10-10-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे – मनुष्य जो बाप को भूल दुबन (दलदल) में फंसे हुए हैं, उन्हें निकालने की मेहनत करो, विचार सागर मंथन कर सबको बाप का सत्य परिचय दो”

प्रश्नः-
गीता को किस धर्म का शास्त्र कहेंगे? इसमें रहस्य-युक्त समझने की बात कौन सी है?

उत्तर:-
गीता शास्त्र है – ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का शास्त्र। ब्राह्मण देवी-देवताए नम: कहा जाता है। इसे सिर्फ देवता धर्म का शास्त्र नहीं कहेंगे क्योंकि देवताओं में तो यह ज्ञान है ही नहीं। ब्राह्मण यह गीता का ज्ञान सुनकर देवता बनते हैं, इसलिए ब्राह्मण देवी-देवता दोनों का ही यह शास्त्र है। यह कोई हिन्दू धर्म का शास्त्र नहीं कहा जाता। यह बहुत समझने की बातें हैं। गीता ज्ञान स्वयं निराकार शिवबाबा तुम्हें सुना रहे हैं, श्रीकृष्ण नहीं।

गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे…..

ओम् शान्ति। बाबा बच्चों को बैठ समझाते हैं अच्छी तरह से। कौन सा बाप? पारलौकिक बाप। लौकिक बाप को इतने बच्चे नहीं होते। पारलौकिक बाप के इतने बच्चे (आत्मायें) हैं, जो याद करते रहते हैं हे पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता, ओ परमपिता परमात्मा, तो पिता कहकर पुकारते हैं। परमपिता परमात्मा निराकार भगवानुवाच। निराकार परमात्मा तो एक होता है ना, दो नहीं होते। बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि ऊंचे ते ऊंचा भगवान है। वह कहाँ रहते हैं? जहाँ आत्मायें रहती हैं। ईश्वर, प्रभू, भगवान कहने से सुख का वर्सा लेने की बात नहीं आती। बाप कहने से वर्सा याद आता है, परन्तु मनुष्य बाप को नहीं जानते। भारतवासी ड्रामा अनुसार रावण मत पर अपनी दुर्गति करते हैं। तो पहले-पहले यह समझाना है कि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर सूक्ष्म शरीरधारी हैं, मनुष्य स्थूल देहधारी हैं, परन्तु स्थूल वा सूक्ष्म देहधारी को बाप नहीं कहेंगे। बाप परमपिता परमात्मा निराकार को कहा जाता है। भूल क्या हुई जो दुर्गति हुई? बाप द्वारा सच्ची गीता सुनने से सद्गति होती है। तो कोई को भी पहले-पहले बाप का परिचय देना है। यह है मूल बात। परन्तु कोई की बुद्धि में नहीं बैठता है तब तो बाबा ने यह पोस्टर छपवाया है कि गीता का भगवान कृष्ण बच्चा है या परमपिता परमात्मा? गीता किस धर्म का शास्त्र है? ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का कहना ठीक है। जैसे क्रिश्चियन का धर्म शास्त्र बाइबिल है। ऐसे गीता को सिर्फ देवी-देवता धर्म का शास्त्र नहीं कहेंगे, जब तक ब्राह्मणों को न मिलायें। कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:। बाबा ने बताया है देवताओं में ज्ञान है नहीं। वह यह भी नहीं जानते कि गीता कोई हमारे धर्म का शास्त्र है। ज्ञान है ब्राह्मणों को, सिर्फ ब्राह्मण धर्म का भी शास्त्र गीता नहीं कहेंगे क्योंकि बाप दोनों धर्म की स्थापना करते हैं इसलिए दोनों धर्म का शास्त्र कहेंगे। वहाँ तो कह देते कि हिन्दू धर्म का शास्त्र है। आर्य का भी कह देते। आर्य समाज तो दयानंद ने स्थापन किया है। वह भल नया धर्म है। परन्तु वह कोई देवी-देवता धर्म के नहीं हैं। मूल बात है गीता का भगवान कौन? गीता में कृष्ण का नाम डाल गीता को खण्डित कर दिया है क्योंकि मेरे से बुद्धियोग टूट गया। गीता में देखो बातें कितनी बताई हैं और गीता पाठशाला का मान कितना है। तो अभी देवता और ब्राह्मण धर्म प्राय:लोप है। पुजारी लोग कहते हैं ब्राह्मण देवी-देवताए नम:, उन्हों को यह मालूम नहीं है कि ब्राह्मण देवता कैसे बनें। यह बतावे कौन? बाप कहते हैं कि मैं ब्रह्मा मुख वंशावली बनाए देवता बनाता हूँ। तो गीता हो गई ब्राह्मण देवी-देवता धर्म का शास्त्र। सिर्फ कहें देवता धर्म का तो लक्ष्मी-नारायण में ज्ञान है नहीं, यह बात समझने की है। परन्तु समझाये कौन? शिवबाबा सुनाते हैं कि रुद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई। कहाँ रुद्र यज्ञ, कहाँ कृष्ण, फ़र्क है। इस ज्ञान यज्ञ के बाद फिर सतयुग में कोई मटेरियल यज्ञ रचा नहीं जाता। अब यज्ञ रचते हैं आ़फत मिटाने के लिए। वहाँ कोई आ़फत होती ही नहीं जो यह यज्ञ रचना पड़े। गीता में रुद्र यज्ञ का भी लिखा है और यह भी लिखा है कि भगवानुवाच, तो गीता में सच है आटे में नमक जितना, बाकी सब झूठ है। अब यह विचार सागर मंथन शिवबाबा नहीं करेंगे। ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों को करना है। इस समय मनुष्य तो एकदम दुबन में फंसे हुए हैं। दुबन (दलदल) से निकलने में बड़ी मेहनत लगती है, तब तो बाप को पुकारते हैं। बाप कहते हैं तुमको 5 विकार रूपी रावण पर ही जीत पानी है। फिर सतयुग में तुम जीव आत्मायें सुख में हो। जो भी सतसंग हैं वहाँ तुम जाकर पूछ सकते हो, डरने की कोई बात नहीं। सब अंधकार में पड़े हैं। मौत सामने खड़ा है और कहते हैं अभी तो कलियुग में 40 हजार वर्ष पड़े हैं, इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा, कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं। कहते हैं भक्ति का फल भगवान देने आता है, सद्गति देता है, तो दुर्गति में हैं ना। गीता में अगर शिव परमात्मा का नाम होता तो उसको सब मानते। तो बरोबर निराकार ने राजयोग सिखाया था। युद्ध के मैदान की कोई बात नहीं है। युद्ध के मैदान में इतना बड़ा ज्ञान कैसे देंगे? राजयोग कैसे सिखायेंगे? मुख्य धर्म 4 हैं, धर्मशास्त्र भी 4 हैं। अभी तो अनेकानेक धर्म, अनेक शास्त्र, अनेक चित्र हैं। अब बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा-विष्णु-शंकर फिर साकार में लक्ष्मी-नारायण फिर उनकी डिनायस्टी। संगम पर ब्रह्मा सरस्वती, बस। रुद्र यज्ञ जब रचते हैं तो शिव का लिंग बनाए पूजा कर फिर डुबो देते हैं। देवियों की भी पूजा कर फिर डुबो देते हैं। तो गुड्डे गुड़ियों की पूजा हो गई ना क्योंकि उनका आक्यूपेशन कोई नहीं जानते। उनकी महिमा है पतित-पावन। तो कैसे पाप आत्माओं को पावन बनाते हैं। अभी तो तुमको जागकर जगाना है अर्थात् बाप का परिचय देना है। बाप को जानते नहीं। सिर्फ पैसा कमाते, कथा सुनाते रहते हैं। इससे क्या हुआ! तुम विदुत मण्डली में भी जाकर समझाओ। इस लड़ाई में मरना तो सबको जरूर है। इस रुद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्वलित होती जाती है। लिखते भी रहते हैं कि हमने इतने बड़े-बड़े बाम्बस बनाये हैं, तो कल्प पहले भी इनसे विनाश हुआ था। यह सब बाम्ब्स कोई कल्प पहले इन्होंने समुद्र में नहीं डाले थे। तो अभी भी विनाश होना है। कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, कौन? कौरव और यादव। अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। तो यह पोस्टर लाखों की अन्दाज में छपाओ, सब भाषाओं में। अंग्रेजी में तो जरूर छपवाना चाहिए। जहाँ-जहाँ गीता पाठशाला हो वहाँ बांटते जाओ। पोस्टर पर एड्रेस भी लिखी हुई हो। बाबा डायरेक्शन तो देते हैं, करना तो बच्चों का ही काम है। लिखा हुआ है शिवबाबा। तो शिवबाबा भी बाप, ब्रह्मा भी बाप परन्तु बच्चों को वर्सा शिवबाबा से मिलना है, न कि ब्रह्मा से। ब्रह्मा को भी उनसे मिलता है।

बाबा ने बहुत समझाया है कि गीता मैगज़ीन में भी पहले-पहले बाप का यथार्थ परिचय लिखो, तो जो ब्राह्मण बनने वाले होंगे उनको झट तीर लगेगा। नहीं तो लिया और फेंक दिया। जैसे कोई बन्दर को किताब दो तो एकदम फेंक देगा, समझेगा कुछ नहीं। तब बाप कहते हैं कि यह ज्ञान मेरे भक्तों को और गीता-पाठियों को देना। उसमें भी जिसके भाग्य में होगा वह समझेंगे। बाप कहते हैं यह तो है ही नर्क। यहाँ जो भी बच्चे आदि पैदा होते हैं – एक दो को दु:ख देते रहते हैं। एक दो को काटते रहते हैं। बाकी जो गरुड पुराण में विषय वैतरणी नदी दिखाई है, वह तो है नहीं। यह दुनिया तो नर्क है। तो बच्चे जानते हैं आज नर्कवासी फिर संगमवासी बनते हैं, कल फिर स्वर्गवासी बनेंगे, इसलिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विचार सागर मंथन कर मनुष्यों को दुबन (दलदल) से निकालना है। जो कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं उन्हों को जगाना है।

2) सूक्ष्म अथवा स्थूल देहधारियों से बुद्धियोग निकाल एक निराकार बाप को याद करना है। सबका बुद्धियोग एक बाप से जुटाना है।

वरदान:-
हदों से न्यारे रह परमात्म प्यार का अनुभव करने वाले रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न भव

जैसे गुलाब का पुष्प कांटों के बीच में रहते भी न्यारा और खुशबूदार रहता है, कांटों के कारण बिगड़ नहीं जाता। ऐसे रूहे गुलाब जो सर्व हदों से वा देह से न्यारे हैं, किसी भी प्रभाव में नहीं आते वे रूहानियत की खुशबू से सम्पन्न रहते हैं। ऐसी खुशबूदार आत्मायें बाप के वा ब्राह्मण परिवार के प्यारे बन जाते हैं। परमात्म प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सभी को प्राप्त हो सकता है, लेकिन उसे प्राप्त करने की विधि है - न्यारा बनना।

स्लोगन:-
अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए व्यक्त भाव और भावनाओं से परे रहो।