ओम् शान्ति।
बेहद के बाप का नाम है भोलानाथ, जरूर मनुष्य से देवता बनाने वाला भी वही है। मनुष्य
तो सब हैं आसुरी सम्प्रदाय। वह मनुष्य को देवता बना न सकें। उनके लिए ही गाया हुआ
है मनुष्य से देवता किये… देवता रहते हैं अमरलोक में। यह है मृत्युलोक। जरूर बाप
आकर मृत्युलोक में अमरकथा सुनायेंगे, अमर बनाने के लिए। अब मनुष्य से देवता किये
करत न लागी वार… यह किसको कहा जाए? जरूर शूद्रों को ही एडाप्ट करता होगा ना। तो
कहेंगे कि शूद्र वर्ण के मनुष्यों को ब्राह्मण वर्ण में ले आते हैं। इतने सभी बच्चे
कहते हैं कि हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, ब्रह्मा की सन्तान हैं। प्रजापिता है तो
उनको जरूर धर्म के बच्चे होंगे। मुख वंशावली हैं तो भी जरूर मात-पिता चाहिए ना।
मम्मा की भी मुख वंशावली कहेंगे। बाबा की भी मुख वंशावली तो दादे की भी मुख वंशावली
ठहरी। कुख वंशावली का यहाँ नाम ही नहीं। वह कलियुगी ब्राह्मण हैं कुख वंशावली और
तुम ब्राह्मण हो मुख वंशावली। वह ब्राह्मण तो एक दो का हथियाला बांधते हैं विष
पिलाने के लिए। और तुम ब्राह्मण अमृत पिलाने परमात्मा से हथियाला बांधते हो। कितना
अन्तर है। वह नर्कवासी बनाने वाले और यह स्वर्गवासी बनाने वाले। ज्ञान अमृत से
मनुष्य से देवता बनते हैं। हम ईश्वर की औलाद बनते हैं तो फिर मदद भी मिलती है। सगे
और लगे भी हैं ना। लगे बच्चों को इतनी मदद नहीं मिलेगी, जितनी सगे बच्चों को। बाप
का लव भी सगों पर ही रहता है। सगा बच्चा नहीं होगा तो फिर भाई के बच्चों को लव करना
पड़ेगा वा धर्म का बच्चा बनाना पड़ेगा। अब तुम वर्णों को जानते हो। भल विराट स्वरूप
बनाते हो परन्तु उन्हों की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई बता न सके कि इनसे क्या होता है।
अभी बाप समझाते हैं कि यह चक्र फिरता है, इतने जन्म देवता धर्म में, इतने जन्म
क्षत्रिय वर्ण में। यहाँ कोई गपोड़े की बात नहीं है। 84 जन्म सिद्ध कर बतलाते हैं।
सतोप्रधान फिर सतो रजो तमो जरूर सबको बनना है। देवतायें जो सतोप्रधान थे, वही फिर
आकर तमोप्रधान बन गये हैं। अब यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ जड़ जड़ीभूत हो गया है
अर्थात् कब्रदाखिल है। यह है कयामत का समय। सभी का पुराना हिसाब-किताब चुक्तू होना
है और नया जन्म होना है। चौपड़ा होता है धन का। यहाँ फिर चौपड़ा कर्मों के खाते का
है। आधाकल्प का खाता है। मनुष्य जो पाप कर्म करते हैं वो खाता चलता आया है। ऐसे नहीं
कि एक ही बार सजा भोगने से खाता चुक्तू हो जाता है। नहीं। पाप आत्मा कैसे बनें?
