14-03-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुमने बाप का हाथ पकड़ा है, तुम गृहस्थ
व्यवहार में रहते भी बाप को याद करते-करते तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे"
प्रश्नः-
तुम बच्चों के
अन्दर में कौन सा उल्लास रहना चाहिए? तख्तनशीन बनने की विधि क्या है?
उत्तर:-
सदा
उल्लास रहे कि ज्ञान सागर बाप हमें रोज़ ज्ञान रत्नों की थालियां भर-भर कर देते
हैं। जितना योग में रहेंगे उतना बुद्धि कंचन होती जायेगी। यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही
साथ में जाते हैं। तख्तनशीन बनना है तो मात-पिता को पूरा-पूरा फालो करो। उनकी
श्रीमत अनुसार चलो, औरों को भी आप समान बनाओ।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे इस समय कहाँ बैठे हैं? कहेंगे रूहानी बाप की युनिवर्सिटी अथवा पाठशाला
में बैठे हैं। बुद्धि में है कि हम रूहानी बाप के आगे बैठे हैं, वह बाप हमको सृष्टि
के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं अथवा भारत का राइज और फाल कैसे होता है, यह भी
बताते हैं। भारत जो पावन था वह अब पतित है। भारत सिरताज था फिर किसने जीत पाई है?
रावण ने। राजाई गँवा दी तो फाल हुआ ना। कोई राजा तो है नहीं। अगर होगा भी तो पतित
ही होगा। इस ही भारत में सूर्यवंशी महाराजा-महारानी थे। सूर्यवंशी महाराजायें और
चन्द्रवंशी राजायें थे। यह बातें अब तुम्हारी बुद्धि में हैं, दुनिया में यह बातें
कोई नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो हमारा रूहानी बाप हमको पढ़ा रहे हैं। रूहानी
बाप का हमने हाथ पकड़ा है। भल हम रहते गृहस्थ व्यवहार में हैं परन्तु बुद्धि में है
कि अभी हम संगमयुग पर खड़े हैं। पतित दुनिया से हम पावन दुनिया में जाते हैं।
कलियुग है पतित युग, सतयुग है पावन युग। पतित मनुष्य पावन मनुष्यों के आगे जाकर
नमस्ते करते हैं। हैं तो वह भी भारत के मनुष्य। परन्तु वह दैवीगुण वाले हैं। अभी
तुम बच्चे जानते हो हम भी बाप द्वारा ऐसे दैवीगुण धारण कर रहे हैं। सतयुग में यह
पुरुषार्थ नहीं करेंगे। वहाँ तो है प्रालब्ध। यहाँ पुरुषार्थ कर दैवीगुण धारण करने
हैं। सदैव अपनी जांच रखनी है - हम बाबा को कहाँ तक याद कर तमोप्रधान से सतोप्रधान
बन रहे हैं? जितना बाप को याद करेंगे उतना सतोप्रधान बनेंगे। बाप तो सदैव सतोप्रधान
है। अभी भी पतित दुनिया, पतित भारत है। पावन दुनिया में पावन भारत था। तुम्हारे पास
प्रदर्शनी आदि में भिन्न-भिन्न प्रकार के मनुष्य आते हैं। कोई कहते हैं जैसे भोजन
जरूरी है वैसे यह विकार भी भोजन है, इनके बिना मर जायेंगे। अब ऐसी बात तो है नहीं।
सन्यासी पवित्र बनते हैं फिर मर जाते हैं क्या! ऐसे-ऐसे बोलने वाले के लिए समझा जाता
है कोई बहुत अजामिल जैसे पापी होंगे, जो ऐसे-ऐसे कहते हैं। बोलना चाहिए क्या इस
बिगर तुम मर जायेंगे जो भोजन से इनकी भेंट करते हो! स्वर्ग में आने वाले जो होंगे
वह होंगे सतोप्रधान। फिर पीछे सतो, रजो, तमो में आते हैं ना। जो पीछे आते हैं उन
आत्माओं ने निर्विकारी दुनिया तो देखी ही नहीं है। तो वह आत्मायें ऐसे-ऐसे कहेंगी
कि इन बिगर हम रह नहीं सकते। सूर्यवंशी जो होंगे उनको तो फौरन बुद्धि में आयेगा -
यह तो सत्य बात है। बरोबर स्वर्ग में विकार का नाम-निशान नहीं था। भिन्न-भिन्न
प्रकार के मनुष्य, भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें करते हैं। तुम समझते हो कौन-कौन फूल
बनने वाले हैं? कोई तो कांटे ही रह जाते हैं। स्वर्ग का नाम है फूलों का बगीचा। यह
है कांटों का जंगल। कांटे भी अनेक प्रकार के होते हैं ना। अभी तुम जानते हो हम फूल
बन रहे हैं। बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण सदा गुलाब के फूल हैं। इनको कहेंगे किंग ऑफ
फ्लावर्स। दैवी फ्लावर्स का राज्य है ना। जरूर उन्होंने भी पुरूषार्थ किया होगा।
पढ़ाई से बने हैं ना।
तुम जानते हो अभी हम ईश्वरीय फैमिली के बने हैं। पहले तो ईश्वर को जानते ही नहीं
थे। बाप ने आकर के यह फैमिली बनाई है। बाप पहले स्त्री को एडाप्ट करते हैं फिर उन
द्वारा बच्चों को रचते हैं। बाबा ने भी इनको एडाप्ट किया फिर इन द्वारा बच्चों को
रचा है। यह सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं ना। यह नाता प्रवृत्ति मार्ग का हो जाता
है। सन्यासियों का है निवृत्ति मार्ग। उसमें कोई मम्मा-बाबा नहीं कहते। यहाँ तुम
मम्मा-बाबा कहते हो। और जो भी सतसंग हैं वह सब निवृत्ति मार्ग के हैं, यह एक ही बाप
है जिसको मात-पिता कह पुकारते हैं। बाप बैठ समझाते हैं, भारत में पवित्र प्रवृत्ति
मार्ग था, अब अपवित्र हो गया है। मैं फिर से वही प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करता हूँ।
तुम जानते हो हमारा धर्म बहुत सुख देने वाला है। फिर हम और पुराने धर्म वालों का
संग क्यों करें! तुम स्वर्ग में कितने सुखी रहते हो। हीरे-जवाहरातों के महल होते
हैं। यहाँ भल अमेरिका रशिया आदि में कितने साहूकार हैं परन्तु स्वर्ग जैसे सुख हो न
सके। सोने की ईटों जैसे महल तो कोई बना न सके। सोने के महल होते ही हैं सतयुग में।
यहाँ सोना है ही कहाँ। वहाँ तो हर जगह हीरे-जवाहरात लगे हुए होंगे। यहाँ तो हीरों
का भी कितना दाम हो गया है। यह सब मिट्टी में मिल जायेंगे। बाबा ने समझाया है नई
दुनिया में फिर सब नयी खानियां भरतू हो जायेंगी। अभी यह सब खाली होती रहेंगी। दिखाते
हैं सागर ने हीरे-जवाहरातों की थालियां भेंट की। हीरे-जवाहरात तो वहाँ तुमको ढेर
मिलेंगे। सागर को भी देवता रूप समझते हैं। तुम समझते हो बाप तो ज्ञान का सागर है।
सदा उल्लास रहे कि ज्ञान सागर बाप हमें रोज ज्ञान रत्नों, जवाहरातों की थालियां
भरकर देते हैं। बाकी वह तो पानी का सागर है। बाप तुम बच्चों को ज्ञान रत्न देते
हैं, जो तुम बुद्धि में भरते हो। जितना योग में रहेंगे उतना बुद्धि कचन होती जायेगी।
यह अविनाशी ज्ञान रत्न ही तुम साथ ले जाते हो। बाप की याद और यह नॉलेज है मुख्य।
तुम बच्चों को अन्दर में बड़ा उल्लास रहना चाहिए। बाप भी गुप्त है, तुम भी गुप्त
सेना हो। नान वायोलेन्स, अन-नोन वारियर्स कहते हैं ना, फलाना बहुत पहलवान वारियर्स
है। परन्तु नाम-निशान का पता नहीं है। ऐसे तो हो नहीं सकता। गवर्मेन्ट के पास एक-एक
का नाम निशान पूरा होता है। अननोन वारियर्स, नानवायोलेन्स यह तुम्हारा नाम है। सबसे
पहली-पहली हिंसा है यह विकार, जो ही आदि-मध्य-अन्त दुःख देते हैं। इसलिए तो कहते
हैं - हे पतित पावन, हम पतितों को आकर पावन बनाओ। पावन दुनिया में एक भी पतित नहीं
हो सकता। यह तुम बच्चे जानते हो, अभी ही हम भगवान के बच्चे बने हैं, बाप से वर्सा
लेने, परन्तु माया भी कम नहीं है। माया का एक ही थप्पड़ ऐसा लगता है जो एकदम गटर
