ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - सालिग्राम समझते हैं शिवबाबा हमको पढ़ाने आते हैं। बच्चे जानते हैं वही
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। बच्चों को अब कोई नई बात नहीं लगती। समझ में
आ गया है। मनुष्य तो सब भूले हुए हैं। जिसने पढ़ाया, उनके बदले पहले नम्बर में पढ़ने
वाले का नाम डाल दिया है। तुमको पढ़ते-पढ़ते यह बात सिद्ध करनी है। भारत के शास्त्रों
की ही बात है और धर्म के शास्त्रों की नहीं। भूल ही भारत के शास्त्रों की है।
तुम्हारे सिवाए यह बात और कोई सिद्ध नहीं कर सकता। बच्चे जानते हैं यह अनादि ड्रामा
है, फिर भी रिपीट होगा। तुम मनुष्यमात्र को सुधारने का पुरूषार्थ करते हो। मनुष्य
जब सुधरते हैं तो दुनिया ही सुधर जाती है। सतयुग है सुधरी हुई नई दुनिया और कलियुग
है अनसुधरी हुई पुरानी दुनिया। यह भी तुम बच्चे अच्छी रीति समझते हो और धारण कर
समझाने लायक भी बनते हो। इसमें बड़ी रिफाइननेस चाहिये। बाबा तुमको कितना रिफाइन कर
समझाते हैं, सुधारते हैं। बाप कहते हैं जब तुम सुधर जाते हो फिर मुझे सुधारने की
जरूरत नहीं रहती। तुम अन-आर्य बन पड़े थे, अब आर्य अर्थात् देवी-देवता बनना है। सो
तो सतयुग में ही होंगे। वह सब सुधरे हुए थे, अब अनसुधरेले उनकी पूजा करते हैं। यह
किसकी बुद्धि में नहीं आता कि हम उनको क्यों सुधरेले कहते हैं? हैं सब मनुष्य, जो
सुधरेले आर्य थे वही सब अनसुधरेले बने हैं। आर्य और अन-आर्य। बाकी वह जो आर्य समाज
है, वह मठ-पंथ है। यह सब झाड़ से क्लीयर समझ सकते हैं। यह है मनुष्य सृष्टि का झाड़,
इसकी आयु 5 हजार वर्ष है। इसका नाम कल्प वृक्ष है। परन्तु कल्प वृक्ष अक्षर से
मनुष्यों की बुद्धि में झाड़ नहीं आता है। तुमको झाड़ के रूप में समझाया है। वह कह
देते कल्प लाखों वर्ष का है। बाप कहते 5 हजार वर्ष का है। और कोई कितनी आयु सुनाते,
कोई कितनी। पूरा समझाने वाला कोई है नहीं। आपस में कितना शास्त्रवाद करते हैं।
तुम्हारी तो यह रूहरिहान है, तुम सेमीनार करते हो, इसको रूहरिहान कहा जाता है।
प्रश्न-उत्तर समझने के लिये भी करते हैं। बाबा जो कुछ तुमको सुनाते हैं, उससे ही
टॉपिक निकाल तुम सुनाते हो। वो लोग क्या सुनाते हैं, यह भी तुम जाकर सुनो। फिर आकर
सुनाना चाहिये कि इस प्रकार का वाद-विवाद चलता है।
पहले तो यह समझाना है कि गीता का भगवान् कौन? भगवान् बाप को भूलने कारण बिल्कुल
चट खाते में आ गये हैं। तुम बच्चों का तो बाप से लॅव है। तुम बाबा को याद करते हो।
बस, बाबा ही प्राण दान देने वाला है। नॉलेज का दान ऐसा देते हैं जो क्या से क्या बन
जाते हैं। तो बाप पर लव रहना चाहिये। बाबा हमको ऐसी-ऐसी नई बात सुनाते हैं। हम
श्रीकृष्ण को कितना याद करते हैं, वह कुछ देता ही नहीं। श्रीनारायण को याद करते
हैं, याद करने से कुछ होता है क्या? हम तो कंगाल के कंगाल ही रह गये। देवतायें कितने
सालवेन्ट थे। अब सभी आर्टीफिशयल चीज़ें हो गई हैं। जिसका दाम नहीं, उनका आज दाम हो
गया है। वहाँ अनाज आदि के दाम की बात ही नहीं। सबको अपनी-अपनी प्रापर्टी आदि है,
कोई अप्राप्त वस्तु नहीं, जिसके प्राप्ति की इच्छा रहे। बाबा कहते हैं - मैं
तुम्हारा भण्डारा भरपूर कर देता हूँ। तुमको ऐसी नॉलेज देता हूँ जिससे तुम्हारा
भण्डारा भर जाता है। तुम्हारी बुद्धि में है नॉलेज इज़ सोर्स ऑफ इनकम। नॉलेज ही सब
कुछ है। इस पढ़ाई से तुम कितना ऊंच बनते हो! पढ़ाई का भण्डार है ना। वह टीचर्स
