ओम् शान्ति।
देवी-देवताओं के पुजारी पारलौकिक मात-पिता को याद तो करते ही आये हैं और भक्त भी
जानते हैं हमको भक्ति का फल देने मात-पिता को आना है जरूर। अब वह मात-पिता कौन है -
यह तो बिचारे जानते ही नहीं। पुकारते हैं इससे सिद्ध होता है, उनका सम्बन्ध जरूर
है। एक होता है लौकिक सम्बन्ध, दूसरा होता है पारलौकिक सम्बन्ध। लौकिक सम्बन्ध तो
अनेक प्रकार के हैं। काका, चाचा, मामा आदि-आदि यह है लौकिक बंधन, इसलिए परमपिता
परमात्मा को बुलाते हैं। यह तो बच्चों को मालूम है सतयुग में कोई बंधन नहीं। बाप को
बुलाते हैं कि हम अभी बन्धन में हैं, आपके सम्बन्ध में आना चाहते हैं। भक्तों को
याद है हम अनेक प्रकार के बन्धनों में हैं। देह का सिमरण होने कारण बन्धन बहुत हैं।
देही के सम्बन्ध से एक ही मात-पिता याद रहता है। लौकिक और पारलौकिक को याद करने में
रात-दिन का फ़र्क है। यह है जिस्मानी बंधन और वह है रूहानी सम्बन्ध। जिस्मानी
सम्बन्ध में सतयुग में रहते हैं क्योंकि वहाँ सुख का सम्बन्ध कहेंगे। यहाँ फिर दु:ख
का बंधन कहेंगे। उनको सम्बन्ध नहीं कहेंगे। इन बातों का आगे पता नहीं था। अब समझ गये
हो, पुकारते जरूर थे - हे मात-पिता आओ। बाप तो जरूर सबको सुख ही देंगे। परन्तु बाप
क्या सुख देते हैं - यह किसको पता नहीं है। अभी बाप से सम्बन्ध है, उनसे सदा सुख
मिलता है। सुख को सम्बन्ध, दु:ख को बंधन कहेंगे। तो बच्चे मात-पिता को बुलाते हैं
कि आकर के ऐसी मीठी-मीठी बातें सुनाओ। वो इनडायरेक्ट बुलाते हैं, तुम डायरेक्ट
बुलाते हो। वह भी याद करते हैं - हे परमपिता परमात्मा। पिता है तो जरूर माता भी होनी
चाहिए। नहीं तो बाप क्रियेट कैसे करे? शिवबाबा को बच्चे चिट्ठी कैसे लिखेंगे? ऐसे
तो वह पढ़ न सके। शिवबाबा तो यहाँ बैठे हैं, इसलिए लिखते हैं शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा।
शिवबाबा जरूर कोई तो शरीर धारण करते हैं। गाते भी हैं - आत्मायें परमात्मा अलग रहे
बहुकाल, सतगुरू उसको कहा जाता है। वह है सर्व का सद्गति दाता। वह आकर इस शरीर में
प्रवेश करते हैं। फिर इनको 84 जन्मों का राज़ बैठ बतलाते हैं। ब्रह्मा की रात,
ब्रह्मा का दिन गाया हुआ है। पहले है परमपिता परमात्मा रचता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर
को रचते हैं। बरोबर परमपिता, ब्रह्मा की रात को फिर ब्रह्मा का दिन बनाने आते हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा का दिन तो प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियों का भी दिन हुआ। दिन
कहा जाता है सतयुग-त्रेता को। रात, द्वापर-कलियुग को। अभी तुम बच्चे आये हो बाप से
स्वर्ग का वर्सा लेने। उनके लिये ही गाते हैं त्वमेव माताश्च पिता...... सखा रूप से
हल्के रूप में आकर बहलते हैं। मुख्य हैं तीन सम्बन्ध - बाप, टीचर, सतगुरू। इनसे ही
फ़ायदा है। बाकी काका, चाचा, मामा आदि सम्बन्धों की कोई बात नहीं। तो सम्पूर्ण बाप
जो है वह आकर बच्चों को सम्पूर्ण बनाते हैं। 16 कला सम्पूर्ण तुम बन रहे हो। तुम
अनुभवी हो। दूसरा कोई कैसे जाने। जब तक तुम बच्चों के संग में न आये तब तक वह कैसे
समझ सके।
अब तुम जानते हो भक्ति मार्ग में भी बंधन है। याद तब करते हैं जबकि रावण रूपी 5
विकारों के बन्धन में हैं। बाप का नाम ही है लिबरेटर। अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा
है। लिबरेट करते हैं मनुष्यों को, लिबरेट किया जाता है दु:ख से, माया के बंधन से
लिबरेट करने आते हैं। फिर गाइड भी है। गीता में भी है मच्छरों सदृश्य सबको वापिस ले
जाते हैं तो जरूर विनाश भी होगा। यह तो गाया हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर
द्वारा विनाश कराते हैं। फिर जो स्थापना करते हैं उन द्वारा ही पालना भी होती है।
अभी तुम तैयार हो रहे हो - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। देह के बन्धन को बुद्धि से
तोड़ना है। संन्यासी लोग तो घरबार छोड़ भाग जाते हैं। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते
राजयोग सीखते हो। जनक का भी मिसाल है। वह फिर जाकर अनु जनक बना। बहुत बच्चे कहते
हैं जनक मिसल हम अपनी राजधानी में रहते ज्ञान उठावें। अपने घर का तो हरेक राजा है
ना। मालिक को राजा कहा जाता है। बाप है, उनकी स्त्री बच्चे आदि हैं - यह हो गई हद
की रचना। क्रियेट भी करते हैं, पालना भी करते हैं। बाकी संहार नहीं कर सकते क्योंकि
सृष्टि को तो वृद्धि को पाना ही है। सब पैदा ही करते रहते हैं। सिर्फ बेहद का बाप
ही आते हैं जो नई रचना रचते हैं और पुरानी का विनाश कराते हैं। नई सृष्टि की स्थापना
और पुरानी का विनाश सो तो ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का रचयिता परमपिता परमात्मा ही करेंगे।
इन बातों को तुम बच्चे अच्छी रीति समझते हो। बातें तो बड़ी सहज है। नाम ही रखा हुआ
है सहज योग वा याद। भारत का ज्ञान वा योग नामीग्रामी है।
बाप अभी तुम बच्चों को दैवी मत देते हैं जिससे तुम सदैव हर्षित रहेंगे। मात-पिता
से ही नई सृष्टि की रचना होती है। यह तो सब जानते हैं हमको खुदा ने पैदा किया। अभी
तुम समझते हो खुदा कैसे आकर नई सृष्टि रचते हैं। नई सृष्टि एडाप्ट करते हैं।
मात-पिता तो जरूर हैं। बाप है फिर खुद ही इन द्वारा एडाप्ट करते हैं तो यह बड़ी माता
हो गई। फिर पहले नम्बर में सरस्वती को एडाप्ट किया है। बाप ने इनमें प्रवेश किया है
ना। यह मम्मा तो एडाप्टेड है। तुम्हारे लिए तो मात-पिता है। हमारे लिए पति भी हुआ
तो पिता भी हुआ। प्रवेश कर अपनी वन्नी (युगल) भी मुझे बनाया है और बच्चा भी बनाया
है। यह तो बड़ी रमणीक बातें हैं, जो सम्मुख सुनने की हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार
समझते हैं। अगर सभी समझते हों तो फिर समझावें। समझा नहीं सकते हैं तो गोया कुछ नहीं
समझा। जड़ बीज से झाड़ कैसे पैदा होता है - यह तो कोई भी झट बतला सकता है। इस बेहद
के झाड़ का ज्ञान जब तक बाप न आकर समझाये तब तक कोई समझ नहीं सकते। तुम जानते हो हम
बाप से राजयोग सीखकर वर्सा ले रहे हैं। यह बुद्धि में होना चाहिए। यह डबल सम्बन्ध
है। वहाँ तो सिंगल सम्बन्ध रहता है। पारलौकिक बाप को याद नहीं करते। यहाँ वह सब है
बन्धन। तुम जानते हो हम इस समय उस बन्धन में भी हैं। पिता के सम्बन्ध में अब आये
हैं, उस बन्धन से छूटने के लिए। आजकल तो कितनी मतें हो गई हैं। आपस में लड़ते-झगड़ते
रहते हैं। पानी के लिए, धरनी के लिए भी लड़ते रहते हैं। यह हमारी हद में है, यह
तुम्हारी हद में नहीं है। बिल्कुल ही हद में आ गये हैं। यह भूल गये हैं कि भारतवासी
सतयुग में बेहद के मालिक थे। जो मालिक थे वही फिर भूल जाते हैं। भूलना भी जरूर है
तब ही फिर बाप आकर समझाते हैं। इन बातों को अभी तुम जानते हो। वहाँ है बंधन। यहाँ
मात-पिता से सम्बन्ध है। जानते हो हम श्रीमत पर चल अथाह सुख का वर्सा पा रहे हैं।
बाप कहते हैं मैं तुमको सुख का वर्सा देता हूँ। फिर श्राप कौन देते हैं? माया रावण।
श्राप में है दु:ख, वर्से में तो सुख होता है। मनुष्य यह नहीं जानते कि मनुष्य को
दु:ख का वर्सा कौन देते हैं? बाप सतयुग स्थापन करते हैं तो जरूर सुख का ही वर्सा
देंगे। बाप को दु:ख का वर्सा देने वाला थोड़ेही कहेंगे। दु:ख तो दुश्मन देते हैं।
परन्तु यह बातें कोई समझते नहीं। कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं। कहते हैं लंका लूटी
जाती है, सोना ले आते हैं। अब सोना कोई सीलॉन में नहीं रखा है। सोना तो मिलता है
खानियों से। कहाँ नदियों से भी मिलता है।
बच्चे जान गये हैं यह अनादि वर्ल्ड ड्रामा है। तुम बच्चों की बुद्धि में
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बैठा है। जो समझते नहीं, न समझा सकते तो वह क्या पद
पायेंगे! पढ़े हुए के आगे भरी ढोयेंगे। राजा-रानी, प्रजा में फ़र्क तो है ना। जैसे
यह मम्मा-बाबा जाकर ऊंच पद पाते हैं। तुम भी पुरुषार्थ कर इतना पढ़ो जो मम्मा-बाबा
के तख्त पर बैठो, विजय माला का दाना बनो। टैम्पटेशन बहुत दी जाती है। राजयोग है ना।
तुम राजयोग से राजाई तो प्राप्त कर लो। कम से कम पुरुषार्थ अनुसार प्रजा तो बनेंगे
ही। हमेशा कहा जाता है फालो फादर। तुम बच्चे हो ना। वह फादर फिर यह फादर, यहाँ फिर
मदर भी है। नम्बरवन फालो कर रही है। तुम हो भाई-बहन। बाप तो एक होना चाहिए। ओ गॉड
फादर सब कहते हैं तो सब भाई-बहन हो गये। और जास्ती कोई सम्बन्ध नहीं। भाई-बहन, बस।
और उन्हों का बाप, दादा, भाई, बहनें तो बहुत हैं। बाप एक है, दादा भी एक है। एक
प्रजापिता ब्रह्मा है, उनसे फिर रचना रची जाती है। तुम बहन-भाई ही पद पाते हो
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बाकी जाकर अपने-अपने झाड़ में लटकेंगे। ठिकाना तो है
ना। जहाँ से फिर नम्बरवार आते हैं। यहाँ है जीवनबंध। आत्मायें वहाँ से पहले-पहले
सुख में आती हैं इसलिए पहले जीवनमुक्त होती हैं। पहले-पहले होती है स्वर्ग में
भारतवासियों की जीवनमुक्ति। कितनी अच्छी-अच्छी बातें बाप सुनाते हैं। मेरा तो एक
सर्वोत्तम टीचर दूसरा न कोई। कन्यायें कहेंगी मेरा तो एक शिवबाबा..... कन्याओं को
इसमें पूरा अटेन्शन देना है। इस गवर्मेन्ट के हो गये तो फिर ईश्वरीय सर्विस में लग
जाना है। फिर आसुरी सर्विस कैसे कर सकती? हर एक के कर्मबन्धन अनुसार राय दी जाती
है। देखा जाता है, निकल सकती हैं वा नहीं। अच्छे शुरूड बुद्धि हैं तो फिर ऑन गॉडली
सर्विस ओनली हो जाती है। तुम बच्चों की है गॉडली सर्विस, निर्विकारी बनाने की
सर्विस। हम सेना हैं। गॉड हमको माया से युद्ध करना सिखलाते हैं। रावण सबसे जास्ती
पुराना दुश्मन है। यह सिर्फ तुम ही जानते हो। तुम रावण पर विजय पाकर हीरे जैसा
बनेंगे। बच्चों को वह हिम्मत, वह नशा रहना चाहिए। मनुष्य तो लड़ते रहते हैं, सब जगह
देखो झगड़ा ही झगड़ा है। हमारा कोई से झगड़ा नहीं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो
विकर्म विनाश होंगे। माया का वार नहीं होगा। फिर वर्से को याद करो। यह भी किसको
सुनाना पड़े ना। बाप का परिचय दे उनसे बुद्धियोग लगाना है। वह हमारा मात-पिता है।
शिवबाबा है तो बताओ तुम्हारी माता कौनसी है? यह भी कितनी गुह्य बातें हैं। तुम पूछते
हो आत्मा का बाप कौन है? वह भी लिख देंगे परमात्मा है। अच्छा, माता कहाँ है? माता
बिगर बच्चों को रचेंगे कैसे? तो फिर जगत अम्बा तरफ चले जायेंगे। अच्छा, जगत अम्बा
को कैसे रचा? यह भी किसको पता नहीं है। तुम जानते हो ब्रह्मा की बेटी सरस्वती है।
वह भी मुख वंशावली है। रचता तो बाप ही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मेरा तो एक सर्वोत्तम टीचर दूसरा न कोई - इसी निश्चय से मात-पिता
समान पढ़ाई पढ़नी है। पुरुषार्थ में पूरा फालो करना है।
2) देह के बंधन को बुद्धि से तोड़ना है। दैवी मत पर चल सदा हर्षित रहना है।
ईश्वरीय सेवा करनी है।