18-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम जब किसी को भी समझाते हो या भाषण करते
हो तो बाबा-बाबा कहकर समझाओ, बाप की महिमा करो तब तीर लगेगा”
प्रश्नः-
बाबा भारतवासी
बच्चों से विशेष कौन से प्रश्न पूछते हैं?
उत्तर:-
तुम
भारतवासी बच्चे जो इतने साहूकार थे, सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण देवता धर्म के
थे, तुम पवित्र थे, काम कटारी नहीं चलाते थे, बहुत धनवान थे। फिर तुमने इतना देवाला
कैसे निकाला है – कारण का पता है? बच्चे, तुम गुलाम कैसे बन गये? इतना सब धन दौलत
कहाँ गँवा दिया? ख्याल करो तुम पावन से पतित कैसे बन गये? तुम बच्चे भी ऐसी-ऐसी बातें
बाबा-बाबा कह दूसरों को भी समझाओ – तो सहज समझ जायेंगे।
ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति कहने से
भी बाप जरूर याद आना चाहिए। बाप का पहला-पहला कहना है मनमनाभव। जरूर आगे भी कहा है
तब तो अभी भी कहते हैं ना। तुम बच्चे बाप को जानते हो, जब कहाँ सभा में भाषण करने
जाते हो, वो लोग तो बाप को जानते नहीं। तो उनको भी ऐसा कहना चाहिए कि शिवबाबा कहते
हैं, वही पतित-पावन है। जरूर पावन बनाने के लिए यहाँ आकर समझाते हैं। जैसे बाबा यहाँ
तुमको कहते हैं – हे बच्चों, तुमको स्वर्ग का मालिक बनाया था, तुम आदि सनातन
देवी-देवता धर्म वाले विश्व के मालिक थे, वैसे तुमको भी बोलना चाहिए कि बाबा यह कहते
हैं। ऐसे कोई के भाषण का समाचार आया नहीं है। शिवबाबा कहते हैं मुझे ऊंच ते ऊंच
मानते हो, पतित-पावन भी मानते हो, मैं आता भी हूँ भारत में और राजयोग सिखलाने आता
हूँ, कहता हूँ मामेकम् याद करो, मुझ ऊंच बाप को याद करो क्योंकि वह बाप देने वाला
दाता है। बरोबर भारत में तुम विश्व के मालिक थे ना। दूसरा कोई धर्म नहीं था। बाप हम
बच्चों को समझाते हैं हम फिर आपको समझाते हैं। बाबा कहते हैं तुम भारतवासी कितने
साहूकार थे। सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण देवता धर्म था, तुम पवित्र थे, काम
कटारी नहीं चलाते थे। बहुत धनवान थे। फिर बाप कहते हैं तुमने इतना देवाला कैसे
निकाला है – कारण का पता है? तुम विश्व के मालिक थे। अभी तुम विश्व के गुलाम क्यों
बने हो? सभी से कर्जा लेते रहते हो। इतने सब पैसे कहाँ गये? जैसे बाबा भाषण कर रहे
हैं वैसे तुम भी भाषण करो तो बहुतों को आकर्षण हो। तुम लोग बाबा को याद नहीं करते
हो तो किसको तीर लगता नहीं। वह ताकत नहीं मिलती। नहीं तो तुम्हारा एक ही भाषण ऐसा
सुनें तो कमाल हो जाए। शिवबाबा समझाते हैं भगवान तो एक ही है। जो दु:ख हर्ता सुख
कर्ता है, नई दुनिया स्थापन करने वाला है। इसी भारत पर स्वर्ग था। हीरे-जवाहरातों
के महल थे, एक ही राज्य था। सब क्षीरखण्ड थे। जैसे बाप की महिमा अपरमअपार है, वैसे
भारत की महिमा भी अपरमअपार है। भारत की महिमा सुनकर खुश होंगे। बाप बच्चों से पूछते
हैं – इतना धन दौलत कहाँ गँवा दिया? भक्ति मार्ग में तुम कितना खर्चा करते आये हो।
कितने मन्दिर बनाते हो। बाबा कहते हैं ख्याल करो – तुम पावन से पतित कैसे बने हो?
