04-03-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 16-11-95 का शेष भाग मधुबन
"स्वप्न मात्र भी लगाव मुक्त बनो"
बापदादा को तो अपने टी.वी. में बहुत नई-नई बातें दिखाई देती हैं। अभी 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं तो अब तक जो बातें नहीं हुई थी वो नये-नये खेल भी बहुत दिखाई देते हैं। इस सीज़न में एक-एक करके वर्णन करेंगे। लेकिन याद रखना अगर किसी के प्रति भी स्वप्न मात्र भी लगाव हो, स्वार्थ हो तो स्वप्न में भी समाप्त कर देना। कई कहते हैं कि हम कर्म में नहीं आते लेकिन स्वप्न आते हैं। लेकिन अगर कोई व्यर्थ वा विकारी स्वप्न, लगाव का स्वप्न आता है तो अवश्य सोने के समय आप अलबेलेपन में सोये। कई कहते हैं कि सारे दिन में मेरा कोई संकल्प तो चला ही नहीं, कुछ हुआ ही नहीं फिर भी स्वप्न आ गया। तो चेक करो-सोने समय बापदादा को सारे दिन का पोतामेल देकर, खाली बुद्धि हो करके नींद की? ऐसे नहीं कि थके हुए आये और बिस्तर पर गये और गये -ये अलबेलापन है। चाहे विकर्म नहीं किया और संकल्प भी नहीं किया लेकिन ये अलबेलेपन की सज़ा है। क्योंकि बाप का फरमान है कि सोते समय सदा अपने बुद्धि को क्लीयर करो, चाहे अच्छा, चाहे बुरा, सब बाप के हवाले करो और अपने बुद्धि को खाली करो। दे दिया बाप को और बाप के साथ सो जाओ, अकेले नहीं। अकेले सोते हो ना तभी स्वप्न आते हैं। अगर बाप के साथ सोओ तो कभी ऐसे स्वप्न भी नहीं आ सकते। लेकिन फरमान को नहीं मानते हो तो फरमान के बदले अरमान मिलता है। सुबह को उठकर के दिल में अरमान होता है ना कि मेरी पवित्रता स्वप्न में खत्म हो गई। ये कितना अरमान है! कारण है अलबेलापन। तो अलबेले नहीं बनो। जैसे आया वैसे यहाँ वहाँ की बातें करते-करते सो जाओ, क्योंकि समाचार तो बहुत होते हैं और दिलचश्प समाचार तो व्यर्थ ही होते हैं। कई कहते हैं-और तो टाइम मिलता ही नहीं, जब साथ में एक कमरे में जाते हैं तो लेन-देन करते हैं। लेकिन कभी भी व्यर्थ बातों का वर्णन करते-करते सोना नहीं, ये अलबेलापन है। ये फरमान को उल्लंघन करना है। अगर और टाइम नहीं है और जरूरी बात है तो सोने वाले कमरे में नहीं, लेकिन कमरे के बाहर दो सेकण्ड में एक-दो को सुनाओ, सोते-सोते नहीं सुनाओ। कई बच्चों की तो आदत है, बापदादा तो सभी को देखते हैं ना कि सोते कैसे हैं? एक सेकण्ड में बापदादा सारे विश्व का चक्कर लगाते हैं, और टी.वी. से देखते हैं कि सो कैसे रहे हैं, बात कैसे कर रहे हैं ... सब बापदादा देखते हैं। बापदादा को तो एक सेकण्ड लगता है, ज्यादा टाइम नहीं लगता। हर एक सेन्टर, हर एक प्रवृत्ति वाले सबका चक्कर लगाते हैं। ऐसे नहीं सिर्फ सेन्टर का, आपके घरों का भी टी.वी. में आता है। तो जब आदि अर्थात् अमृतवेला और अन्त अर्थात् सोने का समय अच्छा होगा तो मध्य स्वत: ही ठीक होगा। समझा? और बातें करते-करते कई तो बारह साढ़े बारह भी बजा देते हैं। मस्त होते हैं, उनको टाइम का पता ही नहीं। और फिर अमृतवेले उठकर बैठते हैं तो आधा समय निद्रालोक में और आधा समय योग में। क्योंकि जो अलबेले होकर सोये तो अमृतवेला भी तो अलबेला होगा ना! ऐसे नहीं समझना कि हमको तो कोई देखता ही नहीं है। बापदादा देखता है। यह निद्रा भी बहुत शान्ति वा सुख देती है, इसीलिए मिक्स हो जाता है। अगर पूछेंगे तो कहेंगे-नहीं, मैं बहुत शान्ति का अनुभव कर रहा था। देखो, नींद को भी आराम कहा जाता है। अगर कोई बीमार भी होता है तो डॉक्टर लोग कहते हैं - आराम करो। आराम क्या करो? नींद करो टाइम पर। तो निद्रा भी आराम देने वाली है। फ़्रेश तो करती है ना। तो नींद से फ़्रेश होकर उठते हैं ना तो कहते हैं आज (योग में) बहुत फ़्रेश हो गये। अच्छा!
