ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? आत्मा ने कहा क्योंकि तुम बच्चे अब आत्म-अभिमानी बन रहे हो ड्रामा
प्लैन अनुसार। आधाकल्प देह-अभिमानी बनें, आधाकल्प तुम फिर आत्म-अभिमानी बनते हो। अभी
तुमको आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी पड़े। बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं बच्चे
अशरीरी भव, आत्म-अभिमानी भव। तुम बच्चे सामने बैठे हो और वह दूर बैठे हैं। यह जानते
हैं कि हमको आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करना है। बाबा की ही श्रीमत पर चलना है।
इसको कहा जाता है श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत। बाप के साथ बहुत लव होना चाहिए। अभी बाप
कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को छोड़ो। आत्म-अभिमानी बनने की बहुत-बहुत
प्रैक्टिस करनी है। शरीर तो विनाश होना है। आत्मा है अविनाशी। विनाशी शरीर को याद
करने के कारण आत्मा को भूल बैठे हैं। यह भी बच्चों को समझाया जाता है कि आत्मा क्या
चीज़ है। कहते भी हैं कि आत्मा छोटी स्टार मिसल है। इन आखों से देखने में नहीं आती
है, उनको दिव्य दृष्टि बिगर देखा नहीं जा सकता है। आत्मा को देखने की कोशिश बहुत
करते हैं परन्तु देख नहीं सकते। कोई दिव्य दृष्टि से देखते भी हैं तो भी समझ नहीं
सकते कि यह क्या चीज़ है। बड़ी चीज़ तो है नहीं। आत्मा बिल्कुल छोटी स्टार मिसल है।
कितनी छोटी बिन्दी है। यह बातें किसकी बुद्धि में बैठना बड़ा मुश्किल है क्योंकि
आधाकल्प से देह-अभिमान में रहे हैं।
बाप समझाते हैं तुम अपने को आत्मा निश्चय करो, हम आत्मा वहाँ के रहने वाले हैं।
यह शरीर तो यहाँ लेना है। यह शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है। पिण्ड (शरीर) जब तैयार
होता है तो फिर छोटी आत्मा इनमें प्रवेश करती है। चैतन्यता आती है। आत्मा भी सत्य,
चैतन्य है तो परमपिता परमात्मा भी सत है, चैतन्य है। परम आत्मा है। वह कोई बड़ी चीज़
नहीं है। आत्मा भी छोटी है। जैसे इनमें ज्ञान है वैसे तुम्हारी आत्मा में भी ज्ञान
है। इतनी छोटी आत्मा में सारा ज्ञान है, यह बड़ा वन्डर है। परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी
यह बातें भूल जाते हैं। देह-अभिमान में आ जाते हैं। अभी तुम आत्मायें इस शरीर द्वारा
विश्व के मालिक बनते हो अर्थात् गॉड गॉडेज बनते हो। बाप तो है गॉड फादर। परन्तु
भारत में इन लक्ष्मी-नारायण को गॉड गॉडेज कहते हैं क्योंकि इन्हों को इतना ऊंच बाप
बनाते हैं। इस नॉलेज से देखो क्या बन जाते हैं। जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़कर इम्तहान
में पास होते हैं, वह कमाई भी अच्छी करते हैं। जैसे दुनिया में कोई बहुत ब्युटीफुल
होते हैं तो उनको बहुत इनाम मिलता है। फिर कहते - मिस इन्डिया, मिस अमेरिका... शरीर
के साथ वो लोग कितनी मेहनत करते हैं। सतयुग में तो नेचुरल ब्युटी होती है, कशिश करने
वाली। सतोप्रधान प्रकृति से शरीर बनते हैं ना। वह कितना खींचते हैं। लक्ष्मी-नारायण,
राधे-कृष्ण के चित्र कितना सबको खींचते हैं। वह भी कोई एक्यूरेट चित्र नहीं बनते
हैं। वहाँ तो हैं ही सतोप्रधान, तो नेचुरल ब्युटी रहती है। यह सब बाबा समझाते हैं।
वो लोग गाते हैं हे पतित-पावन...परन्तु समझते कुछ भी नहीं। पुकारते भी ऐसे हैं जैसे
बेसमझ। हे भगवान दया करो, रहम करो। परन्तु भगवान क्या चीज़ है, वह जरा भी पता नहीं।
बाप को जानें तो रचना को भी जानें इसलिए ऋषि-मुनि आदि सब नेती-नेती कह गये। यह तो
बिल्कुल ठीक। रचता और रचना को कोई जानते नहीं। अगर जान जायें तो विश्व के मालिक बन
जायें।
अभी तुम समझते हो - इन लक्ष्मी-नारायण को भी ऐसा बनाने वाला बाप ही है। अभी तुम
बाप के सम्मुख बैठे हो परन्तु आधाकल्प देह-अभिमान में रहने के कारण इतना रिगार्ड रख
नहीं सकते। आत्म-अभिमानी बनते ही नहीं हैं। देही-अभिमानी बनने से दिन-प्रतिदिन
तुम्हारा रिगार्ड बढ़ता जायेगा। जब पूरे देही-अभिमानी बनेंगे तो रिगार्ड भी रखेंगे।
अवस्था भी सुधरती जायेगी, खुशी भी रहेगी। नम्बरवार तो होते हैं ना। जैसे बाप तुमको
समझाते हैं तुम भी औरों को युक्ति बताते रहो कि अपने को आत्मा समझो। अब तुम्हारा 84
