30-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 19-09-75 मधुबन
शक्तियों एवं पाण्डवों की विशेषताएँ
आज अमृतवेले सर्व सेवा-स्थानों का सैर किया। वह सैर का समाचार सुनाते हैं। क्या देखा - हर एक रूहानी बच्चे रूह को राहत देने के लिए, मिलन मनाने के लिए, रूह-रूहान करने के लिए व अपने दिल की बातें दिलाराम बाप के आगे (दिलाराम अर्थात् दिल को आराम देने वाला) रखते हुए अपने को डबल लाइट का वरदान दे भी रहे थे और ले भी रहे थे। कोई-कोई बच्चे विश्व-कल्याणी स्वरूप में स्थित हो बाप द्वारा मिले हुए सर्व शक्तियों का वरदान व महादान अनेक आत्माओं के प्रति दे रहे थे। तीन प्रकार की रिजल्ट देखी। एक थे लेने वाले, दूसरे थे मिलन मनाने वाले और तीसरे थे लेकर देने वाले अर्थात् कमाई करने वाले। ऐसे तीन प्रकार के बच्चों को चारों ओर देखा।
यह सब देखते हुए इसके बाद गॉडली स्टुडेण्ट के रूप में देखा - हर एक स्टुडेन्ट के रूप में गॉडली नॉलेज पढ़ने के लिए उमंग और उत्साह से अपने-अपने रूहानी विश्व-विद्यालय की ओर आ रहे हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सब अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे। - हर एक सेवा केन्द्र की रूहानी रौनक अपनी-अपनी थी। उसमें भी तीन प्रकार के देखे। एक थे सिर्फ सुनने वाले अर्थात् सुन-सुन कर हर्षित होने वाले, दूसरे थे सुनकर समाने वाले और तीसरे थे बाप समान नॉलेजफुल बनकर औरों को बनाने वाले।
यह सब देखते हुए फिर तीसरी स्टेज देखी - वह थी कर्मयोगी की स्टेज। तीसरी स्टेज में क्या देखा? एक थे कमल पुष्प, दूसरे थे रूहानी गुलाब और तीसरे थे वैरायटी प्रकार के फूल। उन वैरायटी फूलों में भी मैजॉरिटी सूर्यमुखी थे। जिस समय ज्ञानसूर्य के सम्मुख थे तो खिले हुए थे और कभी फिर ज्ञानसूर्य बाप से किनारा कर लेने के कारण फूलों के बजाय कलियाँ बन जाते थे अर्थात् रूप और रंग बदल जाता था। कमल-पुष्प क्या करते थे? सर्व कार्य करते हुए, सर्व सम्बन्धों के सम्पर्क में आते हुए न्यारे और साथ-साथ बाप के प्यारे थे। वायुमण्डल व आसुरी संग अनेक प्रकार की वृत्ति वाली आत्माओं के वाइब्रेशन्स के बीच कर्म करते हुए भी कर्म और योग दोनों में समान स्थिति में स्थित थे। अनेक प्रकार की हलचल में भी अचल थे। लेकिन ऐसी आत्मायें कितनी थी? 25% । उसमें भी मैजॉरिटी शक्तियाँ थी। पाण्डव सोच रहे हैं कि क्यों? पाण्डवों की विशेषता भी सुनाते हैं, थोड़ा समय सिर्फ धैर्य रखो। पाण्डव-पति के हमजिन्स पाण्डव की भी महिमा है। कमल-पुष्प के आगे रूहानी गुलाब वह कौन थे? रूहानी गुलाब जो सदा अपने रूहानियत की स्थिति में स्थित रहते हुए सर्व को भी रूहानि्ायत की दृष्टि से देखने वाले, सदा मस्तक मणि को देखने वाले हैं। साथ-साथ अपनी रूहानियत की स्थिति से सदा अर्थात् हर समय सर्व आत्माओं को अपनी स्मृति, दृष्टि और वृत्ति से रूहानी बनाने के शुभ संकल्पों में रहने वाले अर्थात् हर समय योगी तू आत्मा सेवाधारी आत्मा हो कर चलने वाले - ऐसे रूहानी गुलाब चारों ओर की फुलवारी के बीच बहुत थोड़े कहीं-कहीं देखे? यह परसेन्टेज कम थी। 10% वैरायटी फूलों के अन्दर एक तो सूर्यमुखी सुनाया दूसरी क्वॉलिटी हर मौसम के बड़े सुन्दर रंगबिरंगे फूल होते हैं, उन पर मौसम की रंग-रूप की रौनक बड़ी अच्छी होती है। बगीचे की शो बढ़ा देते हैं। ऐसे मौसम के रंग बिरंगे फूलों के दृश्य बहुत देखे। रंग और रूप- यहाँ भी रूप ब्रह्माकुमारी और ब्रह्माकुमार का है, रंग ज्ञान का लगा हुआ है। तो रंग भी और रूप भी है, लेकिन रूहानियत कम। रूहानी दृष्टि और वृत्ति की सुगन्ध न के बराबर है। अभी-अभी मौसम के अनुसार अर्थात् थोड़े समय के लिये खिले हुए होंगे और थोड़े समय बाद मुरझाए हुए नज़र आयेंगे। सदा एकरस नहीं। ऐसे रंग-बिरंगे फूल जो मौसम में ही खिलते हैं, मैजॉरिटी में थे।
वर्तमान समय रूहानी दृष्टि और वृत्ति के अभ्यास की बहुत आवश्यकता है। 75% इस रूहानियत के अभ्यास में कमज़ोर हैं। मैजॉरिटी किसी-न-किसी प्रकार के प्रकृति के आकर्षण के वशीभूत हो ही जाते हैं। व्यक्ति व वैभव कभी-न-कभी अपने वश कर लेता है। उसमें भी मन्सा संकल्प के चक्कर में खूब परेशान होने वाले हैं। इस परेशानी के कारण स्वयं से दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। वास्तव में ब्राह्मण आत्मा अगर संकल्प में विकारी दृष्टि और वृत्ति रखती है अर्थात् इस चमड़ी को देखती है - चमड़ी अर्थात् जिस्म द्वारा विकारी भावना रखते हैं - तो ऐसी भावना रखने वाले भी ‘महापापी’ की लिस्ट में आ जाते हैं। ब्राह्मण जीवन में बड़े से बड़ा पाप व दाग इस विकारी भावना का गिना जाता है। ब्राह्मण अर्थात् दिव्य-बुद्धि के वरदान वाले। दिव्य नेत्र के वरदान वाले, ऐसे दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र वाले बुद्धि में संकल्प द्वारा दिव्य नेत्र में एक सेकेण्ड के लिए भी नजर द्वारा इस चमड़ी को व जिस्म को टच भी नहीं कर सकते। दिव्य बुद्धि का, दिव्य नेत्र का शुद्ध आहार और व्यवहार शुद्ध संकल्प हैं। अगर अपने शुद्ध संकल्प रूपी आधार अर्थात् भोजन को छोड़ अशुद्ध आहार स्वीकार करते हो अर्थात् संकल्प के वशीभूत हो जाते हैं तो ऐसे मलेच्छ भोजन वाले मलेच्छ आत्मा कहलायेंगे अर्थात् महापापी, आत्मघाती कहलायेंगे। इसलिए इस महापाप के संकल्प से भी स्वयं को सदा बचाने का प्रयत्न करो। नहीं तो इस महापाप का दण्ड बहुत कड़े रूप में भोगना पड़ेगा। इसलिए दिव्य बुद्धि और सदा शुद्ध आहारी बनो। समझा?
पाण्डवों की विशेषता क्या देखी? सेवा प्रति हार्ड वर्कर प्लैनिंग बुद्धि अथक बन सेवा की स्टेज पर हर समय एवर रेडी हैं। सेवा के सब्जेक्ट में मैदान पर आने वाले मैजारिटी पाण्डव हैं, इस विशेषता में पाण्डव आगे हैं और इसी सेवा के रिटर्न में हिम्मत और हुल्लास अनुभव करते चल रहे हैं। पाण्डव वातावरण के विकारी वायब्रेशन के बीच ज्यादा रहते हैं, इसलिए ऐसे वातावरण में रहते हुए ‘न्यारे और प्यारे’ रहते हैं, तो उनको इस सफलता में शक्तियों से एकस्ट्रा मार्क्स मिलती हैं। लेकिन इस लॉटरी को और ज्यादा कार्य में लाओ व ऐसा गोल्डन चान्स और ज्यादा लेना। सुना आज के सैर का समाचार। अच्छा।
ऐसे इशारे से समझने वाले समझदार, स्थूल-सूक्ष्म शुद्ध आहारी, सदा श्रेष्ठ व्यवहारी, हर संकल्प में विश्व-कल्याण की भावना रखने वाले विश्व-कल्याणी आत्माओं के प्रति बापदादा की याद-प्यार और नमस्ते।
30-09-12 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 20-09-75 मधुबन
शक्ति होते हुए भी जीवन में सफलता और सन्तुष्टता क्यों नहीं?
