ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं कि हम मुसाफिर हैं। यह हमारा देश नहीं
है। यह बेहद का नाटक बहुत बड़ा माण्डवा है। कितनी बड़ी-बड़ी बत्तियाँ हैं, यह सदैव
जलती रहती हैं। आत्मा जानती है हम सब एक्टर्स हैं और नम्बरवार अपने पार्ट अनुसार
पूरे टाइम पर आते हैं - यहाँ पार्ट बजाने। पहले-पहले तुम वापिस घर जाकर फिर यहाँ आते
हो। यह अच्छी तरह से समझने और धारण करने की बात है। नाटक के एक्टर होते हैं, अगर एक
दो के आक्यूपेशन को न जानें तो उनको क्या कहेंगे? ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानने
से तुम यह बनते हो। तो यह पढ़ाई सबसे न्यारी हुई। बाप बीजरूप है, नॉलेजफुल है। जैसे
वह कामन बीज और झाड़ होते हैं उनको जानते हो ना। पहले-पहले छोटे-छोटे पत्ते निकलते
हैं फिर बड़े होते-होते झाड़ कितना वृद्धि को पाता है, कितना समय लगता है। तुम्हारी
बुद्धि में यह ज्ञान है। बाप तो एक ही बार आते हैं। मीठे-मीठे बच्चे यह अनादि
अविनाशी ड्रामा है। बाप है स्वर्ग का रचयिता, हेविनली गॉड फादर। हेविन स्थापन करने
बाप को आना पड़ता है। गायन भी है दूर देश का रहने वाला.. यह रावण राज्य पराया है।
रावण राज्य में राम को आना है। तुम्हारी बुद्धि में ही ज्ञान है। तो बाप समझाते हैं
आत्माओं को कि तुम सब मुसाफिर हो, इकट्ठे तो पार्ट बजाने नहीं आयेंगे। तुमको मालूम
है सबसे पहले होते हैं देवतायें, उस समय और कोई नहीं थे। बहुत थोड़े होते हैं फिर
वृद्धि को पाते हैं। तुम आत्मायें शरीर छोड़ सब वहाँ आती हो। यह बाप ने ही बुद्धि
दी है। तुम आत्माओं को अब नॉलेज मिली है। हम बीज और झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते
हैं। बीज ऊपर है नीचे सारा झाड़ फैला हुआ है। अभी झाड़ पूरा ही जड़जड़ीभूत है। तुम
बच्चे इस झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। आगे ऋषि मुनियों से पूछते थे कि रचता
और रचना के आदि मध्य अन्त को जानते हो तो नेती-नेती कह देते थे। जबकि वह भी नहीं
जानते तो परमपरा से कैसे हो सकता। यह सब बातें अच्छी तरह से धारण करनी है। भूलना नहीं
है। पढ़ाई तो पढ़नी है। पढ़ाई और योगबल से ही तुम पद पाते हो। पवित्र भी ज़रूर बनना
है। सिवाए बाप के और कोई पवित्र बना न सके। विनाशी धन दान करते तो राजाई कुल में
अथवा अच्छे कुल में जन्म लेते हैं। तुम बच्चों को बहुत बड़े घर में जन्म मिलता है।
नई दुनिया तो बहुत छोटी होती है। सतयुग में देवताओं का जैसे एक गाँव है। शुरू में
बाम्बे कितनी छोटी थी। अब देखो कितनी वृद्धि को पाया है। आत्मायें सब अपना पार्ट
बजाती हैं, सब मुसाफिर हैं। बाप एक ही बार का मुसाफिर है। हो तुम भी एक ही बार के
मुसाफिर। तुम भी एक ही बार आते हो। फिर पुनर्जन्म लेते पार्ट बजाते ही रहते हो। अभी
तुम अमरलोक में जाने के लिए अमरकथा सुनते हो, जिससे 21 जन्म ऊंच पद पाते हो। 21 पीढ़ी
कहते हैं ना, पीढ़ी अर्थात् बुढ़ापे तक। फिर दूसरा शरीर आपेही लेंगे। अकाले मृत्यु
नहीं होगा। वह है ही अमरलोक। काल का नाम नहीं। अचानक मृत्यु होती नहीं। तुम एक शरीर
छोड़ दूसरा लेते हो। दु:ख की कोई बात नहीं। सर्प को दु:ख होता होगा क्या? और ही खुशी
होती होगी। अभी तुमको आत्मा का ज्ञान मिलता है। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा में
ही बुद्धि है। शरीर तो बिल्कुल अलग है। उनमें आत्मा न होती तो शरीर चल न सके। कैसे
शरीर बनता है, आत्मा कैसे प्रवेश करती है। हर चीज़ वन्डरफुल है।
बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चे तुम्हारा स्वर्ग है वन्डरफुल वर्ल्ड। रावण राज्य
में 7 वन्डर्स दिखाते हैं। राम राज्य में बाप का एक ही वन्डर है स्वर्ग, जो आधाकल्प
कायम रहता है। मनुष्यों ने देखा भी नहीं है, तो भी सबके मुख से स्वर्ग नाम ज़रूर
निकलता है। अभी तुम बुद्धि से जानते हो कोई-कोई ने साक्षात्कार भी किया है। बाबा ने
भी विनाश और अपनी राजधानी देखी। अर्जुन को भी साक्षात्कार में दिखाया है। अब बरोबर
यह है गीता एपीसोड। बाबा बतलाते हैं कि बच्चे यह है पुरूषोत्तम संगमयुग जबकि मैं
आकर तुम बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ और इतना ऊंच बनाता हूँ। दुनिया में इन बातों
को कोई नहीं जानते। तुम बहुत मौज से रहते हो। यहाँ मनुष्य मरते हैं तो दीपक जगाते
हैं कि आत्मा को अन्धियारा न हो। सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती। सतयुग में सब
आत्माओं का दीपक जगा रहता है। घर-घर में सोझरा होता है। यहाँ फिर मनुष्य घर-घर में
बत्तियाँ जलाते हैं। बाप कहते हैं इन सब बातों को अच्छी तरह बुद्धि में धारण करना
है। बाप और राजधानी को याद करते रहो। तुम जानते हो इतना समय हमने राजाई की। जो बहुत
समय के बिछुड़े हुए हैं उन्हों से ही बाप बात करते हैं, पढ़ाते हैं। बच्चे जानते
हैं इस समय की बातों के ही त्योहार मनाते हैं। शिवजयन्ती भारत में ही मनाते हैं।
शिव है ऊंचे ते ऊंच भगवान। वह भारत में कैसे आते हैं, उसने खुद बताया है कि मुझे
प्रकृति का आधार लेकर आना पड़ता है, तब तो बोलते हैं। नहीं तो बच्चों को ज्ञान
श्रृंगार कैसे करायें। अब तुम्हारा श्रृंगार हो रहा है। तुम फिर दूसरों का करा रहे
हो - मनुष्य से देवता बनाने का। यह है बहुत सहज। परन्तु मनुष्यों की बुद्धि ऐसी डल
हो गई है जो कुछ भी समझते नहीं। टाइम लेते हैं। तुम प्रदर्शनी में सब बातें समझाते
हो। जो आया जैसे समझाया सब ड्रामा। फिकरात की कोई बात नहीं। बच्चे कहते हैं बाबा,
माथा बहुत मारते हैं निकलता कोटों में कोई है। सो तो होगा। तुम कहते हो परमात्मा
बिन्दी है। शास्त्रों में ऐसी बात है नहीं इसलिए मूँझ पड़ते हैं। तुम भी पहले नहीं
मानते थे। कोई-कोई को दो वर्ष भी समझने में लगे। चले जाते हैं फिर आते हैं। इतना
सहज भक्ति छूटती नहीं है, वह अपनी ओर खींचती है। यह भी ड्रामा में पार्ट है। सिवाए
तुम ब्राह्मणों के और कोई नहीं जानते। विराट रूप का भी अर्थ समझा है, यह है तुम्हारी
बाजोली। तुम चक्र लगाते हो। इनको विराट नाटक कहा जाता है। इनका भी तुमको ज्ञान है।
उन कालेजों में तो क्या-क्या पढ़ते रहते हैं। यहाँ वह बात नहीं। साइंस वृद्धि को
पाती रहती है, उनसे विनाश होना है। अभी भल तुम समझायेंगे परन्तु विरला कोई मिलेगा
जो कहेगा यह तो बहुत अच्छी बात है। यह तो रोज़ समझाना चाहिए। कितना भी काम हो परन्तु
कहेंगे हमको तो बाबा से वर्सा ज़रूर लेना है। यह तो अथाह, अनगिनत कमाई है।
बाबा कहते हैं - बच्चे मेरी बुद्धि में सारे झाड़ की नॉलेज है, सो अभी तुम भी
समझ रहे हो। बाप जो समझाते हैं वह बहुत एक्यूरेट है। एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से।
कितनी महीनता है। तुमने कितने चक्र लगाये हैं। यह ड्रामा जूँ मिसल चलता है। एक ही
चक्र को 5 हज़ार वर्ष लगते हैं। उसमें सारा खेल चलता है। उनको ही जानना है। वहाँ
गायें भी फर्स्टक्लास होंगी। जैसा आपका पद वैसा फर्नीचर, वैसा मकान। भभका होता है।
खुशी भी आत्मा को ही होती है। हमारी आत्मा तृप्त हुई। तृप्त परमात्मा तो नहीं कहा
जाता है। कहेंगे तुम्हारी आत्मा तृप्त हुई? हाँ बाबा तृप्त हुई। तो यह सब खेल चलता
आया है। बाप जो समझाते हैं यह भी ड्रामा का खेल है। अब बाप तुमको रिज्युवनेट करते
हैं। तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बन जाती है। नाम ही है अमरलोक। आत्मा भी अमर
है, काल खा न सके। बाबा तुम्हारी आत्माओं से बात करते हैं। अकाल आत्मा जो इस तख्त
पर बैठी है, उनसे बात करते हैं। आत्मा इन कानों से सुनती है। हम आत्माओं को ही बाप
पढ़ाने आये हैं। बाप की दृष्टि हमेशा आत्माओं पर रहती है। तुमको भी बाप समझाते हैं
हमेशा भाई-भाई की दृष्टि रखो। भाई से हम बात करते हैं फिर क्रिमिनल दृष्टि न जाये।
यह प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए। हम आत्मा हैं, हमने इतने जन्म ले पार्ट बजाया है।
हम पुण्य आत्मा थे। हम ही पवित्र आत्मा बने हैं। सोने में ही खाद पड़ती है। जो
आत्मायें पिछाड़ी को आयेंगी उनको क्या कहेंगे। कुछ परसेन्ट सोने का होगा। भल पवित्र
होकर जाते हैं, परन्तु पावर तो कम है ना। एक दो जन्म करके लिया, इससे क्या हुआ।
बाबा जो मुरली चलाते हैं वह है खजाना। जब तक बाप दे तब तक तुम बाप को याद करते
रहो। याद से ही तुम एवर हेल्दी बनते हो। चुप होकर बैठने से भी बहुत फायदा है,
मनमनाभव। इसका अर्थ भी कोई नहीं जानते। बाप ही हर बात का अर्थ समझाते हैं। यहाँ तो
है अनर्थ। सबसे बड़ा अनर्थ है एक दो पर काम कटारी चलाना, जिससे आदि मध्य-अन्त-दु:ख
पाते हैं। सबसे छी-छी हिंसा यह है, इसलिए इनको नर्क कहा जाता है। स्वर्ग और नर्क का
भी कोई अर्थ नहीं समझते। वह है नम्बरवन, नर्क है नम्बर लास्ट। तुम जानते हो हम इस
विश्व नाटक के एक्टर्स हैं। तुम नेती-नेती नहीं कहेंगे। तुम श्रीमत से कितने अच्छे
चित्र बनाते हो जो मनुष्य देखते ही खुश हो जायें और सहज ही समझ जायें। यह चित्र
बनाना भी ड्रामा में नूँध है। पिछाड़ी को तुम याद में ही रहेंगे। सृष्टि चक्र भी
बुद्धि में आ जायेगा। नई दुनिया कौन बनाता और पुरानी दुनिया कौन बनाते हैं, यह सब
तुम ही जानते हो। सतो रजो तमो में सबको आना ही है। अभी है कलियुग। यह किसको पता नहीं
कि बाप आकर हमको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे। किसके ख्याल में भी नहीं आता। तुमको तो
अभी सारे सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज है। रचयिता बाप इसमें बैठ समझाते हैं कि
मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ। बेहद का टीचर हूँ। यह संगमयुग है पुरूषोत्तम युग।
सतयुग और कलियुग को पुरूषोत्तम नहीं कहेंगे। संगम पर ही तुम पुरूषोत्तम बनते हो, जब
बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। दिन प्रतिदिन तुम बच्चों को समझाने में बहुत सहज होगा।
झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। शमा पर बहुत परवाने आते हैं - फिदा होने। ऐसे बाप को
कौन छोड़ेगा। कहेगा बाबा बस हम तो आपके पास ही बैठे रहें। यह सब कुछ आपका है। ऐसे
ऊंच बाप को हम छोड़ें क्यों? जोश बहुतों में आता है। बाबा से विश्व की बादशाही मिलती
है तो हम छोड़कर क्यों जायें। यहाँ तो हम स्वर्ग में बैठे हैं। यहाँ कोई काल भी नहीं
आ सकता, परन्तु बाप की श्रीमत लेनी पड़े। बाप कहेंगे ऐसे नहीं करना है। उछल तो आयेगी
परन्तु ड्रामा में ऐसा नहीं है जो सब यहाँ बैठ जायें। जोश आता है क्योंकि जानते हैं
यह सब कुछ खत्म होने वाला है। जिनका पार्ट है वह सुनते रहते हैं। बाप कहते हैं तुम
एल.एल.बी., आई.सी.एस.पढ़ते हो इनसे क्या मिलेगा? कल शरीर छूट जाए तो क्या मिलेगा?
कुछ भी नहीं। वह है विनाशी विद्या, यह है अविनाशी विद्या, जो अविनाशी बाप देते हैं।
टाइम बहुत थोड़ा है। तमोप्रधान से सतोप्रधान इस जन्म में ही बनना है। वह तो याद से
ही बनेंगे। और सब देह के धर्म छोड़ मामेकम् याद करो। शरीर पर भरोसा नहीं है।
पढ़ते-पढ़ते मर जाते हैं। तो बाप का काम है समझाना। उस पढ़ाई में क्या कमाई है और
इस पढ़ाई में क्या कमाई है। यह तो तुम जानते हो। शिवबाबा का भण्डारा सदैव भरपूर है।
इतने सब बच्चे पलते रहते हैं, फिकर की कोई बात नहीं। भूख मर नहीं सकते। लौकिक बाप
भी देखते हैं बच्चों को खाना नहीं मिलता है तो खुद भी नहीं खाते। बच्चों का दु:ख
बाप सहन नहीं कर सकते। पहले बच्चे पीछे बाप। माँ सबसे पीछे खाती है, रूखा सूखा बचता
है वह खा लेती है। हमारी भण्डारी भी ऐसी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भाई-भाई की दृष्टि पक्की करनी है। हम आत्मा, आत्मा भाई से बात करते
हैं यह अभ्यास कर क्रिमिनल दृष्टि को परिवर्तन करना है।
2) बाप जब ज्ञान खजाना देते हैं तो याद में बैठ बुद्धि रूपी झोली से खजाना भरना
है। चुप बैठकर अविनाशी कमाई जमा करनी है।