ओम् शान्ति।
माताओं ने, सभी सजनियों ने यह गीत सुना। बच्चे जानते हैं इस भारत की तकदीर में लकीर
लगी हुई है। किस द्वारा लकीर लगी है? 5 विकारों रूपी रावण द्वारा। अब फिर तुम बच्चे
भारत की तकदीर बना रहे हो। तुम हो शिव शक्ति मातायें। जब ज्ञान सागर आते हैं तो
माताओं के ऊपर कलष रखते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम भारत की तकदीर बनाने अर्थात्
भारत को स्वर्ग बनाने वाले हैं। तुम बाप की सेना हो। बाप के घर की शोभा हो। माँ-बाप
के पास बच्चा नहीं होता है तो घर जैसे सूना लगता है। अब यह दुनिया सूनी-सूनी लगती
है। अब तुम बच्चे इनको स्वर्ग बनाने वाले हो। बाप कहते हैं मैं तुम माताओं का गुलाम
हूँ क्योंकि आगे यह मातायें पति की गुलाम थी। उनको कहा जाता है हिन्दू नारी का पति
ही गुरू-ईश्वर सब कुछ है। वास्तव में इस समय की बात को फिर भक्ति मार्ग में ले गये
हैं। परमपिता परमात्मा को ही इस समय कहा जाता है त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव। सब
कुछ एक है। हिन्दू लोगों ने फिर पति के लिए कह दिया है। वास्तव में शिवबाबा है पतियों
का पति। तुम तो सदा सौभाग्यशाली बनती हो और यह पति भी अमर है, अमरनाथ है ना। तुमको
भी अमरनाथ, अमरपुरी का मालिक बनाते हैं। ऐसे पति को बहुत याद करना है जो तुमको
पढ़ाकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। ऐसे पति को भूलने से रोना आ जाता है। बाप कहते
हैं - क्या तुम्हारा साजन मर गया है जो तुम रोती हो! तुमको तो अभी सदैव हर्षितमुख
रहना है। देवताओं का मुखड़ा सदैव हर्षित रहता है। मनुष्य देखने से ही खुश होते हैं।
देवताओं ने वह खुशी कहाँ से लाई? संगम पर बाप ने ऐसा हर्षितमुख, खुशमिज़ाज़ बनाया
था। अभी पुरुषार्थ करना है तब ही तो अविनाशी बनेंगे। बाप कहते हैं - रोने की बात ही
नहीं है। वाह ऐसा सलोना साजन मिला है जिससे स्वर्ग के महाराजा-महारानी बनते हो। तुम
श्रीमत पर कदम-कदम चलते रहो। तुम जो वर्शन्स सुनते हो वह एक-एक वर्शन्स लाख रूपये
का है। वह विद्वान लोग गीता, वेदान्त आदि सुनाते हैं तो कहते हैं यह एक-एक वर्शन्स
लाख रूपये का है। परन्तु ऐसा तो है नहीं।
तुम हरेक रूप-बसन्त हो। आत्मा रूप है ना। बाप भी है रूप, फिर उनको ज्ञान-सागर कहा
जाता है। ज्ञान की वर्षा कराने वाला है। स्थूल पानी की बात नहीं, इसको तो
ज्ञान-रत्न कहा जाता है। हरेक को यह ज्ञान-रत्नों का बीज बोना है। मनुष्यों को
समझाना चाहिए कि तुम आत्मा हो, यह तुम्हारा शरीर है। तुम कहते हो पाप-आत्मा,
पुण्य-आत्मा। पाप-परमात्मा, पुण्य-परमात्मा नहीं कहते हो। इससे सिद्ध है - परमात्मा
सर्वव्यापी नहीं है। माया पाप-आत्मा बनाती है और बाप पुण्य-आत्मा बनाते हैं।
पुण्य-आत्माओं की दुनिया को स्वर्ग और पाप-आत्माओं की दुनिया को नर्क कहा जाता है।
सबको पावन बनाने वाला सद्गति-दाता एक ही बाप है। तो तुम बच्चे इस बेहद के घर के
श्रृंगार हो। तुम्हें भारत का श्रृंगार करना है। वैकुण्ठ को वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड कहा
जाता है। मनुष्य 7 जिस्मानी वन्डर्स दिखाते हैं। वह तो हैं मनुष्य के बनाये हुए।
वास्तव में वन्डर आफ दी वर्ल्ड है वैकुण्ठ, जहाँ सब आत्मायें सदा सुखी रहती हैं।
गाते भी हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ, परन्तु जब तक बाप न आये तब तक वहाँ कोई जा नहीं
सकता। अब तुम बच्चे जानते हो - हम वैकुण्ठ में जाते हैं। वह जिस्मानी वन्डर्स ऑखों
से देखने के हैं। तुमको तो वैकुण्ठ में जाकर अथाह सुख भोगना है। वहाँ रोने की बात
नहीं। बाप कहते हैं तुम परमपिता परमात्मा की सजनी क्यों रोती हो। शायद साजन को भूल
जाती हो। साजन को भूल जाना माना उनसे विदाई लेना। सदैव उनको याद करते रहो तो रोने
की बात नहीं। बाकी किसका सम्बन्धी आदि मरता है तो रोते हैं। अब तुम जीते जी छुट्टी
लेते हो। सबसे छुट्टी ले, रो-रोकर फिर सदा के लिए हँस पड़ते हो क्योंकि वैकुण्ठ में
जाते हो। यहाँ तो रोने की दरकार नहीं। बाबा ने कहा है अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना,
कौन सा हलुआ? यह ज्ञान का। अब तो सब मरे पड़े हैं। किसका चिन्तन करें, किसका न करें
- इतने सब मरेंगे। कोई क्रियाक्रम करने वाला भी नहीं रहेगा। जापान में बम से इतने
मरे फिर किसने क्रियाक्रम किया। क्रियाक्रम करने वाले भी मर जायेंगे। यह तो भक्ति
मार्ग की रसमरिवाज़ है। सतयुग में ऐसी बातें होती नहीं। वहाँ तो अथाह सुख है।
मोहजीत राजा की कहानी भी वहाँ की है। तुमने जन्म-जन्मान्तर यह कथा सुनी है। अब बाप
कहते हैं - जो कुछ सुना है वह भूल जाओ। अब सब बाप से सुनो। हियर नो ईविल, सी नो
ईविल.. उन्होंने बन्दरों की शक्ल का एक खिलौना बनाया हुआ है। टॉक नो ईविल, सी नो
ईविल.... क्योंकि इस समय मनुष्य बन्दर से भी बदतर हैं, जो सुनाओ सत-सत करते रहते
हैं। बाबा कहते हैं - बच्चे, ग्लानी की बातें मत सुनो। मैं कल्प के संगमयुग पर आता
हूँ। बाप को तो जरूर आना ही है तब तो नॉलेज दे। मनुष्य कहते ऋषि-मुनि आदि
त्रिकालदर्शी थे। बाबा कहते - बिल्कुल नहीं। लक्ष्मी-नारायण भी त्रिकालदर्शी नहीं
थे। त्रिकालदर्शी सिर्फ तुम ब्राह्मण बने हो। तुम्हारा यह 84 वाँ अन्तिम जन्म है।
ऐसे नहीं यह ज्ञान के संस्कार दूसरे जन्म में रहेंगे। नहीं, यह प्राय:लोप हो जाते
हैं। वहाँ तो राजाई स्थापन हो जाती है तो राजयोग की दरकार नहीं। तो देखो, बाबा क्या
कहते, मनुष्य क्या कहते हैं। रात और दिन का अन्तर है। मनुष्य कहते परमात्मा
सर्वव्यापी है, बाप कहते हैं नहीं। मनुष्य कहते हैं कलियुग की आयु अभी 40 हजार वर्ष
पड़ी है, बाप कहते हैं नहीं। कितने गपोड़े सुनाए घोर अन्धियारा कर दिया है।
अब मीठा बाप कहते हैं - बहुत मीठा बनो। तुम ईश्वरीय दरबार में ईश्वर के बच्चे
हो। तुम्हारा फ़र्ज है योग लगाना। गोवर्धन पर्वत पर जायेंगे तो वहाँ अंगुली दिखाई
है। पर्वत की कितनी पूजा होती है। भारत जब गोल्डन एज बन जाता है तो उनकी पूजा नहीं
होती। तो यह अंगुली है तुम्हारी निशानी। पवित्रता की प्रतिज्ञा करना जैसे अंगुली
देना है - भारत को सैलवेज करने के लिए। पवित्रता है तो पीस प्रासपर्टी भी है।
पवित्रता नहीं है तो भारत का हाल देखो क्या है। मेहनत है ना। संन्यासी कहते आये -
आग और कपूस इकट्ठे रह नहीं सकते। शास्त्रों में ऐसा है। परन्तु तुम संन्यासियों को
कह सकते हो कि हम कैसे आग कपूस इकट्ठे रहते पवित्र रहते हैं। संन्यासियों को श्रीमत
थोड़ेही मिलती है। हम तो अब बाप की श्रीमत पर चलते हैं। उनको मिलती है शंकराचार्य
की मत, यह है शिवाचार्य की मत। तुम शिवाचार्य के बच्चे हो। यह कोई नहीं जानते। कहते
हैं परमात्मा ज्ञान का सागर है तो आचार्य हुआ ना। वह शंकराचार्य है। संन्यासी बहुत
शास्त्र पढ़कर टाइटिल लेते हैं। श्रीकृष्ण आचार्य कभी नहीं कहा जाता है। शिव का पता
ही नहीं। वह बाप को जानते ही नहीं हैं। सिवाए बाप के और किसी को ज्ञान का सागर नहीं
कह सकते हैं। कोई संन्यासी मिले तो बोलो - तुम हो निवृत्ति मार्ग वाले हठयोग
संन्यासी। हम हैं प्रवृत्ति मार्ग वाले राजयोगी। तुम राजयोग सिखला नहीं सकते हो।
तुम हो रजोगुणी क्योंकि शंकराचार्य आते ही हैं द्वापर में। तुम्हारा है हठयोग कर्म
संन्यास। वास्तव में कर्म संन्यास तो होता ही नहीं है। अब तुम बच्चों को डायरेक्शन
ही कुछ और मिलता है। मनुष्य चाहते हैं शान्ति में रहें। बोलो - अच्छा, अपने को इन
आरगन्स से डिटैच कर दो। परन्तु सिर्फ डिटैच करने से ही फ़ायदा नहीं होगा। डिटैच हो
फिर मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। शान्ति तो तुम्हारे गले का हार है। आत्मा
का स्वधर्म है शान्ति। हम आत्मायें मूलवतन में साइलेन्स में रहती हैं। फिर
सूक्ष्मवतन में है मूवी। यह है टाकी स्थूल वतन। तुम बच्चों ने साक्षात्कार किया है।
बाबा ने जास्ती देखा है। मम्मा ने तो कुछ भी नहीं देखा, कभी भी ध्यान में नहीं गई।
ज्ञान में कितनी तीखी गई। यह ध्यान की आश भी नहीं रखनी चाहिए। मम्मा देखो बिगर
ध्यान के कितना आगे नम्बर लेती है। पहले श्री लक्ष्मी फिर श्री नारायण, इनके लिए
लिखा हुआ है अर्जुन को विनाश स्थापना का साक्षात्कार हुआ। इस रथ में रथी शिवबाबा
बैठ नॉलेज सुनाते हैं। इस रथ को भी नॉलेज उनसे मिलती है। यह खुद भी गीता पढ़ते थे।
बहुत कथा करते थे। अब वन्डर लगता है - शास्त्रों में क्या-क्या है। बाप कहते हैं -
यह पढ़ा हुआ सब भूल जाओ, सुनो नहीं, देखते हुए नहीं देखो। बस, हम तो जाते हैं बाबा
के घर स्वीट होम। जब तक गाईड तथा लिबरेटर न आये तब तक कोई जा नहीं सकता। पण्डा और
मुक्ति दाता तो एक ही बाप है। दु:खों से मुक्त कर देते हैं, इसलिए उनको गति-सद्गति
दाता कहा जाता है। वह है मनुष्य सृष्टि का बीज रूप, सुप्रीम सोल। निराकारी दुनिया
है आत्माओं के रहने का धाम। ऐसे नहीं कि ब्रह्म परमात्मा है, उसमें आत्मायें लीन हो
जायेंगी। कितनी वन्डरफुल बातें हैं। तुम्हारा 84 जन्म का पार्ट अविनाशी है, यह कब
मिट नहीं सकता। सृष्टि अनादि रची हुई है। सतयुग को नई सृष्टि कहा जाता है। अब है
पुरानी सृष्टि। बाकी सृष्टि कोई विनाश नहीं होती। बाप आते ही हैं पतित सृष्टि को
पावन बनाने। सृष्टि तो है ही है। 84 जन्म तो जरूर देवताओं के ही होंगे, फिर कम होते
जाते हैं। फिर क्रिश्चियन आदि का भी हिसाब निकाल सकते हैं। वास्तव में भारतवासियों
की जनसंख्या बहुत होनी चाहिए। परन्तु और और धर्मों में कनवर्ट होने कारण कम हो गये
हैं। नाम ही हिन्दू रख दिया है। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब मुझे ब्रह्मा
द्वारा देवी-देवता धर्म की स्थापना करनी है। शंकर द्वारा विनाश.... फिर जो स्थापना
करते हैं वही पालना करेंगे। गाँधी जी को भी जिन्होंने मदद की, मेहनत की आज बहुत सुखी
हैं। वहाँ सुखी तो सब बनेंगे। बाकी पद में फ़र्क पड़ जाता है। जो बाप की याद में
रहते हैं और वर्से को याद करते हैं वह सूर्यवंशी बनेंगे। कम याद करेंगे तो
चन्द्रवंशी, नहीं तो फिर प्रजा, दास-दासियाँ आदि तो बहुत चाहिए ना। बाप ने समझाया
है योगबल से ही कोई भी विश्व का मालिक बन सकता है। तुम हो योगबल की अहिंसक सेना।
क्रिश्चियन को भी इतना बल मिल जाए तो विश्व के मालिक बन सकते हैं। परन्तु लॉ नहीं
कहता है। वह बन्दर की कहानी है ना। श्रीकृष्ण के मुख में माखन आ जाता है - विश्व की
राजाई का। तो विश्व का राज्य योगबल से ही मिल सकता है। बाप कहते हैं मैं स्वर्ग रचता
हूँ। तुम बच्चों का भी यही धन्धा है। बच्चे फिर बाप के बन स्थापना में मदद करते
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा हर्षित, खुशमिज़ाज़ रहना है। कभी भी रोना नहीं है। जीते जी सबसे
छुट्टी ले लेनी है। किसी का भी चिन्तन नहीं करना है।
2) अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित रहना है। ज्ञान और योग से तीखा जाना है। ध्यान
की आश नहीं रखनी है।