ओम् शान्ति।
कलियुग को अंधेर नगरी कहा जाता है क्योंकि सब आत्मायें उझाई हुई हैं, ऐसे नहीं कि
आंखों से अंधे हैं। अंधेरी नगरी में सब ज्ञान नेत्र हीन अन्धे की औलाद अंधे हैं।
तमोप्रधान बन गये हैं। हम सब आत्माओं का बाप वह परमात्मा है, जब हम सब आत्मायें वहाँ
मूलवतन में रहती हैं तो जागती ज्योत हैं। पहले-पहले सतोप्रधान सच्चे सोने थे। सतयुग
को कहा ही जाता है गोल्डन एज। हिन्दी में पारसपुरी कहा जाता है। अब तो है आइरन एज
अर्थात् तमोप्रधान पत्थर बुद्धि। सतयुग में है घर-घर सोझरा, कलियुग में है घर-घर
अन्धियारा। देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है। सब धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हैं।
अपने को देवता कहला नहीं सकते क्योंकि विकारी हैं। बाबा ने सावरकर का मिसाल बताया
था। उनको कहा गया कि आदि सनातन तो देवता धर्म था। तुम फिर आदि सनातन हिन्दू महासभा
क्यों कहते हो? बोला - दादा जी, हम लोग अपने को देवता कह नहीं सकते क्योंकि हम
अपवित्र हैं। तो अब देवता धर्म की स्थापना हो रही है क्योंकि यह मिशनरी है ना। जैसे
क्राइस्ट आया तो क्रिश्चियन थे नहीं। इस समय भी देवता धर्म है नहीं। अब ब्राह्मणों
की स्थापना हुई है। ब्राह्मण फिर देवी-देवता होने हैं। परमपिता परमात्मा कहते हैं -
मैं हूँ देवी-देवता धर्म की स्थापना करने वाला। मैं तुम आत्माओं का पारलौकिक पिता
हूँ, जो मैं तुम सबको भेज देता हूँ। जैसे वह क्रिश्चियन की मिशनरी है, वैसे यह देवता
धर्म की मिशनरी हैं। स्वयं पारलौकिक परमपिता परमात्मा कहते हैं - बच्चे, तुम जो भी
सुनते आये हो सब झूठ। भल ड्रामा अनुसार फिर भी यह होना है। परन्तु इस माया की
बॉन्डेज से छुड़ाने कल्प-कल्प मैं आकर समझाता हूँ और आकर ब्रह्मा द्वारा देवता धर्म
की स्थापना कराता हूँ। द्वापर से फिर और अनेक धर्म स्थापन होते हैं। उस समय देवता
धर्म है नहीं। उसको कहा जाता है - रावण राज्य। गीता तो है भारत का सर्वोत्तम
शास्त्र क्योंकि भगवान् का गाया हुआ है। और सभी शास्त्र मनुष्यों के गाये हुए हैं।
श्रीकृष्ण ने तो सतयुग में प्रालब्ध पाई है। अब बाबा कहते हैं - मैं आया हूँ
लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन करने, भारत में। ऐसे और कोई गीता सुनाने वाला कह न
सके। भगवान् ही कहते हैं - हे भारतवासी बच्चे, मैं आया हूँ, ब्रह्मा द्वारा देवता
धर्म स्थापन करने। पहले तो ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण चाहिए। देवतायें तो प्रालब्ध
भोगते हैं। वह किसका कल्याण नहीं करते। वह तो राजे लोग हैं। वहाँ सम्पत्ति बहुत है।
माया होती नहीं इसलिए उनको स्वर्ग कहा जाता है। अब भारत नर्क है। और कोई भी गीता
सुनाने वाले ऐसे कह न सकें कि काम महाशत्रु है, इन पर विजय पाने से तुम स्वर्ग के
मालिक बनोगे। भल तुम सारे भारत में जाओ, कोई भी ऐसा कह नहीं सकता क्योंकि खुद ही
विकारी है। उन बिचारों को भी यह पता नहीं कि सबका अन्तिम जन्म है। बाबा बतलाते हैं
कि पहले तो इनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है, जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ
अर्थात् अब सारे सृष्टि का ही अन्त है। इस एक जन्म के लिए तुम पवित्रता का बीड़ा
उठाओ। यह कोई झूठ बात तो नहीं। महाभारी लड़ाई भी देख रहे हो। थोड़ी-थोड़ी रिहर्सल
होती रहेगी। बच्चों ने विनाश-स्थापना का साक्षात्कार किया है। इससे सिद्ध होता है -
अन्तिम जन्म है। और गीता सुनाने वाले ऐसा कह न सकें कि यह अन्तिम जन्म है इसलिए
