08-07-07     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 24.09.92 "बापदादा"    मधुबन


सत्य और असत्य का विशेष अन्तर
 


आज दिलाराम बाप अपने सर्व बच्चों के दिल की आश पूर्ण करने के लिए मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त रूप में तो सदा सर्व बच्चे मिलन मनाते रहते हैं। फिर भी व्यक्त शरीर द्वारा अव्यक्त मिलन मनाने की शुभ आश रखते हैं। इसलिए बाप को भी अव्यक्त से व्यक्त में आना पड़ता है। बापदादा इस समय चारों ओर देश-विदेश के बच्चों को देख रहे हैं-मन से मधुबन में हैं। आप साकार में हो और अनेक बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। बापदादा भी सर्व बच्चों के स्नेह का रिटर्न दे रहे हैं। जहाँ भी हैं लेकिन याद द्वारा बाप के समीप दिल में हैं। सबके स्नेह के साज़ बापदादा सुन रहे हैं। बाप जानते हैं कि बच्चों के लिए सिवाए बाप के और कोई याद करने वाला है नहीं और बाप को भी सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं। सदा इसी स्मृति में रहते हैं कि मैं बाबा का और बाबा मेरा। यही स्मृति सहज भी है और समर्थ बनाने वाली है। ऐसा स्मृतिस्वरूप स्नेही बच्चा साकार में तो क्या लेकिन स्वप्न में भी कभी असमर्थ हो नहीं सकता। असमर्थ होना अर्थात् ‘मेरा बाबा’ के बजाए कोई और ‘मेरापन’ आता है। एक मेरा बाबा-यह है मिलन मनाना। अगर ‘एक’ के बजाए ‘दो’ मेरा हुआ तो क्या हो जाता? वह है मिलना और वह है झमेला।

कई बच्चे समझते हैं-बाबा तो मेरा है ही लेकिन और भी एक-दो को मेरा कहना ही पड़ता है। कहते हैं-और कोई नहीं, सिर्फ एक आधार चाहिए। लेकिन वायदा क्या है-एक बाप दूसरा न कोई या एक बाप एक और? भोले बन जाते हो। उस एक में अनेक समाये हुए होते हैं, इसलिए झमेला हो जाता है। इस पुरानी दुनिया में भी ऐसे खिलौने मिलते हैं जो बाहर से एक दिखाई देता है लेकिन एक में एक होता है। एक खोलते जाओ तो दूसरा निकलेगा, दूसरा खोलेंगे तो तीसरा निकलेगा। यह भी ऐसा ही खिलौना है। दिखाई एक देता लेकिन अन्दर समाये हुए अनेक हैं। और जब झमेले में चले गये तो मिलन मनाना कैसे हो सकता? झमेले में ही लगे रहेंगे या मिलन मनायेंगे? सिर्फ वो नहीं सोचो। सिवाए एक बाप के संकल्प में भी अगर कोई आत्मा को वा प्रकृति के साधन को मेरा सहारा स्वीकार किया तो यह आटोमेटिक ईश्वरीय मशीनरी बहुत फास्ट गति से कार्य करती है। जिस सेकेण्ड अन्य को सहारा बनाया, उसी सेकण्ड मन-बुद्धि का बाप से किनारा हो जाता है। सत्य बाप से किनारा होने के कारण बुद्धि असत्य को सत्य, रांग को राइट मानने लगती है, उल्टी जजमेंट देने लगती है। कितना भी कोई समझायेगा कि यह राइट नहीं है, लेकिन वह यथार्थ को, सत्य को भी असत्य की शक्ति से समझाने वाले को रांग सिद्ध करेगा। यह सदा याद रखो कि आजकल ड्रामा अनुसार असत्य का राज्य है और असत्य के राज्य-अधिकारी प्रेजीडेंट रावण है। उसके कितने शीश हैं अर्थात् असत्य की शक्ति कितनी महान है! उसके मन्त्री-महामन्त्री भी बड़े महान हैं। उसके जज और वकील भी बड़े होशियार हैं। इसलिए उल्टी जजमेन्ट की पॉइंट्स बहुत वैराइटी और बाहर से मधुर रूप की देते हैं। इसलिए सत्य को असत्य सिद्ध करने में बहुत होशियार होते हैं।

