04-11-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 13-12-95 मधुबन
"व्यर्थ बोल, डिस्टर्ब करने वाले बोल से स्वयं को मुक्त कर बोल की इकॉनॉमी करो"
आज बापदादा चारों ओर की आत्माओं को आप सभी के साथ देख रहे हैं। चारों ओर के बच्चे आकार रूप से बापदादा के सामने हैं। डबल सभा, साकारी और आकारी दोनों कितनी बड़ी सभा है। बापदादा दोनों सभा के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। क्योंकि बापदादा हर बच्चे को विशेष दो रूपों से देख रहे हैं। एक - हर एक बच्चा इस सर्व मनुष्यात्माओं के पूर्वज, सारे वृक्ष का फाउण्डेशन है। क्योंकि जड़ से सारा वृक्ष निकलता है और दूसरे रूप में पूर्वज बड़े को भी कहते हैं। तो सृष्टि के आदि में आप आत्माओं का ही पार्ट है। इसलिए बड़े ते बड़े हो, इस कारण सर्व आत्माओं के पूर्वज हो। साथ-साथ ऊंचे ते ऊंचे बाप की पहली रचना आप ब्राह्मण आत्मायें हो। तो जैसे ऊंचे ते ऊंचा भगवन है वैसे बड़े ते बड़े पूर्वज आप हो। तो इतने सारे पूर्वज बच्चों को देख बाप हर्षित होते हैं। आप भी हर्षित होते हो कि हम पूर्वज हैं - उसी निश्चय और नशे में रहते हो? तो बापदादा आज पूर्वजों की सभा देख रहे हैं।
आप सभी जो भी बाप के बच्चे हो, माया से बचे हुए हो। बच्चे का अर्थ ही है बाप का बनना अर्थात् बच्चे बनना। तो माया से बचे हुए बाप के बच्चे बनते हैं। आप सभी माया से बचे हुए हो ना? कि कभी चक्कर में आ जाते हो? कहते हैं ना ऐसा भी चक्रव्युह होता है जो बहुत तरीके से निकलना होता है। तो कोई भी माया के चक्रव्युह में फंसने वाले तो नहीं हो? क्या कोई चक्कर है? बचे हुए हो? (हाँ जी) ऐसे नहीं करना कि यहाँ हाँ जी करके जाओ और वहाँ जाकर कहो ना जी। जब एक बार चक्कर से निकलने का रास्ता या विधि आ गई, तो फिर फंसने की तो बात ही नहीं है। माया को भी अच्छी तरह से जान गये हो ना कि कभी अनजान बन जाते हो? फिर कहते हैं हमको तो पता ही नहीं पड़ा कि ये माया है। क्योंकि जैसे आजकल का फैशन है भिन्न-भिन्न फेस बहुत पहन लेते हैं। अभी-अभी क्या बनेंगे, अभी-अभी क्या बनेंगे। तो माया के पास भी ये फंसाने के फेस बहुत हैं। उसके पास अच्छा बड़ा दुकान है। जिस समय जो रूप धारण करना चाहे उस समय कर लेती है। और अगर जाने-अनजाने फंस गये तो निकलने में बहुत टाइम लगता है। और संगम का एक सेकण्ड व्यर्थ जाना अर्थात् एक वर्ष गँवाना है, सेकण्ड नहीं। आप सोचो संगमयुग कितना छोटा है। अभी तो डायमण्ड जुबली मना रहे हो और इस थोड़े से समय में जो बनना है, जो जमा करना है वो अभी बन सकते हैं। तो बापदादा देख रहे थे कि बनने का समय कितना थोड़ा है और बनते हो सारा कल्प। तो कहाँ 5 हज़ार और कहाँ अभी 60 वर्ष, चलो आगे कितना भी समय होगा लेकिन हज़ारों के गिनती में तो नहीं होगा ना!
