ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना कि अभी हमारी बुद्धि में किसकी याद आई है? सबकी बुद्धि
में है कि पतित-पावन एक बाप है। अंग्रेजी में उनको लिबरेटर कहते हैं। लिबरेट करते
हैं दु:ख से। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, यह कोई मनुष्य वा देवता का नाम नहीं है। यह
है ही एक पतित-पावन बाप की महिमा। पतित-पावन, सद्गति दाता गॉड फादर को कहते हैं।
मनुष्य की यह महिमा हो न सके। लक्ष्मी-नारायण को, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को
पतित-पावन नहीं कह सकते। पतित-पावन ऊंच ते ऊंच एक ही है। परमपिता परमात्मा ऊंचा उनका
नाम भी है तो ऊंचा उनका ठांव (रहने का स्थान) भी है। तुमको निश्चय है कि यह हमारा
बाबा है। शिव को ही बाबा कहते हैं, शिव ही निराकार है। शिव का चित्र अलग, शंकर का
चित्र अलग है। वह (शिव) बाप, शिक्षक, सतगुरू है। आज सतगुरूवार है। तुम्हारा तो
सतगुरूवार रोज़ है। सतगुरू रोज़ तुमको पढ़ाते हैं और वह तुम्हारा बाप भी है, यह तो
निश्चय होना चाहिए ना। उनको सर्वव्यापी नहीं कहेंगे। तुम्हारी बुद्धि में है -
पतित-पावन परमपिता परमात्मा हमको राजयोग सिखलाते हैं, वह ज्ञान का सागर है। यह तो
बुद्धि में निश्चय रहना चाहिए। यह एक ही बाप है, जिसको कोई भी रूप में याद करो।
बुद्धि ऊपर निराकार तरफ चली जाती है। कोई आकार वा साकार नहीं है। आत्माओं को परमपिता
परमात्मा से अब काम पड़ा है परन्तु जानते नहीं हैं। गाते हैं कि वह ज्ञान का सागर
है। तो ज्ञान का सागर माना जो ज्ञान सुनाकर सद्गति करे। लक्ष्मी-नारायण को यह ज्ञान
नहीं है। ज्ञान वह जो ज्ञान सागर से मिले, इसलिए शास्त्रों में भी ज्ञान नहीं है।
ज्ञान सागर को ही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप कहते हैं। बाप क्रियेटर है। वह है बेहद
का बाप और सब हैं हद के बाप। अब बेहद के बाप को सब याद करते हैं, जो बापों का बाप,
पतियों का पति, गुरूओं का भी गुरू है, सब उनको याद करते हैं, साधना करते हैं। आजकल
चित्रों के आगे, राम के आगे, शंकर के आगे लिंग रखते हैं। है निराकार, ऊंच ते ऊंच
है, वह लिबरेट करते हैं। अभी तो सब आत्मायें पतित हैं। 5 हजार वर्ष पहले जब आदि
सनातन देवी-देवताओं का राज्य था तो उस समय एक ही राज्य था, सुख-धाम था। पवित्रता,
सुख, शान्ति सब थी। उसका नाम ही है स्वर्ग, हेविन। हेविन को सूक्ष्मवतन वा मूलवतन
नहीं कहेंगे। हेविन के अगेन्स्ट है हेल। यह बुद्धि में रखना है। एक बेहद के बाप को
ही याद करना है, उनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है। सतगुरू राजयोग सिखलाते हैं, पावन
दुनिया में ले जाते हैं। एक की कितनी महिमा है! लक्ष्मी-नारायण को यह महिमा नहीं दे
सकते। एक ही निराकार बाप है। आत्मायें भी निराकार हैं, जब शरीर से अलग हैं। बाप कहते
हैं तुम अपना शरीर लेकर पार्ट बजाते हो। तुम कितने जन्म पार्ट बजाते हो - यह भी
जानते हो। ब्रह्मा का भी चोला है। सूक्ष्मवतन में भी चोला है। शरीर तो है ना। कहेंगे
उनमें भी आत्मा है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है। मुझे कहते हैं
निराकार। बच्चों को समझाया है - कोई को भी बोलो तुमको दो बाप हैं, तुम्हारे बाप को
भी दो बाप हैं। सब उस बेहद के बाप को याद करते हैं। लौकिक बाप तो अनेक हैं, यह बेहद
का बाप तो एक ही है। बाप भूल जाए तो टीचर याद पड़े, टीचर भूल जाए तो सतगुरू याद पड़े।
बाप समझाते हैं - भारत अभी पतित है। पहले पावन था तो इतनी आत्मायें कहाँ निवास
करती होंगी? मुक्तिधाम, वानप्रस्थ अवस्था में अर्थात् वाणी से परे। मनुष्य बूढ़े
होते हैं तो वाणी से परे जाने के लिए गुरू की शरण लेते हैं कि हमको निर्वाणधाम
पहुँचावें, परन्तु वह पहुँचा नहीं सकते। झाड़ को तो बढ़ना ही है। मुख्य पार्ट है
भारत का, उनमें भी जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं वह 84 जन्म लेते हैं। आत्मा
परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... तो हिसाब करना चाहिए ना। बहुकाल अर्थात् जो पहले-पहले
इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आते हैं। बरोबर 84 जन्म उनके ही हैं। 84 का चक्र ही कहते
हैं, 84 लाख का चक्र नहीं कहते। तुम बच्चों को 84 का चक्र समझाया गया है, आगे नहीं
जानते थे। इनसे पूछेंगे तो इनकी आत्मा भी जानती है ना। दो आत्माओं का राज़ भी समझाया
है। दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। अशुद्ध आत्मा का भी प्रवेश हो सकता है। तो
परमपिता परमात्मा भी आ सकते हैं। बाकी कहते हैं मैं निराकार न आऊं तो राजयोग कैसे
सिखलाऊं? मुझे ही ज्ञान सागर कहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की स्थापना तो नहीं करेंगे
ना। बाप को ही कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। वैकुण्ठ की राजधानी है। एक तो नहीं है
ना। श्रीकृष्ण है नम्बरवन प्रिन्स, सतोप्रधान। सतोप्रधान को ही महात्मा कहा जाता
है। अकेले को कुमार-कुमारी कहा जाता है। कुमारी का मान बहुत होता है। सगाई हो गई
फिर भल पवित्र रहते हैं फिर भी युगल तो हो गये ना। फिर कुमारी का नाम बदल जाता है।
फिर माता-पिता बन जाते हैं। बच्चा पैदा हुआ तब कहेंगे माता-पिता। शादी के बाद
समझेंगे यह मात-पिता हैं, अन्डरस्टुड है कि सन्तान भी होगी। फिर उनको कुमार-कुमारी
नहीं कहेंगे।
तुम बच्चे जानते हो अभी श्रीकृष्णपुरी स्थापन हो रही है। वहाँ एक ही देवी-देवता
धर्म है। बाकी हर एक धर्म का शास्त्र भी अलग-अलग होता है। कहते हैं फलाने का
धर्मशास्त्र यह है, हम फलाने धर्म अथवा मठ में जाते हैं। आत्माओं को आकर अपना पार्ट
बजाना है। कोई से पूछो - गुरूनानक फिर कब आयेगा? वह तो कह देते ज्योति ज्योत समाया।
तो क्या उनको फिर आना नहीं है? सृष्टि चक्र कैसे रिपीट होगा? गुरूनानक की जब सोल आई
तो उनके पिछाड़ी सिक्ख धर्म वाले आते जाते हैं। अभी तो देखो कितने हो गये हैं! फिर
भी रिपीट करेंगे ना। बताओ फिर कब आयेंगे? तो बता नहीं सकेंगे। तुम कहेंगे यह तो 5
हजार वर्ष का चक्र है। गुरूनानक को 500 वर्ष हुए, फिर 4500 वर्ष के बाद आकर सिक्ख
धर्म स्थापन करेंगे। हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। फिर और भी
नम्बरवार आकर धर्म स्थापन करेंगे। कोई-कोई बच्चे कहते हैं हमारी बुद्धि में इतना नहीं
बैठता है। अच्छा, थोड़ी बात तो बैठती है ना। भक्तों का भगवान् बाप एक ठहरा। कहा भी
जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। परमात्मा तो किसको कहा नहीं जाता। ऐसे नहीं, आत्मा
जाकर परमात्मा बनेगी। जैसे मिसाल देते हैं - बुदबुदा सागर में लीन हो जायेगा। कोई
कहेंगे पार निर्वाण गया। जैसे बुद्ध के लिए कहते हैं। कोई फिर कहते ज्योति ज्योत
समाया। अब राइट कौन? पार निर्वाण तो ठीक है। आत्मा भी निराकार है। निराकारी दुनिया
में रहती है। सूक्ष्मवतन में है मूवी। वह भी जैसे वहाँ की एक भाषा है, जो वहाँ वह
समझते हैं, समझ कर डायरेक्शन ले आते हैं। यह भी वन्डरफुल बात है ना। मूवी, टॉकी और
साइलेन्स - तीन हैं। पहले मूवी के बाइसकोप भी थे फिर उनसे किसको मजा नहीं आया तो
टॉकी कर दिया। सूक्ष्मवतन में सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं। समझाया जाता है ऊंच
ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, जो साइलेन्स वर्ल्ड में रहते हैं। हम आत्मायें भी वहाँ
रहती हैं। पतित-पावन एक ही सतगुरू है। सर्व का सद्गति दाता वही है। बाकी भल कोई अपने
को गुरू कहलाये, ऋषि कहलाये, महात्मा कहलाये परन्तु हैं सब भक्त। पावन बनाने वाले
को जानते ही नहीं।
कहते हैं परमात्मा सबको कब्र से निकाल ले जाते हैं। देखते भी हो यह वही महाभारी
महाभारत लड़ाई है। तुम सतयुग के लिए राजयोग सीख रहे हो। विनाश के बाद फिर सतयुग के
गेट खुलते हैं। बाप ने समझाया है इस समय तुम बाप से राजयोग सीखते हो। तुम योगबल से
राज्य लेते हो। यह है नानवायोलेन्स। कोई भी यह नहीं जानते हैं कि नानवायोलेन्स किसको
कहा जाता है। काम कटारी भी नहीं चलानी है। यह भी हिंसा है। अहिंसा परमो देवी-देवता
धर्म था। विकारों के कारण ही तुमने आदि, मध्य, अन्त दु:ख पाया है। वहाँ है ही
निर्विकारी दुनिया, जिस कारण आदि, मध्य, अन्त दु:ख नहीं होता है। वह है अमरलोक, यह
है मृत्युलोक। मृत्युलोक में बैठ कथा सुनाते हैं अमर-लोक में जाने लिए। बाप कहते
हैं मैं त्रिकालदर्शी हूँ। तुमको भी त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बनाता हूँ अर्थात्
तीनों लोकों, तीनों कालों को जानने वाले। यह भगवान् की महिमा है। तुम बच्चों को आप
समान बनाकर साथ ले जाते हैं। ज्ञान सागर के बच्चे तुम भी मास्टर ज्ञान सागर बन जाते
हो। बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, चैतन्य, नॉलेजफुल हूँ। हाँ, हम जान
सकते हैं बीज से ऐसे झाड़ निकलता है फिर फल निकलता है। अब यह है मनुष्य सृष्टि का
झाड़। बाबा कहते हैं मैं इस उल्टे झाड़ के आदि, मध्य, अन्त को, सृष्टि चक्र को जानता
हूँ। मनुष्य कहते भी हैं परमात्मा सत है, चैतन्य है, आनन्द का सागर है, सुख का सागर
है, तो उनसे जरूर वर्सा मिलना चाहिए। तुम मुझ अपने बाप से वर्सा ले रहे हो। तुम 21
जन्मों के लिए पावन बन जायेंगे। मैं एवर पावन हूँ। तुमको तो पार्ट बजाना है। इस समय
सिर्फ तुम्हारी चढ़ती कला है। तुम मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो। फिर सतयुग से लेकर
तुम्हारी कलायें कमती होती जायेंगी। चढ़कर फिर उतरना ही है। अभी तुम बच्चे बेहद के
बाप से बेहद का वर्सा लेते हो। बहुत सर्विस करते हो। बाप है पतित-पावन। तुम शिव
शक्ति, पाण्डव सेना हो। पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाने में मदद करते हो। तुमको
ही वन्दे मातरम् कहते हैं। पतित को कभी वन्दे मातरम् नहीं कहेंगे। बाप आकर शक्ति-दल
द्वारा गुप्त सर्विस कराते हैं। तुम डबल अहिंसा वाले हो, राज्य लेते हो परन्तु कोई
हथियार आदि नहीं हैं। पवित्र रहते हो। वह सब हैं डबल हिंसक। एक तो विकार में जाते
हैं, काम-कटारी से एक दो को दु:ख देते हैं और फिर आपस में लड़ते-झगड़ते भी रहते
हैं। आजकल कितने दु:ख के पहाड़ गिरते हैं। मनुष्यों में क्रोध कितना भारी है। अपने
आपको आपेही चमाट मारते हैं। सबकी ग्लानी करते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध हैं।
सबको गिरना ही है। अभी तुम्हारी है चढ़ती कला। तुम ढिंढोरा पिटवाओ कि स्वर्ग का
रचयिता राजयोग सिखलाने वाला वह भगवान् आया हुआ है। वह हथेली पर बहिश्त ले आया है।
श्रीकृष्ण को हम भगवान् नहीं कहेंगे। वह दैवी गुणों वाला मनुष्य है। ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर को देवता कहेंगे, उनको दैवी गुण वाले मनुष्य नहीं कहेंगे। दैवीगुण सतयुगी
मनुष्यों में हैं, आसुरी गुण कलियुगी मनुष्यों में हैं। दैवी गुणवान और आसुरी
गुणवान मनुष्य ही बनते हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम बाप को क्यों भूलते हो?
घड़ी-घड़ी मुझे याद करो। तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब मैं तुमको राजयोग सिखलाने
आया हूँ। फिर भी तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। देह-अभिमान छोड़ अपने को अशरीरी समझो।
अच्छा! मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और
गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, त्रिलोकीनाथ बनना है। बाप की
महिमा में स्वयं को मास्टर बनाना है।
2) डबल अहिंसक बनना है। किसी भी विकार के वशीभूत हो हिंसा नहीं करनी है। बाप का
मददगार बन सबको पावन बनाने की सेवा करनी है।