ओम् शान्ति।
दूर देश के रहने वाले पास बच्चियाँ मिलने आती हैं। बच्चियाँ कोई तीर्थ पर नहीं आती
हैं वा पहाड़ी पर हवा खाने नहीं आती हैं। मनुष्य तो पहाड़ों पर जाते हैं हवा खाने।
परन्तु बच्चे यहाँ पर आते हैं मात-पिता पास मिलने। यह जानते हो मात-पिता दूरदेश के
रहने वाले आते हैं पराये देश में। क्यों आते है? स्वर्ग रचने। उनसे मिलने लिए बच्चे
भिन्न-भिन्न गाँव से, कितना दूरदेश से आते हैं। विलायत से भी आयेंगे। किसलिए? कोई
चीज देखने लिए नहीं। आत्मायें अथवा जीव आत्मायें आती हैं मात-पिता से मिलने।
मात-पिता भी है दूरदेश का रहने वाला। अब तुम किसके आगे बैठे हो? मात-पिता के सामने
बैठे हैं, जिससे स्वर्ग के सुख मिलने हैं परन्तु उनकी मत पर चलने से, इसलिए श्रीमत
का इतना गायन है। भगवानुवाच श्रीमत गाई हुई है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की श्रीमत का
गायन नहीं है। सबसे श्रेष्ठ मात-पिता है जिसका गायन करते हैं। इस सृष्टि के रचयिता
मात-पिता का आह्वान करते हैं कि इस छी-छी पतित दुनिया में आओ, हमको पावन बनाओ। अब
वह पराये देश में आया है। तुम भी पराये देश में बैठे हो। यह रावण का देश है। यह
अकासुर, बकासुर, पूतनायें, सूपनखायें, हिरण्यकश्यप आदि सब इस मनुष्य सृष्टि के
मनुष्यों पर नाम हैं। असुरों का कोई दूसरा रूप नहीं है। न देवताओं का कोई दूसरा रूप
है, न 4 भुजायें हैं। हैं तो वह भी मनुष्य और देवतायें भी मनुष्य। परन्तु देवताओं
का पावन देश में पुनर्जन्म था।
सतयुग-त्रेता जैसे ईश्वर का घर है। स्वर्ग में आते हो तो अपने घर में आते हो। अब
हो पराये घर रावण के घर में। तो बाप आकर तुमको रावण के घर से छुड़ाते हैं, लिबरेट
करते हैं। आधा कल्प तो तुम माया के देश में पुनर्जन्म लेते रहते हो। सतयुग-त्रेता
में तो राम राज्य अर्थात् ईश्वर का राज्य है क्योंकि ईश्वर ने स्थापन किया है। आधा
कल्प वहाँ पुनर्जन्म लेते आये। आधा कल्प रावण के राज्य में पुनर्जन्म लिया। अब बच्चों
को समझ पड़ी है कि हम किसके सामने बैठे हैं। यह टीचर भी है, सतगुरू भी है। तुम
मातायें भी टीचर हो, सतगुरू भी हो। तुम भी पढ़ाती हो - मनुष्य से देवता बनाने लिए।
अब तो तुम आसुरी सम्प्रदाय से दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो। तुमको काँटों से फूल बनाने
इस रथ पर बाप सवार हो आये हैं। यह तो बच्चों से मिलने और देशों में भी जाते हैं
क्योंकि चैतन्य ज्ञान सागर है। जड़ सागर तो नहीं है जो डुबो दे। नहीं, यह चैतन्य
है। गायन है - आत्मा परमात्मा अलग रहे... तो परमात्मा भी आते हैं। तो उनसे मिलने
आत्मायें भी आती हैं। कहाँ-कहाँ से बच्चियाँ आती हैं। बाप भी चक्र लगाते हैं। भक्तों
ने तो जहाँ-तहाँ मन्दिर बनाये हैं। जैसे क्राइस्ट के जड़ चित्र भी बनाते हैं। अब वह
तो है देहधारी और जो भी हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देहधारी हैं। इन सबसे ऊंच ते ऊंच
है भगवान, उनको अपना शरीर नहीं है। उनको तो सभी बाप कहेंगे। परमपिता गॉड फादर। उनको
तो न स्थूल शरीर है, न सूक्ष्म शरीर है। आते भी हैं जरूर। कैसे आते हैं? यह सब भूल
गये हैं। ऐसे तो नहीं कहेंगे श्रीकृष्ण पतित-पावन है। न श्रीकृष्ण के शरीर में आकर
पावन बनाते हैं। तो श्रीकृष्ण भगवानुवाच राँग हो गया। श्रीकृष्ण के मुख द्वारा क्या
रचे? क्या देवतायें? नहीं। पहले तो ब्राह्मण चाहिए। उसके लिए ब्रह्मा चाहिए। नहीं
तो ब्रह्मा का आक्यूपेशन कहाँ? श्रीकृष्ण का नाम लगाने से ब्रह्मा की बायोग्राफी
गुम हो जाती है। श्रीकृष्ण द्वारा सतयुग स्थापन किया तो ब्रह्मा का आक्यूपेशन ही
गुम कर दिया। परन्तु तुम बच्चे जानते हो जो यहाँ आते हो, बाकी जो नहीं जानते वह
समझेंगे कि यह भी एक सतसंग है जहाँ गीता सुनाते हैं। परन्तु यहाँ कौन सुनाते हैं -
यह तुम बच्चे जानते हो। ज्ञान का सागर मोस्ट बील्वेड मात-पिता सुनाते हैं। कितना
मीठा, कितना प्यारा है! तुम कोई मनुष्य को मीठा कह नहीं सकते क्योंकि सभी कड़ुवे
विकारी हैं। बाप उनको पावन बना रहे हैं। तो ऊंच ते ऊंच है भगवान। उसके बाद जो भी
मनुष्य होकर गये हैं, अभी वह सब पतित हैं। जब तक बाप आकर पावन न बनाये तो सब पतित
दु:खी रह जाते हैं। जैसे मनुष्य कहते हैं - कलियुग हजारों वर्ष का है, यह तो
इम्पासिबुल है। महाभारी लड़ाई सामने खड़ी है, जिसमें मुक्ति-जीवन्मुक्ति के गेट्स
खुलते हैं, तब तक कोई मुक्ति-जीवन्मुक्ति में जा नहीं सकते। सभी यहाँ भटकते रहते
हैं। जैसे भूल-भुलैया है। सभी ठोकर खाते रहते हैं। दरवाजा मिलता नहीं। चाहते हैं
मुक्ति-जीवन्मुक्ति के गेट में जायें। कोई मरता है तो भी कहते हैं स्वर्गवासी हुआ।
परन्तु यह तो नर्क है। स्वर्ग में तब जा सकते हैं जब बाप आये, राजयोग सिखलाये, तब
राजाई वा प्रजा पद पा सकते हैं। अब यह है कमाई। कहते हैं ना - इसने कौन-सी कमाई की
जो यह इतना साहूकार बना। तो सतयुग के देवताओं ने कौन-सी कमाई और कब की जो यह ऐसे बनें?
जरूर कलियुग के अन्त में की होगी तब सतयुग में बनें। अब तुम जानते हो हम ऐसी कमाई
कर रहे हैं, जो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जरूर उसकी रिजल्ट तुम स्वर्ग में भोगेंगे।
अब तुम कलियुग और सतयुग के संगम पर हो। उनको अलग युग कर दिया है। सारे
कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बाप समझाते हैं। कहते हैं - बच्चे, अब जो कर्म मैं तुमको
सिखाता हूँ वही करो। इसको कलियुग नहीं कहेंगे, संगमयुग का किसको पता नहीं है। जब
सतयुग से त्रेता होता है तब भी किसको पता नहीं पड़ता कि सतयुग-त्रेता का संगम पास
हो रहा है। यह पीछे गाया जाता है कि सतयुग में फलाने राज्य करते थे, त्रेता में
फलाने राज्य करते थे। द्वापर हुआ तो देवी-देवता वाम मार्ग में चले गये, यह सब अब
तुमको पता पड़ता है। यह ज्ञान और कोई में नहीं है। तुम ही वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हो। तुम्हारे पास एम आब्जेक्ट है। जो भी दुनिया में गीता
पाठशालायें हैं वहाँ वेद-शास्त्र सुनाते हैं। एम आब्जेक्ट कोई नहीं है। स्कूल-कॉलेज
