01-03-09  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 19-06-70 मधुबन

 

“त्रिमूर्ति लाइट्स का साक्षात्कार” 

 

ब्राह्मणों को त्रिमूर्ति शिव वंशी कहते हो ना। त्रिमूर्ति बाप के बच्चे स्वयं भी त्रिमूर्ति हैं। बाप भी त्रिमूर्ति है। जैसे बाप त्रिमूर्ति है वैसे आप भी त्रिमूर्ति हो? तीन प्रकार की लाइट्स साक्षात्कार की आती है? वह मालूम है कौन सी है, जो ब्राह्मणों के तीन प्रकार की लाइट्स साक्षात्कार होते रहते हैं? आप लोगों से लाइट का साक्षात्कार होता मालूम पड़ता है? त्रिमूर्तिवंशी त्रिमूर्ति बच्चों की तीन प्रकार की लाइट्स का साक्षात्कार होता है। वह कौन सी लाइट्स हैं? एक तो लाइट का साक्षात्कार होता है नयनों से। कहते हैं ना कि नयनों की ज्योति। नयन ऐसे दिखाई पड़ेंगे जैसे नयनों में दो बड़े बल्ब जल रहे हैं। दूसरी होती है मस्तक की लाइट। तीसरी होती हैं माथे पर लाइट का क्राउन। अभी यह कोशिश करना है जो तीनों ही लाइट्स का साक्षात्कार हो। कोई भी सामने आये तो उनको यह नयन बल्ब दिखाई पड़े। ज्योति ही ज्योति दिखाई दें। जैसे अंधियारे में सच्चे हीरे चमकते हैं ना। जैसे सर्च लाइट होती है, बहुत फ़ोर्स से और अच्छी रीति फैलाते हैं – इस रीति से मस्तक के लाइट्स का साक्षात्कार होगा। और माथे पर जो लाइट का क्राउन है वह तो समझते हो। ऐसे त्रिमूर्ति लाइट्स का साक्षात्कार एक-एक से होना है। तब कहेंगे यह तो जैसे फ़रिश्ता है। साकार में नयन, मस्तक और माथे के क्राउन के साक्षात्कार स्पष्ट होंगे।

 

नयनों तरफ देखते-देखते लाइट देखेंगे। तुम्हारी लाइट को देख दूसरे भी जैसे लाइट हो जायेंगे। कितनी भी मन से वा स्थिति में भारीपन हो लेकिन आने से ही हल्का हो जाए। ऐसी स्टेज अब पकडनी है। क्योंकि आप लोगों को देखकर और सभी भी अपनी स्थिति ऐसी करेंगे। अभी से ही अपना गायन सुनेंगे। द्वापर का गायन कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ऐसे साक्षात्कारमूर्त और साक्षात् मूर्त बनने से अभी का गायन अपना सुनेंगे। आप के आगे आने से लाइट ही लाइट देखने में आये। ऐसे होना है। मधुबन ही लाइट का घर हो जायेगा। यह दीवे आदि देखते भी जैसे कि नहीं देखेंगे। जैसे वतन में लाइट ही लाइट देखने में आती है वैसे यह स्थूल वतन लाइट का हाउस हो जायेगा। जब आप चैतन्य लाइट हाउस हो जायेंगे तो फिर या मधुबन भी लाइट हाउस हो जायेगा। अभी यह है लास्ट पढ़ाई की लास्ट सब्जेक्ट – प्रैक्टिकल में। थ्योरी का कोर्स समाप्त हुआ। प्रैक्टिकल, कोर्स की लास्ट सब्जेक्ट हैं। इस लास्ट सब्जेक्ट में बहुत फ़ास्ट पुरुषार्थ करना पड़ेगा। इसी स्टेज के लिए ही गायन है।

 

बापदादा से कब विदाई नहीं होती है। माया से विदाई होती है। बापदादा से तो मिलन होता है। यह थोड़े समय का मिलन सदा का मिलन करने के निमित्त बन जाता है। बाप के साथ गुण और कर्तव्य मिलना यही मिलन है। यही प्रयत्न सदैव करते रहना है। अच्छा।

 

संकल्पों को ब्रेक लगाने का मुख्य साधन कौन सा है? मालूम है? जो भी कार्य करते हो तो करने के पहले सोचकर फिर कार्य शुरू करो। जो कार्य करने जा रहा हूँ वह बापदादा का कार्य है, मैं निमित्त हूँ। जब कार्य समाप्त करते हो तो जैसे यज्ञ रचा जाता है तो समाप्ति समय आहुति दी जाती है। इस रीति जो कर्तव्य किया और जो परिणाम निकला। वह बाप को समर्पण, स्वाहा कर दिया फिर कोई संकल्प नहीं। निमित्त बन कार्य किया और जब कार्य समाप्त हुआ तो स्वाहा किया। फिर संकल्प क्या चलेगा? जैसे आग में चीज़ डाली जाती है तो फिर नाम निशान नहीं रहता वैसे हर चीज़ की समाप्ति में सम्पूर्ण स्वाहा करना है। फिर आपकी जिम्मेवारी नहीं। जिसके अर्पण हुए फिर जिम्मेवार वह हो जाते हैं। फिर संकल्प काहे का। जैसे घर में कोई बड़ा होता है तो जो भी काम किया जाता है तो बड़े को सुनाकर खाली हो जायेंगे। वैसे ही जो कार्य किया, समाचार दिया, बस। अव्यक्त रूप को सामने रख यह करके देखो। जितना जो सहयोगी बनता है उनको एक्स्ट्रा सहयोग देना पड़ता है। जैसे अपनी आत्मा की उन्नति के लिए सोचते हैं इस रीति शुद्ध भावना, शुभ चिन्तक और शुभ चिंतन के रूप में एक्स्ट्रा मदद, दोनों रूप से किसी भी आत्मा को विशेष सहयोग दे सकते हो। देना चाहिए। इससे बहुत मदद मिलती है। जैसे कोई गरीब को अचानक बिगर मेहनत प्राप्ति हो जाती है, उस रीति जिस भी आत्मा के प्रति एक्स्ट्रा सहयोग दिया जाता है वह आत्मा भी महसूस करती है हमको विशेष मदद मिली है। साकार रूप में भी एक्स्ट्रा कोई आत्मा को सहयोग दने का साबुत करके दिखाया ना। उस आत्मा को स्वयं भी अनुभव हुआ। यस सर्विस करके दिखानी है। जितना-जितना आप सूक्ष्म होते जायेंगे उतना यह सूक्ष्म सर्विस भी बढती जाएगी। स्थूल के साथ सूक्ष्म का प्रभाव जल्दी पड़ता है और सदा काल के लिए। बापदादा भी विशेष सहयोग देते हैं। एक्स्ट्रा मदद का अनुभव होगा। मेहनत कम प्राप्ति अधिक। अच्छा।

 

बापदादा बच्चों से जितना अविनाशी स्नेह करते हैं उतना बच्चे अविनाशी स्नेह रखते हैं? यह अविनाशी स्नेह यही एक धागा है जो 21 जन्मों के बंधन को जोड़ता है। सो भी अटूट स्नेह। जितना पक्का धागा होता है उतना ही ज्यादा समय चलता है। यह संगम का समय 21 जन्मों को जोड़ता है। इस संगम के युग का एक-एक संकल्प एक-एक कर्म 21 जन्म के बैंक में जमा होता है। इतना अटेंशन रखकर फिर संकल्प भी करना। जो करूँगा वह जमा होगा। तो कितना जमा होगा। एक संकल्प भी व्यर्थ न हो। एक संकल्प भी व्यर्थ हुआ तो जमा कट हो जाता है। तो जमा जब करना होता है तो एक भी व्यर्थ न हो। कितना पुरुषार्थ करना है! संकल्प भी व्यर्थ न जाए। समय तो छोड़ो। अब पुरुषार्थ इस सीमा पर पहुँच रहा है। जैसे पढ़ाई दिन प्रतिदिन ऊँची होती जाती है तो यह भी ऐसे है। बड़े क्लास में पढ़ रहे हो ना। अच्छा।

