ओम् शान्ति।
ज्ञान और विज्ञान। इसको कहेंगे अल्फ और बे। बाप ज्ञान देते हैं अल्फ और बे का। देहली
में विज्ञान भवन है परन्तु वह कोई अर्थ नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो ज्ञान और
योग। योग से हम पवित्र बनते हैं, ज्ञान से हमारी चोली रंगती है। हम सारे चक्र को
जान जाते हैं। योग की यात्रा के लिए भी यह ज्ञान मिलता है। वह कोई योग के लिए ज्ञान
नहीं देते हैं। वह तो स्थूल में ड्रिल आदि सिखाते हैं। यह है सूक्ष्म और मूल बात।
गीत भी उनसे तैलुक (संबंध) रखते हैं। बाप कहते हैं हे बच्चों, हे मूलवतन के राही,
पतित-पावन बाप ही सर्व का सद्गति दाता है। वही सबको रास्ता बतायेंगे घर जाने का।
तुम्हारे पास मनुष्य आते हैं समझने के लिए। किसके पास आते हैं? प्रजापिता
ब्रह्माकुमार कुमारियों के पास आते हैं तो तुमको उनसे पूछना चाहिए – तुम किसके पास
आये हो? मनुष्य साधू सन्त महात्मा के पास जाते हैं। उनका नाम भी रहता है – फलाने
महात्मा जी। यहाँ तो नाम ही है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारी। बी.के. तो ढेर हैं।
तुमको पूछना है – किसके पास आये हो? प्रजापिता ब्रह्मा तुम्हारा क्या लगता है? वह
तो सबका बाप ठहरा ना। कोई कहते हैं आपके महात्मा जी, गुरू जी का दर्शन करें। बोलो,
तुम गुरू कैसे कहते हो। नाम ही रखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमारी तो वह बाप हुआ
ना, न कि गुरू। प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारी माना ही इनका कोई बाप है। वह तो
तुम्हारा भी बाप ठहरा। बोलो, हम बी.के. के बाप से मिलने चाहते हैं। प्रजापिता का
नाम कभी सुना है? इतने बच्चे और बच्चियाँ हैं। बाप का मालूम पड़े तब समझें बेहद का
बाप है। प्रजापिता ब्रह्मा का भी जरूर कोई बाप होगा। तो कोई भी आते हैं उनसे पूछना
है किसके पास आये हो? बोर्ड पर क्या लिखा हुआ है? जबकि इतने ढेर सेन्टर्स हैं।
ब्रह्माकुमार कुमारी इतने हैं तो जरूर बाप होगा। गुरू हो न सके। पहले तो यह बुद्धि
से निकले, समझें कि यह घर है, कोई फैमिली में आया हूँ। हम प्रजापिता ब्रह्मा की
सन्तान हैं तो जरूर तुम भी होंगे। अच्छा वह ब्रह्मा फिर किसका बच्चा है? ब्रह्मा,
विष्णु, शंकर का रचयिता तो परमपिता परमात्मा शिव है। वह है ही बिन्दी। उनका नाम है
शिव। वह हमारा दादा है। तुम्हारी आत्मा भी उनकी सन्तान है। ब्रह्मा के तुम भी
सन्तान हो। तो तुम ऐसे कहो कि हम बापदादा से मिलने चाहते हैं। उनको ऐसे समझाना
चाहिए जो उनकी बुद्धि चली जाए बाप की तरफ। समझें मैं किसके पास आया हूँ। प्रजापिता
ब्रह्मा हमारा बाप है। वह है सब आत्माओं का बाप। तो पहले यह समझो हम किसके पास आये
हैं। ऐसे युक्ति से समझाना है जो उनको पता पड़े कि यह शिवबाबा की सन्तान हैं। यह एक
फैमिली है। उनको बाप और दादा का परिचय हो जाए। तुम समझा सकते हो – सर्व का सद्गति
दाता निराकार बाप है। वह प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सर्व की सद्गति करते हैं। उनको
सब पुकारते हैं। देखते हो ना – कितने बच्चे हैं जो आकर बाप से वर्सा लेते हैं। पहले
उनको बाप का परिचय मिले तब समझें हम बापदादा से मिलने आये हैं। बोलो, हम उनको
बापदादा कहते हैं। नॉलेजफुल, पतित-पावन वह शिवबाबा है ना। फिर समझाना चाहिए – भगवान
सर्व का सद्गति दाता निराकार है, वह ज्ञान का सागर है। ब्रह्मा द्वारा बेहद का वर्सा
ले रहे हैं। तो वह समझें यह ब्रह्माकुमार कुमारियाँ शिवबाबा की सन्तान हैं, वही सबका
बाप है। भगवान एक है। वही आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना करते हैं। वह
स्वर्ग का रचयिता, सर्व का बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। सृष्टि के
आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं अर्थात् त्रिकालदर्शी बनाते हैं। जो भी देखो –
समझने लायक है तो उनको यह समझाना चाहिए। पहले तो पूछो – तुम्हारे बाप कितने हैं?
