ओम् शान्ति।
परमपिता परमात्मा को खिवैया भी कहते हैं। खिवैया बोटमेन को कहा जाता है। जो बोट (नांव)
में बिठाए उस पार ले जाये। तो बाप खिवैया है, उस पार ले जाने वाला। झूठ खण्ड में है
झूठी कमाई। सचखण्ड के लिए तो यह सच्ची कमाई है, वह है झूठी कमाई। अभी भारत पतित है।
भारत भी कितना बड़ा है। दुनिया भी कितनी बड़ी है। बच्चों की बुद्धि में रहता है -
पुरानी दुनिया में पुराना भारत है। कल का भारत अथवा कल की दुनिया क्या होगी! तुम
जानते हो अभी कितने मनुष्य हैं। कितने खण्ड हैं, कल जरूर भारत ही होगा। दैवी राज्य
होगा। सोने की द्वारिका होगी। गोया भारत में कृष्णपुरी होगी। लंका नहीं होगी। सारी
लंका सोने की नहीं बनती है। भारत सोने का बन जाता है। लंका अर्थात् रावणराज्य खत्म
हो जाता है। भारत द्वारिका बन जाता है जिसको कृष्णपुरी कहते हैं। द्वारिका होती है
भारत में। भारत सोने का हो जाता है। द्वारिका भी एक राजधानी हो जाती है। कहते हैं -
जमुना नदी पर देहली परिस्तान था, श्री लक्ष्मी-नारायण जहाँ रहते थे। द्वारिका में
फिर दूसरी राजधानी होती है। द्वारिका में जब राज्य होता है तब लक्ष्मी-नारायण नहीं
होते। वहाँ फिर दूसरे का राज्य होता है। कैपीटल जमुना का किनारा है, वहाँ फिर दूसरी
राजाई नहीं रहती।
अभी तुम जानते हो यह सारी पुरानी दुनिया भारत सहित जो भी है, यह सब स्वाहा हो
जाता है - इस ज्ञान यज्ञ में। यह बड़ा बेहद का यज्ञ हुआ ना, इनमें पुरानी दुनिया
सारी स्वाहा होनी है। यह बच्चों की दिल में रहना चाहिए। यह रावण की कितनी बड़ी
दुनिया है। राम की इतनी बड़ी थोड़ेही होगी। वहाँ तो भारत ही स्वर्ग होगा, दूसरे
खण्डों का नाम-निशान नहीं होगा। यह समझ की बातें हैं, जो बुद्धि में धारण करनी है।
आज पुरानी दुनिया है - कल नई दुनिया बनेंगी। तुम ब्राह्मण डिनायस्टी ही दैवी
डिनायस्टी बनेंगे। यह ब्राह्मण ही पढ़कर नम्बरवार डिनायस्टी बनेंगे। अभी शूद्र
डिनायस्टी है। आखिर बाप को आना ही पड़ता है - यह दुनिया नहीं जानती।
बाबा ने प्रश्नावली के पोस्टर बहुत अच्छे बनवाये थे, जिससे मनुष्यों को बाप का
परिचय मिल जाए। परन्तु सम्मुख समझाने के बिगर कोई समझ नहीं सकेंगे। तुमको ही बाप
कहते हैं हियर नो ईविल, सी नो ईविल..... ऐसा खिलौना बन्दर का बनाया है। तुम भी
बन्दर मिसल थे। अभी तुम्हारी सूरत बदली है। जिनमें 5 विकार हैं उनको ही कहेंगे
बन्दर। जैसे नारद की सूरत दिखाई है, उसने कहा कि हम लक्ष्मी को वरें - तो कहा कि
आइने में अपना मुँह तो देखो। यह तो एक कथा बना दी है। बातें सारी यहाँ की हैं। कोई
पूछते हैं हम लक्ष्मी को वर सकते हैं? बाबा कहते हाँ पहले बन्दरपना तो छोड़ो तो क्यों
नहीं वर सकते हो।
बाबा ने तुमको समझदार बनाया है फिर तुम्हारे द्वारा सभी आत्माओं को रावण की
जंजीरों से छुड़ाए शिवालय में ले जाते हैं अथवा अशोकवाटिका में ले जाते हैं। इस समय
सब शोकवाटिका में हैं। अभी तुम रावण को भगा रहे हो फिर जय-जयकार हो जायेगी। सब
भक्तियां, सीतायें हैं। एक राम ही भगवान है। पुकारते भी हैं हे राम। वास्तव में राम
शिवबाबा को कहा जाता है। बाबा ने आकर समझाया है, राम ही आकर सबकी सद्गति करते हैं।
स्वर्ग में ले जाते हैं, जिसको रामराज्य कहा जाता है। बाबा ने पोस्टर बहुत अच्छे
बनवाये थे। तुम बच्चों को गीता पाठशालाओं में जाकर समझाना है। हम लिखते भी हैं
परमपिता, फिर पूछते हैं कि परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? जरूर
कहेंगे वह सबका बाप है। अच्छा जब हम उनके बच्चे हैं, वह तो बेहद का बाप नई दुनिया
रचने वाला है फिर तो हमको जरूर स्वर्ग में होना चाहिए। यहाँ नर्क पतित दुनिया में
क्यों पड़े हो? लक्ष्मी-नारायण का राज्य क्यों नहीं है? भारत को स्वर्ग का स्वराज्य
था ना। अब कलियुग में रावणराज्य है। तुम स्वर्ग के मालिक थे ना और कोई धर्म नहीं था
- आज से 5 हजार वर्ष पहले लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। राजायें भी डबल सिरताज थे।
पवित्रता का भी ताज था और रतन जड़ित ताज भी था। रामराज्य तो पीछे होता है, तो बुद्धि
में आना चाहिए कि भारत में बरोबर इन्हों का राज्य था। यह लक्ष्मी-नारायण ही
पहले-पहले नम्बर के हैं। सतयुग में दैवी गुणों वाले मनुष्य थे फिर 84 जन्म भी इन्हों
को ही लेने पड़ते हैं। अब वह लक्ष्मी-नारायण कहाँ हैं? सब पतित दुनिया में हैं ना।
फिर उन्हों को बाप बैठ राजयोग सिखलाते हैं, जिन्होंने अपना राज्य गॅवाया है, वही
फिर राजधानी प्राप्त करने के लिए फिर से राजयोग सीख रहे हैं। तुमको याद है कि हम हर
5000 वर्ष बाद राज्य लेने बाप द्वारा राजयोग सीखते हैं। आधाकल्प सुख का राज्य करते
हैं फिर आधाकल्प रावणराज्य में दु:ख का राज्य होता है। अभी हम फिर पढ़ रहे हैं। हर
5 हजार वर्ष बाद भगवान बाप आकर पढ़ाते हैं। भगवानुवाच - कौन सा भगवान? वह तो कृष्ण
के लिए कह देते हैं। तुम तो कहते हो एक ही निराकार शिव भगवान है। श्रीकृष्ण तो देवता
है, फिर पूछा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? वह तो पिता ठहरा ना।
एक दादा एक बाबा। इस समय तुमको दो बाप हैं। तीसरा है लौकिक शरीर देने वाला बाप। यह
दो हैं प्रजापिता ब्रह्मा और शिवबाबा। लौकिक बाप से तुम हद का वर्सा लेते हो, अब
पारलौकिक बाप कहते हैं मेरे से बेहद का वर्सा लो। परमपिता परमात्मा आकर पतितों को
पावन बनाते हैं और राज्य करने लायक बनाते हैं। तीसरा प्रश्न फिर पूछा जाता है कि
गीता का भगवान कौन? मनुष्य तो कह देते हैं श्रीकृष्ण। तुम कहते हो कृष्ण गीता का
भगवान है नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कहा जाता है। शिव को ही भगवान
कहेंगे क्योंकि वह है निराकार और यह प्रजापिता ब्रह्मा है साकार। तो भगवान एक शिव
ही ठहरा। यह भी बाबा ने समझाया है तुम शिव शक्तियां हो, सेना भी हो। तुम विकारों को
छोड़, निर्विकारी पावन बन अपना राज्य लेती हो। फिर यह रावणराज्य खत्म हो जायेगा। अभी
तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो, कल इनके मालिक बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण को राज्य
किसने दिया? हम कहेंगे इन्हों को राज्य देने वाला परमपिता परमात्मा शिव है। जो अब
दे रहे हैं। शिवबाबा कहते हैं आगे भी हमने तुमको राज्य दिया था, अब फिर सिखला रहा
हूँ। यह सब खत्म हो जायेगा। पावन दुनिया स्थापन हो जायेगी फिर तुम वहाँ सोने हीरों
के महल बनायेंगे। राज्य करेंगे। तुम्हारी एम आब्जेक्ट ही यह है। सो हम
लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। यह है ऊंच ते ऊंच पद। इन्हों को किसने पढ़ाया? जरूर ऊंच
ते ऊंच बाप ने ही पढ़ाया है। अब फिर से राजयोग सीखते हैं जो फिर भविष्य में यह पद
पायेंगे। ततत्वम्। इतने में सब धर्म खत्म हो जायेंगे। ब्रह्मा द्वारा दैवी धर्म की
स्थापना, शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश, फिर विष्णु द्वारा पालना।
लक्ष्मी-नारायण फिर पालना करेंगे। यह समझने की बातें हैं।
तुम्हारी जो जीवन है इनको अमूल्य कहा जाता है। शिवबाबा द्वारा तुम्हें यह लाटरी
मिलती है। रेस में जो पहला नम्बर आता है उनको बड़ा इनाम मिलता है। तो यह
लक्ष्मी-नारायण पहले नम्बर में हैं। इन्हों की दौड़ी तुमसे जास्ती है। पहले नम्बर
में है ब्रह्मा फिर सरस्वती, इनको योगबल की दौड़ी कहा जाता है। बाबा ने समझाया है
सतयुग में पहले लक्ष्मी फिर नारायण कहेंगे। यहाँ तो सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है
इसलिए सरस्वती ब्रह्मा नहीं कहेंगे। पहले ब्रह्मा फिर उनकी बेटी सरस्वती। जगतपिता
और जगत माता कहेंगे। यह स्त्री पुरूष तो हो न सकें। यह फिर जब सतयुग में जायेंगे तब
नाम बदल जायेगा। पहले लक्ष्मी फिर नारायण यहाँ पहले ब्रह्मा फिर सरस्वती है क्योंकि
बेटी है ना। अभी तुम जानते हो हम मनुष्य से देवता बनते हैं, जितना जास्ती पुरूषार्थ
करेंगे उतना ऊंच पद मिलेगा। तुम जैसे बेगर टू प्रिन्स बन रहे हो। अच्छी रीति पढ़ाई
पढ़ेंगे तो राजा बनेंगे। अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे, पवित्र नहीं रहेंगे तो राजाई भी
नहीं पायेंगे। शिवबाबा तो राजाई का वर्सा देते हैं। अगर कोई राजाई नहीं लेते हैं,
पवित्र नहीं बनते हैं तो प्रजा में चले जाते हैं। अच्छा प्रजा में भी नम्बरवार हैं।
कोई पूछते हैं प्रजा में हम ऊंच पद कैसे पायें? फिर मिसाल समझाया जाता है सुदामा
का। चावल-मुट्ठी दी तो महल मिल गये। यहाँ जो चावल-मुट्ठी देते हैं तो 21 जन्म लिए
महल मिल जाते हैं। यह है इन्श्योरेन्स। हर एक अपने को इनश्योर करते हैं - भगवान के
पास। ईश्वर अर्थ गरीबों को देते हैं। कोई अन्न देते, कोई धन देते हैं, कोई फिर मकान
बनाकर देते हैं। धर्माऊ जरूर कुछ न कुछ निकालते रहते हैं क्योंकि पाप बहुत करते हैं
इसलिए दान पुण्य करते हैं तो गोया इनश्योर किया ना। दान पुण्य अनुसार दूसरे जन्म
में अच्छे घर में जन्म मिलता है। समझो किसने हॉस्पिटल बनाई होगी तो दूसरे जन्म में
रोगी कम होगा। कोई ने युनिवर्सिटी बनाई होगी तो दूसरे जन्म में उनका फल मिलेगा।
पढ़ेगा बहुत अच्छा। वह हुआ इनडायरेक्ट दान-पुण्य करना। अभी तो बाप डायरेक्ट कहते
हैं कि जितना इनश्योर करेंगे - 21 जन्मों के लिए तुमको भविष्य में मिलेगा। फिर जितना
करो। बाप तो दाता है। शिवबाबा तुम्हारा क्या करेगा। वह तो कहते हैं सब कुछ बच्चों
के लिए ही है। मनुष्य दान गरीबों को करते हैं तो ईश्वर द्वारा उनको फल मिलता है। यहाँ
भी शिवबाबा कहते हैं - तुम मुट्ठी देते हो तो नई दुनिया में तुम्हें 21 जन्मों के
लिए फल मिलेगा। चाहे सूर्यवंशी राजाई, चाहे चन्द्रवंशी राजाई लो। चाहे साहूकार प्रजा
बनो, चाहे गरीब प्रजा बनो। श्रीमत तुमको मिलती रहती है। जिससे तुम श्रेष्ठ राजा रानी
बनेंगे या तो प्रजा। सो तो साक्षी होकर देखते रहते हो। बाप कहते हैं - तुमको जो चाहे
सो लो। इनको इनश्योर मैगनेट कहा जाता है। यह है गुप्त।
अभी तुम जानते हो बाबा सम्मुख आया हुआ है - हमको 21 जन्मों का वर्सा देते हैं।
जितना इनश्योर करेंगे, बाबा कहते हैं हमारा बनेंगे तो तुम्हारा हक है राजाई लेना।
बाप का कैसे बनते हैं? कहते हैं बाबा हमारे पास यह-यह है। बाप कहते हैं तुम तो कहते
हो ना - यह सब ईश्वर ने दिया है। बस ऐसा नहीं समझो यह मेरा है। अपना ममत्व नहीं रखो।
ममत्व रखेंगे तो राजाई नहीं मिलेगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते श्रीमत पर चलो तो
ममत्व नहीं रहेगा। तुम्हारी तो गैरन्टी थी ना - बाबा आप आयेंगे - तो हम आपके बन
जायेंगे। मेरे तो एक आप ही हो। अब बाप के पास जाते हैं। बाबा फिर स्वर्ग में भेज
देंगे। बाबा रोज़-रोज़ सुनाते रहते। सुनाते सुनाते कितने वर्ष हो गये। अब बाकी थोड़ा
समय है। यह बाबा का लांग बूट है ना। बाबा ने पुरानी जुत्ती में प्रवेश किया है। कहते
हैं बच्चों को सृष्टि के आदि मध्य अन्त का समाचार सुनाता हूँ। मैं नॉलेजफुल,
ब्लिसफुल, लिबरेटर हूँ। सुख कर्ता, दु:ख हर्ता हूँ। जितना तुम बाप को याद करते
जायेंगे तो पाप कटते जायेंगे। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) राजाई पद लेने के लिए पूरा श्रीमत पर चलना है। किसी भी चीज़ में
ममत्व नहीं रखना है। मेरा तो एक बाप... यही पाठ पक्का करना है।
2) हियर नो ईविल, सी नो ईविल... टाक नो ईविल... बाप के इस डायरेक्शन पर चल
मन्दिर लायक बनना है।