14-10-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 01-10-75 मधुबन
एकान्त, एकाग्रता और दृढ़-संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति
आज बापदादा कोई-कोई विशेष आत्माओं को किसी कार्य-अर्थ इस संगठन से चुन रहा है। किस कार्य-अर्थ चुन रहा है वह समझते हो? आज बापदादा सृष्टि की सैर पर निकले, एक तो खास विदेशी बच्चों द्वारा विदेश सेवा और भिन्न-भिन्न प्रकार के कनवर्ट (दूसरे धर्म में बदले हुए) हुए बच्चों को देखने के लिए। सेवा-केन्द्र और सेवाधारी बच्चे, जिन्हों के मन में दिनरात प्रत्यक्षता का बोल बाला करने का एक ही संकल्प है। ऐसे सेवाधारी अथक लगन से दिन-रात मेहनत में लगे हुये हैं। बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते थे। नए-नए बच्चों की फास्ट लगन की उमंग की, मिलने अर्थ तड़पने की, पतंगे समान बाप पर हाई-जम्प लगाने की सूरत और सीरत देखी। गुलदस्ता अच्छा था - वैरायटी फूलों की शोभा सुन्दर लग रही थी - कलियाँ और पत्ते वैरायटी देखे कई आत्मायें मीठे उलहाने वाली भी देखी। कई आत्मायें मिलन की खुशी में अंसुवन मोती की मालायें बापदादा के प्रति पहनाते हुए भी देखी। ऐसी पहचानती हुई मूर्त जो बार-बार मिलन के गीत गाने वाली भी थी और फिर विदेश का सैर किया।
दूसरा था चारों ओर की अज्ञानी व भक्त आत्माओं का सैर। उसमें क्या देखा? एक तरफ अनेक आत्माएँ अपने शरीर निर्वाह-अर्थ जीवन के साधनों अर्थ किसी-न-किसी यन्त्रों द्वारा स्वयं में व्यस्त थी। साथ-साथ कुछ आत्मायें विनाश- अर्थ यन्त्र रिफाइन करने में व्यस्त थी। दूसरी तरफ कई गृहस्थी और भक्त आत्मायें अपने जन्त्र-मन्त्र से अपनी भावना का फल पाने के लिए व अल्पकाल की प्रत्यक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने-अपने कार्य में व्यस्त थी। इन सबमें विशेष भारत और कुछ विदेश में भी सिद्धि प्राप्त करने की कामना से देवियों का विशेष आह्वान कर रही थी। मैजॉरिटी सिद्धि के पीछे ज्यादा व्यस्त थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए स्वयं को समर्पण करने को भी तैयार हो जाते। सिद्धि की विधि में मुख्य दो बातें करते हैं। कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता, दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं।
तो आज बापदादा सिद्धि स्वरूप बच्चों को चुन रहे थे। जिन्हों के यादगार चित्रों द्वारा भी अब तक अनेकों को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हो रही हैं। उस समय सिद्धि की प्राप्ति का दृश्य देखने वाला होता है। जैसे आप लोगों को याद द्वारा अतिइन्द्रिय सुख का अनुभव होता है वैसे ही भक्तों को भी सिद्धि प्राप्त करने के समय के अल्पकाल का सुख उस समय के लिए कम अनुभव नहीं होता। ऐसा सैर करने के बाद साकार स्वरूप-धारी बच्चों को देखा। भक्त जिन देवियों द्वारा सिद्धि प्राप्त कर रहे हैं, वही देवियाँ कब स्वयं भी सिद्धि प्राप्त करने का संकल्प रख रही हैं। यह क्यों? चलते-चलते यह संकल्प ज़रूर उत्पन्न होता है, कि मेहनत करते हुए भी सिद्धि क्यों नहीं? समय प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यों? तो बाप भी प्रश्न करते हैं - क्यों? सिद्धि स्वरूप की मुख्य बात कौन-सी अपनानी पड़े? जैसे कल्प पहले पाण्डवों का गायन है कि सेकेण्ड में जहाँ तीर लगाया वहाँ गंगा प्रगट हुई अर्थात् सेकेण्ड में असम्भव भी सम्भव प्रत्यक्ष फल के रूप में दिखाई दिया। इसको ही सिद्धि कहा जाता है। यह नहीं होता, क्योंकि प्रत्यक्ष-फल की प्राप्ति के लिए हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती। मैं पुरुषार्थी हूँ, सम्पन्न हो ही जाऊंगा, होना तो ज़रूर है-नम्बरवार होना ही है। हमारा काम है मेहनत करना, वह तो यथाशक्ति कर ही रहे हैं - यह हर सेकेण्ड का संकल्प रूपी बीज सर्व शक्ति सम्पन्न नहीं होता है। उस समय के संकल्प में हो ही जायेगा अर्थात् भविष्य का संकल्प भरा हुआ होता है। दृढ़ निश्चय व प्रत्यक्ष फल के रस का बल भरा हुआ न होने के कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं। लेकिन दो घड़ी बाद, घण्टे बाद या कुछ दिनों बाद भविष्य प्राप्ति हो जाती है - तो इसका कारण समझा? आपके संकल्प रूपी बीज के कारण ही प्रत्यक्ष सिद्धि नहीं होती। अनेक प्रकार के साधारण संकल्प होते हैं। जैसे कि समय प्रमाण होना ही है, अभी सारे तैयार कहाँ हुये है? अभी तो आगे के नम्बर ही तैयार नहीं हुए हैं। फाइनल तो आठ ही होने हैं। ऐसे-ऐसे भविष्य नॉलेज के साधारण संकल्प आपके बीज को कमज़ोर कर देते हैं और यही भविष्य संकल्प जो उस समय यूज़ नहीं करना चाहिए, लेकिन उस समय न सोचते हुए भी यूज़ कर लेते हो - जिस कारण प्रत्यक्ष फल भी भविष्य फल के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है।
तो प्रत्यक्ष-फल पाने के लिए ही संकल्प रूपी बीज को दृढ़ निश्चय रूपी जल से कि यह तो हुआ ही पड़ा है - होना ही है - इस जल से पॉवर फुल बनाओ। तब ही प्रत्यक्ष सिद्धि-स्वरूप हो जायेंगे। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि सुनाई। एकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि कल्प पहले मुआफिक साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमज़ोर बना देता है। इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धि-स्वरूप बनो, जो सैर पर देखे वही आप हो ना? तो यादगार रूप को अब याद रूप बनाओ। पाण्डवों की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं। अच्छा।
ऐसे अनेक आत्माओं को सिद्धि प्राप्त कराने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप मास्टर विधाता और वरदाता, अपने हर संकल्प द्वारा अनेकों की अनेक कामनायें पूर्ण करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप ऐसे सर्व-महान् आत्माओं को, विदेशी आत्माओं सहित सर्व को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
14-10-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 03-10-75 मधुबन
विशाल रूप से सेवा करने के लिए विशाल बुद्धि बनो
सभी अपने को विधाता बाप द्वारा विधि और विधान को जानने वाले समझते हो? विधि और विधान को जानने वाले हर संकल्प और हर कर्म में सिद्धि स्वरूप होते हैं। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? सिद्धि स्वरूप अर्थात् बेगमपुर का बादशाह। भविष्य राज्य-भाग्य प्राप्त करने के पहले वर्तमान समय भी बेगमपुर के बादशाह हो। अर्थात् संकल्प में भी गम अर्थात् दु:ख की लहर न हो, क्योंकि दु:खधाम से निकल अब संगमयुग पर खड़े हो। ऐसे संगमयुगी बेगमपुर के बादशाह अपने को समझते हो ना? बेगमपुर का बादशाह अर्थात् सर्व खुशियों के खज़ाने का मालिक। खुशियों का खज़ाना ब्राह्मणों का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस अधिकार के कारण ही आज श्रेष्ठ आत्माओं के नाम और रूप का सत्कार होता रहता है। ऐसे बेगमपुर के बादशाह, जिन्हों का नाम लेने से ही अनेक आत्माओं के अल्पकाल के लिए दु:ख दूर हो जाते हैं, जिनके चित्रों को देखते चरित्रों का गायन करते हैं और दु:खी आत्मा खुशी का अनुभव करने लगती हैं, ऐसे चैतन्य आप स्वयं बेगमपुर के बादशाह हो?
