01-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नए वर्ष के लिए बाप द्वारा कराया गया दृढ़ संकल्प
विजयी रत्न ब्राह्मण कुल-भूषण बच्चों के प्रति बाप-दादा बोले:
आज सर्व बच्चों को बाप-दादा नई उमंगों नये दृढ़ संकल्पों नई दुनिया को समीप लाने के सुहावने संकल्पों को सुनाते हुए अति हर्षित हो रहे थे। हरेक बच्चे के अन्दर विशेष उमंग है स्वयं को सम्पन्न बनाकर विश्व का कल्याण करने का। आज अपने अन्दर रही हुई कमजोरियों को सदाकाल के लिए विदाई देने के दृढ़ संकल्प पर, बाप-दादा भी बधाई देते हैं। इसी विदाई की बधाई को हर रोज़ अमृतबेले स्मृति के द्वारा समर्थ बनाते रहना। इस वर्ष स्वयं के समर्थी स्वरूप के साथ-साथ सेवा में भी समर्थ स्वरूप लाना है - जैसे विनाशकारी ग्रुप बहुत तीव्रगति से अपने कार्य को आगे बढ़ाते जा रहे हैं - बहुत रिफाइन सेकेण्ड में शारीरिक बन्धन से मुक्त होने अर्थात् शारीरिक दु:ख से सहज मुक्त होने, अनेक आत्माओं को बचाने के सहज साधन बना रहे हैं। किस आधार से? साइन्स की अथॉरिटी से। ऐसे स्थापना के कार्य में निमित्त बने हुए मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी ग्रुप-आत्माओं को जन्म-जन्मान्तर के लिए माया के बन्धन से, माया द्वारा प्राप्त हुए अनेक प्रकार के दु:खों से, एक सेकेण्ड में मुक्त करने वा सदाकाल के लिए सुख- शान्ति का वरदान देने, हरेक आत्मा को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो! विनाशकारी ग्रुप अब भी एवररेडी है। सिर्फ आर्डर की देरी है - ऐसे स्थापना निमित्त बने हुए ग्रुप एवररेडी हो? क्योंकि स्थापना का कार्य सम्पन्न होना अर्थात् विनाशकारियों को आर्डर मिलना है। जैसे समय समीप अर्थात् पूरा होने पर सुई आती है और घण्टे स्वत: ही बजते हैं - ऐसे बेहद की घड़ी में स्थापना की सम्पन्नता अर्थात् समय पर सुई (काँटा) का आना और विनाश के घण्टे बजना। तो बताओ सम्पन्नता में एवररेडी हो?
आज बच्चों के अमृतवेले से नये वर्ष के नये उमंग सुनते बाप-दादा की भी एक नई टापिक पर - रूह-रूहान हुई।
ब्रह्मा बोले - मुक्ति का गेट कब खोलना है! जब तक मुक्ति का गेट ब्रह्मा नहीं खोलते तब तक अन्य आत्माएं भी मुक्ति में जा नहीं सकती। ब्रह्मा बोले अब चाबी लगावें?
बाप बोले - उद्घाटन अकेला करना है या बच्चों के साथ! ब्रह्मा बोले - सौतेले और मातेले बच्चों के दु:ख के आलाप, तड़फने के आलाप सुनते-सुनते अब रहम आता है। बाप बोले - बच्चों में से सर्व श्रेष्ठ विजयी रत्न जो साथ-साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध और स्वरूप से ब्रह्मा की आत्मा के साथी बनने वाले हैं ऐसे साथी विजयी रतनों की माला तैयार है! जिन्हों का आदि से यही संकल्प है कि साथ जिएंगे, साथ मरेंगे - किसी भी भिन्न रूप वा सम्बन्ध में साथ रहेंगे - उन्हीं से किए हुए वायदे के प्रमाण साथियों के बिना चाबी कैसे लगावेंगे!
तो नये वर्ष का नया संकल्प ब्रह्मा का सुना! बाप के इस संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने वाले विजयी ग्रुप अब क्या करेंगे! श्रेष्ठ विजयी रतन ही बाप के इस संकल्प को पूरा करने वाले हैं - इसलिए इस वर्ष में विशेष रूप से मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के स्वरूप से सेकेण्ड में मुक्त करने की मशीनरी तीव्र करो। अभी मेजोरिटी आत्माएं प्रकृति के अल्पकाल के साधनों से, वा आत्मिक शान्ति प्राप्त करने के बने हुए अल्पज्ञ स्थानों से अर्थात् परमात्म मिलन मनाने के ठेकेदारों से अब थक गए हैं, निराश हो गए हैं - समझते हैं सत्य कुछ और है - सत्यता की मंजिल की खोज में हैं - प्राप्ति के प्यासे हैं। ऐसी प्यासी आत्माओं को आत्मिक परिचय, परमात्म परिचय की यथार्थ बूँद भी तृप्त आत्मा बना देगी - इसलिए ज्ञान कलश धारण कर प्यासों की प्यास बुझाओ। अमृत कलश सदा साथ रहे। चलते फिरते सदा अमृत द्वारा अमर बनाते चलो। तब ही ब्रह्मा बाप के साथ-साथ मुक्ति के गेट का उद्घाटन कर सकेंगे! अभी तो भवनों का उद्घाटन कर रहे हो - अभी विशाल गेट का उद्घाटन करना है। उसके लिए सदा अमर बनो और अमर बनाओ - अमर भव के वरदानी मूर्त बनो। अब पुरूषार्थ करने वाली आत्माएं जो अन्तिम अति कमज़ोर आत्माएं हैं, ऐसी कमज़ोर आत्माओं में पुरूषार्थ करने की भी हिम्मत नहीं है ऐसी आत्माओं को स्वयं की शक्तियों द्वारा समर्थ बनाकर प्राप्ति कराओ। इसलिए ज्ञान मूर्त से ज्यादा अभी वरदानी मूर्त का पार्ट चाहिए। सुनने की शक्ति भी नहीं हैं। चलने की हिम्मत नहीं है सिर्फ एक प्यास है कि कुछ मिल जाए - ऐसी अनेक आत्माएं विश्व में भटक रही हें - चलने के पांव अर्थात् हिम्मत भी आपको देनी पड़ेगी। तो हिम्मत का स्टाक जमा है! अमृत कलश सम्पन्न है! अखुट है! अखण्ड है! क्यू लगावें? स्वयं की क्यू समाप्त की है - अगर स्वयं की क्यू में बिजी होंगे तो अन्य आत्माओं को सम्पन्न कैसे बनावेंगे! इसलिए इस वर्ष में अपनी क्यू को समाप्त करो। क्यों, क्या, की भाषा चेन्ज करो। एक ही भाषा हो - सर्व प्रति संकल्प से, वाणी से वरदानी भाषा हो - वरदानी मूर्त हो - वरदानों की वर्षा के भाषण हों। जो भी सुनें वह अनुभव करे कि भाषण नहीं लेकिन वरादानों के पुष्पों की वर्षा हो रही है - तब उद्घाटन करेंगे। नये वर्ष की यही नवीनता करना। अच्छा –
ऐसे सदा अमृत कलशधारी, हर संकल्प से वरदानी अनेक आत्माओं को हिम्मत बढ़ाने वाले, हिम्मते बच्चे मदद बाप, ऐसे एवररेडी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सदा साथ का पार्ट बजाने वाले ऐसे विजयी रतनों को, सम्पन्न आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते!
