ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। यह किसने कहा कि मीठे-मीठे रूहानी बच्चे?
जरूर रूहानी बाप ही कह सकते हैं। मीठे-मीठे रूहानी बच्चे अभी सम्मुख बैठे हैं और
बहुत ही प्यार से बाप समझा रहे हैं। अभी तुम जानते हो सिवाए रूहानी बाप के सर्व को
सुख शान्ति देने वाला वा सर्व को दु:खों से लिबरेट करने वाला दुनिया भर में और कोई
नहीं है इसलिए दु:ख में बाप को याद करते रहते हैं। तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। जानते
हो बाबा हमको सुखधाम का लायक बना रहे हैं। सदा सुखधाम का मालिक बनाने वाले बाप के
सम्मुख आये हैं। अभी समझते हैं सम्मुख सुनने और दूर रहकर सुनने में बहुत फ़र्क है।
मधुबन में सम्मुख आते हो, मधुबन मशहूर है। मधुबन, वृन्दावन में उन्होंने कृष्ण का
चित्र दिखाया है। परन्तु कृष्ण तो है नहीं। यहाँ तो निराकार बाप तुम बच्चों से मिलते
हैं। तुम्हें स्वयं को घड़ी-घड़ी आत्मा निश्चय करना है। मैं आत्मा बाप से वर्सा ले
रही हूँ। सारे कल्प में यह एक ही समय आता है। यह कल्प का सुहावना संगमयुग है। इनका
नाम रखा है - पुरुषोत्तम। यही संगमयुग है, जिसमें सब मनुष्य मात्र उत्तम बनते हैं।
अभी तो सभी मनुष्यमात्र की आत्मा तमोप्रधान है जो फिर सतोप्रधान बनती है। सतोप्रधान
है तो मनुष्य उत्तम होते हैं। तमोप्रधान होने से मनुष्य भी कनिष्ट बनते हैं। तो
आत्माओं को बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं। सारा पार्ट आत्मा ही बजाती है, न कि शरीर।
आत्मा और शरीर जब दोनों का मेल होता है तो पार्ट बजता है। तुम्हारी बुद्धि में आ गया
है कि हम आत्मा असुल में निराकारी दुनिया वा शान्तिधाम में रहने वाली हैं, यह किसको
भी पता नहीं है। न खुद समझते, न समझा सकते हैं। तुम्हारी बुद्धि का ताला अब खुला
है, तुम समझते हो बरोबर आत्मायें परमधाम में रहती हैं। वह है इनकारपोरियल वर्ल्ड।
यह है कारपोरियल वर्ल्ड। यहाँ हम सब आत्मायें एक्टर्स पार्टधारी हैं। पहले-पहले हम
पार्ट बजाने आते हैं। फिर नम्बरवार आते जाते हैं। सभी एक्टर्स इकट्ठे नहीं आ जाते।
भिन्न-भिन्न प्रकार के एक्टर्स आते जाते हैं। सब इकट्ठे तब होते हैं जब नाटक पूरा
होता है। अभी तुमको पहचान मिली है, आत्मा असुल शान्तिधाम की रहवासी है - यहाँ आती
है पार्ट बजाने। बाप सारा समय पार्ट बजाने नहीं आते। हम ही पार्ट बजाते-बजाते
तमोप्रधान बन जाते हैं। अभी तुम बच्चों को सम्मुख सुनने से बड़ा मजा आता है। इतना
मजा मुरली पढ़ने से नहीं आता। यहाँ सम्मुख हो ना। तो पहले सतयुगी आदि सनातन
देवी-देवता धर्म वाले ही आते हैं। तुम जानते हो कि भारत गॉड गॉडेज का स्थान था, अभी
नहीं है। चित्र देखते हो तो थे जरूर। पहले-पहले हम देवी-देवता थे, अपने पार्ट को तो
याद करेंगे कि भूल जायेंगे? बाप कहते हैं - तुमने यह पार्ट बजाया है, यह ड्रामा है।
नई दुनिया सो फिर पुरानी होती है। पहले-पहले ऊपर से जो आत्मायें आती हैं वह गोल्डन
एज में आती हैं। यह सब बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं। सतयुग आदि में तुम ही आये
थे पार्ट बजाने। तुम विश्व के मालिक महाराजा-महारानी थे। तुम्हारी राजधानी थी। अभी
तो राजधानी है नहीं। अब तुम सीख रहे हो हम राजाई कैसे चलायेंगे, वहाँ वजीर होते नहीं।
राय देने वाले की दरकार नहीं। वह तो श्रीमत द्वारा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बन जाते हैं
फिर उनको दूसरे कोई से राय लेने की दरकार नहीं रहती। अगर कोई से राय लें तो समझा
जायेगा इनकी बुद्धि कमजोर है। अभी जो श्रीमत मिलती है वह सतयुग में भी कायम रहती
है। अब तुम्हारी आत्मा फ्रेश हो रही है। अभी तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना है।