में गिरा देती है। विकार में जो गिरते हैं तो बुद्धि एकदम चट हो जाती है। बाप कितना
समझाते हैं - आपस में देहधारी से कभी प्रीत नहीं रखो। तुमको प्रीत रखनी है एक बाप
से। कोई भी देहधारी से प्यार नहीं रखना है, मुहब्बत नहीं रखनी है। मुहब्बत रखनी है
उनसे जो देह रहित विचित्र बाप है। बाप कितना समझाते रहते हैं फिर भी समझते नहीं।
तकदीर में नहीं है तो एक-दो की देह में फँस पड़ते हैं। बाबा कितना समझाते हैं - तुम
भी रूप हो। आत्मा और परमात्मा का रूप तो एक ही है। आत्मा छोटी-बड़ी नहीं होती। आत्मा
अविनाशी है। हर एक का ड्रामा में पार्ट नूॅंधा हुआ है। अभी कितने ढेर मनुष्य हैं,
फिर 9-10 लाख होंगे। सतयुग आदि में कितना छोटा झाड़ होता है। प्रलय तो कभी होती नहीं।
तुम जानते हो जो भी मनुष्य मात्र हैं उन सबकी आत्मायें मूलवतन में रहती हैं। उनका
भी झाड़ है। बीज डाला जाता है, उनसे सारा झाड़ निकलता है ना। पहले-पहले दो पत्ते
निकलते हैं। यह भी बेहद का झाड़ हैं, गोले पर समझाना कितना सहज है, विचार करो। अभी
है कलियुग। सतयुग में एक ही धर्म था। तो कितने थोड़े मनुष्य होंगे। अभी कितने मनुष्य,
कितने धर्म हैं। इतने सब जो पहले नहीं थे वह फिर कहाँ जायेंगे? सभी आत्मायें परमधाम
में चली जाती हैं। तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है। जैसे बाप ज्ञान का सागर है
वैसे तुमको भी बनाते हैं। तुम पढ़कर यह पद पाते हो। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो
स्वर्ग का वर्सा भारतवासियों को ही देते हैं। बाकी सबको वापस घर ले जाते हैं। बाप
कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को पढ़ाने। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे।
जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। मम्मा-बाबा
के तख्तनशीन बनना है तो पूरा-पूरा फालो फादर मदर। तख्तनशीन बनने के लिए उनकी चलन
अनुसार चलो। औरों को भी आपसमान बनाओ। बाबा अनेक प्रकार की युक्तियां बतलाते हैं। एक
बैज पर ही तुम किसको भी अच्छी रीति बैठ समझाओ। पुरूषोत्तम मास होता है तो बाबा कह
देते चित्र फ्री दे दो। बाबा सौगात देते हैं। पैसे हाथ में आ जायेंगे तो जरूर
समझेंगे, बाबा का भी खर्चा होता है ना तो फिर जल्दी भेज देंगे। घर तो एक ही है ना।
इन ट्रांसलाइट के चित्रों की प्रदर्शनी बनेंगी तो कितने देखने आयेंगे। पुण्य का काम
हुआ ना। मनुष्य को कांटे से फूल, पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाते हैं, इसको विहंग
मार्ग कहा जाता है। प्रदर्शनी में स्टाल लेने से आते बहुत हैं। खर्चा कम होता है।
तुम यहाँ आते हो बाप से स्वर्ग की राजाई खरीद करने। तो प्रदर्शनी में भी आयेंगे,
स्वर्ग की राजाई खरीद करने। यह हट्टी है ना।
बाप कहते हैं इस ज्ञान से तुमको बहुत सुख मिलेगा, इसलिए अच्छी रीति पढ़कर,
पुरुषार्थ करके फुल पास होना चाहिए। बाप ही बैठ अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का
परिचय देते हैं और कोई दे न सके। अब बाप द्वारा तुम त्रिकालदर्शी बनते हो। बाप कहते
हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे यथार्थ रीति कोई नहीं जानते। तुम्हारे में भी
नम्बरवार हैं। अगर यथार्थ रीति जानते तो कभी छोड़ते नहीं। यह है पढ़ाई। भगवान बैठ
पढ़ाते हैं। कहते हैं मैं तुम्हारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। बाप और टीचर दोनों
