ओम् शान्ति।
बच्चों ने तो इस गीत का अर्थ समझा। अब भक्ति मार्ग के घोर अन्धियारे की रात पूरी
हुई। बच्चे जानते हैं अब हमारे पास काल नहीं आ सकता। यहाँ बैठे हैं, हमारी एम
आब्जेक्ट है मनुष्य से देवता बनने की। जैसे संन्यासी लोग कहते हैं तुम अपने को भैंस
समझो तो वह रूप हो जायेंगे। वह है भक्ति मार्ग के दृष्टान्त। जैसे यह भी एक
दृष्टान्त है ना कि राम ने बन्दरों की सेना ली और रावण पर जीत प्राप्त की। तुम यहाँ
बैठे हो जानते हो हम सो देवी-देवता डबल सिरताज बनेंगे। जैसे स्कूल में पढ़ते हैं तो
कहेंगे मैं यह पढ़कर डॉक्टर बनूँगा, इन्जीनियर बनूँगा। तुम जानते हो हम इस पढ़ाई से
सो देवी-देवता बन रहे हैं। यह शरीर छोड़ेंगे और हमारे सिर पर ताज होगा। यह तो बहुत
गन्दी छी-छी दुनिया है। नई दुनिया है फर्स्टक्लास दुनिया। पुरानी दुनिया है बिल्कुल
थर्डक्लास। यह दुनिया तो खलास होने की है। हमको विश्व का मालिक बनाने वाला जरूर
विश्व का रचयिता ही होगा, दूसरा कोई पढ़ा न सके। शिवबाबा ही हमको पढ़ाकर राजयोग
सिखलाते हैं। बाप ने समझाया है कि आत्म-अभिमानी बनो। आत्म-अभिमानी बनने में ही
मेहनत है। पूरा आत्म-अभिमानी बन जाएं तो बाकी क्या चाहिए। तुम ब्राह्मण तो हो ही,
जानते हो हम देवता बन रहे हैं। नशा रहता है - मैं यह बन रहा हूँ। पहले हम कलियुग
नर्क में पतित थे। असुर और देवता में कितना फ़र्क है। देवतायें कितने पवित्र हैं।
यहाँ कितने पतित मनुष्य हैं। शक्ल भल मनुष्य की है, परन्तु सीरत देखो कैसी है। जो
देवताओं के पुजारी हैं वह खुद भी उन्हों के आगे महिमा गाते हैं। आप सर्वगुण सम्पन्न..
हमारे में कोई गुण नाही। अब तुम चेंज होकर देवता बनेंगे। कृष्ण की पूजा करते ही
इसलिए हैं कि हम कृष्णपुरी में जायें। परन्तु यह पता नहीं कि कब जायेंगे। भक्ति करते
रहते हैं कि भगवान आकर फल देंगे। भक्ति का फल है सद्गति। तो यह है पढ़ाई। पहले तो
यह निश्चय चाहिए कि हमको पढ़ाते कौन हैं। यह है श्री श्री.... तुम बच्चे जानते हो
बाप हमें श्रीमत दे रहे हैं। जिनको यह पता नहीं, वह श्रेष्ठ कैसे बन सकते हैं। आजकल
तो एक दो को भ्रष्ट बनाने की मत देते हैं। भ्रष्ट मत है आसुरी मत। इतने सब ब्राह्मण
श्री श्री शिवबाबा की मत पर चल रहे हैं। परमात्मा की मत से ही श्रेष्ठ बनते हैं।
जिनकी तकदीर में होगा उनकी ही बुद्धि में बैठेगा। नहीं तो कुछ भी नहीं समझेंगे। जब
समझेंगे तब खुद ही मदद करने लग पड़ेंगे। कई तो जानते ही नहीं कि यह कौन हैं, इसलिए
बाबा कोई से मिलते भी नहीं हैं। वह तो और ही अपनी आसुरी मत निकालेंगे। अभी सब मानव
मत पर ही चल रहे हैं। श्रीमत को न जानने कारण ब्रह्मा बाप को भी अपनी मत देने लग
पड़ते हैं। अब बाप आये ही हैं तुम बच्चों को श्रेष्ठ बनाने। अब बच्चे कहते हैं बाबा
5 हजार वर्ष पहले मुआफिक हम आपसे मिले हैं। जिनको पता ही नहीं, वह ऐसे रेसपान्स दे
न सकें। बच्चों को पढ़ाई का बहुत नशा रहना चाहिए। यह बड़ी ऊंच पढ़ाई है। परन्तु माया
भी बड़ी अगेन्स्ट है। तुम जानते हो हम वह पढ़ाई पढ़ते हैं, जिससे हमारे सिर पर डबल
ताज होना है। भविष्य जन्म-जन्मान्तर डबल ताजधारी बनेंगे। तो उसके लिए फिर ऐसा
पुरुषार्थ करना चाहिए। इनको कहा जाता है राजयोग। कितना वन्डर है। बाबा हमेशा समझाते
हैं, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाओ। पुजारी को भी तुम समझा सकते हो। उनसे पूछो
कि लक्ष्मी-नारायण को यह पद कैसे मिला? यह विश्व के मालिक कैसे बनें? ऐसे-ऐसे बैठ
