ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कोई भी मनुष्य इस गीत का यथार्थ अर्थ कर न सकें। नाटक बनाने वाले
भी नहीं समझते। ऐसे ही गीत बना देते हैं, जैसे शास्त्र बना देते हैं। समझते कुछ नहीं।
तुम वेदों के लिये कहते हो - यह धर्म शास्त्र नहीं हैं। शास्त्र कहेंगे लेकिन धर्म
शास्त्र नहीं है। अब धर्म शास्त्र से तो कुछ फ़ायदा होना चाहिये। धर्म शास्त्र का
अर्थ भी नहीं समझते हैं। शास्त्र अर्थात् जिससे कोई धर्म स्थापन होता है, किसी
द्वारा। तो पूछना चाहिये - वेद-उपनिषद किस धर्म के शास्त्र हैं? वह धर्म किसने
स्थापन किया? इनसे तो कोई धर्म ही नहीं निकलता है। कौन-कौन-से धर्म हैं - वह भी
समझाया जाता है। जैसे झाड़ में मुख्य है थुर (तना)। फिर बड़ी डाल, फिर छोटी-छोटी
टाल-टालियां निकलती हैं। तो बच्चों को समझाया जाता है - यह जो धर्म शास्त्र है सर्व
शास्त्रमई शिरोमणी गीता, वह है थुर। उनके बाद बाकी सब ठहरे रचना। यह इस्लामी, बौद्धी,
क्रिश्चियन आदि यह सब कल्प वृक्ष के टाल हैं। गीता में भी लिखा हुआ है - मनुष्य
सृष्टि का झाड़ है। तो यह झाड़ का राज़ बुद्धि में अभी बैठा है। इसका मुख्य थुर है
- आदि सनातन देवी-देवता धर्म। इस झाड़ की भेंट बड़ के झाड़ से की जाती है। वह बहुत
बड़ा होता है। झाड़ जब पुराना होता है तो उनका थुर (तना) सड़ जाता है, बाकी
टाल-टालियां रहती हैं। यह भी ऐसे ही है। बच्चे जानते हैं - इनका थुर जो देवी-देवता
धर्म था वह अब है नहीं। परमात्मा 24 अवतार लेते हैं तो वह सर्वव्यापी हो नहीं सकते।
जब अवतार लेते हैं तो उनको सर्वव्यापी कैसे कहेंगे? नई बात है ना। कितना बड़ा झाड़
है! थुर है ही नहीं! एक भी मनुष्य नहीं जो कहे हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के
हैं।
सतयुग को लाखों वर्ष पिछाड़ी में ले जाते हैं। कितनी मुश्किलात की बात हो गई है!
अब सभी मनुष्य दु:खी ही दु:खी हैं। सुखी कौन हो सकता है? संन्यासियों की बुद्धि में
भी यह भेंट आयेंगी नहीं कि यहाँ काग विष्टा समान सुख है और अथाह दु:ख हैं। यह उन्हों
को पता नहीं है। अब बाप बतलाते हैं - तुमको अथाह सुख में फिर ले जाता हूँ। इस समय
अपना पार्ट बजाए सभी कुछ करके छिप जाते हैं। यूँ पार्ट तो सभी बजाते हैं।
इस्लामी-बौद्धी आदि सब छिप जायेंगे, ऊपर चले जायेंगे। यह भी कोई नहीं जानते। मनुष्यों
को ही समझाया जाता है। जानवर को तो नहीं बतायेंगे। मनुष्य का जन्म सबसे ऊंच गाया
जाता है। वह कौन-सा? कहते भी हैं कि मनुष्य की तो चमड़ी भी काम में नहीं आती। फिर
कहते हैं - मनुष्य का जन्म उत्तम है। वास्तव में तुम्हारा यह जन्म उत्तम है, जो बाप
बैठ तुम्हारी सेवा करते हैं। दुनिया के मनुष्यों का यह जीवन बहुत कनिष्ट है। तुम
जानते हो - हम भी पहले छी-छी मूत पलीती मनुष्य थे, अब बाबा हमारे इस वस्त्र को
ज्ञान लक्ष्य सोप से साफ करते हैं और कहते हैं - अब अपने बाप को याद करो।
इस दुनिया में बाप को कोई भी नहीं जानते हैं। बाप को जानें तब तो बच्चे बनें।
शिव के बनें, ब्रह्मा के बनें तब पौत्रे कहलायें। ब्राह्मण भी दो प्रकार के हैं -
एक हैं मुख वंशावली, दूसरे हैं कुख वंशावली। तुम हो ब्रह्मा के मुख वंशावली
ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। ब्रह्मा का बाप कौन? शिवबाबा। उनका बाप तो कोई होता नहीं।
तुमको पढ़ाने वाला भी वह है। तुम्हारा गुरू भी वह है। अभी सम्मुख बैठे हैं फिर छिप
जायेंगे। पतित दुनिया को पावन बनाए, देवी-देवता धर्म की स्थापना कर और सबको
मुक्तिधाम में ले जायेंगे। 21 जन्मों का सुख दे दिया फिर और क्या चाहिये! बाबा सदा
सुखी तो बनाते हैं। बाकी ऊंच पद पाने लिये तो पुरुषार्थ करना पड़े।
श्रीकृष्णपुरी को सुखधाम कहा जाता है। श्रीनारायण का बचपन नहीं दिखाते हैं।
श्रीकृष्ण का स्वयंवर दिखाते हैं। अगर राधे से स्वयंवर हुआ तो फिर उनका नाम क्या
बदली हुआ! वह दिखाते नहीं। लक्ष्मी-नारायण का तो मनुष्यों को पता नहीं। उनके जीवन
चरित्र को कोई जानते नहीं। तुम अभी समझ रहे हो। कोटों में कोई ही निकलेगा, जिसने
पूरा चक्र लगाया होगा। तुम यह जानते हो - भक्ति वह करते जो पहले-पहले पूज्य से
पुजारी बनते हैं। भक्त तो सभी हैं। सरसों के मुआफिक मनुष्य हैं। तुम जानते हो - अब
बिचारे सभी मौत की चक्की में हैं। अब तुम बच्चों को बहुत बड़ी बुद्धि मिली है। 84
जन्मों का चक्र बुद्धि में रखना बड़ा सहज है। हम अभी ब्राह्मण हैं। सो फिर देवता
बनेंगे फिर 84 जन्म लेने पड़ेंगे। हम सो का अर्थ भी बच्चों को समझाया है। हम सो, सो
हम - यहाँ ही गाते हैं। और धर्मों में यह अक्षर ही नहीं। ओम् माना भगवान् समझ लेते
हैं। वास्तव में ओम् अर्थात् अहम् आत्मा। वह फिर उल्टा कह देते - आत्मा सो परमात्मा।
अच्छा, फिर क्या? हम शरीर तो हैं नहीं। परमपिता परमात्मा तो ऐसे कह न सके कि अहम्
आत्मा मम शरीर। वह बाप कहते हैं - अहम् आत्मा तो बरोबर हैं। हमने यह शरीर लोन पर
लिया है। यह हमारी जुत्ती नहीं है। हमारे पैर हैं नहीं। हमारे चरणों की पूजा हो नहीं
सकती। कृष्ण के चरण हैं, हमारे तो हैं नहीं। मैं हूँ ही निराकार। यूँ तो आत्मा भी
निराकार है। परन्तु वह 84 जन्मों में आती है। मेरा तो शरीर है नहीं। मैं अशरीरी
हूँ। तुमको भी कहता हूँ - अशरीरी बनकर मुझे याद करो। तुम जानते हो - बाबा आया हुआ
है। उनका क्या पार्ट है? पतित सृष्टि को पावन बनाना। निराकार तो जरूर कोई शरीर में
आया होगा। मनुष्यों को पता न होने कारण उन्होंने फिर नाम लिख दिया है - फर्स्ट
प्रिन्स श्री कृष्ण का। अब श्रीकृष्ण यहाँ कैसे आ सकता? यह समझकर फिर समझाना है।
टैगोर आदि गीता की कितनी महिमा करते थे! वास्तव में यह श्रीकृष्ण के बहुत जन्मों
के अन्त का जन्म है, जिसमें शिवबाबा बैठ गीता ज्ञान सुनाते हैं। बाबा कहते हैं -
मैं छोटे बच्चे के तन में कैसे बैठ सुनाऊंगा? जरूर अनुभवी रथ चाहिये। ड्रामा अनुसार
हमारा यह रथ मुकरर है। ऐसे नहीं कि फिर दूसरे कल्प में और रथ लूँगा। ब्रह्मा द्वारा
ही स्थापना करेंगे। कल्प पहले भी तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियों ने ब्रह्मा द्वारा
वर्सा लिया था। अब बाप कहते हैं - और संग तोड़ मुझ संग जोड़ो। मेरा तो एक शिवबाबा,
दूसरा न कोई। तुम मात पिता........ जिसकी इतनी महिमा है, अभी तुम उनके सम्मुख बैठे
हो। विचार किया जाए - बरोबर हमको किसने रचा? कहते हैं - अल्लाह ने रचा। तो जरूर
अल्लाह की कोई फीमेल भी होगी? अल्लाह तो निराकार है, उनकी फीमेल फिर कहाँ से आई?
