ओम् शान्ति।
यह कहानी बच्चों प्रति है। बाप कहते हैं बच्चे खाना और सोना, यह कोई लाइफ नहीं। जबकि
तुम बच्चों को यह अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान मिल रहा है, झोली भर रही है। फिर सोना
और खाना यह तो गँवाना है। सवेरे उठने की बड़ी महिमा है। भक्ति मार्ग में भी, ज्ञान
मार्ग में भी, क्योंकि सवेरे के समय बहुत शान्ति रहती है। आत्मायें सब अपने स्वधर्म
में रहती हैं। अशरीरी होकर विश्राम पाती हैं। उस समय याद बहुत रहती है। दिन में तो
माया का धमचक्र रहता है, यह एक ही टाइम अच्छा है। अभी हम कौड़ी से हीरे जैसा बन रहे
हैं। बच्चों को बाप कहते हैं तुम हमारे बच्चे हो, हम तुम्हारे बच्चे हैं। बाप बच्चा
बनता है, यह भी समझने की बात है। बाप अपने बच्चों को वर्सा देते हैं। वैसे मैं
सौदागर तो हूँ ही। तुम्हारा कौड़ी जैसा तन-मन यह सब वर्थ नाट ए पेनी है। वह पुराना
तुम्हारा सब कुछ लेकर फिर तुमको दे देता हूँ कि ट्रस्टी होकर सम्भालो। तुम जन्म बाई
जन्म गाते आये हो - कुर्बान जाऊंगी, बलिहार जाऊंगी। हमारा तो एक, दूसरा न कोई
क्योंकि सजनियां तो सब हैं। तो एक ही साजन को याद करेंगी। देह सहित सब सम्बन्धों को
भूलते-भूलते एक की ही इतनी याद रहे जो अन्त में न यह शरीर, न और कोई याद आये। इतनी
प्रैक्टिस करनी है। सवेरे का समय बड़ा अच्छा है। तुम्हारी यह सच्ची-सच्ची यात्रा
है। वह तो जन्म बाई जन्म यात्रायें करते आये लेकिन मुक्ति को तो पाया नहीं, तो झूठी
यात्रा हुई ना। यह है रूहानी और सच्ची मुक्ति और जीवनमुक्ति की यात्रा। मनुष्य
तीर्थो पर जाते हैं तो अमरनाथ, बद्रीनाथ याद रहते हैं ना। ख़ास 4 धाम कहते हैं।
तुमने कितने धाम किये होंगे! कितनी भक्ति की होगी! आधाकल्प करते आये हो। अब इन बातों
को कोई भी जानते ही नहीं। बाप ही आकर लिबरेट करके फिर गाइड बन साथ ले जाते हैं।
कितना वन्डरफुल गाइड है। बच्चों को ले जाते हैं - मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम। ऐसा गाइड
कोई होता नहीं। संन्यासी लोग सिर्फ मुक्तिधाम कहेंगे, जीवनमुक्ति अक्षर उनके मुख से
निकलेगा नहीं। उसको तो वह काग विष्टा समान अल्पकाल का सुख समझते हैं। तुम बच्चे
जानते हो बाप है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता। हे मात-पिता, आपके जब हम बालक बनते हैं तो
हमारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं। आधाकल्प हम सुखी बन जाते हैं। यह तो बुद्धि में रहता
है ना। परन्तु धन्धे आदि में जाने से भूल जाते हैं। सवेरे उठते नहीं हैं। जिन सोया
तिन खोया।
तुम जानते हो - बरोबर हमको हीरे जैसा जन्म मिला है। अब भी अगर नींद से सवेरे नहीं
उठेंगे तो समझेंगे यह बख्तावर नहीं है। सुबह को उठकर मोस्ट बील्वेड बाप को, साजन को
याद नहीं करते हैं। आधाकल्प से साजन बिछुड़ा है और बाप को तुम सारा कल्प भूल जाते
हो फिर भक्ति मार्ग में तुम साजन के रूप में वा बाप के रूप में याद करते हो। सजनी
साजन को भी याद करती है। उनको फिर बाप भी कहा जाता है। अभी बाप सम्मुख है तो उनकी
श्रीमत पर चलना पड़े। श्रीमत पर अगर नहीं चलते तो यह गिरे। श्रीमत अर्थात् शिवबाबा
की मत। ऐसे नहीं, हमको क्या पता, किसकी मत मिलती है। समझना चाहिए इनकी मत का भी वह
रेसपान्सिबुल है। जैसे लौकिक रीति बच्चों का बाप रेसपान्सिबुल है, सन शोज़ फादर। यह
ब्रह्मा तन भी फादर का शो करता है। मुरब्बी बच्चा है। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे हैं
जो यह नहीं जानते कि हम किसकी मत पर चलते हैं, कौन डायरेक्शन देते हैं? बाबा को तो
