ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। रूहानी बाप ने कहा, यहाँ तुम बच्चों को
आत्म-अभिमानी हो बैठना होता है। परमपिता परमात्मा और बच्चे अभी आकर मिले हैं। इसको
कहा जाता है आत्माओं और परमपिता परमात्मा का इस सृष्टि पर मेला। यह मेला एक ही बार
होता है। आधाकल्प सतयुग त्रेता में कोई बुलाते ही नहीं। तुम बच्चे सुखी रहते हो, जो
सुख तुम आत्मायें अभी पा रही हो। तुम पहले सतोप्रधान थे, अभी तमोप्रधान पतित बन पड़े
हो फिर बाप पावन बनाते हैं। जब पुजारी बनते हो तो दु:खी होते हो। 5 विकारों के कारण
ही दु:ख होता है। जितना-जितना सीढ़ी उतरते जाते हो उतना दु:खी होते जाते हो। अभी
तुम बच्चे जानते हो दु:ख के पहाड़ गिरने हैं। इस पुरानी दुनिया का अब विनाश होना
है। तुम्हारी बुद्धि जानती है – बाबा है निराकार, वह टीचर बनकर हम सालिग्रामों को
पढ़ाते हैं। कहते हैं बच्चों, हम फिर से तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ। 5
हजार वर्ष पहले भी तुम स्वर्ग के मालिक थे, याद है ना। संगम पर ही तुमको बनाया था।
अभी फिर तुमको मनुष्य से देवता, बैकुण्ठ स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। तुमको यह
वर्सा दिया था फिर तुमको 84 जन्म लेने पड़े। अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं। अभी
मैं आया हूँ, फिर तुमको पहले नम्बर जन्म से शुरू करना है। मैं तुम्हारा बाप तुमको
पढ़ाता भी हूँ। अब बाप पढ़ाने की फी बच्चों से लेगा? बच्चों से फी कैसे लेंगे! एक
पाई भी फी नहीं लेता हूँ। कितना दूर परमधाम से आता हूँ तुमको पढ़ाने। यह नौकरी करने
रोज़ आता हूँ। कोई की नौकरी दूर कहाँ होती है तो रोज़ आना-जाना होता है ना। तुम
जानते हो बाबा ज्ञान का सागर है, जो हमको सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान देते
हैं। भगवानुवाच – मैं निराकार परमात्मा हूँ, न कि कृष्ण। तुम जिस कृष्ण को भगवान
समझते हो, वह भगवान हो न सके। वह तो पूरे 84 जन्म लेते हैं। भगवान को अपना शरीर नहीं
है। जैसे तुम आत्मा हो वह भी आत्मा है। परन्तु सिर्फ आत्मा कहने से तो सबके साथ मिल
जायेंगे इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार मुझ आत्मा का नाम शिव
है। मैं हूँ निराकार। मुझे बुलाते ही हैं – शिवबाबा। असुल मेरा नाम एक ही है। बाकी
भिन्न-भिन्न नाम रख दिये हैं। मेरा नाम कोई रूद्र है नहीं। न कृष्ण ने कोई यज्ञ रचा
है। यह सब है झूठ। मैं ही आकर तुमको सच बतलाता हूँ। तुमको सच-सच नर से नारायण बनाने
मैं आया हूँ। मेरा घर बहुत दूर है। यहाँ आकर इस शरीर द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ। सारा
दिन इसमें बैठता नहीं हूँ। चक्र लगाता रहता हूँ। मेरी ग्लानी करने के कारण तुम बहुत
दु:खी, महान पतित बन गये हो। ब्रह्मा को भी कोई आदि देव कहते, कोई एडम कहते, कोई
महावीर कहते, तुम प्रजापिता कहते हो। तुमने मुझे आधाकल्प याद किया है, इसलिए मुझे
