ओम् शान्ति।
बच्चों की दिल में आया कि पारलौकिक बाप आया है लेने के लिए। कहाँ ले जायेगा?
शान्तिधाम। फिर क्या होगा? जिन्होंने अच्छी रीति पढ़ा है वह सुखधाम में आयेंगे। वहाँ
आना है वाया मुक्तिधाम से। आत्मा समझती है कि बेहद का बाप सुख देने के लिए आया है।
सारा दिन यह याद रह सकती है। जिन्हों को निश्चय नहीं वह यहाँ आ नहीं सकते। तुम
ईश्वरीय औलाद हो। बाबा भी समझते हैं मैं बच्चों के सामने आया हुआ हूँ। बरोबर कल्प
पहले भी पतित भ्रष्टाचारी दुनिया में आये थे। यहाँ सब भ्रष्टाचारी हैं, वहाँ हैं सब
श्रेष्ठाचारी, यथा राजा रानी तथा प्रजा। यह खेल है ईश्वरीय सम्प्रदाय और आसुरी
सम्प्रदाय का।
जब कोई गीत बजता है तो दिल में आना चाहिए कि बाबा ने हमको बहुत ऊंच बनाया है।
ऊंचे ते ऊंचा बाप जरूर ऊंच ही बनायेंगे। ऐसे बाप की बहुत महिमा है। कोई भी कुछ करते
हैं तो उनकी महिमा होती है। यह फलाने धन्धे में बड़ा अच्छा है। फलाना मनुष्य बड़ा
होशियार है। हर कोई में गुण होते हैं। परमपिता परमात्मा की महिमा सबसे भारी है। हर
एक मनुष्य मात्र को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। परमपिता परमात्मा को भी बड़े ते
बड़ा पार्ट मिला हुआ है। इस ड्रामा में बड़े-बड़े मुख्य पार्टधारी कौन हैं? कौरव और
पाण्डव दोनों को भाई-भाई दिखाते हैं फिर उस तरफ दिखाते हैं बड़े-बड़े भीष्म पितामह,
अश्वस्थामा आदि, यह सब विद्वानों, पण्डितों के नाम हैं। अब विद्वान थोड़ेही युद्ध
के मैदान में लड़ाई करेंगे। लॉ नहीं है। झूठी काया झूठी माया… रावण झूठ और राम सत्य
बताते हैं। परमपिता परमात्मा को ही सत्य कहते हैं। गॉड इज़ ट्रूथ। गॉड है ही एक।
बाकी जो रचता और रचना के बारे में समझाते हैं वह सब है झूठ। यह सब ज्ञान की बातें
हैं। ज्ञान में सच क्या है, झूठ क्या है वह बाप आकर समझाते हैं। भारत का गीता ज्ञान
तो प्राय:लोप हो गया है। बाकी आटे में नमक मिसल कुछ निशानियां हैं। बाप कहते हैं
मैं आकर बच्चों को वेदों, शास्त्रों का सार समझाता हूँ। गीता है मुख्य, जिसमें ही
भगवानुवाच है। बाप कहते हैं तुमने श्रीकृष्ण भगवान का नाम लिख दिया है। परन्तु बाप
आकर समझाते हैं जिसको तुम भगवान कहते हो वह सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है। वह
पहले-पहले मेरे से विदाई ले मुक्तिधाम से आया था – सतयुग का प्रिंस बनने। अच्छा –
श्रीकृष्ण की इतनी महिमा है, उनका बाप भी तो होगा ना। जैसा बाप वैसा बच्चा।
श्रीकृष्ण के बाप की महिमा कहाँ गई। उसने किससे वर्सा लिया! श्रीकृष्ण है सतयुग के
आदि का। स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बने हैं। कितने धनवान थे। इतना धन उन्हों के
पास कहाँ से आया? इस समय तो कुछ भी नहीं है। क्या हुआ? इतने पदार्थ कहाँ से और कैसे
मिले? किसने दिया? तुम बच्चे जानते हो कि बेहद के बाप ने पढ़ाया। इस पढ़ाई से बरोबर
तुम सतयुग के राजा बनने वाले हो। वह जो अल्पकाल के लिए विकारी राजायें बनते हैं वह
कोई नॉलेज से नहीं बनते हैं। जो बहुत दान-पुण्य करते हैं वह जाकर साहूकार घर में
जन्म लेते हैं। यहाँ तुम पढ़ाई से राजा महाराजा बनते हो, सो भी डबल सिरताज। तो कहते
हैं सब कुछ करके अपने आप छिपाया। तुम जो बच्चे हो जानते हो बाप ने राज्य दिया था,
बड़े सुखी थे। देवताओं का पूजन कितना अच्छा होता है, पूजन देखना हो तो श्रीनाथ
द्वारे जाओ। देवताओं के जड़ चित्रों पर इतना माल चढ़ाते हैं तो खुद जब मालिक होंगे
तो क्या नहीं खान-पान होगा। नई दुनिया है ना। नई खेती माल अच्छा देती है। पुरानी
होने से ताकत कम हो जाती है। तुम बच्चों ने साक्षात्कार किया है। बाप समझाते हैं ऐसे
