06-06-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 20-09-71 मधुबन

 

रूहानी स्नेही बनो

 

व्यक्त से अव्यक्त होने में कितना समय लगता है? आप किसको अज्ञानी से ज्ञानी कितने समय में बना सकते हो? अभी की स्टेज प्रमाण कितने समय में बना सकते हो? अपने लिए क्या समझते हो, कितने समय में बना सकते हो? बनने वाले की बात दूसरी रही, लेकिन जो बनने वाला अच्छा हो, उनको आप अपने पावर अनुसार कितने समय में बना सकते हो? अभी अपनी स्पीड का मालूम तो होता है ना। समय प्रमाण अभी अज्ञानी को ज्ञानी बनाने में कुछ समय लगता है। वह भी इसलिए, क्योंकि बनाने वाले अपने को अव्यक्त रूप बनाने में अभी तक बहुत समय ले रहे हैं। जैसे-जैसे बनाने वाले स्वयं एक सेकेण्ड में व्यक्त से अव्यक्त रूप में स्थित होने के अभ्यासी बनते जायेंगे, वैसे ही बनने वालों को भी इतना जल्दी बना सकेंगे। कोई देवता धर्म की आत्मा न भी हो, लेकिन एक सेकेण्ड में किसको मुक्ति, किसको जीवन्मुक्ति का वरदान देने के निमित्त बन जायेंगे। सर्व आत्माओं को मुक्ति का वरदान आप ब्राह्मणों द्वारा ही प्राप्त होना है। जैसे मशीनरी में कोई चीज़ डाली जाती है तो जो जिस तरफ जाने की चीज़ होती है वह उस रूप में और उसी तरफ आटोमेटिकली एक सेकेण्ड में बनती जाती है और निकलती जाती है, क्योंकि मशीनरी की स्पीड तेज होने के कारण एक सेकेण्ड में जो जहाँ की होती है, वहाँ की हो जाती है। जिसको जो रूप लेना होता है वह रूप लेते जाते हैं। यह रूहानी मशीनरी फिर कम है क्या? इस मशीनरी द्वारा आप एक सेकेण्ड में मुक्ति वालों को मुक्ति, जीवन्मुक्ति वालों को जीवन्मुक्ति का वरदान नहीं दे सकते हो? जबकि आप हो ही महादानी और महाज्ञानी, महायोगी भी हो, जबकि लिखते भी हो एक सेकेण्ड में अपना जन्मसिद्ध अधिकार प्राप्त कर सकते हो, क्या ऐसे ही लिखते हो वा बोलते हो? यथार्थ बात है तब तो लिखते वा बोलते हो ना। तो एक सेकेण्ड में आत्मा को मुक्ति, जीवन्मुक्ति का मार्ग दिखा सकती हो वा वरदान दे सकती हो ना। वरदान को प्राप्त करवाना, अपने को वरदान द्वारा भरपूर बनाना वह दूसरी बात है, लेकिन आप तो वरदान दे सकती हो ना। एक सेकेण्ड के वरदानीमूर्त हो? अपने को एक सेकेण्ड में व्यक्त से अव्यक्त बना सकते हो? कितने समय के लिए? अल्पकाल के लिये बना सकते हो, इसी कारण ही बनने वालों को भी अल्प समय का नशा, अल्प समय की खुशी होती है। वे अल्प समय के लिए परिवर्तन में आते हैं। जैसे बनाने वाले मास्टर रचयिता, वैसे ही रचना भी ऐसे ही अब तक बन रही है। जैसे आप लोग बाप से अल्प समय के लिए रूह-रूहान करते हो, मिलन का, मगन का, गुणों का, स्वरूप का अनुभव करते हो, ऐसे ही रचना भी अल्पकाल के लिए आप लोगों की महिमा करती है, अल्प समय के लिए मिलने-जुलने का सम्बन्ध रखते हैं। अल्प समय के लिए खुद अनुभव करते हैं, गुणगान करते हैं वा कभी-कभी इस प्राप्त हुए अनुभव को वर्णन करते हैं। तो इसका कारण कौन? मीटिंग में अनेक कारण को मिटाने का प्रोग्राम बनाया? अगर इस कारण का निवारण कर लो तो और सभी कारण ऐसे समाप्त हो जायेंगे जैसे कि थे ही नहीं। तो मूल कारण यही है। सदा बाप के स्नेह और सहयोग में रहने से सर्व आत्माएं आपके स्नेह में सहयोगी स्वत: ही बन जायेंगी। सुनाया था ना कि आज आत्माओं को सर्व अल्पकाल के सुख-शान्ति के साधन हैं लेकिन सच्चा स्नेह नहीं है। स्नेह की भूखी आत्माएं हैं। अन्न और धन शरीर के तृप्ति का साधन है, लेकिन आत्मा की तृप्ति रूहानी स्नेह से हो सकती है। वह भी अविनाशी हो। तो स्नेही ही स्नेह का दान दे सकते हैं। अगर स्वयं भी सदा स्नेही नहीं होंगे तो अन्य आत्माओं को भी सदाकाल का स्नेह नहीं दे सकेंगे। इसलिए सदा स्नेही बनने से, स्नेही स्नेह में आकर स्नेही के प्रति सभी-कुछ न्योछावर वा अर्पण कर ही देते हैं। स्नेही को कुछ भी समर्पण करने लिए सोचना वा मुश्किल होना नहीं होता है। तो इतनी जो बहुत बातें सुनते हो, बहुत मर्यादाएं वा नियम सुनते-सुनते यह भी सोचने लगते हो कि इतना सभी करना पड़ेगा, लेकिन यह सभी करने के लिए सभी से सहज युक्ति वा सर्व कमजोरियों से मुक्ति की युक्ति यही है कि ‘सदा स्नेही बनो’। जिसके स्नेही हैं, उस स्नेही के निरन्तर संग से रूहानियत का रंग सहज ही लग जाता है।

