ओम् शान्ति।
बच्चों ने मीठा-मीठा गीत सुना। बेहद का बाप बच्चों प्रति समझा रहे हैं। परमपिता
परमात्मा उसको ही कहा जाता है जो श्री श्री यानी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। कहते भी
हैं शिव भगवानुवाच अथवा रुद्र भगवानुवाच। रुद्र परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता
है। तो परमपिता परमात्मा इस शरीर द्वारा अपने बच्चों को समझा रहे हैं। ऐसे और कोई
मनुष्य, साधू, सन्त आदि नहीं कहेंगे कि तुम आत्मा हो। तुम्हारा परमपिता इस मुख कमल
से बोल रहा है। कहते हैं गऊमुख। अब पानी की तो कोई बात नहीं। बाप है ज्ञान का सागर।
श्री श्री 108 रुद्र माला वा शिव माला है ना। तो पहले-पहले यह पक्का निश्चय करो कि
बाबा हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा ही संस्कार ले जाती है। आत्मा ही पढ़ती है,
आरगन्स द्वारा। आत्मा खुद कहती है - मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। भिन्न-भिन्न
नाम, रूप, देश, काल..... सतयुग में पुनर्जन्म लेता हूँ तो नाम-रूप बदल जाता है। यह
आत्मा बोलती है। सतयुग में हूँ तो पुनर्जन्म भी सतयुग में होता है अथवा बाप समझाते
हैं तुम स्वर्ग में हो तो पुनर्जन्म वहाँ लेते हो फिर नाम-रूप बदलता जाता है।
बाप निराकार शिवबाबा इस रथ में आकर समझा रहे हैं - बच्चे, अब तुम हमारे बच्चे बने
हो। तुमको बहुत खुशी चढ़ी हुई है। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं इस ब्रह्मा
द्वारा। आत्मा कहती है - मैं इस शरीर द्वारा बैरिस्टरी अथवा डाक्टरी का पार्ट बजाती
हूँ। हम आत्मा अशरीरी थी फिर गर्भ में आकर शरीर धारण किया है। बाप कहते हैं मैं तो
गर्भ में नहीं आता हूँ। हम ऐसे नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा एक शरीर छोड़ दूसरा
लेते हैं। नहीं, तुम लेते हो। यह (दादा) लेता है। इस आत्मा ने 84 जन्म पूरे लिए
हैं। यह आत्मा अपने जन्मों को नहीं जानती थी। अब 84 जन्मों को जाना है। आत्मा ही
कहती है - मैंने सूर्यवंशी घराने में जन्म लिया। फिर पुनर्जन्म लेते आये। फिर
चन्द्रवंशी घराने में जन्म लिया। फिर पुनर्जन्म लेते-लेते सतयुग, त्रेता, द्वापर,
कलियुग में आये। आत्मा कहती है द्वापर में हमने बाप को बहुत याद किया। परमपिता
परमात्मा के लिंग रूप की पूजा भी की। मैं आत्मा सतयुग में मालिक थी, वहाँ किसकी पूजा
नहीं करती थी। स्वर्ग में भक्ति होती नहीं। आधा-कल्प भक्ति की। अब फिर बाप के
सम्मुख आये हैं। अभी तुम सब निराकार बाप के सम्मुख आये हो साकार द्वारा। बाप कहते
हैं यह ईश्वरीय जन्म भूल नहीं जाना। कहते हैं - बाबा, यह तो बड़ा मुश्किल है। अरे,
मुश्किल क्या बात है। तुम आत्माओं का बाप मैं हूँ। मैं आया हूँ तुमको पतित से पावन
बनाने। तुम स्वर्ग की बादशाही करने लिए पढ़ते हो। ज्ञान के संस्कार मुझ परमपिता
परमात्मा में हैं इसलिए मुझे ज्ञान सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप कहते हैं। खुद
कहते हैं - बरोबर, मैं रचयिता हूँ। मैं परमधाम में रहता हूँ। मैं यहाँ एक ही बार आता
हूँ जबकि मुझे पढ़ाना होता है। पतित सृष्टि को आकर पावन बनाता हूँ। जरूर पतित ही
