ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत के दो अक्षर सुने। बच्चों को सावधानी मिलती है। इस
समय जो भी हैं सबकी तकदीर बिगड़ी हुई है - सिवाए तुम ब्राह्मणों के। तुम्हारी अब
बिगड़ी से सुधर रही है। बाप को कहा ही जाता है तकदीर बनाने वाला। तुम जानते हो
शिवबाबा कितना मीठा है। बाबा अक्षर बड़ा मीठा है। बाप से सब आत्माओं को वर्सा मिलता
है। लौकिक बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है, बच्ची को नहीं। यहाँ बच्चा वा बच्ची सब
वर्से के हकदार हैं। बाप पढ़ाते हैं आत्माओं को अर्थात् अपने बच्चों को। आत्मा समझती
है हम सब ब्रदर्स हैं। बरोबर ब्रदरहुड कहा जाता है ना। एक भगवान के बच्चे हैं फिर
इतना लड़ते झगड़ते क्यों? सब आपस में लड़ते ही रहते हैं। अनेक धर्म, अनेक मत हैं और
मुख्य बात तो रावण राज्य में लड़ाई ही चलती है क्योंकि विकारों की प्रवेशता है। काम
विकार पर भी कितना लड़ाई झगड़ा होता है। ऐसे बहुत राजाओं ने लड़ाई की है। काम के
लिए बहुत लड़ते हैं। कितने खुश होते हैं। कोई के साथ दिल होती है तो मार भी देते
हैं। काम महाशत्रु है। क्रोध वाले को तो क्रोधी ही कहेंगे। लोभ वाले को लोभी कहेंगे।
लेकिन जो कामी हैं उनके बहुत नाम रखे हुए हैं इसलिए कहा जाता है - अमृत छोड़ विष
काहे को खाए। शास्त्रों में अमृत नाम लिख दिया है। दिखाते हैं सागर मंथन किया तो
अमृत निकला। कलष लक्ष्मी को दिया। कितनी कहानियां हैं। इसमें भी बड़े ते बड़ी बात
है सर्वव्यापी की, गीता का भगवान कौन? और पतित-पावन कौन? प्रदर्शनी में मुख्य इन्हीं
चित्रों पर समझाया जाता है। पतित-पावन, ज्ञान का सागर और उनसे निकली हुई ज्ञान
गंगायें वा पानी की नदी वा सागर? कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाई जाती हैं। बाप बैठ
समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों तुमको किसने पावन बनाया? बिगड़ी को सुधारने वाला कौन
है? वह पतित-पावन कब आते हैं? यह खेल कैसे बना हुआ है? कोई भी नहीं जानते हैं। बाप
को कहा ही जाता है नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, पीसफुल। गाया भी जाता है - बिगड़ी को बनाने
वाला एक। यह तो समझने में आता है - बरोबर रावण हमारी बिगाड़ते हैं। यह खेल है हार
जीत का। रावण को भी तुम जानते हो जिसको भारतवासी वर्ष-वर्ष जलाते हैं। यह भारत का
दुश्मन है। भारत में ही हर वर्ष जलाते हैं। उनसे पूछो कब से जलाते आते हो? तो कहेंगे
यह तो अनादि चला आता है, जब से सृष्टि शुरू होती है। शास्त्रों में जो पढ़ा सत-सत
करते आते हैं। मुख्य भूल है ईश्वर को सर्वव्यापी कहना। बाप यह नहीं कहते कि यह किसकी
भूल है! यह ड्रामा में नूँध है। हार जीत का खेल है। माया से हारे हार, माया से जीते
जीत। माया से कैसे हार खाते हैं, वह भी समझाया जाता है। पूरा आधाकल्प रावणराज्य चलता
है। एक सेकेण्ड का भी फर्क नहीं हो सकता। रामराज्य की स्थापना और रावण राज्य का
विनाश। अपने समय पर एक्यूरेट चलते हैं। सतयुग में तो लंका होती नहीं। वह तो बुद्ध
धर्म का खण्ड है। पढ़े लिखे की बुद्धि में रहता है, लण्डन इस तरफ है, अमेरिका इस
तरफ है। पढ़ाई से बुद्धि का ताला खुलता है, रोशनी आती है। इसको ज्ञान का तीसरा
नेत्र कहा जाता है। बुढ़ियां बहुत बातें समझ न सकें। इन्हों को एक मुख्य बात धारण
करनी है, जो ही अन्त में काम आती है। मनुष्य शास्त्र तो बहुत पढ़ते हैं। पिछाड़ी
में फिर भी एक अक्षर कह देते हैं कि राम-राम कहो। ऐसे नहीं कहते शास्त्र सुनाओ, वेद
सुनाओ। पिछाड़ी में कहेंगे राम को याद करो। जो जास्ती समय जिस चिंतन में रहते हैं,
अन्त में भी वह याद आ जाता है। अभी विनाश तो सबका होना है। तुम जानते हो सब किसको
याद करेंगे? कोई कृष्ण को, कोई अपने गुरू को याद करेंगे। कोई अपने देह के सम्बन्धियों
को याद करेंगे। देह को याद किया, खेल खलास। यहाँ तुमको एक ही बात समझाई जाती है कि
अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। चार्ट रखो कि हम कितना याद करते हैं। जितना
याद करेंगे, पावन होते जायेंगे। ऐसे नहीं कि गंगा में स्नान करने से पावन बनेंगे।
आत्मा की बात है ना। आत्मा ही पतित, आत्मा ही पावन बनती है ना। बाप ने समझाया है -
आत्मा एक स्टॉर बिन्दी है। भ्रकुटी के बीच में रहती है। कहते हैं आत्मा स्टॉर अति
सूक्ष्म है। तुम बच्चे ही इन बातों को समझ सकते हो। बाप कहते हैं मैं कल्प के
संगमयुगे आता हूँ। उन्होंने फिर कल्प अक्षर छोड़ युगे-युगे अक्षर लिख दिया है। तो
मनुष्यों ने उल्टा समझ लिया है। मैंने कहा है कि कल्प-कल्प संगमयुगे आता हूँ। घोर
अन्धियारा और घोर सोझरे के संगम पर। बाकी युगे-युगे आने की तो दरकार ही नहीं। सीढ़ी
उतरते ही आते हैं। जब पूरे 84 जन्म की सीढ़ी उतरते हैं तब बाप आते हैं। यह ज्ञान
सारी दुनिया के लिए है। संन्यासी लोग तो कह देते हैं इन्हों के चित्र सब कल्पना
हैं। परन्तु कल्पना की तो इसमें कोई बात ही नहीं। यह सबको समझाया जाता है, नहीं तो
मनुष्यों को कैसे पता पड़े इसलिए यह चित्र बनाये गये हैं। यह प्रदर्शनी
देश-देशान्तर में ढेर होती रहेंगी। बाप कहते हैं बहुत भारतवासी बच्चे हैं। हैं तो
सब बच्चे ना। अनेक धर्मो का यह झाड़ है। बाप बैठ समझाते हैं - यह सब काम चिता पर
बैठ जल मरे हैं। सतयुग में जो पहले-पहले आते हैं, वही फिर पहले-पहले द्वापर से लेकर
काम अग्नि में जलते हैं इसलिए काले हो गये हैं। अभी सबकी सद्गति होनी है। तुम
निमित्त बनते हो। तुम्हारे पिछाड़ी सबकी सद्गति होनी है। बाप कितना सहज रीति समझाते
हैं। कहते हैं सिर्फ बाप को याद करो। आत्मा ने ही दुर्गति को पाया है। आत्मा पतित
बनने से शरीर भी ऐसा मिलता है। आत्मा को पावन बनाने की युक्ति बाप बिल्कुल सहज बताते
हैं।
त्रिमूर्ति के चित्र में ब्रह्मा का चित्र देख मनुष्य हाय-हाय मचा देते हैं। इनको
ब्रह्मा क्यों कहते हो? ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन वासी देवता है, यहाँ कहाँ से आया? यह
दादा तो नामीग्रामी था। अखबारों में सब जगह पड़ा था, एक जौहरी कहता है मैं
श्रीकृष्ण हूँ, हमको 16108 रानियां चाहिए। बड़ा हंगामा मच गया था, भगाने का। अब
एक-एक से माथा कौन मारे। इतने ढेर मनुष्य हैं। आबू में भी कोई आते हैं तो उनको झट
कहते हैं अरे ब्रह्माकुमारियों के पास जाते हो! वह तो जादू कर देती हैं।
स्त्री-पुरुष को भाई-बहिन बना देती हैं। लम्बी चौड़ी बात बताकर माथा खराब कर देते
हैं। बाप कहते हैं तुम मुझे ज्ञान सागर वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहते हो। वर्ल्ड
आलमाइटी अर्थात् सर्वशक्तिमान्, सब वेदों शास्त्रों आदि को जानने वाला। बड़े
विद्वान को भी अथॉरिटी कहते हैं क्योंकि वह सब वेदों, शास्त्रों आदि को पढ़ते हैं
फिर बनारस में जाकर टाइटिल ले आते हैं। महा-महोपाध्याय, श्री श्री 108 सरस्वती यह
सब टाईटिल्स वहाँ ही मिलते हैं। जो बहुत होशियार होते हैं, उनको बड़ा टाइटिल मिलता
है। शास्त्रों में जनक के लिए लिखा हुआ है। उसने कहा कि सच्चा ब्रह्म ज्ञान कोई हमको
