ओम् शान्ति।
किसकी याद में बैठे हो? यह है प्यारे ते प्यारा सम्बन्ध एक के साथ, जो सबको दु:खों
से छुड़ाने वाला है। बाप बच्चों को देखते हैं तो सब पाप कटते जाते हैं। आत्मा
सतोप्रधान तरफ जा रही है। दु:ख तो अथाह है ना। गाते भी हैं - दु:ख हर्ता, सुख कर्ता।
अब बाप तुमको सच-सच सब दु:खों से छुड़ाने आये हैं। स्वर्ग में दु:ख का नाम-निशान नहीं
होता। ऐसे बाप को याद करना बहुत जरूरी है। बाप का बच्चों के प्रति प्यार होता है
ना, यह तो तुम जानते हो बाप का किन-किन बच्चों पर प्यार है। बच्चों को समझाया है,
अपने को आत्मा समझो, देह नहीं समझो। जो अच्छे रत्न हैं वह बाप को चलते-फिरते याद
करते हैं, यह भी क्यों कहते हैं? क्योंकि तुम्हारा जन्म-जन्मान्तर से पापों का घड़ा
भरा पड़ा है। तो इस याद की यात्रा से ही तुम पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
यह भी तुम बच्चे जानते हो कि यह पुराना तन है। दु:ख आत्मा को ही मिलता है। शरीर को
चोट लगने से आत्मा को दु:ख फील होता है। आत्मा कहती है मैं रोगी, दु:खी हूँ। यह है
दु:ख की दुनिया। कहाँ भी जाओ दु:ख ही दु:ख है। सुखधाम में तो दु:ख हो न सकें। दु:ख
का नाम लिया तो गोया तुम दु:खधाम में हो। सुखधाम में तो ज़रा भी दु:ख नहीं। समय भी
बाकी थोड़ा है, इसमें पूरा पुरूषार्थ करना है बाप को याद करने का। जितना याद करते
रहेंगे उतना सतोप्रधान बनते जायेंगे। पुरूषार्थ करके अवस्था ऐसी जमानी है जो तुमको
पिछाड़ी में सिवाए एक बाप के कुछ याद न आये। एक गीत भी है - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.......
यह अन्तकाल है ना। पुरानी दुनिया दु:खधाम का अन्त है। अभी तुम सुखधाम चलने का
पुरूषार्थ करते हो। तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो। यह तो याद रहना चाहिए ना। शूद्र
को है दु:ख, हम दु:ख से निकल फिर अब चोटी पर चढ़ रहे हैं तो एक बाप को याद करना है।
मोस्ट बील्वेड बाप है। उनसे मीठी चीज़ कौन-सी होती है? आत्मा उस परमपिता परमात्मा
को ही याद करती है ना। सब आत्माओं का बाप है, उनसे मीठी इस दुनिया में कोई चीज़ हो
न सके। इतने सब ढेर बच्चे हैं, कितने में याद आते होंगे? सेकण्ड में। अच्छा, सारे
सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है? वह भी तुम बच्चों की बुद्धि में अर्थ सहित है। जैसे
कोई ड्रामा देखकर आते हैं। कोई पूछेंगे ड्रामा याद है? हाँ कहने से ही सारा बुद्धि
में आ जाता है, शुरू से लेकर अन्त तक। बाकी वह वर्णन करके सुनाने में तो समय लगेगा।
बाबा बेहद का बाबा है, उसको याद करने से ही 21 जन्मों का सुख सामने आ जाता है। बाप
से यह वर्सा मिलता है। सेकण्ड में बच्चों को बाप का वर्सा सामने आ जाता है। बच्चा
पैदा हुआ, बाप जान जाते हैं वारिस ने जन्म लिया। सारी मिलकियत याद आ जायेगी। तुम भी
अकेले अलग-अलग बच्चे हो, अलग-अलग वर्सा मिलता है ना। अलग-अलग याद करते हो। हम बेहद