सभी दूर-दूर से आये हैं। जो इस ग्रुप में पहली बारी आये हैं वो हाथ उठाओ। जो छोटे बच्चे होते हैं ना वो बड़ों से और ही प्यारे होते हैं। लेकिन जो नये-नये आये हो वो मेकप करना। जो बड़ों ने 10 साल में किया वो आप 10 दिन में करना। और कर सकते हो क्योंकि बापदादा समझते हैं कि जब नये नये आते हैं ना तो उमंग-उत्साह बहुत होता है और जितने पुराने होते हैं तो..... समझ गये पुराने! इसलिए कहने की जरूरत क्या है! सभी नये, चाहे कुमारियाँ हैं, चाहे कुमार हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं, प्रवृत्ति वालों को तो इन सभी महात्माओं को चरणों में झुकाना है। सब आपके गुण गायेंगे कि ये प्रवृत्ति में रहते भी निर्विघ्न पवित्रता के बल से आगे बढ़ रहे हैं। एक दिन आयेगा जो आप सबके आगे ये महात्मायें झुकेंगे। लेकिन अपना वायदा याद रखना-लगाव मुक्त रहना। अच्छा।
टीचर्स से - टीचर्स तो हर बात के निमित्त है। हो ना निमित्त-ये बात पक्की है ना! टीचर्स का अर्थ ही है निमित्त। तो अभी भी इस वर्ष - लगाव मुक्त बनने में टीचर्स नम्बर वन निमित्त बनें। ठीक है! पक्का! ताली बजाओ। बापदादा भी आप टीचर्स के प्रति विशेष ताली बजाता है। अच्छा।
कुमारियाँ - कुमारियाँ हाथ उठाओ। कुमारियाँ क्या करेंगी? कुमारियों को अपने जीवन का स्वयं, स्वयं का मित्र बन निर्बन्धन बनाने में नम्बरवन जाना चाहिए। इन कुमारियों की लिस्ट इकट्ठी करो फिर देखेंगे कि सचमुच कितनी निर्बन्धन बनती हैं? कुमारयाँ अगर समझती हो कि हम निर्बन्धन होकर सेवा में निमित्त बनेंगी तो हाथ उठाओ। इन्हों की ट्रेनिंग रखेंगे। अभी तो ज्ञान सरोवर में भी रखते हैं। तो कुमारियाँ क्या बनेंगी? निर्बन्धन। न मन का बन्धन, न सम्बन्ध का बन्धन। डबल बन्धन से मुक्त। अच्छा।
कुमार - कुमार हाथ उठाओ। कुमार तो बहुत हैं। तो कुमार क्या विशेषता दिखायेंगे? कुमार ऐसे अपने को तैयार करो-चाहे अपने-अपने स्थान पर हो लेकिन जहाँ भी हो वहाँ अपने को ऐसा तैयार करो जो आपका 400-500 का ग्रुप बना करके गवर्नमेंट के इन बड़े लोगों से मिलायें कि देखो कि ये इतने यूथ विश्व की सेवा के लिए या भारत की सेवा के लिए डिस्ट्रक्शन का काम न कर, कन्स्ट्रक्शन का काम कर रहे हैं। तो ऐसा ग्रुप बनाओ। तो कितने टाइम में अपने को तैयार करेंगे? क्योंकि गवर्नमेंट यूथ को आगे रखना चाहती है लेकिन उनको ऐसे यूथ मिलते नहीं हैं और बाप के पास तो हैं ना! तो ऑलमाइटी गवर्नमेंट इस हलचल वाली गवर्नमेंट के आगे एक प्रैक्टिकल मिसाल दिखा सकती है। लेकिन कच्चे नहीं होने चाहिए। ऐसा नहीं, आप कहो हम तो बहुत अच्छे चलते हैं और आपके साथी जो हैं वो रिपोर्ट करें कि नहीं, ये तो ऐसे ही कहता है। ऐसे नहीं। पवित्रता के लिए बिगड़ते हैं वो बात अलग है लेकिन दिव्यगुणों की धारणा में आपका प्रभाव घर वालों के ऊपर पड़ना चाहिए। समझा? तो जो समझते हैं हम डायमण्ड जुबली तक तैयार हो जायेंगे वो हाथ उठाओ। अभी थोड़े कम हो गये। अच्छा, टीचर्स रिपोर्ट देना इस डायमण्ड जुबली के बीच में, एण्ड में नहीं। गवर्नमेंट को यूथ दिखायें। अभी तो 8 मास हैं। तो आठ मास ठीक है।
