27-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 07.03.90 "बापदादा" मधुबन
रूलिंग तथा कंट्रोलिंग
पावर से स्वराज्य की प्राप्ति
आज बच्चों के स्नेही
बापदादा हर एक बच्चे को विशेष दो बातों में चेक कर रहे थे। स्नेह का प्रत्यक्ष
स्वरूप बच्चों को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाना है। हर एक में रूलिंग पावर और
कंट्रोलिंग पावर कहां तक आई है - आज यह देख रहे थे। जैसे शरीर की स्थूल
कर्मेंन्द्रियां आत्मा के कन्ट्रोल से चलती हैं, जब चाहे, जैसे चाहे और जहाँ चाहे,
वैसे चला सकते हैं और चलाते रहते हैं। कन्ट्रोलिंग पावर भी है। जैसे हाथ-पांव स्थूल
शक्तियां हैं, ऐसे मन-बुद्धि संस्कार आत्मा की सूक्ष्म शक्तियां हैं। सूक्ष्म
शक्तियों के ऊपर कन्ट्रोल करने की पावर अर्थात् मन-बुद्धि को, संस्कारों को जब चाहें,
जहाँ चाहे, जैसे चाहें, जितना समय चाहें - ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर आई
है? क्योंकि इस ब्राह्मण-जीवन में मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी बनते हो। इस समय की
प्राप्ति सारा कल्प राज्य रूप और पुजारी के रूप में चलती रहती है। जितना ही आधा
कल्प विश्व की राज्य-सत्ता प्राप्त करते हो, उस अनुसार ही जितना शक्तिशाली राज्य पद
वा पूज्य पद मिलता है, उतना ही भक्ति-मार्ग में भी श्रेष्ठ पुजारी बनते हो। भक्ति
में भी श्रेष्ठ आत्मा की मन-बुद्धि-संस्कारों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पावर रहती है।
भक्तों में भी नम्बरवार शक्तिशाली भक्त बनते हैं अर्थात् जिस इष्ट की भक्ति करने
चाहें, जितना समय चाहें, जिस विधि से करने चाहें - ऐसी भक्ति का फल भक्ति की विधि
प्रमाण सन्तुष्टता, एकाग्रता, शक्ति और खुशी को प्राप्त करते हैं। लेकिन राज्य-पद
और भक्ति के शक्ति की प्राप्ति का आधार यह ब्राह्मण जन्म है। तो इस संगमुयग का छोटा-सा
एक जन्म सारे कल्प के सर्व जन्मों का आधार है! जैसे राज्य करने में विशेष बनते हो,
वैसे ही भक्त भी विशेष बनते हो, साधारण नहीं। भक्त-माला वाले भक्त अलग हैं लेकिन आप
आपेही पूज्य, आपेही पुजारी आत्माओं की भक्ति भी विशेष है। तो आज बापदादा बच्चों के
इस मूल आधार जन्म को देख रहे थे। आदि से अब तक ब्राह्मण-जीवन में रूलिंग पावर,
कन्ट्रोलिंग पावर सदा और कितनी परसेन्टेज में रही है। इसमें भी पहले अपने ही
सूक्ष्म शक्तियों की रिजल्ट को चेक करो। रिजल्ट में क्या दिखाई देता है? इन विशेष
तीन शक्तियों, “मन-बुद्धि-संस्कार'' पर कन्ट्रोल हो तो इसको ही स्वराज्य अधिकारी कहा
जाता है। तो यह सूक्ष्म शक्तियां ही स्थूल कर्मेंन्द्रियों को संयम और नियम में चला
सकती हैं। रिजल्ट क्या देखी? जब, जहाँ और जैसे - इन तीनों बातों में अभी यथाशक्ति
हैं। सर्वशक्ति नहीं हैं लेकिन यथाशक्ति। जिसको डबल विदेशी अपनी भाषा में समथिंग
अक्षर यूज़ करते हैं। तो इसको आलमाइटी अथॉरिटी कहेंगे? माइटी तो हैं लेकिन आल हैं?
वास्तव में इसको ही ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन कहा जाता है। जिसका जितना स्व पर
राज्य है अर्थात् स्व को चलने और सर्व को चलाने की विधि आती है, वही नम्बर आगे लेता
है। इस फाउण्डेशन में अगर यथाशक्ति है तो ऑटोमेटिकली नम्बर पीछे हो जाता है। जिसको
स्वयं को चलाने और चलने आता है वह दूसरों को भी सहज चला सकता है अर्थात् हैंडलिंग
पावर आ जाती है। सिर्फ दूसरे को हैंडल करने के लिए हैंडलिंग पावर नहीं चाहिए। जो
अपनी सूक्ष्म शक्तियों को हैंडल कर सकता है, वह दूसरों को भी हैंडल कर सकता है। तो
स्व के ऊपर कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर सर्व के लिए यथार्थ हैंडलिंग पावर बन जाती
है। चाहे अज्ञानी आत्माओं को सेवा द्वारा हैंडल करो, चाहे ब्राह्मण-परिवार में
स्नेह सम्पन्न, सन्तुष्टता सम्पन्न व्यवहार करो - दोनों में सफल हो जायेंगे, क्योंकि
कई बच्चे ऐसे हैं जो बाप को जानना, बाप का बनना और बाप से प्रीत की रीति निभाना -
यह बहुत सहज अनुभव करते हैं लेकिन सभी ब्राह्मण आत्माओं से चलना - इसमें समथिंग कहते
हैं। इसका कारण क्या? बाप से निभाना सहज क्यों लगता है? क्योंकि दिल का प्यार अटूट
है। प्यार में निभाना सहज होता है, जिससे प्यार होता है, उसका कुछ शिक्षा का इशारा
मिलना भी प्यारा लगता है और सदैव दिल में अनुभव होता है कि जो कुछ कहा मेरे कल्याण
के लिए कहा क्योंकि उसके प्रति दिल की श्रेष्ठ भावना होती है। तो जैसे आपके दिल में
उनके प्रति श्रेष्ठ भावना है, वैसे ही आपकी शुभभावना का रिटर्न दूसरे द्वारा भी
प्राप्त होता है। जैसे गुम्बज़ में आवाज करते हो तो वही आवाज लौटकर आपके पास आती
है। तो जैसे बाप के प्रति अटूट, अखण्ड, अटल प्यार है, श्रेष्ठ भावना है, निश्चय है,
ऐसे ब्राह्मण-आत्मायें नम्बरवार होते हुए भी आत्मिक प्यार अटूट, अखण्ड है? वैरायटी
चलन, वैरायटी संस्कार देखकर प्यार करते हैं तो वह अटूट और अखण्ड नहीं होता है। किसी
भी आत्मा के अपने प्रति वा दूसरों के प्रति चलन अर्थात् चरित्र वा संस्कार
दिल-पसन्द नहीं होंगे तो प्यार की परसेन्टेज कम हो जाती है। लेकिन आत्मा का श्रेष्ठ
आत्मा के भाव से आत्मिक प्यार उसमें परसेन्टेज़ नहीं होती है। कैसे भी संस्कार हों,
चलन हो लेकिन ब्राह्मण-आत्माओं का सारे कल्प में अटूट सम्बन्ध है, ईश्वरीय परिवार
है। बाप ने हर आत्मा को विशेष चुनकर ईश्वरीय परिवार में लाया है। अपने-आप नहीं आये
हैं, बाप ने लाया है। तो बाप को सामने रखने से हर आत्मा से भी आत्मिक अटूट प्यार हो
जाता है। किसी भी आत्मा की कोई बात आपको पसंद नहीं आती तब ही प्यार में अन्तर आता
है। उस समय बुद्धि में यही रखो कि इस आत्मा को बाप ने पसंद किया है, अवश्य कोई
विशेषता है तब बाप ने पसंद किया है। शुरू से बापदादा बच्चों को यह सुनाते रहते हैं
कि मानों 36 गुणों में किसमें 35 गुण नहीं हैं लेकिन एक गुण भी विशेष है तब बाप ने
उनको पसंद किया है। बाप ने उनके 35 अवगुण देखे वा एक ही गुण देखा? क्या देखा? सबसे
बड़े-ते-बड़ा गुण वा विशेषता बाप को पहचानने की बुद्धि, बाप के बनने की हिम्मत, बाप
से प्यार करने की विधि है जो सारे कल्प में धर्म-पिताओं में भी नहीं थी, राज्य
नेताओं में भी नहीं, धनवानों में भी नहीं लेकिन उस आत्मा में हैं। बाप आप सबसे पूछते
हैं कि आप जब बाप के पास आये तो क्या गुण सम्पन्न होके आये थे? बाप ने आपकी कमजोरियों
को देखा क्या? हिम्मत बढ़ाई है ना कि आप ही मेरे थे, हैं और सदा बनेंगे। तो फॉलो
फादर करो ना! जब विशेष आत्मा समझ किसको भी देखेंगे, सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेंगे तो
बाप को सामने रखने से आत्मा में स्वत: ही आत्मिक प्यार इमर्ज हो जाता है। आपके
स्नेह से सर्व के स्नेही बन जायेंगे और आत्मिक स्नेह से सदा सभी द्वारा सद्भावना,
सहयोग की भावना स्वत: ही आपके प्रति दुआओं के रूप में प्राप्त होगी। इसको कहते हैं
- रूहानी यथार्थ श्रेष्ठ हैंडलिंग।
बापदादा आज मुस्करा
रहे थे। बच्चों में तीन शब्दों के कारण कंट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर कम हो जाती
है। वह तीन शब्द हैं - 1. व्हाई (क्यों), 2. व्हाट (क्या), 3. वांट (चाहिए)। यह तीन
शब्द खत्म कर एक शब्द बोलो। व्हाई आये तो भी एक शब्द बोलो - वाह, व्हाट शब्द आये तो
भी बोलो “वाह''! “वाह'' शब्द तो बोलना आता है ना। वाह बाबा! वाह मैं! और वाह ड्रामा!
सिर्फ “वाह'' बोलो तो यह तीन शब्द खत्म हो जायेंगे। उस दिन भी सुनाया ना कि बापदादा
ने कौन सा खेल देखा! आप लोगों का एक चित्र पहले का बनाया हुआ है जिसमें दिखाया है -
योगी योग लगा रहा है, बुद्धि को एकाग्रचित कर रहा है, बैलेन्स रख रहा है, बैलेन्स
की तराजू दिखाई है, जितना बुद्धि का बैलेन्स करता उतना कोई बन्दर आकर बैठ जाता। इन
तीनों बातों के बन्दर आ जाते हैं, तो बैलेन्स क्या होगा! हलचल हो जायेगी, बैलेन्स
नहीं रहेगा। तो यह तीन शब्द बैलेन्स को समाप्त कर देते हैं, बुद्धि को नचाने लगते
हैं। बन्दर आराम से बैठ सकता है क्या? और कुछ नहीं हो तो पूंछ को ही हिलाता रहेगा।
तो इसमें भी बैलेन्स न होने के कारण बाप द्वारा हर कदम में जो दुआयें मिलती हैं वा
आत्मिक स्नेह कारण परिवार द्वारा जो दुआयें मिलती हैं उससे वचिंत हो जाते हैं। जैसे
बाप से सम्बन्ध रखना आवश्यक है, ऐसे ईश्वरीय परिवार से सम्बन्ध रखना भी अति आवश्यक
है। सारे कल्प में नम्बरवन आत्मा ब्रह्मा बाप और ईश्वरीय परिवार के सम्बन्ध-सम्पर्क
में आना है। ऐसे नहीं समझना - अच्छा, बाप तो हमारा है, हम बाप के हैं। यह भी पास
विद ऑनर की निशानी नहीं है क्योंकि आप संन्यासी आत्मायें नहीं हो। ऋषि-मुनि की
आत्मायें नहीं हो। विश्व से किनारा करने वाले नहीं हो लेकिन विश्व का सहारा बनने
वाली आत्मायें हो। विश्व-किनारा नहीं, विश्व-कल्याणकारी हो। ब्राह्मण-आत्माओं की तो
बात छोड़ो लेकिन प्रकृति को भी परिवर्तन करने के सहारे आप हो! परिवार के अविनाशी
प्यार के धागे के बीच से निकल नहीं सकते हो। विजयी रत्न प्यार के धागे के बीच से
निकल नहीं सकते इसलिए कभी भी किसी भी बात में, किसी स्थान में, किसी सेवा से, किसी
साथी से किनारा करके अपनी अवस्था को अच्छा बनाके दिखाऊं - यह संकल्प नहीं करना। कहते
हैं ना - हम इसके साथ नहीं चल सकते, उसके साथ चलेंगे, इस स्थान पर उन्नति नहीं होगी,
दूसरे स्थान पर होगी, इस सेवा में विघ्न है, दूसरी सेवा में अच्छा होगा। यह सब
किनारा करने की बाते हैं। अगर एक बार यह आदत अपने में डाली तो यह आदत आपको कहाँ भी
टिकने नहीं देगी, बुद्धि को एकाग्र रहने नहीं देगी क्योंकि बुद्धि को बदलने की आदत
पड़ गई। यह भी कमजोरी गिनी जायेगी, उन्नति नहीं गिनी जायेगी। सदैव अपने में शुभ
उम्मीदें रखो, नाउम्मींद नहीं बनो। जैसे बाप ने हर बच्चे में शुभ उम्मीदें रखी। कैसे
भी हैं, बाप लास्ट नंबर से भी कभी दिलशिकस्त नहीं बने। सदा ही उम्मीद रखी। तो आप भी
न अपने से, न दूसरे से, न सेवा में, नाउम्मींद, दिलशिकस्त नहीं बनो। दिलशाह बनो।
शाह माना फ्राकदिल, सदा बड़ी दिल। कोई भी कमजोर संस्कार नहीं धारण कर लो। माया
भिन्न-भिन्न रूप से कमजोर बनाने का प्रयास करती है। लेकिन आप माया के भी नॉलेजफुल
हो ना कि अधूरी नॉलेज है? यह भी याद रखो कि माया नये-नये रूप में आती है, पुराने
रूप में नहीं क्योंकि वह भी जानती है कि यह पहचान लेंगे। बात वही होती है लेकिन रूप
नया धारण कर लेती है। समझा! अच्छा!
टीचर्स माया के
नॉलेजफुल हो? सिर्फ नॉलेज नहीं लेकिन नॉलेजफुल हो? बाप को पहचान लिया - सिर्फ यह नहीं
सोचो, माया को भी पहचानना है। अभी बंधन में बंध गई हो वा कठिन लगता है? मीठा बंधन
लगता या थोड़ा मुश्किल बंधन लगता? सोचते हो - यहाँ तो बहुत मरना पड़ेगा, बाप के बन
गये, अब फिर यह करना है, यह करना है, कहाँ तक करेंगे! अगर यह पता होता तो आते ही नहीं
- ऐसा सोच चलता है? जहाँ प्यार है वहाँ कोई मुश्किल नहीं। पतंगा भी शमा पर कुर्बान
हो जाता है। तो आप श्रेष्ठ आत्मायें परमात्म-प्यार के पीछे मुश्किल अनुभव कर सकती
हो क्या? जब परवाना कुर्बान हो सकता है तो आप क्या नहीं कर सकती? जिस घड़ी मुश्किल
अनुभव होता है तो जरूर प्यार की परसेन्टेज में अन्तर आ जाता है, इसलिए कुछ समय
मुश्किल लगता है। अगर होवे ही मुश्किल तो सदा मुश्किल लगना चाहिए, कभी-कभी क्यों
मुश्किल लगता? परमात्मा और आपके बीच में कोई बात आ जाती है, इसलिए मुश्किल हो जाता
है और परसेन्टेज में फ़र्क पड़ जाता है। वह बीच से निकाल दो तो फिर सहज हो जाए।
बापदादा सदा कहते हैं
टीचर्स अर्थात् सदा स्वयं हिम्मत में रहने वाली और दूसरों को हिम्मत देने के
निमित्त बनने वाली। नहीं तो टीचर बनी क्यों? टीचर माना ही स्टूडेन्ट के निमित्त
हैं। कमजोर को हिम्मत दे आगे बढ़ाने की सेवा के निमित्त हो। सफल टीचर की पहली निशानी
यह होगी - वह कभी हिम्मतहीन नहीं बनेंगी। जो खुद हिम्मत में रहता है वह दूसरे को भी
हिम्मत जरूर देता है। खुद में ही हिम्मत कम होगी तो दूसरे को भी नहीं दे सकेंगे।
अच्छा!
चारों ओर के हिम्मते
बच्चे मददे बाप के अधिकार को अनुभव करने वाले, सदा स्वराज्य की शक्तियों को हर समय
प्रमाण प्रयोग में लाने वाले, सदा बाप और सर्व आत्माओं के अटूट स्नेही, सदा हर
कार्य में, सम्बन्ध-सम्पर्क में “वाह-वाह'' के गीत गाने वाले - ऐसे आलमाइटी अथॉरिटी
बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:-
प्लेन बुद्धि
बन सेवा के प्लैन बनाने वाले यथार्थ सेवाधारी भव
यथार्थ सेवाधारी उन्हें
कहा जाता है जो स्व की और सर्व की सेवा साथ-साथ करते हैं। स्व की सेवा में सर्व की
सेवा समाई हुई हो। ऐसे नहीं दूसरों की सेवा करो और अपनी सेवा में अलबेले हो जाओ।
सेवा में सेवा और योग दोनों ही साथ-साथ हो। इसके लिए प्लेन बुद्धि बनकर सेवा के
प्लैन बनाओ। प्लेन बुद्धि अर्थात् कोई भी बात बुद्धि को टच नहीं करे, सिवाए निमित्त
और निर्माण भाव के। हद का नाम, हद का मान नहीं लेकिन निर्मान। यही शुभ भावना और शुभ
कामना का बीज है।
स्लोगन:-
ज्ञान दान के साथ-साथ गुणदान करो तो सफलता मिलती रहेगी।