ओम् शान्ति।
यह तो बच्चे जानते हैं, कहते हैं जब हम आपके बने हैं यह पुरानी दुनिया तो खत्म होनी
ही है। यह बेहद के रावण की लंका है जो विनाश होनी है। वह जो सिलान में लंका दिखाते
हैं वह तो बात ही बिल्कुल झूठी है। सीलान एक टापू (बेट) है - समुद्र के बीच में।
बेहद का बाप समझाते हैं कि यह सारी दुनिया है समुद्र के ऊपर, आलराउन्ड समुद्र है।
दिखाते हैं ना - वास्कोडिगामा ने आलराउन्ड चक्र लगाया तो गोया धरती पानी के ऊपर ठहरी
हुई है। बेट हो गया ना। यह बेहद की खाड़ी है। रावण का राज्य सारे बेहद के आइलैण्ड
पर है। यह बेहद की लंका है। सिर्फ सिलान नहीं है। वह समय तो अब है ना। यह तो
शास्त्रों में कितने गपोड़े लगाये हैं। हम भी समझते थे, शायद ऐसा हुआ होगा। कुछ भी
ख्याल नहीं चलता था। विचार करें तब तो ख्याल चले ना। बुद्धि बिल्कुल लॉकप थी। अब
बुद्धि का ताला खुला है। मनुष्य तो समझते हैं बन्दर सेना ली, उन्होंने पत्थर उठाये,
पुल बनाई, आग लगाई..... क्या-क्या बातें बैठ बनाई हैं। आग तो इस समय सारी दुनिया को
लगती है। यह भारत अविनाशी बाप की अविनाशी जन्म भूमि है, इसलिए इनको अविनाशी खण्ड कहा
जाता है। बरोबर भारत प्राचीन था, अब तुम्हारी बुद्धि में बैठा है - बरोबर भारत
अविनाशी खण्ड है। बाकी जो इस समय खण्ड हैं वह सब खत्म हो जायेंगे, विनाश ज्वाला
में। यह विनाश ज्वाला इस यज्ञ से प्रज्वलित हुई है। लड़ाई शुरू यहाँ से ही हुई है।
अभी तो यह छोटी-छोटी रिहर्सल है। तुम्हारी बुद्धि में है कि सारी दुनिया में ही
रावणराज्य है। इसका अब अन्त है और राम राज्य की आदि है। यह बातें और किसकी बुद्धि
में आ न सकें। तुम थोड़े से ही ब्राह्मण जानते हो। समझते भी हो कि अभी यह सारी
दुनिया खत्म हो जायेगी। हम बाप के गले का हार बन जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे।
वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हूबहू रिपीट होती है। कितना अच्छा यह चक्र है। कलियुग
अन्त और सतयुग आदि, इस समय सभी धर्म भी जरूर हैं। हिस्ट्री मस्ट रिपीट, यानी कलियुग
के बाद सतयुग जरूर होना है। जैसे दिन के बाद रात, रात के बाद दिन जरूर आता है। ऐसे
हो न सके कि रात न आये। बाप सब राज़ आकरके समझाते हैं। हम एक्टर 84 जन्म कैसे लेते
हैं वह भी तो जानना चाहिए। 84 लाख जन्म की तो बात ही नहीं है। कल्प की आयु ही 5
हजार वर्ष है। वो लोग तो तुमको कहते हैं कि शास्त्रों में तो ऐसा है नहीं, यह तो
तुम्हारी कल्पना है। न जानने के कारण तो ऐसे ही कहेंगे ना। शास्त्र तो पढ़ते रहते
हैं, उनका कोई दोष तो है नहीं। बाबा कहते हैं सतयुग में यह शास्त्र, कहानियाँ,
नॉविल्स आदि तो होंगी नहीं। वहाँ तो भारत बिल्कुल सचखण्ड बन जाता है। भारत खण्ड सबसे
बड़े ते बड़ा तीर्थ है। यहाँ सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी है। ऐसा मन्दिर कब, कहाँ
भी बन नहीं सकता। फिर भी यह मन्दिर आदि बनेंगे। कब बनेंगे? जब भक्तिमार्ग शुरू होगा
तब बनाते हैं और कोई तो बना न सके। तुम संवत भी बता सकते हो। आज से फलाने टाइम से
भक्ति शुरू होगी। पहले लक्ष्मी-नारायण ही पुजारी बनेंगे, सिंगल ताज होगा। शिवबाबा
का सोमनाथ मन्दिर बनायेंगे। फिर से मुहम्मद गजनवी आदि आकर लूटेंगे। यह बातें तुम
बच्चों को बाप ही बैठ समझाते हैं। कहते भी हैं भगवान आया - गीता का ज्ञान इतना तो
सुनाया जो सारा सागर स्याही बनाओ, सारा जंगल कलम बनाओ तो भी लिख न सके और उन्होंने
गीता फिर कितनी छोटी बना दी है। गीता लाकेट में भी होती है। वैल्युबुल चीज़ है ना।
इतना लव गीता पर रहता है। बाबा ने इतनी छोटी सोनी डिब्बी में डाल प्रेजन्ट भी दी
है। अब तुम बच्चे समझते हो कि ज्ञान का सागर अथाह ज्ञान देते हैं और अन्त तक देते
ही रहेंगे। हम यह मुरली इक्ट्ठी कर सकेंगे क्या? यह रखने की चीज़ ही नहीं है।
शास्त्र आदि तो फिर भी भक्ति मार्ग के काम में आते हैं। हम जो लिखते हैं वह फिर क्या
काम में आयेंगे! कहाँ तो हमारी 2-4 हजार मुरलियां, कहाँ उन्हों की करोड़ों के
अन्दाज में गीतायें बनती हैं सब भाषाओं में। सर्वशास्त्र मई शिरोमणी गीता का बहुत
मान है। गीता शास्त्र आदि कितने पढ़ते होंगे। बाप समझाते हैं - यह ज्ञान जो तुमको
मिलता है यह बिल्कुल ही नया है। इसका पुस्तक तो है नहीं। भगवान राजयोग कैसे सिखाते
हैं। यह अब तुम ब्राह्मण ही जानते हो। तुम्हारे में भी इस ज्ञान के नशे में रहने
वाले बहुत थोड़े हैं। आज उस नशे में रहते हैं, कल भूल जाते हैं। बाप को भूल जाते
हैं तो ज्ञान को भी भूल जाते हैं। बाप को फारकती दी तो खलास। बाप का बनकर अगर विकार
में गये तो गला घुट जायेगा, कुछ भी बोल नहीं सकेंगे। जो बहुत अच्छा-अच्छा प्रचार
करते थे वह आज हैं नहीं। कोई ब्रह्माकुमार कुमारी का आपस में मतभेद हुआ तो बाप से
भी रूठ जाते हैं कि बाबा इनको समझाते नहीं, यह नहीं करते। आखरीन रूठकर पढ़ाई ही छोड़
देते हैं इसलिए बाप कहते हैं कि महामूर्ख देखना हो तो यहाँ देखो। लिखकर भी देते हैं
कि बाबा मैं आपका हूँ। आप से हम सदा सुख का वर्सा अविनाशी लेंगे। फिर फारकती दे देते।
डायओर्स दे देते हैं। अच्छी-अच्छी बच्चियां थी आज वह हैं नहीं, तो वन्डर है ना, माया
अजगर के पेट में चले गये। फिर मुख से कुछ कह न सकें। यह अविनाशी ज्ञान सुना न सकें।
फिर बापदादा की राय पर भी टीका-टिप्पणी करने लग पड़ते हैं। बहुत समझाया जाता है कि
कुछ सुधर जाओ, इसमें ही कल्याण है। परन्तु सुधरते नहीं। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे चले
गये। अभी भी बहुत ऐसे बच्चे हैं जो किनारे पर खड़े हैं। ब्लड से प्रतिज्ञा लिखकर भी
छोड़ देते हैं। बच्चों को तो बाप की पूरी श्रीमत पर चल बाप से पूरा वर्सा लेना
चाहिए।
बाप समझाते रहते हैं - कुछ भी हो दु:ख-सुख, स्तुति-निंदा आदि कोई करे तुम पढ़ाई
को तो ना छोड़ो। कोई किसकी निंदा भी करते हैं क्योंकि बुद्धि में तो ज्ञान है नही।
जानते नहीं हैं कि यह छोटा भाई है वा बड़ा। यह तो बाप ही जाने। अपने मुँह मिया
मिट्ठू नहीं बनना है। माया बड़ी चंचल है। देह-अभिमान वालों का माथा ही एकदम मूड लेती
है। बाबा बच्चों को खबरदार करते रहते हैं। कहाँ न कहाँ माया वार करती रहेगी - अगर
श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो। यह कोई कॉमन सतसंग थोड़ेही है।
तुम कितना धीरज (धैर्यता) से बैठ समझाते हो। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
कैसे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। बाप कहते हैं ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन
चक्रधारी। शंख, चक्र, गदा, पदमधारी - तुमको कहते हैं। वह कहेंगे क्या देवताओं की
महिमा अपने बच्चों को दे रखी है। बाप कहते हैं हे स्वदर्शन चक्रधारी, हे कमल फूल
समान पवित्र बनने वाले, हे गदा-धारी - यह बाप ही समझाते हैं। दुनिया क्या जाने। कहते
भी हैं सर्व का सद्गति दाता एक है। गाते भी हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया...अर्थात्
ब्रह्मा की रात खत्म होती है। ज्ञान सूर्य प्रगटा, ब्रह्मा की रात पूरी होती फिर
दिन शुरू हो जाता है। परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा नया ज्ञान देते हैं। आगे तो
तुम कुछ भी नहीं जानते थे। न आत्मा को, न परमात्मा को, न रचता को और न रचना को जानते
थे। बिल्कुल ही तुच्छबुद्धि बन पड़े थे। तुमको क्या बनाया था! तुम स्वर्ग के मालिक
थे ना। फिर 84 जन्म लेते-लेते अन्त तो आयेगा ना। अब तुम्हारी चढ़ती कला है। बाप कहते
हैं मामेकम् याद करो तो तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। विवेक भी कहता है कि परमपिता
परमात्मा है स्वर्ग का रचयिता, तो हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं! मनुष्यों की बुद्धि
में नहीं आता कि भगवान ने तो नई सृष्टि स्वर्ग रचा, जहाँ देवी-देवता राज्य करते थे।
5 हजार वर्ष पहले स्वर्ग था। अब फिर भगवान आये हैं स्वर्ग की स्थापना करने। यह बातें
बुद्धि में अच्छी रीति बैठ जाएं तो भी अहो सौभाग्य। माया ऐसी है जो बिल्कुल ही
पुरूषार्थ करने नहीं देती। नाक से पकड़ घूंसा मार एकदम बेहोश कर देती है। बॉक्सिंग
है ना। बाबा कहते हैं माया एक सेकेण्ड में गिरा देती है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति से
सेकेण्ड में जीवनबंध बन पड़ते हैं। फारकती दे देते हैं, खलास। निश्चय हुआ - यह
बादशाही लो। संशय हुआ खलास। बड़ा वन्डरफुल खेल है। बाबा कहते हैं अमृतवेले उठ विचार
सागर मंथन करो और तो टाइम सारे दिन में मिलता नहीं है। रात को तो वायुमण्डल खराब
रहता है। भक्ति भी सवेरे उठकर करते हैं। तुम बच्चों को मालूम है कि बाबा एक दो बजे
उठकर मुरली लिखते थे, जो तुम पढ़कर फिर क्लास कराते थे। फिर बाबा बैठ सुनते थे कि
देखें कैसे मुरली चलाते हैं। यह सब तो शिवबाबा का ही कमाल था। कितने अच्छे-अच्छे
बच्चे थे, चले गये। आज हैं नहीं। माया ने एकदम श्रापित कर दिया। बाप तो वर्सा दे रहे
हैं। तो बच्चों को पूरा पुरूषार्थ कर वर्सा लेना चाहिए। अच्छी रीति खुद भी समझते
हैं। बाप भी समझते हैं। बाप का हाथ छोड़ देते हैं। सब कहेंगे तुमने बी.के. को छोड़
दिया है। तुमको तो निश्चय था ना कि हम बेहद का वर्सा पा रहे हैं फिर क्या हुआ जो
मुरली भी नहीं सुनते हो। फिर तो बाप को भी नहीं याद करते होंगे। फिर वह याद आदि सब
उड़ जाती है। ऐसी दुर्गति शल किसी बच्चे की न हो। बाप तो समझ सकते हैं ना - यह बच्चा
बड़ा खराब हो गया है। अच्छे-अच्छे बच्चे भी संगदोष में खराब हो पड़ते हैं। बाबा कहते
हैं कि फर्स्टक्लास बच्चे ही विजय माला के मणके बन सकते हैं। कई बच्चे लिखते हैं कि
बाबा हम आपकी माला का मणका जरूर बनेंगे। बाबा तो कहते हैं तुम बनो - अहो सौभाग्य।
बाप भी चलन से समझ जायेंगे। सर्विस से ही बच्चों की व़फादारी, फरमानबरदारी सिद्ध
होती है। अति मीठा बनना चाहिए। सम्मुख सुनने से वैराग्य आता है। ऐसा फिर कभी नहीं
करेंगे, यह करेंगे। यहाँ से बाहर निकला बस खलास। सब भूल जाते हैं। कितनी वन्डरफुल
बातें हैं।
बाबा के तो दिन-रात ख्यालात चलते रहते हैं। प्रोजेक्टर में गोला इतना बड़ा दिखाई
पड़ना चाहिए जो मनुष्य दूर से ही एकदम अच्छी रीति पढ़ सकें। बड़ी दीवारों पर इतना
बड़ा दिखाई पड़े। क्लीयर हो। एक-एक चित्र स्लाइड से इतना बड़ा दिखाई पड़े जो सामने
कोई भी पढ़ सके। दो गोले भी इतने बड़े दिखाई पड़े। यहाँ से भक्ति मार्ग शुरू होता
है। पहले होती है - अव्यभिचारी भक्ति, फिर है व्यभिचारी भक्ति।
यह ब्रह्मा है शिवबाबा का सपूत बच्चा। ब्रह्मा से अगर कोई सवाल पूछे तो क्या
जवाब नहीं दे सकते हैं? भल शिवबाबा तो जानते हैं परन्तु मैं भी तो समझा सकता हूँ
ना। बाबा ने राइटहैण्ड बनाया है। कुछ तो समझा होगा ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन करना है। कभी भी संशयबुद्धि बन, संगदोष
में आकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
2) माला का मणका बनने के लिए व़फादार, फरमानबरदार बनना है। अपनी चलन रॉयल रखनी
है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।