23-12-07 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
1992 "बापदादा" मधुबन
यथार्थ निर्णय का आधार -
निश्चयबुद्धि और निश्चिंत स्थिति
सदा अपने को विजयी
रत्न अनुभव करते हो? सदा विजयी बनने का सहज साधन क्या है? सदा विजयी बनने का सहज
साधन है-एक बल एक भरोसा। एक में भरोसा और उसी एक भरोसे से एक बल मिलता है। निश्चय
सदा ही निश्चिंत बनाता है। अगर कोई समझते हैं कि मुझे निश्चय है, तो उसकी निशानी है
कि वो सदा निश्चिंत होगा और निश्चिंत स्थिति से जो भी कार्य करेगा उसमें जरूर सफल
होगा। जब निश्चिंत होते हैं तो बुद्धि जजमेन्ट यथार्थ करती है। अगर कोई चिंता होगी,
फिक्र होगा, हलचल होगी तो कभी जजमेन्ट ठीक नहीं होगी। तराजू देखा है ना। तराजू की
यथार्थ तौल तब होती है जब तराजू में हलचल नहीं हो। अगर हलचल होगी तो यथार्थ नहीं कहा
जायेगा। ऐसे ही, बुद्धि में अगर हलचल है, फिक्र है, चिन्ता है तो हलचल जरूर होगी।
इसीलिए यथार्थ निर्णय
का आधार है-निश्चयबुद्धि, निश्चिंत। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। क्योंकि फॉलो फादर
है ना। यह करूँ, वह करूँ........ - ये तब सोचे जब अपना कुछ करना हो। फॉलो करना है
ना। तो फॉलो करने के लिए सोचने की आवश्यकता नहीं। कदम पर कदम रखना। कदम है श्रीमत।
जो श्रीमत मिली है उसी प्रमाण चलना अर्थात् कदम पर कदम रखना। तो सोचने की आवश्यकता
है क्या? नहीं है ना। निश्चिंत हैं तो सदा ही निर्णय यथार्थ देंगे। जब निर्णय
यथार्थ होगा तो विजयी होंगे। निर्णय ठीक नहीं होता तो जरूर हलचल है। जब भी कोई हलचल
हो तो सोचो कि ब्रह्मा बाप ने क्या किया? क्योंकि ब्रह्मा बाप कर्म का सैम्पल है।
ब्रह्मा बाप ने हर कदम श्रीमत पर उठाये। तो फॉलो फादर। सिर्फ फॉलो ही करना है, कोई
नया रास्ता नहीं निकालना है, सोचना नहीं है। जब मनमत मिक्स करते हो तब मुश्किल होता
है। एक-मुश्किल होगा, दूसरा-असफल। मेहनत तो की है ना। गांव में खेती का काम करते
हैं तो मेहनत करते हैं। यहाँ तो मेहनत नहीं करनी है। सहज पसन्द है या मेहनत? मेहनत
करके, अनुभव करके देख लिया।
अब बाप कहते हैं -
मेहनत छोड़ मोहब्बत में रहो, लवलीन रहो। जो लव में लीन होता है उसको मेहनत नहीं करनी
पड़ती है। ब्राह्मण माना मौज, ब्राह्मण माना मेहनत नहीं। बाप ने कहा और बच्चों ने
किया-इसमें मेहनत की क्या बात है! बच्चों का काम है करना, सोचना नहीं। सहज योगी हो
ना। सदा विजयी रत्न हो ना। यह रूहानी निश्चय चाहिए कि हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे!
इतना अटल निश्चय हो। जब फॉलो फादर कर रहे हो तो कौन बनेंगे। वही बनेंगे ना। निश्चय
तो निश्चय ही हुआ ना। अगर निश्चय में 10%, 20% कम हुआ तो निश्चय नहीं कहेंगे।
जो सदा विजयी है उसी
को ही बेफिक्र बादशाह कहा जाता है। जो अभी बादशाह बनता है वो ही भविष्य में बादशाह
बनेंगे। अभी बेफिक्र बादशाह नहीं तो भविष्य में भी नहीं। तो राजा बनने वाले हो या
औरों को राज्य करते हुए देखेंगे? स्वराज्य है तो विश्व-राज्य है। ऐसे अधिकारी हो?
