23-03-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को सुख-चैन की
दुनिया में ले चलने, चैन है ही शान्तिधाम और सुखधाम में"
प्रश्नः-
इस युद्ध के
मैदान में माया सबसे पहला वार किस बात पर करती है?
उत्तर:-
निश्चय
पर। चलते-चलते निश्चय तोड़ देती है इसलिए हार खा लेते हैं। यदि पक्का निश्चय रहे कि
बाप जो सबका दुःख हरकर सुख देने वाला है, वही हमें श्रीमत दे रहे हैं,
आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज सुना रहे हैं, तो कभी माया से हार नहीं हो सकती।
गीत:-
इस पाप की
दुनिया से.........
ओम् शान्ति।
किसके लिए कहते हैं, कहाँ ले चलो, कैसे ले चलो....... यह दुनिया में कोई भी नहीं
जानते। तुम ब्राह्मण कुल भूषण नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो। तुम बच्चे जानते
हो इनमें जिसका प्रवेश है, जो हमको अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुना रहे
हैं वह सबका दुःख हरकर सबको सुखदाई बना रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं। बाप कल्प-कल्प
आते हैं, सबको श्रीमत दे रहे हैं। बच्चे जानते हैं बाप भी वही है, हम भी वही हैं।
तुम बच्चों को यह निश्चय होना चाहिए। बाप कहते हैं हम आये हैं बच्चों को सुखधाम,
शान्तिधाम ले जाने लिए। परन्तु माया निश्चय बिठाने नहीं देती। सुखधाम में चलते-चलते
फिर हरा देती है। यह युद्ध का मैदान है ना। वह युद्ध होती है बाहुबल की, यह है
योगबल की। योगबल बड़ा नामीग्रामी है, इसलिए सब योग-योग कहते रहते हैं। तुम यह योग
एक ही बार सीखते हो। बाकी वह सब अनेक प्रकार के हठयोग सिखलाते हैं। यह उनको पता नहीं
है कि बाप कैसे आकर योग सिखलाते हैं। वह तो प्राचीन योग सिखला न सकें। तुम बच्चे
अच्छी रीति जानते हो यह वही बाप राजयोग सिखला रहे हैं, जिसको याद करते हैं - हे
पतित-पावन आओ। ऐसी जगह ले चलो जहाँ चैन हो। चैन है ही शान्तिधाम, सुखधाम में।
दुःखधाम में चैन कहाँ से आया? चैन नहीं है तब तो ड्रामा अनुसार बाप आते हैं, यह है
दुःखधाम। यहाँ दुःख ही दुःख है। दुःख के पहाड़ गिरने वाले हैं। भल कितने भी धनवान
हो वा कुछ भी हों, कोई न कोई दुःख जरूर लगता है। तुम बच्चे जानते हो हम मीठे बाप के
साथ बैठे हैं, जो बाप अभी आये हुए हैं। ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम जानते हो। बाप
अभी आये हुए हैं हमको साथ ले जायेंगे। बाप हम आत्माओं को कहते हैं क्योंकि वह हम
आत्माओं का बाप है ना। जिसके लिए ही गायन है - आत्मायें परमात्मा अलग रहे बहुकाल...।
शान्तिधाम में सभी आत्मायें साथ में रहती हैं। अभी बाप तो आये हैं बाकी जो थोड़े वहाँ
रहे हुए हैं, वो भी ऊपर से नीचे आते रहते हैं। यहाँ तुमको बाप कितनी बातें समझाते
हैं। घर में जाने से तुम भूल जाते हो। है बड़ी सहज बात और बाप जो सर्व का सुखदाता,
शान्तिदाता है वह बच्चों को बैठ समझाते हैं। तुम कितने थोड़े हो। आहिस्ते-आहिस्ते
वृद्धि को पाते जायेंगे। तुम्हारा बाप के साथ गुप्त लव है। कहाँ भी रहो, तुम्हारी
बुद्धि में होगा - बाबा मधुबन में बैठे हैं। बाप कहते हैं हमको वहाँ (मूलवतन) के
लिए याद करो। तुम्हारा भी निवास स्थान वहाँ है तो जरूर बाप को याद करेंगे, जिसको
कहते हैं तुम मात-पिता। वह बरोबर अब तुम्हारे पास आये हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको
ले जाने के लिए आया हूँ। रावण ने तुमको पतित तमोप्रधान बनाया है, अब सतोप्रधान पावन
बनना है। पतित चल कैसे सकेंगे। पवित्र तो जरूर बनना है। अभी एक भी मनुष्य सतोप्रधान
नहीं। यह है तमोप्रधान दुनिया। यह मनुष्यों की ही बात है। मनुष्य के लिए ही
सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो का राज़ समझाया जाता है। बाप बच्चों को ही समझाते हैं। यह
तो बहुत इज़ी है। तुम आत्मायें अपने घर में थी। वहाँ सब पावन आत्मायें रहती हैं।
अपवित्र तो रह न सकें। उसका नाम ही है मुक्तिधाम। अभी बाप तुमको पावन बनाए भेज देते
हैं। फिर तुम पार्ट बजाने के लिए सुखधाम में आते हो। सतो, रजो, तमो में तुम आते हो।
पुकारते भी हैं - बाबा हमको वहाँ ले चलो जहाँ चैन हो। साधू-सन्त आदि किसको भी यह पता
नहीं है कि चैन कहाँ मिल सकता है? अभी तुम बच्चे जानते हो सुख-शान्ति का चैन हमको
कहाँ मिलेगा। बाबा अभी हमको 21 जन्म के लिए सुख देने के लिए आये हैं। बाकी जो पीछे
आते हैं उन सबको मुक्ति देने आये हैं। देरी से जो आते हैं उनका पार्ट ही थोड़ा है।
तुम्हारा पार्ट है सबसे बड़ा। तुम जानते हो हमने 84 जन्मों का पार्ट बजाए अभी पूरा
किया है। अभी चक्र पूरा होता है। सारे पुराने झाड़ को पूरा होना है। अभी तुम्हारी
यह गुप्त गवर्मेन्ट दैवी झाड़ का कलम लगा रही है। वे लोग तो जंगली झाड़ों का कलम
लगाते रहते हैं। यहाँ बाप कांटों से बदल दैवी फूलों का झाड़ बना रहे हैं। वो भी
गवर्मेन्ट है, यह भी गुप्त गवर्मेन्ट है। वह क्या करते हैं और यह क्या करते हैं!
फ़र्क तो देखो कितना है। वो लोग समझते कुछ भी नहीं हैं। झाड़ों का सैपलिंग लगाते
रहते हैं, वह जंगली झाड़ तो अनेक प्रकार के हैं। कोई किसका कलम लगाते हैं, कोई किसका।
अभी तुम बच्चों को बाप फिर से देवता बना रहे हैं। तुम सतोप्रधान देवता थे फिर 84 का
चक्र लगाकर तमोप्रधान बने हो। कोई सदैव सतोप्रधान रहे, ऐसे होता ही नहीं है। हर चीज़
नई से फिर पुरानी होती है। तुम 24 कैरेट सोना थे, अब 9 कैरेट सोने के जेवर बन गये
हो, फिर 24 कैरेट बनना है। आत्मायें ऐसी बनी हैं ना। जैसा सोना वैसा जेवर होता है।
अभी सब काले सांवरे बन गये हैं। इज्जत रखने के लिए काला अक्षर न कह सांवरा कह देते
हैं। आत्मा सतोप्रधान प्योर थी फिर कितनी खाद पड़ गई है। अभी फिर प्योर होने के लिए
बाबा युक्ति भी बतलाते हैं। यह है योग अग्नि इनसे ही तुम्हारी खाद निकल जायेगी। बाप
को याद करना है। बाप खुद कहते हैं मुझे इस प्रकार याद करो। पतित-पावन मैं हूँ। तुमको
अनेक बार हमने पतित से पावन बनाया है। यह भी पहले तुम नहीं जानते थे। अभी तुम समझते
हो आज हम पतित हैं, कल फिर पावन होंगे। उन्होंने तो कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख
मनुष्यों को घोर अन्धियारे में डाल दिया है। बाप आकर अच्छी रीति सब बातें समझाते
हैं। तुम बच्चे जानते हो हमको कौन पढ़ाते हैं, ज्ञान का सागर पतित-पावन बाप जो सभी
का सद्गति दाता है। मनुष्य भक्ति मार्ग में कितनी महिमा गाते हैं परन्तु उसका अर्थ
कुछ भी नहीं जानते हैं। स्तुति करते हैं तो सभी को मिलाकर करते हैं। जैसे
गुड़गुड़धानी कर देते हैं, जिसने जो सिखाया वह कण्ठ कर लिया। अब बाप कहते हैं जो
कुछ सीखे हो, वह सब बातें भूल जाओ। जीते जी हमारा बनो। गृहस्थ व्यवहार में रहते भी
युक्ति से चलना है। याद एक बाप को ही करना है। उनका तो है ही हठयोग। तुम हो राजयोगी।
घर वालों को भी ऐसी शिक्षा देनी है। तुम्हारी चलन को देख ऐसा फालो करें। कभी आपस
में लड़ना झगड़ना नहीं है। अगर लड़ेंगे तो और सब क्या समझेंगे, इनमें तो बहुत क्रोध
है। तुम्हारे में कोई भी विकार न रहे। मनुष्यों की बुद्धि चट करने वाला है बाइसकोप
(सिनेमा), यह जैसा एक हेल है। वहाँ जाने से ही बुद्धि चट हो जाती है। दुनिया में
कितना गन्द है। एक तरफ गवर्मेन्ट कायदे पास करती है कि 18 वर्ष के अन्दर कोई शादी न
करे फिर भी ढेर की ढेर शादियां होती रहती हैं। कच्छ में बच्चे को बिठाए शादी कराते
रहते हैं। अभी तुम जानते हो बाबा हमको इस छी-छी दुनिया से ले जाते हैं। हमको स्वर्ग
का मालिक बनाते हैं। बाप कहते हैं नष्टोमोहा बन जाओ सिर्फ मुझे याद करो। कुटुम्ब
परिवार में रहते हुए मेरे को याद करो। कुछ मेहनत करेंगे तब तो विश्व का मालिक बनेंगे।
बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और आसुरी गुण छोड़ो। रोज़ रात्रि को अपना पोतामेल
निकालो। यह तुम्हारा व्यापार है। यह विरला कोई व्यापार करे। एक सेकेण्ड में कंगाल
को सिरताज बना देते हैं, यह जादू ठहरा ना। ऐसे जादूगर का तो हाथ पकड़ लेना चाहिए।
जो हमको योगबल से पतित से पावन बनाते हैं। दूसरा कोई बना न सके। गंगा जी से कोई
पावन बन नहीं सकता। तुम बच्चों में अभी कितना ज्ञान है। तुम्हारे अन्दर खुशी होनी
चाहिए - बाबा फिर से आया हुआ है। देवियों के भी कितने चित्र आदि बनाते हैं, उनको
हथियार देकर भयंकर बना देते हैं। ब्रह्मा को भी कितनी भुजायें देते हैं, अब तुम
समझते हो ब्रह्मा की भुजायें तो लाखों होंगी। इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां यह
बाबा की उत्पत्ति है ना, तो प्रजापिता ब्रह्मा की इतनी भुजायें हैं।
अब तुम हो रूप-बसन्त। तुम्हारे मुख से सदैव रत्न निकलने चाहिए। सिवाए ज्ञान रत्न और
कोई बात नहीं। इन रत्नों की कोई वैल्यु कर नहीं सकते। बाप कहते हैं मनमनाभव। बाप को
याद करो तो देवता बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) नष्टोमोहा बन बाप को याद करना है। कुटुम्ब परिवार में रहते विश्व का
मालिक बनने लिए मेहनत करनी है। अवगुणों को छोड़ते जाना है।
2) अपनी ऐसी चलन रखनी है जो सब देखकर फालो करें। कोई भी विकार अन्दर न रहे, यह
जांच करनी है।
वरदान:-
साकार बाप को फालो कर नम्बरवन लेने वाले सम्पूर्ण
फरिश्ता भव
नम्बरवन आने का सहज साधन है- जो नम्बरवन ब्रह्मा बाप है,
उसी वन को देखो। अनेकों को देखने के बजाए एक को देखो और एक को फालो करो। हम सो
फरिश्ता का मन्त्र पक्का कर लो तो अन्तर मिट जायेगा फिर साइन्स का यन्त्र अपना काम
शुरू करेगा और आप सम्पूर्ण फरिश्ते देवता बन नई दुनिया में अवतरित होंगे। तो
सम्पूर्ण फरिश्ता बनना अर्थात् साकार बाप को फालो करना।
स्लोगन:-
मनन करने से जो खुशी रूपी मक्खन निकलता है वही जीवन को शक्तिशाली बनाता है।