ओम् शान्ति।
भोला कहा जाता है उनको जो कुछ भी नहीं जानते हैं। अभी बच्चे जानते हैं कि बरोबर हम
मनुष्य कितना भोले थे, माया कितना भोला बना देती है। यह भी नहीं जानते कि बाप कौन
है। बाप कहकर पुकारना और जानना नहीं, फिर यह भी मालूम नहीं हो कि बाप से क्या
प्रापटी मिलती है! तो भोला कहेंगे ना। भोला कहो, बुद्धू कहो, बात एक ही है। इस समय
सब बेअक्ल बन पड़े हैं उनको फिर बेअक्ली का भी घमण्ड है। बच्चे, तुम बाप को जानते
हो और उनसे सुन रहे हो। बाकी आत्मा को देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है। बाबा
खुद बैठ सिखाते हैं कि हे आत्मा देही-अभिमानी बनो। अपने को पारलौकिक बाप के बच्चे
निश्चय करो। लौकिक बाप को तो जानते हो बाकी तुम इतने भोले हो जो पारलौकिक बाप को नहीं
जानते। अब तुम बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि यह बातें परमपिता परमात्मा समझाते
हैं। तुम छोटे बच्चे नहीं हो, तुम्हारे आरगन्स तो बड़े हैं। बाप समझाते हैं - अगर
अपने को देह समझेंगे तो बाप को याद नहीं कर सकेंगे। अपने को देही-अभिमानी समझो।
बच्चे-बच्चे बाप शरीर को नहीं, आत्मा को कहते हैं। और बच्चे, आत्मायें सब शिव को (परमात्मा
को) बाबा कहते हैं, किसी आत्मा को वा ब्रह्मा को नहीं कहते। यह भी उनका बच्चा है।
अब तुम जानते हो कि हमारा बेहद का बाप इनमें आया है। तो बाप को याद करना पड़े। 84
के चक्र को भी याद करना पड़े। यह बेहद का 5 हजार वर्ष का नाटक है। तुम एक्टर हो। अब
तुमको ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का मालूम पड़ा है। तो सारा चक्र बुद्धि में फिरना
चाहिए। तुम्हारा नाम कितना बाला है - स्वदर्शन चक्रधारी, फिर भविष्य में तुम
चक्रवर्ती राजा बन जाते हो। 84 जन्मों की कहानी चक्र में सिद्ध होती है। तुम अब बाप
के बने हो, यह स्मृति में रखना है। जितना अन्धों की लाठी बनेंगे उतना बाप समझेंगे
यह रहमदिल हैं। कहते हैं रहम करो, मेहर करो। तुम जानते हो बाप कौन सी मेहर करते
हैं। बाप मिला है तो कितनी खुशी होनी चाहिए। अब तुमको पैरों पर खड़ा रहना है। जैसे
कहते हैं सेन्टर अपने पाँव पर खड़ा हो तो तुमको भी अपने पांव पर खड़ा रहना है। ऊंचे
ते ऊंचा पुरुषार्थ करना है, फालो फादर मदर। लौकिक में बच्चे बाप को फालो कर पतित बन
जाते हैं। यह तो पारलौकिक बाप के लिए कहा जाता है - उनकी श्रीमत पर चलना है। बाबा
मम्मा को देखो धन्धा क्या है? पतितों को पावन बनाने का। और धर्म पितायें जब आते हैं
तो उनके धर्म की आत्मायें ऊपर से आती हैं। वहाँ कनवर्ट करने की बात नहीं। यहाँ
कनवर्ट करना है, शूद्र को ब्राह्मण बनाना है। इसके लिए तुमको मेहनत करनी पड़ती है।
तुम कितना लिटरेचर देते हो। वह देखकर फाड़ देते हैं।
तुम बच्चे हो रूप-बसन्त। जैसे बाप वैसे तुम बच्चे। तुमको ज्ञान की वर्षा करनी
है। यह चित्र बड़े अच्छे हैं। त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा जरूरी है, इसमें बाप और
वर्सा दोनों ही आ जाते हैं। बाप के बिगर दादे का वर्सा कैसे मिलेगा। श्रीकृष्ण का
चित्र सबको अच्छा लगता है। बाकी 84 जन्मों की लिखत अच्छी नहीं लगती। उन्हों को
चित्र अच्छा लगता है, तुमको विचित्र अच्छा लगता है क्योंकि तुमको बाप ने कहा है
“आत्म-अभिमानी भव।'' तुम अपने को विचित्र समझते हो तो याद भी विचित्र परमात्मा को
करते हो। बाप रचयिता है तो जरूर नई दुनिया ही रचते हैं। उसमें लक्ष्मी-नारायण का
राज्य था। लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी बनाया है और लिखा हुआ है सर्वगुण सम्पन्न, 16
कला सम्पूर्ण... लक्ष्मी-नारायण महाराजा महारानी तो नशा रहता है कि हम बाप को याद
कर यह बन रहे हैं। तो सदैव बाबा-बाबा कहते रहो और भविष्य पद को भी याद करो तो सतयुग
में चले जायेंगे। जैसे एक मिसाल देते हैं - मैं भैंस हूँ, मैं भैंस हूँ... कहने से
भैंस समझने लगा। परन्तु कहने से कोई बन नहीं जाता है। बाकी तुम जानते हो - मैं आत्मा
नर से नारायण बन रहा हूँ। अब बेगर हूँ, यह वन्डर है। वहाँ एक तो राज्य नहीं करेंगे।
उनकी डिनायस्टी चलती है। उनके बच्चे होंगे। 1250 वर्ष सिर्फ लक्ष्मी-नारायण थोड़ेही
राज्य करेंगे। कहते हैं सतयुग की आयु बड़ी है फिर भी प्रजा तो चाहिए। तुम्हारी
बुद्धि में ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए।
तुम किसके आगे भी चित्र रखकर समझाओ कि भारत स्वर्ग था। अब पुरानी दुनिया नर्क
है, तो यह पक्का होना चाहिए कि हम स्वर्गवासी थे, अब नर्कवासी हैं फिर स्वर्गवासी
बन रहे हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में राम-सीता का राज्य था, तो सब
स्वर्गवासी थे। इस चक्र में 84 का चक्र सिद्ध होता है। झाड़ में फिर कैसे पूज्यनीय
से गिरते हैं और पुजारी बनते हैं, यह सिद्ध होता है। तुम कहते हो इस समय सभी
नास्तिक हैं क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। अब तुम जानते हो कि सब कब्रिस्तान में
पड़े हैं। तुम बच्चे गुप्त हो। अंग्रेजी में अन्डरग्राउण्ड कहते हैं। वहाँ कोई
अन्डरग्राउण्ड नहीं, अन्डरग्राउण्ड तुम हो। परन्तु तुमको कोई जानते नहीं। यहाँ
सम्मुख बैठे हो तो मजा आता है। बेहद का बाप परमधाम से आकर इनमें प्रवेश कर पढ़ाते
हैं। चक्र का राज़ समझाते हैं। बाकी सवारी सारा दिन नहीं होती है। बाप कहते हैं मैं
सर्विस करता हूँ, बच्चों का नाम निकालने के लिए मैं प्रवेश करता हूँ। तो बाप कहते
हैं बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी भव, शंखधारी भव। तुमको ज्ञान का शंख बजाना है। शंख कहो,
मुरली कहो, एक ही बात है। उन्होंने श्रीकृष्ण को मुरली दिखाई है। श्रीकृष्ण तो रत्न
जड़ित मुरली बजाते हैं - खेलपाल करने के लिए। वहाँ ज्ञान की मुरली नहीं है। तुम
बच्चों को बुद्धि में रखना है कि जैसे कल्प पहले सतयुग में पार्ट बजाया था वैसे अब
बजायेंगे। बाकी बाबा से तो वर्सा ले लेवें। परन्तु बच्चे घर में जाते हैं तो भूल
जाते हैं। बाप कहते हैं यहाँ से पक्के हो जाओ। धन्धा भल करो परन्तु याद करते रहो।
एक सेकेण्ड का कोर्स उठाओ। जैसे बहुत शादी करके भी पढ़ते हैं। तुम भी धन्धे में रहते
पढ़ो। कुमार कुमारी के लिए तो बहुत सहज है। सिर्फ यह बुद्धि में रहे मेरा तो एक
शिवबाबा दूसरा न कोई। ब्रह्मा के लिए नहीं कहा जाता है।
बाबा पूछते हैं कब से निश्चय हुआ? अगर निश्चय है तो ऐसे बाप को कभी नहीं छोड़ना
चाहिए। जब तक बाप न कहे कि पढ़कर पढ़ाओ। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। जैसे
गरीब को लॉटरी मिलती है तो पागल भी हो जाते हैं। परन्तु यहाँ तो बच्चे धन्धे में
जाकर भूल जाते हैं। तो बाबा समझते हैं इतनी बड़ी लॉटरी दी परन्तु पागल हो गये।
तकदीर में नहीं है, तब कहा जाता है बख्तावर देखना हो तो यहाँ देखो, .. बाबा तो कहते
हैं कल्प के बाद बाबा मिला है। बाबा-बाबा कहते रहो, सवेरे उठकर याद करो, जो प्यारी
वस्तु होती है उन पर कुर्बान जाते हैं। हम भी बाबा पर कुर्बान जाते हैं। यह ज्ञान
कस्तूरी है। हम हैं भारत का बेड़ा पार करने वाले। सत्य नारायण, अमरनाथ की कथा, तीजरी
की कथा सुनाने वाले, सच्चे बाप के सच्चे ब्राह्मण बच्चे, तो अन्दर कोई खोट नहीं होनी
चाहिए। खोट होगी तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।