01-02-09 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 11-06-70 मधुबन
“विश्वपति बनने की सामग्री”
आज सतगुरुवार के दिवस किस लिए विशेष बुलाया है? आज कुमारियों का कौन-सा दिवस है? (समाप्ति समारोह) समाप्ति समारोह नहीं है लेकिन आज का सतगुरूवार का दिन विश्वपति बनने की शुभ अविनाशी दशा बैठने का दिवस है। समझा। तो आज बापदादा विश्वपति बनाने की क्या सामग्री लाये होंगे? जब कोई समारोह होता है तो उसमें सामग्री भी होती है। तो आज विश्वपति बनाने के समारोह में विशेष क्या सामग्री लाये हैं? ताज, तख़्त और तिलक। फिर इन तीनों को धारण करने की हिम्मत है? ताज को धारण करने लिए तख़्त पर विराज़मान होने के लिए और तिलक को धारण करने के लिए क्या करना पड़ेगा? अगर यह धारण करने की हिम्मत है तो उसके लिए क्या करना पड़ेगा? एक तो त्याग, दूसरा तपस्या और सेवा। तिलक को धारण करने के लिए तपस्या और ताज को धारण करने के लिए त्याग और तख़्त पर विराज़मान होने के लिए जितनी सेवा करेंगे उतना अब भी तख़्त नशीन और भविष्य में भी तख़्त नशीन बनेंगे। इन तीनों बातों से ही तीनों चीज़ें धारण कर सकेंगे। अगर एक भी धारणा कम है तो फिर विश्वपति नहीं बन सकेंगे। समझा। तो इन तीनों गुणों की अपने में सम्पूर्ण धारणा की है? तीनों में से एक भी छूटे नहीं तब शूरवीर का जो नाम दिया है वह कार्य कर सकेंगी? तीनों की प्रतिज्ञा की है? त्याग किसका करेंगे? सभी से बड़े से बड़ा त्याग क्या है? अब सर्विस पर उपस्थित हो रही हो तो उसके लिए मुख्य यही धारणा रखना है कि मैं पन का त्याग। मैंने किया, मैं यह जानती हूँ, मैं यह कर सकती हूँ, यह मैं पन का जो अभिमान है उसका त्याग करना है। मैं के बजाय बापदादा की सुनाई हुई ज्ञान की बातों को वर्णन करो। मैं यह जानती हूँ। नहीं। बापदादा द्वारा यह जाना है। ज्ञान में चलने के बाद जो स्व अभिमान आ जाता हैं, उसका भी त्याग। जब इतनी त्याग की वृत्ति और दृष्टि होगी तब सदैव स्मृति में बाप और दादा रहेगा और मुख पर भी यही बोल रहेंगे। समझा। तब विश्वपति बन सकेंगी। विश्व की सर्विस कर सकेंगी।
अपनी धारणा को अविनाशी बनाने के लिए वा सदा कायम रखने के लिए दो बातें याद रखनी है। कौन सी? विशेष कन्याओं के लिए हैं। एक तो सभी बातों में सिम्पल रहना और अपने को सैम्पल समझना। जैसे आप सैम्पल बन दिखायेंगे वैसे ही अनेक आत्माएं भी यह सौदा करने के लिए पात्र बनेंगी। इसलिए यह दो बातें सदैव याद रखो। अपने को ऐसा श्रेष्ठ सैम्पल बनाया है? जो अच्छा सैम्पल निकलता है उनको फिर छाप भी लगाई जाती है। आप कौन सी छाप लगाकर जाएँगी, जो कभी मिटे नहीं? शिवशक्तियां और ब्रह्माकुमारियाँ। साकार में दो निमित्त बनी हुई बड़ी अथॉरिटी यह छाप लगा रही हैं। इसलिए यह याद रखना कि मिटेंगे लेकिन कब हटेंगे नहीं। संस्कारों में, चाहे सर्विस में, चाहे सम्बन्ध में सर्व बातों में अपने को मिटायेंगे लेकिन हटेंगे नहीं। हटना कमजोरी का काम है। शिवशक्तियाँ अपने को मिटाती हैं न कि हटती हैं। तो यह बातें याद रखनी हैं। फिर इस ग्रुप का प्रैक्टिकल पेपर कब होगा? अभी का रिजल्ट फाइनल का नहीं हैं। अभी तो पेपर देने के लिए जा रहे हो। फिर उसकी रिजल्ट देखेंगे। यह ग्रुप आगे कदम बढ़ा सकता है। बापदादा ऐसी उम्मीद रखते हैं। इसलिए अब ऐसा समझो कि जो भी कर्मबन्धन हैं उसको बहुत जल्दी काटकर फिर मधुबन में सम्पूर्ण समर्पण का समारोह मनाने आना है। इस लक्ष्य से जाना है। फिर इस ग्रुप से कितनों का सम्पूर्ण समर्पण का समारोह होता है। आज तो महाबली बनने की बातें सुनाई हैं। फिर महाबली चढ़ने के लिए आयेंगे तो बाप-दादा खूब सजायेंगे। सजाकर फिर स्वाहा करना होता है। जितना बाप-दादा के स्नेही उतना फिर सहयोगी भी बनना है। सहयोगी तब बनेंगे जब अपने में सर्वशक्तियों को धारण करेंगे। फिर स्वाहा होना सहज होगा। जो भी कोई शक्ति की कमी हो तो वह आज के दिन ही अपने में भरकर जाना। कोई भी कमी साथ ले न जाना। अभी सिर्फ हिसाब-किताब चुक्तू करने जाते हो। सर्वशक्तियां अपने में भरकर जायेंगे तब चुक्तू कर सकेंगे ना। तो अब फाइनल पेपर के नंबर्स तो जब प्रैक्टिकल कर दिखायेंगे तब निकलेंगे। अच्छा।
बांधेलियों को यादप्यार देते हुए बापदादा बोले:
बांधेलियों की याद तो सदा बाप के पास पहुँचती है और बापदादा सभी बांधेलियों को यही कहते कि योग अर्थात् याद की लगन को अग्नि रूप बनाओ। जब लगन अग्नि रूप बन जाती तो अग्नि में सब भस्म हो जाता। जो यह बन्धन भी लगन की अग्नि में समाप्त हो जायेंगे और स्वतन्त्र आत्मा बन जो संकल्प करते उसकी सिद्धि को प्राप्त करेंगी। स्नेही हो, स्नेह की याद पहुँचती है। स्नेह के रेसपान्ड में स्नेह मिलता है लेकिन अभी याद को शक्तिशाली अग्नि रूप बनाओ। फिर वह दिन आ जायेगा जो सम्मुख पहुँच जायेंगी।
पार्टियों से अव्यक्त मुलाकात:
सभी के मस्तक पर सदा भाग्य का सितारा चमक रहा है ना! सदा चमकता है? कभी टिमटिमाता तो नहीं है? अखण्ड ज्योति बाप के साथ आप भी अखण्ड ज्योति अर्थात् सदा जगने वाले सितारे बन गये। ऐसे अनुभव करते हो? कभी वायु हिलाती तो नहीं है, दीपक वा सितारे को? जहाँ बाप की याद है वह अविनाशी जगमगाता हुआ सितारा है। टिमटिमाता हुआ नहीं। लाइट भी जब टिमटिम करती है तो बन्द कर देते हैं, किसी को अच्छी नहीं लगती। तो यह भी सदा जगमगाता हुआ सितारा। सदा ज्ञान सूर्य बाप से रोशनी ले औरों को भी रोशनी देने वाले सेवा का उमंग उत्साह सदा कायम रहता है? सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, श्रेष्ठ बाप की श्रेष्ठ आत्मायें हो।
याद की शक्ति से सफलता सहज प्राप्त होती है। जितना याद और सेवा साथ-साथ रहती है तो याद और सेवा का बैलेन्स सदा की सफलता की आशीर्वाद स्वतः प्राप्त कराता है। इसलिए सदा शक्तिशाली याद स्वरूप का वातावरण बनने से शक्तिशाली आत्माओं का आह्वान होता है और सफलता मिलती है। निमित्त लौकिक कार्य है लेकिन लगन बाप और सेवा में है। लौकिक भी सेवा प्रति है, अपने लगाव से नहीं करते, डायरेक्शन प्रमाण करते हैं, इसलिए बाप के स्नेह का हाथ ऐसे बच्चों के साथ है। सदा खुशी में गाओ, नाचो यही सेवा का साधन है। आपकी खुशी को देख दूसरे खुश हो जायेंगे तो यही सेवा हो जायेगी। बापदादा बच्चों को सदा कहते हैं जितना महादानी बनेंगे उतना खजाना बढ़ता जायेगा। महादानी बनो और खजानों को बढ़ाओ। महादानी बन खूब दान करो। यह देना ही लेना है। जो अच्छी चीज मिलती है वह देने के बिना रह नहीं सकते।
सदा अपने भाग्य को देख हर्षित रहो। कितना बड़ा भाग्य मिला है, घर बैठे भगवान मिल जाए इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा। इसी भाग्य को स्मृति में रख हर्षित रहो। तो दुःख और अशान्ति सदा के लिए समाप्त हो जायेंगे। सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप बन जायेंगे, जिसका भाग्य स्वयं भगवान बनाये वह कितने श्रेष्ठ हुए! तो सदा अपने में नया उमंग, नया उत्साह अनुभव करते आगे बढ़ते चलो क्योंकि संगमयुग पर हर दिन का नया उमंग, नया उत्साह है।
जैसे चल रहे हैं, नहीं। सदा नया उमंग, नया उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। हर दिन ही नया है। सदा स्वयं में वा सेवा में कोई न कोई नवीनता जरूर चाहिए। जितना अपने को उमंग-उत्साह में रखेंगे उतना नई-नई टचिंग होती रहेंगी। स्वयं किसी दूसरी बातों में बिजी रहते तो नई टचिंग भी नहीं होती। मनन करो तो नया उमंग रहेगा।
जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दू खिसक जाता है, ऐसे यह छोटा बिन्दू भी हाथ से खिसक जाता है। जितना जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल? इस रीति न्यारे होंगे तो शरीर के भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा। अभी-अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी-अभी उतारा। मुख्य पुरुषार्थ आज इस विशेष बात पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आयेंगे। यह बिन्दी लगाना कितना सहज है। ऐसे ही बिन्दी रूप हो जाना सहज है।
ब्राह्मणों की लेन देन कौनसी होती है? स्नेह लेना और स्नेह देना। स्नेह देने से ही स्नेह मिलता है। स्नेह के देने लेने से बाप का स्नेह भी लेते और ऐसे ही स्नेही समीप होते हैं। स्नेह वाले दूर होते भी समीप हैं। बापदादा के समीप आने लिये स्नेह की लेन-देन करके समीप आना है। इस लेन-देन में रात दिन बिताना है। यही ब्राह्मणों का कर्तव्य है, तो ब्राह्मणों का लक्षण भी है। स्नेही बनने लिये क्या करना पड़ेगा? जितना जो विदेही होगा उतना वो स्नेही होगा। तो विदेही बनना अर्थात् बनना क्योंकि बाप विदेही है ना। ऐसे ही देह में रहते विदेही रहने वाले सर्व के स्नेही रहते हैं। यही नोट करना है कितना विदेही रहते हैं? ऐसा श्रेष्ठ सौभाग्य कब स्वप्न में भी था? तो जैसे यह स्वप्न में भी संकल्प नहीं था ऐसे ही जो भी कमजोरियां हैं उन्हों का भी स्वप्न में संकल्प नहीं रहना चाहिए। ऐसा पुरुषार्थ करना है। लक्ष्य भी रखो कि यह कमजोरियाँ पूर्व जन्म के बहुत जन्मों की हैं। वर्तमान जन्म के लिए ऐसी कमजोरियों का प्राय: लोप करो। मास्टर सर्वशक्तिमान हो? सर्वशक्तिमान के बच्चे अर्थात् सर्वशक्तिमान ऐसे कभी नहीं कहें कि मैं यह नहीं कर सकती। सब कुछ कर सकती हूँ। कोई भी असम्भव बात नहीं कोई मुश्किल बात भी सहज। उनके लिए कुछ मुश्किल होता है? नहीं। मास्टर सर्वशक्तिमान बनना है। एक शक्ति की भी कमी न रहे। जहाँ भी अकेला बनो वहाँ साथ समझो। कहाँ अकेला भेजें तो साथ समझेंगे ना। अगर शिवबाबा साथ है तो फिर कहाँ अकेली हो तो अकेलापन लगेगा नहीं। अकेले रहते भी साथ का अनुभव हो। यह अभ्यास जरूर करना चाहिए। और साथ रहते भी अकेला समझे, यह भी अभ्यास चाहिए। दोनों अभ्यास चाहिए। साथ भी रह सकें और अकेला भी रह सकें। अकेला अर्थात् न्यारा, संगठन अर्थात् प्यारा। न्यारे भी हो तो प्यारे भी हो, अभ्यास दोनों चाहिए। बाप अकेला रहता है या साथ में रहता है? अकेला रहना ही साथ है। बाहर का अकेला पन और अन्दर का साथ बाहर के साथ से अकेलापन भूल जाते हैं, लेकिन बाहर से अकेले अन्दर से अकेले नहीं।
सभी से श्रेष्ठ मणी कौन होते हैं? मस्तकमणी कौन बनता है? जो मस्तक में विराजमान हुई आत्मा में ज्यादा समय स्थित रहता है। वह थोड़े होते हैं। मस्तक में थोड़े, हृदय में बहुत होते हैं। सभी से पहले नज़र कहाँ जाती है? ऐसे मस्तकमणी बनना है। मस्तकमणी वह बनते हैं जो सदैव आस्तिक रहते हैं। वह सदैव हां करते हैं। जो आस्तिक हैं, वही मस्तकमणी हैं। कोई भी बात में ना शब्द संकल्प में भी न हो। ऐसे गुण वाले मस्तक में आ जाते हैं।
गायन योग्य कौन बनते हैं और पूजन योग्य कौन बनते हैं? एक ही बात से दोनों के योग्य बनते हैं या दोनों के लिये दो विशेष बातें हैं? कई ऐसी भी देवियां हैं जिनका गायन बहुत है पूजन कम है। और कोई देवियों का दोनों होता है। तो जो कब कैसे, कब कैसे रहते हैं उनका पूजन एकरस नहीं रहता और जो सदा अपनी स्थिति में रहते तो उनका पूजन भी सदा रहता है। एकरस रहने वाले का पूजन एकरस होता है। पुरुषार्थ में कब शब्द नहीं रहना चाहिए। तीव्र पुरुषार्थी की निशानी है जो कब न कह अब कहते हैं। जो पुरुषार्थ में कब कहेंगे तो उनकी पूजा भी कम। इसलिए कोई भी बात में कब देखेंगे, नहीं। लेकिन अब दिखाऊंगा इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। सम्पूर्ण स्थिति जो होती है उसमें सर्व शक्तियां सम्पन्न होती हैं। सर्व शक्ति सम्पन्न बनने से सर्वगुण सम्पन्न बनेंगे। भविष्य में बनना है सर्वगुण सम्पन्न, अब बनना है सर्वशक्ति सम्पन्न। जितना सर्व शक्ति सम्पन्न उतना सर्वगुण सम्पन्न बनेंगे।
कितनी शक्तियां होती हैं? मालूम हैं? कौन सी शक्तियां सुनाई थी। एक है स्नेह शक्ति, सम्बन्ध शक्ति, सहयोग शक्ति, सहनशक्ति। यह चार शक्ति हैं तो सम्बन्ध भी समीप है। चारों समान हों। ज़्यादा साहस है वा सहनशक्ति है? साहस अर्थात् हिम्मत। जो हिम्मत वाले होते हैं उनको मदद मिलती है। मदद मांगने से नहीं मिलती। हिम्मत रखनी पड़ती है। हिम्मत पूरी रखते हैं मदद बहुत मिलती है। हिम्मत है तो सर्व बातों में मदद है। सदैव हिम्मतवान बनना है फिर बापदादा, दैवी परिवार की मदद आपे ही मिलेगी। स्नेहमूर्त हो? शक्तिमूर्त हो? स्नेह और शक्ति दोनों की आवश्यकता है। शक्तिरूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध में आते हो। अगर शक्ति नहीं होती तो माया पर विजय नहीं पाते हो। इसलिए शक्ति रूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध भी चाहिए। दोनों चाहिए। बाप को सर्वशक्तिमान और प्यार का सागर भी कहते हैं। तो स्नेह और शक्ति दोनों चाहिए।
सितारे कितने होते हैं? आप अपने को क्या समझती हो? बापदादा ने कौन से नाम रखे हैं? लक्की सितारें हो। अपने को लक्की समझते हो? लकी तो सभी हैं जब से बाप के बने हो। लेकिन लक्की में भी सदैव सफलता के सितारे। कोई समीप के सितारे, कोई उम्मीद के सितारे। वह हरेक का अपना है। अब सोचना है कि मैं कौन हूँ? अपने को सफलता का सितारा समझना है। प्रत्यक्षफल की कामना नहीं रखने वाले सफलता पाते हैं। ओम् शान्ति।
वरदान:- अधिकारी बन समस्याओं को खेल-खेल में पार करने वाले हीरो पार्टधारी भव
चाहे कैसी भी परिस्थितियां हों, समस्यायें हों लेकिन समस्याओं के अधीन नहीं, अधिकारी बन समस्याओं को ऐसे पार कर लो जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। चाहे बाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर हो कि यह सब खेल है – जिसको कहते हैं ड्रामा और ड्रामा के हम हीरो पार्ट-धारी हैं। हीरो पार्टधारी अर्थात् एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले। इसलिए कड़ी समस्या को भी खेल समझ हल्का बना दो, कोई भी बोझ न हो।
स्लोगन:- सदा ज्ञान के सिमरण में रहो तो सदा हर्षित रहेंगे, माया की आकर्षण से बच जायेंगे।