06-11-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 02-08-73 मधुबन
यथार्थ विधि से सिद्धि की प्राप्ति
क्या अपने में विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति समझते हो? क्योंकि जो कोई भी पुरूषार्थ करते हैं उनके पुरूषार्थ का लक्ष्य ही है-सिद्धि को पाना। जैसे दुनिया वालों के पास आजकल रिद्धिसिद्धि बहुत हैं तो उस तरफ है रिद्धि-सिद्धि और यहाँ है विधि से सिद्धि। यथार्थ है - ‘विधि और सिद्धि’। इनको ही दूसरे रूप में लेने के कारण वे रिद्धि-सिद्धि में चले गये हैं। तो क्या अपने को सिद्धि-स्वरूप समझते हो? जो भी संकल्प करते हैं, अगर यथार्थ विधि-पूर्वक है तो सिद्धि ज़रूर होती है। अगर विधि नहीं है तो समझो कि सिद्धि भी नहीं है। इसलिए भक्ति मार्ग में भी जो कोई कार्य करते हैं या कराते हैं वैल्यु उसकी विधि पर ही होती है। विधि-पूर्वक होने के कारण ही उस सिद्धि का अनुभव करते हैं। सभी का प्रारम्भ तो यहाँ से ही हुआ है ना? इसलिए पूछते हैं कि सिद्धि-स्वरूप अपने को समझते हो वा अभी बनना है? समय के प्रमाण दोनों ही क्षेत्र में परिणाम स्वरूप अब तक 95% रिजल्ट ज़रूर होना चाहिए।
जैसे समय की रफ्तार को देख रहे हो और चैलेंज भी करते हो तो जो चुनौती दी है, वह सम्पन्न तब होगी, जब आप लोगों की स्थिति सम्पन्न होगी। यह जो चुनौती करते हो-वह परिवर्तन किसके आधार पर होगा? उनकी आधार शिला (नींव) कौन है? उनकी आप लोग ही तो आधार शिला हो ना? अगर आधार-शिला ही मज़बूत न हो तो आगे कार्य कैसे चलेगा? जब फाउण्डेशन या आधार-शिला तैयार हो जाये तब उसके बाद फिर नम्बरवार राजघानी भी तैयार हो। तो जिन को राज्य करने का अधिकारी बनना है वह अपने अधिकार नहीं लेंगे तो दूसरों को फिर नम्बरवार अधिकार कैसे प्राप्त होंगे? और दो वर्ष की जो चुनौती देते हो उस हिसाब से जो विश्व-परिवर्तन का कार्य होना है वह जब तक आप लोगों की स्थिति विधि द्वारा सिद्धि को प्राप्त नहीं होगी तो इस विश्व-कल्याण के कर्त्तव्य में भी कैसे सिद्धि की उपलब्धि होगी? पहले तो स्वयं की सिद्धि होगी। इतना बड़ा कर्त्तव्य इतने थोड़े समय में सम्पन्न करना है तो कितनी तेज़ रफ्तार होनी चाहिए? जबकि 37 वर्ष की स्थापना के कार्य में 50% तक ही पहुंचे हैं तो अब दो वर्ष में 100% तक लाना है तो उसके लिये क्या करना पड़ेगा? क्या उसके लिये कोई योजना बनाते हो कि रफ्तार को कैसे पूरा करें अर्थात् सिद्धि-स्वरूप कैसे बने कि संकल्प किया और सिद्धि प्राप्त हो? यह है 100% सिद्धि-स्वरूप की निशानी कि कर्म किया और सिद्धि प्राप्त हुई।
जब साधारण नॉलेज के आधार पर रिद्धि-सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं तो क्या श्रेष्ठ नॉलेज के आधार पर विधि से सिद्धि को नहीं प्राप्त कर सकते? यह चेकिंग चाहिए कि कौन-सी विधि में कमी रह जाती है कि जो फिर सिद्धि भी सम्पूर्ण नहीं होती। विधि को चेक करने से सिद्धि ऑटोमेटिकली प्राप्त हो जायेगी। इसमें भी सिद्धि न हो सकने का मुख्य कारण यही है कि जो एक ही समय तीनों रूप से सर्विस नहीं करते हो। तीनों रूपों और तीनों रीति से एक ही समय करना है। नॉलेज़फुल, पॉवरफुल और लवफुल, इसमें लव और लॉ ये दोनों साथ-साथ आ जाते हैं। इन तीनों रूप से तो सर्विस करनी ही है लेकिन इन तीनों रीति से भी करनी है। अर्थात् मनसा, वाचा और कर्मणा इन तीनों ही रीति से और एक ही समय इन तीनों रूपों से करनी है। जब वाणी द्वारा सर्विस करते हो, तो मनसा भी पॉवरफुल हो। पॉवरफुल स्टेज से तो उसकी मनसा को भी चेन्ज कर देंगे और वाणी द्वारा उनको नॉलेजफुल बना देंगे और फिर कर्मणा द्वारा अर्थात् जो भी उनके सम्पर्क में आते हैं तो उससे सम्पर्क ऐसा लवफुल हो कि जो ऑटोमेटिकली (स्वयमेव) वह स्वयं महसूस करे कि यह कोई अपने ईश्वरीय परिवार (गॉडली फेमिली) में ही पहुंच गया है। और अपनी चलन ही ऐसी हो कि जिससे वह स्वयं महसूस करे कि वास्तव में यह ही मेरा असली परिवार है।
अगर इन तीनों रीति से उनकी मनसा को भी कन्ट्रोल कर लो और वाणी से नॉलेज दे लाइट, माइट का वरदान दो और कर्मणा अर्थात् सम्पर्क द्वारा अपने स्थूल एक्टिविटि द्वारा ईश्वरीय परिवार का अनुभव कराओ तो क्या इस विधि-पूर्वक सर्विस करने से सिद्धि नहीं होगी? कारण कि आप एक ही समय में तीनों रीतियों और तीनों रूपों से सर्विस नहीं करते हो। जब आप वाचा में आते हो तो मनसा जो पॉवरफुल होनी चाहिए, वह नहीं होती है वह कम हो जाती है और जब रमणीक एक्टिविटि से किसी को सम्पर्क में लाते हो, तो भी मनसा जो पॉवरफुल होनी चाहिए वह नहीं रहती है। तो एक ही समय यदि ये तीनों इकट्ठी हों तो सिद्धि ज़रूर मिलेगी। अब इस रीति से सर्विस करने का अभ्यास और अटेन्शन चाहिए। आप उनके सम्बन्ध में नहीं आते हैं अर्थात् डीप सम्पर्क में नहीं आते हैं सिर्फ ऊपर-ऊपर के सम्पर्क में ही आते हैं। परन्तु वह ऊपर-ऊपर का सम्पर्क अल्पकाल का ही होता है। भले लव में लाते भी हो लेकिन लवफुल के साथ पॉवरफुल भी होना चाहिए ताकि उन आत्माओं में भी पॉवर भरे जिससे कि वह समस्याओं का, वायुमण्डल का, वायब्रेशन्स का सामना कर सदा काल सम्बन्ध में रहें, लेकिन वह नहीं होता। या तो वे नॉलेज पर आकर्षित होते हैं या फिर लव पर होते हैं। ज्यादातर वे लव पर ही आकर्षित होते हैं, फिर सेकेण्ड नम्बर में नॉलेज पर। लेकिन पॉवरफुल स्टेज ऐसी हो जो कि कोई भी बात सामने हो तो वह हिले नहीं, अभी केवल यह कमी है।
जो सर्विसएबल निमित्त बनते हैं उन में भी नॉलेज ज्यादा है, और लव भी है लेकिन पॉवर कम है। पॉवरफुल स्टेज की निशानी क्या होगी? एक सेकेण्ड में कोई भी वायुमण्डल या वातावरण को माया की कोई भी समस्या को खत्म कर देंगे, वे कभी हार नहीं खायेंगे। जो भी आत्मायें समस्या का रूप बन कर आती हैं, वह उनके ऊपर बलिहार जायेंगी जिसको दूसरे शब्दों में प्रकृति दासी कहें। जब पाँच तत्व दासी बन सकते हैं तो क्या मनुष्य-आत्मायें बलिहार नहीं जावेंगी? तो पॉवरफुल स्टेज का प्रैक्टिकल स्वरूप यह है। इसलिए कहा कि एक ही समय तीनों रूप से सर्विस करने की जब रूप-रेखा बन जायेगी तब हरेक कर्त्तव्य में सिद्धि दिखलाई पड़ेगी। तो विधि के कारण सिद्धि हुई ना? विधि में कमी होने के कारण ही सिद्धि में कमी है। अब सिद्धि स्वरूप बनने के लिए इस विधि को पहले ठीक करो।
भक्ति-मार्ग में करते हैं साधना, यहाँ है साधन। साधन कौन-सा? बापदादा की हरेक विशेषता को अपने में धारण करते-करते विशेष आत्मा बन जायेंगे। जैसे इम्तहान के दिन जब नज़दीक होते हैं तो जो कुछ स्टडी की हुई होती है- थ्योरी या प्रैक्टिकल-दोनों को रिवाइज कर और चेक करते हैं कि कौन-सी सब्जेक्ट् में क्या-क्या कमी रही हुई है। इसी प्रकार अब जबकि समय नज़दीक आ रहा है, तो हर सब्जेक्ट् में अपने-आप को देखो कि कौन-सी और कितनी परसेन्टेज तक कमी रही हुई है? थ्योरी में भी और प्रैक्टिकल में भी - दोनों में ही चेक करना है। हरेक सब्जेक्ट् की कमी को देखते हुए अपने आपको कम्पलीट करते जाओ। लेकिन वह कम्पलीट तब होंगी जब पहले रिवाइज करने से अपनी कमी का पता पड़ेगा। सब्जेक्ट्स को तो जानते हो। सब्जेक्ट्स को बुद्धि में धारण किया वा नहीं, उसकी परख क्या है? जैसे सिद्धि की परसेन्टेज बढ़ती जायेगी तो टाइम भी वेस्ट नहीं जायेगा। थोड़े टाइम में सफलता जास्ती होगी। इसको कहा जाता है सिद्धि। अगर समय ज्यादा, मेहनत भी ज्यादा करते हो, फिर सफलता मिलती है तो इसको भी कम परसेन्ट कहेंगे। सभी रीति से कम लगना चाहिए। तन भी कम लगे, मन के संकल्प भी कम लगें। नहीं तो कितने संकल्प करते हो? प्लान बनाते-बनाते डेढ़ मास लग जाता है। तो समय व संकल्प व अपनी जो भी सर्व-शक्तियाँ हैं उन सर्व- शक्तियों के खजाने को ज्यादा काम में नहीं लगाना है अर्थात् ‘कम खर्च बाला नशीन’ अर्थात् संकल्प वही उत्पन्न होगा, कि जिससे सिद्धि प्राप्त हो जायेगी। समय भी वही निश्चित होगा कि जिसमें सफलता हुई पड़ी है। इसको कहते हैं सिद्धि-स्वरूप।
तो सर्व-सब्जेक्ट्स में हम कहाँ तक पास हैं इसकी परख क्या है? जो जितने सब्जेक्ट्स में पास होगा तो उतना ही उन सब्जेक्ट्स के आधार पर ऑब्जेक्ट (लक्ष्य) और रिसपेक्ट मिलेगी। एक तो प्राप्ति का अनुभव भी होगा। जैसे कि ज्ञान की सब्जेक्ट् है तो उससे जो ऑब्जेक्ट प्राप्त होती है-लाइट और माइट वह प्राप्ति का अनुभव करेंगे। उस नॉलेज की सब्जेक्ट के आधार पर रिसपेक्ट भी इतनी मिलेगी ही। चाहे दैवी परिवार से, चाहे अन्य आत्माओं से। जैसे देखो आजकल के महात्मा हैं, उन को इतना रिसपेक्ट क्यों मिलती है? क्योंकि जो साधना की है और जो भी सब्जेक्ट अध्ययन करते हैं उनकी ही ऑब्जेक्ट और रिसपेक्ट उन को मिलती है और प्रकृति दासी होती है। तो यह एक ज्ञान की बात सुनाई। वैसे योग की भी सब्जेक्ट्स है उनसे क्या ऑब्जेक्ट होनी चाहिए?
योग अर्थात् याद की शक्ति द्वारा ऑब्जेक्ट प्राप्त होनी चाहिए। वह जो भी संकल्प करेंगे वह समर्थ होगा। और जो भी कोई समस्या आने वाली होगी, उनका पहले ही योग की शक्ति से अनुभव होगा कि यह होने वाला है। तो पहले से ही मालूम होने के कारण वे कभी भी हार नहीं खायेंगे। ऐसे ही योग की शक्ति के द्वारा अपने पिछले संस्कारों का बोझ खत्म होता है। कोई भी संस्कार अपने पुरूषार्थ में विघ्न रूप नहीं बनेगा। जिसको नेचर कहते हो वह भी विघ्न रूप नहीं बनेंगे पुरूषार्थ में। तो जिस सब्जेक्ट को जो ऑब्जेक्ट है वह अनुभव होनी चाहिए। ऑब्जेक्ट है तो इसका परिणाम रिसपेक्ट ज़रूर मिलेगी। आप मुख से जो भी शब्द रिपीट करेंगे वा जो भी प्लान बनायेंगे वह समर्थ होने के कारण उसे सभी रिसपेक्ट देंगे। अर्थात् जो भी एक दूसरे को राय देते हो तो उस राय को सभी रिसपेक्ट देंगे क्योंकि समर्थ है। इस प्रकार हर सब्जेक्ट को देखो।
दिव्य गुणों की वा सर्विस की जो सब्जेक्ट् है तो उसकी प्राप्ति यह है कि नज़दीक सम्पर्क और सम्बन्ध में आना चाहिए। नज़दीक सम्बन्ध और सम्पर्क में आने से ऑटोमेटिकली रिस्पेक्ट ज़रूर मिलेगी। ऐसे हर सब्जेक्ट की ऑब्जेक्ट को चेक करो और ऑब्जेक्ट की चेक करने का साधन है-रिसपेक्ट। अगर मैं नॉलेजफुल हूँ तो जिसको भी नॉलेज देती हूँ क्या वह इस नॉलेज को इतना रिस्पेक्ट देते हैं? नॉलेज को रिसपेक्ट देना अर्थात् नॉलेजफुल को रिसपेक्ट देना है? अगर योग की सब्जेक्ट में ऑब्जेक्ट है तो और भी किसके संकल्प को परिवर्तन में लाने के समर्थ बना सकते हैं। तो वे ज़रूर रिसपेक्ट देंगे। तो इस रीति हर सब्जेक्ट में चेकिंग करनी है। हर सब्जेक्ट में व संकल्प में ऑब्जेक्ट और रिस्पेक्ट इन दोनों की प्राप्ति का अनुभव जो भी करते हैं तो वही परफेक्ट कहेंगे। परफेक्ट अर्थात् कोई भी इफेक्ट से दूर, इफेक्ट से परे हैं तो परफेक्ट हैं। चाहे शरीर का, चाहे संकल्पों का और चाहे कोई भी सम्पर्क में आने से किसके भी वायब्रेशन वा वायुमण्डल का, सभी प्रकार के इफेक्ट से परे हो जायेंगे तो समझो सब्जेक्ट में पास अर्थात् परफेक्ट हैं तो ऐसे बन रहे हो ना? लक्ष्य तो यही है ना?
अब अपनी चैकिंग ज्यादा होनी चाहिए। जैसे दूसरों को कहते हो कि समय के साथ स्वयं को भी परिवर्तन में लाओ, वैसे ही सदैव अपने को भी यह स्मृति में रहे कि समय के साथ-साथ स्वयं को भी परिवर्तन में लाना है। अपने को परिवर्तन में लाते-लाते सृष्टि का भी परिवर्तन हो जायेगा क्योंकि अपने परिवर्तन के आधार से ही सृष्टि को परिवर्तन में लाने का कार्य कर सकेंगे। यहाँ यही श्रेष्ठता है जो दूसरे लोगों में नहीं है। वह तो सिर्फ दूसरों को परिवर्तित करने के यत्न में हैं। यहाँ स्वयं के आधार पर सृष्टि में तुम परिवर्तन करते हो। तो जो आधार है उसके लिये अपने ऊपर इतना अटेन्शन देना है। अब सदैव यह स्मृति रहे कि हमारे हर संकल्प के पीछे विश्व-कल्याण का सम्बन्ध है।
जो आधार मूर्त्त है, यदि उनके संकल्प समर्थ (सामर्थ्य) नहीं तो उनके समय के परिवर्तन में भी कमजोरी पड़ जाती है। इस कारण आप जितना-जितना स्वयं समर्थ बनेंगे, उतना ही सृष्टि को परिवर्तन करने का समय समीप ला सकेंगे। ड्रामा-अनुसार समय भले ही निश्चित है, लेकिन वह ड्रामा भी किसके आधार से बना है? आखिर आधार तो होगा ना? उसके आधार-मूर्त्त तो आप हो। अभी तो आप सभी की नज़रों में हो। चैलेन्ज किया है ना दो वर्ष का? जब यह बातें सुनते हो तो थोड़ा-बहुत संकल्प चलता है कि अगर सचमुच विनाश नहीं हुआ तो? यह भी हो सकता है कि ‘दो वर्ष में न हो’-यह संकल्प-रूप में क्या नहीं चलता है? चलो सामना कर लेंगे, यह दूसरी बात है। इसका मतलब हुआ कि संकल्प में कुछ है तब तो आता है ना? बिल्कुल आपको पक्का है कि दो वर्ष में होगा? अच्छा समझो आप लोगों से कोई पूछते हैं कि विनाश न हो तो क्या होगा? फिर आप क्या कहेंगे? जिस समय समझाते हो तो यह स्पष्ट समझाना चाहिए कि ऐसे नहीं कि दो वर्ष में कम्पलीट विनाश हो जायेगा, नहीं। दो वर्ष में ऐसे नज़ारे हो जायेंगे कि जिससे लोग यह समझेंगे कि बराबर यह विनाश हो रहा है और विनाश शुरू हो गया है। एक बात सहज लग गई तो दूसरी बात सहज लगेगी ही। विनाश में समय तो लगेगा ना? जब स्वयं सम्पूर्ण हो जायेंगे तो कार्य भी सम्पूर्ण होगा। अच्छा।
वरदान:- अपने भाग्य और भाग्य विधाता की स्मृति द्वारा सर्व उलझनों से मुक्त रहने वाले मा. रचयिता भव
सदा वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता! इस मन के सूक्ष्म आवाज को सुनते रहो और खुशी में नाचते रहो। जानना था वो जान लिया, पाना था वो पा लिया - इसी अनुभवों में रहो तो सर्व उलझनों से मुक्त हो जायेंगे। अब उलझी हुई आत्माओं को निकालने का समय है इसलिए मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ, मास्टर रचयिता हूँ - इस स्मृति से बचपन की छोटी-छोटी बातों में समय नहीं गंवाओ।
स्लोगन:- कमल आसनधारी ही माया की आकर्षण से न्यारे, बाप के स्नेह में प्यारे श्रेष्ठ कर्मयोगी हैं।