11-09-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 08-06-73 मधुबन
सर्वश्रेष्ठ शक्ति-परखने की शक्ति
सर्व-शक्तियों में से विशेष शक्ति को जानते हो? अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान् तो समझते हो ना? सर्वशक्तियों में से सर्व श्रेष्ठ शक्ति कौन-सी है। जैसे पढ़ाई में अनेक सब्जेक्टस् होते हैं लेकिन उनमें से एक विशेष होता है। वैसे ही सर्व-शक्तियाँ आवश्यक तो हैं लेकिन इन शक्तियों में से सभी से श्रेष्ठ शक्ति कौन-सी है? जो आवश्यक हैं, जिसके बगैर महारथी व महावीर बनना मुश्किल है। हैं तो सभी आवश्यक। एक का दूसरे से सम्बन्ध है लेकिन फिर भी नम्बर वन जो सर्वशक्तियों को नजदीक लाने वाली है वह कौन-सी है? (परखने की शक्ति)।
सैल्फ रिअलाइजेशन करना भी परखने की शक्ति है। सैल्फ रिइलाइजेशन का अर्थ ही है-अपने आप को परखना व जानना। पहले बाप को परखेंगे तब जानेंगे या पहचान सकेंगे। और जब पहचानेंगे तब बाप के समीप व समान बन सकेंगे। परखने की शक्ति है नम्बरवन। परखना जिसको कामन शब्दों में पहचान कहते हैं। पहले-पहले ज्ञान का आधार ही है बाप को पहचानना अर्थात् परखना कि यह बाप का कर्त्तव्य चल रहा है। पहले परखने की शक्ति आवश्यक है। परखने की शक्ति को नॉलेजफुल की स्टेज कहते है।
परखने की शक्ति का विस्तार क्या है और उससे प्राप्ति क्या-क्या होती हैं? इस विषय पर आपस में रूह-रूहान कर सकते हो। आपस में हम सरीखे खेलने वाले होते हैं तो खेल में भी मजा अता हैं। खेल-खेल में मेल भी हो जाता है। इस खेल में भी आपस में खेलते-खेलते दोस्त बन जाते हैं। वह हुआ स्थूल खेल। यहाँ भी खेल-खेल में आत्माओं की समीपता का मेल होता है। आत्माओं के संस्कार स्वभाव का मेल होता है। खेल के साथी बहुत पक्के होते स 69 हैं, जीवन के अन्त तक अपना साथ निभाते हैं। रूहानी खेल के साथ अन्त तक आपस में मेल निभाते हो, तब तो इस मेल की निशानी ‘माला’ बनी हुई है। सभी बातों में जब अन्त में एक दूसरे के समीप हो जाते, मेल हो जाता तब दाना दाने से मिल माला बनती है। यह मेल की निशानी (माला) है। अच्छा! ओम् शान्ति।
11-09-11 ओम शान्ति प्रात: मुरली "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 13-06-73 मधुबन
रूहानी योद्धा
अपने को रूहानी सेना के महारथी समझते हो? सेना के महारथी किसको कहा जाता है? उनके लक्षण क्या होते हैं? महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे। मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाय विघ्न- रूप बन जाएगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जाएगा। तो जो भी यहाँ इस रूहानी सेना के योद्धा हो, क्या वही इस रथ के रथी बने हो?
जैसे योद्धे सर्व व्यक्तियों, सर्व-वैभवों का किनारा कर ‘युद्ध और विजय’-इन दो बातों को सिर्फ बुद्धि में रखते हुए अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगे हुए होते हैं। वैसे ही अपने-आप से पूछो कि इन दो बातों का लक्ष्य है? या और भी कई बातें स्मृति में रहती हैं? ऐसे योद्धे बने हो? कहीं भी रहो लेकिन सदैव यह स्मृति रहे कि हम युद्ध के मैदान पर उपस्थित हुए योद्धे हैं। योद्धे कभी भी आराम पसन्द नहीं होते हैं। योद्धे कभी भी आलस्य और अलबेलेपन की स्थिति में नहीं रहते, योद्धे कभी भी शत्रं के बिना नहीं रहते, सदैव शस्त्रधारी होते हैं, योद्धे कभी भी भय के वशीभूत नहीं होते, निर्भय होते हैं, योद्धे कभी भी सिवाय युद्ध के और कोई बातें बुद्धि में नहीं रखते। सदैव योद्धेपन की वृत्ति और विजयी बनने की स्मृति में रहते हैं। क्या हम सभी भी एक-दूसरे के साथ विजयी रहते हैं? इस दृष्टि से एक-दूसरे को देखते हैं। ऐसे ही रूहानी योद्धों की सदैव दृष्टि में यह रहता है कि हम सभी एक-दूसरे के साथ महावीर हैं, विजयी हैं। हम हर सेकेण्ड हर कदम में युद्ध के मैदान पर उपस्थित हैं। सिर्फ एक ही लगन विजयी बनने की रहती है। सर्व सम्बन्ध वा सर्व प्रकृति के साधनों से अपनी बुद्धि को डिटैच कर दिया है? किनारा कर लिया है? या युद्ध के मैदान में हो लेकिन बुद्धि की तारें, सम्बन्ध वा कोई भी प्रकृति के साधनों में लगी हुई है? अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो? या कोई बात में परतन्त्र भी हो?
सम्पूर्ण स्वतन्त्र अर्थात् जब चाहो इस देह का आधार लो, जब चाहो इस देह के भान से ऐसे न्यारे हो जाओ जो जरा भी यह देह अपनी तरफ खींच न सके। ऐसे अपनी देह के भान अर्थात् देह के लगाव से स्वतन्त्र, अपने कोई भी पुराने स्वभाव से भी स्वतन्त्र, स्वभाव से भी बन्धायमान न हो। अपने संस्कारों से भी स्वतन्त्र। अपने सर्व लौकिक सम्पर्क वा अलौकिक परिवार के सम्पर्क के बन्धनों से भी स्वतन्त्र। ऐसे स्वतन्त्र बने हो? ऐसे को कहा जाता है-’सम्पूर्ण स्वतन्त्र’। ऐसी स्टेज पर पहुंचे हो वा अभी तक एक छोटी-सी कर्मेन्द्रिय भी अपने बंधन में बाँध लेती है?
अगर छोटी-सी चींटी शेर को अथवा महारथी को हैरान कर दे तो ऐसे महारथी व शेर को क्या कहेंगे? शेर कहेंगे? एक व्यर्थ संकल्प मास्टर सर्वशक्तिमान को हैरान कर दे या एक पुराने 84 जन्मों का जड़जड़ी भूत संस्कार, मास्टर सर्वशक्तिवान, महावीर, विघ्न-विनाशक, त्रिकालदर्शी, स्वद- र्शन चक्रधारी को परेशान कर ले, पुरूषार्थ में कमजोर बना दे, ऐसे मास्टर सर्व- शक्तिवान को क्या कहेंगे? जिस समय इस स्थिति में होते हो उस समय अपने ऊपर आश्चर्य नहीं लगता? यह शब्द निकलना कि मुझे व्यर्थ संकल्प आते हैं वा पुराने संस्कार वा स्वभाव अपने वशीभूत बना लेते हैं वा बाप की याद का अनुभव नहीं है, बाप द्वारा कोई प्राप्ति नहीं है वा छोटे-से विघ्न से घबरा जाते हैं, निरन्तर अति इन्द्रिय सुख वा हर्ष नहीं रहता, खुशी का अनुभव नहीं होता, क्या वह बोल ब्राह्मण कुल भूषण के हैं ऐसे ब्राह्मणों को कौन से ब्राह्मण कहेंगे - ‘नामधारी ब्राह्मण’। अगर सच्चे ब्राह्मण कहलाते और यह बोलते तो द्वापर युगी ब्राह्मणों और ऐसे कहलाने वाले ब्राह्मणों में क्या अन्तर है?
वर्तमान समय ब्राह्मण बनने वाली आत्माएं अपने-आप को देखें कि क्या ब्राह्मणपन का पहला लक्षण अपने जीवन में लाया है? ब्राह्मणपन का पहला लक्षण कौन-सा है - ‘और संग तोड़े एक संग जोड़’। अगर अपनी कर्मेन्द्रियों की तरफ भी जोड़ है तो क्या यह ब्राह्मणों का पहला लक्षण है? जब पहलेपहले प्रतिज्ञा वा पहला-पहला मरजीवा जन्म का बोल ब्राह्मणों का यही है कि-’एक बाप दूसरा न कोई’। यही पहली प्रतिज्ञा है। अथवा पहला लक्षण है। तो पहले इस लक्षण वा प्रतिज्ञा को वा पहले बोल को निभाया है या एक कहते हुए भी अनेकों तरफ जुटा हुआ है? तो क्या ऐसा नामधारी ब्राह्मण विजयी कहलायेगा? ब्राह्मणों के लिये इतने बड़े विश्व के अन्दर अपना ही छोटा-सा संसार है, ऐसे छोटे-से संसार में हर कार्य करते ऐसे ब्राह्मण विश्व के जिन भी आत्माओं को देखते हैं उन को सिर्फ एक कल्याण की ही भावना से देखते हैं। सम्बन्ध और लगाव की भावना से नहीं। लेकिन सिर्फ ईश्वरीय सेवा के भाव से। पाँच तत्वों को देखते हुए, प्रकृति को देखते हुए, प्रकृति के वश नहीं होंगे। लेकिन प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने के कर्त्तव्य में स्थित होंगे। जो स्वयं प्रकृति को परिवर्तन करने वाले हैं क्या वह स्वयं प्रकृति के वश होंगे? जो अभी प्रकृति को वश नहीं कर सकते वह भविष्य में सतोप्रधान प्रकृति के सुख को नहीं पा सकते। तो प्रकृति के वश तो नहीं होते हो? यह तो ऐसा होगा जैसे कोई डॉक्टर रोगी को बचाने जाये लेकिन स्वयं रोगी बन जाए। कर्त्तव्य है प्रकृति को परिवर्तन करने का और उसके बजाय प्रकृति के वश हो जाए तो क्या उनको ब्राह्मण कहेंगे? ब्राह्मण तो सभी बने हो न? कोई कहेगा क्या कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ। ब्राह्मण बनना अर्थात् ऐसे लक्षण धारण करना। तो ऐसे लक्षणधारी हो या नामधारी हो? यह अपने आप से पूछेंगे।
ब्राह्मण जन्म की विशेषता क्या है जो और कोई जन्म में नहीं होती? ब्राह्मण जन्म कि विशेषता यह है कि अन्य सर्व जन्म, आत्माओं द्वारा आत्माओं के होते हैं लेकिन एक ही यह ब्राह्मण जन्म है जो परम पिता परमात्मा द्वारा डायरेक्ट जन्म होता है। देवता जन्म भी श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा ही होता है। परमात्मा द्वारा नहीं। तो ब्राह्मण-जन्म की विशेषता जो सारे कल्प के अन्य कोई जन्म में नहीं है। ऐसी विशेषता सम्पन्न जन्म है तो उन आत्माओं की भी विशेषता क्या होनी चाहिए? जो बाप के गुण हैं, वही ब्राह्मण आत्माओं के गुण होने चाहिए। वह गुण भी इस ब्राह्मण जन्म के सिवाय और कोई जन्म में नहीं आ सकते। जैसे इस ब्राह्मण जीवन में त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, ज्ञान स्वरूप बनते हो वैसे और जन्म में बनेंगे क्या? तो जो सिर्फ ब्राह्मण जीवन के गुण हैं यह विशेषताए हैं उसको इस ब्राह्मण जीवन में अनुभव न किया तो फिर कब करेंगे? ब्राह्मण बन और ब्राह्मण जीवन की विशेषता का अनुभव ना किया तो ब्राह्मण बन कर किया क्या?
जैसे अन्य आत्माओं को कहते हो कि परमात्मा की सन्तान हो कर और बाप को नहीं जानते हो तो कौड़ी तुल्य हो। आप ऐसे कहते हो न सभी को? लेकिन कोई हीरे तुल्य जन्म लेकर भी हीरे समान जीवन नहीं बनाते हैं। हीरा हाथ में मिले और उसको पत्थर समझ उसका मूल्य न जाने, ऐसे को क्या कहा जाता है? - ‘महान् समझदार’। दूसरा शब्द तो नहीं बोलना चाहिए, उल्टे रूप के महान् समझदार कभी ऐसे तो नहीं बन जाते हो? तो ब्राह्मण जन्म के मूल्य को जानो। साधारण बात नहीं है। बस हम भी ब्राह्मण बन गए। सदैव अपने को चेक करो कि ब्राह्मण जीवन को निभा रहा हूँ? अच्छा।
ऐसे श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ जीवन, श्रेष्ठ सेवा में सदा चलने वाले श्रेष्ठ आत्माओं, विश्व-कल्याणकारी आत्माओं और सर्व-बन्धनों से सम्पूर्ण स्वतन्त्र आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, नमस्ते।
वरदान:- हर कर्म करते हुए कमल आसन पर विराजमान रहने वाले सहज वा निरन्तर योगी भव
निरन्तर योगयुक्त रहने के लिए कमल पुष्प के आसन पर सदा विराजमान रहो लेकिन कमल आसन पर वही स्थित रह सकते हैं जो लाइट हैं। किसी भी प्रकार का बोझ अर्थात् बंधन न हो। मन के संकल्पों का बोझ, संस्कारों का बोझ, दुनिया के विनाशी चीज़ों की आकर्षण का बोझ, लौकिक सम्बन्धियों की ममता का बोझ - जब यह सब बोझ खत्म हों तब कमल आसन पर विराजमान निरन्तर योगी बन सकेंगे।
स्लोगन:- सहनशीलता का गुण धारण कर लो तो असत्यता का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।