12-12-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - संगम पर तुम बाप की सारी नॉलेज हप करके बाप-समान बनते हो, तुम्हें कर्म-अकर्म-विकर्म का ज्ञान है इसलिए अब कोई भी विकर्म नहीं करना है"

प्रश्नः-
किन बातों का सिमरण चलता रहे तो अपार खुशी में रहेंगे?

उत्तर:-
1- यह पुरुषोत्तम संगमयुग है, हम संगमयुगी हैं। 2- बाप से रचता और रचना की गुह्य नॉलेज सम्मुख पढ़ रहे हैं। 3- हमें सर्वगुण सम्पन्न बन ऊंच ते ऊंच पद पाना है। 4- हम यह शरीर छोड़कर ऐसे (देवी-देवता) बनेंगे। इन बातों की स्मृति रहे और सिमरण चलता रहे तो अपार खुशी में रहेंगे।

गीत:- तुम्हीं हो माता पिता......

ओम् शान्ति। बच्चों ने किसकी महिमा सुनी? शारीरिक नाम तो है नहीं। और जो भी मनुष्य मात्र हैं वा सूक्ष्मवतनवासी भी हैं, सबको शरीर है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है। सिर्फ उनको (परमपिता परमात्मा को) शरीर नहीं है। यह कौन कहता है? आत्मा कहती है। जैसे मुझ आत्मा को शरीर है वा जैसे सूक्ष्मवतनवासियों को शरीर है वैसे जिनकी इतनी बड़ी महिमा है उनको शरीर है नहीं। इससे सिद्ध होता है कि वह निराकार है, जिसका कोई साकार शरीर नहीं है, उनकी यह महिमा है। समझ में आता है। आत्मा भी समझा जाता है, देखा नहीं जाता है। वैसे परमपिता परमात्मा को भी समझा जाता है। उसमें भी आत्मा है। तुम जानते हो शिवबाबा की आत्मा अलग है, उनकी पूजा भी होती है। बाबा ने समझाया है, जैसे मैं छोटा बिन्दी समान हूँ, तुम आत्मा भी बिन्दी समान हो। कोई कहेंगे कि परमात्मा! तो जरूर इतनी बड़ी चीज़ है क्योंकि उनमें इतना सारा ज्ञान है। परन्तु वह बड़ा है या छोटा है - यह सिद्ध कैसे करें? यह समझाया जाता है वह ज्ञान का सागर है, जो ज्ञान फिर आत्माओं को देते हैं। जैसे टीचर होता है उनमें बैरिस्टर वा सर्जन आदि की नॉलेज है, वह स्टूडेण्ट को देते हैं। जब इम्तहान पूरा होता है तो फिर ट्रांसफर हो दूसरे क्लास में जाते हैं। समझा जाता है इनमें यह नॉलेज है। टीचर की सारी नॉलेज स्टूडेण्ट ने हप कर ली। वैसे बाप रचयिता में भी रचना के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज है। रचयिता तो बाप है। आत्मा कहती है बाप नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर है, उनमें भी नॉलेज है। वह इतनी छोटी-सी आत्मा भी सब ग्रहण कर लेती है। तो छोटे-बड़े की बात नहीं रहती ग्रहण करने वाला और कराने वाला दोनों का रूप, रंग, साइज़ एक ही है। जैसे मनुष्य तो मनुष्य ही होता है। यह नाक, कान आदि सब कर्मेन्द्रियाँ शरीर की हैं। आत्मा तो बिल्कुल छोटी बिन्दी है। बाकी यह सब हैं स्थूल कर्मेन्द्रियाँ। वह आत्मा बिल्कुल सूक्ष्म चीज़ है जो देखने में नहीं आती है। शरीर तो बड़ा है, उनसे हम सारा कर्तव्य करते हैं। कर्म तो जरूर करना ही है। स्वर्ग में भी हम कर्म करते हैं। परन्तु वह विकर्म नहीं बनता, अकर्म हो जाता है इसलिए उसको सुखधाम कहा जाता है। कोई भी विकर्म होता नहीं। इस समय भी विकर्म करने से हम बाज़ नहीं आते हैं, विकर्म करने वाले को दिल अन्दर खाती है हमने यह बुरा काम किया। बतलाते चोरी की, फलाने को मारा, विकार में गया। आत्मा वर्णन करती है। इन कर्मेन्द्रियों द्वारा हमने यह यह पाप किया। आत्मा समझती है ना मैंने यह यह किया। अब आत्मा क्या चीज़ - यह भी कोई नहीं जानते, सिर्फ सुना है कि वह अति सूक्ष्म है। इन आंखों से देख नहीं सकते। पार्ट कितना बजाती है। भिन्न-भिन्न नाम-रूप लेकर कितना कर्म करती है। फिर उनको सारा पार्ट रिपीट करना है। वही आत्मा इन कर्मेन्द्रियों द्वारा 21 जन्म सुख का पार्ट बजाती है। सतयुग में अच्छा कर्म ही होता है। आत्मा समझती है हमने अच्छा कर्म किया है तो मुझे अच्छा जन्म मिलेगा। कर्मों के ज्ञान से सिद्ध होता है कि कर्म अनुसार ही मनुष्य को पुनर्जन्म ले अच्छा वा बुरा फल भोगना पड़ता है। कोई तो समझते हैं शरीर खत्म होने से आत्मा भी खत्म हो जाती है। परन्तु यह तो कर्मों का फल दूसरे जन्म में मिलता है। समझते हैं पिछले जन्म का हिसाब-किताब है। यह सब आत्मा विचार करती है, कर्मेन्द्रियों द्वारा।

तुम्हारी आत्मा समझती है - हमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। आगे शरीर का नाम पक्का था - मैं फलाना हूँ, फलाना हमको पढ़ाते हैं। अभी तुम समझते हो - हम आत्मा जिसको इन आंखों से देख नहीं सकते। पढ़ाने वाले को भी नहीं देख सकते हैं। वह परमपिता परमात्मा हम बच्चों को एक ही बार आकर पढ़ाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है हमको कोई भी देहधारी नहीं पढ़ाते हैं। तुम भी पहले-पहले घरबार छोड़ आये तो तुम्हारे नाम कैसे रखे गये। सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई ऐसे नाम रख न सके। इनकी आत्मा भी कहती है यह नाम कोई हमने नहीं रखा। यह तो बाप ने नाम दिये। बड़ी वण्डरफुल बात है। कितने वण्डरफुल नाम रखे हैं। ड्रामा अनुसार। हम बड़ाई ड्रामा की करते हैं, न कि ईश्वर की। शिवबाबा भी ड्रामा अनुसार पढ़ाते हैं। बाप ने ही यह सब नाम दिये हैं। यह तो बड़ी वण्डरफुल बात है। यह नामों की लिस्ट भी तुम्हारे पास छपी हुई होनी चाहिए। मनुष्य पुरानी चीज़ बहुत सम्भालते हैं। यह भी पुरानी चीज़ है ना। कोई देखे तो वण्डर खायेंगे। वो नाम तो शरीरधारी रखते हैं, हमारे नाम निराकार बाप ने रखे हैं। वह अव्यक्त नामों की लिस्ट छपानी चाहिए - समझाने के लिए कैसे विदेही बाप ने भेजे। आत्मा ने ही सुना फिर आकर बताया। तो मनुष्य वण्डर खायेंगे। यह भी बाबा ने समझाया। जितना ज्ञान परमपिता परमात्मा में है, वह सारा हम आत्माओं को दे देते हैं जो हम ग्रहण करते हैं। आत्मा बड़ी नहीं है। आत्मा उतनी ही बड़ी है जितनी बाप की है, छोटी-बड़ी नहीं है। जब सारा ज्ञान ग्रहण कर लेते हैं तब ही ऊंच पद पाते हैं। और बाप कहते हैं पवित्र बनो। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। सिवाए एक बाप के दूसरी कोई चीज़ याद न पड़े। कहते हैं अन्तकाल जो नारायण सिमरे..... यह तो ठीक है। हम पढ़ते ही हैं - नर से नारायण बनने। परन्तु पढ़ाने वाले को याद करने बिगर हम पावन बन नहीं सकते। यह किसको भी पता नहीं हम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करें। यह शास्त्र फिर भी ऐसे ही लिखेंगे जैसे कल्प पहले लिखे थे। यह सब ड्रामा में नूंध है। भल ऊंच ते ऊंच भगवान कहते हैं। फिर कहते ऊंच ते ऊंच ड्रामा है, सर्वशक्तिमान् भी है। हम भी ड्रामा अनुसार मेहनत कर सर्वशक्तिमान् बनते हैं। आगे ड्रामा को रखते हैं, ड्रामा को कभी कोई जान न सकें। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम अभी जानते हो। भल कहते हैं - रचयिता शिव है परन्तु वह जो है, जैसे हैं, कोई भी जानते नहीं। जरूर रचना का रचयिता होगा ना। वही रचना को जानता होगा। और कोई कैसे कह सकते कि हम जानते हैं। सतयुग में यह बातें पूछी नहीं जाती। पार्ट ही नहीं। जो पार्ट जिस समय है वह बजता रहता है। जो पास्ट हो गया उनको फिर रिपीट होना ही है। क्रिश्चियन लोग थे नहीं, फिर आये, राज्य किया फिर इतने समय बाद अपने समय पर आकर राज्य करेंगे। बाप कल्प-कल्प आते हैं, यह चक्र फिरता रहता है। लाखों वर्ष की आयु कहते हैं फिर भी रिपीट होना है ना। ड्रामा तो हुआ ना। इस समय की यह साइंस आदि की इन्वेन्शन भी मनुष्यों के लिए है ना। इनको कहा