ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे यह जानते हैं कि मीठा बाबा हमको स्वर्गवासी बनाने यहाँ आये हैं। यह
बच्चों की बुद्धि में है। हर एक को यह समझाना है कि हम आत्मा इस याद की यात्रा से
पवित्र बनती हैं। कितना सहज उपाय है, सिर्फ बाप को याद करना है। बच्चे जानते हैं कि
बाप एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा देते हैं। अब सब जीवनबन्ध में हैं,
रावणराज्य के बन्धन में हैं। यह बात बाप जानते और बच्चे जानते और न जाने कोई। तुम
बच्चों को निश्चय है कि बेहद के बाप को हम याद करते हैं तो अन्दर में बहुत खुशी होनी
चाहिए, आत्मा को। जिस बाप को आधाकल्प याद किया करते थे - वह बाप मिला। दु:ख में बाप
को सिमरण करते रहते हैं। तुम भी सिमरण करते थे, अभी तुम दु:खी होकर सिमरण नहीं करते
हो। जिसको सारी दुनिया सिमरण करती है - वह बाप आया है, यह तुम जानते हो। बाबा ने
बार-बार समझाया है - यहाँ जब तुम बैठते हो तो ऐसा समझो कि हम आत्मा हैं। बाबा
परमधाम से आया हुआ है। कल्प-कल्प अपने वायदे अनुसार आता है। बाबा की यह प्रतिज्ञा
है कि तुम जब पुकारेंगे और आधाकल्प जब पूरा होता है तो मुझे आना पड़ता है। कलियुग
के बाद सतयुग होना है तो मुझे आना पड़ता है। यह सिर्फ तुम बच्चों को मालूम है कि यह
संगमयुग है, बाबा आया हुआ है। तुम बच्चे भी सर्विस करते हो, दिन-प्रतिदिन परिचय देते
जाते हो, बाप की पहचान सबको मिलती जाती है। यहाँ बैठे हो, जानते हो बेहद का बाबा
शिवबाबा हमको फिर से बेहद का वर्सा देने आये हैं। तुम बाबा-बाबा कहते हो ना। हम
शिवबाबा के पास आये हैं। शिवबाबा भी कहते हैं कि मैं साधारण तन में आया हूँ, कल्प
पहले मुआफिक। यह भूलना नहीं चाहिए। माया ऐसे बाबा की याद भुला देती है, जिससे पतित
से पावन बनना होता है। तुम जानते हो कि सर्व का सद्गति दाता एक ही सतगुरू है। सिक्ख
लोग भी गाते हैं सत श्री अकाल, पतित-पावन को ही सतगुरू कहा जाता है। पुकारते भी हैं
कि हे पतित-पावन। आत्मा पुकारती है। अभी तुम जानते हो हम यहाँ आये हैं सम्मुख बाप
से मिलने। बड़े-बड़े आदमी एक दो के पास मिलने जाते हैं, उन्हों की कितनी महिमा होती
है। धूमधाम से आजियान के लिए तो बैन्डबाजे आदि बजाते हैं खुशी के। यह गुप्त वेष में
कौन आया हुआ है, यह तुम ही जानते हो। उनको कहा जाता है - दूरदेश का रहने वाला
मुसाफिर।
तुम जानते हो हम आत्मायें परमधाम की रहने वाली हैं। यहाँ मुसाफिर बन आये हैं
पार्ट बजाने। एक-एक अक्षर जो बाप समझाते हैं, दुनिया में कोई नहीं जानते। तुम बाप
से सुन रहे हो। वह अच्छी रीति धारण करना चाहिए। बाप समझाते हैं तुम सब मुसाफिर हो,
इस कर्मक्षेत्र में। हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर यहाँ टाकी वर्ल्ड में आते
हैं। हम शान्तिधाम के मुसाफिर हैं, 84 जन्मों का पार्ट यहाँ बजाते हैं। आखिर यह
अन्त का समय है। तो बाप आये हुए हैं - पुरानी सृष्टि को नया बनाने। यह भी तुम जानते
हो। चित्र भी क्लीयर है, शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना करते हैं। ऐसे
तो नहीं कृष्ण द्वारा, विष्णु द्वारा स्थापना करते हैं। बाप आते ही हैं ब्रह्मा
द्वारा स्वर्ग रचने। बाप आये हैं साधारण तन में। यह है ही पतित दुनिया, एक भी पावन
नहीं। जबकि पहले नम्बर वाले लक्ष्मी-नारायण भी पतित बनते हैं। जो पावन थे वही पतित
बने हैं, सारी डिनॉयस्टी सहित। तुम जानते हो हम जो डीटी धर्म वाले थे वह अब शूद्र
धर्म वाले बन गये हैं। भल अमेरिका आदि में बड़े-बड़े साहूकार रहते हैं। परन्तु
सतयुग के सामने अमेरिका कुछ भी नहीं। यह सब पिछाड़ी में बने हैं। यह अल्पकाल का भभका
है। विनाश तो होना ही है। तुम बच्चों को बड़ा अच्छा नशा रहना चाहिए। बाप जो हमको
स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनको हम बच्चे याद न करें, कितना वन्डर है। माया याद
करने नहीं देती। तुम बच्चे अभी ऐसे कहते हो - बाबा माया हमको याद करने नहीं देती
है। अरे बाबा, जो तुमको 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनको तुम याद
