ओम् शान्ति।
यह बच्चों का ही गाया हुआ गीत बच्चे सुन रहे हैं। यह बच्चों की आत्मायें कहती हैं।
अब बच्चों को देही-अभिमानी बनना है अर्थात् अपने को आत्मा निश्चय करना है, न कि
परमात्मा। जैसे संन्यासी लोग कहते हैं - आत्मा सो परमात्मा, इसे उल्टी गंगा कहा जाता
है। अब बाप समझाते हैं इतना समय तुम सब देह-अभिमानी बनते आये हो। अब देही-अभिमानी
बनो। यह शिक्षा मिलती है वापिस घर जाने लिए। फिर सतयुग में तो है तुम्हारी प्रालब्ध।
जब यहाँ तुम देही-अभिमानी बनते हो और बाप की नॉलेज को ग्रहण करते हो फिर जाकर ज्ञान
की प्रालब्ध का पार्ट बजाते हो। वहाँ तो देह-अभिमान वा देही-अभिमानी का प्रश्न ही
नहीं है। इस समय तो मनुष्यों को पता ही नहीं है कि हम आत्मा हैं। हमारा बाप परमात्मा
है। बिल्कुल ही मूँझ गये हैं। संन्यासियों ने कहा कि हम-तुम सब परमात्मा हैं। जिधर
देखता हूँ तू ही तू है, इससे तो कुछ भी फायदा नहीं होता। वो लोग तो इसको भावना समझते
हैं। परन्तु सबकी भावना तो एक जैसी नहीं होती। एक ही घर में बाप बच्चे की भी भावना
एक जैसी नहीं रहती। कहाँ-कहाँ देखो बच्चे बाप को भी मार डालते क्योंकि घोर अन्धियारा
है। सब पतित हैं।
अभी तुम बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। स्वदर्शन चक्रधारी बनने से ही तुम
राजा-रानी बनते हो। तो बाप बच्चों को बार-बार कहते हैं - देही-अभिमानी बनो। ऐसे समझो
मुझ आत्मा को परमात्मा बाप अपना परिचय देकर पढ़ा रहे हैं। हमारे संस्कार बदला रहे
हैं। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। शरीर तो खत्म हो जाता है। बाबा अभी हम आपके साथ
ही योग लगायेंगे। यह हमारा वायदा कभी मिट नहीं सकता। भल पवित्रता पर अनेक प्रकार के
विघ्न पड़ेंगे। बहुत कुछ सहन करना पड़ेगा। बच्चियाँ कहती हैं बाबा यह सितम सहन
करूँगी। जैसे दु:ख के समय मुख से निकलता है ना हाय राम, हे प्रभु.. तुम तो ऐसे नहीं
कहेंगे। तुम ब्राह्मण फिर बाबा को याद करते हो। बाबा हम दु:ख से कब छूटेंगी, हमको
बहुत मारते हैं। गीत में भी कहते हैं - कितनी भी मार पड़ेगी, बाबा, आपकी याद कभी नहीं
भूलेंगे। हमको तो बाबा का ही बनना है। बुद्धि का योग उनसे जोड़ना है। यह है सब समझ
की बात। एक दिन यह सितम भी मिट जायेंगे। कुछ तो जरूर सहन करना पड़ता है। यह सब
ड्रामा में नूँध है। अबलाओं पर अत्याचार बहुत होते हैं। यह गीत भी देखो पहले से ही
बना हुआ है, जिसका अर्थ कोई भी नहीं जानते हैं। तुम्हारे शास्त्र जैसेकि यह रिकार्ड
बन गये हैं। सब कहते हैं ऐसे तो कहाँ भी नहीं होता जो रिकार्ड पर अर्थ किया जाए। यह
तो फिल्मी रिकॉर्डस हैं। परन्तु यह बाबा ने बनवाये हैं। तुम बच्चों को इस पर समझाना
चाहिए। हमको पावन तो जरूर बनना है। बाप के फ़रमान पर चलना है। मनुष्य तो जानते नहीं।
वह तो शिव शंकर को भी मिलाकर एक कर देते हैं। श्रीकृष्ण भी भगवान है, वह तो
हाज़िरा-हज़ूर है, जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है। राधे के पुजारी फिर कहेंगे जिधर
देखो राधे ही राधे है। सांई बाबा के भक्त होंगे तो कहेंगे जिधर देखो सांई बाबा...
कितना अन्धियारा है। यह फिर भी होना ही है, बना बनाया ड्रामा है। तुम कहते हो इस
ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। तो कहते हैं तुम्हारे बाबा ने ऐसा
यज्ञ रचा है जो विनाश करा देते हैं। हम कहते हैं शान्ति हो जाए, तुम फिर विनाश कराते
हो। रूद्र ज्ञान यज्ञ नाम तो है ना। यज्ञ रचा जाता है ब्राह्मणों से। तुम
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ ब्राह्मण ठहरे। वह हद के यज्ञ रचते हैं सेठ लोग। उसमें
रूद्र यज्ञ नामीग्रामी है। वह उसमें ज्ञान का अक्षर नहीं लगाते हैं। यह तो है रूद्र
ज्ञान यज्ञ। उनको ज्ञान यज्ञ नहीं कहेंगे। बाबा ने समझाया है ज्ञान से ही तुम्हारी
सद्गति होती है। वहाँ (सतयुग में) इस ज्ञान की दरकार नहीं। वहाँ तो है ही सद्गति,
स्वर्ग। यह तो समझने की बात है ना। बाप बैठ ब्राह्मणों को ज्ञान देते हैं। दिखाते
हैं रथ पर रथी बैठे थे। यह शरीर रथ है ना। हर एक रथ में रथी आत्मा है, इसमें भी इनकी
आत्मा है। परन्तु बाबा कहते हैं मैं रथ का लोन लेता हूँ। जैसे मकान लेते हैं तो धनी
भी रहता है और लेने वाले भी रहते हैं। यहाँ यह रथी बन बाबा आते हैं। कहते हैं मैं
फिर से तुमको राजयोग सिखाता हूँ। ऐसे और कोई कह न सके। यह सब प्वाइंट्स समझाई जाती
हैं धारणा के लिए। हमारा बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, कल्प-कल्प संगमयुगे।
एक अक्षर की भी भूल करने से कितने अवतार, कितने नाम लिख दिये हैं! अभी बरोबर कल्प
वृक्ष के नीचे तुम बैठे हो। राजयोग सीख रहे हो भविष्य में राजा-रानी पद पाने लिए।
यहाँ तो करोड़पति, पदमपति हैं, इनका सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा। नैचुरल
कैलेमिटीज आदि सब अचानक ही आयेंगी। पिछाड़ी में विनाश तो होना ही है। ढेर के ढेर
बाम्ब्स सबके पास हैं। वह ऐसे ही समुद्र में थोड़ेही फेक देंगे। यह तो उन्हों की
लाखों-करोड़ों की मिलकियत है। यह न बनें तो विनाश कैसे हो। एकदम जलकर जैसे खाक हो
जायेंगे। ऐसे नहीं जख्मी होकर दु:ख भोगते रहेंगे। चीज़ ही ऐसी बनती है जो फट से
खलास हो जायेंगे। तो एक धर्म की स्थापना और अनेक धर्मों का विनाश - यह तो क्लीयर
है। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। स्वर्ग में रहने वालों को लायक
बना रहे हैं। पवित्र बनने वालों के आगे सब नमन करते हैं। अब बाप भी कहते हैं पवित्र
बनो। अभी तुम्हारी आत्मा के पंख टूटे हुए हैं। तुम उड़ेंगे कैसे? जितना ज्ञान-योग
बल की धारणा करेंगे तो पंख आ जायेंगे। राजधानी लेना कोई मासी का घर नहीं है।
मुख्य बात है अहम् आत्मा, यह है मेरा शरीर। अहम् आत्मा हैं ही शान्त स्वरूप।
शान्ति के लिए धक्का खाने की दरकार नहीं। एक कहानी बताते हैं ना - रानी के गले में
हार पड़ा था लेकिन वह बाहर में ढूंढ रही थी। तुम रानियाँ हो, शान्ति के लिए जंगलों
में जाने की दरकार नहीं। यहाँ तो है ही माया का राज्य। यहाँ शान्ति हो नहीं सकती।
कोई कहते हैं हमको फलाने से शान्ति मिली। परन्तु वह तो है अल्पकाल काग विष्टा समान
सुख अथवा शान्ति। हमको तो अविनाशी चाहिए ना। तुम बच्चों को चाहिए स्थाई शान्ति।
पवित्रता से शान्ति-सुख जितना चाहिए उतना लो। शिवबाबा का भण्डारा है ना। जो एवर
पवित्र हैं वही आकर सबको पावन बनाते हैं। संन्यासी तो समझते हैं आत्मा निर्लेप है।
बाकी शरीर पर पाप लगता है। तो अब तुम बच्चे जानते हो - बाप है स्वर्ग की स्थापना
करने वाला। यथार्थ रीति समझाने से समझेंगे कि बरोबर इन्हों को पढ़ाने वाला तो
परमपिता परमात्मा है, जिसको ही पतित-पावन सद्गति दाता कहा जाता है। सभी को दुर्गति
से सद्गति में ले जाते हैं। सद्गति तो बाप ही करेंगे ना। उनको कहा ही जाता है सद्गति
दाता। दुर्गति दाता तो नहीं कहेंगे ना। पतित-पावन कहेंगे फिर पतित कौन बनाते हैं?
यह भी कोई नहीं जानते। बाप कहते हैं तुम वाम मार्ग में गिरते हो तो रावण की प्रवेशता
हो जाती है। मन्दिरों में बड़े-बड़े काले चित्र राधे-कृष्ण के रखे हैं। नाम ही रखा
है श्याम सुन्दर। सतयुग में सुन्दर था फिर कलियुग में माया सर्प ने डस कर काला कर
दिया। अब कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं। मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है। बाप रचयिता
और रचना का किसको पता नहीं है। बाप बच्चों को समझाते हैं - बच्चे, खबरदार रहना, माया
बड़ी कड़ी है। इस समय तो तमोप्रधान है, किसको भी पछाड़ने में देरी नहीं करती, एकदम
नाक से पकड़कर गिरा देती है। यह है युद्ध स्थल इसलिए बाबा बार-बार समझाते हैं तुम
अपना कल्याण चाहो तो देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो अन्त
मती सो गति हो जायेगी। सब संस्कार सामने खड़े हो जाते हैं। अनेक जन्मों के पाप
विनाश करने में टाइम लगता है। तुम्हारा अन्त तक पुरुषार्थ चलता है। पहली-पहली बात
है देही-अभिमानी बनना। परमात्मा बाप हम आत्माओं को पढ़ाकर आप समान बना रहे हैं।
बैरिस्टर जरूर आप समान बैरिस्टर बनायेगा। फिर है पुरुषार्थ पर मदार। कोई बैरिस्टर
तो एक ही केस में लाख रूपया भी कमाते हैं। अब तुम बच्चों को बाप कहते हैं कि
पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाओ। यहाँ के पदमपति तो सब खाक में मिल जायेंगे। मैं हूँ ही
गरीब निवाज़।
अब देखो, जो लड़ाई करते हैं उनका काम ही मरना और मारना है। वह संस्कार ले जाते
हैं। जन्म भल गृहस्थी के घर में लेंगे परन्तु फिर लड़ाई में चले जाते हैं। बाबा तो
बहुत सहज समझाते हैं। जन्म-जन्म के पाप हैं इसलिए योग बहुत अच्छा चाहिए तब ही
विकर्म विनाश होंगे। सिर से बोझा कैसे उतारें - इसके लिए जितना हो सके उतना बाप को
याद करना चाहिए। बाबा, आप कितने मीठे हो! बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, ग़फलत नहीं
करना। माया पूरा पहरा दे रही है इसलिए देही-अभिमानी भव। यह है बुद्धियोग की रेस,
इसमें ही सब कुछ है। बाबा बार-बार कहते हैं अपना कल्याण चाहते हो तो योग बहुत अच्छा
चाहिए। फिर बहुत हर्षित रहेंगे। हम ईश्वर की सन्तान हैं। हमको भविष्य के लिए बाप से
वर्सा मिलता है। कलियुग में तो नहीं राज्य करेंगे। राज्य करना है सतयुग में।
देही-अभिमानी बनना बहुत बड़ी मंजिल है। ऐसे थोड़ेही विश्व का मालिक बनेंगे। सितम भी
बहुत सहन करने पड़ेंगे। कितनी बाँधेली बच्चियाँ मार खाती हैं। आखरीन विजय तुम बच्चों
की है ही। तुम सिर्फ बाप की याद में रहो। यह है योगबल, जो बाप तुम्हें एक ही बार
सिखलाते हैं जिससे तुम सारे विश्व का मालिक बनते हो और तो कोई बन न सके। सारे ड्रामा
में सर्वश्रेष्ठ पार्ट लक्ष्मी-नारायण का ही है। एक कहानी है ना - दो बिल्ले आपस
में लड़े, मक्खन बीच में बन्दर खा गया। श्रीकृष्ण के मुख में माखन दिखाते हैं। अब
माखन की तो कोई बात ही नहीं। यह है स्वर्ग, इसमें सारी सृष्टि का माखन आ जाता है।
बाप स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, ऐसे बाप से तो कहाँ से भी भाग कर मिलना चाहिए। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मैं इस रथ पर विराजमान रथी आत्मा हूँ, यह अभ्यास करते पूरा-पूरा
देही-अभिमानी बनना है। बुद्धि-योग की रेस करनी है।
2) पूरा नष्टोमोहा बनना है। इस अन्तिम जन्म में सितम सहन करते भी पावन जरूर बनना
है।