18-01-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


सम्पूर्ण विल करने से विल-पॉवर की प्राप्ति

आज किसलिए बुलाया हैं? आज बापदादा क्या देख रहे हैं? एक एक सितारे को किस रूप में देख रहे हैं? सितारों में भी क्या विशेषता देखते हैं? हरेक सितारे की सम्पूर्णता की समीपता देख रहे हैं। आप सभी अपने को जानते हो कि कितना सम्पूर्णता के समीप पहुँचे हो? सम्पूर्णता के समीप पहुँचने की परख क्या होती हैं? सम्पूर्णता की परख यही है किववाह सभी बातों को सभी रीति से, सभी रूपों से परख सकते हैं। आज सारे दिन में क्या-क्या स्मृति आई? चित्र स्मृति में आया व्वा चरित्र स्मृति में आया? चित्र के साथ और कुछ याद आया? (शिक्षा याद आई, ड्रामा याद आया)। चित्र के साथ विचित्र भी याद आया? कितना समय चित्र की यद् में थे कितना समय विचित्र की यद् में थे या दोनों की याद मिली हुई थी? विचित्र के साथ चित्र को याद करने से खुद भी चरित्रवान बन जायेंगे। अगर सिर्फ चित्र और चरित्र को यद् करेंगे तो चरित्र की ही याद रहेगी। इसलिए विचित्र के साथ चित्र और चार्टर याद आये। आज के दिन और भी कोई विशेष कार्य किया? सिर्फ याद में ही मग्न थे कि याद के साथ और भी कुछ किया? (विकर्म विनाश) यह तो याद का परिणाम हैं। और विशेष क्या कर्त्तव्य किया? पूरा एक वर्ष अपना चार्ट देखो? इस अव्यक्ति पढ़ाई, इस अव्यक्त स्नेह और सहयोग की रिजल्ट चेक की? इस अव्यक्त स्नेह और सहयोग का १२ मास का पेपर क्या हैं, चेकिंग की? चेकिंग करने के बाद ही अपने ऊपर अधिक अटेंशन रख सकते हैं। तो आज के दिन स्वयं ही अपना पेपर चेक करना है। व्यक्त भाव से अव्यक्त भावव में कहाँ तक आगे बढ़े – यह चेकिंग करनी है। अगर अव्यक्ति स्थिति बढ़ी है तो अपने चलन में भी अलौकिक होंगे। अव्यक्त स्थिति की प्रैक्टिकल परख क्या है? अलौकिक चलन। इस लोक में रहते अलौकिक कहाँ तक बने हो? यह चेक करना है। इस वर्ष में पहली परीक्षा कोनसी हुई? इस निश्चय की परीक्षा में हरेक ने कितने-कितने मार्क्स ली। वह अपने आप को जानते हैं। निश्चय की परीक्षा तो हो गयी। अब कौन सी परीक्षा होनी हैं? परीक्षा का मालुम होते भी फ़ैल हो जाते है। कोई-कोई के लिए यह बड़ा पेपर है लेकिन कोई-कोई का अब बड़ा पेपर होना है। जैसे इस पेपर में निश्चय की परीक्षा हुई वैसे ही अब कौन सा पेपर होना है? व्यक्त में भी अब भी सहारा है। जैसे पहले भी निमित्त बना हुआ साकार तन सहारा था वैसे ही अब भी ड्रामा में निमित्त बने हुए साकार में सहारा हैं। पहले भी निमित्त ही थे। अब भी निमित्त हैं। यह पुरे परिवार का साकार सहारा बहुत श्रेष्ठ है। अव्यक्त में तो साथ है ही। जितना स्नेह होता है उतना सहयोग भी मिलता है। स्नेह की कमी के कारन सहयोग भी कम मिलता है। साकार से स्नेह अर्थात् सारे सिजरे से स्नेह। साकार अकेला नहीं हैं। प्रजापिता ब्रह्मा तो उनके साथ परिवार है। माला के मनके हो न। माला में अकेला मनका नहीं होता है। माला में एक ही याद के सूत्र में, स्नेह में परिवार समाया हुआ है। तो यह जैसे माला में स्नेह के सूत्र में पिरोये हुए हैं। दैवी कुल तो भविष्य में है, इस ब्राह्मण कुल का बहुत महत्व है। जितना-जितना ब्राह्मण कुल से स्नेह और समीपता होगी उतना ही दैवी राज्य में समीपता होगी। साकार में क्या सबूत देखा? बापदादा किसको आगे रखते हैं? बच्चों को। क्योंकि बच्चों के बिना माँ बाप का नाम बाला नहीं हो सकता। तो जैसे साकार में कर्म करके दिखाया वही फॉलो करना है। यहाँ पेपर पहले ही सुनाया जाता है। निश्चय का पेपर तो हुआ। लेकिन अब पेपर होना है हरेक के स्नेह, सहयोग और शक्ति का। अब वह समय नजदीक आ रहा है जिसमे आप का भी कल्पप पहलेवाला चित्र प्रत्यक्ष होना है। अनेक प्रकार की समस्याओं को परिवर्तन के लिए ऊँगली देनी है। कलियुगी पहाड़ तो पार होना ही है। लेकिन इस वर्ष में मन की समस्याएं, तन की समस्याएं, वायुमण्डल की समस्याएं सर्व समस्याओं के पहाड़ को स्नेह और सहयोग की अंगुली देनी है। तन की समस्या भी आणि है। लौकिक सम्बन्ध में तो पास हो गए। लेकिन यह जो अलौकिक सम्बन्ध है, उस सम्बन्ध द्वारा भी छोटी-मोती समस्याएं आएँगी। लेकिन यह समस्याएं सभी पेपर समझना, यह प्रैक्टिकल बातें नहीं समझना। यह प्पपेर समझना। अगर पेपर समझकर उनको पास करेंगे तो पास हो जायेंगे। अभी देखना है पेपर आउट होते भी कितने पास होते हैं। फिर इस पेपर की रिजल्ट सुनायेंगे। इस समय अपने में विल पावर धारण करना है। अभी विल पावर नहीं आई है। यथा योग्य यथा शक्ति पावर है।

विल पावर कैसे आ सकेगी? विल पावर आने का साधन कौन सा है? विल पावर की कमी क्यों हैं? उसके कारण का पता है? याद की कमी भी क्यों है? बाप ने साकार में कर्म करके दिखाया है, विल पावर कैसे आई। पहला पहला कदम कौन सा उठाया? सभी कुछ विल कर दिया? विल करने में देरी तो नहीं की? जो भी बुरे है अन्दर वा बाहर। वह सम्पूर्ण विल नहीं की है तब तक विल पावर आ नहीं सकती। साकार ने कुछ सोचा क्या? कि कैसे होगा, क्या होगा, यह कब सोचा? अगर कोई सोच-सोच कर विल करता है तो उसका इतना फल नहीं मिलता। जैसे झाटकू और बिगर झाटकू का फर्क होता है। पहले स्वीकार कौन होता है? जो पहले स्वीकार होता है उनको नंबर वन की शक्ति मिलती है। जो पहले स्वीकार नहीं होते उनको शक्ति भी इतनी प्रप्प्त नहीं होती है। इस बात पर सोचना। बापदादा वर्तमान के साथ भविष्य भी जनता है। तो भविष्य कर्मबन्धन की रस्सियों को काटना अप्पना कर्त्तव्य है। अगर कोई भी रस्सी टूटी हुई नहीं होती है तो मन की खिंचावट होती रहती है। इसलिए रस्सियाँ कटवाने के लिए ठहरे हैं। रस्सियाँ अगर टूटी हुई है तो फिर कोई रुक सकता है? छुटा हुआ कब कोई भी बंधन में रुक नहीं सकता।

आज के दिवस पर क्या करना है और अगले ववर्ष के लिए क्या तैयारी करनी है – वह सभी याद रखना है। विदेही को युगल बनायेंगे तो विदेही बनने में सहयोग मिलेगा। विदेही बनने में सहयोग कम मिलता है, सफ़लता कम देखने में आती तो समझना चाहिए कि व्विदेही को युगल नहीं बनाया है। कमाल इसको कहा जाता ही जो मुश्किल बात को सहज करें। सहज बातों को पार करना कोई कमाल नहीं है। मुश्किलातों को पार करना वह है कमाल। अगर मुश्किलातों में ज़रा भी मुरझाया तो क्या होगा? एक सेकंड में सौदा करनेवाले कहाँ फँसते नहीं हैं। फ़ास्ट जाने वाला कहाँ फँसेगा नहीं। फँसनेवाला फ़ास्ट नहीं जा सकेगा। लास्ट स्थिति को देख फ़ास्ट जाना है। अब भी फ़ास्ट जाने का चांस है। सिर्फ एक हाई जम्प लगाना है। लास्ट में फ़ास्ट नहीं जा सकेंगे। अच्छा-


22-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


“अंतिम कोर्स – मन के भावों को जानना” – २२-०१-१९७०

सभी कहाँ बैठे हो और क्या देख रहे हो ?  अव्यक्त स्थिति में स्थित हो अव्यक्त रूप को देख रहे हो व व्व्यक्त में अव्यक्त को देखने का प्रयत्न करते हो ?  इस दुनिया में आवाज़ हैं |  अव्यक्त दुनिया में आवाज़ नहीं है |  इसलिए बाप सभी बच्चों को आवाज़ से परे ले जाने की ड्रिल सिखला रहे हैं |  एक सेकंड में आवाज़ में आना एक सेकंड में आवाज़ से परे हो जाना ऐसा अभ्यास इस वर्तमान समय में बहुत आवश्यक है |  वह समय भी आएगा |  जैसे – जैसे अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे नयनों के इशारों से किसके मन के भाव जान जायेंगे |  कोई से बोलने व सुनने की आवश्यकता नहीं होगी |  ऐसा समय अब आनेवाला है |  जैसे बप्प्दादा के सामने जब आते हो तो बिना सुनाये हुए भी आप सभी के मन के संकल्प मन के भावों को जान लेते हैं |  वैसे ही आप बच्चों को भी यही अंतिम कोर्स पढना है |  जैसे मुख की भाषा कही जाती है व्वैसे ही फिर रूहों की रूहान होती है |  जिसे रूह-रहन कहते हैं |  तो रूह भी रूह से बातें करते हैं |  लेकिन कैसे ?  क्या रूहों की बातें मुख से होती है ?  जैसे जैसे रूहानी स्थिति में स्थित होते जायेंगे वैसे-वैसे रूह रूह की बात को ऐसे ही सहज और स्पष्ट जान लेंगे |  जैसे इस दुनिया में मुख द्वारा वर्णन करने से एक दो के भाव जानते हो  |  तो इसके लिए किस बात की धरना की आवश्यकता है ?  विशेष इस बात की आवश्यकता है जो सदैव बुद्धि की लाइन क्लियर हो |  कोई भी अपने बुद्धि में व मन डिस्टर्बेंस होगा वा लाइन क्लियर न होगी तो एक दो के संकल्प और भाव को जान नहीं सकेंगे |  लाइन क्लियर न होने के कारण अपने संकल्पों की मिक्सचैरिटी हो सकती है |  इसलिए हरेक को देखना चाहिए कि हमारी बुद्धि की लाइन क्लियर हैं ?  बुद्धि में कोई भी किसी भी प्रकार का विघ्न तो नहीं सताता है ?  अटूट, अटल, अथक यह तीनों ही बातें जीवन में हैं |  अगर इन तीनों में से एक बात में भी कमी है तो समझना चाहिए कि बुद्धि की लाइन क्लियर नहीं है |  जब बुद्धि की लाइन क्लियर हो जाएगी तो उसकी स्थिति, स्मृति क्या होगी ?  जितनी-जितनी बुद्धि की लाइन अर्थात् पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होगी उतना-उतना क्या स्मृति में रहेगा ?  कोई भी बात में उनके सामने भविष्य ऐसा ही स्पष्ट होगा जैसे वर्तमान स्पष्ट होता है |  उनके लिए वर्तमान और भविष्य एक समान हो जायेंगे |  जैसे आजकल साइंसदानों ने कहाँ-कहाँ की बातों को इतना स्पष्ट दिखाया है जो दूर की चीज़ भी नज़दीक नज़र आती है |  इसी रीति से जिनका पुरुषार्थ क्लियर होगा उनको भविष्य की हर बात दूर होते भी नजदीक दिखाई पड़ेगी |  जैसे आजकल टेलीविज़न में देखते हैं तो सभी स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं ना |  तो उनकी बुद्धि और उनकी दृष्टि टेलीविज़न की भांति सभी बातें स्पष्ट देखेंगी और जानेंगी |  और कोई भी बात में पुरुषार्थ की मुश्किलात नहीं रहेगी |  तो वह अनुभव, वह अंतिम स्थिति की परख अपने आप में देखो कि कहाँ तक अंतिम स्थिति के नज़दीक हैं |  जैसे सूर्य अपने जब पुरे प्रकाश में आता है तो हर चीज़ स्पष्ट देखने में आती है |  जो अन्धकार है, धुंध है वह सभी ख़त्म हो जाता है |  इसी रीति जब सर्वशक्तिवान ज्ञान सूर्य के साथ अटूट सम्बन्ध है तो अपने आप में भी ऐसे ही हर बात स्पष्ट देखने में आएगी |  और जो चलते-चलते पुरुषार्थ में माया का अन्धकार व धुंध आ जाता है, जो सत्य बात को छिपानेवाले हैं, वह हट जायेंगे |  इसके लिए सदैव दो बातें याद रखना |  आज के इस अलौकिक मेले में जो सभी बच्चे आये हैं |  वह जैसे लौकिक बाप अपने बच्चों को मेले में ले जाते हैं तो जो स्नेही बच्चे होते हैं उनको कोई-न-कोई चीज़ लेकर देते हैं |  तो बापदादा भी आज के इस अनोखे मेले में आप सभी बच्चों को कौन सी अनोखी चीज़ देंगे ?

आज के इस मधुर मिलन के मेले को यादगार बापदादा क्या दे रहे हैं कि सदैव शुभ चिन्तक और शुभ चिंतन में रहना |  शुभ चिंतन और शुभ चिन्तक |  यह दो बातें सदैव याद रखना |  शुभ चिंतन से अपनी स्थिति बना सकेंगे और शुभचिन्तक बनने से अनेक आत्माओं की सेव्व करेंगे |  तो आज यह वतन से, आये हुए सभी बच्चों के प्रति अविनाशी सौगात है |  बापदादा का स्नेह अधिक है व बच्चों का अधिक है ?  कोई कोई बच्चे सोचते होंगे कि हम सभी का स्नेह बापदादा से ज्यादा है |  कोई-कोई हैं भी लेकिन मेजोरिटी नहीं |  स्नेह है लेकिन अटूट और एक रस स्नेह नहीं है |  बच्चों का स्नेह रूप बदलता बहुत है |  बापदादा का स्नेह अटूट और एकरस रहता है |  तो अब बताओ कि किसका स्नेह ज्यादा है ?  बापदादा बच्चों को देखते हैं तो त्रिनेत्री होने से तीन रूपों से देखते हैं |  वह कौन से ३ रूप ?  जैसे आप बच्चे बाप को तीन रूपों से देखते हो न |  तो वह सभी जानते हैं |  लेकिन बाप  बच्चों को तीन रूप से देखते हैं- एक तो पुरुषार्थी रूप, दूसरा अब संगम का भविष्य जो फ़रिश्ता रूप है और तीसरा भविष्य देवता रूप |  तीनों का साक्षात्कार होता रहता है |  तीनों ही रूप एक-एक ऐसे ही स्पष्ट देखने में आते हैं जैसे वर्तमान यह देह का रूप इन आँखों से स्पष्ट देखने में आता है |  इस रीति दिव्व्य नेत्र द्वारा यह तीनों रूप स्पष्ट देखने में आते हैं |  जैसे इन आँखों से देखि हुई चीज़ का वर्णन करना सहज होता है न |  सुनी हुई बातों का वर्णन करना कुछ मुश्किल होता है लेकिन देखी हुई बात का वर्णन करना सहज होता है और स्पष्ट होता है |  तो इन दिव्य नेत्रों वा अव्यक्त नेत्रों द्वारा हरेक के तीनों रूप भी इतना ही सहज वर्णन करना होता है |  वैसे ही आप सभी को भी एक दो के यह तीनों रूप देखने में आएंगे |  अभी यथायोग्य, यथाशक्ति है |  लेकिन कुछ समय बाद यह यथा शक्ति शब्द भी ख़त्म हो जायेगा |  और हरेक अपने अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो जायेंगे |  तो बापदादा आप सभी के सम्पूर्ण मुखड़े देखते हैं |  सम्पूर्णता नंबरवार होगी |  माला के १०८ मणके जो हैं, तो नंबर वार मणका और एक सौ आठवाँ मणका दोनों को सम्पूर्ण कहेंगे कि नहीं ?  विजयी रत्न कहेंगे ?  विजयी रत्न अर्थात् अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो |  उनके लिए सारे ड्रामा के अन्दर वाही सम्पूर्णता की फर्स्ट स्टेज है |  जैसे सतयुग में विश्व महाराजन तो ८वाँ भी कहलायेगा लेकिन फर्स्ट विश्व-महाराजन की सृष्टि के सम्पूर्ण सुख और ८वें के सम्पूर्णता के सुख में अंतर होगा ना |  वैसे ही यहाँ भी हरेक अपने-अपने नंबर प्रमाण सम्पूर्णता को प्राप्त हो रहे हैं |  इसलिए बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को देखते रहते और वर्तमान समय के पुरुषार्थ को देखते रहते हैं |  क्या हैं और क्या बनने वाले हैं |

आप ने पूछा ना कि वतन में क्या बैठ करते हो ?  यही देखते रहते हैं और अव्यक्ति सहयोग देने की सर्विस करते हैं |  सभी समझते हैं कि बापदादा वतन में पता नहीं क्या बैठ करते होंगे |  लेकिन सर्विस की स्पीड साकार वतन से वहां तेज़ है |  क्योंकि यहाँ तो साकार तन का भी हिसाब साथ था |  अब तो इस बंधन से भी मुक्त हैं, अपने प्रति नहीं है सर्व आत्माओं के प्रति हैं |  जैसे इस शरीर को छोड़ना और शरीर को लेना यह अनुभवव सभी को है, वैसे ही जब चाहो तब शरीर का भान बिलकुल छोड़कर अशरीरी बन जाना और जब चाहो तब शरीर आधार लेकर कर्म करना यह अनुभव है ?  इस अनुभव को अब बढ़ाना है |  बिलकुल ऐसे ही अनुभव होगा जैसे कि स्थूल चोला अलग है और छोले को धारण करनेवाली आत्मा अलग है, यह अनुभव अब जयादा होना चाहिए |  सदैव यही याद रखो कि अब गए कि गए |  सिर्फ सर्विस के निमित्त शारीर का आधार लिया हुआ है लेकिन जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का कर सकते हैं |  जैसे आप लोग कहाँ भी ड्यूटी पर जाते हो और फिर वापस घर आते हो तो अपने को हल्का समझते हो ना |  ड्यूटी की ड्रेस बदलकर घर की ड्रेस पहन लेते हो वैसे ही सर्विस प्रति यह शरीर रूपी वस्त्र का आधार लिया फिर सर्विस समाप्त हुई और इन वस्त्रों के बोझ से हल्के और न्यारे हो जाने का प्रयत्न करो |  एक सेकंड में छोले से अलग कौन हो सकेंगे ?  अगर टाइटनेस होगी तो अलग हो नहीं सकेंगे |  कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है |  हल्के होने से सहज ही अलग हो जाता है |  वैसे ही अगर अपने संस्कारों में कोई भी इजीपण नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे |  सुनाया था ना कि क्या बनना है |  इजी और अलर्ट, ऐसे रहनेवाले ही इस अभ्यास में रह सकेंगे |  बापदादा बच्चों को कोई नया नहीं देख रहे हैं |  क्योंकि जब कि तीनों ही कालों को जानते हैं तो नया कैसे कहेंगे |  इसलिए सभी अति पुराने हैं |  कितना पुराने हैं वह हिसाब नहीं निकाल सकते |  तो अपने को नया नहीं समझना |  अति प्पुराने हैं और वही पुराने अब फिर से अपना हक़ लेने के लिए आये हैं |  यह नशा सदैव कायम रहे |  यह भी कभी नहीं बोलना कि पुरुषार्थ करेंगे, देखेंगे |  नहीं |  जो लास्ट आये हैं उनको यही सोचना है कि हम फ़ास्ट जायेंगे |  अगर फ़ास्ट का लक्ष्य रखेंगे तो पुरुषार्थ भी ऐसे ही होगा |  इसलिए कभी भी यह नहीं सोचना कि हम लोग तो पीछे आये हैं तो प्रजा बन जायेंगे |  नहीं |  पीछे आनेवालों को भी अधिकार है राज्य पद पाने का |  अच्छा |

अव्यक्त मुलाकात भी मिलन ही है |  इसलिए सभी को यही निश्चय रखना है कि हम राज्य पद लेकर ही छोड़ेंगे |  हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे |  कोटों में कोई कौन-सी आत्मा गिनी जाती हैं ?  ऐसे कोटों में से कोई हम आत्माएं ड्रामा के अन्दर हैं |  यह अपना निश्चय नहीं भूलना |  बापदादा सभी बच्चों का भविष्य देख हर्षित होते हैं |  एक एक से मिलना, मन की बात तो यह है |  लेकिन आप सबके समान इस व्यक्त दुनिया में |  |  |  बापदादा को अभी यह व्यक्त दुनिया नहीं है |  तो आप के दुनिया के प्रमाण समय हो भी देखना पड़ता है |  वतन में समय नहीं होता |  घडी नहीं होती |  लेकिन इस व्यक्त दुनिया में यह सभी बातें देखनी पड़ती है |  वहां तो जब सूर्य, चाँद ही नहीं तो रात दिन किस हिसाब से हो |  इसलिए समय का बंधन नहीं है |

23-01-70              ओम शान्ति                       अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


सेवा में सफलता पाने की युक्तियाँ २३-०१-१९७०

ऐसे अनुभव करते हैं जैसे कि सर्विस के कारण मज़बूरी से बोलना पड़ता है ?  लेकिन सर्विस समाप्त हुई तो आवाज़ की स्थिति भी समाप्त हो जाएगी (बम्बई की एक पार्टी बापदादा से बम्बई में होनेवाले सम्मेलन के लिए डायरेक्शन ले रही थी) यह जो आजकल की सर्विस कर रहे हो उसमे विशेषता क्या चाहिए ?  भाषण तो वर्षों कर ही रहे हो लेकिन अब भाषणों में भी क्या अव्यक्त स्थिति भरनी है ?  जो बात करते हुए भी सभी ऐसे अनुभव करें कि यह तो जैसे कि अशरीरी, आवाज़ से परे न्यारे स्थिति में स्थित होकर बोल रहे हैं |  अब इस सम्मलेन में यह नवीनता होनी चाहिए |  यह स्पीकर्स और ब्राह्मण स्पीकर्स दूर से ही अलग देखने में आयें |  तब है सम्मेलन की सफ़लता |  कोई अनजान भी सभा में प्रवेश करे तो दूर से ही महसूस करे कि अनोखे बोलनेवाले हैं |  सिर्फ वाणी का जो बल है व तो कनरस तक रह जाता है |  लेकिन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर जो बोलना होता है वह सिर्फ़ कनरस नहीं लेकिन मनरस भी होगा |  कनरस सुनानेवाले तो बहुत हैं लेकिन मनरस देने वाला अब तक दुनिया में कोई नहीं है |  बाप तो तुम बच्चों के सामने प्रत्यक्ष हुआ लेकिन तुम बच्चों को फिर बहार प्रत्यक्ष होना है |  तो यह सम्मेलन कोई साधारण रीति से नहीं होना है |  मीटिंग में भी बोलना – कि चित्रों में भी चैतन्यता हो |  जैसे चैतन्य व्यक्त भाव को स्पष्ट करते हैं वैसे ही चित्र चैतन्य बनकर साक्षात्कार करायें |  जब चित्र में चैतन्यता का भाव प्रत्यक्ष होता है, वाही चित्र अच्छा लगता है |  बहार की आर्ट की बात नहीं है लेकिन बहार के साथ अन्दर भी ऐसा ही हो |  बापदादा यही नवीनता देखना चाहते हैं |  कम बोलना भी कर्त्तव्य बड़ा कर दिखाए |  यही ब्राह्मणों की रीति रस्म है |  यह सम्मेलन अनोखा कैसे हो यह ख्याल रखना है |  चित्रों में भी अव्यक्ति चैतन्यता हो |  जो दोर्र से ही ऐसी महसूसता आये |  नहीं तो इतनी प्रजा कैसे बनेगी |  सिर्फ़ मुख से नहीं लेकिन आन्तरिक स्थिति से जो प्रजा बनेगी उसे ही आन्तरिक सुख का अनुभव कहा जाता है |  आप लोगों ने अब तक रिजल्ट देखि कि जो अव्यक्त स्थिति के अनुभव से आये वह शुरू से ही सहज चल रहे हैं, निर्विघ्न है |  और जो अव्यक्त स्थिति के साथ फिर और भी कोई आधार पर चले हैं उन्ही के बिच में विघ्न, मुश्किलातें आदि कठिन पुरुषार्थ देखने में आता हैं |  इसलिए अभी ऐसी प्रजा बनानी है जो अव्यक्त शक्ति की फाउंडेशन से बहुत थोड़े समय में और सहज ही अपने लक्ष्य को प्राप्त हो |  जितना खुद सहज पुरुषार्थी होंगे, अव्यक्त शक्ति में होंगे उतना ही औरों को भी आप समान बना सकेंगे |  तो इस सम्मेलन की रिजल्ट देखनी है |  टॉपिक तो कोई भी हो लेकिन स्थिति टॉप की चाहिए |  अगर टॉप की स्थिति है तो टॉपिक्स को कहाँ भी मोड़ सकते हो |  अब भाषण पर नहीं लेकिन स्थिति पर सफलता का आधार कहा जाता है |  क्योंकि भाषण अर्थात् भाषा की प्रवीणता तो दुनिया में बहुत है |  लेकिन आत्मा में शक्ति का अनुभव करानेवाले तो तुम ही हो |  तो यही अभी नवीनता लानी है |  जब भी कोई कार्य करते हो तो पहले वायुमण्डल को अव्यक्त बनाना आवश्यक है |  जैसे और सजावट का ध्यान रखते हो वैसे मुख्य सजावट यह है |  लेकिन क्या होता है ?  चलते-चलते उस समय बहर्मुखता अधिक हो जाती है तो जो लास्ट वायुमण्डल होने के कारन रिजल्ट वह नहीं निकलती |  आप लोग सोचते बहुत हो, ऐसे करेंगे, यह करेंगे |  लेकिन लास्ट समय कर्त्तव्य ज्यादा देख बाहरमुखता में आ जाते हो |  वैसे ही सुनने वाले भी उस समय तो बहुत अच्छा कहते हैं परन्तु फिर झट बाहरमुखता में आ जाते हैं |  इसलिए ऐसा ही प्रोग्राम रखना है जो कोई भी आये तो पहले अव्यक्त प्रभाव का अनुभव हो |  यह है सम्मेलन की सफलता का साधन |  कुछ दिन पहले से ही यह वायुमण्डल बनाना पड़े |  ऐसे नहीं कि उसी दिन सिर्फ करना है |  वायुमंडल को शुद्ध करेंगे तब कुछ नवीनता देखने में आएगी |  साकार शरीर में भी अलौकिकता दूर से ही देखने में आती थी ना |  तो बच्चों के भी इस व्यक्त शरीर से अलौकिकता देखने में आये |

