ओम् शान्ति।
बाप फरमाते हैं कि तुम हो ब्राह्मण सम्प्रदाय, तुमको अब दैवी सम्प्रदाय नहीं कह सकते।
तुम अब हो ब्राह्मण सम्प्रदाय, पीछे दैवी सम्प्रदाय बनने वाले हो। यह जो रामायण है,
आज (दशहरे पर) जैसे इनका रामायण पूरा होने वाला है परन्तु पूरा होता नहीं। अगर रावण
मरता है तो रामायण की कथा पूरी होनी चाहिए, परन्तु होती नहीं है। छुटकारा होता है
महाभारत से। अब यह भी समझने की बाते हैं। रामायण क्या है और महाभारत क्या है? दुनिया
तो इन बातों को जानती नहीं। रामायण और महाभारत दोनों का कनेक्शन है। महाभारत लड़ाई
से रावण राज्य खत्म होता है। फिर यह दशहरा आदि मनाने का ही नहीं है। गीता अथवा
महाभारत भी है रावण राज्य को खत्म करने वाले। अभी तो टाइम है, तैयारी भी हो रही है
– वह है हिंसक, तुम्हारी है अहिंसक। तुम्हारी है गीता, तुम गीता का ज्ञान सुनते हो।
उससे क्या होने का है? रावणराज्य खलास होने का है। वह भल रावण को मारते हैं परन्तु
रामराज्य तो होता नहीं। अब रामायण और महाभारत है ना। तो महाभारत है रावण को खलास
करने के लिए। यह बड़ी गुह्य समझने की बातें ह़ैं इसमें विशाल बुद्धि चाहिए। बाप
समझाते हैं महाभारत लड़ाई से रावणराज्य खत्म होता है। ऐसे नहीं कि सिर्फ रावण को
मारने से रावण राज्य खत्म हो जाता है। उसके लिए तो संगम चाहिए। अब संगम है। अब तुम
तैयारी कर रहे हो, रावण पर विजय पाने की। इसमें ज्ञान के अस्त्र शस्त्र चाहिए। वह
नहीं। जैसे दिखाते हैं रावण और राम की युद्ध हुई। यह शास्त्र सब है भक्ति मार्ग के।
अभी तुम रावण राज्य पर विजय पाते हो योगबल से। यह हो गई गुप्त बात। 5 विकारों रूपी
रावण पर तुम्हारी विजय होती है। किससे? गीता से। बाबा तुमको गीता सुना रहे हैं।
भागवत तो है नहीं। भागवत में दिखाते हैं कृष्ण चरित्र। कृष्ण के चरित्र तो कुछ हैं
नहीं। तुम जानते हो जब विनाश होगा, महाभारी लड़ाई लगेगी, उनसे ही रावणराज्य खत्म हो
जायेगा। सीढ़ी में भी दिखाया गया है। जब से रावण राज्य शुरू हुआ है तब से भक्ति
मार्ग हुआ है। यह तुम ही जानते हो। गीता का कनेक्शन महाभारत लड़ाई से है। तुम गीता
सुनकर राज्य पाते हो और लड़ाई लगती है सफाई के लिए। बाकी भागवत में चरित्र आदि फालतू
हैं। शिव पुराण में कुछ भी नहीं है। नहीं तो गीता का नाम होना चाहिए शिव पुराण।
शिवबाबा बैठ ज्ञान देते हैं – सबसे ऊंची है गीता। गीता सब शास्त्रों से छोटी है और
सब पुस्तक बहुत बड़े बनाये हैं। मनुष्यों की जीवन कहानी भी बहुत बड़ी-बड़ी बनाई है।
नेहरू ने शरीर छोड़ा, उनके कितने बड़े वाल्युम बनाते हैं। यह गीता शिवबाबा के
वाल्यूम्स की कितनी बड़ी होनी चाहिए। परन्तु गीता कितनी छोटी है क्योंकि बाप सुनाते
ही एक बात हैं कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और चक्र को समझो। बस, इसलिए
गीता छोटी बना दी है। यह ज्ञान है कण्ठ करने का। तुमको मालूम है गीता का लॉकेट बनाते
हैं। उसमें छोटे अक्षर होते हैं। अब बाबा भी तुम्हारे गले में लॉकेट पहनाते हैं –
त्रिमूर्ति और राजाई का। बाबा कहते हैं गीता है दो अक्षर – अल्फ और बे। यह है गुप्त
मन्त्र का लॉकेट मनमनाभव। मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। तुम्हारा काम है
योगबल से विजय पाना फिर तुम्हारे लिए सफाई भी चाहिए। बाप समझाते हैं कि तुम्हारे
योगबल से ही रावणराज्य का विनाश होना है। रावण-राज्य कब शुरू हुआ है, यह भी जानते
नहीं। यह ज्ञान बड़ा सहज है। सेकेण्ड की बात है ना। 84 जन्मों की सीढ़ी में भी
इतने-इतने जन्म लिए हैं। कितना सहज है। बाप है ज्ञान का सागर। ज्ञान सुनाते ही आते
