ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। अब अच्छी रीति समझकर फिर समझाने के लिए एक गीता शास्त्र ही है। शास्त्र
तो बनाया है मनुष्यों ने। परन्तु राजयोग मनुष्य नहीं सिखाते। बाप कहते हैं मैंने ही
5 हजार वर्ष पहले भी तुम भारतवासी सिकीलधे बच्चों को राजयोग सिखाया था। सिकीलधे का
अर्थ तो समझाया है कि तुम ही पूरे 84 जन्म लेकर फिर आए मिले हो। 5 हजार वर्ष पहले
भी तुम मिले थे और तुम आकर ब्रह्मा मुख वंशावली अर्थात् ब्राह्मण ब्राह्मणी बने थे।
बाप डायरेक्ट बोलते हैं। वह गीता पाठी आदि यह बातें नहीं करेंगे। बाप डायरेक्ट
समझाकर गये थे फिर भक्ति मार्ग से शास्त्र बनाते हैं। अब ड्रामा पूरा होता है। फिर
बाप आया है कहते हैं बच्चों को, कौन से बच्चे? कहते हैं खास तुम और आम सारी दुनिया।
तुम अभी सम्मुख हो। तुमको बैठ बाबा ने अपना परिचय दिया है। यह राजयोग तुमको और कोई
सिखला न सके। बाप ने ही पहले योग सिखलाया था, अब सिखला रहे हैं जिससे तुम फिर राजाओं
का राजा बनेंगे और कोई स्वर्ग का मालिक बना न सके। मैं तुम्हारा बाप आया हूँ फिर से
तुमको राजयोग सिखलाने। अच्छा अब बाबा तुमको झाड़ पर समझाते हैं। यह समझानी भी बहुत
जरूरी है। इनको कल्प-वृक्ष कहा जाता है। बाप कहते हैं यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़
कल्प वृक्ष है। वह गीता सुनाने वाले कहेंगे भगवान ने यह कहा था और तुम कहेंगे भगवान
कह रहा है। यह है मनुष्य सृष्टि का झाड़। इसमें कोई फल फ्रूट आम आदि नहीं हैं। उस
फल फ्रूट का झाड़ जो होता है उनका बीज नीचे, झाड़ ऊपर में होता है। इनका बीच ऊपर और
झाड़ नीचे हैं। कहते भी हैं ईश्वर ने हमको पैदा किया है अर्थात् बाप ने बच्चे दिये
हैं। बाप ने धन दिया है। बाबा आप हमारे सब दु:ख दूर करो। बाबा, बाबा कहते रहते हैं।
लक्ष्मी-नारायण के आगे जाते हैं, उनसे भी मांगते हैं, महालक्ष्मी हमको धन दो। यह सब
मांगने के संस्कार हैं। जगत अम्बा से कोई पुत्र मांगेंगे तो कोई कहेंगे हमारी बीमारी
दूर करो। लक्ष्मी के आगे ऐसी आशायें नहीं रखेंगे, उनसे सिर्फ धन मांगते हैं। यह तो
तुम जानते हो - जगत अम्बा सो लक्ष्मी, सो फिर 84 जन्मों का चक्र लगाकर फिर जगत अम्बा
बनती है। झाड़ में देखो जगत अम्बा बैठी है। यही फिर महारानी बनेंगी जरूर, तुम बच्चे
भी राजधानी में आयेंगे। तुम कल्प वृक्ष के नीचे बैठे हो। संगम पर फाउन्डेशन लगा रहे
हो। कामधेनु के तुम बच्चे ही सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाले हो। तुम भारत माता शक्ति
सेना हो, इसमें पाण्डव भी हैं।
बच्चों को समझाया गया है कि याद एक बाप को ही करना है। देने वाला एक बाप है। भल
तुम किसकी भी भक्ति करो, किसको भी याद करो परन्तु फल देने वाला फिर भी एक ही दाता
है। वही सब कुछ देता है। भक्ति मार्ग में तुम श्रीनारायण की, श्रीकृष्ण की पूजा करते
हो, कृष्ण को झुलाते भी हो, प्यार करते हो। उनसे तुम क्या मांगेंगे। तुम चाहते हो
हम उनकी राजधानी में जायें अथवा हमको श्रीकृष्ण जैसा बच्चा मिले। गाते हैं भजो राधे
गोविन्द चलो वृन्दावन। जहाँ राज्य भाग्य करते थे वैकुण्ठ में। उस समय कोई भी
अप्राप्ति नहीं होती। श्रीकृष्ण के राज्य को याद तो बहुत करते हैं। भारत में जब
श्रीकृष्ण का राज्य था तो और कोई राज्य नहीं था। अब बाप आये हैं कहते हैं चलो
कृष्णपुरी में, चलकर श्रीकृष्ण की पत्नि बनो या राधे का पति बनो। बात एक ही है। वहाँ
विष नहीं मिलेगा। वह है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। अभी तुम स्टूडेन्ट हो, पढ़
रहे हो नर से नारायण, बेगर से प्रिन्स बनने के लिए। यहाँ भल कोई करोड़-पति हैं, 50
करोड़ हैं लेकिन तुम्हारी भेंट में वह गरीब हैं क्योंकि यह सब उनका धन मिट्टी में
मिल जाना है। कुछ भी साथ नहीं चलेगा। हाथ खाली जायेंगे। तुम तो हाथ भरतू करके जाते
हो 21 जन्मों के लिए। अभी तुम राजयोग सीख रहे हो। फिर सतयुग में आकर राज्य करेंगे।
तुम पुनर्जन्म लेते वर्णो में आते रहते हो। सतयुग में हैं 16 कला, त्रेता में हैं
14 कला। फिर भक्ति मार्ग शुरू होता है फिर इब्राहम, बुद्ध आते हैं। क्राइस्ट के 3
हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था। अब सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया
हुआ है। अभी तुम कल्पवृक्ष के नीचे संगम पर बैठे हो, इसको कहा जाता है कल्प का संगम
अथवा कलियुग और सतयुग का संगम। सतयुग के बाद त्रेता, फिर त्रेता के बाद द्वापर और
कलियुग का संगम। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर आयेगा। बीच में संगम जरूर चाहिए।
कल्प के संगमयुगे बाप आते हैं। उन्होंने कल्प अक्षर बदल सिर्फ युगे-युगे लिख दिया
है। बाप कहते हैं मैं निराकार परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर हूँ। भारत में ही शिव
जयन्ती गाई जाती है। श्रीकृष्ण तो ज्ञान दे न सके। तुम कहते हो हम स्वर्ग में
श्रीकृष्ण के साथ मिलेंगे। बाप कहते हैं भक्ति में श्रीकृष्ण का साक्षात्कार मैं
तुमको कराता हूँ। कृष्ण जयन्ती पर बहुत प्रेम से उनको झूला झुलाते हैं, पूजा करते
हैं। उनको जैसे सच-सच श्रीकृष्ण दिखाई पड़ता है। साक्षात्कार होगा, कृष्ण का चित्र
होगा तो उनको भी उठाकर भाकी पहनेंगे। भक्ति मार्ग में मैं ही मदद करता हूँ। दाता
मैं हूँ। लक्ष्मी की पूजा करते हैं, अब वह तो है ही पत्थर की मूर्ति। वह क्या देगी?
देना फिर भी मुझे ही पड़ता है। साक्षात्कार भी मैं ही कराता हूँ। यह भी ड्रामा में
नूँध है। जैसे कहते हैं परमपिता परमात्मा के हुक्म से पत्ता-पत्ता हिलता है क्योंकि
वह समझते हैं पत्ते-पत्ते में परमात्मा है। क्या परमात्मा बैठ पत्ते को हुक्म करेगा
क्या! यह तो ड्रामा बना हुआ है। अभी तुम जैसी एक्ट कर रहे हो, वह कल्प के बाद भी
तुम ऐसे ही करेंगे। जो कुछ शूटिंग में शूट हुआ वही चलेगा। उसमें कुछ फ़र्क नहीं पड़
सकता। ड्रामा को भी अच्छी रीति समझना है। बाप समझाते हैं बेहद का सुख कल्प-कल्प
भारत को ही मिलता है। परन्तु जो ब्राह्मण बनते हैं वही वर्णों में आते हैं। 84 जन्म
लेते हैं। फिर औरों के जन्म नम्बरवार कम होते जायेंगे। कितने छोटे-छोटे मठ पंथ हैं।
भल उन्हों की महिमा है - क्योंकि पवित्र हैं। स्वर्ग का रचयिता तो है बाप, और कोई
मनुष्य थोड़ेही स्वर्ग रचेगा। फिर राजयोग भी कोई सिखलावे?
अभी तुम श्रीकृष्णपुरी में जाने के लिए राजयोग सीख रहे हो। पुरुषार्थ हमेशा ऊंचा
करना चाहिए। तुम कहते हो श्रीकृष्ण जैसा बच्चा मिले, श्रीकृष्ण जैसा पति मिले।
श्रीकृष्ण ही श्रीनारायण बनता है फिर श्रीकृष्ण जैसा क्यों कहते! तुमको तो कहना
चाहिए नारायण जैसा पति मिले। नारद ने भी कहा हम लक्ष्मी को वरें। राधे के लिए नहीं
कहा। बाप समझाते हैं तुमको कृष्णपुरी चलना है तो खूब पुरुषार्थ करो, वह है
श्रीकृष्ण का दैवी कुल। कंस का है आसुरी कुल। तुम अभी हो संगम पर। शूद्र सम्प्रदाय
तो ब्राह्मण ब्राह्मणी कहला न सकें। जो ब्राह्मण न कहलायें वह शूद्र वर्ण के हैं।
भारत की ही बात है। भारत ही स्वर्ग बनता फिर भारत ही नर्क बन जाता है।
लक्ष्मी-नारायण को भी 84 जन्म ले रजो तमो में आना ही है। जबकि वह भी चक्र में आते
हैं तो बुद्ध आदि वापिस निर्वाणधाम में कैसे जा सकते। कोई तो कह देते कृष्ण
सर्वव्यापी है, जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है। राम के भक्त कहेंगे राम सर्वव्यापी
है। वह कृष्ण को नहीं मानेंगे। बाबा के पास एक राधापंथी आया था कहता था राधे ही राधे...
राधे हाज़िराहज़ूर है। तेरे में मेरे में राधे ही राधे है। गणेश का पुजारी कहेगा
तेरे में मेरे में गणेश ही गणेश है। क्रिश्चियन फिर कहते क्राइस्ट गॉड का सन (बच्चा)
है। अरे क्राइस्ट सन था तो तुम किसके सन (बच्चे) हो? अनेक मत मतान्तर हैं। रास्ता
कोई को भी मिलता नहीं। सिर्फ माथा टेकते, भटकते रहते हैं। मुक्ति और जीवनमुक्ति
भगवान ही देंगे ना! उनसे हम क्या मांगें! कोई को पता ही नहीं। बाप को न जानने कारण
निधनके बन गये हैं। फिर धनी आकर धणका बनाते हैं। मनुष्य कितने धक्के खाते हैं, समझते
हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ अपने समय पर। भल कोई कितना
भी पुकारे परन्तु मैं आता हूँ संगम पर। एक ही बार भारत को स्वर्ग बनाए सबको शान्ति
में भेज देता हूँ। फिर नम्बरवार अपने-अपने समय पर आते हैं। जो देवी-देवता थे वह भी
सब आत्मायें बैठी हुई हैं। फिर से अपना राज्य भाग्य ले रहे हैं। अभी तो देवी-देवता
धर्म ही नहीं है। सब अपने को हिन्दू कहलाने लग पड़े हैं। ड्रामा अनुसार फिर भी ऐसा
होगा। जो कुछ हो चुका है वह फिर रिपीट होगा। फिर ऐसे हम चक्र में आयेंगे, इतने जन्म
लेंगे। हिसाब निकालो। हर एक धर्म वाले पीछे कितने जन्म लेंगे? झाड़ पर समझाना बहुत
सहज है। आपेही मनुष्यों को टच होगा कि कोई की प्रेरणा से यह विनाश ज्वाला की तैयारी
हो रही है। यूरोपवासी यादव बाम्ब्स बनाते हैं। वह भी कहते हैं हमको कोई प्रेरणा देने
वाला है। हम जानते हैं कि इससे हम अपने ही कुल का विनाश करते हैं। न चाहते हुए भी
यह मौत का सामान बनाते हैं। धीरे-धीरे प्रभाव पड़ेगा। धीरे धीरे झाड़ बढ़ता है ना।
कोई कांटे से कली, कोई फूल बनते हैं। कोई कोई फूलों को भी तूफान लगता है तो मुरझा
जाते हैं। बाबा ने कल्प-कल्प कहा था आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती... अब फिर बाबा खुद
कह रहे हैं, हमारे पास आवन्ती, ब्रह्माकुमार कुमारी बनन्ती, कथन्ती फिर भी अहो मम
माया अच्छे-अच्छे बच्चों को खावन्ती (खा गई) आगे चलकर देखना कैसे अच्छे-अच्छे बच्चे
भी खत्म हो जाते हैं।
जो पास्ट हो गया सो फिर अब प्रेजन्ट में बाप समझाते हैं। फिर भक्ति मार्ग में
शास्त्र बनायेंगे। यह ड्रामा ऐसा बना हुआ है। अब बाप आकर ब्रह्मा द्वारा सभी वेदों
शास्त्रों का सार समझा रहे हैं। जो धर्म स्थापन करते हैं उनके नाम पर ही शास्त्र
बनाते हैं। उसको धर्म शास्त्र कहा जाता है। देवी-देवता धर्म का शास्त्र एक ही गीता
है। हरेक धर्म का एक शास्त्र होना चाहिए। श्रीमत भगवद गीता ठीक है। भगवानुवाच है।
भगवान ने आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना की। यह है सबसे प्राचीन धर्म। हरेक
धर्म का अपना-अपना शास्त्र है और पढ़ते रहते हैं। अभी तुम देवता बनते हो लेकिन तुमको
शास्त्र पढ़ने की दरकार नहीं, वहाँ शास्त्र होता ही नहीं। यह सब खत्म हो जायेंगे
फिर गीता कहाँ से आई? द्वापर में बैठ मनुष्यों ने बनाई, जो गीता अभी है फिर भी वही
गीता खोजकर निकालेंगे। जैसे कल्प पहले बनाई है वैसे फिर यह शास्त्र बनेंगे। भक्ति
मार्ग की सामग्री बनती ही जायेगी।
बाप समझाते हैं सिकीलधे बच्चे मुझ बाप की श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनो। तुम अभी
संगमयुग पर राजयोग सीख रहे हो, जबकि कलियुग को सतयुग बनाना है। उन्होंने कल्प की आयु
लम्बी बताए सभी को घोर अन्धियारे में डाल दिया है। मनुष्य तो मूंझे हुए हैं, ड्रामा
अनुसार तुम बच्चों को ही बेहद के बाप से वर्सा लेना है। बाबा ने बहुत युक्तियां
बताई हैं सिर्फ बाबा को याद करो, चार्ट रखो। भोजन बनाने समय भी याद करो। भोजन बनाने
समय पति, बच्चा याद पड़ता है तो शिवबाबा क्यों नही पड़ सकता! यह तुम्हारा काम है।
बाबा बुद्धि की सीढ़ी देते हैं फिर चढ़ो न चढ़ो, यह है तुम्हारा काम। जितना याद
करेंगे उतनी सीढ़ी चढ़ते जायेंगे। नहीं तो इतना सुख नहीं मिलेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे अर्थात् 5 हजार वर्ष के बाद फिर आए मिले हुए बच्चों को
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। मीठे-मीठे
रूहानी बाप का रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कृष्णपुरी में चलने के लिए पुरुषार्थ बहुत अच्छा करना है। शूद्र पन
के सस्कारों को परिवर्तन कर पक्का ब्राह्मण बनना है।
2) बुद्धिबल से याद की सीढ़ी पर चढ़ना है। सीढ़ी चढ़ने से ही अपार सुख का अनुभव
होगा।