31-05-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - बाप, टीचर और सतगुरू तीनों को यही फिकरात है कि मेरे बच्चे लायक बनें, पढ़ाई करें तो मैं साथ ले जाऊं"

प्रश्नः-
तुम बच्चे याद की यात्रा में रहने की रेस क्यों करते हो?

उत्तर:-
क्योंकि तुम जानते हो - हम याद की रेस करके कर्मातीत बन, अपने घर में जायेंगे। हमें निशान तक हाथ लगाकर फिर वापिस आना है। तुम बाबा के पास पहुँचने के लिए दौड़ी लगा रहे हो। जितना-जितना याद में रहते हो उतना घर समीप दिखाई देता है।

गीत:- तू प्यार का सागर है...

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। जन्म-जन्मान्तर से गीत गाते आते हैं, महिमा करते आते हैं। सिर्फ तुम बच्चों ने जाना है कि वह ज्ञान का सागर है, वर्सा दे रहे हैं, उनकी श्रीमत पर चलना है। उनकी श्रीमत तो बहुत नामीग्रामी है। श्री-श्री से तुम श्री अर्थात् श्रेष्ठ बनते हो। वह है श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ क्योंकि ऊंच ते ऊंच भगवान ही गाया हुआ है। ऊंच ते ऊंच कहें वा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कहें, बात एक ही है। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ एक ही बाप है। तुम बच्चे उन द्वारा श्रेष्ठ बनते हो। बाप से वर्सा पाने लायक बनते हो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप वर्सा देते हैं। बाप ने समझाया है कि यह है पुरानी दुनिया। यह जो कुछ अब देखने में आता है, यह फिर होगा ही नहीं। फिर नई दुनिया में होंगे, यह कुछ भी होगा नहीं। यह सब खत्म होना है। नया मकान बनता है तो पुराने के लिए समझा जाता है, यह रहेगा नहीं। खत्म हो जायेगा। बच्चे भी जानते हैं - नई दुनिया बन रही है, हम नई दुनिया में जायेंगे फिर इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। बाप नई दुनिया रच रहे हैं, जिसके लिए तैयारी हो रही है। बेहद का बाबा, बाप भी है, टीचर भी है तो सतगुरू भी है। तीनों ही सेवा करने वाले हैं। बाप भी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है। टीचर, सतगुरू भी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट है। तीनों ही इकट्ठे हैं। इनको बच्चों का फुरना रहता है। एक ही बाप को दोनों फुरने हैं। समझते हैं हम इन्हों को पढ़ाकर फिर सद्गति दूँगा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को अपना बनाए फिर साथ ले जाऊंगा।

अभी तुम बाप के डायरेक्ट बच्चे बने हो। बाप है ज्ञान का सागर, सुख का सागर... यह महिमा और कोई की हो नहीं सकती। बाप की महिमा दिल में धारण करने से नशा चढ़ेगा। ऐसा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाबा हमको कितना ऊंचा बना रहे हैं। अभी तो हम कंगाल हैं। बाबा आया हुआ है ऊंच ते ऊंच पद देने। यह बात बिल्कुल ही न्यारी है। कोई भी शास्त्र में यह बातें हैं नहीं। बाबा ही आकर बच्चों को अपना बनाते हैं। बाबा कहते हैं - कल्प कल्प तुम बच्चों को यह नॉलेज देने आता हूँ। नॉलेज देने वाला एक ही बाप है। तो बच्चों को कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए, परन्तु स्थाई चढ़ता नहीं हैं। आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि को पाते रहेंगे। खाद निकालने में टाइम लगता है। आधाकल्प खाद पड़ने में लगा है। पहले-पहले गोल्डन एज में थे फिर गोल्डन एज से सिलवर एज में आते हैं तो चाँदी पड़ जाती है। अभी तो पुरूषार्थ करना है। हम एकदम सतोप्रधान बनें, सूर्यवंशी पद पायें। जितना याद करेंगे, उतना पद पायेंगे। दौड़ी पहननी हैं। दौड़ी की भी रेस होती है ना। निशान तक हाथ लगाए फिर लौट आते हैं। यहाँ लौटने की तो बात ही नहीं।

तुम जानते हो हमें बाबा को याद करते-करते पहुँच जाना है फिर उतरना शुरू कर देते हैं। वह तो 2-4 घण्टे की रेस होती है। यह तुम्हारी रेस देखो कैसी है, चलती ही रहती है। तुमको पहुँचने में यह थोड़ा सा समय लगता है। फिर लौट आने में 5 हजार वर्ष लगते हैं। खाद पड़ते-पड़ते आखरीन नाम ही बदलकर आइरन एज़ हो जाता है। अभी हमको गोल्डन एज में आने के लिए प्युअर बनना है, मेहनत करनी पड़ती है। बाबा योग के लिए बहुत पुरुषार्थ कराते हैं। मेहनत सारी इसमें है। ज्ञान तो लाखों को सुनाते हैं। प्रदर्शनी में कितने ढेर आते हैं और भी जास्ती दिन रखें तो बहुत लोग आयें। गरीब लोग तो आधा से भी जास्ती होंगे। बाकी समझने के लिए आते देखो कितने थोड़े हैं। उनसे भी कोई पूरा कोर्स उठायेंगे। मेहनत करनी होती है। वह शास्त्र आदि पढ़ना तो सहज है। आजकल तो बहुत हैं जो गीता सारी कण्ठ कर लेते हैं। बहुत शास्त्र आदि भी कण्ठ कर लेते हैं। श्लोक बैठ सुनाते हैं तो समझते हैं यह तो बड़ा विद्वान है, मेहनत करते हैं ना। मेहनत करते, कण्ठ भी करते हैं। फिर उनको शास्त्रों की अथॉरिटी कहते, बहुत पढ़ते हैं ना। बाबा तो बिल्कुल थोड़ी बात सुनाते हैं। अब सब तमोप्रधान, पतित बन गये हैं, इनको कोई वाइसलेस दुनिया नहीं कहेंगे। तब तो पतित-पावन बाप को बुलाते हैं कि बाबा हमको आकर फिर से पावन बनाओ। मुक्ति, जीवनमुक्ति दो। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है।

बाबा ने समझाया है - सबका पुरुषार्थ एक जैसा हो न सके, सतयुग में भी सब नहीं आ सकते। बाप तुम्हें कितनी बातें समझाते हैं। यहाँ तो कोई शास्त्र पढ़कर नहीं सुनाने हैं, सिर्फ सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज बुद्धि में रखनी है और सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है यह सबको समझाना है। इसमें कोई डिफीकल्ट बात नहीं है, बहुत सहज है। सूर्य-वंशी, चन्द्र-वंशी फिर वैश्य-वंशी, शूद्र-वंशी... यह चक्र लगाते आते हैं। बाकी रही याद की यात्रा। बाप को याद जरूर करना पड़े। पति को सारी आयु याद करते हैं ना। स्त्री का बच्चों से भी जास्ती प्यार पति से होता है। अभी यह तो है पतियों का पति साजन, जो तुम्हें 21 जन्मों के लिए सद्गति में ले जाते हैं। ऐसे साजन को क्यों नहीं याद करना चाहिए, परन्तु माया याद करने नहीं देती। जितना तुम याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। दो बाप पर भी समझाना है। लौकिक बाप होते पारलौकिक बाप को याद करते हैं - दुःख के समय जब सुख में हैं तो कोई भी याद नहीं करते। वह बाप है ही दुःख हर्ता सुख-कर्ता, वह इतना तो सुख देते हैं जो 21 जन्म कभी हम उनको याद नहीं करते। गायन भी है दुःख में सिमरण सब करें। यह बुद्धि में आना चाहिए। दुःख खत्म कर हमको सुख ऐसे देते हैं। जो कभी याद करने की भी दरकार नहीं रहती है। फिर भक्ति मार्ग में दो बाप होते हैं। दु:ख में भगवान को याद करते हैं। भगवान हमको धन दो, यह करो... हमारे दुःख दूर करो। इस समय तुम भी दुःख हरते हो, ज्ञान देते हो ना। देवियों के पास भी जाते हैं ना - हमारी यह आशा पूर्ण करो। तुम हो देवियाँ। बहुत करके देवियों पास जाते हैं। देवों पास भी जाते हैं। महावीर मेल है, मेल की भी सब पूजा करते हैं। कुछ न कुछ जाकर माँगते रहते हैं। अभी समझ में आता है। आगे थोड़ेही मालूम था कि हम ही पूज्य थे, अब हम पूज्य से पुजारी बने हैं। आत्मा ही शुद्ध बनती है फिर आत्मा ही अशुद्ध बनती है। आत्मा ही पवित्र बन, देवता बनती है फिर वही आत्मा पुनर्जन्म लेते नीचे उतरती है। पूज्य से पुजारी बन अपने ही जड़ चित्रों को बैठ पूजती हैं। आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। हम खुद ही अपने को पूजने लगते हैं। वन्डर है ना। तुम जानते हो - त्रेता अन्त तक हम पूज्य रहेंगे फिर हम ही पुजारी बनेंगे। हम 21 जन्म बरोबर पूज्य थे फिर नीचे उतरते आये हैं। भक्ति भी पहले सतोप्रधान थी फिर रजो, तमो हो जाती है। तो यह तो तुम बच्चों की बुद्धि में आया है कि हम ही 84 जन्म लेते हैं। पावन थे फिर 84 जन्म लेते-लेते अभी आकर पतित बनते हैं। 84 जन्मों की कहानी है ना। बाप कहते हैं - तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। अभी बाप ने समझाया है - 21 जन्म तुम पूज्य देवता बनते हो, फिर पुजारी बनते हो। इस समय बाप हमारी माँग ऐसी पूरी करते हैं, जो 21 जन्म के लिए फिर कभी माँगना ही नहीं पड़ेगा। इस समय तुम बच्चों को बहुत बहुत मस्ती चढ़नी चाहिए। कोई मर गया तो भी साक्षी होकर देखा जाता है, कल्प पहले भी हुआ था। खुद की अवस्था को पक्का रखना चाहिए। बाप की याद में रहने से विकर्म विनाश होंगे। बच्चे जानते हैं - हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। हम आत्माओं को धारण करना है फिर दूसरों को सुनाना है। जो नजदीक वाले सम्बन्धी आदि हैं, उनको समझाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर स्त्री आती है, पति नहीं आता है तो भी घर में झगड़ा चल पड़ता है। पहले तो उनको मिटाना है। यह भी ड्रामा में नूॅंध है, कल्प पहले ऐसे चला होगा फिर भी प्रेम से बैठ समझाने से कोई सुजाग भी होते हैं। कृष्ण के लिए ग्लानी करते हैं। ऐसे था, यह करता था, भगाता था। प्रिन्स कृष्ण के लिए तो ऐसी ग्लानी हो न सके। कृष्ण होता तो उनके पास सब भागकर आ जाते, कहाँ से भी। यह प्रिन्स कृष्ण की बात है नहीं। कृष्ण गाली खा न सके। जरूर दूसरा है, जिसको गालियाँ मिली थी। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। कृष्ण तो यहाँ आ भी नहीं सकता।

तुम बच्चे जब याद की यात्रा पर रहो, खाद निकले तब है बात। आगे चल जब विनाश का समय आयेगा, अर्थक्वेक होगी, फिर जागेंगे। जब किसको चोट लगती है तब तो बुलायेंगे ना। आजकल कोई मरता है तो ब्रह्माकुमारियों को बुलाते हैं आकर शान्ति दो। आगे भक्तों को बुलाते थे या ग्रंथ आदि रखते थे। अब कहते हैं - ब्रह्माकुमारियों को बुलाओ तो मन को शान्ति देवें। तुम्हारे जैसा और कोई हो नहीं सकता। तुम्हारे में कोई हंगामा नहीं है, सिर्फ बाप का परिचय देते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो राहू की दशा बैठ जाती है। फिर ट्रेटर बन पड़ते हैं तो बड़ा नुकसान करते हैं। इन बातों में कभी अफसोस नहीं करना चाहिए। कल्प पहले भी हुआ था। कोई नई बात नहीं है, अफसोस की बात नहीं। ऐसे नशे में मजबूत रहना है। राजधानी स्थापन करने में कुछ तो सहन करना पड़ता है। बिगर मेहनत थोड़ेही बाबा सिर पर ताज रख देंगे। फिर तो सब पर रख देते। बाप समझाते रहते हैं - सबको पुरूषार्थ करना है। बच्चे भी समझते हैं - बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। उनकी श्रीमत पर चलना है। धन मिलने से खुशी का पारा चढ़ता है। बाबा से हम अपना वर्सा ले रहे हैं। बाबा का फरमान है मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे फिर तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जायेंगे। परन्तु जब देही-अभिमानी बनें ना, इसमें बड़ी मेहनत है। कहते भी हैं हम तो आपको ही याद करेंगे। मेरा तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई... परन्तु फिर भूल जाते हैं।

बाप कहते हैं - तुमको अब ले जाता हूँ, नई दुनिया में। नई दुनिया थी, अब नर्क बन पड़ा है फिर स्वर्ग बनना है। स्वर्ग बनाने वाले का नाम ही है हेविनली गॉड फादर। बाप खुद कहते हैं - मैं आया हूँ, तुमको स्वर्गवासी बनाने। तुमको ज्ञान और योग सिखाता हूँ। मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और सृष्टि चक्र को समझ लो। दुनिया में तो कोई नहीं जानते। ऋषि-मुनि भी नहीं जानते थे तो फिर उनकी जो वंशावली चली आई है, वह कैसे जानेंगे। इन लक्ष्मी-नारायण को भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है। तुम बच्चे भी बाप से मास्टर ज्ञान सागर बने हो। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कल्प पहले की स्मृति में रहकर किसी भी बात का अफसोस नहीं करना है। अपने नशे में मजबूत रहना है। सब कुछ सहन कर अपनी राजधानी स्थापन करनी है।

2) साक्षी होकर हर एक के पार्ट को देखना है। अपने नजदीक के सम्बन्धी को सुजाग करने के लिए प्रेम से समझाना है। पहले घर के झगड़े को मिटाना है।

वरदान:-
अटूट कनेक्शन द्वारा करेन्ट का अनुभव करने वाले सदा मायाजीत, विजयी भव

जैसे बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती है जो मनुष्य दूर जाकर गिरता है, शॉक आ जाता है। ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे, ऐसी करेन्ट होनी चाहिए लेकिन करेन्ट का आधार कनेक्शन है। चलते फिरते हर सेकण्ड बाप के साथ कनेक्शन जुटा हुआ हो। ऐसा अटूट कनेक्शन हो तो करेन्ट आयेगी और मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।

स्लोगन:-
तपस्वी वह है जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त है।