16-09-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है, पढ़ाई में
गैलप करो, कोई भी विकर्म करके अपना रजिस्टर खराब नहीं करो”
प्रश्नः-
इस ऊंची पढ़ाई
में पास होने के लिए मुख्य शिक्षा कौन-सी मिलती है? उसके लिए किस बात पर विशेष
अटेन्शन चाहिए?
उत्तर:-
इस
पढ़ाई में पास होना है तो आंखें बहुत-बहुत पवित्र होनी चाहिए क्योंकि यह आंखें ही
धोखा देती हैं, यही क्रिमिनल बनती हैं। शरीर को देखने से ही कर्मेन्द्रियों में
चंचलता आती है इसलिए आंखें कभी भी क्रिमिनल न हों, पवित्र बनने के लिए भाई-बहिन
होकर रहो, याद की यात्रा पर पूरा-पूरा अटेन्शन दो।
गीत:- धीरज धर
मनुवा……………
ओम् शान्ति।
किसने कहा? बेहद के
बाप ने बेहद के बच्चों को कहा। जैसे कोई मनुष्य बीमारी में होता है तो उनको आथत दिया
जाता है कि धीरज धरो-तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। उनको खुशी में लाने के लिए
आथत दिया जाता है। अब वह तो हैं हद की बातें। यह है बेहद की बात, इनके कितने ढेर
बच्चे होंगे। सबको दु:ख से छुड़ाना है। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो। तुमको भूलना
नहीं चाहिए। बाप आये हैं सर्व की सद्गति करने। सर्व का सद्गति दाता है तो इसका मतलब
सभी दुर्गति में हैं। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र, उनमें भी खास भारत आम दुनिया कहा
जाता है। खास तुम सुखधाम में जायेंगे। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे। बुद्धि
में आता है-बरोबर हम सुखधाम में थे तो और धर्म वाले शान्तिधाम में थे। बाबा आया था,
भारत को सुखधाम बनाया था। तो एडवरटाइजमेंट भी ऐसी करनी चाहिए। समझाना है हर 5 हज़ार
वर्ष बाद निराकार शिवबाबा आते हैं। वह सभी का बाप है। बाकी सब ब्रदर्स हैं। ब्रदर्स
ही पुरूषार्थ करते हैं फादर से वर्सा लेने। ऐसे तो नहीं फादर्स पुरूषार्थ करते हैं।
सब फादर्स हों तो फिर वर्सा किससे लेंगे? क्या ब्रदर्स से? यह तो हो न सके। अभी तुम
समझते हो-यह तो बहुत सहज बात है। सतयुग में एक ही देवी-देवता धर्म होता है। बाकी सब
आत्मायें मुक्तिधाम में चली जाती हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट कहते हैं
तो जरूर एक ही हिस्ट्री-जॉग्राफी है जो रिपीट होती है। कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा।
दोनों के बीच में फिर संगमयुग भी जरूर होगा। इसको कहा जाता है सुप्रीम, पुरूषोत्तम
कल्याणकारी युग। अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तो समझते हो यह तो बहुत सहज
बात है। नई दुनिया और पुरानी दुनिया। पुराने झाड़ में जरूर बहुत पत्ते होंगे। नये
झाड़ में थोड़े पत्ते होंगे। वह है सतोप्रधान दुनिया, इनको तमोप्रधान कहेंगे।
तुम्हारा भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बुद्धि का ताला खुला है क्योंकि सब यथार्थ
रीति बाप को याद नहीं करते हैं। तो धारणा भी नहीं होती है। बाप तो पुरूषार्थ कराते
हैं, परन्तु तकदीर में नहीं है। ड्रामा अनुसार जो अच्छी रीति पढ़ेंगे पढ़ायेंगे,
बाप के मददगार बनेंगे, हर हालत में ऊंच पद वही पायेंगे। स्कूल में स्टूडेन्ट भी
समझते हैं हम कितने मार्क्स से पास होंगे। तीव्रवेगी जोर से पुरूषार्थ करते हैं।
ट्युशन के लिए टीचर रखते हैं कि कैसे भी करके पास होवें। यहाँ भी बहुत गैलप करना
है। अपने ऊपर कृपा करनी है। बाबा से अगर कोई पूछे अब शरीर छूटे तो इस हालत में क्या
पद पायेंगे? तो बाबा झट बतायेंगे। यह तो बहुत सहज समझने की बात है। जैसे हद के
स्टूडेन्ट समझते हैं, बेहद के स्टूडेन्ट भी समझ सकते हैं। बुद्धि से समझ सकते हैं-हमसे