याद करेंगे। सतयुग में पावन तो याद नहीं करेंगे। ऐसे तो कोई नहीं कहेंगे कि आकर हम
आत्माओं को पतित बनाओ। नहीं, पतित माया ने बनाया है, तब कहते हैं पावन बनाओ। परन्तु
उन्हों को यह पता नहीं है कि मैं कब आता हूँ। मैं आता ही हूँ संगम पर। और कोई समय
नहीं आता हूँ। अभी आया हूँ। तुम मीठे बच्चों ने हमारी गोद ली है। जानते हो बाबा फिर
से प्राचीन राजयोग सिखलाते हैं, जिससे भारत पावन बनता है। यह है निराकार, ईश्वर की
पाठशाला। निराकार बाबा कहते हैं - मैं इस तन में आता हूँ। यह ब्रह्मा तुम्हारी बड़ी
मम्मा है। वह मम्मा सरस्वती जगत अम्बा है - ब्रह्मा की बेटी। बड़ी मम्मा पालना तो
नहीं कर सकती, इसलिए वह जगदम्बा मुकरर रखी है। इसके (ब्रह्मा के) शरीर को जगत अम्बा
नहीं कहेंगे। यह मात-पिता है। यह ब्रह्मा माता भी है। वर्सा माता से नहीं मिल सकता।
वर्सा फिर भी बाप से मिलेगा। इस ब्रह्मा माता के तुम मुख वंशावली हो। बाप कहते हैं
- बच्चे, मेरा बनकर तुम स्वर्ग की बादशाही लेने लिए पुरुषार्थ करते-करते फिर कहाँ
माया की युद्ध में हार नहीं जाना। भाग नही जाना। यह ईश्वरीय बचपन भुलाना नहीं। अगर
भुलाया तो रोना पड़ेगा। तो बी0के0 सरस्वती जिसको जगत अम्बा कहते हैं - वह पालना करने
निमित्त बनी हुई है। यह (ब्रह्मा) पालना कैसे कर सके। कलष पहले-पहले इनको मिलता है।
पहले इनके कान सुनते हैं, फिर जगदम्बा है सम्भालने के लिए। अब बाप कहते हैं मैं
संगम युग पर आया हूँ, तुमको वापिस ले जाने। जैसे धर्माऊ मास, जिसको पुरुषोत्तम मास
कहते हैं ना। वैसे यह भी पुरुषोत्तम युग है। जहाँ उत्तम से उत्तम पुरुष बनना होता
है। पुरुषोत्तम माना उत्तम ते उत्तम पुरुष कौन है? यह श्री लक्ष्मी-नारायण, यह
नर-नारी ऊंच ते ऊंच कैसे और किस द्वारा बने? बाप कहते हैं मेरे द्वारा। मेरा नाम भी
है श्री श्री श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ। ऐसा श्री नारायण जैसा मनुष्य मैं बनाता हूँ। पतितों
को पावन बनाता हूँ। जिससे फिर ऐसे लक्ष्मी-नारायण पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तमनी बनते
हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं सबको भूलते जाओ। मुझ
एक के साथ योग लगाओ। तुम कहते हो हम बाप के बच्चे बने हैं। बाप के स्थापन किये हुए
स्वर्ग के हम मालिक बनेंगे। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। यह है आत्मा की अथवा
बुद्धि की यात्रा। धारणा सब आत्मा को करनी है। शरीर तो जड़ है। आत्मा की प्रवेशता
से यह चैतन्य बनता है।
तो बाप समझाते हैं - लाडले बच्चे, यह याद की मंजिल बड़ी लम्बी है। तीर्थों पर तो
मनुष्य चक्र लगाकर लौट आते हैं। तीर्थों पर तो कभी विकार में नहीं जाते हैं। क्रोध,
लोभ आदि हो जाये, परन्तु पवित्र जरूर रहेंगे। फिर घर में लौट आते हैं तो अपवित्र बन
पड़ते हैं। इस समय सबकी आत्मा भी झूठी तो शरीर भी झूठे हैं। लक्ष्मी-नारायण की
राजधानी से लेकर जो भी आत्मायें आती गई हैं इस समय सब पतित हैं। सतयुग में बेहद का
सुख, शान्ति, पवित्रता रहती है। कलियुग में तीनों नहीं है। घर-घर में दु:ख-अशान्ति