सुनाये। अब ब्रह्म ज्ञान तो है नहीं। बातें सारी यहाँ की हैं। कहानी बड़ी बना दी
है। शंकर पार्वती की भी कहानी लिखी हुई है। कितनी कहानियां बैठ बनाई हैं। शंकर ने
पार्वती को कथा सुनाई, वास्तव में था शिव उन्होंने फिर शंकर पार्वती का नाम दे दिया
है। भागवत आदि में यह सब इस समय की बात है। फिर कहानी में बताते हैं, उनको ख्याल आया
- राजा को यह ज्ञान जाकर दूँ। बाप भी समझाते हैं - राजाओं को जाकर ज्ञान दो। तुम ही
सूर्यवंशी थे फिर चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी, शूद्रवंशी बनें। तुम्हारी राजधानी ही चट
हो गई है। अब फिर सूर्यवंशी राज-धानी लेना हो तो पुरुषार्थ करो। राजयोग सिखाने वाला
बाबा आया हुआ है। फिर आकर बेहद का स्वराज्य लो। राजाओं के पास भी बहुत चिट्ठियां
जाती हैं फिर उनको मिलती थोड़ेही हैं। उनके प्राइवेट पोटरी चिट्ठियां देखते हैं।
कितनी चिट्ठियां फेंक देते हैं। कोई में ऐसी जरूरी बात होती है तो उनको दिखा देते
हैं। कहते हैं - अष्टापा ने जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का साक्षात्कार कराया।
यह भी अब है। अब बाप कितना अच्छी तरह बैठ तुमको समझाते हैं। जो समझने वाले नहीं
हैं, वह यहाँ-वहाँ देखते रहेंगे। बाबा झट समझ जाते हैं - उनकी बुद्धि में कुछ बैठता
नहीं है। बाबा चारों तरफ देखते भी हैं - सभी अच्छी तरह सुनते हैं। इनकी बुद्धि कहाँ
भटकती रहती है। उबासी देते रहते हैं। ज्ञान बुद्धि में नहीं बैठेगा तो झुटके खाते
रहेंगे, नुकसान हो जाता है। कराची में इन बच्चों की भट्ठी थी। कोई झुटका खाता था तो
फिर झट बाहर निकाला जाता था। अपने ही बैठते थे। बाहर का कोई आता नहीं था। शुरू में
इन्हों का बड़ा पार्ट चला है। लम्बी हिस्ट्री है। शुरू में तो बच्चियां बहुत ध्यान
में चली जाती थी। अभी तक भी कहते रहते हैं जादू है। परमपिता परमात्मा को जादूगर कहते
हैं ना। शिवबाबा देखते हैं - इनका बहुत प्रेम है, तो देखने से ही झट ध्यान में चले
जाते हैं। वैकुण्ठ तो भारतवासियों को बहुत प्यारा है। कोई मरता है तो भी कहते हैं
वैकुण्ठवासी हुआ, स्वर्गवासी हुआ। अभी यह तो है ही नर्क। सब नर्कवासी हैं, तब तो
कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। परन्तु स्वर्ग में तो कोई जाता ही नहीं है। अभी
सिर्फ यह तुम जानते हो हम स्वर्गवासी थे फिर 84 जन्म ले नर्कवासी बन गये हैं। अब
फिर बाबा स्वर्गवासी बना रहे हैं। स्वर्ग में है राजधानी। राजधानी में बहुत पद हैं।
पुरुषार्थ कर नर से नारायण बनना है। तुम जानते हो यह मम्मा बाबा भविष्य में
लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अभी पुरुषार्थ कर रहे हैं, इसलिए कहा जाता है फालो
मदर-फादर। जैसे यह पुरुषार्थ करते हैं, तुम भी करो। यह भी याद में रहते हैं,
स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। तुम बाप को याद करो और वर्से को याद करो। त्रिकालदर्शी
बनो। तुमको इस सारे चक्र का ज्ञान है, इसमें तत्पर रहो, औरों को समझाते रहो। इस
सर्विस में ही लगे रहेंगे तो और कोई धन्धा आदि याद नहीं पड़ेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सतयुग में ऊंच पद पाने के लिए मात-पिता को पूरा-पूरा फालो करना है।
उनके समान पुरुषार्थ करना है। सेवा में तत्पर रहना है। एकाग्र हो पढ़ाई करनी है।
2) याद का सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है,
देह वा देहधारियों को याद नहीं करना है।