ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं कि तुम बच्चों को हरेक की ज्योति जगानी है। यह
तुम्हारी बुद्धि में है। बाप को भी बेहद का ख्याल रहता है कि जो भी मनुष्य मात्र
हैं, उनको मुक्ति का रास्ता बतायें। बाप आते ही हैं - बच्चों की सर्विस करने, दु:ख
से लिबरेट करने। मनुष्य समझते नहीं हैं कि यह दु:ख है तो सुख का भी कोई स्थान है।
यह जानते नहीं। शास्त्रों में सुख के स्थान को भी दु:ख का स्थान बना दिया है। अब
बाप है रहमदिल। मनुष्य तो यह भी नहीं जानते कि हम दु:खी हैं क्योंकि सुख का और सुख
देने वाले का पता ही नहीं है। यह भी ड्रामा की भावी। सुख किसको कहते हैं, दु:ख किसको
कहते - यह जानते नहीं। ईश्वर के लिए कह देते कि वही सुख-दु:ख देते हैं। गोया उस पर
कलंक लगाते हैं। ईश्वर, जिनको बाप कहते हैं, उनको जानते ही नहीं। बाप कहते हैं कि
मैं बच्चों को सुख ही देता हूँ। तुम अब जानते हो बाबा आया है पतितों को पावन बनाने।
कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा स्वीट होम। वह स्वीट होम भी पावन है। वहाँ कोई पतित
आत्मा रहती नहीं। उस ठिकाने को कोई जानते नहीं। कहते हैं कि फलाना पार निर्वाण गया।
परन्तु समझते नहीं। बुद्ध पार निर्वाण गया तो जरूर वहाँ का रहने वाला था। वहाँ ही
गया। अच्छा, वह तो गया बाकी दूसरे कैसे जायें? साथ तो कोई को ले नहीं गया। वास्तव
में वह जाते नहीं इसलिए सब पतित-पावन बाप को याद करते हैं। पावन दुनिया दो हैं, एक
मुक्तिधाम, दूसरा जीवनमुक्तिधाम। शिवपुरी और विष्णुपुरी। यह है रावण पुरी। परमपिता
परमात्मा को राम भी कहते हैं। रामराज्य कहा जाता है, तो बुद्धि परमात्मा की तरफ चली
जाती है। मनुष्य को तो सब परमात्मा मानेंगे नहीं। तो तुमको तरस पड़ता है। तकलीफ तो
सहन करनी पड़े।
बाबा कहते - मीठे बच्चे, मनुष्य को देवता बनाने में इस ज्ञान यज्ञ में विघ्न
बहुत ही पड़ेंगे। गीता के भगवान् ने गाली खाई थी ना। गालियाँ उनको भी और तुमको भी
मिलती हैं। कहते हैं ना कि इसने शायद चौथ का चन्द्रमा देखा होगा। यह सब हैं दन्त
कथायें। दुनिया में तो कितना गन्द है। मनुष्य क्या-क्या खाते हैं, जानवरों को मारते
हैं, क्या-क्या करते हैं! बाप आकर इन सब बातों से छुड़ा देते हैं। दुनिया में
मारामारी कितनी है। तुम्हारे लिए बाप कितना सहज कर देते हैं। बाप कहते हैं कि तुम
सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। सबको एक ही बात समझाओ। बाप कहते
हैं अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। तुम असुल वहाँ के रहवासी हो। सन्यासी लोग
भी वहाँ के लिए ही रास्ता बताते हैं। अगर एक निर्वाणधाम चला गया तो फिर दूसरे को
कैसे ले जायेंगे? उनको कौन ले जायेगा? समझो, बुद्ध निर्वाणधाम में गया, उनके बौद्धी
तो यहाँ बैठे हैं। उनको वापिस ले जाये ना। गाते भी हैं जो पैगम्बर हैं सबकी रूह यहाँ
है, यानी किस न किस शरीर में है फिर भी महिमा गाते रहते। अच्छा, धर्म स्थापन करके
गये फिर क्या हुआ? मुक्ति में जाने लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं। उसने तो यह जप
तप तीर्थ आदि नहीं सिखाया। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ सबकी गति-सद्गति करने। सबको
ले जाता हूँ। सतयुग में जीवनमुक्ति है। एक ही धर्म है, बाकी सब आत्माओं को वापिस ले
जाते हैं। तुम जानते हो वह बाबा है बागवान, हम सब माली हैं। मम्मा बाबा और सब बच्चे
माली बन बीज बोते रहते हैं। कलम निकलती है फिर माया के तूफान लग पड़ते हैं। अनेक
प्रकार के तूफान लगते हैं। यह हैं माया के विघ्न। तूफान लगते हैं तो पूछना चाहिए -
बाबा, इसके लिए क्या करना चाहिए? श्रीमत देने वाला बाप है। तूफान तो लगेंगे ही।
नम्बरवन है देह-अभिमान। यह नहीं समझते कि मैं आत्मा अविनाशी हूँ, यह शरीर विनाशी
है। हमारे 84 जन्म पूरे हुए। आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। घड़ी-घड़ी एक शरीर छोड़
दूसरा लेना आत्मा का ही काम है। अब बाप कहते हैं - तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। इस
दुनिया में दूसरा जन्म नहीं लेना है, न किसको देना है। पूछते हैं कि फिर सृष्टि की
वृद्धि कैसे होगी? अरे, इस समय सृष्टि की वृद्धि नहीं चाहिए। यह तो भ्रष्टाचार की
वृद्धि है। यह रस्म - रावण से शुरू हुई है। दुनिया को भ्रष्टाचारी बनाने वाला रावण
ठहरा। श्रेष्ठाचारी राम बनाते हैं। इसमें भी तुमको कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हैं। अगर देह-अभिमान में न आये तो अपने को आत्मा
समझें। सतयुग में भी अपने को आत्मा तो समझते हैं ना। जानते हैं अभी यह हमारा शरीर
वृद्ध हुआ है, इनको छोड़ कर नया लेंगे। यहाँ तो आत्मा का भी ज्ञान नहीं है। अपने को
देह समझ बैठे हैं इस दुनिया से जाने की दिल उनकी होती है जो दु:खी होते हैं। वहाँ
तो है ही सुख। बाकी आत्मा का ज्ञान वहाँ रहता है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं
इसलिए दु:ख नहीं होता। वह सुख की प्रालब्घ है। यहाँ भी आत्मा तो कहते हैं, फिर भल
कोई आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। आत्मा है, यह तो ज्ञान है ना। परन्तु यह नहीं
जानते कि हम इस पार्ट से वापिस जा नहीं सकते। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेना जरूर है।
पुनर्जन्म तो सब मानेंगे। कर्म तो सब कूटते हैं ना। माया के राज्य में कर्म, विकर्म
ही बनते हैं, तो कर्म कूटते रहते हैं। वहाँ ऐसे कर्म नहीं, जो कूटने पड़ें।
अब तुम समझते हो कि वापिस जाना है। विनाश होना ही है। बाम्ब्स की ट्रायल भी ले
रहे हैं। गुस्से में आकर फिर ठोक देंगे। यह पॉवरफुल बाम्ब्स हैं। गायन भी है
यूरोपवासी यादव। भल हम सब धर्म वालों को यूरोपवासी ही कहेंगे। भारत है एक तरफ। बाकी