(दीदी जी से) ब्रह्मा को यह संकल्प क्यों उठा - इसका रहस्य समझते हो! ब्रह्मा के संकल्प से सृष्टि रची और ब्रह्मा के संकल्प से ही गेट खुलेगा। अब शंकर कौन हुआ? यह भी गुह्य रहस्य है - जब ब्रह्मा ही विष्णु है तो शंकर कौन? इस पर भी रूह- रूहान करना। अब तो वरदानी मूर्त ग्रुप, जिन्हों के इन स्थूल हाथों में नहीं लेकिन सदा स्मृति में, समर्थ स्वरूप में विजय का झण्डा हो - ऐसे विजय का झण्डा लहराने वाला ग्रुप हो। जिसको कहा जाता है रूहानी सोशल वर्कर ग्रुप - ऐसा ग्रुप अब स्टेज पर चाहिए। स्टेज पर आने वाले के ऊपर सभी की नज़र आटोमेटिकली जाती है - अभी पर्दे के अन्दर है, स्वयं के पुरूषार्थ का पर्दा है- अभी इसी पर्दे से निकल सेवा की स्टेज पर आओ तो विश्व की आत्माएं - ऐसे हीरो पार्टधारियों को देख नज़र से निहाल हो जावेंगे। ऐसे प्लान बनाओ ऐसे ग्रुप के मुख से सत्यता की अथॉरिटी स्वत: ही बाप की प्रत्यक्षता करेगी - अभी तो बेबी बाम्ब फेंक रहे हैं - अभी परमात्म बाम्ब द्वारा धरनी को परिवर्तन करो। इसका सहज साधन है सदा मुख पर वा संकल्प में बापदादा - बापदादा की निरन्तर माला के समान स्मृति हो। सबकी एक ही धुन हो बाप-दादा। संकल्प, कर्म और वाणी में यही अखण्ड धुन हो - जैसे वह अखण्ड धुनी जगाते हैं वैसे यह अखण्ड धुन हो। यही अजपाजाप हो - जब यह अजपाजाप हो जावेगा तो और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी। क्योंकि इसमें ही बिजी रहेंगे। फुर्सत ही नहीं होती तो व्यर्थ स्वत: ही समाप्त हो जावेगा। तो अब सुना कि इस वर्ष में क्या करना है - आज के संकल्प से समय को जानना - सुई तो ब्रह्मा ही हैं ना। तो सुई कहाँ तक पहुँची हैं! सूक्ष्मवतन से आगे भी बढ़ेगी ना! अच्छा –
विदेशी भाई-बहनों से - डबल विदेशी बच्चों के तीव्र पुरूषार्थ की रफ्तार को देख बाप-दादा भी हर्षित होते हैं। विदेशी बच्चों ने अपने असली बाप को, अपने असली देश को, असली धर्म को बहुत अच्छी तरह से पहचान लिया है। जैसे कल्प पहले की बनी हुई धरनियों में सिर्फ बाप के परिचय का बीज पड़ने से फल स्वरूप प्रत्यक्ष हो गए। बापदादा जानते हैं कि इस ग्रुप में कई ऐसे रतन हैं जो बाप-दादा के गले के माला के मणके हैं। ऐसे मणकों को बाप भी सदा विश्व के आगे प्रत्यक्ष करने के वा विश्व के आगे बच्चों द्वारा बाप प्रत्यक्ष होने के कई दृश्य देख भी रहे हैं - अभी प्रत्यक्ष हो रहे हैं, और आगे चल के भी होंगे। आप सभी अपने को ऐसे अमूल्य रतन समझते हो! जो सबसे अमूल्य रतन हैं उन्हीं का निवास स्थान कहाँ है? अमूल्य रतनों का स्थान है ही दिल की डिब्बी। सदा दिल में रहने वाले अर्थात् सदा बाप की याद में रहने वाले। सभी अपने को तीव्र पुरुषार्थी अनुभव करते हो? किस लाइन में हो? हाई जम्प लगाने वाले हो ना। डबल लाइट वाले सदा हाई जम्प देंगे। अगर किसी भी प्रकार का बोझ है तो हाई जम्प नहीं दे सकते। सभी सिकीलधे हो। क्योंकि बाप का परिचय मिलते ही सहजयोग द्वारा बाप को सहज ही पहचान लिया। मुश्किल का अनुभव नहीं हुआ। मुश्किल को सहज करने का साधन है - बाप के सामने बैठ जाओ - तो सदा वरदान का हाथ अपने ऊपर अनुभव करेंगे। सेकेण्ड में सर्व समस्याओं का हल मिल जाएगा। लेकिन बाप के सामने कौन बैठ सकेंगे? जिन्होंने बाप को जो है, जैसे है, वैसे दिव्य चक्षु द्वारा, बुद्धि द्वारा जान लिया और देख लिया। बाप जानते हैं कि इन आत्माओं ने विश्व के आगे एक एक्जैम्पुल बन अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए बहुत अच्छा कदम उठाया है। विश्व आपको फालो करेगी। अच्छा।
दिल्ली जोन (28.12.79 - पार्टीयों से)
1. अन्तिम मंजिल के समीपता की निशानी - सर्व से किनारा - सदा अपनी मंज़िल अति समीप अनुभव करते हो? ऐसे समझते हो कि अपनी अन्तिम फरिश्ते जीवन की मंज़िल पर अभी पहुँचने वाले ही हैं। जितना-जितना इस अन्तिम मंज़िल के नज़दिक आते जाएंगे उतना सब तरफ से न्यारे और बाप के प्यारे बनते जाएंगे। जैसे जब कोई चीज़ बनाते हो जब वह तैयार हो जाती है तो किनारा छोड़ देती है ना, जितना सम्पन्न स्टेज के समीप आते जाएंगे उतना सर्व से किनारा होता जाएगा। फरिश्ता अर्थात् एक के साथ सब रिश्ता। ऐसे अनुभव करते हो कि किनारा होता जाता है। जब कोई चीज़ पूरी नहीं बनती तो तले में लगते जाती है, जब बन जाती है तो किनारा छोड़ देती, किनारा नहीं छोड़ा माना अभी तैयार नहीं। तो सब बन्धनों से सब तरफ से वृत्ति द्वारा किनारा होता जाता है कि अभी लगाव है? अगर स्पीड ढीली होगी तो समय पर पहुँच नहीं सकेंगे। समय के बाद पहुँचे तो प्राप्ति की लिस्ट में नहीं आ सकेंगे। इसलिए यह चेक करो कि चारों ओर के बन्धन से मुक्त होते जाते हैं। अगर नहीं होते तो सिद्ध है फरिश्ता जीवन समीप नहीं। जब एक तरफ सम्बन्ध का सुख प्राप्त हो सकता है तो भटकने की क्या ज़रूरत है, ठिकाने लग जाना चाहिए ना। एक के साथ सर्व रिश्ते निभाना यह है ठिकाना। सदा अपना अन्तिम फरिश्ता स्वरूप स्मृति में रखो तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति बन जाएगी।
2. वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति से अनेकों की सेवा - सभी सदैव वाह ड्रामा वाह इसी स्मृति में ड्रामा के हर सीन को देखते हुए चलते हो? कोई भी सीन को देखते हुए घबड़ाते तो नहीं! जब ड्रामा का ज्ञान मिल गया तो वर्तमान समय कल्याणकारी युग है, जो भी दृश्य सामने आता है उसमें कल्याण भरा हुआ है, वर्तमान न भी जान सको लेकिन भविष्य में समाया हुआ कल्याण प्रत्यक्ष हो जाएगा - वाह ड्रामा वाह याद रहे तो सदा खुश रहेंगे, पुरूषार्थ में कभी भी उदासी नही आएगी, स्वत: ही आप द्वारा अनेकों की सेवा हो जाएगी।
3. सहयोगी आत्माओं को सदा सम्पन्न रहने का वरदान - जो आत्माएं दिल व जान सिक व प्रेम से यज्ञ को सम्पन्न बनाती हैं, जिन्होंने समय के अनुसार सहयोग की अंगुली दी उन्हीं का एक से अनेक गुणा बन गया, समय की भी वैल्यू होती, आदि में आवश्कता के समय जिन आत्माओं का अमूल्य सहयोग स्थापना के कार्य में हुआ है उन्हीं को रिटर्न में सदा सम्पन्न रहने का वरदान प्राप्त हो गया। वह सदा भरपूर रहते आए हैं और रहेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
02-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पूर्णता की समीपता ही विश्वपरिवर्तन की घड़ी की समीपता है
बच्चों की जन्म पत्री जानने वाले रहमदिल बाबा बोले :-
आज बापदादा हरेक बच्चे की आदि अब तक के संगमयुगी अलौकिक जन्म की जन्मपत्री देख रहे थे। हरेक बच्चे ने दिव्य जन्म लेते बाप दादा से वा स्वयं से क्या-क्या वायदे किये हैं और अब तक कौन से वायदे और किस परसेन्ट में निभाए हैं, वायदा करना और निभाना इसमें कितना अन्तर रहा है वा करना और निभाना समान है - यह जन्मपत्री देख रहे थे। हर वर्ष हरेक बच्चा यथा शक्ति बाप के सम्मुख वायदे करते हैं अर्थात् बाप से प्रतिज्ञा करते हैं - रिजल्ट में क्या देखा, प्रतिज्ञा करते समय बहुत उमंग उत्साह से हिम्मत से संकल्प लेते हैं - कुछ समय संकल्प को साकार में लाने का, समस्याओं का सामना करने का शुभ भावना से कल्याण की कामनाओं से सम्पर्क में आते सफलता मूर्त बनते हैं। परन्तु चलते-चलते कुछ समय के बाद फुल अटेन्शन (Full ATTENTION) के बजाए सिर्फ अटेन्शन (ATTENTION) रह जाता और अटेन्शन के बीच-बीच अटेन्शन बदल टेन्शन (Tension) का रूप भी हो जाता है। विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है यह समर्थ संकल्प धीरे-धीरे रूप परिवर्तन करता जाता है - जन्म सिद्ध अधिकार है के बजाए कब-कब बाप दादा के आगे यह बोल निकलते हैं कि अधिकार दो, शक्ति दो। है शब्द दो शब्द में बदल जाता है। मास्टर दाता वरदाता, दाता के बजाए लेता हो जाते हैं। ऐसे पुरूषार्थ की स्टेज कब तीव्र पुरूषार्थ, कब पुरूषार्थ कब हलचल कब अचल। इस में चलते रहते हैं और चलते-चलते रूक जाते हैं। अब तक की रिजल्ट में - रास्ते के नजारों में मंजिल की तरफ से किनारा कर लेते हैं। अब तक भी ऐसे खेल दिखाते रहते हैं - लेकिन यह कब तक।
बापदादा भी अभी नया खेल देखना चाहते - तो इस नये वर्ष में अब ऐसा नया खेल दिखाओ - जिस खेल में हर दृश्य का लक्ष्य सदा विजय हो। हम विजयी हैं, विजयी रहेंगे - ऐसा संकल्प सदा हर कर्म में प्रत्यक्ष दिखाई दे। जैसे कल्प पहले का चित्र है - हरेक शक्ति सेना के हाथ में विजय का झण्डा लहरा रहा है। आज तक भी आप श्रेष्ठ आत्माओं को विजयी रतन के रूप में दुनिया वाले सुमिरण करते और पूजते रहते हैं। पुरूषार्थ करने का समय भी बहुत मिला-नम्बरवार यथाशक्ति पुरूषार्थ भी किया। अब क्या करना है - अब पुरूषार्थ के प्रत्यक्ष फलस्वरूप अर्थात् सफलता स्वरूप बन स्वयं भी हर कार्य में सफल रहो और सर्व आत्माओं को भी सफलता मूर्त्त का वरदान दो। पुरूषार्थ स्वरूप के बजाए वरदानी महादानी स्वरूप में रहो, जिससे स्वयं भी प्रत्यक्ष फल का अनुभव करेंगे और अन्य आत्माओं को भी प्रत्यक्ष फल के अधिकारी बनायेंगे। अब भाषा परिवर्तन करो। स्वभाव संस्कार भी परिवर्तन करो। स्वयं भी परिवर्तन करो। स्वभाव-संस्कार सर्व आत्माओं को भी प्रत्यक्षफल के अधिकारी बनायेंगे।। अब भाषा भी परिवर्तन करो। जैसे विश्व परिवर्तन की घड़ी समीप भाग रही हैं - सम्पूर्णता की समीपता ही विश्व परिवर्तन के घड़ी की समीपता है - इसलिए अब बीती सो बीती कर व्यर्थ का खाता समाप्त करो-सदा समर्थ का खाता हर संकल्प में जमा करो - अभी से सदाकाल के लिए अपने को ताज तिलक और तख्तधारी अनुभव करो - तिलक का मिट जाना अर्थात् स्मृति से नीचे आना है। अभी यह बातें स्वप्न से भी समाप्त करो। ऐसा समाप्ति समारोह मनाओ। विश्व सेवा में संकल्प वाणी और कर्म से दिन-रात सच्चे सेवाधारी बन संगठित रूप सदा तत्पर हो जाओ तो विश्व सेवा में स्वयं को चढ़ती कला स्वत: होती जायेगी। पुण्य आत्मा बन, पुण्य का फल प्राप्त कर रहे हैं सदा ऐसे अनुभव करेंगे। क्योंकि समय की समीपता प्रमाण हर श्रेष्ठ कर्म का फल सदा सन्तुष्टता के रूप में वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल में प्राप्त होंगे। अभी प्राप्ति की मशीनरी तीव्रगति से अनुभव करेंगे। व्यर्थ का भी और समर्थ का भी - दोनों कर्म का फल लाख गुणा प्राप्ति क्या होती है यह सब अनुभव करेंगे। इसलिए लाख गुणा जमा करने का समय अब बाकी थोड़ा सा रह गया है अब का जमा होना, जन्म-जन्मान्तर की प्रालब्ध बनाना है - इसके लिए विशेष क्या करना है - सिर्फ दो बातें याद रखो - एक सदा अपने को विशेष आत्मा समझ - संकल्प वा कर्म करो। दूसरी बात सदा हरेक में विशेषताओं को देखो। हर आत्मा में विशेष आत्मा की भावना रखो। साथ विशेष बनाने की, शुभ कल्याण की कामना रखो। सदा एक बात का अटेन्शन रखो - जिस अवगुण वा कमज़ोरी को हर आत्मा छोड़ने का पुरूषार्थ कर रही है, ऐसी दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज़ को स्वयं कभी धारण नहीं करना - दूसरे द्वारा फेंकी हुई चीज़ को लेना यह ईश्वरीय रायल्टी नहीं। रायल आत्माएं दूसरे की बढ़िया चीज़ भी फेंकी हुई नहीं लेती। यह तो अवगुण गन्दगी है। उसके तरफ संकल्प में भी धारण करना महापाप है - इसलिए इस बात का अटेन्शन रखो। किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बन्द रखो। धारण करो न वर्णन करो। जब आपके चित्रों की भी भक्त महिमा करते हैं, हर अंग की महिमा करते हैं कीर्ति गाने का कीर्तन करते हैं - आप चैतन्य रूप में एक दो के गुणगान करो - विशेषताओं का वर्णन करो। एक दो में सहयोग और स्नेह के पुष्पों की लेन-देन करो। हर कार्य में हाँ जी वा पहले आप का हाथ बढ़ाओ। सदा हरेक विशेष आत्मा के आगे रूहानी वृत्ति रूहानी वायब्रेशन का धूप जगाओ। जो भी आत्मायें सम्पर्क में आवें उन्हों को सदा अपने खज़ानों से वैरायटी भोग लगाओ। अर्थात् खज़ाना भेंट करो। जब प्रैक्टिकल में अभी से यह रूहानी रसम आरम्भ करेंगे तब ही भक्ति में यह रसम चलती रहेगी। सुना इस वर्ष क्या करना है। आज स्वयं के परिवर्तन की बातें सुनाई। फिर सेवा की सुनावेंगे कि सेवा के क्षेत्र में क्या करना है - अच्छा –
ऐसे सदा सम्पन्न मूर्तियाँ रायल्टी के निज़ी संस्कार वाली आत्माओं, सदा तिलक, ताज, तख्तधारी आत्माओं को, हर कर्म का प्रत्यक्ष फल खाने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
1 - जादू मन्त्र की स्मृति से सफलता स्वरूप:-
जादू मन्त्र सदा याद रहता है? जादू का मन्त्र कौन सा है? बाप की याद ही जादू का मंत्र जादू के मन्त्र द्वारा जो सिद्धि चाहो तो पा सकते हो। जैसे स्थूल में भी किसी कार्य की सिद्धि के लिए मन्त्र जपते हैं। तो यहाँ भी अगर किसी कार्य में विधि चाहते हो तो यह महामन्त्र ही विधि स्वरूप है ऐसा जादू मन्त्र जो सेकेंड में जादू मन्त्र कर दो। अर्थात् परिवर्तन कर दो। तो ऐसा जादू मन्त्र सदा याद रहता है कि कभी भूलता है। सदा स्मृति तो सदा सिद्धि। कभी-कभी स्मृति होगी तो सफलता नहीं होगी, कभी-कभी होगी। तो यह वर्ष ‘सदा’ को अन्डरलाइन लगाने का वर्ष है। याद रहना बड़ी बात नहीं, लेकिन सदा याद में रहना यही बड़ी बात है। अब सदा की बारी आई है। सदा का एड करो तो सदा सफलता मूर्त रहेंगे। 2 - माया के वार से बचने का साधन है - विश्व से न्यारा और बाप का प्यारा बनो:- हरेक अपने को बाप के प्यारे और विश्व में प्यारे समझते हो? जो बाप के प्यारे बनते हैं वह विश्व से न्यारे बन जाते हैं। तो जितना न्यारापन होगा उतना ही प्यारा होगा - अगर न्यारा नहीं तो प्यारा भी नहीं। जो बाप के प्यार में लवलीन रहते हैं, खोये हुए होते हैं उन्हें माया आकर्षित कर नहीं सकती। जैसे वाटरप्रूफ कपड़ा होता है तो एक बूँद भी टिकती नहीं, ऐसे जो लगन में रहते, लवलीन रहते वह मायाप्रूफ बन जाते हैं। माया का कोई वार-वार नहीं कर सकता। बाप का प्यार अविनाशी और निस्वार्थ है, इसके भी अनुभवी हो और अल्पकाल के प्यार के भी अनुभवी हो। वह प्यार इस प्यार के आगे कुछ भी नहीं है। बाप और मैं तीसरा न कोई, ऐसी स्थिति रहती है। तीसरा बीच में आना अर्थात् बाप से अलग करना। तीसरा आता ही नहीं तो अलग हो नहीं सकते। जो सदा बाप की याद में लवलीन रहते वह सिद्धि का पा लेते हैं। अच्छा ओम् शान्ति।
04-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पूर्णता के आईने में निज स्वरूप को देखो
