13-04-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 26-05-69 मधुबन

 

“सम्पूर्ण स्नेही की परख”

 

सभी किस स्थिति में बैठे हो? लगन में बैठे या मगन अवस्था में? किस अवस्था में हो? ज्यादा समय लगन लगाने में जाता है या मगन रूप में हो? अपनी चैकिंग तो करते होंगे। अच्छा।

 

सभी की यही इच्छा है कि हमारे पेपर की रिजल्ट का मालूम पड़े। विशेष सभी के दिलों में यही संकल्प चलता रहता है। तो आज रिजल्ट सभी सुना देते हैं। सभी ने जो भी लिखा है यथायोग्य, यथाशक्ति टोटल रिजल्ट यही कहेंगे कि बाप में निश्चय बुद्धि तो है लेकिन जितना ही बाप में निश्चय है उतना ही बाप के महावाक्यों में, फरमान में निश्चय बुद्धि होकर चलना वह अभी पुरुषार्थ में 50 देखने में आता है। बाप में निश्चय तो 100 है लेकिन बाप के फरमान और आज्ञाओं में निश्चय बुद्धि होकर के जो फरमान मिला और किया। ऐसे फरमान में निश्चय बुद्धि मैजारिटी 50 की रिजल्ट में है। ऐसे ही टीचर में निश्चय है लेकिन उनकी पूरी पढ़ाई जो है उसमें पूर्ण रीति से चलना वह भी अपनी परसेन्टेज की रिजल्ट है। ऐसे ही गुरू रूप में भी सतगुरू है यह पूरा निश्चय है लेकिन उनके श्रीमत पर चलना उसकी टोटल रिजल्ट 50 तक है। सिर्फ बाप, टीचर, सतगुरू में निश्चय नहीं लेकिन इस निश्चय के साथ-साथ उनके फरमान, उनकी पढ़ाई और उनके श्रीमत पर भी सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि होकर चलना है। इसमें कमी है जिसको अभी भरना है?

 

स्नेह की निशानी क्या है? सम्पूर्ण स्नेही की परख क्या होती है? उनका मुख्य लक्ष्य क्या होता है? आप सभी ने जो सुनाया वह तो है ही। लेकिन फिर भी वह स्पष्ट करने के लिए जिसके साथ जिसका स्नेह होता है उसकी सूरत में उसी स्नेही की सूरत देखने में आती है। उनके नयनों से वही नूर देखने में आता है। उनके मुख से भी स्नेह के बोल निकलते। उनके हर चलन से स्नेह का चित्र देखने में आयेगा। उसमें वही स्नेही समाया हुआ होगा। ऐसी अवस्था होनी है। अभी बच्चों और बाप के संस्कारों में बहुत फर्क है। जब समान हो जायेंगे तो आप के संस्कार देखने में नहीं आयेंगे। वही देखने में आयेंगे। एक-एक में बाप को देखेंगे। आप सभी द्वारा बाप का साक्षात्कार होगा। लेकिन अभी वह कमी है। अपने से पूछना है ऐसे स्नेही बने हैं? स्नेह लगाना भी सहज है। स्नेही स्वरूप बनना - यह है फाइनल स्टेज। तो पेपर की रिजल्ट सुनाई श। एक तो एक कमी है, दूसरी बात जो सभी ने लिखा है उसमें सहनशक्ति की जो रिजल्ट है वह बहुत कम है। जितनी सहनशक्ति होगी उतनी सर्विस में सफलता होगी। संगठन में रहने के लिए भी सहनशक्ति चाहिए। फाइनल पेपर जो विनाश का है उसमें पास होने के लिए भी सहनशक्ति चाहिये। वह सहनशक्ति की रिजल्ट मैजारिटी में बहुत कम है। इसलिए उसको अब बढ़ाओ।

 

सहनशक्ति कैसे आयेगी? जितना-जितना स्नेही बनेंगे। जितना जिसके प्रति स्नेह होता है तो उस स्नेह में शक्ति आ जाती है। स्नेह में सहनशक्ति कैसे आती है, कभी अनुभव किया है? जैसे देखो, कोई बच्चे की माँ है। बच्चे पर आपदा आती है, माँ का स्नेह है तो स्नेह के कारण उसमें सहनशक्ति आ जाती है। बच्चे के लिए सब कुछ सहन करने लिए तैयार हो जाती है। उस समय स्नेह में कुछ भी अपने तन का वा परिस्थितियों का कुछ फिक्र नहीं रहता है। तो ऐसे ही अगर निरन्तर स्नेह रहे तो उसे स्नेही प्रति सहन करना कोई बड़ी बात नहीं है। स्नेह कम है इसलिए सहनशक्ति भी कम है। यह है आप सभी के पेपर की रिजल्ट। अब एक मास के बाद रिजल्ट देखेंगे। वहाँ तीन-तीन मास बाद पेपर आता है। यहाँ एक मास बाद इसी रिजल्ट को देखेंगे कि स्नेही रूप कितना बने हैं?

 

मुख्य है निर्भयता का गुण। जो पेपर में नहीं दिया था। क्योंकि उसकी बहुत कमी है। एक मास के अन्दर इस निर्भयता के गुण को भी अपने में पूरा भरने की कोशिश करनी है। निर्भयता कैसे आयेगी? उसके लिए मुख्य क्या पुरुषार्थ है? निराकारी बनना। जितना निराकारी अवस्था में होंगे उतना निर्भय होंगे। भय तो शरीर के भान में आने से होता है।

 

यह एक मास का चार्ट पहले बता देते हैं। कुमारियों का ट्रेनिंग क्लास पूरा होगा तो यह भी पूछेगे कि सहनशक्ति, निर्भय और निश्चय की परख जो बताई वह कहाँ तक है। इन तीनों बातों का पेपर फिर लेंगे। कुमारियों से बापदादा का स्नेह विशेष क्यों होता है? कौन-सी खास बात है जो बापदादा का खास स्नेह रहता है? क्योंकि बापदादा समझते हैं अगर इन्हों को ईश्वरीय स्नेह नहीं मिलेगा तो और किसी के स्नेह में लटक जायेंगी। बाप रहमदिल है ना। तो रहम के कारण स्नेह है। भविष्य बचाव के कारण विशेष स्नेह रहता है। अब देखेंगे बापदादा के स्नेह का जवाब क्या देती हैं। अपने को बचाना है, यह है बापदादा के स्नेह का रेस्पान्ड । किन-किन बातों में बचाना है मालूम है? एक तो मन्सा सहित प्यूरिटी हो। मन्सा में कोई संशय न आये और दूसरी बात अपनी वाचा भी ऐसी रखनी है जो मुख से कोई ऐसा बोल न निकले। वाणी में भी कन्ट्रोल, मन्सा में भी कन्ट्रोल। वाचा ऐसी रखनी है जैसे साकार में बापदादा की थी। कर्म भी ऐसा करना है जैसे साकार तन द्वारा करके दिखाया। आप का कर्म ऐसा हो जो और भी देखकर ऐसा करे। यह है कुमारियों के लिए खास। और किससे बचना है? संगदोष से तो बचना ही है, एक और विशेष बात है। अब बहुत रूप से, आत्मा के रूप से, शरीर के रूप से आप सभी को बहकाने वाले बहुत रूप सामने आयेंगे। लेकिन उसमें बहकना नहीं है। बहुत परीक्षायें आयेंगी लेकिन कुछ है नहीं। परीक्षाओं में पास कौन हो सकता है? जिसको परख पूरी होगी। परखने की जितनी शक्ति होगी उतना ही परीक्षाओं में पास होंगे। परखने की शक्ति कम रखते हो, परख नहीं सकते हो कि यह किस प्रकार का विघ्न है, माया किस रूप में आ रही है और क्यों मेरे सामने यह विघ्न आया है, इससे रिजल्ट क्या होगी? यह परख कम होने के कारण परीक्षाओं में फेल हो जाते हैं। परख अच्छी होगी वह पास हो सकते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

 

भट्ठी में आई हुई कुमारियों से - (फर्स्ट भट्ठी 69):-

 

जो भी सब कुमारियाँ आई हुई हैं, उन सबके अन्दर लक्ष्य क्या है? क्या लक्ष्य रखकर आई हो? (कोई ने कहा भट्ठी का अनुभव करने) अनुभव करने का भी लक्ष्य क्या है? क्यों यह अनुभव करने चाहती हो ? टीचर्स का लक्ष्य क्या है? भट्ठी में तो पकेंगी लेकिन भट्ठी में पक करके क्या बनना है, वह लक्ष्य तो क्लीयर जरूर होना चाहिए ना। क्या बनना है और कैसा बनना है। जैसे साकार रूप में मात पिता कर्म करके दिखलाने के एक एक्जैम्पुल बने हैं, इसी रीति एक शब्द में यही कहेंगे कि सम्पूर्ण और श्रेष्ठ टीचर कैसे होना चाहिए। न सिर्फ टीचर लेकिन जैसे तीन रूप हैं पिता, शिक्षक और गुरू। इस ही रीति से जगत माता और जगत के प्रति निमित्त टीचर। साथ-साथ सतगुरू। सतगुरू खुद नहीं बन सकते लेकिन सतगुरू के साथ पूरा सम्बन्ध जुटाने वाले। श्रीमत पर चलकर चलने वाली बनना है। यह मुख्य बातें हर टीचर में जब आ जाती हैं तो उस टीचर की रिजल्ट सर्वोत्तम निकलती है। टीचर बनना तो सहज है लेकिन टीचर पन की क्वालिफिकेशन में मुख्य सब संस्कार जो ज्ञान और योग के भरने हैं वह बहुत जरूरी हैं। और जगत माता पन का, शक्ति पन का, दिव्य गुणधारी दैवी पन का और साथ-साथ योद्धे पन का यह सब संस्कार हरेक जब अपने में ठीक रीति भरेंगे तब दुनिया में नाम बाला होगा। ऐसा लक्ष्य रखा है? कन्या होते हुए भी जगत माता हैं। अगर कन्या समझेंगे तो फिर कुछ-कुछ बातों में सर्विस करते हुए अनासक्त रहेंगे। कन्यापन अर्थात् प्युरिटी। तो कुमारी पन भी पूरा रखना है लेकिन कुमारी पन के साथ-साथ बेहद जगत माता हूँ, यह भी समझना है। यह सब आत्मायें जो तरस रही हैं, दुःखी हो चिल्ला रही हैं उन्हों की ज्ञान और योग से पालना करनी है। जब ऐसी अपनी वृत्ति स्मृति और दृष्टि रखेंगे तब दृष्टि में रूहानियत होगी। जिस्मानी पन निकल जायेगा। और रूहानी दृष्टि होती जायेगी। हरेक को यही लक्ष्य रखना है कि नम्बरवन बनकर दिखाऊंगी। लेकिन वन नम्बर कैसे बनेंगी? जब अपने सर्व पुराने संस्कारों के ऊपर विन करेंगी वही वन बनेंगी। इतनी हिम्मत और हुल्लास हरेक को अपने में रखना है। और अगर इतनी कुमारियाँ सम्पूर्ण टीचर बनकर निकले फिर तो विनाश कितना जल्दी होगा? क्योंकि आप सम्पूर्ण बनेंगी तो फिर सृष्टि भी सम्पूर्ण चाहिए। यह अपूर्ण सृष्टि जल्दी-जल्दी खत्म हो सम्पूर्ण सृष्टि आ जायेगी। फिर शक्तियों का नाम कोने-कोने में बाला होगा। सबको मुख्य यही सोचना चाहिए कि कब भी अपने अन्दर पुराने संस्कारों को प्रगट होने नहीं देना है। संकल्प से ही उनको खत्म करना है। अगर संकल्प आता भी है तो संकल्प को स्थान देकर उनकी पालना नहीं करना। संकल्प को संकल्प तक ही खत्म करना है। फिर आखरीन यह हो जायेगा संकल्प में ही पुराने संस्कार इमर्ज नहीं होंगे।

 

एक दो के स्वभाव भिन्न-भिन्न तो होंगे ही लेकिन स्वभाव से बचने के लिए अपने में क्या धारणा करनी चाहिए? सरलता। जितनी सरल बुद्धि, सरल दृष्टि, सरल वाणी होगी उतना ही स्वभावों का टक्कर नहीं होगा।

 

कुमारियाँ भट्ठी नाम से घबराती तो नहीं हो? यह तो मीठी भट्ठी है, इसमें ही तो सोना बनना है। कोई भी मन में मुश्किलात महसूत हो तो मन की बातें मन में नहीं रखना। मन की बातें वाणी में भल लाना है, लेकिन कहाँ? स्थान देखकर लाना है। यह भी किचड़ा है ना। किचड़े को कहाँ डाला जाता है? जो स्थान मुकरर होता है। यहाँ वहाँ किचड़े को डाला तो फिर वह वायुमण्डल में फैल जायेगा। इसलिए कोई भी मन में ऐसा संकल्प आये जिसको व्यर्थ संकल्प, विकल्प कहें वह निमित्त बने हुए स्थान के सिवाए किसी से नहीं करना। नहीं तो वायुमण्डल को बिगाड़ने के निमित्त बनने से पुरूषार्थ में यह बाधा पड़ जाती है। इसलिए जैसा लक्ष्य रखा है तो कोई भी अपने सामने रूकावट डालने की बातें नहीं रखना। मिटाते हटाते चलते चलो। तब लक्ष्य को पा सकती हो। हर मुरली में लक्ष्य तो दिया ही है। क्या करना है, क्या देखना है, क्या सोचना है। जैसे डायरेक्शन है उस प्रमाण ही चलते-चलना है।