शान्तिधाम से आकर यहाँ तुम टॉकी बने हो। टॉकी होने बिगर कर्म हो न सके। यह बड़ी
समझने की बातें हैं। जैसे बाप में सारा ज्ञान है, वैसे तुम्हारी आत्मा में भी अब
ज्ञान है। आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़, संस्कार अनुसार फिर दूसरा लेता हूँ।
पुनर्जन्म भी जरूर होता है। आत्मा को जो भी पार्ट मिला है, वह बजाती रहती है और
संस्कारों अनुसार दूसरा जन्म लेती रहती है। आत्मा की दिन प्रतिदिन प्योरिटी की
डिग्री कम होती जाती है। पतित अक्षर द्वापर के बाद काम में लाते हैं फिर भी थोड़ा
सा फ़र्क जरूर पड़ जाता है। तुम नया मकान बनाओ, एक मास के बाद कुछ फ़र्क जरूर पड़ेगा।
अभी तुम समझते हो बाबा हमको वर्सा देते हैं। बाप कहते हैं - हम आये हैं तुम बच्चों
को वर्सा देने। जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। बाप के पास कोई फर्क नहीं
है। बाप जानते हैं हम आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा हर एक अपने लिए पुरुषार्थ करती
है। मेल फीमेल की दृष्टि यहाँ नहीं रहती। तुम सब बच्चे बेहद बाप से वर्सा ले रहे
हो। सभी आत्मायें ब्रदर्स हैं जिनको बाप पढ़ाते हैं, वर्सा देते हैं। बाप ही रूहानी
बच्चों से बात करते हैं कि हे लाडले मीठे सिकीलधे बच्चों तुम बहुत समय पार्ट
बजाते-बजाते अब फिर आकर मिले हो - अपना वर्सा लेने। यह भी ड्रामा में नूँध है। शुरू
से लेकर पार्ट नूँधा हुआ है। तुम एक्टर्स पार्ट बजाते एक्ट करते रहते हो। आत्मा
अविनाशी है, इसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। शरीर तो बदलता रहता है। बाकी आत्मा
सिर्फ प्योर से इमप्योर बनती है। सतयुग में है पावन। इसको कहा जाता है पतित दुनिया।
अभी सुखधाम स्थापन होता है। बाकी सब आत्मायें मुक्ति-धाम में रहेंगी। अभी यह बेहद
का नाटक आकर पूरा हुआ है। सभी आत्मायें मच्छरों मिसल जायेंगी। इस समय कोई भी आत्मा
आये तो पतित दुनिया में उनकी क्या वैल्यु होगी। वास्तव में वैल्यु उनकी है जो
पहले-पहले नई दुनिया में आते हैं। नई दुनिया थी वह फिर पुरानी बनी है। नई दुनिया
में देवतायें थे, वहाँ दु:ख का नाम नहीं था। यहाँ तो अथाह दु:ख हैं। बाप आकर दु:ख
की पुरानी दुनिया से लिबरेट करते हैं। यह पुरानी दुनिया बदलनी जरूर है। जैसे दिन के
बाद रात, रात के बाद दिन होता है। तुम समझते हो बरोबर हम सतयुग के मालिक बनेंगे, तो
हम क्यों न आत्मा निश्चय कर और बाप को याद करें। कुछ तो मेहनत करनी होगी। राजाई पाना
कोई सहज थोड़ेही है, बाप को याद करना है। यह माया का वन्डर है जो घड़ी-घड़ी तुमको
भुला देती है। इसके लिए उपाय रचना चाहिए। ऐसे नहीं मेरा बनने से याद जम जायेगी। बाकी
पुरुषार्थ क्या करेंगे। नहीं, जब तक जीना है पुरुषार्थ करना है। ज्ञान अमृत पीते
रहना है। यह भी समझते हो हमारा यह अन्तिम जन्म है। इस शरीर का भान छोड़ देही-अभिमानी
बनना है। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है, पुरुषार्थ जरूर करना है। सिर्फ अपने को
आत्मा निश्चय कर बाप को याद करो। त्वमेव माताश्च पिता... यह सब है भक्ति मार्ग की
महिमा। तुमको सिर्फ एक अल्फ को याद करना है। एक ही मैं सैक्रीन हूँ, तुम भी और सब
बातें छोड़ बहुत मीठी सैक्रीन हो जाओ। अभी तुम्हारी आत्मा तमोप्रधान बनी है, उनको
सतोप्रधान बनाने लिए याद की यात्रा में रहो। सबको यही बताओ बाप से सुख का वर्सा लो।
सुख होता ही है सतयुग में। सुखधाम स्थापन करने वाला बाप है, बाप को याद करना है
बहुत सहज, परन्तु माया का आपोजीशन बहुत है इसलिए कोशिश कर मुझे याद करो तो खाद निकल
जायेगी। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति गाया जाता है।
