04-11-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
1992 "बापदादा" मधुबन
परिवर्तन शक्ति द्वारा
व्यर्थ को समर्थ बनाना ही होली हंस बनना है
सदा अपने को होली हंस
समझते हो? होली हंस का कर्तव्य क्या है? व्यर्थ और समर्थ को परखना। वो तो कंकड़ और
रत्न को अलग करता लेकिन आप होली हंस समर्थ को धारण करते हो, व्यर्थ को समाप्त करते
हो। तो समर्थ और व्यर्थ, इसको परखना और परिवर्तन करना-यह है होली हंस का कर्तव्य।
सारे दिन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ सम्बन्ध-सम्पर्क जो
भी होता है, उस व्यर्थ को समाप्त करना-यह है होली हंस। कोई कितना भी व्यर्थ बोले
लेकिन आप व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कर दो। व्यर्थ को अपनी बुद्धि में स्वीकार
नहीं करो। अगर एक भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म स्वीकार किया तो एक
व्यर्थ अनेक व्यर्थ को जन्म देगा। एक व्यर्थ बोल भी स्पर्श हो गया तो वह अनेक
व्यर्थ का अनुभव करायेगा, जिसको आप लोग कहते हो-फीलिंग आ गई। एक व्यर्थ संकल्प की
फीलिंग आई तो वह फीलिंग को बढ़ायेगी। इसीलिए व्यर्थ की पैदाइस बहुत फास्ट होती है-चाहे
कर्म हो, चाहे क्या भी हो। एक व्यर्थ बोल बोलेंगे तो उसे सिद्ध करने के लिए कितने
व्यर्थ बोल बोलने पड़ेंगे! जैसे लोग कहते हैं ना-एक झूठ को सिद्ध करने के लिए कितने
झूठ बोलने पड़ते हैं!
तो व्यर्थ का खाता
समाप्त हो जाये और सदा समर्थ का खाता जमा होता रहे। वो व्यर्थ आपको दे लेकिन आप
परिवर्तन कर समर्थ धारण करो। इतनी तीव्र परिवर्तन-शक्ति चाहिए। जैसे-आज की साइन्स
व्यर्थ को कार्य में लगा कर अच्छा बना देती है, कई वेस्ट चीजों को बेस्ट में
परिवर्तन कर लेते हैं। आपकी रचना इतना फास्ट परिवर्तन कर सकती है। जैसे-देखो, खाद
होती है ना, तो खाद बुरी चीज है लेकिन पैदा क्या करती है? खाद गन्दी है लेकिन जब
फूल पैदा होता है तो खुशबू वाला होता है। या बदबू वाला होता है? तो खाद में
परिवर्तन करने की शक्ति है ना। स्वयं कैसी भी है लेकिन पैदा क्या करती है? फल, फूल,
सब्जियां....। तो आपकी रचना में कितनी शक्ति है! तो आप में उससे ज्यादा शक्ति है
ना। वो गाली दे और आप उसको फूल बनाकर धारण करो। वो गुस्सा करे और आप उसको शान्ति का
शीतल जल दो। यह परिवर्तन-शक्ति चाहिए। होली हंस का यही कर्तव्य है। ऐसी जीवन बनी
है? या कहेंगे-क्या करें, बोला ही खराब ना, किया ही बहुत खराब बात, है ही बहुत खराब?
लेकिन खराब को ही तो अच्छा बनाना है। अच्छे को तो अच्छा नहीं बनाना है। अच्छे आये
थे या खराब आये थे? तो बाप ने अच्छा बनाया ना। या कहा कि ये बहुत खराब हैं, इनको
अच्छा कैसे बनाऊं? सोचा? बना दिया ना। तो बाप ने आप सभी को बुरे से अच्छा बनाया और
आप बुरी बात को अच्छा नहीं बना सकते? बुरे का प्रभाव आपके ऊपर पड़ जाता है।
वायुमण्डल ही खराब था ना। यह होली हंस का लक्षण नहीं है।
कैसा भी वातावरण हो,
कैसी भी वृत्ति हो, कैसी भी वाणी हो, कैसी भी दृष्टि हो-लेकिन होली हंस सबको होली
बना देते हैं। सदा यह पॉवर रहे और सदा ऐसे तीव्रगति के परिवर्तन करने की विधि आ जाये
तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता। फरिश्ता किसके प्रभाव में नहीं आता। अपना कार्य किया
और वो चला। फरिश्ता कभी किसी विघ्न के वश नहीं होता-न विघ्न के, न व्यक्ति के। तो
होली हंस अर्थात् फरिश्ता। सेवा की और न्यारा। तो ऐसी स्थिति सदा है? ऐसे होली हंस
बने हो या बन रहे हो? कब तक बनेंगे? कोई टाइम की हद भी है या नहीं? अगले साल भी यही
कहेंगे कि-हाँ, बन रहे हैं? नॉलेजफुल बन गये हो ना। तो जब नॉलेज है कि मुझ होली हंस
का कर्तव्य क्या है, तो नॉलेज की शक्ति से परिवर्तन नहीं कर सकते हो? दूसरे साल भी
यह नहीं कहना कि बन रहे हैं।
तीव्र पुरुषार्थी का
लक्ष्य ही होता है- ’अब’ और ढीले पुरुषार्थी का लक्ष्य होता है-’कब’। तो तीव्र