किसको सुनाओ तो पुजारी का भी कल्याण हो जाए। तुम कह सकते हो कि हम आपको समझाते हैं।
इन लक्ष्मी-नारायण को राज्य कैसे मिला। गीता में भी भगवानुवाच है ना कि मैं तुमको
राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। तो बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए। हम
यह बनते हैं। भल अपना चित्र और राजाई का चित्र भी साथ में निकालो। नीचे तुम्हारा
चित्र ऊपर राजाई का चित्र हो, इसमें खर्चा तो है नहीं। राजाई पोशाक तो झट बन सकती
है। वह अपने पास रख दो तो घड़ी-घड़ी याद आता रहेगा। हम सो देवता बन रहे हैं। ऊपर
में भल शिवबाबा हो। यह सब चित्र निकालने होंगे। हम मनुष्य से देवता बनते हैं। यह
शरीर छोड़ हम जाकर देवता बनेंगे क्योंकि अभी यह राजयोग सीख रहे हैं। तो यह फोटो मदद
करेंगे। ऊपर में शिव फिर राजाई चित्र, नीचे तुम्हारा साधारण चित्र। शिवबाबा से हम
राजयोग सीखकर डबल सिरताजधारी देवता बन रहे हैं। चित्र रखा होगा, कोई भी पूछेंगे तो
तुम बता सकेंगे। हमको सिखाने वाला यह शिवबाबा है। चित्र देख बच्चों को नशा चढ़ेगा।
भल दुकान में भी यह चित्र रख दो। भक्ति मार्ग में बाबा नारायण का चित्र रखता था।
पॉकेट में भी रहता था। तुम भी अपना फोटो रख दो तो याद रहेगा कि हम सो देवी-देवता बन
रहे हैं। बाप को याद करने का उपाय ढूँढना चाहिए। बाप की याद भूल जाने से ही गिरते
हैं। विकार में गिरेंगे तो फिर शर्म आयेगी कि अब तो हम यह देवता बन नहीं सकते।
हार्टफेल हो जायेगी कि हम अब देवता कैसे बनेंगे। बाबा कहते हैं - विकार में गिरने
वाले का फोटो निकाल दो। बोलो, तुम स्वर्ग में चलने लायक नहीं हो। तुम्हारा पासपोर्ट
खलास। खुद भी फील करेंगे - हम तो गिर गये! अब स्वर्ग में कैसे जायेंगे। जैसे बाबा
नारद का मिसाल देते हैं, उनको कहा कि अपनी शक्ल तो देखो लक्ष्मी को वरने लायक हो?
तो शक्ल बन्दर की दिखाई पड़ी तो मनुष्यों को भी शर्म आयेगा - हमारे में तो यह विकार
हैं फिर श्री लक्ष्मी-नारायण को कैसे वर सकते हैं। बाबा तो युक्तियां बहुत बताते
हैं। परन्तु कोई विश्वास भी रखे ना। विकार का नशा आता है तो समझते हैं इस हिसाब से
हम राजाओं का राजा डबल ताजधारी कैसे बनेंगे। पुरुषार्थ तो करना चाहिए ना। बाबा
समझाते हैं कि ऐसी-ऐसी सुन्दर युक्तियां रचो और सबको समझाते रहो। यह राजयोग से
स्थापना हो रही है। अब विनाश सामने खड़ा है। दिन-प्रतिदिन तूफानों का जोर होता
जायेगा। बाम्ब्स आदि भी तैयार हो रहे हैं।
तुम बच्चे यह पढ़ाई पढ़ते ही हो ऊंच पद पाने के लिए। तुम एक ही बार पतित से पावन
बनते हो। मनुष्य समझते थोड़ेही हैं कि हम नर्कवासी हैं क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं। अभी
तुम पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बन रहे हो। तकदीर में होगा तो झट समझेगा। नहीं तो
कितना भी माथा मारो, बुद्धि में बैठेगा नहीं। बाप को ही नहीं जानते तो नास्तिक हैं
अर्थात् निधनके हैं। धनी का बनना चाहिए जबकि शिवबाबा के बच्चे हैं। यहाँ जिनको
ज्ञान है वह अपने बच्चों को विकार से बचाते रहेंगे। अज्ञानी लोग तो अपने मुआफिक
बच्चों को विकार में फँसाते रहेंगे। तुम जानते हो यहाँ विकारों से बचाया जाता है।
कन्याओं को तो पहले बचाना चाहिए। माँ-बाप तो जैसे विकार में धक्का देते हैं। तुम
जानते हो कि यह भ्रष्टाचारी दुनिया है। श्रेष्ठाचारी दुनिया तो सब चाहते हैं परन्तु
वह कौन बनायेगा? भगवानुवाच - मैं इन साधुओं, सन्तों का भी उद्धार करता हूँ। गीता
