ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। जब भगवानुवाच कहा जाता है तो बच्चों को श्रीकृष्ण बुद्धि में नहीं आता।
बुद्धि में शिवबाबा ही आता है। मूल बात है बाप का परिचय देना क्योंकि बाप से ही
वर्सा मिलता है। तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि हम शिवबाबा के फालोअर्स हैं। नहीं, शिवबाबा
के बच्चे हैं। हमेशा अपने को बच्चे समझो। और कोई को यह पता नहीं है कि वह
बाप-टीचर-गुरू भी है। तुम बच्चों में भी बहुत हैं जो भूल जाते हैं। यह याद रहे तो
भी अहो सौभाग्य। बाबा को भूल जाते हैं फिर लौकिक देह के सम्बन्ध याद आ जाते हैं।
वास्तव में तुम्हारी बुद्धि से और सब निकल जाना चाहिए। एक बाप ही याद रहे। तुम कहते
हो - त्वमेव माताश्च् पिता..... अगर दूसरा कोई याद आता है तो ऐसे नहीं कहेंगे कि
सद्गति में जा रहे हैं, देह-अभिमान में हैं तो दुर्गति ही होती है, देही-अभिमानी हो
तो सद्गति होती है। कभी नीचे, कभी ऊपर चढ़ते-उतरते रहते हैं। कभी आगे बढ़ते हैं, कभी
पीछे हटते हैं। देह-अभिमान में तो बहुत आते हैं, इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं चार्ट
रखो तो पता पड़े हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं? सारा मदार है याद पर।
नीचे-ऊपर होते ही रहते हैं। बच्चे चलते-चलते थक जाते हैं, फिर रड़ियाँ मारते हैं -
बाबा, यह होता है। याद भूल जाती है। देह-अभिमान में आने से ही पीछे हटते हैं। कुछ न
कुछ पाप करते हैं। याद पर सारा मदार है। याद से आयु बढ़ती है इसलिए योग अक्षर
नामीग्रामी है। ज्ञान की तो बहुत सहज सब्जेक्ट हैं। बहुत हैं जिनको ज्ञान भी नहीं
है तो योग भी नहीं है, इससे नुकसान बहुत होता है। बहुतों से मेहनत होती नहीं है।
पढ़ाई में नम्बरवार तो होते ही हैं। पढ़ाई से समझा जाता है कि यह कहाँ तक और किसकी
सर्विस करते हैं? सबको शिवबाबा का परिचय देना है। तुम जानते हो बेहद का वर्सा एक ही
बेहद के बाप से मिलता है। मुख्य है मात-पिता और तुम बच्चे। यह हुआ ईश्वरीय कुटुम्ब।
और कोई की भी बुद्धि में यह नहीं होगा कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं, उनसे ही वर्सा
लेना है। एक बाप को ही याद करना है, वह भी निराकार शिवबाबा, परिचय ही ऐसे दो। वह तो
बेहद का बाप है। उनको सर्वव्यापी कैसे कह सकेंगे! भला उनसे वर्सा कैसे पायेंगे?
पावन कैसे बनेंगे? बन ही नहीं सकेंगे। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं - मनमनाभव, मुझे याद
करो। यह कोई भी जानते नहीं हैं। श्रीकृष्ण को भी वास्तव में सब नहीं जानते। वह
मोर-मुकुटधारी यहाँ कैसे आयेंगे? यह है बहुत ऊंचा ज्ञान। ऊंचे ज्ञान में जरूर थोड़ी
डिफीकल्टी भी होगी। सहज नाम भी है। बाप से वर्सा लेना तो सहज है ना। बच्चे डिफीकल्ट
क्यों समझते हैं? क्योंकि बाप को याद नहीं कर सकते।
बाबा ने बच्चों को दुर्गति और सद्गति का राज़ भी समझाया है। इस समय सब दुर्गति
में जा रहे हैं। मनुष्य मत दुर्गति में ले जाती है, यह है ईश्वरीय मत, इसलिए बाबा
कान्ट्रास्ट बनवाते हैं। हरेक मनुष्य अपने से पूछे कि हम नर्कवासी हैं वा
स्वर्ग-वासी हैं? अब सतयुग है कहाँ? परन्तु मनुष्य कुछ भी समझते नहीं। सतयुग को भी
कल्पना समझते हैं। अनेक मत हैं, अनेक मत से दुर्गति होती है। एक मत से सद्गति होती
है। यह तो बहुत अच्छा स्लोगन है - “मनुष्य, मनुष्य को दुर्गति में ले जाते हैं, एक
ईश्वर सभी को सद्गति देते हैं।'' तो तुम शुभ बोलते हो ना। बाप की महिमा करते हो। वह
सर्व का बाप है, सर्व की सद्गति करते हैं। बच्चों को बाप ने बहुत समझाया है भल
प्रभात फेरी निकालो। बोलो, हेविनली गॉड फादर हमको यह पद प्राप्त करा रहे हैं, अब
नर्क का अन्त आने वाला है। समझाने में मेहनत तो करनी पड़ती है। ऐरोप्लेन से पर्चे
गिरा सकते हो। हम तो एक ही बाप की महिमा करते हैं, वो ही सर्व का सद्गति दाता है।
बाप कहते - बच्चे, मैं तुमको सद्गति देता हूँ। फिर तुमको दुर्गति देने वाला कौन? कहा
जाता है आधा कल्प है हेविन, फिर हेल। रावण राज्य माना ही आसुरी राज्य, नीचे ही गिरते
आते हैं - उल्टी रावण की मत से। पतित-पावन एक ही बाप है, हम बाप से विश्व का मालिक
बन रहे हैं। इस शरीर से भी मोह निकाल देना है। अगर हंस-बगुले इकट्ठे होंगे तो मोह
कैसे निकलेगा? हर एक की सरकमस्टांश देखी जाती है। हिम्मत है अपना शरीर निर्वाह आपेही
कर सकते हो तो फिर ज्यादा झंझट में क्यों फँसते हो? पेट बहुत नहीं खाता है, बस दो
रोटी खाओ और कोई फुरना नहीं। फिर भी अपने से प्रण कर लेना चाहिए कि बाप को ही याद
करना है, जिससे सब विकर्म विनाश हो जायें। इसका मतलब यह नहीं कि धन्धा नहीं करना
है। धंधा नहीं करेंगे तो पैसा कहाँ से आयेगा? भीख तो नहीं मांगना है। यह तो घर है,
शिवबाबा के भण्डारे से खाते हैं। अगर सर्विस नहीं करते हैं तो मुफ्त में खाते हैं
तो गोया भीख पर चलना होता है। 21 जन्म फिर सर्विस करनी पड़ेगी। राजा से लेकर रंक तक
सब यहाँ हैं, वहाँ भी हैं परन्तु वहाँ सदैव सुख है, यहाँ सदैव दु:ख है। पोजीशन तो
होती है ना। बाप से पूरा योग रखना है। सर्विस करनी है। दिल से पूछना है कि हम यज्ञ
की कितनी सेवा करते हैं? कहते हैं ईश्वर के पास सब हिसाब बना-बनाया है। उसको साक्षी
होकर देखा जाता है कि इस चलन से क्या पद पायेंगे? यह भी समझ सकते हैं कि श्रीमत पर
चलने से कितना ऊंच पद पायेंगे, न चलने से कितना कम पद हो जाता है। यह सब समझने की
बातें हैं। तुम्हारे पास प्रदर्शनी में कोई भी धर्म वाला आता है, बोलो बेहद के बाप
से बेहद के सुख-शान्ति का वर्सा मिलता है। बेहद का बाप ही शान्ति दाता है। उनको ही
कहते हैं शान्ति देवा। अब कोई जड़ चित्र थोड़ेही शान्ति दे सकेगा। बाप कहते हैं -
तुम्हारा स्वधर्म है शान्त। तुम शान्ति-धाम में जाना चाहते हो। कहते हो शिवबाबा
शान्ति दो तो बाप क्यों नहीं देंगे? क्या बाप वर्सा नहीं देंगे बच्चों को? कहते हैं
शिवबाबा सुख दो। वह तो हेविन स्थापन करने वाला है, तो सुख क्यों नही देंगे? उनको
याद ही नहीं करेंगे, उनसे मांगेंगे ही नहीं तो वह देंगे भी क्या? शान्ति का सागर तो
बाबा ही है ना। तुम सुख चाहते हो, बाप कहते हैं शान्ति के बाद फिर सुख में आना है।
पहले-पहले जो आयेंगे वह सुख पायेंगे। देरी से आने वालों को सुख मांगना आयेगा ही नहीं।
वह मुक्ति ही मांगेंगे। पहले सब मुक्ति में जायेंगे। वहाँ तो दु:ख होगा ही नहीं।
तुम जानते हो हम मुक्तिधाम में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। बाकी सब मुक्ति
में चले जायेंगे। इसको कयामत का समय कहा जाता है। सबका हिसाब-किताब चुक्तू होने वाला
है, जानवरों का भी हिसाब-किताब होता है ना। कोई-कोई राजाओं के पास रहते हैं, उन्हों
की कितनी पालना होती है। रेस के घोड़ों की कितनी सम्भाल होती है क्योंकि घोड़े तीखे
होंगे तो कमाई अच्छी होगी। धनी जरूर प्यार करेंगे। यह भी ड्रामा में नूंध है। वहाँ
यह होते ही नहीं। यह रेस आदि बाद में शुरू हुई है। यह सारा बना-बनाया खेल है। सृष्टि
के आदि-मध्य-अन्त को भी अब तुम जान गये हो। आदि में बहुत थोड़े मनुष्य होंगे। हम
विश्व पर राज्य करते रहेंगे। हरेक समझ सकते हैं कि हम बन सकते हैं वा नहीं? हम बहुतों
का कल्याण करते हैं? इसमें मेहनत करनी पड़े जबकि बाप मिला है। दुनिया वाले तो आपस
में लड़ते-झगड़ते रहते हैं, विनाश के लिए क्या-क्या बनाते रहते हैं? ऐसे-ऐसे
बाम्ब्स बनाते हैं, जिससे आग लग जाये। भंभोर को आग कोई कम थोड़ेही लगेगी। बुझाने
वाला कोई रहेगा नहीं। ढेर बाम्ब्स बनाते रहते हैं। उसमें गैस प्वाइजन आदि डालते
हैं, जो हवा चलने से ही सब खत्म हो जायेंगे। मौत तो सामने खड़ा है, इसलिए बाप कहते
हैं वर्सा लेना हो तो लो। मेहनत करो। टूमच धन्धे आदि में मत जाओ। कितना चिंतन रखना
पड़ता है। बाबा ने इनको तो छुड़ा दिया। अब यह छी-छी दुनिया है। तुम बच्चों को बाप
को याद करना है, जो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायें और बाप से वर्सा ले लेंवे। बहुत
प्यार से याद करना है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र देखने से ही दिल खुश हो जाता है। यह
हमारा एम आब्जेक्ट है। भल पूजा करते थे परन्तु यह मालूम थोड़ेही था कि हम यह बन सकते
हैं। कल पुजारी थे, आज पूज्य बन रहे हैं। बाबा आया तो पूजा छोड़ दी। बाप ने विनाश
और स्थापना का साक्षात्कार कराया ना। हम विश्व के मालिक बनते हैं। यह तो सब खत्म
होना है फिर हम क्यों न बाप को याद करें। अन्दर में एक की ही महिमा गाते रहते हैं -
बाबा, आप कितने मीठे हो।
तुम जानते हो हम सब आत्माओं का बाप वह एक ही है, उनसे ही वर्सा मिलता है। हम
भक्ति मार्ग में उनको याद करते थे, वह परमधाम में रहने वाला है, इसलिए तो उनका
चित्र भी है। अगर आया न हो तो चित्र क्यों होता? शिव जयन्ती भी मनाते हैं। उनको कहा
ही जाता है परमपिता परमात्मा। बाकी तो सबको मनुष्य या देवता कहा जाता है। सबसे पहले
आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, पीछे और धर्म हुए हैं। तो ऐसे बाप को कितना प्यार से
याद करना चाहिए। भक्ति मार्ग में तो बहुत रड़ियाँ मारते हैं, अर्थ कुछ भी नही जानते।
जो आया महिमा करते रहते हैं। अनेक स्तुतियाँ हैं। बाप की स्तुति क्या करेंगे। तुम
ही कृष्ण हो, तुम ही व्यास हो, तुम ही फलाना हो..... यह तो ग्लानी हुई। बाप का कितना
अपकार करते हैं। बाप कहते ड्रामा अनुसार यह सब मेरा अपकार करते हैं फिर मैं आकर
सर्व का उपकार, सर्व की सद्गति करता हूँ। मैं आया हूँ नई दुनिया स्थापन करने। यही
हार-जीत का खेल है। 5 हजार वर्ष का बना-बनाया ड्रामा है, इसमें ज़रा भी फ़र्क नहीं
हो सकता। यह ड्रामा का राज़ बाप बिगर कोई समझा न सके। मनुष्य मत तो अनेक निकलती रहती
हैं। देवता मत तो मिलती ही नहीं। बाकी है मनुष्य मत। हरेक अपना अक्ल निकालते रहते
हैं। अब तुमको और कोई को भी याद नहीं करना है। आत्मा सिर्फ अपने बाप को याद करती रहे।
मेहनत करनी है। जैसे भक्त भी मेहनत करते हैं ना। बहुत श्रद्धा से भक्ति करते हैं।
जैसे वह भक्ति है, तुम्हारी फिर है ज्ञान की मेहनत। भक्ति में कम मेहनत करते हैं
क्या? गुरू लोग कहते रोज 100 माला फेरो, फिर कोठरी में बैठ जाते हैं। माला
फेरते-फेरते घण्टा लग जाता। बहुत करके राम-राम की धुनी लगाते हैं, यहाँ तो तुमको
बाप की याद में रहना है। बहुत प्यार से याद करना है। कितना मीठे से मीठा बाबा है।
सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और दैवीगुण धारण करो। खुद करेंगे तब दूसरों को भी
रास्ता बतायेंगे। बाप जैसा मीठा और कोई हो नहीं सकता। कल्प के बाद तुमको मीठा बाबा
मिलता है। फिर पता नहीं, ऐसे मीठे बाप को क्यों भूल जाते हो! बाप स्वर्ग का रचयिता
है तो तुम भी जरूर स्वर्ग के मालिक बनते हो। परन्तु कट (जंक) उतारने के लिए बाप को
याद करो। न याद करने की ऐसी कौन-सी मुसीबत आती है, कारण बताओ क्या बाप को याद करना
डिफीकल्ट है? अच्छा!
मीठे-मीठे लक्की सितारों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म जरूर करो लेकिन टूमच झंझटों में नहीं फंसना
है। ऐसा चिंतन धन्धे आदि का न हो जो बाप की याद ही भूल जाये।
2) अनेक मनुष्य मतों को छोड़ एक बाप की मत पर चलना है। एक बाप की महिमा गानी है।
एक बाप को ही प्यार करना है, बाकी सबसे मोह निकाल देना है।