30-11-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
1992 "बापदादा" मधुबन
‘‘सत्यता और पवित्रता की
शक्ति को स्वरूप में लाते बालक और मालिकपन का बैलेन्स रखो’’
आज सत बाप, सत शिक्षक,
सतगुरू अपने चारों ओर के सत्यता स्वरूप, शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं क्योंकि
सत्यता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ है। इस सत्यता की शक्ति का आधार है सम्पूर्ण पवित्रता।
मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क, स्वप्न में भी अपवित्रता का नाम निशान न हो। ऐसी
पवित्रता का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या दिखाई देता? ऐसी पवित्र आत्मा के चलन और चेहरे
में स्पष्ट दिव्यता दिखाई देती है। उनके नयनों में रूहानी चमक, चेहरे में सदा
हर्षितमुखता और चलन में हर कदम में बाप समान कर्मयोगी। ऐसे सत्यवादी सत बाप द्वारा
इस समय आप सभी बन रहे हो। दुनिया में भी कई अपने को सत्यवादी कहते हैं, सच भी बोलते
हैं लेकिन सम्पूर्ण पवित्रता ही सच्ची सत्यता शक्ति है। जो इस समय इस संगमयुग में
आप सभी बन रहे हो। इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति है - सत्यता की शक्ति, पवित्रता
की शक्ति। जिसकी प्राप्ति सतयुग में आप सभी ब्राह्मण सो देवता बन आत्मा और शरीर दोनों
से पवित्र बनते हो। सारे सृष्टि चक्र में और कोई भी आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र
नहीं बनते। आत्मा से पवित्र बनते भी हैं लेकिन शरीर पवित्र नहीं मिलता। तो ऐसी
सम्पूर्ण पवित्रता इस समय आप सब धारण कर रहे हो। फलक से कहते हो, याद है क्या फलक
से कहते हो? याद करो। सभी दिल से कहते हैं, अनुभव से कहते हैं कि पवित्रता तो हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार है, जन्म सिद्ध अधिकार सहज प्राप्त होता है क्योंकि पवित्रता वा
सत्यता प्राप्त करने के लिए आप सभी ने पहले अपने सत स्वरूप आत्मा को जान लिया। अपने
सत बाप, शिक्षक, सतगुरू को पहचान लिया। पहचान लिया और पा लिया। जब तक कोई अपने सत
स्वरूप वा सत बाप को नहीं जानते तो सम्पूर्ण पवित्रता, सत्यता की शक्ति आ नहीं सकती।
तो आप सभी सत्यता और पवित्रता की शक्ति के अनुभवी है ना! हैं अनुभवी? अनुभवी हैं?
वह लोग प्रयत्न रते हैं लेकिन यथार्थ रूप में ना अपने स्वरूप, न सत बाप के यथार्थ
स्वरूप को जान सकते। और आप सबने इस समय के अनुभव द्वारा पवित्रता को ऐसे सहज अपनाया
जो इस समय की प्राप्ति का प्रालब्ध देवताओं की पवित्रता नेचरल है और नेचर है। ऐसी
नेचरल नेचर का अनुभव आप ही प्राप्त करते हो। तो चेक करो कि पवित्रता वा सत्यता की
शक्ति नेचरल नेचर के रूप में बनी है? आप क्या समझते हो? जो समझते हैं कि पवित्रता
तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है वह हाथ उठाओ। जन्म सिद्ध अधिकार है कि मेहनत करनी
पड़ती है? मेहनत करनी तो नहीं पड़ती ना! सहज है ना! क्योंकि जन्मसिद्ध आधिकार तो सहज
प्राप्त हाता है | मेहनत नह करनी पड़ती। दुनिया वाले असम्भव समझते हैं और आपने
असम्भव को सम्भव और सहज बना दिया है।
जो नये नये बच्चे आये
हैं, जो पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा जो नये नये बच्चे हैं, मुबारक हो नये
पहली बार आने वालों को क्योंकि बापदादा कहते हैं कि भले लेट तो आये हो लेकिन टू लेट
में नहीं आये हो। और नये बच्चों को बापदादा का वरदान है कि लास्ट वाला भी फास्ट
पुरूषार्थ कर फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। फर्स्ट नम्बर नहीं लेकिन फर्स्ट डिवीजन
में आ सकते हैं। तो नये बच्चों को इतनी हिम्मत है, हाथ उठाओ जो फर्स्ट आयेंगे। देखना
टी.वी. में आपका हाथ दिखाई दे रहा है। अच्छा। हिम्मत वाले हैं। मुबारक हो हिम्मत
की। और हिम्मत है तो बाप की तो मदद है ही लेकिन सर्व ब्राह्मण परिवार की भी शुभ
भावना, शुभ कामना आप सबके साथ है। इसलिए जो भी नये पहले बारी आये हैं उन सबके प्रति
बापदादा और परिवार की तरफ से दुबारा पदमगुणा बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। आप सभी जो
