09-12-07     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 1992 "बापदादा"    मधुबन


फरिश्ता बनना है तो सर्व लगाव की जंजीरों को समाप्त करो
 


बाप समान निराकारी और आकारी-इसी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। तो आप सभी भी साकारी होते हुए भी निराकारी और आकारी अर्थात् अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हो। या साकार में ज्यादा आ जाते हो? जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ-यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हों। क्योंकि जिससे प्यार होता है, तो प्यार की निशानी है समान बनना। बाप और दादा-निराकारी और आकारी हैं और दोनों से प्यार है तो समान बनना पड़ेगा ना। तो सदैव यह अभ्यास करो कि अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। साकार में आते भी आकारी और निराकारी स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकें। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां आपके कन्ट्रोल में हैं। आंख को वा मुख को बंद करना चाहो तो कर सकते हो। ऐसे मन और बुद्धि को उसी स्थिति में स्थित कर सको जिसमें चाहो। अगर फरिश्ता बनने चाहें तो सेकेण्ड में फरिश्ता बनो-ऐसा अभ्यास है या टाइम लगता है? क्योंकि हलचल जब बढ़ती है तो ऐसे समय पर कौनसी स्थिति बनानी पड़ेगी? आकारी या निराकारी। साकार देहधारी की स्थिति पास होने नहीं देगी, फेल कर देगी। अभी भी देखो-किसी भी हलचल के समय अचल बनने की स्थिति फरिश्ता स्वरूप या आत्म-अभिमानी स्थिति ही है। यही स्थिति हलचल में अचल बनाने वाली है। तो क्या अभ्यास करना है? आकारी और निराकारी। जब चाहें तब स्थित हो जाए-इसके लिए सारा दिन अभ्यास करना पड़े, सिर्फ अमृतवेले नहीं। बीच-बीच में यह अभ्यास करो।

फरिश्ता सदा ही ऊपर से नीचे आता है, फिर नीचे से ऊपर उड़ जाता है। फरिश्ता सेकण्ड में ऊंचा क्यों उड़ जाता? क्योंकि उसका कोई लगाव नहीं होता-न देह से, न देह की पुरानी दुनिया से। तो चेक करो कि लगाव की कोई जंजीरें रही हुई तो नहीं हैं? अगर कोई भी लगाव की जंजीर वा धागा लगा हुआ होगा तो उड़ सकेंगे? वह रस्सी वा धागा खींचकर नीचे ले आयेगा। तो फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं हो। ऐसे है या थोड़ा-थोड़ा रिश्ता है? मोटे-मोटे धागे खत्म हो गये। सूक्ष्म कोई रह तो नहीं गये? बहुत महीन धागे हैं। ऐसे न हो-मोटे-मोटे को देखकर समझो कि स्वतन्त्र हो गये और जब उड़ने लगो तो नीचे आ जाओ। तो सूक्ष्म रीति से चेक करो। अंश-मात्र भी नहीं हो। सुनाया था ना कि कई बच्चे कहते हैं-इच्छा नहीं है कोई चीज की लेकिन अच्छा लगता है। तो यह क्या हुआ? अंश-मात्र हो गया ना। जो चीज़ अच्छी लगेगी वह अपनी तरफ आकर्षित करेगी ना। तो ‘इच्छा’ है मोटा धागा और ‘अच्छा’ है सूक्ष्म धागा। मोटा तो खत्म कर दिया, लेकिन सूक्ष्म है तो उड़ने नहीं देगा।

बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। रोज़ फरिश्ते की बात सुनते हो ना। सिर्फ सुनते हो या बन गये हो? बन रहे हैं या बन गये हैं? कब तक बनेंगे? विनाश तक? उससे पहले बनेंगे तो उसका हिसाब है। ऐसे नहीं-10 साल में विनाश होगा तो 9 साल के बाद एक साल में बन जाओ। ऐसे नहीं करना। बहुतकाल का चाहिए। अगर थोड़े समय का अभ्यास होगा तो थोड़े समय तो स्थित होंगे लेकिन बहुतकाल नहीं हो सकेंगे, मेहनत करनी पड़ेगी। अभी मेहनत कर लो, तो उस समय मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अगर मेहनत करते-करते चले गये तो रिजल्ट क्या होगी? कहाँ जायेंगे-सूर्यवंश में या चन्द्रवंश में? तो चेक करो और चेंज करो। जो कमी हो उसको भरते जाओ। सम्पन्न बनो। सदैव याद रखो कि बाप को प्यार का सबूत देना है-समान बनना है। सदा अपने को बाप समान बनाने का अभ्यास और तीव्र गति से बढ़ाओ। अच्छा!

2 - मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति से विघ्न‌ विनाशक बनो

सदा मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसा अनुभव है? या जिस समय बालक बनना हो उस समय मालिक बन जाते और जिस समय मालिक बनना हो उस समय बालक बन जाते? जब चाहो, जैसे चाहो वैसी स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसे है? क्योंकि यह डबल नशा सदा ही निर्विघ्न बनाने वाला है। जब भी कोई विघ्न आता है तो उस समय जिस स्थिति में स्थित होना चाहिए, उसमें स्थित न होने कारण विघ्न आता है।

विघ्न-विनाशक आत्मायें हो या विघ्न के वश होने वाली हो? सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा टाइटल ही है ‘विघ्न-विनाशक’। विघ्न-विनाशक आत्मा स्वयं कैसे विघ्न में आयेगी? चाहे कोई कितना भी विघ्न रूप बनकर आये लेकिन आप विघ्न विनाश करेंगे। सिर्फ अपने लिये विघ्न-विनाशक नहीं हो लेकिन सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। विश्व-परिवर्तक हो। तो विश्व-परिवर्तक शक्तिशाली होते हैं ना। शक्ति के आगे कोई कितना भी शक्तिशाली हो लेकिन वह कमजोर बन जाता है। विघ्न को कमजोर बनाने वाले हो, स्वयं कमजोर बनने वाले नहीं। अगर स्वयं कमजोर बनते हो तो विघ्न शक्तिशाली बन जाता है और स्वयं शक्तिशाली हो तो विघ्न कमजोर बन जाता है। तो सदा अपने मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप की स्मृति में रहो।

सुना तो बहुत है, बाकी क्या रहा? बनना। सुनने का अर्थ ही है बनना। तो बन गये हो? बाप भी ऐसे शक्तिशाली बच्चों को देख हर्षित होते हैं। लौकिक में भी बाप को कौनसे बच्चे प्यारे लगते हैं? जो आज्ञाकारी, फॉलो फादर करने वाले होंगे। तो आप कौन हो? फॉलो फादर करने वाले हो। फॉलो करना सहज होता है ना। बाप ने कहा और बच्चों ने किया। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। करें, नहीं करें, अच्छा होगा, नहीं होगा-यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। फॉलो करना सहज है ना। हर कर्म में क्या-क्या फॉलो करो और कैसे करो-यह भी सभी को स्पष्ट है। जो हर कदम में फॉलो करने वाले हैं उनको क्या नशा रहता है? यह निश्चय का नशा रहता है कि हर कर्म में सफलता हुई ही पड़ी है। होगी या नहीं होगी-नहीं। हुई ही पड़ी है। क्योंकि कल्प पहले भी पाण्डवों की विजय हुई ना। पाण्डवों ने क्या किया? भगवान की मत पर चले अर्थात् फॉलो किया तो विजय हुई। तो वही कल्प पहले वाले हो ना। तो यह निश्चय स्वत: ही नशा दिलाता है। कोई भी बात मुश्किल नहीं लगेगी। तो सदा ही सहज और श्रेष्ठ प्राप्ति का अनुभव करते चलो। मालिक सो बालक हैं-यह डबल नशा समय प्रमाण प्रैक्टिकल में लाओ। कभी कोई खिटखिट भी हो जाये तो भी खुशी कम न हो। सदा खुश रहो। अच्छा!

3 - सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनो

अपने को सदा संगमयुगी कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? संगमयुग एक ही इस सृष्टि-चक्र में ऐसा युग है जो चढ़ती कला का युग है। और युग धीरे-धीरे नीचे उतारते हैं। सतयुग से कलियुग में आते हो तो कितनी कलायें कम हो जाती हैं? तो सभी युगों में उतरते हो और संगमयुग में चढ़ते हो। चढ़ने के लिए भी लिफ्ट मिलती है। सभी को लिफ्ट मिली है ना। बीच में अटक तो नहीं जाती है? ऐसे तो नहीं-कभी अटक जाओ, कभी लटक जाओ। ऐसी लिफ्ट मिलती है जो कभी भी न लटकाने वाली है, न अट-काने वाली है। देखो, कितने लक्की हो जो कल्याणकारी युग में आये और कल्याणकारी बाप मिला। आपका भी ऑक्यूपेशन है विश्व-कल्याणकारी। तो बाप भी कल्याणकारी, युग भी कल्याणकारी, आप भी कल्याणकारी और आपका ऑक्यूपेशन भी विश्व-कल्याणकारी। तो कितने लक्की हो! अच्छा, यह लक्क कितना समय चलेगा? सारा कल्प या आधा कल्प? जो कहते हैं आधा कल्प, वह हाथ उठाओ। जो कहते हैं सारा कल्प, वह हाथ उठाओ। सभी राइट हो। क्योंकि आधा कल्प राज्य करेंगे, आधा कल्प पूज्य बनेंगे। तो यह भी लक्क ही है।