 

घर में सिकीलधे होते हैं तो बाप उनको श्रृंगारते हैं ना। तो आप कुमारियाँ कौन सा श्रृंगार करेंगी? गहने पहने हुए हैं? हर वक्त अपने गहनों से सजी हुई रहना। उतारना नहीं। जो रॉयल फैमिली वाले होते हैं वह कब गहने उतारते नहीं हैं। जो गरीब होते हैं वह कब-कब पहनते हैं। आप सब तो किसके बच्चे हो? कौन से गहने पहने हुए हैं? तिलक कौन सा है? (राजतिलक) राजतिलक तो आपके सतयुगी माँ बाप देंगे। संगमयुग का नया तिलक कौन सा है? विजयी बनने की विक्टरी। आज विजयी रत्न बनने की निशानी तिलक रूप में कुमारियों को दे रहे हैं। अच्छा - चिन्दी पहनी है। कौन सी चिन्दी पहननी है? चिन्दी है - स्वदर्शन चक्र की। यह भी कब भूलना नहीं हैं। कुण्डल कौन से पहनेंगी? (शंख) शंखध्वनी होती रहती अच्छा कंगन कौन से पहनेगी? नियम रूपी कंगन बांधना हैं। लेकिन जितने जो नियम पालन करेंगे उतने कंगन पड़ेंगे। कोई दस-दस कंगन भी पहनते हैं, कोई एक भी पहनते हैं। ज्यादा कंगन जब होते हैं तब शोभनिक होती हैं। जितने नियमों की पालना करते हैं उतने ही कंगन पड़े हुए हैं। अच्छा घुंघरू कौन से पहनेंगी? घुंघरू में आवाज होता हैं ना तो ज्ञान घुंघरू का आवाज सब सुनें। कृष्ण के लिए कहते हैं घुंघरू की आवाज से गोपिकायें आती थी। तुम्हारी ज्ञान घुंघरू की आवाज से कौन आयेंगे? आपके भक्त और प्रजा। जितना-जितना सुरीली आवाज होगा वैसे-वैसे आकर्षण होगी। यह सब गहने हर वक्त पहने ही रहना है। कहाँ माया उतार न दे। उतारने वाले भी बड़े तेज हैं। प्यार-प्यार से उतार भी देते हैं। इसलिए कब उतारने नहीं देना।

 

कुमारियाँ हैं तो उम्मीदवार लेकिन कौन सी परसेन्टेज में उम्मींद पूरी करनी है वह मालूम पड़ जायेगा। हरेक को यही सोचना है कि हम कोई कमाल करके दिखाऊं। बापदादा की जो उम्मीद हैं वह उम्मींद का सितारा अपने मस्तक के बीच चमका के दिखाना है। कुमारियों का ग्रुप तो अच्छा है। टीचर भी अच्छी मिली है। जहाँ भी जिसका गुण देखो - वह जल्दी से उठाना। क्योंकि हरेक में कोई न कोई विशेष गुण होता है। तो हरेक से गुण उठाते-उठाते सर्वगुण सम्पन्न बनना है। अगर अवगुण देखो तो पीठ कर लेना। खिलौना देखा है ना। सीता के सामने रावण करते हैं तो पीठ कर देती। राम सामने आता तो राम के सम्मुख हो जाती है। आप भी सीता तो हो ही। गुण देखों तो धारण करना। अवगुण को देखते हुए भी नहीं देखना। सुनते हुए नहीं सुनना। न सोचना। सुनना और देखना तो दूसरी स्टेज है। सभी कुमारियों को विक्टरी का टीका दिया और ऊपर में बिन्दी देते हुए मुख मीठा कराया? इस टीके को कायम रखने की हिम्मत हैं ना। आज जैसे मस्तक चमक रहे हैं ऐसे अविनाशी चमकते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

वरदान:- अनेक प्रकार की आग से बचने और सर्व को बचाने वाले सच्चे रहमदिल भव

 

आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है, अनेक प्रकार के दु:ख, चिंतायें, समस्यायें.. भिन्न-भिन्न प्रकार की यह चोट जो आत्माओं को लगती है, यह अग्नि जीते हुए जलने का अनुभव कराती है। लेकिन आप ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये, आप शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। अतीन्द्रिय सुख, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो, तो रहमदिल बन अन्य आत्माओं को भी अनेक प्रकार की आग से बचाओ। गली-गली में ज्ञान स्थान बनाकर सबको ठिकाना दो।

 

स्लोगन:- जिनकी एक बाप से सच्ची प्रीत है उन्हें अशरीरी बनना सहज है।