19-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हारा फ़र्ज है सबको स्थायी सुख और
शान्ति का रास्ता बताना, शान्ति में रहो और शान्ति की बख्शीश (इनाम) दो”
प्रश्नः-
किस गुह्य राज़
को समझने के लिए बेहद की बुद्धि चाहिए?
उत्तर:-
ड्रामा
की जो सीन जिस समय चलनी है, उस समय ही चलेगी। इसकी एक्यूरेट आयु है, बाप भी अपने
एक्यूरेट टाइम पर आते हैं, इसमें एक सेकेण्ड का भी फ़र्क नहीं पड़ सकता है। पूरे 5
हज़ार वर्ष के बाद बाप आकर प्रवेश करते हैं, यह गुह्य राज़ समझने के लिए बेहद की
बुद्धि चाहिए।
गीत:-
बदल जाए दुनिया न
बदलेंगे हम……..
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति
रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। बच्चों को रास्ता बताते हैं – शान्तिधाम और सुखधाम का।
इस समय सब मनुष्य विश्व में शान्ति चाहते हैं। हर एक इन्डिविज्युअल भी चाहते हैं और
विश्व में भी शान्ति चाहते हैं। हर एक कहते हैं मन की शान्ति चाहिए। अब वह भी कहाँ
से मिल सकती है। शान्ति का सागर तो बाप ही है, जिससे वर्सा मिल सकता है।
इन्डिविज्युअल भी मिलता है, होलसेल भी मिलता है। यानी सबको मिलता है। जो बच्चे पढ़ते
हैं, समझ सकते हैं हम शान्ति का वर्सा लेने अपना भी पुरूषार्थ करते हैं, औरों को
रास्ता बताते हैं। विश्व में शान्ति तो होनी ही है। चाहे कोई वर्सा लेने आये वा न
आये। बच्चों का फर्ज है, सब बच्चों को शान्ति देना है। यह समझ नहीं सकते, 2-4 को
वर्सा मिलने से क्या होगा। कोई को रास्ता बताया जाता है, परन्तु निश्चय न होने कारण
दूसरों को आपसमान बना नहीं सकते। जो निश्चयबुद्धि हैं वह समझते हैं बाबा से हमको वर
मिल रहा है। वरदान देते हैं ना – आयुश्वान भव, धनवान भव भी कहते हैं। सिर्फ कहने से
तो आशीर्वाद नहीं मिल सकती। आशीर्वाद मांगते हैं तो उनको समझाया जाता है तुमको
शान्ति चाहिए तो ऐसे पुरूषार्थ करो। मेहनत से सब कुछ मिलेगा। भक्ति मार्ग में कितनी
आशीर्वाद लेते हैं। माँ, बाप, टीचर, गुरू आदि सबसे मांगते हैं – हम सुखी और शान्त
रहें। परन्तु रह नहीं सकते क्योंकि इतने ढेर मनुष्य हैं, उनको सुख-शान्ति मिल कैसे
सकती। गाते भी हैं – शान्ति देवा। बुद्धि में आता है – हे परमपिता परमात्मा, हमको
शान्ति की बख्शीश करो। वास्तव में बख्शीश उसको कहा जाता है जो चीज़ उठाकर देवें।
कहेंगे यह तुमको बख्शीश है, इनाम है। बाप कहते हैं बख्शीश कोई कितनी भी करते हैं,
धन की, मकान की, कपड़े आदि की करते हैं, वह हुआ दान-पुण्य अल्पकाल के लिए। मनुष्य,
मनुष्य को देते हैं। साहूकार गरीब को अथवा साहूकार, साहूकार को देते आये हैं। परन्तु
यह तो है शान्ति और सुख स्थायी। यहाँ तो कोई एक जन्म के लिए भी सुख-शान्ति नहीं दे
सकते क्योंकि उनके पास है ही नहीं। देने वाला एक ही बाप है। उनको
सुख-शान्ति-पवित्रता का सागर कहा जाता है। ऊंच ते ऊंच भगवान की ही महिमा गाई जाती
