ओम् शान्ति।
यह किसने कहा कि बाकी थोड़ा समय है? बहुत गई अब थोड़ी की भी थोड़ी रही। अब तुम इस
पुरानी दुनिया में बैठे हो। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। सुख का नाम-निशान नहीं है।
सुख है ही सुखधाम में। कलियुग को कहते हैं दु:खधाम। अब बाबा कहते हैं जबकि मैं आया
हूँ, तुमको सुखधाम ले चलने के लिए तो फिर क्यों रूके हुए हो? दु:खधाम से क्यों दिल
लगी हुई है? दु:खधाम के भातियों से अथवा इस पुराने शरीर से क्यों दिल लगी है? हम आये
हैं तुमको सुखधाम में ले चलने के लिए। संन्यासी कहते हैं इस दुनिया का सुख तो काग
विष्टा समान है इसलिए उनका संन्यास करते हैं। तुम बच्चों को अब सुखधाम का
साक्षात्कार हुआ है। यह पढ़ाई है ही सुखधाम के लिए और इस पढ़ाई में कोई भी तकलीफ नहीं
है। बाप को याद करना है। इस याद से भी तुम निरोगी बनेंगे। तुम्हारी काया कल्प वृक्ष
समान बड़ी होगी। यह जो मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, उनकी आयु 5 हजार वर्ष है। उसमें
आधाकल्प सुख, आधाकल्प दु:ख है। दु:ख तो आधाकल्प तुमने देखा, बाप कहते हैं पवित्र
दुनिया में चलना है तो पवित्र बनो। श्रीमत कहती है यह विष की लेन-देन छोड़ दो।
ज्ञान और योग की धारणा करो। जितना ज्ञान रत्न धारण करेंगे उतना निरोगी बनेंगे।
बाप ने समझाया है यह रूहानी हॉस्पिटल भी है तो युनिवर्सिटी भी है। परमपिता
परमात्मा आकर रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी स्थापन करते हैं। हॉस्पिटल तो दुनिया
में बहुत हैं लेकिन ऐसी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी दोनों इकट्ठी कहीं नहीं होती। यहाँ
यह वण्डर है, हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी, हेल्थ और वेल्थ इकट्ठी मिलती हैं। फिर क्यों
नहीं इस खजाने को लेने के लिए खड़े हो जाते हो। आजकल करते अचानक ही विनाश आ जायेगा।
बाप श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देते हैं। तुम गवर्मेन्ट को भी समझाओ इस समय बेहद का बाप
ऐसी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी खोलते हैं जो सबको हेल्थ वेल्थ दोनों मिले। गवर्मेन्ट
भी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलती है। उनको समझाओ इस जिस्मानी हॉस्पिटल खोलने से क्या
होगा। यह तो आधाकल्प से चलती आई हैं और मरीज भी बनते ही आये हैं। यह है फिर रूहानी
हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी, इससे मनुष्य 21 जन्मों के लिए एवरहेल्दी वेल्दी बन सकते
हैं। तो एज्यूकेशन मिनिस्टर, हेल्थ मिनिस्टर को भी समझाओ कि बेहद के बाप ने यह
कम्बाइन्ड हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी दोनों खोली हैं। आपको भी राय देते हैं ऐसे खोलो
तो मनुष्यों का कल्याण हो जाए। बाकी यह बीमारियां आदि तो जब से रावण राज्य शुरू हुआ
है तब से शुरू हुई हैं। आगे तो वैद्य की दवाईयां थी। अब तो अंग्रेजी दवाईयां बहुत
निकली हैं। यह है अविनाशी सर्जन, जो अविनाशी दवाई देते हैं। तब गाया जाता है ज्ञान
अंजन सतगुरू दिया, ज्ञान इन्जेक्शन रूहानी बाप ही लगाते हैं आत्माओं को। और कोई
आत्मा को इन्जेक्शन लगाने वाला हो नहीं सकता। वह तो कह देते हैं आत्मा निर्लेप है।
