ओम् शान्ति।
वही बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। कौन है यह बाप? यह बच्चे जानते हैं, जिनके
सम्मुख बाप बैठे हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि का योग बेहद के बाप तरफ है। बुद्धि
का योग अभी हद के बाप से तोड़ना है। सारी दुनिया के जो भी मित्र संबंधी हैं, बल्कि
इस देह को, दुनिया को सबको भूलना है। यह बाप के डायरेक्शन मिलते हैं। बाप बच्चों को
कभी नहीं भूलते हैं। बाप तो कहते हैं भक्ति मार्ग में भी तुम भक्तों की हम सम्भाल
करते आये हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार तुम बच्चों को भूलना ही है। भुलवाती है माया।
हम आत्मा हैं - यह भी रावण भुला देते हैं। देह-अभिमानी बना देते हैं। यह तुम बच्चों
का पार्ट है। ऐसे नहीं कि तुम वहाँ सिर्फ बाप को भूल जाते हो, परन्तु वह जो है जैसा
है, उस बाप की याद और सुख देने का ज्ञान भूल जाते हो।
अभी तुम जानते हो बाबा कल्प-कल्प आते हैं। बाबा कैसा है - यह भी बुद्धि में धारण
करना है। मनुष्यों ने तो शिवलिंग का बड़ा चित्र बना दिया है। और सभी के चित्र तो
ठीक हैं। जैसे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का चित्र भी ठीक है, मन्दिरों में पूजे जाते
हैं। परन्तु परमपिता परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल जो है, वह भूल जाते हैं। चित्र
भी भूल जाते हैं। अभी तुम बच्चों को समझाया जाता है कि आत्मा बिन्दी रूप है। स्टॉर
मिसल बिन्दी है। भृकुटी के बीच में रहती हैं। बच्चे जानते हैं - हम आत्मा हैं। शरीर
की भ्रकुटी के बीच मुझ आत्मा का स्थान है। यह तो सब मानेंगे। बहुत सूक्ष्म बिन्दी
जैसी है। यह भी जानते हो परमपिता परमात्मा भी ऐसे बिन्दी रूप ही होगा। खुद आकर
समझाते हैं मैं भी बिन्दी हूँ, परन्तु मनुष्यों ने बड़ा रूप ज्योर्तिलिंगम् बना दिया
है। जैसे बुद्ध का भी बड़ा लम्बा चौड़ा रूप बनाते हैं। पाण्डवों के शरीर भी भक्ति
मार्ग में बहुत लम्बे बनाते हैं। भक्ति मार्ग में लम्बे चित्र होते हैं। ज्ञान
मार्ग में छोटी चीज़ होती है। परमात्मा कहते हैं मैं बिन्दी हूँ। कहाँ-कहाँ बहुत बड़ा
लिंग भी रखते हैं। नहीं तो बिन्दी की पूजा कैसे हो सके। पूजा तो जरूर बड़ी चीज़ की
होगी ना। तुमको अभी बिन्दी रूप समझाया है। इन बातों को मनुष्य तो समझ न सकें। तुम
बच्चों को भी पहले यह समझ नहीं थी। अभी जब परिपक्व अवस्था हुई है तो समझते हो यह तो
यथार्थ बात है। अगर शुरू से लेकर बाबा भी समझाते तो हम समझ नहीं सकते क्योंकि बिन्दी
कोई चीज़ तो है नहीं। हम मानते नहीं। परम्परा से शिवलिंग कहा जाता, यह फिर क्या है?
तो बाप समझाते हैं कि वह भी रांग है। मैं जो तुम्हारा बाप हूँ, मैं बिन्दी हूँ।
तुम्हारा भी बिन्दी रूप है। परन्तु पूजा आदि के लिए बड़ा शिवलिंग बनाते हैं। आत्माओं
का रूप भी सालिग्राम बनाते हैं परन्तु ऐसे है नहीं। आत्मा इतनी बड़ी हो नहीं सकती।
आत्मा देखने में भी बड़ा मुश्किल आती है। यह समझने की बड़ी गुह्य बाते हैं। आत्मा
भी बिन्दी रूप है। इस छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। एक सेकेण्ड न मिले
दूसरे से। 84 जन्मों का पार्ट सारा एक छोटी-सी आत्मा में नूँधा हुआ है। यह बड़ी
कुदरत की बात है। सारा पार्ट बिन्दी में रहता है। उस नाटक में भी पार्ट बजाने वालों
की बुद्धि में सारा पार्ट रहता है ना। वह है छोटा पार्ट, यह 84 जन्मों का पार्ट भी
अच्छी रीति समझना है और फिर समझाने की भी बड़ी युक्ति चाहिए। इतनी छोटी बिन्दी है,
कितनी छोटी है, कितनी शक्तिवान है! उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। तुम आत्मायें
उनसे योग लगाने से मा. सर्वशक्तिमान बनते हो। माया पर जीत पाकर अटल, अखण्ड,
सुख-शान्तिमय राज्य करते हो। कितनी समझने की बातें हैं।
यह है पढ़ाई। है भी बहुत सहज। यह बाप ही समझा सकते हैं, कोई मनुष्य नहीं समझा
