28-07-13 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 05-02-77 मधुबन
महानता का आधार
बच्चों की क्या-क्या महिमा है जिस आधार से इतने महान् बनते हैं, बाप उस महिमा को देख रहे हैं। आप सब अपने तीनों स्वरूपों की महिमा को जानते हो? एक है - अनादि स्वरूप की महिमा। दूसरी है - वर्तमान ब्राह्मण जीवन की महिमा। तीसरी है - भविष्य आदि स्वरूप की महिमा।
आदि स्वरूप की महिमा तो अभी तक भक्त भी गा रहे हैं, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरूषोत्तम, सम्पूर्ण आहिंसक। यह महिमा है अन्तिम फरिश्ते स्वरूप की अर्थात् भविष्य आदि स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा सो श्री कृष्ण कहते हैं वैसे अन्तिम फरिश्ता सो देवता। तो यह है आदि स्वरूप की महिमा।
अनादि स्वरूप की महिमा - जो बाप की महिमा सो मास्टर स्वरूप में आपके अनादि रूप की महिमा है। जैसे मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर ब्लिसफुल, मास्टर पीसफुल।
वर्तमान श्रेष्ठ ब्राह्मण स्वरूप की महिमा कौन सी है? ब्राह्मणों के जीवन के मुख्य चार आधार हैं। ब्राह्मण कहा ही जाता है - पढ़ने और पढ़ाने वाले वो। ब्राह्मण जीवन अर्थात् गॉडली स्टुडेन्ट लाइफ, पढ़ाई के जो मुख्य चार सब्जेक्ट्स हैं, वही ब्राह्मण जीवन के चार आधार हैं और इसी आधार पर ब्राह्मण स्वरूप की महिमा है और वह है - 1. परमात्म ज्ञानी, 2. सहज राजयोगी, 3. दिव्य गुणधारी, 4. विश्व सेवाधारी। यह है वर्तमान ब्राह्मण जीवन की महिमा। अपने तीनों स्वरूपों की महिमा को जानते हुए अपनी महानता को देखो और चेक करो - कौन-कौन से लक्षण प्रैक्टीकल लाइफ में निरन्तर रूप में अपनाये हैं। परमात्म ज्ञानी का विशेष लक्षण कौन-सा है, जिससे प्रत्यक्ष हो कि यह परमात्म-ज्ञानी हैं। मुख्य लक्षण कौन सा है? हर सब्जेक्ट का लक्षण अलग होता है। परमात्म-ज्ञानी अर्थात् नॉलेजफुल; नॉलेजफुल अर्थात् परमात्म- ज्ञानी। ज्ञान की विशेष प्राप्ति क्या है? ज्ञान का फल क्या है? ज्ञान का फल अर्थात् परमात्म-ज्ञानी का मुख्य लक्षण - हर संकल्प में, बोल में, कर्म में, सम्पर्क में मुक्ति और जीवन्मुक्ति की स्टेज होगी जिसको न्यारा और प्यारा कहते हैं। वह स्टेज है जीवन्मुक्ति की। कर्म करते हुए भी बन्धनों से मुक्त। अत: परमात्म-ज्ञानी का विशेष लक्षण है सब में मुक्त और जीवन मुक्त स्थिति। ज्ञान अर्थात् समझ। समझदार सदा स्वयं को बन्धनमुक्त, सर्व आकर्षणों से मुक्त बनाने की समझ रखता है। तो परमात्म-ज्ञानी का विशेष लक्षण हुआ - मुक्त और जीवनमुक्त।
इसी प्रकार सहज राजयोगी का लक्षण क्या होगा? योगी अर्थात् योगयुक्त अर्थात् युक्तियुक्त। वह संकल्प और कर्म की समानता की सिद्धि-स्वरूप होगा। अच्छा।
दिव्य गुणधारी का मुख्य लक्षण क्या होगा? सन्तुष्ट रहना और सबको सन्तुष्ट करना। उनको सब की सन्तुष्टता का आशीर्वाद प्राप्त होगा अर्थात् गाडली यूनिवार्सिटी का सर्टिफिकेट प्राप्त होगा। विश्व सेवाधारी का विशेष लक्षण क्या है?
