28-04-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 28-01-76 मधुबन
तीन श्रेष्ठ ईश्वरीय वरदान
आज अति पुराने सो नये बच्चे अपने निजी स्थान व अपने साकार स्वीट होम, मधुबन स्वर्गाश्रम में मिलन का जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त कर हर्षित हो रहे हैं। ऐसी हर्षित आत्माओं को देख बाप-दादा भी हर आत्मा की प्राप्ति वा तकदीर को देख हर्षित हो रहे हैं। जैसे बच्चों को बाप द्वारा वर्सा प्राप्त होते हर्ष होता है अर्थात् खुशी होती है, वैसे ही बाप-दादा को भी ‘लास्ट सो फास्ट’ पुरूषार्थियों को तीव्र पुरूषार्थ की लगन में मग्न देख हर्ष होता है। फास्ट पुरूषार्थ करने वालों की सूरत और सीरत बाप-समान सदा रूहानी नज़र आती है। सिवाय रूहानियत के अन्य कोई भी संकल्प व स्मृति नहीं रहती, अर्थात् बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियाँ स्वरूप में दिखाई देती हैं। उनकी हर नज़र में हर आत्मा को ‘नज़र से निहाल’ करने की रूहानियत दिखाई देगी।
ऐसी श्रेष्ठ स्टेज प्राप्त करने के लिए सदैव दो बातें याद रखो। एक - स्वयं को अकालमूर्त्त समझो, दूसरे - स्वयं को सदा ‘त्रिकालदर्शी-मूर्त्त’ समझो। निराकारी स्टेज में - अकालतख्त-नशीन, अकालमूर्त्त हैं; साकार कर्मयोगी की स्टेज में - त्रिकालदर्शी मूर्त्त त्रिमूर्ति बाप के तख्त-नशीन। हर संकल्प को स्वरूप में लाने से पहले यह दोनों बातें चेक करो। निराकारी और साकारी दोनों स्वरूप में हैं? इस स्मृति से स्वत: ही समर्थी-स्वरूप बन जायेंगे अर्थात् हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस का अनुभव हर समय होगा। चाहे शरीर का कर्मभोग सूली से कितना भी बड़े रूप में हो लेकिन सदा अपने को साक्षी समझने से कर्मभोग के वश नहीं होंगे। हर कर्मभोग सूली से कांटे-समान अनुभव होगा। भविष्य जन्म-जन्मान्तर कर्मभोग से मुक्त होने की खुशी इस कर्मभोग को चुक्ता करने के लिये औषधि का रूप बन जाती है। खुशी दवाई की खुराक बन जाती है।
अब अपने को चेक करो कि मैं सदैव हैल्दी रहता हूँ? मैंने एवर हेल्दी का वरदान प्राप्त किया है? वरदाता बाप द्वारा तीनों वरदान - एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पीनेस को प्राप्त किया है? सदाकाल का वर्सा प्राप्त किया है या अल्पकाल का? किसी भी मायावी बीमारी के वश हो अपना सदाकाल का एवर हेल्दी का वर्सा गँवा तो नहीं देते हो? बाप द्वारा एवर वेल्दी अर्थात् सर्व शक्तियों के खजानों से सम्पन्न वरदान को प्राप्त किया है? सर्व खजानों के मालिक अनुभव करते हो? अर्थात् अप्राप्त कोई भी वस्तु नहीं देवताओं के खजाने में - यह गायन तो है; लेकिन देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मणों का गायन है - अप्राप्त कोई शक्ति नहीं ब्राह्मणों के खजाने में। ऐसे एवर वेल्दी अनुभव करते हो?
एवर वेल्दी के साथ-साथ अपने को एवर हैप्पी अर्थात् सदा हर्षित भी अनुभव करते हो? अगर कोई भी प्रकृति व माया के आकर्षण नहीं हैं, तो सदा हर्षित होंगे। ऐसे सदा हर्षित का सदैव एक ही संकल्प स्मृति में रहता है कि पाना था सो पा लिया, पाने के लिये अब कुछ नहीं रहा। ऐसे संकल्प में स्थित रहने वाले की अर्थात् एवर हैप्पी रहने वाले की निशानी क्या होगी? सदा हर्षित रहने वाला मन, वाणी और कर्म से सर्व आत्माओं को सदा खुशी का दान देता रहेगा। किसी भी आत्मा के प्रति बाप-समान दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता, सदा बेगमपुर का बादशाह अनुभव करेगा। बादशाह अर्थात् दाता। ऐसे हर्षितमुख रहने वाली आत्मा के हर संकल्प के वायब्रेशन्स् द्वारा, एक सेकेण्ड की रूहानी नज़र द्वारा, एक सेकेण्ड के सम्पर्क द्वारा, मुख के एक बोल द्वारा दु:खी व गम में रहने वाली आत्मा अपने को सुखी व खुशी का अनुभव करेगी। उसका कर्त्तव्य होगा - सुख देना और सुख लेना। जैसे प्रजा अपने योग्य राजा को देख खुश हो जाती है, ऐसे एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्मा को देख कैसी भी दु:खी आत्मा सुख का अनुभव करेगी। अप्राप्त आत्मा दाता को देख प्राप्ति की खुशी में झूमने लगेगी। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? देने वाले दाता के बच्चे, बाप-समान दाता हो या भक्त के समान लेने वाले हो या लेना और देना साथ-साथ चलता है? लेना है ही देने के लिये, खज़ाना है बाँटने के लिये और विश्व-कल्याण के लिये। हर सेकेण्ड लेने के साथ-साथ देने वाले दाता भी बनो, तब ही विश्व-कल्याणकारी कहला सकेंगे। अपना लेने और देने का पोतामेल चेक करो - जितना लेना है, उतना लेते हैं और लेने के साथ-साथ जितना देना है उतना ही देते हैं? लेना और देना साथसाथ और समान है? ऐसे विश्व-कल्याणी ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं। समझा?
ऐसे महादानी, सर्व प्राप्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को सम्पन्न बनाने वाले, भिखारी को अधिकारी बनाने वाले, निर्बल आत्माओं को शक्तिशाली बनाने वाले, एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्माओं को व सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते!
पर्सनल मुलाकात:-
अपने को सदा बाप-दादा के साथ अनुभव करते हो? या अकेला अनुभव करते हो? जैसे बाप को हजारों भुजाओं वाला दिखाते हैं, सर्वशक्तिवान् होते हुए भी बच्चों के साथ यादगार भुजाओं के रूप में दिखाते हैं, ऐसे तुम बच्चे ही अपने को सदा सर्वशक्तिवान् बाप के साथ अनुभव करते हो या कभी-कभी अनुभव करते हो? जो सदा साथ का अनुभव करेंगे, वे कभी किसी देहधारी के साथ की आवश्यकता अनुभव नहीं करेंगे। कभी भी किसी सेवा में देहधारी का आधार नहीं लेंगे। मर्यादा प्रमाण, संगठन प्रमाण सहयोग लेना अलग बात है। बाकी किसी परिस्थिति में देहधारी की याद आये कि यह मुझे परिस्थिति से पार करेंगे, राय देंगे या सहारा देंगे - इससे सिद्ध है कि सर्वशक्तिवान् का सहारा सदा साथ नहीं रहता। सदा साथ रहने वाले का बाप से समीप सम्बन्ध होने के कारण संकल्प में, रूह-रूहान में भी बाबा याद आयेगा कि यह बाबा से पूछें। कोई निमित्त टीचर याद आये, कोई साथी याद आये या हमशरीक याद आये - यह भी होता है, वह भी कार्य के प्रति। लेकिन मन में, बुद्धि में सदा बाबा-बाबा याद आये। जब डायरेक्ट साथ निभाने का वायदा है, तो वायदे का फायदा उठाओ। इस समय तो बाप के साथ व्यक्तिगत अनुभव हो सकता है, फिर सारे कल्प में नहीं होगा। जो सिर्फ अभी की ही प्राप्ति है, फिर होगी ही नहीं, तो उसका पूरा-पूरा लाभ उठाओ। कोई भी बात हो, सदा बाबा ही याद रहे। इसको कहा जाता है ‘निरन्तर योगी।’ हर कदम बाप की याद रहे, तो यह भी योग हुआ। ऐसे निरन्तर योगी हो अथवा बनना है? जब बाप स्वयं साथ देने का ऑफर कर रहे हैं, उस ऑफर को स्वीकार करना चाहिए ना? जब आधा कल्प भक्ति-मार्ग में बाप को मनाया साथ देने के लिए; अभी तो बाप खुद ऑफर कर रहे हैं। तो ऑफर को स्वीकार करना चाहिये। जैसे स्थूल में कोई किसी को कोई चीज़ ऑफर करे, वह स्वीकार न करे तो इसको सभ्यता नहीं समझेंगे। यह इज्जत कहेंगे? यह तो गॉड की ऑफर है। सदा बाप के साथ अर्थात् निरन्तर योगी। वह तो सदा लाइट रूप है, तो ऐसे संग से लाइट रूप भी और हल्के भी हो जायेंगे। तो डबल लाइट हुई ना। जब ‘लाईट’ बोझ उठाने के लिए ऑफर कर रहे हैं तो फिर तुम बोझ क्यों उठा रहे हो? बोझ वाला फुल स्पीड में चल नहीं सकता। तो अब इन अनेक प्रकार के बोझों से हल्के हो जाओ। अपना कोना-कोना साफ करो, किचड़े को अन्दर ही अन्दर सम्भाल के नहीं रखो। ऐसे नहीं कि चॉन्स मिलेगा तो देंगे। है तो किचड़ा ही ना, किचड़े से तो कीड़े पैदा होते हैं। उन को रखने का अर्थ है उनकी वृद्धि करना। तो जब किचड़े से खाली रहेंगे तब बाप द्वारा मिला हुआ खज़ाना अपने में भर सकेंगे। अच्छा!
अव्यक्त मुरलियों से कुछ प्वाइंट्स - मास्टर दाता बनो
वर्तमान समय बापदादा बच्चों से यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा मास्टर दाता बनें। जो बाप से लिया है, वह औरों को दो। आत्माओं से लेने की भावना नहीं रखो। रहमदिल बन अपने गुणों का, शक्तियों का सबको सहयोग दो, फ्राकदिल बनो। जितना दूसरों को देते जायेंगे उतना बढ़ता जायेगा। विनाशी खजाना देने से कम होता है और अविनाशी खजाना देने से बढ़ता है - एक दो, हजार पाओ।
मास्टर दाता अर्थात् सदा भरपूर, सम्पन्न। जिसके पास अनुभूतियों का खज़ाना सम्पन्न होगा, वह सम्पन्न मूर्तियां स्वत: ही मास्टर दाता बन जाती हैं। दाता अर्थात् सेवाधारी। दाता देने के बिना रह नहीं सकते। वे अपने रहमदिल के गुण से किसी को हिम्मत देंगे तो किसी निर्बल आत्मा को बल देंगे। वह मास्टर सुखदाता होंगे।
सदा यह स्मृति रहे कि हम सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हैं। जो दाता हैं, उसके पास है तभी तो देंगे। यदि किसके पास अपने खाने के लिए ही नहीं हो, तो वह दाता कैसे बनेंगे। इसलिए जैसा बाप वैसे बच्चे। बाप को सागर कहते हैं। सागर अर्थात् बेहद, खुटता नहीं। ऐसे आप भी मास्टर सागर हो, नदी-नाले नहीं। तो बाप समान निःस्वार्थ भावना से देते जाओ।
अशान्ति के समय पर मास्टर शान्ति दाता बन औरों को भी शान्ति दो, घबराओ नहीं, क्योंकि जानते हो कि जो हो रहा है वो भी अच्छा और जो होना है वह और अच्छा। विकारों के वशीभूत मनुष्य तो लड़ते ही रहेंगे। उनका काम ही यह है। लेकिन आपका काम है - ऐसी आत्माओं को शान्ति देना क्योंकि विश्व कल्याणकारी हो। विश्व कल्याणकारी आत्मायें सदा मास्टर दाता बन देती रहती हैं।
मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। याद रखो कि ब्राह्मण जीवन में देने में ही लेना है।
वर्तमान समय में सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, सब खुशी के भिखारी हैं और आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है - देना। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये - खुशी बांटते जाओ, देते जाओ। कोई खाली नहीं जाये। इतना भरपूर बनो।
अब सारे विश्व की आत्मायें सुख-शान्ति की भीख मांगने के लिये आपके सामने आने वाली हैं। आप दाता के बच्चे मास्टर दाता बन सबको मालामाल करेंगे। तो पहले से स्वयं के भण्डारे सर्व खजानों से भरपूर करते जाओ - जो कोई भी आवे तो खाली हाथ नहीं जाये, भरपूर होकर जाये। ये नज़ारा आगे चलकर अनुभव करेंगे इसलिए आप श्रेष्ठ आत्मायें संगम पर अखुट और अखण्ड महादानी बनो। निरन्तर स्मृति में रखो कि मैं दाता का बच्चा अखण्ड महादानी आत्मा हूँ। कोई भी आत्मा आपके सामने आये चाहे अज्ञानी हो, चाहे ब्राह्मण हो लेकिन कुछ न कुछ सबको देना है।
राजा का अर्थ ही है दाता। अगर हद की इच्छा वा प्राप्ति की उत्पत्ति है तो वो राजा के बजाय मंगता (मांगने वाला) बन जाते हैं। आप दाता के बच्चे हो, सर्व खज़ानों से सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो। सम्पन्न की निशानी है अखण्ड महादानी। तो एक सेकण्ड भी दान देने के बिना रह नहीं सकते।
ब्राह्मण आत्माओं के पास ज्ञान तो पहले ही है लेकिन उनके प्रति दो प्रकार से दाता बनो:- 1- जिस आत्मा को, जिस शक्ति की आवश्यकता हो, उस आत्मा को मन्सा द्वारा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन्स द्वारा शक्तियों का दान अर्थात् सहयोग दो। 2- कर्म द्वारा सदा स्वयं जीवन में गुण मूर्त बन, प्रत्यक्ष सेम्पल बन औरों को सहज गुण धारण करने का सहयोग दो, इसको कहा जाता है गुण दान दान का अर्थ है सहयोग देना।
वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुणदाता बनने की आवश्यकता है। तो संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है। ज्ञान तो बहुत है, अभी गुणों को इमर्ज करो, सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एग्जाम्पल बनो। दाता के बच्चे हो तो जिसे जो चाहिए वह देते चलो। कोई भी खाली नहीं जाये। अथाह खज़ाना है। किसी को खुशी चाहिये, स्नेह चाहिये, शक्ति चाहिए, तो देते जाओ।
अब आप बच्चों में यह शुभ संकल्प इमर्ज हो कि दाता के बच्चे बन सभी आत्माओं को वर्सा दिलाने के निमित्त बनें, कोई वंचित नहीं रहे। चाहे कोई कैसा भी है लेकिन बाप का तो है। आप दाता के बच्चे हो तो फ्राकदिली से बांटो। जो अशान्ति, दुःख में भटक रहे हैं वो आपका परिवार हैं। परिवार को सहयोग दिया जाता है। तो वर्तमान समय महादानी बनने के लिये विशेष रहमदिल के गुण को इमर्ज करो।
किसी से भी लेने की इच्छा नहीं रखो कि वो अच्छा बोले, अच्छा माने तो दें। नहीं। मास्टर दाता बन वृत्ति द्वारा, वायब्रेशन्स द्वारा, वाणी द्वारा देते जाओ।
बेहद के दाता बन वर्ल्ड के गोले पर खड़े हो, बेहद की सेवा में वायब्रेशन फैलाओ। महान दाता बनो। बेहद में जाओ तो हदों की बातें स्वतः समाप्त हो जायेंगी। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:- श्रीमत प्रमाण जी हजूर कर, हजूर को हाज़िर अनुभव करने वाले सर्व प्राप्ति सम्पन्न भव
जो हर बात में बाप की श्रीमत प्रमाण "जी हजूर-जी हजूर'' करते हैं, तो बच्चों का जी हजूर करना और बाप का बच्चों के आगे हाजिर हजूर होना। जब हजूर हाजिर हो गया तो किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी, सदा सम्पन्न हो जायेंगे। दाता और भाग्यविधाता-दोनों की प्राप्तियों के भाग्य का सितारा मस्तक पर चमकने लगेगा।
स्लोगन:- परमात्म वर्से के अधिकारी बनकर रहो तो अधीनता आ नहीं सकती।