इस ड्रामा में हर एक को अपना पार्ट रिपीट करना है। इस ड्रामा के अन्दर सबसे
जास्ती हमारा पार्ट है। सुख भी सबसे जास्ती हमको मिलेगा। बाप कहते हैं - तुम्हारा
देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। और बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे -
हिसाब-किताब चुक्तू कर। जास्ती विस्तार में हम क्यों जाएं। बाप आते ही हैं सबको
वापिस ले जाने। मच्छरों सदृष्य सबको ले जाते हैं। शरीर खत्म हो जायेंगे। बाकी आत्मा
जो अविनाशी है वह हिसाब-किताब चुक्तू कर चली जायेगी। ऐसे नहीं कि आत्मा आग में पड़ने
से पवित्र होगी। आत्मा को याद रूपी योग से ही पवित्र होना है। योग की अग्नि है यह।
उन्होंने फिर नाटक बैठ बनाये हैं - सीता आग से पार हुई। आग से कोई एक को थोड़ेही
पार होना है। बाप समझाते हैं - तुम सब सीतायें इस समय पतित हो, रावण के राज्य में
हो। अब एक बाप की याद से तुमको पावन बनना है। राम एक ही है। अग्नि अक्षर सुनने से
समझते हैं, आग से पार हुई। कहाँ योग अग्नि, कहाँ वह। आत्मा परमात्मा से योग रखने से
पतित से पावन होगी। रात-दिन का फर्क है। आत्मायें सब सीतायें हैं। रावण की जेल में
शोक वाटिका में हैं। यहाँ का सुख तो काग विष्टा मिसल है। स्वर्ग के सुख तो अथाह
हैं। तो बच्चों को ज्ञान रत्नों से झोली भरनी चाहिए। कोई भी प्रकार का संशय नहीं आना
चाहिए। देह-अभिमान आने से फिर अनेक प्रकार के प्रश्न आदि उठते हैं। फिर बाप जो धन्धा
देते है वह करते नहीं हैं। मूल बात है हमको पतित से पावन बनना है। दूसरे कोई भी
संकल्प उठाने की दरकार नहीं है। यह है पतित दुनिया, वह है पावन दुनिया। मुख्य बात
है ही पावन बनने की। पावन कौन बनायेंगे, ये कुछ भी पता नहीं। बोलो तुम पतित हो तो
बिगड़ पड़ेंगे। अपने को विकारी कोई भी समझते नहीं, कहते हैं गृहस्थी तो सब थे -
राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण को भी तो बच्चे थे ना। वहाँ भी तो बच्चे पैदा होते हैं,
यह भूल गये हैं कि उसको वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। वह है शिवालय।
बाप तुम बच्चों को कितनी युक्तियां बताते रहते हैं। यह तो बाप, टीचर, गुरू है,
जो सबको सद्गति देते हैं। वह तो एक गुरू मर गया तो फिर बच्चे को गद्दी देंगे। अब वो
कैसे सद्गति में ले जायेंगे। सर्व का सद्गति दाता है ही एक। रावण राज्य में है
दुर्गति, रामराज्य में है सद्गति। बाप सबको पावन बनाकर ले जाते हैं फिर कोई फट से
पतित नहीं बनते, नम्बरवार उतरते हैं। सतोप्रधान से सतो रजो तमो... तुम्हारी बुद्धि
में 84 का चक्र बैठा है। तुम जैसे अब लाइट हाउस हो। ज्ञान से इस चक्र को जान गये हो
कि यह कैसे फिरता है। अभी तुम बच्चों को और सबको रास्ता बताना है। तुम सब सेना हो।
तुम पायलेट हो, रास्ता बताने वाले। सबको बोलो - अब शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो।
कलियुग दु:खधाम को भूल जाओ। हम आपको बहुत अच्छा रास्ता बताते हैं, पतित-पावन एक ही
निराकार बाप है। उनको याद करने से तुम पावन बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा पर जो कट चढ़ी
हुई है वह उतरती जायेगी। भगवानुवाच मनमनाभव। शिव भगवानुवाच - विनाश काले विप्रीत
बुद्धि विनशन्ती और विनाश काले परमपिता-परमात्मा के साथ प्रीत बुद्धि विजयन्ती।
तुम्हारी जितनी प्रीत बुद्धि होगी उतना ऊंच पद पायेंगे। देह-अभिमान में आने से इतना
ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान रत्नों से अपनी झोली भरनी है। किसी भी प्रकार का संशय नहीं
उठाना है। जितना हो सके बाप को याद करने का पुरुषार्थ कर पावन बनना है। बाकी प्रश्नों
में नहीं जाना है।
2) एक बाप से सच्ची प्रीत रख बाप समान मीठी सैक्रीन बनना है।