25-03-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
06.04.91 "बापदादा" मधुबन
"कर्मातीत अर्थात् कर्म
और फल के स्पर्श से न्यारे, संकल्प भी सदा हल्के"
कर्मातीत स्थिति के
समीप आते जा रहे हो? कर्म भी वृद्धि को प्राप्त होता रहता है। लेकिन कर्मातीत
अर्थात् कर्म के किसी भी बंधन के स्पर्श से न्यारे। ऐसा ही अनुभव बढ़ता रहे। जैसे
मुझ आत्मा ने इस शरीर द्वारा कर्म किया ना, ऐसे न्यारापन रहे। न कार्य के स्पर्श
करने का और करने के बाद जो रिजल्ट हुई - उस फल को प्राप्त करने में भी न्यारापन।
कर्म का फल अर्थात् जो रिजल्ट निकलती है उसका भी स्पर्श न हो, बिल्कुल ही न्यारापन
अनुभव होता रहे। जैसे कि दूसरे कोई ने कराया और मैंने किया। किसी ने कराया और मैं
निमित्त बनी। लेकिन निमित्त बनने में भी न्यारापन। ऐसी कर्मातीत स्थिति बढ़ती जाती
है - ऐसा फील होता है?
महारथियों की स्थिति
औरों से न्यारी और प्यारी स्पष्ट हो रही है ना। जैसे ब्रह्मा बाप स्पष्ट थे, ऐसे
नम्बरवार आप निमित्त आत्माएं भी साकार स्वरूप से स्पष्ट होती जातीं। कर्मातीत
अर्थात् न्यारा और प्यारा। कर्म दूसरे भी करते हैं और आप भी करते हो लेकिन आपके
कर्म करने में अन्तर है। स्थिति में अन्तर है। जो कुछ बीता और न्यारा बन गया। कर्म
किया और वह करने के बाद ऐसा अनुभव होगा जैसे कि कुछ किया नहीं। कराने वाले ने करा
लिया। ऐसी स्थिति का अनुभव करते रहेंगे। हल्कापन रहेगा। कर्म करते भी तन का भी
हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन। कर्म की रिजल्ट मन को खैंच लेती है। ऐसी
स्थिति है? जितना ही कार्य बढ़ता जायेगा उतना ही हल्कापन भी बढ़ता जायेगा। कर्म अपनी
तरफ आकार्षित नहीं करेगा लेकिन मालिक होकर कर्म कराने वाला करा रहा है और निमित्त
करने वाले निमित्त बनकर कर रहे हैं।
आत्मा के हल्केपन की
निशानी है - आत्मा की जो विशेष शक्तियाँ हैं मन, बुद्धि, संस्कार, यह तीनों ही ऐसी
हल्की होती जायेगी। संकल्प भी बिल्कुल ही हल्की स्थिति का अनुभव करायेंगे। बुद्धि
की निर्णय शक्ति भी ऐसा निर्णय करेगी जैसे कि कुछ किया ही नहीं, और कोई भी संस्कार
अपनी तरफ आकार्षित नहीं करेगा। जैसे बाप के संस्कार कार्य कर रहे हैं। यह
मन-बुद्धि-संस्कार, सूक्ष्म शक्तियाँ जो हैं, तीनों में लाइट (हल्का), अनुभव करेंगे।
स्वत: ही सबके दिल से, मुख से यही निकलता रहेगा कि जैसे बाप, वैसे बच्चे न्यारे और
प्यारे हैं। क्योंकि समय प्रमाण बाहर का वातावरण दिन प्रतिदिन और ही भारी होता
जायेगा। जितना ही बाहर का वातावरण भारी होगा उतना ही अनन्य बच्चों के संकल्प, कर्म,
सम्बन्ध लाइट (हल्के) होते जायेंगे और इस लाइटनेस के कारण सारा कार्य लाइट चलता
रहेगा। वायुमण्डल तो तमोप्रधान होने के कारण और भिन्न-भिन्न प्रकार से भारीपन का
अनुभव करेंगे। प्रकृति का भी भारीपन होगा। मनुष्यात्माओं की वृत्तियों का भी भारीपन
होगा। इसके लिए भी बहुत हल्कापन भी औरों को भी हल्का करेगा। अच्छा, सब ठीक चल रहा
है ना। कारोबार का प्रभाव आप लोग के ऊपर नहीं पड़ता। लेकिन आपका प्रभाव कारोबार पर
पड़ता है। जो कुछ भी करते हो, सुनते हो तो आपके हल्केपन की स्थिति का प्रभाव कार्य
पर पड़ता है। कार्य की हलचल का प्रभाव आप लोगों के ऊपर नहीं आता। अचल स्थिति कार्य
