05-05-13 प्रातःमुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 28-01-76 मधुबन
रूहानी सितारों की महिफल
आज बाप-दादा सितारों की रूहानी महफिल को देख रहे हैं। महफिल में विशेष तीन प्रकार के सितारे हैं। हर एक सितारा अपने आपको जानता है कि मैं कौनसा सितारा हूँ? एक हैं सफलता के सितारे, दूसरे हैं लक्की सितारे और तीसरे हैं उम्मीदवार सितारे। अभी हर-एक अपने आप से पूछे कि मैं कौन हूँ? सारे दिन की दिनचर्या में संकल्प, श्वास, समय, बोल, कर्म और सम्बन्ध व सम्पर्क में सफलतामूर्त्त अर्थात् सफलता के सितारे स्वयं को अनुभव करते हो? जैसे बाप द्वारा सुख शान्ति, ज्ञान-रत्नों की सम्पत्ति जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त हुई है, वैसे हर बात में और हर समय सफलता भी जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में अनुभव होती है अर्थात् सहज प्राप्ति अनुभव होती है? अथवा मेहनत के बाद? मेहनत ज्यादा और सफलता कम अनुभव होती है? जितना सोचते हैं, करते हैं, उतना संकल्प और कर्म का प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है? या हो ही जावेगा, अभी नहीं कभी तो होगा - ऐसे भविष्य-फल की उम्मीदों पर चलते हैं? संकल्प की उत्पत्ति के साथ सफलता हुई पड़ी है, यह निश्चय का संकल्प साथ-साथ होता है? हर कदम में जैसे पद्म का गायन है, वैसे हर कदम में सफलता समाई हुई है। संकल्प व कर्म के बीज में सफलता रूपी वृक्ष समाया हुआ है। ऐसे अनुभव हो जैसे सफलता परछाई के समान कर्म के पीछे-पीछे है ही। उसको कहते हैं ‘सफलता का सितारा।’
दूसरे हैं लक्की। लक्की सितारों में भी नम्बर हैं। लक्की सितारों की विशेषता यह है कि वे जो भी संकल्प व कर्म करेंगे, उसमें निमित्त-मात्र मेहनत होगी, लेकिन फल की प्राप्ति मेहनत के हिसाब से ज्यादा होगी। लक्की सितारे अपने लक्क को जानते हुए हर समय बाप-दादा का लाख-लाख शुक्रिया मानेंगे कि मेरे लक्क (भाग्य) का लॉक (ताला) खोल दिया। लक्की सितारे की वाणी में महान् बनाने वाले बाप की महिमा दिल से स्वत: ही निकलती रहेगी और उनके रूप में खुशी की झलक विशेष दिखाई देगी। उनका विशेष प्लैन - सदा बाप का नाम बाला कर, रिटर्न करने का अर्थात् बाप का हर कार्य अपने जीवन द्वारा प्रत्यक्ष करने का होगा। सदा बाप के स्नेही रहने वाले और बाप के स्नेही बनाने वाले होंगे। सदैव यही स्लोगन स्मृति और वाणी में होगा कि वाह बाबा और वाह तकदीर! ऐसे अपने को लक्की सितारे समझते हो?
तीसरे हैं उम्मीदवार सितारे। उनकी विशेषता क्या होगी? कई उम्मीदवार सितारों में से सफलतामूर्त्त भी बन जाते हैं। उम्मीदवार सितारे सदैव बाप का व श्रेष्ठ आत्माओं का साथ लेते हुए चलते हैं। हर कदम पर सहारे के आधार पर चलते हैं। हर संकल्प और कर्म में ‘होगा या नहीं होगा’, ‘श्रेष्ठ है या साधारण’ है, ‘करें या न करें’ - जजमेंट की शक्ति नहीं होगी अर्थात् स्वयं जस्टिस नहीं बन सकते। जजमेण्ट कराने के लिये बार-बार किसी जज की आवश्यकता होगी। श्रेष्ठ संकल्प वाला होगा लेकिन दृढ़ संकल्प वाला नहीं होगा। हर परिस्थिति में व सेवा के कार्य में उमंग-उल्लास होगा लेकिन हिम्मत कम होगी। उसके लिए हिम्मत दिलाने वाला साथी चाहिए। प्लैन्स बहुत अच्छे होंगे, संकल्प समर्थ भी होंगे लेकिन स्वरूप में पूरा नहीं ला सकेंगे। आधा या पौना कुछ वाणी द्वारा, कुछ कर्म द्वारा सम्पन्न कर सकेंगे। लेकिन उनकी एक विशेषता होगी। हर समय सहारा लेने के कारण बाबा की याद रहेगी। उनके मुख से नशे से और निश्चय से यह बोल निकलेंगे - कि हमारा बाबा हमारे साथ है। आखिर वह दिन आयेगा जब संकल्प को कर्म में लाकर ही दिखायेंगे। ऐसी उम्मीद हर समय रहती है। दिल-शिकस्त नहीं बनते हैं। सम्बन्ध और सम्पर्क में भी सर्व का सत्कार करने के कारण स्नेही होते हैं। उनके चेहरे पर परिवार के साथ स्नेह की झलक दिखाई देती है। ऐसे उम्म्दवार सितारे माया के एक विशेष वार से बचे रहते हैं। वह कौन-सा? वे देह-अभिमान में कभी नहीं आते। देह-अभिमान अर्थात् होशियारी का अभिमान और बुद्धि का अभिमान। वे इससे सेफ रहते हैं। ऐसे नहीं कि उनकी बुद्धि में कुछ चलता नहीं है। प्लैन्स चलते हैं, संकल्प भी आते हैं लेकिन दृढ़ संकल्प न होने के कारण साथ लेना पड़ता है। अब समझा - तीन प्रकार के सितारे कौनसे हैं? उम्मीदवार सितारों में बाप को भी उम्मीद है, कभी भी हाई जम्प दे सकते हैं। कभी भी न-उम्मीद वाले सबकी उम्मीद अपने में रखाने के निमित्त बन जाते हैं। लेकिन यह उम्मीदवार हैं। उम्मीदवार में उम्मीद रखना। यह ड्रामा में किसी-किसी का वण्डरफुल पार्ट भी बना हुआ है। अच्छा!
सदा स्वयं को सफलता का सितारा बनाने का लक्ष्य और लक्षण दिखाने वाले, सर्व शक्तियों के अधिकारी, बाप की सर्व प्राप्तियों के अधिकारी, ब्रह्माण्ड और विश्व के अधिकारी, प्रकृति और माया पर विजय प्राप्त करने वाले, विजयी सितारों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते!
दूसरी मुरली:- 01-02-76
रूहानी शमा और तीन प्रकार के रूहानी परवाने
आज रूहानी शमा रूहानी परवानों को देख रही है। सभी परवाने एक ही शमा पर स्वाहा होने के लिए नम्बरवार प्रयत्न में लगे हुए हैं। जो नम्बरवन परवाने हैं उनको स्वयं का अर्थात् इस देह-भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, अपने सुख के साधनों का, आराम का - किसी भी बात का आधार नहीं। सब प्रकार की देह की स्मृति से खोये हुए हो, अर्थात् निरन्तर शमा के लव में लवलीन हुए हो? जैसे शमा ज्योति-स्वरूप है, लाइट-माइट रूप है, वैसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रूप हो? दूसरे प्रकार के परवाने, शमा की लाइट और माइट को देखते हुए उसकी तरफ आकर्षित ज़रूर होते हैं, समीप जाना चाहते हैं, समान बनना चाहते हैं, लेकिन देह-भान की स्मृति व देह के सम्बन्ध की स्मृति, देह के वैभवों की स्मृति, देह-भान के वश तमोगुणी संस्कारों की स्मृति समीप जाने का साहस व हिम्मत धारण करने नहीं देती है। इन भिन्न-भिन्न स्मृतियों के चक्कर में समय गँवा देते हैं! फर्स्ट नम्बर हैं लवलीन परवाने अर्थात् बाप के समान स्वरूप और शक्तियाँ धारण करने वाले, बाप के सर्व खजाने स्वयं में समाने वाले, समान बनने अर्थात् समा जाने अर्थात् मर मिटने वाले। दूसरा नम्बर - अनेक प्रकार के चक्कर काटने वाले और अनेक स्मृतियों का चक्कर काटने वाले। वह हैं समाने वाले, यह हैं सोचने वाले। तीसरे नम्बर के परवाने - शमा को देख आकर्षित भी होते, सोचते भी लेकिन दुविधा के चक्कर में रहते हैं। अर्थात् दो नाव में पाँव रखना चाहते हैं। माया के, अल्पकाल के सुख भी चाहते हैं और शमा द्वारा व बाप द्वारा अविनाशी प्राप्ति भी चाहते है। ये हैं बार-बार पूछने वाले। वह सोचने वाले और ये पूछने वाले ‘‘ऐसा करें या न करें? प्राप्ति होगी या नहीं होगी? हो सकता है, या नहीं हो सकता है? मुश्किल है या सहज है? यही एक रास्ता सही है या और भी है?’’ - ऐसे स्वयं से व अन्य अनुभवी आत्माओं से पूछने वाले। इच्छा है लेकिन ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ होने का साहस ही नहीं है। मिलना भी चाहते हैं, लेकिन जीते-जी मरना नहीं चाहते। जीते-जी मरने अथवा छोड़ने में ह्दय विदीर्ण होता है। ऐसे तीन प्रकार के परवाने शमा पर आते हैं।
अब अपने-आप से पूछो कि मैं कौन-सा परवाना हूँ? अनेक प्रकार की स्मृतियों के चक्कर समाप्त हुए हैं या अब तक भी कोई-न-कोई चक्कर अपनी तरफ खींच लेता है? अगर कोई भी व्यर्थ स्मृति के चक्कर अब तक लगाते हो तो स्वदर्शन चक्रधारी, संगमयुगी ब्राह्मणों का टाइटल प्राप्त नहीं हो सकेगा! जो स्वदर्शन-चक्रधारी नहीं, वह भविष्य का चक्रवर्ता राजा भी नहीं होगा। 63 जन्म भक्ति-मार्ग के अनेक प्रकार के व्यर्थ चक्कर लगाने में गंवाया। वही संस्कार अब संगम पर भी न चाहते हुए भी क्यों इमर्ज कर लेते हो? चक्कर लगाने में प्राप्ति का अनुभव होता है या निराशा होती है? 63 जन्म चक्कर लगाते, सब-कुछ गंवाते, स्वयं को और बाप को भूलते हुए अब तक भी थके नहीं हो? कि ठिकाना मिलते भी चक्कर काटते हो? अविनाशी प्राप्ति होते, विनाशी अल्प-काल की प्राप्ति अब भी आकर्षित करती है? अब तक कोई अन्य ठिकाना प्राप्ति कराने वाला नज़र आता है क्या? या श्रेष्ठ ठिकाना जानते हुए भी अल्पकाल के ठिकाने आईवेल अर्थात् ऐसे समय के लिये बना कर रखे हैं? ऐसे भी बहुत चतुर हैं। लेने के समय सब लेने में होशियार हैं, लेकिन छोड़ने के समय बाप से चतुराई करते हैं। क्या चतुराई करते हैं? छोड़ने के समय भोले बन जाते हैं। ‘‘पुरुषार्थी हैं, समय पर छूट जावेगा, सरकमस्टाँसिज़ ऐसे हैं, हिसाब-किताब कड़ा है, चाहता हूँ लेकिन क्या करूँ? धीरे-धीरे हो ही जायेगा’’ - ऐसे भोले बन बातें बनाते हैं। नॉलेजफुल बाप को भी नालेज देने लग जाते हैं! कर्मों की गति को जानने वाले को अपनी कर्म-कहानियाँ सुना देते हैं। और लेते समय चतुर बन जाते हैं। चतुराई में क्या बोलते हैं - ‘‘आप तो रहमदिल हो, वरदाता हो। मैं भी अधिकारी हूँ, बच्चा बना हूँ तो पूरा अधिकार मुझे मिलना चाहिये।’’ लेने में पूरा लेना है और छोड़ने में कुछ-न-कुछ छुपाना है अर्थात् कुछ-न-कुछ अपने पुराने संस्कार, स्वभाव व सम्बन्ध - वह भी साथ-साथ रखते रहना है। तो चतुर हो गये ना। लेंगे पूरा लेकिन देंगे यथा-शक्ति। ऐसे चतुराई करने वाले कौनसी प्रारब्ध को पायेंगे। ऐसे चतुर बच्चों के साथ ड्रामा अनुसार कौन-सी चतुराई होती है?
स्वर्ग के अधिकारी तो सब बन जाते हैं, लेकिन राजधानी में नम्बरवार तो होते ही हैं ना। स्वर्ग का वर्सा बाप सबको देता है, लेकिन सीट हरेक की अपने नम्बर की है। तो ड्रामा-अनुसार जैसा पुरूषार्थ, वैसा पद स्वत: प्राप्त हो जाता है। बाप नम्बर नहीं बनाते, किसी को राजा का, किसी को प्रजा का ज्ञान अलग-अलग नहीं देते; किसी को सूर्यवंशी, किसी को चन्द्रवंशी की अलग पढ़ाई नहीं पढ़ाते किसी को महारथी, किसी को घोड़ेसवार की छाप नहीं लगाते, लेकिन ड्रामा के अनुसार जैसा और जितना जो करता है वैसा ही पद प्राप्त कर जाता है। इसलिए जैसा लेने में चतुर बनते हो वैसे देने में भी चतुर बनो, भोले न बनो! माया की चतुराई को जानकर मायाजीत बनो। चेक करो कि एक यथार्थ ठिकाने की बजाय और कोई अल्प-काल के ठिकाने अब तक रह तो नहीं गये हैं; जहाँ न चाहते हुए भी बुद्धि चली जाती है? बुद्धि के कहीं जाने का अर्थ है कि ठिकाना है। तो सब हद के ठिकाने चेक करके अब समाप्त करो। नहीं तो यही ठिकाने सदाकाल के श्रेष्ठ ठिकाने से दूर कर देंगे। बाप श्रीमत स्पष्ट देते हैं कि ऐसे करो लेकिन बच्चे ऐसे को कैसे में बदल लेते हैं। कैसे को समाप्त कर, जैसे बाप चला रहे हैं, ऐसे चलो। अच्छा!
शमा-समान लाइट-हाउस, माइट-हाउस नम्बरवन परवाने, अनेक चक्कर समाप्त कर स्वदर्शन चक्रधारी बनने वाले, विश्व के मालिक बनने के अधिकार को प्राप्त करने वाले, बाप की श्रीमत पर हर कदम उठाने वाले, ऐसे कदमों में पद्मों की श्रेष्ठ कमाई जमा करने वाले, सदा लवलीन रहने वाले परवानों को बाप शमा का याद-प्यार और नमस्ते!
वरदान:- ज्ञान स्वरूप बन कर्म फिलासॅफी को पहचान कर चलने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव
कई बच्चे जोश में आकर सब कुछ छोड़ किनारा कर तन से अलग हो जाते लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता है। बुद्धि जाती रहती है, यह भी एक बड़ा विघ्न बन जाता है इसलिए कोई से किनारा भी करना है तो पहले निमित्त आत्माओं से वेरीफाय कराओ क्योंकि यह कर्मो की फिलासफी है। जबरदस्ती तोड़ने से मन बार-बार जाता रहता है। तो ज्ञान स्वरूप होकर कर्म फिलॉसफी को पहचानो और वेरीफाय कराओ तो सहज कर्मबन्धन से मुक्त हो जायेंगे।
स्लोगन:- अपने स्वमान की सीट पर सेट रहो तो माया आपके आगे सरेन्डर हो जायेगी।