02-01-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ज्ञान चन्द्रमा और ज्ञान सितारों की रिमझिम
बच्चों को सर्वश्रेष्ठ तकदीरवान, वर्तमान और भविष्य तख्तनशीन, ऐसे पदमपति बनाने वाले शिव बाबा बोले –
बाप-दादा सभी लवली और लकी बच्चों को देखते हुए हर्षित हो रहे हैं। हरेक के मस्तक पर तकदीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। साकारी सृष्टि की आत्मायें आकाश की तरफ देखती हैं और आकाश से भी परे रहने वाला बाप साकारी सृष्टि में धरती के सितारे देखने आये हैं। जैसे चन्द्रमा के साथ सितारों की रिमझिम अति सुन्दर लगती है वैसे ही ब्रह्मा चन्द्रमा बच्चे अर्थात् सितारों से ही सजते हैं। माँ का स्नेह बच्चों से ज्यादा होता है या बच्चों का माँ से ज्यादा होता है? तो ब्रह्मा का ज्यादा है या ब्राह्मणों का? किसका ज्यादा है? बच्चे खेल में बिज़ी (Busy) होते हैं तो माँ को भूल जाते हैं। माता की ममता बच्चों को याद दिलाती है। ऐसे भी अगर स्नेह नहीं होता तो बच्चों को प्राप्ति भी नहीं होती। आज अमृत वेले विशेष इस समय के मधुबन की संगठित आत्मायें बाप की याद के साथ-साथ ब्रह्मा माँ की याद में ज्यादा थीं। आज वतन में भी बाप सूर्य गुप्त थे लेकिन चन्द्रमा अर्थात् ब्रह्मा -- बड़ी माँ ब्राह्मण बच्चों या सितारों के साथ मिलन मनाने में लवलीन थे। आज वतन में क्या दृश्य था? मात-पिता और बच्चों की रूह-रूहान सदा चलती है लेकिन आज थी माता-पिता की। क्या रूह-रूहान होगी जानते हो?
आज अमृतवेले ब्रह्मा ब्राह्मणों के स्नेह में विशेष थे। क्योंकि मधुबन जो ब्रह्मा की साकार रूप में कर्म-भूमि, सेवा-भूमि या माँ और बाप दोनों रूप से साकार रूप में बच्चों की मिलन-भूमि है, ऐसे स्वयं द्वारा तन और मन द्वारा सजाई हुई ऐसी भूमि पर रिमझिम देख आज ब्रह्मा बाप या माँ को साकार रूप में साकार सृष्टि की विशेष याद आई। ब्रह्मा बोले- ‘‘चन्द्रमा का सितारों से एक-समान रूप के मिलन में अब तक कितना समय है?’’ अर्थात् व्यक्त और अव्यक्त रूप का मिलन कब तक? उत्तर क्या मिला होगा? मणके फिक्स हो गये है, सिर्फ जगह फिक्स करो।
बाप बोले- ‘‘जब माँ कहेगी कि सब एवर रैडी (Eveready) हैं।’’ इसलिए ब्रह्मा माँ परिक्रमा लगाने निकली। चारों ओर का चक्कर लगाते हर ब्राह्मण की रूहानियत देखते रहे। चक्कर लगाने के बाद वतन में जब रूह-रूहान हुई तो ब्रह्मा बोले -- मेरे बच्चे लक्ष्य में नम्बर वन हैं; सबके अन्दर समय का इन्तज़ार है, समय पर तैयार हो ही जायेंगे। बाबा बोले - ‘‘राजधानी तैयार हो गई है? ब्रह्मा आज ब्राह्मण बच्चों की तरफ ले रहे थे। ब्रह्मा बोले 16108 की माला तो तैयार हुई ही पड़ी है। ब्राह्मणों की संख्या कितनी बताते हो? क्या 50 हज़ार से 16108 नहीं निकलेंगे? मणके तैयार हैं लेकिन नम्बरवार पिरोने के लिए लास्ट (Last) सेकेण्ड भी अभी रहा हुआ है, मणके फिक्स (Fix) हो गये हैं, जगह फिक्स नहीं हुई है। जगह में लास्ट सो फास्ट (Fast) हो सकते हैं। आज ब्रह्मा ने 16108 मणकों अर्थात् सभी सहयोगी आत्माओं के तकदीर की लकीर फाइनल (Final) कर दी। इस कारण भाग्य विधाता, भाग्य बाँटने वाला ब्रह्मा को ही कहते हैं और यादगार रूप में भी जन्मपत्री, जन्म दिवस पर या नाम संस्कार पर ब्राह्मण ही जन्म-पत्री बनाते हैं। तो ब्रह्मा माँ ने 16108 मणकों की निश्चित तकदीर सुनाई। आप सब तो उसमें हो न।
आज विशेष ब्रह्मा द्वारा विदेशी या देशी दोनों तरफ के बच्चों की महिमा के गुणगान हो रहे थे। जैसे आदि में आये हुए बच्चों के भाग्य की महिमा है वैसे ही अव्यक्त रूप में पालना लेने वाले नये बच्चों की भी इतनी महिमा है। जैसे आदि में कोई प्रैक्टिकल (Practical) जीवन का प्रभाव नहीं था सिर्फ एक बाप का स्नेह ही प्रमाण था। भविष्य क्या होना है - यह कुछ स्पष्ट नहीं था, गुप्त था। लेकिन आत्माएँ शमा पर पूरे पतंगे थीं। ऐसे ही नये बच्चों के आगे अनेक जीवन के प्रमाण हैं। आदि मध्य अन्त स्पष्ट हैं। 84 जन्मों की जन्म-पत्री स्पष्ट है। पुरूषार्थ और प्रालब्ध दोनों ही स्पष्ट हैं लेकिन बाप अव्यक्त हैं। बाप की पालना अव्यक्त रूप में होते हुए भी व्यक्त रूप का अनुभव कराती है। व्यक्त को अव्यक्त अनुभव करना, समीप और साथ का अनुभव करना यह कमाल नये बच्चों की है। जैसे आदि के बच्चों की कमाल है वैसे ही लास्ट सो फास्ट जाने वालों की भी कमाल है। ऐसी कमाल के गुणगान कर रहे थे। सुना आज की रूह-रूहान।
उलहनों की मालाएं भी खूब थीं। जिन उलहनों की मालाएं बह्मा को स्नेह रूप बना रहीं थी। सुनाया ना, कि आज ब्रह्मा विशेष बच्चों के स्नेह में समाये हुए थे। स्नेह की मूर्ति होते हुए भी ड्रामा की सीट पर सेट (Set) थे। इसलिए स्नेह को समा रहे थे। आप लोग भी सागर के बच्चे समाने वाले हो ना। दिखा भी सकते हो और समा भी सकते हो। मर्ज (Merge) और इमर्ज (Emerge) करना अच्छी तरह से जानते हो ना। क्योंकि हो ही हीरो एक्टर। जब चाहें जैसे चाहें वैसा रूप धारण कर सकते हो। अर्थात् पार्ट बजा सकते हो। अच्छा-
ऐसे सदा स्नेही, सर्व शक्तियों से सम्पन्न, सदा अति प्यारे और अति न्यारे, सदैव अपने तकदीर के चमकते हुए सितारे को देखने वाले, सर्वश्रेष्ठ तकदीरवान, वर्तमान और भविष्य तख्तनशीन, ऐसे पद्मपति सेकेण्ड में स्वयं को या सर्व को परिवर्तन करने वाले विश्व-कल्याणकारी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’
दीदी जी के साथ बातचीत
आज अमृतवेले ब्रह्मा ने जो विशेष आत्माओं की तकदीर की लकीर फाइनल की थी उसमें फाइनल कौन से रतन होंगे? 8 रतन फाइनल हुए होंगे? माँ बाप के पास तो निश्चित हैं ही। बाकी है स्टेज (मंच) पर प्रसिद्ध करना। बाप के पास 108 ही निश्चित हैं। क्यों? बाप के पास भविष्य भी ऐसा ही क्लीयर है जैसे वर्तमान। अनन्य बच्चों के पास भी भविष्य ऐसा ही स्पष्ट होता जा रहा है क्योंकि बाप के साथ सर्व कार्य में समीप और सहयोगी हैं। तो अष्ट रतन चीफ जस्टिस (Chief Justice) हैं। जस्टिस की जजमेण्ट (Judgement) हाँ या ना की फाइनल (Final) होती है। बाप प्रेज़ीडेण्ट (President) है लेकिन बच्चे चीफ जस्टिस हैं। जजमेण्ट बच्चों की है। चीफ जस्टिस की जजमेण्ट सदा यथार्थ होती है। जस्टिस के ऊपर चीफ जस्टिस हाँ या ना कर सकते हैं लेकिन चीफ जस्टिस के जजमेण्ट की बहुत वैल्यु (Value) होती है। इसलिए जब तक भविष्य भी वर्तमान के समान स्पष्ट न हो तो जजमेण्ट यथार्थ कैसे दे सकेंगे? वर्तमान और भविष्य की समानता इसी को ही बाप की समानता कहा जाता है। ऐसी स्टेज (अवस्था) अनुभव में लाई है?
आज साकारी रूप में याद किया था या अव्यक्त रूप में? सितारों को देख चन्द्रमा याद आता है ना इसलिए आज ब्रह्मा ने भी याद किया। अच्छा।
पार्टियों से मुलाकात
गुजरात पार्टी
गुजरात को विशेष लास्ट सो फास्ट जाने का वरदान मिला हुआ है। गुजरात वालों को यह नशा रहता है कि ड्रामा अनुसार हम आत्माओं को विशेष भाग्य प्राप्त है। जैसे स्थान के हिसाब से गुजरात मधुबन के काफी समीप है ऐसे ही पुरूषार्थ में समीपता लाने का स्वत: वरदान भी ड्रामा अनुसार प्राप्त है क्योंकि जैसे स्थान के हिसाब से समीप हो वैसे ज्ञान की धारणा के हिसाब से धारणा योग्य धरती है। जैसे धरती अच्छी होती तो फल जल्दी निकलता है। मेहनत कम और फल ज्यादा निकलता है। तो गुजरात को धरनी का और समीप होने का वरदान है। ऐसी वरदानी आत्माएँ पुरूषार्थ में कितनी तेज़ होंगी? धारणा की सब्जेक्ट1 (Subject) में गुजरात प्रदेश के निवासियों को लिफ्ट (Lift) है। कलियुगी दुनिया के हिसाब से अति तमोप्रधान के हिसाब से फिर भी अच्छी कहेंगे। इसलिए गुजरात को अपने दोनों वरदानों की लिफ्ट (Lift) के आधार से फर्स्ट (First) में पहुँचना चाहिए। वरदानों का लाभ लो तो हर मुश्किल बात सहज अनुभव करेंगे। देखने में अति मुश्किल होगी लेकिन अति सहज रीति से हल हो जायेगा। इसको कहा जाता है पहाड़ भी रूई समान बन जाता। राई फिर भी सख्त होती है, रूई नर्म और हल्की होती है। तो ऐसे अनुभव करते हो?
इस मुरली की विशेष बातें:
1. अष्ट रतन चीफ जस्टिस हैं। जस्टिस के ऊपर चीफ जस्टिस हाँ या ना कर सकते हैं लेकिन चीफ जस्टिस की जजमेंट की बहुत वैल्यु होती है। इसलिए जब तक भविष्य भी वर्तमान समान स्पष्ट न हो, जजमेंट यथार्थ कैसे दे सकेंगे।
2. वर्तमान और भविष्य की समानता इसी को ही बाप की समानता कहा जाता है।
07-01-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विदेशी बाप की विदेशी बच्चों से मुलाकात
अविनाशी खुशी व अतीन्द्रिय सुख देने वाले, माया प्रूफ बनाने वाले बाप-दादा विदेशी बच्चों के प्रति बोले :-
आज विदेशी बाप इस साकार दुनिया के विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। हैं दोनों ही विदेशी। आज विशेष विदेशी बच्चों से मिलने क्यों आये हैं, अपनी विशेषता को जानते हो? जिस विशेषता के कारण बाप भी विशेष रूप से आये हैं। विदेशियों में कौन सी विशेषता है? बाप जानते हैं कि मेरे ही कल्प पहले वाले बच्चे जो दूर-दूर इन व्यक्त देशों में भिन्न नाम, रूप, धर्म में चले गये थे वे फिर से अपने बिछड़े हुए बाप व परिवार से मिलने अपने असली स्थान पर आ पहुँचे हैं। ऐसे अनुभव होता है? जितनी आप लोगों को बाप के पाने की व अपने परिवार को पाने की खुशी है, उससे ज्यादा बाप को खुशी है। क्योंकि बाप जानते हैं कि बच्चे ही घर का श्रृंगार हैं। जैसे श्रृंगार के बिना कोई भी व्यक्ति या स्थान अच्छा नहीं लगता ऐसे ही बाप को भी बच्चों के श्रृंगार के बिना अच्छा नहीं लगता। विदेशी आत्माओं में एक विशेषता के कारण विशेष बाप का ज्यादा लव (Love) है। कौन सी विशेषता? जैसे इण्डिया (भारत)में एक खेल खेलते हैं तो कई चीजों को कपड़े के अन्दर छिपाकर रखते हैं, ऊपर से कपड़े का कवर (Cover) डाल देते हैं और बच्चों को कहते हैं कवर उतार कर सब चीजों को देखो फिर कवर लगा देते हैं, फिर बच्चों की बुद्धि का पेपर (परीक्षा) लेते हैं कि कौन-कौन सी चीज़े थी और कितनी चीज़े थी। फिर जो जैसी चीज़ थी, जितनी थी उतनी ही याद कर लेते हैं व सुनाते हैं, फिर उनको नम्बर मिलते हैं। यह बुद्धि का खेल बच्चों को कराया जाता है। ऐसे ही विदेशी बच्चे भी भिन्न धर्म, भिन्न फिलॉसोफी (Philosophy), भिन्न प्रकार के रहन-सहन-इस कवर के अन्दर छिपे हुए बाप को, जो है, जैसा है, वैसे जान लिया, इस बुद्धि की कमाल के कारण विदेशी बच्चों से स्नेह है। समझा।
इस बुद्धि के खेल में जो कोटों में कोई पास हुए हैं ऐसे बच्चों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। आप सब भी हर्षित होते हो। बाप ज्यादा हर्षित होते या आप ज्यादा हर्षित होते हो? सदैव यही खुशी के गीत गाते रहो कि जो पाना था, वह पा लिया। इस खुशी में रहने से किसी भी प्रकार की उलझन व उदासी आ नहीं सकती अर्थात् मायाप्रूफ हो जायेंगे। ऐसे मायाप्रूफ बन जाओ जो आपका एग्ज़ाम्पल1(Example) बाप-दादा सभी को दिखावें। ऐसे एग्ज़ाम्पल बने हो? कौन समझते हैं कि हम अभी ऐसे एग्ज़ाम्पल बने हैं जो विश्व के आगे बाप-दादा हमें रख सकते हैं? एवररैडी नहीं रैडी हैं? क्योंकि विदेश के रहने वाले बच्चों को यह भी एक विशेष लिफ्ट (Lift) है जो स्वयं को विश्व के आगे प्रख्यात कर बाप का परिचय देते हैं-ऐसी सर्विस करने से एक्स्ट्रा मार्क्स (Extra Marks) मिल जायेंगी। ऐसी सर्विस की है या करनी है? भारत की आत्मायें आप लोगों को देख समझेंगी कि इन्होंने बाप को पहचाना लेकिन हम लोगों ने नहीं पहचाना। आपकी पहचानी हुई सूरत को देख भारतवासियों को पश्चाताप होगा कि हमने अपने भाग्य को खो दिया। इसलिए आप सब सर्विस के प्रति निमित्त हो। अभी देहली कांफ्रेंस में भी आप सब विदेश से आये हुए बच्चों की विशेष यही सेवा है कि जिस भी आत्मा को कोई देखे तो हर चेहरे से बाप द्वारा प्राप्त हुई अविनाशी खुशी, अतीन्द्रिय सुख की अविनाशी शान्ति की झलक दिखाई दे। आप सबके चेहरे बाप द्वारा प्राप्त हुई प्रॉपर्टी (Property) दिखाने के आईनें बन जायेंगे। ऐसी सर्विस करने वालों को बाप-दादा द्वारा विशेष मार्क्स का इनाम मिलेगा। यह सर्विस तो सहज है ना या मुश्किल है?
जैसे कोई भी प्रकार की लाईट अपनी तरफ आकर्षित ज़रूर करती है, ऐसे आप सब आत्मायें भी लाईट और माईट रूप हो। बाप की तरफ आकर्षित करो। समझा कांफ्रेंस में क्या सेवा करनी है? विदेश में रहने वाले बच्चों के पास माया आती है? घबराने वाले तो नहीं हो ना। चैलेन्ज (Challenge) करने वाले हो ना। माया को चैलेन्ज करते हो कि आओ और विदाई ले जाओ। माया का आना अर्थात् अनुभवी बनना। इसलिए माया से कभी घबराना नहीं। घबरायेंगे तो वह भी विकराल रूप धारण करेगी। घबरायेंगे नहीं तो नमस्कार करेगी। है कुछ नहीं।कागज़ का शेर है। कागज़ के शेर से घबराने वाले हो क्या? विकराल रूप धारण करती है लेकिन है शक्तिहीन। जैसे यहाँ भी भयानक चेहरे लगाकर डराते हैं लेकिन अन्दर तो मनुष्य ही होते हैं। बाहर का कवर उतार दो तो कोई डर नहीं। लेकिन अगर बाहर के रूप को देख घबरायेंगे तो फेल हो जायेंगे। माया से हार ज्यादा होती है या विजय ज्यादा होती है?
विदेश से आये हुए बच्चों में से कौन समझते हैं कि हम 108 की माला के मणकों में हैं। निश्चय की विजय तो हो ही जाती है। कभी भी लक्ष्य कमज़ोर नहीं रखना। सदा श्रेष्ठ लक्ष्य रखना कि हम ही कल्प पहले वाले विजयी थे और सदा रहेंगे। तो सदा अपने को विजयी रतन ही अनुभव करेंगे।
बहुत देशों से आये हुए हैं। जिन-जिन देशों से बाप के बच्चे निकले हैं उन स्थानों का भी महत्व है। यह स्थान भी किसी न किसी रूप से यादगार बन जाते हैं। आप लोग विशेष उन स्थानों पर चक्कर लगाते रहेंगे। (बिजली बन्द हो गई) अशरीरी बनना इतना ही सहज होना चाहिए। जैसे स्थूल वस्त्र उतार देते हैं वैसे यह देह अभिमान के वस्त्र सेकेण्ड में उतारने हैं। जब चाहें धारण करें, जब चाहें न्यारे हो जाएं। लेकिन यह अभ्यास तब होगा जब किसी भी प्रकार का बन्धन नहीं होगा। अगर मन्सा संकल्प का भी बंधन है तो डिटैच (Detach) हो नहीं सकेंगे। जैसे कोई तंग कपड़ा होता है तो सहज और जल्दी नहीं उतार सकते हो। इस प्रकार से मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध में अगर अटैचमेन्ट (Attachment) है, लगाव है तो डिटैच नहीं हो सकेंगे। ऐसा अभ्यास सहज कर सकते हो। जैसा संकल्प किया, वैसा स्वरूप हो जाए। संकल्प के साथ-साथ स्वरूप बन जाते हो या संकल्प के बाद टाइम लगता है स्वरूप बनने में? संकल्प किया और अशरीरी हो जाओ। संकल्प किया मास्टर प्रेम के सागर की स्थिति में स्थित हो जाओ और वह स्वरूप हो जाए। ऐसी प्रैक्टिस (Practise) है? अब इसी प्रैक्टिस को बढ़ाओ। इसी प्रैक्टिस के आधार पर स्कॉलरशिप (Scholarship)ले लेंगे।
अब तक विदेशियों ने एक प्लान प्रैक्टिकल नहीं किया है। याद है कि कौन सा प्लान दिया था। अभी भारत के कुम्भकरण खूब सोये हुए हैं। अब देखें कांफ्रेंस में कैसे छींटे लगाते हो। जो बिल्कुल गहरी नींद में सोये होते हैं उनको पानी के छींटे लगाकर उठाना पड़ता है। यह प्लान प्रैक्टिकल में लाओ। ऐसा हो जो भारत के सामने आयें और वह समझ जायें कि हम लोगों को भी जागना चाहिए और बनना चाहिए। सबका उनकी आवाज़ की तरफ न चाहते हुए भी अटेन्शन जाए। किसी भी तरफ से ऐसा कोई तैयार किया है?
सभी सर्विस स्थान ठीक चल रहे हैं? सभी स्वयं और सर्विस से सन्तुष्ट हो? आप मोस्ट लकी (Most Lucky) हो। समझते हो कि हम विशेष सिकीलधे लाडले हैं। सभी सेन्टर्स में रेस (Race) में नम्बर वन कौन है? हरेक देश की अपनी विशेषता भी है, लन्दन तो निमित्त होने के कारण प्लैनिंग सेन्टर हो गया है। इस विशेषता के कारण लन्दन को नम्बरवन कहेंगे। लेकिन सर्विसएबुल (Serviceable) और आवाज़ फैलाने वाले विशेष क्वालिटी (Quality) की सर्विस में गयाना नम्बरवन है। संख्या के हिसाब से मॉरीशियस नम्बरवन है और लुसाका इतना सब कुछ सहन करते हुए सरकम्स्टेन्सेज़ (Circumstances) को पार करने में, हलचल की परिस्थिति होते हुए भी अचल रहने में, नम्बरवन है। आस्ट्रेलिया की भी विशेषता है, एक-एक दीपक से अनेक दीपक जगाकर दीप माला करने में नम्बरवन है। आस्ट्रेलिया और भी आगे बढ़ सकता है। प्लानिंग (Planning) बुद्धि हैं और प्लान भी बहुत अच्छे बनाते हैं। अगर वही सब प्लैन प्रैक्टिकल में लायें तो लन्दन से भी नम्बरवन हो सकते हैं। लेकिन अभी बुद्धि तक प्लान्स हैं, प्रैक्टिकल नहीं किये हैं।
एक-एक रत्न वैल्युएबुल (Valuable) है लेकिन अपनी वैल्यू को स्टेज तक नहीं लाया है। बाप-दादा की उम्मीद है यह (मारिया) कर सकती है। सिर्फ त्याग और तपस्या की ड्रेस (Dress) पहन फिर स्टेज पर आओ तो विजय आपके गले का हार बन जावेगी। सर्विस करके फिर किसी को साथ में इण्डिया ले आओ। आस्ट्रेलिया की धरनी अच्छी है।
जर्मनी से भी आवाज़ निकालने वाली आत्मायें निकल सकती हैं। मेहनत अच्छी कर रहे हैं। अब वहाँ से ऐसा कोई प्रैक्टीकल में विशेष एग्ज़ाम्पल चाहिए जिसको सामने देखते हुए आत्माओं को विशेष प्रेरणा मिले। लेकिन हिम्मत और उल्लास में नम्बरवन हैं। लैस्टर तो लन्दन के साथ हैं। लैस्टर वालों की भी कमाल है, लैस्टर में निश्चय-बुद्धि विजयन्ती बच्चे बहुत अच्छे हैं। परिवार के परिवार एग्ज़ाम्पल देने के लिए बहुत अच्छे तैयार हुए हैं। बाप-दादा के दिल-पसन्द हैं। नैरोबी और बुलवायो तीव्र पुरुषार्थी, लगन में मगन रहने में कम नहीं हैं। नम्बर आगे हैं। शमा पर परवाने बनने का एग्ज़ाम्पल प्रैक्टीकल में देखा ना। अगर वह निमित्त बनी हुई आत्मा कहीं भी अपना अनुभव सुनाये तो उसकी आवाज़ भी कुछ कार्य कर सकती हैं। हाँगकाँग की धरनी में स्नेही और सहयोगी आत्माओं की विशेषता है और शक्तिशाली आत्मायें भी हाँगकाँग की धरनी में हैं लेकिन अभी छिपी हुई हैं। समय आने पर हाँगकाँग की धरनी पर छिपे हुए रत्न सबके आगे दिखाई देंगे। तो हरेक विदेश के सेवा-केन्द्र की अपनी-अपनी विशेषता है, इसलिए सब नम्बरवन हैं। कैनाडा भी अभी इसमें नम्बर ले रहा है, रैडी हो रहा है। कैनाडा की धरती में भी विशेषता है, जो वहाँ से एक अगर निकल आया तो सहज ही एक अनेकों को निकाल सकता है। उम्मीदवार हैं। एक भी निकल आया तो फिर देर नहीं लगेगी। लास्ट सो फास्ट जायेंगे, मेहनत अच्छी कर रहे हैं, लगन भी अच्छी है। मेहनत भी अच्छी है। शुभ भावना भी अच्छी है। शुभ भावना अपना फल ज़रूर देती है।
फिर भी कमाल जनक की है जो विदेश की धरती में सदा उमंग, उत्साह बढ़ाने के निमित्त बनी हुई है। पान का बीड़ा उठाया है। सहयोगी हैण्ड्स बहुत अच्छे हैं फिर भी कहेंगे पान का बीड़ा उठाया है। जैसे-जैसे विनाश का समय आता जाएगा तो वातावरण को देख आप सन्देश देने वालों को ढूढेंगे कि यह कौन से फरिश्ते थे जिन्होंने हमें बाप का परिचय दिया। सर्विस में जहाँ भी पाँव रखा है, वहाँ सफलता न हो, यह हो नहीं सकता। कोई धरती जल्दी ही फल देती है, कोई धरती फल देने में समय लेती हैं, लेकिन फल ज़रूर देती है।
जैसे इण्डिया में ट्रेन जाती है तो बीच-बीच में अपने स्थान (सेवाकेन्द्र) हैं वैसे ही प्लेन जहाँ-जहाँ ठहरे वहाँ भी सेन्टर हों। होने ही हैं बाकी विदेश वालों की रेस अच्छी चल रही है। अच्छा।
विभिन्न स्थानों की पार्टियो के साथ बातचीत में ज्ञान-सागर शिवबाबा द्वारा पुरूषार्थ में तीव्रता लाने की सहज युक्तियाँ
1. वृत्ति चंचल होने का कारण तथा अचल बनने की सहज युक्ति
वृत्ति चंचल होने का कारण क्यों और क्या - यही दो शब्द हलचल में लाते हैं और एक शब्द नथिंग-न्यू अचल बना देता है। और होना ही है और हुआ ही पड़ा है। इसके सिवाए और कोई बात नहीं तो चंचल होंगें? नथिंग-न्यू तो क्यों और क्या समाप्त हो जाता है। कैसी भी बात आजाए, चाहे मन्सा की, चाहे वाणी की, चाहे सम्पर्क सम्बन्ध की, लेकिन नथिंग-न्यू। क्या और क्यों का क्वेश्चन नई चीज़ में लगता है। नथिंग न्यू में न क्वेश्चन और न आश्चर्य। तो इसी पाठ को रिवाईज़ करके पक्का करो।
2. माया की चाल से बचकर सदा विजयी बनने की विधि
मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज पर स्थित रहो। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् विजयी रत्न। माया अन्दर से बिल्कुल ही शक्तिहीन है, उसका बाहर का रूप देख घबराओ नहीं, उसको ज़िन्दा समझ मूर्छित न हो जाओ, माया मूर्च्छित हुई पड़ी है। लेकिन कभी-कभी मूर्च्छित को देखकर भी मूर्च्छित हो जाते हैं। अब उसे खुशी-खुशी विदाई दो। नॉलेजफुल की स्टेज पर रहो तो कभी घोखा नहीं खा सकते।
3. अमरनाथ बाप द्वारा संगम पर भी सदा अमर रहने का वरदान
‘अमर भव’ यह वरदान इस जन्म में भी और भविष्य में भी प्राप्त होता है। संगम पर माया से बचने का अमर वरदान और भविष्य में अकाल मृत्यु से बचने का वरदान मिला हुआ है। अमर-भव के वरदान पाने वाले को माया हिला नहीं सकती, दूर से भी नज़र नहीं डाल सकती। सदा नमस्कार करती है। सदा स्मृति रखो कि हमें अमर भव का वरदान मिला हुआ है। वरदान वाली आत्मा निश्चय बुद्धि होने के कारण विजयन्ती होती है। जिन्हें इस वरदान का नशा रहता है वह स्वप्न में भी माया से मूर्च्छित नहीं हो सकते। बाप द्वारा वरदान मिलना कोई कम बात है क्या?
