ओम् शान्ति।
जब यहाँ बैठते हैं तो जितना हो सके बाप की याद में रहना है। कल भी समझाया कि सारा
कल्प तुम देह-अभिमानी रहते हो। इस समय ही एक बार देही-अभिमानी बनना पड़ता है।
देह-अभिमान छोड़ वापिस चलना है। यह कपड़े अथवा तन बहुत पुराने हो गये हैं। यह देह
का अशुद्ध अहंकार छोड़ना है। बाप को याद करना है। बाप को याद तो करते हैं परन्तु पता
नहीं कि हमारा बाप कौन है। कह देते हैं बाप सर्वव्यापी है फिर तो पुकार भी न सकें।
गाते तो हैं ना कि ओ गॉड फादर। जब किसी को दु:ख होता है तो गॉड को याद करते हैं।
बुद्धि ऊपर चली जाती है। अगर भक्त ही भगवान हो फिर तो भगवान को याद करने की दरकार
ही न पड़े। न ऐसा कहना पड़े कि हे भगवान हम दु:खी कंगाल हैं। भक्ति मार्ग में है
दु:ख, इसलिए भगवान को याद करते हैं। मैं बच्चों को सुख देकर जाता हूँ, तो उस सुख को
सभी याद करते हैं। अविनाशी बाप, अविनाशी सुख दे जाते हैं। अब तुम बच्चों का तीसरा
नेत्र ज्ञान का खुला है, जिससे बाप रचयिता और उसकी रचना के आदि मध्य अन्त को अच्छी
रीति जान चुके हैं। कल जो घर में गीता पढ़ते थे, उस गीता से रचता और रचना का नॉलेज
नहीं मिलता था और ही रचना को भूल गये। रचता को भूले तो रचना को भी भूले। बाप तीसरा
नेत्र ज्ञान का देकर समझाते हैं, राजयोग सिखलाते हैं जिससे तुम स्वर्ग के मालिक
बनेंगे। गीता पढ़ने से कोई स्वर्ग की याद नहीं आ सकती। कितने लेक्चर करते हैं। अब
तुम बाप से डायरेक्ट सुनते हो। तो रात दिन का फ़र्क फील होता है। उसमें तो रचता और
रचना को ही भूल जाते हैं। अभी बाबा ने रचता और रचना का राज़ बैठ समझाया है और बरोबर
पुरूषार्थ भी करते हैं वर्सा लेने का। फिर किसका पुरूषार्थ सतोप्रधान है किसका रजो,
किसका तमो होता है। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट पुरूषार्थी हैं। बच्चे जानते हैं कि हमारे
पुरुषार्थ से इतनी ऊंच प्रालब्ध बनेंगी, तो क्यों नहीं ऐसा पुरुषार्थ करना चाहिए।
खुद भी समझते हैं कि अभी हम अच्छा पुरुषार्थ करेंगे तो कल्प-कल्प ऐसा ही हमारा
पुरुषार्थ होगा। अगर नहीं करते हैं तो समझ में आता है कल्प पहले भी उसने पुरुषार्थ
नहीं किया है तो पद भ्रष्ट हो जायेगा। अश्व दौड़ाते हैं ना। रेस में घोड़े दौड़ होती
है। कहते हैं कि फलाने ने विन किया। यहाँ भी नम्बरवार हैं। कोई तो ऐसे भी हैं जो
कहते हैं हम जास्ती कुछ समझने नहीं चाहते हैं। न समझ सकते हैं न किसी को समझायेंगे।
उन्हों के लिए फिर सहज युक्ति है तो सिर्फ बाप को याद करना है। याद करना सीखेंगे कि
वह भी नहीं। बेहद का बाप जिसको तुम भक्ति मार्ग में याद करते हो, वह बाप अब सम्मुख
ब्रह्मा के तन से कहते हैं मुझे याद करो। बाबा ने रचना का राज़ भी समझाया है।
शिवबाबा तो सभी आत्माओं का बाप है। कोई भी आत्मा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। आत्मायें
तो अनादि हैं। प्रजापिता ब्रह्मा रचता है - मुख वंशावली। हम आत्मायें तो हैं शिवबाबा
की सन्तान। कहते हैं कि तुम मेरे तो हो ही। जितने हो उतने ही हो। कम जास्ती आत्मायें
कभी भी हो नहीं सकती। उन्हों का ही बेहद ड्रामा में पार्ट है। यह अनादि बना बनाया
खेल है। बाप कहते हैं मैं आता हूँ जरूर एक सत धर्म स्थापन करने और अनेक धर्मों का
विनाश कराने। जो सतधर्म प्राय: लोप हो गया है, वह अभी स्थापन हो रहा है। सत धर्म
अर्थात् सतयुग का आदि सनातन देवी-देवता धर्म, जो सत परमात्मा ने आकर स्थापन किया
है। जैसे क्रिश्चियन धर्म क्राइस्ट ने स्थापन किया, वैसे आदि सनातन सत धर्म, सत बाप
