02-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - जैसे बाप अपकारियों पर भी उपकार करते हैं ऐसे
तुम भी फालो फादर करो, सुखदाई बनो, इस देह को भूलते जाओ।
प्रश्नः-
देही
अभिमानी रहने वाले बच्चों की मुख्य निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:-
1-उनका
आपस में बहुत-बहुत रूहानी प्रेम होगा। 2- वे कभी एक दो की खामियों का (कमियों का)
वर्णन नहीं करेंगे। 3- वे बहुत-बहुत सुखदाई होंगे। 4- उनकी खुशी कभी गायब नहीं होगी।
सदा अपार खुशी में रहेंगे। 5- कभी मतभेद में नहीं आयेंगे। 6- हम आत्मा भाई-भाई हैं,
इस स्मृति से गुण-ग्राही होंगे, उन्हें सबके गुण ही दिखाई देंगे। वे खुद भी गुणवान
होंगे और दूसरों को भी गुणवान बना-येंगे। 7- उन्हें एक बाप के सिवाए और कोई याद नहीं
आयेगा।
ओम् शान्ति।
ऊंच ते ऊंच बेहद के बाप के सम्मुख तुम सब बच्चे बैठे हो। तुम कितने भाग्यशाली हो जो
ऐसा बाप मिला है। तुम ज्ञान सागर बाप के पास आये हो ज्ञान रत्नों से झोली भरने,
कमाई करने। बाप तुम मीठे-मीठे बच्चों को कितना ऊंच ले जाते हैं। बाप तो सिर्फ तुम
बच्चों को ही देखते हैं, उनको तो किसी को याद नहीं करना है। इनकी आत्मा को तो बाप
को याद करना है। बाप कहते हैं हम दोनों तुम बच्चों को ही देखते हैं। मुझ आत्मा को
तो साक्षी हो नहीं देखना है परन्तु बाप के संग में मैं भी ऐसे देखता हूँ। बाप के
साथ रहता तो हूँ ना। उनका बच्चा हूँ तो साथ में देखता हूँ। मैं विश्व का मालिक बन
घूमता हूँ। जैसेकि मैं ही यह करता हूँ। मैं दृष्टि देता हूँ। देह सहित सब कुछ भूलना
होता है। बाकी बाप और बच्चा जैसे एक हो जाते हैं। तो बाप समझाते हैं मीठे बच्चे खूब
पुरूषार्थ करो। जैसे बाप अपकारियों पर भी उपकार करते हैं ऐसे तुम भी फालो फादर करो,
सुखदाई बनो। आपस में कभी लड़ो झगड़ो नहीं। अपने को आत्मा समझ इस देह को भूलते जाओ।
सिवाए एक बाप के और कोई याद न आये। यह भी जैसे जीते जी मौत की अवस्था है। इस दुनिया
से जैसे मर गये। कहते भी हैं आप मुये मर गई दुनिया। यहाँ तुमको जीते जी मरना है,
शरीर का भान उड़ाते रहो। एकान्त में बैठ अभ्यास करते रहो। सवेरे एकान्त में बैठ अपने
साथ बातें करो। बहुत उकीर (उमंग) से बाप को याद करो। बाबा बस अभी हम आपकी गोद में
आया कि आया। बस एक की याद में ही शरीर का अन्त हो.... इसको कहा जाता है एकान्त। बाप
को याद करते-करते यह शरीर रूपी चमड़ी छूट जायेगी।
तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया, पुरानी देह खलास हो जानी है। बाकी पुरूषार्थ के
लिए थोड़ा सा संगम का समय है। बच्चे पूछते हैं बाबा यह पढ़ाई कब तक चलेगी? बाबा कहते
जब तक दैवी राजधानी स्थापन हो जाए तब तक सुनाते रहेंगे, फिर ट्रांसफर होंगे नई
दुनिया में। यह पुराना शरीर है, कुछ न कुछ कर्मभोग भी चलता रहता है, इसमें बाबा मदद
करे - यह उम्मींद नहीं रखनी चाहिए। देवाला निकला, बीमार हुआ - बाप कहेंगे यह
तुम्हारा हिसाब-किताब है। हाँ फिर भी योग से आयु बढ़ेगी। अपनी मेहनत करो, कृपा मांगो
नहीं। बाप को जितना याद करेंगे इसमें ही कल्याण है, जितना हो सके योगबल से काम लो।
भक्ति मार्ग में गाते हैं मुझे पलकों में छिपा लो...प्रिय चीज़ को नूरे रत्न, प्राण
