08-01-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 15-04-74 मधुबन

 

विघ्न-विनाशक बन कर अंगद समान माया पर विजय प्राप्त करो

 

क्या सभी उन्नति की ओर बढ़ते जा रहे हो? चढ़ती कला की निशानी क्या है, क्या वह जानते हो? सदा लगन में मग्न और विघ्न-विनाशक यह दोनों निशानियाँ क्या अनुभव में आ रही हैं? या विघ्नों को देख विघ्न-विनाशक बनने के बजाय, विघ्नों को देख अपनी स्टेज से नीचे तो नहीं आ जाते हो? क्या अनेक प्रकार के आये हुए तूफान आपकी बुद्धि में तूफान तो पैदा नहीं करते हैं? जैसे कोई के द्वारा तोहफा मिलता है तो बुद्धि में हलचल नहीं होती है बल्कि उल्लास होता है। इसी प्रकार आये हुए तूफान उल्लास बढ़ाते हैं या हलचल बढ़ाते हैं? अगर तूफान को तूफान समझा तो हलचल होगी और तोहफा समझा व अनुभव किया तो उससे उल्लास और हिम्मत अधिक बढ़ेगी। यह है चढ़ती कला की निशानी। घबराने के बजाय गहराई में जाकर अनुभव के नये-नये रत्न इन परीक्षाओं के सागर से प्राप्त करेंगे तो क्या ऐसे अनुभव करते हो? यह क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और ऐसे कैसे चलेगा? यह जो संकल्प चलते हैं इसको हलचल कहा जाता है। हलचल के अन्दर रत्न समाये हुए हैं। ऊपर-ऊपर से अर्थात् बहिर्मुखता की दृष्टि और बुद्धि द्वारा देखने से हलचल दिखाई देगी अथवा अनुभव होगी? लेकिन उसी आई हुई बातों को अन्तर्मुखी दृष्टि व बुद्धि से देखने से अनेक प्रकार के ज्ञान-रत्न अर्थात् प्वाइन्ट्स प्राप्त होंगे।

 

अगर कोई भी बात को देखते या सुनते हुए आश्चर्य अनुभव होता है तो यह भी फाइनल स्टेज नहीं है। ऐसा तो होना नहीं चाहिए, अच्छा जो हुआ वह होना ही चाहिए, अगर ऐसा संकल्प ड्रामा के होने पर भी उत्पन्न होता है तो इसको भी अंशमात्र्  की हलचल का रूप कहेंगे। अब तक यह क्यों-क्या का क्वेश्चन का अर्थ है - हलचल। विघ्न आना आवश्यक है और जितना विघ्न आना आवश्यक है अगर उतना यह बुद्धि में रहेगा तो उतना ही ऐसा महारथी हर्षित रहेगा। नथिंग न्यू यह है फाइनल स्टेज । यदि कोई भी हलचल का कर्त्तव्य करते हो व पार्ट बजाते हो तो सागर समान ऊपर से हलचल भले ही दिखाई दे रही हो अर्थात् चाहे कर्मेन्द्रियों की हलचल में आ रहे हों लेकिन स्थिति नथिंग न्यू की हो। एकाग्र, एकरस, एकान्त अर्थात् एक रचयिता और रचना के अन्त को जानने वाले त्रिकालदर्शी की स्टेज पर, क्या आराम से शान्ति की स्टेज पर स्थित हैं या कर्मेन्द्रियों की हलचल आन्तरिक स्टेज को भी हिलाती है? जब स्थूल सागर दोनों ही रूप दिखाता है तो क्या मास्टर ज्ञान सागर ऐसा रूप नहीं दिखा सकते? यह प्रकृति ने पुरूष से कॉपी की है। आप तो पुरूषोत्तम हो। जो प्रकृति अपनी क्वॉलिफिकेशन दिखा सकती है, क्या वह पुरूषोत्तम नहीं दिखा सकते?

 

