ओम् शान्ति।
बच्चे इस गीत का अर्थ समझते होंगे। बाप करन-करावनहार है ना। तो ऐसे-ऐसे गीत भी बाबा
ने बच्चों के लिए बनवाये हैं। बाप बच्चों को कहते हैं कि बेहद के मात-पिता के बच्चे
बनकर फिर भुला न देना। यह याद लम्बी है। याद करते ही रहना है। जब मात-पिता कहते हैं
तो पिता को याद जरूर करना है। मात-पिता की याद तो पहले होती है फिर वर्से के लिए
बाप की ही याद रखनी पड़ती है। लिखा हुआ भी है डीटी सावरन्टी तुम्हारा ईश्वरीय जन्म
सिद्ध अधिकार है। परमपिता परमात्मा है विश्व का रचता, तो जरूर स्वर्ग नई दुनिया ही
रचेंगे। बाप कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम पुराना घर बनाते हैं। हमेशा नया घर ही बनाते
हैं। पुराना बनाने का अक्षर कभी नहीं निकलता। बेहद का बाप भी नई दुनिया ही रचते
हैं। अब बच्चे जानते हैं हम मात-पिता से वर्सा पाने श्रीमत पर चल रहे हैं। यह है
बुद्धि की यात्रा। वह जिस्मानी यात्रायें तो जन्म-जन्मान्तर करते आते हैं और
घड़ी-घड़ी करते रहते हैं। यह रूहानी यात्रा एक ही बार होती है। तो यात्री पण्डे को
कभी भूल नहीं सकते अथवा बच्चे मात-पिता को कभी भूल नहीं सकते। तुम हो पाण्डव सेना,
सुप्रीम पण्डा है शिवबाबा। तुम हो उनके बच्चे। बद्रीनाथ वा अमरनाथ पर जाते हैं तो
बुद्धि में यात्रा ही याद रहती है। जैसे विलायत से लौटते हैं तो फिर अपना बर्थप्लेस
ही याद रहता है। खुशी होती है कि हम घर जाते हैं। तुम बच्चे भी जानते हो अपने बेहद
घर स्वीट होम में हम जाते हैं। विकर्माजीत जरूर बनना है। यह बाप ही आकर सिखलाते
हैं। कहते हैं सिवाए याद वा योग के तुम्हारे विकर्म विनाश हो नहीं सकते। योग की
महिमा बहुत है। प्राचीन भारत का योग गाया हुआ है पुराने ते पुराना। सतयुग है नई
दुनिया। तो इस समय पुरानी दुनिया में पुराना योग सिखलाते हैं। योग की महिमा बहुत
है। बाप यह योग सिखला कर जाते हैं फिर भक्ति मार्ग शुरू होगा। तुम कहेंगे प्राचीन
योग मनुष्य, मनुष्य को कभी सिखला न सके। और सभी अनेक प्रकार के योग मनुष्य, मनुष्य
को सिखलाते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो सभी का सच्चा-सच्चा बाप एक है और सबकी माँ
जगदम्बा है। यूँ तो फादर सबको कहते रहते हैं। म्युनिसपाल्टी के चेयरमैन को भी फादर
कहते हैं। ऐसे तो फिर बहुत हो जाते। गॉड फादर एक ही है। वह है रचता। सृष्टि भी एक
ही है। ऐसे नहीं कि नीचे वा ऊपर कोई सृष्टि है। मनुष्य कितनी कोशिश करते हैं
चन्द्रमा, स्टार्स तरफ जाकर प्लाट खरीद करें। जब अति में जाते हैं तो फिर विनाश हो
जाता है। भल कितना भी माथा मारें।
अब बाप कहते हैं लाडले बच्चे बचपन भुला नही देना। यहाँ तो पहले बच्चे बनते हैं
बाप के। वही बाप फिर शिक्षक भी बनते हैं। वर्सा देने वाला एक ही बाप है। संन्यासियों
को तो मात-पिता है नहीं। प्रापर्टी मिल न सके। लौकिक बाप से तो सबको वर्सा मिलता
है। पारलौकिक बाप एक ही है। उनको कहा जाता है रचता। बाप कहते हैं मैं हूँ मनुष्य
सृष्टि का बीजरूप। मेरी महिमा भी करते हैं। सत-चित-आनंद स्वरूप। यह तो समझते हो बाप
की महिमा बिल्कुल अलग है और कोई की वो महिमा कर नहीं सकते। विश्व के मालिक
लक्ष्मी-नारायण की महिमा बिल्कुल अलग है। उनकी महिमा गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न..
