02-09-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 02-09-75 मधुबन

 

दिल रूपी तख्त-नशीन ही सतयुगी विश्व के राज्य का अधिकारी

 

क्या आप बच्चे अपने को त्रिमूर्ति तख्तनशीन समझते हो? आज की सभा त्रिमूर्ति तख्तनशीन की है। अपने त्रिमूर्ति तख्त को जानते हो न? एक है अकालमूर्त आत्मा का यह भृकुटि रूपी तख्त। दूसरा है - विश्व के राज्य का तख्त। तीसरा है - सर्व-श्रेष्ठ बापदादा का दिल रूपी तख्त। ऐसे हरेक अपने को तीनों ही तख्तों पर नशीन अनुभव करते हो या सिर्फ जानते हो? क्या आप ज्ञान स्वरूप हो या अनुभव स्वरूप भी हो? मैं श्रेष्ठ आत्मा अनेक बार इसकी तख्तनशीन बनी हूँ - ऐसे अनेक बार की स्मृति स्पष्ट रूप में और सहज रूप में अभी-अभी की बात महसूस होती है? कब की बात नहीं - लेकिन अब की बात है, ऐसा अनुभव करने वाले बापदादा के अति स्नेही और अति समीप हैं।

 

इन सब तख्तों का आधार बापदादा के दिल-तख्तनशीन बनना है। उसके लिये मुख्य साधन कौन-सा है उसको जानते हो? सहज साधन है ना। कौन-सा साधन है? - दिल तख्त, जो स्वयं तख्तनशीन हैं वह अच्छी तरह जानते हैं कि बापदादा को सबसे प्रिय कौन-सा बच्चा लगता है। बाप को दुनिया वाले क्या समझते हैं, कि बाप भगवान क्या है? गॉड इज टत्र्थ। सत्य को ही भगवान कहते हैं। बापदादा सुनाते भी सत्यनारायण की कथा है और स्थापना भी सतयुग की करते हैं। तो बाप को जो सत बाप, सत टीचर, सत गुरू का प्रैक्टिकल पार्ट बजाते हैं, तो सत बाप को क्या प्रिय लगता है? - सच्चाई- जहाँ सच्चाई है अर्थात् सत्यता है, वहाँ स्वच्छता व सफाई अवश्य ही होती है। गायन भी है सच्चे दिल पर साहब राजी। दिल तख्तनशीन सर्विसएबल अवश्य है - लेकिन सर्विसएबल की निशानी सम्बन्ध और सम्पर्क में सच्चाई और सफाई, हर संकल्प और हर बोल में दिखाई देगी। अर्थात् ऐसी दिल तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा का हर संकल्प सत होगा, हर वचन सत होगा। सत अर्थात् सत्य भी और सत अर्थात् सफल भी। अर्थात् कोई भी संकल्प व बोल व्यर्थ व साधारण नहीं होगा। ऐसे सर्विसएबल जिनके हर कदम में, हर समय की निगाह में अर्थात् दृष्टि में सर्व आत्माओं के प्रति नि:स्वार्थ सेवा ही सेवा दिखाई देगी। सोते भी सेवा, जागते भी सेवा और चलते हुए भी सेवा। सिवाय सेवा के स्वप्न में भी कोई बात नहीं होगी। ऐसे सेवाधारी जो अचल और अथक होगा - ऐसा ही बापदादा के दिलतख्तनशीन होता है। समझा, निशानी क्या होती है? ऐसे दिल तख्तनशीन के लिए विश्व के राज्य का तख्त प्राप्त करना निश्चित ही है। जैसे इन-एडवाँस सीट बुक होती है, ऐसे कल्प-कल्प के लिए राज तख्त निश्चित है।

 

प्रकृति को अधीन कर विजयी बनने वाले वत्स विश्व के राज्य के अधिकारी बनेंगे अथवा नहीं, यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। प्रकृति ऐसे अपने विजयी मालिक के आगे-पीछे दासी के समान झुकती रहती है व प्रणाम करती रहती है। हर समय सदा सेवाधारी श्रेष्ठ आत्मा के आगे सेवाधारी बन के रहती है। ऐसा अपना श्रेष्ठ स्वरूप दिखाई दे रहा है न? अब तो प्रकृति आपका इंतज़ार कर रही है। अपने ऐसे मालिक की सेवा के लिए। सागर भी, धरनी भी ऐसे विश्व के मालिक की सेवा-अर्थ स्वयं को अब सम्पन्न बना रहे हैं। देख रहे हो उनकी तैयारियाँ जैसे भक्त लोग देवियों की, देवताओं की, शक्तियों की, सालिग्राम रूप की पूजा करते हुए जोर शोर से आह्वान कर रहे हैं - अपनी प्यारी निद्रा को भी त्याग चिल्ला-चिल्ला कर आप सबका आह्वान कर रहे हैं कि कहीं हमारी वरदानी, महादानी आत्मायें व हमारे इष्ट देव हमारी भी सुन लें। अप्राप्ति से प्राप्ति ज़रा दे। ऐसे ही अब समय समीप होने के कारण भक्तों के साथ-साथ प्रकृति भी आपका आह्वान कर रही है, कि कब हमारे सतोप्रधान मालिक हमारे ऊपर राजी हो राज्य करेंगे और प्रकृति भी सतोप्रधान चोला धारण करेगी। क्या प्रकृति का आह्वान, भक्तों का आह्वान दिखाई व सुनाई दे रहा है?

 

इनके आह्वान के साथ दूसरी ओर बापदादा भी आह्वान कर रहे हैं कि समान और सम्पूर्ण बन कर सूक्ष्म वतन निवासी फरिश्ता बनकर बाप के साथ घर चलें। चलना है या संगम ज्यादा भाता है? क्या एवर-रेडी बन गये हो? जहाँ बिठायें, जिस रूप में बिठायें और जब तक बिठायें ऐसे वायदे में सदा स्थित रहते हो? लास्ट ऑर्डर रूहानी मिलिट्री को कितने समय में मिलेगा? एक सेकेण्ड का ऑर्डर होगा। एक घण्टा पहले इतला नहीं होगी। तब तो आठ रत्न निकलते हैं। डेट निश्चित बता करके पेपर नहीं लेंगे। अर्थात् लास्ट डेट जो ड्रामा में निश्चित है, वह निश्चित डेट और समय नहीं बतलाया जायेगा। यह तो एवरेज बताया जाता है। लेकिन लास्ट पेपर एक ही क्वेश्चन का और एक ही सेकेण्ड का होगा। इसलिए बच्चों को एवर-रेडी बनना है।

 

हर समय स्वयं को चेक करो कि समेटने की शक्ति और सामना करने की शक्ति दोनों शक्तियों से सम्पन्न बन गये हो? समेटने की शक्ति का बहुत समय से कर्त्तव्य में लाने का अभ्यास चाहिए। लास्ट समय समेटना शुरू नहीं करना। समेटते ही समय बीत जायेगा। समेटने का कार्य तो अब सम्पन्न होना चाहिए। तब एक बल, एक भरोसा व निरन्तर तुम्हीं से खाँऊ, तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से बोलूँ और तुम्हीं से सुनूँ का किया हुआ वायदा निभा सकेंगे। ऐसे नहीं कि आठ घण्टा तुम्हीं से बोलूँ, सुनूँ, बाकी समय आत्माओं से बोलूँ व सुनूँ - यह निरन्तर का वायदा है - इसमें चतुर नहीं बनना। बाप की दी हुई प्वाइन्ट्स बाप के आगे वकील के रूप में नहीं रखना। अमृत वेले कई वकील बनकर आते हैं। वकालत सतयुग में नहीं होगी। इसलिए बापदादा के आगे ऐसा नटखटपन नहीं करना। वकील की बजाय जज बनो। लेकिन किसका? स्वयं का जज बनना दूसरों का नहीं। बापदादा को सारे दिन में अमृतवेले के समय बच्चों के विचित्र खेल देखते हर्षित होने को मिलता है। उस समय हर एक का फोटो निकालने योग्य पोज व पोजीशन होती है। साक्षी होकर आप एक दिन भी देखो तो बहुत हँसोगे। कोई योद्धा बन कर भी आते हैं। बाप के दिये हुए शस्त्र बाप के आगे यूज़ करते हैं। ‘‘आपने ऐसे कहा है, ज्ञान ऐसा कहता है’’ - बाप मुस्कराते हैं - खेल देखते रहते हैं। योद्धा की बजाय विजयी बनो, तब ही त्रिमूर्ति तख्त-नशीन बन सकोगे। समझा? अच्छा।

 

ऐसे सदा विजयी, सर्व वायदे निभाने वाले, बापदादा के अति स्नेही और समीप, प्रकृति को दासी बनाने वाले और सर्व आत्माओं की सर्व मनोकामनायें पूर्ण करने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

02-09-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 05-09-75 मधुबन

 

फरिश्ता स्वरूप में स्थिति

 

फरिश्ते स्वरूप की स्थिति में सदा स्थित रहते हो? फरिश्ते स्वरूप की लाइट में अन्य आत्माओं को भी लाइट ही दिखाई देगी। हद के एक्टर्स जब हद के अन्दर अपने एक्ट करते दिखाई देते हैं, तो लाइट के कारण अति सुन्दर स्वरूप दिखाई देते हैं। वही एक्टर, साधारण जीवन में, साधारण लाइट के अन्दर पार्ट बजाते हुए कैसे दिखाई देते हैं? रात-दिन का अन्तर दिखाई देता है ना? लाइट का फोकस उनके फीचर्स को ही परिवर्तित कर देता है। ऐसे ही बेहद ड्रामा के आप हीरो हीरोइन एक्टर्स, अव्यक्त स्थिति की लाइट के अन्दर हर एक्ट करने से क्या दिखाई देंगे? अलौकिक-फरिश्ते! साकारी की बजाय सूक्ष्म वतनवासी नजर आयेंगे। साकारी होते हुए भी आकारी अनुभव होंगे। हर एक्ट हरेक को स्वत:ही आकर्षित करने वाला होगा।

 

जैसे आज हद का सिनेमा व ड्रामा कलियुगी मनुष्यों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है-छोड़ना चाहते हुए और न देखना चाहते हुए भी हद के एक्टर्स की एक्ट अपनी ओर खींच लेती है, लेकिन उसका आधार लाईट है, ऐसे ही इस अन्तिम समय में माया के आकर्षण की अति के बाद अन्त होने पर, बेहद के हीरो एक्टर्स, जो सदा जीरो स्वरूप में स्थित होते हुए जीरो बाप के साथ हर पार्ट बजाने वाले हैं और दिव्य ज्योति स्वरूप वाले जिनकी स्थिति भी लाइट की है और स्टेज पर हर पार्ट भी लाइट में हैं - अर्थात् जो डबल लाइट वाले फरिश्ते हैं - वे हर आत्मा को स्वत:ही अपनी तरफ आकर्षित करेंगे। आजकल की दुनिया में ड्रामा के अतिरिक्त और कौनसी वस्तु है जो ऐसे फरिश्तों के नयनों जैसी आकर्षण करने वाली हैं? टी.वी.। जैसे टी.वी. द्वारा इस संसार की कैसीकैसी सीन-सीनरियाँ देखते हुए कई आकर्षित होते, अर्थात् गिरती कला में जाते हैं - ऐसे ही फरिश्तों के नयन दिव्य दूर-दर्शन का काम करेंगे। हर एक के नयनों द्वारा सिर्फ इस संसार के ही नहीं लेकिन तीनों लोकों के दर्शन करेंगे। ऐसे फरिश्तों के मस्तक में चमकती हुई मणि आत्माओं को सर्च-लाइट व लाइट हाऊस के समान स्वयं का स्वरूप, स्व-मार्ग और श्रेष्ठ मंज़िल का स्पष्ट साक्षात्कार करायेंगी।

 

ऐसे फरिश्तों के युक्ति-युक्त बोल अर्थात् अमूल्य बोल, हर भिखारी आत्मा की रत्नों से झोली भरपूर करेंगे। जो गायन है देवताएं भी भक्तों पर प्रसन्न हो फूलों की वर्षा करते हैं - ऐसे आप श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा विश्व की आत्माओं के प्रति सर्व-शक्तियों, सर्वगुणों तथा सर्व वरदानों की पुष्प-वर्षा सर्व के प्रति होगी। तब ही आप सब को देवता अर्थात् देने वाला समझ कर भक्त-गण द्वापर युग से देवताओं का गायन और पूजन करते आ रहे हैं, क्योंकि अन्त समय सर्व आत्माएँ, विशेषकर वे भारतवासी आत्माएँ देवता धर्म की अन्त तक वृद्धि पाने वाली आत्मायें जो सतयुग में आपके देवताई रूप की पालना तो नहीं लेंगी बल्कि बाद में इस धर्म की वृद्धि होने के समय से लेकर अन्त तक के समय में आपका देवता रूप, दाता रूप अथवा वरदाता रूप अनुभव करेंगी। आपके अन्तिम देवता रूप की अनेक प्राप्तियों के संस्कार व स्मृतियाँ सर्व आत्माओं में मर्ज रहती हैं अर्थात् समाई हुई रहती हैं। इस कारण प्रैक्टिकल रूप में सतयुगी सृष्टि में न आते हुए भी द्वापर में सृष्टि-मंच पर आते ही देवता स्वरूप की प्राप्ति की स्मृति इमर्ज हो जाती है और गायन-पूजन करते रहते हैं। समझा, अपने अन्तिम फरिश्ते स्वरूप को?

 

ऐसे बेहद के एक्टर्स स्वत: अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेंगे? यह ही डबल लाइट स्थिति और स्टेज आप सबको और बाप को प्रत्यक्ष करेगी। जीरो और हीरो दोनों प्रत्यक्ष होंगे। समझा (लाइट चली गई) फिर बाबा बोले - अभी भी देखो, लाइट से कितना काम होता है। अभी भी आप सबके आकर्षण करने की वस्तु लाइट के आधार पर है। अच्छा।

 

ऐसे सदा जीरो के साथ हीरो पार्ट बजाने वाले, सदा देने वाले देवता स्वरूप, विश्व में स्वयं को और बाप को प्रख्यात करने वाले, विश्व की सर्व आत्माओं की सर्व-मनोकामनायें सम्पन्न करने वाले, ऐसे फरिश्तों को फरिश्तों की दुनिया में रहने वाले और फरिश्तों की दुनिया से पार रहने वाले बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!

 

वरदान:- अपने आक्यूपेशन की स्मृति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले राजयोगी भव

 

अमृतवेले तथा सारे दिन में बीच-बीच में अपने आक्यूपेशन को स्मृति में लाओ कि मैं राजयोगी हूँ। राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। राजयोगी माना राजा, उसमें कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर होती है। वह एक सेकण्ड में मन को कन्ट्रोल कर सकते हैं। वह कभी अपने संकल्प, बोल और कर्म को व्यर्थ नहीं गंवा सकते। अगर चाहते हुए भी व्यर्थ चला जाता है तो उसे नॉलेजफुल वा राजा नहीं कहेंगे।

 

स्लोगन:- स्व पर राज्य करने वाले ही सच्चे स्वराज्य अधिकारी हैं।