31-03-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 18.01.99 "बापदादा" मधुबन
वर्तमान समय के
प्रमाण वैराग्य वृत्ति को इमर्ज कर साधना का वायुमण्डल बनाओ
आज स्नेह के सागर
बापदादा अपने अति स्नेही बच्चों से मिल रहे हैं। आज का दिन विशेष स्नेह का दिन है।
अमृतवेले से लेकर चारों ओर के बच्चे स्नेह की लहरों में लहरा रहे हैं। हर एक बच्चे
के दिल का स्नेह दिलाराम बाप के पास पहुँच गया। बापदादा भी सभी बच्चों को स्नेह के
रेसपान्स में स्नेह और समर्थ-पन का वरदान दे रहे हैं। आज के दिन को बापदादा यज्ञ की
स्थापना में विशेष परिवर्तन का दिन कहते हैं। आज के दिन ब्रह्मा बाप गुप्त रूप में
बैकबोन बन अपने बच्चों को साकार रूप में विश्व के मंच पर प्रत्यक्ष किया, इसलिए इस
दिवस को बच्चों के प्रत्यक्षता का दिन कहा जाता है। समर्थ दिवस कहा जाता है। विल
पावर देने का दिवस कहा जाता है। ब्रह्मा बाप गुप्त रूप में कार्य करा रहा है। अलग
नहीं है, साथ ही है सिर्फ गुप्त रूप में करा रहा है। यह अव्यक्ति दिवस बच्चों के
कार्य को तीव्र गति में लाने का दिवस है। अभी भी हर एक बच्चे की छत्रछाया बन पालना
का कर्तव्य कर रहे हैं। जैसे माँ बच्चों के लिए छत्रछाया होती है ऐसे ही अमृतवेले
से लेकर ब्रह्मा माँ चारों तरफ के बच्चों की रेख-देख करती रहती है। साकार में
निमित्त बच्चे हैं लेकिन भाग्य विधाता ब्रह्मा माँ हर बच्चे के भाग्य को देख बच्चों
को विशेष शक्ति, हिम्मत, उमंग-उत्साह की पालना करते हैं। शिव बाप तो साथ में है ही
लेकिन विशेष ब्रह्मा का पालना का पार्ट है।
आज के दिन भाग्य
विधाता ब्रह्मा हर बच्चे को विशेष स्नेह के रिटर्न में वरदान का भण्डार भण्डारी बन
बांटते हैं। जो बच्चा जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित हो मिलन मनाते हैं उस हर एक
बच्चे को जो वरदान चाहिए वह सहज प्राप्त होता है। वरदानों का खुला भण्डार है, जो
चाहिए, जितना चाहिए उतना प्राप्त होने का श्रेष्ठ दिवस है। स्नेह का रिटर्न होता है
- सहज वरदान की गिफ्ट। तो गिफ्ट में मेहनत नहीं करनी पड़ती है, सहज प्राप्ति होती
है। गिफ्ट मांगी नहीं जाती है, स्वत: ही प्राप्त होती है। पुरुषार्थ से वरदान के
अनुभूति की प्राप्ति अलग चीज़ है लेकिन आज के दिन ब्रह्मा माँ स्नेह के रिटर्न में
वरदान देते हैं। तो आज के दिन सभी ने सहज वरदान प्राप्त होने की अनुभूति की? अभी भी
सच्चे दिल के स्नेह का रिटर्न वरदान प्राप्त कर सकते हो। वरदान प्राप्त करने का
साधन है - दिल का स्नेह। जहाँ दिल का स्नेह है, वो स्नेह ऐसा खजाना है जिस खजाने
द्वारा, बापदादा द्वारा जो चाहे अविनाशी वरदान प्राप्त कर सकते हो। वह स्नेह का
खजाना हर बच्चे के पास है? स्नेह का खजाना है तब तो पहुँचे हो ना! स्नेह खींचकर लाया
है और स्नेह में रहना बहुत सहज है। पुरुषार्थ की मेहनत नहीं करनी पड़ती क्योंकि
स्नेह का अनुभव हर आत्मा को होता ही है। सिर्फ अब जो बिखरा हुआ स्नेह था, कुछ कहाँ,
कुछ कहाँ था, वह बिखरा हुआ स्नेह एक के ही साथ जोड़ लिया है क्योंकि पहले अलग-अलग
संबंध था, अब एक में सर्व संबंध हैं। तो सहज सर्व स्नेह एक से हो गया, इसलिए हर एक
कहता है मेरा बाबा। तो स्नेह किससे होता है? मेरे से। सभी कहते हैं ना मेरा बाबा,
