13-03-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" 09-04-86 मधुबन
आज ज्ञान सूर्य,
ज्ञान चन्द्रमा अपने धरती के सितारा मण्डल में सभी सितारों को देख रहे हैं। सितारे
सभी चमकते हुए अपनी चमक वा रोशनी दे रहे हैं। भिन्न-भिन्न सितारे हैं। कोई विशेष
ज्ञान सितारे हैं, कोई सहज योगी सितारे हैं, कोई गुणदानमूर्त सितारे हैं। कोई
निरन्तर सेवाधारी सितारे हैं। कोई सदा सम्पन्न सितारे हैं। सबसे श्रेष्ठ हैं - हर
सेकण्ड सफलता के सितारे। साथ-साथ कोई-कोई सिर्फ उम्मीदों के सितारे भी हैं। कहाँ
उम्मीदों के सितारे और कहाँ सफलता के सितारे! दोनों में महान अन्तर है। लेकिन हैं
दोनों सितारे और हर एक भिन्न-भिन्न सितारों का विश्व की आत्माओं पर, प्रकृति पर
अपना-अपना प्रभाव पड़ रहा है। सफलता के सितारे चारों ओर अपना उमंग उत्साह का प्रभाव
डाल रहे हैं। उम्मीदों के सितारे स्वयं भी कभी मुहब्बत, कभी मेहनत दोनों प्रभाव में
रहने कारण दूसरों में कभी-कभी मुहब्बत, कभी मेहनत का प्रभाव डालते, आगे बढ़ने की
उम्मीद रख बढ़ते जा रहे हैं। तो हर एक अपने आपसे पूछो कि - मैं कौन-सा सितारा हूँ?
सभी में ज्ञान, योग, गुणों की धारणा और सेवा भाव है भी लेकिन सब होते हुए भी किसमें
ज्ञान की चमक है तो किसमें विशेष याद की - योग की है। और कोई-कोई अपने गुण-मूर्त की
चमव से विशेष आकर्षित कर रहा है। चारों ही धारणा होते हुए भी परसेन्टेज में अन्तर
है। इसलिए भिन्न-भिन्न सितारे चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह रूहानी विचित्र
तारामण्डल है। आप रूहानी सितारों का प्रभाव विश्व पर पड़ता है। तो विश्व के स्थूल
सितारों का भी प्रभाव विश्व पर पड़ता है। जितना शक्तिशाली आप स्वयं सितारे बनते हो
उतना विश्व की आत्माओं पर प्रभाव पड़ रहा है और आगे पड़ता ही रहेगा। जैसे जितना घोर
अन्धियारा होता है तो सितारों की रिमझिम ज्यादा स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे अप्राप्ति
का अंधकार बढ़ता जा रहा है और जितना बढ़ता जा रहा है, बढ़ता जायेगा उतना ही आप रूहानी
सितारों का विशेष प्रभाव अनुभव करते जायेंगे। सभी को धरती के चमकते हुए सितारे
ज्योति-बिन्दु के रूप में प्रकाशमय काया फरिश्ते के रूप में दिखाई देंगे। जैसे अभी
आकाश के सितारों के पीछे वह अपना समय, एनर्जी और धन लगा रहे है, ऐसे रूहानी सितारों
को देख आश्चर्यवत होते रहेंगे। जैसे अभी आकाश में सितारों को देखते हैं ऐसे इस धरती
के मण्डल में चारों ओर फरिश्तों की झलक और ज्योतिर्मय सितारों की झलक देखेंगे,
अनुभव करेंगे - यह कौन हैं, कहाँ से इस धरती पर अपना चमत्कार दिखाने आये हैं! जैसे
स्थापना के आदि में अनुभव किया है कि चारों ओर ब्रह्मा और कृष्ण के साक्षात्कार की
लहर फैलती गई। यह कौन है? यह क्या दिखाई देता है? यह समझने के लिए बहुतों का
अटेन्शन गया। ऐसे अब अन्त में चारों ओर यह दोनों रूप ‘ज्योति और फरिश्ता’ उसमें
बापदादा और बच्चे सबकी झलक दिखाई देगी। और सभी का एक से अनेकों का इसी तरफ स्वत: ही
अटेन्शन जायेगा। अभी यह दिव्य दृश्य आप सबके सम्पन्न बनने तक रहा हुआ है। फरिश्ते
पन की स्थिति सहज और स्वत: अनुभव करें तब वह साक्षात् फरिश्ते साक्षात्कार में
दिखाई देंगे। यह वर्ष फरिश्तेपन की स्थिति के लिए विशेष दिया हुआ है। कई बच्चे समझते
