ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत की दो लाइन सुनी। उन्होंने तो गीत बना दिया है। जैसे कोई की सगाई होती
है तो यह पक्का ही है कि स्त्री-पुरुष कभी एक दो को छोड़ेंगे नहीं। कोई बिरला ऐसे
होते हैं जो आपस में नहीं बनती हैं तो छोड़ भी देते हैं। यहाँ तुम बच्चे किसके साथ
प्रतिज्ञा करते हो? ईश्वर के साथ। जिसके साथ तुम बच्चों की वा सजनियों की सगाई हुई
है। परन्तु ऐसा जो विश्व का मालिक बनाते हैं उनको भी छोड़ देते हैं। यहाँ तुम बच्चे
बैठे हो। तुम जानते हो अभी बेहद का बापदादा आया कि आया। यह अवस्था जो तुम्हारी यहाँ
रहती है, बाहर सेन्टर पर हो न सके। यहाँ तुम समझेंगे बापदादा आया कि आया। बाहर
सेन्टर पर समझेंगे बाबा की बजाई हुई मुरली आई कि आई। यहाँ और वहाँ में बहुत फ़र्क
रहता है क्योंकि यहाँ बेहद के बापदादा के सम्मुख तुम बैठे हो। वहाँ तुम सम्मुख नहीं
हो। चाहते हो सम्मुख जाकर मुरली सुनें। यहाँ बच्चों की बुद्धि में आया कि बाबा आया
कि आया। जैसे और सतसंग होते हैं। वहाँ समझेंगे फलाना स्वामी आयेगा। परन्तु यह
ख्यालात भी सबकी एकरस नहीं रहती। कोई को सम्बन्धी याद आयेगा। बुद्धि एक गुरू के साथ
भी ठहरती नहीं है। कोई बिरला ही होगा जो स्वामी की याद में बैठा होगा। यहाँ भी ऐसे
है। ऐसे नहीं कि सब शिवबाबा की याद में रहते हैं। बुद्धि दौड़ती रहती है। मित्र
सम्बन्धी याद आयेंगे। सारा समय एक ही शिवबाबा के सम्मुख रहने में तो अहो सौभाग्य।
स्थाई याद में कोई विरला ही रहते हैं। यहाँ शिवबाबा के सम्मुख रहने में तो बहुत खुशी
रहनी चाहिए। अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो। यह यहाँ का गाया
हुआ है। यहाँ तुम बाबा की याद में बैठे हो। जानते हो अभी हम ईश्वर के बने हैं फिर
दैवी गोद में होंगे। भल कोई की बुद्धि में सर्विस के ख्यालात चलते हैं। इस चित्र
में यह करेक्शन करें, यह लिखें। परन्तु अच्छे बच्चे होंगे तो समझेंगे कि अभी तो बाप
से ही सुनना है, और कोई संकल्प आने नहीं देंगे। बाप ज्ञान रत्नों से झोली भरने आये
हैं। तो बाप से ही बुद्धि-योग लगाना है। नम्बरवार धारणा करने वाले तो होते ही हैं।
कोई अच्छी रीति धारण करते हैं, कोई कम धारण करते हैं। बुद्धियोग और तरफ दौड़ता रहेगा
तो धारणा नहीं होगी। कच्चे हो जायेंगे। एक दो बार मुरली सुनी, धारणा नहीं हुई तो
आदत पक्की हो जाती है। फिर कितना भी सुनता रहेगा, धारणा होगी नहीं। किसको सुना नहीं
सकेंगे। जिसको धारणा होगी उसको सर्विस का शौक होगा, उछलता रहेगा। जाकर धन दान करूँ,
क्योंकि यह धन एक बाप के सिवाए और कोई के पास है नहीं। बाप यह भी जानते हैं सबको
धारणा हो न सके। सब एकरस ऊंच पद पा नहीं सकते इसलिए बुद्धि और तरफ भटकती रहती है।
भविष्य तकदीर इतनी ऊंच बन नहीं सकती है। फिर कोई स्थूल सर्विस में अपनी हड्डी देते
हैं, सबको राज़ी करते हैं। जैसे भोजन पकाते हैं, खिलाते हैं यह भी सब्जेक्ट है ना।
