27-04-08  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 16-06-69 मधुबन

 

“बड़े-से-बड़ा त्याग - अवगुणों का त्याग” 

 

सभी किस स्वरूप में बैठे हो? स्नेह रूप में बैठे हो या शक्तिरूप में बैठे हो? इस समय कौन सा रूप है? स्नेह में शक्ति रहती है। दोनों इकट्ठी रह सकती है? क्यों नहीं कहते हो दोनों रूप हैं। बापदादा के साथ स्नेह क्यों है? बापदादा से स्नेह इसलिए है कि जो शिवबाबा का मुख्य टाइटिल है उसमें आप समान होना है। मुख्य टाइटिल कौन सा है? (सर्वशक्तिवान) तो सिर्फ स्नेह जो होता है तो वह कभी टूट भी सकता है लेकिन स्नेह और शक्ति दोनों का जहाँ मिलाप होता है, वहाँ आत्मा और परमात्मा का मिलाप भी अविनाशी अमर रहता है। तो अपने इस मिलन को अविनाशी बनाने के लिये क्या साधन करना पड़ेगा? स्नेह और शक्ति दोनों का मिलाप अपने अन्दर करना पड़ेगा- तब कहेंगे आत्मा और परमात्मा का मिलाप। मेले में तो बैठे हो लेकिन कई मेले में बैठे हुए भी दोनों के मिलाप को भूल जाते हैं। अच्छा - आज तो खास कुमारियों के प्रति ही आये हैं। आज कुमारियों का कौन सा दिन है? (मिलन दिन) रिजल्ट भी आप सभी की निकली है? अपने रिजल्ट को खुद जान सकती हो? त्रिकालदर्शी बनी हो? इस ग्रुप से नम्बरवन कुमारी कौन निकली है? (चन्द्रिका) नम्बरवन का मुख्य कर्तव्य है - अपने जैसा नम्बरवन बनाना। कुमारियों को तो अभी एक और पेपर देना हैं। वह पेपर प्रैक्टिकल का, न कि लिखने का। अभी तो एक माँस की ट्रेनिंग की रिजल्ट में नम्बरवन हैं। लेकिन फाइनल रिजल्ट में भी नम्बरवन आ सकती हैं। लेकिन उसके लिये कौन सी मुख्य बात बुद्धि में रखनी है? त्याग और सेवा तो है, एक और मुख्य बात है। सभी से बड़ा बलिदान कौन सा है और सभी से बड़ा त्याग कौन सा है? दूसरों के अवगुणों को त्याग करना - यह है बड़ा त्याग। सभी से बड़ी सेवा कौन सी है? जो श्रेष्ठ सेवाधारी होंगे - वह मुख्य कौन सी सेवा करेंगे? जो तीव्र पुरुषार्थी होंगे वह तीव्र पुरुषार्थ का सबूत क्या दिखावेंगे? कोई भी सामने आये तो एक सेकेण्ड में उनको मरजीवा बनाना। कहते हैं ना एक धक से मरजीवा बनना। जिसको झाटकू कहते हैं। अधूरा नहीं छोड़ना। श्रेष्ठ सेवा यह है जो उनको झट झाटकू बना देना। अभी तो आप तीर मारते हो, बाहर फिर जिन्दा हो जाते हैं। लेकिन ऐसा समय आना है जो एक सेकेण्ड में नजर से निहाल कर देंगे तब सर्विस की सफलता और प्रभाव निकलेगा। अभी मरजीवा भल बनाते हो - झाटकू नहीं बनाते हो। दो बातों की कमी है। वह बातें आ जाये तो अपना रगरंग दूसरों को भी चढ़ा सकती हो। आप झाटकू बनी हो? (पुरुषार्थी हैं) कहाँ-कहाँ भूल होती रहे तो उनको पुरुषार्थी कहेंगे? प्रतिज्ञा यह करनी है - आज से हम झाटकू बन गये हैं फिर जिन्दा नहीं होंगे, पुरानी दुनिया में। हिम्मतवान को फिर मदद भी मिलती है। हिम्मत के कारण बापदादा का स्नेह रहता है। तो दो बातों की कमी बता रहे थे एक मुख्य कमी है एकान्तवासी कम रहते हो। और दूसरी कमी हैं एकता में कम रहते हो। एकता और एकान्त में बहुत थोड़ा फर्क है। एकान्त स्थूल भी होती है, सूक्ष्म भी होती हैं। इसमें दोनों की आवश्यकता है। एकान्त के आनन्द के अनुभवी बन जाये तो फिर बाहरमुखता अच्छी नहीं लगेगी। अभी बाहरमुखता में सभी का इन्ट्रेस्ट जास्ती जाता है। इन दो बातों की मैजारिटी में कमी है। अव्यक्त स्थिति को बढ़ाने के लिए इसकी बहुत आव- श्यकता है। इससे ज्यादा एकान्त में रुचि रखनी है। कुमारियों को अब जाना है - प्रैक्टिकल कोर्स देने। अब कुमारियों को तीन सौगात देनी हैं। सौगात है स्नेह की निशानी। तो तीनों सम्बन्ध से तीन सौगात देते हैं। जो कभी भूलना नहीं है। बापदादा की सौगात सदा अपने साथ रखना। सौगात छिपाकर रखनी होती है ना। तो बाप के रूप में एक शिक्षा की सौगात याद रखना। क्या शिक्षा देते हैं कि सदैव बापदादा और जो निमित्त बनी हुई बहने हैं और जो भी दैवी परिवार है उन सबसे आज्ञाकारी वफादार बनकर के चलना है, यह है बाप के रूप में शिक्षा की सौगात। और फिर टीचर के रूप में कौन सी शिक्षा की सौगात देते हैं? शिक्षा को ग्रहण किया जाता है ना। जहाँ भी जाओ तो टीचर के रूप में एक तो ज्ञान ग्रहण, दूसरा गुणग्रहाक यह शिक्षा हमेशा याद रखना और गुरू के रूप से यही शिक्षा है सदैव एक मत होना है, एकरस और एक के ही याद में रहना। विष्णु को जो अलंकार दिखाये हैं वह अभी शक्तिरूप में धारण करने हैं। यह अलंकार सदैव अपने सामने रखो। यह है बाप टीचर और गुरू तीनों सम्बन्ध से शिक्षा की सौगात - खास कुमारियों प्रति। अब देखेंगे कौन-कौन इस सौगात को साथ रखते हैं।