ओबीडियन्ट सर्वेन्ट होते हैं। ड्रामा में हमारा पार्ट ही ऐसा है फिर सबको साथ ले
जाऊंगा। श्रीमत पर चल पास विद् ऑनर होना चाहिए। पढ़ाई तो बहुत सहज है। सबसे बूढ़ा
तो यह पढ़ाने वाला है। शिवबाबा कहते हैं मैं बूढ़ा नहीं। आत्मा कभी बूढ़ी नहीं होती।
बाकी पत्थर बुद्धि बनती है। मेरी तो है ही पारसबुद्धि तब तो तुमको पारसबुद्धि बनाने
आता हूँ। कल्प-कल्प आता हूँ। अनगिनत बार तूमको पढ़ाता हूँ फिर भी भूल जायेंगे। सतयुग
में इस ज्ञान की दरकार ही नहीं रहती। कितना अच्छी रीति बाप समझाते हैं। ऐसे बाप को
फिर फारकती दे देते हैं। इसलिए कहा जाता है महान मूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो। ऐसा
बाप जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, उनको भी छोड़ देते हैं। बाप कहते हैं तुम मेरी
मत पर चलेंगे तो अमरलोक में विश्व के महाराजा-महारानी बनेंगे। यह है मृत्युलोक।
बच्चे जानते हैं हम सो पूज्य देवी-देवता थे। अभी हम क्या बन गये हैं? पतित भिखारी।
अब फिर हम सो प्रिन्स बनने वाले हैं। सबका एकरस पुरुषार्थ तो हो न सके। कोई टूट
पड़ते हैं, कोई ट्रेटर बन पड़ते हैं। ऐसे ट्रेटर्स भी बहुत हैं। उनसे बात भी नहीं
करनी चाहिए। सिवाए ज्ञान की बातों के और कुछ पूछें तो समझो शैतानी है। संग तारे
कुसंग बोरे। जो ज्ञान में होशियार बाबा के दिल पर चढ़े हुए हैं, उनका संग करो। वह
तुमको ज्ञान की मीठी-मीठी बातें सुनायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे सर्विसएबुल, वफ़ादार, फरमानबरदार बच्चों को मात-पिता बापदादा का
याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जो देह रहित विचित्र है, उस बाप से मुहब्बत रखनी है। किसी देहधारी के
नाम रूप में बुद्धि नहीं फँसानी है। माया का थप्पड़ न लगे, यह सम्भाल करनी है।
2) जो ज्ञान की बातों के सिवाए दूसरा कुछ भी सुनाए उसका संग नहीं करना है। फुल
पास होने का पुरूषार्थ करना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:-
ताज और तख्त को सदा कायम रखने वाले निरन्तर स्वतः
योगी भव
वर्तमान समय बाप द्वारा सभी बच्चों को ताज और तख्त मिलता
है, अभी का यह ताज व तख्त अनेक जन्मों के लिए ताज, तख्त प्राप्त करता है। विश्व
कल्याण की जिम्मेवारी का ताज और बापदादा का दिलतख्त सदा कायम रहे तो निरन्तर स्वतः
योगी बन जायेंगे। उन्हें किसी भी प्रकार की मेहनत करने की बात नहीं क्योंकि एक तो
संबंध समीप का है दूसरा प्राप्ति अखुट है। जहाँ प्राप्त होती है वहाँ स्वतः याद होती
है।
स्लोगन:-
प्लेन बुद्धि से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ तो सफलता समाई हुई है।
सूचना:
आप सबको ज्ञात
हो कि बापदादा की बहुत-बहुत लवली, अथक सेवाधारी भोपाल जोन में समर्पित रूप में
सेवायें देने वाली ऊषा कुमारी, जो अपने लौकिक परिवार सहित सेवाओं में समर्पित थी। 4
लौकिक बहनें, माता पिता सब सेवा पर ही हैं। अभी-अभी पटना, जयपुर आदि के मेगा
प्रोग्राम्स में महेन्द्र भाई के साथ आपने बहुत अच्छी सेवायें की। अचानक 14 जनवरी
2005 को एक्सीडेंट में आपने अपना पुराना शरीर छोड़ बापदादा की गोद ली। ऊषा कुमारी
बचपन से ही ज्ञान में थी। 10 वर्ष तक एम.पी. में सागर सेवाकेन्द्र पर खूब सेवायें
करके अपना यादगार कायम करके एडवांस सेवा पर गई।