17-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 11.12.91 "बापदादा" मधुबन
सत्यता की सभ्यता ही रीयल
रॉयल्टी है
आज बापदादा अपने
श्रेष्ठ परिवार अर्थात् अपने रॉयल फैमिली को देख रहे हैं। सारे कल्प में सबसे रॉयल
आप श्रेष्ठ आत्माएं ही हो। अनादि आत्मिक स्वरूप में भी सबसे श्रेष्ठ रॉयल आत्मायें
हो और आदि स्वरूप देव आत्माओं के रूप में भी रॉयल राज्य अधिकारी रॉयल फैमिली हो।
पूज्य रूप में भी आप देव आत्माओं की कितनी रॉयल्टी से पूजा होती रहती है और किसी भी
अन्य धर्म आत्मा वा राजनीतिक आत्माओं की ऐसी रॉयल पूजा नहीं होती। तो तीनों रूपों
में - अनादि, आदि और पूज्य स्वरूप ऐसे रॉयल और कोई भी नहीं हैं क्योंकि आप आत्माओं
की प्योरिटी की ही रॉयल्टी है। ऐसे सम्पूर्ण पवित्र और कोई भी आत्मा सारे कल्प में
न ही बनी है, न बनेगी। यह प्योरिटी की ही विशेषता है इसलिए सिर्फ देव आत्माओं के आगे
ही यह महिमा गाते हैं कि आप सम्पूर्ण निर्विकारी हो, और किसी भी धर्म आत्माओं की
महिमा में ऐसी महिमा नहीं गाई जाती है। सिर्फ देव आत्माओं के श्रेष्ठ कीर्ति अर्थात्
श्रेष्ठ पवित्रता का ही कीर्तन होता है। और कोई भी धर्म में कीर्तन नहीं होता है।
साजों और बाजों से कीर्तन का रिवाज देव आत्माओं में ही है वा संगमयुग के शक्ति
स्वरूप में है। यह सम्पूर्ण पवित्रता के विधि की सिद्धि है, इसलिए आप जैसी रूहानी
रॉयल्टी और किसी आत्मा की नहीं है। तो चेक करो - ऐसे प्योरिटी की रॉयल्टी कहाँ तक
आई है? रूहानी रॉयल्टी की सबसे श्रेष्ठ निशानी है - रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी अर्थात्
सत्यता। जैसे आत्मा का अनादि स्वरूप सत है। सत अर्थात् अविनाशी और सत्य है। जैसे
बाप की महिमा विशेष यही गाते रहते हैं - सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। सत्य ही शिव है वा
गॉड इज ट्रूथ (सत्य ही भगवान है) कहा जाता है। तो बाप की महिमा सत्य अर्थात् सत्यता
की है। ऐसे रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी - सत्यता जरा भी बनावटी या मिलावटी न हो। चाहे
बोल में, चाहे कर्म में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में मिलावट या बनावट नहीं हो। जिसको
साधारण भाषा में बापदादा कहते हैं - सच्चाई। रॉयल आत्माओं की वृत्ति, दृष्टि, बोल
और चलन सब एक सत्य होगी। ऐसे नहीं कि वृत्ति में एक बात हो और बोल में दूसरा बनावटी
भाव हो। इसको रॉयल्टी वा रीयल्टी नहीं कहा जाता है।
आजकल बापदादा बच्चों
की लीला देखते भी हैं और सुनते भी हैं। कई बच्चे बात को मिलाने और बनाने में बहुत
होशियार हैं क्योंकि द्वापर से मिलावट और बनावट की कथायें बहुत सुनी हैं। तो इस
ब्राह्मण जीवन में भी वह संस्कार इमर्ज कर लेते हैं। ऐसी अच्छे रूप से बात बना लेते
हैं जो झूठ को बिल्कुल सम्पूर्ण सत्य बना देते हैं और सत्य को झूठ सिद्ध कर देते
हैं। इसको कहा जाता है - अन्दर एक, बाहर दूसरा। तो क्या यह रीयल्टी है? रॉयल्टी है?
