28-07-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें रूहानी पण्डा बन सभी धर्म वालों को
शान्तिधाम और सुखधाम का रास्ता बताना है, तुम हो सच्चे पण्डे”
प्रश्नः-
बाप की याद से
किन बच्चों को पूरा बल प्राप्त होता है?
उत्तर:-
जो याद
के साथ-साथ बाप से पूरा-पूरा आनेस्ट रहते हैं, कुछ भी छिपाते नहीं हैं, सच्चे बाप
के साथ सच्चे रहते हैं, कोई पाप नहीं करते हैं, उन्हें ही याद से बल प्राप्त होता
है। कई बच्चे भूलें करते रहते हैं, फिर कहते क्षमा करो, बाबा कहते क्षमा होती नहीं।
हर एक कर्म का हिसाब-किताब है।
गीत:- हमारे
तीर्थ न्यारे हैं……..
ओम् शान्ति।
बच्चों ने यह गीत सुना,
बच्चों के नॉलेज की प्वाइंट्स देखने के लिए कि कैसे अर्थ करते हैं, तो ऐसे-ऐसे गीत
निकाल फिर एक-एक से अर्थ कराना चाहिए क्योंकि इन गीतों को भी करेक्ट किया जाता है
ना। बाबा ने समझाया है कई ऐसे अच्छे गीत हैं जो कभी कोई फिकरात में बैठा हो तो यह
गीत खुशी में लाने में बहुत मदद करेंगे। यह बहुत काम की चीज़ हैं। गीत सुनने से झट
स्मृति आ जायेगी। तुम बच्चे जानते हो बरोबर हम इस धरती के लकी स्टार्स हैं। हमारे
यह तीर्थ भक्ति मार्ग वालों से बिल्कुल न्यारे हैं। तुम हो पाण्डव सेना। उन तीर्थों
पर होती है पण्डों की सेना। हर एक ग्रुप का अलग-अलग पण्डा होता है जो ले जाते हैं।
उनके पास चौपड़े होते हैं। पूछते हैं किस कुल के हो? हर एक अपने कुल वालों को ही
लेंगे। कितने पण्डे लेकर जाते हैं। तुम भी रूहानी पण्डे हो। तुम्हारा नाम ही है
पाण्डव सेना। पाण्डवों की राजधानी नहीं है। पाण्डव पण्डे को कहा जाता है। बाप भी
बेहद का पण्डा है। गाइड को पण्डा कहेंगे। पण्डे ले जाते हैं तीर्थो पर। पुजारी लोग
जानते हैं यह पण्डे यात्रियों को ले आये हैं। ज्ञान मार्ग में भी तुम पण्डे बनते
हो। इसमें कहाँ ले जाने की बात नहीं है। घर बैठे-बैठे भी तुम किसको रास्ता बताते हो
फिर जिसको बताते हो वह भी पण्डा बन जाते हैं। एक-दो को रास्ता बताना है – मनमनाभव।
तुम्हारे में भी बहुत होंगे जिन्होंने तीर्थ किये होंगे। बुद्धि में आता होगा –
बद्रीनाथ, अमरनाथ कैसे जाना होता है। पण्डे लोग भी जानते हैं, तुम हो रूहानी पण्डे।
यह तुम भूलो मत कि हम पुरूषोत्तम संगमयुगी हैं। तुम बच्चों को एक ही बात बुद्धि में
है कि हम मुक्ति-जीवनमुक्ति के पण्डे हैं। ऐसे नहीं स्वर्ग के कोई अलग पण्डे हैं,
मुक्ति के अलग हैं। तुमको यह निश्चय है, हम मुक्तिधाम में जाकर फिर नई दुनिया में
आयेंगे। तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पण्डे हो। पण्डे भी अनेक प्रकार के होते
हैं। तुम फर्स्टक्लास पण्डे हो, सबको पवित्रता का ही रास्ता बताते हो। सबको पवित्र
रहना है। दृष्टि बदल जाती है। तुमने प्रतिज्ञा की है कि हम सिवाए एक के और कोई को
याद नहीं करेंगे। बाबा हम आपको ही याद करेंगे। आपका बनने से हमारा बेड़ा पार होता
है। भविष्य में तो सुख ही सुख है। बाप हमको सुख के सम्बन्ध में ले जाते हैं। यहाँ
तो दु:ख ही दु:ख है। सुख भी काग विष्टा के समान है। तुम पढ़ते ही हो नई दुनिया के
लिए। तुम जानते हो मुक्तिधाम जाकर फिर यहाँ आयेंगे। घर में तो जरूर जायेंगे। यह
यात्रा है याद बल की। शान्तिधाम को भी याद करना होता है। बाप को भी याद करना होता
है। बाप के साथ ऑनेस्ट भी होना चाहिए। बाप कहते हैं ऐसे नहीं कि मैं तुम्हारे अन्दर
