02-07-12  प्रात: मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

“मीठे बच्चे - तुम्हें कर्म संन्यास नहीं लेकिन विकर्मों का संन्यास करना है, कोई भी विकर्म अर्थात् पाप कर्म नहीं करने हैं"

 

प्रश्नः- तुम बच्चे किस अभ्यास से डेड साइलेन्स का अनुभव कर सकते हो?

 

उत्तर:- अशरीरी बनने का अभ्यास करो। एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न आये। शरीर से जैसे मरे हुए हैं। इसी अभ्यास से आत्मा डेड साइलेन्स की अनुभूति कर सकती है।

 

प्रश्नः- सर्व दु:खों से छूटने की सहज विधि क्या है?

 

उत्तर:- ड्रामा को अच्छी रीति बुद्धि में रखो। हर एक पार्टधारी को साक्षी होकर देखो तो दु:खों से छूट जायेंगे। कभी किसी बात का धक्का नहीं आयेगा।

 

गीत:- ओम् नमो शिवाए....

 

ओम् शान्ति। यह जो गीत में अक्षर निकलते हैं शिवाए नम: यह भक्ति के वचन हैं। हे शिवबाबा आपको हम नमस्कार करते हैं। परन्तु भगत लोग जानते ही नहीं कि शिवबाबा कौन है, कोई एक भी शिव का भगत शिव को नहीं जानते हैं। शिवबाबा बिल्कुल साधारण अक्षर है। तो शिवाए नम: कहना यह भी भक्ति का अंश है। अब तुमको क्या कहना है? तुम कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि शिवाए नम: कहो। वास्तव में कहने की भी दरकार नहीं रहती। बच्चों को घड़ी-घड़ी नहीं कहा जाता कि बाप को याद करो। वह तो छोटे बच्चों को सिखलाया जाता है वा अल्फ बे पढ़ाया जाता है। वास्तव में इसमें कहना भी कुछ नहीं है। मनमनाभव भी नहीं कहना होता, यह भी संस्कृत अक्षर है। तुमको तो कभी संस्कृत में समझाया नहीं गया है। बच्चे जानते हैं हमको तो बाप को ही याद करना है। आत्मा स्वयं जानती है, बाप ने परिचय दिया है। बच्चे अब मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। तो याद करना बच्चों का फर्ज हुआ। यहाँ आकर जब बैठते हो तो बाप की याद में अशरीरी होकर बैठना है। ज्ञान भी बुद्धि में बैठता है। हम आत्मा बाप को याद करते हैं। यह शरीर तो आरगन्स हैं, इनकी क्या वैल्यू है। बाजा कितना भी फर्स्टक्लास हो, अगर मनुष्य बजाता ठीक नहीं हो तो बाजा किस काम का। ऐसे ही मुख्य आत्मा है। आत्मा जानती हैं - हमें यह आरगन्स मिले हैं कर्म करने के लिए। हम कर्मयोगी हैं, कर्म संन्यासी हो नहीं सकते। वह तो कायदे के विरुद्ध है। विकर्मों का संन्यास किया जाता है कि हमसे कोई विकर्म न हो, पाप नहीं हो। सबसे बड़ा विकार है काम का। संन्यास धर्म वाले जास्ती विकार को पाप अथवा दुश्मन मानते हैं इसलिए ड्रामा अनुसार उनका धर्म ही है जंगल में चले जाना। घरबार का संन्यास करना, यह भी ड्रामा में नूंध है। उन्हों को यह करना ही पड़े। वह धर्म ही अलग है। उनको कोई भारत का आदि सनातन धर्म नहीं कहेंगे। आदि सनातन है ही देवी-देवता धर्म। बाकी तो बेशुमार धर्म हैं। संन्यासियों का भी एक धर्म है, जो मनुष्य ही स्थापन करते हैं। भगवान नहीं स्थापन करते हैं। बाबा ने समझाया है कि कोई भी धर्म एक दो के पिछाड़ी मनुष्य स्थापन करते हैं। तुम ऐसा नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा ने कोई क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, वा संन्यासियों के निवृत्ति मार्ग का धर्म स्थापन किया, नहीं। गाया हुआ है परमपिता परमात्मा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय धर्म स्थापन करते हैं। और कोई भी धर्म भगवान नहीं स्थापन करते। ड्रामा अनुसार हर एक अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं। ऐसा भी नहीं कि परमात्मा किसको कहते कि फलाने जाओ, जाकर धर्म स्थापन करो। यह बना बनाया ड्रामा है। हर एक को अपने समय पर आकर अपना धर्म स्थापन करना है क्योंकि पवित्र आत्मा है। पवित्र आत्मा बिगर कोई कब धर्म स्थापन कर नहीं सकते, कायदा नहीं। आत्मा आकर धर्म स्थापन करती है और पवित्र रहती है। और सब धर्म मनुष्य स्थापन करते हैं, यह एक देवी-देवता धर्म बाप स्थापन करते हैं क्योंकि उनको कहा जाता है हे पतित-पावन आकर नई दुनिया बनाओ। बुद्धि कहती है भारत पावन था, अब पतित है, इसलिए पुकारते हैं। पावन दुनिया में तो कोई पुकारेंगे नहीं। मनुष्य तो जानते ही नहीं कि पावन दुनिया कब होती है। पुकारते ही रहते हैं, अन्त तक पुकारते रहेंगे। याद करते रहेंगे। वह इन बातों को समझेंगे नहीं, जितना तुम समझते हो। तुम्हारी यह पढ़ाई है, यह पाठशाला है परमपिता परमात्मा की। यह भी प्रश्न बोर्ड पर बनवाकर लिखो, गीता का भगवान कौन? एक तरफ लिखो बाप की महिमा। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप सत है, चैतन्य है, ज्ञान का सागर है। तुम कृष्ण को पवित्रता का सागर नहीं कह सकते हो क्योंकि वह जन्म मरण में आते हैं। श्रीकृष्ण की भी महिमा लिखनी है सर्वगुण सम्पन्न....। इन बातों को मनुष्य तो एकदम भूले हुए हैं, रावण ने भुला दिया है। गीता का भगवान ही सृष्टि का रचयिता है, उनको भूल गये हैं। पहले नम्बर की एकज़ भूल यह है। गीता का भगवान सिद्ध हो जाए तो सर्वव्यापी की बात भी निकल जाये। भगवान कभी ऐसे कह नहीं सकते कि मैं सर्वव्यापी हूँ। बाप कहते हैं कि मैं पतित-पावन हूँ, मैं सर्वव्यापी कैसे हो सकता। एक एक से कितनी मेहनत करनी पड़ती है। बच्चों को समझाया गया है कि जब यहाँ बैठते हो तो सिवाए एक बाप के और कोई को याद नहीं करो। परन्तु जिनकी प्रैक्टिस नहीं है, सारा दिन सर्विस में रहते हैं, वह निरन्तर शिवबाबा को याद करें, यह बड़ा मुश्किल है। याद न करने से वह डेड साइलेन्स हो नहीं सकते। तुम अशरीरी बन जाते हो, गोया शरीर से मर जाते हो। मरता शरीर है, आत्मा थोड़ेही मरती है। आत्मा कहती है मैं शरीर छोड़ता हूँ। मै मरता हूँ, यह अक्षर कहना रांग है। आत्मा ने शरीर छोड़ा यह राइट अक्षर है। यह समझ की बात है, आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा ले पार्ट बजाती है। पार्टधारी तो सब हैं ना। आत्मा पार्ट बजाती रहती है। अभी तुम बच्चों को यह ज्ञान मिलता है। ड्रामा प्लैन अनुसार उनको दूसरा शरीर ले फिर पार्ट बजाना है। इसमें दु:ख हम क्यों करें। इस ड्रामा में हम एक्टर हैं। यह बात भूल जाती है। ड्रामा को जान जायें तो दु:ख कभी हो नहीं सकता। तुम ड्रामा के आदि मध्य-अन्त को जानकर कहते हो - फलानी आत्मा ने शरीर छोड़ा, जाकर दूसरा शरीर लिया। हर एक अपना पार्ट बजा रहे हैं। भल तुमको ज्ञान मिला है तो भी जब तक परिपक्व अवस्था हो तब तक कुछ धक्का आ जाता है। रावण राज्य में जड़जड़ीभूत हुए हैं ना। तो झट धक्का आ जाता है। सतयुग में कभी धक्का नहीं आता। वहाँ तो बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं। अब नया शरीर जाकर लेना है। सर्प का मिसाल....। यहाँ तो ढेर रोने लग पड़ते हैं। कहाँ-कहाँ से आकर सयापा करते हैं। सतयुग में यह बातें नहीं होती हैं। तुम संगमयुग पर ही रामराज्य, रावण राज्य की रसम-रिवाज को जानते हो। रामराज्य में तुम रावण राज्य को नहीं जानते हो। रावण राज्य में तुम रामराज्य को नहीं जानते हो। संगम पर तुम दोनों को जानते हो। बाबा आकर सारे ड्रामा के आदि मध्य अन्त का राज़ समझाते हैं। फीलिंग आनी चाहिए कि बरोबर यह बात ठीक है। जब तक तुम ब्राह्मण नहीं थे तब तक कुछ नहीं जानते थे। ज्ञान बिगर मनुष्य तो जैसे जंगली हैं। गवर्मेन्ट भी कहती है मनुष्य को पढ़ाई जरूर चाहिए। गांवड़े वाले पढ़ते नहीं हैं। अपनी खेती बाड़ी में ही लगे रहते हैं। तो बाहर वाले कहते हैं - यह तो जंगली हैं। हमको तो अब बाप बैठ पढ़ाते हैं। हम गार्डन के फूल बनते हैं। वह हैं जंगल के कांटे। तुमको मालूम पड़ा है तब समझ सकते हो। दुनिया में ऊंच ते ऊंच गुरू को माना जाता है क्योंकि समझते हैं कि वह सद्गति करते हैं। परन्तु बाप ने समझाया है यह तो भक्ति में फंसाते हैं। भक्ति की धुन में बैठते हैं तो झूमते रहते हैं। तुमको झूमने आदि की दरकार नहीं। यहाँ तो बाप से वर्सा लेना है। बच्चा बड़ा होता है - समझ जाता है बाप से हमको वर्सा मिलना है। छोटे बच्चे के आरगन्स ही छोटे हैं। तुम तो समझ सकते हो - हमको अपना जीवन कैसा ऊंच बनाना है। बरोबर भारत हीरे जैसा था। गीता में अगर परमपिता परमात्मा का नाम होता तो सब कुछ समझ जाते। परमपिता परमात्मा ही सर्व का सद्गति दाता है। उनकी शिव जयन्ती भी भारत में ही मनाते हैं। वास्तव में भारत तो सबसे बड़ा तीर्थ है। सबकी सद्गति करने वाला जो बाप है, उनका जन्म यहाँ भारत में होता है। अभी तुमको पता पड़ा है - बाप कैसे भारत देश में आते हैं। अब कौन सा तीर्थ स्थान ऊंच मानेंगे? जरूर भारत को ही मानना पड़े। शिव के मन्दिर तो जहाँ तहाँ हैं। सब धर्म वाले जहाँ भी शिव का मन्दिर देखेंगे तो जाकर शिवबाबा पर हार चढ़ायेंगे। अगर जान जायें कि शिवबाबा ही है जिसने हम सबकी सद्गति की है तो भटकना छूट जाए। भारत को ही अविनाशी सचखण्ड कहते हैं। भारत कभी विनाश नहीं होता है। यह भी तुम जानते हो। भारत में जब देवी-देवता धर्म था तो और धर्म वाले वा खण्ड नहीं थे।

 

तुम बच्चे जानते हो बाप अभी यहाँ फैमली सहित बैठा है। यह ईश्वरीय फैमली है और वह है आसुरी फैमली। तुम्हारे में भी कोई-कोई हैं जो अच्छी तरह समझते हैं। शुद्ध अहंकार में रहते हैं। देह-अभिमान है अशुद्ध अंहकार। देवताओं के चेहरे पर कितना हर्षितपना रहता है। तुम्हारा शुद्ध अहंकार गुप्त है। आत्मा को बहुत खुशी होती है। ओहो! कल्प बाद फिर से बाबा मिला है। हमको राज्य भाग्य का वर्सा देने के लायक बना रहे हैं। बड़ी खुशी रहनी चाहिए। तुम्हारे अगेंस्ट बहुत हैं। तुम्हारी एक बात है - ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है और दूसरा गीता का भगवान कृष्ण नहीं है। यह हैं मुख्य दो भूलें इसलिए बाबा कहते हैं कि पहले-पहले पूछो परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है? और यह भी पूछो कि गीता का भगवान कौन है? जज करो - इस पहेली को। इसको हल करने से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते हो। जनक मिसल सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। यह तो भारत में मशहूर है। उसने कहा कौन है जो हमको सेकेण्ड में ब्रह्म ज्ञान देवे। यह ब्रह्मा ज्ञान है ना। जो ब्राह्मण ब्राह्मणियां देते हैं। उनको ज्ञान देने वाला ज्ञान का सागर शिव है। इन बातों को तो वह समझते नहीं। ब्रह्म ज्ञान कह देते हैं। ब्रह्मा भोजन को ब्रह्म भोज कह देते हैं। ब्रह्म तत्व है। ब्रह्मा तो है बाप। उनका बाप है शिव। यह बातें मनुष्य बिल्कुल नहीं जानते हैं। पहले तुमको यह बातें थोड़ेही समझाई थी। पहले तो तुम बच्चे सगीर थे, अब बालिग हुए हो। बाप कहते हैं आज तुम्हें गुह्य बातें समझाते हैं। बात बिल्कुल सहज है - मनमनाभव। जैसे बीज और झाड़ का विस्तार कितना लम्बा है। समझाते रहते हैं। अभी हम त्रिकालदर्शी बन गये हैं। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त को जान गये हैं। इस समय तुम्हारे सिवाए और कोई सृष्टि के आदि मध्य अन्त को नहीं जानते हैं। हम भी नहीं जानते थे। अभी तुम समझते हो जबसे जास्ती भक्ति शुरू हुई है, हमारी उतरती कला होती गई है। चढ़ती कला होती है तो सर्व का भला होता है। उतरती कला में किसका भला होता है क्या? यह सब समझने की बातें हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। यह बड़ी अच्छी टॉपिक है। गीता का भगवान कौन? इस पहेली को हल करने से तुम बाप का वर्सा पाकर विश्व का मालिक बन सकते हो। मनुष्य विश्व का मालिक निराकार को समझते हैं। परन्तु विश्व तो सृष्टि को कहा जाता है। बाप विश्व का मालिक नहीं बनता।

 

बाप कहते हैं मैं निष्काम सेवाधारी हूँ। तुम मोस्ट बिलवेड चिल्ड्रेन हो। मैं तुम्हारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। तुम पुकारते हो हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ। हाज़िर सरकार, आया हूँ। बाप बच्चों का सर्वेन्ट ही है। फिर कोई कपूत भी निकल पड़ते हैं। बाप तो निराकारी, निरंहकारी गाया हुआ है। ऊंच ते ऊंच भगवान और फिर उनका यह रथ। कई बच्चे कहते हैं - हम शिवबाबा के रथ के लिए कपड़ा भेज देते हैं। रथ की तो हम खातिरी कर सकते हैं ना। शिवबाबा तो खाते नहीं हैं। किसकी खातिरी करें! इनकी ड्रेस तो वही चली आ रही है। कोई अंहकार नहीं, कोई चेंज नहीं। इनको देखकर समझते हैं - यह तो जौहरी था। यह कैसे प्रजापिता हो सकता। अरे इसमें मूंझने की क्या बात है, आकर समझो। हम ब्रह्मा मुख द्वारा वंशावली बने हैं। हमारा हक लगता है विश्व का मालिक बनने का। अच्छा!

 

मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) अशुद्धता को छोड़ शुद्ध अंहकार में रहना है। यह चेहरा देवताओं जैसा सदा हर्षित रखने के लिए अपार खुशी में रहना है।

 

2) बापदादा समान निरंहकारी बनना है। सेवाधारी बनकर सबूत देना है, कभी कपूत नहीं बनना है।

 

वरदान:- परमात्म श्रीमत के आधार पर हर कदम उठाने वाले अविनाशी वर्से के अधिकारी भव

 

संगमयुग पर आप श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को जो परमात्म श्रीमत मिल रही है - यह श्रीमत ही श्रेष्ठ पालना है। बिना श्रीमत अर्थात् परमात्म पालना के एक कदम भी उठा नहीं सकते। ऐसी पालना सतयुग में भी नहीं मिलेगी। अभी प्रत्यक्ष अनुभव से कहते हो कि हमारा पालनहार स्वयं भगवान है। यह नशा सदा इमर्ज रहे तो बेहद के खजानों से भरपूर स्वयं को अविनाशी वर्से के अधिकारी अनुभव करेंगे।

 

स्लोगन:- सपूत बच्चा वह है जो सम्पूर्ण पवित्र और योगी बन स्नेह का रिटर्न देता है।