25-06-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यह रूद्र ज्ञान यज्ञ स्वयं रूद्र भगवान ने
रचा है, इसमें तुम अपना सब कुछ स्वाहा करो क्योंकि अब घर चलना है”
प्रश्नः-
संगमयुग पर
कौन-सा वण्डरफुल खेल चलता है?
उत्तर:-
भगवान
के रचे हुए यज्ञ में ही असुरों के विघ्न पड़ते हैं। यह भी संगम पर ही वण्डरफुल खेल
चलता है। ऐसा यज्ञ फिर सारे कल्प में नहीं रचा जाता। यह है राजस्व अश्वमेध यज्ञ,
स्वराज्य पाने के लिए। इसमें ही विघ्न पड़ते हैं।
ओम् शान्ति।
तुम कहाँ बैठे हो?
इनको स्कूल अथवा युनिवर्सिटी भी कह सकते हो। विश्व विद्यालय है, जिसकी ईश्वरीय
ब्रान्चेज हैं। बाप ने बड़े ते बड़ी युनिवर्सिटी खोली है। शास्त्रों में रूद्र यज्ञ
नाम लिख दिया है, इस समय तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा ने यह पाठशाला अथवा युनिवर्सिटी
खोली है। ऊंच ते ऊंच बाप पढ़ाते हैं। यह तो बच्चों की बुद्धि में याद रहना चाहिए -
भगवान हमको पढ़ाते हैं। उनका यह यज्ञ रचा हुआ है, इसका नाम भी बाला है। राजस्व
अश्वमेध रूद्र ज्ञान यज्ञ, राजस्व अर्थात् स्वराज्य के लिए। अश्वमेध, यह जो कुछ भी
देखने में आता है, उन सबको स्वाहा कर रहे हैं, शरीर भी स्वाहा हो जाता है। आत्मा तो
स्वाहा हो नहीं सकती। सब शरीर स्वाहा हो जायेंगे। बाकी आत्मायें वापिस भागेंगी। यह
है संगमयुग। बहुत आत्मायें भागेंगी, बाकी शरीर खत्म हो जायेंगे। यह है सब ड्रामा,
तुम ड्रामा के वश चल रहे हो। बाप कहते हैं हमने राजस्व यज्ञ रचा है। यह भी ड्रामा
प्लैन अनुसार रचा गया है। ऐसे नहीं कहेंगे कि मैंने यज्ञ रचा है। ड्रामा प्लैन
अनुसार तुम बच्चों को पढ़ाने के लिए कल्प पहले मुआफिफक ज्ञान यज्ञ रचा गया है। मैंने
रचा है, यह भी अर्थ नहीं निकलता। ड्रामा प्लैन अनुसार रचा गया है। कल्प-कल्प रचा
जाता है। यह ड्रामा बना हुआ है ना। ड्रामा प्लैन अनुसार एक ही बार यज्ञ रचा जाता
है, यह कोई नई बात नहीं है। अभी बुद्धि में बैठा है-बरोबर 5 हज़ार वर्ष पहले भी
सतयुग था, अब चक्र फिर रिपीट हो रहा है। फिर से नई दुनिया स्थापन हो रही है। तुम नई
दुनिया में स्वराज्य पाने के लिए पढ़ रहे हो। पवित्र भी जरूर बनना है। बनते भी वही
हैं जो ड्रामा अनुसार कल्प पहले बने थे। अभी भी बनेंगे। साक्षी हो ड्रामा को देखना
होता है और फिर पुरूषार्थ भी करना होता है। बच्चों को मार्ग भी बताना है, मुख्य बात
है पवित्रता की। बाप को बुलाते ही हैं कि आओ पवित्र बनाकर हमको इस छी-छी दुनिया से
ले जाओ। बाप आये ही हैं घर ले जाने के लिए। बच्चों को प्वाइंट्स तो बहुत दी जाती
हैं। मुख्य बात फिर भी बाप कहते हैं मनमनाभव। पावन बनने के लिए बाप को याद करते
हैं, यह भूलना नहीं चाहिए। जितना याद करेंगे उतना फायदा होगा, चार्ट रखना चाहिए। नहीं
तो फिर पिछाड़ी में फेल हो जायेंगे। बच्चे समझते हैं, हम ही सतोप्रधान थे, नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार जो ऊंच बनते हैं, उनको मेहनत भी जास्ती करनी पड़ेगी। याद में रहना
पड़ेगा। यह तो समझते हो बाकी थोड़ा समय है, फिर सुख के दिन आने हैं। बरोबर हमारे
अथाह सुख के दिन आने हैं। बाप एक ही बार आते हैं, दु:खधाम खलास कर अपने सुखधाम ले