का चक्र पूरा हुआ, अब वापिस चलना है। हम आत्मा घर से यहाँ आकर शरीर धारण कर पार्ट
बजा रहे हैं। यहाँ कितने जन्म लिए, वह भी बुद्धि में नॉलेज है। देही-अभिमानी बनने
में ही मेहनत है। घड़ी-घड़ी माया देह-अभिमानी बना देती है। अभी तुमको माया पर जीत
पाकर देही-अभिमानी बनना है। एकान्त में बैठ विचार करो हम आत्मा हैं। बाप ने कहा है
मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। इस देह में मोह नहीं रखो। हम आत्मा अविनाशी
हैं, हमको भाईयों में भी बुद्धियोग नहीं लगाना है। भाई को भाई से वर्सा थोड़ेही
मिलेगा। न कोई की आत्मा को, न भाई के शरीर को याद करना है। याद एक बाप को करना है।
वर्सा भी बाप से ही मिलेगा। हम आत्मा अब अपने घर जाती हैं फिर सतयुग में आकर अपना
राज्य भाग्य लेंगी। वहाँ आत्म-अभिमानी होंगे। यहाँ माया रावण देह-अभिमानी बना देती
है। अभी तुम फिर आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। अपना कल्याण करते रहो।
यहाँ चित्रों के सामने आकर बैठो। जैसे मिलेट्री को फील्ड में प्रैक्टिस कराई जाती
है ना। अभी तुमको आत्म-अभिमानी बन बाबा को याद करने की प्रैक्टिस करनी है। बाप कहते
हैं - तुम तो मेरे बच्चे हो ना। देह-अभिमानी बनने से तुम माया के बन गये हो। बुलाते
भी हो कि हे पतित-पावन, हे ज्ञान के सागर... बाकी तो सब हैं भक्ति के सागर। भक्ति
मार्ग का कितना विस्तार है। बाप आते हैं झूठी दुनिया में सो भी साधारण रूप में।
ड्रामा में नूँध ही ऐसी है। पतित शरीर में ही बाप आते हैं। लक्ष्मी-नारायण के शरीर
में थोड़ेही आयेंगे। उन्हों को तो राज्य भाग्य मिला हुआ है। तो उसमें मैं कैसे आऊं।
मुझे साधारण रूप में पहचानते नहीं हैं। पुकारते हैं परन्तु यह समझते थोड़ेही हैं कि
वह भी जरूर कोई शरीर में आयेंगे ना। मेरा रूप तो है निराकार बिन्दी। तो जरूर
प्रजापिता ब्रह्मा के तन में ही आऊंगा। प्रजापिता तो जरूर यहाँ होना चाहिए, जरूर
पुराना तन होगा। यह ब्रह्मा पुराना और बाजू में विष्णु नया खड़ा है। त्रिमूर्ति के
चित्र में कितना ज्ञान है।
तुम बच्चे आगे इन देवताओं को बुलाते थे। श्री नारायण की कितनी खातिरी करते थे।
वन्डर है ना। हम खुद नारायण को कितना प्यार करते थे। श्री नारायण आया है, इनको
खिलाओ पिलाओ... अन्दर में समझते हैं अभी हम बन रहे हैं। जो बना हुआ है, उनकी जरूर
खातिरी करेंगे। गोया हम अपनी खातिरी करते हैं। बाबा भी कहते थे अपनी खातिरी करते
हो। तुम बच्चों ने देखा तो है ना - यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। यह दूसरा कोई समझा
न सके। तुम ही समझा सकते हो। यह तो है ही बिल्कुल नया ज्ञान।
बाप कहते हैं - मैं फिर से देवी-देवता धर्म स्थापन करता हूँ। आदि में है
देवी-देवताओं का राज्य। मध्य में है रावणराज्य। अभी है अन्त। अन्त में तो बाप खुद
आते हैं। अभी बच्चे तुम आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। अब बाकी थोड़े समय में
क्या-क्या होने वाला है। विनाश भी जरूर होगा। कहते हैं महाभारत लड़ाई लगी थी, अब
फिर लगेगी। इस समय यह किसको पता नहीं है। पतित-पावन तो एक ही बाप है, वह आया है तो
बाकी कितना समय रहेगा। श्रीकृष्ण तो हो न सके, उसने तो सतयुग में एक जन्म लिया,
कृष्ण नाम से फिर नाम रूप बदल गया। शरीर की बनावट ही बदल जाती है। बाप ने समझाया है
कि तुम ही जो पूज्य थे, वही फिर पुजारी बने हो। 84 जन्म कैसे लिये हैं, यह भी बाप
ने समझाया है, और कहते हैं तुम आधाकल्प देह-अभिमान में रहे हो, अब देही-अभिमानी बनो।
तुम आत्मा हो। मैं तुम्हारा बाप परमपिता परमात्मा हूँ। मैं अशरीरी हूँ और बच्चों को
बैठ अपना परिचय देता हूँ। यह जो गाया हुआ है - अतीन्द्रिय सुख गोप गोपियों से पूछो,
यह अन्त की बात है जब इम्तहान की रिजल्ट नजदीक आती है। जो बच्चे जास्ती सर्विस करते
हैं, वह जरूर सबको प्रिय लगेंगे। प्रदर्शनी आदि में भी पहले उन्हों को याद करते
हैं। लिखते हैं फलाने को भेजो। इसका मतलब खुद समझते हैं यह हमसे होशियार हैं। परन्तु
देह-अभिमान बहुत है। हमारा बड़ा भाई अथवा बहन है तो फिर उनको रिगार्ड भी देना चाहिए।
ऐसे कभी नहीं कहेंगे - फलाने हमारे से 100 गुणा अच्छे हैं। किसको रिगार्ड रखने का
भी अक्ल नहीं है। बाप जो समझाते हैं उस पर चलते नहीं तो उन्हों का क्या हाल होगा!
देह-अभिमान मुर्दा बना देता है। बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। सवेरे उठ शिवबाबा
को याद करो। वह भी नहीं करते। अच्छे-अच्छे महारथी योग में बहुत कम रहते हैं। ज्ञान
तो छोटे बच्चे भी समझा सकते हैं। परन्तु तोते मुआफिक हो जाता है। इसमें तो योग में
रहे, धारणा भी हो तब खुशी चढ़े। योग बिगर विकर्म विनाश हो न सकें। याद किया जाता है
पवित्र चीज़ को, तो उनके साथ लव भी बहुत होना चाहिए। घड़ी-घड़ी समझाया जाता है -
मनमनाभव। आधाकल्प देह-अभिमानी रहे तो देही-अभिमानी रहना मुश्किल लगता है। बहुत
मेहनत लगती है। कितने वर्ष लग जाते हैं देही-अभिमानी अवस्था बनाने में। अपने को छोटी
आत्मा समझ और बाप को भी बिन्दी समझ याद करे, इसमें मेहनत है। जो सच्चे होंगे वह
अन्दर फील करते होंगे कि हम कितना याद करते हैं। यह प्रैक्टिस बहुत डिफीकल्ट है। 21
जन्मों के लिए स्वर्ग की बादशाही पाना कोई कम बात है क्या! तुम समझते हो हम छोटी
आत्मा उसमें 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। आत्मा ही मुख्य एक्टर बनती है। आत्मा
ही सब कुछ बनती है। परन्तु देह-अभिमान के कारण आत्म-अभिमान गुम हो गया है। सबसे
मुख्य प्रैक्टिस यही करनी है। यही भारत का प्राचीन योग भी मशहूर है। यही गीता है।
सिर्फ उसमें नाम निराकार के बदले देहधारी देवता का लिख दिया है।
बाप कहते हैं - जिसने बहुत भक्ति शुरू से लेकर अन्त तक की है, वही नम्बरवन ऊपर
जायेंगे। तुमने भी बहुत भक्ति की है तो तुम बच्चों को भी कितनी खुशी रहनी चाहिए कि
हमको बाप मिला है। बाबा हमको पढ़ा रहे हैं, हम इस पढ़ाई से विश्व का मालिक बनते
हैं। अब बाबा की मत पर तो जरूर चलना चाहिए। बाप जो डायरेक्शन देते हैं अगर कुछ उल्टा
भी हो गया तो आपेही सुल्टा बना देंगे। राय देंगे तो फिर जिम्मेवार भी हैं। घड़ी-घड़ी
शिवबाबा याद पड़ता रहेगा इसलिए यह बाबा भी सदैव कहते हैं कि तुमको शिवबाबा सुनाते
हैं। हम भी सुनते हैं तो ये डायरेक्शन देने वाला शिवबाबा है। हम उनके डायरेक्शन पर
चलते हैं। तुम भी उनको याद करते हो। यह भी उनको याद करते हैं। देह का अभिमान छोड़
दो। तुम कोई जौहरी दादा के पास थोड़ेही आये हो। तुम तो शिवबाबा के पास आये हो।
ज्ञान-सागर तो वह है ना! तुम आये हो शिवबाबा से ज्ञान अमृत पीने। अभी भी ज्ञान अमृत
पीते रहते हो। रोज़-रोज़ ज्ञान सागर बाबा सुनाते रहते हैं। उनको ही याद करना है।
बाप ऐसे नहीं कहते कि भक्ति छोड़ो। जब ज्ञान की पराकाष्ठा आयेगी तो आपेही समझेंगे
कि यह भक्ति और यह ज्ञान है। आधाकल्प तुमने भक्ति की है। वापिस तो कोई गया नहीं। ले
जाने वाला तो एक ही बाप है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप जो राय देते हैं उसे शिवबाबा की श्रीमत समझ चलना है। ज्ञान अमृत
पीना और पिलाना है।
2) सबको रिगार्ड देते हुए सर्विस पर तत्पर रहना है। देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी
रहने की प्रैक्टिस करनी है।