02-05-10  प्रातः मुरली ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" रिवाइज़ - 01-08-71 मधुबन

 

 

स्वयं की स्टेज को सेट करने की विधि

 

आज समाप्ति का दिन है वा समर्पण होने का दिन है? समर्पण अर्थात् जो भी ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत संस्कार वा स्वभाव वा कर्म हैं उसको समर्पण कर देना है। जैसे कोई मशीनरी को सेट किया जाता है, तो एक बार सेट करने से फिर ऑटोमेटिकली चलती रहती है। इस रीति से भट्ठी में भी अपनी सम्पूर्ण स्टेज वा बाप के समान स्टेज वा कर्मातीत स्थिति की स्टेज के सेट को ऐसा सेट किया है जो कि फिर संकल्प, शब्द वा कर्म उसी सेटिंग के प्रमाण ऑटोमेटिकली चलते ही रहे? ऐसी अथॉरिटी की स्मृति की स्थिति की सेटिंग की है? आलमाइटी अथॉरिटी बाप है ना। आप सभी भी मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी अपने को समझते हो? जो आलमाइटी अथॉरिटी की स्टेज को एक बार सेट कर देते हैं वह कभी भी ऐसे सोचेंगे नहीं वा कहेंगे नहीं वा करेंगे नहीं जो कि कमजोरी के लक्षण होते हैं। क्योंकि मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी हो। जब विश्व को इतने थोड़े समय में परिवर्तन करने की अथॉरिटी है, तो क्या मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी में अभी-अभी एक सेकेण्ड में अपने को परिवार्तित करने की शक्ति नहीं? हम मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी हैं - इस स्थिति को सेट कर दो। आटोमेटिकली चलने वाली जो चीज़ होती है उनको बार-बार सेट नहीं किया जाता है। एक बार सेट कर दिया, फिर आटोमेटिकली चलती रहती है। आप लोग भी अभी सहज और सदा के कर्मयोगी अर्थात् निरन्तर निर्विकल्प समाधि में रहने वाले सहज योगी बने हो? कि योगी बने हो? जो सदा योगी रहते हैं वह सदाचारी रहते हैं। सदाचारी कौन बन सकता है? जो सदा योगी स्थिति में स्थित रहते हैं वही सदाचारी होते हैं। तो हम सदाचारी हैं, इसलिए कभी, कैसे भी डगमग नहीं हो सकते। सदैव अचल- अडोल हो। ऐसे ही अपनी भट्ठी में प्रतिज्ञा रूपी स्विच को सेट किया है? अगर प्रतिज्ञा रूपी स्विच को सेट कर दिया, तो प्रैक्टिकल में प्रतिज्ञा प्रमाण ही चलेगा ना। तो सदाचारी वा निरन्तर योगी व सहज योगी नहीं हो जायेंगे? गायन है ना कि पाण्डव पहाड़ों पर जाकर गल गये। पहाड़ का अर्थ क्या है? पहाड़ ऊंचा होता है ना धरती से? तो पाण्डव धरती अर्थात् नीचे की स्टेज को छोड़कर जब ऊंची स्टेज पर जाते हैं तो अपने पास्ट के वा ईश्वरीय मर्यादाओं के विपरीत जो संस्कार, स्वभाव, संकल्प, कर्म वा शब्द जो भी हैं उसमें अपने को मरजीवा बनाया अर्थात् गल गये। तो आप भी धरती से ऊंचे चले गये थे ना। पूरे गल कर आये हो वा कुछ रखकर आये हो? अपने में 100ज्ञ् निश्चय-बुद्धि हैं तो उनकी कभी हार नहीं हो सकती। एक चाहिए हिम्मत; दूसरा, फिर हिम्मत के साथ-साथ उल्लास भी चाहिए। अगर हिम्मत और उल्लास नहीं, तो भी प्रैक्टिकल में शो नहीं हो सकता। इसलिए दोनों साथ- साथ चाहिए। एक अन्तर्मुखता और दूसरी बाहर से शो करने वाली हर्षितमु- खता, वह अवस्था है? दोनों साथ-साथ चाहिए। इस रीति हिम्मत के साथ उल्लास भी चाहिए, जिससे दूर से ही मालूम हो कि इन्हों के पास कोई विशेष प्राप्ति है। जो प्राप्ति वाले होते हैं उनके हर चलन, नैन-चैन से वह उमंग-उत्साह दिखाई देता है। भक्ति-मार्ग में सिर्फ उत्साह दिलाने के लिए उत्सव मनाने का साधन बनाया है। खुशी में नाचते हैं ना। कोई की भी उदासी या उलझन आदि होती है, वह किनारे हो जाती है ना। तो हिम्मत के साथ उल्लास भी जरूर चाहिए। और अविनाशी स्टैम्प लगाई है? अगर अविनाशी की स्टैम्प न लगाई तो क्या होगा? दण्ड पड़ जायेगा। इसलिए यह स्टैम्प जरूर लगाना। तो यह सदाकाल के लिए समर्पण समारोह है ना? फिर बार-बार तो यह समारोह नहीं मनाना पड़ेगा ना? हाँ, याद की निशानी का मनाना और बात है। जैसे बर्थ- डे-याद निशानी के लिए मनाते हैं ना। तो यह समर्पण प्रतिज्ञा दिवस है।

