ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत की लाइन सुनी। एक तरफ है सारी दुनिया भक्ति मार्ग वाले। दूसरे तरफ
तुम बच्चे हो ज्ञान मार्ग वाले। वह भक्ति की सीढ़ी चढ़ते रहते और तुम बच्चे ज्ञान
की सीढ़ी चढ़ते हो, भक्ति की सीढ़ी उतरते हो। बच्चे जानते हैं आधाकल्प से भक्ति की
सीढ़ी चढ़नी होती है। जितनी भक्ति की सीढ़ी चढ़ते हैं उतना नीचे आते हैं। फिर जितना
ज्ञान की सीढ़ी चढ़ेंगे उतना सद्गति को पायेंगे। भक्त भी पहले अव्यभिचारी होते हैं।
पीछे व्यभिचारी बनते हैं फिर बिल्कुल ही अन्धश्रद्धा में चले जाते हैं। कुछ भी नहीं
समझते। गाते भी हैं हम घोर अंधियारे में हैं। सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा है। गुरू
तो यहाँ बहुत हैं, अब सच्चा गुरू कौन है? साधू सन्त महात्मा भक्त आदि सब साधना करते
हैं अथवा याद करते हैं। शास्त्र, वेद, उपनिषद पढ़ते हैं फिर भी कहते हैं भगवान जब
आयेंगे तब ही आकर हमारी सद्गति करेंगे। सद्गति दाता को ही पतित-पावन कहा जाता है।
अभी तुम बच्चे रोशनी में आये हो। पतित-पावन बाप को जानते हो और उनको याद करते हो।
जितना जो बच्चा बाप को याद करता है और ज्ञान धारण करता है उतना उनका अज्ञान अंधेरा
विनाश हो जाता है। रोशनी में ले जाने वाला एक ही बाप है। तब कहते हैं ज्ञान अंजन
सतगुरू दिया... कोई सुरमा नहीं है। यह ज्ञान की बात है। ज्ञान के साथ योग भी रहता
है। अब तुम बच्चों का बुद्धियोग लगा हुआ है - निराकार परमपिता परमात्मा के साथ।
परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। और कोई मनुष्यमात्र का सर्वशक्तिमान परमपिता
परमात्मा के साथ योग है नहीं। तुमको भी बाप से, मुक्ति और जीवन्मुक्ति धाम से योग
लगाना पड़ता है। मुक्ति-जीवन्मुक्ति के लिए भी दैवी मैनर्स चाहिए। इस समय सबके
मैनर्स आसुरी हैं। परमपिता परमात्मा के गुण गाये जाते हैं। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप
है, सत् है, चैतन्य है, आनन्द का सागर है, ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर है। फार
एवर है। उनका यह पद अविनाशी है। और कोई मनुष्य का अविनाशी पद हो नहीं सकता। भल अभी
तुम ज्ञान के सागर, पवित्रता के सागर बनते हो, परन्तु लिमिटेड बनते हो। बाप कहते
हैं - मैं अनलिमिटेड हूँ। तुमको अनलिमिटेड बना नहीं सकता। नहीं तो खेल कैसे चले।
तुम फार एवर नहीं बन सकते हो, 21 जन्म के लिए तुम बनते हो। 21 पीढ़ी गाये हुए हैं।
तुम फार एवर बनो - यह कायदा नहीं है। मैं हूँ ही एवर प्योर। रहता ही हूँ परमधाम
में। मेरे पास ज्ञान, पवित्रता आदि है ही है। तुम भूल जाते हो। तो इस समय बाप आकर
बच्चों को घोर अन्धियारे से निकाल ज्ञान और योग से पवित्र बनाते हैं। और कोई ऐसे कह
न सके कि मैं परमधाम से आया हूँ, मुझ बाप को याद करो। भल संन्यासी अपने को परमात्मा
भी कहलाते परन्तु ऐसे नहीं कह सकते कि मैं परमधाम से आया हूँ। अब मुझे याद करो। इन
महावाक्यों की कोई कॉपी नहीं कर सकते।
बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ तुमको राजाओं का राजा बनाने। अब बनेंगे वही, जो
कल्प पहले बने होंगे। तुम जानते हो कितने बच्चे पवित्र बनते हैं। कितने अशुद्ध मैले
भी बन जाते हैं। बाप आकर मैले कपड़ों को साफ करते हैं। आत्मा ही मैली बनती है। आत्मा
को समझाते हैं तुमको माया ने कितना मैला बना दिया है। एक जन्म की बात नहीं।
जन्म-जन्मान्तर की बात है। अब बाप आकर आत्मा को साफ करने के लिए लक्ष्य सोप देते
