ओम् शान्ति।
बाप कहे बच्चों प्रति। बाप भी निराकार बच्चे भी निराकार हैं। परन्तु यह जो साकारी
चोला लिया है, इनसे पार्ट बजाना है। ऐसे पार्ट बजाने वाले बच्चों से बाप कहे अब
देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा निश्चय करो। ऐसे न कहो - अहम् आत्मा सो परमात्मा।
यही तो तुम बाप को 84 जन्मों के चक्र में ढकेल देते हो। अपने को बाप समझ 84 जन्मों
के चक्र में डाल दिया है। यह कहने से तुम रसातल में चले गये हो। बेड़ा डूबना शुरू
हुआ। अब तुमको श्रीमत मिलती है। बच्चे जानते हैं दो मत गाई हुई हैं। एक है श्रीमत।
यही भगवान की श्रीमत अर्थात् बेहद बाप की मत है। उन्होंने श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया
है। वह तो रॉग है। श्रीकृष्ण को बाप नहीं कह सकते। बाप होते हैं तीन। एक ऊंच ते ऊंच
परमपिता परमात्मा, आत्माओं का बाप, दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा। इनको परमपिता नहीं
कहेंगे। यह तो प्रजा का पिता हो गया। इनका नाम भी बाला है। श्रीकृष्ण को प्रजापिता
नहीं कहेंगे। तीसरा है लौकिक बाप। बेहद का बाप कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी भव।
अब श्रीमत के तुमको डायरेक्शन मिलते हैं। दोनों की मत इकट्ठी चलती है। तुम महसूस
करते हो - यह महावाक्य शिवबाबा समझा रहे हैं। त्रिमूर्ति शिव के बदले भूल से
त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह दिया है। परन्तु इसका अर्थ कुछ नहीं निकलता। त्रिमूर्ति
ब्रह्मा कहने से ब्रह्मा की मत गाई हुई है। शिव को उड़ा दिया है। कहते हैं ब्रह्मा
भी उतर आये। अब ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन से आकर मत देवे। अब तुमने यह समझा है,
प्रजापिता ब्रह्मा को व्यक्त ब्रह्मा कहा जाता है। तुम अभी व्यक्त ब्राह्मण हो, फिर
अव्यक्त सम्पूर्ण ब्राह्मण बनते हो। फिर तुम सूक्ष्मवतनवासी ब्राह्मण बन जायेंगे।
सम्पूर्ण ब्रह्मा, सम्पूर्ण सरस्वती - दोनों सूक्ष्मवतन में वहाँ रहते हैं। विष्णु
तो हैं ही युगल। दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की। अब यह मत तो नामीग्रामी
है। भगवानुवाच, ब्रह्मा को मत देने वाला है शिव। इनका नाम रखा है ब्रह्मा। ब्रह्मा
है यहाँ पतित दुनिया में। इनको ऊंच नहीं कहना चाहिए। विष्णु के दो रूप
लक्ष्मी-नारायण फिर यहाँ स्वर्ग में आते हैं। देव-देव महादेव कहा जाता है ना। तो
महादेव हो गया शंकर। बच्चे तो समझते हैं शिव है ऊंच ते ऊंच बाप। फिर सूक्ष्मवतन की
रचना रचते हैं। मूल बात है श्रीमत पर चलना। ब्रह्मा भी श्रीमत पर चल इतना नामीग्रामी
बना। मुरब्बी बच्चा एक ही ब्रह्मा है। शिवबाबा भी एक, ब्रह्मा भी एक ही है।
प्रजापिता ब्रह्मा कहा जाता है ना। प्रजापिता विष्णु व प्रजापिता शंकर नहीं कहेंगे।
अभी तुम प्रजापिता ब्रह्मा के सामने बैठे हो। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते
अपने को आत्मा निश्चय करो। निरन्तर मुझे याद करने का पुरुषार्थ करो, फिर है त्याग
