21-11-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 27.11.89 "बापदादा" मधुबन
शुभभावना और शुभकामना की
सूक्ष्म सेवा
आज विश्वकल्याणकारी
बापदादा अपने विश्वकल्याणकारी साथियों को देख रहे हैं। सभी बच्चे बाप के
विश्व-कल्याण के कार्य में निमित्त बने हुए साथी हैं। सभी के मन में सदा यही एक
संकल्प है कि विश्व की परेशान आत्माओं का कल्याण हो जाये। चलते-फिरते, कोई भी कार्य
करते मन में यही शुभभावना है। भक्ति-मार्ग में भी भावना होती है। लेकिन भक्त आत्माओं
की विशेष अल्पकाल के कल्याण प्रति भावना होती है। आप ज्ञानी तू आत्मा बच्चों की
ज्ञानयुक्त कल्याण की भावना आत्माओं के प्रति सदाकाल और सर्वकल्याणकारी भावना है।
आपकी भावना वर्तमान और भविष्य के लिए है कि हर आत्मा अनेक जन्म सुखी हो जाए,
प्राप्तियों से सम्पन्न हो जाए क्योंकि अविनाशी बाप द्वारा आप आत्माओं को भी अविनाशी
वर्सा मिला है। आपकी शुभ भावना का फल विश्व की आत्माओं को परिवर्तन कर रहा है और आगे
चल प्रकृति सहित परिवर्तन हो जायेगा। आप आत्माओं की श्रेष्ठ भावना इतना श्रेष्ठ फल
प्राप्त कराने वाली है! इसलिए विश्वकल्याणकारी आत्माएं गाई जाती हो। इतना अपनी
शुभभावना का महत्व जानते हो? अपनी शुभभावना को साधारण रीति से कार्य में लगाते चल
रहे हो वा महत्व जानकर चलते हो? दुनिया वाले भी शुभभावना शब्द कहते हैं। लेकिन आपकी
शुभभावना सिर्फ शुभ नहीं, शक्तिशाली भी है क्योंकि आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माएं हो,
संगमयुग को ड्रामा अनुसार प्रत्यक्ष फल प्राप्त होने का वरदान है इसलिए आपकी भावना
का प्रत्यक्ष फल आत्माओं को प्राप्त होता है। जो भी आत्माएं आपके सम्बन्ध-सम्पर्क
में आती हैं, वह उसी समय ही शान्ति वा स्नेह के फल की अनुभूति करती हैं।
शुभभावना, शुभकामना
के बिना हो नहीं सकती। हर आत्मा के प्रति सदैव रहम की कामना रहती कि यह आत्मा भी
वर्से की अधिकारी बन जाए। हर आत्मा के प्रति तरस पड़ता है कि यह हमारे ही ईश्वरीय
परिवार के हैं, तो इससे वंचित क्यों रहें? शुभकामना रहती है ना! शुभकामना और
शुभभावना - यह सेवा का फाउन्डेशन है। कोई भी आत्माओं की सेवा करते हो, अगर आपके
अन्दर शुभभावना, शुभकामना नहीं है, तो आत्माओं को प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति नहीं हो
सकती। एक सेवा होती है नीति प्रमाण, रीति प्रमाण - जो सुना है वह सुनाना है। दूसरी
सेवा है अपनी शुभभावना, शुभकामना द्वारा। आपकी शुभभावना बाप में भी भावना बिठाती है
और बाप द्वारा फल की प्राप्त कराने के निमित्त बन जाती है। “शुभभावना'' - कहां दूर
बैठी हुई किसी आत्मा को भी फल की प्राप्ति कराने के निमित्त बन सकती है। जैसे साइंस
के साधन दूर बैठे आत्माओं से समीप का सम्बन्ध कराने के निमित्त बन जाते हैं, आपकी
आवाज पहुंच जाती है, आपका संदेश पहुंच जाता है, दृश्य पहुंच जाता है। तो जब साइंस
की शक्ति अल्पकाल के लिए समीपता का फल दे सकती है तो आपके साइलेन्स की शक्तिशाली
शुभभावना दूर बैठे भी आत्माओं को फल नहीं दे सकेगी? लेकिन इसका आधार है अपने अंदर
इतनी शान्ति की शक्ति जमा हो! साइलेन्स की शक्ति यह अलौकिक अनुभव करा सकती है। आगे
चलकर यह प्रत्यक्ष प्रमाण अनुभव करते रहेंगे।
शुभभावना अर्थात्
शक्तिशाली संकल्प। सब शक्तियों से संकल्प की गति तीव्र है। जितने भी साइंस ने
तीव्रगति के साधन बनाये हैं, उन सबसे तीव्रगति संकल्प की है। किसी आत्मा के प्रति
वा बेहद विश्व की आत्माओं प्रति शुभभावना रखते हो अर्थात् शक्तिशाली शुभ और शुद्ध
संकल्प करते हो कि इस आत्मा का कल्याण हो जाए। आपका संकल्प वा भावना उत्पन्न होना
और उस आत्मा को अनुभूति होगी कि मुझ आत्मा को कोई विशेष सहयोग से शान्ति वा शक्ति
मिल रही है। जैसे - अभी भी कई बच्चे अनुभव करते हैं कि कई कार्यो में मेरी हिम्मत
वा योग्यता इतनी नहीं थी लेकिन बापदादा की एक्स्ट्रा मदद से यह कार्य सहज ही सफल हो
गया वा यह विघ्न समाप्त हो गया। ऐसे आप मास्टर विश्वकल्याणकारी आत्माओं की सूक्ष्म
सेवा प्रत्यक्ष रुप में अनुभव करेंगे। समय भी कम और साधन भी कम, सम्पत्ति भी कम
लगेगी। इसके लिए मन और बुद्धि सदा फ्री चाहिए। छोटी-छोटी बातों में मन और बुद्धि को
बिजी बहुत रखते हो, इसलिए सेवा के सूक्ष्म गति की लाइन क्लीयर नहीं रहती है। साधारण
बातों में भी अपने मन और बुद्धि की लाइन को इंगेज बहुत रखते हो, इसलिए यह सूक्ष्म
सेवा तीव्रगति से नहीं चल रही है। इसके लिए विशेष अटेन्शन - “ एकांत और एकाग्रता''।
एकान्तप्रिय आत्माएं
कितना भी बिजी होते फिर भी बीच-बीच में एक घड़ी, दो घड़ी निकाल एकान्त का अनुभव कर
सकती हैं। एकान्तप्रिय आत्मा ऐसी शक्तिशाली बन जाती है जो अपनी सूक्ष्म शक्तियां -
मन, बुद्धि को जिस समय चाहे, जहाँ चाहे एकाग्र कर सकती है। चाहे बाहर की परिस्थिति
हलचल की हो लेकिन एकांतप्रिय आत्मा एक के अंत में सेकण्ड में एकाग्र हो जायेगी। जैसे
सागर के ऊपर लहरों की कितनी आवाज होती है, कितनी हलचल होती है, लेकिन सागर के अंत
में हलचल नहीं होती। तो जब एक के अंत में, ज्ञान-सागर के अंत में चले जायेंगे तो
हलचल समाप्त हो एकाग्र बन जायेंगे। सुना, सूक्ष्म सेवा क्या है! “शुभभावना'', “शुभकामना''
शब्द सभी बोलते रहते हैं। लेकिन इसके महत्व को जान प्रत्यक्ष रूप में आने से अनेक
आत्माओं को प्रत्यक्षफल की अनुभूति कराने के निमित्त बनो। अच्छा!
टीचर्स का तो काम ही
है सेवा। टीचर्स का महत्व ही सेवा है। अगर सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं दिखाई देता
तो उनको योग्य टीचर की लिस्ट में गिनती नहीं किया जाता। टीचर की महानता सेवा हुई
ना। तो सेवा का महीन रूप सुनाया। मुख की सेवा तो करते रहते हो लेकिन मुख और मन के
शुभभावना की सेवा साथ-साथ हो। बोल और भावना डबल काम करेंगे। इस सूक्ष्म सेवा का
अभ्यास बहुत काल अर्थात् अभी से चाहिए क्योंकि आगे चलकर सेवा की रूपरेखा बदलनी ही
है। फिर उस समय सूक्ष्म सेवा में अपने को बिजी नहीं कर सकेंगे, बाहर की परिस्थितियां
बुद्धि को आकर्षित कर लेंगी। रिजल्ट क्या होगी? याद और सेवा का बैलेन्स नहीं रख
सकेंगे इसलिए अभी से अपने मन-बुद्धि के सेवा की लाइन को चेक करो। टीचर्स को चेक करना
तो आता है ना। टीचर्स औरों को सिखाती हैं, तो जरूर स्वयं जानती हैं तब तो सिखाती
हैं ना। सभी योग्य टीचर्स हो ना! योग्य टीचर की विशेषता यह है जो निरन्तर चाहे मन्सा,
चाहे वाचा, चाहे कर्मणा सेवा में सदा बिजी रहे। तो और बातों से स्वत: ही खाली हो
जायेंगे। अच्छा!
