15-02-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“अलबेलेपन, आलस्य और बहाने
बाजी की नींद से जागना ही शिवरात्रि का सच्चा जागरण है”
आज बापदादा विशेष अपने
चारों ओर के अति लाडले, अति सिकीलधे, परमात्म प्यार के पात्र बच्चों से मिलने और
विचित्र बाप बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप सभी भी आज विशेष विचित्र बर्थ डे
मनाने आये हो ना! यह बर्थ डे सारे कल्प में किसी का नहीं होता। कभी भी नहीं सुना
होगा कि बाप और बच्चे का एक ही दिन में बर्थ डे हो। तो आप सभी बाप का बर्थ डे मनाने
आये हो वा बच्चों का भी मनाने आये हो? क्योंकि सारे कल्प में परमात्म बाप और
परमात्म बच्चों का इतना अथाह प्यार है जो जन्म भी साथ-साथ है। बाप को अकेला विश्व
परिवर्तन का कार्य नहीं करना है, बच्चों के साथ-साथ करना है। यह अलौकिक साथ रहने का
प्यार, साथी बनने का प्यार इस संगम पर ही अनुभव करते हो। बाप और बच्चों का इतना गहरा
प्यार है, जन्म भी साथ है और रहते भी कहाँ हो? अकेले या साथ में? हर एक बच्चा
उमंग-उत्साह से कहते हैं कि हम बाप के कम्बाइन्ड हैं। कम्बाइन्ड रहते हो ना! अकेले
तो नहीं रहते हो ना! साथ जन्म है, साथ रहते हैं और आगे भी क्या वायदा है? साथ है,
साथ रहेंगे, साथ चलेंगे अपने स्वीट होम में। इतना प्यार कोई और बाप बच्चों का देखा
है? कोई भी बच्चा हो, कहाँ भी है, कैसा भी है, लेकिन साथ है और साथ ही चलने वाले
हैं। तो ऐसा यह विचित्र और प्यारे ते प्यारा जन्म दिन मनाने आये हैं। चाहे सम्मुख
मना रहे हो, चाहे देश विदेश में चारों ओर एक ही समय साथ-साथ मना रहे हैं।
बापदादा चारों ओर देख
रहे हैं कि कैसे सभी बच्चे उमंग-उत्साह से दिल ही दिल में वाह बाबा! वाह बाबा! वाह
बर्थ डे! का गीत गा रहे हैं। अगर स्विच खोलते हैं तो चारों ओर के आवाज, दिल के आवाज,
उमंग-उत्साह के आवाज बापदादा के कानों में सुनाई दे रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों का
उत्साह देख बच्चों को भी अपने दिव्य जन्म की पदम-पदम-पदमगुणा बधाईयां दे रहे हैं।
वास्तव में उत्सव का अर्थ ही है उमंग-उत्साह में रहना। तो आप सभी उत्साह से यह
उत्सव मना रहे हैं।नाम भी भक्तों ने शिवरात्रि रखा है। आज बापदादा उस भगत आत्मा,
जिसने आपके इस विचित्र जन्म दिन मनाने को, आप ज्ञान और प्रेम रूप में मनाते और उस
भगत आत्मा ने भावना, श्रद्धा के रूप में आपके मनाने की कापी अच्छी की है, तो आज उस
बच्चे को मुबारक दे रहे थे कि कापी करने में अच्छा पार्ट बजाया है। देखो हर बात को
कापी की है। कापी करने का भी तो अक्ल चाहिए ना! मुख्य बात तो इस दिन भक्त लोग भी
व्रत रखते हैं, वह व्रत खाने पीने का रखते हैं, भावना में वृत्ति को श्रेष्ठ बनाने
के लिए व्रत रखते हैं, उन्हों को हर वर्ष रखना पड़ता और आपने क्या व्रत लिया? एक ही
बार व्रत लेते हो, वर्ष-वर्ष व्रत नहीं लेते। एक ही बार व्रत लिया पवित्रता का। सभी
ने पवित्रता का व्रत लिया है, पक्का लिया है? जिन्होंने पक्का लिया है वह हाथ उठाओ,
पक्का, थोड़ा भी कच्चा नहीं। पक्का? अच्छा। दूसरा भी प्रश्न है, अच्छा व्रत तो लिया
मुबारक हो। लेकिन अपवित्रता के मुख्य पांच साथी हैं, ठीक है ना! कांध हिलाओ। अच्छा
पांचों का व्रत लिया है? या दो तीन का लिया है? क्योंकि जहाँ पवित्रता है वहाँ अगर
अंश मात्र भी अपवित्रता है तो क्या सम्पूर्ण पवित्र आत्मा कहा जायेगा? और आप
ब्राह्मण आत्माओं की तो पवित्रता ब्राह्मण जन्म की प्रापर्टी है, पर्सनैलिटी है,
रॉयल्टी है। तो चेक करो - कि सम्पूर्ण पवित्रता में ऐसे तो नहीं, मुख्य पवित्रता के
ऊपर अटेन्शन है लेकिन और जो साथी हैं, उसको हल्का तो नहीं छोड़ा है? छोटों से प्यार
रखा है और बड़े को ठीक किया है। तो क्या बाप की छुट्टी है कि जो और चार हैं। पवित्रता
सिर्फ ब्रह्मचर्य को नहीं कहा जाता, ब्रह्माचारी। ब्रह्माचारी बनना अर्थात् पवित्रता
का व्रत पालन किया। कई बच्चे रूहरिहान में कहते हैं, रूहरिहान तो सभी करते हैं ना।
तो बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। कहते हैं बाबा मुख्य तो अच्छा है ना, बाकी
छोटे-छोटे ऐसे कभी मन्सा संकल्प में आ जाते हैं। मन्सा में आते हैं, वाचा में नहीं
आते और मन्सा को तो कोई देखता नहीं है। और कोई फिर कहते हैं कि छोटे छोटे बाल बच्चों
से प्यार होता है ना। तो इन चारों से भी प्यार हो जाता है। क्रोध आ जाता है, मोह आ
जाता है, चाहते नहीं हैं आ जाता है। बापदादा कहते हैं कोई भी आता है तो आपने दरवाजा
खोला है तब आता है ना! तो दरवाजा खोला क्यों है? दरवाजा खोला है कमज़ोरी का, कमज़ोरी
का दरवाजा खोलना अर्थात् आह्वान करना। तो आज के दिन बर्थ डे तो बाप का और अपना मना
रहे हो लेकिन जो जन्मते व्रत का वायदा किया है। पहला-पहला वरदान बाप ने क्या दिया,
याद है? बर्थ डे का वरदान याद है? क्या दिया? पवित्र भव, योगी भव। सभी को याद है ना
वरदान? याद है भूल तो नहीं गये? पवित्र भव का वरदान एक का नहीं दिया, पांचों का दिया।
तो आज बापदादा क्या चाहते हैं? बर्थ डे मनाने आये हो, बाप का भी मनाने आये हो ना।
शिवरात्रि मनाने आये हो, तो बर्थ डे की सौगात लाये हो या खाली हाथ आये हैं?
70 वर्ष स्थापना के
समाप्त हो रहे हैं। याद है ना! 70 वर्ष सोचो, चाहे आप पीछे आये हो लेकिन स्थापना के
तो 70 वर्ष हो गये ना! चाहे अभी आये हो, लेकिन स्थापना के कर्तव्य में आप सभी साथी
हो ना! साथी तो हो ना! चाहे आज पहले बारी आये हैं। पहले बारी जो आये हैं वह हाथ
उठाओ। जो मधुबन में पहली बार मिलने आये हैं वह हाथ उठाओ। लम्बा हाथ उठाओ। अच्छा
आप सभी भी चाहे अभी
एक साल हुआ है, दो साल हुआ है लेकिन अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमारी,
ब्रह्माकुमार या पुरूषार्थी कुमार? क्या कहलाते हो? कोई अपने को पुरूषार्थी कुमार
कहते है क्या! ब्रह्माकुमार का साइन लगाते हो ना! सभी बी.के. लिखते हो या पी.के.
लिखते हो? पुरूषार्थी कुमार। तो वायदा क्या है? साथी रहेंगे, साथ चलेंगे, कम्बाइण्ड
रहेंगे, तो कम्बाइण्ड में समानता तो चाहिए ना! आज के 70 वर्ष का उत्सव तो मनाते आते
हो, बापदादा ने देखा है, जो भी जोन टर्न देता है वह 70 वर्ष का मनाते हैं। सम्मान
समारोह मनाते हैं। मनाते हैं ना सभी। बस सिर्फ छोटी छोटी गिफ्ट दे देते हैं बस।
लेकिन आज एक तो बर्थ डे है, मनाने आये हो ना, पक्का है ना? और दूसरा 70 वर्ष समाप्त
हुए, तो सम्मान भी मना रहे हो, बर्थ डे भी मना रहे हो, उसमें सौगात क्या देंगे? ट्रे
दे देंगे, चादर दे देंगे? क्या सौगात लाये हो? चलो चांदी का गिलास दे देंगे! लेकिन
आज के दिन बापदादा की शुभ आशा है अपने आशाओं के दीपक बच्चों प्रति। तो बतायें, पहली
लाइन बताओ बतायें? बताना वा सुनना माना क्या? एक कान से सुनना और दिल में समा देना,
ऐसे? निकालेंगे तो नहीं, इतना तो नहीं है लेकिन दिल में ही समा देते हैं। तो आज के
दिन, बतायें पहली लाइन बताओ, कांध हिलाओ, टीचर्स कांध हिलाओ। अच्छा झण्डा हिला रहे
हैं। डबल फारेनर्स बतायें? अपने को बांधना पड़ेगा, तभी कहो हाँ, ऐसे ही नहीं। क्योंकि
70 वर्ष देखो, 70 वर्ष तो बापदादा ने भी अलबेलेपन, आलस्य और बहाने बाजी, 70 वर्ष
खेल देख लिया। चलो 70 नहीं तो 50, 40, 30, 20 लेकिन इतना समय तो यह तीन खेल तो खूब
देखे बच्चों के।
तो आज के दिन भक्त
जागरण करते हैं, सोते नहीं हैं, तो आप बच्चों का जागरण कौन सा है? कौन सी नींद में
घड़ी-घड़ी सो जाते हो, अलबेलापन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद में आराम से सो जाते
हैं। तो आज बापदादा इन तीन बातों का हर समय जागरण देखने चाहता है। कभी भी देखो
क्रोध आता है, अभिमान आता है, लोभ आता है, कारण क्या बताते हैं? एक बापदादा को
ट्रेडमार्क दिखाई देती है, कोई भी बात होती है ना! तो क्या कहते हैं, यह तो चलता
है, पता नहीं किसने चलाया है? लेकिन शब्द यही कहते हैं यह तो होता ही है, यह तो चलता
ही है। यह कोई नई बात थोड़े ही है, यह होता ही है। यह क्या है? अलबेलापन नहीं है? यह