कहते भी हो ना – बाबा दु:ख में आपका सिमरण करते हैं, सुख में नहीं करते। परन्तु
दु:खी तुमको बनाता कौन है? घड़ी-घड़ी बाबा का नाम लेते रहो। तुम बाबा का सन्देश देते
हो। बाबा कहते हैं – हमने तो स्वर्ग, शिवालय स्थापन किया, स्वर्ग में इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। तुम यह भी भूल गये हो। तुमको यह भी पता नहीं है कि
राधे-कृष्ण ही स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। कृष्ण जो विश्व का मालिक
था, उनको कलंक बैठ लगाते हो, मेरे को भी कलंक लगाते हो। मैं तुम्हारा सद्गति दाता,
तुम मुझे कुत्ते बिल्ली, कण-कण में कह देते हो। बाबा कहते हैं तुम कितने पतित बन गये
हो। बाप कहते हैं सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन मैं हूँ। तुम फिर पतित-पावनी गंगा
कह देते हो। मेरे से योग न लगाने से तुम और ही पतित बन पड़ते हो। मुझे याद करो तो
तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। घड़ी-घड़ी बाबा का नाम लेकर समझाओ तो शिवबाबा याद
रहेगा। बोलो, हम बाप की महिमा करते हैं, बाप खुद कहते हैं मैं कैसे साधारण पतित तन
में बहुत जन्मों के अन्त में आता हूँ। इनके ही बहुत जन्म हैं। यह अब मेरा बना है तो
इस रथ द्वारा तुमको समझाता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। भागीरथ यह है,
इनके भी वानप्रस्थ अवस्था में मैं आता हूँ। शिवबाबा ऐसा समझाते हैं। ऐसा भाषण किसका
सुना नहीं है। बाबा का तो नाम ही नहीं लेते हैं। सारा दिन बाबा को तो बिल्कुल याद
ही नहीं करते हैं। झरमुई झगमुई में लगे रहते हैं और लिखते हैं कि हमने ऐसा भाषण किया,
हमने यह समझाया। बाबा समझते हैं कि अभी तो तुम चीटिंया हो। मकोड़े भी नहीं बने हो
और अहंकार कितना रहता है। समझते नहीं हैं कि शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कहते हैं।
शिवबाबा को तुम भूल जाते हो। ब्रह्मा पर झट बिगड़ते हैं। बाप कहते हैं – तुम मुझे
ही याद करो, तुम्हारा काम है मेरे से। मुझे याद करते हो ना। परन्तु तुमको भी पता नहीं
है कि बाप क्या चीज़ है, कब आते हैं। गुरू लोग तुमको कहते हैं कि कल्प लाखों वर्ष
का है और बाप कहते हैं कि कल्प है ही 5 हज़ार वर्ष का। पुरानी दुनिया सो फिर नई होगी।
नई सो फिर पुरानी होती है। अब नई देहली है कहाँ? देहली तो जब परिस्तान होगी तब नई
देहली कहेंगे। नई दुनिया में नई देहली थी, जमुना घाट पर। उन पर लक्ष्मी-नारायण के
महल थे। परिस्तान था। अभी तो कब्रिस्तान होना है, सब दफन हो जाने हैं इसलिए बाप कहते
हैं – मुझ ऊंच ते ऊंच बाप को याद करो तो पावन बनेंगे। हमेशा ऐसे बाबा-बाबा कहकर
समझाओ। बाबा नाम नहीं लेते हो इसलिए तुम्हारा कोई सुनते नहीं हैं। बाबा की याद न
होने से तुम्हारे में जौहर नहीं भरता। देह-अभिमान में तुम आ जाते हो। बांधेलियां जो
मार खाती हैं वह तुमसे जास्ती याद में रहती हैं, कितना पुकारती हैं। बाप कहते हैं
तुम सब द्रोपदियां हो ना। अब तुमको नंगन होने से बचाते हैं। मातायें भी ऐसी कोई होती
