26-06-11  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 18-01-73 मधुबन

 

"समानता और समीपता"

 

क्या बापदादा समान स्वमान-धारी, स्वदर्शन-चक्रधारी और निर्मान बने हो? जितना-जितना इन विशेष धारणाओं में समान बनते जाते हो उतना ही समय को समीप लाते हो। समय को जानने के लिये अभी कितना समय पड़ा है? इसकी परख - आपकी धारणाओं में समान स्थिति है। अब बताओ कि समय कितना समीप है? समानता में समीप हो तो समय भी समीप है। इस प्रोग्राम के बीच अपने-आपको परखने व अपने द्वारा समय को जानने का समय मिला है। इस विशेष मास के अन्दर दो मुख्य बातें मुख्य रूप से लक्ष्य के रूप में सामने रखनी हैं। वो कौन-सी? एक तो लव और दूसरा लवलीन।

 

कर्म में, वाणी में, सम्पर्क में व सम्बन्ध में लव और स्मृति में व स्थिति में लवलीन रहना है। जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है। इस लवलीन स्थिति को मनुष्यात्माओं ने लीन की अवस्था कह दिया है। बाप में लव खत्म करके सिर्फ लीन शब्द को पकड़ लिया है। तो इस मास के अन्दर इन दोनों ही मुख्य विशेषताओं को धारण कर बापदादा समान बनना है। बापदादा की मुख्य विशेषता, जिसने कि आप सबको विशेष बनाया, सब-कुछ भुलाया और देही-अभिमानी बनाया, वह यही थी - लव और लवलीन।

 

लव ने आप सबको भी एक सेकेण्ड में 5000 वर्ष की विस्मृत हुई बातों को स्मृति में लाया है, सर्व सम्बन्ध में लाया है, सर्वस्व त्यागी बनाया है। जबकि बाप ने एक ही विशेषता से एक ही सेकेण्ड में अपना बना लिया तो आप सब भी इस विशेषता को धारण कर बाप-समान बने हो? जबकि साकार बाप में इस विशेषता में परसेन्टेज नहीं देखी, परफेक्ट ही देखा तो आप विशेष आत्माओं को और बाप समान बनी हुई आत्माओं को भी परफेक्ट होना है। इस मुख्य विशेषता में परसेन्टेज नहीं होनी चाहिए। परफेक्ट होना है, क्योंकि इस द्वारा ही सर्व आत्माओं के भाग्य व लक को जगा सकते हो। लक के लॉक की चाबी कौन-सी है? - ’लव’। लव ही लॉक की ‘की’ (Key) है। यह ‘मास्टर-की’ है। कैसे भी दुर्भाग्यशाली को भाग्यशाली बनाती है। क्या इसके स्वयं अनुभवी हो?

 

जितना-जितना बापदादा से लव जुटता है, उतना ही बुद्धि का ताला खुलता जाता है। लव कम तो लक भी कम। तो सर्व आत्माओं के लक के लॉक को खोलने वाली चाबी आपके पास है? कहीं इस लक की चाबी को खो तो नहीं देते हो? या माया भिन्न-भिन्न रूपों व रंगों में इस चाबी को चुरा तो नहीं लेती है? माया की भी नजर इसी चाबी पर है। इसलिये इस चाबी को सदा कायम रखना है। लव अनेक वस्तुओं में होता है। यदि कोई भी वस्तु में लव है तो बाप से लव परसेन्टेज में हो जाता है। अपनी देह में, अपनी कोई भी वस्तु में यदि अपनापन है तो समझो कि लव में परसेन्टेज है। अपनेपन को मिटाना ही बाप की समानता को लाना है। जहाँ अपनापन है, वहाँ बापदादा सदा साथ नहीं हैं।

 

परसेन्टेज वाला कभी भी परफेक्ट नहीं बन सकता। परसेन्टेज अर्थात् डिफेक्ट वाला कभी परफेक्ट नहीं बन सकता, इसलिये इस वर्ष में परसेन्टेज को मिटा कर परफेक्ट बनो। तब यह वर्ष विनाश की वर्षा लायेगा। एक वर्ष का समय दे रहे हैं जो कि फिर यह उलहना न दें कि ‘‘हमको क्या पता’’? एक वर्ष अनेक वर्षों की श्रेष्ठ प्रारब्ध बनाने के निमित्त है। अपने आप ही चेकर बन अपने आप को चेक  करना। अगर मुख्य इस बात में अपने को परफेक्ट बनाया तो अनेक प्रकार के डिफेक्ट स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे। यह तो सहज पुरूषार्थ है ना? अगर स्वयं बाप के साथ लव में लवलीन रहेंगे तो औरों को भी सहज ही आप-समान व बाप-समान बना सकेंगे। तो यह वर्ष बाप-समान बनने का लक्ष्य रख कर चलेंगे, तो बापदादा भी ऐसे बच्चों को ‘‘तत् त्वम्’’ का वरदान देने के लिये ड्रामानुसार निमित्त बना हुआ है। इस वर्ष की विशेषता बाप-समान बन समय को समीप लाने का है। समय की विशेषता को स्वयं में लाना है।

 

ऐसे सदा लवली-लवलीन रहने वाले, बाप-समान निर्मान और निर्माण करने के कर्त्तव्य में सदा तत्पर रहने वाले,समय की विशेषता को स्वयं में लाने वाले, श्रेष्ठ स्वमान में सदा स्थित रहने वाले, श्रेष्ठ और समान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम शान्ति।

 

दुसरी मुरली:  23-01-73

 

"सम्पूर्ण-मूर्त्त बनने के चार स्तम्भ"

 

सभी अपने को सम्पूर्ण बनाने के पुरूषार्थ में चल रहे हो? सम्पूर्ण मूर्त्त बनने के लिए मुख्य चार विशेषताए धारण करनी हैं-जिससे सहज ही सम्पूर्ण मूर्त्त बन सकते हो। जैसे औरों को योग की स्थिति में सदा एक-रस स्थिति में स्थित होने के लिए, चार मुख्य नियम - स्तम्भ के रूप में दिखाते हो व बताते हो, ऐसे ही सदा सम्पूर्ण मूर्त्त बनने के लिये यह चार विशेषतायें स्तम्भ के रूप में हैं। वह कौन-सी हैं? - 1. ज्ञान-मूर्त्त, 2. गुण-मूर्त्त, 3. महादानी-मूर्त्त, और 4. याद-मूर्त्त अर्थात् तपस्वी-मूर्त्त। यह चारों ही विशेषतायें अपने में लाने से सम्पूर्ण स्थिति बना सकते हो। अब यह देखो कि अपनी मूर्त्त में यह चारों ही विशेषतायें प्रत्यक्ष रूप में अनुभव होती हैं व अन्य आत्माओं को भी दिखाई देती हैं?

 