13-01-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
इन्तज़ार के पहले इन्तज़ाम करो
कल्याणकारी, महादानी, महान वरदानी बनाने वाले दया के सागर पिता शिव वत्सों से बोले :-
आज बाप बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं। हरेक बच्चा वर्तमान समय में विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है और भविष्य में भी विश्व द्वारा पूज्यनीय हैं। ऐसे सर्व श्रेष्ठ गायन और पूजन योग्य योगी तू आत्माएँ, ज्ञानी तू आत्मायें, दिव्य-गुणधारी, सदा विश्व के सेवाधारी बाप-दादा के सदा स्नेह और सहयोग में रहने वाले - ऐसे बच्चों को देख बाप को कितनी खुशी होती है! नम्बरवार होते हुए भी लास्ट नम्बर का मणका भी विश्व के आगे महान है। ऐसे अपनी महानता को, अपनी महिमा को जानते हुए चलते रहते हो या चलते-चलते अपने को साधारण समझ लेते हो? अलौकिक बाप द्वारा प्राप्त हुई अलौकिक जीवन, अलौकिक कर्म साधारण नहीं हैं। लास्ट नम्बर के मणके को भी आज अन्त तक भक्त आत्मायें आंखों पर रखती हैं। क्योंकि लास्ट नम्बर भी बाप-दादा के नयनों के तारे हैं, नूरे रतन हैं। ऐसे नूरे रतन को अब तक भी नयनों पर रखा जाता है। अपने श्रेष्ठ भाग्य को जानते हुए, वर्णन करते हुए अनजान नहीं बनो। एक बार भी मन से, सच्चे दिल से अपने को बाप का बच्चा निश्चय किया उस एक सेकेण्ड की महिमा और प्राप्ति बहुत बड़ी है। डायरेक्ट बाप का बच्चा बनना- जानते हो कितनी बड़ी लाटरी (Lottery) है। एक सेकेण्ड में नाम संस्कार शूद्र से ब्राह्मण हो जाता है। संसार बदल जाता- संस्कार बदल जाते, दृष्टि, वृत्ति, स्मृति सब बदल जाता एक सेकेण्ड के खेल में। ऐसा श्रेष्ठ सेकेण्ड भूल जाते हो। दुनिया वाले अब तक नहीं भूले हैं। आप आत्माएँ चक्कर लगाते बदल भी गईं लेकिन दुनिया वाले नहीं भूले। अभी आप सबका भाग्य वर्णन करते इतने खुश होते हैं- समझते हैं भगवान ही मिल गया। जब दुनिया वाले नहीं भूले हैं, आप स्वयं अनुभवी मूर्त्त तो सर्व प्राप्ति करने वाली आत्मायें हो, फिर भूल क्यों जाते हो? भूलना चाहिए नहीं लेकिन भूल जाते हो।
इस नये वर्ष में बाप-दादा को कौन-सी नवीनता दिखायेंगे। जो समय दिया हुआ था उस प्रमाण तो सब सम्पूर्ण ही दिखाई देते। जब लक्ष्य 77 (सन् 1977) का रखा तो लक्ष्य प्रमाण सर्व ब्राह्मण आत्माओं का अपना पुरूषार्थ सम्पन्न होना चाहिए। आप तो परिवर्तन के लिए तैयार हो ना। अब का जो समय मिला है वह ब्राह्मणों के स्वयं पुरूषार्थ के लिए नहीं है लेकिन हर संकल्प हर बोल द्वारा दाता के बच्चे विश्व की आत्माओं प्रति प्राप्त हुए खज़ानों को देने अर्थ है। वह एक्स्ट्रा (अतिरिक्त) टाइम (Time) स्वयं के पुरूषार्थ प्रति नहीं लेकिन दूसरों के प्रति समय, गुण और खज़ाना देने के लिए है। बाप ने जिस कार्य के लिए समय और खज़ाना दिया है अगर उसके बदले स्वयं प्रति समय और सम्पति लगाते हो तो यह भी अमानत में खयानत होती है। यह विशेष वर्ष ब्राह्मण आत्माओं के प्रति महादानी वरदानी बनने का है। जैसे आप लोग प्रोग्राम बनाते हो कि इस मास में विशेष योग का प्रोग्राम होगा, दूसरे मास में विशेष सेवा का होगा। वैसे ड्रामा प्लैन अनुसार यह एक्स्ट्रा समय महादानी बनने के लिए मिला है। अब तक पुरानी भाषा, पुरानी बातें, पुरानी रीति रस्म वह अच्छी रीति सब जानते हो। इस वर्ष का समय इसके लिए नहीं है। जैसे बाप के आगे स्वयं को समर्पण किया वैसे अब अपना समय और सर्व प्राप्तियाँ, ज्ञान, गुण और शक्तियाँ विश्व की सेवा अर्थ समर्पण करो। जो संकल्प उठता है तो चैक करो कि विश्व सेवा प्रति है। ऐसे सेवा प्रति अर्पण होने से स्वयं सम्पन्न सहज हो जायेंगे। जैसे जब कोई सेवा का विशेष प्रोग्राम बनाते हो तो विशेष कार्य में बिज़ी (Busy) होने के कारण स्वयं के आराम या स्वयं के प्रति सैलेवेशन (Salvation) देने वाली बातें या चलते-चलते अन्य आत्माओं द्वारा आई हुई छोटी-छोटी परीक्षाओं को अटैन्शन नहीं देते हो, अवाइड (Avoid) करते हो। क्योंकि सदा कार्य को सामने रखते हो और बिज़ी रहते हो। स्वयं प्रति समय न लगाकर सेवा में विशेष लगाते हो। ऐसे ही इस नये वर्ष में हर सेकेण्ड और संकल्प को सेवा प्रति समझने से, इस कार्य में बिज़ी रहने से परीक्षाओं को पास ऐसे करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। संकल्प में भी नहीं आवेगा कि यह बात क्या थी और क्या हुआ। स्वयं को समर्पण करने से इस सेवा की लगन में यह छोटे बड़े पेपर्स या परीक्षाएं स्वत: ही समर्पण हो जावेंगी। जैसे अग्नि के अन्दर हर वस्तु का नाम रूप बदल जाता है वैसे परीक्षा का नाम रूप बदल परीक्षा प्राप्ति का रूप बन जावेगी। माया शब्द से घबरायेंगे नहीं, सदा विजयी बनने की खुशी में नाचते रहेंगे। माया को अपनी दासी अनुभव करेंगे तो दासी सेवाधारी बनेगी या घबरायेंगे। स्वयं सरेण्डर (Surrender) हो जाओ सेवा में तो माया स्वत: ही सरेण्डर हो जावेगी। लेकिन सरेण्डर नहीं होते हो तो माया भी अच्छी तरह से चान्स (अवसर) लेती है। चान्स (Chance) लेने के कारण ब्राह्मणों का भ् चान्सलर (Chancellor) बन जाती है। माया को चान्सलर बनने नहीं दो। स्वयं सेवा का चान्स ले चान्सलर बनो। अब सुना समय क्यों मिला है। अब कोई कम्पलेन नहीं करना। समय के हिसाब से हरेक को कम्पलीट (Complete) होना है। कम्पलीट आत्मा कभी कम्पलेन (Complaint) नहीं करती है। हो ही जाता, होता ही है, यह भाषा नहीं बोलती। नया वर्ष, नई भाषा, नया अनुभव। पुरानी चीज़ संभालना अच्छा लगता है लेकिन यूज़ (Use) करना अच्छा नहीं होता। तो आप यूज़ क्यों करते हो? 5000 वर्ष के लिए सम्भाल कर रख दो। पुराने से प्रीत नहीं रखो।
सदैव भक्त आत्माओं, भिखारी आत्माओं और प्यासी आत्माओं के सामने अपने को साक्षात् बाप और साक्षात्कार मूर्त्त समझकर चलो। तीनों ही लाइन लम्बी हैं। इस क्यू (पंक्ति) को समाप्त करने में लग जाओ। प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाओ, भिखारियों को दान दो। भक्तों को भक्ति का फल बाप के मिलन का मार्ग बताओ। इस क्यू को सम्पन्न करने में बिज़ी रहेंगे तो स्वयं के प्रति क्यों की क्यू समाप्त हो जावेगी। समय की इन्तज़ार में नहीं रहो लेकिन तीनों प्रकार की आत्माओं को सम्पन्न बनाने के इन्तज़ाम में रहो। अब तो नहीं पूछेंगे कि विनाश कब होगा। क्यू को समाप्त करो तो परिवर्तन का समय भी समाप्त हो जाएगा। संगम का समय सतयुग से श्रेष्ठ नहीं लगता है? थक गये हो क्या? जब पूछते हो विनाश कब होगा तो थके हुए हो तब तो पूछते हो। बाप का बच्चों से अति स्नेह है। बाप को यह मेला अच्छा लगता है। और बच्चों को स्वर्ग अच्छा लगता है। स्वर्ग तो 21 जन्म मिलेगा ही लेकिन यह संगम नहीं मिलेगा। तो थक मत जाओ। सेवा में लग जाओ तो प्रत्यक्ष फल अनुभव करेंगे। भविष्य फल तो आपका निश्चित है ही लेकिन प्रत्यक्ष फल का अनुभव सुख सारे कल्प में नहीं मिलेगा। इसलिए भक्तों की पुकार सुनो। रहमदिल बनो, महादानी बन महान पुण्यआत्मा का पार्ट बजाओ। अच्छा-।
ऐसे बाप के फरमानबरदार दृढ़ संकल्प और सेकेण्ड में आज्ञाकारी बाप समान सदा विश्व के कल्याणकारी महादानी महान वरदानी सर्व को सम्पन्न करने वाले सदा स्वयं को सेवा में तत्पर करने वाले ऐसे बाप समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी जी से बातचीत
सबको एक बात का इन्तज़ार है वह कौन सी बात है? जो शुरू की पहेली है मैं कौन? वही लास्ट तक भी है। सबको इंतज़ार है आखिर भी भविष्य में मैं कौन या माला में मैं कहाँ अब यह इन्तज़ार कब पूरा होगा? सब एक दो में रूह- रूहान भी करते हैं 8 में कौन होंगे, 100 में कौन होंगे, 16,000 का तो कोई सवाल ही नहीं। आिखर भी 8 में या 100 में कौन होंगे। विदेशी सोचते हैं हम कौन-सी माला में होंगे लास्ट में आने वाले सोचते हैं हम कौंन-सी माला में होंगे और शुरू में आने वाले फिर सोचते हैं लास्ट सो फास्ट है। ना मालूम हमारा स्थान है या लास्ट वाले का है। आखिर हिसाब क्या है? किताब तो बाप के पास है ना। फिक्स नहीं किये गये हैं। आप लोगों ने भी आर्ट कम्पटीशन (Art Competition) की तो चित्र कैसे चुना। पहले थोड़े अलग किये फिर उसमें से एक, दो, तीन नम्बर लगाया। पहले चुनने होते हैं फिर नम्बर वार फिक्स होते हैं। तो अब चुने गये हैं। लेकिन फिक्स नहीं हुए हैं। (पीछे आने वालों का क्या होगा) सदैव कुछ सीटस (Seats) अन्त तक भी होती हैं। रिज़र्वेशन (Reservations) होती है तो भी लास्ट तक कुछ कोटा रखते हैं लेकिन वह कोटों में कोई, कोई में भी कोई होता है। अच्छा आप सब किस माला में हो। अपने में उम्मदें रखो। कोई न कोई एसी वन्डरफुल (Wonderful) बात होगी जिसके आधार पर आप सबकी उम्मीदें पूरी हो जावेंगी। अष्ट रत्नों की विशेषता एक विशेष बात से है। अष्ट रतन प्रैक्टिकल (Practical) में जैसे यादगार हैं विशेष तो जो अष्ट शक्तियाँ हैं वह हर शक्ति उनके जीवन में प्रैक्टिकल दिखाई देगी। अगर एक शक्ति भी प्रैक्टीकल जीवन में कम दिखाई देती तो जैसे अगर मूर्ति की एक भुजा खण्डित हो तो पूज्यनीय नहीं होती इसी प्रकार से अगर एक शक्ति की भी कमी दिखाई देती तो अष्ट देवताओं की लिस्ट (List) में अब तक फिक्स नहीं कहे जायेंगे। दूसरी बात अष्ट देवताएं भक्तों के लिए विशेष इष्ट माने जाते हैं। इष्ट अर्थात् महान पूज्य। इष्ट द्वारा हर भक्त को हर प्रकार की विधि और सिद्धि प्राप्त होती है। यहाँ भी जो अष्ट रतन होंगे वह सर्व ब्राह्मण परिवार के आगे अब भी इष्ट अर्थात् हर संकल्प और चलन द्वारा विधि और सिद्धि का मार्ग दर्शन करने वाले सबके सामने अब भी ऐसे ही महानमूर्त्त माने जायेंगे। तो अष्ट शक्तियाँ भी होंगी और परिवार के सामने इष्ट अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा, महान आत्मा, वरदानी आत्मा के रूप में होंगे। यह है अष्ट रतनों की विशेषता। अच्छा।
पार्टियों से बातचीत में बच्चों के प्रति उच्चारे अनमोल ज्ञान रतन
1. दुनिया के वायब्रेशन (Vibrations) से अथवा माया से सेफ रहने का साधन
सदा एक बाप दूसरा न कोई जो इसी लगन में मगन रहते वह माया के हर प्रकार के वार से बचे रहते हैं। जैसे जब लड़ाई के समय बाम्ब्स (Bombs) गिराते हैं तो अण्डरग्राउण्ड1 (Underground) हो जाते, उसका असर उन्हें नहीं होता तो ऐसे ही जब एक लगन में मगन रहते तो दुनिया के वायब्रेशन से, माया से बचे रहेंगे, सदा सेफ रहेंगे। माया की हिम्मत नहीं जो वार करे। लगन में मगन रहो। यही है सेफ्टी का साधन।
2. बाप के समीप रतनों की निशानी
बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा। सत के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे। शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे। शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है। वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते , क्योंकि बाप रूह है।
3. पुरानी दुनिया के सर्व आकर्षणों से परे होने की सहज युक्ति
सदैव नशे में रहो कि हम अविनाशी खज़ाने के मालिक हैं। जो बाप का खज़ाना ज्ञान, सुख शान्ति, आनन्द है... वह सर्व गुण हमारे हैं। बच्चा बाप की प्रोपर्टा (Property) का स्वत: ही मालिक होता है। अधिकारी आत्मा को अपने अधिकार का नशा रहता है, नशे में सब भूल जाता है ना। कोई स्मृति नहीं होती, एक ही स्मृति रहे बाप और मैं - इसी स्मृति से पुरानी दुनिया के आकर्षण से ऑटोमेटिकली परे हो जायेंगे। नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट होगा। निशाना है फरिश्तेपन का और देवतापन का।
4. एक सेकेण्ड का वन्डरफुल खेल जिससे पास विद् ऑनर बन जायें –
एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकेण्ड के खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको। अन्तिम पेपर सेकेण्ड का ही होगा जो इस सेकेण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास विद् ऑनर होगा। अगर एक सेकेण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर (Controlling Power) है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कन्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे। समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकेण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकेण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वन्डरफुल खेल।
5. अतिन्द्रीय सुख के झूले में झूलते रहो
आपको सभी आत्मायें सुख में झूलता देख दु:खी से सुखी बन जायें। आपके नयन, मुख चेहरा सब सुख दें, ऐसा सुखदायी बनें। ऐसा सुखदाई जो बनता उसे संकल्प में भी दु:ख की लहर नहीं आ सकती। अच्छा।
मधुबन निवासी भाई-बहनों से
मधुबन निवासी सभी सदा बाप की याद में लवलीन रहने वाले हो ना। बाप के समान सदा अथक और सदा डबल लाइट (Double Light) स्थिति में स्थित हो ना। जो जितना हल्का होता उतना अथक होता। किसी भी प्रकार का बोझ थकाता है। जैसे शरीर के बोझ वाला भी थक जाता, हल्का थकता नहीं। ऐसे किसी भी प्रकार का बोझ चाहे मनसा का हो, चाहे सम्पर्क, सम्बन्ध का हो, लेकिन बोझ थकावट में लायेगा। मधुबन निवासियों को अथक भव का वरदान मिला हुआ है। तो अथक हो ना? और भी मेला चले? जितना आगे चलेंगे उतना यह मेला बड़ा ही होगा, कम नहीं। जितना बढ़ाते जायेंगे उतना बढ़ता जायेगा। कितना भी प्लैन बनाओ, जितना बनायेंगे उतना बढ़ता जायेगा क्योंकि संगम पर ही ईश्वरीय परिवार की वृद्धि होती है। जितना समय कम उतनी वृद्धि ज्यादा। यह तो नहीं समझते और बहुत आ जायेंगे तो हम रह जायेंगे। जो खुद त्यागीमूर्त्त बनते उनके लिए सबका स्वत: ही ख्याल रहता है। तो आप लोग तो निष्कामी हो ना। जितना हर कामना से न्यारे रहेंगे उतना हर कामना सहज पूरी होती जायेगी। खुशी में, प्राप्ति में थकावट नहीं होती। मधुबन निवासियों ने पुरूषार्थ का नया तरीका क्या निकाला है? मधुबन निवासियों को पुरूषार्थ की नई युक्तियाँ निकालनी चाहिए। जो सब फॉलो (Follow) करें। नया वर्ष शुरू हुआ तो नई बात निकालनी चाहिए। सहज पुरूषार्थ की नई इनवेन्शन (Invention) निकालो और प्रेक्टिकल अनुभव करके दूसरों को सुनाओ। सर्व आत्माएँ आपको ऊँची नज़र से देखती हैं। जैसे आकाश के ऊपर चमकते हुए सितारों को ऊँची नज़र से देखते वैसे आप सबको सर्वश्रेष्ठ महान, लकीएस्ट (Luckiest), समीप आत्माओं की नज़र से देखते हैं। तो जिस नज़र से देखते उसी में स्थिति रहो। आपका उठना, बैठना, चलना सभी चरित्र के रूप में देखते। जैसे बाप के हर कर्त्तव्य को आपने चरित्र के रूप में देखा ना। तो हर कर्म करते चरित्रवान होकर चलना पड़े। साधारण नहीं। मधुबन विश्व के आगे स्टेज (मंच) है, स्टेज पर जो एक्टर (Actor) होता उसका हर एक्ट (Act) पर कितना अटेन्शन (Attention) रहता है। हाथ उठायेगा तो भी अटेन्शन से। क्योंकि उसे मालूम है कि हमें सब देखने वाले हैं। आपके हर कार्य का महत्व है। बाप-दादा भी जितना मधुबन की आत्माओं का महत्व है उसी महत्व से देखते हैं अच्छा। नया प्लैन बनाओ कि स्वत: और सहजयोगी कैसे बने। क्योंकि सभी इस वर्ष में यही लक्ष्य रख करके चल रहे हैं कि अब लास्ट में सहजयोग और स्वत: योग का अनुभव ज़रूर होना चाहिए। तो सहजयोग किस आधार पर होता और या स्वत: योगी किस युक्ति से बन सकते। यह प्लान निकालो और अनुभव करो फिर सभी को सुनाओ तो वह आपके गुण-गान करेंगे। मेहनत कम और सफलता ज्यादा ऐसे नये पुरूषार्थ के तरीके बनाओ। प्लान ऐसा तैयार करो। जिसको देख सब मधुबन निवासियों को थैंक्स (Thanks) दें। अच्छा
राजस्थान पार्टी:-
1. मधुबन में हर कदम में सहज कमाई का अनुभव होता है? मधुबन को वरदान भूमि कहा है। तो वरदान सहज प्राप्ति को हो कहा जाता है। तो मधुबन में आने से ही मेहनत करना समाप्त हो जाता और सहज प्राप्ति होना शुरू हो जाती। तो इस थोड़े से समय में कितनी कमाई जमा की? मधुबन में आना अर्थात् कमाई की खान इकट्ठी करना। तो ऐसा महत्व जानते हुए थोड़े से समय में खज़ाना जमा किया। क्योंकि मधुबन है ही डायरेक्ट बाप दादा की कर्मभूमि, चरित्रभूमि, सेवाभूमि, तपस्या भूमि। यहाँ तपस्या का वायब्रेशन, वायुमण्डल है। यह सब बातें इस भूमि में आने से सहज अनुभव कर सकते हैं। जैसे कोई विशेष कमाई की सीज़न होती तो कमाई के बगैर रह नहीं सकते। नींद का भी समय त्याग देते। तो मधुबन में एक्स्ट्रा लाटरी है कमाई करने की। तपस्वीकुमार हो ना। तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन है ना। एक की याद में, एक के साथ में भोजन स्वीकार करना यह तपस्या हुई ना। जो भी चान्स मिलता है उसको अच्छी तरह लेकर सम्पन्न बनो और दूसरों को भी बनाओ।
2. ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से ही खेलते रहते हो? सबसे बड़े से बड़े, अविनाशी रत्न ज्ञान रत्न हैं। ज्ञान सागर के बच्चे ज्ञान रत्नों से खेलेंगे। आधाकल्प पत्थर बुद्धि रहे और पत्थरों से खेला, इसलिए दु:ख-अशान्ति रही। आप किससे खेलते? ज्ञान रत्नों से। जैसे राजा के बच्चे, सोने-चांदी के खिलौने से खेलते हैं तो ज्ञान सागर के बच्चे सदा ज्ञान रत्नों से खेलते हैं। ज्ञान रत्नों में खेलने से दु:ख-अशान्ति की लहर नहीं आयेगी। ज्ञान रत्न भी हैं, तो नॉलेज भी। नॉलेज के आधार पर अशान्ति की लहर आ नहीं सकती। अभी नया जीवन है, दु:ख-अशान्ति की जीवन ऐसे लगेगी - मेरी नहीं, दूसरे की जीवन थी। बीती हुई जीवन पर हँसी आयेगी।
3. सभी सन्तुष्ट मणियाँ हो ना। मणि सदैव मस्तक के बीच में चमकती है। ताज के अन्दर सुन्दर मणियाँ होती हैं। तो जो सन्तुष्ट मणि हैं वह सदैव बाप के मस्तक में रहते हैं। अर्थात् बाप की याद में रहती हैं, बाप भी उनको याद करते। जब बच्चे बाप को याद करते तो बाप भी रिटर्न (Return) देते हैं। सदा बाप की याद में रहने वाले हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहेंगे। चाहे परिस्थिति असन्तोष की हो, दु:ख की घटना हो लेकिन सदा सुखी। दु:ख की परिस्थिति में सुख की स्थिति हो, ऐसी नॉलेज की शक्ति है। कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन स्थिति एकरस। नॉलेज की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुआाफिक है वह भी राई अनुभव होगी। अर्थात् कुछ नहीं। क्योंकि नथिंग-न्यू। ऐसी स्थिति है? कुछ भी हो जाये, नथिंग-न्यू, इसको कहा जाता है महावीर।
4. अपने को पद्मापद्म भाग्यशाली समझते हो? हर कदम में पद्मों की कमाई जमा हो रही है। ऐसे अनगिनत पद्मों का मालिक अनुभव करते हो सारी सृष्टि के अन्दर ऐसा अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले कोटो में कोई हैं ना। जो गायन है कोटो में कोई, कोई में कोई यह हम आत्माओं का गायन है, क्योंकि साधारण रूप में आये हुए बाप को और बाप के कर्त्तव्य को जानना यह कोटो में कोई का पार्ट है। जान लिया, मान लिया और पा लिया। जब विश्व का मालिक अपना हो गया तो विश्व अपनी हो गई ना। जैसे बीज अपने हाथ में है तो वृक्ष तो है ही ना। जिसको ढूँढते थे उसको पा लिया। घर बैठे भगवान मिला। तो कितनी खुशी होनी चाहिए। भगवान ने मुझे अपना बनाया, इसी खुशी में रहो तो कहीं भी आँख नहीं डूबेगी। सामने देखते भी नज़र नहीं जायेगी। बाप मिला सब कुछ मिला यही सबसे बड़ी खुशी है, इसी खुशी में मन से नाचते रहो। इससे बड़ी खुशी की बात है ही क्या? इसलिए गायन है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो।
5. सदा अपने को खुशनसीब समझते हो? सारे विश्व के अन्दर सबसे श्रेष्ठ नसीब अर्थात् तकदीर हमारी है, ऐसा निश्चय रहता है। हमारे जैसा खुशनसीब और कोई हो नहीं सकता। बाप ने स्वयं आकर अपना बनाया। इस भाग्य का वर्णन करते सदा खुशी में नाचते रहो। उन्हीं का नसीब क्या है? अभी-अभी सुख होगा, अभी-अभी दु:ख होगा, लेकिन आपका नसीब अविनाशी है। सदा ऐसे आनन्द स्वरूप नसीब वाले हो। जो स्वप्न में भी नहीं था वह प्राप्ति हो गई, बाप मिला सब-कुछ मिला। इसी खुशी में रहो तो सदा समर्थी स्वरूप रहेंगे।
6. सबसे श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन गाया हुआ है, ब्राह्मणों का नाम भी ऊँचा और काम भी ऊँचा और स्थिति भी ऊँची। जैसे ब्राह्मणों की महिमा ऊँची है वैसे अपने को सच्चे ब्राह्मण अर्थात् ऊँची स्थिति वाले अनुभव करते हो। ऊँचे से ऊँचा बाप और ऊँचे से ऊँचे आप। बाप और आप दोनों ऊँचे इस स्मृति में रहो तो कर्म और संकल्प ऑटोमेटिक ऊँचे रहेंगे। योग अग्नि से पुराने खाते भस्म करो। ऐसी अग्नि तेज़ हो जो व्यर्थ का नामनिशान ही खत्म हो जाये। संगम पर पुराना खाता खत्म कर नया चालू करना है। अगर पुराना खाता भी चलता रहे तो जो प्राप्ति होनी चाहिए खुशी की वह नहीं होगी, अभी-अभी कमज़ोर, अभी-अभी समर्थ होंगे। बाप सदा समर्थ है, तो बच्चों को भी सदा समर्थ बनना है। अच्छा।
इस मुरली की प्रमुख बातें:-
1. यह एक्स्ट्रा टाइम स्वयं के पुरूषार्थ प्रति नहीं लेकिन दूसरों के प्रति समय, गुण, और सर्व खजाने देने के लिए हैं।
2. स्वयं सरैन्डर हो जाओ सेवा में तो माया स्वत: ही सरैन्डर हो जायेगी। लेकिन सरैण्डर नहीं होते तो माया भी अच्छी तरह चान्स लेती है। चान्स लेने कारण ब्राह्मणों का भी चान्सलर बन जाती है। माया को चान्सलर बनने नहीं दो। स्वयं सेवा का चान्स ले चान्सलर बनो।
महाराष्ट्र की पार्टियों के साथ बातचीत
सदैव स्वयं को सर्वश्रेष्ठ महान आत्मा समझते हो। महान आत्मा जिसकी स्मृति से स्वत: ही हर संकल्प और हर कर्म महान अथवा सर्वश्रेष्ठ होते हैं। जैसे आजकल की दुनिया में अल्पकाल की पाज़ीशन (Position) वाली आत्माएँ अपने पोज़ीशन की स्मृति में रहने के कारण दिन-रात स्वत: ही उसी नशे में रहती हैं वैसे बाप द्वारा प्राप्त हुई पोज़ीशन को स्मृति में रखना सहज और स्वत: है। जैसी पाज़ीशन है वैसा ही कर्म, जैसा नाम वैसा ही श्रेष्ठ कर्म भी है इसलिए वर्तमान समय सहजयोगी के साथ कर्मयोगी भी कहलायेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म द्वारा बाप से स्नेह और सम्बन्ध का हर आत्मा को साक्षात्कार होगा। जैसे हद की आत्माओं से स्नेह रखने वाली आत्मा का उनके चेहरे और झलक से दिखाई देता है कि कोई से स्नेह में लवलीन है। ऐसे अपने आप से पूछो कि हर कर्म बाप के साथ स्नेही आत्मा का अनुभव कराता है। इसको ही कहा जाता है कर्मयोगी। कर्मयोगी की या सहज राजयोगी की परिभाषा बड़ी गुह्य है। कर्मयोगी या सहज राजयोगी का हर संकल्प बाप के स्नेह के वायब्रेशन (Vibration) फैलाने वाले होंगे जैसे जड़ चित्र भी शान्ति के अल्पकाल के सुख के वायब्रेशन अब तक भी आत्माओं को देने का कार्य कर रहे हैं तो अवश्य चैतन्य रूप में संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, कर्म द्वारा विश्व में सदा सुख-शान्ति बाप के स्नेह के वायब्रेशन फैलाने का कर्त्तव्य किया है। तब जड़ चित्रों में भी शान्ति है। जब साइन्स का यंत्र गर्मी का या सर्दा का वायब्रेशन वायुमण्डल बना सकते हैं तो मास्टर सर्वशक्तिवान अपने साइलेन्स (Silence) अर्थात् याद की शक्ति से अपने लग्न की स्थिति द्वारा जो वायुमण्डल या वायब्रेशन फैलाना चाहें वह सब बना सकते हैं। ऐसी प्रैक्टिकस करो। अभी-अभी सुख का या शान्ति का वायुमण्डल या शक्ति रूप का वायुमण्डल बना सकते हो। जिस वायुमण्डल के अन्दर जो भी आत्माएँ हों वह अनुभव करें कि यहाँ दु:ख से सुख के वायुमण्डल में आ गये हैं। महसूस करें कि यहाँ बहुत सुख प्राप्त हो रहा है। जैसे एयरकण्डीशन (Air Condition) में सर्दा व गर्मी का अनुभव करते हैं कि सचमुच गर्मी से ठण्डी हवा में आ गये हैं। ठण्डी से गर्मी में आ गये हैं। ऐसे आपकी चलन और चेहरे द्वारा आपके संकल्प शक्ति द्वारा सुख-शान्ति और शक्ति का अनुभव करें। जैसे एक सेकेण्ड में अंधकार से रोशनी का अनुभव किया ना। ऐसे आजकल के मनुष्य अपनी शक्ति से अनुभव नहीं कर सकेंगे। लेकिन आप सबको अपनी प्राप्ति के आधार से, याद के आधार से अनुभवी बनाना पड़ेगा। यह है वास्तविक सहज राजयोग या कर्मयोग की परिभाषा। स्वयं प्रति शान्ति का या शक्ति का अनुभव किया यह कोई बड़ी बात नहीं लेकिन अपने याद की शक्ति द्वारा अब विश्व में वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बनाओ। तब कहेंगे नम्बरवन सहज राजयोगी। सिर्फ स्वयं सन्तुष्ट न रह जाओ। सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना है। यह है योगी का कर्त्तव्य। अच्छा।
बाप द्वारा सदा खुश रहने का साधन मिला हुआ है ना। कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन अपने पास साधन हैं तो सदा खुश रहेंगे। सिर्फ बाप को याद करने का साधन ही बहुत बड़ा है। बाबा कहना और खुशी प्राप्त होना। ऐसा साधन सदा यूज़ करते रहो। बाबा शब्द याद करना अर्थात् स्विच ऑन होना। जैसे स्विच ऑन करने से सेकेण्ड में अन्धकार भाग जाता है। ऐसे ही बाबा कहना अर्थात् अन्धकार या दु:ख-अशान्ति, उलझन, उदासी, टेन्शन सबकी सेकेण्ड में समाप्ति हो जाती है, ऐसा मन्त्र बाप ने दिया है। एक शब्द का तो मन्त्र है। सिर्फ बाबा। कैसा भी समय हो यह मन्त्र एक सेकेण्ड में पार कर लेने वाला है। सिर्फ इस मंत्र को विधिपूर्वक समय पर कार्य में लगाओ। यह एक शब्द का मन्त्र वण्डरफुल (Wonderful) जादू करने वाला है। इस एक शब्द के मन्त्र द्वारा जो चाहो वह ले सकते हो। चाहे सुख-शान्ति, चाहे शक्ति आनन्द जो चाहो सब प्राप्ति कराने वाला मंत्र है इसलिए ज्दू मंत्र कहते हैं। बाप तो सदा यही बच्चों के प्रति कामना करते हैं कि बाप समान बेहद के सेवाधारी बनना है। वह सब हैं हद की ज़िम्मेवारियाँ लेकिन बाप की ज़िम्मेवारी है बेहद की। तो बेहद की ज़िम्मेवारी में बाप समान बनना पड़े ना। जैसे हद की ज़िम्मेदारी निभाने में समय- शक्ति देनी पड़ती है ना। तो बाप की यह शुभ कामना भी पूरी करनी ही है। अब राजयोगी बनना है। राजयोगी राजराजेश्वर बनेंगे। तो पहली स्टेज है राजयोगी की। राजयोगी बनना कठिन नहीं है। घरबार छोड़ने वाला योगी बनना कठिन होता है। अच्छा।
अलग-अलग ग्रुप के साथ:-
1. इस समय दो कार्य साथ-साथ हो रहे हैं। एक तरफ पिछला हिसाबकिताब चुक्तू कर रहे हो और दूसरे तरफ भविष्य और वर्तमान जमा भी कर रहे हो। एक का लाख गुणा जमा होने का समय अभी है। इसलिए सदैव इस बात पर अटेन्शन चाहिए कि हर समय जमा होता है। चुक्तू करते समय भी जमा कर सकते हो। क्योंकि चुक्तु करने का साधन है याद। याद से जमा भी होता और चुक्तु भी होता। ऐसा न हो चुक्तू करने में ही टाइम चला जाए। अगर ट्रस्टी बन चुक्तू करते हो तो भी जमा होता है। विधिपूर्वक कार्य करने से चुक्तू के साथसाथ जमा भी होगा।
2. स्वदर्शन चक्रधारी हो ना। स्वदर्शन चक्रधारी सो भविष्य छत्रधारी। अगर स्वदर्शन चक्रधारी नहीं तो छत्रधारी भी नहीं। स्वदर्शन चक्र अनेक व्यर्थ चक्करों को समाप्त कर देता है। स्वदर्शन चक्र के आगे कोई चक्र ठहर नहीं सकता है। सेकेण्ड में समाप्त हो जायेगा। तो अपना अलंकार सदा कायम रखते हो कि कभी थक जाते हो? स्वदर्शन चक्र धारण करना अर्थात् हल्का रहना। हल्की चीज़ जो होती उसको सदा धारण करना मुश्किल नहीं होता। स्वदर्शन चक्रधारी बनना ही हल्का बनना है। तो निरन्तर यह चक्कर घूमता रहे। इसको छोड़ना नहीं क्योंकि प्राप्ति का अनुभव है ना।
