29-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - कुछ भी सहन
करना पड़े लेकिन इस अन्तिम जन्म में पवित्र जरूर बनना है, बाप को पवित्रता की ही
मदद चाहिए''
प्रश्नः-
अन्तिम दृश्य
कौन सा होगा? जिसे समझने के लिए अच्छी विशाल बुद्धि चाहिए?
उत्तर:-
अन्तिम
दृश्य सबके वापिस जाने का है... कहा जाता है राम गयो रावण गयो... बाकी सृष्टि की
सफाई करने वाले, नई दुनिया की तैयारी करने वाले थोड़े बचेंगे। हम भी जायेंगे फिर जहाँ
जीत वहाँ जन्म होगा। भारत में ही जीत होगी, बाकी सब खलास हो जायेंगे। राजायें आदि
जो धनवान होंगे - वह बचेंगे, जिनके पास हमारा जन्म होगा। फिर हम सृष्टि के मालिक
बनेंगे। यह समझने के लिए विशाल बुद्धि चाहिए।
गीत:-
नयन हीन को
राह....
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। कहते हैं हे प्रभू हम अन्धे हैं। दर दर पग-पग ठोकरें खाते रहते
हैं। अपने को आपेही कहते हैं कि हम अन्धे की औलाद अन्धे हैं। हे प्रभु आओ। गुरूओं
के दर, मन्दिरों के दर पर, नदियों के दर पर धक्के खाते रहते हैं। अर्थ तो नहीं जानते
कि हमारा वह बाप है। प्रभु को भी अनेक नाम दे दिये हैं। कहते हैं निराकार नाम रूप
से न्यारा है। अब नाम रूप से न्यारी तो कोई चीज़ होती नहीं। तुम कहते हो परमपिता
परमात्मा कब नाम रूप से न्यारा हो सकता है क्या? मनुष्य यह तो आपेही गाते रहते हैं
कि हम अन्धे हैं। बाप आकर जब रास्ता बताते हैं तो सज्जे हो जाते हैं। बाप जो ज्ञान
का सागर है, वह तुम बच्चों को पढ़ाते हैं, मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बताते हैं।
और कोई भी साधू-सन्त, संन्यासी मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता नहीं बता सकते। तो उनको
गुरू कैसे कह सकते। ड्रामा में उनका पार्ट है। भारत को पवित्रता पर थमाना है। भल
पवित्र तो रहते हैं परन्तु ज्ञान-योग से नहीं पवित्र बनते। दवाई खाकर इन्द्रियों को
मुर्दा बना देते हैं, इसमें कोई ताकत नहीं। ताकत तो तब मिले जब गृहस्थ व्यवहार में
रहते वा स्त्री पुरुष दोनों स्वयंवर रच शादी कर फिर पवित्र रहें। उसको कहा जाता है
बाल ब्रह्मचारी युगल। यहाँ भी बाप से बल मिलता है। परमपिता परमात्मा ही आकर पवित्र
मार्ग स्थापन करते हैं। सतयुग में देवी देवता पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वाले थे। उनको
पवित्र रहते भी बच्चे थे। मनुष्य यह नहीं जानते कि परमपिता परमात्मा कैसे बैठ उन्हों
को ताकत देते हैं, जो घर गृहस्थ में रहते भी नंगन नहीं होते। द्रोपदी ने पुकारा था
कि यह दु:शासन हमको नंगन करते हैं, ऐसे यहाँ भी बहुत बच्चियाँ पुकारती हैं। अब
परमात्मा आकर 21 जन्मों के लिए नंगन होने से बचाते हैं। द्रोपदी कोई एक नहीं थी,
तुम सब द्रोपदियाँ हो। तुम बच्चों को शिक्षा मिलती है - भल पति तुम्हें मारे पीटे
परन्तु तुमको सहन करना है क्योंकि पवित्र होने बिगर तुम पवित्र दुनिया के मालिक तो