पहले आने वाले हैं उन्हों को भी खुशी हो रही है ना! बिछुड़ी हुई आत्मायें फिर से अपने
परिवार में पहुंच गये हैं। तो बापदादा भी खुश हो रहे हैं और आप सब भी खुश हो रहे
हैं।
बापदादा ने वतन में
दादी के साथ एक रिजल्ट देखी। क्या रिजल्ट देखी? आप सभी जानते हो, मानते हो कि हम
मालिक सो बालक हैं। हैं ना! मालिक भी हो, बालक भी हो। सभी हैं? हाथ उठाओ। सोच के
उठाना, ऐसे नहीं। हिसाब लेंगे ना! अच्छा, हाथ नीचे करो। बापदादा ने देखा कि बालकपन
का निश्चय और नशा यह तो सहज रहता है क्योंकि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते
हो तो बालक हो तभी तो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हो। और सारा दिन मेरा बाबा, मेरा
बाबा यही स्मृति में लाते हो फिर भूल भी जाते हो लेकिन बीच-बीच में याद आता है। और
सेवा में भी बाबा बाबा शब्द नेचरल मुख से निकलता है। अगर बाबा शब्द नहीं निकलता तो
ज्ञान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभाव जो भी सेवा करते हो, भाषण करते हो, कोर्स
कराते हो, भिन्न-भिन्न टॉपिक पर करते हो। सच्ची सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप वा
प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि सुनने वाले भी अनुभव करें कि मैं भी बाबा का हूँ। उनके
मुख से भी बाबा बाबा शब्द निकले। कोई ताकत है, यह नहीं। अच्छा है, यह नहीं। लेकिन
मेरा बाबा अनुभव करें इसको कहेंगे सेवा का प्रत्यक्ष फल। तो बालकपन का नशा वा
निश्चय फिर भी अच्छा रहता है। लेकिन मालिकपन का निश्चय और नशा नम्बरवार रहता है।
बालकपन से मालिकपन का प्रैक्टिकल चलन और चेहरे से नशा कभी दिखाई देता है, कभी कम
दिखाई देता है। वास्तव में आप डबल मालिक हो एक बाप के खज़ानों के मालिक हो। सभी
मालिक हो ना खज़ानों के? और बाप ने सभी को एक जितना ही खज़ाना दिया है। कोई को लाख
दिया हो, कोई को हजार दिया हो, ऐसा नहीं है। सभी को सब खज़ाने बेहद के दिये हैं
क्योंकि बाप के पास बेहद के खज़ाने हैं। कम नहीं हैं। तो बापदादा ने सभी को सर्व
खज़ाने दिये हैं और एक जैसे, एक जितने दिये हैं। और दूसरा मालिक है - स्व राज्य के
मालिक हो। इसीलिए बापदादा फलक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है। तो
राजा बच्चे हो ना! प्रजा तो नहीं? राजयोगी हो कि प्रजायोगी हो? राजयोगी हो ना! तो
स्वराज्य के मालिक हो।
लेकिन बापदादा ने दादी
के साथ रिजल्ट देखा - तो जितना बालकपन का नशा रहता है, उतना मालिकपन का कम रहता है।
क्यों? अगर स्वराज्य के मालिकपन का नशा सदा रहता तो यह जो बीच-बीच में समस्यायें वा
विघ्न आते हैं वह आ नहीं सकते। वैसे देखा जाता है तो समस्या वा विघ्न आने का आधार
विशेष मन है। मन ही हलचल में आता है। इसीलिए बापदादा का महामन्त्र भी है मनमनाभव।
तनमनाभव, धनमनाभव नहीं है, मनमनाभव है। तो अगर स्वराज्य का मालिक है तो मन मालिक नहीं
है। मन आपका कर्मचारी है, राजा नहीं है। राजा अर्थात् अधिकारी। अधीन वाले को राजा
नहीं कहा जाता है। तो रिजल्ट में क्या देखा? कि मन का मालिक मैं राज्य अधिकारी
मालिक हूँ। यह स्मृति, यह आत्म स्थिति की सदा स्थिति कम रहती है। है पहला पाठ, आप
सबने पहला पाठ क्या किया था? मैं आत्मा हूँ, परमात्मा का पाठ दूसरा नम्बर है। लेकिन
पहला पाठ मैं मालिक राजा इन कर्मेन्द्रियों का अधिकारी आत्मा हूँ। शक्तिशाली आत्मा
हूँ। सर्वशक्तियां आत्मा के निजीगुण हैं। तो बापदादा ने देखा कि जो मैं हूँ, जैसा
हूँ, उसको नेचरल स्वरूप स्मृति में चलना, रहना, चेहरे से अनुभव होना, समस्या से
किनारा होना, इसमें अभी और अटेन्शन चाहिए। सिर्फ मैं आत्मा नहीं, लेकिन कौन सी आत्मा
हूँ, अगर यह स्मृति में रखो तो मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा के आगे समस्या वा विघ्न
की कोई शक्ति नहीं जो आ सके। अभी भी रिजल्ट में कोई न कोई समस्या वा विघ्न दिखाई
देता है। जानते हैं लेकिन चलन और चेहरे में निश्चय का प्रत्यक्ष स्वरूप रूहानी नशा
वह और ही प्रत्यक्ष होना है। इसके लिए यह मालिकपन का नशा इसको बार-बार चेक करो।
सेकण्ड की बात है चेक करना। कर्म करते, कोई भी कर्म आरम्भ करते हो, आरम्भ करने टाइम