पवित्रता का बीड़ा उठाओ। तुम्हारा यह राजयोग है। तुम तपस्या करते हो, राजाई के लिए।
अब यह सच्ची कमाई करनी है। इस अन्तिम जन्म में पत्थरनाथ से पारसनाथ बनते हो।
बिल्कुल ऊंच पद पाते हो।
जो हमारे पुराने बच्चे हैं, जिनको माया ने भस्मीभूत किया है, उन्हों को आकर जगाया
है। यह गोरा था। अब सब आत्मायें काली तमोप्रधान हैं। आत्मा ही काली और गोरी बनती
है। आत्मा को निर्लेप कहना बिल्कुल साफ झूठ है। आत्मा संस्कार ले जाती है। अब बाबा
कहते हैं तुम बच्चे हो ईश्वरीय मत पर। यूरोपियन लोग भी कहते हैं - भारत में
गॉड-गॉडेज की राजधानी थी। भगवान् राम, भगवती सीता, परन्तु उनको भगवान् कह नहीं
सकेंगे। वह तो डिटीजम है। वहाँ भगवान् कोई नहीं है। भगवान् तो एक है। देवतायें तीन
हैं। बाकी है मनुष्य सृष्टि। जैसे क्राइस्ट ने आकर धर्म स्थापन किया, क्रिश्चियन थे
नहीं। वैसे अब देवता धर्म प्राय: लोप है। सबसे उत्तम धर्म है देवताओं का। बाबा कहते
हैं पहले-पहले यह रूहानी ब्राह्मण धर्म रचता हूँ। यह रूहानी ब्राह्मण परमधाम का
रास्ता बताने वाले हैं। कहते हैं भक्तों को घर बैठे भगवान् मिलता है। तो बाबा बतलाते
हैं पहले नम्बर में भक्त जरूर देवतायें होंगे। लक्ष्मी-नारायण ने पहले-पहले भक्ति
मार्ग शुरू किया। सोमनाथ का मन्दिर उन्हों ने बनाया, कितना साफ-साफ बतलाते हैं। यह
नॉलेज उठायेंगे भी वह जो राजधानी के मालिक बनने होंगे। फिर जो प्रजा में साहूकार
बनने होंगे वह ज्ञान भी सुनेंगे। बीज भी बोयेंगे लेकिन पढ़ाई ज्यादा नहीं पढ़ेंगे।
पवित्र रहेंगे। बाबा कहते हैं - बच्चे, यह पढ़ाई है। पढ़ाई से ही पद मिलना है। बहुत
ऊंच ते ऊंच पद है। पहले तो यह निश्चय चाहिए कि भगवान् हम बच्चों को पढ़ाने आये हैं,
न कि श्रीकृष्ण। बाकी हाँ, इस पढ़ाई से हम श्रीकृष्ण बनेंगे। प्रिन्स-प्रिन्सेज तो
तुम सब बनते हो। जिनको यह पूरा निश्चय नहीं वह इस स्कूल में ऐसे बैठे रहते जैसे कोई
भुट्टू। अगर निश्चय है तो रेग्युलर पढ़ना है। नहीं तो कुछ समझा नहीं है। यह अविनाशी
प्रालब्ध मिलती है, अविनाशी बाबा द्वारा। बाकी सब कब्रदाखिल हो जायेंगे। बाकी थोड़े
रहेंगे, जब तक हम तैयार हो जायें। फिर वह ख़लास हो जायेंगे। हम-तुमने कल्प पहले यह
सब देखा था। अब देख रहे हैं। अभी कहेंगे कि 5 हजार वर्ष बाद फिर यह धर्म स्थापन कर
रहा हूँ क्योंकि उनमें ब्रह्माण्ड और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान हो नहीं सकता।
यह ज्ञान बाबा ही आकर देते हैं। ब्रह्माण्ड अर्थात् जहाँ आत्मायें अण्डे मिसल रहती
हैं। वह संन्यासी लोग फिर ब्रह्म को ईश्वर कह देते हैं। अब ब्रह्म तो है तत्व।
परमपिता परमात्मा तो है शिव। वह लोग तो ब्रह्मोहम् भी कहते, शिवोहम् भी कहते रहते।
परन्तु शिव तो है ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का रचयिता। कहते हैं ना - भागीरथ ने गंगा लाई।
वह यह भागीरथ मनुष्य है। नंदीगण तो फिर जानवर हो गया। उन्होंने गऊशाला अक्षर सुना
है तो फिर बैल को रख दिया है। मन्दिरों में भी राइट चित्र हैं - लक्ष्मी-नारायण,
सीता-राम के। बस, यह है ऊंच ते ऊंच जो प्रालब्ध भोगते हैं। प्रजा भी प्रालब्ध भोगती
है। लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, दी सेकेण्ड, थर्ड........ 8 बादशाही चलती हैं। बच्चे
राज्य करते हैं। सीता-राम का भी ऐसे चलता है। फिर गाया जाता है जगदम्बा आदि देवी और
ब्रह्मा आदि देव। एडम-ईव - यह दोनों अब काले हैं फिर गोरे बनने हैं। दुनिया इन बातों
को नहीं जानती। काली, दुर्गा, अम्बा - सब एक के ही नाम हैं। सच्चा नाम सरस्वती है।
तो आत्मा काली होती है, बाकी कोई काला मुँह थोड़ेही होता है। इस समय सब आत्मायें
काली हैं। हम सब बन्दर थे। अब बाबा ने हमको अपनी सेना बनाया है। अब रावण पर जीत पा
रहे हैं।
बाबा कहते हैं मैं तुमको सब शास्त्रों-वेदों का सार ब्रह्मा द्वारा सुनाता हूँ।
ब्रह्मा को हाथ में शास्त्र दिखाते हैं। शास्त्र तो एक होना चाहिए ना। तो अब ब्रह्मा
के हाथ में है - शिरोमणी गीता। बाबा बैठ ब्रह्मा द्वारा सब वेदों-ग्रंथों का सार
बताते हैं। उनको गीता कहा जाता है। बाकी कोई शास्त्र नहीं हैं। बुद्धि में गीता है।
गीता में भगवानुवाच है कि काम महाशत्रु है तो गीता सुनाने वालों को भी कहना चाहिए
कि इन पर जीत पहनो तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। वह तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे। सब झूठ
बोलते रहते हैं। हम भी झूठ बोलते थे। हमने भी बहुत गुरू किये। अर्जुन को भी कहा है
ना इन सबको भूलो। तुम्हारे इन गुरूओं को भी पावन करने वाला मैं हूँ। अब तुम जो पढ़े
हो वह भूल जाओ। न सुना हुआ अब मैं सुनाता हूँ। अब तुम कौड़ी से हीरे जैसा बनते हो।
अब यह सब ख़लास होना है। तुम बच्चों ने विनाश-स्थापना देखी है, इसलिए पुरुषार्थ कर
रहे हैं, बाबा के पास सबका पोतामेल रहता है। लिखकर देते हैं - मैं ऐसा पापी था, यह
किया क्योंकि धर्मराज बाबा कहते हैं - हमको सुनाने से आधा माफ कर देंगे। वह सब
प्रायवेट रहता है। पढ़ा और फिर फाड़ दिया। यह ऑलमाइटी गवर्मेन्ट है। अभी अजुन छोटा
झाड़ है, इसका माली खुद भगवान है। धीरे-धीरे वृद्धि होगी। माया झट मुरझा देती है।
कहाँ की बात कहाँ कहानी के रूप में बना दी है। कहाँ हमारे लक्ष्मी-नारायण मर्यादा
पुरुषोत्तम और पुरुषोत्मनी महान् पवित्र थे। यहाँ तो सब अपवित्र हैं। वह था पवित्र
गृहस्थ आश्रम धर्म। यहाँ अपवित्र गृहस्थ अधर्म है। पूछते हैं फिर दुनिया कैसे चलेगी?
बाबा कहते हैं यह दुनिया रहनी ही नहीं है। ख़लास होनी है। यह अन्तिम जन्म है इसलिए
काम कटारी चलाना छोड़ दो। तुमको जन्म-जन्मान्तर विकारी माँ-बाप से विष का वर्सा
मिलता आया। अब मैं ऑर्डीनेन्स निकालता हूँ - विष का वर्सा बंद करो। नहीं तो वैकुण्ठ
जा नहीं सकेंगे। विकारों पर जीत पहनेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे, नहीं तो पाताल। राम
राज्य आकाश तो रावण राज्य पाताल। यह ड्रामा है। इस समय देवता धर्म वाले और धर्मों
में कनवर्ट हो गये हैं। अपने असली धर्म को नहीं जानते हैं। कोई धर्म में थोड़ा सुख
देखा तो झट कनवर्ट हो जाते हैं, इसको कहते है हाफ कास्ट। यहाँ भी जो ब्राह्मण कास्ट
में आये लेकिन पुरुषार्थ में कमजोर हैं तो प्रजा पद मिलेगा। साफ बात बतलाते हैं।
यह जो कहते हैं ऋषि-मुनि आदि त्रिकालदर्शी थे, लेकिन जब जगत मिथ्यम कहते हैं तो
फिर त्रिकालदर्शी कैसे होंगे? बहुत गपोड़े लगाये हैं। कहते हैं फलाना निर्वाणधाम गया
- यह भी गपोड़ा। सबको पार्ट बजाकर यहाँ हाजिर होना है। सबका गाइड बाबा है। बाबा किसी
से भक्ति छुड़ाते नहीं। जब तक परिपक्व अवस्था नहीं है तो भल भक्ति करते रहें। याद
रखना - हम कोई का गुरू नहीं। जैसे तुम सुनते हो वैसे हम भी सुन रहे हैं शिवबाबा से।
हम सबका गुरू वह एक निराकार है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तिम जन्म में पवित्रता की प्रतिज्ञा कर पान का बीड़ा उठाना है।
आत्मा को काले से गोरा सतोप्रधान बनाने का पुरुषार्थ करना है।
2) अविनाशी प्रालब्ध बनाने के लिए निश्चयबुद्धि बन पढ़ाई रेग्युलर पढ़नी है। बाकी
जो अब तक पढ़ा है वह बुद्धि से भूल जाना है।