20-03-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति अव्यक्त बापदादा रिवाइज़ 16-07-72 मधुबन
स्वच्छ और आत्मिक बल वाली आत्मा ही आकर्षण मूर्त्त है
अपने को इस श्रेष्ठ ड्रामा के अन्दर हीरो एक्टर और मुख्य एक्टर समझते हो? मुख्य एक्टर्स के तरफ सभी का अटेन्शन होता है। तो हर सेकेण्ड की एक्ट अपने को मुख्य एक्टर समझते हुये बजाते हो? जो नामीग्रामी एक्टर्स होते हैं उन्हों में मुख्य 3 बातें होती हैं। वह कौनसी हैं? एक तो वह एक्टिव होगा, दूसरा एक्युरेट होगा और अट्रेक्टिव होगा। यह तीनों बातें नामी-ग्रामी एक्टर्स में अवश्य होती हैं। तो ऐसे अपने को नामीग्रामी वा मुख्य एक्टर समझते हो? अट्रेक्ट किस बात पर करेंगे? हर कर्म में, हर चलन में रूहानियत की अट्रेक्शन हो। जैसे कोई शरीर में सुन्दर होता है तो वह भी अट्रैक्शन करते हैं ना अपने तरफ। ऐसे ही जो आत्मा स्वच्छ है, आत्मिक-बल वाली है, वह भी अपने तरफ आकर्षित करते हैं। जैसे आत्मा-ज्ञानी महात्माएं आदि भी द्वापर आदि में अपने सतोप्रधान स्थिति वाले थे तो उन्हों में भी रूहानी आकर्षण तो था ना, जो अपने तरफ आकर्षित करके औरों को भी इस दुनिया से अल्पकाल के लिये वैराग्य तो दिला देते थे ना। जब उलटे ज्ञान वालों में भी इतनी अट्रैक्शन थी, तो जो यथार्थ और श्रेष्ठ ज्ञान-स्वरूप हैं उन्हों में भी रूहानी आकर्षण वा अट्रैक्शन रहेगी। शारीरिक ब्यूटी नजदीक वा सामने आने से आकर्षण करेगी। रूहानी आकर्षण दूर बैठे भी किसी आत्मा को अपने तरफ आकर्षित करती। इतनी अट्रैक्शन अर्थात् रूहानियत अपने आप में अनुभव करते हो? ऐसे ही फिर एक्युरेट भी हो। एक्युरेट किसमें? जो मन्सा अर्थात् संकल्प के लिये भी श्रीमत मिली हुई है - वाणी के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है और कर्म के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है इन सभी बातों में एक्युरेट। मन्सा भी अनएक्युरेट न हो। जो नियम हैं, मर्यादा हैं, जो डायरेक्शन हैं उन सभी में एक्युरेट और एक्टिव। जो एक्टिव होता है वह जिस समय जैसा अपने को बनाने चाहे, चलाने चाहे वह चला सकते हैं वा ऐसा ही रूप धारण कर सकते हैं। तो जो मुख्य पार्टधारी है उन्हों में यह तीनों ही विशेषताएं भरी हुई रहती हैं। इसमें ही देखना है कि इन में से कौनसी विशेषता किस परसेन्टेज में कम है? स्टेज के साथ-साथ परसेन्टेज को भी देखना है। रूहानियत है, आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन जितनी परसेन्टेज होनी चाहिए वह है? अगर परसेन्टेज की कमी है तो इसको सम्पूर्ण तो नहीं कहेंगे न्। पास तो हो गये, फिर भी मार्क्स के आधार पर नंबर तो होते हैं ना। थर्ड डिवीजन वाले को भी पास तो कहते हैं लेकिन कहाँ थर्ड वाला, कहाँ फर्स्ट क्लास - फर्क तो है ना। तो अब चेक करना परसेन्टेज को। स्टेज तो अब नेचरल बात हो गई। क्योंकि प्रैक्टिकल एक्ट में स्टेज पर हो ना। अब सिर्फ परसेन्टेज के आधार पर नंबर होने हैं। आज बहुत बड़ा संगठन हो गया है। जैसे बाप को भी समान बच्चे प्रिय लगते हैं, आप लोग आपस में भी एक समान मिलते हो तो यह सितारों का मेला भी बहुत अच्छा लगता है ना। संगमयुगी मेला तो है ही। लेकिन उस मेले में भी यह मेला है। मेले के अन्दर जो विशेष मेला लगता है वह फिर ज्यादा प्रिय लगता है। बड़े बड़े मेलों के अन्दर भी फिर एक विशेष स्थान बनाते हैं जहाँ सभी का मिलन होता है। संगमयुग बेहद का मेला तो है ही लेकिन उसके अन्दर भी यह स्थूल विशेष स्थान है, जहाँ समान आत्माएं आपस में मिलती हैं। हरेक को अपने समान वा समीप आत्माओं से मिलना- जुलना अच्छा लगता है। विशेष आत्माओं से मेला बनाने लिये स्वयं को भी विशेष बनना पड़े। कोई विशेष हो, कोई साधारण हो, वह कोई मेला नहीं कहा जाता। बाप के समान दिव्य धारणाओं की विशेषता धारण करनी है। बाप से जो पालना ली है इसका सबूत देना है। बाप ने पालना किस लिये की? विशेषताएं भरने लिये। लक्ष्य हो और लक्षण न आवे; तो इसको क्या कहा जाये? ज्यादा समझदार। एक होते हैं समझदार, दूसरे होते हैं बेहद के समझदार। बेहद में कोई लिमिट नहीं होती है। अच्छा!
दुसरी मुरली - 18-07-72
कमजोरियों का समाप्ति समारोह करने वाले ही तीव्र पुरुषार्थी है
अपने को एवररेडी समझते हो? जो एवररेडी होंगे, उन्हों का प्रैक्टिकल स्वरूप एवर हैप्पी होगा। कोई भी परिस्थिति रूपी पेपर वा प्राकृतिक आपदा द्वारा आया हुआ पेपर वा कोई भी शारीरिक कर्म भोग रूपी पेपर आवे, तो भी सभी प्रकार के पेपर्स में फुल पास वा अच्छी मार्क्स में पास होंगे - ऐसे अपने को एवररेडी समझते हो? अथवा एवररेडी की निशानी जो एवर हैप्पी है, वह अनुभव करते हो? अपना इन्तजाम ऐसा किया है जो किस घड़ी में भी कोई पेपर हो जाये तो तैयारी हो? ऐसे एवररेडी हो? आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए, आप लोगों द्वारा जो अन्य आत्माएं नंबरवार वर्सा पाने वाली हैं उन्हों के लिए बाकी थोड़ा-सा समय रहा हुआ है। समय की रफ्तार तेज है। जैसे समय किसके लिए भी रूकावट में रूकता नहीं, चलता ही रहता है। वैसे ही अपने आपसे पूछो कि स्वयं भी कोई माया के रूकावट में रूकते तो नहीं हो? कोई भी माया के सूक्ष्म वा स्थूल विघ्न आते हैं वा माया का वार होता है तो एक सेकेण्ड में अपनी श्रेष्ठ शान में स्थित होंगे तो माया दुश्मन पर निशाना भी ठीक रहेगा, अगर श्रेष्ठ शान नहीं तो निशाना ना लगने के कारण परेशान हो जावेंगे। अभी परेशानी होती है? अगर अब तक किसी भी प्रकार की परेशानी होती है तो अन्य आत्माओं की परेशानी को कैसे मिटावेंगे? परेशानियों को मिटाने वाले हो वा स्वयं भी परेशान होने वाले हो? जैसे जो भी भट्ठी करते हो तो उसका समाप्ति-समारोह वा परिवर्तन-समारोह मनाते हो। तो यह जो बेहद की भट्ठी चल रही है उसमें कमजोरियों की समाप्ति का समारोह वा परिवर्तन-समारोह कब मनावेंगे? इसकी कोई फिक्स डेट है? ड्रामा करावेगा? ड्रामा तो सर्व आत्माओं का पुरानी दुनिया से समाप्ति-समारोह करावेगा लेकिन आप तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को तो पहले ही कमजो- रियों के समाप्ति समारोह को मनाना है ना। कि आप भी अन्य आत्माओं के साथ अन्त में करेंगे? जैसे और सेमीनार आदि करते हो, उसकी डेट फिक्स करते हो, उसी प्रमाण तैयारी करते हो और उस कार्य को सफल कर सम्पन्न करते हो। ऐसे यह कमियों को मिटाने की सेमीनार की डेट फिक्स नहीं हो सकती? यह सेमीनार होना सम्भव है? जैसे कोई यज्ञ रचते हैं तो बीच-बीच में आहुति तो डालते ही रहते हैं। लेकिन अन्त में सभी मिल कर सम्पूर्ण आहुति डालते हैं तो क्या ऐसे सभी आपस में मिल कर सम्पूर्ण आहुति डाल सकते हैं? सर्व कमजोरियों को स्वाहा नहीं कर सकते हो? जब तक सभी मिलकर के सम्पूर्ण आहुति नहीं डालेंगे तो सारे विश्व का वायुमण्डल वा सर्व आत्माओं की वृतियां वा वायब्रेशन परिवर्तन में कैसे आवेंगे? और जो आप सभी ने जिम्मेवारी ली है विश्व-परिवर्तन की वा विश्व नव निर्माण की, वह कैसे होगी? तो अपनी जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए वा अपने कार्य को पूरा सम्पन्न करने के लिए सम्पूर्ण आहुति ही डालनी पड़ेगी। इसके लिए अपने को एवररेडी बनाने के लिए कौन-सी युक्ति अपनाओ जो सहज ही कमजोरियों से मुक्ति हो जाये? युक्तियां तो बहुत मिली हैं, फिर भी आज और युक्ति बता रहे हैं।
सबसे ज्यादा यादगार किसके बनते हैं? और अनेक प्रकार के यादगार किसके बनते हैं? बाप के वा बच्चों के? बाप की यादगार का एक ही रूप बनता है लेकिन आप लोगों के अर्थात् श्रेष्ठ आत्माओं के अनेक रूप और रीति-रस्म के अनुसार बने हुये हैं। आप श्रेष्ठ आत्माओं के भिन्न-भिन्न कर्म का भी यादगार बना हुआ है। तो जबकि बाप से भी ज्यादा अनेक प्रकार के यादगार बने हुए हैं, वह कैसे? आपके प्रैक्टिकल श्रेष्ठ कर्म के, श्रेष्ठ स्थिति के ही यादगार बने हैं ना। तो जो भी संकल्प वा कर्म करते हो वा वचन बोलते हो, उस हर वचन और कर्म को चेक करो कि वह वचन वा बोल ऐसा है जो हमारी यादगार बने? यादगार वह कर्म वा बोल होते हैं जो याद में रह कर के करते हो। जैसे कोई चीज़ गाड़ी जाती है, जैसे झण्डे को गाड़ते हो ना अर्थात् फाउंडेशन डालते हो। कहते हैं - इस चीज़ को अच्छी तरह से गाड़ लेना। ऐसे ही याद से किये हुये कर्म सदा के लिये यादगार बन जाता है। जैसे कोई चीज़ दुनिया के आगे रखनी होती है तो कितनी सुन्दर और स्पष्ट बनाई जाती है! साधारण चीज़ को किसी के आगे नहीं रखेंगे। कोई विशेषता होती है तब किसी के आगे रखी जाती है। तुम्हारे यह अभी के हर कर्म वा हर बोल विश्व के आगे यादगार के रूप में आने वाले हैं। ऐसा अटेन्शन रखते हुये व ऐसी स्मृति रखते हुये हर कर्म वा बोल बोलो जो कि यादगार बनने के योग्य हो। अगर यादगार बनने के योग्य नहीं है तो वह कर्म नहीं करो - यह स्मृति सदा रखो। जो व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ बोल वा साधारण कर्म होते हैं, उनका यादगार बनेगा क्या? यादगार बनने के लिये याद में रह कर कर्म करो। जैसे बाप को देखो कि याद में रहते हुये कर्म करने से ही कर्म आज आप सभी के दिल में यादगार बन गया है ना। ऐसे ही अपने कर्मों को भी विश्व के सामने यादगार रूप बनाओ। यह तो सहज है ना। जबकि निश्चय है कि यह सभी अनेक प्रकार के यादगार हमारे ही हैं; तो किये हुये अनेक बार के श्रेष्ठ कर्म वा यादगार स्वरूप अब फिर से रिपीट करने में मुश्किल होती है क्या? कल्प-कल्प के किये हुये को सिर्फ रिपीट करना है। तो मास्टर त्रिकालदर्शा बन अपने कल्प पहले के यादगार को सामने रख फिर से सिर्फ रिपीट करो। इस स्मृति के पुरूषार्थ में सदा रहते आये हो। तो अब क्या मुश्किल है? माया अब तक भी इस स्मृति में ताला लगाती है क्या? जब ताला लग जाता है तो क्या बना देती है? बेताला। सभी के ताले खोलने वाले भी बेताले बन जाते हैं। यह स्मृति को ताला क्यों लगता है? अपने लक्क को भूल जाते हो तो लॉक लग जाता है। अगर लक्क को देखो तो कब भी लॉक नहीं लग सकता है। तो लॉक की चाबी कौनसी है? अपने आपको लक्की समझो। लवली भी हो और लक्की भी हो। अगर लक्क को भूलकर के सिर्फ लवली बनते हो, तो भी अधूरे रह जाते हो। लवली भी हूँ और लक्की भी हूँ - यह दोनों ही स्मृति में रहने से कब माया का लॉक नहीं लग सकता। इसलिये अपने कल्प पहले के यादगारों को फिर से याद में रह कर रिपीट करें। अब भी देखो अगर कोई यादगार युक्तियुक्त नहीं बनाते हैं तो ऐसे यादगार को देख कर संकल्प आवेगा कि यह युक्तियुक्त नहीं बना हुआ है। कोई देवियों वा शक्तियों का चित्र युक्तियुक्त नहीं बनाते हैं तो देखते हुए सभी को संकल्प आता है कि यह ठीक नहीं है। ऐसे ही, अपने कर्मों को देखो, अपने हर समय के रूप वा रूहाब को देखो कि इस समय के मेरे रूप और रूहाब का यादगार क्या बनेगा? क्या युक्तियुक्त यादगार बनेगा? जब युक्तियुक्त यादगार चित्र होता है तो उस चित्र की भी कितनी वैल्यु होती है। तो ऐसे देखो हमारे हर समय के हर चरित्र की वैल्यु है? अगर नहीं तो यादगार चित्र भी वैल्युएबल भले नहीं बन सकता। समझा? तो ऐसा समय समीप आ गया है जो आपके हर संकल्प के चरित्र रूप में यादगार बनेंगे, आपके एक-एक बोल सर्व आत्माओं के मुख से गायन होंगे। तो अपने को ऐसे पूजनीय और गायन योग्य समझ कर हर कर्म करें। अच्छा।
हर कर्म याद में रह सदा यादगार बनाने वाले लवली और लक्की सितारों को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- सर्व आत्माओं पर स्नेह का राज्य करने वाले विश्व राज्य अधिकारी भव
जो बच्चे वर्तमान समय सर्व आत्माओं के दिल पर स्नेह का राज्य करते हैं वही भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार प्राप्त करते हैं। अभी किसी पर आर्डर नहीं चलाना है। अभी से विश्व महाराजन नहीं बनना है, अभी विश्व सेवाधारी बनना है, स्नेह देना है। देखना है कि अपने भविष्य के खाते में स्नेह कितना जमा किया है। विश्व महाराजन बनने के लिए सिर्फ ज्ञान दाता नहीं बनना है इसके लिए सबको स्नेह अर्थात् सहयोग दो।
स्लोगन:- जब थकावट फील हो तो खुशी में डांस करो, इससे मूड चेंज हो जायेगी।