ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। वह दैवी प्यार जिसको ईश्वरीय प्यार कहें। अब ईश्वर प्यार
सिखलाते हैं कि कैसे एक दो को प्यार करना चाहिए। भारत में कितना सच्चा प्यार था, जब
सचखण्ड था। सचखण्ड किसने बनाया था? सतगुरू, सत बाबा, सत टीचर ने। अभी तुम किसके आगे
बैठे हो? सच बाबा अर्थात् जो सच्चा सुख देने वाला है, सच्चा प्यार सिखाने वाला है।
सच्चा ज्ञान देते हैं, उनके सम्मुख में बैठे हैं। झूठ खण्ड में तो सब झूठ हैं। गाया
भी जाता है कि सत का संग करो। सत तो एक ही है। असत्य अनेक हैं। जो बाप भारत को
स्वर्ग बनाते हैं, बेहद का वर्सा देते हैं, तुम उस बेहद बाप के सम्मुख बैठे हो। जो
फिर से हमको बेहद की बादशाही देने आये हैं। सत बाबा एक ही है, जिसके संग से तुम
विश्व के मालिक बनते हो। भक्ति में पहले-पहले एक ही शिवबाबा की सच्ची-सच्ची भक्ति
होती है। उसको ही सच्ची अव्यभिचारी भक्ति कहा जाता है। बाबा बैठ तुम बच्चों को सारे
चक्र का ज्ञान सुनाते हैं। पहले-पहले एक शिवबाबा की भक्ति थी जिसको अव्यभिचारी भक्ति
कहते थे फिर अभी ज्ञान भी तुमको सच्चा सुनाते हैं। झूठी भक्ति से छुड़ाते हैं। सच्चे
बाबा द्वारा तुम ज्ञान सुन रहे हो। तुम जानते हो यह सत का संग हमको स्वर्ग में ले
जायेगा। सच्चे ज्ञान से ही बेड़ा पार होता है और जो झूठा ज्ञान सुनाते हैं उससे बेड़ा
गर्क होता है। उसको अज्ञान कहा जाता है। सच्चा ज्ञान सिर्फ बाप ही सुनाते हैं। तुम
बच्चे सारे चक्र की हिस्ट्री-जॉग्राफी को समझ गये हो। तो यह सच्चा-सच्चा बाबा,
सच्चा-सच्चा टीचर है। सतयुग में भी सच्चा बाप कहेंगे क्योंकि वहाँ झूठ होता ही नहीं।
ईश्वर को सर्वव्यापी नहीं कहते। झूठ तो तब शुरू होता है जब झूठ बनाने वाले 5 विकार
आते हैं।
अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम बेहद के निराकार बाप के सम्मुख बैठे हैं।
यह बाबा भी कहते हैं कि हम उस बाबा के सम्मुख बैठे हैं। उनको याद करता हूँ। घड़ी-घड़ी
याद करता हूँ। बाबा का बच्चा हूँ ना। तुमको तो इस साकार को छोड़ उनको याद करना है।
हमारे लिए तो एक ही बाबा है। तुम्हारे लिए थोड़ी अटक पड़ती है, मुझे क्यों अटक
पड़ेगी। तुम्हारी नज़र इस पर जाती है, मेरी नज़र किस पर जायेगी? मेरा तो डायरेक्ट
शिवबाबा से कनेक्शन हो गया। तुमको शिवबाबा को याद करना पड़ता है। इस साकार को क्रास
करना पड़ता है कि यह याद न पड़े, मेरे लिए तो एक शिवबाबा ही है। तुम्हारे सामने दो
बैठे हैं। हमारे सामने तो सिर्फ एक ही है। मैं उनका बच्चा हूँ। फिर भी निरन्तर याद
नहीं कर सकता हूँ क्योंकि बाबा कहते हैं – तुम कर्मयोगी हो। तुम्हारी बुद्धि में
सारा चक्र फिरता रहता है। सतयुग त्रेता में इतने जन्म पास किये फिर इतने जन्म
लेते-लेते 84 जन्मों का चक्र पूरा किया। हिसाब है ना। अब कलियुग का अन्त आ गया फिर
आगे नया चक्र फिरेगा। हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर से रिपीट होती है। सतयुग में कौन थे,
कहाँ पर राज्य करते थे। यह भी तुम जानते हो कि सारी विश्व पर देवतायें ही राज्य करते
थे। अभी तो कहेंगे तुम हमारी हद में नहीं आओ, हमारा पानी न लो। बाबा तो बेहद का
मालिक है। बाबा कहते हैं मुझे याद करो। यह बाबा नहीं कहते। इन द्वारा निराकार बाबा
तुम आत्माओं को कहते हैं मुझे याद करो तो तुम कभी रोगी वा बीमार नहीं होंगे। यहाँ
तो बाप बच्चों को पैदा कर बड़ा करते हैं फिर अचानक अगर वह मर जाते हैं (शरीर छोड़
देते हैं) तो सब कितने दु:खी हो पड़ते हैं। फिर तो शरीर निर्वाह अर्थ खुद ही सर्विस
करनी पड़े। यह तो है ही दु:खधाम। बाप तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ
कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। बाप और वर्से को याद करो। बच्चा
जानता है कि बाप से हमको वर्सा मिलना है तो भी अपना धन्धाधोरी जरूर सीखते हैं। वर्से
के लिए बैठ तो नहीं जायेंगे। बाकी सिर्फ जो राजाई में जन्म लेते हैं वह वर्से के
लिए बैठते हैं। बहुत दान-पुण्य करने से राजाई घर में जन्म मिलता है। राजाई ही
सम्भालनी पड़े। वह राजायें तो पतित हैं। अब तुम्हें पावन राजाओं के पास जन्म लेना
है। लक्ष्मी-नारायण के घर में वा सूर्यवंशी की राजाई में जन्म लेना है, वहाँ कोई
प्रकार का दु:ख होता नहीं। सभी दु:खों से छूट जाते हो। बाबा आकर धीरज देते हैं। अभी
यह अन्तिम जन्म है। तुम्हारी तो जन्म-जन्मान्तर से यह हालत होती आई है। बच्चे गिरते
ही आये हैं दु:खधाम में, सुखधाम कहाँ से आये। यहाँ तो दु:ख बहुत है, सुख अल्पकाल का
है। भल बड़े बड़े आदमी हैं, उन्हों को भी दु:ख ही दु:ख है। इस समय जो गरीब हैं वह
सबसे अच्छे हैं। बाबा आये ही हैं गरीबों को साहूकार बनाने। दान भी गरीबों को करना
होता है। सब साधारण हैं ना। बाकी जो लखपति हैं, जिनके पास करोड़ों रूपया है, कितना
भी उन्हें समझाओ फिर भी अपने धन की कितनी मगरूरी रहती है। बाबा कहते हैं ऐसे को क्या
धन देना है। मैं तो हूँ ही गरीब निवाज़। ऐसी कन्यायें मातायें ही ज्ञान लेती हैं।
कन्या का कितना मान है, सब उसे पूजते हैं फिर शादी करने से पुजारी बन जाती है। हम
आधाकल्प पूज्य फिर आधाकल्प पुजारी बने हैं। कन्या तो इस जन्म में ही पुजारी बन जाती
है। कितना पावन है, शादी करने से ही पुजारी पतित बन जाती है। पति को परमेश्वर समझ
माथा टेकती रहती है। उनके आगे दासी बनकर रहती है। तो बाबा आकर दासीपने से छुड़ाते
हैं। बच्चे वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम समझा सकते हो हम प्रजापिता ब्रह्मा के
बच्चे शिवबाबा के पोत्रे हैं। उनकी मिलकियत पर हमारा हक लगता है। उनकी मिलकियत है
बेहद की। विश्व का मालिक बनाते हैं। उनका फरमान है बच्चे मामेकम् याद करो तो मैं
सत्य कहता हूँ तुम नारी से लक्ष्मी बन जायेंगी। इसमें कोई व्रत नेम करना, भूखा रहना
नहीं है। आगे तुम बहुत व्रत-नेम रखते थे। 7 रोज़ खाना नहीं खाते थे। समझते हैं व्रत
नेम रखने से कृष्णपुरी में चले जायेंगे। वास्तव में सच्चा व्रत है पवित्र रहने का।
वह तो हठ से भूखे रहते हैं। तुम बच्चों को कुछ भी भूख हड़ताल आदि नहीं करना है।
हाँ, तुमको पावन बनने की ही हड़ताल करनी है। हम सबको पावन बनायेंगे। तुम्हारा धन्धा
ही यह है। बाकी निर्ज़ल रहना, खाना नहीं खाना इससे कुछ होता नहीं है। तुम सिर्फ
पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। माताओं को पति के मरने से बहुत दु:ख होता है। उन्हों को
जाकर समझाना चाहिए कि अब पतियों का पति आया हुआ है। वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो
तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह तो पतियों का पति, बापों का बाप है। पति मर जाए तो
स्त्री को ज्ञान समझाए शिवबाबा से सगाई करानी चाहिए। समझाना है कि तुम रोती क्यों
हो, सतयुग में कोई रोते नहीं हैं। यहाँ देखो सब रोते रहते हैं। भारत में सच्चा-सच्चा
देवताओं का राज्य था। आज तो एक दो को मारते कूटते रहते हैं। आसुरी राज्य है ना।
लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। इसमें सारा सेट है। त्रिमूर्ति,
लक्ष्मी-नारायण, राधे कृष्ण भी हैं, यह चित्र भी अगर कोई रोज़ देखता रहे तो याद रहे
कि शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा यह बना रहे हैं। घर में भी छोटे-छोटे बोर्ड बनाकर