हैं। तुम सब मुरली के कागज इकट्ठे करो तो ढेर हो जाएं। बाप डिटेल में समझाते हैं।
नटशेल में तो कहते हैं – अल्फ को याद करो। बस बाकी टाइम किसमें लगाते हैं? तुम्हारे
सिर पर पापों का बोझा बहुत है। वह याद से ही उतरना है, इसमें मेहनत लगती है।
घड़ी-घड़ी तुम भूल जाते हो। तुम बाबा को याद करते रहो तो कभी विघ्न नहीं पड़ेंगे।
देह-अभिमानी बनने से विघ्न पड़ते हैं। देही-अभिमानी बनते हो अन्त में। फिर आधाकल्प
कुछ विघ्न नहीं पड़ता। यह कितनी गुह्य बातें हैं समझने की। शुरू से लेकर कितना
सुनाते आये हैं फिर भी कहते हैं सिर्फ अल्फ बे को याद करो। बस। झाड़ का है विस्तार।
बीज तो छोटे से छोटा होता है। झाड़ कितना बड़ा निकलता है।
आज दशहरा है ना। अब बाबा समझाते हैं – रामायण का महाभारत से क्या सम्बन्ध है।
रामायण तो भक्ति मार्ग का है। आधाकल्प से चला आता है। गोया अब रावणराज्य चल रहा है।
फिर महाभारत आयेगा तो रावण राज्य खत्म हो रामराज्य शुरू हो जायेगा। रामायण और
महाभारत में क्या फ़र्क है? रामराज्य की स्थापना और रावणराज्य का विनाश होने का है।
गीता सुनकर तुम विश्व का मालिक बनने लायक बनते हो। गीता और महाभारत भी है अभी के
लिए। रावणराज्य खत्म होने के लिए। बाकी उन्होंने जो लड़ाई दिखाई है वह रांग है।
लड़ाई है 5 विकारों पर जीत पाने की। तुमको बाप गीता के दो अक्षर सुनाते हैं
मनमनाभव-मध्याजी भव। गीता के शुरू में और अन्त में यह दो अक्षर आते हैं। बच्चे समझते
हैं – बरोबर गीता का एपीसोड चल रहा है। परन्तु किसको कहेंगे तो कहेंगे कृष्ण कहाँ
है? बाबा की समझानी और भक्ति मार्ग के शास्त्रों में कितना फर्क है। यह कोई नहीं
जानता – कि यह रामायण क्या है? महाभारत क्या है? महाभारत लड़ाई के बाद ही स्वर्ग के
द्वार खुलते हैं। परन्तु मनुष्य यह समझेंगे नहीं, इसलिए तुम परिचय ही बाप का दो।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। यह बाप सारी दुनिया के लिए कहते हैं। एक गीता को ही
खण्डन किया है। गीता का सभी भाषाओं में प्रचार है। तुम्हारे राज्य में भाषा ही एक
होगी। वहाँ कोई शास्त्र पुस्तक आदि नहीं होगा। वहाँ भक्ति मार्ग की कोई बात नहीं
रहती। भारत का तैलुक है ही रामायण, महाभारत और गीता से। भगवान तो बच्चों को गीता
सुनाते हैं, जिससे तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। महाभारत लड़ाई जरूर लगनी चाहिए, जो
पतित दुनिया खत्म हो जाए। गीता से तुम पावन बनते हो। पतित-पावन भगवान आते ही अन्त
में हैं। कहते हैं काम महाशत्रु है, इस पर विजय पानी है। काम विकार से कभी हार नहीं
खानी है, इनसे बहुत नुकसान होता है। विकारों के पिछाड़ी बड़े-बड़े नामीग्रामी,
मिनिस्टर्स आदि भी अपना नाम बदनाम करते हैं। काम के पिछाड़ी बहुत खराब होते हैं
इसलिए बाप समझाते हैं – बाबा के पास जवान-जवान बच्चे आते हैं। ऐसे बहुत हैं जो
ब्रह्मचर्य में रहते हैं। सारी आयु शादी नहीं करते हैं। फीमेल्स भी होती हैं। नन्स
कब विकार में नहीं जाती। परन्तु उससे कोई प्राप्ति है नहीं। यहाँ तो बात है पवित्र
बन जन्म-जन्मान्तर स्वर्ग के मालिक बनने की। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर
पर है। वह जब कटे तब स्वर्ग में चलें। यहाँ मनुष्य पाप करते रहते हैं। करके एक जन्म
कोई संन्यासी बनते हैं, जन्म तो विकार से लेते हैं। रावणराज्य में विकार बिगर जन्म
होता नहीं। पूछते हैं, वहाँ जन्म कैसे होगा? योगबल किसको कहा जाता है? यह पूछने की
दरकार नहीं है। है ही सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। रावण राज्य ही नहीं तो प्रश्न उठ
नहीं सकता। सब साक्षात्कार होंगे। जब बूढ़े होते हैं तो यह साक्षात्कार होता है कि
जाकर बच्चा बनूँगा। माता के गर्भ में जाऊंगा। यह नहीं मालूम रहता कि फलाने घर जाऊंगा।
सिर्फ अब छोटा बच्चा बनना है, मोर और डेल का मिसाल है। आंखों के आंसू से गर्भ होता
है। पपीते के झाड़ में भी एक मेल, एक फीमेल का झाड़ होता है। एक दो के बाजू में होने
से फल देते हैं। यह भी वन्डर है। जब जड़ चीजों में भी ऐसा है तो चैतन्य में सतयुग
में क्या नहीं हो सकता है। यह सब डिटेल आगे चलकर समझ में आ जायेगा। मुख्य बात है
तुम बाप को याद कर तमोप्रधान से सतोप्रधान बन वर्सा तो ले लो। फिर वहाँ की रसम जो
होगी सो देखेंगे। तुम योगबल से विश्व के मालिक बनते हो, तो बच्चा क्यों नहीं पैदा
हो सकता। ऐसे-ऐसे प्रश्न बहुत पूछते हैं फिर कोई बात में जवाब पूरा नहीं मिला तो
गिर पड़ते। थोड़ी बात पर भी संशय आ जाता है। शास्त्रों में ऐसी कोई बातें हैं नहीं।
शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के। परमपिता परमात्मा आकर ब्राह्मण धर्म, सूर्यवंशी
चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना करते हैं। ब्राह्मण हैं संगमयुगी। बाबा को संगमयुग पर
आना पड़ता है। पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ। उस तरफ वाले कहते हैं हे लिबरेटर,
दु:ख से लिबरेट करो। दु:ख देते कौन हैं – यह भी उन्हों को मालूम नहीं। तुम जानते हो
रावणराज्य खत्म होता है। तुमको बाबा राजयोग सिखलाते हैं। जब पढ़ाई पूरी होती है तब
विनाश होता है, जिसका नाम महाभारत रखा है। महाभारत में रावण राज्य खत्म होता है।
दशहरे में एक रावण को खत्म करते हैं। वह हैं हद की बातें। यह हैं बेहद की बातें। यह
सारी दुनिया खत्म हो जायेगी। तो इतनी छोटी-छोटी बच्चियाँ नॉलेज कितनी बड़ी ले रही
हो। वह जिस्मानी नॉलेज जैसे घासलेट है, यह है सच्चा घी। तो रात-दिन का फर्क है ना।
रावण राज्य में तुमको घासलेट खाना पड़ता है। आगे इतना सस्ता सच्चा घी मिलता था, फिर
महंगा हो गया तो घासलेट (तेल) खाना पड़ा। यह गैस, बिजली आदि पहले कुछ भी नहीं था।
थोड़े ही वर्षो में कितना फ़र्क पड़ा है। अभी तुम जानते हो सब खत्म होने वाला है।
शिवबाबा हमें लक्ष्मी-नारायण जैसा बनने के लिए पढ़ा रहे हैं। यह नशा इस बाबा को तो
बहुत रहता है। बच्चों को माया भुला देती है। जब कहते हैं हम बाबा से वर्सा लेने आये
हैं तो वह नशा क्यों नहीं चढ़ता! स्वीट होम, स्वीट राजधानी भूल जाती है। बाबा जानते
हैं जो जो हड्डी सर्विस करते हैं वही महाराजकुमार बनेंगे। तुमको यह नशा क्यों नहीं
रहता है? क्योंकि याद में नहीं रहते हैं। सर्विस में पूरा तत्पर नहीं रहते हैं। कभी
तो सर्विस में उछल पड़ते, कभी ठण्डे हो जाते। यह हर एक अपने से पूछो – ऐसा होता है
ना। कभी-कभी भूलें भी हो जाती है, इसलिए बाबा समझाते हैं। जबान बड़ी मीठी चाहिए,
सबको राज़ी करना है। किसको आवेश न आये। बाप कितना प्यार का सागर है। अब गऊ कोस बन्द
कराने के लिए कितना माथा मारते हैं। बाबा कहते हैं सबसे बड़ा कोस है काम कटारी चलाना।
पहले तो वह बन्द करो। बाकी वह कोई बन्द होने का नहीं है, कितना माथा मारते हैं। यह
काम कटारी दोनों को नहीं चलाना चाहिए। कहाँ मनुष्यों की बात, कहाँ बाप की बात। जो
काम विकार को जीतेंगे वही पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान प्यार का सागर बनना है। कभी भी आवेश में नहीं आना है। अपनी
जबान बड़ी मीठी रखनी है। सबको राज़ी करना है।
2) हड्डी सर्विस करनी है। नशे में रहना है कि अब यह पुराना शरीर छोड़ जाकर
प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे।