14-09-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त बापदादा” रिवाइज़ - 18-01-70 मधुबन
“सम्पूर्ण विल करने से विल-पॉवर की प्राप्ति”
आज किसलिए बुलाया हैं? आज बापदादा क्या देख रहे हैं? एक एक सितारे को किस रूप में देख रहे हैं? सितारों में भी क्या विशेषता देखते हैं? हरेक सितारे की सम्पूर्णता की समीपता देख रहे हैं। आप सभी अपने को जानते हो कि कितना सम्पूर्णता के समीप पहुँचे हो? सम्पूर्णता के समीप पहुँचने की परख क्या होती हैं? सम्पूर्णता की परख यही है किववाह सभी बातों को सभी रीति से, सभी रूपों से परख सकते हैं। आज सारे दिन में क्या-क्या स्मृति आई? चित्र स्मृति में आया व्वा चरित्र स्मृति में आया? चित्र के साथ और कुछ याद आया? (शिक्षा याद आई, ड्रामा याद आया)। चित्र के साथ विचित्र भी याद आया? कितना समय चित्र की यद् में थे कितना समय विचित्र की यद् में थे या दोनों की याद मिली हुई थी? विचित्र के साथ चित्र को याद करने से खुद भी चरित्रवान बन जायेंगे। अगर सिर्फ चित्र और चरित्र को यद् करेंगे तो चरित्र की ही याद रहेगी। इसलिए विचित्र के साथ चित्र और चार्टर याद आये। आज के दिन और भी कोई विशेष कार्य किया? सिर्फ याद में ही मग्न थे कि याद के साथ और भी कुछ किया? (विकर्म विनाश) – यह तो याद का परिणाम हैं। और विशेष क्या कर्त्तव्य किया? पूरा एक वर्ष अपना चार्ट देखो? इस अव्यक्ति पढ़ाई, इस अव्यक्त स्नेह और सहयोग की रिजल्ट चेक की? इस अव्यक्त स्नेह और सहयोग का १२ मास का पेपर क्या हैं, चेकिंग की? चेकिंग करने के बाद ही अपने ऊपर अधिक अटेंशन रख सकते हैं। तो आज के दिन स्वयं ही अपना पेपर चेक करना है। व्यक्त भाव से अव्यक्त भावव में कहाँ तक आगे बढ़े – यह चेकिंग करनी है। अगर अव्यक्ति स्थिति बढ़ी है तो अपने चलन में भी अलौकिक होंगे। अव्यक्त स्थिति की प्रैक्टिकल परख क्या है? अलौकिक चलन। इस लोक में रहते अलौकिक कहाँ तक बने हो? यह चेक करना है। इस वर्ष में पहली परीक्षा कोनसी हुई? इस निश्चय की परीक्षा में हरेक ने कितने-कितने मार्क्स ली। वह अपने आप को जानते हैं। निश्चय की परीक्षा तो हो गयी। अब कौन सी परीक्षा होनी हैं? परीक्षा का मालुम होते भी फ़ैल हो जाते है। कोई-कोई के लिए यह बड़ा पेपर है लेकिन कोई-कोई का अब बड़ा पेपर होना है। जैसे इस पेपर में निश्चय की परीक्षा हुई वैसे ही अब कौन सा पेपर होना है? व्यक्त में भी अब भी सहारा है। जैसे पहले भी निमित्त बना हुआ साकार तन सहारा था वैसे ही अब भी ड्रामा में निमित्त बने हुए साकार में सहारा हैं। पहले भी निमित्त ही थे। अब भी निमित्त हैं। यह पुरे परिवार का साकार सहारा बहुत श्रेष्ठ है। अव्यक्त में तो साथ है ही। जितना स्नेह होता है उतना सहयोग भी मिलता है। स्नेह की कमी के कारन सहयोग भी कम मिलता है। साकार से स्नेह अर्थात् सारे सिजरे से स्नेह। साकार अकेला नहीं हैं। प्रजापिता ब्रह्मा तो उनके साथ परिवार है। माला के मनके हो न। माला में अकेला मनका नहीं होता है। माला में एक ही याद के सूत्र में, स्नेह में परिवार समाया हुआ है। तो यह जैसे माला में स्नेह के सूत्र में पिरोये हुए हैं। दैवी कुल तो भविष्य में है, इस ब्राह्मण कुल का बहुत महत्व है। जितना-जितना ब्राह्मण कुल से स्नेह और समीपता होगी उतना ही दैवी राज्य में समीपता होगी। साकार में क्या सबूत देखा? बापदादा किसको आगे रखते हैं? बच्चों को। क्योंकि बच्चों के बिना माँ बाप का नाम बाला नहीं हो सकता। तो जैसे साकार में कर्म करके दिखाया वही फॉलो करना है। यहाँ पेपर पहले ही सुनाया जाता है। निश्चय का पेपर तो हुआ। लेकिन अब पेपर होना है हरेक के स्नेह, सहयोग और शक्ति का। अब वह समय नजदीक आ रहा है जिसमे आप का भी कल्पप पहलेवाला चित्र प्रत्यक्ष होना है। अनेक प्रकार की समस्याओं को परिवर्तन के लिए ऊँगली देनी है। कलियुगी पहाड़ तो पार होना ही है। लेकिन इस वर्ष में मन की समस्याएं, तन की समस्याएं, वायुमण्डल की समस्याएं सर्व समस्याओं के पहाड़ को स्नेह और सहयोग की अंगुली देनी है। तन की समस्या भी आणि है। लौकिक सम्बन्ध में तो पास हो गए। लेकिन यह जो अलौकिक सम्बन्ध है, उस सम्बन्ध द्वारा भी छोटी-मोती समस्याएं आएँगी। लेकिन यह समस्याएं सभी पेपर समझना, यह प्रैक्टिकल बातें नहीं समझना। यह प्पपेर समझना। अगर पेपर समझकर उनको पास करेंगे तो पास हो जायेंगे। अभी देखना है पेपर आउट होते भी कितने पास होते हैं। फिर इस पेपर की रिजल्ट सुनायेंगे। इस समय अपने में विल पावर धारण करना है। अभी विल पावर नहीं आई है। यथा योग्य यथा शक्ति पावर है।
विल पावर कैसे आ सकेगी? विल पावर आने का साधन कौन सा है? विल पावर की कमी क्यों हैं? उसके कारण का पता है? याद की कमी भी क्यों है? बाप ने साकार में कर्म करके दिखाया है, विल पावर कैसे आई। पहला पहला कदम कौन सा उठाया? सभी कुछ विल कर दिया? विल करने में देरी तो नहीं की? जो भी बुरे है अन्दर वा बाहर। वह सम्पूर्ण विल नहीं की है तब तक विल पावर आ नहीं सकती। साकार ने कुछ सोचा क्या? कि कैसे होगा, क्या होगा, यह कब सोचा? अगर कोई सोच-सोच कर विल करता है तो उसका इतना फल नहीं मिलता। जैसे झाटकू और बिगर झाटकू का फर्क होता है। पहले स्वीकार कौन होता है? जो पहले स्वीकार होता है उनको नंबर वन की शक्ति मिलती है। जो पहले स्वीकार नहीं होते उनको शक्ति भी इतनी प्रप्प्त नहीं होती है। इस बात पर सोचना। बापदादा वर्तमान के साथ भविष्य भी जनता है। तो भविष्य कर्मबन्धन की रस्सियों को काटना अप्पना कर्त्तव्य है। अगर कोई भी रस्सी टूटी हुई नहीं होती है तो मन की खिंचावट होती रहती है। इसलिए रस्सियाँ कटवाने के लिए ठहरे हैं। रस्सियाँ अगर टूटी हुई है तो फिर कोई रुक सकता है? छुटा हुआ कब कोई भी बंधन में रुक नहीं सकता।
आज के दिवस पर क्या करना है और अगले ववर्ष के लिए क्या तैयारी करनी है – वह सभी याद रखना है। विदेही को युगल बनायेंगे तो विदेही बनने में सहयोग मिलेगा। विदेही बनने में सहयोग कम मिलता है, सफ़लता कम देखने में आती तो समझना चाहिए कि व्विदेही को युगल नहीं बनाया है। कमाल इसको कहा जाता ही जो मुश्किल बात को सहज करें। सहज बातों को पार करना कोई कमाल नहीं है। मुश्किलातों को पार करना वह है कमाल। अगर मुश्किलातों में ज़रा भी मुरझाया तो क्या होगा? एक सेकंड में सौदा करनेवाले कहाँ फँसते नहीं हैं। फ़ास्ट जाने वाला कहाँ फँसेगा नहीं। फँसनेवाला फ़ास्ट नहीं जा सकेगा। लास्ट स्थिति को देख फ़ास्ट जाना है। अब भी फ़ास्ट जाने का चांस है। सिर्फ एक हाई जम्प लगाना है। लास्ट में फ़ास्ट नहीं जा सकेंगे। अच्छा।
सर्व प्राप्तियों की खान मधुबन (पर्सनल)
मधुबन में आकर मुख्य कर्तव्य क्या किया? जैसे कोई खान पर जाते हैं तो खान के पास जाकर क्या किया जाता है। खान से जितना ले सकते हैं उतना लिया जाता है। सिर्फ थोड़ा सा नहीं। वैसे ही मधुबन है सर्व प्राप्तियों की खान। तो आप खान पर आये हो ना। बाकी सेवाकेन्द्र हैं इस खान की ब्रान्चेज। खान पर जाने से ख्याल रखा जाता है जितना ले सकें। तो यहाँ भी जितना ले सको ले सकते हो। यहाँ की एक-एक वस्तु एक एक ब्राह्मण आत्मा बहुत कुछ शिक्षा और शक्ति देने वाली है। बापदादा यही चाहते हैं कि जो भी आते हैं वह थोड़ा बहुत नहीं लेकिन सभी कुछ ले लेवें। बापदादा का बच्चों में स्नेह है तो एक-एक को सम्पन्न बनाने चाहते हैं। जितना यहाँ लेने में सम्पन्न बनेंगे उतना ही भविष्य में राज्य पाने के सम्पन्न होंगे। इसलिए एक सेकेण्ड भी इन अमूल्य दिनों को ऐसे नहीं गंवाना। एक एक सेकेण्ड में पदमों की कमाई कर सकते हो। पदम सौभाग्यशाली तो हो, जो इस भूमि पर पहुँच गये हो। लेकिन इस पदम भाग्य को सदा कायम रखने के लिए पुरुषार्थ सदैव सम्पूर्णता का रखना। जैसा बीज होता है वैसा फल निकलता है। तो आप लोग जैसे बीज हो, नींव जितनी खुद मजबूत होगी उतना ही इमारत भी पक्की होगी। इसलिए सदैव समझना चाहिए कि हम नींव हैं। हमारे ऊपर सारे बिल्डिंग का आधार है।
याद का रेसपाण्ड मिलता है? बापदादा तो अब सभी के साथ हैं ही क्योंकि साकार में तो एक स्थान पर साथ नहीं रह सकते थे। अभी तो सर्व के साथ रह सकते हैं। सदैव यह ध्यान रखो कि एक मत से एक रिजल्ट होगी। इस गुण को परिर्वतन में लाना। कैसी भी परिस्थिति आये, लेकिन अपने को मजबूत रखना है। औरों को अपने गुणों का दान देना है। जैसे दान करने से रिटर्न में भविष्य में मिलता है ना। इस गुण का दान करने से भी बड़ी प्रालब्ध मिलती है, जो एक मत होते हैं वही एक को प्यारे लगते हैं। बापदादा दो होते एक हैं ना। वैसे भल कितने भी हो लेकिन एकमत होकर चलना। बाप के घर में आकर विशेष खजाना लिया? बाप के घर में विशेषतायें भरी हुई हैं ना। अपने घर में असली स्वरूप में स्थित होने आये हो, अपना असली स्वरूप और असली स्थिति क्या है, वह याद आती है? आत्मा की असली स्थिति क्या है? जैसे पहले आत्मा परमधाम की निवासी, सर्व गुणों का स्वरूप है। वैसे ही यहाँ भी अपने स्थिति का अनुभव करने लिये आये हो। मधुबन में आये हो उस स्थिति की टेस्ट करने। टेस्ट करने बाद उनको सदा के लिये अपनाना है। इसका नाम ही है मधुबन। मधु अर्थात मधुरता यानी स्नेह और शक्ति दोनों ही वरदान पूर्ण रूप से प्राप्त करना। यहाँ मधुबन में दोनों चीजें वरदान रूप में मिलती हैं। फिर बाहर में जायेंगे तो इन दोनों चीज़ों के लिये अपना पुरुषार्थ करना पड़ेगा। इसलिए यहाँ वरदान रूप में प्राप्त जो हो रहा है, उनको ऐसा प्राप्त करना जो अविनाशी रहे। जब वरदान रूप में प्राप्त हो सकते हैं तो पुरुषार्थ करके क्यों लेवें। गुरू वरदान देता है तो क्या करना होता है? अपने को उसके अर्पण करना पड़ता है, तब वरदान प्राप्त होता है। तो यहाँ भी जितना अपने को अर्पण करेंगे, उतना वरदान प्राप्त होगा। वरदान तो सभी को मिलता है, लेकिन जो ज्यादा अपने को अर्पण करता है, उतना ही वरदान का पात्र बनता है। वरदान से ऐसी झोली भर लो, जो भरी हुई झोली कभी खाली न हो। जितना जो भरना चाहे वह भर सकते हैं। ऐसा ही ध्यान रखकर इन थोड़े दिनों में अथक लाभ उठाना है। एक-एक सेकेण्ड सफल करने के यह दिन हैं। अभी का एक सेकेण्ड बहुत फायदे और बहुत नुकसान का भी है। एक सेकेण्ड में जैसे कई वर्षों की कमाई गंवा भी देते हैं ना। तो यहाँ का एक सेकेण्ड इतना बड़ा है।
त्याग से ही भाग्य बनता है। लेकिन त्याग करने के बाद मन्सा में भी संकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए। जब कोई बलि चढ़ता है तो उसमें अगर जरा भी चिल्लाया वा आंखों से बूँद निकली तो उनको देवी के आगे स्वीकार नहीं करायेंगे। झाटकू सुना है ना। एक धक से कोई चीज़ को खत्म करने और बार बार काटने में फर्क रहता है ना। झाटकू अर्थात् एक धक से खत्म। बापदादा के पास भी कौन से बच्चे स्वीकार होंगे? जिनको मन्सा में भी संकल्प न आये, इसको कहा जाता है महाबली। ऐसे महान बलि को ही महान बल की प्राप्ति होती है। सर्वशक्तिवान के बच्चे हो और फिर शक्ति नहीं, बाप की पूरी जायदाद का हकदार बनना है ना। सर्वशक्तिवान बाप की सर्व शक्तियों की जायदाद, जन्म सिद्ध अधिकार सदैव अपने सामने रखो। सर्वशक्तिवान के आगे कमजोरी ठहर सकती है? आज से कमजोरी खत्म। सिर्फ एक शक्ति नहीं। पाण्डव भी शक्ति रूप है। एक दीप से अनेक जगते हैं। अच्छा।
वरदान:- परमात्म प्यार की छत्रछाया में सदा सेफ रहने वाले दु:खों की लहरों से मुक्त भव
जैसे कमल पुष्प कीचड़ पानी में होते भी न्यारा रहता है। और जितना न्यारा उतना सबका प्यारा है। ऐसे आप बच्चे दु:ख के संसार से न्यारे और बाप के प्यारे हो गये, यह परमात्म प्यार छत्रछाया बन जाता है। और जिसके ऊपर परमात्म छत्रछाया है उसका कोई क्या कर सकता! इसलिए फ़खुर में रहो कि हम परमात्म छत्रछाया में रहने वाले हैं, दु:ख की लहर हमें स्पर्श भी नहीं कर सकती।
स्लोगन:- जो अपने श्रेष्ठ चरित्र द्वारा बापदादा तथा ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करते हैं वही कुल दीपक हैं।