ओम् शान्ति।
भगत लोग जब ओम् नमो शिवाए कहेंगे तो शिव के लिंग और शिव के मन्दिर को याद करेंगे।
नम: कहकर पूजा करेंगे। वो हुई भक्ति। हम तो शिवबाबा को कहेंगे तुम मात पिता… अब तुम
चित्र को नहीं कहेंगे। तुम जानते हो वह शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं। रात दिन का
फ़र्क हो गया। यह दुनिया को पता नहीं है। शिवबाबा निराकार आकर पाठशाला में पढ़ाते
हैं। क्या पढ़ाते हैं? सहज राजयोग और ज्ञान। जैसे क्राइस्ट का पुस्तक है। क्राइस्ट
ने जो ज्ञान दिया उनका बाइबिल बना। यहाँ शिव पुराण है परन्तु वह तो दूसरे किसी ने
बनाया है। वास्तव में सच्चा शिव पुराण गीता है। बाप ने तुमको समझाया है। तुमको फिर
औरों को समझाना है। शिवबाबा ने क्या समझाया? शिव का जन्म भी सुनाते हैं। अब शिव
पुराण गीता को कहें? वा शिव पुराण को कहें? दो तो हो न सकें। भारत का धर्मशास्त्र
एक होना चाहिए। जो धर्म स्थापन करते हैं उनकी जीवन कहानी बनाते हैं। इसने यह-यह
सुनाया। क्राइस्ट ने भी ज्ञान सुनाया होगा जिसका बाइबिल बना। तो उस पुराण में बहुत
कथायें हैं। अब कथा सुनाई है बच्चों को, परन्तु पार्वती का नाम डाल दिया है। उसमें
तो दिखाया नहीं है कि पवित्रता की प्रतिज्ञा कराई है। मनमनाभव अक्षर शिव पुराण में
नहीं होगा। शिव पुराण अलग है। यह है श्रीमत भगवत गीता। भगवान तो एक सिद्ध करना है।
उनका नाम शिव है। वह गीता फिर कृष्ण पुराण हो जाती है। वास्तव में कृष्ण तो
पतित-पावन है नहीं। शिव पतित-पावन है। भारत का धर्म शास्त्र है गीता। शिव पुराण को
तो सब नहीं मानेंगे। अब कहेंगे गीता से देवी-देवता धर्म स्थापन हुआ। वह तो शिव ही
कर सकता है। कृष्ण भी सांवरे से गोरा बनता है। फ़र्क बहुत है। बच्चों को समझाया जाता
है, जो समझते हैं उनका फ़र्ज है अलौकिक कार्य करना। खुशी होनी चाहिए। अथाह खजाना
मिलता है तो दान देना है। बाप का परिचय देना बहुत सहज है। भगत भगवान को याद करते
हैं। भगवान आकर फल देते हैं। फल कौन सा? भगवान जीवनमुक्ति ही देंगे। सर्व का सद्गति
दाता कृष्ण को नहीं कहा जाता। परमपिता परमात्मा को कहेंगे। तुम जानते हो परमात्मा
निराकार है। कृष्ण को परमात्मा नहीं कह सकते। कृष्ण सभी आत्माओं का बाप बन नहीं सकता।
सभी आत्माओं का पिता परमपिता परमात्मा ही गाया हुआ है। बच्चों को अच्छी रीति बाप का
परिचय देना है। वह तो सर्वव्यापी या लिंग कह देते हैं। भला लिंग का आक्यूपेशन क्या
होगा? परमपिता परमात्मा की तो महिमा है पतित-पावन ज्ञान का सागर। यह पोस्टर बाहर लगा
देना चाहिए। कोई भी आये तो पढ़े। तुम जाकर राधे कृष्ण वा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर
में समझाओ। हमारा लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है, इस पर समझाना चाहिए।
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर वाले अक्सर गीता जरूर पढ़ते होंगे। अपनी उन्नति के लिए
पुरूषार्थ करना है। बाप से ऊंच वर्सा पाने का शौक चाहिए। अपना और दूसरों का कल्याण
करना है। शिवबाबा तो सभी का कल्याण करने वाला है। तुमको भी कल्याणकारी बनना है। बाबा
कहते हैं मेरा अकल्याण कब होता नहीं। अकल्याणकारी रावण है, यह मनुष्य नहीं जानते।
तुमको जाकर समझाना है। बादल भरकर फिर जाए बरसना है। शौक कितना होना चाहिए। अगर दान
नहीं करते तो जरूर कहेंगे अपना कल्याण नहीं किया है, तब औरों का नहीं कर सकते हैं।
