ओम् शान्ति।
बच्चों को अभी रचता और रचना के आदि मध्य अन्त का नॉलेज तो बुद्धि में है, यह भी
समझते हैं कि हम भारतवासी पहले-पहले सतयुग में सतोप्रधान थे। यह याद बच्चों के लिए
बहुत जरूरी है। हरदम याद की यात्रा में रहना, इसमें तो बड़ी मेहनत चाहिए। परन्तु
रचता और रचना का ज्ञान तो बुद्धि में होना चाहिए ना। हम सतयुग में देवी-देवता थे,
उसको स्वर्ग कहा जाता है। देवी-देवतायें विश्व के मालिक थे। एक ही धर्म था। अक्षरों
को भी पूरा समझना चाहिए। तुम बच्चे जानते हो सतयुग आदि में ही हम सूर्यवंशी घराने
में थे। रचता बाबा ने जो आदि मध्य अन्त का ज्ञान सुनाया है वह तो हर एक की बुद्धि
में रहना चाहिए। यह कभी भूलना नहीं चाहिए। यह भी तुम जानते हो। हम पुनर्जन्म
लेते-लेते फिर त्रेता में आये हैं तो दो कला कम हो गई। सृष्टि भी पुरानी होती जाती
है। यह अच्छी रीति बुद्धि में रखना है। जितना तुम याद करते रहेंगे उतना खुशी का पारा
चढ़ा रहेगा फिर त्रेता के अन्त बाद आता है द्वापर। द्वापर शुरू होने से दूसरे धर्म
स्थापन होते हैं और हम उतरते-उतरते भक्ति मार्ग में आते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि उस
समय और धर्म भी भक्ति मार्ग में हैं, नहीं। यह कहानी सारी तुम भारतवासियों के लिए
है। भल रावण राज्य है परन्तु उन्हों के लिए रावण राज्य नहीं कहेंगे। वह अपने समय पर
सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आते हैं। धर्मों की स्थापना होनी है फिर वृद्धि को
पाते जाते हैं फिर गिरते भी रहते हैं। चक्र तो फिरना ही है। इस समय तुम जानते हो
द्वापर के बाद भक्ति मार्ग शुरू हुआ है और भी धर्म स्थापन हुए हैं। अभी तो है
कलियुग तमोप्रधान दुनिया। सृष्टि पुरानी होने के कारण सब तमोप्रधान हो गये हैं। अब
यह ज्ञान तुम बच्चे ही जानते हो। यह है सहज ते सहज बात, जो बच्चा भी याद कर ले
परन्तु वह याद करेंगे तोते मुआफिक। तुम बच्चों को तो भासना आती है, उस अनुसार तुम
समझायेंगे। तुम जानते हो सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। पहले-पहले जो
आदि सनातन देवी-देवता धर्म था उनका फाउन्डेशन अब है नहीं। भल है भी तो वह अपने को
हिन्दू कहलाते हैं इसलिए कहा जाता है देवी-देवता धर्म है नहीं, प्राय:लोप है। सब
पतित बन गये हैं इसलिए अपने को देवता कोई कहलाता नहीं। न वह धर्म है, न कर्म है।
सतयुग में तो सबका कर्म अकर्म हो जाता है। यहाँ मनुष्य जो कर्म करते हैं, वह विकर्म
बन जाता है। तमोप्रधान होने के कारण अपने को देवता कोई कहला नहीं सकते हैं। ड्रामा
प्लैन अनुसार यह भी नूँध है, जब धर्म प्राय:लोप हो तब तो बाबा आकर सत धर्म की
स्थापना करे और अनेक धर्मों का विनाश कराये। नई दुनिया में एक ही आदि सनातन
देवी-देवता धर्म था। अब शिवबाबा आकर फिर से ब्रह्मा द्वारा देवी-देवता धर्म की
स्थापना करते हैं। तुम हो मुख वंशावली ब्राह्मण। क्राइस्ट द्वारा जो क्रिश्चियन बने,
उन्हें भी मुख वंशावली कहेंगे। बच्चे तो नहीं थे ना। वैसे तुम भी ब्रह्मा द्वारा