3. जितना प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाते उतना स्वयं भी तृप्त आत्मा रहते। दूसरों को खुशी देना अर्थात् स्वयं खुश रहना। जैसे दान देने से धन बढ़ता, ऐसे अन्य आत्माओं को खुशी, शान्ति, शक्ति देना नहीं लेकिन भरना है। जब लग्न लग जाती है सेवा की तो सोते हुए भी स्वप्न में भी सेवा करेंगे। स्वप्न में भी सेवा के अच्छे-अच्छे प्लैन आयेंगे, जैसे योग द्वारा टचिंग हुई है। लगन का रिटर्न स्वप्न में भी मिलता, इसको कहा जाता है लगन में मगन। आप बच्चों के लिए ब्राह्मणों का संसार, संसार है बाकी असंसार है। देखते हुए भी नहीं देखते, रहते हुए भी नहीं रहते। इसलिए सेवाधारी के स्वप्न में क्या आयेगा, बाप और सेवा, और कुछ है ही नहीं। अच्छा।
4. माया को एक शब्द से मूर्च्छित करो - वह कौन-सा शब्द? ‘बाबा’ जहाँ बाबा है वहाँ माया नहीं। अगर दिल से, सम्बन्ध से, स्नेह से बाबा कहा और माया भागी। जैसे कितना भी बड़ा डाकू हो लेकिन जब पकड़ा जाता है तो बड़ा डाकू भी बकरी बन जाता। तो बाबा शब्द निकलना और डाकू का पकड़ा जाना। माया जो सेकेण्ड के पहले शेर के रूप वाली होती वह सेकेण्ड बाद बकरी बन जाती। तो इस साधन को सदा साथ रखो। बाबा भूला माना सब कुछ भूला। साधन सहज है सिर्फ बार-बार यूज़ (USE) करने का तरीका आना चाहिए। सेकेण्ड में परिवर्तन हो इसको कहा जाता है यूज़ करने का तरीका आता है। सदा यह याद रखो मेरा बाबा, जब मेरा बाबा आ गया तो माया भाग गई।
5. सहजयोगी की स्टेज स्वत: बनी रहे उसकी विधि:- अमृतवेले के महत्व को जानो। अमृतवेला है दिन का आदि। जो अमृतवेले अर्थात् सारे दिन के आदि के समय पावरफुल स्टेज (Powerful Stage) बनायेंगे तो सारा दिन मदद मिलेगी। सारे दिन की जीवन महान बन जायेगी। क्योंकि जब अमृतवेले विशेष बाप से शक्ति भर ली तो शक्ति स्वरूप हो चलने से मुश्किल नहीं होगा, चाहे जैसा कार्य आवे मुश्किल का अनुभव नहीं, लेकिन प्राप्त शक्ति के आधार से सहज हो जायेगा। इससे सहज योगी की स्टेज स्वत: बनी रहेगी। अमृतवेले को मिस करना अर्थात् संगम की विशेष प्राप्ति को खत्म करना। जो भी ईश्वरीय मर्यादायें हैं उन मर्यादाओं पूर्वक जीवन बिताने से एग्जाम्पल बन जायें। विश्व आपके जीवन को देखते अपनी जीवन बनायेगी, तो मर्यादा की लकीर के अन्दर रहो तो माया आ नहीं सकती।
कुछ भी हो लेकिन स्वयं का उमंग-उत्साह हर सेकेण्ड नया होना चाहिए। स्वयं के उमंग-उत्साह का आधार स्वयं है, उसमें कोई दूसरा रोक नहीं सकता, उसमें सदा चढ़ती कला होनी चाहिए। रूकना काम है कमज़ोरों का। अच्छा।
इस मुरली की विशेष बातें
1. जो जितना हल्का होता उतना अथक होता। किसी भी प्रकार का बोझ थकाता है।
2. मधुबन विश्व के आगे स्टेज है, स्टेज पर जो एक्टर होता है उसका हर एक्ट पर कितना अटेन्शन रहता है। मधुबन में आना अर्थात् कमाई की खान इकठ्ठा करना।
3. तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन।
4. नॉलेज की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुआिफक है वह भी राई अनुभव होगी। अर्थात् कुछ नहीं, क्योंकि नथिंग-न्यू।
18-01-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बाप-दादा की सेवा का रिटर्न
सदा अतीन्द्रिय सुख व खुशी के झूले में झूलाने वाले सुख के सागर परमात्मा शिव बोले
आज स्मृति दिवस अर्थात् समर्थी दिवस पर सब बच्चों ने अपनी-अपनी लगन अनुसार भिन्न-भिन्न रूप से याद किया। बाप-दादा के पास चारों ओर के स्नेही सहयोगी शक्ति स्वरूप सम्पर्क वाली आत्माओं के सब रूप की याद वतन तक पहुँची। बाप-दादा द्वारा हरेक बच्चे की जैसी याद वैसा रिटर्न उसी समय मिल जाता है। जिस रूप से जो याद करता है उसी रूप से बाप-दादा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हो ही जाता है। जो योगी तू आत्मा है उसे योग की विधि मिल जाती है। कई बच्चे योगी तू आत्मा की बजाय वियोगी आत्माएँ बन जाती हैं। जिस कारण मिलन की बजाए जुदाई का अनुभव करते हैं। योगी तू आत्मा सदा बाप-दादा के दिल तख्तनशीन होती। दिल कभी दूर नहीं होता। वियोगी आत्माएँ वियोग के द्वारा बाप-दादा को सामने लाने का प्रयत्न करती हैं। वर्तमान को भूल बीती को याद करती हैं। इस कारण बाप-दादा कब प्रत्यक्ष दिखाई देते, कब पर्दे के अन्दर छिपा हुआ दिखाई देते। लेकिन बाप-दादा सदा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हैं। बच्चों से छिप नहीं सकता। जबकि बाप है ही बच्चों के प्रति, जब तक बच्चों का स्थापना के कर्त्तव्य का पार्ट है तब तक बाप-दादा बच्चों के हर संकल्प और सेकेण्ड में साथ-साथ हैं। बाप का वायदा है साथ चलेंगे- कब चलेंगे? जब कार्य समाप्त होगा। तो पहले ही बाप को क्यों भेज देते हैं। बाबा चला गया यह कह अविनाशी सम्बन्धों को विनाशी क्यों बनाते हो। सिर्फ पार्ट परिवर्तन हुआ है। जैसे आप लोग भी सेवा स्थान चेन्ज (Change) करते हो ना। तो ब्रह्मा बाप ने भी सेवा स्थान चेन्ज किया है। रूप वही, सेवा वही है। हज़ार भुजा वाले ब्रह्मा के रूप का वर्तमान समय पार्ट चल रहा है तब तो साकार सृष्टि में इस रूप का गायन और यादगार है। भुजाएं बाप के बिना कर्त्तव्य नहीं कर सकतीं। भुजाएं बाप को प्रत्यक्ष करा रही हैं। कराने वाला है तब तो कर रहे हैं। जैसे आत्मा के बिना भुजा कुछ नहीं कर सकती वैसे बाप-दादा कम्बाइन्ड (Combined) रूप की सोल (Soul) के बिना भुजाएं रूपी बच्चे क्या कर सकते। हर कर्त्तव्य में अन्त तक पहले कार्य का हिस्सा ब्रह्मा का ही तो है। ब्रह्मा अर्थात् आदि देव। आदि देव अर्थात् हर शुभ कार्य की आदि करने वाला। बाप-दादा के आदि करने के बिना अर्थात् आरम्भ करने के बिना कोई भी कार्य सफल कैसे हो सकता। हर कार्य में पहले बाप का सहयोग है। अनुभव भी करते हो, वर्णन भी करते हो फिर भी कब-कब भूल जाते हो। प्रेम के सागर में प्रेम की लहरों में क्या बन जाते हो। लहरों से खेलना है, न कि लहरों के वशीभूत हो जाना है। गुणगान करो लेकिन घायल नहीं बनो। बाप देख रहे हैं कि बच्चे मेरे साथी हैं और बच्चे जुदाई का पर्दा डाल देखते रहते हैं। फिर ढूंढने में समय गँवाते हैं। हाज़िर हजूर को भी छिपा देते। अगर आँख मिचौनी का खेल अच्छा लगता है तो खेल समझकर भले खेलो लेकिन स्वरूप नहीं बनो। बहलाने की बातें नहीं सुना रहे हैं। और ही सेवा की स्पीड (Speed) को अति तीव्र गति देने के लिए सिर्फ स्थान परिवर्तन किया है। इसलिए बच्चों को भी बाप समान सेवा की गति को अति तीव्र बनाने में बिज़ी (Busy) रहना चाहिए। यह है स्नेह का रिटर्न । बाप जानते हैं बच्चों को बाप से अति स्नेह है लेकिन बाप का बच्चों के साथ-साथ सेवा से भी स्नेह है। बाप के स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप सेवा से स्नेह है। जैसे पल-पल बाबा-बाबा कहते हो वैसे हर पल बाप और सेवा हो तब ही सेवा कार्य समाप्त होगा और साथ चलेंगे। अब बाप-दादा हरेक बच्चे को लाइट-माइट हाउस (Light Might House) के रूप में देखते हैं। माइक पावरफुल (Powerful) हो गए हैं। लेकिन लाइट, माइट और माइक तीनों ही पावरफुल (Powerful) साथ-साथ चाहिए। आवाज़ में आना सहज लगता है ना। अब ऐसी पावरफुल स्टेज बनाओ जिस स्टेज से हर आत्मा को शान्ति, सुख और पवित्रता की तीनों ही लाइट्स (Light) अपनी माइट (Might) से दे सको। जैसे साकारी सृष्टि में जिस रंग की लाइट (Light) जलाते हो तो चारों ओर वही वातावरण हो जाता है। अगर हरी लाइट (Light) होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है। एक स्थान पर होते हुए भी एक लाइट (Light) वातावरण को बदल देती है जैसे आप लोग भी जब लाल लाइट (Light) करते हो तो ऑटोमेटिकली याद का वायुमण्डल बन जाता है। ऐसे जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर लेती है तो आप लाइट हाउस पवित्रता की लाइट से व सुख की लाइट से वायुमण्डल नहीं बना सकते हो? स्थूल लाइट आँखों से देखते। रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे। वर्तमान समय इस रूहानी लाइट्स द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा है। सुना अब सेवा का क्या रूप होना है। दोनों सेवा अब साथ-साथ हों। माइक और माइट तब सहज सफलतामूर्त्त बन जायेंगे।
पार्टियों के साथ बातचीत
1. बेहद बाप को भी हद के नम्बर लगाने पड़ते हैं। नहीं तो बाप और बच्चों का मिलना दिन-रात क्या है? आपकी दुनिया में यह सब बातें हैं। वहाँ तो सब बाप के समीप हैं। बिन्दु क्या जगह लेगी, यहाँ तो शरीर को जगह चाहिए, वहाँ समीप हो ही जायेंगे। यहाँ हरेक आत्मा समझती हम समीप आयें। जितना जो बाप के गुणों में, स्थिति में समीप उतना वहाँ स्थान में भी समीप, चाहे घर में, चाहे राज्य में। स्थिति स्थान के समीप लाती है। यही कमाल है जो हरेक समझता है मैं समीप और समीप का अनुभव भी करता है क्योंकि बेहद का बाप अखुट है, अखण्ड है इसलिए सभी समीप हो सकते हैं। सन्तुष्ट रहना और करना। यही वर्तमान समय का स्लोगन है। असन्तुष्ट अर्थात् अप्राप्ति। सन्तुष्ट अर्थात् प्राप्ति। सर्व प्राप्ति वाले कभी भी असन्तुष्ट नहीं हो सकते।
2. सदा अपने को गॉडली (Godly) स्टूडेण्ट (Student) समझते हो? गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ (Godly Student Lift) सबसे बेस्ट (Best) गाई जाती है। ऐसे सदा बेस्ट (Best) अर्थात् श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करते हो। जैसे स्टूडेण्ट (Student) सदा हंसते, खेलते और पढ़ते रहते और कोई बात बुद्धि में विघ्न रूप नहीं बनती ऐसे ही पढ़ना, पढ़ाना निर्विघ्न रहना, बाप के साथ उठना, बैठना, खाना पीना यह है गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ। लौकिक में रहते भी बाप का साथ है ना। चाहे कहाँ भी शरीर रहे लेकिन मन बाप और सेवा में लगे रहे। खाना, पीना, चलना सब बाप के साथ इसकी ही महिमा है। जो प्रिय वस्तु होती उसका साथ छोड़ना मुश्किल होता है साथ रहना, योग लगना मुश्किल नहीं, योग टूटना मुश्किल - ऐसे अनुभवी को कहा जाता है गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ। जिसको छोड़ना मुश्किल है, तोड़ना मुश्किल है लेकिन साथ रहना मुश्किल नहीं, यही बेस्ट लाइफ है। सदा हंसते रहो और गाते रहो और बाप के साथ चलते रहो। ऐसा साथ सारे कल्प में नहीं मिल सकता। संगम पर भी अगर और किसी को ढूँढो तो मिलेगा? नहीं ना। बाप ने आपको ढूँढा या आपने? ढूँढते तो आप भी थे, रास्ता रांग लिया। ढूँढना तो था बाप को, ढूँढा भाइयों को इसलिए ढूँढ नहीं सके।
3. स्वयं के पुरूषार्थ में और सेवा में सदा वृद्धि होती रहे उसका सहज साधन कौन सा है? वृद्धि का सहज साधन है अमृतवेले से लेकर विधिपूर्वक चलना तो जीवन वृद्धि को पायेगा। कोई भी कार्य सफल तब होता जब विधि से करते। ब्राह्मण अर्थात् विधिपूर्वक जीवन। अगर किसी भी बात में स्वयं के पुरूषार्थ व सेवा में वृद्धि नहीं होती तो ज़रूर कोई विधि की कमी है। चैक करो कि अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा-वाचा-कर्मणा व सम्पर्क विधिपूर्वक रहा अर्थात् वृद्धि हुई? अगर नहीं तो कारण को सोचकर निवारण करो। फिर दिलशिकस्त नहीं होंगे। अगर विधिपूर्वक जीवन होगी तो वृद्धि अवश्य होगी। अच्छा
24-01-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
निरन्तर सेवाधारी
सदा महादानी और वरदानी, निरन्तर योगी व निरन्तर सेवाधारी बनाने वाले विश्व कल्याणकारी सतगुरू शिवबाबा बोले –
आज बाप-दादा हरेक बच्चे के मस्तक बीच चमकता हुआ सितारा कहो या हीरा कहो, देखते हुए हर्षित हो रहे हैं। हरेक की चमक न्यारी और प्यारी थी। इन चमकते हुए सितारों से हर आत्मा की तकदीर की लकीरें स्पष्ट दिखाई देती हैं। बाप-दादा को नाज़ है, कैसे-कैसे बिछडे हुए बच्चे अपना भाग्य बनाने लिए कितना गुप्त और प्रत्यक्ष पुरूषार्थ कर रहे हैं। बच्चों का नशा और तीव्र पुरूषार्थ देख बाप भी बच्चों पर बलिहार जाते हैं अर्थात् बच्चों के गले का हार बन जाते हैं। जैसे हार सदा गले में पिरोये हुए होता है, वैसे बच्चों के मुख में, नयनों में, बुद्धि में बाप ही समाया हुआ है, अर्थात् बाप को अपने गले का हार बनाया है। आज बाप-दादा बच्चों के गीत गा रहे थे। आज कौन सा-गीत गाया। बच्चों की महिमा का। हर बच्चे को बाप को प्रत्यक्ष करने का उमंग देखा। सिवाय बच्चों के, बाप प्रत्यक्ष हो भी नहीं सकता। तो बाप को भी प्रत्यक्ष करने वाले कितने श्रेष्ठ ठहरे? इतना नशा या सेवा की स्मृति सदा रहे। जैसे बाप अविनाशी है, आत्मा अविनाशी है, सर्वप्राप्ति संगमयुग की अविनाशी है, ऐसे ही स्मृति या नशा भी अविनाशी है? अन्तर नहीं होना चाहिए। अन्तर आना अर्थात् मंत्र को भूलना। अगर मंत्र याद है तो नशे में अन्तर नहीं हो सकता।
आज तो बाप-दादा मिलने आये हैं सुनाया तो बहुत है लेकिन आज सुनाये हुए का स्वरूप देखने आये हैं स्वरूप में क्या देख रहे हैं? सर्विस बहुत अच्छी की, अनेक अज्ञानी आत्माओं को स्मृति अर्थात् जाग्रता दिलाई। देहली की धरनी ने सर्व ब्राह्मण आत्माओं को हलचल में लाया। अभी क्वेश्चन उठा है कि यह कौन है और यह कर्त्तव्य क्या है? जैसे सोये हुए मनुष्य को जगाया जाता है, आंख खोलते थोड़ा सा नींद का नशा होने कारण यह क्वेश्चन करता है, कौन है? क्या है ऐसे देहली निवासी अज्ञानी आत्माओं को भी क्वेश्चन ज़रूर उठा है कि यह क्या है कौन हैं? सुनने और देखने में अन्तर अनुभव किया। सब नज़र ब्राह्मणों को देख इतना ज़रूर अनुभव करती है कि कमाल है। साधारण कन्याओं माताओं ने गुप्त में ही इतनी सेना तैयार कर ली है। ऐसा कब सोचा नहीं था-समझा नहीं था। सबकी दिव्य सूरतों ने बाप-दादा की मूर्त्त को कर्त्तव्य द्वारा लोगो के सामने प्रत्यक्ष ज़रूर किया है। अभी सिर्फ हलचल मचाई है। जैसे धरनी में पहले हल चलाते हैं ना-और हल चलाते हुए बीज डाला जाता है ऐसे अपने भविष्य राजधानी में या अपनी आदि धरनी में हलचल रूपी हल चला -- कोई ताकत है, कोई शक्ति है, साधारण व्यक्तियाँ नहीं हैं, हलचल के साथ यह बीज डाला है। सम्मुख न देखते हुए भी चारों ओर यह धूम मचाई है कि यह कौन है और क्या है? गवर्न्मेण्ट के कानों तक यह आवाज़ पहुँची है। अभी इस बीज को वाणी द्वारा और याद की शक्ति द्वारा फलीभूत करना है। लेकिन अब तक जो किया वह बहुत अच्छा किया।
बाप-दादा विदेश से आये हुए बच्चों को या भारत से आये हुए बच्चों, जिन्होंने भी सेवा में अंगुली दी अर्थात् अपने राज्य का फाउन्डेशन डाला उन्हें देख हर्षित होते हैं। यह कांफ्रेंस ब्राह्मणों की अपनी-अपनी राजधानी के अधिकारी बनने का फाउण्डेशन स्टोन सैरीमनी थी। इसलिए कोई भी विदेश के सेन्टर्स की आत्माऐं या भारत में भी कोई ज़ोन रहा नहीं। यह की हुई गुप्त सेवा थोड़े समय में प्रत्यक्ष रूप दिखावेगी। अभी तो गुप्त वेश में अपना फाउन्डेशन स्टोन डाला है। अर्थात् बीज डाला है। लेकिन समय प्रमाण यही बीज फल के रूप में आप सब देखेंगे। यही दुनिया के लोग आपका आह्वान करेंगे, आजयान करेंगे। (सभी की खांसी की आवाज़ होती है।) बहुत मेहनत की है क्या? प्रकृति का प्रभाव ज्यादा हो गया है इसका फल भी मिल जावेगा। विदेशी आत्माओं को यह भी अनुभव करना बहुत ज़रूरी है कि जैसा मौसम वैसा स्वयं को चला सकें। यह भी अनुभव चाहिए। हरेक छोटे बड़े का इस सेवा में महत्व रहा। मेहनत भी अच्छी की है, पहला फाउन्डेशन यह क्वेश्चन उठा है, अब दोबारा फिर क्वेश्चन का उत्तर मिलेगा। आज बाप-दादा यह रूह रूहान कर रहे थे। आगे के लिए भी जैसे निरन्तर योगी का वरदान बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वैसे ही निरन्तर सेवाधारी। सोते हुए भी सेवा हो। सोते हुए भी कोई देखे तो आपके चेहरे से शान्ति, आनन्द के वायब्रेशन अनुभव करें। इसलिए कहा जाता है कि बड़ी मीठी नींद थी। नींद में भी अन्तर होता है। हर संकल्प में हर कर्म में सदा सर्विस समाई हुई हो इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी। बाप और सेवा। जैसे बाप अति प्यारा लगता है-बाप के बिना जीवन नहीं, ऐसे ही सेवा के बिना जीवन नहीं। ऐसे निरन्तर योगी और निरन्तर सेवाधारी सदा विघ्नविनाशक होते हैं। बाप की याद और सेवा। यह डबल लॉक लग जाता है। इसलिए माया आ नहीं सकती। चैक करो कि सदा डबल लॉक रहता है। अगर सिंगल लॉक है तो माया के आने की मार्जिन रह जाती है। इसलिए बार-बार अटेन्शन दो कि बाप की याद और सेवा में तत्पर हैं? सदा यह याद रखो कि सर्व कर्मेन्द्रियों द्वारा बाप की याद की स्मृति दिलाने की सेवा करते रहते हैं? हर संकल्प द्वारा विश्व कल्याण अर्थात् लाइट हाउस का कर्त्तव्य करते रहते हैं? हर सेकेण्ड की पावरफुल वृत्ति द्वारा चारों ओर पावरफुल वायब्रेशन फैलाते रहते हैं अर्थात् वायुमण्डल परिवर्तित करते रहते हैं। हर कर्म द्वारा हर आत्मा को कर्मयोगी भव का वरदान देते रहते हैं? हर कदम में स्वयं प्रति पद्मों की कमाई जमा करते जा रहे हैं? तो संकल्प, समय, वृत्ति और कर्म चारों को सेवा प्रति लगाओ। इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी अर्थात् सर्विसएबुल। अच्छा
जैसे मधुबन में मेला है वैसे अन्त में आत्माओं का मेला भी होने वाला है। मधुबन अच्छा लगता है या विदेश अच्छा लगता है। मधुबन किसको कहा जाता है? जहाँ ब्राह्मणों का संगठन है वह मधुबन है तो हरेक विदेश के स्थान को मधुबन बनाओ। मधुबन बनावेंगे तो बाप-दादा भी आयेंगे। क्योंकि बाप का वायदा है कि मधुबन में आना है। तो जहाँ मधुबन वहाँ बाप-दादा। आगे चल कर बहुत वन्डर्स देखेंगे। अभी जैसे भारत की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे थोड़े समय में विदेश की संख्या बढ़ाओ। जहाँ रहते हो वहाँ चारों ओर आवाज़ फैल जाए। क्वेश्चन उत्पन्न हो कि यह कौन है और क्या है। जब ऐसे संगठन तैयार करेंगे तो जहाँ संगठन है वहाँ बाप-दादा भी हाज़िर नाज़िर हैं।
वहाँ खुशी होती या यहाँ आने में खुशी होती। कितना भी कहो फिर भी बड़ा-बड़ा है, छोटा-छोटा है। क्योंकि डायरेक्ट साकार तन की जन्मभूमि और कर्मभूमि, चरित्र भूमि का विशेष महत्व तो है ही। तब तो भक्ति में भी कुछ नहीं होते हुए स्थान का महत्व है। मूर्ति पुरानी होगी और घर में बहुत अच्छी सुन्दर मूर्ति होगी भक्त फिर भी स्थान का महत्व देते हैं। तो स्थान का महत्व है लेकिन अपनी फुलवाडी को बढ़ाओ। मधुबन जैसा नक्शा बनाओ। जब मिनी मधुबन भी होगा तो सभी को आकर्षण होगी देखने की। अच्छा
बाप- दादा वर्तमान सेवा की थैंक्स देते हैं और भविष्य सेवा के लिए फिर स्मृति दिलाते हैं। बाप-दादा को बच्चों से ज्यादा स्नेह कहो या शुभ ममता कहो, माँ की बच्चों में ममता होती है ना, तड़फते नहीं हैं लेकिन समा जाते हैं। उदास नहीं होते लेकिन बच्चों को सम्मुख इमर्ज कर स्नेह के सागर में समा जाते हैं। बाप का स्नेह है तब तो आपको भी स्नेह उत्पन्न होता है ना। स्नेह है तब तो अव्यक्त से भी व्यक्त में आते हैं।
ऐसे स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले, स्नेह से बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सेवा द्वारा विश्व के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए, सदा महादानी और वरदानी, ऐसे निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी बच्चों को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।
14-02-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
समीप आत्मा की निशानियाँ
अव्यक्त बापदादा बोले: -
स्वयं को सदा बाप-दादा के साथ अर्थात् सदा समीप अनुभव करते हो? समीप आत्मा की निशानी क्या होगी? जितना जो समीप होगा उतना स्थिति में, कर्त्तव्य में, गुणों में बाप समान अर्थात् सदा सम्पन्न, अर्थात् दाता होगा। जैसे बाप हर सेकेण्ड और संकल्प में विश्व कल्याणकारी है वैसे बाप समान विश्व कल्याणकारी होगा। विश्व कल्याणकारी का हर संकल्प हर आत्मा के प्रति, प्रकृति के प्रति शुभ भावना वाला होगा। एक भी संकल्प शुभ भावना के सिवाए नहीं होगा। जैसे बीज फल से भरपूर होता है अर्थात् सारे वृक्ष का सार बीज में भरा हुआ होता है। ऐसे संकल्प रूपी बीज में शुभ भावना, कल्याण की भावना, सर्व को बाप समान बनाने की भावना, निर्बल को बलवान बनाने की भावना, दु:खी अशान्त को स्वयं की प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से सदा सुखी,शान्त बनाने की भावना, यह सर्व रस या सार हर संकल्प में भरा हुआ होगा। कोई भी संकल्प रूपी बीज इस सार से खाली अर्थात् व्यर्थ नहीं होगा। कल्याण की भावना से समर्थ होगा।
जैसे स्थूल साज़ आत्माओं को अल्प काल के लिए उल्लास में लाते हैं। न चाहते हुए भी सबके पाँव नाचने लगते हैं ना, मन नाचने लगता है, वैसे विश्व कल्याणकारी का हर बोल रूहानी साज़ के समान उत्साह और उमंग दिलाता है। उदास आत्मा बाप से मिलन मनाने का अनुभव करती और खुशी में नाचने लग पड़ती। विश्व कल्याणकारी का कर्म, कर्मयोगी होने के कारण हर कर्म चरित्र के समान गायन योग्य होता है। हर कर्म की महिमा कीर्तन करने योग्य होती। जैसे भक्त लोग कीर्तन में वर्णन करते हैं देखना अलौकिक, चलना अलौकिक, हर कार्य इन्द्रियों की महिमा अपरमपार करते रहते हैं,ऐसे हर कर्म महान अर्थात् महिमा योग्य होता है। ऐसी आत्मा को कहा जाता है बाप समान समीप आत्मा। ऐसे विश्व कल्याणकारी आत्मा का हर सेकेण्ड का सम्पर्क आत्मा को सर्व कामनाओं की प्राप्ति का अनुभव कराता है। कोई आत्मा को शक्ति का, कोई को शान्ति का, मुश्किल को सहज करने का, अधीन से अधिकारी बनने का, उदास से हर्षित होने का, इसी प्रकार विश्व-कल्याणकारी महान् आत्मा का सम्पर्क सदा उमंग और उत्साह दिलाता है। परिवर्तन का अनुभव कराता है, छत्रछाया का अनुभव कराता है। ऐसे विश्व-कल्याणकारी अर्थात् समीप आत्मा बनने वाले ऐसे को ही लगन में मगन रहने वाली आत्मा कहा जाता है। ऐसे बन रहे हो ना?
लकी तो सभी हो जो बाप ने अपना बना दिया। बाप ने बच्चों को स्वीकार किया अर्थात् अधिकारी बनाया। यह अधिकार तो सबको मिल ही गया। लेकिन विश्व का मालिक बनने का अधिकार, विश्व-कल्याणकारी बनने के आधार से होगा। अब हरेक अपने आपसे पूछो अधिकारी बने हैं? राज्य-भाग के अधिकारी बने हैं। तख्तनशीन बनने के अधिकारी बने हैं या रॉयल फैमिली में आने के अधिकारी बने हैं? या रॉयल फॅमिली के सम्पर्क में आने के अधिकारी बने हैं। कहाँ तक पहुँचे हैं? राज्य-भाग्य के अधिकारी बने हैं?
विदेशी आत्माएँ अपने को क्या समझती हैं। सब राज्य करेंगे या राज्य में आयेंगे? क्या जो मिलेगा वह मंजूर है? विदेशी आत्माओं में से सतयुग की 8 बादशाही में तख्तनशीन बनने के उम्मीदवार कौन समझता है? 8 बादशाही में से लक्ष्मी नारायण की फर्स्ट, सेकेण्ड उसमें आयेंगे। 8 बादशाही में आने के लिए क्या करना पड़ेगा? या यह सोचा है कि सिर्फ 8 ही हैं। बहुत सिम्पल बात है, यह देखो कि हर समय हर परिस्थिति में अष्ट शक्तियां साथ-साथ इमर्ज रूप में होती हैं? अगर दो-चार शक्तियां हैं और एक भी शक्ति कम है तो अष्ट बादशाहियों में नहीं आ सकते। अष्ट शक्तियों की समानता हो और एक ही समय अष्ट ही शक्तियां इमर्ज चाहिए। ऐसे भी नहीं कि सहन शक्ति 100% लेकिन निर्णय शक्ति 60% या 50% है। दोनों में समानता चाहिए अर्थात् परसेन्टेज फुल चाहिए। तब ही सम्पूर्ण राज्य गद्दी के अधिकारी होंगे। अब बताओ क्या बनेंगे? अष्ट लक्ष्मी नारायण के राज्य या तख्त के अधिकारी होंगे।
विदेशी आत्माओं में उमंग और हिम्मत अच्छी है। हिम्मते बच्चे मददे बाप। हाईजम्प का सैम्पल बन सकते हैं। लेकिन यह सब बातें ध्यान में रखनी पड़ेंगी। विशेष आत्माएँ हो तब तो बाप-दादा भी जानते हैं, रेस में नम्बर वन दौड़ लगाने वाले ऐसे उमंग उत्साह वाले दूर रहते भी समीप अनुभव करने वाले, ऐसी आत्मायें भी हैं ज़रूर। अब स्टेज पर प्रेक्टीकल में अपना पार्ट बजाओ? पुरूषार्थ को आगे बढ़ाना है और फर्स्ट नम्बर की विशेषता क्या है उसी प्रमाण अपना पुरूषार्थ करना है, हर कर्म में चढ़ती कला हो। अच्छा
अफ्रीका पार्टी प्रति
सब तीब्र पुरुषार्थी हो ना? तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचा और किया। सोचने और करने में अन्तर नहीं। जैसे कई बातों में प्लान बहुत बनाते हैं, प्रैक्टीकल में अन्तर हो जाता है, तो तीव्र पुरुषार्थी जो होगा वह जो प्लान बनाएगा वही प्रैक्टीकल होगा। तो ऐसे तीव्र पुरुषार्थी हो ना? पराया राज्य होने के कारण परिस्थितियां तो आपके तरफ बहुत आती हैं, लेकिन जो सदा बाप के साथ है उसके आगे परिस्थिति भ् स्वस्थिति के आधार पर परिवर्तन हो जाती है। पहाड़ भी राई बन जाता है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कई बार यह सब बातें पार कर चुके हैं। नथिंग न्यू। नई बात में घबराना होता। लेकिन नथिंग-न्यू ऐसा अनुभव करने वाले सदा कमल पुष्प के समान रहते हैं। जैसे पानी नीचे होता है, कमल ऊपर रहता है, इसी प्रकार परिस्थिति नीचे है, हम ऊपर हैं, नीचे की बात नीचे। कभी कोई बात आवे तो सोचो बाप-दादा हमारे साथ है। आलमाइटी अथॉरिटी हमारे साथ है। आलमाइटी के आगे कितनी भी बड़ी परिस्थिति चींटी के समान है। कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन जो बाप के बने हैं उनका बाप ज़िम्मेवार है। सोचो नहीं- कहां रहेंगे, कैसे रहेंगे, क्या खायेंगे। सच्चे दिल का साथी बाप है। जब तक बाप है तब तक भूखे नहीं रह सकते। जब भक्तों को अनेक प्रकार के अनुभव होते हैं, वह तो भिखारी हैं उनका पेट भर जाता है तो आप तो अधिकारी हैं, आप भूखे कैसे रह सकते। इसलिए ज़रा भी घबराओ नहीं, क्या होगा? जो होगा वह अच्छा होगा। सिर्फ छोटा सा पेपर होगा कि कहां तक निश्चय है? पेपर सारे जीवन का नहीं होता, एक या दो घण्टे का पेपर होता है। अगर बाप-दादा सदा साथ है, पेपर देने के टाइम पर एक बल एक भरोसा है तो बिल्कुल ऐसे पार हो जायेंगे जैसे कुछ था ही नहीं। जैसे स्वप्न होता है ना, स्वप्न की जो बातें होती वह उठने के बाद समाप्त हो जाती, तो यह भी दिखाई बड़ा रूप देता लेकिन है कुछ नहीं। तो ऐसे निश्चय बुद्धि हो? हरेक के मस्तक के ऊपर विक्टरी का तिलक लगा हुआ है तो ऐसी आत्माएँ जो हैं ही विजय के तिलक वाले, उनकी हार हो नहीं सकती। मेहनत करके आये हो, परिस्थिति पार करके आये हो इसलिए बाप दादा भी मुबारक देते हैं। यह भी ड्रामा में है जैसे स्टीमर टूट जाता है तो कोई कहां कोई कहां जाकर पड़ते हैं, यह भी द्वापर में सब बिछुड़ गये, कोई विदेश में कोई देश में, अभी बाप बिखरे हुए बच्चों को इकट्ठे कर रहे हैं। अभी बेफिकर रहो। कुछ भी होगा तो पहले बाबा के सामने आयेगा। महावीर हो ना। कहानी सुनी है ना भट्ठी के बीच पूंगरे बच गये। क्या भी हो लेकिन आप सेफ हो सिर्फ माया प्रुफ की ड्रेस पड़ी होनी चाहिए। ड्रेस तो सदा साथ रहती है ना माया प्रूफ की। प्लेन में भी देखो इमरजेंसी में ड्रेस देते हैं कि कुछ हो तो पहन लेना। तो आपको बहुत सहज साधन मिला है।
एक-एक रतन वैल्युएबल है क्योंकि अगर वैल्युएबल रतन नहीं होते तो कोटो में कोई आप ही कैसे आते। जिसको दुनिया अपनाने के लिए तड़प रही है उसने मुझे अपना लिया। एक सेकेण्ड के दर्शन के लिए दुनिया तड़प रही है, आप तो बच्चे बन गये तो कितना नशा, कितनी खुशी होनी चाहिए, सदा मन खुशी में नाचता रहे। वर्तमान समय की खुशी का नाचना भविष्य चित्र में भी दिखाते हैं। कृष्ण को सदैव डान्स के पोज़ में दिखाते हैं ना।