जाता है मायावी स्वर्ग। बहुत अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास महल बनते हैं। यह है माया का पाम्प। साहूकार लोग समझते हैं हमारे लिए तो यहाँ ही स्वर्ग है। अच्छी-अच्छी चीजें देख इनको स्वर्ग कह देते हैं। तकदीर में नहीं है तो समझते बस हमारे लिए यही स्वर्ग है। बुद्धि में ज्ञान बैठता नहीं। इतने बॉम्ब्स आदि बनाये हैं, वह कोई गुम नहीं हो जायेंगे। विनाश सामने खड़ा है, यह भी तुम जानते हो। विलायत वाले फिर भी समझते हैं - यह हम अपने ही कुल का विनाश करने के लिए बना रहे हैं। कुछ अच्छी बुद्धि है, पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि भारतवासियों के लिए कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो विनाश तो जरूर होना ही है। ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि यह बॉम्ब्स सब समुद्र में डाल देंगे। कहते हैं दूसरे नहीं बनायेंगे। बातें करते-करते ढेर बनते रहते हैं। तुम बच्चों ने तो स्वर्ग का साक्षात्कार किया है तो विनाश का भी साक्षात्कार किया है। बाबा को भी साक्षात्कार हुआ तब तो छोड़ा परन्तु उस समय इतना ज्ञान नहीं था, जितना अभी है। रात दिन का फर्क है ज्ञान में। पहले तो बिल्कुल ही रात में थे, सर्वव्यापी का ज्ञान देते थे, हर एक मनुष्य खुद खुदा है। पहले-पहले यह पाई-पैसे का ज्ञान था, अभी समझते है वह तो रांग था। बाप कहते हैं आज तुमको बहुत गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ। गीता कितनी छोटी बना दी है। तुम कितने वर्षों से सुनते आये हो, गीता आदि शास्त्र तो बाद में बनते हैं। बाप ने जो ज्ञान दिया वह तुम हप कर लेते हो। प्रालब्ध मिल गई फिर कोई शास्त्र आदि नहीं बनाते हैं। ज्ञान तो है ही एक ज्ञान सागर के पास। वह समझाते रहते हैं। मूल बात अपने को आत्मा समझना है। अभी हमको जाना है वापिस 84 जन्मों का पार्ट तो बजाना ही है। यह सब सिद्ध करते हैं पहले नम्बर वाला ही 84 जन्म लेते हैं तो जरूर सबको पुनर्जन्म लेना पड़े। यह सतयुग के मालिक थे। अभी कलियुग में बैठे हैं। इनका 84 बार जन्म पूरा हुआ फिर पहला नम्बर कृष्ण का होता है, यह सब बातें समझने में टाइम लगता है। जल्दी नहीं समझ सकते। ओरली समझाने वाले कहाँ भूल जायेंगे। चित्रों पर समझाने में सहज होगा। भल यह ज्ञान ऐसा है, बिगर चित्र भी समझा सकते हैं। जो इस धर्म में थे और धर्मों में कनवर्ट हो गये, वह सब निकल आयेंगे। जैसे कोई मुसलमान होता है तो फिर नाम ही शेख या गुलाम डालते हैं, जिससे समझ में आता है यह फलाने धर्म का है। हिन्दू से क्रिश्चियन आमदनी के जोर से बन जाते हैं। पादरी लोग बहुत समझाते हैं तुम्हारा कृष्ण ऐसा था, राम ऐसा था.....। यह भी बाप ने समझाया है - हिन्दुओं ने अपने आपको चमाट लगाई है, यह भी ड्रामा अनुसार ही कहेंगे। ड्रामा समर्थ है ना। राम राज्य से फिर रावण राज्य कब शुरू होता है यह तुम अभी समझते हो। इस्लामी, बौद्धी आदि का तो सब जानते हैं। परन्तु उन्हों के आगे कौन थे, वह कोई भी बता नहीं सकते। इसलिए ड्रामा की आयु ही लम्बी लिख दी है। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। यह गीता का एपीसोड है। यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं जो समझते हैं हम संगमयुगी हैं। यह भी भूल जाते हैं। याद रहे तो वह नशा चढ़े कि हम यह बनते हैं! यहाँ बैठे हुए भी भूले हुए हैं। नॉलेज बड़ी गुह्य है। अभी तुम सम्मुख पढ़ रहे हो तो वह नशा चढ़ना चाहिए। वह चढ़ता नहीं। अगर चढ़ता भी है तो अल्पकाल के लिए, काग विष्टा समान। यहाँ सुना, यहाँ ही भूल जाते हैं। नहीं तो स्टूडेण्ट को बहुत खुशी रहनी चाहिए। भूल जाते हैं इसलिए खुशी नहीं होती। फिर कुछ न कुछ ऐसे कर्म करते रहते हैं, माया बहुत प्रबल है। सर्वगुण सम्पन्न बनना है, बहुत-बहुत ऊंच पद है। जो निश्चयबुद्धि हो जाते हैं, सिमरण करते रहते हैं कि हम यह (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे, उनको खुशी रहती है - हमको बाबा ऐसा बनाते हैं। स्टूडेण्ट को एम ऑब्जेक्ट की खुशी होनी चाहिए ना। नम्बरवार हैं। कोई तो याद करते बहुत हर्षित रहते हैं। उठते-बैठते यह याद रहना चाहिए - हम शरीर छोड़कर जाए यह बनेंगे। बाप बच्चों को सब बातें समझाते रहते हैं, जो धारण करनी चाहिए। धारणा तब होगी जब दूसरे को भी धारणा करायेंगे। बेहद का बाप, जिससे बेहद का वर्सा मिलता है, उनको तो बहुत याद करना चाहिए। बहुत याद करते-करते तुम अमरपुरी के मालिक बनते हो। तुम सब पार्वतियाँ, अमरकथा सुन रही हो। आत्मा ही सुनती है शरीर द्वारा। बाप भी जब शरीर में आये तब सुनाये। अभी तुम समझते हो हम अमरपुरी के मालिक बन रहे हैं। तुम्हारा अब लंगर उठ पड़ा है, नईया जा रही है। अब वह किनारा याद है, जितना याद करते हो उतना उस पार रहते हो। याद की यात्रा से ही तुम पार पहुँच जायेंगे। पुरानी दुनिया से नई दुनिया में कैसे जाते हो, यह सिर्फ तुम ही जानते हो। पहले शान्तिधाम फिर सुखधाम में आयेंगे। तुमको सारी नॉलेज है इसलिए तुम हो ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी। देवताओं से भी ऊंच प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली। तुम सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल वाले ऊंच हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ऊंच पद पाने के लिए बाप ने जो नॉलेज दी है वह पूरी ग्रहण करनी है। धारण करके दूसरों को धारण करानी है।

2) बाप ने जो लक्ष्य दिया है, उसका सिमरण कर अपार खुशी में रहना है। एक बाप के सिवाए और किसी को भी याद नहीं करना है। याद की यात्रा द्वारा इस पार से उस पार जाना है।

वरदान:-
शुद्ध संकल्पों की शक्ति के स्टॉक द्वारा मन्सा सेवा के सहज अनुभवी भव

अन्तर्मुखी बन शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा करो। यह शुद्ध संकल्प की शक्ति सहज ही अपने व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर देगी और दूसरों को भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकेंगे। शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करने के लिए मुरली की हर प्वाइंट को सुनने के साथ-साथ शक्ति के रूप में हर समय कार्य में लगाओ। जितना शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा होगा उतना मन्सा सेवा के सहज अनुभवी बनते जायेंगे।

स्लोगन:-
मन से सदा के लिए ईर्ष्या-द्वेष को विदाई दो तब विजय होगी।