01-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे
- बाप के साथ उड़ने के लिए कम्पलीट प्योर बनो, सम्पूर्ण सरेन्डर हो जाओ, यह देह
मेरी नहीं - बिल्कुल अशरीरी बनो''
प्रश्नः-
ऊंची मंजिल पर पहुँचने के लिए कौन सा डर निकल जाना चाहिए?
उत्तर:-
कई बच्चे माया के तूफानों से बहुत डरते हैं। कहते हैं बाबा तूफान बहुत हैरान
करते हैं इनको रोक लो। बाबा कहते बच्चे यह तो बॉक्सिंग है। उस बॉक्सिंग में भी
ऐसा नहीं एक ही ओर से वार होता रहे। अगर एक 10 थप्पड़ मारता तो दूसरा 5 जरूर
मारेगा, इसलिए तुम्हें डरना नहीं है। महावीर बन विजयी बनना है, तब ऊंची मंजिल
पर पहुँच सकेंगे।
गीत:-
दर पर आये हैं कसम लेके......
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। जरूर गीत में कोई रहस्य भरा हुआ है। जो रिकार्ड खरीद कर
बाप बैठ इनका अर्थ समझाते हैं। इसको कहा जाता है - जीते जी मरकर बाप का बनना।
बाप का बनने के बाद टीचर का बनना, टीचर के बाद फिर मैजारिटी गुरू करते हैं।
क्रिश्चियन लोग को भी जब बच्चा पैदा होता है तो क्रिश्चियनाइज़ करते हैं। गुरू
की गोद में जाकर देते हैं। फिर पादरी हो या कोई भी हो। पादरी तो क्राइस्ट नहीं
हुआ। कहेंगे उनके नाम पर हम क्रिश्चियन बनते हैं।
अभी तुम बच्चे पहले बाप के बनते हो, अशरीरी बनते हो। हमारा तन-मन-धन जो कुछ है
वह बाबा को अर्पण करते हैं। जीते जी मरते हैं अर्थात् हम आत्मा उनके बनते हैं।
यह बुद्धि में रहना है। जो भी मेरी वस्तु है, मेरा शरीर, मेरा धन, दौलत,
सम्बन्धी आदि जो कुछ हैं सबको भूलते हैं। मरने बाद सब भूल जाता है ना। कितनी बड़ी
मंजिल है। हम अशरीरी आत्मा हैं। यह पक्का करना है। ऐसे नहीं तुम शरीर छोड़ और
मर पड़ते हो। नहीं, आत्मा कम्पलीट पवित्र थोड़ेही बनी है। भल बाप के बने हो
परन्तु बाबा कहते हैं - तुम्हारी आत्मा अपवित्र है। आत्मा के पंख टूटे हुए हैं।
अभी आत्मा उड़ नहीं सकेगी। तमोप्रधान होने कारण एक भी मनुष्य वापिस जा नहीं सकते।
माया ने एकदम पंख तोड़ दिये हैं। बाबा ने समझाया है आत्मा सबसे तीखी जाती है।
उनसे तीखी चीज़ कोई होती नहीं। आत्मा से कोई पहुँच नहीं सकता। पिछाड़ी में
मच्छरों सदृश्य सब आत्मायें भागती हैं। कहाँ जाती हैं? बहुत दूर-दूर सूर्य चांद
से भी पार। वहाँ से फिर लौटना नहीं है। उन्हों के रॉकेट आदि तो जाकर फिर लौट आते
हैं। सूर्य तक तो पहुँच नहीं सकते। तुमको तो उनसे बहुत दूर जाना है। सूक्ष्मवतन
से ऊपर मूलवतन में जाना है। आत्मा को पंख मिल जाते हैं। हिसाब-किताब चुक्तू कर
आत्मा पवित्र बन जाती है। कयामत के समय की महिमा बहुत लिखी हुई है। सभी आत्माओं
को हिसाब-किताब चुक्तू कर जाना है। अभी तो सब आत्मायें मैली, पाप आत्मा हैं। भल
बड़े गुरू साधू-संन्यासी आदि हैं। समझते हैं हम गुरू हैं। अहम् ब्रह्मस्मि...अहम्
ब्रह्मोह्म। हम ब्रह्म में पहुँचे हुए हैं। अब बैठे हुए हैं यहाँ, ब्रह्म में
फिर कहाँ पहुँचे हुए हैं। अभी तुम जानते हो हम आत्मायें ब्रह्म में रहने वाली
हैं। परन्तु अभी वहाँ कोई भी जा नहीं सकते। सब आत्मायें यहाँ पुनर्जन्म लेती
