ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। जो यहाँ तकदीर बनाने आये हैं, क्यों तकदीर को क्या
हुआ है? तकदीर को लकीर लगी हुई है। भारत तकदीरवान था। भारतवासी देवी-देवतायें थे।
तकदीर जगी हुई थी। अभी भारतवासी नर्क के मालिक हैं तो तकदीर उझाई हुई है। यह कौन
समझाते हैं? जो सभी की तकदीर बनाने वाला है। सबको दु:खों से छुड़ाने वाला है फिर
सबको सुख देने वाला है। यह दु:खधाम है। भारत 5 हजार वर्ष पहले सुखधाम था। सबकी
तकदीर जगी हुई थी। अब तकदीर सोई हुई है। सारे मनुष्य सृष्टि की तकदीर जगाने वाला
जरूर बेहद का बाप ही होगा। बाप रचयिता है। अब तुम जानते हो भारत में सब मनुष्य सुखी
थे। कौन से मनुष्य? ऐसे नहीं, सतयुग में इतने सब मनुष्य थे। पहले-पहले सतयुग में 9
लाख थे। देवी-देवता धर्म की शुरूआत थी। यह सब बातें समझाने वाला है ज्ञान का सागर,
मनुष्य सृष्टि का बीजरूप बाप। बच्चों से पूछेंगे - तुम्हारा बीज रचता कौन है? तो
कहेंगे मम्मा-बाबा ने हमको रचा है क्योंकि सब माँ-बाप से ही जन्म लेते हैं। बाप
स्त्री को जन्म नहीं देता। एडाप्ट करता है कि तुम मेरी स्त्री हो। फिर उनसे बच्चे
पैदा होते हैं। वह है क्रियेटर। स्त्री को एडाप्ट किया, कन्या पराये घर की थी, उनको
अपनी पत्नी बनाते हैं। फिर जब बच्चे पैदा होते हैं तो बच्चे उनको मात-पिता कहते
हैं। वह है हद के मात-पिता। बाप कन्या की शादी कराते हैं। पहले कन्या पवित्र है, तो
कितना मान होता है। फिर विकारी बनने से वह मान नहीं रहता। कहते हैं - कन्या वह जो
21 कुल का उद्धार करे। अब बाप बैठ समझाते हैं कि यह जो ब्रह्माकुमारियाँ हैं, यह इस
समय भारतवासियों का 21 जन्म के लिए उद्धार करती हैं। यह सब कुमारियाँ हैं। भल शादी
की हुई है, लेकिन ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बने तो भाई-बहन हो गये ना। काम कटारी चला
नहीं सकते। पवित्रता का मान तो है ना। संन्यासी पवित्र बनते हैं, उनका भी मान है
ना। भारत में पवित्रता थी तो भारत सदा सुखी था। सम्पूर्ण निर्विकारी था। मन्दिरों
में जाकर गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न.... तुम्हारा वास्तव में हिन्दू धर्म नहीं
है। हिन्दुस्तान तो रहने का स्थान है। यूरोप में रहने वालों का धर्म यूरोपियन थोड़े-ही
कहेंगे। धर्म तो क्रिश्चियन है। हिन्दुस्तान में रहने वालों का हिन्दू धर्म नहीं
है। धर्म तो और होना चाहिए। बाप समझाते हैं जो देवी-देवता धर्म वाले थे, वही अपने
को हिन्दू कहलाते हैं क्योंकि अपने धर्म को भूल गये हैं। हिन्दू कोई आदि सनातन धर्म
नहीं है। क्रिश्चियन लोग क्राइस्ट को मानते हैं क्योंकि उन्होंने क्रिश्चियन धर्म
स्थापन किया। यहाँ तो किसको भी ये पता नहीं है कि हम किस धर्म के हैं। कोई सिक्ख
धर्म वाला होगा तो बतायेगा कि हम सिक्ख धर्म का हूँ। सिक्ख धर्म किसने स्थापन किया?
