29-09-13  प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 09-05-77 मधुबन

 

सम्पूर्ण पवित्रता ही विशेष पार्ट बजाने वालों का श्रृंगार है

 

अपने को इस ड्रामा के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाले, विशेष पार्टधारी समझते हो? विशेष पार्ट की विशेषता क्या है, उसको जानते हो? विशेषता यह है कि बाप के साथ साथी बन पार्ट बजाते हो, और साथ-साथ हर पार्ट अपने साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो बजाते हो। तो विशेषता हुई - ‘बाप के साथ साथी की और साक्षीपन की।’ उस विशेषता के कारण ही विशेष पार्टधारी गाए जाते हैं। तो अपने आपको सदा चेक करो कि हर पार्ट बजाते हुए दोनों ही विशेषताएं रहती हैं? नहीं तो साधारण पार्टधारी कहलाए जायेंगे। बाप श्रेष्ठ और बच्चे साधारण! यह शोभेगा नहीं।

 

विशेष पार्ट बजाने का शृंगार कौन सा है? सम्पूर्ण पवित्रता ही आपका शृंगार है। संकल्प में भी अपवित्रता का अंश मात्र न हो। ऐसा शृंगार निरन्तर है? क्योंकि आप सब हद के, अल्प काल के पार्ट बजाने वाले नहीं हो। लेकिन बेहद का, हर सेकेण्ड, हर संकल्प से सदा पार्ट बजाने वाले हो। इसलिए सदा शृंगार की हुई मूर्त्त अर्थात् सदा पवित्र स्वरूप हो। इस समय का शृंगार जन्म जन्मान्तर के लिए अविनाशी बन जाता है।

 

मुख्य संस्कार भरने का समय अभी है। आत्मा में हर जन्म के संस्कारों का रिकार्ड इस समय भर रहे हो। तो रिकार्ड भरने के समय सेकेण्ड-सेकेण्ड का अटेंशन रखा जाता है। किसी भी प्रकार के टेंशन का अटेंशन; टेंशन में अटेंशन रहे। अगर किसी भी प्रकार का टेंशन होता है, तो रिकार्ड ठीक नहीं भर सकेगा। सदा काल के लिए श्रेष्ठ नाम के बजाए, यही गायन होता रहेगा कि जितना अच्छा भरना चाहिए, उतना नहीं भरा है। इसलिए हर प्रकार के टेंशन से परे, स्वयं और समय का, बाप के साथ का अटेंशन रखते हुए सेकेण्ड-सेकेण्ड का, पार्ट बजाओ। मास्टर सर्वशक्तिवान, आलमाइटी अथॉरिटी की सन्तान - ऐसी नॉलेजफुल आत्माओं में टेंशन का आधार दो शब्द हैं। कौन से दो शब्द? ‘क्यों और क्या?’ किसी भी बात में, यह क्यों हुआ? यह क्या हुआ? जब यह दो शब्द बुद्धि में आ जाते हैं, तब किसी भी प्रकार का टेंशन पैदा होता है। लेकिन संगमयुगी श्रेष्ठ पार्टधारी आत्माएं क्यों, क्या का टेंशन नहीं रख सकती हैं, क्योंकि सब जानते हैं। ‘साक्षी और साथीपन’ की विशेषता से, ड्रामा के हर पार्ट को बजाते हुए कभी टेंशन नहीं आ सकता। तो अपने इस विशेष कल्याणकारी समय को समझते हुए हर सेकेण्ड के संस्कारों का रिकार्ड नम्बरवन स्टेज में भरते जाओ।

 

नॉलेजफुल स्टेज अर्थात् इस संगमयुग की स्थिति का आसन जानते हो? भक्ति मार्ग में विद्या की देवी, सरस्वती को कौन सा आसन दिखाया है? (हंस) हंस क्यों दिखाया है? इसका विशेष गुण कौन सा गाया हुआ है? उसका ‘विशेष गुण’ (अ) भी नॉलेजफुल का ही दिखाया है ना। राइट और रांग को जानने वाला यह भी नॉलेज हुई ना। तो नॉलेजफुल का आसन भी नॉलेज वाला ही दिखाया है। विशष नॉलेज है ‘राइट और रांग को जानने’ की (ब) दूसरी बात, आपकी स्थिति का यादगार भी आसन के रूप में दिखाया है। सदा शुद्ध संकल्प का भोजन बुद्धि द्वारा ग्रहण करने वाला, सदा की सर्व आत्माओं द्वारा वा रचना द्वारा गुण धारण करने वाला, उसी को मोती चुगने वाला दिखाया है। (स) तीसरी बात, ‘स्वच्छता’। स्वच्छता की निशानी सफेद रंग दिखाया है। ‘स्वच्छता अर्थात् पवित्रता’। तो सदा नॉलेजफुल स्थिति में स्थित ही रहने की निशानी ‘हंस का आसन’ दिखाया जाता है। सरस्वती को, सदा सेवाधारी रूप की निशानी, बीन बजाते हुए दिखाया है। यह ज्ञान की वीणा सदा बजाते रहना अर्थात् सदा सेवाधारी रहना। जैसे आसन यादगार रूप में दिखाया है, वैसे सब विशेषताएं धारण कर पार्ट बजाना, यही विशेष पार्ट है। तो सदा ऐसे विशेष पार्टधारी समझते हुए पार्ट बजाओ।

