18 जनवरी 2011, पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रातः क्लास में सुनाने के लिए प्राण बापदादा के मधुर महावाक्य

 

शिवबाबा याद है? 18-01-11 ओम् शान्ति “बापदादा" मधुबन

 

"मीठे बच्चे तुम्हारा यह बहुत-बहुत लवली परिवार है, तुम्हारा आपस में बहुत-बहुत लव होना चाहिए"

 

ओम शान्ति। बेहद के बाप और दादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों से बहुत लव है - कितना लव से पढ़ाते हैं। तो बच्चों को भी खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। पारा चढ़ेगा याद की यात्रा से बाप कल्प कल्प बहुत प्यार से लवली सर्विस करते हैं। 5 तत्वों सहित सबको पावन बनाते हैं। कितनी बड़ी बेहद की सेवा है। बाप बहुत प्यार से बच्चों को शिक्षा भी देते रहते क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है। बाप की है श्रीमत, जिससे ही श्रेष्ठ बनेंगे। जितना प्यार से याद करेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। यह भी चार्ट में लिखना चाहिए हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मत पर चलते हैं? श्रीमत पर चलने से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे। जितनी बाप से प्रीत बुद्धि होगी उतना गुप्त खुशी रहेगी और ऊंच बनेंगे। अपनी दिल से पूछना है हमको इतनी अपार खुशी है? बाप को इतना प्यार करते हैं? प्यार करना माना ही करना है। याद से ही एवरहेल्दी एवरवेल्दी बनेंगे। पुरुषार्थ करना होता है और किसी की भी याद न आये। एक शिवबाबा की ही याद हो, स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकलें। एक शिवबाबा दूसरा न कोई। यही अन्तिम मन्त्र अथवा वशीकरण मन्त्र, रावण पर जीत पाने का मन्त्र है।

 

बाप समझाते हैं मीठे बच्चे इतना समय तुम देह-अभिमान में रहे हो, अब देही- अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो। सब देह के सम्बन्धों को भूल अपने को गाडली स्टूडेन्ट समझो। सवेरे-सवेरे उठकर बाप को याद करो - नींद आ गई तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा। अमृतवेले उठकर बाबा से रुहरिहान करो। बाबा आपने हमको क्या से क्या बना दिया, बाबा कमाल है आपकी... बाबा आप हमें अथाह खजाना देते हो। विश्व का मालिक बनाते हो! बाबा हम आपको कभी भूल नहीं सकते। भोजन खाते, कामकाज करते बाबा आपको ही याद करेंगे.. ऐसे-ऐसे प्रतिज्ञा करते-करते फिर याद पक्की हो जायेगी। मोस्ट बिलवेड बाबा नॉलेजफुल भी है, ब्लिसफुल भी है। नम्बरवन पतित से हमको नम्बरवन पावन बनाते हैं। बस मीठे-मीठे बाबा की याद में गदगद होना चाहिए। इस बाबा को भी यह सुमिरण कर अन्दर में बहुत खुशी होती है। ओहो! मैं ब्रह्मा सो विष्णु बनूँगा! फिर 84 जन्मों बाद ब्रह्मा बनूँगा! फिर बाबा हमको विष्णु बनायेगा। कितना वन्डरफुल ड्रामा है! यह सुमिरण कर सदैव हर्षित रहता हूँ! शिवबाबा कितना लायक बनाते हैं। वाह तकदीर वाह! ऐसे-ऐसे विचार करते एकदम मस्ताना हो जाना चाहिए। वाह! हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। हम बहुत अच्छी सर्विस करते हैं - इसमें ही सिर्फ खुश नहीं होना है। पहले गुप्त-सर्विस अपनी यह (याद की) करते रहो। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है, इससे ही तुम्हारा कल्याण होना है। आज बाबा खास इस पर ज़ोर दे रहे हैं - जो यह अभ्यास करेंगे वही कर्मातीत अवस्था को पा सकेंगे और ऊंच पद पायेंगे। इसी अवस्था में बैठे-बैठे बाप को याद करते घर चल जायें। दिन-प्रतिदिन याद का चार्ट बढ़ाना चाहिए। देखना है तमोप्रधान से सतोप्रधान कितने परसेन्ट बने हैं? किसको दुःख तो नहीं दिया - देहधारी में बुद्धि तो नहीं गई कितने को बाप का सन्देश दिया - चार्ट रखने से बहुत उन्नति होगी।

 

मीठे बच्चे तुम्हारा यह बहुत लवली परिवार है - तो तुम हर एक को बहुत बहुत लवली होना चाहिए। बाप भी मीठा है तो बच्चों को भी ऐसा मीठा बनाते हैं। कभी किसी पर गुस्सा नहीं करना चाहिए। मन्सा वाचा कर्मणा किसको दुःख नहीं देना है। बाप कभी किसको दुःख नहीं देते। जितना बाप को याद करेंगे - उतना मीठा बनते रहेंगे। बस इस याद से ही बेड़ा पार है- यह है याद की यात्रा। याद करते-करते वाया शान्तिधाम सुखधाम जाना है। बाप आये ही हैं बच्चों को सदा सुखी बनाने। तो बाप कितना गुल गुल बनाते हैं। बाप और दादा दोनों मिलकर तुम बच्चों का श्रृंगार करते हैं - मात-पिता ही बच्चों का श्रृंगार करते हैं ना। वह है हद के बाप - यह है बेहद का बाप। तो बच्चों को बहुत प्यार से चलना और चलाना है। सब विकारों का दान देना चाहिए, दे दान तो छूटे ग्रहण। इसमें कोई बहाने आदि की बात नहीं। प्यार से तुम किसको भी वश कर सकते हो। प्यार से समझानी दो, प्यार बहुत मीठी चीज़ है शेर को, हाथी को जानवरों को भी मनुष्य प्यार से वश कर लेते हैं।

 

मीठे बच्चे तुम अभी देवता बन रहे हो तो दैवीगुण धारण कर बहुत-बहुत मीठा बनना है। एक दो को भाई-भाई अथवा भाई-बहन की दृष्टि से देखो। आत्मा, आत्मा को कभी दुःख नहीं दे सकती। बाप कहते हैं मीठे बच्चे मैं तुमको स्वर्ग का राज्यभाग्य देने आया हूँ। अब तुमको जो चाहिए हम से लो। हम तो विश्व का मालिक डबल सिरताज तुमको बनाने आये हैं। परन्तु मेहनत तुमको करनी है। मैं किस पर ताज नहीं रखूँगा। तुमको अपने पुरुषार्थ से ही अपने को राजतिलक देना है। बाप पुरुषार्थ की युक्ति बताते हैं कि ऐसे-ऐसे विश्व का मालिक डबल सिरताज अपने को बना सकते हो। पढ़ाई पर पूरा ध्यान दो। कभी भी पढ़ाई को न छोड़ो। कोई भी कारण से रूठ कर पढ़ाई को छोड़ दिया तो बहुत बहुत घाटा पड़ जायेगा। घाटे और फायदे को देखते रहो। तुम ईश्वरीय युनिवर्सिटी के स्टूडेन्ट हो, ईश्वर बाप से पढ़ रहे हो। पढ़कर पूज्य देवता बन रहे हो तो स्टूडेन्ट भी ऐसा रेग्यूलर बनना चाहिए। स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट। जितना पढ़ेंगे-पढ़ायेंगे और मैनर्स सुधारेंगे उतना दी बेस्ट बनेंगे।

 

मीठे बच्चे अब तुम्हारी रिटर्न जरनी है, जैसे सतयुग से त्रेता, द्वापर, कलियुग तक नीचे उतरते आये हो वैसे अब तुमको आइरन एज से ऊपर गोल्डन एज़ तक जाना है। जब सिलवर एज तक पहुंचेंगे तो फिर इन कर्मेन्द्रियों की चंचलता खत्म हो जायेगी इसलिए जितना बाप को याद करेंगे उतना तुम आत्माओं से रजो तमो की कट (जंक) निकलती जायेगी और जितना कट निकलती जायेगी उतना बाप चुम्बक की तरफ कशिश बढ़ती जायेगी। कशिश नहीं होती है तो जरूर कट लगी हुई है - कट एकदम निकल प्योर सोना बन जाए, वह है अन्तिम कर्मातीत अवस्था।

 

मीठे बच्चे तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में, प्रवृत्ति में रहते भी कमल पुष्प समान बनना है। बाप कहते हैं मीठे बच्चे घर गृहस्थ को भी सम्भालो, शरीर निर्वाह अर्थ काम काज भी करो। साथ-साथ यह पढ़ाई भी पढ़ते रहो। गायन भी है हथ कार डे दिल याद दे। काम काज करते एक माशूक बाप को याद करना है। तुम आधाकल्प के आशिक हो। नौंधा भक्ति में भी देखो कृष्ण आदि को कितना प्रेम से याद करते हैं। वह है नौंधा भक्ति, अटल भक्ति। यह फिर है निरन्तर याद करने का ज्ञान। बाप कहते हैं मुझ पतित पावन बाप को याद करो तो तुम्हारे पाप नाश हो जायेंगे।