बाप के वारिस हैं। सतयुग में तो एक ही बच्चा होता है। वह सारी मिलकियत का वारिस ठहरा।
बच्चों को बाप मिला और विश्व का मालिक बना, सेकेण्ड में। देरी नहीं लगती। बाप कहते
हैं तुम अपने को आत्मा समझो। फीमेल मत समझो। आत्मा तो बच्चा है ना। बाबा कहते हैं
हमें सब बच्चे याद पड़ते हैं। आत्मायें सब भाई-भाई हैं। जो भी सब धर्म वाले आते
हैं, वह कहते सब धर्म वाले भाई-भाई हैं। परन्तु समझते नहीं। अभी तुम समझते हो कि हम
बाबा के मोस्ट बील्वेड बच्चे हैं। बाप से पूरा बेहद का वर्सा जरूर मिलेगा। कैसे
लेंगे? वह भी तुम बच्चों को सेकण्ड में याद आ जाता है। हम सतोप्रधान थे फिर
तमोप्रधान बनें, अब फिर सतोप्रधान बनना है। तुम जानते हो बाबा से हमको स्वर्ग के
सुखों का वर्सा लेना है।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। देह तो विनाशी है। आत्मा ही शरीर छोड़कर चली
जाती है। फिर जाकर दूसरा नया शरीर गर्भ में लेती है। पुतला जब तैयार होता है तब
आत्मा उसमें प्रवेश करती है। परन्तु वह तो है रावण के वश। विकारों के वश जेल में
जाते हैं। वहाँ तो रावण होता ही नहीं, दु:ख की बात ही नहीं। जब बूढ़े होते हैं तब
मालूम पड़ता है - अभी यह शरीर छोड़ हम दूसरे शरीर में जाकर प्रवेश करेंगे। वहाँ तो
डर की कोई बात नहीं रहती है। यहाँ तो कितना डरते हैं। वहाँ निडर होते हैं। बाप तुम
बच्चों को अपार सुखों में ले जाते हैं। सतयुग में अपार सुख हैं, कलियुग में अपार
दु:ख हैं इसलिए इसे कहते ही हैं दु:खधाम। बाप तो कोई तकल़ीफ नहीं देते हैं। भल
गृहस्थ व्यवहार में रहो, बच्चों को सम्भालो, सिर्फ बाप को याद करो। गुरू गोसाई सबको
छोड़ो। मैं तो सब गुरूओं से बड़ा हूँ ना। वह सब मेरी रचना हैं। सिवाए मेरे और कोई
को पतित-पावन नहीं कहेंगे। क्या ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को पतित-पावन कहेंगे? नहीं।
देवताओं को भी नहीं कह सकते सिवाए मेरे। अभी तुम बच्चे गंगा को पतित-पावनी कहेंगे?
यह पानी की नदियाँ तो सदैव बहती हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्रा आदि भी तो चली आती हैं।
इनमें तो स्नान करते ही रहते हैं। बरसात पड़ती तो फ्लड आ जाती है। यह भी दु:ख हुआ
ना। अथाह दु:ख हैं, बाढ़ में देखो कितने मनुष्य मर गये। सतयुग में दु:ख की बात नहीं,
जानवरों को भी दु:ख नहीं होता है, उनकी भी अकाले मृत्यु नहीं होती। यह ड्रामा ही ऐसे
बना हुआ है। भक्ति में गाते हैं - बाबा, आप जब आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे। आते तो
हैं ना। दु:खधाम के अन्त और सुख-धाम के आदि के बीच में ही आयेंगे, परन्तु यह किसको
पता नहीं। सृष्टि की आयु कितनी होती है, यह भी नहीं जानते। बाप कितना सहज बतलाते
हैं। आगे तुम जानते थे क्या कि सृष्टि चक्र की आयु 5 हज़ार वर्ष है? वह तो लाखों
वर्ष कह देते हैं। अभी बाप ने समझाया है 1250 वर्ष का हर युग होता है। स्वास्तिका
में पूरे 4 भाग होते दिखाते हैं। ज़रा भी फ़र्क नहीं होता। विवेक भी कहता है
एक्यूरेट हिसाब होना चाहिए। पुरी में भी चावल का हाण्डा चढ़ाते हैं, तो पूरे 4
हिस्से आपेही हो जाते हैं - ऐसी युक्ति बनाई हुई है। वहाँ चावल बहुत खाते हैं।
जगन्नाथ कहो वा श्रीनाथ कहो बात एक ही है। दोनों ही काले दिखाते हैं। श्रीनाथ के
मन्दिर में घी के भण्डार होते हैं। सब घी की तली हुई अच्छी-अच्छी चीज़ें मिलती हैं।
बाहर में दुकान लग जाते हैं। कितना भोग लगता होगा। सब यात्री जाकर दुकानदारों से
लेते हैं। जगन्नाथ में फिर चावल ही चावल होते हैं। वह जगत नाथ, वह श्रीनाथ। सुखधाम
और दु:खधाम को दिखाते हैं। श्रीनाथ सुखधाम का था, वह दु:खधाम का। काले तो इस समय बन
गये हैं - काम चिता पर चढ़कर। जगन्नाथ को सिर्फ चावल का भोग लगाते हैं। इनको गरीब,
उनको साहूकार दिखाते हैं। ज्ञान का सागर एक बाप ही है। भक्ति को कहा जाता है अज्ञान,
उनसे कुछ मिलता नहीं। वहाँ सिर्फ गुरू लोगों की आमदनी बहुत होती, होशियार होगा, उनसे
कोई सीखेगा तो वह कहेंगे यह हमारा गुरू है। उसने हमको यह सिखाया है। वह सब जिस्मानी
हैं, जन्म लेने वाले।
अभी तुम्हारे साथ कौन है? विचित्र बाप। वह कहते हैं यह मेरा शरीर नहीं है। यह
तुम्हारे इस दादा का शरीर है, जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं, इनके बहुत जन्मों के
अन्त में मैं इसमें प्रवेश होता हूँ, तुमको सुखधाम ले जाने, इसको गऊमुख भी कह देते
हैं। गऊमुख पर कितना दूर-दूर से आते हैं। यहाँ भी गऊ मुख है। पहाड़ से पानी तो जरूर
आयेगा। कुएं में भी रोज़-रोज़ पानी पहाड़ से आता है, वह कभी बन्द नहीं होता। पानी
आता ही रहता है। कहाँ से भी नाला निकला तो उनको गंगा जल कह देंगे। वहाँ जाकर स्नान
करते हैं। गंगा जल समझते हैं लेकिन पतित से पावन इस पानी से थोड़ेही बनेंगे। बाप
कहते हैं पतित-पावन मैं हूँ, हे आत्मायें मामेकम् याद करो। देह सहित देह के सभी
सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझकर मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप
भस्म हो जायें। बाप तुमको जन्म-जन्मान्तर के पापों से छुड़ाते हैं। इस समय तो दुनिया
में सभी पाप करते रहते हैं, कर्मभोग है ना। अगले जन्म में पाप किया है, 63 जन्म का
हिसाब-किताब है। थोड़ी-थोड़ी कला कम होती जाती है। जैसे चन्द्रमा की कलायें कम होती
हैं ना। यह फिर है बेहद का दिन-रात। अभी सारी दुनिया पर, उसमें भी खास भारत पर राहू
की दशा बैठी हुई है। राहू का ग्रहण लगा हुआ है। अभी तुम बच्चे श्याम से सुन्दर बन
रहे हो इसलिए श्रीकृष्ण को भी श्याम-सुन्दर कहते हैं। सचमुच काला बना देते हैं। काम
चिता पर चढ़े हैं तो निशानी दिखा दी है। परन्तु मनुष्यों की कुछ बुद्धि चलती नहीं।
एक सांवरा, दूसरा गोरा कर देते हैं। अभी तुम गोरा बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो।
सतोप्रधान बनने का पुरूषार्थ करेंगे तब तो बनेंगे ना, इसमें तकल़ीफ की बात नहीं। यह
ज्ञान अभी तुम सुनते हो फिर प्राय:लोप हो जाता है। भल गीता पढ़कर सुनायेंगे परन्तु
यह ज्ञान तो सुना न सकें। वह हुआ भक्ति मार्ग के लिए पुस्तक। भक्ति मार्ग के लिए
ढेर सामग्री है, ढेर शास्त्र हैं, कोई क्या पढ़ते, कोई क्या करते। राम के मन्दिर
में भी जाते हैं, राम को भी काला कर दिया है। विचार करना चाहिए कि काला क्यों बनाते
हैं? काली कलकत्ते वाली भी है, माँ-माँ कह हैरान होते हैं, सबसे काली वह है और बहुत
भयानक दिखाते हैं। उनको फिर माता कहते हैं। तुम्हारे यह ज्ञान बाण, ज्ञान कटारी आदि
हैं। तो उन्हों ने फिर हथियार दे दिये हैं। वास्तव में काली पर पहले मनुष्यों की बलि
चढ़ाते थे। अभी गवर्मेन्ट ने बन्द कर दिया है। आगे सिंध में देवी का मन्दिर नहीं
था। जब बाम फटा तो एक ब्राह्मण बोला काली ने हमें आवाज़ दिया है - हमारा मन्दिर है
नहीं, जल्दी बनाओ, नहीं तो और भी बम फटेंगे। बस, ढेर पैसे इकटठे हो गये, मन्दिर बन
गया। अभी देखो ढेर मन्दिर हैं। कितनी जगह भटकते हैं। बाप तुमको इन सब बातों से
छुड़ाने के लिए समझाते हैं, किसकी ग्लानि नहीं करते हैं। बाप ड्रामा समझाते हैं। यह
सृष्टि चक्र कैसे बना हुआ है। जो कुछ तुमने देखा वह फिर होगा। जो चीज़ नहीं है वह
बनती है। तुम समझ गये हो हमारा राज्य था, वह हमने गंवाया है। अब फिर बाप कहते हैं -
बच्चे, नर से नारायण बनना है तो पुरूषार्थ करो। भक्ति मार्ग में तुम बहुत कथायें
सुनते आये हो। अमरकथा सुनी फिर कोई अमर बनें? किसको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला? यह
बाप बैठकर समझाते हैं। इन आंखों से कुछ भी ईविल न देखो। सिविल आंखों से देखो,
क्रिमिनल से नहीं। इस पुरानी दुनिया को न देखो। यह तो खलास हो जानी है। बाप कहते
हैं - मीठे-मीठे बच्चों, हम तुमको राज्य देकर जाते हैं 21 जन्म के लिए। वहाँ और कोई
का राज्य होता नहीं। दु:ख का नाम नहीं, तुम बड़े सुखी और धनवान होते हो। यहाँ तो
मनुष्य कितना भूख मरते रहते हैं। वहाँ तो सारे विश्व में तुम राज्य करते हो। कितनी
थोड़ी जमीन चाहिए। छोटा बगीचा फिर वृद्धि होते-होते कलियुग अन्त तक कितना बड़ा हो
जाता है और 5 विकारों की प्रवेशता के कारण वह कांटों का जंगल बन जाता है। बाप कहते
हैं काम महाशत्रु है इनसे तुम आदि, मध्य, अन्त दु:ख पाते हो। ज्ञान और भक्ति को भी
अब तुमने समझा है। विनाश सामने खड़ा है, इसलिए अब जल्दी-जल्दी पुरूषार्थ करना है।
नहीं तो पाप भस्म नहीं होंगे। बाप की याद से ही पाप कटेंगे। पतित-पावन एक बाप ही
है। कल्प पहले जिन्होंने पुरूषार्थ किया है वह करके ही दिखायेंगे। ठण्डे मत बनो।
सिवाए एक बाप के और कोई को याद न करो। सब दु:ख देने वाले हैं। जो सदा सुख देने वाला
है, उनको याद रखो, इसमें ग़फलत नही करनी है। याद नहीं करेंगे तो पावन कैसे बनेंगे?
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।