विश्व सेवाधारी अर्थात् निर्माण और अथक। सदा जागती ज्योति होकर रहेगा। जागती ज्योति माना केवल निद्राजीत नहीं लेकिन सर्व विघ्न जीत। उसको कहते हैं जागती ज्योति। स्मृति रहना भी जागना है। तो अब इन सभी लक्षणों को सामने रखते हुए देखो कि गॉडली यूनिवार्सिटी की सम्पूर्ण डिग्री ली है? चार सब्जेक्टस के आधार पर जो महिमा बताई, वही ब्राह्मण जीवन की डिग्री है। तो यह डिग्री ली है? यह वर्तमान समय की डिग्री है। फरिश्ते स्वरूप की डिग्री तो और है किन्तु अभी तो हर एक अपने को ज्ञानी, योगी, सेवाधारी तो कहते हो ना? तो जो अपने को कहते हो, समझते हो, चैलेन्ज करते हो कि सभी शास्त्र-ज्ञानी हैं, हम परमात्म-ज्ञानी हैं; वे सब हठयोगी हैं, हम दिव्य गुणधारी अर्थात् कमल फूल समान जीवन वाले हैं। हम विश्व-कल्याणकारी अर्थात् सेवाधारी हैं। इसलिए जो चैलेन्ज करते हो, वे ही लक्षण दिखाई देने चाहिए। क्या यह कठिन है? यह तो ब्राह्मणों का निजी धर्म और कर्म है। जो जन्म-जाति का धर्म और कर्म होता है वह मुश्किल नहीं होता। वर्तमान महिमा को निजी, निरन्तर धर्म और कर्म बनाओ। समझा? अच्छा।
ऐसे लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, तीनों स्वरूपों की महिमा से महान बनाने वाले, सदा मुक्त, जीवनमुक्त, युक्तियुक्त, सदा सन्तुष्ट, सदा अथक, निर्माण, सदा जागती ज्योति, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आदि पिता और अनादि पिता का याद-प्यार और नमस्ते।
28-07-13 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 14-04-77 मधुबन
श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर
आज बापदादा हर बच्चे के तकदीर की तस्वीर देख रहे हैं। हर एक ने यथा-शक्ति अपनी-अपनी तस्वीर तैयार की है। तस्वीर के अन्दर विशेषता रूहानियत की चाहिए। रूहानियत भरी तस्वीर हर आत्मा को रूहानी बाप की राह बता देती है। जैसे लौकिक में बहुत सुन्दर बनी हुई तस्वीर अपनी रचयिता की स्मृति दिलाती है कि इसको बनाने वाला कौन? ऐसे ही रूहानी तस्वीर अर्थात् श्रेष्ठ तकदीर-वाली तस्वीर बनाने वाले बाप के तरफ स्वत: ही आकर्षित करती है। आपका भाग्य, भाग्य बनाने वाले भगवान की स्वत: याद दिलाता है। ऐसे श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाई है? रूहानी तकदीर अर्थात् चलता-फिरता लाईट हाउस। लाईट हाउस का कर्त्तव्य है - हरेक को सही राह दिखाना। चलते-फिरते इतने लाईट हाउस क्या कमाल करेंगे? ऐसे बने हो वा अब तक बनने के प्लान बना रहे हो?
