ओम् शान्ति।
यह है बच्चों की पुकार कि बाबा अभी आ जाओ क्योंकि हम फिर से रावण राज्य में दु:खी
हैं। फिर से माया का परछाया पड़ गया है अर्थात् 5 विकार रूपी रावण ने हमको बहुत
दु:खी किया है। रेसपाण्ड में बाबा कहते हैं हाँ बच्चे, यह तो मेरा नियम है। यह जरूर
आ करके ही कहेंगे ना। हाँ बच्चे, जब-जब धरती पर भारतवासी बिल्कुल ही भ्रष्टाचारी
दु:खी बने हैं, कितने गुरू करते हैं सद्गति के लिए, परन्तु वह किसी की सद्गति तो
करते नहीं। सभी अन्धों की लाठी तो एक प्रभू ही है। पहले-पहले बाप जन्म देते हैं
अर्थात् एडाप्ट करते हैं, गुरू सद्गति करते हैं। अभी न कोई सद्गति करते हैं, न कोई
बाबा है। अभी तुम कहते हो परमपिता परमात्मा हमारा बाबा भी है, गुरू भी है। उस एक को
ही सतगुरू, सत बाबा कह सकते हैं। वह है सत बाबा, उनको सुप्रीम कहा जाता है। सतगुरू
भी है। साथ में ले जाते हैं। गैरन्टी है और कोई गुरू गैरन्टी कभी नहीं करेंगे कि हम
तुम आत्माओं को वापिस ले जाऊंगा। वह जानते ही नहीं। यह हैं सब नई बातें। तुम जब इनको
देखते हो तो बुद्धि में याद शिव को करना है। वही बाप, टीचर, गुरू है। मनुष्य कोई
गुरू करते हैं वा टीचर करते हैं तो उनके शरीर को ही देखते हैं। आत्मा ही भिन्न शरीर
धारण कर, भिन्न-भिन्न नाम-रूप, देश, काल में जाती है। अच्छा बाबा तो एक है और एक
बार आते हैं। वह तो पुनर्जन्म नहीं लेते। संस्कार तो आत्मा में हैं। वह जब शरीर
धारण करेगी तब वर्णन होगा ना। तुम बच्चे बाप की महिमा गाते हो - वह निराकार है, कभी
साकार शरीर लेते नहीं हैं। शिव का अपना शरीर तो होता नहीं। परन्तु ज्ञान का सागर,
पतित-पावन है, सतगुरू है। बाबा भी है, राजयोग भी सिखाते हैं। जो ब्रह्माण्ड का, सारे
विश्व का मालिक है, वही स्वर्ग का मालिक बनायेंगे ना। शरीरधारी तो बना न सके। सिवाए
बच्चों के बाप को कोई जानते नहीं। तुम कहेंगे परमात्मा हमको पढ़ाते हैं। तो कहेंगे
यह तो कोई शास्त्रों में नहीं है कि निराकार परमपिता परमात्मा शरीर में आते हैं। अरे
शिव जयन्ती गाई जाती है। गीत में भी कहा रूप बदलकर आओ। तो वह किस शरीर, किस रूप में
आया? तुम्हारा तो यह है कर्म बन्धन का शरीर। अच्छे कर्म से अच्छा पद बुरे कर्म से
बुरा पद मिलता है, इनके लिए तो ऐसा नहीं कहेंगे। मनुष्य तो पुनर्जन्म जरूर लेते
हैं। बाप नहीं लेते। उसने इस शरीर में प्रवेश किया है। बताते भी हैं शिवबाबा ब्रह्मा
द्वारा स्थापना करते हैं। शिव तो निराकार हुआ, ब्रह्मा द्वारा कैसे करते हैं? क्या
ऊपर से प्रेरणा देते हैं? पतित दुनिया में आते हैं तो किस शरीर में आवें, जो राजयोग
सिखावे। तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है, हम उनसे सुनते हैं। वह इस ब्रह्मा मुख
से सुनाते हैं और सब देहधारी गुरू का नाम बतायेंगे। तुम जानते हो निराकार शिव हमारा
बाबा है। पहले तो बाबा जन्म देने वाला चाहिए ना। शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा
एडाप्ट करते हैं। प्रजापिता को कुख से तो इतने बच्चे हो न सकें। प्रजापिता ब्रह्मा
के तो अथाह बच्चे हैं। ब्राह्मण कुल बहुत बड़ा है, जो ब्राह्मण फिर देवता बनेंगे।