तो कहेंगे गुरूनानक ने स्थापन किया। उन्होंने यह धर्म कैसे स्थापन किया? यह फिर तुम
जानते हो। कोई भी पतित आत्मा धर्म स्थापन कर न सके। जो-जो धर्म स्थापक होते हैं वह
पहले-पहले पवित्र होते हैं, फिर अपवित्र शरीर में प्रवेश कर धर्म स्थापन करते हैं।
जैसे गुरूनानक को तो बच्चे आदि थे। फिर उनमें पवित्र आत्मा ने प्रवेश कर सिक्ख धर्म
की स्थापना की। यह ब्रह्मा का भी पतित शरीर है, तो उनमें ज्ञान सागर बाप आये हैं।
तुम जानते हो हमारा वह बाप है। यह आत्मा कहती है। अब तुम्हें आत्म-अभिमानी बनना है।
देह में आत्मा रहती है। जैसे कोई कहते हैं - मैं मर्चेन्ट हूँ। यह आत्मा ने इस
आरगन्स द्वारा कहा। आत्मा कहती है मैंने 84 जन्म पूरे किये। बाप बैठ समझाते हैं मैं
हूँ तुम आत्माओं का बाप। मेरा अवतरण भारत में ही होता है। मुझे अपना शरीर नहीं है।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी अपना सूक्ष्म शरीर है। मेरा अवतरण भारत में ही होता
है। यादगार में शिवलिंग दिखाते हैं लेकिन मेरा कोई इतना बड़ा रूप नहीं है। मैं हूँ
स्टार। जैसे आत्मा स्टार है। आत्मा कोई बहुत बड़ी नहीं होती। चमकता है भ्रकुटी के
बीज अज़ब सितारा। आत्मा बहुत छोटी है। लाइट का साक्षात्कार बहुत करके सफेद होता है।
अभी कितने करोड़ आत्मायें हैं, सतयुग में इतनी शरीरधारी आत्मायें नहीं होगी। अगर
सतयुग में इतनी होती तो अब तक अरबों हो जाती। इतने तो हैं नहीं।
तुम बच्चे जानते हो कि यह कोई साधू-संन्यासी नहीं, यह तो बाप समझाते हैं। इस बाप
का कोई बाप नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी बाप है। श्रीकृष्ण का भी बाप था।
बेहद का बाप कहते हैं मेरा कोई बाप नहीं। न टीचर है। सतयुग में भी बच्चे राज विद्या
पढ़ने स्कूल में जायेंगे। टीचर होगा। हमारा कोई टीचर नहीं है। मैं तुमको राजयोग की
शिक्षा देता हूँ। मैं कोई राजा-महाराजा नहीं बनूंगा। तुम बच्चे बनेंगे। पूज्य श्री
लक्ष्मी, श्री नारायण थे। सतयुग में राज्य करते थे। यह निराकार बाप इस शरीर में
विराजमान हो पढ़ाते हैं आत्माओं को। हम आत्मायें पढ़ती हैं। वह है ज्ञान का सागर,
शान्ति का सागर। बाप कहते हैं मैं तुमको अपना वर्सा देता हूँ, 21 जन्मों के लिए।
सतयुग में तुम सुख-शान्ति वाले थे। रावण भूत वहाँ होता नहीं। वह है ही सम्पूर्ण
निर्विकारी दुनिया। अभी है सम्पूर्ण विकारी दुनिया। अभी तुम बच्चे जानते हो हम बाबा
से तकदीर बनाने आये हैं। स्कूल में तकदीर बनाई जाती है। पढ़कर पास करेंगे, टीचर
बनेंगे। यहाँ तुम 21 जन्मों के लिए तकदीर बनाते हो। वह तकदीर बनाते हैं इस एक जन्म
के लिए। स्कूल में पढ़कर शरीर निर्वाह के लिए कमाई करेंगे, अपना और दूसरों का शरीर
निर्वाह होगा। तो उन स्कूलों में एक जन्म की तकदीर बनाते हैं, जन्म-जन्मान्तर के
लिए बैरिस्टर, इन्जीनियर नहीं बनेंगे। दूसरे जन्म में फिर पढ़ना होगा। वह है शरीर
निर्वाह अर्थ धन्धा एक जन्म के लिए। बाप तो कहते हैं मैं तुमको 21 जन्मों के लिए
सुख-शान्ति का वर्सा देता हूँ। यह बेहद के बाप ने कहा, उनका कोई बाप नहीं है। तुम
बच्चे कहते हो - बाबा, हम आपके हैं। बाबा भी कहते हैं - हाँ बच्चे, तुम हमारे कल्प
पहले थे, अभी फिर बने हो। यह है ईश्वर बाप से बच्चों का स्नेह। आत्मा-परमात्मा अलग
रहे बहुकाल...... 5 हजार वर्ष पहले भी तुम बच्चों को गुल-गुल बनाकर हेल्थ और वेल्थ
दी थी क्योंकि नॉलेज है सोर्स आफ इनकम। पढ़ाई से ही तकदीर बनाते हैं। वह होती है हद
की, यह है बेहद की तकदीर। यह स्कूल है, सतसंग नहीं। सतसंग में तो जाते हैं, कोई ने
रामायण, ग्रन्थ आदि सुनाया। बाबा तो नॉलेजफुल है। बाबा कोई शास्त्र आदि नहीं पढ़ते
हैं। कहते हैं मैं तो सब कुछ जानता हूँ। यह सिर्फ तुम्हारी बुद्धि में ही है कि वह
है मोस्ट बिलवेड बाप, जिसको सब याद करते हैं कि इस पतित दुनिया में आओ, आकर हमको
सुख घनेरे दो। तुम मात-पिता हम बालक तेरे.... अब सम्मुख आकर बच्चे बने हो। बाप है
विचित्र। उनका कोई चित्र (शरीर) नहीं है। परन्तु चित्र के आधार बिगर शिक्षा कैसे
देवे! इसलिए कहते हैं मैं इस शरीर का आधार ले, इन द्वारा तुमको पढ़ाता हूँ। तुम
जानते हो हमको कोई मनुष्य गुरू, टीचर नहीं पढ़ाते हैं। लिखा हुआ है भगवानुवाच। वह
है निराकार, ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहा जाता है। ब्रह्मा भगवान नहीं
कहेंगे क्योंकि वह है सूक्ष्मवतनवासी। देवतायें हैं रचना, उनसे कोई वर्सा नहीं मिल
सकता, तो फिर मनुष्य, मनुष्य को वर्सा कैसे दे सकते! तो इन बातों को कोई समझ न सके।
यह है गॉड फादरली कॉलेज। भगवान पढ़ाते हैं। बच्चे, मैं तुमको मनुष्य से देवी-देवता
बनाता हूँ। ऐसे और कोई कह न सके। संन्यासी हैं ही निवृत्ति मार्ग के। सतयुग में तो
प्रवृत्ति मार्ग में पवित्र देवी-देवतायें थे। अब मैं फिर आया हूँ पतितों को पावन
बनाने। जितना याद करेंगे, उतना विकर्म विनाश होंगे। आत्मा ही पतित होती है। जैसे
सोने में खाद पड़ती है, फिर जेवर खाद वाला बनता है। आत्मा में भी खाद पड़ती है तो
आइरन एजड बन जाती है। अब सभी तमोप्रधान हैं, फिर तुम आत्मायें सुन्दर बनेंगी तो
शरीर भी सुन्दर मिलेगा। सतयुग में तुम गोरे अर्थात् सुन्दर थे। फिर 84 जन्म
लेते-लेते श्याम अर्थात् सांवरे बने हो इसलिए कृष्ण को श्याम-सुन्दर कहते हैं। एक
की तो बात नहीं है। सारी राजधानी गोरी सुन्दर थी। अब श्याम बन गई है। आत्मा और शरीर
दोनों ही रोगी बन गये हैं। तुम जानते हो हम सो पूज्य देवी-देवता थे। माया ने पूज्य
से पुजारी बनाया है। देवी-देवता धर्म वाले धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं।
देवताओं के आगे जाकर कहते हैं - हम नीच पापी हैं, हमारे में कोई गुण नहीं हैं, हम
कंगाल दु:खी हैं। भारत में देवी-देवताओं का राज्य था। भारत सिरताज था। अब तो प्रजा
का प्रजा पर राज्य है। बाप को जानते नहीं। यह तो जानते हो इस पुरानी दुनिया का
विनाश होना है। गाया जाता है विनाश काले विपरीत बुद्धि.... किसकी? यादवों और कौरवों
