19-06-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – यह सारी विश्व ईश्वरीय फैमिली है इसलिए गाते
हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम अभी प्रैक्टिकल में गॉडली फैमिली के बने हो”
प्रश्नः-
बाप से 21
जन्मों का पूरा वर्सा लेने की सहज विधि कौन सी है?
उत्तर:-
संगम
पर शिवबाबा को अपना वारिस बनाओ। तन-मन-धन से बलिहार जाओ तो 21 जन्मों के लिए पूरा
वर्सा प्राप्त होगा। बाबा कहे जो बच्चे संगम पर अपना पुराना सब कुछ इनश्योर करते
हैं, उन्हें मैं रिटर्न में 21 जन्मों तक देता हूँ।
गीत:-
नयन हीन को
राह दिखाओ…
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। यह भगत भगवान को पुकारते हैं। भगवान को पूरा न जानने के कारण
मनुष्य कितने दु:खी हैं। भक्ति मार्ग में कितना माथा मारते रहते हैं। सिर्फ इस जीवन
की बात नहीं। जब से भक्ति शुरू हुई है तब से धक्के खाते रहते हैं। भारत में ही
देवी-देवताओं का राज्य था, जिसको स्वर्ग सचखण्ड कहा जाता था। भारत सचखण्ड है, भारत
की महिमा बड़ी जबरदस्त है क्योंकि भारत परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है। उनका
असुल नाम शिव है। शिव जयन्ती मनाते हैं। रूद्र वा सोमनाथ जयन्ती नहीं कहा जाता। शिव
जयन्ती वा शिव रात्रि कहा जाता है। स्वर्ग की स्थापना करने वाला एक ही हेविनली गॉड
फादर है। अब सभी भक्तों का भगवान तो जरूर एक होना चाहिए। सभी नयन हीन हैं अर्थात्
ज्ञान के चक्षु वा डिवाइन इनसाइट नहीं हैं। भगवानुवाच – मैं तुमको राजयोग सिखाता
हूँ, श्रीमत भगवत गीता है मुख्य। श्री अर्थात् श्रेष्ठ मत। अब तुमको बुद्धिवान बनाया
जाता है। दिव्य चक्षु अर्थात् ज्ञान का तीसरा नेत्र दिखाते हैं। वास्तव में ज्ञान
का तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों को मिलता है जिससे तुम बाप को और बाप की रचना के
आदि-मध्य-अन्त को जान जाते हो। इस समय सभी में देह अहंकार वा 5 विकार हैं इसलिए घोर
अन्धियारे में हैं। तुम बच्चों के पास रोशनी है। तुम्हारी आत्मा सारे वर्ल्ड की
हिस्ट्री-जॉग्राफी को जान गई है। आगे तुम सब अज्ञान में थे। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया
अज्ञान अन्धेर विनाश। जो पूज्य थे वही फिर पुजारी बन पड़े हैं। पूज्य हैं रोशनी
में। पुजारी हैं अन्धियारे में। परमात्मा को आपेही पूज्य, आपेही पुजारी नहीं कह सकते
हैं। वह तो है ही परम पूज्य। सबको पूज्य बनाने वाला। उनको कहा जाता है परम पूज्य।
परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा। कृष्ण को थोड़ेही ऐसे कहेंगे। उनको सब गॉड फादर
नहीं कहेंगे। निराकार गॉड को ही सब गॉड फादर कहते हैं। है वह भी आत्मा परन्तु परम
है इसलिए उनको परमात्मा कहा जाता है। वह परम आत्मा सदैव परमधाम में रहने वाले हैं।
अंग्रेजी में उनको सुप्रीम सोल कहा जाता है। बाप कहते हैं – तुम गाते भी हो आत्मा
परमात्मा अलग रहे बहुकाल…। ऐसे नहीं परमात्मा, परमात्मा से अलग रहे बहुकाल…। नहीं,
यह पहले नम्बर का अज्ञान है – आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा कहना। आत्मा तो
जन्म मरण में आती है। परमात्मा थोड़ेही पुनर्जन्म में आते हैं। बाप बैठ समझाते हैं
– तुम भारतवासी स्वर्गवासी पूज्य थे। ह्युमिनिटी के पूज्य सब देवी-देवतायें थे। यह
सारी ईश्वर की फैमिली है। ईश्वर है रचता। गाया जाता है – तुम मात पिता हम बालक तेरे…
तो फैमिली हो गई ना। अच्छा भला यह तो बताओ तुम मात-पिता किसको कहते हो? यह कौन कहते
हैं? आत्मा कहती है तुम मात-पिता…. तुम्हारी कृपा से स्वर्ग के सुख घनेरे हमको
स्वर्ग में मिले हुए थे। तुम मात-पिता आकर स्वर्ग की स्थापना करते हो। तो हम आपके
बच्चे बनते हैं। बाप कहते हैं – मैं संगम पर ही आकर राजयोग सिखाता हूँ, नई दुनिया
के लिए। मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल ही भ्रष्ट बन गई है। स्वर्ग को नर्क समझ लेते
हैं। कहते हैं वहाँ भी कंस, जरासन्धी, हिरण्यकश्यप आदि थे। बाप आकर समझाते हैं –
क्या तुम भूल गये हो। मेरी तो शिव जयन्ती भी तुम भारत में ही मनाते हो। गाया भी जाता
है – शिव रात्रि। कौन सी रात्रि? यह ब्रह्मा की बेहद की रात्रि। बाप संगम पर आकर
रात्रि से दिन अर्थात् नर्क से स्वर्ग बनाते हैं। शिव रात्रि के अर्थ का भी कोई को
पता नहीं है। भगवान है निराकार। मनुष्यों के तो जन्म बाई जन्म शरीर के नाम बदलते
हैं। परमात्मा कहते हैं मेरा कोई शरीर का नाम नहीं। मेरा नाम शिव ही है। मैं सिर्फ
बूढ़े वानप्रस्थ तन का आधार लेता हूँ। यह पूज्य था, अब पुजारी बना है। शिवबाबा आकर
स्वर्ग रचते हैं, हम उनके बच्चे हैं तो जरूर हम स्वर्ग के मालिक होने चाहिए ना।
शिवबाबा है ऊंच ते ऊंच। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का अपना-अपना पार्ट है। हर एक आत्मा
में अपना सुख दु:ख का पार्ट नूँधा हुआ है। तुम जानते हो हम शिवबाबा के वारिस बने
थे। शिवबाबा ने स्वर्गवासी बनाया था, तब उनको सब याद करते हैं। ओ गॉड रहम करो। साधू
भी साधना करते हैं क्योंकि यहाँ दु:ख है तो निर्वाणधाम जाना चाहते हैं। आत्मा,
परमात्मा में लीन हो जाती है वा हम आत्मा सो परमात्मा – यह समझना रांग है। अब तुम
कहते हो, हम आत्मा परमधाम में रहने वाली हैं फिर देवता कुल में आयेंगे फिर 84 जन्म
लेंगे। हम आत्मा वर्णों में आती हैं। शिवबाबा जन्म मरण में नहीं आते हैं। सिर्फ
नारायण की डिनायस्टी थी। जैसे क्रिश्चियन घराने में एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड,
थर्ड चलता है। वैसे वहाँ भी लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, लक्ष्मी नारायण दी सेकेण्ड,
थर्ड, ऐसे 8 डिनायस्टी चलती हैं। अभी तुम ब्राह्मणों का तीसरा नेत्र खुला है। बाप
बैठ आत्माओं से बात करते हैं। तुम ऐसे 84 का चक्र लगाए इतने-इतने जन्म लेते आये हो।
वर्णों का भी एक चित्र बनाते हैं जिसमें देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, ब्राह्मण
बनाते हैं। अब तुम जानते हो हम सो ब्राह्मण चोटी हैं। इस समय हम हैं ईश्वरीय औलाद
प्रैक्टिकल में। इस सहज राजयोग और ज्ञान से हमको सुख घनेरे मिलते हैं। कोई तो
सूर्यवंशी राजधानी का वर्सा लेते हैं, कोई चन्द्रवंशी का। सारी किंगडम स्थापन हो रही
है। हर एक अपने पुरुषार्थ से वह पद पायेंगे। कोई अगर पूछे कि अभी पढ़ते-पढ़ते हमारा
शरीर छूट जाए तो क्या पद मिलेगा? तो बाबा बतला सकते हैं। योग से ही आयु बढ़ती है,
विकर्म विनाश होते हैं और कोई उपाय पतित से पावन बनने का नहीं है। पतित-पावन कहने
से ही भगवान याद आता है। परन्तु भगवान है कौन? यह नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं –
मैं आता ही भारत में हूँ। यह मेरा बर्थ प्लेस है। सोमनाथ का मन्दिर कितना आलीशान है
– यह बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। भक्ति मार्ग में फिर यादगार बनने शुरू होते
हैं। जब पुजारी बनते हैं तो पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। भारत तो सतयुग
त्रेता में बहुत साहूकार था। मन्दिरों में भी अकीचार धन था। भारत हीरे तुल्य था। अब
तो भारत कंगाल कौड़ी तुल्य है। फिर बाप आकर भारत को हीरे तुल्य बनाते हैं। कोई से
भी पूछो – क्रियेटर कौन है? कहेंगे परमात्मा। वह कहाँ है? वह तो सर्वव्यापी है। बाप
कहते हैं – यह सारा झाड़ जड़ जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है।
अपने को देखा जाता है कि हम लायक बने हैं जो बाबा मम्मा की गद्दी नशीन बन सकें? यह
है ही पतित दुनिया। पवित्रता है मुख्य। अब तो नो हेल्थ, नो वेल्थ, नो हैपीनेस है।
यह है रूण्य के पानी मिसल (मृग-तृष्णा के समान) राज्य। इस पर भी दुर्योंधन की कहानी
शास्त्रों में लिखी हुई है। दुर्योधन विकारी को कहा जाता है। द्रोपदियाँ कहती हैं
हमारी लाज रखो। सब द्रोपदियाँ हैं ना। यह बच्चियाँ स्वर्ग का द्वार हैं। बाबा कितना
अच्छी रीति समझाते हैं। जिनका बुद्धियोग पूरी रीति लगा हुआ होगा तो धारणा भी होगी।
नॉलेज ब्रह्मचर्य में ही पढ़ी जाती है। बाप कहते हैं – गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल
फूल समान रहना है। दोनों तरफ निभाना है। मरना भी जरूर है। मरने समय मनुष्य को
मन्त्र देते हैं। बाप कहते हैं कि तुम सब मरने वाले हो। मैं कालों का काल सबको
वापिस ले जाने वाला हूँ। तो खुशी होनी चाहिए ना। फिर जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह
स्वर्ग के मालिक बनेंगे। नहीं पढ़ेंगे तो प्रजा पद पायेंगे। यहाँ तुम आये हो राज्य
पद पाने। यह पढ़ाई है, इसमें अन्धश्रद्धा की तो बात ही नहीं। यह पढ़ाई है राजाई के
लिए। जैसे पढ़ाई की एम आब्जेक्ट है – बैरिस्टर बनेगा तो योग जरूर पढ़ाने वाले टीचर
से रखना पड़े। यहाँ तुमको भगवान पढ़ाते हैं तो उनसे योग लगाना है। बाप कहते हैं –
मैं परमधाम, बहुत दूर से आता हूँ। परमधाम कितना ऊंचा है। सूक्ष्मवतन से भी ऊंच वहाँ
से आने में मुझे सेकेण्ड लगता है। उनसे तीखा और कुछ हो नहीं सकता। सेकण्ड में
जीवनमुक्ति देता हूँ। जनक का मिसाल है ना। अभी तो नर्क पुरानी दुनिया है। नई दुनिया
स्वर्ग को कहा जाता है। बाप नर्क का विनाश कराए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बाकी सब
आत्मायें शान्तिधाम में चली जाती हैं। आत्मा इमार्टल है। उनको पार्ट भी इमार्टल मिला
हुआ है। फिर आत्मा छोटी बड़ी कैसे हो सकती है अथवा जल मर कैसे सकती है? है ही स्टार।
बड़ा छोटा हो न सके। अब तुम हो गॉड फादरली स्टूडेन्ट। गॉड फादर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल
है। वह तुमको पढ़ा रहे हैं। तुम जानते हो इस पढ़ाई से हम सो देवी देवता बनेंगे। तुम
भारत की सेवा कर रहे हो। पहले-पहले तो बाप का बनना है और जगह तो गुरू के पास जाते
हैं, उनका बनते हैं अथवा उनको अपना गुरू बनाते हैं। यहाँ तो है बाप। तो पहले बाप का
बच्चा बनना पड़े। बाप बच्चों को अपनी जायदाद देते हैं। बाप कहते हैं – बच्चे तुम
एक्सचेंज करो। तुम्हारा कख-पन हमारा, हमारा सब कुछ तुम्हारा। देह सहित जो कुछ है वह
सब मेरे को दो। मैं तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बना दूँगा और फिर राजाई
पद भी दूँगा। तुम्हारे पास जो कुछ है तुम बलि चढ़ा दो तो जीवनमुक्ति मिलेगी। बाबा
यह सब आपका है। बाप कहते हैं – तुम मुझे वारिस बनाओ। मैं 21 जन्म तुम्हें वारिस
बनाता हूँ। सिर्फ मेरी मत पर चलो। भल धन्धा आदि करो। विलायत जाओ, कुछ भी करो। सिर्फ
मेरी मत पर चलो। खबरदार रहना माया घड़ी-घड़ी पछाड़ेगी। कोई भी विकर्म नहीं करना।
श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ बनेंगे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आत्मा और शरीर दोनों को पावन बनाने के लिए देह सहित जो कुछ है उसे
बाप के हवाले कर उनकी श्रीमत पर चलना है।
2) मात-पिता के गद्दी नशीन बनने के लिए स्वयं को लायक बनाना है। लायक बनने के
लिए मुख्य पवित्रता की धारणा करनी है।
वरदान:-
स्वमान की सीट पर स्थित रह माया को सरेण्डर कराने
वाले श्रेष्ठ स्वमानधारी भव
संगमयुग का सबसे श्रेष्ठ स्वमान है मास्टर सर्वशक्तिमान
की स्मृति में रहना। जैसे कोई बड़ा आफीसर वा राजा जब स्वमान की सीट पर स्थित होता
है तो दूसरे भी उसे सम्मान देते हैं, अगर स्वयं सीट पर नहीं तो उसका आर्डर कोई नहीं
मानेंगे, ऐसे आप भी स्वमानधारी बन अपने श्रेष्ठ स्वमान की सीट पर सेट रहो तो माया
आपके आगे सरेण्डर हो जायेगी।
स्लोगन:-
साक्षीपन की स्थिति में रह दिलाराम के साथ का अनुभव करने वाले ही लवलीन आत्मा हैं।