24-07-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 24-04-73 मधुबन
अलौकिक जन्म-पत्री
इस समय सभी मास्टर सर्वशक्तिवान् स्वरूप में स्थित हो? एक सेकेण्ड में अपने इस सम्पूर्ण स्टेज पर स्थित हो सकते हो? इस रूहानी ड्रिल के अभ्यासी बने हो? एक सेकेण्ड में जिस स्थिति में अपने को स्थित करना चाहो, उसमें स्थित कर सकते हो? जितना समय और जिस समय चाहें तभी स्थित हो जाओ, इसमें अभ्यासी हो, कि अभी तक भी प्रकृति द्वारा बनी हुई परिस्थितियाँ अवस्था को अपनी तरफ कुछ-न-कुछ आकर्षित कर लेती हैं? सभी से ज्यादा अपनी देह के हिसाब-किताब, रहे हुए कर्म-भोग के रूप में आने वाली परिस्थितियाँ अपनी तरफ आकर्षित करती हैं? यह भी आकर्षण समाप्त हो जाये, इसको कहा जाता है - ‘सम्पूर्ण नष्टोमोह:’। जिस वस्तु से मोह अर्थात् लगन होती है, वह अपनी तरफ बार-बार आकर्षित करती है। कोई भी देह की वा देह की दुनिया की परिस्थिति स्थिति को हिला नहीं सके इसी स्थिति का ही गायन गाया हुआ है। अंगद के रूप में जो कल्प पहले का गायन है-यही सम्पूर्ण स्टेज है। जो बुद्धि रूपी पाँव को प्रकृति की परिस्थितियाँ हिला नहीं सकें, ऐसे बने हो? लक्ष्य तो यही है ना? अभी तक लक्ष्य और लक्षण में अन्तर है। कल्प पहले के गायन और वर्तमान प्रैक्टिकल जीवन में अन्तर है। इस अन्तर को मिटाने के लिये तीव्र पुरूषार्थ की युक्ति कौन-सी है? जब युक्तियों को जानते भी हो फिर अन्तर क्यों? क्या नेत्र नहीं हैं? या नेत्र भी हैं लेकिन नेत्र को योग्य समय पर यूज़ करने की योग्यता नहीं है?
जितनी योग्यता, उतनी महानता दिखाई देती है? महानता की कमी के कारण जानते हो? जो मुख्य मान्यता सदैव सुनाते भी रहते हो। उस मान्यता की महीनता नहीं है। महीनता आने से महावीरता आ जाती है। महावीरता अर्थात् महानता। तो फिर कमी किस बात की रही - महीनता की। महीन वस्तु तो किसी में भी समा सकती है। बिना महीनता के कोई भी वस्तु जहाँ जैसा समाना चाहे वैसे समा नहीं सकती। जितनी जो वस्तु महीन होती है उतनी माननीय होती है। पॉवरफुल होती है।
तो अपने-आप से पूछो कि पहली मान्यता व सर्व मान्यताओं में श्रेष्ठ मान्यता कौन-सी है? श्रीमत ही आपकी मान्यता है तो पहली मान्यता क्या है? (देह सहित सभी कुछ भूलना) छोड़ो या भूलो, भूलना भी छोड़ना है। पास रहते भी अगर भूले हुए हैं तो छोड़ा हुआ है। भूलना भी गोया छोड़ना है। जैसे देखो सन्यासियों के लिए आप लोग चैलेंज करते हो कि उन्होंने छोड़ा नहीं है। कहते हैं घर-बार छोड़ा है लेकिन छोड़ा नहीं है क्योंकि भूले हुए नहीं हैं। ऐसे ही अगर सरकमस्टान्सिज प्रमाण बाहर के रूप से अगर छोड़ा भी अर्थात् किनारा भी किया लेकिन मन से यदि भूले नहीं तो क्या उसको छोड़ना कहेंगे? यहाँ छोड़ने का अर्थ क्या हुआ? मन से भूलना। मन से तो आप भूले हो ना? तो छोड़ा है ना या कि अभी भी छोड़ना है? अगर अभी तक भी कहेंगे कि छोड़ना है तो फिर बहुत समय से छोड़ने वालों की लिस्ट से निकल, अभी से छोड़ने वालों की लिस्ट में आ जायेंगे।
जिन्होंने जब से मन से त्याग किया अर्थात् कोई भी देह के बन्धन व देह के सम्बन्ध को एक सेकेण्ड में त्याग कर दिया उन की वह तिथि-तारीख और वेला सभी ड्रामा में व बापदादा के पास नूँधी हुई है। जैसे आजकल ज्योतिषी, ज्योतिष विद्या को जानने वाले जन्म की तिथि और वेला के प्रमाण अपनी यथा-योग्य नॉलेज के आधार से भविष्य जन्मपत्री बनाते हैं। उन्हों का भी आधार तिथि और वेला पर होता है। वैसे यहाँ भी मरजीवा जन्म की तिथि वेला और स्थिति है। वे लोग परिस्थिति को देखते हैं किस परिस्थिति में पैदा हुआ। यहाँ उस वेला के समय स्थिति को देखा जाता है। जन्मते ही किस स्थिति में रहे, उसी आधार पर यहाँ भी हरेक के भविष्य प्रारब्ध का आधार है। तो आप लोग भी इन तीनों बातों की तिथि, वेला और स्थिति को जानते हुए अपने संगमयुग की प्रारब्ध व संगमयुग की भविष्य स्थिति और भविष्य जन्म की प्रारब्ध अपने-आप भी जान सकते हो। एक-एक बात की प्राप्ति प्रैक्टिकल जीवन के साथ सम्बन्धित है। यह है ही अपने तकदीर को जानने का नेत्र। इससे आप हरेक अपनी फाइनल स्टेज के नम्बर को जान सकते हो।
जैसे ज्योतिषी हस्तों की लकीरों द्वारा किसी की भी जन्म-पत्री को जान सकते हैं, वैसे आप लोग मास्टर त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री व ज्ञानस्वरूप अर्थात् मास्टर नॉलेजफुल होने के नाते अपने मरजीवा जीवन की प्रैक्टिकल कर्म रेखाओं से, संकल्पों की सूक्ष्म लकीरों से अगर संकल्प को चित्र में लायेंगे तो किस रूप में दिखावेंगे? अपने संकल्पों की लकीरों के आधार पर व कर्मों की रेखाओं के आधार पर अपनी जन्मपत्री को जान सकते हो कि संकल्प रूपी लकीरें सीधी अर्थात् स्पष्ट हैं? कर्म की रेखायें श्रेष्ठ अर्थात् स्पष्ट हैं! एक तो यह चेक करो कि बहुत काल से स्थिति में व सम्पर्क में श्रीमत के प्रमाण बिताया है? यह है काल अर्थात् समय को देखना। समय अर्थात् वेला का प्रभाव भी जन्मपत्री पर बहुत होता है। तो यहाँ भी समय अर्थात् बहुत समय के हिसाब से सम्बन्ध रखता है। बहुत समय का मतलब यह नहीं कि स्थूल तारीखों व वर्षों के हिसाब से नहीं, लेकिन जब से जन्म लिया तब से बहुत समय की लगन हो। सभी सब्जेक्टस् में यथार्थ रूप से कहाँ तक बहुत समय से रहते आये हैं, इसका हिसाब जमा होगा। मानो कोई को 35 वर्ष हुए हैं लेकिन अपने पुरूषार्थ की सफलता में बहुत समय नहीं बिताया है तो उनकी गिनती बहुत समय में नहीं आयेगी। अगर कोई 35 वर्ष के बदले 15 वर्ष से आ रहे हैं लेकिन 15 वर्ष में बहुत समय पुरूषार्थ की सफलता में रहा है तो उनकी गिनती जास्ती में आयेगी। बहुत समय स्Ìफलता के आधार पर गिना जाता है। तो वेला का आधार ही हुआ ना?
बहुत समय के लगन में मग्न रहने वाले को प्रारब्ध भी बहुत समय तक प्राप्त होती है। अल्प काल की सफलता वालों की अल्पकाल अर्थात् 21 जन्मों में थोड़े जन्म की ही प्रारब्ध होती है। बाकी साधारण प्रारब्ध। इसलिये ज्योतिषी लोग भी वेला को महत्व देते हैं। बहुत काल से निर्विघ्न अर्थात् कर्मों की रेखा क्लियर हो, उसका आधार जन्मपत्री पर होता है। जैसे हस्तों की लाइन में अगर बीच-बीच में लकीर कट होती हैं तो श्रेष्ठ भाग्य नहीं गिना जाता है व बड़ी आयु नहीं मानी जाती है। वैसे ही यहाँ भी अगर बीच-बीच में विघ्नों के कारण बाप से जुटी हुई बुद्धि की लाइन कट होती रहती है, व क्लियर नहीं रहती है तो बड़ी प्रारब्ध नहीं हो सकती।
अभी अपने-आपको जान सकेंगे कि हमारी जन्मपत्री क्या है? किस पद की प्राप्ति नूँधी हुई है? जन्मपत्री में दशायें भी देखते हैं। जैसे बृहस्पति की दशा रहती है। क्या बहुत समय बृहस्पति की दशा रहती है या बार-बार दशा बदलती रहती है? कभी बृहस्पति की, कभी राहू की? अगर बार-बार बदलती है अर्थात् निर्विघ्न नहीं है तो प्रारब्ध भी बहुत समय के लिए निर्विघ्न राज्य में नहीं पा सकते। तो यह दशायें चेक करो कि शुरू से लेकर अभी तक कौनसी दशा रही है?
जन्मपत्री में राशि देखते हैं। यहाँ कौन-सी राशि है? यहाँ तीन राशि हैं। एक है महारथी की राशि, दूसरी है घोड़े सवार की और तीसरी है प्यादे की। इन तीनों में से अपनी राशि को भी देखो कि शुरू से अर्थात् जन्म से ही पुरूषार्थ की राशि महारथी की रही, या घुड़सवार या प्यादे की रही है? इस राशि के हिसाब से भी जन्मपत्री का मालूम पड़ जाता है। मास्टर त्रिकालदर्शी का ज्ञान-स्वरूप बन अपनी जन्मपत्री स्वयं ही चेक करो और अपने भविष्य को देखो। राशि को व दशा को व लकीरों को बदल भी सकते हैं। परखने के बाद, चेक करने के बाद, फिर चेंज करने का साधन अपनाना। स्थूल नॉलेज में भी कई साधन बताते हैं। यहाँ तो साधन को जानते हो ना? तो साधनों द्वारा सम्पूर्ण सिद्धि को प्राप्त करो। समझा?
ऐसे ज्ञान-स्वरूप, बुद्धि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करने वाले, सम्पूर्णता को अपने जीवन से प्रत्यक्ष दिखलाने वाले, सदा अपनी स्व-स्थिति से परिस्थिति को पार करने वाले महावीरों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। अच्छा! ओम् शान्ति।
मधुबन निवासियों से पर्सनल मुलाकात - 21-04-73
इस ग्रुप को कौन-सा नाम कहें? मधुबन निवासियों को क्या कहा जाता है? जो भी यहाँ बैठे हैं सभी अपने को ऐसा पद्मापद्म भाग्यशाली समझकर के चलते हो? मधुबन निवासियों के कारण ही मधुबन की महिमा है। मधुबन का वातावरण बनाने वाला कौन? तो जो मधुबन की महिमा गाई हुई है, क्या वही महिमा हरेक अपने जीवन में अनुभव करती हो?
मधुबन को महान् भूमि कहा जाता है। तो महान् भूमि पर निवास करने वाली अवश्य महान् आत्माएं ही होंगी। तो वे महान् आत्माएं हम हैं-क्या इस रूहानी नशे में रहती हो? महान् आत्मा जिसका हर कर्म और हर संकल्प महान् होता है। तो ऐसे महान् हो, जिसका एक संकल्प भी साधारण, कभी व्यर्थ न हो और एक कर्म भी साधारण वा बगैर अर्थ न हो क्योंकि उनका हर कदम, हर नजर अर्थ-सहित होता है। क्या ऐसी अर्थ-स्वरूप महान् आत्माएं हो? उनको कहा जाता है - महान् अर्थात् मधुबन निवासी।
नाम तो मधुबन निवासी है तो ज़रूर अर्थ-सहित नाम होगा? तो ऐसे रोज का अपना पोतामेल चेक करते हो? कि जो-कुछ भी इन कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म हुआ, वह अर्थ-सहित हुआ? समय भी जो बीता, वह सफल हुआ अर्थात् महान् कार्य में लगाया? ऐसा पोतामेल अपना देखती हो कि सिर्फ मोटी-मोटी बातें ही देखती हो? जो समझते हैं कि इसी प्रकार से हम अपनी चैकिंग करते हैं तो वे हाथ उठावें। महान् आत्माओं के हर कर्म का चरित्र के रूप में गायन होता है। महान् आत्माओं के हर्षितमूर्त्त, आकर्षण-मूर्त्त और अव्यक्त-मूर्त्त का मूर्ति के रूप में यादगार है। ऐसे अपने को देखो कि सारे दिन में जो हमारी-मूर्त्त व सीरत रहती है वह ऐसी है जो मूर्त्ति बन पूजन में आये और हमारे कर्म ऐसे हैं जो हमारे चरित्र रूप में गायन हों? यह लक्ष्य है ना?
जब यहाँ सीखने व पढ़ने आती हो तो अन्तिम लक्ष्य क्या है? वा संगमयुग का लक्ष्य क्या है? यही है ना? संगम युग का कर्म ही चरित्र के रूप में गायन होता है। संगम युग के प्रैक्टिकल जीवन, देवता के रूप में पूजे जाते हैं। तो वह कब होगा? अभी का गायन है तो अभी ही होगा ना? क्या सतयुग में ऐसी बनेंगी? वहाँ तो सभी हर्षित होंगे तो यह हर्षित मुख हैं, यह भी कहेगा कौन? यह तो अभी ही कहेंगे ना? जो सदा हर्षित नहीं रहते हैं वही वर्णन करेंगे कि यह हर्षितमुख हैं। ऐसी मूर्त्त वा ऐसे कर्म प्रैक्टिकल में हैं?
जैसे अभी सुनने के समय मुस्कराती हो अर्थात् महस्स करती हो, वह मुस्कराना कितना है? महसूस करती हो, तब तो मुस्कराती हो? तो ऐसे ही हर रोज अपने कर्म की महसूसता व चैकिंग करने से कोई भी पूछेगा तो फौरन जवाब देंगी। अभी सोचती हो कि हाथ उठावें कि नहीं उठावें? फलक से हाथ क्यों नहीं उठाती हो? संकोच भी क्यों होता है? - कारण? तो ऐसे ही अपनी सम्पूर्ण स्टेज को स्वरूप में लाओ। सिर्फ वाणी में नहीं। लेकिन स्वरूप में। जो कोई भी आप लोगों के सामने आये तो जैसे कि आप के जड़ चित्र के आगे जाते ही उन को महान् समझते अपने को पापी और नीच सहज ही समझ लेते हैं अर्थात्-एक सेकेण्ड में अपना साक्षात्कार कर लेते हैं। मूर्ति कहती तो नहीं है कि तुम नीच हो। लेकिन स्वयं ही साक्षात्कार करते हैं। ऐसे ही आप लोगों के सामने कोई भी आये तो ऐसे ही अनुभव करे कि यह क्या हैं और मैं क्या हूँ। यह स्टेज आनी तो है ना? वो कब आयेगी? जब कि ज्ञान का कोर्स समाप्त हो, रिवाइज़ कोर्स चल रहा है तो सिर्फ थ्योरी में रिवाइज़ हो रहा है या प्रैक्टिकल में? प्रैक्टिकल में भी कोर्स पूरा होना चाहिए ना? वा रिवाइज़ जब समाप्त होगा तब प्रैक्टिकल दिखायेंगे? क्या सोचा है? क्या इसके लिए समय का इन्तजार कर रही हो? समय आयेगा तो सभी ठीक हो जायेगा? क्या ऐसा समझती हो? यह क्लास कभी किया है? अपने पुरूषार्थ को तीव्र करने के लिए अपनी शक्ति अनुसार कभी प्लान्स बनाती हो या बना बनाया प्लान मिलेगा तो चलेंगी?
बापदादा तो यही देखते हैं कि जो मधुबन निवासी हैं वह सभी के सामने सैम्पल हैं। सैम्पल पहले तैयार किया जाता है ना? मधुबन निवासी सैम्पल हैं या फिर सैम्पल अब तैयार हुआ है? सैम्पल तैयार होता है तो उसकी तरफ इशारा कर बताया जाता है कि ऐसा माल तैयार हो रहा है। तभी फिर उसको देख दूसरे लोग सौदा करते हैं। पहले सैम्पल तैयार होने से बापदादा ऐसा इशारा दे दिखावें कि ऐसा बनना है। सैम्पल बनने के लिए कोई मुश्किल पुरूषार्थ नहीं है। बहुत सिम्पल पुरूषार्थ है। सिम्पल पुरूषार्थ एक शब्द में यही हुआ कि साथ में बाप का सिम्बल सामने रखो। एक शब्द का पुरूषार्थ तो बहुत हुआ ना? अगर सदा सिम्बल सामने हो तो पुरूषार्थ में सिम्पल हो जाए। पुरूषार्थ सिम्पल होने से सैम्पल बन जायेंगे।
मधुबन निवासियों को कितने इंजन लगे हुए हैं? (किसी ने कहा चार)। फिर तो सेकेण्ड में पहुँचना चाहिए। सभी से सहज पुरूषार्थ का लाभ वा गोल्डन चॉन्स मधुबन निवासियों को मिला हुआ है। यह भी मानती हो, मानने में, जानने में भी होशियार हो और बोलने में तो हो ही होशियार। बाकी मानने योग्य बनने में देरी क्यों? जितना माननीय योग्य बनेंगे उतना ही वहाँ पूजनीय योग्य बनेंगे। यहाँ आपके कर्म को देखने वाले अगर श्रेष्ठ नहीं मानते हों, तो पूजने वाले भी श्रेष्ठ मानकर पुजारी कैसे बनेंगे? जितना माननीय उतना पूजनीय का हिसाब है। जो पूजनीय बनेंगे उनको देख हर्षित होते हैं। अब बनना है वा सिर्फ देखकर हर्षित होना है? जितना साज-युक्त हो उतना ही राज़युक्त बनो। साज़ बजाने में होशियार हो ना? साज सुनने के इच्छुक भी कितने होंगे! इसमें तो पास हो ना? जितना साज़-युक्त उतना राज़युक्त बनो। राज़युक्त जो होता है उनके हर कदम में राज़ भरा हुआ होता है। ऐसे राज़-युक्त वा साज़-युक्त दोनों का बैलेन्स ठीक रखना है।
मधुबन निवासी मोस्ट लक्की स्टार्स हैं। जितना लक्की हो उतना सर्व के लवली भी बनो। सिर्फ लक्क में खुश न होना। लक्की की परख लवली से होती है। जो लक्की होगा वह सर्व का लवली ज़रूर होगा। अभी देखते और चलते, सर्व को स्नेह देने व करने का कार्य करना है। ज्ञान देना और लेना यह स्टेज तो पास की। अभी स्नेह की लेन-देन करो। जो भी सामने आये, सम्बन्ध में आये तो स्नेह देना और लेना है। इसको कहा जाता है सर्व के स्नेही व लवली। ज्ञान का दान ब्राह्मण को तो नहीं करना है, वह तो अज्ञानियों को करेंगे। ब्राह्मण परिवार में फिर इस दान के महादानी बनो। जैसे गायन है ‘ना दे दान तो छूटे ग्रहण’। जो भी कमजोरियाँ रही हुई हैं वह सभी प्रकार के ग्रहण इस महादान से छूट जायेंगे। समझा? अभी देखेंगे इस दान में कौन-कौन महादानी बनते हैं। स्नेह सिर्फ वाणी का नहीं होता है लेकिन संकल्प में भी किसके प्रति स्नेह के सिवाय और कोई उत्पत्ति न हो। जब सभी के प्रति स्नेह हो जाता है तो स्नेह का रिसपॉन्स सहयोग होता है। और सहयोग की रिजल्ट सफलता होती है। जहाँ सर्व का सहयोग होगा तो वहाँ सफलता सहज होगी। तो सभी सफलता मूर्त्त बन जायेंगे। अब यह रिजल्ट देखेंगे। अच्छा।
वरदान:- हर बात में सार को ग्रहण कर आलराउण्ड बनने वाले सरल पुरूषार्थी भव
जो भी बात देखते हो, सुनते हो, उसके सार को समझ लो और जो बोल बोलो, जो कर्म करो उसमें सार भरा हुआ हो तो पुरूषार्थ सरल हो जायेगा। ऐसा सरल पुरूषार्थी सब बातों में आलराउण्ड होता है। उसमें कोई भी कमी दिखाई नहीं देती। कोई भी बात में हिम्मत कम नहीं होती, मुख से ऐसे बोल नहीं निकलते कि हम यह नहीं कर सकते। ऐसे सरल पुरूषार्थी स्वयं भी सरलचित रहते हैं और दूसरों को सरलचित बना देते हैं।
स्लोगन:- साधन यूज़ करते उनके प्रभाव से न्यारे और बाप के प्यारे बनो।