 

वह लोग भी रिफाइन बम्बस बना रहे हैं ना। तुमको भी अब रिफाइन बम्बस गिराने हैं। चींटी मार्ग की सर्विस बहुत की। बम गिराने से झट सफाई हो जाती है। तो विशेष आवाज फैलाने की सर्विस करनी है, उसको बम गिराना कहते हैं। जितना जो रिफाइन होंगे उतना रिफाइन बम फेकेंगे - औरों पर। अभी आलराउण्डर बनना है। जितना-जितना बनेंगी उतना-उतना नजदीक आयेंगी सतयुगी परिवार के। आलराउण्ड चक्र लगाकर अपना शो दिखाना - तब है ट्रेनिंग की रिजल्ट। प्रैक्टिकल कोर्स के बाद फिर रिजल्ट देखेंगे। अभी फिर एक मास के बाद मधुबन में आओ तो अकेले नहीं आना है। अभी ट्रेनिंग पूरी नहीं है। प्रैक्टिकल अभी है। अकेला कोई को लौटना नहीं है। कोई न कोई का पण्डा बनकर आना है, यात्री ले आना है। बापदादा की इन कुमारियों में बहुत उम्मीद है। उम्मीदवार रत्नों को बापदादा नयनों में समाते हैं। अच्छा।

 

पार्टियों के साथ

 

1. पाठशाला में जाते हो? पाठशाला का पहला पाठ क्या है? अपने को मरजीवा बनाना मरजीवा अर्थात् अपने देह से, मित्र सम्बन्धियों से, पुरानी दुनिया से मरजीवा। यह पहला पाठ पक्का किया है? (संस्कार से मरजीवा नहीं हुए है) जब कोई मर जाता है तो पिछले संस्कार भी खत्म हो जाते हैं। तो यहाँ भी पिछले संस्कार क्यों याद आना चाहिए। जबकि जन्म ही दूसरा तो पिछली बातें भी खत्म होनी चाहिए। यह पहला पाठ है मरजीवा बनने का। वह पक्का करना है। पिछले पुराने संस्कार ऐसे लगने चाहिए जैसे और कोई के थे। हमारे नहीं। पहले शूद्रों के थे, अभी ब्राह्मणों के हैं। तो पुराने शूद्रों के संस्कार नहीं होने चाहिए। पराये संस्कार अपने क्यों बनाते हो! जो पराई चीज़ को अपना बनाते हैं उनको क्या कहेंगे? चोर। तो यह भी चोरी क्यों करते हो? यह तो - शूद्रों के संस्कार है, ब्राह्मणों के नहीं। शूद्र की चीज़ को ब्राह्मण स्वीकार क्यों करते हैं। अछूत के साथ कपड़ा भी लग जाये तो नहाते हैं। तो शूद्रपने का संस्कार ब्राह्मणों को लग जाये तो क्या करना चाहिए? उसके लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। जैसे गन्दी चीज़ को नहीं छूते हैं वैसे पुराने संस्कारों से बचना है। छूना नहीं है। इतना जब ध्यान रखेंगे तो औरों को भी ध्यान दिला सकेंगे।

 

2. सर्विस की सफलता का मुख्य गुण कौन सा है? नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित्त समझने से। निमित्त समझकर सर्विस करना। नम्रता के गुण से सब आपके आगे नमन करेंगे। जो खुद झुकता है उसके आगे सभी झुकते हैं। निमित्त समझकर कार्य करना है। जैसे बाप शरीर का आधार निमित्त मात्र लेते हैं। वैसे आप समझो कि निमित्त मात्र शरीर का आधार लिया है। एक तो शरीर को निमित्त मात्र समझना है और दूसरा सर्विस में अपने को निमित्त समझना तब नम्रता आयेगी। फिर देखो सफलता आपके आगे चलेगी। जैसे बापदादा टेम्प्रेरी देह में आते हैं ऐसे देह को निमित्त आधार समझो। बापदादा की देह में अटेचमेन्ट होती है क्या? आधार समझने से अधीन नहीं होंगे। अभी देह के अधीन होते हो फिर देह को अधीन करेंगे।

 

3. गायन है दृष्टि से सृष्टि बनती है। कौन सी सृष्टि बनती है और कब बनती है? दृष्टि और सृष्टि का ही गायन क्यों है, मुख का गायन क्यों नहीं है? संगम पर पहले-पहले क्या बदली करते हैं? पहला पाठ क्या पढ़ाते हैं? भाई-भाई की दृष्टि से देखो। भाई-भाई की दृष्टि अर्थात् पहले दृष्टि को बदलने से सब बातें बदल जाती हैं। इसलिए गायन है कि दृष्टि से सृष्टि बनती है। जब आत्मा को देखते हैं तब यह सृष्टि पुरानी देखने में आती है। पुरुषार्थ भी मुख्य इस चीज़ का ही है दृष्टि बदलने का। जब यह दृष्टि बदल जाती है तो स्थिति और परिस्थिति भी बदल जाती है। दृष्टि बदलने से गुण और कर्म आप ही बदल जाते हैं। यह आत्मिक दृष्टि नैचुरल हो जाये।

 

4. जो संगमयुग पर अपना राजा बनता है वह प्रजा का भी राजा बन सकता है। जो यहाँ अपना राजा नहीं वह वहाँ प्रजा का राजा भी नहीं बन सकता। संगमयुग पर ही सभी संस्कारों का बीज पड़ता है। यहाँ के बीज के सिवाए भविष्य का वृक्ष पैदा हो नहीं सकता है। यहाँ बीज न डालेंगे तो फूल कहाँ से निकलेगा। यहाँ अपना राजा बनने से क्या होगा? अपने को अधिकारी समझेंगे। अधिकारी बनने के लिए उदारचित का विशेष गुण चाहिए। जितना उदारचित्त होंगे उतना अधिकारी बनेंगे।

 

5. ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य है पढ़ना और पढ़ाना। इसमें बिजी रहेंगे तो और बातों में बुद्धि नहीं जायेगी। तो अपने को पढ़ने और पढ़ाने में बिजी रखो। आजकल तो बापदादा ने सुनाया है कि मन की वृत्ति और अव्यक्त दृष्टि से सर्विस कर सकते हो। अपनी वृत्ति-दृष्टि से सर्विस करने में कोई बन्धन नहीं है। जिस बात में स्वतन्त्र हो वह सर्विस करनी चाहिए।

 

वरदान:- लौकिक वृत्ति दृष्टि का परिवर्तन कर अलौकिकता का अनुभव करने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव

 

लौकिक सम्बन्धों में रहते हद के सम्बन्ध को न देख आत्मा को देखो। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान है, मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊंगी। अपनी वृत्ति और दृष्टि को बदलना ही अलौकिक जीवन है, जो काम अज्ञानी करते वह आप ज्ञानी तू आत्मा नहीं कर सकते। आपके संग का रंग उन्हें लगना चाहिए।

 

स्लोगन:- अपने श्रेष्ठ कर्म से विश्व पिता का नाम बाला करना ही विश्व कल्याणकारी बनना है।