अधीन तो नहीं होते-क्या करें, संस्कार पक्का है? ऐसे तो नहीं - चाहते नहीं लेकिन हो
जाता है? इसको कहेंगे अधीन। तो कभी अधीन तो नहीं हो जाते? क्रोध करना तो नहीं चाहते
लेकिन आ जाता है। चाहते नहीं हैं लेकिन मजबूर हो जाते हैं। नहीं। अधिकारी बन गये तो
अधीनता समाप्त हुई। जैसे चाहें, जो चाहें वह कर सकते हैं। अधिकारी के संकल्प में यह
कभी नहीं आयेगा कि-’’चाहते नहीं हैं, हो जाता है, पुरूषार्थ कर रहे हैं, हो जायेगा।’’
इससे सिद्ध है कि अधीन हैं। जो अधीन होगा वह अधिकारी नहीं। जो अधिकारी होगा वो अधीन
नहीं। या रात होगी या दिन होगा। दोनों इकट्ठे नहीं। ‘अधिकार’ और ‘अधीनता’ - दोनों
इकट्ठे नहीं चल सकते। मातायें अधिकारी बन गई? लोगों ने कहाँ फेंक दिया और बाप ने कहाँ
रख दिया! लोगों ने पांव की जुत्ती बना दिया और बाप ने सिर का ताज बनाया। खुशी है
ना। कहाँ जूती, कहाँ ताज-कितना फर्क है! अभी तो शक्तिस्वरूप बन गये। पाण्डव भी
शक्तिरूप में देखते हैं ना। शिव शक्ति भी विजयी हैं तो पाण्डव भी विजयी हैं। अविनाशी
निश्चय, अविनाशी नशा है तो सदा ही विजय निश्चित है। अच्छा!
2 - सदा तन्दरूस्त
रहने के लिये रोज खुशी की खुराक खाइये
सभी अपने को खुशनसीब
आत्मायें अनुभव करते हो? जो खुशनसीब आत्मायें हैं उनके मन में सदा खुशी के गीत बजते
हैं। ‘‘वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!’’ - यह गीत बजता है ना। यह खुशी का गीत गाना तो सभी
को आता है ना। चाहे बूढ़ा हो, चाहे बच्चा हो, चाहे जवान हो-सभी गाते हैं। और मन में
है ही क्या जो चले। यही खुशी के गीत बजेंगे ना। और सब बातें खत्म हो गई। बस, बाप और
मैं, तीसरा न कोई। जब ऐसी स्थिति बन जाती है तब खुशी के गीत बजते हैं - ’’वाह बाबा
वाह, वाह मेरा भाग्य वाह!’’ वैसे भी गाया हुआ है - ’खुशी’ सबसे बड़ी खुराक है, खुशी
जैसी और कोई खुराक नहीं। जो खुशी की खुराक खाने वाले हैं वो सदा तंदुरुस्त रहेंगे,
हेल्दी रहेंगे, कभी कमजोर नहीं होंगे। जो अच्छी खुराक खाते हैं वो शरीर से कमजोर नहीं
होते हैं। खुशी है मन की खुराक। मन कभी कमजोर नहीं होगा, सदा शक्तिशाली। मन और
बुद्धि सदा शक्तिशाली हैं तो स्थिति शक्तिशाली होगी। ऐसी शक्तिशाली स्थिति वाले सदा
ही अचल-अडोल रहेंगे। तो खुशी की खुराक खाते हो? या कभी खाते हो, कभी भूल जाते हो?
ऐसे होता है ना। शरीर के लिए भी ताकत की चीजें देते हैं तो कभी खाते हैं, कभी भूल
जाते हैं। यह खुराक किस समय खाते हो? कभी खाओ, कभी न खाओ - ऐसे तो नहीं है।
सबसे बड़ी खुशी की बात
है - बाप ने अपना बना लिया! दुनिया वाले तड़पते हैं कि भगवान की एक सेकेण्ड भी नज़र
पड़ जाये और आप सदा नयनों में समाये हुए हो! वो तो एक घड़ी की नज़र कहते हैं और आप रहते
ही बाप की नज़रों में हो। इसीलिए टाइटल है - नूरे रत्न आंखों के नूर। तो वे तड़पते
हैं और आप समा गये। इसको कहा जाता है खुशनसीब। सोचा नहीं था लेकिन बन गये। अपना
नसीब देखकर के नशे में रहते हो ना। वाह-वाह! अभी ‘हाय-हाय’ तो नहीं करते ना। कभी
‘हाय-हाय’ करते हो? थोड़ा भी दु:ख की लहर अनुभव हुई अर्थात् ‘हाय-हाय’ हुई। ‘‘हाय!
