09-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें एक
शिवबाबा को ही याद करना है, किसी देहधारी को नहीं, ज्ञान के सिवाए कोई भी व्यर्थ
बातें न सुननी हैं, न सुनानी हैं''
प्रश्नः-
बाप सभी बच्चों
को कौन सी वारनिंग (सावधानी) देते हैं?
उत्तर:-
बच्चे,
बाप के बने हो तो ईश्वरीय बचपन को कभी भूल नहीं जाना। कोई भी विकर्म नहीं करना। बाप
से प्रतिज्ञा कर उसे छोड़ना नहीं। अगर बाप को भूलेंगे तो माया खुशी गायब कर देगी,
फिर बुद्धि हैरान होती रहेगी, घबराते रहेंगे। विकर्म करते रहेंगे। बुद्धि का ताला
बन्द हो जायेगा, इसलिए शिवबाबा के बने हो तो बचपन सदा याद रखो।
गीत:-
बचपन के दिन भुला न देना....
ओम् शान्ति।
बच्चों ने अर्थ समझा? बच्चे सामने बैठे हैं और जानते हैं ब्रह्मा द्वारा वर्सा लेने
के लिए हम उनके बच्चे बने हैं और यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि हम निराकार परमपिता
परमात्मा की अविनाशी सन्तान हैं। अब सम्मुख बैठे हैं दूर होने से कई बच्चे भूल जाते
हैं। मित्र-सम्बन्धी, गुरू गोसाई आदि को देखते हो तो यह बचपन की बातें भूल जाती
हैं। यहाँ जो सम्मुख बैठे हैं, वह तो नहीं भूलते होंगे। अविनाशी शिवबाबा से हम
स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं, यह तो बड़ी खुशी की बात है ना। हमको शिवबाबा ने अपनाया
है फिर से स्वर्ग के मालिक बनाने, हम मालिक थे। परन्तु पुनर्जन्म लेते-लेते अब नर्क
के मालिक बने हैं, फिर स्वर्ग का मालिक बनेंगे। तुम जानते हो शिवबाबा जो निराकार
है, वह इस तन में प्रवेश करते हैं। वह हमें श्रीमत देते हैं कि मुझ निराकार शिवबाबा
को याद करो। सभी आत्माओं को कहते हैं क्योंकि वह सर्व का लिबरेटर है। लिबरेटर माना
सद्गति दाता। मनुष्यों की ही सद्गति करेंगे। जानवरों की तो बात नहीं, लिबरेटर गाइड
है मनुष्यों का। उनको नॉलेजफुल, ब्लिसफुल कहते हैं। यहाँ तुम सम्मुख बैठे हो तो नशा
चढ़ता है। बाबा जानते हैं घर जाने से तुम बच्चे भूल जाते हो। माया भुला देती है। यहाँ
तुम्हारी बुद्धि में कोई साधू सन्त गुरू वा लौकिक सम्बन्धी नहीं हैं। अभी है
पारलौकिक सम्बन्ध। शिवबाबा इसमें प्रवेश होकर हमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं।
निराकार को जरूर साकार में आना पड़े। कहते हैं सिकीलधे बच्चे तुम फिर से स्वर्ग का
वर्सा लेने के लिए आये हो। पूछा भी जाता है कि शिवबाबा से आपका क्या सम्बन्ध है?
तुम कहेंगे हम उनके अविनाशी बच्चे हैं। फिर प्रजापिता ब्रह्मा के साकारी बच्चे हैं,
क्योंकि पुनर्जन्म लेते रहते हो। दूसरे जन्म में सब तो बच्चे नहीं बनेंगे। बचपन की
यह बातें भूलो मत। हम शिवबाबा के पोत्रे ब्रह्मा के बच्चे हैं। यहाँ आये हो फिर से
स्वर्ग का वर्सा लेने। अभी नर्क में हैं। तुम अब संगम पर हो, कितनी सहज बात है।
बुढ़ियाँ भी धारण कर सकती हैं, यह भूलना नहीं है। परन्तु बहुत हैं जो बाहर जाने से
भूल जाते हैं। सारा दिन भूले रहते हैं, वह खुशी नहीं रहती है। फिर कहते हैं बाबा पता
नहीं क्या होता है। वास्तव में यह तो बच्चों को बहुत अपार खुशी होनी चाहिए। बाप
स्वर्ग का मालिक बनाते हैं और क्या चाहिए। बाप को भूलने कारण तुम घबराते हो, हैरान
होते हो और विकर्म करते हो। यह कोई गुरू आदि नहीं है। यह सत बाप है। बाप बैठ बच्चों
को समझाते हैं। तुम शिवबाबा के बने हो ब्रह्मा द्वारा। वह भी बाबा है, यह भी बाबा
है। इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं, वर्सा कहाँ से मिलता है? शिवबाबा से। वह तो
है ही नई दुनिया का रचयिता। तुम अभी ऐसे बापदादा के सम्मुख बैठे हो तो बाप समझाते
हैं बच्चे कोई विकर्म नहीं करो। नये आयेंगे तो कहेंगे अच्छा आज प्रतिज्ञा करो - मुझे
भूलना नहीं है। माया तुमको बार-बार भुलायेगी इसलिए बाप समझाते हैं, वारनिंग दी जाती
है, मुरली से भी सब बच्चे सुनेंगे, समझेंगे बाबा मधुबन में बच्चों को ऐसे बैठ समझाते
हैं। तुम जानते हो यह बचपन माया बार-बार भुला देती है। बुद्धि का ताला बिल्कुल बन्द
हो जाता है। आत्मा को जब अतीन्द्रिय सुख मिलता है तो खुशी होती है। अब बाबा मुझे
मिला है। बाबा सभी दु:खों से लिबरेट करते हैं क्योंकि वह सुखदाता है। सभी मनुष्यों
का वह लिबरेटर है। ऐसे नहीं कि तुम कोई 84 लाख जन्म भोग आये हो। लाखों जन्मों की
बात ही नहीं। यह तो 84 जन्मों का चक्र है। तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले हमारा
राज्य था। क्रिश्चियन घराने के 3000 वर्ष पहले हेविन था, फिर हेल कैसे बना, यह कोई
भी नहीं जानते। बाप बैठ अच्छी रीति समझाते हैं। इसमें शास्त्रों आदि की कोई बात नहीं।
अगर रांग समझते हो, संशय पड़ता है तो भाग जाओ। अरे शिवबाबा तुम्हारा पिता, ब्रह्मा
भी तुम्हारा पिता। शिवबाबा कहते हैं इस ब्रह्मा तन में प्रवेश कर इनको बच्चा बनाता
हूँ। फिर इन द्वारा और बच्चे एडाप्ट करते हैं। उन्हों को शिक्षा दे फिर स्वर्ग का
मालिक बनाते हैं। स्वर्ग के मालिक थे, अभी नर्क के हो। तुम देखते हो हम बाप के
सम्मुख बैठे हैं। हम बच्चे दादे के वर्से के हकदार हैं। पावन जरूर बनना है। पावन
बनने बिगर आत्मा उड़ नहीं सकती। यह तो गपोड़े मारते रहते हैं। फलाना निवार्णधाम में
गया वा ज्योति ज्योत समाया। जाता एक भी नहीं है। जो भी एक्टर हैं सबको हाजिर यहाँ
होना है। जब तक विनाश शुरू न हो तब तक हाज़िर होना है। आत्मायें आती ही रहती हैं।
जब वहाँ से आना पूरा हो जाता है तब लड़ाई लगती है। तुम्हारी राजाई स्थापन हो जाती
है। वहाँ से भी सब आ जाते हैं। यह सब बातें बाप बहुत अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु
तुम भूल जाते हो। कितने भूले तो फारकती दे दी। अच्छे-अच्छे बच्चे जो बाप के पिछाड़ी
न्योछावर हो जाते थे, यहाँ से जाते थे तो रोकर जाते थे। वहाँ जाने से नर्कवासियों
का संग मिलता है तो सब भूल जाते हैं। बाप वारनिंग देते हैं बच्चे, इस बचपन को कभी
भूलना नहीं। तुमको तो एक शिवबाबा को ही याद करना है। कोई भी गुरू गोसाई आदि का फोटो
भी नहीं रखना है। निराकार शिवबाबा का फोटो तो निकल न सके। तुम बच्चों को बाबा अभी
अच्छे कर्म करना सिखलाते हैं। ऐसे अच्छे कर्म और कोई सिखला न सके। तुम श्रेष्ठ बन
रहे हो। शरीर छोड़ेंगे तो भी ऊंच सर्विस ही जाकर करेंगे क्योंकि तुम्हारी चढ़ती कला
है फिर जो जितना पुरुषार्थ करेगा। बाबा फिर भी कहते हैं यहाँ तुम सम्मुख बैठे हो।
यहाँ सुनते हो, याद रहता है फिर बाहर जाने से झट भूल जाता है। ऐसे भी हैं फिर आपस
में झरमुई झगमुई, उल्टी सुल्टी बातें सुनते सुनाते रहते हैं। ज्ञान नहीं है तो एक
दो को वाह्यात बातें सुनाकर माथा खराब करते हैं। बाबा लेने के लिए आये हैं। बाबा
कहते हैं बच्चे मुझे याद करो तो इतना ऊंच पद पायेंगे इसलिए सिवाए ज्ञान के और किसी
की भी ग्लानि आदि उल्टी सुल्टी बातें सुनो नहीं।
बाप को कहते हैं हेविनली गॉड फादर, स्वर्ग स्थापन करने वाला वर्ल्ड गॉड फादर। सभी
मनुष्य मात्र का बाप एक ही निराकार है। तुम एक धर्म के हो, जो ब्रह्माकुमार कुमारियाँ
बने हो, पीछे फिर और धर्मो की वृद्धि होती जाती है। सतयुग में एक ही देवी-देवता
धर्म होगा। सब गोरे होंगे, फिर इस्लामी लोग निकलते हैं। फीचर्स बिल्कुल डिफरेन्ट।
बौद्धियों की शक्ल देखो कैसी है। सब धर्म वालों की शक्ल अलग-अलग। अभी तो अनेक धर्मो
का विनाश और एक धर्म की स्थापना हो रही है। तुम पतित से पावन बन रहे हो। याद रखना
तुम्हारी दुश्मन माया बड़ी दुश्तर है। सिवाए ज्ञान के कोई वाह्यात बातें सुनने से
बेमुख हो शोक वाटिका में चले जायेंगे। बाबा बार-बार समझाते हैं। तुम्हारा धन्धा ही
यह है - बाप से वर्सा पाने की युक्ति बताना। बाबा ने समझाया था तुम्हारा परमपिता
परमात्मा से क्या सम्बन्ध है! वह बोर्ड लगा दो। बड़ी अच्छी लिखत हो। ब्रह्माकुमारियों
का नाम सुनते डरते हैं तो फिर और युक्ति से लिखा जाता है। बोर्ड पढ़ेंगे तो बापदादा
का परिचय मिल जायेगा, जरूर साकार द्वारा ही वर्सा मिलेगा। शिवबाबा है ही स्वर्ग की
स्थापना करने वाला। मुसलमान कहते हैं बहिश्त स्थापन करने वाला। अभी तुम उनके बच्चे
बने हो, ऐसे बाप को भूलो नहीं। माया कितनी जबरदस्त है। तो बाबा कहते हैं इस बचपन को
भूल मत जाना, बच्चे तो सब हैं ना। भल कितना बड़ा आदमी होगा तो भी बाबा कहेंगे,
तुम्हारी माया बड़ी दुश्मन है। बाबा समझाते हैं, तुम फालतू बातें नहीं करना। तुम
मम्मा बाबा कहते हो तो फालो कर ऊंच पद पाओ। लाडले बच्चे मुझे याद करो तो विकर्मो का
बोझा उतर जाये, नहीं तो भोगना पड़ेगा फिर उस समय बहुत फील होगा। अन्त में ऐसी भासना
आती है जैसे बहुत समय से भोगना भोग रहे हैं, हिसाब-किताब चुक्तू होता है तब वापिस
जाते हैं। वह सारा साक्षात्कार होता रहेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) संगदोष में आकर ईश्वरीय बचपन को भूलना नहीं, आपस में कभी भी कोई
वाह्यात (व्यर्थ), उल्टी-सुल्टी बातें न सुननी है, न सुनानी है। ज्ञान की ही बातें
करनी हैं।
2) हर एक को बाप से वर्सा लेने की युक्ति बतानी है। मम्मा-बाबा को पूरा फालो कर
ऊंच पद का अधिकार लेना है। बाप की याद से विकर्मो का बोझ उतारना है।
वरदान:-
समय के
ज्ञान को स्मृति में रख सब प्रश्नों को समाप्त करने वाले स्वदर्शन चक्रधारी भव
जो स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे
स्व का दर्शन कर लेते हैं उन्हें सृष्टि चक्र का दर्शन स्वत: हो जाता है। ड्रामा के
राज़ को जानने वाले सदा खुशी में रहते हैं, कभी क्यों, क्या का प्रश्न नहीं उठ सकता
क्योंकि ड्रामा में स्वयं भी कल्याणकारी हैं और समय भी कल्याणकारी है। जो स्व को
देखते, स्वदर्शन चक्रधारी बनते वह सहज ही आगे बढ़ते रहते हैं।
स्लोगन:-
अनेक
आत्माओं की सच्ची सेवा करनी है तो शुभचिंतक बनो।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
ज्ञान, योग, धारणा,
जितना इन तीनों बातों पर अटेंशन देंगे तो उन्नति होती रहेगी। इन्हें प्रैक्टिकल
जीवन में लाना है। इस अविनाशी ईश्वरीय ज्ञान की प्रालब्ध से इमार्टल सुख प्राप्त
होता है, उसको ही देवताई सुख कहते हैं, देवताओं की तो प्रैक्टिकल सुखी जीवन थी। ऐसे
नहीं कि जब वह ब्राह्मण थे तब कोई शास्त्र अध्ययन करते थे, उन्हें तो स्वयं गीता के
भगवान से सहारा मिला, तो मनुष्यों द्वारा बनाये हुए शास्त्रों को हम फॉलो कैसे करें।
इस ईश्वरीय सुख का
अनुभव अभी प्रैक्टिकल हो रहा है, हम इस दु:ख के जमाने से निकल सुख के जमाने में आ
गये हैं। वो दु:ख का जमाना अब लौट गया, पहले सुख के जमाने में थे वो जमाना पूरा हुआ
तो दु:ख के जमाने में आये, अब फिर से उस सुख की दुनिया में आ गये, जहाँ 21 जन्म सुख
में रहेंगे फिर जल्दी दु:ख में नहीं आयेंगे। धीरे-धीरे उतरेंगे, अब यह गम का जमाना
सदा के लिये जा रहा है। अब तो सच्चा अतीन्द्रिय सुख होना चाहिए, भल इसमें मायावी
विघ्न भी खूब पड़ेंगे तो भी जिन्हों को यह पूर्ण निश्चय है कि पुरानी दुनिया गुज़र
चुकी है, उन्हों को गम की लेस नहीं आ सकती। अगर कहाँ लैस आती है तो समझना है कहाँ
जरूर विस्मृति है। तो अपना भी ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ सुनने तक नहीं है परन्तु धारण कर
लाइफ में फर्क आना चाहिए। यह यथार्थ मार्ग हमें अभी मिला है। बाकी ऐसे नहीं समझना
हमने परमात्मा की गोद ली तो बस, इतना करने से पूरी प्राप्तियां नहीं हो सकती।
परमात्मा मिला है पुरुषार्थ का मार्ग बताने के लिये, अब उस मार्ग पर चल प्रैक्टिकल
ईश्वरीय जीवन बनाना, बस यही है सच्चा सुख।
बहुत मनुष्य यह
प्रश्न पूछते हैं जब आत्मा और परमात्मा दोनों अनादि हैं तो फिर परमात्मा को रचयिता
क्यों कहते हैं? परमात्मा को बाप और आत्मा को संतान क्यों कहते हैं? अब इस पर समझाया
जाता है, परमात्मा भी अनादि है, यह सारी दुनिया अवश्य मानती है, उसके लिये ऐसा
प्रश्न उठ नहीं सकता कि परमात्मा को किसने पैदा किया? नहीं। वैसे आत्मायें भी अनादि
और अविनाशी हैं परन्तु दुनिया के लोग ऐसे समझते हैं आत्मा परमात्मा का अंश है, तो
वो भी परमात्मा हो गया। इस हिसाब से अनादि समझते हैं। अब यह तो हुई उन्हों की मत
लेकिन स्वयं परमात्मा द्वारा हम जान चुके हैं कि परमात्मा पिता है और हम आत्मायें
बच्चे हैं। पहले बाप आता है, बाद में बच्चे पैदा होते हैं। भल हैं दोनों अनादि
लेकिन परमात्मा को पार्ट मिला हुआ है आत्माओं को बच्चा बनाकर वर्सा देने का। हम बाप
से सुख शान्ति पवित्रता का वर्सा लेते हैं क्योंकि आत्माओं ने यह सुख शान्ति का
वर्सा खोया है, तो फिर उन्हों को ही लेना पड़ेगा। हम इस हिसाब से परमात्मा बाप और
आत्मा बच्चे का सम्बन्ध रखते हैं, बाकी परमात्मा तो खुद पिता है वह स्वयं सुख शान्ति
का सागर है, उसके पास फुल नॉलेज है, वो खुद ही दाता है, इस प्रकार से भी हम बाप
कहेंगे। जब हम बाप कहते हैं तो जरूर बच्चा भी है, बाप कहने से बच्चा सिद्ध हो जाता
है। अगर परमात्मा न होता तो देने वाला कौन होता? जब देने वाला है तभी तो हम लेने
वाले हैं। तो दोनों का पार्ट अलग अलग ठहरा। आत्मा परमात्मा का भल रूप एक है परन्तु
परमात्मा को नॉलेजफुल कहते हैं, उन्हें रचने का पार्ट मिला हुआ है, आत्मायें उनकी
क्रियेशन हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।