 

व्यक्त और अव्यक्त वतन की भाषा में अंतर - 25-06-70

 

व्यक्त लोक में रहते अव्यक्त वतन की भाषा को जान सकते हो? अव्यक्त वतन की भाषा कौन सी होती है? कब अव्यक्त वतन की भाषा सुनी है? अभी तो अव्यक्त को व्यक्त लोक के निवासियों के लिए अव्यक्त आधार ले व्यक्त देख की रीति माफिक बोलना पड़ता है। वहाँ अव्यक्त वतन में तो एक सेकंड में बहुत कुछ रहस्य स्पष्ट हो जाते हैं। यहाँ आप की दुनिया में बहुत बोलने के बाद स्पष्ट होता है। यह है फ़र्क व्यक्त भाषा और अव्यक्त बापदादा के इशारों से यह समझ सकते हो कि आज बापदादा क्या देख रहे हैं? जैसे साइंस द्वारा कहाँ-कहाँ बातें, कहाँ कहाँ के दृश्य कैच कर सकते हैं। वैसे आप लोग अव्यक्त स्थिति के आधार से सम्मुख की बातों को कैच नहीं कर सकते हो? तीन बातें देख रहे हैं। वह कौन सी? बापदादा आज यही देख रहे हैं कि हरेक कहाँ तक चेकर बना है और चेकर के साथ मेकर कहाँ तक बने हैं। जितना जो चेकर होगा उतना मेकर बन सकता है। इस समय आप लॉ मेकर भी हो और न्यू वर्ल्ड के मेकर भी हो और पीस मेकर भी हो। लेकिन मेकर के साथ चेकर ज़रूर बनना है। विशेष क्या चेक करना है? यही सर्विस अब रही हुई है जिससे नाम बाला होना है। वह चेकर्स क्या चेक करे हैं? एडल्टरेशन करने वाले जो हैं उन्हों के पास ऑलमाइटी गवर्नमेंट का चेकर बनकर जाओ। जैसे उस गवर्नमेंट के चेकर्स व इंस्पेक्टर्स कोई के पास जाते हैं तो वह अपना भेद बता नहीं देते हैं। इस रीति से पाण्डव गवर्नमेंट के अथॉरिटी से चेकर्स बनकर जाओ। जो वह देखने से ही अपनी करप्शन, एडल्टरेशन से घबराएंगे और फिर सिर झुकायेंगे। अब यह सर्विस रही हुई है। इससे ही नाम बाला होना है। एक ने भी सिर झुकाया तो अनेकों के सिर झुक जायेंगे। पाण्डव गवर्नमेंट की अथॉरिटी बनकर जाना और ललकार करना। अब समझा। अपना भी चेकर बनना है और सर्विस में भी। जो जितना चेकर और मेकर बनता है वही फिर रूलर भी बनता है। तो कहाँ तक चेकर बने हैं और मेकर्स बने हैं और कहाँ तक रूलर्स बने हैं। यह बातें एक-एक की देख रहे हैं।

जब अपने को इन तीन रूपों में स्थित करेंगे तो फिर छोटी-छोटी बातों में समय नहीं जायेगा। जब है ही औरों के भी करप्शन, एडल्टरेशन चेक करनेवाले तो अपने पास फिर करप्शन, एडल्टरेशन रह सकती है? तो यह नशा रहना चाहिए कि हम इन तीनों ही स्थितियों में कहाँ तक स्थित रह सकते हैं। रूलर्स जो होते हैं वह किसके अधीन नहीं होते हैं। अधिकारी होते हैं। वह कब किसके अधीन नहीं हो सकते। तो फिर माया के अधीन कैसे होंगे? अधिकार को भूलने से अधिकारी नहीं समझते। अधिकारी न समझने से अधीन हो जाते हैं। जितना अपने को अधिकारी समझेंगे उतना उदारचित्त ज़रूर बनेंगे। जितना उदार चित्त बनता उतना वह उदाहरण स्वरुप बनता है - अनेकों के लिए। उदारचित्त बनने के लिए अधिकारी बनना पड़े। अधिकारी का अर्थ ही है की अधिकार सदैव याद रहे। तो फिर उदाहरण स्वरुप बनेंगे। जैसे बापदादा उदाहरण रूप बने। वैसे आप सभी भी अनेकों के लिए उदाहरण रूप बनेंगे। उदारचित्त रहने वाला भी उदाहरण भी बनता और अनेकों का सहज ही उद्धार भी कर सकता है। समझा।

 

जब कोई में माया प्रवेश करती है तो पहले किस रूप में माया आती है? (हरेक ने अपना-अपना विचार सुनाया) पहले माया भिन्न-भिन्न रूप से आलस्य ही लाती है। देह अभिमान में भी पहला रूप आलस्य का धारण करती है। उस समय श्रीमत लेकर वेरीफाई कराने का आलस्य करते हैं फिर देह अभिमान बढ़ता जाता है और सभीं बातों में भिन्न-भिन्न रूप से पहले आलस्य रूप आता है। आलस्य, सुस्ती और उदासी ईश्वरीय सम्बन्ध से दूर कर देती है। साकार सम्बन्ध से वा बुद्धि के सम्बन्ध से वा सहयोग लेने के सम्बन्ध से दूर कर देती है। इस सुस्ती आने के बाद फिर विकराल रूप क्या होता है? देह अहंकार में प्रत्यक्ष रूप में आ जाते हैं। पहले छठे विकार से शुरू होते हैं। ज्ञानी तू आत्मा वत्सों में लास्ट नंबर अर्थात् सुस्ती के रूप से शुरू होती है। सुस्ती में फिर कैसे संकल्प उठेंगे। वर्तमान इसी रूप से माया की प्रवेशता होती है। इस पर बहुत ध्यान देना है। इस छठे रूप में माया भिन्न-भिन्न प्रकार से आने की कोशिश करती है। सुस्ती के भी भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। शारीरिक, मानसिक, दोनों सम्बन्ध में भी माया आ सकती है। कई सोचते हैं चलो अब नहीं तो फिर कब यह कर लेंगे। जल्दी क्या पड़ी है। ऐसे-ऐसे बहुत रॉयल रूप से माया आती है। कई यह भी सोचते हैं कि अव्यक्त स्थिति इस पुरुषार्थी जीवन में 6-8 घंटा रहे, यह हो ही कैसे सकता है। यह तो अन्त में होना है। यह भी सुस्ती का रॉयल रूप है। फिर करूँगा, सोचूंगा, देखूंगा यह सब सुस्ती है। अब इसके चेकर बनो। कोई को भी रॉयल रूप में माया पीछे हटाती तो नहीं है? प्रवृत्ति की पालना तो करना ही है। लेकिन प्रवृत्ति में रहते वैराग्य वृत्ति में रहना है, यह भूल जाता है। आधी बात याद रहती है, आधी बात छोड़ देते हैं। बहुत सूक्ष्म संकल्पों के रूप में पहले सुस्ती प्रवेश करती है। इसके बाद फिर बड़ा रूप लेती है।
अगर उसी समय ही उनको निकाल दें तो ज्यादा सामना न करना पड़े। तो अब यह चेक करना है कि तीव्र पुरुषार्थी बनने में वा हाई जम्प देने में किस रूप में माया सुस्त बनाती है। माया का जो बाहरी रूप है उनको तो चेक करते हो लेकिन इस रूप को चेक करना है। कई यह भी सोचते हैं कि फिक्स सीट्स ही कम है। तो औरों को आगे पुरुषार्थ में देख अपनी बुद्धि में सोच लेते हैं कि इतना आगे हम जा नहीं सकेंगे। इतना ही ठीक है। यह भी सुस्ती का रूप है। तो इन सभी बातों में अपने को चेंज कर लेना है। तब ही लॉ मेकर्स वा पीस मेकर्स बन सकेंगे। वा न्यू वर्ल्ड मेकर्स बन सकेंगे। पहले स्वयं हो ही न्यू नहीं बनायेंगे तो न्यू वर्ल्ड मेकर्स कैसे बनेंगे। पहले तो खुद को बनाना है ना। पुरुषार्थ में तीव्रता लाने का तरीका मालूम है। फिर उसमें ठहरते क्यों नहीं हो। जब तक अपने आप से कोई प्रतिज्ञा नहीं की है तब तक परिपक्वता आ नहीं सकेगी। जब तक यहाँ फिक्स नहीं करेंगे तब तक वहाँ सीट्स फिक्स नहीं होंगी। तो अब बताओ पुरुषार्थ में तीव्रता कब लायेंगे?(अभी से) म्यूजियम वा प्रदर्शनी में जो स्लोगन सभी को सुनाते हो ना कि ‘अब नहीं तो कब नहीं’। वह अपने लिए भी याद रखो। कब कर लेंगे ऐसा न सोचो। अभी बनकर दिखायेंगे। जितना प्रतिज्ञा करेंगे उतनी परिपक्वता वा हिम्मत आएगी और फिर सहयोग भी मिलेगा।