में भी लिखा हुआ है कि भगवान को ही सबका उद्धार करना है। एक ही भगवान बाप आकर सबका
उद्धार करते हैं। इस समय अगर मालूम हो जाए कि बरोबर गीता का भगवान शिव है तो पता नहीं
क्या हो जाए! परन्तु अभी थोड़ी देरी है। नहीं तो सबके अड्डे एकदम हिलने लग पड़ें।
तख्त हिलते हैं ना। लड़ाई जब लगती है तो पता पड़ता है कि इनका तख्त हिलने लगा है,
अब गिर पड़ेगा। अभी यह हिले तो हलचल मच जाये। आगे चल होने का है। तो भाषण में भी
तुम समझा सकते हो। संस्कृत जो अच्छी रीति जानते हैं वह श्लोक सुना सकते हैं।
पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता खुद कहते हैं, बरोबर ब्रह्मा तन से स्थापना कर रहे
हैं। सर्व की सद्गति अर्थात् उद्धार कर रहे हैं। भाषण करने में बड़ी मस्ती चाहिए।
कन्याओं का न्यु ब्लड है। ज्ञान का पत्थर मार सकती हैं। स्टूडेन्ट का न्यु ब्लड होता
है ना, तो खूब हंगामा मचाते हैं। पत्थर मारते हैं। इसमें वह तीखे होते हैं। अब यह
भी तुम्हारा न्यु ब्लड है। तुम जानते हो वह कितना नुकसान कर रहे हैं। तुम्हारा यह
ईश्वरीय न्यु ब्लड है। तुम पुराने से नये बन रहे हो। तुम्हारी आत्मा जो पुरानी आइरन
एजेड बन गई है, वह अब नई गोल्डन एजेड बन रही है। तो बच्चों को बड़ा शौक होना चाहिए।
नशा कायम रखना चाहिए। अपनी हमजिन्स को उठाना चाहिए। गाया भी जाता है गुरू माता। माता
गुरू कब होती है सो तुम जानते हो। गुरू का सिलसिला अभी चलता है। माताओं पर बाप आकर
ज्ञान अमृत का कलष रखते हैं। शुरू भी ऐसे होता है। सेन्टर्स के लिए भी कहते हैं
ब्राह्मणी चाहिए। बाबा तो कहते हैं आपेही चलाओ। हिम्मत नहीं है, नहीं बाबा माता
चाहिए। यह भी ठीक है, मान देते हैं। आजकल दुनिया में एक-दो को लंगड़ा मान देते हैं।
स्थाई किसको मिलता नहीं है। इस समय तुम बच्चों को स्थाई राज्य-भाग्य मिल रहा है।
तुमको बाप कितने प्रकार से समझाते हैं। अपने को सदैव हर्षित मुख रहने के लिए बहुत
अच्छी-अच्छी युक्तियां बाप बताते हैं। शुभ भावना रखनी चाहिए। ओहो! हम यह
लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अगर किसकी तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या करे। बाबा तो
तदबीर बताते हैं, तदबीर कभी व्यर्थ नहीं जाती। यह तो सदा सफल होती है। राजधानी
स्थापन हो जायेगी। विनाश भी महाभारी महाभारत लड़ाई द्वारा होना है। आगे चल तुम भी
जोर भरेंगे तो यह सब आयेंगे। अभी नहीं समझेंगे, नहीं तो उनकी राजाई उड़ जाये।
तुम्हारे पास चित्र बहुत अच्छे हैं। यह है सद्गति अर्थात् सुखधाम। यह है मुक्तिधाम।
बुद्धि भी कहती है हम सब आत्मायें निर्वाणधाम में रहती हैं। जहाँ से फिर टॉकी धाम
में आते हैं। हम आत्मायें वहाँ की रहने वाली हैं। यह खेल ही भारत पर बना हुआ है।
शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। बाप कहते हैं - मैं आया हूँ, कल्प बाद फिर आऊंगा।
भारत ही पैराडाइज है। कहते भी हैं क्राइस्ट के इतने वर्ष पहले पैराडाइज था। अब नहीं
है, फिर होना है। तो जरूर नर्कवासियों का विनाश, स्वर्गवासियों की स्थापना चाहिए।
सो तो तुम स्वर्ग-वासी बन रहे हो, नर्क का विनाश हो जायेगा। यह भी समझ चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हर एक के प्रति शुभ भावना रखनी है। सबको सच्चा मान देना है। सतयुगी
राजधानी में ऊंच पद पाने के लिए तदबीर करनी है।
2) आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। मानव मत छोड़ एक की श्रीमत पर चलना है।
पढ़ाई के नशे में रहना है।