ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, इस दुनिया को तो आसुरी दुनिया
जरूर कहेंगे। नई दुनिया को दैवी दुनिया कहेंगे। दैवी दुनिया में मनुष्य बहुत थोड़े
रहते हैं। अब यह राज़ भी किसको समझाना चाहिए। जो फैमली प्लैनिंग के मिनिस्टर होते
हैं, उन्हों को समझाना चाहिए। बोलो, फैमली प्लैनिंग की ड्युटी तो गीता के कथन
अनुसार एक बाप की ही है। गीता को तो सब मानते ही हैं। गीता है ही फैमली प्लैनिंग का
शास्त्र। गीता से ही बाप नई दुनिया की स्थापना करते हैं। यह तो ऑटोमेटिकली ड्रामा
में उनका पार्ट नूँधा हुआ है। बाप ही आकरके आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना
करते हैं अथवा प्योर नेशनलिटी की स्थापना करते हैं। अपने को देवी-देवता धर्म का ही
कहेंगे। गीता में भगवान साफ बतलाते हैं कि मैं आता ही हूँ एक धर्म की स्थापना करने,
बाकी अनेक सब धर्मों का विनाश करने। तो इससे फैमली प्लैनिंग नम्बरवन हो जायेगी। सारे
सृष्टि पर जय-जयकार हो जायेगी और एक आदि सनातन धर्म की स्थापना हो जायेगी। अब तो
बहुत मनुष्य होने कारण बहुत किचड़ा हो पड़ा है। वहाँ के जानवर पंछी आदि सब
फर्स्टक्लास होंगे, जो देखने से ही दिल खुश हो जाए, डरने की बात नहीं। बाप बैठ
समझाते हैं तुमने मुझे बुलाया ही इसलिए है कि आकर फैमली प्लैनिंग करो अर्थात् पतित
फैमलीज़ को वापिस ले जाओ, पावन फैमली की स्थापना करो। तुम सब कहते थे - बाबा, आकर
पतित दुनिया खलास कर नई पावन दुनिया बनाओ। यह बाप की ही प्लैनिंग है। देखने से ही
दिल खुश हो जाए। लक्ष्मी-नारायण को देखने से तुम्हारी दिल खुश होती है ना। वहाँ तो
यथा राजा रानी तथा प्रजा सब फर्स्टक्लास होते हैं। तो यह फैमली प्लैनिंग की युक्ति
ड्रामा में नूँधी हुई है। तुम बच्चों को समझाना है - पारलौकिक बाप तो सतयुगी
प्लैनिंग फर्स्टक्लास करते हैं, कांटों के जंगल को ही खलास कर देते हैं। इस सारे
भंभोर को आग लग जाती है। यह धन्धा तो बाप का ही है। तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो।
कितनी भी मेहनत करो, सक्सेसफुल कोई हो न सके। बाप कहते हैं - जिस काम विकार को तुम
अपना मित्र समझते हो वह बड़ा भारी दुश्मन है। बहुत हैं जो उनके मित्र बन जाते हैं।
बाप ऑर्डीनेन्स निकालते हैं - तुम इस पर विजय पहनो। तुम समझाओ - बाप कहते हैं काम
महाशत्रु है। बिचारों को पता ही नहीं कि फैमली प्लैनिंग कैसे हो रहा है। यह तो
कल्प-कल्प बाप करते हैं ड्रामा अनुसार। फिर यह होना ही है। सतयुग में बहुत थोड़े
मनुष्य होते हैं, इसमें फिक्र की कोई बात नहीं। बाप प्रैक्टिकल में यह काम कर रहे
हैं। वो लोग कितना माथा मारते हैं। एज्युकेशन मिनिस्टर को भी समझाओ। अभी के
कैरेक्टर्स कितने खराब हैं। देवताओं के कैरेक्टर्स कितने अच्छे थे। तुम बेपरवाह
होकर वाणी चलाओ। बोलो, यह कोई तुम मिनिस्टर का काम नहीं है। यह तो ऊंच ते ऊंच बाप
का काम है। इन देवताओं के राज्य में एक धर्म, एक राज्य, एक भाषा थी। कितने थोड़े
मनुष्य थे। परन्तु ऐसी युक्ति से बोलना बहुत थोड़ों को आता है। वह रूहाब नहीं रहता
है। उन्हों को यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र दिखाना चाहिए। यह फैमली प्लैनिग बाप ने
ही की थी। अब फिर कर रहे हैं। इनके राज्य की स्थापना हो रही है।
