ओम् शान्ति।
यह सब बातें शास्त्रों में भी लिखी हुई हैं। एक-दो को समझाते भी हैं। अनेक प्रकार
की मतें गुरू लोग देते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे भक्त कोठरी में बैठ, एक गउमुख कपड़ा
होता है, उसमें अन्दर हाथ डाल माला फेरते हैं। यह भी सिखलाया हुआ फैशन है। अब बाप
कहते हैं - यह सब छोड़ो। आत्मा को तो सिमरण करना है बाप का। इसमें माला सिमरने की
बात नहीं। सबसे अच्छा गीत है शिवाए नम: का। इसमें ही समझाया जाता है तुम मात-पिता
हो। भगवान् को ही रचता बाप कहते हैं। अब रचता कहा जाता है तो क्या क्रियेट करते
हैं? जरूर यह तो सब समझते हैं नई दुनिया ही रचेंगे। गाते भी हैं तुम मात-पिता हम
बालक तेरे.... तो पहला - ईश्वर सबका फादर ठहरा। फादर है तो मदर भी जरूर चाहिए। मदर
के सिवाए क्रियेट कर न सकें। सिर्फ यह कोई नहीं जानते कि क्रियेट कैसे करते हैं?
दूसरा - आपस में सब भाई-बहन हो गये। फिर विकार की दृष्टि जा न सके। एक मात-पिता है
ना। तो यह प्वाइन्ट् बहुत अच्छी है समझने और समझाने के लिए। तीसरा - जरूर बाप ने
सृष्टि रची होगी। हम बालक थे अब फिर बने हैं। 84 जन्मों का चक्र पूरा होने के बाद
फिर अब मात-पिता के बने हैं। जिसका ही भक्ति मार्ग में गायन चलता है। मात-पिता
सृष्टि रचते हैं, उनके बालक बनते हैं तो जरूर सुख घनेरे देते होंगे। यह कोई भी नहीं
जानते कि परमात्मा मात-पिता भी बनते हैं। टीचर भी है, सतगुरू भी है।
हम ब्रह्मा की औलाद आपस में भाई-बहन ठहरे। कहलाते भी हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियां,
उनको भी रचने वाला वह है। सुख घनेरे पाने के लिए मात-पिता से राजयोग सीख रहे हैं।
सुख घनेरे तब मिलते हैं जबकि हम दु:ख में हैं, ऐसे नहीं कि भविष्य सुख में आकर
शिक्षा देंगे। जब हम दु:ख में हैं तब शिक्षा मिलती है सुख में जाने की। वही मात-पिता
आकर सुख देते हैं। एडम और ईव तो मशहूर हैं। वह भी जरूर गॉड की सन्तान ठहरे। तो गॉड
फिर कौन?
बच्चे यह तो जानते हैं कि बाप जो नॉलेज देते हैं यह सब धर्म वालों के लिए है।
सारी दुनिया का उस बाप से बुद्धियोग टूटा हुआ है। माया घोस्ट बुद्धियोग लगाने नहीं
देती है और ही बुद्धियोग तोड़ती है। बाप आकर घोस्ट पर जीत पहनाते हैं। आजकल दुनिया
में रिद्धि-सिद्धि वाले भी बहुत हैं। यह है ही घोस्टों की दुनिया। काम विकार रूपी
घोस्ट एक-दो को आदि, मध्य, अन्त दु:ख देते हैं। एक-दो को दु:ख देना घोस्ट का काम
है। सतयुग में घोस्ट होता नहीं। तो यह भी समझाया है घोस्ट नाम बाइबिल में है। रावण
माना घोस्ट, यह है ही घोस्ट का राज्य। सतयुग रामराज्य में घोस्ट होता नहीं। वहाँ
सुख घनेरे होते हैं।
ओम् नमो शिवाए का गीत बहुत अच्छा है। शिव है मात-पिता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को
मात-पिता नहीं कहेंगे। शिव को ही फादर कहेंगे। एडम-ईव अर्थात् ब्रह्मा-सरस्वती यहाँ
हुए हैं। वहाँ क्रिश्चियन लोग गॉड फादर से प्रार्थना करते हैं। यह भारत तो मात-पिता
का गांव है। उनका जन्म ही यहाँ है। तो समझाना है तुम मात-पिता गाते हो तो आपस में
भाई-बहन ठहरे ना। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। वह तो एडाप्ट करते हैं।
सरस्वती भी एडाप्ट हुई है। प्रजापिता ब्रह्मा ने एडाप्ट किया है, तब तो इतने