यह होना नहीं चाहिए, ऐसे हो गया........’’ - कभी दु:ख की लहर आती है? सुखदाता के
बच्चे को दु:ख कहाँ से आया? सागर के बच्चे हो और पानी सूख जाए तो उसे क्या कहेंगे?
दु:ख की लहर समाप्त हुई? कभी तन का, कभी धन का, कभी बीमारी का दु:ख होता है? कभी
पोत्रे-धोत्रे बीमार हो जाए, कभी खेती में नुकसान हो जाए - तो दु:ख होगा?
सदा यह स्मृति में रहे
कि हम सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हैं। जो दाता है, उसके पास है तभी तो देगा
ना। तो इतना है जो मास्टर दाता बनो? जिसके पास अपने खाने के लिए ही नहीं हो वह दाता
कैसे बनेगा। इसलिए जैसा बाप वैसे बच्चे। बाप को सागर कहते हैं। सागर अर्थात् बेहद,
खुटता नहीं। कितना भी सागर को सुखाते हैं, खुटता नहीं। तो आप भी मास्टर सागर हो,
नदी-नाले नहीं। भाग्यविधाता बाप बन गया। तो बाप के पास जो है वह बच्चों का है।
भाग्य आपका वर्सा है। वर्सा सम्भालने आता है? या गँवाने वाले हो? कई बच्चों को
सम्भालना नहीं आता तो खत्म कर देते हैं और कइयों को सम्भालना अच्छा आता है तो बढ़ा
देते हैं। आप कौन हो? बढ़ाने वाले। ऐसा भाग्य सारे कल्प में अभी मिलता है। तो ऐसी
अमूल्य चीज़ बढ़ानी है, न कि गँवानी है। बढ़ाने का साधन है-बाँटना।
जितना औरों को
भाग्यवान बनायेंगे अर्थात् भाग्य बांटेंगे उतना भाग्य बढ़ता जायेगा। गायन है ना-जब
ब्रह्मा ने भाग्य बांटा तो सोये हुए थे क्या? तो ब्रह्मा ने भाग्य बांटा और
ब्रह्माकुमार-कुमारी क्या करते? भाग्य बांटते हो ना। जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा।
दूसरा धन खर्च करने से कम होता है और यह भाग्य जितना खर्चेंगे उतना बढ़ेगा। पाण्डव
तो कमाने में होशियार होते हैं। क्योंकि जानते हो कि एक जन्म जमा का है और अनेक
जन्म खाने के हैं। सतयुग में कमाई करेंगे क्या? आराम से खाते रहेंगे। एक जन्म का
पुरूषार्थ और अनेक जन्म की प्रालब्ध। तो जन्म-जन्म के लिए इसी एक जन्म में इकठ्ठा
करना है। अच्छा! सभी सन्तुष्ट हो ना। ब्राह्मण जीवन में अगर सन्तुष्ट नहीं रहे तो
कब रहेंगे। अभी ही सन्तुष्टता का मजा है। ब्राह्मण जीवन का लक्षण ही है सन्तुष्ट
रहना। सन्तुष्ट हैं तो खुश हैं, अगर सन्तुष्ट नहीं तो खुश नहीं। अच्छा!
3 - ड्रामा के ज्ञान
की स्मृति हर विघ्न को ‘नथिंग-न्यु’ कर देगी
अपने को सदा
विघ्न-विनाशक आत्मा अनुभव करते हो? या विघ्न आये तो घबराने वाले हो? विघ्न-विनाशक
आत्मा सदा ही सर्व शक्तियों से सम्पन्न होती है। विघ्नों के वश होने वाले नहीं,
विघ्न-विनाशक। कभी विघ्नों का थोड़ा प्रभाव पड़ता है? कभी भी किसी भी प्रकार का विघ्न
आता है तो स्मृति रखो कि-विघ्न का काम है आना और हमारा काम है विघ्न-विनाशक बनना।
जब नाम है विघ्न-विनाशक, तो जब विघ्न आयेगा तब तो विनाश करेंगे ना। तो ऐसे कभी नहीं
सोचना कि हमारे पास यह विघ्न क्यों आता है? विघ्न आना ही है और हमें विजयी बनना है।
तो विघ्न-विनाशक आत्मा कभी विघ्न से न घबराती है, न हार खाती है। ऐसी हिम्मत है?
क्योंकि जितनी हिम्मत रखते हैं, एक गुणा बच्चों की हिम्मत और हजार गुणा बाप की मदद।
तो जब इतनी बाप की मदद है तो विघ्न क्या मुश्किल होगा? इसलिए कितना भी बड़ा विघ्न हो
लेकिन अनुभव क्या होता है? विघ्न नहीं है लेकिन खेल है। तो खेल में कभी घबराया जाता
है क्या? खेल करने में खुशी होती है ना! ऐसे खेल समझने से घबरायेंगे नहीं लेकिन
खुशी-खुशी से विजयी बनेंगे। सदा ड्रामा के ज्ञान की स्मृति से हर विघ्न को ‘नथिंग
न्यु’ समझेगा। नई बात नहीं, बहुत पुरानी है।
कितने बार विजयी बने
हो? (अनेक बार) याद है या ऐसे ही कहते हो? सुना है कि ड्रामा रिपीट होता है, इसीलिए
कहते हो या समझते हो अनेक बार किया है? अगर ड्रामा की प्वाइन्ट बुद्धि में क्लीयर
है कि हू-ब-हू रिपीट होता है, तो उस निश्चय के प्रमाण हू-ब-हू जब रिपीट होता है, तो
अनेक बार रिपीट हुआ है और अब रिपीट कर रहे हैं। लेकिन निश्चय की बात है। अगले कल्प
में और कोई विजयी बने और इस कल्प में आप विजयी बनो-यह हो नहीं सकता। क्योंकि जब
बना-बनाया ड्रामा कहते हैं, तो बना हुआ है और बना रहे हैं अर्थात् रिपीट कर रहे
हैं। ऐसा निश्चयबुद्धि अचल-अडोल रहता है।
अचलघर किसका यादगार
है? ज्ञान के राज़ों में जो अचल रहता है उसका यादगार अचलघर है। तो यह नशा रहता है ना
कि हम प्रैक्टिकल में अपना यादगार देख रहे हैं। जो सदा विघ्न-विनाशक स्थिति में
स्थित रहता है वह सदा ही डबल लाइट रहता है। कोई बोझ है? सब-कुछ तेरा कर लिया है? कि
आधा तेरा, आधा मेरा? 75% बाप का, 25% मेरा? कभी तेरा कह दो, और जब मतलब हो तो मेरा
कह दो? मेरा-मेरा कहते तो अनुभव कर लिया, क्या मिला? तेरा कहने से भरपूर हो जायेंगे।
मेरा-मेरा कहेंगे तो खाली हो जायेंगे। सदा डबल लाइट अर्थात् सब-कुछ तेरा। जरा भी
अगर मोह है तो मेरा है। तेरा अर्थात् निर्मोही।
वरदान:-
अपने मस्तक पर
सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले विघ्न विनाशक भव
विघ्न-विनाशक वही बन
सकते जिनमें सर्वशक्तियां हों। तो सदा ये नशा रखो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ।
सर्व शक्तियों को समय पर कार्य में लगाओ। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप
नालेजफुल बनो। बाप के हाथ और साथ का अनुभव करते हुए कम्बाइन्ड रूप में रहो। रोज़
अमृतवेले विजय का तिलक स्मृति में लाओ। अनुभव करो कि बापदादा की दुआओं का हाथ मेरे
मस्तक पर है तो विघ्न-विनाशक बन सदा निश्चिंत रहेंगे।
स्लोगन:-
सेवा द्वारा
अविनाशी खुशी की अनुभूति करने और कराने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं।