03-06-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
01.04.92 "बापदादा" मधुबन
उड़ती कला का अनुभव करने
के लिए दो बातों को बैलेन्स - ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह युक्त योग
आज बापदादा अपने
स्नेही भावना-मूर्त आत्माओं और ज्ञान-स्वरूप योगी आत्माओं को देख रहे हैं। दोनों
प्रकार की आत्मायें बाप की प्रिय हैं और दोनों ही बाप से अपने अपने यथा स्नेह और
भावना प्रमाण प्रत्यक्ष फल वर्से के अधिकारी हैं। ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें
अपने शक्ति प्रमाण बाप के समीप समान सर्वशक्तियों की अनुभूति का वर्सा प्राप्त कर
रही हैं। दोनें ही प्राप्ति स्वरूप हैं। लेकिन दोनों के प्राप्ति में अन्तर है।
स्नेह और भावना-मूर्त बच्चे सदा भावना के कारण याद में रहते हैं। बाप से प्यार का
अनुभव करते हैं, शक्ति का भी अनुभव भावना के फल के स्वरूप में करते हैं। लेकिन सदा
और सर्वशक्तियाँ अनुभव नहीं करते। ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्माएं सदा सर्वशक्तियों
की अनुभूति द्वारा सहज विजयी बनने का विशेष अनुभव करती हैं, समानता का अनुभव करती
हैं।तो दोनों प्रकार के बच्चे वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। सदा अचल अटल स्थिति का
अनुभव योगी तू आत्माएं ही करती हैं। स्नेही वा भावना-स्वरूप आत्मायें भावना से,
स्नेह से आगे बढ़ रहे हैं लेकिन सदा विजयी नहीं। स्नेही आत्माओं के मन में, मुख में
सदा बाबा-बाबा है इस कारण समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता रहता है। भावना का फल
समय प्रमाण बाप द्वारा प्राप्त हो ही जाता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी योगी तू
आत्मायें समीप हैं। इसलिए भावना और ज्ञान स्वरूप बनने का लक्ष्य रखो। जितनी भावना
हो उतना ही ज्ञान स्वरूप भी हो। सिर्फ भावना वा सिर्फ ज्ञान यह भी सम्पूर्णता नहीं।
ज्ञान-युक्त भावना, स्नेह-सम्पन्न योगी आत्मा - यह दोनों का बैलेन्स सहज उड़ती कला
का अनुभव कराता है। बाप समान अर्थात् दोनों की समानता।
वर्तमान समय भावना
स्वरूप आत्मायें सेवा में ज्यादा आती हैं। यह आत्मायें भी स्थापना के कार्य में,
चाहे आदि सनातन देगता धर्म की स्थापना में, चाहे राज्य के स्थापना में, दोनों में
आवश्यक है। लेकिन अभी समय प्रमाण ज्ञानी योगी तू आत्माओं की आवश्यकता और ज्यादा है।
क्योंकि आगे के समय में वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल के कारण भावना स्वरूप आत्मायें
और भी सहज आनी ही हैं। इसलिए सेवा के लक्ष्य में ज्ञानी-योगी तू आत्माओं के तरफ
अटेन्शन ज्यादा चाहिए। ऐसी आत्माओं की वृद्धि आवश्यक है। समझा, ऐसे नहीं समझो कि
संख्या बहुत बढ़ रही है। लेकिन ऐसी बाप समान सर्वशक्तियों की अनुभूति वाली आत्माएं
तैयार करो। राजधानी की वृद्धि तो अच्छी हो रही है। लेकिन विश्व परिवर्तन में दोनों
स्वरूप के बैलेन्स वाली आत्माएं ही निमित्त बनती हैं। क्योंकि विश्व परिवर्तन के
लिए बहुत सूक्ष्म शक्तिशाली स्थिति वाली आत्माएं चाहिएं। जो अपनी वृत्ति द्वारा,
श्रेष्ठ संकल्प द्वारा अनेक आत्माओं को परिवर्तन कर सके। स्वयं स्नेही वा भावुक
आत्मा स्वयं में बहुत अच्छे चलते हैं लेकिन वह स्नेह व भावना विश्व के प्रति नहीं
होती। स्वयं के व्रति वा कुछ समीप आत्माओं के प्रति होती है। बेहद की सेवा वा विश्व
प्रति सेवा बैलेन्स वाली आत्माएं कर सकती हैं। बेहद की सेवा वा अपनी शक्तिशाली मन्सा
शक्ति द्वारा, शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा होती है। सिर्फ स्वयं के प्रति भावुक
नहीं लेकिन औरों को भी शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा परिवर्तित कर सकते हो। तो ऐसे
भावना और ज्ञान, स्नेह और योग शक्ति हो, ऐसी आत्माएं बने हो कि सिर्फ स्नेही भावुक
आत्माओं को देख खुश हो रहे हो? कल्याणकारी बने हो? या बेहद विश्व कल्याणकारी बने हो
- यह चेक करो। क्या रिज़ल्ट है? बापदादा ने सुनाया कि बाप को दोनों ही प्यारे हैं।
दोनों प्रकार की आत्माओं को देख बापदादा खुश होते हैं। फिर भी स्नेही आत्माएं बन
बाप को अपना तो बना लिया ना? पहचान लिया, वर्से के अधिकारी बन गये, कोटों में कोई
की लाइन में आ गये, अपने ठिकाने पर पहुँच गये, तन के भटकने, मन के भटकने से बच गये,
इसलिए खुश होते हैं ना। बच्चे भी खुश,बाप भी खुश हैं। ख़ुशकिस्मतवाले तो बन गये हैं
ना? दुनिया के हिसाब से डायरेक्ट बाप के बनने वाले देखो कितनी साधारण आत्माएं हैं!
विश्व के शिक्षक के स्टूडेन्ट देखो कैसे वन्डरफुल हैं! पढ़ाने वाला ऊंचे ते ऊंचा और
पढ़ने वाले साधारण। लेकिन साधारण ही साधारण स्वरूप में आनेवाले बाप को जानते हैं।
बापदादा भी वी.आई.पी. बनके तो नहीं आते हैं ना, साधारण रूप में आते हैं। कोई प्राइम
मिनिस्टर वा किसी राजा के तन में नहीं आते। इसलिए पहचानने वाले साधारण ही भाग्य
प्राप्त करते हैं। खुशनसीब हो ना, कितना भाग्य मिला हैं पद्मापद्म कहना भी कुछ नहीं
है।
अभी भी देखो संख्या
तो बहुत है ना। पहले सोचते थे यह इतना बड़ा हाल किस काम में आयेगा और अभी क्या लगता
है इससे बड़ा हाल होना चाहिए ना। ब्राह्मणों को यह वरदान है, तितना बड़ा बनाते जायेंगे
उतना छोटा होता जायेगा। जो भी आये हैं सभी आने वालों को मुबारक देते हैं, लेकिन
सिर्फ भावुक नहीं बनो, ज्ञानी भी बनो। प्रकृति के भी ज्ञानी बनो। ज्ञान सिर्फ आत्मा
का नहीं। आत्मा, परम आत्मा और प्रकृति। उसमें ड्रामा भी आ जाता है। तीनों का ज्ञान
चाहिए। कहाँ जा रहे हैं और अपने लिए क्या अटेन्शन चाहिए, यह प्रकृति का भी अगर
नॉलेज नहीं है तो नॉलेजफुल नहीं है। स्थान का, व्यक्ति का, स्थिति तीनों का ज्ञान
रखो। सिर्फ भावुक नहीं बनो, जाना ही है, लाना ही है। ज्ञान स्वरूप माना दूरादेशी,
त्रिकालदर्शी, तीनों का ज्ञान अगर स्पष्ट है तो सफलता मिलती है। अगर कोई अपनी गलती
से बार-बार बीमार होता है तो बापदादा उसको ज्ञानी योगी नहीं कहते। ज्ञान का अर्थ है
समझ। अपनी स्थिति को भी समझो, अपने शरीर को भी समझो। आत्मा की स्थिति, शरीर की सथिति,
वायुमण्डल का सब ज्ञान बुद्धि में है तो नॉलेजफुल हैं। इसीलिए सिर्फ भावना पर राज़ी
नहीं हो जाओ। आने वाले, लाने वाले, दोनों को नॉलेजफुल होना चाहिए। जो होता है वह तो
मीठा ड्रामा ही कहेंगे। हलचल में तो नहीं आयेंगे ना - अचल। लेकिन आगे के लिए
अटेन्शन। बापदादा भी जानते हैं कि बच्चे कितनी मेहनत सहन करके पहुँचते हैं। इसके
लिए तो मुबारक दे ही दी। जिस आत्मा को जो वर्सा है वह उसको प्राप्त होना ही है।
वर्से से वंचित कोई नहीं रह सकता। चाहे साकार में सम्मुख हैं, चाहे अपने स्थान पर
मनमनाभव रहते, वर्सा अवश्य प्राप्त होना है। डबल नॉलेजफुल होना है, हाफ नालेजफुल नहीं
बनो।
अच्छा, चारों ओर के
सर्व खुशनसीब आत्माएं, सर्व स्नेह और योग शक्ति की समानता की अनुभवी आत्माएं, भावना
और ज्ञान स्वरूप आत्माएं, सदा बाप समान बनने के लक्ष्य को पूर्ण करने वाली आत्माएं,
सदा समीप अनुभव करने वाली आत्माएं, ऐसे सदा अचल-अडोल रहने वाली विशेष आत्माओं को
बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
(नोट:- आज मधुबन में
आई हुई पार्टा में एक ही घण्टे के अन्दर कर्नाटक ज़ोन के दो बुजुर्ग भाइयों ने अपना
पुराना शरीर छोड़ा है इसलिए बापदादा ने सभी का विशेष अटेन्शन खिंचवाया है।)
दादियों से अव्यक्त
बापदादा की मुलाकात
संगठन की शक्ति को आगे
बढ़ा रही है। अच्छी हिम्मत से एक दो को सहयोग दे वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो। आप
निमित्त बनी हुई आत्माओं की हिम्मत अनेक आत्माओं की हिम्मत को बढ़ाती है। हर
परिस्थिति के अनुभवी बन गये। नथिंग न्यु लगता है ना, बापदादा पर्दे के अन्दर सकाश
दे रहे हैं, लेकिन पार्ट बजाने वाली स्टेज पर आप आत्मायें हो। अच्छा पार्ट बजा रही
हो। बापदादा सदा महावीरों के निमित्त संगठन को विशेष अमृतवेले नम्बरवन उन्हीं
आत्माओं को यादप्यार गुड मार्निंग करते हैं और वही सकाश कहो, प्यार कहो, सारे दिन
की खुराक हो जाती है। ऐसे लगता है ना? सब ठीक है। हिम्मत से सफलता है ही।
पार्टियों से अव्यक्त
बापदादा की मुलाकात:
सभी अपने को राजयोगी
अनुभव करते हो? योगी सदा अपने आसन पर बैठते हैं तो आप सबका आसन कौन सा है? आसन किसको
कहेंगे? भिन्न-भिन्न स्थितियाँ भिन्न-भिन्न आसन हैं। कभी अपने स्वमान की स्थिति में
स्थित होते हो तो स्वमान की स्थिति आसन है। कभी बाप के दिलतख्तनशीन स्थिति में
स्थित होते तो वह दिलतख्त स्थिति आसन बन जाती है। जैसे आसन पर स्थित होते हैं,
एकाग्र होकर बैठते हैं, ऐसे आप भी भिन्न-भिन्न स्थिति के आसन पर स्थित होते हो। तो
वैरायटी अच्छा लगता है ना! एक ही चीज़ कितनी भी बढ़िया हो, लेकिन वही चीज़ बार-बार
अगर यूज़ करते रहो तो इतनी अच्छी नहीं लगेगी, वैरायटी अच्छी लगेगी। तो बापदादा ने
वैरायटी स्थितियों के वैरायटी आसन दे दिये हैं। सारे दिन में भिन्न-भिन्न स्थितियों
का अनुभव करो। कभी फरिश्ते स्थिति का, तो कभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति का, कभी
प्यार स्वरूप स्थिति अर्थात् लवलीन स्थिति के आसन पर बैठ जाओ और अनुभव करते रहो।
इतना अनुभवी बन जाओ, बस संकल्प किया फरिश्ता, सेकेण्ड में स्थित हो जाओ। ऐसे नहीं,
मेहनत करनी पड़े। सोचते रहो मैं फरिश्ता हूँ, और बार-बार नीचे आ जाओ। ऐसी प्रैक्टिस
है? संकल्प किया और अनुभव हुआ। जैसे स्थूल में जहाँ चाहते हो बैठ जाते हो ना। सोचा
और बैठा कि युद्ध करनी पड़ती है - बैठूं या न बैठूं? तो यह मन बुद्धि की बैठक भी ऐसी
इज़ी होनी चाहिए। जब चाहो तब टिक जाओ, इसको कहा जाता है राजयोगी राजा। राजा बनने का
युग है। राजा क्या करता है? आर्डर करता है ना? राजयोगी जैसे मन-बुद्धि को आर्डर करे,
वैसे अनुभव करें। ऐसे नहीं कि मन-बुद्धि को आर्डर करो फरिश्ता बनो और वह नीचे आ जाए।
तो राजा का आर्डर नहीं माना ना। तो राजा वह जिसका प्रजा आर्डर माने। नहीं तो योग्य
राजा नहीं कहा जायेगा। काम का राजा नहीं, नाम का राजा कहा जायेगा। तो आप कौन हो?
सच्चे राजा हो? कर्मेन्द्रियाँ आर्डर मानती हैं? मन-बुद्धि संस्कार सब अपने आर्डर
में हों। ऐसे नहीं, क्रोध करना नहीं चाहता लेकिन हो गया। बॉडी कान्सेस होना नहीं
चाहता लेकिन हो जाता हूँ तो उसको ताकत वाला राजा कहेंगे या कमजोर? तो सदैव यह चेक
करो कि मैं राजयोगी आत्मा, राज्य अधिकारी हूँ? अधिकार चलता है? कोई भी कर्मेन्द्रिय
धोखा नहीं देवे। आज्ञाकारी हों। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-
मेरे पन की
खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण ट्रस्टी भव
यदि बाप की श्रीमत
प्रमाण निमित्त बनकर रहो तो न मेरी प्रवृत्ति है, न मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में
हो तो भी ट्रस्टी हो, सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं न कि मेरे। इसलिए सदा
शिव बाप की भण्डारी है, ब्रह्मा बाप का भण्डारा है - इस स्मृति से भरपूरता का अनुभव
करेंगे। मेरा पन लाया तो भण्डारा व भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी। किसी भी कार्य
में अगर कोई खोट अर्थात् कमी है तो इसका कारण बाप की बजाए मेरेपन की खोट अर्थात्
अशुद्धि मिक्स है।
स्लोगन:-
बाप समान बनना
है तो समझना, चाहना और करना - तीनों को समान बनाओ।
ओम् शान्ति 11-04-07
मधुबन
मीटिंग में आये हुए
भाई बहिनों प्रति प्राण अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश - दादी गुल्ज़ार
आज अमृतवेले आप सबकी
यादप्यार लेते हुए वतन में पहुंची तो सदा मुआफ़िक बापदादा सामने खड़े, मधुर मुस्कान
से स्नेही दृष्टि दे रहे थे। मैं भी लवलीन हो सम्मुख पहुंच गई। यह तो आप जानते ही
हो कि परमात्म मिलन कितना न्यारा, कितना प्यारा है। यही दिल चाहता कि इसी मधुर मिलन
में समाये रहें। कुछ समय बाद बाबा बोले बच्ची, आज क्या समाचार लाई हो? मैं बोली बाबा
आज आपके चारों ओर के निमित्त सेवाधारी बच्चों का संगठन हो रहा है, सबने बहुत-बहुत
यादप्यार दी है। बापदादा मुस्कराते बोले बाबा तो सदा अपने विश्व कल्याणी बच्चों को
याद करते और सकाश देते रहते क्योंकि बापदादा के कार्य में बाबा के साथी हैं। बाबा
को अपने बच्चों पर बहुत नाज़ है और सदा गीत गाते रहते वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान
बच्चे वाह! अब तो बच्चों को तीव्रगति से सर्व आत्माओं के बढ़ते हुए दुःख अशान्ति का
निवारण कर बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाना है। इसलिए अब इस संगमयुग के हर संकल्प,
हर घड़ी को स्व और सर्व के कल्याण में लगाना है। व्यर्थ नहीं जाए क्योंकि इस समय की
हर घड़ी सारे कल्प की प्रालब्ध बनाने वाली है। सदा सफल कर सफलतामूर्त बनना है। ऐसे
कहते बापदादा हमारे सामने होते हुए जैसे कहाँ और हैं, कुछ समय बाद मैं बोली बाबा आप
कहाँ थे? बापदादा मुस्कराते बोले, बच्ची मैं बच्चों के पास चक्कर लगाने गया था
क्योंकि सब बच्चे अमृतवेले बाबा की याद में बैठते हैं, मिलन मनाते हैं तो बाबा को
भी आकर्षण होती है क्योंकि बाबा तो प्यार के सागर बच्चों को प्यार में समा देते
हैं। ऐसे कहते कुछ समय तो बाबा के आगे जैसे सर्व बच्चे नयनों में समाये हुए थे। इतने
में क्या देखा, बाबा ने एक सेकेण्ड में मीटिंग के सभी साथी बच्चों को वतन में इमर्ज
कर लिया। सेकेण्ड में सब पहुंच गये। यह आज का दृश्य तो बहुत सुन्दर था। सभी अर्ध
चन्द्रमा के रूप में 7-8 लाइन में एक दो के पीछे खड़े हो गये और बापदादा सामने
चन्द्रमा के बीच में सूर्य समान खड़े थे। हर एक ऐसे खड़े थे जो सभी बापदादा को सहज
देख हर्षित हो रहे थे और बापदादा भी बहुत दिल के प्यार से एक एक को दृष्टि दे रहे
थे। दृश्य ऐसे लग रहा था जैसे बाबा के गले में हार पड़ा हुआ है। बाबा दृष्टि देते
बोले - अब तो बच्चों के मन में यही शुभ संकल्प सदा इमर्ज हो कि हमें अब एकानामी का
अवतार बनना है। हर संकल्प, समय और श्वांस को, सर्व आध्यात्मिक व स्थूल खजानों को
व्यर्थ न कर सफलता मूर्त बनना है और सर्व आत्माओं को बाबा के वर्से, मुक्ति की सफलता
दिलानी है। यही लगन, यही श्रेष्ठ संकल्प निर्विघ्न निवारण मूर्त बना देंगे। बापदादा
ने बच्चों को पहले भी दो शब्द याद दिलाये हैं - एक मन की एकाग्रता मूर्त बनो। दूसरा
एकानामी का अवतार बनो तो आपके सफलतामूर्त का साक्षात्कार सहज होता रहेगा।
उसके बाद बाबा बोले
बच्चे बहुत समय बैठते हैं, तो बापदादा चक्कर लगाने ले चलते हैं। बापदादा के साथ हम
सब चलते हुए एक लाइट की पहाड़ी पर पहुंच गये। बाबा बोले ऐसे ऊंची स्थिति की पहाड़ी
पर बैठ अपनी वृत्ति द्वारा वायब्रेशन दो तो वायुमण्डल द्वारा आत्माओं को कुछ न कुछ
शान्ति की, सुख की अंचली मिलती रहे। वायुमण्डल बहुत पावरफुल था। ऐसे लग रहा था जैसे
हर एक आकार में होते हुए भी निराकारी रूप में स्थित है। कुछ समय बाद बाबा बोले, अभी
बापदादा सभी बच्चों को समान स्थिति में ही देखने चाहते हैं। बोलो बच्चे आप सबकी दिल
का भी यही संकल्प है ना। ऐसे कहते दृष्टि देते रहे और यह दृश्य समाप्त हो गया। मैं
भी साकार वतन में पहुंच गई। अच्छा- ओम् शान्ति।