ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना। यह महिमा किसकी है? एक बाप की। शिवाए नम:,
ऊंच ते ऊंच भगवान है ना। बच्चे जानते हैं वह हमारा बाप है। ऐसे नहीं कि हम सभी बाप
हैं। गाया भी जाता है सारी दुनिया ब्रदर हुड है। संन्यासी अथवा विद्वानों के कहने
अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी कहने से जैसे कि फादरहुड हो जाता है। ब्रदर होने से बाप तो
सिद्ध होता है, जिससे वर्सा मिलना है। फादरहुड है तो फिर वर्से की बात ही नहीं है।
बच्चे जानते हैं हम सभी आत्माओं का बाप एक है, उनको कहा ही जाता है - वर्ल्ड गॉड
फादर। वर्ल्ड में कौन है? सभी ब्रदर्स हैं, आत्मायें हैं। सबका गॉड फादर एक ही है।
उस बाप की सभी प्रार्थना करते हैं। एक की ही बन्दगी वा पूजा होनी चाहिए। वह है
सतोप्रधान पूजा। यह भी समझाया है - ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। बाप ज्ञान देते हैं
सद्गति के लिए। सद्गति कहा जाता है जीवन-मुक्ति धाम को। यह आत्मा को बुद्धि में
धारण करना है। हमारा घर शान्तिधाम है। उसको मुक्तिधाम, निर्वाणधाम भी कहा जाता है।
सबसे अच्छा नाम है - शान्तिधाम। यहाँ तो आरगन्स होने के कारण आत्मा टॉकी में रहती
है, बोलना पड़ता है। सूक्ष्मवतन में है मूवी। इशारे में बात होती है, आवाज नहीं होती।
तीनों लोकों को भी तुम जान गये हो। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, बुद्धि में यह
अच्छी रीति बैठा है। मनुष्य सृष्टि के लिए ही गाया जाता है कि यह सृष्टि चक्र लगाती
है। उसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी। मनुष्य ही तो उसको जानेंगे ना।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं। ऊंच ते ऊंच बाप है। वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है, वही जानते हैं। इस चक्र को जानने से ही तुम
चक्रवर्ती राजा बने हो। गाते भी हैं देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी हैं।
लक्ष्मी-नारायण के चित्र हैं ना। वह सम्पूर्ण निर्विकारी और अपने को कहते हैं
सम्पूर्ण विकारी। सतयुग में हैं सम्पूर्ण निर्विकारी अथवा सम्पूर्ण पावन। कलियुग
में हैं सम्पूर्ण विकारी, सम्पूर्ण पतित। भारत की ही बात है। यह बाप ही आकर बुद्धि
में बिठाते हैं और कोई नहीं जानते हैं। उन्होंने तो सतयुग को लम्बा समय दे दिया है।
समझते हैं लाखों वर्ष पहले सतयुग था। तो किसी की बुद्धि में यह बात आती ही नहीं है।
अब बच्चे जानते हैं - हम अभी सम्पूर्ण विकारी से सम्पूर्ण निर्विकारी बन रहे
हैं। सम्पूर्ण पतित से सम्पूर्ण पावन बनना है। बाप समझाते हैं आत्मा में ही खाद पड़ी
हुई है, गोल्डन एज से अब आइरन एज बन गई है। यह आत्मा की भेंट की जाती है। यह अच्छी
रीति समझना है। तुम बच्चे बहुत खुशनसीब हो, तुम्हारे जैसा खुशनसीब कोई और नहीं। अभी
तुम राजयोग में बैठे हो, तुम राजऋषि हो। राजाई के लिए कभी कोई पढ़ाई होती है क्या?
बैरिस्टर बनायेंगे परन्तु विश्व का महाराजा कौन बनायेगा? बाप के सिवाए कोई बना न सके।
यहाँ महाराजा तो कोई है नहीं। सतयुग के लिए तो जरूर चाहिए। किसको जरूर आना पड़े।
बाप कहते हैं मैं आता हूँ तब, जब भक्ति पूरी होनी होती है। अब भक्ति पूरी हुई और
कोई बात इसमें उठा ही नहीं सकते। हमको बाप बैठ पढ़ाते हैं - यह नशा होना चाहिए। हम
आत्माओं को निराकार बाप परमपिता परमात्मा शिव पढ़ाते हैं। शिव को तो कोई जानते ही
नहीं। अब तुम बच्चे जानते हो बाबा फिर से स्वर्ग की राजाई स्थापन कर रहे हैं। हम
उनको महाराजन श्री नारायण और महारानी श्री लक्ष्मी कहते हैं। भक्ति मार्ग में सत्य
नारायण की कथा सुनाते हैं। अमरकथा और तीजरी की कथा। बाप तीसरा नेत्र भी देते हैं।
नर से नारायण बनने की कथा सुनाई जाती है। वही बातें जो पास्ट हो जाती हैं, वह फिर
भक्ति मार्ग में काम आती हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक
बनाते हैं, हम हकदार हैं। भगवान तो स्वर्ग का रचयिता है ना। हम भगवान की सन्तान हैं
तो हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं! कलियुग में क्यों पड़े हैं? परमपिता परमात्मा तो
नई दुनिया रचते हैं। पुरानी दुनिया थोड़ेही भगवान रचते हैं। पहले नई दुनिया बनाते
हैं। उसके बाद फिर पुरानी को तोड़ेंगे। तुम जानते हो हम सतयुग के लिए राज्य ले रहे
हैं। सतयुग में कौन होंगे? इन लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी होगी और भी तो राजायें
होंगे ना। जिसकी निशानी है विजय माला। बच्चे जानते हैं अभी हम विजयमाला में पिरोने
के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। दुनिया में माला का अर्थ कोई नहीं जानते कि यह क्यों
पूजी जाती है, ऊपर में फूल कौन है? माला को फेरते-फेरते फिर फूल को नमस्ते करते हैं
फिर माला फेरेंगे। माला बैठ सिमरते हैं कि कहाँ बाहर ख्यालात न जायें। अन्दर
राम-राम की धुन लगाते हैं, जैसे बाजा बजता है। बहुत प्रैक्टिस करते हैं। यह सब हैं
भक्ति मार्ग की बातें। हाँ बहुत भक्ति करने वाले सिर्फ कोई विकर्म नहीं करेंगे।
बहुत भक्ति करने वाले के लिए समझेंगे कि यह सत्यवादी होगा। मन्दिर में माला रखी होगी,
माला फेरते मुख से राम-राम कहते रहेंगे। बहुत लोग समझते हैं भक्ति में पाप नहीं होता।
कहते हैं नौधा भक्ति से मनुष्य मुक्त हो जाते हैं। परन्तु होता कुछ भी नहीं। यह एक
नाटक है। उसमें सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में सबको आना ही है। वापिस एक को भी नहीं
जाना है। जैसे ऊपर में जगह खाली हो जाती है। वैसे यहाँ भी बहुत जगह खाली हो जायेगी।
देहली के आसपास, मीठी नदियों पर राजधानी होती है। समुद्र की तरफ नहीं होती है। यह
बाम्बे आदि होंगे नहीं। वह तो पहले मच्छीमयानी थी। मछली फँसाने वाले वहाँ रहते थे।
अभी तो समुद्र को कितना सुखाया है। फिर भी मच्छीमयानी होगी। सतयुग में तो बाम्बे
होती नहीं। वहाँ कोई पहाड़ियां आदि भी नहीं होती। कहाँ जाने की दरकार ही नहीं होती।
यहाँ मनुष्य थकते हैं तो जाते हैं रेस्ट लेने। सतयुग में थकने करने की कोई प्रकार
की तकलीफ नहीं होती, तुम स्वर्गवासी बन जाते हो। रिंचक भी तकलीफ नहीं होती। तो अब
बच्चों को बाप की श्रीमत पर चलना है।
बाप कहते हैं - मीठे लाडले बच्चों, शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा आदि तो करना है।
स्कूल में स्टूडेन्ट पढ़कर फिर घर में जाकर पढ़ते हैं। घर का कामकाज भी करते हैं।
यह भी ऐसे है। इस पढ़ाई में तो तुमको कोई तकलीफ नहीं है। उस पढ़ाई में कितनी
सब्जेक्ट होती हैं। यहाँ तो एक पढ़ाई और एक ही प्वाइंट है - मनमनाभव, इससे तुम्हारे
पाप नाश होंगे। भगवानुवाच है ना, वह समझते हैं गीता; भगवान ने द्वापर में सुनाई।
परन्तु द्वापर में सुनाकर क्या करेंगे? कृष्ण के चित्र में लिखत बहुत अच्छी है। यह
लड़ाई तो एक निमित्त है। सब मरेंगे तब तो वापिस मुक्ति-जीवनमुक्ति में जायेंगे। सो
भी सिर्फ लड़ाई में थोड़ेही मरेंगे! अनेक प्रकार की कैलेमिटीज़ होंगी। बच्चों को
कोई दु:ख नहीं होना चाहिए। मनुष्य का हार्ट फेल होता है तो उसमें कोई दु:ख नहीं होता
है। मौत हो तो ऐसा। बैठे-बैठे हार्टफेल हुआ खलास। जब तक डॉक्टर आये आत्मा निकल जाती
है। अब तो सबका मौत होना है। पिछाड़ी में न हॉस्पिटल, न डॉक्टर रहेंगे। न
क्रियाकर्म करने वाले रहेंगे। कुछ भी नहीं होगा। सबके प्राण तन से निकलेंगे।
मूसलधार बरसात पड़ेगी। मौत में कोई देर थोड़ेही लगेगी। कोशिश कर रहे हैं - ऐसे
बाम्बस बनायें जो मनुष्य फट से मर जायें। ऐसे-ऐसे बाम्बस बनाते रहते हैं। बाम्बस की
इप्रूवमेंट करते रहते हैं। यह ड्रामा में नूँध है। ड्रामा में बना-बनाया खेल है,
कल्प-कल्प विनाश होता है। सतयुग में तुमको यह ज्ञान रहेगा नहीं। बाप को ही आकर
ज्ञान देना है। स्थापना हो गई फिर ज्ञान की बात ही नहीं रहती। फिर जब रावण राज्य
शुरू होता है तो भक्ति शुरू होती है। अब भक्ति पूरी होती है, अब तुमको योगबल से
पावन बनना है। पावन बनने से ही सुखधाम शान्तिधाम में जा सकते हैं। चार्ट रखना पड़े।
यह तो समझ गये हो - हमको बाप को याद कर तमोप्रधान से सतोप्रधान यहाँ बनना है। ऐसे
कोई शास्त्र आदि में लिखा हुआ नहीं है। बच्चों ने गीत सुना - आखिर वह दिन आया आज...
जबकि भारतवासी फिर राजाओं के राजा बनते हैं। राजाओं के राजा अथवा महाराजा बनते हैं।
पीछे त्रेता में होते हैं - राजा-रानी। फिर जो पूज्य महाराजा-महारानी थे, वह द्वापर
में वाम मार्ग में आकर पुजारी बन जाते हैं। आपेही पूज्य आपेही पुजारी हो जाते हैं।
बाप कहते हैं मैं पुजारी नहीं बनता हूँ। देवतायें पूज्य होते हैं, मैं नहीं बनता। न
ही पुजारी बनता हूँ। भारतवासी देवी-देवताओं के ही मन्दिर बनाकर उनका पूजन करते हैं।
लक्ष्मी-नारायण जो पहले पूज्य थे फिर भक्ति मार्ग में वही शिवबाबा के पुजारी बनते
हैं। जिस शिवबाबा ने महाराजा-महारानी बनाया, उनके फिर मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं।
विकारी भी कोई फट से नहीं बनते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते बनते हैं। निशानी भी देवताओं
की वाम मार्ग में दिखाते हैं। जो पूज्य लक्ष्मी-नारायण थे वही फिर पुजारी बन जाते
हैं। पहले-पहले शिव का मन्दिर बनाते हैं। उस समय तो हीरों को कट कराए लिंग बनाते
हैं, पूजा के लिए। यह किसको भी पता नहीं है कि परमात्मा छोटी सी बिन्दी है। यह तुम
अभी समझते हो कि बड़ा लिंग नहीं है। मन्दिर तो बहुत बनायेंगे। राजा को देख प्रजा भी
ऐसे करेगी। पहले-पहले शिवबाबा की पूजा होती है। उनको कहा जाता है अव्यभिचारी
सतोप्रधान पूजा फिर सतो रजो तमो में आते हैं। तुम रजो तमो में आये हो तो नाम ही
हिन्दू रख दिया है। असुल थे देवी-देवतायें। बाप कहते तुम असुल देवी-देवता धर्म के
हो। परन्तु तुम बहुत पतित बन गये हो, इसलिए अपने को देवता कहला नहीं सकते हो क्योंकि
अपवित्र हो। हिन्दू नाम तो बहुत देरी से रखते हैं।
अभी तुम समझते हो हम सो पूज्य थे, अभी संगमयुग पर न पूज्य हैं, न पुजारी हैं।
तुम क्या करते हो? श्रीमत पर पूज्य बन रहे हो, औरों को भी बना रहे हो। तुम हो
ब्राह्मण, तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जाती है। पूरा पवित्र होंगे तो यह पुराना चोला
छोड़ना पड़ेगा। बाप कहते हैं बिल्कुल सहज है। बूढ़ी माताओं को धारणा नहीं होती है।
बाप कहते हैं - यह तो समझते हो कि हम आत्मा हैं। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे
संस्कार होते हैं। आत्मा ने जो कर्म किया वह दूसरे जन्म में भोगना होता है। बाप भी
आत्माओं से बात करते हैं। बाप कहते हैं - हे बच्चे आत्म-अभिमानी बनो। निराकार
शिवबाबा निराकारी आत्माओं को पढ़ाते हैं। निराकार बाबा में ज्ञान के संस्कार हैं।
शरीर तो उनको है नहीं। तो वह ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। उनमें सब गुण हैं। बाप
कहते हैं मैं आकर तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ। युक्ति कितनी सहज है। अक्षर ही एक
है मनमनाभव, मामेकम् याद करो। याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यह भी जानते
हो - अभी हम ब्राह्मण हैं। फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्य, शूद्र वंशी बनेंगे।
हम ही इस 84 के चक्र में आयेंगे। ऊपर से नीचे उतरेंगे फिर बाबा आयेंगे। बरोबर यह
सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। सृष्टि यह पुरानी होती है तो फिर बाबा आते हैं नई
बनाने। यह तो बुद्धि में बैठता है ना। यह चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। अब तुम
स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो, जिससे फिर जाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर पूज्य बनना है। आत्मा में जो बुरे संस्कार आ गये हैं उसे
ज्ञान योग से समाप्त करना है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है।
2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। योगबल से पावन बन
राजाई पद लेना है।