27-04-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हारा यह ब्राह्मण कुल बिल्कुल निराला
है, तुम ब्राह्मण ही नालेजफुल हो, तुम ज्ञान, विज्ञान और अज्ञान को जानते हो"
प्रश्नः-
किस सहज
पुरुषार्थ से तुम बच्चों की दिल सब बातों से हटती जायेगी?
उत्तर:-
सिर्फ
रूहानी धन्धे में लग जाओ, जितना-जितना रूहानी सर्विस करते रहेंगे उतना और सब बातों
से स्वतः दिल हटती जायेगी। राजाई लेने के पुरुषार्थ में लग जायेंगे। परन्तु रूहानी
सर्विस के साथ-साथ जो रचना रची है, उसकी भी सम्भाल करनी है।
गीत:- जो पिया
के साथ है......
ओम् शान्ति।
पिया कहा जाता है बाप
को। अब बाप के आगे तो बच्चे बैठे हैं। बच्चे जानते हैं हम कोई साधू सन्यासी आदि के
आगे नहीं बैठे हैं। वह बाप ज्ञान का सागर है, ज्ञान से ही सद्गति होती है। कहा जाता
है ज्ञान, विज्ञान और अज्ञान। विज्ञान अर्थात् देही-अभिमानी बनना, याद की यात्रा
में रहना और ज्ञान अर्थात् सृष्टि चक्र को जानना। ज्ञान, विज्ञान और अज्ञान – इसका
अर्थ मनुष्य बिल्कुल नहीं जानते हैं। अभी तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। तुम्हारा यह
ब्राह्मण कुल निराला है, उनको कोई नहीं जानते। शास्त्रों में यह बातें हैं नहीं कि
ब्राह्मण संगम पर होते हैं। यह भी जानते हैं प्रजापिता ब्रह्मा होकर गया है, उसको
आदि देव कहते हैं। आदि देवी जगत अम्बा, वह कौन है! यह भी दुनिया नहीं जानती। जरूर
ब्रह्मा की मुख वंशावली ही होगी। वह कोई ब्रह्मा की स्त्री नहीं ठहरी। एडाप्ट करते
हैं ना। तुम बच्चों को भी एडाप्ट करते हैं। ब्राह्मणों को देवता नहीं कहेंगे। यहाँ
ब्रह्मा का मन्दिर है, वह भी मनुष्य है ना। ब्रह्मा के साथ सरस्वती भी है। फिर
देवियों के भी मन्दिर हैं। सभी यहाँ के ही मनुष्य हैं ना। मन्दिर एक का बना दिया
है। प्रजापिता की तो ढेर प्रजा होगी ना। अब बन रही है। प्रजापिता ब्रह्मा का कुल
वृद्धि को पा रहा है। हैं एडाप्टेड धर्म के बच्चे। अब तुमको बेहद के बाप ने धर्म का
बच्चा बनाया है। ब्रह्मा भी बेहद के बाप का बच्चा ठहरा, इनको भी वर्सा उनसे मिलता
है। तुम पोत्रे पोत्रियों को भी वर्सा उनसे मिलता है। ज्ञान तो कोई के पास है नहीं
क्योंकि ज्ञान का सागर एक है, वह बाप जब तक न आये तब तक किसकी सद्गति होती नहीं। अभी
तुम भक्ति से ज्ञान में आये हो, सद्गति के लिए। सतयुग को कहा जाता है सद्गति।
कलियुग को दुर्गति कहा जाता है क्योंकि रावण का राज्य है। सद्गति को रामराज्य भी
कहते हैं। सूर्यवंशी भी कहते हैं। यथार्थ नाम सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी है। बच्चे जानते
हैं हम ही सूर्यवंशी कुल के थे, फिर 84 जन्म लिये, यह नॉलेज कोई शास्त्रों में हो
नहीं सकती क्योंकि शास्त्र हैं ही भक्ति मार्ग के लिए। वह तो सब विनाश हो जायेंगे।
यहाँ से जो संस्कार ले जायेंगे वहाँ वह सब बनाने लग पड़ेंगे। तुम्हारे में भी
संस्कार भरे जाते हैं राजाई के। तुम राजाई करेंगे वह (साइंसदान) फिर उस राजाई में
आकर, जो हुनर सीखते हैं वही करेंगे। जायेंगे जरूर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजाई में।
