24-09-06     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 18.01.90 "बापदादा"    मधुबन


स्वयं और सेवा में तीव्रगति के परिवर्तन का गुह्य राज़

 


आज सर्व बच्चों के स्नेही मात-पिता अपने स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल की आवाज और स्नेह में अनमोल मोतियों की मालाएं देख-देख बच्चों को स्नेह का रिटर्न विशेष वरदान दे रहे हैं - ''सदा समीप भव, समान समर्थ भव, सदा सम्मन संतुष्ट भव'' सबके दिल का स्नेह आपके दिल में संकल्प उठते ही बापदादा के पास अति तीव्रगति से पहुँच जाता है। चारों ओर के देश-विदेश के बच्चे आज प्यार के सागर में लवलीन है। बापदादा, उसमें भी विशेष ब्रह्मा माँ बच्चों को स्नेह में लवलीन देख स्वयं भी बच्चों के लव में, स्नेह में समाये हुए हैं। बच्चे जानते हैं कि ब्रह्मा मॉं का बच्चों मे विशेष स्नेह रहा और अब भी है। पालना करने वाली माँ का स्वत: ही विशेष स्नेह रहता हो है। तो आज ब्रह्मा माँ एक-एक बच्चे को देख हर्षित हो रही है कि बच्चों के मन में, बुद्धि में, दिल में, नयनों में मात-पिता के सिवाए ओर कोई नहीँ है। सब बच्चे "एक बल एक भरोसे" से आगे बढ़ रहे हैं अगर कहॉं रुकते भी हैं तो मात-पिता के स्नेह का हाथ फिर से समर्थ बनाए आगे बढ़ा देता है।

आज मात-पिता बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य के गीत गा रहे थे। क्योंकि आज का दिवस विशेष सूर्य, चन्द्रमा का बैकबोन होकर सितारों को विश्व के आकाश में प्रत्यक्ष करने का दिन है। जैसे यज्ञ की स्थापना के आदि में ब्रह्मा बाप ने बच्चों के आगे अपना सब कुछ समर्पित किया अर्थात् 'विल' की। ऐसे आज के दिवस पर ब्रह्मा बाप ने बच्चों को सर्वशक्तियों की विल की अर्थात् विल पावर्स दी। आज के दिवस नयनों द्वारा और संकल्प द्वारा बाप ने बच्चों को विशेष "सन शोज़ फादर' की बिशेष सौगात दी। आज के दिवस बाप ने प्रत्यक्ष साकार रूप में करावनहार का पार्ट बजाने का प्रत्यक्ष रूप दिखाया। ब्रह्मा बाप भी आज के दिन प्रत्यक्ष रूप में करावनहार बाप के साथी बने, करनहार निमित्त बच्चों को बनाया और करावनहार मात-पिता साथी बने। आज के दिन ब्रह्मा बाप ने अपनी सेवा की रीति और गति परिवर्तन की। आज के दिवस विशेष ब्रह्मा बाप देह से सूक्ष्म फरिश्ता स्वरूप धारण कर ऊँचे वतन, सूक्ष्मवतन निवासी बने, किसलिए? बच्चों को तीव्रगति से ऊँचा उठाने के लिए। बच्चों को फ़रिश्ते रूप से उड़ाने के लिए। इतना श्रेष्ठ महत्व का यह दिवस है। सिर्फ स्नेह का दिवस नहीं लेकिन विश्व की आत्माओं का, ब्राह्मण आत्माओं का और सेवा की गति का परिवर्तन ड्रामा में नूंधा हुआ था, जो बच्चे भी देख रहे है। विश्व की आत्माओं के प्रति बुद्धिवानो की बुद्धि बने। बुद्धि का परिवर्तन हुआ, संपर्क में आये सहयोगी बने। ब्राह्मण आत्माओं में श्रेष्ठ संकल्प द्वारा तीव्रगति से वृद्धि हुई। सेवा के प्रति ‘सन शोज फादर' की गिफ्ट से विहंग-मार्ग की सेवा आरम्भ की। यह गिफ्ट सेवा की लिफ्ट बन गई। परिवर्तन हुआ ना! अब आगे चल सेवा में और परिवर्तन देखेंगे।

