28-08-11 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 30-05-73 मधुबन
संगम युग - पुरूषोत्तम युग
सभी अपने को पाण्डव सेना के महावीर या महावीरनियाँ समझते हो? महावीर अर्थात् अपने को शक्तिशाली समझते हो? कोई निर्बल आत्मा सामने आये तो क्या निर्बल को बल देने वाले बने हो, या अभी तक स्वयं में ही बल भरते जा रहे हो? दाता हो या लेने वाले बने हो? सर्व-शक्तियों का वर्सा प्राप्त कर चुके हो या अभी प्राप्त करना है? अभी तक प्राप्ति करने का समय है या कराने का समय है? महान् बनने के लिये मेहनत लेने का समय है या बाप से ली हुई सेवा का रिटर्न करने का समय है? अगर अन्त तक किसी भी द्वारा किसी भी प्रकार की सेवा लेते रहेंगे तो सेवा का रिटर्न क्या भविष्य में करेंगे? भविष्य में प्रारब्ध भोगने का समय है या रिटर्न का फल देने का समय है? ये सभी बातें बुद्धि में रखते हुए अपने आप को चेक करो की हमारा अन्तिम पार्ट व भविष्य क्या होगा? जब अभी से सर्व-आत्माओं को बाबा का खज़ाना देने वाले दाता बनेंगे, अपनी शक्तियों द्वारा प्यासी व तड़पती हुई आत्माओं को जी-दान देंगे, वरदाता बन प्राप्त हुए वरदानों द्वारा उन्हें भी बाप के समीप लायेंगे और बाबा के सम्बन्ध में लायेंगे, तब यहाँ के दातापन के संस्कार भविष्य में इक्कीस जन्मों तक राज्यपद अर्थात् दातापन के संस्कार भर सकेंगे। इस संगमयुग को पुरूषोत्तम संगमयुग व सर्वश्रेष्ठ युग क्यों कहते हो? क्योंकि आत्मा के हर प्रकार के धर्म की, राज्य की, श्रेष्ठ संस्कारों की, श्रेष्ठ सम्बन्धों की और श्रेष्ठ गुणों की सर्व- श्रेष्ठता अभी रिकार्ड के समान भरता जाता है। चौरासी जन्मों की चढ़ती कला और उतरती कला उन दोनों के संस्कार इस समय आत्मा में भरते हो। रिकार्ड भरने का समय अभी चल रहा है।
जब हद के रिकार्ड भरते हैं तो भी कितना अटेन्शन रखते हैं। हद का रिकार्ड भरने वाले भी तीन बातों का ध्यान रखते हैं। वह कौन-सी है? वह लोग वायुमण्डल, अपनी वृत्ति और वाणी इन तीनों के ऊपर अटेन्शन देते हैं। अगर वृत्ति चंचल होती है और वह एकाग्र नहीं होती है तो भी वाणी में आकर्षण करने का रस नहीं रहता। जिस प्रकार का गीत गाते हैं, उसी रूप में स्थित होकर गाते हैं। अगर कोई दु:ख का गीत होता है तो दु:ख का रूप धारण कर गीत न गाये तो सुनने वालों को उस गीत से कोई रस नहीं आयेगा। जब हद का गीत गाने वाले व रिकार्ड भरने वाले भी इन सभी बात्ं का ध्यान देते हैं तो आप बेहद का रिकार्ड भरने वाले, सारे कल्प का रिकार्ड भरने वाले क्या हर समय इन सभी बातों के ऊपर अटेन्शन देते हो? यह अटेन्शन रहता है कि हर सेकेण्ड रिकार्ड भर रहा हूँ? क्या इतना अटेन्शन रहता है? रिकार्ड भरते-भरते अगर उल्लास के बजाय आलस्य आ जाय तो रिकार्ड कैसे भरेगा? रिकार्ड भरने के समय क्या कोई आलस्य करता है? तो आप लोग भी जब रिकार्ड भर रहे हो तो भरते-भरते आलस्य आता है या सदैव उल्लास में रहते हो? कभी अपने भरे हुए सारे दिन के रिकार्ड को साक्षी होकर देखते हो कि आज का रिकार्ड कैसा भरा है?
जैसे टेप में भी पहले भर कर फिर देखते हैं और सुनते हैं कि देखें कैसा भरा है, ठीक है या नहीं? वैसे ही क्या आप भी साक्षी हो कर देखते हो? देखने से क्या लगता है? अपने आप को जंचता है कि ठीक भरा है? या अपने आपको देखते हुए सोचते हो की इससे अच्छा भरना चाहिए। रिजल्ट तो देखते हो ना? जो समझते हैं कि सदैव अपने आप को साक्षी होकर रोज चेक करते हैं कि कभी भी चेक करना मिस नहीं होता है- वह हाथ उठाओ? (थोड़ां ने हाथ उठाया)। अभी चेकर ही नहीं बने हो? जो चेकर न बना है वह मैकर क्या बनेंगे? भूल जाते हो क्या? टाईम ऊपर-नीचे हो जाये यह हो सकता है लेकिन भूल जाय यह हो नहीं सकता। तो आत्मा की दिनचर्या जो अमृतवेले बनाते हो, फिक्स करते हो वह चेक करना क्यों भूल जाते हो? या फिक्स करना ही नहीं आता है? आत्मा को दिनचर्या फिक्स करनी आती है? यह तो बहुत कॉमन) बात है। इस कॉमन नियम पर भी अगर विस्मृत है तो इससे क्या सिद्ध होता है कि आत्मा अभी तक भी निर्बल है। जो अपने आपको ईश्वरीय नियम, ईश्वरीय मर्यादाओं में नहीं चला सकते वह क्या विश्व की मर्यादापूर्वक लाफुल राज्य को चला सकेंगे? जो संगमयुगीय राज्य-पद के अधिकारी न बने हैं वह भविष्य राज्य-पद कैसे पा सकते हैं? इस संगठन की टीचर्स कौन हैं? इतनी कम रिजल्ट की जिम्मेवार कौन? क्या आये हुए टीचर स्वयं चेकर हैं? कोई हिम्मत से नहीं उठाती हैं। अगर अभी-अभी विश्व-युद्ध छिड़ जाय तो? (किसी ने कहा कि उसी समय खड़े हो जायेंगे) अगर समय पर खड़े हो जायेंगे तो इसको क्या कहा जायेगा? प्रकृति के आधार पर जो पुरूष चले तो उस पुरूष को क्या कहा जाता है? समय भी प्रकृति है ना? तो यदि पुरूष प्रकृति के आधार पर चलने वाला हो तो उसको क्या पास विद् ऑनर कहा जायेगा? समय का धक्का लगने से जो चल पड़े उसको क्या कहा जायेगा? क्या यही सोचा है, कि धक्के से चलने वाले बनेंगे? वर्तमान संगठन तो बहुत कमजोर है। मैजॉरिटी कमजोर है। अच्छा फिर भी बीती सो बीती, लेकिन अभी से आप अपने आप को परिवर्तन कर लो। अभी फिर भी समय है, लेकिन बहुत थोड़ा है। अभी तो बापदादा और सहयोगी श्रेष्ठ आत्मायें आप पुरुषार्थी आत्माओं को एक का हज़ार गुना सहयोग देकर, सहारा देकर, स्नेह देकर और सम्बन्ध के रूप में बल देकर आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन थोड़े समय के बाद यह बातें अर्थात् लिफ्ट का मिलना भी बन्द हो जायेगा। इसलिए अभी जो-कुछ भी लेना चाहो वह ले सकते हैं। फिर बाद में बाप के रूप का स्नेह बदल कर सुप्रीम जस्टिस का रूप हो जायेगा।
जस्टिस के आगे चाहे कितना भी स्नेही सम्बन्धी हो लेकिन ‘लॉ इज़ लॉ’। अभी लव का समय है फिर लॉ का समय होगा। फिर उस समय लिफ्ट नहीं मिल सकेगी। अभी है प्राप्ति का समय और फिर थोड़े समय के बाद प्राप्ति का समय बदलकर पश्चाताप का समय आयेगा। तो क्या उस समय जागेंगे? बापदादा फिर भी सभी बच्चों को कहेंगे कि थोड़े समय में बहुत समय की प्रालब्ध बना लो। समय के इन्तज़ार में अलबेले न बनो। सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा हर कर्म चौरासी जन्मों के रिकार्ड भरने का आधार है। अपनी वृत्ति, अपने वायुमण्डल और अपनी वाणी को यथार्थ रूप में सेट करो। जैसे वह लोग भी वातावरण को बनाते हैं ऐसे आप लोग भी अपने वातावरण को, अपनी अन्तर्मुखता की शक्ति से श्रेष्ठ बनाओ। वृत्ति को श्रेष्ठ और वाणी को भी राज़युक्त और युक्ति-युक्त बनाओ तब ही यह रिजल्ट बदल सकेगी। बदलता तो है ना? क्या ऐसे ही मन्जूर है? चैलेन्ज तो बहुत बड़ी करते हो कि हम पाँच तत्वों को भी बदलेंगे। तो बिना चेकर के मेकर कैसे बनेंगे? अभी से कम्पलेन्ट कम्पलीट हो जानी चाहिये। जो समझते हैं कि अभी से यह कमजोरी छूट फिर अन्त तक कभी भी यह न रहेगी वह हाथ उठावें। इसकी जिम्मेवारी किस पर (कोई ने कहा दीदी पर, कोई ने कहा बापदादा पर) बापदादा करेंगे तो बापदादा पावेंगे। करने के समय बापदादा पर और पाने के समय? भविष्य पद पाने का त्याग करो तो फिर करने का भी त्याग करो। लेकिन वह कर नहीं सकते क्योंकि मुक्तिधाम के हो ही नहीं। हरेक को अपनी जिम्मेवारी आप उठानी है। अगर यह सोचेंगे कि दीदी, दादी व टीचर जिम्मेवार हैं तो इससे सिद्ध होता है कि आप को भविष्य में उन ही की प्रजा बनना है, राजा नहीं बनना है। यह भी अधीन रहने के संस्कार हुए न? जो अधीन रहने वाला है वह अधिकारी नहीं बन सकता। विश्व का राज्यभाग्य नहीं ले पाता। इसलिये स्वयं के जिम्मेवार, फिर सारे विश्व की जिम्मेवारी लेने वाले विश्व महाराजन बन सकते हैं। विश्वकल्याणकारी बाप की सन्तान होकर और अपना कल्याण नहीं कर सकते हो? क्या यह शोभता है? यह तो कलियुग के कर्मभोग की निशानी बताते हो कि कोई लखपति है लेकिन एक रूपये का भी सुख स्वयं नहीं ले सकता। तो सर्वशक्तियों के खजाने का मालिक हो लेकिन स्वयं के प्रति एक छोटी-सी शक्ति भी यूज़ नहीं कर पाते हो इसको क्या कहा जाये? संगमयुग पर ब्राह्मणों की क्या यह निशानी है? अभी संगमयुगी हो या एक पाँव कलियुग में रख दिया है कि कहीं संगमयुग पर न टिक सकेंगे, तो कहाँ चले जायेंगे? संगमयुग की यह निशानी नहीं है। इसलिए अभी से तीव्र पुरुषार्थी बन दृढ़-संकल्प लो कि करना ही है और बनना ही है। करेंगे और प्लान बनायेंगे इसको भी तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहा जाता। क्या प्लान बनावेंगे? क्या बना हुआ नहीं है? त्रिकालदर्शी को तो प्लान बनाने में समय नहीं लगेगा क्योंकि उसको तो तीनों ही काल स्पष्ट हैं। सभी कार्य सेकेण्ड में हों ऐसी तीव्र-गति अपनी बनाओ, तीव्र-गति वाले ही सद्गति को पायेंगे।
अच्छा ऐसे उम्मीदवार, बापदादा के श्रेष्ठ संकल्प को साकार करने वाले, हर संकल्प, कर्म और बोल को चेक करने वाले, हर सेकेण्ड में, हर संकल्प में स्वयं का कल्याण और विश्व का कल्याण करने वाले, विश्व-कल्याणकारी, विश्व-परिवर्तक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दुसरी मुरली - 01-06-73
सर्व शक्तियों का स्टॉक
क्या अपने को विघ्न-प्रूफ समझते हो? जब स्वयं विघ्न-प्रूफ बनेंगे तब ही दूसरों को भिन्न-भिन्न प्रकार के विघ्नों से बचा सकेंगे। स्वयं में भी कोई मनसा का विघ्न है तो दूसरों को विघ्न-प्रूफ कभी भी बना न सकेंगे। अभी तो समय ऐसा आ रहा है जो सारे भंभोर को जब आग लगेगी, उस आग से बचाने के लिए कुछ मुख्य बातें आवश्यक हैं। जैसे कहीं भी आग लगती है, तो आग से बचने के लिए पहले किस वस्तु की आवश्यकता होती है?
जब इस विनाश की आग चारो ओर लगेगी, उस समय आप श्रेष्ठ आत्माओं का पहला-पहला कर्त्तव्य कौन-सा है? शान्ति का दान अर्थात् शीतलता का जल देना। पानी डालने के बाद फिर क्या-क्या करते हैं? जिसको जो-कुछ आवश्यकता होती है वह उन की आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं। किसी को आराम चाहिए, किसी को ठिकाना चाहिए, मतलब जिसकी जैसी आवश्यकता होती है वही पूरी करते हैं। आप लोगों को कौन-सी आवश्यकताएं पूर्ण करनी पड़ेंगी, वह जानते हो? उस समय हरेक को अलग-अलग शक्ति की आवश्यकता होगी। किसी को सहनशक्ति की आवश्यकता, किसी को समेटने की शक्ति की आवश्यकता, किसी को निर्णय करने की शक्ति की आवश्यकता और किसी को अपने-आप को परखने की शक्ति की आवश्यकता होगी। किसी को मुक्ति के ठिकाने की आवश्यकता होगी। भिन्न-भिन्न शक्तियों की उन आत्माओं को उस समय आवश्यकता होगी। बाप के परिचय द्वारा एक सेकेण्ड में अशान्त आत्माओं को शान्त कराने की शक्ति भी उस समय आवश्यक है। वह अभी से ही इकट्ठी करनी होगी। नहीं तो उस समय लगी हुई आग से कैसे बचा सकेंगे? जी-दान कैसे दे सकेंगे? यह अपने-आप को पहले से ही तैयारी करने के लिए देखना पड़ेगा।
जैसे छ: मास का स्टॉक रखते हो न, कि छ: मास में इस-इस वस्तु की आवश्यकता होगी। चेक करके फिर भर देते हो। इस प्रकार क्या यह स्टॉक भी चेक करते हो? सारे विश्व की सभी आत्माओं को शक्ति का दान देना पड़ेगा। इतना स्टॉक जमा किया है जो स्वयं भी अपने को शक्ति के आधार से चला सकें और दूसरों को भी शक्ति दे सकें ताकि कोई भी वंचित न रहे। अगर अपने पास शक्तियाँ जमा नहीं हैं और एक भी आत्मा वंचित रह गई तो इसका बोझा किस पर होगा? जो निमित्त बनी हुई हैं। सदैव अपनी हर शक्ति का स्टॉक चेक करो। जिसके पास सर्व-शक्तियों का स्टॉक जमा है वही मुख्य गाये जाते हैं।
जैसे स्टार्स दिखाते हैं उनमें भी नम्बरवार होते हैं। जिन के पास स्टॉक जमा है वही लक्की स्टार्स के रूप में चमकते हुए विश्व कि आत्माओं के बीच नजर आयेंगे। तो यह चैकिंग करनी है कि क्या सर्वशक्तियों का स्टॉक है? महारथियों का हर संकल्प पर पहले से ही अटेन्शन रहता है। महारथियों के चेक करने की रूप-रेखा ही न्यारी है। योग की शक्ति होने के कारण ऑटोमेटिकली युक्ति-युक्त संकल्प, बोल और कर्म होंगे। अभी यह नेचरल रूप हो गया है। महारथियों के चैकिंग का रूप भी यह है। सर्वशक्तियों में किस शक्ति का कितना स्टॉक जमा है। उस जमा किऐ हुए स्टॉक से कितनी आत्माओं का कल्याण कर सकते हैं। जैसे स्थूल स्टॉक की देख-रेख करना और जमा करना यह ड्यूटी है; वैसे ही सर्वशक्तियों के स्टॉक जमा करने की भी ज़िम्मेवारी है। यह होता है ऑलराउण्डर का हर चीज के स्टॉक की आवश्यकता प्रमाण जमा करना। अमृतवेले उठकर अपने को अटेन्शन के पट्टे पर चलाना तो पट्टे पर गाड़ी ठीक चलेगी। फिर नीचे-ऊपर होना सम्भव ही नहीं। तो अभी यह स्टॉक जमा करने की चैकिंग रखनी है। सारे विश्व को जिम्मेवारी तुम बच्चों पर है। सिर्फ भारत की नहीं। महारथियों का हर कर्म महान् होना चाहिए। किससे? - घोड़े सवार और प्यादों से महान्। अच्छा।
वरदान:- याद के मंत्र द्वारा संकल्प और कर्म में अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
आप बच्चे आलमाइटी गवर्मेन्ट के मैसेन्जर हो इसलिए कोई से भी डिस्कस करने में अपना माइन्ड डिस्टर्व नहीं करना। याद का मन्त्र यूज़ करना। जैसे कोई वाणी से या अन्य किसी तरीके से वश नहीं होते हैं तो मन्त्र-जन्त्र करते हैं, आपके पास आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मनमनाभव का मन्त्र है जिससे अपने संकल्पों को सिद्ध कर सिद्धि स्वरूप बन सकते हो।
स्लोगन:- एक्शन कानसेस के बजाए सोल कानसेस बनो।