या दादियों का बाबा है? महारथियों का बाबा है? सबका बाबा है ना! आज के दिन कितने
बार हर एक बच्चे ने दिल से कहा - मेरा बाबा, मेरा बाबा। सभी ने मेरा-बाबा, मेरा-बाबा
कह रूहरिहान की ना! सारा दिन क्या किया? स्नेह के पुष्प बापदादा को अर्पित किया।
बापदादा के पास स्नेह के पुष्प बहुत बढ़िया से बढ़िया पहुँच रहे थे। स्नेह तो बहुत
अच्छा रहा, अब बाप कहते हैं स्नेह का स्वरूप साकार में इमर्ज करो। वह है समान बनना।
अभी यह समान बनने का लक्ष्य तो सभी के पास है, अभी साकार में लक्षण दिखाई दें। जिस
भी बच्चे को देखें, जो भी मिले, संबंध-सम्पर्क में आये, उन्हों को यह लक्षण दिखाई
दें कि यह जैसे परमात्मा बाप, ब्रह्मा बाप के गुण हैं, वह बच्चों के सूरत और मूरत
से दिखाई दें। अनुभव करें कि इनके नयन, इनके बोल, इन्हों की वृत्ति वा वायब्रेशन
न्यारे हैं। मधुबन में आते हैं तो बाप ब्रह्मा के कर्म साकार में होने के कारण भूमि
में तपस्या, कर्म और त्याग के वायब्रेशन समाये हुए होने के कारण यहाँ सहज अनुभव करते
हैं कि यह संसार न्यारा है क्योंकि ब्रह्मा बाप और विशेष बच्चों के वायब्रेशन से
वायुमण्डल अलौकिक बना हुआ है। ऐसे ही जो बच्चा जहाँ भी रहता है, जो भी कर्मक्षेत्र
है, हर एक बच्चे से बाप समान गुण, कर्म और श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल अनुभव में
आये, इसको बापदादा कहते हैं - बाप समान बनना। जो अभी तक संकल्प है बाप समान बनना ही
है, वह संकल्प अभी चेहरे और चलन से दिखाई दे। जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उनके दिल
से यह आवाज निकले कि यह आत्मायें बाप समान हैं। (बीच-बीच में खांसी आ रही है) आज
माइक खराब है, मिलना तो है ना। यह भी तो माइक है ना, यह माइक नहीं चलता तो यह माइक
भी काम का नहीं। कोई हर्जा नहीं यह भी मौसम का फल है।
तो बापदादा अभी सभी
बच्चों से यह प्रत्यक्षता चाहते हैं। जैसे वाणी द्वारा प्रत्यक्षता करते हो तो वाणी
का प्रभाव पड़ता है, उससे भी ज्यादा प्रभाव गुण और कर्म का पड़ता है। हर एक बच्चे
के नयनों से यह अनुभव हो कि इन्हों के नयनों में कोई विशेषता है। साधारण नहीं अनुभव
करें। अलौकिक हैं। उन्हों के मन में क्वेश्चन उठे कि यह कैसे बनें, कहाँ से बनें।
स्वयं ही सोचें और पूछें कि बनाने वाला कौन? जैसे आजकल के समय में भी कोई बढ़िया
चीज़ देखते हो तो दिल में उठता है कि यह बनाने वाला कौन है! ऐसे अपने बाप समान बनने
की स्थिति द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो। आजकल मैजारिटी आत्मायें सोचती हैं कि क्या
इस साकार सृष्टि में, इस वातावरण में रहते हुए ऐसे भी कोई आत्मायें बन सकती हैं! तो
आप उन्हों को यह प्रत्यक्ष में दिखाओ कि बन सकता है और हम बने हैं। आजकल प्रत्यक्ष
प्रमाण को ज्यादा मानते हैं। सुनने से भी ज्यादा देखने चाहते हैं तो चारों ओर कितने
बच्चे हैं, हर एक बच्चा बाप समान प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाए तो मानने और जानने में
मेहनत नहीं लगेगी। फिर आपकी प्रजा बहुत जल्दी-जल्दी तैयार हो जायेगी। मेहनत, समय कम
और प्रत्यक्ष प्रमाण अनुभव करने से जैसे प्रजा का स्टैम्प लगता जायेगा। राजे रानी
तो आप बनने वाले हैं ना!
