24-11-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारी
सच्ची बात का तीर तब लगेगा जब दिल में सच्चाई सफाई होगी, तुम्हें सत्य बाप का संग
मिला है इसलिए सच्चे बनो''
प्रश्नः-
तुम सब
स्टूडेन्ट हो, तुम्हें किस बात का ख्याल रखना जरूरी है?
उत्तर:-
कभी भी
कोई ग़लती हो तो सच बोलना है, सच बोलने से ही उन्नति होगी। तुम्हें अपनी सेवा दूसरों
से नहीं लेनी है। अगर यहाँ सेवा लेंगे तो वहाँ करनी पड़ेगी। तुम स्टूडेन्ट अच्छी
तरह से पढ़कर दूसरों को पढ़ाओ तो बाप भी खुश होगा। बाप प्यार का सागर है, उनका
प्यार ही यह है जो तुम बच्चों को पढ़ाकर ऊंच मर्तबा दिलाते हैं।
गीत:-
किसने यह सब
खेल रचाया........
ओम् शान्ति।
आजकल समाचार आते हैं कि हम गीता जयन्ती मना रहे हैं। अब गीता को जन्म किसने दिया
है, यह है टॉपिक। जयन्ती कहते हैं तो जरूर जन्म भी हुआ ना। उनको जब कहते हैं श्रीमद्
भगवत गीता जयन्ती तो जरूर उनको जन्म देने वाला भी चाहिए ना। सब कहते हैं श्रीकृष्ण
भगवानुवाच। तो फिर श्रीकृष्ण पहले आता, गीता पीछे हो जाती। अब गीता का रचयिता जरूर
चाहिए। अगर श्रीकृष्ण को कहते तो पहले श्रीकृष्ण, पीछे गीता आनी चाहिए। परन्तु
श्रीकृष्ण छोटा बच्चा था वह गीता सुना न सके। यह सिद्ध करना होगा कि गीता को जन्म
देने वाला कौन? यह है गुह्य बात। श्रीकृष्ण तो माता के गर्भ से जन्म लेता है, वह तो
सतयुग का प्रिन्स है। उसने स्वयं प्रिन्स का पद पाया है गीता द्वारा राजयोग सीखकर।
अब गीता को जन्म देने वाला कौन? परमपिता परमात्मा शिव या श्रीकृष्ण? श्रीकृष्ण को
वास्तव में त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी भी नहीं कह सकते हैं। त्रिलोकीनाथ,
त्रिकालदर्शी एक को ही कहेंगे। त्रिलोकीनाथ माना तीनों लोकों पर राज्य करते हैं।
मूल, सूक्ष्म, स्थूल इन तीनों को कहा जाता है त्रिलोकी, इनको जानने वाला
त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी परमपिता परमात्मा शिव है, यह महिमा उनकी है, न कि
श्रीकृष्ण की। श्रीकृष्ण की महिमा है - 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न....। उनकी
भेंट करते हैं चन्द्रमा से। परमात्मा की भेंट चन्द्रमा से नहीं करेंगे। उनका
कर्तव्य ही अलग है। वह है गीता को जन्म देने वाला रचयिता। गीता के ज्ञान वा राजयोग
से ही देवतायें क्रियेट होते हैं। मनुष्य को देवता बनाने के लिए बाप को आकर नॉलेज
देनी पड़ती है। अब यह समझानी देने वाले बड़े ही होशियार ब्रह्माकुमार-कुमारियां
चाहिए। सभी एक जैसा समझा नहीं सकते। बच्चियां भी तो सब नम्बरवार हैं। टॉपिक भी ऐसी
रखी जाए कि श्रीमत भगवत गीता को जन्म किसने दिया? इसके लिए कान्ट्रास्ट समझाना है।
भगवान् तो एक ही है - परमपिता परमात्मा शिव। उस ज्ञान सागर द्वारा ज्ञान सुनकर
श्रीकृष्ण ने यह पद पाया था। सहज राजयोग से यह पद कैसे पाया, यह समझानी देनी पड़े।
ब्रह्मा द्वारा ही पहले बाप ब्राह्मण रचते हैं। सभी वेदों-शास्त्रों का सार सुनाते
हैं। ब्रह्मा के साथ ब्रह्मा मुख वंशावली भी चाहिए। ब्रह्मा को ही त्रिकालदर्शीपने
का ज्ञान मिलता है। त्रिलोकी अर्थात् तीनों लोकों का भी ज्ञान मिलता है। तीनों काल
आदि, मध्य, अन्त को मिलाकर कहा जाता है और तीनों लोक अर्थात् मूल, सूक्ष्म,
स्थूलवतन। यह अक्षर याद करने हैं। बहुत बच्चे भूल जाते हैं। भुलाया है देह अहंकार
रूपी माया ने। तो गीता का रचयिता परमपिता परमात्मा शिव है, न कि श्रीकृष्ण। परमपिता
परमात्मा ही त्रिकालदर्शी तथा त्रिलोकीनाथ हैं। श्रीकृष्ण में वा लक्ष्मी-नारायण
में यह नॉलेज है ही नहीं। हाँ, जिन्होंने यह नॉलेज बाप से पाई वह विश्व के मालिक बन
गये। जब सद्गति मिल गई फिर यह नॉलेज बुद्धि से गुम हो जाती है। सबका सद्गति दाता वह
एक ही है। वह पुनर्जन्म लेने वाला नहीं है। पुनर्जन्म शुरू हुआ सतयुग आदि से।
कलियुग अन्त तक 84 जन्म लेते हैं। यह समझानी देनी पड़ती है। सब तो 84 जन्म नहीं लेते।
जिसने यह गीता लिखी उसको त्रिकालदर्शी नहीं कहेंगे। पहले ही लिखा कि श्रीकृष्ण
भगवानुवाच। यह एकदम रांग है। रांग भी होना ही है जरूर। जब सब शास्त्र रांग हों तब
ही बाप आकर राइट सुनाये। बरोबर ब्रह्मा द्वारा वेदों-शास्त्रों का सच्चा सार सुनाते
हैं इसलिए उन्हें सत कहा जाता है। अब तुम्हारा है सत के साथ संग, जो तुमको सत बनाते
हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा और उनकी मुख वंशावली यह जगदम्बा सरस्वती। प्रजापिता ब्रह्मा
के सभी बच्चे आपस में भाई-बहन ठहरे। कहाँ भी मन्दिरों में जाकर भाषण करना चाहिए।
घूमने-फिरने भी वहाँ बहुत आते हैं। एक को समझाया तो सतसंग लग जायेगा। शमशान में भी
जाना चाहिए। वहाँ मनुष्यों को वैराग्य होता है। परन्तु बाबा कहते मेरे भक्तों को
समझाने से वह फट से समझेंगे। तो शिवबाबा के मन्दिर, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में
जाना पड़े। लक्ष्मी-नारायण को बाबा मम्मा नहीं कहते। शिव को बाबा कहते हैं जरूर
मम्मा भी होगी, वह है गुप्त। शिवबाबा जो रचयिता है, उनको मात-पिता कैसे कहते हैं,
यह गुप्त बात कोई भी जान न सके। लक्ष्मी-नारायण को एक ही अपना बच्चा होगा। बाकी इनका
नाम है प्रजापिता ब्रह्मा। विष्णु और शंकर को ऊंच नहीं रखते। ऊंच त्रिमूर्ति ब्रह्मा
को रखते हैं। जैसे रचता शिव परमात्मा को कहते हैं, ऐसे ही ब्रह्मा को भी रचता कहा
जाता है। वह तो अविनाशी है ही। रचता अक्षर कहेंगे तो पूछेंगे - कैसे रचा? वह तो रचता
है ही। बाकी रचना होती है ब्रह्मा द्वारा। अब ब्रह्मा द्वारा परमात्मा सब आत्माओं
को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। वेद-शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग
की सामग्री। भक्ति मार्ग आधाकल्प चलता है, यह है ज्ञान काण्ड। जब भक्ति मार्ग पूरा
होता है तब सब पतित तमोप्रधान बन जाते हैं, तब मैं बाप आता हूँ। पहले सतोप्रधान से
सतो, रजो, तमो में आते हैं। ऊपर से जो पवित्र आत्मायें आती हैं उन्होंने कोई ऐसा
कर्म नहीं किया है जो उनको दु:ख भोगना पड़े। क्राइस्ट के लिए कहते हैं उनको क्रॉस
पर चढ़ाया परन्तु यह तो हो न सके। नई आत्मा जो धर्म स्थापन करने अर्थ आती है उनको
दु:ख मिल नहीं सकता क्योंकि वह तो कर्मातीत अवस्था वाला मैसेन्जर धर्म स्थापन करने
आया। लड़ाई में भी जब कोई मैसेन्जर भेजते हैं तो वह सफेद झण्डी ले आते हैं जिससे वे
लोग समझ जाते कि यह कोई मैसेज ले आया है, उनको कोई तकल़ीफ नहीं देते हैं। तो
मैसेन्जर जो आते हैं, उनको कोई क्रॉस पर चढ़ा न सके। दु:ख आत्मा ही भोगती है। आत्मा
निर्लेप नहीं है, यह लिखना चाहिए। आत्मा को निर्लेप कहना रांग है। यह किसने कहा?
शिव भगवानुवाच। यह प्वाइन्ट तुमको नोट करनी चाहिए, लिखने के लिए बड़ी ही विशाल
बुद्धि चाहिए। समझो प्रदर्शनी में क्रिश्चियन लोग आते हैं तो उनको भी बता सकते हैं
कि क्राइस्ट की सोल को क्रॉस पर नहीं चढ़ाया गया। बाकी जिसमें उसने प्रवेश किया, उस
आत्मा को दु:ख हुआ। तो ऐसी बातें सुनकर वन्डर खायेंगे। उस पवित्र आत्मा ने आकर धर्म
स्थापन किया। गॉड फादर के डायरेक्शन अनुसार। यह भी ड्रामा। ड्रामा को भी कई लोग
समझते हैं परन्तु उसके आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते। ऐसी-ऐसी बातें सुन वह लोग
कुछ समझने की कोशिश करते हैं। कृष्ण को भी कोई गाली दे न सके। बरोबर गालियां अभी ही
मिल रही हैं किसको? शिवबाबा को नहीं, इस साकार को। टीचर तो बाबा है प्योर सोल और यह
है इमप्योर, जो प्योर बन रहा है। जो समझ गये हैं वह बित-बित नहीं करेंगे। नहीं तो
समझेंगे कि यह तो सिखाया हुआ है। फिर वह बात कोई को जंचती नहीं। तीर नहीं लगता।
सच्चाई-सफाई बहुत चाहिए। जो खुद विकारी होगा वह औरों को कहे काम महाशत्रु है तो तीर
लग नहीं सकता। जैसे पण्डित का मिसाल - राम-राम कहने से नदी वा सागर पार कर जायेंगे।
यह अभी की बात है। शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करने से तुम इस विषय सागर से पार हो
जायेंगे। कौन-सा सागर? यह पण्डित नहीं जानते। वेश्यालय से शिवालय में चले जायेंगे।
बड़ी अच्छी रीति से श्रीमत पर चलना है। कहते हैं ना कि बाबा चाहे प्यार करो, चाहे
ठुकराओ........। यहाँ तो सिर्फ समझानी दी जाती है, तो भी कई मुर्दे बन जाते हैं।
बच्चों को तो लिखना-पढ़ना पड़ता है। बाप प्यार का सागर है अर्थात् पढ़ाकर ऊंच मर्तबा
दिलाते हैं। यही प्यार है। बाप जब पढ़ाता है तो पढ़कर औरों को भी पढ़ाना है। बाप को
खुश करना है। बाप की सर्विस में तत्पर रहना है। बाप की यही सर्विस है कि अपने
तन-मन-धन से भारत की सच्ची सेवा करो। तुम्हें तो बुलन्द आवाज़ से समझाना चाहिए। सभी
नम्बरवार हैं, राजधानी में भी नम्बरवार होंगे। टीचर समझ जाते हैं कि यह दैवी राजधानी
में क्या नम्बर लेंगे। सर्विस से समझ सकते हैं, कौन-कौन मुख्य बनेंगे। खुद भी समझते
हैं कि हम बाबा-मम्मा जितनी सर्विस नहीं करते तो दास-दासियां बनना पड़ेगा। आगे चलकर
तुम सबको सारा ही मालूम पड़ेगा। हम श्रीमत पर न चले, सब क्लीयर हो जायेगा। तुम बच्चे
इस समय स्टूडेन्ट हो, इस समय तुम अपनी दासियां बनायेंगे तो खुद भी दासी बनना पड़ेगा।
यहाँ महारानी बनना देह-अभिमान है। सच कहना चाहिए कि बाबा यह भूल हुई। अभी सम्पूर्ण
तो सभी बने नहीं हैं। इम्तहान में जब नापास होते हैं तो शर्माते भी हैं।
बाबा का रात्रि में ख्याल चला कि मनुष्य 21 जन्म कहते, गायन भी करते, अभी यह
ईश्वरीय जन्म एक अलग है। 8 जन्म सतयुग में, 12 जन्म त्रेता में, 21 जन्म द्वापर
में, 42 जन्म कलियुग में। यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सबसे ऊंच जन्म है जो एडाप्टेड
है। तुम ब्राह्मणों का ही यह सौभाग्यशाली जन्म है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) प्यार के सागर बाप के प्यार का रिटर्न करना है, अच्छी तरह पढ़कर फिर
पढ़ाना है। श्रीमत पर चलना है।
2) सच्चाई और सफाई से पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को धारणा करानी है। एक
बाप के संग में रहना है।
वरदान:-
निमित्त
आत्माओं के डायरेक्शन के महत्व को जान पापों से मुक्त होने वाले सेन्सीबुल भव
