14-01-08 प्रात: मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे – पवित्रता बिना भारत स्वर्ग बन नहीं सकता, तुम्हें श्रीमत है घर गृहस्थ में रहते पवित्र बनो, दोनों तरफ तोड़ निभाओ”
प्रश्नः- दूसरे सतसंगों वा आश्रमों से यहाँ की कौन सी रसम बिल्कुल न्यारी है?
उत्तर:- उन आश्रमों में मनुष्य जाकर रहते हैं समझते हैं – संग अच्छा है, घर आदि का हंगामा नहीं है। एम-आब्जेक्ट कुछ नहीं। परन्तु यहाँ तो तुम मरजीवा बनते हो। तुम्हें घरबार नहीं छुड़ाया जाता। घर में रह तुम्हें ज्ञान अमृत पीना है, रूहानी सेवा करनी है। यह रसम उन सतसंगों में नहीं है।
ओम् शान्ति। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि बच्चे जानते हैं कि यहाँ बाप ही समझाते हैं इसलिए घड़ी-घड़ी शिव भगवानुवाच कहना भी अच्छा नहीं लगता। वह गीता सुनाने वाले कहेंगे – कृष्ण भगवानुवाच। वह तो होकर गये हैं। कहते हैं कृष्ण ने गीता सुनाई थी, राजयोग सिखाया था। यहाँ तो तुम बच्चे समझते हो शिवबाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं और कोई सतसंग नहीं जहाँ राजयोग सिखाते हो। बाप कहते हैं मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। वह तो सिर्फ कहेंगे कृष्ण भगवानुवाच मनमनाभव। कब कहा था? तो कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले वा कोई कहते क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले। 2 हजार वर्ष नहीं कहते क्योंकि एक हजार वर्ष जो बीच में हैं उसमें इस्लामी, बौद्धी आये। तो क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले सतयुग सिद्ध हो जाता है। हम कहते हैं – आज से 5 हजार वर्ष पहले गीता सुनाने वाला भगवान आया था और आकर देवी-देवता धर्म स्थापन किया था। अब 5 हजार वर्ष बाद फिर से उनको आना पड़े। यह है 5 हजार वर्ष का पा। बच्चे जानते हैं कि यह बाप इस द्वारा समझा रहे हैं। दुनिया में तो अनेक प्रकार के सतसंग हैं जहाँ मनुष्य जाते हैं। कोई आश्रमों में जाकर रहते भी हैं तो उसको ऐसे नहीं कहेंगे कि मात-पिता पास जाए जन्म लिया वा उनसे कोई वर्सा मिलता है, नहीं। सिर्फ वह संग अच्छा समझते हैं। वहाँ घर आदि का कोई भी हंगामा नहीं होता। बाकी एम-आब्जेक्ट तो कुछ भी नहीं है। यहाँ तो तुम कहते हो हम मात-पिता के पास आये हैं। यह है तुम्हारा मरजीवा जन्म। वह लोग बच्चे को एडाप्ट करते हैं। तो वह जाकर उनका घर बसाता है। यहाँ वह रसम नहीं है कि पियरघर, ससुरघर को छोड़ यहाँ आकर बैठें। यह हो नहीं सकता। यहाँ तो गृहस्थ में रहते कमल फूल समान रहना है। कुमारी है वा कोई भी है उनको कहा जाता है घर में रह रोज़ ज्ञान अमृत पीने आओ। नॉलेज समझकर फिर औरों को समझाओ। दोनों तरफ तोड़ निभाओ। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। अन्त तक दोनों तरफ निभाना है। अन्त में यहाँ रहें या वहाँ रहें, मौत तो सभी का आना है। कहते हैं – राम गयो, रावण गयो….. तो ऐसे नहीं कि सभी को यहाँ आकर रहना है। यह तो निकलते तब हैं जब विष के लिए उन्हों को सताया जाता है। कन्याओं को भी रहना घर में है। मित्र सम्बन्धियों की सर्विस करनी है। सोशल वर्कर तो बहुत हैं। गवर्मेन्ट इतने सबको तो अपने पास रख नहीं सकती। वह अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं। फिर कोई न कोई सेवा भी करते हैं। यहाँ तुमको रूहानी सेवा करनी है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। हाँ, जब विकार के लिए बहुत तंग करते हैं तो आकर ईश्वरीय शरण लेते हैं। यहाँ विष के कारण बच्चियां मार बहुत खाती हैं और कहाँ भी यह बात नहीं है। यहाँ तो पवित्र रहना पड़ता है। गवर्मेन्ट भी पवित्रता चाहती है। परन्तु गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनाने की ताकत ईश्वर में ही रहती है। समय ऐसा है जो गवर्मेन्ट भी चाहती है कि बच्चे जास्ती पैदा न हो क्योंकि गरीबी बहुत है। तो चाहते हैं भारत में पवित्रता हो, बच्चे कम हों।
बाप कहते हैं – बच्चे पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। यह बात उन्हों की बुद्धि में नहीं है। भारत पवित्र था, अभी अपवित्र है। सभी आत्मायें खुद भी चाहती हैं कि पवित्र बनें। यहाँ दु:ख बहुत है। तुम बच्चे जानते हो कि पवित्रता बिगर भारत स्वर्ग हो नहीं सकता। नर्क में है ही दु:ख। अब नर्क तो और कोई चीज़ नहीं। जैसे गरुड़ पुराण में दिखाते हैं वैतरणी नदी है, जिसमें मनुष्य गोते खाते हैं। ऐसे तो कोई नदी है नहीं जहाँ सजायें खाते हो। सजायें तो गर्भ जेल में मिलती हैं। सतयुग में तो गर्भजेल होता नहीं, जहाँ सजायें मिलें। गर्भ महल होता है। इस समय सारी दुनिया जीती जागती नर्क है। जहाँ मनुष्य दु:खी, रोगी हैं। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। स्वर्ग में यह कुछ होता नहीं। अब बाप समझाते हैं मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ। मैं रचयिता हूँ, तो जरूर स्वर्ग नई दुनिया रचूँगा। स्वर्ग के लिए आदि सनातन देवी-देवता धर्म रचूँगा। कहते हैं – तुम मात-पिता.. कल्प-कल्प यह राजयोग सिखाया था। ब्रह्मा द्वारा बैठ सभी वेद शास्त्रों के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। बिल्कुल अनपढ़ को बैठ पढ़ाते हैं। तुम कहते थे ना – हे भगवान आओ। पतित तो वहाँ जा न सकें। तो पावन बनाने लिए उनको जरूर यहाँ आना पड़े। तुम बच्चों को याद दिलाते हैं कि कल्प पहले भी तुमको राजयोग सिखाया था। पूछा जाता है कि आगे कभी यह नॉलेज ली है? तो कहते हैं – हाँ, 5 हजार वर्ष पहले हमने यह ज्ञान लिया था। यह बातें हैं नई। नया युग, नया धर्म फिर से स्थापन होता है। सिवाए ईश्वर के यह दैवी धर्म कोई स्थापन कर नहीं सकता। ब्रह्मा विष्णु शंकर भी नहीं कर सकते क्योंकि वह देवतायें स्वयं रचना हैं। स्वर्ग का रचयिता, मात-पिता चाहिए। तुमको सुख घनेरे भी यहाँ चाहिए। बाप कहते हैं रचता मैं भी हूँ। तुमको भी ब्रह्मा मुख द्वारा मैंने रचा है। मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। भल कोई कितना भी बड़ा साधू-सन्त आदि हो परन्तु किसके भी मुख से ऐसे नहीं निकलेगा। यह हैं गीता के अक्षर। परन्तु जिसने कहा है वही कह सकता है। दूसरा कोई कह न सके। सिर्फ फ़र्क यह है कि निराकार के बदले कृष्ण को भगवान कह देते हैं। बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, परमधाम में रहने वाला निराकार परमात्मा हूँ। तुम भी समझ सकते हो। साकार मनुष्य तो अपने को बीजरूप कह न सकें। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी नहीं कह सकते। यह तो जानते हैं कि सबको रचने वाला शिवबाबा है। मैं दैवी धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। ऐसे कहने की भी कोई में ताकत नहीं। भल अपने को कृष्ण कहलायें, ब्रह्मा कहलायें, शंकर कहलायें.. बहुत अपने को अवतार भी कहलाते हैं। परन्तु है सब झूठ। यहाँ आकर जब सुनेंगे तो समझेंगे बरोबर बाप तो एक है, अवतार भी एक है। वह कहते हैं मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। ऐसे कहने की भी कोई में ताकत नहीं। 5 हजार वर्ष पहले भी गीता के भगवान शिवबाबा ने कहा था, जिसने ही आदि सनातन धर्म की स्थापना की थी, वही अब कर रहे हैं। गाया हुआ भी है मच्छरों सदृश्य आत्मायें गई। तो बाप गाइड बन सभी को आए लिबरेट करते हैं। अब कलियुग का अन्त है, उसके बाद सतयुग आना है तो जरूर आकर पवित्र बनाए पवित्र दुनिया में ले जायेगा। गीता में कुछ न कुछ अक्षर हैं। समझते हैं इस धर्म के लिए शास्त्र तो चाहिए ना। तो गीता शास्त्र बैठ बनाया है। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी नम्बरवन माता, परन्तु नाम बदल दिया है। बाप जो इस समय एक्ट करते हैं वह थोड़ेही द्वापर में लिखेंगे। गीता फिर भी वही निकलेगी। ड्रामा में यही गीता नूँधी हुई है। जैसे बाप फिर से मनुष्य को देवता बनाते हैं वैसे शास्त्र भी बाद में कोई फिर से बैठ लिखेंगे। सतयुग में कोई शास्त्र नहीं होगा। बाप सारे चक्र का राज़ बैठ समझाते हैं। तुम समझते हो हमने यह 84 जन्मों का चक्र पूरा किया। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही मैक्सीमम 84 जन्म लेते हैं। बाकी मनुष्यों की तो बाद में वृद्धि होती है। वह थोड़ेही इतने जन्म लेंगे? बाप इस ब्रह्मा मुख से बैठ समझाते हैं। यह जो दादा है, जिसका हमने तन लोन लिया है वह भी अपने जन्मों को नहीं जानते थे। यह है व्यक्त – प्रजापिता ब्रह्मा। वह है अव्यक्त। हैं तो दोनों एक। तुम भी इस ज्ञान से सूक्ष्मवतनवासी फरिश्ते बन रहे हो। सूक्ष्मवतनवासियों को फरिश्ता कहते हैं क्योंकि हड्डी मास नहीं है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी हड्डी मास नहीं है, फिर उन्हों के चित्र कैसे बनाते हैं। शिव का भी चित्र बनाते हैं। है तो वह स्टॉर। उनका भी रूप बनाते हैं। ब्रह्मा विष्णु शंकर तो सूक्ष्म हैं। जैसे मनुष्यों का बनाते हैं वैसे शंकर का तो बना न सकें क्योंकि उनका हड्डी मास का शरीर तो है नहीं। हम तो समझाने लिए ऐसे स्थूल बनाते हैं। परन्तु तुम भी देखते हो कि वह सूक्ष्म है। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) घर में रहते भी रूहानी सेवा करनी है। पवित्र बनना और बनाना है।
2) इस जीते जागते नर्क में रहते हुए भी बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
वरदान:- बाबा शब्द की डायमण्ड "की" (चाबी) द्वारा सर्व खजाने प्राप्त करने वाले परमात्म स्नेही भव
जो परमात्म स्नेही बच्चे हैं उन्हें बापदादा एक डायमण्ड शब्द की बहुत बढ़िया सौगात देते हैं - वह शब्द है "बाबा"। इस चाबी को सदा साथ रखो तो सर्व खजानों की प्राप्ति हो जायेगी। इस चाबी की, की-चेन है - सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप रहना। साथ-साथ प्रतिज्ञा के कंगन और सर्व गुणों के श्रृंगार से सजे सजाये रहो तब विश्व के आगे फरिश्ते रूप वा देव रूप में प्रख्यात होंगे।
स्लोगन:- बीती को पास करके, बापदादा के पास (समीप) रहो तो पास विद आनर बन जायेंगे।