13-04-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप तुम्हें पुरूषोत्तम बनाने के लिए पढ़ा
रहे हैं, तुम अभी कनिष्ट से उत्तम पुरुष बनते हो, सबसे उत्तम हैं देवतायें"
प्रश्नः-
यहाँ तुम बच्चे
कौन-सी मेहनत करते हो जो सतयुग में नहीं होगी?
उत्तर:-
यहाँ
देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल आत्म-अभिमानी हो शरीर छोड़ने में बहुत मेहनत
करनी पड़ती है। सतयुग में बिना मेहनत बैठे-बैठे शरीर छोड़ देंगे। अभी यही मेहनत वा
अभ्यास करते हो कि हम आत्मा हैं। हमें इस पुरानी दुनिया पुराने शरीर को छोड़ना है,
नया लेना है। सतयुग में इस अभ्यास की जरूरत नहीं।
गीत:- दूर देश
का रहने वाला........
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी
बच्चे जानते हैं कि फिर से यानी कल्प-कल्प के बाद। इसको कहा जाता है फिर से दूरदेश
का रहने वाला आये हैं देश पराये। यह सिर्फ उस एक के लिए ही गायन है, उनको ही सब याद
करते हैं, वह है विचित्र। उनका कोई चित्र नहीं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा
जाता है। शिव भगवानुवाच कहा जाता है, वह रहते हैं परमधाम में। उनको सुखधाम में कभी
बुलाते नहीं, दुःखधाम में ही बुलाते हैं। वह आते भी हैं संगमयुग पर। यह तो बच्चे
जानते हैं सतयुग में सारे विश्व पर तुम पुरूषोत्तम रहते हो। मध्यम, कनिष्ट वहाँ नहीं
होते। उत्तम ते उत्तम पुरुष यह श्री लक्ष्मी-नारायण हैं ना। इन्हों को ऐसा बनाने
वाला श्री-श्री शिवबाबा कहेंगे। श्री-श्री उस शिवबाबा को ही कहा जाता है। आजकल तो
सन्यासी आदि भी अपने को श्री-श्री कह देते हैं। तो बाप ही आकर इस सृष्टि को
पुरूषोत्तम बनाते हैं। सतयुग में सारे सृष्टि में उत्तम ते उत्तम पुरुष रहते हैं।
उत्तम ते उत्तम और कनिष्ट से कनिष्ट का फ़र्क इस समय तुम समझते हो। कनिष्ट मनुष्य
अपनी निचाई दिखाते हैं। अभी तुम समझते हो हम क्या थे, अब फिर से हम स्वर्गवासी
पुरूषोत्तम बन रहे हैं। यह है ही संगमयुग। तुमको खातिरी है कि यह पुरानी दुनिया नई
बननी है। पुरानी सो नई, नई सो पुरानी जरूर बनती है। नई को सतयुग, पुरानी को कलियुग
कहा जाता है। बाप है ही सच्चा सोना, सच कहने वाला। उनको ट्रुथ कहते हैं। सब कुछ
सत्य बताते हैं। यह जो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, यह झूठ है। अब बाप कहते हैं
झूठ न सुनो। हियर नो ईविल, सी नो ईविल.... राज-विद्या की बात अलग है। वह तो है ही
अल्पकाल सुख के लिए। दूसरा जन्म लिया फिर नये सिर पढ़ना पड़े। वह है अल्पकाल का सुख।
यह है 21 जन्म, 21 पीढ़ी के लिए। पीढ़ी बुढ़ापे को कहा जाता है। वहाँ कभी अकाले
मृत्यु नहीं होता। यहाँ तो देखो कैसे अकाले मृत्यु होती रहती है। ज्ञान में भी मर
जाते हैं। तुम अभी काल पर जीत पहन रहे हो। जानते हो वह है अमरलोक, यह है मृत्युलोक।
वहाँ तो जब बूढ़े होते हैं तो साक्षात्कार होता है - हम यह शरीर छोड़ जाए बच्चा
बनेंगे। बुढ़ापा पूरा होगा और शरीर छोड़ देंगे। नया शरीर मिले तो वह अच्छा ही है
ना। बैठे-बैठे खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। यहाँ तो उस अवस्था में रहते शरीर छोड़ने
लिए मेहनत लगती है। यहाँ की मेहनत वहाँ फिर कॉमन हो जाती है। यहाँ देह सहित जो कुछ
है सबको भूल जाना है। अपने को आत्मा समझना है, इस पुरानी दुनिया को छोड़ना है। नया
शरीर लेना है। आत्मा सतोप्रधान थी तो सुन्दर शरीर मिला। फिर काम चिता पर बैठने से