इस बार बाप-दादा रिजल्ट लेने के लिए आए हैं। जब पेपर अर्थात् इम्तहान के दिन होते हैं तो उस समय पढ़ाई पढ़ायी नहीं जाती है, लेकिन पढ़े हुए का इम्तहान होता है। तो बाप-दादा ने भी संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा पढ़ाई बहुत पढ़ायी है, अब उसकी रिजल्ट देखेंगे। हरेक अपनी रिजल्ट से संतुष्ट हैं? चैक किया है कि समय प्रमाण वा बाप की पढ़ाई प्रमाण, विश्व के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष प्रमाण बनाया है? कोई भी बात को स्पष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के प्रमाण दिए जाते हैं। लेकिन सभी प्रमाण में श्रेष्ठ प्रमाण प्रत्यक्ष प्रमाण ही है। तो ऐसे बने हो? जो कोई भी देखे तो अनुभव करे कि इन्हें पढ़ाने वाला वा बनाने वाला सर्वशक्तिवान बाप है। प्रत्यक्ष प्रमाण ही बाप को प्रत्यक्ष करने का सहज और श्रेष्ठ साधन है। इस साधन को अपनाया है? प्रत्यक्षता वर्ष तो मनाया लेकिन स्वयं को प्रत्यक्ष प्रमाण बनाया? सहज है वा मुश्किल है? क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् जो हो, जिसके हो उसी स्मृति में रहना। वह मुश्किल होता है? अपने आपको याद करना किसको मुश्किल लगता है? टेम्पररी पार्ट बजाने के समय अपना टेम्पररी टाईम का पार्ट स्मृति में रखना मुश्किल होता है। जैसे कोई फीमेल से मेल बनेगा तो फिर भी पार्ट बजाते-बजाते फीमेल का रूप कब स्मृति में आ जायेगा। लेकिन निजी स्वरूप कब भूलता नहीं है। तो आप जो हो, जिसके हो और जहाँ के हो वह अनादि निजी स्वरूप, अनादि बाप, अनादि स्थान है, न कि टेम्पररी। अनादि की स्मृति सहज होती है वा मुश्किल? प्रत्यक्ष प्रमाण अर्थात् अनादि रूप में स्थित रहना। फिर भी भूल जाते हो? वास्तव में भूलना मुश्किल होना चाहिए। क्योंकि भूलकर जो स्वरूप स्मृति में लाते हो वह अनादि नहीं, मध्यकाल का है। मध्यकाल अर्थात् द्वापर का समय, तो मध्यकाल का स्वरूप मुश्किल याद आता है। यह यथार्थ नहीं लेकिन अयथार्थ है।
बापदादा रिजल्ट लेने आये हैं, खास पुरानों से। जिन्होंने विशेष उल्हनों द्वारा आह्वान किया है। पुरानों का आह्वान करना अर्थात् रिजल्ट देने के लिए तैयार रहना। क्योंकि बाप-दादा ने पहले ही कह दिया था। जैसे नयों को सुनाते हो, बाप का आना अपने आपको जीते जी मरने का साहस रखना। क्योंकि बाप का आना अर्थात् वापस ले जाना वा पुरानी दुनिया का परिवर्तन करना। वैसे ही आपको बाप का बुलाना अर्थात् रिजल्ट देने के लिए तैयार रहना। तो पेपर के लिए तैयार हो ना? विश्व को परिवर्तन करने की हलचल देखते हुए अचल हो? स्वयं को हलचल कराने वाले निमित्त समझते हो वा अब तक अपने ही हलचल में हो? बाप-दादा हिलाने के पेपर लेवे? अचल रहेंगे वा डगमग होंगे? रेडी हो या एवररेडी हो? रिजल्ट क्या है? स्वयं के संस्कारों के पेपर, स्वयं के व्यर्थ संकल्पों के पेपर वा कोई न कोई शक्ति की कमी के कारण पेपर, सर्व से संस्कार मिलाने के पेपर, अब तक इन छोटे-छोटे हद के पेपर में भी हलचल में आते हो वा अचल हो? बेहद के पेपर