 

विजय का दिन भी मनाते हैं। तो यह भी आप सभी की विजय अष्टमी का दिन हुआ ना। विजयी बनने का दिन सदैव स्मृति में रखना। लास्ट स्वाहा ऐसे करो जो सभी के मुख से आप लोगों को देख कर ‘वाह-वाह’ निकले और आपको कॉपी करें। कोई अच्छी बात होती है तो न चाहते भी सभी को कॉपी करने की इच्छा होती है। जैसे बाप को कॉपी करते हैं वैसे आप लोगों के हर कर्म को कॉपी करें। जितना श्रेष्ठ कर्म होगा उतना ही श्रेष्ठ आत्माओं में सिमरण किये जायेंगे। नाम सिमरण करते हैं ना। जितना कोई श्रेष्ठ आत्मा है, तो न चाहते भी उनके गुणों और कर्म को मिसाल बनाने लिए नाम सिमरण करते हैं। ऐसे ही आप सभी भी श्रेष्ठ आत्माओं में सिमरण करने योग्य बन जायेंगे। अब तो योगी बनने का ही ठेका उठाया है ना। योगयुक्त अर्थात् युक्तियुक्त। अगर कोई भी युक्तियुक्त संकल्प वा शब्द वा कर्म नहीं होता है, तो समझना चाहिए योगयुक्त नहीं हैं। क्योंकि योगयुक्त की निशानी है युक्तियुक्त। योगयुक्त का कभी अयुक्त कर्म वा संकल्प हो ही नहीं सकता है। यह कनेक्शन है। अच्छा

 

दुसरी मुरली 18-07-71

 

विल पावर और कंट्रोलिंग पावर

 

अपने अन्दर विल-पावर और कन्ट्रोलिंग पावर - दोनों ही पावर्स का अनुभव करते हो? क्योंकि अपने पुरूषार्थ के लिए वा अन्य आत्माओं की उन्नति के लिए यह दोनों ही पावर्स अति आवश्यक हैं। अगर अपने में ही कन्ट्रोलिंग पावर और विल-पावर नहीं है तो औरों को भी विल कराने की शक्ति नहीं आ सकती। औरों की जो व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ चलन अभी तक चलती रहती है, वो कन्ट्रोल नहीं करा सकते हैं। विल-पावर नहीं रहती। विल- पावर अर्थात् जो भी कुछ किया संकल्प, वाणी द्वारा वा कर्म द्वारा, वह सभी बाप के आगे विल अर्थात् अर्पण कर दें। जैसे भक्ति-मार्ग में जो भी कुछ करते हैं, खाते हैं, चलते हैं - तो कहने मात्र कहते हैं ईश्वर अर्पण। लेकिन यहाँ अभी समझते हैं कि जो भी किया, वह कल्याणकारी बाप के कल्याण के कर्त्तव्य प्रति विल किया। तो जितना-जितना जो कुछ है वह अर्पण करते जायेंगे तो अर्पणमय दर्पण बन जाता है। जिसको अर्पण किया, जिसके प्रति अर्पण किया वह साक्षात्कार ऐसे अर्पण से स्वत: ही सभी को होता है। तो अर्पण करके दर्पण बनने का पुरूषार्थ यह हुआ कि विल-पावर चाहिए और दूसरा कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। जहाँ चाहें वहाँ अपने आपको अर्थात् अपनी स्थिति को स्थित कर सकें। ऐसे नहीं कि बैठे अपनी स्थिति को स्थित करने के लिए बाप की याद में और उसके बजाय व्यर्थ संकल्प वा डगमग स्थिति बन जाये, यह कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है। एक सेकेण्ड से भी कम समय में अपने संकल्प को जहाँ चाहें वहाँ टिका सकें। अगर स्वयं की स्थिति को नहीं टिका सकेंगे तो औरों को आत्मिक-स्थिति में कैसे टिका सकेंगे। इसलिए अपनी स्टेज और स्टेट्स - दोनों की स्मृति सदा रहे तब ही लक्ष्य की सिद्धि पा सकेंगे। तो विल-पावर और कन्ट्रोलिंग पावर - दोनों के लिए मुख्य क्या याद रखें, जिससे दोनों पावर्स आयें? इन दोनों पावर्स के पुरूषार्थ का एक-एक शब्द में ही साधन है।

 

कन्ट्रोलिंग पावर के लिए सदैव महान् अन्तर सामने रहे तो आटोमेटि- कली जो श्रेष्ठ होगा उस तरफ बुद्धि जायेगी और जो व्यर्थ महसूस होगा उस तरफ बुद्धि आटोमेटिकली नहीं जायेगी। जो भी कर्म करते हो तो महान् अन्तर-शुद्ध और अशुद्ध, सत्य और असत्य, स्मृति और विस्मृति में क्या अन्तर है, व्यर्थ और समर्थ संकल्प में क्या अन्तर है, सब बात में अगर महान् अन्तर करते जाओ तो दूसरे तरफ बुद्धि आटोमेटिकली कन्ट्रोल हो जायेगी। और विल-पावर के लिए है महामन्त्र - अगर महान् अन्तर और महामन्त्र यह दोनों ही याद रहें तो कभी बुद्धि को कन्ट्रोल करने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। यह सहज है। पहले चेक करो अर्थात् अन्तर सोचो, फिर कर्म करो। अन्तर नहीं देखते, अलबेले चलते रहते, इसलिए कन्ट्रोलिंग पावर जो आनी चाहिए वह नहीं आती। और महामन्त्र से विल-पावर आटोमेटिकली आ जायेगी। क्योंकि महामन्त्र है ही बाप की याद अर्थात् बाप के साथ, बाप के कर्त्तव्य के साथ, बाप के गुणों के साथ सदैव अपनी बुद्धि को स्थित करना। तो महामन्त्र बुद्धि में रहने से अर्थात् बुद्धि का कनेक्शन पावर-हाउस से होने के कारण विल-पावर आ जाती है। तो महामन्त्र और महान् अन्तर-यह दोनों ही याद रहे तो दोनों पावरस सहज आ सकती हैं। महामन्त्र और महान अन्तर - दोनों स्मृति में रख फिर ज्ञान का नेत्र चलाने से देखो सफलता कितनी होती है। जैसे सुनाया था ना - हंस का कर्त्तव्य क्या होता है। वह सदैव कंकड़ और रत्नों का महान् अन्तर करता है। तो ऐसे ही बुद्धि में सदैव महान् अन्तर याद रहे तो महामन्त्र भी सहज याद आ जायेगा। जब कोई श्रेष्ठ चीज़ को जान जाते हैं तो नीचे की चीज़ से स्वत: ही किनारा हो जाता है। लेकिन अन्तर याद न होने से मन्त्र भी भूल जाता है और ज्ञान के यन्त्र जो मिले हैं वह पूर्ण रीति सफल नहीं हो पाते। तो अब क्या करेंगे? सिर्फ दो शब्द याद रखना है। हंस बनकर अन्तर करते जाओ। समझा? जैसे बापदादा के तीन रूप मुख्य हैं। हैं तो सर्व सम्बन्ध, फिर भी तीन सम्बन्ध मुख्य हैं ना। ऐसे ही सारे दिन के अन्दर आपके भी मुख्य तीन रूप आपको याद रहने चाहिए। जैसे बाल अवस्था, युवा अवस्था और वृद्ध अवस्था होती है, फिर मृत्यु होती है। यह चक्र चलता है ना। तो सारे दिन में तीन रूप कौनसे याद रहें जिससे स्मृति भी सहज रहे और सफलता भी ज्यादा हो? जैसे बाप के यह तीन रूप वर्णन करते हो, वैसे ही आपके तीन रूप कौनसे हैं? सवेरे-सवेरे अमृतवेले जब उठते हो और याद की यात्रा में रहते हो वा रूह-रूहान करते हो तो उस समय का रूप कौनसा होता है? बालक सो मालिक। जब रूह-रूहान करते हो तो बालक रूप याद रहता है ना। और जब याद की यात्रा का अनुभव-रूप बन जाते हो तो मालिकपन का रूप होता है। तो अमृतवेले होता है बालक सो मालिकपन का रूप। फिर कौनसा रूप होता है? गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ। फिर तीसरा रूप है सेवाधारी का। यह तीनों रूप सारे दिन में धारण करते कर्त्तव्य करते चलते हो? रूप यह तीन होते हैं। और रात को फिर कौनसा रूप होता है? अन्त में रात को सोते समय स्थिति होती है अपने को चेक करने की और साथ-साथ अपने को वाणी से परे ले जाने वाली स्थिति भी होती है। उस स्थिति में स्थित हो एक दिन को समाप्त करते हो, फिर दूसरा दिन शुरू होता है। तो वह स्थिति ऐसी होनी चाहिए जैसे नींद में इस दुनिया की कोई भी बात, कोई भी आवाज़, कोई भी आकर्षण नहीं होता है, जब अच्छी नींद में होते हो, स्वप्न की दूसरी बात है। इस रीति से सोने से पहले ऐसी स्थिति बनाकर फिर सोना चाहिए। जैसे अन्त में आत्माएं जो संस्कार ले जाती हैं वही मर्ज होते हैं, फिर वही संस्कार इमर्ज होंगे। इस रीति से यह भी दिन को जब समाप्त करते हो तो संस्कार न्यारे और प्यारेपन के हो गए ना। इसी संस्कार से सो जाने से फिर दूसरे दिन भी इन संस्कारों की मदद मिलती है। इसलिए रात के समय जब दिन को समाप्त करते हो तो याद-अग्नि से वा स्मृति की शक्ति से पुराने खाते को समाप्त अथवा खत्म कर देना चाहिए। हिसाब चुक्तू कर देना चाहिए। जैसे बिज़नेसमैन भी अगर हिसाब-किताब चुक्तू न रखते तो खाता बढ़ जाता और कर्ज़दार हो जाते हैं। कर्ज़ को मर्ज़ कहते हैं। इसी रीति से अगर सारे दिन के किये हुए कर्मों का खाता और संकल्पों का खाता भी कुछ हुआ, उसको चुक्तू कर दो। दूसरे दिन के लिए कुछ कर्ज़ की रीति न रखो। नहीं तो वही मर्ज़ के रूप में बुद्धि को कमज़ोर कर देता है। रोज़ अपना हिसाब चुक्तू कर नया दिन, नई स्मृति रहे। ऐसे जब अपने कर्मों और संकल्पों का खाता क्लीयर रखेंगे तब सम्पूर्ण वा सफलतामूर्त बन जायेंगे। अगर अपना ही हिसाब चुक्तू नहीं कर सकते तो दूसरों के कर्मबन्धन वा दूसरों के हिसाब-किताब को कैसे चुक्तू करा सकेंगे। इसलिए राज़ रात को अपना रजिस्टर साफ होना चाहिए। जो हुआ वह योग की अग्नि में भस्म करो। जैसे काँटों को भस्म कर नाम-निशान गुम कर देते हो ना। इस रीति अपने नॉलेज की शक्ति और याद की शक्ति, विल-पावर और कन्ट्रोलिंग पावर से अपने रजिस्टर को रोज़ साफ रखना चाहिए। जमा न हो। एक दिन के किये हुए व्यर्थ संकल्प वा व्यर्थ कर्म की दूसरे दिन भी लकीर न रहे अर्थात् कर्ज़ा नहीं रहना चाहिए। बीती सो बीती, फुल स्टाप। ऐसे रजिस्टर साफ रखने वाले वा हिसाब को चुक्तू करने वाले सफलतामूर्त सहज बन सकते हैं। समझा? सारे दिन का चेकर बनना।

 

स्वदर्शन चक्र के अन्दर फिर यह एक दिन का चक्र। शुरू में ड्रिल करते थे तो चक्र के अन्दर चक्र में जाते थे, फिर निकलते थे ना। तो यह बेहद का 5000 वर्ष का चक्र है। उसमें फिर छोटे-छोटे चक्र हैं। तो अपना वह दिनचर्या का चक्र सदैव क्लीयर रहे, मूँझे नहीं। तब चक्रवर्ती राजा बनेंगे। रजिस्टर साफ करना आता है ना। आजकल साइन्स ने भी ऐसी इन्वेन्शन की है, जो लिखा हुआ सभी मिट जाये जो मालूम ही न पड़े। तो क्या साइलेन्स की शक्ति से अपने रजिस्टर को राज़ साफ़ नहीं कर सकते हो? इसलिए कहा हुआ है कि बाप के प्रिय वा प्रभु प्रिय वा दैवी लोक दोनों के प्रिय कौन बन सकते? सच्चाई और सफाई वाले प्रभु-प्रिय भी हैं और लोक-प्रिय भी और अपने आपको भी प्रिय लगते हैं। सच्चाई-सफाई को सभी पसन्द करते हैं। रजिस्टर साफ रखना-यह भी सफाई हुई ना। और सच्ची दिल पर साहेब राजी हो जाता है अर्थात् हिम्मत और याद से मदद मिल जाती है। अच्छा।

 

वरदान:- विशेषता रूपी संजीवनी बूटी द्वारा मूर्छित को सुरजीत करने वाले विशेष आत्मा भव

 

हर आत्मा को श्रेष्ठ स्मृति की, विशेषताओं की स्मृति रूपी संजीवनी बूटी खिलाओ तो वह मूर्छित से सुरजीत हो जायेगी। विशेषताओं के स्वरूप का दर्पण उसके सामने रखो। दूसरों को स्मृति दिलाने से आप विशेष आत्मा बन ही जायेंगे। अगर आप किसी को कमजोरी सुनायेंगे तो वह छिपायेंगे, टाल देंगे आप विशेषता सुनाओ तो स्वयं ही अपनी कमजोरी स्पष्ट अनुभव करेंगे। इसी संजीवनी बूटी से मूर्छित को सुरजीत कर उड़ते चलो और उड़ाते चलो।

 

स्लोगन:- नाम-मान-शान व साधनों का संकल्प में भी त्याग ही महान त्याग है।