27-01-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 13-03-69 मधुबन
“प्रेम और शक्ति के गणों की समानता”
आत्म-अभिमानी हो याद की यात्रा में बैठे हो? याद की यात्रा में भी मुख्य किस गुण में स्थित हो? याद की यात्रा में होते हुए भी मुख्य किस गुण स्वरूप हो? इस समय आप का मुख्य गुण कौन सा है? (सभी ने अपना-अपना विचार सुनाया) इस समय तो सभी विशेष प्रेम स्वरूप की स्थिति में हैं। लेकिन प्रेम के साथ-साथ वर्तमान समय की परिस्थितियों के प्रमाण जितना ही प्रेम स्वरूप उतना ही शक्ति स्वरूप भी होना चाहिए। देवियों के चित्र देखे हैं - देवियों के चित्र में मुख्य क्या विशेषता होती है? अपने चित्रों को कब ध्यान से देखा नहीं है? जब देवियों के चित्र बनाते हैं। काली के सिवाए बाकी जो भी देवियाँ हैं उन्हों के नयन हमेशा गीले दिखाते हैं। प्रेम में जैसे डूबे हुए नयन दिखाते हैं और साथ-साथ जो उनका चेहरा आदि बनाते हैं तो उनकी सूरत से ही शक्ति के संस्कार देखने में आते हैं। लेकिन नयनों में प्रेम, दया, शीतलता देखने में आती है। मातापन के प्रेम के संस्कार इन नयनों से दिखाई पड़ते हैं। उन्हों के ठहरने का ढंग वा सवारी अस्त्र-शस्त्र दिखाते हैं, वह शक्ति रूप प्रगट करता है। तो ऐसे ही आप शक्तियों में भी दोनों गुण समान होने चाहिए। जितना शक्ति स्वरूप उतना ही प्रेम स्वरूप। अभी तक दोनों नहीं हैं। कभी प्रेम की लहर में कभी शक्ति रूप में स्थित रहते हो। दोनों ही साथ और समान रहे। यह है शक्तिपन की अन्तिम सम्पूर्णता की निशानी। अभी बापदादा को अपने बच्चों के मस्तक में क्या देखने में आता है? अपने मस्तक में देखा है क्या है? प्रारब्ध देखते हो वा वर्तमान सौभाग्य का सितारा चमकता हुआ देखते हो वा और कुछ? (हरेक ने अपना-अपना विचार सुनाया) तीनों सम्बन्धों से तीनों ही बातें देखने में आती हैं। इसीलिए आपको त्रिशूल सौगात भेजी थी। तीनों ही सितारे दिखाई दे रहे हैं। एक तो भविष्य का, दूसरा वर्तमान सौभाग्य का और तीसरा जो परम- धाम में आपकी आत्मा की सम्पूर्ण अवस्था होनी है, वह आत्मा की सम्पूर्ण स्थिति का सितारा। तीनों ही सितारे दिखाई पड़ते हैं। इन तीनों सितारों को देखते रहना। कभी -कभी सितारों के बीच बादल आ जाते हैं। कभी-कभी सितारे जगह भी बदली करते हैं। कभी टूट भी पड़ते हैं। यहाँ भी ऐसे जगह भी बदली करते हैं। कभी टूट भी पड़ते हैं। कभी देखो तो बहुत ऊपर, कभी देखो तो बीच में, कभी देखो तो उससे भी नीचे। जगह भी अभी बदली नहीं करनी चाहिए। अगर बदली करो तो आगे भल बढ़ो। नीचे नहीं उतरो। अविनाशी सम्पूर्ण स्थिति में सदैव चढ़ते रहो। ऐसा सितारा बनना है। टूटने की तो यहाँ बात ही नहीं। सभी अच्छे पुरुषार्थी बैठे हुए हैं। बाकी जगह बदली की आदत को मिटाना है।
कुमारियों की रिजल्ट कैसी है? आप अपनी रिजल्ट क्या समझती हो? विशेष किस बात में उन्नति समझती हो? (हरेक ने अपना सुनाया) याद की यात्रा में कमी है। इसलिए इतनी महसूसता नहीं होती। अमृतवेले याद का इतना अनुभव नहीं होता है इसलिए जैसे साकार में यहाँ बाहर खुली हवा में सैर भी कराते थे, लक्ष्य भी देते थे, योग का अनुभव भी कराते थे। इसी रीति जो कुमारियों के निमित्त टीचर्स हैं वह उन्हों को आधा घण्टा एकान्त में सैर करावे। जैसे शुरू में तुम अलग-अलग जाकर बैठते थे, सागर के किनारे, कोई कहाँ, कोई कहाँ जाकर बैठते थे। ऐसी प्रैक्टिस कराओ। छतें तो यहाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं। फिर शाम के समय भी 7 से 7:30 तक यह समय विशेष अच्छा होता है। जैसे अमृतवेले का सतोगुणी टाइम होता है वैसे यह शाम का टाइम भी सतोगुणी है। सैर पर भी इसी टाइम निकलते हैं। उसी समय संगठन में योग कराओ और बीच-बीच में अव्यक्त रूप से बोलते रहो, कोई का बुद्धियोग यहाँ वहाँ होगा तो फिर अटेन्शन खैचेगा। योग की सबजेक्ट में बहुत कमी है। भाषण करना, प्रदर्शनी में समझाना यह तो आजकल के स्कूलों की कुमारियों को एक सप्ताह ट्रेनिंग दे दो तो बहुत अच्छा समझा लेंगी। लेकिन यह तो जीवन में अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है ना। उसी समय ऐसे समझो जैसे कि बापदादा के निमन्त्रण पर जा रहे हैं। जैसे बापदादा सैर करने आते हैं वैसे बुद्धियोग बल से तुम सैर कर सकती हो। जब याद की यात्रा का अनुभव करेंगे तो अव्यक्त स्थिति का प्रभाव आपके नयनों से, चलन से प्रत्यक्ष देखने में आयेगा। फिर उन्हों से माला बनवायेंगे। जैसे शुरू में आप खुद माला बनाती थी ना।
इस ग्रुप को उमंग उत्साह अच्छा है। बाकी एक बात खास ध्यान में रखनी है - कि एक दो के सस्कारों को जान करके, एक दो के स्नेह में एक दो से बिल्कुल मिल-जुल कर रहना है। जैसे कोई से विशेष स्नेह होता है तो उनसे कितना मिक्स हो जाते हैं। ऐसे ही सभी को एक दो में मिक्स होना चाहिए। जब कुमारियाँ ऐसा शो करके दिखायेंगी तब फिर और भी बुनमारियॉ सर्विस करने के निमित्त बनेगी। और जो निमित्त बनता है उनको उसका फल भी मिल जाता है। आप शोकेस हो अनेक कुमारियों को उमंग और उत्साह, उन्नति में लाने की। जितना ही उमंग से साकार - निराकार दोनों ने मिलकर यह प्रोग्राम बनाया है उतना ही इसका उजूरा दिखाना है। कई कुमारियों की उन्नति के निमित्त बन सकती हो। अपनी हमजिन्स को गिरने से बचा सकती हो। बुनमारियों के साथ बापदादा का काफी स्नेह है। क्योंकि बापदादा परमपवित्र है और कुमारियाँ भी पवित्र है। तो पवित्रता, पवित्रता को खींचती है। वर्तमान समय मुख्य विशेषता यही चाहिए, हरेक महारथी का फर्ज है अपना गुण औरों में भरना। जैसे ज्ञान का दान देना होता है वैसे गुणों का भी दान करना चाहिए। जैसे ज्ञान रत्नों का दान करते हो इसलिए महारथी कहलाये जाते हो, वैसे गुणों का दान भी बहुत बड़ा दान है। ज्ञान देना तो सहज है। गुणों का दान देना, इसमें जरा मेहनत है। गुणों का दान करने में - सभी महारथियों से नम्बरबन कौन है? जनक। यह गुण उसमें विशेष है। तो एक दो से यह गुण उठाना चाहिए।
(आबू म्यूजियम की तैयारी के बारे में बापदादा ने पूछा)
दूरादेशी और विशाल बुद्धि बन म्युजियम तैयार करना है। पहले ही भविष्य को सोच समय को सफल करने का गुण धारण करना है और टाइम पर तैयार भी करना है। जल्दी भी हो और सम्पूर्ण भी हो तो कमाल है। अगर कोई भी कमी रही तो उस कमी की तरफ सभी की नजर जायेगी। ऐसी कमी न हो। सभी के मुख से कमाल है, ऐसा निकलना चाहिए। सारा दैवी परिवार आपका चेहरा म्युजियम के दर्पण में देखेंगे। अच्छा -
2 - "सात बातें छोड़ो और सात बातें धारण करो" - 20-03-69
सभी किस स्मृति में बैठे हैं? किस देश में बैठे हैं। व्यक्त देश में हैं वा अव्यक्त देश में? अव्यक्त को व्यक्त में लाया है वा तुम अव्यक्त हुए हो। अभी की मुलाकात कहाँ कर रहे हो? अव्यक्त को व्यक्त देश में निमन्त्रण दिया था। तो अव्यक्त बापदादा व्यक्त देश में अव्यक्त रूप से मुलाकात कर रहे हैं। अव्यक्त रूप को व्यक्त में लाने के लिए कितना समय चाहिए? (अभी तैयारी है, पुरुषार्थ चल रहा है) कितने समय की आवश्यकता है? सम्पूर्ण स्थिति को इस साकार रूप में लाने लिए कितना समय चाहिए? दर्पण में देख तो सकते हो ना? सम्पूर्ण स्थिति का चित्र साकार में देखा है? साकार तन जो था वह सम्पूर्ण कर्मातीत स्थिति नहीं थी। उसकी भेंट में बताओ। उन जैसा तो बनना ही है। गुणों को ही धारण करना है। तो उनके अन्तिम स्थिति और अपने वर्तमान स्थिति में कितना फर्क समझते हो? उसके लिए कितना समय चाहिए। साकार का सबूत तो इन आँखों से देखा। उनके हर गुण हर कर्म को अपने कर्म और वाणी से भेंट करो तो मालूम पड़ जायेगा। अभी समय के हिसाब से 25 भी बहुत हैं। समय पुरुषार्थ का बहुत कम है। इसलिए जैसे याद का चार्ट रखते हो, साथ-साथ अब यह भी चार्ट रखना चाहिए। साकार जो कर्म कर रहे थे, जो स्थिति, जो स्मृति थी उन सभी से भेंट करनी है। अच्छा - आज कुमारियों का इम्तहान लेते हैं। सभी जो पुरुषार्थ कर रहे हैं उसमें मुख्य सात बातें धारण करनी है और सात बातें छोड़नी है। वह कौन सी? (हरेक कुमारी ने अपना-अपना सुनाया) छोड़ने का तो सभी को सुनाते हो। 5 विकार और उनके साथ छठा है आलस्य और सांतवा है भय। यह भय का भी बड़ा विकार है। शक्तियों का मुख्य गुण ही है निर्भय। इसलिए भय को भी छोड़ना है। अच्छा अब धारण क्या करना है? अपने स्वरूप को जानना, तो स्वरूप, स्वधर्म, स्वदेश, सुकर्म, स्व-लक्ष्य, स्व-लक्षण और स्वदर्शन चक्रधारी बनना। यह 7 बातें धारण करनी है। इनको धारण करने से क्या बनेंगे? शीतला देवी। काली नहीं बनना है। अभी शीतला देवी बनना है। काली बनना है विकारों के ऊपर। असुरों के सामने काली बनना है। लेकिन अपने ब्राह्मण कुल में शीतला बनना है। अच्छा।
वरदान:- हद की दीवारों को पार कर मंजिल के समीप पहुंचने वाले उपराम भव
किसी भी प्रकार की हद की दीवार को पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना। उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला। ऐसी उड़ती कला वाले कभी भी हद में लटकते वा अटकते नहीं, उन्हें मंजिल सदा समीप दिखाई देती है। वे उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष की डाली पर आयेंगे। बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बंधन में फंसेंगे नहीं। सदा स्वतन्त्र होंगे।
स्लोगन:- अनुभवों की अथॉरिटी बनो तो माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों से धोखा नहीं खायेंगे।