प्यारा कहते हैं। यह बाप तो बहुत प्रिय है, परन्तु है गुप्त। उनके लिए लव ऐसा होना
चाहिए जो बात मत पूछो। बच्चों को तो बाप अपनी पलकों में छिपाते ही हैं। पलकें कोई
यह आंखें नहीं, यह तो बुद्धि की बात है। मोस्ट बील्वेड निराकार बाप हमें पढ़ा रहे
हैं। वह ज्ञान का सागर, सुख का सागर, प्यार का सागर है। ऐसे मोस्ट बील्वेड बाप के
साथ कितना प्यार होना चाहिए। बच्चों की कितनी निष्काम सेवा करते हैं। तुम बच्चों को
हीरे जैसा बनाते हैं। कितना मीठा बाबा है। कितना निरहंकारी बन तुम बच्चों की सेवा
करते हैं, तो तुम बच्चों को भी इतने प्यार से सेवा करनी चाहिए। श्रीमत पर चलना
चाहिए। कहाँ अपनी मत दिखाई तो तकदीर को लकीर लग जायेगी।
तुम बच्चों का आपस में बहुत-बहुत रूहानी प्रेम होना चाहिए, परन्तु देह अभिमान
में आने के कारण वह प्यार एक दो में नहीं रहता है। एक दो की खामियां ही निकालते रहते
हैं, फलाना ऐसा है, वह यह करता है..... तुम जब देही-अभिमानी थे तो किसकी खामियां नहीं
निकालते थे। आपस में बहुत प्यार था, अब फिर वही अवस्था धारण करनी है। पहले तुम कितने
मीठे थे फिर ऐसा मीठा, सदा सुखदाई बनो। देह अभिमान में आने से दु:खदाई बनें तो
तुम्हारी रूहानी खुशी गायब हो गई। लाइफ भी छोटी हो गई। अब फिर बाप आया है तुम्हें
सतोप्रधान बनाकर सदा सुखदाई बनाने। तुम जितना बाप को याद करते रहेंगे उतना खामियां
निकलती जायेंगी। मतभेद निकलता जायेगा। यह पक्का याद रहे हम भाई-भाई हैं। आत्मा
भाई-भाई को देखने से सदैव गुण ही दिखाई पड़ेंगे। सबको गुणवान बनाने की कोशिश करो।
अवगुणों को छोड़ गुणों को धारण करो। कभी किसी की ग्लानी नहीं करो। कोई-कोई में ऐसी
खामियां हैं जो खुद भी समझ नहीं सकते हैं, वह तो अपने को बहुत अच्छा समझते हैं
परन्तु खामी होने के कारण कहाँ न कहाँ उल्टा बोल निकल पड़ता है। सतोप्रधान अवस्था
में यह बातें नहीं होती। अपने आपको देखो हम कितने मीठे बने हैं? हमारा बाप के साथ
कितना लव है? बाप से लव ऐसा हो जो एकदम चटका रहे। बाबा आप हमको कितना ऊंच समझदार
बनाते हो, स्वर्ग का मालिक बनाते हो। ऐसे अन्दर में बाप की महिमा कर गदगद होना
चाहिए। रूहानी खुशी में रहना चाहिए। गाते भी हैं खुशी जैसी खुराक नहीं। बाप के मिलने
की भी कितनी खुशी रहनी चाहिए। संगम पर ही तुम बच्चों को 21 जन्मों के लिए सदा खुशी
में रहने की खुराक मिल जाती है फिर कोई को किसी बात की चिंता नहीं रहती है। अभी
कितनी चिंतायें हैं इसलिए उसका असर शरीर पर भी आता है। तुमको तो कोई बात की चिंता
नहीं। यह खुशी की खुराक तुम एक दो को खिलाते रहो। एक दो की यह जबरदस्त खातिरी करनी
है। ऐसी खातिरी मनुष्य, मनुष्य की कर नहीं सकते। तुम बाप की श्रीमत पर यह खातिरी
करते हो। खुश खैराफत भी यह है - किसको बाप का परिचय देना। यह ज्ञान और योग की
फर्स्टक्लास वण्डरफुल खुराक है। यह खुराक एक ही रूहानी सर्जन द्वारा मिलती है।
मनमनाभव, मध्याजी भव - बस दो वर्शन्स की यह खुराक है। मोस्ट बील्वेड बाप से विश्व
की बादशाही मिलती है, यह कोई कम बात थोड़ेही है। यह दो वचन ही नामीग्रामी हैं। इन
दो वचनों से तुम एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बन जाते हो। तो तुम बच्चों को इन बातों का