अब समय किस ओर बढ़ रहा है यह जानते हो? अति की तरफ बढ़ रहा है। सभी तरफ अति दिखाई पड़ रही है। अन्त की निशानी अति है। तो जैसे प्रकृति समाप्ति की तरफ अति में जा रही है वैसे ही सम्पन्न बनने वाली आत्माओं के सामने अब परीक्षायें व विघ्न भी अति के रूप में आयेंगे। इसलिये आश्चर्य नहीं खाना है कि पहले यह नहीं था अब क्यों है? यह आश्चर्य भी नहीं। फाइनल पेपर में आश्चर्यजनक बातें क्वेश्चन के रूप में आयेंगी तब तो पास और फेल हो सकेंगे। न चाहते हुए भी बुद्धि में क्वेश्चन उत्पन्न न हों, यही तो पेपर है। और है भी एक सेकेण्ड का ही पेपर। क्यों का संकल्प चन्द्रवंशी की क्यू में लगा देगा। पहले तो सूर्यवंशी का राज्य होगा ना? चन्द्रवंशियों का नम्बर पीछे होगा। तो उनका, राज्य के तख्तनशीन बनने की क्यू में नम्बर आयेगा। इसलिए एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास निरन्तर हो। समस्या के सीट को सम्भालने नहीं लग जाओ। लेकिन सीट पर बैठ समस्या का सामना करना है। अब तो समस्या सीट की याद दिलाती है। विघ्न आता है, तो विशेष योग लगाते हो और भट्ठी रखते हो ना? इससे सिद्ध होता है कि दुश्मन ही शस्त्र की स्मृति दिलाते हैं लेकिन स्वत: और सदा-स्मृति नहीं रहती। निरन्तर योगी हो या अन्तर वाले योगी हो? टाइटल तो निरन्तर योगी का है ना? दुश्मन आवे ही नहीं, समस्या सामना न कर सके। सूली से कांटा बनना यह भी फाइनल स्टेज नहीं। सूली से कांटा बने और कांटे को फिर योगाग्नि से दूर से ही भस्म कर दें। कांटा लगे और फिर निकालो, यह फाइनल स्टेज नहीं है। कांटे को अपनी सम्पूर्ण स्टेज से समाप्त कर देना है-यह है फाइनल स्टेज। ऐसा लक्ष्य रखते हुए अपनी स्टेज को आगे चढ़ती कला की तरफ बढ़ाते चलो। बड़ी बात को छोटा अनुभव करना, इस स्टेज तक महारथी नम्बरवार यथा-शक्ति पहुंचे हैं। अब पहुंचना वहाँ तक है जो कि अंश और वंश भी समाप्त हो जाए।

 

आप सभी हिम्मत, उल्लास और सर्व के सहयोगी सदा रहते हुए चल रहे हो ना? कलियुगी दुनिया को समाप्त करने के लिये व परिवर्तन करने के लिए, माया को विदाई देने के लिये संगठन अर्थात् घेराव डाला हुआ है ना? मज़बूत घेराव डाला हुआ है या बीच-बीच में कोई ढीले हो जाते हैं अथवा थक तो नहीं जाते या चलते- चलते रूक तो नहीं जाते हो ना? न आगे बढ़ना, न पीछे हटना, जैसे-थे-वैसे रहना वह पाठ तो पक्का नहीं करते हो? समय धक्का लगावेगा तो चल पड़ेंगे, ऐसा सोच जहाँ के तहाँ रूक तो नहीं गये हो? किसी के किसी प्रकार के सहारे का तो इन्तज़ार करते हुए, खड़े तो नहीं हो गये हो? तो ऐसी स्टेज वालों को क्या कहेंगे? क्या इसको ही तो ‘अंगद’ की स्टेज नहीं समझते हो? अगर ऐसे रूक गये, तो फिर लास्ट वाले फास्ट चले जावेंगे। जब भी पहाड़ों पर बर्फ गिरती है और जम जाती है तो रास्ते रूक जाते हैं। तो फिर बर्फ को गलाने के लिए व उसे हटाने के लिये पुरूषार्थ करते है ना? यहाँ भी अगर बर्फ के माफिक जम जाते हो तो इससे सिद्ध होता है कि योग-अग्नि की कमी है। योग-अग्नि को तेज़ करो तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। मिली हुई हिम्मत और उल्लास के प्वाइन्ट्स बुद्धि में दौड़ाओ तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। अब की रिज़ल्ट में ऐसे आधा ही चल रहे हैं। इसलिए इसको आगे बढ़ाओ। यह रिज़ल्ट क्या पुरूषोत्तम आत्माओं को अच्छी लगती है? इसलिये न पुरूषार्थ की गति में अंगद बनो, न माया से हार खाने के लिये अंगद बनो, बल्कि विजयी बनने के लिए अंगद बनना है। अच्छा,

 

ऊंच-ते-ऊंच बाप द्वारा पालना लेने वाले, विश्व की पालना करने वाले, विष्णु-कुल की श्रेष्ठ आत्मायें, प्रकृति को परिवर्तन करने वाली पुरूषोत्तम आत्मायें, विश्व के आगे साक्षात्मूर्त्त प्रसिद्ध होने वाली आत्मायें और योगी तू आत्माओं के प्रति बाप-दादा का याद-प्यार और गुड मार्निग।

 

दुसरी मुरली - 24-04-74

 

अब त्रिमूर्ति लाइट के साक्षात्कार-मूर्त बनने की डेट फिक्स करो

 

आज इस संगठन की कौन-सी विशेषता बाप-दादा देख रहे हैं? क्या हरेक अपनी विशेषता को जानते हैं? त्रिमूर्ति बाप से त्रिमूर्ति वंशावली हरेक में आज तीन लाइट देख रही हैं कि तीनों ही लाइट अपनी तरफ आकर्षित करने वाली हैं वा नम्बरवार हैं? जब तीनों ही लाइट जगमगाती हुई दिखाई दें तब ही सबको साक्षात्कार करा सकेंगे। प्योरिटी की लाइट, सतोप्रधान दिव्य- दृष्टि की लाइट और मस्तक मणि की लाइट यह तीनों ही सम्पूर्ण बनाने की मुख्य बातें हैं। तो अपने आप से पूछो कि सदा सतोप्रधान आत्मिक दृष्टि, सदा हर संकल्प, हर बोल व कर्म में प्योरिटी की झलक कहाँ तक आयी है? क्या सदा स्मृति स्वरूप बने हो? अगर आप में एक बात की भी कमी है तो त्रिमूर्ति लाइट का साक्षात्कार नहीं करा सकोगे। यही प्योरिटी सबसे श्रेष्ठ और सहज पब्लिसिटी है और यही अन्तिम पब्लिसिटी का रूप है। जो अन्य कोई भी आत्माएं कर नहीं सकतीं। विश्व परिवर्तन के कार्य में सबसे पॉवरफुल पब्लिसिटी का साधन आप विशेष आत्माओं का यही है। तो क्या ऐसी पब्लिसिटी कर रहे हो या कोई ऐसा प्लान बनाया है या ऐसी कोई विचित्र फिल्म बनाई है? जैसे स्थूल फिल्म देखने से आज के लोग प्रभावित होते हैं, वैसे ही आप सबके मस्तक और नयन ऐसे विचित्र अनुभव कराने की फिल्म दिखावें, तो लोग क्या परिवर्तन में नहीं आवेंगे? जैसे पर्दे के सामने बैठने से भिन्न-भिन्न  दृश्य पर्दे पर दिखाई देते हैं वैसे ही आपके सामने आने से अनेक प्रकार की दिव्य-दृष्टि दिखाई देगी। क्या ऐसी रील तैयार कर रहे हो? इसी पुरूषार्थ में लगे हुए हो या अब तक स्वयं को ही सीट पर सेट करने में लगे हुए हो?

 

दुनिया की आत्माओं को आजकल कोई नई बात चाहिये जो कि कभी किसी के संकल्प में भी न हो। ऐसा कर्त्तव्य दिखाने के कौन निमित्त बनेंगे?-महारथी। हरेक अपने को महारथी तो समझते हो ना? जबकि भविष्य में सदा श्रीलक्ष्मी श्रीनारायण बनने की हिम्मत रखते हैं और चन्द्रवंशी में कोई भी हाथ नहीं उठाते, तो सूर्यवंशी बनने वाले महारथी हुए ना? जब सब महारथी ऐसा महान् कार्य करने लग जायें, तो विश्व-परिवर्तन कितने समय में होगा? महारथियों का संगठन समय-प्रति-समय होता ही रहता है। अब के संगठन में भी क्या बीते हुए संगठन प्रमाण ही प्लैन बनावेंगे या प्रैक्टिकल प्रभाव की डेट फिक्स भी करेंगे? जैसे अन्य सब बातों का प्लैन और डेट फिक्स करते हो वैसे ही सम्पूर्ण सफलता त्रिमूर्ति लाइट के साक्षात्कार-मूर्त बनने का प्लैन और डेट इस बार फिक्स  करेंगे या इसके लिए कोई और मीटिंग होगी? साइंस वाले टाइम-बम बनाते हैं तो क्या आप टाइम-बम्स नहीं बनाते? आप सिर्फ बाम्स ही बनाते हो क्या? या सोचते हो कि अभी धरनी नहीं बनी है जो कि प्रत्यक्ष फल निकल आये?

 

