04-04-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 29-06-71 मधुबन

 

नॉलेज की लाइट से पुरूषार्थ का मार्ग स्पष्ट

 

सभी जो पुरूषार्थ कर रहे हैं उस पुरूषार्थ द्वारा वर्तमान समय की प्राप्ति का लक्ष्य कौनसा है? देव-पद की प्राप्ति तो भविष्य की है, लेकिन वर्तमान समय पुरूषार्थ की प्राप्ति का लक्ष्य कौनसा है? (फरिश्ता बनना) फरिश्ते की मुख्य क्वालिफिकेशन क्या हैं? फरिश्ता बनने के लिए दो क्वालिफिकेशन कौनसी है? एक लाइट, दूसरी माइट चाहिए। दोनों ही जरूरी हैं। लाइट और माइट - दोनों ही फरिश्तेपन की लाइफ में स्पष्ट दिखाई देते हैं। लाइट प्राप्त करने के लिए विशेष कौनसी शक्ति चाहिए? शक्तियां तो बहुत हैं ना। लेकिन माइट रूप वा लाइट रूप बनने के लिए एक-एक अलग गुण बताओ। एक है मनन और दूसरी है सहन शक्ति। जितनी सहन शक्ति होती है उतनी सर्वशक्तिमान की सर्व शक्तियां स्वत: प्राप्त होती हैं। नॉलेज को भी लाइट कहते हैं ना। तो पुरूषार्थ के मार्ग को सहज और स्पष्ट करने के लिए भी नॉलेज की लाइट चाहिए। इस लाइट के लिए फिर मनन शक्ति चाहिए। तो एक मनन शक्ति और दूसरी सहन शक्ति चाहिए। अगर यह दोनों ही शक्तियां हैं तो फरिश्ते स्वरूप का चलते-फिरते किसको भी साक्षात्कार हो सकता है। सहन शक्ति से सर्व गुणों की प्राप्ति हो ही जाती है। जो सहन शक्ति वाला होगा उसमें निर्णय शक्ति, परखने की शक्ति, गम्भीरता की शक्ति आटोमेटिकली एक के साथ अनेक आ जाते हैं। सहन शक्ति भी आवश्यक है और मनन शक्ति भी आवश्यक है। मन्सा के लिए है मनन शक्ति और वाचा तथा कर्मणा के लिए है सहन शक्ति। सहन शक्ति है तो फिर जो भी शब्द बोलेंगे वह साधारण नहीं। दूसरा, कर्म भी जो करेंगे वह भी उसके प्रमाण ही करेंगे। तो दोनों ही शक्तियों की आवश्यकता है। सहन शक्ति वाले कार्य में भी सफल हो जाते हैं। सहन शक्ति की कमी के कारण कार्य की सफलता में भी कमी आ जाती है। सहन शक्ति वाले की ही अव्यक्त स्थिति वा शुद्ध संकल्पों के स्वरूप की स्थिति रहेगी। सहनशील की सूरत में चमक रहेगी। कैसे भी संस्कार वाले होंगे, तो भी उनको अपनी सहन शक्ति से टेम्प्रेरी टाइम के लिए दबा लेंगी। तो दोनों शक्तियां चाहिए। अपने पुरूषार्थ में मन के संकल्प चलाने में भी सहन शक्ति चाहिए, जिसको कन्ट्रोलिंग पावर भी कहते हैं। सहन शक्ति है तो व्यर्थ संकल्पों को भी कन्ट्रोल कर सकते हैं। तो इन दोनों शक्तियों के लिए अटेन्शन रखना है।

 