नहीं है ना। तो ऐसे पवित्रता की रॉयल्टी अर्थात् रीयल्टी। यह रॉयल्टी की निशानी है।
अगर यह निशानी नहीं है तो समझो प्योरिटी की रॉयल्टी नहीं आई है वा परसेन्टेज में आई
है, सम्पूर्ण नहीं है।
रीयल्टी की दूसरी
निशानी बापदादा सदा सुनाते रहते हैं - सच तो बिठो नच। सच्ची आत्मायें सदा खुशी में
नाचती रहेंगी। कभी खुशी कम, कभी खुशी ज्यादा, ऐसा नहीं होगा। दिन प्रतिदिन, हर समय
और खुशी बढ़ती रहेगी। रीयल्टी की निशानी है - सदा खुशी में नाचना। नैन चैन कहते हो
ना, रॉयल्टी का अर्थ भी है चित्त से भी और नैन चैन से भी सदा हर्षित। सिर्फ बाहर से
हर्षितमुख नहीं, लेकिन चित्त में भी हर्षित। हर्षित चित्त हर्षित मुख, दोनों हर्षित
हों। कई बार ऐसे भी होता है कि अन्दर चित्त में खुशी नहीं होती लेकिन बाहरमुख में
समय प्रमाण खुशनुमा बन करके दिखाते हैं। इसको अल्पकाल का हर्षितमुख कहेंगे, लेकिन
हर्षित चित्त, हर्षित मुख अविनाशी हो। तो पवित्रता की रीयल्टी रॉयल्टी अर्थात्
अविनाशी चित्त और मुख हर्षित हों। चेक करो - दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना, अपने
को चेक करना है। ऐसी रॉयल आत्मा बापदादा को और सर्व ब्राह्मण परिवार को अति प्यारी
होती है। रीयल प्यारी आत्मा की विशेषता क्या होती है? क्योंकि आजकल के रीति-रसम
प्रमाण जो बहुत प्यारा लगता है तो प्यारे के तरफ न चाहते हुए भी आकर्षित हो जाते
हैं। जिसको आप लोग अपनी भाषा में अटैचमेन्ट कहते हो क्योंकि प्यारा है तो अटैचमेन्ट
तो होगी ना। लेकिन रीयल और रॉयल प्यार की निशानी है - वो जितना ही प्यारा होगा उतना
ही न्यारा भी होगा इसलिए वह न स्वयं एक्स्ट्रा अटैचमेन्ट में आयेगा, न दूसरा उसकी
अटैचमेन्ट में आयेगा। इसको कहा जाता है रीयल प्यार, सम्पूर्ण प्यार। वह हर्षित रहेगा,
आकर्षित भी होगा परन्तु हद की आकर्षण करने वाला नहीं। तो रीयल और रॉयल की निशानी
क्या हुई? अति प्यारा और अति न्यारा।
रॉयल्टी की और विशेषता
है उस आत्मा में कभी किसी भी प्रकार के, चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म, मांगने के
संस्कार नहीं होंगे क्योंकि रॉयल आत्मा सदा सम्पन्न भरपूर रहती है। एक भरपूरता बाहर
की होती है स्थूल वस्तुओं से, स्थूल साधनों से भरपूरता। और दूसरी होती है मन की
भरपूरता। जो मन से भरपूर रहता है उसके पास स्थूल वस्तु या साधन नहीं भी हो फिर भी
मन भरपूर होने के कारण वो कभी अपने में कमी महसूस नहीं करेगा। ना में भी हाँ का
अनुभव करेगा। और जिसका मन भरपूर नहीं होता वह आत्मा बाहर से कितनी भी वस्तु और साधन
से भरपूर होते भी वह कभी भी अपने को भरपूर नहीं समझेगा। ऐसी आत्मा सदा इच्छा के
कारण ‘चाहिए चाहिए' का गीत गाती रहेगी। हर बात में ये होना चाहिए, ये करना चाहिए,
ये मिलना चाहिए, ये बदलना चाहिए... हर समय यही गीत गाते रहेंगे। और मन से भरपूर
आत्मा सदा यही गीत गाती रहेगी सब पा लिया, प्राप्त हो गया, ये होना चाहिए, ये करना
चाहिए, ये चाहिए चाहिए भी रॉयल मांगने के संस्कार हैं। बेहद की सेवा प्रति सोचना कि
ये होना चाहिए, ये करना चाहिए, वह अलग बात है लेकिन स्व की हद के प्राप्ति अर्थ
चाहिए चाहिए ये रॉयल मांगना है। नाम चाहिए, मान चाहिए, शान चाहिए, प्यार चाहिए,
पूछना चाहिए - ये सब हद की बातें हैं। रॉयल आत्मा में मांगने का अंश मात्र भी
संस्कार नहीं होता है। समझा - रॉयल्टी क्या होती है?
