27-09-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – याद से सतोप्रधान बनने के साथ-साथ पढ़ाई से
कमाई जमा करनी है, पढ़ाई के समय बुद्धि इधर-उधर न भागे”
प्रश्नः-
तुम डबल
अहिंसक, अननोन वारियर्स की कौन-सी विजय निश्चित है और क्यों?
उत्तर:-
तुम बच्चे जो माया पर जीत पाने का पुरूषार्थ कर रहे हो, तुम्हारा लक्ष्य है कि हम
रावण से अपना राज्य लेकर ही छोड़ेंगे……. यह भी ड्रामा में युक्ति रची हुई है।
तुम्हारी विजय निश्चित है क्योंकि तुम्हारे साथ साक्षात् परमपिता परमात्मा है। तुम
योगबल से विजय पाते हो। मनमना-भव के महामंत्र से तुम्हें राजाई मिलती है। तुम
आधाकल्प राज्य करेंगे।
गीत:-
मुखड़ा देख ले प्राणी……..
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जब
सामने बैठे रहते हैं तो समझते हैं बरोबर हमारा कोई साकार टीचर नहीं है, हमको पढ़ाने
वाला ज्ञान का सागर बाबा है। यह तो पक्का निश्चय है वह हमारा बाप भी है, जब पढ़ते
हैं तो पढ़ाई पर अटेन्शन रहता है। स्टूडेन्ट अपने स्कूल में बैठे होंगे तो टीचर याद
आयेगा, न कि बाप क्योंकि स्कूल में बैठे हैं। तुम भी जानते हो बाबा टीचर भी है। नाम
को तो नहीं पकड़ना है ना। ध्यान में रखना है – हम आत्मा हैं, बाप से सुन रहे हैं।
यह तो कभी होता ही नहीं। न सतयुग में, न कलियुग में होता है। सिर्फ एक ही बार संगम
पर होता है। तुम अपने को आत्मा समझते हो। हमारा बाप इस समय टीचर है क्योंकि पढ़ाते
हैं, दोनों काम करने पड़ते हैं। आत्मा पढ़ती है शिवबाबा से। यह भी योग और पढ़ाई हो
जाती है। पढ़ती आत्मा है, पढ़ाते परमात्मा हैं। इसमें और ही जास्ती फायदा है जबकि
तुम सम्मुख हो। बहुत बच्चे अच्छी रीति याद में रहेंगे। कर्मातीत अवस्था में
पहुँचेंगे तो वह भी जैसे पवित्रता की ताकत मिलती है। तुम जानते हो शिवबाबा हमको
पढ़ाते हैं। यह तुम्हारा योग भी है, कमाई भी है। आत्मा को ही सतोप्रधान बनना है।
तुम सतोप्रधान भी बन रहे हो, धन भी ले रहे हो। अपने को आत्मा जरूर समझना है। बुद्धि
भागनी नहीं चाहिए। यहाँ बैठते हो तो बुद्धि में यह रहे कि शिवबाबा पढ़ाने के लिए
टीचर रूप में आया कि आया। वही नॉलेजफुल है, हमको पढ़ा रहे हैं। बाप को याद करना है।
स्वदर्शन चक्रधारी भी हम हैं। लाइट हाउस भी हैं। एक ऑख में शान्ति-धाम, एक ऑख में
जीवनमुक्तिधाम है। इन आंखों की बात नहीं है, आत्मा का तीसरा नेत्र कहा जाता है। अभी
आत्मायें सुन रही हैं, जब शरीर छोड़ेंगे तो आत्मा में यह संस्कार होंगे। अभी तुम
बाप से योग लगाते हो। सतयुग से लेकर तुम वियोगी थे अर्थात् बाप से योग नहीं था। अभी
तुम योगी बनते हो, बाप के समान। योग सिखलाने वाला है ईश्वर इसलिए उनको कहा जाता है
योगेश्वर। तुम भी योगेश्वर के बच्चे हो। उनको योग लगाना नहीं है। वह है योग सिखलाने
वाला परमपिता परमात्मा। तुम एक-एक योगेश्वर, योगेश्वरी बनते हो फिर राज-राजेश्वरी
बनेंगे। वह है योग सिखलाने वाला ईश्वर। खुद नहीं सीखता है, सिखलाते हैं। कृष्ण की
ही आत्मा अन्त के जन्म में योग सीख फिर कृष्ण बनती है, इसलिए कृष्ण को भी योगेश्वर
कह देते हैं क्योंकि उनकी आत्मा अभी सीख रही है। योगेश्वर से योग सीख कृष्ण पद पाती
है। इनका नाम फिर बाप ने ब्रह्मा रखा है। पहले तो लौकिक नाम था फिर मरजीवा बने हैं।
आत्मा को ही बाप का बनना है। बाप के बने तो मर गये ना। तुम भी बाप द्वारा योग सीखते
हो। इन संस्कारों से ही तुम जायेंगे शान्तिधाम में। फिर नया पार्ट प्रालब्ध का
इमर्ज होगा। वहाँ यह बातें याद नहीं रहेंगी। यह अभी बाप समझाते हैं। अभी पार्ट पूरा
होता है। फिर नये-सिर शुरू होगा। जैसे बाप को संकल्प उठा कि मैं जाऊं तो बाप कहते
हैं मैं आता हूँ और मेरी वाणी चलनी शुरू हो जाती है। वहाँ तो शान्ति में हैं। फिर
ड्रामा अनुसार उनका पार्ट शुरू होता है। आने का तो संकल्प उठता है। फिर यहाँ आकर
पार्ट बजाते हैं। तुम्हारी आत्मायें भी सुनती हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कल्प
पहले मिसल। दिन-प्रतिदिन वृद्धि को भी पाते जायेंगे। एक दिन तुमको बड़े रॉयल हाल भी
मिलेंगे, जिसमें बड़े-बड़े लोग भी आयेंगे। सब इकट्ठे बैठ सुनेंगे। दिन-प्रतिदिन
साहूकार भी रंक होते जायेंगे, पेट पीठ से लग जायेगा। ऐसी आफतें आनी हैं, मूसलाधार
बरसात पड़ेगी तो सारी खेती आदि पानी में डूब जायेगी। नैचुरल कैलामिटीज़ तो आनी ही
है। विनाश होना है, इनको कहा जाता है कुदरती आपदायें। बुद्धि कहती हैं विनाश होना
जरूर है। उस तरफ के लिए बॉम्बस भी तैयार हैं, नैचुरल कैलेमिटीज आदि फिर है यहाँ के
लिए। उसमें बड़ी हिम्मत चाहिए। अंगद का भी मिसाल है ना, उनको कोई हिला न सका। यह
अवस्था पक्की करनी है-मैं आत्मा हूँ, शरीर का भान टूटता जाए। सतयुग में तो जब
ऑटोमेटिकली समय पूरा होता है तो साक्षात्कार होता है। अभी हमको यह शरीर छोड़ जाए
बच्चा बनना है। एक शरीर छोड़ जाए दूसरे में प्रवेश करते हैं, सज़ायें आदि तो वहाँ
कुछ हैं नहीं। दिन-प्रतिदिन तुम नज़दीक आते जायेंगे। बाप कहते हैं मेरे में जो
पार्ट भरा हुआ है वह खुलता जायेगा। बच्चों को बताते रहेंगे। फिर बाप का पार्ट पूरा
होगा तो तुम्हारा भी पूरा हो जायेगा। फिर तुम्हारा सतयुग का पार्ट शुरू होगा। अभी
तुमको अपना राज्य लेना है, यह ड्रामा बड़ा युक्ति से बना हुआ है। तुम माया पर जीत
पाते हो, इसमें भी टाइम लगता है। वो लोग तो एक तरफ समझते हैं कि हम स्वर्ग में बैठे
हैं, यह सुखधाम बन गया है, दूसरी तरफ फिर गीत में भी भारत की हालत सुनाते हैं। तुम
जानते हो यह तो और ही तमोप्रधान हो गये हैं। ड्रामा अनुसार तमोप्रधान भी ज़ोर से
होते जाते हैं। तुम अब सतोप्रधान बन रहे हो। अब नज़दीक आते जाते हो, आखरीन विजय तो
तुम्हारी होनी ही है। हाहाकार के बाद फिर जयजयकार होगी। घी की नदियाँ बहेंगी। वहाँ
घी आदि खरीद करना नहीं पड़ेगा। सबके पास अपनी गायें फर्स्टक्लास होती हैं। तुम कितने
ऊंच बनते हो। तुम जानते हो वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होती है। बाप आकर
वर्ल्ड की हिस्ट्री रिपीट करते हैं इसलिए बाबा ने कहा यह भी लिख दो वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जाग्राफी कैसे रिपीट होती है, आकर समझो। जो सेन्सीबुल होगा कहेगा अभी आइरन
एज है तो जरूर गोल्डन एज रिपीट होगी। कोई तो कहेंगे सृष्टि का चक्र लाखों वर्ष का
है, अभी कैसे रिपीट होगा। यहाँ सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी की हिस्ट्री तो है नहीं। अन्त
तक यह चक्र कैसे रिपीट होता है। वह भी जानते नहीं कि इन्हों का राज्य फिर कब होगा।