अपने खज़ानों को जानते हो? सर्व खज़ानों को स्मृति में रखते हुए सदा हर्षित अर्थात् सदा प्रकृति और पाँच विकारों के आक्रमण से परे। इसी खुशी के खज़ानों से सम्पन्न-स्वरूप ‘‘एक बाप दूसरा न कोई" - ऐसा अनुभव करते हो? खज़ानों की चाबी तो मजबूत रखते हो ना? चाबी को खो तो नहीं देते हो? समय और समय के प्रमाण आत्माओं की सूक्ष्म पुकार सुनने में आती है वा अपने में ही सदा बिजी रहते हो? कल्प पहले वाले आप के भक्त आत्मायें अपने-अपने इष्ट का आह्वान कर रही हैं। ‘‘आ जा, आ जा’’ की धुन लगा रही हैं। दिन-प्रतिदिन अपनी पुकार साजों से सजाते हुए अर्थात् खूब गाजे बाजे बजाते हुए जोर शोर से प्कारना शुरू करते हैं। आप सभी को राजी करने के अनेक साधन अपनाते रहते हैं। तो चैतन्य में गुप्त रूप में सुनते हुए, देखते हुए रहम नहीं आता वा अब तक अपने ऊपर रहम करने में बिज़ी हो? विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी स्वरूप में स्थित होने से ही रहम आयेगा। स्वयं को जगत्-माता व जगत पिता के स्वरूप में अनुभव करने से ही रहम उत्पन्न होगा। किसी भी आत्मा का दु:ख व भटकना सहन नहीं होगा। लेकिन इस स्वरूप में बहुत कम समय ठहरते हो। समय प्रमाण सेवा का स्वरूप बेहद और विशाल होना चाहिए। बेहद का स्वरूप कौन-सा है? अभी जो कर रहे हो, इसको बेहद कहेंगे? मेला बेहद का हुआ। पहले की भेंट में अब बेहद समझते हो लेकिन अंतिम बेहद का स्वरूप क्या है?
समय की रफ्तार प्रमाण सिर्फ सन्देश देने के कार्य में भी अब तक कितने परसेन्ट को सन्देश दिया है? सतयुग के आदि की नौ लाख प्रजा आपके सामने दिखाई देती है। आदि की प्रजा की भी कुछ विशेषताएँ होंगी ना? ऐसी विशेषता-सम्पन्न आत्मायें सभी सेवा-केन्द्रों में भी दिखाई देती हैं कि वह भी अभी घूंघट में ही हैं? सोलह हजार की माला दिखाई देती है? टीचर्स ने सोलह हजार की माला तैयार की है? घूंघट खोलने की डेट कौन-सी है? समय प्रमाण अब होना तो है ही लेकिन ऐसे समझकर भी अलबेले मत बनना। अब बेहद के प्लैन्स बनाओ। बेहद के प्लैन्स अर्थात् जिन भी आत्माओं की सेवा करते हो वह हर-एक आत्मा अनेकों के निमित्त बनने वाली हो। एक-एक आत्मा बेहद की आत्माओं की सेवा के प्रति निमित्त बने। अब तक तो आप स्वयं एक-एक आत्मा के प्रति समय दे रहे हो। आप ऐसी ही आत्माओं की सेवा करो जो वह आत्मा ही अनेकों की सेवा-अर्थ निमित्त बनें। उन के नाम से सेवा हो, जैसे कई आत्मायें अपने सम्बन्ध, सम्पर्क और सेवा के आधार पर अनेकों में प्रसिद्ध होती हैं अर्थात् उनके गुणों और कर्त्तव्य की छाप अनेकों प्रति पहले से ही होती है इसमें सिर्फ धनवान की बात नहीं वा सिर्फ पोजीशन की बात नहीं। लेकिन कई साधारण भी अपने गुण और सेवा के आधार पर अपनी-अपनी फील्ड में प्रसिद्ध होते हैं। चाहे राजनीतिक हों, चाहे धार्मिक हों लेकिन प्रभावशाली हों। ऐसी आत्माओं को चुनों। जो आप लोगों की तरफ से वे आत्माएँ सेवा-अर्थ निमित्त बनती जायें। ऐसी क्वॉलिटी की सर्विस अभी रही हुई है।
नाम के प्रसिद्ध दो प्रकार के होते हैं - एक पोजीशन की सीट के कारण, दूसरे होते हैं गुण और कर्त्तव्य के आधार पर। सीट के आधार पर नाम वालों का प्रभाव अल्पकाल के लिए पड़ेगा। गुण और कर्त्तव्य के आधार पर आत्माओं का प्रभाव सदाकाल के लिए पड़ेगा। इसलिए रूहानी सेवा के निमित्त ऐसी प्रसिद्ध आत्माओं को निकालो तब थोड़े समय में बेहद की सर्विस कर सकेंगे। इसको कहते है विहंग मार्ग। जो एक द्वारा अनेकों को तीर लग जाए। ऐसी आत्माओं के आने से अनेक आत्माओं का आना ऑटोमेटिकली होता है। तो अब ऐसी सर्विस की रूप-रेखा बनाओ। ऐसी सेवा के निमित्त बनने वाली आत्मायें आप गॉडली स्टूडेन्ट्स की तरह रेग्युलर स्टुडेण्ट्स नहीं बनेंगी, सिर्फ उनका सम्बन्ध और सम्पर्क समीप और स्नेह युक्त होगा। ऐसी आत्माओं को विशाल बुद्धि बन उनकी इच्छा प्रमाण, उन की प्राप्ति का आधार समझते हुए, उनके अनुभव द्वारा अनेकों की सेवा के निमित्त बनाना पड़े। इस बेहद की सेवा-अर्थ परखने की शक्ति की आवश्यकता है। इसलिए अब ऐसी विशाल बुद्धि बन सेवा का विशाल रूप बनाओ - अब देखेंगे ऐसी विशाल सर्विस का सबूत कौन से सपूत बच्चे देते हैं। ऐसी सर्विस के निमित्त बनने वाले राज्य-पद के अधिकारी बनते हैं। कौन-सा ज़ोन नम्बर वन जाता है, यह रिजल्ट से पता पड़ जायेगा। अच्छा!
ऐसे सर्विसएबल, बेहद के विशाल बुद्धि वाले, संकल्प द्वारा भी अनेक आत्माओं प्रति सेवा करने वाले, ऐसे बाप समान सदा अथक सेवाधारी, सबूत दिखाने वाले सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात
मायाजीत और प्रकृतिजीत शक्तियों की निशानी
शक्तियाँ अपने शक्ति स्वरूप, सदा शस्त्रधारी, सदा निर्भय, सर्व आसुरी संस्कारों का संहार करने वाली तथा प्रकृति और मायाजीत बनने वाली - ऐसे अपने स्वभाव में सदा स्थित रहती हैं? शक्तियों के यादगार चित्र में मायाजीत की निशानी है - शस्त्र और लाइट का क्राउन और प्रकृति जीत की निशानी है - शेर की सवारी। यह पशु-पक्षी आदि प्रकृति की निशानी हैं। प्रकृति के तत्व भी शक्ति-स्वरूप को भयभीत नहीं कर सकते। प्रकृति पर भी सवारी अर्थात् अधिकार। प्रकृति भी उनकी दासी बन गई अर्थात् उनका सत्कार कर रही है। ऐसे सदा विजयी हो? सदा सुहाग की निशानी तिलक गाया हुआ है - जो सदा बाप के साथ हैं - वह सदा विजय का तिलक अपने माथे पर लगाता रहेगा। स्मृति में रहना अर्थात् तिलक लगाना। सदा यह स्मृति रहे कि मैं कल्प-कल्प की विजयी हूँ, अभी की नहीं। पहले बेहोश थे - बेहोश अर्थात् जिसको अपना होश नहीं। मैं हूँ कौन यह भी पता नहीं तो बेहोश हुआ ना? अब तो सुरजीत हो। सुरजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते। यही सदा याद रखो कि ‘मैं हूँ ही सदा विजयी।’ अच्छा।
वरदान:- समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन करने वाले सर्व के स्नेही भव
जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है, वह विचारों में भी सहज होगा। उसमें मोल्ड होने की शक्ति होगी। वह कभी ऐसे नहीं कहेगा कि मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया। यह मेरापन आया माना अलाए मिक्स हुआ। इसलिए समय और वायुमण्डल को परखकर स्वयं को परिवर्तन कर लो - तो सर्व के स्नेही, नम्बरवन विजयी बन जायेंगे।
स्लोगन:- समस्याओं को मिटाने वाले बनो - समस्या स्वरूप नहीं।