जैसे बाप जैसा कोई नहीं वैसे आपके भाग्य जैसा और कोई भाग्यशाली नहीं। अच्छा-जो नहीं पहुँच सके हैं उन्हों को भी बहुत-बहुत याद देना। बापदादा का स्नेह अवश्य समीप लाता है। अमृतवेले उठ बाप से रूह रूहान करो तो सब परिस्थतियों का हल स्पष्ट दिखाई देगा। कोई भी बात हो उसका रेस्पॉन्स रूह रूहान में मिल जायेगा। मधुबन वरदान भूमि से विशेष यह वरदान लेकर जाना तो और भी लिफ्ट मिल जायेगी। जब बाप बैठे हैं बोझ उठाने के लिए तो खुद क्यों उठाते। जितना हल्का होंगे उतना ऊपर उड़ेंगे। अनुभव करेंगे कि कैसे हल्के बनने से ऊँची स्टेज हो जाती है।
बाप को जान लिया, पा लिया इससे बड़ा भाग्य तो कोई होता नहीं। घर बैठे बाप मिल गया। बाप ने ही आकर जगाया ना बच्चे उठो, देश कोई भी हो लेकिन स्थिति सदा बाप के साथ रहने की हो, चाहे देश से दूर हैं लेकिन बाप के साथ रहने वाले नजदीक से नज़दीक हैं। कुमारियां निर्बन्धन हैं किसलिए? सेवा के लिए। ड्रामा में यह भी एक लिफ्ट है। इस लिफ्ट का लाभ लेना चाहिए। जितना-जितना अपना समय ईश्वरीय सेवा में लगाती जायेंगी तो लौकिक सर्विस का भी सहयोग मिलेगा, बन्धन नहीं होगा। कुमारियां बाप को अति प्रिय हैं क्योंकि जैसे बाप निर्बन्धन है वैसे कुमारियां हैं। तो बाप समान हो गई ना। अच्छा।
ट्रिनीडाड - ग्याना
वरदान भूमि में आकर अनेक वरदानों से स्वयं को सम्पन्न बनाया। मधुबन है ही कमाई से झोली भरने का स्थान। मधुबन आना अर्थात् अपने को वर्तमान और भविष्य के अधिकारी बनने का स्टैम्प लगाना। अधिकारी बनने का साधन है, माया की अधीनता को छोड़ना। तो अधिकारी हो ना। अच्छा।
कनाडा
कनाडा ने कितने रतन निकाले हैं। क्वान्टिटी नहीं तो क्वालिटी तो है। जब एक दीपक से दीपमाला हो जाती है तो एक से इतने तो बने हैं ना। इसलिए एक-एक को समझना चाहिए कि मुझ एक को अनेकों को सन्देश देकर माला तैयार करनी है। जो भी सम्पर्क में आवें उन्हें बाप का परिचय देते चलो तो कोई न कोई निकल आएगा। हिम्मत नहीं हारना कि कोई निकलता नहीं, निकलेंगे। कोई-कोई धरनी फल थोड़ा देरी से देती है कोई जल्दी से। इसलिए जहां भी ड्रामा अनुसार सेवा के निमित्त बने हो तो ज़रूर कोई रतन है तभी निमित्त बने हो। लक्ष्य पावरफुल रखो कि अब हमें सेवा से सबूत देना ही है। तो मेहनत से सफलता हो ही जाएगी।
लेस्टर
सदा अतीन्द्रिय सुख में झूमने वाले हो ना। बाप मिला, सब कुछ मिला, इसी स्मृति से अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति ऑटोमैटिकली हो जायेगी। दु:ख की अविद्या, दु:ख का नाम निशान नहीं। जैसे भविष्य में दु:ख और अशान्ति का अज्ञान होगा वैसे अभी भी अनुभव करेंगे कि दु:ख अशान्ति की दुनिया ही और है। वह कलियुगी है हम संगमयुगी हैं। संगमयुगी के पास दु:ख अशान्ति का नाम नहीं, दु:खी को देख तरस आएगा। दु:ख का अनुभव तो बहुत समय किया। अब संगमयुग है ही अतीन्द्रिय सुख में रहने का समय, यह अनुभव सतयुग में भी नहीं होगा। जैसा समय वैसा लाभ लो। सीज़न है अतीन्द्रिय सुख पाने की, तो सीज़न में न पाया तो कब पायेंगे। बाप की याद ही झूला है, इस झूले में ही झूलते रहो, इससे नीचे न आओ। लेस्टर का भी सर्विस में नम्बर आगे है। लन्दन में लेस्टर की महिमा भी अच्छी है। रहमदिल है जो हमजिन्स को बढ़ाते जाते। कुमार, कुमारियों, युगल सब वृद्धि को पाते जा रहे हैं, रिज़ल्ट अच्छी है, लेकिन और भी बढ़ाओ। ऐसी संख्या बढ़ जाये जो जहाँ देखो वहाँ ब्राह्मण ही दिखाई दें।
मॉरिशियस
सदा स्वयं बाप द्वारा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न समझते हो? जैसे बाप सागर है, सागर अर्थात् सम्पन्न, वैसे ही अपने को सम्पन्न समझते हो? अगर सम्पन्न नहीं होंगे तो माया का वार किसी न किसी रूप में होता रहेगा। सम्पन्न अर्थात् माया जीत। संगम पर ही मायाजीत बनने की बात है, सतयुग में नहीं। मायाजीत वर्तमान का टाइटल है, उसका अभी अनुभव करना है। जितनी लगन उतना निर्विघ्न। अच्छा।
हांगकांग
सदा एक ही लगन रहती है? अपनी हमजिन्स को जगाने की। अपने बिछुड़े हुए परिवार की माला में पिरोयें यही लगन रहती है? इसके सिवाए और जो कुछ भी करते वो निमित्त मात्र। लौकिक में रहते न्यारे और प्यारे बनना है। बनाना है ब्राह्मणों से और चुक्तू करना है अज्ञानी आत्माओं से, सम्पर्क सम्बन्ध से बिल्कुल पानी से ऊपर, कीचड़ से ऊपर कमल समान रहना है। ऐसी स्थिति रहती है कि थोड़ा सा मोह है? नष्टोमोहा बनने का तरीका है अपनी जिम्मेवारी नहीं समझो, ज़िम्मेवारी समझते तो मोह हो जाता, ज़िम्मेवारी छोड़ना अर्थात् नष्टोमोहा। खुद स्वयं को बच्चा समझो, बड़ा नहीं। बच्चा समझना अर्थात् नष्टोमोहा होना। बड़ा समझते तो बाप भूल जाता। बच्चा समझने से बाप की याद स्वत: आयेगी। हांगकांग की धरनी कम नहीं है, फलीभूत धरनी है और अनेक फल निकल सकते हैं। सिर्फ शक्ति सेना महावीरनी बन स्टेज पर आओ। खुशी का जो अखुट खज़ाना मिला है, इसी खज़ाने में सदा खेलते रहो। याद का रिटर्न यादगार बनाकर दिखाओ।
लन्दन
सदैव अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस समझते हो? अनेक आत्माओं को अंधियारे से रोशनी में लाना यह लाइट हाउस का कर्त्तव्य है। तो हर एक अपने को ऐसा लाइट हाउस अनुभव करते हो? जैसा बाप वैसा बच्चा। जो बाप का धन्धा-वही बच्चे का तो बाप दाता है तो हर एक बच्चे को भी यही लक्ष्य रखना है कि हमें भी दाता बनना है। वरदान भूमि में पहुँचने वाली आत्मायें विश्व-कल्याण के निमित्त बन सकती हैं। यह अनुभव करते हो कि हम वरदान भूमि पर पहुँचे हुए हैं? नये-नये क्या समझते हैं? ऐसा भाग्य जो विदेश से इस भूमि पर अधिकारी बनकर आये हो। ऐसा भाग्य अब तक भक्त लोग गायन करते हैं कि ऐसा भाग्य कब मिल जाए तो ऐसे अपने को भाग्यशाली अनुभव करते हो? बाप तो हर एक बच्चे को अपने से भी ऊँचा बनाते हैं इसलिए बच्चे को कहते ही हैं सिरताज। ऐसा सिरताज अपने को समझते हो? माया से घबराते तो नहीं? माया को जन्म देने वाले भी आप हो। जब कमज़ोर होते तो माया को जन्म देते, कमज़ोर न हो तो माया जन्म ही न ले। न जन्म दो न घबड़ाओ। मायाजीत बनने का वरदान संगम पर बाप द्वारा मिला है। यह तो अनुभव करते हो कि हम कल्प पहले वाले हैं। जब यह याद है हम कल्प पहले वाले हैं तो कल्प पहले क्या किया था? कल्प-कल्प के विजयी हो, यह स्मृति रहे तो कोई भी बात बड़ी नहीं लगेगी, सहज लगेगी।
आस्ट्रेलिया
पाण्डव सेना और शक्ति सेना को देख बाप-दादा भी हर्षित होते हैं। हर एक ने मायाजीत बनने का दृढ़ संकल्प किया है ना। सारा ग्रुप चैलेन्ज करने वाला है। सब महावीर महावीरनियां हो ना? सदैव अपनी तकदीर को देखते हर्षित रहो तो आप सबको हर्षित रहते हुए देख अनेक दु:खी आत्मायें सुखी अनुभव करेंगी। आपकी खुशी अनेकों को बाप का परिचय दिलायेगी। हर एक चलता फिरता म्यूज़यम बन जाये। जैसे म्यूज़ियम के चित्र परिचय दिलाते हैं वैसे आपका चैतन्य चित्र अनेकों को बाप का परिचय दे या प्राप्ति कराये। ऐसे सर्विसएबुल बनो। हिम्मत बहुत अच्छी रखी है। अभी हिम्मत के साथ जो भी कदम उठाते हो वह योगयुक्त हो। पहले ईश्वरीय मर्यादा प्रमाण है या नहीं है वह वेरीफाय कराकर अमल में लाते जाओ फिर एक-एक एग्ज़ाम्पल बन जायेंगे और भी ज्यादा फुलवाड़ी को बढ़ाओ। जैसे अगले वर्ष से अभी बड़ा गुलदस्ता बनाया ना, अभी इससे बड़ा बनाना। कोई भी प्रकार की परिस्थिति आवे उसको पार करने का सहज साधन है बाप-दादा का साथ। अगर नहीं तो मुश्किल लगेगा। कितना भी कोई निर्बल है लेकिन सर्वशक्तिवान का साथ है तो शक्तिशाली बन जाता है। अकेला नहीं समझो एक एक बहुत कमाल कर सकते हैं। जैसे दुनिया वाले बताते हैं कि एक-एक सितारे में दुनिया है, उन सितारों में तो दुनिया नहीं लेकिन आप जो लकी सितारे हो उन एक एक सितारों में दुनिया है अर्थात् अपनी-अपनी राजधानी है। तो एक-एक को अपनी-अपनी राजधानी स्थापन करनी है। कुमारियों को देख बाप-दादा हर्षित होते हैं, कुमारियां बहुत सर्विस में आगे जा सकती हैं। हर एक कुमारी को लक्ष्य रखना चाहिए कि मुझे विश्व सेवाधारी बनना है। यह लौकिक सर्विस तो निमित्त मात्र है। लक्ष्य यह रखो तो हम खुद जग करके जगत को जगाने वाले हैं। यह कुमारियों का संगठन बाप को प्रत्यक्ष कर सकता है। तो अगले वर्ष में विश्व कल्याणकारी की स्टेज लगी हुई हो। अच्छा।
कुछ अन्य पार्टियों से बातचीत
ग्याना पार्टी
बाप-दादा तो हर एक को दिलतख्तनशीन देखते हैं। जैसे कोई बहुत प्रिय बच्चे होते हैं या सिकीलधे लाडले होते जो उनको कभी नीचे धरनी या मिट्टी पर पांव नहीं रखने देते। तो बाप-दादा भी लाडले बच्चों को दिल तख्त के नीचे उतरने नहीं देते वहाँ ही विराजमान रखते। इससे श्रेष्ठ स्थान और कोई है? तो सदा वहाँ ही रहते हो ना? नीचे तो नहीं आते हो? जब और कोई स्थान है ही नहीं तो बुद्धि रूपी पांव और कहाँ टिक सकते हैं? याद अर्थात् दिलतख्तनशीन। बाप-दादा को जो निरन्तर योगी बच्चे हैं वह सदा साथ रहते हुए नज़र आते हैं। सहजयोगी हो ना। मुश्किल तो नहीं लगता? कोई भी परिस्थिति जो भल हलचल वाली हो लेकिन बाबा कहा और अचल। तो बाबा कहने में कितना टाइम लगता है। परिस्थिति के संकल्प में चले जाते हैं तो जितना समय परिस्थिति का संकल्प रहता उतना समय मुश्किल लगता। अगर कारण के बजाए निवारण में चले जाओ तो कारण ही निवारण बन जाये। ब्राह्मणों के आगे कोई परिस्थिति होती नहीं-क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान् हैं। उनके आगे यह परिस्थितियां चींटी समान भी नहीं। सिर्फ होता क्या है? जब कोई ऐसी बातें आती हैं तो उस समय उस कारण में समय लगा देते हैं। क्यों हुआ? क्या हुआ? उसके बजाए यह सोचें जो हुआ उसमें कल्याण भरा हुआ है, सेवा समाई हुई है तो चेन्ज हो जायेगा। भल रूप सरकम्सटान्सेज़ का हो लेकिन समाई सर्विस है ऐसा सोचने से और इस रूप से देखने से सदा अचल रहेंगे। तो अभी मधुबन से क्या परिवर्तन करके जायेंगे? सदा कम्पलीट, कम्पलेन नहीं। अब तक जो रिज़ल्ट है उसका प्रमाण अच्छा है। अब चारों ओर आवाज़ फैलाने का बहुत जल्दी प्रयत्न करो क्योंकि अभी समय है फिर इच्छा होगी लेकिन सरकमस्टांसेज़ ऐसे होंगे कि कर नहीं सकेंग। इसलिए जितना जल्दी हो सके चक्रवर्ती बन सन्देश देते जाओ, बीज बोते जाओ। लकी हो जो ड्रामा अनुसार अपने जीवन से, वाणी से, कर्म से सर्व रीति से सेवा करने के निमित्त हो और आगे भी बन सकते हो। हर कर्म में सबको ज्ञान का स्वरूप दिखाई दे-यही विशेष लक्ष्य रखो क्योंकि कर्म आटोमेटिक (स्वतः) सबका अटेन्शन खिंचवाते हैं। प्रैक्टिकल कर्म एक बोर्ड का काम करता है। कर्म देखते ही सबका अटेन्शन जाता है कि ऐसे कर्म सिखलाने वाला कौन। तो अभी नवीनता क्या करेंगे? लाइट हाउस बनेंगे? एक स्थान पर रहते भी चारों ओर लाइट फैलायें जो कोई भी उल्हना न दे कि इतना नज़दीक लाइट हाउस थे और फिर भी हमको लाइट नहीं मिली। अच्छा।
जर्मनी
बाप-दादा को क्वालिटी पसन्द आती है। क्वालिटी अच्छी है तो क्वान्टिटी बन ही जायेगी। मेहनत करते चलो सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है। जर्मन की धरनी द्वारा भी कोई विशेष कर्म ज़रूर होना है। जर्मन की धरती में ऐसे विशेष व्यक्ति हैं जो एक भी बहुत नाम बाला कर सकता है, छिपे हुए रतन हैं जर्मनी में। चारों ओर आवाज़ फैलाओ तो निकल आयेंगे। अभी भी अच्छी मेहनत की है और भी चारों ओर फैलाओ। यही लक्ष्य रखो अगले वर्ष ग्रुप बनाकर लाना है वारिस क्वालिटी। लक्ष्य से सफलता हो ही जायेगी। अच्छा। और सब संकल्प छोड़ एक संकल्प में रहो मैं कल्प-कल्प की विजयी हूँ, विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है, तो सफलता ही सफलता है। संकल्प किया और सफलता मिली। इसलिए ज्यादा नहीं सोचो। प्लान बनाओ लेकिन कमल फूल समान हल्का रहो। सोचा, किया और समाप्त। जितना एक संकल्प में रहेंगे उतनी टचिंग अच्छी होती रहेगी। ज्यादा संकल्प में रहने से जो ओरीजिनल बाप की मदद है वह मिक्सअप हो जाती है। इसलिए एक ही संकल्प कि मैं बाबा की, बाबा मेरा। मैं निमित्त हूँ, इस संकल्प से सफलता अवश्य प्राप्त होगी। चक्रवर्ती बनो तो बहुत अच्छा गुलदस्ता तैयार हो जायेगा। क्वान्टिटी भल न हो लेकिन जर्मन की धरनी से एक भी निकल आया तो नाम बाला हो जायेगा। अच्छा।
16-02-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
माया और प्रकृति द्वारा सत्कार प्राप्त आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ आत्मा है
विश्व का राज्य भाग्य प्राप्त कराने वाले, माया और प्रकृति द्वारा भी सत्कार प्राप्त योग्य सर्वश्रेष्ठ आत्मा बनाने वाले रहमदिल शिव बाबा बोले: –
आज बाप-दादा हरेक बच्चे के नयनों से, मस्तक की लकीरों से विशेष बात देख रहे हैं। वह कौन सी होगी ? जानते हो ? जो दूसरों को परिचय में सुनाते हो कि बाप द्वारा क्या-क्या प्राप्ति 21 जन्मों के लिए होती है। चैलेन्ज (Challenge) करते हो ना ? एवर हैल्दी, वैल्दी और हैप्पी (Ever Healthy, Wealthy & Happy) यह तीनों ही प्राप्ति वर्तमान समय की प्राप्ति के हिसाब से 21 जन्म करते हो। आज बाप-दादा हरेक की प्राप्ति की लकीर मस्तक और नयनों द्वारा देख रहे हैं। अब तक चैलेन्ज प्रमाण सदा शब्द प्रेक्टीकल में कहाँ तक है। चैलेन्ज में सिर्फ हैल्दी वैल्दी नहीं कहते हो लेकिन एवर हैल्दी वैल्दी कहते हो। पहले वर्तमान और वर्तमान के आधार पर भविष्य है। तो सदा शब्द पर अन्डर-लाइन (Underline) कर रिज़ल्ट देख रहे थे - क्या रिज़ल्ट होगी? यह बोल वर्तमान के हैं या भविष्य के हैं। सर्विस के प्रति ऐसी स्टेज की आवश्यकता अभी है या भविष्य में है। एक ही समय पर तन, मन और धन, मन, वाणी और कर्म से सर्व प्रकार की सेवा साथ-साथ होने से सहज सफलता प्राप्त होती है। ऐसी स्टेज अनुभव करते हो? जैसे शारीरिक व्याधि, मौसम के प्रभाव में, वायुमण्डल के प्रभाव में, या खान पान के प्रभाव में, बीमारी के प्रभाव में आ जाते हैं। ऐसे मन की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। एवर हैल्दी के बजाय रोगी बन जाते। लेकिन एवर हैल्दी इन सब बातों में नॉलेजफुल होने के कारण सेफ (Safe) रहते हैं। इस प्रकार एवर हैल्दी, अर्थात् सदा सर्व शक्तियों के खज़ाने से, सर्व गुणों के खज़ानों से, ज्ञान के खज़ाने से सम्पन्न होंगे। क्या करूँ, कैसे करूँ, चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। कभी भी ऐसे शक्तियों की निर्धनता के बोल या संकल्प नहीं कर सकते। स्वयं को भी सदा सम्पन्न मूर्त्त अनुभव करेंगे और अन्य निर्धन आत्माएँ भी सम्पन्नमूर्त्त को देख उनकी भरपूरता की छत्रछाया में स्वयं भी उमंग, उत्साहवान अनुभव करेंगे। ऐसे ही एवर हैप्पी अर्थात् सदा खुश। कैसा भी दु:ख की लहर उत्पन्न करने वाला वातावरण हो, नीरस वातावरण हो, अप्राप्ति का अनुभव कराने वाला वातावरण हो, ऐसे वातावरण में भी सदा खुश रहेंगे और अपनी खुशी की झलक से दु:ख और उदासी के वातावरण को ऐसे परिवर्तन करें जैसे सूर्य अन्धकार को परिवर्तन कर देता है। अन्धकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति लाना, नीरस वातावरण में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवर हैप्पी। ऐसी सेवा की आवश्यकता अभी है न कि भविष्य में । आज बाप-दादा हरेक के प्राप्ति की लकीर देख रहे थे कि सदाकाल और स्पष्ट लकीर है ? जैसे हस्तों द्वारा आयु की लकीर को देखते हो ना। आयु लम्बी है, निरोगी है। बाप-दादा भी लकीर को देख रहे थे। तीनों ही प्राप्तियाँ जन्म होते अभी तक अखण्ड रही हैं वा बीच-बीच में प्राप्ति की लकीर खण्डित होती है। बहुत काल रही है वा अल्पकाल। रिजल्ट में अखण्ड और स्पष्ट उसकी कमी देखी। बहुत थोड़े थे जिनकी अखण्ड थी लेकिन अखण्ड भी स्पष्ट नहीं, ना के समान। लेकिन बीती सो बीती। वर्तमान समय में जबकि विश्व सेवा की स्टेज पर हीरो और हीरोइन पार्ट बजा रहे हो उसी प्रमाण यह तीनों ही प्राप्तियाँ मस्तक और नयनों द्वारा सदाकाल और स्पष्ट दिखाई देनी चाहिए। इन तीनों प्राप्तियों के आधार पर ही विश्व कल्याणकारी का पार्ट बजा सकते हो। आज सर्व आत्माओं को इन तीनों प्राप्तियों की आवश्यकता है। ऐसे अप्राप्त आत्माओं को प्राप्त कराकर चैलेन्ज को प्रैक्टिकल में लाओ। दु:खी अशान्त आत्मायें, रोगी आत्मायें, शक्तिहीन आत्मायें एक सेकेण्ड की प्राप्ति की अंचली के लिए वा एक बूँद के लिए बहुत प्यासी हैं। आपका खुश नसीब सदा खुश अर्थात् हर्षित मुख चेहरा देख उन्हीं में मानव जीवन का जीना क्या होता है, उसकी हिम्मत, उमंग उत्साह आयेगा। अब तो जिन्दा होते भी नाउम्मीदी की चिता पर बैठे हुए हैं। ऐसी आत्माओं को मरजीवा बनाओ। नये जीवन का दान दो। अर्थात् तीनों प्राप्तियों से सम्पन्न बनाओ। सदा स्मृति में रहे यह तीनों प्राप्तियाँ हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं। तीनों ही प्रैक्टीकल धारणा के लिए डबल अण्डर लाइन लगाओ। प्रभाव डालने वाले बनो। किसी भी प्रकृति वा वातावरण के परस्थितियों के प्रभाव के वश नहीं बनो। जैसे कमल का पुष्प कीचड़ तीव्र पुरुषार्थी की निशानी सोचा और तुरन्त किया। 48 और पानी के प्रभाव में नहीं आता। ऐसे होता ही है, इतना तो ज़रूर होना ही चाहिए, ऐसा तो कोई बना है, ऐसे प्रभाव में नहीं आओ। कोई भले न बना हो लेकिन आप बनकर दिखाओ। जैसे शुद्ध संकल्प रखते हो कि पहले नम्बर में हम आकर दिखायेंगे, विश्व महाराजन् बनकर दिखायेंगे वैसे वर्तमान समय पहले मैं बनूँगा। बाप को फालो कर नम्बरवन में एगज़ाम्पल (Example) बन दिखाऊंगा। ऐसा लक्ष्य रखो। लक्ष्य के साथ लक्षण धारण करते रहो। इसमें पहले मैं। यह दृढ़ संकल्प रखो। इसमें दूसरे को नहीं देखो। स्वयं को देखो और बाप को देखो तब कहेंगे चेलैन्ज और प्रैक्टिकल समान हैं। अच्छा सुनाया तो बहुत है। और सुना भी बहुत है। इस बार तो बाप-दादा सिर्फ सुनाने नहीं आये हैं, देखने आये हैं, देखने में जो देखा वह सुना रहे हैं। बाप जानते हैं बनने तो इन आत्माओं में से ही हैं, अधिकारी आत्मायें भी आप ही हो लेकिन बार-बार स्मृति दिलाते हैं। अच्छा।
ऐसे विश्व के राज्य भाग के अधिकारी बाप द्वारा सर्व प्राप्तियों के अधिकारों, माया और प्रकृति द्वारा सत्कार प्राप्त करने के अधिकारी ऐसे सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
(आस्ट्रेलिया)
सर्विसएबल हो ना। सर्विसएबल अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सर्विस में साथ-साथ लगा हुआ हो। त्रिमूर्ति बाप के बच्चे हो ना तो तीनों ही सर्विस साथसाथ होनी चाहिए। एक ही समय तीनों सर्विस हो तो प्रत्यक्ष फल निकल सकता है। तो तीनों सर्विस साथ-साथ चलती है ? मन्सा द्वारा आत्माओं को बाप से बुद्धियोग लगाने की सेवा, वाणी द्वारा बाप का परिचय देने की सेवा और कर्म द्वारा दिव्यगुण मूर्त्त बनाने की सेवा। तो मुख्य सब सबजेक्ट योग, ज्ञान और दिव्यगुण तीनों ही साथ-साथ हों ऐसे हर सेकेण्ड अगर पावरफुल सर्विस करने वाले हैं तो जैसे गायन है मिनट मोटर वैसे एक सेकेण्ड में मरजीवा बनने की स्टेम्प लगा सकते हो। यही अन्तिम सेवा का रूप है। अभी वाणी द्वारा कहते बहुत अच्छा लेकिन अच्छा नहीं बनते। जब वाणी और मन्सा से और कर्म से तीनों सेवा इकट्ठी होंगी तब ऐसे नहीं कहेंगे कि बहुत अच्छा है लेकिन मुझे प्रैक्टिकल बनकर दिखाना है ऐसे अनुभव में आ जायेंगे। तो ऐसे सविसएबल बनो। इसी को ही वरदानी और महादानी की स्टेज कहा जाता है। सर्विस का उमंग उत्साह अच्छा है, बाप को भी योग्य बच्चों को देख खुशी होती है। अभी दिव्य गुणों का श्रृंगार और अधिक करना है। मर्यादा की लकीर के अन्दर रहते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम का टाइटल लेने का अटेन्शन हो तो यह ताज और तिलक अटेन्शन देकर धारण करना।
2. सदा हर कर्म करते हुए एक्टर बन करके कर्म करते हो? स्वयं ही स्वयं के साक्षी बन चैक करो कि जो पार्ट बजाया वह यथार्थ व महिमा योग्य, चरित्र रूप में किया। हमेशा महिमा उस कर्म की होती जो श्रेष्ठ होता है। तो एक्टर बन एक्ट करो फिर साथी बन चैक करो कि महान हुआ या साधारण। जन्म ही अलौकिक है तो कर्म भी अलौकिक होने चाहिए , साधारण नहीं। संकल्प में ही चैकिंग चाहिए क्योंकि संकल्प ही कर्म में आता है। अगर संकल्प को ही चैक कर चेन्ज कर दिया तो कर्म महान होंगे। सारे कल्प में महान आत्मायें प्रैक्टिकल में आप हो, तो संकल्प से भी चैकिंग और चेंज। साधारण को महानता में परिवर्तन करो। अच्छा।
विदाई के समय
जैसे अभी खुशी में नाच रहे हो वैसे सदा खुशी में नाचते रहो। कोई भी परस्थिति आये तो परस्थिति के ऊपर भी नाचते रहो। जैसे चित्र दिखाते हैं सर्प के ऊपर भी नाच रहे हैं। यह जड़ चित्र आप सबका यादगार है। जिस समय भी कोई परस्थिति आये तो यह चित्र याद रखना तो परस्थिति रूपी सांप पर भी डान्स करने वाले हैं। यही सांप आपके गले में सफलता की माला डालेंगे। अच्छा।
01-04-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
निरन्तर योगी ही निरन्तर साथी है
(लण्डन सेवाकेन्द्रों की प्रमुख दादी जानकी तथा अन्य महारथी भाई बहिनों की बैठक के समय अव्यक्त बाप-दादा के उच्चारे महावाक्य)
सदा शूरवीर व सदा तख्त व ताजधारी बनाने वाले, हर सेकेण्ड हर संकल्प में श्रेष्ठ त्याग कराकर श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले, सर्व खज़ानों से सम्पन्न करने वाले शिवबाबा बोले:-
आज मायाजीत विजयी रत्नों का विशेष संगठन है। आज के संगठन में बापदादा किन्हों को देख रहे हैं-जो आदि से अन्त तक बाप-दादा के सदा फेथफुल, सदा बाप के कदमों पर कदम रखने वाले, सदा के सहयोगी और साथी हैं। हर समय बाप और सेवा में मगन रहने वाले, सदा श्रेष्ठ मर्यादाओं की लकीर से संकल्प में भी बाहर न निकलने वाले मर्यादा पुरूषोत्तम, ऐसे बच्चे सदा हर सेकेण्ड हर संकल्प में जन्म-जन्म साथ रहते हैं। जो अभी बाप से वायदा निभाते हैं कि तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से हर सेकेण्ड हर कर्म में साथ निभाऊं, ऐसे वायदे को निभाने वाले सपूत बच्चों को बाप भी जन्म-जन्मान्तर साथी भव का वरदान अभी देते हैं। साकार बाप के साथ भिन्न नाम रूप से पूज्य में भी साथी और पुजारीपन में भी साथी। ज्ञानी तू आत्मा बनने में भी साथी और भक्त आत्मा बनने में भी साथी। ऐसे सदा साथी का वा तत्वम् का वरदान ऐसी विशेष आत्माओं को अभी प्राप्त होता है।
हर महारथी को स्वयं को चेक करना है कि वर्तमान समय बाप-दादा के गुणों, नॉलेज और सेवा में समानता और साथीपन कहाँ तक है, समानता ही समीपता को लायेगी। अभी की स्टेज (अवस्था) और भविष्य स्टेज में और हर सेकेण्ड साथीपन का अनुभव जन्म-जन्मान्तर भी नाम रूप सम्बन्ध से साथ के अनुभव के निमित्त बनेंगे। विकर्माजीत बनने में भी साथी और राजा विक्रम (विक्रमादित्य) बनने के समय भी साथी। हर पार्ट में हर वर्ण में साथ-साथ होंगे। इसका ही गायन है साथ जियेंगे साथ मरेंगे अर्थात् साथ चढ़ेंगे साथ गिरेंगे। चढ़ती कला, उतरती कला दिन और रात, दोनों में निरन्तर योगी, निरन्तर साथी। जितना अभी संगम पर साथ निभाने में सम्पूर्ण हैं उतना ही समीप के सम्बन्धी बनने में भी समीप होते हैं। विश्व की नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मा का भी ड्रामा के अन्दर महत्व है। ऐसे नम्बरवन आत्मा के सदा सम्बन्ध में रहने वाली आत्माओं का भी महत्व हो जाता है। जैसे आजकल भी अल्पकाल के स्टेट्स (Status) को पाने वाली आत्मायें कोई प्रेज़ीडेण्ट या प्राइम मिनिस्टर बनती हैं तो उनके साथ उनकी फैमिली का भी महत्व हो जाता है तो सदाकाल की श्रेष्ठ आत्मा के सम्बन्ध में आने वाली आत्माओं का महत्व कितना ऊँचा होगा। अभी थोड़ी सी हलचल होने दो फिर देखना आदि पुरानी आत्मायें जो सदा साथ का सम्बन्ध निभाती आई हैं उन्हों का कितना महत्व होता है। जैसे पुरानी वस्तु का महत्व रखते हैं, वैल्यु समझते हैं वैसे आप आत्माओं की वैल्यु का वर्णन करते-करते गुणगान करते-करते स्वयं को भी धन्य अनुभव करेंगे। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें अपने को समझते हो? जितना आप बाप के गुण गाते हो उतना ही रिटर्न में ऐसी आत्माओं के गुणगान करेंगे। अभी क्यों नहीं गुणगान करते हैं? सेवा अभी करते हो लेकिन सम्पूर्ण फल अन्त में क्यों मिलता है? अभी भी मिलता है लेकिन कम। उसका कारण जानते हो? अभी कभी-कभी बाप और आपको कहीं मिक्स कर देते हो। बाप के गुण गाते-गाते अपने आपके भी गुण गाने शुरू कर देते हो। भाषा बड़ी मीठी बोलते हो लेकिन मैं-पन का भाव होने के कारण आत्माओं की भावना समाप्त हो जाती है। यही सबसे बड़े से बड़ा अति सूक्ष्म त्याग है। इसी त्याग के आधार पर नम्बरवन आत्मा ने नम्बरवन भाग्य बनाया और अष्ट रत्न नम्बर का आधार भी यही त्याग है। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में बाबा-बाबा याद रहे मैं-पन समाप्त हो जाए-जब मैं नहीं तो मेरा भी नहीं। मेरा स्वभाव, मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, मेरा काम या ड्यूटी, मेरा नाम, मेरी शान, मैं-पन में यह मेरा-मेरा भी समाप्त हो जाता है। मैं-पन और मेरा-पन समाप्त हुआ यही समानता और सम्पूर्णता है। स्वप्न में भी मैं-पन न हो, इसको कहा जाता है, अश्वमेध यज्ञ में मैंपन के अश्व को स्वाहा करना। यही अन्तिम आहुति है। और इसी के आधार पर ही अन्तिम विजय के नगाड़े बजेंगे। संगठन रूप में इस अन्तिम आहुति का दिल से आवाज़ फैलाओ। फिर यह पांचों तत्व सदा सब प्रकार की सफलताओं की माला पहनायेंगे। अब तक तो तत्व भी सेवा में कहीं-कहीं विघ्न रूप बनते हैं। लेकिन स्वाहा की आहुति देने से आरती उतारेंगे। खुशी के बाजे बजायेंगे। सब आत्मायें अपनी बहुत काल की इच्छाओं की प्राप्ति करते हुए महिमा के घुंघरू पहन नाचेंगी। तब तो अन्तिम भक्ति के संस्कार मर्ज होंगे। ऐसी भक्त आत्माओं को भक्त-पन का वरदान भी अभी ही आप इष्टदेव आत्मा द्वारा मिलेगा। कोई को भक्त तू आत्मा का वरदान, कोई को आत्मज्ञानी भव का वरदान। सर्व आत्माओं को अभी वरदानी बन वरदान देंगे। साकारी राज्य करने वालों को राज्यपद का वरदान देंगे। ऐसे वरदानीमूर्त्त कामधेनु आत्मायें बने हो? जो आत्मा जो मांगे तथास्तु। ऐसी आत्माओं को सदा समीप और साथी कहा जाता है। अच्छा।
ऐसे सदा शूरवीर सदा तख्त और ताजधारी हर सेकेण्ड हर संकल्प में श्रेष्ठ त्याग से श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले हर कदम में फालो (Follow) करने वाले, हर समय सर्व खज़ानों से सम्पन्न अखुट खज़ाने से सदा सम्पूर्ण रहने वाले, लक्ष्य और लक्षण सदा सम्पूर्ण रखने वाले ऐसे सम्पूर्ण श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
दीदी जी से मुलाकात:-
भविष्य का प्लान बनाना है, उसके लिए संगठन इकठ्ठा किया है? क्या प्लान बनायेंगे? जो भी किया है वह तो बहुत अच्छा किया और अभी जो करेंगे वह भी अच्छा। कोई भी प्रोग्राम व प्लान की सफलता का आधार क्या होता है? रिवाज़ी रीति भी किसी कार्य की सफलता का आधार क्या होता है? कोई भी प्रोग्राम को सफल बनाना चाहते हो तो क्या सोचते हो? अभी जो कांफ्रेंस (Conference) की तो उसकी विशेष सफलता का आधार क्या था? साधारण रीती से भी हर प्रोग्राम की सफलता का आधार विशेष व्यक्ति की पर्सनैलिटी (Personality) का रहता है। जैसी पर्सनैलिटी वाला आयेगा वैसा आवाज़ बुलन्द होगा। जब भी आप प्रोग्राम बनाते हो तो विशेष आवाज़ बुलन्द करने का लक्ष्य रखकर प्लैन बनाते हो। विशेष पर्सनैलिटी आवे जिससे स्वत: आवाज़ बुलन्द हो जाए। तो पर्सनैलिटी साधन बन जाता है। लौकिक पर्सनैलिटी वाले बाहर की आवाज़ फैलाने के निमित्त बनते हैं, वैसे आप विशेष निमित्त बने हुए सेवाधारियों की वर्तमान समय सेवा में पर्सनैलिटी चाहिए। पर्सनैलिटी मनुष्य को अपने तरफ आकर्षित करती है। तो वर्तमान समय की पर्सनैलिटी कौन सी चाहिए? प्यूरिटी (Purity) ही पर्सनैलिटी है। जितनी जितनी प्यूरिटी होगी तो प्यूरिटी की पर्सनैलिटी स्वयं ही सर्व के सिर झुकायेगी। जैसे ड्रामा के अन्दर सन्यासियों के आगे भी सिर झुकाते हैं, प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के कारण। प्यूरिटी की पर्सनैलिटी बड़े-बड़े लोगों को भी सिर झुकाती है। तो वर्तमान समय प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के आधार पर सिर झुकेंगे। अगरबत्ती की खुशबू खींचती है न, वैसे आने से ही प्यूरिटी की खुशबू अनुभव हो। जहाँ देखें वहाँ प्यूरिटी ही प्यूरिटी नज़र आये। वर्तमान समय इसी का ही अनुभव करना चाहते हैं। जो चारों ओर नज़र नहीं आती। चाहे कितनी भी महान आत्मा हो, नाम है लेकिन प्यूरिटी के वायब्रेशन्स नहीं हैं। क्योंकि वह सिद्धि का नाम, मान, शान को स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए प्यूरिटी का वायब्रेशन कहीं नहीं आता है। अल्पकाल की प्राप्ति का आकर्षण होता है लेकिन प्यूरिटी का आकर्षण नहीं होता है। अभी प्रैक्टिकल जीवन में यह प्यूरिटी की पर्सनैलिटी चाहिए जो पर्सनैलिटी स्वयं ही आकर्षित करें। कहीं प्राइम मिनिस्टर आता है, पर्सनैलिटी है तो सब स्वत: ही भागते हैं ना। तो यह पर्सनैलिटी सबसे नम्बरवन है। अभी यह प्लान बनाना। धर्मात्माओं को आकर्षित करने वाली भी यह पर्सनैलिटी है। वह अनुभव करें कि जो हमारे पास चीज़ नहीं है वह यहाँ है। नहीं तो समझते हैं हाँ कन्यायें मातायें हैं, काम अच्छा कर रही हैं, इसी भावना से देखते हैं लेकिन पर्सनैलिटी समझकर सामने आयें कि यह विश्व की बड़े से बड़ी पर्सनैलिटी हैं। समझा कुछ और था देखा कुछ और-ऐसे अनुभव करें। जो हमारी बुद्धि में बात नहीं है वह इन्हों के प्रैक्टिकल जीवन में है। यह है महारथी को नीचे गिराना। जैसे चींटी हाथी को भी गिरा देती है ना। तो इस पर्सनैलिटी में झुक जायें। अभी स्वयं का स्वरूप सर्व प्राप्तियों के चुम्बक का स्वरूप चाहिए। जो स्वयं ही सर्व आकर्षित हों। जहाँ देखें, जिसको देखें प्राप्ति का अनुभव हो। तो प्राप्ति ही चुम्बक है और सर्व प्राप्ति स्वरूप ही चुम्बक है।
अभी मेहनत, एनर्जी और मनी भी लगानी पड़ती है फिर यह दोनों का काम यह प्यूरिटी की पर्सनैलिटी ही करेगी। अभी वायब्रेशन नहीं बदले हैं। अभी भी भिन्न नज़र से देखते हैं। अभी अपने वायब्रेशन द्वारा जो हैं जैसे हैं वैसे नज़र से देखने का वायब्रेशन फैलाओ और अपनी वरदानी, महादानी वृत्ति से वायब्रेशन और वायुमण्डल को परिवर्तन करो। अभी तक बिचारे तड़पते हुए ढूंढते रहते हैं कि कहाँ जावें। प्यासी आत्माओं को अभी सागर वा नदियों का सही स्थान का परिचय नहीं मिला है इसलिए ढूंढते ज्यादा हैं। तो अपने लाईट हाउस स्वरूप से मंजिल का रास्ता दिखाओ। (अच्छा)
जानकी दादी से
लण्डन में भी धर्मात्माओं का चांस है। जो भी चांस लो उसमें रूहानियत की आकर्षण का दृश्य ज़रूर हो। जैसे तीर्थस्थान पर शान्ति कुण्ड या गति-सद्गति के कुण्ड बनाते हैं ना। तो ऐसे समझें कि सर्व प्राप्ति कुण्ड यही है। न्यारापन अनुभव हो, साधारणता हो लेकिन शक्तिशाली हो और यह सत्यता महसूस हो। ऐसी स्टेज(अवस्था) लेते-लेते विश्व का राज्य भी ले लेंगे। अभी तो सिर्फ प्रोग्राम का निमन्त्रण देते हैं फिर जैसे जड़ चित्रों को आंखों और सिर पर उठाते हैं वैसे आप सबको उस नज़र से कहाँ बिठावें, क्या करें कुछ सूझेगा नहीं। महिमा में क्या बोलें क्या न बोलें यह सूझेगा नहीं। संगठन करना अच्छा है, संगठन से भी उमंग-उल्लास बढ़ता है। अच्छा।
इस अव्यक्त वाणी की विशेष बातें:-
1. समानता ही समीपता को लायेगी। जितना अभी संगम पर साथ निभाने में सम्पूर्ण हैं उतना ही समीप के सम्बन्धी बनने में भी समीप होते हैं। विश्व की नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मा का भी ड्रामा के अन्दर महत्व है। ऐसे नम्बर वन आत्मा के सदा सम्बन्ध में रहने वाली आत्माओं का भी महत्व हो जाता है।
2. जितना आप बाप के गुण गाते हो उतना ही रिटर्न में ऐसी आत्माओं के गुणगान करेंगे। अभी कभी-कभी बाप और आपको मिक्स कर देते हो। मैं पन का भाव होने के कारण आत्माओं की भावना समाप्त हो जाती है, यही बड़े से बड़ा त्याग है।
3. प्यूरिटी ही पर्सनैलिटी है। जितनी-जितनी प्यूरिटी होगी तो प्यूरिटी की पर्सनैलिटी स्वयं ही सर्व के सिर झुकायेगी। अभी मेहनत एनर्जी और मनी भी लगानी पड़ती है फिर यह दोनों का काम यह प्यूरिटी की पर्सनैलिटी करेगी।
14-11-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
वक्त की पुकार
समर्थ की स्थिति में स्थित कराने वाले सर्व समर्थ शिव बाबा अपनी लाडली संगमयुगी संतान से बोले –
सदा स्वयं को ऊँचे से ऊँचे बाप के डायरेक्ट ईश्वरीय सन्तान समझते हुए सदा समर्थ स्थिति में रहते हो ? जैसे बाप सदा समर्थ है वैसे बाप समान समर्थ बने हो? वर्तमान समय के प्रमाण जबकि आप सभी पहले से ही समय के चैलेन्ज प्रमाण एवर रैडी हो तो समय प्रमाण अब व्यर्थ का खाता नाम मात्र रहना चाहिए। जैसे कहावत है आटे में नमक के समान। ऐसे समर्थ का खाता 99% होना चाहिए। तब ही भविष्य नई दुनिया के लिए 100% सतोप्रधान राज्य के अधिकारी बन सकेंगे। अब तो भविष्य राज्य या आपका अपना राज्य आप सबका आह्वान कर रहे हैं - किन्ही का आह्वान कर रहे हैं? सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण आत्माओं का। समय प्रमाण वर्तमान स्टेज का चार्ट निकालो ? समर्थ कितना और व्यर्थ कितना। संकल्प और समय दोनों का चार्ट रखो। सारे दिन की दिनचर्या में कौनसा खाता ज्यादा होता है। अगर अब तक भी व्यर्थ का खाता 50% या 60% है तो ऐसे रिजल्ट वाले को कौन से समय के राज्य अधिकारी कहेंगे ? क्या सतयुग के पहले राज्य के या सतयुग के मध्यकाल के या त्रेता के आदिकाल के? आदिकाल के विश्व अधिकारी वही बन सकते जिन आत्माओं का वर्तमान समय, संकल्प और समय पर अधिकार है। ऐसी अधिकारी आत्माएँ ही विश्व की आत्माओं द्वारा सतोप्रधान आदिकाल में सर्व का सत्कार प्राप्त कर सकती हैं।
पहले स्वराज्य फिर है विश्व का राज्य। जो स्वराज्य नहीं कर सकते वह विश्व के राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते। इसलिए अभी अपने आप को चैक करो। अर्न्तमुखी बन स्वचिन्तन में रहो। जो आदि में पहले दिन की पहेली सुनाई जाती है ‘‘मैं कौन?’’ अब फिर इसी पहेली को अपने सम्पूर्ण स्टेज के प्रमाण, श्रेष्ठ पोजीशन (Position) के प्रमाण बाप द्वारा प्राप्त टाईटल्ज़ के प्रमाण चैक करो, व्हाट एम आई? (What Am I? )। यह पहेली अभी हल करनी है। अपने सारे दिन की स्थिति द्वारा स्वयं को जान सकते हो कि आदिकाल के अधिकारी हैं या सतयुग के या मध्यकाल के अधिकारी हैं? जबकि लक्ष्य है आदिकाल के अधिकारी बनने का तो उसी प्रमाण अपने वर्तमान को सदा समर्थ बनाओ। ज्ञान के मनन के साथ अपनी स्थिति की चैकिंग भी बहुत ज़रूरी है। हर दिन के जमा हुए खाते में स्वयं से सन्तुष्ट हैं या अब तक भी यही कहेंगे कि जितना चाहते हैं उतना नहीं। अब तक ऐसी रिज़ल्ट नहीं होनी चाहिए। जो स्वयं से संतुष्ट नहीं होगा वह विश्व की आत्माओं को संतुष्ट करने वाला कैसे बन सकेगा। सतयुग के आदिकाल में आत्मायें तो क्या प्रकृति भी संतुष्ट है, क्योंकि सम्पूर्ण हैं - तो संतुष्टमणी बनो। समझा अभी क्या करना है।
सेवा के साधन जो अब तक हैं उसी प्रमाण सेवा तो कर ही रहे हैं - लगन से कर रहे हैं, मेहनत भी बहुत करते हैं, उमंग उल्लास भी बहुत अच्छा है, लेकिन सेवा के साथ विश्व की सेवा और स्वयं की सेवा हो। विश्व के प्रति भी रहमदिल और स्वयं प्रति भी रहमदिल बनो। दोनों साथ-साथ चाहिए। समय का इन्तज़ार नहीं करना है कि तब तक सम्पन्न हो ही जायेंगे। जब आत्माओं को कहते हो कि कल नहीं लेकिन आज, आज नहीं अब करो, ऐसे पहले स्वयं से बात करो - ऐसे एवर रैडी (Eveready) हैं? सदा यह स्मृति रहती है कि अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे स्वयं से रूह रूहान करो। अच्छा। सुनाया तो बहुत है - अब बाप क्या चाहते हैं अब सुनाने का समय नहीं लेकिन देखने का समय है। बाप एक-एक रतन को सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं। समझा।
ऐसे इशारे से समझने वाले, सुनने और करने की समानता में लाने वाले सदा समर्थ बाप की समर्थ याद में रहने वाले, समर्थ स्थिति में होने वाले सफलता मूर्त्त श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
दीदी जी के साथ बातचीत
महारथियों को देख सब खुश होते हैं, क्यों खुश होते हैं? क्योंकि महारथी साकार बाप के समान सबके आगे साकार रूप में सम्पन्न व श्रेष्ठ हैं। इसलिए महारथियों को बाप भी देख हर्षित होते हैं क्योंकि समान हैं। तो समान को देख हर्ष होता है। संगम पर ही बाप बच्चों को सेवा के तख्तनशीन बनाते हैं - यह संगमयुग की रसम अपने हाथों से भविष्य में भी तख्तनशीन बनायेंगे। स्वयं गुप्त रूप में तख्तनशीन बच्चों को देखते भी हैं, सहयोगी भी हैं लेकिन प्रैक्टीकल तख्तनशीन बच्चों को ही बनाते हैं। यह रसम अभी से आरम्भ होती है।
करन करावनहार है - तो करनहार का भी पार्ट बजाया और अभी करावनहार का भी पार्ट बजा रहे हैं। बाप का तख्त होने के कारण तखतनशीन होने में बोझ अनुभव नहीं होता, क्योंकि बाप का तख्त है ना। और बाप ने स्वयं तख्तनशीन बनाया। इस निमित्त बनने का तख्त कितना सहज है। तख्त की विशेषता है, इस तख्त में ही विशेष जादू भरा हुआ है, जो मुश्किल, सेकेण्ड में सहज हो जाती है। इस निमित्त बनने का तख्त समय प्रमाण, ड्रामा प्रमाण सर्व श्रेष्ठ तख्त और अति सफलता सम्पन्न तख्त गाया हुआ है। जो भी तख्त पर बैठे सफलता मूर्त्त। यह अनादि आदि वरदान है तख्त को। इस तख्त के तख्तनशीन भी बड़े गुह्य रहस्य और राजयुक्त आत्माएँ ही बनती हैं। बाप-दादा महारथियों को वर्तमान समय भी डबल तख्तनशीन देखते हैं। दिलतख्त तो है ही लेकिन यह निमित्त बनने का तख्त बहुत थोड़ों को प्राप्त होता है। यह भी राज़ बड़े गुह्य हैं। अच्छा।
मधुबन निवासी भाईयों से
मधुबन निवासियों ने बहुत सुना है बाकी सुनने को कुछ रहा है? सन्मुख सुना, रिवाइज़ कोर्स सुना अब बाकी क्या सुनने को रहा ? जितने तीर भरे हैं उतने छोड़े हैं? मधुबन निवासियों को तीन प्रकार की सर्विस का चान्स (Chance) है - किस प्रकार की सर्विस का विशेष चान्स है ? विशेष मधुबन निवासियों को सहज सर्विस का साधन यह वरदान भूमि या चरित्र भूमि का आधार है, इस भूमि के चरित्र की महिमा अगर किसी आत्मा को सुनाओ तो जैसे गीता सुनने में इतना इन्ट्रेस्ट (Interest) नहीं लेते जितना भागवत सुनने में, तो ऐसे प्रैक्टीकल चरित्र सुनाने का साधन मधुबन वालों को है। इस स्थान और चरित्र का भी परिचय दो तो आत्माएँ खुशी में नाचने लगेंगी। जब भी कोई आते हैं तो विशेष चरित्र भूमि को जानने और अनुभव करने आते हैं तो मधुबन निवासी भागवत द्वारा सर्विस कर सकते हैं कि यहाँ ऐसा होता है। तो आप लोग धरनी की विशेषता का महत्व सुनाने के निमित्त हो। जिस नज़र से सब आत्माएँ एक-एक रतन को देखती हैं उसी तरह उन्हें बाप की तरफ आकर्षित करो तो कितनी सेवा है? यहाँ बैठे हुए प्रजा बन सकती है या फैमिली बन सकती है। जैसे ताजमहल में गाइड्स कितने रमणीक ढंग से ताजमहल की हिस्ट्री सुनाते हैं ऐसे चरित्र सुनाओ तो उन्हें सहज ही याद रहेगी और उस सेवा का फल आपको मिल जायेगा। जो भी आवे उसको खुशी-खुशी से, उमंग से, लगन से, महत्व में स्थित हो करके अगर महत्व सुनाओ तो बहुत अधिक फल ले सकते हो - ऐसी सेवा करने से बहुत खुशी रहेगी। तो सेवा भी रही, याद भी रही और प्राप्ति भी रही और क्या चाहिए? ऐसे लकी हो मधुबन निवासी।
इस वर्ष में विशेष स्वयं और सेवा का बैलेन्स (Balance) चाहिए। सेवा के साथ स्वयं की पर्सनेलिटी (Personality) और प्रभाव या धारणामूर्त्त का प्रभाव सोने पर सुहागे का काम करेगा। कोई भी देखे तो अनुभव करे ज्ञानमूर्त्त और गुणमूर्त्त। दोनों की समानता दिखाई दे। अभी तक आवाज़ आती है कि ज्ञान ऊँचा है लेकिन चलन ऐसी नहीं। तो दोनों के बैलेन्स का अटेन्शन रखने से प्रजा व वारिस दिखाई देंगे। सर्विस के साधन तो बहुत हैं - अभी धर्म नेताओं तक नहीं पहुँचे हैं, जो लास्ट युद्ध है, जिससे चारों ओर आवाज़ फैल जाए। यह होगा ज्ञान की बात से। जैसे गीता के भगवान की बात से नाम बाला होना है। इसके लिए छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर चारों ओर पहले कुछ अपने सहयोगी बनाओ, स्टूडेण्टस कम्पीटीशन (Student Competition) रखी ना, फिर उसमें से एक चुना। ऐसे हर स्थान पर छोटे-छोटे ग्रुप बनें और फिर उन सबका एक स्थान पर संगठन हो फिर नाम बाला होगा। यह वर्ष है ही नाम बाला करने का वर्ष। अच्छा।
इस मुरली की विशेष बातें –
1. संकल्प और समय दोनों का चार्ट रखो। आदि काल के विश्व अधिकारी वही बन सकते हैं जिन आत्माओं का वर्तमान समय संकल्प और समय पर अधिकार है।
पहले है ‘‘स्वराज्य’’ फिर है विश्व का राज्य। जो स्वराज्य नहीं कर सकते वह विश्व के राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते।
2. ज्ञान के मनन के साथ अपनी स्थिति की चैकिंग भी बहुत ज़रूरी है। सेवा के साथ विश्व की सेवा और स्वयं की सेवा हो। विश्व के प्रति भी रहम दिल और स्वयं के प्रति भी रहम दिल बनो।
27-11-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अल्पकाल के नाम और मान से न्यारे ही सर्व के प्यारे बन सकते हैं
सदाकाल के लिए ‘‘इच्छामात्रम् अविद्या’’ बनाने वाले बाप-दादा बोले: -
आज बाप-दादा विशेष बच्चों से मिलन मनाने आए हैं, जैसे बच्चे निरन्तर योगी हैं अर्थात् बाप के स्नेह के सागर में सदा लवलीन हैं ऐसे ही बाप भी बच्चों के स्नेह में निरन्तर बच्चों के गुण गाते हैं - हर बच्चे की गुण माला और हर बच्चे के श्रेष्ठ चरित्र के चित्र बाप-दादा के पास हैं। बाप-दादा के पास बहुत बड़ा, बहुत सुन्दर चैतन्य मूर्तियों का मन्दिर कहो वा चित्रशाला कहो सदा सामने है। हरेक का चित्र और माला सदा बाप देखते रहते हैं। किन्हों की माला बड़ी है, किन्हों की छोटी है। तुम सबको तो एक बाप को याद करना पड़ता - बाप-दादा को सर्व बच्चों को याद करना पड़ता - एक को भी भूल नहीं सकते। अगर भूलें तो उल्हनों की माला पहननी पड़े। तो बच्चे उल्हनों की माला पहनाते बाप विजयी माला पहनाते - बहुत होशियार हैं बच्चे ! मदद लेने में होशियार हैं- हिम्मत रखने में नम्बरवार हैं - सुना तो बहुत है अब बाकी क्या करना है। अब तो सिर्फ मिलन मनाते रहना है। जैसे अभी का मिलन सम्पन्न स्टेज का अनुभव कराता है ऐसे निरन्तर मिलन मनाओ। सुनने का रिटर्न सदा बाप समान सम्पन्न स्वरूप में दिखाओ। अनेक तड़पती हुई आत्माओं के इन्तज़ार को समाप्त करो - सम्पन्न दर्शनीय मूर्त्त बन अनेकों को दर्शन कराओ। अब दु:ख अशान्ति की अनुभूति अति में जा रही है - उन्हें अपनी अन्तिम स्टेज द्वारा समाप्त करने का कार्य अति तीव्रता से करो। मास्टर रचता की स्टेज पर स्थित हो अपनी रचना के बेहद दु:ख और अशान्ति की समस्या को समाप्त करो - दु:ख हर्ता सुख कर्ता का पार्ट बजाओ। सुख शान्ति के खज़ाने से अपनी रचना को महादान और वरदान दो, रचना की पुकार सुनने में आती है! वा अपनी ही जीवन की कहानी देखने और सुनाने में बिज़ी हो ! अपने जीवन के कर्मों की कहानी जानने वाले त्रिकालदर्शी बने हो ना। तो अभी हर कर्म अन्य आत्माओं के कल्याण प्रति कार्य में लगाओ। अपनी कहानी ज्यादा वर्णन न करो - मेरा भी कुछ करो वा मेरा भी कुछ सुनो, मेरे फैसले करने में समय दो - अब अनेकों के फैसले करने वाले बनो - हरेक के कर्म गति को जान गति सद्गति देने के फैसले करो - फैसिलिटीज़ (Facilities) न लो - अब तो दाता बनकर दो - कोई भी सेवा प्रति वा स्वयं प्रति सैलवेशन के आधार पर स्वयं की उन्नति वा सेवा की अल्पकाल की सफलता प्राप्त हो जायेगी लेकिन आज महान होंगे कल महानता की प्यासी आत्मा बन जायेंगे। सदा प्राप्ति की इच्छा में रहेंगे। न्म हो जाए काम हो जाए इसके इच्छा मात्रम अविद्या स्वरूप न बन सकेंगे। जैसे बाप नाम रूप से न्यारे हैं तो सबसे अधिक नाम का गायन बाप का है - वैसे ही अल्पकाल के नाम और मान से न्यारे बनो तो सदाकाल के लिए सर्व के प्यारे स्वत: बन जायेंगे। नाम और मान के भिखारीपन का अंशमात्र भी त्याग करो - ऐसे त्यागी विश्व के भाग्य विधाता बन सकते। कर्म का फल खाने के अभ्यासी ज्यादा हैं - इसलिए कच्चा फल खा लेते हैं - जमा होने अर्थात् पकने नहीं देते। कच्चा फल खाने से क्या होता है ? कोई न कोई हलचल हो जायेगी। ऐसे ही स्थिति में हलचल हो जाती है। कर्म का फल तो स्वत: ही आपके सामने सम्पन्न स्वरूप में आयेगा। एक श्रेष्ठ कर्म करने का सौ गुणा सम्पन्न फल के स्वरूप में आयेगा लेकिन अल्पकाल की इच्छा मात्रम् अविद्या हो। त्याग करो तो भाग्य आपे ही आपके पीछे आयेगा। इच्छा - अच्छा कर्म समाप्त कर देती है। इसलिए इच्छा मात्रम् अविद्या। इस विद्या की अविद्या। महान ज्ञानी स्वरूप हैं - इसमें ज्यादा समझदार न बनना। यह होना ही चाहिए। मैंने किया, मुझे मिलना ही चाहिए - इसको इन्साफ न समझना। मेरा कुछ इन्साफ (न्याय) होना चाहिए। भगवान के घर में भी इन्साफ न हो तो कहाँ इन्साफ मिलेगा - कभी भी इन्साफ माँगने वाले नहीं बनना। किसी भी प्रकार के माँगने वाला स्वयं को तृप्त आत्मा अनुभव नहीं करेगा। तो सदा सर्व प्राप्तियों से तृप्त आत्मा बनो। ब्राह्मण जीवन का सलोगन है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु मास्टर सर्व शक्तिमान के खज़ाने में। यह सलोगन सदा स्मृति में रखो। अब गुह्य ज्ञान के साथ-2 परिवर्तन भी गुह्य करो। मुश्किल लगता है क्या? अनेकों की मुश्किल को सहज करनेवाले हो सैलवेशन आर्मी हो।
ऐसे सदा महादानी वरदानी अल्पकाल की इच्छा मात्रम् अविद्या वाले स्वयं के त्यागी सर्व के भाग्य बनाने वाले विधाता, सदा सम्पन्न और सन्तुष्ट रहने वाले, सर्व की समस्याओं का समाधान करनेवाले - ऐसे बाप समान महान आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
दीदी और बृजेन्द्राजी से बातचीत
खिलाड़ी बनकर हर समय का खेल देखने में मज़ा आता है ना। खिलाड़ी की स्टेज सदा हर्षित मुख रहने का अनुभव कराती है। किसी भी प्रकार की कोई भी बात, जिसको दुनिया वाले आपदा समझते हैं लेकिन खिलाड़ी बन खेल करने वाले और खेल देखने वाले ऐसी आपदा के रूप को भी खेल को जैसे मनोरंजन अनुभव करेंगे। बड़े में बड़ी आपदा मनोरंजन दृश्य अनुभव हो - यह है मास्टर रचता की स्टेज। जैसे महाविनाश को भी स्वर्ग के गेट खुलने का साधन बताते हो - कहाँ महाविनाश और कहाँ स्वर्ग का गेट! तो महाविनाश की आपदा को भी मनोरंजन का रूप दे दिया ना - तो ऐसे किसी भी प्रकार की छोटी बड़ी समस्या वा आपदा मनोरंजन का रूप दिखाई दे। हाय-हाय के बजाए ओहो! शब्द निकले। इसको कहा जाता है अंगद के समान स्टेज। जो योगियों की स्टेज लोग वर्णन करते हैं - दु:ख भी सुख के रूप में अनुभव हो - दु:ख-सुख समान, निन्दा स्तुति समान। यह दु:ख है, यह सुख है - इसकी नॉलेज होते हुए भी दु:ख के प्रभाव में नहीं आओ। दु:ख की भी बलिहारी सुख के दिन आने की समझो। इसको कहा जाता है सम्पूर्ण योगी। परिवर्तन की शक्ति इसको कहा जाता है। दुश्मन को भी दोस्ती में परिवर्तन कर दें - दुश्मन की दुश्मनी चल न सके। दुश्मन बन आवे और बलिहार बनकर जावे। यह है शक्तियों की महिमा। ऐसे शक्ति सेना तैयार है! जब विश्व को परिवर्तन करने की चैलेन्ज करते हो तो यह क्या बड़ी बात है - इसका सहज साधन है - लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला दाता बनो। दाता के आगे सब स्वयं ही झुकते हैं। वैसे भी कोई चीज़ दो तो वह अपना सिर और आंखे नीचे कर लेते हैं - निर्माणता दिखाने लिए ऐसे करते हैं। वह स्थूल युक्ति है और यहाँ संस्कार स्वभाव से झुकेंगे। तब तो दुश्मन भी बलिहार जायेंगे। तो ऐसी शक्ति सेना तैयार है! (बृज को) बाम्बे ले आई हो ना - बाम्बे की सेना ऐसे तैयार है! फर्स्ट चान्स बाम्बे को मिला है - तो फर्स्ट चान्स वाले फास्ट भी चाहिए ना! बाम्बे वालों को विशेष रिटर्न देना पड़ेगा।
(बाम्बे वाले सिल्वर जुबली (Silver Jubilee) मना रहे हैं) सिलवर जुबली भले मनाओ लेकिन स्वयं के संस्कार मिलन की जुबली भी मनाओ। ऐसी जुबली में तो बाप-दादा भी आ सकते। भाषण वाली जुबली में नहीं आयेंगे - संस्कार मिलन की जुबली में आयेंगे। हाँ पहले दिखाओ - बाम्बे एक एग्ज़ाम्पल बने - सदा विजयी, सदा निर्विघ्न, ऐसी जुबली मनाओ। वह जुबली है लोगों को जगाने के लिए
लोगों को भी आजकल अनुभव कराने वाले अनुभवी मूर्तियों की दरकार है। जैसे विदेश में अनुभव कराने का आरम्भ हुआ है - वह अनुभव करते हैं कि कोई रूहानी शक्ति बोल रही है। ऐसी लहर भारत में अनुभव कराओ। ऐसी सिलवर जुबली सुनाओ - टापिक द्वारा टॉप की स्टेज का अनुभव कराओ - ऐसा प्लान कराओ - ऐसा प्लान बनाओ। जैसे मन्दिर जाने से ही वृत्ति परिवर्तन हो जाती है वैसे प्रोग्राम में आते ही कुछ नई अनुभूति अनुभव करें। अल्पकाल के लिए करें तो भी अल्पवाल की छाप स्मृति में रह जाएगी। समझा - अब क्या करना है। अच्छा –
इस मुरली का सार-
1. सुनने का रिटर्न सदा बाप समान सम्पन्न स्वरूप में दिखाओ। अनेक तड़फती हुई आत्माओं के इन्तज़ार को समाप्त करो।
2. जैसे बाप नाम रूप से न्यारा है तो सबसे अधिक नाम का गायन बाप का है-वैसे ही अल्पकाल के नाम से न्यारे बनो तो सदा काल के लिए सबके प्यारे स्वतः बन जावेंगे। नाम और मान के भिखारीपन का अंशमात्र भी त्याग करो।
3. इच्छा-अच्छा कर्म समाप्त कर देती है। इसलिए इच्छा मात्रम अविद्या बनो।
29-11-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सन्तुष्टता से प्रसन्नता और प्रशंसा की प्राप्ति
सर्व खज़ानों से भरपूर करने वाले सदा सुखदाता बाप-दादा बोले:-
आज बाप-दादा अपने विश्व में चमकने वाली मणियों को देख रहे हैं। हरेक मणी की अपनी-अपनी चमक है। हरेक मणी अपने द्वारा बाप के गुणों और कर्त्तव्य को नम्बरवार प्रत्यक्ष कर रही है। हरेक मणी द्वारा बाप-दादा दिखाई देता है। इस विचित्र रंगत को भक्तों ने ‘‘जहाँ देखे वहाँ तू ही तू’’ कह दिया है। महारथी में भी बाप-दादा दिखार्द देगा और लास्ट सो फास्ट में भी बापदादा ही दिखाई देता। हरेक के मुख से एक ही बाबा बाबा शब्द का गीत सुनाई देता। सर्व ब्राह्मण आत्माओं के नयनों में एक बाप नूर के समान समाया हुआ है - इसीलिए ब्राह्मण संसार में जहाँ देखे वहाँ तू ही तू का प्रैक्टीकल अनुभव होता है। इसी अनुभव को भक्तों ने सर्वव्यापी शब्दों में कहा है - बच्चों के वर्तमान समय का अनुभव परमधाम निवासी बाप है वा हर संकल्प और कर्म में सदा साथ है परमधाम निवासी साथी बाप अनुभव होता है वा सदा साथी बाप अनुभव होता है ? क्या अनुभव होता है साथ वा साथी ? सर्व के साथी सर्वव्यापी नहीं हुआ! भक्तों ने शब्द कापी किया है - लेकिन कब और कैसे का भावार्थ भूल जाने के कारण गायन बदल ग्लानि हो गई।
बाप-दादा सर्व बच्चों के वर्तमान स्वरूप से धारणा स्वरूप को देखते विशेष एक बात देख रहे हैं। कौन सी? सर्व बच्चों में से सदा सन्तुष्ट मणियाँ कितनी हैं। सबसे विशेष गुण, जो चेहरे से चमके वह सन्तुष्टता है। सन्तुष्टता तीनों ही प्रकार की चाहिए। एक-बाप से सन्तुष्ट। दूसरा-सदा अपने आप से सन्तुष्ट। तीसरा -- सर्व सम्बन्ध और सम्पर्क से सन्तुष्ट। इसमें चैतन्य आत्मायें और प्रकृति दोनों आ जाते हैं। सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी। सदा प्रसन्नचित। इस प्रसन्नता के आधार पर प्रत्यक्ष फल ऐसी आत्मा की सदा स्वत: ही सर्व से प्रशंसा होगी। विशेषता है सन्तुष्टता, उसकी निशानी प्रसन्नता, उसका प्रत्यक्षफल प्रशंसा। अब अपने आपको देखो। प्रशंसा को प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो। जो सदा स्वयं सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते उसकी प्रशंसा हरेक अवश्य करते हैं। चलते-चलते पुरुषार्थी जीवन में समस्यायें या परिस्थितियाँ तो ड्रामा अनुसार आनी ही हैं। जन्म लेते ही आगे बढ़ने का लक्ष्य रखना अर्थात् परीक्षाओं और समस्याओं का आह्वान करना। अपने किए हुए आह्वान को भूल जाते हो! जब रास्ता तय करना है तो रास्ते के नज़ारे न हो यह हो सकता है? नज़ारों को देखते रूक जाते हो इसलिए मंज़िल दूर अनुभव करते हो। नज़ारे देखते हुए पार करते चलना है। लेकिन नज़ारों को देख यह क्यों, यह क्या, यह ऐसे नहीं - यह वैसे नहीं इन बातों में रूक जाते हैं। हर नज़ारे को करेक्शन करने लग जाते हो। पार करने के बजाए करेक्शन करने में बिज़ी हो जाते हो। इसलिए बाप की याद का कनेक्शन लूज़ कर देते हो - मनोरंजन के बजाए मन को मुरझा देते हो। वाह नज़ारा वाह। वाह-वाह के बजाये अई बहुत कहते हो। अई अर्थात् आश्चर्यजनक। इसलिए चलते-चलते रूक जाते हो। थकने के कारण कभी बाप से मीठे-मीठे उल्हनें देते हुए रायल रूप में बाप से भी असन्तुष्ट हो जाते हो - कई बच्चे कहते हैं इतना पहले क्यों नहीं बताया - सहज मार्ग कहा - सहन मार्ग तो कहा नहीं। सहज मार्ग के बजाए सहन करने का मार्ग अनुभव करते हैं। लेकिन सहन करना ही आगे बढ़ना है। वास्तव में सहन करना नहीं होता लेकिन अपनी कमज़ोरी के कारण सहन अनुभव होता है। जैसे आग का गुण है जलाना - लेकिन उसके गुण का ज्ञान न होने कारण उससे लाभ लेने के बजाए नुकसान कर देते तो सुख के बजाए सहन करना पड़ता है - क्योंकि वस्तु के बजाए स्वयं को जला देते। गुण का ज्ञान न होने के कारण सुख के बजाए सहन करना पड़ता। वैसे समस्यायें वा परिस्थिति आने के कारण, उनका ज्ञान न होने के कारण आगे बढ़ने के सुख के अनुभव के बजाए सहन करने का अनुभव करते हैं।
इसलिए सहज मार्ग के बजाए सहन करने का मार्ग अनुभव करते हैं। ऐसे बच्चे बाप से अर्थात् बाप के ज्ञान से वा ज्ञान के धारणा मार्ग से असन्तुष्ट रहते हैं। साथ-साथ स्वयं से भी असन्तुष्ट रहते हैं - स्वयं से असन्तुष्ट तो सर्व के सम्बन्ध और सम्पर्क से भी असन्तुष्ट। इस कारण प्रसन्न अर्थात् सदा खुशी नहीं रहती। अभी-अभी सन्तुष्ट अर्थात् प्रसन्नचित्त। अभी-अभी असन्तुष्ट। इसलिए संगमयुग का विशेष खज़ाना अतीन्द्रिय सुख का अनुभव नहीं कर पाते हो। तो आज से सदा सन्तुष्ट और प्रसन्नता का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो। ऐसे ही बाप की वा अपने आपकी प्रशंसा कर सकेंगे। प्रशंसा का श्रेष्ठ साधन भी हर ब्राह्मण की प्रसन्नता है। कोई भी कार्य की प्रशंसा सर्व की प्रसन्नता पर आधार रखती है। इस यज्ञ की अन्तिम आहूति सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता। प्रत्यक्षता अर्थात् प्रशंसा का आवाज़ गूँजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा। समझा अब क्या करना है। सदा प्रसन्न रहो और सदा सर्व को प्रसन्न करो। अच्छा –
ऐसे सदा बाप के आज्ञाकारी सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहने वाले सर्व को सदा प्रसन्न्ता का वरदान देने वाले महादानी - वरदानी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते!
