07-01-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 10.01.91 "बापदादा" मधुबन
चार सत्ताओं के बैलेन्स
से बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनो
आज सर्वशक्तिमान
बापदादा अपने सर्व बच्चों की विशेष शक्तियों को देख रहे हैं। आज के विश्व में विशेष
तीन शक्तियां हैं - एक धर्म सत्ता, दूसरी राज्य सत्ता, तीसरी विज्ञान की सत्ता।
लेकिन आप ब्राह्मण आत्माओं में चार सत्तायें हैं। पहली तीन सत्तायें तो हैं ही,
साथ-साथ चौथी सत्ता है - श्रेष्ठ कर्मों की सत्ता। आज के विश्व में इस चौथी सत्ता
की कमी है, इसको ही कहा जाता है श्रेष्ठ चरित्र की सत्ता। इन चार सत्ताओं द्वारा आप
ब्राह्मण आत्मायें अपना और विश्व का कल्याण कर रही हो। अच्छी तरह से जानते हो कि
चारों ही सत्तायें हमारे में हैं। चारों ही हैं वा सिर्फ एक धर्म की सत्ता है? धर्म
सत्ता अर्थात् सदा श्रेष्ठ सुखी, खुशनुम: जीवन जीने की कला। इसको ही धर्म अर्थात्
धारणा कहा जाता है। राज्य सत्ता अर्थात् अपने को और राज्य को अर्थात् अपने कर्म
साथियों को अपने स्नेह और शक्ति के बैलेन्स द्वारा सर्व प्राप्ति, सन्तुष्टता का
अधिकार दाता बन अनुभव कराना। राजा अर्थात् दाता। हर एक द्वारा सन्तुष्टता की वाह!
वाह! हो। यह है यथार्थ राज्य सत्ता। तो राज्य सत्ता अर्थात् स्वयं चलने की और औरों
को चलाने की कला।
विज्ञान की सत्ता
अर्थात् विज्ञान द्वारा, साधनों द्वारा प्रत्यक्ष फल की अनुभूति कराने की कला।
श्रेष्ठ कर्म की सत्ता अर्थात् कर्म का वर्तमान फल खुशी और शक्ति अनुभव करना और
साथ-साथ भविष्य फल जमा होने की अनुभूति होना, इसको कहते हैं कर्म के खज़ानों की
सम्पन्नता के नशे की कला। अब सोचो यह चारों कलायें आपके जीवन में हैं? सबसे बड़ा
खज़ाना श्रेष्ठ कर्मों का खज़ाना है। अगर श्रेष्ठ कर्मों का खज़ाना जीवन में नहीं
है तो मानव जीवन अमूल्य जीवन नहीं लेकिन पशु समान जीवन है। आप सभी किस अथॉरिटी से
विश्व के आगे चैलेन्ज करते हो कि जीवन जीना सीखना हो तो यहाँ आकर सीखो। यह चैलेन्ज
करते हो ना। राजनेता हो, चाहे विज्ञानी नेता हो, चाहे धर्म नेता हो सबके आगे रूहानी
फखुर से कहते हो - बेफिकर बादशाह बनके देखो। बादशाह हो ना! जीवन का यथार्थ आनन्द
अनुभव कर रहे हो ना! सबसे बड़ा खज़ाना किसके पास है? (हमारे पास है) अथॉरिटी से कहते
हो ना क्योंकि दुनिया में तीन सत्तायें हैं, आपके पास 4 चार सत्तायें हैं। और चारों
ही सत्ताओं का बैलेन्स यही बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण स्थिति है।
तपस्या वर्ष में क्या
करेंगे? इन चारों सत्ताओं को चेक करना। चारों ही सत्ताओं के आधार से एकरस स्थिति का
आसन सदा अचल-अडोल रहेगा। तपस्या सदैव आसन पर करते हैं। तो यह चार सत्ताओं रूपी चार
पांव एकरस स्थिति के आसन को मजबूत करेंगे। हर समय बेफिकर बादशाह का अनुभव करायेंगे।
बादशाह अर्थात् अधिकारी और प्रजा अर्थात् अधीन रहना पड़ता है। तो आप बेफिकर बादशाह
हो, बेफिकर प्रजा नहीं हो। राजयोगी हो, प्रजायोगी नहीं हो। इस बेफिकर बादशाही की
निशानी क्या दिखाई देती? जितना अधिकारी उतना ही सर्व के सत्कारी। सिर्फ अधिकारी नहीं।
अधिकारी की परख ही सत्कारी से होती है। सुनाया ना कि योग्य राजा की निशानी है -
सर्व द्वारा सन्तुष्टता के पुष्पों की वर्षा हो। वाह! वाह! के गीत हों। ऐसी राज्य
सत्ता प्राप्त की है? पहले अपने समीप के कर्म-साथी, कर्मेन्द्रियों को चेक करो कि
मुझ आत्मा राजा के स्नेह और शक्ति अर्थात् लव और लॉ दोनों ही सदा ऑर्डर में चलते
हैं या कभी-कभी? मजबूरी से चल रहे हो या मुहब्बत से चल रहे हो? दिखावा मात्र है या
दिल से? ऐसे ही सारे दिन की दिनचर्या में अपने कर्म सम्बन्धी या कर्म के साथियों को
देखो, उसके साथ सर्व सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को देखो कि मुझ राज्य अधिकारी
आत्मा द्वारा कितने परसेन्ट में और कितने सन्तुष्ट, हर्षित रहे? यह है राज्य सत्ता
की यथार्थ अनुभूति। विज्ञान के सत्ता की चेकिंग कैसे करेंगे?
हद का विज्ञान हद के
स्थूल साधनों द्वारा सुख, आराम की अनुभूति कराते हैं। आपका विज्ञान है योग शक्ति।
योग बड़े ते बड़ा विज्ञान है। वहाँ है साधन और यहाँ है साधना। आत्मा को मन और बुद्धि
की साधना द्वारा कितना दूर ले जाते हो? हद के विज्ञानी सूर्य तक नहीं पहुंच सके और
बेहद के विज्ञानी चन्द्रमा सूर्य से भी पार मन और बुद्धि की साधना द्वारा कितने समय
में पहुँचते हो? और कितना खर्चा लगता है? समय को कहते हैं टाइम इज़ मनी। स्थूल मनी
तो नहीं लगती लेकिन टाइम की मनी भी नहीं लगती। तो कितना बड़ा विज्ञान है। वह
एयरकन्डीशन द्वारा सुख देते, आराम देते और आप साधना द्वारा जब चाहो तब शीतल स्थिति
का अनुभव करो। जब चाहो तब ज्वाला रूप का, शक्ति रूप का अनुभव कर सकते हो। हद का
विज्ञान थोड़े समय के लिए आराम देने के निमित्त बनता है लेकिन आप सदा आराम में रहते
हो। चैन की नींद में सोते हो। चैन से उठते हो और चैन से सारा कार्य करते हो। बेचैन
होते हो क्या? जब आसन से उतर आते हो तब बेचैन होते हो, नहीं तो बेचैन का नाम-निशान
नहीं है।
विज्ञान और क्या करता
है? मनोरंजन का साधन देता और आपका मन उदास होता ही नहीं जो हद के मनोरंजन की
आवश्यकता हो क्योंकि उदास तब होते जब मन के दास बनते हो। दास बनते हो क्या? या
कभी-कभी 63 जन्मों के संस्कार आ जाते हैं। अभी तो बादशाह बन गये ना। न दास बनते, न
उदास होते, इसलिए मन सदा मौज में रहता है। एकान्त में है तो भी मौज में है, संगठन
में है तो भी मौज में है। सदा मौजों के दाता मालिक बाप के साथ रहते हो ना कि कभी-कभी
रूठ जाते हो? रूठना नहीं। मन अथवा मुँह को फेर नहीं देना। ऐसे चेक करो कि विज्ञान
की सत्ता कहाँ तक अविनाशी रहती है! ऐसे ही धर्म सत्ता।
धर्म अर्थात् श्रेष्ठ
जीवन जीने की कला। यह धारणा ही धर्म है। आप सब तो धर्म आत्मायें भी हो और श्रेष्ठ
कर्म आत्मायें भी हो। तो यह चेक करो कि ब्राह्मण जीवन में जी रहे हैं। ब्राह्मण
जीवन अर्थात् सदा निर्विकल्प, निर्विघ्न, निर-विकर्मी, सदा निराकारी सो साकारी। इसको
कहा जाता है जीने की कला। जहाँ कोई हद की इच्छा नहीं, कोई अप्राप्ति नहीं। सदा यह
गीत गाते रहें - पाना था वह पा लिया, इसको ही कहा जाता है धर्म सत्ता। अब सोचो चारों
ही सत्तायें हैं? चारों ही पांव एकरस हैं? या एक छोटा एक बड़ा है? चारों पांव एकरस
होंगे तब ही अचल होगा नहीं तो हलचल होगी। तो सुना क्या देख रहे थे। हर एक बच्चे में
चारों सत्तायें कहाँ तक जमा हैं। खुशी से जीने वाले हो ना। मजबूरी से जी रहे हैं,
चल रहे हैं, चलना ही है, इसको जीना नहीं कहते। कभी मरता है, कभी जीता है, कभी सांस
रुक जाता है, कभी ढीला हो जाता है, कभी तेज हो यह कोई जीना नहीं है। अच्छा।
(किसी बहन को कुछ
तकलीफ हुई)
सेकेण्ड में फुल
स्टॉप लगाने आता है कि टाइम लगता है? बीती सो बीती, फुलस्टॉप, यही विज्ञान है।
विज्ञान भी चीज़ को मिटा देता है ना। बेहद के विज्ञान की सत्ता से सेकेण्ड में
बिन्दी लगाना अर्थात् फुलस्टॉप लगाना इसके लिए ही तपस्या का गोल्डन चांस मिला है
