31-07-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 14.11.87 "बापदादा" मधुबन
पूज्य देव आत्मा बनने का
साधन - पवित्रता की शक्ति
आज रूहानी शमा अपने
रूहानी परवानों को देख रहे हैं। हर एक रूहानी परवाना अपने उमंग-उत्साह के पंखों से
उड़ते-उड़ते इस रूहानी महफिल में पहुँच गये हैं। यह रूहानी महफिल विचित्र अलौकिक
महफिल है जिसको रूहानी बाप जाने और रूहानी बच्चे जानें। यह रूहानी आकर्षण के आगे
माया की अनेक प्रकार की आकर्षण तुच्छ लगती है, असार अनुभव होती है। यह रूहानी
आकर्षण सदा के लिए वर्तमान और भविष्य अनेक जन्मों के लिए हर्षित बनाने वाली है,
अनेक प्रकार के दु:ख-अशान्ति की लहरों से किनारा कराने वाली है। इसलिए सभी रूहानी
परवाने इस महफिल में पहुँच गये हैं।
बापदादा सभी परवानों
को देख हर्षित होते हैं। सभी के मस्तक पर पवित्र स्नेह, पवित्र स्नेह के सम्बन्ध,
पवित्र जीवन की पवित्र दृष्टि-वृत्ति की निशानियाँ झलक रही हैं। सभी के ऊपर इन सब
पवित्र निशानियों के सिम्बल वा सूचक ‘लाइट का ताज' चमक रहा है। सगंमयुगी ब्राह्मण
जीवन की विशेषता है - पवित्रता की निशानी। यह लाइट का ताज जो हर ब्राह्मण आत्मा को
बाप द्वारा प्राप्त होता है। महान आत्मा, परमात्म-भाग्यवान आत्मा, ऊँचे ते ऊँची
आत्मा की यह ताज निशानी है। तो आप सभी ऐसे ताजधारी बने हो? बापदादा वा मातपिता हर
एक बच्चे को जन्म से ‘पवित्र-भव' का वरदान देते हैं। पवित्रता नहीं तो ब्राह्मण
जीवन नहीं। आदि स्थापना से लेकर अब तक पवित्रता पर ही विघ्न पड़ते आये हैं क्योंकि
पवित्रता का फाउण्डेशन 21 जन्मों का फाउण्डेशन है। पवित्रता की प्राप्ति आप
ब्राह्मण आत्माओं को उड़ती कला की तरफ सहज ले जाने का आधार है।
जैसे कर्मों की गति
गहन गाई है, तो पवित्रता की परिभाषा भी अति गुह्य है। पवित्रता माया के अनेक विघ्नों
से बचने की छत्रछाया है। ‘पवित्रता को ही सुख-शान्ति की जननी कहा जाता है।' किसी भी
प्रकार की अपवित्रता दु:ख वा अशान्ति का अनुभव कराती है। तो सारे दिन में चेक करो -
किसी भी समय दु:ख वा अशान्ति की लहर अनुभव होती है? उसका बीज अपवित्रता है। चाहे
मुख्य विकारों के कारण हो वा विकारों के सूक्ष्म रूप के कारण हो। पवित्र जीवन
अर्थात् दु:ख-अशान्ति का नाम निशान नहीं। किसी भी कारण से दु:ख का जरा भी अनुभव होता
है तो सम्पूर्ण पवित्रता की कमी है। पवित्र जीवन अर्थात् बापदादा द्वारा प्राप्त
हुई वरदानी जीवन है। ब्राह्मणों के संकल्प में वा मुख में यह शब्द कभी नहीं होना
चाहिए कि इस बात के कारण वा इस व्यक्ति के व्यवहार के कारण मुझे दु:ख होता है। कभी
साधारण रीति में ऐसे बोल, बोल भी देते या अनुभव भी करते हैं। यह पवित्र ब्राह्मण
जीवन के बोल नहीं हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर सेकेण्ड सुखमय जीवन। चाहे दु:ख का
नजारा भी हो लेकिन जहाँ पवित्रता की शक्ति है, वह कभी दु:ख के नजारे में दु:ख का
अनुभव नहीं करेंगे लेकिन दु:ख-हर्त्ता सुख-कर्त्ता बाप समान दु:ख के वायुमण्डल में
दु:खमय व्यक्तियों को सुख-शान्ति के वरदानी बन सुख-शान्ति की अंचली देंगे, मास्टर
सुख-कर्त्ता बन दु:ख को रूहानी सुख के वायुमण्डल में परिवर्तन करेंगे। इसी को ही कहा
जाता है - ‘दु:ख-हर्त्ता सुख-कर्त्ता।'
जब साइन्स की शक्ति
अल्पकाल के लिए किसी का दु:ख-दर्द समाप्त कर लेती है, तो पवित्रता की शक्ति अर्थात्
साइलेन्स की शक्ति दु:ख-दर्द समाप्त नहीं कर सकती? साइन्स की दवाई में अल्पकाल की
शक्ति है तो पवित्रता की शक्ति में, पवित्रता की दुआ में कितनी बड़ी शक्ति है? समय
प्रमाण जब आज के व्यक्ति दवाइयों से कारणे-अकारणे तंग होंगे, बीमारियाँ अति में
जायेंगी तो समय पर आप पवित्र देव वा देवियों के पास दुआ लेने लिए आयेंगे कि हमें
दु:ख, अशान्ति से सदा के लिए दूर करो। पवित्रता की दृष्टि-वृत्ति साधारण शक्ति नहीं
है। यह थोड़े समय की शक्तिशाली दृष्टि वा वृत्ति सदाकाल की प्राप्ति कराने वाली है।
जैसे अभी जिस्मानी डॉक्टर्स और जिस्मानी हॉस्पिटल्स समय प्रति समय बढ़ते भी जाते
हैं, फिर भी डॉक्टर्स को फुर्सत नहीं, हॉस्पिटल्स में स्थान नहीं। रोगियों की सदा
ही क्यू लगी हुई होती है। ऐसे आगे चल हॉस्पिटल्स वा डॉक्टर्स के पास जाने का, दवाई
करने का, चाहते हुए भी जा नहीं सकेंगे। मैजारिटी निराश हो जायेंगे तो क्या करेंगे?
जब दवा से निराश होंगे तो कहाँ जायेंगे? आप लोगों के पास भी क्यू लगेगी। जैसे अभी
आपके वा बाप के जड़ चित्रों के सामने ‘ओ दयालू, दया करो' कहकर दया वा दुआ मांगते रहते
हैं, ऐसे आप चैतन्य, पवित्र, पूज्य आत्माओं के पास ‘ओ पवित्र देवियों वा पवित्र देव!
हमारे ऊपर दया करो' - यह मांगने के लिए आयेंगे। आज अल्पकाल की सिद्धि वालों के पास
शफा लेने वा सुख-शान्ति की दया लेने के लिए कितने भटकते रहते हैं! समझते हैं - दूर
से भी दृष्टि पड़ जाए। तो आप परमात्म-विधि द्वारा सिद्धि-स्वरूप बने हो। जब अल्पकाल
के सहारे समाप्त हो जायेंगे तो कहाँ जायेंगे?
यह जो भी अल्पकाल की
सिद्धि वाले हैं, अल्पकाल की कुछ न कुछ पवित्रता की विधियों से अल्पकाल की सिद्धि
प्राप्त करते हैं। यह सदा नहीं चल सकती है। यह भी गोल्डन एजड आत्माओं को अर्थात्
लास्ट में ऊपर से आई हुई आत्माओं को पवित्र मुक्तिधाम से आने के कारण और ड्रामा के
नियम प्रमाण, सतोप्रधान स्टेज के प्रमाण पवित्रता के फलस्वरूप अल्पकाल की सिद्धियाँ
प्राप्त हो जाती हैं लेकिन थोड़े समय में ही सतो, रजो, तमो - तीनों स्टेजस पास करने
वाली आत्मायें हैं। इसलिए सदाकाल की सिद्धि नहीं रहती। परमात्म-विधि से सिद्धि नहीं
है, इसलिए कहाँ न कहाँ स्वार्थ व अभिमान सिद्धि को समाप्त कर लेता है। लेकिन आप
पवित्र आत्मायें सदा सिद्धि स्वरूप हैं, सदा की प्राप्ति कराने वाली हैं। सिर्फ
चमत्कार दिखाने वाली नहीं हो लेकिन चमकती हुई ज्योतिस्वरूप बनाने वाले हो, अविनाशी
भाग्य का चमकता हुआ सितारा बनाने वाले हो। इसलिए यह सब सहारे अब थोड़ा समय के लिए
हैं और आखिर में आप पवित्र आत्माओं के पास ही अंचली लेने आयेंगे। तो इतनी सुख-शान्ति
की जननी पवित्र आत्मायें बने हो? इतनी दुआ का स्टॉक जमा किया है वा अपने लिए भी अभी
तक दुआ मांगते रहते हो?
कई बच्चे अभी भी समय
प्रति समय बाप से मांगते रहते कि इस बात पर थोड़ी-सी दुआ कर लो, आशीर्वाद दे दो। तो
मांगने वाले दाता कैसे बनेंगे? इसलिए पवित्रता की शक्ति की महानता को जान पवित्र
अर्थात् पूज्य देव आत्मायें अभी से बनो। ऐसे नहीं कि अन्त में बन जायेंगे। यह बहुत
समय की जमा की हुई शक्ति अन्त में काम में आयेगी। तो समझा, पवित्रता की गुह्य गति
क्या है? सदा सुख-शान्ति की जननी आत्मा - यह है पवित्रता की गुह्यता! साधरण बात नहीं
है! ब्रह्मचारी रहते हैं, पवित्र बन गये हैं। लेकिन पवित्रता जननी है, चाहे संकल्प
से, चाहे वृति से, वायुमण्डल से, वाणी से, सम्पर्क से सुख- शान्ति की जननी बनना -
इसको कहते हैं - ‘पवित्र आत्मा'। तो कहाँ तक बने हो - यह अपने आपको चेक करो। अच्छा।
आज बहुत आ गये हैं।
जैसे पानी का बाँध टूट जाता है तो यह कायदा का बांध तोड़ कर आ गये हैं। फिर भी कायदे
में फायदा तो है ही। जो कायदे से आते, उन्हों को ज्यादा मिलता है और जो लहर में
लहराकार आते हैं, तो समय प्रमाण फिर इतना ही मिलेगा ना। फिर भी देखो, बन्धनमुक्त
बापदादा भी बन्धन में आता है! स्नेह का बन्धन है। स्नेह के साथ समय का भी बन्धन है।
शरीर का भी बन्धन है ना। लेकिन प्यारा बन्धन है, इसलिए बन्धन में होते भी आजाद हैं।
बापदादा तो कहेंगे - भले पधारे, अपने घर पहुँच गये। अच्छा।
चारों ओर के सर्व परम
पवित्र आत्माओं को, सदा सुख-शान्ति की जननी पावन आत्माओं को, सदा पवित्रता की शक्ति
द्वारा अनेक आत्माओं को दु:ख-दर्द से दूर करने वाली देव आत्माओं को, सदा
परमात्म-विधि द्वारा सिद्धि-स्वरूप आत्माओं को बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार
और नमस्ते।
हॉस्टल की कुमारियों
से - (इन्दौर ग्रुप)
सभी पवित्र महान
आत्मायें हो ना? आजकल के महात्मा कहलाने वालों से भी अनेक बार श्रेष्ठ हो। पवित्र
कुमारियों का सदा पूजन होता है। तो आप सभी पावन, पूज्य सदा शुद्ध आत्मायें हो ना?