पुरुषार्थी हो ना। बापदादा तो सदैव हर आत्मा में श्रेष्ठ भावना रखते हैं कि करने
वाले ही हैं। इसलिए इस श्रेष्ठ भावना को प्रैक्टिकल में लाना होगा-अब करना ही है,
होना ही है। अगर संकल्प में लक्ष्य है कि होना ही है, करना ही है-तो यह संकल्प सफलता
अवश्य प्राप्त कराता है। क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो सदा सफलता साथ रखना।
2 - साधारणता में
महानता का अनुभव कराना ही सेवा का सहज साधन है
सबसे साहूकार से
साहूकार कौन है? जो समझते हैं कि सारे चक्र के अन्दर साहूकार से साहूकार हम आत्मा
हैं, वो हाथ उठाओ। किसमें साहूकार हो? कितने प्रकार के धन मिले हैं? वो लिस्ट याद
रहती है? बहुत खज़ाने मिले हैं! एक दिन में कितनी कमाई करते हो, मालूम है? पद्मों की
कमाई करते हो। रहते गांव में हो और पद्मों की कमाई कर रहे हो! देखो, यही परमात्मा
पिता की कमाल है जो देखने में साधारण लेकिन हैं सबसे साहूकार में साहूकार! तो अखबार
में निकालेंगे-यहाँ सबसे साहूकार में साहूकार बैठे हैं। तो फिर सब आपके पीछे आयेंगे।
आजकल आतंकवादी साहूकारों के पीछे पड़ते हैं ना। फिर आपके पीछे पड़ जायेंगे तो क्या
करेंगे? उन्हों को भी साहूकार बना देंगे ना। हैं देखो कितने साधारण रूप में, कोई
आपको देखकर समझेंगे कि ये सारे विश्व में साहूकार हैं या पद्मों की कमाई करने वाले
हैं? लेकिन साधारणता में महानता समाई हुई है। जितने ही साधारण हो उतने ही अन्दर
महान हो! तो यह नशा रहता है-बाप ने क्या से क्या बना दिया और क्या-क्या दे दिया!
दोनों ही बातें याद रहती हैं ना। तो अखबार में निकालेंगे ना-रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड
(Richest In The World; विश्व में सबसे अधिक धनवान)।
और देखो, खज़ाना भी ऐसा
है जिसको न चोर लूट सकता है, न आग जला सकती है, न पानी डूबो सकता है। ऐसा खज़ाना बाप
ने दे दिया। अविनाशी खज़ाना है ना। अविनाशी खज़ाना कोई विनाश कर नहीं सकता। और कितना
सहज मिल गया! जितना खज़ाना है उसके अन्तर में मेहनत की है कुछ? त्याग किया या भाग्य
मिला? त्याग भी किया तो बुराई का किया ना। बुराई छोड़ना भी कोई छोड़ना हुआ क्या?
दुनिया कहती है-त्याग किया और आप कहते हो-भाग्य मिला है। साहूकार को साहूकार बनाना
बड़ी बात नहीं हुई ना। गरीब को साहूकार बनाना-यह है कमाल। जो आजकल के विनाशी धन के
साहूकार हैं उनको बाप साहूकार नहीं बनाता। उनका भाग्य ही नहीं है। भाग्य है ही गरीबों
का। कभी आपका नाम आया है ‘हू इज हू’ (Who Is Who; नामीग्रामी व्यक्तियों की लिस्ट)
में? औरों का आता है ना। और बाप की डिक्शनरी में, ‘हू इज हू’ में आपका नाम है।
भगवान का बुक ही न्यारा है। तो इतनी खुशी है? धरती और आकाश को माप लो, उससे भी
ज्यादा खुशी है ना। बेअन्त है ना। आकाश और धरती तो हद हो जायेगी ना। आपकी उससे भी
बेहद है। बेहद के मालिक बन गये हो ना। जब बाप भी बेहद का बाप है, तो प्राप्ति भी
बेहद की करा-येगा ना। तो क्या याद रहता है? बेहद का बाप मिला, बेहद का राज्य-भाग्य
मिला, बेहद का खज़ाना मिला। है नशा? हर कर्म में यह रूहानी नशा अनुभव होना
चाहिए-स्वयं को भी और औरों को भी। चाहे वे समझें, नहीं समझें, इतना तो कहेंगे ना कि
ये खुशी-मौज में रहते हैं। यह तो अनुभव करा सकते हो ना। जैसे-मधुबन में आते तो
अन्जान भी हैं, लेकिन क्या अनुभव करते हैं? यहाँ का वातावरण और यहाँ की आत्माए खुश
रहने वाली हैं, वायुमण्डल में खुशी है-यह तो अनुभव करते हैं ना। तो ऐसे आप सबके
सम्बन्ध-सम्पर्क में अनुभव करें कि ये अलौकिक आत्माए हैं, भरपूर आत्माए हैं। ऐसा
अनुभव करते हैं। चाहे देह-अभिमान के कारण कहें नहीं, लेकिन अन्दर तो जानते हैं ना।
क्योंकि अगर बाहर से आपको कहें, तो खुद को भी बनना पड़े ना। इसीलिए कहेंगे नहीं
लेकिन अन्दर में महसूस जरूर होगा। तो ऐसे श्रेष्ठ हो ना। इसलिए गायन है कि अगर
अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो....। आपसे पूछें?