 

मूल बात मीठे बच्चों को बाप समझाते हैं देही-अभिमानी बनो। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल मामेकम् याद करो - पावन भी जरूर बनना है। जो निरन्तर याद करते और औरों को भी याद कराते रहेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। यह पुरुषार्थ करते-करते अन्त में तुम्हारी वह अवस्था जम जायेगी। यह तो दुनिया भी पुरानी है, देह भी पुरानी है, देह सहित देह के सब सम्बन्ध भी पुराने हैं। उन सबसे बुद्धियोग हटाए एक बाप संग जोड़ना है, जो अन्तकाल भी उस एक बाप की ही याद रहे।

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे बेहद के बाप पास आते ही हैं रिफ्रेश होने लिए क्योंकि बच्चे जानते हैं बेहद के बाप से बेहद विश्व की बादशाही मिलती है, यह कब भूलना नहीं चाहिए। बाबा को तो वह बच्चे चाहिए जो सर्विस बिगर रह न सकें। तुम बच्चों को सारे विश्व पर घेराव डालना है अर्थात् पतित दुनिया को पावन बनाना है। सारे विश्व को दुःखधाम से सुखधाम बनाना है। टीचर को भी पढ़ाने में मज़ा आता है ना। तुम तो अब बहुत ऊंच टीचर बने हो। जितना अच्छा टीचर, वह बहुतों को आपसमान बनायेंगे। कब थकेंगे नहीं। ईश्वरीय सर्विस में बहुत खुशी रहती है। बाप की मदद भी मिलती है। यह सौदा बड़ा फर्स्टक्लास है - परन्तु इसमें बड़ा साहस धारण करना पड़ता है। नये-नये बच्चे पुरानों से भी पुरुषार्थ में आगे जा सकते हैं। हर एक की इन्डीविज्युअल तकदीर है, तो पुरुषार्थ भी हर एक को इन्डीविज्युअल करना है। अपनी पूरी चेकिंग करनी चाहिए। ऐसी चेकिंग करने वाले एकदम रात दिन पुरुषार्थ में लग जायेंगे। कहेंगे हम अपना टाइम वेस्ट क्यों करें। जितना हो सके टाइम सेफ करें। अपने से पक्का प्रण कर देते हैं, हम बाप को कभी नहीं भूलेंगे। स्कालरशिप लेकर ही छोड़ेंगे। ऐसे बच्चों को फिर मदद भी मिलती है। ऐसे भी नये-नये पुरुषार्थी बच्चे तुम देखेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। जैसे शुरू में हुआ वही फिर पिछाड़ी में देखेंगे। जितना नज़दीक होते जायेंगे, उतना खुशी में नाचते रहेंगे। उधर खूने नाहेक खेल भी चलता रहेगा।

 

तुम बच्चों की ईश्वरीय रेस चल रही है। जितना आगे दौड़ते जायेंगे उतना नई दुनिया के नज़ारे भी नज़दीक आते जायेंगे। खुशी बढ़ती जायेगी। जिनको नज़ारे नजदीक नहीं दिखाई पड़ते उनको खुशी भी नहीं होगी। अभी तो कलियुगी दुनिया से वैराग्य और सतयुगी नई दुनिया से बहुत प्यार होना चाहिए।

 

अच्छा - मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

अव्यक्त महावाक्य - (रिवाइज)

 

सभी आवाज़ से परे अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहने का अनुभव बहुत समय कर सकते हो? आवाज़ में आने का अनुभव ज्यादा कर सकते हो वा आवाज़ से परे रहने का अनुभव ज्यादा समय कर सकते हो? जितना लास्ट स्टेज़ अथवा कर्मातीत स्टेज समीप आती जायेगी उतना आवाज़ से परे शान्त स्वरूप की स्थिति अधिक प्रिय लगेगी, इस स्थिति में सदा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होगी। इसी अतीन्द्रिय सुखमय स्थिति द्वारा अनेक आत्माओं का सहज ही आह्वान कर सकेंगे। यह पॉवरफुल स्थिति ही विश्व-कल्याणकारी स्थिति कही जाती है। जैसे आजकल साइन्स के साधनों सब चीजें समीप अनुभव होती जाती हैं - दूर की आवाज़ टेलीफ़ोन के साधन द्वारा समीप सुनने में आती है, टी. वी. (दूर दर्शन) द्वारा दूर का दृश्य समीप दिखाई देता है, ऐसे ही साइलेन्स की स्टेज द्वारा कितने भी दूर रहती हुई आत्मा को सन्देश पहुंचा सकते हो। वह ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में सम्मुख किसी ने सन्देश दिया है। दूर बैठे हुए भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के दर्शन और प्रभु के चरित्रों के दृश्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसेकि सम्मुख देख रहे हैं। संकल्प के द्वारा दिखाई देगा अर्थात् आवाज़ से परे संकल्प की सिद्धि का पार्ट बजायेंगे। लेकिन इस सिद्धि की विधि ज्यादा से ज्यादा अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित होना है, इसलिए कहा जाता है साइलेन्स इज़ गोल्ड, यही गोल्डन ऐजड स्टेज कही जाती है।