बाम्बे निवासियों को विशेष रूप से बाप-दादा याद प्यार दे रहे हैं –
बाम्बे निवासियों में हिम्मत और उमंग बहुत अच्छा है। बाम्बे निवासियों को देख बाप के साथ प्रकृति ने भी स्वागत किया है ( क्योंकि ठण्ड़ी बहुत हो गई है ) प्रकृति ने अभ्यास कराया है - अन्त में आने वाले पेपर का पहले से ही अनुभव कराके पक्का मज़बूत बनाया है इसलिए घबराना नहीं। बाम्बे निवासियों का बाप से प्यार है ना। बाप-दादा का भी बच्चों से विशेष प्यार है। बाम्बे निवासी अब सदा संतुष्टता और प्रसन्नता का पेपर नम्बरवन में पास करेंगे - बहुत अच्छा है - आप साथ छोड़ो तो भी बाप-दादा नहीं छोड़ेंगे। विशेष बाम्बे और देहली में आदि रतन ज्यादा है - विश्व सेवा की स्थापना के कार्य में बाम्बे और देहली का विशेष सहयोग है। समय पर सहयोगी बनने वालों का महत्त्व होता है - इसलिए सहयोगी बच्चों से बाप का भी स्नेह है। अच्छा –
पार्टियों से –
1. सदा ‘‘विजयी भव’’ के वरदानी मूर्त्त हो? वरदाता ने जो वरदान दिया उसी वरदान को सदा जीवन में लाना यह हरेक का अपना काम है। इस वरदान को जीवन में समाना अर्थात् वरदानी स्वरूप बनना। ऐसे बने हो ? महावीर को भी वरदानी कहते हैं - और शक्तियों को भी वरदानी कहते हैं। अब आपके जड़ चित्रों द्वारा अनेक भक्त वरदान प्राप्त कर लेते हैं तो चैतन्य में तो वरदानों से झोली भरने वाले हो ना? महावीर हो ना ? महावीर अर्थात् सदा विजयी। जब अविनाशी बाप है तो वरदान भी अविनाशी है। अल्पकाल के लिए नहीं। सिर्फ सम्भालना आपका काम है, देना बाप का काम है। सम्भालने आता है ना, कि चोरी हो जाती है। सिर्फ एक बात याद रखो कि लेता नहीं हूँ लेकिन दाता हूँ, अभी लेने के दिन समाप्त हो गए - अभी दाता बन देने का समय है। माँगना तो बचपन में होता - वानप्रस्थी कहें छोटा-सा खिलौना दे दो - यह अच्छा लगेगा? थोड़ी शक्ति दे दो - थोड़ी मदद करो - यह खिलौना माँगते हो। अब स्वयं तृप्त आत्मा बनो - दाता के बच्चे और माँगता हो तो देखने वाले क्या कहेंगे। सफलता का साधन है स्वयं सदा सफलता मूर्त्त बनो। स्वयं की वृत्ति वायब्रेशन फैलाती है और वायब्रेशन के आधार पर सर्व को अनुभूति होगी। इसलिए कार्य करने के पहले विशेष स्वयं की वृत्ति के अटेन्शन की भट्ठी चाहिए। इससे ही वायब्रेशन द्वारा अनेकों की वृत्ति को परिवर्तन कर सकेंगे। पहले यह अटेन्शन रखना - सदा खुशी के झूले में झूलते रहो - हर्षित मुख अनेकों को अपने तरफ आकर्षित करता है।
कुमारियों को देखते हुए :
कुमारियों पर बहुत बड़ी ज़िम्मेवारी है। एक अनेकों के कल्याण प्रति निमित्त बन सकती है। ब्रह्माकुमारी वह जो विश्व के कल्याण के निमित्त बने। बेहद विश्व के कल्याणकारी न कि हद के। लगन में कमी है तो विघ्न अपना काम करेगा। अगर आग तेज़ है तो किचड़ा भस्म हो जाएगा। लगन है तो विघ्न नहीं रह सकता, कर्मयोग से कर्म भोग भी परिवर्तन हो जाता, परिवर्तन करना अपनी हिम्मत का काम है। कुमारियों में तो सदैव बाप-दादा की उम्मीद है। अच्छा -
इस मुरली का सार
1. सर्व ब्राह्मण आत्माओं के नयनों में एक बाप नूर के समान समाया हुआ है। इसी अनुभव को भक्तों ने ‘‘सर्वव्यापी’’ शब्दों में कहा है।
2. विशेषता है सन्तुष्टता, उसकी निशानी है प्रसन्नता और उसका प्रत्यक्ष फल है प्रशंसा। अपनी कमज़ोरी के कारण सहज मार्ग सहनमार्ग अनुभव होता है। समस्याएं व परिस्थिति आने पर ज्ञान न होने के कारण सुख का अनुभव की बजाए सहन करने का अनुभव होता है।
3. इस यज्ञ की अन्तिम आहुति सर्व ब्राह्मणों की प्रसन्नता है।
01-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व खज़ानों की चाबी - एकनामी बनना
भगवान को भी वश में करने वाले बच्चों के प्रति बाप-दादा बोले :-
बाप-दादा सदा बच्चों की तकदीर को देख हर्षित होते। वाह तकदीर वाह! ऐसी श्रेष्ठ तकदीर जो बाप को भी अपने स्नेह सम्बन्ध से निराकार से साकार बना लेते। आवाज़ से परे बाप को आवाज़ में लाते। स्वयं भगवान को जैसे चाहे वैसे स्वरूप में लाने के मालिक को सेवाधारी बना लेते। बाप के सर्व खज़ानों के अधिकारी बनने की वा बाप को स्वयं पर समर्पण कराने की चाबी बच्चों के हाथ में है। जिसके हाथ में ऐसी चाबी हो उनसे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है? ऐसी चाबी को सम्भालने वाले नॉलेजफुल और सेन्सीबल बने हो। चाबी तो बाप ने दे दी - जिस चाबी द्वारा जो चाहो एक सेकेण्ड में प्राप्त कर सकते हो - जब रचता सेवाधारी बन गए तो सर्व रचना आप श्रेष्ठ आत्माओं के आगे सेवा के लिए बाँधी हुई है - जब आसुरी रावण अपने साइन्स् की शक्ति से प्रकृति अर्थात् तत्वों को आज भी अपने कन्ट्रोल में रख रहे हैं तो आप ईश्वरीय सन्तान मास्टर रचता, मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे यह प्रकृति और परिस्थिति दासी नहीं बन सकती! अपने साइलेन्स की शक्ति को अच्छी तरह से जानते हो वा बहुत शक्तियाँ मिलने के कारण उनके महत्त्व को भूल जाते हा? जब साइन्स की अणु शक्ति महान कर्त्तव्य कर सकती है तो आत्मिक शक्ति, परमात्म-शक्ति क्या कर सकती है उसका अनुभव अभी बहुत थोड़ा और कभी-2 करते हो। परमात्म- शक्ति को अपना बना सकते, रूप परिवर्तन करा सकते तो प्रकृति और परिस्थिति का रूप और गुण परिवर्तन नहीं कर सकते ? तमोगुणी प्रकृति को स्वयं की सतोगुणी स्थिति से परिवर्तन नहीं कर सकते हैं? परिस्थिति पर स्व-स्थिति से विजय नहीं पा सकते हैं? ऐसे मास्टर रचता शक्तिशाली बने हो? बाप-दादा बच्चों की श्रेष्ठ प्राप्ति को देख यही कहते एक-एक बच्चा ऐसी श्रेष्ठ आत्मा है जो एक बच्चा भी बहुत कमाल कर सकता है! तो इतने क्या करेंगे! चाबी तो बहुत बढ़िया मिली है - लगाने वाले लगाते नहीं है। सभी को चाबी मिली है। न कि कोई कोई को। नये पुराने छोटे बड़े सब अधिकारी हैं जैसे आज-कल की दुनिया में भी स्वागत अर्थात् कोई गेस्ट की रिसेप्शन करते हैं तो सिटी की चाबी देते हैं ना। बाप-दादा ने भी हर बच्चे की रिसेप्शन में बच्चों को स्वयं की और खज़ानों की चाबी आने से ही दे दी। ऐसी जादू की चाबी जिससे जिस शक्ति का आह्वान करो वह शक्ति स्वरूप बन सकते हो। एक सेकेण्ड में इस जादू की चाबी द्वारा जिस लोक में जाने चाहो उस लोक के वासी बन सकते हो। जिस काल को जानने चाहो उस काल को जानने वाले रूहानी ज्योतिषी बन सकते हो। संकल्प शक्ति को जिस रफ्तार से जिस मार्ग पर ले जाना चाहो उसी रीति से संकल्प शक्ति के अधिकारी बन सकते हो - ऐसी चाबी काम में क्यों नहीं लगाते? महत्त्व को नहीं जाना है क्या? किनारे रखने के संस्कार इमर्ज हो जाते। अच्छी चीज़ को सम्भाल कर किनारे रखते हैं ना कि समय पर काम में लायेंगे! लेकिन यह चाबी हर समय कार्य में लाओ। चाबी लगाओ और खज़ाना लो। इसमें एकनामी नहीं करो - लेकिन एकनामी बनो। एकनामी बनना ही चाबी को लगाने का तरीका है। तो यह करने नहीं आता? आजकल तो चाबी साथ रखने का फैशन है। सौगात में भी कीचेन देते हैं। यह सम्भालना मुश्किल लगता है क्या? कोई भी कर्म शुरू करने के पहले जैसा कर्म वैसी शक्ति का आह्वान। इस चाबी द्वारा करो - तो हर शक्ति आप मास्टर रचता की सेवाधारी बन सेवा करेगी। आह्वान नहीं करते हो लेकिन कर्म की हलचल में आह्वान के बजाए आवागमन के चक्र में आ जाते हो। अच्छा-बुरा, सफलता-असफलता इस आवागमन के चक्कर में आ जाते हो। आह्वान करो अर्थात् मालिक बन आर्डर करो। यह सर्वशक्तियाँ आपकी भुजायें समान है - आपकी भुजायें आपके आर्डर के बिना कुछ कर सकती हैं? आर्डर करो सहनशक्ति कार्य सफल करो तो देखो सफलता सदा हुई पड़ी है। आर्डर नहीं करते हो लेकिन क्या करते हो - जानते हो। आर्डर के बजाए डरते हो - कैसे सहन होगा कैसे सामना कर सकेंगे। कर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार का डर आर्डर नहीं कर सकता है। अब क्या करेंगे - डरेंगे वा आर्डर करेंगे। महाकाल के बच्चे भी डरें तो और कौन निर्भय होंगे। हर बात में निर्भय बनो। अलबेले और आलस्यपन में निर्भय नहीं बनना - मायाजीत बनने में निर्भय बनो। तो सुना जादू की चाबी। सौगात को सम्भालना सीखो और सदा कार्य में लगाओ। अच्छा –
ऐसे श्रेष्ठ तकदीरवान रूहानी शक्ति स्वरूप मास्टर रचता, प्रकृति और परिस्थितियों को अधिकार से विजय पाने वाले सदा विजयी बच्चों को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
दीदीजी से बातचीत –
संगमयुग के राजाओं का साक्षात्कार होता है ? राज्य वंश यहाँ से ही आरम्भ होता है। अभी राजे और प्रजा दोनों ही संस्कार प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे रहे हैं प्रजा अर्थात् सदा हर बात में अधीनपन के संस्कार । उसको कितना भी अधिकारी-पन की स्टेज का तख्त दो लेकिन तख्तनशीन बन नहीं सकते। सदा निर्बल और कमज़ोर आत्मा दिखाई देंगे। स्वयं की हिम्मत नहीं होगी लेकिन दूसरे की हिम्मत और सहयोग से कार्य सफल कर सकते। सहयोग और चीज़ है और हिम्मत बढ़ाने के लिए सहयोग और चीज़ है। हिम्मत देंगे तो कर सकेंगे। यह अधिकारीपन की निशानी नहीं है। हिम्मत रखने से सहयोग के पात्र स्वत: ही बनेंगे। तो इसलिए पूछा कि राज्य वंश दिखाई दे रहा है? जब अभी का राज्य वंश प्रत्यक्ष हो तब प्रत्यक्षता हो। कितने प्रत्यक्ष हुए हैं? कितने राजे, कितनी रानियाँ बनी हैं? राजा और रानी में भी फर्क होगा - वन और टू का अन्तर तो होगा। अभी इस पर रूह-रूहान करना। राजा की निशानी क्या होगी और बालब च्चों की क्वालिफिकेशन क्या होगी -राज्य वंश के बच्चों में भी वंश के संस्कार तो होंगे ना। इसपर रूहरूहान करना। अच्छा।
कुमारों के साथ
कुमारों का चित्र सदा बाप के साथ रहने का दिखाया है, तुम्हीं से खेलूं, तुम्हीं से खाऊं - यह चित्र देखा है सखे रूप से। सखा अर्थात् साथ। तो कुमारों को सखा रूप से साखी रूप दिखाया है, ग्वालबाल के रूप में दिखाया है ना। तो अपने को सदा बाप के साथी समझकर तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं... सभी कुमार युगल मूर्त्त ही चलते हो। युगल हो या अकेले हो? कभी अकेले का संकल्प नहीं करना। साथी को सदा साथ रखो तो सदा खुश रहेंगे और दिन-रात खुशी में नाचते अपना और दूसरों का भविष्य बनायेंगे। अकेला कब न समझना - अकेला समझा और माया आई। कुमारों की यही कम्पलेन है कि हम अकेले हैं। यह साथ तो दु:ख सुख का साथी है। वह साथ तो माथा खराब कर देता। तो युगल हो ना! प्रवृत्ति वाले नहीं हो, सुख की प्रवृत्ति मिल जाए और क्या चाहिए। हमारे जैसा साथी किसी को मिल नहीं सकता। साथी को साथ रखना - साथ रखेंगे तो मन सदा मनोरंजन में रहेगा। अच्छा –
माताओं से
निर्मोही हो? नष्टोमोहा हो ना। माताओं को विशेष विघ्न मोह का ही आता है। नष्टोमोहा अर्थात् तीव्र पुरूषार्थ। अगर ज़रा भी मोह चाहे देह के सम्बन्ध में है तो तीव्र पुरुषार्थी के बजाए पुरुषार्थी में आ जाते। तीव्र पुरुषार्थी हैं फर्स्ट नम्बर, पुरुषार्थी हैं सेकेण्ड नम्बर। क्या भी हो - कुछ भी हो खुशी में नाचते रहो, ‘‘मिरूआ मौत मलूका शिकार’’ इसको कहते हैं नष्टोमोहा। नष्टोमोहा वाले ही विजय माला के दाने बनते हैं। मोह पर विजय प्राप्त कर ली तो सदा विजयी। पास हो या फुल पास हो? पेपर बहुत आयेंगे, पेपर आना अर्थात् क्लास आगे बढ़ना। अगर इम्तहान ही न हो तो क्लास चेन्ज कैसे होगा। इसलिए फुल पास होना है - न कि पास होना है। अच्छा
युगलों से
स्मृति से पुराना सौदा कैन्सिल कर सिंगल बनो। फिर युगल बनो। पुराना हिसाब-किताब सब चुक्तू और नया शुरू। माया के सम्बन्ध को डायवोर्स दे दिया - बाप के सम्बन्ध से सौदा कर दिया - इसीसे मायाजीत, मोह जीत विजयी रहेंगे। सहयोगी भले हो - कम्पेनियन नहीं । कम्पेनियन एक है, कम्पेनियनपन का भान आया और गया।
जो बाप की याद में रहते उनके ऊपर सदा बाप का हाथ हैं। सभी मोस्ट लकी हो। घर बैठे भगवान मिल जाए तो इससे बड़ा लक और क्या चाहिए। जो स्वप्न में न हो और साकार हो जाए तो और क्या चाहिए। बाप आप के पास पहले आया - पीछे आप आये हो। इसी अपने भाग्य का वर्णन करते सदा खुश रहो भगवान को मैंने अपना बना लिया। कहीं भी रहें लेकिन बाप का सदा साथ हर कर्म, हर दिनचर्या में सदा बाप के साथ का अनुभव करो। अच्छा।
03-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
पाप और पुण्य की गुह्य गति
पाप और पुण्य की गति को समझाने वाले, महाकाल शिवबाबा बोले: -
आज बाप-दादा सर्व बच्चों को विशेष अभ्यास की स्मृति दिला रहे हैं - एक सेकेण्ड में इस आवाज़ की दुनिया से परे हो आवाज़ से परे दुनिया के निवासी बन सकते हो। जितना आवाज़ में आने का अभ्यास है सुनने का अभ्यास है, आवाज़ को धारण करने का अभ्यास है वैसे आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो सर्व प्राप्ति करने का अभ्यास है? जैसे आवाज़ द्वारा रमणीकता का अनुभव करते हो, सुख का अनुभव करते हो ऐसे ही आवाज़ से परे अविनाशी सुख-स्वरूप रमणीक अवस्था का अनुभव करते हो! शान्त के साथ-साथ अति शान्त और अति रमणीक स्थिति का अनुभव है! स्मृति का स्विच आन किया और ऐसी स्थिति पर स्थित हुए। ऐसी रूहानी लिफ्ट की गिफ्ट प्राप्त है? सदा एवररेडी हो। सेकेण्ड के इशारे से एकरस स्थिति में स्थित हो जाओ। ऐसा रूहानी लश्कर तैयार है? वा स्थित होने में ही समय चला जायेगा। अब ऐसा समय आने वाला है जो ऐसे सत्य अभ्यास के आगे अनेकों के अयथार्थ अभ्यास स्वत: ही प्रत्यक्ष हो जायेंगे। कहना नहीं पड़ेगा कि आपका अभ्यास अयथार्थ है - लेकिन यथार्थ अभ्यास के वायुमण्डल, वायब्रेशन द्वारा स्वयं ही सिद्ध हो जायेगा। ऐसा संगठन तैयार है? अभी समय अनुसार अनेक प्रकार के लोग चेकिंग करने आयेंगे। संगठित रूप में जो चैलेन्ज करते हो कि हम सब ब्राह्मण एक की याद में एकरस स्थिति में स्थित होने वाले हैं - तो ब्राह्मण संगठन की चेकिंग होगी। इन्डीविज्युवल (Individual) तो कोई बड़ी बात नहीं हैं लेकिन आप सब विश्व कल्याणकारी विश्व परिवर्तक हो - विश्व संगठन, विश्व कल्याणकारी संगठन विश्व को अपनी वृत्ति वा वायब्रेशन द्वारा वा अपने स्मृति स्वरूप के समर्थी द्वारा कैसे सेवा करते हैं- उसकी चेकिंग करने बहुत आयेंगे। आज की साइंस द्वारा साइलेन्स शक्ति का नाम बाला होगा। योग द्वारा शक्तियाँ कौन सी और कहाँ तक फैलती हैं उनकी विधि और गति क्या होती है यह सब प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। ऐसे संगठन तैयार हैं ? समय प्रमाण अब व्यर्थ की बातों को छोड़ समर्थी स्वरूप बनो। ऐसे विश्व सेवाधारी बनो। इतना बड़ा कार्य जिसके लिए निमित्त बने हुए हो उसको स्मृति में रखो। इतने श्रेष्ठ कार्य के आगे स्वयं के पुरूषार्थ में हलचल वा स्वयं की कमज़ोरियाँ क्या अनुभव होती हैं? अपनी कमज़ोरियाँ, इतने विशाल कार्य के आगे क्या अनुभव करते हो, अच्छी लगती हैं वा स्वयं से ही शर्म आता है? चैलेन्ज और प्रैक्टिकल समान होना चाहिए। नहीं तो चैलेन्ज और प्रैक्टिकल में महान अन्तर होने से सेवाधारी के बजाए क्या टाइटल मिल जावेगा? ऐसे करने वाली आत्मायें अनेक आत्माओं को वन्चित करने के निमित्त बन जातीं, पुण्य आत्मा के बजाए बोझ वाली आत्माएँ बन जाती हैं - इस पाप और पुण्य की गहन गति को जानो। पाप की गति श्रेष्ठ भाग्य से वन्चित कर देती। संकल्प द्वारा भी पाप होता है। संकल्प के पाप का भी प्रत्यक्षफल प्राप्त होता है। संकल्प में स्वयं की कमज़ोरी, किसी भी विकार की - पाप के खाते में जमा होती ही है। लेकिन अन्य आत्माओं के प्रति संकल्प में भी किसी विकार के वशीभूत वृत्ति है तो यह भी महापाप है, किसी अन्य आत्माओं के प्रति व्यर्थ बोल भी पाप के खाते में जमा होता है। ऐसे ही कर्म अर्थात् सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा किसी के प्रति शुभ भावना के बजाए और कोई भी भावना है तो यह भी पाप का खाता जमा होता है - क्योंकि यह भी दु:ख देना है। शुभ भावना पुण्य का खाता बढ़ाती है। व्यर्थ भावना वा घृणा की भावना वा ईष्या की भावना पाप का खाता बढ़ाती है इसलिए बाप के बच्चे बने, वर्से के अधिकारी बने अर्थात् पुण्य आत्मा बने, यह निश्चय, यह नशा तो बहुत अच्छा। लेकिन नशा और ईर्ष्या मिक्स नहीं करना। बाप के बनने के बाद प्राप्ति अनगिनत है लेकिन पुण्य आत्मा के साथ पाप का बोझ भी सौ गुना के हिसाब से है। इसलिए इतने अलबेले भी मत बनना। बाप को जाना और वर्से को जाना, ब्रह्माकुमार कहलाया - इसलिए अब तो पुण्य ही पुण्य है, पाप तो खत्म हो गया वा सम्पूर्ण बन गये ऐसी बात न सोचना - ब्रह्माकुमार जीवन के नियमों को भी ध्यान में रखो। मर्यादायें सदा सामने रखो। पुण्य और पाप दोनों का ज्ञान बुद्धि में रखो। चैक करो पुण्य आत्मा कहलाते हुए मन्सा-वाचा- कर्मणा कोई पाप तो नहीं किया, कौन सा खाता जमा हुआ - किसी भी प्रकार की चलन द्वारा बाप वा नॉलेज का नाम बदनाम तो नहीं किया। बाप के पास तो हरेक का खाता स्पष्ट है लकिन स्वयं के आगे भी स्प्ष्ट करो। अपने आपको चलाओ मत अर्थात् धोखा मत दो -यह तो होता ही है, वह तो सब में हैं! भले सब में हो लेकिन मैं सेफ हूँ - ऐसी शुभ कामना रखो - तब विश्व सेवाधारी बन सकेंगे। संगठित रूप में एकमत एकरस स्थिति का अनुभव करा सकेंगे। अब तक भी पाप का खाता जमा होगा तो चुक्तू कब करेंगे, अन्य आत्माओं को पुण्य आत्मा बनाने के निमित्त कैसे बनेंगे। इसलिए अलबेलेपन में भी पाप का खाता बनाना बन्द करो। सदा पुण्य आत्मा भव का वरदान लो। अज्ञानी लोग यह सलोगन कहते - बुरा न सुनो, न देखो, न सोचो - अब बाप कहते व्यर्थ भी न सुनो, न सुनाओ और न सोचो। सदा शुभ भावना से सोचो, शुभ बोल बोलो, व्यर्थ को भी शुभ-भाव से सुनो - जैसे साइन्स के साधन बुरी चीज़ को परिवर्तन कर अच्छा बना देते, रूप परिवर्तन कर देते तो आप सदा शुभचिंतक, सर्व आत्माओं के बोल के भाव को परिवर्तन नहीं कर सकते ? सदा भाव और भावना श्रेष्ठ रखो तो सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। स्वंय का परिवर्तन करो न कि अन्य के परिवर्तन का सोचो। स्वंय का परिवर्तन ही अन्य का परिवर्तन है। इसमें पहले मैं, ऐसा सोचो - इस मरजीवा बनने में ही मज़ा है। इसी को ही महाबली कहा जाता है। घबराओ नहीं। खुशी से मरो- यह मरना तो जीना ही है, यही सच्चा जीवदान है।
आपका पहला वचन क्या है? एक बाप दूसरा न कोई अर्थात् मरना। नाम मरना है लेकिन सब कुछ पाना है - निभाना मुश्किल लगता है क्या? है सहज सिर्फ परिवर्तन करना नहीं आता - भाव और भावना का परिवर्तन करना नहीं आता। वाह ड्रामा वाह! जब कहते हो तो यह सब क्या हुआ। हर बात वाह-वाह हो गई ना ! हाय-हाय खत्म कर दो, वाह-वाह आ जाती है। वाह बाप, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट। इसी स्मृति में रहो तो विश्व वाह-वाह करेगा। मुश्किल तब लगता है जब बाप के साथ को भूल जाते हो - बाप को साथी बनाकर मुश्किल को सहज कर सकते हो। अकेले होने से बोझ अनुभव करते हो। तो ऐसे साथी बनाकर मुश्किल को सहज बनाओ। अच्छा –
सदा सहयोगी, स्वयं के परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले, हर संकल्प और हर सेकेण्ड में पुण्य का खाता जमा करने वाले, अपनी समर्थी द्वारा विश्व को समर्थ बनाने वाले, ऐसे महान, सदा श्रेष्ठ पुण्य आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
1. सदा बाप द्वारा मिला हुआ महामंत्र याद रहता है? कितना सहज है मंत्र। इसी मंत्र से सर्व दु:खों से पार हो सुख के सागर बाप समान बन जाते हो कोई भी प्रकार का दु:ख आता है तो मंत्र लिया और दु:ख गया। अभी दु:ख की लहर भी नहीं आ सकती। स्वप्न में भी, ज़रा भी दु:ख का अनुभव न हो, तन बीमार हो जाए, धन नीचे ऊपर हो जाए, कुछ भी हो लेकिन दु:ख की लहर अन्दर नहीं आनी चाहिए। लहर क्रास कर चली जाए। सागर में कभी नहाया है ? लहर आती है तो जम्प कर पार कर जाते हैं -अगर तरीका आता है तो उसमें नहाने का सुख लेते, नहीं तो डूब जाते। तो लहरों में लहराना आता है या डूब जाते हो? सागर के बच्चे डूब तो नहीं सकते। लहर को क्रास करो जैसे कि खेल कर रहे हैं। दु:ख के दिन समाप्त हो गये।
2. विजयी भव के वरदान से माया को विदाई -बाप-दादा द्वारा सदा विजयी भव का वरदान प्राप्त हुआ है ? जब अलौकिक जन्म लिया तो सौगात वा जन्म का वरदान बाप ने ‘‘विजयी भव’’ का दिया। जब यह वरदान याद रहता है तो माया विदाई ले लेती है। माया मूर्छित बन जाती है, सामना नहीं कर सकती। जैसे शेर के आगे बकरी क्या करेगी? देखते ही मुर्छित हो जायेगी ना। तो जब यह वरदान स्मृति में रहता तो माया सामना नहीं कर सकती। माया का राज्य तो अभी समाप्त होने वाला है, यह तो सिर्फ जैसे कोई हठ से आगे किया जाता है वैसे थोड़ा सा साँस होते हुए माया अपना हठ दिखा रही है। माया शक्तिशाली नहीं। और आप सब हैं मा. सर्वशक्तिवान। मा. सर्वशक्तवान के आगे शक्तिहीन माया क्या कर सकती? जैसे कल्प पहले भी कहा यह सब मरे हुए हैं, ऐसे ही यह माया भी मरी हुई है, जिन्दा नहीं है, सिर्फ निमित्त मात्र विजयी बनना है। अच्छा –
3. विजयीपन के नशे से सर्व आकर्षणों से परे –
सदा अपने को रूहानी शस्त्रधारी शक्ति सेना या पाण्डवसेना समझते हो ? तो सेना को वा योद्धाओं को सदैव क्या याद रहता है? विजय। तो सदैव विजय का झण्डा अपने मस्तक पर लहराया हुआ अनुभव करते हो ? सदा विजय का झण्डा लहराने वाले विजयी रतन हो ना? ऐसे विजयी रतनों का यादगार बाप के गले का हार आज तक पूजा जाता है। हरेक को यह नशा रहना ही चाहिए कि मैं गले का हार हूँ। विजयी की निशानी सदा हर्षित होंगे। किसी भी प्रकार के आकर्षण से परे होंगे। क्या भी हो जाए लेकिन बाप जैसा आकर्षण स्वरूप कोई है क्या ? तो सबसे सुन्दर कौन ? शिव बाबा है ना तो सदैव बाप की याद रहे, उसी आकर्षण में आकर्षित रहो फिर कोई आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकता। अगर कोई भी आपको अपना राज्यभाग देने आये तो लेंगे? (नहीं) क्यों? क्योंकि आजकल के प्रेज़ीडेण्ट की कुर्सा काँटों की कुर्सा है। ताजतख्त छोड़कर काँटों की कुर्सा कौन लेगा? आज है कल नहीं। सदा इस नशें में रहो कि हमको जो मिला वह किसी को मिल नहीं सकता। अभी यह प्रेज़ीडेन्ट चाहे तो स्वर्ग में आयेगा? जब तक बाप का न बने तब तक स्वर्ग में नहीं आ सकते। यहीं रह जायेंगे। हम स्वर्ग में जायेंगे, ऐसा नशा और खुशी रहे - हम विश्व के मालिक के बालक हैं। सदा भाग्य का सुहाग प्राप्त है - तो सदा सुहागिन हो गई ना।
4. चलता-फिरता चैतन्य आकर्षक करने वाला बोर्ड ‘‘खुशी का चेहरा’’ –
जो भाग्यशाली होते हैं वह सदा खुश आबाद होते हैं। जो भी देखे तो खुशी का खज़ाना देखते हुए खज़ाने के तरफ आकर्षित हो जाये, वैसे भी देखो कोई अमूल्य चीज़ रखी होगी तो न चाहते भी सब आकर्षित होते हैं, तो जिन्हों के पास खुशी का खज़ाना है, तो उसके पीछे तो स्वत: ही सर्व आकर्षित होंगे। खुशी का चेहरा चलता-फिरता चैतन्य आकर्षित करने वाला बोर्ड है। जहाँ जायेगा बाप का परिचय देगा। खुशी का चेहरा देखेंगे तो बनाने वाले की याद ज़रूर आयेगी जब एक बोर्ड इतनों को परिचय देता आप इतने चैतन्य बोर्ड कितनों को परिचय देते होंगे - इतने आकर्षण करने वाले बोर्ड तैयार हो जाएं तो और भी जगह बड़ी करनी पड़ेगी।
5. बाप-दादा का सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार - सन्तुष्टमणि
जो सन्तुष्ट मणियाँ हैं वही बाप का श्रेष्ठ श्रृंगार हैं। जो सदा सन्तुष्ट रहते हैं उन्हें सन्तुष्टमणि कहा जाता है। सदा सन्तुष्टता की झलक मस्तक से चमकती रहे, ऐसे ही साक्षात्-मूर्त्त बन सकते हैं। बापदादा हर रत्न को अपना श्रृंगार समझते हैं। अपने को ऐसे श्रेष्ठ श्रृंगार समझकर सदा खुशनसीब रहते हो? ऐसा नसीब या ऐसी तकदीर सारे कल्प में भी किसी की नहीं हो सकती। नसीबवान तो सदा खुशी में नाचते रहेंगे। बाप-दादा को जितनी खुशी होती है उससे ज्यादा बच्चों का होनी चाहिए, भटकते हुए को ठिकाना मिल जाए या प्यासे की प्यास बुझ जाये तो वह खुशी में नाचेगा ना। ऐसी खुशी में रहो जो कोई उदास आपको देखे तो वह भी खुश हो जाए, उसकी उदासी मिट जाए।
6.’’विशेष आत्माओं का विशेष कर्त्तव्य’’ हर कर्म पर अटेन्शन
जो कर्म मैं करूँगा मुझे देख सब करेंगे ऐसा अटेन्शन हर कर्म पर रखना यही विशेष आत्माओं का कर्त्तव्य है। हर कर्म ऐसा हो जो सभी देखकर ‘‘वन्स मोर’’ करें। जैसे ड्रामा में जो विशेष पार्टधारी होते, जिन्हें हीरो पार्टधारी कहते हैं उनका अपने ऊपर कितना अटेन्शन रहता है, हर कदम सोच-समझकर उठायेंगे, क्योंकि सब की नज़र हीरो पर होती है। तो इतना अटेन्शन रखकर चलो।
05-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मरजीवा जन्म का निजी संस्कार- पहली स्मृति और पहला बोल
सर्व आत्माओं पर तरस खाने वाले, विश्व की सर्वश्रेष्ठ आत्माओं प्रति बाप-दादा बोले: -
आज बाप-दादा विश्व की सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं। सर्व आत्माओं में से बहुत थोड़ी-सी आत्माओं का ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है - जैसे बच्चे भाग्य विधाता बाप को देख हर्षित होते हैं वैसे बाप भी भाग्यवान बच्चों को पाकर बच्चों से भी ज्यादा खुश होते हैं। क्योंकि इतने समय से और इतने सब बच्चे बिछड़े हुए फिर से मिल जाएं तो क्यों नहीं खुशी होगी। हर बच्चे की विशेषता या हर सितारे की चमक, हर रूह की रंगत, रूहानियत् की ईश्वरीय झलक जितना बाप जानते हैं उतना बच्चे स्वयं भी कब भूल जाते हैं। सर्व विघ्नों से, सर्व प्रकार की परिस्थितियों से या तमोगुणी प्रकृति की आपदाओं से सैकण्ड में विजयी बनने के लिए सिर्फ एक बात निश्चय और नशे में रहे -- वह कौन सी? जो बार-बार जानते भी हो, संकल्प तक स्मृति में रहते हो लेकिन संस्कार रूप में नहीं रहते हो - सोचते भी हो, समझते भी हो, सुनते भी हो, फिर भी कभी-कभी भूल जाते हो। वह क्या? बहुत पुरानी बात है - वाह रे मैं - यह सुनते खुश भी होते हो फिर भी भूल जाते हो। इस मरजीवा जीवन के जन्म के संस्कार - वाह रे मैं - ही हैं। तो अपने जन्म के निजी संस्कार जन्म की पहली स्मृति, जन्म का पहला बोल - मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ इसको भी भूल जाते हैं। भूलने का खेल अच्छा लगता है। आधा कल्प भूलने के खेल में खेला - अब भी यही खेल अच्छा लगता है क्या ? ब्राह्मण अर्थात् स्मृति स्वरूप। ब्राह्मण अर्थात् समर्थी स्वरूप। स्वरूप को भूलना, इसको क्या कहेंगे? बाप-दादा को बच्चों के इस खेल को देख तरस आता है - हँसी भी आती है। इतनी महान आत्माएँ और करती क्या हैं ? और भी एक बहुत वण्डरफुल खेल करते हो, कौनसा? जानते भी हो अच्छी तरह से - आप लोग ही बताओ कि क्या करते हो - कोई नाज़-नखरे करते, कोई आंख मिचौनी करते। कभी वाह कहते हो कभी हाय करते हो - अच्छा यह तो सब जानते हैं कि करते हैं - इससे भी वण्डरफुल और खेल है - जब बाप के बच्चे बने, मरजीवा बने तो पहली प्रतिज्ञा कौनसी की ? यह भी अच्छी तरह से जानते हो - वायदा क्या किया, उसको भी जानते हो। बाप ने वायदा कराया और आपने स्वीकार भी किया। स्वीकार करने के बाद फिर क्या करते हो। बाप ने कहा शूद्रपन के विकारी संस्कार छोड़ो - आत्मा के विकारी संस्कार रूपी चोला परिवर्तन किया और ईश्वरीय संस्कार का दिव्य चोला पहना - शूद्रपन की निशानियाँ अशुद्ध वृत्ति और दृष्टि परिवर्तन कर पवित्र दृष्टि और वृत्ति विशेष निशानियाँ धारण की - सर्वश्रेष्ठ ते श्रेष्ठ सम्बन्ध और सम्पत्ति के अधिकारी बने - यह भी अच्छी तरह से याद है, लेकिन फिर क्या करते - जो श्रेष्ठ आत्मायें होती हैं वह संकल्प से भी छोड़ी हुई अर्थात् त्याग की हुई बात फिर से धारण नहीं करती हैं। जैसे धरनी पर गिरी हुई वा फेंकी हुई चीज़ रायल बच्चे कभी नहीं उठावेंगे। आप सबने संकल्प धारण किया और यह विकार बुद्धि से फेंके। बेकार समझ, बिगड़ी हुई वस्तु समझ प्रतिज्ञा की और त्याग किया, वचन लिया कि फिर से यह विष सेवन नहीं करेंगे - फिर क्या करते हो। फेंकी हुई चीज़, गन्दी चीज़, बेकार चीज़, जली सड़ी हुई वस्तु फिर से उठाकर यूज़ क्यों करते हो - समझा क्या खेल करते हो - अनजाने का खेल करते हो - खेल देख तरस भी पड़ता और हँसी भी आती। जानीजाननहार तो बने हो लेकिन बनना है करनहार। अब क्या करेंगे ? करनहार बनने का विशेष कार्यक्रम करके दिखाओ। संकल्प द्वारा त्याग की हुई बेकार वस्तुओं को संकल्प में भी स्वीकार नहीं करो। सोचो और स्वयं से पूछो - कौन हूँ और क्या कर रहा हूँ। वचन क्या किया और कर्म क्या कर रहे हैं? वायदा क्या किया ओर निभा क्या रहे हैं। अपने स्वमान, श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ जीवन के समर्थी स्वरूप बनो। कहना क्या और किया क्या? ऐसे वण्डरफुल खेल अब बन्द करो। श्रेष्ठ स्वरूप, श्रेष्ठ पार्टधारी बन श्रेष्ठता का खेल करो। ऐसी सम्पूर्ण आहुति का संकल्प करो तब परिवर्तन समारोह होगा। इस समारोह की डेट संगठित रूप में निश्चित करो। अच्छा।
ऐसे दृढ़ संकल्पधारी, संकल्प और स्वरूप में समान मूर्त्त, जाननहार और करनहार, हर कर्म द्वारा स्वयं की श्रेष्ठता और बाप की प्रत्यक्षता करने वाली सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
दीदी जी से
बातचीत बाप तो हर बच्चों के बुलाने पर आ जाते हैं। बच्चे जो आज्ञा करें वह मानते हैं लेकिन इस बार कुछ साथ में ले भी जाना है। बच्चे तो साथ हैं ही। लेकिन साथ ले क्या जायेंगे? हर बच्चे के दृढ़ संकल्प की अन्तिम आहुति ले जायेंगे। यज्ञ का प्रसाद अन्तिम आहुति होती है। यज्ञ की रचना साकार सृष्टि में साकार द्वारा हुई - ब्रह्मा ने अपना पार्ट बजाकर ब्राह्मणों को यज्ञ की ज़िम्मेवारी तो दी, यज्ञ की विशेष प्रसादी बाप-दादा लेंगे। कोई भी मिलने आते हैं तो उनको प्रसाद देते हो ना। बाप-दादा भी प्रसादी ले जायेंगे। यह प्रसाद देना अर्थात् विश्व परिवर्तन होना है। इस शिवरात्रि पर सेवा के साधन, जिससे अन्य अनेक आत्माओं को परिचय मिले वह तो करेंगे ही लेकिन साथ-साथ ऐसा संकल्प करो कि परिचय के साथ बाप की झलक देखने या अनुभव करने का प्रसाद भी लेवें। जैसे कोई फंक्शन आदि होता है तो जहाँ प्रसाद मिलता है वहाँ सभी को आकर्षण होती है। न चाहते हुए भी स्वत: ही लोग आ जाते हैं प्रसादी की आकर्षण से। तो ऐसा लक्ष्य रखो - वायुमण्डल बनाओ - अपनी समर्थी के आधार पर असमर्थ आत्माओं को विशेष रहम के संकल्प की आकर्षण से प्राप्ति या अनुभूति का प्रसाद बाँटो। साथ-साथ अपने महावीरों का ऐसा विशेष ग्रुप बनाओ जो दृढ़ संकल्प द्वारा जाननहार और करनहार का साक्षात स्वरूप बन करके दिखाएं -जैसे कहाव्त है धरत परिये धर्म न छोड़िये। ऐसी धारणा हो, कुछ भी सरकमस्टान्सेज आ जाएं, माया के महावीर रूप सामने आ जायें लेकिन धारणा न छूटे - जैसे शुरू में आपस में पुरूषार्थ के ग्रुप बनाये थे ना। डिवाईन यूनिटी भी बनाई, अभी कौन सी पार्टी बनायेंगे?
इस शिवरात्रि पर पाण्डव और शक्तियाँ दोनों विशेष ग्रुप बनावें जो विघ्न-विनाशक ग्रुप हो। यह प्रसाद बाप-दादा ले जायेंगे। यज्ञ की आहुति की खुशबू दूर तक फैलती है - तो बाप-दादा भी साकार वतन से सुक्ष्मवतन तक यज्ञ की इस विशेष खूशबू की खुशखबरी ले जायें - ऐसा प्रसाद तैयार करो - साथ में कुछ ले ही जायेंगे। यही आहुति जाने का गेट भी खोलेगी। अभी इतनी संख्या वृद्धि को पा रही है तो जाने के गेट भी खुलने चाहिए। तो गेट खोलने वाले कौन हैं ? बाप अकेला कुछ नहीं करेगा। कब कुछ किया है क्या? अभी भी अकेले नहीं हैं (बच्चों की चिटचेट चल रही है कि बाबा आप अकेले चले गये) पहले तो बाप-दादा दो साथी हैं। अकेला तो हो नहीं सकता। बच्चे भी हैं - आप साथ नहीं रहते हो? वायदा क्या किया है ? साथ रहेंगे साथ चलेंगे, साथ खायेंगे, पीयेंगे -- यह वायदा है ना। अभी वायदा बदल गया है क्या? अभी भी वही वायदा है बदला नहीं है। चले गये - ऐसा नहीं है। साकार में तो और भी थोड़े समय का साकार साथ था और थोड़ों के लिए साकार का साथ था। अभी तो सभी के साथ हैं। साकार में तो फिर भी कई प्रकार के बन्धन थे, अभी तो निर्बन्धन हैं। अभी तो और ही तीव्रगति है - बाप को बुलाया और हाज़रा हजूर।
मोह से भी ऊपर - बलिहार होना है - जब बलिहार हो गये तो मोह तो उसमें एक अंचली है। अभी साथ रहेंगे साथ चलेंगे। सिर्फ आज क्यों, सदा ही साथ चलेंगे।अच्छा तो अब प्रसादी तैयार करना। पाण्डव क्या करेंगे ? (बकरी ईद) कुछ भी करो लेकिन कुछ करके दिखाओ। देखेंगे पाण्डवों का ग्रुप रेस करता है या शक्तियों का। बकरी ईद मनाओ या कोई भी ईद मनाओ। मैं मैं का त्याग करना इसको कहा जाता है ईद मनाना। अब देखेंगे क्या प्रसाद तैयार कर देते हैं। पाण्डव तैयार करते हैं या शक्तियाँ तैयार करती हैं या दोनों ही तैयार करते हैं - अच्छा।
यू.पी. जोन विशेष भाग्यशाली रहा – यू.पी. की विशेषता है ‘‘भावना वाली धरनी’’ है। भक्ति की भावना ज्यादा है। ऐसी भक्त धरनी को भक्ति का फल देने के निमित्त बने हुए हैं। सभी ज़ोन में से यादगार भी ज्यादा यू.पी. मैं हैं - तो यू.पी. की यादगार धरनी को फिर से विशेष याद दिलाओ। यू.पी. का विस्तार बहुत है। विस्तार से अपने ज्ञान का बीज डाल बाप की कल्प पहले वाली फुलवाड़ी और अधिक तैयार करो। वैसे भी यू.पी. की धरनी फलीभूत धरनी है इसलिए और भी ज्यादा फुलवाड़ी बढ़ा सकते हो - हर स्थान से ज्ञान गंगा बहती जाए। नदी का महत्त्व भी यू.पी.में है - नहान का महत्त्व भी यू.पी. में है। जैसे स्थूल नहान का महत्त्व है वैसे चारों ओर ज्ञान-नहान का महत्त्व बढ़ाओ। यू.पी. का महत्त्व है - महान है ना। नियम- पूर्वक ज्ञान के तीर्थस्थान की आदि भी यू.पी. से हुई है। नियम-पूर्वक निमन्त्रण अर्थ कानपुर और लखनऊ की आत्मायें निमित्त बनी हुई थीं। देहली में सिर्फ माताओं का निमन्त्रण था - नियम-पूर्वक निमंत्रण कानपुर, लखनऊ का था। देहली की महिमा अपनी, यू.पी. की महिमा अपनी है। महानता तो बहुत है, अब जितनी महानता गाई गई है उसी प्रमाण महान कार्य करके दिखाओ। ऐसा विशेष कार्य करो जो अभी तक कोई ज़ोन ने नहीं किया हो - हरेक ज़ोन को अभी कोई नई इनवैन्शन निकालनी चाहिए। मेले भी हुए, सम्मेलन भी हुए - अभी कोई नई रूपरेखा बनाओ जिसको देख-सुनकर समझें कि ऐसा कभी न सुना और न देखा।
आगरा ज़ोन से मुलाकात
सदा अपने भाग्य का सिमरण करते खुशी में रहते हो? वाह मेरा भाग्य! यह गीत सदा मन में बजता रहता है ? वाह बाप, वाह ड्रामा और वाह मेरा पार्ट - सदा इसी स्मृति में हर कार्य करते ऐसे अनुभव होता है -- जैसे कर्म करते हुए भी कर्म के बन्धन से मुक्त, सदा जीवन मुक्त है। सतयुग की जीवनमुक्ति का वर्सा तो प्राप्त होगा ही लेकिन अभी के जीवनबन्ध से जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव सतयुग से भी ज्यादा है। तो अभी भी अपने ज्ञान और योग की शक्ति से जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करते हैं कि अभी भी बन्धन हैं? बन्धन सब समाप्त हो गये और जीवनमुक्त हो गए। कुछ भी हो जाये लेकिन जीवन मुक्त होने के कारण ऐसे अनुभव होता है जैसे एक खेल कर रहे हैं, परीक्षा नहीं लेकिन खेल है। तन का रोग हो जाए - माया के अनेक प्रकार के वार भी हों लेकिन खेल अनुभव हो। खेल में दु:ख नहीं होता, खेल किया ही जाता है मनोरंजन के लिए, दु:ख के लिए नहीं। तो खेल समझने से जीवन-मुक्त स्थिति का अनुभव करेंगे। जीवनमुक्त हो या जीवन बन्ध हो? शरीर का,सम्बन्ध का कोई भी बन्धन न हो। यह तो खेल-खेल में फर्ज अदाई निभा रहे हैं। फर्ज अदाई का भी खेल कर रहे हैं। निर्बन्धन आत्मा ही ऊँची स्थिति का अनुभव कर सकेगी। बन्धन वाला तो नीचे ही बंधा रहेगा, निर्बन्धन ऊपर उड़ेगा। सभी ने अपना पिंजरा तोड़ दिया है, ब्न्धन ही पिंजरा है। तो बन्धनों का पिंजरा तोड़ दिया। फर्ज अदाई भी निमित्तमात्र निभानी है, लगाव से नहीं। फिर कहेंगे निर्बन्धन। ट्रस्टी बनकर चलते हो तो निर्बन्धन हो। कोई भी मेरापन है तो पिंजरे में बन्द हो। अभी पिंजरे की मैना नहीं स्वर्ग की मैना हो गई। शुरू-शुरू का गीत है ना पिंजरे की मैना.... अभी तो स्वर्ग की परियाँ हो गईं, सभी स्वर्ग में उड़ने वाली हो। पिंजरे की मैना से फरिश्ते बन गईं। अभी कहाँ भी ज़रा भी बन्धन न हो। मन का भी बन्धन नहीं। क्या करूँ, कैसे करूँ, चाहता हूँ, होता नहीं यह भी मन का बन्धन है। चाहता हूँ कर नहीं पाता तो कमज़ोर हुआ ना। इस बन्धन से भी मुक्त उसको कहा जाता है निर्बन्धन। जब बाप के बच्चे बने तो बच्चा अर्थात् स्वतन्त्र। इसीलिए कहा जाता है स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बैस्ट लाइफ। तो कौन हो आप - बच्चे हो या बूढ़े हो? बच्चा अर्थात् निर्बन्धन। अगर अपने को पास्ट जीवन वाले समझेंगे तो बन्धन है, मरजीवा हो गये तो निर्बन्धन। चाहे कुमार हो चाहे वानप्रस्थी हो लेकिन सब बच्चे हैं। सिर्फ एक कार्य जो बाप ने दिया है ‘‘याद करो और सेवा में रहो’’, इसी में सदा बिज़ी रहो।
स्थापना के कार्य में आदि से जो आत्मायें सहयोगी हैं, उन्हीं को विशेष सहयोग ड्रामा अनुसार किसी न किसी रूप से प्राप्त ज़रूर होता है। गारन्टी है। बाप-दादा यहाँ का यहाँ रिटर्न भी करते हैं और भविष्य के लिए भी जमा होता है। अच्छा।
07-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बाप समान सम्पूर्ण बनने के चिन्ह
सदा सर्व पर उपकार करने वाले बाप-दादा बच्चों के प्रति बोले :-
सदा अपने स्मृति की समर्थी से अपने तीनों स्थान और तीनों स्थिति, निराकारी, आकारी और साकारी तीनों स्थिति में सहज ही स्थित हो सकते हो? जैसे आदि स्थिति साकार स्वरूप में सहज ही स्थित रहते हो ऐसे अनादि निराकारी स्थिति इतनी ही सहज अनुभव होती है? अभी-अभी अनादि, अभी- अभी आदि स्मृति की समर्थी द्वारा दोनों स्थिति में समानता अनुभव हो - ऐसे अनुभव करते हो? जैसे साकार स्वरूप अपना अनुभव होता है, स्थित होना नैचुरल अनुभव करते हो - ऐसे अपने अनादि निराकारी स्वरूप में, जो सदा एक अविनाशी है उस सदा एक अविनाशी स्वरूप में स्थित होना भी नैचुरल हो। संकल्प किया और स्थित हुआ - इसी को कहा जाता है बाप समान सम्पूर्ण अवस्था, कर्मातीत अन्तिम स्टेज। तो अपने आप से पूछो - अन्तिम स्टेज के कितना समीप पहुँचे हो ? जितना सम्पूर्ण अवस्था के नज़दीक होंगे अर्थात् बाप के नज़दीक होंगे उसी अनुसार भविष्य प्रालब्ध में भी राज अधिकारी होंगे। साथसाथ आदि भक्त जीवन में भी समीप सम्बन्ध में होंगे। पूज्य अथवा पुजारी दोनों जीवन में साकार बाप के समीप होंगे अर्थात् आदि आत्मा के सारे कल्प में सम्बन्ध वा सम्पर्क में रहेंगे। हीरो पार्टधारी आत्मा के साथ-साथ आप आत्माओं का भी भिन्न नाम रूप से विशेष पार्ट होगा। अब के सम्पूर्ण स्थिति के नज़दीक से अर्थात् बाप-दादा की समीपता के आधार से सारे कल्प की समीपता का आधार है इसलिए जितना चाहो उतना अपनी कल्प की प्रालब्ध बनाओ। समीपता का आधार श्रेष्ठता है। श्रेष्ठता का आधार अपने मरजीवा जीवन में विशेष दो बातों की चैकिंग करो- एक सदा पर उपकारी रहे हैं। दूसरा आदि से अब तक सदा बाल ब्रह्मचारी रहे हैं। मरजीवा जीवन के आदिकाल से अर्थात् बालकाल से अब तक सदा ब्रह्मचारी रहे हैं! ब्रह्मचारी जीवन अर्थात् ब्रह्मा समान पवित्र जीवन। जिसको ब्रह्मचारी कहो या ब्रह्माचारी कहो - आदि से अन्त तक अखण्ड रहे हैं। अगर बार-बार खण्डित रहे हैं, तो बाल ब्रह्मचारी वा सदा ब्रह्माचारी नहीं कहला सकते। किसी भी प्रकार की पवित्रता अर्थात् स्वच्छता खण्डन हुई है तो परम पूज्यनीय नहीं बन सकते हैं। बाप समान न होने कारण समीप सम्बन्ध में नहीं आ सकते। इसलिए श्रेष्ठता का आधार, समीपता का आधार बाल ब्रह्मचारी अर्थात् सदा ब्रह्माचारी, जिसको ही फालो फादर भी कहते हैं। तो अपने को चैक करो - अखण्ड हैं! अखण्ड रहने वाले को सर्व प्राप्तियाँ भी अखण्ड अनुभव होती हैं। खण्डित पुरुषार्थी को प्राप्तियाँ भी अल्पकाल अनुभव होती हैं। अपना रजिस्टर चैक करो सदा साफ रहा है ? किसी भी प्रकार के दाग से रजिस्टर को खराब तो नहीं किया। सदा ब्रह्मचारी अर्थात् संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता वृत्ति को चंचल नहीं बनाये। पहली हार वृत्ति की चंचलता, फिर दृष्टि और कृति की चंचलता होती है। वृत्ति की चंचलता रजिस्टर को दागी बना देती है - इसलिए वृत्ति से भी सदा ब्रह्मचारी।
आज बाप-दादा बच्चों के इस रजिस्टर को देख रहे थे कि कितने बच्चे सदा ब्रह्मचारी हैं और कितने ब्रह्मचारी हैं। बाल ब्रह्मचारी का महत्त्व होता है, बाल ब्रह्मचारी वर्तमान समय भी पूज्य है अर्थात् श्रेष्ठ हैं। बाप-दादा भी ऐसे बच्चों को पूज्य बच्चों के रूप में देखते हैं। विश्व के आगे भी अभी अन्त में पूज्य के रूप में प्रत्यक्ष होंगे। बाप के आगे पूज्य प्रसिद्ध होने वाले सदा समीप सम्बन्ध में रहते हैं। ऐसे अपना रजिस्टर देखना। दूसरी बात - परउपकारी इसका भी विस्तार बहुत गुह्य है। इसका विस्तार स्वयं सोचना। विश्व के प्रति और ब्राह्मण परिवार के प्रति दोनों सम्बन्ध में सदा उपकारी बने हैं वा कब स्वउपकारी वा कब परउपकारी। वास्तव में परउपकार स्वउपकार है। इसी रीति से इस बात में भी अपना रजिस्टर चैक करना फिर बाप-दादा भी सुनायेंगे। समझा। अच्छा ।
सदा अपने अनादि और आदि स्वरूप में सहज स्थित होने वाले, सदा स्वच्छ और स्पष्ट रहने वाले पूज्य आत्मायें, सारे कल्प में समीप सम्बन्ध में आने वाली आत्मायें, सदा ब्रह्मचारी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते। ओमशान्ति।
टीचर्स से मुलाकात
टीचर्स को विशेष लिफ्ट है क्योंकि टीचर्स का काम ही है सर्व आत्माओं को मार्ग दर्शन कराना। तो दिन रात एक ही लगन में रहने वाले, एक की ही याद और एक ही कार्य - इससे एक रस स्थिति सहज ही बन जाती है। एक की लगन में रहने से सहज मंज़िल का अनुभव होता है। एक ही एक है तो सहज मार्ग हो गया ना। सेकेण्ड में स्वीच आन किया और मंज़िल पर पहुँचे। सोचा और स्वरूप हुआ यह है लिफ्ट। टीचर्स को अपने भाग्य को देख सदा बाप के गुण गाने चाहिए। वाह बाबा और वाह ड्रामा यही गीत सदा चलता रहे। इसी खुशी में चाहे तन का बन्धन हो चाहे मन का हो लेकिन कुछ नहीं लगेगा। सदा बिज़ी रहने से किसी भी प्रकार से माया का वार, वार नहीं कर सकता। माया की हार होगी वार नहीं हो सकता।
1. समीप आत्माओं के लिए पुरूषार्थ भी एक मनोरंजन का साधन -
ब्रह्मा बाप की जो पहली विशेषता है नष्टोमोहा जिसके आधार पर ही सदा स्मृति स्वरूप बने, तो ऐसे फालो फादर करते हो ? इसी विशेषता से समीप आत्मा बन जायेंगे। स्वयं से वा सर्व से नष्टोमोहा - इसलिए समीप आत्माओं को सहज ही सर्व प्राप्तियाँ होती हैं। पुरूषार्थ भी एक खेल अनुभव होता है, मुश्किल नहीं। पुरूषार्थ करना भी एक मनोरंजन है। वैसे कोई हिसाब करो और मनोरंजन रीति से हिसाब करो तो फर्क पड़ जाता है ना - तो समीप आत्मा को पुरूषार्थ मनोरंजन अनुभव होता। समीप आत्मा की मुख्य निशानी - आदि से अन्त तक मुश्किल का अनुभव न हो।
2. सफलता का आधार साक्षी और साथीपन का अनुभव – सदा अपने को बाप के साथी समझकर चलते हो। अगर साथीपन का अनुभव होगा तो साक्षीपन का अनुभव होगा। क्योंकि बाप का साथ होने के कारण जैसे बाप साक्षी हो पार्ट बजाते हैं वैसे आप भी साथी होने के कारण साक्षी हो पार्ट बजायेंगे। तो दोनों ही अनुभव, अनुभव करते हो, अकेले नहीं लेकिन सदा सर्वशक्तिवान का साथ है। जहाँ साथ वहाँ सफलता तो स्वत: ही हुई पड़ी है। वैसे भी भक्ति मार्ग में यही पुकार देते हैं - कि थोड़े समय के साथ का अनुभव करा दो, झलक दिखा दो लेकिन अब क्या हुआ ? सर्व सम्बन्ध से साथी हो गये। झलक वा दर्शन अल्पकाल के लिए होता है लेकिन सम्बन्ध सदाकाल का होता है, तो अब बाप के समीप सम्बन्ध में आ गये कि अभी तक भी जिज्ञासु हो। जिज्ञासा तब तक होती जब तक प्राप्ति नहीं। अब जिज्ञासु नहीं अधिकारी हो, हर सेकेण्ड का साथ है, हर सेकेण्ड में सम्बन्ध के कारण समीप हैं। जीवन में साथी की तलाश करते हैं और साथी के आधार पर ही अपना जीवन बिताते हैं, अब कौन सा साथी बनाया है ? अविनाशी साथी। और कोई भी साथी समय पर वा सदा नहीं पहुँच सकता लेकिन बाप-दादा सदा और सेकेण्ड में पहुँच सकते। यह जन्म-जन्म का साथ है, भविष्य में भी बाप का तो साथ रहेगा ना। शिव बाप साक्षी हो जायेंगे और ब्रह्मा बाप साथी हो जायेंगे। अभी दोनों साथी हैं। ऐसे अनुभव करने वाले सदा खुश रहते हैं, जो पाना था वह पा लिया तो खुशी होगी ना - पा लिया है बाकी है बाप समान स्वयं को बनाना, इसमें नम्बरवार हैं।
शक्ति सेना को बाप-दादा विशेष चढ़ती कला का सहयोग देते हैं? क्योंकि शक्तियों को, माताओं को सबने नीचे गिराया अब बाप आकर के ऊँचा चढ़ाते हैं। अपने से भी आगे शक्तियों को रखते हैं तो शक्तियों को विशेष खुशी होनी चाहिए - शक्ति का चेहरा सदा चमकता हुआ दिखाई दे, क्योंकि बाप ने विशेष आगे रखा है। वैसे भी कोई अल्पकाल की प्राप्ति होती है तो वह चमक चेहरे पर दिखाई देती है, यह कितनी प्राप्ति है ! मातायें कभी रोती तो नहीं हैं, कभी आंखों में आँसू भरते हैं? अब नयनों में रूहानियत आ गई जहाँ रूहानियत होगी वहाँ पर आँसू नहीं होंगे। पाण्डव आंखों से रोते हैं या मन से? जब सुख के सागर में समाने वाले हो तो रोना कहाँ से आया। रोना अर्थात् दु:ख की निशानी, सुख के सागर में समाये हुए रो कैसे सकते ? कभी भी दु:ख की लहर स्वप्न में भी न आये। स्वप्न भी सुख स्वरूप हो क्योंकि सुख का सागर अपने समीप सम्बन्ध में आ गये, तो सदा सुख में, खुशी में रहो कभी रोना नहीं। सतयुग में आपकी प्रजा रोयेगी क्या? तो होवनहार राजा क्यों रोते। शक्तियाँ तो एक सैम्पल हैं अगर सैम्पल रोने वाला होगा तो और सौदा कैसे करेंगे - इसलिए कभी नहीं रोना, न आंखों से रोना न मन से - समझा।
अच्छा - ओमशान्ति
10-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विस्तार को न देख सार अर्थात् बिन्दु को देखो
मधुबन निवासी त्यागी, तपस्वी बच्चों प्रति बाप-दादा बोले: -
मधुबन निवासी अर्थात् मधुरता के सागर में सदा लहराने वाले बाप-दादा वी विशेष कर्मभूमि, चरित्र भूमि, मधुर मिलन-भूमि या महान पुण्य भूमि,ऐसी भूमि के सदा निवासी कितनी महान् आत्मायें हैं! निराकार बाप को भी इस साकार भूमि से विशेष स्नेह है - ऐसे भूमि के निवासी स्वयं को भी सदा ऐसे अनुभव करते हैं मधुबन अर्थात् मधुर भूमि। वृत्ति की भी मधुरता - वाणी की भी मधुरता और हर कर्म में भी सदा मधुरता। जैसी भूमि वैसी ही भूमि में रहने वाली महान आत्मायें। मधुबन से जो आत्माएँ अनुभव करके जाती हैं वह भी क्या कहती हैं! मधुबन है संगमयुगी स्वर्ग - अर्थात् स्वर्गभूमि में रहने वाले। अब भी स्वर्ग और भविष्य में भी स्वर्ग - तो डबल स्वर्ग के अधिकारी कितने विशेष हुए। बाप-दादा आज खास मधुबन निवासियों से मिलने आये हैं। बाबा पूछते हैं स्वर्ग की विशेषता अथवा स्वर्ग का विशेष गायन क्या है? स्वर्ग का विशेष गायन है ‘‘सदा सम्पन्न अर्थात् अप्राप्त नहीं कोई वस्तु स्वर्ग के खज़ाने में।’’ चाहे संगमयुगी स्वर्ग या भविष्य का स्वर्ग - दोनों की यह एक ही विशेषता गाई हुई है। तो मधुबन निवासी अर्थात् संगमयुगी स्वर्ग निवासी ऐसी सम्पन्न स्थिति का अनुभव करते हैं? जिसमें महसूस हो कि हम सदा तृप्त आत्माएँ हैं - जैसे इच्छा मात्रम अविद्या के संस्कार भविष्य स्वर्ग में नेचुरल होंगे वैसे मधुबन निवासियों के यह नेचुरल संस्कार हैं ? स्वर्गवासी अर्थात् इन सब बातों में नेचुरल संस्कार स्वरूप हो? कोई भी पूछते हैं आप कहाँ के रहवासी हो ? बड़ी फलक से, खुशी से कहते हो ना हम मधुबन निवासी हैं? मधुबन वासी की जैसे छाप लगी हुई हैं -साथ-साथ जैसा स्थान वैसी स्थिति की छाप भी होगी ना। जैसे कोल्ड स्टोर में जायेंगे तो जैसा स्थान वैसी स्थिति आटोमेटिकली होगी ना। तो मधुबन की जो महिमा है ऐसे संस्कार बने हैं? क्योंकि साकार रूप में लक्ष्य स्वरूप सबके आगे मधुबन है, कापी सब मधुबन को करते हैं। किसी की भी स्थिति में हलचल होती है तो अचलघर मधुबन याद आता है कि मधुबन अचलघर में जाने से अचल हो जायेंगे - ऐसी भावना से, शुभ कामना से इस पुण्य भूमि पर सभी आते हैं - जब अनेक आत्माओं की हलचल का साधन मिलने का स्थान अचलघर मधुबन है तो मघुबन में रहने वाले भी सदा अचल होंगे ना। ऐसी स्टेज अनेक आत्माओं के लिए मार्ग-दर्शन करने वाली होगी। क्योंकि मधुबन है लाईट हाउस। सर्व सेवाकेन्द्रों को सहयोग देने वाले मधुबन निवासी हैं। सदा संकल्प वाणी अथवा कर्म से एक-दो के सहयोगी हैं तो साथियों के भी सहयोगी होंगे ना। सर्व बच्चों को एक वर्ष मिला है रिज़ल्ट निकालने के लिए - तो एक वर्ष में अब क्या परिवर्तन लाया है ? जिसको दूसरे सुनने वाले स्वयं भी परिवर्तन हो जाएं - जैसे कई बार देखा होगा कोई-कोई आत्मायें जब अपना सच्ची दिल से, उमंग से, बाप के स्नेह से अनुभव सुनाती हैं तो अनुभव सुनते-सुनते भी अनेक आत्माएँ परिवर्तित हो जाती हैं। एक का परिवर्तन अनेक आत्माओं के परिवर्तन का साधन बन जाता है। तो ऐसा परिवर्तन हुआ है? जो अनेकों को एक एग्ज़ाम्पल रूप में हो - एक वर्ष में ऐसे कोई वण्डरफुल अनुभव हुआ है? किस-किसने हाईजम्प दिया - किसने लिफ्ट की गिफ्ट ली?
जैसे आजकल टी.वी. में चारों ओर एक स्थान का चित्र स्पष्ट दिखाई देता हैं तो मधुबन भी टी.वी. स्टेशन है। चारों ओर टी.वी. के सेट लगे हुए हैं -और टी.वी. स्टेशन पर जो एक्ट चलता है वह ऑटोमेटिकली सब तरफ दिखाई देत है। तो मधुबन वालों का हर संकल्प भी चारों ओर दिखाई देता अर्थात् फैलता है क्योंकि टी. वी. सैट चारों ओर लगे हुए हैं। जैसे आजकल साइन्स के साधनों द्वारा संकल्पों की गति या मन्सा स्थिति को चैक कर सकते हैं वैसे मधुबन निवासियों के संकल्पों की गति या मानसिक स्थिति चारों ओर फैलती है। इसलिए हर संकल्प पर भी अटेन्शन हो। इसमें अलबेलापन न हो। मधुबन निवासी मधुबन में बैठे हुए भी किसी प्रकार के विशेष संकल्प द्वारा वायब्रेशन फैलाने चाहे तो इस एक स्थान पर बैठे हुए भी चारों ओर फैला सकते हैं - जैसे स्थूल चीज़ की खुशबू चारों ओर आटोमेटिकली फैल जाती है वैसे यह वायब्रेशन संकल्प के द्वारा चारों ओर स्वत: फैल जाएं, मधुबन निवासियों की यह विशेष सेवा है। जैसे मधुबन में विशेष भट्ठी करते हो तो वायब्रेशन चारों ओर पहुँचते हैं ना। चाहे पत्रों द्वारा समाचार न भी जाए लेकिन सूक्ष्म वायब्रेशन मधुबन के बहुत सहज चारों ओर फैल सकते हैं। तो ऐसी सेवा भी करते हैं या सिर्फ यज्ञ को सम्भालने की सेवा ही करते हैं। कारोबार है कर्म द्वारा कर्मणा सेवा लेकिन उसके साथसाथ मन्सा सेवा की भी ज़िम्मेवारी है? बाप-दादा तो वर्ष की रिज़ल्ट देखने आये हैं ना। जो सदा पास रहते हैं वह पास विद् आनर कहाँ तक बने हैं? जो महान आत्माओं के साथ रहते हैं, साकार में भी समीप हैं और स्थान भी महान है ऐसी आत्माओं की प्रालब्ध क्या बनती है। शास्त्रं में भी मधुबन की महिमा विशेष गाई हुई है - तो मधुबन निवासी हर बात में विशेष आत्माएँ हर समय कोई विशेषता दिखाने वाली हैं - जो भी ग्रुप आवे वह यह अनुभव करे कि मधुबन निवासियों में यह विशेषता थी। मधुबन स्वर्ग में हर आत्मा सदा तृप्त आत्मा सम्पन्न मूर्त्त थी।
इसका आधार है कि सदा एक लक्ष्य हो कि हमें दाता का बच्चा बन सर्व आत्माओं को देना है न कि लेना है - यह करे तो मैं करूँ, नहीं। हरेक दातापन की भावना रखे तो सब देने वाले अर्थात् सम्पन्न आत्मा हो जायेंगे। सम्पन्न नहीं होंगे तो दे भी नहीं सकेंगे। तो जो सम्पन्न आत्मा होगी वह सदा तृप्त आत्मा ज़रूर होगी। मैं देने वाले दाता का बच्चा हूँ - देना ही लेना है। जितना देना उतना लेना ही है। प्रैक्टिकल में लेने वाला नहीं लेकिन देने वाला बनना है। दातापन की भावना सदा निर्विघ्न, इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति का अनुभव कराती है- सदा एक लक्ष्य की तरफ ही नज़र रहे। वह लक्ष्य है बिन्दु। एक लक्ष्य अर्थात् बिन्दी की तरफ सदा देखने वाले। अन्य कोई भी बातों को देखते हुए भी नहीं देखें। नज़र एक बिन्दु की तरफ ही हो - जैसे यादगार रूप में भी दिखाया है कि मछली के तरफ नज़र नहीं थी लेकिन आंख की भी बिन्दु में थी। तो मछली है विस्तार - और सार है बिन्दु। तो विस्तार को नहीं देखा लेकिन सार अर्थात् एक बिन्दु को देखा। इसी प्रकार अगर कोई भी बातों के विस्तार को देखते तो विघ्नों में आते - और सार अर्थात् एक बिन्दु रूप स्थिति बन जाती और फुलस्टाप अर्थात् बिन्दु लग जाती। कर्म में भी फुल स्टापअर्थात् बिन्दु। स्मृति में भी बिन्दु अर्थात् बीजरूप स्टेज हो जाती। यह विशेष अभ्यास करना है। विस्तार को देखते भी न देखें, सुनते हुए भी न सुनें - यह प्रैक्टिकल अभी से चाहिए। तब अन्त के समय चारों ओर की हलचल की आवाज़ जो बड़ी दु:खदायी होगी, दृश्य भी अति भयानक होंगे - अभी की बातें उसकी भेंट में तो कुछ नहीं हैं - अगर अभी से ही देखते हुए न देखना, सुनते हुए न सुनना यह अभ्यास नहीं होगा तो अन्त में इस विकराल दृश्य को देखते एक घड़ी के पेपर में सदा के लिए फेल मार्क्स मिल जावेगी। इसलिए यह भी विशेष अभ्यास चाहिए। ऐसी स्टेज हो जिसमें साकार शरीर भी आकारी रूप में अनुभव हो। जैसे आकार रूप में देखा साकार शरीर भी आकारी फरिश्ता रूप अनुभव किया ना। चलते-फिरते कार्य करते आकारी फरिश्ता अनुभव करते थे। शरीर तो वहीं था ना - लेकिन स्थूल शरीर का भान निकल जाने कारण स्थूल शरीर होते भी आकारी रूप अनुभव करते थे। तो ऐसा अभ्यास आप सबका हो - कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म होता रहे लेकिन मन्सा शक्ति द्वारा वायुमण्डल शक्तिशाली, स्नेह सम्पन्न, सर्व के सहयोग के वायब्रेशन का फैला हुआ हो - जिस भी स्थान पर जाएं तो यह फरिश्ता रूप दिखाई दे। कर्म कर रहे हैं लेकिन एक ही समय पर कर्म ओर मन्सा दोनों सेवा का बैलेन्स हो। जैसे शुरू-शुरू में यह अभ्यास कराया था कर्म भल बहुत साधारण हो लेकिन स्थिति ऐसी महान हो जो साधारण काम होते हुए भी साक्षात्कार मूर्त्त दिखाई दें - कोई भी स्थूल कार्य धोबीघाट या सफाई आदि का कर रहे हैं, भण्ड़ारे का कार्य कर रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी महान हो - ऐसा भी समय प्रैक्टिकल में आवेगा जो देखने वाले यही वर्णन करेंगे कि इतनी महान आत्मायें फरिश्ता रूप और कार्य क्या कर रही हैं। कार्य साधारण और स्थिति अति श्रेष्ठ। जैसे सतयुगी शहज़ादियों की आत्मायें जब आती थीं तो वह भविष्य के रूप प्रैक्टिकल में देखते हुए आश्चर्य खाती थीं ना कि इतने बड़े महाराजे और कार्य क्या कर रहे हैं। विश्व महाराजा और भोजन बना रहे हैं। वैसे ही आने वाली आत्मायें यह वर्णन करेंगी कि हमारे इतने श्रेष्ठ पूज्य ईष्ट देव और यह कार्य कर रहे हैं! चलते-फिरते ईष्टदेव या देवी का साक्षात्कार स्पष्ट दिखाई दे। अन्त में पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष देखने लगेंगे फरिश्ता रूप प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा। जैसे कल्प पहले का भी गायन है अर्जुन का - साधारण सखा रूप भी देखा लेकिन वास्तविक रूप का साक्षात्कार करने के बाद वर्णन किया कि आप क्या हो! इतना श्रेष्ठ और वह साधारण सखा रूप! इसी रीति आपके भी साक्षात्कार होंगे चलतेफिरते। दिव्य दृष्टि में जाकर देखें वह बात और है। जैसे शुरू में चलते-फिरते देखते रहते थे। यह ध्यान में जाकर देखने की बात नहीं। जैसे एक साकार बाप का आदि में अनुभव किया वैसे अन्त में अभी सबका साक्षात्कार होगा। यह साधारण रूप गायब हो जावेगा, फरिश्ता रूप या पूज्य रूप देखेंगे। जैसे शुरू में आकारी ब्रह्मा और श्रीकृष्ण का साथ-साथ साक्षात्कार होता था। वैसे अभी भी यह साधारण रूप देखते हुए भी दिखाई न दे। आपके पूज्य देवी या देवता रूप या फरिश्ता रूप देखें। लेकिन यह तब होगा जब आप सबका पुरूषार्थ देखते हुए न देखने का हो - तब ही अनेक आत्माओं को भी आप महान आत्माओं का यह साधारण रूप देखते हुए भी नहीं दिखाई देगा। आंख खुले-खुले एक सेकेन्ड में साक्षात्कार होगा। ऐसी स्टेज बनाने के लिए विशेष अभ्यास बताया कि देखते हुए भी न देखो, सुनते हुए भी न सुनो। एक ही बात सुनो और एक बिन्दु को ही देखो। विस्तार को न देख एक सार को देखो। विस्तार को न सुनते हुए सदा सार को ही सुनो। ऐसे जादू की नगरी यह मधुबन बन जावेगा - तो सुना मधुबन का महत्त्व अर्थात् मधुबन निवासियों का महत्त्व। अच्छा।
मधुबन की शक्ति सेना अर्थात् विशेष आत्माओं की सेना। हरेक अपनी विशेषता को अच्छी तरह से जानते हो। विशेषता के कारण ही विशेष भूमि के निवासी बने हैं यह खुशी रहती है? पिछला खाता तो हरेक का अपना-अपना है जो चुक्तु भी होता रहता है लेकिन साथ-साथ ड्रामा अनुसार कोई न कोई विशेषता भी है। जिस कारण विशेष पार्ट मिला है। सदा पुण्य भूमि और श्रेष्ठ आत्माओं के संग का विशेष पार्ट यह कम भाग्य नहीं है। जड़ चित्रों के मन्दिर के पुजारी भी अपने को कितना महान समझते हैं - हैं पुजारी - लेकिन नशा कितना रहता। क्योंकि समझते हैं मूर्ति के समीप सम्बन्ध वाले हैं। तो जड़ चित्रों के पुजारी भी इतना नशा रखते यहाँ तो पुजारी की बात नहीं। यहाँ तो सम्पर्क में रहने वाले संग में रहने वाले संगी साथियों को कितना नशा और खुशी होनी चाहिए। ईश्वरीय परिवार में आई हुई आत्मा में कोई विशेषता न हो यह हो नहीं सकता। तो अपनी विशेषता को जान उसको कर्म में लगाओ। जो भी गुण अथवा विशेषता हो चाहे कर्मणा का गुण हो चाहे मधुरता का गुण हो - स्नेह का हो उसको कार्य में लगाओ। जैसे लोहा पारस से लग पारस बन जाता है वैसे एक गुण या विशेषता सेवा में लगाने से सेवा का फल एक का लाख गुणा मिलने से वह एक विशेषता अनेक समय का फल देने के लायक बन जाती। जैसे एक बीज डालने से कितने फल निकलते वैसे एक भी विशेषता कर्म में लगाना अर्थात् धरनी में बीज डालना है। तो समझे कितने खुशनसीब हो ! ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ है तो जन्म के साथ कोई न कोई विशेषता की तकदीर साथ लेकर ही आये हैं। सिर्फ अन्तर यह हो जाता कि उसको कार्य में कहाँ तक लगाते हैं। जन्म का भाग्य है लेकिन भाग्य को कर्म या सेवा में लगाने से अनेक समय के भाग्य का फल निकालना, बीज बोने का यह तरीका आना चाहिए। फल तो अवश्य निकलेगा। बीज बोना अर्थात् विशेषता रूपी बीज को सेवा में लगाना। यहाँ तो सब सदा भाग्य के तख्तनशीन हैं। जिस भाग्य के लिये कल्प पहले की यादगार में भी अब तक एक सेकेण्ड का समीप रहना भी महान समझते हैं - तो जो प्रैक्टिकल में हैं उन्हीं की खुशी, उन्हीं का भाग्य कितना श्रेष्ठ है। श्रेष्ठता को सामने रखने से व्यर्थ बातें समाप्त हो जाती हैं। अच्छा –
पाण्डव अर्थात् सदा के विजयी। पाण्डवों का नाम विजय के कारण ही प्रसिद्ध है। पाण्डव सेना वह भी विशेष सागर के कंठे पर श्रेष्ठ संग में रहने वाली। तो ऐसी पाण्डव सेना सदा विजयी हो? विजय का खेल सदा चलता है या हार-जीत का - अब के समय और सहयोग के प्रमाण ड्रामा अनुसार जो भाग्य प्राप्त है उसी प्रमाण सदा विजयी का खेल चलना चाहिए।
ड्रामा अनुसार जो विशेषता प्राप्त है उसे सदा कार्य में लगाओ तो औरों की भी विशेषता दिखाई देगी। विशेषता न देख बातों को देखते हो इसलिए हार होती है। हरेक की विशेषता को स्मृति में रखो एक दो में फेथफुल रहो तो उनकी बातों का भाव बदल जावेगा। अगर आपस में दो मित्र होते हैं और उनके बीच तीसरा उनकी कुछ ग्लानि करने आता तो वह उसके भाव को बदल देते हैं। जैसे आपको कोई ब्रह्मा बाप के लिए कहे कि यह क्या, यह तो गाली देते हैं - लेकिन तुम उन्हें निश्चय से समझावेंगे कि यह गाली नहीं है यह तो स्पष्टीकरण है। जहाँ निश्चय होता है वहाँ शब्द का भाव बदल साधारण बात हो जाती है। हरेक की विशेषता को देखो तो अनेक होते भी एक दिखाई देंगे। एक मत संगठन हो जावेगा। कोई किसकी ग्लानि की बातें सुनावे तो उसे टेका देने के बजाए सुनाने वाले का रूप परिवर्तन कर दो। अर्थ में भावना परिवर्तन कर दो। यह अभ्यास चाहिए नहीं तो एक की बात दूसरे से सुनी, दूसरे की तीसरे से सुनी और फिर वह व्यर्थ बातें वातावरण में फैलती रहतीं, जिस कारण पावरफुल वातावरण नहीं बन पाता। साक्षात्कार मूर्त्त भी नहीं बन सकते। इसलिए सदैव सबके प्रति शुभ भावना, कल्याण की भावना हो। एक-दो की ग्लानि की बातें सुनना टाइम वेस्ट करना है। कमाई से वंचित होना है। अगर परिवर्तन कर सकते हो तो सुनो - नहीं तो सुनते हुए भी न सुनो।
हरेक की विशेषता का वर्णन करो। कोई कहे भी कि हमने ऐसा देखा तो भी आपके मुख से कोई ऐसी बात न निकले। आप उनकी विशेषता सुना कर उस बात को चेन्ज कर दो। सबके मुख से हरेक के प्रति वाह-वाह निकले। तब ही बाप की वाह-वाह होगी। कोई की बात अगर नीचे ऊपर देखते हो, सुनते हो तो दिल में नहीं रखों, ऊपर दिया और खत्म। अपने आप को सदा खाली और हल्का रखो। अगर दिल के अन्दर किसी भी प्रकार की बात होगी तो जहाँ बातें हैं वहाँ बाप नहीं।
किसके अवगुण को एक दो के सामने वर्णन नहीं करना चाहिए क्योंकि वर्णन करना अर्थात् बीमारी के जर्म्स को फैलाना है। कोई ऐसे जर्म्स होते हैं तो उसी समय कोई पावरफुल दवाई डाल खत्म किया जाता है। कोई पूछे फलाना कैसे है तो दिल से निकले बहुत अच्छा है। अनेक भावों से अनेक आत्मायें आती हैं लेकिन आप की तरफ से शुभ भावना की बातें ही ले जाएं। भावना शुभ हो, एव भावना, एक कामना एक की ही लगन में निर्विघ्न - व्यर्थ बातों का स्टाक खत्म और खुशी की बातों का स्टाक जमा हो - खुशी में झूलने वाली आत्मायें सबको नज़र आयें। हर बोल में रूहानियत हो - रूहानियत के शब्द बहुत मीठे होते हैं। समय प्रमाण स्टेज भी बहुत ऊँची होनी चाहिए। चढ़ती कला का अर्थ ही है जो पहले था उसको पार कर चलें। ऐसी स्थिति होनी चाहिए साक्षात्कार मूर्त्त दिखाई दें - फिर देखो कितनी भीड़ होती है। तुम्हारी स्थिति सदैव एकाग्र रहे तब नाम बाला होगा - वृत्ति की, दृष्टि की, स्वभाव की चैकिंग करने वाले सब आयेंगे लेकिन उन्हें रीयल ज्ञान का परिचय हो जाए। अच्छा - ओमशान्ति।
12-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
परोपकारी कैसे बनें?
गुणों के सागर, सदा दाता, सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोलेः -
आज रूहानी फुलवाड़ी अर्थात् सदा रूहे गुलाब बच्चों के संगठन को देख बापदादा हरेक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। तीन प्रकार की विशेषतायें हैं। एक सदा अपनी रूहानियत की स्थिति में रहने वाले अर्थात् सदा खिले हुए, दूसरे रूहानियत की स्थिति अनुसार सदाकाल खिले हुए नहीं हैं लेकिन निश्चय स्वरूप होने कारण रूप की सुन्दरता अच्छी है। तीसरे बाप से स्नेह और सम्बन्ध के आधार से आधे खिले हुए होते भी स्नेह और सम्बन्ध की खुशबू समाई हुई है। ऐसे तीनों प्रकार के रूहे गुलाबों की फुलवाड़ी को देखते बाप-दादा सदा खुशबू लेते रहते। अब अपने आप को देखो मैं कौन हूँ। नम्बरवन बननें में जो कुछ कमी रह गई है उसको सम्पन्न कर सम्पूर्ण बनो। क्योंकि सम्पूर्ण बाप के बच्चे भी बाप समान सम्पूर्ण चाहिए। हरेक बच्चे का लक्ष्य भी सम्पूर्ण बनने का है - तो लक्ष्य प्रमाण सर्व लक्षण स्वयं में भरकर सम्पन्न बनो। इसके लिए विशेष धारणा पहले भी सुनाई है - सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मचारी और सदा परोपकारी।
परोपकारी की परिभाषा सहज भी है और अति गुह्य भी है। 1. परोपकारी अर्थात् हर समय बाप समान हर आत्मा के गुणमूर्त्त को देखते। 2. परोपकारी किसी की भी कमज़ोरी वा अवगुण को देखते अपनी शुभ भावना से सहयोग की कामना से अवगुण को देखते उस आत्मा को भी गुणवान बनाने की शक्ति का दान देंगे। 3. परोपकारी अर्थात् सदा बाप समान स्वयं के खज़ानों को सर्व आत्माओं के प्रति देने वाले दाता रूप होंगे। 4. परोपकारी सदा स्वयं को खज़ानों से सम्पन्न बेगमपुर के बादशाह अनुभव करेंगे। बेगमपुर अर्थात् जहाँ कोई गम नहीं। संकल्प में भी गम के संस्कार अनुभव न हों। 5.परोपकारी अर्थात् सदैव विशेष रूप से अपनी मन्सा अर्थात् संकल्प शक्ति द्वारा, वाणी की शक्ति द्वारा, अपने संग के रंग के द्वारा,सम्बन्ध के स्नेह द्वारा, खुशी के अखुट खज़ाने द्वारा अखण्ड दान करता रहेगा। कोई भी आत्मा सम्पर्क में आवे तो खुशी के खज़ाने से सम्पन्न होके जाए। ऐसे अखण्ड दानी होंगे। विशेष समय वा सम्पर्क वाले अर्थात् कोई-कोई आत्माओं के प्रति दानी नहीं लेकिन सर्व के प्रति सदा महादानी होंगे। परोपकारी स्वयं मालामाल होने के कारण किसी भी आत्मा से कुछ लेकर के देने के इच्छुक नहीं होंगे। संकल्प में भी यह नहीं आवेगा कि यह करे तो मैं करूँ, यह बदले तो मैं बदलूँ, कुछ वह बदले कुछ मैं बदलूँ। एक बात का परिवर्तन आत्मा का और 10 बातों का परिवर्तन मेरा होगा, ऐसी-ऐसी भावना रखने वाले को परोपकारी नहीं कहेंगे। महादानी बनने के बजाए सौदा करने वाले सौदागर बन जाते हैं। ‘‘इतना दे तो मैं इतना दूँगा, क्या सदा मैं ही झुकता रहूँगा, मैं ही देता रहूँगा, कब तक कहाँ तक करूँगा।’’ यह संकल्प देने वाले के नहीं हो सकते। जब अन्य आत्मा किसी भी कमज़ोरी के वश है, परवश है, संस्कार के वश है, स्वभाव के वश है, प्रकृति के साधनों के वश है - तो ऐसी परवश आत्मा अर्थात् उस समय की भिखारी आत्मा, भिखारी अर्थात् शक्तिहीन, शक्तियों के खज़ाने से खाली है।
महादानी भिखारी से एक नया पैसा लेने की इच्छा नहीं रख सकते। यह बदले वा यह करे वा यह कुछ सहयोग दे, कदम आगे बढ़ावे, ऐसे संकल्प वा ऐसे सहयोग की भावना परवश, शक्तिहीन, भिखारी आत्मा से क्या रख सकते ! कुछ लेकर के कुछ देना उसको परोपकारी नहीं कहा जाता। 7. परोपकारी अर्थात् भिखारी को मालामाल बनाने वाले - अपकारी के ऊपर उपकार करने वाले। गाली देने वाले को गले लगाने वाले, अपने परोपकारी की शुभ भावना से, स्नेह से, शक्ति से, मीठे बोल से, उत्साह उमंग के सहयोग से दिलशिकस्त को शक्तिवान बना दे अर्थात् भिखारी को बादशाह बना दे। 8. परोपकारी त्रिकालदर्शी होने के कारण हर आत्मा के सम्पूर्ण सहयोग को सामने रखते हुए, हर आत्मा की कमज़ोरी को परखते हुए उसी कमज़ोरी को स्वयं में धारण नहीं करेंगे, वर्णन नहीं करेंगे लेकिन अन्य आत्माओं की कमज़ोरी का काँटा कल्याणकारी स्वरूप से समाप्त कर देंगे। कांटे के बजाए - कांटे को भी फूल बना देंगे। ऐसे परोपकारी सदा सन्तुष्टमणि के समान स्वयं भी सन्तुष्ट होंगे और सर्व को भी सन्तुष्ट करने वाले होंगे। कमाल यह है जो होपलेस में होप पैदा करें। 9. जिसके प्रति सब निराशा दिखायें ऐसे व्यक्ति वा ऐसी स्थिति में सदा के लिए उनकी आशा के दीपक जगा दें। जब आपके जड़ चित्र अभी तक अनेक आत्माओं की अल्पकाल की मनोकामना यें पूर्ण कर रहे हैं - तो चैतन्य रूप में अगर कोई आपके सहयोगी भाई वा बहन परिवार की आत्मायें, बेसमझी वा बालहठ से अल्पकाल की वस्तु को सदाकाल की प्राप्ति समझ, अल्पकाल का मान-शान-नाम वा अल्पकाल की प्राप्ति की इच्छा रखती हैं तो दूसरे को मान देकर के स्वयं निर्माण बनना यही परोपकार है। यह देना ही सदा के लिए लेना है। जैसे अनजान बच्चा नुकसान वाली चीज़ को भी खिलौना समझता है तो उनको कुछ देकर छुड़ाना होता है - हठ से सदाकाल का नुकसान हो जाता है - ऐसे बेसमझ आत्मायें भी उसी समय अल्पकाल की प्राप्ति को अर्थात् सदा के नुकसानकारी बातों को अपने कल्याण का साधन समझती हैं। ऐसी आत्माओं को ज़बरदस्ती इन बातों से हटाने से कशमकश में आकर उनके पुरूषार्थ की ज़िन्दगी खत्म हो जाती है। इसलिये कुछ देकर के सदा के लिये छुड़ाना ऐसे युक्ति-युक्त चलन से स्वत:ही अल्पकाल की भिखारी आत्मा बेसमझ से समझदार बन जावेगी। स्वयं महसूस करेंगे कि यह अल्पकाल के साधन हैं। ऐसी बेसमझ आत्माओं के ऊपर भी परोपकारी। ऐसे परोपकारी स्वत: ही स्वयं उपकारी हो जाते हैं - देना ही स्वयं प्रति मिलना हो जाता। महादानी ही सर्व अधिकारी स्वत: हो जाते। समझा – परोपकारी की परिभाषा क्या है।
ऐसे परोपकारी ही सर्व आत्माओं द्वारा दिल की आशीर्वाद के अधिकारी बनते हैं। ऐस परोपकारी आत्माओं के ऊपर सदा सर्व आत्माओं द्वारा प्रशंसा के पुष्पों की वर्षा होती है। समझा। अच्छा –
ऐसे बाप समान सदा उपकारी, स्वयं और सर्व प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना रखने वाले, अखुट खज़ानों के मालिक अखण्ड दानी, दिलशिकस्त को शक्तिशाली बनाने वाले, भिखारी को सदाकाल का बादशाह बनाने वाले, ऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।
दीदी जी से बातचीत
बाप-दादा को, अन्त सो आदि करने वाले ऐसे आलराउन्ड पार्टधारी, परोपकारी ग्रुप चाहिए। जैसे हर विशेष कार्य के अर्थ ग्रुप बनाते हैं ना। तो इस समय ऐसा परोपकारी ग्रुप चाहिए जो देने वाले दाता हो। जैसे राजा दाता होता है, आजकल के राजे लोग नहीं। सम्पन्न राजायें सदा प्रजा को देने वाले होते हैं - अगर प्रजा से लेने वाले हुए तो प्रजा ही राजा हो गई। इसलिये सम्पन्न राजायें कब लेते नहीं - देने वाले होते हैं। सम्पन्न राजाओं का हाथ कभी भी लेने वाला हाथ नहीं होगा, देने वाला होगा। स्वर्ग के विश्व महाराजा, प्रजा से लेंगे क्या? प्रजा भी सम्पन्न तो विश्व महाराजा क्या होगा! तो जैसे भविष्य दाता बनने का पार्ट बजाना है, अभी से ही वही दातापन के संस्कार भरने हैं। किसी से कोई सैलवेशन लेकर के फिर सैलवेशन देवें ऐसा संकल्प में भी न हो। इसको कहा जाता है बेगर टू प्रिंस। स्वयं लेने की इच्छा वाले नहीं। इस अल्पकाल की इच्छा वाले से बेगर। अल्पकाल के साधनों को स्वीकार करने में बेगर - ऐसा बेगर ही सम्पन्नमूर्त्त होंगे। एक तरफ बेगर दूसरे तरफ सम्पन्न। अभी अभी बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाने वाली आत्माओं को कहा जाता है सदा त्यागी और सदा श्रेष्ठ भाग्यशाली। त्याग से सदाकाल का भाग्य स्वत: ही बन जाता है। त्याग किया और तकदीर की लकीर हुई। तो ऐसा परोपकारी ग्रुप जो स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम अविद्या हो - अखण्ड दानी हो। जैसे बाप को देखा तो स्वयं का समय भी सेवा में दिया। स्वयं निर्माण और बच्चों को मान दिया। पहले बच्चे - नाम बच्चे का काम अपना - काम के नाम की प्राप्ति का त्याग। नाम में भी परोकारी बने। अपना त्याग कर दूसरे का नाम किया। स्वयं को सदा सेवाधारी रखा यह है परोपकारी - बच्चों को मालिक रखा और स्वयं को सेवाधारी रखा। तो मालिक-पन का मान भी दे दिया, शान भी दे दिया, नाम भी दे दिया। कभी अपना नाम नहीं किया - मेरे बच्चे। तो जैसे बाप ने नाम, मान, शान सबका त्याग किया, परोपकार किया, स्वयं का सुख बच्चों के सुख में समझा - बच्चों की विस्मृति कारण दु:ख का अनुभव सो अपना - दु:ख समझा। बच्चों की गलती भी अपनी गलती समझ बच्चों को सदा राइटियस बनाया। इसको कहा जाता है परोपकारी।
आजकल ऐसे ग्रुप की आवश्यकता है। जो दूसरे की कमज़ोरी समाप्त कर शक्ति देते जाएं। ऐसे सब बन जायें तो क्या हो जावेगा? आप लोगों का समय बच जावेगा फिर केस और किस्से खत्म हो जायेंगे और सदैव रूहानी स्नेह मिलन होगा। विश्व कल्याण के कार्य में तीव्रगति आ जावेगी। अभी तो कितने प्लैन्स बनाने पड़ते हैं,कई प्लैन्स अर्थात् बारूद बिना कार्य किये भी खत्म हो जाते हैं। जैसे बारूद कब-कब जलता ही नहीं है वहाँ ही खत्म हो जाता है। लेकिन विश्व कल्याण का तीव्रगति में संकल्प किया कि इस समय यह बात होनी चाहिए और चारों तरफ निमित्त मात्र किया और आवाज़ बुलन्द हुआ। जैसे साकार बाप को देखा, नॉलेज की अथॉरिटी के साथ-साथ नॉलेज द्वारा अनुभूति मूर्त्त की भी अथॉरिटी थे। जिस अथॉरिटी के कारण हर बोल में नॉलेज के साथसाथ अनुभव भी था - तो डबल अथॉरिटी थी - ऐसे ही हर बच्चा डबल अथॉरिटी से बोल बोले तो अनुभव का तीर, नॉलेज की अथॉरिटी का तीर सेकेण्ड में प्रभाव डाले। स्वरूप और बोल दोनों अथॉरिटी के हों तब सफलता सहज हो जावेगी - नहीं तो यही कहते नॉलेज तो बड़ी अच्छी है, ऊँची हैं - लेकिन धारणा होना मुश्किल है, तो धारणा मूर्त्त, धारणा स्वरूप प्रैक्टिकल में दिखाई दे। प्रत्यक्ष प्रमाण को ग्रहण करना सहज हो जाता है तो ऐसा ग्रुप चाहिये जो डबल अथॉरिटी हो - जिसको कहते मस्त फकीर। कोई भी इच्छा न हो। अच्छा। ओमशान्ति।
पार्टियों के साथ मुलाकात –
1. बाप के प्यार का पात्र बनने का सहज साधन - न्यारा बनो -
जैसे कमल का पुष्प सदा न्यारा और सबका प्यारा है वैसे सदा कमल समान न्यारे रहते हो? प्रवृत्ति में रहते, दुनिया के वातावरण में रहते वातावरण से न्यारे। बाप के प्यार का पात्र वही बनते हैं जो न्यारे होते हैं जितना न्यारे उतना प्यारे। नम्बर बनते हैं न्यारे पन के आधार से। अति न्यारे तो अति प्यारे।
2. अपने पूज्यनीय स्वरूप की स्मृति से आटोमेटिकली सेवा –
सदा अपने कल्प पहले के यादगार को देखते हुए, सुनते हुए नशा रहता है कि यह हमारा ही गायन हो रहा है, किसी भी यादगार स्थान पर जाते यह नशा रहता है कि यह हमारा यादगार है। यही वन्डरफुल बात है जो चैतन्य में अपने जड़ यादगार देख रहे हैं। एक तरफ जड़ चित्र हैं दूसरे तरफ हम गुप्त चैतन्य में हैं। कितने भक्त हमें पुकार रहे हैं, पूज्य समझने से भक्तों पर रहम आयेगा। भक्त हैं भिखारी और आप हो सम्पन्न। तो भक्तों को देख तरस आता है? इच्छा उत्पन्न होती है कि भक्तों को भक्ति का फल दिलाने के निमित्त बनें? सेवा का सदा उमंग उत्साह रहता है? सेवा से अनेकों का कल्याण भी होता और भविष्य के लिए भी जमा होता। हर आत्मा को अंचली ज़रूर देनी है, खाली हाथ नहीं भेजना है। अपना पूज्य स्वरूप स्मृति में रखो तो न चाहते भी सदा सेवा में तत्पर रहेंगे।
3. रायल बच्चे अर्थात् लाडले बच्चे की निशानी –
देहभान रूपी मिट्टी से दूर - जो पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें हैं वह सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, उनके बुद्धि रूपी पाँव नीचे नहीं आते। जो लाडले सिकीलधे बच्चे होते हैं वह सदा गोदी में रहते हैं, नीचे पाँव नहीं रखते - गलीचे पर रखते हैं। आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है, अब गिरने का समय पूरा हुआ, अब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आते, सदा ऊपर रहो। अच्छा - ओमशान्ति।
14-12-78 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विघ्नों से मुक्त होने की सहज युक्ति
सर्व के मुक्ति, जीवनमुक्ति दाता शिवबाबा अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले: -
आज बाप-दादा सदा अपने सिकीलधे लाडले बच्चों को स्नेह की नज़र से, अपने सर्व श्रेष्ठ सिरताज बच्चों को उसी पद्मापद्म भाग्यशाली रूप में देखते हुए सदा खुश होते हैं कि कल्प पहले वाले बिछुड़े हुए बच्चे कितना श्रेष्ठ पद पाने के योग्य बने हैं। हर बच्चे की योग्यता, हर बच्चे की विशेषता बाप-दादा के आगे सदा स्पष्ट है और बाप-दादा हर बच्चे की विशेषता के मूल्य को जानते हुए हर एक को अमोलक रतन समझते हैं। सदैव बाप-दादा के स्मृति स्वरूप सदा सहयोगी बच्चे हैं। बाप-दादा अपने वैरायटी मूल्यवान रत्नों के ही सदा साथ रहते हैं। ऐसे अमूल्य रत्न जिन्हों को बाप ने अपने गले का हार बनाया, दिलतख्त नशीन बनाया, नयनों के सितारे बनाया, सिर का ताज बनाया, विश्व में अपने साथ-साथ पूज्यनीय बनाया, अनेक भक्तों के ईष्ट देव बनाया-ऐसे स्वमान में सदा स्थित रहते हो? जिस नज़र से बाप-दादा देखते वा विश्व देखता उसी स्वरूप में सदा स्थित रहते हो?
आज बाप और दादा दोनों की रूह-रूहान चल रही थी बच्चों के ऊपर। बाप-दादा बोले-’’सहजयोगी बच्चे राजऋषि बच्चे चलते-चलते तीव्रगति के बजाए कभी कभी रूक जाते हैं-क्यों रूकते? अपने जीवन की भविष्य श्रेष्ठ मांज़िल स्पष्ट दिखाई नहीं देती। आगे क्या होगा यह क्वेश्चन मार्क का पेपर सामने आ जाता है जिसके कारण तीव्रगति वा तीव्र पुरूषार्थ बदल पुरूषार्थ के रूप में हो जाता है। आई हुई रूकावट को मिटाने की वा पत्थर को पार करने की हिम्मत कम हो जाती है इसलिए चलते-चलते थक जाते हैं। कोई थक जाते, कोई दिलशिकस्त हो जाते अर्थात् अपने से नाउम्मीद हो जाते हैं। ऐसे समय पर बाप का सहारा मिलते हुए भी अपने को बेसहारे अनुभव करते हैं - लेकिन बाप-दादा एक सेकेण्ड का सहज साधन वा किसी भी विघ्न से मुक्त होने की युक्ति जो समय प्रति समय सुनाते रहते हैं वह भूल जाते हैं। सेकेण्ड में स्वयं का स्वरूप अर्थात् आत्मिक ज्योति स्वरूप और कर्म में निमित्त भाव का स्वरूप-यह डबल लाइट स्वरूप सेकेण्ड में हाई जम्प दिलाने वाला है। लेकिन बच्चे क्या करते हैं? हाई जम्प के बजाए पत्थर को तोड़ने लग पड़ते हैं। हटाने लग जाते हैं। जिस कारण जो भी यथा शक्ति हिम्मत और उल्लास है वह उसी में ही खत्म कर देते और थक जाते हैं वा दिलशिकस्त हो जाते हैं। जब ऐसी मेहनत बच्चों की देखते तो बाप-दादा को भी तरस पड़ता है। जम्प लगाओ और सेकेण्ड में पार हो जाओ यह भूल जाते हैं। तो आज यह रूह-रूहान हो रही थी कि बच्चे क्या करते और बाप-दादा क्या कहते। सहज मार्ग को थोड़ी सी विस्मृति के कारण इतना मुश्किल कर देते जो स्वयं ही थक जाते।
और क्या करते हैं? अपने ही व्यर्थ संकल्पों का तूफान स्वयं ही रचते और उसी तूफान में स्वयं ही हिल जाते। अपने निश्चय के फाउण्डेशन वा अनेक प्रकार की प्राप्तियों के आधार में स्वयं ही हिल जाते हैं। नामालूम विनाश होगा या नहीं होगा, भगवानुवाच ठीक है वा नहीं है, दुनिया के आगे निश्चय से कहें वा नहीं कहें, गुप्त रहें वा प्रत्यक्ष होवें-जमा करें वा सेवा में लगायें...प्रवृत्ति को सम्भालें वा सेवा में लगें। आखिर भी क्या होन