अभी तक आप ब्राह्मण-आत्मायें अपने तन-मन की मेहनत से प्रोग्राम्स बनाते हो, स्टेज तैयार करने हो, निमंत्रण कार्ड छपाते हो, कोई वी.आई. पी. को बुलाते हो, रेडियो, टी. वी. वालो को सहयोगी बनाते हो, धन भी लगाते हो। लेकिन आगे चल आप स्वयं वी.आई.पी. हो जायेंगें। आपसे बड़ा कोई दिखाई नहीं देगा। बनी-बनाई स्टेज पर दूसरे लोग आपको निमंत्रण देंगे। अपने तन-मन-धन की सेवाओं की स्वयं ऑफर करेंगे। आपकी मिन्नतें करेंगे। मेहनत आप नहीं करेंगे, वह रिक्वेस्ट करेंगे कि आप हमारे पास आओ। तब ही प्रत्यक्षता की आवाज़ बुलंद होगी और सबकी अटेंशन आप बच्चों द्वारा बाप तरफ जायेगी। वह ज़्यादा समय नहीं चलेगा। सबकी नज़र बाप तरफ जाना अर्थात् प्रत्यक्षता होना और जय-जयकार के चारों और घंटे बजेंगे। यह ड्रामा का सूक्ष्म राज़ बना हुआ है। प्रत्यक्षता के बाद अनेक आत्माए पश्चाताप करेंगी। और बच्चों का पश्चाताप बाप देख नहीं सकता। इसलिए परिवर्तन हो जायेगा। अभी आप ब्राह्मण-आत्माओं की ऊँची स्टेज सदाकाल की बन रही है। आपकी ऊँची स्टेज सेवा की स्टेज के निमंत्रण दिलायेगी। और बेहद विश्व की स्टेज पर जय-जयकार का पार्ट बजायेंगे। सुना, सेवा का परिवर्तन।

बाप के अव्यक्त बनने के ड्रामा में गुप्त राज़ भरे हुए थे। कई बच्चे सोचते हैं - कम से कम ब्रह्मा बाप छुट्टी तो लेके जाते। तो क्या आप छुट्टी देते? नहीं देते ना। तो बलबान कौन हुआ? अगर छुट्टी लेते तो 'कर्मातीत' नहीं बन सकते। क्योंकि ब्लड-कनेक्शन से पदमगुणा ज्यादा आत्मिक-कनेक्शन होता है। ब्रह्मा को तो कर्मातीत होना था। या स्नेह के बंधन में जाना था? ब्रह्मा बाप भी कहते हैं - ड्रामा ने कर्मातीत बनाने के बंधन में बाँधा। और बाँधा कितने टाइम में! समय होता तो और पार्ट हो जाता। इसलिए घड़ी का खेल हो गया। बच्चों को भी अन्जान बना दिया, बाप को भी अन्जान बना दिया। इनको कहते हैं - वाह, ड्रामा वाह! ऐसा है ना। जब "वाह, ड्रामा वाह" है तो कोई संकल्प उठ नहीं सकता। फुलस्टाप लगा दिया ना ! नहीं तो कम-से-कम बच्चे पूछ तो सकते थे कि क्या हो रहा है? लेकिन बाप भी चुप, बच्चे भी चुप रहे। इसको कहते हैं - ड्रामा का फुलस्टाप। उस घड़ी तो फुलस्टाप ही लगा ना। पीछे भले क्वेश्चन कितने भी उठे लेकिन उस घड़ी नहीं। तो "वाह ड्रामा वाह" कहेंगें ना ! 'बाबा-बाबा' कह बुलाया भी पीछे, पहले नहीं बुलाया। यह ड्रामा की विचित्र नूँध होनी ही थी और होनी ही है। परिवर्तनशील ड्रामा पार्ट को भी परिवर्तन कर देता है।

यह सब टीचर्स अव्यक्त रचना है - मैजारिटी। साकार की पालना लेने वाली टीचर्स बहुत थोडी हैं। फास्ट गति से पैदा हुई हो। क्योंकि संकल्प की गति सबसे फास्ट है। आदि रत्न है मुख-वंशावली, और आप हो संकल्प की वंशावली। इसलिए ब्रह्मा की दो रचना गाई हुई हैं। एक मुख वंशावली, एक संकल्प द्वारा सृष्टि रची। हो तो ब्रह्मा की रचना, तब तो ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहलाते हो। शिवकुमारी तो नहीं कहलाते हो ना। डबल फोरेनर्स भी सब संकल्प की रचना है। ऐसे तीव्रगति से सब टीचर्स आगे बढ़ रही हो? जब रचना ही तीव्रगति की हो तो पुरुषार्थ भी तीव्रगति से होना चाहिए । सदा यह चेक करो कि सदा तीव्र पुरुषार्थी हूँ वा कभी-कभी हूँ? समझा! अब 'क्या' 'क्यों', का गीत खत्म करो। 'वाह-वाह' के गीत गाओ । अच्छा!

चारों ओर के सर्व स्नेह और शक्ति संपन्न श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के साथ-साथ तीव्रगति से परिवर्तन के साथी समीप आत्माओं को, सदा अपनी उड़ती कला द्वारा अन्य आत्माओं को भी उड़ाने वाले निर्बन्धन उड़ते पंछी आत्माओं को, सदा 'सन शोज फादर' की गिफ्ट द्वारा स्वयं और सेवा में तीव्रगति से परिवर्तन लाने वाले, ऐसे सर्व लवलीन बच्चों को इस महत्त्व दिवस के महत्व के साथ मात-पिता का विशेष याद-प्यार और नमस्ते।

हुबली ज़ोन से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सदा अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाले भाग्यवान समझते हो? यह जो गायन है - हर कदम में पद्म… किसके लिए गायन है? सारे दिन में कितने पद्म इकट्ठे करते हो? संगमयुग बड़े-ते-बड़े कमाई के सीजन का युग है। तो सीजन के समय क्या किया जाना है? इतना अटेंशन रखते हो? हर समय यह याद रहे कि 'अब नहीं तो कब नहीं।' जो घड़ी बीत गई वह फिर से नहीं आयेगी। एक घड़ी व्यर्थ जाना अर्थात् कितने कदम व्यर्थ गये? पद्म व्यर्थ गये! इसलिए हर घड़ी यह स्लोगन याद रहे - 'जो समय के महत्व को जानते हैं वह स्वतः ही महान बनते है।' स्वयं को भी जानना है और समय को भी जानना है। दोनों ही विशेष हैं। इस स्मृति दिवस पर विशेष सदा समर्थ बनने का श्रेष्ठ संकल्प किया? व्यर्थ संकल्प, बोल, सब रूप से व्यर्थ को समाप्त करने का दिन है। जब नालेज मिल गई कि व्यर्थ क्या है, समर्थ क्या है - तो नॉलेजफुल आत्मा कभी भी समर्थ को छोड़ व्यर्थ तरफ नहीं जा सकती। और जितना स्वयं समर्थ बनेंगे उतना औरों को समर्थ बना सकेंगे। 63 जन्म गँवाया और समर्थ बनने का यह एक जन्म है। तो इस समय को व्यर्थ तो नहीं करना चाहिए ना! अमृतवेले से लेकर रात तक अपनी दिनचर्या को चेक करो। ऐसे नहीं कि सिर्फ रात्रि को चार्ट चेक करो लेकिन बीच-बीच में चेक करो, बार-बार चेक करने से चेंज कर सकेंगे। अगर रात को चेक करेंगे तो जो व्यर्थ गया वह व्यर्थ के खाते में ही हो जायेंगा। इसलिए बापदादा ने बीच-बीच में ट्रैफिक कंट्रोल का टाइम फिक्स किया है। ट्रैफिक कंट्रोल करते हो या दिन में बिजी रहते हो? अपना नियम बना रहना चाहिए। चाहे टाइम कुछ बदली हो जाय लेकिन अगर अटेंशन रहेगा तो कमाई जमा होगी। उस समय अगर कोई काम है तो आधे घण्टे के बाद करो लेकिन कर तो सकते हो। घड़ी के आधार पर भी क्यों चलो। अपनी बुद्धि ही घड़ी है, दिव्य बुद्धि की घड़ी को याद करो। जिस बात की आदत पड़ जाती है तो आदत ऐसी चीज़ है जो न चाहते भी अपनी तरफ खींचेगी। जब बुरी आदत रहने नहीं देती, अपनी तरफ आकर्षित करती है तो अच्छे संस्कार क्यों नहीं अपना बना सकते। तो सदा चेक करो और चेंज करो तो सदा के लिए कमाई जमा होती रहेगी। अच्छा।