जैसे बाप सर्व गुणों के सागर हैं, क्या आप भी वैसे ही अपने को मास्टर सागर समझते हो? सागर अखण्ड, अचल और अटल होता है। सागर की विशेष दो शक्तियाँ सदैव देखने में आयेंगी - एक समाने की शक्ति, जितनी समाने की शक्ति है उतनी सामना करने की भी शक्ति है। लहरों द्वारा सामना भी करते हैं और हर वस्तु व व्यक्ति को स्वयं में समा भी लेते हैं। तो मास्टर सागर होने के कारण अपने में भी देखो कि यह दोनों शक्तियाँ मुझ में कहाँ तक आई हैं? अर्थात् कितने परसेन्टेज में हैं? क्या दोनों शक्तियों को समय-प्रमाण यूज़ कर सकते हो? क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है?
कई बच्चे सर्व शक्तियों का स्वयं में अनुभव भी करते हैं और समझते हैं कि मुझ में यह शक्तियाँ हैं। लेकिन शक्तियाँ होते हुए भी कही-कही वे सफलता का अनुभव नहीं करते। ज्ञानस्वरूप, आनन्द, प्रेम, सुख और शान्ति स्वरूप स्वयं को समझते हुए भी स्वयं से सदा सन्तुष्ट नहीं अथवा पुरुषार्थी होते हुए भी प्रारब्ध अर्थात् प्राप्ति का प्रत्यक्ष फल के रूप में जो अनुभव होना चाहिए, वह कभी-कभी ही कर सकते हैं। सर्व नियमों का पालन भी करते हैं, फिर भी स्वयं को सदा हर्षित अनुभव नहीं करते। मेहनत बहुत करते हैं लेकिन फल का अनुभव कम करते हैं। माया को दासी भी बनाते हैं, लेकिन फिर भी कभी-कभी उदासी महसूस करते हैं। इसका कारण क्या है? शक्तियाँ भी है, साथ-साथ ज्ञान भी हैं, नियमों का पालन भी करते हैं, तब कमी किस बात में है कि स्वयं, स्वयं से ही कन्फ्यूज रहते हैं?
इसमें कमी यह है कि प्राप्त की हुई शक्ति को व ज्ञान की प्वॉइन्ट्स को जिस समय, जिस रीति से कार्य में लगाना चाहिए उस समय, उस रीति से यूज़ करना नहीं आता है। बाप से प्रीति है, ज्ञान से भी प्रीति है, दिव्य गुण-सम्पन्न जीवन से भी प्रीति है - लेकिन प्रीति के साथ-साथ रीति नहीं आती है व रीति के साथ ‘प्रीति’ नहीं आती। इसलिए अमूल्य वस्तु भी साधारण प्राप्ति का आधार बन जाती हैं। जैसे स्थूल में भी कितना ही बड़ा यन्त्र व मूल्यवान वस्तु पास होते हुए भी यूज़ करने की रीति नहीं आती है तो उस द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये वह नहीं कर पाते हैं, ऐसे ही ज्ञानवान बच्चे भी ज्ञान और शक्तियों द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये, नहीं कर पाते हैं। ऐसी आत्माओं के ऊपर बापदादा को भी रहम आता है।
अब वह रीति, जो न आने के कारण प्राप्ति का अनुभव नहीं कर पाते, वह रीति कैसे आये? इसमें चाहिये - निर्णय शक्ति। निर्णय शक्ति न होने के कारण जहाँ समाने की शक्ति यूज़ करनी चाहिये वहाँ सामना करने की शक्ति यूज़ कर लेते हैं। जहाँ समेटने की शक्ति यूज़ करनी चाहिये, वहाँ विस्तार करने की शक्ति यूज़ कर लेते हैं। इसलिये संकल्प सफलता का होता है, लेकिन स्वरूप में व प्राप्ति में संकल्प-प्रमाण सफलता नहीं होती है। विशेष शक्ति की प्राप्ति का मुख्य आधार क्या है? निर्णय शक्ति को तेज करने के लिए किस बात की आवश्यकता है? कोई भी यन्त्र स्पष्ट निर्णय नहीं कर पाता तो उसका कारण क्या होता है? निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए अपनी श्रेष्ठ स्थिति - निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी और निर्विकल्पता की चाहिए। अगर इन चारों में से किसी भी बात की कमी रह जाती है, तो यह श्रेष्ठ धारणा न होने के कारण स्पष्टता नहीं होती है। श्रेष्ठ ही स्पष्ट होते हैं। यही उलझन बुद्धि को स्वच्छ नहीं बनने देती। ‘स्वच्छता ही श्रेष्ठता’ है। इसलिए अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ। तब ही बाप के समान सर्व-गुणों में मास्टर सागर अनुभव कर सकेंगे।
जैसे सागर अनेक वस्तुओं से सम्पन्न होता है वैसे स्वयं को भी सर्वशक्तियों से सम्पन्न स्वरूप का अनुभव करो, क्योंकि सम्पन्नता का वरदान संगमयुग पर ही मिलता है। सम्पन्न-स्वरूप का अनुभव सिवाय संगमयुग के और कहीं भी नहीं कर सकेंगे। आपके ही दैवी जीवन के सर्वगुण सम्पन्न होने का गायन है। 16 कलाओं का भी गायन है। लेकिन सम्पन्न का स्वरूप क्या होता है? गुण और कला की नॉलेज इस ईश्वरीय जीवन में ही है। इसलिये सम्पन्न बनने का आनन्द इस ईश्वरीय जीवन में ही प्राप्त कर सकते हो।
रीति सीखने के लिये, बाप द्वारा जो भी प्राप्त होता जा रहा है, चाहे ज्ञान, चाहे शक्तियाँ, इन्हों को समय प्रमाण कार्य में लगाते जाओ। बहुत अच्छी बातें हैं और बहुत अच्छी चीज है, सिर्फ यह समझ कर अन्दर समा न लो। अर्थात् बुद्धि की तिजोरी में रख न लो। सिर्फ बैंक बैलेन्स न बनाते जाओ या कई बुजुर्गो के मुआफिक गठरियाँ बाँध कर अन्दर रख न दो। सिर्फ सुनने और रखने का आनन्द नहीं लो, लेकिन बार-बार स्वयं के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति काम में लगाते जाओ क्योंकि इस समय की जो प्राप्ति हो रही है, इन प्राप्तियों को यूज़ करने से ईश्वरीय नियम-प्रमाण जितना यूज़ करेंगे उतनी वृद्धि होगी, जैसे दान के लिये कहावत है - ‘धन दिये धन न खुटे’, अर्थात् देना ही बढ़ना है, ऐसे ही इन ईश्वरीय प्राप्तियों को अनुभव में लाने से प्राप्ति कम नहीं होगी, बल्कि और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करोगे। बार-बार युज़ करने से, जैसा समय वैसा स्वरूप अपना बना सकेंगे व जिस समय जो शक्ति यूज़ करनी चाहिये वह शक्ति उस रीति यूज़ कर सकेंगे। समय पर धोखा खाने से बच जायेंगे। धोखा खाने से बचना अर्थात् दु:ख से बचना। तो क्या बन जायेंगे? - सदा हर्षित अर्थात् सदा सुखी, खुशनसीब बन जायेंगे। तो अब अपने ऊपर रहम करके, प्राप्तियों को यूज़ करके और प्रीति के साथ रीति को जान करके, सदा मास्टर ज्ञान सागर बनो, शक्ति का सागर बनो और सर्व प्राप्तियों का सागर बनो। अच्छा।
ऐसे सर्व अनुभवों से सम्पन्न मायाजीत, जगतजीत, अपने अनुभवों द्वारा सर्व को अनुभवी बनाने वाले बापदादा के भी बालक सो मालिक, ऐसे बाप के मालिक और विश्व के मालिक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!
वरदान:- साधनों के वशीभूत होने के बजाए उन्हें यूज़ करने वाले मास्टर क्रियेटर भव
साइन्स के साधन जो आप लोगों के काम आ रहे हैं, ड्रामा अनुसार उन्हें भी टच तभी हुआ है जब बाप को आवश्यकता है। लेकिन यह साधन यूज़ करते हुए उनके वश नहीं हो जाओ। कभी कोई साधन अपनी ओर खींच न ले। मास्टर क्रियेटर बनकर क्रियेशन से लाभ उठाओ। अगर उनके वशीभूत हो गये तो वे दु:ख देंगे इसलिए साधन यूज़ करते भी साधना निरन्तर चलती रहे।
स्लोगन:- निरन्तर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन कर दो।