20-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 14.01.90 "बापदादा" मधुबन
पुरुषार्थ की तीव्रगति
में कमी के दो मुख्य कारण
आज ब्राह्मणों के
अनादि रचता बापदादा विशेष अपनी डॉयरेक्ट समीप रचना, श्रेष्ठ रचना - ब्राह्मण बच्चों
को देख रहे हैं। बापदादा की अति प्यारी रचना ब्राह्मण आत्माये हो जो समीप और समान
बनने के लक्ष्य को सदा स्मृति में रख आगे बढ़ रहे हो। तो आज ऐसी आदि रचना को विशेष
रूप से देख रहे थे। सर्व तीव्र पुरूषार्थी और पुरूषार्थी दोनों की गतिविधि को देख
रहे हैं। बापदादा द्वारा मिली हुई श्रेष्ठ सहज विधि द्वारा कब तीव्र गति व कब तीव्र,
कभी कम गति - दोनों ही प्रकार के ब्राह्मण बच्चों को देखा। पढ़ाई, पालना और प्राप्ति
- सबको एक जैसी एक द्वारा मिल रही है, फिर गति में अन्तर क्यों? तीव्र पुरूषार्थी
अर्थात् फर्स्ट डिवीजन वाले और पुरूषार्थी अर्थात् सेकण्ड डिवीजन में पास होने वाले।
आज विशेष सभी का चार्ट चेक किया। कारण बहुत हैं लेकिन विशेष दो कारण हैं। चाहना सबकी
फर्स्ट डिवीजन की है, सेकण्ड डिवीजन में आना कोई नहीं चाहता। लेकिन लक्ष्य और लक्षण,
दोनों में अन्तर पड़ जाता है। विशेष दो कारण क्या देखे?
एक - संकल्प शक्ति जो
सबसे श्रेष्ठ शक्ति है उसको यथार्थ रीति स्वयं प्रति वा सेवा प्रति समय प्रमाण
कार्य में लगाने की यथार्थ रीति नहीं है। दूसरा कारण - वाणी की शक्ति को यथार्थ रीति,
समर्थ रीति से कार्य में लगाने की कमी। इन दोनों में कमी का कारण है - यूज के बजाय
लूज़। शब्दों में अंतर थोड़ा है लेकिन परिणाम में बहुत अंतर पड़ जाता है। बापदादा
ने सिर्फ 3-4 दिन की रिजल्ट देखी, टोटल रिजल्ट नहीं देखी। हर एक की 3-4 दिन की
रिजल्ट में क्या देखा? 50 परसेन्ट अर्थात् आधा-आधा। संकल्प और बोल में दोनों शक्तियों
के जमा का खाता, 50 परसेन्ट आत्माओं का 40 परसेन्ट और व्यर्थ वा साधारण का खाता 60
परसेन्ट देखा। तो सोचो जमा कितना हुआ! ज्यादा वजन किसका हुआ? इसमें भी वाचा के कारण
मन्सा पर प्रभाव पड़ता है। मन्सा, वाचा को भी अपनी तरफ खींचती है। आज बापदादा वाणी
अर्थात् बोल की तरफ विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं क्योंकि बोल का सम्बन्ध अपने साथ भी
है और सर्व के साथ भी है। और देखा क्या? मन्सा द्वारा याद में रहना है - उसके लिए
फिर भी बीच-बीच में प्रोग्राम रखते हैं। लेकिन बोल के लिए अलबेलापन ज्यादा है,
इसलिए बापदादा इस पर विशेष अंडरलाइन करा रहे हैं। दो वर्ष पहले बापदादा ने विशेष
पुरुषार्थ में सेवा में आगे बढ़ने वाले महारथी आत्माओं को और सभी को तीन बातें बोल
के लिए कही थी - “कम बोलो, धीरे बोलो और मधुर बोलो।'' व्यर्थ बोलने की निशानी है -
वह ज्यादा बोलेगा, मजबूरी से समय प्रमाण, संगठन प्रमाण अपने को कंट्रोल करेगा लेकिन
अंदर ऐसा महसूस करेगा जैसे कोई ने शान्ति में चुप रहने लिए बांधा है। व्यर्थ बोल
बड़े-ते-बड़ा नुकसान क्या करता है? एक तो शारीरिक एनर्जी समाप्त होती क्योंकि खर्च
होता है और दूसरा - समय व्यर्थ जाता है। व्यर्थ बोलने वाले की आदत क्या होगी? छोटी-सी
बात को बहुत लम्बा-चौड़ा करेगा और बात करने का तरीका कथा मुआफिक होगा। जैसे रामायण,
महाभारत की कथा... इंट्रेस्ट से सुनाते हैं ना। खुद भी रुचि से बोलेगा, दूसरे की भी
रुचि पैदा कर लेगा, लेकिन रिजल्ट क्या होती? रामायण, महाभारत की रिजल्ट क्या है?
