11-03-12  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 30-05-74 मधुबन

 

रूहानी सेवा में बाप के सदा सहयोगी और एवर-रेडी बनो!

 

युद्ध-स्थल पर उपस्थित योद्धे सर्व शस्त्रं से श्रृंगारे हुए, एवर-रेडी, एक सेकेण्ड में, किसी भी प्रकार के ऑर्डर को प्रैक्टिकल में लाने वाले, क्या सदा विजयी अपने को समझते हो? अभी-अभी ऑर्डर हो, कि दृष्टि को एक सेकेण्ड में रूहानी या दिव्य बनाओ, कि जिसमें देह के अभिमान का, ज़रा भी अंश-मात्र न हो और संकल्प-मात्र में भी न हो, तो क्या स्वयं को ऐसा बना सकते हो? या बनाने में समय लगावेंगे? अगर एक सेकेण्ड से दो सेकेण्ड भी लगाये, तो क्या उसे एवर-रेडी कहेंगे? ऑर्डर हो, कि अपनी श्रेष्ठ स्मृति के आधार पर इस अन्य आत्मा की स्मृति को प्रिवर्तन करके दिखलाओ, तो क्या ऐसे एवररेडी हो? ऑर्डर हो, कि वर्तमान वायुमण्डल को अपनी ईश्वरीय वृत्ति से, अभी-अभी परिवर्तन करो तो क्या कर सकते हो? ऑर्डर हो, कि अपनी वर्तमान सर्वशक्तिमान् स्थिति से किसी अन्य आत्मा की परिस्थिति-वश स्थिति को परिवर्तन करो तो क्या आप कर सकते हो? ऑर्डर हो, कि मास्टर रचयिता बन अपनी रचना को शुभ भावना से व शुभ-चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण सन्तुष्ट करो तथा महादानी और वरदानी बनो तो क्या सर्व को संतुष्ट कर सकते हो? या तो कोई संतुष्ट होंगे और या कोई वंचित रह जावेंगे? सर्व-शक्तियों के भण्डारे से क्या स्वयं को भरपूर अनुभव करते हो? क्या सर्व-शस्त्र आपके सदा साथ रहते हैं? सर्व-शस्त्र अर्थात् सर्व-शक्तियाँ। अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है, तो क्या वह एवर-रेडी कहला सकेंगे? जैसे बाप एवर-रेडी अर्थात् सर्व-शक्तियों से सम्पन्न हैं, तो क्या वैसे फालो-फादर हो?

 

वर्तमान समय बाप के सहयोगियों का ऐसा एवर-रेडी ग्रुप चाहिए। हरेक ग्रुप की कोई-न-कोई निशानी व विशेषता होती है ना? तो ऐसे एवर-रेडी ग्रुप की निशानी क्या है, क्या जानते हो? लौकिक मिलिट्री की तो निशानी देखी होगी। हर एक ग्रुप का मेडल अपना-अपना होता है, तो इस रूहानी मिलिट्री का या एवर-रेडी ग्रुप का मेडल कौन-सा है? क्या यह स्थूल बैज है? यह तो सर्विस का सहज साधन है और सदा साथ का साधन है लेकिन फर्स्ट ग्रुप का मेडल व निशानी है-विजय माला। एक तो विजय माला में पिरोने वालों का है-एवर-रेडी ग्रुप। इसी निश्चय और नशे में सदा विजय की माला पड़ी हुई होती है। ‘सदा विजय’-यही माला पहली निशानी है। ऐसे एवर-रेडी बच्चे इसी स्मृति से सदा श्रृंगारे हुए होंगे। दूसरी निशानी, सदा साक्षी और सदा साथीपन के कवचधारी होंगे। सर्वशक्तियाँ, ऐसे एवर-रेडी के हर समय ऑर्डर मानने वाली सिपाही व साथी रहेंगी। ऑर्डर किया और हर शक्ति जी-हजूर करेगी। उनका मस्तिष्क सदा मस्तक मणि अर्थात् आत्मा की झलक से चमकता हुआ दिखाई देगा। उनके नैन रूहानी लाइट और माइट के आधार से सर्व-आत्माओं को मुक्ति और जीवन-मुक्ति का मार्ग दिखाने के निमित्त बने हुए होंगे। उनका हर्षितमुख अनेक जन्मों के अनेक दु:खों को विस्मृत करा, एक सेकेण्ड में अन्य को भी हर्षित बना देगा? क्या ऐसा एवर रेडी ग्रुप है व विजय की माला गले में है? अथवा और युक्तियाँ औरों से लेते रहते हो या शस्त्रं को किनारे कर, समय पर शस्त्रं की भीख मांगते रहते हो?-यह शक्ति दो, यह सहयोग दो व यह आधार प्राप्त हो। यह संकल्प करना भी भीख मांगना है। ऐसे भिखारी-महादानी, वरदानी कैसे बन सकेंगे? भिखारी, भिखारी को क्या दे सकता है? अपने को देखो, क्या एवर-रेडी ग्रुप के योग्य बने हैं? ऐसे नहीं कि ऑर्डर करें एक, और प्रैक्टिकल हो दूसरा। ऐसे कमजोर तो नहीं हो ना? अभी फिर भी कुछ गैलप (Gallop) करने का चॉन्स है, अभी किसी भी ग्रुप में अपने को परिवार्तित कर सकते हो। लेकिन कुछ समय बाद, गैलप करने का समय भी समाप्त हो जायेगा और जिन्होंने जैसे और जितना पुरूषार्थ किया है, वे वहां ही रह जावेंगे। फिर चाहे कितनी भी एप्लिकेशनडालो लेकिन मंजूर नहीं होगी, मजबूर हो जायेंगे। इसलिए बाप-दादा फिर भी कुछ समय पहले वारनिंग दे रहे हैं, जिससे कि पीछे आने वालों का भी बाप के प्रति कोई उल्हना नहीं रहेगा। इसलिये सेकेण्ड-सेकेण्ड व हर संकल्प के महत्व को जान, अपने को महान् बनाओ। परखने की शक्ति का, स्वयं के प्रति और सेवा के प्रति प्रयोग करो तब ही स्वयं की कमजोरियों को मिटा सकेंगे, और सर्व के प्रति उन्हों को इच्छापूर्वक सम्पन्न कर, महादानी और महावरदानी बन सकेंगे। अच्छा।

 

ऐसे सदा शुभ-चिन्तक, सदा शुभ-चिन्तन में रहने वाले, सर्व की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले, सदा मस्तकमणि द्वारा सर्व-आत्माओं को नॉलेज की लाइट देने वाले व सदा लाइट और माइट हाउस, बाप-दादा के सदा सहयोगी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।

 

दुसरी मुरली - 21-06-74

 

महान् पद की बुकिंग के लिये महीन रूप से चैकिंग आवश्यक

 

आज सभी तकदीरवान विशेष आत्माओं की विशेषता को देख रहे हैं। कोई-कोई अपनी विशेषता को भी यथार्थ रीति से नहीं जानते हैं, कोई-कोई जानते हैं लेकिन वे अपनी विशेषता को कार्य में नहीं लगा सकते और कोई-कोई जानते हुए भी उस विशेषता में सदा स्थित नहीं रह सकते। वे कभी विशेष आत्मा बन जाते हैं या कभी साधारण आत्मा बन जाते हैं। कोटों में कोऊ अर्थात् पूरे ब्राह्मण परिवार में से बहुत थोड़ी आत्मायें अपनी विशेषता को जानती भी हैं, विशेषता में रहती भी हैं और कर्म में आती भी हैं। अर्थात् अपनी विशेषता से ईश्वरीय कार्य में सदा सहयोगी बनती हैं। ऐसी सहयोगी आत्मायें बापदादा की अति स्नेही हैं। ऐसी आत्मायें सदा सरलयोगी व सहजयोगी व स्वत:योगी होती हैं। उनकी मूर्त में सदा ऑलमाइटी अथॉरिटी की समीप सन्तान की खुमारी और खुशी स्पष्ट दिखाई देती है अर्थात् सदा सर्व-प्राप्ति सम्पन्न लक्षण - उनके मस्तक से, नैनों से और हर कर्म में अनुभव होता है। उनकी बुद्धि सदा बाप समान बनने की, एक ही स्मृति में रहती है। ऐसी आत्माओं का हर कदम बाप-दादा के कदम पिछाड़ी कदम ऑटोमेटिकली स्वत: चलता ही रहता है।

 

ऐसी आत्माओं में मुख्य तीन बातें दिखाई देंगी। कौन-सी? तीनों सम्बन्ध निभाने वाले त्रिमूर्ति स्नेही आत्मायें तीन बातों से सम्पन्न होंगी। बाप के सम्बन्ध से उनमें क्या विशेषता होगी?-फरमानबरदार। शिक्षक के रूप से क्या होगी? शिक्षा में वफादार और ईमानदार चाहिये। सतगुरू के सम्बन्ध में आज्ञाकारी। तो यह तीनों विशेषतायें ऐसी त्रिमूर्ति स्नेही आत्माओं में स्पष्ट दिखाई देंगी। अब इन तीनों में अपने को देखो कि कितने परसेन्ट है। क्या सारे दिन की दिनचर्या में तीनों ही सम्बन्धों की विशेषतायें दिखाई देती हैं? इनसे ही अपनी रिज़ल्ट को जान सकते हो। कोई-कोई तो बाप के स्नेही या विशेष शिक्षक के स्नेही या सतगुरू के स्नेही बनकर चल भी रहे हैं, लेकिन बनना त्रिमूर्ति-स्नेही है। तीनों की परसेन्ट पास की होनी चाहिये। एक बात में पास विद ऑनर हो जाओ और दो बातों में मार्क्स कम हो जाए, तो रिज़ल्ट में बाप के समीप आने वाली आत्माओं में न आ सकेंगे। इसलिए तीनों में ही अपनी परसेन्टेज को ठीक करो।

 

जब मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी हो, तो व्यर्थ संकल्पों को मिटाने में भी अथॉरिटी बनो। जब वर्ल्ड आलमाइटी की सन्तान कहलाते हो, तो क्या आप अपने संस्कार, स्वभाव वा संकल्पों पर विजयी बनने की अथॉरिटी नहीं बन सकते? अथॉरिटी जिसके अन्दर सब पर लॉ एण्ड ऑर्डर हो तब ही विश्व पर ला एण्ड ऑर्डर वाला राज्य चला सकेंगे। विश्व के पहले स्वयं को लॉ एण्ड ऑर्डर में चला सकते हो? अगर अभी से लॉ एण्ड ऑर्डर में चलने के संस्कार दिखाई नहीं देते, तो भविष्य में विश्व पर भी राज्य नहीं चला सकते। चलने वाले ही चलाने वाले बनते हैं। चलने में कमजोर हो और चलाने की उम्मीद रखें, यह तो स्वयं को खुश करना है। पहले अपने आप से पूछो:’’मेरे संकल्प, मेरे लॉ एण्ड ऑर्डर में हैं?’’ मेरा स्वभाव लॉ एण्ड ऑर्डर में है? अगर लॉ-लेस है तो क्या मास्टर ऑलमाइटी अथॉरिटी कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं? ऑलमाइटी अथॉरिटी कभी किसी के वशीभूत नहीं हो सकते। क्या ऐसे बने हो?

 

अभी पुरूषार्थियों के स्वयं की चैकिंग का समय चल रहा है। चैकिंग के समय चैक  नहीं करेंगे, तो अपनी तकदीर को चेंज नहीं कर सकेंगे। जो जितने महीन रूप से स्वयं की चैकिंग करते हैं, उतना ही भविष्य महान् पद की प्राप्ति की बुकिंग होती है। तो चैकिंग करना-अर्थात् बुकिंग करना, ऐसे करते हो? या कि जब बुकिंग समाप्त हो जायेगी फिर करेंगे? सबसे श्रेष्ठ बुकिंग कौन-सी है? अष्ट रत्नों की सीट कौन-सी है? क्या एयर-कण्डीशन्ड सीट ली है? एयर-कन्डीशन के लिए कन्डीशन्स  हैं। जैसे एयर-कण्डीशन में, जब जैसे चाहे, वैसे एयर की कन्डीशन कर सकते हैं। ऐसे ही अपने को, जहाँ चाहो, जैसे चाहो वैसे सैट कर सको, तो एयर कण्डीशन की सीट ले सकते हो। इसके लिए सर्व खजाने जमा हैं? कौन-से सर्व खजाने? खजाने सुनाने में तो सब होशियार हो, जैसे सुनाने में होशियार हो, ऐसे ही जमा करने में भी होशियार हो जाओ। सर्व खजाने जमा चाहिये। अगर एक कम है, तो एयरकण्डीशन सीट नहीं मिलेगी फिर तो फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हो। अभी अपनी बुकिंग देखो। अभी तो आपको फिर भी चान्स है। लेकिन जब चान्स समाप्त हो जायेगा, तो फिर क्या करेंगे? इसलिए अब मुख्य पुरूषार्थ चाहिये। हर समय, हर बात में, हर सब्जेक्ट में और हर सम्बन्ध की विशेषता में, स्वयं को चैक करना है। समझा!

 

ऐसे त्रिमूर्ति स्नेही, स्वयं के और विश्व के नॉलेज में त्रिकालदर्शी, तीसरे नेत्र द्वारा स्वयं की सूक्ष्म चैकिंग करने वाले, बाप-दादा के सदा समीप, स्नेही और सदा सहयोगी रहने वाले, लॉ एण्ड ऑर्डर में सदा चलने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार गुडनाइट और नमस्ते। ओम शान्ति।

 

वरदान:- लाइट स्वरूप की स्मृति द्वारा व्यर्थ के बोझ से हल्का रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव

 

जो अपने निज़ी लाइट स्वरूप की स्मृति में रहते हैं उनमें व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने की शक्ति होती है। वे व्यर्थ समय, व्यर्थ संग, व्यर्थ वातावरण को सहज परिवर्तन कर डबल लाइट रहते हैं। साथ-साथ ब्राह्मण परिवार के सम्बन्ध में, सेवा के संबंध में भी हल्के रहते हैं। उनका रिश्ता किसी भी पुराने संस्कार वा संसार से नहीं रहता। किसी देहधारी व्यक्ति या वस्तु की तरफ उनकी आकर्षण हो नहीं सकती। ऐसे तीव्र पुरूषार्थी बच्चे सहज ही फरिश्ते पन की स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं।

 

स्लोगन:- बेफिक्र बादशाह बनना है तो तन-मन-धन को प्रभू समर्पित कर दो।