लिख दो। बेहद के बाप को जानने से तुम 21 जन्मों के लिए स्वराज्य पद पा सकते हो।
धीरे-धीरे बहुत मनुष्य बोर्ड देखकर तुम्हारे पास आयेंगे।
तुम रूहानी अविनाशी सर्जन हो। रूहानी सर्जरी का कोर्स पास कर रहे हो, बोर्ड लगाना
पड़ेगा। बोलो, इस बाप को याद करने से तुमको बेहद की बादशाही मिलेगी। बाबा ने प्रश्न
बहुत अच्छे लिखे हैं। बाबा के कितने रूहानी बच्चे हैं? बाल-बचड़े वाला है ना। इसमें
भाई-बहन दोनों आ जाते हैं। बाबा के पास आते हैं तो समझाता हूँ – कितने बी.के. हैं।
कितना बचड़े वाला हूँ। बच्चे वृद्धि को पाते जाते हैं। तुम समझा सकते हो हम भाई-बहन
हैं – विकार की दृष्टि जा नहीं सकती है। बाप कहते हैं देह सहित देह का झूठा सम्बन्ध
छोड़ मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। तुम अंजाम भी करते आये हो मेरा तो एक
शिवबाबा दूसरा न कोई। बुढ़ियाँ भी यह दो अक्षर याद कर लें तो बहुत कल्याण हो सकता
है। हमने 84 जन्म लिये हैं। अभी हम ब्राह्मण बने हैं फिर देवता, क्षत्रिय, वैश्य,
शूद्र बनेंगे। ब्राह्मण जरूर बनना है और बनेंगे भी जरूर कल्प पहले मुआफिक। ढेर के
ढेर बनेंगे। अभी ब्राह्मण बच्चे जो विलायत आदि तरफ हैं, वह भी निकल आयेंगे। याद तो
करते रहते हैं। बाबा कहते हैं – अपने कुटुम्ब परिवार में रहते अपने को आत्मा समझो।
शिवबाबा का पोत्रा अपने को समझो। हम ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। कलियुग में मनुष्य
हैं, सतयुग में बनेंगे देवतायें। कलियुग में सब आसुरी मनुष्य हैं। अभी तुम दैवी
सम्प्रदाय के बन रहे हो। यह बाप ही बतलाते हैं, दूसरा कोई बतला न सके। इन वर्णों को
कोई जानते ही नहीं है। तुम ब्राह्मण ही नॉलेज समझा सकते हो। जब तक कोई तुम बी.के.
द्वारा ज्ञान न लेवे तब तक समझ नहीं सकते। तुम ही दे सकते हो, इसमें दिल बड़ी साफ
चाहिए, दिल साफ मुराद हांसिल। कोई-कोई की दिल साफ नहीं होती है, सच्ची दिल से सच्चे
बाप की सेवा में लग जाना चाहिए। हॉबी होनी चाहिए। हमारा काम है समझाना। यह भी जानते
हो 108 से माथा मारेंगे तो कहीं एक की बुद्धि में बैठेगा। एक दो निकल आयेंगे, जो
कल्प पहले निकले होंगे। बी.के. बना होगा वही आयेगा। थकना नहीं है। तुम मेहनत करते
रहो। कोई न कोई निकल ही पड़ेगा। कहाँ भी जाओ मित्र-सम्बन्धी के पास जाओ, शादी-मुरादी
में जाओ – हर एक के कर्मों अनुसार राय दी जाती है। मुख्य है पवित्र रहने की बात। कहाँ
बाहर खाना भी पड़ता है। अच्छा बच्चे, शिवबाबा की याद में रहेंगे तो माया का असर नहीं
होगा। बाबा सबको छुटटी नहीं देते हैं। लाचारी हालत में देखा जाता है। नहीं तो नौकरी
छूट जायेगी। हर एक को अलग-अलग राय दी जाती है। दुनिया बहुत खराब है। कइयों के साथ
रहना होता है। एक कहानी भी है। गुरू ने चेले को कहा शेर की गुफा में रहो। वेश्या के
पास रहो… परीक्षा लेने भेजा। वास्तव में वह कोई परीक्षा नहीं। यह तुम बच्चों के लिए
है। तुमको शेर के पास तो नहीं भेजेंगे। बाप तो समझाते हैं कोई भी हो उन्हों को बाप
का परिचय दो। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा। झाड़ बढ़ना तो है ना, तब
तो विनाश भी शुरू हो इनसे पहले विनाश तो हो न सके। यहाँ तो राजधानी स्थापन हो रही
है। बाप तो कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) नॉलेज को धारण करने के लिए दिल बड़ी साफ रखनी है। सच्ची दिल से बाप
की सेवा में लगना है। सेवा में कभी भी थकना नहीं है।
2) वायदा करना है मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। देह सहित देह के सब झूठे
सम्बन्ध छोड़ एक से सर्व सम्बन्ध जोड़ने हैं। गरीबों को ज्ञान धन का दान देना है।