उनमें है सिर्फ साइन्स की नॉलेज। वे उसके संस्कार ले जायेंगे। वह भी संस्कार हैं।
वह भी पुरूषार्थ करते हैं, उनके पास वह इलम (विद्या) है। तुम्हारे पास दूसरा कोई
इलम नहीं है। तुम बाप से राजाई लेंगे। धन्धे आदि में तो वह संस्कार रहते हैं ना।
कितनी खिटपिट रहती है। परन्तु जब तक वानप्रस्थ अवस्था नहीं हुई है तो घरबार की
सम्भाल भी करनी है। नहीं तो बच्चों की कौन सम्भाल करेंगे। यहाँ तो नहीं आकर बैठेंगे।
ऐसे कहते हैं जब इस धन्धे में पूरी रीति लग जायेंगे फिर वह छूट सकता है। साथ में
रचना को भी जरूर सम्भालना पड़ता है। हाँ कोई अच्छी रीति रूहानी सर्विस में लग जाते
हैं फिर उनसे जैसे दिल उठ जायेगी। समझेंगे जितना टाइम इस रूहानी सर्विस में देवें,
उतना अच्छा है। बाप आये हैं पतित से पावन बनने का रास्ता बताने, तो बच्चों को भी यही
सर्विस करनी है। हर एक का हिसाब देखा जाता है। बेहद का बाप तो केवल पतित से पावन
बनने की मत देते हैं, वह पावन बनने का ही रास्ता बताते हैं। बाकी यह देख-रेख करना,
राय देना इनका धंधा हो जाता है। शिवबाबा कहते हैं मेरे से कोई बात धन्धे आदि की नहीं
पूछनी है। मेरे को तुमने बुलाया है कि आकर पतित से पावन बनाओ, तो हम इन द्वारा तुमको
बना रहा हूँ। यह भी बाप है, इनकी मत पर चलना पड़े। उनकी रूहानी मत, इनकी जिस्मानी।
इनके ऊपर भी कितनी रेसपॉन्सिबिल्टी रहती है। यह भी कहते रहते हैं कि बाप का फरमान
है मामेकम् याद करो। बाप की मत पर चलो। बाकी बच्चों को कुछ भी पूछना पड़ता है, नौकरी
में कैसे चलें, इन बातों को यह साकार बाबा अच्छी तरह समझा सकते हैं, अनुभवी हैं, यह
बताते रहेंगे। ऐसे-ऐसे मैं करता हूँ, इनको देख सीखना है, यह सिखाते रहेंगे क्योंकि
यह है सबसे आगे। सब तूफान पहले इनके पास आते हैं इसलिए सबसे रूसतम यह है, तब तो ऊंच
पद भी पाते हैं। माया रूसतम हो लड़ती है। इसने फट से सब कुछ छोड़ दिया, इनका पार्ट
था। बाबा ने इनसे यह करा दिया। करनकरावनहार तो वह है ना। खुशी से छोड़ दिया,
साक्षात्कार हो गया। अब हम विश्व के मालिक बनते हैं। यह पाई पैसे की चीज़ हम क्या
करेंगे। विनाश का साक्षात्कार भी करा दिया। समझ गये, इस पुरानी दुनिया का विनाश होना
है। हमको फिर से राजाई मिलती है तो फट से वह छोड़ दिया। अब तो बाप की मत पर चलना
है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। ड्रामा अनुसार भट्ठी बननी थी। मनुष्य थोड़ेही समझते
कि इतने यह सब क्यों भागे। यह कोई साधू सन्त तो नहीं। यह तो सिम्पुल है, इसने किसको
भगाया भी नहीं। कृष्ण का चरित्र कोई है नहीं। मनुष्य मात्र की महिमा कोई है नहीं।
महिमा है तो एक बाप की। बस। बाप ही आकर सबको सुख देते हैं। तुमसे बात करते हैं। तुम
यहाँ किसके पास आये हो? तुम्हारी बुद्धि वहाँ भी जायेगी, यहाँ भी क्योंकि जानते हो
शिवबाबा रहने वाला वहाँ का है। अभी इनमें आये हैं। बाप से हमको स्वर्ग का वर्सा
मिलना है। कलियुग के बाद जरूर स्वर्ग आयेगा। कृष्ण भी बाप से वर्सा लेकर जाए राजाई
करते हैं, इसमें चरित्र की बात ही नहीं। जैसे राजा के पास प्रिन्स पैदा होता है,