भी तो करता है, मैजॉरिटी क्रोध से बचने के लिए यह किया तब हुआ। मैंने किया रांग वह
नहीं कहेंगे। यह किया ना, यह हुआ ना, इसलिए हुआ। दूसरे पर दोष रखना बहुत सहज है। यह
ना करे तो नहीं होगा। और बाप ने कहा वह नहीं होगा। वह करे तो होगा, बाप की श्रीमत
पर क्या क्रोध को नहीं खत्म कर सकते? आजकल क्रोध का बच्चा रोब, रोब भी भिन्न-भिन्न
प्रकार के हैं। तो क्या आज चार का भी व्रत लेंगे? जैसे पहली बात का विशेष दृढ़
संकल्प मैजारिटी ने किया है। क्या ऐसे ही चार का संकल्प, यह बहाना नहीं देना, इसने
यह किया तब मेरा हुआ, और बाप जो बार-बार कहता है, वह याद नहीं, उसने जो किया वह याद
आ गया, तो यह बहानेबाजी हुई ना! तो आज बापदादा बर्थ डे की गिफ्ट चाहते हैं यह तीन
बातें, जो चार को हल्का कर देती हैं। संस्कार का सामना तो करना ही है, संस्कार का
सामना नहीं, यह पेपर है। एक जन्म की पढ़ाई और सारे कल्प की प्राप्ति, आधाकल्प राज्य
भाग्य, आधाकल्प पूज्य, सारे कल्प की एक जन्म में प्राप्ति, वह भी छोटा जन्म, फुल
जन्म नहीं है, छोटा जन्म है। तो क्या हिम्मत है? जो समझते हैं, हिम्मत रखेंगे जरूर,
यह नहीं पुरूषार्थ करेंगे, अटेन्शन रखेंगे.. गे गे नहीं चाहिए। छोटे बच्चे नहीं हो,
70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। वह तो तीन चार मास के बच्चे गे गे करते हैं। तो आप बाप के
साथी हो ना! विश्व कल्याणकारी हो, उसको तो 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। बापदादा हाथ नहीं
उठवाते क्योंकि बापदादा ने देखा है हाथ उठाके भी कभी कभी अलबेले हो जाते हैं। लेकिन
जो समझते हैं कुछ भी हो जाए, पहाड़ जैसा पेपर भी आ जाए लेकिन पहाड़ को रूई बना देंगे,
ऐसा दृढ़ संकल्प करने की, क्योंकि संकल्प बहुत अच्छे करते हो, बापदादा भी खुश हो जाते
हैं, जिस समय संकल्प करते हो। लेकिन है क्या, 70 वर्ष तो हल्का छोड़ा लेकिन बापदादा
देख रहे हैं कि समय का कोई भरोसा नहीं और इस ज्ञान के आधार पर हर पुरूषार्थ की बात
में बहुतकाल का हिसाब है। अच्छा अभी अभी कर लेंगे, बहुतकाल का हिसाब है। क्योंकि
प्राप्ति हर एक क्या चाहता है? अभी हाथ उठवाते हैं, राम सीता बनेगा कोई? जो रामसीता
बनने चाहते हैं वह हाथ उठाओ, राजाई मिलेगी। कोई हाथ उठा रहे हैं। राम सीता बनेंगे,
लक्ष्मी नारायण नहीं बनेंगे? उठा रहे हैं? देखो, आप देखो उठा रहे हैं। फारेनर्स उठा
रहे हैं? डबल फारेनर्स में कोई उठाता है? जब बहुतकाल का भाग्य प्राप्त करने चाहते
हो, लक्ष्मी नारायण बनना अर्थात् बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करना। तो बहुतकाल
की प्राप्ति है। तो हर बात में बहुतकाल तो चाहिए ना! अभी 63 जन्म के बहुतकाल का
संस्कार है तो कहते हो ना, हमारा भाव नहीं है, भावना नहीं है, संस्कार है 63 जन्म
का। तो बहुतकाल का हिसाब है ना। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि संकल्प में दृढ़ता
की कमी हो जाती है, हो जायेगा.. चलता है, चलने दो, कौन बना है, और एक तो बहुत अच्छी
बात सबको आती है, बापदादा ने नोट किया है बातें, अपनी हिम्मत नहीं चलती ना, तो कहते
हैं महारथी भी ऐसे करते हैं, हमने किया तो क्या हुआ? लेकिन बापदादा पूछते हैं कि
क्या जिस समय महारथी गलती करता है, उससमय महारथी है? तो महारथी का नाम क्यों खराब
करते हो? उस समय वह महारथी है ही नहीं, तो महारथी कहके अपने को कमज़ोर करना यह अपने
को धोखा देना है। दूसरे को देखना सहज होता है, अपने को देखने में थोड़ी हिम्मत चाहिए।
तो आज बापदादा हिसाब लेने आये हैं। लेकिन हिसाब का किताब खत्म कराने की गिफ्ट लेने
आये हैं। कमज़ोरी और बहानेबाजी का हिसाब किताब, बहुत बड़ा किताब है उसको खत्म करना
है। तो हर एक जो समझते हैं हम करके दिखायेंगे, करना ही है, झुकना ही है, बदलना ही
है, परिवर्तन सेरीमनी मनानी ही है। जो समझते हैं संकल्प करेंगे वह हाथ उठाओ। दृढ़ या
चालू? चालू संकल्प भी होता है और दृढ़ संकल्प भी होता है। तो आप सबने दृढ़ उठाया है?
