31-10-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 15.11.89 "बापदादा" मधुबन
आज विश्व की सर्व
आत्माओं के उपकारी बापदादा अपने श्रेष्ठ पर-उपकारी बच्चों को देख रहे हैं। वर्तमान
समय अनेक आत्मायें उपकार के लिए इच्छुक हैं। स्व-उपकार करने की इच्छा है लेकिन
हिम्मत और शक्ति नहीं है। ऐसी निर्बल आत्माओं का उपकार करने वाले आप पर-उपकारी बच्चे
निमित्त हो। आप पर-उपकारी बच्चों को आत्माओं की पुकार सुनाई देती है वा स्व-उपकार
में ही बिजी हो? विश्व के राज्य अधिकारी सिर्फ स्व-उपकारी नहीं बनते। पर-उपकारी
आत्मा ही राज्य-अधिकारी बन सकती है। उपकार सच्चे दिल से होता है। ज्ञान सुनाना यह (सिवाए
दिल के) मुख से भी हो सकता है। ज्ञान सुनाना-यह विशाल दिमाग की बात है वा वर्णन के
अभ्यास की बात है। तो दिल और दिमाग - दोनों में अन्तर है। कोई भी किसी से स्नेह
चाहते हैं तो वह दिल का स्नेह चाहते हैं। बापदादा का टाइटल दिलवाला है - दिलाराम
है। दिमाग दिल से स्थूल है, दिल सूक्ष्म है। बोलचाल में भी सदैव यह कहते हो कि सच्ची
दिल से कहते हैं - सच्ची दिल से बाप को याद करो। यह नहीं कहते कि सच्चे दिमाग से
याद करो। कहा भी जाता है-सच्चे दिल पर साहेब राज़ी। विशाल दिमाग पर राज़ी नहीं कहा
जाता है। विशाल दिमाग - यह विशेषता जरूर है, इस विशेषता से ज्ञान की प्वाइंटस को
अच्छी तरह धारण कर सकते हैं। लेकिन दिल से याद करने वाले प्वाइंट अर्थात् बिन्दू
रूप बन सकते हैं। वह प्वाइंट रिपीट कर सकते हैं लेकिन पाइंट (बिन्दू) रूप बनने में
सेकण्ड नम्बर होंगे, कभी सहज कभी मेहनत से बिन्दू रूप में स्थित हो सकेंगे। लेकिन
सच्ची दिल वाले सेकण्ड में बिन्दु बन बिन्दु स्वरूप बाप को याद कर सकते हैं। सच्ची
दिल वाले सच्चे साहेब को राज़ी करने के कारण, बाप की विशेष दुआओं की प्राप्ति के
कारण स्थूल रूप में चाहे दिमाग कईयों के अन्तर में इतना विशाल न भी हो लेकिन सच्चाई
की शक्ति से समय प्रमाण उनका दिमाग युक्तियुक्त, यथार्थ कार्य स्वत: ही करेगा
क्योंकि जो यथार्थ कर्म, बोल वा संकल्प हैं वह दुआओं के कारण ड्रामा अनुसार समय
प्रमाण वही टचिंग उनके दिमाग में आयेगी क्योंकि बुद्धिवानों की बुद्धि (बाप) को राज़ी
किया हुआ है। जिसने भगवान को राज़ी किया वह स्वत: ही राजयुक्त, युक्तियुक्त होता
है।
तो यह चेक करो कि मैं
विशाल दिमाग के कारण याद और सेवा में आगे बढ़ रहा हूँ वा सच्ची दिल और यथार्थ दिमाग
से आगे बढ़ रहा हूँ। पहले भी सुनाया था कि दिमाग से सेवा करने वाले का तीर औरों के
भी दिमाग तक लगता है। दिल वालों का तीर दिल तक लगता है। जैसे स्थापना की, सेवा की
आदि में देखा - पहला पूर (ग्रुप) सेवा का, उन्हों की विशेषता क्या रही? कोई भाषा वा
भाषण की विशेषता नहीं थी। जैसे आजकल बहुत अच्छे भाषण करते हो, कहानियां और किस्से
भी बहुत अच्छे सुनाते हो। ऐसे पहले पूर वालों की भाषा नहीं थी लेकिन क्या था? सच्चे
दिल का आवाज था इसलिए दिल का आवाज अनेकों को दिलाराम का बनाने में निमित्त बना। भाषा
गुलाबी (मिक्सचर) थी। लेकिन नयनों की भाषा रूहानी थी इसलिए भाषा भल कैसी भी थी
लेकिन कांटों से गुलाब तो बन ही गये। वह पहले पूर के सेवा की सफलता और वर्तमान समय
की वृद्धि - दोनों को चेक करो तो अन्तर दिखाई देता है ना। बात मैजारिटी की होती है।
दूसरे-तीसरे पूर में भी कोई-कोई दिल वाले हैं लेकिन मैनारिटी हैं। आदि की पहेली अब
तक चल रही है। कौन सी पहेली? मैं कौन? अभी भी बापदादा कहते - अपने आपसे पूछो मैं
कौन? पहेली हल करना आता है ना वा दूसरा बतावे तब हल कर सकते हो - दूसरा बतायेगा तो
भी उसकी बात को चलाने की कोशिश करेंगे कि ऐसे नहीं है, वैसे है... इसलिए अपने आपको
ही देखो।
कई बच्चे अपने आपको
चेक करते हैं लेकिन देखने की नज़र दो प्रकार की है। उसमें भी कोई सिर्फ विशाल दिमाग
की नज़र से चेक करते हैं, उनका अलबेलेपन का चश्मा होता है। हर बात में यही दिखाई
देगा कि जितना भी किया - त्याग किया, सेवा की, परिवर्तन किया - इतना ही बहुत है।
इन-इन आत्माओं से मैं बहुत अच्छी हूँ। इतना करना भी कोई सहज नहीं है। थोड़ी-बहुत कमी
तो नामीग्रामियों में भी है। इस हिसाब से मैं ठीक हूँ। यह है अलबेलाई का चश्मा।
दूसरा है स्वउन्नति का यथार्थ चश्मा। वह है सच्ची दिल वालों का। वह क्या देखते हैं?
जो दिलवाला बाप को सदा पसन्द है वही संकल्प, बोल और कर्म करना है। यथार्थ चश्मे वाले
सिर्फ बाप और आप को देखते हैं। दूसरा वा तीसरा क्या करता - वह नहीं देखते। मुझे ही
बदलना है इसी धुन में सदा रहते हैं। ऐसे नहीं - दूसरा भी बदले तो मैं बदलूँ। या 80
परसेन्ट मैं बदलूं 20 परसेन्ट तो वह बदले, इतने तक भी वह नहीं देखेंगे। मुझे बदलकर
के औरों को सहज करने के लिए एक्जैम्पुल बनना है इसलिए कहावत है ‘जो ओटे सो अर्जुन।'
अर्जुन अर्थात् अलौकिक जन। इसको कहा जाता है यथार्थ चश्मा वा यथार्थ दृष्टि। वैसे
भी दुनिया में मानव जीवन के लिए मुख्य दो बातें हैं - दिल और दिमाग। दोनों ठीक होने
चाहिए। ऐसे ब्राह्मण जीवन में भी विशाल दिमाग भी चाहिए और सच्ची दिल भी चाहिए। सच्ची
दिल वाले को दिमाग की लिफ्ट मिल जाती है इसलिए सदा यह चेक करो कि सच्ची दिल से
साहेब को राज़ी किया है, सिर्फ अपने मन को या सिर्फ कुछ आत्माओं को तो राज़ी नहीं
किया! सच्चे साहेब का राज़ी होना - इनकी बहुत निशानियां हैं। इस पर मनन कर रूहरिहान
करना। फिर बापदादा भी सुनायेंगे। अच्छा।
आज टीचर्स बैठी हैं।
टीचर्स भी ठेकेदार हैं। कान्ट्रैक्ट (ठेका) लिया है ना। स्व-परिवर्तन से
विश्व-परिवर्तन करना ही है। ऐसा बड़े से बड़ा कान्ट्रैक्ट लिया है ना। जैसे दुनिया
वाले कहते हैं आप मरे मर गई दुनिया, आप नहीं मरे तो दुनिया भी नहीं मरी। ऐसे ही
स्व-परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन है। बिना स्व-परिवर्तन के कोई भी आत्मा प्रति कितनी
भी मेहनत करो - परिवर्तन नहीं हो सकता। आजकल के समय में सिर्फ सुनने से नहीं बदलते
लेकिन देखने से बदलते हैं। मधुबन भूमि में कैसी भी आत्मा क्यों बदल जाती है। सुनाते
तो सेन्टर पर भी हो लेकिन यहाँ आने से स्वयं देखते हैं, स्वयं देखने के कारण बदल
जाते हैं। कई बन्धन वाली माताओं के भी युगल उन्हों के जीवन में परिवर्तन को देखकर
बदल जाते हैं। ज्ञान सुनाने की कोशिश करेंगे तो नहीं सुनेंगे। लेकिन देखने से वह
प्रभाव उन्हों को भी परिवर्तन कर देता है इसलिए कहा आज की दुनिया देखना चाहती है।
तो टीचर्स का यही विशेष कर्तव्य है। करके दिखाना अर्थात् बदलकर के दिखाना। समझा।
सदा सर्व आत्माओं
प्रति पर-उपकारी, सदा सच्चे दिल से सच्चे साहेब को राज़ी करने वाले, विशाल दिमाग और
सच्ची दिल का बैलेन्स रखने वाले, सदा स्वयं को विश्व-परिवर्तन के निमित्त बनाने वाले,
स्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्मा, श्रेष्ठ सेवाधारी आत्मा समझ आगे बढ़ने वाले
- ऐसे चारों ओर के विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दिल्ली ग्रुप से
प्राण अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-
सभी के दिल में बाप का स्नेह समाया हुआ है। स्नेह ने यहाँ तक लाया है। दिल का स्नेह
दिलाराम तक लाया है। दिल में सिवाए बाप के और कुछ रह नहीं सकता। जब बाप ही संसार है
तो बाप का दिल में रहना अर्थात् बाप में संसार समाया हुआ है इसलिए एक मत, एक बल, एक
भरोसा। जहाँ एक है वहाँ ही हर कार्य में सफलता है। कोई भी परिस्थिति को पार करना
सहज लगता है या मुश्किल? अगर दूसरे को देखा, दूसरे को याद किया तो दो में एक भी नहीं
मिलेगा इसलिए मुश्किल हो जायेगा। बाप की आज्ञा है ‘मुझ एक को याद करो'। अगर आज्ञा
पालन करते हैं तो आज्ञाकारी बच्चे को बाप की दुआयें मिलती हैं और सब सहज हो जाता
है। अगर बाप की आज्ञा को पालन नहीं किया तो बाप की मदद वा दुआयें नहीं मिलती इसलिए
मुश्किल हो जाता है। तो सदा आज्ञाकारी हो ना? लौकिक संबंध में भी आज्ञाकारी बच्चे
पर कितना स्नेह होता है। वह है अल्पकाल का स्नेह और यह है अविनाशी स्नेह। यह एक
जन्म की दुआयें अनेक जन्म साथ रहेंगी। तो अविनाशी दुआओं के पात्र बन गये हो। अपनी
यह जीवन मीठी लगती है ना। कितनी श्रेष्ठ और कितनी प्यारी जीवन है! ब्राह्मण जीवन है
तो प्यारी है, ब्राह्मण जीवन नहीं तो प्यारी नहीं लगेगी लेकिन परेशानी की जीवन लगेगी।
तो प्यारी जीवन है या थक जाते हो? सोचते हो - संगम कब तक चलेगा? शरीर नहीं चलते,
सेवा नहीं कर सकते...इससे परेशान तो नहीं होते? यह संगम की जीवन सर्व जन्मों से
श्रेष्ठ है। प्राप्ति की जीवन यह है। फिर तो प्रालब्ध भोगने की जीवन है, कम होने की
जीवन है। अभी भरने की है। 16कला सम्पन्न अभी बनते हो। 16 कला अर्थात् फुल। यह जीवन
अति प्यारी है - ऐसे अनुभव होता है ना या कभी जीवन से तंग होते हो? तंग होकर यह तो
नहीं सोचते हो कि अभी तो चलें। बाप अगर सेवा के प्रति ले जाते हैं तो और बात है
लेकिन तंग होकर नहीं जाना। एडवांस पार्टी में सेवा का पार्ट है और ड्रामा अनुसार गये
तो परेशान होकर नहीं जायेंगे, शान से जायेंगे। सेवा अर्थ जा रहे हैं। तो कभी भी
बच्चों से वा अपने आपसे तंग नहीं होना। मातायें कभी बच्चों से तंग तो नहीं होती हो?
जब हैं ही तमोगुणी तत्वों से पैदा हुए तो वह क्या सतोप्रधानता दिखायेंगे? वह भी
परवश हैं। आप भी बाप की आज्ञायें कभी-कभी भूल तो जाते हो ना! तो जब आप भूल कर सकते
हो तो बच्चों ने भूल की तो क्या हुआ। जब नाम ही बच्चे कहते हैं तो बच्चे माना ही
क्या? चाहे बड़े हों लेकिन उस समय वह भी बच्चे बन जाते हैं अर्थात् बेसमझ बन जाते
हैं इसलिए कभी भी दूसरे की परेशानी देख खुद परेशान नहीं होना। वह कितना भी परेशान
करें आप शान से क्यों उतरते हो? कमजोरी आपकी या बच्चों की? वह तो बहादुर हो गये जो
आपको शान से उतार देते हैं और परेशान कर देते हैं। तो कभी भी स्वप्न में भी परेशान
नहीं होना-अर्थात् श्रेष्ठ शान से परे नहीं होना। अपने शान की कुर्सी पर बैठना नहीं
आता है! तो आज से परेशान नहीं होना - चाहे बीमारी से, चाहे बच्चों से, चाहे अपने
संस्कारों से या औरों से। औरों से भी परेशान हो जाते हैं ना। कई कहते हैं और सब ठीक
है, एक ही यह ऐसा है जिससे परेशान हो जाते हैं। तो परेशान करने वाले बहादुर नहीं बनें,
आप बहादुर बनो। चाहे एक हो, चाहे दस हो लेकिन मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, कमजोर
नहीं। तो यही वरदान सदा स्मृति में रखना कि हम सदा अपने श्रेष्ठ शान में रहने वाले
हैं, परेशान होने वाले नहीं। औरों की भी परेशानी मिटाने वाले हैं। सदा शान के
तख्तनशीन हैं। देखो, आजकल तो कुर्सी है, आपको तो तख्त है। वह कुर्सी के पीछे मरते
हैं, आपको तो तख्त मिला है। तो अकाल तख्तनशीन श्रेष्ठ शान में रहने वाले, बाप के
दिलतख्तनशीन आत्मा हैं - इसी शान में रहना। तो सदा खुश रहना और खुशी बांटना। अच्छा।
दिल्ली फाउण्डेशन है सेवा का। फाउण्डेशन कच्चा हुआ तो सभी कच्चे हो जाते हैं इसलिए
सदा पक्के रहना। अच्छा।
वारगंल ग्रुप:-
अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? जो डबल लाइट है उस आत्मा में माइट अर्थात् बाप
की शक्तियां साथ हैं। तो डबल लाइट भी हो और माइट भी है। समय पर शक्तियों को यूज़ कर
सकते हो या समय निकल जाता है, पीछे याद आता है? क्योंकि अपने पास कितनी भी चीज है,
अगर समय पर यूज़ नहीं किया तो क्या कहेंगे? जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उस
शक्ति को उस समय यूज़ कर सकें - इसी बात का अभ्यास आवश्यक है। कई बच्चे कहते हैं कि
माया आ गई, क्यों आई? परखने की शक्ति यूज़ नहीं की तब तो आ गई ना! अगर दूर से ही
परख लो कि माया आ रही है, तो दूर से ही भगा देंगे ना! माया आ गई - आने का चांस दे
दिया तब तो आई। दूर से भगा देते तो आती नहीं। बार-बार अगर माया आती है और फिर युद्ध
करके उसको भगाते हो तो युद्ध के संस्कार आ जायेंगे। अगर बहुतकाल युद्ध के संस्कार
होंगे तो चन्द्रवंशी बनना पड़ेगा। सूर्यवंशी अर्थात बहुतकाल के विजयी और चन्द्रवंशी
माना युद्ध करते-करते कभी विजयी, कभी युद्ध में मेहनत करने वाले। तो सभी सूर्यवंशी
हो ना! चन्द्रमा को भी रोशनी देने वाला सूर्य है। तो नम्बरवन सूर्य कहेंगे ना!
चन्द्रवंशी दो कला कम हैं। 16 कला अर्थात् फुल पास। कभी भी मन्सा में, वाणी में या
सम्बन्ध-सम्पर्क में, संस्कारों में फेल होने वाले नहीं - इसको कहते हैं सूर्यवंशी।
ऐसे सूर्यवंशी हो? अच्छा। सभी अपने पुरूषार्थ से सन्तुष्ट हो? सभी सब्जेक्ट में फुल
पास होना - इसको कहते हैं अपने पुरूषार्थ से सन्तुष्ट। इस विधि से अपने को चेक करो।
यही याद रखना कि मैं उड़ती कला में जाने वाला उड़ता पंछी हूँ, नीचे फंसने वाला नहीं।
यही वरदान है। अच्छा।
वरदान:-
सदा
अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले अटल अखण्ड स्वराज्य अधिकारी भव
जो बच्चे संगमयुग पर
अतीन्द्रिय सुख का वर्सा सदाकाल के लिए प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् जिनका बाप के
विल पर पूरा अधिकार होता है वे विल पावर वाले होते हैं। उन्हें अटूट अटल अतीन्द्रिय
सुख की अनुभूति होती है। ऐसे वारिस अर्थात् सम्पूर्ण वर्से के अधिकारी ही भविष्य
में अटल-अखण्ड स्वराज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं।
स्लोगन:-
जहाँ मेरापन आता है, वहाँ बुद्धि का फेरा हो जाता है।