ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? बाप ने कहा बच्चों को। यह है बेहद की बात। मनुष्य जब बूढ़ा होता है
तो समझते हैं – अब बहुत गई बाकी थोड़ा समय है, कुछ अच्छा काम कर लें इसलिए
वानप्रस्थ अवस्था में सतसंग में जाते हैं। समझते हैं गृहस्थ में तो बहुत कुछ किया।
अब कुछ अच्छा काम भी करें। वानप्रस्थी माना ही विकारों को छोड़ना। घरबार से सम्बन्ध
छोड़ देना, इसलिए ही सतसंग में जाते हैं। सतयुग में तो ऐसी बातें होती नहीं। बाकी
थोड़ा समय है। जन्म जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है। अब ही बाप से वर्सा ले
लो। वो लोग साधू संगत तो करते हैं, परन्तु कोई लक्ष्य नहीं मिलता जो योग रखें। बाकी
पाप कम होते हैं। बड़ा पाप तो होता है विकारों का। धन्धाधोरी छोड़ देते हैं। आजकल
तो तमोप्रधान अवस्था है तो विकार को छोड़ते नहीं। 70-80 वर्ष के भी बच्चे पैदा करते
रहते हैं। बाप कहते हैं अभी यह रावणराज्य खलास होना है। समय बहुत थोड़ा है इसलिए
बाप से योग लगाते रहो और स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। वापिस चलने में थोड़े दिन हैं।
सिर पर पापों का बोझा बहुत है, इसलिए जितना हो सके टाइम निकाल मुझे याद करो।
धन्धा-धोरी आदि कर्म तो करना ही है क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। 8 घण्टा इसमें लगाना
है। वह भी होगा पिछाड़ी में। ऐसे मत समझो कि सिर्फ बुढ़ियों को ही याद करना है। नहीं,
सबका मौत अब नजदीक है। यह शिक्षा सबके लिए है। छोटे बच्चों को भी समझाना है। हम
आत्मा हैं, परमधाम से आये हैं। बिल्कुल सहज है। गृहस्थ का भी पालन करना है। गृहस्थ
व्यवहार में रहते भी शिक्षा लेनी है। फिर सर्विसएबुल बनने से बन्धन आपेही छूट
जायेंगे। घर वाले आपेही कहेंगे – तुम भल सर्विस करो। हम बच्चों को सम्भाल लेंगे या
माई (नौकर) रखेंगे। तो उसमें उनको भी फायदा है। समझो घर में 5-6 बच्चे हैं, स्त्री
चाहती है हम ईश्वरीय सेवा करें और अच्छी सर्विसएबुल है तो बच्चों के लिए माई रख सकते
हैं क्योंकि उसमें अपना भी कल्याण और दूसरों का भी कल्याण होगा। दोनों भी सर्विस
में लग सकते हैं। सर्विस के तरीके तो बहुत हैं। सुबह और शाम सर्विस हो सकती है। दिन
में माताओं का क्लास होना जरूरी है। बी.के. को सेवा के समय सोना नहीं है। कोई कोई
बच्चियां टाइम रखती हैं युक्ति से। समझती हैं दिन में कोई न आये। व्यापारी लोग अथवा
नौकरी करने वाले लोग दिन में सोते नहीं हैं। यहाँ तो जितना बाबा के यज्ञ की सेवा
करेंगे उतना कमाई ही कमाई है। बहुत फायदा है। सारा दिन काम में बिजी रहना चाहिए।
प्रदर्शनी में बहुत बिजी रहते हैं। कहते हैं बाबा बोलते-बोलते गला घुट जाता है
क्योंकि अचानक आकर सर्विस पड़ती है। हमेशा इतनी सर्विस करने वाले होते तो गला खराब
नहीं होता। आदत पड़ जाने से फिर थकावट नहीं होती है। फिर एक जैसे भी सभी नहीं हैं।
कोई तो बहुत ऑनेस्ट हैं, जितनी सर्विस मिले तो उनको खुशी होती है क्योंकि एवजा भी
मिलता है, जो अच्छी रीति सर्विस में लगे रहते हैं। तुम्हें बहुत मीठा बनना है,
अवगुण निकल जाने चाहिए। श्रीकृष्ण की महिमा गाई जाती है सर्वगुण सम्पन्न…. यहाँ हैं
सबमें आसुरी गुण। कोई भी खामी न हो, ऐसा मीठा बनना है। सो तब बनेंगे जब सर्विस
करेंगे। कहाँ भी जाकर सर्विस करनी है। रावण की जंजीरों से सबको छुड़ाना है। पहले तो
अपनी जीवन बनानी है। हम बैठ जायें तो घाटा हमको पड़ेगा। पहले तो यह रूहानी सर्विस
है। किसका भला करें, किसको निरोगी, धनवान, आयुश्वान बनायें। सारा दिन यह ख्याल चलना
चाहिए। वह बच्चे ही दिल पर चढ़ सकते हैं और तख्तनशीन भी होते हैं। पहले बाप का
परिचय देना है। बाप स्वर्ग का रचयिता है, उसको जानते हो? परमपिता परमात्मा से
तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? पहचान देनी है तो बाप से लव जुटे। बाप कहते हैं मैं कल्प
के संगमयुग पर आकर नर्क को स्वर्ग बनाता हूँ। कृष्ण तो यह कह न सके। वह तो स्वर्ग
का प्रिन्स है। रूप बदलते जाते हैं। झाड़ पर समझाना है, ऊपर पतित दुनिया में ब्रह्मा
खड़ा है। वह है पतित, नीचे फिर तपस्या कर रहे हैं। ब्रह्मा की वंशावली भी है।
परमपिता परमात्मा ही आकर पतित से पावन बनाते हैं। पतित सो फिर पावन बनते हैं। कृष्ण
को भी श्याम-सुन्दर कहते हैं। परन्तु अर्थ नहीं समझते। तुम समझा सकते हो – यह पतित
है। असुल नाम ब्रह्मा नहीं है, जैसे तुम सबके नाम बदली हुए हैं। वैसे बाबा ने इनको
भी एड़ाप्ट किया है। नहीं तो शिवबाबा ने ब्रह्मा को कहाँ से लाया! स्त्री तो है नहीं।
जरूर एडाप्ट किया। बाप कहते हैं मुझे इनमें ही प्रवेश करना है। प्रजापिता ऊपर तो हो
न सके, यहाँ चाहिए। पहले तो यह निश्चय चाहिए। मैं साधारण तन में आता हूँ। गऊशाला
नाम होने कारण बैल और गायें भी दिखाते हैं। अब गऊ को ज्ञान दिया है वा गऊ चराई है,
यह नहीं लिखा है। चित्रों में श्रीकृष्ण को ग्वाला बना दिया है। ऐसी-ऐसी बातें और
धर्मो में नहीं हैं। जितनी इस धर्म में हैं। यह सब भक्ति मार्ग की नूँध है। अब तुम
बच्चे जानते हो – पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना हो रही है। बाबा
समझाते हैं – इस सृष्टि चक्र को जानने से ही तुम भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे।
अमरलोक में ऊंच पद पायेंगे। तुम जो कुछ पढ़ते हो – भविष्य नई दुनिया के लिए। तुम यह
पुराना शरीर छोड़ रॉयल धनवान घर में जन्म लेंगे। पहले बच्चा होंगे फिर बड़े होंगे
तो फर्स्टक्लास महल बनायेंगे। ततत्वम्। शिवबाबा कहते हैं जैसे यह मम्मा बाबा अच्छी
तरह पढ़ते हैं, तुम भी पढ़ो तो ऊंच पद पायेंगे। रात को जागो, विचार सागर मंथन करो
तो खुशी में आ जायेंगे। उस समय ही खुशी का पारा चढ़ता है। दिन में धन्धे आदि का
बन्धन है। रात को तो कोई बंधन नहीं। रात को बाबा की याद में सोयेंगे तो सुबह को बाबा
आकर खटिया हिलायेंगे। ऐसा भी बहुत अनुभव लिखते हैं। हिम्मते बच्चे मददे बाप तो है
ही। अपने ऊपर बहुत अटेन्शन रखो। संन्यासियों का धर्म अलग है। जिस धर्म का जितना
सिजरा होगा उतना ही बनेगा। जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये होंगे वह फिर अपने धर्म
में आयेंगे। समझो संन्यास धर्म के एक या दो करोड़ एक्टर्स हैं, उतने ही फिर होंगे।
यह ड्रामा बड़ा एक्यूरेट बना हुआ है। कोई किस धर्म में, कोई किस धर्म में कनवर्ट हो
गये हैं। वह सब अपने-अपने धर्म में चले जायेंगे। यह नॉलेज बुद्धि में बैठनी चाहिए।
अब हम कहते हैं हम आत्मा हैं, शिवबाबा की सन्तान हैं। यह सारी विश्व मेरी है। हम
रचयिता शिवबाबा के बच्चे बने हैं। हम विश्व के मालिक हैं। यह बुद्धि में आना चाहिए
तब अथाह खुशी रहेगी। दूसरों को भी खुशी देनी है, रास्ता बताना है। रहमदिल बनना है।
जिस गांव में रहते हो वहाँ भी सर्विस करनी चाहिए। सबको निमन्त्रण देना है, बाप की
पहचान देनी है। अगर ज्यादा समझने चाहते हो तो बोलो यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है,
यह भी तुमको समझाते हैं। सर्विस तो बहुत है। परन्तु अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी
कभी-कभी ग्रहचारी आ जाती है, समझाने का शौक नहीं रहता। नहीं तो बाबा को लिखना चाहिए
– बाबा सर्विस की, उसकी रिजल्ट यह निकली, ऐसे ऐसे समझाया। तो बाबा भी खुश हो जाए।
समझे तो इनको सर्विस का शौक है। कभी मन्दिर में, कभी शमशान में, कभी चर्च में घुस
जाना चाहिए। पूछना चाहिए गॉड फादर से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? जब फादर है तो मुख
से कहना चाहिए – हम बच्चे हैं। हेविनली गॉड फादर कहते हैं तो जरूर हेविन रचेगा।
कितना सहज है। आगे चलकर बहुत आफतें आने वाली हैं। मनुष्यों को वैराग्य आयेगा। शमशान
में मनुष्यों को वैराग्य आता है। बस दुनिया की यह हालत हो जायेगी! इससे तो क्यों नहीं
भगवान को पाने का रास्ता पकड़ें। फिर गुरू आदि से जाकर पूछते हैं तो इन बंधनों से
छूटने का रास्ता बताओ।
तुम्हें अपने बच्चों आदि की पालना भी करनी है और सर्विस भी करनी है। मम्मा बाबा
को देखो कितने बच्चे हैं। वह है हद का गृहस्थ व्यवहार, यह बाबा तो बेहद का मालिक
है। बेहद के भाई-बहिनों को समझाते हैं। यह सबका अन्तिम जन्म है। बाप हीरे जैसा बनाने
आये हैं। फिर तुम कौड़ियों के पिछाड़ी क्यों पड़ते हो! सुबह और शाम हीरे जैसा बनने
की सर्विस करो। दिन में कौड़ियों का धन्धा करो। जो सर्विस पर हिर जायेंगे उनको
घड़ी-घड़ी बाबा बुद्धि में याद आता रहेगा, प्रैक्टिस पड़ जायेगी। जिनके पास काम
करेंगे, उनको भी लक्ष्य देते रहेंगे। परन्तु निकलेंगे तो कोटों में कोई। आज नहीं तो
कल याद करेंगे तो फलाने दोस्त ने हमको यह बात कही थी। अगर पद पाना है तो हिम्मत
चाहिए। भारत का सहज योग और ज्ञान तो मशहूर है। परन्तु क्या था, कैसा था वह नहीं
जानते। यह त्योहार आदि सब संगमयुग के हैं। सतयुग में तो है ही राजाई। हिस्ट्री सारी
है संगम की। सतयुगी देवताओं को राजाई कहाँ से मिली, यह भी अभी ही मालूम पड़ा है।
तुम जानते हो हम ही राजाई लेते हैं और हम ही गँवाते हैं, जो जितनी सर्विस करेंगे।
अब तो प्रदर्शनी की सर्विस बढ़ती जाती है। प्रोजेक्टर भी गांव-गांव में जायेगा। यह
सर्विस बहुत विस्तार को पायेगी। बच्चे भी वृद्धि को पाते रहेंगे। फिर इन भक्ति
मार्ग की वैल्यु नहीं रहेगी। यह ड्रामा में था। ऐसे नहीं कि यह क्यों हुआ! ऐसे न
करते तो ऐसे होता था! यह भी नहीं कह सकते। पास्ट जो हुआ सो ठीक, आगे के लिए खबरदार।
माया कोई विकर्म न कराये। मन्सा तूफान तो आयेंगे, परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई
विकर्म नहीं करना। फालतू संकल्प तो बहुत आयेंगे, फिर भी पुरुषार्थ कर शिवबाबा को
याद करते रहो। हार्टफेल नहीं होना है। कई बच्चे लिखते हैं – बाबा 15-20 वर्ष से
बीमारी के कारण पवित्र रहते हैं फिर भी मन्सा बहुत खराब रहती है। बाबा लिखते हैं
तूफान तो बहुत आयेंगे, माया हैरान करेगी, पर विकार में नहीं जाना। यह तुम्हारे ही
विकर्मो का हिसाब-किताब है। योगबल से ही खत्म होगा, डरना नहीं है। माया बड़ी बलवान
है। कोई को भी छोड़ती नहीं है। सर्विस तो अथाह है, जितना भी कोई करे। अच्छा!
मीठे-मीठे सर्विसएबुल सिकीलधे बच्चों प्रति नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार मात-पिता
बापदादा का यादप्यार और गुड-मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिन में शरीर निर्वाह अर्थ कर्म और सुबह-शाम जीवन को हीरे जैसा बनाने
की रूहानी सेवा जरूर करनी है। सबको रावण की जंजीरों से छुड़ाना है।
2) माया कोई भी विकर्म न करा दे इसमें बहुत-बहुत खबरदार रहना है। कर्मेन्द्रियों
से कभी कोई विकर्म नहीं करना है। आसुरी अवगुण निकाल देने हैं।