जब देवता बनेंगे तो एडाप्शन नहीं होगी। एडाप्शन अभी है। कितने ब्राह्मण हैं।
बच्चे जानते हैं हम शिवबाबा के पास आये हैं। वही नॉलेजफुल है। कहते हैं मैं तुम
बच्चों को ही यह नॉलेज सुनाता हूँ। मेरा अपना शरीर तो है नहीं। शिव जयन्ती मनाते
हैं परन्तु कैसे शिव बाबा आया, यह कोई नहीं जानते। कहते भी हैं शिव रात्रि। रात्रि
में कृष्ण का भी जन्म दिखाते हैं। शिव जयन्ती के बाद फट से श्रीकृष्ण का जन्म होता
है। शिव का जन्म तो है सगंम पर। ब्रह्मा की रात पूरी हो फिर दिन शुरू होता है। उसी
संगम पर बाप आते हैं। यह है बेहद की रात्रि, वह है हद की। आधाकल्प दिन, आधाकल्प रात।
भक्ति मार्ग में धक्के ही खाते रहते हैं, भगवान मिलता नहीं तो अन्धियारा ठहरा ना।
बिल्कुल ही बुद्धिहीन हैं। गाते हैं परमपिता परमात्मा ऊपर है.. फिर कहते हैं तीर्थ
यात्रा पर भी भगवान मिलेगा। दान-पुण्य से भी मिलेगा। कितना समय तुमने धक्के खाये
हैं। अनेक मतें हैं इसलिए कहा जाता है भक्ति मार्ग है ब्रह्मा की रात। धक्के
खाते-खाते दुर्गति को पाकर पाप आत्मा बन पड़ते हैं। विकार से पैदा होने वालों को ही
पाप आत्मा कहा जाता है। तुम ऐसे तो नहीं कहेंगे कि श्रीकृष्ण कोई विकार से पैदा हुए।
नहीं, वह तो योगबल से पैदा होते हैं। इन बातों को तुम भारतवासी गृहस्थ धर्म वाले
जानते हो। संन्यासी नहीं जानते, न मानते हैं।
बाप कहते हैं लाडले बच्चे सतयुग में तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में थे फिर
पुनर्जन्म लेते पतित भी बनते हो। भारत पवित्र था, देवताओं का राज्य था। वहाँ शान्ति
भी थी, यूँ शान्तिधाम, निर्वाणधाम है परन्तु सतयुग में भी तुमको वर्सा मिला हुआ है,
इसलिए वहाँ कभी अशान्त होते नहीं। एक दो को दु:ख दे कभी अशान्त नहीं करते। कोई भी
किसको दु:ख नहीं देते। यहाँ तो बच्चे भी माँ बाप को दु:ख दे अशान्त कर देते हैं। अभी
तुम शान्ति के सागर से वर्सा ले रहे हो। वहाँ कोई लड़ाई झगड़ा नहीं होता है। यहाँ
भी तुम्हारी वह अवस्था चाहिए। आपस में लूनपानी नहीं होना चाहिए। पहले-पहले तो यह
निश्चय चाहिए - बेहद का बाप आया हुआ है, हमको दु:ख की दुनिया से ले जायेंगे घर।
सतयुग में तो बाप आते नहीं। यहाँ आकर इन खिड़कियों से (नयनों से) तुमको देखते हैं।
इनकी आत्मा भी देखती है, शिवबाबा भी देखते हैं। एक शरीर में दो आत्मायें कैसे हो
सकती, मनुष्य नहीं मानेंगे। अरे तुम ब्राह्मण खिलाते हो, पति की अथवा बाप की आत्मा
को बुलाते हो, वह आकर बोलती है। उनसे पूछते हैं तो दो आत्मायें हुई ना। बाबा कहते
हैं वह आत्मायें आकर बैठती नहीं हैं। यह हो न सके। बाप को तो अपना शरीर है नहीं। वह
तो आ सकता है ना। 5 हजार वर्ष पहले भी हमने ऐसे कहा था कि साधारण बूढ़े तन में
भागीरथ अर्थात् भाग्यशाली रथ में आता हूँ। जरूर मनुष्य के तन में आयेगा न कि बैल पर
आयेगा? सूक्ष्मवतन में शंकर के आगे बैल कहाँ से आया? अगर शंकर की अथवा शंकर पार्वती
की पूजा करते हैं तो मैं साक्षात्कार करा देता हूँ। बाकी यह दिखाया है शंकर ने
पार्वती को कथा सुनाई, यह है झूठ। शंकर क्यों कथा सुनायेंगे? सूक्ष्मवतन में तो
दरकार ही नहीं। तुम फरिश्ते बन जायेंगे तो कथा पूरी होगी। कथा सुनाई जाती है पतित
को पावन बनाने के लिए। बाबा अमरकथा सुनाते हैं अमरलोक में ले जाने, लायक बनाते हैं।
अमरलोक सतयुग को कहा जाता है। यह है मृत्युलोक।
आज बाबा ने पूछा शिवबाबा स्नान करते हैं? बोला, बापदादा करते हैं। हमने कहा
स्नान तो दादा करते हैं ना। शिव क्यों करेगा! उनको थोड़ेही पाखाने में जाना है जो
स्नान करें। शिव तो अभोक्ता है ना। यह समझ की बात है ना। वह थोड़ेही अपवित्र बनते
हैं जो स्नान करेंगे। वह तो आते ही हैं पतितों को पावन बनाने। करनकरावनहार, अभोक्ता,
असोचता है। अकर्ता कहना रांग हो जाता है। पतितों को पावन करते हैं ना। करनकरावनहार
है। (खांसी हुई) इनकी आत्मा का यह शरीर रूपी बाजा डिफेक्टेड हो गया तो शिवबाबा क्या
करेगा? तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि शिवबाबा के बाजे में डिफेक्ट हुआ। नहीं, यह शरीर उनका
नहीं, लोन लिया हुआ है। लोन ली हुई चीज़ टूट जाती है तो धनी की टूटेगी ना। शिवबाबा
इस शरीर का धनी नहीं। धनी तो यह (ब्रह्मा) है। उसने यह किराये पर लिया है। यह
भाग्यशाली रथ है। बैल एक ही है। फिर गऊ मुख भी कहते हैं। बाबा कहते हैं बरोबर
कोई-कोई बच्चियां इतनी होशियार नहीं हैं। किसको उठाना है तो मैं बच्चों में जाकर
उठाता हूँ। पतित दुनिया में, पतित शरीर में तो आना ही होता है। तो किसका कल्याण करने
के लिए भी बच्चों में प्रवेश करता हूँ। बच्चे नहीं समझेंगे। उनसे भी वह सुनने वाले
बड़े तीखे हो जाते हैं। यह बाप की मदद मिलती है। एक तो निश्चयबुद्धि हैं, दूसरा फिर
दृष्टि मिलती है। बाबा कहते हैं मैं प्रवेश कर सकता हूँ, ऐसे नहीं मैं सर्वव्यापी
हूँ। मुझे बहुरूपी क्यों कहते हैं? जो जिसकी पूजा करते हैं उनका साक्षात्कार कराता
हूँ। साक्षात्कार में ऐसे देखते हैं कि जैसे सामने आ रहे हैं। विष्णु का
साक्षात्कार होता है, विष्णु चैतन्य हो जाता है। माथे पर हाथ रखते हैं। कहते हैं
मुझे चतुर्भुज का साक्षात्कार हुआ। परन्तु उनसे फायदा क्या? कुछ भी नहीं। सिर्फ दिल
खुश हुई - मुझे भगवान का दीदार हुआ। भक्ति में दीदार बहुत होते हैं, परन्तु इससे
सद्गति को नहीं पाते हैं। जबकि गाते हैं सद्गति दाता, पतित-पावन एक है। विष्णु नहीं
हो सकता। वह बाप थोड़ेही होंगे। बाप एक है फिर उनका बच्चा भी एक है प्रजापिता
ब्रह्मा। ऐसे कभी नहीं कहेंगे प्रजापिता विष्णु वा शंकर। प्रजापिता एक, फिर उनसे
ब्राह्मण एडाप्शन होती है। बच्चे जानते हैं हम पहले ब्राह्मण बनते हैं फिर देवता
बनते हैं। ब्राह्मणों की माला एक्यूरेट बन न सके क्योंकि अदल-बदल होती रहती है। कोई
गिरते, कोई मरते रहते हैं। फिर क्या करेंगे! उनको निकाल देंगे? रुद्र माला अन्त में
ही एक्यूरेट बनेंगी। यह मीठी-मीठी बातें बाप ही सुनाते हैं और कोई को पता ही नहीं
है। कितने हैं जो कहते हैं हे राम जी संसार बना ही नहीं है..... अब रामचन्द्र तो यहाँ
से प्रालब्ध ले जाते हैं, त्रेता में जाकर राजा बनते, उनको फिर अज्ञान कहाँ से आया?
