ओम् शान्ति।
जब मेले वा प्रदर्शनी में बच्चे समझाते हैं तो जो समझाने लायक बातें हैं, वह जरूर
समझानी पड़े। इसमें यह तो जरूर समझाना पड़े कि सब ब्रदर्स (आत्माओं) का बेहद का बाप
एक ही है। यह भी पूछना पड़ता है कि भारत का आदि सनातन धर्म क्या है? वे तो आदि
सनातन हिन्दू ही समझते हैं। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि को मालूम है कि हमारा
धर्म किसने और कब स्थापन किया। भारतवासियों का हिन्दू धर्म है वा देवी-देवता? यह
किसने और कब स्थापन किया? यह भारतवासी बिल्कुल ही नहीं जानते। यह बिल्कुल जरूरी बात
है समझाने की। यह किसके भी ध्यान में नहीं आता है। प्राचीन भारत देश गाया जाता है।
परन्तु उन्हों को यह पता नहीं कि हमारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। हिन्दू तो
कोई धर्म ही नहीं है। अब तुम बच्चे जानते हो कि 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवता धर्म
था। बरोबर उस समय लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। वह अपने को हिन्दू नहीं कहलाते थे।
अच्छा हिन्दू धर्म का भी कोई संवत होना चाहिए। विक्रम संवत जो कहते हैं, हो सकता है
जब से देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो अपने को हिन्दू कहलाना शुरू करते हों, तब
से विक्रम संवत भी कहते हो। तो आधा-आधा हो गया। उस समय उनको आदि सनातन देवी-देवता
नहीं कहेंगे। संवत कहा जाता है जब धर्म स्थापन होता है। वह किसने स्थापन किया?
विकर्म संवत तो रावण ने स्थापन किया। उस समय सबके कर्म, विकर्म होते रहे। कर्म,
अकर्म, विकर्म नाम तो है ना। तो विक्रम राजा का भी संवत चलता है। वह हो गया आधा समय।
अब यह विक्रम संवत हिन्दुओं का संवत तो नहीं है? तो यह पूछना चाहिए कि भारत का आदि
सनातन देवी-देवता धर्म कब स्थापन हुआ? मालूम तो पड़े ना। यह बहुत नाज़ुक बातें हैं।
जब यह मालूम पड़े तब हिसाब लगा सकें कि नई दुनिया थी फिर दिन-रात जरूर होते हैं।
आधा-आधा जरूर होगा। यह एक ईश्वरीय लॉ है, यह समझानी देना है जरूर। ऐसा कभी कोई ने
समाचार नहीं दिया है। क्रिश्चियन का भी आधा सुख, आधा दु:ख का पार्ट चलेगा। यह जो हम
समझाते हैं, इसमें सारी हिस्ट्री जॉग्राफी आ जाती है। मनुष्य जो भी आते हैं उनको
दु:ख सुख का पार्ट मिला हुआ है। एक दो जन्म लिए आयेंगे तो भी आधा-आधा होगा। यह एक
ईश्वरीय लॉ है। प्रदर्शनी में जब सुनते हैं, अच्छा-अच्छा करते हैं। बाहर निकलने से
ही भूल जाते हैं। बिरला कोई ध्यान देते हैं। कोई एक मास आकर भी गुम हो जाते हैं।
कोई 10 मिनट समझते, कोई एक घण्टा, कोई तो कुछ समय आकर चलते-चलते थक जाते हैं। ऐसे
सेन्टर्स पर होता रहता है। कैसे दैवी सम्प्रदाय बन रहे हैं। यह भी वन्डर है – नई
दुनिया का धर्म पुरानी दुनिया में स्थापन हो रहा है। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि
में आती हैं। बाप द्वारा तुम अपने 84 जन्मों को जान चुके हो। बाप कहते हैं मैं 84
जन्मों की कहानी सुनाने आता हूँ, तो जरूर पिछाड़ी में ही आकर सुनायेंगे ना। द्वापर
के बीच में तो सुना न सकें। जबकि पिछाड़ी वाले जन्म अभी लिये नहीं हैं। राजयोग का
ज्ञान द्वापर में मिल न सके। महाभारत लड़ाई भी द्वापर में लग न सके। महाभारत लड़ाई
के बाद ही सतयुग स्थापन होता है अर्थात् देवी-देवता धर्म स्थापन होता है। उनसे पहले
ब्राह्मण धर्म स्थापन होता है तो जरूर ब्रह्मा द्वारा स्थापन करते होंगे। तो
ब्राह्मण जन्म लेते होंगे ना। विराट रूप जो दिखाया है, उसमें शिव को भी नहीं दिखाया
है तो ब्राह्मणों की चोटी भी नहीं दिखाई है। प्रदर्शनी में भी विराट रूप वाला चित्र
होना जरूरी है। ब्रह्मा द्वारा पहले जरूर ब्राह्मण रचेंगे। फिर वह ब्राह्मण कब और
कहाँ रचते हैं। ब्राह्मणों का है संगम। शूद्रों का है कलियुग। अब तुम अपने को कहलाते