अधरकुमार-कुमारियाँ - अधरकुमार-कुमारियाँ क्या करेंगे? वैसे प्रवृत्ति वालों को एक नया सबूत देना चाहिए। जो घर में हैं, आपकी फैमली है, किसके चार बच्चे होंगे, किसके आठ होंगे, किसके दो होंगे, जो भी हैं लेकिन हर प्रवृत्ति वाले अपने बच्चों को ऐसे मूल्य सिखाकर तैयार करें जो बच्चों का ऐसा धारणा वाला ग्रुप सैम्पुल हो, जो कॉलेज-स्कूल के पढ़े हैं, उनके आगे उन बच्चों को दिखायें। प्रवृत्ति वालों को अपने बच्चों के ग्रुप को तैयार करना चाहिए। जो किसी से भी रिपोर्ट पूछें चाहे उसके टीचर्स से पूछें, चाहे उसके मोहल्ले के दोस्तों से पूछे, सब उसकी रिपोर्ट अच्छी देवें। ऐसे नहीं - आप कहो बहुत अच्छे हैं और टीचर कहे कि ये तो पढ़ते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं। तो प्रवृत्ति वालों को ऐसे बच्चे तैयार करने चाहिए। ज्ञान में आते हैं, अच्छे भी हैं लेकिन उन्हों को थोड़ा और अटेन्शन दिलाकर ऐसा ग्रुप तैयार करो। तो एज्युकेशन का सर्टिफिकेट वो बच्चे हो जायेंगे। नहीं तो एज्युकेशन वाले कहते हैं ना आप सर्टिफिकेट नहीं देते हो। तो आप कहो सर्टिफिकेट देखो ये चैतन्य है। आप कागज का सर्टिफिकेट देते हो, हम आपको चैतन्य का सर्टिफिकेट दिखाते हैं। समझा? ऐसे ही डायमण्ड जुबली नहीं मनानी है। डायमण्ड जुबली में कुछ नवीनता दिखानी है। जो गवर्नमेंट की आँख खुले कि ये क्या है! किसी कार्य में वो ना कर नहीं सके। और ही ऑफर करें, जैसे यहाँ जब महामण्डलेश्वर आये थे तो उन्हों ने क्या ऑफर की? कि हमारे आश्रम ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ चलायें। ऐसे मांगनी की थी ना! तो सभी डिपार्टमेन्ट ऑफर करें कि हमारे डिपार्टमेन्ट में आप लोग ही कर सकते हैं। ऐसा प्रैक्टिकल स्वरूप करना - ये है डायमण्ड जुबली। लेकिन पहला वायदा याद है? क्या बनना है? (लगाव मुक्त) तभी ये सभी हो सकता है। अभी भी बच्चे को मारते रहेंगे तो बच्चा कैसे अच्छा होगा। और आपस में कमज़ोर होते रहेंगे तो महात्मा कैसे चरणों में आयेंगे। जितना-जितना पवित्रता के पिल्लर को पक्का करेंगे उतना-उतना ये पवित्रता का पिल्लर लाइट हाउस का काम करेगा। अच्छा।
डबल विदेशी - डबल विदेशियों में बापदादा को उसमें भी विशेष ब्रह्मा बाप को डबल प्यार है। क्यों डबल प्यार है बताओ? समझते हो डबल प्यार है? क्यों डबल प्यार है? ( लौकिक-अलौकिक डबल काम करते हैं) अच्छा जवाब दिया। लेकिन और भी है, ब्रह्मा बाबा को डबल विदेशियों से विशेष प्यार इसलिए है कि ब्रह्मा बाप हर कार्य में क्विक एक्ज़ाम्पल स्वयं भी रहे और बच्चों को भी बनाया तो डबल विदेशी आते ही कोर्स किया, थोड़ा-सा पक्के हुए और सेन्टर खोल देते हैं। ऐसे करते हो ना? इन्हों की तो बहुत ट्रेनिंग होती है, लेकिन डबल विदेशी सेवा में क्विक एक्ज़ाम्पल हैं। तो ब्रह्मा बाबा को ऐसे बच्चों का बहुत समय से आव्हान था कि ऐसे बच्चे निकलें। तो डबल विदेशी सेवा में ज्यादा टाइम नहीं लगाते। जल्दी लग जाते हैं। कितना भी बिज़ी होते हुए भी सेवा का शौक अच्छा रहता है। अभी भी ये म्यूजियम बनाने के लिए आये हैं। (ज्ञान सरोवर में 5 डबल विदेशी भाई-बहिनें म्यूजियम बना रहे हैं) देखो डबल विदेशियों की विशेषता है तब तो विदेश से खास आप लोगों को बुलाया है। विशेषता तो है ना! ये पूरा ग्रुप अच्छा है। देखो, विशेष आत्मायें हो गये ना, विशेष कार्य के लिए आपको बुलाया गया तो विशेष आत्मायें हो गये। वैसे बापदादा को तो अच्छे लगते ही हो। शिव बाबा को भी अच्छे लगते हो लेकिन ब्राह्मण परिवार को भी अच्छे लगते हो। आप लोगों को देखते हैं ना तो यहाँ भारत वालों को भी नशा रहता है कि देखो हमारा सिर्फ भारत में नहीं, विश्व में है। तो सभी के सिकीलधे हो। अच्छा।
म्यूजियम बनाने वाले ग्रुप को बापदादा ने सम्मुख बुलाया - ये भी ड्रामानुसार विशेष वरदाता का वरदान मिलता है। कोई भी आर्ट है तो आर्ट वरदान समझकर कार्य में लगाओ। ये बाप का वरदान ड्रामानुसार विशेष निमित्त बना है तो उससे कार्य सहज और सफल हुआ ही पड़ा है। ऐसे है ना? तो विशेष वरदानी आत्मायें हैं, उसको उसी विशेषता से कार्य में लगाते रहो। बाप का वरदान है - यह सदा स्मृति में रहे। तो आपके सिर्फ हाथ काम नहीं करेंगे लेकिन बाप की शक्ति आपके हाथों के साथ काम करेगी। बहुत अच्छा है। अच्छा।
चारों ओर के दिल में समाये हुए बापदादा के सिकीलधे श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के हर एक फरमान मानने से, स्वयं का और औरों का भी अरमान समर्पित कराने वाले, सदा पवित्रता के पिल्लर को मज़बूत बनाने वाले और पवित्रता की लाइट, लाइट हाउस बन फैलाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं को लगावमुक्त बनाने वाले बाप के समीप आने वाले, रहने वाले सभी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदेश में रहने वाले चारों ओर के बच्चों को बापदादा का विशेष याद-प्यार क्योंकि वो यादप्यार के पत्र सदा ही भेजते रहते हैं। जिन्हों ने पत्र भेजा है उन्हों को भी विशेष याद और जिन्हों ने दिल से याद प्यार भेजा है उन्हों को भी विशेष यादप्यार।
वरदान:- सेवा के बंधन द्वारा कर्म-बन्धनों को समाप्त करने वाले विश्व सेवाधारी भव
प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है... लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दुख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो। विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी हैं विश्व सेवा अर्थ हैं।
स्लोगन:- अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहो तो आप पर किसी की व्यर्थ नज़र नहीं जा सकती।