सिमरण कर हर्षित रहना चाहिए। गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट - यह गायन भी अभी का
है। जितना हो सके एक दो को यह रूहानी खुराक पहुंचाओ, एक दो की उन्नति करो, टाइम
वेस्ट न करो। बड़े धीरज से, गम्भीरता से, समझ से बाप को याद करो, अपनी जीवन हीरे
जैसी बनाओ।
मीठे बच्चे, बाप की जो श्रीमत मिलती है उसमें गफलत नहीं करनी चाहिए। बाप का
सन्देश सभी को पहुंचाना है। बाप का मैसेज सभी को मिलना तो है ना। मैसेज बहुत सहज है
- सिर्फ बोलो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो और कर्मेन्द्रियों से
मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई भी बुरा कर्म नहीं करो। एक दिन तुम्हारे इस साइलेन्स बल का
आवाज निकलेगा। दिनप्रतिदिन तुम्हारी उन्नति होती जायेगी। तुम्हारा नाम बाला होता
जायेगा। सब समझेंगे यह अच्छी संस्था है, अच्छा काम कर रहे हैं, रास्ता भी बहुत सहज
बताते हैं। यह ब्राह्मणों का झाड बहुत बढ़ता जायेगा, प्रजा बनती रहेगी। सेन्टर्स
बहुत वृद्धि को पायेंगे। तुम्हारी प्रदर्शनी भी गांव-गांव में होगी। तुम बच्चों को
बड़ी भारी सर्विस करनी है। तुम्हारे नये-नये सेन्टर्स खुलते जायेंगे, जिसमें अनेक
मनुष्य आकर अपनी जीवन हीरे जैसी बनाते रहेंगे। तुम्हें बहुत प्यार से एक-एक की
सम्भाल करनी है। कहाँ किसी बिचारे के पैर खिसक न जायें। जितने जास्ती सेन्टर्स होंगे
उतना जास्ती आकर जीयदान पायेंगे। जब आप बच्चों का प्रभाव निकलेगा तो बहुत बुलायेंगे
- कि यहाँ आकर हमको मनुष्य से देवता बनाने का राजयोग सिखाओ। आगे चलकर बहुत धूमधाम
होगी कि वही भगवान आकर आबू में पधारे हैं।
तुम बच्चे देख रहे हो कि इस समय पुरानी दुनिया में अनेक इन्टरनेशनल रोले हैं। अब
यह सभी रोले खत्म होने हैं, इसकी तुम्हें कोई भी फिकरात नहीं करनी है। तुम सबको
सुनाओ कि इसकी परवाह नहीं करो, अब यह पुरानी दुनिया गई कि गई, इसमें मोह नहीं रखना
है, अगर मोह होगा, हृदय शुद्ध नहीं होगा तो अपार खुशी भी नहीं रहेगी। बच्चों को
अथाह ज्ञान धन का खजाना मिलता रहता है तो अपार खुशी होनी चाहिए। जितना हृदय शुद्ध
होगा उतना औरों को भी शुद्ध बनायेंगे। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। तुम
बच्चों को योगी बनने, बनाने का भी शौक होना चाहिए। अगर देह में मोह है, देह अभिमान
रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड
बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही अभिमानी बनने का अभ्यास करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान निरहंकारी बन बहुत प्यार से सबकी सेवा करनी है। श्रीमत पर
चलना है। अपनी मत पर चलकर तकदीर को लकीर नहीं लगानी है।
2) संगम पर बाप द्वारा जो खुशी की खुराक मिली है, वही खुराक खाते और खिलाते रहना
है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। बड़े धीरज से, गम्भीरता से, समझ से बाप को याद
कर अपनी जीवन हीरे जैसी बनानी है। वरदान:-
“मैं पन'' का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले
त्यागमूर्त, सेवाधारी भव
सेवाधारी सेवा में सफलता की अनुभूति तभी कर सकते हैं जब
“मैं पन'' का त्याग हो। मैं सेवा कर रही हूँ, मैंने सेवा की - इस सेवा भाव का त्याग।