चेक करो - मालिकपन की अथॉरिटी से कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाला
कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर वाली आत्मा हूँ? कि साधारण कर्म शुरू हुआ? स्मृति
स्वरूप से कर्म आरम्भ करना और साधारण स्थिति से कर्म आरम्भ करना उसमें बहुत फर्क
है। जैसे हद के मर्तबे वाले अपना कार्य करते हैं तो कार्य की सीट पर सेट होके फिर
कार्य आरम्भ करते हैं ऐसे अपने मालिकपन के स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होके फिर
हर कार्य करो। इस मालिकपन के अथॉरिटी की चेकिंग को और बढ़ाना है। और इसकी निशानी है,
मालिकपन के अथॉरिटी की निशानी है सदा हर कार्य में डबल लाइट और खुशी की अनुभूति होगी
और रिजल्ट सफलता सहज अनुभव होगी। अभी कहाँ-कहाँ, अभी तक भी अधिकारी के बजाए अधीन बन
जाते हो। अधीनता की निशानी क्या दिखाई देती? जो बार-बार कहते हैं मेरे संस्कार हैं,
चाहते नहीं हैं लेकिन मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है। बापदादा ने पहले भी सुनाया
कि जिस समय यह कहते हैं कि मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, क्या यह कमज़ोरी के
संस्कार आपके संस्कार हैं? मेरे हैं? यह तो रावण के मध्य के संस्कार हैं, रावण की
देन है। उसको मेरा कहना ही रांग है। आपके संस्कार तो जो बाप के संस्कार हैं वही
संस्कार हैं। उस समय सोचो कि मेरा-मेरा कहके मेरे हैं, तो वह अधिकारी बन गये हैं और
आप अधीन बन जाते हैं। समान बाप जैसे बनना है तो मेरे संस्कार नहीं, जो बाप के
संस्कार वह मेरे संस्कार। बाप के संस्कार क्या हैं? विश्व कल्याणकारी, शुभ भावना,
शुभ कामनाधारी। तो उस समय बाप के संस्कार सामने लाओ, लक्ष्य है बाप समान बनने का और
लक्षण रहे हुए हैं रावण के। तो मिक्स हो जाते हैं, कुछ अच्छे बाप के, कुछ वह मेरे
पास्ट के संस्कार। इसीलिए दोनों मिक्स रहते हैं ना तो खिटखिट होती रहती है। और
संस्कार बनते कैसे हैं? वह तो सभी जानते हैं ना! संस्कार मन और बुद्धि के संकल्प और
कार्य से संस्कार बनते हैं। पहले मन संकल्प करता, बुद्धि सहयोग देती और अच्छे या
बुरे संस्कार बन जाते।
तो बापदादा ने दादी
के साथ-साथ रिजल्ट में देखा कि मालिकपन का नेचुरल और नचर का नशा रहे वह बालकपन की
भेंट में अभी भी कम है। इसीलिए बापदादा देखते हैं कि समाधान करने के लिए फिर युद्ध
करने लग पड़ते हैं। हैं ब्राह्मण लेकिन बीच-बीच में क्षत्रिय बन जाते हैं। तो
क्षत्रिय नहीं बनना है। ब्राह्मण सो देवता बनना है। क्षत्रिय बनने वाले तो बहुत आने
वाले हैं, वह पीछे आने वाले हैं आप तो अधिकारी आत्मायें हैं। तो सुना रिजल्ट। इसलिए
बारबार मैं कौन, यह स्मृति में लाओ। है ही, नहीं लेकिन स्मृति स्वरूप में लाओ। ठीक
है ना। अच्छा। रिजल्ट भी सुनाई। अभी समस्या का नाम, विघ्न का नाम, हलचल का नाम,
व्यर्थ संकल्प का नाम, व्यर्थ कर्म का नाम, व्यर्थ सम्बन्ध का नाम, व्यर्थ स्मृति
का नाम समाप्त करो और कराओ। ठीक है ना, करेंगे? करेंगे? जो दृढ़ संकल्प का हाथ उठायें,
यह हाथ उठाना तो कामन हो गया है इसलिए हाथ नहीं उठवाते हैं, मन में दृढ़ संकल्प का
हाथ उठाओ। मन में, शरीर का हाथ नहीं, वह बहुत देख लिया है। जब सभी का मिलकर मन से
दृढ़ संकल्प का हाथ उठेगा तब ही विश्व के कोने-कोने में सभी का खुशी से हाथ उठेगा -
हमारा सुखदाता, शान्तिदाता बाप आ गया।
बाप को प्रत्यक्ष करने
का बीड़ा उठाया है ना! उठाया है? पक्का? टीचर्स ने उठाया है? अच्छा। पाण्डवों ने
उठाया है, पक्का। अच्छा डेट फिक्स की है। डेट नहीं फिक्स है? कितना टाइम चाहिए? एक
वर्ष चाहिए, दो वर्ष चाहिए? कितना वर्ष चाहिए? बापदादा ने कहा था हर एक अपने
पुरूषार्थ की यथा शक्ति प्रमाण अपनी नेचुरल चलने की या उड़ने की विधि समान अपनी डेट
सम्पन्न बनने की खुद ही फिक्स करो। बापदादा तो कहेगा अब करो, लेकिन यथाशक्ति अपने
पुरूषार्थ अनुसार अपनी डेट फिक्स करो और समय प्रति समय उसको चेक करो कि समय प्रमाण
मन्सा की स्टेज, वाचा की स्टेज, सम्बन्ध-सम्पर्क की स्टेज में प्रोग्रेस हो रहा है?