बन नहीं सकती। कल्प-कल्प तुम मातायें ही शिव शक्तियाँ बनी हो। जगत अम्बा सरस्वती की
शेर पर सवारी दिखाते हैं, यह भी महिमा तुम्हारी है। यह है ही पतित दुनिया अथवा आसुरी
दुनिया। पावन दुनिया माना ईश्वरीय दुनिया। तो राम आकर रामराज्य स्थापन करते हैं।
पवित्रता फर्स्ट। काम विकार कितना बलवान है। अच्छे-अच्छे मनुष्य भी कह देते हैं -
इम्पासिबुल है जो कोई पवित्र रह सके। अरे सतयुग में देवी देवतायें सम्पूर्ण
निर्विकारी थे। तुम महिमा गाते हो आप सर्व-गुण सम्पन्न हो, हम नींच पापी हैं। तो
उनको बनाने वाला कोई तो होगा ना। बाप ने संगमयुग पर आकरके सतयुग की स्थापना की है।
बाप ही आकर आसुरी दुनिया को दैवी दुनिया बनाते हैं। लोग तो पतित का अर्थ भी नहीं
समझते हैं। अरे तुम पुकारते हो कि हम सब पतित हैं, हे पतित-पावन आओ। भारत पवित्र था
तो डबल सिरताज था। अब तुम हर एक की बायोग्राफी को भी जानते हो। अब तुम बाप के बने
हो। तुमको गॉड फादर ही बुद्धि में याद आता है। वह बाप निराकार है, परमधाम में रहने
वाले हैं। ऐसे बाप को बिल्कुल नहीं जानते। मनुष्य इस समय बहुत दु:खी हैं। मौत का
देखो कितना डर लगता है। अब बाप कहते हैं मौत सामने खड़ा है। पहले खून की नदियाँ
बहेंगी फिर दूध की नदियाँ बहेंगी।
अब बाप तुमको विषय सागर से निकाल क्षीर सागर में ले जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण,
क्षीर सागर सतयुग में हैं। यहाँ तो दूध पीने के लिए भी नहीं मिलता, पाउडर मिलता है।
सतयुग में कोई चीज़ की कमी नहीं रहती। बरोबर भारत पहले स्वर्ग था, अभी नर्क है। एक
दो को डसते रहते हैं। शक्ल भी मनुष्य की है परन्तु चलन गन्दी है। एक दो में
लड़ते-झगड़ते रहते हैं। है ही पाप आत्माओं की दुनिया, तो सदाचारी कहाँ से आये। कोई
ने दान-पुण्य किया तो सदाचारी हो गया क्या? अभी तो सब रावण की मत पर हैं। देवतायें
कितने पवित्र सुखी थे। रामराज्य और रावण राज्य किसको कहा जाता है, यह भी भारतवासी
नहीं जानते हैं। रामराज्य चाहते हैं, परन्तु वह कौन स्थापन करते हैं - यह नहीं जानते।
इस समय मनुष्य को जो पैसा दो तो उससे पाप ही करते हैं क्योंकि है ही पाप आत्माओं की
दुनिया। अब तुमको चलना है बाप की मत पर। तुम समझते हो हम तो बाप से वर्सा लेंगे ही।
लेकिन यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो, 63 जन्म तुम विकार में गये हो। अब एक जन्म
पवित्रता की मदद करो तो पवित्र रहना पड़ेगा। कृष्ण गोरा था फिर काम चिता पर बैठने
से अब श्याम बने हैं। फिर ज्ञान चिता पर बैठने से गोरा स्वर्ग का मालिक बनते हैं।
तुम ही देवता थे, अब असुर बन गये हो। यह चक्र है पूज्य सो फिर पुजारी... संन्यासी
कह देते आत्मा सो परमात्मा। रात दिन का फ़र्क हो गया। ड्रामा अनुसार सबको गिरना ही
है। अब तुमको गुरूओं का गुरू, पतियों का पति बेहद का बाप मिला है, तो उनकी श्रीमत
पर चलना है। परमपिता परमात्मा को तो मानते हो ना। शिव जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु
समझते नहीं तो शिवबाबा ने क्या आकर किया! कैसे किया? सोमनाथ का इतना बड़ा मन्दिर
बनाया है। जरूर भारत में ही आये हैं। कैसे आया, क्या किया, कुछ भी बता नहीं सकते।
यह भी परम्परा से चला आता है। गंगा का मेला, कुम्भ का मेला कहते हैं परम्परा से चला
आता है। यह सब उल्टा बताते हैं। क्या सतयुग से ही दुनिया पतित थी? जो कुछ बताते
हैं, अर्थ कुछ भी नहीं समझते। इसको भक्ति मार्ग कहा जाता है। क्राइस्ट आया फिर कब
आयेगा? कोई को पता ही नहीं है। प्रदर्शनी में तुम हजारों को समझाते हो फिर भी कोटो
में कोई निकलता है।
अभी तुम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा पाते हो। तुम जानते हो अभी दुनिया बदल रही
है। तुम कहते हो कि हम संन्यासियों को भी पवित्र रहकर दिखायेंगे। आगे चलकर वे लोग
भी मानेंगे कि इन्हों को शिक्षा देने वाला परमपिता परमात्मा है। तुम सिर्फ यह सिद्ध
कर बताओ कि बाप सर्वव्यापी नहीं है, गीता श्रीकृष्ण ने नहीं गाई है, तो उनकी एकदम
आबरू चट हो जाए। यह सब पिछाड़ी में होगा। तुम बच्चे अभी समझते हो परमपिता परमात्मा
हमारा बाप है। पहले सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा विष्णु शंकर यह रचना रचते हैं। ब्रह्मा
है प्रजापिता। ब्रह्मा ही ब्राह्मण पैदा करते हैं। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंचा।
शिवबाबा के मुख वंशावली ब्राह्मण। वह हैं कुख वंशावली। बाप की श्रीमत पर चलने से
तुम पावन बनने वाले हो। देहधारियों को भूल जाना है। मेहनत है ना। अभी नाटक पूरा होता
है, जो भी एक्टर्स हैं सब चले जायेंगे, बाकी थोड़े रहेंगे। राम गयो रावण गयो... बाकी
बचेंगे कौन? दोनों तरफ के थोड़े-थोड़े ही बचेंगे, बाकी सब वापिस चले जायेंगे। फिर
मकान आदि बनाने वाले, सफाई करने वाले भी बचते हैं। समय चाहिए ना। हम भी चले जायेंगे।
तुमको राजाई में जन्म मिलेगा। वो फिर सफाई करते हैं। बाबा ने कहा है जहाँ जीत वहाँ
जन्म। भारत में ही जीत होगी। बाकी वह सब खलास हो जायेंगे। राजायें आदि जो धनवान
होंगे, वह बचेंगे, जिनके पास तुम जन्म लेंगे। सारी सृष्टि का फिर तुमको मालिक बनना
है। ऐसे भी नहीं यहाँ का धन दौलत कोई तुमको वहाँ काम में आयेगा। यहाँ की मिलकियत तो
वर्थ नाट ऐ पेनी है। वहाँ सब कुछ नया बन जायेगा। हीरे जवाहरों की खानियाँ भरपूर हो
जायेंगी। नहीं तो महल कहाँ से बनेंगे। कितनी बुद्धि चाहिए समझने की।
तुम बच्चे अभी डबल अहिंसक बनते हो, तुम जानते हो कि हम कोई भी हिंसा कर नहीं सकते।
यहाँ तो डबल हिंसा है। सतयुग में हिंसा होती ही नहीं। उनको ही स्वर्ग कहा जाता है।
बाप कहते हैं तुम समझते हो ना - यह ज्ञान साहूकारों के लिए मुश्किल है। बाबा है
गरीब निवाज़, शिवबाबा तो दाता है। यह मकान आदि भी सब तुम्हारे लिए ही हैं। विश्व का
मालिक तुमको ही बनाता हूँ। तो फिर मैं नये मकान में क्यों बैठूँ! यह बाबा कहे हम तो
नहीं बैठेंगे। बाबा कहते हैं मैं नहीं बैठता तो तुम कैसे बैठेंगे। शिवबाबा कहते हैं
- मैं अभोक्ता, असोचता हूँ, अभोक्ता, असोचता का अर्थ क्या है - यह भी तुम जानते हो।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अब नाटक पूरा हो रहा है, वापिस घर चलना है इसलिए पावन जरूर बनना है।
कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है।
2) बाप से बल लेकर इस अन्तिम जन्म में स्त्री पुरुष साथ रहते भी पवित्र बनकर
दिखाना है। बेहद का बाप मिला है तो उसकी श्रीमत पर जरूर चलना है।
वरदान:-
अपने देवताई संस्कारों को इमर्ज कर दिव्यता का अनुभव
करने वाले व्यर्थ से इनोसेंट, अविद्या स्वरूप भव
जब आप बच्चे अपने सतयुगी
राज्य में थे तो व्यर्थ वा माया से इनोसेंट थे इसलिए देवताओं को सेंट वा महान आत्मा
कहते हैं। तो अपने वही संस्कार इमर्ज कर, व्यर्थ के अविद्या स्वरूप बनो। समय, श्वास,
बोल, कर्म, सबमें व्यर्थ की अविद्या अर्थात् इनोसेंट। जब व्यर्थ की अविद्या होगी तब
दिव्यता स्वत: और सहज अनुभव होगी इसलिए यह नहीं सोचो कि पुरूषार्थ तो कर रहे हैं -
लेकिन पुरूष बन इस रथ द्वारा कार्य कराओ। एक बार की गलती दुबारा रिपीट न हो।
स्लोगन:-
रूहानी
गुलाब वह है जो कांटों के बीच में रहते भी न्यारे और प्यारे रहते हैं।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
कई मनुष्य प्रश्न
पूछते हैं कि क्या सबूत है कि हम आत्मा हैं! अब इस पर समझाया जाता है, जब हम कहते
हैं अहम् आत्मा उस परमात्मा की संतान हैं, अब यह है अपने आपसे पूछने की बात। हम जो
सारा दिन मैं मैं कहता रहता हूँ, वो कौनसी पॉवर है और फिर जिसको हम याद करते हैं वो
हमारा कौन है? जब कोई को याद किया जाता है तो जरुर हम आत्माओं को उन्हों द्वारा कुछ
चाहिए, हर समय उनकी याद रहने से ही हमको उस द्वारा प्राप्ति होगी। देखो, मनुष्य जो
कुछ करता है जरुर मन में कोई न कोई शुभ इच्छा अवश्य रहती है, कोई को सुख की, कोई को
शान्ति की इच्छा है तो जरुर जब इच्छा उत्पन्न होती है तो अवश्य कोई लेने वाला है और
जिस द्वारा वो इच्छा पूर्ण होती है वो अवश्य कोई देने वाला है, तभी तो उनको याद किया
जाता है। अब इस राज़ को पूर्ण रीति से समझना है, वह कौन है? यह बोलने वाली शक्ति
मैं स्वयं आत्मा हूँ, जिसका आकार ज्योति बिन्दू मिसल है, जब मनुष्य स्थूल शरीर
छोड़ता है तो वो निकल जाती है। भल इन ऑखों से नहीं दिखाई पड़ती है, अब इससे सिद्ध
है कि उसका स्थूल आकार नहीं है परन्तु मनुष्य महसूस अवश्य करते हैं कि आत्मा निकल
गई। तो हम उसको आत्मा ही कहेंगे जो आत्मा ज्योति स्वरूप है, तो अवश्य उस आत्मा को
पैदा करने वाला परमात्मा भी उसके ही रूप मुआफिक होगा, जो जैसा होगा उनकी पैदाइस भी
वैसी होगी। फिर हम आत्मायें उस परमात्मा को क्यों कहते हैं कि वो हम सर्व आत्माओं
से परम हैं? क्योंकि उनके ऊपर कोई भी माया का लेप-छेप नहीं है। बाकी हम आत्माओं के
ऊपर माया का लेप-छेप अवश्य लगता है क्योंकि हम जन्म मरण के चक्र में आती हैं। अब यह
है आत्मा और परमात्मा में फर्क। अच्छा - ओम् शान्ति।