प्रेस कांफ्रेंस की रिजल्ट अगर अछि है तो करने में कोई हर्जा नहीं है |  लेकिन पहले उन्हों से मिलकर उन्हीं को मददगार बनाना – यह तो बहुत ज़रूरी है |  समय पर जाकर उन्हों से काम निकालना और समय के पहले उन्हों को मददगार बनाना इसमें भी फर्क पड़ता है |  बहुत करके समय पर अटेंशन जाता है |  अभी अपनी बुद्धि की लाइन को क्लियर करेंगे तो सभी स्पष्ट होता जायेगा |  जैसे आप लोगों का प्रदर्शनी में है ना – स्विच ऑन करने से जवाब मिलता है |  वैसे ही पुरुषार्थ की लाइन क्लियर होने से संकल्प का स्विच दबाया और किया |  ऐसा अनुभव करते जायेंगे |  सिर्फ व्यर्थ संकल्पों की कंट्रोलिंग पॉवर चाहिए |  व्यर्थ संकल्प चलने के कारण जो ओरिजिनल बापदादा द्वारा प्रेरणा कहें वा शुद्ध रेस्पोंस मिलता है वह मिक्स हो जाता है क्योंकि व्यर्थ संकल्प अधिक होते हैं |  अगर व्यर्थ संकल्पों को कण्ट्रोल करने की पॉवर है तो उसमें एक वही रेस्पोंस स्पष्ट देखने में आता हैं |  वैसे ही अगर बुद्धि ट्रांसलाइट है तो उसमे हर बात का रेस्पोंस स्पष्ट होता जाता है और यथार्थ होता है |  मिक्स नहीं |  जिनके व्यर्थ संकल्प नहीं चलते वह अपने अव्यक्त स्थिति को ज्यादा बढ़ा सकते हैं |  शुद्ध संकल्प भी चलने चाहिए |  लेकिन उनको भी कण्ट्रोल करने की शक्ति होनी चाहिए |  व्यर्थ संकल्पों का तूफ़ान मेजोरिटी में ज्यादा है |

कोई कभी कार्य शुरू किया जाता है तो सैंपल बहुत अच्छा बनाया जाता है |  यह भी सम्मेलन का सैंपल सभी के आगे रखना है |

अव्यक्त स्थिति क्या चीज़ होती है, इसका अनुभव कराना है |  आप की एक्टिविटी में सभी समय की घड़ी को देखें |  समय की घड़ी बनकर जा रहे हो |  जैसे साकार भी समय की घड़ी बने ना |  वैसे शरीर के होते अव्यक्त स्थिति के घंटे बजाने की घड़ी बनना है |  यह सर्विस सभी से अछि है |  व्यक्त में अव्यक्त स्थिति का अनुभव क्या होता है, वह सभी को प्रैक्टिकल में पाठ पढ़ना है |  अच्छा |

बापदादा और दैवी परिवार सभी के स्नेह के सूत्र में मणका बनकर पिरोना है |  स्नेह के सूत्र में पिरोया हुआ मैं मणका हूँ – यह नशा रहना चाहिए |  मणकों को कहाँ रखा जाता है ?  माला में मणकों को बहुत शुद्धि से रखा जाता है |  उठाते भी बहुत शुद्धि पूर्वक हैं |  हम भी ऐसा अमूल्य मणका हैं, यह समझना है |  (कोई ने सर्विस के लिए राय पूछी) उन्हों की सर्विस वाणी से नहीं होगी |  लेकिन जब चरित्र प्रभावशाली होंगे, चेंज देखेंगे तब वह स्वयं खींचकर आएंगे |  कोई-कोई को अपना अहंकार भी होता है ना |  तो वाणी से वाणी अहंकार के टक्कर में आ जाती है |  लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ के टक्कर में नहीं आ सकेंगे |  इसलिए ऐसे-ऐसे लोगों को समझाने के लिए यही साधन है |  वायुमंडल को अव्यक्त बनाओ |  जो भी सेवाकेंद्र हैं, उन्हों के वायुमंडल को आकर्षणमय बनाना चाहिए जो उन्हों को अव्यक्त वतन देखने में आये |  कोई भी दूर से महसूस करे कि यह इस घर के बिच में कोई चिराग है |  चिराग दूर से ही रौशनी देता है |  अपने तरफ आकर्षित करता है |  तो चिराग माफिक चमकता हुआ नज़र आये तब है सफलता |

अव्यक्त भट्ठी में आकर के अव्यक्त स्थिति का अनुभव होता है ?  यह अनुभव जो यहाँ होता है फिर उनको क्या करेंगे ?  साथ लेकर जायेंगे व यहाँ ही छोड़ जायेंगे |  उनको ऐसा साथी बनाना जो कोई कितना भी इस अव्यक्त आकर्षण के साथ को छुड़ाने चाहे तो भी नहीं छूटे |  लौकिक परिवार को अलौकिक परिवार बनाया है |  जरा भी लौकिकपण न हो |  जैसे एक शारीर छोड़ दूसरा लेते हैं तो उस जन्म की कोई भी बात स्मृति में नहीं रहती है ना |  यह भी मरजीवा बने हो न |  तो पिछले जीवन की स्मृति और दृष्टि ऐसे ही ख़त्म हो जानी चाहिए |  लौकिक में अलौकिकता भरने से ही अलौकिक सर्विस होती है |  अलौकिक सर्विस क्या करे हो ?  आत्मा का कनेक्शन पॉवर हाउस के साथ करने की सर्विस करते हो |  कोई तार का तार के साथ कनेक्शन करना होता है तो रब्बर उतारना होता है ना |  वैसे ही आप का भी पहला कर्त्तव्य है कि अपने को आत्मा समझ शरीर के भान से अलग बनाना |  यहाँ की मुख्य सब्जेक्ट कितनी हैं और कौन-सी हैं ?  सब्जेक्ट मुख्य हैं चार |  ज्ञान, योग, धारणा और सेवा |  इनमे भी मुख्य कौन से हैं ?  यहाँ से ही शांति का स्टॉक इकठ्ठा किया है ?  आशीर्वाद मालूम है कैसे मिलती है ?  जितना-जितना आत्माभिमानी बनते हैं उतनी आशीर्वाद न चाहते हुए भी मिलती है |  यहाँ स्थूल में कोई आशीर्वाद नहीं मिलती है |  यहाँ स्वतः ही मिलती है |  अगर बापदादा का आशीर्वाद नहीं होता तो यहाँ तक कैसे आते |  हर सेकंड बापदादा बच्चों को आशीर्वाद दे रहे हैं |  लेकिन लेने वाले जितनी लेते हैं, उतनी अपने पास कायम रखते हैं |

आप का और भी युगल है ?  सदा साथ रहनेवाला युगल कौन है ?  यहाँ सदैव युगल रूप में रहेंगे तो वहां भी युगल रूप में राज्य करेंगे |  इसलिए युगल को कभी अलग नहीं करना है |  जैसे चतुर्भुज कंबाइंड होता है वैसे यह भी कंबाइंड है |  शिवबाबा को अपने से कभी अलग नहीं करना |  ऐसे युगल कभी देख, ८४ जन्मों में ८४ युगलों में ऐसा युगल कब मिला ?  तो जो कल्प में एक बार मिलता है उनको तो पूरा ही साथ रखना चाहिए ना |  अभी याद रखना कि हम युगल हैं |  अकेले नहीं हैं |  जैसे स्थूल कार्य में हार्डवर्कर हो |  वैसे ही मन की स्थिति में भी ऐसे ही हार्ड हो जो कोई भी परिस्थिति में पिघल न जाएँ |  हार्ड चीज़ पिघलती नहीं है |  तो ऐसे ही स्थिति और कर्म दोनों हार्ड हो |  जिसके साथ अति स्नेह होता है सको साथ रखा जाता है ना |  तो सदा ऐसे समझो कि मैं युगल मूर्त हूँ | अगर युगल साथ होगा तो माया आ नहीं सकेगी |  युगल मूर्त समझना यही बड़े ते बड़ी युक्ति है |  कदम-कदम पर साथ रहने के कारण साहस रहता है |  शक्ति रहती है फिर माया आएगी नहीं |

तुम गोडली स्टूडेंट हो ?  डबल स्टूडेंट बनकर के फिर आगे का लक्ष्य क्या रखा है ?  उंच पद किसको समझते हो ?  लक्ष्मी-नारायण बनेंगे ?  जैसा लक्ष्य रखा जाता है तो लक्ष्य के साथ फिर और क्या धारणा करनी पड़ती है ?  लक्षण अर्थात् दैवी गुण |  लक्ष्य जो इतना उंच रखा है तो इतने उंच लक्षण का भी ध्यान रखना है |  छोटी कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती है |  अपनी प्रैक्टिकल स्थिति में स्थित हो किसको बैठ सुनाये तो उनका असर बड़ों से भी अधिक हो सकता है |  सदैव लक्ष्य यही रखना है कि मुझ छोटी को कर्त्तव्य बहुत बड़ा करके दिखाना है |  देह भल छोटी है लेकिन आत्मा की शक्ति बड़ी है |  जो जास्ती पुरुषार्थ करने की इच्छा रखते हैं उनको मदद भी मिलती है |  सिर्फ अपनी इच्छा को दृढ़ रखना, तो मदद भी दृढ़ मिलेगी |  कितनी भी कोई हिलाए लेकिन यह संकल्प पक्का रखना |  सकल्प पक्का होगा तो फिर सृष्टि भी ऐसी बनेगी |  भाल जिस्मानी सर्विस भी करते रहो |  जिस्मानी सर्विस भी एक साधन है इसी साधन से सर्विस कर सकते हो |  ऐसे ही समझो कि इस सर्विस के सम्बन्ध में जो भी आत्माएं आती हैं उनको सन्देश देने का यह साधन है |  सर्विस में तो कई आत्माएं कनेक्शन में आती हैं |  जैसे यहाँ जो आये उन्हीं को भी सर्विस के लिए सम्बन्धियों के पास भेजा ना |  ऐसे ही समझो कि सर्विस के लिए यह स्थूल सर्विस कर रहे हैं |  तो फिर मन भी उसमें लगेगा और कमाई भी होगी |  लौकिक को भी अलौकिक समझ करो |  फिर कोई और वातावरण में नहीं आयेंगे |  जैसे जैसे अव्यक्त स्थिति होती जाएगी वैसे बोलना भी कम होता जायेगा |  कम बोलने से ज्यादा लाभ होगा | फिर इस योग की शक्ति से सर्विस करेंगे |  योगबल और ज्ञान-बल दोनों इकठ्ठा होता है |  अभी ज्ञान बल से सर्विस हो रही है |  योगबल गुप्त है |  लेकिन जितना योगबल और ज्ञानबल दोनों समानता में लायेंगे उतनी-उतनी सफ़लता होगी |  सरे दिन में चेक करो कि योगबल कितना रहा, ज्ञानबल कितना रहा ?  फिर मालूम पद जायेगा कि अंतर कितना है |  सर्विस में बिजी हो जायेंगे तो फिर विघ्न आदि भी टल जायेंगे |  दृढ़ निश्चय के आगे कोई रुकावट नहीं आ सकती |  ठीक चल रहे हैं |  अथक और एकरस दोनों ही गुण हैं |  सदैव फॉलो फ़ादर करना है |  जैसे साकार रूप में भी अथक और एकरस, एग्जाम्पल बनकर दिखाया |  वैसे ही औरों के प्रति एग्जाम्पल बनना है |  यही सर्विस है |  समय भाल न भी मिले सर्विस का, लेकिन चरित्र भी सर्विस दिखला सकता है |  चरित्र से भी सर्विस होती है |  सिर्फ वाणी से नहीं होती |  आप के चरित्र उस विचित्र बाप की याद दिलाएं |  यह तो सहज सर्विस है न |  जैसे कई लोग अपने गुरु का वा स्त्री अपने पति का फोटो लॉकेट में लगा देती है न |  यह एक स्नेह की निशानी है |  तो तुम्हारा या मस्तक जो है यह भी उस विचित्र का चरित्र दिखलायें |  यह नयन उस विचित्र का चित्र दिखाएं |  ऐसा अविनाशी लॉकेट पहन लेना है |  अपनी स्मृति भी रहेगी और सर्विस भी होगी |

मधुबन में आकर मुख्य कर्त्तव्य क्या किया ?  जैसे कोई खान पर जाते हैं तो खान के पास जाकर क्या किया जाता है |  खान से जितना ले सकते हैं उतना लिया जाता है |  सिर्फ़ थोड़ा-सा नहीं |  वैसे ही मधुबन है सर्व प्राप्तियों की खान |  तो आप खान पर आये हो ना |  बाकि सेवाकेंद्र हैं इस खान की ब्रान्चेस |  खान पर जाने से ख्याल रखा जाता है जितना ले सकें |  तो यहाँ भी जितना ले सको ले सकते हो |  यहाँ की एक-एक वस्तु एक-एक ब्राह्मण आत्मा बहुत कुछ शिक्षा और शक्ति देनेवाली है |  बापदादा यही चाहते हैं कि जो भी आते हैं वह थोड़ा बहुत नहीं लेकिन सभी कुछ ले लेवें |  बापदादा का बच्चों में शेन है तो एक-एक को संपन्न बनाने चाहते हैं |  जितना यहाँ लेने में संपन्न बनेंगे उतना ही भविष्य में राज्य पाने के संपन्न होंगे |  इसलिए एक सेकंड भी इन अमूल्य दिनों को ऐसे नहीं गँवाना |  एक-एक सेकंड में पद्मों की कमाई कर सकते हो |  पदम सौभाग्यशाली तो हो |  जो इस भूमि  पर पहुँच गए हो |  लेकिन इस पदम भाग्य को सदा कायम रखने के लिए पुरुषार्थ सदैव सम्पूर्णता का रखना |  जैसा बीज होता है वैसा फल निकलता है |  तो आप लोग जैसे बीज हो, नींव जितनी खुद मज़बूत होगी उतना ही ईमारत भी पक्की होगी |  इसलिए सदैव समझना चाहिए कि हम नींव हैं |  हमारे ऊपर साड़ी बिल्डिंग का आधार है |

याद का रेस्पोंड मिलता है ?  बापदादा तो अब सभी के साथ हैं ही, क्योंकि साकार में तो एक स्थान पर साथ रह सकते थे |  अभी तो सर्व के साथ रह सकते हैं |  सदैव यह ध्यान रखो कि एक मत से एक रिजल्ट होगी |  इस गुण को परिवर्तन में लाना |  कैसी भी परिस्थिति आये, लेकिन अपने को मज़बूत रखना है |  औरों को अपने गुणों का दान देना है |  जैसे दान करने से रिटर्न में भविष्य में मिलता है ना |  इस गुण का दान करने से भी बड़ी प्रालब्ध मिलती है जो एक मत होते हैं वाही एक को प्यारे लगे हैं |  बापदादा दो होते एक हैं न |  वैसे भाल कितने भी हो लेकिन एक मत होकर चलना |  बाप के घर में आकर विशेष खज़ाना लिया ?  बाप के घर में विशेषताएं भरी हुई हैं ना |  अपने घर में असली स्वरुप में स्थित होने आये हो अपना असली स्वरुप और असली स्थिति क्या है, वह याद आती है ?  आत्मा की असली स्थिति क्या है ?  जैसे पहले आत्मा परमधाम की निवासी, सर्व गुणों का स्वरुप है |  वैसे ही यहाँ भी अपनी स्थिति का अनुभव् करने के लिए आये हो |  मधुबन में आये हो उस स्थिति का टेस्ट करने |  टेस्ट करने बाद उनको सदा के लिए अपनाना है |  इसका नाम ही है मधुबन |  मधु अर्थात् मधुरता यानि स्नेह और शक्ति दोनों ही वरदान पूर्ण रूप से प्राप्त करना |  यहाँ मधुबन में दोनों चीज़ वरदान रूप में मिलती है |  फिर बहार में जायेंगे तो इन दोनों चीज़ के लिए अपना पुरुषार्थ करना पड़ेगा |  इसलिए यहाँ वरदान रूप में प्राप्त जो हो रहा है उनको ऐसा प्राप्त करना जो अविनाशी रहे |  जब वरदान रूप में प्राप्त हो सकते हैं तो पुरुषार्थ करके क्यों लेवें |  गुरु वरदान देता है तो क्या करना होता है ?  अपने को उसके अर्पण करना पड़ता है, तब वरदान प्राप्त होता है |  तो यहाँ भी जितना अपने को अर्पण करेंगे, उतना वरदान प्राप्त होगा |  वरदान तो सभी को मिलता है, लेकिन जो ज्यादा अपने को अर्पण करता है, उतना ही वरदान का पात्र बनता है |  वरदान से ऐसी झोली भर लो, जो भरी हुई झोली कभी खाली न हो |  जितना जो भरना चाहे वह भर सकते हैं |  ऐसा ही ध्यान रखकर इन थोड़े दिनों में अथक लाभ उठाना है |  एक-एक सेकंड सफल करने के यह दिन है |  अभी का एक सेकंड बहुत फायदे और बहुत नुकसान का भी है |  एक सेकंड में जैसे कई वर्षों की कमाई गँवा भी देते हैं ना |  तो यहाँ का एक सेकंड इतना बड़ा है |

त्याग से ही भाग्य बनता है |  लेकिन त्याग करने के बाद मनसा में भी संकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए |  जब कोई बलि चढ़ता है तो उमे अगर ज़रा भी चिल्लाया वा आँखों से बूँद निकली तो उनको देवी के आगे स्वीकार नहीं कराएँगे |  झाटकू सुना है ना |  एक धक् से कोई चीज़ को ख़त्म करने और बार बार काटने में फ़र्क रहता है ना |  झाटकू अर्थात् एक धक् से ख़त्म |  बापदादा के पास भी कौन से बच्चे स्वीकार होंगे ?  जिनको मनसा में भी संकल्प न आये इसको कहा जाता है महाबली | ऐसे महान बलि को ही महान बल की प्राप्ति होती है |  सर्वशक्तिवान के बच्चे हो और फिर शक्ति नहीं, बाप की प्पुरु जायदाद का हक़दार बनना है ना |  सर्वशक्तिवान बाप की सर्व शक्तियों की जायदाद, जन्म-सिद्ध अधिकार सदैव अपने सामने रखो |  सर्वशक्तिवान के आगे कमज़ोरी ठहर सकती है ?  आज से कमज़ोरी ख़त्म |  सिर्फ एक शक्ति नहीं |  पाण्डव भी शक्ति रूप हैं |  एक दीप से अनेक जगते हैं |

डबल सर्जरी करते हो ?  और ही अच्छा चांस मिलता है दो मार्ग बताने का |  शरीर का भी और मन का भी |  जैसे स्थूल सर्विस करने से तनख्वाह मिलती है ?  (स्वर्ग की बादशाही मिलती है) वह तो वहां मिलेगी लेकिन यहाँ क्या मिलता है ?  प्रत्यक्ष फल का अनुभव होता है ?  भविष्य तो बनता ही है लेकिन भविष्य से भी ज्यादा अभी की प्राप्ति है |  अभी जो ईश्वरीय अतीन्द्रिय सुख मिलता है वह भविष्य में नहीं मिल सकता |  यह अतीन्द्रिय सुख सारे कल्प में कभी नहीं मिल सकता |  ऐसा खजाना अभी बाप द्वारा मिलता है |  अनेक जन्म इन्द्रियों का सुख और एक सेकंड में अतीन्द्रिय सुख अनुभव होता है ?  शिवबाबा को युगल बनाया है ?  वह देहधारी युगल तो सुख के साथी होते हैं लेकिन यह तो दुःख के समय साथी बनता है |  ऐसे  युगल को तो एक सेकंड भी अलग नहीं करना चाहिए |  साथ रखना अर्थात् शक्ति रूप बनना |  यह ब्राह्मण परिवार देखा |  इतना बड़ा परिवार कब मिलता है ?  सिर्फ इस संगम पर ही इतना बड़ा परिवार मिलता है |  हम इतने बड़े परिवार के हैं – यह नशा रहता है ?  जितना कोई बड़े परिवार का होता है उतनी उसको ख़ुशी रहती है |  सारी दुनिया में हम थोड़ों को इतना बड़ा परिवार मिलता है |  तो यह निश्चय और नशा होना चाहिए |  हरेक को यह नशा होना चाहिए कि कोटों में से कोई हम गायन में आनेवाली आत्माएं हैं |  कभी सोचा था क्या कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो सकता है ?  अचानक लॉटरी मिली है |  लॉटरी की ख़ुशी होती है ना और फिर यह अविनाशी लॉटरी है |  जो कभी ख़त्म हो न सके |  ऐसी लॉटरी हम आत्माओं को मिली है |  यह नशा रहता है ?  कोने-कोने से बापदादा ने देखो कीन्हों को चुना है |  चुने हुए रत्नों में आप विशेष हैं |  यह याद रहता है |  बापदादा को कौन-से रत्न अच्छे लगते हैं ?  साधारण |  ऐसी ख़ुशी सदैव अविनाशी रहे |  वह कैसे रहेगी ?  जैसे दीपक होता है वह सदैव जगा रहे इसके लिए ध्यान रखते हैं |  घृत और बत्ती इन दो चीज़ का ख्याल रखना पड़ता है |  तो यहाँ भी ख़ुशी का दीपक सदैव जगा रहे इसके लिए दो बातें ध्यान में रखनी है |  ज्ञान घृत और योग है बत्ती |  अगर यह दोनों ही ठीक हैं तो ख़ुशी का दीपक अविनाशी रहेगा |  कभी बुझेगा नहीं |

१५ दिन भी इस संगमयुग के बहुत हैं |  ऐसे मत समझना कि हम तो १५ दिन के बच्चे हैं लेकिन संगम का समय ही अभी बहुत कम है |  इस काम के हिसाब से यह १५ दिन भी बहुत हैं, इसलिए अब ऐसे ही सोचना कि लास्ट वालों को फ़ास्ट होना है |  बिछड़े हुए जो होते हैं वह आने से ही तीव्र पुरुषार्थ में लग जाते हैं हिम्मत बच्चे रखते हैं, मदद बाप देते हैं |  एक कुमारी १०० ब्राह्मणों से उत्तम गाई जाती है |  एक में १०० की शक्ति भरेंगे तो क्या नहीं कर सकते |  सिर्फ अपने पांव को पक्का मजबूत बनाओ |  कितना भी कोई हिलाएं तो हिलना नहीं है |  अचलघर भी तुम्हारा यादगार है ना |  अचल अर्थात् जिसको कोई हिला न सके |  तीन मास में तीन वर्सा लिए हैं ?  बापदादा तीन वर्सा कौन सा देते हैं ?  सुख, शांति और शक्ति |  जितना अधिकार लेंगे उतना वहाँ राज्य के अधिकारी बनेंगे |  सम्पूर्ण अधिकार पाने का लक्ष्य रखना है |  क्योंकि बाप भी सम्पूर्ण है ना |  

युगल रहते हुए अकेले रहे हो गा युगल रूप में रहते हो ?  अकेला रूप कौन सा है ?  आत्मा अकेली है ना |  आते भी अकेले हैं |  जाते भी अकेले हैं |  तो युगल रूप में पार्ट बजाते भी आत्मिक स्थिति में रहना अर्थात् अकेले बनना है और फिर रूहानी युगल बनना है |  तो बाप और बच्चे |  वह तो हुआ देह का युगल |  आत्मा और परमात्मा यह भी युगल हैं |  आत्मा सजनी, सीता कहते हैं ना |  परमात्मा है साजन, राम |  तो रूहानी युगल मूर्त बनना है |  बस |  देह के  युगल रूप नहीं |  देहधारी का युगल रूप ख़त्म हुआ |  अनेक जन्म देहधारियों का युगल रूप देखा |  अब आत्मा और परमात्मा का युगल रूप बनना है |  ऐसी स्थिति में रहते हो ?  इस अनोखे युगल रूप के सामने वह युगल तो कुछ नहीं |  तो देह की भावना ख़त्म हो जाएगी |  सभी से प्रिय चीज़ क्या है ?  प्रिय चीज़ अच्छी लगती है ना |  तो उस प्रिय वास्तु को छोड़ दुसरे को प्रिय कैसे बना सकते हैं |  अकेला भी बन जाना है, फिर युगल भी बनना है |

कोई को आने से ही लॉटरी मिल जाती है |  कोई को प्रयत्न करने से लॉटरी मिलती |  ऐसे उच्च भाग्यशाली अपने को समझते हो ?  कुमारों के लिए भी सरल मार्ग है |  क्योंकि उलटी सीढ़ी जो चढ़े हुए हैं, उनको उतरनी पड़ती हैं |  इसलिए कुमार-कुमारियों के लिए और ही सहज है |  जो बंधन मुक्त होते हैं वह जल्दी दौड़ सकते हैं |  तो सभी बातों में निर्बन्धन रहना है |  कैसी भी परिस्थिति में अपनी स्थिति ऊँची रखनी है |  जो उच्च जीवन का लक्ष्य है उनसे दूर  नहीं होना है |  अच्छा-

24-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना २४-०१-१९७०

अपने जीवन की नैय्या किसके हवाले की है ?  (शिवबाबा के) श्रीमत पर पूर्ण रीति से चल रहे हो ?  श्रीमत पर चलना अर्थात् हर कर्म में अलौकिकता लाना |  शिवबाबा के वरसे का पूरा अधिकारी अपने को समझते हो ?  जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उन्हों का सर्व के ऊपर अधिकार होता है, वह कोई भी बात के अधीन नहीं होते |  अगर अधीन होते हैं देह के, देह के सम्बन्धियों वा देह के कोई भी वस्तुओं से तो ऐसे अधीन होनेवाले अधिकारी नहीं हो सकते |  अधिकारी अधीन नहीं होते हैं |  सदैव अपने को अधिकारी समझने से कोई भी माया के रूप के अधीन बन्ने से बाख जायेंगे |  हमेशा यह चेक करना कि अलौकिक कर्म कितने किये हैं और लौकिक कर्म कितने किये हैं ?  अलौकिक कर्म औरों को अलौकिक बनाने की प्रेरणा देंगे |  सभी ने यह लक्ष्य रखा है कि हम सभी ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे ऊँचे ते ऊँचा राज्य पद प्राप्त करेंगे वा जो मिलेगा वाही ठीक है ?  जब ऊँचे से ऊँचे बाप के बच्चे हैं तो लक्ष्य भी ऊँचा रखना है |  जब अविनाशी आत्मिक स्थिति में रहेंगे तब ही अविनाशी सुख की प्राप्ति होगी |  आत्मा अविनाशी है ना |

मधुबन में आकर मधुबन के वरदान को प्राप्त किया ?  वरदान, विबर म्हणत के सहज ही मिलता है |  अव्यक्ति स्थिति में अव्यक्ति आनंद, अव्यक्ति स्नेह, अव्यक्ति शक्ति इन सभी की प्राप्ति सहज रीति होती है |  तो ऐसा वरदान सदैव कायम रहे, इसकी कोशिश की जाती है |  सदैव वरदानों की याद में रहने से यह वरदान अविनाशी रहेगा |  अगर वरदाता को भूले तो वरदान भी ख़त्म |  इसलिए वरदाता को कभी अलग नहीं करना |  वरदाता साथ है तो वरदान भी साथ है |  सारी सृष्टि में सभी से प्रिय वास्तु (शिवबाबा) वाही है तो उनकी याद भी स्वतः ही रहनी चाहिए |  जबकि है ही प्रिय में प्रिय एक तो फिर उनकी याद भूलते क्यों ?  ज़रूर और कुछ याद आता होगा |  कोई भी बात बिना कारन के नहीं होती |  विस्मृति का भी कारण है |  विस्मृति के कारन प्रिय वास्तु दूर हो जाती है |  विस्मृति का कारन है अपनी कमज़ोरी |  जो श्रीमत मिलती है उन पर पूरी रीति से न चलने कारन कमज़ोरी आती है |  और कमज़ोरी के कारन विस्मृति होती है |  विस्मृति में प्रिय वास्तु भूल जाती है |  इसलिए सदैव कर्म करने के पहले श्रीमत की स्मृति रख फिर हर कर्म करो |  तो फिर वह कर्म श्रेष्ठ होगा |  श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठ जीवन स्वतः ही बनती है |  इसलिए हर कार्य के पहले अपनी चेकिंग करनी है |  कर्म करने के बाद चेकिंग करने से जो उल्टा कर्म हो गया उसका तो विकर्म बन गया |  इसलिए पहले चेकिंग करो फिर कर्म करो |

ईश्वरीय पढ़ाई बहुत सहज और सरल रीति किसको देने का तरीका आता है ?  एक सेकंड में किसको बाप का परिचय दे सकते हो ?  जितना औरों को प्परिचय देंगे उतना ही अपना भविष्य प्रालब्ध बनायेंगे |  यहाँ देना और वहाँ लेना |  तो गोया लेना ही है  | जितना देते रहो उतना समझो हम लेते हैं |  इस ज्ञान का भी प्रत्यक्ष फल और भविष्य के प्रालब्ध प्राप्ति का अनुभव करना है |  वर्तमान के प्राप्ति के आधार पर ही भविष्य को समझ सकते हो |  वर्तमान अनुभव भविष्य को स्पष्ट करता है |  अपने को किस रूप में समझकर चलते हो ?  मैं शक्ति हूँ, जगत की माता हूँ – यह भावना रहती है ?  जो जगत माता का रूप है उसमे जगत के कल्याण का रहता है |  शिवशक्ति रुप्प में कोई भी कमज़ोरी नहीं रहेगी |  तो मैं जगतमाता हूँ और शिवशक्ति हूँ, यह दोनों रूप स्मृति में रखना तब मायाजीत बनेंगे |  और विश्व के कल्याण की भावना से कई आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनेंगे |  नष्टोमोहा सम्बन्ध से वा अपने शरीर से बने हो ?  नष्टोमोहा की लास्ट स्टेज कहाँ तक है ?  जितना नष्टोमोहा बनेंगे उतना स्मृति रूप बनेंगे |  तो स्मृति को सदा कायम रखने के लिए साधन है नष्टोमोहा बनना |  नष्टोमोहा बनना सहज है वा मुश्किल है ?  जब अपने आप को समर्पण कर देंगे तो फिर सभी सहज होगा |  अगर समर्पण न कर के अपने ऊपर रखते हो तो मुश्किल भासता है |  सहज बनाने का मुख्य साधन है – समर्पण करना |  बाप को जो चाहिए वो करावे |  जैसे मशीन होती हैं, उन द्वारा सारा कारखाना चलता है |  मशीन का काम है कारखाने को चलाना |  वैसे हम निमित्त हैं |  चलाने वाला जैसे चलावें |  हमको चलना है |  ऐसा समझने से मुश्किलात फील नहीं होगी |  या स्थिति दिन प्रति दिन परिपक्व करनी है |  इस मुख्य बात पर अटेंशन रखना है |  जितना स्वयं को समर्पण करते हैं बाप के आगे, उतना ही बाप भी उन बच्चों के आगे समर्पण होते हैं |  अर्थात् जो बाप का खज़ाना है वह स्वतः ही उनका बन जाता है |  जो गुण अपने में होता है वह किसको देना मुश्किल क्यों ?  समर्पण करना और कराना – यही ब्राह्मणों का धंधा है |  जो है ही ब्राह्मणों का धंधा तो ब्राह्मणों के सिवाए और कौन जानेंगे |  जैसे बाप थोड़े में राज़ी नहीं होता बच्चों को भी थोड़े में राज़ी नहीं होना है |

निश्चय की निशानी क्या है ?  विजय |  जितना निश्चयबुद्धि होंगे उतना ही सभी बैटन में विजयी होंगे |  निश्चयबुद्धि की कभी हार नहीं होती |  हार होती है तो समझना चाहिए कि निश्चय की कमी है |  निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों में से हम एक रत्न हैं ऐसे अपने को समझना है |  विघ्न तो आएंगे, उन्हों को ख़त्म करने की युक्ति है – सदैव समझो कि यह पेपर है |  अपनी स्थिति की परख यह पेपर कराता है |  कोई भी विघ्न आये तो उनको पेपर समझ पास करना है |  बात को नहीं देखना है लेकिन पेपर समझना है |  पेपर में भी भिन्न-भिन्न क्वेश्चन होते हैं – कभी मनसा का, कभी लोक-लाज का, कभी देशवासियों का क्वेश्चन आएगा |  परन्तु इसमें घबराना नहीं है |  गहराई में जाना है |  वातावरण ऐसा बनाना चाहिए जो न चाहते भी कोई खींच आये |  जितना खुद अव्यक्त वायुमंडल बनाने में बिजी रहेंगे |  उतना स्वतः सभी होता रहेगा |  जैसे रस्ते जाते कोई खुशबू भी न चाहते हुए खिचेंगी |

जो लक्ष्य रखा जाता है उसको पूर्ण करने के लिए ऐसे लक्षण भी अपने में भरने हैं |  ढीले कोशिश वाले कहाँ तक पहुँचेंगे ?  कोशिश शब्द ही कहते रहेंगे तो कोशिश में ही रह जायेंगे |  एम तो रखना है कि करना ही है |  कोशिश अक्षर कहना कमजोरी है |  कमजोरी को मिटाने के लिए कोशिश शब्द को मिटाना है |  निश्चय से विजय हो जाती है |  संशय लाने से शक्ति कम हो जाती है |  निश्चयबुद्धि बनेंगे तो सभी का सहयोग भी मिलेगा |  कोई भी कार्य करना होता है तो सदैव यही सोचा जाता है कि मेरे बिना कोई कर नहीं सकता तब ही सफ़लता होती है |  आज से कोशिश अक्षर ख़त्म करो |  मैं शिवशक्ति हूँ |  शिवशक्ति सभी कार्य कर सकती है |  शक्तियों की शेर पर सवारी दिखाते हैं |  किस भी प्रकार माया शेर रूप में आये डरना नहीं है |  शिवशक्ति कभी हार नहीं खा सकती |  अभी समय ही कहाँ है |  समय के पहले अपने को बदलने से एक का लाख गुणा मिलेगा बदलना ही है, तो ऐसे बदलना चाहिए |  याद आता है कि अगले कल्प भी वारसा लिया था |  अपने को पुराना समझने से वह कल्प पहले की स्मृति आने से पुरुषार्थ सहज हो जाता है |  क्योंकि निश्चय रहता है कल्प पहले भी मैंने लिया था |  अब भी लेकर छोड़ेंगे |  कल्प पहले की स्मृति शक्ति दिलानेवाली होती है |  अपने को नए समझेंगे तो कमजोरी के संकल्प आयेंगे |  पा सकेंगे वा नहीं |  लेकिन मैं हूँ ही कल्प पहले वाला इस स्मृति से शक्ति आएगी |  सदैव अपने को हिम्मतवान बनाना चाहिए |  हिम्मत हारना नहीं चाहिए |  हिम्मत से मदद भी मिलेगी |  हम सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे हैं, बाप को याद किया, यही हिम्मत है |  बाप को याद करना सहज है व मुश्किल ?  सहज करने में सहज हो जाता है |  यह तो मेरा कर्त्तव्य ही है |  फ़र्ज़ है |  क्या करूँ यह संकल्प आने से मुश्किल हो जाता है |  कभी भी अपने अन्दर कमज़ोर संकल्प को नहीं रहने देना |  अगर मन में कमज़ोर संकल्प उत्पन्न भी हो जायें तो उनको वहां ही ख़त्म कर शक्ति शाली बनाना है |  अब तक भी अगर कोशिश करते रहेंगे तो अव्यक्त कशिश का अनुभव कब करेंगे ?  जब तक कोशिश है तब तक अव्यक्ति कशिश अपने में नहीं आ सकती है |  यह भाषा ही कमजोरी की है |  सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे यह नहीं कह सकते |  उनके संकल्प, वाणी सभी निश्चय के होंगे |  ऐसी स्थिति बनानी है |  सदैव चेक करो कि संकल्प रूपी फाउंडेशन मज़बूत है |  तीव्र पुरुषार्थी की चलन में यह विशेषता होगी जो उनके संकल्प, वाणी, कर्म तीनों ही एक समान होंगे |  संकल्प उंच हों और कर्म कमज़ोर हों तो उनको तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहेंगे |  तीनों की समानता चाहिए |  सदैव यह समझना चाहिए |  जो कि माया कभी-कभी अपना रूप दिखाती है यह सदैव के लिए विदाई लेने आती है |  विदाई के बदले निमंत्रण दे देते हो |  सदैव शिवबाबा के साथ हूँ, उनसे अलग होंगे ही नहीं तो फिर कोई क्या करेंगे |  कोई बिजी रहता है तो फिर तीसरा डिस्टर्ब नहीं करता है |  समझते हैं तंग करने वाला कोई नहीं आये |  तो एक बोर्ड लगा देते हैं |  आप भी ऐसा बोर्ड लगाओ |  तो माया लौट जाएगी |  आने का स्थान ही नहीं मिलेगा |  कुर्सी खाली होती है तो कोई बैठ जाता है |

माताओं के लिए तो बहुत सहज है सिर्फ़ बाप को याद करना, बस |  बाप को याद करने से ज्ञान आपे ही इमर्ज हो जाता है |  बाप को जो याद करता है उनको हर कार्य में मदद बाप की मिल जाती है |  याद की इतनी शक्ति है जो अनुभव यहाँ पाते हो वह वहाँ भी स्मृति में रखेंगे तो अविनाशी बन जायेंगे |  बुद्धि में बार-बार यही स्मृति रखो हम परमधाम निवासी हैं |  कर्त्तव्य अर्थ यहाँ आये हैं |  फिर वापस जाना है |  जितना बुद्धि को इन बातों में बिजी रखेंगे तो फिर भटकेंगे नहीं |  ज्ञान भी किसको युक्ति से सुनना है |  सीधा ज्ञान सुनाने से घबरा जायेंगे |  पहले तो ईश्वरीय स्नेह में खींचना है |  शरीरधारी को चाहिए धन, बाप को चाहिए मन |  तो मन को जहा लगाना है वहाँ हो लगा रहे और कहाँ प्रयोग न हो |  योगयुक्त अव्यक्त स्थिति में रह दो बोल बोलना भी भाषण करना ही है |  एक घंटे के भाषण का सार दो शब्द में सुना सकते हो |

दिन प्रतिदिन कदम आगे समझते हो ?  ऐसे भी नहीं सोचना कि अभी समय पड़ा है, पुरुषार्थ कर लेंगे |  लेकिन समय के पहले समाप्ति करके और इस स्थिति का अनुभा प्राप्त करना है |  अगर समय आने पर इस स्थिति का अनुभव करेंगे तो समय के साथ स्थिति भी बदल जाएगी |  समय समाप्त तो फिर अव्यक्त स्थिति का अनुभव भी समाप्त हो, दूसरा पार्ट आ जायेगा |  इसलिए पहले से ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है |  कुमार्यां दौड़ने में तेज़ होती हैं |  तो इस ईश्वरीय दौड़ में भी तेज़ जाना है |  फर्स्ट आने वाले ही फर्स्ट के नजदीक आयेंगे |  जैसे साकार फर्स्ट गया ना |  लक्ष्य तो ऊँचा रखना है |  लक्ष्य सम्पूर है तो पुरुषार्थ भी सम्पूर्ण करना है, तब ही सम्पूर्ण पद मिल सकता |  सम्पूर्ण पुरुषार्थ अर्थात् सभी बातों में अपने को संपन्न बनाना |  बड़ी बात तो है नहीं |  जानने के बाद याद करना मुश्किल होता है क्या ?  जानने को ही नॉलेज कहा जाता है |  अगर नॉलेज, लाइट और मिघ्त नहीं है तो वह नॉलेज ही किस काम की, उनको जानना नहीं कहा जायेगा |  यहीं जानना और करना एक है |  औरों में जानने और करने में फर्क होता है |  नॉलेज वह चीज़ है जो वह रूप बना देती है |  ईश्वरीय नॉलेज क्या रूप बनाएगी ?  ईश्वरीय स्थिति |  तो ईश्वरीय नॉलेज लेनेवाले ईश्वरीय रूप में क्यों नहीं आएंगे |  थ्योरी और चीज़ है |  जानना अर्थात् बुद्धि में धारणा करना और चीज़ है |  धारणा से कर्म ऑटोमेटिकली हो जाता है |  धारणा का अर्थ ही है उस बात को बुद्धि में समाना |  जब बुद्धि में समां जाते हैं तो फिर बुद्धि के डायरेक्शन अनुसार कर्मेन्द्रियाँ भी वह करती हैं |  नॉलेजफुल बाप के हम बच्चे हैं और ईश्वरीय नॉलेज की लाइट मिघ्त हमारे साथ है |  ऐसे समझ कर चलना है |  नॉलेजक सिर्फ सुनना नहीं लेकिन समाना है |  भोजन खाना और चीज़ है हज़म करना और चीज़ है |  खाने से शक्ति नहीं आएगी |  हज़म करने से शक्ति कहाँ से आ जाती है, खाए हुए भोजन को हज़म करने से ही शक्ति रूप बनता है |  शक्तिवान बाप के बच्चे और कुछ कर न सकें, यह हो सकता है ?  नहीं तो बाप के नाम को भी शरमाते हैं |  सदैव यही एम रखनी चाहिए हम ऐसा कर्म करें जो मिसाल बन दिखाएं |  इंतज़ार में नहीं रहना है लेकिन एग्जाम्पल बनना है |  बाप एग्जाम्पल बना ना |

अपने घर में आये हो यह समझते हो ?  जब कोई भटका हुआ अपने घर पहुँच जाता है तो जैसे विश्राम मिल जाता है |  तो यहाँ विश्राम की भासना आती है |  स्थान मिलने से विश्राम की स्थिति हो जाती है |  सदैव विश्राम स्थिति में समझो |  भाल कार्य अर्थ जाओ तो भी यह स्थिति का अनुभव साथ ले जाना |  इसको साथ रखेंगे तो फिर कितना भी कार्य करते हुए स्थिति विश्राम की रहेगी |  विश्राम अवस्था में शांति सुख का अनुभव होता है |  अपने में जब शक्ति आ जाती है तो फिर वातावरण का भी असर अपने पर नहीं होता, लेकिन हमारा असर वातावरण पर रहे |  सर्वशक्तिवान वातावरण है या बाप ?  जबकि सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे हो तो फिर वातावरण आप से शक्तिशाली क्यों ?  अपनी शक्ति भूलने से ही वातावरण का असर होता है |  जैसे डॉक्टर कोई भी बीमारी वाले पेशेंट के आगे जायेगा तो भी उनको असर नहीं होगा |  वैसे ही अपनी स्मृति रखकर सर्विस करनी है |  यह अपने में शक्ति रखो कि हमें वातावरण को बनाना है ना कि वातावरण हमको बनावे |  युगल होते हुए भी अकेली आत्मा की स्मृति में रहते हो ?  आत्मा अकेली है ना |  अगर आत्मा को सम्बन्ध में आना भी है तो किसके ?  सर्व सम्बन्ध किससे हैं ?  एक से |  तो एक से दो भी बनना है बाप और बच्चे |  तीसरा कोई सम्बन्ध नहीं |  सर्व सम्बन्ध को एक से जोड़ना है |  एक से दूसरा शिवबाबा |  इस स्थिति को ही उंच स्थिति कहा जाता है |  तीसरी कोई भी चीज़ देखते हुए देखने में न आये |  अगर देखना है तो भी एक को, बोलना भी उनसे |  ऐसी स्थिति रहने से ही माया जीत बनेंगे |  जो माया जीत बनते हैं वह जगतजीत बन जाते हैं |  यह शुद्ध स्नेह सारे कल्प में एक ही बार मिलता है |  ऐसे स्नेह को हम पाते हैं यह सदैव याद रखना है |  जो कोई को प्राप्त नहीं हो सकता वह हमें प्राप्त हुआ है |  इसी नशे और निश्चय में रहना है |  दिल्ली में नाम बाला होना, भारत में नाम बाला होना है |

इतनी ज़िम्मेवारी दिल्ली वालों को उठानी है |  समय कम है सर्विस बहुत है |  इसी रफ़्तार से जब सर्विस करेंगे तब ही सभी को सन्देश पहुंचेगा |  कोई को धनवान बनाने के लिए मौका देना भी महादान है, महादान का फल भी इतना मिलता है |  बाप को सदैव साथ रखेंगे तो माया देखेगी इसके साथ सर्वशक्तिवान बाप है तो वह दूर से ही भाग जाएगी |  अकेला देखती है तब हिम्मत रखती है |  शिकार करने जब जाते हैं तो कोई भी जानवर वार न करें इसके लिए आ जलाते हैं |  वैसे ही याद की अग्नि जली हुई होगी तो माया आ नहीं सकेगी |  यह लगन की अग्नि बुझनी नहीं चाहिए |  साथ रखने से शक्ति आपे ही आ जाएगी |  फिर विजय ही विजय है |

बापदादा को बुज़ुर्ग माताएं सबसे प्यारी लगती हैं |  क्योंकि बहुत दुखों से थकी हुई हैं |  तो थके हुए बच्चों पर बाप का स्नेह रहता है |  इतना स्नेह बच्चों को भी रखना है |  घर बैठे भी याद की यात्रा में पास हो गए तो भी आगे बढ़ सकते हो |  जितना याद की यात्रा में सफल होंगे तो मन की भावनाएं भी शुद्ध हो जायेंगी |  सभी सर्विस में सहयोगी हो रहते हो ?  जितना दुश्रों को सन्देश देते हैं उतना अपने को भी सम्पूर्णता का सन्देश मिलता है |  क्योंकि दूसरों को समझाने से अपने को सम्पूर्ण बनाने का न चाहते हुए भी ध्यान जाता हैं |  यह सर्विस करना भी अपने को सम्पूर्ण बनाने का मीठा बंधन है |  इस बंधन में जितना अपने को बाँध लेंगे उतना ही सर्व संबंधों से मुक्त होते जायेंगे |  सर्व बंधनों से मुक्त होने का साधन क्या हुआ ?  एक बंधन में अपने को बांधना |  यह मीठा बंधन भी अब का ही है |  फिर कभी नहीं होता |  सभी इस ईश्वरीय बंधन में बंधी हुई आत्माएं हैं |  श्रेष्ठ कर्म करने से ही श्रेष्ठ पद मिल सकता है और श्रेष्ठाचारी भी बन जाते हैं |  एक ही श्रेष्ठ कर्म से वर्मान भी बन जाता है और भविष्य भी बनता |  जिससे दोनों ही श्रेष्ठ बन जायें वह कर्म करना चाहिए |  अहमदाबाद को सभी से ज्यादा सर्विस करनी है क्योंकि अहमदाबाद सभी सेंटर्स का बीज रूप है |  बीज में ज्यादा शक्ति होती है |  खूब ललकार करो |  जो गहरी नींद में सोये हुए भी जाग उठें |  कुमारियाँ तो बहुत कमाल कर सकती हैं |  एक कुमारी में जितनी शक्ति है तो इतनी सर्विस में सफलता दिखानी चाहिए |  कुमारियाँ पुरुषार्थ में, सर्विस में, सभी से तेज़ जा सकती हैं |  शक्तियां सर्विस में आगे हैं वा पाण्डव ?  अपना यादगार है – हम कल्प पहले वाले पाण्डव हैं |  कितने बार पाण्डव बने हो जो अनगिनत बार होती है वह पक्की याद रहती है ना |  यह स्मृति रहेगी तो फिर कभी भी विस्मृति नहीं होगी |  कल्प पहले भी हम ही थे अब भी हम ही हैं यह नशा और निश्चय रखना है |  हम ही हक़दार हैं, किसके ?  उंच ते उंच बाप के |  यह याद रहने से फिर सदैव एकरस अवस्था रहेगी |  एक की याद में रहने से ही एकरस अवस्था होगी |

अव्यक्त में सर्विस कैसे होती है ?  यह अनुभव होता जाता है ?  अव्यक्त में सर्विस का साथ कैसे सदैव रहता है |  यह भी अनुभव होता है ?  जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकंड साथ ही है |  ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है ?  सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्त्तव्य वाही चल रहा है |  जो भी स्नेही बच्चे हैं उन्हों के ऊपर छत्र रूप में जज़र आता है |  छत्रछाया के निचे सभी कार्य चल रहा है |  ऐसी भासना आती है |  व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढ़ी उतरना और चढ़ना जैसे आदत पद गयी है |  अभी-अभी वहां, अभी अभी यहाँ |  जिसकी ऐसी स्थिति हो जाती है, अभ्यास हो जाता है उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है |  स्मृति और दृष्टि बदल जाती है |  सभी एवररेडी बनकर बठे हुए हो ?  कोई भी देह के हिसाब किताब से भी हल्का |  वतन में शुरू-शुरू में पक्षियों का खेल दिखलाते थे, पक्षियों को उड़ाते थे |  वैसे यह आत्मा भी पक्षी है जब चाहे तब उड़ सकती है |  वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो |  जब खुद उड़ता पक्षी बनें तब औरों को भी एक सेकंड में उड़ा सकते हैं |  अभी तो समय लगता है |  अपरोक्ष रीति से वतन का अनुभव बताया |  अपरोक्ष रूप से कितना समय वतन में साथ रहते हो ?  जैसे इस वक्त जिसके साथ स्नेह होता है, वह कहाँ विदेश में भी है तो उनका मन ज्यादा उस तरफ़ रहता है |  जिस देश में वह होता है उस देश का वासी अपने को समझते हैं |  वैसे ही तुमको अब सूक्ष्मवतनवासी बनना है |  सूक्ष्मवतन को स्थूलवतन में इमर्ज करते हो वा खुद को सूक्ष्मवतन में साथ समझते हो ?  क्या अनुभव है ?  सूक्ष्मवतनवासी बाप को यहाँ इमर्ज करते हो वा अपने को भी सूक्ष्मवतनवासी बनाकर साथ रहते हो ?  बापदादा तो यही समझते हैं कि स्थूल वतन में रहते भी सूक्ष्मवतनवासी बन जाते, यहाँ जो भी बुलाते हो यह भी सूक्ष्मवतन के वातावरण में ही सूक्ष्म से सर्विस ले सकते हो |  अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर मदद ले सकते हो |  व्यक्त रूप में अव्यक्त मदद मिल सकती है |  अभी ज्यादा समय अपने को फ़रिश्ते ही समझो |  फरिस्थों की दुनिया में रहने से बहुत ही हल्कापन अनुभव होगा जैसे कि सूक्ष्मवतन को ही स्थूलवतन में बसा दिया है |  स्थूल और सूक्ष्म में अंतर नहीं रहेगा |  तब सम्पूर्ण स्थिति में भी अंतर नहीं रहेगा |  यह व्यक्त देश जैसे अव्यक्त देश बन जायेगा |  सम्पूर्णता के समीप आ जायेंगे |  जैसे बापदादा व्यक्त में आते भी हैं तो भी अव्यक्त रूप के अव्यक्त देश के अव्यक्ति प्रवाह में रहते हैं |  वाही बच्चों को अनुभव कराने लिए आते हैं |  ऐसे आप सबहीं भी अपने अव्यक्त स्थिति का अनुभव औरों को कराओ |  जब अव्यक्त स्थिति की स्टेज सम्पूर्ण होगी तब ही अपने राज्य में साथ चलना होगा |  एक आँख में अव्यक्त सम्पूर्ण स्थिति दूसरी आँख में राज्य पद |  ऐसे ही स्पष्ट देखने में आएंगे जैसे साकार रूप में दिखाई पड़ता है |  बचपन रूप भी और सम्पूर्ण रूप भी |  बस यह बनकर फिर यह बनेंगे |  यह स्मृति रहती है |  भविष्य की रुपरेखा भी जैसे सम्पूर्ण देखने में आती है |  जितना-जितना फ़रिश्ते लाइफ के नज़दीक होंगे उतना-उतना राजपद को भी सामने देखेंगे |  दोनों ही सामने |  आजकल कई ऐसे होते हैं जिनको अपने पस्त की पूरी स्मृति रहती है |  तो यह भविष्य भी ऐसे ही स्मृति में रहे यह बनना है |  वह भविष के संस्कार इमर्ज होते रहेंगे |  मर्ज नहीं | इमर्ज होंगे |  अच्छा-

25-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


यादगार कायम करने की विधि  २५-०१-१९७०

अव्यक्त स्थिति ही मुख्य सब्जेक्ट है |  व्यक्त में रहते कर्म करते भी अव्यक्त स्थिति रहे |  इस सब्जेक्ट में ही पास होना है |  अपने बुद्धि की लाइन को क्लियर रखना है |  जब रास्ता क्लियर होता है तो जल्दी-जल्दी दौड़कर मज़िल पर पहुंचना होता है |  पुरुषार्थ की लाइन में कोई रुकावट हो तो उसको मिटाकर लाइन क्लियर करना – इस साधन से ही अव्यक्त स्थिति को प्राप्ति होती है |  मधुबन में आकर कोई-न-कोई विशेष गुण सभी को देना यही यादगार है |  वह तो हो गया जड़ यादगार |  लेकिन यह अपने गुण की याद देना यह है चैतन्य यादगार |  जो सदैव याद करते रहते |  कभी कहीं पर जाओ तो यही लक्ष्य रखना है कि जहाँ जाएँ वहां यादगार कायम करें |  यहाँ से विशेष स्नेह अपने में भर के जायेंगे तो स्नेह पत्थर को भी पानी कर देगा |  यह आत्मिक स्नेह की सौगात साथ ले जाना |  जिससे किसी पर भी विजय हो सकती है |  समय ज्यादा समझते हो वा कम ?  तो अब कम समय में १००% तक पहुँचने की कोशिश करनी है |  जितनी भी अपनी हिम्मत है वह पूरी लगानी है |  एक सेकंड भी व्यर्थ न जाए इतना ध्यान रखना है |  संगम का एक सेकंड कितना बड़ा है |  अपने समय और संकल्प दोनों को सफल करना है |  जो कार्य बड़े न कर सकें वह छोटे कर सकते हैं |  अभी तो वह कार्य भी रहा हुआ है |  अब तक जो दौड़ी लगाईं वह तो हुई लेकिन अब जम्प देना है तब लक्ष्य को पा सकेंगे |  सेकंड में बहुत बातों को परिवर्तन करना – यह है जम्प मारना |  इतनी हिम्मत है ?  जो कुछ सुना है उनको जीवन में लाकर दिखाना है |  जिसके साथ स्नेह रखा जाता है, उन जैसा बन्ने का होता है |  तो जो भी बापदादा के गुण है वह खुद में धारण करना, यही स्नेह का फ़र्ज़ है |  जो बाप की श्रेष्ठता है उसको अपने में धारण करना है |  यह है स्नेह |  एक भी विशेषता में कमी न रहे |  जब सर्व गुण अपने में धारण करेंगे तब भविष्य में सर्वगुणसंपन्न देवता बनेंगे |  यही लक्ष्य रखना है कि सर्व गुण संपन्न बनें |  बाप के गुण सामने रख अपने को चेक करो कि कहाँ तक हैं |  कम परसेंटेज भी न हो |  परसेंटेज भी सम्पूर्ण हो तब वहां भी सम्बन्ध में नजदीक आ सकेंगे |   

