07-02-08  प्रात: मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

 

“मीठे बच्चे – सदा अपने को राजऋषि समझकर चलो तो तुम्हारे सब दिन सुख से बीतेंगे, माया के घुटके से बचे रहेंगे”

 

प्रश्नः- कौन सा चांस तुम्हें अभी है फिर नहीं मिलेगा?

 

उत्तर:- अभी थोड़ा समय है जिसमें पुरुषार्थ कर पढ़ाई से ऊंच पद पा सकते हो फिर यह चांस नहीं मिलेगा। यह जीवन बड़ा दुर्लभ है इसलिए कभी यह ख्याल नहीं आना चाहिए कि जल्दी मरें तो छूटें। यह ख्याल उन्हें आता जिन्हें माया तंग करती है या कर्मभोग है। तुम्हें तो बाप की याद से मायाजीत बनना है।

 

गीत:- धीरज धर मनुआ…

 

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। किसने कहा और किसने सुना? बेहद के बाप ने कहा और सभी सेन्टर्स के बच्चों ने सुना। देखो बाप का बुद्धियोग सभी बच्चों की तरफ जाता है। सभी सेन्टर्स के जो भी ब्राह्मण कुल भूषण वा स्वदर्शन चक्रधारी अथवा राजऋषि बच्चे हैं उन बच्चों को यह भी स्मृति में रहना चाहिए कि हम राजऋषि हैं। राजाई के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं, जिस राज्य में देखो तो सदैव सुख के दिन व्यतीत होते हैं। कलियुग में तो सुख के दिन बीतते ही नहीं। तुम जो राजऋषि हो तुम्हारे भी सुख के दिन यहाँ बीतने चाहिए। अगर बच्चे अपने को राजऋषि समझते हैं और निश्चय अटल, अडोल कायम है तो। नहीं तो घड़ी-घड़ी भूल जाने से माया के घुटके बहुत आते हैं। बच्चे जानते हैं कि हम बाप से राजयोग सीख सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं अथवा नर से नारायण बन रहे हैं। सो तो सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई बना न सके। परमपिता परमात्मा जब कहा जाता है तो किसी साकार वा आकार की तरफ बुद्धि नहीं जाती, निराकार बाप को ही याद करते हैं। बाप धीरज देते हैं – बच्चे बाकी थोड़े रोज़ हैं। यह कलियुग नर्क बदल स्वर्ग होगा। हेविन की स्थापना हेल का विनाश तो गाया हुआ है। भगवान स्वयं बैठ राजयोग सिखाते हैं। कोई भी मनुष्य चाहे हेल का, चाहे हेविन का हो, राजयोग सिखला न सके। बच्चे जानते हैं हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण ही स्वदर्शन चक्रधारी हैं। हम आत्माओं को सृष्टि चक्र की नॉलेज है। देवतायें यह नहीं जानते। स्वदर्शन चक्र कृष्ण को वा विष्णु को क्यों दिया है? क्योंकि तुम ब्राह्मण अभी सम्पूर्ण नहीं बने हो। नीचे ऊपर होते रहते हो। यह स्वदर्शन चक्र निशानी है फाइनल की। आज तुम स्वदर्शन चक्र फिराते हो, कल माया से हार खाकर गिर पड़ते हो तो तुमको अलंकार कैसे दे सकते? स्वदर्शन चक्र तो स्थाई चाहिए, इसलिए विष्णु को दिखाते हैं। यह बहुत गुह्य बातें हैं। जहाँ भी विष्णु का मन्दिर हो वा कोई भी स्वदर्शन चक्रधारी का मन्दिर हो वहाँ जाकर तुम समझा सकते हो। कृष्ण को भी स्वदर्शन चक्र देते हैं। राधे कृष्ण युगल के चित्र में स्वदर्शन चक्र नहीं देते हैं। वास्तव में कृष्ण स्वदर्शन चक्रधारी है नहीं। स्वदर्शन चक्रधारी तो ब्राह्मण कुल भूषण हैं, जिनको परमपिता परमात्मा स्वदर्शन चक्रधारी अथवा त्रिकालदर्शी बनाते हैं। वही जब देवता बनते हैं तो उन्हों को त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ नहीं कह सकते क्योंकि अभी तो हम स्वर्ग की सीढ़ी ऊपर चढ़ते हैं। सतयुग से तो सीढ़ी नीचे उतरनी होती है। वहाँ यह ज्ञान होता नहीं। वहाँ यह मालूम होता तो तुम राजाई कर न सको, यही चिंता लग जाए।