सकते हैं। बरोबर इतनी छोटी चीज़ परन्तु नाम कितना बड़ा रखते हैं - ज्ञान का सागर।
तुम कहते हो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, चैतन्य है, सत है, अविनाशी है। कहते आते हैं
परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं आता है - वह क्या वस्तु है? गुण तो बहुत अथाह गाते
हैं। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो। जान गये हो। आत्मायें तो सम्मुख ही हैं।
सब आत्मायें ब्रदर्स ही हैं। कितनी छोटी-छोटी बिन्दी है, विचार करो। मूलवतन का हम
जो चित्र बनाते हैं उसमें बिन्दू रूप ही दिखाते हैं। जैसे स्टॉर्स आकाश तत्व में
ऊपर खड़े हैं, वैसे ही महतत्व में भी हम ऐसे स्टॉर माफिक अपने-अपने सेक्शन में खड़े
होंगे। झाड़ छोटे-छोटे स्टॉर्स का बना हुआ है। वहाँ से फिर आत्मा आती है, शरीर धारण
करती है - पार्ट बजाने लिए। कैसे नम्बरवार आत्मायें आती हैं - यह सारी बुद्धि चलनी
चाहिए। हर एक धर्म का सेक्शन अलग होगा। बाप दृष्टान्त दे समझाते हैं। बनेन ट्री का
भी मिसाल समझाते हैं। हिन्दी बहुत जगह चलती है, तो बच्चों को हिन्दी भाषा में समझाना
पड़ेगा। परमपिता परमात्मा भी हिन्दी भाषा में ही समझाते हैं। आजकल जहाँ-तहाँ इसका
प्रचार करते रहते हैं। एक भाषा होना तो मुश्किल है। कई समझते हैं परमपिता परमात्मा
तो सब भाषायें जानते होंगे। परन्तु ऐसे तो हो न सके। अथाह, अनेकानेक भाषायें हैं।
वह तो सीखनी पड़ती हैं। परमपिता परमात्मा को तो कुछ सीखना नहीं है। उन्होंने कल्प
पहले जिस भाषा में समझाया है, उसमें ही समझाते हैं। बाकी भाषायें तो हरेक को पढ़नी
होती हैं। बाप को पढ़नी होती हैं क्या? तुम देखते हो शुरू से हिन्दी चली है। सब
हिन्दी सीखते जाते हैं। भारत में हिन्दी का प्रचार है। बाप भी हिन्दी में समझाते
हैं फिर हर एक को अपनी भाषा में ट्रांसलेशन कर औरों को समझाना पड़े। बाप और बाप की
रचना का परिचय सबको समझाना है। सभी का सद्गति दाता वह एक बाप है। यह सब जानेंगे
बरोबर बाप आया हुआ है। बाप कहते हैं मैं भारत में ही आता हूँ। भारत हमारा बर्थ
प्लेस है। शिव के मन्दिर, देवी-देवताओं के मन्दिर भी यहाँ हैं। देवी-देवताओं का
राज्य भी भारत में होता है। बाप भी भारत में आते हैं। देवी-देवता धर्म की स्थापना
यहाँ ही की है। तो मन्दिर भी जरूर यहाँ चाहिए। औरों के इतने मन्दिर नहीं होंगे। यहाँ
तो बहुत मन्दिर हैं। घर-घर में लक्ष्मी-नारायण के चित्र, राधे-कृष्ण के चित्र,
राम-सीता के चित्र रखते हैं क्योंकि भारत में होकर गये हैं। परन्तु उन्होंने कैसे
राज्य लिया - वह भूल गये हैं। चैतन्य में राज्य करके गये हैं। लक्ष्मी-नारायण
वैकुण्ठ के महाराजा-महारानी हैं। उन्हों को राज्य किये कितना समय हुआ? यह भी जानते
हैं। मुख से कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था।
तो क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए ना। तो जो ऐसे कहते हैं उन्हें उसी बात पर समझाना
चाहिए। कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था अर्थात्
स्वर्ग था। ऐसे नहीं कि क्राइस्ट भी उस स्वर्ग में था। पूछेंगे क्रिश्चियन लोग तब
कहाँ थे? यानी उन्हों की आत्मायें कहाँ थी? इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि की
आत्मायें सब कहाँ थी? यह समझाना तो बड़ा सहज है। वह सब निर्वाणधाम वा निराकारी
दुनिया में थी। निराकारी दुनिया भी है, दुनिया में जरूर बहुत रहने वाले होते हैं।
सभी आत्माओं का निवास स्थान महतत्व रूपी निराकारी दुनिया में है। तुम बच्चों की
बुद्धि में अभी यह है कि इस समय सब देवी-देवताओं की आत्मायें हाज़िर हैं, तब बाप आये
हैं, फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। समझो, कोई धर्म आता है पहले तो
बहुत छोटा होता है। छोटी-छोटी शाखायें निकल जब पूरी होती हैं तब यह तुम्हारा
फाउन्डेशन भी पूरा होता है।
बीज और झाड़ का राज़ समझाना तो बहुत सहज है। मनुष्य सृष्टि का झाड़ बहुत धर्मों
का है। समझते भी हैं फलाना धर्म था तो फलाना धर्म नहीं था। अभी छोटे-छोटे धर्म
निकलते हैं। आगे तो नहीं थे ना। छोटी-छोटी शाखायें तो अभी निकली हैं। यह तुम बच्चे
जानते हो और कोई नहीं जानते। आत्मा और परमात्मा का बिन्दी रूप नहीं जानते हैं। अभी
बाबा ने तुम बच्चों को आकर समझाया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके बच्चे हैं। कल्प
पहले भी आपसे मिले थे। आपके बच्चे बने थे। बच्चे बनते हैं, बाप का वर्सा लेने। बाप
कहते हैं तुम हमारे हो, गोया एडाप्ट किया, मुख वंशावली बने। तुम सब एडाप्टेड हो।
बाबा भी ब्रह्मा मुख से कहते हैं - तुम आत्मायें हमारी हो। तुम आत्मायें भी कहती हो
बाबा आपने जो ब्रह्मा तन में आकर अपना परिचय दिया है, हम आपके हैं। बाबा कहने से ही
वर्से की खुशबू आनी चाहिए। बच्चे ही कह सकते। यह है प्रवृत्ति मार्ग। संन्यासियों
के शिष्य बनते हैं, वह बाप-बच्चे नहीं बनते। वर्सा बाप से जायदाद का मिलता है। वह
तो कहेंगे हमने गुरू किया है। गुरू से तो जायदाद का वर्सा नहीं मिलेगा। वह तो
जायदाद को छोड़ जंगल में चले जाते हैं। वह जायदाद दे न सकें। वह हैं ही निवृत्ति
मार्ग वाले। बाप तो जायदाद देते हैं, उनसे कुछ नहीं मिलता। जंगल में जायेंगे तो
संन्यासी कहलायेंगे। तुम भी संन्यासी कहलाते हो। वह हैं हठयोगी संन्यासी। तुम
राजयोगी संन्यासी हो। संन्यासी अर्थात् 5 विकारों का त्याग करने वाले। सो तो तुम
त्याग करते हो और फिर पवित्र दुनिया में चले जाते हो। वह त्याग करते हैं परन्तु
पवित्र दुनिया में नहीं जाते, पतित दुनिया में ही रहते हैं।
तो बाप समझाते हैं आत्मा कितनी छोटी है! इतनी छोटी वस्तु में कितनी ताकत है,
अविनाशी भी है। वह बाप इस शरीर द्वारा समझाते हैं, तुम्हारी आत्मा समझती है। बाप
कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब कलियुग का अन्त है। तमोप्रधान पतित हो जाते हैं। मुझे
याद भी तब करेंगे जब संगम होगा तब ही हम आयेंगे, तब ही विनाश के चिन्ह भी देखने में
आयेंगे। सो तो बरोबर देखते हो। अभी तुमको समझ मिलती है, वह फिर औरों को देनी है। अभी
कलियुग का अन्त जरूर है। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। महाभारत लड़ाई भी है। बरोबर,
उस समय राजयोग भी सीखते थे। पाण्डवों ने विजय पाई, यादव-कौरव विनाश हुए। स्वर्ग में
तो एक ही धर्म होता है। अनेक धर्म ख़लास हो जाते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे
जानते हैं बाबा की इस राजयोग की शिक्षा से हम बरोबर सो देवी-देवता पद पाते हैं। तुम
पुरुषार्थ करते हो हम तो नर से नारायण ही बनेंगे। बाप का वारिस जरूर बनेंगे,
तख्तनशीन बनेंगे। फिर जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। पुरुषार्थी छिपे
नहीं रहते, वह बड़े मस्त होते हैं। पहले-पहले प्रतिज्ञा करते हैं। बाप के जन्म बाद
है रक्षाबन्धन। बाप को जानते तो पहले प्रतिज्ञा करनी है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु
है। दान तो पाँचों ही विकारों का करना है परन्तु पहले-पहले मुख्य काम है, इनसे बड़ा
ख़बरदार रहना है। भल स्त्री भी साथ हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना मेहनत
का काम है। सर्वशक्तिमान बाप को याद करने और उनकी श्रीमत पर चलने से ताकत मिलती है।
बाप का फ़रमान है - साथ में रहते, इकट्ठे रहते पवित्र रहना है। आगे तो स्त्री पुरूष
इकट्ठे रहने से आग लगती थी। बाप कहते हैं इकट्ठे रहो परन्तु आग न लगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिल से बाप को याद कर जायदाद की खुशी में रहना है। पूरा पावन जरूर
बनना है।
2) विचार करना है - “आत्मा कितनी छोटी है और उसमें कितना अविनाशी पार्ट नूँधा
हुआ है'', बिन्दू बन बिन्दू बाप की याद में रहना है।