 

इस स्टेज पर स्थित रहने से ‘कम खर्च बाला नशीन’ बनेंगे। समय रूपी खज़ाना, एनर्जी का खज़ाना और स्थूल खज़ानों में ‘कम खर्च बाला नशीन’ हो जायेंगे। इसके लिए एक शब्द याद रखो, वह कौन सा? बैलेन्स। हर कर्म में, हर संकल्प और बोल, सम्बन्ध वा सम्पर्क में बैलेन्स हो। तो बोल, कर्म, संकल्प, सम्बन्ध वा सम्पर्क साधारण के बजाए अलौकिक दिखाई देगा अर्थात् चमत्कारी दिखाई देगा। हर एक के मुख से, मन से यही आवाज़ निकलेगा कि यह तो चमत्कार है। समय के प्रमाण स्वयं के पुरुषार्थ की स्पीड और विश्व सेवा की स्पीड तीव्र गति की चाहिए तब विश्व-कल्याणकारी बन सकेंगे।

 

विश्व की अधिकतर आत्मायें बाप की और आप इष्ट देवताओं की प्रत्यक्षता का आह्वान ज्यादा कर रही हैं और इष्ट देव उनका आह्वान कम कर रहे हैं। इसका कारण क्या है? अपने हद के स्वभाव, संस्कारों की प्रवृत्ति में बहुत समय लगा देते हो। जैसे अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान सुनने की फुर्सत नहीं, वैसे बहुत से ब्राह्मणों को भी इस पावरफुल स्टेज पर स्थित होने की फुर्सत नहीं मिलती इसलिए अब ज्वाला रूप बनने की आवश्यकता है। बापदादा हर एक की प्रवृत्ति को देख मुस्कराते रहते हैं कि कैसे टू मच बिजी हो गये हैं। बहुत बिजी रहते हो ना? वास्तविक स्टेज में सदा फ्री रहेंगे। सिद्धि भी होगी और फ्री भी रहेंगे।

 

जब साइन्स के साधन धरती पर बैठे हुए स्पेस में गये हुए यन्त्र को कन्ट्रोल कर सकते हैं, जैसे चाहे जहाँ चाहे वहाँ मोड़ सकते हैं, तो साइलेन्स के शक्ति स्वरूप, इस साकार सृष्टि में श्रेष्ठ संकल्प के आधार से जो सेवा चाहे, जिस आत्मा की सेवा करना चाहे वो नहीं कर सकते? लेकिन अपनी-अपनी प्रवृत्ति से परे अर्थात् उपराम रहो।

 

जो सभी खज़ाने सुनाये वो स्वयं के प्रति नहीं, विश्व-कल्याण के प्रति यूज़ करो। समझा, अब क्या करना है? आवाज़ द्वारा सर्विस, स्थूल साधनों द्वारा सर्विस और आवाज़ से परे सूक्ष्म साधन संकल्प की श्रेष्ठता, संकल्प शक्ति द्वारा सर्विस का बैलेन्स प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ तब विनाश का नगाड़ा बजेगा। समझा। अच्छा।

 

वरदान:- अपने हाइएस्ट पोजीशन में स्थित रहकर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले सम्पूर्ण निर्विकारी भव

 

सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्ट में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए, कभी उनके वशीभूत न हों। हाइएस्ट पोजीशन वाली आत्मायें कोई साधारण संकल्प भी नहीं कर सकती। तो जब कोई भी संकल्प वा कर्म करते हो तो चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम वैसा ऊंचा काम है? अगर नाम ऊंचा, काम नीचा तो नाम बदनाम करते हो इसलिए लक्ष्य प्रमाण लक्षण धारण करो तब कहेंगे सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् होलीएस्ट आत्मा।

 

स्लोगन:- कर्म करते करन-करावनहार बाप की स्मृति रहे तो स्व-पुरुषार्थ और योग का बैलेन्स ठीक रहेगा।