ओम् शान्ति।
पतित-पावन शिव भगवानुवाच। अब बाप बैठ बच्चों को ज्ञान सुनाते हैं। बच्चों को समझाया
गया है जब मैं यहाँ आता हूँ तो पतितों को पावन बनाने के लिए ज्ञान सुनाता हूँ और
कोई यह ज्ञान सिखला न सके। वह भी भक्ति ही सिखलाते हैं। ज्ञान सिर्फ तुम बच्चे ही
सीखते हो जो तुम अपने को ब्रह्माकुमार-कुमारियां समझते हो। देलवाड़ा मन्दिर तुम्हारे
सामने खड़ा है। वहाँ भी राजयोग की तपस्या में बैठे हैं। जगत अम्बा भी है, प्रजापिता
भी है। कुमारी कन्या, अधर कुमारी भी है। बाप राजयोग सिखला रहे हैं। ऊपर में राजाई
के चित्र भी खड़े हैं। बाप कोई भक्ति नहीं सिखलाते हैं। भक्ति ही उनकी करते हैं जो
सिखलाकर गये हैं। परन्तु उनको पता नहीं है कि कौन राजयोग सिखलाए राजाई स्थापन करके
गये हैं। तुम बच्चे अभी जानते हो भक्ति अलग चीज़ है, ज्ञान अलग चीज़ है। ज्ञान
सुनाने वाला है ही एक और कोई सुना न सके। ज्ञान का सागर एक ही है। वही आकर ज्ञान से
पतितों को पावन बनाते हैं। और जो भी सतसंग हैं उनमें कोई भी ज्ञान नहीं सिखला सकते।
भल अपने को श्री श्री 108 जगतगुरू, भगवान भी कहते हैं परन्तु ऐसे कोई नहीं कहते कि
मैं सबका परमपिता ज्ञान का सागर हूँ, उनको कोई परमपिता तो कहते ही नहीं। यह तो जानते
ही हैं कि परमपिता पतित-पावन है। यह प्वाइंट्स बुद्धि में अच्छी रीति रखनी है।
मनुष्य कहते हैं यह ब्रह्माकुमारियां तो भक्ति को डायओर्स देती हैं। लेकिन जब ज्ञान
मिलता है तो भक्ति को डायओर्स देना ही है। ऐसे नहीं जब भक्ति में जाते हैं तो उस
समय यह मालूम पड़ता है कि हम ज्ञान को डायओर्स देते हैं। नहीं, वह तो आटोमेटिकली
रावण राज्य में आ जाते हैं। अभी तुमको समझ मिली है कि बाबा हमको राजयोग सिखला रहे
हैं। राजयोग का ज्ञान है, इनको भक्ति नहीं कहेंगे। भगवान ज्ञान का सागर है, वह कभी
भक्ति नहीं सिखलायेंगे। भक्ति का फल है ही ज्ञान। ज्ञान से होती है सद्गति। कलियुग
के अन्त में सब दु:खी हैं इसलिए इस पुरानी दुनिया को दु:खधाम कहा जाता है। इन बातों
को अभी तुम समझते हो। बाप आया हुआ है भक्ति का फल अर्थात् सद्गति देने। राजयोग सिखला
रहे हैं। यह है पुरानी दुनिया, जिसका विनाश होना है। हमको राजाई चाहिए नई दुनिया
में। यह राजयोग का ज्ञान है। ज्ञान सिखलाने वाला एक ही परमपिता परमात्मा शिव है।
उनको ही ज्ञान सागर कहा जाता है, कृष्ण को नहीं। कृष्ण की महिमा ही अलग है। जरूर आगे
जन्म में ऐसा कर्तव्य किया है जो प्रिन्स बना है।
अभी तुम जानते हो हम राजयोग का ज्ञान ले नई दुनिया में स्वर्ग का
प्रिन्स-प्रिन्सेज बनेंगे। स्वर्ग को सद्गति, नर्क को दुर्गति कहा जाता है। हम अपने
लिए राज्य स्थापन कर रहे हैं। बाकी जो यह ज्ञान नहीं लेंगे, पावन नहीं बनेंगे तो
राजधानी में आ नहीं सकेंगे क्योंकि सतयुग में बहुत थोड़े होगे। कलियुग अन्त में जो
इतने अनेक मनुष्य हैं, वह जरूर मुक्तिधाम में होंगे। गुम नहीं हो जाते हैं, सब घर
चले जाते हैं। अभी तो बच्चों को घर याद रहता है कि अब 84 जन्मों का चक्र पूरा होता
है। नाटक पूरा होता है। अनेक बार चक्र लगाया है। यह तुम ब्राह्मण बच्चे ही जानते
हो। ब्राह्मण तो बनते जाते हैं। 16108 की माला है। सतयुग में तो बहुत नहीं होंगे।
सतयुग का मॉडल रूप भी दिखलाते हैं ना। बड़ी चीज़ का मॉडल छोटा होता है। जैसे सोने
की द्वारिका दिखलाते हैं। कहा जाता है – द्वारिका में कृष्ण का राज्य था। अब
द्वारिका में कहेंगे वा देहली में कहेंगे? जमुना का कण्ठा तो यहाँ देहली में है। वहाँ
तो सागर है। यह तो बच्चे समझते हैं जमुना का कण्ठा था कैपीटल। द्वारिका कैपीटल नहीं
है। देहली मशहूर है। जमुना नदी भी चाहिए। जमुना की महिमा है। परिस्तान देहली को ही
कहा जाता है। बड़ी गद्दी देहली ही होगी। अभी तो बच्चे समझते हैं भक्ति मार्ग खलास
हो ज्ञान मार्ग होता है। यह दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। बाप कहते हैं – आगे चल
तुमको सब मालूम पड़ जायेगा। कौन-कौन कितना पास होते हैं। स्कूल में भी मालूम पड़ता
है, फलाने-फलाने इतने नम्बर से पास हुए हैं। अभी दूसरे क्लास में जाते हैं। पिछाड़ी
के समय जास्ती पता पड़ेगा। कौन-कौन पास होते हैं जो फिर ट्रांसफर होंगे। क्लास तो
बड़ा है ना। बेहद का क्लास है। सेन्टर्स दिन-प्रतिदिन बढ़ते जायेंगे। कोई आकर 7 रोज़
का कोर्स अच्छी रीति लेंगे। एक-दो रोज़ का कोर्स भी कम नहीं है। देखते हैं कलियुग
का विनाश सामने खड़ा है, अब सतोप्रधान बनना है। बाप ने कहा है बुद्धियोग मेरे से
लगाओ तो सतोप्रधान बन जायेंगे। पवित्र दुनिया में आयेंगे, पार्ट तो जरूर बजाना ही
है। जैसे ड्रामा में कल्प पहले पार्ट बज चुका है। भारतवासी ही राज्य करते थे फिर
वृद्धि को पाया है। झाड़ वृद्धि को पाता जाता है। भारतवासी देवी-देवता धर्म वाले
हैं। परन्तु पावन न होने के कारण उन पावन देवताओं को पूजते हैं। जैसे क्रिश्चियन
लोग क्राइस्ट को पूजते हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म है – सतयुग में। सतयुग की
स्थापना करने वाला है बाप। बरोबर सतयुग में इन देवताओं का राज्य था। तो जरूर एक
जन्म पहले इन्होंने पुरुषार्थ किया होगा। जरूर वह संगम ही होगा। जबकि पुरानी दुनिया
बदल नई दुनिया होती है। कलियुग बदल सतयुग आना है तो कलियुग में पतित होंगे। बाबा ने
समझाया है यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाते हो वा लिटरेचर छपाते हो तो उसमें लिख
देना चाहिए कि इन्होंने इस सहज राजयोग के ज्ञान से आगे जन्म में यह पुरुषार्थ किया
है। सिर्फ राजा-रानी तो नहीं होंगे। प्रजा भी तो बनती है ना। अज्ञान में तो कुछ भी
मनुष्य नहीं जानते सिर्फ पूजा करते रहते हैं। अभी तुम समझते हो वे लोग पूजा करते
हैं तो सिर्फ लक्ष्मी-नारायण को ही देखते रहते। ज्ञान कुछ भी नहीं। लोग समझते हैं
भक्ति बिगर भगवान ही नहीं मिलेगा। तुम किसको कहते हो भगवान आया हुआ है तो तुम पर
हँसते हैं। भगवान तो आयेगा कलियुग के अन्त में, अभी कहाँ से आया! कलियुग की अन्त
में भी क्यों कहते हैं, यह भी समझते नहीं। वह तो कृष्ण को ले गये हैं द्वापर में।
मनुष्यों को जो आता है सो बोल देते हैं, बिगर समझ के इसलिए बाप कहते हैं तुम
बिल्कुल ही बेसमझ बन गये हो। बाप को सर्वव्यापी कह देते हैं। भक्ति बाहर से तो बहुत
खूबसूरत दिखाई पड़ती है। भक्ति की चमक कितनी है! तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है।
और कहाँ भी सतसंग आदि में जायेंगे तो आवाज जरूर होगा। गीत गायेंगे। यहाँ तो बाबा
रिकार्ड भी नहीं पसन्द करते। आगे चल शायद यह भी बन्द हो जाएं।
बाप कहते हैं – इन गीतों आदि का सब सार तुमको समझाता हूँ। तुम अर्थ जानते हो। यह
पढ़ाई है। बच्चे जानते हैं हम राजयोग सीख रहे हैं। अगर कम पढ़ेंगे तो प्रजा में चले
जायेंगे इसलिए जो बहुत होशियार हैं उनको फॉलो करना चाहिए क्योंकि उनका पढ़ाई में
अटेन्शन जास्ती है तो उससे फायदा होगा। जो अच्छा समझाने वाले हैं उनसे सीखना चाहिए।
जो अच्छा समझाते हैं उनको सेन्टर्स पर याद करते हैं ना। ब्रह्माकुमारी तो बैठी है
फिर कहते हैं फलानी आये। समझते हैं यह बड़ी होशियार है। ऐसे हैं तो उसका फिर आदर भी
करना पड़े। बड़े का फिर रिगॉर्ड भी ऐसा रखना होता है। यह ज्ञान में हमारे से तीखे
हैं, जरूर इनको ऊंच पद मिलेगा, इसमें अहंकार नहीं आना चाहिए। बड़े की बड़ी इज्जत
होती हैं। प्रेजीडेंट की जरूर जास्ती इज्जत होगी। हर एक की नम्बरवार इज्जत होती है।
एक-दो का रिगॉर्ड तो रखेंगे ना। बैरिस्टर में भी नम्बरवार होते हैं। बड़े केस में
बड़ा होशियार वकील लेते हैं। कोई-कोई तो लाख रूपये का भी केस उठाते हैं। नम्बरवार
जरूर होते हैं। हमसे होशियार हैं तो रिगॉर्ड रखना चाहिए। सेन्टर सम्भालना है। सब
काम भी करना है। बाबा को सारा दिन ख्यालात रहते हैं ना। प्रदर्शनी कैसे बनाई जाये,
पूरा अटेन्शन देना है। हम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनें। बाप आये ही हैं
सतोप्रधान बनाने। पतित-पावन बाप ही है। यहाँ फिर कहते पतित-पावनी गंगा, उसमें
जन्म-जन्मान्तर स्नान करते आये हैं। पावन तो कोई भी नहीं बना है। यह सब है भक्ति।
जबकि कहते हैं हे पतित-पावन आओ। वह आयेगा तो जरूर संगम पर, और एक ही बार आते हैं।
हर एक की अपनी-अपनी रसम-रिवाज है। जैसे नेपाल में अष्टमी पर बलि चढ़ाते हैं। छोटे
बच्चे को हाथ में बन्दूक दे चलवाते हैं। वह भी बलि चढ़ायेंगे। बड़ा होगा तो एक धक
से बछड़े को काट देगा। कोई ने कम धक लगाया, एक धक से न मरे तो वह बलि नहीं हुई, वह
देवी पर नहीं चढ़ायेंगे। यह सब है भक्ति मार्ग। हर एक की अपनी-अपनी कल्पना है।
कल्पना पर फॉलोअर्स बन जाते हैं। यहाँ फिर यह नई बातें हैं। इनको तो बच्चे ही जान
सकें। एक ही बाप बैठ सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। तुमको खुशी रहती
है हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं, और कोई समझ न सकें। तुमको सभा में हम कहेंगे –
सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण, स्वदर्शन चक्रधारी तो इसका अर्थ तुम समझेंगे। नया कोई
होगा तो मूँझ जायेगा कि यह क्या कहा? स्वदर्शन चक्रधारी तो विष्णु है। यह नई बात है
ना इसलिए तुम्हारे लिए कहते हैं बाहर मैदान में आओ तो पता पड़े।
तुम्हारा है ज्ञान मार्ग। तुम 5 विकारों पर जीत पाते हो। इन असुरों (5विकारों)
से तुम्हारी लड़ाई है। फिर तुम देवता बनते हो और कोई लड़ाई की बात नहीं होती। जहाँ
असुर हैं वहाँ देवतायें होते नहीं। तुम हो ब्राह्मण, देवता बनने वाले। जो पुरुषार्थ
कर रहे हो। रूद्र ज्ञान यज्ञ में ब्राह्मण जरूर चाहिए। सिवाए ब्राह्मणों के यज्ञ
होता नहीं। रूद्र है शिव, फिर कृष्ण का नाम कहाँ से आया। तुम दुनिया से बिल्कुल ही
न्यारे हो। और तुम हो कितने थोड़े। चिड़ियाओं ने सागर को हप किया। शास्त्रों में
दन्त कथायें कितनी हैं। बाप कहते हैं – अब वह सब भूल मामेकम् याद करो। आत्मा ही बाप
को याद करती है। बाप तो एक है ना। हे परमात्मा वा प्रभू कहते हैं तो उस समय लिंग भी
याद नहीं आता है। सिर्फ ईश्वर वा प्रभू कह देते हैं। आत्मा को बाप से आधाकल्प का
सुख मिला हुआ है, तो फिर भक्ति मार्ग में याद करती है। अभी तुमको नॉलेज मिली है –
आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है। हम सब आत्मायें मूलवतन में रहने वाली हैं, वहाँ
से नम्बरवार पार्ट बजाने आती हैं। पहले आते हैं देवी-देवतायें। कहते हैं क्राइस्ट
के पहले देवी-देवता धर्म था। 5 हजार वर्ष की बात है। वो लोग कह देते 50 हजार साल की
यह पुरानी चीज़ है। परन्तु 50 हजार वर्ष की पुरानी चीज़ कोई हो नहीं सकती। ड्रामा
है ही 5 हजार वर्ष का। मुख्य धर्म हैं ही यह। इन धर्म वालों के ही मकान आदि होंगे।
पहले-पहले तो रजोगुणी बुद्धि थे। अभी तो और ही तमोगुणी बुद्धि वाले हैं। प्रदर्शनी
में कितना समझाते हैं। किसकी समझ में थोड़ेही आता है। ब्राह्मणों की ही सैपलिंग लगनी
है। तो बच्चों को समझाया गया है – ज्ञान अलग चीज़ है, भक्ति अलग चीज़ है। ज्ञान से
सद्गति होती है इसलिए कहते भी हैं हे पतित-पावन आओ, दु:ख से लिबरेट करो। फिर गाइड
बन साथ ले जायेंगे। बाप आकर आत्माओं को ले जाते हैं। शरीर तो सब खत्म हो जायेंगे।
विनाश होगा ना। शास्त्रों में एक ही महाभारत की लड़ाई गाई हुई है। कहते भी हैं यह
वही महाभारत की लड़ाई है। वह तो लगनी ही है। सबको बाप का परिचय देते रहो। तमोप्रधान
से सतोप्रधान बनने का उपाय तो एक ही है। बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो तो विकर्म
विनाश हो जायेंगे और आत्मा मेरे साथ चली जायेगी। सबको सन्देश देते रहो तो बहुतों का
कल्याण होगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जो पढ़ाई में होशियार हैं, अच्छा समझाते हैं – उनका संग करना है,
उन्हें रिगॉर्ड देना है। कभी भी अहंकार में नहीं आना है।
2) ज्ञान की नई-नई बातों को अच्छी रीति समझना वा समझाना है। इसी खुशी में रहना
है कि हम हैं स्वदर्शन चक्रधारी।