10-10-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – नाज़ुकपना भी देह-अभिमान है, रूसना, रोना
यह सब आसुरी संस्कार तुम बच्चों में नहीं होने चाहिए, दु:ख-सुख, मान-अपमान सब सहन
करना है”
प्रश्नः-
सर्विस में
ढीलापन आने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:-
जब
देह-अभिमान के कारण एक दो की खामियां देखने लगते हैं तब सर्विस में ढीलापन आता है।
आपस में अनबनी होना भी देह-अभिमान है। मैं फलाने के साथ नहीं चल सकता, मैं यहाँ नहीं
रह सकता…… यह सब नाज़ुकपना है। यह बोल मुख से निकालना माना कांटे बनना,
नाफरमानबरदार बनना। बाबा कहते बच्चे, तुम रूहानी मिलेट्री हो इसलिए ऑर्डर हुआ तो
फौरन हाज़िर होना चाहिए। कोई भी बात में आनाकानी मत करो।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी
बच्चों को समझाते हैं। बच्चों को पहले-पहले यह शिक्षा मिलती है कि अपने को आत्मा
निश्चय करो। देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनना है। हम आत्मा हैं, देही-अभिमानी बनें
तब ही बाप को याद कर सकें। वह है अज्ञानकाल। यह है ज्ञान काल। ज्ञान तो एक ही बाप
देते हैं जो सर्व की सद्गति करते हैं। और वह है निराकार अर्थात् उनका कोई मनुष्य
आकार नहीं है। जिसको मनुष्य का आकार है उनको भगवान नहीं कह सकते। अब आत्मायें तो सब
निराकारी ही हैं। परन्तु देह-अभिमान में आने से अपने को आत्मा भूल गये हैं। अब बाप
कहते हैं तुमको वापिस जाना है। अपने को आत्मा समझो, आत्मा समझ बाप को याद करो तब
जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हों, और कोई उपाय नहीं। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन
बनती है। बाप ने समझाया है पावन आत्मायें हैं सतयुग-त्रेता में। पतित आत्मा फिर
रावण राज्य में बनती हैं। सीढ़ी में भी समझाया है जो पावन थे वह पतित बने हैं। 5
हज़ार वर्ष पहले तुम सब आत्मायें शान्तिधाम में पावन थी। उसको कहा ही जाता है
निर्वाणधाम। फिर कलियुग में पतित बनते हैं तब चिल्लाते हैं – हे पतित-पावन आओ। बाबा
समझाते हैं – बच्चे, मैं जो तुमको ज्ञान दे रहा हूँ पतित से पावन होने का, वह सिर्फ
मैं ही देता हूँ जो फिर प्राय: लोप हो जाता है। बाप को ही आकर सुनाना पड़ता है। यहाँ
मनुष्यों ने अथाह शास्त्र बनाये हैं। सतयुग में कोई शास्त्र होता ही नहीं। वहाँ
भक्ति मार्ग रिंचक भी नहीं।
अभी बाप कहते हैं तुम
मेरे द्वारा ही पतित से पावन बन सकते हो। पावन दुनिया जरूर बननी ही है। मैं तो बच्चों
को ही आकर राजयोग सिखाता हूँ। दैवीगुण भी धारण करने हैं। रूसना, रोना यह सब आसुरी
स्वभाव है। बाप कहते हैं दु:ख-सुख, मान-अपमान सब बच्चों को सहन करना है। नाज़ुकपना
नहीं। मैं फलाने स्थान पर नहीं रह सकती हूँ, यह भी नाज़ुकपना है। इनका स्वभाव ऐसा
है, यह ऐसा है, वैसा है, यह कुछ भी रहना नहीं चाहिए। मुख से सदैव फूल ही निकलें।
कांटा नहीं निकलना चाहिए। कितने बच्चों के मुख से कांटे बहुत निकलते हैं। किसको
गुस्सा करना भी कांटा है। एक-दो में बच्चों की अनबनी बहुत होती है। देह-अभिमान होने