हैं जिनको कल्प पहले भी पूतना आदि नाम दिये थे। तुम भूल गये हो।
बाप कहते हैं भारत जब
शिवालय था तो उसे स्वर्ग कहा जाता था। यहाँ फिर जिनके पास मकान, विमान आदि हैं वह
समझते हैं हम स्वर्ग में हैं। कितने मूढ़मती हैं। हर बात में बोलो बाबा कहते हैं।
यह हठयोगी तुमको मुक्ति थोड़ेही दे सकते हैं। जबकि सर्व का सद्गति दाता एक है फिर
गुरू किसलिए करते हो? क्या तुमको संन्यासी बनना है या हठयोग सीखकर ब्रह्म में लीन
होना है? लीन तो कोई हो नहीं सकता। पार्ट सबको बजाना है। सब एक्टर्स अविनाशी हैं।
यह अनादि अविनाशी ड्रामा है, मोक्ष किसको मिल कैसे सकता है। बाप कहते हैं मैं इन
साधुओं का भी उद्धार करने आता हूँ। फिर पतित-पावनी गंगा कैसे हो सकती। पतित-पावन
तुम मुझे कहते हो ना। तुम्हारा मेरे से योग टूटने से यह हाल हुआ है। अब फिर मेरे से
योग लगाओ तो विकर्म विनाश होंगे। मुक्तिधाम में पवित्र आत्मायें रहती हैं। अभी तो
सारी दुनिया पतित है। पावन दुनिया का तुमको मालूम ही नहीं है। तुम सब पुजारी हो,
पूज्य एक भी नहीं। तुम बाबा का नाम लेकर सबको सुजाग कर सकते हो। बाप जो विश्व का
मालिक बनाते हैं – उनकी तुम ग्लानि बैठ करते हो। श्रीकृष्ण छोटा बच्चा, सर्वगुण
सम्पन्न वह ऐसा धंधा कैसे बैठ करेगा। और कृष्ण सबका फादर हो कैसे सकता। भगवान तो एक
होता है ना। जब तक मेरी श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो कट कैसे उतरेगी। तुम सबकी पूजा
करते रहते हो तो क्या हालत हो गई, इसलिये फिर मुझे आना पड़ता है। तुम कितने धर्म
कर्म भ्रष्ट हो गये हो। बताओ हिन्दू धर्म किसने कब स्थापन किया? ऐसे अच्छी ललकार से
भाषण करो। तुमको घड़ी-घड़ी बाप याद ही नहीं आता है। कभी-कभी कोई लिखते हैं कि हमारे
में तो जैसे बाबा ने आकर भाषण किया। बाबा बहुत मदद करते रहते हैं। तुम याद की यात्रा
में नहीं रहते हो इसलिए चींटी मार्ग की सर्विस करते हो। बाबा का नाम लेंगे तब ही
किसको तीर लगेगा। बाबा समझाते हैं बच्चे तुमने ही आलराउन्ड 84 का चक्र लगाया है तो
तुमको ही आकर समझाना पड़े। मैं भारत में ही आता हूँ। जो पूज्य थे वह पुजारी बनते
हैं। मैं तो पूज्य पुजारी नहीं बनता हूँ।
“बाबा कहते हैं, बाबा
कहते हैं”, यह तो धुन लगा देनी चाहिए। तुम जब ऐसे-ऐसे भाषण करो, जब ऐसा हम सुनें तब
समझें कि अब तुम चींटी से मकोड़े बने हो। बाप कहते हैं मैं तुमको पढ़ाता हूँ, तुम
सिर्फ मामेकम् याद करो। इस रथ द्वारा तुमको सिर्फ कहता हूँ कि मुझे याद करो। रथ को
थोड़ेही याद करना है। बाबा ऐसे कहते हैं, बाबा यह समझाते हैं, ऐसे-ऐसे तुम बोलो फिर
देखो तुम्हारा कितना प्रभाव निकलता है। बाप कहते हैं देह सहित सभी सम्बन्धों से
बुद्धि का योग तोड़ो। अपनी देह भी छोड़ी तो बाकी रही आत्मा। अपने को आत्मा समझ मुझ
बाप को याद करो। कई कहते हैं “अहम् ब्रह्मस्मि” माया के हम मालिक हैं। बाप कहते हैं
तुम यह भी नहीं जानते कि माया किसको कहा जाता और सम्पत्ति किसको कहा जाता है! तुम
धन को माया कह देते हो। ऐसे-ऐसे तुम समझा सकते हो। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे मुरली भी
नहीं पढ़ते हैं। बाप को याद नहीं करते तो तीर नहीं लगता क्योंकि याद का बल नहीं
मिलता है। बल मिलता है याद से। जिस योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो। बच्चे हर
बात में बाबा का नाम लेते रहो तो कभी कोई कुछ कह न सके। सर्व का भगवान बाप तो एक है
या सभी भगवान हैं? कहते हैं हम फलाने संन्यासी के फालोअर्स हैं। अब वह संन्यासी और
तुम गृहस्थी तो तुम फालोअर्स कैसे ठहरे? गाते भी हैं झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब
संसार। सच्चा तो एक ही बाप है। वह जब तक न आये तो हम सच्चे नहीं बन सकते हैं।
मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता एक ही है। बाकी कोई भी मुक्ति थोड़ेही देते हैं जो हम उनके
बनें। बाबा कहते हैं यह भी ड्रामा में था। अब सावधान हो आंखें खोलो। बाबा ऐसे कहते
हैं, यह कहने से तुम छूट जायेंगे। तुम्हारे ऊपर कोई बकवाद नहीं करेंगे। त्रिमूर्ति
शिवबाबा कहना है, सिर्फ शिव नहीं। त्रिमूर्ति को किसने रचा? ब्रह्मा द्वारा स्थापना
कौन कराते हैं? क्या ब्रह्मा क्रियेटर हैं? ऐसे-ऐसे नशे से बोलो तब काम कर सकते हो।
नहीं तो देह-अभिमान में बैठ भाषण करते हैं।
बाप समझाते हैं यह
अनेक धर्मों का कल्प वृक्ष है। पहले-पहले है देवी-देवता धर्म। अब वह देवता धर्म कहाँ
गया? लाखों वर्ष कह देते हैं यह तो 5 हज़ार वर्ष की बात है। तुम मन्दिर भी उन्हों
के बनाते रहते हो। दिखाते हैं पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई लगी। पाण्डव पहाड़ों पर
गल मरे फिर क्या हुआ? मैं कैसे हिंसा करुँगा। मैं तो तुमको अहिंसक वैष्णव बनाता
हूँ। काम कटारी न चलाना, उसको ही वैष्णव कहते हैं। वह हैं विष्णु की वंशावली। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सर्विस में सफलता प्राप्त करने के लिए अहंकार को छोड़ हर बात में बाबा
का नाम लेना है। याद में रहकर सेवा करनी है। झरमुई-झगमुई में अपना टाइम वेस्ट नहीं
करना है।
2) सच्चा-सच्चा वैष्णव बनना है। कोई भी हिंसा नहीं करनी है। देह सहित सभी
सम्बन्धों से बुद्धियोग तोड़ देना है।
वरदान:-
प्रवृत्ति के विस्तार में रहते फरिश्ते पन का
साक्षात्कार कराने वाले साक्षात्कार मूर्त भव
प्रवृत्ति का विस्तार होते हुए भी विस्तार को समेटने और
उपराम रहने का अभ्यास करो। अभी-अभी स्थूल कार्य कर रहे हैं, अभी-अभी अशरीरी हो गये
- यह अभ्यास फरिश्ते पन का साक्षात्कार करायेगा। ऊंची स्थिति में रहने से छोटी-छोटी
बातें व्यक्त भाव की अनुभव होंगी। ऊंचा जाने से नीचापन आपेही छूट जायेगा। मेहनत से
बच जायेंगे। समय भी बचेगा, सेवा भी फास्ट होगी। बुद्धि इतनी विशाल हो जायेगी जो एक
समय पर कई कार्य कर सकती है।
स्लोगन:-
खुशी
को कायम रखने के लिए आत्मा रूपी दीपक में ज्ञान का घृत रोज़ डालते रहो।