कुमारियाँ भी आई हैं।
कुमारियां अर्थात् होवनहार टीचर्स। तब तो कहेंगे ब्रह्माकुमारियां हैं। अगर होवनहार
सेवाधारी नहीं तो पाई पैसे वाली कुमारी है। कुमारियां क्या करती हैं? नौकरी की टोकरी
उठाती हैं ना पाईपैसे के पीछे। बापदादा को हंसी आती है कुमारियों के ऊपर - टोकरी का
बोझ उठाने के लिए तैयार हो जाती हैं लेकिन भगवान के घर में अर्थात् सेवा-स्थानों
में रहने की हिम्मत नहीं रखती हैं। ऐसी कमजोर कुमारियां तो नहीं हो ना! चाहे पढ़ भी
रही हैं, तो भी लक्ष्य तो पहले से रखा जाता है कि नौकरी करनी है या विश्व-सेवा करनी
है। नौकरी करना अर्थात् अपने को पालना। बाल-बच्चे तो हैं नहीं, जिसको पालना पड़े।
नौकरी इसलिए करते हैं कि आराम से अपने को पालते रहें, चलते रहें। विश्व की आत्माओं
को बाप की पालना दें-यह लक्ष्य रखो। जब अनेक आत्माओं के निमित्त बन सकते हैं, तो
सिर्फ अपनी आत्मा को पालना - उसके आगे क्या हुआ? अनेकों की दुआयें लेना - यह कमाई
कितनी बड़ी है! उस कमाई में पांच हजार, पांच लाख भी हो जाए, लेकिन यह अनेक आत्माओं
की दुआयें - यह कितनी बड़ी कमाई है! और यह साथ जायेगी अनेक जन्मों के लिए। वह पांच
लाख कहाँ जायेंगे? या घर में या बैंक में रह जायेंगे। लक्ष्य सदैव ऊंचा रखा जाता
है, साधारण नहीं। संगमयुग पर इस एक अभी के जन्म में इतना गोल्डन चांस मिलता है -
बेहद की सेवा में निमित्त बनने का! सतयुग में भी यह ऑफर नहीं मिलेगी। नौकरी के लिए
भी अखबार देखते रहते हैं ना कि कोई ऑफर मिले। बाप स्वयं सेवा की ऑफर कर रहे हैं। तो
योग्य राइट हैंड बनो। साधारण ब्रह्माकुमारी भी नहीं बनना। योग्य सेवाधारी नहीं बनते
तो सेवा करने के बजाय सेवा लेते रहते हैं। योग्य सेवाधारी बनना कोई मुश्किल बात नहीं।
जब योग्य सेवाधारी नहीं बनते तो डरते हो कैसे होगा, चल सकेंगे वा नहीं। योग्यता नहीं
होती है तो डर लगता है। जो योग्य होता वह “बेपरवाह बादशाह'' होता है। चाहे स्थूल
योग्यता, चाहे ज्ञान की योग्यता मनुष्य को वैल्यूबल (मूल्यवान) बनाती है। योग्यता
नहीं तो वैल्यू नहीं रहती। सेवा की योग्यता सबसे बड़ी है। ऐसी योग्य आत्मा को कोई
बात रोक नहीं सकती। योग्य बनना माना मेरा तो एक बाबा। बस, और कोई बात नहीं। सुना
कुमारियों ने! अच्छा!
कुमार भी बहुत आये
हैं। कुमार दौड़ बहुत लगाते हैं। सेवा में भी अच्छे उमंग से दौड़ लगाते रहते हैं।
लेकिन कुमारों की विशेषता और महानता यही है कि आदि से अब तक निर्विघ्न कुमार हों?
अगर कुमार निर्विघ्न कुमार हैं, तो ऐसे कुमार बहुत महान गाये जाते हैं क्योंकि
दुनिया वाले भी कुमारियों के बजाय कुमारों के लिए समझते हैं कि कुमार योग्य बन जाएं
- यह मुश्किल है। लेकिन कुमार ही विश्व को चैलेंज करें कि आप तो असंभव कहते हो
लेकिन हम निर्विघ्न कुमार हैं। ऐसे विश्व को सैम्पल दिखाने वाले कुमार महान कुमार
हैं। बापदादा ऐसे कुमारों को सदा ही दिल से मुबारक देते हैं। समझा! अभी-अभी बहुत
अच्छे, अभी-अभी कोई विघ्न आया तो नीचे-ऊपर हो गये - ऐसे नहीं। कुमार अर्थात् न तो
समस्या बनना है और न समस्या में हार खानी है। कुमार, कुमारियों से भी नंबर आगे जा
सकते हैं लेकिन निर्विघ्न कुमार हों क्योंकि कुमारों को बहुत करके यही विघ्न आता है
कि कोई साथी नहीं है, कोई साथी चाहिए, कम्पैनियन चाहिए। तो किसी-न-किसी रीति से अपनी
कम्पनी बना देते हैं। कोई-कोई कुमार तो कम्पैनियन भी बना देते हैं और कोई कम्पनी
में आते हैं - बातचीत करना, बैठना फिर कम्पैनियन बनाने का भी संकल्प आता है। लेकिन
ऐसे भी कुमार हैं जो बाप के सिवाए न कम्पनी बनाने वाले हैं, न कम्पैनियन बनाने बाले
हैं। सदा बाप की कम्पनी में रहने वाले कुमार सदा सुखी रहते हैं। तो आप लोग कौन से
कुमार हो? थोड़ी-थोड़ी कम्पनी चाहिए? सारा परिवार कम्पनी है? फिर तो ठीक लेकिन दो-तीन
या एक कोई कम्पनी चाहिए, वह रांग है। तो आप सभी कौन हो? निर्विघ्न हो ना। नये कुमार
भी कमाल करके दिखायेंगे। आखिर तो विश्व को अपने आगे, बाप के आगे झुकाना तो है ना!
तो यह कुमारों की कमाल विश्व को झुकायेगी। विश्व आपके गुण-गायन करेगा कि कमाल है
कुमारों की! कुमारी मैजारिटी फिर भी सेवा की कम्पनी में रहती है। लेकिन कुमारों को
थोड़ा-सा कंपनी का संकल्प आता है तो पाण्डव भवन बनाकर सफल रहें, ऐसा कोई करके दिखाओ।
लेकिन आज पाण्डव भवन बनाओ और कल पाण्डव एक ईस्ट में चला जाए, एक वेस्ट में चला जाए
- ऐसा पांडव भवन नहीं बनाना।
बापदादा को कुमारों
के ऊपर विशेष नाज़ है कि अकेले रहते भी पुरुषार्थ में चल रहे हैं। कुमार आपस में
दो-तीन साथी बनकर क्यों नहीं चलते! साथी सिर्फ फिमेल ही नहीं चाहिए, दो कुमार भी रह
सकते हैं। लेकिन एक-दो के निर्विघ्न साथी होकर रहें। अभी वह जलवा नहीं दिखाया है।
समय पर एक-दो के सहयोगी बनें तो क्या नहीं हो सकता है? और बातें आ जाती हैं, इसलिए
बाप-दादा पाण्डव भवन बनाने के लिए मना कर देता है। लेकिन सैम्पल कोई करके दिखाये।
ऐसा नहीं पाण्डव भवन बनाकर फिर जो निमित्त दादी-दीदियां हैं, उनका टाइम लेते रहो।
निर्विघ्न हों, एक-दूसरे से योग्य कुमार हों फिर देखो कितना अच्छा नाम होता है। सुना
कुमारों ने? योग्य कुमार बनो, निर्विघ्न कुमार बनो। सेवा के क्षेत्र पर खुद समस्या
नहीं बनो लेकिन समस्या को मिटाने वाले बनो, फिर देखो कुमारों की बहुत वैल्यू होगी
क्योंकि कुमारों के बिना भी सेवा नहीं हो सकती है। तो कुमार क्या करेंगे? सब बोलो -
“निर्विघ्न कुमार बनकर दिखायेंगे''। (कुमारों ने बापदादा के सामने खड़े होकर वायदा
किया) अभी सभी का फोटो निकल गया है। ऐसे नहीं समझना कि हम उठे तो किसी ने देखा नहीं।
फोटो निकल गया। अच्छा है - “हिम्मते बच्चे मददे बाप'' और सारा परिवार आपके साथ है।
अच्छा!
