17-07-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 19-04-73 मधुबन
प्रत्यक्षता का पुरूषार्थ
क्या आप अपने को बापदादा के समीप रहने वाले पद्मापद्म भाग्यशाली, श्रेष्ठ आत्माएं समझते हो? जो जिसके समीप रहने वाले होते हैं, उन में समीप रहने वाले के गुण स्वत: और सहज ही आ जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि ‘संग का रंग’ अवश्य लगता है। तो आप आत्माएं, जो सदा बापदादा के समीप अर्थात् श्रेष्ठ संग में रहती हो, उन के गुण व संस्कार तो अवश्य बापदादा के समान ही होंगे? निरन्तर श्रेष्ठ संग में रहने वाले आप वत्स अपने में सदैव वह रूहानी रंग लगा हुआ अनुभव करते हो? क्या आप वत्स स्वयं को हर समय रूहानी रंग में रंगी हुई आत्माएं समझते हो? जैसे स्थूल रंग स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही कुसंग में रहने वाली आत्माओं का मायावी रंग भी छिप नहीं सकता। बोलो, दिखाई देता है ना? (हाँ।)
तब वैसे ही श्रेष्ठ संग में रहने वालों का रूहानी रंग भी सभी को दिखाई देना चाहिए। कोई भी देखे तो उनको यह मालूम हो कि यह रूहानी रंग में रंगी हुई आत्माएं हैं। ऐसे सभी को मालूम होता है या अभी गुप्त हो? यह रूहानी रंग गुप्त ही रहना है क्या? प्रत्यक्ष कब होना है? क्या अन्त में प्रत्यक्ष होंगे? वह डेट कौन-सी होगी? अन्त की डेट सभी की प्रत्यक्षता के आधार पर है। ड्रामा प्लान अनुसार आप श्रेष्ठ आत्माओं के साथ पश्चाताप का सम्बन्ध है। जब तक पश्चाताप न किया है तब तक मुक्तिधाम जाने का वरसा भी नहीं पा सकते। इसीलिए जो निमित्त बनी हुई हैं उन से ही तो पूछेंगे ना? निमित्त कौन है? आप सभी हो ना? अभी अपने ही आगे अपने सम्पूर्ण स्टेज प्रत्यक्ष नहीं है तो औरों के आगे कैसे प्रत्यक्ष होंगे? क्या अपनी सम्पूर्ण स्टेज आप को श्रेष्ठ दिखाई देती है वह हाथ उठाओ। वास्तव में सम्पूर्ण स्टेज तो नॉलेज से सभी जानते हैं। लेकिन अपने-आप को क्या समझते हो? समीप के हिसाब से उस समान बनेंगे ना? तो अपनी सम्पूर्ण स्टेज दिखाई देती है?
‘मैं कौन हूँ?’ यह पहेली हल नहीं हुई है क्या? कल्प पहले मैं क्या थी, वह अपनी सम्पूर्ण स्टेज भूल गये हैं क्या? औरों को तो 5000 वर्ष की बात पहले याद दिलाती हो। पहले-पहले जब आते हैं तो पूछती हो ना कि पहले कभी मिले थे? जब औरों को कल्प पहले वाली बातें याद दिलाती हो तो याद दिलाने वालों को अपने-आप की तो याद होगी ना? दर्पण स्पष्ट नहीं है? जब दर्पण स्पष्ट होता है और पॉवरफुल होता है तो जो जैसा है वह वैसे ही दिखाई देता है। आप विशेष आत्माएं और सर्व श्रेष्ठ आत्माएं क्या अपनी श्रेष्ठ स्टेज को देख नहीं पातीं? इतनी ही देरी है, विनाश के आने में, जब तक आप निमित्त बनी हुई आत्माओं को अपने सम्पूर्ण स्टेज का स्पष्ट साक्षात्कार हो जाए। अब बताओ विनाश में कितना समय है? जल्दी होना है कि देरी है?
आज सद्गुरूवार है ना? तो आज वतन में रूह-रिहान चल रही थी। कौनसी रूह-रिहान? वर्तमान स्टेज कहाँ तक नम्बरवार पुरूषार्थियों की चल रही है? इसमें रिजल्ट क्या निकली होगी? पहले प्रश्न की रिजल्ट में मैजारिटी 50% से ज्यादा नहीं निकले। वह पहला प्रश्न कौन-सा? इस वर्ष का जो महत्व सुनाया था और डायरेक्शन दिया था कि यह वर्ष विशेष रूप में याद की यात्रा में रहना है वा अव्यक्त स्थिति में स्थित रहते हुए वरदान प्राप्त करने हैं? तो डायरेक्शन प्रमाण जो वर्ष के आदि में अटेन्शन और स्थिति रही वह अभी है? जो अव्यक्त वातावरण व रूहानी अनुभव पहले किये क्या वही रूहानी स्थिति अभी है? स्टेज में व अनुभव में फर्क है? जैसे सभी सेवा-केन्द्रों का आकर्षणम य, वातावरण, जो आप सभी को भी आकर्षण करता रहा, वही क्या सर्विस करते हुए नहीं बन सकता है? इस प्रश्न के रिजल्ट में सुनाया कि 50% भी रिजल्ट नहीं था।
दूसरे प्रश्न में रिजल्ट 60% ठीक थी। वह कौन-सा प्रश्न? सर्विस की रिजल्ट वा उमंग उत्साह में रिजल्ट बहुत अच्छी है। लेकिन बैलेन्स कहाँ है? अगर बैलेन्स ठीक रखो तो बहुत शीघ्र ही मास्टर सक्सेसफुल हो कर अपनी प्रजा और भक्तों को ब्लिस (Bliss) देकर इस दु:ख की दुनिया से पार कर सकेंगे। अभी भक्तों की पुकार स्पष्ट और समीप नहीं सुनाई देती है क्योंकि आपको स्वयं ही अपनी स्टेज स्पष्ट नहीं हैं। यह है दूसरे प्रश्न की रिजल्ट।
तीसरा प्रश्न है, सम्पर्क वा सम्बन्ध में स्वयं अपने आप से सन्तुष्ट वा अन्य आत्माएं कहाँ तक सन्तुष्ट रहीं, सर्विस में वा प्रवृत्ति में। सेवा-केन्द्र भी प्रवृत्ति है ना? तो प्रवृत्ति में व सर्विस में सन्तुष्टता कहाँ तक रही? इसमें माइनॉरिटी पास हैं। मैजॉरिटी 50-50 है। अभी है, अभी नहीं है। आज है, कल नहीं है। इसको 50-50 कहते हैं। इन तीनों प्रश्नों से चलते हुए वर्ष की रिजल्ट स्पष्ट है ना? सुनाया था कि इस वर्ष में विशेष वरदान ले सकते हो? लेकिन एक मास ही वरदानी-मास समझ अटेन्शन रखा। अब फिर धीरे-धीरे समयानुसार वरदानी-वर्ष भूलता जा रहा है।
इसलिए जितना ही इस वरदानी वर्ष में वरदान लेने की स्मृति में रहेंगे तो सहज वरदान भी प्राप्त होंगे, और यदि विस्मृति हुई तो विघ्नों का सामना भी बहुत करेंगे। इसलिए चारों ओर सर्व ब्राह्मण परिवार की आत्माओं के आगे सर्वप्रकार के विघ्नों को मिटाने के लिए जैसे पहले मास में याद की वा लगन की अग्नि को प्रज्वलित किया वैसे ही अभी ऐसा ही अव्यक्त वातावरण बनाना। एक तरफ वरदान दूसरी तरफ विघ्न। दोनों का एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध है। सिर्फ अपने प्रति विघ्न-विनाशक नहीं बनना है। लेकिन अपने ब्राह्मण-कुल की सर्व-आत्माओं के प्रति विघ्न-विनाश करने के लिए सहयोगी बनना है ऐसी स्पीड तेज करो। बीच-बीच में चलते-चलते स्पीड ढीली कर देते हो। इसलिए प्रत्यक्षता होने में भी ड्रामा में इतनी देर दिखाई दे रही है। तभी तो स्वयं को भी प्रत्यक्ष कर सकेंगे। अपने में सर्वशक्तिवान का प्रत्यक्ष रूप अनुभव करो। एक दो शक्ति का नहीं, सर्वशक्तिवान् का। मास्टर सर्वशक्तिवान् हो, न कि दो चार शक्तिवान् की सन्तान हो? सर्वशक्तिवान् को प्रत्यक्ष करो। अच्छा।
मास्टर ब्लिसफुल, मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर सक्सेसफुल, सर्व श्रेष्ठ, सदा रूहानी संग के रंग में रहने वाले विशेष आत्माओं को याद-प्यार और नमस्ते।
दूसरी मुरली - 13-04-73
भक्त और भावना का फल
जैसे भक्तों को भावना का फल देते हैं, वैसे ही कोई आत्मा भावना रखकर, तड़पती हुई, आपके पास आये कि ‘जीय दान दो’ वा ‘हमारे मन को शान्ति दो’ तो आप लोग उनकी भावना का फल दे सकती हो? उन्हें अपने पुरूषार्थ से जो कुछ भी प्राप्ति होती है वह तो हुआ उनका अपना पुरूषार्थ और उनका फल। लेकिन आपको कोई अगर कहे कि मैं निर्बल हूँ, मेरे में शक्ति नहीं है तो ऐसे को आप भावना का फल दे सकती हो? (बाप द्वारा)। बाप को तो पीछे जानेंगे-जब कि पहले उन्हें दिलासा मिले। लेकिन यदि भावना का फल प्राप्त हो सकता है तब उनकी बुद्धि का योग डायरेक्शन प्रमाण लग सकेगा। ऐसी भावना वाले भक्त अन्त में बहुत आयेंगे। एक हैं-पुरूषार्थ करके पद पाने वाले, वह तो आते रहते हैं, लेकिन अन्त में पुरूषार्थ करने का न तो समय रहेगा और न आत्माओं में शक्ति ही रहेगी, ऐसी आत्माओं को फिर अपने सहयोग से और अपने महादान देने के कर्त्तव्य के आधार से उन की भावना का फल दिलाने के निमित्त बनना पड़े। वे तो यही समझेंगे कि शक्तियों द्वारा मुझे यह वरदान मिला। जो गायन है ‘नजर से निहाल करना।’
जैसे बहुत तेज बिजली होती है तो स्विच ऑन करने से जहाँ भी बिजली लगाते हो उस स्थान के कीटाणु एक सेकेण्ड में भस्म हो जाते हैं। इसी प्रकार जब आप आत्माएं अपनी सम्पूर्ण पॉवरफुल स्टेज पर हों और जैसे कोई आया और एक सेकेण्ड में स्विच ऑन किया अर्थात् शुभ संकल्प किया अथवा शुभ भावना रक्खी कि इस आत्मा का भी कल्याण हो-यह है संकल्प-रूपी स्विच। इनको ऑन करने अर्थात् संकल्प को रचने से फौरन ही उनकी भावना पूरी हो जायेगी, वे गद्गद हो जायेंगे, क्योंकि पीछे आने वाली आत्मायें थोड़े में ही ज्यादा राज़ी होंगी। समझेंगी कि सर्व प्राप्तियाँ हुई। क्योंकि उनका है ही कना-दाना लेने का पार्ट। उनके हिसाब से वही सब-कुछ हो जायेगा। तो सर्व-आत्माओं को उनकी भावना का फल प्राप्त हो और कोई भी वंचित न रहे; इसके लिए इतनी पॉवरफुल स्टेज अर्थात् सर्वशक्तियों को अभी से अपने में जमा करेंगे तब ही इन जमा की हुई शक्तियों से किसी को समाने की शक्ति और किसी को सहन करने की शक्ति दे सकेंगे अर्थात् जिसको जो आवश्यकता होगी वही उसको दे सकेंगे।