उन सबको मिला दिया है। अपने खण्ड लिए उन्हों को प्यार तो बहुत है। परन्तु भावी ऐसी
है तो क्या करेंगे? त़ाकत सारी तुमको बाबा दे रहे हैं। योगबल से तुम राज्य ले लेते
हो। तुमको कोई भी तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ बाप कहते हैं मुझे याद करो,
देह-अभिमान छोड़ो। कहते हैं कि मैं राम को याद करता हूँ, श्रीकृष्ण को याद करता
हूँ, तो वे अपने को आत्मा थोड़ेही समझते हैं। आत्मा समझते तो आत्मा के बाप को क्यों
नहीं याद करते हैं? बाप कहते हैं मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। तुम जीव आत्मा
को क्यों याद करते हो? तुमको देही-अभिमानी बनना है। मैं आत्मा हूँ, बाप को याद करता
हूँ। बाबा ने फ़रमान किया है - याद करने से विकर्म विनाश होंगे और वर्सा भी बुद्धि
में आ जायेगा। बाप और जायदाद अर्थात् मुक्ति और जीवनमुक्ति। इसके लिए ही धक्के खाते
रहते हैं। यज्ञ, जप, तप आदि करते रहते हैं। पोप से भी आशीर्वाद लेने जाते हैं, यहाँ
बाप सिर्फ कहते हैं कि देह-अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा निश्चय करो। यह नाटक पूरा
हुआ है, हमारे 84 जन्म पूरे हुए हैं, अब जाना है। कितना सहज करके समझाते हैं।
गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि में यह रखो। जैसे नाटक पूरा होने पर होता है तो
समझते हैं कि बाकी 15 मिनट हैं। अभी यह सीन पूरी होगी। एक्टर्स समझते हैं हम यह कपड़ा
उतार घर को जायेंगे। अभी सबको वापिस जाना है। ऐसी-ऐसी बातें अपने से करनी चाहिए।
कितना समय हमने सुख-दु:ख का पार्ट बजाया है, यह जानते हैं। अभी बाप कहते हैं कि मुझे
याद करो, दुनिया में क्या-क्या हो रहा है, इन सबको भूल जाओ - यह सब ख़त्म हो जाने
वाले हैं, अब वापिस जाना है। वह समझते हैं कि कलियुग अभी 40 हजार वर्ष चलेगा। इसको
घोर अन्धियारा कहा जाता है। बाप का परिचय नहीं है। ज्ञान माना बाप का परिचय, अज्ञान
माना नो परिचय। तो गोया घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम घोर सोझरे में हो -
नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। अब रात पूरी होने वाली है, हम वापिस जाते हैं। आज
ब्रह्मा की रात, कल ब्रह्मा का दिन होगा, बदलने में टाइम तो लगेगा ना। तुम जानते हो
अब हम मृत्युलोक में हैं, कल अमरलोक में होंगे। पहले तो वापिस जाना होगा। ऐसे यह 84
जन्मों का चक्र फिरता है। यह फिरना बन्द नहीं होता है। बाबा कहते हैं तुम कितनी बार
मेरे से मिले होंगे? बच्चे कहते कि अनेक बार मिले हैं। तुम्हारे 84 जन्मों का चक्र
पूरा होता है, तो सबका हो जायेगा। इसको कहा जाता है ज्ञान। ज्ञान देने वाला है ही
ज्ञान सागर, परमपिता परमात्मा, पतित-पावन। तुम पूछ सकते हो पतित-पावन किसको कहा जाता
है? भगवान् तो निराकार को कहा जाता है फिर तुम रघुपति राघव राजा राम क्यों कहते हो?
आत्माओं का बाप तो वह निराकार ही है, समझाने की बड़ी ही युक्ति चाहिए।
दिन-प्रतिदिन तुम्हारी उन्नति होती रहेगी क्योंकि गुह्य ज्ञान मिलता रहता है।
समझाने के लिए है सिर्फ अल्फ की बात। अल्फ को भूले तो आऱफन हो गये, दु:खी होते रहते
हैं। एक द्वारा, एक को जानने से तुम 21 जन्म सुखी हो जाते हो। यह है ज्ञान, वह है
अज्ञान, जो कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है। अरे, वह तो बाप है। बाप कहते हैं
तुम्हारे अन्दर भूत सर्वव्यापी हैं। 5 विकार रूपी रावण सर्वव्यापी है। यह बातें
समझानी पड़ती हैं। हम ईश्वर की गोद में हैं - यह बड़ा भारी नशा होना चाहिए। फिर
भविष्य में देवताई गोद में जायेंगे। वहाँ तो सदैव सुख है। शिवबाबा ने हमको एडाप्ट
किया है। उनको याद करना है। अपना भी और दूसरों का भी कल्याण करना है तो राजाई मिलेगी।
यह समझने की बड़ी अच्छी बात है। शिवबाबा है निराकार, हम आत्मा भी निराकार हैं। वहाँ
हम अशरीरी नंगे रहते थे। बाबा तो सदैव अशरीरी ही है, बाबा कभी शरीर रूपी कपड़ा पहन
पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। बाबा एक बार रीइनकारनेट करते हैं। पहले-पहले ब्राह्मण रचते
हैं तो उनको अपना बनाकर और नाम रखना पड़े ना। ब्रह्मा नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से आये?
तो यह वही है जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं, गोरा जो फिर सांवरा बना है, सुन्दर से
श्याम, श्याम से सुन्दर बनता है। भारत का भी हम श्याम-सुन्दर नाम रख सकते हैं। भारत
को ही श्याम, भारत को ही गोल्डन एज, सुन्दर कहते हैं। भारत ही काम चिता पर बैठ काला
बनता है, भारत ही ज्ञान चिता पर बैठ गोरा बनता है। भारत से ही माथा मारना पड़ता है।
भारतवासी फिर और और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। यूरोपियन और इन्डियन में फ़र्क
नहीं दिखाई पड़ता है, वहाँ जाकर शादी करते हैं तो फिर क्रिश्चियन कहलाने लग पड़ते
हैं। उनके बच्चे आदि भी उसी फीचर्स के होते हैं। अफ्रीका में भी शादी कर लेते हैं।
अब बाबा विशालबुद्धि देते हैं, चक्र को समझने की। यह भी लिखा हुआ है - विनाश काले
विपरीत बुद्धि। यादवों और कौरवों ने प्रीत नहीं रखी। जिन्होंने प्रीत रखी उनकी विजय
हुई। विपरीत बुद्धि कहा जाता है दुश्मन को। बाप कहते हैं इस समय सब एक-दो के दुश्मन
हैं। बाप को ही सर्वव्यापी कह गाली देते हैं या तो फिर कह देते जन्म-मरण रहित है,
उनको कोई भी नाम-रूप नहीं है। ओ गॉड फादर भी कहते हैं, साक्षात्कार भी होता है आत्मा
और परमात्मा का। उसमें और परमात्मा में फ़र्क नहीं रहता। बाकी नम्बरवार कम जास्ती
ताकत तो होती ही है। मनुष्य भल मनुष्य हैं, उनमें भी तो मर्तबे होते हैं। बुद्धि का
फ़र्क है। ज्ञान सागर ने तुमको ज्ञान दिया है तो उनको याद करते हो, वह अवस्था
तुम्हारी अन्त में बनेगी।
अमृतवेले सिमर-सिमर सुख पाओ, भल लेटे रहो परन्तु नींद नहीं आनी चाहिए। अपना हठ
कर बैठना चाहिए। मेहनत है। वैद्य लोग भी दवाई देते हैं अमृतवेले के लिए। यह भी दवाई
है। रचता बाप ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचकर पढ़ाते हैं - यह बात सबको समझानी है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हमने ईश्वर की गोद ली है फिर देवताई गोद में जायेंगे इसी रूहानी नशे
में रहना है। अपना और दूसरों का कल्याण करना है।
2) अमृतवेले उठ ज्ञान सागर के ज्ञान का मनन करना है। एक की अव्यभिचारी याद में
रहना है। देह-अभिमान छोड़ स्वयं को आत्मा निश्चय करना है।