ओम् शान्ति।
यह तो बच्चों को समझाया गया है कि निराकार, साकार बिगर कोई कर्म कर नहीं सकते।
पार्ट बजा नहीं सकते। रूहानी बाप आकर ब्रह्मा द्वारा रूहानी बच्चों को समझाते हैं।
योगबल से ही सतोप्रधान बनना है और विश्व का मालिक बनना है। यह बच्चों की बुद्धि में
है कि कल्प-कल्प बाप आकर राजयोग सिखाते हैं – ब्रह्मा द्वारा। और आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं अर्थात् मनुष्य को देवता बनाते हैं। मनुष्य जो
देवी-देवता थे, पावन थे सो अब बदल 84 जन्मों बाद पतित बन पड़े हैं, भारत जब पारसपुरी
था तो पवित्रता सुख-शान्ति सब था। यह 5 हजार वर्ष की बात है। तिथि तारीख सहित बाप
सारा हिसाब-किताब समझाते हैं। इनसे ऊंच तो कोई है नहीं। सृष्टि वा झाड़ जिसको कल्प
वृक्ष कहते हैं, उनके आदि-मध्य-अन्त का राज़ भी बाप ही बैठ समझाते हैं। भारत का जो
देवी-देवता धर्म था, वह अब प्राय: लोप हो गया है। सिर्फ चित्र जरूर हैं। भारतवासी
जानते हैं कि सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। भल शास्त्रों में भूल कर दी
है, जो कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। बाप ही आकर भूले हुए को रास्ता बताते हैं।
उनको कहते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति का गाइड। सर्व को मुक्ति-जीवनमुक्ति देने वाला एक
ही है। भारत जब जीवनमुक्त है तो बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में हैं, इसलिए उनको कहा
जाता है मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता। रचयिता एक ही है। सृष्टि भी एक ही है, वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी भी एक ही है, जो रिपीट होती है। सतयुग त्रेता, द्वापर, कलियुग..
फिर होता है संगमयुग। कलियुग है पतित, सतयुग है पावन। सतयुग होगा, तो पहले जरूर
कलियुग का विनाश होगा। विनाश के पहले स्थापना होगी। सतयुग में स्थापना नहीं होगी।
भगवान आयेगा तब जब पतित दुनिया को पावन बनाना है। अब बाप सहज युक्ति बताते हैं कि
देह सहित देह के सब सम्बन्ध तोड़ देही-अभिमानी बन बाप को याद करो। बाप है भक्तों को
फल देने वाला। भक्तों को ज्ञान देते हैं – पावन बनने के लिए। सबको पावन बनाने वाला
है योग। ज्ञान सागर मुख से आकर ज्ञान सुनाते हैं। पतितों को पावन बनाते हैं। इस समय
सब आत्मायें पतित बनी हुई हैं इसलिए बाप को बुलाते हैं क्योंकि बाप बिगर तो कोई
पावन बना न सके। अगर पतित-पावनी गंगा है तो फिर पतित-पावन सीताराम कहकर क्यों बुलाते
हो। बुद्धि कहती है कि परमपिता परमात्मा जरूर फिर नई दुनिया की स्थापना और पुरानी
दुनिया के विनाश के लिए आयेगा। कल्प वृक्ष की आयु भी होती है, जो चीज़ जड़ जड़ीभूत
हो जाती है, उनको ही तमोप्रधान कहते हैं। न्यु वर्ल्ड नहीं कहेंगे, यह है आइरन एजेड
वर्ल्ड। यह सब बातें बुद्धि में बिठाई जाती हैं औरों को समझाने के लिए। घर-घर
सन्देश देना है। ऐसे नहीं कहना है कि परमात्मा आया है। युक्ति से समझाना है, बोलो
दो बाप हैं लौकिक और पारलौकिक। दु:ख के समय पारलौकिक बाप को ही याद किया जाता है।
सुखधाम में कोई परमात्मा को याद नहीं करता। सतयुग, लक्ष्मी-नारायण के राज्य में सुख
शान्ति पवित्रता सब कुछ था। बाप का वर्सा मिल गया फिर पुकारें क्यों? वहाँ सुख ही
सुख है। बाप ने दु:ख के लिए दुनिया नहीं रची। यह बना बनाया खेल है, जिनका पार्ट
पिछाड़ी में है, 2-4 जन्म लेते हैं, बाकी समय शान्तिधाम में रहेंगे। बाकी खेल से
कोई निकल जाये, यह हो नहीं सकता। एक दो जन्म लिया बाकी समय जैसे मोक्ष है, आत्मा
पार्टधारी है। कोई का ऊंचा पार्ट है, कोई का कम। गाया हुआ है ईश्वर का अन्त कोई पा
न सके। ईश्वर ही आकर रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। बाप