था ना फिर क्या हुआ! तुम्हारे ऊपर 5 विकारों रूपी माया आकर चटकी और तुम कांटे बनते
गये। बबुल का झाड़ होता है ना, उसमें कांटे बहुत होते हैं। उसको कहा जाता है कांटों
का जंगल। इस समय एक-एक मनुष्य कांटा है। काम कटारी चलाते रहते हैं। माया के चटकने
से रावण राज्य हो गया है। तुम हो गुप्त वेष में। किसको भी पता नहीं।
तुम बच्चे अभी कल्प पहले मुआफिक श्रीमत पर चल रहे हो। सिर्फ कल्प पहले मुआफिक नहीं,
कल्प-कल्प के मुआफिक। तुम बैठ बाप से राजयोग की शिक्षा सीखते हो। तुम हो नान
वायोलेन्स। तुम अन-नोन हो। तुम अपने को जानते हो, दुनिया तो नहीं जानती कि यह
शक्तियां गुप्त रीति योगबल से विश्व पर अपनी दैवी राजाई स्थापन कर रही हैं। तुम हर
एक अपनी बाद-शाही लेने का पुरूषार्थ करते हो। वह सिपाही लोग लड़ते हैं अपने बादशाह
के लिए। परन्तु तुम अपने लिए सब कुछ करते हो। भारत को ही गोल्डन एज बनाते हो। जो-जो
बनाते हैं वही आकर फिर राज्य करेंगे। गोया तुम भारत की सेवा करते हो गुप्त। जो
करेंगे वही फल पायेंगे। जो मेहनत कर राजा रानी वा प्रजा बनेंगे वही आयेंगे। भारत
में ही आकर राज्य करेंगे। तुम्हारी यहाँ है शिव शक्ति पाण्डव सेना। पाण्डव अक्षर
पण्डे पर है। बाप ने आकर समझाया है – मुख्य रूहानी पण्डा मैं हूँ। पाण्डवों में
मेल्स भी हैं, तो फीमेल्स भी हैं, प्रवृत्ति मार्ग है ना। बाकी लड़ाई की तो बात ही
नहीं। शास्त्रों में तो क्या-क्या बैठ लिखा है। कितने नाम दिखाये हैं। बाप बैठ
समझाते हैं – यह सब ड्रामा की नूँध है। कहते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। भक्ति का
फल देना यानी सद्गति करना। फिर सतयुग में भक्ति आदि होती नहीं। संन्यास धर्म को तो
बहुत थोड़ा टाइम हुआ है। स्वर्ग में यह आ न सकें। अभी तुम जानते हो कि स्वर्ग में
किसका राज्य था। कौन सा धर्म था? बाप आकर देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं तो फिर
और धर्मो का विनाश होता है। तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय के हो। वह हैं आसुरी सम्प्रदाय।
यह है ही पतित दुनिया। अभी तुम सब कहेंगे हम ईश्वर की औलाद हैं। ईश्वर कौन है? वह
निराकार शिव है ब्रह्मा नहीं। लोग समझते हैं ब्रह्म ही ईश्वर है। अब ब्रहम् को
परमपिता परमात्मा थोड़ेही कहेंगे। अपने को ईश्वर कहते हैं, नाम रख दिया है ब्रह्म
ज्ञानी। कोई अर्थ ही नहीं। ब्रह्म महतत्व है जहाँ हम आत्मायें रहती हैं। सालिग्राम
भी कहते हैं। रूद्र यज्ञ जब रचते हैं तो परमपिता परमात्मा का बड़ा शिवलिंग और
छोटे-छोटे सालिग्राम बनाते हैं। परन्तु ऐसे है नहीं। परमात्मा बड़ा और आत्मायें छोटी।
नहीं, उनको कहा जाता है परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम सोल, परमधाम में रहने वाली आत्मा।
आत्मा याद करती है आरगन्स द्वारा। अभी यह सब बातें तुम जानते हो। रचता और रचना के
आदि मध्य अन्त और मुख्य पार्टधारी कौन हैं? कैसे पार्ट बजाते हैं? कौन कितना जन्म
लेते हैं? तो यह हिसाब होगा ना। परन्तु इनमें भी जाने की दरकार नहीं। बाप कहते हैं
बच्चे, यह है तुम्हारा धर्माऊ जन्म। 84 जन्म तो ठीक हैं। यह है धर्माऊ कल्याणकारी
जन्म। अभी हमारा कल्याण होने वाला है, इसलिए यह कल्याणकारी जन्म और कल्याणकारी युग
कहा जाता है। इस संगम का किसको पता नहीं है। संगम को युगे-युगे कहा है तो 4 संगम रख
दिये हैं। बाप कहते हैं नहीं, यह तो उतरती कला के हैं। सतयुग से त्रेता होगा तो 2
कला कम होंगी। फिर द्वापर से और कम हो जायेंगी। पतित बनते जाते हैं। यह है वैराइटी
