04-05-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे – अभी विनाश का समय बहुत समीप है इसलिए एक बाप से सच्ची प्रीत रखो, किसी देहधारी से नहीं”

प्रश्नः-
जिन बच्चों की सच्ची प्रीत एक बाप से होगी उनकी निशानियाँ क्या होंगी?

उत्तर:-
1- उनका बुद्धियोग किसी भी देहधारी के तरफ जा नहीं सकता। वह आपस में एक दो के आशिक – माशूक नहीं बनेंगे। 2- जिनकी सच्ची प्रीत है वह सदा विजयी बनते हैं। विजयी बनना अर्थात् सतयुग का महाराजा-महारानी बनना। 3- प्रीत बुद्धि सदा बाप के साथ सच्चे रहते हैं। कुछ भी छिपा नहीं सकते। 4- रोज़ अमृतवेले उठ प्यार से बाप को याद करेंगे। 5- दधीचि ऋषि की तरह सर्विस में हड्डियाँ देंगे। 6- उनकी बुद्धि दुनियावी बातों में भटक नहीं सकती।

गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे…

ओम् शान्ति। यह ब्रह्मा मुख वंशावली, ब्राह्मण कुल भूषण प्रतिज्ञा करते हैं क्योंकि उनकी प्रीति एक बाप से जुटी हुई है। तुम जानते हो – यह विनाश का समय है। बाप बच्चों को समझाते हैं कि विनाश तो होना ही है। विनाश काले जिनकी प्रीत बाप के साथ होगी, वही विजय पायेंगे अर्थात् सतयुग के मालिक बनेंगे। शिवबाबा ने समझाया है – विश्व का मालिक तो राजा भी बनते हैं तो प्रजा भी बनती है, परन्तु पोजीशन में बहुत फ़र्क है। जितना बाप से प्रीत रखेंगे, याद में रहेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाबा ने समझाया है – बाप की याद से ही तुम्हारे विकर्मों का बोझा भस्म होगा। तुम लिख सकते हो कि विनाश काले विपरीत बुद्धि… यह लिखने में कोई डर की बात ही नहीं है। बाप कहते हैं – मैं खुद कहता हूँ कि उनका विनाश होगा और प्रीत बुद्धि वालों की विजय होगी। बाबा बिल्कुल क्लीयर कह देते हैं। इस दुनिया में प्रीत तो कोई की है नहीं। तुम्हारी ही प्रीत है। बाबा कहते – बच्चे, परमात्मा और श्रीकृष्ण की महिमा अलग-अलग लिखो तो सिद्ध हो जाए कि गीता का भगवान कौन? यह तो जरूरी है ना। दूसरा बाबा समझाते हैं – ज्ञान का सागर, पतित-पावन परमपिता या पानी की नदियाँ? ज्ञान गंगा वा पानी की गंगा? यह तो बहुत सहज है। दूसरी बात – जब प्रदर्शनी करते हो तो सबसे पहले निमन्त्रण देना चाहिए, गीता पाठशाला वालों को। वह तो ढेर हैं। उन्हों को खास निमन्त्रण देना चाहिए। जो श्रीमत भगवत गीता का अभ्यास करते हैं, उनको पहले निमन्त्रण देना चाहिए क्योंकि वही भूले हुए हैं और सभी को भुलाते रहते हैं। उनको बुलाना चाहिए कि अब आकर जज करो फिर जो समझ में आये सो करना। तो मनुष्य भी समझें – यह गीता वालों को बुलाते हैं। शायद इन्हों का गीता पर ही प्रचार है। गीता से ही स्वर्ग की स्थापना हुई है। गीता की बहुत महिमा है परन्तु भक्ति मार्ग की गीता नहीं। बाप कहते हैं – मैं तुम्हें सत्य ही सत्य बताता हूँ। मनुष्य जो अर्थ करते हैं वह बिल्कुल रांग हैं। कोई भी सत्य नहीं कहते, मैं ही सत्य बताता हूँ। परमात्मा को सर्वव्यापी कहना भी सत्य नहीं है, यह सब विनाश को प्राप्त होंगे और कल्प-कल्प होते भी हैं। तुमको पहली-पहली मुख्य बात यह समझानी है। बाप कहते हैं – यूरोपवासी यादवों की है विनाश काले विपरीत बुद्धि। विनाश के लिए अच्छी रीति तैयारियाँ कर रहे हैं परन्तु पत्थरबुद्धि समझ नहीं सकते हैं। तुम भी पत्थरबुद्धि थे, अब पारसबुद्धि बनना है। पारसबुद्धि थे फिर पत्थरबुद्धि कैसे बने हैं! यह भी वन्डर है। बाप को कहा ही जाता है नॉलेजफुल, मर्सीफुल। बाकी जो अपना ही