नम्बरवन बिज़नेसमैन बनने के लिए सहज तरीका क्या है? अपने को बिज़ी ज़नेसमैन बनने के लिए सहज तरीका क्या है? अपने को बिज़ी ज़ी रखने से ही नम्बरवन बिज़नेसमैन बन जायेंगे। जिसको अपने को बिज़ीज़नेसमैन बन जायेंगे। जिसको अपने को बिज़ीज़ी रखना नहीं आता है वह बिज़नेसमैन के भी लायक नहीं कहा जायेगा। यहाँ बिज़नेसमैन बनना अर्थात् अपनी भी कमाई और दूसरों की भी कमाई। इसके लिए अपने आप को एक सेकेण्ड भी ज़नेसमैन के भी लायक नहीं कहा जायेगा। यहाँ बिज़नेसमैन बनना अर्थात् अपनी भी कमाई और दूसरों की भी कमाई। इसके लिए अपने आप को एक सेकेण्ड भी ज़नेसमैन बनना अर्थात् अपनी भी कमाई और दूसरों की भी कमाई। इसके लिए अपने आप को एक सेकेण्ड भी फ्री नहीं रखना। कौनसा नम्बर का बिज़नेसमैन हो? जितना यहाँ गैलप करेंगे उतना समझो अपना भविष्य के तख्त को भी गैलप करेंगे। चान्स अच्छा है। जो भी करने चाहें वह कर सकते हैं। ज़नेसमैन हो? जितना यहाँ गैलप करेंगे उतना समझो अपना भविष्य के तख्त को भी गैलप करेंगे। चान्स अच्छा है। जो भी करने चाहें वह कर सकते हैं। फ्रीडम (Freedom) है सभी को। जो जितना चान्स लेता है उतना समझो अपने तख्त का निशान पक्का करता है। बिज़नेसमैन का अर्थ ही है जो एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो। जैसे वह बिज़नेसमैन एक- एक पैसे को कितना बना देते हैं कमाई करके। यह भी एक-एक सेकेण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाये, उनको कहते हैं नम्बरवन बिज़नेसमैन। बुद्धि को और काम ही क्या है। बुद्धि इसी में ही बिज़ी  (Freedom) है सभी को। जो जितना चान्स लेता है उतना समझो अपने तख्त का निशान पक्का करता है। बिज़नेसमैन का अर्थ ही है जो एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो। जैसे वह बिज़नेसमैन एक- एक पैसे को कितना बना देते हैं कमाई करके। यह भी एक-एक सेकेण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाये, उनको कहते हैं नम्बरवन बिज़नेसमैन। बुद्धि को और काम ही क्या है। बुद्धि इसी में ही बिज़ी  का अर्थ ही है जो एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये, हर संकल्प में कमाई हो। जैसे वह बिज़नेसमैन एक- एक पैसे को कितना बना देते हैं कमाई करके। यह भी एक-एक सेकेण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाये, उनको कहते हैं नम्बरवन बिज़नेसमैन। बुद्धि को और काम ही क्या है। बुद्धि इसी में ही बिज़ी  एक- एक पैसे को कितना बना देते हैं कमाई करके। यह भी एक-एक सेकेण्ड वा संकल्प कमाई करके दिखाये, उनको कहते हैं नम्बरवन बिज़नेसमैन। बुद्धि को और काम ही क्या है। बुद्धि इसी में ही बिज़ी । बुद्धि को और काम ही क्या है। बुद्धि इसी में ही बिज़ी  रहनी चाहिए। और सभी तरफ तो खत्म हो गये ना, वा कुछ रहा हुआ है जहाँ बुद्धि जा सके? सभी तरफ तो खत्म हो गये ना। अपने पुराने संस्कारों का तरफ भी खत्म हो गया ना। बुद्धि को जाने के तरफ वा रास्ते, ठिकाने वही हैं। बुद्धि वा तो पुराने संस्कारों तरफ जायेगी, वा तो अपने शरीर के हिसाब-किताब तरफ जायेगी वा मन के व्यर्थ संकल्पों तरफ खिंचेगी। यह तो सभी खत्म हो गये ना। भले शरीर का रोग होता है, उसकी नॉलेज रहती है कि यह फलाना दर्द है, इसका यह निवारण है। क्योंकि यह लक्ष्य है - जितना शरीर ठीक रखेंगे उतना सर्विस करेंगे। बाकी अपनेपन का कोई स्वार्थ नहीं है। सर्विस के निमित्त करते हो, यह साक्षीपन हुआ ना। अभी सिर्फ एक ही मार्ग रह गया। बाकी जो अनेक मार्ग होने के कारण बुद्धि भटकती थी वह मार्ग सभी बन्द हो गये ना। आलमाइटी गवर्नमेन्ट की जैसे सील लग गई। सील लगी हुई कब खुलती नहीं है, जब तक मुद्दा पूरा न हो। तो ऐसे अपनी चेकिंग करनी चाहिए। जैसे कोई की तकदीर में होता है तो सरकमस्टान्सेस भी ऐसे बनते हैं जैसे कि लिफ्ट का रूप बन जाता है। यहाँ भी जिसकी कल्प पहले की तकदीर वा ड्रामा की नूँध है, भले अपना भी पुरूषार्थ रहता है लेकिन साथ-साथ यह लिफ्ट भी दैवी परिवार द्वारा मिलती है और बापदादा द्वारा भी गिफ्ट मिलती है तो यह भी चेक करना है कि अब बापदादा द्वारा वा दैवी परिवार द्वारा किस-किस प्रकार की गिफ्ट प्राप्त हुई है। बड़े-बड़े आदमियों को गिफ्ट मिलती है। तो शोकेस में उसे सम्भाल कर रख देते हैं। उससे अपने देश का नाम बाला करते हैं। और यहाँ जो समय-प्रति-समय गिफ्ट प्राप्त हुई है उस द्वारा बापदादा का और कुल का नाम बाला करना है। अच्छा।

 

जैसे आप लोग शुरू में जब सर्विस पर निकले तो नॉलेज की शक्ति तो कम थी लेकिन सफलता किस शक्ति के आधार से हुई? त्याग और स्नेह। बुद्धि की लगन दिन-रात बाबा और यज्ञ के तरफ थी। जिगर से निकलता था बाबा और यज्ञ। इसी स्नेह ने ही सभी को सहयोग में लाया। इसी स्नेह की शक्ति से ही केन्द्र बने। तो आदि स्थापना में जिस शक्ति ने सहयोग दिया अन्त में भी वही होना है। पहले साकार स्नेह से ही मन्मनाभव बने। साकार स्नेह ने ही सहयोगी बनाया वा त्याग कराया। संगठन अौर स्नेह की शक्ति से घेराव डालना है। अभी देखो, बाहर विलायत में भी सर्विस की सफलता का मूल कारण स्नेही और सहयोगी बनने का घेराव है। ज्ञान का प्रैक्टिकल सबूत यही स्नेह और संगठन की शक्ति है। सर्विस की सफलता का मूल आधार यह है। कहाँ भी रहते, यह सोचना चाहिए - किस रीति ऐसी प्लैनिंग करें जिससे संदेश देने का कार्य जल्दी समाप्त हो? अभी तो बहुत रहा हुआ है। स्नेह से त्याग का भी जम्प देने का उमंग आता है। आप सभी ने त्याग कैसे किया? रग-रग में स्नेह भर गया, तब जम्प दे सके।

 

फारेन वालों को भी लिखकर भेजना कि अब जैसे ईश्वरीय खुमारी और खुशी में रहते आगे बढ़ते जाते हो, वैसे ही सदा खुमारी और खुशी में रहते सर्विस में सफल होते रहेंगे। विजय का तिलक तो लगा हुआ है। अपना विजय का तिलक सदैव देखते रहना। बाकी अभी तक जो किया है उसके लिए बापदादा भी देखकर हर्षित होते हैं, लेकिन आगे तो बढ़ना ही है। कोई वारिस बनाओ तब ही शाबाश देंगे। अभी तक जो किया है उसमें हर्षित होना है। ‘वाह! वाह!’ करने का कार्य अभी करना है। हर्षित इसलिए होते क्योंकि खुमारी और खुशी अच्छी रीति कायम है। अभी तक रिजल्ट बहुत अच्छी है। उन्हों का कमान्डर बहुत हिम्मतवान है। कोई भी कार्य में एक भी अपनी हिम्मत से पान का बीड़ा उठाता है तो दूसरे साथी बन जाते हैं। वैराइटी ग्रुप होते हुए भी गुलदस्ता अच्छा है। इसलिए मुबारक देते हैं। अच्छा।

 

पर्सनल मुलाकात - मधुबन निवासियों से

 

मधुबन-निवासी अर्थात् मधुरता और बेहद के वैरागी। जो बेहद के वैरागी होंगे वह रूह को ही देखेंगे। तो चलन में मधुरता और मन्सा में बेहद की वैराग्य वृत्ति हो। दोनों स्मृति रहें तो ‘पास विद् ऑनर्स’ नहीं होंगे? यह दोनों क्वालीफिकेशन अपने में धारण करके निकलना।

 

यह संगमयुग का सुहावना समय जितना ज्यादा हो उतना अच्छा है। क्योंकि समझते हो सारे कल्प में यह बाप और बच्चों का मिलन फिर नहीं होगा। इसलिए समझते हो यह संगम का समय लम्बा हो जाये, न कि आपकी वीकनेस के कारण। सदैव यही लक्ष्य रखो कि एवररेडी रहें। बाकी यह अतीन्द्रिय सुख का वर्सा निरन्तर अनुभव करने के लिए रहे हुए हैं, न कि अपनी कमजोरियों के लिये। आप लोगों के लिए यह पुरानी दुनिया जैसे विदेश है। कई लोग विदेश की चीज़ को टच नहीं करते हैं, समझते हैं अपने देश की चीज़ को प्रयोग करें। तो इस पुरानी दुनिया अर्थात् विदेशी चीज़ों को टच भी नहीं करना है। स्वदेशी हो वा विदेशी चीज़ों से आकर्षित होते हो? सदैव समझते हो हम स्वदेशी हैं, यह विदेश की चीज़ टच भी नहीं करनी है? ऐसा अपने ऊंचे देश का, आत्मा के रूप से परमधाम देश है और इस ईश्वरीय परिवार के हिसाब से मधुबन ही अपना देश है, दोनों देश का नशा रखो। हम स्वदेशी हैं, विदेश की चीजों को टच भी नहीं कर सकते। अब पावरफुल रचयिता बनो। रचयिता ही कमज़ोर होंगे तो रचना क्या रचेंगे। अलंकारी बनकर निकलना है। निरन्तर एकरस स्थिति में स्थित हो दिखाने का इग्जैम्पल बनना, जो सभी को साक्षात्कार हो। द्वापर में तो भक्त लोग साक्षात्कार करेंगे, लेकिन यहाँ सारा दैवी परिवार आप साक्षात् मूर्त से साक्षात्कार करे। जमा करना है। कमाया और खाया - यह तो 63 जन्मों से करते आये। अब जमा करने का समय है। गँवाने का नहीं है। अच्छा।

 

जो कर्म, संकल्प करो - अपने में लाइट होने से वह कर्म यथार्थ होगा। ऐसे लाइट रूप अथवा ट्रान्सपेरेन्ट बनो। यह भट्ठी पाण्डव भवन को ट्रान्सपेरेन्ट चैतन्य प्रदर्शनी बनायेगी और सभी को साक्षात्कार करने की आकर्षण हो कि यह (चैतन्य प्रदर्शनी) जाकर देखें। सभी बातों में विन करना ही है। वन नम्बर में आना है। पुराने संकल्प, संस्कार समेटकर खत्म करना अर्थात् समा देना है, जो फिर इमर्ज न हों। जो चाहे सो कर सकते हो, लेकिन चाहना में विल-पावर हो। जितनी वृत्ति पावरफुल होगी उतना वायुमण्डल भी पावरफुल बनता है। जिस समय कोई में भी वीकनेस आती है, तो पावरफुल वृत्ति का सहयोग मिलने से वह आगे बढ़ सकते हैं। बाप एकरस है, तो बाप के समान बनना है। कुछ भी हो जाये, तो भी उसको खेल समझकर समाप्त करना। खेल समझने से खुशी होती है। अभी का तिलक जन्म-जन्मान्तर का तिलकधारी वा ताजधारी बनाता है। तो सदैव एकरस रहना है। फालो फादर करना है। जो स्वयं हर्षित है वह कैसे भी मन वाले को हर्षित करेगा। हर्षित रहना - यह तो ज्ञान का गुण है। इसमें सिर्फ रूहानियत एड करना है। हर्षितपन का संस्कार भी एक वरदान है, जो समय पर बहुत सहयोग देता है। अपने कमजोर संकल्प गिराने का कारण बन जाते हैं। इसलिए एक संकल्प भी व्यर्थ न जाये। क्योंकि संकल्पों के मूल्य का भी अभी मालूम पड़ा है। अगर संकल्प, वाचा, कर्मणा - तीनों अलौकिक होंगे तो फिर अपने को इस लोक के निवासी नहीं समझेंगे। समझेंगे कि इस पृथ्वी पर पांव नहीं हैं अर्थात् बुद्धि का लगाव इस दुनिया में नहीं है। बुद्धि रूपी पांव देह रूपी धरती से ऊंचा है। यह खुशी की निशानी है। जितना-जितना देह के भान की तरफ से बुद्धि ऊपर होगी उतना वह अपने को फरिश्ता महसूस करेगा। हर कर्त्तव्य करते बाप की याद में उड़ते रहेंगे तो उस अभ्यास का अनुभव होगा। स्थिति ऐसी हो जैसे कि उड़ रहे हैं। अच्छा।

 

वरदान:- ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तस्वीर बनाने वाले परोपकारी भव

 

श्रेष्ठ स्मृति और श्रेष्ठ कर्म द्वारा तकदीर की तस्वीर तो सभी बच्चों ने बनाई है अभी सिर्फ लास्ट टचिंग है सम्पूर्णता की वा ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनने की, इसके लिए परोपकारी बनो अर्थात् स्वार्थ भाव से सदा मुक्त रहो। हर परिस्थिति में, हर कार्य में, हर सहयोगी संगठन में जितना नि:स्वार्थ पन होगा उतना ही पर-उपकारी बन सकेंगे। सदा स्वयं को भरपूर अनुभव करेंगे। सदा प्राप्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित रहेंगे। स्व के प्रति कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।

 

स्लोगन:- सर्वस्व त्यागी बनने से ही सरलता व सहनशीलता का गुण आयेगा।