23-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - याद से आत्मा का किचड़ा निकालते जाओ, आत्मा
जब बिल्कुल पावन बनें तब घर चल सके''
प्रश्नः-
इस अन्तिम जन्म में बाप के किस डायरेक्शन को पालन करने
में ही बच्चों का कल्याण है?
उत्तर:-
बाबा कहते मीठे बच्चे - इस अन्तिम जन्म में बाप से पूरा
वर्सा ले लो। बुद्धि को बाहर में भटकाओ मत, विष को छोड़ अमृत पियो। इस अन्तिम जन्म
में ही तुम्हें 63 जन्मों की आदत मिटानी है इसलिए रात-दिन मेहनत कर देही-अभिमानी बनो।
ओम् शान्ति।
शान्तिधाम विश्रामपुरी है। इस दुनिया से सब थके हुए हैं। चाहते हैं कि हम अपने
सुखधाम में जायें। यह दुनिया अच्छी नहीं लगती। स्वर्ग को देखते हैं तो नर्क से दिल
कैसे लगे। कहते हैं बाबा जल्दी करो, इस दु:खधाम से ले चलो। बाप भी समझाते हैं - यह
तो छी-छी दुनिया है, इनका नाम ही है डेविल वर्ल्ड, नर्क। यह कोई अच्छा अक्षर है क्या?
कहाँ डीटी वर्ल्ड, कहाँ डेविल वर्ल्ड, इस डेविल वर्ल्ड में सब तंग हो गये हैं।
परन्तु वापिस कोई जा नहीं सकते। तमोप्रधानता की खाद पड़ी हुई है। वह खाद आत्मा से
निकले, उसके लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। जो अच्छे पुरूषार्थी हैं, उनकी अवस्था पिछाड़ी
में अच्छी हो जायेगी। यह पुरानी दुनिया खलास हो जायेगी, अब तो बाकी थोड़े रोज़ हैं।
जब तक बाप आकर वापिस न ले जाये तब तक कोई वापिस जा नहीं सकते। दुनिया में दु:ख है
ना। घर में भी कोई न कोई दु:ख रहता है। तुम बच्चों की दिल में है बाबा अब हमें दु:खों
से छुड़ाने आये हैं। जो अच्छे निश्चयबुद्धि हैं वह बाप की याद को कभी भूलते नहीं।
उनको कहा ही जाता है सर्व का दु:ख हर्ता। बच्चे ही पहचानते हैं। अगर सब पहचान लें
तो फिर इतने सब मनुष्य कहाँ आकर बैठें, यह हो न सके इसलिए ड्रामा में युक्ति भी ऐसी
रची हुई है। जो श्रीमत पर चलते हैं वही ऊंच पद पा सकते हैं, वह तो ठीक है। सजायें
खाकर भी शान्तिधाम अथवा पावन दुनिया में जायेंगे। परन्तु ऊंच पद पाने के लिए तो
पुरुषार्थ करना पड़े ना। दूसरा पावन बनने बिगर पावन दुनिया में कोई जा न सके। यह जो
कहते हैं कि फलाना ज्योति ज्योत समाया, वापिस गया - यह हो नहीं सकता। जो पहले-पहले
सृष्टि पर आये हैं, लक्ष्मी-नारायण, वह भी वापिस जा नहीं सकते तो और कोई कैसे जा
सकते हैं। इनके भी अब 84 जन्म पूरे हुए। अब जाने के लिए तपस्या कर रहे हैं। सब
पुकारते ही हैं एक बाप को। ओ गॉड फादर, ओ लिबरेटर, वह गॉड फादर है दु:ख हर्ता, सुख
कर्ता। कृष्ण आदि और किसको थोड़ेही पुकारते हैं। क्रिश्चियन हो, मुसलमान हो, सब ओ
गॉड फादर कह बुलाते हैं। आत्मा बुलाती है - अपने फादर को। फादर कहते तब हैं जब समझते
हैं हम आत्मा हैं। आत्मा भी कोई चीज़ है ना। आत्मा कोई बड़ी चीज़ नहीं है, वह तो एक
स्टार है और अति सूक्ष्म है। जैसे बाबा है वैसे ही आत्मा का स्वरूप है। अब तुम बाप
की महिमा करते हो - वह सत-चित है, ज्ञान का सागर, आनंद का सागर है। तुम्हारी आत्मा
भी उनके समान बनती है। तुम्हारी बुद्धि में अब सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का
ज्ञान आ गया है, और कोई मनुष्य मात्र में यह ज्ञान नहीं है। सारा भारत, सारी विलायत
ढूँढ़ लो, कोई को भी पता नहीं। आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाती है। 84 लाख तो
इम्पासिबुल है। 84 लाख जन्मों का तो कोई वर्णन ही न कर सके। बाप कहते हैं तुम अपने
जन्मों को नहीं जानते हो, हम सुनाते हैं। वह सब सुनते हुए भी पत्थरबुद्धि समझते नहीं
कि 84 लाख जन्म हो तो कोई सुना ही कैसे सकते।
अभी तुम जानते हो हम ब्राह्मण हैं, हमने 84 जन्म लिए हैं। ब्रह्मा ने भी 84 जन्म
लिए हैं, विष्णु ने भी 84 जन्म लिए हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
लक्ष्मी-नारायण ही 84 जन्म ले फिर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं। यह भी समझने की बात है