को भी अचल बना देती है। सब रीति से असम्भव कार्य सम्भव और सहज हो रहे हैं और होते
रहेंगे। अच्छा।
मधुबन निवासी
भाई-बहिनों से:-
मधुबन निवासी अर्थात्
राजऋषि कुमार और कुमारियाँ। राजऋषि अर्थात् राज्य अधिकारी और तपस्वी, क्योंकि मधुबन
है ही तपस्या भूमि। जो रहते ही हैं तपस्या भूमि में वो तपस्वी हुए ना! तो राजऋषि
अर्थात् राज्य अधिकारी के साथ तपस्या भी। राज्य अधिकारी बनें भी तब, जब तपस्वी बनें।
तपस्वी नहीं तो राज्य अधिकारी नहीं। मधुबन निवासियों की अखण्ड तपस्या है ना, या एक
साल की तपस्या है? अखण्ड तपस्वी हो ना? जैसे यहाँ सेवा का भी अखण्ड पाठ चलता है ना।
सिर्फ विधि बदलती है सेवा की। लेकिन सेवा का अखण्ड पाठ चलता है। तो जैसे सेवा अखण्ड
है, ऐसे मधुबन निवासियों की तपस्या भी अखण्ड है। अखण्ड तपस्या अर्थात् कभी भी
खण्डित नहीं और मधुबन निवासियों की तपस्या अति सहज है। क्यों? क्योंकि मधुबन निवासी
बेफिकर बादशाह हैं। सेवा भी करते हो लेकिन बना बनाया भी मिलता है और सबसे ज्यादा
मधुबन निवासियों को सर्व ब्राह्मणों की दुआएं मिलती है। सबके मुख से, दिल से क्या
निकलता है? मधुबन वाले बहुत अच्छे हैं। तो दुआओं का खज़ाना मधुबन निवासियों को विश्व
की आत्माओं के द्वारा मिलता है। योग शिविर में भी चाहे वी.आई.पीज. आये, चाहे आई.पीज.
आये.. सभी के मुख से मधु-बन निवासियों के लिए दुआएं निकलती हैं, तो सिकीलधे हो गये
ना। मेहनत जरूर करते हो। लेकिन मेहनत का प्रत्यक्षफल भी खाते हो। सेवा का रिकार्ड
तो सदा से अच्छा रहा है और अच्छा रहेगा। समय प्रमाण एवररेडी भी बन जाते हो और कोई
भी बात का सामना भी कर लेते हो। पहाड़ उठाने में होशियार हो। तो अभी इस बड़े मेले में
थके तो नहीं? सबसे ज्यादा काम है वैसे पानी वालों का, भण्डारे वालों का भी अपना है,
भेजने वालों का भी अपना है। हरेक डिपार्टमेंन्ट वालों का अपना है। एक भी
डिपार्टमेन्ट नहीं हो, तो नहीं चल सकता। सभी डिपार्टमेन्ट के निमित्त बने हुए मिलकर
अथक होकर करते हो। तभी सफलता प्राप्त होती है। तो सेवा की सफलता में सदा प्राइज़
मिलती है। अभी तपस्या में प्राइज़ लो। सभी ने अच्छा सहयोग दिया है और रिजल्ट भी बहुत
अच्छी रही। नाम नहीं लेते हैं लेकिन हर डिपार्टमेन्ट ने अच्छा किया है - तो पद्मगुणा
मुबारक हो। इस बार निर्विघ्न रहा। इतनी बड़ी सीज़न होते भी कोई ऐसा केस नहीं हुआ। कोई
शरीर छोड़ता है तो मधुबन निवासियों को दो दिन खाना नहीं मिलता। इस बारी तो कुछ नहीं
हुआ। चाहे पत्तलें मंगाई, चाहे टेंट लगाया, बारिश आई, या हवाएं आई, लेकिन निर्विघ्न
हो। अभी सिर्फ जाना रह गया, बस ना। आने-जाने, खातिरी करने वाले सभी ने बहुत अच्छा
निभाया। आप सभी भी खुश है ना कि निर्विघ्न बीता। सबने कमाल की। पहुँचाने वाले भी
रात्रि में जागते रहे। तो मधुबन निवासियों का जागरण बहुत होता होगा तभी और लोग भी
जागते हैं। कोई न कोई देव या देवी के रूप में आपका जागरण होता है। तो अच्छे मार्क्स
हैं। समझा। अभी ऐसी तपस्या करना जो चारों ओर मधुबन की तपस्या का सहयोग प्राप्त हो।
सभी अनुभव करें कि विशेष सहयोग मिल रहा है। सबकी तबियत तो ठीक रही ना? अच्छा।
डबल विदेशियों से:-
डबल विदेशी सदा ही
डबल अर्थात् कम्बाइन्ड रहने के आदती हैं। कम्पनी को पसन्द करते हैं ना। कम्पे-नियन
को भी पसन्द करते हैं। तो कम्पेनियन भी मिल गया और कम्पनी भी मिल गई। दोनों मिल गये
ना! अच्छा। रेस तो अच्छी कर रहे हो। डबल विदेशी, चाहे विदेश की सेवा पीछे हुई है,
लेकिन सबमें आगे जाने का उमंग अच्छा है और हिम्मत भी अच्छी रखते हैं। इसलिए बापदादा
की मदद भी मिलती रहती है और सदा अधिकारी हैं मदद मिलने के। डबल विदेशियों को सदा नशा
रहता है ना। पुरानी दुनिया में तो भाषा की भी समस्या हो जाती है। अपने राज्य में यह
कोई समस्या नहीं है। अच्छा। सभी तीव्र पुरुषार्थी हो ना। पुरुषार्थी नहीं बनना।
अच्छा।
हॉस्पिटल की सेवा के
निमित्त भाई बहिनों से:- बहुत अथक सेवा की है ना। अथक सेवाधारी को बापदादा के दिल
का स्नेह और हर समय का सहयोग स्वतः ही प्राप्त होता है। तो आप सबने कार्य किया या
कोई ने कराया? (बाबा ने कराया) निमित्त आपने किया ना। अगर करेंगे नहीं तो पायेंगे
नहीं। इसलिए करने के निमित्त बनना अर्थात् पाना। हर एक ने अपना-अपना बहुत अच्छा
कार्य किया। बिना सर्व के अंगुली डाले कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। इसलिए जो भी सभी
बैठे हो सभी को अपने-अपने कार्य की मुबारक हो। अभी समझते हो ना कि यह कोई बड़ी बात
नहीं। ऐसे तो और भी बना सकते हैं या यही बहुत मुश्किल है? सहज हो गया ना। कोई भी
मुश्किल अगर आती भी है तो खेल के लिए आती है। समझो खेल कर रहे हैं। कभी भी मुश्किल
को मुश्किल नहीं समझो। मनोरंजन समझो तो मुश्किल सहज हो जायेगी। यह निमित्त बनना भी
भाग्य की निशानी है। भाग्य आपको खींचकर ले आया। अनेक आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने
का भाग्य। यह कम बात नहीं है। यह विरले को प्राप्त होता है। जिन्होंने भी हार्ड
वर्क किया और समय पर कार्य पूरा किया, सबको पद्मगुणा मुबारक हो। बापदादा वतन में
बैठे भी देखता है कि क्या-क्या कौन कर रहा है। चाहे दूसरा कोई देखे या न देखे।
लेकिन बापदादा सबको देखते हैं। सबके मन का रिकार्ड और तन का रिकार्ड दोनों ही देखते
हैं। (ज्ञान सरोवर, सालगांव के लिए) वहाँ भी सभी ने बहुत अच्छी सेवा की। दिन रात
लगकर जंगल को मंगल बनाना यह बहुत बड़ी सेवा है। उन्हों को भी विशेष मुबारक।
(हॉस्पिटल के दूसरे
फेज़ के लिए वरदान) यह भी अनेक आत्माओं के अनेक जन्मों के जीवन को श्रेष्ठ बनाने का
फाउन्डेशन हो जायेगा। निमित्त यह पत्थर का फाउन्डेशन लगाते हैं लेकिन अनेक आत्मायें
दुआओं के भण्डार से भरपूर हो आपको दुआयें देती रहेंगी। तो यह फाउन्डेशन लगाना
अर्थात् दुआओं के पात्र बनना। इसलिए और दिल से उमंग से, तन-मन-धन, मन-वचन-कर्म सबसे
बढ़ाते चलो और अपने साथ औरों की जीवन को श्रेष्ठ बनाते चलो। जैसे पहले उमंग उत्साह
से किया है उससे भी ज्यादा उमंग उत्साह से यह कार्य सम्पन्न हुआ पड़ा है। सब
निमित्त हैं। अच्छा।
वरदान:-
पवित्रता की
रायल्टी द्वारा सदा हर्षित रहने वाले हर्षितचित, हर्षितमुख भव
पवित्रता की रॉयल्टी
अर्थात् रीयल्टी वाली आत्मायें सदा खुशी में नाचती हैं। उनकी खुशी कभी कम, कभी
ज्यादा नहीं होती। दिनप्रतिदिन हर समय और खुशी बढ़ती रहेगी। उनके अन्दर एक बाहर
दूसरा नहीं होगा। वृत्ति, दृष्टि, बोल और चलन सब सत्य होगा। ऐसी रीयल रॉयल आत्मायें
चित से भी और नैन-चैन से भी सदा हर्षित होंगी। हर्षितचित, हर्षितमुख अविनाशी होगा।
स्लोगन:-
संसार में
सर्वश्रेष्ठ बल पवित्रता का बल है, इस बल को धारण कर बलवान बनो।