ज्ञान-मूर्त्त अर्थात् सदैव बुद्धि में ज्ञान का सुमिरण चलता रहे। सदैव वाणी में ज्ञान के ही बोल वर्णन करते रहे। हर कर्म द्वारा ज्ञान स्वरूप अर्थात् मास्टर नॉलेजफुल और मास्टर सर्वशक्तिमान्-इन मुख्य स्वरूपों का साक्षात्कार हो। उसको कहा जाता है ‘ज्ञान-मूर्त्त’। इस प्रकार से मन, वाणी और कर्म द्वारा ‘गुण-मूर्त्त’, महादानी-मूर्त्त और याद अर्थात् तपस्या मूर्त्त प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दें। जैसे लौकिक पढ़ाई में तीन मास, छ: मास, नौ मास का इम्तहान लेते हैं, जिससे हरेक को अपनी पढ़ाई का मालूम पड़ जाता है, ऐसे ही ईश्वरीय पढ़ाई का अब काफी समय बीत चुका है। इसलिये यह विशेष मास याद की यात्रा में रह अपनी चैकिंग करने के लिए अर्थात् स्वयं अपना शिक्षक बन, साक्षी बन अपना पेपर ले देखने के लिए दिया हुआ है। अब सिर्फ फाइनल पेपर ही रहा हुआ है। इसलिए अपनी रिजल्ट को देख चेक  करो कि इन चारों विशेषताओं में से किस विशेषता में और कितनी परसेन्टेज की कमी है। क्या फाइनल पेपर में सम्पूर्ण पास होने के योग्य सर्व योग्यतायें हैं? यह मास परिणाम देखने का है। परसेन्टेज अगर कम है तो सम्पूर्ण स्टेज कैसे पा सकेंगे? इसलिए अपनी कमी को जानकर उसे भरने का तीव्र पुरूषार्थ करो। अब यह थोड़ा सा समय फिर भी ड्रामानुसार पुरूषार्थ के लिए मिला हुआ है। लेकिन फाइनल पेपर होने से पहले अपने को सम्पूर्ण बनाना है। अपना रिजल्ट देखा है? जैसे इस मास में चारों ओर याद की यात्रा का उमंग और उत्साह रहा है, इसका रिजल्ट क्या समझती हो? कितने मार्क्स देंगे? भले हरेक का अपना-अपना तो है फिर भी चारों ओर के वातावरण व वायुमण्डल व पुरूषार्थ की उमंग और उत्साह के रिजल्ट में कितने मार्क्स कहेंगे? टोटल पूछते हैं। सभी के पुरूषार्थ का प्रभाव मधुबन तक पहुंचता है ना? क्या त्रिकालदर्शी नहीं हो? अपने समीप परिवार की आत्माओं के पुरूषार्थ के त्रिकालदर्शी नहीं हो क्या? क्या भविष्य के ही त्रिकालदर्शी हो? वर्तमान के नहीं हो? वाइब्रेशनस् से और वायुमण्डल से परख नहीं सकते हो?

 

जब साइन्स वाले पृथ्वी से स्पेस में जाने वालों की हर गति और हर विधि को जान सकते हैं तो क्या याद के बल से आप अपने श्रेष्ठ पुरूषार्थ की गति और विधि को नहीं जान सकते हो? लास्ट में जानेंगे जब आवश्यकता नहीं होगी? अभी से यह जानने का अभ्यास भी होना चाहिए-कैचिंग पॉवर चाहिए। जैसे साइन्स दूर की आवाज़ को कैच कर चारों ओर सुना सकती है तो आप लोग भी शुद्ध-वाइब्रेशन; शुद्ध-वृत्तियों व शुद्ध-वायुमण्डल को कैच नहीं कर सकती हो? यह कैचिंग पॉवर प्रत्यक्ष रूप में अनुभव होगी। जैसे आजकल दूर से सीन टेलीविजन द्वारा स्पष्ट दिखाई देते हैं, वैसे दिव्य-बुद्धि बनने से, सिर्फ एक याद के शुद्ध-संकल्प में स्थित रहने से आप सभी को भी एक दूसरे की स्थिति व पुरूषार्थ की गति-विधि ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी। यह साइन्स भी कहाँ से निकली? साइलेन्स की शक्ति से ही साइन्स निकली है। साइन्स आप लोगों की वास्तविक स्थिति और सम्पूर्ण स्टेज को समझाने के लिए एक साधन निकला है। क्योंकि सूक्ष्म शक्ति को जानने के लिये तमोगुणी बुद्धि वालों के लिए कोई स्थूल साधन चाहिये। जिस श्रेष्ठ आत्मा में ये चारों ही विशेषतायें, सम्पूर्ण परसेन्टेज में अर्थात् जिसको सेन्ट परसेन्ट कहते हैं, इमर्ज रूप में होंगी, ऐसी आत्मा में सर्व-सिद्धियों की प्राप्ति दिखाई देगी? यह सिद्धि अपने वर्तमान समय के पुरूषार्थ में दिखाई देती हैं? कुछ परसेन्टेज में भी दिखाई देती हैं या यह स्टेज अभी दूर है? कुछ समीप दिखाई देती है। यूँ तो इस मास की रिजल्ट चारों ओर की बहुत अच्छी रही। अब आगे क्या करेंगे? याद की यात्रा में रहने से कोई नये प्लान्स प्रैक्टिकल में लाने के लिए इमर्ज हुए? जैसे चारों ओर संगठन के रूप में याद का बल अपने में भरने का पुरूषार्थ किया वैसे अब फिर आने वाले यह दो मास विशेष बुलन्द आवाज़ से चारों ओर बाप को प्रत्यक्ष करने के नगारे बजाने हैं। जिन नगारों की आवाज़ को सुनकर सोई हुई आत्मायें जाग जायें। चारों ओर यह आवाज़ कौन-सा है और इस समय कैसा श्रेष्ठ कर्त्तव्य चल रहा है?