स्कूल में पढ़कर फिर बड़ा होकर गद्दी लेगा। इसमें महिमा वा चरित्र की बात नहीं। ऊंच
ते ऊंच एक बाप ही है। महिमा भी उनकी होती है! यह भी उनका परिचय देते हैं। अगर वह कहे
मैं कहता हूँ तो मनुष्य समझेंगे यह अपने लिए कहते हैं। यह बातें तुम बच्चे समझते
हो, भगवान को कभी भी मनुष्य नहीं कह सकते। वह तो एक ही निराकार है। परमधाम में रहते
हैं। तुम्हारी बुद्धि ऊपर में भी जाती है फिर नीचे भी आती है।
बाबा दूरदेश से पराये
देश में आकर हमको पढ़ाए फिर चले जाते हैं। खुद कहते हैं – मैं आता हूँ सेकेण्ड में।
देरी नहीं लगती है। आत्मा भी सेकेण्ड में एक शरीर छोड़ दूसरे में जाती है। कोई देख
न सके। आत्मा बहुत तीखी है। गाया भी हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। रावण राज्य को
जीवनबंध राज्य कहेंगे। बच्चा पैदा हुआ और बाप का वर्सा मिला। तुमने भी बाप को पहचाना
और स्वर्ग के मालिक बनें फिर उसमें नम्बरवार मर्तबे हैं – पुरूषार्थ अनुसार। बाप
बहुत अच्छी रीति समझाते रहते हैं, दो बाप हैं – एक लौकिक और एक पारलौकिक। गाते भी
हैं दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई। तुम जानते हो हम भारतवासियों को जब
सुख था तो सिमरण नहीं करते थे। फिर हमने 84 जन्म लिए। आत्मा में खाद पड़ती है तो
डिग्री कम होती जाती है। 16 कला सम्पूर्ण फिर 2 कला कम हो जाती है। कम पास होने
कारण राम को बाण दिखाया है। बाकी कोई धनुष नहीं तोड़ा है। यह एक निशानी दे दी है।
यह हैं सब भक्ति मार्ग की बातें। भक्ति में मनुष्य कितना भटकते हैं। अब तुमको ज्ञान
मिला है, तो भटकना बंद हो जाता है।
“हे शिवबाबा” कहना यह
पुकार का शब्द है। तुमको हे शब्द नहीं कहना है। बाप को याद करना है। चिल्लाया तो
गोया भक्ति का अंश आ गया। हे भगवान कहना भी भक्ति की आदत है। बाबा ने थोड़ेही कहा
है – हे भगवान कहकर याद करो। अन्तर्मुख हो मुझे याद करो। सिमरण भी नहीं करना है।
सिमरण भी भक्ति मार्ग का अक्षर है। तुमको बाप का परिचय मिला, अब बाप की श्रीमत पर
चलो। ऐसे बाप को याद करो जैसे लौकिक बच्चे देहधारी बाप को याद करते हैं। खुद भी
देह-अभिमान में हैं तो याद भी देहधारी बाप को करते हैं। पारलौकिक बाप तो है ही
देही-अभिमानी। इसमें आते हैं तो भी देह-अभिमानी नहीं होते। कहते हैं हमने यह लोन
लिया है, तुमको ज्ञान देने लिए मैं यह लोन लेता हूँ। ज्ञान सागर हूँ परन्तु ज्ञान
कैसे दूँ। गर्भ में तो तुम जाते हो, मैं थोड़ेही गर्भ में जाता हूँ। मेरी गति मत ही
न्यारी है। बाप इसमें आते हैं। यह भी कोई नहीं जानते। कहते भी हैं ब्रह्मा द्वारा
स्थापना। परन्तु कैसे ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं? क्या प्रेरणा देंगे! बाप
कहते हैं मैं साधारण तन में आता हूँ। उसका नाम ब्रह्मा रखता हूँ क्योंकि सन्यास करते
हैं ना।
तुम बच्चे जानते हो
अभी ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती क्योंकि टूटते रहते हैं। जब ब्राह्मण फाइनल बन
जाते हैं तब रूद्र माला बनती है, फिर विष्णु की माला में जाते हैं। माला में आने के
लिए याद की यात्रा चाहिए। अभी तुम्हारी बुद्धि में है कि हम सो पहले-पहले सतोप्रधान
थे फिर सतो रजो तमो में आते हैं। हम सो का भी अर्थ है ना। ओम् का अर्थ अलग है, ओम्
माना आत्मा। फिर वही आत्मा कहती है हम सो देवता क्षत्रिय… वो लोग फिर कह देते हम
आत्मा सो परमात्मा। तुम्हारा ओम और हम सो का अर्थ बिल्कुल अलग है। हम आत्मा हैं फिर
आत्मा वर्णो में आती है, हम आत्मा सो पहले देवता क्षत्रिय बनते हैं। ऐसे नहीं कि
आत्मा सो परमात्मा, ज्ञान पूरा न होने के कारण अर्थ ही मुँझा दिया है। अहम्
ब्रह्मस्मि कहते हैं, यह भी रांग है। बाप कहते हैं मैं रचना का मालिक तो बनता नहीं।
इस रचना के मालिक तुम हो। विश्व के भी मालिक तुम बनते हो। ब्रह्म तो तत्व है। तुम
आत्मा सो इस रचना के मालिक बनते हो। अभी बाप सब वेदों शास्त्रों का यथार्थ अर्थ बैठ
सुनाते हैं। अभी तो पढ़ते रहना है। बाप तुम्हें नई-नई बातें समझाते रहते हैं। भक्ति
क्या कहती है, ज्ञान क्या कहता है। भक्ति मार्ग में मन्दिर बनाये, जप तप किये, पैसा
बरबाद किया। तुम्हारे मन्दिरों को बहुतों ने लूटा है। यह भी ड्रामा में पार्ट है
फिर जरूर उन्हों से ही वापस मिलना है। अभी देखो कितना दे रहे हैं। दिन प्रतिदिन
बढ़ाते रहते हैं। यह भी लेते रहते हैं। उन्होंने जितना लिया है उतना ही पूरा हिसाब
देंगे। तुम्हारे पैसे जो खाये हैं, वह हप नहीं कर सकते। भारत तो अविनाशी खण्ड है
ना। बाप का बर्थ प्लेस है। यहाँ ही बाप आते हैं। बाप के खण्ड से ही ले जाते हैं तो
वापिस देना पड़े। समय पर देखो कैसे मिलता है। यह बातें तुम जानते हो। उनको थोड़ेही
पता है – विनाश किस समय आयेगा। गवर्मेन्ट भी यह बातें मानेंगी नहीं। ड्रामा में
नूँध है, कर्जा उठाते ही रहते हैं। रिटर्न हो रहा है। तुम जानते हो हमारी राजधानी
से बहुत पैसे ले गये हैं, सो फिर दे रहे हैं। तुमको कोई बात का फिकर नहीं है। फिकर
रहता है सिर्फ बाप को याद करने का। याद से ही पाप भस्म होंगे। नॉलेज तो बहुत सहज
है। अब जो जितना पुरूषार्थ करे। श्रीमत तो मिलती रहती है। अविनाशी सर्जन से हर बात
में मत लेनी पड़े। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जितना टाइम मिले उतना टाइम यह रूहानी धंधा करना है। रूहानी धंधे के
संस्कार डालने हैं। पतितों को पावन बनाने की सर्विस करनी है।
2) अन्तर्मुखी बन बाप को याद करना है। मुख से हे शब्द नहीं निकालना है। जैसे बाप
को अहंकार नहीं, ऐसे निरहंकारी बनना है।
वरदान:-
मरजीवा जन्म की स्मृति से सर्व कर्मबन्धनों को
समाप्त करने वाले कर्मयोगी भव
यह मरजीवा दिव्य जन्म कर्मबन्धनी जन्म नहीं, यह कर्मयोगी
जन्म है। इस अलौकिक दिव्य जन्म में ब्राह्मण आत्मा स्वतन्त्र है न कि परतन्त्र। यह
देह लोन में मिली हुई है, सारे विश्व की सेवा के लिए पुराने शरीरों में बाप शक्ति
भरकर चला हैं, जिम्मेवारी बाप की है, न कि आप की। बाप ने डायरेक्शन दिया है कि कर्म
करो, आप स्वतन्त्र हो, चलाने वाला चला रहा है। इसी विशेष धारणा से कर्मबन्धनों को
समाप्त कर कर्मयोगी बनो।
स्लोगन:-
समय की समीपता
का फाउन्डेशन है - बेहद की वैराग्य वृत्ति।