इस पराये देश में आना पड़ा है। सब पतित दु:खी हैं। आरफन्स हैं। धनी-धोरी है नहीं।
आरफन को पढ़ाने के लिए गवर्मेन्ट फी नहीं लेती है। यह तो बहुत बड़ी रूहानी
गवर्मेन्ट है। बेहद के बाप को कोई जानते नहीं हैं। कितने जप-तप, दान-पुण्य आदि करते
हैं। पूछा जाता है यह क्यों करते हो? तो कहेंगे इससे भगवान के पास पहुँच जायेंगे।
कोई जप-तप करने से पहुँचेगा, कोई शास्त्र पढ़ने से। बाप कहते हैं – ऐसे तो है नहीं।
भक्ति करते-करते तो तुम और ही पतित बन गये हो। पंख टूट गये हैं। तुम उड़ नहीं सकते
हो, जब तक तुम्हारे में ज्ञान-घृत न पड़े। घृत अथवा पेट्रोल खत्म हो जाने से ज्योत
बुझ गई है। फिर मैं आकर भरता हूँ।
तुम जानते हो – बाबा आया हुआ है। यहाँ तुम खुशी में रहते हो। घर में जाने से तुम
भूल जाते हो। तुमसे मैं इस पढ़ाई की फी नहीं लेता हूँ। तुम कहेंगे यह चावल मुट्ठी
देते हैं। यह चावल मुट्ठी तो तुम भक्ति मार्ग में देते आये हो, जिसका रिटर्न फिर
दूसरे जन्म में मिलता है। अभी तो तुम जानते हो – बाप सम्मुख बैठे हैं, फ्री पढ़ाते
हैं क्योंकि जानते हैं इन्हों के पास रखा ही क्या है। तो बाप थोड़ेही तुमसे कुछ
लेंगे। उस पढ़ाई में तो कितना खर्चा करना पड़ता है। कितने इम्तहान पास करने पड़ते
हैं। मैं तो एक ही पढ़ाई पढ़ाता हूँ। स्कूल में जो आते जाते हैं, उनको एड करता जाता
हूँ। हाँ जो लेट आते हैं, उनको थोड़ी मेहनत जास्ती करनी पड़ती है। उनके बदले में
फिर देरी से आने वालों को अच्छी प्वाइंटस मिलती हैं। जो जल्दी-जल्दी पढ़ते उनको कुछ
घाटा नहीं है। नई-नई अच्छी प्वाइंट्स मिलने से पुरानों से भी तीखे जाते हैं। बाप
कहते हैं – शुरू में जो आये वह कितने भागन्ती हो गये। अच्छा हुआ जो तुम देरी से आये
सो फिर तुमको गुह्य ते गुह्य प्वाइंट्स मिलती हैं। बाप कहते हैं – जिस्मानी पढ़ाई
भी पढ़ो। शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा धोरी भल करो सिर्फ मुझे याद करो और चक्र को याद
करो। यह भूलना नहीं चाहिए। यह तो समझते हो ना कि अब हमारे 84 जन्मों का अन्त है।
बाप समझाते हैं मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। याद तो
तुम बाप को भी करते हो, पति को भी करते हो। अब मैं तुम्हारा पतियों का पति, बापों
का बाप हूँ, टीचर भी हूँ। मैं तुम्हारा सब कुछ हूँ। सुख देने वाला हूँ। वह पतित
सम्बन्धी आदि तो तुमको दु:ख ही देंगे। सतयुग में कोई किसको दु:ख नहीं देते। अब मैं
आया हूँ सतयुग का राज्य-भाग्य देने। तुम जानते हो इस संगम पर ही बाप से हम वर्सा
लेते हैं। अब जितना तुम पढ़ेंगे। पढ़ाई भी बहुत सहज है। यह है ही सहज ज्ञान, सहज
याद। मौत भी सामने खड़ा है। मैं आया हूँ तुम सबको ले जाने इसलिए मुझे कालों का काल
भी कहते हैं। यह भी कहते हैं कि इनको काल खा गया। काल शरीर को खाता है, आत्मा को तो
खा न सके। आत्मा तो एक शरीर छोड़ दूसरा जाकर लेती है। पार्ट बजाती है। अभी तुम जानते