याद नहीं करते। सवेरे उठते नहीं, याद नहीं करते तो विकर्म भी विनाश नहीं होते। बाबा
बतलाते हैं इतनी मेहनत करता हूँ तो भी कर्मभोग चलता रहता है क्योंकि एक जन्म की तो
बात नहीं है ना। अनेक जन्मों का हिसाब-किताब है। डायरेक्शन मिला हुआ है, इस जन्म के
भी पाप बतलाने से आधा कट सकता है। यह तो बाप कहते हैं - मैं जानता हूँ और धर्मराज
जानते हैं। पाप बहुत किये हुए हैं। धर्मराज गर्भजेल में सजा देते आये हैं। अभी तो
तुम पुरुषार्थ कर, विकर्म विनाश करते हो तो फिर गर्भ महल मिलता है। वहाँ तो माया
होती नहीं जो मनुष्य को पाप करावे और सजा खानी पड़े। आधाकल्प है ईश्वरीय राज्य,
आधाकल्प है रावण राज्य। सर्प का मिसाल भी यहाँ का है। संन्यासियों ने कॉपी की है।
जैसे भ्रमरी का मिसाल बाबा देते हैं। भ्रमरी कीड़े को अपने घर में ले आती है। तुम
भी पतितों को ले आते हो। फिर उनको बैठ शूद्र से ब्राह्मण बनाते हो। तुम्हारा नाम
ब्राह्मणी है। यह भ्रमरी का दृष्टान्त बहुत अच्छा है। प्रैक्टिकल में आते तो बहुत
हैं फिर कोई कच्चे रह जाते, कोई सड़ जाते, कोई ख़त्म हो पड़ते। माया बड़ा त़ूफान
में लाती है। तुम हर एक वास्तव में हनूमान हो। माया कितना भी तूफान लाये हम बाबा को
और स्वर्ग को कभी नहीं भूलेंगे। घड़ी-घड़ी बाबा कहते हैं - सावधान! मनुष्य तो तीर्थो
पर धक्के खाने लिए जाते हैं। यहाँ और तो कहाँ नहीं जाते। एक ही बाप और सुखधाम को
याद करते रहना है। तुम तो बरोबर विजय पहनने वाले ही हो। इनको बुद्धियोग बल, ज्ञान
बल कहा जाता है। याद करने से बल मिलता है, बुद्धि का ताला खुलता है। अगर कोई भी
बेकायदे चलन चलते हैं तो उनकी बुद्धि का ताला ही बंद हो जाता है। बाप समझाते भी हैं
अगर तुम ऐसा करेंगे तो ड्रामा अनुसार बुद्धि का ताला बन्द हो जायेगा। किसको कह नहीं
सकेंगे कि विकार में मत जाओ। अन्दर खाता रहेगा - हमने इतने पाप किये हैं! अज्ञानकाल
में भी खाता है। मरते हैं फिर तोबां-तोबां करते हैं। फिर पिछाड़ी में सब पाप सामने
आ जाते हैं। गर्भजेल में गया फट से सजायें शुरू हो जाती हैं। पिछाड़ी में याद जरूर
आता है। तो अब बाप कहते हैं तुमको तो तोबां-तोबां नहीं करनी है, तुम पाप मत करो।
जेल बर्ड होते हैं ना। तुम भी जेल बर्ड थे। अभी बाबा गर्भ जेल की सजाओं से छुड़ाते
हैं। कहते हैं मुझ बाप को याद करो तो पापों की सजाओं से छूट जायेंगे, तुम पावन बन
जायेंगे। अगर फिर गिरे तो बहुत चोट लग जायेगी। अशुद्ध अहंकार है पहले। फिर है काम,
क्रोध। काम महाशत्रु है। यह तुमको आदि-मघ्य-अन्त दु:ख देते आये हैं। तुम
आदि-मध्य-अन्त सुख के लिए पुरुषार्थ करते हो। तो पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए। बोलते
हैं सवेरे जाग नहीं सकते हैं तो फिर पद भी ऊंच पा नहीं सकेंगे। दास-दासी बनना पड़ेगा।
वहाँ कोई गोबर आदि नहीं उठाना पड़ता, मेहतर नहीं होते। अभी भी विलायत में नौकर आदि
नहीं रखते हैं। आपेही सफाई हो जाती है। वहाँ तो गन्दगी होती नहीं। बाकी चण्डाल,
दास-दासियां आदि होते हैं।
बाप तुम बच्चों को सब राज़ समझाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में सारी राजधानी है।
तुम ड्रामा को समझ गये हो। पहले-पहले मुख्य इस चक्र को समझाना है। अब ओपनिंग के लिए
गवर्नर आदि को बुलाते हैं। तो बच्चों को डायरेक्शन मिलते हैं ओपनिंग कराने के पहले
उनको कुछ समझाओ कि भारत श्रेष्ठाचारी था, अब फिर भारत भ्रष्टाचारी बना है। भारत के
पूज्य देवी-देवतायें ही फिर पुजारी मनुष्य बने हैं। यह जरूर समझाना है। जो वह खुद
भी कहें कि सृष्टि चक्र का राज़ यह समझाते हैं। जो यह जानते हैं उनको त्रिकालदर्शी
कहा जाता है। मनुष्य होकर अगर ड्रामा को न जाने तो बाकी क्या काम का। ऐसे तो बहुत
कहते हैं बी.के. की पवित्रता बहुत अच्छी है। पवित्रता तो सबको अच्छी लगती है।
संन्यासी पवित्र हैं, देवतायें पवित्र हैं तब तो उन्हों के आगे माथा झुकाते हैं ना।
परन्तु यह और बात है। पतित-पावन एक परमात्मा ही हो सकता है। पतित से पावन बनाने वाला
मनुष्य गुरू हो न सके। यह समझाना चाहिए। कृपा करके इस बात को आप समझो, तो आपका पद
बहुत ऊंच हो जायेगा। भारत पूज्य से पुजारी कैसे बना है, भारतवासी देवी-देवता 84
जन्म कैसे लेते हैं - यह समझाओ। यह बातें जरूर समझानी है। क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष
पहले भारतवासी देवी-देवता ही थे। उसको सुखधाम हेवन कहा जाता है। स्वर्ग सो अब फिर
नर्क बना है। यह फिर तुम बैठ समझायेंगे तो बहुत भारी तुम्हारी महिमा होगी। अखबार
वालों को भी पार्टी देनी है। फिर वह आग लगायें या पानी डालें, उन पर सारा मदार है।
यह तो तुम बच्चे जानते हो लड़ाई लगनी ही है। खून की नदी बहेगी भारत में। हमेशा यहाँ
से ही खून की नदी बहती आई है। अभी पार्टीशन हुआ तो कितने मनुष्य दरबदर हुए। एकदम
अलग-अलग राजधानी हो गई। यह भी ड्रामा में नूँध है। आपस में लड़ते, फ्रैक्शन डालते
हैं। पहले कोई हिन्दुस्तान, पाकिस्तान अलग थोड़ेही था। भारत में ही रक्त की नदी बहनी
है तब फिर घी की नदी बहेगी। नतीजा क्या होता है? थोड़े बच जाते हैं। तुम पाण्डव हो
गुप्त वेष में।
तो गवर्नर को पहले परिचय देना है। जिसके पास जाना होता है, उनकी पहले महिमा की
जाती है। परन्तु उन्हों के लिए क्या लिखा हुआ है, यह राज़ तुम ही जानो। वह थोड़ेही
समझते हैं कि यह मृगतृष्णा के समान राज्य है। ड्रामा अनुसार उन्हों के भी अपने
प्लैन्स बनते ही हैं। महाभारत में दिखाते हैं प्रलय हो गई। अब महाप्रलय तो होती नहीं।
तुम बच्चों के अन्दर सृष्टि चक्र का ज्ञान हर वक्त गूँजना चाहिए। पहले तो वह समझें
कि इन्हों को शिक्षा देने वाला कौन है! तब समझें बरोबर हम भी तो शिव के बच्चे हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे हैं। यह सिजरा है। प्रजापिता ब्रह्मा है ग्रेट ग्रेट
ग्रैन्ड फादर। मनुष्य सृष्टि का बड़ा तो ब्रह्मा हो गया ना। शिव को ऐसे नहीं कहेंगे,
उनको सिर्फ फादर कहेंगे। ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर - यह टाइटिल हो गया प्रजा-पिता
ब्रह्मा का। जरूर ग्रैन्ड मदर, ग्रैन्ड चिल्ड्रेन भी होंगे। तुम बच्चों को यह सब
समझाना है। शिव है सभी आत्माओं का बाप। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं। तुम जानते
हो हमारी फिर कितनी बिरादरियां निकलती हैं। गवर्नर को समझाना चाहिए कि ऐसी
एग्जीवीशन तो कोने-कोने में करानी चाहिए, आप प्रबन्ध कराके दो। हमको तो देखो तीन
पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते और फिर हम विश्व के मालिक बन जाते है। तुम प्रबन्ध करके
दो तो हम भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करें। वह तुमको थोड़ी मदद देंगे तो भी सब
उनको कहने लग पड़ेंगे कि गवर्नर भी ब्रह्माकुमार बना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कौड़ी जैसा तन-मन-धन जो भी है उसे बाप पर कुर्बान कर फिर ट्रस्टी
होकर सम्भालना है। ममत्व निकाल देना है।
2) सवेरे-सवेरे उठ बाप को प्यार से याद करना है। ज्ञान बल और बुद्धियोग बल से
माया पर विजय पानी है।