ओम् शान्ति।
बाप कहते हैं – मीठे बच्चे तुम शिवबाबा को जान गये हो। फिर यह गीत गाना तो जैसे
भक्ति मार्ग का हो जाता है। भक्ति मार्ग वाले शिवाए नम: भी कहते हैं, मात-पिता भी
कहते हैं, परन्तु जानते नहीं हैं। शिवबाबा से स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। तुम
बच्चों को तो बाप मिला है, उनसे वर्सा मिल रहा है इसलिए बाप को याद करते हो। तुमको
शिवबाबा मिला है, दुनिया को नहीं मिला है। जिनको मिला है वह भी अच्छी रीति चल नहीं
सकते। बाबा के डायरेक्शन बड़े मीठे हैं, आत्म-अभिमानी भव, देही-अभिमानी भव। बात ही
आत्माओं से करते हैं। देही-अभिमानी बाप, देही-अभिमानी बच्चों से बात करते हैं। वह
तो एक ही है। सो तो मधुबन में तुम बच्चों के साथ बैठा है। तुम बच्चे जानते हो कि
बरोबर बाप आये ही हैं पढ़ाने। यह पढ़ाई सिवाए शिवबाबा के कोई पढ़ा न सके। न ब्रह्मा,
न विष्णु। यह तो बाप ही आकर पतितों को पावन बनाते हैं, अमरकथा सुनाते हैं। सो भी यहाँ
ही सुनायेंगे ना। अमरनाथ पर तो नहीं सुनायेंगे ना। यही अमरकथा सत्य नारायण की कथा
है। बाप कहते हैं – मैं तुमको सुनाता तो यहाँ ही हूँ। बाकी यह सब हैं भक्ति मार्ग
के धक्के। सर्व का सद्गति दाता राम एक निराकार ही है। वही पतित-पावन, ज्ञान का सागर,
शान्ति का सागर है। वह आता ही तब है जब विनाश का समय होता है। सारे जगत का गुरू तो
एक परमपिता परमात्मा ही हो सकता है। वह निराकार है ना। देवताओं को भी मनुष्य कहा
जाता है। परन्तु वह दैवीगुणों वाले मनुष्य हैं इसलिए उनको देवता कहा जाता है। तुमको
अभी ज्ञान मिला है। ज्ञान मार्ग में अवस्था बड़ी मजबूत रखनी है। जितना हो सके बाप
को याद करना है। विदेही बनना है। फिर देह से प्यार ही क्यों करें! बाबा तुमको कहते
हैं शिवबाबा को याद करो फिर इनके पास आओ। मनुष्य तो समझते हैं यह दादा से मिलने जाते
हैं। यह तो तुम जानते हो शिवबाबा को याद कर हम उनसे मिलते हैं। वहाँ तो हैं ही
निराकारी आत्मायें, बिन्दी। बिन्दी से तो मिल न सकें। तो शिवबाबा से कैसे मिलेंगे
इसलिए यहाँ समझाया जाता है, हे आत्मायें अपने को आत्मा समझ बुद्धि में यह रखो कि हम
शिवबाबा से मिलते हैं। यह तो बड़ा गुह्य राज़ है ना। कइयों को शिवबाबा की याद नहीं
रहती है। बाबा समझाते हैं हमेशा शिवबाबा को याद करो। शिवबाबा आपसे मिलने आते हैं।
बस आपके बने हैं। शिवबाबा इसमें आकर ज्ञान सुनाते हैं। वह भी निराकार आत्मा है, तुम
भी आत्मा हो। एक बाप ही है जो बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो। सो तो बुद्धि से
याद करना है। हम बाप के पास आये हैं। बाबा इस पतित शरीर में आये हैं। हम सामने आने
से ही निश्चय कर देते हैं, शिवबाबा हम आपके बने हैं। मुरलियों में भी यही सुनते हो
– मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। तुम जानते हो यह वही
पतित-पावन बाप है। सच्चा-सच्चा सतगुरू वह है। अब तुम पाण्डवों की है परमपिता
परमात्मा से प्रीत बुद्धि। बाकी सभी की तो कोई न कोई के साथ विपरीत बुद्धि है।
शिवबाबा के जो बनते हैं उन्हों को तो खुशी का पारा बड़ा जोर से चढ़ा रहना चाहिए।
जितना समय नजदीक आता है, उतनी खुशी होती है। हमारे अब 84 जन्म पूरे हुए। अब यह
अन्तिम जन्म है। हम जाते हैं अपने घर। यह सीढ़ी तो बहुत अच्छी है, इसमें क्लीयर है।
तो बच्चों को सारा दिन बुद्धि चलानी चाहिए। चित्र बनाने वालों को तो बहुत विचार
सागर मंथन करना है, जो हेड्स हैं उन्हों का ख्याल चलना चाहिए। तुम तो चैलेन्ज देते
हो – सतयुगी श्रेष्ठाचारी दैवी राज्य में 9 लाख होंगे। कोई बोले इसका क्या प्रूफ
है? कहो यह तो समझ की बात है ना। सतयुग में झाड़ होगा ही छोटा। धर्म भी एक है तो
जरूर मनुष्य भी थोड़े होंगे। सीढ़ी में सारी नॉलेज आ जाती है। जैसे यह कुम्भकरण वाला
चित्र है। तो यह ऐसा बनाना चाहिए – बी.के. ज्ञान अमृत पिलाती हैं, वे विष (विकार)
मांगते हैं। बाबा मुरली में सब डायरेक्शन देते रहते हैं। हर एक चित्र की समझानी बड़ी
अच्छी है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर बोलो – यह भारत स्वर्ग था, एक धर्म था तो
कितने मनुष्य होंगे। अब कितना बड़ा झाड़ हो गया है। अब विनाश होना है। पुरानी सृष्टि
को बदलने वाला एक ही बाप है। 4-5 चित्र हैं मुख्य – जिससे किसको धक से तीर लग जाए।
ड्रामा अनुसार दिन-प्रतिदिन ज्ञान की प्वाइंट्स गुह्य होती जाती हैं। तो चित्रों
में भी चेंज होगी। बच्चों की बुद्धि में भी चेंज होती है। आगे यह थोड़ेही समझते थे
कि शिवबाबा बिन्दी है। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि पहले ऐसा क्यों नहीं बताया। बाप कहते
हैं – सब बातें पहले ही थोड़ेही समझाई जाती हैं। बाप ज्ञान का सागर है तो ज्ञान देते
ही रहेंगे। करेक्शन होती रहेगी। पहले से ही थोड़ेही बता देंगे। फिर आर्टीफिशयल हो
जाए। अचानक कोई इतफाक आदि होते रहेंगे फिर कहेंगे ड्रामा। ऐसे नहीं यह नहीं होना
चाहिए। मम्मा को तो पिछाड़ी तक रहना था, फिर मम्मा क्यों चली गई। ड्रामा में जो हुआ
सो राइट। बाबा ने भी जो कहा सो ड्रामा अनुसार कहा। ड्रामा में मेरा पार्ट ऐसा है।
बाबा भी ड्रामा पर रख देते हैं। मनुष्य कहते हैं ईश्वर की भावी। ईश्वर कहते हैं
ड्रामा की भावी। ईश्वर ने बोला या इसने बोला, ड्रामा में था। कोई उल्टा काम हुआ
ड्रामा में था, फिर सुल्टा हो जायेगा। चढ़ती कला जरूर है। चढ़ाई पर जाते हैं, कब
डगमग हो जाते हैं। यह सब माया के तूफान हैं। जब तक माया है विकल्प जरूर आयेंगे।
सतयुग में माया ही नहीं तो विकल्प की बात ही नहीं। सतयुग में कभी कर्म विकर्म नहीं
होते। बाकी थोड़े रोज़ हैं, खुशी रहती है। यह हमारा अन्तिम जन्म है। अब अमरलोक में
जाने के लिए शिवबाबा से अमरकथा सुनते हैं। यह बातें तुम ही समझते हो। वो लोग
कहाँ-कहाँ अमरनाथ पर जाकर धक्के खाते रहते हैं। यह नहीं समझते कि पार्वती को कथा
किसने सुनाई? वहाँ तो शिव का चित्र दिखाते हैं। अच्छा शिव किसमें बैठा? शिव और शंकर
दिखाते हैं। क्या शिव ने शंकर में बैठ कथा सुनाई? कुछ भी समझते नहीं हैं, भक्ति
मार्ग वाले अभी तक तीर्थ करने जाते रहते हैं। कथा भी वास्तव में बड़ी नहीं है। असुल
है मनमनाभव। बस, बीज को याद करो। ड्रामा के चक्र को याद करो। जो ज्ञान बाबा के पास
है वह ज्ञान हमारी आत्मा में भी है। वह भी ज्ञान सागर, हम आत्मा भी मास्टर ज्ञान
सागर बनते हैं। नशा चढ़ना चाहिए ना। वह हम भाइयों (आत्माओं) को सुनाते हैं।
सुनायेंगे तो शरीर द्वारा ही। इसमें संशय नहीं लाना चाहिए। बाप को याद करते-करते
सारा ज्ञान बुद्धि में आ जाता है। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे, ममत्व मिटता
जायेगा। कोई का नाम-मात्र प्यार होता है। हमारा भी ऐसा है। अभी तो हम जाते हैं
सुखधाम। यह तो जैसे सब मरे पड़े हैं, इनसे दिल क्या लगानी है। शान्तिधाम में जाकर
फिर सुखधाम में आकर राज्य करेंगे। इसको कहा जाता है पुरानी दुनिया से वैराग्य। बाप
कहते हैं – इन आंखों से जो कुछ देखते हो वह सब खत्म हो जाने का है। विनाश के बाद
स्वर्ग को देखेंगे। अब तुम बच्चों को बहुत मीठा बनना चाहिए। योग में रह कोई बात
करेंगे तो उनको बड़ी कशिश होगी। यह ज्ञान ऐसा है जो बाकी सब भूल जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान मार्ग में अपनी अवस्था बहुत मजबूत बनानी है। विदेही बनना है।
एक बाप से ही सच्ची-सच्ची प्रीत रखनी है।
2) ड्रामा की भावी पर अडोल रहना है। ड्रामा में जो हुआ सो राइट। कभी डगमग नहीं
होना है, किसी भी बात में संशय नहीं लाना है।