नहीं कर सकते हो? प्रजा भी तो स्वर्ग का मालिक बनती है ना। सब सुखी रहते हैं। अभी
तो सब दु:खी हैं। प्राइममिनिस्टर, प्रेजीडेंट आदि को तो रात दिन चिंता लगी रहती है।
लड़ाई आदि में कितने मरते रहते हैं। तुम जानते हो महाभारत लड़ाई भी मशहूर है, परन्तु
उसमें क्या हुआ था, यह किसकी बुद्धि में नहीं है। तुमको बाप ने बुद्धि में बिठाया
है। महाभारत की लड़ाई में सब मर गये! कितनी बड़ी मनुष्य सृष्टि है। आत्माओं का भी
झाड है। झाड पहले नया होता है तो बहुत छोटा होता है फिर वृद्धि को पाता जाता है।
तुम जानते हो पहले जब डीटी धर्म था तो कितना छोटा झाड था। आदि सनातन देवता धर्म था।
अब कितने वैराइटी धर्म हैं। इस महाभारत लड़ाई द्वारा इन सबका विनाश होना है। परन्तु
यह ज्ञान कोई में है नहीं। भल कहेंगे यह वही लड़ाई है परन्तु इससे क्या होने का है,
यह पता नहीं। तुम अभी रोशनी में हो। जानते हो विनाश होना है इसलिए महाभारत लड़ाई के
पहले अपना वर्सा तो ले लेवें। बात तो बड़ी सहज है। पवित्र बनो और बाप को याद करो।
बहुत बच्चियों के ऊपर अत्याचार होते हैं। तुम माताओं का संगठन होना चाहिए एक दो को
बचाने के लिए। परन्तु देही-अभिमानी जरूर बनना पड़े। हमको पावन तो जरूर बनना है -यह
पक्का नशा चाहिए। ऐसे नशे में रहने वाले ही समझा सकेंगे। हमें बाप को याद करना है,
पवित्र बनना है। हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं - यह नशा तो रहना चाहिए। हम रचयिता बाप
और रचना के चक्र को जानते हैं। अभी हमको बाप से नई दुनिया सतयुग का वर्सा लेना है।
हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, यह समझाते रहो। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे
पाप नष्ट हो जायेंगे। पावन तो जरूर बनना है। पावन अर्थात् पवित्र। काम महाशत्रु है।
हमने 84 जन्म का चक्र पूरा किया, अब बाप से वर्सा लेना है। बाप कहते हैं मुझे याद
करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यहाँ तो आते ही हो रिफ्रेश होने। मुझ बाप को
याद करो - 21 जन्मों का वर्सा लेना है। कोई में भी मोह की रग नहीं रहनी चाहिए।
नष्टोमोहा बनना है। इस शरीर में भी मोह न रहे। यह तो पुरानी चमड़ी है। परन्तु इसकी
सम्भाल रखनी होती है, जो पढ़ाई पढ़ सकें। तकलीफ होती है तो चत्ती लगानी पड़ती है।
तुम जानते हो यह पुराना सड़ा हुआ शरीर है। इनको कुछ न कुछ होता रहता है। दु:ख आत्मा
को होता है। जानते हो अब तो यह शरीर छोड़ना है। योगबल से इनको थमाना है। बाप को याद
करते रहना है। अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करना है, बस। और कोई लौकिक सम्बन्ध
भी याद नहीं आने चाहिए। मैं देह नहीं आत्मा हूँ। बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं को
वर्सा देने आया हूँ। आत्मा पवित्र होगी तब फिर शरीर भी अच्छा मिलेगा।
तुम जानते हो अभी हमारी आत्मा पावन बननी है। हम पावन थे तो इन लक्ष्मी-नारायण
जैसे थे। इन लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म लिए हैं। सारी सूर्यवंशी डिनायस्टी ने 84
जन्म लिए हैं। चन्द्रवंशी के लिए 84 जन्म नहीं कहेंगे। हाँ जो सूर्यवंशी में
पहले-पहले दास दासी बनते होंगे वह फिर त्रेता में कुछ मर्तबा पाते हैं, उनके 84
जन्म कहेंगे। राजा रानी, प्रजा जो भी दास दासियां आदि सूर्यवंशी में आते हैं वही 84
जन्म लेते हैं। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी है। हम 84 जन्म कैसे लेते हैं। विचार
सागर मंथन करना चाहिए। जितना हो सके बाप को और वर्से को याद करते रहो। चलते फिरते
समझो कि हम बाबा के बच्चे हैं। कोई भी मिले तो उनको बाबा का परिचय देना है। इन
चित्रों में सारी नॉलेज है। सब बताना है। बाबा आया हुआ है ब्रह्मा तन में। हम सब
ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं ना। हम बी.के. को स्वर्ग का मालिक बनाने बाबा आया हुआ
है। सब आत्माओं का बाप एक है। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। अपने-अपने कार्ड भी
दिखा सकते हो। कहाँ आफिस आदि में भी कार्ड दो, परन्तु समझ नहीं सकेंगे कि बी.के.
