ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को रोज़-रोज़ समझाते हैं कि बच्चे आत्म-अभिमानी होकर
बैठो। ऐसे नहीं बुद्धि बाहर में भटकती रहे। एक बाप को ही याद करना है। वही ज्ञान का
सागर है, प्रेम का सागर है। कहते हैं एक ज्ञान की बूँद भी बस है। बाप कहते हैं
मीठे-मीठे बच्चे रूहानी बाप को याद करो तो तुमको यह वर्सा मिल जायेगा। अमरपुरी
वैकुण्ठ में चले जायेंगे। बाकी इस समय जो सिर पर पापों का बोझ है वह उतारना है।
कायदे प्रमाण, विवेक अनुसार तुम बच्चों को समझाया जाता है। जो ऊंच ते ऊंच थे वही
फिर अन्त में नीचे तपस्या कर रहे हैं। राजयोग की तपस्या एक बाप ही सिखलाते हैं।
हठयोग बिल्कुल अलग है। वह है हद का, यह है बेहद का। वह है निवृत्ति मार्ग, यह है
प्रवृत्ति मार्ग। बाप कहते हैं तुम विश्व के मालिक थे। यथा राजा रानी तथा प्रजा..
प्रवृत्ति मार्ग में पवित्र देवी-देवता थे फिर देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं।
उसके भी चित्र हैं। बहुत गन्दे चित्र बनाते हैं जो देखने में भी लज्जा आती है
क्योंकि बुद्धि ही एकदम खत्म हो जाती है। बाप का ही गायन है तू प्यार का सागर है।
अब प्यार की बूँद नहीं होती। यह है ज्ञान की बात। तुम बाप को पहचानकर बाप से वर्सा
लेने आते हो। बाप सद्गति का ही ज्ञान देते हैं। थोड़ा ही सुना और सद्गति में आ गये।
यहाँ से तुम बच्चों को जाना है नई दुनिया में। तुम जानते हो हम वैकुण्ठ के मालिक
बनते हैं। इस समय सारे विश्व पर रावण राज्य है। बाप आया है विश्व का राज्य देने।
तुम सब विश्व के मालिक थे। अब तक चित्र खड़े हैं। बाकी लाखों वर्ष की कोई बात नहीं।
यह रांग है। बाप को ही सदैव राइटियस कहा जाता है। बाप द्वारा सारी विश्व राइटियस बन
जाती है। अभी है अनराइटियस। अभी तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो। परन्तु यह भी
ड्रामा में नूँध है। जो ज्ञान सुनते-सुनते आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो
जाते हैं। अहो मम माया तुम कितनी जबरदस्त हो जो बाप से बेमुख करा देती हो। क्यों नहीं
जबरदस्त होगी, आधाकल्प उनका राज्य चलता है। रावण क्या है, यह भी तुम जानते हो। यहाँ
भी कोई बच्चे समझदार हैं, कोई बेसमझ हैं।
तुम जानते हो अभी हमारे ऊपर बृहस्पति की दशा है, तब हम स्वर्ग में जाने का
पुरूषार्थ कर रहे हैं। मनुष्य जो मरते हैं वह तो कोई स्वर्ग में जाने का पुरूषार्थ
नहीं करते हैं। सिर्फ ऐसे ही कह देते हैं स्वर्ग पधारा। तुम जानते हो सच-सच स्वर्ग
में जाने का पुरूषार्थ हम कर रहे हैं अथवा स्वर्ग का मालिक बनने का पुरूषार्थ कर रहे
हैं। ऐसे कभी कोई नहीं कहेंगे कि यह स्वर्ग जा रहे हैं। कहेंगे यह क्या कहते हो,
मुख बन्द करो। मनुष्य तो हद की बातें सुनाते हैं। बाप तुम्हें बेहद की बातें सुनाते
हैं। तुम बच्चों को बहुत पुरूषार्थ करना चाहिए। बहुत नशा चढ़ना चाहिए। जिन्होंने
कल्प पहले पुरूषार्थ किया, जो पद पाया है वही पायेंगे। अनेक बार तुम बच्चों को माया
पर जीत पहनाई है। फिर तुमने हार भी खाई है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। तो बच्चों को
बड़ी खुशी होनी चाहिए। मृत्युलोक से अमरलोक में जा रहे हो। स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी
बेस्ट। इस समय तुम्हारी बेस्ट लाइफ है, इसे कोई भी मनुष्य नहीं जानते। भगवान खुद
आकर पढ़ाते हैं, यह है दी बेस्ट स्टूडेन्ट लाइफ। आत्मा ही पढ़ाती है फिर कहेंगे इनका
नाम फलाना है। आत्मा ही टीचर है ना। आत्मा ही सुनकर धारण करती है, आत्मा ही सुनती
है। परन्तु देह-अभिमान के कारण समझते नहीं। सतयुग में भी समझेंगे कि हम आत्मा को यह
शरीर मिला है, अब वृद्ध अवस्था हुई है। झट साक्षात्कार होगा - अभी हम यह पुराना चोला
छोड़ नया लेते हैं। भ्रमरी का मिसाल भी अभी का है। अब तुम जानते हो हम ब्राह्मणियाँ
हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार जो भी तुम्हारे पास आते हैं उन पर भूँ-भूँ करते हो फिर
उनमें भी कोई कच्चे कोई सड़ जाते हैं। सन्यासी लोग तो यह मिसाल दे न सके। वो थोड़ेही
आप समान बनायेंगे। तुम्हारे पास तो एम आब्जेक्ट है। यह सत्य नारायण की कथा, अमरकथा...
यह सब तुम्हारी है। एक ही बाप सत्य सुनाते हैं। बाकी सब है झूठ। वहाँ सत्य नारायण
की कथा सुनाकर प्रसाद खिलाते रहते हैं। कहाँ वह हद की बातें, कहाँ यह बेहद की बातें।
तुमको बाप डायरेक्शन देते हैं। तुम नोट करते हो बाकी किताब शास्त्र आदि तो सब खत्म
हो जायेंगे। पुरानी कोई भी चीज़ नहीं रहेगी। मनुष्य समझते हैं कलियुग में अजुन 40
हज़ार वर्ष पड़े हैं इसलिए बड़े-बड़े मकान आदि बनाते रहते हैं। खर्चा करते रहते
हैं। क्या समुद्र छोड़ेगा? एक ही लहर से हप कर लेगा। न यह बाम्बे थी, न रहेगी। अभी
100 वर्ष के अन्दर यह सब क्या-क्या निकला है। आगे वाइसराय भी 4 घोड़े की गाड़ी में
आते थे। अब थोड़े समय में क्या-क्या हो गया है। स्वर्ग तो बहुत छोटा है। नदी के
किनारे पर तुम्हारे महल होंगे।
अभी तुम बच्चों पर बृहस्पति की दशा है। बच्चों को खुशी होनी चाहिए हम इतने
साहूकार बनते हैं। कोई देवाला मारते हैं तो राहू की दशा कहा जाता है। तुम अपनी दशा
पर हर्षित रहो। भगवान बाप हमको पढ़ाते हैं। भगवान किसको पढ़ाते हैं क्या? तुम बच्चे
जानते हो हमारी यह स्टूडेन्ट लाइफ दी बेस्ट है। हम नर से नारायण विश्व के मालिक बनते
हैं। यहाँ हम रावण राज्य में आकर फँसे हैं। फिर जाते हैं सुखधाम में। तुम संगमयुगी
ब्राह्मण हो। ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है। एक थोड़ेही होगा। बहुत होंगे ना। तुम
खुदाई खिदमतगार बनते हो। खुदा जो खिदमत करते हैं स्वर्ग स्थापन करने की, उसमें तुम
