02-04-13  प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

"मीठे बच्चे - माया के वश हो ईश्वरीय मत के विरूद्ध कोई कार्य नहीं करना, कभी भी बाप की निंदा नहीं कराना"

 

प्रश्नः- माया भी बाप की मददगार है - कैसे?

 

उत्तर:- जब देखती है कोई श्रीमत की अवज्ञा करते हैं, बाप का कहना नहीं मानते हैं, श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो वह कच्चा खा लेती है, थप्पड़ मार देती है। सयाना वह जो बाप की याद से माया को परख उसके वशीभूत न हो।

 

गीत:- मुझको सहारा देने वाले...

 

ओम् शान्ति। बच्चों ने यह महिमा किसकी सुनी? परमपिता परमात्मा की। बच्चे जानते हैं कि ऐसे बाप को याद करके उनसे अब स्वर्ग का वर्सा लेना है। बाप का तो फरमान है निरन्तर मुझे याद करो और अपने को आत्मा रूप में बच्चे समझो। यही मंजिल है। बाप का निवास स्थान तो अब मधुबन ही है। अब बाप से वर्सा कैसे मिले? जितना जो बाप को याद करते हैं उतना उनके पाप कटते जाते हैं और जो बाप के वर्से को याद करते रहते उनके खाते में खजाना जमा होता रहता है। यह एक किस्म का व्यापार है जो बाप सिखाते हैं। ऐसे बाप को तो निरन्तर याद करना पड़े। अगर याद नहीं करते तो माया पत्थर मारती है। माया कोई कम नहीं है। भल कोई कितना भी कहे मैं बच्चा हूँ। भल स्थूल वा सूक्ष्म सर्विस भी करता रहे लेकिन बाप से योग लगाना नहीं जानते तो उसे सपूत बच्चा नहीं कहेंगे। बाप तो कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते, कभी और दृष्टि से नहीं देखते परन्तु चलन ऐसी देखते हैं तो समझते हैं यह आसुरी मत का है। माया एक ही घूसे से एकदम खत्म कर देती है। फिर कितना विघ्न डालते हैं। उनका जितना बड़ा पाप बनता है उतना अज्ञानी मनुष्य का नहीं बनता। कई नज़दीक रहते हुए जरा भी पहचानते नहीं। बाप कहते यह भी ड्रामा में नूँध है, जो सुनते हुए जैसेकि सुनते ही नहीं। तो बाबा क्या करें। आजकल मनुष्यों के ऊपर कितना भी आशीर्वाद करो, प्यार करो परन्तु बैठे-बैठे अपने को भस्मासुर बना देते हैं। वास्तव में ईश्वरीय सम्प्रदाय और आसुरी सम्प्रदाय में रात-दिन का फर्क है। इस दुनिया में किसी का बाप के साथ योग नहीं है। ऐसे को फिर बाप आकर ईश्वरीय सम्प्रदाय का बनाते हैं। तुम्हारे में भी कोई तो ईश्वर के बन उनकी श्रीमत पर चलते हैं और जो नहीं चलते हैं वह भस्मासुर बन जल मरते हैं। तुम ईश्वरीय मत से स्वर्ग का मालिक देवता बनते हो और कोई स्वर्ग जाने बदले काम चिता पर बैठ भस्मीभूत हो जाते हैं।

 

बाबा बच्चों को कितना युक्ति से उठाते हैं। परन्तु माया ऐसी है जो ऐसा वार करती है जो निंदा कराने के निमित्त बन पड़ते हैं, जो सयाने बच्चे हैं वह तो कदम-कदम बाप की श्रीमत पर चलते हैं। बाप की पहली-पहली आज्ञा है मुझ पारलौकिक बाप को याद करो तो सुधार हो। जो बाप से योग नहीं लगाते, श्रीमत पर नहीं चलते तो माया बेटी उन्हें खा लेती है। माया को बेटी कहते हैं क्योंकि मदद करती है। बाप तो परमधाम से आये हैं बच्चों को पढ़ाकर नर से नारायण बनाने फिर भी ऐसे बाप के नाफरमानबरदार बन जाते हैं। बाहर निकलने से ही माया का थप्पड़ लग जाता है फिर तरस पड़ता है। कहाँ-कहाँ बिचारी कन्याओं, माताओं पर बँधन आ जाते हैं। काम का हल्का नशा भी हुआ तो गिर पड़ते हैं, फिर अबलाओं पर कितने अत्याचार होने लगते हैं! कितनी बिचारी बाँध हो जाती हैं! इतने सबका पाप उन पर पड़ता है। बड़ी कड़ी सजा खाते हैं। बात मत पूछो। माया जानती है कल्प पहले वाले कौन-कौन हैं जिन्होंने मुझे जीत बाबा का तरफ लिया है। वह भी सयानी है। देखती है यह बाबा की अवज्ञा करते हैं तो ताला बन्द कर देती है। बाप जानते हैं यह अबलायें, कन्यायें भारत का कल्याण करती हैं। बाप को माताओं का बहुत फुरना रहता है। तुम बच्चों को भी माताओं का फुरना होना चाहिए। अपना अहंकार नहीं रहना चाहिए। बाप खुद कहते हैं वन्दे मातरम्। बड़ी सम्भाल करनी है। कोई ऐसी डर्टी चलन नहीं चलनी है। अपने आपसे पूछना है कि हम कोई उल्टा धंधा तो नहीं करते हैं। बाप कहते हैं तुम बाप से वर्सा लो। तुम देवता बनने आये हो। धर्म की स्थापना में अनेक विघ्न तो पड़ने ही हैं। क्राइस्ट के समय में भी ऐसे कई निकले जिन्होंने निंदा आदि की। आसुरी सम्प्रदाय ने मार डाला, पहचाना नहीं। अब उनके कितने चर्च आदि बनते हैं, परन्तु इससे कुछ फ़ायदा नहीं। माया के बन तमोप्रधान बन जाते हैं। जहाँ भी जाते हैं वहाँ से मिलता कुछ भी नहीं है। दिन-प्रतिदिन और ही दु:खी तमोप्रधान होते जाते हैं। समझो गुरूनानक के पास जाते हैं, उनसे क्या मिलेगा? वह सिर्फ कहते तुमको पवित्र बनना वा रहना चाहिए। परन्तु अपवित्र ही रहते हैं। सिर्फ उनका भजन गाते रहते हैं, तो मिलेगा कुछ भी नहीं। अब देखो सब कब्रदाखिल हो गये हैं। ज्ञान का जरा भी पता नहीं है। क्रोध भी बहुत कड़ा है जिससे अपने को भस्मासुर बना देते हैं। फिर जमा होने के बदले घाटा हो जाता है। आते हैं तकदीर बनाने। कहते हैं बाबा से स्वर्ग का वर्सा लेने आया हूँ। अच्छा बाप को पूरा याद करना पड़ेगा। उनकी श्रीमत पर चलना है। नहीं चलेंगे तो फिर जैसे का वैसा बन जायेंगे। फिर कल्प-कल्प गिरते ही रहेंगे। फिर कभी उठ नहीं सकेंगे। अभी पुरुषार्थ किया तो ऊंच ते ऊंच बन सकते हैं।

 

बाप कितना समझाते हैं, बोर्ड पर भी लिखा हुआ है – ईश्वरीय विश्व-विद्यालय परमपिता परमात्मा ने स्थापन किया है। उनसे स्वर्ग की राजाई का वर्सा पाना है। अगर यहाँ आकर और फिर चले जायें तो सब कहेंगे शायद ईश्वर नहीं है, जो ऐसे छोड़कर निकलते हैं। कितने संशयबुद्धि बन पड़ेंगे। उन पर सबका पाप चढ़ जाता है। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ कैसे बनेंगे? श्रीमत पर चलने से तुम्हारा कोई नुकसान नहीं हो सकता है। वह बाप भी है, धर्मराज भी है। धर्मराज देखते हैं क्या-क्या पाप करते हैं? मेरी ग्लानि करते हैं। बड़े कायदे हैं। परन्तु बच्चे समझते नहीं। हाथ उठाते हैं - हम लक्ष्मी-नारायण को वरेंगे और काम ऐसे करते हैं जो बात मत पूछो। आगे चलकर यह किला ऐसा बन जायेगा जो कोई पतित अन्दर आ नहीं सकेगा। अभी तो माया बहुतों को नाक से पकड़ लेती है। वह निराकार बाप इन ऑखों का लोन ले आये हैं तो देखते हैं यह फर्स्टक्लास बच्चा है, यह काँटा है। बाप समझाते हैं बच्चे तुमको तो स्वर्ग का मालिक बनना चाहिए। तुम ऐसा पुरुषार्थ क्यों नहीं करते। बाबा सर्वशक्तिमान् है। माया पर जीत पहनाने आते हैं। कहते हैं - मीठे बच्चे, कुछ सजाओं से भी डरो। श्रीमत पर आज्ञाकारी बनो। अपने पर रहम करो। माया के वश कुछ भी करेंगे तो भूत बन जायेंगे। भवानी माता कहा जाता है, कोई तो भवानी का वारिस बन जाते हैं, कोई भूत बन जाते हैं। तुम सब भवानी मातायें हो जो ज्ञान अमृत पिलाती हो। व़फादार बच्चों पर मात-पिता की आशीर्वाद रहती है। व़फादार नहीं तो शान्ति से जाकर कहाँ दूर रहे तो अच्छा। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य - 8-1-57

 

"बिगड़ी हुई तकदीर बनाने वाला परमात्मा है"

 