चारों ओर के सर्व
बच्चों को सदा बापदादा अपने स्नेह के सहयोग की छत्र-छाया सहित दिल से सेवा की
मुबारक दे रहे हैं। देश-विदेश के सेवा के समाचार मिलते रहते हैं। हर एक बच्चा अपने
दिल का सच्चा समाचार भी देते रहते हैं। खास विदेश के पत्र ज्यादा आते रहते हैं। तो
सेवा के समाचार देने वाले बच्चों को मुबारक भी और साथ में सदा स्व-सेवा और
विश्व-सेवा में “सफलता भव'' का वरदान दे रहे हैं। स्व-पुरुषार्थ के समाचार देने वालों
को बापदादा यही वरदान दे रहे हैं कि जैसे सच्ची दिल से बाप को राज़ी करते रहते हो,
ऐसे सदा स्वयं को भी स्वयं के संस्कारों से, संगठन से राज़युक्त अर्थात् राज़ी रहो।
एक-दो के संस्कारों के राज़ को भी जानना, परिस्थितियों को जानना - यही राज़युक्त
स्थिति है। बाकी सच्चे दिल से अपना पोतामेल देना और स्नेह की रुहरिहान के पत्र लिखना
अर्थात् पिछला समाप्त करना और स्नेह की रुहरिहान सदा समीपता का अनुभव कराती रहेगी।
यह है पत्रों का रेसपांड।
पत्र लिखने में विदेशी
बहुत होशियार हैं। जल्दी-जल्दी लिखते हैं। भारतवासी भी लम्बे-लम्बे पत्र भेजना नहीं
शुरू करना। बापदादा ने कह दिया है दो शब्दों का पत्र लिखो - “ओ.के'' (बिल्कुल ठीक
हैं)। सर्विस समाचार है तो लिखो बाकी “ओ.के.''। इसमें सब-कुछ आ जाता है। यह पत्र
पढ़ना भी सहज है तो लिखना भी सहज है। लेकिन अगर “ओ.के.'' नहीं हो तो फिर “ओ.के.''
नहीं लिखना। जब ओ.के. हो जाओ तब लिखना। पोस्ट पढ़ने में भी तो टाइम लगता है ना! कोई
भी कार्य करो, सदा शार्ट भी हो और स्वीट भी हो। कोई भी पढ़े तो उसको खुशी तो हो
इसलिए राम कथाएं लिखकर नहीं भेजना। समझा! समाचार देना भी है लेकिन समाचार देना सीखना
भी है। अच्छा!
सर्व शुभभावना और
शुभकामना की सूक्ष्म सेवा के महत्व को जानने वाले महान आत्माओं को बापदादा का
यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
अपने परिवर्तन
द्वारा निरन्तर विजय की अनुभूति करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
जैसे निरन्तर योगी बने
हो ऐसे निरन्तर विजयी बनो तो सच्चे सेवाधारी बन जायेंगे क्योंकि विजयी आत्मा, जब हर
संकल्प, हर कदम में विजय का अनुभव करती है तो उनका यह परिवर्तन देख अनेक आत्माओं की
सेवा स्वत: होती है। उनके नैन रूहानियत का अनुभव कराते हैं, चलन बाप के चरित्रों का
साक्षात्कार कराती है, मस्तक से मस्तकमणि का साक्षात्कार होता है। ऐसे अपनी अव्यक्त
सूरत से सेवा करने वाली विशेष आत्मा को ही सच्चा सेवाधारी कहा जाता है।
स्लोगन:-
विशेषतायें वा गुण दाता की देन हैं, दाता को देखो व्यक्ति को नहीं।
सूचनाः- आज मास का
तीसरा रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, बाबा के सभी बच्चे सायं 6.30 से 7.30 बजे
तक विशेष अपने पूर्वज और पूज्य स्वरूप में स्थित हो, अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा पूरे
वृक्ष को सर्व शक्तियों की सकाश देने की सेवा करें। भक्तों की मनोकामनायें पूरी करें।