बापदादा एक बात का
फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं कि वर्तमान वायुमण्डल के अनुसार मन में, दिल से अभी
वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो। बापदादा ने हर बच्चे को चाहे प्रवृत्ति में है, चाहे
सेवाकेन्द्र पर है, चाहे कहाँ भी रहते हैं, स्थूल साधन हर एक को दिये हैं, ऐसा कोई
बच्चा नहीं है जिसके पास खाना, पीना, रहना इसके साधन नहीं हो। जो बेहद के वैराग्य
की वृत्ति में रहते हुए आवश्यक साधन चाहिए, वह सबके पास हैं। अगर कोई को कमी है तो
वह उसके अपने अलबेलेपन या आलस्य के कारण है। बाकी ड्रामानुसार बापदादा जानते हैं कि
आवश्यक साधन सबके पास हैं। जो आवश्यक साधन हैं वह तो चलने ही हैं। लेकिन कहाँ-कहाँ
आवश्यकता से भी ज्यादा साधन हैं। साधना कम है और साधन का प्रयोग करना या कराना
ज्यादा है इसलिए बापदादा आज बाप समान बनने के दिवस पर विशेष अण्डरलाइन करा रहे हैं
- कि साधनों के प्रयोग का अनुभव बहुत किया, जो किया वह भी बहुत अच्छा किया, अब साधना
को बढ़ाना अर्थात् बेहद की वैराग्य वृत्ति को लाना। ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट घड़ी
तक बच्चों को साधन बहुत दिये लेकिन स्वयं साधनों के प्रयोग से दूर रहे। होते हुए
दूर रहना - उसे कहेंगे वैराग्य। लेकिन कुछ है ही नहीं और कहे कि हमको तो वैराग्य
है, हम तो हैं ही वैरागी, तो वह कैसे होगा। वह तो बात ही अलग है। सब कुछ होते हुए
नॉलेज और विश्व कल्याण की भावना से, बाप को, स्वयं को प्रत्यक्ष करने की भावना से
अभी साधनों के बजाए बेहद की वैराग्य वृत्ति हो। जैसे स्थापना के आदि में साधन कम नहीं
थे, लेकिन बेहद के वैराग्य वृत्ति की भट्ठी में पड़े हुए थे। यह 14 वर्ष जो तपस्या
की, यह बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल था। बापदादा ने अभी साधन बहुत दिये
हैं, साधनों की अभी कोई कमी नहीं है लेकिन होते हुए बेहद का वैराग्य हो। विश्व की
आत्माओं के कल्याण के प्रति भी इस समय इस विधि की आवश्यकता है क्योंकि चारों ओर
इच्छायें बढ़ रही हैं, इच्छाओं के वश आत्मायें परेशान हैं, चाहे पदमपति भी हैं
लेकिन इच्छाओं से वह भी परेशान हैं। वायुमण्डल में आत्माओं की परेशानी का विशेष
कारण यह हद की इच्छायें हैं। अब आप अपने बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा उन आत्माओं
में भी वैराग्य वृत्ति फैलाओ। आपके वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के बिना आत्मायें
सुखी, शान्त बन नहीं सकती, परेशानी से छूट नहीं सकती। आप वृक्ष की जड़ हैं,
ब्राह्मणों का स्थान वृक्ष में कहाँ दिखाया है? जड़ में दिखाया है ना! तो आप
फाउण्डेशन हैं, आपकी लहर विश्व में फैलेगी इसलिए बापदादा विशेष साकार में ब्रह्मा
बाप समान बनने की विधि, वैराग्य वृत्ति की तरफ विशेष अटेन्शन दिला रहा है। हर एक से
अनुभव हो कि यह साधनों वश नहीं, साधना में रहने वाले हैं। होते हुए वैराग्य वृत्ति
हो। आवश्यक साधन यूज़ करो लेकिन जितना हो सकता है उतना दिल के वैराग्य वृत्ति से,
साधनों के वशीभूत होकर नहीं। अभी साधना का वायुमण्डल चारों ओर बनाओ। समय समीप के
प्रमाण अभी सच्ची तपस्या वा साधना है ही बेहद का वैराग्य। सेवा का विस्तार इस वर्ष
में बहुत किया। इस वर्ष चारों ओर बड़े-बड़े प्रोग्राम किये और सेवा से सहयोगी
आत्मायें भी बहुत बने हैं, समीप आये हैं, सम्पर्क में आये हैं, लेकिन क्या सिर्फ