की बात। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य कहते हैं ना। वैराग्य से त्याग होता है। संन्यासी
पहले वैराग्य दिलाते हैं कि यह काग विष्टा समान सुख है इसलिए हम घरबार छोड़ते हैं।
कहते भी हैं कि भारत सतयुग में स्वर्ग था। नर्क में रहने वाले कहते हैं कि हम
स्वर्ग वासी थे। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि स्वर्ग में देवी-देवता ही रहते
थे। प्राचीन भारत में प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी सब थी। नर्कवासी मनुष्य स्वर्ग
स्थापन करने वाले बाप की महिमा गाते हैं - आप सुख के सागर हो, शान्ति के सागर हो।
इस बाप से ही सेकेण्ड में जीवन्मुक्ति का वर्सा मिलता है। बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं
किसके साथ चल रहे हो? शिवबाबा से ही वर्सा मिलना है। बुद्धि में शिवबाबा ही याद रहे।
उनसे स्वर्ग में अथाह सुख मिलेंगे। तुम कहेंगे हम शिवबाबा के साथ चल रहे हैं। कोई
नया होगा तो वह कहेगा कि शिवबाबा तो निराकार है। यह ब्रह्मा है, तुम शिवबाबा के साथ
कैसे चल रहे हो? विचित्र है ना। तुम बच्चे जानते हो हम शिवबाबा के सम्मुख बैठे हैं।
शिवबाबा का कोई आकार साकार रूप है नहीं। वह निराकार इनके ही शरीर में आते हैं। इनमें
आकर बतलाते हैं। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं। अभी तुम जानते हो बरोबर हमने 84
जन्म पूरे किये। चौरासी जन्म ही गाये जाते हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण थे, तो
जरूर यही 84 का चक्र लगाते हैं। और धर्म वाले तो बाद में आते हैं, वह इतने जन्म नहीं
लेते। पहले आत्मा सतोप्रधान होती है, फिर पिछाड़ी में तमोप्रधान बनती है। तो यह है
श्रीमत भगवान की। ब्रह्मा को भी वह मत देते हैं। परन्तु मुरब्बी बच्चा होने कारण
अच्छी रीति धारण कर समझाते हैं। कभी वह भी आकर समझाते हैं। कहते हैं - बच्चे,
देही-अभिमानी भव। शिवबाबा भी कहते हैं, ब्रह्मा भी कहते हैं देही-अभिमानी भव। अब
तुम प्रैक्टिकल में सम्मुख बैठे हो। वह है विचित्र। तुम हो चित्र वाले। सबको कहते
हो - हे भाई, हे आत्मायें, बाप को याद करो। आत्माओं से बात करते हैं। एक दो को
सावधान कर उन्नति को पाओ। यह ब्रह्मा के तन द्वारा बाप कहते हैं - मुझ बाप को याद
करने से स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। इन भूतों के वश नहीं होना। पहला नम्बर है अशुद्ध
अहंकार। बॉडी कॉन्ससनेस छोड़ दो। सोल कॉन्सस बनो। भाई-भाई हो तो जरूर बाप भी होगा।
ब्रदर्स-सिस्टर्स का बाप हो गया ब्रह्मा। ब्रदर्स-ब्रदर्स का बाप है निराकार। यह है
साकार। हम सब असुल हैं निराकारी। फिर पार्ट बजाने आते हैं। यह श्री श्री शिव
भगवानुवाच। श्रीकृष्ण की आत्मा तो सतयुग में थी। वह इस 84 वें जन्म में बाप की आकर
बनी है। तो श्रीकृष्ण की आत्मा से भी यह अच्छी हुई ना क्योंकि इस समय सेवा करते
हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा तो सिर्फ प्रालब्ध भोगेगी। तो दोनों में कौन बड़ा, कौन ऊंच