मैंने नहीं की लेकिन मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। “मैं पन'' बाबा के लव में
लीन हो जाए - इसको कहा जाता है सेवा में सदा खोये रहने वाले त्याग-मूर्त सच्चे
सेवाधारी। कराने वाला करा रहा है, हम निमित्त हैं। सेवा में “मैं पन'' मिक्स होना
अर्थात् मोहताज बनना। सच्चे सेवाधारी में यह संस्कार हो नहीं सकते।
स्लोगन:-
व्यर्थ को समाप्त कर दो तो सेवा की ऑफर सामने आयेगी।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - “जीवन की आश पूर्ण होने का
सुहावना समय''
हम सभी आत्माओं की बहुत समय से यह आश थी कि जीवन में सदा सुख शान्ति मिले, अब बहुत
जन्म की आशा कब तो पूर्ण होगी। अब यह है हमारा अन्तिम जन्म, उस अन्त के जन्म की भी
अन्त है। ऐसा कोई नहीं समझे मैं तो अभी छोटा हूँ, छोटे बड़े को सुख तो चाहिए ना,
परन्तु दु:ख किस चीज़ से मिलता है, उसका भी पहले ज्ञान चाहिए। अब तुमको नॉलेज मिली
है कि इन पाँच विकारों में फंसने कारण यह जो कर्मबन्धन बना हुआ है, उनको परमात्मा
की याद अग्नि से भस्म करना है, यह है कर्मबन्धन से छूटने का सहज उपाय। इस
सर्वशक्तिवान बाबा को चलते फिरते श्वांसों श्वांस याद करो। अब यह उपाय बताने की
सहायता खुद परमात्मा आकर करता है, परन्तु इसमें पुरुषार्थ तो हर एक आत्मा को करना
है। परमात्मा तो बाप, टीचर, गुरु रूप में आए हमें वर्सा देते हैं। तो पहले उस बाप
का हो जाना है, फिर टीचर से पढ़ना है जिस पढ़ाई से भविष्य जन्म-जन्मान्तर सुख की
प्रालब्ध बनेगी अर्थात् जीवनमुक्ति पद में पुरुषार्थ अनुसार मर्तबा मिलता है। और
गुरु रूप से पवित्र बनाए मुक्ति देते हैं। तो इस राज़ को समझ ऐसा पुरुषार्थ करना
है। यही टाइम है पुराना खाता खत्म कर नई जीवन बनाने का, इसी समय जितना पुरुषार्थ कर
अपनी आत्मा को पवित्र बनायेंगे उतना ही शुद्ध रिकार्ड भरेगा फिर सारा कल्प चलेगा।
तो सारे कल्प का मदार इस समय की कमाई पर है। देखो, इस समय ही तुम्हें आदि-मध्य-अन्त
का ज्ञान मिलता है, हमको सो देवता बनना है और अपनी चढ़ती कला है फिर वहाँ जाके
प्रालब्ध भोगेंगे। वहाँ देवताओं को बाद का पता नहीं पड़ता कि हम गिरेंगे, अगर यह पता
होता कि सुख भोगना फिर गिरना है तो गिरने की चिंता में सुख भी भोग नहीं सकेंगे। तो
यह ईश्वरीय कायदा रचा हुआ है कि मनुष्य सदा चढ़ने का पुरुषार्थ करता है अर्थात् सुख
के लिये कमाई करता है। परन्तु ड्रामा में आधा-आधा पार्ट बना पड़ा है, जिस राज़ को
हम जानते हैं, परन्तु जिस समय सुख की बारी है तो पुरुषार्थ कर सुख लेना है, यह है
पुरुषार्थ की खूबी। एक्टर का काम है एक्ट करने समय सम्पूर्ण खूबी से पार्ट बजाना,
जो देखने वाले हेयर हेयर (वाह वाह) करें, इसलिए हीरो हीरोइन का पार्ट देवताओं को
मिला है, जिन्हों का यादगार चित्र गाया और पूजा जाता है। निर्विकारी प्रवृत्ति में
रह कमल फूल समान अवस्था बनाना, यही देवताओं की खूबी है। इस खूबी को भूलने से ही
भारत की ऐसी दुर्दशा हुई है, अब फिर से ऐसी जीवन बनाने वाला खुद परमात्मा आया हुआ
है, अब उनका हाथ पकड़ने से जीवन नईया पार होगी। अच्छा - ओम् शान्ति।
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