ओम् शान्ति।
मीठे मीठे बापदादा के बच्चे जानते हैं कि हम अभी ऐसी जगह में चल रहे हैं, जहाँ दु:ख
का नाम निशान ही नहीं, जिसका नाम ही है सुखधाम। हम उस सुखधाम वा स्वर्ग के मालिक
थे। सुखधाम में तो सतयुग ही था, देवी-देवताओं का राज्य था। अभी जो तुम ब्राह्मण बने
हो, तो तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली। तुम लिखते भी हो – शिवबाबा केयरआफ
ब्रह्माकुमारीज़। यह भी तुम अभी जानते हो बरोबर हमारी चढ़ती कला है। चढ़ती कला और
उतरती कला को तुम बच्चों ने अच्छी रीति समझा है। तुम यह भी समझते हो भारत जब चढ़ती
कला में था तब उन्हों को देवी-देवता कहते थे। अभी उतरती कला में है, इसलिए उन्हें
देवी-देवता कह नहीं सकते। अभी अपने को मनुष्य समझते हैं। मन्दिरों में जाकर
देवी-देवताओं के आगे माथा टेकते हैं। समझते हैं यह होकर गये हैं। कब? यह नहीं जानते।
तुम किसको भी समझा सकते हो – क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। तुम
बच्चे समझ गये हो कि चक्र को अब फिरना ही है। पतित दुनिया को पावन बनना ही है। अभी
तुम बच्चों की बुद्धि में है हम बाप द्वारा मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप पढ़ाते
हैं यह नशा चढ़ना चाहिए ना। गाया भी हुआ है भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखलाता
हूँ। सिर्फ यह भूल कर दी है जो बाप के बदले बच्चे का नाम डाल दिया है। इस भूल को भी
तुम बच्चे ही समझते हो और कोई समझते नहीं।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में आया है कि हम फिर से अपने शान्तिधाम से सुखधाम जाने
के लिए पावन बन रहे हैं। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। पतित-पावन तो गॉड फादर ही ठहरा।
कृष्ण को तो कह नहीं सकते। यह बुद्धि में सिमरण करते रहना है। स्कूल में बच्चों की
बुद्धि में पढ़ाई का सिमरण चलता है ना। तुम भी अगर यह सिमरण करते रहेंगे तो कभी
मूँझेंगे नहीं। जानते हो अब हमारी चढ़ती कला है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति भी गाई हुई
है। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बना। परन्तु वह कोई जीवनमुक्ति का वर्सा नहीं
है। यहाँ तुमको जीवनमुक्ति का राज्य भाग्य मिलता है। बाप से मिलना भी जरूर है। यह
भी जानते हो बेहद के बाप से भारत को बेहद का वर्सा मिला था, अब फिर मिलना है। अब
तुम श्रीमत पर चलकर वर्सा पा रहे हो। भक्ति मार्ग में किसी न किसी को याद ही करते
रहते हैं। चित्र भी सबके मौजूद हैं, पूजे जाते हैं ना। यह भी राज़ बाप ने समझाया
है। इन बातों में कोटों में कोई तो अच्छी रीति समझेंगे और निश्चय करेंगे, फिर कोई
संशय उठायेंगे। कोई को संशय न आये इसलिए पहले सम्बन्ध की बात समझानी है। गीता में
भी है ना – अर्जुन को भगवान ने बैठ समझाया। अब घोड़े-गाड़ी में बैठ राजयोग सिखावे,
यह तो हो नहीं सकता। ऐसे थोड़ेही बैठ राजयोग सिखायेंगे। अब यह तो झूठ हो गया। दिखाते
हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला और फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दे दिये
हैं। सूक्ष्मवतन में तो हो न सके। तो यहाँ ही सार समझायेंगे ना। ऐसे ऐसे चित्रों पर
तुम समझा सकते हो। प्रदर्शनी में भी यह चित्र काम में आयेंगे जरूर। सूक्ष्मवतन की
तो बात ही नहीं। ब्रह्मा मुख द्वारा किसको समझावें? वहाँ तो हैं ही ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर। तो शास्त्रों का सार किसको समझावें? तुम जानते हो यह सब भक्ति मार्ग के
कर्मकान्ड हैं। सतयुग त्रेता में यह भक्ति मार्ग तो हो नहीं सकता। वहाँ है ही
देवताओं की राजधानी। भक्ति कहाँ से आ सकती। यह भक्ति तो बाद में होती है। तुम बच्चे
जानते हो निश्चयबुद्धि ही विजयी होते हैं, बाप में निश्चय रखेंगे तो जरूर बादशाही
मिलेगी। बाप बैठ समझाते हैं मैं स्वर्ग की स्थापना करने वाला, पतितों को पावन बनाने
वाला हूँ। शिव को कभी गोरा, सांवरा नहीं कहेंगे। कृष्ण को ही श्याम सुन्दर कहते
हैं। यह भी बच्चे समझते हैं – शिव तो चक्र में आता नहीं है। उनको गोरा वा सांवरा
दिखा न सकें। बाप समझाते हैं तुम बच्चों की अब चढ़ती कला है। सांवरे से गोरा बनना
है। भारत गोरा था – अब काला क्यों बन गया है! काम चिता पर बैठने से। यह भी गायन है
सागर के बच्चों को काम ने जलाए भस्म कर दिया। अब बाप तुम्हें ज्ञान चिता पर बिठाते
हैं। तुम्हारे ऊपर ज्ञान की वर्षा होती है। यह भी समझते हो यह एक ही सत का संग है।
परमपिता परमात्मा जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है, उनको अमरनाथ भी कहते हैं तो
जरूर यहाँ बच्चों को बैठ समझायेंगे ना! पहाड़ पर सिर्फ एक पार्वती को बैठ सुनायेंगे
क्या? उनको तो सारी पतित दुनिया को पावन बनाना है। एक की तो बात नहीं है। तुम जानते
हो हम ही पावन दुनिया के मालिक थे फिर हम ही बनेंगे। झाड़ के ऊपर भी समझाया है कि
पिछाड़ी में भी छोटी-छोटी टालियां निकलती हैं। यह सब हैं छोटे-छोटे मठ पंथ।
पहले-पहले बहुत खूबसूरत पत्ते निकलते हैं। जब झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है तो
फिर नये पत्ते भी नहीं निकलेंगे और न फल निकलेंगे। हर एक बात बाप बच्चों को अच्छी
रीति समझाते रहते हैं। लड़ाई भी तुम्हारी माया के साथ है। इतना ऊंच पद है तो जरूर
कुछ मेहनत करेंगे ना! पढ़ना भी है, पवित्र भी बनना है। आधाकल्प रावणराज्य चला है और
अब रामराज्य होना है। कहते भी हैं रामराज्य हो। परन्तु यह पता नहीं कि कब और कैसे
होगा? शास्त्रों में तो यह बातें हैं नहीं। दिखाते हैं पाण्डव पहाड़ों पर गल मरे।
अच्छा फिर क्या हुआ? प्रलय तो होती नहीं। एक तरफ दिखाते हैं कि बाप राजयोग सिखलाते
हैं। कहते हैं तुम भविष्य में राजाओं का राजा बनेंगे और फिर दिखलाते हैं पाण्डव
खत्म हो गये। यह कैसे हो सकता! नई दुनिया की स्थापना कैसे होगी? श्रीकृष्ण कहाँ से
आये? जरूर ब्राह्मण चाहिए।
तुम जानते हो हम नई दुनिया में जाने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। यहाँ ज्ञान सागर
के पास रिफ्रेश होने आते हैं। वहाँ ज्ञान गंगाओं द्वारा सुनते हो। अमरनाथ पर एक
तलाव दिखाते हैं जो मानसरोवर है। कहते हैं उसमें स्नान करने से परीज़ादा बन जाते
हैं। वास्तव में यह है ज्ञान मानसरोवर। ज्ञान सागर बाप बैठ ज्ञान स्नान कराते हैं,
जिससे तुम बहिश्त की परियां बन जाते हो। परियां नाम सुन ऐसे पंख वाले मनुष्य बना
दिये हैं। वास्तव में पंख आदि की बात है नहीं। आत्मा के उड़ने के पंख अब टूट गये
हैं। शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं। यह भी बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ
है। इनको भी बाप कहते हैं, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। मैं तुम्हारे बहुत
जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। कृष्ण तो है ही सतयुग का पहला जन्म।
स्वयंवर के बाद फिर लक्ष्मी-नारायण बन जाते हैं। तो जो श्री नारायण था, वह बहुत
जन्मों के अन्त में अब साधारण है। फिर जरूर उनके ही तन में आना पड़े। कई कहते हैं
भगवान पतित दुनिया में कैसे आयेंगे! न समझने कारण श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है, जो
सबसे पावन है। परन्तु श्रीकृष्ण को सब भगवान मानेंगे नहीं। भगवान तो है निराकार।
उनका नाम शिव मशहूर है। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ है। सूक्ष्मवतन में तो ब्रह्मा
विष्णु शंकर हैं। यह भी अच्छी रीति समझाना चाहिए। धारणा बहुत अच्छी चाहिए। आपस में
एक दो को यह याद दिलाना चाहिए। बाबा को याद करते हो, 84 के चक्र को याद करते हो। अब
घर जाते हैं। यह पुरानी दुनिया, पुराना वस्त्र सब त्याग करना है। अभी हम नई दुनिया
के लिए तैयार हो रहे हैं। पुरानी दुनिया का नशा नहीं रहता। यह है अविनाशी ज्ञान
रत्नों का नशा, वो नशा टूटना मुश्किल होता है। गरीबों का नशा टूट जाता है। बाप कहते
हैं – मैं गरीब निवाज़ हूँ, आते भी गरीब हैं। आजकल तो करोड़पति को ही पैसे वाला कहा
जाता है। लखपति को पैसे वाला नहीं कहेंगे। वह तो यह ज्ञान उठा नहीं सकेंगे। बाप कहते
हैं हमको करोड़ अरब तो चाहिए ही नहीं। क्या करेंगे! हमको गरीबों के पैसे-पैसे से
स्वराज्य की स्थापना करनी है। हम पक्का व्यापारी भी हैं। ऐसे थोड़ेही फालतू लेंगे
जो फिर देना पड़े। तुम्हारा मट्टा सट्टा है इसलिए भोलानाथ कहा जाता है। गरीब से
गरीब ही माला में पिरोये जाते हैं। सारा मदार पुरुषार्थ पर है, इसमें पैसे की बात
नहीं। पढ़ाई की बात में गरीब अच्छा ध्यान देंगे। पढ़ाई तो एक है ना। गरीब अच्छा
पढ़ेंगे क्योंकि साहूकारों को तो पैसे का नशा रहता है।
तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग के मालिक थे, अब कंगाल हैं। अब बाप आया है 84 का
चक्र तो जरूर लगना है। पुनर्जन्म भी सिद्ध करेंगे। तुम सिकीलधे बच्चे ही 84 के चक्र
में आते हो। यह भी तुम जानते हो और कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो चक्र पूरा होता
है, अब घर वापिस जाना है। पढ़ाई को दोहराना है। चित्र रखा होगा तो देखकर चक्र याद
आयेगा। गीत भी कोई-कोई बहुत अच्छे हैं, सुनने से नशा चढ़ता है। तुम अब शिवबाबा के
बने हो, वर्सा तुमको अब निराकार से मिल रहा है, साकार द्वारा। निराकार कैसे दे जब
तक साकार में न आये। तो कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता
हूँ। प्रजापिता भी यहाँ चाहिए ना। ब्रह्मा का नाम मशहूर है, ब्रह्मा मुख वंशावली।
बच्चों को बाजोली भी समझाई है। हम अभी ब्राह्मण हैं, फिर देवता बनेंगे। चोटी देखने
में आती है। ऊपर में है शिवबाबा स्टार, कितना सूक्ष्म है। इतना बड़ा लिंग नहीं है,
यह तो पूजा के लिए बनाया है। रूद्र यज्ञ रचते हैं तो एक बड़ा शिवलिंग और छोटे-छोटे
सालिग्राम बनाते हैं। साहूकार लोग बहुत बनाते हैं। यह सब भक्ति मार्ग में शुरू होता
है द्वापर से। पहले होती हैं 16 कलायें, फिर 14 कलायें, फिर कलायें कम होते-होते अभी
कोई कला नहीं रही है। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाप और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। नोट
करते जाओ, पतियों के पति को कितना टाइम याद किया! अव्यभिचारी सगाई चाहिए ना।
मित्र-सम्बन्धी आदि सब भूल जायें। एक से ही प्रीत रखनी है। इस विषय सागर से
क्षीरसागर में जाना है। आत्माओं की बैठक तो ब्रह्म तत्व में है। क्षीरसागर में
विष्णु को दिखाते हैं। विष्णु और ब्रह्मा। ब्रह्मा द्वारा तुमको समझाते हैं फिर तुम
विष्णुपुरी क्षीरसागर में चले जाते हो। अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई
तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं – हे आत्मायें मुझे याद करो। मैंने तुमको
पार्ट बजाने भेजा था। तुमको याद दिलाते हैं – नंगे (अशरीरी) आये थे। पहले-पहले तुम
देवता बन स्वर्ग में आये। भगवान जब सबका बाप है तो सबको स्वर्ग में आना चाहिए ना!
परन्तु सब धर्म तो आ नहीं सकते। 84 जन्म देवताओं ने ही लिये हैं। उन्हों को ही आना
है। यह सब बातें तुम्हारे सिवाए और कोई जान न सके। अच्छी बुद्धि वाले ही धारणा
करेंगे। थोड़ा समय है सिर्फ अपने आपको आत्मा समझो। हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ,
84 जन्म पूरे हुए। अब यह अन्तिम जन्म है। आत्मा सच्चा सोना बन जायेगी। सतयुग में
सच्चा जेवर थे, अब सब झूठे हैं। अब फिर तुम ज्ञान चिता पर बैठे हो, गोरा बनते हो।
श्वॉसों श्वॉस याद करेंगे तो वह अवस्था अन्त में होगी। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) क्षीरसागर में जाने के लिए एक बाप से ही सच्ची प्रीत रखनी है। एक की
ही अव्यभिचारी याद में रहना है और सबको एक बाप की याद दिलानी है।
2) विनाशी धन का नशा नहीं रखना है। ज्ञान धन के नशे में स्थाई रहना है। पढ़ाई से
ऊंच पद पाना है।