07-06-09 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 01-11-70 मधुबन
“बाप समान बनने की युक्तियाँ”
आज हिम्मते बच्चे मददे बाप का प्रत्यक्ष सबूत देख रहे हैं। जो गायन है उसका साकार रूप देख रहे हैं। एक कदम बच्चे आगे आते हैं तो हजार गुणा बाप भी कितना दूर से सम्मुख आते हैं। आप कितना माइल से आये हो? बापदादा कितना दूर से आये हैं? ज्यादा स्नेही कौन? बच्चे वा बाप? इसमें भी बाप बच्चों को आगे बढ़ाते हैं। अभी भी इस पुरानी दुनिया में बाप से ज्यादा आकर्षण करने वाली वस्तु क्या है? जब मालूम पड़ गया कि यह पुरानी दुनिया है, सर्व सम्बन्ध, सर्व-सम्पत्ति, सर्व पदार्थ अल्पकाल और दिखावा-मात्र है। फिर भी धोखा क्यों खाते हो? लिप्त क्यों होते हो? अपने गुप्त स्वरुप और बाप के गुप्त स्वरुप को प्रत्यक्ष करो तब बाप के गुप कर्तव्य को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। आपका शक्ति स्वरूप प्रख्यात हो जायेगा। अभी गुप्त है। सिर्फ एक शब्द याद रखो तो अपने गुप्त रूप को प्रैक्टिकल में ला सकते हो। वह कौन-सा शब्द है? सिर्फ अन्तर शब्द। अन्तर में दोनों रहस्य आ जाते हैं। अन्तर कन्ट्रास्ट को भी कहा जाता है और अन्तर अन्दर को भी कहा जाता है। जैसे कहते हैं अन्तर्मुख वा अन्तर्यामी। तो अन्तर शब्द से दो अर्थ सिद्ध हो जाते हैं। अन्तर शब्द याद आने से एक तो हरेक बात का कन्ट्रास्ट करेंगे कि यह श्रेष्ठ है वा नहीं। दूसरा अन्तर की स्थिति में रहने से वा अन्तर स्वरुप में स्थित होने से आपका गुप्त स्वरुप प्रत्यक्ष हो जायेगा। एक शब्द को याद रखने से जीवन को बदल सकते हो। अभी जैसे समय की रफ़्तार चल रही है उसी प्रमाण अभी यह पाँव पृथ्वी पर नहीं रहने चाहिए। कौन सा पाँव? जिससे याद की यात्रा करते हो। कहावत है ना कि फरिश्तों के पाँव पृथ्वी पर नहीं होते। तो अभी यह बुद्धि पृथ्वी अर्थात् प्रकृति के आकर्षण से परे हो जाएगी फिर कोई भी चीज़ नीचे नहीं ला सकती है। फिर प्रकृति को अधीन करने वाले हो जायेंगे। न कि प्रकृति के अधीन होने वाले। जैसे साइंस वाले आज प्रयत्न कर रहे हैं, पृथ्वी से परे जाने के लिए। वैसे ही साइलेंस की शक्ति से इस प्रकृति के आकर्षण से परे, जब चाहें तब आधार लें, न कि प्रकृति जब चाहे तब अधीन कर दे। तो ऐसी स्थिति कहाँ तक बनी है? अभी तो बापदादा साथ चलने के लिए सूक्ष्मवतन में अपना कर्तव्य कर रहे हैं लेकिन यह भी कब तक? जाना तो अपने ही घर में हैं ना। इसलिए अभी जल्दी-जल्दी अपने को ऊपर की स्थिति में स्थित करने का प्रयत्न करो। साथ चलना, साथ रहना और फिर साथ में राज्य करना है ना। साथ कैसे होगा? समान बनने से। समान नहीं बनेंगे तो साथ कैसे होगा। सभी साथ उड़ना है, साथ रहना है। यह स्मृति में रखो तब अपने को जल्दी समान बना सकेंगे। नहीं तो कुछ दूर पड़ जायेंगे। वायदा भी है ना कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ ही राज्य करेंगे। सिर्फ राज्य करने समय बाप गुप्त हो जाते हैं। तो साथ कैसे रहेंगे? समान बनने से। समानता कैसे लायेंगे? साकार बाप के समान बनने से। अभी बापदादा कहते हो ना। उनमें समानता कैसे आई? समर्पणता से समानता सेकण्ड में आई। ऐसे समर्पण करने की शक्ति चाहिए। जब समर्पण कर दिया तो फिर अपना वा अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता। जैसे किसको कोई चीज़ दी जाती है तो फिर अपना अधिकार और अन्य का अधिकार समाप्त हो जाता है। अगर अन्य कोई अधिकार रखे भी तो उसको क्या कहेंगे? यह तो मैंने समर्पण कर ली। ऐसे हर वस्तु सर्व समर्पण करने के बाद अपना वा दूसरों का अधिकार रह कैसे सकता है। जब तक अपना वा अन्य का अधिकार रहता है तो इससे सिद्ध है कि सर्व समर्पण में कमी है। इसलिए समानता नहीं आती। जो सोच-सोच कर समर्पण होते हैं उनकी रिजल्ट अब भी पुरुषार्थ में वही सोच अर्थात् संकल्प विघ्न रूप बनते हैं। समझा। अच्छा।
दुसरी मुरली, रिवाइज़: 05-11-70
डिले इज़ डेन्जर
हरेक अपने लाइट और माईट को देख परख सकते हैं? अपने आप को परखने की शक्ति अपने में अनुभव करते हो? अपने को अब तक पुरुषार्थी मूर्त समझते हो वा साक्षात् और साक्षात्कार मूर्त भी समझते वा अनुभव करते हो? वा समझते हो कि यह अन्तिम स्टेज है? अभी-अभी आपके भक्त आपके सम्मुख आयें तो आपकी सूरत से उनकी किस मूर्त का साक्षात्कार होगा। कौन-सा साक्षात्कार होगा? साक्षात्कार मूर्त सदैव सम्पूर्ण स्थिति का साक्षात्कार करायेंगे, लेकिन अभी अगर आपके सामने कोई आये तो उन्हें ऐसा साक्षात्कार करा सकेंगे? ऐसे तो नहीं कि आपके पुरुषार्थ की उतराई और चढ़ाई का उन्हें साक्षात्कार होता रहेगा। फोटो निकालते समय अगर कोई भी हलचल होती है तो फोटो ठीक निकलेगा? ऐसे ही हर सेकण्ड ऐसे ही समझो कि हमारा फोटो निकल रहा है। फोटो निकालते समय सभी प्रकार का ध्यान दिया जाता है वैसे अपने ऊपर सदैव ध्यान रखना है। एक-एक सेकण्ड इस सर्वोत्तम वा पुरुषोत्तम संगमयुग का ड्रामा रूपी कैमरे में आप सभी का फोटो निकलता जाता है। जो वही चित्र फिर चरित्र के रूप में गायन होता आएगा। और अभी के भिन्न-भिन्न स्टेज के चित्र, भिन्न-भिन्न रूप में पूजे जायेंगे। हर समय यह स्मृति रखो कि अपना चित्र ड्रामा रूपी कैमरे के सामने निकाल रहा हूँ। अब के एक-एक चित्र एक-एक चरित्र गायन और पूजन योग्य बनने वाले हैं। जैसे यहाँ भी जब आप लोग कोई ड्रामा स्टेज पर करते हो और साक्षात्कार करते हो तो कितना ध्यान रखते हो। ऐसे ही समझो बेहद की स्टेज के बीच पार्ट बजा रही हूँ वा बजा रहा हूँ। सारे विश्व की आत्माओं की नज़र मेरी तरफ है। ऐसे समझने से सम्पूर्णता को जल्दी धारण कर सकेंगे। समझा। एक स्लोगन सदा याद रखो जिससे सहज ही जल्दी सम्पूर्ण बन सको। वह कौन सा स्लोगन याद रखेंगे? (जाना है और आना है) यह तो ठीक है। लेकिन जाना कैसे है सम्पूर्ण होकर जाना है वा ऐसे ही? इसके लिए क्या याद रखना? डिले इज़ डेन्जर। अगर कोई भी बात में देरी की तो राज़ भाग के अधिकार में इतनी देरी पड़ जाएगी। इसलिए यह सदैव याद रखो कि वर्तमान समय के प्रमाण एक सेकण्ड भी डिले नहीं करनी है। आजकल कम्पलीट अर्थात् सम्पूर्ण कर्मातीत बनने के लिए पुरुषार्थ करते-करते मुख्य एक कम्पलेन समय प्रति समय सभी की निकलती है। चाहते हैं कम्पलीट होना लेकिन वह कम्पलीट होने नहीं देती। वह कौन सी कम्पलेन है? व्यर्थ संकल्पों की। कम्पलीट बनने में व्यर्थ संकल्पों के तूफ़ान विघ्न डालते हैं। यह मैजारिटी की कम्पलेन है। अब इसको मिटाने लिए आज युक्ति बताते हैं। मन की व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन कैसे पूरी होगी? याद की यात्रा तो मुख्य बात है लेकिन इसके लिए भिन्न-भिन्न युक्तियाँ हैं। वह कौन-सी? जो बड़े आदमी होते हैं उन्हों के पास अपने हर समय की अपॉइन्टमेंट की डायरी बनी हुई होती है। एक-एक घंटा उन्हों का फिक्स होता है। ऐसे आप भी बड़े ते बड़े हो ना। तो रोज़ अमृतवेले सारे दिन की अपनी अपॉइन्टमेंट की डायरी बनाओ। अगर अपने मन को हर समय अपॉइन्टमेंट में बिज़ी रखेंगे तो बीच में व्यर्थ संकल्प समय नहीं ले सकेंगे। अपॉइन्टमेंट से फ्री रहते हो तब व्यर्थ संकल्प समय ले लेते हैं। तो समय की बुकिंग करने का तरीका सीखो। अपने आप की अपॉइन्टमेंट खुद ही बनाओ कि आज सारे दिन में क्या-क्या करना है। फिर समय सफल हो जायेगा। मन को किसमें अपाइन्ट करना है। इसके लिए 4 बातें बताई हैं। 1-मिलन, 2-वर्णन, 3- मगन, 4- लगन। लगन लगाने में भी समय बहुत जाता है ना। तो मगन की अवस्था में कम रहते हैं। इसलिए लगन, मगन, मिलन और वर्णन। वर्णन है सर्विस, मिलन है रूह-रूहान करना। बापदादा से मिलते हैं ना। तो इन चार बातों में अपने समय को फिक्स करो। अगर रोज़ की अपनी दिनचर्या फिर्क्स करने के लिए अपॉइन्टमेंट सारे समय की फिक्स होगी तो बीच में व्यर्थ संकल्पों को डिस्टर्ब करने का समय ही नहीं मिलेगा। जैसे कोई बड़े आदमी होते हैं तो बिज़ी होने के कारण और व्यर्थ बातों तरफ ध्यान और समय नहीं दे सकते हैं। ऐसे अपनी दिनचर्या में समय को फिक्स करो। इतना समय इस बात में, इस समय इस बात में लगाना है। ऐसी अपॉइन्टमेंट अपनी निश्चित करो तब यह कम्पलेन ख़त्म होगी और कम्पलीट बन जाएगी। अच्छा।
वरदान:- प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले पुरूषोत्तम आत्मा भव
ब्राह्मण आत्मायें पुरुषोत्तम आत्मायें हैं। प्रकृति पुरुषोत्तम आत्माओं की दासी है। पुरुषोत्तम आत्मा को प्रकृति प्रभावित नहीं कर सकती है। तो चेक करो प्रकृति की हलचल अपनी ओर आकर्षित तो नहीं करती है? प्रकृति साधनों और सैलवेशन के रूप में प्रभावित तो नहीं करती है? योगी वा प्रयोगी आत्मा की साधना के आगे साधन स्वत: आते हैं। साधन साधना का आधार नहीं है लेकिन साधना साधनों को आधार बना देती है।
स्लोगन:- ज्ञान का अर्थ है अनुभव करना और दूसरों को अनुभवी बनाना।