चलते हैं। तुम बच्चे जानते हो अभी हम ईश्वरीय परिवार में हैं, फिर दैवी परिवार में
जायेंगे। इस समय का ही गायन है - यह संगम ही पुरूषोत्तम ऊंच बनने का युग है। तुम
बच्चे जानते हो हमको बेहद का बाप पढ़ा रहे हैं। फिर आगे चल संन्यासी लोग भी मानेंगे।
वह भी समय आयेगा ना। अभी तुम्हारा प्रभाव इतना नहीं निकल सकता। अभी राजधानी स्थापन
हो रही है, टाइम पड़ा है। पिछाड़ी में यह संन्यासी आदि भी आकर समझेंगे। सृष्टि का
चक्र कैसे फिरता है, यह नॉलेज कोई में है नहीं। यह भी बच्चे जानते हैं पवित्रता पर
कितने विघ्न पड़ते हैं। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। द्रोपदी ने पुकारा है ना।
वास्तव में तुम सब द्रोपदियाँ, सीतायें, पार्वतियाँ हो। याद में रहने से अबलायें,
कुब्जायें भी बाप से वर्सा पा लेती हैं। याद में तो रह सकती हैं ना। भगवान ने आकर
यज्ञ रचा है, इसमें कितने विघ्न पड़ते हैं। अभी भी विघ्न पड़ते रहते हैं, कन्याओं
को जबरदस्ती शादी कराते हैं, नहीं तो मारकर निकाल देते हैं इसलिए पुकारती हैं हे
पतित-पावन आओ तो जरूर उनको रथ चाहिए, जिसमें आकर पावन बनाये। गंगा के पानी से पावन
नहीं बनेंगे। बाप ही आकर पावन बनाए पावन दुनिया का मालिक बनाते हैं।
तुम देखते हो इस पतित
दुनिया का विनाश सामने खड़ा है। क्यों न बाबा का बन जायें, स्वाहा हो जायें। पूछते
हैं स्वाहा कैसे हों? ट्रांसफर कैसे करें? बाबा कहते - बच्चे, तुम इस (साकार) बाबा
को देखते हो ना। यह खुद करके सिखा रहे हैं। जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे।
बाप ने इनसे कर्म कराया ना। सारा यज्ञ में स्वाहा कर दिया। स्वाहा होने में कोई
तकलीफ थोड़ेही है। यह न बहुत साहूकार, न गरीब था। साधारण था। यज्ञ रचा जाता है तो
उसमें खानपान की सब सामग्री चाहिए ना। यह है ईश्वरीय यज्ञ। ईश्वर ने आकर इस ज्ञान
यज्ञ की स्थापना की है। तुमको पढ़ाते हैं, इस यज्ञ की महिमा बहुत भारी है। ईश्वरीय
यज्ञ से ही तुम्हारा शरीर निर्वाह होता है। जो अपने को अर्पणमय समझते हैं, हम
ट्रस्टी हैं। यह सब कुछ ईश्वर का है, हम शिवबाबा के यज्ञ से भोजन खाते हैं - यह समझ
की बात है ना। यहाँ तो नहीं सबको आकर बैठना है। इनका सैम्पल तो देखा - कैसे सब कुछ
स्वाहा किया। बाबा कहते हैं जैसे कर्म यह करता है, इनको देख औरों को भी आया। बहुत
ही स्वाहा हुए। जो-जो हुए वह अपना वर्सा लेते हैं। बुद्धि से भी समझा जाता है -
आत्मा तो चली जायेगी, बाकी शरीर सब खत्म हो जायेंगे। यह बेहद का यज्ञ है, इनमें सब
स्वाहा होंगे। तुम बच्चों को समझाया जाता है कैसे बुद्धि से स्वाहा हो नष्टोमोहा बन
जाओ। यह भी जानते हो यह सारी सामग्री खाक हो जानी है। कितना बड़ा यज्ञ है, वहाँ फिर
कोई यज्ञ नहीं रचा जाता है। न कोई उपद्रव होते हैं। यह सब जो भक्ति मार्ग के अनेक
यज्ञ हैं वह सब खत्म हो जाते हैं। ज्ञान सागर एक ही भगवान है। वही मनुष्य सृष्टि का
बीजरूप, सत चैतन्य है। शरीर तो जड़ है, आत्मा ही चैतन्य है। वह ज्ञान सागर है, तुम
बच्चों को ज्ञान सागर बैठ पढ़ाते हैं। वह सिर्फ गाते रहते हैं और तुमको बाबा सारा
ज्ञान सुना रहे हैं। ज्ञान कोई बहुत तो है नहीं। वर्ल्ड का चक्र कैसे फिरता है, यह
सिर्फ समझाना है।
यहाँ बाप तुमको खुद
पढ़ा रहे हैं। कहते भी हैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। भागीरथ भी मशहूर है,
जरूर मनुष्य ही होगा जिसमें बाप आयेगा। उनका एक ही नाम चला आता है शिव और सबके नाम
बदलते हैं, इनका नाम नहीं बदलता। बाकी भक्ति में अनेक नाम रख दिये हैं। यहाँ तो है
ही शिवबाबा। शिव कल्याणकारी कहा जाता है। भगवान ही आकर नई दुनिया स्वर्ग स्थापन करते
हैं। तो कल्याणकारी ठहरा ना। तुम जानते हो भारत में स्वर्ग था। अभी नर्क है फिर
स्वर्ग जरूर होगा। इनको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग जबकि बाप खिवैया बन तुमको
इस पार से उस पार ले जाते हैं। यह है पुरानी दु:ख की दुनिया फिर जरूर नई दुनिया होगी,
ड्रामा अनुसार, जिसके लिए तुम अभी पुरूषार्थ करते हो। बाप की याद ही घड़ी-घड़ी भूल
जाती है, इसमें है मेहनत बाकी तुमसे जो विकर्म हुए हैं, उनकी सज़ा कर्मभोग के रूप
में भोगनी ही पड़ती है, कर्मभोग अन्त तक भोगना ही है, उसमें माफी नहीं मिल सकती है।
ऐसे नहीं, बाबा क्षमा करो। कुछ भी नहीं। ड्रामा अनुसार सब होता है। क्षमा आदि होती
ही नहीं। हिसाब-किताब चुक्तू करना ही है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है, इसके लिए
श्रीमत भी मिलती है, श्री श्री शिवबाबा की श्रीमत से तुम श्री बनते हो। ऊंच ते ऊंच
बाप तुमको ऊंच बनाते हैं। तुम अभी बन रहे हो, अभी तुमको स्मृति आई है - बाबा
कल्प-कल्प आकर हमको पढ़ाते हैं। आधाकल्प उनकी प्रालब्ध मिलती है। सृष्टि चक्र कैसे
फिरता है, उस नॉलेज की दरकार नहीं रहती। कल्प-कल्प एक ही बार आकर बतलाते हैं कि यह
सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
तुम्हारा काम है पढ़ना
और पवित्र बनना। योग में रहना है। बाप के बनकर और पवित्र नहीं बनेंगे तो सौ गुणा
दण्ड पड़ जायेगा। नाम भी बदनाम हो जाता है। गाते भी हैं सतगुरू का निंदक ठौर न पाये।
मनुष्यों को पता नहीं कि यह कौन है! सत बाप ही सतगुरू, सत टीचर होगा ना। तुमको
पढ़ाते वह हैं, सच्चा सतगुरू भी है। जैसे बाप ज्ञान का सागर है, तुम भी ज्ञान के
सागर हो ना। बाप ने तो सारा ज्ञान दे दिया है, जिसने जितना कल्प पहले धारण किया है,
उतना ही करेंगे। पुरूषार्थ करना है, कर्म बिगर तो कोई रह न सके। कितने भी हठयोग आदि
करते हैं, वह भी कर्म है ना। यह भी एक धन्धा है, आजीविका के लिए। नाम होता है, बहुत
पैसा मिलता है, पानी पर, आग पर चले जाते हैं। सिर्फ उड़ नहीं सकते हैं। उसमें तो
पेट्रोल आदि चाहिए ना। लेकिन इनसे फायदा तो कुछ नहीं। पावन तो बनते नहीं। साइंस वालों
की भी रेस है। उनकी है साइंस की रेस और तुम्हारी है साइलेन्स की। सब शान्ति ही
मांगते हैं। बाप कहते हैं शान्ति तो तुम्हारा स्वधर्म है, अपने को आत्मा समझो, अपने
घर चलना है शान्तिधाम। यह है दु:खधाम। हम शान्तिधाम से फिर सुखधाम में आयेंगे। यह
दु:खधाम खलास होना है। यह अच्छी रीति धारण कर फिर औरों को धारण कराना है। बाकी थोड़े
रोज़ हैं, वह पढ़ाई पढ़कर फिर शरीर निर्वाह अर्थ माथा मारना पड़ता है। तकदीरवान
बच्चे फौरन निर्णय ले लेते हैं कि हमें कौन-सी पढ़ाई पढ़नी है। उस पढ़ाई से क्या
मिलता है और इस पढ़ाई से क्या मिलता है। इस पढ़ाई से तो 21 जन्मों की प्रालब्ध बनती
है। तो ख्याल करना चाहिए कि हमको कौन-सी पढ़ाई पढ़नी है! जिसको बेहद के बाप से वर्सा
पाना है, वह बेहद की पढ़ाई में लग जाते हैं। परन्तु ड्रामा प्लैन अनुसार कोई की
तकदीर में नहीं है तो फिर उस पढ़ाई में चटक पड़ते हैं। यह पढ़ाई नहीं पढ़ते। कहते
फुर्सत नहीं मिलती। बाबा पूछते हैं, कौन-सी नॉलेज अच्छी? उनसे क्या मिलेगा और इनसे
क्या मिलेगा? कहते हैं बाबा जिस्मानी पढ़ाई से क्या मिलेगा, थोड़ा करके कमायेंगे।
यहाँ तो भगवान पढ़ाते हैं। हमको तो पढ़कर राजाई पद पाना है तो ज्यादा ध्यान किस बात
पर देना चाहिए। कोई तो फिर कहते बाबा वह कोर्स पूरा कर फिर आयेंगे। बाबा समझ जाते
हैं इनकी तकदीर में नहीं है। क्या होना है सो आगे चल देखना है। समझते हैं शरीर पर
भरोसा नहीं है, तो फिर सच्ची कमाई में लग जाना चाहिए। जिसकी तकदीर में है वही अपनी
तकदीर जगायेंगे। पूरा जोर लगाना है, हम तो बाप से वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। बेहद का
बाबा हमको राजाई देते हैं तो क्यों न यह एक अन्तिम जन्म हम पवित्र बनेंगे। इतने ढेर
बच्चे पवित्र रहते हैं। झूठ थोड़ेही बोलते हैं। सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। पढ़ रहे
हैं, फिर भी विश्वास नहीं करते। बेहद का बाप आते ही तब हैं जब पुरानी दुनिया को नया
बनाना होता है। पुरानी दुनिया का विनाश तो सामने खड़ा है। यह बहुत क्लीयर है। समय
भी बरोबर वही है, अनेक धर्म भी हैं, सतयुग में होता ही एक धर्म है। यह भी तुम्हारी
बुद्धि में है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो निश्चय अजुन कर रहे हैं। अरे निश्चय करने
में टाइम लगता है क्या। शरीर पर भी भरोसा थोड़ेही है, ज़रा भी चांस गँवाना नहीं
चाहिए। किसकी तकदीर में नहीं है तो ज़रा भी बुद्धि में आता नहीं है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्ची कमाई कर 21
जन्मों के लिए अपनी तकदीर बनानी है। शरीर पर कोई भरोसा नहीं है इसलिए ज़रा भी चांस
नहीं गँवाना है।
2) नष्टोमोहा बनकर
अपना सब कुछ रूद्र यज्ञ में स्वाहा करना है। अपने को अर्पण कर ट्रस्टी हो सम्भालना
है। साकार बाप को फालो करना है।
वरदान:-
श्रेष्ठ बेला के आधार पर सर्व प्राप्तियों के अधिकार
का अनुभव करने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
जो श्रेष्ठ वेला में जन्म लेने वाले भाग्यशाली बच्चे हैं,
वह कल्प पहले की टचिंग के आधार पर जन्मते ही अपने-पन का अनुभव करते हैं। वह जन्मते
ही सर्व प्रापर्टी के अधिकारी होते हैं। जैसे बीज में सारे वृक्ष का सार समाया हुआ
है ऐसे नम्बरवन वेला वाली आत्मायें सर्व स्वरूप की प्राप्ति के खजाने के आते ही
अनुभवी बन जाते हैं। वे कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि सुख का अनुभव होता, शान्ति का नहीं,
शान्ति का होता सुख का व शक्ति का नहीं। सर्व अनुभवों से सम्पन्न होते हैं।
स्लोगन:-
अपने
प्रसन्नता की छाया से शीतलता का अनुभव कराने के लिए निर्मल और निर्मान बनो।