बाबा ने कहा है - यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र हमेशा फ्रन्ट में रखो और बत्तियां
आदि खूब लगाओ। प्रभातफेरी में यह ट्रांस-लाइट का चित्र हो, जो एकदम क्लीयर कोई भी
देख सके। बोलो, हम यह फैमली प्लैनिंग कर रहे हैं। यथा राजा रानी तथा प्रजा। डीटी
डिनायस्टी की स्थापना हो रही है। बाकी सब विनाश हो जायेंगे। तुम कहते भी हो कि हे
पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाओ। सो तो बाप ही बना सकते हैं। एक देवी-देवता धर्म ही
पावन होता है। बाकी सब खत्म हो जाते हैं। बोलो, शिवबाबा के हाथ में ही यह प्लैनिंग
है। सतयुग में यह प्लैनिंग हो जाती है। वहाँ है ही देवता वंश, शूद्र होते नहीं। यह
तो बड़ी फर्स्टक्लास प्लैनिंग है। बाकी सब धर्म खलास हो जायेंगे। इस बाप की
प्लैनिंग को आकर समझो। तुम्हारी यह बात सुनकर तुम पर बहुत कुर्बान जायेंगे। यह
मिनिस्टर आदि निर्विकारी प्लैनिंग बना कैसे सकेंगे। बाप जो ऊंच ते ऊंच भगवान् है,
वह आते ही हैं यह प्लैनिंग करने। बाकी सब अनेक धर्मों को खलास कर देते हैं। यह बात
है ही बेहद के बाप के हाथ में। पुरानी चीज़ को नया बना देते हैं। बाप नई दुनिया की
स्थापना कर पुरानी का विनाश कर देते हैं। यह ड्रामा में नूँध है। समझाना चाहिए -
बहनों और भाइयों, इस सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को तुम नहीं जानते हो, बाप बतलाते
हैं। सतयुग आदि में न इतने मनुष्य होते हैं, न फैमली प्लैनिंग आदि की बात ही करते
हैं। पहले तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को आकर समझो। सद्गति दाता बाप ही है। सद्गति
अर्थात् सतयुगी मनुष्य। पहले-पहले यह देवी-देवता बहुत थोड़े थे। फर्स्टक्लास धर्म
था। बाबा फूलों की फर्स्टक्लास प्लैनिंग बनाते हैं। काम तो महाशत्रु है। आजकल तो
इनके पिछाड़ी प्राण भी दे देते हैं। कोई की किसके साथ दिल होती है, माँ-बाप शादी नहीं
कराते हैं तो बस घर में ही हंगामा मचा देते हैं। यह है ही गन्दी दुनिया। सब एक-दो
को कांटा लगाते रहते हैं। सतयुग में तो फूलों की वर्षा होती है। तो ऐसे-ऐसे विचार
सागर मंथन करो। बाबा इशारा देते रहते हैं। तुम इनको रिफाइन करो। चित्र भी
भिन्न-भिन्न प्रकार के बनाते हैं। ड्रामा अनुसार जो कुछ होता है वह ठीक है। किसको
समझाना भी बहुत सहज है। सबका ध्यान बाप की तरफ खिंचवाना है। बाप का ही यह काम है।
अब बाप ऊपर में बैठा हुआ, यह काम करेगा नहीं। कहते भी हैं जब-जब धर्म की ग्लानि होती
है, आसुरी राज्य होता है तब-तब आकर इन सबको खलास कर दैवी राज्य की स्थापना करता
हूँ। मनुष्य तो अज्ञान की नींद में सोये पड़े हैं। यह सब विनाश हो जायेगा। जो
निर्विकारी बनते हैं उनकी ही फैमली आकर राज्य करती है। गायन भी है - ब्रह्मा द्वारा
स्थापना, किसकी? इस फैमली की। यह प्लैनिंग हो रही है। ब्रह्माकुमार-कुमारियां
पवित्र बनते हैं तो उन्हों के लिए जरूर पवित्र नई दुनिया चाहिए। यह पुरुषोत्तम
संगमयुग बहुत छोटा है। इतने थोड़े समय में कितनी अच्छी प्लैनिंग कर देते हैं। बाप
सबका हिसाब-किताब चुक्तू कराए अपने घर ले जाते हैं, इतना सारा किचड़ा वहाँ नहीं ले
जायेंगे। छी-छी आत्मायें जा न सकें, इसलिए बाप आकर गुल-गुल बनाकर ले जाते हैं।
ऐसी-ऐसी बातों पर विचार सागर मंथन करो। तुम रियलाइज़ करते रहते हो। बाप कहते हैं
मैं एक धर्म की स्थापना कराने, तुमको रिहर्सल करा रहा हूँ। यह फैमली प्लैनिंग किसने
की? बाप कहते हैं मैं कल्प पहले मिसल अपना कार्य कर रहा हूँ। पुकारते ही हैं पतित
फैमली से बदल कर पावन फैमली स्थापन करो। इस समय सब हैं पतित। शादियों पर लाखों खर्चा
करते हैं। कितना शादमाना करते हैं और ही पावन से बदल पतित बन जाते हैं।
तुम बच्चों को अब यही ईश्वरीय धन्धा करना चाहिए। सबको समझाना चाहिए। सब आसुरी
नींद में सोये पड़े हैं, उनको जगाना चाहिए। गोरा बनकर औरों को भी बनायें। तो बाप का
प्यार भी जाये। सर्विस ही नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? कोई बादशाह बनते हैं तो जरूर
कोई अच्छे कर्म किये हैं। यह तो कोई भी समझ सकते हैं। यह राजा-रानी हैं, हम
दास-दासियां हैं तो जरूर आगे जन्म में कर्म ऐसे किये हैं। बुरे कर्म करने से बुरा
जन्म मिलता है। कर्मों की गति तो चलती रहती है। अब बाप तुमको अच्छे कर्म करना
सिखलाते हैं। वहाँ भी ऐसे जरूर समझेंगे कि अगले जन्म के कर्मों के अनुसार ऐसे बने
हैं। बाकी क्या कर्म किये हैं वह नहीं जानेंगे। कर्म गाये जाते हैं। जितना जो अच्छा
कर्म करते हैं वह ऊंच पद पाते हैं। ऊंच कर्मों से ही ऊंच बनते हैं। अच्छे कर्म नहीं
करते हैं तो झाड़ू लगाते हैं। भरी ढोते हैं। कर्मों का फल तो कहेंगे ना। कर्मों की
थ्योरी चलती है। श्रीमत से अच्छे कर्म होते हैं। कहाँ बादशाह, कहाँ दास-दासियां।
बाप कहते हैं अब फालो फादर। मेरी श्रीमत पर चलेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। बाप
साक्षात्कार भी कराते हैं। यह मम्मा, बाबा, बच्चे इतने ऊंच बनते हैं, यह भी कर्म है
ना। बहुत बच्चियां कर्मों को समझती नहीं हैं। पिछाड़ी में साक्षात्कार सबको होगा।
अच्छी तरह पढ़ेंगे, लिखेंगे तो नवाब बनेंगे, रूलेंगे पिलेंगे तो होंगे खराब। यह तो
उस पढ़ाई में भी होता है। भगवानुवाच, इस समय सारी दुनिया काम चिता पर जल मरी है।
कहते हैं स्त्री को देखने से अवस्था बिगड़ती है। वहाँ तो ऐसे अवस्था नहीं बिगड़ेगी।
बाप कहते हैं नाम रूप देखो ही नहीं। तुम भाई-भाई को देखो। बड़ी मंज़िल है। विश्व का
मालिक बनना है। कभी किसकी बुद्धि में नहीं होगा - यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक
कैसे बनें? बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। यह लक्ष्मी-नारायण
सर्वगुण सम्पन्न थे। आजकल जिनका तुम नया ब्लड समझते हो वह क्या करते रहते हैं! क्या
गांधी जी यह सिखाकर गये? राम राज्य बनाने की भी युक्ति चाहिए। यह तो बाप का ही काम
है। बाप तो एवर पावन है। तुम फिर 21 जन्म पावन रह फिर 63 जन्म पतित बन जाते हो।
समझाने में इतना मस्त बनना चाहिए। बाप बच्चों को समझाते रहते हैं - बच्चे, पावन बनो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी अवस्था सदा एकरस अडोल बनाने के लिए किसी के भी नाम-रूप को नहीं
देखना हैं। भाई-भाई को देखो। दृष्टि को पावन बनाओ। समझाने में रूहाब धारण करो।
2) बाप का प्यार पाने के लिए बाप समान धन्धा करना है, जो आसुरी नींद में सोये
हुए हैं उन्हें जगाना है। गोरा बनकर दूसरों को बनाना है।