28-05-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – याद में रहने की मेहनत करो तो पावन बनते
जायेंगे, अभी बाप तुम्हें पढ़ा रहे हैं फिर साथ में ले जायेंगे।”
प्रश्नः-
कौन-सा पैगाम
तुम्हें सभी को देना है?
उत्तर:-
अब घर चलना है इसलिए पावन बनो। पतित-पावन बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पावन बन
जायेंगे, यह पैगाम सभी को दो। बाप ने अपना परिचय तुम बच्चों को दिया है, अब तुम्हारा
कर्तव्य है बाप का शो करना। कहा भी जाता सन शोज़ फादर।
गीत:-
मरना तेरी गली में……….
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत का
अर्थ सुना कि बाबा हम आपकी रुद्र माला में पिरो ही जायेंगे। यह गीत तो भक्ति मार्ग
के बने हुए हैं, जो भी दुनिया में सामग्री है, जप-तप, पूजा-पाठ यह सब है भक्ति
मार्ग। भक्ति रावण राज्य, ज्ञान रामराज्य। ज्ञान को कहा जाता है नॉलेज, पढ़ाई। भक्ति
को पढ़ाई नहीं कहा जाता। उसमें कोई उद्देश्य नहीं कि हम क्या बनेंगे, भक्ति पढ़ाई
नहीं है। राजयोग सीखना यह पढ़ाई है, पढ़ाई एक जगह स्कूल में पढ़ी जाती है। भक्ति
में तो दर-दर धक्के खाते हैं। पढ़ाई माना पढ़ाई। तो पढ़ाई पूरी रीति पढ़नी चाहिए।
बच्चे जानते हैं हम स्टूडेन्ट हैं। बहुत हैं जो अपने को स्टूडेन्ट नहीं समझते हैं,
क्योंकि पढ़ते ही नहीं हैं। न बाप को बाप समझते हैं, न शिवबाबा को सद्गति दाता समझते
हैं। ऐसे भी हैं बुद्धि में कुछ भी बैठता ही नहीं, राजधानी स्थापन होती है ना। उसमें
सभी प्रकार के होते हैं। बाप आये ही हैं पतितों को पावन बनाने। बाप को बुलाते हैं –
हे पतित-पावन आओ। अब बाप कहते हैं पावन बनो। बाप को याद करो। हर एक को पैगाम देना
है बाप का। इस समय भारत ही वेश्यालय है। पहले भारत ही शिवालय था। अभी दोनों ताज़ नहीं
हैं। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो अब पतित-पावन बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम
पतित से पावन बन जायेंगे। याद में ही मेहनत है। बहुत थोड़े हैं जो याद में रहते
हैं। भक्त माला भी थोड़ों की है ना। धन्ना भगत, नारद, मीरा आदि का नाम है। इसमें भी
सब तो नहीं आकर पढ़ेंगे। कल्प पहले जिन्होंने पढ़ा है, वही आते हैं। कहते भी हैं
बाबा हम आपसे कल्प पहले भी मिले थे, पढ़ने अथवा याद की यात्रा सीखने। अभी बाप आये
ही हैं तुम बच्चों को ले जाने। समझाते हैं तुम्हारी आत्मा पतित है इसलिए बुलाते हो
कि आकर पावन बनाओ। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो, पवित्र बनो। बाप पढ़ाते हैं फिर
साथ में भी ले जायेंगे। बच्चों को अन्दर बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप पढ़ा रहे हैं,
कृष्ण को बाप नहीं कहेंगे। कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहेंगे। यह किसको भी पता नहीं
कि बाप किसको कहा जाता है और फिर वह ज्ञान कैसे देते हैं। यह तुम ही जानते हो। बाप
अपना परिचय बच्चों को ही देते हैं। नये-नये कोई से बाप नहीं मिल सकते। बाप कहेंगे