मदद करते हो। जो जास्ती मदद करेंगे वह ऊंच पद पायेंगे। कोई भूख नहीं मर सकते। यहाँ
फकीर लोगों के पास भी जाँच करते हैं तो हज़ारों रूपये निकल आते हैं। भूख कोई मर न
सके। यहाँ भी तुम बाप के बने हो। भल बाप गरीब होते हैं परन्तु बच्चों को जब तक खाना
न मिले तो खुद नहीं खाते क्योंकि बच्चे वारिस हैं। उन पर लॅव रहता है। वहाँ तो गरीब
की बात नहीं। अथाह अनाज रहता है। बेहद की साहूकारी रहती है। वहाँ की पहरवाइस देखो
कितनी सुन्दर है। तब बाबा कहते हैं जब फुर्सत मिले तो लक्ष्मी-नारायण के चित्र के
सामने जाकर बैठो। रात को भी बैठ सकते हो। इन लक्ष्मी-नारायण को देखते-देखते सो जाओ।
अहो बाबा हमें ऐसा बनाते हैं! तुम ऐसा अभ्यास करके देखो, कितना मजा आता है। फिर
सुबह को उठकर अनुभव सुनाओ। लक्ष्मी-नारायण का चित्र और सीढ़ी का चित्र सबके पास होना
चाहिए। स्टूडेन्ट जानते हैं, हमको कौन पढ़ाते हैं। उनका चित्र भी है। सारा मदार है
पढ़ाई के ऊपर। स्वर्ग का मालिक तो बनेंगे। बाकी पद का मदार है पढ़ाई पर। बाबा कहते
हैं यह पुरूषार्थ करो - मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं। मैं बाबा से वर्सा लेता हूँ। कोई
भी तकलीफ नहीं। माताओं के लिए तो बहुत सहज है। पुरूष लोग तो धन्धे पर चले जाते हैं।
इस एम आब्जेक्ट के चित्र पर तुम बहुत सर्विस कर सकते हो। बहुतों का कल्याण करेंगे
तो तुमको बहुत प्यार करेंगे। कहेंगे तुम तो हमारी माता हो। जगत के कल्याण के लिए
तुम मातायें निमित्त हो। अपने को देखना है हमने कितनों का कल्याण किया है। कितनों
को बाप का पैगाम दिया है। बाप भी पैगम्बर है और कोई को भी पैगम्बर नहीं कहेंगे।
तुमको बाप मैसेज देते हैं जो तुम सबको सुनाओ। बेहद के बाप और वर्से को याद करो, 84
के चक्र को भी याद करो। तुम पैगम्बर बाप के बच्चे पैगाम देने वाले हो। सबको बोलो दो
बाप हैं। बेहद के बाप ने सुख और शान्ति का वर्सा दिया है। हम सुखधाम में थे तो बाकी
सब शान्तिधाम में थे। फिर जीवनमुक्ति में आते हैं। अब हमको वापिस जाना है फिर वहाँ
हम ही विश्व के मालिक होंगे। एक गीत भी है बाबा तुमसे हमको सारे विश्व की बादशाही
मिलती है। सारा धरती, समुद्र, आकाश हमारे हाथ में होगा। इस समय हम बाप से बेहद का
वर्सा ले रहे हैं। तुम हो गुप्त वारियर्स, शिव शक्ति सेना। यह है ज्ञान कटारी,
ज्ञान बाण। उन्हों ने देवियों को स्थूल हथियार दे दिये हैं। भक्ति मार्ग में कितने
मन्दिर बनाये हैं, कितने चित्र आदि हैं, तब बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में तुमने सब
पैसे आदि खत्म कर दिए हैं। अब यह सब खत्म होने वाले हैं, डूब जायेंगे। तुमको
साक्षात्कार भी कराया था कि वहाँ कैसे जाकर खानियों से हीरे जवाहर ले आते हैं
क्योंकि यह सब दब जाते हैं। बड़े-बड़े राजाओं के पास तहखाने (अन्डरग्राउन्ड) होते
हैं। वह सब दब जायेंगे फिर तुम्हारे कारीगर लोग जाकर ले आयेंगे। नहीं तो इतना सोना
आदि कहाँ से आयेगा। स्वर्ग की सीन अजमेर में देखते हैं ना। बाबा ने कहा था
म्युज़ियम भी ऐसा ही बनाओ। स्वर्ग का फर्स्टक्लास माडल बनाना चाहिए। तुम बच्चे जानते
हो अभी हम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। आगे कुछ भी नहीं जानते थे, अब जानते जा
रहे हैं। ऐसे नहीं हम हर एक के अन्दर को जानते हैं। कोई-कोई विकारी भी आते थे। कहा
जाता था क्यों आते हो? तो कहते थे आयेंगे तब तो विकारों से छूटेंगे। मैं बहुत पाप
आत्मा हूँ। बाप कहेगा अच्छा कल्याण हो जाये। माया बड़ी दुस्तर है। बाप कहते हैं
बच्चे तुम्हें इन विकारों पर जीत पानी है तब ही जगतजीत बनेंगे। माया भी कम नहीं है।
अभी तुम पुरूषार्थ कर इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनते हो। इन जैसी ब्युटी और किसी की
हो न सके। यह है नैचुरल ब्युटी। हर 5 हज़ार वर्ष के बाद स्वर्ग की स्थापना होती है
फिर 84 जन्मों के चक्र में आते हैं। तुम लिख सकते हो यह युनिवर्सिटी कम हॉस्पिटल
है। वह हेल्थ के लिए वह वेल्थ के लिए। हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस - 21 जन्म के लिए आकर
प्राप्त करो। धन्धे वाले भी अपना बोर्ड लगाते हैं। घरों में भी बोर्ड लगाते हैं।
ऐसे-ऐसे लिखेंगे भी वही जो नशे में रहते होंगे। जो भी आये उनको समझाओ - तुमने बेहद
के बाप से वर्सा लिया था फिर 84 जन्म ले तुम पतित बने हो। अब पावन बनो। अपने को
आत्मा समझो। बाप को याद करो। बाबा भी ऐसे करते हैं। यह हैं पहले नम्बर के पुरूषार्थी।
कई बच्चे लिखते हैं बाबा तूफान आते हैं, यह होता है। मैं लिखता हूँ मेरे पास तो सब
तूफान पहले आते हैं। मैं पहले अनुभवी बनूँ तब तो समझा सकूँ। यह तो माया का धन्धा
है।
अब बाप कहते हैं मीठे लाडले बच्चे, अब तुम्हारे ऊपर बृहस्पति की दशा है। तुम्हें
किसी को भी अपनी जन्मपत्री आदि दिखाने की ज़रूरत नहीं। बाबा सब कुछ बता देते हैं।
वहाँ आयु भी बड़ी होती है। श्रीकृष्ण को भी योगेश्वर कहते हैं। इनको योगेश्वर ने
योग सिखाया तो यह बना। कोई मनुष्य मात्र सन्यासी आदि को योगेश्वर नहीं कह सकते हैं।
तुमको ईश्वर योग सिखाते हैं इसलिए योगेश्वर और योगेश्वरी नाम रखा है। ज्ञानेश्वर
ज्ञानेश्वरी भी इस समय तुम ही हो। फिर जाकर राज-राजेश्वर भी तुम ही बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एम आब्जेक्ट को सामने रख पुरूषार्थ करो। लक्ष्मी-नारायण के चित्र को
सामने देखते हुए अपने आपसे बातें करो ओहो बाबा आप हमें ऐसा बनाते हैं! हमारे ऊपर अभी
ब्रहस्पति की दशा बैठी है।
2) आप समान बनाने के लिए भ्रमरी की तरह ज्ञान की भूँ-भूँ करो। खुदाई खिदमतगार बन
स्वर्ग की स्थापना में बाप की मदद करो।