25-03-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 24-06-74 मधुबन

 

राजयोगी ही विश्व-राज्य के अधिकारी

 

क्या आप सभी अपने को योगी समझते हो? क्या योगी का टाइटल आप सभी को मिल गया है? योगी होते हुए भी आप सभी एक जैसे योगी तो नहीं बल्कि नम्बरवार हो। जैसे कोई भी पढ़ाई पढ़ने के बाद परीक्षा पास करने का सार्टिफिकेट मिलता है, और डिग्री का सार्टिफिकेट मिलता तो कहलाने में भी वही नाम आता है, जैसे कि वकील है वा डाक्टर है। ऐसे ही यहाँ भी, जब नॉलेजफुल बाप के द्वारा योगी और भोगी जीवन की नॉलेज मिली है, तो भोगी के बाद मरजीवा बने तो यहाँ भी ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारी का टाइटल मरजीवा बनने के बाद स्वत: ही मिल जाता है और वैसे ही योगी का भी टाइटल परन्तु नम्बरवार मिलता है। बाकी इसमें भी क्या फर्क है? जैसे योग की महिमा करते हैं कि वह सहजयोग, निरन्तर योग, कर्म योग, व ज्ञान योग और बुद्धियोग है। फिर उसकी भी उपमा करते हैं न? जैसे कि डाक्टर्स में और मिलिट्री में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के ग्रेड्स होते हैं। उसी रीति यहाँ भी योगियों में कर्मयोगी और बुद्धियोगी हैं। यहाँ भी कोई तो सभी लक्षणधारी हैं और कोई एक या दो, लेकिन सब नहीं। जैसे कि किसी का बुद्धि का योग है लेकिन उसका कर्मयोग नहीं है या फिर किसी का कर्मयोग है तो वह सहजयोगी नहीं। या जो ज्ञान में सदा नहीं रहता तो उसको ज्ञानयोगी नहीं कहेंगे। यहाँ भी एक ही टाइटल मिलेगा तो आप जो योग की महिमा औरों को सुनाते हो, तो वह स्वयं में धारण करो। जैसे राजयोग अर्थात् जो कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर उन पर राज्य करता है, तो वह भविष्य में भी श्रेष्ठ पद को पाता है। राजयोगी का अगर पॉवरफुल योग है, तो ही उसको राजयोगी कहेंगे अन्यथा उसको योगी ही कहेंगे, लेकिन राजयोगी नहीं कहेंगे। अब तो यह चैक करो कि क्या मैं सभी टाइटल धारण करने वाला योगी बना हूँ? कोई के आठ-दस, तो कोई के एक-दो।

 

जैसे डाक्टर, वकील और इन्जीनियर, मिलिट्री में यह सब होंगे, वहाँ कर्नल भी होगा लेकिन उसकी लिस्ट तो अलग-अलग होगी। जैसे बनारस में भी यूनीवार्सिटी द्वारा टाइटल मिलता है कोई को एक-दो या छ: और कोई को आठ-दस, वैसे ही यहाँ भी टाइटल लेते हैं। सिर्फ इसमें ही खुश नहीं होना है कि मैं योगी हूँ। जो महिमा, योग की गाई जाती है, अगर इन सबको अपने जीवन में धारण किया है, तो वह जितना ही यहाँ गायन होगा तो वह उतना ही वहाँ पूज्यनीय होगा। जैसे लौकिक रीति में भी बच्चा बाप की पूजा नहीं करता, लेकिन बाप को पूजनीय तो कहता है ना! इसी प्रकार जो सतयुग में प्रजा होगी, वह पूजा तो नहीं करेगी, लेकिन पूजनीय तो कहेगी अर्थात् रिगार्ड तो देगी। अब लिस्ट निकालो कि आपने अपने में कितने टाइटल धारण किये हैं और फिर चैक करो कि आपमें किसमें कमी है। टाइटल भी तब मिलता है, जब कि उसमें पास होते हैं। तो जब आपको भी अपनी सहजयोगी की स्थिति दिखाई दे और सभी यह महसूस करें कि आपका सहजयोग है, तब ही पास कहेंगे। ऐसे ही ज्ञानयोग में भी जो ज्ञान की महिमा है या उसकी उपमायें हैं, क्या वह सभी मैंने अपने में धारण की हैं? तो फिर आप स्वयं ही अपने नम्बर को जान सकते हो। जैसे कोई कहे कि पढ़ाई पॉवरफुल है, तो यह ज्ञान की महिमा हुई ना, न कि आपकी। तो अब देखो कि ज्ञान के जितने भी नाम हैं, क्या वह सब मैंने धारण किये हैं?