है। समझते हैं उनसे ही शान्ति मिलेगी। फिर वह साधू-सन्त आदि पास जाते हैं क्योंकि
भक्ति मार्ग है ना तो फेरा फिराते रहते हैं। वह सब है अल्पकाल के लिए पुरूषार्थ।
तुम बच्चों का अभी वह सब बन्द हो जाता है। तुम लिखते भी हो बेहद के बाप से 100
प्रतिशत पवित्रता, सुख, शान्ति का वर्सा पा सकते हो। यहाँ 100 प्रतिशत अपवित्रता,
दु:ख, अशान्ति है। परन्तु मनुष्य समझते नहीं। कहते ऋषि-मुनि आदि तो पवित्र हैं।
परन्तु पैदाइस तो फिर भी विष से होती है ना। मूल बात ही यह है। रावण राज्य में
पवित्रता हो न सके। पवित्रता-सुख आदि सबका सागर एक ही बाप है।
तुम जानते हो हमको
शिवबाबा से 21 जन्म अर्थात् आधाकल्प 2500 वर्ष के लिए वर्सा मिलता है। यह तो गैरन्टी
है। आधाकल्प सुखधाम, आधाकल्प है दु:खधाम। सृष्टि के दो भाग हैं – एक नई, एक पुरानी।
परन्तु नई कब, पुरानी कब होती है, यह भी जानते नहीं। झाड़ की आयु इतनी एक्यूरेट बता
न सकें। अभी बाप द्वारा तुम इस झाड़ को जानते हो। यह 5 हज़ार वर्ष का पुराना झाड़
है, इनकी एक्यूरेट आयु का तुमको पता है, और जो झाड़ होते हैं उनकी आयु का किसको पता
नहीं होता है, अन्दाज़ बता देते हैं। तूफान आया, झाड़ गिरा, आयु पूरी हो गई। मनुष्यों
का भी अचानक मौत होता रहता है। इस बेहद के झाड़ की आयु पूरे 5 हज़ार वर्ष है। इसमें
एक दिन न कम, न जास्ती हो सकता है। यह बना-बनाया झाड़ है। इसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता।
ड्रामा में जो सीन जिस समय चलनी है, उस समय ही चलेगी। हूबहू रिपीट होना है। आयु भी
एक्यूरेट है। बाप को भी नई दुनिया स्थापन करने आना है। एक्यूरेट टाइम पर आते हैं।
एक सेकेण्ड का भी उसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता। यह भी अब तुम्हारी बेहद की बुद्धि हुई।
तुम ही समझ सकते हो। पूरे 5 हज़ार वर्ष बाद बाप आकर प्रवेश करते हैं, इसलिए
शिवरात्रि कहते हैं। कृष्ण के लिए जन्माष्टमी कहते हैं। शिव की जन्माष्टमी नहीं कहते,
शिव की रात्रि कहते हैं क्योंकि अगर जन्म हो तो फिर मौत भी हो। मनुष्यों का जन्म
दिन कहेंगे। शिव के लिए हमेशा शिवरात्रि कहते हैं। दुनिया में इन बातों का कुछ भी
पता नहीं। तुम समझते हो शिवरात्रि क्यों कहते हैं, जन्माष्टमी क्यों नही कहते। उनका
जन्म दिव्य अलौकिक है, जो और कोई का हो नहीं सकता। यह कोई जानते नहीं – शिवबाबा कब,
कैसे आते हैं। शिवरात्रि का अर्थ क्या है, तुम ही जानते हो। यह है बेहद की रात।
भक्ति की रात पूरी हो दिन होता है। ब्रह्मा की रात और दिन तो फिर ब्राह्मणों का भी
हुआ। एक ब्रह्मा का खेल थोड़ेही चलता है। अब तुम जानते हो, अब दिन शुरू होना है।
पढ़ते-पढ़ते जाए अपने घर पहुँचेंगे, फिर दिन में आयेंगे। आधाकल्प दिन और आधाकल्प
रात गाई जाती है परन्तु किसकी भी बुद्धि में नहीं आता। वो लोग तो कहेंगे कि कलियुग
