ओम् शान्ति।
अभी यह बच्चे जानते हैं कि इनको पाठशाला भी कहेंगे और ज्ञान यज्ञ भी कहेंगे। पाठशाला
के हिसाब से एम आब्जेक्ट तो जरूर चाहिए। अभी यह यज्ञ का यज्ञ भी है और पाठशाला भी
है। यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, वे लोग इनकी कॉपी करते हैं। मैटेरियल यज्ञ रचते हैं।
उनमें जौ-तिल आदि की आहुति डालते हैं और दूसरा फिर बहुत बड़ा यज्ञ भी रचते हैं जहाँ
चारों तरफ शास्त्रों को रखते हैं। बहुत बड़ी जमीन ले लेते हैं। फिर एक तरफ चावल,
घी, आटा आदि सब रखते हैं और दूसरे तरफ शास्त्र भी सब रखते हैं। जो शास्त्र मांगो वह
सुनायेंगे फिर वहाँ यज्ञ में स्वाहा भी करते रहते। बाप कहते हैं यह रूद्र तो मेरा
नाम है। कहते भी हैं रूद्र भगवान् ने ज्ञान यज्ञ रचा था। इसका नाम पड़ गया रूद्र
ज्ञान यज्ञ। जैसे नेहरू के बाद नाम रखते हैं - नेहरू मार्ग, नेहरू पार्क आदि। अब
रूद्र तो है भगवान् शिव। उसने ही रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। इस यज्ञ में सारी पुरानी
सृष्टि की आहुति पड़ती है। यह कोई की बुद्धि में थोड़ेही होगा। कितनी बड़ी सृष्टि
है। कितना दूर-दूर शहर हैं। सब इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ में आहुति पड़ जायेंगे। पुरानी
दुनिया का विनाश तो जरूर होना है, फिर नई दुनिया बनेगी। विनाश होने में नैचुरल
कैलेमिटीज़ भी मदद करती है, तो यह है रूद्र राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ।
अविनाशी माना जब तक विनाश हो तब तक चलता रहे। ऐसा यज्ञ किसका चलता नहीं है। बहुत
में बहुत एक मास चलायेंगे। गीता भी एक मास सुनाते हैं। अब बाप समझाते हैं मैंने यह
ज्ञान यज्ञ रचा है। यह है राजस्व अश्वमेध यानी तुम्हारा जो रथ है, उनको स्वाहा करना
है, बलि चढ़ाना है। उन्होंने नाम दूसरा रख दिया है। दक्ष्य प्रजापति का यज्ञ दिखाते
हैं, उसमें घोड़े को जलाते हैं। बड़ी कहानी है। बाप समझाते हैं यह है मेरा अविनाशी
ज्ञान यज्ञ। अविनाशी द्वारा अविनाशी यज्ञ। ऐसे नहीं कि सदैव चलता रहेगा। जब सारी
दुनिया के स्वाहा होने का समय आये तब तक यह यज्ञ चलना है क्योंकि बाप है ज्ञान का
सागर। भक्ति के तो ढेर शास्त्र हैं। ज्ञान का सागर बाप है तो जरूर उनके पास नया
ज्ञान होगा। बाप अपना पूरा परिचय देते हैं और फिर सृष्टि चक्र कैसे फिरता है यह भी
समझाते हैं, जिससे आत्मा त्रिकालदर्शी बनती है। त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान और कोई दे
न सके। एक तो ज्ञान को धारण करना है, दूसरा तुम बच्चों को योगबल से विकर्माजीत बनना
है। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा जो सिर पर है, वह जलने में टाइम लगता है। कितने
वर्ष हुए हैं तो भी कर्मातीत नहीं हुए हैं। कर्मातीत अवस्था जब आती है तब यज्ञ भी
समाप्त होता है। यह बहुत बड़ा भारी यज्ञ है। आसार भी देखते हो, तैयारियाँ हो रही
हैं। आगे चलकर तुम देखेंगे नैचुरल कैलेमिटीज की भी तैयारी हो रही हैं। कभी जोर से
फ्लड्स होंगे, कभी अर्थक्वेक, कभी फैमन (अकाल) होगा। वो लोग तो गपोड़े मारते हैं कि
4 वर्ष का प्लैन बनाया है फिर अनाज बहुत हो जायेगा। अरे, खाने वाले मनुष्य भी तो
बहुत जास्ती हैं। सिर्फ मनुष्य थोड़ेही, टिड्डियां, मक्कड़ आदि भी तो खा जाते हैं।
फ्लड्स आते हैं, बहुत नुकसान कर देते हैं। यह बिचारों को पता नहीं पड़ता। तुम जानते
हो फैमन आदि पड़ना जरूर है। आसार दिखाई पड़ते हैं। थोड़ी लड़ाई लग जाए तो अनाज आना
ही बन्द हो जाए। आगे लड़ाई में कितने स्टीमर्स डूबे थे। एक-दो का बहुत नुकसान किया
था।
बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले भी यह यज्ञ रचा था और तुम राजयोग सीखे थे। यज्ञ
रचा जाता है ब्राह्मणों द्वारा। गीता में तो लड़ाई आदि की बातें लिख दी हैं। संजय
आदि भी हैं। यह सब है भक्तिमार्ग की सामग्री। यह भी अविनाशी है। फिर से भक्तिमार्ग
में वही सामग्री निकलेगी। रामायण आदि जो भी शास्त्र निकले हैं, फिर निकलेंगे। जिन्हों
की राजधानी चली है, अंग्रेज आये, मुसलमान आये, यह सब होकर गये, फिर आयेंगे। फिर भी
पार्टीशन होगा। इन बातों को तुम जान सकते हो, तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तो
कुछ भी नहीं जानते। तो बाप समझाते हैं कितने यज्ञ रचते हैं। उन्हों को समझाना है -
वास्तव में है अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ, जो रूद्र शिव भगवान् ने ही रचा
था, श्रीकृष्ण ने नहीं रचा। श्रीकृष्ण का वही चित्र तो सतयुग में मिलेगा, फिर कभी
मिल न सके क्योंकि वह नाम, रूप, देश, काल तो सब बदलता जाता है। ऐसे तो हो नहीं सकता
कि श्रीकृष्ण आकर अपने को पतित-पावन कहलाये। पतित-पावन एक ही परमात्मा है। ऐसे नहीं
कि तुम कहेंगे पहले से ही क्यों नहीं रूप दिखाया? नहीं, ऐसे थोड़ेही कि सब पहले से
ही बता देंगे। तुम कहेंगे पहले से यह ज्ञान क्यों नहीं देते थे, एक ही रोज़ में क्यों
नहीं ज्ञान देते? परन्तु नहीं, यह तो ज्ञान सागर है सो जरूर आहिस्ते-आहिस्ते सुनाते
रहेंगे। ऐसे थोड़ेही कि सब एक ही टाइम पढ़ लेंगे। नम्बरवार पढ़ेंगे और पढ़ाई में
टाइम लगता है। इसका नाम ही है अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। अब यह तो कहाँ भी लिखा हुआ
नहीं है। शास्त्रों में निमित्त मात्र सिर्फ अक्षर हैं भारत का प्राचीन सहज राजयोग।
अच्छा, प्राचीन कब? शुरूआत में। तो जरूर इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ से ही स्वर्ग बनाया
होगा। बाप कहते हैं मैं आता हूँ कल्प-कल्प संगमयुगे। उन्होंने भूल कर दी है, टाइम
भी बदल दिया है। फिर सतयुग की आयु लाखों वर्ष लिख दी है, गपोड़े लगा दिये हैं। यह
तो हैं 4 भाग। स्वास्तिका में भी 4 हिस्से कर देते हैं - ज्ञान और भक्ति। आधाकल्प
ज्ञान दिन, आधाकल्प भक्ति रात। ज्ञान की प्रालब्ध मक्खन मिलता है, भक्ति की
प्रालब्ध छांछ मिलती है। गिरते-गिरते एकदम ख़त्म हो जाते हैं। नई दुनिया को फिर
पुराना जरूर बनना है। कलायें कम होती जाती हैं इसलिए अब इनको भ्रष्टाचारी, विशश कहा
जाता है। आसुरी दुनिया है ना। तुम जानते हो इन भक्ति आदि करने से कभी भगवान् नहीं
मिल सकता। भक्ति तो करते ही आये हैं, बन्द होती नहीं। अगर भगवान् मिल जाए तो भक्ति
बन्द हो जाए ना। आधाकल्प भक्ति को चलना है। यह सब बातें मनुष्यों को समझानी पड़ती
हैं। दुनिया नई कैसे बनती है, इसका चित्रों से साक्षात्कार कराना है। पुरानी दुनिया
खत्म हो फिर नई स्थापन होती है। अब एक्जीवीशन (प्रदर्शनी) आदि की, किसी बड़े से
ओपनिंग करानी होती है। मदद तो लेनी पड़ती है ना। उनको फिर थैंक्स दी जाती है। बधाई
देने लिए तार दी जाती है। कितने बड़े-बड़े टाइटिल अपने ऊपर रखवा दिये हैं। श्री श्री
का टाइटिल भी रखा लिया है। श्री श्री बाप समझाते हैं - श्रेष्ठाचारी दुनिया थी, अब
भ्रष्टाचारी है। फिर बाप श्रेष्ठाचारी बनाने आये हैं। वह फिर पहले से ही अपने ऊपर
श्री नाम रख देते हैं। वास्तव में श्री लक्ष्मी, श्री नारायण सतयुग में ही कहा जाता