राम बनवास गया, कौरवों और पाण्डवों की युद्ध हुई, कहानी जैसा दिखाते हैं, सार कुछ
भी नहीं लेकिन साज़ बहुत रमणीक होता है। इसको कहते हैं कथा। व्यर्थ बोलने वाले माया
के प्रभाव के कारण वह कमजोर आत्मा है, उन्हों को सुनने और सुनाने के साथी बहुत जल्दी
बनते हैं। ऐसी आत्मा एकान्तप्रिय हो नहीं सकती इसलिए वह साथी बनाने में बहुत
होशियार होगा। बाहर से कभी-कभी ऐसे दिखाई देता है कि इन्हों का संगठन पावरफुल और
ज्यादा लगता है। लेकिन एक बात सदा के लिए याद रखो कि माया के जाने का अन्तिम चरण
है, इसलिए विदाई लेते-लेते भी अपना तीर लगाती रहती है इसलिए कभी-कभी, कहाँ-कहाँ माया
का प्रभाव अपना काम कर लेता है। वह आराम से जाने वाली नहीं है। लास्ट घड़ी तक
डॉयरेक्ट नहीं तो इनडायरेक्ट, कडुवा रूप नहीं तो बहुत मीठा रूप और नया-नया रूप धारण
कर ब्राह्मणों की ट्रायल करती रहती है। फिर भोले-भाले ब्राह्मण क्या कहते? यह तो
बापदादा ने सुनाया ही नहीं था कि इस रूप में भी माया आती है! अलबेलेपन के कारण अपने
को चेक भी नहीं करते और सोचते कि बापदादा तो कहते हैं कि माया आयेगी..। आधा अक्षर
याद रखते हैं कि माया आयेगी लेकिन मायाजीत बनना है - यह भूल जाते हैं।
और बात - व्यर्थ वा
साधारण बोल के भिन्न-भिन्न रूप देखे। एक - सीमा से बाहर अर्थात् लिमिट से परे
हंसी-मजाक, दूसरा - टोंटिंग वे, तीसरा - इधर-उधर के समाचार इकट्ठा कर सुनना और
सुनाना, चौथा - कुछ सेवा-समाचार और सेवा समाचार के साथ सेवाधारियों की कमजोरी का
चिंतन - यह मिक्स चटनी और पांचवा - अयुक्तियुक्त बोल, जो ब्राह्मणों की डिक्शनरी
में है ही नहीं। यह पांच रूपरेखायें देखी। इन पांचों को ही बापदादा व्यर्थ बोल में
गिनती करते हैं। ऐसा नहीं समझो - हंसी-मज़ाक अच्छी चीज़ है। हंसी-मज़ाक अच्छा वह है
जिसमें रूहानियत हो और जिससे हंसी-मजाक करते हो उस आत्मा को फायदा हुआ, टाइम पास
हुआ या टाइम वेस्ट गया? रमणीकता का गुण अच्छा माना जाता है लेकिन व्यक्ति, समय,
संगठन, स्थान, वायुमण्डल के प्रमाण रमणीकता अच्छी लगती है। अगर इन सब बातों में से
एक बात भी ठीक नहीं तो रमणीकता भी व्यर्थ की लाइन में गिनी जायेगी और सर्टीफिकेट
क्या मिलेगा कि हंसाते बहुत अच्छा है लेकिन बोलते बहुत है। तो मिक्स चटनी हो गई ना।
तो समय की सीमा रखो। इसको कहा जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम। कहते हैं - मेरा स्वभाव