अर्थात् अनादि तत्वों द्वारा पेपर, बेहद के विश्व के हलचल द्वारा पेपर, बेहद के वातावरण द्वारा पेपर, बेहद सृष्टि के तमोप्रधान अशुद्ध वायब्रेशन वायुमण्डल द्वारा पेपर। ऐसे बेहद के पेपर देने के लिए पहले है - स्वयं द्वारा स्वयं का पेपर, छोटे से ब्राह्मण संसार द्वारा वा ब्राह्मणों के संस्कारों द्वारा आया हुआ पेपर, यह कच्चा इम्तहान है वा पक्का इम्तहान है? जैसे छ: मास का और बारह मास का पक्का इम्तहान होता है ना! तो हद का पेपर दे पास हो गये हो? अभी बेहद का पेपर शुरू हो? इसी तरह अपने आपको चैक करो कि - किसी भी सब्जेक्ट के पेपर में पास मार्क्स लेने योग्य बने हैं वा पास विद् ऑनर बने हैं। समझा, क्या करना है? घबराते बहुत हो और घबराते किससे हो? माया के बुदबुदों से। जो अभी-अभी हैं, अभी-अभी नहीं होंगे। छोटे बच्चे भी बुदबुदों से नहीं डरते हैं। खेलते हैं न कि डरते हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान बुदबुदों से खेलने वाले हैं न कि डरने वाले। अच्छा फिर आगे सुनाते रहेंगे। अच्छा।
ऐसे चलते-फिरते लाईट हाउस, अपने तकदीर की तस्वीर द्वारा तकदीर बनाने वाले, बाप को हर समय प्रत्यक्ष करने वाले, हर परिस्थिति के पेपरों में एवररेडी रहने वाले, सदा प्रत्यक्ष प्रमाण बन अन्य को प्रेरणा देने वाले, ऐसे सदा महावीर रहने वाले बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।
टीचर्स के साथ:-
टीचर्स अर्थात् फरिश्ता। टीचर का काम है - पण्डा बन करके यात्रियों को ऊँची मंज़िल पर ले जाना। ऊँची मंज़िल पर कौन ले जा सकेगा? जो स्वयं फरिश्ता अर्थात् डबल लाईट होगा। हल्का ही ऊँचा जा सकता है। भारी नीचे जाएगा। टीचर का काम है ऊँची मंज़िल पर ले जाना। तो खुद क्या करेंगे? फरिश्ता होंगे ना। अगर फरिश्ते नहीं तो खुद भी नीचे रहेंगे और दूसरों को भी नीचे लायेंगे। अपने को फरिश्ता अनुभव करती हो? बिल्कुल हल्का। देह का भी बोझ नहीं। मिट्टी बोझ वाली होती है ना। देहभान भी मिट्टी है। जब इसका भान है तो भारी रहेंगे। इससे परे हल्का अर्थात् फरिश्ता होंगे। तो देह के भान से भी हल्कापन। देह के भान से परे तो और सभी बातों से स्वत: ही परे हो जायेंगे। फरिश्ता अर्थात् बाप के साथ सभी रिश्ते हों। अपनी देह के साथ भी रिश्ता नहीं। बाप का दिया हुआ तन भी बाप को दे दिया था। अपनी वस्तु दूसरे को दे दी तो अपना रिश्ता खत्म हुआ। सब हिसाब-किताब बाप से, और किसी से नहीं। तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से बोलूं......... तो लेन-देन सब खाता बाप से हुआ ना? जब एक बाप से सब खाता हुआ तो और सभी खाते खत्म हो गए ना? टीचर अर्थात् जिसके सब खाते बाप से अर्थात् सब रिश्ते बाप से। कोई पिछला खाता नहीं, सब खत्म हो गया। इसको ही तुम्हीं से बोलूं...... तो लेन-देन सब खाता बाप से हुआ ना! जब एक बाप से सब खाता हुआ तो और सभी खाते खत्म हो गए ना? टीचर अर्थात् जिसके सब खाते बाप से अर्थात् सब रिश्ते बाप से। कोई पिछला खाता रह नहीं जाता। जब बाप के बने तो पिछला खाता सब खत्म हो गया। इसको ही