जैसे डॉक्टर के पास जैसा रोगी आता है, उसी प्रमाण उनको डोज़ देता है और तन्दुरूस्त बनाता है। इसी प्रकार आपको सर्वशक्तियाँ अपने पास जमा करने का अभी से पुरूषार्थ करना पड़े। क्योंकि जिनको विश्व महाराजन् बनना है उनका पुरूषार्थ सिर्फ अपने प्रति नहीं होगा। अपने जीवन में आने वाले विघ्न व परीक्षाओं को पास करना-वह तो बहुत कॉमन है लेकिन जो विश्व-महाराजन् बनने वाले हैं उनके पास अभी से ही स्टॉक भरपूर होगा जो कि विश्व के प्रति प्रयोग हो सके। तो इसी प्रकार यहाँ भी जो विशेष आत्मायें निमित्त बनेंगी उनमें भी सभी शक्तियों का स्टॉक अन्दर अनुभव हो, तब ही समझें कि अब सम्पूर्ण स्टेज की व प्रत्यक्षता का समय नजदीक है। उस समय कोई याद नहीं होगा। दूसरों के प्रति ही हर सेकेण्ड, हर संकल्प होगा।
अभी तो अपने पुरूषार्थ व अपने तन के लिए समय देना पड़ता है, शक्ति भी देनी पड़ती है। अपने पुरूषार्थ के लिए मन भी लगाना पड़ता है, फिर यह स्टेज समाप्त हो जायेगी। फिर यह पुरूषार्थ बदली होकर ऐसा अनुभव होगा कि एक सेकेण्ड भी और एक संकल्प भी अपने प्रति न जाय बल्कि विश्व के कल्याण के प्रति ही हो। ऐसी स्टेज को कहा जायेगा - ‘सम्पूर्ण’ अर्थात् ‘सम्पन्न’। अगर सम्पन्न नहीं तो सम्पूर्ण भी नहीं। क्योंकि सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्ण स्टेज है। तो ऐसे अपने पुरूषार्थ को और ही महीन करते जाना है। विशेष आत्माओं का पुरूषार्थ भी ज़रूर न्यारा होगा। तो क्या पुरूषार्थ में ऐसा परिवर्तन अनुभव होता जा रहा है? अभी तो दाता के बच्चे दातापन की स्टेज पर आने हैं। देना ही उनका लेना होना है। तो अब समय की समीपता के साथ सम्पन्न स्टेज भी चाहिए। आप आत्माओं की सम्पन्न स्टेज ही सम्पूर्णता को समीप लायेगी। तो आप लोग अभी स्वयं को चेक करें कि जैसे पहले अपने पुरूषार्थ में समय जाता था अभी दिन-प्रतिदिन दूसरों के प्रति ज्यादा जाता है? अपनी बाडी कॉनशस देह-अभिमान नेचरली ड्रामा अनुसार समाप्त होता जाएगा। सरकमस्टॉन्सेस प्रमाण भी ऐसे होता जाएगा। इससे ऑटोमेटिकली सोलकॉन्शस होंगे। कार्य में लगना अर्थात् सोलकॉन्शस होना। बगैर सोलकॉन्शस के कार्य सफल नहीं होगा। तो निरन्तर आत्म-अभिमानी बनने की स्टेज स्वत: ही हो जायेगी। विश्व-कल्याणकारी बने हो या आत्म-कल्याणकारी बने हो? अपने हिसाब-किताब करने में बिजी हो या विश्व की सर्व-आत्माओं के कर्मबन्धन व हिसाब-किताब चुक्तु कराने में बिजी हो? किसमें बिजी हो? लक्ष्य रखा है, सदा विश्व-कल्याण के प्रति तन, मन, धन सभी लगाओ। अच्छा! ओम शान्ति।
वरदान:- पावरफुल स्थिति द्वारा रचना की सर्व आकर्षणों से दूर रहने वाले मास्टर रचयिता भव
जब मास्टर रचयिता, मास्टर नॉलेजफुल की पावरफुल स्थिति वा नशे में स्थित रहेंगे तब रचना की सर्व आकर्षणों से परे रह सकेंगे क्योंकि अभी रचना और भी भिन्न-भिन्न रंग-ढंग, रूप रचेगी इसलिए अभी बचपन की भूलें, अलबेलेपन की भूलें, आलस्य की भूलें, बेपरवाही की भूलें जो रही हुई हैं - उन्हें भूल कर अपने पावरफुल, शक्ति-स्वरूप, शस्त्रधारी स्वरूप, सदा जागती ज्योति स्वरूप को प्रत्यक्ष करो तब कहेंगे मास्टर रचयिता।
स्लोगन:- मन की स्थिति में ऐसा हार्ड बनो जो कोई भी परिस्थिति उसे पिघला न दे।