तपस्या के चार्ट में
यह सब चेक करना, ऐसे नहीं, मैंने किसी को गाली नहीं दी, क्रोध नहीं किया, नहीं, यह
सब बातें चेक करना। फिर प्राइज लेना। तपस्या का अर्थ ही है - सम्पूर्ण पवित्र बनना।
तो पवित्रता की पर्सनालिटी, पवित्रता की रॉयल्टी कहाँ तक प्रैक्टिकल में रही है, यह
चेक करना है। इसको कहेंगे तपस्वीराज। समझा - रॉयल्टी क्या है?
रॉयल आत्मा का चेहरा
और चलन दोनों ही सत्यता की सभ्यता अनुभव करायेंगे। वैसे भी रॉयल आत्माओं को सभ्यता
की देवी कहा जाता है। उनका बोलना, देखना, चलना, खाना-पीना, उठना-बैठना, हर कर्म में
सभ्यता सत्यता स्वत: ही दिखाई देगी। ऐसे नहीं कि मैं तो सत्य को सिद्ध कर रहा हूँ
और सभ्यता हो ही नहीं। कई बच्चे कहते हैं वैसे क्रोध नहीं आता है, लेकिन कोई झूठ
बोलता है तो क्रोध आ जाता है। उसने झूठ बोला, आपने क्रोध से बोला तो दोनों में राइट
कौन? सत्यता को सिद्ध करने वाला सदा सभ्यता वाला होगा। कई चतुराई करते हैं, कहेंगे
हम क्रोध नहीं करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है। साइन्स के
साधनों से आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं ना, तो क्या साइलेन्स की पॉवर से अपने
आवाज की गति को धीमी या तेज नहीं कर सकते हो? इससे तो ये टेप रिकार्ड और ये माइक
अच्छा है जो आवाज कम ज्यादा तो कर सकते हो। तो ये चेक करो कि सत्यता के साथ सभ्यता
भी है? अगर सभ्यता नहीं तो सत्यता नहीं। तो प्योरिटी की रॉयल्टी सदा प्रत्यक्ष रूप
में दिखाई दे। ऐसे नहीं, अन्दर में तो रॉयल्टी है, बाहर देखने में नहीं आती। अगर
अन्दर है तो बाहर में जरूर दिखाई देगी। सत्यता की रॉयल्टी को कोई छिपा नहीं सकता।
इसमें गुप्त नहीं रहना है। कई कहते हैं गुप्त पुरुषार्थी हैं इसीलिए गुप्त रहते
हैं। लेकिन जैसे सूर्य को कोई छिपा नहीं सकता, सत्यता के सूर्य को कोई छिपा नहीं
सकता। न कोई कारण छिपा सकता है, न कोई व्यक्ति। सत्य सदा ही सत्य है। सत्यता की
शक्ति सबसे महान है। सत्यता सिद्ध करने से सिद्ध नहीं होती। सत्यता की शक्ति को
स्वत: ही सिद्ध होने की सिद्धि प्राप्त होती है। सत्यता को अगर कोई सिद्ध करने चाहता
है तो वह सिद्ध जिद्द हो जाता है, इसलिए सत्यता स्वयं ही सिद्ध होती ही है। उसको
सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। समझा। तपस्या वर्ष में क्या दिखाना है? प्योरिटी
की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी। अच्छा!
देश-विदेश के तरफ से
सभी बच्चों के पत्र, यादप्यार पुरुषार्थ के, सेवा के समाचार और दिल की रूहरिहान सब
बापदादा के पास पहुँच रही है, पहुँच गई है। बापदादा सभी बच्चों को नाम सहित याद
प्यार दे रहे हैं। हर एक समझे पहले हमारी याद क्योंकि बापदादा यादप्यार का रेसपाण्ड
अव्यक्त रूप से तो उसी घड़ी दे ही देते हैं। लेकिन फिर भी साकार विधि से स्वयं भी
साकार में पत्र लिखते हैं या यादप्यार भेजते तो बापदादा भी साकार विधि प्रमाण साकार
रूप में भी रिटर्न यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि चारों ओर उमंग-उत्साह
तपस्या का और मन्सा वायब्रेशन द्वारा सेवा का, अच्छा है और रहेगा। अभी और भी आगे
गुह्य राज़युक्त बातों को सामने रख पुरुषार्थ को, सेवा को महीन और महान बनाते चलो।
सभी बच्चों को, जो सम्मुख बैठे हैं वा आकार स्वरूप से बाप के सम्मुख हैं, ऐसे सर्व
सम्मुख अर्थात् सदा साथ रहने वाले नयनों में, मुख में, मन में सदा बच्चों के बाप
हैं और बाप के बच्चे हैं।
ऐसे सदा याद में समाये
हुए श्रेष्ठ आत्मायें, सदा प्योरिटी के रीयल्टी और रॉयल्टी में रहने वाली आत्माएं,
सदा मन से सम्पन्न भरपूर रहने वाली आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
अपने को पदमापदम
भाग्यवान आत्मायें अनुभव करते हो! इतना श्रेष्ठ भाग्य सारे कल्प में किसी भी आत्मा
का नहीं है। चाहे कितने भी नामीग्रामी आत्मायें हों, लेकिन आपके भाग्य के आगे उन्हों
का भाग्य क्या है? वह है अल्पकाल का भाग्य और ब्राह्मण आत्माओं का है - अविनाशी
भाग्य। सिर्फ इस एक जन्म का नहीं है, जन्म-जन्म का है। बाप का बनना अर्थात् भाग्य
का वर्सा अधिकार में मिलना। तो अधिकार तो मिल गया ना। बच्चा अर्थात् अधिकार, वर्सा।
अधिकार का नशा है कि उतरता चढ़ता है? आधाकल्प तो नीचे ही उतरे, अभी क्या करना है?
चलना है, चढ़ना है या उड़ना है? उड़ने वाली चीज बीच में कभी रुकती नहीं। रुकेंगे तो
नीचे आयेंगे। थोड़े से समय में भी रुकेंगे फिर उड़ेंगे तो मंजिल पर कैसे पहुँचेंगे?
इसलिए उड़ते रहो। लेकिन सदा उड़ेगा कौन? जो हल्का होगा। तो हल्के हो ना? या तन का,
मन का, सम्बन्ध का बोझ है? अगर बोझ नहीं है तो रुकते क्यों हैं? जो बोझ वाली चीज है
वो नीचे आती है और जो हल्की होती है वह सदा ऊपर रहती है। आप सब तो डबल लाइट हो ना?
वरदान:-
मेरे पन की
खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण ट्रस्टी भव
यदि बाप की श्रीमत
प्रमाण निमित्त बनकर रहो तो न मेरी प्रवृत्ति है, न मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में
हो तो भी ट्रस्टी हो, सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे, इसलिए सदा
शिव बाप की भण्डारी है, ब्रह्मा बाप का भण्डारा है - इस स्मृति से भरपूरता का अनुभव
करेंगे। मेरा पन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी। किसी भी कार्य
में अगर कोई खोट अर्थात् कमी है तो इसका कारण बाप की बजाए मेरेपन की खोट अर्थात्
अशुद्धि मिक्स है।
स्लोगन:-
बाप समान बनना है तो समझना, चाहना और करना - तीनों को समान बनाओ।
सूचनाः- आज मास का
तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष
योग अभ्यास के समय मास्टर सर्वशक्तिवान के शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो सर्व
शक्तियों का महादान करें। दु:खियों की पुकार सुनें, उपकार करें।