को जानता हूँ। नहीं, तुम जो एक्ट करते हो उस पर बाबा समझाते हैं। पुरूषार्थ कराते
हैं। बाकी तुम कोई अवज्ञा अथवा पाप करते हो तो यहाँ पूछा जाता है – कोई पाप तो नहीं
किया? बाबा ने समझाया है आंखें बड़ा धोखा देती हैं। यह भी बताना चाहिए कि बाबा आज
आंखों ने हमको बहुत धोखा दिया। यहाँ तो डर रहता है, घर में जाता हूँ तो मेरी बुद्धि
चलायमान होती है। बाबा यह हमारी बड़ी भारी भूल है, क्षमा करो। बाबा कहते क्षमा की
इसमें बात नहीं, यह तो दुनिया में मनुष्य करते हैं। कोई ने चमाट मारी, अच्छा माफी
मांगी, काम खलास। ऐसे माफी मांगने में देरी थोड़ेही लगती है। बुरे कर्म करते रहो और
कह दो आई एम सॉरी – ऐसे थोड़ेही चल सकता है। यह तो सब जमा हो जाता है। कोई भी
उल्टा-सुल्टा कर्म करते हो, जमा होता है, जिसका अच्छा-बुरा फल दूसरे जन्म में मिलता
जरूर है। क्षमा की बात नहीं। जो जैसा करते ऐसा पाते हैं।
बाबा बार-बार समझाते
हैं एक तो कहते हैं काम महाशत्रु है, यह तुमको आदि-मध्य-अन्त दु:ख देते हैं। बाबा
को कहते ही हैं पतित-पावन। पतित विकार में जाने वाले को ही कहा जाता है। यहाँ बाप
समझाते हैं, यहाँ से फिर बाहर में जाते हो तब इतनी परहेज में नहीं रह सकते तो फिर
ऊंच पद भी पा नहीं सकेंगे। बाबा समाचार तो सुनते हैं ना। यहाँ तो बहुत अच्छा-अच्छा
करते हैं फिर बाहर में जाने से धारणा नहीं रहती। सतयुग में तो विकार की बातें होती
नहीं। अभी तो भारत का यह हाल है। वहाँ तो बड़े-बड़े महलों में रहते हैं, अथाह सुख
है। बाबा बच्चों से भी सब इनक्वायरी करते हैं, बाबा को समाचार तो देना है ना। कोई
तो झूठ भी बोलते हैं। विचार करना चाहिए – हम कितना झूठ बोलते हैं? इनसे तो बिल्कुल
झूठ नहीं बोलना चाहिए। बाप तो ट्रूथ बनाने वाला है। वहाँ झूठ होता नहीं। नाम-निशान
नहीं होता। यहाँ फिर सच का नाम-निशान नहीं है। फर्क तो रहता है ना। बाप कहते हैं यह
कांटों का जंगल है। परन्तु अपने को कांटा समझते थोड़ेही हैं। बाप कहते हैं काम कटारी
चलाना यह सबसे बड़ा कांटा है, इससे ही तुम दु:खी हुए हो। बाबा अब तुम्हें सुख घनेरे
देने आया है। तुम जानते हो बरोबर सुख घनेरे थे। सतयुग को कहा ही जाता है सुखधाम। वहाँ
बीमारियाँ आदि होती नहीं। हॉस्पिटल जेल आदि होते नहीं। सतयुग में दु:ख का नाम नहीं।
त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं तो थोड़ा कुछ होता है, फिर भी हेविन कहा जाता है
ना। बाप कहते हैं – तुम बच्चों को अथाह अतीन्द्रिय सुख में रहना चाहिए। पढ़ाने वाले
को भी याद करना है, भगवान हमारा टीचर है, टीचर को तो सब याद करते हैं। यहाँ रहने
वाले बच्चों के लिए तो बहुत सहज है। यहाँ कोई बन्धन तो है नहीं। बिल्कुल ही
बन्धनमुक्त हैं। शुरू में भट्ठी बनी तो बन्धनमुक्त हो गये। ओना फुरना सिर्फ सर्विस
का ही है। सर्विस कैसे बढ़ायें? बाबा बहुत समझाते रहते हैं। बाबा के पास आते हैं,
मास डेढ़ बहुत उमंग रहता है फिर देखो ठण्डे पड़ जाते हैं। आते ही नहीं सेन्टर्स पर।
अच्छा, फिर क्या करना चाहिए? लिखकर पूछ सकते हो – क्यों नहीं आते हो? हम समझते हैं
शायद माया ने तुम पर वार किया है या किसके संग में फँसे हो या कोई विकर्म किया है,
गिर पड़े हो। फिर भी उठाना तो चाहिए ना। पुरूषार्थ करना चाहिए। दिल लेनी होती है।
तुम चिट्ठी लिख सकते हो। बहुतों को लज्जा आती है तो फिर फाँ हो जाते हैं। यहाँ से
भी होकर जाते हैं, फिर समाचार आता है कि घर में बैठ गया। कहता है मेरी दिल हट गई
है। कोई चिट्ठी में भी लिखते हैं – आपका ज्ञान तो बहुत अच्छा है परन्तु हम पवित्र
नहीं रह सकते हैं इसलिए छोड़ दिया। मेरे में इतनी ताकत नहीं है। सिर्फ लिख देते
हैं। विकार देखो कैसे गिरा देते हैं। यहाँ हाथ भी उठाते हैं कि हम सूर्यवंशी नर से
नारायण बनेंगे। यह नॉलेज ही है नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की। बाबा कहते
हैं गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। यह बाबा की बैग (गोथरी) है ना। यह अच्छी तरह से
पूछते हैं, इनके पास समाचार भी आते हैं, वह शिवबाबा तो कहते हैं मैं पढ़ाने आता
हूँ, जो पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब। बाप कहते हैं दृष्टि को बहुत बदलना है।
कदम-कदम पर खबरदारी चाहिए। याद से ही कदम-कदम में पद्म हैं। बहुत बच्चे फेल हो जाते
हैं। सर्विसएबुल पण्डे भी फेल हो जाते हैं। तुम जब तक यात्रा पर हो, पवित्र रहते
हो। कोई तो यात्रा पर भी ऐसे शौकीन जाते हैं, जो शराब आदि भी अपने साथ वहाँ ले जाते
हैं। छिपाकर रख देते हैं। बड़े-बड़े आदमी इसके बिगर रह नहीं सकते। अभी वह तीर्थ क्या
काम के रहेंगे। लड़ाई वाले भी बहुत शराब पीते हैं। शराब पी, जाकर एरोप्लेन सहित
स्टीमर के ऊपर गिरते हैं। स्टीमर भी खत्म तो खुद भी खत्म।
अभी तुमको मिलता है
ज्ञान अमृत। बाकी याद की है मुख्य बात। जिससे ही तुम 21 जन्म के लिए
एवर-हेल्दी-एवरवेल्दी बनते हो। बाबा ने कहा था यह भी लिख दो 21 जन्म के लिए
एवरहेल्दी, वेल्दी कैसे बन सकते हो आकर समझो। भारतवासी जानते हैं बरोबर भारत में बड़ी
आयु थी। स्वर्ग में कभी कोई बीमार नहीं होते। स्वर्ग में देवी-देवताओं की आयु 150
वर्ष की थी। 16 कला सम्पूर्ण थे। कहते हैं यह कैसे हो सकता। बोलो, वहाँ 5 विकार होते
ही नहीं। वहाँ भी अगर यह विकार होते तो फिर रामराज्य कैसे होता। देवतायें जब वाम
मार्ग में जाते हैं वह भी चित्र तुमने देखे हैं। बड़े गन्दे चित्र होते हैं। यह बाबा
कहते हैं हमने जो देखा है वह बतलाते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैं तो सिर्फ नॉलेज देता
हूँ। शिवबाबा ज्ञान की बातें सुनाते, यह अपने अनुभव की बातें सुनाते रहते। दो हैं
ना। यह भी अपना अनुभव बताते रहते हैं। हर एक को अपनी लाइफ का पता है। तुम जानते हो
आधाकल्प से पाप करते आये हैं। वहाँ फिर कोई पाप नहीं करेंगे। यहाँ पावन कोई है नहीं।
तुम बच्चे जानते हो
अभी रीयल भागवत चल रहा है। भगवान बैठ बच्चों को नॉलेज सुनाते हैं। वास्तव में होनी
चाहिए एक ही गीता। बाकी शिवबाबा की बायोग्राफी क्या लिखेंगे। यह भी तुम जानते हो।
कोई भी किताब आदि कुछ भी रहेगा नहीं क्योंकि विनाश सामने खड़ा है फिर यह पुरूषार्थ
की नॉलेज भी खत्म हो जायेगी। फिर प्रालब्ध शुरू हो जाती। जैसे ड्रामा में जो पार्ट
हुआ, रील फिरता जाता फिर नयेसिर प्रालब्ध शुरू होगी। इतनी सब आत्माओं में अपना-अपना
ड्रामा का पार्ट नूँधा हुआ है। यह बातें समझने वाले समझें। यह है बेहद का नाटक। तुम
कहेंगे हम तुमको बेहद के नाटक के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताते हैं। वह है निराकारी
दुनिया, यह है साकारी दुनिया। हम तुमको सारा राज़ समझाते हैं। यह चक्र कैसे फिरता
है, जिसको तुम समझायेंगे उनको बड़ा मजा आयेगा। ऐसे मत समझो कोई सुनता नहीं है। प्रजा
