03-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – आत्म-अभिमानी होकर बैठो, अन्दर घोटते रहो –
मैं आत्मा हूँ…. देही-अभिमानी बनो, सच्चा चार्ट रखो तो समझदार बनते जायेंगे, बहुत
फायदा होगा”
प्रश्नः-
बेहद के नाटक
को समझने वाले बच्चे किस एक लॉ (नियम) को अच्छी रीति समझते हैं?
उत्तर:-
यह
अविनाशी नाटक हैं, इसमें हर एक पार्टधारी को पार्ट बजाने अपने समय पर आना ही है।
कोई कहे हम सदा शान्तिधाम में ही बैठ जाएं – तो यह लॉ नहीं है। उसे तो पार्टधारी ही
नहीं कहेंगे। यह बेहद की बातें बेहद का बाप ही तुम्हें सुनाते हैं।
ओम् शान्ति।
अपने को आत्मा समझकर
बैठो। देह-अभिमान छोड़कर बैठो। बेहद का बाप बच्चों को समझा रहे हैं। समझाया उनको
जाता है जो बेसमझ होते हैं। आत्मा समझती है कि बाप सच कहते हैं – हम आत्मा बेसमझ बन
गई हैं। मैं आत्मा अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है। मैं आत्म-अभिमान छोड़ देह-अभिमान
में फँस पड़ा हूँ। तो बेसमझ ठहरे ना। बाप कहते हैं सब बच्चे बेसमझ हो पड़े हैं,
देह-अभिमान में आकर। फिर तुम बाप द्वारा देही-अभिमानी बनते हो तो बिल्कुल समझदार बन
जाते हो। कोई तो बन गये हैं, कोई पुरूषार्थ करते रहते हैं। आधाकल्प लगा है बेसमझ
बनने में। इस अन्तिम जन्म में फिर समझदार बनना है। आधाकल्प से बेसमझ होते-होते 100
प्रतिशत बेसमझ बन जाते हैं। देह-अभिमान में आकर ड्रामा प्लैन अनुसार तुम गिरते आये
हो। अभी तुमको समझ मिली है फिर भी पुरूषार्थ बहुत करना है क्योंकि बच्चों में
दैवीगुण भी चाहिए। बच्चे जानते हैं हम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण…… थे। फिर
इस समय निर्गुण बन पड़े हैं। कोई भी गुण नहीं रहा है। तुम बच्चों में भी नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार इस खेल को समझते हैं। समझते-समझते भी कितने वर्ष हो गये हैं। फिर
भी जो नये हैं वह अच्छे समझदार बनते जाते हैं। औरों को भी बनाने का पुरूषार्थ करते
हैं। कोई ने तो बिल्कुल नहीं समझा है। बेसमझ के बेसमझ ही हैं। बाप आये ही हैं
समझदार बनाने। बच्चे समझते हैं माया के कारण हम बेसमझ बने हैं। हम पूज्य थे तो
समझदार थे फिर हम ही पुजारी बन बेसमझ बने हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय:
लोप हो गया है। इनका दुनिया में किसको पता नहीं है। यह लक्ष्मी-नारायण कितने समझदार
थे, राज्य करते थे। बाप कहते हैं तत् त्वम्। तुम भी अपने लिए ऐसे समझो। यह
बहुत-बहुत समझने की बातें हैं। सिवाए बाप के कोई समझा न सके। अभी महसूस होता है –
बाप ही ऊंच ते ऊंच समझदार ते समझदार होगा ना। एक तो ज्ञान का सागर भी है। सर्व का
सद्गति दाता भी है। पतित-पावन भी है। एक की ही महिमा है। इतना ऊंच ते ऊंच बाप आकरके
बच्चे-बच्चे कह कैसे अच्छी रीति समझाते हैं। बच्चे अब पावन बनना है। उसके लिए बाप
एक ही दवाई देते हैं, कहते हैं – योग से तुम भविष्य 21 जन्म निरोगी बन जायेंगे।
तुम्हारे सब रोग, दु:ख खत्म हो जायेंगे। तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे। अविनाशी
सर्जन के पास एक ही दवाई है। एक ही इन्जेक्शन आत्मा को आए लगाते हैं। ऐसे नहीं कोई
मनुष्य बैरिस्टरी भी करेंगे, इन्जीनियरी भी करेंगे। नहीं। हर एक आदमी अपने धन्धे
में ही लग जाते हैं। बाप को कहते हैं आकर पतित से पावन बनाओ क्योंकि पतितपने में
दु:ख है। शान्तिधाम को पावन दुनिया नहीं कहेंगे। स्वर्ग को ही पावन दुनिया कहेंगे।
यह भी समझाया है मनुष्य शान्ति और सुख चाहते हैं। सच्ची-सच्ची शान्ति तो वहाँ है जहाँ
शरीर नहीं, उसको कहा जाता है शान्तिधाम। बहुत कहते हैं शान्तिधाम में रहें, परन्तु
लॉ नहीं है। वह तो पार्ट-धारी हुआ नहीं। बच्चे नाटक को भी समझ गये हैं। जब एक्टर्स
का पार्ट होगा तब बाहर स्टेज पर आकर पार्ट बजायेंगे। यह बेहद की बातें बेहद का बाप
ही समझाते हैं। ज्ञान सागर भी उनको कहा जाता है। सर्व के सद्गति दाता पतित-पावन
हैं। सर्व को पावन बनाने वाले तत्व नहीं हो सकते। पानी आदि सब तत्व हैं, वह कैसे
सद्गति करेंगे। आत्मा ही पार्ट बजाती है। हठयोग का भी पार्ट आत्मा बजाती है। यह बातें
भी जो समझदार हैं वही समझ सकते हैं। बाप ने कितना समझाया है – कोई ऐसी युक्ति रचो
जो मनुष्य समझें – कैसे पूज्य सो फिर पुजारी बनते हैं। पूज्य हैं नई दुनिया में,
पुजारी हैं पुरानी दुनिया में। पावन को पूज्य, पतित को पुजारी कहा जाता है। यहाँ तो
सब पतित हैं क्योंकि विकार से पैदा होते हैं। वहाँ हैं श्रेष्ठ। गाते भी हैं
सम्पूर्ण श्रेष्ठाचारी। अभी तुम बच्चों को ऐसा बनना है। मेहनत है। मुख्य बात है याद
की। सभी कहते हैं याद में रहना बड़ा मुश्किल है। हम जितना चाहते हैं, याद में रह नहीं
सकते हैं। कोई सच्चाई से अगर चार्ट लिखे तो बहुत फायदा हो सकता है। बाप बच्चों को
यह ज्ञान देते हैं कि मनमनाभव। तुम अर्थ सहित कहते हो, तुम्हें बाप हर बात यथार्थ
रीति अर्थ सहित समझाते हैं। बाप से बच्चे कई प्रकार के प्रश्न पूछते हैं, बाप करके
दिल लेने लिए कुछ कह देते हैं। परन्तु बाप कहते हैं मेरा काम ही है पतित से पावन
बनाना। मुझे तो बुलाते ही इसलिए हो। तुम जानते हो हम आत्मा शरीर सहित पावन थी। अभी
वही आत्मा शरीर सहित पतित बनी है। 84 जन्मों का हिसाब है ना।
तुम जानते हो – अभी
यह दुनिया कांटों का जंगल बन गई है। यह लक्ष्मी-नारायण तो फूल हैं ना। उन्हों के आगे
कांटे जाकर कहते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न…… हम पापी कपटी हैं। सबसे बड़ा कांटा है –
काम विकार का। बाप कहते हैं इस पर जीत पहन जगतजीत बनो। मनुष्य कहते हैं भगवान को
कोई न कोई रूप में आना है, भागीरथ पर विराजमान हो आना है। भगवान को आना ही है पुरानी
दुनिया को नया बनाने। नई दुनिया को सतोप्रधान, पुरानी को तमोप्रधान कहा जाता है।
जबकि अभी पुरानी दुनिया है तो जरूर बाप को आना ही पड़े। बाप को ही रचयिता कहा जाता
है। तुम बच्चों को कितना सहज समझाते हैं। कितनी खुशी होनी चाहिए। बाकी किसका
कर्मभोग का हिसाब-किताब है, कुछ भी है, वह तो भोगना है, इसमें बाबा आशीर्वाद नहीं
करते हैं। हमको बुलाते ही हो – बाबा आकर हमको वर्सा दो। बाबा से क्या वर्सा पाने
चाहते हो? मुक्ति-जीवनमुक्ति का। मुक्ति-जीवनमुक्ति का दाता एक ही ज्ञान सागर बाप
है इसलिए उनको ज्ञान दाता कहा जाता है। भगवान ने ज्ञान दिया था परन्तु कब दिया,
किसने दिया, यह किसको पता नहीं है। सारा मुँझारा इसमें है। किसको ज्ञान दिया, यह भी
किसको पता नहीं है। अभी यह ब्रह्मा बैठे हैं – इनको मालूम पड़ा है कि हम सो नारायण
था फिर 84 जन्म भोगे। यह है नम्बरवन में। बाबा बतलाते हैं मेरी तो आंख ही खुल गई।
तुम भी कहेंगे हमारी तो आंखें ही खुल गई। तीसरा नेत्र तो खुलता है ना। तुम कहेंगे
हमको बाप का, सृष्टि चक्र का पूरा ज्ञान मिल गया है। मैं जो हूँ, जैसा हूँ – मेरी
आंखें खुल गई हैं। कितना वन्डर है। हम आत्मा फर्स्ट हैं और फिर हम अपने को देह समझ