क्योंकि डेट फिक्स करने से स्वत: ही अटेन्शन जाता है।
बाकी सभी की तरफ से,
चारों ओर की तरफ से सन्देश भी आये हैं। ईमेल भी आये हैं। तो बापदादा के पास तो ईमेल
जब तक पहुंचे उसके पहले ही पहुंच जाता है, दिल के संकल्प का ईमेल बहुत रफ्तार का
होता है। वह पहले पहुंच जाता है। तो जिन्होंने भी यादप्यार, समाचार अपने स्थिति का,
अपनी सेवा का भेजा है, उन सबको बापदादा ने स्वीकार किया, यादप्यार सभी ने बहुत अच्छे
उमंग-उत्साह से भी भेजी है। तो बापदादा उन सभी को चाहे विदेश चाहे देश सभी को
रिटर्न में यादप्यार और दिल की दुआओं सहित प्यार और शक्ति की सकाश भी दे रहे हैं।
अच्छा।
सेवा का टर्न
राजस्थान और इन्दौर का है:-
अच्छा है, दोनों ने यज्ञ सेवा की सेवा का चांस लिया है, यह भी गोल्डन चांस लेने वाले
गोल्डन चांसलर हैं। बापदादा ने देखा है कि सभी को इन्तजार रहता है कि कब हमारा टर्न
सेवा का बल और सेवा का फल मिलने का आयेगा। तो आप दोनों का तो प्रत्यक्ष फल पाने का
चांस आ गया। और बापदादा ने देखा है कि हर जोन जो भी निमित्त बनते हैं वह रूचि से
सेवा करते हैं क्योंकि संगमयुग में सेवा का वा हर कर्म का प्रत्यक्षफल मिलता है। अभी
अभी दिल से सेवा की और अभी अभी ही दिल की खुशी में नाचते रहते हैं। तो जब भी जितने
दिन भी मधुबन में चांस मिला है तो सभी ने हर समय मन की खुशी का डांस का अनुभव किया?
और डांस तो कामन है, लेकिन आपके मन की डांस, माइंड डांस, पांव की डांस नहीं, अनुभव
किया है ना! मन की खुशी की डांस का अनुभव किया? हाथ उठाओ जिन्होंने किया, थकावट तो
नहीं हुई ना। अथकपन का अनुभव किया ना। और पुण्य कितना जमा किया? लोग तो एक ब्राह्मण
को खिलाते हैं, सेवा करते हैं तो समझते हैं बड़ा पुण्य जमा हो गया। और आपने कितने
ब्राह्मणों को खिलाया, सम्भाला, क्लास कराया, रिफ्रेश किया, तो आपके पुण्य का खाता
कितना जमा हो गया! और सबसे खुशी की बात तो यह है कि अपना ब्राह्मण परिवार एक समय
में एक साथ कितने बड़े परिवार को देखा। और विश्व के चारों ओर के भाई बहिनें अपना
ईश्वरीय परिवार देखने का चांस मधुबन में ही मिलता है। विदेश से भी आते, देश से भी
आते हैं। इतना बड़ा परिवार का मिलन यह भी एक विशेष खुशी की बात है। दिल में उमंग आता
है ना वाह बाबा और वाह मेरा ब्राह्मण परिवार! तो बहुत अच्छा किया, हिम्मत आपकी, मदद
मधुबन निवासियों की और बाप की। क्योंकि मधुबन निवासी भी साथी बनते हैं तब तो कार्य
कर सकते हो। तो लाटरी ले ली। लाटरी की मुबारक हो। अच्छा है। टीचर्स को भी चांस मिलता,
परिवार वालों को भी चांस मिलता, छोटे बड़े साथी टीचर्स को भी चांस मिलता। देखो कितनी
टीचर्स आई हैं? दोनों जोन कीकितनी टीचर्स आई हैं? (350 दोनों जोन की टीचर्स आई हैं)
अच्छा है, तो मुबारक तो है ही और आगे भी चांस लेते रहना। बाकी दोनों में एक साल में
हर एक जोन बताये तो वारिस कितने निकाले? जोन हेड कौन है? हाथ उठाओ। तो सारे जोन में
कितने वारिस निकले, कितने माइक निकले? लिस्ट निकाली है? चुप हो गये क्यों? अभी
वारिस क्वालिटी एक साल में तो निकलनी चाहिए ना! क्योंकि हर साल के बाद जोन को चांस
मिलता है। ठीक है ना! एक साल में कुछ तो वारिस या माइक निकलने चाहिए ना! बोलो ना
हाँ जी। ऐसे ही हाँ जी नहीं। लिस्ट चाहिए। अच्छा अगले साल निकालकर आना। अभी तैयार
कर रहे होंगे, फिर लिस्ट ले आना। अभी जिसका भी जोन का टर्न होगा इनएडवांस बापदादा
कह रहे हैं कि हर जोन से यह दोनों रिजल्ट लेंगे। पहले ही तैयारी करके आना। कितने
माइक निकले और कितने वारिस निकले? पहले वाले हैं वह तो लक्की और लवली हैं, अभी कितने
निकले? ठीक है ना? रिजल्ट निकलनी चाहिए ना? बापदादा ने अभी तक हर विंग द्वारा भी