ही ऐसा है। यह कौन सा स्वभाव है? बापदादा वाला स्वभाव है? तो इसको भी मर्यादा
पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे, साधारण पुरुष कहेंगे। बोल सदैव ऐसे हों जो सुनने वाले
चात्रक हों कि यह कुछ बोले और हम सुनें - इसको कहा जाता है अनमोल महावाक्य।
महावाक्य ज्यादा नहीं होते। जब चाहे तब बोलता रहे - इसको महावाक्य नहीं कहेंगे। तो
सतगुरू के बच्चे - मास्टर सतगुरू के महावाक्य होते हैं वाक्य नहीं। व्यर्थ बोलने
वाला अपनी बुद्धि में व्यर्थ बातें, व्यर्थ समाचार, चारों ओर का कूड़ा-किचड़ा जरूर
इकट्ठा करेगा क्योंकि उनको कथा का रमणीक रूप देना पड़ेगा। जैसे शास्त्रवादियों की
बुद्धि है ना इसलिए जिस समय और जिस स्थान पर जो बोल आवश्यक हैं, युक्तियुक्त हैं,
स्वयं के और दूसरी आत्माओं के लाभ-लायक हैं, वही बोल बोलो। बोल के ऊपर अटेन्शन कम
है, इसलिए इस पर डबल अण्डरलाइन।
विशेष इस वर्ष बोल के
ऊपर अटेन्शन रखो। चेक करो - बोल द्वारा एनर्जी और समय कितना जमा किया और कितना
व्यर्थ गया? जब इसको चेक करेंगे तो स्वत: ही अन्तर्मुखता के रस को अनुभव कर सकेंगे।
अंतर्मुखता का रस और बोल-चाल का रस - इसमें रात-दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा
भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। समझा!
समझना अर्थात् बनना।
जब कोई बात समझ में आ जाती है तो वह करेगा जरूर, समझेगा जरूर। टीचर्स तो हैं ही
समझदार, तब तो भाग्य मिला है ना। निमित्त बनने का भाग्य - इसका महत्व अभी कभी-कभी
साधारण लगता है, लेकिन यह भाग्य समय पर अति श्रेष्ठ अनुभव करेंगे। किसने निमित्त
बनाया, किसने मुझ आत्मा को इस योग्य चुना - यह स्मृति ही स्वत: श्रेष्ठ बना देती
है। “बनाने वाला कौन''! - अगर इस स्मृति में रहो तो बहुत सहज निरन्तर योगी बन
जायेंगे। सदा दिल में, बनाने वाले बाप के गुणों के गीत गाते रहो तो निरन्तर योगी हो
जायेंगे। यह कम बात नहीं है! सारे विश्व की कोटों की कोट (करोड़ों) आत्माओं में से
कितनी निमित्त टीचर्स बनी हो! ब्राह्मण परिवार में भी टीचर्स कितनी हैं! तो
कोई-में-कोई हो गई ना! टीचर अर्थात् सदा भगवान और भाग्य के गीत गाती रहें। बापदादा
को टीचर्स पर नाज़ होता है लेकिन राज़युक्त टीचर्स पर नाज़ होता है अच्छा!