अब रूह को ही देखना है |  जिस्म को बहुत देख-देखकर थक गए हो |  इसलिए अब रूह को ही देखना है |  जिस्म को देखने से क्या मिला ?  दुखी ही बने |  अब रूह-रूह को देखता है तो रहत मिलती है |  शूरवीर हो ना ! शूरवीर की निशानी क्या होती है ?  उनकों कोई भी बात को पार करना मुश्किल नहीं लगता है और समय भी नहीं लगता है |  उनका समय सिवाए सर्विस के अपने विघ्नों आदि को हटाने में नहीं जाता है |  इसको कहा जाता है शूरवीर |  अपना समय अ[में विघ्नों में नहीं, लेकिन सर्विस में लगाना चाहिए |  अब तो समय बहुत आगे बढ़ गया है |  इस हिसाब से अब तक वह बातें बचपन की हैं |  छोटे बच्चे नाज़ुक होते हैं |  बड़े बहादूर होते हैं |  तो पुरुषार्थ में बचपना न हो |  ऐसा बहादूर होना चाहिए |  कैसी भी परिस्थिति हो, क्या भी हो, वायुमंडल कैसा भी हो |  लेकिन कमज़ोर न बनें, इसको शूरवीर कहा जाता है |  शारीरिक कमजोरी होती है तो भी असर हो जाता है – मौसम, वायु आदि का |  तंदुरुस्त को असर नहीं होता है |  तो यह भी वायुमंडल का असर नाज़ुक को होता है |  वायुमंडल कोई रचयिता नहीं है |  वह तो रचना है |  रचयिता ऊँचा वा रचना ?  (रचयिता) तो फिर रचयिता  रचना के अधीन क्यों ?  अब शूरवीर बन्ने का अपना स्मृति दिवस याद रखना |  यह स्मृति भूलना नहीं |  ऐसा नक्शा बनकर जाओ जो आपके नक़्शे में बाप को देखें |  अपने को सम्पूर्णता का नक्शा दिखाना है |  हिम्मत है तो मदद ज़रूर मिल जाएगी |  अब यह समझते हो कि यहाँ आकर ढीलेपन में तेज़ आई है ?  अभी पुरुषार्थ म इ ढीले नहीं बनना है |  सम्पूर्ण हक लेने के लिए सम्पूर्ण आहुति भी देनी है |  कोई भी यग्य रचा जाता है तो वह सम्पूर्ण सफल कैसे होता ?  जबकि आहुति डाली जाती है |  अगर आहुति कम होगी तो यग्य सफल नहीं हो सकता |  यहाँ भी हरेक को यह देखना है कि आहुति डाली है ?  ज़रा भी आहुति की कमी रह गयी तो सम्पूर्ण सफ़लता नहीं होगी |  जितना और इतना का हिसाब है |  हिसाब करने में धर्मराज भी है |  उनसे कोई भी हिसाब रह नहीं सकता |  इसलिए जो भी कुछ आहुति में देना है वह सम्पूर्ण देना है और फिर सम्पूर्ण लेना है |  देने में सम्पूर्णता नहीं तो लेने में भी नहीं होगी |  जितना देंगे उतना ही लेंगे |  जब मालूम पद गया कि सफलता किस्मे है फिर भी सफल न करेंगे तो क्या होगा ?  कमी रह जाएगी इसलिए सदैव ध्यान रखो कि कहाँ कुछ रह तो नहीं गया |  मन्सा में, वाणी में, कर्म में कहाँ भी कुछ रहना नहीं चाहिए |  कोई भी कार्य का जब समाप्ति का दिन होता है तो उस समय चारों ओर देखा जाता है कि कुछ रह तो नहीं गया |  वैसे अभी भी समाप्ति का समय है |  अगर कुछ रह गया तो वह रह ही जायेगा |  फिर स्वीकार नहीं हो सकता |  इसको सम्पूर्ण आहुति भी नहीं कहा जायेगा |  इसलिए इतना ध्यान रखना है |  अभी कमी रखने का समय बीत चूका |  अब समय बहुत तेज़ आ रहा है |  अगर समय तेज़ चला गया और खुद ढीले रह गए तो फिर क्या होगा ?  मंज़िल पर पहुँच सकेंगे ?  फिर सतयुगी मंजिल के बजाये त्रेता में जाना पड़ेगा |  जैसे समय तेज़ दौड़ रहा है वैसे खुद को भी दौड़ना है |  स्थूल में भी जब कोई गाडी पकडनी होती है तो समय को देखना पड़ता है |  नहीं तो रह जाते हैं |  समय तो चल ही रहा है |  कोई के लिए समय को रुंकना नहीं है |  अब ढीले चलने के दिन गए |  दौड़ी के भी दिन गए |  अब है जम्प लगाने के दिन |  कोई भी बात की कमी फील होती है तो उसको एक सेकंड में परिवर्तन में लाना इसको कहा जाता है जम्प |  देखने में ऊँचा आता हैं लेकिन है बहुत सहज |  सिर्फ निश्चय और हिम्मत चाहिए |  निश्चय वालों की विजय तो कल्प पहले भी हुई थी वह अभी भी हुई पड़ी है |  इतना पक्का अपने को बनाना है |  सेकंड सेकंड मन, वाणी और कर्म को देखना है |  बापदादा को यह देखना कोई मुश्किल नहीं |  देखने के लिए अब कोई आधार लेने की आवश्यकता नहीं है |  कहाँ से भी देख सकते हैं |  पुरानों से नए में और ही उमंग होता है कि हम करके दिखायेंगे |  ऐसे तीव्र स्टूडेंट्स भी हैं |  नए ही कमाल कर सकते हैं क्योंकि उन्हों को समय भी स्पष्ट देखने में आ रहा है |  समय का भी सहयोग है, परिस्थितियों का भी सहयोग है |  परिस्थितियाँ भी अब दिखला रही हैं कि पुरुषार्थ कैसे करना है |  जब परीक्षाएं शुरू हो गयी तो फिर पुरुषार्थ कर नहीं सक्तेंगे |  फिर फाइनल पेपर शुरू हो जायेगा |  पेपर के पहले पहुँच गए हो, यह भी अपना सौभाग्य समझना जो ठीक समय पर पहुँच गए हो |  पेपर देने के लिए दाखिल हो सके हो |  पेपर शुरू हो जाता है फिर गेट बंध हो जाता है |  शुरू में आये उन्हों को वैराग्य दिलाया जाता था |  आजकाल की परिस्थितियाँ ही वैराग्य दिलाती है |  आप लोग की धरनी बनने में देरी नहीं है |  सिर्फ़ ज्ञान के निश्चय का पक्का बीज डालेंगे और फल तैयार हो जायेगा |  यह ऐसा बीज है जो बहुत जल्दी फल दे सकता है |  बीज पावरफुल है |  बाकी पालना करना, देखभाल करना आप का काम है |  बाप सर्वशक्तिवान और बच्चों को संकल्पों को रोकने की भी शक्ति नहीं !  बाप सृष्टि को बदलते हैं, बच्चे अपने को भी नहीं बदल सकते! यही सोचो कि बाप क्या है और हम क्या है ?  तो अपने ऊपर खुद ही शर्म आएगा |  अपनी चलन को परिवर्तन में लाना है |  वाणी से इतना नहीं समझेंगे |  परिवर्तन देख खुद ही पूछेंगे कि आप को ऐसा बनानेवाला कौन ?  कोई बदलकर दिखता है तो न चाहते हुए भी उनसे पूछते हैं क्या हुआ, कैसे किया, तो आप की भी चलन को देख खुद खींचेंगे |

यह तो निमित्त सेवा केंद्र हैं |  मुख्या केंद्र तो सभी का एक ही है |  ऐसे बेहद की दृष्टि में रहते हो ना | मुख्य केंद्र से ही सभी का कनेक्शन है |  सभी आत्माओं का उनसे कनेक्शन है, सम्बन्ध है |  एक से सम्बन्ध रहता है तो अवस्था भी एकरस रहती है |  अगर और कहाँ सम्बन्ध की राग जाती है तो एकरस अवस्था नहीं रहेगी |  तो एकरस अवस्था बनाने के लिए सिवाए एक के और कुछ भी देखते हुए न देखो |  यह जो कुछ देखते हो वह कोई वास्तु रहने वाली नहीं है |  साथ रहने वाली अविनाशी वास्तु वह एक बाप ही है |  एक की ही याद में सर्व प्राप्ति हो सकती है और सर्व की याद से कुछ भी प्राप्ति न हो तो कौन-सा सौदा अच्छा ?  देखभाल कर सौदा किया जाता है या कहने पर किया जाता है ?  यह भी समझ मिली है कि यह माया सदैव के लिए विदाई लेने थोडा समय मुखड़ा दिखलाती है |  अब विदाई लेने आती है, हार खिलने नहीं |  छुट्टी लेने आती है |  अगर घबराहट आई तो वह कमजोरी कही जाएगी |  कमजोरी से फिर माया का वार होता है |  अब तो शक्ति मिली है ना |  सर्वशक्तिवान के साथ सम्बन्ध है तो उनकी शक्ति के आगे माया की शक्ति क्या हैं ?  सर्वशक्तिवान के बच्चे हैं, यह नशा नहीं भूलना |  भूलने से ही फिर माया वार करती है |  बेहोश नहीं होना है |  होशियार जो होते हैं, वह होश रखते हैं |  आजकल डाकू लोग भी कोई-कोई चीज़ से बेहोश कर देते हैं |  तो माया भी ऐसा करती है |  जो चतुर होते हैं वह पहले से ही जान लेते कि इनका यह तरीका है इसलिए पहले से ही सावधान रहते हैं |  अपने होश को गंवाते नहीं हैं |  इस संजीवनी बूटी को सदैव साथ रखना है |

भल एक मास से आये हैं |  यह भी बहुत है |  एक सेकंड में भी परिवर्तन आ सकता है |  ऐसे नहीं समझना कि हम तो अभी आये हैं, नए हैं, यहाँ तो सेकंड का सौदा है |  एक सेकंड में जन्म सिद्ध अधिकार ले सकते हैं |  इसलिए ऐसा तीव्र पुरुषार्थ करो, यही युक्ति मिलती है |  जो भी बात सामने आये तो यह लक्ष्य रखो कि एक सेकंड में बदल जाये |  सारे कल्प में यही समय है |  अब नहीं तो कब नहीं, यह मन्त्र याद रखना है |  जो भी पुराने संस्कार हैं और पुराणी नेचर है वह बदल कर ईश्वरीय बन जाये |  कोई भी पुराना संस्कार, पुराणी आदतें न रहे |  आपके परिवर्तन से अनेक लोग संतुष्ट होंगे |  सदैव यही कोशिश करनी है कि हमारी चलन द्वारा कोई को भी दुःख न हो |  मेरी चलन, संकल्प, वाणी, हर कर्म सुखदायी हो |  यह है ब्राह्मण कुल की रीति |  जो दूर से ही कोई समझ ले कि यह हम लोगों से  न्यारे हैं |  न्यारे और प्यारे रहना – यह है पुरुषार्थ |  औरों को भी ऐसा बनाना है |  अपने जीवन में अलौकिकता भासती है ?  अपने को देखना कि लोगों से न्यारा अपने को समझते हैं |  अगर याद भूल जाते हैं तो बुद्धि कहाँ रहती है ?  सिर्फ एक तरफ से भूलते हैं तो दुसरे तरफ लगेगी ना |  यह अपने को चेक करो कि अव्यक्त स्थिति से निचे आते हैं तो किस व्यक्त तरफ बुद्धि जाती है ?  ज़रूर कुछ रहा हुआ है तब बुद्धि वहाँ जाती है |  किस बातें ऐसी होती हैं जिनको खींचने से खिंचा जाता है |  कई बातिओं में ढीला छोड़ना भी खींचना होता है |  पतंग को ऊँचा उड़ाने के लिए ढीला छोड़ना पड़ता है |  देखा जाता है इस रीति नहीं खींचेगा तो फिर ढीला छोड़ना चाहिए |  जिससे वह स्वयं खींचेगा |

विघ्नों को मिटाने की युक्तियाँ अगर सदैव याद हैं तो पुरुषार्थ में ढीले नहीं होंगे |  युक्तियाँ भूल जाते हैं तो पुरुषार्थ में ढीला हो जाता है |  एक एक बात के लिए कितनी युक्तियाँ मिली हैं ?  प्राप्ति कितनी बड़ी है और रास्ता कितना सरल है |  जो अनेक जन्म पुरुषार्थ करने पर भी कोई नहीं पा सकते |  वह एक जन्म के भी कुछ घड़ियों में प्राप्त कर रहे हो |  इतना नशा रहता है ना! “इच्छा मात्रं अविद्या” ऐसी अवस्था प्राप्त करने का तरीका बताया |  ऐसी ऊँची नॉलेज और कितनी महीन है |  जीवन में इतना ऊँचा लक्ष्य कोई रख नहीं सकता कि मैं देवता बन सकता हूँ |  यह कब सोचा था कि हम ही देवता थे ?  सोचा क्या था और बनते क्या हो ?  बिन मांगे अमूल्य रत्न मिल जाते हैं |  ऐसे पद्मापद्म भाग्यशाली अपने को समझते हो ?  प्रेसिडेंट आदि भी आपके आगे क्या हैं ?  इतनी ऊँची दृष्टि, इतना ऊँचा स्वमान यद् रहता है कि कब भूल भी जाते हो ?  स्मृति-विस्मृति की चढ़ाई उतारते चढ़ते हो ?  गन्दगी से मछर आदि प्रगट होते हैं इसलिए उनको हटाया जाता है |  वैसे ही अपनी कमजोरी से माया के कीड़े पकड़ लेते हैं |  कमज़ोरी को आने न दो तो माया आयेगी नहीं |  सदैव यह यद् रखो कि सर्वशक्तिवान के साथ हमारा सम्बन्ध है |  फिर कमजोरी क्यों ?  सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे होते भी माया की शक्ति को खलास नहीं मर सकते |  एक बात सदैव याद रखो कि बाप मेरा सर्वशक्तिवान है |  हम सभी से श्रेष्ठ सूर्यवंशी हैं |  हमारे ऊपर माया कैसे वार कर सकती है |  अपना बाप, अपना वंश यद् रखेंगे तो माया कुछ भी नहीं कर सकेगी |  स्मृति स्वरुप बनना है |  इतने जन्म विस्मृति में रहे फिर भी विस्मृति अच्छी लगती है ?  ६३ जन्म विस्मृति में धोखा खाया, अब एक जन्म के लिए धोखे से बचना मुश्किल लगता है ?  अगर बार-बार कमज़ोर बनते, चेकिंग नहीं रखते तो फिर उनकी नेचर ही कमज़ोर बन जाती है |  अवस्था चेक कर अपने को ताक़तवर बनाना है, कमजोरी को बदल शक्ति लानी है |

अभी जो बैठे हैं वह अपे को सूर्यवंशी सितारे समझते हो ?  सूर्यवंशी सितारों का क्या कर्त्तव्य है ?  सूर्यवंशी सितारा माया के अधीन हो सकते हैं ?  सभी मायाजीत बने हो ?  बने हैं वा बनना है ?  मायाजीत का टाइटल अपने ऊपर धारण किया है ?  युगल में भी एक कहते हैं कि मायाजीत बन रहे हैं और एक कहते हैं कि बन गए हैं |  एक ही पढाई, एक ही पढ़नेवाला, फिर भी कोई विजयी बन गए हैं, कोई बन रहे हैं, यह फर्क क्यों ?  अगर अब तक भी त्रुटियाँ रहेंगी तो त्रुटियों वाले त्रेता युग के बन जायेंगे |  और जो पुरुषार्थी हैं वह सतयुग के बनेंगे |  पहले से ही पूरा अभ्यास होगा तो वह अभ्यास मदद देगा |  अगर ऐसा ही अभ्यास रहा, कभी विस्मृति कभी स्मृति तो अंत समय भी  विस्मृति हो सकती है |  जो बहुत समय के संस्कार होते हैं वाही अंत की स्थिति रहती है |  लौकिक रीति से जब कोई शरीर छोड़ते हैं, अगर कोई संस्कार दृढ़ होता है, खान-पान वा पहनने आदि का तो पिछाड़ी समय भी वह संस्कार सामने आता है |  इसलिए अभी से लेकर सदैव स्मृति के संस्कार भरो |  तो अंत में यही मददगार बनेंगे – विजयी बनने में |  स्टूडेंट बहुत समय की पढाई ठीक नहीं पढ़ते हैं तो पेपर ठीक नहीं दे सकते |  बहुत समय का अभ्यास चाहिए |  इसलिए अब ये विस्मृति के अथवा हार खाने के संस्कार मिट जाने चाहिए | अभी वह समय आ गया |  क्योंकि साकार रूप में सम्पूर्णता का सबूत देखा |  साकार सम्पूर्णता को प्राप्त कर चुके, फिर आप कब करेंगे ?  समय की घंटी बज चुकी है | फिर भी घंटी बजने के बाद अगर पुरुषार्थ करेंगे तो क्या होगा ?  बन सकेंगे ?  पहली सीटी बज चुकी है |  दूसरी भी बज गयी |  पहली सीटी थी साकार में माँ की और दूसरी बजी साकार रूप की |  अब तीसरी सीटी बजनी है |  दो सीटी होती हैं तैयार करने की और तीसरी होती है सवार हो जाने की |  दो घंटी इत्तलाव की होती हैं |  तीसरी इत्तलाव की नहीं होती है |  तीसरी होती है सवार हो जाने की |  तीसरी में जो रह गया सो रह गया |  इतना थोडा समय है फिर क्या करना चाहिए ?  अगर तीसरी सीटी पर संस्कारों को समेटना शुरू करेंगे तो फिर रह जायेंगे |  सुनाया था ना कि पेटी बिस्तर कौन-सा है |  व्यर्थ संकल्पों रूपी बिस्तरा और अनेक समस्याओं की पेटी दोनों ही बंद करनी है |  जब दोनों ही समेत कर तैयार होंगे तब जा सकेंगे |  अगर कुछ रह गया तो बुद्धियोग ज़रूर उस तरफ जायेगा |  फिर सवार हो न सकेंगे अर्थात् विजयी बन नहीं सकेंगे |  अब इसे क्या करना पड़े ?  कब कर लेंगे यह `कब’ शब्द को निकाल दो |  `अब’ शब्द को धारण करो |  कब कर लेंगे, धीरे-धीरे करेंगे |  ऐसे सोचनेवाले दूर ही रह जायेंगे |  ऐसा समय अब पहुँच गया है |  इसलिए बापदादा सुना देते हैं फिर कोई उलहना न दे |  समय का भी आधार रखना है |  अगर समय के आधार पर ठहरे तो प्राप्ति कुछ नहीं होगी |  समय के पहले बदलने से अपने किये का फल मिलेगा |  जो करेगा वह पायेगा |  समय प्रमाण किया, वह तो समय की कमाल हुई |  अपनी मेहनत करनी है |

बाप का बच्चों पर स्नेह होता है |  तो स्नेह की निशानी है सम्पूर्ण बनना |  चल तो रहे हैं लेकिन स्पीड को भी देखना है |  अभी सम्पूर्णता का लक्ष्य रखना है तब सम्पूर्ण राज्य में आएंगे |  कोई कमी रह गयी तो सम्पूर्ण राज्य नहीं पाएंगे |  जितनी ज्यादा प्रजा बनायेंगे उतना नजदीक में आयेंगे |  दूर वाले तो दूर ही देखने आएंगे |  नजदीक वाले हर कार्य में साथ रहेंगे |  नंबरवन शक्तियां हैं वा पाण्डव हैं ?  दुसरे को आगे बढ़ाना यह भी तो खुद आगे बढ़ना है |  आगे बढ़ानेवाले का नाम तो होगा ना |  बीच-बीच में चेकिंग भी चाहिए |  हर कार्य करने के पहले और बाद में चेकिंग करते रहो |  जब कार्य शुरू करते हो तो देखो उसी स्थिति में रह कार्य शुरू कर रहा हूँ ?  फिर बिच में भी चेकिंग करते रहो |  कितना समय याद रही ?  कार्य के शुरू में चेकिंग करने से वह कार्य भी सफल होगा और स्थिति भी एकरस रहेगी |  सिर्फ़ रात को चार्ट चेक करते तो सारा दिन तो ऐसे ही बीत जाता है |  लेकिन हर कर्म के हर घंटे में चेकिंग चाहिए |  अभ्यास पद जाता है तो फिर वह अभ्यास अविनाशी हो जाता है |  हिम्मत रखने से फिर सहज हो जायेगा |  मुश्किल सोचेंगे तो मुश्किल फील होगा |  अपने पुरुषार्थ को कब तेज़ करेंगे, अभी समय ही कहाँ है |

सारे कल्प की तकदीर इस घडी बनानी है |  ऐसे ध्यान देकर चलना है |  सारे कल्प की तकदीर बनने का समय अब है |  इस समय को अमूल्य समझ कर प्रयोग करो तब सम्पूर्ण बनेंगे |  एक सेकंड में पद्मों की कमाई करनी है |  एक सेकंड गँवाया गोया पद्मों की कमाई गंवायी, अटेंशन इतना रखेंगे तो विजयी बनेंगे |  एक सेकंड भी व्यर्थ नहीं गँवाना है |  संगम का एक सेकंड भी बहुत बड़ा है |  एक सेकंड में ही क्या से क्या बन सकते हो |  इतना हिसाब रखना है |  अच्छा-

26-01-70              ओम शान्ति                        अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज   २६-०१-१९७०

बापदादा भी यहाँ बैठे हैं और आप भी बैठे हो |  लेकिन बापदादा और आप में क्या अन्तर है ?  पहले भी साकार रूप में यहाँ बैठते थे लेकिन अब जब बैठते हैं तो क्या फील होता है ?  जैसे साकार रूप में बाप के लिए समझते थे कि लोन ले आये हैं |  उसी समान अनुभव अभी होता है |  अभी आते हैं मेहमान बनकर |  यूं तो आप सभी भी अपने को मेहमान समझते हो |  लेकिन आपके और बाप के समझने में फर्क है |  मेहमान उसको कहा जाता है जो आता है और जाता है |  अभी आते हैं फिर जाने के लिए |  वह था बुद्धियोग का अनुभव, यह है प्रैक्टिकल अनुभव |  दुसरे शरीर में प्रवेश हो कैसे कर्त्तव्य करना होता, यह अनुभव बाप के समान करना है |  दिन प्रतिदिन तुम बच्चों की बहुत कुछ समान स्थिति होती जाएगी |  आप लोग भी ऐसे अनुभव करेंगे |  सचमुच जैसे लोन लिया हुआ है, कर्त्तव्य के लिए मेहमान हैं |  जब तक अपने को मेहमान नहीं समझते हो तब तक न्यारी अवस्था नहीं हो सकती है |  जो ज्यादा न्यारी अवस्था में रहते हैं, उनकी स्थिति में विशेषता क्या होती है ?  ऊण्ख़ी९ बोली से उनके चलन से उपराम स्थिति का औरों को अनुभव होगा |  जितना ऊपर स्थिति जाएगी, उतना उपराम होते जायेंगे |  शरीर में होते हुए भी उपराम अवस्था तक पहुंचना है |  बिलकुल देह और देही अलग महसूस हो |  उसको कहा जाता है याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज |  वा योग की प्रैक्टिकल सिद्धि |  बात करते-करते जैसे न्यारापण खींचे |  बात सुनते भी जैसे कि सुनते नहीं |  ऐसी भासना औरों को भी आये |  ऐसी स्थिति की स्टेज को कर्मातीत अवस्था कहा जाता है |  कर्मातीत अर्थात् देह के बंधन से मुक्त |  कर्म कर रहे हैं लेकिन उनके कर्मों का खता नहीं बनेगा जैसे कि न्यारे रहेंगे, कोई अटैचमेंट नहीं होगा |  कर्म करनेवाला अलग और कर्म अलग हैं – ऐसे अनुभव दिन प्रति दिन होता जायेगा |  इस अवस्था में जास्ती बुद्धि चलाने की भी आवश्यकता नहीं है |  संकल्प उठा और जो होना है  वाही होगा |  ऐसी स्थिति में सभी को आना होगा |  मूलवतन जाने के पहले वाया सूक्ष्मवतन जायेंगे |  वहां सभी को आकर मिलना है फिर अपने घर चलकर फिर अपने राज्य में आ जायेंगे जैसे साकार वतन में मेला हुआ वैसे ही सूक्ष्मवतन में होगा |  वह फरिश्तों का मेला नजदीक है |  कहानियाँ बताते हैं ना |  फ़रिश्ते आपस में मिलते थे |  रूह रूहों से बात करते थे |  वाही अनुभव करेंगे |  तो जो कहानियाँ गई हुई हैं उसका प्रैक्टिकल में अनुभव होगा |  उसी मेले के दिनों का इंतज़ार है |

अभी सर्विस के निमित्त हैं |  सभी कुछ भूले हुए बैठे हैं |  उस अव्यक्त स्थिति में मन और तन व्यक्त देश में है |  ऐसे अनुभव होता है ?  अच्छा-

अपने को कहाँ के निवासी समझते हो ?  परमधाम के निवासी समझते हो ?  यह कितना समय याद रहती है ?  यह एक ही बात याद रहे कि हम परमधाम निवासी आत्मा इस व्यक्त देश में ईश्वरीय कर्त्तव्य करने के निमित्त आये हुए हैं |  मधुबन में आकर के विशेष कौन सा गुण लिया है ?  मधुबन का विशेष गुण है मधुरता |  मधु अर्थात् मधुरता |  स्नेही |  जितना स्नेही होंगे उतना बेहद का वैराग्य होगा |  यह है मधुबन का अर्थ |  अति स्नेही और इतना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति |  अगर मधुबन के विशेष गुण जीवन में धारण करके जाएँ तो सहज ही सम्पूर्ण बन सकते हैं |  फिर जो रूहानी टीचर्स बनना चाहिए तो नंबर वन की टीचर बन सकते हो |  क्योंकि जैसी अपनी धरना होगी वैसे औरों को अनुभव् में ला सकेंगे |  इन दोनों गुणों की अपने में धरना करनी है |  मधुबन की लकीर से बाहर निकलने के पहले अपने में पूरी रीति यह भरकर जाना |  एक स्नेह से दूसरा बेहद की वैराग्य वृत्ति से कोई भी परिस्थितियों को सहज ही सामना करेंगे |  सफलता के सितारे बन्ने के लिए यह दो गुण मुख्य मधुबन की सौगात ले जाना है |  जैसे कहाँ भी जाना होता है तो वहां जाते ही पूछा जाता है कि यहाँ की विशेष चीज़ क्या हैं ?  जो प्रसिद्द विशेष चीज़ होती है, वह ज़रूर साथ में ले जाते हैं |  तो  यहाँ मधुबन के दो विशेष गुण अपने साथ ले जाना |  जैसे स्थूल मधु ले जाते हो ना |  वैसे यह सूक्ष्म मधुरता की मधु ले जाना |  फिर सफलता ही सफलता है |  असफलता आपके जीवन से मिट जाएगी |  सफलता का सितारा अपने मस्तक में चमकते हुए देखेंगे |

तुम सफलता के सितारे हो वा पुरुषार्थ के सितारे हो ?  क्या समझते हो ?  सफलता के सितारे हो ?  जैसा लक्ष्य होता है वैसा ही लक्षण होता है |  अगर अब तक  यही सोचते रहेंगे कि हम पुरुषार्थी हैं तो ऐसा समझने से कई छोटी-छोटी गलतियां अपने को माफ़ कर देते हो |  समझते हो हम तो पुरुषार्थी है |  इसलिए अब पुरुषार्थी नहीं लेकिन सफलता का स्वरुप बनना है |  कहाँ तक पुरुषार्थ में रहेंगे |  जब स्वयं सफलता स्वरुप बनेंगे तब दूसरी आत्माओं को भी सफलता का मार्ग बता सकेंगे |  अगर खुद ही अंत तक पुरुषार्थी चलते रहेंगे तो संगम के प्रालब्ध का अनुभव कब करेंगे ?  क्या यह जीवन पुरुषार्थी ही रहेंगे ?  इस संगमयुग की प्रालब्ध प्रत्यक्ष रूप में नहीं प्राप्त करेंगे ?  संगम के पुरुषार्थ का फल क्या ?  (सफलता) तो सफलता स्वरुप भी निश्चय करने से सफलता होती रहेगी |  जब यह समझेंगे कि में हूँ ही सफलता का सितारा तो असफलता कैसे आ सकती है |  सर्वशक्तिवान की संतान कोई कार्य में असफल नहीं हो सकती |  अपने मस्तक में विजय का सितारा देखते हो या देखेंगे ?  विजय तो निश्चित है ही ना |  विजय अर्थात् सफलता |  अभी समय बदल रहा है |  जब समय बदल गया तो अपने पुरुषार्थ को भी बदलेंगे ना |  अब बाप ने सफलता का रूप दिखला दिया तो बच्चे भी रूप में व्यक्त देह में होते सफलता का रूप नहीं दिखायेंगे |  अपने को सदैव सफलता का मूर्त ही समझो |  निश्चय को विजय कहा जाता है |  जैसा विश्वास रखा जाता है वैसा ही कर्म होता है |  निश्चय में कमी होती तो कर्म में भी कमी हो जाएगी |  स्मृति शक्तिवान है तो स्थिति और कर्म भी शक्तिवान होंगे |  इसलिए कभी भी अपनी स्मृति को कमज़ोर नहीं रखना |  शक्तिदल और पाण्डव कब असफल हो सकते हैं क्या ?  अपनी कल्प पहले वाली बात याद है कि पाण्डवों ने क्या किया था ?  विजयी बने थे |  तो अब अपने स्मृति को श्रेष्ठ बनाओ |  अब संगम पर है विजय का तिलक फिर इस विजय के तिलक से राज तिलक मिलेगा |  इस विजय के तिलक को कोई मिटा नहीं सकते |  ऐसा निश्चय है ?  जो विजयी रत्न हैं उनकी हर बात में विजय ही विजय है |  उनकी हार हो नहीं सकती |  हार तो बहुत जन्म खाते रहे |  अब आकर विजयी बन्ने बाद फिर हार क्यों ?  “विजय हमारी ही है” ऐसा एक बल एक भरोसा हो |

(बच्ची यदि ज्ञान में नहीं चलती है तो क्या करें ? ) अगर कोई इस मार्ग में नहीं चल सकते हैं तो शादी करनी ही पड़े |  उन्हों की कमजोरी भी अपने ऊपर से मिटानी है |  साक्षी हो मज़बूरी भी करना होता है |  वह हुआ फ़र्ज़ |  लगन नहीं है |  फ़र्ज़ पालन करते हैं |  एक होता है लगन से करना, एक होता है निमित्त फ़र्ज़ निभाना |  सभी आत्माओं का एक ही समय यह जन्म सिद्ध अधिकार लेने का पार्ट नहीं है |  परिचय मिलना तो ज़रूर है, पहचानना भी है लेकिन कोई का पार्ट अभी है कोई का पीछे |  बीजों में से कोई झट से फल देता है, कोई देरी से फल देता है |  वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है, कोई देरी से फल देता है |  वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है |  फ़र्ज़ समझ करेंगे तो माया का मर्ज नहीं लगेगा |  नहीं तो वायुमंडल का असर लग सकता है |  इसलिए फ़र्ज़ समझ करना है |  फ़र्ज़ और मर्ज में सिर्फ एक बिंदी का फर्क है |  लेकिन बिंदी रूप में न होने कारण फ़र्ज़ भी मर्ज हो जाता है |  जो मददगार हैं उन्हों को मदद तो सदैव मिलती है |  बाप की मदद हर कार्य में कैसे मिलती है यह अनुभव होता हैं ?  एक दो के विशेष गुण को देख एक दो को आगे रखना है |  किसको आगे रखना यह भी अपने को आगे बढ़ाना है |

शिवजयंति पर आवाज़ फैलाना सहज होता है, जितनी हिम्मत हो उतना करो |  क्योंकि फिर समय ऐसा आना है जो इस सर्विस के मौके भी कम मिलेंगे |  इसलिए जितना कर सकते हो उतना करो |  भूलें क्यों होती हैं ?  उसकी गहराई में जाना है |  अंतर्मुख हो सोचना चाहिए यह भूल क्यों हुई ?  यह तो माया का रूप हा |  मैं तो रचयिता बाप का बच्चा हूँ |  अपने साथ एकांत में ऐसे-ऐसे बात करो |  उभारने की कोशिश करो |  कहाँ भी जाना होता है तो अपना यादगार छोड़ना होता है और कुछ ले जाना होता है |  तो मधुबन में विशेष कौन सा यादगार छोड़ा ?  एक-एक आत्मा के पास यह ईश्वरीय स्नेह और सहयोग का यादगार छोड़ना है |  जितना एक दो के स्नेही सहयोगी बनते हैं उतना ही माया के विघ्न हटाने में सहयोग मिलता है |  सहयोग देना अर्थात् सहयोग लेना |  परिवार में आत्मिक स्नेह देना है और माया पर विजय पाने का सहयोग लेना है |  यह लेन-देन का हिसाब ठीक रहता है |  इस संगम समय पर ही अनेक जन्मों का सम्बन्ध जोड़ना है |  स्नेह है सम्बन्ध जोड़ने का साधन |  जैसे कपडे सिलाई करने का साधन धागा होता है वैसे ही भविष्य सम्बन्ध जोड़ने का साधन है स्नेह रूपी धागा |  जैसे यहाँ जोड़ेंगे वैसे वहां जूता हुआ मिलेगा |  जोड़ने का समय और स्थान यह है |  ईश्वरीय स्नेह भी तब जुड़ सकता है जब अनेक के साथ स्नेह समाप्त हो जाता है |  तो अब अनेक स्नेह समाप्त कर एक से स्नेह जोड़ना है |  वह अनेक स्नेह भी परेशान करने वाले हैं |  और यह एक स्नेह सदैव के लिए परिपक्व बनाने वाला है |  अनेक तरफ से तोडना और एक तरफ जोड़ना है |  बिना तोड़े कभी जुट नहीं सकता |  अभी कमी को भी भर सकते हो |  फिर भरने का समय ख़त्म |  ऐसे समझ कर कदम को आगे बढ़ाना है |

सभी तीव्र पुरुषार्थी हो वा पुरुषार्थी हो ?  तीव्र पुरुषार्थी के मन के संकल्प में भी हार नहीं हो सकती है |  ऐसी स्थिति बनानी है |  जो संकल्प में भी माया से हार न हो |  इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी |  वे शुद्ध संकल्पों में पहले से ही मन को बिजी रखेंगे तो और संकल्प नहीं आएंगे |  पूरा भरा हुआ होगा तो एक बूंद भी जास्ती पद नहीं सकेगी, नहीं तो बज जायेगा |  तो यही संकल्प मन में रहे जो व्यर्थ संकल्प आने का स्थान ही न हो |  इतना अपने को बिजी रखो |  मन को बिजी रखने के तरीके जो मिलते हैं, वह आप पुरे प्रयोग में नहीं लाते हो |  इसलिए व्यर्थ संकल्प आ जाते हैं |  एक तरफ बिजी रखने से दूसरा तरफ स्वयं छुट जाता है |

मंथन करने के लिए तो बहुत खज़ाना है |  इसमें मन को बिजी रखना है |  समय की रफ़्तार तेज़ है वा आप लोगों के पुरुषार्थ की रफ़्तार तेज़ हा ?  अगर समय तेज़ चल रहा है और पुरुषार्थ ढीला है तो उसकी रिजल्ट क्या होगी ?  समय आगे निकल जायेगा और पुरुषार्थी रह जायेंगे |  समय की गाडी छुट जाएगी |  सवार होनेवाले रह जायेंगे |  समय की कौन सी तेज़ देखते हो ?  समय में बीती को बीती करने की तेज़ है |  वाही बात को समय फिर कब रिपीट करता है ?  तो पुरुषार्थ की जो भी कमियाँ हैं उसमे बीती को बीती समझ आगे हर सेकंड में उन्नति को लाते जाओ तो समय के समान तेज़ चल सकते हो |  समय तो रचना है ना |  रचना में यह गुण है तो रचयिता में भी होना चाहिए |  ड्रामा क्रिएशन है तो क्रिएटर के बच्चे आप हो ना |  तो क्रिएटर के बच्चे क्रिएशन से ढीले क्यों ?  इसलिए सिर्फ एक बात का ध्यान रहे कि जैसे ड्रामा में हर सेकंड अथवा जो बात बीती, जिस रूप से बीत गयी वह फिर से रिपीट नहीं होगी फिर रिपीट  होगी ५००० वर्ष के बाद |  वैसे ही कमजोरियों को बार-बार रिपीट करते हो ?  अगर यह कमजोरियां रिपीट न होने पाएं तो फिर पुरुषार्थ तेज़ हो जायेगा |  जब कमजोरी समेटी जाती है तब कमजोरी की जगह पर शक्ति भर जाती है |  अगर कमजोरियां रिपीट होती रहती हैं तो शक्ति नहीं भारती है |  इसलिए जो बीता सो बीता, कमजोरी की बीती हुई बातें फिर संकल्प में भी नहीं आणि चाहिए |  अगर संकल्प चलते हैं तो वाणी और कर्म में आ जाते हैं |  संकल्प में ही ख़त्म कर देंगे तो वाणी कर्म में नहीं आयेंगे |  फिर मन वाणी कर्म तीनों शक्तिशाली हो जायेंगे |  बुरी चीज़ को सदैव फ़ौरन ही फेंका जाता है |  अछि चीज़ को प्रयोग किया जाता है तो बुरी बातों को ऐसे फेंको जैसे बुरी चीज़ को फेंका जाता है |  फिर समय पुरुषार्थ से तेज़ नहीं जाएगा |  समय का इंतज़ार आप करेंगे तो हम तैयार बैठे हैं |  समय आये तो हम जाएँ |  ऐसी स्थिति हो जाएगी |  अगर अपनी तैय्यारी नहीं होती है तो फिर सोचा जाता है कि समय थोडा हमारे लिए रुक जायेगा |

बांधेली का योग तेज़ होता है |  क्योंकि जिस बात से कोई रोकते हैं तो बुद्धि ज़रूर उस तरफ लगी रहती है |  घर बैठे भी चरित्रों का अनुभव कर सकते हो |  लेकिन ऐसी लगन चाहिए |  जब ऐसी लगन-अवस्था हो जाएगी तो फिर बंधन कट जायेंगे |  एक की याद ही अनेक बंधन को तोड़नेवाली है |  एक से जोड़ना है, अनेक से तोडना है |  एक बाप के सिवाए दूसरा न कोई |  जब ऐसी अवस्था हो जाएगी फिर यह बंधन आदि सभी ख़त्म हो जायेंगे |  जितना अटूट स्नेह होगा उतना ही अटूट सहयोग मिलेगा |  सहयोग नहीं मिलता, इसका कारण स्नेह में कमी है |  अटूट स्नेह रख करके अतोत सहयोग को प्राप्त करना है |  कल्प पहले का अपना अधिकार लेने लिए फिर से पहुच गए हो, ऐसा समझते हो ?  वह स्मृति आती है कि हम ही कल्प पहले थे | अभी भी फिर से हम ही निमित्त बनेंगे |  जिसको यह नशा रहता है उनके चेरे में ख़ुशी और ज्योति रूप देखने में आता है |  उनके चेहरे में अलौकिक अव्यक्ति चमक रहती है |  उनके नयनों से, मुख से सदैव ख़ुशी ही ख़ुशी देखेंगे |  देखनेवाला भी अपना दुःख भूल जाये |  जब कोई दुखी आत्मा होती है तो अपने को ख़ुशी में लाने लिए ख़ुशी के साधन बनाती है ना |  तो दर्पण में चेहरा देखने में आये |  तुम्हारे चेहरे से सर्विस हो |  न बोलते हुए आपका मुख सर्विस करे |  आजकल दुनिया में अपने चेहरे को ही श्रृंगारते हैं ना |  तो आप सभी आत्माओं का भी ऐसा श्रृंगारा हुआ मुंह देखने में आये |  सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे हैं फिर शक्ति न आये यह कैसे हो सकता है |  ज़रूर बुद्धि की तार में कमी है |  तार को जोड़ने के लिए जो युक्तियाँ मिलती हैं उसको अभ्यास में लाओ |  तोड़ने बिगर जोड़ लेते हैं तो पूरा फिर जुटता नहीं |  थोड़े समय के लिए जुटता फिर टूट जाता है |  इसलिए अनेक तरफ से तोड़कर एक तरफ जोड़ना है |  इसके लिए संग भी चाहिए और अटेंशन भी चाहिए |  हर कदम पर, संकल्प पर अटेंशन |  संकल्प जो उठता है वह चेक करो कि यह हमारा संकल्प यथार्थ है वा नहीं ?  इतना अटेंशन जब संकल्प पर हो तब वाणी भी ठीक और कर्म भी ठीक रहे |  संकल्प और समय दोनों ही संगम युग के विशेष खजाने हैं |  जिससे बहुत कमाई कर सकते हो |  जैसे स्थूल धन को सोच समझकर प्रयोग करते हैं कि एक पैसा भी व्यर्थ न जायें |  वैसे ही यह संगम का समय और संकल्प व्यर्थ न जाएँ |  अगर संकल्प पावरफुल हैं तो अपने ही संकल्प के आधार पर अपने लिए सतयुगी सृष्टि लायेंगे |  अपने ही संकल्प कमज़ोर हैं तो अपने लिए त्रेतायुगी सृष्टि लाते हैं |  यह खज़ाना सारे कल्प में फिर नहीं मिलेगा |  तो जो मुश्किल से एक ही समय पर मिलने वाली चीज़ है, उसका कितना मूल्य रखना चाहिए |  अभी जो बना सो बना |  फिर बने हुए को देखना पड़ेगा |  बना नहीं सकेंगे |  अभी बना सकते हो |  उसका अब थोडा समय है |  दूसरों को तो कहते हो बहुत गई थोड़ी रही |  |  |  लेकिन अपने साथ लगाते हो ?  समय थोडा रहा है लेकिन काम बहुत करना है |  अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि आज से फिर यह बातें कभी नहीं रहेंगी |  यह संस्कार अपने में फिर इमर्ज नहीं होने देंगे |  यह व्यर्थ संकल्प कभी भी उत्पन्न नहीं होने देंगे |  जब ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा करेंगे तब ही प्रत्यक्ष फल मिलेगा |  अब दिन बदलते जाते हैं |  तो खुद को भी बदलना है |  अब ढीले पुरुषार्थ के दिन चले गए, अब है तीव्र पुरुषार्थ करने का समय |  तीव्र पुरुषार्थ के समय अगर कोई ढीला पुरुषार्थ करे तो क्या कहेंगे ?  इसलिए अब जोश में आओ |  बार-बार बेहोश न हो |  संजीवनी बूटी साथ में रख सदैव जोश में रहो |  बाकी हाँ करेंगे, हो जायेगा, देख लेंगे यह अक्षर अभी न निकलें |  ऐसी बातें बहुत समय सुनीं |  अब बापदादा यही सुनने चाहते हैं कि हाँ बाबा करके दिखायेंगे |

अपनी चलन में अलौकिकता लाओ तो चलन की आकर्षण लौकिक सम्बन्धियों आदि को भी स्वयं खिंचेगी |  लौकिक सम्बन्ध में वाणी काम नहीं करती |  चलन की आकर्षण होगी | तो अब बहुत तेज़ से चलना है |  अभी ऐसा बदल कर दिखाओ जो सभी के आगे एग्जाम्पल बनो |  अब एक सेकंड भी नहीं गंवाना है |  चेक आप कर सकते हो |  अब समय बहुत थोडा रह गया है |  समय भी बेहद की वैराग्य वृत्ति को उत्पन्न करता है |  लेकिन समय के पहले जो अपनी म्हणत से करेंगे तो उनका फल ज्यादा मिलेगा |  जो खुद नहीं कर सकेंगे उन्हों के लिए समय हेल्प करेगा |  लेकिन वह समय की बलिहारी होगी |  अपनी नहीं |

कितनी बार बापदादा से मिले हुए हो ?  यह स्मृति में है कि अनेक बार यह जन्म-सिद्ध अधिकार मिला है |  कितना बड़ा अधिकार है |  जो कई प्रयत्नों से भी नहीं प्राप्त हो सकता, यह सहज ही प्राप्त हो रहा है ऐसा अनुभव किया है ?  समय बाकी कितना है और पुरुषार्थ क्या किया है ?  दोनों की परख है ?  समय कम है और पुरुषार्थ बहुत करना है |  जब कोई स्टूडेंट लास्ट टाइम पर आकर दाखिल होते हैं तो वह थोड़े समय में कितनी म्हणत करते हैं |  जितना समय तेज़ जा रहा है इतना तेज़ पुरुषार्थ है ?  कब शब्द निकाल ही देना चाहिए |  जो तीव्र पुरुषार्थी होते हैं वह कब शब्द नहीं बोलते, अब बोलेंगे |  अब से करेंगे |  यह संगम समय का एक सेकंड भी कितना बड़ा मूल्यवान है |  एक सेकंड भी व्यर्थ गया तो कितनी कमाई व्यर्थ हो जाएगी |  पुरे कल्प की तकदीर बनाने का यह थोडा समय है |  एक सेकंड पद्मों की कमाई करने वाला भी है और एक सेकंड में पद्मों की कमाई गँवाता है |  ऐसे समय को परख करके फिर पाँव तेज़ करो |  समस्याएं तो बनती रहेंगी |  स्थिति इतनी पावरफुल हो जो परिस्थितियां स्थिति से बदल जाएँ |  परिस्थिति के आधार पर स्थिति न हो |  स्थिति परिस्थिति को बदल सकती है क्योंकि सर्वशक्तिमान के संतान हो तो क्या ईश्वरीय शक्ति परिस्थिति नहीं बदल सकती! रचयिता के बच्चे रचना को नहीं बदल सकते हैं! रचना पावरफुल होती है वा रचयिता ?  रचयिता के बच्चे रचना के अधीन कैसे होंगे |  अधिकार रखना है न कि अधीन होना है |  जितना अधिकार रखेंगे उतना परिस्थितियाँ भी बदल जाएँगी |  अगर उनके पीछे पड़ते रहेंगे तो और ही सामना करेंगी |  परिस्थितियों के पीछे पड़ना ऐसे है जैसे कोई अपनी परछाई को पकड़ने से वह हाथ आती है ?  और ही आगे बढती है तो उसको छोड़ दो |  वायुमंडल को बदलना, यह तो बहुत सहज है |  इतनी छोटी सी अगरबत्ती, खुशबु की चीज़ भी वायुमंडल को बदल सकती है |  तो ज्ञान की शक्ति से वायुमंडल को नहीं बदल सकते ?  यह ध्यान रखना है, वायुमंडल को सदैव शुद्ध रखना है |  लोग क्या भी बोलें |  जिस बात में अपनी लगन नही होती है तो वह बात सुनते हुए जैसे नहीं सुनते |  तन भाव वहां हो लेकिन मन नहीं |  ऐसे तो कई बार होता है |  मन कोई और तरफ होता है और वहां बैठे भी जैसे नहीं बैठते हैं |  तन से साथ देना पड़ता है लेकिन मन से नहीं |  उसके लिए सिर्फ अटेंशन दें अहै |  जब तक हिम्मत न रख पाँव नहीं रखा है तो ऊँची मंजिल लगेगी |  अगर पाँव रखेंगे तो फिर लिफ्ट की तरह झट पहुँच जायेंगे |  हिम्मत रखो तो चढ़ाई भी लिफ्ट बन जाएगी |  तो हिम्मत का पाँव रखो, कर सकते हो, सिर्फ लोक लाज का त्याग और हिम्मत की धारणा चाहिए |  एक दो का सहयोग भी बड़ी लिफ्ट है |  परिस्थितियाँ तो आयेंगी लेकिन अपनी स्थिति पावरफुल चाहिए |  फिर जैसा समय वैसा तरीका भी टच होगा |  अगर समय प्रमाण युक्ति नहीं आती है तो समझना चाहिए योग बल नहीं है |  योगयुक्त है तो मदद भी ज़रूर मिलती है |  जो यथार्थ पुरुषार्थी है उनके पुरुषार्थ में इतनी पॉवर रहती है |  ज्यादा सोचना भी नहीं चाहिए |  अनेक तरफ लगाव है, फिर माया की अग्नि भी लग जाती है |  परन्तु लगाव नहीं होना चाहिए |  फ़र्ज़ तो निभाना है लेकिन उसमे लगाव न हो |  ऐसा पावरफुल रहना है जो औरों के आगे एग्जाम्पल हो |  जो एग्जाम्पल बनते हैं वह एग्जामिन में पास होते हैं |  एग्जामिन देने लिए एग्जाम्पल बन दिखाओ |  जो सभी देखें कि ये कैसे नवीनता में आ गए हैं |  ऐसे सर्विसेबुल बनना है जो आप को देख औरों को प्रेरणा मिले |  पहले जो शक्तियां निकलीं उन्हों ने इतनी शक्तियों को निकाला |  आप शक्तियां फिर सृष्टि को बदलो |  इतना आगे जाना है |  गीत भी हैं ना हम शक्तियां दुनिया को बदल कर दिखायेंगे |  सृष्टि को कौन बदलेंगे ?  जो पहले खुद बदलेंगे |  शक्तियों की सवारी शेर पर दिखाते हैं |  कौन सा शेर ?  यह माया जो शेरनी रूप में सामना करने आती है उनको अपने अधीन कर सवारी बनाना अर्थात् उनकी शक्ति को ख़त्म करना |  ऐसी शक्तियां जिनकी शेर पर सवारी दिखाते हैं वही तुम हो ना |  वह सभी का ही चित्र है |  ऐसी शेरनी शक्तियां कभी माया से घबराती नहीं |  लेकिन माया उनसे घबराती है |  ऐसे माया जीत बने हो ना |  शक्ति बिगर बंधन नहीं टूटेंगे |  याद की शक्ति है – एक बाप दूसरा न कोई |  ऐसा सौभाग्य कोटों में कोई को मिलता है |  इतना पद्मा पद्मभाग्यशाली अपने को समझते हो ?  शक्ति दल बहुत कमाल कर सकता है |  जो हड्डी सेवा करनेवाले होते हैं उनको बाप भी मदद करता है |  जो स्नेही हैं, उनसे बाप भी स्नेही रहता है |  बाप के भी वाही बच्चे सामने रहते हैं |  भाल कोई कितना भी दूर हो लेकिन बापदादा के दिल के नजदीक है |

सभी से अच्छी सौगात है अपने इस चेहरे को सदैव हर्षित बनाना |  कभी भी कोई परेशानी की रेखा न हो |  जैसे सम्पूर्ण चन्द्रमा कितना सुन्दर लगता है |  वैसे अपना चेहरा सदैव हर्षित रहे |  चेहरा ऐसा चमकता हुआ हो जो और भी आपके चेहरे में अपना रूप देख सकें |  चेहरा दर्पण बन जाए |  अनेक आत्माओं को अपना मुखड़ा दिखलाना है |  अभी पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है |  महादानी बनना है |  रहम दिल बाप के बच्चे सर्व आत्माओं पर रहम करना है |  इस रहम की भावना से कैसी भी आत्माएं बदल सकती हैं |  सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने |  कितनी आत्माओं पर रहम करना है |  इस रहम की भावना से कैसी भी आत्माएं बदल सकती है |  सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने ?  कितनी आत्माओं पर रहम किया |  दूसरों को सुख देने में भी अपने में सुख भरता है |  देना अर्थात् लेना |  दूसरों को सुख देने से खुद भी सुख स्वरुप बनेंगे |  कोई विघ्न नहीं आयेंगे |  दान करने से शक्ति मिलती है |  अंधों को आँखें देना कितना महान कार्य है |  आप सभी का यही कार्य है |  अज्ञानी अंधों को ज्ञान नेत्र देना |  और अपनी अवस्था सदैव अचल हो |  तुम बच्चों की स्थिति का ही यह अचलघर यादगार है |  जैसे बापदादा एकरस रहते हैं वैसे बच्चों को भी एकरस रहना है |  जब एक के ही रस में रहेंगे तो एकरस अवस्था में रहेंगे |  अच्छा-

02-02-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


आत्मिक पॉवर की परख

आज बापदादा हरेक का प्रोजेक्टर शो देख रहे हैं। आप लोग भी प्रोजेक्टर रखते हो? प्रोजेक्टर कौन सा है, जिस द्वारा चित्र देखते हो? हरेक के नयन प्रोजेक्टर है। इस प्रोजेक्टर द्वारा कौनसा चित्र दुनिया को दिखला सकते हो? वह है साइंस की शक्ति का प्रोजेक्टर और यह है ईश्वरीय शक्ति का प्रोजेक्टर। जितना-जितना प्रोजेक्टर पावरफुल होता है उतना ही दृश्य क्लियर देखने में आता है। वैसे ही तुम सभी बच्चों के यह दिव्य नेत्र जितना-जितना क्लियर अर्थात् रुहानियत से सम्पूर्ण होंगे उतना ही तुम बच्चों के नयनों द्वारा कई चित्र देख सकते हैं। और ऐसे ही स्पष्ट दिखलाई देंगे जैसे प्रोजेक्टर द्वारा स्पष्ट दिखाई देते हैं। तो इन नयनों द्वारा बापदादा और पूरी रचना के स्थूल, सूक्ष्म, मूल तीनों लोकों के चित्र दिखाई दे सकते हैं। कोई भी आपके सामने आये तो सर्व साक्षात्कार तुम्हारे नयनों द्वारा कर सकते हैं। जितनी-जितनी लाइट तेज़ होगी उतना चित्र क्लियर। बल्ब पावरफुल कितना है, वह फिर बापदादा कैसे देखते हैं, मालूम है? अपना बल्ब देखा है कि कितने पॉवर का है? हरेक ने अपने बल्ब की पॉवर देखी है? जो समझते हैं हम अपनी लाइट की परसेंटेज को जानते हैं कि हमारा बल्ब किस प्रकार का है। वह हाथ उठाएं। हमारी आत्मा कितनी पावरफुल है इसकी परख किस आधार पर कर सकते हो?(चार्ट से) वह भी टोटल बात हो गयी, कौन सी बात से अपनी परख कर सकते हो? लाइट में विशेषता क्या होती है? उनमें विशेष गुण यह होता है जो चीज़ जैसी है वैसे ही स्पष्ट देखने में आती है। अन्धियारें में जो जैसी वस्तु है वैसे देखने में नहीं आती है। तो लाइट का विशेष गुण है अस्पष्ट को स्पष्ट करना। इस रीति से अपनी लाइट की परसेंटेज परखने का तरीका यही है। एक तो अपने पुरुषार्थ का मार्ग स्पष्ट होगा अर्थात् लाइन क्लियर देखने में आएगी। दूसरी बात अपना भविष्य स्टेट्स भी देखने में आएगा। तीसरी बात उन्हों की सर्विस करते हो तो जितनी खुद की रौशनी पावरफुल होगी, उन्हों को भी इतना ही सहज और स्पष्ट मार्ग दिखा सकेंगे। वह भी सहज ही अपने पुरुषार्थ में चल पड़ेगा। अपनी मजिंल सहज देखने में आएगी।

जितना लाइट की परसेंटेज ज्यादा होगी। उतना ही सभी बातों में स्पष्ट देखने में आएगा। अगर लाइट की परसेंटेज कम है तो खुद भी पुरुषार्थ में स्पष्ट नहीं होगा और जिसको मार्ग बताते हैं वह भी सहज और स्पष्ट अपने मार्ग और मंजिल को जान नहीं सकेंगे। जिसकी लाइट पावरफुल होगी वह न खुद उलझते न दूसरे को उलझाते हैं। तो अपने पुरुषार्थ अपनी सर्विस से देख सकते हो कि जिन्हों की सर्विस करते हो उन्हों का मार्ग स्पष्ट होता है। अगर मार्ग स्पष्ट नहीं होता है तो अपनी लाइट की परसेंटेज की कमी है। कई खुद कभी कदम-कदम पर ठोकर खाते हैं और उनकी रचना भी ऐसी होती है। अभी आप एक-एक मास्टर रचयिता हो तो मास्टर रचयिता अपनी रचना से भी अपनी पॉवर को परख सकते हैं। जैसा बीज होता है वैसा ही फल निकलता है। अगर बीज पावरफुल नहीं होता है तो कहाँ-कहाँ फूल निकलेंगे, फल निकलेंगे लेकिन स्वीकार करने योग्य नहीं होते हैं। जो बहुत सुन्दर व खुशबुदार होंगे, जो फल अच्छा होगा उनको ही खरीद करेंगे ना। अगर बीज ही पावरफुल नहीं होता है तो रचना भी जो पैदा होती है वह स्वीकार करने योग्य नहीं होती। इसलिए अपनी लाइट की परसेंटेज को बढ़ाओ। दिन प्रति दिन सभी के मस्तक और नयन ऐसे ही सर्विस करें जैसे आप का प्रोजेक्टर शो सर्विस करता है। कोई भी सामने आयेंगे वह चित्र आपके नयनों में देखेंगे, नयन देखते ही बुद्धियोग द्वारा अनेक साक्षात्कार होंगे। ऐसे साक्षात्कार मूर्त अपने को बनाना है। लेकिन साक्षात्कार मूर्त वह बन सकेंगे जो सदैव साक्षी की स्थिति में स्थित होंगे। उनके नयन प्रोजेक्टर का काम करेंगे। उनका मस्तक सदैव चमकता हुआ दिखाई पड़ेगा। होली के बाद सांग बनाते हैं ना। देवताओं को सजाकर मस्तक में बल्ब जलाते हैं। यह सांग क्यों बनाते हैं? यह किस समय का प्रैक्टिकल रूप है? इस समय का। जो फिर आपके यादगार बनाते आते हैं। तो एक-एक के मस्तक में लाइट देखने में आये। विनाश के समय भी यह लाइट रूप आपको बहुत मदद देगी। कोई किस भी वृत्ति वाला आपके सामने आयेंगे। वह इस देह को न देख आपके चमकते हुए इस बल्ब को देखेंगे। जो बहुत तेज़ लाइट होती है और उसको जब देखने लगते हैं तो दूसरी सारी चीज़ छिप जाती है। वैसे ही जितनी-जितनी आप सभी की लाइट तेज़ होगी उतना ही उन्हों को आपकी देह देखते हुए भी नहीं देखने आएगी। जब देह को देखेंगे ही नहीं तो तमोगुणी दृष्टि और वृत्ति स्वतः ही ख़त्म हो जाएगी। यह परीक्षाएं आनी हैं। सभी प्रकार की परिस्थितियाँ पास करनी है।

यह जो ग्रुप है इन्हों का हंसी में एक नाम रखा है। आज वतन में चिट-चैट चल रही थी इसी बात पर। कोई ने हंसी में कहा था बड़ी बहनें हमारी हेड्स हैं तो फिर हम लेग(टाँगे) हैं। तो बापदादा ने फिर नाम रखा है इन्होंने के बड़े तो हैं हेड्स। लेकिन यह हैंडल हैं। मोटर में हैंडल बिगर काम चल न सके। हैंडल द्वारा ही मोटर को मोड़ सकते हैं। तो हेड्स भी इन हैंडल बिना सर्विस को हैंडल नहीं कर सकते हैं। यह जो ग्रुप है यह है हैंडल्स। इनके बिन हेड्स कुछ भी कर नहीं सकते। जो भी आते हैं उनको पहले पहले हैंडल करने वाले यह हैंडल हैं ना। तो आप लोगों के ऊपर इतनी जिम्मेवारी है। अगर आप हैंडल ठीक नहीं, तो सर्विस की हैंडलिंग भी ठीक नहीं होगी। लेकिन यह सिर्फ देखना हैंडल तो है लेकिन हेड्स को कभी हैंडल नहीं करना। हेड को हैण्ड बन कर रहना। बापदादा के भी राईट हैण्ड हैं ना, लेफ्ट हैण्ड भी हैं। राईट हैण्ड को फुल पॉवर होती है, लेकिन होता हैण्ड है। हेड नहीं होता। हैंडल तो हैं ना। लेकिन कैसे हैंडल करना है और कैसे बापदादा के राईट हैण्ड बनें, इसके लिए यहाँ आये हो। यह ग्रुप ऐसा है जो एक-एक कमाल कर सकते हैं। सर्विस को सफलता के रूप में ला सकते हैं। सर्विस में सफलता लाने के लिए दो बातें ध्यान में रखनी है। सर्व बातों में सहयोगी तो हो लेकिन सर्विस में सफलता लाने के निमित्त विशेष यह ग्रुप है। इसके लिए दो बातें विशेष ध्यान में रखना है एक है निशाना पूरा और दूसरा नशा भी पूरा होना। नशा और निशाना यह दो बातें इस ग्रुप में विशेष आनी चाहिए। जब निशाना ठीक होता है तो एक धक से किसको मरजीवा बना सकते हो। जो निशाने बाज़ होते हैं वह एक ही गोली से ठीक निशाना करते हैं। जिनको निशाना नहीं आता, उनको ३-४ बारी गोली चलानी पड़ती है। अगर अपनी स्थिति का भी निशाना और दूसरे की सर्विस करने का भी निशाना ठीक होगा और साथ-साथ नशा भी सदैव एकरस रहता होगा तो सर्विस में सफलता ज्यादा पा सकते हो। कभी नशा उतर जाता, कभी निशाना छुट जाता, यह दोनों बातें ठीक होनी चाहिए। जिसमें जितना खुद नशा होगा उतना ही निशाना ठीक कर सकेंगे। सर्विसएबल तो हो लेकिन सर्विस में अब क्या विशेषता लानी है? सर्विसएबल उनको कहा जाता है जिनका एक सेकंड और एक संकल्प भी बिना सर्विस के ना जाये, हर सेकंड सर्विस के प्रति हो। चाहे अपनी सर्विस चाहे दूसरों की सर्विस। लेकिन जब हो ही सर्विसएबल, तो समय और संकल्प सर्विस के बिगर नहीं जाना चाहिए। फरमानबरदार का अर्थ ही है फ़रमान पर चलना। मुख्य फ़रमान है निरंतर याद में रहो। अगर इस फ़रमान पर नहीं चलते तो क्या कहेंगे? जितना-जितना इस फ़रमान को प्रैक्टिकल में लायेंगे उतना ही प्रत्यक्ष फल मिलेगा। पुरुषार्थ में चलते हुए कौन सा विघ्न देखने में आता है, जो सम्पूर्ण होने में रूकावट डालता है? विशेष विघ्न व्यर्थ संकल्पों के रूप में देखा गया है। तो इससे बचने के लिए क्या करना है? एक तो कभी अन्दर की वा बहार की रेस्ट न लो। अगर रेस्ट में नहीं होंगे तो वेस्ट नहीं जायेगा। और दूसरी बात अपने को सदैव गेस्ट समझो। अगर गेस्ट समझेंगे तो रेस्ट नहीं करेंगे तो वेस्ट नहीं जायेगा। चाहे संकल्प, चाहे समय, यह है सहज तरीका। अच्छा सब फिर समाप्ति के दिन सभी के मस्तक के बल्ब कितने पॉवर के हैं वह देखेंगे। और पावरफुल होंगे तो माया उस पॉवर के आगे आने का साहस नहीं रखेगी। जितना बल्ब की पॉवर होती है उतना सामना कोई नहीं कर सकता। ऐसी पावरफुल स्थिति देखेंगे। सर्विसएबल हो, अब पावरफुल बनो। एक्टिव हो, लेकिन एक्यूरेट बनो। तो इस ग्रुप को विशेष छाप कौन सा लग्न है? एक्यूरेट। कोई भी बात में सदैव एक्यूरेट। चाहे मनसा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणातीनों में एक्यूरेट।

अच्छा !!!


05-03-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन 


जल चढ़ाना अर्थात् प्रतिज्ञा करना

आज शिव जयंती मनाने के लिए बुलाया है। कैसे मनाने चाहते हो? मिलन ही मनाना है। लोग मिलने के लिए मनाते हैं और बच्चे मिलने को ही मनाना समझते हैं। तो मिलना अर्थात् मन लिया अब बाकी क्या रहा। आप बच्चों का मनाना एक तो है मिलना और दूसरा है अपने समान बनाना। तो मिलना और बनाना, यही है मनाना। आज के दिवस पर यह दो बातें करनी है। मिलन तो मना ही रहे हो बाकी आप समान बनाना। यह दोनों बातें की गोया शिव जयंती मनायी। जब भक्त लोग जल चढाने के लिए जाते हैं तो भी बीच में ब्राह्मण होते हैं, जो उनसे कराते हैं। तो आप भी ब्राह्मण हो। जैसे भक्त लोग जल चढाते हैं वैसे तुम बच्चे बाप के ऊपर आत्माओं से जल चढ़वाते हो। यह जल अथवा दूध चढाने की रस्म क्यों चली है? जिस समय जल चढाते हैं उस समय मन में क्या सोचते हैं, मालूम हैं? जल वा दूध जो चढाते हैं उनका भावार्थ यह है। जब कोई भी प्रतिज्ञा करनी होती है तो हाथ में जल उठाते हैं, सूर्य को भी जल चढाते हैं तो अन्दर में प्रतिज्ञा करते हैं। तुम्हारे पास भी जब कोई आते हैं तो पहले-पहले उन्हों से प्रतिज्ञा का जल लो। एक प्रतिज्ञा कराते हो ना कि हम आज से एक शिवबाबा के ही बनकर रहेंगे। तो पहले उनसे प्रतिज्ञा कराते हो। वह लोग भी अन्दर में प्रतिज्ञा कर फिर स्वयं सम्मुख आकर देवताओं पर अर्पण होते हैं। जो पुरे भक्त होते हैं वह सारा ही अपने को उनके आगे झुकाते हैं अर्थात् अपने को अर्पण कर देते हैं। तो तुम भी पहले उन्हों से प्रतिज्ञा कराते हो। जब पक्के हो जाते हैं, तो सम्पूर्ण स्वाहा कराते हो। ऐसी सर्विस करनी है। बिलकुल न्यौछावर कराना। आप ने कितने को न्यौछावर कराया है? जो जितना स्वयं न्यौछावर बने हैं उतना ही औरों को बनाते हैं। अगर स्वयं ही सम्पूर्ण न्यौछावर नहीं बने हैं तो औरों को भी इतना ही आप समान बनाते हैं। अभी न्यौछावर होने में म्हणत और समय दोनों ही लगता है। लेकिन थोड़े ही समय में न्यौछावर होनेवालों की क्यू लग जाएगी। जैसे वहां यादगार है काशी कलवट खाने का। स्वयं अपनी इच्छा से कटने को तैयार हो जाते हैं। वैसे यहाँ भी तैयार हो जायेंगे। आप लोगों को इच्छा पैदा करने की म्हणत भी नहीं करनी पड़ेगी। स्वयं अपनी इच्छा से जम्प देने के लिए तैयार हो जायेंगे। यह क्यू लगनी है। अभी नहीं लग रही है। इसका भी कारण है। बच्चों के पास अभी कौन सी क्यू लगी हुई है? जब वह क्यू ख़त्म हो जाएगी, तब यह क्यू लगेगी। मालूम है अभी कौन सी क्यू लगी हुई है? (संकल्पों की) संकल्पों में भी मुख्य क्या हैं, जो ही पुरुषार्थ में ढीलापन लाती है। व्यर्थ संकल्पों का मूल कारन क्या होता है? पुराने संस्कार किस रूप में आते हैं? एक शब्द बताओ जिसमे व्यर्थ संकल्पों का बीज आ जाए। व्यर्थ संकल्प वा विकल्प जो चलते हैं तो एक ही शब्द बुद्धि में आता है कि यह क्यों हुआ, क्यों से व्यर्थ संकल्पों की क्यू शुरू हो जाती है। अंग्रेजी में भी आप देखेंगे क्यू शब्द की निशानी सभी से टेढ़ी होती है। तो क्यों की क्यू बड़ी लम्बी है। इस क्यू के समाप्ति बाद ही सम्पूर्णता आएगी। फिर वह क्यू लगेगी। जब क्यों शब्द निकलेगा, फिर ड्रामा की भावी पर एकरस स्थेरियम रहेंगे। तो अभी क्यों के क्यू को ख़त्म करना है। समझा। एक क्यों शब्द से सेकंड में कितने संकल्प पैदा हो जाते हैं? क्यों से फिर कल्पना करना शुरू हो जाता हैं। तो बाप भी बच्चों से यह जल की लोटी चढ़वाने के लिए आये हैं। कोई भी प्रतिज्ञा करते हैं तो जल को साक्षी रखकर करते हैं। तो अब यह लोटी चढ़ानी है।

मधुबन में विशेष रेस्पोंसिबिलिटी पाण्डव-दल की है। तो उस दल में अब बल होना चाहिए। पाण्डव -दल में बल होगा तो फिर इस पाण्डव भवन के अन्दर आसुरी सम्प्रदाय तो क्या लेकिन आसुरी संकल्प भी नहीं आ सकते। इतना पहरा देना है। वह पहरा देना तो बहुत सहज है। जैसे इस गेट की रखवाली करते हो वैसे माया का जो गेट है, उसकी भी रखवाली करनी है। ऐसे पाण्डव सेना तैयार है जो आसुरी संस्कारों को, आसुरी संकल्पों को भी इस पाण्डव के अन्दर आने न दो? अब पहले अपने अन्दर यह पहरा मज़बूत होगा तब पाण्डव भवन में यह मजबूती ला सकते हैं। ऐसा पहरा देते हो? कौन-कौन ऐसी हिम्मत रखते हैं कि हम पाण्डव सेना अपने पाण्डव भवन की ऐसी रखवाली करेंगे। ऐसी रखवाली अगर पाण्डव करते रहें तो फिर यह पाण्डव भवन एक जादू का घर हो जायेगा। जो कैसी भी आत्मा आये, आते ही आसुरी संस्कारों और व्यर्थ संकल्पों से मुक्त हो जाएँ। ऐसे निर्विकल्प बनाने का जादू का घर हो जायेगा। ऐसी सर्विस जब करेंगे तब प्रत्यक्षता होगी। एक दो से सुनते ही लोग दौड़ेंगे। जैसे-जैसे समय आगे बढेगा वैसे दुःख अशांति भी बढ़ने के कारण हरेक आत्मा सुख चैन की प्यासी होगी। और उसी प्यास में तरसती हुई आत्मयीं इस पाण्डव भवन के अन्दर आने से ही एक सेकंड में सुख चैन का अनुभव करेंगी तब प्रभाव निकलेगा। एक-एक चैतन्य मूर्ति के सामान दर्शन मूर्त हो जायेंगे। एक एक रत्न का दर्शन करने के लिए दूर दूर से प्यासी आत्मयीं आएँगी। लेकिन जब ऐसा पहरा शुरू करने तब। जैसे संगठन का बल है, स्नेह का बल भी है, एक दो को सहयोग देने का बल भी है। अभी सिर्फ एक बल चाहिए, जिसकी कमी होने कारन ही माया की प्रवेशता हो जाती है। वह है सहनशीलता का बल। अगर सहनशीलता का बल हो तो माया कभी वार कर नहीं सकती। तो यह चारों बल चाहिए।

आज बापदादा की जयंती के साथ सभी बच्चों की भी तो जयंती है। तो इस जयंती पर चों बल अपने में धारण करेंगे तो फिर यह पाण्डव भवन साड़ी दुनिया में देखने और अनुभव करने का विशेष स्थान गिना जायेगा। इस पाण्डव भवन का महत्व सरे विश्व में होगा। महत्व बढाने वाले कौन? पाण्डव सेना और शक्ति सेना। मधुबन निवासी ही मधुबन के महत्व को बाधा सकते हैं। पाण्डवों के लिए तो प्रसिद्द है कि वह कभी भी प्रतिज्ञा से हिलते नहीं थे। एक परसेंटेज की भी कमी हुई तो इसको कमी ही कहा जायेगा। पाण्डव सेना को एग्जाम्पल बनना है। जो आप लोगों को देख औरों को भी प्रेरणा मिले। कोई भी मधुबन में आये तो यह विशेषता देखे कि यह सभी इतने अनेक होते हुए भी एक और एक की ही लगन में मग्न हैं। और एक रस स्थति में स्थित हैं। जब ऐसा दृश्य देखेंगे तब प्रत्यक्षता की निशानी देखने में आएगी। आप सब की प्रतिज्ञा ही प्रत्यक्षता को लाएगी। तो आज पहले प्रतिज्ञा का जल चढ़ाना है फिर सौगात भी मिलेगी। प्रतिज्ञा की तीन लकीर दिखाते हैं। बेल पात्र भी जो चढाते हैं वह भी तीन पत्तों का होता है। तो आज के दिन तीन प्रतिज्ञा कराई हैं। सहनशीलता का बल अपने में धारण करेंगे, क्यों की क्यू को ख़त्म करेंगे और आसुरी संस्कारों पर पहरा देना है। तो तीन प्रतिज्ञा का यह बेलपत्र चढ़ाना है। भक्त लोग तो खेल करते हैं लेकिन ज्ञान सहित खेल करना वह तो बच्चे ही जानते हैं। इसलिए आज के शिवरात्री का यादगार फिर भक्ति में रस्म माफिक चलता है। पहले आरम्भ बच्चे ही करते हैं ज्ञान सहित। और फिर भक्त कॉपी करते हैं अन्धश्रद्धा से। ज़रूर कभी किया है तब यादगार बना है।

भगवान् बच्चों को कहते हैं वन्दे मातरम् कितना फर्क हो गया। इतना नशा रहता है? जिस बाप की अनेक भक्त वन्दना करते हैं, वह स्वयं आकर कहते हैं वन्दे मातरम् इस खुमारी की निशानी क्या होगी? उनके नयन, उनके मुखड़े, उनकी चलन, बोल आदि से ख़ुशी झलकती रहेगी। जिस ख़ुशी को देख कहियों के दुःख मिट जायेंगे। ऐसी मातायीं जिनको बापदादा स्वयं वन्दना करते हैं, उनकी निशानी है ख़ुशी। चेहरा ही अनेक आत्माओं को हर्षायेगा। अज्ञानी लोग सवेरे उठ कोई ऐसी शक्ल देखते हैं तो कहते हैं सवेरे उनकी शक्ल देखी तब यह प्रभाव पड़ा तो शक्ल का प्रभाव पड़ता है। तो आप बच्चों का हर्षित चेहरा देख सभी के अन्दर हर्ष आ जायेगा। ऐसा होने वाला है। अच्छा- जितना अपने ऊपर चेकिंग करेंगे उतनी चंगे आती जाएगी। संकल्प, कर्म, समय, संस्कार इन चरों के ऊपर चेकिंग करनी है कदम-कदम पर हर रोज़ कोई – न – कोई स्लोगन सामने रख उसको प्रैक्टिकल में लाओ।


23-03-70              ओम शान्ति                       अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


सच्ची होली मनाना अर्थात् बीती को बीती करना  २३-०३-१९७०

बापदादा क्या देखते हैं और आप सब क्या देखते हो ?  देख तो आप भी रहे हो और बापदादा भी देख रहे हैं |  लेकिन आप क्या देखते हो और बापदादा क्या देखते हैं ?  फर्क है वा एक ही है |  रूहानी बच्चों को देखते आज विशेष क्या बात देख रहे हैं ?  हर चलन की विशेषता होती है ना |  तो आज मुलाक़ात में विशेष कौन सी बात देख रहे हैं ?  आज तो विशेष बात देख रहे हैं उसको देख हर्षित हो रहे हैं |  बापदादा हरे क के पुरुषार्थ की स्पीड और स्थिति की स्पिरिट देख रहे हैं |  जितनी जितनी स्पिरिट होगी उतनी स्पीड भी होगी |  तो यह देखकर हर्षा रहे हैं |  स्पीड तेज़ होने से सर्विस की सफलता तेज़ होगी |  आज होली कैसे मनायी ?  (सूक्ष्मवतन में मनायी) वतन में भी कैसे मनायी ?  सिर्फ वतन में मनायी या यहाँ भी मनाई ?  सिर्फ अव्यक्त रूप से ही मनाई ?  होली मनाना अर्थात् सदा के लिए आज के दिन बीती सो बीती का पाठ पक्का करना, यही होली मनाना है |  आप लोग भी अर्थ सुनाते हो ना |  होली अर्थात् जो बात हो गयी, बीत गयी उसको बिलकुल ख़त्म कर देना |  बीती को बीती कर आगे बढ़ना यह है होली मनाना अर्थात् होली के अर्थ को जीवन में लाना |  हर दिवस पर पुरुषार्थ को बदल देने लिए कोई न कोई बात ऐसे महसूस हो जैसे बहुत पुरानी कोई जन्म की बात है |  ऐसी बीती हुयी महसूस हो |  जब ऐसी स्थिति हो जाती है तब पुरुषार्थ की स्पीड तेज़ होती है |  पुरुषार्थ की स्पीड को ढीला करने वाली मुख्य बात यह होती है – बीती हुई बात को चिंतन में लाना |  अपनी बीती हुयी बातें या दूसरों की बीती हुयी बातों को चिंतन में लाना और चित्त में भी रखना |  एक होता है चित्त में रखना दूसरा होता है चिंतन में लाना |  जो चित्त में भी न हो |  चिंतन में भी न आये |  तीसरी होता है वर्णन करना |  तो आज के दिन बापदादा होली मनाने के लिए आये हैं |  होली मनाने लिए बुलाया है ना |  तो इस रंग को पक्का लगाना यही होली मनाना है |  होली के दिन एक तो रंग लगाते हैं और दूसरा क्या करते हैं ?  एक दिन पहले जलाते हैं दुसरे दिन मनाते हैं |  जलाने के बाद मनाना है और मनाने में मिठाई खाते हैं |  यहाँ आप कौन सी मिठाई खायेंगे ?  रंग तो बताया कौन सा लगाना है |  अब मिठाई क्यों खाते हैं ?

जब यह रंग लग जाता है तो फिर मधुरता का गुण स्वतः ही आ जाता है |  अपने वा दुसरे की बीती को न देखने से सरल चित्त हो जाते हैं और जो सरलचित्त बनता है उसका प्रत्यक्ष रूप में गुण क्या देखने में आता है ?  मधुरता |  उनके नयनों से मधुरता मुख से मधुरता, और चलन से मधुरता प्रत्यक्ष रूप में देखने में आती है |  तो इस रंग से मधुरता आती है इसलिए मिठाई का नियम है |  होली पर और क्या करते हैं ?  (मंगल-मिलन) मंगल मिलन का अर्थ क्या हुआ ?  यहाँ मंगल मिलन कैसे मनाएंगे ?  मधुरता आने के बाद मंगल मिलन क्या होता है ?  संस्कारों का मिलन होता है |  भिन्न-भिन्न संस्कारों के कारण ही एक दो से दूर होते हैं, तो जब यह रंग लग जाता है, मधुरता आ जाती है तो फिर कौन सा मिलन होता है ?  आप लोग सम्मेलन करके आये हो ना |  बापदादा ने यह जो भट्ठी बनाई है वह फिर संस्कार मिलन की बनाई है |  जब संस्कार मिलन हो, यह सम्मेलनहो तब उस सम्मेलन की प्रत्यक्षता देखने में आएगी |  आप लोगों ने सम्मेलन किया और बापदादा संस्कारों का मिलन कर रहे हैं |  तो इस मिलन का यादगार यह मंगल मिलन है |  बापदादा का बच्चों से मिलन तो है ही लेकिन आपस में सभी से बड़े ते बड़ा मिलाना है संस्कारों का मिलना |  जब यह संस्कार मिलन हो जायेगा तब जयजयकार होगी |  देवियों का गायन है ना कि वह सभी को सिद्धि प्राप्त कराती हैं |  कोई को भी रिद्धि सिद्धि प्राप्त करनी होती है तो कीन्हों से प्राप्त करते हैं ?  रिद्धि सिद्धि प्राप्त कराने वाली कौन हैं ?  देवियाँ |  जब पुरुषार्थ की विधि सम्पूर्ण हो जाती है तब यह सिद्धि भी प्राप्त होती है |  कभी भी सिद्धि को प्राप्त करने के लिए बापदादा के पाद नहीं आयेंगे |  देवियों के पास जायेंगे |

देवियाँ स्वयं सिद्धि प्राप्त की हुई हैं |  तब दूसरों को रिद्धि सिद्धि दे सकती हैं |  तुम्हारे पुरुषार्थ की सिद्धि तब होगी जब संस्कारों का मिलन होगा |  सबसे जास्ती भक्तों की क्यू बड़ी कहाँ लगती हैं ?  (देवियों के पास) जैसे हनुमान के मंदिर में व् देवियों के मंदिर में ज्यादा भीड़ लगती है |  इससे क्या सिद्ध होता है ?  साकार रूप में भी क्यू कौन देखेगा ?  प्रत्यक्षता के बाद जो क्यू लगेगी वह कौन देखेंगे ?  बच्चे ही देखेंगे |  बापदादा गुप्त है प्रत्यक्ष रूप में बच्चे ही देखेंगे |  तो उसका यादगार प्रत्यक्ष रूप में बड़ी ते बड़ी क्यू भक्तों की, बच्चों के यादगार रूप पर ही लगती है |  लेकिन यह क्यू लगेगी कब ?  जब संस्कार न मिलने का एक शब्द निकल जायेगा तब वह क्यू भी लगेगी |  इस भट्ठी में और पढाई नहीं करनी है लेकिन अंतिम सिद्धि का स्वरुप बनकर दिखाना है |  यह संगठन संस्कारों को मिलाने के लिए है |  कोई भी चीज़ को जब मिलाया जाता है तो क्या करना होता है ?  संस्कारों को मिलाने के लिए दिलों का मिलन करना पड़ेगा |  दिल के मिलन से संस्कार भी मिलेंगे तो संस्कारों को मिलाने के लिए भुलाना, मिटाना और समाना यह तीनों ही बातें करनी पड़ेंगी |  कुछ मिटाना पड़ेगा, कुछ भुलाना पड़ेगा, कुछ समाना पाएगा – तब यह संस्कार मिल ही जायेंगे |  यह है अंतिम सिद्धि का स्वरुप बनना |  अब अंतिम स्थिति को समीप लाना है |  एक दो की बातों को स्वीकार करना और सत्कार देना |  अगर स्वीकार करना और सत्कार देना यह दोनों ही बातें आ जाती हैं तो फिर सम्पूर्णता और सफलता दोनों ही समीप आ जाती हैं |  सिर्फ इन दो बातों को ध्यान देना, दोनों ही बातों को समीप लाना है |  एक दो को सत्कार देना ही भविष्य का अधिकार लेना है |  यह कीन्हों की भट्ठी है, मालूम हैं ?  इस भट्ठी का नाम क्या है ?  आप लोगों को तिलक के बजाय और चीज़ देते हैं |  औरों को तिलक लगाया |  इस भट्ठी को लगानी है चिन्दी |  तिलक छोटा होता है, चिन्दी बड़ी होती है |  बडेपन की निशानी चिन्दी है |  तिलक तो छोटे भी लगाते हैं लेकिन चिन्दी बड़े लगाते हैं |  जब से जिम्मेवारी अपने ऊपर रखने की हिम्मत रखते हैं तब से चिन्दी को धारण करते हैं |  तो तिलक अच्छा वा चिन्दी अच्छी ?  आप सभी सर्व के शुभ चिन्तक हो, सर्विसेबुल अर्थात् शुभ चिन्तक |  तो इस शुभ चिन्तक  की निशानी चिन्दी है और नाम है शुभ चिन्तक ग्रुप |

आपके शुभ चिन्तक बन्ने से सभी की चिंताएं मिटती हैं |  आप सभी की चिंताओं को मिटानेवाली शुभ चिन्तक हो |  और स्लोगन कौन सा है ?  जैसे वो लोग कहते हैं आत्मा सो परमात्मा वैसे इस ग्रुप का स्लोगन कौन सा है ?  बालक सो मालिक |  यह स्लोगन विशेष इस ग्रुप का है |  अब नाम भी मिला, स्लोगन भी मिला, काम भी मिला और इस भट्ठी में क्या करना है ?  भाषण भी यह करना है कि संस्कार मिलन कैसे हो |  इस भट्ठी में कमाल यही करनी है जो एक अनेकों को संस्कारों में आप समान बना सके |  सम्पूर्ण संस्कार, अपने संस्कार नहीं |  एक अनेकों को सम्पूर्ण संस्कार वाली बना ले तो क्या होगा ?  समाप्ति |  समाप्ति करनेवाला यह ग्रुप है |  और फिर स्थापना करने वाला भी यह ग्रुप है |  समाप्ति क्या करनी है ?  पालना क्या करनी है और स्थापना क्या करनी है ?  यह तीनों ही टॉपिक्स इस भट्ठी में स्पष्ट करनी है |  इसलिए त्रिमूर्ति चिन्दी लगा रहे हैं |  स्थापना, पलना, समाप्ति अर्थात् विनाश |

क्या-क्या करना है इसको स्पष्ट और सरल रीति जो कि प्रैक्टिकल में आ सके, वर्णन तक नहीं |  प्रैक्टिकल में आ सके औरों को भी करा सकें – ऐसी बातें स्पष्ट करनी हैं |  लेकिन बिंदी रूप बनकर के ही यह तीनों कर्त्तव्य सफल कर सकेंगे |  इसलिए आपके इस कर्त्तव्य के यादगार में चिन्दी दे रहे हैं स्मृति भी, स्थिति भी और कर्त्तव्य भी तीनों ही इस यादगार में समाये हुए हैं |  विशेष ग्रुप की विशेष बातें होती हैं |  आप सभी होली मनाने आये हैं वा इस ग्रुप की सेरेमनी (celebration) देखने ?   यह भी सौभाग्य समझो की ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं के समीप बनने का ड्रामा में पार्ट है |  सेरेमनी (celebration) देखना अर्थात् अपने को ऐसा श्रेष्ठ बनाना |  यह है सेरेमनी (celebration) ऐसा अपने को बनाओ जो इस ग्रुप के जैसे साकार में समीप आये हो ना, वैसे ही सम्बन्ध में भी समीप हो |  देखने वाले भी कम नहीं |  देखने वाली आत्माएं भी श्रेष्ठ और समीप है |  बापदादा के दिल पसंद रत्न हैं |  पहले कौन आएगा ?  बापदादा तो सभी को एक ही स्पीड में देख रहे हैं |  इसलिए वन टू नहीं कह सकते |  इस समय सभी वन की याद में नंबर वन ही है |

आप लोग भी जब स्पिरिट में और स्पीड में इस ग्रुप के समीप आयेंगे तब फिर आप की भी सेरेमनी (फिर हरेक बड़ी बहनों को बापदादा चिन्दी लगाये रूहरिहान करते गए)

(दीदी) – बालक मालिक है इसलिए समान बिठाते हैं तख़्त पर (सन्दली पर) |  व्यक्त रूप में तो यह सेरेमनी कर रहे हैं लेकिन अव्यक्त रूप में यह सेरेमनी होती है ?  बालक को मालिक बनाया अब से तख़्तनशीन बनाते हैं |  साकार में थी दिल तख़्त नशीन, अब हैं सर्विस की तख़्त नशीन और भविष्य में होंगी राज्य तख़्त नशीन |  संगम पर तख़्त नशीन अभी बनते हैं |  ड्रामा में जो पार्ट नूँधा हुआ है वह कितना रहस्ययुक्त है |  इसको दिन प्रति दिन स्पष्ट समझते जायेंगे |  स्नेह से भी कर्त्तव्य कहाँ बंधन में बांधता है |  जैसे स्नेह का बंधन है वैसे कर्त्तव्य का भी बंधन है |  तो यह है कर्त्तव्य का बंधन |  कर्त्तव्य के बंधन में अव्यक्त रूप में हैं |  स्नेह के बंधन में साकार रूप में थे |

(कुमारका दादी) – स्वप्न में भी कब यह सोचा था कि अव्यक्त रूप में तख़्त नशीन बनायेंगे |  तख़्त नशीन कौन बनता है ?  जो सदैव नशे में है और निशाना बिलकुल एक्यूरेट रहता है |  नशा और निशाना, योग और ज्ञान |  ऐसे बच्चे ही तीनों तख़्त के अधिकारी बनते हैं |  त्रिमूर्ति तख़्त भी है |  अगर एक तख़्त नशीन बने तो तीनों तख़्त के बनेंगे |  बाप तख़्त नशीन बच्चों को देखते हैं तो क्या होता है ?  बापदादा को भी नशा होता है कि ऐसे लायक बच्चे हैं |

(जानकी दादी) – अब  तक वाणीमूर्त बने हो फिर बनेंगे साक्षात्कार मूर्त |  अभी वाणी से औरों को साक्षात्कार होता है लेकिन फिर होगा साइलेंस से साक्षात्कार |  जब बनेंगे तो सभी के मुख से क्या निकलेगा ?  यह जो गायन है ना कि सभी परमात्मा के रूप हैं, यह गायन संगम पर ही प्रैक्टिकल में होता है |  भक्तिमार्ग में जो भी बातें कही हैं वह संगम की बातों को मिक्स किया है |  तुम्हारी अंत में यह स्थिति आती है, जो सभी में साक्षात् बापदादा की मूर्त महसूस होगी |  सभी के मुख से यही आवाज़ निकलेगा यह तो साक्षात् बापदादा के मूर्त हैं |  साक्षात् रूप बनने से साक्षात्कार होगा तो जो यह अंत का रूप सभी में साक्षात् रूप देखते हैं इसको मिक्स करके कह देते हैं – सभी परमात्मा के रूप हैं |  बाप के समान को परमात्मा का रूप कह देते |  यह सभी बातें यहाँ से ही चली हैं तो साक्षात्कार मूर्त बन्ने के लिए साक्षात् बापदादा समान बनना है |  अब चेकिंग क्या करनी है ?  समानता की चेकिंग करनी है, वह चेकिंग नहीं |  वह तो बचपन की थी |  अब यह चेकिंग करनी है |  जितनी समानता उतना स्वमान मिलेगा |  समानता से अपने स्वमान का पता लगा सकते हैं |  समानता कहा तक आई है और कहाँ तक समानता लानी है यही चेकिंग करना और कराना है |  यह भी टॉपिक है जितनी जिसमे समानता देखो उतना समीप समझो |  समीप रत्न की परख समानता है |

(चंद्रमणि दादी) -  आप सूर्यमणि हो या चन्द्रमणि हो ?  चन्द्रमणियाँ जो होते हैं  उनका निवास स्थान कहाँ और सूर्यमणियाँ जो होते हैं उनका निवास स्थान कहाँ होता है ?  आप कौन सी मणि हो ?  (दोनों हैं) शक्ति रूप भी हैं और शीतल रूप भी हैं |  इसलिए कहती हैं सूर्यमणि भी हूँ और चन्द्रमणि भी हूँ |  अभी नॉलेज तो आ गयी है लेकिन स्थिति तो नहीं है ना |  नॉलेज से लाइट आई है |  अभी माईट नहीं आई है |  जब लाइट और माईट दोनों में एकरस होंगे तब नंबर आउट होंगे |  अभी औरों को भी नॉलेज की लाइट दे सकती हो, माईट नहीं दे सकती हो |  इसलिए सफलता भी उसी अनुसार होती है |  सभी को लाइट अर्थात् रौशनी आ रही है कि इन्हों की नॉलेज क्या है, लेकिन लाइट का प्रभाव कम है, आधा कार्य अभी रहा हुआ है |  माईट देने में नंबर वन यह बनेंगी |  कोई-कोई का लाइट देने में नंबर आगे है, कोई का माईट देने में नंबर आगे है |  कोई दोनों में है |  तीन क्वालिटी है |  (जब बापदादा चिंदी पहनाते थे तो सभी तालियाँ बजा रहे थे) सतयुग में बजेंगी शहनाइयाँ |  अभी बजती हैं तालियाँ |

(निर्मलशान्ता दादी) -  तन के रोग पर विजय प्राप्त कर रही हो |  संगम पर ताज, तिलक, तख़्त और सुहाग-भाग सभी मिलते हैं |  एक ही समय पर सर्व प्राप्तियां बापदादा कराते हैं |  जो एक जन्म की दें अनेक जन्म चलती है |  वैसे बच्चों को फिर अनेक जन्मों के हिसाब-किताब एक जन्म में चुक्तु करने हैं |  यह एक जन्म का अनेक जन्म चलता है |  वह अनेक जन्मों का एक जन्म में ख़त्म होता है तो अनेक जनों का हिसाब-किताब एक जन्म में ख़त्म करने के कारण कभी-कभी वह फ़ोर्स से रूप ले आता है |  बापदादा यह युद्ध देखते रहते हैं आप भी देखती हो अपनी वा दूसरों की ?  जब साक्षी हो देखने लग पड़ते तो यह व्याधि  बदलकर खेल रूप में हो जाती है |  बापदादा साक्षी हो देखते भी हैं और उनका साहस देखकर हर्षित भी होते हैं |  और साथ-साथ सहयोगी भी बनते हैं |  थकती तो नहीं हो ना |  (नहीं) अथक बाप के बच्चे अथक और अविनाशी हो |  मालुम है अब क्या करना है ?  अब अंत में साक्षात्कार मूर्त्त बनना है जितना साक्षी अवस्था ज्यादा रहेगी उतना समझो कि साक्षात्कार मूर्त्त बनने वाले हैं |  अब अंतिम पुरुषार्थ यह रह गया है |  साक्षात्कार मूर्त्त बन बापदादा का साक्षात्कार और अपना साक्षात्कार कराना है |

(शान्तामणि दादी) -  श्रेष्ठता लाने के लिए मुख्य गुण कौन सा है ?  जितनी स्पष्टता होती उतनी श्रेष्ठता आती है |  जो स्पष्ट होता है वाही सरल और श्रेष्ठ होता है |  स्पष्टता श्रेष्ठता के नजदीक है और जितनी स्पष्टता होती है उतनी सफलता भी होती है |  सफलता फिर इतनी समीपता में लाती है |  समीप रत्नों की निशानी किससे मालूम पड़ेगी ?  समानता से |  बापदादा के संस्कारों की समानता से समीपता का मालूम पड़ता है |  तो समानता समीपता की निशानी है |  आदि रतन हो |  आदि सो अनादि |  जो आदि रतन हैं वह अनादि गायन योग्य बनते हैं |  क्योंकि आदि देव के साथ मददगार हैं |  आदि रतन ही सृष्टि के कर्त्तव्य के आधार है |

(रत्न मोहिनी दादी) – स्नेही हो वा सहयोगी हो ?  (दोनों) स्नेही और सहयोगी दोनों समान हैं, जितना जो स्नेही उतना सहयोगी बनता है |  स्नेही सहयोग के सिवाए रह नहीं सकता |  जितना स्नेही है उतना सहयोगी है |  उतना ही शक्तिरूप भी है |  जब स्नेह, सहयोग और शक्ति तीनों की समानता होती है तब समाप्ति होती है |  इस समय डबल ताजधारी हो कि भविष्य में बनेंगे ?  संगम पर डबल ताजधारी हो ?  कौन सा डबल ताज है ?  एक है स्नेह का दूसरा है सर्विस का |  सर्विस का ताज है जिम्मेवारी का ताज |  वह स्थूल और वह सूक्ष्म है ना |  स्नेह का ताज सूक्ष्म है |  जो जहाँ डबल ताजधारी बनते हैं, वह वहां भी डबल ताजधारी बनते हैं |  बापदादा डबल ताज देते हैं |  नुम्बेर्वार ताज तो होते हैं ना |  यहाँ भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार ताजधारी देखने में आएंगे |

(मनोहर दादी) – जैसे साकार में जब अव्यक्त प्रोग्राम चलते थे तो श्रृंगार कर बैठते थे |  आज वाही श्रृंगार किये हुए चित्र देखते हैं |  हरेक की विशेषता अपनी-अपनी है जो विशेषता समीप लाती है |  आपकी विशेषता क्या है ?  सर्व से स्नेही और सर्व के सहयोगी बनना – यह विशेषता है |  जो सर्व के स्नेही  बनते हैं सर्व से स्नेह भी उनको प्राप्त होता है |  सर्व स्नेही भी कौन बनते हैं ?  जो सर्व त्यागी होते हैं |  जो सर्व त्यागी होते हैं, वाही सर्व के स्नेही और सहयोगी बनते हैं |  ऐसे श्रेष्ठ संकल्प वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी बनते हैं |  संकल्प में भी सर्व के कल्याण की भावना हो |  सिर्फ अपनी नहीं |  ऐसे ही सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बनते हैं |  ऐसे को बापदादा तथा सभी से सत्कार मिलता है |  सत्कार का अधिकार लें यह भी बहुत बड़ी बात है |  अच्छा –

26-03-70              ओम शान्ति                      अव्यक्त बापदादा         मधुबन 


महारथी – पन के गुण और कर्त्तव्य   २६-०३-१९७०

आज बोलना है वा बोलने से परे जाना है ?  बोलने से परे अवस्था अच्छी लगती है वा बोलने की अच्छी है ?  (दोनों) ज्यादा कौन सी अच्छी लगती है ?  बोलते हुए भी बोले से परे की स्थिति हो सकती है ?  दोनों का साथ हो सकता है वा जब न बोलेन तब परे अवस्था हो सकती है ?  हो सकती है तो कब होगी ?  इस स्थिति में स्थित होने के लिए कितना समय चाहिए ?  अब हो सकती है ?  कुछ मास वा कुछ वर्ष चाहिए ?  प्रैक्टिस अभी शुरू हो सकती है कि कारोबार में नहीं हो सकती ?  अगर हो सकती है तो अब से ही हो सकती है ?  जो महारथी कहलाये जाते हैं उनकी प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल साथ-साथ होना चाहिए |  महारथी और घोडेस्वार में अंतर ही यह होता है |  महारथियों की निशानी होगी प्रैक्टिस की और प्रैक्टिकल हुआ |  घोड़ेसवार प्रैक्टिस करने के बाद प्रैक्टिकल में आयेंगे |  और प्यादे प्लान्स ही सोचते रहेंगे |  यह अंतर होता है |  बच्चों को मुख से यह शब्द भी नहीं बोलना चाहिए कि अटेंशन है, प्रैक्टिस करेंगे |  अभी वह स्थिति भी पार हो गई |  अभी तो जो संकल्प हो वह कर्म हो |  संकल्प और कर्म में अन्तर नहीं होना चाहिए |  वह बचपन की बातें हैं |  संकल्प करना, प्लान्स बनाना फिर उसपर चलना, अब वह दिन नहीं |  अब पढाई कहाँ तक पहुंची है ?  अब तो अन्तिम स्टेज पर है |  महारथीपन के क्या गुण और कर्त्तव्य होते हैं, इसको भी ध्यान देना है |  आज वाही सुनाने और अंतिम स्थिति के स्वरुप का साक्षात्कार कराने आये हैं |  सर्विसएबुल क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते हैं, क्या कह सकते हैं, क्या नहीं कह सकते हैं ?  अब से धारणा करने से ही अंतिम मूर्त्त बनेंगे, साकार सबूत देखा ना प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल एक समान था कि अलग-अलग था |  जो सोच वाही कर्म था |  बच्चों का कर्त्तव्य ही है फॉलो करना |  पाँव के ऊपर पाँव |  फुल स्टेप लेने का अर्थ ही है पाँव के ऊपर पाँव |  जैसे के वैसे फोलो करेंगे |  वह स्टेज कब आएगी ?  महारथियों के मुख से कब शब्द ही कमजोरी सिद्ध करता है |  एक होता करके दिखायेंगे, एक होता है हाँ करेंगे, सोचेंगे |  हिम्मत है, लेकिन फेथ नहीं |  फेथफुल के बोल ऐसे नहीं होते |  फेथफुल का अर्थ ही है निश्चयबुद्धि |  मन, वचन, कर्म हर बात में निश्चयबुद्धि |  सिर्फ ज्ञान और बाप का परिचय, इतने तक निश्चयबुद्धि नहीं |  लेकिन उनका संकल्प भी निश्चयबुद्धि, वाणी में भी निश्चय, कभी भी कोई बोल हिम्मतहिन का नहीं |  उसको कहा जाता है महारथी |  महारथी का अर्थ ही है महान |

आपस में क्या-क्या प्लान बनाया है ?  ऐसा प्लैन बनाया जो इस प्लैन से नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में हो जाए |  नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में आना अर्थात् पुराणी दुनिया की कोई भी बात फिर से प्रैक्टिकल में न आये |  सब लोग कहते हैं |  फिर कोई मन में कहते हैं, कोई मुख से कहते हैं कि प्लैन्स तो बहुत बनते हैं, अब प्रैक्टिकल में देखें |  लेकिन यह संकल्प भी सदा के लिए मिटाना यह महारथी का काम है |  सभी की नज़र अभी भी मधुबन में विशेष मुख्य रत्नों पर है |  तो उस नज़र में ऐसे दिखाना है जो उनको नज़र आप लोगों की बदली हुयी नज़रों को ही देखें |  तो अब वह पुरानी नज़र नहीं, पुरानी वृत्ति नहीं |  तब अन्तिम नगाड़ा बजेगा |  यह संगठन कॉमन नहीं है, यह संगठन कमाल का है |  इस संगठन से ऐसा स्वरुप बनकर निकलना है जो सभी को साक्षात् बापदादा के ही बोल महसूस हों |  बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आयें |  अपने संस्कार नहीं |  सभी संस्कारों को मिटाकर कौन से संस्कार भरने हैं ?  बापदादा के |  तो सभी को साक्षात्कार हो कि यह साक्षात् बापदादा बनकर ही निकले हैं |  ऐसा सभी को कराना है |  कोई भी पुराना संकल्प वा संस्कार सामने आये ही नहीं |  पहले यह भेंट करो, यह बापदादा के संस्कार हैं ?  अगर बापदादा के संस्कार नहीं तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करो |  बुद्धि में संकल्प रूप से ही टच न हो |  जैसे क्रिमिनल चीज़ को टच नहीं करते हो वैसे ही अगर बापदादा के समान संस्कार नहीं है तो उन संस्कारों को भी टच नहीं करना है |  जैसे नियम रखते हो ना कि यह नहीं करना है तो फिर भल क्या भी परिस्थिति आती है लेकिन वह आप नहीं करते हो |  परिस्थिति का सामना करते हो, क्योंकि लक्ष्य है यह करना है |  वैसे ही जो अपने संस्कार बापदादा के समान नहीं है उनको बिलकुल टच करना नहीं है |  ऐसे समझो |  देह और देह के सम्बन्ध यह सीढ़ी तो चढ़ चुके हो |  लेकिन अब बुद्धि में भी संस्कार इमर्ज न हों |  जैसे संस्कार होंगे वैसा स्वरुप होगा |  किसके संस्कार सरल, मधुर होते हैं तो वह संस्कार स्वरुप में आते हैं |

जब संस्कार बापदादा के समान बन जायेंगे तो बापदादा के स्वरुप सभी को देखने आएंगे |  जैसे बापदादा वैसे हूबहू वाही गुण, वाही कर्त्तव्य, वे ही बोल, वे ही संकल्प होने चाहिए फिर सभी के मुख से निकलेगा यह तो वाही लगते हैं |  सूरत अलग होगी, सीरत वही होगी |  लेकिन सूरत में सीरत आणि चाहिए |  अब बापदादा बच्चों से यही  उम्मीद रखते हैं |  सभी हैं ही स्नेही सफलता के सितारे |  पुरुषार्थी सितारे |  सर्विसएबुल बच्चों का पुरुषार्थ सफलता सहित होता है |  निमित्त पुरुषार्थ करेंगे लेकिन सफलता है ही है |  अब समझा क्या करना है ?  जो सोचेंगे, जो कहेंगे वही करेंगे |  जब ऐसे शब्द सुनते हैं कि सोचेंगे, देखेंगे, विचार तो ऐसा है |  तो हँसते हैं अब तक यह क्यों ?  अब यह बातें ऐसी लगती है जैसे बुज़ुर्ग होने की बाद कोई गुड्डियों का खेल करे तो क्या लगता है ?  तो बापदादा भी मुस्कुराते हैं – बुज़ुर्ग होते भी कभी-कभी बचपन का खेल करने में लग जाते हैं |  गुड्डियों का खेल क्या होता है, मालूम है ?  साड़ी जीवन उनकी बना देते हैं, छोटे से बड़ा करते, फिर स्वयंवर करते |  |  |  | वैसे बच्चे भी कई बातों की, संकल्पों की रचना करते हैं फिर उसकी पालना करते हैं फिर उनको बड़ा करते हैं फिर उनसे खुद ही तंग होते हैं |  तो यह गुड्डियों का खेल नहीं हुआ ?  खुद ही अपने से आश्चर्य भी खाते हैं |  अब ऐसी रचना नहीं रचनी है |  बापदादा व्यर्थ रचना नहीं रचते हैं |  और बच्चे भी व्यर्थ रचना रचकर फिर उनसे हटने और मिटने का पुरुषार्थ करते हैं |  इसलिए ऐसी रचना नहीं रचनी है |  एक सेकंड में सुलटी रचना भी क्विक रचते हैं और उलटी रचना भी इतनी तेज़ी से होती है |  एक सेकंड में कितने संकल्प चलते हैं |  रचना रचकर उसमे समय देकर फिर उनको ख़त्म करने लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता है ?  अब इस रचना को ब्रेक लगाना है |  

वह बर्थ कण्ट्रोल करते हैं ना |  यह भी संकल्पों की उत्पत्ति होती है, तो यह भी बर्थ(जन्म) है |   वहाँ वह जनसँख्या अति में जाती है और यहाँ फिर संकल्पों की संख्या अति होती है |  अब इसको कण्ट्रोल करना है |  पुरुषार्थ की कमजोरी के कारण संकल्पों की रचना होती है, इसलिए अब इनको नाम निशाँ से ख़त्म कर देना है |  पुरानी बातें, पुराने संस्कार ऐसे अनुभव हों जैसे कि नामालुम कब की पुरानी बात है |  ऐसे नाम निशान ख़त्म हो जाए |  अब भाषा बदलनी है |  कई ऐसे बोल अब तक निकलते हैं जो सम्पूर्णता की स्टेज अनुसार नहीं है |  इसलिए अब से संकल्प ही वही करना है, बोल भी वही, कर्म भी वही करनी है |  इस भट्ठी के बाद सभी की सूरत में सम्पूर्णता की झलक देखने में आये |  जब आप लोग अभी से सम्पूर्णता को समीप लायेंगे तब नंबरवार और भी समीप ला सकेंगे |  अगर आप लोग ही अंत में लायेंगे तो दुसरे क्या करेंगे ?  साकार रूप ने सम्पूर्णता को साकार में लाया |  सम्पूर्णता साकर रूप में संपन्न देखने में आती थी |  सम्पूर्ण और साकार अलग देखने में आता था |  वैसे ही आपका साकार स्वरुप अलग देखने में नहीं आये |  साकार रूप में मुख्य गुण क्या स्पष्ट देखने में आये ?  जिस गुण से सम्पूर्णता समीप देखने आती थी ?  वह क्या गुण था ?  जिस गुण को देख सभी कहते थे कि साकार होते भी अव्यक्त अनुभव होता है |  वह क्या गुण था ?  (हरेक ने सुनाया) सभी बातों का रहस्य तो एक ही है |  लेकिन इस स्थिति को कहा जाता है-उपराम |  अपने देह से भी उपराम |  उपराम और दृष्टा |

जो साक्षी  बनते हैं उनका ही दृष्टांत देने में आता है |  तो साक्षी दृष्टा का साबुत और द्रष्टान्त के रूप में सामने रखना है |  एक तो अपनी बुद्धि से उपराम |  संस्कारों से भी उपराम |  मेरे संस्कार हिं इस मेरेपन से भी उपराम |  संस्कारों से भी उपराम |  मेरे संस्कार हैं इस मेरेपन से भी उपराम |  में यह समझती हूँ, इस मैं-पन से भी उपराम |  मैं तो यह समझती हूँ |  नहीं |  लेकिन समझो बापदादा की यही श्रीमत है |  जब ज्ञान की बुद्धि के बाद मैं-पन आता है तो वह मैं-पन भी नुकसान करता है |  एक तो मैं शरीर हूँ यह छोड़ना है, दूसरा मैं समझती हूँ, मैं ज्ञानी आत्मा हूँ, मैं बुद्धिमान हूँ, यह मैं-पन भी मिटाना है |  जहाँ मैं शब्द आता है वहां बापदादा याद आये |  जहाँ मेरी समझ आती है वहां श्रीमत याद  आये |  एक तो मैं-पन मिटाना है दूसरा मेरा-पन |  वह भी गिरता है |  यह मैं और मेरा तुम और तेरा यह चार शब्द हैं इनको मिटाना है |  इन चार शब्दों ने ही सम्पूर्णता से दूर किया है |  इन चार शब्दों को सम्पूर्ण मिटाना है |  साकार के अन्तिम बोल चेक किये, हर बात में क्या सुना ?  बाबा-बाबा |  सर्विस में सफलता न होने की करेक्शन भी कौन सी बात में थी ?  समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा कहकर बोलो तो किसको भी तीर लग जायेगा |  जब बाबा याद आता तो मैं-मेरा,तू-तेरा ख़त्म हो जाता है |  फिर क्या अवस्था हो जाएगी ?  सभी बातें प्लेन हो जायेंगी फिर प्लेन याद में ठहर सकेंगे |

अभी बिंदी रूप में स्थित होने में मेहनत लगती है ना |  क्यों ?  सारा दिन की स्थिति प्लेन न होने कारण प्लेन याद ठहरती नहीं |  कहाँ न कहाँ मैं-पन, मेरापन, तू, तेरा आ जाता है |  शुरू में सुनाया था न कि सोने की ज़ंजीर भी कम नहीं नही |  वह ज़ंजीर अपने तरफ खींचती हैं |  हरेक अपने को चेक करे |  बिलकुल उपराम-बुद्धि, बिलकुल-प्लेन |  अगर रास्ता क्लियर होता है तो पहुँचने में कितना टाइम लगता है ?  उसी रास्ते में रुकावट है तो पहुँचने में भी टाइम लग जाता |  रूकावट है तब प्लेन याद में भी रुकावट है |  अब इसको मिटाना है |  जब आप करेंगे आपको देखकर सभी करेंगे |  नंबरवार स्टेज पर पहुंचना है |  आप लोग पहुंचेंगे तब दुसरे पहुंचेंगे |  इतनी जिम्मेवारी है |  संकल्प में, वाणी में, कर्म में वा सम्बन्ध में वा सर्विस में अगर कोई भी हद रह जाती है तो वह बाउंड्रीज़ जो हैं वह बाँडेज में बाँध देती हैं |  बेहद की स्थिति में होने से ही बेहद के रूप में स्थित हो जायेंगे |  अब जो कुछ खाद है उनको मिटाना है |  खाद को मिटाने लिए यह भट्ठी है |  जब संगठन हो तो साक्षात् बापदादा के स्वरूपों का संगठन हो |  अब यह सम्पूर्णता की छाप लगानी है |  सम्पूर्ण अवस्था वर्तमान समय से ही हो |  यह है महारथियों का कर्त्तव्य |  अब और क्या करना है ?  स्कॉलरशिप कौन सा लेते है ?  स्कॉलरशिप लेने वाले का अब प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता जायेगा |  ऐसे नहीं कि बापदादा गुप्त रहे तो हम बच्चों को भी गुप्त रहना है |  नहीं |  बच्चों को स्टेज पर प्रत्यक्ष होना है |  प्रत्यक्षता बच्चों की होनी है |  सर्विस के स्टेज पर भी प्रत्यक्ष कौन हैं ?  तो सम्पूर्णता की प्रत्यक्षता भी स्टेज पर लानी है |  ऐसे नहीं समझो अंत तक गुप्त ही रहेंगे |  बापदादा का गुप्त पार्ट है, बच्चों का नहीं |  तो अब वह प्रत्यक्ष रूप में लाओ |  अब मालूम हैं सर्विस कौन सी करनी है ?  सम्मेलन किया, बस यही सर्विस है ?  इनके साथ-साथ और श्रेष्ठ सर्विस कौन सी करनी है ?

अब मुख्य सर्विस है ही अपनी वृत्ति और दृष्टि को पलटाना |  यह जो गायन है नज़र से निहाल, तो दृष्टि और वृत्ति की सर्विस यह प्रैक्टिकल में लानी है |  वाचा तो एक साधन है लेकिन कोई को सम्पूर्ण स्नेह और सम्बन्ध में लाना उसके लिए वृत्ति और दृष्टि की सर्विस हो |  यह सर्विस एक स्थान पर बैठे हुए एक सेकंड में अनेकों की कर सकते हैं |  यह प्रत्यक्ष साबुत देखेंगे |  जैसे शुरू में बापदादा का साक्षात्कार पर बैठे हुआ ना |  वैसे अब दूर बैठे आपकी पावरफुल वृत्ति अ इसा कार्य करेगी जैसे कोई हाथ से पकड़ कर लाया जाता है |  कैसा भी नास्तिक तमोगुणी बदला हुआ देखने में आएगा |  अब वह सर्विस करनी है | लेकिन यह सर्विस सफलता को तब पायेगी जब वृत्ति और बैटन में क्लियर होगी |  जिम्मेवारी तो हरे अपनी समझते ही हैं |  हरेक को अपनी सर्विस होते हुए भी यज्ञ की जिम्मेवारी भी अपने सेंटर की जिम्मेवारी के समान ही समझना है |  खुद ऑफर करना है |  वाणी के साथ-साथ वृत्ति और दृष्टि में इतनी ताक़त है, जो किसके संस्कारों को बहुत कम समय में बदल दकते हो |  वाणी के साथ वृत्ति और दृष्टि नहीं मिलती तो सफलता होती ही नहीं |  मुख्य यह सर्विस है |  अभी से ही बेहद की सर्विस पर बेहद की आत्माओं को आकर्षित करना है |  जिस सर्विस को आप सर्विस समझते हो प्रजा बनाने की, वह तो आप की प्रजा के भी प्रजा खुद बनने हैं, वह तो प्रदर्शनियों में बन रहे हैं |  अभी तो आप लोगों को बेहद में अपना सुख देना है तब सारा विश्व आपको सुखदाता मानेगा |  विश्व महाराजन को विश्व का डाटा कहते हैं ना |  तो अब आप भी सभी को सुख देंगे तब सभी तुमको सुखदाता मानेंगे |  सुख देंगे तब तो मानेंगे | इसलिए अब आगे बढ़ना है |  एक सेकंड में अनेकों की सर्विस कर सकते हो |  कोई भी बात में फील करना फ़ैल की निशानी है |  कोई भी बात में फील होता है, कोई के संस्कारों में, सम्पर्क में, कोई की सर्विस में फील किया माना फ़ैल |  वह फिर फ़ैल जमा होता है |  जैसे आजकल रिवाज़ है, तीन-तीन मास में परीक्षा होती है, उसके लिए फ़ैल वा पास के नंबर फाइनल में मिलाते हैं |  जो बार-बार फ़ैल होता है वह फाइनल में फ़ैल हो पड़ते हैं |  इसलिए बिलकुल फ्लोलेस बनना है |  जब फ्लोलेस बनें तब समझो फुल पास |  कोई भी फ्लो होगा तो फुल पास नहीं होंगे |  

ओम शांति

02-04-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


 “सम्पूर्ण स्टेज की निशानियाँ 

सभी के अन्दर सुनने का संकल्प है। बापदादा के अन्दर क्या है? बापदादा सुनने सुनाने से परे ले जाते हैं। एक सेकंड में आवाज़ से परे होना आता है? जैसे आवाज़ में कितना सहज और जल्दी आते हो वैसे ही आवाज़ से परे भी सहज और जल्दी जा सकते हो? अपने को क्या कहलाते हो? मास्टर सर्वशक्तिमान। अब मास्टर सर्वशक्तिमान का नशा कम रहता है, इसलिए एक सेकंड में आवाज़ में आना, एक सेकंड में आवाज़ से परे हो जाना इस शक्ति की प्रैक्टिकल-झलक चेहरे पर नहीं देखते। जब ऐसी अवस्था हो जाएगी, अभी-अभी आवाज़ में, अभीअभी आवाज़ से परे। यह अभ्यास सरल और सहज हो जायेगा तब समझो सम्पूर्णता आई है। सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यह है। सर्व पुरुषार्थ सरल होगा। पुरुषार्थ में सभी बातें आ जाती हैं। याद की यात्रा, सर्विस दोनों पुरुषार्थ में आ जाते हैं। जब दोनों में सरल अनुभव हो तब समझो सम्पूर्णता की अवस्था प्राप्त होने वाली है। सम्पूर्ण स्थिति वाले पुरुषार्थ कम करेंगे, सफलता अधिक प्राप्त करेंगे। अभी पुरुषार्थ अधिक करना पड़ता है उसकी भेंट में सफलता कम है। आज बापदादा सभी की सूरत में एक विशेष बात चेक कर रहे थे। देखें किसको टच होती है, कौनसी बात चेक कर रहे थे? जब थॉट रीडर्स कैच कर सकते हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान नहीं कर सकते हैं? यह जो भट्ठी हुई उन्हों का पेपर नहीं लिया है। तो आज पेपर लेते हैं। पास तो सभी हो ही। एक होते हैं पास दूसरे होते हैं पास विद ऑनर। पाण्डव सेना जो है वह शक्तियों के आगे रहते हैं। कोई आगे कोई पीछे रहते हैं (गोपों से) आप शक्तियों के आगे हो या पीछे हो? आगे जो दौड़ने चाहेंगे उनको कोई रोक नहीं सकता। अपनी रुकावट रोक सकती है। बाकी कोई के रोकने से नहीं रुक सकता। वैसे पाण्डवों को पीछे रहना ही आगे होना है। पीछे किसलिए रहते हैं? गार्ड पीछे रहता है। आप पीछे वाले गार्ड हो या आगे वाले? कौन सी जगह अच्छी लगती है? गार्ड पीछे रहता है गाइड आगे रहता है। तो गाइड तो आगे है ही। नहीं तो पाण्डवों को गार्ड बनाकर शक्तियों की रखवाली के लिए निमित्त बनाया हुआ है। पाण्डवों को पीछे रह कर शक्तियों को आगे करना है। गाइड नहीं बनना है। गार्ड बनना है। आप कौन से पुरुषार्थियों की लाइन में हो। पुरुषार्थियों की लितनी लाइनें बनी हुई हैं?

अब बापदादा ऐसा मास्टर सर्वशक्तिमान बनाने की पढ़ाई पढ़ा रहे हैं, जो किसके भी सूरत में उसकी स्थिति और संकल्प स्पष्ट समझ सको। शक भी न रहे। स्पष्ट मालूम पड़ जाये। यह है अंतिम पढ़ाई की स्टेज। साकार रूप में थोड़ी सी झलक अंत में दिखाई। जो साकार रूप में साथ थे उन्होंने कई ऐसी बातें नोट की हैं। ऐसी ही स्थिति नंबरवार सभी बच्चों की होनी है। जब ऐसी स्थिति होती जाएगी तब अन्तिम स्वरुप और भविष्य स्वरुप आप सभी की सूरत से सभी को स्पष्ट दिखने में आएगा। जब तक साक्षात् साकार रूप नहीं बने हैं तब तक साक्षात्कार नहीं हो सकता है। इसलिए इस सब्जेक्ट पर अति समीप रत्नों को ध्यान देना है। जितना समीप उतना ही स्वयं भी स्पष्ट और दूसरे भी उनके आगे स्पष्ट दिखाई देंगे। जितना-जितना जिसका पुरुषार्थ स्पष्ट होता जाता है उतना ही उनकी प्रालब्ध स्पष्ट होती जाती है, और अन्य भी उनके आगे स्पष्ट होते जाते हैं। स्पष्ट अर्थात् संतुष्ट। जितना संतुष्ट होंगे उतना ही स्पष्ट होंगे। स्पष्ट बच्चों को साकार रूप में कौन से शब्द कहते थे? साफ़ और सच्चा। जिसमें सच्चाई और सफाई है वह सदैव स्पष्ट होता है। जब सफाई होती है तो भी सभी वस्तु स्पष्ट देखने में आती है। यह लेसन भट्ठी की पढ़ाई का लास्ट लेसन है। यही एग्जाम्पल बनना है। जो किसी भी बात में एग्जाम्पल बनते हैं उनको उसका फल एग्ज़ाम में एक्स्ट्रा मार्क्स मिलते हैं। चार सब्जेक्ट्स विशेष ध्यान में रखनी हैं। एक याद का बल, स्नेह का बल, सहयोग का बल और सहन का बल। यह चार बातें विशेष इस भट्ठी की सब्जेक्ट्स थी।

इन चार बातों में बापदादा ने रिजल्ट क्या निकाली? हर्ष की ही रिजल्ट है। सभी बल एक समान होने में कुछ परसेंटेज की कमी है। बल चारों ही हैं लेकिन चारों की ही समानता हो। उसमें परसेंटेज की कमी है। तो रिजल्ट क्या हुई? ७५% पास। बाकि जो २५% कमी है, वह सिर्फ उसकी है कि सर्व बल समान हों। कोई में कोई बल विशेष है, कोई में कोई बल विशेष है। चारों बल जब समान हों तब समझो सम्पूर्ण। (इस अवस्था में शरीर छुट जाए तो भविष्य रिजल्ट क्या होगी?) जो ऐसे पुरुषार्थी होते हैं फिर भी हिम्मतवान तो हैं ना। तो बापदादा की भी प्रतिज्ञा की हुई है बच्चों से, कि हिम्मते बच्चे मददे बाप। ऐसी हिम्मत रख चलने वाले अंत तक इस ही हिम्मत में रहते रहेंगे तो ऐसे हिम्मतवान बच्चों को कुछ मदद मिल जाती है। सभी से बुद्धियोग हटाकर अंत में एक की याद में रहने का जो पुरुषार्थी है, उसे मदद मिलने के कारण सहज हो जाता है। स्कॉलरशिप मिलेगी वा नहीं वह फिर है अंत तक हिम्मत रखने पर। जितना बहुत समय से हिम्मत में चलते रहते हैं वह बहुत समय का लिंक टूटा नहीं तो गेलप कर सकता है। अगर अभी भी कारणे अकारणे बहुत समय के हिम्मत का लिंक टूट जाता है तो फिर स्कॉलरशिप लेना मुश्किल है। अगर बहुत समय का लिंक अंत तक रहा तो एक्स्ट्रा हेल्प मिल सकती है। इसलिए अब यही लास्ट लेसन पक्का करा रहे हैं।

अभी तक टोटल रिजल्ट में क्या देखा? सर्विस की सब्जेक्ट में इंचार्ज बनना आता है लेकिन याद की सब्जेक्ट में बैटरी चार्ज करना बहुत कम आता है। समझा। साकार रूप में अनुभव देखा। साकार रूप में सर्विस की जिम्मेवारी सभी से ज्यादा थी। बच्चों में उनसे कितनी कम है। बच्चों को सिर्फ सर्विस की ड्यूटी है। लेकिन साकार रूप में तो सभी ड्यूटी थी। संकल्पों का सागर था। रेस्पोंसिबिलिटी के संकल्पों में थे फिर भी सागर की लहरों में देखते थे वा सागर के तले में देखते थे? बच्चों को लहरों में लहराना आता है लेकिन तले में जाना नहीं आता। उनका सहज साधन पहले सुनाया कि प्रैक्टिस करो। अभी-अभी आवाज़ में आये, फिर मास्टर सर्वशक्तिमान बन अभी-अभी आवाज़ से परे। अभी-अभी का अभ्यास करो। कितने भी कारोबार में हो लेकिन बीच-बीच में एक सेकंड भी निकाल कर इसका जितना अभ्यास, जितनी प्रैक्टिस करेंगे उतना प्रैक्टिकल रूप बनता जायेगा। प्रैक्टिस कम है इसलिए प्रैक्टिकल रूप नहीं। कभी सागर की लहरों में कभी तले में यह अभ्यास करो। आज विशेष बात यही चेक कर रहे थे कि बच्चों में जितना ही साहस है उतनी ही सहनशक्ति है? साहस रखने की शक्ति कितनी है और सहन शक्ति कितनी है? यह देख रहे थे। जितना-जितना स्वयं पुरुषार्थ में संतुष्ट और स्पष्ट होंगे उतना और उनके आगे स्पष्ट दिखाई देंवे। अब पेपर भी हुआ, रिजल्ट भी सुनाई। बाकी पाण्डवों की बात रह गयी। बापदादा के पास पुरुषार्थियों की कितनी लाइनें हैं? औरों को न देख अपनी लाइन को तो देखते होंगे वा लाइन को भी न देख अपने को देखते हो? एक है तीव्र पुरुषार्थियों की लाइन, दूसरी है पुरुषार्थियों की लाइनें, तीसरी है गुप्त पुरुषार्थियों की लाइनें और चौथी हैं ढीले पुरुषार्थियों की लाइन। अब बताओ आप किस लाइन में हो? अब ऐसा समय जल्दी आएगा जो यह शब्द नहीं बोलेंगे कि आप जानो। नहीं। हम सभी जानते हैं। क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिमान हैं ना। सभी शक्तियां समान रूप में ही जाएँगी। फिर मास्टर सर्वशक्तिमान हो जायेंगे। बाप का इतना निश्चय है। निश्चयबुद्धि है, वह विजयी है ही। बाप और स्वयं में निश्चयबुद्धि हैं तो विजय कहाँ जाएगी। निश्चयबुद्धि के पीछे-पीछे विजय आती हैं। वह विजय के पीछे नहीं दौड़ते, विजय उनके पीछे दौड़ती है। हम विजयी बनें इस संकल्प का भी वह त्याग कर लेते। ऐसे सर्वस्व त्यागी हो? सर्वस्व त्यागी और सर्व संकल्पों के त्यागी। सिर्फ सर्व संबंधों का त्याग नहीं। सर्व संकल्पों से भी त्यागी। यही सम्पूर्ण स्थिति है। बापदादा क्या देखते हैं? विजय का सितारा। तो बापदादा की लिस्ट में विजयी सितारे हो। जैसे और कार्य में एक दो के सहयोगी हो वैसे ही भविष्य में भी एक दो के सहयोगी देखने में आ रहे हो। बनना नहीं है देखने में आ रहे हो। इतना ही समीप आना है, जितना अब आवाज़ कर रहे हैं और पहुँच रहा है। अब आप लोगों को सर्व बातों में थोड़े समय में पूरा फॉलो करना है। कर रहे हो और करते ही रहेंगे।

आप लोगों का जो पहले-पहले संगठन बनाया था वह क्या कर रहे हैं? किसलिए संगठन बनाया था? यज्ञ की संभाल के साथ संगठन में रहने वाले स्वयं की भी संभाल कर रहे हैं? जो स्वयं की संभाल करते हैं वह यज्ञ की भी संभाल करते हैं। जो स्वयं की संभाल नहीं कर सकते हैं वह यज्ञ की भी संभाल नहीं कर सकते हैं। इस संगठन को क्या-क्या करना है यह उन्हों को भी स्पष्ट नहीं है, इसलिए फिर जब सहज हो सके तब साथियों को बुलाना। जब आप बुलाएँगे तब बापदादा आएंगे। बापदादा को आने में देरी नहीं लगती है। अपनी ग्रुप की फिर कब देख रेख की? पाण्डव ग्रुप और शक्ति ग्रुप, यह है सर्विस ग्रुप। लेकिन जो पांडवों का ग्रुप और यज्ञ माताओं का ग्रुप था उसका क्या हालचाल है? मुख्य केन्द्र के समीप आने से देखरेख कर सकेंगे। इन ग्रुप को अपना कर्त्तव्य ही है। सिर्फ ८ दिन का नहीं। (सम्मेलन की रिजल्ट?) जो भट्ठी की रिजल्ट बताई वही सम्मेलन की रिजल्ट है। चारों ही बल समान हो, उसमें २५% की कमी सुनाई। समझा। पास विद ऑनर होते तो ना मालूम क्या होता। सब पास(समीप) आ जाते। अभी सिर्फ आवाज़ किया है। ललकार नहीं की है। इसकी भी युक्ति बताई कि चारों बल की समानता होनी चाहिए। कब किस बल की विशेषता कब किस बल की। लेकिन चारों बल समान रख सर्विस करने से ललकार होगी। ललकार न होने का भी कारण है।सम्मेलन की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन टोटल आवाज़ निकलता है अब ललकार नहीं निकलती है। आवाज़ फैलाया है। सोये हुए को जगाया नहीं है, सिर्फ करवट बदलाया है। ललकार न होने का कारण क्या है? बताओ। ललकार तब होगी जब कोई भी बात को अंगीकार नहीं करेंगे। अभी क्या होता है कई बातों को अंगीकार कर लेते हैं, चाहे स्थूल चाहे सूक्ष्म। जब कोई भी संकल्प में भी अंगीकार वा स्वीकार न हो तब ललकार हो। अभी मिक्स है। इसलिए रिजल्ट भी मिक्स है। जो कल्प पहले फिक्स हुए रिजल्ट हैं वह अब नहीं है। उस फिक्स को भी जानते हो, अब मिक्स हैं। समझा। अपनेपन को भी अंगीकार न करे। मैं यह हूँ, मैं सर्विसएबुल हूँ। मैं महारथी हूँ, मैं यह करती हूँ, यह किया... इन सबका मैं-पन निकालकर बाबा बाबा शब्द आएगा तब ललकार होगी। परमात्म में ही परम बल होता है। आत्माओं में यथाशक्ति होती है। तो बाबा कहने से परम बल आएगा। मैं कहने से यथाशक्ति बल आता है। इसलिए रिजल्ट भी यथाशक्ति होती है।

अब भाषा भी चेंज हो। साकार रूप में सभी दिखाया। कब कहा कि मैं यह चला रहा हूँ? मैंने मुरली अच्छी चलाई कब कहा? मैंने सर्विस की, मैंने बच्चों को टच किया कब कहा। यह अंगीकार करना ख़त्म हो जाना है। इसको कहा जाता है जो वायदा किया है वह निभाना। आप लोग एक गीत गाते थे तुम्हीं पर मर मिटेंगे हम... याद आता है? मर मिटना किसको कहा जाता है? मैं पन मिटाना यही मर मिटना है। अंगीकार न करो तो ललकार कर सकते हो। कोई भी बात न निन्दा-स्तुति, न मैं, न तुम, न मेरा तेरा कुछ भी अंगीकार(स्वीकार) न करना तब ललकार होगी। आप मन में संकल्प पीछे करते हो। आप के मन में संकल्प पहुंचे ही वहां पहुँच जाता है। क्यों पहले पहुँचता है यह भी गुह्य पहेली है। आप लोग मन में जो संकल्प करते हो वह आपके मन में पीछे आता है उनके पहले बापदादा के पास स्पष्ट हो जाता है। क्योंकि सम्पूर्ण बनने से ड्रामा क हर नूंध स्पष्ट देखने में आती है। इसलिए ड्रामा की नूंध को पहले से ही स्पष्ट देख सकते। इसलिए भविष्य देख करके पहले से बात करते हैं। पहले से जैसे कि पहुंचा ही हुआ है। फिर जब आप लोग पार्ट बजाते हो, बापदादा भी पार्ट बजाते हैं। आप रूहरूहान करने का पार्ट बजाते हो, बापदादा सुनने का पार्ट बजाते हैं। समझा। जो जैसा है वैसा स्वयं को पूरा न भी जान सके लेकिन बापदादा जान सकते हैं। तो अब चारों बल समानता में लाने हैं। तब साकार के समान बन जायेंगे। जितना संस्कारों को समानता में लावेंगे उतना ही समीप आयेंगे। कौन से संस्कार? साकार रूप के संस्कार उपराम और साक्षी दृष्टा यह साकार के सम्पूर्ण स्थिति के श्रेष्ठ लक्षण थे। इन संस्कारों में समानता लानी है। इन गुणों से सर्व के दिलों पर विजयी होंगे। जो संगम पर सर्व के दिलों पर विजयी बनता है वही भविष्य में विश्व महाराजन बनते हैं। विश्व में सर्व आ जाते हैं। तो बीज यहाँ डालना है फल वहां लेना है।

अच्छाओम शान्ति !!!


05-04-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन 


सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो

सभी सुनने चाहते हो वा सम्पूर्ण बनने चाहते हो? सम्पूर्ण बनने के बाद सुनना होता होगा? पहले है सुनना फिर है सम्पूर्ण बन जाना। इतनी सभी पॉइंट सुनी है उन सभी पॉइंट का स्वरुप क्या है जो बनना है? सर्व सुने हुए पॉइंट का स्वरुप क्या बनना है? सर्व पॉइंट का सार व स्वरुप पॉइंट(बिंदी) ही बनना है। सर्व पॉइंट का सार भी पॉइंट में आता है तो पॉइंट बनना है। पॉइंट अति सूक्ष्म होता है जिसमे सभी समाया हुआ है। इस समय मुख्य पुरुषार्थ कौन-सा चल रहा है? अभी पुरुषार्थ है विषार को समाने का। जिसको विस्तार को समाने का तरीका आ जाता है वाही बापदादा के समान बन जाते हैं। पहले भी सुनाया था ना कि समाना और समेटना है। जिसको समेटना आता है उनको समाना भी आता है। बीज में कौन सी शक्ति है? वृक्ष के विस्तार को अपने में समाने की। तो अब क्या पुरुषार्थ करना है? बीज स्वरुप स्थिति में स्थित होने का अर्थात् अपने विस्तार को समाने का। तो यह चेक करो। विस्तार करना तो सहज है लेकिन विस्तार को समाना सरल हुआ है? आजकल साइंस वाले भी विस्तार को समेटने का ही पुरुषार्थ कर रहे हैं। साइंस पॉवर वाले भी तुम साइलेंस की शक्ति वालों से कॉपी करते हैं। जैसे-जैसे साइलेंस की शक्ति सेना पुरुषार्थ करती है वैसा ही वह भी पुरुषार्थ कर रहे हैं। पहले साइलेंस की शक्ति सेना इन्वेंशन करती है फिर साइंस अपने रूप से इन्वेंशन करती है। जैसे-जैसे यहाँ रिफाइन होते जाते हैं वैसे ही साइंस भी रिफाइन होती जाती है। जो बातें पहले उन्हों को भी असंभव लगती थी वह अब संभव होती जा रही हैं। वैसे ही यहाँ भी असंभव बातें सरल और संभव होती जाती हैं। अब मुख्य पुरुषार्थ यही करना है कि आवाज़ में लाना जितना सहज है उतना ही आवाज़ से परे जाना सहज हो। इसको ही सम्पूर्ण स्थिति के समीप की स्थिति कहा जाता है।

यह ग्रुप कौन-सा है? इस ग्रुप के हरेक मूरत में अपनी-अपनी विशेषता है। विशेषता के कारन ही सृष्टि में विशेष आत्माएं बने हैं। विशेष आत्माएं तो हो ही। अब क्या बनना है? विशेष हो, अब श्रेष्ठ बनना है। श्रेष्ठ बन्ने के लिए भट्ठी में क्या करेंगे? इस ग्रुप में एक विशेषता है जो कोई में नहीं थी। वह कौन सी एक विशेषता है? अपनी विशेषता जानते हो? इस ग्रुप की यही विशेषता देख रहे हैं कि पुरुषार्थी की लेवल में एक दो के नजदीक हैं। हरेक के मन में कुछ करके दिखाने का ही उमंग है। इसलिए इस ग्रुप को बापदादा यही नाम दे रहे हैं – होवनहार और उम्मीदवार ग्रुप और यही ग्रुप है जो सृष्टि के सामने अपना असली रूप प्रत्यक्ष करके दिखा सकते हैं। मैदान में कड़ी हुई सेना यह है। आप लोग तो बैकबोन हो। तो बापदादा के कर्त्तव्य को प्रत्यक्ष करने की यह भुजाएं हैं। मालूम है कि भुजाओं में क्या-क्या अलंकार होते हैं? बापदादा की भुजाएं अलंकारधारी हैं। तो अपने आप से पूछो कि हम भुजाएं अलंकारधारी हैं? कौन-कौन से अलंकार धारण किये हुए मैदान पर उपस्थित हो? सर्व अलंकारों को जानते हो ना? तो अलंकारधारी भुजाएं हो? अलंकारधारी शक्तियां ही बापदादा का शो करती हैं। शक्तियों की भुजाएं कभी भी खली नहीं दिखाते। अलंकार कायम होंगे तो ललकार होगी। तो बापदादा आज क्या देख रहे है? एक-एक भुजा के अलंकार और रफ़्तार। इस ग्रुप को भट्ठी में क्या करायेंगे? शक्तियों का मुख्य गुण क्या है? इस ग्रुप में एक शक्तिपन का पहला गुण निर्भयता और दूसरा विस्तार को एक सेकंड में समेटने की युक्ति भी सिखाना। एकता और एकरस। अनेक संस्कारों को एक संस्कार कैसे बनायें। यह भी इस भट्ठी में सिखाना है। कम समय और कम बोल लेकिन सफलता अधिक हो। यह भी तरीका सिखाना है। सुनना और स्वरुप बन जाना है। सुनना अधिक और स्वरुप बनना कण, नहीं। सुनते जाना और बनते जाना। जब साक्षात्कार मूर्त्त बनकर जाना, वाचा मूर्ति नहीं। जो भी आप सभी को देखे तो आकरी और अलंकारि देखे। सेन्स बहुत है लेकिन अब क्या करना है? ज्ञान का जो इसेन्स है उसमे रहना है। सेन्स को इसेन्स में लगा देना है। तब ही जो बापदादा उम्मीद रखते हैं वह प्रत्यक्ष दिखायेंगे। इसेन्स को जानते हो ना। जो इस ज्ञान की आवश्यक बातें हैं वही इसेन्स है। अगर वह आवश्यकताएं पूरी हो जाएंगी। अभी कोई-न-कोई आवश्यकएं हैं। लेकिन आवश्यकताओं को सदा के लिए पूर्ण करने के लिए दो आवश्यक बातें हैं। जो बताई – आकारी और अलंकारी बनना। आकारी और अलंकारी बन्ने के लिए सिर्फ एक शब्द धारण करना है। वह कौन-सा शब्द है जिसमे आकारी और अलंकारी दोनों आ जायें? वह एक शब्द है लाइट। लाइट का अर्थ एक तो ज्योति भी है और लाइट का अर्थ हल्का भी है। तो हल्कापन और प्रकाशमय भी। अलंकारी भी और आकारी भी। ज्योति स्वरुप भी, ज्वाला स्वरुप भी और फिर हल्का, आकारी। तो एक ही लाइट शब्द में दोनों बातें आ गई ना। इसमें कर्त्तव्य भी आ जाता है। कर्त्तव्य क्या है? लाइट हाउस बनना। लाइट में स्वरुप भी आ जाता है। कर्त्तव्य भी आ जाता है।

हरेक टीचर्स को बापदादा द्वारा पर्सनल ज्ञान रत्नों की सौगात मिली

टिका क्यों लगाया जाता है? जैसे तिलक मष्तिष्क पर ही लगया जाता है, ऐसे ही बिन्दी स्वरुप यह भी तिलक है जो सदैव लगा ही रहे। दूसरा भविष्य का राज्तिकल यह भी तिलक ही है। दोनों की स्मृति रहे। उसकी निशानी यह तिलक है। निशानी को देख नशा रहे। यह निशानी सदा काल के लिए दी जाती है। जैसे सुनाया था पॉइंट, वैसे यह तिलक भी पॉइंट है। समेटना और समाना आता है? समेटना और समाना यह जादूगरी का काम है। जादूगर लोग कोई भी चीज़ को समेट कर भी दिखाते, समाकर भी दिखाते। इतनी बड़ी चीज़ छोटी में भी समाकर दिखाते। यही जादूगरी सीखनी है। प्रैक्टिस यह करो। विस्तार में जाते फिर वहां ही समाने का पुरुषार्थ करो। जिस समय देखो कि बुद्धि बहुत विस्तार में गई हुई है उस समय यह अभ्यास करो। इतना विस्तार को समा सकते हो? तब आप बाप के समान बनेंगे। बाप को जादूगर कहते हैं ना। तो बच्चे क्या हैं? शीतल स्वरुप और ज्योति स्वरुप, दोनों ही स्वरुप में स्थित होना आता है? अभी-अभी ज्योति स्वरुप, अभी-अभी शीतल स्वरुप। जब दोनों स्वरुप में स्थित होना आता है। तब एकरस स्थिति रह सकती है। दोनों की समानता चाहिए यही वर्तमान पुरुषार्थ है।

यह पुष्प क्यों दे रहे हैं? अनेक जन्मों में जो बाप की पूजा की है वह रेतुर्न एक जन्म में बापदादा देता है। जो न्यारा होता है वही अति प्यारा होता है। अगर सर्व का अति प्यारा बनना है, तो सर्व बातों से जितना न्यारा बनेंगे उतना सर्व का प्यारा। जितना न्यारापन उतना ही प्यारापन। और ऐसे जो न्यारे प्यारे होते हैं उनको बापदादा का सहारा मिलता है। न्यारे बनते जाना अर्थात् प्यारे बनते जाना। अगर मानो कोई आत्मा के प्यारे नहीं बन सकते हैं उसका कारन यही होता है कि उस आत्मा के संस्कार और स्वभाव से न्यारे नहीं बनते। जितना जिसका न्यारापन का अनुभव होगा उतना स्वतः प्यारा बनता जायेगा। प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं, न्यारे बनने का पुरुषार्थ करना है। न्यारे बनने की प्रालब्ध है प्यारा बनने। यह अभी की प्रालब्ध है। जैसे बाप सभी को प्यारा है वैसे बच्चों को सारे जगत की आत्माओं का प्यारा बनने है। उसका पुरुषार्थ सुनाया कि उसकी चलन मे&