समझाते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। मैं जिस तन में प्रवेश करता हूँ, यह
अपने जन्मों को नहीं जानते हैं, मैं इनके 84 जन्मों की कहानी सुनाता हूँ, कोई भी
पार्ट चेन्ज नहीं हो सकता। यह बना बनाया खेल है। यह किसकी बुद्धि में बैठता नहीं।
बुद्धि में तब बैठे जब पवित्र होकर समझें। अच्छी रीति समझने के लिए 7 रोज़ भट्ठी
में पड़े। भागवत आदि भी 7 रोज़ रखते हैं। कोई 7 दिन में अच्छी रीति समझ लेते हैं,
कोई तो कह देते हैं कि हमारी बुद्धि में कुछ भी नहीं बैठा। ऊंच पद नहीं पाना होगा
तो बुद्धि में कैसे बैठेगा। अच्छा फिर भी कल्याण तो हुआ ना। प्रजा तो ऐसे ही बनती
है, बाकी राज्य भाग्य लेने में मेहनत है। बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे।
अब करो वा न करो। परन्तु बाप का डायरेक्शन है, प्यारी वस्तु को याद किया जाता है
ना। भक्ति मार्ग में भी कहते हैं कि हे पतित-पावन आओ। अब वह मिला है। कहते हैं मुझे
याद करो तो कट उतर जायेगी। बादशाही ऐसे ही थोड़ेही मिल जायेगी। याद में ही थोड़ी
मेहनत है। बहुत याद करने वाले ही कर्मातीत अवस्था को पा लेते हैं। पूरा याद न करने
से विकर्म विनाश नहीं होंगे। योगबल से ही विकर्माजीत बनना है। लक्ष्मी-नारायण इतने
पवित्र कैसे बनें? जबकि कलियुग के अन्त में कोई भी पवित्र नहीं है। इस समय गीता
ज्ञान का एपीसोड रिपीट हो रहा है। शिव भगवानुवाच, भूलें तो सबसे होती रहती हैं। मैं
आकर सबको अभुल बनाता हूँ। भारत के जो भी शास्त्र हैं, यह सब हैं भक्ति मार्ग के।
बाप कहते हैं – मैने जो कुछ कहा था वह किसको भी पता नहीं है। जिन्होंने मेरे द्वारा
सुना, उन्होंने 21 जन्मों की प्रालब्ध पाई फिर ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। तुम ही
चक्र लगाए फिर यह ज्ञान सुन रहे हो।
तुम जानते हो हम सैपलिंग लगा रहे हैं, मनुष्य से देवता बनाने का। यह है दैवी झाड़
का सैपलिंग। वे लोग तो उन झाड़ों का कलम लगाते रहते हैं। बाप आकर कान्ट्रास्ट बताते
हैं। तुम दिखाते भी हो कि उन्हों का क्या प्लैन है, तुम्हारा क्या प्लैन है। वह
फैमली प्लैनिंग करते हैं कि दुनिया बढ़े नहीं। बाप तो बहुत अच्छी बात बताते हैं कि
अनेक धर्म विनाश हो जायेंगे और देवी-देवता धर्म की फैमली स्थापन हो जायेगी। सतयुग
में एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की फैमली थी और अनेक फैमलियाँ थी ही नहीं। इस
समय भारत में देखो कितनी फैमलीज़ हैं। गुजराती फैमली, सिक्ख फैमली.. वास्तव में
भारत की एक ही फैमली होनी चाहिए। बहुत फैमली होंगी तो जरूर खिटपिट होगी। फिर
सिविलवार हो जाती है। फैमली में भी सिविल-वार हो जाती है। जैसे क्रिश्चियन की आपस
में फैमली है तो उन्हों में भी दो भाई आपस में नहीं मिलते। फ्रैक्शन हो जाती है।
पानी भी बाँटा जाता है। सिक्ख धर्म वाले समझते हैं हम अपने धर्म की फैमली को जास्ती
सुख देवें। रग जाती है ना। माथा मारते रहते हैं। जब अन्त का समय आता है तब आपस में
लड़ने लग पड़ते हैं। विनाश तो होना ही है। ढेर बाम्ब्स बनाते रहते हैं। बड़ी लड़ाई
जब लगी थी तो दो बाम्ब्स छोड़े थे। अभी तो ढेर बनाये हैं। समझ की बात है ना। तुमको
समझाना है कि यह वही महाभारत लड़ाई है। बड़े-बड़े लोग भी कहते हैं अगर लड़ाई को
बन्द नहीं किया तो सारी दुनिया को आग लग जायेगी। तुम जानते हो आग तो लगनी ही है।
बाप आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना करते हैं। राजयोग है ही सतयुग का। जो
देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है वह फिर स्थापन करते हैं। अब कलियुग है इनके बाद
सतयुग चाहिए। अब कलियुग विनाश के लिए यह महाभारी महाभारत लड़ाई है। यह सब अच्छी रीति
धारण कर समझाना है क्योंकि मनुष्य हैं आसुरी सम्प्रदाय, इसलिए खबरदारी रखनी है।
