ओम् शान्ति।
बेहद का बाप वर्सा लेने वाले बच्चों को समझा रहे हैं कि समय नजदीक होता जाता है। यह
कोई के लिए रुकता नहीं है। यह बुद्धियोग की मुसाफिरी है, जो तुम्हें करनी ही है। यह
शादी-मुरादी, तीर्थ आदि कुछ भी नहीं करने हैं। बाप का यह अन्तिम डायरेक्शन है -
मीठे-मीठे बच्चे अब जाना है परमधाम। गीता, भागवत, रामायण, महाभारत में जो लिखा हुआ
है उसकी अब तुम पीठ कर सकते हो। जो बाबा ने पहले सहज राजयोग सिखाया था, वो अब सिखला
रहे हैं। भक्ति मार्ग के शास्त्रों में और अब प्रैक्टिकल की बातों में कितना रात
दिन का फ़र्क है! बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। बच्चों को डायरेक्शन देते हैं कि
देह सहित सब सम्बन्धों को छोड़ एक बाप को याद करते रहो। बच्चे अब प्रैक्टिकल में
समझते हैं कि शास्त्र राइट हैं या इस समय जो बाप सम्मुख समझाते हैं वह राइट है।
तुम बच्चे अब ड्रामा के राज़ को जानते हो। हरेक चीज़ सतोप्रधान होती है फिर सतो
रजो तमो होती है। जैसे नया घर फिर पुराना हो जाता है। वैसे ही यह बेहद की दुनिया
स्वर्ग थी। वहाँ कौन रहते थे, यह तुम्हारी बुद्धि में सब चमकता है। देवी-देवताओं को
कैसे राज्य-भाग्य मिला था जो फिर अब मिल रहा है। बच्चे भी अपनी तकदीर अनुसार
पुरुषार्थ कर रहे हैं। बाप समझाते हैं बच्चे, इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो,
देही-अभिमानी बनो। इसमें बड़ी मेहनत लगती है। निरन्तर उस बाप को और सुख-धाम को याद
करना है। बाप को कभी कोई बात में दु:ख नहीं होता। साक्षी हो देखते हैं। बच्चे कब
बीमार, रोगी बन पड़ते हैं तो क्या शिवबाबा को अ़फसोस होता होगा? कभी नहीं। कहेंगे
ड्रामा अनुसार कर्मभोग तो हरेक को भोगना ही है। जैसे वह साक्षी हो देखते हैं, बच्चों
को भी साक्षी हो देखना है। बेहद का बाप, वह है परमपिता परमात्मा। उनका बच्चों में
लव तो बहुत है ना। परमात्मा का आत्माओं में लव है। बाप कहते हैं मैं जानता हूँ हरेक
कर्म अनुसार दु:ख-सुख पाते हैं। साक्षी हो देखते हैं। बच्चों को भी ऐसे साक्षी हो
देखना है। हर एक जीव की आत्मा जो उल्टा कर्म करती है तो शरीर के साथ आत्मा को भोगना
पड़ता है। दु:ख-सुख आत्मा भोगती है। संस्कार आत्मा में रहते हैं। बाप कहते हैं मैं
आकर दु:ख से छुड़ाता हूँ। अब बच्चों को शिक्षा देता हूँ। मनुष्य गीता शास्त्र आदि
से कोई शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते। यह बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं। बाप कहते हैं
तुम भक्ति मार्ग में मुझे कितना याद करते हो! भले कोई साइन्स को, नेचर को मानने वाला
है फिर भी किसी न किसी समय उनके मुख से हे परमपिता परमात्मा, ओ गॉड फादर जरूर निकलता
होगा। सब भक्त बाप को जरूर याद करते हैं। बाप सब कुछ करके बच्चों को सुखी बनाए खुद
छिप जाते हैं। बाप आते ही हैं एक बार। कहते हैं ड्रामा अनुसार मुझे संकल्प उठता है
मैं अब जाऊं। शरीर का आधार जरूर लेना पड़े। जैसे आत्मा बिगर शरीर बोल नहीं सकती।