डबल विदेशी पूज्य बनेंगे? आपके मन्दिर हैं? देखो, एक ही देवता धर्म है जिसके 33 करोड़ गाये और पूजे जाते हैं। आप उसमें तो हो ही ना। अच्छा, आबू में अपना मन्दिर देखा है? उसमें आपकी मूर्ति है? नम्बर लगाकर आये हो कि यह मेरी है? जब बाप को फॉलो करने वाले हो, तो जैसे बाप ब्रह्मा पूज्य बनेंगे, तो फॉलो करने वाले भी अवश्य पूज्य ही बनेंगे। सारा कल्प ब्रह्मा बाप के साथ राज्य का, पूजा का और पूज्य बनने का-सब पार्ट बजायेंगे। ऐसा निश्चय है? पूजा भी ब्रह्मा बाप के साथ शुरू करेंगे। किसकी पूजा शुरू करेंगे? आपने पूजा की है? अपनी भी पूजा की है? देवताओं की पूजा की तो अपनी की ना। इसलिए गाया हुआ है-आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी। इतना ब्रह्मा बाप से प्यार है जो सदा ही साथ रहेंगे। लेकिन कौन साथ रहेगा? जो फॉलो करने वाले हैं। तो जो भी कर्म करते हो वह चेक करो कि ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ कर्म है या साधारण कर्म है? जब विशेष कर्म करने वाले बनेंगे तब ही विशेष ब्रह्मा आत्मा के साथ पार्ट बजायेंगे।

सदा मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ- इस स्मृति में रहने से जो भी कर्म करेंगे वह कल्याणकारी करेंगे। कल्याणकारी समझने से संगमयुग जो कल्याणकारी है वह भी याद आता है और कल्याणकारी बाप भी स्वत: याद आता है। सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनना है। सबसे बड़े भाग्य की निशानी यह है जो संगमयुग पर साधारण आत्मा बने हो। अगर साहूकार होते तो बाप के नहीं बनते, सिर्फ कलियुग की साहूकारी ही भाग्य में मिलती। तो साधारण बनना अच्छा है ना। स्थूल धन से साधारण हो लेकिन ज्ञान-धन से साहूकार हो। तो खुशी है ना कि बाप ने सारे विश्व में से हमें अपना बनाया। सारा दिन खुशी में रहते हो? मुरली रोज़ सुनते हो? कभी मिस तो नहीं करते? मिस करते हो तो फॉलो फादर नहीं हुआ ना। ब्रह्मा बाप ने एक दिन भी मुरली मिस नहीं की। अच्छा!

मधुबन निवासी और ग्लोबल हॉस्पिटल वाले-दोनों ही अपनी अच्छी सेवा कर रहे हैं। ये ग्लोबल वाले शरीरों को निरोगी बनाए आत्मा को शक्तिशाली बना रहे हैं और मधुबन निवासी सभी को सन्तुष्ट करने की सेवा कर रहे हैं। दोनों की सेवा बापदादा देख हर्षित होते हैं। सेवाधारी भी अथक बन सेवा में सदा आगे बढ़ते रहते हैं। सभी को सेवा की मुबारक! सालगांव में भी अच्छी प्यार से सेवा कर रहे हैं, आपके प्यार की सेवा सफलता को समीप ला रही है। नीचे तलहटी वाले भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। डबल विदेशी भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। अच्छी कर रहे हैं और अच्छी रहेगी। विदेश में भी अच्छी सेवा का उमंग है। भारत और विदेश में सेवा वृद्धि को प्राप्त कर रही है और तीव्र गति से वृद्धि को प्राप्त करना ही है। अच्छा!

वरदान:-
देह-अभिमान के अंशमात्र की भी बलि चढ़ाने वाले महाबलवान भव

सबसे बड़ी कमजोरी है देह-अभिमान। देह-अभिमान का सूक्ष्म वंश बहुत बड़ा है। देह अभिमान की बलि चढ़ाना अर्थात् अंश और वंश सहित समर्पित होना। ऐसे बलि चढ़ाने वाले ही महाबलवान बनते हैं। यदि देह अभिमान का कोई भी अंश छिपाकर रख लिया, अभिमान को ही स्वमान समझ लिया तो उसमें अल्पकाल की विजय भल दिखाई देगी लेकिन बहुतकाल की हार समाई हुई है।

स्लोगन:-
इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया - यह भी जीवनबंध स्थिति है।