हैं। यह बेहद का ड्रामा है। सब एक्टर्स को पार्ट बजाने वहाँ से आना जरूर है।
सबकी आत्मायें स्टेज पर आई हैं। जब विनाश का समय होता है तो सब आ जाते हैं, वहाँ
रहकर क्या करेंगे! एक्टर बिगर पार्ट बजाए घर में थोड़ेही बैठ जायेगा। नाटक में
जरूर आना पड़ेगा। वहाँ से जब सब चले आते हैं तब फिर बाप सबको ले जाते हैं। बाप
कहते हैं मैं भल यहाँ हूँ तो भी आत्मायें आती रहती हैं, वृद्धि को पाती रहती
हैं, नम्बरवार। फिर तुम जायेंगे भी नम्बरवार। सारा तुम्हारी अवस्था पर मदार है,
इसलिए तुम्हें मरजीवा बनना है। हम आत्मा हैं यह निश्चय करना मेहनत है। बच्चे
घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आकर भूल जाते हैं। देही-अभिमानी तब रहेंगे जब कम्पलीट
सरेन्डर होंगे, बाबा यह सब आपका है। मैं भी आपका हूँ। यह देह जैसेकि हमारी नहीं
है, इनको मैं छोड़ देता हूँ। बाबा मैं आपका हूँ। बाबा कहते हैं मेरा बन और सबसे
ममत्व मिटा दो। बाकी ऐसे नहीं कि यहाँ आकर बैठ जाना है। तुमको अपना धन्धाधोरी
करना है। घर सम्भालना है। बच्चे को कर्जा उतारना है, मात-पिता का। उनकी सेवा कर
उजूरा देना है। माँ-बाप की पालना का कर्ज चढ़ता है बच्चों पर। अब बाप तुम्हारी
पालना कर रहे हैं। शुरू में जो भी आये थे सबने झट सरेन्डर कर दिया। अपने पास
कुछ नहीं रखा, सरेन्डर किया, उस धन से तुम बच्चे भारत को पावन बना रहे हो। भारत
ही बिल्कुल पवित्र था। भारतवासियों जैसा पवित्र सुखी कोई हो नहीं सकता। भारत
सबसे बड़ा तीर्थ है। जहाँ पतित-पावन बाप आकर सारे सृष्टि को, पतितों को भी
पवित्र बनाते हैं। अभी यह तत्व आदि सब दुश्मन हैं। अर्थक्वेक होगी, तूफान लगेंगे
क्योंकि तमोप्रधान हैं। नेचुरल कैलेमिटीज़ आयेंगी, बहुत दु:ख देंगी। इस समय सब
दु:ख की चीज़ें हैं। सतयुग में हैं सब सुख की चीज़ें। वहाँ यह तूफान वा गर्म
वायु आदि कुछ नहीं होता। तुम्हारे में भी यह बातें बहुत थोड़े ही समझते हैं। आज
हैं कल नहीं हैं तो कहेंगे कुछ नहीं समझा। भल यहाँ आते हैं परन्तु सब कायम
थोड़ेही रहते हैं। यहाँ से गये 10 दिन के बाद समाचार लिखेंगे - बाबा फलाने को
माया खा गई। ऐसे होता रहता है। छोटे फूल बड़े हों तो उनमें फल आ जाएं। उनमें
फिर दूसरों को आप समान बनाने की ताकत रहती है। उनका फल निकलता है।
बाप के बने फिर प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाना है। पण्डे बन बाबा के पास आयें,
बस हम पहुँच गये। नहीं, मंजिल है बड़ी। कहते हैं माया के तूफान बहुत आते हैं।
तुम बाप के बने हो, तूफान तो आयेंगे। कहते हैं, बाबा हम आपके थे। आपसे वर्सा
लिया था फिर पुनर्जन्म लेते 84 जन्म पास किया फिर आकर आपका बने हैं। मैं तो आपसे
वर्सा लेकर छोडूँगा। तो ऐसे बाप को इतना याद करना पड़े और आप समान बनाए फल देना
पड़े। नहीं तो माला कैसे बनेगी। बाप का वारिस कैसे बनायेंगे। प्रजा भी चाहिए,
वारिस भी चाहिए, जो गद्दी पर बैठे। बाप के पास तो बहुत आते हैं फिर फारकती दे
देते हैं। बुद्धि का योग टूटा, खेल खत्म।
कई बच्चे बाबा से आकर पूछते हैं - बाबा अवस्था को कैसे जमायें, कोई तूफान न लगे।
इसका रास्ता तो बताते ही रहते हैं, बाप को याद करो। तूफान तो लगेंगे। बॉक्सिंग
में ऐसा कभी देखा जो कोई एक ही थप्पड़ खाता रहे। जरूर दोनों में ही हिम्मत होगी।
5 थप्पड़ अगर एक लगायेगा तो 10 दूसरा लगाता होगा। यह भी बॉक्सिंग है। बाप को
याद करते रहेंगे तो माया भागती जायेगी परन्तु फट से तो नहीं होगा। माया से
कुश्ती लड़नी है। ऐसे मत समझो माया थप्पड़ नहीं मारेगी। भल कोई भी हो, बड़ी
बॉक्सिंग है। बहुत डर जाते हैं, माया एकदम नाक में दम कर देती है। युद्धस्थल है
ना। बुद्धियोग लगाने में माया बड़े विघ्न डालती है। मेहनत सारी योग में है। भल
बाबा कहते हैं ज्ञानी तू आत्मा मुझे प्रिय है। परन्तु ऐसे नहीं सिर्फ ज्ञान देने
वाले प्रिय हैं। पहले तो योग पूरा चाहिए। बाप को याद करना है। माया के विघ्नों
से डरना नहीं है। विश्व का मालिक बनते हो ना। सब बनेंगे? 16108 की माला तो बहुत
बड़ी है। अन्त में आकर पूरी होगी। त्रेता अन्त तक कितने प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते
हैं, कुछ तो निशानियाँ हैं ना। 8 की भी निशानी है। 108 की भी निशानी है। यह
बिल्कुल राइट है। त्रेता अन्त में इतने 16108 प्रिन्स-प्रिन्सेज होते हैं। शुरू
में तो नहीं होंगे। पहले थोड़े होते हैं फिर वृद्धि होती जाती है। वह सब बनते
यहाँ हैं। चांस बहुत अच्छा है परन्तु मेहनत बहुत है। गीत में भी कहते हैं, कभी
नहीं छोडूँगा, मर जाऊंगा...। बाबा यह तन-मन-धन सब आपका है। हम अशरीरी बन आपको
याद करते हैं। बुद्धियोग आपसे लगायेंगे। बाबा फिर कहते हैं यह सब तुम बच्चों के
लिए ही है। बच्चे कहते हैं - हमारा सब कुछ आपका है। कहते हैं ना, यह सब भगवान
ने दिया है! अब बाप कहते है - यह सब खत्म हो जाना है। तुम्हारे पास क्या है? यह
शरीर भी खत्म हो जायेगा। अब मैं फिर तुमको बदली कर देता हूँ। सिर्फ एक्सचेंज
करते हैं ना। तो बाप कहते हैं - बच्चे अशरीरी बनो। मुझे याद करो। बुद्धि से सब
कुछ सरेन्डर करो। राजा हरिश्चन्द्र की कथा है ना। बोला अमानत रख दो।
बाप कहते हैं - इन सभी शास्त्रों आदि का सार तुमको समझाता हूँ। मैने ही तुम्हें
ब्रह्मा मुख द्वारा राजा-रानी बनाया था फिर अब बनाता हूँ। कभी भी मनुष्य,
मनुष्य को गीता सुनाए, राजयोग सिखलाए राजा-रानी बना न सकें। फिर गीता सुनने से
क्या फायदा। बाप कहते हैं - मैं खुद कल्प-कल्प आकर तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता
हूँ। हमारे बनेंगे तब तो वारिस बनेंगे ना। तो जितना योग में रहेंगे उतना शुद्ध
बनते जायेंगे। बाबा यह सब आपका है। हम तो ट्रस्टी हैं। आपके हुक्म बिगर हम कुछ
भी नहीं करेंगे। शरीर निर्वाह कैसे करना है - वह भी मत लेते हैं। अक्सर करके
गरीब ही पूरा पोतामेल देते हैं। साहूकार दे न सकें। सरेन्डर हो नहीं सकते, कोई
विरला निकलता है। जैसे एक जनक का नाम है। बाल-बच्चे हैं, ज्वाइंट प्रापर्टी है
तो वह अलग कैसे हो। साहूकार लोग अपनी प्रापर्टी निकालें कैसे, जो सरेन्डर हों?
बाप है ही गरीब निवाज़। सबसे गरीब मातायें हैं, उनसे जास्ती कन्यायें गरीब हैं।
कन्या को कभी वर्से का नशा नहीं होगा। बच्चे को बाप की जागीर का नशा रहता है।
तो वह सबको छोड़ फिर बैकुण्ठ का वर्सा लेना पड़े। दान हमेशा गरीब को ही दिया
जाता है। भारत है सबसे गरीब, अमेरिका बहुत साहूकार है। उनको वर्सा देते हैं क्या?
भारत सबसे साहूकार था और कोई धर्म नहीं था। सिर्फ भारतवासी ही थे, एक भाषा थी।
गॉड इज़ वन। मैं वन सावरन्टी, वन धर्म, वन भाषा स्थापन करता हूँ। वन आलमाइटी,
वन गवर्मेन्ट स्थापन करता हूँ। वन से फिर टू, थ्री होंगे। अभी कितने धर्म हैं
फिर जरूर वन धर्म आना चाहिए। 5 हजार वर्ष की बात है। वन धर्म था। विद्वानों ने
सतयुग की आयु लाखों वर्ष लगा दी है। समझते नहीं सतयुग क्या होता है। समझते हैं,
स्वर्गवासी हुआ, शायद ऊपर चला गया। देलवाड़ा मन्दिर में भी स्वर्ग ऊपर छत में
है। तो मनुष्य मूँझ जाते हैं। वास्तव में स्वर्ग कोई ऊपर नहीं। तुम अभी जानते
हो बाबा के पास जाकर फिर यहाँ ही आकर राज्य करेंगे। यह ज्ञान बुद्धि में रहना
चाहिए, जो कोई को समझा सको। कच्चे को तो माया चिड़िया खा जायेगी इसलिए फोटो भी
मंगाये जाते हैं। रजिस्टर रखा जाता है।
बाबा के पास समाचार आता है फलाने ने एक ही ऐसा ज्ञान का तीर मारा जो मैं बाबा
का बन गया। शास्त्रों में भी लिखा हुआ है - कुमारियों द्वारा बाण मरवाये। अरे,
बाप को क्यों भूले हो? इसको ज्ञान बाण कहा जाता है। सिर्फ बाप की याद दिलानी
है। बाकी कोई हिंसक बाण की बात नहीं है। बाबा कहते हैं - मैं, ब्रह्मा मुख से
सब शास्त्रों का राज़ तुम्हें समझाता हूँ। ब्रह्मा तो जरूर यहाँ होना चाहिए।
उन्होंने फिर विष्णु के नाभी कमल से ब्रह्मा दिखाया है। जानते कुछ भी नहीं।
मनुष्यों को तो जो आया सो लिख दिया। गन्दगी तो बहुत है। रिद्धि-सिद्धि वाले भी
बहुत हो गये हैं। सच जब निकलता है तो झूठे उसका सामना करते हैं। अब तुम समझते
हो कि शिवबाबा है निराकार और यह ब्रह्मा है साकार। बाकी नाभी आदि की तो कोई बात
ही नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अब ज्ञानी तू आत्मा बनना है, सिर्फ ज्ञान सुनने सुनाने वाला नहीं। याद की भी
मेहनत करनी है। अशरीरी होकर अशरीरी बाप को याद करना है।
2) बाप का बनकर दूसरी सब बातों से ममत्व मिटा देना है। यह देह भी मेरी नहीं।
पूरा देही-अभिमानी बन कम्पलीट सरेन्डर होना है।
वरदान:-
ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रूपी कीटाणुओं को भस्म करने
वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव
कैसे भी पतित वातावरण को बदलने के लिए अथवा पुराने
संस्कारों रूपी कीटाणुओं को भस्म करने के लिए यही स्मृति रहे कि मैं मास्टर
ज्ञान सूर्य हूँ। सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना और किचड़े को खत्म करना। तो
ज्ञान-योग की शक्ति वा श्रेष्ठ चलन द्वारा यही कर्तव्य करते रहो। यदि पावर कम
है तो ज्ञान सिर्फ रोशनी देगा परन्तु पुराने संस्कार रूपी कीटाणु खत्म नहीं
होंगे इसलिए पहले योग तपस्या द्वारा पावरफुल बनो।
स्लोगन:-
शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प ही जमा का खाता
बढ़ाते हैं।
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