06-08-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – कदम-कदम पर जो होता है वह कल्याणकारी है,
इस ड्रामा में सबसे अधिक कल्याण उनका होता है जो बाप की याद में रहते हैं”
प्रश्नः-
ड्रामा की किस
नूँध को जानने वाले बच्चे अपार खुशी में रह सकते हैं?
उत्तर:-
जो
जानते हैं कि ड्रामानुसार अब इस पुरानी दुनिया का विनाश होगा, नैचुरल कैलेमिटीज भी
होंगी। लेकिन हमारी राजधानी तो स्थापन होनी ही है, इसमें कोई कुछ कर नहीं सकता। भल
अवस्थायें नीचे-ऊपर होती रहेंगी, कभी बहुत उमंग, कभी ठण्डे ठार हो जायेंगे, इसमें
मूँझना नहीं है। सभी आत्माओं का बाप भगवान हमको पढ़ा रहे हैं, इस खुशी में रहना है।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा……..
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार चैतन्य परवानों को बाबा याद-प्यार दे रहे हैं। तुम सब हो चैतन्य
परवाने। बाप को शमा भी कहते हैं, परन्तु उनको जानते बिल्कुल नहीं हैं। शमा कोई बड़ी
नहीं, एक बिन्दी है। किसकी भी बुद्धि में नहीं होगा कि हम आत्मा बिन्दी हैं। हमारी
आत्मा में सारा पार्ट है। आत्मा और परमात्मा का नॉलेज और किसकी बुद्धि में नहीं है।
तुम बच्चों को ही बाप ने आकर समझाया है, आत्मा का रियलाइजेशन दिया है। आगे यह पता
नहीं था कि आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है! इसलिए देह-अभिमान के कारण बच्चों में
मोह भी है, विकार भी बहुत हैं। भारत कितना ऊंच था। विकार का नाम भी नहीं था। वह था
वाइसलेस भारत, अभी है विशश भारत। कोई भी मनुष्य ऐसे नहीं कहेंगे जैसे बाप समझाते
हैं। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले हमने इनको शिवालय बनाया था। मैंने ही शिवालय स्थापन
किया था। कैसे? सो भी तुम अभी समझ रहे हो। तुम जानते हो कदम-कदम पर जो होता है वह
कल्याणकारी ही है। एक-एक दिन जास्ती कल्याणकारी उनका है जो बाप को अच्छी रीति याद
कर अपना भी कल्याण करते रहते हैं। यह है ही कल्याणकारी पुरूषोत्तम बनने का युग। बाप
की कितनी महिमा है। तुम जानते हो अभी सच्चा-सच्चा भागवत चल रहा है। द्वापर में जब
भक्ति मार्ग शुरू होता है तो पहले-पहले तुम भी हीरों का लिंग बनाकर पूजा करते हो।
अभी तुमको स्मृति आई है, हम जब पुजारी बने थे तब मन्दिर बनाये थे। हीरे माणिक का
बनाते थे। वह चित्र तो अभी मिल न सकें। यहाँ तो यह लोग चांदी आदि का बनाकर पूजा करते
हैं। ऐसे पुजारियों का भी मान देखो कितना है। शिव की पूजा तो सब करते हैं। लेकिन
अव्यभिचारी पूजा तो है नहीं।
यह भी बच्चे जानते
हैं – विनाश भी आने का है जरूर, तैयारियाँ हो रही हैं। नैचुरल कैलेमिटीज की भी
ड्रामा में नूँध है। कोई कितना भी माथा मारे, तुम्हारी राजधानी तो स्थापन होनी ही
है। कोई की भी ताकत नहीं जो इसमें कुछ कर सके। बाकी अवस्थायें तो नीचे-ऊपर होंगी
ही। यह है बहुत बड़ी कमाई। कभी तुम बहुत खुशी में अच्छे ख्यालात में रहेंगे, कभी
ठण्डे पड़ जायेंगे। यात्रा में भी नीचे-ऊपर होते हैं, इसमें भी ऐसे होता है। कभी तो
सुबह को उठ बाप को याद करने से बहुत खुशी होती है ओहो! बाबा हमको पढ़ा रहे हैं।
वण्डर है। सभी आत्माओं का बाप भगवान हमको पढ़ा रहे हैं। उन्होंने फिर कृष्ण को
भगवान समझ लिया है। सारी दुनिया में गीता का मान बहुत है क्योंकि भगवानुवाच है ना।
परन्तु यह किसको पता नहीं है कि भगवान किसको कहा जाता है। भल कितनी भी पोजीशन वाले
बड़े-बड़े विद्वान, पण्डित आदि हैं, कहते भी हैं गॉड फादर को याद करते हैं परन्तु
वह कब आया, क्या आकर किया यह सब भूल गये हैं। बाप सब बातें समझाते रहते हैं। ड्रामा
में यह सब नूँध है। यह रावणराज्य फिर भी होगा और हमको आना पड़ेगा। रावण ही तुमको
अज्ञान के घोर अन्धियारे में सुला देते हैं। ज्ञान तो सिर्फ एक ज्ञान सागर ही बतलाते
हैं जिससे सद्गति होती है। सिवाए बाप के और कोई सद्गति कर न सके। सर्व का सद्गति
दाता एक है। गीता का ज्ञान जो बाप ने सुनाया था वह फिर प्राय: लोप हो गया। ऐसे नहीं,
यह ज्ञान कोई परम्परा चला आता है। औरों के कुरान, बाइबिल आदि चले आते हैं, विनाश नहीं
हो जाते। तुमको तो जो ज्ञान अभी मैं देता हूँ, इनका कोई शास्त्र बनता नहीं है। जो
परम्परा अनादि हो जाए। यह तो तुम लिखते हो फिर खत्म कर देते हो। यह तो सब नैचुरल
जलकर खत्म हो जायेंगे। बाप ने कल्प पहले भी कहा था, अभी भी तुमको कह रहे हैं – यह
ज्ञान तुमको मिलता है फिर प्रालब्ध जाकर पाते हो फिर इस ज्ञान की दरकार नहीं रहती।
भक्ति मार्ग में सब शास्त्र हैं। बाबा तुमको कोई गीता पढ़कर नहीं सुनाते हैं। वह तो
राजयोग की शिक्षा देते हैं, जिसका फिर भक्ति मार्ग में शास्त्र बनाते हैं तो अगड़म
बगड़म कर देते हैं। तो तुम्हारी मूल बात है कि गीता का ज्ञान किसने दिया! उनका नाम
बदली कर दिया है, और कोई के भी नाम बदली नहीं हुए हैं। सबके मुख्य धर्म शास्त्र हैं
ना। इसमें मुख्य है डिटीज्म, इस्लामिज़म, बुद्धिज़म। भल करके कोई कहते हैं कि पहले
बुद्धिज़म है पीछे इस्लामिज़म। बोलो, इन बातों से गीता का कोई तैलुक नहीं है। हमारा
तो काम है बाप से वर्सा लेने का। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं – यह है बड़ा झाड़।
अच्छा है, जैसा फ्लावरवाज़ है। 3 ट्युब्स निकलती हैं। कितना अच्छी समझ से बनाया हुआ
झाड़ है। कोई भी झट समझ जायेंगे कि हम किस धर्म के हैं। हमारा धर्म किसने स्थापन
किया? यह दयानंद, अरविन्द घोस आदि तो अभी होकर गये हैं। वो लोग भी योग आदि सिखलाते
हैं। है सब भक्ति। ज्ञान का तो नाम-निशान नहीं। कितने बड़े-बड़े टाइटिल मिलते हैं।
यह भी सब ड्रामा में नूँध है, फिर भी होगा – 5 हज़ार वर्ष बाद। शुरू से लेकर यह
चक्र कैसे चला है, फिर कैसे रिपीट होता रहता है? तुम जानते हो। अभी का प्रेजन्ट फिर
पास्ट हो फ्युचर हो जायेगा। पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर। जो पास्ट हो जाता है वह फिर
फ्युचर होता है। इस समय तुमको नॉलेज मिलती है फिर तुम राजाई लेते हो, इन देवताओं का
राज्य था ना। उस समय और कोई का राज्य नहीं था। यह भी एक कहानी मिसल बताओ। बड़ी
सुन्दर कहानी बन जायेगी। लांग-लांग 5 हज़ार वर्ष पहले यह भारत सतयुग था, कोई धर्म
