13-02-2005 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 31.03.86 "बापदादा" मधुबन
सर्वशक्ति-सम्पन्न बनने
तथा वरदान पाने का वर्ष
आज सर्व खज़ानों के
मालिक, अपने मास्टर बच्चों को देख रहे हैं। बालक सो मालिक, कहाँ तक बने हैं यह देख
रहे हैं। इस समय जो श्रेष्ठ आत्मायें सर्व शक्तियों के सर्व खज़ानों के मालिक बनते
हैं वह मालिकपन के संस्कार भविष्य में भी विश्व के मालिक बनाते हैं। तो क्या देखा?
बालक तो सभी हैं, बाबा और मैं यह लगन सभी बच्चों में अछी लग गई है। बालक पन का नशा
तो सभी में हैं लेकिन बालक सो मालिक अर्थात् बाप समान सम्पन्न। तो बालकपन की स्थिति
और मालिकपन की स्थिति इसमें अन्तर देखा। मालिकपन अर्थात् हर कदम स्वत: ही सम्पन्न
स्थिति में स्वयं का होगा और सर्व प्रति भी होगा। इसको कहते हैं मास्टर अर्थात्
‘बालक सो मालिक’। मालिकपन की विशेषता - जितना ही मालिक उतना ही विश्व-सेवाधारी के
संस्कार सदा इमर्ज रूप में हैं। जितना ही मालिकपन का नशा उतना ही साथ-साथ
विश्व-सेवाधारी का नशा। दोनों की समानता हो। यह है बाप समान मालिक बनना। तो यह
रिजल्ट देख रहे थे कि बालक और मालिक दोनों स्वरूप सदा ही प्रत्यक्ष कर्म में आते
हैं वा सिर्फ नॉलेज तक हैं! लेकिन नॉलेज और प्रत्यक्ष कर्म में अन्तर है। कई बच्चे
इस समानता में बाप समान प्रत्यक्ष कर्म रूप में अच्छे देखे। कई बच्चे अभी भी बालकपन
में रहते हैं लेकिन मालिकपन के उस रूहानी नशे में बाप समान बनने की शक्तिशाली स्थिति
में कभी स्थित होते हैं और कभी स्थित होने के प्रयत्न में समय चला जाता है।
लक्ष्य सभी बच्चों का
यही श्रेष्ठ है कि बाप समान बनना ही है। लक्ष्य शक्तिशाली है। अब लक्ष्य को संकल्प,
बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लाना है। इसमें अन्तर पड़ जाता है। कोई बच्चे संकल्प
तक समान स्थिति में स्थित रहते हैं। कोई संकल्प के साथ वाणी तक भी आ जाते हैं।
कभी-कभी कर्म में भी आ जाते हैं। लेकिन जब सम्बन्ध, सम्पर्क में आते, सेवा के
सम्बन्ध में आते, चाहे परिवार के सम्बन्ध में आते, इस सम्बन्ध और सम्पर्क में आने
में परसेन्टेज कभी कम हो जाती है। बाप समान बनना अर्थात् एक ही समय संकल्प, बोल,
कर्म, सम्बन्ध सबमें बाप समान स्थिति में रहना। कोई दो में रहते कोई तीन में रहते।
लेकिन चारों ही स्थिति जो बताई उसमें कभी कैसे, कभी कैसे हो जाते हैं। तो बापदादा
का बच्चों के प्रति सदा अति स्नेही भी हैं। स्नेह का स्वरूप सिर्फ अव्यक्त का
व्यक्त रूप में मिलना नहीं है। लेकिन स्नेह का स्वरूप है - समान बनना। कई बच्चे ऐसे
सोचते हैं कि बापदादा निर्मोही बन रहें हैं। लेकिन यह निर्मोही बनना नहीं है। यह
विशेष स्नेह का स्वरूप है।
बापदादा पहले से ही
सुना चुके हैं कि बहुतकाल की प्राप्ति के हिसाब का समय अभी बहुत कम है। इसलिए
बापदादा बच्चों को सदा बहुतकाल के लिए विशेष दृढ़ता की तपस्या द्वारा स्वयं को तपाना
अर्थात् मजबूत करना, परिपक्व करना इसके लिए यह विशेष समय दे रहें हैं। वैसे तो
गोल्डन जुबली में भी सभी ने संकल्प किया कि समान बनेंगे। विघ्न विनाशक बनेंगे।
समाधान स्वरूप बनेंगे। यह सब वायदे बाप के पास चित्रगुप्त के रूप में हिसाब के खाते
में नूँधे हुए हैं। आज भी कई बच्चों ने दृढ़ संकल्प किया। समर्पण होना अर्थात् स्वयं
को सर्व प्राप्तियों में परिपक्व बनाना। समर्पणता का अर्थ ही है संकल्प बोल कर्म और
सम्बन्ध इन चारों में ही बाप समान बनना। पत्र जो लिख कर दिया वह पत्र वा संकल्प
सूक्ष्मवतन में बापदादा के पास सदा के लिए रिकार्ड में रह गया। सबकी फाइल्स वहाँ
वतन में हैं। हर एक का यह सकंल्प अविनाशी हो गया।
इस वर्ष बच्चों के
दृढ़ता की तपस्या से हर संकल्प को अमर, अविनाशी बनाने के लिए, स्वयं से बार-बार दृढ़ता
के अभ्यास से रूह-रूहान करने के लिए, रियलाइजेशन करने के लिए और रीइनकारनेट स्वरूप
बन फिर कर्म में आने के लिए इस स्थिति को सदाकाल के लिए और मजबूत करने के लिए,
बापदादा यह समय दे रहें हैं। साथ-साथ विशेष रूप में शुद्ध संकल्प की शक्ति से जमा
का खाता और बढ़ाना है। शुद्ध संकल्प की शक्ति का विशेष अनुभव अभी और अन्तर्मुखी बन
करने की आवश्यकता है। शुद्ध संकल्पों की शक्ति सहज व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर
दूसरों के प्रति भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकते हैं। अभी
इस शुद्ध संकल्प के शक्ति का विशेष अनुभव अभी व्यर्थ संकल्पों को सहज समाप्त कर देती
है। न सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्प लेकिन आपके शुद्ध संकल्प दूसरों के प्रति भी शुभ
भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकते हैं। अभी इस शुद्ध संकल्प के शक्ति
की स्वयं के प्रति भी स्टाक जमा करने की बहुत आवश्यकता है। मुरली सुनना यह लगन तो
बहुत अच्छी है। मुरली अर्थात् खज़ाना। मुरली की हर प्वाइंट को शक्ति के रूप में जमा
करना यह है - शुद्ध संकल्प शक्ति को बढ़ाना। शक्ति के रूप मे हर समय कार्य में लगाना।
अभी इस विशेषता का विशेष अटेन्शन रखना है। शुद्ध संकल्प की शक्ति के महत्त्व को अभी
जितना अनुभव करते जायेगे उतना मन्सा सेवा के भी सहज अनुभवी बनते जायेंगे। पहले तो
स्वयं के प्रति शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा चाहिए। और फिर साथ-साथ आप सभी बाप के
साथ विश्व कल्याणकारी आत्मायें, विश्व परिवर्तक आत्मायें हो। तो विश्व के प्रति भी
यह शुद्ध संकल्पों की शक्ति द्वारा परिवर्तन करने का कार्य अभी बहुत रहा हुआ है।
जैसे वर्तमान समय ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन शुद्ध संकल्प की शक्ति से आप सबकी
पालना कर रहे हैं। सेवा की वृद्धि के सहयोगी बन आगे बढ़ा रहे हैं। यह विशेष सेवा -
शुद्ध संकल्प के शक्ति की चल रही है। तो ब्रह्मा बाप समान अभी इस विशेषता को अपने
में बढ़ाने का, तपस्या के रूप में अभ्यास करना है। तपस्या अर्थात् दृढ़ता सम्पन्न
अभ्यास। साधारण को तपस्या नहीं कहेंगे तो अभी तपस्या के लिए समय दे रहे हैं। अभी ही
क्यों दे रहे हैं? क्योंकि यह समय आपके बहुतकाल में जमा हो जायेगा। बापदादा सभी को
बहुतकाल की प्राप्ति कराने के निमित्त हैं। बापदादा सभी बच्चों को बहुतकाल के राज्य
भाग्य अधिकारी बनाना चाहते हैं। तो बहुतकाल के राज्य भाग्य के अधिकारी बनाना चाहते
हैं। तो बहुत काल का समय बहुत थोड़ा है। इसलिए हर बात के अभ्यास को ‘तपस्या’ के रूप
में करने के लिए यह विशेष समय दे रहे हैं। क्योंकि समय ऐसा आयेगा - जिसमें आप सभी
को दाता और वरदाता बन थोड़े समय में अनेकों को देना पड़ेगा। तो सर्व खज़ानों के जमा का
खाता सम्पन्न बनाने के लिए समय दे रहे हैं।
दूसरी बात -
विघ्न विनाशक का, समाधान स्वरूप का जो वायदा किया है तो विघ्न विनाशक स्वयं के प्रति
भी और सर्व के प्रति भी बनने का विशेष दृढ़ संकल्प और दृढ़ स्वरूप दोनों हो। सिर्फ
संकल्प नहीं लेकिन स्वरूप भी हो। तो इस वर्ष बाप दादा एकस्ट्रा चांस दे रहे हैं।
जिसको भी यह विघ्न विनाशक बनने का विशेष भाग्य लेना है वह इस वर्ष में ले सकते हैं।
इस वर्ष को विशेष वरदान है। लेकिन वरदान लेने के लिए विशेष दो अटेन्शन देने पड़ेगे।
एक तो सदा बाप समान देने वाले बनना है, लेने की भावना नहीं रखनी है। रिगार्ड मिले,
स्नेह मिले तब स्नेही बनें, व रिगार्ड मिले तब रिगार्ड दें, नहीं। दाता के बच्चे बन
मुझे देना है। लेने की भावना नहीं रखना। श्रेष्ठ कर्म करते हुए दूसरे तरफ से मिलना
चाहिए यह भावना नहीं रखना। श्रेष्ठ कर्म का फल श्रेष्ठ होता ही है। यह नॉलेज आप
जानते हो लेकिन करने समय यह संकल्प नहीं रखना। एक तो वरदान लेने के पात्र बनने के
लिए सदा ‘दाता बन करके रहना’ और दूसरा ‘विघ्न विनाशक बनना है’, तो समाने की शक्ति
सदा विशेष रूप में अटेन्शन में रखना। स्वयं प्रति भी समाने की शक्ति आवश्यक है।
सागर के बच्चे हैं, सागर की विशेषता है ही समाना। जिसमें समाने की शक्ति होगी वही
शुभ भावना, कल्याण की कामना कर सकेंगे। इसलिए दाता बनना, समाने के शक्ति स्वरूप
सागर बनना। यह दो विशेषतायें सदा कर्म तक लाना। कई बार कई बच्चे कहते हैं - सोचा तो
था कि यही करेंगे लेकिन करने में बदल गया। तो इस वर्ष में चारों ही बातों में एक ही
समय समानता का विशेष अभ्यास करना है। समझा। तो एक बात खज़ानों को जमा करने का और दाता
बन देने का संस्कार नैचुरल रूप में धारण हो जाए उसके लिए समय दे रहें हैं। और विघ्न
विनाशक बनना और बनाना। इसमें सदा के लिए अपना नम्बर निश्चित करने का चांस दे रहें
हैं। कुछ भी हो - स्वयं तपस्या करो, और किसका विघ्न समाप्त करने में सहयोगी बनो।
खुद कितना भी झुकना पड़े लेकिन यह झुकना सदा के लिए झूलों में झूलना है। जैसे
श्रीकृष्ण को कितना प्यार से झुलाते रहते हैं। ऐसे अभी बाप तुम बच्चों को अपनी गोदी
के झूले में झुलायेंगे और भविष्य में रत्न जड़ित झूलों में झूलेंगे, और भक्ति में
पूज्य बन झुले में झूलेंगे। तो ‘झुकना-मिटना यह महानता है।’ मैं क्यों झुकूँ, यह
झुकें, इसमें अपने को कम नहीं समझो। यह झुकना महानता है। यह मरना, मरना नहीं,
अविनाशी प्राप्तियों में जीना है। इसलिए सदा विघ्न विनाशक बनना और बनाना है। इसमें
फर्स्ट डिवीजन में आने का जिसको चांस लेना हो वह ले सकते हैं। यह विशेष चांस लेने
के समय का बापदादा महत्व सुना रहें हैं। तो समय के महत्व को जान तपस्या करना।
तीसरी बात -
समय प्रमाण जितना वायुमण्डल अशान्ति और हलचल का बढ़ता जा रहा है उसी प्रमाण बुद्धि
की लाइन बहुत क्लीयर होनी चाहिए। क्योंकि समय प्रमाण ‘टचिंग और कैचिंग’ इन दो
शक्तियों की आवश्यकता है। एक तो बापदादा के डायरेक्शन को बुद्धि द्वारा कैच कर सको।
अगर लाइन क्लीयर नहीं होगी तो बाप के डायरेक्शन साथ मनमत भी मिक्स हो जाती। और
मिक्स होने के कारण समय पर धोखा खा सकते हैं। जितनी बुद्धि स्पष्ट होगी उतना बाप के
डायरेक्शन को स्पष्ट कैच कर सकेंगे। और जितना बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी, उतना
स्वयं की उन्नति प्रति, सेवा की वृद्धि प्रति और सर्व आत्माओं के दाता बन देने की
शक्तियाँ सहज बढ़ती जायेंगी और टचिंग होगी इस समय इस आत्मा के प्रति सहज सेवा का
साधन वा स्व-उन्नति का साधन यही यथार्थ है। तो वर्तमान समय प्रमाण यह दोनों शक्तियों
की बहुत आवश्यकता है। इसको बढ़ाने के लिए एक नामी और एकानामी वाले बनना। एक बाप दूसरा
न कोई। दूसरे का लगाव और चीज़ है। लगाव तो रांग है ही है लेकिन दूसरे के स्वभाव का
प्रभाव अपनी अवस्था को हलचल में लाता है। दूसरे का संस्कार बुद्धि को टक्कर में लाता
है। उस समय बुद्धि में बाप है या संस्कार है? चाले लगाव के रूप में बुद्धि को
प्रभावित करे चाहे टकरावट के रूप में बुद्धि को प्रभावित करे लेकिन बुद्धि की लाइन
सदा क्लीयर हो। एक बाप दूसरा न कोई - इसको कहते हैं एक नामी। और एकानामी क्या है?
सिर्फ स्थूल धन की बचत को एकानामी नहीं कहते। वह भी जरूरी है लेकिन समय भी धन है,
संकल्प भी धन है, शक्तियाँ भी धन हैं, इस सबकी एकानामी। व्यर्थ नहीं गँवाओ। एकनामी
करना अर्थात् जमा का खाता बढ़ाना। एकनामी और एकानामी के संस्कार वाले यह दोनों
शक्तियाँ (टचिंग और कैचिंग) का अनुभव कर सकेंगे। और यह अनुभव विनाश के समय नहीं कर
सकेंगे, यह अभी से अभ्यास चाहिए। तब समय पर इस अभ्यास के कारण अन्त में श्रेष्ठ मत
और गति को पा सकेंगे। आप समझो कि अभी विनाश का समय कुछ तो पड़ा है। चलो 10 वर्ष ही
सही। लेकिन 10 वर्ष के बाद फिर यह पुरूषार्थ नहीं कर सकेंगे। कितनी भी मेहनत करो,
नहीं कर सकेंगे। कमज़ोर हो जायेंगे। फिर अन्त युद्ध में जायेगी। सफलता में नहीं।
त्रेतायुगी तो नहीं बनना है न! मेहनत अर्थात् तीर कमान। और सदा मुहब्बत में रहना,
खुशी में रहना अर्थात् मुरलीधर बनना, सूर्यवंशी बनना। मुरली नचाती है और तीर कमान
निशाना लगाने के लिए मेहनत कराता है। तो कमान धारी नहीं, मुरली वाला बनना है। इसलिए
पीछे कोई उल्हना नहीं देना कि थोड़ा-सा फिर से एकस्ट्रा समय दे दो। चांस दे दो वा
कृपा कर लो। यह नहीं चलेगा। इसलिए पहले से सुना रहें हैं। चाहे पीछे आया है या आगे
लेकिन समय के प्रमाण तो सभी को लास्ट स्टेज पर पहुँचने का समय है। तो ऐसी फास्ट गति
से चलना पड़े। समझा!
वरदान:-
नम्रता और
अथॉरिटी के बैलेन्स द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले विशेष सेवाधारी भव
जहाँ बैलेन्स होता है
वहाँ कमाल दिखाई देती है। जब आप नम्रता और सत्यता की अथॉरिटी के बैलेन्स से किसी को
भी बाप का परिचय देंगे तो कमाल दिखाई देगी। इसी रूप से बाप को प्रत्यक्ष करना है।
आपके बोल स्पष्ट हों, उसमें स्नेह भी हो, नम्रता और मधुरता भी हो तो महानता और
सत्यता भी हो तब प्रत्यक्षता होगी। बोलते हुए बीच-बीच में अनुभव कराते जाओ जिससे
लगन में मगन मूर्त अनुभव हो। ऐसे स्वरूप से सेवा करने वाले ही विशेष सेवाधारी हैं।
स्लोगन:-
समय पर कोई भी साधन न हो तो भी साधना में विघ्न न पड़े।