हो एक ही धक से यह सब खलास हो जायेगा, मौत ऐसा होना है जो कोई किसके लिए रोयेगा नहीं।
सभी को वापिस जाना ही है। रोते तब हैं जबकि पुनर्जन्म फिर फिर दु:ख की दुनिया में
ही लेते हैं। तुम बाप को बुलाते भी इसलिए ही हो कि बाबा हमको अपने साथ ले जाओ। तो
अब बाबा आया हुआ है, जो भी मनुष्य मात्र हैं सबको ले जाते हैं। विनाश होगा तो सब
मरेंगे। रहेगा कोई नहीं। गवर्मेन्ट अपना प्लैन बना रही है। मनुष्य सृष्टि तो बढ़ती
ही जाती है। छोटी-छोटी टाल टालियों में भी कितने पत्ते निकल आते हैं। झाड़ तो बढ़ेगा
ही। परन्तु उनकी आयु भी जरूर है। कल्प वृक्ष की आयु कोई लाखों वर्ष थोड़ेही हो सकती
है। अभी बाप तुमको पढ़ा रहे हैं, पूज्य देवी-देवता बनाने के लिए। पहले-पहले बाप
तुमको ही मिलता है और धर्म वाले तो आते ही पिछाड़ी में हैं। सतयुग में तुम आते हो।
पढ़ाता भी तुमको हूँ। सिर्फ कहता हूँ पावन दुनिया में चलना है तो विकार में मत जाओ।
फिर भी तुम मानते क्यों नहीं हो, विष बिगर तुम रह नहीं सकते हो? मेरी मत पर नहीं
चलेंगे तो ऊंच पद भी नहीं पायेंगे। तुम्हारी आश ही थी कृष्णपुरी में जाने की। तो
कृष्ण की राजधानी में जायेंगे वा प्रजा में? कृष्ण के साथ खेल-पाल
प्रिन्स-प्रिन्सेज ही करेंगे। प्रजा थोड़ेही करेगी। यह मम्मा बाबा भी पढ़ रहे हैं।
तुम जानते हो यह राधे-कृष्ण फिर स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। राजाई वालों
की ही माला बनती है ना। 8 दाने में आओ, अच्छा 8 में नहीं तो 108 में तो आओ। कम से
कम 16108 में तो आओ। यह है ही राजयोग। बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। घर के भातियों
को भी समझाओ। बाप तुमको समझाते हैं, औरों को समझाने के लिए। पुरानी दुनिया का विनाश
होना ही है। महाभारत की लड़ाई भी प्रसिद्ध है जबकि भगवान आया था। भगवान ने ही आकर
राजयोग सिखलाया था, स्वर्ग की स्थापना और नर्क का विनाश हुआ, यह समय वही है। फिर
राजधानी स्थापन हो जायेगी। सतयुग में दूसरा धर्म होता ही नहीं। भारत कितना सिरताज
था, कितना साहूकार था, क्रिश्चियन लोग सब यहाँ से ही साहूकार हुए हैं। सोमनाथ के
मन्दिर से भी कितना माल ले गये, ऊंट भरकर। यह तो एक मन्दिर की बात है। भारत में
बहुत मन्दिर थे। बाप सारे झाड़ का राज़ समझाते हैं। मैं बीज ऊपर में हूँ। यह उल्टा
झाड़ है ना। नॉलेजफुल मैं हूँ। तुम मुझे पुकारते ही हो पतित-पावन आओ। फिर भी कह देते
नाम रूप से न्यारा है। रावण ने सबको एकदम बेसमझ बना दिया है। अब तुमको स्मृति आई
है, हमारा बाप कौन है। यह चक्र कैसे फिरता है। सबकी समझ तो एक नहीं होती। एक की समझ
न मिले दूसरे से। एक के फीचर्स न मिले दूसरे से। तो अब तुम बच्चों को बाप का बनना
चाहिए ना। वह बाप भी है, टीचर भी तो सतगुरू भी है। तुम जानते हो यह फी कुछ लेते नहीं
हैं। बिगर कौड़ी खर्चा तुमको 21 जन्मों के लिए राजाई मिल जाती है। तुम भक्ति मार्ग
में ईश्वर अर्थ कुछ देते थे तो दूसरे जन्म में तुमको मिलता था। अभी तो मैं डायरेक्ट
आकर भारत को स्वर्ग बनाता हूँ। इसमें जो कुछ खर्चा लगता है, वह बच्चों का ही लगता
है। बच्चों को ही कहेंगे खर्चा करना है। इस एक ब्रह्मा को अच्छी तरह पकड़ा खर्चा
करने के लिए। इनमें प्रवेश कर इनसे सब कुछ कराया। यह तो झट स्वाहा हो गया। सब कुछ
जो इनके पास था, सब दे दिया। बाबा बोले, बेगर बन जाओ तो फिर ऐसा प्रिन्स बनाऊंगा,
साक्षात्कार करा दिया। ख्याल आया – अब यह क्या करेंगे। विनाश होना ही है। बाबा ने
कहा बन्दर मुआफिक मुट्ठी बन्द नहीं करो, खोल दो। झट खोल दी। नहीं तो इतने बच्चों का
खर्चा कैसे चलता। बच्चू बादशाह, पीरू वजीर यह हो गया। एक को ही पैसे के लिए पकड़
लिया। तुम बच्चों की भट्ठी बननी थी। स्कूल भी बने थे। अभी तुम होशियार हो फिर औरों
को भी पढ़ाते हो। तुम कितनों का कल्याण करते हो। बाप है ही कल्याणकारी, सबको नर्क
से निकाल स्वर्ग में ले जाते हैं। अब जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
प्रजा के लिए भी प्रदर्शनियों आदि की युक्तियाँ और भी निकलती रहेंगी। ढेर प्रजा बनती
जायेगी। राजा-रानी तो थोड़े होते हैं। प्रजा तो करोड़ों के अन्दाज में होती है ना।
किंग क्वीन तो एक है। वहाँ लड़ाई झगड़ा आदि होता नहीं। बच्चे जानते हैं – अब तो मौत
सामने खड़ा है। जितना योग में रहेंगे उतना पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनेंगे और कोई
उपाय है नहीं। सपूत बच्चे माँ-बाप को फालो करते हैं। बाप पावन बने, बच्चा न बने तो
वह कपूत बच्चा ठहरा ना। इसमें तो नष्टोमोहा बनना होता है। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा
न कोई। वर्सा भी उनसे मिलेगा। अब बाप से वर्सा पाना है नई दुनिया का, तो पतित मत बनो।
पावन बनने बिगर नई दुनिया में जा नहीं सकेंगे। जन्म-जन्मान्तर के पाप किये हुए हैं,
उनकी सज़ा भोगनी पड़ती है। जैसेकि 63 जन्मों के पापों की सजा मिलती है। गर्भजेल में
भी सजा भोगते हैं। सतयुग में कोई जेल आदि होती नहीं है। है ही स्वर्ग। अब बाप
साधारण तन में आये हैं, इसलिए बाप को पहचानते नहीं हैं। बाप के साथ योग लगाने से ही
आत्मा पावन बनेगी। बाप कहते हैं – मैं पतित दुनिया, पतित शरीर में आता हूँ फिर इनको
नम्बरवन पावन बनाता हूँ। तत त्वम्। तुम भी पावन बनते हो। तुम बाप के बच्चे बने हो।
प्रजापिता ब्रह्मा के भी बच्चे हो इसलिए बापदादा कहा जाता है। बाप समझाते हैं अब
टाइम बहुत थोड़ा है। शरीर पर भरोसा नहीं है। बाप को याद करते रहो, स्वदर्शन चक्रधारी
बनो। सारा दिन यही बातें ख्याल में रहे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। एक शिवबाबा दूसरा न कोई, यह पाठ पक्का
करना है। सपूत बच्चा बन मात-पिता को फालो करना है।
2) बिगर कौड़ी खर्चे पढ़ाई से 21 जन्मों की राजाई मिलती है तो बहुत लगन से पढ़ाई
पढ़नी है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।