ओम् शान्ति।
जहाँ गीता की पाठशालायें होती हैं वहाँ अक्सर करके यह गीत गाते हैं। गीता सुनाने
वाले पहले यह श्लोक गाते हैं। यह जानते तो नहीं हैं कि किसको बुलाते हैं। इस समय
धर्म ग्लानि है। पहले है प्रार्थना फिर वह रेसपान्स करते हैं आओ, फिर से आकर गीता
ज्ञान सुनाओ क्योंकि पाप बहुत बढ़ गये हैं। वह फिर रेसपान्स करते हैं कि हाँ, जबकि
भारत के लोग पाप आत्मा दु:खी बन जाते हैं, धर्म ग्लानि हो पड़ती है तब मैं आता हूँ।
स्वरूप बदलना पड़ता है जरूर मनुष्य तन में ही आयेंगे। रूप तो सब आत्मायें बदलती
हैं। तुम आत्मायें असुल निराकारी हो फिर यहाँ आकर साकारी बनती हो। मनुष्य कहलाती
हो। अभी मनुष्य पापात्मा, पतित हैं तो मुझे भी अपना रूप रचना पड़े। जैसे तुम
निराकार से साकारी बने हो, मुझे भी बनना पड़े। इस पतित दुनिया में तो श्रीकृष्ण आ न
सके। वह तो है स्वर्ग का मालिक। समझते हैं श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई परन्तु
श्रीकृष्ण तो पतित दुनिया में हो न सके। उनका नाम, रूप, देश, काल, एक्ट सब बिल्कुल
अलग है। यह बाप बतलाते हैं। श्रीकृष्ण को तो अपने मात-पिता हैं, उसने माँ के गर्भ
से अपना रूप रचा। मैं तो गर्भ में नहीं जाता। मुझे रथ तो जरूर चाहिए। मैं इनके बहुत
जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। पहला नम्बर तो है श्रीकृष्ण। इनके
बहुत जन्मों के अन्त का जन्म हुआ 84वाँ जन्म। तो मैं इसमें ही आता हूँ। यह अपने
जन्मों को नहीं जानते हैं। श्रीकृष्ण तो ऐसे नहीं कहते कि मैं अपने जन्मों को नहीं
जानता हूँ। भगवान् कहते हैं जिसमें मैंने प्रवेश किया है, वह अपने जन्मों को नहीं
जानता। मैं जानता हूँ, श्रीकृष्ण तो राजधानी का मालिक है। सतयुग में है सूर्यवंशी
राज्य, विष्णुपुरी। विष्णु कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। कहाँ भी भाषण होता है तो
यह रिकार्ड काफी है क्योंकि यह तो भारतवासी खुद गाते हैं। जब धर्म प्राय: लोप हो
जाए तब तो फिर से गीता सुनाऊं। वही धर्म फिर से स्थापन करना है। उस धर्म के कोई
मनुष्य ही नहीं हैं तो फिर गीता का ज्ञान कहाँ से निकला? बाप समझाते हैं -
सतयुग-त्रेता में कोई शास्त्र आदि होते नहीं। यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री, इन
द्वारा मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते। मुझे तो आना पड़ता है, आकर सबको सद्गति देता
हूँ वाया गति। सबको वापिस जाना पड़ता है। गति में जाकर फिर स्वर्ग में आना है।
मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। बाप कहते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति
मिल सकती है। गाया हुआ है गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति
अर्थात् दु:ख रहित। संन्यासी तो जीवनमुक्त बना न सकें। वह तो जीवनमुक्ति को मानते
ही नहीं। इन संन्यासियों का धर्म सतयुग में तो होता ही नहीं है। संन्यास धर्म तो