ने स्थापन किया है। सचखण्ड स्थापन करने वाला सच्चा बाबा है। तुम ब्राह्मण बच्चे ही
जानते हो कि बरोबर बाप आया हुआ है। बाबा समझाते हैं कि अब ड्रामा पूरा होता है। तो
अब पुराना कपड़ा छोड़ना है। नाटक में भी एक्टर्स का पार्ट मुकर्रर हो जाता है। अपने
टाइम पर कपड़े बदल-कर चले जाते हैं ना। बाप कहते हैं कि अब तुम्हारी आत्मा अपवित्र
हो गई है। आत्मा सम्पूर्ण पवित्र हो जाए तो फिर उनको शरीर भी पवित्र चाहिए। इस शरीर
में रहते आत्मा को पवित्र बनाना है। नहीं तो आत्मा को हम पवित्र कहाँ बनायेंगे।
पवित्र यहाँ ही करना है। अब 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। आत्मा जब पवित्र बन कर्मातीत
अवस्था में आ जायेगी तो फिर पुराना हिसाब-किताब चुक्तू हो जायेगा। यह बात बच्चों की
है। बच्चे ही सुनते हैं। तो ब्राह्मण जरूर चाहिए।
तुम जानते हो कि स्वर्ग की स्थापना कैसे हो, तो ब्रह्मा जरूर चाहिए। यह है
ब्राह्मणों का कुल। कहते हैं कि मैं ब्रह्मा के तन का आधार लेता हूँ, इन ब्राह्मणों
को रचने के लिए। यह बातें तो तुम ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ ही जानते हो। यह है
संगमयुग की रचना, कितने गुह्य राज़ हैं। शुरू में बाबा इतने गुह्य राज़ समझाते थे
क्या? कहा जाता है ना - सागर को स्याही बनाओ, जंगल को कलम बनाओ, पृथ्वी को कागज
बनाओ तो भी यह ज्ञान पूरा नहीं होगा। तुम बच्चे सुनते ही रहते हो। यह गुह्य बातें
भी धारण उन्हों को होंगी जिन्हों का पढ़ाई में अटेन्शन है। बाप से वर्सा लेने के
लिए कमर कसकर खड़े हैं। थोड़ा भी अगर संशय हो गया तो उड़ जायेगा। फिर अचानक किसको
तीर लग जायेगा, तो एकदम निश्चयबुद्धि हो जायेगा। नये-नये टोटके बाबा सुनाते हैं। कल
भी बाबा ने बहुत अच्छी रीति समझाया था। बाप कहते हैं कि मैं परम आत्मा परमधाम में
रहने वाला हूँ, जिसको सुप्रीम सोल कहते हैं। यहाँ की आत्मा को कोई सुप्रीम कह न सके।
सुप्रीम सोल एक ही है, उनकी ही सब बन्दगी करते हैं। परमधाम में रहने वाला परमात्मा
वह फिर सर्वव्यापी हो न सके। यहाँ तो दु:ख है, जन्म-मरण है। परमात्मा तो जन्म-मरण
रहित है। जो महारथी हैं जिनका पूरा पुरुषार्थ चल रहा है वर्सा लेने का, वे रेस में
देखो कैसे दौड़ते हैं। कोई घोड़े नाउम्मींद भी होते हैं। परन्तु लास्ट में ऐसे तेज
दौड़ाते हैं जो सबसे आगे चले जाते हैं। यहाँ भी ऐसे है। कोई तो चलते-चलते ढीले हो
जाते हैं, गिर पड़ते हैं। कोई को चोट लग जाती है तो लंगड़े हो पड़ते हैं। यहाँ भी
बहुत अच्छे-अच्छे नये बच्चे हैं जो पुरानों से बहुत तेज दौड़ रहे हैं। कईयों को
पुरुषार्थ करने में ग्रहचारी बैठ जाती है। कोई पर कभी बृहस्पति की दशा बैठती, कभी
चक्र की, कभी शनीचर की। राहू की दशा भी बैठ जाती है। तो कभी फायदा, कभी नुकसान होता
रहता है। बाबा खुद जानते हैं कि इस बच्चे पर ग्रहचारी है, इस कारण से ग्रहण लगा हुआ
है। बाप कहते हैं इससे पार होकर तीव्र-वेगी बन जाओ। जब राहू का ग्रहण लगता है तो दो
तीन वर्ष पवित्र रह फिर कर्मेन्द्रियों से विकार में चले जाते हैं। बाप कहते हैं
काम महाशत्रु है, इन पर विजय पानी है। अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी ग्रहचारी लग जाती
है। शादी कर लेते हैं। प्रण भी पहले करते हैं तो हम पवित्र रहेंगे, परन्तु गिर पड़ते
हैं। कभी श्रीमत पर चलते, कभी फिर उल्टी मत पर चल पड़ते हैं। बाबा बच्चों को अच्छी
रीति जानते हैं, बाबा को कहते कि बाबा हमारी अब रेस चल रही है। बाप कहते हैं कि
खबरदार रहना क्योंकि रेस हार्स (घोड़ों की दौड़) है ना! देखो, बच्चे भविष्य 21 जन्मों
का सुख मिलता है। यह कोई कम बात है। भूल करने से फिर भविष्य सभी जन्मों पर ग्रहचारी
अथवा गोबी (घाटा) लग जाता है इसलिए बाबा कहते हैं कि श्रीमत पर पूरा पुरुषार्थ करो।
बाबा तो पहले से ही बता देते हैं - जितना रुसतम (पहलवान) बनेंगे, ज्ञान-योग में तीखे
होगे, उतना माया के तूफान भी जोर से आयेंगे। खबरदार रहना, कर्मेन्द्रियों द्वारा
विकर्म कर पाप आत्मा नहीं बनना है। तुम हो ईश्वरीय औलाद। तो बहुत रॉयल बनना है।
लक्ष्मी-नारायण देखो कितने रॉयल हैं। यह संस्कार अभी भरने हैं क्योंकि इस समय तुम
ईश्वरीय औलाद कहलाते हो। मान तुम्हारा अभी है। बलिहारी तो इस एक जन्म की माननी
चाहिए। बाकी तो 84 जन्म ले पतित बनते ही आये हो। जब तक बाबा न आये तब तक यह मनुष्य
सृष्टि झाड़ जड़जड़ीभूत तमोप्रधान होना ही है ना। इन लक्ष्मी-नारायण को भी विश्व का
मालिक उस मालिक ने बनाया। सोमनाथ का मन्दिर भी बहुत नामीग्रामी है। शिवबाबा ने धन
दिया है इसलिए उनके मन्दिर में भी बहुत धन लगाया। पुजारी भी जब बनते हैं तो भी कितना
धन रहता है, जो इतने मन्दिर बनाये हैं। तो पूज्य-पने में कितना न धन होगा। अभी तो
है प्रजा का प्रजा पर राज्य। कुछ है नहीं। ब्रह्मा की रात है ना। फिर ब्रह्मा का
दिन होता है तो स्वर्ग बन जायेगा। हीरे जवाहरों के महल बन जायेंगे। भला इतना सोना
आयेगा कहाँ से? वहाँ सोना तो मिट्टी मिसल होता है। दिखलाते हैं कि पहाड़ो में
गर्माइस होती है तो फटते हैं। खानियों से ही सोना निकलता है ना। सोने की ईटें बनाते
होंगे। जैसे माया मच्छन्दर के खेल में दिखाते हैं तो उसने सूक्ष्मवतन में सोने की
ईट देखी, समझा ले जायेंगे। आंख खोली तो कुछ नहीं देखा। यहाँ भी बच्चे दिव्य दृष्टि
में सोने के महल देखकर आते हैं। बच्चों ने गीत तो सुना, दु:खियों पर कुछ रहम करो...
बाप का नाम ही है ब्लिसफुल। ऐसे नहीं कि वह सभी में विराजमान है। माया ने बुद्धि को
बिल्कुल ही ताला लगा दिया है। बाप कहते हैं कि मेरे सिवाए यह ताला कोई खोल नहीं सकता।
नम्बरवार ताला उन्हों का ही खुलता, जिनका कल्प पहले खुला है। उन्हों के पुरुषार्थ
से समझ सकते हैं कि यह अच्छी सर्विस करते हैं। परमपिता परमात्मा ने जरूर कोई शरीर
धारण किया होगा, उनकी पहली रचना है ब्रह्मा। ब्रह्मा के मुख द्वारा ब्राह्मण रचे।
ब्राह्मण हैं चोटी। जगत अम्बा ब्राह्मणी है, ब्रह्मा ब्राह्मण है। शक्ति सेना
ब्राह्मण ब्राह्मणी है। बाप कहते हैं मैं ही नॉलेजफुल हूँ। मेरा भी ड्रामा में
पार्ट है। मैं ही आकर तुमको रचता और रचना का राज़ समझाता हूँ। यहाँ तो बाप, टीचर,
सतगुरू एक ही है। तीनों ही कर्म इकट्ठे करते हैं। सतगुरू साथ भी ले जायेंगे, यह
गैरेन्टी है। बाप सभी को सुख शान्ति देता है। बाप के तो सभी बच्चे हैं ऐसे थोड़ेही
कि कोई को दे, कोई को न दे। बाप तो सभी को माया की जंजीरों से छुड़ाने वाला है,
इसलिए सब उनको याद करते है। स्वर्ग की स्थापना करते हैं। बाकी सबको मुक्ति में भेज
देते हैं। यह तो बाप का ही काम है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कोई भी विकर्म इन कर्मेन्द्रियों द्वारा नहीं करना है। संस्कारों को
रॉयल बनाना है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। ज्ञान-योग में तीखा बनना है।
2) श्रीमत पर कोई भी ग्रहचारी को पार कर तीव्र वेगी बनना है। उल्टी मत पर नहीं
चलना है। खबरदार रह याद की रेस करनी है।