कहा जाता है सम्पूर्ण बेगर। बेगर का कोई बैंक बैलेन्स नहीं होता। खाता नहीं, कोई रिश्ता नहीं। न किसी व्यक्ति से, न किसी वैभव से - खाते समाप्त। पिछले कर्मों के खाते में कोई भी बैंक बैलेन्स नहीं होना चाहिए। ऐसी चेकिंग करनी है। ऐसे कई होते हैं कि मरने के बाद कोई सड़ा हुआ खाता रह जाता है तो पीछे वालों को तंग करता है। तो चेक करते हो कि सब खाते समाप्त हैं? स्वभाव, संस्कार, सम्पर्क, सब बातें, सब रिश्ते खत्म। फिर खाली हो जायेंगे ना। जब इतना हल्का बने तभी पण्डा बन औरों को ऊँचा उठा सकंगे। तो समझा, टीचर को क्या करना होता है? टीचर बनना सहज है या मुश्किल? टीचर बनना भी बाप समान बनना हुआ तो जो टीचर की सीट लेता है वह बाप समान बनता है। टीचर बनते हैं अर्थात् जिम्मेवारी का संकल्प लेते हैं। तो बाप भी इतना सहयोग देते हैं। जो जितनी जिम्मेवारी लेता, उतना ही बाप सहयोग देने का जिम्मेवार हैं। जब बाप जिम्मेवारी ले लेते तो मुश्किल हुआ या सहज? जब बाप को जिम्मेवारी दे दी, तो स्वयं नहीं उठानी चाहिए। जिसके निमित्त बनते, उनकी जिम्मेवारी अपनी समझते हो। तो मुश्किल हो जाती है। जिम्मेवार बाप है न कि आप। अपने-आप के ऊपर बोझ तो नहीं रख लेते? कइयों को बोझ उठाने की आदत होती है। कितना भी कहो फिर भी उठा लेते हैं। यह न हो जाय, ऐसा न हो जाय यह व्यर्थ का बोझ है, बोझ बाप के ऊपर छोड़ दो। बाप का बन बाप के ऊपर छोड़ने से सफलता भी ज्यादा, उन्नति भी ज्यादा और सहज हो जाएगा। टीचर्स तो बाप-दादा को प्रिय हैं, क्यों? फिर भी हिम्मत तो रखी है ना। बाप-दादा हिम्मत देख हर्षित होते, लेकिन हिम्मतहीन देख आश्चर्य भी खाते हैं। टीचर्स को ‘क्यों’ और ‘क्या’ के क्वेश्चन में नहीं जाना चाहिए। नहीं तो आपकी क्यू भी ऐसी हो जाएगी। टीचर अर्थात् फुल स्टॉप की स्थिति में स्थित। क्वेश्चन वाले प्रजा में आ जाते हैं। फुल स्टॉप अर्थात् राजा। क्वेश्चन वाले को कब अति-इन्द्रिय सुख नहीं हो सकता। इसलिए टीचर्स की विशेष धारणा ही फुल स्टॉप की स्टेज है। टीचर्स अर्थात् इन्वेन्टर बुद्धि, प्रोग्राम प्रमाण ही सिर्फ चलने वाले नहीं। इन्वेन्शन करने वाले। क्या ऐसी नई बात निकाले, जो सहज और ज्यादा से ज्यादा को सन्देश पहुँच जाए। यह इन्वेन्शन हरेक को निकालनी है। अच्छा।
वरदान:- अपने कर्म और स्थिति द्वारा ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखाने वाले मास्टर ब्रह्मा भव
जैसे ब्रह्मा बाप का निज़ी संस्कार था "पहले आप"। कोई भी स्थान में पहले बच्चे, हर बात में बच्चों को अपने से आगे रखा। लेकिन कहने मात्र नहीं, शुभचिंतक की भावना से। उसने किया तो भी बाप की सेवा, मैंने किया तो भी बाप की सेवा। मैं आगे बढ़ूं, नहीं। दूसरों को आगे बढ़ाकर आगे बढ़ो। जब यह भावना हर एक में आयेगी तब कहेंगे मास्टर ब्रह्मा। फिर ऐसा कोई नहीं कहेगा कि हमने ब्रह्मा बाप को नहीं देखा। आपके कर्म, आपकी स्थिति ब्रह्मा बाप को स्पष्ट दिखाये।
स्लोगन:- एकाग्रता के दृढ़ संकल्प से सागर के तले में चले जाओ तो अनुभव के हीरे मोती प्राप्त होंगे।