ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि यह महिमा किसकी है? भारतवासी मनुष्य नहीं जानते। हो तुम भी
मनुष्य परन्तु तुम अब जान गये हो – यह किसकी महिमा है। उस मात-पिता द्वारा तुम
विष्णुपुरी की राजाई ले रहे हो। ऊपर में है मात-पिता। शिवलिंग की विद्वान आदि पूजा
नहीं करने देते हैं क्योंकि वह उल्टी बात समझते हैं। वास्तव में शिवलिंग की पूजा जब
करते हैं तो उनको मात-पिता नहीं समझते हैं। लक्ष्मी-नारायण की पूजा करेंगे तो उनको
मात-पिता कहेंगे क्योंकि दोनों हैं। पत्थरबुद्धि मनुष्य कुछ भी समझते नहीं कि हम
किसकी पूजा करते हैं। त्वमेव माताश्च पिता कौन है? जहाँ दो देखते हैं तो उनके आगे
महिमा गाते हैं। परन्तु लक्ष्मी-नारायण तो न मात-पिता हैं, न खिवैया हैं। न ज्ञान
सागर, पतित-पावन हैं। तुम बच्चे अच्छी तरह जानते हो – पतित-पावन निराकार परमपिता
परमात्मा को ही कहा जाता है। त्वमेव माताश्च पिता… यह महिमा साकार की हो नहीं सकती।
न लौकिक मात-पिता के लिए यह गाते हैं। उस लौकिक माँ बाप से तो अल्पकाल का काग विष्टा
के समान सुख मिलता है। द्वापर कलियुग में है दु:ख, अभी तुम बाप द्वारा समझदार बने
हो। किसको भी समझाना बहुत सहज है। त्रिमूर्ति चित्र ले जाओ, ऊपर में है शिव। यह है
त्वमेव माताश्च पिता… जो ब्रह्मा द्वारा हमको विष्णुपुरी का राज्य देते हैं। ब्रह्मा
द्वारा हमको सहज राजयोग सिखला रहे हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनते हैं।
विष्णुपुरी कैसे और किसने स्थापन की, यह कोई जानते नहीं। कोई ने तो स्थापन की होगी?
बाप का परिचय मिलता है तो बाप से बर्थ राईट ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार जरूर चाहिए।
बाप का जन्म सिद्ध अधिकार है विष्णुपुरी, नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी पद प्राप्त
कराते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। समझाने का तरीका बहुत अच्छा चाहिए, जो किसकी बुद्धि
में बैठे। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर तुम बहुत अच्छा ज्ञान दे सकते हो।
लक्ष्मी-नारायण को जरूर 84 जन्म लेने पड़ते हैं। यह नई दुनिया के नम्बरवन मनुष्य
हैं। गायन भी है परमपिता परमात्मा से 21 पीढ़ी राज्य-भाग्य मिलता है। वह भी क्लीयर
कर दिखाया हुआ है। कहाँ भी शादी पर वा किसके निमंत्रण पर जाना होता है तो वहाँ तुम
बहुत सर्विस कर सकते हो। परन्तु बाबा को याद ही नहीं करते हैं, तो मदद ही क्या
मिलेगी? कई हैं जिनमें ज्ञान-योग कुछ भी नही है, फिर भी सेन्टर सम्भालते हैं तो बाबा
आकर मदद करते हैं। बाकी जो अपना कल्याण नहीं करते तो दूसरों का क्या करेंगे? जैसे
गुरु लोग खुद ही मुक्ति नहीं पा सकते तो दूसरों को कैसे दे सकते। बाप समझाते बहुत
सहज हैं। एक त्रिमूर्ति का राज़ और नई दुनिया, पुरानी दुनिया के चक्र का राज़ लिखा
हुआ है। सर्विस करने वालों की बुद्धि में यह सब राज़ रहते हैं। कहाँ शादी आदि पर
जाओ तो कोशिश करो तीर लगाने की। बिच्छू का मिसाल.. तुम्हारा धन्धा है सबका भला करना,
परन्तु जिसने अपना भला नहीं किया तो दूसरों का कैसे करेंगे। सर्विस तो बहुत है।
कर्मणा सर्विस भी बहुतों को सुख देती है। सबकी आशीर्वाद मिलती है। जो न वाचा, न
कर्मणा सर्विस करते उनका क्या पद होगा, वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी करते हैं।
जैसे भक्तिमार्ग में तुम्हारा वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी हुआ ना। ईश्वरीय
सर्विस आधा घण्टा भी नहीं करते, ऐसे भी बहुत हैं। पद पाना नहीं है तो चाल ही ऐसी
चलते रहते हैं। बहुत चलते-चलते फिर गिर भी पड़ते हैं। लिखते हैं बाबा हम गटर में
गिर पड़े, चोट लग गई। उनको शर्म आना चाहिए। कोई मल्लयुद्ध में हार जाते हैं तो उनका
मुँह काला हो जाता है। पिछाड़ी में जब ट्रांसफर होने का समय आयेगा तो तुम सबको
साक्षात्कार होगा कि हमारा क्या पद है। फिर पछताने से क्या होगा। समझेंगे कल्प-कल्प
यही गति होगी। कहते हैं शल तुमको ईश्वर मत दे, परन्तु यहाँ तो ईश्वर की मत पर भी नहीं
चलते जैसेकि प्रण किया है कि हम कभी श्रीमत पर नहीं चलेंगे। पढ़ते ही नहीं हैं। नहीं
तो समझाना बहुत सहज है। छोटे बच्चे भी चित्र लेकर बैठ समझायें, यह प्रजापिता ब्रह्मा
है, जरूर बी.के. को ज्ञान देते होंगे। यह वर्सा मिलता है 21 जन्मों के लिए। बच्चे
इतना भी समझायें तो भी कुर्बान जायें। नीचे लिखा हुआ है यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म
सिद्ध अधिकार है। यह जगत पिता, जगत अम्बा है। यही जगत अम्बा फिर लक्ष्मी बनती है।
अभी परमात्मा आकर 21 जन्मों का राज्य-भाग्य देते हैं। यह है ज्ञान मार्ग। फिर
भक्तिमार्ग में दीपमाला पर लक्ष्मी से भीख मांगते हैं।
बाबा कहते हैं तुम बच्चे कहाँ भी जाओ जाकर समझाओ – हम यह पढ़े हैं। हमारा फ़र्ज
है, घर-घर में पैगाम देना। यह त्रिमूर्ति क्या है, आओ तो हम आपको समझायें। बाबा ने
इनको बैठ 84 जन्मों का राज़ समझाया हुआ है। जैसे ब्रह्मा का दिन और रात वैसे विष्णु
का भी दिन और रात। बहुत सहज है समझाना। कोई का भी कल्याण करना है। यही धन्धा तुमको
करना है। सबको रास्ता बताने का, बस दो रोटी मिले वह भी बहुत हैं। मनुष्य का पेट
जास्ती नहीं खाता। अगर सेन्सीबुल है तो थोड़े रूपये में भी काम चल सकता है। यहाँ तो
कई ऐसे हैं जो थोड़ा ही ठीक न मिले तो भाग जायें। राजाई को भी ठोकर मार दें। बीच
में बेगरी पार्ट चला, यह भी परीक्षा हुई थी। बहुत चले गये। यह सब शिवबाबा का क्या
राज़ था वह भी गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने। कितने डरकर भाग गये। नहीं तो दो रोटी
खाने पर खर्चा बहुत कम लगता है। दो रोटी खाना, प्रभु के गुण गाना अर्थात् बाप और
वर्से को याद करना। बाप को बहुत प्यार से याद करना है। बाप कहते हैं मैं सेकेण्ड
में तुमको जीवनमुक्ति का राज़ समझाता हूँ। कलियुग में है जीवनबंध, जरूर
मुक्ति-जीवनमुक्ति दूसरे जन्म में मिली होगी। बाप ने संगम पर ही ज्ञान दिया है। है
भी बरोबर सेकेण्ड की बात। अच्छी तरह कोई सिर्फ समझाये। चित्र बहुत फाईन बने हुए
हैं। त्रिमूर्ति तो कामन है, सिर्फ अर्थ नहीं समझते। यह भी समझते हैं ब्रह्मा द्वारा
स्थापना, विष्णु द्वारा पालना, शंकर द्वारा विनाश। परन्तु कब आकर यह कार्य करते
हैं, यह नहीं जानते। ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियां होंगे। जानते
हैं बाप से हमको वर्सा मिलता है। परन्तु फिर भी सर्विस नहीं कर सकते तो समझते हैं
इन पर ग्रहण है। श्रीमत पर चलने के लिए ना कर देते हैं। जैसे यहाँ कोई पढ़ने नहीं
आये हैं। ऐसे तो पिछाड़ी में एकदम चले जायेंगे।
बाबा तो बहुत युक्तियां बताते हैं। बाबा से पूछते हैं बाबा मैं शादी पर जाऊं?
फलानी जगह जाऊं… अरे तुमको जहाँ तहाँ यह सर्विस ही जाकर करनी है। त्रिमूति का चित्र
लेकर इस पर ही समझाओ। त्रिमूर्ति मार्ग भी है, कोई भी अर्थ को नहीं जानते। यहाँ कई
बच्चे हैं जो सेन्टर पर आते रहते हैं, बाहर से कहते हैं हम पवित्र रहते हैं, परन्तु
अन्दर गंद करते रहते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैं अन्तर्यामी हूँ, बहुत विकार में
गिरते रहते हैं। कुछ बतलाते नहीं, उनको यह पता ही नहीं पड़ता कि कितनी सज़ा मिलेगी।
बाबा कहते हैं उन्हों को बहुत सज़ा मिलेगी। महसूस करेंगे बरोबर हमने छिपाया था, इतना
झूठ बोला था इसलिए यह सज़ा मिल रही है। बाबा कहते हैं समय आयेगा सबको अपनी चलन का
साक्षात्कार कराऊंगा कि कितने पाप, झूठ किये हैं। बहुत विकार में जाते रहते हैं,
सेन्टर पर भी आते रहते हैं। शास्त्रों में भी इन्द्रसभा की बात है। यह एक की बात नहीं।
बहुत ऐसे होते हैं। फिर जाकर दुश्मन बनते हैं, अबलाओं पर विघ्न डालते रहते हैं। बातें
सब यहाँ की हैं। तुम सर्विस बहुत कर सकते हो। यह झाड़ का फर्स्टक्लास चित्र है। बोलो,
सिर्फ नॉलेज सुनो। हम आपको यह भी नहीं कहते हैं निर्विकारी बनो। सिर्फ यहाँ आओ तो
हम आपको अच्छी बातें सुनायेंगे। तुम शादी की खुशी में हो, हम आपको उनसे भी जास्ती
खुशी का पारा चढ़ा सकते हैं, हमेशा के लिए। बात करने की ताकत चाहिए। गोले का चित्र
भी अच्छा है। कोई किताबों में भी यह गोला दिखाया है। सिर्फ आयु लम्बी कर दी है। दिल
में आना चाहिए हम अपने मित्र सम्बन्धियों का उद्धार करते हैं। एक दिन आयेगा जो तुम
चित्र लेकर जाए सबको समझायेंगे कि शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का राज्य
दे रहे हैं। शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश हो रहा है। बाकी देवताओं, असुरों
की लड़ाई नहीं लगी। यह तो यवन और कौरवों की है। उनका बाम छूटेगा और इनकी लड़ाई शुरू
होगी। विनाश के बाद फिर स्वर्ग की स्थापना, कितना सहज है। बोलो, सिर्फ बाप और वर्से
को याद करना है। मनमना भव, बस। हमको कुछ भी नहीं चाहिए। हम पैसे के भूखे नहीं हैं।
पैसे तो अपने पास रखो। युक्तियुक्त बोलना चाहिए। आगे चलकर बहुत निकलेंगे। थोड़ी
तुम्हारी भी वृद्धि हो जाए। कई हैं जो बाहर से बड़े अच्छे हैं, बड़े मीठे हैं।
परन्तु अन्दर किचड़ा भरा हुआ है। यहाँ अन्दर बाहर बड़ा साफ चाहिए। सबके अन्दर को
जानने वाला शिवबाबा है। खुद कहते हैं जो जिस भावना से भक्ति करते हैं, उनको उसका फल
मिलता है। यह ड्रामा में नूँध है। तो जब बाप को पाया है तो वर्सा भी पूरा पाना
चाहिए। वर्सा सर्विस से मिलता है। बाप तो फिर भी पुरुषार्थ करायेगा। ठण्डा थोड़ेही
छोड़ेगा। प्रोजेक्टर पर भी अच्छी तरह समझा सकते हैं। चक्र में कितना बड़ा ज्ञान
समाया हुआ है। बड़े मण्डप में बड़े-बड़े चित्र रखने चाहिए, जितना बड़ा होगा उतना
अच्छी तरह पढ़ सकेंगे। बहुत सहज है समझाना। यह नर्क है, यह स्वर्ग है। यह 84 का
चक्र फिरता है। बाप से बेहद का वर्सा संगम पर ही मिलता है। नाम ही है अति सहज
राजयोग, अति सहज ज्ञान। ड्रामा आनुसार झाड को जानना है। चित्र तो बाबा ने बनवा दिये
हैं। स्वर्ग में इन देवताओं का राज्य था। आर्य और अनआर्य। आर्य अर्थात् पारसबुद्धि,
अनआर्य अर्थात् पत्थरबुद्धि। सच बताने वाले तुम हो, बहुत रहमदिल बनना है। कहाँ भी
जाकर तुम सर्विस कर दिखाओ। कोई न कोई निकल पड़ेंगे जो अपना जीवन बनायेंगे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दर बाहर साफ रहना है। बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है। सच्ची दिल से
सेवा करनी है।
2) अपना टाइम सफल करना है। सर्व की आशीर्वादें लेने के लिए वाचा व कर्मणा सेवा
जरूर करनी है। रहमदिल बनना है। सबका कल्याण करने का धन्धा करते रहना है।