17-03-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 08-12-75 मधुबन
संपूर्णता की निशानियां
अशरीरी भव - यह वरदान प्राप्त कर लिया है? जिस समय संकल्प करो कि ‘मैं अशरीरी हूँ’, उसी सेकेण्ड स्वरूप बन जाओ। ऐसा अभ्यास सहज हो गया है? सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की निशानी है। कभी सहज, कभी मुश्किल, कभी सेकेण्ड में, कभी मिनट में या और भी ज्यादा समय में अशरीरी स्वरूप का अनुभव होना अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज से अभी दूर है। सदा सहज अनुभव होना - यही सम्पूर्णता की परख है।
अभी-अभी बापदादा विदेश और अपने भारत देश के सर्व बच्चों की देखरेख करने चक्कर पर निकले। चक्कर लगाते विशेष बात क्या देखी? तीन प्रकार के बच्चों को देखा।
1. ज्ञान-रत्नों और याद की शक्ति के द्वारा सर्व शक्तियों को स्वयं में सम्पन्न करने वाले, निरन्तर चैतन्य चात्रक जो हर सेकेण्ड लेने वाले अर्थात् धारण करने वाले जिन्हें सिवाय प्राप्ति के या स्वयं को सम्पन्न बनाने के और कोई लगाव नहीं। रात है अथवा दिन है, लगन एकरस है - ऐसे चैतन्य चात्रक विदेश में और भारत में दोनों ही स्थानों पर देखे।
2. सर्विस की लगन में मगन - दिन-रात सर्विस के प्लैन्स बनाने में व्यस्त। सर्विस के फल-स्वरूप स्वयं में खुशी का अनुभव करने वाले। लेकिन सर्वशक्तियों का, हर संकल्प में मायाजीत बनने की शक्ति का वा ‘अशरीरी भव’ के वरदान की प्राप्ति का अनुभव करने में सदा एक-रस स्थिति नहीं। खुशी का अनुभव विशेष, लेकिन शक्ति का अनुभव कम करने वाले नॉलेजफुल का अनुभव ज्यादा और पॉवरफुल का अनुभव कम करने वाले, ज्ञान का सुमिरण ज्यादा, समर्थी-स्वरूप कम - ऐसे बच्चे भी देखे।
3. दिन-रात मंज़िल को सामने रखते हुए, सम्पूर्ण बनने की शुभ आशा रखते हुए, सदा पुरूषार्थ में व्यस्त, पुरूषार्थ में समय ज्यादा और प्राप्ति के समय कम अनुभव करने वाले, किसी-न-किसी समस्या का सामना करने में ही ज्यादा समय लगाने वाले, मुश्किल को सहज बनाने में लगने वाले - ऐसे बच्चे बहुत समय युद्धस्थल में ही स्वयं को अनुभव करने वाले हैं, अति-इन्द्रिय सुख के झूले में अर्थात् प्राप्ति के अनुभव में कम समय रहने वाले। ऐसे भी बहुत देखे।
पहले नम्बर के चात्रकों की स्थिति सदा यही रही जो पाना था, वह पा लिया। अब समय भी बाकी थोड़ा रहा है। दूसरे नम्बर वाले जो सर्विसएबल, नॉलेजफुल ज्यादा, पॉवरफुल कम थे उनकी स्थिति यह रहती है कि पा लिया है, मिल रहा है और निश्चय है कि पा ही लेंगे। खुशी के झूले में झूलते हैं लेकिन बीच-बीच में झूले को तेज झुलाने के लिए कोई आधार की आवश्यकता है। वह आधार क्या है? कोई अन्य द्वारा की हुई सर्विस प्रति हिम्मत, उल्लास दिलाने वाला हो अर्थात् ‘बहुत अच्छा’ और ‘बहुत अच्छा’ करने वाला हो। नहीं तो खुशी का झूला झूलते-झूलते रूक जाता है। तो रूके हुए को चलाना चाहिए। पहली स्टेज वालों का ऑटोमेटिक झूला है।
तीसरी स्टेज वालों की स्थिति-कभी प्राप्ति व विजय के आधार पर अति हर्षित और कभी बार-बार युद्ध की परिस्थिति में थकावट अनुभव करने वाले। किसी-न-किसी साधन के सहारे पर स्वयं को थोड़े समय के लिए खुश अनुभव करने वाले - कभी खुश, कभी शिकायत। क्या करूँ, कैसे करूँ, कर तो रहा हूँ इतनी मेहनत कर रहा हूँ, मेरी तकदीर ही ऐसी है, ड्रामा में मेरा ऐसा ही पार्ट नूँधा हुआ है और कल्प पहले इतना ही हुआ था ऐसे कभी ऊंचा, कभी नीचा इसी सीढ़ी पर चढ़ते-उतरते रहते हैं। ऐसे तीन प्रकार के बच्चे देखे। समय के प्रमाण वर्तमान स्थिति हर समय सर्व-प्राप्ति के अनुभव की होनी चाहिए। अब यह लास्ट समय युद्ध में नहीं लेकिन सदा विजयीपन के नशे में रहना चाहिए। क्योंकि बाप ने सर्व-शक्तियों का मास्टर बना दिया है, स्वयं से भी श्रेष्ठ प्राप्ति का अधिकारी बना दिया है। ऐसे मास्टर व सर्व अधिकारी दूसरी व तीसरी स्टेज के अनुभव में नहीं लेकिन फर्स्ट स्टेज के अनुभव में रहने चाहिये। विदेशी ग्रुप जो लास्ट इज फास्ट कहलाते हैं। फास्ट इज फर्स्ट कहा जाता है। तो जो भी विदेशी ग्रुप आया है वह सब फर्स्ट स्टेज वाले हो ना? फर्स्ट स्टेज अर्थात् सदा अनुभवी मूर्त्त। हर सेकेण्ड अनुभव में मग्न रहने वाले, ऐसा है ना? कभी और अभी कहने वाला नहीं। कभी यह होता और कभी वह होता - यह नहीं। सदा एक के रस में रहने वाले और एक के द्वारा सर्व अनुभव पाने वाले - उसको कहा जाता फर्स्ट है। बापदादा को भी ऐसे लास्ट सो फास्ट वाले बच्चों पर नाज़ है। हर- एक के मस्तक की तकदीर की लकीर बापदादा तो देखते हैं ना - कि हर एक बच्चे का भविष्य क्या है? भविष्य को देख हर्षित होते है। अभी के आये हुए ग्रुप में भी अच्छे उम्मीदवार बच्चे हैं। जो विश्व के दीपक बन बाप-समान अनेकों को रास्ता बताने के निमित बनेंगे। अभी तो विशेष विदेशियों के अर्थ हैं ना? कुछ यहाँ बैठे हैं सम्मुख और कुछ विदेश में दिन-रात इसी ही याद में रहते। वह क्या अनुभव कर रहे हैं - जैसे रेडियो व टी.वी. में कोई विशेष प्रोग्राम आना होता है तो सब अपना-अपना स्विच ऑन करके रखते हैं। सबका अटेन्शन उस एक तरफ ही होता है। ऐसे ही विदेश में चारों ओर बच्चे अपनी स्मृति का स्विच ऑन करके बैठे हैं। सबका संकल्प यही एक मधुबन की स्मृति का है। दूर होते हुए भी कई बच्चे बाप को इस संगठन में सम्मुख दिखाई देते हैं। अच्छा।
ऐसे साकार रूप में सम्मुख बैठने वाले व आकारी रूप में बुद्धियोग द्वारा सम्मुख बैठे हुए ऐसे सदा विजयी स्वरूप, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले, प्राप्ति-स्वरूप, सर्व वरदानों के अधिकारी, विश्व द्वारा सदा सत्कारी और विश्व प्रति सदा कल्याणी, ऐसे विश्व के दीपकों को, बापदादा के दिलतख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात:- महारथी बच्चों की मुख्य विशेषताएं
प्लानिंग-बुद्धि पार्टी है, साथ-साथ सफलतामूर्त्त भी हैं। प्लैनिंग-बुद्धि के बाद सफलता-मूर्त्त बनने में जो टाइम देते हो, मेहनत करते हो वह रिजल्ट निकालने के लिए। महारथियों की सफलता विशेष एक बात में है, वह एक बात कौनसी है? महारथी की विशेषता क्या होती है? जिस विशेषता से महारथी बना जाय, वह क्या है? महारथियों की विशेषता यह है जो सर्व की सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लेवें। तब कहेंगे महारथी। सन्तुष्टता ही श्रेष्ठता व महानता है। प्रजा भी इस आधार से बनेगी। सन्तुष्ट हुई आत्मायें उनको राजा मानेंगी। कोई-न-कोई सेवा सहयोग द्वारा प्राप्त कराई हो - स्नेह की, सहयोग की, हिम्मत-उल्लास की और शक्ति दिलाने की प्राप्ति कराई हो तो महारथी और अगर सन्तुष्टता न कराई है तो नाम के महारथी हैं, वे काम के नहीं। बड़े भाई-बहन तो माता-पिता समान होते हैं। माता-पिता सबको सन्तुष्ट करते हैं। तो महारथी को यह अटेन्शन पहले देना है। इसके लिए स्वयं को परिवर्तन करना पड़े। परन्तु यह सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट ज़रूर लेना है। यह चेकिंग करो कि - ‘‘कितनी आत्मायें मेरे से सन्तुष्ट हैं? मुझे क्या करना है जो मेरे से सब सन्तुष्ट रहें?’’
महारथी में स्वयं को मोल्ड करने की शक्ति होनी चाहिए। मोल्ड करने वाला ही गोल्ड होता है। जो मोल्ड नहीं कर सकते वो रीयल गोल्ड नहीं हैं, मिक्स हैं। मिक्स होना अर्थात् घोड़ेसवार। महारथी मोल्ड होता है। प्लैन बनाना अर्थात् बीज बोना। तो बीज पॉवरफुल होना चाहिए। सर्व के सन्तुष्टता की और स्नेह की दुआयें, आशीर्वाद और स्नेह का पानी ज़रूर चाहिये। नहीं तो प्लैनिंग रूपी बीज तो पॉवरफुल होता है, लेकिन स्नेह और सहयोग रूपी पानी न मिलने से पेड़ नहीं निकलता है। कभी पेड़ निकल आता है तो फल नहीं लगता, अगर फल लगता भी है तो सेकेण्ड या थर्ड किस्म का। इसका कारण पानी का नहीं मिलना है। महारथी - जिसमें सर्व-सिफ्तें हों अर्थात् सर्व गुण सम्पन्न, सर्व कलायें और सर्व विशेषतायें हों - अगर एक-दो कला कम हैं तो सर्व कला सम्पूर्ण नहीं। सर्व गुण नहीं तो महारथी के टाइटिल से निकल जाते हैं। ये ग्रुप महारथियों का है। निमन्त्रण महारथियों को मिला है।
सफलता-मूर्त्त बनने के लिये मुख्य दो ही विशेषतायें चाहियें - एक प्योरिटी, दूसरी यूनिटी। अगर प्योरिटी की भी कमी है तो यूनिटी में भी कमी है। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को नहीं कहा जाता, संकल्प, स्वभाव, संस्कार में भी प्योरिटी। मानों एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या या घृणा का संकल्प है; तो प्योरिटी नहीं, इमप्योरिटी कहेंगे। प्योरिटी की परिभाषा में सर्व विकारों का अंश-मात्र तक न होना है। संकल्प में भी किसी प्रकार की इमप्योरिटी न हो। आप बच्चे निमित्त बने हुए हो बहुत ऊंचे कार्य को सम्पन्न करने के लिये। निमित्त तो महारथी रूप से बने हुए हो ना। अगर लिस्ट निकालते हैं तो लिस्ट में भी तो सर्विसएबल तथा सर्विस के निमित्त बने ब्रह्मा-वत्स ही महारथी की लिस्ट में गिने हुए हैं। महारथी की विशेषता कहाँ तक आयी हुई है - सो तो हर-एक स्वयं जाने। महारथी जो लिस्ट में गिना जाता है वो आगे चल कर महारथी होगा अथवा वर्तमान की लिस्ट में महारथी है। तो इन दोनों बातों के ऊपर अटेन्शन चाहिए।
यूनिटी अर्थात् संस्कार-स्वभाव के मिलन की यूनिटी। कोई का संस्कार और स्वभाव न भी मिले तो भी कोशिश करके मिलाओ। यह है यूनिटी। सिर्फ संगठन को यूनिटी नहीं कहेंगे। सर्विसएबल निमित्त बनी आत्मायें इन दो बातों के सिवाय बेहद की सर्विस के निमित्त नहीं बन सकती हैं, हद के हो सकते हैं। बेहद की सर्विस के लिये ये दोनों बातें चाहियें। सुनाया था ना - रास में ताल मिलाने पर ही होती है - वाह! वाह! तो यहाँ भी ताल मिलाना अर्थात् रास मिलाना है। इतनी आत्मायें जो नॉलेज वर्णन करती हैं तो सबके मुख से यह निकलता है - ये एक ही बात कहते हैं, इन सब का एक ही टॉपिक, एक ही शब्द है यह सब कहते हैं ना। इसी प्रकार सबके स्वभाव और संस्कार एक-दो में मिलें, तब कहेंगे रास मिलाना। इसका प्लैन बनाया है? (प्लैन सुनाये गये)।