को पाठशाला कहते हैं। वह पढ़ाई फिर भी सोर्स ऑफ इन्कम है। तो तुम्हारे पास एम
ऑब्जेक्ट है कि इस पढ़ाई से पावन बन मुक्ति-धाम में जायेंगे। फिर वहाँ से पार्ट
बजाने सतयुग में आयेंगे। तुमको सतयुग से कलियुग तक कौन-सा पार्ट बजाना है - वह सारा
पता है। तुम बादल यहाँ आये हो भरने के लिए। 21 जन्म के लिए सोर्स आफ इनकम बनाने।
कितनी ऊंच पढ़ाई है तो पढ़ाने वाला भी ऊंच ते ऊंच भगवान एक है। बाकी तो सब हैं
बहन-भाई। ब्रह्मा-सरस्वती, शंकर-पार्वती, विष्णु सब इनके बच्चे हैं। बच्चों को बच्चों
से वर्सा नहीं मिलता है। वर्सा बाप से मिलता है। जो जैसा पुरुषार्थ करेंगे वैसा
वर्सा मिलेगा। और पुरुषार्थ कितना सहज है। अच्छा, इतना ज्ञान नहीं सुना सकते तो तीन
पैर पृथ्वी का लेकर छोटे कमरे में ही गीता पाठशाला खोल दो। बोर्ड में लिख दो - आकर
बाप से 21 जन्मों के लिए वर्सा लो। छोटा बोर्ड ही लगाओ। उसमें लिखो कि 21 जन्मों के
लिए स्वर्ग की बादशाही तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। भल आकर पूछो। तुम
जिसको मात-पिता कहते हो वह तो जरूर स्वर्ग का रचता है तो तुमको जरूर स्वर्ग का वर्सा
मिलना चाहिए। वह कहते हैं निरन्तर मुझे याद करो और सबको भूलो। इनके साथ रहते हुए,
सामने देखते हुए बुद्धि वहाँ लगानी है। बाबा का फरमान मिलता है तो सिर पर रखना
चाहिए ना। बाप आर्डीनेन्स निकालते हैं - बच्चे, अब विष का धन्धा बन्द करो। और कोई
से बात नहीं करते, बच्चों को ही समझाते हैं। बाहर वाला तो यहाँ सभा में कोई बैठ नहीं
सकता। जब तक 7 रोज आकर न समझे। कहानी है ना इन्द्रप्रस्थ में पुखराज परी एक पतित
मनुष्य को ले आई तो उनको सजा मिल गई। तो यह कायदा नहीं। जब तक 7 रोज भट्ठी में नहीं
डाला है। भट्ठी में स्वच्छ होने बिगर बैठ नहीं सकते। हाँ, कोई बड़े मनुष्य मिलने को
आते हैं, सुनते तो हैं ना सुबह का क्लास देखें, तो ऊपर से पूछ कर श्रीमत से बताते
हैं। देखते हैं अच्छा है, उल्टा नहीं उठायेगा तो उनको थोड़ा पहले समझाया जाता है।
फिर आने की छुट्टी देनी पड़ती है।
तुम सबको समझाओ कि यह हमारे मात-पिता हैं जिससे स्वर्ग के सुख मिलते हैं। यह बाप,
टीचर, सतगुरू तीनों हैं। तुमको जैसे 3 इन्जन मिले हैं। इसी समय तीनों इकट्ठे मिलते
हैं। वहाँ तो अलग-अलग मिलते हैं। पहले बाप फिर टीचर और वृद्ध अवस्था में गुरू करते
हैं। तुम अब किसकी परवरिश के नीचे हो? शिवबाबा की क्योंकि तुम्हारे पास जो कुछ भी
है वह शिवबाबा को अर्पण किया है। तुम्हारी परवरिश जैसेकि शिवबाबा के भण्डारे से होती
है। तुमने अपना सब कुछ शिवबाबा को दान किया है। अब उनसे ही तुम पलते हो। कितना
पवित्र अन्न मिलता है। ऐसे कभी होता नहीं जो कोई धर्म (दान) करे उससे ही उनकी
परवरिश हो। वह तो जिसको दान करते वह खा जाता है। यहाँ तो तुम शिवबाबा को देते हो तो
कितना पवित्र बन जाता है! इससे तुम्हारी ही परवरिश होती है। बाप कहते हैं घर में
रहकर ऐसा समझो सब बाबा का है। ऐसे समझ खाते हो तो हू-ब-हू तुम शिव के भण्डारे से
खाते हो। इसमें कोई ममत्व नहीं। बाप का समझते हो। बाप का दिया हुआ है। बाप को अर्पण
किया हुआ है। उनके हुक्म से खा रहे हैं। भल बैठा घर में है परन्तु शिव के भण्डारे
से खाते हैं। कहते हो ना तुम्हीं से खाऊं... तुम्हीं से घूमूं। बाबा-बाबा कहने से
उनसे योग लगा रहेगा। एवरहेल्दी बन जायेंगे। यह है हेल्दी बनने की सेनेटोरियम। उस
सेनेटोरियम में सारी आयु थोड़ेही रहते हैं। थोड़ा टाइम रहकर चले जाते हैं। यहाँ तो
तुम बैठे हुए हो। एवरहेल्दी 21 जन्मों लिए बनते हो। यहाँ आते हो किसलिए? आधा कल्प
लिए एवरहेल्दी, एवरवेल्दी, एवरहैप्पी बनने लिए। इस ख्यालात से आते हो ना। यहाँ हवा
खाने लिए वा तीर्थ करने तो नहीं आते हो। यहाँ आते हो शिवबाबा पास। बाप भी आते हैं
पराये देश, पराये तन में। गीता जो गाई हुई है, कुछ तो राइट होगा। आह्वान करते हैं -
बाप के आने लिए। तो जरूर उनको पतित से पावन बनाने लिए आना पड़े। पतित तो नहीं
परमधाम में उनके पास जायेंगे, पावन होने लिए। जा नहीं सकते। हरेक भक्त की आत्मा
पुकारती है कि बाबा आओ। बाप कहते हैं मैं आता हूँ सबकी गति-सद्गति करने। सर्व के
ऊपर दया करने वाला, सर्वोदया तो एक बाप है ना। कौन-सी दया करते हैं? श्रीमत देते
हैं। श्रीमत तो मशहूर है। जिस पर चलने से श्रेष्ठ अर्थात् स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
फिर जो जितना डायरेक्शन पर चले। कोई तकलीफ तो नहीं देते - हठयोग करने अथवा तीर्थों
पर धक्का खाने की। अमेरिका हो, फिलीपाइन हो.... कहाँ भी हो गृहस्थ व्यवहार में तो
रहना चाहिए। परन्तु रहते हुए कमल पुष्प समान रहना है। जनक का मिसाल है। तुम्हारा है
राजयोग। वह तो कहेंगे स्वर्ग के सुख तो काग विष्टा के समान हैं। परन्तु भारत का
राजयोग तो मशहूर है। इसको कोई जानते नहीं। प्राचीन योग तो प्राचीन बाप ही सिखायेंगे।
गीता वेद शास्त्र आदि सब भक्तिमार्ग की सामग्री है। झाड़ को पूरा होना ही है, फिर
इसी झाड़ को सब्ज होना है। तो तुम आये हो मात-पिता पास रिफ्रेश होने और घड़ी-घड़ी
आयेंगे क्योंकि सम्मुख मज़ा आता है। यहाँ सदा के लिए तो बैठ नहीं सकते। लॉ नहीं।
अपना गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है जरूर।
बाकी यह पाठशाला अजुन बहुत वृद्धि को पायेगी। यह विघ्न आदि न पड़ें तो यह बहुत
बढ़ जायें इसलिए विघ्न पड़ते हैं। पाँच हजार इकट्ठे बैठ कैसे पढ़ेंगे इसलिए लिमिट
है, जिनको बाप सम्मुख देख भी सके। बाप देखते तो आत्माओं को हैं ना। शरीर को नहीं
देखते। जोर से देखेंगे तो उनको शरीर ही भूल जायेगा। चुम्बक है ना। तो जैसे
अनकॉन्सेस होता जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऊंची मंजिल पर जाने के लिए बाप-टीचर-गुरू के रूप में हमें तीन इन्जन
मिले हैं - सदा इसी स्मृति से आगे बढ़ना है।
2) बुद्धि से सब कुछ बाप हवाले कर उनकी परवरिश के नीचे पलना है। बहुत मीठा पावन
बनना है। पतितपने का कड़ुवापन निकाल देना है