25-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - अवगुणों को
निकाल साफ दिल बनो, सच्चाई और पवित्रता का गुण धारण करो तो सेवा में सफलता मिलती
रहेगी
प्रश्नः-
तुम ब्राह्मण
बच्चों की कर्मातीत अवस्था कब और कैसे बनेंगी?
उत्तर:-
जब
लड़ाई का सामान पूरा तैयार हो जायेगा तब तुम सबकी कर्मातीत अवस्था नम्बरवार बन
जायेगी। अभी रेस चल रही है। कर्मातीत बनने के लिए पुरानी दुनिया से बुद्धि निकल जानी
चाहिए। शिवबाबा जिनसे 21 जन्मों का वर्सा मिलता है उनके सिवाए दूसरा कोई याद न आये,
पूरा पवित्र बनो।
गीत:-
मुखडा देख ले
प्राणी...
ओम् शान्ति।
जबकि बेहद का बाप बच्चों को मिला है और बच्चों ने पहचाना है, अब हर एक महसूस करते
हैं कि हम कितना पाप आत्मा थे और कितना पुण्य आत्मा बन रहे हैं। जितना-जितना श्रीमत
पर चलेंगे उतना ज़रूर बाप को फालो करेंगे। बच्चों के आगे एक तो यह चित्र है और
देलवाड़ा मंदिर भी पूरा यादगार है। गीत भी गाते हैं दूरदेश के... अब पराये देश,
पतित शरीर में आये हैं। बाप खुद कहते हैं यह पराया देश है। पराया किसका? रावण का।
तुम भी पराये देश अथवा रावणराज्य में हो। भारतवासी पहले राम राज्य में थे। इस समय
पराये अर्थात् रावण राज्य में हैं। शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। यह
ब्रह्मा विचार सागर मंथन कर समझाते हैं कि यह जो जैनी लोग हैं उनका यह देलवाड़ा
मंदिर है। यह जो चैतन्य होकर गये हैं उनका ही जड़ यादगार है। आदि देव आदि देवी भी
बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग है। अब अगर जो उन्हों के भगत हैं उन्हों को ज्ञान मिले तो
अच्छी तरह समझ सकते हैं कि बरोबर नीचे राजयोग की शिक्षा ले रहे हैं। ऊपर में भी
प्रवृत्ति मार्ग, नीचे भी प्रवृत्तिमार्ग। कुवारी कन्या, अधर कन्या का चित्र भी है।
अधरकुमार और कुमार भी हैं। तो मंदिर में आदि देव ब्रह्मा भी बैठा है और बच्चे भी
बैठे हैं। अब तुम समझ गये हो कि ब्रह्मा सरस्वती ही राधे-कृष्ण बनते हैं। ब्रह्मा
की आत्मा का बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। यह बाप और बच्चों का यादगार है। ऐसे
तो नहीं हज़ार लाख चित्र रखेंगे। मॉडल में थोड़े चित्र रखे जाते हैं। यह है जड़ और
हमारा है चैतन्य। जिन्होंने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया है, उन्हों का यादगार
है। जगत अम्बा, जगत पिता और उनके बच्चे हैं। मैजारिटी माताओं की होने कारण
बी.के.नाम लिख दिया है। मंदिर में भी कुवारी कन्या और अधर देवी है। अन्दर जायेंगे
तो हाथियों पर मेल्स के चित्र हैं। यह सब बातें तुम बच्चे ही समझ सकते हो।
तुम अभी स़ाफ दिल बनते हो। आत्मा से अवगुण निकाल रहे हो। तुम्हारी मम्मा किसको
समझाती थी तो उनको तीर लग जाता था। उनमें सच्चाई, पवित्रता थी। थी भी कुमारी। मम्मा
का नाम पहले आता है। पहले लक्ष्मी फिर नारायण। अब बाप कहते हैं मम्मा जैसे गुण धारण
करो। अवगुणों को निकालते जाओ। नहीं निकालेंगे तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे। सपूत बच्चों
का काम है हर एक बात समझना। पहले तुम बेसमझ थे। अब बाबा समझदार बनाते हैं। अज्ञान
में बच्चे खराब होते हैं तो बाप का नाम बदनाम करते हैं। यह तो बेहद का बाप है।
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कहलाकर फिर ईश्वर बाप का नाम बदनाम करेंगे तो उनका क्या हाल
होगा। ऐसा काम क्यों करना चाहिए जो पद भी भ्रष्ट हो और बहुतों का नुकसान भी हो। तो
बाप ने समझाया है दूरदेश से आते हैं पराये देश में। फिर रावण राज्य द्वापर से शुरू
होता है। भक्ति भी द्वापर से शुरू होती है, इस समय सबकी तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत
अवस्था है। यह बेहद का पुराना झाड़ है। बेहद का ज्ञान कोई दे न सके। बेहद का
संन्यास कोई करा न सके। वह हद का संन्यास कराते हैं। बेहद का बाप बेहद की पुरानी
दुनिया का संन्यास कराते हैं। आत्माओं को समझाते हैं हे बच्चे, यह पुरानी दुनिया
है। तुम्हारे अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। विनाश अवश्य
होना ही है इसलिए बेहद के बाप और वर्से को याद करो। हे आत्मायें सुनती हो? हम आत्मा
हैं, परमात्मा बाप हमको पढ़ाते हैं। जब तक यह पक्का निश्चय नहीं, गोया कुछ भी नहीं
समझेंगे। पहले यह निश्चय करें कि हम आत्मा अविनाशी हैं। हम अशरीरी आत्मा शरीर में
आकर प्रवेश करती हैं। नहीं तो आदमशुमारी वृद्धि को कैसे पाये। जैसे आत्मायें परमधाम
से आकर शरीर में प्रवेश करती हैं वैसे परमपिता परमात्मा भी इस शरीर में प्रवेश कर
कहते हैं - तुम हमारे बच्चे हो। तुम मुझ सागर के बच्चे जलकर खाक हो गये हो। अब मैं
आया हूँ तुमको पावन बनाकर वापिस घर ले जाने के लिए। जो विकार में जास्ती जाते हैं
उनको ही पतित भ्रष्टाचारी कहा जाता है। यह सारी दुनिया ही विकारी है इसलिए ड्रामा
प्लैन अनुसार मैं रावण के देश में आया हूँ। 5 हज़ार वर्ष पहले भी आया था। हर कल्प
आता हूँ और आता भी हूँ संगमयुगे। बच्चों को मुक्ति, जीवनमुक्ति देने आता हूँ। सतयुग
में है जीवनमुक्ति। बाकी सब मुक्ति में रहते हैं। तो भी इतनी सब जो आत्मायें हैं
उनको ले कौन जायेगा? बाप को ही लिबरेटर और गाइड कहा जाता है। बाप ही आकर भक्तों को
भक्ति का फल देते हैं। तुम ही पुजारी से पूज्य बनते हो। बाबा कोई और तकलीफ नहीं देते।
देलवाड़ा मंदिर में चित्र बरोबर ठीक हैं। बच्चे योग में बैठे हैं, उन्हों को शिक्षा
देने वाला कौन है? परमपिता परमात्मा का चित्र भी है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा सतयुग
की स्थापना कर रहे हैं। यहाँ भी चित्र में देखो झाड़ के नीचे तपस्या कर रहे हैं।
ब्रह्मा, सरस्वती की भी माँ हो गई। गाया भी जाता है त्वमेव माताश्च पिता... निराकार
को कैसे कह सकते। इसमें उसने प्रवेश किया है तो यह माता बनी ना। संन्यासी तो
निवृत्ति मार्ग वाले हैं - अपने मुख से कहते हैं कि यह हमारे फालोअर्स हैं। वे कहते
हैं हम फालोअर्स हैं। यहाँ तो माता पिता दोनों हैं, इसलिए कहते हैं त्वमेव माताश्च
पिता... बन्धू भी हैं। जिसमें प्रवेश करते हैं वह भी पढ़ते रहते हैं, तो सखा भी बन
जाते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैंने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है। तुम राजयोग सीख
रहे हो। शिवबाबा को अपना शरीर तो है नहीं। वहाँ मंदिर में लिंग रखा है। देलवाड़ा का
अर्थ कोई समझ न सकें। अधरकुमारी, कुँवारी कन्या भी है, सिखलाने वाले शिव का भी
चित्र है। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला ज़रूर उस्ताद चाहिए। वहाँ श्रीकृष्ण की बात
नहीं। जहाँ ब्रह्मा बैठा है - वहाँ श्रीकृष्ण कैसे आये। श्रीकृष्ण की आत्मा तपस्या
कर रही है, सुन्दर बनने के लिए। अभी वह श्याम है। ऊपर में वैकुण्ठ के सुन्दर चित्र
खड़े हैं। ब्राह्मण ब्राह्मणियां ही फिर देवता बनेंगे। तुम्हें ऐसा बनाने वाला सबसे
ऊंचा है। तो यह देलवाड़ा मंदिर भी सबसे ऊंचा है।
तुम बच्चे ज्ञान तो सबको देते हो लेकिन कई समझते हैं कि ज्ञान में आकर पति पत्नी
दोनों साथ रहते पवित्र रहें - यह तो बहुत बड़ी ताकत है। परन्तु यह नहीं समझते कि यह
सर्वशक्तिमान् बाप की ताकत है। बाप देखो स्वर्ग की कितनी भीती देते हैं। बच्चे
पवित्र बनो तो स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे। बाप कहते
हैं बच्चे तुम कितना फर्स्टक्लास थे। तुमको क्या हो गया? बाबा झट बतायेंगे, इस समय
ब्राह्मणों की माला में नम्बरवार कौन-कौन हैं। परन्तु सब कायम नहीं रहेंगे। कमाई
में दशायें बैठती हैं ना। किसको राहू की दशा बैठती है तो फिर छोड़ चले जाते हैं -
पुरानी दुनिया में। कहते हैं हमसे मेहनत नहीं होती है। बाबा को याद नहीं कर सकते।
नहीं कहने से नास्तिक बन जाते हैं। दशायें फिरती रहती हैं। माया के तूफान आने से
ढीले हो जाते हैं। अगर भागन्ती हो गया तो समझेंगे श्याम बन गया। यहाँ आते हैं -
सुन्दर बनने। तुम ब्राह्मण कुल वाले श्याम से सुन्दर बन रहे हो। यहाँ बहुत जबरदस्त
कमाई है। बच्चे जानते हैं मम्मा बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। बच्चे कहते हैं बाबा
हम भी आप जैसा पुरुषार्थ कर ज़रूर तख्तनशीन बनेंगे। वारिस बनेंगे। परन्तु फिर भी
ग्रहचारी बैठ जाती है। चलन भी अच्छी चाहिए। तुम्हारा धन्धा है घर-घर में सन्देश
पहुँचाना कि शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। विनाश सामने खड़ा है - तुम
निमंत्रण देते रहो। तुम्हारी दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जायेगी। सेन्टर्स खुलते
जायेंगे। यह इतना बड़ा मकान भी कम पड़ जायेगा। आगे चल कितने मकान चाहिए। ड्रामा में
आने वालों के लिए प्रबन्ध भी ज़रूर चाहिए। बच्चे अपने लिए सब कुछ कर रहे हैं। तो
बच्चों को बेहद की खुशी होनी चाहिए। परन्तु माया घड़ी-घड़ी बुद्धियोग तोड़ देती है।
अभी माला बन नहीं सकती - अन्त में रुद्र माला बनेगी, फिर विष्णु की माला बन जायेगी।
बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। अम्बा के मंदिर के आगे भी अपना सेन्टर होना
चाहिए जो सबको समझाया जाए, तो अभी यह ज्ञान ज्ञानेश्वरी है। वहाँ भी भीड़ मच जायेगी।
तुम सिर्फ काम करो, पैसे छम-छम कर आ जायेंगे। ड्रामा में पहले से नूंधा हुआ है। तुम
10 सेन्टर खोलो, बाबा ग्राहक दे देंगे। परन्तु सेन्टर ही नहीं खोल सकते। कलकत्ते
जैसे शहर में तो बहुत सेन्टर खुलने चाहिए। हिम्मते बच्चे मददे बाप, किसको भी टच कर
देंगे। काम तुमको करना है। बहुरूपी के बच्चे तुम बहुरूप धारण कर यह सर्विस कर सकते
हो। कहाँ भी जाकर बहुतों का कल्याण कर सकते हो। जैनियों की भी सर्विस करनी है। बहुत
अच्छे बड़े-बड़े जैनी हैं। परन्तु बच्चों की इतनी विशाल बुद्धि नहीं है, जो सर्विस
करें। कुछ देह-अभिमान रहता है। अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप का बनकर माया के वश नहीं होना है। कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ
करना है। बाप को भूल नास्तिक नहीं बनना है।
2) बुद्धि से बेहद का संन्यास करना है। बेहद खुशी में रहकर विशाल बुद्धि बन सेवा
करनी है।
वरदान:-
दिल की समीपता
द्वारा सहयोग का अधिकार प्राप्त कर उमंग-उत्साह में उड़ने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव
जो बच्चे दूर बैठे भी सदा
बाप की दिल के समीप हैं उन्हें सहयोग का अधिकार प्राप्त है और अन्त तक सहयोग मिलता
रहेगा इसलिए इस अधिकार की स्मृति से कभी भी न तो कमजोर बनना, न दिलशिकस्त बनना, न
पुरूषार्थ में साधारण पुरूषार्थी बनना। बाप कम्बाइन्ड है इसलिए सदा उमंग-उत्साह से
तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते रहना। कमजोरी वा दिलशिकस्त-पन बाप के हवाले कर दो,
अपने पास सिर्फ उमंग-उत्साह रखो।
स्लोगन:-
श्रीमत
के कदम पर कदम रखते चलो तो सम्पूर्णता की मंजिल समीप आ जायेगी।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
1) सतोगुणी,
रजोगुणी, तमोगुणी यह तीन शब्द कहते हैं इसको यथार्थ समझना जरूरी है। मनुष्य समझते
हैं यह तीनों गुण इकट्ठे चलते रहते हैं, परन्तु विवेक क्या कहता है - क्या यह तीनों
गुण इकट्ठे चले आते हैं वा तीनों गुणों का पार्ट अलग-अलग युग में होता है? विवेक तो
ऐसे ही कहता है कि यह तीनों गुण इकट्ठे नहीं चलते जब सतयुग है तो सतो-गुण है,
द्वापर है तो रजोगुण है और कलियुग है तो तमोगुण है। जब सतो है तो तमो रजो नहीं, जब
रजो है तो फिर सतोगुण नहीं है। यह मनुष्य तो ऐसे ही समझकर बैठे हैं कि यह तीनों गुण
इकट्ठे चलते आते हैं। यह बात कहना सरासर भूल है, वो समझते हैं जब मनुष्य सच बोलते
हैं, पाप कर्म नहीं करते हैं तो वो सतोगुणी होते हैं परन्तु विवेक कहता है जब हम
कहते हैं सतोगुण, तो इस सतोगुण का मतलब है सम्पूर्ण सुख गोया सारी सृष्टि सतोगुणी
है। बाकी ऐसे नहीं कहेंगे कि जो सच बोलता है वो सतोगुणी है और जो झूठ बोलता है वो
कलियुगी तमोगुणी है, ऐसे ही दुनिया चलती आती है। अब जब हम सतयुग कहते हैं तो इसका
मतलब है सारी सृष्टि पर सतोगुण सतोप्रधान चाहिए। हाँ, कोई समय ऐसा सतयुग था जहाँ
सारा संसार सतोगुणी था। अब वो सतयुग नहीं है, अभी तो है कलियुगी दुनिया गोया सारी
सृष्टि पर तमोप्रधानता का राज्य है। इस तमोगुणी समय पर फिर सतोगुण कहाँ से आया! अब
है घोर अन्धियारा जिसको ब्रह्मा की रात कहते हैं। ब्रह्मा का दिन है सतयुग और
ब्रह्मा की रात है कलियुग, तो हम दोनों को मिला नहीं सकते।
2) इस कलियुगी
संसार को असार संसार क्यों कहते हैं? क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना
कोई भी वस्तु में वो ताकत नहीं रही अर्थात् सुख शान्ति पवित्रता नहीं है, जो इस
सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी। अब वो ताकत नहीं हैं क्योंकि इस सृष्टि
में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का
सागर कहते हैं इसलिए ही मनुष्य दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको
भव सागर से पार करो इससे सिद्ध है कि जरूर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है
जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य
आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली
दुनिया, दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं।
अच्छा - ओम् शान्ति।