 

आप पुराने हो इसलिए आप को सामने रख समझा रहे हैं। सामने कौन रखा जाता है? जो स्नेही होता है। स्नेहियों को कहने में कभी संकोच नहीं आता है। एक-एक ऐसे स्नेही हैं। सभी सोचते हैं बाबा बड़ा आवाज़ क्यों नहीं करते हैं। लेकिन बहुत समय के संस्कार से अव्यक्त रूप से व्यक्त में आते हैं तो आवाज़ से बोलना जैसे अच्छा नहीं लगता है। आप लोगों को भी धीरे-धीरे आवाज़ से परे इशारों पर कारोबार चलानी है। यह प्रैक्टिस करनी है। समझा। बापदादा बुद्धि की ड्रिल कराने आते हैं जिससे परखने की और दूरांदेशी बनने की क्वालिफिकेशन इमर्ज रूप में आ जाये। क्योंकि आगे चल करके ऐसी सर्विस होगी जिसमे दूरांदेशी बुद्धि और निर्णयशक्ति बहुत चाहिए। इसलिए यह ड्रिल करा रहे हैं। फिर पावरफुल हो जाएँगी। ड्रिल से शरीर भी बलवान होता है। तो यह बुद्धि की ड्रिल से बुद्धि शक्तिशाली होगी। जितनी-जितनी अपनी सीट फिक्स करेंगे समय भी फिक्स करेंगे तो अपना प्रवृत्ति का कार्य भी फिक्स कर सकेंगे। दोनों लाभ होंगे। जितनी बुद्धि फिक्स रहती है तो प्रोग्राम भी सभी फिक्स रहते हैं। प्रग्राम फिक्स तो प्रोग्राम फिक्स। प्रोग्रेस हिलती है तो प्रोग्राम भी हिलते हैं अब फिक्स करना सीखो। अब सम्पूर्ण बनकर औरों को भी सम्पूर्ण बनाना बाकी रह गया है। जो बनता है वह फिर सबूत भी देता है। अभी बनाने का सबूत देना है। बाकी इस कार्य के लिए व्यक्त देश में रहना है। अच्छा।

 

वरदान:- हर आत्मा के सम्बन्ध सम्पर्क में आते सबको दान देने वाले महादानी, वरदानी भव

 

सारे दिन में जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उसे कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुण का दान दो। आपके पास ज्ञान का भी खजाना है, तो शक्तियों और गुणों का भी खजाना है। तो कोई भी दिन बिना दान दिये खाली न जाए तब कहेंगे महादानी। 2- दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। तो अपनी श्रेष्ठ स्थिति के वायुमण्डल द्वारा और अपनी वृत्ति के वायब्रेशन्स द्वारा हर आत्मा को सहयोग दो तब कहेंगे वरदानी।

 

स्लोगन:- जो बापदादा और परिवार के समीप हैं उनके चेहरे पर सन्तुष्टता, रूहानियत और प्रसन्नता की मुस्कराहट रहती है।