26-05-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 07-02-76 मधुबन
अव्यक्त फरिश्तों की सभा
बाप-दादा सदा हर्षित, सदा हद के आकर्षणों से परे अव्यक्त फरिश्तों को देख रहे हैं। यह फरिश्तों की सभा है। हर फरिश्ते के चारों ओर लाइट का क्राउन कितना स्पष्ट दिखाई देता है अर्थात् हर फरिश्ता लाइट-हाउस और माइट-हाउस कहाँ तक बना है, यह आज बापदादा देख रहे हैं।
जैसे भविष्य स्वर्ग की दुनिया में सब देवता कहलायेंगे, वैसे वर्तमान समय संगम पर फरिश्ते समान सब बनते हैं लेकिन नम्बरवार। जैसे वहाँ हर-एक अपनी स्थिति प्रमाण सतोप्रधान होते हैं, वैसे यहाँ भी हर पुरुषार्थी फरिश्तेपन की स्टेज को प्राप्त ज़रूर करते हैं। तो आज बाप-दादा हर एक की रिजल्ट को देख रहे थे। क्योंकि अब अन्तिम रियलाइजेशन कोर्स चल रहा है। रियलाइजेशन कोर्स में हर एक अपने आपको कहाँ तक रियलाइज कर रहे हैं? तो रिजल्ट में दो विशेष बातें देखीं। वह कौनसी?
हर एक किस पोजीशन तक पहुँचे हैं? ऑपोजीशन ज्यादा है अथवा पोज़ीशन की स्टेज ज्यादा है? दूसरा - पुरानी देह और पुरानी दुनिया से स्मृति को कहाँ तक ट्रॉन्सफर किया है? साथ-साथ ट्रान्सफर के आधार पर ट्रान्सपेरेन्ट कहाँ तक बने हैं? चारों ही सब्जेक्ट्स में कहाँ तक प्रैक्टिकल स्वरूप बने हैं? बाप-दादा के तीनों स्वरूप - साकार, आकार और निराकार द्वारा ली हुई पालना और पढ़ाई का रिटर्न कहाँ तक किया है? आदि से अब तक जो बाप-दादा से वायदे किये हैं, उन सब वायदों को निभाने का स्वरूप कहाँ तक है? जितना कायदा, उतना फायदा उठाया है? ऐसी चेकिंग हर-एक अपनी करते हो? चारों ही सब्जेक्ट्स की चेकिंग का सहज साधन आपकी गाई हुई महिमा से सिद्ध हो जाता है। वह महिमा जानते हो? वह कौन-सी महिमा है जिससे चारों ही सब्जेक्ट्स चेक कर सकते हो? वह महिमा तो सबको याद है ना। (सर्व गुण सम्पन्न...) इन चारों ही बातों में चारों ही सब्जेक्ट्स की रिजल्ट आ जाती है। तो यही चेक करो कि इन चारों ही बातों में सम्पन्न बने हैं? अब तक सोलह कला बने हैं अथवा चौदह कला तक पहुँचे हैं? सर्व गुण सम्पन्न बने हैं या गुण सम्पन्न बने हैं अर्थात् कोई- कोई गुण धारण किया है? सब मर्यादायें धारण कर मर्यादा पुरूषोत्तम बने हैं? सम्पूर्ण आहिंसक बने हैं? संकल्प द्वारा भी किसी आत्मा को दु:ख देना व दु:ख लेना - यह भी हिंसा है। सम्पूर्ण आहिंसक अर्थात् संकल्प द्वारा भी किसी को दु:ख न देने वाला। पुरूषोत्तम अर्थात् हर संकल्प और हर कदम उत्तम अर्थात् श्रेष्ठ हो, साधारण न हो, लौकिक न हो और व्यर्थ न हो। ऐसे कहाँ तक बने हैं? बाप-दादा ने क्या देखा? अब तक विशेष दो शक्तियों की बहुत आवश्यकता है। वह कौन-सी हैं?
