ओम् शान्ति।
बच्चे बाप को याद करते हैं। समझते हैं हम इस समय माया अथवा रावण बलवान की जंजीरों
में फंसे हुए हैं। बाप कहते हैं इससे छुड़ाने वाला समर्थ है। तुम बच्चे जानते हो हम
आत्मायें बलहीन हैं। रावण ने बलहीन बनाया है। यह ज्ञान कोई मनुष्यों में नहीं है।
बाप बैठ बच्चों को ज्ञान देते हैं। तुम कितने सर्वशक्तिमान् विश्व के मालिक थे। अब
कितना कंगाल, निर्बल हो गये हो इसलिए सब पुकारते हैं हे परमपिता परमात्मा हमको आकर
इस रावण की जंजीरों से छुड़ाओ। हे पतित-पावन आओ। वही पतितों को पावन बनाने वाला है।
इस समय है रावण राज्य, स्वर्ग को रामराज्य, नर्क को रावणराज्य कहा जाता है। रावण भी
बलवान है, राम भी बलवान है क्योंकि दोनों ही आधा-आधा कल्प राज्य करते हैं। मनुष्य
तो सब पतित हैं। तुम भी पहले पतित थे, अब पतित-पावन आकर तुमको पावन बनने का ज्ञान
दे रहे हैं। योग और ज्ञान। पहले तो बाप के साथ योग चाहिए। दुनिया में बाप अलग, टीचर
अलग, गुरू अलग है। याद करना पड़ता है। फलाना टीचर हमको पढ़ाते हैं। तुम तीनों ही
सम्बन्ध से एक को ही याद करते हो। तीनों का नाम एक ही शिव है। परमप्रिय परम पिता,
परमप्रिय शिक्षक, परमप्रिय सतगुरू वह एक ही है। मनुष्य तो टीचर को अलग, गुरू को अलग,
बाप को अलग याद करेंगे। उन्हों का नाम रूप अलग-अलग है। यहाँ तीनों का नाम रूप एक ही
बुद्धि में आता है। रूप निराकार है, नाम शिव है। बुद्धि में एक ही याद आता है।
शिवबाबा कहते हैं मैं आता हूँ तुम बच्चों को इस मृत्युलोक से ले जाने, जिसके आसार
भी देख रहे हैं। बलवान बनने में माया बहुत सामना करती है, विघ्न डालती है। तुम बहुत
चोट खाते हो। माया कभी जोर से थप्पड़ मारती हैं, कभी हल्का। जोर से ऐसा मारती है जो
विकार में भी गिर पड़ते हैं। फिर वह असर बहुत समय चलता है। बुद्धि को जैसे ताला लग
जाता है। अब बाबा कहते हैं माया भुलाने की बहुत कोशिश करेगी। परन्तु तुम भूलना नहीं
जितना तुम मेरे को याद करेंगे तो वर्सा भी बुद्धि में आयेगा और ऊंच पद भी पायेंगे।
ऐसा कोई बच्चा नहीं होगा, जिसको बाप का वर्सा याद न आये। वर्सा बच्चे से छिप नहीं
सकता। तुम भी जानते हो कि हम विश्व की बादशाही ले सकते हैं, नम्बरवार पुरुषार्थ
अनुसार। सब एक जैसी राजधानी तो ले नहीं सकेंगे। यह राजधानी स्थापन हो रही है और जो
आते हैं वह कोई राजधानी स्थापन नहीं करते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि वह रावण के राज्य
में आते हैं। रावण का कनेक्शन है ही भारत के साथ। यहाँ ही रावण को जलाते हैं और तरफ
तो रावण को जानते ही नहीं। आधाकल्प के बाद रावण राज्य होता है। जरूर सूर्यवंशी वा
चन्द्रवंशी वालों से ही इस्लामी धर्म वाले निकले होंगे। एक धर्म से ही फिर और
बिरादरियाँ निकलती हैं ना। ऐसे नहीं वह बिरादरी निकली तो उस समय वहाँ रावण राज्य
होगा। नहीं, वह तो बाद में आते हैं। बाबा तो आकर राजधानी स्थापन करते हैं। वह कोई
आधा में, कोई क्वार्टर में आते हैं। सतोप्रधान से फिर तमोप्रधान बनना है। उनके लिए
अल्पकाल का सुख और बहुतकाल का दु:ख है। यह भी खेल समझाया जाता है। पहले पावन थे,
फिर पतित बनते हैं। पहले एक ही देवी-देवता धर्म था। फिर और धर्मों की वृद्धि होती
है। देवतायें खुद ही हिन्दू बन जाते हैं फिर किसम-किसम की मल्टीफिकेशन होती रहती
है। वह फिर अपने धर्म स्थापक के पिछाड़ी चले जाते हैं। देवता धर्म प्राय:लोप है।
हैं सब देवी देवता धर्म वाले, परन्तु अपने को देवता कह नहीं सकते क्योंकि पवित्र नहीं
हैं। पवित्रता के बिगर अपने को देवता कहलाना बेकायदे हो जाता है। जो असुल देवी
