07-05-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – श्रीमत ही तुमको श्रेष्ठ बनाने वाली है,
इसलिए श्रीमत को भूलो मत, अपनी मत को छोड़ एक बाप की मत पर चलो”
प्रश्नः-
पुण्य आत्मा
बनने की युक्ति क्या है?
उत्तर:-
पुण्य आत्मा बनना है तो सच्ची दिल से, प्यार से एक बाप को याद करो। 2. कर्मेन्द्रियों
से कोई भी विकर्म न करो। सबको रास्ता बताओ। अपनी दिल से पूछो – यह पुण्य हम कितना
करते हैं? अपनी चेकिंग करो – ऐसा कोई कर्म न हो जिसकी 100 गुणा सजा खानी पड़े। तो
चेकिंग करने से पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ बच्चों
को समझाते हैं, यह तो बच्चों को मालूम है कि अभी हम शिवबाबा की मत पर चल रहे हैं।
उनकी है ऊंच ते ऊंच मत। दुनिया यह नहीं जानती कि ऊंच ते ऊंच शिवबाबा कैसे बच्चों को
श्रेष्ठ बनाने के लिए श्रेष्ठ मत देते हैं। इस रावण राज्य में कोई भी मनुष्य मात्र,
मनुष्य को श्रेष्ठ मत दे नहीं सकते। तुम अभी ईश्वरीय मत वाले बनते हो। इस समय तुम
बच्चों को पतित से पावन बनने के लिए ईश्वरीय मत मिल रही है। अभी तुमको पता पड़ा है
हम तो विश्व के मालिक थे। यह (ब्रह्मा) जो मालिक था उनको भी पता नहीं था। विश्व के
मालिक फिर एकदम पतित बन जाते हैं। यह खेल बहुत अच्छी रीति बुद्धि से समझने का है।
राइट-रांग क्या है, इसमें है बुद्धि की लड़ाई। सारी दुनिया है रांग। एक बाप ही है
राइट, सच बोलने वाला। वह तुमको सचखण्ड का मालिक बनाते हैं तो उनकी मत लेनी चाहिए।
अपनी मत पर चलने से धोखा खायेंगे। परन्तु वह है गुप्त। है भी निराकार। बहुत बच्चे
ग़फलत करते हैं, समझते हैं – यह तो दादा की मत है। माया श्रेष्ठ मत लेने नहीं देती
है। श्रीमत पर चलना चाहिए ना। बाबा आप जो कहेंगे वह हम मानेंगे जरूर। परन्तु कई
मानते नहीं हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार मत पर चलते हैं बाकी तो अपनी मत चला लेते
हैं। बाबा आये हैं श्रेष्ठ मत देने। ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। माया मत
लेने नहीं देती। श्रीमत तो बहुत सहज है ना। दुनिया में कोई को यह समझ नहीं कि हम
तमोप्रधान हैं। मेरी मत तो मशहूर है, श्रीमत भगवत गीता। भगवान अभी कहते हैं मैं 5
हज़ार वर्ष बाद आता हूँ, आकर भारत को श्रीमत दे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाता हूँ। बाप
तो सावधान करते हैं, बच्चे श्रीमत पर नहीं चलते। बाप रोज़-रोज़ समझाते रहते हैं –
बच्चों, श्रीमत पर चलना भूलो मत। इन (ब्रह्मा) की तो बात ही नहीं। उनकी बात समझो।
वही इन द्वारा मत देते हैं। वही समझाते हैं। खान-पान खाते नहीं, कहते हैं मैं
अभोक्ता हूँ। तुम बच्चों को श्रीमत देता हूँ। नम्बरवन मत देते हैं मुझे याद करो।
कोई भी विकर्म नहीं करो। अपने दिल से पूछो कितना पाप किया है? यह तो जानते हो सबका