आजकल के जमाने में धरनी को परिवर्तन करना कोई मुश्किल बात नहीं है। कैसी भी धरनी में आजकल साइंस फल पैदा कर देती है ना? न-उम्मीदवार को भी उम्मीदवार बना देती है ना? तो आप मास्टर सर्वशक्तिमान्, ताज, तख्त और तिलकधारी क्या न-उम्मीदवार को उम्मीदवार नहीं बना सकते? असम्भव को सम्भव करना यह चैलेन्ज आप ब्राह्मणों का स्वधर्म है अर्थात् धारणा है तो स्वधर्म में स्थित होना सहज है या कठिन है? बोर्ड जो लगाते हो उसमे क्या लिखते हो? एक सेकेण्ड में जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त करो। तो ज़रूर एक सेकेण्ड में प्राप्त करने का प्लैन प्रैक्टिकल में है, तब तो लिखते हो ना? तो यही असम्भव को सम्भव होने का चैलेन्ज करते हो ना? तो ऐसा फास्ट कर्त्तव्य कब से शुरू करेंगे? लेकिन बोर्ड के नीचे और भी शब्द लिखते हो-’अभी नहीं तो कभी नहीं’। फिर तो अब से ही होना चाहिये ना? तो इस वर्ष में कोई ऐसा अनोखा प्लैन बनाओ। पहले क्या साक्षात्कार-मूर्त तैयार हो? क्योंकि भक्ति में भी नियम है कि जरा भी खण्डित मूर्ति पूज्य या मन्दिर के योग्य नहीं बन सकती, और न दर्शनीय-मूर्त्त ही बन सकती है। ड्रामा का पर्दा खुल जाए और मूर्ति सम्पन्न नहीं हो, तो क्या यह शोभेगा? जैसे श्रृंगार में सोलह श्रृंगार प्रसिद्ध हैं, तो क्या ऐसे ही सम्पूर्ण सोलह कला सम्पन्न बने हो? या समय पर जिस कला की आवश्यकता हो, क्या उस समय वह कला स्वरूप में नहीं ला सकते? यदि स्मृति में आता है लेकिन स्वरूप में नहीं आ पाता हो तो आपको सफलता कैसे होगी? यदि युद्ध स्थल में समय पर शस्त्र उपयोग में न ला सको, तो क्या विजय होगी? पहले स्वयं को सम्पन्न बनाने के प्रैक्टिकल प्लैन बनाओ, तो सहज सफलता आपके सम्मुख आ जायेगी।

 

अब तक रिज़ल्ट क्या देखी है? स्वयं की और अन्य आत्माओं की दोनों की सेवा साथ-साथ और सदा रही। दोनों का बैलेन्स समान रहे यह दिखाई देता है? दोनों का बैलेन्स विश्व की सर्व-आत्माओं को ब्लिस दिलाने के निमित्त बनेगी। यूँ तो सर्व कार्य बाप का है लेकिन जैसे अन्य कार्य में निमित बने हुए हो, तो इसमें क्यों भूल जाते हो? जैसे भक्त लोगों को जब कोई कार्य मुश्किल लगता है, तो भगवान् के ऊपर रख देते हैं ना? सहज में स्वयं और मुश्किल में भगवान् अब तो बाप ने सर्व-शक्तियों का और सर्व-कर्त्तव्यों का आपको निमित्त बना दिया है ना? क्योंकि बाप ने स्वयं को वानप्रस्थी बनाकर आप सबको तख्तनशीन और ताजधारी बना दिया है। जो बाप की ज़िम्मेवारियाँ रही हुई हैं वह अब तुम बच्चों की हैं। हाँ, मददगार बाप अवश्य है। लेकिन साकार स्वरूप में, और नाम बाला करने में सन शोज़ फादर है। इसलिये आप सभी जिम्मेवार आत्मायें हो, परन्तु साधारण आत्मायें नहीं हो। आप ज्ञानी तू आत्मायें और विजय रत्न हो, समझा!-यह है महारथियों का कार्य।

 

प्रत्यक्ष फल के प्रैक्टिकल प्लैन बनाने वाले, सदा विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, ऐसे अधिकार प्राप्त करने वाले, चैलेन्ज को प्रैक्टिकल में लाने वाले, सदा सम्पन्न, साक्षात्कार-मूर्त त्रिमूर्ति लाइट धारण करने वाले त्रिमूर्तिवंशी, एक सेकेण्ड में तीनों शक्तियों द्वारा साथ-साथ काम करने वाले और बाप-दादा के सदा साथी, ऐसे महावीरों को बाप-दादा का याद-प्यार और गुडनाइट। अच्छा।

 

वरदान:- अपने हल्केपन की स्थिति द्वारा हर कार्य को लाइट बनाने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव

 

मन-बुद्धि और संस्कार - आत्मा की जो सूक्ष्म शक्तियां हैं, तीनों में लाइट अनुभव करना, यही बाप समान न्यारे-प्यारे बनना है क्योंकि समय प्रमाण बाहर का तमोप्रधान वातावारण, मनुष्यात्माओं की वृत्तियों में भारी पन होगा। जितना बाहर का वातावरण भारी होगा उतना आप बच्चों के संकल्प, कर्म, संबंध लाइट होते जायेंगे और लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता रहेगा। कारोबार का प्रभाव आप पर नहीं पड़ेगा, यही स्थिति बाप समान स्थिति है।

 

स्लोगन:- इसी अलौकिक नशे मे रहो “वाह रे मैं'' तो मन और तन से नेचुरल डांस होती रहेगी।