अहिंसा परमो धर्म, मर्यादा पुरुषोत्तम। पहले नम्बर में स्वर्ग के महाराजा महारानी
की महिमा है। वह राज्य ही ऐसा है। यथा राजा रानी तथा प्रजा। वहाँ दु:ख का नाम नहीं
रहता। प्रजा को भी दु:ख का नाम नहीं। ऐसी दुनिया तो जरूर परमपिता परमात्मा ही रचेंगे।
उनको कहा ही जाता है हेविनली गॉड फादर। भल अंग्रेज लोग अक्षर कहते हैं हेविन परन्तु
समझते नहीं कि हेविन क्या होता है। भारत ही हेविन था। भारत की बड़ी भारी महिमा है।
तुम्हारा दुश्मन है रावण। तुम्हारा बेहद का राज्य गँवाने वाली यह माया दुश्मन है।
आधाकल्प से तुमने राजाई गँवाई है। गँवाते-गँवाते तुम बिल्कुल ही कंगाल बन पड़े हो।
फिर तुमको ही राज्य-भाग्य मिलता है। तुमको ही हीरो हीरोइन कहेंगे। एक हीरो हीरोइन
फिर उनकी वंशावली, तुम सभी हीरो हीरोइन बनते हो अर्थात् सारे विश्व पर तुम विजय
प्राप्त करते हो। तुम इस समय हीरो हीरोइन का पार्ट बजा रहे हो। सारे विश्व में बाप
तुमको हीरो हीरोइन का टाइटिल दिलवा रहे हैं। तुम हो शिव शक्ति सेना। तुम जानते हो
हम योगबल से स्वर्ग बनाते हैं फिर स्वर्ग में हम राज्य करेंगे। परन्तु माया ऐसी है
जो भुला देती है। जैसे सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है तो माया भी फिर सेकेण्ड में
भुला देती है। जीवनमुक्ति को फारकती दे सेकेण्ड में मर जाते हैं। बाप तो समझाते रहते
हैं बच्चे जीवन की मुसाफिरी लम्बी है। बरोबर बाप को याद करना है तो अन्त मती सो गति
हो जायेगी। जिस मात-पिता से बेहद का वर्सा मिलता है उनसे अगर मुँह मोड़ा तो फिर उस
तरफ चले जाते हैं। बच्चों ने लखनऊ में भूल-भुलैया देखा होगा, अन्दर जाने से मनुष्य
मूँझ जाते हैं। यह भी ऐसे है। बाप और बाप का घर भूल जाने से धक्के खाते माथा टेकते
रहते। रास्ता दिखाने वाला तो ऊपर खड़ा है।
बाप कहते हैं तुम अब माया पर जीत पाने का पुरुषार्थ कर रहे हो श्रीमत पर। ऐसे नहीं
आज मात-पिता कह कल फिर उनको भुला दो। यहाँ तो और संग तोड़ एक साथ जोड़ना है। भक्ति
मार्ग में गाते भी हैं बलिहार जाऊं, वारी जाऊं.. नाम लेते हैं श्रीकृष्ण का। वास्तव
में श्रीकृष्ण की बात है नहीं। यह है ही रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र शिव को कहा जाता
है, इतनी छोटी सी बात भी मनुष्य समझते नहीं। बाबा ने गीता बहुत पढ़ी है। परन्तु पहले
कुछ भी समझते नहीं थे। अभी समझते हैं उसमें तो भगवानुवाच लिखा हुआ है। इस रूद्र
ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होती है। रूद्र ज्ञान यज्ञ को फिर कृष्ण
यज्ञ कह देते हैं। रूद्र भी श्रीकृष्ण का अवतार है - ऐसे कह बात उड़ा देते हैं। अब
बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ तो जरूर नई सृष्टि चाहिए राज्य करने लिए।
दीपमाला पर लक्ष्मी का आह्वान करते हैं तो कितना सफाई आदि करते हैं। वह है भक्ति
मार्ग की रस्म-रिवाज। यहाँ तो तुम मनुष्य से देवता बनते हो तो जरूर बिल्कुल नई
सृष्टि चाहिए। इसके लिए ही पुरानी दुनिया का विनाश होता है। गीता में बिल्कुल
क्लीयर है - रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई। बाप है ही बेहद की
सृष्टि रचने वाला। कहते हैं बच्चों मुझ बाप को भूल नहीं जाना। आज हँसते, कल बाप को
भूले तो खत्म। फिर इतना रोना पड़ेगा जो कभी नहीं रोया होगा। बादशाही गँवा बैठते
हैं, बड़ा घाटा पड़ जायेगा। घाटे वाले मनुष्य की शक्ल पीली हो जाती है। तो बाप कहते
हैं पारलौकिक बाप और वर्से को भुला नहीं देना। औरों को समझाने की सर्विस करते रहो।
सर्विस में बिजी रहने से फिर भूलेंगे नहीं। धन दिये धन ना खुटे, जितना दान करेंगे
उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। औरों की आशीर्वाद तुम्हारे सिर पर होगी। कहेंगे ऐसे पण्डे
पर तो बलिहार जाऊं जिसने स्वर्ग का रास्ता बताया। यहाँ प्रैक्टिकल में बाप का
शुक्रिया माना जाता है। बाप कहते हैं बेहद की शान्ति सदाकाल के लिए देने वाला तो
मैं ही हूँ। मैं तुमको ऐसे कर्म सिखलाता हूँ जो कभी दु:ख अशान्ति हो नहीं सकती।
कर्मों की गति बड़ी गहन है। बाप कहते हैं मैं तुमको कर्म, अकर्म, विकर्म का राज़
समझाता हूँ। सतयुग में कर्म विकर्म होता नहीं, कर्म अकर्म होता है क्योंकि वहाँ माया
है नहीं। अभी तो माया का राज्य है इसलिए कर्म विकर्म बन जाता है। अभी तुम ड्रिल सीख
रहे हो और पहलवान बन रहे हो। यह पढ़ाई तो अन्त तक पढ़नी है। जितना पढ़ेंगे उतनी
ताकत मिलेगी, वृद्धि को पाते रहेंगे। हरेक मठ पंथ का पहले एक आता है फिर वृद्धि होती
जाती है। आजकल तो दुनिया में अन्धश्रद्धा बहुत है, यहाँ तो पढ़ाई है, इसमें
अन्ध-श्रद्धा की कोई बात नहीं। वो लोग एक ही लेक्चर से कितने को बौद्धी अथवा
क्रिश्चियन बना देते हैं। पादरी लोग ही बहुत लेक्चर करते हैं, फिर ढ़ेर क्रिश्चियन
बन जाते हैं। यहाँ वह बात नहीं। यहाँ तो माया से युद्ध करनी है, इसको कहा जाता है
युद्धस्थल। भगवान आकर हिंसा थोड़ेही सिखलायेंगे। कहते हैं अहिंसा का बल चाहिए।
परन्तु हिंसक मनुष्य कभी अहिंसा सिखला न सके। अभी तुम बच्चे जानते हो हम बाप से
वर्सा पाने का पूरा पुरुषार्थ कर रहे हैं। यह राजधानी स्थापन हो रही है। माला को
फिराते राम-राम कहते रहते हैं। त्रेता अन्त तक 16108 प्रिन्स प्रिन्सेज हो जाते
हैं। इसमें आठ हैं मुख्य। आठ रत्नों की बड़ी महिमा है। मनुष्य थोड़ेही समझते हैं कि
इनका राज़ क्या है। आठ तो पास विद ऑनर होते बिल्कुल सजा नहीं खाते। बाकी 100 तो थोड़ी
बहुत सजा खाते ही हैं। बाप कहते हैं बच्चे थक मत जाना। ओ रात के राही। अभी हम रात
को क्रास कर दिन में जाते हैं। बाबा भी आते हैं संगम पर। आधा-कल्प की रात पूरी होती
है तो बाप आते हैं इसलिए ही शिवरात्रि कहते हैं। शिवबाबा की जन्मपत्री और कोई बता न
सके सिवाए तुम्हारे। ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन बेहद का गाया हुआ है। घोर
अन्धियारे से घोर सोझरा होता है। बाप आते हैं अन्त में, जबकि रात पूरी हो दिन आता
है। तो ब्रह्मा की है बेहद की रात। यह समझ की बातें हैं ना। बाबा खुद कहते हैं मैं
साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानता, मैं बतलाता हूँ -
ब्रह्मा और बी.के. के इतने जन्म हुए। इन सब बातों को कल्प पहले वाले ही समझेंगे। हम
अभी बाप को जानने से आस्तिक बने हैं। बाप से वर्सा लेते हैं।
आत्माओं का बाप एक है। ब्रह्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। एडाप्ट करते हैं ना। खुद
कहते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। और कोई यह बातें कर न सके। बाप कहते हैं लाडले
बच्चे बाप को कभी भूलना नहीं। भूले तो स्वर्ग का वर्सा गँवा देंगे फिर रोना पड़ेगा।
कल्प-कल्प की बाज़ी हो जाती है। कल्प-कल्प ऐसा करते रहेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीवन की लम्बी मुसाफिरी में थकना नहीं है। मात-पिता से कभी भी मुँह
नहीं मोड़ना है। और संग तोड़ एक बाप पर पूरा बलिहार जाना है।
2) स्वीट होम में जाने के पहले विकर्माजीत जरूर बनना है। श्रीमत पर बुद्धि की
यात्रा करते रहना है।