तो इस थोड़े से समय में राज्य अधिकारी बनने वा रॉयल फैमिली में आने के लिए क्या करना होगा? वैसे संख्या के हिसाब से सतयुग में विश्व का तख्त सभी को तो मिल भी नहीं सकता। मानों पहले लक्ष्मी-नारायण तो तख्त पर बैठेंगे लेकिन जो पहले लक्ष्मी-नारायण की रॉयल फैमिली है, उन्हों को भी इतना ही सभी द्वारा स्नेह और सम्मान मिलता है। तो अगर पहली राजधानी के रॉयल फैमिली में भी आते हैं तो वो पहला नम्बर हैं। चाहे बड़े तख्त पर नहीं बैठते लेकिन प्रालब्ध नम्बरवन के हिसाब से ही है। नहीं तो आप सभी लोगों को त्रेता तक भी तख्त थोड़े ही मिलेगा। लेकिन विश्व राज्य अधिकारी का लक्ष्य सभी का है ना? कि वहाँ भी एक स्टेट के राजा बन जायेंगे? तो पहले नम्बर के रॉयल फैमिली में आना ये भी श्रेष्ठ पुरूषार्थ है। कोई को तख्त मिलता और किसको रॉयल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं।
जो सदा संगम पर बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है, कभी-कभी नहीं, जो सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भी, संकल्प मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा है, स्वप्न तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन हो सकती हैं। जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लिये हैं, आदि से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैं, उसी को ही पास विद् ऑनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया है, मेकप वाला नहीं लेकिन आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द हैं वो तख्त ले सकता है। साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के प्यारे, सर्व के सहयोगी रहे हैं, ब्राह्मण परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, ऐसा सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता है। अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रॉयल फैमिली में आ सकता है। चाहे पहली में आवे, चाहे आठवीं में आए, चाहे त्रेता में आए। तो अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो। अगर सेवा में 100 मार्क्स जमा हैं और धारणा में 25 परसेन्ट तो क्या होगा? वो अधिकारी बनेगा? कई बच्चे और सब्जेक्ट में आगे चले जाते हैं लेकिन प्रैक्टिकल धारणा में जैसा समय है वैसा अपने को मोल्ड करना वो है रीयल गोल्ड। कहाँ-कहाँ माया बच्चों से भी होशियार हो जाती है। वो फट से समय प्रमाण स्वरूप धारण कर लेती है और बच्चे क्या कहते हैं? बाप के पास तो सबकी बातें आती हैं ना! मानो एक रांग है और दूसरा राइट है। ऐसे भी होता है कि दोनों तरफ की कोई ना कोई कमी होती है लेकिन मानों आप बिल्कुल ही अपने को राइट समझते हो और दूसरा बिल्कुल ही रांग है, तो आप राइट हो और वो रांग है फिर भी जैसा समय, जैसा वायुमण्डल देखा जाता है वैसे अपने को ही, चाहे समाना पड़ता है, चाहे मिटाना पड़ता है, चाहे किनारा करना पड़ता है, लेकिन बच्चे क्या कहते हैं कि क्या हर बात में हर समय हमको ही मरना है क्या! मरने के लिये हम हैं और मौज मनाने के लिए ये हैं! सदा ही मरना है, ये मरना तो बहुत मुश्किल है, मरजीवा तो बन गये वो तो सहज है। ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी बन गये ये भी तो मरजीवा बने ना! ये मरना तो बहुत सहज हो गया। मर गये, ब्रह्माकुमारी बन गये। लेकिन ये बारबार का मरना ये बहुत मुश्किल है! मुश्किल है ना? छोटियाँ कहती हैं कि हमको ही ज्यादा मरना पड़ता है और बड़े कहते हैं कि हमको ही ज्यादा सुनना पड़ता है। तो आपको सहन करना पड़ता, उन्हों को सुनना पड़ता, तो मरना किसको है? कौन मरें? एक मरे, दोनों मरें? दोनों ही मर गये तो बात खत्म, खेल खत्म। तो मरना आता है या थोड़ा मुश्किल