बहुत बननी है। हार्टफेल नहीं होना है, सर्विस में। तुम समझाते रहो। व्यापारियों के
पास ग्राहक तो बहुत आते हैं, आओ हम तुमको बेहद का सौदा देवें। भारत में इन देवताओं
का राज्य था फिर कहाँ गया? कैसे 84 जन्म लिए, हम तुमको समझायें। भगवानुवाच, तुम अपने
जन्मों को नहीं जानते हो। सर्विस बहुत कर सकते हो। जब फुर्सत मिलती है, बोलो हम
तुमको विश्व की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं। सिवाए बाप के कोई समझा न सके। आओ तो
तुमको रचता और रचना का राज़ समझायें। अभी तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। भविष्य के
लिए अभी कमाई करो। बाबा समझाते हैं ना – बच्चे, तुम ऐसे-ऐसे सर्विस करो। तुम्हारे
ग्राहक यह बातें सुनकर बहुत खुश होंगे। तुमको भी माथा टेकेंगे। शुक्रिया मानेंगे।
व्यापारी लोग तो और भी जास्ती सर्विस कर सकते हैं। व्यापारी लोग धर्माऊ भी निकालते
हैं। तुम तो बड़े धर्मात्मा बनते हो। बाप आकर तुम्हारी झोली भर देते हैं अविनाशी
ज्ञान रत्नों से। अनेक प्रकार की राय बाबा देते हैं, ऐसे-ऐसे करो, पैगाम देते रहो,
थको मत। बहुतों का कल्याण करने लग जाओ। ठण्डे मत बनो। अपनी दृष्टि को भी ठीक रखो।
क्रोध भी नहीं करना है। युक्ति से चलना है। बाप अनेक प्रकार की युक्तियां समझाते
रहते हैं। दुकानदारों के लिए तो बहुत सहज है। वह भी सौदा, यह भी सौदा। कहेंगे यह तो
बहुत अच्छा सौदा है। झट ग्राहक जम जायेंगे। कहेंगे ऐसे सौदा देने वाले महापुरूष को
तो बहुत मदद करनी चाहिए। बोलो यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है तुम फिर मनुष्य से देवता
बन सकते हो। जो जितना करेंगे उतना पायेंगे। अपनी जांच करो – हमारी दृष्टि ने बुरा
काम तो नहीं किया? स्त्री तरफ रग तो नहीं गई? लज्जा आयेगी तो छोड़ देंगे। विश्व का
मालिक बनना कम बात है क्या! जितना पुराना भक्त होगा वह बहुत खुश होगा। थोड़ी भक्ति
की होगी वह कम खुश होगा। यह भी हिसाब है समझने का। बुद्धि कहती है अब हम जायेंगे घर
फिर नई दुनिया में नया कपड़ा पहनकर पार्ट बजायेंगे। यह शरीर छोड़ेंगे और गोल्डन
स्पून इन दी माउथ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे
बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी
बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दृष्टि से कोई भी
बुरा काम नहीं करना है, अपनी दृष्टि को ही पहले बदलना है। कदम-कदम पर सावधानी रखते
हुए पद्मों की कमाई जमा करनी है।
2) जब भी फुर्सत मिलती
है तो बेहद का सौदा करना है, सर्विस में दिलशिकस्त नहीं होना है, सबको बाप का पैगाम
देना है, थकना नहीं है।
वरदान:-
नीरस वातावरण में खुशी की झलक का अनुभव कराने वाले
एवरहैप्पी भव
एवरहैपी अर्थात् सदा खुश रहने का वरदान जिन बच्चों को
प्राप्त है वह दुख की लहर उत्पन्न करने वाले वातावरण में, नीरस वातावरण में,
अप्राप्ति का अनुभव कराने वाले वातावरण में सदा खुश रहेंगे और अपनी खुशी की झलक से
दुख और उदासी के वातावरण को ऐसे परिवर्तन करेंगे जैसे सूर्य अंधकार को परिवर्तन कर
देता है। अंधकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति लाना, नीरस वातावरण
में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवरहैप्पी। वर्तमान समय इसी सेवा की आवश्यकता
है।
स्लोगन:-
अशरीरी
वह है जिसे शरीर की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे।