ओम् शान्ति।
यह गीत किसने गाया? बच्चों ने क्योंकि बाप तो एक ही है, उसको ही रचयिता कहा जाता
है। रचना, रचयिता को पुकारती है। बाबा ने समझाया है – भक्ति मार्ग में तो तुमको दो
बाप हैं। एक लौकिक, दूसरा है पारलौकिक। सभी आत्माओं का बाप एक ही है। एक बाप होने
से सभी आत्मायें अपने को ब्रदर्स कहते हैं। उस बाप को पुकारते हैं ओ गॉड फादर, ओ
परमपिता रहम करो, क्षमा करो। भक्तों का रक्षक एक भगवान ही है। पहले-पहले तो यह
समझाना चाहिए कि हमको दो बाप हैं। अब पारलौकिक बाप तो सभी का एक है। बाकी लौकिक बाप
हर एक का अलग-अलग है। अब लौकिक बाप बड़ा वा पारलौकिक बाप बड़ा? लौकिक बाप को तो कभी
भगवान वा परमपिता नहीं कहेंगे। आत्मा का बाप एक ही परमपिता परमात्मा है। आत्मा का
नाम कभी बदलता नहीं है। शरीर का नाम बदलता है। आत्मा भिन्न-भिन्न शरीर ले पार्ट
बजाती है अर्थात् पुनर्जन्म लेती है। आखिर भी कितने जन्म मिलते हैं। सो बाप ही आकर
समझाते हैं। बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। बाप आते ही भारत में हैं, उनका
नाम शिव है। समझते भी हैं शिव परमात्मा है। शिव जयन्ती वा शिवरात्रि भी मनाते हैं।
वह निराकार है। जैसे आत्मा भी निराकार है, निराकार से साकार में आते हैं पार्ट बजाने।
अब निराकार शिव तो शरीर बिगर पार्ट बजा न सके। मनुष्य इन बातों को कुछ भी नहीं समझते
हैं, नयन हीन हैं। यह शरीर के दो नेत्र तो सबको हैं। तीसरा ज्ञान का नेत्र आत्मा को
नहीं है, जिसको दिव्य-चक्षु भी कहते हैं। आत्मा अपने बाप को भूल गई है, इसलिए
पुकारते हैं नयन हीन को राह बताओ। कहाँ की राह? शान्तिधाम और सुखधाम की। सर्व का
सद्गति दाता, सतगुरू एक ही है। मनुष्य, मनुष्य का गुरू बन सद्गति दे नहीं सकता। न
खुद सद्गति पाते हैं, न औरों को देते हैं। एक बाप ही सर्व को सद्गति देते हैं। उस
अल्फ बाप को ही याद करना है। बाप समझाते हैं – कोई भी मनुष्य-मात्र
मुक्ति-जीवनमुक्ति, शान्ति और सुख सदाकाल के लिए दे नहीं सकते। सुख-शान्ति का वरदान
तो एक बाप ही दे सकते हैं। मनुष्य, मनुष्य को नहीं दे सकते। भारतवासी सतोप्रधान थे
तो सतयुगी स्वर्गवासी थे। आत्मा पवित्र थी। भारत को स्वर्ग कहा जाता है जबकि आत्मायें
पवित्र, सतोप्रधान थीं।
तुम जानते हो, बरोबर आज से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग, सतोप्रधान था। इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अभी कलियुग का भी अन्त है, इसको नर्क कहा जाता है। यही
भारत स्वर्ग था तो बहुत धनवान था। हीरे-जवाहरों के महल थे। बाप बच्चों को याद दिलाते
हैं। सतयुग आदि में इन लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी। उसको स्वर्ग बैकुण्ठ कहा जाता
है। अभी तो स्वर्ग है नहीं, यह बाप समझाते हैं। बाबा भारत में ही आते हैं। निराकार
शिव की जयन्ती भी मनाते हैं, परन्तु वह क्या करते हैं, यह कोई नहीं जानते। हम
आत्माओं का बाप शिव है, उनकी हम जयन्ती मनाते हैं। बाप की बायोग्राफी को भी नहीं
जानते। गाया भी जाता है – दु:ख में सिमरण सब करें। पुकारते हैं ओ गॉड फादर रहम करो।
हम बहुत दु:खी हैं क्योंकि यह रावण राज्य है। वर्ष-वर्ष रावण को जलाते हैं ना।
परन्तु यह किसको पता नहीं कि 10 शीश वाला रावण क्या चीज़ है। हम उनको जलाते क्यों
हैं, यह कौन सा दुश्मन है जो उनकी एफीज़ी बनाए जलाते हैं। भारतवासी बिल्कुल नहीं
जानते क्योंकि ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है तब तो रामराज्य माँगते हैं। 5 विकार
स्त्री में, 5 विकार पुरूष में हैं इसलिए इनको रावण सम्प्रदाय कहा जाता है। यह रावण
5 विकार ही बड़े से बड़ा दुश्मन है, जिसका एफीजी बनाए जलाते हैं। भारतवासियों को यह
पता नहीं पड़ता कि रावण है कौन, जिसको जलाते हैं। यह रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह
भी किसको पता नहीं हैं। बाप समझाते हैं – रामराज्य – सतयुग, त्रेता। रावण राज्य –
द्वापर, कलियुग। सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, इन्हों को यह राज्य कहाँ
से, कैसे मिला, यह कोई नहीं जानते। यह समझने की बातें है। इसमें अटेन्शन देना पड़ता
है। मोस्ट बिलवेड बाप है तब तो उनको भक्ति मार्ग में भी पुकारते हैं। भारत में जब
इन्हों का (लक्ष्मी-नारायण का) राज्य था तो दु:ख का नाम नहीं था। अभी दु:खधाम है,
कितने अनेक धर्म हैं। सतयुग में एक धर्म था, इतनी सब आत्मायें कहाँ चली जायेंगी,
किसको पता नहीं है क्योंकि नयनहीन हैं। शास्त्रों से ज्ञान का तीसरा नेत्र किसको नहीं
मिलता है। ज्ञान नेत्र ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा ही देते हैं। आत्मा को तीसरा
नेत्र मिलता है। आत्मा भूल गई कि हमने कितने जन्म लिए हैं। सतयुग में जो
देवी-देवताओं का राज्य था, वह कहाँ गया? गाते भी हैं मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। 84
का चक्र कहते हैं। परन्तु कौन सी आत्मा 84 जन्म लेती है? जो पहले भारत में आते हैं
वह थे देवी-देवता। फिर 84 जन्म भोग अन्त में पतित बन जाते हैं। गाते भी हैं – हे
पतित-पावन, तो सिद्ध करते हैं हम पतित हैं इसलिए पुकारते हैं, हे पतित-पावन हमें
पावन बनाने आओ। जो खुद ही पतित हैं वह फिर औरों को पावन कैसे बनायेंगे। बाप समझाते
हैं आधाकल्प भक्ति मार्ग में रावण राज्य, 5 विकार होने कारण भारत ने इतना दु:ख को
पाया है। 84 जन्म तो लेते ही हैं। उनका भी हिसाब समझाना चाहिए। पहले-पहले सतयुग में
हैं सतोप्रधान, फिर त्रेता में हैं सतो….आत्मा में खाद पड़ती है। बाप आते ही भारत
में हैं। शिव जयन्ती है ना। और सभी आत्मायें तो गर्भ में जन्म लेती हैं। बाप कहते
हैं – मैं साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ, जिनका यह बहुत जन्मों के अन्त का
जन्म है। यह समझानी कोई एक को नहीं दी जाती। यह गीता पाठशाला है। मनुष्य को देवता
बनाने के लिए यह राजयोग सिखाया जाता है। तुम यहाँ आये हो स्वर्ग की बादशाही प्राप्त
करने जो बाप ही दे सकते हैं। गीता पढ़ने से कोई राजा बनते नहीं हैं और ही रंक बनते
जाते हैं। बाप गीता का ज्ञान सुनाए राजा बनाते हैं, औरों द्वारा गीता सुनने से रंक
बन गये हैं। भारत में जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो प्योरिटी-पीस-प्रासपर्टी
थी, पवित्र गृहस्थ आश्रम था। वहाँ हिंसा का नाम नहीं था फिर द्वापर से लेकर हिंसा
शुरू हुई है। काम कटारी चलाते-चलाते तुम्हारी यह हालत आकर हुई है। सतयुग में 100
परसेन्ट सालवेन्ट थे, सतोप्रधान थे। यह राज़ कोई भी मनुष्य अथवा साधू-सन्त आदि नहीं
जानते। बाप जो ज्ञान का सागर, पतित-पावन है वही आकर सतोप्रधान बनने की युक्ति बताते
हैं। रावण की मत पर मनुष्यों का देखो क्या हाल हो गया है। राजे लोग भी, वह जो
पवित्र राजायें होकर गये हैं उन्हों के चरणों में जाकर पड़ते हैं और महिमा गाते हैं
– आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नींच पापी हैं। हमारे में कोई गुण नहीं हैं फिर कहते हैं,
आपेही तरस परोई। हमको आकर मन्दिर लायक बनाओ। किसकी भी समझ में नहीं आता कि बाप कैसे
आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना कराते हैं। अब तुम समझते हो हम सो देवी-देवता
धर्म के थे। हम सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें, इतने जन्म लिए अब 84 जन्म पूरे हुए
हैं। फिर दुनिया का चक्र फिरना चाहिए इसलिए फिर तुमको पावन यहाँ बनना है। पतित तो
सुखधाम, शान्तिधाम में नहीं जा सकते। बाप समझाते हैं तुम जो सतोप्रधान थे वह
तमोप्रधान बने हो। गोल्डन एज़ से फिर आइरन एज़ में आये हो फिर गोल्डन एज़ेड बनना है
तब मुक्तिधाम, सुखधाम में जा सकेंगे। भारत सुखधाम था। अब दु:खधाम है। गीत में भी
सुना – हम नयन हीन को राह बताओ…. हम अपने शान्तिधाम में कैसे जायें। वो लोग तो कह
देते हैं – परमात्मा सर्वव्यापी है, फलाना अवतार है, परशुराम अवतार है। अब बाप
परशुराम बन किसको मारते होंगे क्या? हो नहीं सकता। बाप समझाते हैं तुमने इस चक्र
में कैसे 84 जन्म लिए हैं। अब मुझ अल्फ़ को याद करो। हे आत्मायें देही-अभिमानी बनो।
देह-अभिमानी बन तुम बिल्कुल ही दु:खी कंगाल, नर्कवासी बन पड़े हो। अगर स्वर्गवासी
बनना है तो आत्म-अभिमानी जरूर बनना है। आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। अब 84
जन्म पूरे हुए हैं फिर सतयुग आदि में जाना है। अब मुझे याद करो और संग बुद्धियोग
तोड़ो। रहो भल गृहस्थ व्यवहार में, अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा एक शरीर छोड़
दूसरा लेती है। अब देही-अभिमानी बनना है, मुझे याद करो तो खाद सब जल जायेगी। तुम
पवित्र बन जायेंगे फिर मैं सब बच्चों को ले जाऊंगा। अगर मेरी मत पर नहीं चलेंगे तो
इतना ऊंच पद नहीं पायेंगे। इन लक्ष्मी-नारायण का ऊंच पद है। जब इन्हों का राज्य था
तो और कोई धर्म नहीं था। द्वापर से फिर और धर्म आते हैं। सतयुग में मनुष्य भी थोड़े
होते हैं। अब तो बहुत धर्म होने के कारण कितने दु:खी हो गये हैं। वही देवता धर्म
वाले अब फिर पतित होने से अपने को देवता कहते नहीं हैं। हिन्दू नाम रख दिया है।
हिन्दू तो कोई धर्म नहीं है। बाप समझाते हैं रावण ने तुमको ऐसा बना दिया है। तुम जब
लायक देवी-देवता थे तब सारे विश्व पर राज्य था, सब सुखी थे। अब दु:खी बन पड़े हैं।
भारत हेविन था वो अब हेल बन गया है फिर हेल को हेविन बाप बिगर कोई बना न सके।
देवताओं को सम्पूर्ण निर्विकारी कहा जाता है। यहाँ के मनुष्य तो सम्पूर्ण विकारी
हैं, इनको कहा जाता है पतित। भारत शिवालय था, शिवबाबा की स्थापना की हुई थी। बाप
स्वर्ग बनाते हैं फिर रावण नर्क बनाते हैं। रावण श्राप देते हैं, बाप 21 जन्म के
लिए वर्सा देते हैं। अब तुम हर एक बाप को ही याद करो, कोई भी देहधारी को नहीं।
देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता। भगवान तो एक ही है। बाप तो बेहद का वर्सा देते हैं
फिर रावण श्रापित बना देते हैं। इस समय भारत श्रापित है, बहुत दु:खी है। अब इस रावण
पर जीत पानी है। गाया भी जाता है दे दान तो छूटे ग्रहण। वो ग्रहण जो लगता है वह तो
पृथ्वी का परछाया है। अब बाप कहते हैं तुम्हारे ऊपर 5 विकारों रूपी रावण का ग्रहण
है। यह 5 विकार दान में दे देने हैं। पहला तो दान दो कि हम कभी विकार में नहीं
जायेंगे। यह काम-कटारी ही मनुष्य को पतित बनाती है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप जो नॉलेज देते हैं उसे पूरा अटेन्शन देकर पढ़ना है। ज्ञान के
तीसरे नेत्र से अपने 84 जन्मों को जान अब अन्तिम जन्म में पावन बनना है।
2) रावण के श्राप से बचने के लिए एक बाप की याद में रहना है। 5 विकारों का दान
दे देना है। एक बाप की मत पर चलना है।