10-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – जितना समय मिले एकान्त में जाकर याद की
यात्रा करो, जब तुम मंजिल पर पहुँच जायेंगे तब यह यात्रा पूरी हो जायेगी”
प्रश्नः-
संगम पर बाप
अपने बच्चों में कौन-सा ऐसा गुण भर देते हैं, जो आधाकल्प तक चलता रहता है?
उत्तर:-
बाप
कहते – जैसे मैं अति स्वीट हूँ, ऐसे बच्चों को भी स्वीट बना देता हूँ। देवतायें
बहुत स्वीट हैं। तुम बच्चे अभी स्वीट बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो। जो बहुतों का
कल्याण करते हैं, जिनमें कोई शैतानी ख्यालात नहीं हैं, वही स्वीट हैं। उन्हें ही
ऊंच पद प्राप्त होता है। उनकी ही फिर पूजा होती है।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ समझाते हैं
इस शरीर का मालिक है आत्मा। यह पहले समझना चाहिए क्योंकि अभी बच्चों को ज्ञान मिला
है। पहले-पहले तो समझना है हम आत्मा हैं। शरीर से आत्मा काम लेती है, पार्ट बजाती
है। ऐसे-ऐसे ख्यालात और कोई मनुष्य को आते नहीं क्योंकि देह-अभिमान में हैं। यहाँ
इस ख्याल में बिठाया जाता है – मैं आत्मा हूँ। यह मेरा शरीर है। मैं आत्मा परमपिता
परमात्मा की सन्तान हूँ। यह याद ही घड़ी-घड़ी भूल जाती है। यह पहले पूरी याद करनी
चाहिए। यात्रा पर जब जाते हैं तो कहते हैं चलते रहो। तुमको भी याद की यात्रा पर चलते
रहना है, यानी याद करना है। याद नहीं करते, गोया यात्रा पर नहीं चलते। देह-अभिमान
आता है। देह-अभिमान से कुछ न कुछ विकर्म बन जाता है। ऐसे भी नहीं मनुष्य सदैव
विकर्म करते हैं। फिर भी कमाई तो बन्द हो जाती है ना इसलिए जितना हो सके याद की
यात्रा में ढीला नहीं पड़ना चाहिए। एकान्त में बैठ अपने साथ विचार सागर मंथन कर
प्वाइंट्स निकालनी होती हैं। कितना समय बाबा की याद में रहते हैं, मीठी चीज़ की याद
पड़ती है ना।
बच्चों को समझाया है,
इस समय सभी मनुष्य मात्र एक-दो को नुकसान ही पहुंचाते हैं। सिर्फ टीचर की महिमा बाबा
करते हैं, उनमें कोई-कोई टीचर खराब होते हैं, नहीं तो टीचर माना टीच करने वाला,
मैनर्स सिखलाने वाला। जो रिलीजस माइन्डेड, अच्छे स्वभाव के होते हैं, उनकी चलन भी
अच्छी होती है। बाप अगर शराब आदि पीते हैं तो बच्चों को भी वह संग लग जाता है। इसको
कहेंगे खराब संग क्योंकि रावण राज्य है ना। रामराज्य था जरूर परन्तु वह कैसे था,
कैसे स्थापन हुआ, यह वन्डरफुल मीठी बातें तुम बच्चे ही जानते हो। स्वीट, स्वीटर,
स्वीटेस्ट कहा जाता है ना। बाप की याद में रहकर ही तुम पवित्र बन और पवित्र बनाते
हो। बाप नई सृष्टि में नहीं आते हैं। सृष्टि में मनुष्य, जानवर, खेती-बाड़ी आदि सब
होता है। मनुष्य के लिए सब कुछ चाहिए ना। शास्त्रों में प्रलय का वृतान्त भी रांग
है। प्रलय होती ही नहीं। यह सृष्टि का चक्र फिरता ही रहता है। बच्चों को आदि से
अन्त तक ख्याल में रखना है। मनुष्यों को तो अनेक प्रकार के चित्र याद आते हैं। मेले
मलाखड़े याद आते हैं। वह सभी हैं हद के, तुम्हारी है बेहद की याद, बेहद की खुशी,
बेहद का धन। बेहद का बाप है ना। हद के बाप से सब हद का मिलता है। बेहद के बाप से
बेहद का सुख मिलता है। सुख होता ही है धन से। धन तो वहाँ अपार है। सब कुछ सतोप्रधान
है वहाँ। तुम्हारी बुद्धि में है, हम सतोप्रधान थे फिर बनना है। यह भी तुम अभी जानते
हो, तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं – स्वीट, स्वीटर, स्वीटेस्ट हैं ना। बाबा से भी
स्वीट होने वाले हैं। वही ऊंच पद पायेंगे। स्वीटेस्ट वह हैं जो बहुतों का कल्याण
करते हैं। बाप भी स्वीटेस्ट है ना, तब तो सब उनको याद करते हैं। कोई शहद या चीनी को
ही स्वीटेस्ट नहीं कहा जाता। यह मनुष्य की चलन पर कहा जाता है। कहते हैं ना यह
स्वीट चाइल्ड (मीठा बच्चा) है। सतयुग में कोई भी शैतानी बात नहीं होती। इतना ऊंच पद
जो पाते हैं, जरूर यहाँ पुरूषार्थ किया है।
तुम अभी नई दुनिया को
जानते हो। तुम्हारे लिए तो जैसे कल नई दुनिया सुखधाम होगी। मनुष्यों को पता ही नहीं
– शान्ति कब थी। कहते हैं विश्व में शान्ति हो। तुम बच्चे जानते हो – विश्व में
शान्ति थी जो अभी फिर स्थापन कर रहे हो। अब यह सभी को समझायें कैसे? ऐसी-ऐसी
प्वाइंट्स निकालनी चाहिए, जिसकी बहुत चाहना है मनुष्यों को। विश्व में शान्ति हो,
इसके लिए रड़ी मारते रहते हैं क्योंकि अशान्ति बहुत है। यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र
सामने देना है। इनका जब राज्य था तो विश्व में शान्ति थी, उनको ही हेविन डीटी
वर्ल्ड कहते हैं। वहाँ विश्व में शान्ति थी। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले की बातें और
कोई नहीं जानते। यह है मुख्य बात। सब आत्मायें मिलकर कहती हैं विश्व में शान्ति कैसे
हो? सभी आत्मायें पुकारती हैं, तुम यहाँ विश्व में शान्ति स्थापन करने का पुरूषार्थ
कर रहे हो। जो विश्व में शान्ति चाहते हैं उन्हें तुम सुनाओ कि भारत में ही शान्ति
थी। जब भारत स्वर्ग था तो शान्ति थी, अब नर्क है। नर्क (कलियुग) में अशान्ति है
क्योंकि धर्म अनेक हैं, माया का राज्य है। भक्ति का भी पाम्प है। दिन-प्रतिदिन
वृद्धि होती जाती है। मनुष्य भी मेले मलाखड़े आदि पर जाते हैं, समझते हैं जरूर कुछ
सच होगा। अभी तुम समझते हो उनसे कोई पावन नहीं बन सकते हैं। पावन बनने का रास्ता
मनुष्य कोई बता न सकें। पतित-पावन एक ही बाप है। दुनिया एक ही है, सिर्फ नई और
पुरानी कहा जाता है। नई दुनिया में नया भारत, नई देहली कहते हैं। नई होनी है, जिसमें
फिर नया राज्य होगा। यहाँ पुरानी दुनिया में पुराना राज्य है। पुरानी और नई दुनिया
किसको कहा जाता है, यह भी तुम जानते हो। भक्ति का कितना बड़ा प्रस्ताव है। इसको कहा
जाता है अज्ञान। ज्ञान सागर एक बाप है। बाप तुमको ऐसे नहीं कहते कि राम-राम कहो वा
कुछ करो। नहीं, बच्चों को समझाया जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट
होती है। यह एज्युकेशन तुम पढ़ रहे हो। इसका नाम ही है रूहानी एज्युकेशन।
स्प्रीचुअल नॉलेज। इनका अर्थ भी कोई नहीं जानते। ज्ञान सागर तो एक ही बाप को कहा
जाता है। वह है – स्प्रीचुअल नॉलेजफुल फादर। बाप रूहों से बात करते हैं। तुम बच्चे
समझते हो रूहानी बाप पढ़ाते हैं। यह है स्प्रीचुअल नॉलेज। रूहानी नॉलेज को ही
स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है।
तुम बच्चे जानते हो
परमपिता परमात्मा बिन्दी है, वह हमको पढ़ाते हैं। हम आत्मायें पढ़ रही हैं। यह भूलना
नहीं चाहिए। हम आत्मा को जो नॉलेज मिलती है, फिर हम दूसरी आत्माओं को देते हैं। यह
याद तब ठहरेगी जब अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहेंगे। याद में बहुत कच्चे
हैं, झट देह-अभिमान आ जाता है। देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है। हम आत्मा
इनको सौदा देते हैं। हम आत्मा व्यापार करते हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने
में ही फायदा है। आत्मा को ज्ञान है हम यात्रा पर हैं। कर्म तो करना ही है। बच्चों
आदि को भी सम्भालना है। धंधा धोरी भी करना है। धन्धे आदि में याद रहे हम आत्मा हैं,
यह बड़ा मुश्किल है। बाप कहते हैं कोई भी उल्टा काम कभी नहीं करना। सबसे बड़ा पाप
है विकार का। वही बड़ा तंग करने वाला है। अभी तुम बच्चे पावन बनने की प्रतिज्ञा करते
हो। उसका ही यादगार यह राखी बंधन है। आगे तो पाई पैसे की राखी मिलती थी। ब्राह्मण
लोग जाकर राखी बांधते थे। आजकल तो राखी भी कितनी फेशनेबुल बनाते हैं। वास्तव में है
अभी की बात। तुम बाप से प्रतिज्ञा करते हो – हम कभी विकार में नहीं जायेंगे। आप से
विश्व के मालिक बनने का वर्सा लेंगे। बाप कहेंगे 63 जन्म तो विषय वैतरणी नदी में
गोते खाये अब तुमको क्षीर सागर में ले चलते हैं। सागर कोई है नहीं। भेंट में कहा
जाता है। तुमको शिवालय में ले जाते हैं। वहाँ अथाह सुख है। अभी यह अन्तिम जन्म है,
हे आत्मायें पवित्र बनो। क्या बाप का कहना नहीं मानेंगे। ईश्वर तुम्हारा बाप कहते
हैं मीठे बच्चे विकार में नहीं जाओ। जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं, वह मुझे याद
करने से ही भस्म होंगे। कल्प पहले भी तुमको शिक्षा दी थी। बाप गैरन्टी तब करते हैं
जब तुम यह गैरन्टी करते हो कि बाबा हम आपको याद करते रहेंगे। इतना याद करते रहो जो
शरीर का भान न रहे। संन्यासियों में भी कोई-कोई तीखे बहुत पक्के ब्रह्म ज्ञानी होते
हैं, वह भी ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ते हैं। यहाँ तुमको तो बाप समझाते हैं, पावन
बनकर जाना है। वह तो अपनी मत पर चलते हैं। ऐसे नहीं कि वह शरीर छोड़कर कोई
मुक्ति-जीवनमुक्ति में जाते हैं। नहीं। आते फिर भी यहाँ ही हैं परन्तु उनके
फालोअर्स समझते हैं कि वह निर्वाण गया। बाप समझाते हैं – एक भी वापिस नहीं जा सकता,
कायदा ही नहीं। झाड़ वृद्धि को जरूर पाना है।
अभी तुम संगमयुग पर
बैठे हो, और सब मनुष्य हैं कलियुग में। तुम दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो। जो तुम्हारे
धर्म के होंगे वह आते जायेंगे। देवी-देवताओं का भी वहाँ सिजरा है ना। यहाँ बदली
होकर और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं, फिर निकल आयेंगे। नहीं तो वहाँ जगह कौन
भरेंगे। जरूर वह अपनी जगह भरने फिर आ जायेंगे। यह बहुत महीन बातें हैं। बहुत
अच्छे-अच्छे भी आयेंगे जो दूसरे धर्म में कनवर्ट हो गये हैं तो फिर अपनी जगह पर आ
जायेंगे। तुम्हारे पास मुसलमान आदि भी आते हैं ना। बड़ी खबरदारी रखनी पड़ती है, झट
जांच करेंगे, यहाँ दूसरे धर्म वाले कैसे जाते हैं? इमरजेन्सी में तो बहुतों को
पकड़ते हैं फिर पैसे मिलने से छोड़ भी देते हैं। जो कल्प पहले हुआ है, तुम अभी देख
रहे हो। कल्प आगे भी ऐसा हुआ था। तुम अभी मनुष्य से देवता उत्तम पुरूष बनते हो। यह
है सर्वोत्तम ब्राह्मणों का कुल। इस समय बाप और बच्चे रूहानी सेवा पर हैं। कोई गरीब
को धनवान बनाना – यह रूहानी सेवा है। बाप कल्याण करते हैं तो बच्चों को भी मदद करनी
चाहिए। जो बहुतों को रास्ता बताते हैं वह बहुत ऊंच चढ़ सकते हैं। तुम बच्चों को
पुरूषार्थ करना है लेकिन चिंता नहीं, क्योंकि तुम्हारी रेसपान्सिबिलिटी बाप के ऊपर
है। पुरूषार्थ जोर से कराया जाता है फिर जो फल निकलता है, समझा जाता है कल्प पहले
मिसल। बाप बच्चों को कहते हैं – बच्चे, फिक्र मत करो। सेवा में मेहनत करो। नहीं बनते
तो क्या करेंगे! इस कुल का नहीं होगा तो तुम भल कितना भी माथा मारो, कोई कम तुम्हारा
माथा खपायेंगे, कोई जास्ती। बाबा ने कहा है जब दु:ख बहुत आता जायेगा तो फिर आयेंगे।
तुम्हारा व्यर्थ कुछ नहीं जायेगा। तुम्हारा काम है राइट बताना। शिवबाबा कहते हैं
मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। ऐसे बहुत कहते हैं भगवान जरूर है।
महाभारत लड़ाई के समय भगवान था। सिर्फ कौन-सा भगवान था, उसमें मूँझ गये हैं। कृष्ण
तो हो न सके। कृष्ण उसी फीचर्स से फिर सतयुग में ही होगा। हर जन्म में फीचर्स बदलते
जाते हैं। सृष्टि अब बदल रही है। पुराने को नया अब भगवान कैसे बनाते हैं, वह भी कोई
नहीं जानते। तुम्हारा आखिर नाम निकलेगा। स्थापना हो रही है फिर यह राज्य करेंगे,
विनाश भी होगा। एक तरफ नई दुनिया, एक तरफ पुरानी दुनिया – यह चित्र बड़ा अच्छा है।
कहते भी हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश……. परन्तु समझते कुछ नहीं।
मुख्य चित्र है त्रिमूर्ति का। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा। तुम जानते हो – शिवबाबा
ब्रह्मा द्वारा हमको याद की यात्रा सिखला रहे हैं। बाबा को याद करो, योग अक्षर
डिफीकल्ट लगता है। याद अक्षर बहुत सहज है। बाबा अक्षर बहुत लवली है। तुमको खुद ही
लज्जा आयेगी – हम आत्मायें बाप को याद नहीं कर सकती हैं, जिनसे विश्व की बादशाही
मिलती है! आपेही लज्जा आयेगी। बाप भी कहेंगे तुम तो बेसमझ हो, बाप को याद नहीं कर
सकते हो तो वर्सा कैसे पायेंगे! विकर्म विनाश कैसे होंगे! तुम आत्मा हो मैं तुम्हारा
परमपिता परमात्मा अविनाशी हूँ ना। तुम चाहते हो हम पावन बन सुखधाम में जायें तो
श्रीमत पर चलो। मुझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। याद नहीं करेंगे तो
विकर्म विनाश कैसे होंगे! अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. हर प्रकार से
पुरूषार्थ करना है, फिक्र (चिंता) नहीं क्योंकि हमारा रेसपान्सिबुल स्वयं बाप है।
हमारा कुछ भी व्यर्थ नहीं जा सकता।
2. बाप समान
बहुत-बहुत स्वीट बनना है। अनेकों का कल्याण करना है। इस अन्तिम जन्म में पवित्र
जरूर बनना है। धंधा आदि करते अभ्यास करना है कि मैं आत्मा हूँ।
वरदान:-
सदा भगवान और भाग्य की स्मृति में रहने वाले
सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान भव
संगमयुग पर चैतन्य स्वरूप में भगवान बच्चों की सेवा कर रहे
हैं। भक्ति मार्ग में सब भगवान की सेवा करते लेकिन यहाँ चैतन्य ठाकुरों की सेवा
स्वयं भगवान करते हैं। अमृतवेले उठाते हैं, भोग लगाते हैं, सुलाते हैं। रिकार्ड पर
सोने और रिगार्ड पर उठने वाले, ऐसे लाडले वा सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान हम ब्राह्मण हैं
- इसी भाग्य की खुशी में सदा झूलते रहो। सिर्फ बाप के लाडले बनो, माया के नहीं। जो
माया के लाडले बनते हैं वह बहुत लाडकोड करते हैं।
स्लोगन:-
अपने
हर्षितमुख चेहरे से सर्व प्राप्तियों की अनुभूति कराना - सच्ची सेवा है।