सर्विस का जिनको शौक होगा वह मुख से कहने बिना रहेंगे नहीं। फिर बाबा देखते भी हैं
कि कहाँ देह-अभिमान तो नहीं है। बड़े का रिगॉर्ड रखते हैं वा नहीं। बड़े महारथियों
का रिगॉर्ड तो रखना होता है। हाँ, कोई छोटा भी होशियार हो जाता है, तो हो सकता है
बड़े को उनका रिगॉर्ड रखना पड़े क्योंकि बुद्धि उनकी गैलप कर लेती है। सर्विस का
शौक देख बाप तो खुश होगा ना। यह अच्छी सर्विस करेंगे। सारा दिन प्रदर्शनी समझाने की
भी प्रैक्टिस करनी चाहिए। प्रजा भी तो ढेर बननी है ना। लाखों प्रजा चाहिए। और तो
कोई उपाय है नहीं। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजा रानी प्रजा सब यहाँ बनने हैं। कितनी
सर्विस करनी चाहिए। बच्चों की बुद्धि में है अभी हम ब्राह्मण बने हैं। घर गृहस्थ
में रहने से हर एक की अवस्था अपनी रहती है ना। घरबार तो छोड़ना नहीं है। बाबा कहते
हैं घर में भल रहो, परन्तु बुद्धि में यह निश्चय रखना है कि यह पुरानी दुनिया खत्म
हुई पड़ी है। हमारा अब बाप से काम है। यह भी जानते हैं कल्प पहले जिन्होंने यह
ज्ञान लिया था, वही लेंगे। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड हूबहू रिपीट हो रहा है। आत्मा में
ज्ञान है ना। बाप के पास भी ज्ञान है। तुम बच्चों को भी बाप जैसा बनना है, प्वाइंट
धारण करनी है। सब प्वाइंट एक साथ नहीं समझाई जाती हैं। लक्ष्य पक्का रखा जाता है।
विनाश भी सामने खड़ा है। यह वही विनाश है। सतयुग, त्रेता में कोई लड़ाई आदि होती नहीं
है। वह तो बाद में जब बहुत धर्म होते हैं, लश्कर बड़े होते हैं तब लड़ाई शुरू होती
है। पहले-पहले आत्मायें सतोप्रधान से उतरती हैं फिर सतो रजो तमो में आती हैं। यह सब
बुद्धि में रखना है। कैसे राजधानी स्थापन हो रही है। यहाँ बैठे हो तो यह बुद्धि में
रखना है। शिवबाबा आकर हमको खजाना देते हैं, जिसको बुद्धि में धारण करना है।
अच्छे-अच्छे बच्चे नोट्स लेते हैं, नोट्स लेना अच्छा है, तो बुद्धि में टॉपिक्स
आयेंगी। आज इस टॉपिक पर समझायेंगे। बाप कहते हैं हमने तुमको कितना खजाना दिया था।
सतयुग त्रेता में तुम्हारे पास अथाह धन था फिर वाम मार्ग में जाने से कम होता गया।
खुशी भी कम होती गई। कुछ न कुछ विकर्म होने लगे। उतरते-उतरते कलायें कम होती जाती
हैं। सतोप्रधान सतो, रजो, तमो की स्टेजेस होती हैं ना। सतो से रजो में आते हैं तो
ऐसे नहीं फट से आ जाते हैं। तमोप्रधान में भी आहिस्ते-आहिस्ते उतरते हो, उसमें भी
सतो रजो तमो स्टेजेस आयेंगी। फट से तमोप्रधान नहीं होंगे। धीरे-धीरे सीढ़ी उतरते
जाते हैं। कला कम होती है। अभी जम्प लगाना है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है, इसके
लिए टाइम बाकी थोड़ा है। गाया हुआ भी है चढ़े तो चाखे बैकुण्ठ रस। काम की चमाट लगती
है तो एकदम चकनाचूर हो जाते हैं। हडगुड टूट जाते हैं, जैसे कोई मनुष्य अपना जीवघात
करते हैं। आत्मघात नहीं, जीवघात कहा जाता है। ऐसे यह भी आत्मा का घात हो जाता है।
की कमाई सब खत्म हो जाती है। यहाँ तो बाप से वर्सा पाना है, बाप को याद करना है
क्योंकि बाप से बादशाही मिलती है। अपने से पूछना है कि हमने बाप को याद कर कितनी
भविष्य के लिए कमाई की? कितने अन्धों की लाठी बनें? घर-घर में पैगाम देना है कि यह
पुरानी दुनिया बदल रही है। बाप नई दुनिया के लिए राजयोग सिखा रहे हैं। सीढ़ी में
दिखाया है, यह बनाने में मेहनत लगती है। सारा दिन ख्यालात चलता रहता है कि ऐसा सहज
बनावें जो कोई समझ जाए। सारी दुनिया तो नहीं आयेगी। देवी-देवता धर्म वाले ही आयेंगे।
तुम्हारी सर्विस तो बहुत चलनी है। तुम जानते हो हमारा क्लास कब तक चलेगा! वह तो लाखों
वर्ष कल्प की आयु समझते हैं। तो शास्त्र आदि सुनाते ही रहते हैं। समझते हैं जब अन्त
होगा तब सबका सद्गति दाता आयेगा। फिर जो हमारे चेले हैं उनकी गति हो जायेगी। फिर हम
भी जाकर ज्योति में समा जायेंगे, परन्तु ऐसा तो है नहीं। तुम जानते हो हम अमर बाप
द्वारा सच्ची-सच्ची अमरकथा सुन रहे हैं। तो अमर बाबा जो कहते हैं वह मानना भी चाहिए।
सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और पवित्र बनो। नहीं तो बहुत सजायें खानी पड़ेगी, पद
भी कम मिलेगा। सर्विस में मेहनत करनी है। जैसे दधीचि ऋषि का मिसाल है, हड्डियाँ भी
सर्विस में दे दी। अपने शरीर का भी ख्याल नहीं करके सर्विस में रहना है, इसको कहा
जाता है हड्डी सर्विस और दूसरा है रूहानी हड्डी सर्विस। रूहानी सर्विस वाले रूहानी
नॉलेज ही सुनाते रहेंगे। ज्ञान धन दान करते खुशी में नाचते रहेंगे। दुनिया में जो
मनुष्य सर्विस करते हैं वह है जिस्मानी। शास्त्र बैठ सुनाते हैं, वह कोई रूहानी
सर्विस नहीं है। रूहानी सर्विस सिर्फ बाप ही सिखलाते हैं। स्प्रीचुअल बाप ही आकर
स्प्रीचुअल बच्चों (आत्माओं) को पढ़ाते हैं। तुम अब तैयारी कर रहे हो - सतयुग नई
दुनिया में जाने के लिए। वहाँ तुमसे कोई विकर्म नहीं होगा। वह है रामराज्य। वहाँ
होते ही हैं थोड़े। वह थोड़े मनुष्य आकर पढ़ेंगे। अभी तो रावणराज्य में सब दु:खी
हैं ना। यह सारी नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। इस सीढ़ी
के चित्र में ही सारी नॉलेज आ जाती है। यह चित्र बनाने के लिए मशीनरी चाहिए। उस
गवर्नमेन्ट की रोज़ अखबारें कितनी छपती हैं। कितनी कारोबार चलती है। यहाँ तो सब हाथ
से बनाना पड़ता है।
बाप कहते हैं - यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनोंगे। यह
नॉलेज कोई के पास नहीं है। कहेंगे इस सीढ़ी में और धर्मो का समाचार कहाँ है? वह भी
इस गोले में लगा हुआ है। वह नई दुनिया में तो आते ही नहीं हैं। उन्हों को शान्ति
मिलती है। भारतवासी ही स्वर्ग में थे ना। भारत में ही बाप राजयोग सिखलाने आते हैं
इसलिए भारत का प्राचीन राजयोग सब पसन्द करते हैं। इस चित्र से वह खुद ही समझ जायेंगे,
बरोबर नई दुनिया में सिर्फ भारत ही था। अपने धर्म को भी समझ जायेंगे। जैसे क्राइस्ट
आया धर्म स्थापन करने। इस समय वह भी बेगर रूप में है, सभी तमोप्रधान हैं। यह रचता
और रचना की कितनी बड़ी नॉलेज है। तुम कह सकते हो कि हमको किसी के पैसे की दरकार नहीं
है। पैसा हम क्या करेंगे! तुम यह सुनो और दूसरों को सुनाने के लिए यह चित्र आदि
छपाओ। इन चित्रों से काम लेना है। हाल बनाओ, जहाँ यह नॉलेज सुनाई जाये। बाकी हम पैसा
लेकर क्या करेंगे। तुम्हारे ही घर का कल्याण होना है। तुम सिर्फ प्रबन्ध करो, बहुत
आकर सुनेंगे। रचना और रचता की नॉलेज तो बड़ी अच्छी है। यह तो मनुष्यों को ही समझनी
है, विलायत वाले यह नॉलेज सुनकर बहुत पसन्द करेंगे। बहुत खुश होंगे। समझेंगे हम भी
बाप के साथ योग लगायेंगे तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। सबको बाप का परिचय देना है।
समझेंगे यह नॉलेज गॉड फादर के सिवाए कोई दे न सके। कहते हैं खुदा ने बहिश्त स्थापन
किया। परन्तु वह कैसे आते हैं, यह किसको पता नहीं है। तुम्हारी बातें सुनकर बहुत
खुश होंगे। फिर पुरुषार्थ कर योग सीखेंगे। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने के लिए भी
पुरुषार्थ करेंगे। सर्विस के लिए तो बहुत ख्याल करना चाहिए। भारत में हुनर दिखायें
तब बाहर भेजेंगे। यह मनुष्य जानेंगे, नई दुनिया बनने में कोई देर थोड़ेही लगती है।
कहाँ भी अर्थक्वेक आदि होती है तो 2-3 वर्ष में एकदम नये मकान बन जाते हैं। जितना
बहुत कारीगर होंगे उतना जल्दी मकान बनेंगे। एक मास में भी मकान बना सकते हैं।
कारीगर, सामान आदि सब तैयार हो फिर बनने में देरी थोड़ेही लगेगी। विलायत में मकान
कैसे बनते हैं, मिनट मोटर। तो स्वर्ग में कितना जल्दी बनते होंगे। सोना, चाँदी बहुत
तुम्हारे को मिल जाते हैं। खानियों से सोना, चाँदी, हीरे आदि ले आते हैं। हुनर तो
सब सीख रहे हैं। साइंस का कितना घमण्ड है। यही साइंस फिर वहाँ भी काम आयेगी। यहाँ
सीखने वाले वहाँ दूसरा जन्म ले काम में आयेंगे। उस समय तो सारी नई दुनिया हो जाती
है, रावण राज्य ही खत्म हो जाता है। 5 तत्व भी कायदेमुजीब सर्विस में रहते हैं।
स्वर्ग बन जाता है। वहाँ कोई उपद्रव नहीं होता है। रावण राज्य ही नहीं है, सभी
सतोप्रधान हैं। सबसे अच्छी बात है कि बाप से बहुत लॅव होना चाहिए। बाप जो फुरना देते
हैं उसको धारण करना और दूसरों को दान देना है। जितना दान देंगे उतना इकट्ठा हो
जायेगा। सर्विस ही नहीं करेंगे तो धारणा कैसे होगी। सर्विस में बुद्धि चलनी चाहिए।
सर्विस तो बहुत ढेर हो सकती है। कोई करते रहें। दिन-प्रतिदिन उन्नति को पाना है।
अपनी भी उन्नति करनी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आपस में एक दो का रिगॉर्ड रखना है। सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है।
ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरकर फिर उसका दान करना है।
2) एक बाप से ही सुनने का संकल्प रखना है। दूसरे ख्यालातों में बुद्धि को भटकाना
नहीं है।