 

प्रकृति के अधीन तो नहीं हो ना? प्रकृति का कोई भी तत्व हलचल में नहीं लावे। आगे चलकर तो बहुत पेपर आने हैं। किसी भी साधनों के आधार पर, स्थिति का आधार न हो। मायाजीत के साथ-प्रकृतिजीत भी बनना है। प्रकृति की हलचल के बीच - यह क्या? यह क्यों हुआ? यह कैसे होगा? ज़रा भी संकल्प में टेंशन हुआ अर्थात् अटेंशन कम हुआ, तो फुल पास नहीं होंगे। इसलिए सदा अचल होना है। अच्छा।

 

सदा अपने नॉलेजफुल आसन पर स्थित रहने वाले, हर सेकेण्ड श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले, हर प्रकार के पेपर में फुल पास हो, पास विद् ऑनर बनने वाले, सदा एक बाप की याद के रस में एकरस रहने वाले, ऐसे सदा बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

पार्टीयों के साथ-

 

शक्ति सेना वा पांडव सेना दोनों ही माया को परखते हुए उसे भगाने वाले हो ना। घबरा करके रूकने वाले तो नहीं हो? ऐसे भी युद्ध करने वाले जो योद्धे होते हैं, उन्हों का स्लोगन होता है - हारना वा पीछे लौटना वा रूकना - यह कमज़ोरों का काम है। योद्धा अर्थात् मरना और मारना। तो आप भी रूहानी योद्धे हो। रूहानी सेना में हो। तो रूहानी योद्धे भी डरते नहीं, पीछे नहीं हटते, लेकिन आगे बढ़ते सदा विजयी बनते हैं। तो विजयी बनने वाले हो या घबराने वाले हो? कभी-कभी बहुत युद्ध करके थक जाते हो या रोज-रोज युद्ध करके अलबेले हो जाते हो। वैसे भी रोज-रोज एक ही कार्य करना होता है तो कई बार ऐसे भी होता है - सोचते हैं यह तो चलता ही रहेगा, कहां तय करें, यह तो सारी जिन्दगी की बात है। एक वर्ष की तो नहीं। लेकिन सारी जिन्दगी को अगर 5000 वर्ष की प्रालब्ध के हिसाब से देखो तो सेकेण्ड की बात है वा सारी जिन्दगी है? बेहद के हिसाब से देखो तो सेकेण्ड की बात है। विशाल बुद्धि बेहद के हिसाब से देखेंगे। वह कब थकेंगे नहीं। सारे कल्प के अन्दर पौना भाग प्राप्ति है, यह तो लास्ट में गिरावट का अनुभव होता है। इस थोड़े से समय के आधार पर कल्प का पौना भाग प्राप्ति है, उस हिसाब से देखो, तो यह कुछ भी नहीं हैं। बेहद का बाप है, बेहद का वर्सा है तो बुद्धि भी बेहद में रखो, हद की बातें समाप्त करो। समझा? जब कोई के सहारे से वा कोई स्वयं आपको साथ ले जाए, तो फिर थकने की तो बात ही नहीं है। बाप तो याद के साथ की गोदी में ले जाते हैं। पैदल करते ही क्यों हो जो थकते हो। सदा और साथ की गोद से उतरते ही क्यों हो, जो चिल्लाते हो। क्या करे? करना कुछ भी नहीं है, फिर भी थकते हो। कारण? अपनी बेसमझी। अपना हठ करते हो। जैसे बालहठ होता है ना। बालहठ करके अपनी मनमत पर चल पड़ते हो, इसलिए अपने आपको परेशान करते हो। यह बाल हठ नहीं करो। श्रीमत में अगर मनमत मिक्स करते तो ऐसे मिक्स करने वालों को सज़ा मिलती। सज़ा बाप नहीं देता, लेकिन स्वयं, स्वयं को सज़ा के भागी बना देते हैं। खुशी, शक्ति गायब हो जाना ही सज़ा है ना।

 

जो जिसके नजदीक होता उसके संग का रंग अवश्य लगता है। अगर बाप के नजदीक हो तो उसके संग का रंग जरूर लगेगा। जैसे बाप का रूहानी रंग है तो जो संग करेंगे, उसे रूहानी रंग लगेगा। एक ही संग होगा, तो एक ही रंग होगा। अगर सर्व शक्तिवान बाप का सदा संग है तो माया मुरझा नहीं सकती। कनेक्शन है तो करेंट आती रहेगी। कनेक्शन ठीक हो तो आटोमेटिकली सर्वशक्तियों की करेंट आएगी। जब सर्व शक्तियां मिलती रहेगी तो सदा हर्षित रहेंगे। गम ही खत्म हो जाएगी। संगम का समय है खुशियों का, अगर ऐसे समय पर कोई गम करे तो बुरा लगेगा ना?

 

महावीर वा महाविरनी की मुख्य निशानी क्या होगी? वर्तमान समय के प्रमाण महावीर की निशानी हर सेकेण्ड, हर संकल्प में चढ़ती कला का अनुभव करेंगे। जो महावीर नहीं वह कोई सेकेण्ड वा कोई संकल्प में चढ़ती कला का अनुभव, कोई में ठहरती कला का। चढ़ती कला आटोमेटिकली सर्व के प्रति भला अर्थात् कल्याण करने के सेवा निमित्त बना देती। वायब्रेशन वातावरण द्वारा भी कइयों के कल्याण कर सकते हैं। इसलिए कहा जाता है, ‘‘चढ़ती कला तेरे भाने सब का भला।’’ वह अनेकों को रास्ता बताने के निमित्त बन जाते। उन्हें रूकने वा थकने की अनुभूति नहीं होगी। वह सदा अथक, सदा उमंग, उत्साह में रहने वाले होंगे। उत्साह कभी भी कम न हो, इसको कहा जाता है ‘महावीर।’ रूकने वाले घोड़े सवार, थकने वाले प्यादे, सदा चलते रहने वाले महावीर। उनकी माया के किसी भी रूप में आंख नहीं डूबेगी, उसको देखेंगे ही नहीं। वह माया के किसी भी रूप को देखते हुए भी देखेंगे नहीं। महावीर अर्थात् फुल नॉलेज, फुल नॉलेज वाले कभी फेल नहीं हो सकते। फेल तब होते हैं जब नॉलेज का कोई पाठ याद नहीं होता। नॉलेजफुल बनना है, सिर्फ नॉलेज नहीं। यह नई बात है, यह पता नहीं - उन्हों के यह शब्द कभी नहीं होंगे।

 

लास्ट का पुरूषार्थ वा लास्ट की सर्विस कौन सी है? आजकल जो पुरूषार्थ चाहिए वा सर्विस चाहिए, वह है वृत्ति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाना। क्योंकि मैजारिटी अपने पुरूषार्थ से आगे बढ़ने में असमर्थ होते हैं। तो ऐसे असमर्थ व कमज़ोर आत्माओं को अपने वृत्ति द्वारा बल देना यह अति आवश्यक है। अभी यह सर्विस चाहिए। क्योंकि वाणी से बहुत सुनकर समझते, अभी हम सब फुल हो गए हैं, कोई नई बात नहीं लगेगी। वाणी से नहीं लेने चाहते। वृत्ति का डायरेक्ट कनेकशन वायुमण्डल से है। वायुमण्डल पावरफुल होने से सब सेफ हो जाएंगे। यही आजकल की विशेष सेवा है। वरदानी का अर्थ ही है - ‘वृत्ति से सेवा करने वाले।’ महादानी है वाणी से सेवा करने वाले। वरदानी की स्टेज की आजकल जरूरत है। वृत्ति से जो चाहो वह कर सकते हो।

 

अब वरदान लेने का समय समाप्त हुआ। दाता के बच्चे दाता होते हैं। दाता को लेने की आवश्यकता नहीं, इसलिए अभी ‘वरदानी’ बनो।

 

जैसे सर्विस के वृद्धि के प्लान बनाते हो, वैसे अपने पुरूषार्थ के वृद्धि के प्लान बनाओ। सर्विस में तो औरों के सहयोग की जरूरत पड़ती, लेकिन अपने पुरूषार्थ की वृद्धि के प्लान में बाप के सहयोग से बहुत कुछ कर सकते हैं। अभी तुम सबको मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों के प्रोग्राम फिक्स करो। अपनी डेली-डायरी रखो तब ही नम्बर आगे का ले सकेंगे। नहीं तो आगे नम्बर नहीं ले सकेंगे, पीछे रहना पड़ेगा। आगे बढ़ने वालों की निशानियां यह होती हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।

 

वरदान:- बाप समान बेहद की वृत्ति रखने वाले मास्टर विश्व कल्याणकारी भव

 

बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति रखना - यही मास्टर विश्वकल्याणकारी बनना है। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं लेकिन सर्व के कल्याण की वृत्ति हो। जो अपनी उन्नति में, अपनी प्राप्ति में, अपने प्रति सन्तुष्टता में राज़ी होकर चलने वाले हैं, वह स्व-कल्याणी हैं। लेकिन जो बेहद की वृत्ति रख बेहद सेवा में बिजी रहते हैं उन्हें कहेंगे बाप समान मास्टर विश्व कल्याणकारी।

 

स्लोगन:- निंदा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में समान रहने वाले ही योगी तू आत्मा हैं।