वारिस या माइक की लिस्ट नहीं देखी है। हर साल विंग मिलते हैं, बापदादा खुश भी होते
हैं लेकिन रिजल्ट अभी तक नहीं आई है। यह विंग्स का प्रोग्राम कितने साल से चल रहा
है? कितने साल हुए हैं? (22 साल) तो 22 साल में हर साल में एक तो निकलना चाहिए।
लिस्ट नहीं आई है। एक विंग की भी लिस्ट नहीं आई है। तो अच्छा है, आप लोगों ने दिल
से सेवा की है इसीलिए दिलाराम बाप की तरफ से बहुत-बहुत-बहुत दिल की दुआयें हैं।
अच्छा। दूसरे वर्ष के लिए तैयारी करके आना।
डबल विदेशी:-
डबल विदेशी चतुर बहुत हैं। हर टर्न में अपना अच्छा अधिकार रखा है। बापदादा को और सभी
ब्राह्मण परिवार को खुशी होती है कि बापदादा का संगठन इन्टरनेशनल संगठन है। अच्छी
हिम्मत करके आते हैं। सबसे ज्यादा ग्रुप कहाँ का है? (मलेशिया से 61 आये हैं) अच्छा
है, जितना बड़ा ग्रुप है ना, उतनी बड़ी बड़ी बड़ी मुबारक हो। अच्छा है फारेन का विशेष
गायन है कि वहाँ की लाइफ फास्ट लाइफ होती है तो जो डबल विदेशी ब्राह्मण परिवार के
बन गये उनका भी फास्ट पुरूषार्थ है? जब देश की फास्ट लाइफ है तो ब्राह्मण परिवार की
फास्ट पुरूषार्थ की लाइफ है? फास्ट है या स्लो है? फास्ट है? हाँ या ना कहो। जिसकी
फास्ट है वह हाथ उठाओ। आधा है, आधा नहीं है। अभी अगले वर्ष जब आओ ना, आना ही पड़ेगा
ना। तो इस साल में लक्ष्य रखो कि पुरूषार्थी तो हैं लेकिन पुरूषार्थ के आगे तीव्र
शब्द एड कर दो। पुरूषार्थी बनना कामन है, तीव्र पुरूषार्थी बनना विशेष है। तो आप सभी
विशेष आत्मायें हो, साधारण थोड़ेही हो, विशेष हो। तो विशेष आत्माओं की पहली निशानी
है तीव्र पुरूषार्थी। सोचा और किया। ऐसे नहीं करेंगे, हो जायेगा... होना तो है ही..
नहीं। करना ही है। उड़ना ही है। बाप समान बनना ही है, इसको कहते हैं तीव्र पुरूषार्थी।
तो क्या करेंगे? तीव्र पुरूषार्थ है ना! अभी समय तीव्र समीप आ रहा है। समय में
तीव्रता आ गई है लेकिन दु:ख के अशान्ति के समय को समाप्त करने वाले, उन्हों को तो
समय से भी तीव्र बनना ही है। फिर भी अच्छे हैं, लगन है, पहुंच गये हो, उसकी मुबारक
है। अच्छा। तीव्र पुरूषार्थी? ठीक है, जो कहते हैं हाँ, वह हाथ उठाओ। साधारण
पुरूषार्थ नहीं, तीव्र पुरूषार्थ? कि बीच बीच में साधारण पुरूषार्थ करेंगे? साधारण
नहीं सदा तीव्र पुरूषार्थ। बस मालिकपन का नशा हर समय चेहरे से ही दिखाई दे। मुख से
भी ज्यादा चेहरा बोलता है। तो बहुत अच्छा, अगले साल रिजल्ट देखेंगे। अच्छा। बैठ जाओ,
बहुत-बहुत मुबारक हो।
धार्मिक विंग, सोशल
विंग और ट्रांसपोर्ट विंग मीटिंग के लिए आये हैं:- समाज सेवा में कोई न कोई सेवा का
साधन लोगों को देते हैं, कुछ न कुछ सेवा करते हैं। तो समाज सेवा वाले यही लक्ष्य रखो
जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको कोई न कोई गुण, कोई न कोई ज्ञान की
प्वाइंट, कोई न कोई खज़ाना, जो बाप से मिला है, वह देना है। यह सोशल सेवा हर एक की
करनी है, खाली हाथ कोई न जाए, कुछ लेकर ही जाये क्योंकि दाता के बच्चे हैं, कैसे भी
लोगों को चाहे किसी साधन द्वारा, चाहे डायरेक्ट कनेक्शन द्वारा लेकिन कुछ न कुछ देना
है। यह सोशल सेवा, आध्यात्मिक सेवा चारों ओर फैलानी है, चाहे किसी भी विधि से, जो
हर एक के मुख से निकले कि हमें बहुत अच्छी सेवा का साधन मिला। बहुत अच्छी प्राप्ति
कराई। आजकल बहुत प्यासी भी हैं, तो कुछ न कुछ प्राप्ति कराके भरपूर बनाओ। अच्छा।
एक बात जो बापदादा ने
फिर से कही, लिस्ट आनी चाहिए। एक भी विंग की लिस्ट नहीं आई है। और उन्हों की जो आप
लिस्ट लिखो, उसमें उनकी प्राप्ति का अनुभव भी शार्ट में साथ में हो। जैसे यहाँ कहकर
जाते हैं ना बहुत प्राप्ति हुई बहुत मिला। लेकिन जो प्राप्ति हुई वह इकट्ठा रहा,
उसको बढ़ाया? बापदादा ने देखा है जो भी विंग्स है, चाहे ट्रांसपोर्ट का है चाहे
धार्मिक है। लेकिन जब प्रोग्राम करते हैं कनेक्शन में आते हैं, उनसे लगातार कनेक्शन
में रखते रहें, वह नहीं होता है। जब फिर प्रोग्राम होगा तब पत्र भेजेंगे, निमन्त्रण
भेजेंगे, फिर से आओ। बापदादा ने एक फारेन का समाचार सुना है, जो कॉल ऑफ टाइम का
प्रोग्राम करते हैं, उसमें जो भी आते हैं, अच्छा लगता है, जिज्ञासा उठती है,
कनेक्शन होता है तो उन्हें रिलेशन में लाने के लिए समय प्रति समय लगातार हर सप्ताह
कुछ न कुछ भेजते रहते हैं। ऐसे आप पीठ नहीं करते हो, 6 मास, साल के बाद वह याद आ गया
तो आ गया, कनेक्शन हो गया तो हो गया। लेकिन हर एक की एड्रेस प्रमाण उनको कुछ न कुछ
सप्ताह में भेजना चाहिए, जिससे उन्हों की पालना होती रहे, बिना पालना के वृक्ष भी
नहीं बड़ा होता। तो यह करना चाहिए। हर एक विंग को, सिर्फ प्रोग्राम नहीं, प्रोग्रेस
भी उन्हों की करानी चाहिए। नजदीक आते जायें। और रिजल्ट अपने पास रखते रहो। इस वर्ष
में कितने नजदीक रिलेशन में आये? समझा, सुना ना। अच्छा है फारेन का रिजल्ट अच्छा है
| यह भी करते होंगे लेकिन बापदादा के पास रिजल्ट नहीं आई है। बाकी अच्छा है जब यह
वर्गो की सेवा हुई है, तो कनेक्शन में बहुत आये हैं और परिवर्तन भी हुआ है, पहले
बुलाना पड़ता था अभी बिना बुलाये भी आने चाहते हैं, फर्क तो है। लेकिन इसकी रिजल्ट
सारे परिवार को पता होना चाहिए। एक दो की रिजल्ट से उमंग आता है। और एक का सुनके
दूसरे को आता है, हम भी कर सकते हैं, हिम्मत भी आती है। बाकी बापदादा खुश है कि
वर्गो की डिपार्टमेंट बनने से भिन्न भिन्न प्रकार की भिन्न भिन्न वर्गो की सेवा बढ़ती
जा रही है इसलिए सभी वर्ग वालों को सेवा की मुबारक भी है और आगे बढ़ने का और भी साधन
करेंगे तो प्रत्यक्ष फल दिखाई देगा। आखिर तो सभी वर्ग वाले मिलकरके कहें हम सब एक
बाप के एक हैं। इस विश्व की स्टेज पर एक है, एक मत हैं, एक के ही हैं। यह आवाज फैले।
धार्मिक लोग भी कहें हम एक हैं। एक के हैं। बाकी सेवा की है उसकी मुबारक। अच्छा।
कैड ग्रुप भी आया
है:- इसमें
ब्राह्मण भी हैं, फायदा उठाया है? तो दिल वालों ने दिलाराम को तो पहचान लिया।
इसीलिए दिलाराम को पहचाना तो दिल खुश हो गई और अच्छा है जितना-जितना आप साथ वालों
को अनुभवसुनायेंगे, उतना यह सेवा फैलती जायेगी। क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण है ना। आप
स्वयं ही प्रत्यक्ष प्रमाण है तो कोई भी प्रत्यक्ष प्रमाण देख करके जल्दी खुश हो
जाते हैं। हिम्मत आती है। तो अपना अनुभव जो भी सम्पर्क में आये वा सम्पर्क करके भी
फैलाते जाओ। क्योंकि आवश्यकता तो है। गरीबी बढ़ती जाती है और गरीबी के समय अगर सहज
साधन मिल जाए तो सभी खुश होते हैं। तो अच्छा है। समय प्रति समय करते भी रहते हैं और
आगे भी करते चलो। अच्छा। मुबारक हो। अच्छा |
ट्रेनिंग में आई हुई
टीचर्स से:-
ट्रेनिंग तो की, बहुत अच्छा किया लेकिन ट्रेनिंग करने के बाद दिल में स्टैम्प कितनी
पक्की लगाई? क्या सदा निर्विघ्न बन औरों को भी निर्विघ्न बनाती रहेंगी? यह वायदा
किया? निर्विघ्न रहेंगी? कि थोड़ा थोड़ा बीच में विघ्न आयेगा? अच्छा आ भी जाए तो
परिवर्तन करने की शक्ति विघ्न को, समस्या को समाधान के रूप में परिवर्तन करने की
शक्ति अनुभव करते हो? जो समझते हैं कि परिवर्तन की शक्ति कार्य में लगाके बापदादा
को या जिन टीचर्स ने सेवा की, उसको सबूत दिखायेंगे ऐसी हिम्मत रखने वाले हाथ उठाओ।
दिल का हाथ उठाया है ना! कुछ भी हो जाए, सी फादर। औरों की विशेषता को देखना लेकिन
फॉलो फादर। अच्छा। कितने हैं ग्रुप में? (70 बहिने हैं) तो आप सभी अपनी टीचर द्वारा
मधुबन में रिजल्ट लिखते रहना, बार बार नहीं लिखना, 15 दिन में टीचर द्वारा ओ.के.
लिखना, बस। छोटा सा कार्ड भेजना, लम्बा पत्र नहीं भेजना। सुनाया था ना - अगर कोई
कमज़ोरी आ भी जाए तो सिर्फ ओ.के.के बीच में लाइन लगा देना। तो यहाँ से फिर आपको याद
दिलाते रहेंगे। अभी 70 तो निर्विघ्न आत्मायें बन गई ना और निर्विघ्न बनायेंगी भी।
जहाँ भी जायेंगी वहाँ निर्विघ्न बन निर्विघ्न बनायेंगी। है ना हिम्मत? हिम्मत है?
अच्छा। रिजल्ट देखना। रिपोर्ट आती जायेगी ना तो पता पड़ता जायेगा। अच्छा।
सब कुछ सुना। जैसे
सुनना सहज लगता है ना! ऐसे ही सुनने से परे स्वीट साइलेन्स की स्थिति भी जब चाहो
जितना समय चाहो उतना समय मालिक होके, पहले विशेष है मन के मालिक, इसीलिए कहा जाता
है, मन जीते जगतजीत। तो अभी सुना, देखा, आत्मा राजा बन मन बुद्धि संस्कार को अपने
कन्ट्रोल में कर सकते हो? मन-बुद्धि-संस्कार तीनों के मालिक बन ऑर्डर करो स्वीट
साइलेन्स, तो अनुभव करो कि आर्डर करने से, अधिकारी बनने से तीनों ही आर्डर में रहते
हैं? अभी-अभी अधिकारी की स्टेज पर स्थित हो जाओ। अच्छा।
चारों ओर के सदा
स्वमानधारी, सत्यता के शक्ति स्वरूप, पवित्रता के सिद्धि स्वरूप, सदा अचल अडोल
स्थिति के अनुभवी स्व परिवर्तक और विश्व परिवर्तक, सदा अधिकारी स्थिति द्वारा सर्व
आत्माओं को बाप द्वारा अधिकार दिलाने वाले चारों तरफ के बापदादा के लकी और लवली
आत्माओं को परमात्म यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार हो और बापदादा का मीठे मीठे
बच्चों को नमस्ते।
दादियों से:-
अच्छा है बापदादा ने
रिजल्ट देखी। अच्छा रहा। शुभचिंतन और शुभचिंतक दोनों ही स्थिति में बिजी रहना,
वायुमण्डल फैलाना यह अच्छा है। अच्छा कर रही हैं। अच्छा कर रहे हैं करते रहेंगे।
मैजारिटी दिखा गया है कि जो आप निमित्त हैं, सब निमित्त हैं, तो जो भी आप निमित्त
हैं, उन्हों को विशेष इस समय यह अटेन्शन रखना है कि सन्तुष्ट रहना तो है ही लेकिन
सन्तुष्ट रहे, वायुमण्डल सन्तुष्ट रहे, उसके लिए आपस में कोई न कोई प्लैन बनाते रहना।
यह तीन पाण्डव भी आवें। जो भी निमित्त बने हुए हैं उन्हों को आजकल के वायुमण्डल
प्रमाण स्वयं तो सन्तुष्ट रहना ही है लेकिन सन्तुष्ट करना भी है। असन्तुष्टता का
वायुमण्डल में प्रभाव नहीं हो क्यां कि आजकल सन्तुष्टता सबको चाहिए। लेकिन हिम्मत
नहीं है। इसीलिए बीच-बीच में कुछ न कुछ ऐसा परवश होके कर लेते हैं लेकिन उन्हों को
भी कुछ शिक्षा, कुछ क्षमा, कुछ रहम, कुछ आत्मिक स्नेह उसकी आवश्यकता है और देखा जाता
है कि वायुमण्डल में मैजारिटी को बैलेन्स रखना नहीं आता। बैलेन्स से शिक्षा भी हो
और फिर साथ-साथ उनको हिम्मत भी दो। सिर्फ शिक्षा से, अभी सभी शिक्षक बन गये हैं,
इसीलिए शिक्षा के साथ हिम्मत और स्नेह दिल का, बाहर का नहीं लेकिन दिल का स्नेह दोनों
का बैलेन्स रख करके देना है। और ऐसे प्लैन बनाओ जो चारों ओर कोई न कोई ऐसा प्लैन
चलता रहे। जैसे समय प्रति समय भट्टियाँ चलाते हो वह तो चलाते ही रहो लेकिन छोटा मोटा
प्रोग्राम सदा चलता रहे, तो ऐसी विधि निकालो जिससे चारों ओर का वायुमण्डल शक्तिशाली
बनें। चाहना है लेकिन हिम्मत कम है। तो आपस में मिलके कोई न कोई हर मास के लिए ऐसा
वर्क निकालो जो सभी उसमें बिजी हो जाएं, रिजल्ट आती रहे। और चेकिंग भी हो, अगर नहीं
करते हैं तो क्यों? अलबेलापन है तो उनके ऊपर स्नेह से सहयोग देना पड़ेगा क्योंकि समय