की आयु 40 हज़ार वर्ष बाकी है, सतयुग की लाखों वर्ष है फिर आधा-आधा का हिसाब ठहरता
नहीं। कल्प की आयु को कोई भी जानते नहीं। तुम सारे विश्व के आदि-मध्य-अन्त को जानते
हो। यह 5 हज़ार वर्ष के बाद सृष्टि चक्र लगाती रहती है। विश्व तो है ही, उनमें
पार्ट बजाते-बजाते मनुष्य ही तंग हो जाते हैं। यह क्या आवागमन है। अगर 84 लाख जन्मों
का आवागमन होता तो पता नहीं क्या होता। न जानने के कारण कल्प की आयु भी बढ़ा दी है।
अभी तुम बच्चे बाप से सम्मुख पढ़ रहे हो। अन्दर में भासना आती है – हम प्रैक्टिकल
में बैठे हैं। पुरूषोत्तम संगमयुग को भी जरूर आना है। कब आता है, कैसे आता है – यह
कोई भी नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो तो कितना गद्गद् होना चाहिए। तुम्हीं
कल्प-कल्प बाप से वर्सा लेते हो अर्थात् माया पर जीत पाते हो फिर हारते हो। यह है
बेहद की हार और जीत। उन राजाओं की तो बहुत ही हार-जीत होती रहती है। अनेक लड़ाइयाँ
लगती रहती हैं। छोटी-सी लड़ाई लगती है तो कह देते अब हमने जीता। क्या जीता? थोड़े
से टुकड़े को जीता। बड़ी लड़ाई में हारते हैं तो फिर झण्डा गिरा देते हैं। पहले-पहले
तो एक राजा होता है फिर और-और वृद्धि होते जाते हैं। पहले-पहले इन लक्ष्मी-नारायण
का राज्य था फिर और राजायें आने शुरू हुए। जैसे पोप का दिखाते हैं। पहले एक था फिर
नम्बरवार और पोप भी बैठते गये। किसकी मृत्यु का तो ठिकाना ही नहीं है ना।
तुम बच्चे जानते हो
हमको बाबा अमर बना रहे हैं। अमरपुरी का मालिक बना रहे हैं, कितनी खुशी होनी चाहिए।
यह है मृत्युलोक। वह है अमरलोक। इन बातों को नया कोई समझ न सके। उनको मज़ा नहीं
आयेगा, जितना पुरानों को आयेगा। दिन-प्रतिदिन वृद्धि को पाते रहते हैं। निश्चय पक्का
हो जाता है। इसमें सहनशीलता भी बहुत होनी चाहिए। यह तो आसुरी दुनिया है, दु:ख देने
में देरी नहीं करते। तुम्हारी आत्मा कहती है हम अभी बाबा की श्रीमत पर चल रहे हैं।
हम संगमयुग पर हैं। बाकी सब कलियुग में हैं। हम अभी पुरूषोत्तम बन रहे हैं। पुरूषों
में उत्तम पुरूष पढ़ाई से ही बनते हैं। पढ़ाई से ही चीफ जस्टिस आदि बनते हैं ना।
तुमको बाप पढ़ाते हैं। इस पढ़ाई से ही अपने पुरूषार्थ अनुसार पद पाते हो। जितना जो
पढ़ेंगे उतना ग्रेड मिलेगी। इसमें राजाई की ग्रेड है। वैसे उस पढ़ाई में राजाई की
ग्रेड नहीं होती है। तुम जानते हो हम राजाओं का राजा बन रहे हैं। तो अन्दर में कितनी
खुशी होनी चाहिए। हम डबल सिरताज बहुत ऊंच बनते हैं। भगवान बाप हमको पढ़ाते हैं। कभी
कोई समझ न सके कि निराकार बाप कैसे आकर पढ़ाते हैं। मनुष्य पुकारते भी हैं – हे
पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। फिर भी पावन बनते नहीं। बाप कहते हैं काम महाशत्रु
है। तुम एक तरफ पुकारते हो कि पतित-पावन आओ, अब मैं आया हूँ कहता हूँ बच्चे पतितपना
छोड़ दो, तो तुम छोड़ते क्यों नहीं। ऐसे थोड़ेही बाप तुमको पावन बनाये और तुम पतित
बनते रहो। ढेर ऐसे पतित बनते हैं। कोई सत्य बताते हैं, बाबा यह भूल हो गई। बाबा कहते
हैं कोई भी पाप कर्म हो जाए तो फौरन बताओ। कोई सच, कोई झूठ बोलते हैं। कौन पूछते
हैं? मैं थोड़ेही एक-एक के अन्दर को बैठ जानूँगा, यह तो हो न सके। मैं आता ही हूँ
सिर्फ राय देने। पावन नहीं बनेंगे तो तुम्हारा ही नुकसान है। मेहनत कर पावन से फिर
पतित बन जायेंगे, तो की कमाई चट हो जायेगी। लज्जा आयेगी हम खुद ही पतित बन पड़े हैं
फिर दूसरे को कैसे कहेंगे कि पावन बनो। अन्दर खायेगा कि हमने कितना फरमान का
उल्लंघन किया। यहाँ तुम बाप से डायरेक्ट प्रतिज्ञा करते हो, जानते हो बाबा हमको
सुखधाम-शान्तिधाम का मालिक बना रहे हैं। हाजिर नाजिर है, हम उनके सम्मुख बैठे हैं।
इनमें पहले यह नॉलेज थोड़ेही थी। न कोई गुरू ही था – जिसने नॉलेज दी। अगर गुरू होता
तो सिर्फ एक को ज्ञान देंगे क्या। गुरूओं के फालोअर्स तो बहुत होते हैं ना। एक
थोड़ेही होगा। यह समझने की बातें हैं ना। सतगुरू है ही एक। वह हमको रास्ता बताते
हैं। हम फिर दूसरों को बताते हैं। तुम सबको कहते हो – बाप को याद करो। बस। ऊंच ते
ऊंच बाप को याद करने से ही ऊंच पद मिलेगा। तुम राजाओं के राजा बनते हो। तुम्हारे
पास अनगिनत धन होगा। तुम अपनी झोली भरते हो ना। तुम जानते हो बाबा हमारी झोली खूब
भर रहे हैं। कहते हैं कुबेर के पास बहुत धन था। वास्तव में तुम हर एक कुबेर हो।
तुमको वैकुण्ठ रूपी खजाना मिल जाता है। खुदा दोस्त की भी कहानी है। उनको जो पहले
मिलता था उसको एक दिन के लिए बादशाही देते थे। यह सब दृष्टान्त हैं। अल्लाह माना
बाप, वह अवलदीन रचता है। फिर साक्षात्कार हो जाता है। तुम जानते हो बरोबर हम योगबल
से विश्व की बादशाही लेते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस आसुरी दुनिया में बहुत-बहुत सहनशील बनकर रहना है। कोई गाली दे,
दु:ख दे तो भी सहन करना है। बाप की श्रीमत कभी नहीं छोड़नी है।
2) डायरेक्ट बाप ने पावन बनने का फरमान किया है इसलिए कभी भी पतित नहीं बनना है।
कभी कोई पाप हो तो छिपाना नहीं है।
वरदान:-
संगठन में रहते लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले
सदा शक्तिशाली आत्मा भव
संगठन में एक दो को देखकर उमंग-उत्साह भी आता है तो
अलबेलापन भी आता है। सोचते हैं यह भी करते हैं, हमने भी किया तो क्या हुआ। इसलिए
संगठन से श्रेष्ठ बनने का सहयोग लो। हर कर्म करने के पहले यह विशेष अटेन्शन वा
लक्ष्य हो कि मुझे स्वयं को सम्पन्न बनाकर सैम्पुल बनना है। मुझे करके औरों को कराना
है। फिर बार-बार इस लक्ष्य को इमर्ज करो। लक्ष्य और लक्षण को मिलाते चलो तो
शक्तिशाली हो जायेंगे।
स्लोगन:-
लास्ट
में फास्ट जाना है तो साधारण और व्यर्थ संकल्पों में समय नहीं गंवाओ।