पापों का घड़ा भरा हुआ है। इस समय सभी रांग रास्ते पर हैं। तुम्हें अभी बाप द्वारा
राइट रास्ता मिला है। तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है। गीता में जो ज्ञान होना
चाहिए वह है नहीं। वह कोई बाप की बनाई हुई नहीं है। यह भी भक्ति मार्ग में नूँध है।
कहते भी हैं भगवान आकर भक्ति का फल देंगे। बच्चों को समझाया है – ज्ञान से सद्गति।
सद्गति भी सबकी होती है, दुर्गति भी सबकी होती है। यह तो दुनिया ही तमोप्रधान है।
सतोप्रधान कोई है नहीं। पुनर्जन्म लेते-लेते अब पिछाड़ी आकर हुई है। अब मौत सबके
सिर पर खड़ा है। भारत की ही बात है। गीता भी है देवी-देवता धर्म का शास्त्र। तो
तुम्हें दूसरे कोई धर्म में जाने से क्या फ़ायदा। हर एक अपनी-अपनी कुरान, बाइबिल आदि
ही पढ़ते हैं। अपने धर्म को जानते हैं। एक भारतवासी ही अन्य सब धर्मों में चले जाते
हैं। और सब अपने-अपने धर्म में पक्के हैं। हर एक धर्म वाले की शक्ल आदि अलग है। बाप
स्मृति दिलाते हैं – बच्चे, तुम अपने देवी-देवता धर्म को भूल गये हो। तुम स्वर्ग के
देवता थे, हम सो का अर्थ भारतवासियों को बाप ने सुनाया है। बाकी हम आत्मा सो
परमात्मा नहीं हैं। यह बातें तो भक्ति मार्ग के गुरू लोगों ने बनाई हैं। गुरू भी
करोड़ों होंगे। स्त्री को पति के लिए कहते हैं कि यह तुम्हारा गुरू ईश्वर है। जबकि
पति ही ईश्वर है फिर हे भगवान, हे राम क्यों कहती हो। मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल
ही पत्थर बन गई है। यह खुद भी कहते हम भी ऐसे थे। कहाँ बैकुण्ठ का मालिक श्रीकृष्ण,
कहाँ फिर उनको गांव का छोरा कह दिया है। श्याम-सुन्दर कहते हैं। अर्थ थोड़ेही समझते।
अभी बाप ने तुमको समझाया है जो नम्बरवन सुन्दर वही नम्बर लास्ट तमोप्रधान श्याम बना
है। तुम समझते हो हम सुन्दर थे फिर श्याम बने हैं, 84 का चक्र लगाए अभी श्याम से
सुन्दर बनने के लिए बाप एक ही दवाई देते हैं कि मुझे याद करो। तुम्हारी आत्मा पतित
से पावन बन जायेगी। तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जायेंगे।
तुम जानते हो जब से
रावण आया है तुम गिरते-गिरते पाप आत्मा बने हो। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। एक
भी सुन्दर नहीं। बाप बिगर सुन्दर कोई बना न सके। तुम आये हो स्वर्गवासी सुन्दर बनने।
अभी नर्कवासी श्याम हैं क्योंकि काम चिता पर चढ़ काले बने हैं। बाप कहते हैं काम
महाशत्रु है। इन पर जो जीत पायेंगे वही जगत जीत बनेंगे। नम्बरवन है काम। उनको ही
पतित कहा जाता है। क्रोधी को पतित नहीं कहेंगे। बुलाते भी हैं कि आकर पतित से पावन
बनाओ। तो अब बाप आये हैं कहते हैं यह अन्तिम जन्म पावन बनो। जैसे रात के बाद दिन,
दिन के बाद रात होती है, वैसे संगमयुग के बाद फिर सतयुग आना है। चक्र फिरना है। बाकी
और कोई आकाश में अथवा पाताल में दुनिया नहीं है। सृष्टि तो यही है। सतयुग, त्रेता….
यहाँ ही है। झाड़ भी एक ही है, और कोई हो नहीं सकता। यह सब गपोड़े हैं जो कहते हैं
अनेक दुनियायें हैं। बाप कहते हैं यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें। अब बाप सत्य बात
सुनाते हैं। अब अपने अन्दर देखो – हम कहाँ तक श्रीमत पर चल सतोप्रधान अर्थात् पुण्य
आत्मा बन रहे हैं? सतोप्रधान को पुण्य आत्मा, तमोप्रधान को पाप आत्मा कहा जाता है।
विकार में जाना पाप है। बाप कहते हैं अब पवित्र बनो। मेरे बने हो तो मेरी श्रीमत पर
चलना है। मुख्य बात है कोई पाप नहीं करो। नम्बरवन पाप है विकार में जाना। फिर और भी
पाप बहुत होते हैं। चोरी चकारी, ठगी आदि बहुत करते हैं। फिर बहुतों को गवर्मेन्ट
पकड़ती भी है। अब बाप बच्चों को कहते हैं तुम अपने दिल से पूछो – हम कोई पाप तो नहीं
करते हैं? ऐसे मत समझो – हमने चोरी की वा रिश्वत खाई तो यह बाबा तो जानी-जाननहार
है, सब जानते हैं। नहीं, जानी-जाननहार का अर्थ कोई यह नहीं है। अच्छा, कोई ने चोरी
की, बाप जानेंगे फिर क्या? जो चोरी की उसका दण्ड सौ गुणा हो ही जायेगा। बहुत-बहुत
सज़ा खायेंगे। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाप समझाते हैं ऐसे अगर काम करेंगे तो दण्ड
भोगना पड़ेगा। कोई ईश्वर का बच्चा बनकर फिर चोरी करता, शिवबाबा जिससे इतना वर्सा
मिलता है, उनके भण्डारे से चोरी करता, यह तो बहुत बड़ा पाप है। कोई-कोई में चोरी की
आदत होती है, उनको जेल बर्ड कहा जाता है। यह है ईश्वर का घर। सब कुछ ईश्वर का है
ना। ईश्वर के घर में आते हैं बाप से वर्सा लेने। परन्तु कोई-कोई की आदत हो जाती है,
उसकी सजा सौगुणा बन जाती है। सज़ायें भी बहुत मिलेंगी और फिर जन्म बाई जन्म डर्टी
घर में जाए जन्म लेंगे, तो अपना ही नुकसान किया ना। ऐसे बहुत हैं जो याद में
बिल्कुल नहीं रहते, सुनते कुछ नहीं। बुद्धि में चोरी आदि के ही ख्यालात चलते रहते
हैं। ऐसे बहुत सतसंग में जाते हैं। चप्पल चोरी कर लेते, उनका धन्धा ही यह रहता है।
जहाँ सतसंग होता वहाँ जाकर चप्पल चोरी कर आयेंगे। दुनिया बिल्कुल ही डर्टी है। यह
है ईश्वर का घर। चोरी की आदत तो बहुत खराब है। कहा जाता है – कख का चोर सो लख का
चोर। अपने अन्दर से पूछना चाहिए – हम कितना पुण्य आत्मा बने हैं? कितना बाप को याद
करते हैं? कितना हम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं? कितना समय ईश्वरीय सर्विस में रहते
हैं? कितने पाप कटते जा रहे हैं? अपना पोतामेल रोज़ देखो। कितना पुण्य किया, कितना
योग में रहा? कितने को रास्ता बताया? धंधा आदि तो भल करो। तुम कर्मयोगी हो। कर्म तो
भल करो। बाबा यह बैजेज़ बनाते रहते हैं। अच्छे-अच्छे लोगों को इस पर समझाओ। इस
महाभारत लड़ाई द्वारा ही स्वर्ग के गेट्स खुल रहे हैं। कृष्ण के चित्र में नीचे
लिखत बड़ी फर्स्टक्लास है। परन्तु बच्चे अभी इतना विशाल बुद्धि नहीं हुए हैं। थोड़ा
ही धन मिलता है तो नाचने लग पड़ते हैं। कोई को जास्ती धन होता है तो समझते हैं हमारे
जैसा कोई नहीं होगा। जिन बच्चों को बाप की परवाह नहीं, उन्हें बाप जो इतना अविनाशी
ज्ञान रत्नों का खज़ाना देते हैं उसकी भी कदर नहीं रहती है। बाबा एक बात कहेगा, वह
दूसरी बात कर लेते। परवाह न होने के कारण बहुत पाप करते रहते हैं। श्रीमत पर चलते
नहीं। फिर गिर पड़ते हैं। बाप कहेंगे यह भी ड्रामा। उनकी तकदीर में नहीं है। बाबा
तो जानते हैं ना। बहुत पाप करते हैं, अगर निश्चय हो कि बाप हमको पढ़ाते हैं तो खुशी
रहनी चाहिए। तुम जानते हो हम भविष्य नई दुनिया में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे, तो
कितनी खुशी रहनी चाहिए। परन्तु बच्चे तो अभी तक भी मुरझाते रहते हैं। वह अवस्था
ठहरती नहीं है।
बाबा ने समझाया है –
विनाश के लिए रिहर्सल भी होगी। कैलेमिटीज़ भी होंगी। भारत को कमज़ोर करते जायेंगे।
बाप खुद कहते हैं – यह सब होना ही है। नहीं तो विनाश कैसे होगा। बर्फ की बरसात
पड़ेगी फिर खेती आदि का क्या हाल होगा। लाखों मरते रहते हैं, कोई बतलाते थोड़ेही
हैं। तो बाप मुख्य बात समझाते हैं कि ऐसे अपने अन्दर जांच करो, मैं कितना बाप को
याद करता हूँ। बाबा, आप तो बड़े मीठे हो, कमाल है आपकी। आपका फ़रमान है मुझे याद करो
तो 21 जन्म के लिए कभी रोगी नहीं बनेंगे। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो मैं
गैरन्टी करता हूँ, सम्मुख बाप तुमको कहते हैं तुम फिर औरों को सुनाते हो। बाप कहते
हैं मुझ बाप को याद करो, बहुत प्यार करो। तुमको कितना सहज रास्ता बताता हूँ – पतित
से पावन होने का। कोई कहते हैं हम तो बहुत पाप आत्मा हैं। अच्छा फिर ऐसे पाप नहीं
करो, मुझे याद करते रहो तो जन्म-जन्मान्तर के जो पाप हैं, वह इस याद से भस्म होते
जायेंगे। याद की ही मुख्य बात है। इनको कहा जाता है सहज याद, योग अक्षर भी निकाल
दो। संन्यासियों के हठयोग तो किस्म-किस्म के हैं। अनेक प्रकार से सिखलाते हैं। इस
बाबा ने गुरू तो बहुत किये हैं ना। अभी बेहद का बाप कहते हैं – इन सबको छोड़ो। इन
सबका भी मुझे उद्धार करना है। और कोई की ताकत नहीं जो ऐसे कह सके। बाप ने ही कहा है
– मैं इन साधुओं का भी उद्धार करता हूँ। फिर यह गुरू कैसे बन सकते। तो मूल एक बात
बाप समझाते हैं – अपनी दिल से पूछो, हम कोई पाप तो नहीं करते हैं। किसको दु:ख तो नहीं
देते हैं? इसमें कोई तकलीफ नहीं है। अन्दर जांच करनी चाहिए, सारे दिन में कितना पाप
किया? कितना याद किया? याद से ही पाप भस्म होंगे। कोशिश करनी चाहिए। यह बहुत मेहनत
का काम है। ज्ञान देने वाला एक ही बाप है। बाप ही मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता
बतलाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का ख़ज़ाना देते हैं उसका कदर करना है।
बेपरवाह बन पाप कर्म नहीं करने हैं। अगर निश्चय है भगवान हमको पढ़ाते हैं तो अपार
खुशी में रहना है।
2) ईश्वर के घर में कभी चोरी आदि करने का ख्याल न आये। यह आदत बहुत गंदी है। कहा
जाता कख का चोर सो लख का चोर। अपने अन्दर से पूछना है – हम कितना पुण्य आत्मा बने
हैं?
वरदान:-
कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा अभुल बनने वाले
निरन्तर योगी भव
जो बच्चे स्वयं को बाप के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करते हैं
उन्हें निरन्तर योगी भव का वरदान स्वतः मिल जाता है। क्योंकि वो जहाँ भी रहते हैं
मिलन मेला होता रहता है। उन्हें कोई कितना भी भुलाने की कोशिश करे – लेकिन वे अभुल
होते हैं। ऐसे अभुल बच्चे जो बाप को अति प्यारे हैं वही निरन्तर योगी हैं क्योंकि
प्यार की निशानी है – स्वतः याद। उनके संकल्प रूपी नाखून को भी माया हिला नहीं सकती।
स्लोगन:-
कारण सुनाने के बजाए उसका निवारण करो तो दुआओं के अधिकारी बन जायेंगे।