28-05-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 23.12.94 "बापदादा" मधुबन
अपने तीन स्वरूप सदा
स्मृति में रहें -
1- संगमयुगी ब्राह्मण, 2- ब्राह्मण सो फ़रिश्ता और 3- फ़रिश्ता सो देवता
आज बापदादा चारों ओर
के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। सबसे श्रेष्ठ स्वरूप है ब्राह्मण और ब्राह्मण सो
फ़रिश्ता और फ़रिश्ता सो देवता। ब्राह्मण स्वरूप, फ़रिश्ता स्वरूप और देवता स्वरूप।
ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता सर्व शक्तियों सम्पन्न स्वरूप की है क्योंकि ब्राह्मण
अर्थात् मायाजीत। तो सर्व शक्ति सम्पन्न बनना ही मायाजीत बनना है। पहला स्वरूप
ब्राह्मण स्वयं को देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता (सर्व शक्तियाँ) धारण हुई
हैं? सर्व शक्तियाँ हैं वा कोई-कोई शक्ति है? अगर एक शक्ति भी कमजोर है वा कम है तो
ब्राह्मण स्वरूप के बदले बार-बार क्षत्रिय अर्थात् युद्ध करने वाले बन जाते हैं।
क्षत्रिय का कर्तव्य है युद्ध करना और ब्राह्मण का कर्तव्य है सदा और सहज मायाजीत
बनना। ब्राह्मण अर्थात् विजयी, सदा सर्व शक्तियों अर्थात् सर्व शस्त्रों से सम्पन्न
हैं। और क्षत्रिय अर्थात् कभी विजयी और कभी हार खाने वाले क्योंकि शक्तियाँ मिलते
हुए भी धारण नहीं कर सकते इसलिये समय और परिस्थिति प्रमाण सदा विजयी नहीं बन सकते।
ब्राह्मण स्वरूप अर्थात् सदा ताज, तख्त और तिलकधारी। विश्व कल्याण की ज़िम्मेदारी
के ताजधारी, सदा स्वत: स्मृति के तिलकधारी, सदा बाप के दिल तख्तनशीन। क्षत्रिय एकरस,
अचल, अडोल न होने के कारण कभी अचल, कभी हलचल, कभी अधिकारी और कभी बाप से शक्ति
मांगने वाले रॉयल भिखारी। ब्राह्मण अर्थात् सदा अलौकिक मौज के जीवन में रहने वाले।
सदा रूहानी सीरत और सूरत वाले। क्षत्रिय अर्थात् कभी कैसे, कभी कैसे। तो अपने से
पूछो मैं कौन? कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय या सदा ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं से
सम्पन्न हैं? लक्ष्य ब्राह्मण जीवन का है लेकिन कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय - ऐसे
लक्षण तो नहीं हैं? लक्ष्य और लक्षण समान हैं वा अन्तर है? बोल और कर्म समान हैं वा
अन्तर है? सभी ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना? कि क्षत्रिय कहलाते हो?
चन्द्रवंशी कहलाना भी पसन्द नहीं करते ना? कोई कहे आप चन्द्रवंशी हैं तो पसन्द आयेगा?
