ओम् शान्ति।
बच्चों से बेहद का बाप पूछते हैं और जो भी गुरू गोसांई आदि हैं वह अपने फालोअर्स को
बच्चे नहीं कहेंगे। आजकल तो अच्छे-अच्छे जवान विद्वान भी भाषण करते हैं वा बुजुर्ग
मातायें अथवा पुरुष हैं, उनमें हिम्मत ही नहीं आयेगी जो कहें कि हे बच्चों। यह
अक्षर वह कह सकते हैं जो गृहस्थ व्यवहार में हों। बच्चा अक्षर फैमली का है। बाप कह
सकते हैं। वह संन्यासी आदि तो फैमली के नहीं हैं। वह हैं निवृत्ति मार्ग वाले। तो
गृहस्थ व्यवहार के ख्यालात बुद्धि में नहीं आते। यह तो मात-पिता है तो जरूर
बच्चे-बच्चे कहेंगे। तुम भी समझते हो बेहद का बाप हम बच्चों को बैठ समझाते हैं।
पूछते हैं बच्चों तुम्हारा घर कौन सा है? (परमधाम)। परमधाम से कोई समझेंगे नहीं।
कहना चाहिए शान्तिधाम, निर्वाणधाम। तुमको याद करना है अपने घर को। जानते हो बाबा आया
हुआ है, हमको श्रृंगार कर घर ले जायेंगे। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। अभी तो यह है
दु:खधाम। इनका तुमको संन्यास करना है। यह बेहद का संन्यास सिवाए परमपिता परमात्मा
के और कोई सिखला न सके। वह तो हद का अर्थात् घरबार का संन्यास करते हैं। यह तो
मात-पिता है ना। मात-पिता घरबार कैसे छुड़ायेंगे? उनका तो धर्म ही है निवृत्ति
मार्ग का। जैसे और-और धर्म हैं। आर्य समाजी, राधा स्वामी... अभी राधा का स्वामी कौन
है? यह कोई भी नहीं जानते हैं। वास्तव में राधे-कृष्ण तो प्रिन्स-प्रिन्सेज़ हैं।
आपस में दोनों सखा-सखी ठहरे। उनको राधा का स्वामी नहीं कहेंगे। जब राधा का स्वामी
बनता है फिर नाम बदलकर लक्ष्मी-नारायण नाम पड़ेगा। श्री नारायण स्वामी है। हाँ, जब
तक शादी नहीं की है तब तक स्वामी नहीं कहेंगे। यह समझने की बातें हैं।
बाप ने बच्चों से पूछा अपना शान्तिधाम, सुखधाम याद है? यह रावणपुरी दु:खधाम है।
पुरी रहने की होती है। रावणपुरी में राम-सीता हैं नहीं। यूँ तो तुम सब सीतायें हो
और बाप कहते हैं - मैं हूँ राम। मुझे तुम सीताओं को रावण की जेल से छुड़ाना है। जो
सारी दुनिया समुद्र के बीच में है, उन पर रावण का राज्य है। रामराज्य तो सतयुग में
था, जिसमें लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। था भारत पर राज्य। परन्तु उस समय और कोई
खण्ड न होने कारण कहा जाता है, यह भी विश्व के मालिक थे। हैं भारत के मालिक और कोई
खण्डों का नाम निशान नहीं रहता। तो सारी दुनिया के मालिक ठहरे ना, और वहाँ तुम्हारा
मीठे पानी पर राज्य चलता है। तो यह तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए कि अब नाटक
पूरा हुआ है, अभी वापिस घर जाना है। हमने 84 का चक्र लगाया है। मनुष्यों की बुद्धि
में कुछ नहीं आता। ऐसे ही सुनी-सुनाई बात कह देते हैं। तुम जानते हो - हम 84 का
चक्र लगाकर आये हैं। अभी हमको वापिस जाना है। फिर नयेसिर चक्र शुरू होगा। पुरानी
दुनिया कलियुग से नयेसिर शुरू नहीं हो सकता। परन्तु नया चक्र सतयुग से शुरू होगा।
यह सब बातें तुम बच्चों को ही समझाई जाती हैं, परन्तु कितनी बातें बच्चे भूल जाते
हैं। धारणा न होने कारण फिर वह खुशी का पारा नहीं चढ़ सकता। हमारा यह 84 वाँ अन्तिम
जन्म है। फिर हम अपने घर जायेंगे। जब तक पवित्र नहीं बने हैं तब तक कोई वापिस नहीं
जा सकते। जन्म लेना ही है। जो तुम पहले-पहले थे अब पिछाड़ी में हो। सब धर्म वाले अभी
अन्त में भिन्न नाम, रूप देश, काल में हैं। गुरूनानक जिसने सिक्ख धर्म स्थापन किया,
उसकी आत्मा कहाँ है? यहाँ ही भिन्न नाम-रूप में है। सबको पूरा पार्ट बजाना ही है।
अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - नई दुनिया में जाने के लिए। पिछाड़ी में सबको
हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जाना है। गुरूनानक की आत्मा फिर अपने समय पर आयेगी।
सतयुग, त्रेता, द्वापर में वह आ न सके। वह आती ही है कलियुग में। अपने समय पर आकर
धर्म स्थापन करेगी। नम्बरवार अवतार आते हैं, जो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। पहला
नम्बर अवतार है भगवान का। अब निराकार कैसे अवतार ले? बताते हैं मैंने इस चोले का
आधार लिया है। यह अपने जन्मों को नहीं जानते। शरीर तो इनका है ना। गाया भी जाता है
- आये देश पराये। और सब अपने देश, अपने शरीर में आते हैं। हाँ धर्म स्थापक दूसरे के
शरीर में आ सकते हैं, फिर उनका नाम होता है। पवित्र आत्मा आकर प्रवेश करेगी। जो पहली
आत्मा है वह धर्म स्थापन नहीं करेगी, जो आत्मा प्रवेश करेगी वही स्थापना करेगी।
सितम आदि पहले वाली आत्मा सहन करती है। जैसे क्राइस्ट की आत्मा आई वह तो सतोप्रधान
थी, उनको कुछ सहन नहीं करना है। उनको तो पहले सतो में ही आना है। तो जो पहली आत्मा
है, वह सहन करती है। दु:ख तो आत्मा को ही होता है ना, जब शरीर के साथ है। धर्मराज
भी शरीर धारण कराए सज़ा देंगे। आत्माओं को फील होता है कि हम सज़ा खा रहे हैं इसलिए
कहा जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। पाप शरीर, पुण्य शरीर नहीं कहा जाता है।
संन्यासी तो कह देते हैं आत्मा निर्लेप है, शरीर पर पाप लगता है। अनेक प्रकार के
गुरू लोग हैं। बाबा ने बहुत गुरूओं का अनुभव किया है। बाबा हर एक से पूछते रहते थे
- क्यों संन्यास किया? घरबार कैसे छोड़ा? बतलाते नहीं थे। तो मैं कहता था कि मैं
कैसे समझूँ कि मैं भी कर सकूँगा वा नहीं? ऐसी-ऐसी बातें बड़े शुरूडनेस (समझदारी) से
करते थे। अभी समझते हैं कि यह सारा जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है इनकी जड़जड़ीभूत
अवस्था है। अभी फिर से नया शुरू होना है। प्रलय तो होती नहीं। शास्त्रों में
महाप्रलय दिखाई है। वह तो होती नहीं। कहते हैं श्रीकृष्ण सागर में पीपल के पत्ते पर
आया। यह सब हैं गपोड़े।
बाप कहते हैं - मैं तो आता हूँ आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने। हमेशा
पहले स्थापना फिर विनाश, पालना.. ऐसे कहना चाहिए। ऐसे नहीं कि पहले स्थापना, पालना,
पीछे विनाश कहो। तो कोई सेन्सीबुल सुनेगा तो कहेगा यह तोते मुआफिक पढ़े हुए हैं।
स्थापना, पालना फिर विनाश कैसे होगा! इसलिए कायदेमुज़ीब करेक्ट अक्षर बोलने हैं।
स्थापना, विनाश, पालना। अभी ऊंचे ते ऊंच बाप की तुमको श्रीमत मिलती है। देते हैं
ब्रह्मा के तन द्वारा, यह बाबा का शरीर मुकरर है। सेन्सीबुल बच्चे जो होंगे उनको
कोई राय पूछनी होगी तो श्रीमत लेंगे। श्रीमत पर चलने से कभी धोखा नहीं खायेंगे।
शिवबाबा की ही श्रीमत है। बाबा दूर थोड़ेही है। बाप देखते हैं बच्चे रांग चलते हैं
वा राइट चलते हैं। हर एक को सर्जन से राय मिल सकती है। यह है सबसे बड़ा सर्जन। कोई
भी बात में तकलीफ हो तो बाबा बैठा है। श्रीमत पर चलते रहो। समझो कोई गरीब बच्चा है,
धारणा अच्छी है, सर्विसएबुल है, परन्तु गरीब है इसलिए आकर मिल नहीं सकता। ऐसे को
टिकट भी मिल सकती है। बाप तो गरीबनिवाज़ है ना। ऐसे तो बाप को बच्चे चाहिए जो गरीब
से गरीब हो और पढ़कर ऊंचे ते ऊंचा चढ़ जाये। आजकल सब गरीब हैं। 10-20 लाख तो कुछ भी
नहीं हैं। 10-20 करोड़ हो तो साहूकार कहा जाए। बाबा ने समझाया है - पदमपति यह वर्सा
ले नहीं सकेंगे। वह अर्पण हो न सकें। न बाबा एलाउ करेंगे। गरीबों की पाई-पाई सफल
होती है। ऐसी क्या पड़ी है, यह भी पक्का सौदागर है इसलिए साहूकार आते ही नहीं हैं।
बाप कहते हैं तुम अपनी राजाई सम्भालते रहो।
अब तुम बच्चे जानते हो - बाबा आकर सब वेदों, शास्त्रों का सार समझाते हैं। यह भी
बाबा ने समझाया है - विष्णु को ब्रह्मा बनने में 5 हजार वर्ष लगते हैं और ब्रह्मा
से विष्णु को निकलने में एक सेकण्ड... और कोई यह बातें समझ न सके। बाबा कितना अच्छा
हिसाब समझाते हैं। विष्णु की नाभी कमल से 84 जन्मों बाद अभी ब्रह्मा निकला है। अभी
ब्रह्मा सरस्वती सो फिर लक्ष्मी-नारायण बन जाते हैं। सूर्यवंशी बनेंगे फिर
चन्द्रवंशी बनेंगे। यह सारा चक्र बुद्धि में है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो
ब्रह्मा यह टापिक बहुत अच्छी है। सारे चक्र का राज़ इसमें आ जाता है। यह सब बातें
सेन्सीबुल बच्चे अच्छी रीति धारण कर सकेंगे और प्वाइंट्स लिखते करेक्ट करते रहेंगे।
भाषण जब करते हैं, कोई को याद नहीं रहता तो कागज सामने रखते हैं। तुम बच्चों को ओरली
समझाना है। बैरिस्टर लोग बहुत अभ्यास करते हैं। फिर दूसरा वकील आरग्यू करेंगे तो
किताब खोलकर देखेंगे। फिर बोलेंगे जज साहेब देखो फलानी लॉ बुक में यह है। वह फिर
कहेंगे फलाने बुक में यह है। उन्हों के पास बहुत प्वाइंटस रहती हैं। इंजीनियर की भी
बुद्धि चलती रहती है। तो हमको ऐसे-ऐसे प्लैन्स बनाने हैं। तुमको भी विचार चलाना है।
टापिक की लिस्ट बनानी चाहिए। इस पर यह-यह प्वाइंट्स समझायेंगे। फिर सारी नॉलेज
बुद्धि में आ जायेगी, फिर एक्यूरेट भाषण करेंगे। अचानक भाषण करेंगे तो गड़-बड़ होगी।
यह भी नम्बरवार प्रैक्टिस है। तब तो जो तीखे हैं उनको बुलाते हैं, आकर भाषण करो।
समझते हैं यह बड़ी बहन है। भाईयों में जगदीश होशियार है। तो कहेंगे यह बड़ा भाई है
तो फिर रिगार्ड पूरा रखना चाहिए। फिर बड़े का काम है छोटों को सिखाना। स्कूल में
मैनर्स भी सिखलाते हैं। इसमें भी मैनर्स अच्छे चाहिए। दैवीगुण धारण करने हैं। मूडी
नहीं बनना है। कभी मीठा, कभी कैसा वह फिर सर्विस नहीं कर सकते। बहुत मीठा बनना
चाहिए। बहुत प्यार से किसको समझाना है तब अच्छा पद मिल सकता है। सभी को राज़ी करना
है। यह तो जानते हो बाबा आकर सभी मनुष्य मात्र को खुश करते हैं। सर्व के सद्गति दाता,
सर्व को सुख-शान्ति देने वाला है। प्रेम का सागर, सुख का सागर है। तुम्हारा बाप है
तो बाप जैसा मीठा बनना पड़े। तुम कल्प-कल्प बाप का शो निकालते हो। शिव शक्ति पाण्डव
सेना तुम स्वर्ग की स्थापना करते हो, टाइम लगता है। जब तक आसुरी गुण बदल दैवीगुण बन
जायें। आत्मा पर जो जंक चढ़ी हुई है वह कैसे निकलेगी? योगबल से। जितना बाबा की याद
में रहेंगे उतना कट उतरेगी। बच्चों को मुरली एक भी मिस नहीं करनी चाहिए। बहुत बच्चे
सुस्त हैं जो कभी मुरली भी नहीं पढ़ते हैं। मुरली में बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स
निकलती हैं। तो कभी भी मुरली मिस नहीं होनी चाहिए। परन्तु बाबा जानते हैं
अच्छे-अच्छे बी.के. भी मुरली की परवाह नहीं करते। समझते हैं हम होशियार हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सभी को राज़ी करना है। मूडी दिमाग वाला नहीं बनना है। बहुत-बहुत मीठा
बनना है। अच्छे मैनर्स सीखने और सिखलाने हैं।
2) हर कदम पर सुप्रीम सर्जन से राय लेनी है। श्रीमत पर चलते रहना है। सेन्सीबुल
बन हर प्वाइंटस स्वयं में धारण करनी है।