21-10-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
03-11-92 "बापदादा" मधुबन
श्रेष्ठ भाग्य के
स्मृतिस्वरूप बनो तो दु:ख की लहर आ नहीं सकती
सदा अपने श्रेष्ठ
भाग्य को देख भाग्यविधाता बाप स्वत: ही याद आता है ना। भाग्यविधाता और भाग्य-दोनों
याद रहते हैं ना। क्या-क्या भाग्य मिला है-उसकी स्मृति सदा इमर्ज रूप में रहे। ऐसे
नहीं कि अन्दर में तो याद है। नहीं, बाहर दिखाई दे। क्योंकि सारे कल्प में ऐसा
श्रेष्ठ भाग्य कभी भी मिल नहीं सकता। सतयुग के भाग्य और इस समय के भाग्य में क्या
अन्तर है? अभी का भाग्य श्रेष्ठ है ना। क्योंकि इस समय हीरे तुल्य हो और सतयुग में
सोने तुल्य हो जायेंगे। तो सदा दिल में श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहते हो।
आटोमेटिक बजता है या कभी बन्द हो जाता है? सदा बजता है या कभी-कभी खराब हो जाता है?
क्योंकि अविनाशी प्राप्ति कराने वाला भाग्यविधाता है। जो भाग्य मिला है उसकी अगर
लिस्ट निकालो तो कितनी लम्बी लिस्ट हो जायेगी! लम्बी लिस्ट है ना। इसलिए कहा ही जाता
है-कितना मिला, क्या मिला? तो कहते हैं-अप्राप्त कोई वस्तु नहीं रही। इससे सिद्ध है
कि सब-कुछ मिल गया। जो मिला है उसको सम्भालना आता है? या कभी-कभी कोई चोरी करके चला
जाता है? माया चोरी तो करके नहीं जाती?
माताओं को कभी थोड़ी-सी
भी दु:ख की लहर आती है? तो उस समय अपना भाग्य भूल जाता है ना। स्मृति में लाते हो,
इससे सिद्ध है कि विस्मृति हुई। सदा स्मृतिस्वरूप रहो। दुनिया वाले भाग्य के पीछे
भटक रहे हैं और आपको घर बैठे भाग्यविधाता बाप ने भाग्य दे दिया! कितना बड़ा परिवर्तन
आ गया! कभी भी अपने को इस श्रेष्ठ भाग्य से अलग नहीं करो। मेरा भाग्य है, तो ‘मेरा’
कभी भूलता है क्या? बाप का दिया हुआ खज़ाना अपना है ना। इतनी श्रेष्ठ भाग्यवान
आत्मायें बनती हो जो अभी तक भी आपके भाग्य की महिमा कितनी करते रहते हैं! ये कीर्तन
क्या है? आपके प्राप्त हुए भाग्य की महिमा है। तो जब भी कोई देवी-देवताओं का कीर्तन
सुनते हो तो क्या लगता है? समझते हो कि हमारी प्राप्तियों की महिमा कर रहे हैं!
चैतन्य में अपने जड़ चित्र की महिमा सुन रहे हो। सबसे ज्यादा खुशी किसको है? कोई को
कम नहीं है! नम्बरवार तो होंगे ना। सभी नम्बरवन हो? विघ्नजीत में नम्बर-वन कौन है?
कोई भी विघ्न आवे लेकिन उसको विनाश करने में नम्बरवन कौन है? कितना टाइम लगता है?
एक दिन लगाया वा एक घण्टा लगाया? नम्बरवन अर्थात् कोई भी विघ्न आने के पहले ही
मालूम पड़ जाये। अच्छा!
2 - विघ्न-विनाशक बनने
के लिये सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनो
सभी अपने को बाप के
हर कार्य में सदा साथी समझते हो? जो बाप का कार्य है वह हमारा कार्य है। बाप का
कार्य है-पुरानी सृष्टि को नया बनाना, सबको सुख-शान्ति का अनुभव कराना। यही बाप का
कार्य है। तो जो बाप का कार्य है वह बच्चों का कार्य है। तो अपने को सदा बाप के हर
कार्य में साथी समझने से सहज ही बाप याद आता है। कार्य को याद करने से कार्य-कर्ता
की याद स्वत: ही आती है। इसी को ही कहा जाता है सहज याद। तो सदा याद रहती है या करना
पड़ता है? जब कोई माया का विघ्न आता है फिर याद करना पड़ता है। वैसे देखो, आपका
यादगार है विघ्न-विनाशक। गणेश को क्या कहते हैं? विघ्न- विनाशक। तो विघ्न-विनाशक बन
गये कि नहीं? विघ्न-विनाशक अर्थात् सारे विश्व के विघ्न-विनाशक। अपने ही
विघ्न-विनाशक नहीं। अपने में ही लगे रहे तो विश्व का कब करेंगे? तो सारे विश्व के
विघ्न-विनाशक हो। इतना नशा है? कि अपने ही विघ्नों के भाग-दौड़ में लगे रहते हो?
विघ्न-विनाशक वही बन
सकता है जो सदा सर्व शक्तियों से सम्पन्न होगा। कोई भी विघ्न विनाश करने के लिए क्या
आवश्यकता है? शक्तियों की ना। अगर कोई शक्ति नहीं होगी तो विघ्न विनाश नहीं कर सकते।
इसलिए सदा स्मृति रखो कि बाप के सदा साथी हैं और विश्व के विघ्न-विनाशक हैं।
विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। अगर अपने पास ही आता रहेगा तो दूसरे
का क्या विनाश करेंगे। सर्व शक्तियों का खज़ाना है? या थोड़ा-थोड़ा है? कोई भी खज़ाना
अगर कम होगा तो समय पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेंगे। तो सदा अपना स्टॉक चेक करो कि
सर्व खज़ाने हैं, सर्व शक्तियाँ हैं? क्योंकि बाप ने सभी को सर्व शक्तियाँ दी हैं।
या किसको कम दी हैं, किसको ज्यादा दी हैं? सबको सर्व शक्तियाँ दी हैं ना। और अपने
को कहलाते भी हो-मास्टर सर्वशक्तिवान। तो सर्व शक्तियाँ मेरा वर्सा है। तो वर्सा कभी
जा नहीं सकता। वर्से का नशा रहता है ना। अगर किसी को बहुत बड़ा वर्सा मिल जाये तो
कितना नशा, कितनी खुशी रहती है! आपको तो अविनाशी वर्सा मिला है। तो नशा भी अवि-नाशी
होना चाहिए। तो सदा नशा रहता है? बालक अर्थात् मालिक।
बापदादा बच्चों के
सेवा की वृद्धि को देख खुश होते हैं। क्वान्टिटी और क्वालिटी-दोनों हैं ना। दोनों
की सेवा का बैलेन्स है? या क्वान्टिटी ज्यादा है, क्वालिटी कम है? बाप को तो
क्वान्टिटी भी चाहिए, क्वालिटी भी चाहिए। क्वालिटी की सेवा प्रति किसलिए कहते हैं?
क्योंकि एक क्वालिटी वाला अनेक क्वान्टिटी को लायेगा। फिर भी बाप को प्रिय तो आजकल
के हिसाब से साधारण आत्मायें ही हैं। वैसे तो विशेष हैं लेकिन आजकल के जमाने के
हिसाब से साधारण गिने जाते हैं। यही कमाल है जो साधारण आत्मायें अति श्रेष्ठ बन गयीं!
जिन्हों के लिए कोई सोच भी नहीं सकता कि ये आत्मायें इतने वर्से के अधिकारी बनेंगी!
दुनिया सोचती रहती और आप बन गये! वो तो ढूँढते रहते-किस वेष में आयेंगे, कब आयेंगे?
और आप क्या कहते? पा लिया। तो ‘पा लिया’ की खुशी है ना।
सबसे बड़ा खज़ाना है ही
खुशी। अगर खुशी है तो सब-कुछ है और खुशी नहीं तो कुछ भी नहीं। तो मातायें सदा खुश
रहती हो? या कभी-कभी मन में रोती भी हो? पाण्डव रोते हैं? आंखों से नहीं रोते, मन
से रोते हो? उदास होते हो? कभी-कभी धन्धेधोरी में नुकसान हो जाये तो उदास होते हो
ना। तो यह उदास होना भी मन का रोना है। उदास होगा तो हंसी नहीं आयेगी, माना खुशी
गायब हो गई ना। अभी उदास भी नहीं हो सकते। क्योंकि प्राप्तियों के आगे ये थोड़ा-बहुत
कुछ नुकसान होता भी है तो अखुट प्राप्तियों के आगे यह क्या बड़ी बात है! जब
प्राप्तियों को भूल जाते हैं तो उदास होते हैं। कुछ भी हो जाये लेकिन कभी भी बाप का
खज़ाना गंवाना नहीं। ‘खुशी’ है बाप का खज़ाना, उसको छोड़ना नहीं है। पहले भी सुनाया था
ना कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतना पक्का बनना ही ब्राह्मण जीवन है।
समझा? उदासी को तलाक दे दो। तलाक देने वाले को साथ नहीं रखा जाता है। तलाक दे दिया
तो खत्म हुआ।
3 - पीस पार्क में
आयोजित शान्ति-मेले में सेवा के निमित्त सेवाधारियों प्रति
सेवा में तो अच्छी
हिम्मत रखने वाले हैं। मेला अच्छा लगाया है। अनेक आत्माओं को सहज शान्ति का अनुभव
कराना-यह कितना पुण्य का कार्य है! तो पुण्यात्मा बन पुण्य की पूंजी सेवा द्वारा जमा
कर रहे हैं। अच्छी प्यार से सेवा कर रहे हैं। यह सेवा भी खुशी को बढ़ाती है। तो पहले
स्वयं को अनुभवी बनाते हैं, फिर दूसरे को अनुभव कराते हैं। भाग्य बनाने का गोल्डन
चान्स मिला है। अच्छा है, सहज साधन भी है और सिम्पल भी है। अच्छा! गुजरात के यूथ
निर्विघ्न हैं? या थोड़ा-थोड़ा विघ्न है? ‘‘सी (See;देखना) फादर’’ करने से सदा
निर्विघ्न रहेंगे। ‘‘सी सिस्टर’’, ‘‘सी ब्रदर’’ करने से कोई न कोई हलचल होती है। सदा
‘‘सी फादर’’। ब्रह्मा बाप ने क्या किया? अच्छा! मातायें तो नाचती रहती हैं। गरबा भी
खूब करती हैं और खुशी में नाचती रहती हैं। गरबा करते हैं तो मिलन होता है ना एक-दो
से। जो भी डांस करते हैं, तो एक-दो से मिलाते हैं ना। एक हाथ ऊपर करे, दूसरा नीचे
करे-तो अच्छा लगेगा? ऐसे संस्कार मिलाने का गरबा करना है। समझा? यह गरबा तो अज्ञानी
भी करते हैं। लेकिन ज्ञानियों को कौनसा गरबा करना है? संस्कार मिलाने का। सबके
संस्कार बाप समान हों। यह संस्कार मिलाने की डांस आती है? या कभी आती है, कभी नहीं
आती है? तो अब यह विशेषता दिखानी है। संस्कार से टक्कर नहीं खाना है, संस्कार मिलाना
है। यदि कोई दूसरा गड़बड़ भी करे तो भी आप मिलाओ, आप गड़बड़ नहीं करो। और ही उसको शान्ति
का सहयोग दो। तो समझा, विघ्न-विनाशक आत्मायें हो।
सदैव यह अनुभव करो कि
हमारा ही यादगार विघ्न-विनाशक है। विघ्न-विनाशक बनने की विधि क्या है, कैसे
विघ्न-विनाशक बनेंगे? शान्ति से या सामना करने से या थोड़ा हलचल करने से? शान्त रहना
है और शान्ति से सर्व कार्य सम्पन्न करना है। ऐसे नहीं कहना कि थोड़ी हलचल करने से
अटेन्शन खिंचवाते हैं। ऐसे नहीं करना। यह अटेन्शन नहीं खिंचवाते लेकिन टेन्शन पैदा
करते हैं। इसलिए विघ्न-विनाशक बनना है तो शान्ति से, हलचल करने से नहीं। सदा शान्त।
शान्ति की शक्ति-कितना भी बड़ा विघ्न हो, उसको सहज समाप्त कर देती है। तो शान्ति की
शक्ति जमा है ना। अच्छा!
4 - ब्राह्मण जीवन की
सेफ्टी का साधन-बाप की छत्रछाया
अपने को हर समय हर
कर्म करते बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले अनुभव करते हो? छत्रछाया सेफ्टी का
साधन हो जाये। जैसे स्थूल दुनिया में धूप से वा बारिश से बचने के लिए छत्रछाया का
आधार लेते हैं। तो वह तो है स्थूल छत्रछाया। यह है बाप की छत्रछाया जो आत्मा को हर
समय सेफ रखती है-आत्मा कोई भी अल्पकाल की आकर्षण में आकर्षित नहीं होती, सेफ रहती
है। तो ऐसे अपने को सदा छत्रछाया में रहने वाली सेफ आत्मा समझते हो? सेफ हो या
थोड़ा-थोड़ा सेक आ जाता है? जरा भी इस साकारी दुनिया का माया के प्रभाव का सेंक-मात्र
भी नहीं आये। क्योंकि बाप ने ऐसा साधन दिया है जो सेक से बच सकते हो। वह सबसे सहज
साधन है-छत्रछाया। सेकेण्ड भी नहीं लगता, बाबा कहा और सेफ! मुख से नहीं, मुख से
बाबा-बाबा कहे और प्रभाव में खिंचता जाये-ऐसा कहना नहीं। मन से बाबा कहा और सेफ। तो
ऐसे सेफ हो? क्योंकि आजकल की दुनिया में सभी सेफ्टी का रास्ता ढूँढते हैं। कोई भी
बात करेंगे तो पहले सेफ्टी सोचेंगे, फिर करेंगे। तो आजकल सेफ्टी सब चाहते हैं-चाहे
स्थूल, चाहे सूक्ष्म। तो बाप ने भी सदा ब्राह्मण जीवन की सेफ्टी का साधन दे दिया
है। चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन आप सदा सेफ रह सकते हो। ऐसे सेफ हो या कभी
हलचल में आ जाते हो? कितना सहज साधन दिया है! मेहनत नहीं करनी पड़ी।
मार्ग मेहनत का नहीं
है लेकिन अपनी कमजोरी मेहनत का अनुभव कराती है। जब कमजोर हो जाते हो तब मेहनत लगती
है, जब शक्तिशाली होते हो तो सहज लगता है। है सहज लेकिन स्वयं ही मेहनत का अनुभव
कराने के निमित्त बनते हो। मेहनत में थकावट होती है और सहज में खुशी होती है। अगर
कोई भी कार्य सहज सफल होता रहता है तो खुशी होगी ना। मेहनत करनी पड़ी तो थकावट होगी।
तो खुशी अच्छी या थकावट अच्छी? बापदादा सदैव बच्चों को यही कहते हैं कि आधा कल्प
मेहनत की, अभी भी मेहनत नहीं करो, अभी मौज मनाओ। मौज के समय भी मेहनत करें तो मौज
कब मनायेंगे? अभी नहीं तो कभी नहीं मनायेंगे। इसलिए सदा सहज अर्थात् सदा मौज में
रहने वाले। तो सदा छत्रछाया में रहते हो। या बाहर निकलकर देखने में मजा आता है? कई
अच्छे स्थान पर बैठे भी होंगे, लेकिन आदत होती है देखने की तो अच्छा स्थान छोड़कर भी
देखते रहेंगे, बाहर चक्कर लगाते रहेंगे। तो ऐसी आदत तो नहीं है? छत्रछाया के अन्दर
रहने की मौज का अनुभव करो। यह क्या है, यह क्यों है, यह कैसा है-ये छत्रछाया के
अन्दर से निकलकर चक्कर लगाना है। यह छत्रछाया सदा श्रेष्ठ सेफ रहने की लकीर है।
लकीर से बाहर जाने से ‘शोक वाटिका’ मिलती है और लकीर के अन्दर रहने से ‘अशोक वाटिका’।
कोई शोक है क्या? कभी-कभी दु:ख की लहर आती है? किसी भी बात में थोड़ा-सा भी, संकल्प
में भी अगर दु:ख की लहर आई तो ‘शोक वाटिका’ में हैं। संगमयुग में बाप ‘अशोक वाटिका’
में रहने का साधन बताते हैं और इस समय के अभ्यास से अनेक जन्म अशोक रहेंगे, शोक का
नाम-निशान भी नहीं होगा। तो सदा सेफ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं-यह अनुभव करते
चलो। समर्थ बाप, समर्थ बच्चे। तो छत्रछाया पसन्द है ना। अच्छा!
वरदान:-
दूसरों के लिए
रिमार्क देने के बजाए स्व को परिवर्तन करने वाले स्वचिंतक भव
कई बच्चे चलते-चलते
यह बहुत बड़ी गलती करते हैं जो दूसरों के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं।
कहेंगे इसको यह नहीं करना चाहिए, इनको बदलना चाहिए और अपने लिए कहेंगे - यह बात
बिल्कुल सही है, मैं जो कहता हूँ वही राइट है..। अब दूसरों के लिए ऐसी रिमार्क देने
के बजाए स्वयं के जज बनो। स्वचिंतक बन स्वयं को देखो और स्वयं को परिवर्तन करो तब
विश्व परिवर्तन होगा।
स्लोगन:-
सदा हर्षित
रहना है तो हर दृश्य को साक्षी होकर देखो।