ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन सुनी। यह है पाप की दुनिया। बच्चे जानते भी
हैं, यह पाप आत्माओं की दुनिया है। कितना बुरा अक्षर है। परन्तु मनुष्य यह समझ नहीं
सकते कि सचमुच यह पाप आत्माओं की दुनिया है। जरूर कोई पुण्य आत्माओं की दुनिया भी
थी, उसको कहा जाता है स्वर्ग। पाप आत्माओं की दुनिया को कहा जाता है नर्क। भारत में
ही स्वर्ग और नर्क की चर्चा बहुत है। मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ,
तो इससे सिद्ध होता है नर्कवासी थे। पतित दुनिया से पावन दुनिया में गया। परन्तु
मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है, जो आता है सो बोल देते हैं। यथार्थ अर्थ कुछ भी नहीं
समझते हैं।
बाप आकर तुम बच्चों को तसल्ली देते हैं कि अब थोड़ा धीरज धरो। तुम पापों के बोझ
से बहुत भारी हो पड़े हो। अब तुमको पुण्य आत्मा बनाए ऐसी दुनिया में ले जाते हैं,
जिसको स्वर्ग कहा जाता है। वहाँ न कोई पाप होगा, न कोई दु:ख होगा। बच्चों को धीरज़
मिला हुआ है। आज यहाँ हैं कल अपने शान्तिधाम, सुखधाम में जायेंगे। जैसे बीमार
मनुष्य थोड़ा ठीक होने पर होता है तो डॉक्टर धीरज देते हैं - जल्दी से तुम बहुत
अच्छा हो जायेंगे। अब यह तो है बेहद का धीरज़। बेहद का बाप कहते हैं - तुम तो बहुत
दु:खी पतित हो गये हो। अब हम तुम बच्चों को आस्तिक बनाते हैं। फिर रचना का भी परिचय
देते हैं। ऋषि आदि तो कहते आये हैं कि हम रचयिता और रचना को नहीं जानते हैं। अब उसको
कौन जानते हैं। कब और किस द्वारा जान सकते हैं, यह किसको पता नहीं है। ड्रामा के
आदि-मध्य-अन्त को कोई जानते ही नहीं। बाप कहते हैं - मैं संगमयुग पर आकर ड्रामा
अनुसार तुम बच्चों को पहले-पहले आस्तिक बनाता हूँ फिर तुमको रचना के आदि-मध्य-अन्त
का राज़ सुनाता हूँ अर्थात् तुम्हारा ज्ञान का तीसरा नेत्र खोलता हूँ। तुमको रोशनी
मिल गई है। आंखों की रोशनी चली जाती है तो मनुष्य अन्धे हो जाते हैं। इस समय मनुष्यों
को ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है। मनुष्य होकर उस बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को
नहीं जानते तो उनको बुद्धिहीन कहा जाता है। गीत में भी है - एक हैं अन्धे की औलाद
अन्धे। दूसरे हैं सज्जे। दिखाते हैं - महाभारत लड़ाई लगी थी और एक आदि सनातन
देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई थी। बाप ने आत्माओं को आकर राजयोग सिखाया था -
सतयुगी स्वराज्य देने के लिए। आत्मायें कहती हैं मैं राजा हूँ, मैं बैरिस्टर हूँ।
तुम्हारी आत्मा अब जानती है - हम विश्व का स्वराज्य पा रहे हैं - विश्व के रचयिता
बाप द्वारा। वह किसका रचयिता है? नई दुनिया का। बाप नई सृष्टि रचते हैं। क्रियेटर
भी है तो उनमें सारा ज्ञान भी है। सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री कोई एक भी नहीं जानते
हैं। किसको ज्ञान का तीसरा नेत्र नहीं है। सिवाए बाप के कोई तीसरा नेत्र दे नहीं
सकता। वर्ल्ड की हिस्ट्री, जॉग्राफी, मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन... यह सब तुम
जानते हो। मूलवतन है आत्माओं की सृष्टि। संन्यासी कहते हैं हम ब्रह्म में लीन हो
जायेंगे वा ज्योति ज्योत समायेंगे। ऐसा है नहीं। तुम जानते हो ब्रह्म तत्व में जाकर
निवास करेंगे। वह शान्तिधाम घर है। वह कह देते हैं ब्रह्म ही भगवान है, कितना फ़र्क
है। ब्रह्म तो तत्व है। जैसे आकाश तत्व है, वैसे ब्रह्म भी तत्व है। जहाँ हम आत्मायें
और परमपिता परमात्मा निवास करते हैं, उनको स्वीट होम कहा जाता है। वह है आत्माओं का
घर। बच्चों को मालूम पड़ा है, ब्रह्म महतत्व में कोई आत्मायें लीन नहीं होती हैं और
आत्मा कभी विनाश को प्राप्त नहीं होती। आत्मा अविनाशी है। यह ड्रामा भी बना बनाया
अविनाशी है। इस ड्रामा के कितने एक्टर्स हैं। अभी है संगमयुग, जबकि सभी एक्टर्स
हाज़िर हैं। नाटक पूरा होता है तो सब एक्टर्स, क्रियेटर आदि सब आकर हाज़िर होते
हैं। इस समय यह बेहद का ड्रामा भी पूरा होता है फिर रिपीट होना है। उन हद के नाटकों
में चेन्ज हो सकती है। ड्रामा पुराना हो जाता है। यह तो बेहद का ड्रामा अनादि
अविनाशी है। बाप त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बनाते हैं। देवतायें कोई त्रिकालदर्शी नहीं
होते हैं। न शूद्र वर्ण वाले त्रिकालदर्शी होते हैं। त्रिकालदर्शी तो सिर्फ तुम
ब्राह्मण वर्ण वाले हो। जब तक ब्राह्मण न बनें तब तक तीसरा नेत्र ज्ञान का मिल न सके।
तुम झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को, सभी धर्मो को भी जानते हो। तुम भी मास्टर नॉलेजफुल
हो जाते हो। बाप बच्चों को आपसमान बनायेंगे ना। ज्ञान का सागर तो एक ही बाप है, जो
सभी आत्माओं का बाप है। सभी बच्चों को आस्तिक बनाए त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अब तुम
बच्चों को सबको यह कहना है कि शिवबाबा आया है, उनको याद करो। जो आस्तिक बनते हैं वह
बाप को अच्छी रीति प्यार करते हैं। तुम्हारे ऊपर बाप का भी प्यार है। तुमको स्वर्ग
का वर्सा देते हैं। गाया हुआ है कि विनाश काले विप्रीत बुद्धि विनशन्ती और विनाश
काले प्रीत बुद्धि विजयन्ती। गीता में कोई-कोई अक्षर सच्चे हैं। श्रीमद् भगवत गीता
है सर्वोत्तम शास्त्र। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। यह भी समझाया है
मुख्य धर्म शास्त्र हैं ही 4 और जो धर्म वाले हैं, वह आते ही हैं सिर्फ अपने धर्म
की स्थापना करने। राजाई आदि की बात नहीं। उनको गुरू भी नहीं कह सकते। गुरू का तो
काम ही है - वापस ले जाना। इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि तो आते हैं फिर उनके
पिछाड़ी उनकी वंशावली भी आती है। गुरू वह जो दु:ख से छुड़ाये और सुख में ले जाये।
वह तो सिर्फ धर्म स्थापन करने आते हैं। यहाँ तो बहुतों को गुरू कह देते हैं। ब्रह्मा,
विष्णु, शंकर को भी गुरू नहीं कह सकते। एक शिवबाबा ही सर्व का सद्गति दाता है।
पुकारते भी एक राम को हैं। शिवबाबा को भी राम कहते हैं। बहुत भाषायें हैं, तो नाम
भी बहुत रख दिये हैं। असुल नाम है शिव। उनको सोमनाथ भी कहते हैं। सोमरस पिलाया
अर्थात् ज्ञान धन दिया। बाकी पानी आदि की तो बात ही नहीं। तुमको सम्मुख नॉलेजफुल,
ब्लिसफुल बना रहे हैं। बाप तो ज्ञान का सागर है। तुम बच्चों को ज्ञान नदियाँ बनाते
हैं। सागर एक होता है। एक सागर से अनेक नदियाँ निकलती हैं। अभी तुम हो संगम पर। इस
समय यह सारी धरती रावण का स्थान है। सिर्फ एक लंका नहीं थी, सारी धरती पर रावण का
राज्य है। रामराज्य में बहुत थोड़े मनुष्य होंगे। यह सिर्फ अभी तुम्हारी बुद्धि में
है। बाबा ने समझाया है - मैं 3 धर्मो की स्थापना करता हूँ - ब्राह्मण, देवता,
क्षत्रिय। फिर वैश्य, शूद्र वर्ण में और सभी आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं।
अनेक धर्मो का विनाश भी कराते हैं। भारत में त्रिमूर्ति का चित्र भी बनाते हैं।
परन्तु उसमें शिव का चित्र गुम कर दिया है। शिव से ही सिद्ध होता है कि परमपिता
परमात्मा शिव ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना कराते हैं, उनको
करनकरावनहार कहा जाता है। खुद भी कर्म करते हैं, तुम बच्चों को भी सिखलाते हैं।
कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी समझाते हैं। रावण राज्य में तुम जो कर्म करते हो वह
विकर्म बन जाता है। सतयुग में जो कर्म करते हो वह अकर्म हो जाता है। यहाँ विकर्म ही
होता है क्योंकि रावण का राज्य है। सतयुग में 5 विकार होते ही नहीं। एक-एक बात समझने
की है और सेकेण्ड में समझाई जाती है। ओम् का अर्थ वो लोग तो बहुत विस्तार से समझाते
हैं। बाप कहते हैं - ओम् माना अहम् आत्मा और यह मेरा शरीर। कितना सहज है। और तुम
समझते हो हम सुखधाम में जा रहे हैं। कृष्ण के मन्दिर को सुखधाम कहते हैं। है भी
कृष्णपुरी। मातायें, कृष्णपुरी में जाने के लिए बहुत मेहनत करती हैं। तुम अभी भक्ति
नहीं करते हो। तुमको ज्ञान मिला है और कोई मनुष्य मात्र में यह ज्ञान नहीं है। मैं
तुमको पावन बनाकर जाता हूँ फिर पतित कौन बनाते हैं? यह कोई बता न सके। सब मेल अथवा
फीमेल भक्तियाँ हैं, सीतायें हैं। सबकी सद्गति करने वाला बाप है। सब रावण की जेल
में हैं। यह है ही दु:खधाम। बाप तुमको सुखधाम का मालिक बनाते हैं। ऐसे बाप को 5
हजार वर्ष बाद सिर्फ तुम देखते हो। लक्ष्मी-नारायण की आत्मा को अब नॉलेज है। हम
छोटेपन में यह (कृष्ण) हैं फिर बड़े बनेंगे, ऐसे शरीर छोड़ेंगे। फिर दूसरा लेंगे और
कोई को यह नॉलेज नहीं है।
बाप कहते हैं - तुम सब पार्वतियाँ हो, शिवबाबा तुमको अमरकथा सुना रहे हैं - अमर
बनाने के लिए, अमरलोक में ले जाने के लिए। यह मृत्युलोक है। तुम सब पार्वतियाँ
अमरनाथ द्वारा अमरकथा सुन रही हो। तुम सच-सच बनते हो सिर्फ बाप को याद करने से
तुम्हारी आत्मा अमर बनती है, जहाँ दु:ख की बात नहीं होती। जैसे सर्प एक खाल छोड़
दूसरी लेते हैं। यह सब मिसाल यहाँ के हैं। भ्रमरी का मिसाल भी यहाँ का है। तुम
ब्राह्मण क्या करते हो? विकारी कीड़ों को बदल देवता बनाते हो। मनुष्य की ही बात है।
भ्रमरी का तो यह एक दृष्टान्त हैं। तुम ब्राह्मण बच्चे अभी बाप द्वारा अमर कथा सुन
रहे हो, औरों को बैठ ज्ञान की भूँ-भूँ करते हो, जिससे मनुष्य से देवता, स्वर्ग की
परी बन जायेंगे। बाकी ऐसे नहीं कि मानसरोवर में डुबकी लगाने से कोई परी बन जायेंगे।
यह सब है झूठ। तुम झूठ ही सुनते आये हो, अब बाप ट्रूथ सुनाते हैं। अब बाप कहते हैं-
अपने को आत्मा समझो। तुम समझते हो निराकार परमपिता परमात्मा इस मुख द्वारा सुना रहे
हैं। हम इन कानों द्वारा सुन रहे हैं। आत्म-अभिमानी बनना है, फिर परमात्मा भी
रियलाइज कराते हैं। मैं कौन हूँ? दूसरा कोई आत्म-अभिमानी बना न सके। सिवाए बाप के
और कोई कह न सके कि तुम आत्म-अभिमानी बनो। शिव जयन्ति भी मनाते हैं परन्तु उनकी
जयन्ति कैसे है, यह नहीं जानते। बाप ही खुद आकर समझाते हैं - मैं साधारण बूढ़े तन
में प्रवेश करता हूँ। नहीं तो ब्रह्मा आयेगा कहाँ से? पतित तन ही चाहिए।
सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा में विराजमान होकर तो ब्राह्मण नहीं रचेंगे। कहते हैं मैं
पतित शरीर, पतित दुनिया में आता हूँ। गाया हुआ है - ब्रह्मा द्वारा स्थापना। फिर
जिसकी स्थापना करते हैं, जो यह ज्ञान पाते हैं वह देवता बन जाते हैं। मनुष्य ब्रह्मा
का चित्र देखकर मूँझ जाते हैं। कहते हैं यह तो दादा का चित्र है। प्रजापिता ब्रह्मा
तो जरूर यहाँ होगा। सूक्ष्मवतन में कैसे प्रजा रचेंगे। प्रजापिता के बच्चे हजारों
ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। झूठ थोड़ेही होगा। हम शिवबाबा द्वारा वर्सा पा रहे
हैं। तुम बच्चों को समझाया है वह अव्यक्त ब्रह्मा है। प्रजापिता तो साकार में चाहिए।
यह पतित ही तो पावन बनते हैं। तत् त्वम्। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आत्म-अभिमानी बनकर इन कानों द्वारा अमरकथा सुननी है। ज्ञान की
भूँ-भूँ कर आप समान बनाने की सेवा में रहना है।
2) बाप समान नॉलेजफुल, ब्लिसफुल बनना है। सोमरस पीना और पिलाना है।