प्रवृत्ति वाले भी मजे
में रहते हैं ना। मूंझने वाले हो या मज़े में रहने वाले हो? ब्राह्मण-जीवन में हर
सेकण्ड तन, मन, धन, जन का मजा ही मजा है। आराम से सोते हो, आराम से खाते हो। आराम
से रहना, खाना, सोना और पढ़ना। और कुछ चाहिए क्या? पढ़ना भी ठीक है या अमृतवेले सो
जाते हो? ऐसे कई बच्चे करते हैं, कहेंगे - सारी रात जाग रहे थे, सुबह को नींद आ गई।
या एक सेवा करेंगे तो अमृतवेले को छोड़ देंगे। तो जमा क्या हुआ? एक्स्ट्रा जमा तो
हुआ नहीं। एक तरफ सेवा की, दूसरे तरफ अमृतवेला मिस किया। तो क्या हुआ? लेकिन
नेमीनाथ मुआफिक ऐसे झुटका खाते नहीं बैठना। वह टी.वी. बहुत अच्छी होती है। जैसे वह
योग के आसन करते हैं ना - अनेक प्रकार के पोज़ बदलते रहते हैं। तो यहाँ भी ऐसे हो
जाते हैं। सोचते हैं - सहज योग है ना, इसलिए आराम से बैठो। कइयों की तो ट्यून भी
बापदादा के पास सुनने में आती है। बापदादा के पास वह भी कैसेट है। तो अब डबल
अण्डरलाइन करेंगे ना। फिर बापदादा सुनायेंगे कि रिजल्ट में कितना अन्तर पड़ा। अच्छा!
चारों ओर के श्रेष्ठ
लक्ष्य और श्रेष्ठ लक्षण धारण करने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा अपने बोल
को समय और संयम में रखने वाले पुरुषोत्तम आत्माओं को, सदा महावीर बन माया के सर्व
रूपों को जानने वाले नॉलेजफुल आत्माओं को सदा हर सेकण्ड मौज में रहने वाले बेफिकर
बादशाहों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा की
पार्टियों से मुलाकात
1. साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो? साइलेन्स की शक्ति सेकण्ड में अपने
स्वीट होम, शान्तिधाम में पहुँचा देती है। साइन्स वाले तो और फास्ट गति वाले यंत्र
निकालने का प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन आपका यंत्र कितनी तीव्रगति का है! सोचा और
पहुँचा! ऐसा यंत्र साइन्स में है जो इतना दूर बिना खर्च के पहुँच जाये? वो तो एक-एक
यंत्र बनाने में कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और कितनी एनर्जी लगाते हैं, आपने
क्या किया? बिना खर्चे मिल गया। यह संकल्प की शक्ति सबसे फास्ट है। आपको शुभ संकल्प
का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। शुद्ध मन और दिव्यबुद्धि से पहुँच जाते
हो। जब चाहे तब लौट आओ, जब चाहो तब चले जाओ। साइन्स वालों को तो मौसम भी देखनी पड़ती
है। आपको तो यह भी नहीं देखना पड़ता कि आज बादल हैं, नहीं जा सकेंगे। आजकल देखो -
बादल तो क्या थोड़ी सी फ़ागी भी होती है तो भी प्लेन नहीं उड़ सकता और आपका विमान
एवररेडी हैं या कभी फ़ागी आती है? एवररेडी है? सेकण्ड में जा सकते हैं - ऐसी
तीव्रगति है? माया कभी रूकावट तो नहीं डालती है? मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं
सकता। जहाँ सर्वशक्तियाँ हैं वहाँ कौन रोकेगा! कोई भी शक्ति की कमी होती है तो समय
पर धोखा मिल सकता है। मानो सहनशक्ति आप में है लेकिन निर्णय करने की शक्ति कमजोर है
तो जब ऐसी कोई परिस्थिति आयेगी जिसमें निर्णय करना हो, उस समय नुकसान हो जायेगा।
होती एक ही घड़ी निर्णय करने की है - हाँ या ना, लेकिन उसका परिणाम कितना बड़ा होता
है! तो सब शक्तियां अपने पास चेक करो। ऐसे नहीं ठीक है, चल रहे हैं योग तो लगा रहे
हैं। लेकिन योग से जो प्राप्तियाँ हैं - वह सब हैं? या थोड़े में खुश हो गये कि बाप
तो अपना हो गया। बाप तो अपना है लेकिन प्रापर्टी (वर्सा) भी अपनी है ना या सिर्फ
बाप को पा लिया वो ही ठीक है? वर्से के मालिक बनना है ना? बाप की प्रापर्टी है
सर्वशक्तियां इसलिए बाप की महिमा ही है सर्वशक्तिवान् आलमाइटी अथॉरिटी। सर्वशक्तियों
का स्टॉक जमा है? या इतना ही है - कमाया और खाया, बस! बापदादा ने सुनाया है कि आगे
चलकर आप मास्टर सर्वशक्तिवान के पास सब भिखारी बनकर आयेंगे। पैसे या अनाज के भिखारी
नहीं लेकिन शक्तियों के भिखारी आयेंगे। तो जब स्टॉक जमा होगा तब तो देंगे ना! दान
वही दे सकता जिसके पास अपने से ज्यादा है। अगर अपने जितना ही होगा तो दान क्या
करेंगे? तो इतना जमा करो। संगम पर और काम ही क्या है? जमा करने का ही काम मिला है।
सारे कल्प में और कोई युग नहीं है जिसमें जमा कर सको। फिर तो खर्च करना पड़ेगा, जमा
नहीं कर सकेंगे। तो जमा के समय अगर जमा नहीं किया तो अन्त में क्या कहना पड़ेगा?
“अब नहीं तो कब नहीं'' फिर टू लेट का बोर्ड लग जायेगा। अभी तो लेट का बोर्ड है, टू
लेट का नहीं।
सभी माताओं ने इतना
जमा किया है? शिवशक्तियां हो या घर की मातायें हो? शिवशक्ति कहने से शक्तियां याद
आती है। किन माताओं को बाप ने शिव शक्तियां बना दिया है! अगर कोई शक्ल आकर देखे तो
क्या कहेंगे! ऐसी शक्तियाँ होती हैं क्या! लेकिन बाप ने पहचान लिया कि वह आत्मायें
शक्तिशाली हैं। बाप तो आत्माओं को देखता है, न बूढ़ा देखता, न जवान देखता, न बच्चा
देखता। आत्मा तो बूढ़ी वा छोटी है ही नहीं। तो यह खुशी है ना कि हमको बाबा ने
शिवशक्ति बना दिया। दुनिया में कितनी पढ़ी-लिखी मातायें हैं लेकिन बाप को गांव वाले
ही पसंद है, क्यों पसंद है? “सच्ची दिल पर साहेब राजी''। बाप को सच्ची दिल प्यारी
लगती है। जो भोले होंगे उन्हें झूठ-कपट करने नहीं आयेगा। जो चालाक, चतुर होते हैं
उसमें यह सब बातें होती हैं। तो जिसकी दिल भोली है अर्थात् दुनिया की मायावी चतुराई
से परे हैं, वह बाप को अति प्रिय है। बाप सच्ची दिल को देखता है। बाकी पढ़ाई को,
शक्ल को, गाँव को, पैसे को नहीं देखता है। सच्ची दिल चाहिए, इसलिए बाप का नाम
‘दिलवाला' है। अच्छा!
वरदान:-
दृढ़ निश्चय
द्वारा फर्स्ट डिवीजन के भाग्य को निश्चित करने वाले मास्टर नालेजफुल भव
दृढ़ निश्चय भाग्य को
निश्चित कर देता है। जैसे ब्रह्मा बाप फर्स्ट नम्बर में निश्चित हो गये, ऐसे हमें
फर्स्ट डिवीजन में आना ही है - यह दृढ़ निश्चय हो। ड्रामा में हर एक बच्चे को यह
गोल्डन चांस है। सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो तो नम्बर आगे ले सकते हैं, इसलिए
मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ के अनुभव को बढ़ाओ तो सब सहज हो जायेगा,
जिसके साथ स्वयं सर्वशक्तिमान् बाप है उसके आगे माया पेपर टाइगर है।
स्लोगन:-
स्वयं को हीरो पार्टधारी समझ बेहद नाटक में हीरो पार्ट बजाते रहो।