एक स्वयं को परखने की शक्ति, दूसरी स्वयं को परिवार्तित करने की शक्ति। इन दोनों शक्तियों की रिजल्ट में जितना तीव्र पुरुषार्थी तीव्र गति से आगे बढ़ना चाहते हैं, उतना बढ़ नहीं पाते। इन दोनों शक्तियों की कमी के कारण ही कोई-न-कोई रूकावट गति को तीव्र करने नहीं देती है। दूसरे को परखने की गति तीव्र है दूसरे को परिवर्तन होना चाहिये - यह संकल्प तीव्र है; इसमें ‘पहले आप’ का पाठ पक्का है। जहाँ ‘पहले मैं’ होना चाहिये, वहाँ ‘पहले आप’ है और जहाँ ‘पहले आप’ होना चाहिये, वहाँ ‘पहले मैं’ है। तीसरा नेत्र जो हर एक को वरदान में प्राप्त है उस तीसरे नेत्र द्वारा जो बाप-दादा ने कार्य दिया है, उसी कार्य में नहीं लगाते। तीसरा नेत्र दिया है रूह को देखने, रूहानी दुनिया को देखने के लिए व नई दुनिया को देखने के लिये। उसके बदले जिस्म को देखना, जिस्मानी दुनिया को देखना - इसको कहा जाता है कि यथार्थ रीति कार्य में लगाना नहीं आया है। इसलिये अब समय की गति को जानते हुए परिवर्तन-शक्ति को स्वयं प्रति लगाओ। समय का परिवर्तन न देखो लेकिन स्वयं का परिवर्तन देखो। समय के परिवर्तन का इन्तज़ार बहुत करते हो। स्वयं के परिवर्तन के लिए कम सोचते हो और समय के परिवर्तन के लिये सोचते हो कि होना चाहिये। स्वयं रचयिता हैं, समय रचना है। रचयिता अर्थात् स्वयं के परिवर्तन से रचना अर्थात् समय का परिवर्तन होना है। परिवर्तन के आधारमूर्त्त स्वयं आप हो। समय की समाप्ति अर्थात् इस पुरानी दुनिया के परिवर्तन की घड़ी आप हो। सारे विश्व की आत्माओं की आप घड़ियों के ऊपर नजर है कि कब यह घड़ियाँ समाप्ति का समय दिखाती हैं। आपको मालूम है कि आपकी घड़ी में कितना बज़ा है? आप बताने वाले हो या पूछने वाले हो? इन्तज़ार है क्या? समय दिखाने वालों को समय के प्रति हलचल तो नहीं है ना? हलचल है अथवा अचल हो? ‘‘क्या होगा, कब होगा, होगा या नहीं होगा?’’ ड्रामा अनुसार समय-प्रति-समय हिलाने के पेपर्स आते रहे हैं और आयेंगे भी।
जैसे वृक्ष को हिलाते हैं ना। तो निश्चय की नींव अर्थात् फाउन्डेशन को हिलाने के पेपर्स भी आयेंगे। फिर पेपर देने के लिये तैयार हो अथवा कमजोर हो? पाण्डव सेना तैयार है या शक्तियाँ तैयार हैं अथवा दोनों तैयार हैं? होशियार स्टूडेण्ट पेपर का आह्वान करते हैं और कमजोर डरते हैं। तो आप कौन हो? निश्चयबुद्धि की निशानी यह है कि वह हर बात व हर दृश्य को निश्चित जानकर सदा निश्चिन्त होगा, ‘‘क्यों, क्या और कैसे’’ की चिन्ता नहीं होगी। फरिश्तेपन की लास्ट स्टेज की निशानी है - सदा शुभचिन्तक और सदा निश्चिन्त। ऐसे बने हो? रियलाइजेशन कोर्स में स्वयं को रियलाइज करो। और अब अन्तिम थोड़े-से पुरूषार्थ के समय में स्वयं में सर्वशक्तियों को प्रत्यक्ष करो।
प्रत्यक्षता वर्ष मना रहे हो ना। बाप को प्रत्यक्ष करने से पहले स्वयं में (जो स्वयं की महिमा सुनाई) इन सब बातों की प्रत्यक्षता करो, तब बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। यह वर्ष विशेष ज्वाला-स्वरूप अर्थात् लाइट-हाउस और माइट-हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरूषार्थ में रहो - विशेष याद की यात्रा को पॉवरफुल बनाओ, ज्ञान-स्वरूप के अनुभवी बनो। ऐसा स्वयं की उन्नति के प्रति विशेष प्रोग्राम बनाओ। जिस द्वारा आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और शक्तिशाली वातावरण द्वारा अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति हो। समझा? अब क्या करना है? सिर्फ सुनाना नहीं है, अनुभव करना है। अनुभव कराने के लिये पहले स्वयं अनुभवीमूर्त्त बनो। इस वर्ष का विशेष संकल्प लो। स्वयं को परिवर्तन कर विश्व को परिवर्तन करना ही है। समझा? दृढ़ संकल्प की रिजल्ट सदा सफलता ही है। अच्छा।
ऐसे दृढ़ संकल्प द्वारा सृष्टि का नव-निर्माण करने वाले, अपनी रूहानी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले, हर आत्मा को सुख, शान्ति व शाक्ति की अन्जली देकर एवं वरदान देकर, तृप्त आत्मा बनाने वाले, जन्म-जन्म की प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाने वाले, सर्व को अपने ठिकाने पर लगाने वाले, सदा निश्चयबुद्धि, हलचल में भी अचल रहने वाले, ज्ञान-स्वरूप एवं याद-स्वरूप आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात - नथिंग-न्यू की स्थिति और व्यर्थ के खाते की समाप्ति
महारथियों के महान् स्थिति की विशेष निशानी, जिससे स्पष्ट हो जाये कि यह महारथी-पन का पुरूषार्थ है, वह क्या होगी? एक तो महान् पुरुषार्थी अर्थात् महारथी जो भी दृश्य देखेंगे, वह समझेंगे - ड्रामा प्लैन अनुसार अनेक बार का अब फिर से रिपीट हो रहा है, वह ‘नथिंग-न्यू’ लगेगा। कोई नई बात अनुभव नहीं होगी जिसमें ‘क्यों’ और ‘क्या’ का क्वेश्चन उठे। और, दूसरा - ऐसे अनुभव होगा जैसे प्रैक्टिकल में, स्मृति-स्वरूप में अनेक बार देखी हुई सीन अब सिर्फ निमित्त मात्र रिपीट कर रहे हैं। कोई नई बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन रिपीट कर रहे हैं। स्मृति लानी नहीं पड़ेगी। कल्प पहले जो हुआ था वही अब हो रहा है। लेकिन जैसे एक सेकेण्ड की बीती हुई बात बहुत स्पष्ट रूप से स्मृति में रहती है वैसे वह कल्प पहले की बीती हुई सीन ऐसे ही स्मृति में होगी जैसे कि एक सेकेण्ड पहले बीती हुई सीन स्मृति में रहती है। क्योंकि एक साक्षीपन, दूसरा त्रिकालदर्शी - यह दोनों स्टेज महारथियों की होने के कारण कल्प पहले की स्मृति बिल्कुल फ्रेश व ताज़ी रहेगी। इसलिये नथिंग-न्यू और दूसरा क्या होगा?
कोई भी कितनी भी विकराल रूप की परिस्थिति हो या बड़े रूप की समस्या हो लेकिन अपनी स्टेज ऊँची होने के कारण वह बिल्कुल छोटी लगेगी। बड़ी बात अनुभव नहीं होगी और न विकराल अनुभव होगी। जैसे ऊँची पहाड़ी पर खड़े होकर नीचे की कोई भी चीज को देखो तो बड़ी चीज़ भी छोटी नजर आती है ना। बड़े से बड़ा कारखाना भी एक मॉडल रूप-सा दिखाई पड़ता है। इसी रीति महारथी के महान् पुरूषार्थ के सामने उसे कोई भी बड़ी बात बड़ी अनुभव नहीं होगी। तो महावीर अर्थात् महारथी के महान् पुरूषार्थ की यह दो निशानियाँ हैं जिसको दूसरे शब्दों में कहा जाता - सूली काँटा अनुभव होगी। ऐसे महावीर के मुख से जो होने वाली रिजल्ट होगी अर्थात् जो होनी होगी, सदैव वही शब्द मुख से निकलेंगे जो भावी बनी हुई होगी। इसको ही ‘सिद्धि-स्वरूप’ कहा जाता है। जो बोल निकलेगा, जो कर्म होगा वह सिद्ध होने वाले होंगे, व्यर्थ नहीं होंगे। महारथी की निशानी है - विकर्मों का खाता तो समाप्त होता ही है लेकिन व्यर्थ का खाता भी समाप्त। मास्टर सर्वशक्तिवान् है ना। तो मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज का प्रैक्टिकल स्वरूप विकर्मों के खाते के साथ-साथ व्यर्थ का खाता भी समाप्त होगा। यह है महारथियों के पुरूषार्थ की निशानी।
नज़र से निहाल करने की सर्विस शुरू की हैं? एक हैं महादानी, दूसरे हैं वरदानी और तीसरे हैं विश्व-कल्याणी। तो यह तीनों ही विशेषताएं एक ही में हैं या कोई विशेषता किसी में है और कोई किसी में? किसी का वरदानी रूप का पूजन है, किसी का विश्व-कल्याणी के रूप में पूजन है। पूजन में अथवा गायन में भी फर्क क्यों है? होंगे तीनों ही लेकिन परसेन्टेज में फर्क होगा। कोई में किसी बात की, अन्य कोई में किसी बात की परसेन्टेज कम अथवा ज्यादा होगी।
एक है कर्मों की गति, दूसरी है प्रालब्ध की गति और तीसरी फिर है गायन और पूजन की गति। जैसे कर्मों की गति गुह्य है वैसे इन दोनों की गति भी गुह्य है। प्रालब्ध का भी साक्षात्कार प्रैक्टिकल में अभी होना तो है ना। कौन क्या बनेगा और क्यों बनेगा, किस आधार से बनेगा - यह सब स्पष्ट होगा। न चाहते हुये भी, न सोचते हुए भी उनका कर्म, सेवा, चलन, स्थिति, सम्पर्क व सम्बन्ध ऑटोमेटिकली ऐसा ही होता रहेगा जिससे समझ सकेंगे कि कौन क्या बनने वाला है। चलन अर्थात् कर्म ही उनका दर्पण हो जावेगा। कर्म में और दर्पण में हर एक का स्पष्ट साक्षात्कार होता रहेगा। अच्छा!
अव्यक्त मुरली से कुछ चुने हुए प्रश्न उत्तर
प्रश्न:- सर्व प्वॉइन्ट्स का सार एक शब्द में सुनाओ?
उत्तर:- प्वाइन्ट्स का सार - प्वाइन्ट रूप अर्थात् बिन्दु रूप हो जाना।
प्रश्न : - बिन्दु रूप स्थिति होने से कौन-सी डबल प्राप्ति होती है?
उत्तर:- बिन्दु रूप अर्थात् पॉवरफुल स्टेज, जिसमें व्यर्थ संकल्प नहीं चलते हैं और बिन्दु अर्थात् ‘बीती सो बीती।’ इससे कर्म भी श्रेष्ठ होते हैं और व्यर्थ संकल्प न होने के कारण पुरूषार्थ की गति भी तीव्र होगी। इसलिए बीती सो बीती को सोच-समझ कर करना है। व्यर्थ देखना, सुनना व बोलना सब बन्द। समर्थ आंखें खुली हों अर्थात् साक्षीपन की स्टेज पर रहो।
प्रश्न:- कमल-पुष्प समान न्यारा बनने की युक्ति क्या है?
उत्तर:- कोई की भी कमी देखकर के उनके वातावरण के प्रभाव में न आये, तो इसके लिए उस आत्मा के प्रति रहम की दृष्टि-वृत्ति हो और सामना करने की नहीं, अर्थात् यह आत्मा भूल के परवश है, इसका दोष नहीं है - इस संकल्प से उस वातावरण का व बात का प्रभाव आप आत्मा पर नहीं होगा। इसी को कहते हैं कमलपुष् प समान न्यारा।
प्रश्न:- सफलतामूर्त्त बनने के लिए क्या करना है?
उत्तर:- बदला नहीं लेना, बल्कि स्वयं को बदलना है। महावीर बनना है, मल्ल- युद्ध नहीं करना है। मल्ल-युद्ध करना माना अगर कोई ने कोई बात कही तो उसके प्रति संकल्प चलने लगें - यह क्या किया, यह क्यों कहा उसको कहा जाता है मन्सा से व वाचा से मल्ल-युद्ध करना। नमना अर्थात् झुकना। तो जब नमेंगे तब ही नमन योग्य होंगे। ऐसे नहीं समझो कि हम तो सदैव झुकते ही रहते हैं लेकिन हमारा कोई मान नहीं। जो झुकते नहीं व झूठ बोलते हैं उनका ही मान है - नहीं। यह अल्पकाल का है। लेकिन अब दूरन्देश बुद्धि रखो। यहाँ जितनों के आगे झुकेंगे अर्थात् नम्रता के गुण को धारण करेंगे तो सारा कल्प ही सर्व आत्मायें मेरे आगे नमन करेंगी। सतयुग त्रेता में राजा के रिगार्ड से काँध से नहीं लेकिन मन से झुकेंगे और द्वापर, कलियुग में काँध झुकायेंगे। अच्छा।
वरदान:- आज्ञाकारी बन बाप की मदद वा दुआओं का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव
बाप की आज्ञा है "मुझ एक को याद करो''। एक बाप ही संसार है इसलिए दिल में सिवाए बाप के और कुछ भी समाया हुआ न हो। एक मत, एक बल, एक भरोसा.....जहाँ एक है वहाँ हर कार्य में सफलता है। उनके लिए कोई भी परिस्थिति को पार करना सहज है। आज्ञा पालन करने वाले बच्चों को बाप की दुआयें मिलती हैं इसलिए मुश्किल भी सहज हो जाता है।
स्लोगन:- नये ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहो तो कोई भी पुराना संस्कार इमर्ज नहीं हो सकता।