ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। कौन-सा भगवान्? भोलानाथ शिव भगवानुवाच। बाप भी समझाते हैं, टीचर का भी
काम है समझाना। सतगुरू का भी काम है समझाना। शिवबाबा को ही सत बाबा, भोलानाथ कहा
जाता है। शंकर को भोला नहीं कहेंगे। उनके लिए तो कहते हैं आंख खोली तो सृष्टि को
भस्म कर दिया। भोला भण्डारी शिव को कहते हैं अर्थात् भण्डारा भरपूर करने वाला। कौनसा
भण्डारा? धन-दौलत, सुख-शान्ति का। बाप आये ही हैं पवित्रता-सुख-शान्ति का भण्डारा
भरपूर करने। कलियुग में पवित्रता-सुख-शान्ति का देवाला है क्योंकि रावण ने श्राप
दिया हुआ है। सब शोक वाटिका में रोते पीटते रहते हैं। भोलानाथ शिव बैठ सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं अर्थात् तुम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
ड्रामा को तो और कोई जानते नहीं। माया ने बिल्कुल ही बेसमझ बना दिया है। भारत का ही
यह हार-जीत, दु:ख-सुख का नाटक है। भारत हीरे जैसा सालवेन्ट था, अब कौड़ी जैसा
इनसालवेन्ट है। भारत सुखधाम था, अब दु:खधाम है। भारत हेविन था, अब हेल है। हेल से
फिर हेविन कैसे बनता है, उसके आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिवाए ज्ञान सागर के कोई समझा
न सके। यह भी बुद्धि में निश्चय होना चाहिए। निश्चय उनको होता है जिनकी तकदीर खुलनी
होती है, जो सौभाग्यशाली बनने वाले हैं। दुर्भाग्यशाली तो सब हैं ही। दुर्भाग्यशाली
माना तकदीर बिगड़ी हुई है। भ्रष्टाचारी हैं। बाप आकर श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। परन्तु
उस बाप को भी कोई मुश्किल समझ सकते हैं क्योंकि उनको देह नहीं है। सुप्रीम आत्मा
बात करती है। पावन आत्मायें होती ही हैं सतयुग में। कलियुग में सब पतित हैं। अनेक
मनोकामनायें लेकर जगदम्बा के पास जाते हैं, जानते कुछ भी नहीं फिर भी बाप कहते हैं
जो-जो, जिस-जिस भावना से पूजा करते हैं तो मैं उनको अल्पकाल क्षणभंगुर लिए फल दे
देता हूँ। जड़ मूर्ति कभी उसका फल नहीं दे सकती। फल देने वाला, अल्पकाल सुख देने
वाला मैं ही हूँ और बेहद के सुख का दाता भी मैं ही हूँ। मैं दु:खदाता नहीं हूँ। मैं
तो दु:ख हर्ता सुख कर्ता हूँ। तुम आये हो सुखधाम में स्वर्ग का वर्सा पाने। इसमें
परहेज बहुत है। बाप समझाते हैं आदि में है सुख, फिर मध्य में भक्ति मार्ग शुरू होता
है तो सुख पूरा हो दु:ख शुरू होता है। फिर देवी-देवता वाम मार्ग, विकारी मार्ग में
गिर पड़ते हैं। जहाँ से ही फिर भक्ति शुरू होती है। तो आदि में सुख, मध्य में दु:ख
शुरू होता है। अन्त में तो महान् दु:ख है। बाप कहते हैं अब सर्व का शान्ति, सुख दाता
मैं हूँ। तुमको सुखधाम में चलने लिए तैयार कर रहा हूँ। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू
कर शान्तिधाम में चले जायेंगे। सजायें तो बहुत खायेंगे। ट्रिब्युनल बैठती है। बाबा
ने समझाया है काशी में भी बलि चढ़ते थे। काशी कलवट कहते हैं ना। अब काशी में है शिव
का मन्दिर। वहाँ भक्ति मार्ग में शिवबाबा की याद में रहते हैं। कहते हैं - बस, अब
आपके पास आऊं। बहुत रो-रो कर शिव पर बलि चढ़ते हैं तो अल्पकाल क्षण भंगुर थोड़ा फल
मिल जाता है। यहाँ तुम बलि चढ़ते हो अर्थात् जीते जी शिवबाबा का बनते हो 21 जन्म का
वर्सा पाने के लिए। जीवघात की बात नहीं। जीते जी बाबा मैं आपका हूँ। वह तो शिव पर
बलि चढ़ते हैं, मर जाते हैं, समझते हैं हम शिवबाबा का बन जाऊंगा। परन्तु बनते नहीं
हैं। यहाँ तो जीते जी बाप का बने, गोद में आये फिर बाप की मत पर चलना पड़े, तब ही
श्रेष्ठ देवता बन सकते हैं। तुम अब बन रहे हो। कल्प-कल्प तुम यह पुरुषार्थ करते आये
हो। यह कोई नई बात नहीं।
दुनिया पुरानी होती है। फिर जरूर नई चाहिए ना। भारत नया सुखधाम था, अब पुराना
दु:खधाम है। मनुष्य इतने पत्थरबुद्धि हैं जो यह नहीं समझते कि सृष्टि एक ही है। वह
सिर्फ नई और पुरानी होती है। माया ने बुद्धि को ताला लगाए बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि
बना दिया है, इसलिए आक्यूपेशन जानने बिगर ही देवताओं की पूजा करते रहते हैं, इसको
ब्लाइन्डफेथ कहा जाता है। देवियों की पूजा में करोड़ों रूपया खर्च करते हैं, उनकी
पूजा कर खिला-पिलाकर फिर समुद्र में डुबो देते हैं तो यह गुड़ियों की पूजा हुई ना।
इससे क्या फायदा? कितना धूमधाम से मनाते हैं, खर्चा करते हैं, हफ्ता बाद जैसे शमशान
में दफन करते हैं वैसे यह फिर सागर में डुबो देते हैं। भगवानुवाच - यह आसुरी
सम्प्रदाय का राज्य है, मैं तुमको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ। कोई को निश्चय बैठना
बड़ा कठिन है क्योंकि साकार में नहीं देखते। आगाखां साकार में था तो उनके कितने
फालोअर्स थे, उनको सोने-हीरों में वज़न करते थे। इतनी महिमा कोई बादशाह की भी नहीं
होती। तो बाप समझाते हैं - इसको अन्धश्रधा कहा जाता है क्योंकि स्थाई सुख तो नहीं
है ना। बहुत गन्दे भी होते हैं, बड़े-बड़े आदमियों से बड़े पाप होते हैं। बाप कहते
हैं मैं गरीब निवाज हूँ। गरीबों से इतने पाप नहीं होंगे। इस समय सब पाप आत्मायें
है। अभी तुमको बेहद का बाप मिला है फिर भी घड़ी-घड़ी उनको भूल जाते हो। अरे, तुम
आत्मा हो ना! आत्मा को भी कभी कोई ने देखा नहीं है। समझते हैं स्टॉर मिसल भ्रकुटी
के बीच रहती है। जब आत्मा निकल जाती है तो शरीर खलास हो जाता है। आत्मा स्टॉर मिसल
है तो जरूर मुझ आत्मा का बाप भी हमारे जैसा होगा। परन्तु वह सुख का सागर, शान्ति का
सागर है। निराकार वर्सा कैसे देंगे? जरूर भ्रकुटी के बीच आकर बैठेंगे। आत्मा अब
ज्ञान धारण कर दुर्गति से सद्गति में जाती है। अब जो करेगा सो पायेगा। बाप को याद
नहीं करते तो वर्सा भी नहीं पायेंगे। कोई को आप समान वर्सा पाने लायक नहीं बनाते
हैं तो समझते हैं पाई-पैसे का पद पा लेंगे। श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी किसको कहा
जाता है, यह बाप बैठ समझाते हैं। भारत में ही श्रेष्ठाचारी देवतायें होकर गये हैं।
गाते भी हैं हेविनली गॉड फादर........ परन्तु जानते नहीं हैं कि हेविनली गॉड फादर
कब आकर सृष्टि को हेविन बनाते हैं। तुम जानते हो, सिर्फ पूरा पुरुषार्थ नहीं करते
हो, वह भी ड्रामा अनुसार होना है, जितना जिसकी तकदीर में है। बाबा से अगर कोई पूछे
तो बाबा झट बता सकते हैं कि इस चलन में अगर तुम्हारा शरीर छूट जाए तो यह पद पायेंगे।
परन्तु पूछने की भी हिम्मत कोई नहीं रखते हैं। जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं वह समझ
सकते हैं हम कितने अंधों की लाठी बनते हैं? बाप भी समझ जाते हैं - यह अच्छा पद
पायेंगे, यह बच्चा कुछ भी सर्विस नहीं करता तो वहाँ भी दास-दासी जाकर बनेंगे। झाड़ू
आदि लगाने वाले, श्रीकृष्ण की पालना करने वाले, महारानी का श्रृंगार करने वाले
दास-दासियां भी होते हैं ना। वह हैं पावन राजायें, यह हैं पतित राजायें। तो पतित
राजायें पावन राजाओं के मन्दिर बनाकर उन्हों की पूजा करते हैं। जानते कुछ भी नहीं।
बिरला मन्दिर कितना बड़ा है। कितने लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते हैं, परन्तु
जानते नहीं कि लक्ष्मी-नारायण कौन हैं? फिर उनको कितना फ़ायदा मिलेगा? अल्पकाल का
सुख। जगत अम्बा के पास जाते हैं, यह थोड़ेही जानते कि यह जगत-अम्बा ही लक्ष्मी बनती
है। इस समय तुम जगत अम्बा से विश्व की सब मनोकामनायें पूरी कर रहे हो। विश्व का
राज्य ले रहे हो। जगत अम्बा तुमको पढ़ा रही है। वही फिर लक्ष्मी बनती है। जिससे फिर
वर्ष-वर्ष भीख मांगते हैं। कितना फ़र्क है! लक्ष्मी से हर वर्ष पैसे की भीख मांगते
हैं। लक्ष्मी को ऐसे नहीं कहेंगे हमको बच्चा चाहिए या बीमारी दूर करो। नहीं, लक्ष्मी
से सिर्फ धन मांगते हैं। नाम ही है लक्ष्मी-पूजन। जगत अम्बा से तो बहुत कुछ मांगते
हैं। वह सब कामनायें पूरी करने वाली है। अभी तुमको जगत अम्बा से मिलती है - स्वर्ग
की बादशाही। लक्ष्मी से हर वर्ष कुछ न कुछ धन का फल मिलता है, तब तो हर वर्ष पूजा
करते हैं। समझते हैं धन देने वाली है। धन से फिर पाप करते रहते। धन प्राप्ति के लिए
भी पाप करते हैं।
अभी तुम बच्चों को मिलते हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, जिससे तुम मालामाल बन जायेंगे।
जगत अम्बा से स्वर्ग की राजाई मिलती है। वहाँ पाप होता नहीं। कितनी समझ की बातें
हैं। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई तो कुछ समझते नहीं हैं क्योकि तकदीर में नहीं
है। श्रीमत पर नहीं चलते तो श्रेष्ठ थोड़ेही बनेंगे। फिर पद भ्रष्ट हो जाता है। सारी
राजधानी स्थापन हो रही है - यह समझना है। गॉड फादर हेविनली किंगडम स्थापन कर रहे
हैं फिर भारत हेविन बन जायेगा। इसको कहा जाता है कल्याणकारी युग। यह है बहुत से
बहुत 100 वर्ष का युग। और सभी युग 1250 वर्ष के हैं। अजमेर में वैकुण्ठ का मॉडल है,
दिखलाते हैं स्वर्ग कैसा होता है। स्वर्ग तो जरूर यहाँ ही होगा ना। थोड़ा भी सुना
तो स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु पढ़ेंगे नहीं तो जैसे भील हैं। प्रजा भी नम्बरवार होती
है ना। परन्तु वहाँ गरीब, साहूकार सुख सबको रहता है। यहाँ तो दु:ख ही दु:ख है। भारत
सतयुग में सुखधाम था, कलियुग में दु:खधाम है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट
होनी है। गॉड एक है। वर्ल्ड भी एक है। नई वर्ल्ड में पहले है भारत। अभी भारत पुराना
है जिसको फिर नया बनना है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी ऐसे रिपीट होती रहती है
और कोई इन बातों को नहीं जानते। सब तो एक जैसे नहीं होते हैं। मर्तबे तो वहाँ भी
रहेंगे। वहाँ सिपाही लोग होते नहीं क्योंकि वहाँ डर होता नहीं। यहाँ तो डर है इसलिए
सिपाही आदि रखते हैं। भारत में टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं। सतयुग में पार्टीशन होता
नहीं। लक्ष्मी-नारायण का एक ही राज्य चलता है। पाप कोई होता नहीं। अब बाप कहते हैं
- बच्चे, मेरे से सदा सुख का वर्सा लो, मेरी मत पर चलकर। सद्गति का मार्ग एक ही बाप
दिखाते हैं। यह है शिव शक्ति सेना, जो भारत को स्वर्ग बनाती है। यह तन-मन-धन सब इस
सेवा में लगाते हैं। उस बापू जी ने क्रिश्चियन को भगाया, यह भी ड्रामा में था।
परन्तु उनसे कोई सुख नहीं हुआ। यह मिलेगा, यह होगा........। मिलना है सिर्फ बाप से।
बाकी यह तो सब ख़त्म हो जायेगा। कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो, उसके लिए माथा मारते
रहते हैं, होगा कुछ भी नहीं। अभी थोड़ी लड़ाई शुरू हो जाए तो फेमन पड़ जायेगा। एक-दो
में मारामारी हो जायेगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी बाप पर बलि चढ़ना है अर्थात् बाप का बनकर बाप की ही श्रीमत
पर चलना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर जगदम्बा समान सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने
वाला बनना है।