नहीं। और कर्म क्या है? जिस समय युद्ध में लगे हुए हो उस समय का फ़ोटो अपना निकालो।
फ़ोटो निकालने का शौक बहुत होता है ना? तो अपना फ़ोटो निकालना आता है या दूसरों का
फ़ोटो निकालना आता है? तो अपना फ़ोटो निकालो कि मैं कौन हूँ? अगर फ़ोटो भी कोई का
अच्छा नहीं निकलता है तो पसन्द नहीं करते हो ना? तो सारे दिन में वा कितने बारी समय
प्रति समय ब्राह्मण के बजाय क्षत्रिय बन जाते हैं - ये चेक करो और चेक करके चेंज करो।
सिर्फ चेक नहीं करना। चेक किया जाता है चेंज करने के लिये। तो सभी के पास परिवर्तन
शक्ति है? कि कोई के पास नहीं है? ये तो बहुत अच्छी खुशी की बात है कि सभी के पास
है। अब समय पर काम में लगाना आती है या कभी नहीं भी लगती है? क्योंकि शक्ति है तो
समय पर काम आवे। दुश्मन है ही नहीं और शस्त्र बहुत बढ़िया हैं मेरे पास और जब
दुश्मन आवे तो शस्त्र काम में ही नहीं आवें, तो क्या उसको शक्तिशाली कहेंगे? सिर्फ
ये चेक नहीं करो कि शक्ति है लेकिन कर्म में समय प्रमाण जो शक्ति चाहिये वही शक्ति
कार्य में लगाना आता है? कि दुश्मन वार कर देता, पीछे शक्ति याद आती है? तो
ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं को चेक करो। ब्राह्मण सो फ़रिश्ता बनेगा। क्षत्रिय सो
फ़रिश्ता नहीं।
दूसरा स्वरूप है
फ़रिश्ता। सभी को फ़रिश्ता बनना ही है ना? कि फ़रिश्ता बनना मुश्किल है? सहज है या
मुश्किल? या कभी मुश्किल, कभी सहज? तो फ़रिश्ता स्वरूप की विशेषता सभी जानते भी हो
कि फ़रिश्ता अर्थात् डबल लाइट? तो डबल लाइट हैं? कि कभी बोझ उठाने को दिल करती और
उठा लेते हो? वा उठाने नहीं चाहते हो लेकिन माया सिर पर टोकरी रख देती है? माया अपनी
आर्टीफिशियल टेप्रेरी शक्ति ऐसी दिखाती है जो मजबूरी से भी बोझ उठाना न चाहते भी उठा
लेते हैं क्योंकि कमजोर होने के कारण कमजोर सदा परअधीन होता है। तो माया भी अधीन बना
देती है। अधिकारीपन भूल जाता है और अधीन बन जाते। उस समय भाषा क्या होती है? चाहते
तो नहीं हैं लेकिन पता नहीं...। हर बात में ‘पता नहीं', ‘पता नहीं' कहते रहेंगे।
अधिकारी अर्थात् सदा स्वतंत्र और अधीन अर्थात् सदा परवश। तो परवश कभी भी मौज़ की
जीवन में नहीं रह सकते। ब्राह्मण अर्थात् मौज़ की जीवन। अगर कोई भी समय मौज के बजाय
मूँझते हो ये क्या है, ये कैसा है, क्या यही होता है... तो ये मौज नहीं, ये मूँझने
की जीवन है। अगर कोई भी समय मौज की कमी अनुभव करते हो तो फिर से ये पाठ पहला याद करो
कि मैं कौन हूँ? सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन कौन-सी आत्मा हूँ? इसके कितने जवाब आयेंगे?
लम्बी लिस्ट है ना! रोज़ की मुरली में ‘मैं कौन' का भिन्न-भिन्न पाठ पढ़ते रहते हो,
सुनते रहते हो।
तो फ़रिश्ता अर्थात्
डबल लाइट। लाइट अर्थात् हल्का-पन। हल्कापन का अर्थ है सिर्फ परिस्थिति के समय हल्का
नहीं लेकिन सारे दिन में स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में लाइट रहे? वैसे ठीक
हैं लेकिन स्वभाव-संस्कार में भी अगर हल्कापन नहीं है तो फ़रिश्ता कहेंगे? और हल्के
की निशानी है हल्की चीज़ सभी को प्यारी लगती है। कोई बोझ वाली चीज़ आपको देवे तो
पसन्द करेंगे? और हल्की बढ़िया चीज़ हो तो पसन्द करेंगे ना? तो जो स्वभाव, संस्कार,
सम्बन्ध, सम्पर्क में हल्का होगा उसकी निशानी वो सर्व के प्यारे और न्यारे होंगे
क्योंकि ब्राह्मण स्वभाव है, अलग स्वभाव नहीं। ब्राह्मण अर्थात् सबके दिल पसन्द
स्वभाव-संस्कार वा सम्बन्ध-सम्पर्क वाले हो। मैजारिटी 95 प्रतिशत के दिलपसन्द जरूर
हो इतनी रिजल्ट जरूर होनी चाहिये। 5 प्रतिशत अभी भी मार्जिन दे रहे हैं, अन्त तक नहीं
है लेकिन अभी दे रहे हैं। 95 प्रतिशत सर्व के दिल पसन्द अर्थात् सर्व से लाइट। और
वो हल्कापन बोल, कर्म और वृत्ति से अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन
दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विल पॉवर से
उन्हों को भी पहचान दो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ परिवर्तन
करने में सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। और फ़रिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी देह और
पुरानी दुनिया से रिश्ता नहीं। ये सभी को याद है ना? कि अभी भी वो रहा हुआ है?
पुरानी देह से लगाव है क्या? देह के सम्बन्ध से हल्के हो गये हो कि नहीं? काका, चाचा,
मामा, उससे न्यारे हो गये हो ना? कि अभी भी हैं? न्यारे और प्यारे हैं? प्यारे हैं
लेकिन न्यारे होकर के प्यारे बनते हैं, ये गलती हो जाती है। ये मिस हो जाता है। या
तो न्यारे हो जाना सहज लगता है या तो प्यारा होना सहज लगता। लेकिन ये देह के
सम्बन्ध काका, चाचा, मामा, ये फिर भी सहज हैं। सहज हैं या थोड़ा-थोड़ा स्वप्न में,
संकल्प में आ जाता है? जब ब्राह्मण परिवार में कोई परिस्थिति आती है तो चाचा, काका,
मामा याद आते हैं? बाप-दादा देखते हैं कि परिस्थिति के समय कई आत्माओं को ब्राह्मण
परिवार के बजाय लौकिक सम्बन्ध जल्दी स्मृति में आता है। परिस्थिति किनारे के बजाय
सहारा अनुभव कराती है। जब मरजीवा बन गये तो अगले जन्म के सम्बन्धी काका, चाचा, माँ,
बाप, याद हैं क्या? स्वप्न में भी आते हैं क्या? तो सम्बन्ध, जन्म बदल गया ना। तो
फ़रिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, यही परिभाषा बोलते हो ना? फिर समय पर कहाँ
से निकल आते हैं? टूटा हुआ रिश्ता जुड़ जाता है? मरे हुए से जिन्दा हो जाते हो?
फ़रिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, सब नया। बापदादा ने देखा कि फ़रिश्ता बनने
में जो रूकावट होती है उसका कारण एक पहली सीढ़ी है देह भान को छोड़ना, दूसरी सीढ़ी
जो और सूक्ष्म है वो है देह अभिमान को छोड़ना। देह भान और देह अभिमान। देह भान फिर
भी कॉमन चीज़ है लेकिन जितने ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा बनते हैं उतना देह
अभिमान रूकावट डालता है। और अभिमान अनेक प्रकार का आता है अपने बुद्धि का अभिमान,
अपने श्रेष्ठ संस्कार का अभिमान, अपने अच्छे स्वभाव का अभिमान, अपनी विशेषताओं का
अभिमान, अपनी कोई विशेष कला का अभिमान, अपनी सेवा की सफलता का अभिमान। ये सूक्ष्म
अभिमान देह भान से भी बहुत महीन हैं। अभिमान का दरवाजा तो जानते हो ना? मैं-पन,
मेरापन ये है अभिमान के दरवाजे। तो फ़रिश्ता का अर्थ ये नहीं कि सिर्फ देह भान वा
देह के आकर्षण से परे होना वा देह के स्थूल सम्बन्ध से परे होना, लेकिन फ़रिश्ता
अर्थात् देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारे होना। और अभिमान की निशानी
जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान भी जल्दी फील होता है। जहाँ अभिमान होता है वहाँ
अपमान की फीलिंग बहुत जल्दी होती है क्योंकि ‘मैं' और ‘मेरे' के दरवाजे खुले हुए
होते हैं। फ़रिश्ते का यथार्थ स्वरूप है देह भान और देह के सम्बन्ध से, देह अभिमान
से न्यारा। अगर कोई गुण हैं, कोई शक्ति है तो दाता को क्यों भूल जाते हैं? और दूसरी
बात इससे सहज न्यारे होने का रास्ता वा विधि बहुत सहज है, एक अक्षर है। एक अक्षर
में इतनी ताकत है जो देह अभिमान और देह भान सदा के लिये समाप्त हो जाता है। वो एक
शब्द कौन-सा है? करनकरावनहार बाप करा रहा है। ‘करनकरावनहार' शब्द भान और अभिमान दोनों
को मिटा देता है। एक शब्द याद करना तो सहज है ना? और सारी पॉइन्ट्स भूल भी जाओ,
भूलना तो नहीं है लेकिन अगर भूल भी जाओ तो एक शब्द तो याद कर सकते हो ना?
करनकरावनहार बाबा है। तो देखो, फ़रिश्ते जीवन का अनुभव कितना सहज अनुभव होता।
ब्रह्मा बाप फ़रिश्ता बना किस आधार से? सदा करनकरावनहार की स्मृति से समर्थ बन
फ़रिश्ते बने। फालो फादर है ना? या फालो माया है? कभी माया भी मदर फादर बन जाती है,
बड़ी अच्छी पालना और प्राप्ति कराती है। लेकिन वो सब है धोखे की प्राप्ति। पहले
प्राप्ति, फिर धोखा। परखने की शक्ति तो है ना? माया है या बाप है इसको समय पर परखना
है। धोखा खाकर परखना, यह कोई समझदारी नहीं हुई। धोखा खाकर तो सब समझ जाते हैं लेकिन
ज्ञानी तू आत्मा पहले यह परखकर स्वयं को बचा लेता है। तो समझा फ़रिश्ता किसको कहते
हैं?
तीसरा है फ़रिश्ता सो
देवता। अभी देवता बनना है या भविष्य में बनेंगे? देवता अर्थात् सर्व गुणों से
सजे-सजाये। ये दिव्यगुण संगम के देवता जीवन के श्रृंगार हैं। इस समय दिव्य गुणों से
सजे-सजाये होते हो तब ही भविष्य में स्थूल श्रृंगार से सजे-सजाये रहते हो। तो देवता
अर्थात् दिव्यगुणों से सजे-सजाये। और दूसरा देवता अर्थात् देने वाला। लेवता नहीं,
लेकिन देवता। तो मास्टर दाता हो? वा कभी लेवता, कभी देवता? चेक करो कि दिव्य गुणों
का श्रृंगार सदा रहता है वा कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है, कभी कोई श्रृंगार भूल
जाता है? सम्पूर्ण सर्व गुण सम्पन्न... यही देवता जीवन की निशानी है। ये गुण ही गहने
हैं। तो देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की सर्व शक्तियाँ, फरिश्ते स्वरूप की डबल लाइट
स्थिति और देवता स्वरूप की दातापन की निशानी और दिव्य गुणों सम्पन्न बने हैं? तीनों
स्वरूप अनुभव करते हो? जैसे बाप के तीन सम्बन्ध बाप, शिक्षक, सद्गुरू सदा याद रहते,
ऐसे ये तीन स्वरूप सदा याद रखो। समझा? बनना तो आपको ही है या और कोई आने वाले हैं?
आपको ही बनना है ना? आज ब्राह्मण, कल फ़रिश्ता और कल देवता। अपने फ़रिश्ते स्वरूप
को ज्ञान के दर्पण में देखो। फ़रिश्ते सदा उड़ते रहते हैं और मैसेज़ देते रहते हैं।
फ़रिश्ता आया, सन्देश दिया और उड़ा। तो वो फरिश्ते कौन हैं? आप ही हो ना? फ़लक से
कहो हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। पक्का है ना? इसको कहा जाता है
निश्चयबुद्धि विजयी। क्षत्रिय हो वा विजयी हो? क्षत्रिय कोई तो बनेगा? वो दूसरे
बनेंगे! तो आप ब्राह्मण हो। चलते-चलते कभी क्षत्रिय नहीं बनना। अगर बार-बार
क्षत्रिय बनते रहेंगे, युद्ध करते रहेंगे तो युद्ध के संस्कार ले जाने वाले कहाँ
पहुँचेंगे? चन्द्रवंशी में या सूर्यवंशी में? तो चन्द्रवंशी तो पसन्द नहीं है ना,
कि कभी-कभी हो गये तो भी हर्जा नहीं? तो सब कौन हो? ब्राह्मण? पक्के ब्राह्मण हो या
थोड़े-थोड़े कच्चे? शक्तियाँ पक्की हैं? पाण्डव पक्के हैं? अगर पक्के हैं तो सदा
खुशखबरी के पत्र आवें। माया आ गई, ये हो गया, पता नहीं क्या हो गया, कैसे हो गया -
ये संकल्प में भी नहीं हो। बाप तो कहते हैं स्वप्न मात्र भी नहीं। स्वप्न में भी
क्यों, क्या नहीं, ऐसे पक्के हो? शक्तियाँ महा पक्की हो? कहो, पाण्डव पक्के तो हम
महा पक्के क्योंकि शक्तियों को ही निमित्त बनाया है। तो निमित्त वाले ही कच्चे-पक्के
होंगे तो औरों का क्या हाल होगा! पाण्डव बैकबोन हैं। बैकबोन बनना अच्छा लगता है ना?
या सामना करना अच्छा लगता है? बैकबोन बनना अच्छा है, सेफ हो बहुत, नहीं तो मार खाते।
अच्छा।
सभी अपने स्वीट होम
में पहुँच गये। संकल्प था जाना है, जाना है और अभी फिर क्या संकल्प है? अभी भी जाना
है ना? सेवा अर्थ जा रहे हैं इसलिये खुशी-खुशी से जाते हैं। सेवा पर जायेंगे या
दुकान पर जायेंगे, घर में जायेंगे, दफ्तर में जायेंगे? चाहे दफ्तर हो, चाहे घर हो,
लेकिन सभी सेवा के स्थान हैं। सेवाधारियों की हर जगह सेवा है। तो मधुबन में आना और
उमंग-उत्साह का खजाना भरना और फिर सेवा पर जाना। खुशी-खुशी से जाते हो ना? कि मजबूरी
से जाते हो? सेवा माना खुशी। हिसाब-किताब है, कर्ज चुकाने जा रहे हैं, ऐसे नहीं।
फ़र्ज चुकाने जा रहे हैं। घर में बगुले बहुत हैं। अगर बगुले नहीं होंगे तो ज्ञान
किसको देंगे? हंस को हंस बनायेंगे क्या? बगुलों को ही तो हंस बनायेंगे ना? तो क्या
याद रखेंगे? ब्राह्मण सो फ़रिश्ता, फ़रिश्ता सो देवता। पक्का रहेगा ना? कि ट्रेन
में जाते-जाते एक भूल जायेगा? अपने स्थान पर जाते-जाते बाकी एक रह जाये ऐसे तो नहीं
होगा ना? अच्छा।
चारों ओर के सर्व
ब्राह्मण सो फ़रिश्ता, फ़रिश्ता सो देवता, तीनों स्वरूप के स्मृति स्वरूप आत्माओं
को, सदा एक शब्द ‘करनकरावनहार' की स्मृति से स्वयं को डबल लाइट बनाने वाले श्रेष्ठ
आत्माओं को, सदा देवता अर्थात् दाता बन देने वाले, सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माओं
को, सदा वरदानों को कर्म में लाने वाले कर्मयोगी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार
और नमस्ते।
वरदान:-
दिव्य बुद्धि
द्वारा दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
जैसा समय उस विधि से
दिव्य बुद्धि को यूज़ करो तो सर्व सिद्धियां आपकी हथेली पर हैं। सिद्धि कोई बड़ी
चीज़ नहीं है सिर्फ दिव्य बुद्धि की सफाई है। जैसे आजकल के जादूगर हाथ की सफाई
दिखाते हैं, यह दिव्य बुद्धि की सफाई सर्व सिद्धियों को हथेली में कर देती है। आप
ब्राह्मण आत्माओं ने सब दिव्य सिद्धियां प्राप्त की हैं इसलिए आपकी मूर्तियों द्वारा
आज तक भी भक्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए जाते हैं।
स्लोगन:-
जिनके पास सर्वशक्तिमान् बाप की सर्वशक्तियाँ हैं उनकी हार कभी हो नहीं सकती।