पढ़ाते हैं, उनसे अल्पकाल का सुख मिलता है। इस पढ़ाई से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता
है। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिये। यह समझने में टाइम लगता है। जल्दी कोई
समझ न सके। कोटों में कोई निकलता है। आधाकल्प सभी मनुष्य एक-दो को गिराते ही आये
हैं। चढ़ाने वाला एक बाप है। बेहद की पढ़ाई पढ़ाने वाले के बदले पढ़ने वाले का नाम
डाल दिया है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती। कहते हैं - भगवानुवाच, पढ़ाकर गये।
फिर उनका कोई शास्त्र रहता नहीं। सतयुग में कोई शास्त्र है नहीं। यह सब हैं भक्ति
मार्ग के शास्त्र। कितना बड़ा झाड़ है। भक्ति की यह अनेक टाल-टालियां न हो तो झाड़
का नाम भी न रहे। यह सब धारणा करने की बातें हैं। तुम धारणा करते हो। पढ़ाने वाला
तो पढ़ाकर गुम हो जाता है। पढ़ने वाले आकर विश्व के मालिक बनते हैं। कितनी नई बातें
हैं। एक भी बात कोई की बुद्धि में बैठती नहीं है। स्टूडेन्ट भी तुम सब नम्बरवार हो,
कोई पास होते, कोई फेल होते। यह है बेहद का बड़ा इम्तहान। तुम जानते हो हम अभी अच्छी
तरह पढ़ेंगे तो कल्प-कल्पान्तर अच्छा पढ़ेंगे। अच्छा पढ़ने वाले ही ऊंच पद पाते
हैं। नम्बरवार सब जायेंगे। सारा क्लास ट्रांसफर होता है। नम्बरवार जाकर बैठते हैं,
यह ज्ञान भी आत्मा में है। अच्छा वा बुरा संस्कार आत्मा में है। शरीर तो मिट्टी है।
आत्मा निर्लेप हो नहीं सकती। 100 परसेन्ट सतोप्रधान और 100 परसेन्ट तमोप्रधान कौन
हैं - यह भी तुम समझते हो। पहले तो गरीबों को उठाना पड़े। वह पहले आयेंगे। गुरुओं
के भी अच्छे-अच्छे अनन्य शिष्य जब आयेंगे तब उन सबकी बुद्धि खुलेगी। देखेंगे यह तो
हमारे ही पत्ते निकलते जाते हैं। यहाँ के जो होंगे वह तो निकल आयेंगे। बाप आकर नया
झाड़ शुरू करते हैं। जो और-और धर्मों में जाकर पड़े हैं, वह सब लौटेंगे। फिर भी अपने
भारत में ही आयेंगे। भारतवासी ही थे ना। हमारी डाल के जो हैं वह सब आ जायेंगे। आगे
चलकर तुम सब समझते जायेंगे। अब बाहर से सबको धक्का मिलता जाता है। जहाँ-जहाँ बाहर
वाले हैं उनको भगाते रहते हैं। समझते हैं - यह बहुत धनवान हो गये हैं। यहाँ वाले
गरीब हो गये हैं।
पिछाड़ी में सबको अपने-अपने धर्म में जाना होता है। आखिर सब अपने-अपने घर तरफ
भागेंगे। विलायत में कोई मरता है तो उनको भारत में ले आते हैं क्योंकि भारत है
फर्स्टक्लास पवित्र भूमि। भारत में ही नई दुनिया थी। इस समय इसको वाइस-लेस वर्ल्ड
नहीं कह सकते। यह है विशश वर्ल्ड इसलिये बुलाते हैं - हे पतित-पावन आओ, आकर हमको
पावन बनाओ। भल दुनिया तो यही है परन्तु इस समय दुनिया में कोई पावन तो है नहीं।
पावन आत्मायें मूलवतन में हैं। वह है ब्रह्म महतत्व। सब पावन बनकर वहाँ जायेंगे।
फिर नम्बरवार आयेंगे पार्ट बजाने। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का यह फाउन्डेशन है।
फिर तीन ट्युब निकलती हैं। यह तो देवता धर्म है। यह कोई ट्युब नहीं है। पहले यह
फाउन्डेशन फिर 3 ट्युब्स निकलती हैं। मुख्य हैं 4 धर्म। सबसे अच्छा धर्म है यह
ब्राह्मण धर्म। इनकी बहुत महिमा है। हीरे जैसा तुम यहाँ बनते हो। बाप तुमको यहाँ
पढ़ाते हैं। तो तुम कितने बड़े हो। देवताओं से भी तुम ब्राह्मण बड़े नॉलेजफुल हो।
वन्डर है ना। हम जो नॉलेज लेते हैं वह हमारे साथ चलती है। फिर वहाँ नॉलेज को ही भूल
जाते हैं। तुम जानते हो पहले हम क्या पढ़ते थे, अब हम क्या पढ़ते हैं। आई.सी.एस.
वाले क्या पढ़ते हैं और बाद में क्या पढ़ते हैं। फ़र्क तो है ना। आगे चलकर तुम बहुत
नई प्वाइन्ट्स सुनेंगे। अभी नहीं बतायेंगे। पार्ट ही आगे सुनने का है। बुद्धि में
रहता है - नॉलेज का पार्ट जब पूरा होना होगा तब हम भी उस समय बाबा के ज्ञान को धारण
कर लेंगे। फिर हमारा पार्ट स्वर्ग में शुरू हो जायेगा। उनका पार्ट पूरा हो जायेगा।
बुद्धि में बहुत अच्छी धारणा चाहिये। सिमरण करते रहो, बाप को याद करते रहो। याद नहीं
होगी तो कम पद पायेंगे। बाप को याद करते-करते शरीर का भान निकल जायेगा। सन्यासी भी
इस अवस्था का अभ्यास करते-करते शरीर छोड़ देते हैं। परन्तु उन्हों का रास्ता अलग
है, इसलिये उनको फिर जन्म लेना पड़ता है। फालोअर्स समझते हैं वह ब्रह्म में लीन हो
गया फिर वापिस आ नहीं सकता। बाप समझाते हैं वापिस कोई भी जा नहीं सकते। पिछाड़ी में
सब एक्टर्स जब स्टेज पर आयेंगे तब फिर घर जायेंगे। वह है हद का विनाशी नाटक, यह है
बेहद का अविनाशी नाटक। तुम अच्छी तरह समझा सकते हो, यह ड्रामा जूँ मिसल चलता है। वह
तो फिर छोटे-छोटे ड्रामा बनाते हैं। झूठी फिल्म बनाते हैं। उनमें थोड़ी अच्छी बातें
होती हैं जैसे विष्णु अवतरण दिखाते हैं। ऐसे नहीं, ऊपर से कोई उतर आता है।
लक्ष्मी-नारायण पार्ट बजाने आते हैं। बाकी ऊपर से कोई नहीं आते हैं। अब तुम बच्चों
को बाप पढ़ाते हैं। तब यह बातें तुम सब समझ सकते हो। पहले तुम भी तुच्छ बुद्धि थे।
जब बाप ने समझाया है तब तुम्हारे कपाट खुल गये हैं। इतना समय जो कुछ सुना वह कोई
काम का नहीं था और ही गिरते गये इसलिये तुम सबसे लिखवाते हो। जब लिखकर देवें तब समझा
जाये - कुछ बुद्धि में बैठा है। बाहर से आते हैं, फॉर्म भराते हैं तो मालूम पड़े
हमारे कुल का है। मूल बात है बाप को जानना। समझें कि बरोबर कल्प-कल्प बाप हमको
पढ़ाते हैं। यह पूछना है - कब से पवित्र बने हो? जल्दी नहीं सुधरते। घड़ी-घड़ी माया
पकड़ लेती है। देखती है - कच्चा है तो हप कर लेती है। कई महारथियों को भी माया हप
कर गई। शास्त्रों में भी मिसाल अभी के हैं। मन्दिर में भी घोड़े सवार, महारथी,
प्यादे आदि दिखाते हैं। तुम अब अपना यादगार देखते हो। जब तुम बन जायेंगे तो भक्ति
उड़ जायेगी। तुम किसको माथा नहीं टेक सकते हो। तुम पूछेंगे यह कहाँ गये? इनकी
बायोग्राफी बताओ। बाबा ने तुम बच्चों को नॉलेजफुल बनाया है तब तुम पूछते हो, तो नशा
रहना चाहिये। पास विद् ऑनर 8 होते हैं। यह बहुत बड़ा इम्तहान है। अपने को देखना है
- हमारी आत्मा पवित्र बनी है? बैटरी भरेगी तब जब योग होगा। बाप से योग होगा तो
सतोप्रधान बनेंगे। तमोप्रधान आत्मा वापिस नहीं जा सकती है।
यह भी ड्रामा है। वहाँ दु:ख देने वाली कोई चीज़ नहीं है। गायें भी सुन्दर हैं।
श्रीकृष्ण के साथ गायें कितनी सुन्दर दिखाते हैं। बड़े-बड़े आदमी का फर्नीचर भी
सुन्दर। गायें अच्छा दूध देती हैं, तब तो दूध की नदियां बहती हैं। अब यहाँ नहीं
हैं। अभी तुम नॉलेजफुल बन गये हो। इस दुनिया को तुम तुच्छ समझते हो। इनका सारा किचड़ा
स्वाहा होना है। फिर सारा किचड़ा निकल सब स्वच्छ बन जायेंगे। हम अपनी राजधानी में
जाते हैं। उनका नाम है स्वर्ग। सुनते ही खुशी होती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-