प्रतिदिन कर्मों का बोझा चढ़ते-चढ़ते बिल्कुल ही तमोप्रधान बन पड़ते हैं। कोई फिर
कहते हैं कि सन्यासी जब सन्यास करते हैं तो वह क्यों तमोप्रधान होने चाहिए। परन्तु
बाप कहते हैं उनका है रजोप्रधान सन्यास। अभी तुमको मिलती है श्रीमत। वह तो हुई
मनुष्यों की मत। जैसे लोग कहते हैं कि हम मोक्ष को पाते हैं, परन्तु कैसे? सभी
एक्टर्स को तो यहाँ हाज़िर जरूर रहना है। वापिस जा नहीं सकते। गीता में भी बहुत ऐसी
बातें लिख दी हैं। पहली बात है सर्वव्यापी की। अब तुम बच्चों के अन्दर है बाप की
याद। रचता बाप और साथ में बाप की रचना। सिर्फ बाप नहीं, उनकी रचना को भी याद करना
पड़े। अपना धन्धा धोरी भी करते हो और साथ-साथ मूलवतन, सूक्ष्मवतन, शिवबाबा की
बायोग्राफी, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी जानते हो। फिर संगमयुग के जगत
अम्बा-जगतपिता को भी जान लिया है। जगत अम्बा सरस्वती गाई जाती है। उनके चित्र अनेक
हैं। वास्तव में मुख्य एक है जगत अम्बा सरस्वती। यह ब्रह्मा व्यक्त है जो अव्यक्त
बनता है। अव्यक्त के बाद वह ब्रह्मा फिर साकार महाराजा श्री नारायण बनते हैं, फिर
84 जन्म शुरू होते हैं। अब तुम धन्धा धोरी भी करते रहते हो तो कर्मेन्द्रियों से ऐसा
कोई पाप कर्म नहीं करना है जो विकर्म बन जायें, नहीं तो सर्वगुण सम्पन्न बन नहीं
सकेंगे। गाते हैं ना कि मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। इस समय है ही झूठ खण्ड।
सच खण्ड स्थापन करने वाला एक बाप है। इस समय सभी मनुष्य मात्र निधनके बन पड़े हैं।
अभी तुम बच्चों में कोई भी अवगुण नहीं होना चाहिए। सबसे पहला अवगुण है
देह-अभिमान का। देही-अभिमानी बनने में बहुत मेहनत है। देह-अभिमान के कारण ही और सब
विकार आते हैं। अहंकार है पहला नम्बर शत्रु। बाप डायरेक्ट कहते हैं कि लाडले बच्चे,
देह का अहंकार छोड़ो। मुझे तो देह है नहीं। मैं इन आरगन्स द्वारा आकर बतलाता हूँ।
तुम इन आरगन्स से सुनते हो और समझते हो। अब बेहद का बाप मत देते हैं कि मुझे याद करो
तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं। कोई भी ऐसा पाप कर्म नहीं करो जो बदनामी हो और
पद भ्रष्ट हो जाए। बाप कहते हैं – बच्चे तुम्हें कोई भी राजयोग सिखलाए स्वर्ग का
मालिक बना नहीं सकते। अब बाप तुमको सच समझाते हैं। तुम सत के संग में बैठे हो, सच
सुनने और सच खण्ड का मालिक बनने के लिए। उनका नाम ही है ट्रुथ। सच्चा ज्ञान सागर।
यह तो बाप कहते हैं कि मैं ज्ञान का सागर हूँ। ज्ञान सागर से तुम ज्ञान नदियां
निकलती हो। वह नदियां तो पानी के सागर से निकलती हैं। वह पतित-पावनी कैसे कहलाई जा
सकती। पतित-पावन तो परमात्मा होगा ना, जो ज्ञान का सागर है। वह गंगा सारी दुनिया
में थोड़ेही जायेगी। यह तो बेहद के बाप का ही काम है। तो तुम शूद्र से ब्राह्मण बनते
हो। ब्राह्मण हैं चोटी। परन्तु अब सतोप्रधान नहीं कहेंगे क्योंकि अभी सब पुरूषार्थी
हैं। सेवा कर रहे हैं। ईश्वरीय सन्तान हैं इसलिए ब्राह्मणों का बहुत मान है क्योंकि
भारत को स्वर्ग भी तुम बनाते हो। ऐसे नहीं कि लक्ष्मी-नारायण भारत को स्वर्ग बनाते
हैं। यह तो बाप बनाते हैं ब्राह्मणों द्वारा न कि देवताओं द्वारा। पुरानी दुनिया
में आकर बाप को नई सृष्टि रचनी है। बेहद के बाप ने नया मकान स्वर्ग बनाया। नई चीज़
को पुराना तो होना ही है। लौकिक बाप भी नया मकान बनाते हैं तो जरूर पुराना होगा। ऐसे
नहीं कि बाप ने पुराना किया। सतोप्रधान से तमोप्रधान हर चीज़ जरूर बनेगी। वैसे ही
सारी सृष्टि भी नई से पुरानी होगी जरूर। अब देह के सब धर्म आदि छोड़ो अपने को आत्मा
समझो। बाप सभी बच्चों के लिए कहते हैं कि अब खेल पूरा होता है। अब घर चलना है। भूल
तो नहीं गये हो। मैं तुमको सहज राजयोग सिखलाने आया हूँ। तुम हम 5 हजार वर्ष पहले भी
मिले थे। मैने तुमको राजयोग सिखलाया था। याद है ना। भूल तो नहीं गये हो? मैं
कल्प-कल्प तुमको आकर बादशाही देता हूँ। तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बनाता हूँ। बच्चे
कहते हैं बाबा इस चक्र से छूट नहीं सकते? बाप कहते नहीं। यह सृष्टि चक्र तो अनादि
है। अगर चक्र से छूट जाएं फिर तो दुनिया ही खत्म हो जाए। यह चक्र तो जरूर फिरना है।
मैं फिर से आया हूँ। कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता ही रहता हूँ। उन्होंने सिर्फ
युगे-युगे लिख दिया है। कहते भी हैं कि पतित-पावन आओ, पावन बनाओ। सुखधाम में ले चलो।
पतित दुनिया में तो दु:ख ही दु:ख है। अच्छा मेरे पास तो दो धाम हैं। कहाँ चलेंगे?
बाप कहते हैं – सुखधाम में तो बहुत सुख है। और मुक्तिधाम में जायेंगे तो भी पार्ट
में तो आना जरूर है। परन्तु जब स्वर्ग पूरा हो जायेगा तब उतरेंगे। स्वर्ग में नहीं
आयेंगे? क्या तुमको स्वर्ग की इच्छा नहीं है? तुम नर्क में माया के राज्य में ही आने
चाहते हो? उस समय भी पहले सतो होगा फिर रजो, तमो होगा। जो पवित्र आत्मा आती है वह
पहले दु:ख पा न सके। आने से ही थोड़ेही पाप करेंगे। परन्तु आत्मा को सतो रजो तमो से
पास करना है। इस चक्र को भी समझना है। अभी तुम फाइनल अवस्था में नहीं जा सकेंगे।
स्कूल में भी 12 मास के बाद इम्तहान फाइनल होता है ना। अन्त में तुम्हारी अवस्था
परिपक्व होगी। बहुत वृद्धि को पायेंगे। कितने सेन्टर्स खुले हैं। सेन्टर्स के लिए
तो बहुत कहते हैं। परन्तु टीचर्स इतनी तैयार नहीं हैं। फर्स्टक्लास शिफ्ट होती है –
अमृतवेला। कोई सवेरे नहीं आ सकते हैं तो लाचारी हालत में शाम को भी आवें। स्कूल में
भी अभी दो बार शिफ्ट होती हैं। अच्छा – बच्चों ने समझा।
बाप सभी सेन्टर्स के बच्चों को समझा रहे हैं। बच्चे रात को अपना रोज़ पोतामेल
निकालो। तो आज हमारा रजिस्टर खराब तो नहीं हुआ? कोई भूल तो नही की? फिर बाप से माफी
लेनी चाहिए। शिवबाबा हमको माफ करना। आप कितने मीठे हो। भगवान कहते हैं कि मैं तुमको
मास्टर भगवान भगवती बनाता हूँ, स्वर्ग का। तो मेरी आज्ञा मानों ना। नम्बरवन फरमान
है कि देही-अभिमानी बनो। विकार में मत जाना। यह महा दुश्मन है। इन पर जीत न पाई तो
पद भ्रष्ट हो, कुल कलंकित बन जायेंगे। माया बड़ी प्रबल है। लड़ाई है दीवे और तूफान
की। इसमें तो बहादुरी दिखानी पड़े। हम बाप के बने हैं फिर यह माया कैसे विघ्न डाल
सकती है। हाँ तूफान तो मचायेगी परन्तु कर्मेन्द्रियों से कभी कोई विकर्म नहीं करना
है। बहुत ऊंच पद मिलता है ना। कुछ ख्याल भी करो। तुम किसको कहेंगे कि हम नर से
नारायण बनने के लिए पढ़ते हैं तो सब हंसी उड़ायेंगे। यहाँ तो धारणा चाहिए। यहाँ
तुमको पक्का करना है कि मैं तो आत्मा हूँ, आत्मा हूँ तब ही सतोप्रधान बन बाप के पास
जायेंगे फिर बाप स्वर्ग में भेज देंगे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों प्रति बापदादा का याद-प्यार
और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना रजिस्टर खराब न हो इसका ध्यान रखना है। बाप की आज्ञा मान
देही-अभिमानी बनना है। कर्मेन्द्रियों से कोई भी भूल नहीं करनी है।
2) सर्वगुण सम्पन्न बनने के लिए कर्मेन्द्रियों से ऐसा कोई पाप कर्म न हो जाए
जिसका विकर्म बन जाये। पुराना हिसाब-किताब चुक्तू करना है।