अब यह तो सब मनुष्य जानते हैं कि तकदीर बनाने वाला वो एक ही परमात्मा है। परमात्मा को कहा जाता है तकदीर का मालिक, वो आकर हम आत्माओं की तकदीर बनाते हैं, जो बिगड़ी हुई तकदीर है उन्हों को नया बनाने वाला परमात्मा है। बाकी यह जो मनुष्य कहते हैं तकदीर बनाना वा बिगाड़ना परमात्मा के हाथ में है, अब यह कहना सरासर भूल है। तकदीर बनाना परमात्मा के हाथ में है परन्तु जब मनुष्य उस तकदीर बनाने वाले को भूलते हैं, तब उसकी तकदीर बिगड़ जाती है गोया तकदीर को बिगाड़ना मनुष्यों के हाथ में है। जब मनुष्य अपने आपको भूलते हैं, अपने बाप को भूलते हैं तब ही मनुष्यों से उल्टा कार्य होने कारण वो अपनी तकदीर को लकीर लगाते हैं। तो बिगाड़ने वाला हुआ मनुष्य और बनाने वाला हुआ परमात्मा इसलिए परमात्मा को सुख दाता कहते हैं, न कि दु:ख दाता कहेंगे। देखो, जब परमात्मा स्वयं ही इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं तो सभी मनुष्यों की बिगड़ी हुई तकदीर बनाते हैं अर्थात् सबको सद्गति दे देते हैं तभी तो परमात्मा को सभी मनुष्य आत्माओं का उद्धार करने वाला कहते हैं। परमात्मा कहते हैं बच्चे, मैं इस संगम पर आए सबकी तकदीर बनाता हूँ, ऐसा नहीं कोई की तकदीर बने और कोई की न बनें परन्तु परमात्मा तो सबकी तकदीर बनाते हैं क्योंकि सभी मनुष्यों का सारी सृष्टि से सम्बन्ध है तभी तो परमात्मा के लिये कहते हैं तकदीर बनाने वाला जरा सामने तो आओ... तो यही सबूत है कि परमात्मा तकदीर बनाने वाला है।

 

दूसरी मुरली:- "सदा सुखी जीवन बनाने के लिये मुख्य धारणा"

 

मनुष्य को अपनी सुखी जीवन बनाने के लिये कौनसी मुख्य प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी हैं? पहले तो यह मुख्य बात समझनी है कि जिस परमात्मा बाप की हम संतान हैं उस बाप की याद में हर समय श्वांसो श्वांस उपस्थित रहें, उस अभ्यास में रहने की पूर्ण रीति से कोशिश करनी है। अब श्वांसों श्वांस का मतलब है लगातार बुद्धियोग लगा रहे, जिसको निरंतर योग अर्थात् अटूट अजपाजाप याद कही जाती है, यह याद कोई मुख से जपने की नहीं है और न कोई मूर्ति सामने रख उसका ध्यान करना है। परन्तु यह बुद्धि योग द्वारा याद रखनी है, अब वो याद भी निरन्तर तब रह सकेगी जब परमात्मा का पूरा परिचय हो, तब ही ध्यान पूर्ण लग सकेगा। परन्तु परमात्मा तो गीता में साफ कहता है, न मैं ध्यान से, न जप से मिलता हूँ और न मेरी सूरत को सामने रख उनका ध्यान करना है परन्तु अपने को ज्ञान योग द्वारा परमात्मा को पाना है इसलिए पहले चाहिए ज्ञान, ज्ञान बिगर याद कायम रह नहीं सकेगी। तो अपने को कोई मूर्ति का ध्यान नहीं करना है परन्तु अपने को तो ज्ञान योग द्वारा ही परमात्मा को पाना है इसलिए पहले चाहिए ज्ञान, ज्ञान बिगर याद ठहर नहीं सकेगी। अपने को कोई मूर्ति का ध्यान नहीं करना है परन्तु उस मूर्ति के ज्ञान में रहना है, तो याद का तैलुक है ही ज्ञान से। अब ज्ञान से, चाहे मन से कल्पना करें वा बैठकर दर्शन करें, अगर उस देखी हुई चीज़ का भी पहले ज्ञान होगा तब ही योग और ध्यान ठीक लग सकता है इसलिए परमात्मा कहता है मैं कौन हूँ, मेरे साथ कैसे योग लगाना है, उसका भी ज्ञान चाहिए। ज्ञान के लिये फिर पहले संग चाहिए, अब यह सब ज्ञान की प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी है तब ही योग ठीक लग सकेगा। अच्छा। गुडमार्निंग।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) बाप का आज्ञाकारी, व़फादार बनकर आशीर्वाद लेने के पात्र बनना है। कोई भी अवज्ञा नहीं करनी है।

 

2) कभी कोई उल्टी चलन चलकर अपनी तकदीर को लकीर नहीं लगानी है। भस्मासुर नहीं बनना है। धर्मराज की सजाओं का डर रखना है।

 

वरदान:- शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाले मा. सर्वशक्तिवान भव

 

साइन्स वाले फास्ट गति के यंत्र निकालने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिए कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और एनर्जी लगाते हैं, लेकिन आपके पास इतनी तीव्रगति का यंत्र है जो बिना खर्च के सोचा और पहुंचा, आपको शुभ संकल्प का यंत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। इस शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा जब चाहे तब चले जाओ और जब चाहे तब लौट आओ। मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता।

 

स्लोगन:- दिल सदा सच्ची हो तो दिलाराम बाप की आशीर्वाद मिलती रहेगी।