22-10-06 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.03.90 "बापदादा" मधुबन
संगम पर परमात्मा का
आत्माओं से विचित्र मिलन
आज अनेक बार मिलने
वाले सिकीलधे बच्चे फिर से आकर मिले हैं। बाप भी उसी पहचान से बच्चों को देख रहे
हैं और बच्चे भी उसी "अनेक बार मिलने वाली स्मृति'' से मिल रहे हैं। यह आत्मा और
परमात्मा बाप का विचित्र मिलन है। सारे कल्प में कोई भी आत्मा इस स्मृति में नहीं
मिलती कि अनेक बार मिलने बाद फिर से मिले हैं। चाहे समय प्रति समय धर्म-पिताएं आये
हैं और अपने फालोअर्स को ऊपर से नीचे लाये लेकिन धर्म-पिताए भी इस स्मृति से नहीं
मिलते हैं कि अनेक कल्प मिले हुए फिर से मिल रहे हैं। इस स्पष्ट स्मृति से सिवाए
परमपिता के कोई आत्माओं से मिल नहीं सकते। चाहे इस कल्प में पहली बार ही मिलते हैं
लेकिन मिलते ही पुरानी स्मृति, पुरानी पहचान जो आत्माओं में संस्कार के रूप में
रिकार्ड भरा हुआ है- वह इमर्ज हो जाता है और दिल से यही स्मृति का आवाज़ आता है यह
वही मेरा बाप है। बच्चे कहते तुम हो मेरे और बाप कहते तुम हो मेरे। मेरा संकल्प
उत्पन्न हुआ, उसी सेकण्ड उस शक्तिशाली स्मृति से संकल्प से नया जीवन और नया जहान
मिल गया। और सदा के लिए ``मेरा बाबा'' इस स्मृति-स्वरूप में टिक गये। जैसे कि स्मृति
स्वरूप बने तो स्मृति के रिटर्न में सामर्थी स्वरूप बने। समर्थ स्वरूप बन गये ना,
कमजोर स्वरूप तो नहीं हो ना? और जो जितना स्मृति में रहते हैं, उतना समार्थियों का
अधिकार स्वत: ही प्राप्त करते हैं। जहाँ स्मृति है वहाँ सामर्थी है ही है। थोड़ी भी
विस्मृति है तो व्यर्थ है। चाहे व्यर्थ संकल्प हो चाहे बोल हों, कर्म हो। इसलिए
बापदादा सभी बच्चों को किस दृष्टि से देखते हैं कि हर एक बच्चे स्मृति स्वरूप सो
समर्थ है। आज तक भी अपना सिमरण भक्तों द्वारा सुन रहे हैं। अपने स्मृति में लाया ``मेरा
बाबा'' तो भक्त आत्मा भी यही सिमरण करती मेरा इष्ट वा देवी। जैसे आपने अति प्यार से
दिल से बाप को याद किया, उतना ही भक्त आत्माएं आप इष्ट आत्माओं को दिल से अति प्यार
से याद करती है। आप ब्राह्मण-आत्माओं में भी कोई दिल के स्नेह सम्बन्ध से याद करते
हैं और दूसरे दिमाग द्वारा नॉलेज के आधार पर सम्बन्ध अति प्यारा अर्थात् अति समीप
हैं वहाँ याद भूलना मुश्किल है। जहाँ सिर्फ सम्बन्ध है नॉलेज के आधार पर लेकिन दिल
का अटूट स्नेह नहीं है, वहाँ याद कभी सहज, कभी मुश्किल होती। जैसे शरीर के अंदर