कारण एक दो की खामियां देखते खुद में अनेक प्रकार की खामियां रह जाती हैं, इसलिए
फिर सर्विस ढीली पड़ जाती है। बाबा समझते हैं – यह भी ड्रामा अनुसार होता है। सुधरना
भी तो है। मिलेट्री के लोग जब लड़ाई में जाते हैं तो उन्हों का काम ही है दुश्मन से
लड़ना। फ्लड्स होती हैं वा कुछ हंगामा हुआ तो भी बहुत मिलेट्री को बुलाते हैं। फिर
मिलेट्री के लोग मज़दूरों आदि का काम भी करने लग पड़ते हैं। गवर्मेंन्ट मिलेट्री को
ऑर्डर करती है – यह मिट्टी सारी भरो। अगर कोई न आया तो गोली के मुँह में। गवर्मेन्ट
का ऑर्डर मानना ही पड़े। बाप कहते हैं तुम भी सर्विस के लिए बांधे हुए हो। बाप जहाँ
भी सर्विस पर जाने के लिए बोले, झट हाज़िर होना चाहिए। नहीं माना तो मिलेट्री नहीं
कहेंगे। वह फिर दिल पर नहीं चढ़ते। तुम बाप के मददगार हो सबको पैगाम देने में। अब
समझो कहाँ बड़ा म्युजियम खोलते हैं, कहते हैं 10 माइल दूर है, सर्विस पर तो जाना पड़े
ना। खर्चे का ख्याल थोड़ेही करना है। बड़े से बड़ी गवर्मेन्ट बेहद के बाप का ऑर्डर
मिलता है, जिसका राइट हैण्ड फिर धर्मराज है। उनकी श्रीमत पर न चलने से फिर गिर पड़ते
हैं। श्रीमत कहती है अपनी आंखों को सिविल बनाओ। काम पर जीत पाने की हिम्मत रखनी
चाहिए। बाबा का हुक्म है, अगर हम नहीं मानेंगे तो एकदम चकनाचूर हो जायेंगे। 21 जन्मों
की राजाई में रोला पड़ जायेगा। बाप कहते हैं मुझे बच्चों के बिगर तो कभी कोई जान न
सके। कल्प पहले वाले ही आहिस्ते-आहिस्ते निकलते रहेंगे। यह हैं बिल्कुल नई-नई बातें।
यह है गीता का युग। परन्तु शास्त्रों में इस संगमयुग का वर्णन नहीं है। गीता को ही
द्वापर में ले गये हैं। लेकिन जब राजयोग सिखाया तो जरूर संगम होगा ना। परन्तु किसकी
भी बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। अभी तुम्हें ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है। मनुष्यों
को है भक्ति मार्ग का नशा। कहते हैं भगवान भी आ जाए तो भी हम भक्ति नहीं छोड़ेंगे।
यह उत्थान और पतन की सीढ़ी बहुत अच्छी है, तो भी मनुष्यों की आंखें नहीं खुलती हैं।
माया के नशे में एकदम चकनाचूर हैं। ज्ञान का नशा बहुत देरी से चढ़ता है। पहले तो
दैवीगुण भी चाहिए। बाप का कोई भी ऑर्डर हुआ तो उसमें आनाकानी नहीं करनी है। यह मैं
नहीं कर सकता हूँ, इसको कहा जाता है नाफरमानबरदार। श्रीमत मिलती है ऐसा-ऐसा करना है
तो समझना चाहिए कि शिवबाबा की श्रेष्ठ मत है। वह है ही सद्गति दाता। दाता कभी उल्टी
मत नहीं देंगे। बाप कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ।
इनसे भी देखो लक्ष्मी ऊंच चली जाती है। गायन भी है – फीमेल को आगे रखा जाता है। पहले
लक्ष्मी फिर नारायण, यथा राजा रानी तथा प्रजा हो जाती है। तुमको भी ऐसा श्रेष्ठ बनना
है। इस समय तो सारी दुनिया में रावण राज्य है। सभी कहते हैं रामराज्य चाहिए। अब है
संगम। जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो रावण राज्य नहीं था, फिर चेन्ज कैसे होती
है, यह कोई नहीं जानते। सभी घोर अन्धियारे में हैं। समझते हैं – कलियुग तो अभी छोटा