 

अगर सब टाइटल ज्ञान और योग के धारण नहीं किये हैं, तो विश्व महाराजन् व विश्व-महारानी बन नहीं सकेंगे। चलो, पास विद ऑनर नहीं, परन्तु पास तो होना है, फिर पास होने के लिए भी तो 75% मार्क्स चाहिए। अर्थात् यह सब धारणायें व योग्यतायें सबको अपने में दिखाई दें। सारे दिन के चार्ट में जैसे चौबीस घण्टे होते हैं, तो उसमें भी आठ घण्टे आराम के, फिर उसमें बचे सोलह घण्टे, तो सोलह का पौना बारह घण्टे, लेकिन जिनका बहुत बुद्धि का काम होता है, तो तीन घण्टे उनको छुट्टी देते हैं। और बाप होने के नाते एक घण्टा वैसे ही छोड़ते हैं। तो इस प्रकार आठ घण्टे बचे। तो सहजयोगी, राजयोगी आदि जो भी ज्ञान और योग के टाइटल हैं, वह आप में आठ घण्टे तो पूर्ण रूप में होने ही चाहिए जिससे कि अन्य आत्मायें भी यह महसूस करें व सार्टिफिकेट प्रदान करें कि हाँ यह सब लक्षण इसमें हैं, तब ही इसमें 75% मार्क्स मिल सकेंगे।

 

जो महारथी हैं अर्थात् ‘पास विद ऑनर’ होने वाले हैं, तो उनकी नींद का टाइम भी योग-युक्त स्थिति में गिना जाता है। उनकी स्टेज ऐसी होगी, जैसे कि पार्ट समाप्त कर वह स्वयं परमधाम में हैं और उनको योग की ही महसूसता होगी। जैसे गायन् है ना कि ब्रह्मा से ब्राह्मण बने। यहाँ तो ब्राह्मण से देवता बनते हैं। लेकिन यह ब्रह्मा से ब्राह्मण अर्थात् रात को सोते समय बस यही संकल्प होगा, कि अब मैं अपना पार्ट पूरा कर कर्मइन्द्रियों से अलग होकर जाता हूँ अपने पारब्रह्म में और जब अमृत वेले उठेंगे, तो महसूस करेंगे कि मैंने यह आधार लिया है, पार्ट बजाने के लिए, तो गोया ब्रह्म से ब्राह्मण बनकर आये हैं। यहाँ से तो जाकर वे सीधे देवता बनेंगे। लेकिन यह इस समय के ही अष्ट रत्नों का गायन है। जैसे साकार में बाप और माँ सरस्वती को देखा-उन्हें फर्स्ट, सेकेण्ड नम्बर किस आधार पर मिला? उनकी ज्यादा समय की कमाई तो नींद की ही जमा हुई ना? भले वे सोते भी थे, लेकिन ऐसा अनुभव करते थे कि नींद में नहीं हैं बल्कि हम तो जाग रहे हैं और फिर उनकी थकावट भी दूर हो जाती थी क्योंकि जब आत्मा कमाई में जागृत होती है, तो उसे थकावट भी नहीं होती। तो जैसे मां-बाप ने नींद को योग में बदला तो आप भी फर्स्ट ग्रेड के महारथियों को ऐसा ही फॉलो करना है। अब ऐसा अनुभव तो करते हो कि नींद कम होती जाती है, लेकिन ऐसी अवस्था बनानी है। नींद को योग में बदलो और फॉलो फादर करो। सारा दिन तो वे आपके समान ही साधारण थे ना? यह है फर्स्ट ग्रेड की निशानी-अष्ट रत्नों में आने वालों की। दूसरे हैं सौ वाले और फिर तीसरे हैं 16108 में आने वाले। लेकिन यहाँ महारथी तो सभी हैं, घोड़े सवार कोई नहीं है। लेकिन फर्स्ट, सेकेण्ड और थर्ड नम्बर होते हैं।

 

इसी प्रकार, जैसे किसी ने कर्मेन्द्रियों को ऑर्डर दिया और उसने वैसा ही किया, तो मानो कि वह कर्मयोगी है लेकिन जो सेकेण्ड ग्रेड वाले होंगे, तो उन्हें इसमें कभी-कभी  सफलता वा कर्मयोगी की महसूसता आयेगी और कभी-कभी नहीं और बाकी थर्ड ग्रेड वाले को तो तुम जान ही सकते हो। तो जब आपने फर्स्ट ग्रेड का बनना है, तो पहले लिस्ट निकालो कि ज्ञानयोग के कितने टाइटल्स हैं और आपने उनमें से कितने धारण किये हैं? यह क्लास कराना। ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारी का टाइटल तो सबको मिल गया पर इसमें ही खुश न होना है, बल्कि सब टाइटल्स को पूरापूरा धारण करना है। अच्छा!

 

दूसरी मुरली - 26-06-74

 

सर्व-सिद्धियों की प्राप्ति के रूहानी नशे में सदा स्थित रहो

 

आज ज्ञान-सूर्य बाप हर सितारे के मस्तक पर तकदीर की लकीर देख रहे हैं। लौकिक रीति में भी, भक्तों द्वारा हस्तों से जो जन्मपत्री देखी जाती है, उनमें मुख्यत: चार बातें देखते हैं। यहाँ हस्तों द्वारा तो नहीं, लेकिन मस्तक द्वारा मुख्य चार बातें देख रहे हैं- (1) एक बात यह कि बुद्धि की लाइन कितनी क्लियर है और विशाल है (2) दूसरी बात, हर समय ज्ञान-धन को धारण करने में, तन के कर्मभोग से निर्विघ्न और मन से एकरस लगन लगाने में मरजीवा जन्म से लेकर अभी तक कहाँ तक निर्विघ्न चलते आ रहे हैं? (3) तीसरी बात, इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म की स्मृति की आयु लम्बी है या छोटी है? बार-बार स्मृति अर्थात् जीना, विस्मृति अर्थात् मरने की हालत में पहुँच जाना, इसी हिसाब से आयु छोटी अथवा बड़ी गिनी जाती है। (4) मरजीवा जन्म लेते ही, स्नेह, सम्बन्ध सम्पर्क और सर्वशक्तियों में कहाँ तक तकदीरवान रहे हैं? क्या तकदीर की रेखा प्रतिशत के हिसाब से अटूट रही है और साथ-साथ पढ़ाई में व कमाई जमा करने में सदा सफलतामूर्त, रेग्युलर और पंक्चुअल कहाँ तक रहे हैं? कितनी आत्माओं के प्रति महादानी, वरदानी, कल्याणकारी बने हैं अर्थात् दान-पुण्य की रेखा लम्बी है या छोटी? इन सब बातों से हरेक सितारे के वर्तमान और भविष्य को देख रहे हैं।

 

आप सब अपने मस्तक की रेखाओं को जान और देख सकते हो, परन्तु कैसे? बाप-दादा के दिल-तख्तनशीन बन कर, स्मृति के तिलकधारी बनकर नॉलेजफुल और पॉवरफुल स्टेज पर स्थित हो देखेंगे तो स्पष्ट जान सकेंगे। अपनी पोज़ीशन को छोड़कर, माया की ऑपोज़ीशन  की स्थिति में व स्टेज पर स्थित होकर अपने को व अन्य आत्माओं को जब देखते हो, तब स्पष्ट दिखाई नहीं देता। पोज़ीशन कौन-सी है? आपकी अपनी पाज़ीशन कौन-सी है, जिसमें सब बातें आ जाती हैं? मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी। सदा इसी पाज़ीशन में स्थित रहते हुए, हर कर्म को करो तो यह पोज़ीशन माया के हर विघ्न से परे, निर्विघ्न बनाने वाली है। जैसे कोई लौकिक रीति में भी जब कोई अथॉरिटी वाला होता है, तो उनके आगे कोई भी सामना करने की हिम्मत नहीं रखते हैं और अगर कोई अपनी अथॉरिटी को यूज़ करने के बजाय हर समय लूज़  रहता है, तो साधारण आदमी भी सामना करने के लिए अथवा डिस्टर्ब करने के लिए, विघ्न डालने के लिए लूज़ रहते हैं। तो यहाँ भी अपनी अथॉरिटीज़ को, प्राप्त हुई सर्व-शक्तियों को, वरदानों को यूज करने के बजाय लूज़ रहते हो। इसलिए हर समय, माया को सामना करने की हिम्मत रहती है। मन्सा में, वाचा में, कर्मणा में, सम्बन्ध में और सम्पत्ति में सब में इन्टरफियर करने की हिम्मत रखती है। किसी भी बात में छोड़ती नहीं, क्योंकि अपनी पाज़ीशन से नीचे आकर साधारण बन जाते हो।

 

रिवाज़ी रीति से यदि कोई साधारण आत्मायें भी अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त कर लेती हैं, तो कितनी अथॉरिटी में रहती हैं। यहाँ सर्व-सिद्धियाँ प्राप्त होते हुए (1) चाहे सदा निरोगी बनने की सिद्धि (2) चाहे कोई भी प्रकृति के तत्व को वश में करने की सिद्धि (3) चाहे कोई दु:खी, निर्धन व अशान्त आत्मा को अविनाशी धनवान बनाने व सदा सुखी बनाने की सिद्धि (4) निर्बल को महा बलवान बनाने की सिद्धि (5) संकल्पों को एक सेकेण्ड में जहाँ और जैसे ठहराना चाहो वा संकल्प को अपने वश में करने की सिद्धि (6) पाँच विकारों रूपी महाभूतों को वश में करने की सिद्धि (7) नैनहीन को त्रिनेत्री बनाने की सिद्धि (8) अनेक परिस्थितियों की परेशानी में मूर्छित हुई आत्मा को स्व-स्थिति द्वारा सुरजीत करने व जी-दान देने की सिद्धि (9) भटकी हुई आत्मा को सदाकाल के लिए ठिकाना देने की सिद्धि (10) जन्मजन्मान्तर के लिए आयु लम्बी करने की सिद्धि (11) अकाले मृत्यु से बचाने की सिद्धि (12) राज्यभाग व ताज-तख्त प्राप्त करने की सिद्धि। ऐसी सर्व-सिद्धियों को विधि द्वारा प्राप्त करने वाली आत्मायें कितने नशे में रहनी चाहिए?

 

अपने आप को क्यों भूल जाते हो? लेना है बाप का सहारा और कर देते हो सर्वशक्तिमान से किनारा। खिवैया से किनारा कर और किनारे को अर्थात् मंज़ल जब ढूंढ़ते हो, तो मिलेगी या समय व्यर्थ जायेगा? बाप-दादा को ऐसे भोले व भूले हुए बच्चों पर रहम आता है। लेकिन कब तक? जब तक बाप द्वारा रहम लेने की आवश्यकता व इच्छा है, तब तक अन्य आत्माओं के प्रति रहमदिल नहीं बन सकेंगे? जो स्वयं ही लेने वाला है, वह देने वाला दाता नहीं बन सकता जैसे भिखारी, भिखारी को सम्पन्न नहीं बना सकता। हाँ अल्पकाल के लिए वे कुछ शक्तियों के आधार से, उन्हों पर थोड़े समय के लिए प्रभाव डाल सकते हैं। लेकिन सदा काल के लिए और सर्व में सम्पन्न नहीं बना सकते। अच्छा-अच्छा कहने तक अनुभव करा सकते हैं, लेकिन ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्टेज तक नहीं ला सकते। अच्छा-अच्छा कहने के साथ, सर्व-प्राप्ति की इच्छा समाप्त नहीं होती। क्योंकि स्वयं भी बाप द्वारा व सर्व सहयोगी आत्माओं द्वारा सहयोग, स्नेह, हिम्मत, उल्लास, उमंग की इच्छा रखने वाले और कोई भी प्रकार का आधार लेने वाले सर्व-आत्माओं के निमित्त आधार-मूर्त नहीं बन सकते। प्रकृति के व परिस्थिति के और व्यक्ति के व वैभव के अधीन रहने वाली आत्मा अन्य आत्माओं को भी सर्व अधिकारी नहीं बना सकती। इसलिए अपनी सर्व-सिद्धियों को जानकर उन्हें यूज़ करो। लेकिन निमित्त-मात्र बन कर यूज़ करो। मैं-पन भूल, श्रीमत के आधार से हर सिद्धि को यूज़ करो। अगर मैं-पन में आकर, कोई भी सिद्धि को यूज़ किया, तो क्या कहावत है? ‘‘करामत खैर खुदाई।’’ अर्थात् श्रेष्ठ-पद के बजाय, सज़ा के भागी बन जावेंगे। साक्षीपन नहीं, तो फिर सज़ा है। इसलिए सदा स्मृति-स्वरूप और सिद्धि-स्वरूप बनो। समझा?

 

वरदान:- कम्पैनियन के साथ द्वारा सदा मनोरंजन का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव

 

जब भी अकेलेपन का अनुभव हो तो उस समय बिन्दू रूप को याद नहीं करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। उस समय अपने रमणीक अनुभवों की कहानी को स्मृति में लाओ, अपने स्वमान की, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ। सिर्फ दिमाग से याद नहीं करो लेकिन दिल से कम्पैनियन के साथ कम्बाइन्ड बन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का रस अनुभव करो - यही मनमनाभव है और यह मनमनाभव होना ही मनोरंजन है।

 

स्लोगन:- बाप की श्रीमत प्रमाण जी-हाज़िर करते रहो तो सर्वशक्तियों का अधिकार मिल जायेगा।