है। कोई-कोई घर में तो इतनी अशान्ति होती है जैसे नर्क। आपस में बहुत लड़ते-झगड़ते
रहते है। तो बाप कहते हैं - यह बचपन भुलाना नहीं। अगर भूले तो ऊंच ते ऊंच वर्सा गँवा
देंगे। भुला दिया, फारकती दे दी तो अधम गति को पायेंगे। अगर श्रीमत पर चलेंगे तो
श्रेष्ठ श्री लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। फिर त्रेता में दो कला कम हो गई इसलिए उनको
क्षत्रियपन की निशानी दे दी है। ऐसे नहीं, वहाँ कोई राम-रावण की लड़ाई लगी। जो माया
पर जीत पहनते हैं वह देवता वर्ण में जाते हैं। पूरे मार्क्स हैं 100, सूर्यवंशी
नम्बरवन जो गद्दी पर बैठेंगे। थोड़े कम मार्क्स होंगे तो सेकेण्ड नम्बर, 33 प्रतिशत
मार्क्स के नीचे आ जाते हैं तो राज्य पीछे मिलता है। सूर्यवंशी का पूरा हो फिर
चन्द्रवंशी का चलता है। सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी बन जाते हैं। सूर्यवंशी राजधानी
पास्ट हो गई। ड्रामा को भी समझना है। सतयुग के बाद त्रेता, सतोप्रधान से सतो हो जाते
हैं। खाद पड़ती जाती है। पहले गोल्डन फिर सिलवर, कॉपर..... अब तुम्हारी आत्मा में
खाद पड़ी हुई है। आत्मा की ज्योति उझाई हुई है। पत्थर बुद्धि बन पड़े हैं, बाप फिर
पारस बुद्धि बनाते हैं। कहते हैं - हे आत्मायें, चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बाप
को याद करो। आठ घण्टा तो पाण्डव गवर्मेन्ट को मदद करो। अभी तुम आसुरी कुल से
ईश्वरीय कुल में आये हो फिर अगर आसुरी कुल में गये अथवा उनको याद किया तो विकर्म
विनाश नहीं होंगे। मेहनत सारी इसमें है। नहीं तो अन्त में बहुत रोना पछताना पड़ेगा।
पापों का बोझा रह जाता है तो फिर तुम्हारे लिए ट्रिब्युनल बैठती है। साक्षात्कार
कराते हैं - तुमने फलाने जन्म में यह किया। काशी कलवट में भी साक्षात्कार कराके सजा
देते हैं। यहाँ भी साक्षात्कार कराए धर्मराज कहेंगे - देखो, बाप तुमको इस ब्रह्मा
तन से पढ़ाता था, तुमको इतना सिखलाया फिर भी तुमने यह-यह पाप किये, न सिर्फ इस जन्म
के परन्तु जन्म-जन्मान्तर के पापों का साक्षात्कार करायेंगे। टाइम बहुत लगता है।
जैसे कि बहुत जन्म सजा खा रहा हूँ फिर बहुत पछतायेंगे, रोयेंगे। परन्तु हो क्या
सकेगा? इसलिए पहले से बता देता हूँ। नाम बदनाम किया तो बहुत सजा खानी पड़ेगी इसलिए
बच्चे, मुझ अपने सतगुरू के निन्दक मत बनना। नहीं तो सजायें भी खायेंगे और पद भी कम
हो जायेगा।
तुम्हारा सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू एक ही है। अब बाप कहते हैं यह ब्रह्मा बच्चा
हमको बहुत याद करता है। ज्ञान भी धारण करते हैं। यह और मम्मा नम्बरवन पास हो फिर
लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, इनकी डिनायस्टी बनती है। जब सब पुरुषार्थ करते हैं तो हम
भी मम्मा-बाबा के मिसल मेहनत कर उनके तख्त के मालिक बनें, मात-पिता को फालो करें और
भविष्य तख्त नशीन बनें। यह रचयिता और रचना की नॉलेज कोई जान नहीं सकते। वह तो
बेअन्त कह देते हैं - हम नहीं जानते हैं, नास्तिक हैं। न जानने के कारण ही भारतवासी
अथवा सब बच्चे दु:खी हुए हैं। लड़ते-झगड़ते रहते हैं - पानी के लिए, जमीन के लिए.....