जो सेन्सीबुल बच्चे हैं वो
कभी यह नहीं सोचते कि यह निमित्त आत्मायें जो डायरेक्शन दे रही हैं शायद कोई के कहने
से कह रही हैं। निमित्त बनी हुई आत्माओं के प्रति कभी यह व्यर्थ संकल्प नहीं उठाने
चाहिए। मानो कोई ऐसा फैंसला भी दे देते हैं जो आपको ठीक नहीं लगता है, लेकिन आप उसमें
जिम्मेवार नहीं हो, आपका पाप नहीं बनेगा क्योंकि जिसने इन्हें निमित्त बनाया है वह
बाप, पाप को भी बदल लेगा, यह गुप्त रहस्य, गुप्त मशीनरी है।
स्लोगन:-
आनेस्ट
वह है जो प्रभु पसन्द और विश्व पसन्द है, आराम पसन्द नहीं।
मातेश्वरी जी के
मधुर महावाक्य -“मनुष्य का 84 जन्म है, न कि 84 लाख योनियाँ''
अब यह जो हम कहते
हैं कि प्रभु हम बच्चों को उस पार ले चलो, उस पार का मतलब क्या है? लोग समझते हैं
उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना। अब यह तो हुआ
मनुष्यों का कहना परन्तु बाप कहते हैं बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति है, दु:ख
अशान्ति से दूर है उसको कोई दुनिया नहीं कहते। जब मनुष्य सुख चाहते हैं तो वो भी इस
जीवन में होना चाहिए, अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ देवताओं की दुनिया थी जहाँ सर्वदा
सुखी जीवन थी, उसी देवताओं को अमर कहते थे। अब अमर का भी कोई अर्थ नहीं है, ऐसे तो
नहीं देवताओं की आयु इतनी बड़ी थी जो कभी मरते नहीं थे, अब यह कहना उन्हों का रांग
है क्योंकि ऐसे है नहीं। उनकी आयु कोई सतयुग त्रेता तक नहीं चलती है, परन्तु देवी
देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने अच्छा राज्य
चलाया है और फिर 63 जन्म द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के जन्म चढ़ती कला
वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। बाकी यह जो
मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना भूल है। अगर मनुष्य
अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर जानवर योनी में भोगने की
जरूरत ही क्या है। अब मनुष्यों को यह नॉलेज ही नहीं, मनुष्य तो 84 जन्म लेते हैं,
बाकी सृष्टि पर जानवर पशु, पंछी आदि टोटल 84 लाख योनियां अवश्य हैं। अनेक किस्म की
जैसे पैदाइश है, उसमें भी मनुष्य, मनुष्य योनी में ही अपना पाप पुण्य भोग रहे हैं।
और जानवर अपनी योनियों में भोग रहे हैं। न मनुष्य जानवर की योनी लेता और न जानवर
मनुष्य योनी में आता है। मनुष्य को अपनी योनी में (जन्म में) भोगना भोगनी पड़ती है
तो दु:ख सुख की महसूसता आती है। ऐसे ही जानवर को भी अपनी योनी में सुख दु:ख भोगना
है। मगर उन्हों में यह बुद्धि नहीं कि यह भोगना किस कर्म से हुई है? उन्हों की भोगना
को भी मनुष्य फील करता है क्योंकि मनुष्य है बुद्धिवान, बाकी ऐसे नहीं मनुष्य कोई
84 लाख योनियां भोगते हैं। जैसे देखो गुरुनानक साहब ने ऐसे महावाक्य उच्चारण किये
हैं - अन्तकाल में जो पुत्र सिमरे ऐसी चिंता में जो मरे सुअर की योनी में वल वल उतरे
.. परन्तु इस कहने का मतलब यह नहीं है कि मनुष्य कोई सूकर की योनि लेता है परन्तु
सूकर का मतलब यह है कि मनुष्यों का कार्य भी ऐसा होता है जैसे जानवरों का कार्य होता
है। बाकी ऐसे नहीं कि मनुष्य कोई जानवर बनते हैं। अब यह तो मनुष्यों को डराने के
लिये शिक्षा देते हैं। तो अपने को इस संगम समय पर अपनी जीवन को पलटाए पापात्मा से
पुण्यात्मा बनना है। अच्छा - ओम् शान्ति।