13-05-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
08.01.92 "बापदादा" मधुबन
"मास्टर स्नेह स्वरूप
आत्मायें रूहानी स्नेह के दाता बनो"
आज बेहद के मात पिता
के सामने सारा बेहद का परिवार है। सिर्फ यह सभा नहीं है लेकिन चारों ओर के स्नेही
सहयोगी बच्चों का छोटा सा ब्राह्मण परिवार अति प्यारा और न्यारा परिवार, अलौकिक
परिवार ,चित्र में होते विचित्र अनोखा परिवार सामने है। बाप-दादा अमृतवेले से सभी
बच्चों के स्नेह की, मिलन मनाने की, वरदान लेने की मीठी-मीठी रूहरिहान सुन रहे थे।
सभी के मन में स्नेह की भावना और समान बनने की श्रेष्ठ कामना यही उमंग उत्साह चारों
ओर देखा। आज के दिन मैजारिटी बच्चों के सामने नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मा ब्रह्मा
मात-पिता इमर्ज रूप में था। सभी के दिल में आज विशेष प्यार के सागर बापदादा का
प्रेम स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में नयनों के सामने रहा। चारों ओर के सर्व बच्चों के
स्नेह के, दिल के गीत बापदादा ने सुने। स्नेह के रिटर्न में वरदाता बाप बच्चें को
यही वरदान दे रहे हैं -’’सदा हर समय, हर एक आत्मा से, हर परिस्थिति में स्नेही
मूर्त भव’’। कभी भी अपना स्नेही मूर्त, स्नेह की सीरत, स्नेही व्यवहार, स्नेह के
सम्पर्क-सम्बन्ध को छोड़ना मत, भूलना मत। चाहे कोई व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे माया
कैसा भी विकराल रूप, ज्वाला रूप धारण कर सामने आये लेकिन विकराल ज्वाला रूप को सदा
स्नेह के शीतलता द्वारा परिवर्तन करते रहना। इस नये वर्ष में विशेष स्नेह लेना है,
स्नेह देना है। सदा स्नेह की दृष्टि, स्नेह की वृत्ति, स्नेहमयी कृति द्वारा स्नेही
सृष्टि बनानी है। कोई स्नेह नहीं भी दे लेकिन आप मास्टर स्नेह स्वरूप आत्मायें दाता
बन रूहानी स्नेह देते चलो। आज की जीव आत्मायें स्नेह अर्थात् सच्चे प्यार की प्यासी
हैं। स्नेह की एक घड़ी अर्थात् एक बूँद की प्यासी है। सिवाए सच्चे स्नेह के कारण
परेशान हो भटक रहे हैं। सच्चे रूहानी स्नेह को ढूँढ रहे हैं। ऐसी प्यासी आत्माओं को
सहारा देने वाले आप मास्टर ज्ञान सागर हो। अपने आप से पूछो आप सभी आत्माओं को
ब्राह्मण परिवार में परिवर्तन करने का, आकार्षित करने का विशेष आधार क्या रहा? यही
सच्चा प्यार, मात-पिता का प्यार, रूहानी परिवार का प्यार - इस प्यार की प्राप्ति ने
परिवर्तन किया। ज्ञान तो पीछे समझते हो लेकिन पहला आकर्षण सच्चा निस्वार्थ
पारिवारिक प्यार। यही फाउन्डेशन रहा ना, इससे ही सभी आये ना। विश्व में अरब खरब पति
बहुत हैं लेकिन परमात्म सच्चे प्यार के भिखारी हैं क्यों? अरब खरब से यह प्यार नहीं
मिलता। साइन्स वालों ने देखो कितने भी अल्पकाल के सुख के साध्ान विश्व को दिया है
लेकिन जितने बड़े वैज्ञानिक हैं उतना और कुछ खोज करें, और कुछ खोज करें इस खोज में
ही खोये हुए हैं। सन्तुष्टता की अनुभूति नहीं है, और कुछ करें, और कुछ करें, इस में
ही समय गँवा देते हैं। उन्हों का संसार ही खोज करना हो गया है। आप जैसे
स्नेह-सम्पन्न जीवन की अनुभूति नहीं है। नेताएं देखो अपनी कुर्सा सम्भालने में ही
लगे हुए हैं। कल क्या होगा- इस चिन्ता में लगे हुए हैं। और आप ब्राह्मण सदा
परमात्म-प्यार के झूले में झुलते हो। कल का फिक्र नहीं हैं। न कल का फिक्र है, न
काल का फिक्र है। क्यों? क्योंकि जानते हो - जो हो रहा है वह भी अच्छा और जो होना
है वह और अच्छा। इस-लिए अच्छा-अच्छा कहते अच्छे बन गये हो।
ब्राह्मण जीवन अर्थात्
बुराई को विदाई देना और सदा सब अच्छे ते अच्छा है - इसकी बधाइयाँ मनाना। ऐसा किया
है या अभी विदाई दे रहे हो? जैसे पुराने वर्ष को विदाई दी नये वर्ष के लिए बधाइयाँ
दी ना। बधाइयों के कार्ड बहुत आये हैं ना। बहुत बच्चों के बधा-इयों के कार्ड तथा
पत्र आये हैं। बापदादा कहते हैं - जैसे नये वर्ष के कार्ड भेजे वा संकल्प किया, तो
संगमयुग पर तो हर सेकेण्ड़ नया है ना। संगमयुग के हर सेकेण्ड की बधाई के कार्ड नहीं
भेजना, कार्ड सम्भालना मुश्किल हो जाता है। लेकिन कार्ड की बजाए रिकार्ड रखना कि हर
सेकेण्ड़ नया अनुभव किया? हर नये सेकेण्ड़ नया उमंग-उत्साह अनुभव किया? हर सेकेण्ड़
अपने में नवी-नता अर्थात् दिव्यता-विशेषता क्या अनुभव की? उसकी बधाइयाँ देते हैं।
आप ब्राह्मण आत्माओं की सबसे बड़े ते बड़ी सेरीमनी हर समय कौन सी है? सेरीमनी अर्थात्
खुशी का समय या खुशी का दिन। सेरीमनी में सबसे बड़ी बात मिलन मनाने की होती है। मिलन
मनाना ही खुशी मनाना है। आप सबका परमात्म मिलन, श्रेष्ठ आत्माओं का मिलन हर समय होता
है ना! तो हर समय सेरी-मनी हुई ना! नाचो गाओ और खाओ - यही सेरीमनी होती है। ब्रह्मा
बाप के भण्ड़ारे से खाते हो इसलिए सदा ब्रह्मा भोजन खाते हो। कोई प्रवृत्ति वाले अपने
कमाई से नहीं खाते हैं, सेन्टर वाले सेन्टर के भण्ड़ारी से नहीं खाते हैं लेकिन
ब्रह्मा बाप के भण्डारे से, शिव बाप की भण्ड़ारी से खाते हैं। न मेरी प्रवृत्ति है,
न मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में हो तो भी ट्रस्टी हो, बाप की श्रीमत प्रमाण
निमित्त बने हुए हो, और सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे। इसलिए सदा
शिव बाप की भण्ड़ारी है, ब्रह्मा बाप का भण्ड़ारा है - इस स्मृति से भण्डारी भी भरपूर
रहेगी, तो भण्डारा भी भरपूर रहेगा। मेरापन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं
होगी। किसी भी कार्य में अगर कोई प्रकार की खोट अथवा कमी होती है तो इसका कारण बाप
की बजाए मेरेपन की खोट है इसीलिए खोट होती है। खोट शब्द कमी को भी कहा जाता है और
खोट शब्द अशुद्धि मिक्स को भी कहा जाता है। जैसे सोने में खोट (खाद) पड़ जाती है ना।
लेकिन ब्राह्मण जीवन तो हर सेकेण्ड सेरीमनी मनाने की बधाइयों की है। समझा!
वैसे आज के दिन आप सभी
आवाज़ से परे जाते हो और बापदादा जो आवाज़ से परे हैं उनको आवाज़ में लाते हो। यह
प्रैक्टिस बहुत अच्छी है - अभी-अभी बहुत आवाज़ में हो, चाहे डिस्कस कर रहे हो, ऐसे
वातावरण में भी संकल्प किया आवाज़ से परे हो जाएं तो सेकेण्ड में आवाज़ से न्यारे
फरिश्ता स्थिति में टिक जाओ। अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी फरिश्ता अर्थात् आवाज़ से परे
अव्यक्त स्थिति। यह नहीं कि वातावरण बहुत आवाज़ का है, इसलिए आवाज़ से परे होने में
टाइम चाहिए। नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि लास्ट समय चारों ओर व्यक्तियों का,
प्रकृति का जलचल ओर आवाज़ होगा - चिल्लाने का, हिलाने का - यही वायुमण्डल होगा। ऐसे
समय पर ही सेकेण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास
ही विजयी बन-येगा। यह स्मृति सिमरणी अर्थात् विजय माला में लायेगी। इसलिए यह अभ्यास
अभी से अति आवश्यक है। इसको कहते हैं - प्रकृतिजीत, मायाजीत। मालिक बन चाहे तो मुख
का साज़ बजाएं, चाहें तो कानों द्वारा सुनें, अगर नहीं चाहें तो सेकेण्ड में
फुल-स्टॉप। आधा स्टॉप भी नहीं, फुलस्टॉप। यही है ब्रह्मा बाप के समान बनना। स्नेह
की निशानी है समान बनना। हरेक कहते मेरा स्नेह ज्यादा है। कोई से भी पूछेंगे किसका
स्नेह ब्रह्मा बाप से ज्यादा है? तो सभी यही कहेंगे कि मेरा। तो जैसे स्नेह में
समझते हो - मेरा स्नेह ज्यादा है, ऐसे समान बनने में भी तीव्र पुरूषार्थ करो कि मैं
नम्बरवन के साथ, युगल दाने के साथ दाना माला में पिरोया जाऊं। इसको कहते हैं स्नेह
का रिटर्न दिया। स्नेह में मणुबन में भागने में तो होशियार हो। सभी जल्दी-जल्दी भाग
कर पहुँच गये हो ना। जैसे यह प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाया, ऐसे समान बनने का प्रत्यक्ष
स्वरूप दिखाओ। स्थान छोटा है और दिल बड़ी है इसलिए उल्हना नहीं देना कि जगह नहीं मिली।
जब दिल बड़ी है तो प्यार में कोई भी तकलीफ, तकलीफ नहीं लगती है। बापदादा को बच्चों
की तक-लीफ भी देखी नहीं जाती। हाँ योग लगाओ तो स्थान तैयार हो जायेगा। अच्छा।
चारों ओर के देश
विदेश के स्नेह में समाये हुए श्रेष्ठ आत्माओं के बहुत-बहुत संकल्प द्वारा, पत्रों
द्वारा, सन्देशों द्वारा इस स्मृति दिवस वा नव वर्ष की याद प्यार बापदादा को मिली।
सबके दिल के मीठे-मीठे प्यारे-प्यारे बच्चे कह याद प्यार दे रहे हैं। उड़ रहे हो और
तीव्र गति से उड़ते रहो। माया के खेल खिलाड़ी बन देखते चलो। प्रकृति की परिस्थितियाँ
मास्टर सर्वशक्तिवान बन खेल-खेल में पार करते चलो। बाप का हाथ और दिव्य बुद्धि योग
रूपी साथ- सदा अनुभव कर समर्थ बन सदा पास विथ ऑनर बनते चलो। सदा स्नेह-मूर्त भव के
वरदान को स्मृति स्वरूप में याद रख, ऐसे सर्व स्नेही मूर्तियों को सदा मास्टर दाता
आत्माओं को मात-पिता का शक्ति सम्पन्न याद प्यार और नमस्ते।
दादियों से - बाप के
साथ का वर्सा है ही विशेष पावर्स। इस पावर्स द्वारा सर्व कार्य सहज आगे बढ़ते
जा रहे हैं। सभी समीप
के साथी है ना! साथ रहें और साथ चलेंगे और साथ ही राज्य करेंगे। संगम पर भी समीप,
निराकारी दुनिया में भी समीप और राजधानी में भी समीप। जन्मते ही समीपता का वरदान
मिला। सभी समीपता के वरदानी हैं - ऐसे अनुभव होता है ना? साथ का अनुभव होना यही
समीपता की निशानी है। अलग होना मुश्किल है साथ रहना स्वत: ही है। समीपता के संगठन
के समीप है। राज्य ासिंहासन लेंगे ना? सिहांसन पर भी जीत प्राप्त करेंगे ना। जैसे
अभी दिल पर जीत है, दिल को जीता फिर नम्बर-वार विश्व के राज्य ासिंहासन पर जीत होगी।
ऐसे विजयी है ना? आप लोगों के ऊमंग उत्साह को देख सभी उमंग उत्साह में चल रहे हैं,
और सदा चलते रहेंगे। बच्चे बाप की कमाल गाते हैं और बाप बच्चों की कमाल गाते हैं।
आप कहते हो वाह बाबा वाह और बाबा कहते हैं? वाह बच्चे वाह। अच्छा।
पार्टियों से अव्यक्त
बापदादा की मुलाकात
हम सभी पूज्य और
पूर्वज आत्मायें हैं - इतना नशा रहता है? आप सभी इस सृष्टि रूपी वृक्ष की जड़ में
बैठे हो ना? आदि पिता के बच्चे आदि रतन हो। तो इस वृक्ष के तना भी आप हो। जो भी
डाल-डालियाँ निकलती है वह बीज के बाद तना से ही निकलती हैं। तो सबसे आदि धर्म की आप
आत्माएं हो और सभी पीछे निकलते हैं इसलिए पूर्वज हो। तो आप फाउन्डेशन हो। जितना
फाउन्डे-शन पक्का होता है उतनी रचना भी पक्की होती है। तो इतना अटेन्शन अपने उपर
रखना है। पूर्वज अर्थात् तना होने के कारण डाय-रेक्ट बीज से कनेक्शन है। आप फलक से
कह सकते हो कि हम डायरेक्ट परमात्मा द्वारा रचे हुए हैं। दुनिया वालों से पूछो कि
किसने रचा? तो सुनी-सुनाई कह देंगे कि भगवान ने रचा। लेकिन कहने मात्र हैं और आप
डायरेक्ट परम आत्मा की रचना हो। आजकल के ब्राह्मण भी कहते हैं कि हम ब्रह्मा के
बच्चे हैं। लेकिन ब्रह्मा के बच्चे प्रैक्टिकल में आप हो। तो यह खुशी है कि हम
डायरेक्ट रचना है। कोई महान आत्मा, धर्म आत्मा की रचना नहीं, डायरेक्ट परम आत्मा की
रचना हैं। तो डायरेक्ट कितनी शक्ति है! दुनिया वाले ढूँढ़ रहे हैं कि कोई वेष में
भगवान आ जायेगा और आप कहते मिल गया। तो कितनी खुशी हैं! तो इतनी खुशी रहती है कि
आपको देख करके और भी खुश हो जाएं। क्योंकि खुश रहने वाले का चेहरा सदा ही खुशनुम:
होगा ना?
हॉस्पिटल परिवार को
देखते हुए
हॉस्पिटल में कोई
दु:खी आता है तो खुश हो जाता है? ऐसा वातावरण खुशी का है जो कोई भी आये, दु:ख भूल
जाये। क्योंकि वातावरण बनता है व्यक्ति के वायब्रेशन से। कोई दु:खी आत्माओं का
संगठन हो तो वहाँ का वातावरण भी दु:ख का होगा। वहाँ कोई हँसता भी आयेगा तो चुप हो
जायेगा और कहीं खुश रहने वाले व्यक्तियों का संगठन हो, खुशी का संगठन हो तो कैसी भी
दु:खी आत्मायें आयेंगी तो बदल जायेंगी। प्रभाव जरूर पड़ता है। तो एवरहैप्पी हॉस्पिटल
है ना? सिर्फ हेल्दी नहीं, हैप्पी भी। सब मुस्कराते रहेंगे, हँसते रहेंगे तो आधी
दवाई हो जायेगी। आधी दवाई खुशी है। तो दवाइयों का भी खर्चा बच जायेगा ना। पेशेन्ट
भी खुश हो जायेंगे कि कम खर्चे में निरोगी बन गये और हॉस्पिटल का खर्चा भी कम हो
जायेगा। डॉक्टर्स को टाइम भी कम देना पड़ेगा। जैसे साकार में देखा -ब्रह्मा बाप के
आगे आते थे तो क्या अनुभव सुनाते थे? बहुत बातें लेकर आते थे लेकिन बाप के आगे आने
से न बातों का हल अन्दर ही अन्दर हो जाता था। यह अनुभव सुने हैं ना। ऐसे आप
डॉक्टर्स के सामने कोई भी आये तो आते ही आधी बीमारी वहीं ठीक हो जाये। सभी डॉक्टर्स
ऐसे हो ना। जैसे बाप अलौकिक हैं तो बाप के बच्चे जो कार्य के निमित्त हैं वो भी सब
अलौकिक होंगे ना। आप सभी की अलौकिक जीवन है या साधारण जीवन है? जितना-जितना तपस्या
में आगे बढ़ते जायेंगे उतना आपके वायब्रेशन बहुत तीव्रगति से काम करेंगे। अच्छा। कम
खर्चा बाला नशीन वाली हॉस्पिटल होनी चाहिए। टाइम भी कम खर्च हो और स्थूल धन भी कम
खर्च और बाला नशीन। नाम बड़ा ओर खर्चा कम। तो ऐसे अलौकिक सेवाधारी हो ना? फाउन्डे-शन
अच्छा डाला है। हॉस्पिटल लगती है वा योग भवन लगता है? ऐसा आवाज होगा कि यह हॉस्पिटल
नहीं है लेकिन योग केन्द्र है, हैप्पी हाउस है। ऐसे लौकिक में भी हैप्पी हाउस बनाते
हैं। जो भी अन्दर जायेगा हँसता ही रहेगा। लेकिन ये मन की मुस्क्राहट है। वह होता है
थोड़े समय के लिए और यह है सदा काल के लिए। अच्छा। सदा हर्षित मूड में रहो। कुछ भी
हो जाए अपनी मूड नहीं ऑफ करना। कोई गाली भी दे, इनसल्ट भी करें लेकिन आप सदा हर्षित
रहना। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-
सम्पूर्णता की
स्थिति द्वारा प्रकृति को आर्डर करने वाले विश्व परिवर्तक भव
जब आप विश्व परिवर्तक
आत्मायें संगठित रूप में सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति से विश्व परिवर्तन का संकल्प
करेंगी तब यह प्रकृति सम्पूर्ण हलचल की डांस शुरू करेगी। वायु, धरती, समुद्र, जल...
इनकी हलचल ही सफाई करेगी। परन्तु यह प्रकृति आपका आर्डर तब मानेगी जब पहले आपके
स्वयं के सहयोगी कर्मेन्द्रियां, मन-बुद्धि-संस्कार आपका आर्डर मानेंगे। साथ-साथ
इतनी पावरफुल तपस्या की ऊंची स्थिति हो जो सबका एक साथ संकल्प हो "परिवर्तन" और
प्रकृति हाजिर हो जाए।
स्लोगन:-
अपने श्रेष्ठ
भाग्य द्वारा सबका भाग्य बनाते सदा भगवान की स्मृति दिलाते रहो।