ना। बाप कहते हैं हर 5 हजार वर्ष बाद आकर समझाता हूँ। 5 हजार वर्ष का चक्र है। अभी
तुमने वर्णो का राज़ भी समझा है। हम सो का अर्थ भी समझा है, हम आत्मा सो देवता बनते
हैं फिर हम सो क्षत्रिय, हम सो वैश्य शूद्र बनते हैं। इतने-इतने जन्म लेते हैं फिर
हम सो ब्राह्मण बनते हैं। ब्राह्मणों का यह एक जन्म है। यह है ही तुम्हारा हीरे जैसा
जन्म।
बाप कहते हैं - यह तुम्हारा उत्तम शरीर है, इससे तुम स्वर्ग का वर्सा पा सकते हो
इसलिए अब और कोई तरफ भटको मत। ज्ञान अमृत पियो। समझ में भी आता है बरोबर 84 जन्म
लेते हैं। तुम पहले सतयुग में सतोप्रधान थे। फिर सतो बनें। फिर चांदी की खाद पड़ी,
एकदम पूरा हिसाब बताते हैं। अब गवर्मेंन्ट भी कहती है सोने में खाद (अलाए) मिलाओ।
14 कैरेट सोना पहनो। सोने में खाद डालना - यह भारतवासी अपसुगन समझते हैं। शादी कराते
हैं तो एकदम सच्चा सोना पहनते हैं। सोने पर भी भारतवासियों का बहुत प्यार है। क्यों?
भारत की बात मत पूछो। सतयुग में तो सोने के महल थे, सोने की ईटें थी। जैसे यहाँ ईटों
की ढेरी लगी रहती है। वहाँ सोने-चांदी की ढेरी रहती है। माया मच्छन्दर का खेल दिखाते
हैं। उसने सोने की ईटें देखी, सोचा ले जाता हूँ। नीचे उतरा तो देखा तो कुछ भी नहीं
है। कुछ न कुछ बात लगती है। बच्चियाँ समझती हैं, अभी हम फिर से स्वर्ग में जाते हैं
फिर अगर पति आदि तंग करते हैं तो बिचारी अन्दर में रोती हैं। कब हम सुखधाम में
जायेंगे? बाबा अब जल्दी करो। बाप कहते हैं - बच्चे जल्दी कैसे करूँ, पहले तुम योगबल
से अपना किचड़ा तो निकालो। योग की यात्रा पर रहो। बाप धीरज देते हैं। पुकारते भी हो
हे पतित-पावन आओ। गाते भी हैं - सर्व का सद्गति दाता एक। यहाँ की ही बात है। अकासुर
बकासुर यह सब बातें इस संगम समय की हैं। यह है ही आसुरी दुनिया। तो बाप समझाते हैं,
मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ, जब सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है।
तुम जानते हो, सतयुग में हर चीज़ सतोप्रधान होती है। यहाँ इतने पंछी जानवर आदि हैं,
यह सब इतने वहाँ नहीं होंगे। बड़े आदमियों के पास अच्छी सफाई रहती है। उन्हों के
रहने का स्थान, फर्नीचर आदि बहुत अच्छा होता है। तुम भी इतने ऊंच देवतायें बनते हो।
वहाँ ऐसी कोई छी-छी चीज़ रह न सके। यहाँ तो मच्छर आदि अनेक प्रकार की बीमारियाँ,
कितनी गन्दगी रहती है। गांवड़ों में इतना गन्द नही रहता। बड़े-बड़े शहरों में बहुत
गन्दगी रहती है क्योंकि बहुत मनुष्य हो गये हैं। रहने की जगह नहीं है। तुम सारे
विश्व के मालिक बनते हो। मनुष्य गाते हैं घट ही में ब्रह्मा, घट ही में विष्णु.....घट
ही में 9 लख तारे। ब्रह्मा सो विष्णु बन जाते हैं। विष्णु के साथ सितारे भी हैं।
सतयुग में यह देवता बनते हैं तो इतने थोड़ेही होते हैं, झाड़ पहले छोटा होता है फिर
वृद्धि को पाता है। सतयुग में तो बहुत थोड़े होंगे। मीठी नदियों के ऊपर रहते होंगे।
यहाँ नदियों से बहुत कैनाल्स निकालते हैं। वहाँ कैनाल्स आदि थोड़ेही होते हैं।
मुट्ठी जितने तो मनुष्य होते हैं। इतने के लिए गंगा जमुना तो है ही। उन नदियों के
ही आस-पास रहते हैं। 5 तत्व भी देवताओं के गुलाम बन जाते हैं। कभी भी बेकायदे बरसात
नहीं पड़ती। कभी नदी उछल नहीं खाती। नाम ही है स्वर्ग तो फिर क्या? अब कहते हैं
स्वर्ग की आयु इतने लाख वर्ष है। अच्छा भला वहाँ कौन राज्य करते थे, यह तो बताओ।
कितने गपोड़े लगाते रहते हैं।
तुम जानते हो, हम कल्प पहले मुआफिक ये पार्ट बजा रहे हैं। रूद्र ज्ञान यज्ञ में
अनेक प्रकारों के असुरों के विघ्न पड़ेंगे फिर मनुष्य समझते हैं, असुर लोग ऊपर से
गन्द, गोबर आदि डालते थे। परन्तु नहीं, तुम देखते हो - कितने विघ्न पड़ते हैं।
अबलाओं पर अत्याचार होते हैं तब तो पाप का घड़ा भरेगा। बाप कहते हैं - थोड़ा सहन
करना पड़ेगा। तुम अपने बाप और वर्से को याद करते रहो। मार खाने समय भी बुद्धि में
याद करो - शिवबाबा। तुमको तो बुद्धि में ज्ञान है, किसको फाँसी पर चढ़ाते हैं तो
पादरी लोग कहते हैं गॉड फादर को याद करो। ऐसे नहीं कहेंगे क्राइस्ट को याद करो।
इशारा गॉड के लिए करते हैं। वह इतना लवली है, सब उनको पुकारते हैं। आत्मा ही पुकारती
है। अब देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। 63 जन्म तुम देह-अभिमान में रहे हो। अभी
इस एक जन्म में वह आधाकल्प की आदत मिटानी है। तुम जानते हो, देही-अभिमानी बनने से
हम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। कितनी ऊंच प्राप्ति है। तो रात-दिन इसी कोशिश में
रहना पड़े। मनुष्य धन्धे आदि के लिए भी मेहनत करते हैं। आमदनी में मनुष्य को कभी
झुटका या उबासी नहीं आयेगी क्योंकि आमदनी है। पैसे की खुशी रहती है। थकने की बात ही
नहीं रहती। बाबा भी अनुभवी है ना। रात को स्टीमर्स आते थे तो आकर माल खरीद करते थे।
जब तक ग्राहक की जेब खाली न करें तब तक उनको छोड़े नहीं। बाबा ने रथ भी पूरा अनुभवी
लिया है। इसने सब अनुभव किया है। गांवड़े का छोरा भी था। 10 आने मण अनाज बेचता था।
अभी तो देखो विश्व का मालिक बनते हैं। एकदम गांवड़े का था। फिर चढ़ गया तो एकदम
जवाहरात के धन्धे में लग गया। बस जवाहरात की बात। यह फिर हैं सच्चे जवाहरात। यह होता
है रॉयल व्यापार। बाबा बहुत अनुभवी है। बाबा वाइसराय आदि के घर में ऐसे जाते थे जैसे
अपना घर। इनको फिर कहा जाता है अविनाशी ज्ञान रत्न। जितना यह बुद्धि में धारण करेंगे,
इससे तुम पदमपति बनेंगे। शिवबाबा को कहा जाता है सौदागर, रतनागर। उनकी महिमा भी गाते
हैं फिर कह देते सर्वव्यापी। महिमा के साथ फिर इतनी ग्लानी। कैसी हालत हो गई है
भक्ति मार्ग की। बाप कहते हैं - जब भक्ति पूरी होती है, तब भक्तों का रक्षक बाप आते
हैं। बहुत भक्ति कौन करते हैं, यह भी सिद्ध हो जाता है। सबसे जास्ती भक्ति तुम करते
हो। वही यहाँ आकर पहले-पहले ब्राह्मण बनते हैं और बाप से वर्सा लेते हैं फिर से
पूज्य बनने का। रावण ने पुजारी बनाया है, बाप पूज्य बनाते हैं। यह है भगवानुवाच।
भगवान एक है। 2-3 भगवान होते नहीं। गीता भगवान की गाई हुई है। शिव भगवानुवाच के बदले
कृष्ण का नाम ठोक दिया है तो कितना फर्क हो गया है। ड्रामा अनुसार फिर भी गीता का
नाम ऐसे बदलना ही है। फिर बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ। बाप पावन बनाते हैं, रावण
पतित बनाते हैं। तो समझने की कितनी बुद्धि चाहिए। श्रीमत, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है
ही एक बाप की। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक बाप की मत से ही बने हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस एक जन्म में 63 जन्मों के पुराने देह-अभिमान की आदत मिटाने की मेहनत करनी
है। देही-अभिमानी बन स्वर्ग का मालिक बनना है।
2) इस हीरे तुल्य उत्तम जन्म में इस बुद्धि को भटकाना नहीं है, सतोप्रधान बनना है।
अत्याचारों को सहन कर बाप से पूरा वर्सा लेना है। वरदान:-
सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले
सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव
सभी शिक्षाओं का सार है - कि कोई भी कर्म से देखने, उठने,
बैठने-चलने सोने से फरिश्ता-पन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो। कोई भी लौकिकता
कर्म वा संस्कारों में न हो। सोचना, करना, बोलना सब समान हो। ऐसे नहीं कि सोचते तो
थे कि यह न करें लेकिन कर लिया। जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे
श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।
स्लोगन:-
जिम्मेवारी उठाना अर्थात् एकस्ट्रा दुआओं का अधिकारी बनना।
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