09-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 06-09-75 मधुबन
तीन कम्बाइन्ड स्वरूप
हर एक अपने तीन रूपों से कम्बाइन्ड रूप जानते हो? एक है अनादि कम्बाइन्ड (संयुक्त) रूप, दूसरा है संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप और तीसरा है भविष्य कम्बाइन्ड रूप - इन तीनों को जानते हो?
आप मनुष्यात्माओं का अनादि कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है? पुरूष और प्रकृति कहो या आत्मा और शरीर कहो। यह अनादि कम्बाइन्ड रूप इस अनादि ड्रामा में नूँधा हुआ है। भविष्य कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है? विष्णु चतुर्भुज। संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप आपका कौन-सा है? शिव और शक्ति। शक्ति शिव के सिवाय कुछ कर नहीं सकती और शिव बाप भी शक्तियों के बिना कुछ कर नहीं सकते। तो संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप सबका है - शिव-शक्ति। सिर्फ माताओं का ही नहीं है, पाण्डव भी शक्ति स्वरूप हैं। यादगार के रूप में आजकल के जगद्गुरू भी आपके कम्बाइन्ड रूप शिव-शक्ति का पूजन करते आ रहे हैं।
तो सदा यह स्मृति रहनी चाहिए कि हम हैं ही कम्बाइन्ड शिव-शक्ति। जब है ही कम्बाइन्ड तो भूल सकते हैं क्या? फिर भूलते क्यों हो? अपने को अकेला समझते हो इसलिए भूल भी जाते हो। कल्प पहले की यादगार में भी अर्जुन को जब बाप का साथ भूल जाता था, अर्थात् जब वह सारथी को भूल जाता था, तो क्या बन जाता था? निर्बल कहो व कायर कहो और जब स्मृति आती थी, कि मेरा साथी और सारथी बाप है तो विजयी बन जाता था। निरन्तर सहज याद की सहज युक्ति एक ही है कि सदा अपने कम्बाइन्ड रूप को सदा साथ रखो व स्मृति में रखो तो कभी भी कमजोरी के संकल्प भी क्या स्वप्न भी नहीं आयेंगे। जागते-सोते कम्बाइन्ड रूप हो।
जबकि बाप स्वयं बच्चों से सदा साथ रहने का वायदा कर रहे हैं और निभा भी रहे हैं तो वायदे का लाभ उठाना चाहिए। ऐसे कम्पनी व कम्पेनियन, फिर कब मिलेंगे? बहुत जन्मों से आत्माओं की कम्पनी लेते हुए दु:ख का अनुभव करते हुए भी अब भी आत्माओं की कम्पनी अच्छी लगती है क्या, जो बाप की कम्पनी को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हो? कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को कम्पेनियन बना देते हो, अर्थात् उस कम्पनी को निभाने में इतने मस्त हो जाते हो जो बाप से किये हुए वायदे में भी अलमस्त हो जाते हो! ऐसे समय मालूम है कौन-सा खेल करते हो? खेल करने के टाइम तो बड़े मस्त हो जाते हो। अभी भूल गए हो। कलाबाजी से भी बहुत रमणीक खेल करते हो? ऐसे नहीं कि जो सुनायेंगे वह खेल करते होंगे, देखने वाले भी सुना सकते हैं। आपके ही इस साकारी दुनिया में खेल दिखाते हैं - बन्दर और बन्दरी का। बन्दरिया को बन्दर से सगाई के लिए पकड़ कर ले जाते हैं और बन्दरिया नटखट हो घूँघट निकाल किनारा कर लेती, पीठ कर लेती है। वह आगे करता है वह पीछे हटती है। तो जैसे वह रमणीक खेल मनोरंजन के लिए दिखाते हैं, ऐसे ही बच्चे भी उस समय ऐसे नटखट होते हैं। बाप सम्मुख आते और बच्चे अलमस्त होने के कारण देखते हुए भी नहीं देखते, सुनते हुए भी नहीं सुनते। ऐसा खेल अभी नहीं करना है। अपने तीनों कम्बाइन्ड रूपों को स्मृति में रखो तो ही सदा के लिए सदा साथी से साथ निभा सकेंगे।
