22-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - बाबा आया है तुम बच्चों से दान लेने, तुम्हारे पास जो भी पुराना किचड़ा है, उसे दान दे दो तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे''

प्रश्नः-
पुण्य की दुनिया में चलने वाले बच्चों प्रति बाप की श्रीमत क्या है?

उत्तर:-
मीठे बच्चे - पुण्य की दुनिया में चलना है तो सबसे ममत्व मिटाओ। 5 विकारों को छोड़ो। इस अन्तिम जन्म में ज्ञान चिता पर बैठो। पवित्र बनो तो पुण्य आत्मा बन पुण्य की दुनिया में चले जायेंगे। ज्ञान-योग को धारण कर अपनी दैवी चलन बनाओ। बाप से सच्चा सौदा करो। बाप तुम्हारे से लेते कुछ नहीं, सिर्फ ममत्व मिट जाये, उसकी युक्ति बताते हैं। बुद्धि से सब बाप हवाले कर दो।

गीत:-
इस पाप की दुनिया से....

ओम् शान्ति। दुनिया के मनुष्य वा रावणराज्य के मनुष्य पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ। पावन दुनिया अथवा पुण्य की दुनिया में ले चलो। गीत बनाने वालों को इन बातों की समझ नहीं है। पुकारते हैं - रावणराज्य से रामराज्य में ले चलो, परन्तु अपने को कोई पतित समझते नहीं हैं। अपने बच्चों के पास तो सम्मुख बाप बैठे हैं। रामराज्य में ले चलने के लिए, श्रेष्ठ बनने के लिए श्रीमत दे रहे हैं। भगवानुवाच - राम भगवानुवाच नहीं। भगवान तो निराकार है। निराकारी, आकारी, साकारी तीन दुनियायें हैं ना। निराकार परमात्मा निराकारी बच्चों (आत्माओं) के साथ निराकारी दुनिया में रहने वाले हैं। अभी बाबा आया हुआ है - स्वर्ग का राज्य भाग्य देने, हमको पुण्य आत्मा बनाने। रामराज्य माना दिन, रावण राज्य माना रात। यह बातें और कोई नहीं जानते। तुम्हारे में भी कोई विरला जानते है। इस ज्ञान के लिए भी पवित्र बुद्धि चाहिए। मूल बात है याद की। अच्छी चीज़ हमेशा याद रहती है। तुमको पुण्य क्या करना है? तुम्हारे पास जो किचड़ा है वह मेरे हवाले कर दो। मनुष्य जब मरते हैं तो उसके बिस्तर कपड़े आदि सब करनी-घोर को देते हैं। वह दूसरे किसम के ब्राह्मण होते हैं। अब बाबा आया है, तुम्हारे से दान लेने के लिए। यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर सब कुछ सड़ा हुआ है। यह मुझे दे दो और इससे ममत्व मिटाओ। भल 10-20 करोड़ हैं। परन्तु बाप कहते हैं इनसे बुद्धि निकालो। बदले में तुमको सब कुछ नई दुनिया में मिलेगा, कितना यह सस्ता सौदा है। बाप कहते हैं जिनमें मैंने प्रवेश किया है, उसने सब सौदा किया। अब देखो - उसके बदले कितना राज्य-भाग्य मिलता है। कुमारियों को तो कुछ देना ही नहीं है। वर्सा मिलता है बच्चों को तो उनको मिलकियत का नशा रहता है। आजकल स्त्री को हाफ पार्टनर थोड़ेही बनाते हैं, सारा बच्चों को ही देते हैं। पुरुष मर जाता है तो स्त्री को कोई पूछता भी नहीं। यहाँ तो तुम बाप से फुल वर्सा लेते हो। यहाँ तो कोई मेल फीमेल का सवाल ही नहीं। सब वर्से के अधिकारी हैं। माताओं, कन्याओं को तो और ही हक जास्ती मिलता है क्योंकि कन्याओं का लौकिक बाप के वर्से में ममत्व नहीं है। वास्तव में तुम सब कुमार कुमारियाँ हो गये। बाप से कितना वर्सा पाया है। एक कहानी है - राजा ने बच्चियों से पूछा - किसका खाती हो? तो एक ने कहा अपने भाग्य का। तो राजा ने उसको निकाल दिया। वह बाप से भी साहूकार हो गई, बाप को निमंत्रण दिया, पूछा अब किसका खाती हूँ, देखो। तो बाप भी कहते हैं बच्चे, तुम सब अपनी तकदीर बनाते हो।