लौकिक और पारलौकिक। बाप तो सर्वव्यापी हो न सके। लौकिक बाप से यह वर्सा मिलता है,
पारलौकिक से यह वर्सा मिलता है। फिर उनको सर्वव्यापी कैसे कह सकते हैं। यह अक्षर
नोट कर धारण करो। यह समझाना जरूर पड़ता है। समझाने वाले तुम ठहरे। यह घर है, हमारा
गुरू नहीं है। देखते हो यह सब ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। वर्सा हमको निराकार
शिवबाबा ही देते हैं जो सर्व का सद्गति दाता है। ब्रह्मा को सर्व का सद्गति दाता
पतित-पावन लिबरेटर नहीं कहा जा सकता। यह शिवबाबा की ही महिमा है जो भी आये उनको यही
समझाओ कि यह सर्व का बापदादा है। वही बाप स्वर्ग का रचयिता है। ब्रह्मा द्वारा
विष्णुपुरी की स्थापना करते हैं। ऐसे तुम किसको भी समझायेंगे तो फिर बाप के पास आने
की दरकार ही नहीं रहेगी। वह तो हिरे हुए हैं (आदत पड़ी हुई है), कहेंगे गुरू जी का
दर्शन करें..। भक्ति मार्ग में गुरू की बहुत महिमा करते हैं। वेद शास्त्र यात्रा आदि
सब गुरू ही सिखलाते हैं। तुमको समझाना है मनुष्य गुरू हो नहीं सकते। हम ब्रह्मा को
भी गुरू नहीं कहते। सतगुरू एक है। कोई मनुष्य ज्ञान का सागर हो नहीं सकता। वह सब
हैं भक्तिमार्ग के शास्त्र पढ़ने वाले। उनको शास्त्रों का ज्ञान कहा जाता है, जिसको
फिलॉसाफी कहते हैं। यहाँ हमको ज्ञान सागर बाप पढ़ाते हैं। यह स्प्रीचुअल नॉलेज है।
ज्ञान सागर ब्रह्मा विष्णु शंकर को नहीं कह सकते, तो मनुष्य को कैसे कह सकते। ज्ञान
की अथॉरिटी मनुष्य हो न सके। शास्त्रों की अथॉरिटी भी परमपिता परमात्मा को कहा जाता
है। दिखाते हैं, परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा सभी वेदों शास्त्रों का सार इनके
द्वारा समझाते हैं। बाप कहते हैं मुझे कोई जानते ही नहीं तो वर्सा कहाँ से मिले।
बेहद का वर्सा बेहद के बाप द्वारा ही मिलता है। अब यह बाबा क्या कर रहे हैं? यह होली
और धुरिया है ना। ज्ञान और विज्ञान अक्षर सिर्फ दो हैं। मनमनाभव का भी ज्ञान देते
हैं। मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तो यह ज्ञान विज्ञान है – होली
और धुरिया। मनुष्यों में ज्ञान न होने के कारण वह तो एक दो के मुख में धूल डालते
हैं। हैं भी ऐसे। गति सद्गति किसकी भी होती नहीं। धूल ही मुख में डालते हैं। ज्ञान
का तीसरा नेत्र किसको भी है नहीं। दन्त कथायें सुनते आये हैं। उनको कहा जाता है
ब्लाइन्ड फेथ।
अब तुम आत्माओं को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। तुम बच्चों को बाप से वर्से की
प्राप्ति के लिए राय देनी है तो उनको पता पड़े। यह वर्सा ले रहे हैं ब्रह्मा द्वारा
और कोई द्वारा मिल नहीं सकता। सब सेन्टर्स पर यह नाम लिखा हुआ है – प्रजापिता
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ। अगर गीता पाठशाला लिखें तो कॉमन बात हो जाती है। अब तुम भी
बी.के. लिखो तब तो बाप का परिचय दे सको। मनुष्य बी.के. नाम सुनकर डर जाते हैं इसलिए
गीता पाठशाला नाम लिखते हैं। परन्तु इसमें डरने की कोई बात नहीं। बोलो यह घर है।
तुम जानते हो किसके घर आये हैं? इन सबका बाप है प्रजापिता ब्रह्मा। भारतवासी
प्रजापिता ब्रह्मा को मानते हैं। क्रिश्चियन भी समझते हैं आदि देव होकर गये हैं,
जिसके यह मनुष्य वंशावली हैं। बाकी वह मानेंगे तो अपने क्राइस्ट को ही, क्राइस्ट
को, बुद्ध को फादर समझते हैं। सिजरा है ना। असुल में बाप ने ब्रह्मा द्वारा आदि
सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना की है। वह हो गया ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। पहले
बाप का परिचय देना है। वह कहे हम आपके बाप से मिलने चाहते हैं। बोलो, वर्सा शिवबाबा
से मिलता है, न कि ब्रह्मा बाबा से। तुम्हारा बाप कौन है? गीता का भगवान कौन है? आदि
सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना किसने की? बाप नाम कहने से समझेंगे यह सब
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ शिवबाबा की औलाद हैं। वर्सा मिलता है शिव से ब्रह्मा द्वारा
गति वा सद्गति का। वह इस समय हमको जीवनमुक्ति दे रहे हैं। बाकी सब मुक्ति में चले
जायेंगे। यह ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए। कोई भी आये तो उसको समझाओ,
किसको मिलने चाहते हो? वह तो हमारा भी और तुम्हारा भी बाप है। गुरू गोसाई तो हैं ही
नहीं। यह तो तुम समझते हो। जैसे कि होली धुरिया कराते हो। नहीं तो होली धुरिया का
कोई अर्थ नहीं निकलता। ज्ञान से चोली रंगते हो। आत्मा इस चोले के अन्दर हैं। वह
पवित्र बनने से शरीर भी पवित्र मिलेगा। यह तो पवित्र शरीर नहीं है। यह खलास हो जाना
है। गंगा स्नान शरीर को कराते हैं परन्तु पतित-पावन बाप के सिवाए कोई है नहीं। पतित
आत्मा बनती है तो आत्मा पानी के स्नान से पावन हो नहीं सकती। यह किसको पता नहीं। वह
तो आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। आत्मा निर्लेप है। अभी जो सेन्सीबुल बने हैं, वे
ही धारण कर और करा सकते हैं। जिन बच्चों के मुख से सदैव रत्न ही निकलते, उनको
रूप-बसन्त कहा जाता है। सिवाए ज्ञान विज्ञान के बाकी आपस में कुछ भी लेन-देन करते
हैं गोया पत्थर ही मारते हैं। सर्विस बदले डिससर्विस करते हैं। 63 जन्म एक दो को
पत्थर मारते आये। अब बाप कहते हैं तुमको ज्ञान विज्ञान की बातें कर दिल को खुश करना
है। झरमुई झगमुई की बातें नहीं सुननी चाहिए। यह ज्ञान है ना। पत्थर तो सारी दुनिया
एक दो को मारती है। तुम बच्चे तो रूप-बसन्त हो। तुमको ज्ञान विज्ञान के सिवाए न कुछ
सुनना है, न सुनाना है। जो उल्टी बातें करते हैं उनका संग ही खराब है। जो बहुत
सर्विस करने वाले हैं, उनका संग तारे.. कोई ब्राह्मण रूप बसन्त हैं, कोई ब्राह्मण
बनकर फिर उल्टी सुल्टी बातें करते हैं। ऐसे का संग नहीं करना चाहिए और ही नुकसान कर
देंगे। बाबा बार-बार सावधानी देते हैं। उल्टी सुल्टी बातें एक दो में कभी न करो। नहीं
तो अपनी भी सत्यानाश, दूसरे की भी सत्यानाश कर देते हैं तो फिर पद भ्रष्ट हो पड़ता
है। बाबा कितना सहज सुनाते हैं। शौक होना चाहिए, बाबा हम जाकर बहुतों को यह नॉलेज
देते हैं। वही बाप के सच्चे बच्चे हैं। सर्विसएबुल बच्चों की बाप भी महिमा करते
हैं। उनका संग करना चाहिए। कौन अच्छे स्टूडेन्ट का संग रखते हैं, बाबा से पूछो तो
बता सकते हैं, किसका संग करना चाहिए। कौन बाबा के दिल पर चढ़े हुए हैं, वह झट
बतायेंगे। सर्विस करने वालों का बाबा को भी रिगार्ड है। कोई-कोई तो सर्विस भी नहीं
कर सकते हैं। ऐसे बहुतों को खराब संग मिलने से अवस्था नीचे ऊपर हो जाती है। हाँ कोई
स्थूल सर्विस में अच्छे हैं, वह भी अच्छा वर्सा पा लेते हैं। अल्फ और बे समझना तो
बड़ा सहज है। कोई को भी सिर्फ बोलो – बाप को और वर्से को याद करो। बस, अक्षर ही दो
हैं – अल्फ और बे। यह तो बिल्कुल सहज है। कोई भी आये तो उनको सिर्फ कहो – बाबा का
फरमान है मामेकम् याद करो, बस। सबसे बड़ी खातिरी यह है। बाप कहते हैं मुझे याद करो
तो तुमको स्वर्ग का वर्सा मिल जायेगा। हर सेन्टर में ऐसे नम्बरवार हैं। कोई तो
डिटेल में समझा सकते हैं। नहीं समझा सकते हैं तो सिर्फ यह बताओ। कल्प पहले भी बाप
ने कहा था कि मामेकम् याद करो और कोई भी देहधारी देवता आदि को भी याद न करो। बाकी
झरमुई झगमुई, फलाना ऐसे कहते हैं, यह करते हैं… कुछ भी नहीं करो। यह बाबा ने तुमको
होली और धुरिया खिलाया। बाकी रंग आदि लगाना तो आसुरी मनुष्यों का काम है। कोई किसकी
ग्लानी बैठ सुनाये तो नहीं सुनना चाहिए। बाबा कितनी अच्छी बातें सुनाते हैं –
मनमनाभव, मध्याजी भव। कोई भी आये तो उसको समझाओ – शिवबाबा सबका बाप है, वह तो कहते
हैं मुझे याद करो तो स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। गीता का भगवान भी वह है। मौत सामने खड़ा
है। तो तुम बच्चों का काम है सर्विस करना। बाप की याद दिलाना। यह है महान मन्त्र,
जिससे राजधानी का तिलक मिल जायेगा। कितनी सहज बात है बाप को याद करो और कराओ तो बेड़ा
पार हो जायेगा। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सेन्सीबुल बन सबको बाप का परिचय देना है। मुख से कभी पत्थर निकाल
डिससर्विस नहीं करनी है। ज्ञान-योग के सिवाए दूसरी कोई चर्चा नहीं करनी है।
2) जो रूप-बसन्त हैं, सर्विसएबुल हैं उनका ही संग करना है। जो उल्टी-सुल्टी बातें
सुनायें उनका संग नहीं करना है।