बाद में होता है। इस्लामी, बौद्धी आदि यह सब सतयुग में नहीं आयेंगे। अभी और सब धर्म
हैं बाकी देवता धर्म है नहीं। वे सब और धर्मों में चले गये हैं। अपने धर्म का पता
नहीं है। कोई भी अपने को देवता धर्म का मानते ही नहीं। जयहिन्द कहते हैं, भारत की
जय, भारत की खय (हार) कब होती है, यह थोड़ेही कोई जानते हैं। भारत की जय तब होती है
जब राज्य-भाग्य मिलता है, जब पुरानी दुनिया का विनाश होता है। खय करता है रावण। जय
करते हैं राम। ‘जय भारत' कहेंगे। ‘जय हिन्द' नहीं। अक्षर बदल दिया है। गीता के
अक्षर अच्छे-अच्छे हैं।
ऊंच ते ऊंच है भगवान्, कहते हैं मेरा कोई मात-पिता नहीं है। मुझे अपना रूप आपेही
बनाना पड़ता है। मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। श्रीकृष्ण को माता ने जन्म दिया। मैं
तो क्रियेटर हूँ। ड्रामा अनुसार यह भक्तिमार्ग के लिए सब शास्त्र आदि बने हुए हैं।
यह गीता, भागवत आदि सब देवता धर्म पर ही बनाये हुए हैं। जबकि बाप ने देवी-देवता
धर्म की स्थापना की है, वह पास्ट हो गया फिर फ्युचर होगा। आदि-मध्य-अन्त को, पास्ट
प्रेजन्ट और फ्युचर कहते हैं। इसमें आदि-मध्य-अन्त का अर्थ अलग है। जो पास्ट हो गया
वही फिर प्रेजन्ट होता है। जो पास्ट की कहानी सुनाते हैं वह फ्युचर में रिपीट होगी।
मनुष्य इन बातों को नहीं जानते। जो पास्ट होता है, उनकी कहानी बाबा प्रेजन्ट में
सुनाते हैं फिर फ्युचर में रिपीट होगी। बड़ी समझने की बातें हैं, बड़ी रिफाइन बुद्धि
चाहिए। कहाँ भी तुमको बुलाते हैं तो भाषण बच्चों को करना है। सन शोज़ फादर। बच्चे
बतायेंगे हमारा फादर कौन है। फादर तो जरूर चाहिए, नहीं तो वर्सा कैसे लेंगे। तुम तो
बहुत ऊंचे से ऊंचे हो परन्तु इन बड़े आदमियों को भी मान देना पड़ता है। तुम्हें सबको
बाप का परिचय देना है। सब गॉड फादर को पुकारते हैं, प्रार्थना करते हैं - हे गॉड
फादर आओ लेकिन वह है कौन। तुम्हें शिवबाबा की भी महिमा करनी है, श्रीकृष्ण की भी
महिमा करनी है और भारत की भी महिमा करनी है। भारत शिवालय, हेविन था। 5 हजार वर्ष
पहले देवी-देवताओं का राज्य था, वह किसने स्थापन किया? जरूर ऊंच ते ऊंच भगवान् ने।
ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा शिवाए नम: हुआ। शिव जयन्ती भारतवासी मनाते हैं
परन्तु शिव कब पधारे थे, यह किसको पता नहीं है। जरूर हेविन से पहले संगम पर आया होगा।
कहते हैं कल्प-कल्प के संगमयुगे-युगे आता हूँ, हर एक युग में नहीं। अगर हर एक युग
कहो तो भी 4 अवतार होने चाहिए। उन्होंने तो कितने अवतार दिखाये हैं। ऊंचे से ऊंचा
एक बाप है जो ही हेविन रचते हैं। भारत ही हेविन था, वाइसलेस था फिर तुम यह प्रश्न
उठा नहीं सकते हो कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं। वह तो जो रस्म-रिवाज होगी वह चलेगी।
तुम क्यों फिक्र करते हो। पहले तुम बाप को तो जानो। वहाँ आत्मा का ज्ञान रहता है।
हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। रोने की बात नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं
होती है। खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। तो बाप ने समझाया है मैं कैसे रूप बदलकर आता
हूँ। श्रीकृष्ण के लिए नहीं कहेंगे। वह तो गर्भ से जन्म लेते हैं। ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर है सूक्ष्मवतनवासी। प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए, हम उनकी सन्तान हैं। वह
निराकार बाप अविनाशी है, हम आत्मायें भी अविनाशी हैं। परन्तु हमको पुनर्जन्म में
जरूर आना है। यह ड्रामा बना हुआ है। कहते हैं फिर से आकर गीता का ज्ञान सुनाओ, तो
जरूर सब चक्र में आयेंगे, जो होकर गये हैं। बाप भी होकर गये हैं फिर आये हुए हैं।
कहते हैं फिर से आकर गीता सुनाता हूँ। बुलाते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया
है। सब पतित हैं तब तो पाप धोने के लिए गंगा स्नान करने जाते हैं। स्वर्ग में यह
भारत ही था, भारत है ऊंच अविनाशी खण्ड सबका तीर्थ स्थान। सब मनुष्य-मात्र पतित हैं।
सबको जीवनमुक्ति देने वाला वह बाप है। जरूर जो इतनी बड़ी सर्विस करते हैं, उनकी
महिमा गानी चाहिए। अविनाशी बाप का बर्थप्लेस है भारत। वही सबको पावन बनाने वाला है।
बाप अपने बर्थ प्लेस को छोड़ और कहाँ जा न सके। तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे रूप
रचता हूँ।
सारा मदार धारणा पर है। धारणा पर ही तुम बच्चों का मर्तबा है। सबकी मुरली एक जैसी
हो नहीं सकती। भल काठ की मुरली सब बजायें तो भी एक जैसी नहीं बजा सकते। हर एक की
एक्ट का पार्ट अलग है। इतनी छोटी-सी आत्मा में कितना भारी पार्ट है। परमात्मा भी
कहते हैं हम पार्टधारी हैं। जब धर्म ग्लानी होती है तब मैं आता हूँ। भक्ति मार्ग
में भी मैं देता हूँ। ईश्वर अर्थ दान-पुण्य करते हैं तो ईश्वर ही उनका फल देते हैं।
सब अपने को इन्श्योर करते हैं। जानते हैं इसका फल दूसरे जन्म में मिलेगा। तुम
इन्श्योर करते हो 21 जन्मों के लिए। वह है हद का इन्श्योरेन्स, इन्डायरेक्ट और यह
है बेहद का इन्श्योरेन्स, डायरेक्ट। तुम तन-मन-धन से अपने को इन्श्योर करते हो फिर
अथाह धन पायेंगे। एवरहेल्दी, वेल्दी बनेंगे। तुम डायरेक्ट इन्श्योर कर रहे हो।
मनुष्य ईश्वर अर्थ दान करते हैं, समझते हैं ईश्वर देगा। वह कैसे दिलाते हैं यह
थोड़ेही समझते हैं। मनुष्य समझते हैं जो कुछ मिलता है ईश्वर देता है। ईश्वर ने बच्चा
दिया, अच्छा, देते हैं तो फिर लेंगे भी जरूर। तुम सबको मरना जरूर है। साथ कुछ भी तो
नहीं जायेगा। यह शरीर भी खत्म होना है इसलिए अब जो इन्श्योर करना है वह करो फिर 21
जन्म इन्श्योर हो जायेंगे। ऐसे नहीं कि इन्श्योर कर और सर्विस कुछ भी न करो, यहाँ
ही खाते रहो। सर्विस तो करनी है ना। तुम्हारा खर्चा भी तो चलता है ना। इन्श्योर कर
और खाते ही रहते तो मिलेगा कुछ नहीं। मिले तब जब सर्विस करो तो ऊंच पद भी पायेंगे।
जितना जो जास्ती सर्विस करते हैं, उतना जास्ती मिलता है। थोड़ी सर्विस तो थोड़ा
मिलेगा। गवर्मेन्ट के सोशल वर्कर भी नम्बरवार होते हैं। उनके बड़े-बड़े हेड्स होते
हैं। अनेक प्रकार के सोशल वर्कर्स हैं। वह हैं जिस्मानी, तुम्हारी है रूहानी सर्विस।
हर एक को तुम यात्री बनाते हो। यह है बाप के पास जाने की रूहानी यात्रा। बाप कहते
हैं देह सहित देह के सब सम्बन्धों को और गुरू गोसाई आदि को भी छोड़ो। मामेकम् याद
करो। परमपिता परमात्मा निराकार है, साकार रूप धारण कर समझाते हैं। कहते हैं मैं लोन
लेता हूँ, प्रकृति का आधार लेता हूँ। तुम भी नंगे आये थे, अब फिर सबको वापिस जाना
है। सब धर्म वालों को कहते हैं, मौत सामने खड़ा है। यादव, कौरव खलास हो जायेंगे।
बाकी पाण्डव फिर आकर राज्य करेंगे। यह गीता एपीसोड रिपीट हो रहा है। पुरानी दुनिया
का विनाश होना है, 84 जन्म लेते-लेते अब यह ओल्ड हो गया है। 84 जन्म पूरे हुए, नाटक
पूरा हुआ। अब वापिस जाना है, शरीर छोड़ घर जाते हैं। एक-दो को यही स्मृति दिलाते
हैं - अभी वापिस जाना है। अनेक बार यह पार्ट बजाया है 84 जन्मों का। यह नाटक अनादि
बना हुआ है, जो-जो जिस धर्म वाले हैं, उनको अपने सेक्शन में जाना है। जो देवी-देवता
धर्म प्राय:लोप हो गया है, उनके लिए सैपलिंग लग रही है। जो फूल होंगे वह आ जायेंगे।
अच्छे-अच्छे फूल आते हैं फिर माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं फिर ज्ञान की
संजीवनी बूटी मिलने से उठ पड़ते हैं। बाप भी कहते हैं तुम शास्त्र पढ़ते आये हो।
बरोबर इनके गुरू आदि भी थे। बाप कहते हैं गुरूओं सहित सबकी सद्गति करने वाला एक ही
है। एक सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति। राजा-रानी तो प्रवृत्ति मार्ग हो गया।
वाइसलेस प्रवृत्ति मार्ग था। अब सम्पूर्ण विशश हैं। वहाँ रावण का राज्य होता नहीं।
रावण का राज्य आधा-कल्प से शुरू होता है, भारतवासी ही रावण से हार खाते हैं। बाकी
और सब धर्म वाले अपने-अपने समय पर सतो, रजो, तमो से पास होते हैं। पहले सुख फिर
दु:ख में आते हैं। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है ही। इस समय सब तमोप्रधान जड़जड़ीभूत
हैं, हर आत्मा एक शरीर छोड़ फिर दूसरा नया शरीर लेती है। बाप कहते हैं मैं जन्म-मरण
में नहीं आता हूँ। मेरा कोई बाप हो नहीं सकता। और सबको तो बाप हैं। श्रीकृष्ण का भी
जन्म माँ के गर्भ से होता है। यही ब्रह्मा जब राज्य लेंगे तब गर्भ से जन्म लेंगे।
इनको ही ओल्ड से न्यु बनना है। 84 जन्मों का ओल्ड है। मुश्किल कोई को यथार्थ बुद्धि
में बैठता है और नशा चढ़ता है। यह कस्तुरी नॉलेज है खुशबूदार। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूहानी सोशल वर्कर बन सबको रूहानी यात्रा सिखानी है। अपने देवी-देवता
धर्म की सैपलिंग लगानी है।
2) अपनी रिफाइन बुद्धि से बाप का शो करना है। पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों
को सुनाना है।