कोई अशुद्धि तो नहीं है? सदा आपस में एकमत, स्नेही, सहयोगी रहने वाली आत्मायें हो
ना? संस्कार मिलाने आता है ना। क्योंकि संस्कार मिलन करना - यही महानता है। संस्कारों
का टक्कर न हो लेकिन सदा संस्कार मिलन की रास करते रहो। बहुत अच्छा भाग्य मिला है -
छोटेपन में महान बन गई! सदा खुश रहती हो ना? कभी कोई मन से रोते तो नहीं? निर्मोही
हो? कभी लौकिक परिवार याद आता है? दोनों पढ़ाई में होशियार हो? दोनों पढ़ाई में सदा
नम्बरवन रहना है। जैसे बाप वन है, ऐसे बच्चे भी नम्बर वन में। सबसे नम्बर वन - ऐसे
बच्चे सदा बाप के प्रिय हैं। समझा? अच्छा।
शिवबाबा याद है? ओम्
शान्ति 14-06-05 मधुबन
"पीस विलेज (अमेरिका)
में चल रही मीटिंग प्रति प्राण अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश" (गुलज़ार दादी)
आज बापदादा ने आप सबकी
विशेष याद और संकल्प के कारण मुझे वतन में बुला लिया और मैं वतन में पहुंच गई तो
क्या देखा कि बापदादा दूर से ही अपनी अलौकिक बाहें पसार "आओ मेरे गले के हार बच्चे"
कह मधुर बोल से बुला रहे हैं। मैं भी नयन मिलन मनाते समीप पहुंच गई। जैसे ही मैं
बांहों के हार में गले का हार बन गई तो क्या देखा कि मेरे साथ आप सब भी बाहों में
समा गये। सभी बहुत स्नेह में समाये हुए लवलीन थे। कुछ समय के बाद बाबा बोले, देखो
बच्ची मैंने तो बच्चों को वतन में ही बुला लिया। पीस विलेज से सुपर पीस हाउस में
बच्चों का मेला लगा लिया। फिर बापदादा एक एक नूरे रत्न को बहुत मीठी दृष्टि देते
नयनों में समा लिया और बोले, बच्चों का यह संगठित मिलन का रूप बापदादा को बहुत अच्छा
लगता है। बेहद की सेवा का प्लैन एकमत होकर बनाना यह बहुत अच्छा करते हैं क्योंकि
स्थान में नजदीक आने से एक दो की स्नेहमई स्थिति के और विचारों के नजदीक आ जाते
हैं। इसलिए आप निमित्त नूरे रत्नों का यादगार विजय माला में हर मणका एक दो के नजदीक
पिरोये हुए अब तक पूजे जा रहे हैं। हर एक के भिन्न-भिन्न प्लैन भी सेवा में
उमंग-उत्साह बढ़ा देते हैं।
बापदादा वतन से देख
रहे हैं कि मोहिनी बहन, कला बहन और उनके हर एक साथी ने बहुत दिल से बुलाया है, सजाया
है। मेहनत नहीं मुहब्बत से स्वागत कर रहे हैं। बाप की तरफ से मुबारक हो। बापदादा
डबल विदेशी और भारत के क्रीम बच्चों को देख खुश है क्योंकि हर एक बच्चा बाप के वर्से
और वरदान के पात्र सुपात्र बच्चा है इसलिए विश्व के पांचों द्वीप में खूब
प्रत्यक्षता के दीप जगाओ। ऐसा कोई रत्न निकालो जो आवाज बुलन्द से भारत की आत्माओं
के दिल को टच करे कि कमाल है, कमाल है। निकलना तो है ही लेकिन नम्बरवन कौन बनता वह
ड्रामा दिखायेगा। कोई नई कमाल तो दिखाना ही है। स्वयं को बाप समान बनाना अर्थात्
परिवर्तन के समय को समीप लाना। बापदादा हर निमित्त बने बच्चे को निमित्त भाव,
निर्माण भावना और निर्मल वाणी स्वरूप देखने चाहते हैं।
उसके बाद बापदादा जैसे
सम्मुख ही देखते बोले, बापदादा दिलाराम एक एक रत्न को नाम और उनकी विशेषता सहित दिल
का प्यार और दुलार दे रहे हैं। ऐसे कहते दादी जानकी को बहुत-बहुत खुशी में देख बाबा
बोले बच्ची ऐसे नाच रही है जैसे उनको ही सबका प्यार मिल रहा है। ऐसे कहते हमें भी
विदाई दी और दादी को इमर्ज कर प्यार किया। ओम् शान्ति।
वरदान:-
संकल्प रूपी
बीज को कल्याण की शुभ भावना से भरपूर रखने वाले विश्व कल्याणकारी भव
जैसे सारे वृक्ष का
सार बीज में होता है ऐसे संकल्प रूपी बीज हर आत्मा के प्रति, प्रकृति के प्रति शुभ
भावना वाला हो। सर्व को बाप समान बनाने की भावना, निर्बल को बलवान बनाने की, दुःखी
अशान्त आत्मा को सदा सुखी शान्त बनाने की भावना का रस वा सार हर संकल्प में भरा हुआ
हो, कोई भी संकल्प रूपी बीज इस सार से खाली अर्थात् व्यर्थ न हो, कल्याण की भावना
से समर्थ हो तब कहेंगे बाप समान विश्व कल्याणकारी आत्मा।
स्लोगन:-
माया के झमेलों से घबराने के बजाए परमात्म मेले की मौज मनाते रहो।