देखो, भगवान की
पसन्दगी क्या है? जिसको कोई पसन्द नहीं करते उसको बाप पसन्द करते हैं! बाप की नज़र
किसके ऊपर गई? आप लोगों के ऊपर। इतने नामीग्रामी लोगों पर नज़र नहीं गई। कहते हैं
ना-तुम्हारी गत-मत तुम ही जानो, और कोई नहीं जानता। तो नशा है कि परमात्मा ने हमको
पसन्द किया है। डबल विदेशी डबल नशे में रहते हैं। भारतवासियों को तो भारत में ही
आकर चुना। लेकिन डबल विदेशियों को कहाँ से चुना? इतना दूर से बाप ने हमको चुना। तो
डबल नशा है ना। जैसे आत्मा और शरीर साथ-साथ हैं और सदा साथ हैं, ऐसे यह नशा आत्मा
के सदा साथ है। तो ऐसे नशे में रहने वाली श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ आत्माए! सदा खुशी में
नाचने वाले। कोई प्राप्ति होती है तो खुशी में नाचते हैं। आपको तो हर कदम में
प्राप्ति ही प्राप्ति है। इतनी प्राप्ति है जो दिल कहता है कि अप्राप्त नहीं कोई
वस्तु परमात्म-खज़ाने में। इस समय का यही गीत है-ब्राह्मणों के खज़ानों में सर्व
प्राप्तियाँ हैं। अच्छा!
3 - सदा सेफ रहने का
स्थान-दिलाराम बाप का दिलतख्त
सदैव अपने को दिलाराम
बाप की दिल में रहने वाले अनुभव करते हो? दिलाराम की दिल तख्त है ना। तो
दिलतख्तनशीन आत्माए हैं-ऐसे अपने को समझते हो? सदा तख्त पर रहते हो या कभी उतरते,
कभी चढ़ते हो? अगर किसको तख्त मिल जाये तो तख्त कोई छोड़ेगा? यह तो श्रेष्ठ भाग्य है
जो भगवान के दिलतख्तनशीन बनने का भाग्य मिला है। इससे बड़ा भाग्य कोई हो सकता है? ऐसे
प्राप्त हुए श्रेष्ठ भाग्य को भूल तो नहीं जाते हो? तो सदैव तख्तनशीन आत्माए हैं-इस
स्मृति में रहो। जो दिल में समाया हुआ रहेगा, परमात्म-दिल में समाए हुए को और कोई
हिला सकता है? दिलतख्तनशीन आत्माए सदा सेफ हैं। माया के तूफान से भी और प्रकृति के
तूफान से भी-दोनों तूफान से सेफ। न माया की हलचल हिला सकती है और न प्रकृति की हलचल
हिला सकती है। ऐसे अचल हो? या कभी-कभी अचल, कभी-कभी हिलते हो? यादगार अचलघर है।
चंचल-घर तो बना ही नहीं। अनेक बार अचल बने हो। अभी भी अचल हो ना। हलचल में नुकसान
होता है और अचल में फायदा है। कोई चीज हिलती रहे तो टूट जायेगी ना।
सदा यह याद रखो कि हम
दिलाराम के दिलतख्तनशीन हैं। यह स्मृति ही तिलक है। तिलक है तो तख्तनशीन भी हैं।
इसीलिए जब तख्त पर बैठते हैं तो पहले राज्य-तिलक देते हैं। तो यह स्मृति का तिलक ही
राज्य-तिलक है। तो तिलक भी लगा हुआ है। या मिट जाता है कभी? तिलक कभी आधा रह जाता
है और कभी मिट भी जाता है-ऐसे तो नहीं। यह अविनाशी तिलक है, स्थूल तिलक नहीं है। जो
तख्तनशीन होता है, उसको कितनी खुशी होती है, कितना नशा होता है! आजकल के नेताओं को
तख्त नहीं मिलता, कुर्सी मिलती है। तो भी कितना नशा रहता है-हमारी पार्टी का राज्य
है! वो तो कुर्सी है, आपका तो तख्त है। तो स्मृति नशा दिलाती है। अगर स्मृति नहीं
है तो नशा भी नहीं है। तिलक है तो तख्त है। तो चेक करो कि स्मृति का तिलक सदा लगा
हुआ है अर्थात् सदा स्मृतिस्वरूप हैं?
