ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चों प्रति, जो भी वाणी से परे जाने लिए, गोया घर जाने के लिए पुरुषार्थ
कर रहे हैं। वह सभी आत्माओं का घर है। तुम समझते हो अभी हमको यह शरीर छोड़कर घर जाना
है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको घर ले जाने अर्थ, इसीलिए इस देह और देह के
सम्बन्धों से उपराम होना है। यह तो छी-छी दुनिया है। यह भी आत्मा जानती है हमको अब
जाना है। बाप आया है पावन बनाने के लिए। फिर से हमको पावन दुनिया में जाना है। यह
अन्दर में विचार सागर मंथन होना चाहिए। और कोई को ऐसा विचार नहीं आयेगा। तुम समझते
हो हम खुद अपनी दिल से यह शरीर छोड़ अपने घर जाकर फिर नए पवित्र सम्बन्ध में, नई
दुनिया में आयेंगे। यह स्मृति भी बहुत थोड़ों को रहती है। बाप कहते हैं छोटे, बड़े,
बुढ़े आदि सबको वापिस चलना है। फिर नई दुनिया के पावन सम्बन्ध में आना है। घड़ी-घड़ी
बुद्धि में आना चाहिए कि हम अब घर जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। जो करेंगे वो ही
साथ चलेंगे। जो अभी ईश्वर अर्थ करते हैं वह जाकर पद्मापद्मपति बनते हैं नई दुनिया
में। वह लोग इस पुरानी दुनिया में इनडायरेक्ट करते हैं। समझते हैं ईश्वर इसका फल
देंगे। अब बाप समझाते हैं वह तुमको अल्पकाल क्षण भंगुर मिलता है। अब मैं आया हूँ,
तुमको राय देता हूँ - अभी जो देंगे वह तुमको 21 जन्म के लिए पद्म होकर मिलेगा। तुम
समझते हो बड़े घर में जाकर जन्म लेंगे। हम तो नारायण अथवा लक्ष्मी बनेंगे। तो फिर
इतनी मेहनत करनी चाहिए। हम इस पुरानी छी-छी दुनिया से जाने के लिए तैयारी कर रहे
हैं। यह पुरानी दुनिया, पुराना शरीर छोड़ना है। ऐसा तैयार रहना चाहिए जो पिछाड़ी के
समय कोई भी याद न आये। अगर पुरानी दुनिया वा मित्र-सम्बन्धी आदि याद आये तो क्या गति
होगी? तुम कहते हो ना अन्तकाल जो स्त्री सिमरे.... इसलिए बाप को फॉलो करना चाहिए।
ऐसे नहीं, बाबा बूढ़ा है तब समझते हैं यह शरीर छोड़ना ही है। नहीं, तुम सब बुढ़े
हो। सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, सबको वापिस जाना है इसलिए बाप कहते हैं इस पुरानी
दुनिया से बुद्धियोग तोड़ दो। अब तो जाना है अपने घर। फिर जितना वहाँ ठहरना होगा
उतना वहाँ ठहरेंगे। जितना पीछे पार्ट होगा तो पीछे शरीर धारण कर पार्ट बजायेंगे।
कोई तो 100 वर्ष कम 5 हज़ार वर्ष भी शान्तिधाम में रहेंगे। पिछाड़ी को आयेंगे। जैसे
काशी कलवट खाते हैं, सब पाप झट खलास हो जाते हैं। पिछाड़ी में आने वालों के पाप क्या
होंगे! आये और गये। बाकी मोक्ष कोई को मिल न सके। वहाँ रहकर क्या करेंगे। पार्ट तो
जरूर बजाना ही है। तुम्हारा पार्ट है शुरू में आने का। तो बाप कहते हैं - बच्चे, इस
पुरानी दुनिया को भूलते जाओ। अब तो चलना है, 84 का पार्ट पूरा हुआ। तुम पतित बन गये
हो। अब फिर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। दैवीगुण भी धारण करो।
बाप समझाते हैं - बच्चे, अपनी जाँच करते रहो - हमारे में कोई आसुरी स्वभाव तो नहीं
है? तुम्हारा दैवी स्वभाव होना चाहिए। उसके लिए चार्ट रखो तो पक्के होते जायेंगे।
परन्तु माया ऐसी है जो चार्ट रखने नहीं देती। दो-चार दिन रखकर फिर छोड़ देते हैं
क्योंकि तकदीर में नहीं है। तकदीर में होगा तो बहुत अच्छी रीति रजिस्टर रखेंगे।
स्कूल में रजिस्टर जरूर रखते हैं। यहाँ भी सभी सेन्टर्स में सबका चार्ट, रजिस्टर
रखना है। फिर देखना है हम रोज़ जाते हैं? दैवीगुण धारण करते हैं? भाई-बहन के
सम्बन्ध से भी ऊंच जाना है। सिर्फ रूहानी दृष्टि भाई-भाई की चाहिए। हम आत्मा हैं।
कोई की क्रिमिनल दृष्टि नहीं। भाई-बहन का सम्बन्ध भी इसलिए है क्योंकि तुम
ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो। एक बाप के बच्चे हो। इस संगमयुग पर ही भाई-बहन के
सम्बन्ध में रहते हैं। तो विकार की दृष्टि बन्द हो जाए। एक बाप को ही याद करना है।
वाणी से भी परे जाना है। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करना यह है सूक्ष्म स्टडी, इसमें
आवाज़ करने की दरकार नहीं। यह तो बच्चों को समझाने के लिए आवाज़ में आना पड़ता है।
वाणी से परे जाने लिए भी समझाना पड़ता है। अब वापिस जाना है। बाप को बुलाया है कि
आओ, हमको साथ ले जाओ। हम पतित हैं, वापिस जा नहीं सकते। पतित दुनिया में अब पावन
कौन बनाये! साधू-सन्त आदि कोई पावन बना न सकें। खुद ही पावन होने के लिए गंगा स्नान
करते हैं। बाप को जानते नहीं। जिन्होंने कल्प पहले जाना है, वही अब पुरूषार्थ कर रहे
हैं। यह पुरूषार्थ भी बाप बिना कोई करा नहीं सकता। बाप ही सबसे ऊंच है। ऐसे बाप को
पत्थर ठिक्कर में कहने से मनुष्य का क्या हाल हो गया है! सीढ़ी उतरते ही आये हैं।
कहाँ वह सम्पूर्ण निर्विकारी, कहाँ यह सम्पूर्ण विकारी। इन बातों को मानेंगे भी वह
जिन्होंने कल्प पहले माना होगा। तुम्हारा फ़र्ज है जो भी आये उनको बाप का फ़रमान
बताना। सीढ़ी के चित्र पर समझाओ। सभी की अब वानप्रस्थ अवस्था है। सभी शान्तिधाम और
सुखधाम में जायेंगे। सुखधाम में वह जायेंगे जो आत्मा को बुद्धियोग बल से सम्पूर्ण
पवित्र बनायेंगे। भारत का प्राचीन योग भी गाया हुआ है। आत्मा को अब स्मृति आती है
बरोबर हम पहले-पहले आये हैं। अब फिर वापिस जाना है। तुमको अपना पार्ट याद आता है।
जो इस कुल में आने वाले नहीं हैं उनको याद भी नहीं आता है कि हमको पवित्र बनना है।
पवित्र बनने में ही मेहनत करनी पड़ती है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद
करो तो विकर्माजीत बनेंगे और बहन-भाई समझो तो दृष्टि बदल जायेगी। सतयुग में दृष्टि
खराब नहीं होती। बाप तो समझाते रहते हैं बच्चे अपने से पूछो - हम सतयुगी देवता हैं
या कलियुगी मनुष्य हैं? तुम बच्चों को बहुत अच्छे-अच्छे चित्र, स्लोगन आदि बनाने
चाहिए। एक कहे सतयुगी हो या कलियुगी? दूसरा फिर दूसरा प्रश्न पूछे, ऐसे धूम मचा देनी
चाहिए।
बाप तो श्रीमत देते हैं पतितों को पावन बनाने की। बाकी धन्धे आदि से हम क्या जानें।
बाप को बुलाया ही है कि आकर मनुष्य से देवता बनने का रास्ता बताओ, वह मैं आकर बताता
हूँ। कितनी सिम्पुल बात है। इशारा ही बहुत सहज है - मन-मनाभव। अपने को आत्मा समझ
बाप को याद करो। अर्थ न समझने कारण गंगा को पतित-पावनी समझ लिया है। पतित-पावन तो
बाप है। अभी सभी के कयामत का समय है। हिसाब-किताब चुक्तू कराए वापिस ले जाते हैं।
बाप समझाते हैं तो समझते भी हैं परन्तु तकदीर में नहीं है तो गिर पड़ते हैं। बाप
कहते हैं भाई-बहन समझो, कभी खराब दृष्टि न जाये। किसको काम का भूत, लोभ का भूत आ
जाता है, कभी अच्छा खाना (भोजन) देखा तो आसक्ति जाती है। चने वाला देखेंगे, दिल
करेगी खाने की। फिर खा लिया तो कच्चे होने कारण जल्दी असर पड़ जाता है। बुद्धि
भ्रष्ट हो जाती है। माँ-बाप, अनन्य बच्चे जिन्हों को सर्टीफिकेट देते हैं उनको फालो
करना चाहिए। यज्ञ का जो मिले वह मीठा समझकर खाना चाहिए। जबान ललचायमान नहीं करनी
है। योग भी चाहिए। योग नहीं होगा तो कहेंगे फलानी चीज़ खानी चाहिए, नहीं तो बीमार
पड़ जायेंगे। बुद्धि में रहना चाहिए हम आए हैं देवता बनने के लिए। अब हमको वापिस घर
जाना है। फिर बच्चा बनकर माँ की गोद में आयेंगे। माता का जो खान-पान होता है उसका
असर बच्चे पर भी पड़ता है। वहाँ यह कुछ भी बातें होती नहीं। वहाँ सब कुछ
फर्स्टक्लास होगा। हमारे लिए माता खाना आदि भी फर्स्टक्लास खायेगी, जो हमारे पेट
में आयेगा। वहाँ तो है ही फर्स्टक्लास। जन्म लेने से ही खान-पान सब शुद्ध होता है।
तो ऐसे स्वर्ग में जाने की तैयारी करनी चाहिए। बाप को याद करना है।
बाप आकर रिज्यूवनेट करते हैं। वह लोग तो बन्दर के ग्लान्स मनुष्य में डालते हैं।
समझते हैं हम जवान हो जायेंगे। जैसे हार्ट नई डालते हैं। बाप कोई हार्ट नहीं डालते
हैं। बाप तो आकर चेन्ज करते हैं। बाकी यह सब है साइन्स। बाम्ब्स आदि बनाते हैं। यह
तो दुनिया को ही खलास करने की चीजें हैं। तमोप्रधान बुद्धि है ना। वह तो खुश होते
हैं कि यह भी भावी बनी हुई है। बाम्ब्स जरूर बनने ही हैं। शास्त्रों में फिर लिखा
हुआ है पेट से मूसल निकले, फिर यह हुआ। अब बाप ने समझाया है यह सब भक्ति मार्ग की
बातें हैं। राजयोग तो मैंने ही सिखाया था। वह तो एक कहानी हो गई, जो सुनते-सुनते यह
हाल हो गया है। अभी बाप सच्ची सत्य नारायण की कथा, तीजरी की कथा, अमरनाथ की कथा सुना
रहे हैं। इस पढ़ाई से तुम यह पद पाते हो। बाकी श्रीकृष्ण आदि तो हैं नहीं, जो दिखाया
है स्वदर्शन चक्र से सबको मारा। मैं तो सिर्फ राजयोग सिखलाकर पावन बनाता हूँ। हम
तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण को चक्र आदि दिखाया है।
स्वदर्शन चक्र फिरायेंगे कैसे? जादू की थोड़ेही बात है। यह तो सब ग्लानी है ना। सो
भी आधाकल्प चलती है। कैसा वन्डरफुल ड्रामा है। अभी छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था
है। अब हमको जाना है इसलिए बाप को याद करना है। दूसरा कुछ भी याद न आये। ऐसी अवस्था
हो तब ऊंच पद पा सको। अपनी दिल से पूछना चाहिए - हमारा रजिस्टर कहाँ तक ठीक है?
रजिस्टर से चलन का मालूम पड़ेगा - रेग्युलर पढ़ते हैं वा नहीं? कई तो झूठ भी बोल
देते हैं। बाप कहते हैं सच बताओ, नहीं बतायेंगे तो तुम्हारा ही रजिस्टर खराब होगा।
भगवान् से पवित्र बनने की प्रतिज्ञा कर फिर तोड़ते हो तो तुम्हारा क्या हाल होगा।
विकार में गिरे तो खेल खलास। पहला नम्बर दुश्मन है देह-अभिमान, फिर काम, क्रोध।
देह-अभिमान में आने से ही वृत्ति खराब होती है इसलिए बाप कहते हैं - देही-अभिमानी
भव। अर्जुन भी यह है ना। श्रीकृष्ण की ही आत्मा थी। अर्जुन नाम है थोड़ेही, नाम तो
चेन्ज होता है, जिसमें प्रवेश करते हैं। मनुष्य तो कह देते हैं यह झाड़ आदि तुम्हारी
कल्पना है। मनुष्य जो कल्पना करे वह देखने में आता है।
तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए - अब हम जाकर स्वर्ग में छोटे बच्चे बनते
हैं। फिर नाम, रूप, देश, काल सब-कुछ नया होगा। यह बेहद का ड्रामा है। बनी बनाई बन
रही। होना ही है फिर हम चिंता क्यों करें? ड्रामा का राज़ अब तुम बच्चों की बुद्धि
में है। और कोई नहीं जानते, सिवाए तुम ब्राह्मणों के। दुनिया में इस समय सब पुजारी
हैं। जहाँ पुजारी हैं वहाँ पूज्य एक भी हो नहीं सकता। पूज्य होते ही हैं
सतयुग-त्रेता में। कलियुग में हैं पुजारी, फिर तुम अपने को पूज्य कैसे कहला सकते
हो? पूज्य तो देवी-देवतायें ही हैं। पुजारी हैं मनुष्य। मूल बात बाप समझाते हैं -
पावन बनना है तो मामेकम् याद करो। ड्रामा अनुसार जिसने जितना पुरुषार्थ किया होगा
उतना ही करेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी पढ़ाई का रजिस्टर रखना है। अपना चार्ट देखना है कि हमारी
भाई-भाई की दृष्टि कहाँ तक रहती है? हमारा दैवी स्वभाव बना है?
2) अपनी जबान पर बहुत कन्ट्रोल रखना है। बुद्धि में रहे कि हम देवता बन रहे हैं
इसलिए खान-पान पर बहुत ध्यान देना है। जबान चलायमान नहीं होनी चाहिए। माँ-बाप को
फालो करना है।