 

हरेक आत्मा अपना श्रेष्ठ भाग्य अब ही बना सकती है। ऐसे ही चारों ओर भिन्न-भिन्न युक्तियों से भिन्न-भिन्न प्रोग्राम से बाप की पहचान का नगाड़ा बजाओ। इन दो मास में सभी को इस विशेष कार्य में अपनी विशेषता दिखानी है। जैसे याद की यात्रा में हरेक ने अपने पुरूषार्थ प्रमाण रेस में आगे बढ़ते रहने का पुरूषार्थ किया, वैसे अब इस दो मास के अन्दर बाप को प्रत्यक्ष करने के नये-नये प्लान्स प्रैक्टिकल में लाने की रेस करो। फिर रिजल्ट सुनायेंगे कि इस रेस में फर्स्ट, सेकेण्ड और थर्ड प्राइज लेने वाले कौन-कौन निमित्त बने? चान्स भी बहुत अच्छा है। शिव जयन्ती का महोत्सव भी इन दो मास में हैं ना? इसलिए अब रिजल्ट देखेंगे। एक मास के अन्दर योगबल की प्राप्ति का क्या अनुभव किया? अब योगबल द्वारा आत्माओं को जगाने का कर्त्तव्य करो और सबूत दिखाओ। जैसे बापदादा से भी पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है वैसे रिटर्न में प्रत्यक्ष फल दिखाओ और सर्व शक्तिवान बाप की पालना का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाओ। साकार रूप द्वारा भी बहुत पालना ली और अव्यक्त रूप द्वारा भी पालना ली। अब अन्य आत्माओं की ज्ञान की पालना करके उनको भी बाप के सम्मुख लाओ और बाप के समीप लाओ।

 

ड्रामा में अब यह जो समय चल रहा है अथवा अभी का जो यह वर्ष चल रहा है इसमें बहुत अनोखी बातें देखेंगे। इसके लिए आरम्भ में विशेष याद का बल भरने का चॉन्स मिला है। अब बहुत जल्दी नये-नये नजारे और नई- नई बातें सुनेंगे और देखेंगे। इसके लिये अव्यक्त स्थिति और अव्यक्त मिलन का विशेष अनुभव करना है। जो किसी भी समय मिलन द्वारा बुद्धि-बल से अपने पुरूषार्थ व विश्व-सेवा के सर्व कार्य में सफलता-मूर्त्त बन सको। अब अव्यक्त मिलन का अनुभव किया? जिस समय चाहो, या जिस परिस्थिति में चाहो, उस समय उस रूप से मिलन मिलाने का अनुभव कर सकते हो? क्या यह प्रैक्टिस हो गयी? जब थोडी-सी प्रैक्टिस की है तो उसको बढ़ा सकते हो ना? तरीका तो सभी को आ गया है? यह तो बहुत सहज तरीका है। जिससे जिस देश में, जिस रूप में मिलना चाहते हो वैसा अपना वेश बना लो। अगर अपना वेश बना लिया, तो उस वेश में और उस देश में पहुँच ही जायेंगे और उस देश के वासी बाप से अनेक रूप से मिलन मना सकेंगे। सिर्फ उस देश के समान वेश धारण करो। अर्थात् स्थूल वेश और स्थूल शरीर की स्मृति से परे सूक्ष्म शरीर अर्थात् सूक्ष्म देश के वेशधारी बनो। क्या बहुरूपी नहीं हो? क्या वेश धारण करना नहीं आता? जैसे आजकल की दुनिया में जैसा कर्त्तव्य वैसा वेश धारण कर लेते हैं, वैसे आप भी बहुरूपी हो? तो जिस समय, जैसा कर्म करना चाहते हो क्या वैसा वेश धारण नहीं कर सकते? अभी-अभी साकारी और अभी-अभी आकारी, जैसे स्थूल वस्त्र सहज बदल सकते हो तो क्या अपनी बुद्धि द्वारा अपने सूक्ष्म शरीर को धारण नहीं कर सकते हो? सिर्फ बहुरूपी बन जाओ। तो सर्व स्वरूपों के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। बहुत सहज है। अपना ही तो स्वरूप है। कोई नकली रूप किसी दूसरे का थोड़े ही धारण करते हो? दूसरे के वस्त्र ऊपर नीचे हो सकते हैं, फिट हो या न हों। लेकिन अपने वस्त्र तो सहज ही धारण हो सकते हैं। तो यह अपना ही तो रूप है। सहज है ना? ड्रामानुसार यह विशेष अभ्यास भी कोई रहस्य से नूंधा हुआ है। कौन-सा रहस्य भरा हुआ है? टच होता है? जो भी सभी बोल रहे हैं सभी यथार्थ है क्योंकि अब यथार्थ स्थिति में स्थित हो ना? व्यर्थ स्थिति तो नहीं है? समर्थ शक्ति स्वरूप की स्थिति है ना?

 

अब ड्रामा की रील जल्दी-जल्दी परिवर्तित होनी है, जो अब वर्तमान समय चल रहा है, यह सभी बातें परिवर्तन होनी हैं। व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन-यह सभी तीव्र परिवर्तन होने हैं। इस कारण अव्यक्त मिलन का विशेष अनुभव विशेष रूप से कराया है और आगे भी अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव बहुत करेंगे। इस वर्ष को अव्यक्त मिलन द्वारा विशेष शक्तियों की प्राप्ति का वरदान मिला हुआ है। इसलिए ऐसे नहीं समझना कि यह मास समाप्त हुआ लेकिन इसी अभ्यास को और इसी अनुभव को जो लगातार आगे आगे बढ़ाते रहेंगे उनको बहुत नये-नये अनुभव होते रहेंगे। समझा?

 

ऐसे सर्व गुणों में अपने को सम्पन्न बनाने वाले, अपने संकल्प, वाणी और कर्म द्वारा सर्व विशेषतायें प्रत्यक्ष करने वाले, बापदादा के दिव्य पालना का प्रत्यक्ष फल दिखाने वाले, बाप के सदा स्नेही, सदा सहयोगी, सर्व-शक्तियों में समान बनने वाले और सर्व-सिद्धियों को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं एवं तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

वरदान:- रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक रख, खुशी का महादान करने वाले पुण्य आत्मा भव

 

वर्तमान समय चारों ओर रिगार्ड देने का रिकार्ड ठीक करने की आवश्यकता है। यही रिकार्ड फिर चारों ओर बजेगा। रिगार्ड देना और रिगार्ड लेना, छोटे को भी रिगार्ड दो, बड़े को भी रिगार्ड दो। यह रिगार्ड का रिकार्ड अभी निकलना चाहिए, तब खुशी का दान करने वाले महादानी पुण्य आत्मा बनेंगे। किसी को रिगार्ड देकर खुश कर देना - यह बड़े से बड़ा पुण्य का काम है, सेवा है।

 

स्लोगन:- हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझकर चलो तो एवररेडी रहेंगे।