दिल्ली वाले क्या कर
रहे हो? राजधानी की क्या तैयारी कर रहे हो? राजधानी के लिये कितनी तैयारी चाहिए!
प्रकृति भी तैयार चाहिए, राज्य करने वाले भी तैयार चाहिए। तो क्या तैयारी की है? आधी
दिल्ली को तैयार किया है? दिल्ली की संख्या कितनी है? (85 लाख) और ब्राह्मण कितने
हैं? (5 हजार) यह तो कुछ भी नहीं हुआ। तो तैयार कब करेंगे? जब विनाश का घण्टा बजेगा
तब? चैरिटी बिगिन्स एट होम (Charity Begins At Home)! तो दिल्ली वालों को तैयार करो।
पहले-पहले आदि की संख्या भी 9 लाख तो है ना। वो भी तैयार नहीं की, अभी तो हजार में
है। तो क्या करना पड़ेगा? बनी-बनायी राजधानी में आयेंगे कि तैयार भी करेंगे? जो करेगा
सो पायेगा। ऐसे नहीं समझना-चलो, राजधानी तैयार होगी, आ जायेंगे। नहीं, यह नियम
है-जो करता है वो पाता है। तो करना पड़ेगा ना। यह तो बहुत स्लो (धीमी) गति है। तीव्र
गति कब होगी? (5 साल में) 5 साल में विनाश हो जाये तो? तैयारी न हो और विनाश हो जाये
तो क्या करेंगे? (आबादी बढ़ती जाती है) यह तो खुशखबरी है। आपकी सेवा में भी वृद्धि
होती जाती है। सेवाधारियों को सेवा का चांस मिल रहा है। जानवर बढ़ते जावें तो शिकारी
को खुशी होगी ना। तो दिल्ली वालों ने अपना काम पूरा नहीं किया है, अभी बहुत रहा हुआ
है। अभी फास्ट गति करो।
एक को दस बनाने हैं।
12 मास में दस तो बना सकते हो। एक मास में एक-यह तो सहज है। आप लोगों ने ‘हाँ’ कहा,
तो फोटो निकल रहा है, आटोमेटिक कैमरा में निकल रहा है। दृढ़ संकल्प का हाथ उठाना है।
दृढ़ संकल्प का हाथ उठाया तो हुआ ही पड़ा है। दिल्ली वालों को तो सभी को निमन्त्रण
देकर बुलाना है। हलचल की धरनी पर तो राज्य नहीं करना है, स्वर्ण धरनी पर राज्य करना
है। तो बनाना पड़ेगा ना। अभी फास्ट गति करो। कभी भी यह नहीं सोचो कि सुनने वाले नहीं
मिलते हैं। सुनने वाले तो बहुत हैं। थोड़ा पुरूषार्थ करो। अपनी स्थिति रूहानी
आकर्षणमय बनाओ। जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है, तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं
को नहीं खींच सकती? तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो। चुम्बक को कहना नहीं
पड़ता-सुई आओ। स्वत: ही खींचती है। रूहानी आकर्षणमय स्थिति स्वयं आकर्षित करती है,
मेहनत नहीं करनी पड़ती। ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ कर्म ‘सेवा’ है ना। और तो सब
निमित्त-मात्र है लेकिन ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ कर्म ‘सेवा’ है। सेवाधारी हो ना।
अचल बनो और अचल बनाओ। सदा सन्तुष्ट। प्रोग्राम करो। यह बहुत अच्छा। प्रोग्राम
अर्थात् प्रोग्रेस।
वरदान:-
नॉलेजफुल बन
हर कर्म के परिणाम को जान कर्म करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव
त्रिकालदर्शी बच्चे
हर कर्म के परिणाम को जानकर फिर कर्म करते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहते कि होना तो नहीं
चाहिए था, लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था, लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि
कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। भोला बनना अच्छा है लेकिन दिल
से भोले बनो, बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। उसमें त्रिकालदर्शी बनकर हर बात
सुनो और बोलो तब कहेंगे सेंट अर्थात् महान आत्मा।
स्लोगन:-
एक दो को कॉपी
करने के बजाए बाप को कॉपी करो तो श्रेष्ठ आत्मा बन जायेंगे।