18-02-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे -
सुख देने वाले एक बाप को याद करो, इस थोड़े समय में योगबल जमा करो तो अन्त में
बहुत काम आयेगा''
प्रश्नः-
बेहद के
वैरागी बच्चे, तुम्हें कौन सी स्मृति सदा रहनी चाहिए?
उत्तर:-
यह हमारा
छी-छी चोला है, इसे छोड़ वापिस घर जाना है - यह स्मृति सदा रहे। बाप और वर्सा
याद रहे, दूसरा कुछ भी याद न आये। यह है बेहद का वैराग्य। कर्म करते याद में
रहने का ऐसा पुरूषार्थ करना है जो पापों का बोझा सिर से उतर जाये। आत्मा
तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाये।
ओम् शान्ति।
बाप बच्चों
को रोज़ बहुत सहज बातें समझाते हैं। यह है ईश्वरीय पाठशाला। बरोबर गीता में भी
कहते हैं भगवानुवाच। भगवान बाप सबका एक है। सब भगवान नहीं हो सकते। हाँ सब बच्चे
हो सकते हैं एक बाप के। यह जरूर बुद्धि में आना चाहिए कि बाप स्वर्ग नई दुनिया
की स्थापना करने वाला है। उस बाप से हमको स्वर्ग का वर्सा जरूर मिला होगा। भारत
में ही शिव जयन्ती गाई जाती है। परन्तु शिव जयन्ती कैसे होती है, यह तो बाप ही
आकर समझाते हैं। बाप आते हैं कल्प के संगमयुग पर। बच्चों को फिर से पतित से
पावन बनाने अर्थात् वर्सा देने। इस समय सबको रावण का श्राप है इसलिए सब दु:खी
हैं। अभी कलियुगी पुरानी दुनिया है। यह हमेशा याद रखो कि हम ब्रह्मा मुख वंशावली
ब्राह्मण हैं। जो भी अपने को ब्रह्माकुमार कुमारी समझते हैं, उनको जरूर यह समझना
चाहिए कि कल्प-कल्प डाडे से ब्रह्मा द्वारा वर्सा लेते हैं। इतने ढेर बच्चे और
कोई को हो नहीं सकते। वह है सबका बाप। ब्रह्मा भी बच्चा है। सब बच्चों को वर्सा
डाडे से मिलता है। उनका वर्सा है सतयुग की राजधानी। यह बेहद का बाप जब स्वर्ग
का रचयिता है तो जरूर हमको स्वर्ग की राजाई होनी चाहिए। परन्तु यह भूल गये हैं।
हमको स्वर्ग की बादशाही थी। परन्तु निराकार बाप कैसे देंगे, जरूर ब्रह्मा द्वारा
देंगे। भारत में इनका राज्य था। अभी कल्प का संगम है। संगम पर ब्रह्मा है तब तो
बी.के. कहलाते हैं। अन्धश्रद्धा की कोई बात हो नहीं सकती। एडाप्शन है। हम
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। ब्रह्मा शिवबाबा का बच्चा है, हमको शिवबाबा से फिर
से स्वर्ग की बादशाही मिल रही है। पहले भी मिली थी, जिसको 5 हजार वर्ष हुए। हम
देवी देवता धर्म के थे। पिछाड़ी तक वृद्धि होती रहती है। जैसे क्राइस्ट आया,
क्रिश्चियन धर्म अभी तक है। वृद्धि होती रहती है। वे जानते हैं कि क्राइस्ट
द्वारा हम क्रिश्चियन बनें। आज से 2 हजार वर्ष पहले क्राइस्ट आया था। अब वृद्धि
हो रही है। पहले-पहले सतोप्रधान फिर रजो, तमो में आना है। तुम सतयुग में
सतोप्रधान थे फिर रजो, तमो में आये हो। तमोप्रधान सृष्टि से फिर सतोप्रधान जरूर
होती है। नई दुनिया में आदि सनातन देवी देवता धर्म था। मुख्य धर्म हैं चार।
तुम्हारा धर्म आधाकल्प चलता है। यहाँ भी तुम उस धर्म के हो। लेकिन विकारी होने
के कारण तुम अपने को देवी देवता नहीं कहलाते हो। तुम थे आदि सनातन देवी देवता
धर्म के परन्तु वाम मार्ग में जाने के कारण तुम पतित बने हो, इसलिए अपने को
हिन्दू कह देते हैं। अब तुम ब्राह्मण बने हो। ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा। फिर हो
तुम ब्राह्मण। तुम ब्राह्मणों का ऊंचे ते ऊंचा वर्ण है। ब्रह्मा के बच्चे बने
हो। परन्तु वर्सा ब्रह्मा से नहीं मिलता है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की
स्थापना कर रहे हैं। तुम्हारी आत्मा अब बाप को जान गई है। बाप कहते हैं कि मेरे
द्वारा मेरे को जानने से सारे सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त की नॉलेज समझ लेंगे।
वह ज्ञान मेरे को ही है। मैं ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर, पवित्रता का सागर
हूँ। 21 जन्म तुम पवित्र बनते हो फिर विषय सागर में पड़ जाते हो। अभी ज्ञान का
सागर बाप तुमको पतित से पावन बनाते हैं। कोई गंगा का पानी पावन नहीं बना सकता।
स्नान करने जाते हैं परन्तु वह पानी कोई पतित-पावन नहीं है। यह नदियाँ तो सतयुग
में भी हैं, तो कलियुग में भी हैं। पानी का फ़र्क नहीं रहता। कहते भी हैं “सर्व
का सद्गति दाता एक राम।'' वही ज्ञान का सागर पतित-पावन है।
बाबा आकर ज्ञान समझाते हैं जिससे तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। सतयुग त्रेता
में भक्ति शास्त्र आदि कुछ होते नहीं हैं। तुम बाप से वर्सा लेते हो सदा सुख
का। ऐसे नहीं वहाँ तुमको गंगा स्नान करना है वा कोई यात्रा करनी है। तुम्हारी
यह है रूहानी यात्रा जो कोई मनुष्य सिखला नहीं सकते। बाप है सब आत्माओं का बाप,
जिस्मानी बाप तो अनेक हैं। रूहानी बाप एक है। यह पक्का-पक्का याद कर लो। बाबा
भी पूछते हैं तुमको कितने बाप हैं तो मूँझ जाते हैं कि यह क्या पूछते हैं? बाप
तो सबका एक होता है। दो तीन बाप कैसे होंगे। बाप समझाते हैं उस परमात्मा बाप को
याद करते हो दु:ख में। दु:ख में हमेशा कहते हो हे परमपिता परमात्मा हमको दु:ख
से छुड़ाओ। तो दो बाप हुए ना। एक जिस्मानी बाप, दूसरा रूहानी बाप। जिसकी महिमा
गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे...तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे। लौकिक माँ
बाप से सुख घनेरे नहीं मिलते हैं। जब दु:ख होता है तो उस बाप का सिमरण करते
हैं। यह बाप ही ऐसा प्रश्न पूछते हैं, दूसरा तो कोई पूछ न सके।
भक्ति मार्ग में तुम गाते हो बाबा आप आयेंगे तो हम आपके सिवाए और कोई की नहीं
सुनेंगे। और तो सब दु:ख देते हैं, आप ही सुख देने वाले हो। तो बाप आकर याद
दिलाते हैं कि तुम क्या कहते थे। तुम जानते हो, तुम ही ब्रह्माकुमार कुमारी
कहलाते हो। मनुष्य की ऐसी पत्थरबुद्धि है जो यह भी नहीं समझते कि बी.के. क्या
हैं! मम्मा बाबा कौन हैं! यह कोई साधू सन्त नहीं हैं। साधू संन्यासी को गुरू
कहेंगे, मात-पिता नहीं कहेंगे। यह बाप तो आकर दैवी धर्म का राज्य स्थापन करते
हैं। जहाँ यह लक्ष्मी नारायण राजा रानी राज्य करते थे। पहले पवित्र थे फिर
अपवित्र बनते हैं। जो पूज्य थे, वे फिर 84 जन्म लेते हैं। पहले बेहद के बाप का
21 जन्म सुख का वर्सा मिलता है। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। यह तुम्हारा
गायन है। तुम कुमारियाँ हो, गृहस्थी नहीं हो। भल बड़े हैं लेकिन मरजीवा बन, सब
बाप के बच्चे बच्चियाँ बने हो। प्रजापिता ब्रह्मा के ढेर बच्चे हैं और वृद्धि
को पाते रहेंगे। फिर यह सब देवता बनेंगे। यह शिवबाबा का यज्ञ है। इसको कहा जाता
है राजस्व यज्ञ, स्वराज्य पाने का यज्ञ। आत्माओं को बाप से स्वर्ग के राज्य का
वर्सा मिलता है। इस राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ में क्या करना है? शरीर सहित जो
कुछ है, वह बलिहार करना है अथवा स्वाहा करना है। इस यज्ञ से तो तुम फिर राज्य
पायेंगे। बाप याद दिलाते हैं कि भक्ति मार्ग में तुम गाते थे कि हे बाबा, आप जब
आयेंगे तो हम बलिहार जायेंगे, वारी जायेंगे। अब तुम अपने को सब ब्र.कु. कुमारियाँ
तो समझते हो। भल रहो अपने गृहस्थ व्यवहार में परन्तु पावन रहना होगा, कमल पुष्प
समान। अपने को आत्मा समझो। हम बाबा के बच्चे हैं। तुम आत्मायें हो आशिक। बाप
कहते हैं मैं हूँ एक माशूक। तुम मुझ माशूक को पुकारते रहते हो। तुम आधाकल्प के
आशिक हो जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वह निराकार है। आत्मा भी निराकार
है जो इस शरीर द्वारा पार्ट बजाती है। भक्ति मार्ग में भी तुमको पार्ट बजाना
है। भक्ति है ही रात, अन्धियारे में मनुष्य ठोकरें खाते हैं। द्वापर से लेकर
तुमने ठोकरें खाई हैं। इस समय महादु:खी हो गये हो। अब पुरानी दुनिया का अन्त
है। यह पैसा आदि सब मिट्टी में मिल जाना है। भल कोई करोड़पति हैं, राजा हैं,
बच्चे पैदा होंगे तो समझेगा यह धन हमारे बच्चों के लिए है। हमारे पुत्र, पोत्रे
खायेंगे। बाप कहते हैं कुछ भी खायेंगे नहीं। यह दुनिया ही खत्म होने वाली है।
बाकी थोड़ा समय है। विघ्न बहुत पड़ेंगे। आपस में लड़ेंगे। पिछाड़ी में ऐसे
लड़ेंगे जो खून की नदियाँ बहेंगी। तुम्हारी तो कोई से लड़ाई नहीं है। तुम योगबल
में रहते हो। तुम याद में रहेंगे तो कोई भी तुम्हारे सामने बुरे विचार से आयेंगे
तो उनको भयंकर साक्षात्कार हो जायेगा और झट भाग जायेंगे। तुम शिवबाबा को याद
करेंगे और वे भाग जायेंगे। जो पक्के बच्चे हैं, पुरूषार्थ में रहते हैं कि मेरा
तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। बाप समझाते हैं कि हथ कार डे...बच्चों को घर को भी
सम्भालना है। परन्तु तुम आत्मायें बाप को याद करो तो पापों का बोझा भी उतर
जायेगा। सिर्फ मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे, परन्तु
नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। फिर तुम सब यह शरीर छोड़ेंगे, बाबा सभी आत्माओं को
मच्छरों सदृश्य ले जायेंगे। बाकी सारी दुनिया को सजायें खानी हैं। भारत में बाकी
थोड़े जाकर रहेंगे। उसके लिए यह महाभारत लड़ाई है। यहाँ तो बहुत वृद्धि होगी।
प्रदर्शनी, प्रोजेक्टर आदि द्वारा कितने सुनते हैं। वह प्रजा बनती जाती है। राजा
तो एक होता है बाकी होती है प्रजा। वज़ीर भी प्रजा की लाइन में आ जाता है। ढेर
प्रजा होती है। एक राजा की लाखों के अन्दाज में प्रजा होती है। तो राजा रानी को
मेहनत करनी पड़े ना।
बाप कहते - सब कुछ करते निरन्तर मुझे याद करो। जैसे आशिक-माशूक होते हैं, उन्हों
का जिस्मानी लव रहता है। तुम बच्चे इस समय आशिक हो। तुम्हारा माशूक आया हुआ है।
तुमको पढ़ा रहा है। पढ़ते-पढ़ते तुम देवता बन जायेंगे। याद से विकर्म विनाश
होंगे और तुम सदैव निरोगी भी बनेंगे। फिर 84 के चक्र को भी याद रखना है। सतयुग
में इतने जन्म, त्रेता में इतने जन्म। हम देवी देवता धर्म वालों ने पूरे 84 का
चक्र लगाया है। आगे चलकर तुम बहुत वृद्धि को पायेंगे। तुम्हारे सेन्टर्स हजारों
की अन्दाज में हो जायेंगे। गली-गली में समझाते रहेंगे कि सिर्फ बाप को और वर्से
को याद करो। अब चलो घर वापिस। यह तो छी-छी चोला है। यह है बेहद का वैराग्य।
संन्यासी तो सिर्फ हद का घरबार छोड़ देते हैं। वह हैं हठयोगी। वह राजयोग सिखला
नहीं सकते। कहते हैं - यह भक्ति भी अनादि है। बाप कहते हैं यह भक्ति तो द्वापर
से शुरू होती है। 84 पौढ़ियाँ उतरी अब तुम तमोप्रधान बने हो। तुम सो देवी देवता
थे। क्रिश्चियन कहेंगे हम सो क्रिश्चियन थे। तुम जानते हो हम सतयुग में थे। बाप
ने देवी देवता धर्म स्थापन किया। यह जो लक्ष्मी-नारायण थे वह अब ब्राह्मण बने
हैं। सतयुग में एक राजा रानी थे, एक भाषा थी। यह भी बच्चों ने साक्षात्कार किया
है। तुम हो सब आदि सनातन धर्म के। तुम ही 84 जन्म लेते हो। वह जो कहते आत्मा
निर्लेप है वा ईश्वर सर्वव्यापी है, यह रांग है। सबमें आत्मा है, फिर कैसे कहते
हो हमारे में परमात्मा है। फिर तो सब फादर्स हो गये। कितने तमोप्रधान बन गये
हैं। आगे जो सुनते थे वह मान लेते थे। अब बाप आकर सत्य सुनाते हैं। तुमको ज्ञान
का तीसरा नेत्र देते हैं जिससे तुम सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हो। अमरकथा
भी यह है। बाकी सूक्ष्मवतन में कथा आदि है नहीं। यह सब भक्ति मार्ग का सैपलिंग
है। तुम अमरकथा सुन रहे हो, अमर बनने के लिए। वहाँ तुम खुशी से एक शरीर छोड़
दूसरा जाकर लेंगे। यहाँ तो कोई मरता है तो रोते पीटते हैं। वहाँ बीमारी आदि होती
नहीं। सदैव एवर हेल्दी रहते हैं। आयु भी बड़ी होती है। वहाँ पतितपना होता नहीं।
अब यह पक्का कर लेना है कि हमने 84 का चक्र पूरा किया है। अब बाबा हमको लेने आया
है। पावन बनने की युक्तियाँ भी तुमको बताते हैं। सिर्फ मुझ बाप को और वर्से को
याद करो। सतयुग में 16 कला सम्पूर्ण फिर कला कम होती जाती है। अब तुम्हारे में
कोई कला नहीं रही है। बाप ही दु:ख से छुड़ाकर सुख में ले जाते हैं इसलिए
लिबरेटर कहा जाता है। सबको अपने साथ ले जाते हैं। तुम्हारे गुरू तुमको साथ
थोड़ेही ले जाते हैं। वो गुरू चला जाता है तो चेला गद्दी पर बैठता है फिर चेलों
में बहुत गड़बड़ हो जाती है। आपस में गद्दी के लिए लड़ पड़ते हैं। बाप कहते हैं
मैं तुम आत्माओं को साथ ले जाऊंगा। तुम सम्पूर्ण नहीं बनेंगे तो सजायें खायेंगे
और पद भ्रष्ट होगा। यहाँ राजधानी स्थापन हो रही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के
लिए मुख्य सार:-
1) याद का ऐसा अभ्यास करना है जो बुरे विचार वाले सामने आते ही परिवर्तन हो जाएं।
मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई... इस पुरूषार्थ में रहना है।
2) स्वराज्य पाने के लिए शरीर सहित जो कुछ भी है, वह बलिहार जाना है। जब इस
रूद्र यज्ञ में सब कुछ स्वाहा करेंगे तब राज्य पद मिलेगा।
वरदान:-
ज्ञानी तू
आत्मा बन ज्ञान सागर और ज्ञान में समाने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव
जो ज्ञानी
तू आत्मायें हैं वह सदा ज्ञान सागर और ज्ञान में समाई रहती हैं, सर्व प्राप्ति
स्वरूप होने के कारण इच्छा मात्रम् अविद्या की स्टेज स्वत: रहती है। जो अंश
मात्र भी किसी स्वभाव-संस्कार के अधीन हैं, नाम-मान-शान के मंगता हैं। क्या,
क्यों के क्वेश्चन में चिल्लाने वाले, पुकारने वाले, अन्दर एक बाहर दूसरा रूप
है - उन्हें ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहा जा सकता।
स्लोगन:-
इस जीवन
में अतीन्द्रिय सुख व आनंद की अनुभूति करने वाले ही सहजयोगी हैं।