कौन हैं! अनेक प्रकार के विघ्न आते हैं। गवर्मेन्ट को भी समझाया जाता है - हमारी यह
फैमली है। दादा और बाबा है। दादा द्वारा हम वर्सा ले रहे हैं। यह याद रखने से खुशी
रहनी चाहिए, मिलकियत तो दादे की है। पौत्रों को हक है, पूरा हिस्सा बांटकर लेते
हैं।
तुम भी जानते हो - शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा हम वर्सा लेते हैं। यह याद रखना
चाहिए। पढ़ना है और फिर पढ़ाना है। यह बाप का फ़र्ज है, बच्चों की पालना करना। जब
तक कुमार-कुमारी बालिग न बनें, बाप को उनकी सम्भाल करनी है। बच्चों का काम है पढ़ना।
पढ़ते हैं अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए। तुम जानते हो - बाबा हमको पढ़ा रहे हैं
21 जन्म के लिए। फिर हम अपने पैरों पर खड़े रहेंगे। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद
पायेंगे। तुम खुद कहते हो हम यहाँ आते हैं श्री लक्ष्मी वा श्री नारायण बनने। यह
सत्य नारायण की कथा है ना। कोई को पता नहीं है कि यह लक्ष्मी-नारायण 84 जन्म कैसे
लेते हैं। राधे के भगत होंगे तो कहेंगे राधे हाज़िराहज़ूर है। जिधर देखो राधे ही
राधे है, कृष्ण ही कृष्ण है, शिव ही शिव है। यह गुड़-गुड़धानी कर दी है। ईश्वर, राधे,
कृष्ण सब सर्वव्यापी हैं। यह सब ईश्वर के रूप हैं। भगवान ने यह रूप धारण किये हैं।
जिधर देखो उधर तू ही तू है... बिल्कुल ही बेसमझ बन पड़े हैं। यह है विकारी पतित
दुनिया। सतयुग है निर्विकारी पावन दुनिया। वाइसलेस वर्ल्ड का अर्थ ही है स्वर्ग।
कहते हैं वहाँ बच्चे तो हैं ना। वह कैसे पैदा होंगे। बस, सवाल ही यह पूछेंगे। कहेंगे
बच्चे नहीं पैदा होंगे तो सृष्टि कैसे बढ़ेगी! हर साल आदमशुमारी का हिसाब निकालते
हैं कि कितने जास्ती मनुष्य हुए। यह नहीं बताते कि इतने मरे। तो बच्चों को पहले तो
अपना कल्याण करना है। मैं आत्मा हूँ - पहले तो यह निश्चय करो। बाबा को याद करना है।
अन्तकाल जो नारायण सिमरे... अब नारायण सिमरे यह अक्षर झूठे लिखे हैं। अन्तकाल जो
शिवबाबा सिमरे... उसी चिंता में जो मरे सो स्वर्ग का नारायण बनें। अन्तकाल नारायण
क्यों कहते हैं? समझते हैं कृष्ण ने ज्ञान दिया था तो भला कृष्ण को सिमरे ना। कृष्ण
को याद करते हैं। नारायण का किसको पता नहीं है। कृष्ण की जयन्ती मनाते हैं, भला राधे
की जयन्ती कहाँ? कृष्ण का जन्म मनाते हैं, नारायण का कहाँ है? वर्ल्ड के किंग क्वीन
लक्ष्मी-नारायण का किसको पता ही नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली होंगे ना!
कहाँ गये! कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवता नम:। ब्रह्मा के मुख वंशावली थे ना। बच्चे
समझते हैं ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा ब्राह्मण धर्म स्थापन करते हैं। ब्राह्मण धर्म
ब्रह्मा ने नहीं रचा परन्तु शिवबाबा ने रचा है। यह तो अभी ब्रह्मा बना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुराने शरीर में रहते पढ़ाई पढ़कर 21 जन्मों के लिए कमाई करनी है
इसलिए इसकी सम्भाल करनी है। बाकी इसमें रग नहीं रखनी है।
2) ऐसा अभ्यास करना है जो अन्तकाल में एक शिवबाबा ही याद रहे। दूसरे किसी भी
चिंतन में नहीं जाना है। अपना कल्याण करना है।