की, जो बाप को नहीं जानते हैं।
भगवानुवाच - तुम्हारी तकदीर जो डूबी हुई थी, वह अभी जग चुकी है। तकदीर बन जाने
की यह पढ़ाई है। स्वर्ग का मालिक तो स्वर्ग की स्थापना करने वाला ही बनायेगा।
स्वर्ग की स्थापना करने वाला है हेविनली गॉड फादर। नर्कवासी माया बनाती है। तुम गाते
भी हो दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोय। भक्ति शुरू होती है द्वापर से।
भक्ति का फल देने भगवान को आना पड़े। अब भगवान घर बैठे आये हैं भारत में। भारत उनका
घर है ना। शिवरात्रि भी यहाँ मनाते हैं, मन्दिर भी यहाँ बने हुए हैं। शिवबाबा तुम
बच्चों को बैठ नॉलेज देते हैं, जिसको ज्ञान अमृत अथवा सोमरस भी कहते हैं। गोल्डन
एजड बनाने लिए नॉलेज देते हैं। तो नाम सोमनाथ पड़ा है। अभी तो भारत कितना कंगाल है।
तुमको इस समय 3 पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते। कहाँ बैठ-कर पढ़ते हो? यह तो बड़े ते
बड़ा हॉस्पिटल कम कॉलेज है। तुम मिडगेट हो। कहते हो बाबा मैं आपका 12 मास का बच्चा
हूँ। आत्मा बोलती है इस शरीर द्वारा - बाबा मैं 6 मास का बच्चा हूँ तो मिडगेट हुआ
ना। बोलता है - मैं आपका बना हूँ। अच्छा, अब अच्छी रीति पढ़ो तो साथ ले जाऊंगा।
संन्यासी ब्रह्म अथवा तत्व को याद करते हैं। बाप को छोड़, रहने के स्थान को याद करते
हैं। समझते हैं कि ब्रह्म ही भगवान है लेकिन यह उन्हों का मीठा भ्रम है। ब्रह्म
तत्व जिसमें हम अशरीरी आत्मायें निवास करती हैं, उसको भगवान कैसे कहा जा सकता है!
फिर कहते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। आत्मा तो अविनाशी है। उनको पार्ट बजाते
ही रहना है। बाप अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। यह दादा भी भल शास्त्र आदि पढ़े हुए थे
परन्तु मुझे नहीं जानते थे। अब इनको भी सुनाता हूँ, इनकी आत्मा सुनती है। मैं इनके
बाजू में आकर बैठता हूँ। तुमको पढ़ाता हूँ। यह भी सुनता है, इनके मुख से ही पढ़ाता
हूँ। तुमको देही-अभिमानी बनाता हूँ। दुनिया में कोई देही-अभिमानी होते नहीं। तुम
बच्चे बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा ले रहे हो, पाँच हजार वर्ष पहले मुआफिक।
संन्यासियों आदि को अपने शास्त्र ही बुद्धि में आयेंगे। यहाँ कोई शास्त्र की बात नहीं।
बाप को क्या याद आयेगा? वह तो मालिक है। तुम याद करते हो बेहद के बाप को। प्रजापिता
ब्रह्मा के तुम ब्रह्मा-कुमार कुमारियाँ हो। दादे से वर्सा लेते हो, ब्रह्मा द्वारा।
फादर है साकार। ग्रैण्ड फादर है निराकार। शिवबाबा की आत्मा इसमें है। दोनों हैं
निराकार। यह साकार फादर, फादर भी है तो मदर भी है, इनसे तुमको एडाप्ट करते हैं।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई पर पूरा ध्यान देकर 21 जन्मों के लिए अपनी तकदीर बनानी है। एक
बाप की मत पर चल अपना खाना आबाद करना है।
2) आत्म-अभिमानी बनना है। याद की यात्रा से आत्मा को सम्पूर्ण पावन बनाना है।