ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कांटों से फूलों की दुनिया में जाना है। सतयुगी दुनिया को दैवी फूल
ही कहेंगे। कलियुग में मनुष्य हैं कांटें मिसल। एक-दो को तंग करते, दु:ख देते रहते
हैं। तुम बच्चे अब खुश होते हो कि चलो, अब हम अपने उस दैवी फूलों के सुखधाम में चलें।
चलने का भी राज़ समझना है। चलेंगे तब, जब अच्छी रीति पढ़ेंगे। पहले तो निश्चय चाहिए
- पढ़ाने वाला कौन है? यह बातें कोई वेद-शास्त्र आदि में लिखी हुई नहीं हैं। भल गीता
में राजयोग लिखा हुआ है, राजाई के लिए पढ़ाई है तो जरूर राजाई सतयुग में देंगे। पहले
तो पढ़ाने वाले का निश्चय चाहिए। यह कोई साधू, सन्त, मनुष्य तो है नहीं। यह तो है
निराकार। सब आत्माओं का बाप है - परमपिता परमात्मा। जिन्हों को कल्प पहले मुआफिक
निश्चय होना होगा, उन्हों को ही होगा। तुम देखते हो फूलों की दुनिया स्वर्ग में चलने
के लिए हरेक का अपना-अपना पुरुषार्थ है। पहले जब निश्चय हो तो झट पढ़ाई में लग पड़े।
शास्त्रों में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है - साथ-साथ लिखा भी है रुद्र ज्ञान यज्ञ।
अब यह तो ज्ञान की बातें हो गई। मनुष्यों ने फिर श्रीकृष्ण को काठ की मुरली दे दी
है। गायन भी है ना तेरी मुरली में जादू है खुदाई। अब काठ की मुरली में तो खुदाई जादू
हो न सके। वह तो मुख से मुरली बजा सकते हैं। श्रीकृष्ण का बचपन ही दिखाते हैं, आपस
में खेलते-कूदते रहते हैं। यह बातें बड़ी समझने लायक हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं
कि यह बरोबर राजयोग है अर्थात् राजाई प्राप्त करने की पढ़ाई कराने वाले के साथ योग।
वह सम्मुख आकर पढ़ाते हैं। इसमें काठ के मुरली की कोई बात नहीं। यह बातें ही निराली
हैं। यह किसको भी पता नहीं है कि निराकार भगवान् स्वयं आकर पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण
के लिए भी कहते हैं, उनकी मुरली में खुदाई जादू है। तो खुदा और हो गया ना।
श्रीकृष्ण को खुदा नहीं कहेंगे। खुदा तो खुदा ही है, उनको ही जादूगर कहते हैं।
जादूगर स्वयं आकर जादूगरी दिखलाते हैं, साक्षात्कार कराते हैं। फिर भी ऊंच पद
प्राप्त कराने लिए पढ़ाते हैं। मीरा ने भी वैकुण्ठ देखा और डांस की, परन्तु वह
राजयोग नहीं सीखी। राजयोग की बात कोई भी शास्त्र में नहीं है। मीरा को पढ़ाने वाला
तो कोई नहीं था। मीरा का नाम भी भक्त माला में है। यह है ज्ञान माला। रात-दिन का
फ़र्क है। तुम समझ गये हो - हम जितना ज्ञान उठायेंगे, उतना ऊंच बनेंगे। बरोबर भक्त
माला भी है, उनमें भी नम्बरवार हैं। उन्हों के नाम तो मशहूर हैं। यह ज्ञान कोई में
भी नहीं है। तो समझाना चाहिए - यह ज्ञान देने वाला वह अथॉरिटी बाप है, जिसके लिए कहा
जाता है ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रच उन्हों को सभी वेदों-शास्त्रों का सार
सुनाते हैं। शिवबाबा को तो शास्त्र दे न सकें, क्योंकि वह तो है निराकार। तो ब्रह्मा
द्वारा समझाते हैं। यह युक्ति रची है। परन्तु यह सब बातें समझाने वाला वह एक है।
दिखलाते भी हैं ब्रह्मा द्वारा सार बतलाते हैं तो जरूर समझाने वाला कोई दूसरा है
ना। अभी तुम प्रैक्टिकल में देखते हो शिवबाबा जो ज्ञान सागर है, हमारा बाबा भी है,
वह सम्मुख बैठे हैं। भारत में ही आते हैं और जरूर कोई के शरीर में आते हैं। यह
ब्रह्मा का शरीर है। प्रजापिता ब्रह्मा होना भी जरूरी है। बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा
द्वारा ही बाप आकर ब्राह्मण धर्म रचते हैं। धर्म कैसे रचा जाता है? यह भी तुम जानते
हो। तुम प्रैक्टिकल में ब्रह्मा की सन्तान हो। कहते हो हम ब्राह्मण ब्राह्मणियां
हैं। बाप से वर्सा ले रहे हैं। फालोअर तो कभी वर्सा ले न सके। बच्चे ही बाप से वर्सा
लेते हैं। तुम आकर बेहद के बच्चे बने हो। क्राइस्ट के फालोअर कहेंगे, बच्चे नहीं।
बुद्ध के, गुरुनानक के फालोअर ही कहेंगे, बच्चे नहीं। यहाँ तुम बच्चे हो। प्रजापिता
वह भी बाप ठहरा और शिवबाबा भी बाप हो गया। वह निराकार है, यह साकार अलग है। इस
साकार द्वारा ही शिवबाबा ने बच्चों को रचा है। अब तुम्हारे में भी कोई को तो पक्का
निश्चय है, कोई को नहीं है। लॉटरी है बहुत बड़ी।
तुमको अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है और फिर यह ज्ञान भी सीखना है। उस
पढ़ाई में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ भी बाप कहते हैं एक घड़ी, आधी घड़ी, पढ़ो
जरूर। अच्छा, कोई कारण से रोज़ नहीं पढ़ सकते हो तो पहले 7 रोज़ पढ़कर फिर मुरली के
आधार पर चल सकते हो। लक्ष्य पकड़ लिया, बाकी है टाल, डाल, पत्ते आदि को समझना, वह
सब भी चक्र में आ जाता है। तुमको 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है। झाड़ में डीटेल
है, चक्र में नटशेल है। समझाया भी है यह वैराइटी मनुष्य सृष्टि के धर्म हैं। पहले
एक धर्म रहता है फिर वृद्धि होती है। झाड़ भी दिखाया है - कैसे फाउन्डेशन निकलता
है। कितना सहज राज़ है! ड्रामा और झाड़ को समझना है, बुद्धि में धारण करना है और
दूसरों को समझाना है। दो बाप की प्वाइन्ट तो जरूर समझानी है। बेहद के बाप से
स्वराज्य मिलता है इसलिए राजयोग जरूर सीखना पड़े। परमपिता परमात्मा ही स्वर्ग की
स्थापना करते हैं, जिसको कृष्णपुरी भी कहते हैं। कंसपुरी में तो कृष्णपुरी स्थापन
हो न सके, इसलिए संगम रखा हुआ है। तुम बच्चों के लिए यह संगमयुग है, बाकी और सबके
लिए कलियुग है। तुम ही संगम से फिर सतयुग में जाने वाले हो, यह निश्चय चाहिए। अभी
हम संगम पर हैं। संगमयुग याद रहे तो सतयुग भी याद रहे और सतयुग स्थापन करने वाला भी
याद रहे। परन्तु घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। तुम समझते हो अभी हम संगम पर हैं, बेहद का
बाप आते ही हैं कल्प के संगमयुगे। गीता में भूल कर दी है। गीता से तैलुक रखने वाले
सिर्फ भागवत, महाभारत आदि हैं।
बाप समझाते हैं - तुम सब सीतायें हो, मैं राम हूँ। तुम रावण राज्य रूपी लंका में
पड़े हो, वह लंका नहीं। ऐसे नहीं, वहाँ कोई रावण राज्य था। सतयुग में लंका आदि होती
नहीं। उस तरफ बौद्ध धर्म है। अभी बौद्ध धर्म बहुत फैला हुआ है। अब यह तो बच्चों को
समझाया गया है भारत पहले बिल्कुल पवित्र था, सुख-शान्ति थी, एक ही देवी-देवता धर्म
था। पहले-पहले तो यह निश्चय पक्का रहना चाहिए कि यह हमारा बेहद का बाप है, उनसे
वर्सा लेना है, पुरुषार्थ में कभी चूकना नहीं है। निश्चय बिगर पुरुषार्थ भी कैसे
करेंगे? बाप पढ़ाते हैं, उनसे स्वर्ग का, सदा सुख का वर्सा मिल रहा है, यह तो
सर्टेन है। स्कूल में बिगर निश्चय अथवा एम ऑब्जेक्ट थोड़ेही बैठेंगे। वहाँ तो
सब्जेक्ट बहुत होती हैं, मार्जिन होती है। यहाँ तो एक ही सब्जेक्ट है। एक ही
सब्जेक्ट से कितनी बड़ी राजधानी स्थापन हो जाती है। जो नहीं पढ़ते हैं तो पढ़े हुए
के आगे भरी ढोयेंगे। प्रजा में भी जो अच्छी प्रजा होंगे उनके आगे कम दर्जे वाली
प्रजा भरी ढोयेगी। प्रजा भी नम्बरवार तो है ना। कोई गरीब, कोई साहूकार, एक न मिले
दूसरे से। कैसा यह ड्रामा है! सभी मनुष्यों के फीचर्स ड्रामा में नूँध हैं पार्ट
बजाने के लिए। कितनी गुह्य बातें हैं जो धारण कर यथार्थ रीति समझाना है। सब तो नहीं
समझा सकते। कितनी अच्छी बातें समझाते हैं। निश्चय में ही विजय है। निश्चय होगा तब
ही पढ़ेंगे। कोई तो संशयबुद्धि हो पढ़ाई को छोड़ देते हैं। अहो माया, झट तूफान लगाए
संशय में डाल देती है। संशयबुद्धि विनशयन्ती। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो
चकनाचूर। फ़र्क तो बहुत है। गिरे तो एकदम चण्डाल, चढ़े तो एकदम बादशाह। सारा पढ़ाई
पर मदार है। आगे कभी सुना कि निराकार शिक्षक कैसे होता है! अभी शिवबाबा द्वारा तुम
सुनते हो। तुमको निश्चय हुआ है - मैं तुम्हारा बाप हूँ, पतित-पावन भी हूँ, नॉलेजफुल
भी कहते हो। नॉलेज से चक्रवर्ती राजा बनना है, यह निश्चय होना चाहिए ना। निश्चय में
ही माया विघ्न डालती है। दुश्मन सामने खड़ा है। तुम जानते हो माया हमारी दुश्मन है,
घड़ी-घड़ी धोखा देती है, पढ़ाई में संशय डाल देती है। संशय में आकर बहुत बच्चे
पढ़ाई को छोड़ देते हैं। पढ़ाई को छोड़ा गोया बाप, टीचर, सतगुरू को भी छोड़ दिया।
वह तो गुरू बदलते रहते हैं। अनेक गुरू करते हैं। यह तो एक ही सतगुरू है। यह अपनी
महिमा नहीं करते हैं। बाप अपना परिचय देते हैं। भक्त लोग गाते हैं ना शिवाए नम:,
तुम मात-पिता........ लेकिन जानते कुछ भी नहीं, सिर्फ कहते रहते हैं, पूजा करते रहते
हैं। तुम अभी जान गये हो शिव कौन है? शिव के बाद फिर आते हैं ब्रह्मा-सरस्वती।
लक्ष्मी-नारायण बाद में आते हैं। पहले शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। बाप कहते
हैं मैं पहले-पहले ब्रह्मा में प्रवेश करता हूँ, इनको पहले रचता हूँ। ब्रह्मा द्वारा
स्थापना फिर ब्रह्मा ही विष्णु बन पालना करते हैं। यह सब प्वाइन्ट्स नोट करनी चाहिए।
फिर किसको समझाने की कोशिश करनी चाहिए। कोई तो बहुत अच्छा समझाते हैं। बाबा की तो
बात ही अलग है। कभी शिवबाबा समझाते, कभी यह भी समझाते हैं। तुम हमेशा समझो - शिवबाबा
समझाते हैं। शिवबाबा को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। तुम समझो - शिवबाबा इन
द्वारा नई-नई प्वाइन्ट्स सुनाते हैं, बड़ा युक्ति से समझाते हैं। तो बच्चों को समझना
भी चाहिए। पहले तो निश्चय करना है। 7 रोज़ में भी रंग अच्छा लग सकता है। परन्तु माया
भी बहुत तीखी है ना। पहले-पहले तो निश्चय बैठे कि बाप परमपिता परमात्मा स्वर्ग का
रचयिता है, तो जरूर उसने ही राजयोग सिखाया होगा। श्रीकृष्ण सिखला न सके। उनका आना
ही सतयुग में होता है। स्वर्ग का रचयिता शिवबाबा है। अगर कोई कहे श्रीकृष्ण के तन
में आया परन्तु श्रीकृष्ण तो उस रूप में आ न सके। उनका आना ही सतयुग में होता है।
बाबा किसी के गर्भ से तो जन्म नहीं लेता। इनके तन में प्रवेश कर इनका भी परिचय देता
है कि इनका नाम ब्रह्मा हमने क्यों रखा? यही शुरू से लेकर अन्त तक पार्ट बजाते हैं।
तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे थे। कितने बच्चों के नाम आये। वन्डर है ना,
फट से दो अढ़ाई सौ के नाम आ गये। इतने नाम तो यहाँ के ब्राह्मण लोग दे न सकें।
सन्देशी फट से नाम ले आई। बेहद के बाप ने नाम रखे। वन्डर है। वन्डरफुल बाप,
वन्डरफुल एम ऑब्जेक्ट।
तुम सो राजाओं के राजा बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बड़ा क्लीयर है। ऊपर में
त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा एक्यूरेट है। 84 जन्म भी जरूर लेने हैं। कलियुग का अन्त
पतित, सतयुग की आदि पावन। बच्चों को सर्विस का सबूत देना चाहिए - बाबा, हमने भी यह
छोटे-छोटे पर्चे छपवाये। ऊपर में शिव, त्रिमूर्ति और दो बाप का परिचय हो। यह
प्वाइन्ट जरूर होनी चाहिए। ऐसे-ऐसे पर्चे छपवाकर खूब सर्विस करके समाचार देना चाहिए,
तब बाप की दिल पर चढ़ेंगे। चिट्ठी सिर्फ खुश-ख़ैराफत की नहीं, सर्विस करके समाचार
लिखना है कि बाबा यह-यह सर्विस की। सिर्फ याद-प्यार लिखने से बाबा का पेट क्या भरेगा।
आज फलाने को समझाया, आज पति की सर्विस की, बहुत अच्छा खुश हुआ, ऐसे-ऐसे सर्विस की,
समाचार बाबा को लिखना है। दो बाप की प्वाइन्ट मुख्य है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग
का राज्य-भाग्य देने वाला। तुम कितने मीठे-मीठे बच्चे हो। बाप समझाते हैं यह सब
एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं। इतने सब तो धर्म के बच्चे ही हो सकते हैं। वह धर्म के
फालोअर्स होते हैं। यहाँ तुम बच्चे हो, बाप भी ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। यह
सब हमारे बच्चे हैं। अभी अन्त का पार्ट बजा रहे हैं। स्वर्ग की स्थापना में मदद करने
लिए मेरे साथी बने हैं। यह है रुद्र शिवबाबा का राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ। शिवबाबा
स्वर्ग की स्थापना कैसे करते हैं? पहले ब्रह्मा और ब्राह्मणों द्वारा रुद्र ज्ञान
यज्ञ रचते हैं जिससे स्वर्ग की स्थापना होती है। तो जरूर ब्राह्मणों को ही यज्ञ
सम्भालना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निश्चय बुद्धि बन पढ़ाई करनी है। कभी भी किसी बात में संशय नहीं उठाना
है। निश्चय में ही विजय है।
2) बाप का साथी बन स्वर्ग की स्थापना में पूरा मददगार बनना है। यज्ञ की सम्भाल
करने वाला पक्का ब्राह्मण बनना है।