सेन्टर्स पर बहुत अच्छे-अच्छे आते हैं। परन्तु औरों का कल्याण करें, वह नहीं करते।
सुनते हैं फिर धन्धे में थक कर घर गये तो खलास। दान नहीं देते हैं तो वह कोई
ब्राह्मण नहीं ठहरे। ब्राह्मण जानते हैं कि हमको देवता बनना है। हर एक को अपनी दिल
से बात करनी है। अगर किसको देवता नहीं बनाया तो ब्राह्मण कैसा? शिवबाबा कहते हैं
मैं तो हूँ ही कल्याणकारी। तुमको भी कल्याणकारी बनना है। भल जिनको धारणा नहीं होती,
उनके लिए स्थूल सर्विस है। यहाँ बच्चे आते हैं – जिनकी सर्विस की हुई है। सर्विस
सेन्टर्स पर बच्चों को अपने से पूछना है कि हमने कितनों का कल्याण किया? आते बहुत
हैं। थोड़े बहुत हैं जो सर्विस करते हैं। बाकी धन्धे आदि में लग जाते हैं। समझते
हैं पवित्र बनना है सिर्फ। परन्तु धन दान भी करना है। अपने से पूछना है – अगर हम
किसका कल्याण नहीं करेंगे तो पद क्या पायेंगे। बहुत बच्चियाँ कल्याण कर पण्डा बनकर
आती हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। कोई फर्स्टक्लास, कोई सेकण्ड, कोई थर्ड में रखेंगे।
तो अपना कल्याण करना चाहिए। जिनको अपने कल्याण का नहीं, वह क्या पद पायेंगे! बहुत
ऐसे सेन्टर्स हैं जिनमें कई बच्चे सर्विस नहीं करते। इतनी ताकत नहीं जो जाकर दान करें।
सवेरे मन्दिरों में बहुत जाते हैं। जाकर ढूंढना पड़े – देवता धर्म वाला कौन है।
अब बाप कहते हैं मैं इस तन में आया हूँ। वह तो छोटे शरीर में जाकर आत्मा प्रवेश
करती है। घोस्ट छाया के मुआफिक आते हैं। यह भी वन्डर है। कैसे घूमते-फिरते रहते
हैं, कौन बैठ पता निकाले! ड्रामा में आत्मा को शरीर न मिलने कारण भटकती है। छाया
रूप ले लेती है। जैसे परछाई होती है। घोस्ट की परछाई नहीं पड़ती। आया गुम हो गया।
इन बातों में अपने को नहीं जाना है। दरकार ही नहीं है। इस खोज में जायें तो शिवबाबा
भूल जाये। बाबा का फरमान है – निराकार बाप को याद करो। अपनी और दूसरों की देह को
भूलना है। सबका प्यारा है शिवबाबा। बाप कहते हैं और कोई बात में न जाकर बाप को याद
करो। यह है याद की यात्रा। मनमनाभव का अर्थ भी यह है। कृष्ण तो ऐसे कह न सके। कृष्ण
को गाइड नहीं कहेंगे। निराकार ही गाइड बन सभी आत्माओं को ले जाते हैं – मच्छरों
सदृश्य। आत्माओं का गाइड कृष्ण हो न सके। उनको पुनर्जन्म में जाना है, तो बाप का
परिचय सबको देना है। भक्तों का भगवान एक है। वह बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो
विकर्म विनाश हों। सर्विस का बच्चों को शौक होना चाहिए।
बच्चे मधुबन में आते हैं – मुरली सुनने, तो सुनाने वाला जरूर चाहिए। बाबा जहाँ
जायेंगे तो सर्विस ही करेंगे। सर्विस का शौक रहता है। बच्चे याद करते हैं। वह
सम्मुख मुरली सुनकर खुश होंगे। एक पंथ 10 कार्य सिद्ध होते हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं
में बाप नहीं जा सकता। वह बच्चों का काम है। बच्चों से सवाल जवाब करेंगे। सन्यासी
आदि तो बाप के आगे आयेंगे ही नहीं। उनको तो मान चाहिए। बाप का पार्ट वन्डरफुल है।
जो पास्ट हुआ ड्रामा। आगे चलकर बहुत बच्चे मिलने आयेंगे। पहले बच्चों को समझाना पड़े।
गोप गोपियों को ही घर-घर में परिचय देना है। कोई भी उल्हना न दे, रह न जाये कि हमको
पता नहीं पड़ा। राजा रानी तो कोई है नहीं जो इतला करें। नया हुनर निकालते हैं तो
गवर्मेन्ट को दिखलाकर वृद्धि कराते हैं। यहाँ तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है।