घड़ी-घड़ी यह भूलें होती हैं, विकर्म होता है। रजिस्टर खराब होगा तो रिजल्ट भी ऐसी
निकलेगी। हर एक अपना रजिस्टर रखे। यूँ तो ड्रामा अनुसार सब नूँध हो ही जाती है। खुद
भी समझते हैं हमारा रजिस्टर तो बहुत खराब है। न समझ सकें तो बाबा बता सकते हैं।
स्कूल में रजिस्टर आदि सब रखा जाता है। इनका तो दुनिया में किसको पता नहीं है। नाम
है गीता पाठशाला। वेद पाठशाला कभी नहीं कहेंगे। वेद उपनिषद ग्रंथ आदि किसकी भी
पाठशाला नहीं कहेंगे। पाठशाला में एम ऑब्जेक्ट है। हम भविष्य में यह बनेंगे। कोई
वेद शास्त्र बहुत पढ़ते हैं तो उनको भी टाइटिल मिलता है। कमाई भी होती है। कोई-कोई
तो बहुत कमाई करते हैं। परन्तु वह कोई अविनाशी कमाई नहीं है, साथ नहीं चलती है। यह
सच्ची कमाई साथ चलनी है। बाकी सब खत्म हो जाती हैं। तुम बच्चे जानते हो हम
बहुत-बहुत कमाई कर रहे हैं। हम विश्व के मालिक बन सकते हैं। सूर्यवंशी डिनायस्टी है
तो जरूर बच्चे तख्त पर बैठेंगे। बहुत ऊंच पद है। तुमको स्वप्न में भी नहीं था कि हम
पुरूषार्थ कर राज्य पद पायेंगे। इसको कहा जाता है राजयोग। वह होता है बैरिस्टरी योग,
डॉक्टरी योग। पढ़ाई और पढ़ाने वाला याद रहता है। यहाँ भी यह है – सहज याद। याद में
ही मेहनत है। अपने को देही-अभिमानी समझना पड़े। आत्मा में ही संस्कार भरते हैं।
बहुत आते हैं जो कहते हैं हम तो शिवबाबा की पूजा करते थे परन्तु क्यों पूजा करते
हैं, यह नहीं जानते। शिव को ही बाबा कहते हैं। और किसको बाबा नहीं कहेंगे। हनूमान,
गणेश आदि की पूजा करते हैं, ब्रह्मा की पूजा होती नहीं। अजमेर में भल मन्दिर है। वहाँ
के थोड़े ब्राह्मण लोग पूजा करते होंगे। बाकी गायन आदि कुछ नहीं। श्रीकृष्ण का,
लक्ष्मी-नारायण का कितना गायन है। ब्रह्मा का नाम नहीं क्योंकि ब्रह्मा तो इस समय
सांवरा है। फिर बाप आकर इनको एडाप्ट करते हैं। यह भी बहुत सहज है। तो बाप बच्चों को
भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते हैं। बुद्धि में यह रहे शिवबाबा हमको सुना रहे हैं।
वह बाप भी है, टीचर, गुरू भी है। शिवबाबा ज्ञान का सागर हमको पढ़ाते हैं। अभी तुम
बच्चे त्रिकालदर्शी बने हो। ज्ञान का तीसरा नेत्र तुमको मिलता है। यह भी तुम समझते
हो आत्मा अविनाशी है। आत्माओं का बाप भी अविनाशी है। यह भी दुनिया में कोई नहीं
जानते। वह तो सब पुकारते ही हैं-बाबा हमको पतित से पावन बनाओ। ऐसे नहीं कहते कि
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी आकर सुनाओ। यह तो बाप खुद आकर सुनाते हैं। पतित से
पावन फिर पावन से पतित कैसे बनेंगे? हिस्ट्री रिपीट कैसे होगी, वह भी बताते हैं। 84
का चक्र है। हम पतित क्यों बने हैं फिर पावन बन कहाँ जाने चाहते हैं। मनुष्य तो
सन्यासी आदि के पास जाकर कहेंगे मन की शान्ति कैसे हो? ऐसे नहीं कहेंगे हम सम्पूर्ण
निर्विकारी पावन कैसे बनें? यह कहने में लज्जा आती है। अभी बाप ने समझाया है-तुम सब
भक्तियां हो। मैं हूँ भगवान, ब्राइडग्रुम। तुम हो ब्राइड्स। तुम सब मुझे याद करते
हो। मैं मुसाफिर बहुत ब्युटीफुल हूँ। सारी दुनिया के मनुष्य मात्र को खूबसूरत बनाता
हूँ। वन्डर ऑफ वर्ल्ड स्वर्ग ही होता है। यहाँ 7 वन्डर्स गिनते हैं। वहाँ तो वन्डर
ऑफ वर्ल्ड एक ही स्वर्ग है। बाप भी एक, स्वर्ग भी एक, जिसको सभी मनुष्य मात्र याद
करते हैं। यहाँ तो कुछ भी वन्डर है नहीं। तुम बच्चों के अन्दर धीरज है कि अब सुख के
दिन आ रहे हैं।
तुम समझते हो इस
पुरानी दुनिया का विनाश हो तब तो राजाई मिले स्वर्ग की। अभी अजुन राजाई स्थापन नहीं
हुई है। हाँ, प्रजा बनती जाती है। बच्चे आपस में राय करते हैं, सर्विस की वृद्धि
कैसे हो? सबको पैगाम कैसे देवें? बाप आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते
हैं। बाकी सबका विनाश कराते हैं। ऐसे बाप को याद करना चाहिए ना। जो बाप हमको
राजतिलक का हकदार बनाए बाकी सबका विनाश करा देते हैं। नैचुरल कैलेमिटीज भी ड्रामा
में नूँधी हुई है। इस बिगर दुनिया का विनाश हो नहीं सकता। बाप कहते हैं अभी तुम्हारा
इम्तहान बहुत नज़दीक है, मृत्युलोक से अमरलोक ट्रांसफर होना है। जितना अच्छी रीति
पढ़ेंगे पढ़ायेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे क्योंकि प्रजा अपनी बनाते हो। पुरूषार्थ कर
सबका कल्याण करना चाहिए। चैरिटी बिगन्स एट होम। यह कायदा है। पहले मित्र-सम्बन्धी
बिरादरी आदि वाले ही आयेंगे। पीछे पब्लिक आती है। शुरू में हुआ भी ऐसे।
आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि हुई फिर बच्चों के रहने के लिए बड़ा मकान बना जिसको ओमनिवास
कहते थे। बच्चे आकर पढ़ने लगे। यह सब ड्रामा में नूँध थी, जो फिर रिपीट होगा। इसको
कोई बदल थोड़ेही सकता है। यह पढ़ाई कितनी ऊंच है। याद की यात्रा ही मुख्य है। मुख्य
आंखें ही बड़ा धोखा देती हैं। आंखें क्रिमिनल बनती हैं तब शरीर की कर्मेन्द्रियाँ
चंचल होती हैं। कोई अच्छी बच्ची को देखते हैं, तो बस उसमें फँस पड़ते हैं। ऐसे बहुत
दुनिया में केस होते हैं। गुरू की भी क्रिमिनल आई हो जाती है। यहाँ बाप कहते हैं
क्रिमिनल आई बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। भाई-बहन होकर रहेंगे तब पवित्र रह सकेंगे।
मनुष्यों को क्या पता वह तो हंसी करेंगे। शास्त्रों में तो यह बातें हैं नहीं। बाप
कहते हैं यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। पीछे द्वापर से यह शास्त्र आदि बने हैं।
अब बाप मुख्य बात कहते हैं कि अल्फ को याद करो तो विकर्म विनाश हो जाएं। अपने को
आत्मा समझो। तुम 84 का चक्र लगाकर आये हो। अभी फिर तुम्हारी आत्मा देवता बन रही है।
छोटी-सी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट भरा हुआ है, वन्डर है ना। ऐसे वन्डर
ऑफ वर्ल्ड की बातें बाप ही आकर समझाते हैं। कोई का 84 का, कोई का 50-60 जन्मों का
पार्ट है। परमपिता परमात्मा को भी पार्ट मिला हुआ है। ड्रामा अनुसार यह अनादि
अविनाशी ड्रामा है। शुरू कब हुआ, बन्द कब होगा-यह नहीं कह सकते क्योंकि यह अनादि
अविनाशी ड्रामा है। यह बातें कोई जानते नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अभी इम्तहान का समय बहुत नज़दीक है इसलिए पुरूषार्थ कर अपना और सर्व
का कल्याण करना है, पढ़ना और पढ़ाना है, चैरिटी बिगेन्स एट होम।
2) देही-अभिमानी बन अविनाशी, सच्ची कमाई जमा करनी है। अपना रजिस्टर रखना है। कोई
भी ऐसा विकर्म न हो जिससे रजिस्टर खराब हो जाए।
वरदान:-
विश्व कल्याण की जिम्मेवारी समझ समय और शक्तियों की
इकॉनामी करने वाले मास्टर रचता भव
विश्व की सर्व आत्मायें आप श्रेष्ठ आत्माओं का परिवार है,
जितना बड़ा परिवार होता है उतना ही इकॉनामी का ख्याल रखा जाता है। तो सर्व आत्माओं
को सामने रखते हुए, स्वयं को बेहद की सेवार्थ निमित्त समझते हुए अपने समय और शक्तियों
को कार्य में लगाओ। अपने प्रति ही कमाया, खाया और गँवाया - ऐसे अलबेले नहीं बनो।
सर्व खजानों का बजट बनाओ। मास्टर रचयिता भव के वरदान को स्मृति में रख समय और शक्ति
का स्टॉक सेवा प्रति जमा करो।
स्लोगन:-
महादानी
वह है जिसके संकल्प और बोल द्वारा सबको वरदानों की प्राप्ति हो।