28-06-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – शिवबाबा तुम्हारे फूल आदि स्वीकार नहीं कर
सकते क्योंकि वह पूज्य वा पुजारी नहीं बनते, तुम्हें भी संगम पर फूल हार नहीं पहनने
हैं”
प्रश्नः-
भविष्य राज्य
तख्त के अधिकारी कौन बनते हैं?
उत्तर:-
जो अभी
मात-पिता के दिलतख्त को जीतने वाले हैं, वही भविष्य तख्तनशीन बनते हैं। वन्डर है
बच्चे मात-पिता पर भी विजय प्राप्त करते हैं। मेहनत कर मात-पिता से भी आगे जाते
हैं।
गीत:-
छोड़ भी दे
आकाश सिंहासन…
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना। इस गीत से सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता
है। याद करते हैं, अब भारत बहुत दु:खी है। ड्रामा अनुसार यह सब गीत बने हैं। दुनिया
वाले नहीं जानते। बाप आते हैं पतितों को पावन करने वा दु:खियों को दु:ख से लिबरेट
कर सुख देने लिए। बच्चे जान गये हैं – वही बाप आया हुआ है। बच्चों को पहचान मिल गई
है। स्वयं बैठ बतलाते हैं – मैं साधारण तन में प्रवेश कर सारी सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाता हूँ। सृष्टि एक ही है, सिर्फ नई और पुरानी होती है।
जैसे शरीर बचपन में नया होता है फिर पुराना होता है। नया शरीर, पुराना शरीर दो शरीर
तो नहीं कहेंगे। है एक ही सिर्फ नये से पुराना बनता है। वैसे दुनिया एक ही है। नये
से अब पुरानी होती है। नई कब थी? यह फिर कोई बता न सके। बाप आकर समझाते हैं, बच्चे
जब नई दुनिया थी तो भारत नया था। सतयुग कहा जाता था। वही भारत फिर पुराना बना है।
इसको पुरानी, ओल्ड वर्ल्ड कहा जाता है। न्यु वर्ल्ड से फिर ओल्ड बनी है फिर उनको नया
जरूर बनना है। नई दुनिया का बच्चों ने साक्षात्कार किया है। अच्छा उस नई दुनिया के
मालिक कौन थे? बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण थे। आदि सनातन देवी-देवता उस दुनिया के
मालिक थे। यह बाप बच्चों को समझा रहे हैं। बाप कहते हैं – अब निरन्तर यही याद करो।
बाप परम-धाम से हमको पढ़ाने, राजयोग सिखाने आये हुए हैं। महिमा सारी उस एक की है,
इनकी महिमा कुछ नहीं है। इस समय सब तुच्छ बुद्धि हैं, कुछ नहीं समझते इसलिए मैं आता
हूँ तब तो गीत भी बनाया हुआ है। सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता है। हर एक का
पार्ट अपना-अपना है। बाप बार-बार कहते हैं – देह-अभिमान छोड़ तुम आत्म-अभिमानी बनो
और आरगन्स द्वारा शिक्षा धारण करो। भल इस बाबा को चलते-फिरते देखते हो परन्तु याद
शिवबाबा को करो। ऐसे ही समझो शिवबाबा ही सब कुछ करते हैं। ब्रह्मा है नहीं। भल इनका
रूप इन आंखों से दिखाई पड़ता है। तुम्हारी बुद्धि शिवबाबा की तरफ जानी चाहिए।
शिवबाबा न हो तो इनकी आत्मा, इनका शरीर कोई काम का नहीं। हमेशा समझो इसमें शिव-बाबा
है। वह इन द्वारा पढ़ाते हैं। तुम्हारा यह टीचर नहीं है। सुप्रीम टीचर वह है। याद
उनको करना है। कभी भी जिस्म को याद नहीं करना है। बुद्धियोग बाप के साथ लगाना है।
बच्चे याद करते हैं फिर से आकर ज्ञान-योग सिखाओ, परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई
राजयोग सिखा न सके। बच्चों की बुद्धि में है वही बैठ गीता का ज्ञान सुनाते हैं फिर
यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाता है। वहाँ दरकार ही नहीं। राजधानी स्थापन हो गई। सद्गति
हो जाती है। ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति होने के लिए। बाकी वह तो सब हैं
भक्ति मार्ग की बातें। मनुष्य जप-तप, दान-पुण्य आदि जो कुछ करते हैं, सब भक्ति
मार्ग की बातें हैं, इससे मुझे कोई मिल नहीं सकता। आत्मा के पंख टूट गये हैं।
पत्थरबुद्धि बन गई है। पत्थर से फिर पारस बनाने मुझे आना पड़े। बाप कहते हैं – अब
कितने मनुष्य हैं। सरसों मिसल संसार भरा हुआ है। अब सब खत्म हो जाने हैं। सतयुग में
तो इतने मनुष्य होते नहीं। नई दुनिया में वैभव बहुत और मनुष्य थोड़े होंगे। यहाँ तो
इतने मनुष्य हैं जो खाने के लिए भी नहीं मिलता है। पुरानी रेतीली जमीन है फिर नई हो
जायेगी। वहाँ है ही एवरीथिंग न्यु। नाम ही कितना मीठा है – हेविन, बहिश्त, देवताओं
की नई दुनिया। पुरानी को तोड़ नई में बैठने की दिल होती है ना। अब है नई दुनिया,
स्वर्ग में जाने की बात। इसमें पुराने शरीर की कोई वैल्यु नहीं है। शिवबाबा को तो
कोई शरीर है नहीं।
बच्चे कहते हैं – बाबा को हार पहनायें। परन्तु इनको हार पहनायेंगे तो तुम्हारा
बुद्धियोग इसमें चला जायेगा। शिवबाबा कहते हैं हार की दरकार नहीं है। तुम ही पूज्य
बनते हो। पुजारी भी तुम बनते हो। आपेही पूज्य आपेही पुजारी। तो अपने ही चित्र की
पूजा करने लगते हैं। बाबा कहते हैं मैं न पूज्य बनता हूँ, न फूल आदि की दरकार है।
मैं क्यों यह पहनूँ इसलिए कभी फूल माला आदि लेते नहीं हैं। तुम पूज्य बनते हो फिर
जितना चाहिए उतना फूल पहनना। मैं तो तुम बच्चों का मोस्ट बिलवेड ओबीडियन्ट फादर भी
हूँ, टीचर भी हूँ, सर्वेन्ट भी हूँ। बड़े-बड़े रॉयल आदमी जब नीचे सही डालते हैं तो
लिखते हैं मिन्टो, करजेन आदि… अपने को लार्ड कभी नहीं लिखेंगे। यहाँ तो श्री
लक्ष्मी-नारायण, श्री फलाना। एकदम श्री अक्षर डाल देते हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं
अब इस शरीर को याद नही करो। अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो। इस पुरानी
दुनिया में आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं। सोना 9 कैरेट होगा तो जेवर भी 9 कैरेट।
सोने में ही खाद पड़ती है। आत्मा को कभी निर्लेप नहीं समझना चाहिए। यह ज्ञान तुमको
अभी है। तुम आधाकल्प 21 जन्म लिए प्रालब्ध पाते हो तो कितना पुरूषार्थ करना चाहिए!
परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। शिवबाबा, ब्रह्मा द्वारा हमको शिक्षा दे रहे
हैं। ब्रह्मा की आत्मा भी उनको याद करती है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं
सूक्ष्मवतनवासी। बाप पहले सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं, निर्वाणधाम ऊंच ते ऊंच धाम है।
आत्माओं का निर्वाणधाम सबसे ऊंच है। एक भगवान को सब भक्त याद करते हैं। परन्तु
तमोप्रधान बन गये हैं तो बाप को भूल, ठिक्कर-भित्तर सबकी पूजा करते रहते हैं। हम
जानते हैं जो कुछ चलता है ड्रामा शूट होता जाता है। ड्रामा में एक बार जो शूटिंग
होती है। समझो बीच में कोई पंछी आदि उड़ता है तो वही घड़ी-घड़ी रिपीट होता रहेगा।
पतंग उड़ता हुआ शूट हो गया तो फिर-फिर रिपीट होता रहेगा। यह भी ड्रामा का
सेकेण्ड-सेकेण्ड रिपीट होता जाता है। शूट होता रहता है। यह बना बनाया ड्रामा है।
तुम एक्टर्स हो सारे ड्रामा को साक्षी हो देखते हो। एक-एक सेकेण्ड ड्रामा अनुसार
पास होता है। पत्ता हिला, ड्रामा पास हुआ। ऐसे नहीं पत्ता-पत्ता भगवान के हुक्म से
चलता है। नहीं, यह सब ड्रामा में नूँध है। इनको अच्छी रीति समझना पड़ता है। बाप ही
आकर राजयोग सिखलाते हैं और ड्रामा की नॉलेज देते हैं। चित्र भी कितने अच्छे बने हुए
हैं। संगमयुग पर घड़ी का कांटा भी लगा हुआ है। कलियुग अन्त सतयुग आदि का संगम है।
अभी पुरानी दुनिया में अनेक धर्म हैं। नई दुनिया में फिर यह नहीं होंगे। तुम बच्चे
हमेशा ऐसे समझो – हमको बाप पढ़ाते हैं, हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं। भगवानुवाच – मैं
तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। राजे लोग भी लक्ष्मी-नारायण को पूजते हैं। तो उन्हों
को पूज्य बनाने वाला मैं हूँ। जो पूज्य थे वह अब पुजारी हो गये हैं। तुम बच्चे समझ
गये हो हम सो पूज्य थे फिर हम सो पुजारी बने। बाबा तो नहीं बनते हैं। बाबा कहते
हैं, न मैं पुजारी हूँ, न पूज्य बनता हूँ इसलिए मैं न हार पहनता हूँ, न पहनाने पड़ते
हैं। फिर हम क्यों फूलों को स्वीकार करें। तुम भी स्वीकार नहीं कर सकते हो। कायदे
अनुसार उन देवताओं का हक है, उनकी आत्मा और शरीर पवित्र है। वही हकदार हैं फूलों
के। वहाँ स्वर्ग में तो हैं ही खुशबूदार फूल। फूल होते ही हैं खुशबू के लिए। पहनने
के लिए भी होते हैं। बाप कहते हैं – अभी तुम बच्चे विष्णु के गले का हार बनते हो।
नम्बरवार तुमको तख्त पर बैठना है। जिन्होंने जितना कल्प पहले पुरूषार्थ किया है, अब
करते हैं और करने लग पड़ेंगे। नम्बरवार तो हैं। बुद्धि कहती है फलाना बच्चा बहुत
सर्विसएबुल है। जैसे दुकान में होता है, सेठ बनते हैं, भागीदार बनते हैं, मैनेजर
बनते हैं। नीचे वालों को भी लिफ्ट मिलती है। यह भी ऐसे है। तुम बच्चों को भी
मात-पिता पर जीत पानी है। तुम वन्डर खाते हो – मात-पिता से आगे कैसे जा सकते हैं।
बाप तो बच्चों को मेहनत कर लायक बनाते हैं, तख्तनशीन बनाने लिए इसलिए कहते हैं, अब
हमारे दिल रूपी तख्त पर जीत पहनने से भविष्य के तख्तनशीन बनेंगे। पुरूषार्थ इतना करो,
जो नर से नारायण बनो। एम ऑब्जेक्ट मुख्य है ही एक, फिर किंगडम स्थापन हो रही है तो
उसमें वैरायटी पद है।
तुम्हें माया को जीतने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है। बच्चों आदि को भी भल प्यार
से चलाओ परन्तु ट्रस्टी होकर रहो। भक्ति मार्ग में कहते थे ना – प्रभू यह सब आपका
दिया हुआ है। आपकी अमानत आपने ले ली। अच्छा फिर रोने की बात ही नहीं परन्तु यह तो
है ही रोने की दुनिया। मनुष्य कथायें बहुत सुनाते हैं। मोहजीत राजा की कथा भी सुनाते
हैं। फिर कोई दु:ख फील नहीं होता है। एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लिया। वहाँ कभी कोई
बीमारी आदि होती नहीं। एवरहेल्दी, निरोगी काया रहती है, 21 जन्म के लिए। बच्चों को
सब साक्षात्कार होता है। वहाँ की रसमरिवाज कैसे चलती है, क्या ड्रेस पहनते हैं।
स्वयंवर आदि कैसे होते हैं – सब बच्चों ने साक्षात्कार किया है। वह पार्ट सब बीत गया।
उस समय इतना ज्ञान नहीं था। अब दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों में ताकत बहुत आती जाती है।
यह भी सब ड्रामा में नूँधा हुआ है। वन्डर है ना। परमपिता परमात्मा का भी कितना भारी
पार्ट है। खुद बैठ समझाते हैं भक्ति मार्ग में भी ऊपर बैठ मैं कितना काम करता हूँ।
नीचे तो कल्प में एक ही बार आता हूँ। बहुत, निराकार के पुजारी भी होते हैं परन्तु
निराकार परमात्मा कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह बात गुम कर दी है। गीता में भी कृष्ण का
नाम डाल दिया है तो निराकार से प्रीत ही टूट गई है। यह तो परमात्मा ने ही आकरके सहज
योग सिखलाया और दुनिया को बदलाया, दुनिया बदलती रहती है। युग फिरते रहते हैं। इस
ड्रामा के चक्र को अभी तुम समझ गये हो। मनुष्य कुछ नहीं जानते। सतयुग के
देवी-देवताओं को भी नहीं जानते। सिर्फ देवताओं की निशानियाँ रह गई हैं, तो बाप
समझाते हैं, हमेशा ऐसे समझो हम शिवबाबा के हैं। शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं। शिवबाबा,
इस ब्रह्मा द्वारा हमेशा शिक्षा देते हैं। शिवबाबा की याद में फिर बहुत मज़ा आता
रहेगा। ऐसा गॉड फादर कौन? वह फादर भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। कई बाप बच्चों
को पढ़ाते भी हैं तो वह जरूर कहेंगे हमारा यह फादर, टीचर है परन्तु वह फादर गुरू भी
हो, ऐसे नहीं होते हैं। हाँ टीचर हो सकता है। फादर को गुरू कभी नहीं कहेंगे। इनका (बाबा
का) फादर टीचर भी था, पढ़ाते थे। वह है हद का फादर टीचर। यह है बेहद का फादर टीचर।
तुम अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो तो भी अहो सौभाग्य। गॉड फादर पढ़ाते हैं, कितना
क्लीयर है। तो कितना मीठा बाबा है। मीठी चीज़ को याद किया जाता है। जैसे आशिक-माशूक
का प्यार होता है। उनका विकार के लिए प्यार नहीं होता है। बस एक दो को देखते रहते
हैं। तुम्हारा फिर है आत्माओं का परमात्मा बाप के साथ योग। आत्मा कहती है बाबा कितना
ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। इस पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर हमको कितना
ऊंच बनाते हैं। गायन भी हैं – मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। सेकेण्ड में
बैकुण्ठ में जाते हैं। सेकेण्ड में मनुष्य से देवता बन पड़ते हैं। यह है एम
आब्जेक्ट। उसके लिए पढ़ाई करनी चाहिए। गुरू नानक ने भी कहा है ना मूत पलीती कपड़
धोए… लक्ष्य सोप है ना। बाबा कहते हैं मैं कितना अच्छा धोबी हूँ। तुम्हारे वस्त्र,
तुम्हारी आत्मा और शरीर कितना शुद्ध बनाता हूँ। तो इनको (दादा को) कभी याद नहीं करना
है। यह सारा कार्य शिवबाबा का है, उनको ही याद करो। इनसे मीठा वह है। आत्मा को कहते
हैं तुमको इन आंखों से यह ब्रह्मा का रथ देखने में आता है परन्तु तुम याद शिवबाबा
को करो। शिवबाबा इनके द्वारा तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे हैं । अच्छा –
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिल रूपी तख्त पर जीत पाने का पुरूषार्थ करना है। परिवार में
ट्रस्टी रहकर प्यार से सबको चलाना है। मोहजीत बनना है।
2) योगबल से आत्मा को स्वच्छ बनाना है। इन आंखों से सब कुछ देखते हुए याद एक बाप
को करना है। यहाँ फूल हार स्वीकार न कर खुशबूदार फूल बनना है
वरदान:-
अपने एकाग्र स्वरूप द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं
का अनुभव करने वाले अन्तर्मुखी भव
एकाग्रता का आधार अन्तर्मुखता है। जो अन्तर्मुखी हैं वे
अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करते हैं। आत्माओं का आह्वान करना,
आत्माओं से रूहरिहान करना, आत्माओं के संस्कार स्वभाव को परिवर्तन करना, बाप से
कनेक्शन जुड़वाना - ऐसे रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा करने के लिए एकाग्रता की
शक्ति को बढ़ाओ, इससे सर्व प्रकार के विघ्न स्वतः समाप्त हो जायेंगे।
स्लोगन:-
सर्व
प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता
का आधार है।