एम तो रखी है स्थापना के कार्य को प्रख्यात करने की। प्रख्यात करने का जो प्लैन बनाया है वह अच्छा है। प्रख्यात करने के लिये प्लैन तो दूसरे वर्ष का बनाया है, लेकिन इस वर्ष का जो कुछ समय अभी रहा हुआ है, इस समय ही हर एक स्थान पर वर्तमान वातावरण के अनुसार सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति ज़रूर चाहिएँ। दूसरे वर्ष की सर्विस की सफलता इस वर्ष के आधार पर होगी। कोई भी प्रोपेगण्डा में ऐसी सहयोगी आत्माओं का सहयोग चाहिये, जिससे एक तो ‘कम खर्च बाला नशीन’ द्वारा मेहनत कम सफलता अधिक होती है। समय प्रमाण आप उन्हों की सेवा करेंगे तो सहयोग नहीं मिल सकेगा। लेकिन समय के पहले सेवा कर सहयोग लेने का प्रभाव पड़ता है। प्लैन्स तो सब ठीक-ठाक हैं, सर्व प्लैन्स जो सुनाये। तो हर डिपार्टमेन्ट के व्यक्ति ज़रूर सम्पर्क में आने चाहियें। जैसे एज्युकेशन के व्यक्ति सम्पर्क में आने से बनी-बनाई स्टेज मिलेगी। कोई भी प्लैन की विहंग मार्ग की सर्विस के लिए यह ज़रूरी है। गीता की प्वॉइन्टस से या तो हाहाकार होगा या जयजयकार होगी। लेकिन पहले हलचल होती है पीछे जयजयकार होती है। ऐसी प्वॉइन्टस को क्लियर करने के लिए सबका सहयोग चाहिये। मिनिस्टर, वकील और जज सब चाहियें। जैसे यहाँ भी सब आ रहे हैं। डॉक्टर, वकील आदि। तो इसके लिये भी सबका सम्पर्क ज़रूर चाहिये – मिनिस्ट्री एसोसियेशन आदि का। अभी सभी सुनने की इच्छा रखते हैं लेकिन उनमें चलने की हिम्मत नहीं है। सहयोगी बन सकते हैं। पहले उनकी सेवा से धरनी तैयार कर पीछे विशाल कार्य का बीज डालो।
प्लैन अच्छे हैं। इस वर्ष में कोई नई बात ज़रूर होनी है। सन् 76 में जिसका प्लैन बनाया है। लेकिन निमित्त बनना पड़ता है। परन्तु होना तो ड्रामानुसार है लेकिन जो निमित्त बनता है, उसका सारे ब्राह्मण कुल में नाम बाला होता है। यह भी प्राइज है। हर-एक अपने-अपने जोन की तरफ मीटिंग का रिजल्ट निकालो। प्लैन सेट कर फिर रिजल्ट की मीटिंग करो। प्लैन में सब हाँ-हाँ करते हैं। रिजल्ट में सिर्फ पाँच निकलते हैं। तो रिजल्ट की भी मीटिंग रखो। उत्साह बढ़ाने का भी लक्ष्य रखो। सबको बिजी रखो, ताकि उनको भी खुशी हो कि हमने भी अंगुली दी। चाहे हार्ड-वर्कर हो, चाहे प्लैनिंग बुद्धि हो -- छोटों को भी आगे बढ़ाना है। नहीं तो एक उमंग और उत्साह में सर्विस करते हैं और दूसरों का वायब्रेशन, सफलता में विघ्न डालता है। तो सबकी मदद चाहिए। हर-एक को कोई-न-कोई ड्यूटी बाँटों ज़रूर। जैसे प्रसाद सबको देते हैं। तो यह सेवा का प्रसाद भी सबको बाँटो। सबके उत्साह का वायुमण्डल रहेगा तो वायुमण्डल के प्रभाव से कोई भी बाहर नहीं निकलेगा। चाहे चक्कर लगाने वाला हो और चाहे फिदा होने वाला हो। तो इस वर्ष में यह विशेषता हो। जैसे सब कहते हैं कि मेरा बाबा। वैसे कहे कि मेरी सेवा, मेरा प्रोग्राम बना हुआ है। ऐसे नहीं कहे कि बड़ों ने बनाया है, चलेगा व नहीं? नहीं, मेरा प्रोग्राम है। ऐसा सबका आवाज हो, तब सफलता निकलेगी। सबको सर्विस का चांस दो। अच्छा!
वरदान:- सोचना, कहना और करना इन तीनों को समान बनाने वाले बाप समान सम्पन्न भव
बापदादा अब सभी बच्चों को समान और सम्पन्न देखना चाहते हैं। सम्पन्न बनने के लिए सोचना, कहना और करना तीनों समान हो। इसके लिए सब तैयारी भी करते हो, संकल्प भी है, इच्छा भी यही है। लेकिन यह इच्छा पूरी तब होगी जब और सब इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनेंगे। छोटी-छोटी अनेक प्रकार की इच्छायें ही इस एक इच्छा को पूर्ण करने नहीं देती हैं।
स्लोगन:- अव्यक्त व कर्मातीत स्थिति का अनुभव करना है तो कथनी, करनी और रहनी को समान बनाओ।