हुआ? 84 जन्म में जो पहला जन्म वाला श्रीकृष्ण है वह ऊंच या इस समय वाला ब्रह्मा
ऊंच? वास्तव में हीरे जैसा जन्म तो यह है क्योंकि यहाँ तुमको प्राप्ति होती है। वहाँ
ऐसे नहीं कहेंगे कि प्राप्ति होती है। इस समय ही तुमको सारी प्रापर्टी मिलनी है।
तुम बहुत ऊंच सेवाधारी हो। तुम भारत को स्वर्ग, पतित को पावन बनाकर फिर इस पर
राज्य करने वाले हो। तुम हो लकी स्टार्स तब तो सब माथा टेकते हैं ना। यह सारी
पवित्रता की बलिहारी है इसलिए बाप कहते हैं काम महाशत्रु है, जिसने तुमको अपवित्र
बनाया, उनको जीतो। मुझ सर्वशक्तिमान के साथ जितना योग लगायेंगे, उतना पवित्र होते
जायेंगे। तुमने 63 जन्म विषय सागर में गोते खाये। अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।
अजामिल जैसे पापी गाये हुए हैं। सतयुग में है ही एक पतिव्रता, पावन धर्म। सदैव सुख
ही सुख रहता है। यहाँ तो हैं पतित। संन्यासी पहले सतोप्रधान थे तो बहुत तीखे थे। कहाँ
भी जंगलों में उनको भोजन मिलता था। पवित्रता की ताकत थी। ऐसे नहीं कि परमपिता
परमात्मा शिव की ताकत थी। तुमको उनकी ताकत मिलती है। माया का राज्य शुरू होता है
द्वापर से। पाँच विकारों रूपी रावण का राज्य आधाकल्प चलता है। मनुष्य समझते नहीं कि
पतित-पावन कौन? गंगा को ही पतित-पावनी समझ लिया है। परमात्मा को जानते ही नहीं। कह
देते हैं कि परमात्मा और उनकी रचना बेअन्त है। सतयुग की आयु लाखों वर्ष है। अगर ऐसा
होता तो देवता धर्म वालों की संख्या ज्यादा होनी चाहिए। अभी तो क्रिश्चियन लोग जो
बाद में आये उन्हों की संख्या ज्यादा हो गई है। यह बाप समझाते हैं। बुद्धि के लिए
यह भोजन देते हैं। तुम्हारी बुद्धि अब कितना काम करती है! मनुष्यों की बुद्धि अब
काम नहीं करती। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानने का ताला बन्द है। उनका है
हद का संन्यास, हठयोग। तुम्हारा है बेहद का संन्यास, राजयोग। तुम राजाओं का राजा
स्वर्ग के मालिक बनते हो। इस समय जो पतित हैं, वह थोड़ेही यह राज़ बतायेंगे। गीता
सुनाते हैं, 18 अध्याय का कितना लम्बा अर्थ बैठ निकालते हैं! कितनी गीतायें बनाई
हैं! सबकी अपनी-अपनी मत है। गीता को समझ नहीं सकते। श्रीकृष्ण भगवान ही नहीं, फिर
गीता को समझें कैसे। कुछ भी समझते नहीं। अभी तुम जानते हो - वह सब हैं ही
भक्तिमार्ग के। पाँच भूतों ने अजामिल जैसा पापी बना दिया है। नम्बरवार तो होते ही
हैं। एक जैसे तो होते नहीं। समझाया जाता है - भगवान एक है, वह आकर राजयोग सिखलाते
हैं। लक्ष्मी-नारायण और उनकी डिनायस्टी तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रही है। वर्ल्ड
की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से रिपीट होनी है। पहले तो निश्चय चाहिए। बाबा, बस अब हम
तो आपकी ही श्रीमत पर चलेंगे। तुम बच्चों की तकदीर जग रही है। तुम विश्व के मालिक
बनते हो। और सबकी तकदीर सोई हुई है। बहुत दु:खी हैं। आदि सनातन भारत स्वर्ग था। अब
नहीं है। तमोप्रधान पतित बन गये हैं। पतित-पावन परमात्मा को कहा जाता है। स्वर्ग
में तो सबकी ज्योति जगी रहती है। दीपमाला कहते हैं ना। अभी तो उझाई हुई माला है।
बाप कहते हैं - यह मेरी आत्माओं की माला है। पहले आत्माओं की माला बनाता हूँ, फिर
विष्णु की माला बनाता हूँ। शिवबाबा बनाते हैं ब्रह्मा द्वारा। यह भी समझाया है -
ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती क्योंकि कभी आसमान पर चढ़ते रहते, कभी नीचे गिरते
रहते। निश्चय बुद्धि से बदल संशय बुद्धि बन पड़ते हैं। आज पक्के ब्राह्मण हैं, औरों
को आप समान बनाते हैं, कल शूद्र बन जाते हैं इसलिए शिवबाबा कहते हैं ब्राह्मणों की
माला बन नहीं सकती है। तुम पुरुषार्थ करते हो, रुद्र माला बनेंगे इसलिए योग लगाना
है। योग पूरा होगा तो बुद्धि रूपी बर्तन पवित्र होगा तो धारणा भी होगी। बाप को याद
करने से तुम वर्सा लेते हो। तुम्हारी ऑख वर्से में चली जाती है। लौकिक बाप के बच्चों
की भी वर्से में नज़र रहती है ना। कोई-कोई बच्चे कहते हैं यह बूढ़ा कब मरेगा तो हमको
मिलकियत मिलेगी। कोई-कोई बाप ऐसे मनहूस होते हैं जो बच्चों को कुछ देते ही नहीं।
स्त्री को घर खर्च भी नहीं देते।
बाप कहते हैं कि मूल बात है निश्चयबुद्धि बनो। तुमने विचित्र का हाथ पकड़ लिया
है। इस चित्र द्वारा कहते हैं - मुझे याद करो। तुम्हारी जिन्न जैसी बुद्धि होनी
चाहिए। शिवबाबा परमधाम में रहते हैं। अभी शिवबाबा मधुबन में मुरली चलाते होंगे।
घड़ी-घड़ी शिवबाबा को याद करना पड़े। अभी तुम यहाँ बैठे हो, वही कहते हैं मामेकम्
याद करो तो तुम मेरी माला का दाना बन जायेंगे। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। इसमें
ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। शास्त्रों में कोई यह लिखा हुआ नहीं है कि जगत अम्बा
ब्राह्मणी थी। यह बाप ही समझाते हैं। परन्तु माया भी बड़ी तीखी है। निश्चय होते-होते
माया फिर झट संशय में ला देती है। फिर श्रीमत लेने लिए बुद्धि चलती नहीं है। उनका
पद भी भ्रष्ट हो जाता है। चढ़े तो चाखे बैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर.. प्रजा में भी
कम पद। तुम हो लकी ज्ञान सितारे। तुम्हारे ऊपर बहुत रेस्पॉन्सिबिलिटी है। बाबा कहते
हैं - खबरदार रहना, विकार में नहीं जाना। तुम्हारा धन्धा है पतित को पावन बनाने का।
कोई को भी दु:ख मत दो। सदा सुखी बनाना है। बाप बच्चे-बच्चे कहकर समझाते हैं फिर भी
बुजुर्ग है। इनकी आत्मा को भी बच्चा कहेंगे। यह आत्मा भी उनको बाप कहती है। कदम-कदम
श्रीमत पर चलना है। सेन्टर्स सब शिवबाबा के हैं, किसी मनुष्य के नहीं। शिवबाबा ही
इन द्वारा स्थापना कर रहे हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि को रोज ज्ञान का भोजन दे, शक्तिशाली बनाना है। योग से बुद्धि
रूपी बर्तन पवित्र बनाना है।
2) “हमने विचित्र बाप का हाथ पकड़ा है'' - इस निश्चय से घड़ी-घड़ी बाप को याद
करना है। कोई को भी दु:ख नहीं देना है।