 

अगर एक-एक मर्यादा को जीवन में लाने का प्रयत्न करेंगे तो कहॉं मुश्किल कहॉं सहज लगेगा और इसी प्रैक्टिस में वा इसी कमज़ोरी को भरने में ही समय बीत जायेगा। इसलिए अब एक सेकेण्ड में मर्यादा पुरूषोत्तम बनो। कैसे बनेंगे? सिर्फ सदा स्नेही बनने से। बाप का सदैव स्नेही बनने से, बाप द्वारा सदा सहयोग प्राप्त होने से मुश्किल बात सहज हो जाती है। जो सदा स्नेही होंगे उनकी स्मृति में भी सदा स्नेह ही रहता है, उनकी सूरत से सदा स्नेही की मूर्त प्रत्यक्ष दिखाई देती है। जैसे लौकिक रीति से भी अगर कोई आत्मा किस आत्मा के स्नेह में रहती है तो फौरन ही देखने वाले अनुभव करते हैं कि यह आत्मा किसके स्नेह में खोई हुई है। तो क्या रूहानी स्नेह में खोई हुई आत्माओं की सूरत स्नेही मूर्त्त को प्रत्यक्ष नहीं करेगी? उनके दिल का लगाव सदैव उस स्नेही से लगा हुआ रहता है। तो एक ही तरफ लगाव होने से अनेक तरफ का लगाव सहज ही समाप्त हो जाता है। और तो क्या लेकिन अपने आप का लगाव अर्थात् देह-अभिमान, अपने आपकी स्मृति से भी सदैव स्नेही खोया हुआ होता है। तो सहज युक्ति वा विधि जब हो सकती है, तो क्यों नहीं सहज युक्ति, विधि से अपनी स्टेज की स्पीड में वृद्धि लाती हो! सदा स्नेही, एक सर्वशक्तिमान् के स्नेही होने कारण सर्व आत्माओं के स्नेही स्वत: बन जाते हैं। इस राज़ को जानने से राजयुक्त, योगयुक्त वा दिव्य गुणों से युक्तियुक्त बनने के कारण राज़युक्त आत्मा सर्व आत्माओं को अपने आप से सहज ही राज़ी कर सकती है। जब राज़युक्त नहीं होते हो, तब कोई को राज़ी नहीं कर सकते हैं। अगर उसकी सूरत वा साज़ द्वारा उसके मन के राज़ को जान जाते हैं, तो सहज ही उसको राज़ी कर सकते हैं। लेकिन कहाँ-कहाँ सूरत को देखते, साज़ को सुनते उनके मन के राज़ को न जानने के कारण अन्य को अभी भी नाराज़ करते हो वा स्वयं नाराज होते हो। सदा स्नेही के राज़ को जान राज़युक्त बनो। अच्छा। भविष्य में विश्व के मालिक बनना है, यह तो पता है ना। मगर अभी क्या हो? अभी विश्व के मालिक हो वा सेवाधारी हो? अच्छा।

 

दुसरी मुरली का शेष भाग -

 

पाण्डवों का गायन क्या है? गुप्त रहने के बाद प्रत्यक्ष हुए ना। अभी प्रत्यक्ष होना चाहिए। जैसे स्थूल स्टेज पर प्रत्यक्ष होते जा रहे हो, अब अपनी सूक्ष्म स्टेज को प्रत्यक्ष करो। गर्जना की रचना करो। अगर कमजोर रचना करेंगे तो कमजोर रचना को सम्भालने में भी समय लगेगा। पावरफुल रचना होने से सहयोगी बनेंगे। अभी ललकार करनी चाहिए। देवियों के पूजन में ललकार का ही पूजन होता है। यह पावर की निशानी यादगार रूप में है - जोर-जोर से चिल्लाते हैं। अपने अन्दर के फोर्स को इस रीति प्रसिद्ध करते हैं। देवियों का पूजन चुपचाप नहीं करेंगे, जोर-शोर से करते हैं। तो अब शक्तियों को ललकार और गर्जना करनी चाहिए - अपने सिद्धान्तों को सिद्ध करने में, तब सिद्धि को प्राप्त करेंगे। जब रिवाजी आत्मायें भी निर्भय होकर अपने सिद्धान्त को सिद्ध करने का कितना पुरूषार्थ करती हैं, तो आप लोगों को सिद्धान्तों को सिद्ध करने का कितना जोश होना चाहिए! आप वायुमण्डल के होश में आ जाते हो। आदि का पार्ट फिर से अन्त में गुह्य और गोपनीय रूप से रिपीट करना है। रिवाजी करामात दिखाने वालों की देखो - खुमारी कितनी होती है! अन्दर में समझते हैं कि यह अल्पकाल का है, फिर भी खुमारी कितनी रखते हैं! लेकिन जो सत्य खुमारी है वह कितनी कमालियत दिखा सकती है? उसके आगे उन्हों की खुमारी क्या है? अभी लास्ट कोर्स कौनसा रहा है? फोर्स रूप बनना है। अभी जगत्-माता बहुत बने, अब शक्तिरूप से स्टेज पर आना है। शक्तियां आसुरी संस्कारों को एक धक से खत्म करती हैं और स्नेही मां जो होती है वह धीरे-धीरे प्यार से पालना करती है। पहले वह आवश्यकता थी लेकिन अभी आवश्यकता है शक्ति रूप बन आसुरी संस्कारों को एक धक से खत्म करना। जैसे वह बलि चढ़ाते है तो पहले श्रृंगार करते हैं, उसमें समय लगता है। लेकिन जब बलि चढ़ती है तो एक सेकेण्ड में। श्रृंगार बहुत किया, अब एक धक से वायुमण्डल से भी आसुरी संस्कारों को खत्म करने का फोर्स होना चाहिए। रहमदिल के साथ-साथ शक्तिरूप का रूहाब भी होना चाहिए। सिर्फ रहमदिल भी नहीं। जितना ही अति रूहाब उतना ही अति रहम। शब्दों में भी रहमदिल का भाव हो, ऐसी सर्विस का अभी समय है। यह जो गायन है नज़र से निहाल करने का, वह किसका गायन है? शक्तियों के चित्रों में सदैव नयनों की शोभा आप देखेंगे। और कोई इतनी आकर्षण वाली चीज़ नहीं होती है। नयनों द्वारा ही सब भाव प्रसिद्ध करते हैं। तो यह नज़र से निहाल करना - यह सर्विस भी शक्तियों की गाई हुई है। नयनों की आकर्षण हो, नयनों में रूहानियत हो, नयनों में रूहाब हो, नयनों में रहमदिली हो - ऐसा प्लैन बनाना है।