गर्भ में बच्चा बनता है फिर बड़ा होने से बोलना सीखता है। बाप तो आते ही बड़े शरीर
में हैं। मेरा भी पार्ट है, मैं एक ही बार आकर सबको माया के दु:खों से लिबरेट करता
हूँ। अब तो सब तरफ मनुष्य दु:खी हैं। त्राहि त्राहि करते रहते हैं। घर-घर में
रोना-पीटना, लड़ना-झगड़ना लगा हुआ है। सतयुग में यह कोई बात होती नहीं। नाम ही है
स्वर्ग। शास्त्रों में तो बहुत बातें लिख दी हैं। बच्चे जानते हैं इस सृष्टि में
कितना दु:ख है। कितने धर्म हैं, सतयुग में इतने धर्म थोड़ेही थे। 5 हजार वर्ष की
बात है। लाखों वर्ष कह देने से मनुष्यों की बुद्धि से सतयुग का नाम गुम हो गया है।
5 हजार वर्ष पहले मैं आया था। आकर अनेक धर्मों का विनाश कर एक आदि सनातन धर्म की
स्थापना की थी। बाकी जो भी इतने मनुष्य हैं सभी का विनाश होना है, इसके लिए ही यह
महाभारी लड़ाई है। गाया हुआ है महाभारी महाभारत लड़ाई में विनाश हुआ था। यह सब धर्म
विनाश हो जायेंगे। जो देवी-देवता धर्म के हैं उनको आकर मैं पढ़ाता हूँ। मेरा पार्ट
है। मनुष्य भी जानते हैं कि अभी बहुत दु:ख है। मैं भी जानता हूँ मनुष्यों को बहुत
दु:ख है। घर में रोना पीटना लगा हुआ है। बच्चे धन के लिए बाप का खून करने में भी
देरी नहीं करते हैं, इतनी गन्दी दुनिया है। बाप आकर बच्चों को स्वर्ग का
साक्षात्कार कराते हैं।
शिवबाबा कहते हैं मैं आया हूँ बच्चों को स्वर्ग का, विश्व का मालिक बनाने। कोई
मेहनत नहीं कराता हूँ। योगबल से विकर्मों को भस्म करना है। विकर्मों का बोझा सिर पर
बहुत है। बीमारी खाँसी आदि होती है। यह जन्म-जन्म के हिसाब-किताब की भोगना है। अब
जगदम्बा-जगतपिता है। कितना उनका नाम बाला है! पूजा हो रही है। मनुष्य थोड़ेही जानते
कि जगदम्बा अन्तिम जन्म में कौन थी? अब जगदम्बा-जगतपिता का प्रैक्टिकल में पार्ट चल
रहा है। तो इनको भी देखो सब जन्मों का हिसाब-किताब चुक्तू करना पड़ता है। इतना योग
लगाते हैं, सर्विस करते हैं फिर भी कर्मभोग, ऑपरेशन आदि कराने पड़ते हैं। उस
संन्यास और इस संन्यास में बहुत फ़र्क है। वह तो घरबार छोड़ कफनी पहन संन्यासी बन
जाते हैं। हम तो पुरुषार्थ करते रहते हैं। जब अन्त आयेगा तब हमारा पूरा संन्यास होगा।
अभी पुरुषार्थी हैं। उन संन्यासियों के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि पुरुषार्थी संन्यासी
हैं। उन्होंने तो घर-बार छोड़ा और नाम पड़ा संन्यासी। हम संन्यास के लिए बाबा द्वारा
कितनी मेहनत करते हैं। तो यह अनेक जन्मों का बोझा सिर पर है। कितना योग में रहते
हैं, औरों को सुख देते हैं। उनकी आशीर्वाद भी मिलती है तो भी देखो कर्मभोग निकल
पड़ता। कर्मातीत अवस्था हुई नहीं है, वह अन्त में होनी है। यह जन्म-जन्मान्तर के
कर्मों का हिसाब-किताब है। अभी पूरे संन्यासी बने नहीं हैं। उनके संन्यास और हमारे
संन्यास में रात दिन का फ़र्क है। वह घरबार छोड़ जंगल में जाकर बैठते हैं। विकारी
मनुष्य उनकी सेवा करते हैं। ऐसे भी नहीं वह कोई सब पावन बने हुए हैं। वह भी साधना
करते रहते हैं। कर्मभोग तो उनको भी होता है। अनेक जन्मों के विकर्मों का बोझा सिर
पर है। विकर्मों का बोझा योग से ही भस्म होता है। जब तक बाप नहीं आवे तब तक कोई योग
सिखला न सके। उन्हों का योग सर्वशक्तिमान बाप से नहीं है तो विकर्म विनाश हो नहीं
सकते। ब्रह्म वा तत्व को सर्व-शक्तिमान थोड़ेही कहेंगे। सर्वशक्तिमान तो एक परमपिता
परमात्मा शिव है। वह परम आत्मा है जो आते हैं। ब्रह्म वा तत्व तो नहीं आयेगा।
तो बच्चों के सिर पर भी बहुत पापों का बोझ है। बहुत मेहनत करनी है - विकर्म
विनाश करने लिए। विश्व का मालिक बनना है। सिवाए बाप के कोई बना न सके। बाप बनाते
हैं - योगबल से। बल मिलता है सर्वशक्तिमान बाप से। वह वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है।
अब तुम बच्चे जानते हो यह सारी दुनिया दु:खी है। सुख जो भी हैं वह अल्पकाल काग
विष्टा समान है। सच्चा सुख तो होता ही है स्वर्ग में। वहाँ दु:ख देने वाली माया ही
नहीं। कई इन बातों को मानते ही नहीं। कहते हैं ऐसे कैसे होगा? नहीं मानते हैं तो
समझो हमारे दैवी कुल के नहीं हैं। दैवी कुल वाले जरूर मानेंगे। कल्प पहले भी माना
था। अब बाप सुना रहे हैं। तो बेहद के बाप को सब सेन्टर्स के बच्चे याद पड़ते हैं।
कोई संन्यासी ऐसे कह न सके कि हम सभी बच्चों को सुनाते हैं। वहाँ सभी फॉलोअर्स
बनेंगे। उनको ऐसे मुरली थोड़ेही भेजी जाती है जो सब सुनें। यहाँ तो सबके पास मुरली
भेजी जाती है, जिससे श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनें। भगवान को कहा जाता है श्री श्री,
सबसे श्रेष्ठ। बाप कहते हैं श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तो मैं हूँ जो सभी को श्रेष्ठ बनाता
हूँ। पतित दुनिया में श्रेष्ठ कहाँ से आये! श्री श्री 108 यह हूबहू शिवबाबा की
रूद्र माला है। उनको ही श्री श्री कहते हैं। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सतयुग की स्थापना
कर मनुष्य सृष्टि में श्रेष्ठ बनाते हैं, जो हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। तो समझते
हैं श्री श्री 108 जिनकी माला बनती है, ऊपर में है निराकार शिवबाबा, वह हमको ऐसा
श्रेष्ठ बना रहे हैं।
यह है ही ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। इन ब्रह्माकुमार कुमारियों को ईश्वर पढ़ाते
हैं। ईश्वरीय विश्व विद्यालय है परमपिता परमात्मा का। यह विश्व को नॉलेज देने लिए
विश्व-विद्यालय है। जो चाहे सो विश्व का मालिक बने। चाहे तो स्वीट होम में जाकर बैठे।
बाप आये ही हैं सदा शान्त, सदा सुखी बनाने। मैं कल्प-कल्प आकरके भारतवासी बच्चों को
विश्व का मालिक बनाता हूँ। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में निवास करती हैं। स्वर्ग
में सिर्फ देवी-देवताओं की आत्मायें होती हैं। तुम जानते हो बरोबर बाबा हमको पढ़ाकर
स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, यथा योग जितना जो पुरुषार्थ करते हैं। बाकी सब आत्मायें
हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस जायेंगी। शरीर सब खत्म हो जायेंगे। कलियुग का अन्त और
सतयुग की आदि होगी। तो तुम बच्चे जानते हो बाकी कितना समय होगा? अभी करोड़ों हैं,
सतयुग में सिर्फ 9 लाख होंगे। शुरू में थोड़े होते हैं, फिर वृद्धि को पायेंगे। तो
इतने सब जीव जो हैं, उन सबकी आत्मायें हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस जायेंगी। सबकी
कयामत का समय है। माया ने सबको कब्र-दाखिल बना दिया है। कब्रिस्तानी बन पड़े हैं।
कोई काम के नहीं हैं। अब तुम समझते हो कि बेहद का बाप हम सब आत्माओं को पढ़ाकर
स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। विश्व का मालिक बनने का यही ईश्वरीय विश्व-विद्यालय है।
बाप की जायदाद है ही स्वर्ग। अगर यह निश्चय है तो क्यों न हम उनकी मत पर चल बाप से
स्वर्ग का वर्सा लें। इसमें छोड़ने की तो कोई बात ही नहीं। विकारों को छोड़ना है।
सो तो अच्छा है ना। बाबा, हम क्यों नहीं पवित्र रहेंगे, क्यों नहीं छोड़ेंगे! 5
विकारों का संन्यास करने से ही हम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। बाप कहते हैं अब मरना है।
जरूर निर्वाणधाम में जाना है तो क्यों न कमाई करनी चाहिए। और धर्म वाले भी आकर
लक्ष्य लेंगे। बच्चों ने साक्षात्कार किया है - इब्राहम, क्राइस्ट आदि की आत्मायें
आती हैं - सलामी भरने, लक्ष्य लेने। बाकी नॉलेज नहीं लेंगे। हाँ, कोई ब्राह्मण कुल
भूषण होगा तो उठ पड़ेगा। ब्राह्मण कुल भूषण बनने बिगर देवता कुल भूषण बन न सकें।
ब्राह्मण बने फिर देवता बने। देवता ही क्षत्रिय, वैश्य फिर शूद्र बनते हैं। यह वर्ण
चक्र लगाते रहते हैं। श्री लक्ष्मी-नारायण जो वर्थ पाउन्ड थे उन्हों को भी 84 जन्म
पूरे करने हैं। सो अगर निश्चय हो जाए कि बेहद के बाप से वर्सा जरूर लेना है, जिससे
आधाकल्प सुख पाते रहते हैं तो क्यों नहीं पुरुषार्थ करें। छोड़ने की तो बात ही नहीं
है। वह सिन्ध का पार्ट था। लिखा हुआ है कृष्ण ने भगाया, गऊ चराते थे। भगाया तो क्या
गाली खाने के लिए! भगाया पटरानी बनाने के लिए! यह तो भट्ठी बननी थी। तपस्या कर
सर्विस लायक बनना था। अब तो कोई मुश्किल सर्विस लायक बनते हैं। सो तुम प्रैक्टिकल
अनुभवी हो। तुम समझते हो शिवबाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। वह भी काम करते
हैं। परमपिता परमात्मा स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर यहाँ आया था। अभी भी कहते हैं
मैं स्वर्ग की स्थापना कर रहा हूँ। तुमको पढ़ाता हूँ। समझाते बच्चों को हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुड़मार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सिर से अनेक जन्मों के विकर्मों का बोझ उतारने के लिए सर्वशक्तिमान
बाप की याद में रह बल लेना है।
2) सर्व को सुख दे आशीर्वाद लेनी है। श्री श्री की श्रेष्ठ मत पर चल पूरा
संन्यास करना है। इस कयामत के समय में सबसे बुद्धि योग तोड़ देना है।