ओम् शान्ति।
शिवबाबा बैठ करके अपने सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं कि गीता का भगवान् कौन है?
क्योंकि इस समय भारत में है अज्ञान अन्धियारा। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा,
अज्ञान अन्धियारा। फिर सोझरा चाहिए ज्ञान का। परमपिता परमात्मा को ही मनुष्य मानते
हैं कि वह ज्ञान का सागर है, नॉलेजफुल है। अच्छा, वह ज्ञान का सागर है, उनसे क्या
मिलता है? नदियों से पानी मिलता है तो भर-भर कर स्नान भी करते हैं। तुमको ज्ञान
सागर से क्या मिलता है? एक बूँद। बाप आकर बच्चों को समझाते हैं - मैं ज्ञान का सागर
हूँ, तुमको बूँद देता हूँ। कौन सी बूँद? सिर्फ कहता हूँ - मैं तुम्हारा बाप हूँ।
तुम मुझे याद करो। समझो कि हम अपने शान्तिधाम-सुखधाम जाते हैं।
ज्ञान सागर एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति वैकुण्ठ में भेज देते हैं। घर बैठे भी
दिव्य दृष्टि दे देते हैं। मनुष्य तो एक-दो को सामने दृष्टि देते हैं। बाबा घर बैठे
साक्षात्कार करा लेते हैं। एक बूँद मिलने से तुम यहाँ से चले जाते हो। यहाँ
बैठे-बैठे तुम वैकुण्ठ मे चले जाते हो। अब बाप बैठ समझाते हैं। गीता का भगवान् कौन
है? वह है ज्ञान का सागर निराकार। मनुष्य तो गाते हैं श्रीकृष्ण के लिए। अब तुमको
समझाना है श्रीकृष्ण ने ज्ञान नहीं सुनाया। पहले-पहले तो कहते हैं श्रीकृष्ण ने माता
के गर्भ से जन्म लिया। कंसपुरी थी। फिर आवाज हुआ - हे कंस, तुमको मारने वाला आ चुका
है। यह तो जानते हो सब असुर हैं। कंस, जरासन्धी, अकासुर, बकासुर पाप आत्मायें सबका
विनाश करने लिए उनका जन्म दिखाते हैं। तो श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। वह तो छोटा था।
फिर ज्ञान कब दिया? वह तो युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण का बड़ा रूप दिखाते हैं,
छोटा तो नहीं दिखाते हैं। वैसे ही श्रीकृष्ण जयन्ती के बाद फिर गीता जयन्ती दिखाते
हैं। कुछ समय के बाद जब वह बड़ा हुआ तब ज्ञान दिया होगा। यह भी दिखाते हैं - जन्म
लिया है। टाइम भी दिखाते हैं - रात्रि के समय। यहाँ तुम देखते हो शिवबाबा की पधरामनी
हुई है। कोई को पता नहीं कि कब प्रवेशता हुई। शिवबाबा तो बच्चा बना नहीं है। वह तो
बुढ़े वानप्रस्थ अवस्था में आया है। कब आया - उसकी डेट है नहीं। श्रीकृष्ण की तो
तिथि-तारीख है और वह गर्भ से पैदा हुआ है। यहाँ शिवबाबा तो ज्ञान का सागर है। उनको
छोटा होना नहीं है, जो फिर बड़ा होकर ज्ञान सुनाये। श्रीकृष्ण का जन्म तो स्वर्ग
में हुआ। वह किसको राजयोग सिखला न सके, क्योंकि खुद ही राजा है। बरोबर तुम जानते हो
निराकार बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। पतितों को पावन, राजाओं का राजा बनाते हैं।
उस हद के रात और दिन तथा इस बेहद के रात और दिन के अर्थ में भी फ़र्क है। यह है
संगम जबकि ब्रह्मा की रात पूरी हो ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। यह है बेहद की
रात्रि, अज्ञान अन्धियारा। सतयुग में है सोझरा। उस रात की बात नहीं। वह तो
श्रीकृष्ण का जन्म रात में मनाते हैं। वह हुई हद की बात, यह है बेहद की। बाप कहते
हैं मैं आता हूँ, मेरी कोई तिथि-तारीख नहीं। कृष्ण-राम आदि की तो तिथि-तारीख है।
मुख्य हैं ही दो।
अभी श्रीकृष्ण जयन्ती आती है ना। उन्हों को समझाना है कृष्ण तो छोटा बच्चा है।
रात और दिन तो ब्रह्मा का गाया जाता है। ब्रह्मा का दिन श्रीकृष्ण है और ब्रह्मा की
रात ब्रह्मा है। ब्रह्मा ही फिर सो श्रीकृष्ण बनता है। वह तो समझते हैं कृष्ण भगवान्
है, वह हाज़िराहज़ूर है। तो इस पर भी समझाना है। तुम्हारी है शिवजयन्ती वा शिव
रात्रि कहो। शिव जयन्ती कहना ठीक है। यह भी समझाना होता है। वह गर्भ में तो आते नहीं
हैं। साधारण तन में आते हैं। श्रीकृष्ण की तो 8 पीढ़ी चलती हैं। छोटेपन में उनको
मोहन अथवा कृष्ण कहते हैं। जैसे प्रिन्स ऑफ वेल्स है, वैसे पहले-पहले गद्दी
इन्द्रप्रस्थ की - प्रिन्स आफ इन्द्रप्रस्थ। फिर वह प्रिन्स से किंग होगा। कृष्ण
अक्षर नहीं, महाराजा नाम ही गाया जाता है। श्री लक्ष्मी-नारायण को महाराजा-महारानी
कहते हैं। किंग अक्षर अंग्रेजों का है, असुल नाम महाराजा-महारानी है। ऐसे नहीं कि
नारायण ने ज्ञान दिया था। स्वयंवर बाद श्रीकृष्ण फिर श्रीनारायण बनते हैं। अब इस
ज्ञान सागर शिव का नाम तो बदलता नहीं। एक ही नाम है। उनका वह रथ तो बड़ा है। आने से
ही ज्ञान सुनाना शुरू कर दिया है। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं जानते थे। समझ में आता
है इनमें आया हुआ है, जो साक्षात्कार कराते हैं। नॉलेज दे रहे हैं। यह साक्षात्कार
का राज़ अथवा यह नॉलेज शुरू में पहले समझ में नहीं आती थी। बाबा अपना अनुभव बतलाते
हैं - शुरू में बनारस गये तो दीवारों पर गोले आदि निकालते रहते थे। समझ में कुछ भी
नहीं आता था - यह क्या है? क्योंकि यह तो जैसे बेबी बन गये। नया जन्म लिया ना। कहते
हैं ना - बाबा, हम 8-10 मास का आपका बच्चा हूँ तो मैं भी बच्चा हो गया। तो पहले कुछ
समझ में नहीं आता था। वह ज्ञान की बातें ही और थी। अगड़म-बगड़म क्या-क्या बैठ
निकालते थे। अभी तो सीखते-सीखते कितने वर्ष हो गये हैं! अभी बाप की बातें समझ में
आती हैं। बच्चों को कृष्ण जयन्ती पर समझाना है। चित्र तो बरोबर हैं। झाड़ में
ब्रह्मा का चित्र भी है। मक्खन तो यह हप कर लेते हैं। विश्व के मालिकपने का माखन
है। श्रीकृष्ण तो सतयुग की प्रालब्ध लेकरके आया है। श्रीकृष्ण है सतयुग का पहला
प्रिन्स फिर उनके बच्चे भी प्रिन्स बनेंगे। यह है उनकी प्रालब्ध जो कलियुग में तो
थी नहीं। तो यह सूर्यवंशी की प्रालब्ध किसने बनाई? गाया जाता है - ज्ञान सूर्य
प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश। ज्ञान सागर तो शिवबाबा है। वह आये हैं और स्वर्ग की
स्थापना कर रहे हैं। कान्ट्रास्ट बतलाना है। श्रीकृष्ण कैसे गर्भ में आया। दिखाते
हैं - वहाँ कंस, जरासन्धी आदि थे। परन्तु वहाँ (सतयुग में) असुर तो हो न सकें। असुरों
और देवताओं की लड़ाई दिखाते हैं। तो जरूर असुर कलियुग अन्त में होंगे, देवतायें
सतयुग आदि में होंगे। दोनों की लड़ाई तो लगी नहीं है। महाभारत लड़ाई बरोबर है।
देवतायें तो यहाँ हो न सकें। असुरों की असुरों में लड़ाई चली है। मुसलमानों का
राज्य भी देखते हो। बरोबर यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं।
पाण्डव हैं नानवायोलेन्स, योगबल वाले। यहाँ तो रक्त की नदियां बहती रहती हैं।
दुश्मनी तो है ना। पार्टीशन में रक्त की नदी अच्छी ही बही थी ना। भाई-भाई की युद्ध
हुई, भाई-भाई तो हैं ना। लड़ाई उन्हों की लगती है, नहीं तो रक्त की नदी कैसे बहे?
यह तो एक-दो का खून करते हैं। तलवारें चलाते हैं तब रक्त की नदी बहती है। और है यह
संगम का समय। रक्त की नदियों बाद फिर घी की नदियां बहनी है। श्रीकृष्ण तो छोटा
प्रिन्स है। फिर उनकी भी बैठ ग्लानी की है। उनको तो ज्ञान सागर कह नहीं सकते।
देवताओं की महिमा तो गाई जाती है - सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम... यह महिमा
बच्चे की नहीं हो सकती। महिमा हमेशा राजा-रानी की चलती है। वह फिर लक्ष्मी-नारायण
को सतयुग में और कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। कितनी बड़ी भूल कर दी है!
लक्ष्मी-नारायण की छोटेपन की कहानी भी कोई बता नहीं सकते। राम-सीता की भी कुछ न कुछ
बतलाते हैं। कृष्ण की भी उल्टी-सुल्टी बात बतलाते हैं। कुछ तो सुल्टी कहानी भी बताओ।
लक्ष्मी-नारायण की तो महिमा गाई जाती है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पन्न,
सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म.....। अच्छा, उन्हों को
राज्य किसने दिया? मनुष्य का नाम सुन मूँझ जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण कहने से तुम चले
जाते हो सतयुग में। यह है नर से नारायण बनने की कथा। श्रीकृष्ण बनने की कथा नहीं
कहते, इसको सत्य नारायण की कथा कहेंगे। सत्य कृष्ण की कथा नहीं कहा जाता। सच्चा बाबा
ज्ञान सागर यह कथा सुनाते हैं। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की कथा है। उसमें श्री
लक्ष्मी-नारायण की कथा भी आ जाती है। उनके 84 जन्मों की कथा दिखलाते हैं। श्री
नारायण की कथा से बेड़ा पार हुआ। बरोबर बाप बैठ बच्चों को नर से नारायण बनने की
सच्ची कथा सुनाते हैं। श्री नारायण तो बड़ा है ना। स्वयंवर से पहले कौन थे? क्या
लक्ष्मी-नारायण ही नाम था या दूसरा और कोई नाम था? हैं राधे-कृष्ण, जिनका स्वयंवर
बाद लक्ष्मी-नारायण नाम रखा है। बाबा एसे (निबन्ध) देते हैं फिर तुमको विचार सागर
मंथन करना चाहिए। पहले नम्बर की भूल है यह। तुम जानते हो अभी है कलियुग। यादव, कौरव,
पाण्डव भी हैं। कलियुग का समय भी है। कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। बाप कहते हैं
- मैं गाइड बन आया हूँ, रावण के चम्बे से छुड़ाए वापिस ले जाने। आत्माओं को ही ले
जाऊंगा।
गाया जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... ऐसे नहीं कि कृष्ण अलग रहे
बहुकाल। महिमा ही उस निराकार की है - सुन्दर मेला कर दिया जब वह सतगुरू मिला दलाल।
यहाँ तो सब गुरू ही हैं। गाया हुआ है - सतगुरू मिला दलाल.... सत परमपिता परमात्मा
दलाल के रूप में मिलते हैं। सौदा दलाल द्वारा होता है। यह भी सगाई होती है। आत्मा
और परमात्मा अलग हैं। परमात्मा है निराकार वह आकर इसमें प्रवेश कर तुम्हारी सगाई
करते हैं। खुद दलाल बनते हैं। कहते हैं मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। इस शरीर
में बैठ कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं तुमको माया रावण से लिबरेट कर साथ ले जाऊगाँ,
तुमको फिर राजाई देकर मैं निर्वाणधाम में बैठ जाऊंगा। कृष्ण थोड़ेही ऐसे कहेंगे। यह
है ही आत्मा और परमात्मा। कृष्ण तो छोटा बच्चा है। बातें तो बहुत हैं समझाने की। तो
बाबा ने समझाया है कैसे इसमें प्रवेशता हुई? फिर समझने लगा - मैं राजाओं का राजा
बनता हूँ। विष्णु का साक्षात्कार हुआ और दिल में बहुत खुशी हुई। फिर विनाश का
साक्षात्कार भी हुआ। परन्तु इतना समझ में नहीं आया। अभी समझते हैं बाबा ने यह
साक्षात्कार कराया - तुम नर से नारायण बनेंगे। परन्तु उस समय इतनी समझ नहीं थी। जैसे
बाबा रात को बतला रहे थे - पता नहीं क्या होता है जो शिवबाबा को याद करना भूल जाता
हूँ। ऐसे तो नहीं बाप जब प्रवेश करते हैं तब समझता हूँ बाबा आया है, याद रहती है,
बाबा चला जाता है तो भूल जाता हूँ। प्वाइन्ट सुनाते हैं तो फील होता है - बेहद का
बाप आकर सुनाते हैं। परन्तु मैं खुद ही भूल जाता हूँ। क्या मेरी याद से ही आता है?
ऐसे कहें - मैं घड़ी-घड़ी याद करता हूँ। भल आवे इसमें तो सबका कल्याण है। याद ही
मुख्य हो जाती है। आये, न आये, बाप को याद जरूर करना है। बाबा ने समझाया है कि गीता
जयन्ती के बाद होती है कृष्ण जयन्ती। पहले है शिवजयन्ती फिर गीता जयन्ती फिर कृष्ण
जयन्ती। शिव तो बड़ा है। फट से आया और गीता सुनाई। छोटा तो नहीं है। इन बातों पर
विचार सागर मंथन करना चाहिए - कैसे हम समझायें?
पहले ख्याल करो - शिव किसको कहते हैं, जिसकी रात्रि मनाई जाती है। सतयुग है
श्रीकृष्ण की राजधानी। नर से नारायण बनने की नॉलेज तो जरूर फादर ही देंगे, वह
नॉलेजफुल है। और किसको नॉलेजफुल नहीं कहा जाता। गॉड इज नॉलेजफुल, रचयिता, बीजरूप
है। वही ड्रामा की नॉलेज सुनायेंगे। ड्रामा कब शुरू होता है और फिर कब पूरा होता
है, किसको पता ही नहीं है। सतयुग से कलियुग अन्त तक वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी
कैसे रिपीट होती है - यह कोई समझा नहीं सकते। सुनावे वह जो त्रिकालदर्शी हो।
त्रिकालदर्शी तो कोई है नहीं, सिवाए एक के। वही तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के
महान् अन्तर को स्पष्ट कर घोर अन्धियारे से निकालने की सेवा करनी है।
2) बाबा जो एसे (निबन्ध) देते हैं उस पर विचार सागर मंथन करना है। ख्याल करना है
- कैसे किसको समझायें।