देवतायें थे, वही फिर क्षत्रिय, फिर सो वैश्य, सो शूद्र बन जाते हैं। अभी फिर तुम
ब्राह्मण बने हो। यह बातें और धर्म वाले नहीं समझेंगे। देवता धर्म वाले ही यहाँ
आयेंगे, बाकी तो बाद में आते रहेंगे। आगे चलकर वृद्धि बहुत होगी। मुख वंशावली की
वृद्धि होती है। प्रजापिता ब्रह्मा, ब्राह्मण धर्म अब स्थापन करते हैं। प्रजापिता
ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियाँ होंगे ना। ब्राह्मण वर्ण वाले ही
देवता बनेंगे। ढेर आकर नॉलेज लेंगे।
तुम पुरुषार्थ करते हो सूर्यवंशी राजधानी में आने का। उनमें भी मुख्य हैं 8, बाकी
तो वृद्धि हो जाती है। जो मम्मा बाबा का बनेंगे, कुछ सुनेंगे तो वह आयेंगे।
प्रदर्शनी में ढेर आते हैं। उनसे कोई निकलते हैं जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं।
पहले-पहले बाप का परिचय जरूर होना चाहिए। फिर करके कोई लिंग रूप कहते वा
ज्योति-स्वरूप कहते, बाप समझने से ब्रह्म जो महतत्व है, उनको फिर भगवान नहीं कह सकते।
परमपिता परमात्मा तो नॉलेजफुल है। ब्रह्म नॉलेजफुल थोड़ेही है। तुम पूछते हो तो
आत्मा का रूप क्या है? तो लिंग कह देते हैं क्योंकि लिंग रूप की ही पूजा होती है।
स्टार की पूजा तो कहाँ है नहीं। न जानने के कारण फिर कुछ न कुछ बना देते हैं।
ठिक्कर भित्तर सबमें भगवान कह देते हैं। बाप समझाते हैं आत्मा तो स्टार है, आत्माओं
का इकट्ठा झुण्ड भी देख सकते हैं। जब सभी आत्मायें वापिस जायेंगी तो बड़ा झुण्ड होगा
ना। उनको कहा जाता है सूक्ष्म से भी सूक्ष्म। साक्षात्कार से कोई कुछ समझ न सके।
समझो किसको शिव का अथवा ब्रह्मा विष्णु शंकर का साक्षात्कार भी हो, परन्तु फायदा
कुछ नहीं। यहाँ तो सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानना होता है। यह पढ़ाई है। परमात्मा
भी एक स्टार है। इतनी छोटी चीज़ की देखो, कितनी महिमा है। ज्ञान का सागर, प्रेम का
सागर, सुख का सागर वही सारा काम करते हैं। इसको कहा जाता है – अति गुह्य बातें हैं।
बाप कहने से बुद्धि में आना चाहिए कि जरूर स्वर्ग का रचयिता है। कहते भी हैं
जरूर भगवान कहाँ न कहाँ आया हुआ है। अगर गीता का भगवान श्रीकृष्ण होता तो वह देहधारी
तो छिप न सके। यह तो बिल्कुल ही गुह्य बातें हैं। कभी सुना ही नहीं है कि परमपिता
परमात्मा क्या चीज़ है, आत्मा क्या चीज़ है। सिर्फ कह देते हैं – भ्रकुटी के बीच
चमकता है अजब सितारा। फिर उनको परमपिता परमात्मा कह देते हैं। अब आत्मा और परमात्मा
के रूप में फ़र्क तो कुछ भी नहीं पड़ता है। क्या परमात्मा कोई भारी चीज़ है वा बड़ी
रोशनी है? नहीं, वह तो सिर्फ नॉलेजफुल है। गति सद्गति के लिए ज्ञान देते हैं। तो
ज्ञान सागर है। अब ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा को कहेंगे वा रावण मत पर चलने
वाले मनुष्यों को? बाप कहते हैं मैं अथॉरिटी हूँ, बाकी यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री
है। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं परन्तु उनको यह मालूम ही नहीं कि ब्रह्मा
कौन है! बाप कहते हैं मैंने आगे भी कहा है कि मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ। इस
नंदीगण से आकर नॉलेज सुनाता हूँ। मनुष्य भागीरथ भी दिखाते तो गऊ मुख भी दिखाते हैं।
अब भागीरथ से भी गंगा, बैल से भी गंगा दिखाते हैं। राइट रांग क्या है, समझ नहीं सकते।
क्या बैल जानवर से गंगा निकली है? गऊमुख दिखाते हैं तो गऊ होनी चाहिए। नंदीगण को
बैल दिखाते हैं, यह मेल तो बरोबर है। मनुष्य है। अगर गऊ कहें वह भी माता तो है ना।
इन बातों को मनुष्य बिल्कुल ही भूले हुए हैं, राइट कुछ भी बताते नहीं। ब्रह्मा
द्वारा सूर्यवंशी राज्य की स्थापना हो रही है। यहाँ कोई राजाई तो है नहीं। यह बेहद
का बाप बेहद का राज्य देते हैं। पढ़ाई से जो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी घराने के होंगे
उनकी बुद्धि में यह बैठेगा। पहले यह निश्चय चाहिए कि शिवबाबा ही हमको साथ ले जायेगा।
कोई और गुरू गोसाई की यह कहने की ताकत ही नहीं है। पतित-पावन तो एक बाप ही है, उनको
ही याद करते हैं कि आकर पावन बनाओ। नई सो पुरानी, पुरानी सो नई – यह तो होना ही है।
परमपिता परमात्मा के सिवाए पावन दुनिया कोई बना न सके। बाप से ही सूर्यवंशी और
चन्द्रवंशी राजाई का वर्सा मिलता है। यहाँ तो कुछ भी राजाई है नहीं। यह बड़ी समझने
की बातें हैं। मनुष्य समझते हैं शास्त्र सच्चे हैं क्योंकि भगवान ने बनाये हैं।
उन्हों को यह पता ही नहीं कि भगवान ने मनुष्य के तन में आकर गीता सुनाई है। उस पर
कृष्ण का नाम डाल दिया है। यह भूल जब बुद्धि से निकले। पहले शिवबाबा को जानें तब
समझें कि वह स्वर्ग की स्थापना करते हैं। जानते नहीं तो लड़ते झगड़ते हैं। बाप
कहेंगे तुम स्वर्ग में ऊंच पद पाने के लायक नहीं हो। दैवी गुण वाले नहीं हो, धारणा
नहीं होती है तो विकार जरूर होंगे। भल कोई बूढ़े हैं, क्रोध तो उनमें भी बहुत है।
क्रोध बूढ़ा नहीं होता है। आजकल बूढ़े भी विकार में जाते हैं। बाबा कहते हैं काम
महाशत्रु है, मनुष्यों के लिए फिर मित्र है। विकार के लिए देखो कितना तंग करते हैं।
रावण सभी का मित्र है। विष की पैदाइस है ना। विष की पैदाइस माना रावण की पैदाइस।
मनुष्य जानते ही नहीं। बाप की श्रीमत पर चलें तब सपूत कहलायें। विकर्म करते हैं तो
झट सावधानी दी जाती है। बहुतों में बहुत कुछ आदतें रहती हैं। झूठ बोलने की, चोरी
करने की, मांगने की। बाप कहते हैं मैं तो दाता हूँ, तुम कोई से मांगते क्यों हो!
जिसको इनश्योर करना होगा वह आपेही करेंगे। कभी भी मांगो नहीं। आज बाबा का जन्म दिन
है, कुछ तो भेजें, ऐसे मांगो नहीं। समझाना है – इन्शोरेन्स करना है तो भल करो। भक्ति
मार्ग में मनुष्य अपने को इनश्योर करते हैं ईश्वर के पास, जिसको दान कहा जाता है।
उसका फल भी बाप देते हैं। वह है हद का इन्श्योरेन्स, यह है बेहद का। भक्ति मार्ग
में कहते आये हैं परमपिता परमात्मा ने यह भक्ति का फल दिया है। साहूकार होगा तो
कहेगा यह पास्ट कर्मो का फल मिला है। कोई गरीब है क्योंकि इन्श्योरेन्स नहीं किया
है इसलिए धन नहीं मिलता। बाप कहते हैं मेरे पास ही सब इनश्योर करते हैं। कहते हैं
यह भगवान ने दिया है। भक्ति मार्ग में तुम इनश्योर करते हो हद का। अब डायरेक्ट बेहद
का इनश्योरेन्स करते हो। मात-पिता ने देखो इनश्योरेन्स किया है, तो कितना रिटर्न
में देते हैं। कन्या के पास तो पैसा होता नहीं। वह फिर इस सर्विस में लग जाये तो
सबसे ऊंचा जा सकती है। मम्मा ने कुछ भी इनश्योर नहीं किया। हाँ शरीर इस सर्विस में
दे दिया, तो कितना ऊंच पद पाती है। आत्मा जानती है मैं इस शरीर से बेहद के बाप की
सेवा कर रही हूँ। जगत अम्बा का कितना बड़ा मर्तबा है। जगत अम्बा ज्ञान ज्ञानेश्वरी
फिर वही राज राजेश्वरी बनती है। यह सब कुछ तुम ही जानते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सपूत बनने के लिए बाप की श्रीमत पर चलना है। जो भी बुरी आदते हैं
मांगने की, चोरी करने की वा झूठ बोलने की वह निकाल देनी है।
2) अपना सब कुछ बाप के पास इनश्योर करना है। शरीर भी ईश्वरीय सेवा में लगाना है।
माया की प्रवेशता किसी भी कारण से न हो जाये, इसमें सावधान रहना है।