तो तुम समझाओ उस हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी में तो लाखों रूपया खर्चा लग जाता है। यहाँ
तो खर्चे की कोई बात नहीं। 3 पैर पृथ्वी चाहिए। जो कोई भी आये तो उनको समझाया जाए।
बाप को याद करो तो एवरहेल्दी बनेंगे और चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
धनवान होगा तो बड़ी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलेंगे। गरीब छोटी खोलेंगे। गवर्मेन्ट
कितने खोलती है। आजकल तो टेन्ट आदि लगाकर भी पढ़ाते हैं और 2-3 सेशन रखते हैं
क्योंकि जगह नहीं है। पैसे नहीं हैं। इसमें खर्चे की कोई बात नहीं। कोई भी जगह मिले।
कोई औजार आदि तो रखने नहीं हैं। बड़ी सिम्पल बात है। पुरुष भी खोलते हैं, मातायें
भी खोलती हैं। बाप कहते हैं तुम ही खोलो, तुम ही सम्भालो। जो करेगा सो पायेगा, बहुतों
का कल्याण होगा। बेहद का बाप श्रीमत देते हैं – श्रेष्ठ बनने के लिए। बहुत हैं जो
सुनते हैं परन्तु करते नहीं है क्योंकि तकदीर में नहीं हैं। हेल्थ, वेल्थ मिलती है
बाप से। बाबा बैकुण्ठ की बादशाही देने आये हैं। हीरे जवाहरों के महल मिलेंगे। भारत
में ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। जरूर उन्हों को बाप ने वर्सा दिया होगा। अभी तो
कलियुग में दु:ख ही दु:ख है फिर सतयुग की स्थापना मुझे ही करनी है। मनुष्य कोई
हॉस्पिटल आदि खोलते हैं तो उद्घाटन करते हैं। बाप कहते हैं मै स्वर्ग का उद्घाटन
करता हूँ। अब तुम श्रीमत पर स्वर्ग के लायक बनो। कल्प-कल्प तुम लायक बनते हो यह नई
बात नहीं है। देखा जाता है गरीब बहुत आते हैं। बाबा भी कहते हैं मैं गरीब निवाज़
हूँ। साहूकारों के पास धन बहुत है, इसलिए वह समझते हैं हम स्वर्ग में बैठे हैं।
भारत गरीब है उनमें भी जो अधिक गरीब हैं, उन्हों को ही बाप उठाते हैं। साहूकार तो
नींद में सोये पड़े हैं। कितना ज्ञान और योग बाबा सिखलाते हैं, तीसरा नेत्र भी बाबा
ही देते हैं जिससे तुम सारे चक्र को जान जाते हो। बाकी सब घोर अन्धियारे में हैं।
ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का किसको भी पता नहीं है। पतित-पावन बाप को ही भूल गये
हैं। शिव परमात्मा के लिए कह देते हैं – ठिक्कर भित्तर में है।
तुम जानते हो अभी सबकी कयामत का समय है। आग में जल मर खत्म होंगे। फिर सबको
वापिस ले जाऊंगा साथ में। मैं पण्डा बन आया हूँ। तुम पाण्डव सेना हो ना। वह जिस्मानी
यात्रा पर ले जाते हैं, वह जन्म-जन्मान्तर करते आये हैं। यह है रूहानी तीर्थ, इसमें
चलना फिरना नहीं पड़ता है। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। रात को भी जागकर मुझे
याद करो। मेरे साथ बुद्धि का योग लगाओ। नींद को जीतने वाले बनो तो तुम नजदीक आते
जायेंगे। वह हैं कुख वंशावली ब्राह्मण। तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राहमण। अभी
तुम रूहानी यात्रा में तत्पर हो, तुम्हें पवित्र रहना है। वह ब्राह्मण लोग खुद ही
अपवित्र हैं तो औरों को पवित्र बना न सकें। तुमको तो पवित्र रहना है। रूद्र ज्ञान
यज्ञ में पवित्र ब्राह्मण ही रहते हैं। वह ब्राह्मण लोग भल मन्दिरों में रहते हैं।
नाम ब्राह्मण है तो देवताओं की मूर्ति को हाथ लगा सकते हैं और उनको स्नान आदि भी
कराते हैं परन्तु हैं वह पतित, बाकी और जो मनुष्य मन्दिर में जाते हैं वह अगर नाम
के ब्राह्मण नहीं हैं तो उनको हाथ लगाने नहीं देते हैं। ब्राह्मणों का मान बहुत है।
परन्तु हैं पतित विकारी। कोई-कोई ब्रह्मचारी होंगे। बाप आकर समझाते हैं –
सच्चे-सच्चे ब्राह्मण ब्राह्मणियां वह हैं जो 21 कुल का उद्धार करें। कन्या अगर
उद्धार करती होगी तो उनके माँ बाप भी होंगे। यह माँ बाप सिखलाते हैं तुम 21 पीढ़ी
स्वर्ग का मालिक बन सकती हो। बच्चे जानते हैं बाप है गुप्त। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा
हमको सब राज समझाते हैं। यह दादा तो धन्धा आदि करता था। अब बहुत जन्मों के अन्त के
जन्म के भी अन्त में आकर शिवबाबा ने प्रवेश किया है। और इन द्वारा ही ज्ञान सुनाते
हैं। यह है रथ। शिवबाबा है रथी। अब निराकार परमात्मा समझाते हैं, यह रथ बहुत जन्मों
का पतित है। पहले-पहले यही पावन बन जाते हैं। नजदीक में हैं। यह ऐसे नहीं कहते कि
मैं भगवान हूँ। यह कहते मेरा यह बहुत जन्मों के अन्त के अन्त का जन्म है। वानप्रस्थ
अवस्था है, पतित है। बाबा ने इसमें प्रवेश किया है। अब बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों
को नहीं जानते हो। मैं तुमको बताता हूँ। यह भी बुद्धि में आता है पतित-पावन परमपिता
परमात्मा ही है। वह बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। सारे ड्रामा के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। तुम जानते हो बाबा हमको साथ ले जायेंगे। इस बाप
टीचर गुरू की राय लेने से तुम ऊंच पद पायेंगे। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। कोई तो
धारणा कर श्रीमत पर चलकर ऊंच पद पाते हैं। जो श्रीमत नहीं मानते हैं, वह ऊंच पद नहीं
पाते हैं। बाबा कहते हैं सुखधाम और शान्तिधाम को याद कर इस दु:खधाम को भूलते जाओ।
अपने को अशरीरी समझो। अब हम वापिस जा रहे हैं। बाबा लेने आये हैं। हर एक को
अपना-अपना पार्ट रिपीट करना है। हर एक की आत्मा अविनाशी पार्टधारी है। दुनिया में
कब प्रलय होती नहीं। यह दु:खधाम है, फिर जायेंगे शान्तिधाम और सुखधाम में। यह बुद्धि
में स्वदर्शन चक्र चलाते रहो और पवित्र रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। तुम काल पर
विजय पा रहे हो, वहाँ तुम्हारी अकाले मृत्यु नहीं होती है। जैसे सर्प पुरानी खाल
छोड़ नई लेते हैं वैसे तुम भी खाल बदल नई ले लेंगे। ऐसी अवस्था यहाँ बनानी है। बस
हम यह शरीर छोड़ स्वीट होम में जायेंगे। हमको काल खा नहीं सकता। सर्प का मिसाल
वास्तव में संन्यासी दे नहीं सकते। भ्रमरी का मिसाल भी प्रवृत्ति मार्ग वालों का
है। कहते हैं सेकेण्ड में जीवनमुक्ति दे सकते हैं जनक मिसल। यह भी कापी करते हैं।
जीवनमुक्ति में दोनों ही चाहिए। वह संन्यासी जीवनमुक्ति कैसे दे सकते हैं। अब बाप
कहते हैं चलो वापिस, मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो बहुत सज़ा खायेंगे
और पद भी भ्रष्ट होगा। अन्त में कोई की याद आई तो फिर पुनर्जन्म तो लेना ही है। यह
है योग से हेल्थ और ज्ञान से वेल्थ, सेकेण्ड में जीवनमुक्ति इसको कहा जाता है। फिर
इतने पैसे बरबाद करने, भटकने आदि की क्या दरकार है इसलिए हेल्थ मिनिस्टर, एज्यूकेशन
मिनिस्टर को समझाओ तुम यह हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलो तो तुमको बहुत फायदा होगा। जो
करेगा सो पायेगा। साहूकारों का काम है साहूकारों का उद्धार करना। गरीब ही वर्सा लेते
हैं। बाकी जो करोड़पति हैं उनके लिए कहा हुआ है – किसकी दबी रहेगी धूल में… पिछाड़ी
में आग लगेगी सब खत्म हो जायेगा। तो क्यों न विनाश के पहले कुछ कर लो तो कुछ पद भी
मिलेगा। मरना तो है ही। ड्रामा का अन्त भी होना है। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते
हैं। नदियां तो चक्र लगाती रहती हैं। बाकी ब्रह्म पुत्रा तो यह ब्रह्मा ही ठहरा।
मम्मा है सरस्वती। बाकी हैं ज्ञान गंगायें। पानी की गंगायें पावन कैसे बनायेंगी। वह
कोई मेला नहीं। यह है सच्चा मेला जबकि जीव आत्मायें परमात्मा से मिलती हैं। तब कहते
हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल… अब जीव आत्मा का मेला परमात्मा से है। परमात्मा
ने भी जीव का लोन लिया है। नहीं तो पढ़ाये कैसे इसलिए उनको शिव भगवान कहा जाता है,
जो इसमें प्रवेश कर ज्ञान देते हैं। सरस्वती को कहा जाता है गॉडेज ऑफ नॉलेज। ब्रह्मा
को भी नॉलेज होगी। उनको नॉलेज देने वाला कौन? ज्ञान का सागर। तुम्हारे पास यह नॉलेज
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार है। तो यह नॉलेज धारण कर श्रीमत पर चलना है। सारा मदार
पवित्रता पर है। इस पर ही अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। द्रोपदी ने पुकारा है। सहन
करते-करते 21 जन्मों के लिए नगन होने से बच जाती हैं। गीता में भी है मैं साधुओं का
भी उद्धार करता हूँ। परन्तु साधु लोग यह अक्षर सुनाते नहीं हैं।
तुम जानते हो इस समय सारी दुनिया रिश्वत खोर बन गई है इसलिए इन सबका विनाश होना
ही है, जिनको वर्सा लेना होगा वही लेंगे। बाबा को कई बच्चियां कहती हैं हम गरीब घर
में होती तो कितना अच्छा होता। साहूकार लोग तो बाहर निकलने नहीं देते हैं। बाबा हम
कन्यायें होती तो कितना अच्छा होता। माताओं को सीढ़ी उतरनी पड़ती है। बाबा कहते हैं
वर्सा ले लो। मनुष्य को मरने में देरी नहीं लगती है। आफतें आदि बहुत होती हैं। आप
सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। 84 जन्म पूरे हुए अब वापिस घर चलना है
कि यहाँ ही गोते खाने हैं? मनमनाभव, मध्याजी भव। रावण के वर्से को भूलो। रावण श्राप
देते हैं। बाप कहते हैं बच्चे बनेंगे तो वर्सा पायेंगे। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो
वर्सा कैसे पायेंगे। यह रूहानी हॉस्पिटल खोलते जाओ। जमीन पड़ी रहती है। किराये पर
दें तो भी अच्छा है, बहुत फायदा है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के समीप आने के लिए रूहानी यात्रा पर रहना है। रात को जागकर भी
यह बुद्धि की यात्रा जरूर करनी है।
2) सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बन 21 कुल का उद्धार करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना
है। काल पर विजय पाने के लिए इस पुरानी खाल से ममत्व निकाल देना है।