ओम् शान्ति।
बेहद का बाप सभी बच्चों को समझाते हैं - तुम सबको पैगाम पहुँचाना है कि अब बाप आये
हैं। बाप धीरज दे रहे हैं क्योंकि भक्ति मार्ग में बुलाते हैं - बाबा आओ, लिबरेट करो,
दु:ख से छुड़ाओ। तो बाप धीरज देते हैं, बाकी थोड़े रोज़ हैं। कोई की बीमारी छूटने
पर होती है तो कहते हैं अब ठीक हो जायेगी। बच्चे भी समझते हैं कि इस छी-छी दुनिया
में बाकी थोड़ा रोज़ हैं फिर हम नई दुनिया में जायेंगे। उसके लिए हमको लायक बनना है
फिर कोई भी रोग आदि तुमको नहीं सतायेंगे। बाप धैर्य देकर कहते हैं - थोड़ी मेहनत करो।
और कोई नहीं जो ऐसे धीरज दे। तुम ही तमोप्रधान हो गये हो। अब बाप आये हैं तुमको फिर
से सतोप्रधान बनाने के लिए। अभी सभी आत्मायें पवित्र बन जायेंगी - कोई योगबल से,
कोई सजाओं के बल से। सज़ाओं का भी बल है ना। सजाओं से जो पवित्र बनेंगे उनका पद कम
हो जायेगा। तुम बच्चों को श्रीमत मिलती रहती है। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो,
तुम्हारे सब पाप भस्म हो जायेंगे। अगर याद नहीं करेंगे तो पाप सौ गुणा बन जायेगा
क्योंकि पाप आत्मा बन तुम मेरी निंदा कराते हो। मनुष्य कहेंगे इनको ईश्वर ऐसी मत
देते हैं जो आसुरी चलन दिखाते हैं! लाही-चाढ़ी (उतराव-चढ़ाव) भी होता है ना। बच्चे
हार भी खाते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे भी हार खाते हैं। तो पाप कटते ही नहीं हैं। फिर
भोगना भी पड़ता है। यह बहुत छी-छी दुनिया है, इसमें सब कुछ होता रहता है। बाप को
बुलाते ही हैं कि बाबा आकर हमको भविष्य नई दुनिया के लिए रास्ता बताओ। बाबा जानते
हैं - उस तरफ है पुरानी दुनिया, इस तरफ है नई दुनिया। तुम हो नैया। अब तुम
पुरुषोत्तम बनने के लिए चल रहे हो। तुम्हारा इस पुरानी दुनिया से लंगर उठ गया है।
तो जहाँ जा रहे हो उस घर को ही याद करना है। बाप ने कहा है मेरे को याद करने से
तुम्हारी कट उतरेगी। या तो है योगबल या सजायें। हरेक आत्मा पवित्र तो जरूर बननी है।
पवित्र बनने बिगर वापिस तो कोई जा नहीं सकते। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है।
बाप कहते हैं यह है तुम्हारा अन्तिम जन्म। मनुष्य कहते हैं कलियुग अजुन छोटा बच्चा
है। गोया मनुष्य अभी इससे भी और दु:खी होंगे। तुम संगमयुगी ब्राह्मण समझते हो यह
दु:खधाम तो अभी ख़त्म होना है। बाप धीरज देते हैं। कल्प पहले बाप ने कहा था मामेकम्,
मुझे याद करो तो पापों की कट उतर जायेगी। यह मैं गैरन्टी करता हूँ। यह भी समझाते
हैं कलियुग का विनाश जरूर होना है और सतयुग भी जरूर आना है। ख़ातिरी मिलती है, बच्चों
को निश्चय भी है। परन्तु याद न ठहरने के कारण कोई न कोई विकर्म कर लेते हैं। कहते
हैं बाबा क्रोध आ जाता है, इसको भी भूत कहा जाता है। 5 भूत दु:ख देते हैं इस रावण
राज्य में। यह पिछाड़ी का हिसाब-किताब भी चुक्तू करना है, जिनको आगे कभी काम विकार
नहीं सताता था, उनको भी बीमारी इमर्ज हो जाती है। कहते हैं आगे तो ऐसा विकल्प कभी
नहीं आया, अब क्यों सताता है? यह ज्ञान है ना। ज्ञान सारी बीमारी को बाहर निकालता
है। भक्ति सारी बीमारी को नहीं निकालती। यह है ही अशुद्ध विकारी दुनिया, 100
परसेन्ट अशुद्धता है। 100 परसेन्ट पतित से फिर 100 परसेन्ट पावन होना है। 100
परसेन्ट भ्रष्टाचारी से 100 परसेन्ट पावन श्रेष्ठाचारी दुनिया बननी है।
बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को शान्तिधाम-सुखधाम ले चलने के लिए। तुम
मुझे याद करो और सृष्टि चक्र को फिराओ। कोई भी विकर्म नहीं करो। जो गुण इन देवताओं
में हैं ऐसे गुण धारण करने हैं। बाबा कोई तकल़ीफ नहीं देते हैं। कोई-कोई घरों में
भी इविल सोल होती हैं तो आग लगा देती है, नुकसान करती है। इस समय मनुष्य ही सब इविल
हैं ना। स्थूल में भी कर्मभोग होता है। आत्मा एक-दो को दु:ख देती है शरीर द्वारा,
शरीर नहीं है तो भी दु:ख देती है। बच्चों ने देखा है जिसको घोस्ट कहते हैं वह सफेद
छाया मुआफिक देखने में आते हैं। परन्तु उनका कुछ ख्याल नहीं करना होता है। तुम जितना
बाप को याद करेंगे उतना यह सब ख़त्म होते जायेंगे। यह भी हिसाब-किताब है ना।
घर में बच्चियां कहती हैं - हम पवित्र रहना चाहती हैं। यह आत्मा कहती है। और
जिनमें ज्ञान नहीं है, वह कहते हैं पवित्र नहीं बनो। फिर झगड़ा हो पड़ता है। कितना
हंगामा होता है। अब तुम पवित्र आत्मा बन रहे हो। वह हैं अपवित्र, तो दु:ख देते हैं।
हैं तो आत्मा ना। उनको कहा जाता है इविल आत्मा। शरीर से भी, तो बिगर शरीर भी दु:ख
देते हैं। ज्ञान तो सहज है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। बाकी मुख्य है पवित्रता की
बात। इसके लिए बाप को खुशी से याद करना है। रावण को इविल कहेंगे ना। इस समय यह
दुनिया है ही इविल। एक-दो से अनेक प्रकार के दु:ख पाते रहते हैं। इविल पतित को कहा
जाता है। पतित आत्मा में भी 5 विकार अनेक प्रकार के होते हैं। कोई में विकार की आदत,
कोई में क्रोध की आदत, कोई में तंग करने की आदत, कोई में नुकसान करने की आदत होती
है। कोई में विकार की आदत होगी तो विकार न मिलने कारण क्रोध में आकर बहुत मारते भी
हैं। यह दुनिया ही ऐसी है। तो बाप आकर धीरज देते हैं - हे आत्मायें, बच्चों धीरज धरो,
मुझे याद करते रहो और दैवीगुण भी धारण करो। ऐसे भी नहीं कहते हैं कि धन्धा आदि नहीं
करो। जैसे मिलेट्री वालों को लड़ाई में जाना पड़ता है तो उन्हों को भी कहा जाता है
शिवबाबा की याद में रहो। गीता के अक्षरों को उठाए वह समझते हैं हम युद्ध के मैदान
में मरेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे इसलिए खुशी से लड़ाई में जाते हैं। परन्तु वह तो
बात ही नहीं। अब बाबा कहते हैं तुम स्वर्ग में जा सकते हो सिर्फ शिवबाबा को याद करो।
याद तो एक शिवबाबा को ही करना है तो स्वर्ग में जरूर जायेंगे। जो भी आते हैं भल फिर
जाकर पतित बनते हैं तो भी स्वर्ग में जरूर आयेंगे। सजायें खाकर, पावन बनकर फिर भी
आयेंगे जरूर। बाप रहमदिल है ना। बाप समझाते हैं कोई विकर्म न करो तो विकर्माजीत
बनेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण विकर्माजीत हैं ना। फिर रावण राज्य में विकर्मी बन जाते
हैं। विक्रम संवत शुरू होता है ना। मनुष्यों को तो कुछ भी पता नहीं है। तुम बच्चे
अभी जानते हो यह लक्ष्मी-नारायण विकर्माजीत बने हैं। कहेंगे विकर्माजीत नम्बरवन फिर
2500 वर्ष के बाद विक्रम संवत शुरू होता है। मोहजीत राजा की कहानी है ना। बाप कहते
हैं नष्टोमोहा बनो। मामेकम् याद करो तो पाप कटेंगे। जो 2500 वर्ष में पाप हुए है वह
50-60 वर्ष में तुम स्वयं को सतोप्रधान बना सकते हो। अगर योगबल नहीं होगा तो फिर
नम्बर पीछे हो जायेंगे। माला तो बहुत बड़ी है। भारत की माला तो ख़ास है। जिस पर ही
सारा खेल बना हुआ है। इसमें मुख्य है याद की यात्रा, और कोई तकलीफ नहीं है। भक्ति
में तो अनेकों से बुद्धियोग लगाते हैं। यह सब है रचना। उनकी याद से किसका भी कल्याण
नहीं होगा। बाप कहते हैं किसको भी याद नहीं करो। जैसे भक्ति मार्ग में पहले सिर्फ
तुम भक्ति करते थे अब फिर पिछाड़ी में भी मुझे याद करो। बाप कितना क्लीयर समझाते
हैं। आगे थोड़ेही जानते थे। अभी तुमको ज्ञान मिला है। बाप कहते हैं और संग तोड़ एक
संग जोड़ो तो योग अग्नि से तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे। पाप तो बहुत करते आये हो।
काम कटारी चलाते हो। एक-दो को आदि-मध्य-अन्त दु:ख देते आये हो। मूल बात है काम कटारी
की। यह भी ड्रामा है ना। ऐसे भी नहीं कहेंगे ऐसा ड्रामा क्यों बना? यह तो अनादि खेल
है। इसमें मेरा भी पार्ट है। ड्रामा कब बना, कब पूरा होगा - यह भी नहीं कह सकते। यह
तो आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। आत्मा की जो प्लेट है वह कब घिसती नहीं है। आत्मा
अविनाशी है, उसमें पार्ट भी अविनाशी है। ड्रामा भी अविनाशी कहा जाता है। बाप जो
पुनर्जन्म में नहीं आते हैं वो ही आकर सब राज़ समझाते हैं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त
का राज़ कोई भी नहीं समझा सकते। न बाप का आक्यूपेशन, न आत्मा का, कुछ भी जानते नहीं।
यह सृष्टि का चक्र फिरता ही रहता है।
अब पुरुषोत्तम संगमयुग है, जब सब मनुष्यमात्र उत्तम पुरुष बन जाते हैं।
शान्तिधाम में सब आत्मायें पवित्र उत्तम बन जाती हैं। शान्तिधाम पावन है ना। नई
दुनिया भी पवित्र है। वहाँ शान्ति तो है ही, फिर शरीर मिलने से पार्ट बजाते हैं। यह
हम जानते हैं, हरेक को पार्ट मिला हुआ है। वह हमारा घर है, शान्ति में रहते हैं। यहाँ
तो पार्ट बजाना है। अब बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में तुमने मेरी अव्यभिचारी पूजा
की। दु:खी नहीं थे। अभी व्यभिचारी भक्ति में आने से तुम दु:खी बन पड़े हो। अब बाप
कहते हैं दैवी गुण धारण करो फिर भी आसुरी गुण क्यों? बाप को बुलाया कि हमको आकर
पावन बनाओ। फिर पतित क्यों बनते हो? उसमें भी ख़ास काम को जरूर जीतना है तो तुम
जगतजीत बनेंगे। मनुष्य तो भगवान् के लिए कह देते हैं आपेही पूज्य आपेही पुजारी। गोया
उनको नीचे ले आते हैं। ऐसे पाप करते-करते महा-विकारी दुनिया बन जाती है। गरुड़
पुराण में भी रौरव नर्क कहते हैं, जहाँ बिच्छू टिण्डन सब काटते रहते हैं। शास्त्रों
में क्या-क्या बैठ दिखाया है। यह भी बाप ने समझाया है यह शास्त्र आदि सब भक्ति
मार्ग के हैं। इनसे कोई भी मेरे साथ नहीं मिलते हैं। और ही तमोप्रधान बन पड़े हैं
इसलिए मुझे बुलाते हैं कि आकर पावन बनाओ तो पतित ठहरे ना। मनुष्य तो कुछ भी समझते
नहीं हैं। जो निश्चय बुद्धि हैं वह तो विजयी हो जाते हैं। रावण पर विजय पाकर
रामराज्य में आ जाते हैं। बाप कहते हैं काम पर जीत पाओ, इस पर ही हंगामा होता है।
गाते हैं अमृत छोड़ विष क्यों खाते हो? अमृत नाम सुनकर समझते हैं गऊमुख से अमृत
निकलता है। अरे, गंगा जल को थोड़ेही अमृत कहा जाता है। यह तो ज्ञान अमृत की बात है।
स्त्री पति के चरण धोकर पीती है, उनको भी अमृत समझते हैं। अगर अमृत है तो फिर हीरे
समान बनें ना। यह तो बाप ज्ञान देते हैं जिससे तुम हीरे जैसा बनते हो। पानी का नाम
कितना बाला कर दिया है। तुम ज्ञान अमृत पिलाते वह पानी पिलाते हैं। तुम ब्राह्मणों
का किसको भी पता नहीं है। वह कौरव-पाण्डव कहते हैं परन्तु पाण्डवों को ब्राह्मण
थोड़ेही समझते हैं। गीता में ऐसे अक्षर हैं नहीं, जो पाण्डवों को ब्राह्मण समझें।
बाप बैठ सब शास्त्रों का सार समझाते हैं। बच्चों को कहते हैं शास्त्रों में जो कुछ
पढ़ा है और जो कुछ मैं सुनाता हूँ उसको जज करो। तुम जानते हो आगे हम जो सुनते थे वह
रांग था, अब राइट सुनते हैं।
बाप ने समझाया है तुम सब सीतायें अथवा भक्तियां हो। भक्ति का फल देने वाला है
राम भगवान्। कहते हैं मैं आता हूँ फल देने। तुम जानते हो हम स्वर्ग में अपार सुख
भोगते हैं। उस समय बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं। शान्ति तो मिलती है ना। वहाँ
विश्व में सुख-शान्ति-पवित्रता सब-कुछ है। तुम समझाते हो जबकि विश्व में एक धर्म था
तब ही शान्ति थी। फिर भी समझते नहीं हैं। ठहरता कोई मुश्किल है। पिछाड़ी में बहुत
आयेंगे। जायेंगे कहाँ! यह एक ही हट्टी है। जैसे दुकानदार की चीज़ अच्छी होती है तो
दाम एक होता है। यह तो शिवबाबा की हट्टी है, वह है निराकार। ब्रह्मा भी जरूर चाहिए।
तुम कहलाते हो ब्रह्माकुमार-कुमारियां। शिव कुमारियां तो नहीं कहला सकते हो।
ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। ब्राह्मण बनने बिगर देवता कैसे बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देवताओं जैसे गुण स्वयं में धारण करने हैं, अन्दर जो भी ईविल संस्कार
हैं, क्रोध आदि की आदत है, उसे छोड़ना है। विकर्माजीत बनना है इसलिए अब कोई भी
विकर्म नहीं करना है।
2) हीरे समान श्रेष्ठ बनने के लिए ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है। काम विकार पर
सम्पूर्ण विजय पानी है। स्वयं को सतोप्रधान बनाना है। याद के बल से सब पुराने
हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।