है। राजाओं को श्री का टाइटिल कभी नहीं देते थे। उनको फिर हिज़ हाइनेस कहते हैं।
सबसे बड़े हिज होलीनेस लक्ष्मी-नारायण की राजायें भी पूजा करते हैं क्योंकि वह
पवित्र हैं। खुद पतित हैं। पावन राजाओं को हिज होलीनेस कहा जाता है। अभी तो हिज
हाइनेस के बदले बहुत टाइटिल सबको दे देते हैं। श्री श्री कहते रहते हैं। अभी बेहद
का बाप तुमको श्री बना रहे हैं। नई दुनिया कैसे स्थापन होती है, चित्रों पर ही समझा
सकते हैं। हम भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करते हैं, आप ओपनिंग करो।
उन्हें समझाना चाहिए कि सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति गाया हुआ है ना। समझाने वाला बड़ा
एक्टिव होना चाहिए, फुर्त होना चाहिए। मिलेट्री वाले कितने टिपटॉप रहते हैं। तुम
बच्चों का नाम कितना बड़ा है शिव शक्ति सेना! यह ज्ञान मिलता ही है अबलाओं,
अहिल्याओं को। यहाँ की बातें ही वन्डरफुल हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् और पढ़ाते देखो
किन्हों को हैं! अहिल्याओं, कुब्जाओं को। भगवानुवाच - उन्हों को राजयोग सिखलाता
हूँ, ड्रामा में ऐसी नूँध है। परन्तु अपने को सब पाप आत्मायें समझते थोड़ेही हैं।
बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म पवित्र बनेंगे तो एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते
हो। आते तो बहुत हैं। आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, बाबा का बनन्ती फिर भी गिरन्ती
और भागन्ती हो जाते हैं। यह शुरू से लेकर होता रहता है। सुबह को कहेंगे हमको पक्का
निश्चय है, शाम को कहेंगे मुझे संशय है, मैं जाता हूँ, मैं चल नहीं सकता। मंजिल ऊंची
है, मैं छुट्टी लेता हूँ। ड्रामा की भावी। बाप को फ़ारकती दे देते हैं। माया इतनी
प्रबल है जो चलते-चलते थप्पड़ लगा देती है। बच्चे कहते हैं - बाबा, माया को कहो थोड़ी
नर्म हो जाए। बाबा कहते - मैं तो माया को कहता हूँ खूब गर्म हो। बाप कहते हैं
ख़बरदार रहना, ऐसे नहीं कि माया थप्पड़ मार दे और तुम फँस पड़ो। तुम मांगते ही हो
जनक मिसल गृहस्थ व्यवहार में रहते जीवनमुक्ति पायें।
बाप कहते हैं एक जन्म पवित्र बनो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। मनुष्यों की
ज़हर से (विकारों से) कितनी दिल है। चलते-चलते गिर पड़ते हैं। हम शादी करना नहीं
चाहते तो गवर्मेन्ट कुछ नहीं कर सकती है। समझा सकते हैं कि हम पतित बने ही क्यों जो
पुजारी बन सबके आगे सिर झुकाना पड़े। मैं कुमारी हूँ तो सब मेरे आगे सिर झुकाते
हैं, तो हम क्यों न पूज्य रहें। बेहद का बाप कहते हैं कि पवित्र पूज्य बनो। एक ही
राजयोग का इम्तहान है। कितने चढ़ते और गिरते हैं। हर एक अपना-अपना पार्ट बजाता है।
रिजल्ट फिर भी वही रहेगी जो कल्प पहले हुई होगी। यह ड्रामा है, हम एक्टर्स हैं। पूरा
नष्टोमोहा बनें तब बाप से पूरी प्रीत जुटे। बाबा, बस हम तो आपको ही याद करेंगे, आपसे
वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। ऐसी प्रतिज्ञा करनी पड़े, तब ही स्त्री-पुरूष दोनों पवित्र
बन स्वर्गधाम जा सकें। दोनों ही ज्ञान चिता पर बैठ जायेंगे। ऐसे बहुत जोड़े बनेंगे।
फिर जल्दी-जल्दी झाड़ बढ़ना शुरू हो जायेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ में अपने इस रथ सहित सब कुछ स्वाहा करना है।
सर्विस के लिए बहुत-बहुत चुस्त और फुर्त बनना है।
2) माया कितनी भी गर्म हो, सावधान रह उसके थप्पड़ से स्वयं को बचाना है। घबराना
नहीं है।