तीव्रता से समीप आ रहा है। तो ऐसा कोई प्लैन बनाओ। कोई न कोई वर्क इन्ट्रेस्ट का
निकालके सबको बिजी रखो उसमें। ठीक है। अच्छा है सभी हिम्मत वाले हो ना। हिम्मत कम
तो नहीं होती? हिम्मत कम होती है, तो बाप की मदद का भी अनुभव नहीं होता है, बाप मदद
देता है, लेकिन कैच नहीं कर पाते हैं। फायदा नहीं उठा सकते हैं। इसीलिए सदा अपने को
देखो, हिम्मत बढ़ाओ। कोई न कोई ऐसी बात बुद्धि में रखो जिससे हिम्मत बढ़ती रहे। जितनी
हिम्मत बढ़ेगी ना तो हिम्मत के आगे और बातें आनी भी कम हो जायेंगी। अच्छा है, सोचना
इस पर।
सन्देशी दादी ने शरीर
छोड़ा है, उनके प्रति भोग लगाने के लिए भुवनेश्वर से ग्रुप आया है:- बापदादा की बहुत
रमणीक बच्ची कहें, या सखी कहें जो सन्देशी, इस शरीर को छोड़ करके एडवांस पार्टी में
गई, अपने जीवन का बापदादा से साकार में फायदा भी बहुत अच्छा उठाया, सखीपन का पार्ट
भी बजाया, खेलने वाली बनी, और अपने स्मृति से अपना भविष्य बनाया। अभी जो आये हैं
साथी बनके, वह उठो। जो भी आये हैं। अच्छा है। प्यार का सबूत तो दिया ना। अभी आगे भी
प्यार का सबूत है, सभी को सन्तुष्ट रहके सन्तुष्ट करना। हिम्मतहीन को हिम्मत देना।
नम्बरवार तो होते ही हैं ना। तो हिम्मत देते रहना। उमंग-उल्हास बढ़ाते रहना। सिर्फ
याद नहीं करना, लेकिन उसकी पालना का प्रत्यक्ष सबूत देना। बाकी अच्छा पार्ट बजाया।
आप सभी भी अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाते रहना और बजायेंगे। सभी ठीक हैं! हाथ हिलाओ।
अच्छा।
दादी जानकी बापदादा
को भोग स्वीकार करा रही हैं बापदादा बोले:-
देखो अच्छी दादियां मिली हैं ना! यह सब साथी भी हैं, दादियों की साथी भी हैं, दादियां
भी हैं। तो सदा हर दादी की, हर साथियों की विशेषता को देख, विशेषता को कार्य में
लाना क्योंकि बापदादा ने हर एक बच्चे को कोई न कोई विशेषता स्पेशल दी है, आप सबको
भी है, ऐसे नहीं सिर्फ दादियों को है, आपको भी है लेकिन क्या है कोई विशेषता को
कार्य में ला रहा है इसलिए वह प्रसिद्ध हो जाता और कोई विशेषता को कार्य में नहीं
लाता तो गुप्त रह जाता। बाकी विशेषता सबमें है। छोटे से छोटा जो प्यादे में प्यादा
है ना उसमें भी विशेषता है। वह भी स्मृति दिलाता है कि आप महारथी हो, आप महान हो हम
प्यादे हैं। इसलिए संगठन सभी जगह मजबूत करो, चाहे दो हैं चाहे 4 हैं, चाहे 12 हैं,
लेकिन दो का भी संगठन ऐसा मजबूत हो जो दोनों एकमत हों। स्वभाव एक दो में श्रेष्ठ
बनाए, मिलाने की कोशिश करो। जैसे दादी को याद करते हैं ना, क्यों याद करते हो? उसकी
विशेषता सबको अपनापन दिया है ना, ऐसे सभी को अपनापन दिया ना, तो क्यों आप सभी नहीं
कर सकते हो? जैसे सभी ने अनुभव किया, हमारी दादी है। ऐसे नहीं मधुबन की दादी है,
हमारी है, ऐसे सभी ब्राह्मण एक दो में अपनापन अनुभव करें। यह है दादी को याद करना।
इसी को ही याद कहा जाता है। समान बनना, विशेषता धारण करना, इसको कहते हैं याद। ठीक
है ना! हर एक यही सोचोसब अपने हैं। अपनापन महसूस हो, ऐसे नहीं यह तो पता नहीं कौन
है, क्या है। एक परिवार है ना! दादी भी सभी सेन्टर पर तो नहीं रहती थी ना, एक ही
स्थान पर रहती थी मधुबन में, लेकिन सभी को अपनापन दिया। तो आप सभी भी अपने अपने
स्थान पर रहते भी अपनापन दे सकते हो। यह दिल की स्थिति है। साथ रहने की बात नहीं
है, यह दिल का वायब्रेशन अपनापन लाता है। अच्छा।