कल्याण करने नहीं जानते, वह दूसरों का कल्याण कैसे करेंगे! जो नॉलेज ही धारण नहीं करते तो पद भी ऐसा पाते हैं, जो सर्विसएबुल हैं वही ऊंच पद पायेंगे। उनको ही बाप प्यार भी करते हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार होते ही हैं। कई तो यह भी समझते नहीं कि हमारी बाप से प्रीत नहीं है तो पद भी नहीं मिलेगा। चाहे सगे बनें वा सौतेले बनें, विनाश काले प्रीत बुद्धि नहीं होगी, बाप को फालो नहीं करेंगे तो जाकर कम पद पायेंगे। दैवीगुण भी चाहिए। कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। बाप कहते हैं – मैं सत्य कहता हूँ, जो मेरे से प्रीत नहीं करते तो पद भी नहीं मिलेगा। कोशिश कर 21 जन्म का पूरा वर्सा लेना है। तो प्रदर्शनी, मेले पर पहले-पहले गीता पाठशाला वालों को निमन्त्रण देना है क्योंकि वो भक्त ठहरे ना। गीता-पाठी जरूर कृष्ण को याद करते होंगे परन्तु समझते कुछ नहीं हैं। कृष्ण ने मुरली बजाई, राधे फिर कहाँ गई। सरस्वती को बैन्जो दे दिया है, मुरली फिर कृष्ण को दे दी है। मनुष्य कहते हैं – हमको अल्लाह ने पैदा किया, परन्तु अल्लाह को जानते नहीं। भारत की ही बात है। भारत में ही देवताओं का राज्य था, उन्हों के चित्र मन्दिरों में पूजे जाते हैं। बाकी किंग्स आदि के स्टैच्यु तो बाहर लगा देते हैं, जिस पर पंछी आदि किचड़ा डालते रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण आदि को कितना फर्स्टक्लास जगह पर बिठाते हैं। उन्हों को महाराजा-महारानी कहते हैं, किंग अंग्रेजी अक्षर है। कितना लाखों रूपया खर्च कर मन्दिर बनाते हैं क्योंकि वह महाराजा पवित्र थे। यथा राजा-रानी तथा प्रजा सब पूज्य हैं। तुम ही पूज्य फिर पुजारी बनते हो। तो पहली बात है, बाप को याद करो। बाप को याद करने का अभ्यास करने से धारणा होगी। एक के साथ प्रीत नहीं है तो फिर और और के साथ लग जाती है। ऐसी-ऐसी बच्चियाँ हैं, जो एक दो को इतना प्यार करती हैं जो शिवबाबा को भी इतना नहीं करती। शिवबाबा कहते हैं – तुमको बुद्धियोग मेरे साथ लगाना है या एक दो में आशिक-माशूक बन जाना है! फिर मेरे को बिल्कुल ही भूल जाते हैं। तुमको तो बुद्धियोग मेरे साथ जोड़ना है, इसमें मेहनत लगती है। बुद्धि टूटती ही नहीं है। शिवबाबा के बदले, दिन-रात एक दो को ही याद करते रहते हैं। बाबा नाम सुनाये तो ट्रेटर बन जाते हैं, फिर गाली देने में भी देरी नहीं करते। इस बाबा को गाली दी तो शिवबाबा भी झट सुन लेगा। ब्रह्मा से नहीं पढ़े तो शिवबाबा से पढ़ न सके। ब्रह्मा बिगर तो शिवबाबा भी सुन न सके, इसलिए कहते हैं साकार से जाकर पूछो। कई अच्छे-अच्छे बच्चे हैं जो साकार को मानते ही नहीं। समझते हैं – यह तो पुरूषार्थी हैं। पुरूषार्थी तो सब हैं परन्तु तुमको फालो तो माँ-बाप को ही करना है। कोई तो समझाने से समझ जाते हैं, कोई की तकदीर में नहीं है तो समझते नहीं। सर्विसएबुल बनते नहीं। परन्तु बुद्धि एक बाप से रखनी होती है। बहुत आजकल निकले हैं जो कहते हैं मेरे में शिवबाबा आते हैं, इसमें बड़ी सम्भाल चाहिए। माया की बहुत प्रवेशता होती है, जिनमें आगे श्री नारायण आदि आते थे, वह भी आज हैं नहीं। सिर्फ प्रवेशता से कुछ होता नहीं है। बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो। बाकी मेरे में यह आता है, वह आता है… यह सब माया है। मेरी याद ही नहीं होगी तो प्राप्ति क्या होगी, जब तक बाप से सीधा योग नहीं रखेंगे तो पद कैसे पायेंगे, धारणा कैसे होगी।

बाप कहते हैं – तुम मामेकम् याद करो। ब्रह्मा द्वारा ही मैं समझाता हूँ, ब्रह्मा द्वारा ही स्थापना हुई है। त्रिमूर्ति भी जरूर चाहिए। कोई तो ब्रह्मा का चित्र देख बिगड़ते हैं। कई फिर कृष्ण के 84 जन्म देख बिगड़ते हैं। चित्र फाड़ भी डालते हैं। अरे यह तो बाप ने चित्र बनवाये हैं। तो बाप बच्चों को समझाते हैं – भूलो मत, सिर्फ बाप को याद करते रहो। बांधेलियों को भी रड़ियाँ नहीं मारनी हैं। घर में बैठे बाप को याद करती रहो। बांधेलियों को तो और ही ऊंच पद मिल सकता है। तुम बच्चों को ज्ञान देने वाला है ही एक ज्ञान सागर। स्प्रीचुअल नॉलेज एक बाप के सिवाए और कोई में है नहीं। ज्ञान का सागर एक परमपिता परमात्मा ही है, उसको ही लिबरेटर कहा जाता है, इसमें डरने की क्या बात है। बाप बच्चों को समझाते हैं, बच्चों को फिर औरों को समझाना है। बाप कहते हैं – मुझे याद करो तो सद्गति को पायेंगे। सतयुग में है राम-राज्य, कलियुग में नहीं है। सतयुग में तो एक ही राज्य है। यह सब बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनकी बुद्धि में धारण होती हैं, जिनको धारणा नहीं होती है, विनाश काले विपरीत बुद्धि कहेंगे, पद पा नहीं सकेंगे। विनाश तो सबका होना है। यह अक्षर कम है क्या! शिवबाबा कहते हैं – विनाश काले प्रीत बुद्धि बनो। यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, इसमें अगर तुम प्रीत नहीं रखते हो तो पद भी नहीं मिलेगा। सच्चे दिल पर साहेब राज़ी होता है। दधीचि ऋषि मिसल सेवा में हड्डियाँ देनी हैं। कभी कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो नशा ही उड़ जाता है फिर अनेक प्रकार के तूफान आते रहते हैं। मुख से कहते इससे तो लौकिक के पास चले जायें, यहाँ तो कोई मज़ा नहीं है। वहाँ तो नाटक, बाइसकोप आदि खूब हैं, जो इन बातों पर हिरे हुए हैं वह यहाँ ठहर न सकें, बड़ा मुश्किल है। हाँ, पुरूषार्थ से ऊंच पद भी पा सकते हैं, खुशी में रहना चाहिए। बाबा खुद कहते हैं – सुबह को उठकर नहीं बैठता हूँ तो मज़ा ही नहीं आता है। लेटे रहने से कभी-कभी झुटका आ जायेगा। उठकर बैठने से अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं, बड़ा मजा आता है।

अभी बाकी थोड़े दिन हैं, हम विश्व की बादशाही ले रहे हैं, बाप से। यह बैठ याद करें तो भी खुशी का पारा चढ़े। सुबह को चिन्तन चलता है तो दिन को भी खुशी रहती है। अगर खुशी नहीं रहती तो जरूर बाप से प्रीत बुद्धि नहीं है। अमृतवेले एकान्त अच्छी होती है, जितना बाप को याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। इस पढ़ाई में ग्रहचारी बैठती है क्योंकि बाप को भूलते हैं। बाप से वर्सा लेना है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस करनी है। इस सर्विस में ही यह अन्तिम जन्म व्यतीत करना है। अगर और दुनियावी बातों में लग गये तो फिर यह सर्विस कब करेंगे! कल-कल करते मर जायेंगे। बाप आये ही हैं स्वर्ग में ले जाने के लिए। यहाँ तो लड़ाई में कितने मरते हैं, कितनों को दु:ख होता होगा। वहाँ तो लड़ाई आदि होगी नहीं। यह सब पिछाड़ी के हैं, सब खत्म होने हैं। निधनके ऐसे मरेंगे, धनी के जो होंगे वह राज्य भाग्य पायेंगे।

प्रदर्शनी में भी समझाना है कि हम अपनी कमाई से, अपने ही तन-मन-धन से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। हम भीख नहीं माँगते हैं, जरूरत ही नहीं है। ढेर भाई-बहिन इकट्ठे होकर राजधानी स्थापन करते हैं। तुम करोड़ इकट्ठा कर अपना विनाश करते हो, हम पाई-पाई इकट्ठा कर विश्व का मालिक बनते हैं। कितनी वन्डरफुल बात है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अमृतवेले एकान्त में बैठ बाप को प्यार से याद करना है। दुनियावी बातों को छोड़ ईश्वरीय सेवा में लग जाना है।

2) बाप से सच्ची दिल रखनी है। आपस में एक दो के आशिक-माशूक नहीं बनना है। प्रीत एक बाप से जोड़नी है। देहधारियों से नहीं।

वरदान:-
बर्थ राईट के नशे द्वारा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव

जैसे लौकिक जन्म में स्थूल सम्पत्ति बर्थ राईट होती है, वैसे ब्राह्मण जन्म में दिव्यगुण रूपी सम्पत्ति, ईश्वरीय सुख और शक्ति बर्थ राईट है। बर्थ राईट का नशा नेचुरल रूप में रहे तो मेहनत करने की आवश्यकता नहीं। इस नशे में रहने से लक्ष्य और लक्षण समान हो जायेंगे। स्वयं को जो हूॅं, जैसा हूँ, जिस श्रेष्ठ बाप और परिवार का हूँ वैसा जानते और मानते हुए श्रेष्ठ तकदीरवान बनो।

स्लोगन:-
हर कर्म स्व स्थिति में स्थित होकर करो तो सहज ही सफलता के सितारे बन जायेंगे।