ब्रह्माकुमार-कुमारियां बने हैं। शिवबाबा एडाप्ट कराते जाते हैं। नई सृष्टि ब्रह्मा
द्वारा ही रची जाती है। समझाने की बहुत युक्तियाँ हैं। परन्तु पूरा समझाते नहीं
हैं। बाबा ने बहुत बार समझाया है - यह शिवाए नम: का गीत जहाँ-तहाँ बजाओ। हम मात-पिता
के बालक कैसे हैं? वह बैठ समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि स्थापन की थी। अब
कलियुग का अन्त है फिर से सतयुग स्थापन कर रहे हैं। बुद्धि में धारणा करनी है।
नॉलेज बड़ी सहज है। माया के तूफान ज्ञान-योग में ठहरने नहीं देते हैं। बुद्धि
चक्रित हो जाती है। हमेशा समझाना चाहिए भगवान् रचता तो सबका एक है, फादर तो सब
कहेंगे ना। वह निराकार तो जन्म-मरण रहित है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को सूक्ष्म चोला
है। मनुष्य 84 जन्म यहाँ ही लेते हैं, सूक्ष्मवतन में तो नहीं लेते। तुम जानते हो
हम मात-पिता के बालक हैं। हम हैं नये बच्चे। बाप ने एडाप्ट किया है। जब प्रजापिता
ब्रह्मा है तो कितनी प्रजा होगी? जरूर एडाप्ट किया होगा। ब्रह्मा को भुजायें बहुत
दिखाते हैं, अर्थ तो कुछ भी समझते नहीं। जो भी चित्र निकले हैं अथवा शास्त्र निकले
हैं - यह सब ड्रामा के ऊपर आधार रखना पड़ता है। ब्रह्मा का दिन था फिर भक्ति मार्ग
शुरू हुआ है, वह चला आ रहा है। यह राजयोग बाप ही आकर सिखलाते हैं। यह स्मृति में
रहना चाहिए।
कहते हैं ना - अपनी घोट तो नशा रहे। परन्तु बुद्धियोग बाप के साथ चाहिए। यहाँ तो
बहुतों का बुद्धियोग भटकता रहता है। पुरानी दुनिया के मित्र-सम्बन्धी आदि के तरफ या
देह-अभिमान में फँसे रहते हैं। थोड़ी बीमारी होती है, परेशान हो जाते हैं। अरे, योग
में रहेंगे तो दर्द आदि भी कम होगा। योग नहीं तो बीमारी आदि कैसे छूटे? ख्याल करना
चाहिए - मात-पिता जो नम्बरवन पावन बनते हैं वही फिर सबसे जास्ती नीचे उतरते हैं।
उनको तो बहुत भोगना भोगनी पड़े। परन्तु योग में रहने के कारण बीमारी हटती जाती है।
नहीं तो इनको सबसे जास्ती भोगना चाहिए। परन्तु योगबल से दु:ख दूर होते हैं और बहुत
खुशी में रहते हैं - बाबा से हम स्वर्ग के सुख घनेरे लेते हैं। बहुत बच्चे अपने को
आत्मा समझते नहीं। सारा दिन देह का ही ध्यान है।
बाबा आकर ज्ञान की टिकलू-टिकलू सिखलाते हैं। तो तुम्हें ज्ञान की बुलबुल बनना
है। बाहर में बहुत अच्छी छोटी-छोटी बच्चियाँ हैं, ज्ञान की टिकलू-टिकलू करती हैं।
भीष्म पितामह आदि को भी कुमारियों के द्वारा ज्ञान दिया है। छोटे-छोटे बच्चों को खड़ा
करना है। छोटे बच्चे लौकिक-पारलौकिक मात-पिता का शो करते हैं। लोक-परलोक सुहैला होता
है ना। तो लौकिक मात-पिता को भी उठाना पड़े। यह भी तुम देखेंगे छोटी-छोटी बच्चियाँ
माँ-बाप को उठायेंगी। कुमारी का मान होता है। कुमारी को सब नमन करते हैं। शिव शक्ति
सेना में सब कुमारियाँ हैं। भल मातायें हैं परन्तु वह भी कहलाती तो कुमारी हैं ना।
कुमारियाँ बड़ी अच्छी-अच्छी निकलेंगी। छोटी-छोटी बच्चियाँ ही बड़ा शो करेंगी।
कोई-कोई छोटी बच्चियाँ बड़ी अच्छी हैं। परन्तु कोई-कोई में मोह भी बहुत है ना। यह
मोह बड़ा खराब है। यह भी एक भूत है, बाप से बेमुख कर देता हैं। घोस्ट माया का धन्धा
ही है परमपिता परमात्मा से बेमुख करना।
यह ओम नमो शिवाए वाला गीत सबसे अच्छा है। इनसे ही अक्षर मिलते हैं तुम मात-पिता........
अक्सर करके राधे-कृष्ण के मन्दिर में जोड़ा ही दिखाते हैं। गीता में श्रीकृष्ण के
साथ राधे का नाम है ही नहीं। श्रीकृष्ण की महिमा अलग है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला
सम्पूर्ण........, शिव की महिमा अलग है। शिव की आरती पर कितनी महिमा गाते हैं। अर्थ
कुछ भी नहीं समझते। पूजा करते-करते थक गये हैं। तुम जानते हो मम्मा-बाबा और हम
ब्राह्मण सबसे जास्ती पुजारी बने हैं। अभी फिर आकर ब्राह्मण बने हैं। उनमें भी
नम्बरवार हैं। कर्म भोग भी होता है, उनको तो योग से मिटाना है। देह-अभिमान को तोड़ना
है। बाप को याद कर बहुत खुशी में रहना है। मात-पिता से हमको बहुत सुख घनेरे मिलते
हैं। यह ब्रह्मा कहेंगे ना - बाबा से हमें वर्सा मिलता है। बाबा ने हमारा रथ लोन
लिया है। अब बाबा तो इस रथ की ख़ातिरी करेंगे। पहले तो समझता था - मैं आत्मा इस रथ
को खिलाता हूँ। यह भी रथ है ना। अब कहेंगे इनको वही खिलाने वाला है। इस रथ की
सम्भाल करनी है। घोड़े पर साहेब लोग चढ़ते हैं तो घोड़े को हाथ से खिलायेंगे, कभी
पीठ पर हाथ फेरेंगे। बहुत ख़ातिरी करते हैं क्योंकि उन पर सवारी करते हैं। बाबा इस
पर सवारी करते हैं तो क्या बाबा ख़ातिरी नहीं करते होंगे? बाबा जब स्नान करते हैं
तो समझते हैं हम भी स्नान करते हैं, बाबा को भी कराना है क्योंकि उसने भी इस रथ का
लोन लिया है। शिवबाबा कहते हैं मैं भी तुम्हारे शरीर को स्नान कराता हूँ, खिलाता
हूँ। मैं नहीं खाता हूँ, शरीर को खिलाता हूँ। बाबा खिलाते हैं, खाते नहीं हैं। यह
सब किस्म-किस्म के ख्यालात चलते हैं - स्नान के समय, घूमने के समय। यह तो अनुभव की
बात है ना। बाबा खुद ही कहते हैं - बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता
हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं, मैं जानता हूँ। तुम कहते हो बाबा फिर हमको
ज्ञान दे रहे हैं। वर्सा लेना है स्वर्ग का। सतयुग में तो राजा, प्रजा आदि सब हैं।
पुरुषार्थ करना है बाप से पूरा वर्सा लेने का। अब नहीं लेंगे तो कल्प-कल्प मिस करते
रहेंगे, इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। जन्म-जन्मान्तर की बाजी है तो कितना श्रीमत पर
चलना चाहिए! कल्प-कल्प निमित्त बनेंगे। कल्प-कल्प वर्सा लेते आये हैं। कल्प-कल्प के
लिए यह पढ़ाई है। इसमें बहुत ध्यान देना पड़ता है। 7 रोज लक्ष्य लेकर फिर मुरली तो
घर में भी पढ़ सकते हैं। बिल्कुल सहज कर देते हैं। ड्रामा तो बुद्धि में रहना चाहिए
ना।
इसको वर्ल्ड युनिवर्सिटी कहा जाता है। तो कहाँ भी अमेरिका आदि तरफ चले जाओ, बाप
से वर्सा ले सकते हो। सिर्फ एक हफ्ता धारणा करके जाओ। भगवान् के बच्चे हैं तो
भाई-बहन ठहरे ना। प्रजापिता ब्रह्मा है तो उनके सब बच्चे आपस में भाई-बहन ठहरे।
जरूर गृहस्थ व्यवहार में रहते आपस में भाई-बहन होकर रहेंगे तो पवित्र हो रह सकेंगे।
बहुत सहज है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वंय को माया घोस्ट से बचाने के लिए ज्ञान-योग में तत्पर रहना है।
मोह रूपी भूत का त्याग कर बाप का शो करना है। ज्ञान की टिकलू-टिकलू करनी है।
2) पढ़ाई पर पूरा ध्यान देकर बाप से वर्सा लेना है। कल्प-कल्प की इस बाजी को किसी
भी हालत में गंवाना नहीं है।