सहयोगी बनाना है? यहाँ तक रखना है क्या? सहयोगी आत्मायें अच्छी-अच्छी हैं, अब उन
सहयोगी क्वालिटी वाली आत्माओं को और संबंध में लाओ। अनुभव कराओ, जिससे सहयोगी से
सहज योगी बन जाएं। इसके लिए एक तो साधना का वायुमण्डल और दूसरा बेहद की वैराग्य
वृत्ति का वायुमण्डल हो तो इससे सहज सहयोगी सहज योगी बन जायेंगे। उन्हों की सेवा भले
करते रहो लेकिन साथ में साधना, तपस्या का वायुमण्डल आवश्यक है।
अभी चारों ओर पॉवरफुल
तपस्या करनी है, जो तपस्या मन्सा सेवा के निमित्त बनें, ऐसी पावरफुल सेवा अभी तपस्या
से करनी है। अभी मन्सा सेवा अर्थात् संकल्प द्वारा सेवा की टचिंग हो, उसकी आवश्यकता
है। समय समीप आ रहा है, निरन्तर स्थितियाँ और निरन्तर पॉवरफुल वायुमण्डल की आवश्यकता
है। बाप समान बनना है तो पहले बेहद की वैराग्य वृत्ति धारण करो। यही ब्रह्मा बाप की
अन्त तक विशेषता देखी। न वैभव में लगाव रहा, न बच्चों में... सबसे वैराग्य वृत्ति।
तो आज के दिन का बाप समान बनने का पाठ पक्का करना। बस ब्रह्मा बाप समान बनना ही है।
ऐसा दृढ़ निश्चय अवश्य आगे बढ़ायेगा।
अच्छा - आज कौन सी
बात को अण्डरलाइन किया? बेहद का वैराग्य। अभी आत्माओं को इच्छाओं से बचाओ। बिचारे
बहुत दु:खी हैं। बहुत परेशान हैं। तो अभी रहमदिल बनो। रहम की लहर बेहद के वैराग्य
वृत्ति द्वारा फैलाओ। अभी सभी ऊंचे ते ऊंचे परमधाम में बाप के साथ बैठ सर्व आत्माओं
को रहम की दृष्टि दो। वायब्रेशन फैलाओ। फैला सकते हैं ना? तो बस अभी परमधाम में बाप
के साथ बैठ जाओ। वहाँ से यह बेहद के रहम का वायुमण्डल फैलाओ। (बापदादा ने ड्रिल
कराई) अच्छा।
चारों ओर के सर्व अति
स्नेही बच्चों को, सर्व चारों ओर के साधना करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, बापदादा
को सारे दिन में बहुत प्यारे-प्यारे, मीठे-मीठे दिल के गीत सुनाने वाले, रूह-रिहान
करने वाले शक्तियों के, गुणों के वरदान से झोली भरने वाले, बापदादा को सबके गीत,
खुशी के गीत स्नेह के गीत, रूहानी नशे के गीत, मीठी-मीठी बातें बहुत-बहुत दिल को
लुभाने वाली सुनाई दी और बापदादा भी सुनने और मिलने में लवलीन थे। तो ऐसे दिल के
सच्चे, दिल के आवाज़ सुनाने वाले बच्चे महान हैं और सदा महान रहेंगे, ऐसे मीठे-मीठे
बच्चे सदा बेहद के वैराग्य वृत्ति को अपनाने वाले, दृढ़ निश्चय बुद्धि बच्चों को
बापदादा एक के बदले पदमगुणा रिटर्न स्नेह दे रहे हैं। दिलाराम के दिल पर रहने वाले
सभी बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते।
जो बाहर भी सुन रहे
हैं उन्हों को भी बाबा देख रहे हैं और बापदादा दूर नहीं देखते हैं लेकिन सभी तरफ के
बच्चों को सम्मुख देख यादप्यार और मुबारक और याद सौगात वा याद पत्रों का रिटर्न कर
रहे हैं कि सदा उड़ती कला में उड़ने वाले बच्चे सदा आबाद हैं, सदा ही आबाद रहेंगे।
अच्छा।
वरदान:-
श्रेष्ठ
संकल्प की शक्ति द्वारा सिद्धियां प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
आप मास्टर
सर्वशक्तिवान बच्चों के संकल्प में इतनी शक्ति है जो जिस समय चाहो वह कर सकते हो और
करा भी सकते हो क्योंकि आपका संकल्प सदा शुभ, श्रेष्ठ और कल्याणकारी है। जो श्रेष्ठ
और कल्याण का संकल्प है वह सिद्ध जरूर होता है। मन सदा एकाग्र अर्थात् एक ठिकाने पर
स्थित रहता है, भटकता नहीं है। जहाँ चाहे जब चाहे मन को वहाँ स्थित कर सकते हैं।
इससे सिद्धि स्वरूप स्वत: बन जाते हैं।
स्लोगन:-
परिस्थितियों की हलचल के प्रभाव से बचना है तो विदेही स्थिति में रहने का अभ्यास करो।