हैं कि क्या सिर्फ याद का अभ्यास करेंगे वा सेवा भी करेंगे! वा सेवा से मुक्त हो
तपस्या में ही रहेंगे! बापदादा सेवा का यथार्थ अर्थ सुना रहे हैं –
सेवाभाव अर्थात् सदा
हर आत्मा के प्रति शुभ भावना। श्रेष्ठ कामना का भाव। सेवा भाव अर्थात् हर आत्मा की
भावना प्रमाण फल देना। भावना हद की नहीं लेकिन श्रेष्ठ भावना। आप सेवाधारियों प्रति
अगर कोई रूहानी स्नेह की भावना रखते, शक्तियों के सहयोग की भावना रखते, खुशी की
भावना रखते, शक्तियों के प्राप्ति की भावना रखते, उमंग-उत्साह की भावना रखते, ऐसे
भिन्न भिन्न भावना का फल अर्थात् सहयोग द्वारा अनुभूति कराना, तो सेवा-भाव इसको कहा
जाता है। सिर्फ स्पीच करके आ गये, या ग्रुप समझाकर आ गये, कोर्स पूरा कराके आ गये,
वा सेन्टर खोलकर आ गये, इसको सेवा भाव नहीं कहा जाता। सेवा अर्थात् किसी भी आत्मा
को प्राप्ति का मेवा अनुभव कराना। ऐसी सेवा में तपस्या सदा साथ है।
तपस्या का अर्थ सुनाया
- दृढ़ संकल्प से कोई भी कार्य करना। जहाँ यथार्थ सेवा भाव है वहाँ तपस्या का भाव
अलग नहीं। ‘त्याग-तपस्या-सेवा’ - इन तीनों का कम्बाइन्ड रूप - सच्ची सेवा है, और
नामधारी सेवा का फल अल्पकाल का होता है। वहाँ ही सेवा की और वहाँ ही अल्पकाल के
प्रभाव का फल प्राप्त हुआ और समाप्ति हो गई। अल्पकाल के प्रभाव का फल - अल्पकाल की
महिमा है। बहुत अच्छा भाषण किया, बहुत अच्छा कोर्स कराया, बहुत अच्छी सेवा की। तो
अच्छा-अच्छा कहने का अल्पकाल का फल मिला और उनको महिमा सुनने का अल्पकाल का फल मिला।
लेकिन अनुभूति कराना अर्थात् बाप से सम्बन्ध जुड़वाना, शक्तिशाली बनाना - यह है सच्ची
सेवा। सच्ची सेवा में त्याग-तपस्या न हो तो यह 50-50 प्रतिशत वाली सेवा नहीं, लेकिन
25 प्रतिशत सेवा है।
सच्चे सेवाधारी की
निशानी है - त्याग अर्थात् नम्रता, और तपस्या अर्थात् एक बाप के निश्चय, नशे में
दृढ़ता। यथार्थ सेवा इसको कहा जाता है। बापदादा निरन्तर सच्चे सेवाधारी बनने के लिए
कहते हैं। नाम सेवा हो और स्वयं भी डिस्टर्ब हो, दूसरे को भी डिस्टर्ब करें, इस सेवा
से मुक्त होने के लिए बापदादा कह रहे हैं। ऐसी सेवा न करना अच्छा है। क्योंकि सेवा
का विशेष गुण ‘सन्तुष्टता’ है। जहाँ सन्तुष्टता नहीं, चाहे स्वयं से चाहे सम्पर्क
वालों से, वह सेवा - न स्वयं को फल की प्राप्ति करायेगी, न दूसरों को। इससे स्वयं
अपने को पहले ‘सन्तुष्टमणी’ बनाए फिर सेवा में आवे वह अच्छा है। नहीं तो सूक्ष्म
बोझ जरूर है। वह अनेक प्रकार का बोझ उड़ती कला में विघ्न रूप बन जाता है। बोझ चढ़ाना
नहीं है, बोझ उतारना है। जब ऐसे समझते हो तो इससे एकान्तवासी बनना अच्छा है क्योंकि
एकान्तवासी बनने से स्व परिवर्तन का अटेन्शन जायेगा। तो बापदादा तपस्या जो कह रहे
हैं - वह सिर्फ दिन रात बैठे-बैठे तपस्या के लिए नहीं कह रहे हैं। तपस्या में बैठना
भी सेवा ही है। लाइट हाउस, माइट हाउस बन शान्ति की, शक्ति की किरणों द्वारा
वायुमण्डल बनाना है। तपस्या के साथ मन्सा सेवा जुड़ी हुई है। अलग नहीं है। नहीं तो
तपस्या क्या करेंगे! श्रेष्ठ आत्मा - ब्राह्मण आत्मा तो हो गये। अब तपस्या अर्थात्
स्वयं सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन दृढ़ स्थिति, दृढ़ संकल्प द्वारा विश्व की सेवा
करना। सिर्फ वाणी वी सेवा, सेवा नहीं है। जैसे ‘सुख-शान्ति-पवित्रता’ का आपस में
सम्बन्ध है वैसे ‘त्याग-तपस्या-सेवा’ का सम्बन्ध है। बापदादा तपस्वी रूप अर्थात्
शक्तिशाली सेवाधारी रूप बनाने के लिए कहते हैं। तपस्वी रूप की दृष्टि भी सेवा करती।
उनका शान्त स्वरूप चेहरा भी सेवा करता, तपस्वी मूर्त के दर्शन मात्र से भी प्राप्ति
की अनुभूति होती है। इसलिए आजकल देखो जो हठ से तपस्या करते हैं, उनके दर्शन के पीछे
भी कितनी भीड़ हो जाती है। यह आपकी तपस्या के प्रभाव का यादगार अन्त तक चला आ रहा
है। तो समझा - सेवा भाव किसको कहा जाता है। सेवा भाव अर्थात् सर्व की कमज़ोरियों को
समाने का भाव। कमज़ोरियों का सामना करने का भाव नहीं, समाने का भाव। स्वयं सहन कर
दूसरे को शक्ति देने का भाव। इसलिए ‘सहनशक्ति’ कहा जाता है। सहन करना - शक्ति भरना
और शक्ति देना है। सहन करना, मरना नहीं है। कई सोचते हैं हम तो सहन कर कर मर जायेंगे।
क्या हमें मरना है क्या! लेकिन यह मरना नहीं है। यह सब के दिलों में स्नेह से जीना
है। कैसा भी विरोधी हो, रावण से भी तेज हो, एक बार नहीं 10 बार सहन करना पड़े फिर भी
सहनशक्ति का फल अविनाशी और मधुर होगा। वह भी जरूर बदल जायेगा। सिर्फ यह भावना नहीं
रखो कि मैंने इतना सहन किया, तो यह भी कुछ करें। अल्पकाल के फल की भावना नहीं रखो।
रहम भाव रखो - इसको कहा जाता है - ‘सेवाभाव’। तो इस वर्ष ऐसी सच्ची सेवा का सबूत दे
सपूत की लिस्ट में आने का गोल्डन चान्स दे रहे हैं। इस वर्ष यह नहीं देखेंगे कि मेला
वा फंक्शन बहुत अच्छा किया। लेकिन सन्तुष्टमणियाँ बन सन्तुष्टता की सेवा में नम्बर
आगे जाना। ‘विघ्न विनाशक’ टाइटिल के सेरीमनी में इनाम लेना। समझा! इसी को ही कहा
जाता है - ‘नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप’। तो 18 वर्ष की समाप्ति का यह विशेष सम्पन्न
बनने का अध्याय स्वरूप में दिखाओ। इसको ही कहा जाता - ‘बाप समान बनना’। अच्छा!
सदा चमकते हुए रूहानी
सितारों को, सदा सन्तुष्टता की लहर फैलाने वाली सन्तुष्ट-मणियों को, सदा एक ही समय
पर ‘त्याग-तपस्या-सेवा’ का प्रभाव डालने वाले प्रभावशाली आत्माओं को, सदा सर्व
आत्माओं को रूहानी भावना का रूहानी फल देने वाले बीज-स्वरूप बाप समान श्रेष्ठ बच्चों
को बापदादा का सम्पन्न बनने का यादप्यार और नमस्ते’’
पंजाब तथा हरियाणा
जोन के भाई-बहनों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - सदा अपने को अचल-अडोल आत्मायें
अनुभव करते हो? किसी भी प्रकार की हलचल में अचल रहना यही श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं
की निशानी है। दुनिया हलचल में हो लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें हलचल में नहीं आ सकती।
क्यों? ड्रामा की हर सीन को जानते हो। नॉलेजफुल हो। जो नॉलेजफुल होते हैं वह
पावरफुल भी होते हैं। तो नॉलेजफुल आत्मायें, पावरफुल आत्मायें सदा स्वत: ही अचल रहती
हैं। तो कभी वायुमण्डल से घबराते तो नहीं हो! निर्भय हो? शक्तियाँ निर्भय हो? या
थोड़ा-थोड़ा डर लगता है? क्योंकि यह तो पहले से ही - स्थापना के समय से ही जानते हो
कि भारत में ‘सिविल वार’ होनी ही है। यह शुरू के चित्रों में ही आपका दिखाया हुआ
है। तो जो दिखाया है वह होना तो है ना! भारत का पार्ट ही सिविल वार से है इसलिए
नथिंग न्यू। तो नथिंग न्यू है या घबरा जाते हो - क्या हुआ, कैसे हुआ, यह हुआ...
समाचार सुनते देखते भी ड्रामा की बनी हुई भावी को शक्तिशाली बन देखते और औरों को भी
शक्ति देते - यही काम है ना आप सबका! दुनिया वाले घबराते रहते और आप उन आत्माओं में
शक्ति भरते। जो भी सम्पर्क में आये, उसे शक्तियों का दान देते चलो। शांति का दान
देते चलो। अभी समय है अशान्ति के समय - शान्ति देने का। तो शान्ति के मैसेन्जर हो।
शान्ति दूत गाये हुए हैं ना! वह आप ही हो या दूसरे हैं? तो कभी भी कहाँ भी रहते हो,
चलते हो, सदा अपने को शान्ति के दूत समझकर चलो। शान्ति के दूत हैं, शान्ति का
सन्देश देने वाले है तो स्वयं भी शान्त स्वरूप शक्तिशाली होंगे और दूसरों को भी देते
रहेंगे। वह अशान्ति देवें, आप शान्ति दो। वह आग लगायें, आप पानी डालो। यही काम है
ना! इसको कहते हैं - ‘सच्चे सेवाधारी’। तो ऐसे समय पर इसी सेवा की आवश्यकता है।
शरीर तो विनाशी है, लेकिन आत्मा शक्तिशाली होती है तो एक शरीर छूट भी जाता है तो
दूसरे में याद की प्रालब्ध चलती रहेगी। इसलिए अविनाशी प्राप्ती कराते चलो। तो आप
कौन हो? शान्ति के दूत। शान्ति के मैसेन्जर, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर शक्ति दाता।
यह स्मृति सदा रहती है ना! सदा अपने को इसी स्मृति से आगे बढ़ाते चलो। औरों को भी आगे
बढ़ाओ, यही सेवा है! गवर्मेन्ट के कोई भी नियम होते हैं तो उनको पालन करना ही पड़ता
है लेकिन जब थोड़ा भी समय मिलता है तो मन्सा से, वाणी से, सेवा जरूर करते रहो। अभी
मन्सा सेवा की तो बहुत आवश्यकता है, लेकिन जब स्वयं में शक्ति भरी हुई होगी तब दूसरों
को दे सकेंगे। तो सदा शान्ति दाता के बच्चे शान्ति दाता बनो। दाता भी हो तो विधाता
भी हो। चलते-फिरते याद रहे - मैं मास्टर शान्ति दाता, मास्टर शक्ति दाता हूँ - इसी
स्मृति से अनेक आत्माओं को वायब्रेशन देते रहो। तब वह महसूस करेंगे कि इनके सम्पर्क
में आने से शान्ति की अनुभूति हो रही है। तो यही वरदान याद रखना - कि बाप समान
मास्टर शान्ति दाता, शक्ति दाता बनना है। सभी बहादुर हो ना! हलचल में भी व्यर्थ
संकल्प नहीं चले। क्योंकि व्यर्थ संकल्प समर्थ बनने नहीं देगा। क्या होगा, यह तो नहीं
होगा... यह व्यर्थ है। जो होगा उसको शक्तिशाली होकर देखो और दूसरों को शक्ति दो। यह
भी साइडसीन्स आती हैं। यह भी एक बाईप्लाट चल रहा है। बाईप्लाट समझकर देखो तो
घबरायेंगे नहीं। अच्छा।
वरदान:-
विहंग मार्ग
की सेवा द्वारा विश्व परिवर्तन के कार्य को सम्पन्न करने वाले सच्चे सेवाधारी भव
विहंग मार्ग की सेवा
करने के लिए संगठित रूप में "रूप और बसन्त" इन दो बातों का बैलेन्स चाहिए। जैसे
बसन्त रूप से एक समय पर अनेक आत्माओं को सन्देश देने का कार्य करते हो ऐसे ही रूप
अर्थात् याद बल द्वारा, श्रेष्ठ संकल्प के बल द्वारा विहंग मार्ग की सर्विस करो।
इसकी भी इन्वेन्शन निकालो। साथ-साथ संगठित रूप में दृढ़ संकल्प से पुराने संस्कार,
स्वभाव व पुरानी चलन के तिल वा जौं यज्ञ में स्वाहा करो तब विश्व परिवर्तन का कार्य
सम्पन्न होगा अथवा यज्ञ की समाप्ति होगी।
स्लोगन:-
बालक और मालिक
पन के बैलेन्स से प्लैन को प्रैक्टिकल में लाओ।