लगता है? थोड़ा सांस हांफता हैं, मुश्किल सांस निकलता है। तकलीफ होती है? उस समय जब कहते हो ना कि क्या हमें ही मरना है, हमें ही बदलना है, क्या मेरी ही जिम्मेवारी है बदलने की? दूसरे की भी तो है! आधा-आधा बांट लो - तुम इतना मरो, मैं इतना मरूँ। बापदादा को तो उस समय रहम भी बहुत आता है लेकिन ये मरना, मरना नहीं है। ये मरना सदा के लिये जीना है। लोग कहते हैं ना कि बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलेगा। तो उस मरने से तो स्वर्ग मिलता नहीं लेकिन इस मरने से स्वर्ग का अधिकार ज़रुर मिलेगा। इसलिए ये मरना अर्थात् स्वर्ग का अधिकारी बनना। डर जाते हो ना-मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, सहन करना पड़ेगा तो छोटी बात बड़ी हो जाती है। आप सोचो कोई भी डाकू या चोर है नहीं लेकिन आपको डर बैठ गया कि डाकू है, चोर है तो भय से क्या होता है? भय से या तो हार्ट नीचे-ऊपर होगी या ब्लड प्रेशर नीचे-ऊपर होगी। डर से होता है ना? तो डर जाते हो। मरना बड़ी बात नहीं है लेकिन आपका डर बड़ी बात बना देता है फिर कहते हैं पता नहीं हमको क्या होता है, पता नहीं! लेकिन जैसे हिम्मत से मरजीवा बनने में भय नहीं किया, खुशी-खुशी से किया, ऐसे खुशी-खुशी से परिवर्तन करना है। मरना शब्द नहीं है लेकिन आपने मरना-मरना शब्द कह दिया है इसलिए डर जाते हैं। वास्तव में ये मरना नहीं है लेकिन अपने धारणा की सब्जेक्ट में नम्बर लेना है। सहन करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो? क्योंकि समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करें? लेकिन सहन करने की आज्ञा किसने दी है? झूठ बोलने वाले ने दी है? कई बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मज़बूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना, इसमें अन्तर है। बात के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो। तो बाप की आज्ञा मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी है । तो कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता है, मोहब्बत भी होती है, मजबूरी भी होती है। सहन कर ही रहे हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता है ना तो मजबूरी लगती है और बाप सामने आवे, कि बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्बत लगेगी, मजबूरी नहीं। तो ये शब्द नहीं सोचो। आजकल ये थोड़ा कॉमन हो गया है - मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, कब तक मरना पड़ेगा, अन्त तक या दो साल, एक साल, 6 मास, फिर तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है? लेकिन यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या करेंगे? मरेंगे? यह मरना शब्द खत्म कर दो। मरना सोचते हो ना तो मरने से तो डर लगता है ना। देखो अपनी मृत्यु तो छोड़ो, कोई-कोई तो दूसरे की मृत्यु देखकर भी डर जाते हैं। तो ये शब्द परिवर्तन करो, ऐसे-ऐसे बोल नहीं बोलो। शुद्ध भाषा बोलो। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में यह शब्द है ही नहीं। पता नहीं किसने शुरू किया है। किया तो आप लोगों में से ही है ना! आप माना जो सामने बैठे हैं, वह नहीं। ब्राह्मणों ने ही किया है। बापदादा ने ये तो एक मिसाल सुनाया लेकिन सारे दिन में ऐसे व्यर्थ बोल या मज़ाक के बोल बहुत बोलते हैं, अच्छे शब्द नहीं बोलेंगे, लेकिन कहेंगे मेरा भाव नहीं था, यह तो मज़ाक में कह दिया। तो ऐसा मज़ाक क्या ब्राह्मण जीवन में आपके नियमों में है? लिखा हुआ तो नहीं है? कभी पढ़ा है कि मज़ाक कर सकते हैं? मज़ाक करो लेकिन ज्ञानयुक्त, योगयुक्त। बाकी व्यर्थ मज़ाक जिसको आप मज़ाक समझते हो लेकिन दूसरे की स्थिति डगमग हो जाती है, तो वह मज़ाक हुआ या दु:ख देना हुआ?
तो आज बापदादा ने देखा कि एक तो सभी पूर्वज हैं और दूसरा सबसे बड़े ते बड़े पूज्य आत्मायें भी आप हो। आप जैसी पूजा सारे कल्प में किसकी नहीं होती। तो पूर्वज भी हो और पूज्य भी। लेकिन पूज्य भी नम्बरवार हैं। जो भी ब्राह्मण बनते हैं उनकी पूजा होती ज़रुर है लेकिन किसकी विधिपूर्वक होती है और किसकी काम चलाऊ होती है। तो जो ब्राह्मण यहाँ भी योग में बैठते हैं लेकिन काम चलाऊ, कुछ नींद किया, कुछ योग किया, कुछ व्यर्थ सोचा और कुछ शुभ सोचा। तो यह काम चलाऊ हुआ ना! सफेद बत्ती जल गई, काम पूरा हो गया। ऐसे धारणा में भी काम चलाऊ बहुत होते हैं। कोई भी सरकमस्टांस आयेगा तो कहेंगे अभी तो ऐसे करके चलाओ, पीछे देखा जायेगा। तो ऐसों की पूजा काम चलाऊ होती है। देखो लाखों सालग्राम बनाते हैं लेकिन क्या होता है? विधिपूर्वक पूजा होती है? काम चलाऊ होती है ना! पाइप से नहला दिया और तिलक भी कटोरी भरके पण्डित लोग ऐसे-ऐसे कर देते हैं। (छिड़क देते हैं) तिलक लग गया। तो ये क्या हुआ? काम चलाऊ हुआ ना। पूज्य सभी बनते हो लेकिन कैसे पूज्य बनते हो वो नम्बरवार है। किसकी हर कर्म की पूजा होती है। दातन (दातून) का भी दर्शन होता है, दातन हो रहा है। मथुरा में जाओ तो दातन का भी दर्शन कराते हैं, इस समय दातन का समय है। तो काम चलाऊ नहीं बनना। नहीं तो पूजा भी ऐसी होगी।
टीचर्स क्या समझती हो? आगे बैठती हो तो नम्बर भी आगे लेना है ना! कम नहीं रह जाना। नशा रखो कि हम पूर्वज भी हैं और पूज्य भी हैं। तो जितने बड़े, उतनी बड़ी जिम्मेवारी है। बड़ा बनना सिर्फ खुश होने वाली बात नहीं है। नाम बड़ा तो काम भी बड़ा। सभी टीचर्स खुश हो? या कोई-कोई इच्छा अभी भी मन में है? कोई भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके हाथ में है। और देखा जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज़ है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करो, तो पकड़ी जायेगी? और आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगी? आपके पीछे-पीछे आयेगी। तो इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रूलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो इच्छा आपके पीछे-पीछे आयेगी। मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रॉयल मांग तो बहुत है। जानते हो ना - रॉयल मांग क्या है? अल्पकाल का कुछ नाम मिल जाये, कुछ शान मिल जाये, कभी हमारा भी नाम विशेष आत्माओं में आ जाये, हम भी बड़े भाइयों में गिने जायें, हम भी बड़ी बहनों में गिने जायें, आाखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए। लेकिन जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खज़ाने से सम्पन्न नहीं हो सकते। ये मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। छोटे सुभान अल्लाह हैं। क्योंकि बापदादा के दिल पर नम्बर आगे हैं।
चारों ओर के पूर्वज आत्माओं को, सदा इस निश्चय और नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कर्म करने वाले कर्मयोगी आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प से बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले फॉलो फादर बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते। डबल विदेशियों को डबल नमस्ते।
सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ने और उड़ाने वाले मजबूत और अथक भव
आप आत्मायें अनेक आत्माओं को उड़ाने के निमित्त हो इसलिए उमंग-उत्साह के पंख मजबूत हों। सदा इसी स्मृति में रहो कि हम ब्राह्मण (बी.के.) विश्व कल्याण के जवाबदार हैं तो आलस्य और अलबेलापन स्वत: समाप्त हो जायेगा। कभी भी थकेंगे नहीं, जिसमें उमंग-उत्साह होता है वह अथक होते हैं। वह अपने चेहरे और चलन से सदा औरों का भी उमंग-उत्साह बढ़ाते हैं।
स्लोगन:-बाप के संग का रंग लगा हुआ हो तो सब बुराईयां सहज ही परिवर्तन हो जायेंगी।