05-07-09  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 18-01-71 मधुबन

 

अव्यक्त स्थिति द्वारा सेवा

 

आज आवाज़ से परे जाने का दिन रखा हुआ है। तो बापदादा भी आवाज़ में कैसे आयें? आवाज़ से परे रहने का अभ्यास बहुत आवश्यक है। आवाज़ में आकर जो आत्माओं की सेवा करते हो, उससे अधिक आवाज़ से परे स्थिति में स्थित होकर सेवा करने से सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे। अपनी अव्यक्ति स्थिति होने से अन्य आत्माओं को भी अव्यक्त स्थिति का एक सेकेण्ड में अनुभव कराया तो वह प्रत्यक्षफल-स्वरूप आपके सम्मुख दिखाई देगा। आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो फिर आवाज़ में आने से वह आवाज़, आवाज़ नहीं लगेगा। लेकिन उस आवाज़ में भी अव्यक्ति वायब्रेशन का प्रवाह किसी को भी बाप की तरफ आकर्षित करेगा। वह आवाज़ सुनते हुये उन्हों को आपकी अव्यक्त स्थिति का अनुभव होने लगेगा। जैसे इस साकार सृष्टि में छोटे बच्चों को लोरी देते हैं, वह भी आवाज़ होता है लेकिन वह आवाज़, आवाज़ से परे ले जाने का साधन होता है। ऐसे ही अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर आवाज़ में आओ तो आवाज़ से परे स्थिति का अनुभव करा सकते हो। एक सेकेण्ड की अव्यक्त स्थिति का अनुभव आत्मा को अविनाशी सम्बन्ध में जोड़ सकता है। ऐसा अटूट सम्बन्ध जुड़ जाता है जो माया भी उस अनुभवी आत्मा को हिला नहीं सकती। सिर्फ आवाज़ द्वारा प्रभावित हुई आत्माएं अनेक आवाज़ सुनने से आवागमन में आ जाती हैं। लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित हुए आवाज़ द्वारा अनुभवी आत्मायें आवागमन से छूट जाती हैं। ऐसी आत्मा के ऊपर किसी भी रूप का प्रभाव नहीं पड़ सकता। सदैव अपने को कम्बाइन्ड समझ, कम्बाइन्ड रूप की सर्विस करो अर्थात् अव्यक्त स्थिति और फिर आवाज़।

 

दोनों की कम्बाइन्ड रूप की सर्विस वारिस बनायेगी। सिर्फ आवाज़ द्वारा सर्विस करने से प्रजा बनती जा रही है। तो अब सर्विस में नवीनता लाओ। (इस प्रकार की सर्विस करने का साधन कौनसा है?) जिस समय सर्विस करते हो उस समय मंथन चलता है, लेकिन ‘याद में मगन’ -- यह स्टेज मंथन की स्टेज से कम होती है। दूसरे के तरफ ध्यान अधिक रहता है, अपनी अव्यक्त स्थिति की तरफ ध्यान कम रहता है। इस कारण ज्ञान के विस्तार का प्रभाव पड़ता है लेकिन लगन में मगन रहने का प्रभाव कम दिखाई देता है। रिजल्ट में यह कहते हैं कि ज्ञान बहुत ऊंचा है। लेकिन मगन रहना है -- यह हिम्मत नहीं रखते। क्योंकि अव्यक्त स्थिति द्वारा लगन का अर्थात् सम्बन्ध जोड़ने का अनुभव नहीं किया है। बाकी थोड़ा कणा-दाना लेने से प्रजा बन जाती है। अब के सम्बन्ध जुटने से ही भविष्य सम्बन्ध में आयेंगे, नहीं तो प्रजा में। तो नवीनता यही लानी है, जो एक सेकेण्ड में अव्यक्ति अनुभव द्वारा सम्बन्ध जोड़ना है। सम्बन्ध और सम्पर्क -- दोनों में फर्क है। सम्पर्क में आते हैं, सम्बन्ध में नहीं आते। समझा?

 

आज के दिन अव्यक्त स्थिति का अनुभव किया है। यही अनुभव सदाकाल कायम रखते रहो तो औरों को भी अनुभव करा सकेंगे। आजकल वाणी व अन्य साधन अनेक प्रकार से अनेकों द्वारा आत्माओं को प्रभावित कर रहे हैं। लेकिन अनुभव सिवाय आप लोगों के अन्य कोई नहीं कर सकते हैं, न करा सकते हैं। इसलिये आज के समय में यह अनुभव कराने की आवश्यकता है। सभी के अन्दर अभिलाषा भी है, थोड़े समय में अनुभव करने के इच्छुक हैं। सुनने के इच्छुक नहीं हैं। अनुभव में स्थित रह अनुभव कराओ। सभी का स्नेह वतन में मिला। सुनाया था - तीन प्रकार की याद और स्नेह वतन में पहुँची। वियोगी, योगी और स्नेही। तीनों ही रूप का याद-प्यार बापदादा को मिला। रिवाइज कोर्स के वर्ष भी समाप्त होते जा रहे हैं। वर्ष समाप्त होने से स्टूडेंट को अपनी रिजल्ट निकालनी होती है। तो इस वर्ष की रिजल्ट में हरेक को अपनी कौनसी रिजल्ट निकालनी है? इसकी मुख्य चार बातें ध्यान में रखनी हैं। एक -- अपने में सर्व प्रकार की श्रेष्ठता कितनी है? दूसरा -- सम्पूर्णता में वा सर्व के सम्बन्ध में समीपता कितनी आई है? तीसरा-- अपने में वा दूसरों के सम्बन्ध में सन्तुष्टता कहाँ तक आई है? और चौथा - अपने में शूरवीरता कहाँ तक आई है? यह चार बातें अपने में चेक करनी हैं। आज के दिन अपनी रिजल्ट को चेक करने का कर्त्तव्य पहले करना है। आज का दिवस सिर्फ स्मृति-दिवस नहीं मनाना लेकिन आज का दिवस समर्थी बढ़ाने का दिवस मनाना। आज का दिवस स्थिति वा स्टेज ट्रान्सफर करने का दिवस समझो। जैसे आजकल ट्रान्सपेरेंट चीजें अच्छी लगती हैं ना। वैसे अपने को भी ऐसी ट्रान्सपेरेंट स्थिति में ट्रान्सफर करना है। आज के दिन का महत्व समझा? ऐसे ट्रान्सपेरेंट हो जाओ जो आपके शरीर के अन्दर जो आत्मा विराजमान है वह स्पष्ट सभी को दिखाई दे। आपका आत्मिक स्वरूप उन्हों को अपने आत्मिक स्वरूप का साक्षात्कार कराये। इसको ही कहते हैं अव्यक्ति वा आत्मिक स्थिति का अनुभव कराना।

 

आज याद के यात्रा की रिजल्ट क्या थी? स्नेह स्वरूप थी या शक्ति स्वरूप थी? यह स्नेह भी शक्ति का वरदान प्राप्त कराता है। तो आज स्नेह का वरदान प्राप्त करने का दिवस है। एक होती है पुरूषार्थ से प्राप्ति दूसरी होती है वरदान से प्राप्ति। तो आज का दिन पुरूषार्थ से शक्ति प्राप्त करने का नहीं लेकिन स्नेह द्वारा शक्ति का वरदान प्राप्त करने का दिवस है। आज के दिन को विशेष वरदान का दिन समझना। स्नेह द्वारा कोई भी वरदाता से वर प्राप्त हो सकता है। समझा पुरूषार्थ द्वारा नहीं लेकिन स्नेह द्वारा। किसने कितना वरदान लिया है वह हरेक के ऊपर है। लेकिन स्नेह द्वारा सभी समीप आकर वरदान प्राप्त कर सकते हैं। वरदान के दिवस को जितना जो समझ सके उतना ही पा सकता है। कैच करने वाले की कमाल होती है। आज के वरदान दिवस पर जो जितना कैच कर सके उन्होंने उतना ही वरदान प्राप्त किया। जैसे पुरूषार्थ करते हो एक बाप के सिवाय और कोई याद आकर्षित न करे ऐसे आज का दिन सहज याद का अनुभव किया। अच्छा।

 

 

अब नहीं तो कब नहीं - 21-01-71

 

आज बापदादा हरेक बच्चे के मस्तक में क्या देखते हैं? बाप जब बच्चों को देखते हैं तो यह शुभ भावना होती है कि हरेक बच्चा ऊंच ते ऊंच भाग्य  बनाये। वर्तमान समय वरदाता के रूप में वरदान देने के लिये आये हुये होते भी हरेक आत्मा यथा योग यथा शक्ति वरदाता से वरदान प्राप्त करती रहती है। इस समय को विशेष वरदान है -- सर्व आत्माओं को वरदान प्राप्त कराने का। अब नहीं तो कब नहीं। आज इन आत्माओं (राज्यपाल तथा उनकी युगल) को भी वरदान प्राप्त करने का शुभ दिवस कहेंगे। सारे कल्प के अंदर यह अलौकिक मिलन बहुत थोड़े से पद्मापदम भाग्यशाली आत्माओं का ही होता है। सम्पर्क के बाद सम्बन्ध में आना है। क्योंकि सम्बन्ध से ही श्रेष्ठ प्राप्ति होती है। दो शब्द सदैव याद रखना-एक स्वयं को; दूसरा समय को याद रखना। अगर ‘स्वयं’ को और दूसरा ‘समय’ को सदैव याद रखते रहेंगे तो इस जीवन में अनेक जन्मों के लिये श्रेष्ठ प्रालब्ध पा सकते हैं।

 

(राज्यपाल तथा उनकी युगल से)

 

अपने असली घर में आये हो -- ऐसे महसूस करते हो? अपने घर में कितना जल्दी आना होता है, मालूम है? जैसे ड्यूटी से ऑफ होने के बाद अपना घर याद आता है। इसी रीति से अपने इस शरीर निर्वाह की ड्यूटी से ऑफ होने के बाद अपना घर याद आना चाहिये। सम्बन्ध को बढ़ाना है। एक सम्बन्ध को बढ़ाने से अर्थात् इस सम्बन्ध की आवश्यकता समझने से अनेक प्रकार की आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती हैं। सभी आवश्य- कताएं पूर्ण करने के लिये एक आवश्यकता समझने की है। जैसे शरीर निर्वाह के लिये अनेक साधन आवश्यक समझते हैं, वैसे आत्मिक उन्नति के लिये एक साधन आवश्यक है। इसलिये सदैव अपने को अकालमूर्त समझते चलेंगे तो अकाले मृत्यु से भी, अकाल से, सर्व समस्याओं से बच सकेंगे। मानसिक चिन्ताएं, मानसिक परिस्थितियों को हटाने का एक ही साधन याद रखना है -- सिर्फ अपने इस पुराने शरीर के भान को मिटाना है। इस देह-अभिमान को मिटाने से सर्व परिस्थितियाँ मिट जायेंगी। अब कुछ पूछने का रहा ही नहीं। सिर्फ सम्बन्ध में आते रहना। सभी से मिलने के लिये फिर आयेंगे। अब सभी से छुट्टी।

 

पार्टियों से मुलाकात:-

 

बम्बई नगरी में रहते हुए प्रूफ हो? जो स्वयं प्रूफ़ नहीं हैं वह औरों के आगे प्रूफ भी नही बन सकते। धारणा वाली जीवन औरों के आगे प्रूफ बन जाती है। प्रूफ़ कौन बन जाता है? जो है। बम्बई में जास्ती पूजा किसकी होती है? गणेश की। उसको विघ्न विनाशक कहते हैं, गणेश का अर्थ है मास्टर नॉलेजफुल, विद्यापति। मास्टर नॉलेजफुल कभी हार नहीं खा सकते क्योंकि नॉलेज को ही लाइट - माइट कहते हैं, फिर मंज़िल पर पहुँचना सहज हो जाता है। मंज़िल पर पहुँचने के लिए लाइट माइट दोनों चाहिए। अपनी सूरत को ऐसा करना है - जो आपकी सूरत से बापदादा दोनों दिखाई दें। जो भी कर्म करते हो वह हर कर्म में बापदादा के गुण प्रत्यक्ष हों। बापदादा के मुख्य गुण कौन से वर्णन करते हो? ज्ञान, प्रेम, आनन्द, सुख - शान्ति का सागर। जो भी कर्म करो वह सब ज्ञान सहित हों, हर कर्म द्वारा सर्व आत्माओं को सुख - शान्ति, आनंद का अनुभव हो, इसको कहते हैं बाप के गुणों की समानता। आपको समझाने की आवश्यकता नहीं। आपके कर्म देख उन्हों के दिल में संकल्प उठे कि यह किसके बच्चे, किस द्वारा ऐसे बने। स्टूडेन्ट भी अगर पढ़ने में अच्छा स्कॉलरशिप लेने वाला होता है तो उनको देख टीचर की याद आती है इसलिए कहावत है स्टूडेन्ट शोज़ टीचर यह भी सर्विस करने का तरीका है। अलौकिक जन्म का हर कर्म सर्विस प्रति हो, जितना सर्विस करेंगे उतना भविष्य ऊंचा। जितना अपने को सर्विस में बिजी रखेंगे उतना माया के वार से बच जायेंगे। बुद्धि को एंगेज कर दिया तो कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा। यह भी संगमयुग का वरदान है - एकरस अवस्था, एक का ही ध्यान, एक की ही सर्विस में जितना जो कोई वरदान ले। जैसे कोई नशे में रहता है उसको और कुछ सूझता नहीं, ऐसे इस ईश्वरीय नशे में रहने से और दुनिया की आकर्षण से परे हो जायेंगे।

 

कोई बांधेली ने पूछा - बाबा हम बांधेली हैं, हमको संकल्प चलता है कि हम सर्विस नहीं करती हैं?

 

बांधेली स्वतन्त्र रहने वालों से अच्छी हैं। स्वतन्त्र अलबेले रहते हैं। बांधेली की लगन अच्छी रहती है। याद को पावरफुल बनाओ। याद कम होगी तो शक्ति नहीं मिलेगी। याद में रहते यह व्यर्थ न सोचो कि सर्विस नहीं करती। उस समय भी याद में रहो तो कमाई जमा होगी। यह सोचने से याद की पावर कम होगी। बन्धन से मुक्त करने के लिए अपनी चलन को चेन्ज करो। जो घर वाले देखें कि यह चेन्ज हो गई है। जो कड़ा संस्कार है वह चेन्ज करो। वह अपना काम करें आप अपना काम करो। उनके काम को देख घबराओ नहीं। जितना वो अपना काम फोर्स से कर रहे हैं, आप अपना फोर्स से करो। उनके गुण उठाओ कि वह कैसे अपना कर्त्तव्य कर रहे हैं, आप भी करो। सारी सृष्टि की आत्माओं की भेंट में कितनी आत्माओं को यह भाग्य प्राप्त हुआ है। तो कितनी खुशी होनी चाहिए। खुशी तो नयनों में, मस्तक में, होठों में झलकती रहनी चाहिए। जो है ही खुशी के खज़ाने का मालिक, उसके बालक हो। तो खज़ाने के अधिकारी तो हो ना। 5 हजार वर्ष पहले भी आये थे, यह अनुभव है? स्मृति आती है? स्पष्ट स्मृति की निशानी क्या है? स्पष्ट स्मृति की निशानी यह है कि किससे मिलेंगे तो अपनापन महसूस होगा और अपने स्थान पर पहुँच गया हूँ, यह वही स्थान है, जिसको ढूंढ़ रहा था। जैसे कोई चीज़ ढूंढ़ने के बाद मिलती है, इस रीति से यह भासना आये कि असली परिवार से मिले हैं और अपनेपन का अनुभव हो, इसको कहते हैं स्पष्ट अनुभव। दूसरी बात कि जो बात सुनेगा वह उनको सहज स्पष्ट समझ में आयेगी। जैसे पवित्रता की बात लोगों को मुश्किल लगती है परन्तु जो कल्प पहले वाले होंगे, अधिकारी वह तो समझते हैं कि हमारा स्वधर्म ही है। उनको सहज लगेगा। जैसे कोई जानी - पहचानी मूर्तियाँ होती हैं उनको देखने से ऐसा अनुभव होता है कि यह तो अपने हैं। जितना समीप सम्बन्ध में आने वाले होंगे वह स्पष्ट अनुभव करेंगे। ऐसी अनुभवी आत्माओं को कर्मबन्धन तोड़ने में देरी नहीं लगेगी। नकली चीज़ को छोड़ना मुश्किल नहीं होता है। अच्छा।

 

वरदान:- हद की रॉयल इच्छाओं से मुक्त रह सेवा करने वाले नि:स्वार्थ सेवाधारी भव

 

जैसे ब्रह्मा बाप ने कर्म के बन्धन से मुक्त, न्यारे बनने का सबूत दिया। सिवाए सेवा के स्नेह के और कोई बन्धन नहीं। सेवा में जो हद की रायॅल इच्छायें होती हैं वह भी हिसाब-किताब के बन्धन में बांधती हैं, सच्चे सेवाधारी इस हिसाब-किताब से भी मुक्त रहते हैं। जैसे देह का बन्धन, देह के संबंध का बंधन है, ऐसे सेवा में स्वार्थ – यह भी बंधन है। इस बन्धन से वा रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त नि:स्वार्थ सेवाधारी बनो।

 

स्लोगन:- वायदों को फाइल में नहीं रखो, फाइनल बनकर दिखाओ।