दृढ़ उठाया है? मधुबन वाले बड़ा हाथ उठाओ, इतना नहीं। यहाँ मधुबन वाले बैठते हैं।
बहुत नजदीक बैठने का चांस हैं। मधुबन वाले तो एकदम सामने बैठे हैं। पहली सीट मधुबन
वालों को मिलती है, बापदादा खुश है। पहले बैठे हो, पहले ही रहना। तो आज की गिफ्ट तो
बढ़िया हुई ना। बापदादा को भी खुशी है क्योंकि आप एक नहीं हो। आपके पीछे अपनी राजधानी
में आपकी रॉयल फैमिली, आपकी रॉयल प्रजा, फिर द्वापर से आपके भक्त, सतो रजो तमोगुणी,
तीन प्रकार के भक्त, लम्बी लाइन है आपके पीछे। जो आप करेंगे वह आपके पीछे वाले करते
हैं। आप बहानेबाजी देते हो तो आपके भक्त भी बहुत बहानेबाजी करते हैं। अभी ब्राह्मण
परिवार भी आपको देख उल्टी कापी करने में तो होशियार होते हैं ना। तो अभी दृढ़ संकल्प
करो, संस्कार का टक्कर हो, स्वभाव का मतभेद हो, तीसरी बात कमज़ोरों की होती है, कोई
ने किसी के ऊपर झूठी बात कह दी, तो कई बच्चे कहते हैं हमको ज्यादा क्रोध आता है,
झूठ पर। लेकिन सच्चे बाप से वेरीफाय कराया, सच्चा बाप आपके साथ है, तो सारी झूठी
दुनिया एक तरफ हो और एक बाप आपके साथ है, विजय आपकी निश्चित हुई पड़ी है। कोई आपको
हिला नहीं सकता, क्योंकि बाप आपके साथ है। कह रहे हैं, झूठ है। तो झूठ को झूठा ही
कर दो ना, बढ़ाते क्यों हो! तोआज बाप को बहानेबाजी अच्छी नहीं लगती, यह हुआ, यह हुआ,
यह हुआ... यह यह का गीत समाप्त होना चाहिए। अच्छा हुआ, अच्छा होगा, अच्छा रहेंगे,
अच्छा सबको बनायेंगे। अच्छा अच्छा अच्छा का गीत गाओ। तो पसन्द है? पसन्द है?
बहानेबाजी को खत्म करेंगे? करेंगे? दो-दो हाथ उठाओ। दो-दो हाथ उठाओ। अच्छा। हाँ
अच्छी तरह से हिलाओ। अच्छा, देखने वाले भी हाथ हिला रहे हैं। कहाँ भी देख रहे हैं,
हाथ हिलाओ। आप तो हिला रहे हो। अच्छा अभी नीचे करो, अभी अपने परिवर्तन की ताली बजाओ।
अच्छा
यह दिन, यह समय,
संगठन का चित्र सदा अपने सामने रखना। कभी भी कमज़ोरी आ जाए, आने नहीं देना, गेट बन्द।
गेट तो पता है ना! बन्द करो। डबल बन्द करो, डबल ताला लगाना, आजकल सिंगल ताला नहीं
चलता। एक याद का, एक मन को सेवा में बिजी रखने का। यह दो आलमाइटी ताले लगा देना।
गाडरेज का नहीं गॉड का। पक्का जागरण करना, पक्का व्रत रखना। बापदादा को हर बच्चे से
अति प्यार है। चाहे लास्ट नम्बर भी हो फिर भी बापदादा का उस बच्चे पर भी अति प्यार
है। क्यों? ऐसे बच्चे कोई बाप को मिलने हैं? एक ही बापदादा है, जिसको ब्राह्मण बच्चे
मिलते हैं। कोई भी महात्मा हो, महामण्डेश्वर हो, धर्मपिता हो, कोई को भी ऐसे बच्चे
मिले हैं? जो हर बच्चा कहे मेरा बाबा। है कोई, हिस्ट्री में है? इसीलिए बापदादा हर
बच्चे के महत्व को जानते हैं। बच्चे कहते हैं हम गीत गाते हैं वाह बाबा वाह! बाप
कहते हैं आपसे भी 100 गुणा ज्यादा बाप गीत गाता है, वाह बच्चे वाह! ठीक है ना! वाह
वाह हो ना! मधुबन वाले वाह वाह बच्चे हो ना! पीछे वाले वाह वाह बच्चे हो ना! अच्छा।
भोपाल जोन की सेवा का
टर्न है:-
हाँ झण्डा हिलाओ तो
पता पड़े। अच्छा है, भोपाल भी मध्यप्रदेश में है और मध्यप्रदेश बहुत बड़ा है। सेवा तो
की है, शुरू-शुरू में अच्छे-अच्छे गवर्नर और वी.आई.पी. लाये हैं लेकिन अभी इतना कोई
नहीं लाया है। लाये हैं, लेकिन ऐसे गवर्नर या कोई विशेष नहीं लाये हैं। तो भोपाल को
विशेष बापदादा, टीचर्स सुनना ध्यान से, दो सेवायें देना चाहते हैं। बतायें कौन सी?
