18-01-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
पिताश्री जी के पुण्य
स्मृति दिवस पर प्रातः क्लास में सुनाने के लिए बापदादा के मधुर महावाक्य
"मीठे बच्चे अब वापस घर
जाना है इसलिए अशरीरी बनने का अभ्यास करो, कथनी और करनी को समान
बनाओ"
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे
बच्चों को बाबा बार-बार समझाते हैं बच्चे अपने को आत्मा समझो, हमको अब बाप के पास
जाना है। ऐसे ज्ञान की मस्ती में रहने से तुम्हारे में कशिश बहुत आयेगी। यह तो जानते
हो यह पुराना चोला छोड़ना है। इस शरीर से ममत्व निकल जाए। इस शरीर में सिर्फ सर्विस
के लिए ही हैं। यह संगम का समय पुरुषार्थ के लिए है। अभी ही समझते हैं हमने 84 का
चक्र लगाया है, बाप कहते हैं भल धन्धाधोरी आदि करो। गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि
में यह याद रहे कि यह तो सब कुछ खत्म होना है। अब वापिस घर जाना है। भल 8 घण्टा
धन्धे आदि में लगाओ, 8 घण्टा आराम करो। बाकी समय बेहद के बाप से यह वार्तालाप (रूह-रिहान)
करो।
मीठे बच्चे तुम जितना
समय याद की यात्रा पर रहेंगे तो प्रकृति तुम्हारी दासी बनेगी। तुम्हें सर्विस का भी
शौक होना चाहिए। सर्विस करेंगे तो बाप भी याद रहेगा, सर्विस तो सब जगह है। कहाँ भी
जाकर तुम समझाओ। परन्तु सर्विसएबुल बच्चों में कोई भी खामी नहीं होनी चाहिए। खामी
नहीं होगी तो सर्विस भी अच्छी कर सकेंगे। फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर। बाप ने तुमको
लायक बनाया और तुम बच्चों को फिर नये-नये को बाप का परिचय देना है। दिन-रात बच्चों
का यही ख्याल चलता रहे कि हम किसका जीवन कैसे बनायें! इससे हमारा जीवन भी उन्नति को
पायेगा। खुशी होती है, हरेक को उमंग रहता है हम अपने गांव वालों का भी उद्धार करें।
अपने हमजिन्स की सेवा करें। बाप भी कहते हैं चैरिटी बिगन्स एट होम। एक जगह भी नहीं
बैठ जाना चाहिए, रमण करना (चक्कर लगाना) चाहिए। बाप बच्चों को यही शिक्षा देते हैं
कि बच्चे तुमको सदैव अपनी उन्नति करनी है।
बाप जानते हैं रूहानी
कल्प वृक्ष, कल्प पहले मिसल ही बढ़ना है, यह वृक्ष है ना, इनमें सभी सेक्शन हैं।
तुम आगे चलकर सब साक्षात्कार करेंगे, कैसे सब रहते हैं, सिजरा तो जरूर है ना। बुद्धि
भी कहती है वहाँ से आत्मायें फिर नम्बरवार आती हैं, तो बच्चों का विचार सागर मंथन
चलना चाहिए कि ऐसे-ऐसे सर्विस करें, यह करें.. साथ-साथ बाप की भी याद रहनी चाहिए,
याद से ही उन्नति होती है।
लाडले बच्चे आगे चल
तुम्हारे में योगबल की ताकत आ जायेगी - फिर तुम किसको थोड़ा ही समझायेंगे तो झट समझ
जायेंगे। यह भी ज्ञान बाण हैं ना। बाण लगता है तो घायल कर देता है। घायल होते हैं
फिर बाबा के बनते हैं। तो एकान्त में बैठ सर्विस की युक्तियाँ निकालनी चाहिए। ऐसे
नहीं रात को सोया सुबह को उठा, नहीं। सवेरे उठकर बाबा को बहुत प्रेम से याद करना
चाहिए। रात को भी याद में बैठना चाहिए। अगर बाबा को याद ही नहीं करेंगे तो बाबा फिर
प्यार कैसे करेंगे। कशिश ही नहीं होगी। भल बाबा जानते हैं, ड्रामा में सब प्रकार के
नम्बरवार बनने हैं फिर भी चुप करके बैठ थोड़ेही जायेंगे। पुरुषार्थ तो जरूर करायेंगे
ना। बाप को तो तरस पड़ता है, नहीं सुधरते हैं तो उनकी क्या गति होगी! रोयेंगे,
पीटेंगे, सजायें खायेंगे। इसलिए बाप बच्चों को बार-बार शिक्षा देते हैं कि बच्चे
तुम्हें परफेक्ट बनना है। बार-बार अपनी चेकिंग करनी है।
बाबा का बच्चों प्रति
यही डायरेक्शन है - "बच्चे अशरीरी बनते जाओ”, तो तुम्हारे सब दुःख दूर हो जायेंगे।
सतोप्रधान हो जायेंगे। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी। यह मेहनत की बात है। जो समझाते
हैं वह जरूर खुद भी अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करते होंगे। उनको भी वाणी से परे घर
जाना है, तो जरूर यह भी (साकार बाबा भी) अभ्यास करता होगा। फिर कोई बच्चे आकर कहते
हैं बाबा गुडमार्निंग। तो इनको नीचे उतर गुडमार्निंग करना पड़े। आवाज में आना पड़े।
यह तो पुरुषार्थ करते रहते हैं वाणी से परे होने का क्योंकि इससे ही पाप कट जायेंगे।
पाप कटते-कटते आत्मा पावन बन जायेगी। इनको भी बाप कहते हैं बच्चे तुम अशरीरी आये हो
फिर अशरीरी हो जाना है। इसलिए अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। सतोप्रधान
बनने के लिए पुरुषार्थ करना पड़े। बाप समझाते हैं - बच्चे तुम्हारा कल्याण इस एक
बात में ही होना है। सुबह को सवेरे 3-4 बजे उठो। अशरीरी हो बाबा की याद में बैठ जाओ।
हम आत्मा अशरीरी हैं। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। कर्मातीत अवस्था होगी।
फिर दुःख के बादल हटते जायेंगे। बाप जो कहते हैं वह करना चाहिए ना। मैं आत्मा
शिवबाबा का बच्चा हूँ। वास्तव में मैं अशरीरी हूँ फिर यहाँ पार्ट बजाने के लिए यह
शरीर लिया है। चक्र पूरा किया, अब हमको वापिस जाना है। अपने को अशरीरी समझते आवाज
से परे जाना है। बाबा तो अपने को आत्मा समझ बाप की याद में बैठे रहते हैं। हम भी
अशरीरी हो बाप की याद में बैठ जायें, फिर क्लास में भी टाइम पर आना है। यहाँ भी
देह-अभिमान को छोड़ अपने को अशरीरी समझ बैठना है। बाबा समझाते बहुत अच्छा हैं,
परन्तु सिर्फ यह कहना नहीं है। कथनी के साथ फिर करना भी है। बाप समझाते हैं बच्चे
तूफान तो बहुत आयेंगे। मन को बाहर के तूफानों से हटाकर अपने को आत्मा समझो। आत्मा
समझने से बुद्धि कहाँ भटकेगी नहीं। याद में ही मेहनत है। मेहनत करनी तो है ना।
सिर्फ कहने की बात नहीं। अगर कोई से दिल लगाई, क्रिमिनल आई गई तो अशरीरी बन नहीं
सकेंगे। अशरीरी बनेंगे तो किसकी याद नहीं रहेगी। देह-अभिमान में आने से ही आँखे धोखा
देती हैं, फिर याद आती रहेगी। मंजिल बड़ी ऊंची है। यह बाबा समझाते भी हैं और खुद
अभ्यास भी करते हैं। शिवबाबा को तो अभ्यास नहीं करना है, इस दादा को करना है।
पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझना है। बाबा ने कहा है तुम अशरीरी हो, शरीर के भान
को तोड़ना है। बाबा खुद करते हैं तो बच्चों को भी सिखलायेंगे, ऐसे करो, ऐसे बैठो।
थक जाओ तो फिर लेट जाओ। अशरीरी समझ बाप को याद करते रहो।
बाप समझाते हैं -
बच्चे तुम कथनी में तो बहुत आते हो लेकिन तुम्हारी कथनी और करनी एक जैसी होनी चाहिए।
अभ्यास पड़ जाने से फिर घड़ी-घड़ी तुम अशरीरी हो जायेंगे। यह आदत पड़ने में टाइम
लगता है। घड़ी-घड़ी समझो मैं तो आत्मा हूँ। बाकी बाप की याद में ही विघ्न पड़ते
हैं। घड़ी-घड़ी याद छूट जायेगी। आज बाबा खास इस पर ज़ोर दे रहे हैं क्योंकि इससे ही
तुम्हारी कर्मातीत अवस्था बनेंगी। जिसका बहुत अच्छा पुरुषार्थ होगा वही कर्मातीत
अवस्था को पा सकेंगे। बहुत मेहनत करने से पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था होनी है।
घड़ी-घड़ी यह अभ्यास करते रहो। इसमें कोई आसन लगाने, हठयोग आदि करने की बात नहीं
है। हम आत्मा अशरीरी हैं, पीछे इस शरीर में प्रवेश किया है। अब वापिस जाना है। घर
को भी याद करना पड़े। अपने को बाहर के ख्यालातों से हटाकर बाप को याद करना है। फिर
गुडमार्निंग करने का भी आवाज नहीं निकलेगा। लाचारी आवाज में आये फिर चढ़ जायेंगे।
रेसपान्ड करने नीचे आना पड़ता है। ऐसे अगर बच्चे अभ्यास करेंगे तो कल्याण होता
जायेगा। कर्मेन्द्रियाँ वश होती जायेंगी, इसको ही कर्मातीत अवस्था कहा जाता है। बाकी
शरीर निर्वाह के लिए कर्म तो करना पड़ता है। अगर बच्चों को पैसा बहुत है, कमाई करने
की दरकार नहीं है तो और ही सौभाग्य, पदम भाग्य कहेंगे। एक जन्म लिए धन काफी है, अब
तो हम कर्मातीत अवस्था में बैठ जायें। उस अवस्था में बैठे-बैठे शरीर छूट जाये। अन्त
मती सो गति हो जायेगी। बाप को याद करते घर चले जायेंगे। अच्छा।
अव्यक्त महावाक्य -
अन्तिम स्टेज और अन्तिम सेवा
अपनी अन्तिम स्टेज की
समीपता का अनुभव होता है? जैसे आइने में अपना रूप स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही इस
नॉलेज के दर्पण में अपना अन्तिम स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे - जैसे कोई बहुत अच्छा
सुन्दर चोला सामने रखा हो और मालूम हो कि हमको अभी यह धारण करना है, तो न चाहते हुए
भी अटेन्शन जायेगा क्योंकि सामने दिखाई दे रहा है। ऐसे ही अपना अन्तिम स्वरूप सामने
दिखाई देता है और उस स्वरूप तरफ अटेन्शन जाता है? वह लाइट का स्वरूप कहो वा चोला कहो,
लाइट ही लाइट दिखाई पड़ेगी। फरिश्तों का स्वरूप क्या होता है? लाइट। देखने वाले भी
ऐसे अनुभव करेंगे कि यह लाइट के वस्त्रधारी हैं, लाइट ही इन्हों का ताज है, लाइट ही
वस्त्र हैं, लाइट ही इन्हों का श्रृंगार है। जहाँ भी देखेंगे तो लाइट ही देखेंगे।
मस्तक के ऊपर देखेंगे तो लाइट का क्राउन दिखाई पड़ेगा। नयनों में भी लाइट की किरणें
निकलती हुई दिखाई देंगी। तो ऐसा रूप सामने दिखाई पड़ता है? क्योंकि माइट रूप अर्थात्
शक्ति रूप का जो पार्ट चलना है वह प्रसिद्ध किससे होगा? लाइट रूप से। कोई भी सामने
आये तो एक सेकेण्ड में अशरीरी बन जाये, वह लाइट रूप से ही होगा। चलते-फिरते ऐसे
लाइट हाउस हो जायेंगे जो किसी को भी यह शरीर दिखाई नहीं पड़ेगा। विनाश के समय पेपर
में पास होने के लिए वा सर्व परिस्थितियों का सामना करने के लिये लाइट हाउस होना पड़े,
इसके लिए प्रैक्टिस करनी है यह शरीर बिल्कुल भूल जाये, अगर कोई काम करना है, चलना
है, बात करनी है, तो भी निमित्त आकारी लाइट का रूप धारण करना है। जैसे पार्ट बजाने
समय चोला धारण करते हो, कार्य समाप्त हुआ चोला उतारा। ऐसे एक सेकेण्ड में शरीर रूपी
चोला धारण करो और एक सेकेण्ड में न्यारे हो जाओ। जब यह प्रैक्टिस पक्की हो जायेगी
तब यह कर्मभोग भी समाप्त हो जायेगा। जैसे इन्जेक्शन लगाकर दर्द को खत्म कर देते
हैं, ऐसे ही यह स्मृति स्वरूप का इन्जेक्शन लगाकर देह की स्मृति से गायब हो जायें।
स्वयं भी अपने को लाइट रूप अनुभव करो तो दूसरे भी वही अनुभव करेंगे। अन्तिम सर्विस
यही है, इससे सारी कारोबार भी लाइट अर्थात् हल्की होगी। जो कहावत है ना पहाड़ भी
राई बन जाता है। ऐसे कोई भी कार्य लाइट रूप बनने से हल्का हो जायेगा, बुद्धि लगाने
की भी आवश्यकता नहीं रहेगी। हल्के काम में बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। तो इसी लाइट
स्वरूप की स्थिति में, जो मास्टर जानी-जाननहार वा मास्टर त्रिकालदर्शी के लक्षण
हैं, वह आ जाते हैं। करें या न करें यह भी सोचना नहीं पड़ेगा। बुद्धि में वही
संकल्प होगा जो यथार्थ करना है। उसी अवस्था के बीच कोई भी कर्मभोग की भासना नहीं
रहेगी। जैसे इंजेक्शन के नशे में बोलते हैं, हिलते हैं, सभी कुछ करते भी स्मृति नहीं
रहती है। कर रहे हैं, यह स्मृति नहीं रहती है। स्वतः ही होता रहता है। वैसे कर्मभोग
व कर्म किसी भी प्रकार का चलता रहेगा लेकिन स्मृति नहीं रहेगी। वह अपनी तरफ आकर्षित
नहीं करेगा। ऐसी स्टेज को ही अन्तिम स्टेज कहा जाता है। ऐसा अभ्यास हो जाए जो जब
चाहें तब लाइट रूप हो जायें, जब चाहें तब शरीर में आयें वा जो कुछ करना है वह करें।
जैसे साकार में आकार का अनुभव करते थे। फर्श में रहते भी फरिश्ते का अनुभव करते थे।
ऐसी स्टेज तो आनी है ना। शुरू-शुरू में बहुतों को यह साक्षात्कार होते थे। लाइट ही
लाइट दिखाई देती थी। अपने लाइट के क्राउन के भी अनेक बार साक्षात्कार करते थे। जो
आदि में सैम्पल था वह अन्त में प्रैक्टिकल स्वरूप होगा। संकल्प की सिद्धि का
साक्षात्कार होगा। जैसे वाचा से आप डायरेक्शन देती हो, वैसे संकल्प से सारी कारोबार
चला सकती हो? साइंस वाले नीचे पृथ्वी से ऊपर तक डायरेक्शन लेते रहते हैं, तो क्या
आपके श्रेष्ठ संकल्प से कारोबार नहीं चल सकती है? साइंस ने कापी तो साइलेंस से ही
किया है। कल्प पहले तो आप लोगों ने किया है ना। फिर बोलने की आवश्यकता नहीं। जैसे
बोलने में बात को स्पष्ट करते हैं, वैसे ही संकल्प से सारी कारोबार चले। जितना-जितना
अनुभव करते जाते हो, एक दो के समीप आते जाते हो तो संकल्प भी एक-दो से मिलते जाते
है। लाइट रूप होने से व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय समाप्त हो जाने के बाद संकल्प वही
उठेगा जो होना है। आपकी बुद्धि में भी वही संकल्प उठेगा और जिसको करना है उनकी
बुद्धि में भी वही संकल्प उठेगा कि यही करना है। नवीनता तो यह है ना। यह कारोबार
कोई देखे तो समझेंगे इन्हों की कारोबार कहने से नहीं, इशारों से चलती है। नज़र से
देखा और समझ गये। ऐसा सूक्ष्मवतन यहाँ ही बनना है।
अच्छा - अति मीठे, अति
लाडले सर्व सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से
यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
वरदान:-
भुजाओं में
समाने और भुजायें बन सेवा करने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही भव
जो बच्चे बाप स्नेही
हैं वह सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहते हैं। यह ब्रह्मा बाप की भुजायें
ही आप बच्चों की सेफ्टी का साधन हैं। जो प्यारे, स्नेही होते हैं वो सदा भुजाओं में
होते हैं। तो सेवा में बापदादा की भुजायें हो और रहते हो बाप की भुजाओं में। इन दोनों
दृश्यों का अनुभव करो - कभी भुजाओं में समा जाओ और कभी भुजायें बनकर सेवा करो। नशा
रहे कि हम भगवान के राइट हैण्ड हैं।
स्लोगन:-
सन्तुष्टता और प्रसन्नता की विशेषता ही उड़ती कला का अनुभव कराती है।