नहीं था, सिर्फ देवी-देवताओं का ही राज्य था। उनको सूर्यवंशी राज्य कहा जाता था।
लक्ष्मी-नारायण का राज्य चला 1250 वर्ष, फिर उन्होंने राज्य दिया दूसरे भाइयों
क्षत्रियों को फिर उनका राज्य चला। तुम समझा सकते हो कि बाप ने आकर पढ़ाया था। जो
अच्छी रीति पढ़े वह सूर्यवंशी बनें। जो फेल हुए उनका नाम क्षत्रिय पड़ा। बाकी लड़ाई
आदि की बात नहीं है। बाबा कहते हैं बच्चे तुम मुझे याद करो तो तम्हारे विकर्म विनाश
हो जायेंगे। तुम्हें विकारों पर जीत पानी है। बाप ने ऑर्डीनेन्स निकाला है, जो काम
पर जीत पायेंगे वही जगतजीत बनेंगे। पीछे आधाकल्प बाद फिर वाम मार्ग में गिरते हैं।
उन्हों के भी चित्र हैं। शक्ल देवताओं की बनी हुई है। राम राज्य और रावण राज्य
आधा-आधा है। उनकी कहानी बैठ बनानी चाहिए। फिर क्या हुआ, फिर क्या हुआ। यही सत्य
नारायण की कहानी है। सत्य तो एक ही बाप है, जो इस समय आकर सारे आदि-मध्य-अन्त का
तुमको नॉलेज दे रहे हैं, जो और कोई दे न सके। मनुष्य तो बाप को ही नहीं जानते। जिस
ड्रामा में एक्टर हैं, उनके क्रियेटर-डायरेक्टर आदि को नहीं जानते। तो बाकी कौन
जानेंगे! अभी तुमको बाप बताते हैं – ड्रामा अनुसार यह फिर भी ऐसे होगा। बाप आकर तुम
बच्चों को फिर पढ़ायेंगे। यहाँ दूसरा कोई आ न सके। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही
पढ़ाता हूँ। कोई नये को यहाँ बिठा नहीं सकते। इन्द्रप्रस्थ की कहानी भी है ना। नीलम
परी, पुखराज परी नाम है ना। तुम्हारे में भी कोई हीरे जैसा रत्न है। देखो रमेश ने
ऐसी बात निकाली प्रदर्शनी की जो सबका विचार सागर मंथन हुआ। तो हीरे जैसा काम किया
ना। कोई पुखराज है, कोई क्या है! कोई तो बिल्कुल कुछ नहीं जानते। यह भी जानते हो कि
राजधानी स्थापन होती है। उनमें राजायें-रानियाँ आदि सब चाहिए। तुम समझते हो हम
ब्राह्मण श्रीमत पर पढ़कर विश्व के मालिक बनते हैं। कितनी खुशी होनी चाहिए। यह
मृत्युलोक खत्म होना है। यह बाबा तो अभी ही समझते रहते हैं कि हम जाकर बच्चा बनेंगे।
बचपन की वह बातें अभी ही सामने आ रही हैं, चलन ही बदल जाती है। ऐसे ही वहाँ भी जब
बूढ़े होंगे तो समझेंगे अब यह वानप्रस्थ शरीर छोड़ हम किशोर अवस्था में चले जायेंगे।
बचपन है सतोप्रधान अवस्था। लक्ष्मी-नारायण तो युवा हैं, शादी किये हुए को किशोर
अवस्था थोड़ेही कहेंगे। युवा अवस्था को रजो, वृद्ध को तमो कहते हैं इसलिए कृष्ण पर
लव जास्ती रहता है। हैं तो लक्ष्मी-नारायण भी वही। परन्तु मनुष्य यह बातें नहीं
जानते हैं। कृष्ण को द्वापर में, लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में ले गये हैं। अभी तुम
देवता बनने का पुरूषार्थ कर रहे हो।
बाप कहते हैं कुमारियों
को तो बहुत खड़ा होना चाहिए। कुंवारी कन्या, अधर कुमारी, देलवाड़ा आदि जो भी मन्दिर
हैं, यह तुम्हारे ही एक्यूरेट यादगार हैं। वह जड़, यह चैतन्य। तुम यहाँ चैतन्य में
बैठे हो, भारत को स्वर्ग बना रहे हो। स्वर्ग तो यहाँ ही होगा। मूलवतन, सूक्ष्मवतन
कहाँ है, तुम बच्चों को सब मालूम है। सारे ड्रामा को तुम जानते हो। जो पास्ट हो गया
है सो फिर फ्युचर होगा फिर पास्ट होगा। तुमको कौन पढ़ाते हैं, यह समझना है। हमको
भगवान पढ़ाते हैं। बस खुशी में ठण्डे ठार हो जाना चाहिए। बाप की याद से सब घोटाले
निकल जाते हैं। बाबा हमारा बाप भी है, हमको पढ़ाते भी हैं फिर हमको साथ भी ले
जायेंगे। अपने को आत्मा समझ परमात्मा बाप से ऐसी बातें करनी हैं। बाबा हमको अभी
मालूम पड़ा है, ब्रह्मा और विष्णु का भी मालूम पड़ा है। विष्णु की नाभी से ब्रह्मा
निकला। अब विष्णु दिखाते हैं क्षीरसागर में। ब्रह्मा को सूक्ष्मवतन में दिखाते हैं।
वास्तव में है यहाँ। विष्णु तो हुआ राज्य करने वाला। अगर विष्णु से ब्रह्मा निकला
तो जरूर राज्य भी करेगा। विष्णु की नाभी से निकला तो जैसे कि बच्चा हो गया। यह सब
बातें बाप बैठ समझाते हैं। ब्रह्मा ही 84 जन्म पूरे कर अब फिर विष्णुपुरी के मालिक
बनते हैं। यह बातें भी कोई पूरी रीति समझते नहीं हैं, तब तो वह खुशी का पारा नहीं
चढ़ता। गोप-गोपियाँ तो तुम हो। सतयुग में थोड़ेही होंगे। वहाँ तो होंगे
प्रिन्स-प्रिन्सेज। गोप-गोपियों का गोपी वल्लभ है ना। प्रजापिता ब्रह्मा है सबका
बाप और फिर सब आत्माओं का बाप है निराकार शिव। यह सब हैं मुख वंशावली। तुम सब बी.के.
भाई-बहन हो गये। क्रिमिनल आई हो न सके, इसमें ही माया हार खिलाती है। बाप कहते हैं
अभी तक जो कुछ पढ़ा है उसे बुद्धि से भूल जाओ। मैं जो सुनाता हूँ वह पढ़ो। सीढ़ी तो
बड़ी फर्स्टक्लास है। सारा मदार है एक बात पर। गीता का भगवान कौन? कृष्ण को भगवान
कह नहीं सकते। वह तो सर्वगुण सम्पन्न देवता है। उनका नाम गीता में दे दिया है।
सांवरा भी उनको बनाया है और फिर लक्ष्मी-नारायण को भी सांवरा कर देते। कोई
हिसाब-किताब ही नहीं। रामचन्द्र को भी काला कर देते। बाप कहते हैं काम चिता पर बैठने
से सांवरा हुआ है। नाम करके एक का लिया जाता है। तुम सब ब्राह्मण हो। अभी तुम ज्ञान
चिता पर बैठते हो। शूद्र काम चिता पर बैठे हैं। बाप कहते हैं – विचार सागर मंथन कर
युक्तियां निकालो कि कैसे जगायें? जागेंगे भी ड्रामा अनुसार। ड्रामा बड़ा धीरे-धीरे
चलता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी स्मृति
में रहना है कि हम गोपी वल्लभ के गोप-गोपियां हैं। इसी स्मृति से सदा खुशी का पारा
चढ़ा रहे।
2) अभी तक जो कुछ पढ़ा
है, उसे बुद्धि से भूल बाप जो सुनाते हैं वही पढ़ना है। हम भाई बहिन हैं इस स्मृति
से क्रिमिनल आई को खत्म करना है। माया से हार नहीं खानी है।
वरदान:-
हर संकल्प वा कर्म को श्रेष्ठ और सफल बनाने वाले
ज्ञान स्वरूप समझदार भव
जो ज्ञान स्वरूप, समझदार बनकर कोई भी संकल्प वा कर्म करते
हैं, वे सफलता मूर्त बनते हैं। इसी का यादगार भक्ति मार्ग में कार्य प्रारम्भ करते
समय स्वास्तिका निकालते हैं वा गणेश को नमन करते हैं। यह स्वास्तिका, स्व स्थिति
में स्थित होने और गणेश नॉलेजफुल स्थिति का सूचक है। आप बच्चे जब स्वयं नॉलेजफुल बन
हर संकल्प वा कर्म करते हो तो सहज सफलता का अनुभव होता है।
स्लोगन:-
ब्राह्मण जीवन की विशेषता है खुशी, इसलिए खुशी का दान करते चलो।