 

यहाँ मधुबन से जो विशेष आत्माएं निकलें तो आपकी रचना को अनुभव हो कि यह शक्ति-सेना अपने में शक्ति को प्रत्यक्ष करने का प्रभाव भरकर आई है। प्रभावशाली चलन, प्रभावशाली वृत्ति अनुभव करें। आपके ऊपर सारे दैवी परिवार की प्रोग्रेस का आधार है। सब समझते हैं - इस प्रोग्राम के बाद हम आत्माओं में वा सर्विस में प्रोग्रास होगी। अगर ऐसे ही साधारण प्रोग्राम समाप्त किया तो सभी सोचेंगे। सबकी नज़रों में है कि इन विशेष आत्माओं का संगठन क्या जलवा दिखाता है! तो इतना ही अटेन्शन देना पड़े।

 

एक तो सर्विस में नवीनता, दूसरा निमित्त बनी हुई आत्माओं में नवीनता दिखाई दे। क्योंकि सर्विस का सारा आधार विशेष आत्माओं पर है। अभी तो सब समझते हैं। जैसे साइंस वाले पावरफुल इन्वेन्शन निकाल रहे हैं, वैसे यह शक्ति ग्रुप भी पावरफुल साइलेन्स का श्रेष्ठ शस्त्र तैयार कर दिखायेंगे। आपस में सिर्फ मिलना नहीं है लेकिन मिलकर के कोई पावरफुल शस्त्र तैयार करना है। जो अति पावरफुल चीज़ होती है वह अन्डरग्राउण्ड होती है। तो यह संगठन भी अन्डरग्राउण्ड है। अन्तर्मुखता में अन्दर जाकर सोचने का है। कोई कमालियत दिखानी है। कामन संगठन तो सब करते रहते हैं, आप लोगों ने भी कामन बातें ही कीं तो कमालियत कौन करेगा? ऐसे शस्त्र बनाना। इसलिए ही शक्तियों को शस्त्र ज़रूर दिखाते हैं। अब संहारी बनो। अपने संस्कारों के भी संहारी और आत्माओं के तमोगुणी संस्कारों के भी संहारी। शंकर का पार्ट प्रैक्टिकल तो बजना है लेकिन शक्तियाँ ही संहार का पार्ट बजाती हैं, शंकर को नहीं बजाना है। शक्तियों को संहारी रूप धारण करना है, जिससे संहार करना है। कर्त्तव्य किया है, अब यह रूप दिखाओ। इस रूप को धारण करने से रिजल्ट क्या होगी? आपकी जो रचना है वह अनुभव करेगी कि दिन-प्रतिदिन एक्स्ट्रा लिफ्ट मिलती जा रही है। यथा शक्ति अपना फोर्स तो लगाया, अपनी मेहनत से अभी नहीं चल सकते, अभी उन्हों को चाहिए वरदान की लिफ्ट। आज दिन तक जो बातें उन्हों को मुश्किल पड़ती हैं, तो आप लोगों की इस पावरफुल सर्विस से उन्हों के मुख से मुश्किल शब्द खत्म हो जाए, सब बात में सहज का अनुभव करें। यह जब अपनी रचना में देखेंगे तब समझना संहारी रूप बने हैं। स्पष्ट रिजल्ट दिखाई दे। फिर तूफान, तूफान नहीं तोफा लगेगा। ऐसा रूप चेन्ज हो जायेगा तब समझो कि अपनी ओरीजनल स्टेज का साक्षात्कार करा रहे हैं।

 

वरदान:- मन की स्वतंत्रता द्वारा सर्व आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मन्सा महादानी भव

 

बांधेलियां तन से भल परतंत्र हैं लेकिन मन से यदि स्वतंत्र हैं तो अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को बदलने की सेवा कर सकती हैं। आजकल विश्व को आवश्यकता है मन के शान्ति की। तो मन से स्वतंत्र आत्मा मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन फैला सकती है। शान्ति के सागर बाप की याद में रहने से आटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती हैं। ऐसे शान्ति का दान देने वाले ही मन्सा महादानी हैं।

 

स्लोगन:- स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो अब शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ।