07-07-13 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 26-01-77 मधुबन
अन्तर्मुखता द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव
अपनी वास्तविक साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जान गए हो? जैसे वाणी की शक्ति का, कर्म की शक्ति का प्रत्यक्ष परिणाम दिखाई देता है, वैसे सभी से पावरफुल साइलेन्स शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा है, अनुभव किया? जैसे वाणी द्वारा किसी आत्मा को परिवर्तन कर सकते हो, वैसे साइलेन्स की शक्ति द्वारा अर्थात् मन्सा द्वारा किसी आत्मा की वृत्ति, दृष्टि को परिवर्तन करने का अनुभव है? वाणी द्वारा तो जो सामने हों उनका ही परिवर्तन करेंगे, लेकिन मन्सा द्वारा वा सायलेंस की शक्ति द्वारा कितनी भी स्थूल में दूर रहने वाली आत्मा हो, उनको सम्मुख का अनुभव करा सकते हो। जैसे साइंस के यंत्रों द्वारा दूर का दृश्य सम्मुख अनुभव करते हो, वेसे साइलेन्स की शक्ति से भी दूरी समाप्त हो सामने का अनुभव आप भी करेंगे और अन्य आत्माएं भी करेंगी। इसको ही योगबल कहा जाता है। लेकिन जैसे साइंस के साधन का यंत्र भी तब काम करेगा जिसका कनेक्शन मेन स्टेशन से होगा, इसी प्रकार साइलेन्स की शक्ति द्वारा अनुभव तब कर सकेंगे, जब कि बाप-दादा से निरन्तर क्लीयर कनेक्शन होगा। वहाँ सिर्फ कनेक्शन होता है, लेकिन यहाँ कनेक्शन अर्थात् रिलेशन। सभी क्लीयर अनुभव होंगे तब मन्सा शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण देख सकेंगे।
अभी तक मन्सा शक्ति द्वारा आत्माओं का आह्वान कर परिवर्तन करने की यह सूक्ष्म सेवा बहुत कम करते हो। जब आत्मिक शक्ति वाली, सेमी प्योर आत्माएं अपनी साधना द्वारा आत्माओं का आह्वान कर सकती हैं, अल्पकाल के साधनों द्वारा दूर बैठी हुई आत्माओं को चमत्कार दिखाकर अपनी तरफ आकर्षित कर सकती हैं, तो परमात्म शक्ति अर्थात् सर्व श्रेष्ठ शक्ति क्या नहीं कर सकती? इसके लिए विशेष एकाग्रता चाहिए। संकल्पों की भी एकाग्रता, स्थिति की भी एकाग्रता। एकाग्रता का आधार है - ‘अन्तर्मुखता।’ अन्तर्मुखता में रहने से अन्दर ही अन्दर बहुत कुछ विचित्र अनुभव करेंगे। जैसे दिव्य दृष्टि में सूक्ष्मवतन, सूक्ष्मसृष्टि अर्थात् सूक्ष्मलोक की अनेक विचित्र लीलाएं देखते हो, वैसे अन्तर्मुखता द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाएं अनुभव करेंगे। आत्माओं का आह्वान करना, आत्माओं से रूह-रूहान करना, आत्माओं के संस्कार, स्वभाव को परिवर्तन करना, आत्माओं का बाप से कनेक्शन जुड़वाना, ऐसे रूहानी लीला का अनुभव कर सकते हो? अप्राप्त आत्मा को, अशान्त, दु:खी, रोगी आत्मा को दूर बैठे भी शान्ति, शक्ति, निरोगीपन का वरदान दे सकते हो? जैसे शक्तियों के जड़ चित्रों में वरदान देने का स्थूल रूप हस्तों के रूप में दिखाया है, हस्त भी एकाग्र रूप दिखाते हैं। वरदान का पोज़ (स्थिति) हस्त, दृष्टि और संकल्प एकाग्र ही दिखाते हैं, ऐसे चैतन्य रूप में एकाग्रचित की शक्ति को बढ़ाओ, तो रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा होगी। रूहानी दुनिया मूलवतन नहीं लेकिन रूह रूह को आह्वान करके रूहानी सेवा करे। यह रूहानी लीला का अनुभव करो। यह रूहानी सेवा फास्ट स्पीड (तीव्र गति) में कर सकते हो। तो वाचा और कर्मणा की सेवा में, जो तेरी-मेरी का टकराव होता है, नाम, मान, शान का टकराव होता है, स्वभाव, संस्कारों का टकराव होता है, समय व सम्पत्ति का अभाव होता है, इसी प्रकार के जो भी विघ्न पड़ते हैं, यह सर्व विघ्न समाप्त हो जायेंगे। रूहानी सेवा का एक संस्कार बन जायेगा। इसी संस्कार में भी तत्पर रहेंगे। इस वर्ष यह पॉवरफुल सर्विस भी आरम्भ करो। जो भी आत्माएं वाणी द्वारा व प्रैक्टीकल लाईफ के प्रभाव द्वारा सम्पर्क में आई हैं, वा सम्पर्क में आने की उम्मीदवार हैं, उन आत्माओं को रूहानी शक्ति का अनुभव कराओ। मेहनत का अनुभव, महानता का अनुभव कराया है। अब मेहनत तथा महानता के साथ रूहानियत का भी अनुभव कराओं। तीनों बातों का अनुभव हो।
इस शिवरात्रि पर ऐसी स्थूल और सूक्ष्म स्टेज बनाओ, जिससे आने वाली आत्माओं को अपने स्वरूप रूह और रूहानियत का अनुभव हो। वाणी द्वारा वाणी से परे जाने का अनुभव हो। ऐसे सम्पर्क में आने वाली आत्माओं का विशेष प्रोग्राम रखो। लक्ष्य रखो कि अनुभव कराना है, न कि सिर्फ भाषण करना है, चाहे छोटे-छोटे संगठन बनाओ लेकिन रूहानियत और रूहानी बाप के सम्बन्ध और अनुभव में समीप लाओ। कुछ नवीनता करो। स्थान और स्थिति दोनों से दूर से ही रूहानियत की आकर्षण हो। जनरल सन्देश देने की बात अलग है। वह करना है भले करो, लेकिन यह जरूर करो। इसके लिए निमित्त बनी हुई आत्माओं को अर्थात् सर्विसएबल आत्माओं को विशेष उस दिन एकाग्रता का अन्तर्मुखता का व्रत रखना पड़ेगा। इस व्रत से वृत्तियों को परिवर्तन करेंगे। जैसे भक्त लोग स्थूल भोजन का व्रत रखते हैं, तो सार्विसेबल ज्ञानी तू आत्माओं को व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म की हलचल से परे एकाग्रता अर्थात् रूहानियत में रहने का व्रत लेना पड़े। तब आत्माओं को ज्ञान सूर्य का चमत्कार दिखा सकेंगे। कोई अलौकिक प्लान बनाओ। जैसे भक्ति में अगरबत्ती की खुशबू दूर से आकर्षण करेगी। समझा, अब क्या करना है? सम्पर्क वालों को सम्बन्ध में लाओ। अनुभवों द्वारा उन विशेष आत्माओं को आवाज़ फैलाने के निमित्त बनाओ। अच्छा।
ऐसे रूहानियत में एकाग्रता का अनुभव कराने वाले, हर संकल्प और हर सेकेण्ड रूहानी सेवा में तत्पर रहने वाले, रूह को अनुभवों द्वारा राहत देने वाले, ऐसे रूहानी सेवाधारियों को बाप-दादा का याद-प्यार ओर नमस्ते।
07-07-13 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 31-01-77 मधुबन
भक्तों को सर्व प्राप्ति कराने का आधार है - इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति
अपने को हाइएस्ट अथॉरिटी समझते हो? अपनी प्यूरिटी की पर्सनालिटी को जानते हो? अपनी अविनाशी प्रॉपर्टी को बाप द्वारा प्राप्त कर सम्पन्न अनुभव करते हो? इस पुरानी दुनिया में अल्प काल के हद की पढ़ाई और हद के पोजिशन की अथॉरिटी समझते हैं, उनके आगे आप सभी की ऑलमाईटी अथॉरिटी बेहद की और अविनाशी है। ऐसी अथॉरिटी में सदा रहते हुए हर कर्म करते हो? बाप-दादा हर बच्चे को बेहद का मालिक बनाता है। बेहद की मालिकपन में बेहद की खुशी रहती है। अपने खुशी के खज़ाने को जानते हो ना? बाप बच्चों के भाग्य की रेखाएं देखते हुए हर्षित होते हैं कि श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले कोटों में कोई-कोई आत्माएं हैं।
बाप बच्चों को देख ज्यादा हर्षित होते हैं या बच्चे अपने भाग्य को देख ज्यादा हर्षित होते हैं? कौन ज्यादा हर्षित होते हैं? आप ऐसी श्रेष्ठ आत्माएं हो जो आपके हर कर्म चरित्र के रूप में गाए जाते हैं। हर चरित्र की अभी तक भी पूजा होती रहती है। अभी तक भी भक्त लोग आप दर्शनीय मूर्तियों का एक सेकेण्ड दर्शन करने के लिए तड़फ रहे हैं। ऐसे भक्तों की तड़फ अनुभव करते हो? भक्तों को प्रसन्न करने के लिए दिल में रहम और कल्याण की शुभ भावना उत्पन्न होती है? भक्तों को प्रसन्न करने का साधन कौन-सा है, उसको जानते हो? भक्तों को आप देवताओं द्वारा क्या प्राप्त होने की इच्छा है, इसको जानते हो ना? भक्तों की सर्व प्राप्ति करने का आधार ‘भक्तों की भावना’ है। भक्तों को सर्व प्राप्ति कराने का आधार - आपकी ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ की स्थिति है। जब स्वयं ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ हो जाते हो, तब ही अन्य आत्माओं की सर्व इच्छाएं पूर्ण कर सकते हो। ‘इच्छा मात्रम् अविद्या’ अर्थात् सम्पूर्ण शक्तिशाली बीज रूप स्थिति। जब तक मास्टर बीज रूप नहीं बनते, बीज के बिना पत्तों को कुछ प्राप्ति नहीं हो सकती। अनेक भक्त आत्माएं रूपी पत्ते जो सूख गए हैं, मुरझा गए हैं, उनको फिर से अपने बीज रूप स्थिति द्वारा शक्तियों का दान दो। जैसे जड़ चित्रों के दर्शन पर भक्तों की क्यू लग जाती हैं, वैसे आपको चैतन्य में भी अपने भक्तों की क्यू अनुभव होती है? क्या अभी तक भी भक्तों के पुकार के गीत सुनना अच्छा लगता है? बाप-दादा जब विश्व का सैर करते हैं तो भक्तों का भटकना, पुकारना देखते और सुनते हैं तो तरस आता है। आप कहेंगे कि बाप-दादा ही साक्षात्कार करा दे, और भक्तों की इच्छा पूर्ण कर दे। ऐसे सोचते हो? लेकिन ड्रामा में नाम बच्चों का, काम बाप का है। तो बच्चों को निमित्त बनना ही पड़ता है। विश्व के मालिक बच्चे बनेंगे या बाप बनेगा? प्रजा आपकी बनेगी या बाप की बनेगी? तो जो पूज्य होते हैं उनकी प्रजा बनती है, उनके ही फिर बाद में भक्त बनते हैं। तो अपनी प्रजा को या अपने भक्तों को अब भी निमित्त बन शान्ति और शक्ति का वरदान दो।
जैसे बाप बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हुए, वैसे अब आप इष्टदेव भी अपने भक्तों के आगे प्रत्यक्ष होवो। देवता व देवी अर्थात् देने वाले, तो विधाता के बच्चे विधाता बनो। अपने लाईट का क्राउन दिखाई देता है? रत्न जड़ित ताज इस लाईट के ताज के आगे कोई बड़ी बात नहीं लगेगी। जितना-जितना संकल्प, बोल और कर्म में प्यूरिटी को धारण करते जाते हैं, उतना यह लाईट का क्राउन स्पष्ट होता जाता है। बापदादा भी सभी बच्चों के नम्बरवार क्राउन देखते हैं। जैसे भविष्य में राज्य के ताज भी नम्बरवार होंगे, वैसे यहाँ भी नम्बरवार हैं। तो अपने नम्बर जानते हो? छोटा ताज है या बड़ा ताज? ताज है तो सभी के ऊपर! जब से बाप के बच्चे बने, पवित्रता की प्रतिज्ञा की, तो रिटर्न में ताज प्राप्त हो ही जाता है। सुनाया था ना - आलमाइटी अथॉरिटी के बच्चे बनने से अर्थात् अलौकिक जन्म होते ही ताज, तख्त और तिलक जन्मसिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। ऐसे अपने भाग्य के चमकते हुए सितारे को देखते हो? अगर सदा अपने भाग्य और भाग्य विधाता के गुण गाते रहो तो सदा गुण सम्पन्न बन ही जायेंगे। अपनी कमजोरियों के गुण नहीं गाओ, भाग्य के गुण गाते रहो। ‘प्रश्न से पार हो प्रसन्न चित्त रहो।’ जब तक खुद के प्रति कोई न कोई प्रश्न है, कैसे करें? क्या करे? तब तक दूसरों को प्रसन्न नहीं कर सकेंगे। समझा? अब अपना नहीं सोचो, भक्तों का ज्यादा सोचो। अब तक लेना नहीं सोचो, लेकिन देना सोचो। कोई भी इच्छाएं अपने प्रति न रखो लेकिन अन्य आत्माओं की इच्छाएं पूर्ण करने का सोचो। तो स्वयं स्वत: ही सम्पन्न बन जायेंगे। अच्छा।
ऐसे साक्षात् बाप समान सदा साक्षात्कार मूर्त्त, सर्व आत्माओं की कामनाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा हाइएस्ट अथॉरिटी की स्थिति में स्थित, प्यूरिटी के पर्सनेलिटी में रहने वाले, सदा अपने भाग्य के गुणगान करने वाले, दाता के समान सदा देने वाले महादानी, सर्व वरदानों से सम्पन्न वरदानी, ऐसे महान आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- अशान्ति वा हंगामों के बीच शान्ति कुण्ड की अनुभूति कराने वाले शान्ति स्वरूप भव
जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आये कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है, शान्ति कुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ, शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मन्सा से शान्ति कुण्ड की प्रत्यक्षता कर सकते हो। सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से शान्ति मिलेगी। तो ऐसा वायुमण्डल बनाओ।
स्लोगन:- स्वयं की और सर्व की चिन्ताओं को मिटाना ही शुभचिन्तक बनना है।