ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने यह गीत सुना कि यह है झूठी दुनिया। झूठ खण्ड भारत के
लिए कहा जाता है। हर एक को अपने-अपने बर्थ प्लेस का ख्याल रहता है। अभी बच्चे कहते
हैं हमारा इस झूठ खण्ड से कोई तैलुक नहीं क्योंकि इसमें तो बहुत दु:ख हैं। अभी तो
सुख का नाम निशान नहीं है। झूठ खण्ड की आयु अब बहुत थोड़ी रही है। यह अन्तिम जन्म
है इसको झूठ खण्ड मृत्युलोक कहा जाता है। वह है अमरलोक। मृत्युलोक में काल खा जाता
है। फिर पुनर्जन्म झूठी दुनिया में ही लेते हैं। बच्चे जानते हैं कि अब हमने 84
जन्म पूरे किये, अब हमारा इस दुनिया से कोई वास्ता नहीं। बाबा आये हैं लेने लिए तो
इस पुरानी दुनिया से हमारा कोई तैलुक नहीं। तुम्हारी बाप से प्रीत जुटी है तो वर्सा
भी तुमको मिलता है। बाकी यादव कौरवों की है विपरीत बुद्धि अर्थात् बाप को जानते ही
नहीं। अभी तुम बच्चों की एक बाप के साथ ही प्रीत बुद्धि है। बाप कहते हैं कि गृहस्थ
व्यवहार में भल रहो, बाप को याद करो। अभी सब एक्टर्स का पार्ट पूरा होता है। सबके
शरीर छूटने हैं। सबको वापिस घर ले जाना है। मनुष्य मरना नहीं चाहते हैं। तुम तो जीते
जी मर चुके हो। इस दुनिया में कोई से प्यार नहीं। इस शरीर से भी प्यार नहीं। आत्मा
को रोशनी मिली है, हम बाप के बच्चे हैं हमारे 84 जन्म अब पूरे हुए। अब खेल पूरा हुआ।
हम सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। अब हम फिर ब्राह्मण बने हैं यह
चक्र पूरा याद रखना है। आत्मा कहती है कि बरोबर पुनर्जन्म लेते-लेते अभी यह अन्तिम
जन्म है। बाप आया है लेने लिए। अनेक बार हमने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। स्वदर्शन
चक्रधारी बने हो ना। समझाया जाता है कि ऐसे हमने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। सभी
भारतवासियों के पूरे 84 जन्म नहीं कहेंगे। जो ब्राह्मण बनते हैं वही समझते हैं। 5
हजार वर्ष पहले भी समझाया था - हे बच्चे, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। 84 लाख
जन्मों का तो कोई वर्णन भी न कर सके।
अभी तुमको सभी धर्मो के चक्र का भी पता पड़ गया है। हिसाब-किताब में जो होशियार
होंगे वह झट समझ जायेंगे। बरोबर फलाने धर्म को इतने जन्म लेने चाहिए। तुमको भी पूरा
निश्चय है कि हमने 84 जन्म पूरे किये, अब बाप वापिस लेने लिए आये हैं जिसके लिए ही
यह महाभारी लड़ाई है। उन सबकी है विनाश काले विपरीत बुद्धि। विनाशकाल है ही कलियुग
के अन्त और सतयुग आदि के संगम पर। सतयुग और त्रेता के संगम को विनाशकाल नहीं कहेंगे।
वहाँ तो वृद्धि को पाते रहते हैं। अभी सबका विनाश होना है इसको विनाश काल कहा जाता
है। अभी तुम्हारा अन्तिम जन्म है। इसके पहले बाप आये तो कह न सके कि तुम्हारा यह
अन्तिम जन्म है। जब खेल पूरा होता है तब ही मैं आता हूँ। तुम जानते हो बरोबर हम
आत्मायें 84 जन्म लेती हैं। गाया भी जाता है कि कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे।
अब वह तो समझते नहीं कि 21 कुल किसको कहा जाता है। भारत में कुमारियों की बहुत
मान्यता है, पूजते हैं। जगदम्बा भी कुमारी है ना। कुमारी को फिर जगदम्बा कहना इसका
भी अर्थ चाहिए ना। जगत अम्बा है तो जगत पिता भी चाहिए ना। जगत पिता के साथ माता भी
चाहिए। ऐसे तो बहुत मातायें हैं जिनको जगत माता भी कहते हैं। अखबार में भी पड़ा था
- कोई माता को जगत माता लिखा था। अब जगत माना सारी सृष्टि। तो जगत की माँ एक होगी