नस-नस में ब्लड समाया हुआ है, ऐसे आत्मा में निश-पल अर्थात् हर पल याद समाई हुई है।
इसको कहते हैं दिल के स्नेह सम्पन्न निरंतर याद। जैसे भक्त आत्माएं बाप के लिए कहती
हैं - जहाँ देखते हैं तू ही तू है। ऐसे बाप के स्नेही समान आत्माओं को जो भी देखे
कि इन्हों की दृष्टि में, बोल में, कर्म में परमात्मा बाप ही अनुभव होता है। इसको
कहते हैं - स्नेही सो समान बाप। तो स्मृति स्वरूप तो सभी हो, सम्बन्ध भी सभी का है।
अधिकार भी सभी का है क्योंकि सभी का फुल अधिकार का सम्बन्ध बाप और बच्चे का है। सभी
कहते हैं मेरा बाबा। मेरा चाचा, मेरा काका कोई नहीं कहते। अधिकार का सम्बन्ध होने
के कारण सर्व प्राप्तियों के वर्से के अधिकारी हो। चाहे 53 वर्ष वाले हैं, चाहे 6
मास वाले हैं, मेरा कहने से अधिकारी तो बन ही गये। लेकिन अंतर क्या होता है! बाप
अधिकार तो सभी को एक जैसा देता है - क्योंकि अखुट वर्सा देने वाला दाता है। अढ़ाई
लाख तो क्या लेकिन सर्व आत्माएं भी अधिकारी बनें उनसे भी अथाह खज़ाना बाप के पास है।
तो कम क्यों दें? तो दाता सभी को देता एक जैसा है लेकिन लेवता में फर्क है। कोई
प्राप्तियों के वर्से को वा खज़ाने को समय प्रमाण स्वयं प्रति वा सेवा प्रति कार्य
में लगाकर उसका लाभ अनुभव करते हैं। इसलिए बाप का खज़ाना अपना खज़ाना बना देते हैं
अर्थात् अपने में समा देते हैं। शुद्ध नशा, उल्टा नहीं। और दूसरे खज़ाना मिला है -
इस खुशी में रहते हैं, मेरा है। लेकिन सिर्फ मेरा है और उसको कार्य में नहीं लगाते
हैं। काई भी अमूल्य वस्तु को सिर्फ अपने पास स्टाक में जमा कर लिया लेकिन सिर्फ जमा
करने और यूज़ करने की अनुभूति में अंतर है। जितना कार्य में लगाते हैं उतनी शक्ति और
बढ़ती है, वह सदा नहीं करते, कभी-कभी करते हैं। इसलिए सदा वालों में और कभी-कभी वालों
में अंतर पड़ जाता है। कार्य में लगाने की विधि यूज़ नहीं करते। तो दाता अंतर नहीं
करता लेकिन लेवता में अंतर हो जाता है। आप सभी कौन हो? कार्य में लगाने वाले या
सिर्फ जमा देख खुश होने वाले? पहला नम्बर वाले हो या दूसरा नम्बर हो? बापदादा को तो
खुशी है कि सभी नम्बरवन है या इस समय नम्बरवन हो? बापदादा सदैव कहते हैं सदा बच्चों
के मुख में गुलाब जामुन हो। जो कहा वह किया अर्थात् सदा गुलाब जामुख मुख में है।
दुनिया वाले कहते मुख में गुलाब। लेकिन गुलाब से मुख मीठा नहीं होगा। इसलिए गुलाब
जामुन मुख में हो तो सदा ही ऐसे मुस्कराते रहे। अच्छा!
कई नये-नये फिर से
मिलने पहुँच गए हैं। जो भी इस कल्प में फिर से मिलन मना रहे हैं उन बच्चों के लिए
विशेष बापदादा स्नेह का वरदान देते हैं कि सदा अपने मस्तक पर बाप का हाथ अनुभव करते
चलो। जिसके सिर पर बाप का हाथ है वह सदा इस वरदान के अनुभव से सब बातों में सेफ है।
यह वरदान का हाथ हर बात में आपकी सेफ्टी का साधन है। सबसे बड़े-ते-बड़ी सिक्यूरिटी यही
है।
बापदादा सभी टीचर्स
की निमित्त बनने की हिम्मत देख खुश है। हिम्मत रख निमित्त तो बन ही जाते हो ना।
टीचर निमित्त बनना अर्थात् बेहद की स्टेज पर हीरो पार्ट बजाना। जैसे हद की स्टेज पर
हीरो पार्टधारी आत्मा की तरफ सबका विशेष अटेन्शन होता है, ऐसे जिन आत्माओं के
निमित्त बनते हो विशेष वह और जनरल सर्व आत्माएं आप निमित्त बनी टीचर्स को उसी दृष्टी
से देखते हैं। सभी का विशेष अटेन्शन होता है ना! तो टीचर्स को अपने में भी विशेष
अटेन्शन रखना पड़े। क्योंकि सेवा में हीरो पार्टधारी बनना अर्थात् हीरो बनना। दुआयें
भी टीचर्स को ज्यादा मिलती हैं। जितनी दुआयें मिलती हैं, उतना अपने ऊपर ध्यान देना
अवश्यक है। यह भी ड्रामा अनुसार विशेष भाग्य है। तो सदा इस प्राप्त हुए भाग्य को
बढ़ाते चलो। सौ से हजार, हजार से लाख, लाख से करोड़, करोड़ से पद्म, पद्म से भी
पद्मापद्म, सदा इस भाग्य को बढ़ाते चलना है। इसको कहते हैं योग्य आदर्श टीचर। बापदादा
निमित्त बने हुए बच्चों को सिमरण जरूर करते हैं और सदा अमृतवेले "वाह बच्चे वाह''
यह दुआयें देते हैं। सुना सेवाधारियों ने? टीचर्स माना नम्बरवन सेवाधारी। अच्छा!
चारों ओर के अनेक
कल्प न्यारा और प्यारा मिलन मनाने वाले, सदा प्राप्त हुए वर्से के खज़ानों को हर समय
प्रमाण कार्य में लगानेवाले, सदा दिल से अति स्नेही और बाप समान बन स्वयं द्वारा
बाप का अनुभव कराने वाले, सदा स्मृति स्वरूप सो भक्तों द्वारा समर्थ स्वरूप बनने
वाले, सदा अपने प्राप्त भाग्य को बांटने वाले अर्थात् बढ़ाने वाले - ऐसे मास्टर दाता
समर्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
मधुबन में ग्लोबल
विजन पर आधारित बुक तैयार करने वाले भाई-बहनों प्रति:-
ऑफिस का काम अच्छा चल
रहा है ना? काम करने वाले भी अच्छे और काम भी अच्छा। थक तो नहीं जाते। सदा अपने में
सर्व-शक्तियाँ प्रत्यक्ष कर यह बुक बनाओ तो बाप प्रत्यक्ष हो जायेगा। तो सभी अपनी
शक्ति, खुशी, गुण, विशेषताएं सब भर देना। सिर्फ लिखना नहीं, भरना भी है। जिसके हाथ
में जाए - जिसको जो चाहिए, गुण चाहिए, शक्ति चाहिए, खुशी चाहिए उनको वही अनुभूति
हो। यही लक्ष्य है ना? तो जब भी काम शुरू करते हो तो पहले उसमें यह भरो, पीछे काम
शुरू करो। तो जिसे भी यह बुक मिलेगी उनको वही वायब्रेशन आयेंगे। इसमें सबकी अंगुली
भरी हुई है। यह तो निमित्त बने हैं - लिखने वा तैयार करने के लिए। लेकिन देश-विदेश
के हर ब्राह्मण आत्मा ने इस कार्य में अंगुली लगाई है। पहले तो है सर्व ब्राह्मणों
का सहयोग फिर है विश्व का सहयोग। इस कार्य में सर्व ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्माओं का
साथ है, हाथ है अर्थात् अंगुली है। तो सब इस बुल में वायब्रेशन भरो। ऐसे नहीं जो
ऑफिस में काम करने वाले हैं, वह जानें, हमारा क्या काम है? सबका काम है। कोई भी चीज़
तैयार होती है या कोई भी प्रोग्राम होता है, सर्व ब्राह्मणों के शुभ सहयोग के
वायब्रेशन कार्य को सफल कर देते हैं। इसलिए सभी तैयार कर रहे हो। ऐसे नहीं सिर्फ
25-30 तैयार कर रहे हैं। हर एक शुभ वायब्रेशन का हीरा लगाये तो हीरेतुल्य बुक सबको
दिखाई देगी। अच्छा हो रहा है और अच्छा ही रहेगा। अच्छा!
डबल विदेशी भाई-बहनों
से ग्रुप वाइज मुलाकात:-
1. सभी अपने को
बहुत-बहुत भाग्यवान समझते हो? क्योंकि कभी स्वप्न में भी संकल्प नहीं होगा कि ऐसी
श्रेष्ठ आत्माएं बनेंगे, लेकिन अभी साकार में बन गये? देखो कहाँ-कहाँ से बापदादा ने
रत्नों को चुनकर, रत्नों की माला बनाई है। ब्राह्मण-परिवार की माला में पिरो गये।
कभी माला से बाहर तो नहीं निकलते हो? कोई भी माला की विशेषता और सुंदरता क्या होती
है? दाना दाने के साथ मिला हुआ होता है। अगर बीच में धागा दिखाई दे, दाना दाने के
साथ नहीं लगा हुआ हो तो सुंदर नहीं लगेगा। तो आप ब्राह्मण परिवार की माला में हो
अर्थात् सर्व ब्राह्मण आत्माओं के समीप हो गये हो। जैसे बाप के समीप हो वैसे बाप के
साथ-साथ परिवार के भी समीप हो। क्योंकि यह परिवार भी इस पहचान से, परिचय से अभी
मिलता है। परिवार में मजा आता है ना? ऐसे नहीं कि सिर्फ बाप की याद में मजा आता है।
योग परिवार से नहीं लगाना है लेकिन समीप एक-दो के रहना है। इतना बड़ा अढ़ाई लाख का
परिवार होगा? तो परिवार अच्छा लगता है या सिर्फ बाबा अच्छा लगता है? जिसे सिर्फ बाबा
अच्छा लगेगा वह परिवार में नहीं आ सकेगा। बापदादा परिवार को देख सदा हार्षित होते
हैं और सदा एक-दो की विशेषता को देख हार्षित रहते हैं। हर ब्राह्मण आत्मा के प्रति
यही संकल्प रहता कि वाह ब्राह्मण-आत्मा वाह! देखो बाप का बच्चों से इतना प्यार है
तब तो आते हैं ना, नहीं तो ऊपर बैठकर मिल लें। सिर्फ ऊपर से तो बैठकर नहीं मिलते।
आप विदेश से आते हो तो बापदादा भी विदेश से आते हैं। सबसे दूर से दूर से आते हैं
लेकिन आते सेकण्ड में हैं। आप सभी भी सेकण्ड में उड़ती कला का अनुभव करते हो? सेकण्ड
में उड़ सकते हो? इतने डबल लाइट हो, संकल्प किया और पहुँच गये। परमधाम कहा और पहुँचे,
ऐसी प्रैक्टिस है? कहाँ अटक तो नहीं जाते हो? कभी कोई बादल तंग तो नहीं करते हैं,
केयरफुल भी और क्लियर भी ऐसे है ना।
डबल विदेशी बच्चों को
आते ही सेंटर मिल जाते हैं। बहुत जल्दी टीचर बन जाते हैं, इसलिए सेवा की भी दुआयें
मिलती हैं। दुआयें मिलने की विशेष लिफ्ट मिलती है, साथ-साथ आते ही इतने बिजी हो जाते
हो जो और बातों के लिए फुर्सत ही नहीं मिलती। इसलिए बिजी रहने से घबराना नहीं, यह
गुड साइन है। कई कहते हैं ना - लौकिक कार्य भी करें फिर अलौकिक सेवा भी करें और अपनी
सेवा भी करें - यह तो बहुत बिजी रहना पड़ता है। लेकिन यह बिजी रहना अर्थात् मायाजीत
बन जाना। यह ठीक लगता है या लौकिक जॉब करना मुश्किल है? लौकिक जॉब (नौकरी) जो करते
हैं उसमें जो कमाई होती है वह कहाँ लगाते हो? जैसे समय लगाते वैसे धन भी लगाते हो।
तो तन-मन-धन तीनों ही लग जाते हैं। सफल हो जाता है ना, इसलिए थकना नहीं। सेंटर खोलते
हो तो कितनी आत्माओं का सन्देश सुनते ही कल्याण होता है। तो मन और धन का कनेक्शन
है, जहाँ धन होगा वहाँ मन होगा। जहाँ मन होगा, वहाँ धन होगा। बापदादा डबल विदेशियों
को सर्व प्रकार से सफल करने में बिजी देख खुश होते हैं। सभी गोल्डन चांसलर हो। सदा
याद रखना कि सफलतामूर्त है और सदा सफलता मेरे गले का हार है। कोई भी कार्य करो तो
पहले यह सोचो कि सफलता मेरे गले की माला है। जैसा निश्चय होगा वैसा प्रत्यक्ष फल
मिलेगा। अच्छा।
2. यह स्वीट साइलेन्स
प्रिय लगती है ना? क्योंकि आत्मा का ओरिजनल स्वरूप ही स्वीट साइलेन्स है। जो जिस
समय चाहो उस समय इस स्वीट सालेन्स की स्थिति का अनुभव कर सकते हो? क्योंकि आत्मा अभी
इन बन्धनों से मुक्त हो गई इसलिए जब चाहे तब अपने ओरिजनल स्थिति में स्थित हो जाए।
तो बंधनमुक्त हो गए या होना है? इस बार मधुबन में दो शब्द छोड़कर जाना - समथिंग और
समटाइम। यह पसंद है ना? सभी छोड़ेंगे? हिम्मत रखने से मदद मिल जायेगी। क्योंकि यह तो
जानते हो 63 जन्म अनेक बंधनों में रहे और एक जन्म स्वतंत्र बनने का है, इसका ही फल
अनेक जन्म जीवनमुक्ति प्राप्त करेंगे। तो फाउण्डेशन यहाँ डालना है। जब इतना
फाउण्डेशन पक्का होगा तब तो 21 जन्म चलेगा। जितना अपने में निश्चय करेंगे उतना ही
नशा होगा। बाप में भी निश्चय, अपने में भी निश्चय और फिर ड्रामा में भी निश्चय। तीनों
निश्चय में पास होना है। अच्छा - एक-एक रत्न की अपनी विशेषता है। बापदादा सबकी
विशेषता को जानते हैं। अभी आगे चलकर अपनी विशेषता को और कार्य में लगाओ तो विशेषता
बढ़ती जायेगी। दुनिया में खर्च करने से धन कम होता है लेकिन यहाँ जितना यूज़ करेंगे,
खर्च करेंगे उतना बढ़ेगी। सभी अनुभवी हो ना। तो इस वर्ष का यही वरदान याद रखना कि हम
विशेष आत्मा हैं और विशेषता को कार्य में लगाए और आगे बढ़ायेंगे। जेसे यहाँ नजदीक
बैठना अच्छा लगता है वैसे वहाँ भी सदा नजदीक रहना। बापदादा सदा हर एक को इसी
श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं कि एक-एक बच्चा योगी भी है और योग्य भी है। अच्छा!
वरदान:-
सहन शक्ति की
विशेषता द्वारा दूसरे के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले दृढ संकल्पधारी भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने
ज्ञानी और अज्ञानी आत्माओं द्वारा इनसल्ट सहन कर उसे परिवर्तन किया तो फालो फादर करो,
इसके लिए अपने संकल्पों में सिर्फ दृढ़ता को धारण करो। यह नहीं सोचो कि कहाँ तक होगा।
सिर्फ थोड़ा पहले लगता है कैसे होगा, कहाँ तक सहन करेंगे। लेकिन अगर आपके लिए कोई
कुछ बोलता भी है तो आप चुप रहो, सहन कर लो तो वह भी बदल जायेगा। सिर्फ दिलशिकस्त नहीं
बनो।
स्लोगन:-
संगम पर सहन कर लेना,
झुक जाना, यही सबसे बड़ी महानता है।