जो वशिष्ठ उनको ज्ञान दे कि संसार बना ही नहीं है। यह सृष्टि का चक्र है। सभी बातों
में मूंझे हुए हैं। कोई भी नहीं जानते हैं, न समझ सकते हैं। शिवबाबा को ही गुम कर
दिया है। शिव जयन्ती मनाते भी हैं, परन्तु समझते नहीं। श्रीकृष्ण ही सावंरा बनता
है। बाबा आते भी तब हैं जब इनको सांवरे से गोरा बनाना है। शिव जयन्ती के बाद झट
श्रीकृष्ण का जन्म होता है। शिवबाबा आकर राजयोग सिखाते हैं, किसको? ब्राह्मणों को।
प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली को। वही फिर राजा रानी बनते हैं। शिवबाबा चले
जायेंगे फिर लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा तो बाप ने कृष्ण को ऐसा बनाया है।
उन्होंने फिर बाप के बदले कृष्ण का नाम लगा दिया है। कृष्ण को द्वापर में ले गये
हैं। अब शिवबाबा राजयोग सिखाते हैं। तुम जानते हो हम स्वर्ग की राजधानी स्थापन कर
रहे हैं, और भी बहुत प्रिन्स प्रिन्सेज बनते हैं। संगम और सतयुग का किसको पता ही नहीं।
मैं आता ही हूँ कल्प के संगम पर। उन्होंने फिर युगे-युगे कह दिया है। सो भी 4 युग
होते हैं। द्वापर के बाद कलियुग होता है। फिर उस द्वापर युग में आकर क्या करेंगे?
उतरती कला में सबको जाना ही है। मेरा तो पार्ट ही तब है जब चढ़ती कला होती है, इनको
तो नीचे उतरना ही है। तुम बच्चों को 84 जन्म पूरे करने हैं। ऊंच ते ऊंच है ब्राह्मण
वर्ण। ब्राह्मण फिर देवता, क्षत्रिय... यह वर्ण भी भारत में गाये जाते हैं। विराट
रूप का चित्र बनाते हैं, उनमें ब्राह्मणों को और शिव को गुम कर दिया है। यह बातें
कोई शास्त्रों में नहीं हैं। शिवबाबा आकर एडाप्ट करते हैं ब्रह्मा द्वारा। शूद्र से
ब्राह्मण बनाते हैं। बाकी सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा वह कैसे प्रजापिता बन सकते। पहले
यह निश्चय चाहिए बरोबर वह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। कहते भी हैं सद्गति
दाता एक है परन्तु उनका नाम रूप देश काल नहीं जानते। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शान्ति के सागर बाप से शान्ति - सुख का वर्सा ले शान्त चित रहना है।
कभी किसी को दु:ख दे अशान्त नहीं करना है। लूनपानी नहीं होना है।
2) बाप समान अन्धों की लाठी बनना है। बाप की मदद लेने के लिए निश्चयबुद्धि बन
सेवा करना है।