निमंत्रण बच्चों को देना है। इसके लिए चित्र आदि छपाते रहते हैं। यह चित्र बाहर भी
जायेंगे। बच्चों को मेहनत करनी है। जो जो भाषा जानता है, वह उस भाषा में जाकर समझाये।
अनेक भाषायें हैं। बाबा राय देते हैं – पूना और बैंगलोर तरफ सर्विस को खूब बढ़ाओ।
सबको मालूम पड़े, सब भाषाओं में पर्चे छपाने हैं। बेहद की बुद्धि चाहिए। ऐसे भी नहीं
कि बाबा नौकरी छोड़ूं। नौकरी छोड़ी फिर यह सर्विस भी न कर सके तो बोझ चढ़ेगा। इसमें
स्वभाव बहुत मीठा चाहिए। क्रोध बहुतों में है। ऑख दिखला देते हैं, फिर रिपोर्ट आती
है। अच्छे-अच्छे बच्चे लिखते हैं कि हमारी सुनते नहीं हैं। यह अक्षर निकलना नहीं
चाहिए। बच्चों में देह-अंहकार वा क्रोध है तो बहुतों को नुकसान पहुँचा देते हैं।
बाप को बच्चों का कितना ख्याल रहता है। सब बच्चों पर नज़र रखनी होती है। मम्मा बच्ची
थी, फिर भी माँ कहलाती थी, उनको फुरना रहता था। ज्ञान में भी कहाँ माया प्रवेश हो
जाती है। फिर कई संशयबुद्धि भी बन पड़ते हैं। कितने कदम-कदम पर विघ्न पड़ते हैं। आज
बच्चा है कल बदल जाता है। विकार पर कितना झगड़ा होता है। बहुत पूछते हैं इस संस्था
की ग्लानि क्यों है? समझते नहीं हैं ना – शास्त्रों में कृष्ण की कितनी ग्लानि की
है। फलानी को भगाया, यह हुआ। कृष्ण तो ऐसे कर न सके। यहाँ भी भगाने का कलंक लगाते
हैं। घरबार छुड़ाते हैं। क्यों छुड़ाते हैं? वह तो कोई जानते नहीं। जब तक समझाया
जाए – क्यों विघ्न पड़ते हैं? मुख्य है काम विकार, जिस पर तुम बच्चे विजय पाते हो।
यह वन्डरफुल बाप है। ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण रचे जाते हैं। पहले-पहले शिवबाबा
का परिचय देना है। उनसे वर्सा मिलना है। माया ऐसी है तकदीर में नहीं है तो भूल जाते
हैं, कितना माया के विघ्न पडते हैं। धारणा नहीं होती है। यह भी विघ्न है ना, क्यों
नहीं इतनी सहज सर्विस कर सकते हैं। भगवान बाप तो वह है। उस अल्फ को याद करो।
भगवानुवाच, मामेकम् याद करो तो मुझ से वर्सा मिलेगा। ओ गाड फादर, भगत कहते हैं ना।
तो बाप से वर्सा मिल रहा है। कुछ सर्विस का शौक होना चाहिए। नहीं तो पद ऊंचा पा नहीं
सकते। सर्विस तो ढेर है। रोला बहुत है। बाप का नाम भी गुम। नॉलेज भी गुम है। तो
पहचान देनी पड़े। हमको बाप का हुक्म मिला है। निमंत्रण देना है। इसमें कोई क्रोध नहीं
करेंगे। पोस्टर्स छपे हैं सर्विस के लिए, रखने के लिए नहीं बने हैं। शिवाए नम:
अक्षर बहुत अच्छा है। पूरा शिवबाबा का परिचय है। निराकार शिवबाबा आया है, जरूर वर्सा
दिया है। आकर पतित दुनिया को पावन बनाया है। ऐसे-ऐसे अपने से ख्याल कर फिर जाकर कोई
को समझाना पड़ता है। शिव के मन्दिर भी बहुत हैं, गुप्त वेष में जाकर बोलना चाहिए।
यह शिव कौन है? शिवबाबा को तो निराकार परमात्मा कहा जाता है। उन्होंने क्या किया जो
इतना मन्दिर बनाया है। युक्ति से जाकर समझाना चाहिए। अब भल समझें वा न समझें, अन्त
में याद आयेगा कि कोई ने हमको समझाया था। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना कल्याण करने के लिए सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है। थककर बैठ
नहीं जाना है, मनुष्य को देवता बनाने की सेवा जरूर करनी है।
2) ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो कोई रिपोर्ट निकाले या मात-पिता को फुरना हो,
किसी भी हालत में विघ्न रूप नहीं बनना है।