काले तमोप्रधान हो गये, तो शरीर भी सांवरा मिलता है, सुन्दर से श्याम बन गये। कृष्ण
का नाम तो कृष्ण ही है फिर उनको श्याम सुन्दर क्यों कहते हैं? चित्रों में भी कृष्ण
का चित्र सांवरा बना देते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। अभी तुम समझते हो सतोप्रधान
थे तो सुन्दर थे। अभी तमोप्रधान श्याम बने हैं। सतोप्रधान को पुरूषोत्तम कहेंगे,
तमोप्रधान को कनिष्ट कहेंगे। बाप तो एवर प्योर है। वह आते ही हैं हसीन बनाने।
मुसाफिर है ना। कल्प-कल्प आते हैं, नहीं तो पुरानी दुनिया को नया कौन बनायेंगे! यह
तो पतित छी-छी दुनिया है। इन बातों को दुनिया में कोई नहीं जानते। अब तुम जानते हो
बाप हमको पुरुषोत्तम बनाने लिए पढ़ा रहे हैं। फिर से देवता बनने लिए हम सो ब्राह्मण
बने हैं। तुम हो संगमयुगी ब्राह्मण। दुनिया यह नहीं जानती कि अब संगमयुग है।
शास्त्रों में लाखों वर्ष कल्प की आयु लिख दी है तो समझते हैं कलियुग तो अभी बच्चा
है। अभी तुम दिल में समझते हो - हम यहाँ आये हैं उत्तम ते उत्तम, कलियुगी पतित से
सतयुगी पावन, मनुष्य से देवता बनने लिए। ग्रंथ में भी महिमा है - मूत पलीती कपड़
धोए। परन्तु ग्रंथ पढ़ने वाले भी अर्थ नहीं समझते। इस समय तो बाप आकर सारी दुनिया
के मनुष्य मात्र को साफ करते हैं। तुम उस बाप के सामने बैठे हो। बाप ही बच्चों को
समझाते हैं। यह रचता और रचना की नॉलेज और कोई जानते ही नहीं। बाप ही ज्ञान का सागर।
वह सत है, चैतन्य है, अमर है। पुनर्जन्म रहित है। शान्ति का सागर, सुख का सागर,
पवित्रता का सागर है। उनको ही बुलाते हैं कि आकर यह वर्सा दो। तुमको अभी बाप 21
जन्मों के लिए वर्सा दे रहे हैं। यह है अविनाशी पढ़ाई। पढ़ाने वाला भी अविनाशी बाप
है। आधाकल्प तुम राज्य पाते हो फिर रावणराज्य होता है। आधाकल्प है रामराज्य,
आधाकल्प रावणराज्य।
प्राणों से प्यारा एक
बाप ही है क्योंकि वही तुम बच्चों को सब दुःखों से छुड़ाए अपार सुख में ले जाते
हैं। तुम निश्चय से कहते हो वह हमारा प्राणों से प्यारा पारलौकिक बाप है। प्राण
आत्मा को कहा जाता है। सब मनुष्य मात्र उनको याद करते हैं क्योंकि आधाकल्प के लिए
दुःख से छुड़ाए शान्ति और सुख देने वाला बाप ही है। तो प्राणों से प्यारा हुआ ना।
तुम जानते हो सतयुग में हम सदा सुखी रहते हैं। बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे।
फिर रावणराज्य में दुःख शुरू होता है। दुःख और सुख का खेल है। मनुष्य समझते हैं यहाँ
ही अभी-अभी सुख है, अभी-अभी दुःख है। परन्तु नहीं, तुम जानते हो स्वर्ग अलग है,
नर्क अलग है। स्वर्ग की स्थापना बाप राम करते हैं, नर्क की स्थापना रावण करते हैं,
जिसको वर्ष-वर्ष जलाते हैं। परन्तु क्यों जलाते हैं? क्या चीज़ है? कुछ नहीं जानते।
कितना खर्चा करते हैं। कितनी कहानियाँ बैठ सुनाते, राम की सीता भगवती को रावण ले गया।
मनुष्य भी समझते हैं ऐसा हुआ होगा।
अभी तुम सबका
आक्यूपेशन जानते हो। यह तुम्हारी बुद्धि में नॉलेज है। सारे वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जाग्रॉफी को कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते होंगे। बाप ही जानते हैं। उनको
वर्ल्ड का रचयिता भी नहीं कहेंगे। वर्ल्ड तो है ही, बाप सिर्फ आकर नॉलेज देते हैं
कि यह चक्र कैसे फिरता है। भारत में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था - फिर क्या हुआ?
देवताओं ने कोई से लड़ाई की क्या? कुछ भी नहीं। आधाकल्प बाद रावण राज्य शुरू होने
से देवतायें वाम मार्ग में चले जाते हैं। ऐसे नहीं कि युद्ध में कोई ने हराया।
लश्कर आदि की कोई बात नहीं। न लड़ाई से राज्य लेते हैं, न गंवाते हैं। यह तो योग
में रह पवित्र बन पवित्र राज्य तुम स्थापन करते हो। बाकी हाथ में कोई चीज़ नहीं। यह
है डबल अहिंसा। एक तो पवित्रता की अहिंसा, दूसरा तुम किसको दुःख नहीं देते। सबसे कड़ी
हिंसा है काम कटारी की। जो ही आदि-मध्य-अन्त दुःख देती है। रावण के राज्य में ही
दुःख शुरू होता है। बीमारियाँ शुरू हो जाती हैं। कितनी ढेर बीमारियाँ हैं। अनेक
प्रकार की दवाइयाँ निकलती रहती हैं। रोगी बन पड़े हैं ना। तुम इस योग बल से 21 जन्मों
के लिए निरोगी बनते हो। वहाँ दुःख वा बीमारी का नाम-निशान नहीं रहता। उसके लिए तुम
पढ़ रहे हो। बच्चे जानते हैं भगवान हमको पढ़ाकर भगवान भगवती बना रहे हैं। पढ़ाई भी
कितनी सहज है। आधा पौना घण्टे में सारे चक्र का नॉलेज समझा देते हैं। 84 जन्म भी
कौन-कौन लेते हैं - यह तुम जानते हो।
भगवान हमको पढ़ाते
हैं, वह है ही निराकार। सच्चा-सच्चा उनका नाम है शिव। कल्याणकारी है ना। सर्व का
कल्याणकारी, सर्व का सद्गति दाता है ऊंच ते ऊंच बाप। ऊंच ते ऊंच मनुष्य बनाते हैं।
बाप पढ़ाकर होशियार बनाए अब कहते हैं जाकर पढ़ाओ। इन ब्रह्माकुमार-कुमारियों को
पढ़ाने वाला शिवबाबा है। ब्रह्मा द्वारा तुमको एडाप्ट किया है। प्रजापिता ब्रह्मा
कहाँ से आया? इस बात में ही मूँझते हैं। इनको एडाप्ट किया, कहते हैं बहुत जन्मों के
अन्त में..... अब बहुत जन्म किसने लिए? इन लक्ष्मी-नारायण ने ही पूरे 84 जन्म लिए
हैं। इसलिए कृष्ण के लिए कह देते हैं श्याम सुन्दर। हम सो सुन्दर थे फिर 2 कला कम
हुई। कला कम होते-होते अभी नो कला हो गये हैं। अभी तमोप्रधान से फिर सतोप्रधान कैसे
बने? बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। यह भी जानते हो यह रूद्र
ज्ञान यज्ञ है। अब यज्ञ में चाहिए ब्राह्मण। तुम सच्चे ब्राह्मण हो सच्ची गीता
सुनाने वाले। इसलिए तुम लिखते भी हो सच्ची गीता पाठशाला। उस गीता में तो नाम ही बदल
दिया है। हाँ जिन्होंने जैसे कल्प पहले वर्सा लिया था वही आकर लेंगे। अपनी दिल से
पूछो - हम पूरा वर्सा ले सकेंगे? मनुष्य शरीर छोड़ते हैं तो हाथ खाली जाते हैं, वह
विनाशी कमाई तो साथ में चलनी नहीं है। तुम शरीर छोड़ेंगे तो हाथ भरतू क्योंकि 21
जन्मों के लिए तुम अपनी कमाई जमा कर रहे हो। मनुष्यों की तो सारी कमाई मिट्टी में
मिल जायेगी। इससे तो हम क्यों न ट्रांसफर कर बाबा को दे देवें। जो बहुत दान करते
हैं वह तो दूसरे जन्म में साहूकार बनते हैं, ट्रांसफर करते हैं ना। अभी तुम 21 जन्मों
के लिए नई दुनिया में ट्रांसफर करते हो। तुमको रिटर्न में 21 जन्मों के लिए मिलता
है। वह तो एक जन्म लिए अल्पकाल के लिए ट्रांसफर करते हैं। तुम तो ट्रांसफर करते हो
21 जन्मों के लिए। बाप तो है ही दाता। यह ड्रामा मैं नूॅंध है। जो जितना करते हैं,
वह पाते हैं। वह इनडायरेक्ट दान-पुण्य करते हैं तो अल्पकाल के लिए रिटर्न मिलता है।
यह है डायरेक्ट। अभी सब कुछ नई दुनिया में ट्रांसफर करना है। इनको (ब्रह्मा को) देखा
कितनी बहादुरी की। तुम कहते हो सब कुछ ईश्वर ने दिया है। अब बाप कहते हैं यह सब हमको
दो। हम तुमको विश्व की बादशाही देते हैं। बाबा ने तो फट से दे दिया, सोचा नहीं। फुल
पॉवर दे दी। हमको विश्व की बादशाही मिलती है, वह नशा चढ़ गया। बच्चों आदि का कुछ भी
ख्याल नहीं किया। देने वाला ईश्वर है तो फिर किसी का रेसपॉन्सिबुल थोड़ेही रहे। 21
जन्म के लिए ट्रांसफर कैसे करना होता है - इस बाप को (ब्रह्मा बाबा को) देखो, फालो
फादर। प्रजापिता ब्रह्मा ने किया ना। ईश्वर तो दाता है। उसने इनसे कराया। तुम भी
जानते हो हम आये हैं बाप से बादशाही लेने। दिन-प्रतिदिन टाइम थोड़ा होता जाता है।
आफतें ऐसी आयेंगी बात मत पूछो। व्यापारियों का सांस तो मुट्ठी में रहता है। कोई
जमघट न आ जाए। सिपाही का मुँह देख मनुष्य बेहोश हो जाते हैं। आगे चल बहुत तंग करेंगे।
सोना आदि कुछ भी रखने नहीं देंगे। बाकी तुम्हारे पास क्या रहेगा! पैसे ही नहीं
रहेंगे जो कुछ खरीद कर सको। नोट आदि भी चल न सकें। राज्य बदल जाता है। पिछाड़ी में
बहुत दुःखी हो मरते हैं। बहुत दुःख के बाद फिर सुख होगा। यह है खूने नाहेक खेल।
नेचुरल कैलेमिटीज भी होंगी। इससे पहले बाप से पूरा वर्सा तो लेना चाहिए। भल घूमो
फिरो, सिर्फ बाप को याद करते रहो तो पावन बन जायेंगे। बाकी आफतें बहुत आयेंगी। बहुत
हाय-हाय करते रहेंगे। तुम बच्चों को अभी ऐसी प्रैक्टिस करनी है जो अन्त में एक
शिवबाबा ही याद रहे। उसकी याद में ही रहकर शरीर छोड़ें और कोई मित्र सम्बन्धी आदि
याद न आये। यह प्रैक्टिस करनी है। बाप को ही याद करना है और नारायण बनना है। यह
प्रैक्टिस बहुत करनी पड़े। नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा। और कोई की याद आई तो नापास
हुआ। जो पास होते हैं वही विजय माला में पिरोये जायेंगे। अपने से पूछना चाहिए बाप
को कितना याद करते हैं? कुछ भी हाथ में होगा तो वह अन्तकाल याद आयेगा। हाथ में नहीं
होगा तो याद भी नहीं आयेगा। बाप कहते हैं हमारे पास तो कुछ भी नहीं है। यह हमारी
चीज नहीं है। उस नॉलेज के बदले यह लो तो 21 जन्म के लिए वर्सा मिल जायेगा। नहीं तो
स्वर्ग की बादशाही गँवा देंगे। तुम यहाँ आते ही हो बाप से वर्सा लेने। पावन तो जरूर
बनना पड़े। नहीं तो सजा खाकर हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे। पद कुछ नहीं मिलेगा।
श्रीमत पर चलेंगे तो कृष्ण को गोद में लेंगे। कहते हैं ना कृष्ण जैसा पति मिले वा
बच्चा मिले। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई तो फिर उल्टा-सुल्टा बोल देते हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जैसे ब्रह्मा बाबा ने अपना सब कुछ ट्रांसफर कर फुल पॉवर बाप को दे
दी, सोचा नहीं, ऐसे फालो फादर कर 21 जन्मों की प्रालब्ध जमा करनी है।
2) प्रैक्टिस करनी है अन्तकाल में एक बाप के सिवाए और कोई भी चीज़ याद न आये।
हमारा कुछ नहीं, सब बाबा का है। अलफ और बे, इसी स्मृति से पास हो विजयमाला में आना
है।
वरदान:-
मन्सा पर फुल अटेन्शन देने वाले चढ़ती कला के अनुभवी
विश्व परिवर्तक भव
अब लास्ट समय में मन्सा द्वारा ही विश्व परिवर्तन के
निमित्त बनना है। इसलिए अब मन्सा का एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो बहुत कुछ गंवाया,
एक संकल्प को भी साधारण बात न समझो, वर्तमान समय संकल्प की हलचल भी बड़ी हलचल गिनी
जाती है क्योंकि अब समय बदल गया, पुरुषार्थ की गति भी बदल गई तो संकल्प में ही फुल
स्टॉप चाहिए। जब मन्सा पर इतना अटेन्शन हो तब चढ़ती कला द्वारा विश्व परिवर्तक बन
सकेंगे।
स्लोगन:-
कर्म में योग
का अनुभव होना अर्थात् कर्मयोगी बनना।