सन शोज़ फादर। बच्चे ही बाप का शो करेंगे। बाप को कोई से भी मिलने, बात करने का नहीं
है। भल इतना समय बाबा नये-नये से मिलते रहते हैं, ड्रामा में था, ढेर आते थे।
मिलेट्री वालों के लिए भी बाबा ने समझाया है, उनका उद्धार करना है, उनको भी धंधा तो
करना ही है। नहीं तो दुश्मन वार कर लेंगे। सिर्फ बाप को याद करना है। गीता में है
जो युद्ध के मैदान में शरीर छोड़ेंगे, वह स्वर्ग में जायेंगे। परन्तु ऐसे तो जा न
सकें। स्वर्ग स्थापन करने वाला भी जब आये तब ही जायेंगे। स्वर्ग क्या चीज़ है, यह
भी कोई नहीं जानते हैं। अभी तुम बच्चे 5 विकारों रूपी रावण से युद्ध करते हो, बाप
कहते हैं अशरीरी भव। अपने को आत्मा निश्चय कर मुझे याद करो। और कोई ऐसे कह न सके।
सर्वशक्तिमान एक बाप
के सिवाए कोई को कह नहीं सकते। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को नहीं कह सकते। ऑलमाइटी एक ही
बाप है। वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, ज्ञान का सागर एक बाप को ही कहा जाता है। यह जो
साधु-सन्त आदि हैं वह हैं शास्त्रों की अथॉरिटी। भक्ति की भी अथॉरिटी नहीं कहेंगे।
शास्त्रों की अथॉरिटी हैं, उन्हों का सारा मदार शास्त्रों पर है। समझते हैं भक्ति
का फल भगवान को देना है। भक्ति कब शुरू हुई, कब पूरी होनी है, यह पता नहीं है। भक्त
समझते हैं भक्ति से भगवान राज़ी होगा। भगवान से मिलने की इच्छा रहती है, परन्तु वह
किसकी भक्ति से राज़ी होगा? जरूर उनकी ही भक्ति करेंगे तब तो राज़ी होगा ना। तुम
शंकर की भक्ति करो तो बाप राज़ी कैसे होगा, क्या हनूमान की भक्ति करेंगे तो बाप राज़ी
होगा? दीदार हो जाता है, बाकी मिलता कुछ नहीं है। बाप कहते हैं मैं भल साक्षात्कार
कराता हूँ, परन्तु ऐसे नहीं कि मेरे साथ आकर मिलेंगे। नहीं, तुम मेरे साथ मिलते हो।
भगत भक्ति करते हैं भगवान से मिलने के लिए। कहते हैं पता नहीं कि भगवान किस रूप में
आकर मिले, इसलिए उसे कहा जाता है ब्लाइन्ड-फेथ। अभी तुम बाप से मिले हो। जानते हो
वह निराकार बाप जब शरीर धारण करे तब ही अपना परिचय दे कि मैं तुम्हारा बाप हूँ। 5
हज़ार वर्ष पहले भी तुमको राज्य-भाग्य दिया था फिर तुमको 84 जन्म लेने पड़े। यह
सृष्टि चक्र फिरता रहता है। द्वापर के बाद ही दूसरे धर्म आते हैं, अपना-अपना धर्म
आकर स्थापन करते हैं। इसमें कोई बड़ाई की बात नहीं है। बड़ाई किसकी भी नहीं है।
ब्रह्मा की बड़ाई तब है जब बाप आकर प्रवेश करते हैं। नहीं तो यह धंधा करता था, इनको
भी थोड़ेही पता था मेरे में भगवान आयेंगे। बाप ने प्रवेश कर समझाया है कि कैसे मैंने
इनमें प्रवेश किया। कैसे इनको दिखाया – मेरा सो तुम्हारा, तुम्हारा सो मेरा, देख
लो। तुम मेरे मददगार बनते हो – अपने तन-मन-धन से तो उनकी एवज में तुमको यह मिलेगा।
बाप कहते हैं – मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ, जो अपने जन्मों को नहीं जानते।
परन्तु मैं कब आता हूँ, कैसे आता हूँ, यह किसको पता नहीं है। अभी तुम देखते हो
साधारण तन में बाप आये हैं। इन द्वारा हमको ज्ञान और योग सिखला रहे हैं। ज्ञान तो
बहुत सहज है। नर्क का फाटक बन्द हो स्वर्ग का फाटक कैसे खुलता है – यह भी तुम जानते
हो। द्वापर में रावण राज्य शुरू होता है अर्थात् नर्क का द्वार खुलता है। नई और
पुरानी दुनिया को आधा-आधा में रखा जाता है। तो अब बाप कहते हैं – मैं तुम बच्चों को
पतित से पावन होने की युक्ति बताता हूँ। बाप को याद करो तो जन्म-जन्मान्तर के पाप
नाश हो जाएं। इस जन्म के पाप भी बताने हैं। याद तो रहते हैं ना – क्या पाप किये
हैं? क्या-क्या दान-पुण्य किया है? इसको अपने छोटेपन का पता है ना। कृष्ण का ही नाम
है सांवरा और गोरा, श्याम सुन्दर। उनका अर्थ कभी कोई की बुद्धि में नहीं आयेगा। नाम
श्याम-सुन्दर है तो चित्र में काला बना दिया है। रघुनाथ के मन्दिर में देखेंगे – वहाँ
भी काला, हनूमान का मन्दिर देखो, तो सबको काला बना देते हैं। यह है ही पतित दुनिया।
अभी तुम बच्चों को ओना (]िफा) है कि हम सांवरे से सुन्दर बनें। उसके लिए तुम बाप की
याद में रहते हो। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म है। मुझे याद करो तो पाप भस्म होंगे।
जानते हैं बाप आये हैं ले जाने। तो जरूर शरीर यहाँ छोड़ेगे। शरीर सहित थोड़ेही ले
जायेंगे। पतित आत्मायें भी जा न सकें। जरूर बाप पावन बनने की युक्ति बतायेंगे। तो
कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों। भक्ति मार्ग में है अन्धश्रद्धा। शिव
काशी कहते हैं फिर कहते हैं शिव ने गंगा लाई, भागीरथ से गंगा निकली। अब पानी माथे
से कैसे निकलेगा। भागीरथ कोई ऊपर पहाड़ पर बैठा है क्या, जिसकी जटाओं से गंगा आयेगी!
पानी जो बरसता है, सागर से खींचते हैं, जो सारी दुनिया में पानी जाता है। नदियाँ तो
सब तरफ हैं। पहाड़ों पर बर्फ जम जाती है, वह भी पानी आता रहता है। पहाड़ों के अन्दर
गुफाओं में जो पानी रहता है, वह फिर कुओं में आता रहता है। वह भी बरसात के आधार पर
है। बरसात न पड़े तो कुएं भी सूख जाते हैं।
कहते भी हैं बाबा हमको
पावन बनाकर स्वर्ग में ले जाओ। आश ही स्वर्ग, कृष्णपुरी की है। विष्णुपुरी का किसको
पता नहीं है। कृष्ण के मुरीद कहेंगे – जहाँ देखो कृष्ण ही कृष्ण है। अरे, जबकि
परमात्मा सर्वव्यापी है तो क्यों नहीं कहते जिधर देखो परमात्मा ही परमात्मा है।
परमात्मा के मुरीद फिर ऐसे कहते यह सब उनके ही रूप हैं। वही यह सारी लीला कर रहे
हैं। भगवान ने रूप धरे हैं, लीला करने के लिए। तो जरूर अभी लीला करेंगे ना। परमात्मा
की दुनिया स्वर्ग में देखो, वहाँ गंद की कोई बात नहीं होती। यहाँ तो गंद ही गंद है
और फिर यहाँ कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है। परमात्मा ही सुख देते हैं। बच्चा आया
सुख हुआ, मरा तो दु:ख होगा। अरे, भगवान ने तुमको चीज़ दी फिर ली तो इसमें तुमको रोने
की क्या दरकार है! सतयुग में यह रोने आदि का दु:ख होता नहीं। मोहजीत राजा का
दृष्टान्त दिखाया है। यह सब हैं झूठे दृष्टान्त। उनमें कोई सार नहीं है। सतयुग में
ऋषि-मुनि होते नहीं। और यहाँ भी ऐसी बात हो नहीं सकती। ऐसा कोई मोहजीत राजा हो नहीं
सकता। भगवानुवाच – यादव, कौरव, पाण्डव क्या करत भये? तुम्हारा बाप से योग है। बाप
कहते हैं मैं तुम बच्चों द्वारा भारत को स्वर्ग बनाता हूँ। अब जो पवित्र बनते हैं
वह पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। कोई भी मिले उनको यह बोलो भगवान कहते हैं मामेकम्
याद करो। मेरे से प्रीत लगाओ और कोई को याद न करो। यह है अव्यभिचारी याद। यहाँ कोई
जल आदि नहीं चढ़ाना है। भक्ति मार्ग में यह धंधा आदि करते, याद करते थे ना। गुरू
लोग भी कहते हैं, मुझे याद करो, अपने पति को याद नहीं करो। तुम बच्चों को कितनी बातें
समझाते हैं। मूल बात है कि सभी को पैगाम दो – बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। बाबा
माना ही भगवान। भगवान तो निराकार है। कृष्ण को सब भगवान नहीं कहेंगे। कृष्ण तो बच्चा
है। शिवबाबा इसमें ना होता तो तुम होते क्या? शिवबाबा ने इन द्वारा तुमको एडाप्ट
किया, अपना बनाया है। यह माता भी है, पिता भी है। माता तो साकार में चाहिए ना। वह
तो है ही पिता। तो ऐसी-ऐसी बातें अच्छी रीति धारण करो।
तुम बच्चों को कभी भी
किसी बात में मूंझना नहीं है। पढ़ाई को कभी नहीं छोड़ना। कई बच्चे संगदोष में आकर
रूठकर अपनी पाठशाला खोल देते हैं। अगर आपस में लड़-झगड़कर जाए अपनी पाठशाला खोली तो
मूर्खपना है, रूठते हैं तो पाठशाला खोलने के लायक ही नहीं हैं। वह देह-अभिमान
तुम्हारा चलेगा ही नहीं क्योंकि बुद्धि में तो दुश्मनी है तो वह याद आयेगी। कुछ भी
किसको समझा नहीं सकेंगे। ऐसे भी होता है, जिसको ज्ञान देते हैं वह तीखे चले जाते
हैं, खुद गिर पड़ते हैं। खुद भी समझते हैं मेरे से उनकी अवस्था अच्छी है। पढ़ने वाला
राजा बन जाए और पढ़ाने वाला दास-दासी बन जाते हैं, ऐसे-ऐसे भी हैं। पुरुषार्थ कर
बाप के गले का हार बनना है। बाबा जीते जी मैं आपका बना हूँ। बाप की याद से ही बेड़ा
पार होना है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी किसी बात में मूँझना नहीं है। आपस में रूठकर पढ़ाई नहीं छोड़नी
है। दुश्मनी बनाना भी देह अभिमान है। संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है।
पावन बनना है, अपनी चलन से बाप का शो करना है।
2) प्रीत बुद्धि बन एक बाप की अव्यभिचारी याद में रहना है। तन-मन-धन से बाप के
कार्य में मददगार बनना है।
वरदान:-
सर्व सम्बन्धों का अनुभव एक बाप से करने वाले अथक और
विघ्न-विनाशक भव
जिन बच्चों के सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ हैं उनको और सब
सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे, वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे, कभी थकावट
का अनुभव नहीं करेंगे, अथक होंगे। बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। विघ्नों के
कारण रुकने के बजाए सदा विघ्न-विनाशक होंगे। सर्व सम्बन्धों की अनुभूति एक बाप से
होने के कारण डबल लाइट रहेंगे, कोई बोझ नहीं होगा। सर्व कम्प्लेन समाप्त होंगी।
कम्पलीट स्थिति का अनुभव होगा। सहजयोगी होंगे।
स्लोगन:-
संकल्प में भी किसी देहधारी तरफ आकर्षित होना अर्थात् बेवफा बनना।