कहा भी जाता है - यह पास्ट जन्मों के कर्मों का फल है। अभी बाप से तुम ऐसे कर्म
सीखते हो जो तुमको 21 जन्म कभी कर्म कूटना नहीं पड़ेगा। एकदम कर्मातीत अवस्था में
पहुँचा देते हैं। भगवानुवाच - हे बच्चे, मुझ बाप के अथवा मुझ साजन के बनकर फिर कभी
फारकती मत देना। फारकती देने का कभी संकल्प भी नहीं आना चाहिए। वहाँ कभी स्त्री पति
को डायवोर्स देने का संकल्प भी नहीं करेगी। बच्चा कभी बाप को फारकती नहीं देगा।
आजकल तो बहुत देते हैं। सतयुग में कभी फारकती नहीं देते हैं क्योंकि वहाँ तुम अभी
के पुरुषार्थ की प्रालब्ध भोगते हो इसलिए कोई दु:ख का अथवा फारकती का प्रश्न ही नहीं।
यह याद की यात्रा है - परमपिता परमात्मा के पास जाने की रूहानी यात्रा। निराकार
बाप निराकार आत्माओं से बात करते है इस मुख द्वारा। तो यह गऊ मुख हुआ ना। बड़ी माँ
है। तुम हो मुख वंशावली। उनसे ज्ञान रत्न निकलते हैं। बाकी गऊ के मुख से जल कैसे
निकलेगा? बाबा इस मुख द्वारा अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं। एक-एक रत्न लाखों रूपयों
का है। जितना तुम धारण करेंगे.....। मुख्य है ही मन्मनाभव। यह एक रत्न ही मुख्य है।
बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करने से मैं बेहद सुख का वर्सा देने लिए बाँधा हुआ
हूँ। जब तक शरीर है मुझे याद करते रहो तो तुमको स्वर्ग की बादशाही देंगे क्योंकि
तुम आज्ञाकारी, व़फादार बनते हो। जितना जो याद में रहते हैं उतना दुनिया को पवित्र
बनाते हैं। याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। बच्चों को माया घड़ी-घड़ी भुला देती
है इसलिए खबरदार करते हैं। कभी बाप को भुला नहीं देना। मैं तुमको लेने आया हूँ।
सतयुग से फिर नाटक रिपीट होगा। मैं सतयुग का मालिक नहीं बनूँगा। तुमको स्वर्ग की
राजाई देता हूँ। मैं फिर आधा-कल्प वानप्रस्थ में बैठ जाऊंगा। फिर आधा-कल्प मुझे कोई
याद नहीं करते। दु:ख में सभी याद करते हैं। सुख में करे न कोई..... अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) 8 घण्टा पाण्डव गवर्मेन्ट की मदद जरूर करनी है। याद में रह विश्व को
पावन बनाने की सेवा करनी है।
2) कभी कोई उल्टा कर्म करके सतगुरू की निन्दा नहीं करानी है। मम्मा-बाबा जैसा
पुरुषार्थ कर सूर्यवंशी राजाई लेनी है।