16-09-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
24.09.92 "बापदादा" मधुबन
सर्व शक्तियों को समय पर
कार्य में लगाकर मास्टर सर्वशक्तिवान बनो
शक्तियों का पूजन
देखकर क्या स्मृति में रहता है? अपने को चेक करते हो- जैसे शक्तियों को अष्ट
भुजाधारी दिखाते हैं तो हम भी अष्ट शक्तिवान, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ। ये
अष्ट तो निशानी मात्र हैं लेकिन हैं तो सर्व शक्तियाँ। शक्तियों का नाम सुनते,
शक्तियों का पूजन देखते सर्व शक्तियों की स्मृति आती है या सिर्फ देखकर के खुश हो?
जड़ चित्रों में कितनी कमाल भर देते हैं! तो चैतन्य का ही जड़ बनता है ना। तो चैतन्य
में हम कितने कमाल के बने हैं अर्थात् श्रेष्ठ बने हैं! तो यह खुशी होती है कि यह
हमारा यादगार है! या देवियों का है? देवियों के साथ गणेश की भी पूजा होती है ना। तो
प्रैक्टिकल में ऐसे बने हैं तब तो यादगार बना है। सदैव अपने को चेक करो कि सर्व
शक्तियाँ अनुभव होती हैं? बाप ने तो दी लेकिन मैंने कितनी ली, धारण की और धारण करने
के बाद समय पर वो शक्ति काम में आती है? अगर समय पर कोई चीज काम में नहीं आये तो वह
होना, न होना, एक ही बात है। कोई भी चीज़ रखते ही हैं समय पर काम में आने के लिये।
अगर समय पर काम में नहीं आई तो क्या कहेंगे? है वा नहीं है, एक ही बात हुई ना। तो
बाप ने दी लेकिन हमने कितनी ली-यह चेक करो। जब प्रैक्टिकल में काम में आये तब कहेंगे
मास्टर सर्वशक्तिवान। शक्ति काम में नहीं आवे और कहें मास्टर सर्वशक्तिवान, यह शोभता
नहीं है। एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी। कोई भी समय उसी शक्ति का
पेपर आ जाये तो पास होंगे या फेल होंगे? अगर नहीं होगी तो फेल होंगे, होगी तो पास
होंगे। माया भी जानती है-इसके पास इस शक्ति की कमी है। तो वही पेपर आता है। इसलिये
एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिये। समझा? ऐसे नहीं-शक्तियाँ तो आ गई, एक कम हुई तो
क्या हर्जा है। एक में ही हर्जा है। एक ही फेल कर देगी। सूर्यवंशी में आना है तो
फुल पास होना पड़ेगा ना। फुल पास होने का अर्थ ही है मास्टर सर्वशक्तिवान बनना।
माताओं में सहन शक्ति
है? या थोड़ा-थोड़ा क्रोध आ जाता है? पाण्डवों को क्रोध या रोब आता है? सहन शक्ति की
कमी है तब ही आयेगा ना। सर्व शक्तियों में सहन शक्ति भी तो शक्ति है ना। एक भी शक्ति
कम हुई तो फुल पास होंगे या अधूरे पास होंगे? इसलिये सर्व शक्तियों को चेक करो।
परसेन्टेज भी कम न हो। ऐसे नहीं-थोड़ा क्रोध आया, ज्यादा नहीं आया। यदि थोड़ा भी आ गया
तो उसको फेल कहेंगे और आदत पड़ जायेगी थोड़ा-थोड़ा फेल होने की तो फुल पास कैसे होंगे?
इसलिये एक भी शक्ति की कमी न हो। ऐसे अलबेले नहीं रहना कि एक थोड़ी कम है, बढ़ जायेगी।
बहुत समय की कमी समय पर धोखा दे देगी। इसलिए मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्व
शक्तियों से सम्पन्न बनो। सर्व शक्तियों को कार्य में लगाते चलो और उड़ते चलो। समझा?
2 - तेरे को मेरे में
बदलना ही ब्राह्मण जीवन है -
सभी अपने को “एक बल
एक भरोसा” ऐसे अनुभव करते हो? “एक बाबा दूसरा न कोई” यह पक्का है ना। या बाबा भी है
तो बच्चे भी हैं, सम्बन्धी भी हैं? जब बच्चे हैं, पति है, सासू-ससुर हैं-इतने सारे
हैं तो एक कैसे हुआ? सामने हैं, देख रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, फिर एक कैसे हुआ? ये
मेरे नहीं हैं लेकिन बाप ने सेवा के लिये दिये हैं-ऐसी दृष्टि-वृत्ति रखने से एक ही
याद रहेगा। चाहे कितने भी हों, कौन भी हों, लेकिन सभी बाप के बच्चे हैं और हमको सेवा
के लिये ये आत्मायें मिली हैं। सासू नहीं है लेकिन सेवा के लिये आत्मा है-ऐसी वृत्ति
रहती है? बच्ची को बच्ची नहीं समझते, मेरी कन्या है, मेरी कन्या का कल्याण करो-ऐसे
नहीं कहते हो। बाप ने सेवा अर्थ निमित्त बनाया है। घर में नहीं रहे हुए हो लेकिन
सेवा-स्थान पर रहे हुए हो। मेरा सब तेरा हो गया। मेरा कुछ नहीं, शरीर भी मेरा नहीं।
जब मेरा है ही नहीं तो बॉडी-कॉन्सेस कैसे हो सकता है। मेरे में ही आकर्षण होती है।
जब मेरा समाप्त हो जाता है तो मन और बुद्धि को अपनी तरफ खींच नहीं सकते हैं।
ब्राह्मण जीवन अर्थात् मेरे को तेरे में बदलना। तो बार-बार यह चेक करो कि तेरा, मेरा
तो नहीं बन गया। अगर मेरापन नहीं होगा, तेरा ही है तो डबल लाइट होंगे। अगर थोड़ा भी
बोझ अनुभव करते हो तो समझो-मेरापन मिक्स हो गया है। भक्ति में कहते हैं कि सब-कुछ
तेरा। ब्राह्मण जीवन में कहना नहीं है, करना है। यह करना सहज है ना। बोझ देना सहज
होता है या लेना सहज होता है? तेरा कहना माना बोझ देना और मेरा कहना माना बोझ लेना।
तो अभी एक बल एक भरोसा। बस, एक ही एक। एक लिखना सहज है ना। तो यह तेरा-तेरा कहने
वाला ग्रुप है। अच्छा!
3 - पूज्य वह जिसकी
आंख बाप के सिवाए कहाँ भी न डूबे -
सदा यह नशा रहता है
कि हम कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मायें बनते हैं? कितनी बार आपकी पूजा हुई
है? पूज्य आत्मा हूँ-यह पूज्यपन की अनुभूति क्या होती है? निशानी क्या है? नशा है,
खुशी है-वह तो ठीक है। लेकिन कौनसा संस्कार ऐसा है जिससे समझते हो-मैं ही पूज्य था?
जो पूज्य आत्मायें हैं उनकी विशेषता क्या है? किस विशेषता के आधार पर कोई पूज्य बनता
है? लौकिक में भी देखो-किसको कहते हैं कि यह तो पूज्य है। पूज्य आत्मा की निशानी
है-वह कभी भी किसी भी वस्तु के पीछे, व्यक्ति के पीछे झुकेगा नहीं। सब उसके आगे
झुकेंगे लेकिन वह झुकेगा नहीं। नम्रता से झुकना-वह अलग चीज है। लेकिन झुकना अर्थात्
प्रभावित होना। पूज्य के आगे सब झुकते हैं, पूज्य नहीं झुकता है। तो किसी भी प्रकार
के व्यक्ति या वैभव की आकर्षण झुका लेवे-यह पूज्य की निशानी नहीं है। तो यह चेक करो
कि कभी भी, किसी भी आकर्षण में मन और बुद्धि झुकती तो नहीं है, प्रभावित तो नहीं
होते हो? सिवाए एक बाप के और कहाँ भी मन और बुद्धि का झुकाव नहीं। पूज्य अर्थात्
झुकाने वाला, न कि झुकने वाला।
जो कल्प-कल्प का