राम राज्य को जानते नहीं। अभी तुम्हारे साथ बाप है। जिस तरफ साक्षात् परमपिता
परमात्मा बाप है उनकी जरूर विजय होनी है। बाप कोई हिंसा थोड़ेही करायेंगे। किसको
मारना हिंसा है ना। सबसे बड़ी हिंसा है काम कटारी चलाना। अभी तुम डबल अहिंसक बन रहे
हो। वहाँ है ही अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म। वहाँ न लड़ते हैं, न विकार में जाते
हैं। अभी तुम्हारा है योगबल, परन्तु इसको न समझने कारण शास्त्रों में असुरों और
देवताओं की लड़ाई लिख दी है, अहिंसा को कोई जानते नहीं। यह तुम ही जानते हो। तुम हो
इनकागनीटो वारियर्स। अननोन बट वेरी वेल नोन। तुमको कोई वारियर्स समझेंगे? तुम्हारे
द्वारा सबको मनमनाभव का पैगाम मिलेगा। यह है महामंत्र। मनुष्य इन बातों को समझते नहीं
हैं। सतयुग-त्रेता में यह होता नहीं। मंत्र से तुमने राजाई पाई फिर दरकार नहीं। तुम
जानते हो हम कैसे चक्र लगाकर आये हैं। अभी फिर बाप महामंत्र देते हैं। फिर आधाकल्प
राज्य करेंगे। अब तुमको दैवीगुण धारण करने और कराने हैं। बाबा राय देते हैं-अपना
चार्ट रखने से बहुत मज़ा आयेगा। रजिस्टर में गुड, बेटर, बेस्ट होते हैं ना। खुद भी
फील करते हैं। कोई अच्छा पढ़ते हैं, कोई का अटेन्शन नहीं रहता है तो फेल हो जाते
हैं। यह फिर है बेहद की पढ़ाई। बाप टीचर भी है, गुरू भी है। इकट्ठा चलता है। यह एक
ही बाप है जो कहते मरजीवा बनो। तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बाप कहते हैं
मैं तुम्हारा बाप हूँ। ब्रह्मा द्वारा राज्य देता हूँ। यह हो गया बीच में दलाल, इनसे
योग नहीं लगाना है। अभी तुम्हारी बुद्धि लगी है उस अपने पतियों के पति शिव साजन के
साथ। इन द्वारा वह तुमको अपना बनाते हैं। कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।
हम आत्मा ने पार्ट पूरा किया अब बाप के पास जाना है घर। अभी तो सारी सृष्टि
तमोप्रधान है। 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। वहाँ सब कुछ नया होगा। यहाँ तो देखो
हीरे-जवाहरात आदि कुछ भी नहीं हैं। सतयुग में फिर कहाँ से आते हैं? खानियाँ जो अब
खाली हो गई हैं वह सब फिर से अब भरतू हो जाती है। खानियों से खोद कर ले आते हैं।
विचार करो सब नई चीजें होंगी ना। लाइट आदि भी जैसे नैचुरल रहती है, साइंस से यहाँ
सीखते रहते हैं। वहाँ यह भी काम में आती हैं। हेलीकाप्टर खड़े होंगे, बटन दबाया यह
चला। कोई तकलीफ नहीं। वहाँ सब फुलप्रूफ होते हैं, कभी मशीन आदि खराब हो न सके। घर
में बैठे सेकण्ड में स्कूल में वा घूमने-फिरने पहुँचते हैं। प्रजा के लिए फिर उनसे
कम होंगे। तुम्हारे लिए वहाँ सब सुख होते हैं। अकाले मृत्यु हो नहीं सकता। तो तुम
बच्चों को कितना अटेन्शन देना चाहिए। माया का भी बहुत ज़ोर है। यह है माया का
अन्तिम पाम्प। लड़ाई में देखो कितने मरते हैं। लड़ाई बन्द होती ही नहीं। कहाँ इतनी
सारी दुनिया, कहाँ सिर्फ एक ही स्वर्ग होगा। वहाँ ऐसे थोड़ेही कहेंगे गंगा
पतित-पावनी है। वहाँ भक्ति मार्ग की कोई बात ही नहीं। यहाँ गंगा में देखो सारे शहर
का किचड़ा पड़ता रहता है। बॉम्बे का सारा किचड़ा सागर में बह जाता है।
भक्ति में तुम
बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हो। हीरे-जवाहरातों का तो सुख रहता है ना। पौना हिस्सा सुख
है, बाकी क्वार्टर है दु:ख। आधा-आधा हो फिर तो मज़ा न रहे। भक्ति मार्ग में भी तुम
बहुत सुखी रहते हो। पीछे मन्दिरों आदि को आए लूटते हैं। सतयुग में तुम कितने
साहूकार थे तो तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। एम ऑब्जेक्ट तो सामने खड़ा है।
माँ-बाप की तो सर्टेन है। गाया जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं। योग से आयु बढ़ती है।
अभी आत्मा को स्व का
दर्शन हुआ है कि हम 84 का चक्र लगाते हैं। इतना पार्ट बजाते हैं। सब आत्मायें
एक्टर्स नीचे आ जायेंगे तो बाप सबको ले जायेंगे। शिव की बरात कहते हैं ना। यह सब
तुम जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। जितना तुम याद में रहेंगे उतना खुशी में
रहेंगे। दिन-प्रतिदिन फील करते रहेंगे, क्योंकि सिखलाने वाला तो वह बाप है ना। यह
भी सिखाते रहते हैं। इनको (ब्रह्मा को) पूछने की दरकार नहीं रहती। पूछते तो तुम हो।
यह तो सुनते ही हैं। बाप रेसपान्ड देते हैं और यह भी सुनते हैं, इनकी एक्टिविटी
कितनी वन्डरफुल है। यह भी याद में रहते हैं। फिर बच्चों को वर्णन कर सुनाते हैं।
बाबा हमको खिलाते हैं। मैं उनको अपना रथ देता हूँ, सवारी करते हैं तो क्यों नहीं
खिलायेंगे। यह ह्यूमन अश्व है। शिवबाबा का रथ हूँ – यह ख्याल रहने से भी शिवबाबा की
याद रहेगी। याद से ही फायदा है। भण्डारे में भोजन बनाते हैं तो भी समझो हम शिवबाबा
के बच्चों के लिए बनाते हैं। खुद भी शिवबाबा के बच्चे हैं तो ऐसे याद करने से भी
फायदा ही है। सबसे जास्ती पद उनको मिलेगा जो याद में रह कर्मातीत अवस्था को पाते
हैं और सर्विस भी करते हैं। यह बाबा भी बहुत सर्विस करते हैं ना। इनकी बेहद की
सर्विस है तुम हद की सर्विस करते हो। सर्विस से ही इनको भी पद मिलता है। शिवबाबा
कहते – ऐसे-ऐसे करो, इनको भी राय देते हैं। तूफान तो बच्चों को आते हैं, सिवाए याद
के कर्मेन्द्रियाँ वश होना मुश्किल है। याद से ही बेड़ा पार होना है, यह शिव-बाबा
कहते हैं या ब्रह्मा बाबा कहते हैं, यह समझना भी मुश्किल हो जाता है। इसमें बड़ी
महीन बुद्धि चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस समय पूरा-पूरा मरजीवा बनना है। पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी है, अपना
चार्ट वा रजिस्टर रखना है। याद में रह अपनी कर्मातीत अवस्था बनानी है।
2) अन्तिम विनाश की सीन देखने के लिए हिम्मतवान बनना है। मैं आत्मा हूँ - इस
अभ्यास से शरीर का भान टूटता जाए।
वरदान:-
समय के महत्व को जान स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले
विश्व के आधारमूर्त भव
सारे कल्प की कमाई का, श्रेष्ठ कर्म रूपी बीज बोने का, 5
हजार वर्ष के संस्कारों का रिकार्ड भरने का, विश्व कल्याण वा विश्व परिवर्तन का यह
समय चल रहा है। यदि समय के ज्ञान वाले भी वर्तमान समय को गंवाते हैं या आने वाले
समय पर छोड़ देते हैं तो समय के आधार पर स्वयं का पुरूषार्थ हुआ। लेकिन विश्व की
आधारमूर्त आत्मायें किसी भी प्रकार के आधार पर नहीं चलती। वे एक अविनाशी सहारे के
आधार पर कलियुगी पतित दुनिया से किनारा कर स्वयं को सम्पन्न बनाने का पुरुषार्थ करती
हैं।
स्लोगन:-
स्वयं
को सम्पन्न बना लो तो विशाल कार्य में स्वतः सहयोगी बन जायेंगे।