तुम गॉड फादर कहते हो तो फादर हमेशा रचता होता है। मदर ही न हो तो उनको फादर कैसे
कहेंगे? बच्चा पैदा होता है तब ही फादर कहते हैं ना। यह किसको पता नहीं गॉड फादर की
फीमेल कौन है? यह है सबसे गुह्य बातें। आदम बीबी दोनों हैं। आदम उनको कहेंगे तो फिर
सरस्वती को बीबी नहीं कह सकते। वह बीबी हो तो फिर उनकी माँ कौन? यह बड़ी समझने की
बातें हैं। बाप ही बैठ समझाते हैं। इस हिसाब से यह (ब्रह्मा) मेरी सजनी हुई। इसके
मुख द्वारा रचता हूँ तुम बच्चों को। ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। उन्हों को
सम्भालने लिये फिर जगत अम्बा निमित्त बनी हुई है। आदि देव ब्रह्मा और जगत अम्बा
सरस्वती यह कौन है? विवेक कहता है ब्रह्मा की बेटी है। तो रचना कैसे रची? ब्रह्मा
द्वारा रचा तो यह है बड़ी माँ। फिर सम्भालने के लिये मम्मा भी है, बाबा भी है। पहले
नम्बर में सरस्वती जाती है। जगत अम्बा की कितनी महिमा है! अब तुम समझ गये हो - हम
सो ब्राह्मण बने हैं। हम ईश्वर की गोद में आये हैं। इसमें भी दो प्रकार के हैं - सगे
और लगे। एक ही माता के बच्चे फिर सगे और लगे का तो सवाल ही नहीं उठता। यहाँ भला सगे
और लगे क्यों कहा जाता है? कहते हैं जो सगे बनते हैं वो प्रतिज्ञा करते हैं - हम
पवित्र बन वर्सा लेंगे। तो ऐसे पवित्र ही गद्दी-नशीन वारिस बनते हैं। लगे फिर प्रजा
में चले जाते हैं। सगे भी बहुत बनेंगे फिर उनमें भी नम्बरवार होंगे। जितना जो
पुरुषार्थ करेंगे वह माँ-बाप के तख्त पर बैठेंगे। मम्मा-बाबा तख्त पर बैठते हैं तो
हमको भी तख्त मिलना चाहिये। परन्तु बनेंगे नम्बरवार। तो यह है योग की यात्रा। बाबा
को याद करना है, स्वदर्शन चक्र फिराना है, आप समान बनाना है। मेहनत करनी पड़ती है
आप समान बनाने में। बच्चियाँ परिचय देकर बाप के पास रिफ्रेश होने लिये ले आती हैं।
बाबा देखते हैं - कौन-कौन बाप से पूरा वर्सा लेंगे, और सब तरफ से ममत्व मिटाये एक
तरफ लगायेंगे? जानते हैं बाबा हमको विश्व का मालिक बनाने वाला है। बाप कहते हैं हम
तुमको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे। फिर चाहे सूर्यवंशी, चाहे चन्द्रवंशी बनो।
तो बाप अपने आप सब-कुछ कर रहे हैं। फिर छिप जायेंगे। घड़ी-घड़ी अवतार तो लेते नहीं
हैं। उनको अपना शरीर ही नहीं है। वह एक ही बार आते हैं। तुम तो घड़ी-घड़ी एक चोला
छोड़ दूसरा लेते रहते हो। मैं पुनर्जन्म में आता नहीं हूँ। कितना अच्छी रीति समझाते
हैं। आगे यह बातें बुद्धि में नहीं थी। अनायास घर बैठे रास्ते जाते बाबा ने प्रवेश
कर लिया फिर मालूम पड़ा। अब दिन-प्रतिदिन सब बातें बुद्धि में बैठती जाती हैं। कहते
हैं ना हम 7 दिन का बच्चा हूँ, दो मास का बच्चा हूँ। यह ज्ञान तो सेकेण्ड में भी
मिल सकता है। कितने बच्चे हैं! और कोई सतसंग नहीं होगा जहाँ इतने बच्चे हों।
प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा भी बाप के बेटे-बेटी हैं, न कि मेल-फीमेल।
मेल-फीमेल इतने बच्चे कैसे पैदा करेंगे! कुख वंशावली की तो बात ही नहीं। जिन्होंने
कल्प पहले मात-पिता का बनकर वर्सा पाया है, वही आते रहते हैं। कलम लगती रहती है।
बगीचा है ना। अभी देवी-देवता धर्म के फूल तो हैं नहीं। बाकी सब जैसे कांटे हैं।
चुभते हैं। यह कांटों की दुनिया है। बाप आकर कांटों से कली, कली से फूल बनाते हैं।
श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो फिर गिर पड़ते हैं। बाबा समझ जाते हैं - यह विकारों में
गिर पड़ा। अभी तुम पतित से पावन बन रहे हो। बापू गांधी भी पतित-पावन को याद करते
थे। चाहते थे - वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी का राज्य हो। सो तो बाप ही स्थापन करेंगे।
तुम जानते हो - अब हमको इस कंसपुरी से कृष्णपुरी में जाना है। भारत में सतयुग था।
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। पांच हजार वर्ष की बात है। पांच हजार वर्ष से पुरानी
चीज़ कोई होती नहीं। लाखों वर्ष की तो कोई चीज़ रह न सके। देखो, तुम बूढ़ी मातायें
गुड़गांव से आई हो मात-पिता पास, जिनसे वर्सा मिलना है। बाप भी बुढ़ियों को देख खुश
होते हैं। पांच हजार वर्ष पहले भी आकर वर्सा लिया था। सारा मदार पुरुषार्थ पर है।
तुम बुढ़ियायें इतना ज्ञान उठा नहीं सकती। यह दादा बूढ़ा तो बहुत अच्छा पढ़ता है।
तुम समझती हो - जवान सरस्वती माँ अच्छा पढ़ती है। अरे, यह तो ब्रह्मपुत्रा नदी है।
यह तो जरूर जास्ती पढ़ते होंगे ना। यह बूढ़ा सबसे तीखा है। वह तो फिर भी बेटी हो गई।
बुढ़ियों के लिये भी है बहुत सहज। बाबा को याद करते रहो। ओहो! शिवबाबा कुर्बान जाऊं,
आप तो सुखधाम ले जाते हो! बस, ऐसे खुशी में रहो तो भी बेड़ा पार है। हमेशा समझो -
शिवबाबा समझाते हैं। इनको छोड़ दो। ऐसे ही समझो शिवबाबा सुनाते हैं तो बुद्धियोग
शिवबाबा पास जाने से विकर्म विनाश होंगे। मम्मा भी शिवबाबा से सुनकर सुनाती है।
सदैव एक शिवबाबा की ही याद रहे तो विकर्म विनाश होते रहेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गद्दी-नशीन पक्का वारिस बनने के लिये पवित्रता की प्रतिज्ञा कर सगा
बच्चा बनना है, और संग तोड़ एक संग जोड़ना है।
2) आप समान बनाने की सेवा करनी है। कांटे से कली, कली से फूल बनना और बनाना है।
नये झाड़ की कलम लगानी है।