पूज्य होगा उसकी निशानी क्या होगी? सिवाए बाप के, और कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी। यह
बहुत अच्छा है, यह बहुत अच्छी चीज है-नहीं। पूज्य आत्माओं के आगे स्वयं सब व्यक्ति
और वैभव झुकते हैं। जो इष्ट देव होते हैं, भक्त लोग स्वयं बढ़िया ते बढ़िया अच्छी चीज
इष्ट के आगे भेंट चढ़ायेंगे। इष्ट उन चीजों पर प्रभावित नहीं होगा लेकिन वो चीजें
स्वयं उसके आगे झुकेंगी। तो पूज्य की निशानी है-एक बाप के सिवाए कहाँ भी मन-बुद्धि
का झुकाव नहीं। रिगॉर्ड और चीज है, प्यार और चीज है, नम्रता और चीज है लेकिन
प्रभावित होना और चीज है। तो पूज्य आत्मा थे और बार-बार बनेंगे। यह निशानी अपने
अन्दर चेक करो। कभी भी किसी भी संस्कार के वश आत्मा वशीभूत हो जाती है तो यह भी
झुकना हुआ। मानो कोई ब्राह्मण आत्मा, पूज्य आत्मा कहे कि आज क्रोध के वश हो गई, लोभ
के वश हो गई, अभिमान के वश हो गई-तो यह झुकना हुआ या झुकाना हुआ? तो पूज्य कभी झुकता
नहीं। पूज्य के आगे सब आकर्षित होकर स्वयं आते हैं, पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं
होता। तो यह निशानी देखो। अगर कभी-कभी झुकाव हो जाता है तो पूजा भी कभी-कभी होगी,
सदा नहीं होगी। पूज्य में भी नम्बर होते हैं। वैरा-यटी होती है ना। कोई पूज्य सदा
पूजे जाते हैं और कोई-कोई की कभी पूजा होती है, कोई की विधिपूर्वक होती है और कोई
की काम-चलाऊ पूजा होती है। मन्दिरों में भी फर्क होता है ना। तो यहाँ भी ऐसे है। जो
विधिपूर्वक श्रीमत को अपनाते नहीं, काम-चलाऊ, चलो अमृतवेले उठना है, बैठना है, कोई
देखे नहीं, कोई कहे नहीं कि यह उठा नहीं, फिर चाहे बाप से मिलन मनाये या निद्रा से
मिलन मनाये। यह काम-चलाऊ हो गया ना। अमृतवेले उठा, बैठा लेकिन विधिपूर्वक नहीं। तो
मूर्ति को भी बिठा देते हैं लेकिन पूजा विधिपूर्वक नहीं होती है। लगाव तब होता है
जब झुकाव होता है। बिना लगाव के झुकाव नहीं होता। आज के भक्तों का भी चाहे अल्पकाल
की प्राप्ति की तरफ लगाव हो, तभी झुकाव होता है। आजकल पूज्य की तरफ लगाव नहीं है,
अल्पकाल की प्राप्ति के तरफ लगाव है। लेकिन प्राप्ति कराने वाली पूज्य आत्मायें
हैं, इसलिये झुकते उनकी तरफ ही हैं। तो समझा, पूज्य की निशानी क्या है? कल्प-कल्प
की श्रेष्ठ पूज्य आत्मायें सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगी। जो सम्पन्न होता है
उसकी आंख किसमें भी नहीं जाती। पूज्य आत्मा सम्पन्न होने के कारण सदा ही अपने रूहानी
नशे में रहेगी। उनके मन-बुद्धि का झुकाव कहाँ भी नहीं होगा- न देह के सम्बन्ध में,
न देह के पदार्थ में। सबसे न्यारा और सबसे प्यारा। ब्राह्मण जीवन का मजा जीवन्मुक्त
स्थिति में है। न्यारा अर्थात् मुक्त। संस्कार के ऊपर भी झुकाव नहीं। जब कहते हो
क्या करूँ, कैसे करूँ-तो उस समय जीवन्मुक्त हुए या जीवन-बन्ध?करना नहीं चाहते थे
लेकिन हो गया-यह है जीवन-बन्ध बनना। इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया, शिक्षा देनी
थी लेकिन क्रोध आ गया-यह है जीवन-बन्ध स्थिति। ब्राह्मण अर्थात् जीवन्मुक्त। कभी भी
किसी बंधन में बंध नहीं सकते। अच्छा!
4 - संगठन में रहते
भी न्यारा और प्यारा रहना ही फॉलो फादर करना है -
यह वैरायटी ग्रुप है।
सबसे अच्छे ते अच्छा ग्रुप किसको कहा जायेगा, उसकी विशेषता क्या होगी? सबसे अच्छा
ग्रुप वह है जो ग्रुप में रहते हुए भी निर्विघ्न रहे, सन्तुष्ट रहे। कोई अकेला
निर्विघ्न रहता है, यह कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन बड़े संगठन में भी हो और निर्विघ्न
भी हो। तो आप सभी संगठन में रहते निर्विघ्न रहते हो? कितना भी हंगामा हो लेकिन स्वयं
अचल हो-ऐसे ग्रुप के हो? जैसे बाप अकेला तो नहीं है ना, परिवार वाला है। सबसे बड़े
ते बड़ा परिवार बाप का है और जितना बड़ा परिवार उतना ही न्यारा और सर्व का प्यारा है।
जितनी सेवा उतना न्यारा। तो फॉलो फादर करने वाले हो ना। इसीलिये आप सबका यादगार यहाँ
अचलघर बना हुआ है। कितना भी कोई हिलावे, हिलेंगे नहीं। एक तरफ एक डिस्टर्ब करे,
दूसरी तरफ दूसरा डिस्टर्ब करे-तो क्या करेंगे? कोई सैलवेशन नहीं मिले, फिर हलचल होगी?
कोई इन्सल्ट कर दे, फिर हलचल होगी? अचल अर्थात् चारों ओर कितना भी कोई हिलाने की
कोशिश करे लेकिन संकल्प में भी अचल।
देखो, अच्छे हो तब तो
बापदादा ने पसन्द करके अपना बनाया है। अच्छे हैं और सदा अच्छे रहेंगे। अच्छा-अच्छा
समझने से अच्छे हो ही जाते हैं। बापदादा हरेक बच्चे में विशेषता ही देखते हैं।
विशेषता देखते, वर्णन करते-करते विशेष बन ही जायेंगे। कल थे, आज हैं और कल फिर
बनेंगे। ‘आज’ और ‘कल’ में सारा ड्रामा आ गया। जितना-जितना सम्पूर्ण बनते जायेंगे तो
यह स्मृति स्पष्ट होती जायेगी। जितनी स्मृति स्पष्ट होती है उतना नेचुरल नशा रहता
है। अच्छा! चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को डबल नशे में रहने की मुबारक! एक याद
का नशा, एक सेवा का नशा-डबल नशा है ना। अच्छा है, हिम्मत बच्चों की, मदद बाप की।
ऑस्ट्रेलिया के बच्चे भी जो चाहे वो कर सकते हैं। सिर्फ कभी गुप्त हो जाते हैं, कभी
प्रत्यक्ष हो जाते हैं। लेकिन हिम्मत और मदद के भी पात्र हैं। अच्छा, सभी को याद।
वरदान:-
स्व-स्थिति
द्वारा हर परिस्थिति को पार करने वाले मास्टर त्रिकालदर्शी भव
जो बच्चे त्रिकालदर्शी
स्थिति में स्थित रहते हैं वह अपनी स्व स्थिति द्वारा हर परिस्थिति को ऐसे पार कर
लेते हैं जैसेकि कुछ था ही नहीं। नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी आत्मायें समय प्रमाण हर
शक्ति को, हर प्वाइंट को, हर गुण को ऑर्डर से चलाते हैं। ऐसे नहीं कि समय आने पर
आर्डर करें सहन शक्ति को और कार्य पूरा हो जाए फिर सहन शक्ति आये। जिस समय जो शक्ति,
जिस विधि से चाहिए - उस समय अपना कार्य करे तब कहेंगे खजाने के मालिक, मास्टर
त्रिकालदर्शी।
स्लोगन:-
जो सदा खुश
रहते हैं और सबको खुशी बांटते हैं वही सच्चे सेवाधारी हैं।