29-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप को तुम बच्चे ही प्यारे हो, बाप तुम्हें
ही सुधारने के लिए श्रीमत देते हैं, सदा ईश्वरीय मत पर चल स्वयं को पवित्र बनाओ”
प्रश्नः-
विश्व में
शान्ति की स्थापना कब और किस विधि से होती है?
उत्तर:-
तुम
जानते हो विश्व में शान्ति तो महाभारत लड़ाई के बाद ही होती है। लेकिन उसके लिए
तुम्हें पहले से ही तैयार होना है। अपनी कर्मातीत अवस्था बनाने की मेहनत करनी है।
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिमरण कर बाप की याद से सम्पूर्ण पावन बनना है तब
इस सृष्टि का परिवर्तन होगा।
गीत:- आज
अन्धेरे में है इंसान ……..
ओम् शान्ति।
यह गीत है भक्ति
मार्ग का गाया हुआ। कहते हैं हम अन्धेरे में हैं, अब ज्ञान का तीसरा नेत्र दो।
ज्ञान मांगते हैं ज्ञान सागर से। बाकी है अज्ञान। कहा जाता है कलियुग में सब अज्ञान
की आसुरी नींद में सोये हुए कुम्भकरण हैं। बाप कहते हैं ज्ञान तो बहुत ही सिम्पुल
है। भक्ति मार्ग में कितने वेद-शास्त्र आदि पढ़ते हैं, हठयोग करते हैं, गुरू आदि
करते हैं। अब उन सबको छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह कभी राजयोग सिखला न सकें। बाप ही
तो राजाई देंगे। मनुष्य, मनुष्य को दे न सकें। परन्तु उसके लिए ही संन्यासी कहते
हैं काग विष्टा समान सुख है क्योंकि खुद घरबार छोड़ भागते हैं। यह ज्ञान सिवाए
ज्ञान सागर बाप के और कोई दे न सके। यह राजयोग भगवान ही सिखलाते हैं। मनुष्य,
मनुष्य को पावन बना न सके। पतित-पावन एक ही बाप है। मनुष्य भक्ति मार्ग में कितना
फँसे हुए हैं। जन्म-जन्मान्तर से भक्ति करते आये हैं। स्नान करने जाते हैं। ऐसे भी
नहीं सिर्फ गंगा में स्नान करते हैं। जहाँ भी पानी का तालाब आदि देखेंगे तो उसको भी
पतित-पावन समझते हैं। यहाँ भी गऊमुख है। झरने से पानी आता है। जैसे कुएं में पानी
आता है तो उनको पतित-पावनी गंगा थोड़ेही कहेंगे। मनुष्य समझते हैं यह भी तीर्थ है।
बहुत मनुष्य भावना से वहाँ जाकर स्नान आदि करते हैं। तुम बच्चों को अभी ज्ञान मिला
है। तुम बतलाते हो तो भी मानते नहीं। अपना देह-अहंकार बहुत है। हम इतने शास्त्र पढ़े
हैं……..! बाप कहते हैं यह पढ़ा हुआ सब भूलो। अब इन सब बातों का मनुष्यों को कैसे पता
पड़े इसलिए बाबा कहते हैं ऐसी-ऐसी प्वाइंट्स लिखकर एरोप्लेन द्वारा गिराओ। जैसे
आजकल कहते हैं – विश्व में शान्ति कैसे हो? कोई ने राय दी तो उनको इनाम मिलता रहता
है। अब वह शान्ति की स्थापना तो कर न सकें। शान्ति है कहाँ? झूठी प्राइज़ देते रहते
हैं।
अब तुम जानते हो
विश्व में शान्ति तो होती है लड़ाई के बाद। यह लड़ाई तो कोई भी समय लग सकती है। ऐसी
तैयारी है। सिर्फ तुम बच्चों की ही देरी है। जब तुम बच्चे कर्मातीत अवस्था को पाओ,
इसमें ही मेहनत है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल
फूल समान पवित्र बनो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिमरण करते रहो। तुम लिख
भी सकते हो – ड्रामा अनुसार कल्प पहले मुआफिक विश्व में शान्ति स्थापन हो जायेगी।
तुम यह भी समझा सकते हो कि विश्व में शान्ति तो सतयुग में ही होती है। यहाँ जरूर
अशान्ति रहेगी। परन्तु कई हैं जो तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं करते क्योंकि उनको
स्वर्ग में आना ही नहीं है तो श्रीमत पर चलेंगे नहीं। यहाँ भी बहुत हैं जो श्रीमत
पर पवित्र रह नहीं सकते। ऊंच ते ऊंच भगवान की तुमको मत मिलती है। कोई की चलन अच्छी
नहीं होती है तो कहते हैं ना तुमको ईश्वर अच्छी मत दे। अभी तुमको ईश्वरीय मत पर चलना
चाहिए। बाप कहते हैं 63 जन्म तुमने विषय सागर में गोते खाये हैं। बच्चों से बात करते
हैं। बच्चों को ही बाप सुधारेंगे ना। सारी दुनिया को कैसे सुधारेंगे। बाहर वालों को
कहेंगे बच्चों से समझो। बाप बाहर वालों से बात नहीं कर सकते। बाप को बच्चे ही प्यारे
लगते हैं। सौतेले बच्चे थोड़ेही लगेंगे। लौकिक बाप भी सपूत बच्चों को धन देते हैं।
सब बच्चे समान तो नहीं होंगे। बाप भी कहते हैं जो मेरे बनते हैं, उन्हों को ही मैं
वर्सा देता हूँ। जो मेरे नहीं बनते हैं, वह हज़म नहीं कर सकेंगे। श्रीमत पर चल नहीं
सकेंगे। वह हैं भगत। बाबा के बहुत देखे हुए हैं। कोई बड़ा संन्यासी आता है तो बहुत
उन्हों के फालोअर्स होते हैं। फण्ड (चन्दा) इकट्ठा करते हैं। अपनी-अपनी ताकत अनुसार
फण्ड्स निकालते हैं। यहाँ बाप तो ऐसे नहीं कहेंगे – फण्ड्स इकट्ठा करो। नहीं, यहाँ
तो जो बीज बोयेंगे 21 जन्म उसका फल पायेंगे। मनुष्य दान करते हैं तो समझते हैं
ईश्वर अर्थ हम करते हैं। ईश्वर समर्पणम् कहते हैं वा तो कहेंगे कृष्ण समर्पणम्।
कृष्ण का नाम क्यों लेते हैं? क्योंकि गीता का भगवान समझते हैं। श्री राधे अर्पणम्
कभी नहीं कहेंगे। ईश्वर या कृष्ण अर्पणम् कहते हैं। जानते हैं फल देने वाला ईश्वर
ही है। कोई साहूकार के घर में जन्म लेते हैं तो कहते हैं ना, आगे जन्म में बहुत
दान-पुण्य किये हैं तब यह बना है। राजा भी बन सकते हैं। परन्तु वह है अल्पकाल काग
विष्टा समान सुख। राजाओं को भी संन्यासी लोग संन्यास कराते हैं तो उनको कहते हैं
स्त्री तो सर्पिणी है, लेकिन द्रोपदी ने तो पुकारा है, दु:शासन मुझे नंगन करते हैं।
अब भी अबलायें कितना पुकारती हैं – हमारी लाज रखो। बाबा यह हमको बहुत मारते हैं।
कहते हैं विष दो नहीं तो खून करता हूँ। बाबा इन बंधनों से छुड़ाओ। बाप कहते हैं
बंधन तो खलास होने ही हैं फिर 21 जन्म कभी नंगन नहीं होंगे। वहाँ विकार होता नहीं।
इस मृत्युलोक में यह अन्तिम जन्म है। यह है ही विशश वर्ल्ड।
दूसरी बात, बाप समझाते
हैं कि इस समय मनुष्य कितने बेसमझ बन गये हैं। जब कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग
पधारा। लेकिन स्वर्ग है कहाँ। यह तो नर्क है। स्वर्गवासी हुआ तो ज़रूर नर्क में था।
परन्तु किसको सीधा कहो – तुम नर्कवासी हो तो क्रोध में आकर बिगड़ पड़ेंगे। ऐसे-ऐसे
को तुमको लिखना चाहिए। फलाना स्वर्गवासी हुआ तो इसका मतलब तुम नर्कवासी हो ना। हम
तुमको ऐसी युक्ति बतायें जो तुम सच-सच स्वर्ग में जाओ। यह पुरानी दुनिया तो अब खत्म
होनी है। अखबार में निकालो कि इस लड़ाई के बाद विश्व में शान्ति होनी है, 5 हज़ार
वर्ष पहले मुआफिक। वहाँ एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वो लोग फिर कहते वहाँ
भी कंस, जरासन्धी आदि असुर थे, त्रेता में रावण था। अब उनसे माथा कौन मारे। ज्ञान
और भक्ति में रात-दिन का फ़र्क है। इतनी सहज बात भी मुश्किल किसकी बुद्धि में बैठती
है। तो ऐसे-ऐसे स्लोगन्स बनाने चाहिए। इस लड़ाई के बाद विश्व में शान्ति होनी है
ड्रामा अनुसार। कल्प-कल्प विश्व में शान्ति होती है फिर कलियुग अन्त में अशान्ति
होती है। सतयुग में ही शान्ति होती है। यह भी तुम लिख सकते हो, गीता में भूल करने
से ही भारत का यह हाल हुआ है। पूरे 84 जन्म लेने वाले श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया
है। श्री नारायण का भी नहीं डाला है। उनके फिर भी 84 जन्मों में से कुछ दिन कम
कहेंगे ना। कृष्ण के पूरे 84 जन्म होते हैं। शिवबाबा आते हैं बच्चों को हीरे जैसा
बनाने तो उनके लिए फिर डिब्बी भी ऐसी सोने की चाहिए, जिसमें बाप आकर प्रवेश करे। अब
यह सोने का कैसे बने तो फट से उनको साक्षात्कार कराया – तुम तो विश्व के मालिक बनते
हो। अब मामेकम् याद करो, पवित्र बनो तो झट पवित्र होने लग पड़े। पवित्र बनने बिगर
तो ज्ञान की धारणा हो न सके। शेरणी के दूध लिए सोने का बर्तन चाहिए। यह ज्ञान तो है
– परमपिता परमात्मा का। इसको धारण करने के लिए भी सोने का बर्तन चाहिए। पवित्र
चाहिए, तब धारणा हो। पवित्रता की प्रतिज्ञा करके फिर गिर पड़ते हैं तो योग की यात्रा
ही खत्म हो जाती है। ज्ञान भी खत्म हो जाता है। किसको कह न सके – भगवानुवाच, काम
महाशत्रु है। उनका तीर लगेगा नहीं। वह फिर कुक्कड़ ज्ञानी हो पड़ते। कोई भी विकार न
हो। रोज़ पोतामेल रखो। जैसे बाप सर्वशक्तिमान् है वैसे माया भी सर्वशक्तिमान् है।
आधाकल्प रावण का राज्य चलता है। इन पर जीत बाप बिगर कोई पहना न सके। ड्रामा अनुसार
रावण राज्य भी होना ही है। भारत की ही हार और जीत पर यह ड्रामा बना हुआ है। यह बाप
तुम बच्चों को ही समझाते हैं। मुख्य है पवित्र होने की बात। बाप कहते हैं मैं आता
ही हूँ पतितों को पावन बनाने। बाकी शास्त्रों में पाण्डव और कौरवों की लड़ाई, जुआ
आदि बैठ दिखाये हैं। ऐसी बात हो कैसे सकती। राजयोग की पढ़ाई ऐसी होती है क्या?
युद्ध के मैदान में गीता पाठशाला होती है क्या? कहाँ जन्म-मरण रहित शिवबाबा, कहाँ
पूरे 84 जन्म लेने वाला कृष्ण। उनके ही अन्तिम जन्म में बाप आकर प्रवेश करते हैं।
कितना क्लीयर है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र भी बनना है। संन्यासी तो कहते हैं
– दोनों इकट्ठे रह पवित्र नहीं रह सकते। कहो तुमको तो कोई प्राप्ति नहीं, तो कैसे
रहेंगे। यहाँ तो विश्व की बादशाही मिलती है। बाप कहते हैं मेरे खातिर कुल की लाज रखो।
शिवबाबा कहते हैं इनके दाढ़ी की लाज रखो। यह एक अन्तिम जन्म पवित्र रहो तो स्वर्ग
के मालिक बनेंगे। अपने लिए ही मेहनत करते हैं। दूसरा कोई स्वर्ग में आ नहीं सकता।
यह तुम्हारी राजधानी स्थापन हो रही है। इसमें सब चाहिए ना। वहाँ वजीर तो होते नहीं।
राजाओं को राय की दरकार नहीं। पतित राजाओं को भी एक वजीर होता है। यहाँ तो देखो
कितने मिनिस्टर्स हैं। आपस में लड़ते रहते हैं। बाप सभी झंझटों से छुड़ा देते हैं।
3 हज़ार वर्ष फिर कोई लड़ाई नहीं होगी। जेल आदि नहीं रहेगा। कोर्ट आदि कुछ नहीं होगा।
वहाँ तो सुख ही सुख है। इसके लिए पुरूषार्थ करना है। मौत सिर पर खड़ा है। याद की
यात्रा से विकर्माजीत बनना है। तुम ही मैसेन्जर्स हो जो सबको बाप का मैसेज देते हो
कि मनमनाभव। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)
ज्ञान की धारणा करने के लिए पवित्र बन बुद्धि रूपी बर्तन को स्वच्छ बनाना है। सिर्फ
कुक्कड़ ज्ञानी नहीं बनना है।
2) डायरेक्ट बाप के
आगे अपना सब कुछ अर्पण कर श्रीमत पर चलकर 21 जन्मों के लिए राजाई पद लेना है।
वरदान:-
लक्ष्य के प्रमाण लक्षण के बैलेन्स की कला द्वारा
चढ़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान सम्पन्न भव
बच्चों में विश्व कल्याण की कामना भी है तो बाप समान बनने
की श्रेष्ठ इच्छा भी है, लेकिन लक्ष्य के प्रमाण जो लक्षण स्वयं को वा सर्व को
दिखाई दें उसमें अन्तर है। इसलिए बैलेन्स करने की कला अब चढ़ती कला में लाकर इस
अन्तर को मिटाओ। संकल्प है लेकिन दृढ़ता सम्पन्न संकल्प हो तो बाप समान सम्पन्न बनने
का वरदान प्राप्त हो जायेगा। अभी जो स्वदर्शन और परदर्शन दोनों चक्र घूमते हैं,
व्यर्थ बातों के जो त्रिकालदर्शी बन जाते हो - इसका परिवर्तन कर स्वचिंतक स्वदर्शन
चक्रधारी बनो।
स्लोगन:-
सेवा
का भाग्य प्राप्त होना ही सबसे बड़ा भाग्य है।