ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों (आत्माओं) ने यह गीत सुना। किसने कहा? आत्माओं के रूहानी
बाप ने। तो रूहानी बाप को रूहानी बच्चों ने कहा कि हे बाबा। उनको ईश्वर भी कहा जाता
है, पिता भी कहा जाता है। कौन सा पिता? परमपिता क्योंकि बाप दो हैं – एक लौकिक,
दूसरा पारलौकिक। लौकिक बाप के बच्चे पारलौकिक बाप को पुकारते हैं – हे बाबा। अच्छा
बाबा का नाम? शिव। वह तो निराकार पूजा जाता है। उनको कहा जाता है सुप्रीम फादर।
लौकिक बाप को सुप्रीम नहीं कहा जाता। ऊंच ते ऊंच सभी आत्माओं का बाप एक ही है। सभी
जीव आत्मायें उस बाप को याद करती हैं। आत्मायें यह भूल गयी हैं कि हमारा बाप कौन
है? पुकारते हैं ओ गॉड फादर हम नयनहीन को नयन दो तो हम अपने बाप को पहचानें।
भक्तिमार्ग की ठोकरों से छुड़ाओ। सद्गति के लिए तीसरा नेत्र लेने लिए, बाप से मिलने
लिए पुकारते हैं क्योंकि बाप ही कल्प-कल्प भारत में आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
अभी कलियुग है, कलियुग के बाद सतयुग आना है। यह है पुरूषोत्तम संगमयुग। बेहद का बाप
आकर जो पतित भ्रष्टाचारी बन गये हैं उन्हों को पुरूषोत्तम बनाते हैं। यह (लक्ष्मी-नारायण)
पुरूषोत्तम भारत में थे। लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी का राज्य था। आज से 5 हज़ार
वर्ष पहले सतयुग में श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह बच्चों को स्मृति दिलाते
हैं। तुम भारतवासी आज से 5 हज़ार वर्ष पहले स्वर्गवासी थे। अब तो सब नर्कवासी हैं।
आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भारत हेविन था। भारत की बहुत महिमा थी, हीरे-सोने के महल
थे। अभी तो कुछ भी नहीं है। उस समय और कोई धर्म नहीं था, सिर्फ सूर्यवंशी ही थे।
चन्द्रवंशी भी पीछे आते हैं। बाप समझाते हैं तुम सूर्यवंशी डिनायस्टी के थे। अभी तक
भी इन लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते रहते हैं। परन्तु लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब
था, कैसे पाया, यह किसको पता नहीं है। पूजा करते हैं, जानते नहीं। तो ब्लाइन्डफेथ
हुआ ना। शिव की, लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, बायोग्राफी को भी नहीं जानते। अभी
भारत-वासी खुद कहते हैं – हम पतित हैं। हम पतितों को पावन बनाने वाला बाबा आओ। आकर
हमको दु:खों से, रावण राज्य से लिबरेट करो। बाप ही आकर सबको लिबरेट करते हैं। बच्चे
जानते हैं सतयुग में बरोबर एक राज्य था। बापू जी भी कहते थे कि हमको फिर से
रामराज्य चाहिए, गृहस्थ धर्म जो पतित बन गया है सो पावन चाहिए। हम स्वर्गवासी बनने
चाहते हैं। अभी नर्कवासियों का क्या हाल है, देख रहे हो ना। इसको कहा जाता है हेल,
डेविल वर्ल्ड। यही भारत डीटी वर्ल्ड था। बाप बैठ समझाते हैं तुमने 84 जन्म लिए हैं,
न कि 84 लाख। बाप समझाते हैं तुम असुल शान्तिधाम के रहने वाले हो। तुम यहाँ पार्ट
बजाने आये हो। 84 जन्मों का पार्ट बजाया है। पुनर्जन्म तो जरूर लेना पड़े ना।
पुनर्जन्म 84 होते हैं।
अब बेहद का बाप आये हैं तुम बच्चों को बेहद का वर्सा देने। बाप तुम बच्चों (आत्माओं)
से बात कर रहे हैं। और सतसंगों में मनुष्य, मनुष्यों को भक्तिमार्ग की बातें सुनाते
हैं। आधाकल्प भारत जब स्वर्ग था तो एक भी पतित नहीं था। इस समय एक भी पावन नहीं। यह
है ही पतित दुनिया। गीता में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। उसने तो गीता सुनाई नहीं।
ये लोग अपने धर्मशास्त्र को भी नहीं जानते। अपने धर्म को ही भूल गये हैं। हिन्दू
कोई धर्म नहीं है। धर्म मुख्य हैं चार। पहले हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म।
सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी दोनों को मिलाकर कहा जाता है देवी-देवता धर्म, डीटीज्म। वहाँ
दु:ख का नाम नहीं था। 21 जन्म तो तुम सुखधाम में थे फिर रावण राज्य, भक्ति मार्ग
शुरू होता है। भक्तिमार्ग है ही नीचे उतरने का। भक्ति है रात, ज्ञान है दिन। अभी है
घोर अंधियारी रात। शिव जयन्ती और शिवरात्रि, दोनों अक्षर आते हैं। शिवबाबा कब आते
हैं? जब रात्रि होती है। भारतवासी घोर अन्धियारे में आ जाते हैं तब बाप आते हैं।
गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं, एक की भी बायोग्राफी नहीं जानते। यह भक्तिमार्ग के
शास्त्र भी बनने ही हैं। यह ड्रामा, सृष्टि चक्र को भी समझना है। शास्त्रों में यह
नॉलेज नहीं है। वह है भक्ति का ज्ञान, फिलॉसॉफी। वह कोई सद्गति मार्ग का ज्ञान नहीं
है। बाप कहते हैं – मैं आकर तुमको ब्रह्मा द्वारा यथार्थ ज्ञान सुनाता हूँ। पुकारते
भी हैं, हमको सुखधाम, शान्तिधाम का रास्ता बताओ। बाप कहते हैं आज से 5 हज़ार वर्ष
पहले सुखधाम था, जिसमें तुम सारे विश्व पर राज्य करते थे। सूर्यवंशी डिनायस्टी का
राज्य था। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में थीं। वहाँ 9 लाख गाये जाते हैं। तुम बच्चों
को आज से 5 हज़ार वर्ष पहले बहुत साहूकार बनाया था। इतना धन दिया फिर तुमने वह कहाँ
गँवाया? तुम कितने साहूकार थे। भारत कौन सडावे (कहलाये)। भारत ही सबसे ऊंच ते ऊंच
खण्ड है। सभी का वास्तव में यह तीर्थ है, क्योंकि पतित-पावन बाप का जन्म स्थान है।
जो भी धर्म वाले हैं, सभी की बाप आकर सद्गति करते हैं। अभी रावण का राज्य सारी
सृष्टि में है, सिर्फ लंका में नहीं था। सभी में 5 विकार प्रवेश हैं। जब सूर्यवंशी
राज्य था तो यह विकार ही नहीं थे। भारत वाइसलेस था। अभी विशश है। सतयुग में दैवी
सम्प्रदाय थी। वह फिर 84 जन्म भोग अभी आसुरी सम्प्रदाय बने हैं फिर दैवी सम्प्रदाय
बनते हैं। भारत बहुत साहूकार था। अब गरीब बना है इसलिए भीख मांग रहे हैं।
बाप कहते हैं तुम कितने साहूकार थे। तुम्हारे जैसा सुख किसको भी मिल नहीं सकता।
तुम सारे विश्व के मालिक थे, धरती आसमान सब तुम्हारे थे। बाप स्मृति दिलाते हैं,
भारत शिवबाबा का स्थापन किया हुआ शिवालय था। वहाँ पवित्रता थी, उस नई दुनिया में
देवी-देवतायें राज्य करते थे। भारतवासी तो यह भी नहीं जानते कि राधे-कृष्ण का आपस
में क्या संबंध है? दोनों अलग-अलग राजधानी के थे फिर स्वयंवर के बाद लक्ष्मी-नारायण
बने हैं। यह ज्ञान कोई मनुष्य में नहीं है। परमपिता परमात्मा ही ज्ञान का सागर है,
वही तुम्हें यह रूहानी ज्ञान देते हैं, यह स्प्रीचुअल नॉलेज सिर्फ एक बाप ही दे सकते
हैं। अब बाप कहते हैं – आत्म-अभिमानी बनो। मुझ अपने परमपिता परमात्मा शिव को याद करो।
याद से ही सतोप्रधान बनेंगे। तुम यहाँ आते ही हो मनुष्य से देवता अथवा पतित से पावन
बनने। अभी यह है रावण राज्य। भक्ति मार्ग में रावण राज्य शुरू होता है। रावण ने कोई
एक सीता को नहीं चुराया है। तुम सब भक्ति करने वाले, रावण के चम्बे में हो। सारी
सृष्टि 5 विकारों रूपी रावण की कैद में है। सभी शोक वाटिका में दु:खी हैं। बाप आकर
सबको लिबरेट करते हैं। अब बाप फिर से स्वर्ग बना रहे हैं। ऐसे नहीं कि अभी जिनको धन
बहुत है, वह स्वर्ग में हैं। नहीं, अभी है ही नर्क। सभी पतित हैं इसलिए गंगा में
जाकर स्नान करते हैं, समझते हैं गंगा पतित-पावनी है। परन्तु पावन तो कोई बनते नहीं
हैं। पतित-पावन तो बाप को ही कहा जाता है, न कि नदियों को। यह सब है भक्ति मार्ग।
बाप ही यह बातें आकर समझाते हैं। अब तुम यह तो जानते हो एक है लौकिक बाप, दूसरा फिर
प्रजापिता ब्रह्मा है अलौकिक बाप और वह पारलौकिक बाप। तीन बाप हैं। शिवबाबा,
प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म स्थापन करते हैं। ब्राह्मणों को देवता बनाने
के लिए राजयोग सिखलाते हैं। एक ही बार बाप आकर आत्माओं को राजयोग सिखलाते हैं।
आत्मायें पुनर्जन्म लेती हैं। आत्मा ही कहती है – मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे। कोई भी
देहधारी को याद नहीं करो। अभी यह है मृत्युलोक का अन्त। अमरलोक की स्थापना हो रही
है। बाकी सब अनेक धर्म खलास हो जायेंगे। सतयुग में एक ही देवता धर्म था। फिर त्रेता
में चन्द्रवंशी राम-सीता। तुम बच्चों को सारे चक्र की याद दिलाते हैं। शान्तिधाम,
सुखधाम की स्थापना करते ही हैं बाप। मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे नहीं सकते। वह सब
हैं भक्ति मार्ग के गुरू। भक्ति मार्ग में मनुष्य अनेक प्रकार के चित्र बनाए पूजा
कर फिर जाकर कहते हैं डूब जा, डूब जा। बहुत पूजा करते, खिलाते पिलाते, अब खाते तो
ब्राह्मण लोग हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। कितनी अन्धश्रद्धा है। अब
उन्हों को कौन समझाये।
बाप कहते हैं अभी तुम हो ईश्वरीय सन्तान। तुम अभी बाप से राजयोग सीख रहे हो। यह
राजधानी स्थापन हो रही है। प्रजा तो बहुत बननी है। कोटों में कोई राजा बनते हैं।
सतयुग को कहा जाता है फूलों का बगीचा। अभी है कांटों का जंगल। अभी रावण राज्य बदल
रहा है। यह विनाश होना ही है। यह नॉलेज अभी सिर्फ तुम ब्राह्मणों को मिलती है।
लक्ष्मी-नारायण को भी यह ज्ञान नहीं रहता। यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। भक्ति
मार्ग में कोई भी बाप को जानते ही नहीं। बाप ही रचता है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी
रचना हैं। परमात्मा सर्वव्यापी कहने से सब बाप हो जाते। वर्से का हक नहीं रहता। बाप
तो आकर सभी बच्चों को वर्सा देते हैं। सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। यह भी
समझाया है 84 जन्म वह लेते हैं जो पहले-पहले सतयुग में आते हैं। क्रिश्चियन लोग के
जन्म कितने होंगे? करके 40 जन्म होंगे। यह हिसाब निकाला जाता है। एक भगवान को ढूँढने
के लिए कितने धक्के खाते हैं। अभी तुम धक्के नहीं खायेंगे। तुमको सिर्फ एक बाप को
याद करना है। यह है याद की यात्रा। यह है पतित-पावन गॉड फादरली युनिवर्सिटी।
तुम्हारी आत्मा पढ़ती है। साधू सन्त फिर कह देते हैं आत्मा निर्लेप है। अरे आत्मा
को ही कर्मों अनुसार दूसरा जन्म लेना पड़ता है। आत्मा ही अच्छा वा बुरा काम करती
है। इस समय तुम्हारा कर्म विकर्म होता है। सतयुग में कर्म अकर्म होते हैं। वहाँ
विकर्म होता नहीं। वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया। यह सब समझने और समझाने की बातें
हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कांटे से फूल बनने वाले बच्चों
प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड-मॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों
को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कांटे से फूल बन फूलों का बगीचा (सतयुग) स्थापन करने की सेवा करनी
है। कोई भी बुरा कर्म नहीं करना है।
2) रूहानी ज्ञान जो बाप से सुना है वही सबको सुनाना है। आत्म-अभिमानी बनने की
मेहनत करनी है। एक बाप को ही याद करना है, किसी देहधारी को नहीं।