 

तो अब बाप बच्चों को धीरज देते हैं कि घबराओ मत। माया पर जीत पानी है। माया के तूफान आयेंगे जरूर, विघ्न पड़ेंगे। इसका इलाज है योग में रहो। माया योग भी तोड़ेगी। परन्तु पुरुषार्थ कर योग में रहना है। जो योग में रहेंगे तो उनकी आयु भी बढ़ेगी। जितनी आयु बड़ी होगी उतना अन्त तक बाप से योग लगाए वर्सा लेंगे। योग से तन्दरुस्ती को भी ठीक करना है, इसलिए बाप कहते हैं योगी भव। मेरे को निरन्तर याद करो। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना स्वर्ग में प्रालब्ध पायेंगे। तो बाप कहते हैं बच्चे योग में रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाकी थोड़ा समय है। तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि विनाश जल्दी हो तो हम स्वर्ग में जाएं क्योंकि यह जीवन बड़ी दुर्लभ है। ऐसे नहीं कि अभी शरीर छोड़ फिर नया शरीर लेकर पढ़ाई पढ़ सकेंगे। बाल अवस्था में ही होगा तो विनाश आरम्भ हो जायेगा। बालिग भी नहीं बन सकेगा क्योंकि इसमें छोटे-बड़े सबका विनाश होने वाला है। जल्दी मरें, यह वही कहेंगे जिनको माया बहुत तंग करती है या कोई कर्मभोग है, उनसे छूटने चाहते हैं। परन्तु यह चांस फिर नहीं मिलेगा, इसलिए पुरुषार्थ में जुट जाओ। बाकी तो जब समय आयेगा तो न चाहते भी सबको जाना पड़ेगा क्योंकि बाप सबको रूहानी यात्रा पर ले जायेगा। ऐसे नहीं सिर्फ 10-20 लाख को ले जायेगा। जैसे कुम्भ के मेले पर 10-15 लाख जाते हैं। यह तो आत्मा परमात्मा का मेला है। बाप स्वयं पण्डा बनकर लेने आये हैं, इनके पिछाड़ी तो अनगिनत आत्मायें जायेंगी। परन्तु ऐसे भी नहीं सब जल्दी जायेंगे। प्रलय हो तो फिर यह भारतखण्ड ही न रहे। परन्तु यह भारत अविनाशी खण्ड है। यहाँ बहुत रह जाते हैं। फिर सतयुग में एक ही सूर्यवंशी राजधानी स्थापन होगी। कलियुग विनाश हो सतयुग स्थापन होने में बीच का थोड़ा सा यह टाइम मिलता है, इसमें थोड़े रह जाते हैं जो नयेसिर अपनी राजधानी बनाते हैं। बाकी पुरुषार्थ का यही थोड़ा समय है, इसको कल्याणकारी युग कहा जाता है। दूसरे संगम को कल्याणकारी नहीं कहेंगे क्योंकि नीचे उतरते जाते हैं। अब सम्पूर्ण सुख से सम्पूर्ण दु:ख में आ गये हैं। यह नॉलेज और किसकी बुद्धि में नहीं है। आगे हम भी कुछ नहीं जानते थे, अन्धश्रद्धा से सबकी पूजा करते थे। अब तो हर प्रकार की श्रीमत मिलती है। धन्धा भी वही करते हैं जो कोई बिरला व्यापारी करे। जैसे हुनर सीखना होता है। यह है मनुष्य को देवता बनाने का हुनर। इस पर ध्यान देना है।

 

बाप रोज़ अमृतवेले आकर पढ़ाते हैं तो उस समय बाप के सामने सब सेन्टर्स के बच्चे हैं। बाप कहते हैं मैं तुम सभी बच्चों को याद करता हूँ इसमें माया मुझे कोई विघ्न नहीं डालती है। तुम बच्चे मुझे घड़ी-घड़ी भूल जाते हो, माया तुमको विघ्न डालती है। कोई-कोई लिखते हैं बाबा हम बच्चों को न भुलाना। परन्तु मैं तो कभी नहीं भूलता। मुझे तो सबको वापिस ले जाना है। मैं रोज़ यादप्यार देता हूँ। बच्चों को खजाना भेज देता हूँ। सबको ललकार करता रहता हूँ कि बाप की श्रीमत पर बेहद का वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। इसमें ग़फलत वा बहाना मत करो। कहते हैं कर्मबन्धन है। यह तो तुम्हारा है, बाप क्या करे। बाप कहते हैं योग में रहो तो कर्मबन्धन कटता जायेगा। तुमसे विकर्म नहीं होंगे। आधाकल्प तुम विकर्मों से छूट जायेंगे। फिर ऊंच पद पाने के लिए सर्विस भी करनी है। मम्मा बाबा कैसे अच्छी रीति समझाते हैं। कोई-कोई बच्चे भी अच्छी सर्विस करते हैं। तुमसे कोई पूछे तुम्हारी एम आब्जेक्ट क्या है, तो यह कार्ड हाथ में दे दो। उससे सब समझ जायेंगे कि यह किस धन्धे में लगे हुए हैं। यह तो बड़े व्यापारी हैं। हर एक की रग देखनी है। सबसे अच्छा है चक्र पर समझाना। कैसा भी आदमी हो, चक्र को देख समझ जायेंगे कि बरोबर यह कलियुग है अब सतयुग आने वाला है। क्रिश्चियन को भी समझा सकते हो यह हेल है, अब हेविन स्थापन होने वाला है। वह तो जरूर हेविनली गॉड फादर ही करेगा। परन्तु मनुष्यों की बुद्धि ऐसी हो गई है जो अपने को नर्कवासी भी नहीं समझते हैं। कहते भी हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ तो समझना चाहिए जरूर हम नर्क में हैं। अभी कलियुग है, पुनर्जन्म भी जरूर कलियुग में ही लेंगे। स्वर्ग है कहाँ? बाबा तो कहते हैं शमशान में जाकर समझाओ। परन्तु बच्चे झट थक जाते हैं। समझाना चाहिए अभी तो कलियुग है। अगर स्वर्ग में पुनर्जन्म लेने चाहते हो तो आकर समझो। हम भी पुरुषार्थ कर रहे हैं, जो फिर नर्क रहेगा ही नहीं। स्वर्ग में चलना है? वहाँ विष नहीं मिलेगा। उसको यहाँ ही छोड़ना पड़ेगा। कैसे? यह बाबा युक्तियां बताते हैं।

 

नेपाल में विजय अष्टमी के दिन छोटे बड़े सब शिकार करते हैं। तुमको भी सबको समझाना है, घर-घर में शिव का और लक्ष्मी-नारायण का चित्र जरूर रखना है। नौकरों को मिस्त्रियों को भी समझाना है कि मौत सामने खड़ा है। बाप को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा। बाप सभी की मनोकामना स्वर्ग के लिए पूरी करते हैं। योग लगाने से बाप साक्षात्कार भी करा सकते हैं। बाप है ही कल्याणकारी तो बच्चों को भी ऐसा कल्याणकारी बनना है। गरीब ही अपना कल्याण करते हैं। साहूकार मुश्किल ही करते हैं। सन्यासी भी जो नामीग्रामी हैं वह अन्त में आयेंगे। अब बहुत करके गरीब साधारण ही ज्ञान लेते हैं। बाप भी साधारण तन में आता है, गरीब में नहीं। अगर यह भी गरीब होता तो कुछ कर नहीं सकता। गरीब इतनों की सम्भाल कैसे करते! तो युक्ति देखो कैसी रखी है। साधारण ही हो जो बलि भी चढ़े और इतने सबकी परवरिश भी होती रहे। इनके साथ-साथ और भी बहुत बलि चढ़ कर वारिस बन गये। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) बाप ने जो मनुष्य को देवता बनाने का हुनर सिखाया है, उसमें ही लगना है।

 

2) श्रीमत पर चलने में गफलत वा बहाना नहीं करना है। कर्मबन्धनों से छूटने के लिए याद में रहना है।

 

वरदान:- स्वमान के साथ निर्मान बन सबको मान देने वाली पूज्यनीय आत्मा भव

 

जो बच्चे अविनाशी स्वमान में रहते हैं वही पूज्य आत्मा बनते हैं। लेकिन जितना स्वमान उतना निर्मान। स्वमान का अभिमान नहीं। ऐसे नहीं हम तो ऊंच बन गये, दूसरे छोटे हैं या उनके प्रति घृणा भाव हो, नहीं। कैसी भी आत्मायें हों लेकिन सबके प्रति रहम की दृष्टि हो, अभिमान की नहीं। ऐसी निर्मान आत्मायें हर एक को आत्मिक दृष्टि से, ऊंची दृष्टि से देखते हुए मान देंगी। अपमान नहीं करेंगी।

 

स्लोगन:- बापदादा के स्नेह की दुआओं में पलते, उड़ते चलो - यही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है।