ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, पढ़ाते हैं, योग सिखलाते हैं। योग कोई
बड़ी बात नहीं है। जैसे बच्चे पढ़ते हैं तो योग जरूर टीचर से रहता है कि हमको फलाना
टीचर पढ़ाते हैं - आप समान बनाने के लिए। एम आब्जेक्ट तो रहती है। समझते हैं कि
फलाना दर्जा पढ़ रहे हैं। उसमें टीचर को कहना नहीं है कि मेरे से योग लगाओ।
आटोमेटिकली पढ़ाने वाले के साथ योग रहता है। सारा दिन तो नहीं पढ़ाते। वह
जन्म-जन्मान्तर तो पढ़ते आये हैं। प्रैक्टिस हो जाती है। यहाँ तो तुम्हारी बिल्कुल
नई प्रैक्टिस है। यह देहधारी टीचर नहीं है। यह है विदेही टीचर, जो हर 5 हजार वर्ष
के बाद तुमको मिलता है। खुद कहते हैं मैं तुम्हारा देहधारी टीचर नहीं हूँ इसलिए ये
याद ठहरती नहीं है। अपने को आत्मा समझना पड़े कि हमको परमपिता परमात्मा टीचर पढ़ा
रहे हैं। टीचर को याद जरूर करना है, जब तक इम्तिहान पास हो। याद करते-करते इम्तिहान
पास हो जायेगा, फिर चले जायेंगे घर। इम्तिहान पूरा होते ही ड्रामा फिनिश हो जाता
है। फिर तुम बच्चों को मालूम है कि हमारी आत्मा में पार्ट भरा हुआ है 84 जन्मों का,
जो हमको बजाना है। यह भी अभी मालूम है। पीछे वहाँ यह याद नहीं रहेगा। यहाँ तुमको
सारी नॉलेज मिलती है। टीचर ही बैठ सारी नॉलेज बच्चों को समझाते हैं, जो समझते रहना
है और याद में भी जरूर रहना है। घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं मन्मनाभव। मन्मनाभव का अर्थ
भी है। बच्चे समझते हैं अक्षर राइट है। बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म
विनाश होंगे, इसमें टाइम तो लगता है। अपनी जाँच करनी है। जैसे पढ़ाई में और
सब्जेक्ट होती हैं हिस्ट्री, हिसाब-किताब, साइन्स आदि। स्टूडेण्ट समझते हैं हम कहाँ
तक पास होंगे। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम इतने-इतने मार्क्स से पास होंगे।
अपने को देखना चाहिए कि हम बाबा को भूल तो नहीं जाते हैं। बहुत लिखते हैं बाबा माया
घड़ी-घड़ी भुला देती है। बहुत माया के तूफान आते हैं, विकल्प आते हैं। न समझने के
कारण लिखते हैं बाबा इसमें पाप तो नहीं लगता? ऐसे-ऐसे संकल्प विकल्प आते हैं। देखने
से ख्याल आता है यह करें। इसमें पाप तो नहीं लगता? बाप कहते हैं, नहीं। पाप तब होगा
जब कर्मेन्द्रियों से विकर्म करेंगे।
बाबा बार-बार समझाते रहते हैं, बच्चों को ज्ञान तो है, यह भी जानते हैं कि विष्णु
और श्रीकृष्ण को स्वदर्शन चक्र क्यों दिखाया है। दिखाते हैं अकासुर, बकासुर को मारा।
अब मारने की तो बात ही नहीं। यह तो अपने पाप कटने की बात है। शिवबाबा को भी कहेंगे
ना स्वदर्शन-चक्रधारी। उनको सारे चक्र का ज्ञान है। आत्मा को बाप से ज्ञान हुआ है,
यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। स्वदर्शन चक्र धारण कर अपने पापों को भस्म करना
है। ज्ञान को धारण कर बाप को याद करो। बाप को याद करने से ही विकर्मो का विनाश होता
है। हरेक को अपने लिए मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे नहीं बाबा दृष्टि बैठ देंगे कि इनके
पाप कट जायें। बाप बैठ यह धन्धा नहीं करते। यूँ तो सबको देखेंगे ही। देखने से वा
ज्ञान देने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाप तो रास्ता बताते हैं ऐसे ऐसे करो तो
विकर्म विनाश होंगे। श्रीमत देते हैं। अच्छा समझो बाप आते हैं - आत्मा समझकर देखते
हैं। ऐसे नहीं इससे हमारे पाप कट जायेंगे, नहीं। पाप कटते हैं अपनी मेहनत से। ऐसे
बाप बैठ करे तो यह तो एक धन्धा हो जाए। बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे तुम अपने बाप को याद
करो। बाप है ही श्रीमत देने वाला। मेहनत अपनी करनी है। बहुत समझते हैं फलाने साधू
संन्यासी की दृष्टि ही बस है। कृपा आशीर्वाद लेते-लेते गिरते ही रहते हैं। वह क्या
कृपा करेंगे। वह तो अपने ब्रह्म महतत्व को ही याद करेंगे। बाप तो साफ रास्ता बताते
हैं ऐसे-ऐसे करो। गाते भी हैं नंगे आये, नंगे जाना है। यह गायन भी इस समय का है।
बाप के वरशन्स फिर भक्ति में काम आते हैं। अब बाप कहते हैं-मुझे याद करो तो विकर्म
विनाश होंगे। बाप तो श्रीमत देते हैं। यह भी ड्रामा में उनका पार्ट है। इसको ही मदद
कहो, ड्रामा अनुसार श्रीमत गाई हुई है। बाप को मत देनी है। कहते हैं अपने को आत्मा
समझो। ऐसे नहीं मदद दे कर्मातीत अवस्था में ले जायेंगे। नहीं। टाइम लगता है। बहुत
मेहनत करनी पड़ती है। अपने को आत्मा समझने का बहुत अच्छा अभ्यास करना है। वास्तव
में माताओं को टाइम बहुत मिलता है। पुरुषों को धन्धे का फुरना रहता है। तुम बच्चों
को बाप को याद करते-करते लाटरी लेनी है ताकि सारी जंक (कट) निकल जाये। फील होता है
फलाने अच्छे पुरुषार्थी हैं। चार्ट रखते हैं। जैसे भक्ति में दो तीन घण्टे भी बैठ
जाते हैं। वानप्रस्थी गुरू आदि बहुत करते हैं। परन्तु उनको भी इतना याद नहीं करते,
जितना देवताओं को याद करते हैं। वास्तव में देवताओं को याद करना नहीं होता है। न
देवतायें कभी सिखलाते हैं।
तुम बच्चों के लिए कोई नई बात नहीं है। और न लाखों वर्ष की कोई बात है। बाप तो
आते ही तब हैं जब स्थापना और विनाश का कार्य होता है। बच्चे जानते हैं यह विनाश तो
कल्प-कल्प होता है। कल्प पहले भी हुआ था। तुम लिखते भी रहते हो 5 हजार वर्ष पहले भी
यह हुआ था। बाप अपने साथ मिलने का जो रास्ता बताते हैं यह कोई नई बात नहीं है। बाप
कहते हैं मैं कल्प-कल्प आकर रास्ता बताता हूँ। तुम बच्चों को यह पता है कि यह हमारे
राज्य की स्थापना हो रही है। जिन देवताओं की पूजा करते हैं उनका राज्य फिर स्थापन
हो रहा है। पांच हजार वर्ष का चक्र है, जो फिरता ही रहता है। मनुष्य वायरे हो जाते
हैं। माया की मत पर सब चल रहे हैं। रावण को क्यों जलाते हैं - अर्थ कुछ नहीं जानते।
तुम्हारा नाम ही है स्वदर्शन-चक्रधारी। एम आब्जेक्ट यह खड़ी है। जो बाबा में ज्ञान
है वह आत्मा को दिया है। जब ड्रामा का चक्र पूरा होता है तब ही बाप आकर नॉलेज देते
हैं। बाप ही आकर यह कर्म सिखलाते हैं। फिर वाम मार्ग में जाने से ही रात शुरू हो
जाती है। फिर हम नीचे उतरते ही आते हैं। सुख कम होता जाता है। तुम्हारी बुद्धि में
ज्यों का त्यों सारा चक्र है जैसे बाप की बुद्धि में है। बाकी तुमको पावन बनने के
लिए मेहनत करनी पड़ती है। बुलाते भी इसलिए हैं कि बाबा हम पतितों को आकर पावन बनाओ,
फिर नॉलेज भी चाहिए। मनुष्य से देवता बनना है। बाप आते हैं बच्चों को राजयोग सिखलाने।
दूसरे कोई को सिखाने आयेगा भी नहीं। पतित-पावन बाप को बुलाते हैं - बाबा हमको आकर
पावन बनाओ। अब तुम पुण्य आत्मा बन रहे हो। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट
हो रही है। कितनी गुह्य बातें हैं। मनुष्य न आत्मा को, न परमात्मा को जानते हैं।
आत्मा जो है जैसी है, जैसा उनका पार्ट है। वह भी बाप ही बतलाते हैं। वण्डर है छोटी
आत्मा में क्या-क्या पार्ट भरा हुआ है। सुनते ही रोमांच खड़े हो जाते हैं। कोई को
आत्मा का साक्षात्कार होता है। आत्माओं की झिलमिल दिखाई देती है। परन्तु उनसे फायदा
ही क्या? यहाँ तो योग लगाना है। मनुष्य समझते हैं साक्षात्कार हुआ, मुक्ति पाई। पाप
भस्म हो गया। यह तो और ही धोखे में रह जाते हैं। बाप तो हर बात समझाते रहते हैं।
कहते हैं तुमको गुह्य बातें सुनाता हूँ। तुम्हारी बुद्धि में सारे चक्र का ज्ञान
है। बस बाबा को, चक्र को याद करना है। टीचर को भी याद करना है, नॉलेज को भी याद करना
है। याद करते-करते ड्रामा अनुसार कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे। जैसे नंगे आये वैसे
ही जाना है। तुम दैवी संस्कार ले जाते हो। वहाँ कोई नॉलेज नहीं। इसको कहा जाता है
सहज याद। योग अक्षर से मनुष्य मूँझ जाते हैं। वह हैं हठयोगी। सहज योग तो बाप सिखलाते
हैं। आगे सुनते थे - गीता के भगवान ने सहज योग सिखाया था। परन्तु उनको जानते नहीं।
100 परसेन्ट मिसअण्डरस्टेण्ड कर दी, जिससे मनुष्य पतित बन पड़े हैं। अनेक मतें हैं।
जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उन्हों के लिए ही यह गीता शास्त्र है। तुम हो
प्रवृत्ति मार्ग वाले। पहले तुम्हारा पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब अपवित्र बन पड़ा
है। अब फिर पवित्र बनना है। बाप तो एवरप्योर है। वह आते ही हैं श्रीमत देने।
बाप कहते हैं इस समय सब तमोप्रधान बन पड़े हैं। पहले सतोप्रधान थे। जैसे हम भी
पहले सतोप्रधान थे फिर तमोप्रधान बने। जो भी आते हैं पोप पादरी आदि पहले सतोप्रधान
होते हैं, फिर एडीशन होते-होते सारा झाड़ तमोप्रधान हो जाता है। अभी तो जड़जड़ीभूत
अवस्था में हैं। तुम बच्चे समझते हो हम ही सतोप्रधान थे फिर नम्बरवार तमोप्रधान बनते
हैं। फिर सतोप्रधान बनना है। नम्बरवार ही बनते जायेंगे। ड्रामा अनुसार। डिटेल तो
बहुत है। जैसे बीज है उनको पता है कैसे झाड़ निकलता है। इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का
राज़ बाप ही बताते हैं। बागवान भी वही है। जानते हैं हमारा बाग कैसा अच्छा था। बाप
को तो नॉलेज है ना। कितना फर्स्टक्लास खुदाई बगीचा था। अभी तो शैतानी बगीचा है।
शैतान कहा जाता है रावण राज्य को। जहाँ तहाँ मारामारी लगी हुई है। अभी बाकी जो
एटामिक बाम्ब्स रहे हुए हैं, वह भी तैयार कर बैठे हैं। सब समझते हैं यह कोई रखने की
चीज़ नहीं है, इनसे विनाश होना है जरूर। अगर विनाश न हो तो सतयुग कैसे आयेगा। यह तो
बिल्कुल साफ है, भल दिखाते हैं - महाभारी महाभारत लड़ाई लगी, 5 पाण्डव बचे। वह भी
गल मरे। परन्तु रिजल्ट कुछ भी नहीं। यह भी ड्रामा बना हुआ है जो बाप बैठ समझाते
हैं। भारत को ही लूटा, अब फिर रिटर्न दे रहे हैं। पिछाड़ी तक देते रहेंगे। यह भी
तुम जानते हो विनाश में सब कुछ खत्म हो जायेगा। जब हमारा राज्य था तो दूसरा कोई का
राज्य था नहीं। हिस्ट्री मस्ट रिपीट। भारत फिर हेविन बनेगा। लक्ष्मी-नारायण का
राज्य होगा। और कोई खण्ड का वहाँ नाम नहीं। अब है कलियुग का अन्त, फिर इन
लक्ष्मी-नारायण का राज्य आयेगा। हम फिर यह बनते हैं। बाप कहते हैं मैं आया हूँ
राजयोग सिखलाने। कल्प-कल्प अनेक बार तुम मालिक बने हो। इन्हों की सारे विश्व में
राजधानी थी। बड़े अकलमन्द थे। वहाँ उन्हों को वजीर आदि से राय लेने की जरूरत नहीं।
यह ड्रामा बना हुआ है फिर रिपीट होगा। श्रीकृष्ण के मन्दिर को कहते हैं सुखधाम।
शिवबाबा आकर सुखधाम स्थापन करते हैं। वह खुद कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले
भारत स्वर्ग था। पहले एक धर्म था फिर दूसरे धर्म आये। बच्चों को वण्डर खाना चाहिए -
बाबा हमको बादशाही कैसे देते हैं। बाप आकर भक्ति का फल देते हैं। कितना सहज है।
परन्तु समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वदर्शन चक्र को धारण कर अपने पापों को भस्म करना है। सम्भाल करो -
कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म न हो। कर्मातीत बनने की स्वयं मेहनत करो।
2) साक्षात्कार की आश नहीं रखनी है, साक्षात्कार करने से मुक्ति नहीं मिलती, पाप
नहीं कटते, साक्षात्कार से फायदा नहीं है। जंक निकलेगी बाप और नॉलेज को याद करने
से।