18-01-10  प्रात: मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

 

"पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर प्रातः क्लास में सुनाने के लिए बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य"

 

"प्रीत बुद्धि बनो तो गुप्त खुशी से भरपूर रहेंगे"

 

गीत:- तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है....

 

 ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। अभी तो थोड़े बच्चे हैं फिर अनेकानेक बच्चे हो जायेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा को जानना तो सभी को है ना। सभी धर्म वाले मानेंगे। बाबा ने समझाया है वह लौकिक बाप भी हद के ब्रह्मा हैं। उन्हों का सरनेम से सिजरा बनता है। यह फिर है बेहद का। नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा। वह हद के ब्रह्मा प्रजा रचते हैं, लिमिटेड। कोई दो चार रचेंगे, कोई नहीं भी रचते। इनके लिए तो यह कह नहीं सकेंगे कि सन्तान नहीं हैं। इनकी सन्तान तो सारी दुनिया है। बेहद के बापदादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों में बहुत रूहानी लव है। बच्चों को कितना लव से पढ़ाते हैं और क्या से क्या बनाते हैं! तो बच्चों को कितना खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए। खुशी का पारा तब चढ़ेगा जब बाप को निरन्तर याद करते रहेंगे। बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से बच्चों को पावन बनाने की सेवा करते हैं। 5 तत्वों सहित सबको पावन बनाते हैं। कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं। कितनी बड़ी बेहद की सेवा है। बाप बच्चों को बहुत प्यार से शिक्षा भी देते रहते हैं क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है। बाप की श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनते हो। यह भी बच्चों को चार्ट में देखना चाहिए कि हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मनमत पर? श्रीमत से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे। जितनी बाप से प्रीत बुद्धि होगी उतनी गुप्त खुशी से भरपूर रहेंगे। अपनी दिल से पूछना है हमको इतनी कापारी खुशी है? अव्यभिचारी याद है? कोई तमन्ना तो नहीं है? एक बाप की याद है? स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकलें। एक शिवबाबा दूसरा न कोई। यही अन्तिम मंत्र है।

 

बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं मीठे बच्चे, जब बापदादा को सामने देखते हो तो बुद्धि में आता है कि हमारा बाबा, बाप भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है। बाप हमको इस पुरानी दुनिया से ले जाते हैं नई दुनिया में। यह पुरानी दुनिया तो अब खलास हुई कि हुई। यह तो अब कोई काम की नहीं है। बाप कल्प-कल्प नई दुनिया बनाते हैं। हम कल्प-कल्प नर से नारायण बनते हैं। बच्चों को यह सिमरण कर कितना हुल्लास में रहना चाहिए। बच्चे, टाइम बहुत थोड़ा है। आज क्या है कल क्या होगा। आज और कल का खेल है इसलिए बच्चों को ग़फलत नहीं करनी है। तुम बच्चों की चलन बड़ी रॉयल होनी चाहिए। अपने आपको देखना है देवताओं मिसल हमारी चलन है? देवताई दिमाग रहता है? जो लक्ष्य है वह बन भी रहे हैं या सिर्फ कथनी ही है? जो नॉलेज मिली है उसमें मस्त रहना चाहिए। जितना अन्तर्मुख हो इन बातों पर विचार करते रहेंगे तो बहुत खुशी रहेगी। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का बाकी थोड़ा समय है। जब उस दुनिया को छोड़ दिया फिर पिछाड़ी में क्यों देखें! बुद्धियोग उस तरफ क्यों जाता? यह भी बुद्धि से काम लेना है। जब पार निकल गये फिर बुद्धि क्यों जाती? बीती हुई बातों का चिन्तन मत करो। इस पुरानी दुनिया की कोई भी आश न रहे। अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है – हम तो चले सुखधाम। कहाँ भी ठहरना नहीं है। देखना नहीं है। आगे बढ़ते जाना है। एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी। समय बहुत नाज़ुक होता जाता है, इस पुरानी दुनिया की हालतें बिगड़ती ही जाती हैं। तुम्हारा इससे कोई कनेक्शन नहीं। तुम्हारा कनेक्शन है नई दुनिया से, जो अब स्थापन हो रही है। बाप ने समझाया है, अभी 84 का चक्र पूरा हुआ। अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है। इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है। अभी तुम जानते हो यह प्रकृति अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी – सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी। फ्लड्स होंगे। आग लगेगी। मनुष्य भूखों मरेंगे। अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे। यह सब हालतें सारी दुनिया के लिए आनी हैं। अनेक प्रकार से मौत होगी। गैस के ऐसे-ऐसे बाम्ब्स छोड़ेंगे – जिसकी बाँस (बदबू) से ही मनुष्य मर जाएं। यह सब ड्रामा प्लैन बना हुआ है। इसमें दोष किसी का भी नहीं है। विनाश तो होने का ही है इसलिए तुम्हें इस पुरानी दुनिया से बुद्धि का योग हटा देना है। अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू… जिसने हमको यह रास्ता बताया है। हमारा सच्चा-सच्चा गुरू बाबा एक ही है। जिसका नाम भक्ति में भी चला आता है। जिसकी ही वाह-वाह गाई जाती है। तुम बच्चे कहेंगे – वाह सतगुरू वाह! वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह! बाप के ज्ञान से हमको सद्गति मिल रही है।

 

तुम बच्चे निमित्त बने हो विश्व में शान्ति स्थापन करने के। तो सबको यह खुशखबरी सुनाओ कि अब नया भारत, नई दुनिया जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था वह फिर से स्थापन हो रहा है। यह दु:खधाम बदल सुखधाम बनना है। अन्दर में खुशी रहनी चाहिए कि हम सुखधाम के मालिक बन रहे हैं। वहाँ ऐसे कोई नहीं पूछेगा कि तुम राज़ी-खुशी हो? तबियत ठीक है? यह इस दुनिया में पूछा जाता है क्योंकि यह है ही दु:ख की दुनिया। तुम बच्चों से भी यह कोई पूछ नहीं सकता। तुम कहेंगे हम ईश्वर के बच्चे, तुम हमसे क्या खुश खैराफत पूछते हो! हम तो सदैव राज़ी खुशी हैं। स्वर्ग से भी यहाँ जास्ती खुशी है क्योंकि स्वर्ग स्थापन करने वाला बाप मिला तो सब कुछ मिला। परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले बाप की वह मिल गया, बाकी किसकी परवाह! यह सदैव नशा रहना चाहिए। बहुत रॉयल, मीठा बनना है। अपनी तकदीर को ऊंच बनाने का अभी ही समय है। पदमापदमपति बनने का मुख्य साधन है – कदम-कदम पर खबरदारी से चलना। अन्तर्मुखी बनना। यह सदैव ध्यान रहे – “जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे।” देह अहंकार आदि विकारों का बीज तो आधाकल्प से बोया हुआ है। सारे दुनिया में यह बीज है। अब उसको मर्ज करना है। देह-अभिमान का बीज नहीं बोना है। अभी देही-अभिमानी का बीज बोना है। तुम्हारी अब है वानप्रस्थ अवस्था। मोस्ट बिलवेड बाप मिला है उनको ही याद करना है। बाप के बदले देह को वा देहधारियों को याद करना – यह भी भूल है। तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की, शीतल बनने की बहुत मेहनत करनी है।

 

मीठे बच्चे, इस अपनी लाइफ से तुम्हें कभी भी तंग नहीं होना चाहिए। यह जीवन अमूल्य गाई हुई है, इनकी सम्भाल भी करनी है। साथ-साथ कमाई भी करनी है। यहाँ जितने दिन रहेंगे, बाप को याद कर अथाह कमाई जमा करते रहेंगे। हिसाब-किताब चुक्तू होता रहेगा इसलिए कभी भी तंग नहीं होना है। बच्चे कहते हैं बाबा। सतयुग कब आयेगा? बाबा कहते बच्चे पहले तुम कर्मातीत अवस्था तो बनाओ। जितना समय मिले पुरुषार्थ करो कर्मातीत बनने का। बच्चों में नष्टोमोहा बनने की भी बड़ी हिम्मत चाहिए। बेहद के बाप से पूरा वर्सा लेना है तो नष्टोमोहा बनना पड़े। अपनी अवस्था को बहुत ऊंच बनाना है। बाप के बने हो तो बाप की ही अलौकिक सेवा में लग जाना है। स्वभाव बहुत मीठा चाहिए। मनुष्य को स्वभाव ही बहुत तंग करता है। ज्ञान का जो तीसरा नेत्र मिला है, उससे अपनी जांच करते रहो। जो भी डिफेक्ट हो उनको निकाल प्युअर डाइमन्ड बनना है। थोड़ा भी डिफेक्ट होगा तो वैल्यु कम हो जायेगी इसलिए मेहनत कर अपने को वैल्युबुल हीरा बनाना है।

 

तुम बच्चों से बाप अब नई दुनिया के सम्बन्ध का पुरुषार्थ कराते हैं। मीठे बच्चे, अब बेहद के बाप और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो। एक ही बेहद का बाप है जो बन्धन से छुड़ाकर तुम्हें अलौकिक सम्बन्ध में ले जाते हैं। सदैव यह स्मृति रहे कि हम ईश्वरीय सम्बन्ध के हैं। यह ईश्वरीय सम्बन्ध ही सदा सुखदाई है। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे, अति स्नेही बच्चों को मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

अव्यक्त महावाक्य - "परोपकारी ग्रूप की विशेषताएं"

 

बापदादा को, अन्त सो आदि करने वाले ऐसे आलराउन्ड पार्टधारी, परोपकारी ग्रुप चाहिए। जैसे हर विशेष कार्य के अर्थ ग्रुप बनाते हैं ना। तो इस समय ऐसा परोपकारी ग्रुप चाहिए जो देने वाले दाता हो। जैसे राजा दाता होता है, आजकल के राजे लोग नहीं। सम्पन्न राजायें सदा प्रजा को देने वाले होते हैं - अगर प्रजा से लेने वाले हुए तो प्रजा ही राजा हो गई। इसलिये सम्पन्न राजायें कब लेते नहीं - देने वाले होते हैं। सम्पन्न राजाओं का हाथ कभी भी लेने वाला हाथ नहीं होगा, देने वाला होगा। स्वर्ग के विश्व महाराजा, प्रजा से लेंगे क्या? प्रजा भी सम्पन्न तो विश्व महाराजा क्या होगा! तो जैसे भविष्य दाता बनने का पार्ट बजाना है, अभी से ही वही दातापन के संस्कार भरने हैं। किसी से कोई सैलवेशन लेकर के फिर सैलवेशन देवें ऐसा संकल्प में भी न हो। इसको कहा जाता है बेगर टू प्रिंस। स्वयं लेने की इच्छा वाले नहीं। इस अल्पकाल की इच्छा वाले से बेगर। अल्पकाल के साधनों को स्वीकार करने में बेगर - ऐसा बेगर ही सम्पन्नमूर्त्त होंगे। एक तरफ बेगर दूसरे तरफ सम्पन्न। अभी अभी बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाने वाली आत्माओं को कहा जाता है सदा त्यागी और सदा श्रेष्ठ भाग्यशाली। त्याग से सदाकाल का भाग्य स्वत: ही बन जाता है। त्याग किया और तकदीर की लकीर हुई। तो ऐसा परोपकारी ग्रुप जो स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम अविद्या हो - अखण्ड दानी हो। जैसे बाप को देखा तो स्वयं का समय भी सेवा में दिया। स्वयं निर्माण और बच्चों को मान दिया। पहले बच्चे - नाम बच्चे का काम अपना - काम के नाम की प्राप्ति का त्याग। नाम में भी परोकारी बने। अपना त्याग कर दूसरे का नाम किया। स्वयं को सदा सेवाधारी रखा यह है परोपकारी - बच्चों को मालिक रखा और स्वयं को सेवाधारी रखा। तो मालिक-पन का मान भी दे दिया, शान भी दे दिया, नाम भी दे दिया। कभी अपना नाम नहीं किया - मेरे बच्चे। तो जैसे बाप ने नाम, मान, शान सबका त्याग किया, परोपकार किया, स्वयं का सुख बच्चों के सुख में समझा - बच्चों की विस्मृति कारण दु:ख का अनुभव सो अपना - दु:ख समझा। बच्चों की गलती भी अपनी गलती समझ बच्चों को सदा राइटियस बनाया। इसको कहा जाता है परोपकारी। आजकल ऐसे ग्रुप की आवश्यकता है। जो दूसरे की कमज़ोरी समाप्त कर शक्ति देते जाएं। ऐसे सब बन जायें तो क्या हो जावेगा? आप लोगों का समय बच जावेगा फिर केस और किस्से खत्म हो जायेंगे और सदैव रूहानी स्नेह मिलन होगा। विश्व कल्याण के कार्य में तीव्रगति आ जावेगी। अभी तो कितने प्लैन्स बनाने पड़ते हैं,कई प्लैन्स अर्थात् बारूद बिना कार्य किये भी खत्म हो जाते हैं। जैसे बारूद कब-कब जलता ही नहीं है वहाँ ही खत्म हो जाता है। लेकिन विश्व कल्याण का तीव्रगति में संकल्प किया कि इस समय यह बात होनी चाहिए और चारों तरफ निमित्त मात्र किया और आवाज़ बुलन्द हुआ। जैसे साकार बाप को देखा, नॉलेज की अथॉरिटी के साथ-साथ नॉलेज द्वारा अनुभूति मूर्त्त की भी अथॉरिटी थे। जिस अथॉरिटी के कारण हर बोल में नॉलेज के साथसाथ अनुभव भी था - तो डबल अथॉरिटी थी - ऐसे ही हर बच्चा डबल अथॉरिटी से बोल बोले तो अनुभव का तीर, नॉलेज की अथॉरिटी का तीर सेकेण्ड में प्रभाव डाले। स्वरूप और बोल दोनों अथॉरिटी के हों तब सफलता सहज हो जावेगी - नहीं तो यही कहते नॉलेज तो बड़ी अच्छी है, ऊँची हैं - लेकिन धारणा होना मुश्किल है, तो धारणा मूर्त्त, धारणा स्वरूप प्रैक्टिकल में दिखाई दे। प्रत्यक्ष प्रमाण को ग्रहण करना सहज हो जाता है तो ऐसा ग्रुप चाहिये जो डबल अथॉरिटी हो - जिसको कहते मस्त फकीर। कोई भी इच्छा न हो। अच्छा। ओम् शान्ति।

 

वरदान:- आनेस्ट बन स्वयं को बाप के आगे स्पष्ट करने वाले चढ़ती कला के अनुभवी भव

 

स्वयं को जो हैं जैसे हैं - वैसे ही बाप के आगे प्रत्यक्ष करना-यही सबसे बड़े से बड़ा चढ़ती कला का साधन है। बुद्धि पर जो अनेक प्रकार के बोझ हैं उन्हें समाप्त करने की यही सहज युक्ति है। आनेस्ट बन स्वयं को बाप के आगे स्पष्ट करना अर्थात् पुरूषार्थ का मार्ग स्पष्ट बनाना। कभी भी चतुराई से मनमत और परमत के प्लैन बनाकर बाप वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे कोई बात रखते हो-तो यह आनेस्टी नहीं। आनेस्टी अर्थात् जैसे बाप जो है जैसा है बच्चों के आगे प्रत्यक्ष है, वैसे बच्चे बाप के आगे प्रत्यक्ष हों।

 

स्लोगन:- सच्चा तपस्वी वह है जो सदा सर्वस्व त्यागी की पोजीशन में रहता है।