बैठे। आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ। फिर भी हम अपने को आत्मा भूल
देह-अभिमानी बन जाते हैं इसलिए अब तुमको पहले-पहले यह समझ देता हूँ कि अपने को आत्मा
समझ बैठो। अन्दर में यह घोटते रहो कि मैं आत्मा हूँ। आत्मा न समझने से बाप को भूल
जाते हो। फील करते हो बरोबर हम घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हैं। मेहनत करनी
है। यहाँ बैठो तो भी आत्म-अभिमानी होकर बैठो। बाप कहते हैं हम तुम बच्चों को राजाई
देने आये हैं। आधाकल्प तुमने हमको याद किया है। कोई भी बात सामने आती है तो कहते
हैं हाय राम, परन्तु ईश्वर वा राम कौन है, यह किसको पता नहीं। तुमको सिद्ध करना है
– ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता, त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव
है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तीनों का जन्म इकट्ठा है। सिर्फ शिवजयन्ती नहीं है परन्तु
त्रिमूर्ति शिव जयन्ती है। जरूर जब शिव की जयन्ती होगी तो ब्रह्मा की भी जयन्ती होगी।
शिव की जयन्ती मनाते हैं परन्तु ब्रह्मा ने क्या किया। लौकिक, पारलौकिक और यह है
अलौकिक बाप। यह है प्रजापिता ब्रह्मा। बाप कहते हैं नई दुनिया के लिए यह नया ज्ञान
अभी तुमको मिलता है फिर प्राय: लोप हो जाता है। जिसको बाप रचता और रचना का ज्ञान नहीं
तो अज्ञानी ठहरे ना। अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। ज्ञान से है दिन, भक्ति से है
रात। शिवरात्रि का अर्थ भी नहीं जानते इसलिए उनकी हॉली डे भी उड़ा दी है।
अभी तुम जानते हो बाप
आते ही हैं – सबकी ज्योत जगाने। तुम यह बत्तियां आदि जगायेंगे तो समझेंगे इनका कोई
बड़ा दिन है। अब तुम जगाते हो अर्थ सहित। वो लोग थोड़ेही समझेंगे। तुम्हारे भाषण से
पूरा समझ नहीं सकते। अभी सारे विश्व पर रावण का राज्य है, यहाँ तो मनुष्य कितने
दु:खी हैं। रिद्धि-सिद्धि वाले भी बहुत तंग करते हैं। अखबारों में भी पड़ता है, इनमें
ईविल सोल है। बहुत दु:ख देते हैं। बाबा कहते हैं इन बातों से तुम्हारा कोई कनेक्शन
नहीं। बाप तो सीधी बात बताते हैं – बच्चे, तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे।
तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यथार्थ रीति बाप को याद करने वा आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है,
सच्चाई से अपना चार्ट रखना है, इसमें ही बहुत-बहुत फायदा है।
2) सबसे बड़ा दु:ख देने वाला कांटा काम विकार है, इस पर योगबल से विजय प्राप्त
कर पतित से पावन बनना है। बाकी किन्हीं भी बातों से तुम्हारा कनेक्शन नहीं।
वरदान:-
स्व-उन्नति द्वारा सेवा में उन्नति करने वाले सच्चे
सेवाधारी भव
स्व-उन्नति सेवा की उन्नति का विशेष आधार है। स्व-उन्नति
कम है तो सेवा भी कम है। सिर्फ किसी को मुख से परिचय देना ही सेवा नहीं है लेकिन हर
कर्म द्वारा श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा देना यह भी सेवा है। जो मन्सा-वाचा-कर्मणा सदा
सेवा में तत्पर रहते हैं उन्हें सेवा द्वारा श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव होता है। जितनी
सेवा करते उतना स्वयं भी आगे बढ़ते हैं। अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा सेवा करने वाले
सदा प्रत्यक्षफल प्राप्त करते रहते हैं।
स्लोगन:-
समीप
आने के लिए सोचना-बोलना और करना समान बनाओ।