हो प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ। प्रजा माना ही मनुष्य सृष्टि तो जरूर
ब्राह्मण होंगे। क्राइस्ट को क्रिश्चियन धर्म का पिता कहेंगे। यह है प्रजापिता।
भगवान ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। ऐसे नहीं क्राइस्ट द्वारा, बौद्धियों
द्वारा रचते हैं। मनुष्य सृष्टि शुरू ही ब्रह्मा से होती है। तो जरूर पहले-पहले
ब्राह्मण ही रचेंगे। ब्राह्मणों को फिर देवता बनाते हैं। विराट रूप भी भारत में ही
दिखाते हैं और धर्म वाले विराट रूप बना न सकें। यह नई-नई बातें बाप ही समझाते हैं।
नई प्वाइंट्स भी निकलती रहती हैं, पुरानी भी निकलती रहती हैं क्योंकि नये-नये बच्चों
को भी कुछ नई, कुछ पुरानी प्वाइंट मिलनी चाहिए, जो समझें। जब तक अल्फ बे बुद्धि में
नहीं हो तो और क्या समझेंगे। तुम जानते हो अल्फ बे किसको समझाना बड़ा सहज है। बाप
तो सबका एक है, वह आते भी जरूर हैं। शिव जयन्ती भारत में ही मनाते हैं। परन्तु
भारतवासियों को यह पता नहीं कि शिव जयन्ती क्या है। ना ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का पता
है, ना श्रीकृष्ण का। श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब था, यह भी नहीं जानते।
क्राइस्ट होकर गये, उनके पोप की सारी लिस्ट होगी। परन्तु भारतवासियों को यह पता नहीं
कि यह लक्ष्मी-नारायण भी भारत में राज्य करके गये हैं। जो भी चित्र बनाते हैं पूजा
करते, उनका आक्यूपेशन बिल्कुल ही नहीं जानते। देवताओं से फिर क्षत्रियों ने राजाई
कैसे ली, क्या लड़ाई की? राजाई बदली होती है तो जरूर कोई ने विजय पाई। वहाँ तो यह
बात ही नहीं। वह तो अच्छी तरह राज्य देते हैं। मनुष्य तो कितने अन्धियारे में हैं।
तुमको कितनी रोशनी मिलती है। ऐसे भी नहीं सब बातें किसको याद रहती हैं। नहीं तो बाबा
ने जो समझाया वह सब प्रदर्शनी में समझाना चाहिए। प्रदर्शनी में एक दिन आते हैं फिर
दूसरे दिन आते नहीं। कुछ भी पता नहीं पड़ता है कि समझते हैं वा नहीं। ओपीनियन में
लिखाना चाहिए कि पहले हमको यह पता नहीं था तो देवी-देवता धर्म कहाँ गया। संवत बताओ।
हिन्दू धर्म कब से शुरू हुआ? हर एक क्या-क्या समझाते हैं, यह किसको पता नहीं पड़ता।
ओपीनियन रखने वाला भी चाहिए। तुम सिद्ध करके बताते हो। 5 हजार वर्ष का यह चक्र है,
लिखो। संवत आदि का किसको मालूम तो है नहीं। यह बातें कोई शास्त्र में सुनी हैं? फिर
हमने कहाँ से सीखी? तो हमको सिखाने वाला जरूर भगवान होगा। भगवान बिगर यह बातें कोई
समझा न सके। वह भी जरूर कोई तन में आयेगा। परमात्मा ज्ञान का सागर है। परमपिता
परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। आदि मध्य अन्त की नॉलेज देते हैं। उनका
नाम है शिव। भक्ति मार्ग में उनके ढेर नाम रख दिये हैं। कम से कम डेढ़ लाख अपनी-अपनी
भाषा में उनके नाम रखते हैं।
बच्चों को रोज़ कितना समझाते हैं। परन्तु अजुन शुद्ध बुद्धि बने नहीं हैं।
पुरुषार्थ करते रहेंगे तो खाद निकल जायेगी। अब तक तो बच्चे सतो तक भी मुश्किल पहुँचे
हैं। उसमें भी कोई तमो, सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो इसमें भी नम्बरवार हैं। हर एक का
पुरुषार्थ अपना-अपना चलता है। इस समय मनुष्यों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि।
सिर्फ पाण्डवों की थी प्रीत बुद्धि। उन्हों की विजय हुई। असुर और देवता, हैं दोनों
मनुष्य। ऐसे नहीं कि असुरों की कोई भयानक शक्ल होती है। वह तो लड़ाई में गोले गैस
आदि से बचने लिए ड्रेस पहनते हैं। वह है आसुरी सम्प्रदाय, तुम हो राम सम्प्रदाय
क्योंकि तुमने 5 विकार छोड़े हैं। पवित्र बन सारे विश्व पर तुम राज्य करेंगे।
तुम्हारी कोई के साथ लड़ाई नहीं है। बाबा कितनी बातें समझाते हैं। कोई मास दो आकर
फिर थक जाते हैं। फिर समझा जाता है तकदीर में नहीं है। साधारण प्रजा में तो आयेंगे,
प्रजा तो ढेर बनने वाली है। अभी भी देखो प्रजा कितनी है। किस तरफ अन्न की कमी होने
कारण मनुष्य भूख में भी मर जाते हैं। कोई तरफ बारिस नहीं होने कारण अकाल भी पड़ जाता
है। इसमें गवर्मेन्ट क्या करेगी! ये तो नेचुरल कैलेमेटीज़ है। अब तो मूसलधार बरसात
भी पड़ेगी। विनाश तो होना है। तो तुमने जो साक्षात्कार किया है, वह सब प्रैक्टिकल
में होगा। साक्षात्कार में एक कृष्ण का महल देखेंगे। सारा तो नहीं देख सकेंगे। अच्छा
देखेंगे विनाश हुआ, शरीर छोड़ेंगे तो सब कुछ भूल जायेंगे। सारी दुनिया खत्म हो जाने
वाली है। फिर दुनिया ही बदल जायेगी, तुमको सब कुछ भूल जायेगा। अभी तुम्हारे में शुरू
से लेकर अन्त तक सब नॉलेज है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन का चक्र कैसे फिरता है, सारी
नॉलेज बाप ने दी है। जिसमें जितना जास्ती ज्ञान उतना जास्ती नशा रहता है। अभी हम
मास्टर नॉलेजफुल हो गये, फिर जब विनाश होगा हमारा शरीर खलास हो जायेगा। इस जन्म तक
ही नॉलेज रहती है। तो इतना बुद्धि में नशा रहना चाहिए कि हम यह शरीर छोड़ जाकर
प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। मनुष्य तो पढ़कर जाकर अपनी-अपनी कमाई करते हैं। बाप कहते
हैं – हम कोई कमाई नहीं करते। हम तो तुमको सिखलाकर अपने घर ले जाते हैं। तुम कमाई
करते हो तो गँवाते भी हो। तुमको सारा आदि मध्य अन्त का ज्ञान है। बाबा को भी ज्ञान
है, जो बैठकर समझाते हैं पार्ट अनुसार। फिर बाबा भी चले जाते हैं निर्वाणधाम। सभी
आत्मायें भी चली जायेंगी। वहाँ फिर जिन-जिन का पार्ट होगा वह फिर राजधानी में आते
जायेंगे। बाकी टाइम शान्तिधाम में रहेंगे। बच्चों को कितना ज्ञान मिल रहा है, ऊंच
पद पाने के लिए। नये किसकी बुद्धि में बैठ न सके। सिर्फ इतना कहेंगे ज्ञान बहुत
अच्छा है। फिर अपने धन्धेधोरी में चले जायेंगे। बाहर जाने से माया भुला देती है,
ताला लगा देती है, कई बच्चों का भी ऐसा हाल होता है। पूरी धारणा होती नहीं। पहले
अन्दर कोई आये तो बोलो, यह सब हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा
विष्णुपुरी की स्थापना कर रहे हैं। अभी कलियुग अन्त है फिर सतयुग होगा। तो ब्रह्मा
के बच्चे सब ब्रह्माकुमार हैं जो फिर देवता बनेंगे। ऐसा सर्विस समाचार बाबा को मिलता
रहे तो बाबा राय दें। परन्तु बाबा को पूरा सुनाते नहीं। बहुतों पर ग्रहचारी लगती
है। अभी-अभी देखो फर्स्टक्लास, कल देखो थर्डक्लास बन पड़ते हैं। ग्रहचारी न होती तो
आश्चर्यवत भागन्ती क्यों होते? जो बच्चे प्रदर्शनी में अच्छी तरह जाकर सर्विस करते
हैं, वह अपना समय भी सफल करते हैं। बापदादा को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। बाबा बच्चों
को कुछ भी बोलेगा फिर फौरन प्यार भी करेगा। बाबा की दिल पर बच्चों का कुछ भी रहता
नहीं है। यह सिर्फ शिक्षा देने के लिए सिखलाते हैं।
यहाँ बच्चों को टोली खिलाई जाती है क्योंकि बेहद का बाप है ना। लौकिक बाप बाजार
से आते हैं तो बच्चे जरूर याद पड़ेंगे। कुछ न कुछ टोली ले आते हैं। बाहर सेन्टर पर
टोली नहीं मिलती। यहाँ बाप सम्मुख बैठा है। बाबा सब कुछ बच्चों को समझाते हैं। यह
द्वापर से ऋषि-मुनि जो सतोप्रधान थे, जिनकी बुद्धि को ताला लगा हुआ नहीं था, वे भी
कहते थे रचता और रचना को हम नहीं जानते हैं। आज कलियुग में सबकी बुद्धि को ताला लगा
हुआ है, फिर वह कैसे जान सकेंगे। शास्त्र तो वह ऋषि-मुनि भी पढ़ते थे। तुमको
प्वाइंट बहुत मिलती हैं समझाने के लिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भगवान हमको पढ़ाकर भगवती भगवान बनाते हैं – इसी खुशी वा नशे में रहना
है। रचता और रचना का ज्ञान बुद्धि में रख दूसरों को सुनाना है।
2) जैसे बाप किसी बच्चे की बात दिल पर नहीं रखते हैं, ऐसे किसी की भी बात दिल पर
नहीं रखनी है।