31-01-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें नशा रहना चाहिए कि हम ब्राह्मण सो
देवता बनते हैं, हम ब्राह्मणों को ही बाप की श्रेष्ठ मत मिलती है”
प्रश्नः-
जिनका न्यु
ब्लड है उन्हें कौन सा शौक और कौन सी मस्ती होनी चाहिए?
उत्तर:-
यह
दुनिया जो पुरानी आइरन एजड बन गई है उसे नई गोल्डन एजेड बनाने का, पुराने से नया
बनाने का शौक होना चाहिए। कन्याओं का न्यु ब्लड है तो अपने हमजिन्स को उठाना चाहिए।
नशा कायम रखना चाहिए। भाषण करने में भी बड़ी मस्ती होनी चाहिए।
गीत:-
रात के राही…..
ओम् शान्ति।
बच्चों ने इस गीत का अर्थ तो समझा। अभी भक्तिमार्ग की घोर अन्धियारी रात तो पूरी हो
रही है। बच्चे समझते हैं हमारे ऊपर अब ताज आने का है। यहाँ बैठे हैं, एम ऑब्जेक्ट
है – मनुष्य से देवता बनने की। जैसे संन्यासी समझाते हैं तुम अपने को भैंस समझो तो
वह रूप हो जायेंगे। वह है भक्तिमार्ग के दृष्टान्त। जैसे यह भी दृष्टान्त है कि राम
ने बन्दरों की सेना ली। तुम यहाँ बैठे हो। जानते हो हम सो देवी-देवता डबल सिरताज
बनेंगे। जैसे स्कूल में पढ़ते हैं तो कहते हैं मैं यह पढ़कर डॉक्टर बन जाऊंगा,
इन्जीनियर बन जाऊंगा। तुम समझते हो इस पढ़ाई से हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। यह
शरीर छोड़ेंगे और हमारे सिर पर ताज होगा। यह तो बहुत गन्दी छी-छी दुनिया है ना। नई
दुनिया है फर्स्टक्लास दुनिया। पुरानी दुनिया है बिल्कुल थर्डक्लास दुनिया। यह तो
खलास होने की है। नये विश्व का मालिक बनाने वाला जरूर विश्व का रचयिता ही होगा।
दूसरा कोई पढ़ा न सके। शिवबाबा ही तुमको पढ़ाकर सिखलाते हैं। बाप ने समझाया है –
आत्म-अभिमानी पूरा बन जाएं तो बाकी और क्या चाहिए। तुम ब्राह्मण तो हो ही। जानते हो
हम देवता बन रहे हैं। देवतायें कितने पवित्र थे। यहाँ कितने पतित मनुष्य हैं। शक्ल
भल मनुष्य की है परन्तु सीरत देखो कैसी है। जो देवताओं के पुजारी हैं वह खुद भी
उन्हों के आगे महिमा गाते हैं – आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हैं….. हम
विकारी पापी हैं। सूरत तो उन्हों की भी मनुष्य की है परन्तु उनके पास जाकर महिमा
गाते हैं, अपने को गन्दे विकारी कहते हैं। हमारे में कोई गुण नहीं। हैं तो मनुष्य
माना मनुष्य। अभी तुम समझते हो हम तो अभी चेंज होकर जाए देवता बनेंगे। कृष्ण की पूजा
करते ही इसलिए हैं कि कृष्णपुरी में जायें। परन्तु यह पता नहीं है कि कब जायेंगे।
भक्ति करते रहते हैं कि भगवान आकर भक्ति का फल देंगे। पहले तो तुमको यह निश्चय
चाहिए कि हमको पढ़ाते कौन हैं। यह है श्री श्री शिवबाबा की मत। शिवबाबा तुम्हें
श्रीमत दे रहे हैं। जिनको यह पता नहीं वह श्रेष्ठ बन कैसे सकते। इतने सब ब्राह्मण
श्री श्री शिवबाबा की मत पर चलते हैं। परमात्मा की मत ही श्रेष्ठ बनाती है, जिसकी
तकदीर में होगा, उनकी बुद्धि में बैठेगा। नहीं तो कुछ भी समझेंगे नहीं। जब समझेंगे
तब खुश हो मदद करने लग पड़ेंगे। कई तो जानते नहीं हैं, उनको क्या पता, यह कौन हैं
इसलिए बाबा कोई से मिलते भी नहीं हैं। वह तो और ही अपनी मत निकालेंगे। श्रीमत को न
जानने कारण उनको भी अपनी मत देने लग पड़ते हैं। अब बाप आये ही हैं तुम बच्चों को
श्रेष्ठ बनाने के लिए। बच्चे जानते हैं 5 हज़ार वर्ष पहले मुआफिक बाबा आपसे आकर मिले
हैं। जिनको पता नहीं है, ऐसे रेसपान्ड दे नहीं सकते। बच्चों को पढ़ाई का बहुत नशा
रहना चाहिए। यह बड़ी ऊंच पढ़ाई है परन्तु माया भी बड़ी अगेन्स्ट है। तुम जानते हो
हम वह पढ़ाई पढ़ते हैं जिससे हमारे सिर पर डबल सिरताज आना है। भविष्य
जन्म-जन्मान्तर डबल सिरताज बनेंगे। तो इसके लिए फिर ऐसा पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए
ना। इसको कहा जाता है राजयोग। कितना वन्डर है। बाबा हमेशा समझाते हैं –
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाओ। पुजारियों को भी तुम समझा सकते हो। पुजारी भी
किसको बैठ समझाये कि इन लक्ष्मी-नारायण को भी यह पद कैसे मिला, यह विश्व का मालिक
कैसे बनें? ऐसे-ऐसे बैठ सुनायें तो पुजारी का भी मान हो जाए। तुम कह सकते हो हम आपको
समझाते हैं इन लक्ष्मी-नारायण को यह राज्य कैसे मिला? गीता में भी भगवानुवाच है ना।
मैं तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। स्वर्गवासी तो तुम बनते हो ना।
तो बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए – हम यह बनते हैं! भल अपना चित्र और राजाई का
चित्र भी यहाँ साथ में निकालो। नीचे तुम्हारा चित्र, ऊपर में राजाई का चित्र हो।
इसमें खर्चा तो नहीं है ना। राजाई पोशाक तो झट बन सकती है। तो घड़ी-घड़ी याद रहेगा
– हम सो देवता बन रहे हैं। ऊपर में भल शिवबाबा भी हो। यह भी चित्र निकालने होंगे।
तुम मनुष्य से देवता बनते हो। यह शरीर छोड़ हम जाए देवता बनेंगे क्योंकि अभी हम यह
राजयोग सीख रहे हैं। तो यह फोटो भी मदद करेंगे। ऊपर में शिव फिर राजाई चित्र। नीचे
तुम्हारा साधारण चित्र। शिवबाबा से राजयोग सीख हम सो देवता डबल सिरताज बन रहे हैं।
चित्र रखा होगा, कोई भी पूछेंगे तो हम बतला सकेंगे – हमको सिखलाने वाला यह शिवबाबा
है। चित्र देखने से बच्चों को नशा चढ़ेगा। भल दुकान में भी यह चित्र रख दो। भक्ति
मार्ग में बाबा नारायण का चित्र रखता था। पॉकेट में भी रहता था। तुम भी अपना फोटो
रख दो तो याद रहेगा – हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। बाप को याद करने का उपाय ढूंढना
चाहिए। बाप को भूल जाने से ही गिरते हैं। विकार में गिरेगा तो फिर शर्म आयेगी। अभी
तो हम ये देवता बन नहीं सकेंगे। हार्ट फेल हो जायेगी। अभी हम देवता कैसे बनेंगे?
बाबा कहते हैं विकार में गिरने वाले का फोटो निकाल दो। बोलो, तुम स्वर्ग में चलने
लायक नहीं हो, तुम्हारा पासपोर्ट खलास। खुद भी फील करेंगे हम तो गिर गये। अब हम
स्वर्ग में कैसे जायेंगे। जैसे नारद का मिसाल देते हैं। उनको कहा तुम अपनी शक्ल तो
देखो। लक्ष्मी को वरने लायक हो? तो शक्ल बन्दर की दिखाई पड़ी। तो मनुष्य को भी शर्म
आयेगी – हमारे में तो यह विकार हैं, फिर हम श्री नारायण को वा श्री लक्ष्मी को कैसे
वरेंगे। बाबा युक्तियाँ तो सब बतलाते हैं। परन्तु कोई विश्वास भी रखे ना। विकार का
नशा आता है तो समझते हैं इस हिसाब से हम राजाओं का राजा डबल सिरताज कैसे बनेंगे।
पुरुषार्थ तो करना चाहिए ना। बाबा समझाते रहते हैं – ऐसी-ऐसी युक्तियाँ रचो और सबको
समझाते रहो। यह राजयोग की स्थापना हो रही है। अब विनाश सामने खड़ा है। दिन-प्रतिदिन
तूफान जोर होता जाता है। बॉम्ब्स आदि भी तैयार हो रहे हैं। तुम यह पढ़ाई पढ़ते ही
हो भविष्य ऊंच पद पाने के लिए। तुम एक ही बार पतित से पावन बनते हो। मनुष्य समझते
थोड़ेही हैं कि हम नर्कवासी हैं क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं। अभी तुम पत्थरबुद्धि से
पारस बुद्धि बन रहे हो। तकदीर में होगा तो झट समझेगा। नहीं तो तुम कितना भी माथा
मारो, बुद्धि में बैठेगा नहीं। बाप को ही नहीं जानते तो नास्तिक हैं अर्थात् न धनी
के। तो धणका बनाना चाहिए ना। जबकि शिवबाबा के बच्चे हैं। यहाँ जिनको ज्ञान है वह
अपने बच्चों को विकारों से बचाते रहेंगे। अज्ञानी लोग तो अपने मुआफिक बच्चों को भी
फँसाते रहेंगे। तुम जानते हो यहाँ विकार से बचाया जाता है। कन्याओं को तो पहले बचाना
चाहिए। माँ-बाप जैसेकि बच्चे को विकार में धक्का देते हैं। तुम जानते हो यह
भ्रष्टाचारी दुनिया है। श्रेष्ठाचारी दुनिया चाहते हैं। भगवानुवाच – मैं जब आता हूँ
श्रेष्ठाचारी बनाने के लिए तो सब भ्रष्टाचारी हैं। मैं सबका उद्धार करता हूँ। गीता
में भी लिखा हुआ है भगवान को ही साधू-सन्तों आदि सबका उद्धार करने आना है। एक ही
भगवान बाप आकर सबका उद्धार करते हैं। अभी तुम वन्डर खाते हो – मनुष्य कितने
पत्थरबुद्धि हो जाते हैं। इस समय अगर मालूम हो बड़ों-बड़ों को कि गीता का भगवान शिव
है तो पता नहीं क्या हो जाए। हाहाकार मच जाए। परन्तु अभी देरी है। नहीं तो सबके
अड्डे एकदम हिलने लग जाएं। बहुतों के तख्त हिलते हैं ना। लड़ाई जब होती है तो पता
पड़ता है, इनका तख्त हिलने लगा है, अभी गिर पड़ेंगे। अभी यह हिलें तो बहुत हलचल मच
जाए। आगे चल होने का है। पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता खुद कहते हैं – बरोबर
ब्रह्मा तन से स्थापना कर रहे हैं। सर्व की सद्गति अर्थात् उद्धार कर रहे हैं।
भगवानुवाच – यह पतित दुनिया है, इन सबका उद्धार मुझे करना है। अभी सब पतित हैं।
पतित फिर किसको पावन कैसे बनायेंगे? पहले तो खुद पावन बनें फिर फालोअर्स को बनायें।
भाषण करने में बड़ी मस्ती चाहिए। कन्याओं का न्यू ब्लड है। तुम पुराने से नया बना
रहे हो। तुम्हारी आत्मा जो पुरानी आइरन एजेड बन गई है, अब नई गोल्डन एजेड बनती है।
खाद निकलती जाती है। तो बच्चों को बड़ा शौक चाहिए। नशा कायम रखना चाहिए। अपने
हमजिन्स को उठाना चाहिए। गाया भी जाता है, गुरू माता। माता गुरू कब होती है सो अभी
तुम जानते हो। जगत अम्बा ही फिर राज-राजेश्वरी बनती है। फिर वहाँ कोई गुरू रहता ही
नहीं। गुरू का सिलसिला अभी चलता है। माताओं पर बाप आकर ज्ञान अमृत का कलष रखते हैं।
शुरू से ऐसे होता है। सेन्टर्स के लिए भी कहते हैं ब्रह्माकुमारी चाहिए। बाबा तो
कहते हैं आपे ही चलाओ। हिम्मत नहीं है? कहते नहीं बाबा टीचर चाहिए। यह भी ठीक है,
मान देते हैं।
आजकल दुनिया में एक-दो को मान भी लंगड़ा देते हैं। आज प्राइम मिनिस्टर है, कल उनको
उड़ा देते हैं। स्थाई सुख किसको मिलता नहीं। इस समय तुम बच्चों को स्थाई
राज्य-भाग्य मिल रहा है। तुमको बाबा कितने प्रकार से समझाते हैं। अपने को सदैव
हर्षित रखने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी युक्तियाँ बतलाते हैं। शुभ भावना रखनी है ना।
ओहो! हम यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं फिर अगर किसकी तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या
करें। बाबा तदबीर तो बतलाते हैं ना। तदबीर व्यर्थ नहीं जाती है। यह तो सदा सफल होती
है। राजधानी स्थापन हो ही जायेगी। विनाश भी महाभारत लड़ाई द्वारा होना ही है। आगे
चल तुम जोर भरो तो यह सब आयेंगे। अभी नहीं समझेंगे फिर तो उन्हों की राजाई ही उड़
जाए। कितने ढेर गुरू लोग हैं, ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो किसी गुरू का फालोअर न हो। यहाँ
तुम्हें एक सतगुरू मिला है सद्गति देने वाला। चित्र बड़े अच्छे हैं। यह है सद्गति
अर्थात् सुखधाम, यह है मुक्तिधाम। बुद्धि भी कहती है हम सब आत्मायें निर्वाणधाम में
रहती हैं। जहाँ से फिर टॉकी में आते हैं। वहाँ के रहवासी हैं। यह खेल ही भारत पर बना
हुआ है। शिवजयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ, कल्प के बाद फिर
आऊंगा। हर 5 हज़ार वर्ष बाद बाप के आते ही पैराडाइज़ बन जाता है। कहते भी हैं
क्राइस्ट से इतने वर्ष पहले पैराडाइज़ था, स्वर्ग था। अभी नहीं है फिर होना है। तो
जरूर नर्कवासियों का विनाश, स्वर्गवासी की स्थापना चाहिए। सो तुम स्वर्गवासी बन रहे
हो। नर्कवासी सब विनाश हो जायेंगे। वह तो समझते हैं अजुन इतने लाखों वर्ष पड़े हैं।
बच्चे बड़े हो शादी करायें… तुम थोड़ेही ऐसा कहेंगे। अगर बच्चा राय पर नहीं चलता है
तो फिर श्रीमत लेनी पड़े कि स्वर्गवासी नहीं बनते हैं तो क्या करें। बाप कहेंगे अगर
आज्ञाकारी नहीं है तो जाने दो। इसमें पक्की नष्टोमोहा अवस्था चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्री श्री शिवबाबा की श्रेष्ठ मत पर चलकर स्वयं को श्रेष्ठ बनाना है।
श्रीमत में मनमत मिक्स नहीं करनी है। ईश्वरीय पढ़ाई के नशे में रहना है।
2) अपने हमजिन्स के कल्याण की युक्तियाँ रचनी हैं। सबके प्रति शुभभावना रखते हुए
एक-दो को सच्चा मान देना है। लंगड़ा मान नहीं।
वरदान:-
अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को
बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो
दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी।
ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह-अभिमान की चंचलता न हो।
तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी। देखने वाले
अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं। यह नैन साक्षात्कार
के साधन बन जायेंगे।
स्लोगन:-
सेवा
के उमंग-उत्साह के साथ, बेहद की वैराग्य वृत्ति ही सफलता का आधार है।