या 10-20 होंगी। रचता बाप एक है तो माता भी एक चाहिए ना। इतनी मातायें सब जगत के
मालिक हैं। जगत की माता तो एक है ना जगत अम्बा। तो अभी तुम बच्चों की प्रीत है एक
शिवबाबा से। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं जिनकी पूरी प्रीत है।
सजनी की एक साजन से, बच्चों की एक बाप से प्रीत होनी चाहिए। और सबसे प्रीत तोड़नी
पड़े। नष्टोमोहा बनना है। पुरानी दुनिया से मोह नष्ट। जैसे पुराना घर होता है तो
बाप नया बनाते हैं। जब नया बन जाता है तो उसमें बैठ पुराने को ख़लास कर देते हैं।
बाप कहते हैं मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग नई दुनिया रचता हूँ। नई दुनिया में नई देहली
है। यही जमुना का कण्ठा है जहाँ तुम राज्य करते हो। तुम जानते हो भक्ति का बहुत बड़ा
विस्तार है। ज्ञान तो बिल्कुल थोड़ा है - एक सेकेण्ड का। बीज को जानने से सारा झाड़
आ जाता है। भिन्न-भिन्न वैराइटी धर्मो का झाड़ है, उसमें मुख्य फाउण्डेशन है
देवी-देवता धर्म। आधाकल्प में सिवाए एक धर्म के और कोई धर्म है नहीं। बाकी आधाकल्प
में देखो कितने धर्मों की स्थापना होती है! कहा जाता है कि परमपिता परमात्मा ब्रह्मा
मुख द्वारा देवता धर्म और क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते हैं। सो तो देखते हो
ब्राह्मण तो तुम हो ही। तुम्हारे में भी कोई सूर्यवंशी, कोई चन्द्रवंशी बनने वाले
हैं। ऊंच ते ऊंच है ब्राह्मण धर्म। भारतवासी अपने धर्म को ही नहीं जानते हैं। कहा
जाता है कि रिलीजन इज माइट। अभी बाप धर्म स्थापन करते हैं तो तुम बाप से कितनी ताकत
लेते हो बाप का बनने से। गोया सर्वशक्तिमान बाप ही बच्चों को योग से शक्तिवान बनाते
हैं। बाप है कितना गुप्त! उनको अपना शरीर है नहीं। सर्वशक्तिमान कहा जाता है तो
जरूर शक्ति देंगे ना। तुम्हारा नाम ही है शिव-शक्तियां। शिव से शक्ति लेने वाली हो।
नर्क को स्वर्ग बनाती हो। यह तुमको बल मिलता है। योगबल से तुम रावण पर जीत पाती हो।
तो तुम्हारी अब सर्वशक्तिमान बाप से प्रीत है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बहुत
विपरीत बुद्धि भी हैं क्योंकि याद नहीं करते हैं। बहुत प्रीत उन्हों की है जो बहुत
याद करते हैं। थोड़ी प्रीत है तो समझो याद नहीं करते। कहते हैं - क्या करें....,
घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं....। अरे, साजन को तुम याद नहीं कर सकते हो? बाप, जिससे
स्वर्ग का वर्सा मिलता है, ऐसे बाप को याद नहीं कर सकते हो? कारण बताओ? बच्चा कहे
बाप को याद नहीं कर सकता हूँ! अरे, फिर वर्सा कैसे मिलेगा? जितना बाप को याद करते
हो उतनी शक्ति मिलती है। ऐसे नहीं कि शिवबाबा को भी याद करो और साथ-साथ काला मुँह
भी करते रहो फिर राज्य-भाग्य मिल न सके। कहते हैं - बाबा, हम भूल जाते हैं, मुरझा
जाते हैं। बाबा कहे - अरे, तुम ईश्वर की सन्तान बने हो, तुमको तो बहुत नशा चढ़ना
चाहिए। ऐसे बाप को तो निरन्तर याद करना चाहिए। प्रीत बुद्धि बनना चाहिए। शिवबाबा से
प्रीत नहीं तो ब्रह्मा से भी नहीं होगी। वह ऐसे ही सबसे लड़ते-झगड़ते रहेंगे। योग
ही नहीं तो वर्सा कैसे ले सकते? गॉडली बुलबुल नहीं बन सकते। बुलबुल बनना चाहिए ना।
बाबा के पास गॉडली बुलबुल हैं, मैनायें भी हैं, तोते भी हैं, कोई काबर भी हैं। सबसे
लड़ते-झगड़ते हैं। कोई फिर पिज्जन (कबूतर) भी हैं। वह आवाज नहीं कर सकते हैं। बगीचे
में भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल होते हैं। हरेक अपने से पूछे कि मैं कौन-सा फूल हूँ?
गुलाब का हूँ वा रुहे गुलाब हूँ? मैं मम्मा-बाबा जैसी सर्विस करता हूँ? क्या हम श्री
नारायण को वा श्री लक्ष्मी को वर सकता हूँ? ऐसा अपने से पूछना है कि मैं कितना बाप
को याद करता हूँ? कितनी सेवा करता हूँ? बाप से तो जरूर वर्सा मिलना है। निराकार
परमपिता परमात्मा भारत में आये हैं, जरूर भारत को स्वर्ग बनाया होगा। जरूर शिवबाबा
आये तब तो सतयुग बनायेंगे ना। शिव की जयन्ती मनाते हैं। शिव का भी बर्थ प्लेस है,
तो श्रीकृष्ण का भी बर्थ प्लेस है। कृष्ण की जयन्ती तो बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
अभी तो शिव जयन्ति की छुट्टियां भी नहीं करते। अन्धेर नगरी है ना। यहाँ पर है ही
प्रजा का प्रजा पर राज्य। होना चाहिए राजा-रानी का राज्य। वह तो ड्रामा अनुसार है
ही नहीं।
तुम जानते हो कि भारत पवित्र राजस्थान हो जायेगा, तो उन्हों को भी जगाना है। फिर
से दैवी राजस्थान स्थापन होता है। अभी आसुरी राजस्थान हो गया है। पहले भारतवासी
पवित्र थे, अभी तो अपवित्र बने हैं तब तो लोग उन्हों की पूजा करते हैं। अभी तो नो
राजस्थान। तुम चिट्ठी लिख सकते हो अथवा अखबार में भी डाल सकते हो कि भारत 5 हजार
वर्ष पहले दैवी राजस्थान था, अभी नहीं है। तुम हो ईश्वरीय बहन-भाई। तुम हो बहुत थोड़े।
गाया भी जाता है - राम गयो, रावण गयो.......। समझना चाहिए कि हम बाकी बहुत थोड़ा
समय हैं। बाप से वर्सा तो लेते रहें। साथ-साथ भविष्य का भी ख्याल करो। यह भी धन्धा
करो, शरीर निर्वाह भी करना है। यह है भविष्य के लिए। इसमें मेहनत कुछ नहीं, बिल्कुल
सहज है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति 21 जन्म के लिए मिलती है। बाप को और चक्र को याद
करना है। बाप को याद करने से ही पावन बनेंगे। पतित कोई जा न सके। बहुत सजायें खानी
पड़ेंगी। तो विनाशकाल अभी है। यादव और कौरव की है विपरीत बुद्धि। पाण्डवों की प्रीत
बुद्धि थी, जिनकी ही विजय हुई। अभी वही समय है। बाप समझाते हैं - सिर्फ यह याद करो
कि अब वापिस जाना है। बाकी थोड़ा समय है, नाटक पूरा होता है। गृहस्थ व्यवहार में
रहते सिर्फ बाबा को याद करना है। याद की ही लम्बी सीढ़ी है। रुद्र माला बननी है फिर
इनाम मिलेगा। राज्य भाग्य पाना है, उसके लिए विचार सागर मंथन करना है। यह है
बुद्धियोग की यात्रा। बाप के पास दौड़ना है। देखना है कि सारे दिन में बाप को कितना
याद किया? कितने को कांटों से फूल बनाया। प्रजा नहीं बनायेंगे तो किस पर राज्य
करेंगे इसलिए पहले 8 मुख्य बनते हैं, फिर 108, फिर 16108 हो जाते हैं। विवेक भी कहता
है - यह तो जरूर है, वृद्धि तो होती रहेगी। राजधानी वृद्धि को पाती रहेगी। अभी भी
ढेर लाखों आयेंगे। बुद्धि में यह पक्का याद रखो - अभी हमको घर जाना है। इस पुरानी
दुनिया में दु:ख बहुत हैं। बस, एक बाप को याद करते रहो। बड़ी लम्बी यात्रा है।
पिछाड़ी में आने वाले इतना ऊंच पद पा न सकें। कितनी मेहनत करनी पड़ती है! कर्मभोग
कितना चलता है! फिर पिछाड़ी में आने वाले इतनी मेहनत कैसे कर सकते हैं, जो विकर्म
विनाश हो जाएं? जनक भी त्रेता में चला गया। सूर्यवंशी राजा बन न सका। राजा था,
सरेन्डर भी हुआ, परन्तु टूलेट आया तो चन्द्रवंशी में चला गया। इन बातों को ब्राह्मण
ही समझ सकते हैं, शूद्र समझ न सकें। हाँ, कईयों को प्योरिटी अच्छी लगती है परन्तु
प्योरिटी में रहकर भी दिखायें ना? संन्यासियों के फालोअर्स कहलाते हैं, खुद तो
पवित्र बनते नहीं तो फालोअर्स कैसे हुए? यह भी झूठ हुआ ना। कोई भी सतसंग में एम
ऑबजेक्ट होती नहीं। कितने ढेर सतसंग हैं। यह तो बाप ही आकर मनुष्य से देवता बनाते
हैं। विश्व का मालिक तुम बनते हो एक शिवबाबा की याद से। बाप को याद ही नहीं करेंगे
तो वर्सा कैसे मिलेगा? यह तो तुम्हारा काम है - पुरुषार्थ कर निरन्तर याद करना।
निरन्तर याद रहे, वह अवस्था अन्त में होगी। अभी नहीं है। पिछाड़ी में 8 ही विन करते
हैं, याद करते-करते सबसे पहले जाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विनाश काल का समय है इसलिए देहधारियों से प्रीत तोड़ एक बाप से सच्ची
प्रीत रखनी है। इस पुराने घर से मोह नष्ट कर देना है।
2) ज्ञान की बुलबुल बन आप समान कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है। याद की दौड़
लगानी है।