हैं, कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारी आत्मा जो उझाई हुई है वो योग से जग जायेगी।
स्मृति दिलाते हैं तुमको स्वर्ग में भेजा था, माया ने मैला बना दिया है। अब तुमको
स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। मैं इस ब्रह्मा तन से शिक्षा दे रहा हूँ। आत्मा को
कहते हैं - देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूल मुझ बाप को याद करो तो आत्मा साफ
हो जायेगी। फिर तुमको शरीर भी भविष्य में नया मिलेगा, तत्व आदि भी सतोप्रधान हो जाते
हैं। बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया को भूल जाओ। मुझे याद करो तो मेरे पास पहुँच
जायेंगे। इस पुरानी दुनिया में कोई चीज़ बनाते हैं तो उस पर नया नाम रख देते हैं।
जैसे नई दिल्ली कहते हैं परन्तु दुनिया तो पुरानी है ना। अब तुम बच्चों का
बुद्धियोग पुरानी दुनिया से बिल्कुल हट जाना चाहिए। तुम आत्माओं को स्वीट होम में
जाना है। अब अपने को आत्मा निश्चय करना पड़े और बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति
हो जायेगी। मनुष्य तो अनेकों को याद करते हैं - कोई गुरू को, कोई श्रीकृष्ण को।
परन्तु यह नहीं जानते कि श्रीकृष्ण आदि कहाँ गये। यह भी नहीं जानते कि पुनर्जन्म
सबको लेना है जरूर। यह रस्म सृष्टि के आदि से चली आ रही है। सतयुग आदि में
देवी-देवता थे तो जरूर पुनर्जन्म भी वहाँ से शुरू हुआ होगा। पहले-पहले है श्रीकृष्ण
फर्स्ट पावन मनुष्य। उनकी महिमा ज्यादा है। लक्ष्मी-नारायण की इतनी नहीं है क्योंकि
बच्चे पवित्र सतोप्रधान होते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि श्रीकृष्ण पुरी कहाँ है।
वैकुण्ठ कहते हैं परन्तु सतयुग का किसको पता ही नहीं है। श्रीकृष्ण को द्वापर में
ले गये हैं। वह नाम-रूप दूसरे जन्म में हो नहीं सकता। श्रीकृष्ण तो सतयुग में था।
तुम जानते हो यह जगत अम्बा, जगत पिता जाकर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। सतयुग को
कृष्णपुरी कहा जाता है। अब है कंसपुरी। यह आसुरी नाम है। वहाँ है दैवी सम्प्रदाय,
यहाँ है आसुरी सम्प्रदाय। यह नाम सिर्फ गीता में है और कोई शास्त्रों में हो न सके।
बाप बैठ संगम पर समझाते हैं। तो बाप है रचयिता, उनको कहा जाता है मनुष्य सृष्टि का
बीज रूप। तुम गाते भी हो - बाबा आप पतित-पावन हो, इस पतित दुनिया को आकर पावन बनाओ।
पावन सृष्टि को रचकर पतित दुनिया का विनाश कराओ। बरोबर ब्रह्मा द्वारा पावन सृष्टि
रचते हैं फिर शंकर द्वारा पतित सृष्टि का विनाश होता है। यह बातें और कोई नहीं जानते।
अब तुम बच्चे बाप के साथ योग लगाते हो। तुम देखते हो मैले कपड़ों को सटका लगाते हैं
तो कोई फट भी पड़ते है। इतने तो अजामिल जैसे पापी हैं जो बिल्कुल साफ नहीं होते।
बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं - बच्चे, मोस्ट बील्वेड बाप और मोस्ट बील्वेड
सुखधाम को याद करो। यह है अति दु:खधाम। सभी त्राहि-त्राहि करते हैं। एक दो को मारते
हैं फिर कहते हैं भगवान रक्षा करो। बाप तो है लिबरेटर। तुम जानते हो बाबा आया है
इनपर्टीक्युलर (खास) हम बच्चों को और सभी को इनजनरल (आम) शान्तिधाम ले जाते हैं।
तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं जिनको यह नशा है। यह पढ़ाई भी कम नहीं है। पढ़ाते
भी देखो किसको हैं! अजामिल जैसे पाप आत्माओं को स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बच्चों
को बार-बार समझाते हैं कि तुमको दैवी गुण धारण करना है। एम ऑब्जेक्ट तो बुद्धि में
है।
यह पवित्रता के मैनर्स और कोई नहीं सुनाते हैं। संन्यासी तो घरबार छुड़ाते हैं।
तुमको घरबार नहीं छोड़ना है। परन्तु पुरानी दुनिया को ही छोड़ना है। वह है हद का
संन्यास, यह है बेहद का। संन्यासियों को बहुत मान मिलता है। यहाँ तो कोई संन्यासी
आते हैं तो उनको कहा जाता है पहले ड्रेस बदली करो। स्त्री को जाकर ज्ञान सुनाओ।
बहुत आकर तुम्हारे चरणों में गिरेंगे। माताओं के बिगर उन्हों का उद्धार हो नहीं सकता
क्योंकि तुम नॉलेज देती हो। बाकी चरणों में गिरने की कोई बात नहीं है। कोई नमस्ते
वा राम-राम कहते हैं तो जवाब देना होता है। बाप भी कहते हैं - बच्चे, नमस्ते। मैं
तुमको अपने से भी ऊंच बनाता हूँ। तुमको ब्रह्माण्ड और सृष्टि - दोनों का मालिक बनाता
हूँ और मैं वानप्रस्थ में चला जाता हूँ। परन्तु श्रीमत पर भी चलना पड़े। इस पुरानी
दुनिया से मुख मोड़ना पड़े। जैसे राम और रावण का चित्र है। कृष्ण का भी चित्र है,
नर्क को लात मार रहा है। स्वर्ग का गोला हाथ में है। बाबा बहुत अच्छी तरह समझाते
हैं परन्तु विरला कोई यह व्यापार करते हैं। बाप को तन-मन-धन दे नया लेते हैं। यह
फर्स्ट-क्लास इन्श्योरेन्स है। बाप कहते हैं तुम आत्मा को पवित्र बनायेंगे, तो शरीर
भी पवित्र मिलेगा। फिर स्वर्ग में राजाई करेंगे इसलिए इनको सौदागर और जादूगर भी कहते
हैं। पतित को पावन बनाना - यह ईश्वरीय जादूगरी है। बाप कहते हैं - नर्कवासियों को
स्वर्गवासी बनाओ। कैसे फर्स्टक्लास जादूगरी है। प्राप्ति बहुत है। बाप कहते हैं
राजाओं का राजा बनो, फालो फादर करो। यह बाप (ब्रह्माबाबा) अधरकुमार है। मम्मा
कुँवारी कन्या है तो फालो करना पड़े। तुम कहेंगे हम भाई-बहन, बाप से वर्सा लेते
हैं। वैसे लौकिक में बहन को वर्सा नहीं मिलता है, भाई को मिलता है। यहाँ तुम सबको
मिलता है क्योंकि तुम सब आत्मायें हो। बाप कहते हैं तुम सबको मेरे पास आना है फिर
तो यह भाई-बहन का नाता टूट जाता है। वहाँ है बाप और बच्चों का नाता इसलिए कहते हैं
“वी आर आल ब्रदर्स''। ब्रदरहुड है, फादरहुड होता नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान ने बहुत
नुकसान किया है। अब तुम बच्चों को बाप को याद करना है। ऐसे नहीं, कोई योग में बिठाये।
तुमको लक्ष्य मिला हुआ है। मुरली सुनकर फिर चलते-फिरते योग में रहना है। यात्रा है,
जा रहे हैं। आठ घण्टा भल सर्विस करो, वह भी छूट है, बाकी टाइम देना है। मुख्य बात
है पवित्रता की। एक दो को पतित बनाते आदि-मध्य-अन्त दु:खी किया है। अब बिल्कुल झाड़
सड़ गया है। बाबा आकर सड़े हुए झाड़ को दैवी झाड़ बनाते हैं। अब श्रीमत पर चलो।
शिवबाबा भी बात करते हैं तो ब्रह्मा भी बात करते हैं। परन्तु तुम जानते हो शिवबाबा
हमारा बाप भी है, टीचर भी है तो सतगुरू भी है। तुम बच्चे भी हो तो स्टूडेन्ट भी हो
और तुमसे गैरन्टी करते हैं तुमको वापिस ले जाऊंगा। ऐसी गैरन्टी और कोई कर न सके। वह
तो सिर्फ अपने ऊपर बड़े-बड़े टाइटिल रखा लेते हैं। अब तुमको अथॉरिटी मिली है। तुम
समझा सकते हो कि जगद-गुरू है एक, वही सबकी सद्गति करते हैं। ऐसे सुखदाता बाप को कोई
जानते नहीं। अगर बाप को जाने तो प्रापर्टी को भी जान जायें। अच्छा!
मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्त मती सो गति के लिए पुरानी दुनिया से दिल हटाकर, अपना मुख मोड़
लेना है। अपने स्वीट होम को याद करना है।
2) सौदागर बाप से सच्चा सौदा करना है। तन-मन-धन सब इन्श्योर कर फालो फादर करना
है।