01-04-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 25-11-95 मधुबन

 

सेवा का प्रत्यक्षफल खुशी

 

फाइनल रिज़ल्ट में पहली मार्क्स प्रैक्टिकल धारणा स्वरूप को मिलेगी। जो धारणा स्वरूप होगा वो नैचरल योगी तो होगा ही। अगर मार्क्स ज्यादा लेनी है तो पहले जो दूसरों को सुनाते हो, आजकल वैल्यूज़ पर जो भाषण करते हो, उसकी पहले स्वयं में चेकिंग करो। क्योंकि सेवा की एक मार्क तो धारणा स्वरूप की 10 मार्कस होती हैं, अगर आप ज्ञान नहीं दे सकते हो लेकिन अपनी धारणा से प्रभाव डालते हो तो आपके सेवा की मार्कस जमा हो गई ना। आजकल कई समझते हैं कि हमको सेवा का चांस बहुत कम मिलता है, हमको चांस मिलना चाहिए, दूसरे को मिलता है, मेरे को क्यों नहीं? सेवा करना बहुत अच्छा है क्योंकि अगर बुद्धि फ्री रहती है तो व्यर्थ बहुत चलता है। इसीलिए सेवा में बुद्धि बिज़ी रहे यह साधन अच्छा है। सेवा का उमंग तो अच्छा ही है लेकिन ड्रामानुसार या सरकमस्टांस अनुसार मानों आपको चांस नहीं मिला और आपकी अवस्था दूसरों की सेवा करने की बजाय अपनी भी गिरावट में आ जाये या वो सेवा आपको हलचल में लाये तो वो सेवा क्या हुई? उस सेवा का प्रत्यक्षफल क्या मिलेगा? सच्ची सेवा, प्यार से सेवा, सभी की दुआओं से सेवा, उसका प्रत्यक्षफल खुशी होती है और अगर सेवा में फीलिंग आ गई तो यहाँ ब्राह्मण फीलिंग को क्या कहते हैं? फ्लु। फ्लु वाला क्या करता है? सो जाता है। खाना नहीं खायेगा, सो जायेगा। यहाँ भी फीलिंग आती है तो या खाना छोड़ेगा या रूस करके बैठ जायेगा। तो यह फ्लु हुआ ना। अगर आप धारणा स्वरूप हो, सच्चे सेवाधारी हो, स्वार्था सेवा नहीं। एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से। मेरा नाम आ जायेगा, मेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगा, मेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगा, ब्राह्मणी बहुत आगे रखेगी, पूछेगी..... यह सब भाव स्वार्था-सेवा के हैं। क्योंकि आजकल के हिसाब से, प्रत्यक्षता के हिसाब से, अभी सेवा आपके पास आयेगी, शुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे से, अपने चलन से सेवा करो। आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिले, मेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है। चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है, सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं है, लेकिन बाप के पास तो नाम है ना, जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए! और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं। आपको चांस नहीं मिला, आप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लिया, वो किया तो सही लेकिन वो भी मार्कस कट होते हैं। ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनो, अपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो। यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं किया, लेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लो, ऐसे अलबेले नहीं चलो, ठीक है, हो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता है, ऑटोमेटिक है। कभी-कभी बापदादा बच्चों का चौपड़ा देखते भी हैं। तो पहली बात परमत और दूसरी बात परचिन्तन।

 

तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन - जो देखेंगे तो देखने के बाद वह बात कहाँ जायेगी? बुद्धि में ही तो जायेगी। और जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का समय कहाँ मिलेगा? बातें तो बहुत होती हैं ना, और जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैं, सुनने में भी आती हैं, जितना बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं। ये बातें क्यों होती हैं? कई सोचते हैं यह बातें होनी नहीं चाहिए। नहीं होनी चाहिये वो ठीक है लेकिन जिसके लिए आप समझ रहे हो नहीं होनी चाहिए, उसमें समय क्यों दिया? और ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं। यह वायुमण्डल बनना - यह सबके लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते हैं? दो बातें अलग हैं। एक है ज़िम्मेवारी, जिसके कारण सुनना भी पड़ता है, देखना भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और देखना। ज़िम्मेवारी है, कल्याण की भावना है, वो ठीक है। लेकिन अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखना, सुनना या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को ज़िम्मेवार समझते हो तो ज़िम्मेवारी के पहले अपनी ब्रेक को पॉवरफुल बनाओ। जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक को ठीक चेक करो। तो ज़िम्मेवारी भी एक ऊंची स्थिति है, ज़िम्मेवारी भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है? कि लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क? वो रांग है। उसमें समय और इनर्जा वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना ब्रेक पॉवरफुल करो। चलो - देखा, सुना, जहाँ तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टॉप। अगर ऐसी स्थिति है तो ज़िम्मेवारी लो, नहीं तो देखते नहीं देखो, सुनते नहीं सुनो, स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।

 

तो आज का पाठ क्या हुआ? परमत, परचिन्तन और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करो, वो एक बात है पर-उपकारी बनो। तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो। बनना आयेगा? तो किन बातों से मुक्त बनेंगे? मातायें क्या करेंगी? बच्चों के उपकारी या पर-उपकारी? सर्व उपकारी। सहज है या कठिन है? जो नये-नये आये हैं वो समझते हैं यह सहज है कि मुश्किल है? टीचर्स बोलो-सहज है? (हाँ जी) नहीं, बापदादा समझते हैं मुश्किल है। बातें इतनी होती हैं, बड़ा मुश्किल है! अभी यहाँ बैठे हो तो सहज-सहज कह रहे हैं। फिर जब ट्रेन से उतरेंगे और कोई छोटी-मोटी बात हुई तो कहेंगे मुश्किल है। और घर गये, सेन्टर पर गये तो कोई न कोई बात पेपर लेने आयेगी ज़रुर। अच्छा-डबल विदेशियों को सहज लगता है या मुश्किल लगता है? अगर सहज लगता है तो हाथ उठाओ। टीचर्स तो नम्बरवन लेंगी ना? उस समय नहीं कहना कि हमको तो पता ही नहीं था, हमको यह ज्ञान ही नहीं था। इसीलिए बापदादा पहले से ही सुना रहे हैं - किसमें मार्क्स जमा होती है और किसमें मार्क्स कट होती हैं। अगर नम्बर लेना है तो मेकप करो। अभी कोई भी कर सकते हैं। सीट फिक्स कोई नहीं हुई है। सिवाए ब्रह्मा बाप और जगदम्बा के और सब सीट खाली हैं। कोई भी ले सकता है। एक साल वाला भी ले सकता है।

 

तो सदा क्या याद रखेंगे? अपनी विशेषताओं को याद रखो। विशेष समझेंगे तो यह खेल की बातें होंगी नहीं। तो विशेष हैं और सदा सारे कल्प में विशेष होंगे। और किसी भी धर्म नेता या महात्माओं की ऐसे विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे देवताओं की पूजा होती है, वैसे किसी की भी नहीं होती। नेताओं को तो बिचारों को धूप में लटका देते हैं। अच्छा!

 

(फिर सभी ज़ोन के भाई बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाये)

 

अच्छा है, सभी को टर्न मिल जाता है। अभी ज्ञान सरोवर में अच्छे रहे पड़े हो। ज्ञान सरोवर में अच्छे हैं या यहाँ आना चाहते हो? पसन्द है ना? पंजाब को पसन्द है? भोपाल भी वहाँ है। भोपाल को अच्छा लगा? (बहुत अच्छा लगा) अच्छा, तो इन्हों को हमेशा वहीं भेजना। संगम पर इतना अच्छा प्रबन्ध मिला है। सतयुग में तो एक-एक महल ज्ञान सरोवर से भी बड़ा होगा लेकिन अभी संगम पर तो तीन पैर पृथ्वी भी अच्छी। और बापदादा ने तो देखा है। साकार में भी देखा है और वैसे तो देखते ही हैं। दूर भी नहीं है और प्रबन्ध भी अच्छा है। इसीलिए टर्न बाई टर्न किसको देना। दूसरे बारी पंजाब यहाँ आ जायेगा। अच्छा।

 

कुमारियों से

 

कुमारियाँ क्या कमाल करेंगी? कमाल करनी चाहिए ना! जो सब करते हैं अगर वही किया तो कमाल क्या हुई? तो ये कुमारियों का ग्रुप क्या करेगा? अगर आप नहीं बतायेंगे तो जो बापदादा बतायेगा वो करना पड़ेगा। नहीं तो आप लोग बता दो। इस डायमण्ड जुबली में कुमारियाँ क्या करेंगी? क्योंकि आप लोगों को तो अभी डायमण्ड जुबली का चांस है। फिर बाद में तो मिलेगा नहीं। तो कुमारियाँ क्या करेंगी, डायमण्ड जुबली को सामने रख करके फिर सोचो। पहले तो वे हाथ उठाओ जिनका लक्ष्य है कि हम सेवा में लगेंगी। खड़ी हो जाओ। अच्छा, इन्हों का फोटो निकालो। ये तो बहुत हैं। तो कुमारियों को क्या करना है? आप लोगों ने तो हाथ उठाया, खड़े भी हो गये और फोटो भी आपका निकल गया तो आप सभी को तो सेवा में लगना चाहिये, ये तो पक्का है ना? कि घर जाकर टीचर को कहेंगी कि नहीं, मैं तो नौकरी करूँगी। ऐसी तो नहीं हो? जिन्हों ने हाथ उठाया वो पक्की हो ना कि नौकरी करने वाली? सेवा करेंगी ना? अच्छा, जो निर्बन्धन है, सिर्फ पढ़ाई का एक साल है या थोड़ा सा है वो हाथ उठाओ, जो निर्बन्धन हो सकती हैं? अच्छा। क्योंकि बापदादा ने कहा है कि अभी समाप्ति का समय समीप आ रहा है। डेट नहीं बतायेंगे। लेकिन समीप आ रहा है उसी प्रमाण सेवा में वृद्धि तो होनी है ना। तो जो भी कुमारियाँ उठी थीं, वो अगर खुद निर्बन्धन नहीं हो सकतीं, कोई कारण है तो अपने कोई न कोई हमजिन्स कुमारी को तैयार ज़रुर करो। मानो आपको घर का बन्धन है। स्वयं अगर निर्बन्धन नहीं हो सकती तो कोई एक को तैयार ज़रुर करो। यह कर सकती हो? एक साल है, एक साल में एक को आप समान नहीं बना सकते? बनाना पड़ेगा ना। तो हर एक कुमारी जो स्वयं सेवा में लगनी है वो लगेंगी लेकिन अगर कोई स्वयं नहीं लग सकती है तो अपने हमजिन्स को तैयार करो। पसन्द है कुमारियों को? हाँ या ना बोलो? सोच रही हैं। अच्छा, पंजाब की कुमारियाँ हाथ उठाओ। पंजाब वाले सब मिलकर बोलो कि ये सेवा करेंगी? पंजाब का शेर कहाँ गया? क्यों आंतकवादियों से घबरा गये क्या? पंजाब को शेर कहते हैं तो शेर तो आगे आना चाहिये ना, घर में थोड़ेही बैठना चाहिए। तो कुमारियों को अपने हम जिन्स को तैयार करना है। क्योंकि देखो भाई सभी हंसते हैं कि कुमारियाँ तीन साल की ट्रायल वाली भी होंगी, और कुमार 40 साल के पुराने होंगे, तो सेन्टर पर रहने वाली कुमारी को दीदी-दादी कहना शुरू कर देते और कुमारों को दादा कोई नहीं कहते। कुमारों की ये रिपोर्ट है ना, उलहना है। अच्छा, कुमार हाथ उठाओ।

 

कुमारों से

 

कुमार दादा तो नहीं बनेंगे, दादा तो कोई नहीं कहेगा लेकिन राजा बन सकते हैं। डायमण्ड जुबली में कुमार कम से कम आठ मोतियों का एक-एक कंगन वा माला तैयार करो। अष्ट का गायन है ना। तो आपकी प्रजा बन जायेगी और प्रजा बनाने से आप राजा बन जायेंगे। कुमारियों को दादी-दीदियाँ बनने दो। आप और ही राजा बन जाओ। कुमार तो बहुत हैं, अगर एक-एक आठ भी लावे तो प्रजा बन जायेगी। और प्रजा तैयार हो गई तो आपको राजतिलक ज़रुर मिलेगा। क्योंकि बहुत करके अभी वारिस क्वालिटी कम निकलती है। अगर कुमारों ने एक भी वारिस क्वालिटी निकाल दिया तो महाराजा बन जायेंगे। कुमार तैयार हैं? समझते हो वारिस किसको कहते हैं? साधारण तो आते ही रहते हैं ना लेकिन वारिस जो होगा उस एक को देख करके और अनेक भी आयेंगे। उसको कहते हैं वारिस क्वालिटी, छोटे-छोटे माइक। तो कुमार राजा बनेंगे ना! (हाँ जी) अच्छा, यहाँ मधुबन में हाँ जी है या पंजाब और बाम्बे या जहाँ भी जायेंगे वहाँ भी हाँ जी होंगे?

 

कुमारों को देख करके बापदादा खुश होते हैं। सिर्फ कुमार, कुमारियों से बाप को एक बात का डर भी लगता है। खुशी भी होती है तो डर भी लगता है। समझदार हो ना कुमार, बोलने की आवश्यकता नहीं। बस इसमें सदा एक बाप दूसरा न कोई, थोड़ा-थोड़ा भी नहीं। क्या करूँ.. थोड़ा सा तो चाहिए...ऐसा नहीं। ये ऐसी माया है जो देखा है ना, गज और ग्राह की कहानी सुनी है ना, वो क्या करता है? पहले थोड़ा अन्दर करेगा, फिर पूरा अन्दर कर लेता है। पता नहीं पड़ेगा। तो डायमण्ड जुबली में यह डर तो निकाल लेना। ऐसा एक भी पत्र नहीं आना चाहिए। डायमण्ड जुबली अर्थात् कुछ कमी नहीं है। तो बापदादा देखेंगे कि हाथ तो सभी ने उठाया लेकिन राजा कितने बने वो भी लिस्ट आ जायेगी ना! अच्छा।

 

चारों तरफ के सर्व विश्व के विशेष आत्माओं को सदा स्वचिन्तन, ज्ञान चिन्तन करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के श्रेष्ठ मत पर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले समीप आत्माओं को, चारों ओर के डायमण्ड जुबली के लिए स्वयं को और सेवा को आगे बढ़ाने वाले-ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

 

वरदान:- विश्व कल्याणकारी बन अशान्त आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मास्टर दाता भव

 

दुनिया में हंगामा हो, झगड़े हो रहे हो, ऐसे अशान्ति के समय पर आप मास्टर शान्ति दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं क्योंकि जानते हो जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। विकारों के वशीभूत मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे। उनका काम ही यह है लेकिन आप विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा मास्टर दाता बन शान्ति का दान देते रहो। यही आपकी सेवा है।

 

स्लोगन:- अपनी सर्व प्राप्तियों को सामने रखो तो कमजोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी।