22-03-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - खुशी जैसी खुराक नहीं, तुम खुशी में चलते
फिरते पैदल करते बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे"
प्रश्नः-
कोई भी कर्म
विकर्म न बने उसकी युक्ति क्या है?
उत्तर:-
विकर्मों
से बचने का साधन है श्रीमत। बाप की जो पहली श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करो, इस श्रीमत पर चलो तो तुम विकर्माजीत बन जायेंगे।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे यहाँ भी बैठे हैं और सभी सेन्टर्स पर भी हैं। सभी बच्चे जानते हैं कि
अभी रूहानी बाबा आया हुआ है, वह हमको इस पुरानी छी-छी पतित दुनिया से फिर घर ले
जायेंगे। बाप आये ही हैं पावन बनाने और आत्माओं से ही बात करते हैं। आत्मा ही कानों
से सुनती है क्योंकि बाप को अपना शरीर तो है नहीं। इसलिए बाप कहते हैं मैं शरीर के
आधार से अपनी पहचान देता हूँ। मैं इस साधारण तन में आकर तुम बच्चों को पावन बनने की
युक्ति बताता हूँ। वह भी हर कल्प आकर तुमको यह युक्ति बतलाता हूँ। इस रावण राज्य
में तुम कितने दुःखी बन पड़े हो। रावण राज्य, शोक वाटिका में तुम हो। कलियुग को कहा
ही जाता है दुःखधाम। सुखधाम है कृष्णपुरी, स्वर्ग। वह तो अभी है नहीं। बच्चे अच्छी
रीति जानते हैं कि अभी बाबा आया हुआ है हमको पढ़ाने के लिए।
बाप कहते हैं तुम घर में भी स्कूल बना सकते हो। पावन बनना और बनाना है। तुम पावन
बनेंगे तो फिर दुनिया भी पावन बनेगी। अभी तो यह भ्रष्टाचारी पतित दुनिया है। अभी है
रावण की राजधानी। इन बातों को जो अच्छी रीति समझते हैं वह फिर औरों को भी समझाते
हैं। बाप तो सिर्फ कहते हैं - बच्चे अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो, औरों को
भी ऐसे समझाओ। बाप आया हुआ है, कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। कोई
भी आसुरी कर्म नहीं करो। माया तुमसे जो छी-छी कर्म करायेगी वह कर्म जरूर विकर्म
बनेगा। पहले नम्बर में जो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, यह भी माया ने कहलाया ना।
माया तुमसे हर बात में विकर्म ही करायेगी। कर्म-अकर्म-विकर्म का राज भी समझाया है।
श्रीमत पर आधाकल्प तुम सुख भोगते हो, आधाकल्प फिर रावण की मत पर दुःख भोगते हो। इस
रावण राज्य में तुम भक्ति जो करते हो, नीचे ही उतरते आये हो। तुम इन बातों को नहीं
जानते थे, बिल्कुल पत्थरबुद्धि थे। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि गाते तो हैं ना। भक्ति
मार्ग में कहते भी हैं - हे ईश्वर, इनको अच्छी बुद्धि दो, तो यह लड़ाई आदि बन्द कर
दें। तुम बच्चे जानते हो बाबा बहुत अच्छी बुद्धि अभी दे रहे हैं। बाबा कहते हैं -
मीठे बच्चों, तुम्हारी आत्मा जो पतित बनी हैं, उनको पावन बनाना है, याद की यात्रा
से। भल घूमो फिरो, बाबा की याद में तुम कितना भी पैदल करके जायेंगे, तुमको शरीर भी
भूल जायेगा। गाया जाता है ना - खुशी जैसी खुराक नहीं। मनुष्य धन कमाने के लिए कितना
दूर-दूर खुशी से जाते हैं। यहाँ तुम कितने धनवान, सम्पत्तिवान बनते हो। बाप कहते
हैं मैं कल्प-कल्प आकर तुम आत्माओं को अपना परिचया देता हूँ। इस समय सभी पतित हैं,
जो बुलाते रहते हैं कि पावन बनाने लिए आओ। आत्मा ही बाप को बुलाती है। रावण राज्य
में, शोक वाटिका में सभी दुःखी हैं। रावणराज्य सारी दुनिया में है। इस समय है ही
तमोप्रधान सृष्टि। सतोप्रधान देवताओं के चित्र खड़े हैं। गायन भी उन्हों का है।
शान्तिधाम, सुखधाम जाने के लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं। यह थोड़ेही कोई जानते
हैं - भगवान कैसे आकर भक्ति का फल हमको देगा। तुम अभी समझते हो हमको भगवान से फल
मिल रहा है। भक्ति के दो फल हैं - एक मुक्ति, दूसरा जीवनमुक्ति। यह समझने की बड़ी
महीन बातें हैं। जिन्होंने शुरू से लेकर बहुत भक्ति की होगी, वह ज्ञान अच्छी रीति
लेंगे तो फल भी अच्छा पायेंगे। भक्ति कम की होगी तो ज्ञान भी कम लेंगे, फल भी कम
पायेंगे। हिसाब है ना। नम्बरवार पद है ना। बाप कहते हैं - मेरा बनकर विकार में गिरा
तो गोया मुझे छोड़ा। एकदम नीचे जाकर पड़ेंगे। कोई तो गिरकर फिर उठ पड़ते हैं। कोई
तो बिल्कुल ही गटर में गिर जाते, बुद्धि बिल्कुल सुधरती ही नहीं। कोई को दिल अन्दर
खाता है, दुःख होता है - हमने भगवान से प्रतिज्ञा की और फिर उनको धोखा दे दिया,
विकार में गिर पड़ा। बाप का हाथ छोड़ा, माया का बन पड़ा। वे फिर वायुमण्डल ही खराब
कर देते हैं, श्रापित हो जाते हैं। बाप के साथ धर्मराज भी है ना। उस समय पता नहीं
पड़ता है कि हम क्या करते हैं, बाद में पश्चाताप होता है। ऐसे बहुत होते हैं, किसका
खून आदि करते हैं तो जेल में जाना पड़ता है, फिर पश्चाताप होता है - नाहेक उनको मारा।
गुस्से में आकर मारतें भी बहुत हैं। ढेर समाचार अखबारों में पड़ते हैं। तुम तो
अखबार पढ़ते नहीं हो। दुनिया में क्या-क्या हो रहा है, तुमको मालूम नहीं पड़ता है।
दिन-प्रतिदिन हालतें खराब होती जाती है। सीढ़ी नीचे उतरनी ही है। तुम इस ड्रामा के
राज़ को जानते हो। बुद्धि में यह बात है कि हम बाबा को ही याद करें। कोई ऐसा छी-छी
कर्तव्य न करें जिससे रजिस्टर खराब हो जाए। बाप कहते हैं मैं तुम्हारा टीचर हूँ ना।
टीचर के पास स्टूडेन्ट की पढ़ाई का और चाल चलन का रिकार्ड रहता है ना। कोई की चाल
बहुत अच्छी, कोई की कम, कोई की बिल्कुल खराब। नम्बरवार होते हैं ना। यह भी सुप्रीम
बाप कितना ऊंच पढ़ाते हैं। वह भी हर एक की चाल-चलन को जानते हैं। तुम खुद जान सकते
हो - हमारे में यह आदत है, इस कारण हम फेल हो जायेंगे। बाबा हर बात क्लीयर कर समझाते
हैं। पूरी रीति पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे, किसको दुःख देंगे तो दुःखी होकर मरेंगे। पद भी
भ्रष्ट होगा। सजायें भी बहुत खायेंगे।
मीठे बच्चे, अपनी और दूसरों की तकदीर बनानी है तो रहमदिल का संस्कार धारण करो। जैसे
बाप रहमदिल है तब टीचर बनकर तुम्हें पढ़ाते हैं। कोई बच्चे अच्छी रीति पढ़ते और
पढ़ाते हैं, इसमें रहमदिल बनना होता है। टीचर रहमदिल है ना। कमाई का रास्ता बताते
हैं कि कैसे अच्छा पोजीशन तुम पा सकते हो। उस पढ़ाई में तो अनेक प्रकार के टीचर्स
होते हैं। यह तो एक ही टीचर है। पढ़ाई भी एक ही है मनुष्य से देवता बनने की। इसमें
मुख्य है पवित्रता की बात। पवित्रता ही सब मांगते हैं। बाप तो रास्ता बता रहे हैं
परन्तु जिनकी तकदीर में ही नहीं है तो तदबीर क्या कर सकते! ऊंच मार्क्स पाने का ही
नहीं है तो टीचर तदबीर भी क्या करें! यह बेहद का टीचर है ना। बाप कहते हैं तुमको और
कोई सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझा न सके। तुमको हर एक बात
बेहद की समझाई जाती है। तुम्हारा है बेहद का वैराग्य। यह भी तुमको सिखलाते हैं जबकि
पतित दुनिया का विनाश, पावन दुनिया की स्थापना होनी है। सन्यासी तो हैं निवृत्ति
मार्ग वाले, वास्तव में उन्हों को तो जंगल में रहना है। पहले-पहले ऋषि-मुनि आदि सब
जंगल में रहते थे, वह सतोप्रधान ताकत थी, तो मनुष्यों को खींचते थे। कहाँ-कहाँ
कुटियाओं में भी उनको भोजन जाकर पहुँचाते थे। सन्यासियों के कभी मन्दिर नहीं बनाते
हैं। मन्दिर हमेशा देवताओं के बनाते हैं। तुम कोई भक्ति नहीं करते हो। तुम योग में
रहते हो। उनका तो ज्ञान ही है ब्रह्म तत्व को याद करने का। बस ब्रह्म में लीन हो
जायें। परन्तु सिवाए बाप के वहाँ तो कोई ले जा न सके। बाप आते ही हैं संगमयुग पर।
आकरके देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। बाकी सबकी आत्मायें वापिस चली जाती हैं
क्योंकि तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए ना। पुरानी दुनिया का कोई भी रहना नहीं चाहिए।
तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो। यह तो तुम जानते हो जब हमारा राज्य था तो सारे
विश्व पर हम ही थे, कोई खण्ड नहीं था। वहाँ जमीन तो बहुत रहती है। यहाँ जमीन कितनी
है फिर भी समुद्र को सुखाकर जमीन करते रहते हैं क्योंकि मनुष्य बढ़ते जाते हैं। यह
जमीन सुखाना आदि विलायत वालों से सीखे हैं। बाम्बे पहले क्या थी फिर भी नहीं रहेगी।
बाबा तो अनुभवी है ना। समझो अर्थक्वेक होती है वा मूसलधार बरसात होती है तो फिर क्या
करेंगे! बाहर तो निकल नहीं सकेंगे। नैचुरल कैलेमिटीज़ तो बहुत आयेंगी। नहीं तो इतना
विनाश कैसे होगा। सतयुग में तो सिर्फ थोड़े ही होते हैं। आज क्या है, कल क्या होगा।
यह सब तुम बच्चे ही जानते हो। यह ज्ञान और कोई दे न सके। बाप कहते हैं तुम पतित बने
हो इसलिए अब मुझे बुलाते हो कि आकर पावन बनाओ तो जरूर आयेंगे तब तो पावन दुनिया
स्थापन होगी ना। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है। युक्ति कितनी अच्छी बतलाते
हैं। भगवानुवाच मनमनाभव। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को तोड़ मामकम् याद करो।
इसमें ही मेहनत है। ज्ञान तो बहुत सहज है। छोटा बच्चा भी झट याद कर लेगा। बाकी अपने
को आत्मा समझ और बाप को याद करे, वह इम्पॉसिबुल है। बड़ों की बुद्धि में ही नहीं ठहर
सकता, तो छोटे फिर कैसे याद कर सकेंगे? भल शिवबाबा-शिवबाबा कहे भी परन्तु है तो
बेसमझ ना। हम भी बिन्दी हैं, बाबा भी बिन्दी है। यह स्मृति में आना मुश्किल लगता
है। यही यथार्थ रीति याद करना है। मोटी चीज़ है नहीं। बाप कहते हैं यथार्थ रूप में
मैं बिन्दी हूँ। इसलिए मैं जो हूँ, जैसा हूँ वह सिमरण करें - यह बड़ी मेहनत है।
वह तो कह देते परमात्मा ब्रह्म तत्व है और हम कहते हैं वह एकदम बिन्दी है। रात-दिन
का फ़र्क है ना। ब्रह्म तत्व जहाँ हम आत्मायें रहती हैं, उनको परमात्मा कह देते।
बुद्धि में यह रहना चाहिए - मैं आत्मा हूँ, बाबा का बच्चा हूँ, इन कानों से सुनता
हूँ, बाबा इस मुख से सुनाते हैं कि मैं परम आत्मा हूँ, परे ते परे रहने वाला हूँ।
तुम भी परे ते परे रहते हो परन्तु जन्म-मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ। तुमने अभी
अपने 84 जन्मों को भी समझा है। बाप के पार्ट को भी समझा है। आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं
होती है। बाकी आइरन एज में आने से मैली बन जाती है। इतनी छोटी-सी आत्मा में सारा
ज्ञान है। बाप भी इतना छोटा है ना। परन्तु उनको परम आत्मा कहा जाता है। वह ज्ञान का
सागर है, तुमको आकर समझाते हैं। इस समय तुम जो पढ़ रहे हो कल्प पहले भी पढ़ा था,
जिससे तुम देवता बने थे। तुम्हारे में सबसे खोटी तकदीर उन्हों की है जो पतित बन अपनी
बुद्धि को मलीन बना देते हैं, क्योंकि उनमें धारणा हो नहीं सकती। दिल अन्दर खाती
रहेगी। औरों को कह न सकें पवित्र बनो। अन्दर समझते हैं पावन बनते-बनते हमने हार खा
ली, की कमाई सारी चट हो गई। फिर बहुत समय लग जाता है। एक ही चोट जोर से घायल कर देती
है, रजिस्टर खराब हो जाता है। बाप कहेंगे तुम माया से हार गये, तुम्हारी तकदीर खोटी
है। मायाजीत जगतजीत बनना है। जगतजीत महाराजा-महारानी को ही कहा जाता है। प्रजा को
थोड़ेही कहेंगे। अभी दैवी स्वर्ग की स्थापना हो रही है। अपने लिए जो करेगा सो पायेगा।
जितना पावन बन औरों को बनायेंगे, बहुत दान करने वाले को फल भी तो मिलता है ना। दान
करने वाले का नाम भी होता है। दूसरे जन्म में अल्पकाल का सुख पाते हैं। यहाँ तो 21
जन्म की बात है। पावन दुनिया का मालिक बनना है। जो पावन बने थे वही बनेंगे।
चलते-चलते माया चमाट मार एकदम गिरा देती है। माया भी कम दुश्तर नहीं है। 8-10 वर्ष
पवित्र रहा, पवित्रता पर झगड़ा हुआ, दूसरों को भी गिरने से बचाया और फिर खुद गिर पड़ा।
तकदीर कहेंगे ना। बाप का बनकर फिर माया का बन जाते हैं तो दुश्मन हो गया ना। खुदा
दोस्त की भी एक कहानी है ना। बाप आकर बच्चों को प्यार करते हैं, साक्षात्कार कराते
हैं, बिगर कोई भक्ति करने के भी साक्षात्कार होता है। तो दोस्त बनाया ना। कितने
साक्षात्कार होते थे फिर जादू समझ हंगामा करने लगे तो बन्द कर दिया फिर पिछाड़ी में
तुम बहुत साक्षात्कार करते रहेंगे। आगे कितना मज़ा होता था। वह देखते-देखते भी कितने
कट हो गये। भट्ठी से कोई ईटें पक कर निकली, कोई कुछ कच्ची रह गई। कोई तो एकदम टूट
पड़े। कितने चले गये। अभी वह लखपति, करोड़पति बन गये हैं। समझते हैं हम तो स्वर्ग
में बैठे हैं। अब स्वर्ग यहाँ कैसे हो सकता है। स्वर्ग तो होता ही है नई दुनिया
में। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी ऊंची तकदीर बनाने के लिए रहमदिल बन पढ़ना और पढ़ाना है। कभी भी
किसी आदत के वश हो अपना रजिस्टर खराब नहीं करना है।
2) मनुष्य से देवता बनने के लिए मुख्य है पवित्रता। इसलिए कभी भी पतित बन अपनी
बुद्धि को मलीन नहीं करना है। ऐसा कर्म न हो जो दिल अन्दर खाती रहे, पश्चाताप करना
पड़े।
वरदान:-
प्रत्यक्षता के समय को समीप लाने वाले सदा शुभ चिंतक
और स्व चिंतक भव
सेवा में सफलता का आधार है शुभ चिंतक वृत्ति क्योंकि आपकी
यह वृत्ति आत्माओं की ग्रहण शक्ति वा जिज्ञासा को बढ़ाती है। इससे वाणी की सेवा सहज
सफल हो जाती है। और स्व के प्रति स्व चिंतन करने वाली स्वचिंतक आत्मा सदा माया
प्रूफ, किसी की भी कमजोरियों को ग्रहण करने से व्यक्ति व वैभव की आकर्षण से प्रूफ
हो जाती है। तो जब यह दोनों वरदान प्रैक्टिकल जीवन में लाओ तब प्रत्यक्षता का समय
समीप आये।
स्लोगन:-
अपने संकल्पों को भी अर्पण कर दो तो सर्व कमजोरियां स्वतः दूर हो जायेंगी।