बच्चा, रेगड़ी पहन रहा है। तो मनुष्य और ही नींद में सोये हुए हैं। यह रूहानी नॉलेज,
रूहानी बाप ही रूहों को देते हैं, राजयोग भी सिखलाते हैं। कृष्ण को रूहानी बाप नहीं
कहेंगे। वह ऐसे नहीं कहेंगे कि हे रूहानी बच्चों। यह भी लिखना चाहिए – रूहानी
नॉलेजफुल बाप स्प्रीचुअल नॉलेज रूहानी बच्चों को देते हैं।
बाप समझाते हैं दुनिया
में सभी मनुष्य हैं देह-अभिमानी। मैं आत्मा हूँ, यह कोई नहीं जानते हैं। बाप कहते
हैं किसकी भी आत्मा लीन नहीं होती है। अभी तुम बच्चों को समझाया जाता है, दशहरा,
दीपावली क्या है। मनुष्य तो जो भी पूजा आदि करते हैं, सब ब्लाइन्डफेथ की, जिसको
गुड्डी पूजा कहा जाता है, पत्थर पूजा कहा जाता है। अभी तुम पारसबुद्धि बनते हो तो
पत्थर की पूजा नहीं कर सकते हो। चित्रों के आगे जाकर माथा टेकते हैं। कुछ भी समझते
नहीं। कहते भी हैं ज्ञान, भक्ति और वैराग्य। ज्ञान आधाकल्प चला फिर भक्ति शुरू हुई।
अब तुमको ज्ञान मिलता है तो भक्ति से वैराग्य आ जाता है। यह दुनिया ही बदलती है।
कलियुग में भक्ति है। सतयुग में भक्ति होती नहीं। वहाँ है ही पूज्य। बाप कहते हैं –
बच्चे, तुम माथा क्यों टेकते हो। आधाकल्प तुमने माथा भी घिसाया, पैसे भी गँवाये,
मिला कुछ नहीं। माया ने एकदम माथा मूड लिया है। कंगाल बना दिया है। फिर बाप आकर सबका
माथा ठीक कर देते हैं। अभी आहिस्ते-आहिस्ते कुछ यूरोपियन लोग भी समझते हैं। बाबा ने
समझाया है – यह भारतवासी तो बिल्कुल तमोगुणी बन गये हैं। वह और धर्म वाले फिर भी
पीछे आते हैं तो सुख भी थोड़ा, दु:ख भी थोड़ा मिलता है। भारतवासियों को सुख बहुत तो
दु:ख भी बहुत है। शुरू में ही कितने धनवान एकदम विश्व के मालिक होते हैं। और धर्म
वाले कोई पहले थोड़ेही धनवान होते हैं। पीछे वृद्धि को पाते-पाते अभी आकर धनवान हुए
हैं। अब फिर सबसे भिखारी भी भारत बना है। अन्धश्रद्वालू भी भारत है। यह भी ड्रामा
बना हुआ है। बाप कहते हैं मैंने जिसको हेविन बनाया, वह हेल बन गया है। मनुष्य
बन्दरबुद्धि बन गये हैं, उनको मैं आकर मन्दिर लायक बनाता हूँ। विकार बड़े कड़े होते
हैं। क्रोध कितना है। तुम्हारे में कोई क्रोध नहीं होना चाहिए। बिल्कुल मीठे, शान्त,
अति मीठे बनो। यह भी जानते हो कोटो में कोई ही निकलते हैं – राजाई पद पाने वाले।
बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको नर से नारायण बनाने। उसमें भी 8 रत्न मुख्य गाये
जाते हैं। 8 रत्न और बीच में है बाप। 8 हैं पास विद् ऑनर्स, सो भी नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार। देह-अभिमान को तोड़ने में बड़ी मेहनत लगती है। देह का भान
बिल्कुल निकल जाए। कोई-कोई पक्के ब्रह्म ज्ञानी जो होते हैं, उन्हों का भी ऐसे होता
है। बैठे-बैठे देह का त्याग कर देते हैं। बैठे-बैठे ऐसे शरीर छोड़ते हैं, वायुमण्डल
एकदम शान्त हो जाता है और अक्सर करके प्रभात के शुद्ध समय पर शरीर छोड़ते हैं। रात
को मनुष्य बहुत गंद करते हैं, सुबह को स्नान आदि करके भगवान-भगवान कहने लगते हैं।
पूजा करते हैं। बाप सब बातें समझाते रहते हैं। प्रदर्शनी आदि में भी पहले-पहले तुम
अल्फ का परिचय दो। पहले अल्फ और बे। बाप तो एक ही निराकार है। बाप रचयिता ही बैठ
रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान समझाते हैं। वही बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। देह
के सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो। बाप का परिचय तुम देंगे फिर
किसको हिम्मत नहीं रहेगी प्रश्न-उत्तर करने की। पहले बाप का निश्चय पक्का हो जाए तब
बोलो 84 जन्म ऐसे लिये जाते हैं। चक्र को समझ लिया, बाप को समझ लिया फिर कोई प्रश्न
उठेगा नहीं। बाप का परिचय देने बिगर बाकी तुम तिक-तिक करते हो तो उसमें तुम्हारा
टाइम बहुत वेस्ट हो जाता है। गले ही घुट जाते हैं। पहली-पहली बात अल्फ की उठाओ।
तिक-तिक करने से समझ थोड़ेही सकते हैं। बिल्कुल सिम्पुल रीति और धीरे से बैठ समझाना
चाहिए, जो देही-अभिमानी होंगे वही अच्छा समझा सकेंगे। बड़े-बड़े म्युज़ियम में
अच्छे-अच्छे समझाने वालों को मदद देनी पड़े। थोड़े रोज़ अपना सेन्टर छोड़ मदद देने
आ जाना है। पिछाड़ी में सेन्टर सम्भालने कोई को बिठा दो। अगर गद्दी सम्भालने लायक
कोई को आपसमान नहीं बनाया है, तो बाप समझेंगे कोई काम के नहीं, सर्विस नहीं की। बाबा
को लिखते हैं सर्विस छोड़ कैसे जायें! अरे बाबा हुक्म करते हैं फलानी जगह प्रदर्शनी
है सर्विस पर जाओ। अगर गद्दी लायक किसको नहीं बनाया है तो तुम किस काम के। बाबा ने
हुक्म किया – झट भागना चाहिए। महारथी ब्राह्मणी उनको कहा जाता है। बाकी तो सब हैं
घोड़ेसवार, प्यादे। सबको सर्विस में मदद देनी है। इतने वर्ष में तुमने किसको आपसमान
नहीं बनाया है तो क्या करते थे। इतने समय में मैसेन्जर नहीं बनाया है, जो सेन्टर
सम्भालें। कैसे-कैसे मनुष्य आते हैं – जिनसे बात करने का भी अक्ल चाहिए। मुरली भी
जरूर रोज़ पढ़नी है अथवा सुननी है। मुरली नहीं पढ़ी गोया अबसेन्ट पड़ गई। तुम बच्चों
को सारे विश्व पर घेराव डालना है। तुम सारे विश्व की सेवा करते हो ना। पतित दुनिया
को पावन बनाना यह घेराव डालना है ना। सभी को मुक्ति-जीवनमुक्ति धाम का रास्ता बताना
है, दु:ख से छुड़ाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बहुत मीठे, शान्त, अति मीठे स्वभाव का बनना है। कभी भी क्रोध नहीं
करना है। अपनी आंखों को बहुत-बहुत सिविल बनाना है।
2) बाबा जो हुक्म करे, उसे फौरन मानना है। सारे विश्व को पतित से पावन बनाने की
सेवा करनी है अर्थात् घेराव डालना है।
वरदान:-
निश्चय रूपी पांव को अचल रखने वाले सदा निश्चयबुद्धि
निश्चिंत भव
सबसे बड़ी बीमारी है चिंता, इसकी दवाई डाक्टर्स के पास भी
नहीं है। चिंता वाले जितना ही प्राप्ति के पीछे दौड़ते हैं उतना प्राप्ति आगे दौड़
लगाती है। इसलिए निश्चय के पांव सदा अचल रहें। सदा एक बल एक भरोसा - यह पांव अचल है
तो विजय निश्चित है। निश्चित विजयी सदा ही निश्चिंत हैं। माया निश्चय रूपी पांव को
हिलाने के लिए ही भिन्न-भिन्न रूप से आती है लेकिन माया हिल जाए - आपका निश्चय रूपी
पांव न हिले तो निश्चिंत रहने का वरदान मिल जायेगा।
स्लोगन:-
हर एक
की विशेषता को देखते जाओ तो विशेष आत्मा बन जायेंगे।