क्योंकि फाइनल पेपर में चारों ओर पांच तत्व प्रकृति के और पांच विकार सभी मिलकर
हलचल में लाने का प्रयत्न करेंगे। अति हलचल में सेकेण्ड में अचल रहने वाले ही पास
विद ऑनर बनेंगे। ऐसे नहीं समझना कि लास्ट में एकान्त में बैठ पेपर देना है। अति
हलचल में अति अचल यह है पेपर। यही क्वेश्चन आयेगा, इसलिए अभी से अभ्यास करो। बाहर
की हलचल मन को हलचल में नहीं लाये, इसको ही कहा जाता है विजयी रत्न। अच्छा।
चारों ओर के श्रेष्ठ
धर्म सत्ता वाली धर्म आत्माओं को, बेहद के विज्ञान सत्ता वाली साधना स्वरूप आत्माओं
को, राज्य सत्ता वाले स्वराज्य अधिकारी आत्माओं को, श्रेष्ठ कर्म सत्ता वाले
कर्मयोगी आत्माओं को बापदादा का, बेफिकर बादशाह बनाने वाले बाप का यादप्यार और
नमस्ते।
अच्छा - आज टीचर्स ने
भी त्याग किया है। (सभी टीचर्स पीछे बैठी हैं) तो त्याग का भाग्य स्वरूप याद-प्यार
विशेष स्वीकार हो। टीचर्स का काम ही है औरों को आगे बढ़ाना। अच्छा किया प्रैक्टिकल
कर्म करके दिखाया, इसकी मुबारक। अच्छा डबल विदेशियों के भी पत्र और कार्ड बहुत आये
हैं, देश वालों के भी कार्ड और पत्र बहुत आये हैं। कार्ड कहाँ रखे हैं? दिल की
डिब्बी में सम्भालकर रखे हुए हैं, जिन्होंने भी नये वर्ष की विशेष यादप्यार भेजी
है, उन्हों सहित सभी बच्चों को नये वर्ष के हर समय में नवीनता की मुबारक हो, मुबारक
हो। अब विश्व में एक एक्जैम्पुल बनकर दिखाओ कि कर्मयोगी स्थिति की क्या कमाल होती
है, जो एक्जैम्पुल बनता है, ड्रामा में एक्जाम के टाइम उसे एक्स्ट्रा मार्क्स मिलती
हैं। अच्छा।
पार्टियों से अव्यक्त
बापदादा की मुलाकात:-
1. बाप के साथ रहने
से श्रेष्ठ स्थिति का सहज अनुभव कर रहे हो ना। दिन रात बाप के साथ की अनुभूति करने
से सहज ही श्रेष्ठ अनुभव करते रहेंगे क्योंकि समीप से शक्ति मिलती है। जैसे साकार
में समीप रहना सहज लगता है, ऐसे अव्यक्त में जितना अटेन्शन देते रहेंगे उतना सहज
अनुभव करते जायेंगे। सभी निरन्तर योगी हो ना। योगी जीवन वाले हो, जीवन निरन्तर होती
है, दो घण्टे की नहीं होती। जब एक बार अनुभव कर लिया कि बाप मेरा, मैं बाप का तो
अलग कैसे हो सकते। निरन्तर योगी जीवन में अतीन्द्रिय सुख, आनन्द की अनुभूति होती है
और मेहनत भी नहीं है। मेहनत वाला काम कभी-कभी किया जाता और जो सहज होता है वो सदा
कर सकते हैं। तो सहज लगता है या मुश्किल लगता है? माया तो नहीं आती? इस समय नशा चढ़ा
हुआ है तो माया दिखाई नहीं देती फिर वहाँ जायेंगे तो कहेंगे क्या करें, हो गया।
निरन्तर की स्थिति अच्छी है। एक बाप के सिवाए और ऊंचा है ही क्या। एक ऊंची चीज़
प्रिय लगती है और दूसरा जो प्यारा होता है, वह प्रिय लगता है। तो सबसे प्यारा, सबसे
ऊंचा बाप ही है ना। तो और क्या याद आयेगा! सिर्फ बीच-बीच में अपने को चेक करते रहो।
थोड़ा भी परसेन्टेज कम हो तो उसको बढ़ा देना चाहिए। फिर माया को आने की मार्जिन नहीं
रहेगी। लेकिन होता क्या है, चलते-चलते साधारण स्थिति होती जाती है और समझते हैं याद
तो है ही, भूले तो हैं ही नहीं। लेकिन साधारण होते-होते विस्मृति की ओर चले जाते
हैं, इसलिए साधारण भी होने नहीं दो। थोड़ा भी परसेन्टेज कम हो तो एड कर लो, तो सदा
ही शक्तिशाली रहेंगे। शक्तिशाली आत्मा के बीच में माया के आने की हिम्मत नहीं होती।
माया आये, फिर युद्ध करो, इसमें समय चला जाता है और लिंक टूट जाता है। टूटे हुए
लिंक को जोड़ना, उसमें निरन्तर में अन्तर पड़ जाता है इसलिए साधारण स्थिति भी होने
नहीं दो। इस गलती में नहीं रहो कि बाप की याद तो है ही नहीं, लेकिन सदा याद स्वरूप
हैं? याद स्वरूप अर्थात् शक्तिशाली। कभी-कभी काम, क्रोध, लोभ, मोह बड़े विकार नहीं
आते हैं लेकिन अपना ही स्वभाव या अपना ही संस्कार साधारण स्थिति बना देता है। यह
अलबेलेपन के रूप में माया आती है। स्टड़ी रोज़ करते हैं, मुरली भी सुनते, सेवा भी
करते लेकिन जैसे होना चाहिए वैसे नहीं चल रहे हैं लेकिन स्पीड क्या है? चलने के साथ
स्पीड भी अच्छी हो। बाप सभी बच्चों को सदा ही ऊंच देखता है और सदा ही ऊंच देखने की
शुभ आशायें रखता है। अच्छा सभी श्रेष्ठ कर्म करने वाले कर्म की सत्ता वाले हो ना।
श्रेष्ठ कर्म की पूंजी जमा है ना। कितने जन्म चलेगी? कितना जमा किया है? पूरा कल्प
चलेगी या 21 जन्म चलेगी? आधाकल्प के बाद भी पूजे तो जायेंगे। पूज्य भी तब बनते हो
जब श्रेष्ठ कर्म का खज़ाना जमा करते हो। लास्ट जन्म भी देखो कितना अच्छा है। भिखारी
तो नहीं बने ना। दाल रोटी तो है। तो जब लास्ट जन्म अच्छा है तो और जन्म भी अति दुःखी
नहीं होंगे। ये तो सुखी के भेंट में दुःखी हैं, बाकी ऐसे दुःखी नहीं होते जो फकीर
बनकर रोटी मांगो। दुनिया के हिसाब से अति दुःखी नहीं होते, सतयुग के हिसाब से दुःखी
होते। अच्छा।
टीचर्स का भी लक है
जो सेवा की लॉटरी मिल जाती है। लॉटरी तो सबको मिलती है लेकिन इन्हों को सेवा की
लॉटरी विशेष मिली है। आप लोग भी टीचर्स को देख खुश होते हो ना या समझते हो टीचर्स
आगे क्यों? आगे रखने वाले स्वतः आगे हो जाते हैं। रिगार्ड देने वाले को रिगार्ड
मिलता जरूर है, यह एक अनादि नियम है। देना अर्थात् लेना और लेना अर्थात् गँवाना।
कोई लेने की कोशिश करते हैं मुझे रिगार्ड मिले, क्यों नहीं रिगॉर्ड देते। तो लेने
के पीछे जाना माना गँवाना और देना अर्थात् लेना। तो देने वाले दाता के बच्चे हो या
लेवता हो? देवता अर्थात् देने वाले। अच्छा है - बाप भी खुश, बच्चे भी खुश बाकी क्या
रहा। टीचर्स सबसे ज्यादा खुश हैं क्योंकि स्टूडेन्टस को देख करके खुशी होती है।
अच्छा।
वरदान:-
सदा
उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा उड़ती कला की स्थिति का अनुभव करने वाले कर्मयोगी भव
उमंग-उत्साह आप
ब्राह्मणों के उड़ती कला के पंख हैं। अगर कार्य अर्थ नीचे भी आते हो तो उड़ती कला
की स्थिति से, कर्मयोगी बन कर्म में आते हो। यह उमंग-उत्साह ब्राह्मणों के लिए बड़े
से बड़ी शक्ति है। नीरस जीवन नहीं है। उमंग-उत्साह का रस है तो कभी दिलशिकस्त नहीं
हो सकते, सदा दिलखुश। उत्साह, तूफान को भी तोहफा बना देता है। परीक्षा वा समस्या को
मनोरंजन अनुभव कराता है।
स्लोगन:-
जो अशरीरी स्थिति के अभ्यासी हैं उन्हें शरीर की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती।