ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि बेहद का बाप विचित्र है और अभी एक नया प्यार लेकर के हम बाबा के
पास बैठे हैं वा आये हैं। इसको नया प्यार कहते हैं। ईश्वर का प्यार सिर्फ एक बार
बच्चों को मिलता है। बच्चे समझ सकते हैं बरोबर परमपिता परमात्मा को हम सब याद करते
हैं। वह बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। वह निराकार विचित्र बाबा इसमें आया हुआ है।
परमपिता परमात्मा हम आत्माओं का बाप है। हम अभी उनको जान-पहचान गये हैं। यह प्यार
भी अनोखा है। वैसे तो हमेशा देहधारी को ही प्यार किया जाता है। यह है विदेही, बिगर
देह के। हम उनके सामने बैठे हैं। वह बहुत प्यार से आकर पढ़ाते हैं। तो नई बात हुई
ना। आगे जो आशायें थी - धन मिले, महल मिलें, वह सब आशायें बदल गई हैं। सारी दुनिया
में तुम्हारी आश बदली हुई है। हम अभी बाबा से विश्व का मालिक बनने का पुरुषार्थ कर
रहे हैं। अभी तुम सम्मुख बैठे हो। जानते हो वही सब आत्माओं का बाप पतित-पावन शिव
है। याद भी उनको ही करते हैं। अभी तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। दिल में उमंग है -
बेहद के बाप से, बेहद का वर्सा लेना है। कितना विचित्र, अनोखा, वन्डरफुल बाबा है!
यह और कोई नहीं जानते। सिर्फ तुम ही जानते हो - बाप कैसे अपना बनाकर फिर पढ़ाते
हैं। तो ऐसी क्या युक्ति करें जो घड़ी-घड़ी बाप को याद करते रहें? बाप राय देते हैं
- हर एक अपने घर में शिव का चित्र रख दे। शिवबाबा का चित्र देख समझेंगे - बेहद का
बाबा पतित-पावन आया हुआ है पावन दुनिया स्थापन करने। उनसे हम अभी 5 हजार वर्ष पहले
मुआफिक वर्सा ले रहे हैं, स्वर्ग के स्वराज्य का। आत्मा जानती है - हम स्वर्ग में
जाकर शरीर के साथ राज्य करेंगे। जो बात कभी स्वप्न में भी नहीं थी, अब वह आया है तो
एक कोठरी अपनी बनाए शिव का चित्र रख उसमें लिख देना चाहिए - बाबा आया हुआ है। उनको
आना ही है स्वर्ग की स्थापना करने। नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने। घड़ी-घड़ी
शिवबाबा को देखते रहेंगे तो याद रहेगी। चित्र गले में भी डाल देते हैं। पति का
चित्र भी गले में डाल देते हैं ना। तुम बच्चों के लिए भी तैयार करा रहे हैं।
पारलौकिक बाप को याद करना बड़ा अनोखा है। और सभी की याद को समेट एक को याद करना है।
जैसे भक्ति मार्ग में भी अपने घर में पूजा की कोठी अथवा मन्दिर बनाते हैं ना, वैसे
ज्ञान मार्ग में भी कोठी बनाए उसमें सिर्फ शिवबाबा का चित्र रखना चाहिए। मनुष्य
समझते हैं - ब्रह्माकुमारियों की मुरली विकार से छुड़ाती है। अरे, यह तो अच्छा है
ना। पावन बनने लिए जरूर विकारों को तो छोड़ना होगा। बिगड़ते हैं - भक्ति क्यों
छोड़ते हो? अच्छा, हम भक्ति करते हैं परन्तु एक की, दूसरा न कोई। और संग बुद्धियोग
तोड़ देना है।
तुम्हारी युद्ध माया से है। तुम बाप को याद करते हो, माया तोड़ने की कोशिश करती
है। हमको शिवबाबा से वर्सा मिलता है - ऐसे याद करते रहेंगे। शिवबाबा को देखते रहेंगे
तो तुम्हारी कोठी वैकुण्ठ बन जायेगी। मीरा भी भक्ति करती थी तो वैकुण्ठ का
साक्षात्कार करती थी। उनको भी साक्षात्कार कराने वाला शिवबाबा है। तुम्हारी बुद्धि
में अब आया है - हम शिवबाबा से विश्व का मालिक बनते हैं। भक्ति मार्ग में यह पता नहीं
रहता - शिव क्या करते हैं? क्यों उस पर बलि चढ़ते हैं? तुम समझते हो - सबसे ऊंच है
शिवबाबा, उनको ही परमात्मा कहा जाता है। परमात्मा से जरूर नई चीज़ मिलेगी। उनको
हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। स्वर्ग में है श्रीकृष्ण, उनको फादर नहीं कहेंगे। वह
तो बच्चा है। स्वर्ग स्थापन करने वाला बाप है निराकार। वह देहधारी नहीं। यूँ तो
आजकल सबको फादर कहते रहते हैं। गांधी को भी बापू जी कहते हैं। परन्तु सब धर्म वाले
नहीं कहेंगे। अर्थ तो समझते नहीं। तुम जानते हो - सबका बापू जी शिवबाबा है। शिव दादा
नहीं, बाबा। वह निराकारी दुनिया में रहते हैं। श्रीकृष्ण को याद करेंगे लेकिन वह तो
वैकुण्ठ निवासी है। ऋषि-मुनि आदि सब देहधारी यहाँ होकर गये हैं। परमात्मा है
निराकार, उनको देह है नहीं। सर्वव्यापी के ज्ञान कारण बुद्धि किसकी भी चलती नहीं।
बाप आकर बुद्धि का ताला खोलते हैं। यहाँ है नई बात। और सतसंग में ऐसे नहीं समझते
हैं कि शिवबाबा नॉलेज दे रहे हैं। वहाँ तो सब देहधारी बैठे हुए हैं। तुमको निश्चय
है - हम निराकार बाप से सुन रहे हैं। निराकार जरूर जब साकार में आये तब तो पहचान
दे। कल्प-कल्प बाप आते हैं। आकर मालिक बनाते हैं। फिर भी माया कितना हैरान करती है!
विघ्न डालती है। रूद्र ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ते हैं। देह अभिमान आने
से ही विघ्न पड़ते हैं। बाबा कहते हैं - अपने को अशरीरी समझो। हम तो बाबा के बने
हैं। बाबा वापिस लेने आये हैं। यह शरीर छोड़ अब वापिस जाना है। अपने से बातें करो।
सूक्ष्म देहधारी वा स्थूल देहधारी सबकी याद छोड़नी है। पक्का-पक्का निश्चय करना है।
हम आत्मायें परमधाम से आई हैं। वहाँ के हम रहने वाले हैं। सतयुग में इतने जन्म
राजाई की। 84 जन्म लिए, अब नाटक पूरा होता है। वापिस जाना है। घर में कोई हंगामा हो
तो कोठरी में शिव का चित्र रख दो।
ब्राह्मण लोग स्त्रियों को कहते हैं कि शिव की पूजा नहीं करनी है। परन्तु शिवबाबा
तो आते ही हैं माताओं के लिए। शिव के ऊपर तो बहुत जाकर लोटियां चढ़ाते हैं। पुजारी
लोग खुश होते हैं क्योंकि मातायें सबसे जास्ती पैसे रखती हैं। भक्ति की सच्ची भावना
अबलाओं माताओं में रहती है। पुरुष तो जैसे खग्गे हैं। घड़ी-घड़ी बाहर निकल जाते
हैं। बुद्धियोग बहुत भटकता है। पत्नि का पति तरफ बहुत मोह जाता है। तुम बच्चे समझते
हो यह दु:खधाम है। अब सुखधाम स्थापन करने वाला बाबा आया हुआ है। युक्तियां रचनी है
- हम बाप को कैसे याद करें? उनको इन आंखों से नहीं देखा जाता। यह आत्मा कहती है -
हमारा शिवबाबा बाप है। शिव का चित्र देखने से बड़ी खुशी होगी।
तुम बच्चों का योग भी अव्यभिचारी चाहिए। शिव का चित्र रख घड़ी-घड़ी याद करते रहो।
बाबा ने अपना मिसाल बताया था। लक्ष्मी-नारायण के चित्र से हमारा कितना प्यार था!
फिर एक दिन ख्याल आया - लक्ष्मी दासी बन पांव दबा रही है। ऐसे तो ठीक नहीं है। तो
आर्टिस्ट को कहा - इससे लक्ष्मी को तो मुक्त कर दो। बाकी नारायण का चित्र पॉकेट में
पड़ा रहता था। एक पॉकेट में, एक मुरादी के बॉक्स में। घड़ी-घड़ी चित्र देखता रहता
था। जैसे मस्त। परन्तु गुप्त करता था। कोई देखे नहीं। नहीं तो कहेंगे - यह क्या करता
है? पहले श्रीकृष्ण से प्यार था फिर उनको छोड़ विष्णु से हो गया। जैसे भक्ति नौधा
होती है। वैसे यह याद भी नौधा होनी चाहिए, इससे प्राप्ति बहुत भारी है। उनसे तो कुछ
नहीं अल्पकाल के लिए थोड़ा सुख मिलता है। फिर दूसरे जन्म में मेहनत करनी पड़े। भक्ति
में, धन्धे आदि में मेहनत लगती है। कमाओ, तब खाओ। बाबा तुमको इस एक जन्म में इतनी
मेहनत कराते हैं जो 21 जन्म प्रालब्ध भोगते रहेंगे। कुछ मेहनत करने की दरकार नहीं
रहेगी। 21 जन्म सदा सुखी रहेंगे। तो ऐसा बाप जो पुरुषार्थ करना सिखलाते हैं, उनको
तो याद करना चाहिए ना। कहते हैं - श्वाँसों श्वाँस याद करो। गुरू लोग अपने शिष्यों
को कहते हैं - माला फेरो। राम-राम करते रहो, बस। राम-राम जपते-जपते रोमांच खड़े हो
जाते हैं। राम-राम की मस्ती में झूलते हैं। जैसे कि राम की पुरी में पहुँच गये हैं।
तुमको तो बाबा कहते हैं - एक शिवबाबा की याद का अजपाजाप करो और कुछ याद न आये।
परन्तु माया भी सामना करती है। भक्ति मार्ग में थोड़ेही माया सामना करती है। यह है
माया और ईश्वर के बच्चों की युद्ध। नाटक भी बनाते हैं - भगवान् ऐसे कहते हैं, माया
ऐसे कहती है। अभी है संगमयुग। माया के उल्टे-सुल्टे संकल्प-विकल्प तो आते रहेंगे।
तूफान ऐसा जोर से लगता है जो मनुष्य को भी उड़ाकर दूर फेंक देता है। यह फिर माया
रावण का तूफान है। उनसे बचने की युक्तियां तो बाबा बताते रहते हैं। तुम कहेंगे हमको
परमपिता परमात्मा राजयोग सिखलाते हैं।
तुमसे कोई पूछे - तुमको यह संन्यास किसने कराया? गुरू कौन है? बोलो - परमपिता
परमात्मा। ऐसा कोई नहीं होगा जिसको भगवान् आकर संन्यास कराये। वह सब मनुष्य, मनुष्य
को कराते हैं। यहाँ बाप आकर कहते हैं - देह सहित जो भी सम्बन्ध हैं उनको छोड़ो। इस
पुरानी दुनिया का त्याग कर नई दुनिया को याद करो - संन्यासी ऐसे थोड़ेही कहेंगे। अब
तो प्रैक्टिकल में पुरानी दुनिया का विनाश होना है, इसलिए सबका बुद्धि से त्याग कर
एक बाप से बुद्धि लगानी है। तुम सगाई करते हो ना। देहधारी को याद किया तो सगाई कच्ची
हो जायेगी। सर्व धर्मानि... मैं फलाना हूँ, यह हूँ...। वह सब छोड़ अपने को आत्मा
समझो। 84 जन्मों को तो तुम जान गये हो। अब खुशी से वापिस जाते हैं। ताली बजानी
चाहिए। हम आत्मायें एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। अपने को देही समझना है। हम आत्मा
पहले-पहले गोरी थी, फिर 84 जन्म लिए। अब वापिस जाकर के फिर आए स्वर्ग में राज्य
करेंगे। यह स्वदर्शन चक्र फिराना कितना सहज है। शिव का चित्र तो पॉकेट में पड़ा रहे।
बाबा आप आये हो, कितने मीठे हो, हमारे बाबा हो ना - ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए।
श्रीकृष्ण के साथ भक्ति मार्ग में ऐसी बातें करते थे ना। शिव का फर्स्ट क्लास लॉकेट
सोने-चांदी का बनायेंगे। गरीबों को सोने का, साहूकारों को चांदी का देंगे। यह मातायें
बड़ी मीठी हैं। गांव वालों में भाव अच्छा रहता है। साधारण बच्चों को देख बाबा भी
खुश होते हैं। श्रीकृष्ण को गांवड़े का छोरा कहते हैं ना। श्रीकृष्ण तो गांवड़े का
छोरा बन न सके। वह तो स्वर्ग का मालिक है। इनकी और श्रीकृष्ण की बातें मिक्स कर दी
हैं। गांवड़े का पूरा अनुभव इनको है। तो शिवबाबा वा श्रीकृष्ण गांवड़े का छोरा बन न
सके। हाँ, यह (दादा) छोटेपन में था। पला ही गांवड़े में हूँ। तो इस साधारण तन में
फिर बाप ने आकर प्रवेश किया है। बाबा ने मुख्य बात समझाई है कि सारा मदार है याद पर।
याद कभी भूलनी नहीं चाहिए। लौकिक बच्चा थोड़ेही कभी कहेगा - मैं बाप को भूल जाता
हूँ। सज़नी कभी साजन को भूल जाती है क्या? इम्पासिबुल है। यह है तुम बच्चों के लिए
मेहनत। निरन्तर याद के अभ्यास से ही विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो फिर सजा खानी
पड़ेगी। विजय माला में आ नहीं सकेंगे। कमाल है बाप की जो बुढ़ियों, गरीबों, गणिकाओं,
अहिल्याओं, कुब्जाओं आदि को आकर अपना बनाते हैं। यूँ तो कोई चित्र की दरकार नहीं
है। परन्तु माया भुला देती है, इसलिए चित्र रखा जाता है। बुद्धि में रहना चाहिए हम
जाते हैं बाबा के पास। रास्ता देख लिया है मुक्ति-जीवनमुक्ति का। और कोई पण्डा होता
ही नहीं है। इनको इन्द्रप्रस्थ भी कहते हैं, कोई पतित आकर छिप करके बैठेगा तो
पत्थरबुद्धि बन जायेगा। बाबा तो अन्तर्यामी है ना! यह बाबा (ब्रह्मा) बाहर-यामी है।
उस बाबा को झट मालूम पड़ जाता है - पतित छिपा हुआ बैठा है। तो जिसने ऐसे पतित को
लाया उनको और जो पतित आकर बैठा होगा - उन दोनों को सजा मिलेगी इसलिए कभी भी पतित को
नहीं लाना चाहिए। लॉ ऐसे कड़े हैं। कोई पतित छी-छी को नहीं बिठाना चाहिए। नहीं तो
बड़ी कड़ी सजा के भागी बन जायेंगे। यहाँ कोई चोरी ठगी चल न सके। पाप और पुण्य का
हिसाब-किताब धर्मराज के पास रहता है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सभी की याद को समेट, बुद्धियोग सभी से तोड़ एक बाप की याद में रहना
है। शिवबाबा की कोठी बनाए उनकी अव्यभिचारी याद में बैठना है।
2) अपने आपसे मीठी-मीठी बातें करनी है। हम पहले कितने सुन्दर (गोरे) थे, फिर 84
जन्म लिए, अब खुशी से वापिस जाते हैं - ऐसे अपने साथ बातें कर स्वदर्शन चक्र फिराना
है।