देहली में एक ग्राउण्ड है, नाम रखा है रामलीला ग्राउण्ड। वास्तव में नाम रखना चाहिए रावण लीला क्योंकि इस समय सारे विश्व में रावण लीला चल रही है। बच्चों को रामलीला ग्राउण्ड लेकर - उसमें चित्र लगाने चाहिए। एक तरफ राम का चित्र हो और नीचे बड़ा रावण का भी चित्र हो। बहुत बड़ा गोला हो। बीच में लिख देना चाहिए - यह राम राज्य, यह रावण राज्य। तो समझ जायें। देवताओं की देखो कितनी महिमा है - सर्वगुण सम्पन्न....। आधाकल्प है कलियुगी भ्रष्टाचारी, रावणराज्य... उसमें सभी आ जाते हैं। अब रावण राज्य का अन्त तो राम ही करेंगे। इस समय रामलीला है नहीं, सारी दुनिया में रावण लीला है। रामलीला होती है सतयुग में। लेकिन सभी अपने को बड़ा अक्लमंद समझते हैं। श्री श्री का टाइटिल रखाते हैं - यह टाइटिल तो है निराकार परमपिता परमात्मा का, जिस द्वारा श्री लक्ष्मी-नारायण भी राज्य पाते हैं। अब बाबा आया है, तुमको भक्ति रूपी अंधकार से छुड़ाकर सोझरे में ले जाते हैं। जिनमें ज्ञान-योग होगा उनकी चलन भी दैवी होगी। आसुरी चलन वाले किसका भी कल्याण नहीं कर सकते। झट मालूम पड़ जाता है इसमें आसुरी अवगुण हैं या दैवीगुण! अभी तक कोई सम्पूर्ण तो है नहीं। अभी बनते जाते हैं तो बाबा तो दाता है, तुमसे क्या लेंगे। जो कुछ लेते हैं वह तुम्हारी सेवा में लगा देते हैं। बाबा ने इनको भी सरेन्डर कराया - भट्ठी बनानी है, बच्चों की पालना करनी है। पैसे बिगर इतनों की पालना कैसे होगी। पहले बाबा ने इनको अर्पण कराया फिर जो आये उनको भी अर्पण करवाया। परन्तु सभी की एक-रस अवस्था तो बनी नहीं, बहुत चले भी गये। (बिल्ली के पूंगरों की कहानी) नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सब पक कर निकले। बाबा तो पुण्य की दुनिया में ले चलते हैं। सिर्फ कहते हैं 5 विकारों को छोड़ो। हम तुमको प्रिन्स-प्रिन्सेज बनायेंगे। ब्रह्मा का साक्षात्कार घर बैठे बहुतों को हो जाता है। वहाँ से लिखकर भेज देते हैं - बाबा हम आपके बन गये हैं, हमारा सब कुछ आपका है। बाबा कुछ लेते नहीं। बाबा कहते हैं सब कुछ अपने पास रखो। यहाँ मकान बनाते हैं, कोई पूछते हैं पैसा कहाँ से लाया। अरे इतने ढेर बच्चे हैं, बाबा को। प्रजापिता ब्रह्मा का नाम सुना है ना। कहते हैं सिर्फ ममत्व मिटाओ, तुम्हें वापिस जाना है। बाबा को याद करो। हमको भगवान पढ़ाते हैं तो खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए। लक्ष्मी-नारायण को भगवान नहीं कहेंगे, देवी-देवता कहेंगे। भगवान के पास भगवती होती नहीं। कितनी युक्ति की बात है। सिवाए सम्मुख यह बातें कोई समझ न सके। गाते भी हैं त्वमेव माताश्च पिता... ज्ञान न होने के कारण लक्ष्मी-नारायण के आगे, हनूमान के आगे, गणेश के आगे भी जाकर यह महिमा गाते हैं। अरे वह तो साकारी थे, उनको अपने बच्चे ही मात-पिता कहेंगे। तुम उनके बच्चे हो कहाँ? तुम तो रावण के राज्य में हो। यह ब्रह्मा भी माता है। इन द्वारा बाबा कहते हैं तुम मेरे बच्चे हो। परन्तु माताओं, कन्याओं को सम्भालने वाली माता चाहिए। एडाप्टेड बच्ची है - बी.के.सरस्वती। कितनी गुह्य बातें हैं। बाबा जो ज्ञान देते हैं वह कोई भी शास्त्रों में नहीं है। भारत का एक मुख्य शास्त्र है गीता, उसमें ज्ञान के पढ़ाई की बातें हैं। उसमें चरित्र की कोई बात नहीं। ज्ञान से मर्तबा मिलता है।

बाबा जादूगर है। तुम गाते हो रत्नागर, जादूगर... तुम्हारी झोली भरती है स्वर्ग के लिए। साक्षात्कार तो भक्ति मार्ग में भी करते हैं, परन्तु उनसे कुछ लाभ नहीं। लिखेंगे, पढेंगे... साक्षात्कार से तुम कोई वह बन गये क्या? साक्षात्कार मैं कराता हूँ। पत्थर की मूर्ति थोड़ेही साक्षात्कार करायेगी। नौंधा भक्ति में भावना तो शुद्ध रखते हैं। उनका उजूरा मैं देता हूँ, परन्तु तमोप्रधान तो बनना ही है। मीरा ने साक्षात्कार किया परन्तु ज्ञान तो कुछ भी नहीं था। मनुष्य तो दिन प्रतिदिन तमोप्रधान होते जायेंगे। अभी तो सभी मनुष्य पतित हैं। गाते भी हैं हमें ऐसी जगह ले चलो, जहाँ सुख चैन पायें।

तुम भारतवासियों को सतयुग में बहुत सुख था। सतयुग का नाम बाला है ना। स्वर्ग भारत में ही था - परन्तु समझते नहीं हैं। यह भी जानते हैं भारत ही प्राचीन था, स्वर्ग था। वहाँ कोई और धर्म नहीं था। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। तुम सभी अब श्रवण कुमार और कुमारियाँ बनते हो। तुम सबको ज्ञान की कवांठी (कांवर) पर बिठाते हो। तुमको सब मित्र-सम्बन्धियों को ज्ञान दे उठाना है। बाबा के पास युगल भी आते हैं। आगे तो जिस्मानी ब्राह्मण से हथियाला बंधवाते थे। अभी तुम रूहानी ब्राह्मण काम चिता का हथियाला तोड़ते हो। बाबा के पास आते हैं तो बाबा पूछते हैं - स्वर्ग में चलेंगे। कोई कहते हैं हमको स्वर्ग यहाँ ही है। अरे यह अल्पकाल का स्वर्ग है। मैं तुमको 21 जन्म के लिए स्वर्ग दूँगा, परन्तु पहले पवित्र रहना पड़ेगा। बस, इस ही बात में ढीले पड़ जाते हैं। अरे बेहद का बाप कहते हैं - तो यह अन्तिम जन्म ज्ञान चिता पर बैठो। तो देखा जाता है स्त्रियाँ झट आ जाती हैं। कोई फिर कहती हैं पति परमेश्वर को नाराज़ कैसे करें।

बाबा के बने तो कदम-कदम पर श्रीमत पर चलना पड़े। अब बाबा आया है, स्वर्ग का मालिक बनाने। पवित्र बनना अच्छा है। कुल कलंकित मत बनो। बाप कहेंगे ना! लौकिक बाप तो चमाट भी मारेंगे। मम्मा मीठी होती है। बहुत मीठा रहमदिल बनना है। बाप कहते हैं बच्चे, तुम मुझे बहुत गालियाँ देते हो। अब मैं अपकारी पर भी उपकार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा रावण मत पर यह हाल हुआ है। जो सेकेण्ड पास हुआ वह ड्रामा। परन्तु आगे के लिए खबरदार रहना कि हमारा खाता खराब न हो। हर एक को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाना है। मुरली कोई मिस नहीं करनी चाहिए। कोई प्वाइंट्स मिस न हो जाएं। अच्छे-अच्छे ज्ञान रत्न निकल जायें और सुनें नहीं तो धारणा कैसे करेंगे। रेग्युलर स्टूडेन्ट मुरली कभी मिस नहीं करेंगे। कोशिश कर रोज़ वाणी पढ़नी चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना खाता खराब न हो, इसके लिए बहुत खबरदार रहना है। कभी कुल कलंकित नहीं बनना है। पढ़ाई रोज़ पढ़नी है, मिस नहीं करनी है।

2) श्रवणकुमार-कुमारी बन ज्ञान कवांठी (कांवर) पर सबको बिठाना है। मित्र-सम्बन्धियों को भी ज्ञान दे उनका कल्याण करना है।

रदान:-
अपने आक्यूपेशन की स्मृति द्वारा मन को कन्ट्रोल करने वाले राजयोगी भव

अमृतवेले तथा सारे दिन में बीच-बीच में अपने आक्यूपेशन को स्मृति में लाओ कि मैं राजयोगी हूँ। राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। राजयोगी माना राजा, उसमें कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पावर होती है। वह एक सेकण्ड में मन को कन्ट्रोल कर सकते हैं। वह कभी अपने संकल्प, बोल और कर्म को व्यर्थ नहीं गंवा सकते। अगर चाहते हुए भी व्यर्थ चला जाता है तो उसे नॉलेजफुल वा राजा नहीं कहेंगे।

स्लोगन:-
स्व पर राज्य करने वाले ही सच्चे स्वराज्य अधिकारी हैं।

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य - “इस अविनाशी ज्ञान पर अनेक नाम धरे हैं''

इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान पर अनेक नाम धरे गये हैं (रखे गये हैं)। कोई इस ज्ञान को अमृत भी कहते हैं, कोई ज्ञान को अंजन भी कहते हैं। गुरुनानक ने कहा ज्ञान अंजन गुरू दिया, कोई ने फिर ज्ञान वर्षा भी कहा है क्योंकि इस ज्ञान से ही सारी सृष्टि सब्ज (हरी भरी) बन जाती है। जो भी तमोप्रधान मनुष्य हैं वो सतोगुणी मनुष्य बन जाते हैं और ज्ञान अंजन से अन्धियारा मिट जाता है। इस ही ज्ञान को फिर अमृत भी कहते हैं जिससे जो मनुष्य पाँच विकारों की अग्नि में जल रहे हैं उससे ठण्डे हो जाते हैं। देखो गीता में परमात्मा साफ कहते हैं कामेषु क्रोधेषु उसमें भी पहला मुख्य है काम, जो ही पाँच विकारों में मुख्य बीज है। बीज होने से फिर क्रोध लोभ मोह अहंकार आदि झाड़ पैदा होता है, उससे मनुष्यों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अब उस ही बुद्धि में ज्ञान की धारणा होती है, जब ज्ञान की धारणा पूर्ण बुद्धि में हो जाती है तब ही विकारों का बीज खत्म हो जाता है। बाकी संन्यासी तो समझते हैं विकारों को वश करना बड़ी कठिन बात है। अब यह ज्ञान तो संन्यासियों में है ही नहीं। तो ऐसी शिक्षा देवें कैसे? सिर्फ ऐसे ही कहते हैं कि मर्यादा में रहो। परन्तु असुल मर्यादा कौनसी थी? वो मर्यादा तो आजकल टूट गई है, कहाँ वो सतयुगी, त्रेतायुगी देवी देवताओं की मर्यादा जो गृहस्थ में रहकर कैसे निर्विकारी प्रवृत्ति में रहते थे। अब वो सच्ची मर्यादा कहाँ है? आजकल तो उल्टी विकारी मर्यादा पालन कर रहे हैं, एक दो को ऐसे ही सिखलाते हैं कि मर्यादा में चलो। मनुष्य का पहला क्या फर्ज है, वो तो कोई नहीं जानता, बस इतना ही प्रचार करते हैं कि मर्यादा में रहो, मगर इतना भी नहीं जानते कि मनुष्य की पहली मर्यादा कौनसी है? मनुष्य की पहली मर्यादा है निर्विकारी बनना, अगर कोई से ऐसा पूछा जाए तुम इस मर्यादा में रहते हो? तो कह देते हैं आजकल इस कलियुगी सृष्टि में निर्विकारी होने की हिम्मत नहीं है। अब मुख से कहना कि मर्यादा में रहो, निर्विकारी बनो, इससे तो कोई निर्विकारी बन नहीं सकता। निर्विकारी बनने के लिये पहले इस ज्ञान तलवार से इन पाँच विकारों के बीज को खत्म करना तब ही विकर्म भस्म हो सकेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।