अपने को अकेला समझने से चलते-चलते जीवन में उदासी आ जाती है। अति-इन्द्रिय सुखमय जीवन, सर्व सम्बन्धों से सम्पन्न जीवन और सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न जीवन उस समय नीरस व बिल्कुल असार अनुभव करते हो। त्रिनेत्री होते हुए भी कोई राह नजर नहीं आती। क्या करूँ, कहाँ जाऊं कुछ समझ में नहीं आयेगा। खुद जीवन-मुक्ति के गेट्स खोलने वाले को कोई ठिकाना नजर नहीं आता, त्रिकालदर्शी होते हुए अपने वर्तमान को नहीं समझ सकते। सृष्टि के सर्व आत्माओं के भविष्य परिणाम को जानने वाले अपने उस समय के कर्म के परिणाम को जान नहीं सकते! यह कमाल करते हो न? ऐसी कमाल रोज कोइन- कोई बच्चे दिखाते रहते हैं।
ऐसे समय पर बापदादा क्या करते हैं? बहुत मनाते और रिझाते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे नटखट करते हैं और फिर जब वह समय बीत जाता है, तब फिर बाप को रिझाते हैं। बच्चे भी बड़े चतुर होते हैं। ज्ञान स्वरूप को याद दिलाते हैं। वह तो जानते हो न क्या करते हैं? आप क्षमा के सागर हो, कृपालु हो, दयालु हो, रहमदिल हो - ऐसी कई बातों से रिझाते हैं। फिर बाप क्या करते हैं? बाप फिर लव और लॉ का बैलेन्स रखते हैं। यह कहानी है बच्चों और बाप की। कहानी सुनने में सभी खुश हो रहे हैं। लेकिन यह कहानी परिवर्तन में लानी है। जैसे बाप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बन सेवा पर उपस्थित है, ऐसे ही हरेक बाप के साथी व सहयोगी बच्चों को भी बाप के समान ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बनना है। ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट अलमस्त नहीं होते। दिन-रात सेवा में तत्पर रहते हैं। जैसे बाप बच्चों के आगे वफादार स्वरूप से साथ निभा रहे हैं, ऐसे ही बच्चों को भी फरमान-वरदार अर्थात् हर फरमान पर चलने वाले बन साथ निभाना है। ऐसे सदा के साथी बनना है। अच्छा!
ऐसे सदा सच्चे साथी, हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाले, वफादार, बाप के फरमान-वरदार, बाप समान श्रेष्ठ बनने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!
09-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 09-09-75 मधुबन
ग्लानि को गायन समझकर रहमदिल बनो
अपने चमकते हुए तकदीर के सितारे को देखते हो? तकदीर का सितारा सदा चमकता रहता है अथवा कभी चमकता है और कभी चमक कम हो जाती है अर्थात् घटनाओं रूपी घटा के बीच छिप जाता है? या कभी इन स्थूल सितारों के समान, जैसे स्थूल सितारे स्थान बदली करते हैं वैसे स्थिति बदली तो नहीं होती है? या तकदीर की लकीर अभी चढ़ती कला और अभी-अभी ठहरती कला व गिरती कला ऐसे बदलती तो नहीं है? क्योंकि संगम युग पर तकदीर की रेखा परिवर्तन करने वाला बाप सम्मुख पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे तकदीर बनाने वाले बाप के डायरेक्ट बच्चे- उन्हों की तकदीर श्रेष्ठ और अविनाशी चाहिए। ऐसी तकदीर अन्य कोई भी आत्मा नहीं बना सकती है। ऐसे तकदीरवान अपने को अनुभव करते हो?
श्रेष्ठ तकदीर बनाने वालों की निशानी क्या होगी? जानते हो? ऐसा तकदीरवान हर संकल्प में, हर बोल में, कर्म में फालोफादर करता होगा। संकल्प भी बाप समान विश्व कल्याण की सेवा अर्थ होगा। हर बोल में नम्रता, निर्माणता और उतनी ही महानता होगी। स्मृति स्वरूप में एक तरफ बेहद का मालिकपन, दूसरी तरफ विश्व की सेवाधारी आत्मा होगी। एक तरफ अधिकारीपन का नशा, दूसरी तरफ सर्व के प्रति सत्कारी, हर आत्मा के प्रति बाप समान दाता और वरदाता, चाहे दुश्मन हो, किसी भी जन्म के हिसाबकिताब चुक्तु करने के निमित्त बनी हुई आत्मा हो - ऐसी श्रेष्ठ स्थिति से गिराने के निमित्त बनी हुई आत्मा को भी, संस्कारों के टक्कर खाने वाली आत्मा को भी, घृणा वृत्ति रखने वाली आत्मा को भी, सर्व आत्माओं के प्रति दाता व वरदाता। ठुकराने वाली आत्मा भी कल्याणकारी आत्मा अनुभव हो, ग्लानि के बोल व निन्दा के बोल भी महिमा व गायन योग्य अनुभव हों तथा ग्लानि गायन अनुभव हो। जैसे द्वापर में आप सबने बाप की ग्लानि का, लेकिन बाप ने ग्लानि भी गायन समझ कर स्वीकार की और ग्लानि के रिटर्न में भक्ति का फल-ज्ञान दिया, न कि घृणा और ही रहम-दिल बने। ऐसे फालो फादर। ऐसे फालो फादर करने वाले ही श्रेष्ठ तकदीरवान बनते है। जैसे बाप से विमुख बनी हुई आत्माओं को अपना बना कर अपने से ऊंच प्रालब्ध प्राप्त करते हैं - ऐसे श्रेष्ठ तकदीर-वान बच्चे बाप समान हर आत्मा को अपने से भी आगे बढ़ाने की शुभ भावना रखते हुए विश्व-कल्याणकारी बनेंगे। इसको कहा जाता है निरन्तर योगीपन के लक्षण।
ऐसी ऊंची मंज़िल को प्राप्त करने वाले जो बोल और भाव को परिवर्तन कर दें अर्थात् निन्दा को भी स्तुति में परिवर्तन कर दें, ग्लानि को गायन में परिवर्तित कर दे, ठुकराने को सत्कार में परिवर्तित कर दें, अपमान को स्व-अभिमान में परिवर्तित कर दें व अपकार को उपकार में परिवर्तित कर दें व माया के विघ्नों को बाप की लगन में मग्न होने का साधन समझ परिवर्तित कर दें - ऐसे बाप समान ‘सदा विजयी अष्ट रत्न’ बनते हैं। और भक्तों के इष्ट बनते हैं। ऐसी स्थिति को पहुँचे हो? या सिर्फ स्नेही आत्माओं के प्रति सहयोगी आत्मायें बने हो? होपलेस केस में व ना-उम्मीदवार को उम्मीदों का सितारा बनाना-कमाल इसी बात में है। ऐसी कमाल दिखाने वाले बने हो? या सिर्फ बाप की कमाल देख हर्षित होने वाले बने हो? जब कि फॉलो फादर है तो कमाल करने वाला बनना है न कि देखकर हर्षित होने वाला बनना है। समझा? इसको कहा जाता है ‘फॉलो फादर।’
जैसा समय वैसे अपने कदम को बढ़ाना चाहिए। जब अन्तिम समय समझते हो तो अपनी स्थिति भी अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज वाली समझते हो? समय अन्तिम और पुरूषार्थ की रफ्तार व स्थिति मध्यम होगी तो रिजल्ट क्या होगी? स्वर्ग के सुखों की प्रालब्ध मध्यम पुरूषार्थ वाले सतयुग के मध्य में प्राप्त करेंगे - ऐसा लक्ष्य तो नहीं है ना? लक्ष्य फर्स्ट जन्म में आने का है तो लक्षण भी फर्स्ट क्लास चाहिए। समय प्रमाण और लक्ष्य प्रमाण पुरूषार्थ को चेक करो। अच्छा!
ऐसे बाप के समान सर्व के सत्कारी, बाप के वर्से के अधिकारी, हर ना-उम्मीदवार को उम्मीदों का सितारा बनाने की कमाल करो। 86 संकल्प और कदम में फॉलो फादर करने वाले, श्रेष्ठ तकदीर बनाने वाले तकदीर के सितारे, निरन्तर बाप की याद और सेवा में तत्पर रहने वाले सदा विजयी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अव्यक्त महावाक्य - सफल करो और सफलता मूर्त बनो
जैसे ब्रह्मा बाप ने निश्चय के आधार पर, रूहानी नशे के आधार पर निश्चित भावी के ज्ञाता बन सेकेण्ड में सब कुछ सफल कर दिया; अपने लिए नहीं रखा, सफल किया। जिसका प्रत्यक्ष सबूत देखा कि अन्तिम दिन तक तन से पत्र-व्यवहार द्वारा सेवा की, मुख से महावाक्य उच्चारण किये। अन्तिम दिन भी समय, संकल्प, शरीर को सफल किया। तो सफल करने का अर्थ ही है - श्रेष्ठ तरफ लगाना। ऐसे जो सफल करते हैं उन्हें सफलता स्वतः प्राप्त होती है। सफलता प्राप्त करने का विशेष आधार है - हर सेकेण्ड, हर श्वांस, हर खज़ाने को सफल करना। संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क जिसमें भी सफलता अनुभव करने चाहते हो तो स्व के प्रति चाहे अन्य आत्माओं के प्रति सफल करते जाओ। व्यर्थ न जाने दो तो ऑटोमेटिकली सफलता के खुशी की अनुभूति करते रहेंगे क्योंकि सफल करना अर्थात् वर्तमान के लिए सफलता मूर्त बनना और भविष्य के लिए जमा करना।
इस ब्राह्मण जीवन में -
(1) जो समय को सफल करते हैं वह समय की सफलता के फलस्वरूप राज्य-भाग्य का फुल समय राज्य-अधिकारी बनते हैं।
2) जो श्वांस सफल करते है, वह अनेक जन्म सदा स्वस्थ रहते हैं। कभी चलते-चलते श्वांस बन्द नहीं होगा, हार्ट फेल नहीं होगा।
3) जो ज्ञान का खज़ाना सफल करते हैं, वह ऐसा समझदार बन जाते हैं जो भविष्य में अनेक वजीरों की राय नहीं लेनी पड़ती, स्वयं ही समझदार बन राज्य-भाग्य चलाते हैं।
4) जो सर्व शक्तियों का खज़ाना सफल करते हैं अर्थात् उन्हें कार्य में लगाते हैं वह सर्व शक्ति सम्पन्न बन जाते हैं। उनके भविष्य राज्य में कोई शक्ति की कमी नहीं होती। सर्व शक्तियां स्वतः ही अखण्ड, अटल, निर्विघ्न कार्य की सफलता का अनुभव कराती हैं।
5) जो सर्व गुणों का खज़ाना सफल करते हैं, वह ऐसे गुणमूर्त बनते हैं जो आज लास्ट समय में भी उनके जड़ चित्र का गायन 'सर्व गुण सम्पन्न देवता' के रूप में होता है।
6) जो स्थूल धन का खजाना सफल करते हैं वह 21 जन्मों के लिए मालामाल रहते हैं। तो सफल करो और सफलता मूर्त बनो।
सदा सफलता मूर्त बनने का साधन है - एक बल एक भरोसा। निश्चय सदा ही निश्चिंत बनाता है और निश्चिंत स्थिति वाला जो भी कार्य करेगा उसमें सफल जरूर होगा। जैसे ब्रह्मा बाप ने दृढ संकल्प से हर कार्य में सफलता प्राप्त की, दृढ़ता सफलता का आधार बना। ऐसे फालो फादर करो। हर खज़ाने को, गुणों को, शक्तियों को कार्य में लगाओ तो बढ़ते जायेंगे। बचत की विधि, जमा करने की विधि को अपनाओ तो व्यर्थ का खाता स्वतः ही परिवर्तन हो सफल हो जायेगा। बाप द्वारा जो भी खज़ाने मिले हैं उनका दान करो, कभी भी स्वप्न में भी गलती से प्रभू देन को अपना नहीं समझना। मेरा यह गुण है, मेरी शक्ति है - यह मेरापन आना अर्थात् खज़ानों को गंवाना। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:- त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगी भव
जो बच्चे त्रिकालदर्शी हैं वे कभी किसी बात में मूंझ नहीं सकते क्योंकि उनके सामने तीनों काल क्लीयर हैं। जब मंजिल और रास्ता क्लीयर होता है तो कोई मूंझता नहीं। त्रिकालदर्शी आत्मायें कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करती। चाहे परिस्थिति मुंझाने की हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसे भी मौज में बदल देगी क्योंकि अनगिनत बार वह पार्ट बजाया है। यह स्मृति कर्म-योगी बना देती है। वह हर काम मौज से करते हैं।
स्लोगन:- सर्व का सम्मान प्राप्त करना है तो हर एक को सम्मान दो।