एक तो कोई ऐसा वी.आई.पी लायें जैसे अभी अभी एक्जैम्पुल देखा राजस्थान की गवर्नर आई
और दैवी फैमिली है, यह अनुभव अच्छा करके गई। और साथ-साथ जिम्मेवारी भी सेवा की उठाके
गई। सिर्फ अच्छा है, अच्छा है, बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, नहीं। अपने ऊपर
जिम्मेवारी उठाके गई। ऐसे कोई विशेष वी.आई.पी मध्य प्रदेश में हैं, बापदादा जानते
हैं, छिपे हुए हैं, सिर्फ उसको मैदान पर लाना है। और दूसरा जो भी बड़े-बड़े
सेवाकेन्द्र हैं, जिसको आप बड़े कहते हो वह लिस्ट देना। तो हर एक बड़े सेन्टर जिसके
अन्डर छोटे उपसेवाकेन्द्र गीता पाठशालायें बहुतबहुत हैं। क्योंकि गीता पाठशालाओं की
लिस्ट बापदादा पूछते हैं तो बहुत-बहुत गीता पाठशालायें भी हैं। उन बड़े सेन्टरों को
कम से कम एक साल के अन्दर, बहुत टाइम दे रहे हैं, इतना देना नहीं चाहिए। लेकिन एक
साल के अन्दर कम से कम बड़े सेन्टर को अपना एक वारिस क्वालिटी सामने लाना है। चाहे
अभी हो भी, लेकिन यज्ञ के अन्दर वह वारिस क्वालिटी प्रसिद्ध हो। ऐसे नहीं हैं तो
बहुत। कई सेन्टर कहते हैं हमारे पास वारिस हैं, लेकिन वारिस छिप नहीं सकते। वारिस
की क्वालिटी होगी तो वह छिप नहीं सकता। बापदादा गुप्त वारिस को नहीं मानता है। उसका
कनेक्शन उसका रिलेशन कायदे प्रमाण होना ही चाहिए। ऐसा वारिस हरेक बड़ा सेन्टर सामने
लाये। ला सकते हैं ना बड़े सेन्टर्स? इसमें नहीं कहना हम तो छोटे हैं। छोटे नहीं बनना।
छोटे भी बड़े बनना। ठीक है टीचर्स? ठीक बोला। हाथ उठाओ जो समझते हैं छोटे भी बड़े
बनकर दिखायेंगे, वह झण्डा हिलाओ। दिल से हिला रहे हो ना! तो यह दो कार्य भोपाल को
करना है, ठीक है। भोपाल वाले, आपमें से ही तो कोई वारिस बनेंगे ना। तो देखेंगे, वैसे
तो 6 मास में तैयार होना चाहिए लेकिन फिर भी बापदादा एक वर्ष की छुट्टी देते हैं।
ठीक है। बाकी सेवा का यह गोल्डन चांस लेते हो, यह अच्छा है। बापदादा सदा ही सुनाते
हैं, कि बहुत स्व उन्नति के लिए अच्छा चांस है क्योंकि सेवा की जिम्मेवारी भी अलग
नहीं है, यज्ञ सेवा की जिम्मेवारी है। वहाँ तो फिर भी समय और अटेन्शन देना पड़ता है
यहाँ तो एक ही अटेन्शन है स्व उन्नति या यज्ञ सेवा। यज्ञ सेवा का पुण्य अगर हर समय
जमा करो तो आपके पुण्य का खाता बहुत बहुत जल्दी बढ़ सकता है। तो अच्छा किया है,
संख्या भी अच्छी लाये हैं। चांस अच्छा लिया है। अभी आगे की रिजल्ट देखेंगे। अच्छा।
60 देशों के 700 डबल
विदेशी आये हैं:-
बापदादा को डबल
विदेशियों को देख एक बात की विशेष खुशी होती है, एकस्ट्रा खुशी होती है। वह इस बात
की कि शुरू शुरू में जब डबल फारेनर्स आये थे, टीचर्स को याद होगा तो भिन्न-भिन्न
कल्चर से ट्रांसफर होने में बड़ी मेहनत लगती थी
लेकिन अभी बापदादा ने
देखा है कि इसकी चर्चा इतनी नहीं होती है, क्यों कारण क्या है? क्योंकि एक दो के
संगठन को देख वृद्धि अच्छी हुई है ना! और बापदादा ने सुना भी है कि मैजॉरिटी अपने
अपने आसपास सन्देश देने का कोई न कोई साधन अपनाते हैं, सन्देश देने का उमंग अच्छा
है। तो उसकी रिजल्ट में देखा गया है कि हर टर्न में विदेशियों का ग्रुप कम नहीं होता
है। क्वालिटी भी अच्छी है और क्वान्टिटी भी बढ़ती जाती है इसलिए एक चंदन का वृक्ष बन
गये हैं। तो चंदन का वृक्ष देख बापदादा खुश होते हैं। समाचार तो बापदादा के पास
पहुंच ही जाता है। चाहे आप ईमेल में भेजते हो, तो बापदादा के पास तो कापी पहले आती
है। सेवा का उमंग अच्छा है। अभी सिर्फ आज का व्रत पक्का करना है। नम्बर लेंगे ना
विदेशी? नम्बर लेना है? कौन सा नम्बर? पहला कि दूसरा भी चलेगा? (पहला) जिसका एक बाप
से प्यार है वह एक समान एक ही नम्बर बनेंगे। जो स्लोगन है एक बाप ही संसार है, जब
है ही एक संसार तो नम्बर एक हुआ ना। जैसे आपका टाइटल डबल फारेनर्स। तो पुरूषार्थ
में संकल्प के दृढ़ता में भी डबल फोर्स का पुरूषार्थ करके दिखाओ। अटेन्शन रखते हैं,
सिर्फ अन्तर क्या हो जाता है? तीव्रता की दृढ़ता कम हो जाती है, प्रोग्राम बहुत अच्छा
बनाते हो, बापदादा भी टापिक सुनते हैं, ग्रुप ग्रुप के पुरूषार्थ के विषय देखकर
बहुत खुश होते हैं लेकिन क्या है, जब टापिक शुरू करते या लक्ष्य रखते हो वह बहुत
फोर्स का रखते हो फिर कुछ न कुछ पेपर तो आता ही है, और आना ही है बिना पेपर कोई पास
नहीं होता। उसमें दृढ़ता की कमी हो जाती है और साधारण पुरूषार्थ हो जाता है। सदा
दृढ़ता रहे इसकी कमी हो जाती है। तो सबमें डबल पुरूषार्थी। करके ही दिखायेंगे, बनके
ही दिखायेंगे। ठीक है ना। इतना उमंग-उत्साह है ना! है? है, सिर्फ दृढ़ता को चेक करो,
बातों में नहीं जाओ। दृढ़ता को देखो। अच्छा।
डबल विदेशी कुमारियों
का ग्रुप:-
अच्छा यह बैनर बनाया है। हाथ हिलाओ। यह अच्छा करते हो क्योंकि मधुबन के वायुमण्डल
का भी प्रभाव पड़ता है। दादियों का भी प्यार और वृत्तियों के वायुमण्डल का साथ होता
है तो यह जो स्पेशल टापिक रखते हो और आपस में रूहरिहान करते हो तो इसमें समझते हो
कि स्पेशल मदद मिलती है। मिलती है मदद? अच्छा, यह नशा कितना समय रहता है? 6-8 मास
रहता है कि सदा रहता है? इसको रिवाइज करो, अन्दर में रिवाइज करो और रियलाइज करो, जो
भी ज्ञान की बातें हैं ना, उसको रिवाइज भी करो और रियलाइज भी करो, एक एक प्वाइंट जो
शिक्षा की मिलती है, या नशे की खुशी की मिलती है उसको रियलाइज करो। अपने आपसे
रियलाइज करो, कि हर बात अनुभव में है? अनुभव किया है या सिर्फ नॉलेज के आधार से
सोचते हैं, सुनते हैं, वर्णन करते हैं? बापदादा ने टोटल देखा है चाहे देश में, चाहे
विदेश में हर प्वाइंट के अनुभव में डीप में जाना यह थोड़ा अटेन्शन कम है। सुनने और
सुनाने में अटेन्शन अच्छा है, उसमें नम्बरवन हैं, लेकिन अनुभवी मूर्त बनना, चलते
फिरते आत्मा का अनुभव होना, बाप के कम्बाइण्ड रूप का अनुभव होना, अनुभव में कमी है?
इसलिए रियलाइज करो, तो रीयल गोल्ड बन जायेंगे। बाकी बापदादा खुश है, अटेन्शन भी
टीचर्स देती हैं, आपकी दादी (जानकी दादी) बहुत अटेन्शन देती है। इतना ही अटेन्शन,
जितना यह आपके ऊपर देती है और उम्मीदें रखती है, उतना हर एक अपने ऊपर जो बाप की
उम्मीदें हैं, वह अटेन्शन रखें तो नम्बरवन तो हुए ही पड़े हो। अपनी कमी को रियलाइज
करते भी हो लेकिन परिवर्तन करने में कमी पड़ जाती है। उसमें बापदादा ने देखा है एक
दृढ़ता की कमी है और दूसरी मन को एकाग्र करने की विशेषता जिस घड़ी चाहे उस घड़ी मन
एकाग्र हो जाए, जहाँ चाहो वहाँ हो जाए, इसकी कमी है। इसके ऊपर अटेन्शन देंगे, चाहे
भारत वाले चाहे फारेनर्स। दृढ़ता और एकाग्रता, अभी तक वेस्ट है, एकॉनामी नहीं है।
संकल्प, वाणी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, हर संस्कार स्वभाव में भी एकॉनामी से खर्च
करो। एकॉनामी भी जरूरी है। यज्ञ की एकॉनामी, जितनी संकल्पों की एकॉनामी होगी उतनी
यज्ञ की एकॉनामी के बिना रह नहीं सकेंगे। यज्ञ की एकॉनामी का नहीं आता, संस्कार
इमर्ज नहीं होता, इससे समझो, समय, संकल्प खज़ाने के एकानामी की आदत नहीं है इसलिए
यज्ञ एकानामी का संस्कार इमर्ज नहीं होता। तो दृढ़ता, एकाग्रता और एकॉनामी। ठीक है।
बाकी बापदादा खुश है, सेवा के प्लैन में भी खुश है। अच्छी सेवा कर रही है ना। यह
सामने गायत्री बैठी है ना। सेवा का उमंग बहुत है ना।
इन्टरनेशनल मदर ग्रुप:-
चित्र बहुत अच्छा बना
लेते हैं, यह इन्हों की विशेषता है। अच्छा बनाते हैं। देखो इतनी मदर्स अगर एक एक
मदर जगतमाता बन जाए, वृत्ति से हर समय, हर संकल्प में हर माता जगत माता के स्वरूप
में स्थित हो जाए तो कितने वायब्रेशन वर्ल्ड में मिलेंगे। क्योंकि माँ की भावना
जल्दी पहुंचती है। तो जितनी भी मदर्स खड़ी हुई हैं, हर समय अपने जगत के बच्चों को,
भाईयों को वायब्रेशन देती रहो। जैसे माँ प्यार से बच्चे की पालना करती, ऐसे आप सभी
को बच्चे समझके पालना करो। वायब्रेशन फैलाओ। ठीक है। अभी देखेंगे, सारे दिन में हर
माता ने जगतमाता बन वायब्रेशन फैलाये! इसमें स्व-उन्नति ऑटोमेटिक है, यह करके दिखाना।
अच्छी हैं मातायें, बापदादा की नज़र में हैं, और हिम्मत वाली हैं, कर सकती हैं। तो
आगे बढ़ते रहना। अच्छा।
रसिया वालों ने
प्रोजेक्ट बनाया है, जिसमें 50 हजार किलोमीटर का सफर तय करके 150 शहरों की सेवा
करेंगे:- अच्छा है, बापदादा ने बच्ची द्वारा भी समाचार सुना था और बापदादा को एक
बात यह भी अच्छी लगी, जो बापदादा ने कहा था तो ओ.के. में रिजल्ट भेजना, वह भी अच्छी
तरह से भेजी थी, तो मुबारक हो। और यह भी प्लैन सुना था, अच्छा उमंग-उत्साह से बनाया
है और विधि भी जो बनाई है वह सहज हो जायेगी। तो उमंग-उत्साह में सफलता समाई हुई है।
हैण्डस भी अच्छे हैं। संख्या भी अच्छी है। तो बापदादा को पसन्द है। और सबकी शुभ
भावना, अभी सभी सुन रहे हैं तो सभी की शुभ भावना भी आपके इस प्रोग्राम के साथ है,
मुबारक हो।
मोहनी बहन ने सुनाया-
बाम्बे से दादी जी ने और साथ में सभी सेवा साथियों ने बहुत-बहुत याद भेजी है:- दादी
तो सबके दिल की प्यारी दादी है। सभी दिल से अपने प्यार की बहुत शुभ लहरें भेज रहे
हैं। और बापदादा ने सुनाया था, कि चाहे दादी के लिए कहेंगे ऐसे कि पेशेन्ट है,
लेकिन वह प्रैक्टिकल में डाक्टर्स भी आश्चर्य खाते हैं, कि यह पेशेन्ट नहीं है
लेकिन पेशन्स में रहने वाली, पेशेन्ट होते भी पेशन्स का स्वरूप क्या होता है, वह
दिखा रही है। आपको लगेगा दादी को कुछ हो रहा है, लेकिन दादी से पूछेंगे, तो कहेगी
कुछ नहीं है। तो यह पेशेन्ट नहीं है, पेशन्स स्वरूप दिखा रही है। बीमारी भी है
लेकिन न्यारी और प्यारी है। बीमारी चल रही है लेकिन वह अपनी मस्ती में है। यह शरीर
प्युअरीफाय हो रहा है। अपनी लास्ट स्टेज, भविष्य और भक्ति की स्टेज बन रही है। अभी
है जीवन में होते मुक्त और लास्ट समय में है अष्ट देवता प्रसिद्ध होना और भक्ति में
है इष्ट देव बनना। तीनों ही संस्कार का पार्ट बजा रही है। बाकी जो भी सेवाधारी सेवा
करते हैं, वह भी दिल से कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हों के लिए नहीं है, वह तो दिन
रात अपने दिल से कर रहे है लेकिन सारे ब्राह्मण परिवार में भी कोई वेस्ट थाट्स नहीं
चलाओ। दादी आपकी है, आपकी ही रहेगी। बापदादा ने देखा है जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए
और दादी को दृष्टि दी उस दृष्टि की विल पावर से बहुत सर्व स्नेही, सर्व समर्थ, सर्व
कार्यकर्ता निमित्त और निर्माण इसमें ब्रह्मा बाप को पूरा-पूरा फॉलो करते हुए सारे
ब्राह्मण परिवार में शक्ति भरी और बापदादा के अपनी दादियों के साथ-साथ रहके बहुत
अच्छा पार्ट बजाया, अभी भी सूक्ष्म में आपके साथ पार्ट बजा रही है। बापदादा भी दादी
की कमाल गाते हैं। सबको संगठन के बंधन में, स्नेह और सहयोग के आधार से बांधा और यह
अमर वरदान है। सबका प्यार अच्छा है, यह देख करके भी बापदादा को खुशी है। बाकी
बापदादा देख रहे हैं - जो भी सभी ने कार्ड भेजे हैं, पत्र भेजे हैं, ग्रीटिंग्स भेजे
हैं, वह बापदादा ने स्वीकार की और रिटर्न में एक एक को नाम और विशेषता सहित
यादप्यार और दुआयें दे रहे हैं। जिन्होंने कार्ड और पत्र द्वारा नहीं लेकिन दिल से,
संकल्प से भी अपना उमंग-उत्साह भेजा है, उन सभी बच्चों को बहुत-बहुत पदमगुणा
यादप्यार और बाप के दिल की दुआयें। बाकी आप सभी सम्मुख बैठे हो, सम्मुख का मजा अपना
ही है। साइंस के साधनों द्वारा चाहे कितना भी स्पष्ट हो, कितना भी अच्छा लगता हो,
लेकिन सम्मुख मधुबन में उन्नति का द्वार अपना ही अनुभव कराता है। अच्छा अभी जो
बापदादा ने कहा वह हरेक एक मिनट के लिए दृढ़ संकल्प स्वरूप में बैठो कि बहानेबाजी,
आलस्य, अलबेलापन को हर समय दृढ़ संकल्प द्वारा समाप्त कर बहुतकाल का हिसाब जमा करना
ही है। कुछ भी हो, कुछ नहीं देखना है लेकिन बाप के दिलतख्तनशीन बनना ही है, विश्व
के तख्तनशीन बनना ही है। इस दृढ़ संकल्प स्वरूप में सभी बैठो। अच्छा।
चारों ओर के सदा
उमंग-उत्साह के अनुभव में रहने वाले, सदा दृढ़ता सफलता की चाबी को कार्य में लगाने
वाले, सदा बाप के साथ और हर कार्य में साथी बन रहने वाले, सदा एकनामी और एकॉनामी,
एकाग्रता स्वरूप में आगे से आगे उड़ते रहने वाले, बापदादा के अति लाडले, सिकीलधे,
विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:-
अभी दादियां भी सिकीलधी हो गई हैं। गिनती में आ गई हैं। सिकीलधी हो गई हैं ना। बस
गीत गाते रहो इतना प्यार करेगा कौन! बाप कहता है इतना करते हैं बच्चे। बच्चे नहीं
होते तो बाप क्या करता। बच्चे नहीं होते तो बाप कौन कहता! (जानकी दादी ने कहा, बाबा
संसार तो है लेकिन संस्कार में आ जाए, बाबा यह करो ना) लेकिन बाप करेगा तो पायेगा
कौन? यह भी बाप करे तो बाप को तो फल पाना नहीं है। सहयोग देना यह बाप का कर्तव्य
है, टांग भी लगा दे, पांव भी लगा दे, लेकिन चलना तो खुद को पड़ेगा ना। अच्छा। बहुत
अच्छा।
तीनों बड़े भाईयों
से:- शिवरात्रि
का यादगार बाप और बच्चों के इकट्ठे जन्म का यादगार है, तो संगठन की शक्ति, बाप ने
भी अकेला कुछ नहीं किया, बच्चों के साथ हर कार्य किया, तो संगठन की शक्ति, उसको फिर
से प्रैक्टिकल स्टेज पर लाना चाहिए। एक ने कहा और दूसरे ने किया। एक दो की बातों को
न देख संगठन को मिलाना, यही आवश्यक है। आप निमित्त आत्माओं का यह काम है। संगठन को
स्टेज पर प्रत्यक्ष करना। यही आवश्यकता है। ठीक है ना!
भोली दादी ने 9 फरवरी
को शरीर छोड़ दिया:- भोली से भी सबका प्यार था। चाहे कैसी भी तबियत रही लेकिन भण्डारा
नहीं छोड़ा, जो ब्रह्मा बाप ने भण्डारे में बिठाया तो अन्त तक भण्डारा नहीं छोड़ा। यह
भी कर्मणा की विशेष देवी रही। इसलिए सभी का आन्तरिक प्यार अच्छा रहा। (अभी मीरा भी
अच्छा करेगी) हाँ क्यों नहीं करेगी, जरूर करेगी। पालना तो अच्छी ली है। अच्छा।
बापदादा ने डायमण्ड
हाल की स्टेज पर अपने हस्तों से शिवध्वज फहराया और सबको बधाईयां दी:-
सभी ने बहुत-बहुत
प्यार से बाप का बर्थ डे और अपना बर्थ डे मनाया, इसकी पदम पदम पदमगुणा मुबारक हो,
बधाई हो। जैसे यह चिन्ह रूप का झण्डा लहराया और फूल बरसाये ऐसे ही हर एक आत्मा के
दिल में बाप की याद का झण्डा, स्मृति का झण्डा लहराओ। आपके दिल में तो है ही लेकिन
अभी सर्व के दिलों में बाप का झण्डा अर्थात् याद का झण्डा लहराओ तो सारा विश्व फूलों
का बगीचा बन जायेगा। कांटों का जंगल खत्म हो फूलों का बगीचा बन जायेगा। ऐसा संकल्प
सदा दिल में इमर्ज करो, करना ही है, होना ही है, हुआ ही पड़ा है, सिर्फ निमित्त बनना
है। अच्छा।