लेकिन असत्य और सत्य में विशेष अन्तर क्या है? असत्य की जीत अल्पकाल की होती है क्योंकि असत्य का राज्य ही अल्प-काल का है। सत्यता की हार अल्पकाल की और जीत सदाकाल की है। असत्य के अल्पकाल के विजयी उस समय खुश होते हैं। जितना थोड़ा समय खुशी मनाते वा अपने को राइट सिद्ध करते, तो समय आने पर असत्य के अल्पकाल का समय समाप्त होने पर जितनी असत्यता के वश मौज मनाई, उतना ही सौ गुणा सत्यता की विजय प्रत्यक्ष होने पर पश्चाताप करना ही पड़ता है। क्योंकि बाप से किनारा, स्थूल में किनारा नहीं होता, स्थूल में तो स्वयं को ज्ञानी समझते हैं लेकिन मन और बुद्धि से किनारा होता। और बाप से किनारा होना अर्थात् सदाकाल की सर्व प्राप्तियों के अधिकार से सम्पन्न के बजाए अधूरा अधिकार प्राप्त होना। कई बच्चे समझते हैं कि असत्य के बल से असत्य के राज्य में विजय की खुशी वा मौज इस समय तो मना लें, भविष्य किसने देखा। कौन देखेगा-हम भी भूल जायेंगे, सब भूल जायेंगे। लेकिन यह असत्य की जजमेंट है। भविष्य वर्तमान की परछाई है। बिना वर्तमान के भविष्य नहीं बनता। असत्य के वशीभूत आत्मा वर्तमान समय भी अल्पकाल के सुख के नाम, मान, शान के सुखों के झूले में झूल सकती है और झूलती भी है, लेकिन अतीन्द्रिय अविनाशी सुख के झूले में नहीं झूल सकती। अल्पकाल के शान, मान और नाम की मौज मना सकते हैं लेकिन सर्व आत्माओं के दिल के स्नेह का, दिल की दुआओं का मान नहीं प्राप्त कर सकते। दिखावा मात्र मान पा सकते हैं लेकिन दिल से मान नहीं पा सकते। अल्पकाल का शान मिलता है लेकिन बाप से सदा दिलतख्तनशीन का शान अनुभव नहीं कर सकते। असत्य के साथियों द्वारा नाम प्राप्त कर सकते हैं लेकिन बापदादा के दिल पर नाम नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि बापदादा से किनारा है। भविष्य की बात तो छोड़ो, वह तो अन्डरस्टुड है। लेकिन वर्तमान सत्यता और असत्यता की प्राप्ति में कितना अन्तर है? एक दूसरा मेरा बनाया अर्थात् असत्य का सहारा लिया। कितना झमेला हुआ! कहने में तो कहेंगे - और कुछ नहीं, सिर्फ कभी-कभी थोड़ा सहारा चाहिए। लेकिन वायदा तोड़ना अर्थात् झमेले में पड़ना। क्या ऐसा वायदा किया है - एक मेरा बाबा और कभी-कभी दूसरा? दूसरा भी एलाउ है? यह लिखा था क्या? चाहे अल्पकाल के नाम-मान-शान का सहारा लो, चाहे व्यक्ति का लो, चाहे वैभव का लो, जब दूसरा न कोई तो फिर दूसरा कहाँ से आया? यह असत्य के राज्य के झमेले में फंसाने की चतुराइयां हैं। जैसे बाप कहते हैं ना - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा मुझे नम्बरवार जानते हैं। ऐसे असत्य के राज्य-अधिकारी ‘रावण’ को भी जो है, जैसा है, वैसे सदा नहीं जानते हो। कभी भूल जाते हो, कभी जानते हो। राज्य-अधिकारी है तो यह ताकत कम होगी! चाहे झूठा हो, चाहे सच्चा हो लेकिन राज्य तो है ना। इसलिए अपने को चेक करो, दूसरे को नहीं।

आजकल दूसरों को चेक करने में सब होशियार हो गये हैं। बापदादा कहते हैं - अपना चेकर बनो और दूसरे का मेकर बनो। लेकिन करते क्या हो? दूसरे का चेकर बन जाते हो और बातें बनाने में मेकर बन जाते हो। बापदादा रोज़ की हर एक बच्चे की कौन सी कहानियाँ सुनते हैं? बहुत बड़ा किताब है कहानियों का। तो अपने को चेक करो। दूसरे को चेक करने लगते हो तो लम्बी कथायें बन जाती हैं और अपने को चेक करेंगे तो सब कथायें समाप्त हो एक सत्य जीवन की कथा प्रैक्टिकल में चलेगी। सभी कहते हैं - बाबा, आप से बहुत प्यार है! सिर्फ कहते हो वा करते भी हो, क्या कहेंगे? कभी कहते हो, कभी करते हो। बाप के प्यार का प्रत्यक्ष सबूत बाप ने दे दिया। जो हो, जैसे हो - मेरे हो। लेकिन अभी बच्चों को सबूत देना है। क्या सबूत देना है? बाप कहते हैं - जो हो, जैसे हो - मेरे हो। और आप क्या कहेंगे? जो है वह सब आप हो। ऐसे नहीं - थोड़ा-थोड़ा और भी है। बाप से प्यार है लेकिन कभी-कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में आ जाते हैं। अच्छा!

चारों ओर के यथार्थ सत्य को परखने वाले, सच्चे बाप के सच्चे बच्चों को, सर्व स्नेह में समाए हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व सदा वायदे को निभाने वाली समर्थ आत्माओं को, सर्व यथार्थ परखने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सर्व याद और सेवा में निर्विघ्न रहने वाले, सदा साथ और समीप रहने वाले बच्चों को याद, प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात

जितना जो सेवा के निमित्त बनता है उतना ही दिल का हजार गुणा स्नेह सेवा के साथ अनुभव होता है। इसलिए जिम्मेवारी, जिम्मेवारी नहीं लगती, खेल लगता है। खेल तो नया ही देखना अच्छा होता है। पुराना खेल क्या देखेंगे। जब वृक्ष का विस्तार होता है तभी सार (बीज) प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। विस्तार सार को प्रत्यक्ष करता है। मजा आता है ना। विश्व के तख्तनशीन होने के पहले सेवा के तख्तनशीन बनना होता है। जो जितनी सेवा के तख्तनशीन बनता है उतना ही विश्व के तख्तनशीन बनता है। बेहद की सेवा का तख्त मिला है ना। अच्छा मेकअप किया है। अच्छा है मधुबन में रहना। ये सभी मधुबन में रहने वाले हैं। मधुबन की सीट मिली है ना। तो मधुबन है सेवा का तख्त, बेहद की सेवा का तख्त। अच्छा ग्रुप है। अच्छी सेवा चल रही है ना।

पर्यावरण अभियान प्रति सन्देश

सेवा का प्रत्यक्षफल है आत्माओं को अनुभूति कराना, सन्देश के साथ अनुभूति कराना। यही सेवा का प्रत्यक्षफल है। सन्देश देना तो कब भी (भविष्य में भी) जान सकते हैं लेकिन ‘अनुभूति’ प्रत्यक्षफल है। इसकी आवश्यकता है जो सिवाए आप लोगों के कोई करा नहीं सकता। सुनाने वाले अनेक हैं, अनुभव कराने वाले सिर्फ आप हो। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

दु:ख की लहर से मुक्त होने के लिये कर्मयोगी बनकर कर्म करो

सभी अपने को श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? नाम ही है श्रीमत। श्री का अर्थ है श्रेष्ठ। तो श्रेष्ठ मत पर चलने वाले श्रेष्ठ हुए ना। यह रूहानी नशा, बेहद का नशा रहता है ना। या कभी-कभी हद का नशा भी आ जाता है? इसलिये सदा अपने को देखो-चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बेहद का रूहानी नशा रहता है? चाहे कर्म मजदूरी का भी हो, साधारण कर्म करते अपने श्रेष्ठ नशे को भूलते तो नहीं हो? घर में रहने वाली, घर की सेवा करने वाली साधारण मातायें हैं-यह याद रहता है या जगत माता हूँ, जगत का कल्याण करने के निमित्त यह कार्य कर रही हूँ-यह याद रहता है? जिसे यह रूहानी नशा होगा उसकी निशानी क्या होगी? वह खुशी में रहेगा, कोई भी कर्म करेगा लेकिन कर्म के बन्धन में नहीं आयेगा, न्यारा और प्यारा होगा। कर्म के बन्धन में आना अर्थात् कर्म में फंसना और जो न्यारा-प्यारा होता है वह कर्म करते भी कर्म के बन्धन में नहीं आता, कर्मयोगी बन कर्म करता है। अगर कर्म के बन्धन में आयेंगे तो खुशी गायब हो जायेगी। क्योंकि कर्म अच्छा नहीं होगा। लेकिन कर्मयोगी बनकर कर्म करने से दु:ख की लहर से मुक्त हो जायेंगे। सदा न्यारा होने के कारण प्यारे रहेंगे। तो समझा, कैसे रहना है? कर्मबन्धन मुक्त। कर्म का बन्धन खींचे नहीं, मालिक होकर कर्म करायें। मालिक न्यारा होता है ना। मालिक होकर कर्म कराना-इसे कहा जाता है बन्धन-मुक्त। ऐसी आत्मा सदा स्वयं भी खुश रहेगी और दूसरों को भी खुशी देगी। ऐसे रहते हो? सुनते तो बहुत हो, अभी ज् सुना है वह करना है। करेंगे तो पायेंगे। अभी-अभी करना, अभी-अभी पाना।

माताओं को कभी दु:ख की लहर आती है? कभी मन से रोती हो? मन का रोना तो सबको आ सकता है। तो श्रीमत है-सदा खुश रहो। श्रीमत यह नहीं है कि कभी-कभी रो लो। बहुतकाल मन से वा आंखों से रोया, रावण ने रूलाया ना। लेकिन अभी बाप के बने हो खुशी में नाचने के लिये, रोने के लिये नहीं। रोना खत्म हो गया। दु:ख की लहर-यह भी रोना है। यह मन का रोना हो गया। सुखदाता के बच्चे सदा सुख में झूलते रहो। दु:ख की लहर आ नहीं सकती। भूल जाते हो तब आती है। इसलिये अभूल बनो। अभी जो भी कमजोरी हो उसे महायज्ञ में स्वाहा करके जाना। साथ में लेकर नहीं जाना, यहाँ ही स्वाहा करके जाओ। स्वाहा करना आता है ना। दृढ़ संकल्प करना अर्थात् स्वाहा करना। अच्छा! सभी की आश पूरी हुई। यह भी भाग्यवान हो जो ऐसे मिलते रहते हो। आगे चलकर क्या होता है.....। यह भी भाग्य जितना मिलता है उतना लेते चलो। उड़ते जाओ। यही याद रखना कि महान हैं और महान बनाना है।

वरदान:-
निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव

कोई भी संकल्प वा संस्कार सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन हो जाए - इसके लिए सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास चाहिए, क्योंकि व्यर्थ वा निगेटिव संकल्पों की गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पावरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास करो। तब स्वयं के व्यर्थ को परिवर्तन कर स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे तथा अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा अनेक आत्माओं को सुख शान्ति का वरदान दे सकेंगे।

स्लोगन:-
ड्रामा के ज्ञान को स्मृति में रखने वाले ही नथिंगन्यु की विधि से विजयी बन सकते हैं।