23-03-08 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 08-05-69 मधुबन
"मंसा वाचा कर्मणा को ठीक करने की युक्ति"
आज बाप खास एक विशेष कार्य के लिये आये हैं। यहाँ जो भी सभी बैठे हैं वह सभी अपने को निश्चय बुद्धि समझते हैं? नम्बरवार हैं। भले नम्बरवार हैं लेकिन निश्चयबुद्धि हैं? निश्चय बुद्धि का टाइटिल दे सकते हैं। निश्चय में नम्बर होते हैं वा पुरुषार्थ में नम्बर होते हैं? निश्चय में कब भी परसेन्टेज नहीं होती है, न निश्चय में नम्बरवार होते हैं। पुरुषार्थ की स्टेज में नम्बर हो सकते हैं। निश्चय बुद्धि में नम्बर नहीं होते। वा तो है निश्चय वा संशय। निश्चय में अगर जरा भी संशय है चाहे मन्सा में, चाहे वाचा में अथवा कर्मणा में, लेकिन मन्सा का एक भी संकल्प संशय का है तो संशय बुद्धि कहेंगे। ऐसे निश्चय बुद्धि सभी हैं? निश्चय बुद्धि की मुख्य परख कौन-सी है? परखने की कोई मुख्य बात है? आपके सामने काई नया आये उनकी हिस्ट्री आदि आप ने सुनी नहीं है, उनको कैसे परख सकेंगे? (वायब्रेशन आयेगा) कौन-सा वायब्रेशन आवेगा जिससे परख होगी? अभी यह प्रैक्टिस करनी है। क्योंकि वर्तमान समय बहुत प्रजा बढ़ती रहेगी। तो प्रजा और नजदीक वाले को परखने के लिए बहुत प्रैक्टिस चाहिए। परखने की मुख्य बात यह है कि उनके नयनों से ऐसा महसूस होगा जैसे कोई निशाने तरफ किसका खास अटेन्शन होता है तो उनके नयन कैसे होते हैं? तीर लगाने वाले वा निशाना लगाने वाले जो मिलेट्री के होते हैं, वो पूरा निशाना रखते हैं। उनके नयन, उनकी वृत्ति उस समय एक ही तरफ होगी। तो जो ऐसा निश्चय बुद्धि पक्का होगा उनके चेहरे से ऐसे महसूस होगा जैसेकि कोई निशान-बाज है। आप लोगों को मुख्य शिक्षा मिलती है एक निशान को देखो अर्थात् बिन्दी को देखो। तो बिन्दी को देखना भी निशान को देखना है। तो निश्चय बुद्धि की निशानी क्या होगी? पूरा निशाना होगा। निशान जरा भी हिल जाता है तो फिर हार हो जाती है। निश्चय बुद्धि के नयनों से ऐसे महसूस होगा जैसे देखते हुए भी कुछ और देखते हैं। उनके बोल भी वही निकलेंगे। यह है निश्चय बुद्धि की निशानी। निशान-बाज की स्थिति नशे वाली होती है तो निश्चय बुद्धि की परख है निशाना और उनकी स्थिति नशे वाली होगी। यह प्रैक्टिस अभी करो। फिर जज करो हमारी परख ठीक है वा नहीं। फिर प्रैक्टिस करते-करते परख यथार्थ हो जावेगी। दृष्टि में सृष्टि कहा जाता है ना। तो आप उनकी दृष्टि से पूरी सृष्टि को जान सकते हो।
मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों को ठीक करने लिये सिर्फ तीन अक्षर याद रहे। वह तीन अक्षर कौन से हैं? यह तीन अक्षर रोज मुरली में भी आते है। मन्सा के लिए है निराकारी। वाचा के लिए है निरहंकारी। कर्मणा के लिए है निर्विकारी। देवताओं का सबूत वाचा और कर्मणा का यही है ना। तो निराकारी, निरहंकारी और निर्विकारी यह तीन बातें अगर याद रखी तो मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों ही बहुत अच्छे रहेंगे। जितना निराकारी स्थिति में रहेंगे उतना ही निरहंकारी और निर्विकारी भी रहेंगे। विकार की कोई बदबू नहीं रहेगी। यह है मुख्य पुरुषार्थ। यह तीन बातें याद रखने से क्या बन जावेंगे? त्रिकालदर्शी भी बन जायेंगे। और भविष्य में फिर विश्व के मालिक। अभी बनेंगे त्रिलोकीनाथ और त्रिकालदर्शी। त्रिलोकीनाथ का अर्थ तो समझा है। जो तीनों लोकों के जान के सिमरण करते हैं वह हैं त्रिलोकीनाथ क्योंकि बाप के साथ आप सभी बच्चे भी हैं। अच्छा!
जादू मंत्र का दर्पण - 17-05-69
इस अव्यक्त मिलन के मूल्य को जानते हो? अव्यक्त रूप में मिलना और व्यक्त रूप में मिलना दोनों में फर्क है। अव्यक्त मिलन का मूल्य है व्यक्त भाव को छोड़ना। यह मूल्य जो जितना देता है उतना ही अव्यक्त अमूल्य मिलन का अनुभव करता है। अभी हरेक अपने से पूछे कि हमने कहाँ तक और कितना समय दिया है। वर्तमान समय अव्यक्त स्थिति में स्थित होने की ही आवश्यकता है। लेकिन रिजल्ट क्या है वह हरेक खुद भी जान सकता है। और एक दो के रिजल्ट को भी अच्छी रीति परख सकते हैं। इसलिए अव्यक्त स्थिति की जो आवश्यकता है उनको पूरा करना है। अव्यक्त स्थिति की परख आप सभी के जीवन में क्या होगी, वह मालूम है? उनके हर कर्म में एक तो अलौकिकता और दूसरा हर कर्म करते हर कर्मेन्द्रियों से अतीन्द्रिय सुख की महसूसता आवेगी। उनके नयन, चैन, उनकी चलन अतीन्द्रिय सुख में हर वक्त रहेगी। अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख की झलक उनके हर कर्म में देखने में आयेगी। जिससे मालूम पड़ेगा यह व्यक्त में होते अव्यक्त स्थिति में स्थित हैं। अगर यह दोनों ही चीज़ें अपने कर्म में देखते हो तो समझना चाहिए कि अव्यक्त स्थिति में स्थित हैं। अगर नहीं हैं तो फिर कमी समझ पुरुषार्थ करना चाहिए। अव्यक्त स्थिति को प्राप्त होने के लिये शुरू से लेकर एक स्लोगन सुनाते आते हैं। अगर वह याद रहे तो कभी भी कोई माया के विघ्नों में हार नहीं हो सकती है। ऐसा सर्वोत्तम स्लोगन हरेक को याद है? हर मुरली में भिन्न-भिन्न रूप से वह स्लोगन आता ही है। मनमनाभव, हम बाप की सन्तान हैं, वह तो हैं ही। लेकिन पुरुषार्थ करते-करते जो माया के विघ्न आते हैं उन पर विजय प्राप्त करने के लिए कौन-सा स्लोगन है? "स्वर्ग का स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है"। और संगम के समय बाप का खजाना जन्म सिद्ध अधिकार है। यह स्लोगन भूल गये हो। अधिकार भूल गये हो तो क्या होगा? हम किस-किस चीजों के अधिकारी हैं। वह तो जानते हो। लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें जन्म सिद्ध अधिकार हैं। जब अपने को अधिकारी समझेंगे तो माया के अधीन नहीं होंगे। अधीन होने से बचने लिये अपने को अधिकारी समझना है। पहले संगमयुग के सुख के अधिकारी हैं और फिर भविष्य में स्वर्ग के सुखों के अधिकारी हैं। तो अपना अधिकार भूलो नहीं। जब अपना अधिकार भूल जाते हो तब कोई न कोई बात के अधीन होते हो और जो पर-अधीन होते हैं वह कभी भी सुखी नहीं रह सकते। पर-अधीन हर बात में मन्सा, वाचा, कर्मणा दु:ख की प्राप्ति में रहते और जो अधिकारी हैं वह अधिकार के नशे और खुशी में रहते हैं। और खुशी के कारण सुखों की सम्पत्ति उन्हों के गले में माला के रूप में पिरोई हुए होती है। सतयुगी सुखों का पता है? सतयुग में खिलौने कैसे होते हैं? वहाँ रत्नों से खेलेंगे। आप लोगों ने सतयुगी सुखों की लिस्ट और कलियुगी दु:खो की लिस्ट तो लगाई है। लेकिन संगम के सुखों की लिस्ट बनायेंगे तो इससे भी दुगुने हो जायेंगे। वही सतयुगी संस्कार अभी भरने हैं। जैसे छोटे बच्चे होते हैं सारा दिन खेल में ही मस्त होते हैं, कोई भी बात का फिक्र नहीं होता है इसी रीति हर वक्त सुखों की लिस्ट, रत्नों की लिस्ट बुद्धि में दौड़ाते रहो अथवा इन सुखों रूपी रत्नों से खेलते रहो तो कभी भी ड्रामा के खेल में हार न हो। अभी तो कहाँ-कहाँ हार भी हो जाती है।
बापदादा का स्नेह बच्चों से कितना है? बापदादा का स्नेह अविनाशी है। और बच्चों का स्नेह कभी कैसा, कभी कैसा रहता है। एकरस नहीं है। कभी तो बहुत स्नेहमूर्त देखने में आते हैं। कभी स्नेह की मूर्ति की बजाय कौन-सी मूर्त दिखाई पड़ती है? वा तो स्नेही है वा तो संकटमई। अपने मूर्त को देखने लिये क्या अपने पास रखना चाहिए? दर्पण। दर्पण हरेक पास है? अगर दर्पण होगा तो अपना मुखड़ा देखते रहेंगे और देखने से जो भी कमी होगी उनको भरते रहेंगे। अगर दर्पण ही नहीं होगा तो कमी को भर नहीं सकेंगे। इसलिये हर वक्त अपने पास दर्पण रखना। लेकिन यह दर्पण ऐसा है जो आप समझेंगे हमारे पास है परन्तु बीच-बीच में गायब भी हो जाता है। जादू मंत्र का दर्पण है। एक सेकेण्ड में गायब हो जाता है। दर्पण कैसे अविनाशी कायम रह सकता है? उसके लिये मुख्य क्वालीफिकेशन कौन-सी होनी चाहिए? जो अर्पणमय होगा उनके पास दर्पण रहेगा। अर्पण नहीं तो दर्पण भी अविनाशी नहीं रह सकता। दर्पण रखने लिये पहले अपने को पूरा अर्पण करना पड़ेगा। जिसको दूसरे शब्दों में सर्वस्व त्यागी कहते हैं। सर्वस्व त्यागी के पास दर्पण होता है। अव्यक्त मिलन भी वही कर सकता है जो अव्यक्त स्थिति में हो। वर्तमान समय अव्यक्त स्थिति में ज्यादा कमी देखने में आती है। दो बातों में तो ठीक है बाकी तीसरी बात की कमी है। एक है कथन दूसरा मंथन। यह दो बातें तो ठीक है ना। यह दोनों सहज हैं। तीसरी बात कुछ सूक्ष्म है। वर्तमान समय जो रिजल्ट देखते हैं मंथन से कथन ज्यादा है। बाकी तीसरी बात कौन-सी है? एक होता है मंथन करना। दूसरा होता है मग्न रहना। वह होती है बिल्कुल लवलीन अवस्था। तो वर्तमान समय मंथन से भी ज्यादा कथन है। पहला नम्बर उसमें विजयी है। दूसरा नम्बर मंथन में, तीसरा नम्बर है मग्न अवस्था में रहना। इस अवस्था की कमी दिखाई पड़ती है। जिसको भरना है। जो मगन अवस्था में होंगे उन्हों की चाल-चलन से क्या देखने में आयेगा? अलौकिकता और अतीन्द्रिय सुख। मग्न अवस्था वाले का यह गुण हर चलन से मालूम होगा। तो यह जो कमी है उसे भरने का तीव्र पुरुषार्थ करना है। पुरुषार्थी तो सभी हैं। तब तो यहाँ तक पहुँचे हैं। लेकिन अभी पुरुषार्थी बनने का समय नहीं है। अभी तीव्र पुरुषार्थी बनने का समय है। बनना है तीव्र पुरुषार्थी और बनेंगे पुरुषार्थी तो क्या होगा? मंजिल से दूर रह जायेंगे। अभी तीव्र पुरुषार्थी बनने का समय चल रहा है। इससे जितना लाभ उठाना चाहिए उतना उठाते हैं वा नहीं वह हरेक को चेक करना है। इसलिए कहा है कि अपने पास हरदम दर्पण रखो तो कमी का झट मालूम होगा। और अपने पुरुषार्थ को तीव्र करते आगे चलते रहेंगे।
अच्छा - आज कुमारियों की सर्विस की तिलक का दिन है। जैसे आप लोगों के म्यूजियम में ताजपोशी का चित्र दिखाया है ना लेकिन आप की सर्विस की तिलक के दिवस पर देखो कितनी बड़ी सभा इकट्ठी हुई है। इतनी खुशी होती है? लेकिन यह याद रखना जितने सभी के आगे तिलक लगा रहे हो, इतने सभी आप सभी को देखेंगे। सभी के बीच में तिलक लग रहा है। यह नहीं भूलना। इतना हिम्मतवान बनना है। इस तिलक की लाज रखनी है। तिलक की लाज माना ब्राह्मण कुल की लाज। ब्राह्मण कुल की मर्यादा क्या है, सुनाया ना। जो ऐसे पुरुषोत्तम बनने की हिम्मत वाले हैं वह तिलक लगा सकते हैं। यह तिलक साधारण नहीं है। वहाँ भी इतनी सारी सभा देखेगी। आप सभी ब्राह्मण इकट्ठे हुए हो कन्याओं की सर्विस के तिलक पर। सर्विस करने वालों का एक विशेष गुण का अटेन्शन रखना पड़ता है। जो आलराउन्ड सर्विस करने वाले होते हैं, उन्हों को विशेष इस बात पर ध्यान रखना है कि कैसी भी स्थिति हो लेकिन अपनी स्थिति एकरस हो। तब आलराउन्ड सर्विस की सफलता मिलेगी। (दूसरा नम्बर ट्रेनिंग क्लास जिन कुमारियों का चलना है उन सभी को बापदादा ने टीका दे मुख मीठा कराया) अच्छा-
आज सभी से नयनों द्वारा मुलाकात कर ली। दूर होते हुए भी यथा योग्य तथा शक्ति बापदादा के नजदीक हैं ही। भल कोई कितना भी दूर बैठा हो लेकिन अपने स्नेह से बापदादा के नयनों में समाया है। इसलिए नूरे रत्न कहते हैं। नूरे रत्नों से आज नयनों की मुलाकात कर रहे हैं। एक दो से सभी प्रिय है। साकार में समय प्रति समय बच्चों को यह सूचना तो मिलती ही रही है कि ऐसा समय आयेगा जो सिर्फ दूर से ही मुलाकात हो सकेगी। अब ऐसा समय देख रहे हैं। सभी की दिल होती है और बापदादा की भी दिल होती है लेकिन वह समय अब बदल रहा है। समय के साथ वह मिलन का सौभाग्य भी अब नहीं रहा है। इसलिये अब अव्यक्त रूप से ही सभी से मुलाकात कर रहे हैं। अच्छा - सभी को नमस्ते और विदाई।
वरदान:- मेरे को तेरे में परिवर्तन कर सदा हल्का रहने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
चलते-फिरते सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्तों का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या… वह सदा स्मृति में रहें क्योंकि जब बाप के बन गये, सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो हल्के (फरिश्ते) बन गये। इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द याद रहे – सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं। जहाँ मेरा आये वहाँ तेरा कह दो, फिर कोई बोझ फील नहीं होगा, सदा उड़ती कला में उड़ते रहेंगे।
स्लोगन:- बाप के ऊपर बलिहार जाने का हार पहन लो तो माया से हार नहीं होगी।