धर्मो का झाड़, कितनी भाषायें हैं। कितनी अशान्ति है। अब तुम बच्चे जानते हो स्वर्ग
में अशान्ति हो नहीं सकती। यहाँ बहुतों को पीस प्राइज़ मिलती है। पीस तो है नहीं।
पुरूषार्थ करते हैं मिलकर एक हो जाएं। पोप भी कहते हैं कि वननेस हो जाए। सभी
ब्रदर्स हैं परन्तु आपस में बनती क्यों नहीं है? उन्हों को ड्रामा का तो पता नहीं
है। जब दुनिया में एक राम राज्य था तो पीस थी। अभी तो रावण राज्य है। अनेक धर्म
हैं। अब इस पीसलेस को फिर से पीसफुल बनाना, एक बाप का ही काम होगा ना! यह तो दुनिया
का प्रश्न है ना। वर्ल्ड के फादर को फुरना रहेगा ना। बाप कहते हैं मैं ही वर्ल्ड को
पीस में लाता हूँ। भारत में पीस थी ना। पीसलेस आत्माओं को वापिस घर ले जाते हैं।
वर्ल्ड की पीस के लिए वर्ल्ड गॉड फादर को आना है। उनका ही पार्ट है। तो कहते हैं सब
कुछ करके… सबको सुख शान्ति दे करके फिर छिप जाते हैं। ऐसा छिप जाते हैं जो सतयुग
त्रेता में भी कोई नहीं जानते, द्वापर कलियुग में भी कोई नहीं जानते। जब तक खुद न
आकर अपना परिचय दे। देवतायें भी नहीं जानते। अपनी आत्मा को जानते हैं बाकी रचता को
नहीं जान सकते।
बाप कहते हैं – यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाती है। यह जो इतने मन्दिर शास्त्र आदि
बनें हैं, सब खत्म हो जाने हैं। भक्ति मार्ग की एक चीज़ भी नहीं रहती है। अभी बाप
कहते हैं सिर्फ मुझ एक बाप को याद करो और सबसे ममत्व मिटाओ। संन्यासी तो ऐसे कह न
सकें। उनका है निवृत्ति मार्ग। पावन से पतित, फिर पतित से पावन तुमको बनना है।
संन्यासियों का भी ड्रामा अनुसार पार्ट है। यह न हो तो भारत और ही दु:खी हो जाए।
मुख्य बात है ही पवित्रता की। पवित्रता की ताकत से तुम पतित सृष्टि को पावन बनाते
हो, बाप की श्रीमत से। हम आत्मायें बाबा के साथ जाने वाली हैं। पवित्र बनते-बनते हम
पहुँच जायेंगे। यह यात्रा बहुत वन्डरफुल है। हे रात के राही थक मत जाना। सतयुग को
दिन कहा जाता है। पहले तुम स्वीटहोम जाकर फिर दिन में आयेंगे। तुम हो रूहानी यात्रा
के ब्राह्मण, कितना समझने की बातें हैं। जितना बाप को याद करेंगे, पद भी उतना ऊंच
पायेंगे। कमाई बहुत है। नहीं करेंगे तो भस्मीभूत हो जायेंगे। कुछ तो मेहनत करनी
चाहिए ना। लौकिक बाप को उठते-बैठते चलते-फिरते याद करते हो ना! पारलौकिक बाप को क्यों
भूल जाते हो, लज्जा नहीं आती है! लौकिक बाप को कभी भूलते हो क्या? पारलौकिक बाप
जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, उनको भूल जाते हो तो वर्सा भी भूल जायेगा फिर क्या
पद पायेंगे। युक्ति से बतलाते रहते हैं। बस बाबा आया कि आया। हमको अब यह शरीर भी नहीं
चाहिए। बड़ी मीठी नॉलेज है। देने वाला भी बड़ा मीठा है। आधाकल्प दु:ख में याद करते
आये हो। बाबा हमको सभी दु:खों से छुड़ाओ। अब तुमको सभी दु:खों से छुड़ाते हैं। अगर
हमारी मत पर चलेंगे तो। मैं तुम्हारा बाप हूँ ना फिर क्यों कहते हो कि बाबा हम भूल
जाते हैं। तुम बच्चे हो ना। शान्तिधाम, सुखधाम जायेंगे ना। मुझ बाप को याद नहीं कर
सकते हो। मैं तुम्हें डबल सिरताज बनाऊंगा। बच्चे कहते हैं हाँ बाबा याद करेंगे फिर
कहते हो भूल गया। वन्डर है ना – इतना स्वर्ग का वर्सा मिलता है, तुम भूल जाते हो?
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की श्रीमत और पवित्रता की ताकत से इस पतित सृष्टि को पावन बनाने
की सेवा करनी है। अपने लिए अपना राज्य स्थापन करना है।
2) पारलौकिक बाप जो मीठे ते मीठा है, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, उसे
निरन्तर याद करना है। योगबल से अपनी राजाई लेनी है।