2. सदा इस ब्राह्मण जीवन में राजयुक्त, योगयुक्त और युक्तियुक्त तीनों ही विशेषतायें अपने को अनुभव करते हो? ज्ञान के सब राज़ बुद्धि में स्पष्ट स्मृति में रहे - इसको कहते हैं राज़युक्त और सदा रचयिता बाप को याद रखना - इसको कहते हैं योगयुक्त। तो जो ज्ञानी और योगी आत्मा है - उसके हर कर्म स्वतः युक्तियुक्त होते हैं। युक्तियुक्त अर्थात् सदा यथार्थ श्रेष्ठ कर्म। कोई भी कर्म रूपी बीज फल के सिवाए नहीं होता। उनके संकल्प भी युक्तियुक्त होंगे। जिस समय जो संकल्प चाहिए वही होगा। ऐसे नहीं - यह सोचना तो नहीं चाहिए था लेकिन सोच चलता ही रहा, इसे युक्तियुक्त नहीं कहेंगे। जो युक्तियुक्त होगा वह जिस समय जो संकल्प, वाणी या कर्म चाहे - वह कर सकेगा। ऐसे नहीं - यह करना नहीं चाहता था, हो गया। तो जो राज़युक्त, योगयुक्त होगा उसकी निशानी वह युक्तियुक्त होगा। तो वह निशानी सदा दिखाई देती है? अगर कभी-कभी दिखाई देती तो राज्यभाग्य भी कभी-कभी मिल जायेगा, सदा नहीं मिलेगा। लेने में तो कहते हो - सदा चाहिए और करने में कभी-कभी। ऐसे नहीं करना। अभी परिवर्तन करके जाओ। कभी-कभी की लाइन से सदा वाली लाइन में आ जाओ। जब जान लिया, अनुभव कर लिया कि अच्छे ते अच्छी चीज़ है तो अच्छी चीज़ को छोड़ कोई घटिया चीज़ क्यों लेंगे। तो अविनाशी खान पर आकर लेने में कमी नहीं करना। लेना है तो पूरा लेना है। दाता के भण्डारे भरपूर हैं, जितना भी लो अखुट है। तो अखुट खजाने के मालिक बनो। अच्छा!

वरदान:-
अपने सम्पूर्ण स्वरूप के आह्वान द्वारा आवागमन के चक्र से छूटने वाले लक्की सितारे भव

अब अपनी सम्पूर्ण स्थिति व सम्पूर्ण स्वरूप का आह्वान करो तो वही स्वरूप सदा स्मृति में रहेगा फिर जो कभी ऊंची स्थिति, कभी नीची स्थिति में आने-जाने का (आवागमन का) चक्र चलता है, बार-बार स्मृति और विस्मृति के चक्र में आते हो, इस चक्र से मुक्त हो जायेंगे। वे लोग जन्म-मरण के चक्र से छूटने चाहते हैं और आप लोग व्यर्थ बातों से छूट चमकते हुए लक्की सितारे बन जाते हो।

स्लोगन:-
किसी भी विघ्न के वश होना अर्थात् डायमण्ड पर दाग लगाना।