ब्राह्मण बने हो। असुल में तुम हो शिवबाबा के बच्चे। इस समय तुम ब्रह्मा द्वारा
ब्राह्मण बने हो। शिवबाबा खुद इन द्वारा देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं
क्योंकि उनको ही सारी पुरानी दुनिया का विनाश भी कराना है। वह विनाश का कार्य और
कोई करते नहीं। वह तो आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं फिर वह धर्म वृद्धि को
पाता है। अभी है ही तमोप्रधान दुनिया, कलियुग का अन्त। शास्त्रों में तो कल्प की आयु
लाखों वर्ष लिख दी है। तुम जानते हो यह शास्त्र आदि सब भक्तिमार्ग की सामग्री है,
जो वहाँ सतयुग में नहीं होगी। वहाँ यह अनेक धर्म नहीं होंगे। यह इस्लामी,
क्रिश्चियन आदि सब धर्म द्वापर में स्थापन होते हैं। फिर हर एक ने अपना-अपना
शास्त्र बैठ बनाया है। अभी सारी सृष्टि है पतित, इसलिए पतित-पावन बाप को सब बुलाते
हैं कि आकर हमारा दु:ख हरो और सुख दो। वह भी कहते हैं हमारा गाइड बन हमको घर ले चलो।
गाइड तो सबका होता है ना। तुम अभी कान्ट्रास्ट को समझ गये हो। वह पण्डे तीर्थ यात्रा
पर धक्के खिलाते हैं। तुम हो रूहानी पण्डे। पाण्डव सम्प्रदाय, शिवबाबा के बच्चे भी
पण्डे। बाप रूहानी यात्रा सिखलाते हैं। हे आत्मा तुम अपने बाप को याद करो और घर को
याद करो। बाबा को याद करने से घर पहुँच जायेंगे। याद नहीं करेंगे तो पाप कटेंगे नहीं।
भल ले तो सबको जायेंगे परन्तु सजा खाकर हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे अथवा योगबल से,
चुक्तू तो जरूर करना है।
तुम जानते हो अभी हम जमा कर रहे हैं। जितना पवित्र बन जास्ती कमाई करेंगे उतना
जमा होता है। पुरूषार्थ नहीं करेंगे तो कुछ भी जमा नहीं होगा। घाटा पड़ जायेगा। तुम
जानते हो आधाकल्प हम घाटा पाते ही आये हैं। अभी बिल्कुल देवाला हो गया है। हर बात
में देवाला। अभी बच्चों को 21 जन्मों के लिए जमा करना है, उसके लिए मुख्य है याद की
यात्रा। यह तो सदैव स्मृति में रखो। जब भी फुर्सत मिले तो इस स्मृति में रहो। बाबा
ज्ञान का सागर है तो तुमको भी रचना के आदि मध्य अन्त का नॉलेज है। आप समान बनाते
हैं। जैसे बैरिस्टर, इंजीनियर आदि पढ़ाकर आप समान बनाते हैं ना। ऐसे बाप भी बच्चों
को आप समान देही-अभिमानी बनाते हैं। बाप देह-अभिमान नहीं रखते, यह तो पढ़ाई है ना।
जो ज्ञान बाप में है वह तुमको देते हैं। बाप पवित्रता का सागर है तो तुमको भी आप
समान पवित्र बनाते हैं। जो नहीं बनेंगे वह सजायें खायेंगे, फिर पद भी कम हो जायेगा।
इस समय ऐसे नहीं कि धन से तुमको साहूकार बनना है। नहीं, बाबा ने समझाया है गरीब की
एक पाई, साहूकार का एक रूपया समान। दोनों को वर्सा इतना ही मिलता है। बाप है ही
गरीब निवाज़ इसलिए गायन भी है अजामिल जैसे पापी, अहिल्या.. साहूकार का नाम नहीं गाया
जाता है। यह भी समझने की बात है। तुम कहेंगे हम पहले-पहले सबसे साहूकार थे। फिर यहाँ
ज्ञान भी नम्बरवार उठायेंगे, तो वहाँ पद भी नम्बरवार पायेंगे। माँ-बाप को पूरा फालो
करना है। जैसे बाबा पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाते हैं। मम्मा बाबा भी सर्विस करते हैं
ना। तुम्हारी यह है रूहानी सेवा। घर-घर में सन्देश पहुँचाना है। जो कोई ऐसा न कहे
कि हमको तो बाप के आने का सन्देश ही नहीं मिला तो याद कैसे करें। ऐसे कुछ कहानियां
भी शास्त्रों में हैं कि भगवान को भी उल्हना दिया इसलिए सबको मालूम पड़ना चाहिए।
टाइम थोड़ा है। दिन-प्रतिदिन प्रदर्शनी, मेले आदि की धूम मचती जाती है। अब विलायत
के अखबारों में पड़ता है। शुरू में जब भट्ठी बनी थी तो विलायत तक अखबार में नाम गया।
अब फिर यह भी पड़ेगा कि खुद गॉड फादर आकर सबको लिबरेट कर रहे हैं। कहते हैं और सब
तरफ से बुद्धियोग तोड़ो। मुझ एक बाप को याद करो तो तुम पावन बन मुक्तिधाम में चले
जायेंगे। कोई तो अच्छी रीति समझ कर याद करने लग पड़ेंगे। धर्म के बड़े जो होंगे वह
फिर नम्बरवार आते हैं। सभी धर्मों का झाड़ निराकारी दुनिया से यहाँ आकर वृद्धि को
पाता है। फिर पतित दुनिया से चले जायेंगे निराकारी पावन दुनिया में। फिर हर एक
अपने-अपने समय पर धर्म स्थापन करने आयेंगे। यह बुद्धि में रहना चाहिए। सतयुग में एक
ही धर्म था। फिर वृद्धि होते-होते अनेक धर्म अनेक मत हो जाती हैं। तुम जानते हो यह
भारत अविनाशी खण्ड है, इसमें प्रलय कब होगा नहीं। इन बातों को सिमरण करते रहो।
यह तुम्हारी ईश्वरीय मिशन है। सेन्टर्स खुलते जाते हैं। अब विनाश भी सामने खड़ा
है। इन आंखों से जो कुछ देखते हो वह सतयुग में कुछ भी नहीं रहेगा, जंगल हो जायेगा।
आबू थोड़ेही सतयुग में होगा, दरकार ही नहीं। यह मन्दिर आदि सब बाद में भक्ति मार्ग
में बनेंगे। कितनी ऊंची पहाड़ी पर मन्दिर बनाते हैं। फिर ठण्डी में बन्द कर नीचे
उतर आते हैं। तुम तो पहाड़ी पर बैठे हो। अन्त में सब पहाड़ी पर ही साक्षात्कार होंगे।
बाबा बतलाते हैं – मुझे भी जब साक्षात्कार हुआ था तो मैं पहाड़ी पर था। अब भी पहाड़ी
पर आकर अनायास ही बैठे हैं। यहाँ बैठे-बैठे तुम सब कुछ सुनेंगे और देखेंगे। यहाँ
बैठे साक्षात्कार हो सकता है कि कैसे आग लगती है। क्या-क्या होता है। रेडियो से,
अखबारों से सब कुछ तुम सुनेंगे। टी.वी. में भी तुम देख सकते हो। आगे चलकर ऐसी-ऐसी
चीजें निकलेंगी जो घर बैठे सब दिखाई पड़ेगा। रेडियो में कहाँ-कहाँ का आवाज सुनाई
पड़ता है। यह सब है माया का पाम्प, तब मनुष्य समझते हैं यह तो स्वर्ग है। स्वर्ग तो
तब हो सकता है जब विनाश हो। वहाँ मीठे पानी पर महल होंगे। कहाँ पहाड़ियों पर जाने
की दरकार नहीं। वहाँ सदैव बहारी मौसम रहती है। आज गर्मी है, ठण्डी है.. सबमें दु:ख
है। स्वर्ग में दु:ख का नाम नहीं होगा। तुम ऐसी जगह चलते हो। यह बुद्धि में है कि
हमको यह शरीर छोड़ जाना है बाबा के पास। अब हम बाबा द्वारा राजयोग सीख रहे हैं। 5
हजार वर्ष पहले भी सीखा था। कहते हैं बाबा आप तो वही हो। बाबा जानते हैं जिन्होंने
कल्प पहले राज्य भाग्य पाया होगा, वह अब भी लेंगे। यह चक्र बुद्धि में होना चाहिए।
बरोबर 5 हजार वर्ष पहले भारत में देवी-देवताओं का राज्य था फिर आधा समय के बाद माया
की प्रवेशता हुई फिर और धर्म आये फिर भक्ति-मार्ग शुरू हुआ अर्थात् रावण राज्य शुरू
हुआ। यह चित्रों पर साफ समझा सकते हो। यह भारत की ही कहानी है कि सतोप्रधान से
तमोप्रधान कैसे बनते हैं। फिर जब विनाश का समय होता है तो सब विनाशकाले विप्रीत
बुद्धि हो जाते हैं। मेले, प्रदर्शनी में बड़ी युक्ति से चित्र रखने चाहिए। तुम्हारा
यह ज्ञान है गुप्त, यहाँ हथियार आदि की कोई बात नहीं। तुम बहुत साधारण हो। तुम चलते
फिरते घूमते बाप की याद में रहते हो। कोई तुम्हारे से पूछे तुम वेदों शास्त्रों को
मानते हो। बोलो हाँ जी, हम उन्हों को अच्छी रीति जानते हैं कि इनसे भगवान की
प्राप्ति नहीं हो सकती है। यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। सतयुग में सब पावन
आत्मायें थीं। गीत भी है ना – जाग सजनियां जाग। नई दुनिया में सब कुछ नया होगा। बाबा
आकर नई दुनिया के लिए नई कहानियां सुनाते हैं। सीन सीनरियां सब नई होंगी। प्रदर्शनी
में आते बहुत हैं, ओपीनियन भी लिखते हैं। बहुत अच्छा है यह सबको समझाना चाहिए परन्तु
खुद कुछ भी समझते नहीं हैं। कोटों में कोई मुश्किल ही निकलते हैं। परन्तु सर्विस तो
होनी है। ढेर प्रजा बनेगी। तुम बच्चे इस ज्ञान का सिमरण करते रहो तो बहुत खुशी रहेगी।
यह दुनिया ही दु:ख की है। घाटा पड़ा, देवाला निकला, अर्थक्वेक हुई, सबके पैसे खत्म
हो जायेंगे। तब कहते हैं किनकी दबी रही धूल में… सफल किसकी होगी? जो ईश्वरीय स्थापना
के कार्य में लगा रहे हैं। यह है ईश्वरीय बैंक, जो इसमें जितना डाले उतना जमा होता
है। जितना जिसने कल्प पहले डाला होगा वह इतना ही शिवबाबा की गोलक में डालेंगे। इसका
रिटर्न फिर नई दुनिया में 21 जन्मों के लिए मिलेगा। भक्ति मार्ग में शिवबाबा की
गोलक में डालते हैं तो अल्पकाल क्षणभंगुर सुख मिलता है। यहाँ तो डायरेक्ट शिवबाबा
स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं, तो 21 जन्मों के लिए मिलेगा। भक्ति मार्ग में
अल्पकाल का सुख नर्क में मिलता है। फिर मैनर्स भी अच्छे चाहिए, किसको भी दु:ख नहीं
देना चाहिए। नहीं तो नाम बदनाम कर देंगे। कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। देह-अभिमान
में आने से पाप तो होते हैं। बाबा के बने हो तो कहते हो बाबा यह सब कुछ आपका है।
सच्ची दिल पर साहेब राज़ी होगा। दिल में कोई खोट नहीं होना चाहिए। नहीं तो और ही
गिरते रहेंगे। तुम हो पैगम्बर के बच्चे, तुम सबको पैगाम देते हो कि बाप आकर स्वर्ग
की स्थापना करते हैं, उसका सन्देश सबको देना है। नई दुनिया स्थापन हो रही है। उसके
लिए जिनको राजयोग सीखना हो वह आकर सीखे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दर में कोई भी खोट (कमी) हो तो उसे निकाल देना है। सच्ची दिल रखनी
है। देह-अभिमान में आकर कभी क्रोध नहीं करना है।
2) जब भी फुर्सत मिले तो याद की यात्रा में रह कमाई जमा करनी है।