बच्चे भूल गये हैं कि हम कोई समय विश्व
के मालिक डबल सिरताज थे। बाप उन्हें स्मृति दिलाते हैं, तुम विश्व के मालिक थे फिर
तुम 84 जन्म लेते आये हो। तुम अपने 84 जन्मों को भूल गये हो। वन्डर है, 84 के बदले
84 लाख जन्म लगा दिये हैं फिर कल्प की आयु भी लाखों वर्ष कह देते। घोर अन्धियारे
में हैं ना। कितनी झूठ है। भारत ही सचखण्ड था, भारत ही झूठखण्ड है। झूठखण्ड किसने
बनाया, सचखण्ड किसने बनाया – यह किसको पता नहीं। रावण को बिल्कुल ही जानते नहीं।
भक्त लोग रावण को जलाते हैं। कोई रिलीजस आदमी हो, उनको तुम बताओ कि मनुष्य यह
क्या-क्या करते हैं। सतयुग जिसको हेविन पैराडाइज़ कहते हो वहाँ शैतान रावण कहाँ से
आया। हेल के मनुष्य वहाँ हो कैसे सकते। तो समझेंगे यह तो बरोबर भूल है। तुम
रामराज्य के चित्र पर समझा सकते हो, इसमें रावण कहाँ से आया? तुम समझाते भी हो
परन्तु समझते नहीं। कोई विरला निकलता है। तुम कितने थोड़े हो सो भी आगे चल देखना
है, कितने ठहरते हैं।
तो बाबा ने समझाया –
आत्मा की छोटी निशानी भी यहाँ ही दिखाते हैं। बड़ी निशानी है राजतिलक। अभी बाप आया
हुआ है। अपने को बड़ा तिलक कैसे देना है, तुम स्वराज्य कैसे प्राप्त कर सकते हो? वह
रास्ता बताते हैं। उसका नाम रख दिया है राजयोग। सिखलाने वाला है बाप। कृष्ण थोड़ेही
बाप हो सकता। वह तो बच्चा है फिर राधे के साथ स्वयंवर होता है तब एक बच्चा होगा।
बाकी कृष्ण को इतनी रानियां आदि दे दी हैं यह तो झूठ है ना। परन्तु यह भी ड्रामा
में नूँध है, ऐसी बातें फिर भी सुनेंगे। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है – कैसे हम
आत्मायें ऊपर से आती हैं पार्ट बजाने। एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। यह तो बहुत सहज
है ना। बच्चा पैदा हुआ, उनको सिखलाते हैं – यह बोलो। तो सिखलाने से सीख जाता है।
तुमको बाबा क्या सिखलाते हैं? सिर्फ कहते हैं बाप और वर्से को याद करो। तुम गाते भी
हो तुम मात-पिता…… आत्मा गाती है ना बरोबर सुख घनेरे मिलते हैं। तुम बच्चे जानते हो
शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। यहाँ तुम शिवबाबा के पास आये हो। भागीरथ तो मनुष्य का
रथ है ना। इसमें परमपिता परमात्मा विराजमान होते हैं, परन्तु रथ का नाम क्या है? अभी
तुम जानते हो नाम है ब्रह्मा क्योंकि ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचते हैं ना। पहले
होते ही हैं ब्राह्मण चोटी फिर देवता। पहले तो ब्राह्मण चाहिए इसलिए विराट रूप भी
दिखाया है। तुम ब्राह्मण ही फिर देवता बनते हो। बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं,
फिर भी भूल जाते हैं। बाप कहते बच्चे सदा स्मृति रखो कि हम स्त्री-पुरूष नहीं, हम
आत्मा हैं। हम बड़े बाबा (शिवबाबा) से छोटे बाबा (ब्रह्मा) द्वारा वर्सा ले रहे हैं
तो रावणपने की स्मृति विस्मृत हो जायेगी। यह पवित्र रहने की बहुत अच्छी युक्ति है।
बाबा के पास बहुत जोड़े आते हैं, दोनों ही कहते हैं बाबा। जबकि स्मृति आई है हम एक
बाप के बच्चे हैं तो फिर रावणपने की स्मृति विस्मृत हो जानी चाहिए, इसमें मेहनत
चाहिए। मेहनत बिगर तो कुछ चल न सके। हम बाबा के बने हैं, उनको ही याद करते हैं। बाप
भी कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। 84 जन्मों की कहानी भी बिल्कुल
सहज है। बाकी मेहनत है बाप को याद करने में। बाप कहते हैं कम से कम पुरूषार्थ कर 8
घण्टा तो याद करो। एक घड़ी आधी घड़ी…..। क्लास में आओ तो स्मृति आयेगी – बाप हमको
यह पढ़ाते हैं। अभी तुम बाप के सम्मुख हो ना। बाप बच्चे-बच्चे कह समझाते हैं। तुम
बच्चे सुनते हो। बाप कहते हैं हियर नो ईविल….. यह भी अभी की ही बात है।
अभी तुम बच्चे जानते
हो हम ज्ञान सागर बाप के पास सम्मुख आये हैं। ज्ञान सागर बाप तुमको सारे सृष्टि का
ज्ञान सुना रहे हैं। फिर कोई उठाये न उठाये, वो तो उनके ऊपर है। बाप आकर अभी हमको
ज्ञान दे रहे हैं। हम अभी राजयोग सीखते हैं। फिर कोई भी शास्त्र आदि भक्ति का अंश
नहीं रहेगा। भक्ति मार्ग में ज्ञान रिंचक मात्र नहीं, ज्ञान मार्ग में फिर भक्ति
रिंचक मात्र नहीं। ज्ञान सागर जब आये तब वह ज्ञान सुनाये। उनका ज्ञान है ही सद्गति
के लिए। सद्गति दाता है ही एक, जिसको ही भगवान कहा जाता है। सब एक ही पतित-पावन को
बुलाते हैं फिर दूसरा कोई हो कैसे सकता। अभी बाप द्वारा तुम बच्चे सच्ची बातें सुन
रहे हो। बाप ने सुनाया – बच्चे, मैं तुमको कितना साहूकार बनाकर गया था। 5 हज़ार
वर्ष की बात है। तुम डबल सिरताज थे, पवित्रता का भी ताज था फिर जब रावण राज्य होता
है तब तुम पुजारी बन जाते हो। अब बाप पढ़ाने आये हैं तो उनकी श्रीमत पर चलना है, औरों
को भी समझाना है। बाप कहते हैं मुझे यह शरीर लोन लेना पड़ता है। महिमा सारी उस एक
की ही है, मैं तो उनका रथ हूँ। बैल नहीं हूँ। बलिहारी सारी तुम्हारी है, बाबा तुमको
सुनाते हैं, मैं बीच में सुन लेता हूँ। मुझ अकेले को कैसे सुनायेंगे। तुमको सुनाते
हैं मैं भी सुन लेता हूँ। यह भी पुरूषार्थी स्टूडेन्ट है। तुम भी स्टूडेन्ट हो। यह
भी पढ़ते हैं। बाप की याद में रहते हैं। कितनी खुशी में रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण
को देख खुशी होती है – हम यह बनने वाले हैं। तुम यहाँ आये ही हो स्वर्ग के
प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने। राजयोग है ना। एम ऑब्जेक्ट भी है। पढ़ाने वाला भी बैठा है
फिर इतनी खुशी क्यों नहीं होती है। अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए। बाबा से हम
कल्प-कल्प वर्सा लेते हैं। यहाँ ज्ञान सागर के पास आते हैं, पानी की तो बात ही नहीं
है। यह तो बाप सम्मुख समझा रहे हैं। तुम भी यह (देवता) बनने के लिए पढ़ रहे हो।
बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए – अभी हम जाते हैं अपने घर। अब जो जितना पढ़ेंगे
उतना ऊंच पद पायेंगे। हर एक को अपना पुरूषार्थ करना है। दिलहोल (दिलशिकस्त) मत बनो।
बहुत बड़ी लाटरी है। समझते हुए भी फिर आश्चर्यवत् भागन्ती हो पढ़ाई को छोड़ देते
हैं। माया कितनी प्रबल है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने को राजतिलक देने के लायक बनाना है। सपूत बच्चा बनकर सबूत देना
है। चलन बड़ी रॉयल रखनी है। बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
2) हम स्टूडेन्ट हैं, भगवान हमें पढ़ा रहे हैं, इस खुशी से पढ़ाई पढ़नी है। कभी
भी पुरूषार्थ में दिलशिकस्त नहीं बनना है।
वरदान:-
कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करने वाले सर्व
आत्माओं की दुआओं के अधिकारी भव
कल्याणकारी वृत्ति द्वारा सेवा करना – यही सर्व आत्माओं
की दुआयें प्राप्त करने का साधन है। जब लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं,
तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता। जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती
हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल, सदा महादानी रहेंगे। हर कदम में कल्याणकारी
वृत्ति से चलेंगे, मैं पन नहीं आयेगा, निमित्त पन याद रहेगा। ऐसे सेवाधारी को सेवा
के रिटर्न में सर्व आत्माओं की दुआओं का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
स्लोगन:-
साधनों की आकर्षण साधना को खण्डित कर देती है।