कल्प पहले मुआफिक जो विघ्न पड़ने होंगे वह पड़ेंगे जरूर। यह बना-बनाया ड्रामा है।
हम बांधे हुए हैं। याद की यात्रा कभी भूल नहीं जानी चाहिए। गीत है ना – रात के राही
थक मत जाना…. इनका अर्थ कोई समझ न सके। रात पूरी हो दिन आने वाला है। आधाकल्प पूरा
हुआ, अब सुख शुरू होगा। बाप ने मनमनाभव का अर्थ भी समझाया है, सिर्फ गीता में कृष्ण
का नाम डालने से वह ताकत नहीं रही है। कृष्ण को कभी सर्वशक्तिमान् नहीं कह सकते। वह
तो पूरे 84 जन्म लेते हैं इसलिए गीता में वह ताकत नहीं रही है। अब हम सब
मनुष्य-मात्र का कल्याण कर रहे हैं। कल्याणकारी जो बनेगा उनको वर्सा मिलेगा। याद की
यात्रा बिगर कल्याण हो न सके। इस समय सब विपरीत बुद्धि हैं। कह देते हैं परमात्मा
सर्वव्यापी है। तुमको समझाना है कि वह बेहद का बाप है। बेहद के बाप से ही भारतवासियों
को बेहद का वर्सा मिला है। भारतवासियों ने ही 84 जन्म लिए हैं। अभी तुम प्रैक्टिकल
में देखते हो कि ज्ञान तो तुम सुनते ही रहते हो। दिनप्रतिदिन तुम्हारे पास बहुत
नये-नये आते रहेंगे। अब ही अगर बड़े-बड़े लोग आ जाएं फिर तो देरी न लगे। झट आवाज
निकल जाए। हंगामा हो जाए इसलिए युक्ति से धीरे-धीरे चलता रहता है। यह है ही गुप्त
ज्ञान, किसको पता भी नहीं पड़ता कि यह क्या कर रहे हैं। भक्ति में है दु:ख, ज्ञान
में है सुख। रावण के साथ तुम्हारी युद्ध कैसी है, यह तो तुम ही जानो और कोई जान न
सके। भगवानुवाच, तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है तो मुझे याद करो तो पाप विनाश हो
जायेंगे। पवित्र बनो तो साथ ले जायेंगे। मुक्ति तो सबको मिलनी है। सब रावणराज्य से
मुक्त हो जायेंगे। तुम कहते हो कि शिव शक्तियाँ ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ ही
श्रेष्ठाचारी दुनिया स्थापन करेंगे। परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर कल्प पहले
मुआफिक। 5 हजार वर्ष पहले श्रेष्ठाचारी दुनिया थी, यह बुद्धि में बिठाना चाहिए।
मुख्य प्वाइंट्स जब बुद्धि में धारण होंगी तब याद की यात्रा में रहेंगे। कोई समझते
हैं अभी टाइम पड़ा है, पीछे पुरुषार्थ कर लेंगे। परन्तु मौत का नियम थोड़ेही है। कल
मर जायें तो! इसलिए ऐसे मत समझो अन्त में गैलप कर लेंगे। यह ख्याल और ही गिरा देगा।
जितना हो सके पुरुषार्थ करते रहो। श्रीमत पर हर एक को अपना कल्याण करना है, अपनी
जाँच करनी है कि कितना बाप को याद करता हूँ और कितनी बाप की सर्विस करता हूँ। रूहानी
खुदाई खिदमतगार तुम हो ना। तुम रूहों को सैलवेज करते हो। रूह पतित से पावन कैसे बनें,
उसकी युक्ति बताते हैं। कृष्ण को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। वह तो
प्रिन्स था, उसने प्रालब्ध भोगी, उनकी महिमा की भी दरकार नहीं है। देवताओं की महिमा
क्या करेंगे! हाँ बर्थ डे तो सब मनाते हैं। यह कॉमन बात है। बाकी उन्होंने क्या किया,
सीढ़ी तो उतरते ही आते हैं। अच्छे वा बुरे मनुष्य तो होते हैं। हर एक का पार्ट
अपना-अपना है। यह है बेहद की बात। मुख्य टाल टालियां गिनी जाती हैं। बाकी पत्ते तो
अनेक हैं। उनको कहाँ तक तुम गिनती करते रहेंगे। बाप समझाते रहते हैं, बच्चे मेहनत
करो, सबको बाप का परिचय दो तो बाप से बुद्धि योग जुट जाए। बाप कहते हैं – सभी को कहो
– पवित्र बनो तो मुक्तिधाम में चले जायेंगे। दुनिया को थोड़ेही पता है कि महाभारत
लड़ाई से क्या होगा। यह यज्ञ रचा है क्योंकि नई दुनिया चाहिए। हमारा यज्ञ पूरा होगा
तो सब इस यज्ञ में स्वाहा होना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चा-सच्चा खुदाई खिदमतगार बन सभी रूहों को सैलवेज़ करने की सेवा
करनी है। सबका कल्याण करना है। सबको बाप का परिचय देना है।
2) प्यारे ते प्यारी वस्तु (बाप) को प्यार से याद करना है। बने-बनाये ड्रामा पर
अटल रहना है। विघ्नों से घबराना नहीं है।