विश्व कल्याणकारी त्रिमूर्ति शिव बाबा के बच्चों के प्रति महावाक्य :-
आज बाप दादा ब्राह्मण बच्चों की आदि से अब तक के जीवन में ब्राह्मणों का विशेष कर्तव्य है विनाश और स्थापना का, उस कर्तव्य में हरेक किस रफ्तार से चल रहे हैं, उस कर्तव्य की गति को देख रहे हैं - कहाँ तक अपने कर्तव्य की जिम्मेवारी निभाई है और आगे भी कितनी रही हुई है। ब्राह्मणों का कर्त्तव्य के आधार से विशेष टाइटिल है विश्व कल्याणकारी, विश्व के आधारमूर्त, विशेष उद्धारमूर्त्त, विश्व के परिवर्तक। तो जैसे टाइटिल है उसी प्रमाण कर्तव्य का प्रैक्टिकल रूप कहाँ तक हुआ है और कहाँ तक होना है। हरेक अपने कर्तव्य की परसेन्टेज को देखो। समय प्रमाण अभी तक स्पीड तीव्र है। वह अब तीव्र होनी है। पहली बात स्वयं को चैक करो - स्वयं प्रति विनाश और स्थापना के कर्तव्य ने अर्थात् पास्ट पुराने हिसाब-किताब स्वभाव वा संस्कार कहाँ तक विनाश किए हैं और नये संस्कार स्वभाव अर्थात् बाप समान स्वभाव संस्कार की स्थापना कहाँ तक की है, सम्पूर्ण विनाश किया है वा अधूरा किया है, जितना पुराना विनाश किया है उतना नया संस्कार वा स्वभाव धारण होगा - तो चैक करो किस गति से यह कार्य कर रहे हैं।
2 - दूसरी बात स्वयं के सम्पर्क में आने वाली आत्मायें वा सम्बन्ध में रहने वाली आत्माएं जो हैं उन्हों के पुराने संस्कार वा स्वभाव देखते हुए न देखो अर्थात् अपने कर्तव्य की स्मृति द्वारा वा अपने टाइटिल की समर्थी द्वारा उन आत्माओं में भी परिवर्तन करने के कार्य की गति कहाँ तक है। चैरिटी बिगेन्स ऐट होम किया है! कितनी भी तमोगुणी आत्मा हो, लेकिन ब्राह्मणों के कर्तव्य प्रमाण सदा ऐसी आत्माओं के प्रति भी कल्याण की भावना रहती है! वा घृणा की भावना रहती है। रहम आता है वा रोब में आते हो! रोब में आकर बाप के आगे वा निमित्त बनी हुई आत्माओं के आगे बार-बार उन आत्माओं के प्रति प्रोब (Complaint) करते रहते। यह ऐसे करते यह ऐसे कहते। ऐसे वैसे क्यों? यह प्रोब करते हैं।
3 - तीसरी बात विश्व की सर्व आत्माओं प्रति सदा संकल्प में कल्याण करने की स्मृति रहती है - बेहद की सेवा अर्थात् विश्व सेवा की जिम्मेदारी समझते हुए चलते हो। मन्सा द्वारा भी विश्व प्रति अपनी शक्तियों के खज़ाने वा ज्ञान, गुणों के खज़ाने को महादानी बन दान करते रहते हो। अपने को विश्व के आगे अथॉरिटी समझते हो। वा जहाँ निवास करते हो उस देश वा गाँव के अथॉरिटी समझते हो। प्रैक्टिकल स्मृति में क्या सेवा रहती है। सामने हद आती है या बेहद! संकल्प में इतनी समर्थी है जो विश्व की आत्माओं तक शक्तिशाली संकल्प द्वारा सेवा कर सको - वृत्ति की शुद्धि अनुसार वायुमण्डल को शुद्ध कर सको। वृत्ति की शक्ति है! शुद्ध अर्थात् प्यूरिटी। प्युरिटी का आधार है भाई-भाई की स्मृति की वृत्ति। कहाँ तक बनी है। इसी प्रकार अपने कर्तव्य की गति और विधि को चैक करो। जब तक स्वयं में विनाश और स्थापना का प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं लाया है तब तक विश्व में कर्तव्य की प्रत्यक्षता होना भी स्वयं की गति के प्रमाण ही होगा। क्योंकि आज विश्व की आत्माएं, देखकर सौदा करने वाली हैं सिर्फ सुनकर मानने वाली नही हैं। अपनी यथार्थ मान्यताओं को मान्यताओं को मानने के लिए पहले स्वयं उन मान्यताओं का स्वरूप बनना पड़े। जिस स्वरूप के सैम्पुल द्वारा सौदा सिम्पुल समझ में आवेगा। नहीं तो अब तक अनेक अल्पज्ञ अयथार्थ मान्यताओं द्वारा मेजोरिटी आत्मायें विश्व परिवर्तन वा स्वयं का परिवर्तन अति मुश्किल वा असम्भव समझ बैठी है। इस कारण दिलशिकस्त की बीमारी ज्यादा है। जैसे आजकल शारीरिक रोग हार्टफेल का ज्यादा है वैसे आध्यात्मिक उन्नति में दिलशिकस्त का रोग ज्यादा है। ऐसी दिलशिकस्त आत्माओं को प्रैक्टिकल परिवर्तन द्वारा ही अर्थात् आंखों देखी वस्तु द्वारा ही हिम्मत वा शक्ति आ सकती है। सुना बहुत है अब देखना चाहते हैं। प्रमाण द्वारा परिवर्तन चाहते हैं। तो विश्व परिवर्तन के लिए वा विश्व कल्याण के लिए सदा स्वकल्याण पहले सैम्पुल के रूप में दिखाओ। अब समझा कर्तव्य के लिए क्या चैक करना है। विश्व कल्याण की सेवा के लिए क्षेत्र में सहज सफलता का साधन प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा बाप की प्रत्यक्षता है। जो बोले वह देखें। बोलते हो कि हम ब्राह्मण आलमाइटी अथॉरिटी हैं, मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, मायाजीत हैं, रहमदिल हैं, रूहानी सेवाधारी हैं। तो जो बोलते हो वह प्रैक्टिकल स्वरूप देखना चाहते हैं। नाम मास्टर सर्वशक्तिवान और स्वयं के व्यर्थ संकल्प को भी समाप्त नहीं कर सके तो विश्व कल्याणकारी कौन मानेगा! चलते-चलते स्वयं के संस्कार स्वभाव परिवर्तन करने में दिलशिकस्त होने वाले को विश्व परिवर्तक कौन मानेगा। स्वयं ही सहयोग मांगने वाले को वरदानी कौन मानेगा! इसलिए सम्पूर्णता के आइने में स्वयं का स्वरूप देखो। स्वयं को सम्पन्न बनाए सैम्पुल बनो। समझा क्या करना है। इस वर्ष स्वयं को सम्पन्न बनाए विश्व कल्याणकारी बनो - चेक भी करो और चेन्ज भी करो।
पहले गुजरात आरम्भ करे - जब सुनने में इतनी खुशी होती तो बनने में कितनी खुशी होगी। गुजरात की धरनी वैसे भी सात्विक है - तो गुजरात को सेम्पुल तैयार करने चाहिए। जिसको देखो वह सैम्पुल नजर आए। गुजरात ने विस्तार अच्छा किया है। वृद्धि भी अच्छी है - अब बाकी क्या करना है? ऐसी विधि करो - जो ऐसा वायु मण्डल पावरफुल हो जिससे विघ्न विनाश का भी हो और विश्व की आत्माओं की आकर्षण भी ऐसे रूहानी वायुमण्डल के तरफ हो। गुजरात को लाइट हाउस बनाओ। न सिर्फ गुजरात लाइट हाउस हो बल्कि विश्व लाइट हाऊस। जिस द्वारा विश्व की आत्माओं को स्वयं के वा बाप के परिचय को रोशनी मिले। परमात्म बाम्ब आरम्भ करो। ऐसा बाम्ब फैंको जो एक ठका आत्मायें दौड़ती हुई अपने एक एसलम में पहुँच जायें - पहले गुजरात आबू में क्यू शुरू करें। जो ओटे सो अर्जुन हो जावेगा। अर्जुन अर्थात् पहला नम्बर। अच्छा –
ऐसे सदा सेवाधारी सेकेण्ड वा संकल्प भी सेवा के बिना चैन न आवे, निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी सर्व प्रकार की सेवा में प्रत्यक्षफल दिखाने वाले ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण बन विश्व का कल्याण करने वाली आत्माओं को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात
1-संगमयुग के समय हर कदम में पद्मों की कमाई का चान्स - सदा बाप की याद में रहते हुए हर कदम उठाते पदमों की कमाई जमा करते रहते हो? यह जो गायन है हर कदम में पदम यह किन्हों का है? आप सबका है ना। इस संगम पर ही पदमों की कमाई की खान मिलती है। फिर सारे कल्प में यह चान्स नहीं मिलता। संगमयुग है जमा करने का युग, सतयुग को भी प्रालब्ध का युग कहेंगे, जमा करने का नहीं। अभी जमा करने का युग है, जितना जमा करना चाहो उतना जमा कर सकते हो। तो कितना जमा किया है वा करते जा रहे हो? जितना करना चाहिए उतना कर रहे हो वा जितने वा उतने में अन्तर है। एक कदम अर्थात् एक सेकेण्ड भी बिना जमा के न जाए अर्थात् व्यर्थ न हो। इतना अटेन्शन रहता है!
सतयुग में भी विश्व महाराजा वा राजा बनने का आधार इस समय के जमा करने पर है। तो क्या बनेंगे बड़े महाराजा या छोटे राजा!। बड़े राजे जो होंगे उन्होंके पास अनगिनत सम्पत्ति होगी तो इतनी अनगिनत कमाई जमा की है? सदा भण्डारा भरपूर है। अप्राप्त नहीं कोई वस्तु...ऐसे संस्कार अभी हैं। सदा तृप्त आत्मा अप्राप्त कुछ नहीं ऐसे हैं? वह सभी बन्धन कांटों - थोड़ा सहयोग दो, ऐसे तो नहीं, सहयोग मिले, आगे बढ़ाया जाए तो आगे बढ़े इससे सिद्ध है कि सम्पन्न नहीं हैं। स्वयं की शक्ति में कमी है तब दूसरे कि शक्ति से आगे बढ़ायें तब बढ़ेंगे। तो क्या इसको ही तृप्त वा सम्पन्न आत्मा कहेंगे। बापदादा तो स्वत: ही दाता है, देते ही रहेंगे, वह मांगने की भी जरूरत नहीं तो ऐसे तृप्त आत्मा भविष्य में अखुट खज़ाने के मालिक होंगे अभी से संस्कार भरेंगे तब भविष्य में होंगे। अच्छा –
06-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सूर्यवशी और चन्द्रवंशी, आत्माओं के प्रैक्टिकल जीवन की धारणाओं के चिन्ह
सृष्टि के आदि मध्य और अन्त के राज़ों को सुनाने वाले शिव बाबा बोले –
आज बापदादा वतन में बच्चों की चढ़ती कला के पुरूषार्थ पर रूह रूहान कर रहे थे जिसमें दो प्रकार के बच्चे देखे। एक फर्स्ट डिवीज़न के पुरुषार्थी सूर्यवंशी देवता रूपों में, दूसरे सेकेण्ड डिवीज़न वाले चन्द्रवंशी क्षत्रिय रूप में। दोनों की स्टेज और स्पीड दोनों में अन्तर था। संकल्प दोनों का सम्पूर्णता की मंजिल पर पहुंचने का ही था वा अभी भी है। लेकिन पहले नम्बर अर्थात् सूर्यवंशियों के संकल्प और स्वरूप में ज्यादा अन्तर नहीं है, सेकेण्ड नम्बर चन्द्रवंशियों में संकल्प में ज्यादा फर्क है। संकल्प और स्वरूप 100 प्रतिशत पावरफुल और स्वरूप कब 75 प्रतिशत कब 50 प्रतिशत इतना अन्तर है।
सूर्यवंशी सदा मास्टर ज्ञान सूर्य अर्थात् पावरफुल स्टेज बीज़रूप में रहते अथवा सेकेण्ड स्टेज अव्यक्त फरिश्ते में ज्यादा समय स्थित रहते। चन्द्रवंशी ज्ञान सूर्य समान बीज़रूप स्टेज में कम ठहर सकते लेकिन फरिश्ते स्वरूप में और अनेक प्रकार के माया के विघ्नों से युद्ध कर विजयी बनने की स्टेज में ज्यादा रहते हैं। कब व्यर्थ संकल्प के रूप में कब समस्या के रूप में, माया से विजयी बनने की मेहनत में ज्यादा समय रहते एक घण्टे की मेहनत से आधा घण्टा वा 15 मिनट सफलता का अनुभव करते इसलिए पुरूषार्थ का मेहनत करते-करते कब थक जाते कब चल पड़ते हैं। कब दौड़ लगाते - कब दौड़ लगाने वालों को देखकर दौड़ना चाहते लेकिन दौड़ नहीं सकते। बाप के हर गुण के अनुभव करने में अधूरी स्टेज पर पहुंचते अर्थात् 50-50 अवस्था रहती। जैसे वर्णन करेंगे बाप सुख का सागर है मैं सुख स्वरूप हूँ लेकिन सदा सुख की अनुभूति नहीं होगी - सम्पूर्ण सुख का अनुभव कभी होगा कभी नहीं होगा। जैसे चन्द्रमा की कलायें बढ़ती और घटती रहती हैं। वैसे चन्द्रवंशी कब बहुत उमंग उत्साह में सम्पूर्ण स्टेज का अनुभव करेंगे और कब स्वयं को सम्पूर्णता से बहुत दूर अनुभव करेंगे। और कब साथ लेने के लिए याद की स्टेज से फरियाद की स्टेज में आ जायेंगे।
सूर्यवंशी - सदा बाप के साथ और सर्व सम्बन्ध की अनुभूतियों में लवलीन रहेंगे। 2- सूर्यवंशी चढ़ती और उतरती कला में नहीं आते। सदा चढ़ती कला अनुभव करते जैसे सूर्य सदा प्रकाश स्वरूप अनुभव होता, कलाओं के चक्कर में नहीं आता। कब 14 कला सम्पन्न स्टेज कब 8 कला सम्पन्न स्टेज हो इतना अन्तर नहीं होता। 3- सूर्यवंशियों के आगे माया बादल की तरह सामने आती जरूर है लेकिन बादल आता और चला जाता। 4- सूर्यवंशी अपने स्वरूप को सदा समान रखते, बादल को देख प्रकाश कम नहीं होता। सदा अपने बाप के गुण से गुणों में साकार रूप में अनुभवी होते और औरों के आगे भी प्रत्यक्ष होते। 5- सूर्यवंशी सदा बेहद के सेवाधारी स्वयं को लाइट हाउस माइट हाउस अनुभव करते। 6- सूर्यवंशी का हर कदम साकार ब्रह्मा बाप के कर्म रूपी कदम के पीछे कदम उठाने वाले होते अर्थात् कर्म और पुरूषार्थ की गति में साकार ब्रह्मा बाप समान होंगे। 7- सूर्यवंशियों का पहला कदम फालो फादर का होगा - मन-बुद्धि और साकार में सदा बाप के आगे समर्पण होंगे। जैसे ब्रह्मा बाप की विशेषता देखी - इसी महात्याग से महान भाग्य मिला नम्बरवन सम्पूर्ण फरिश्ता रूप और नम्बरवन विश्व महाराजन्। ऐसे सूर्यवंशी भी महान त्यागी वा सर्वस्व त्यागी होगी। सर्वस्व त्यागी का अर्थ ही है संस्कार रूप में भी विकारों के वंश का त्याग। ऐसे सर्वस्व त्यागी फालो फादर करने वाले वर्तमान फरिश्ता स्वरूप और भविष्य में नम्बरवन विश्व महाराजन् बनते हैं। 8- सूर्यवंशी सदा निश्चय बुद्धि का प्रत्यक्ष स्वरूप सदा निश्चिन्त और सदा स्वयं को कल्प-कल्प के निश्चिंत विजयी अनुभव करेंगे। 9- सूर्यवंशी सदा विश्व कल्याण की जिम्मेदारी को निभाते हुए जितनी बड़ी जिम्मेदारी उतना ही डबल लाइट रूप होंगे। 10- सूर्यवंशी अपने वृति और वायब्रेशन की किरणों द्वारा अनेक आत्माओं को स्वस्थ अर्थात् स्वस्मृति में स्थित करने का अनुभव करावेंगे। 11- सूर्यवंशी सदा अपने प्राप्त हुए सर्व खज़ानों का स्वार्थ अर्थात् स्व अर्थ नहीं लेकिन सर्व प्रति महादानी और वरदानी होते। 12- सूर्यवंशी की विशेष दो निशनियाँ अनुभव होगी - एक तो सदा निर्वाण स्थिति में स्थित हो वाणी में आना। दूसरा सदा स्थिति में स्वमानबोल और कर्म में निर्माण अर्थात् निर्वाण और निर्माण दो निशानियाँ अनुभव होगी।
ऐसे ही चन्द्रवंशी की सब बातें कब कैसी कब कैसी और 50-50 होगी। कब 100 के मणके समान चमकेगा कब अपनी कमजोरियों की माला बाप के आगे बार-बार सुमिरण करेगा। कभी समर्थ कभी व्यर्थ। कभी महान कभी साधारण। कभी अपने को अथॉरिटी अर्थात् महाबीर अनुभव करेंगे कभी कहेंगे सहारा मिले, सहयोग मिले तो आगे बढ़े। ऐसे लंगड़ाते हुए चलने वाले अनुभव करेंगे अभी अपने से पूछो कि मैं कहाँ तक पहुँचा हूँ। सूर्यवंशी हूँ वा चन्द्रवंशी की स्टेज को पार कर सूर्यवंशी की बाउन्ड्री तक पहुँचे हें वा चन्द्रवंशी में ही हैं। बाउन्ड्री तक पहुँचने वाले कब सूर्यवंशी की स्टेज में जम्प लगाते कभी चन्द्रवंशी में रहते अब आप कहाँ हो वह चैक करो। बाउन्ड्री पार कर सूर्यवंशी बनो। समझा कया करना है अच्छा –
ऐसे स्वयं को सदा सूर्यवंशी के अधिकारी बनाने वाले बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले बाप समान सदा फरिश्ते रूप में रहने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य बन विश्व को अपनी प्राप्तियों के किरणों द्वारा अन्धकार से रोशन बनाने वाले ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बच्चों को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
गुजरात को सहज योगी का वरदान मिला हुआ है। गुजरात की धरनी सात्विक होने के कारण बनी बनाई धरनी है। बनी बनाई धरनी में बीज़ पड़ने से फल सहज निकल आता है। सहज योगी का ड्रामा अनुसार वरदान मिला हुआ है इसी वरदान को स्मृति में रखते स्वयं भी सहजयोगी और सर्व को भी सहजयोगी बनाओ। सदा विजय का झण्डा हाथ में हो। अब ऐसी विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाओ जिन्हों से सेवा का आवाज़ दूर तक फैले। ज्ञान के हिसाब से विशेष व्यक्ति नहीं लेकिन दुनिया के हिसाब से जो विशेष व्यक्ति हैं उनकी सेवा करो। इससे स्वत: ही अखबार वाले, रेडिओ, टी.वी. वाले आवाज़ फैलाते हैं। ऐसी कोई विशेष आत्मा निकालो जिनके आवाज़ से अनेक आत्माओं का कल्याण हो जाए। बापदादा सदैव सभी उम्मीद रखते हैं। अब उम्मीदों का प्रैक्टिकल रूप दिखाना। समय बहुत कम है और सेवा बहुत रही हुई है अब सेवा का तरीका ऐसा हो जो एक चक्र से अनेकों का कल्याण हो जाए। अभी ऐसी स्पीड चाहिए। राज्य अधिकारी तो अपना भाग्य लेते रहेंगे - लेकिन सन्देश तो सभी को देते जाओ। जो उल्लाहना न रह जाए। अच्छा –
पार्टियों के साथ मुलाकात
1. बीजरूप स्थिति द्वारा सारे विश्व की सेवा :- बीजरूप स्टेज सबसे पावरफुल स्टेज है, उसके बाद सब नम्बरवार स्टेज हैं, यहाँ स्टेज लाइट हाउस का कार्य करती है। सारे विश्व में लाइट फैलाने के निमित्त बनते हैं। जैसे बीज द्वारा स्वत: ही सारे वृक्ष को पानी मिल जाता है ऐसे जब बीजरूप स्टेज पर स्थित रहते तो आटोमेटिकली विश्व की लाइट का पानी मिलता रहता। जैसे लाइट हाउस एक स्थान पर होते हुए चारों ओर अपनी लाइट फैलाते हैं ऐसे लाइट हाउस बन विश्व कल्याणकारी बन विश्व तक अपनी लाइट फैलाने के लिए पावरफुल स्टेज चाहिए। जैसे स्थूल लाइट का बल्ब तेज पावर वाला नहीं होगा तो चारों ओर लाइट नहीं फैल सकती, जीरों पावर हद तक रहेगी ना। तो अब लाइट हाउस बनो न कि बल्ब। बेहद के बाप के बच्चे बेहद सेवाधारी वर्तमान समय बेहद सेवा की आवश्यकता है, कयोंकि बेहद विश्व का परिवर्तन हैं। विश्व परिवर्तन करने के लिए पहले स्वयं का परिवर्तन करो। हर संकल्प में स्मृति रहे कि विश्व का कल्याण हो।
व्यक्तिगत मुलाकात
सदा सम्पन्न आत्माओं की निशानियाँ - जो सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न होगा वह सदा सन्तुष्ट होगा। असन्तुष्टता का कारण है अप्राप्ति। जो भरपूर आत्मायें हैं वह अन्य आत्माओं को भी दे सकेंगी। अगर स्वयं में कमी होगी तो औरों को भी दे नहीं सकते। सन्तुष्टता अर्थात् सम्पन्नता। जैसे बाप सम्पन्न है इसलिए बाप की महिमा में सागर शब्द कहते हैं, यह सम्पन्नता को सिद्ध करता है। तो बाप समान मास्टर सागर बनो। नदी तो फिर भी सूख जाती है। सम्पन्न आत्मायें सदा खुशी में नाचती रहेंगी। खुशी के सिवाए और कुछ अन्दर आ नहीं सकता। सन्तुष्ट आत्मायें सम्पन्न होने के कारण किसी से भी तंग नहीं होगी। सम्बन्ध में भी कोई खिटखिट नहीं होगी। अगर होगी भी तो उसका असर नहीं आयेगा। किसी भी प्रकार की उलझन या विघ्न एक खेल अनुभव होगा। समस्या भी मनोरंजन का साधन बन जायेगी क्योंकि नालेज़फुल होकर देखेंगे। वह सदा निश्चयबुद्धि होने के कारण निश्चय के आधार पर विजयी होंगे। सदा हर्षित होंगे।
2. वर्ल्ड सर्वेन्ट समझने से एकरस स्थिति का अनुभव :- बापदादा को सदा सेवाधारी बच्चे याद रहते हैं, क्योंकि बाप का भी काम है वर्ल्ड सर्वेन्ट का। जैसे बाप वर्ल्ड सर्वेन्ट है वैसे बच्चे भी। सर्वेन्ट को सदा सेवा और मास्टर याद रहता है। तो ऐसे सेवाधारी बच्चों को भी बाप और सेवा के सिवाए कुछ याद नहीं इससे ही एकरस स्थिति में रहने का अनुभव होता। उन्हें एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगेंगे। एक बाप के रस का अनुभव होने के कारण और कहाँ भी आकर्षण नहीं जा सकती यही पुरूषार्थ है और यही मंजिल है। बाप दादा सभी को तीव्र पुरुषार्थी की नजर से देखते हैं, पुरुषार्थी रहेंगे तो भी मंजिल पर नहीं पहुँचेंगे।
3. सर्व सम्बन्धों का रस एक बाप से लेने वाले ही नष्टोमोहा - बाप को सर्व सम्बन्धों से अपना बना लिया है? सिर्फ बाप के सम्बन्ध से नहीं लेकिन सर्व सम्बन्ध बाप के साथ हो गये अपना बनाना अर्थात् बाप का खुद बनना। तो सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई, जिसके सर्व सम्बन्ध बाप के साथ हो गये उसका शेष गुण क्या दिखाई देगा? वह सदा निर्मोही होगा। जब किसीं तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं तो माया से हार हो नहीं सकती। ऐसे नष्टोमोहा बनना अर्थात् सदा स्मृति स्वरूप। सदैव अमृतवेले यह स्मृति में लाओ कि सर्व सम्बन्धों का सुख हर रोज बाप दादा से लेकर औरों को भी दान देंगे। हर सम्बन्ध का सुख लो। सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों को भी बनाओ। ऐसे अधिकारी समझने वाले सदा बाप को अपना साथी बनाकर चलते हैं। जो भी काम हो तो साकार साथी न याद आवे पहले बाप याद आवे। सच्चा मित्र भी तो बाप हैं ना, ऐसे सच्चे साथी का साथ लो तो सहज ही सर्व से न्यारा और प्यार बन जायेंगे। एक बाप से लगन है तो नष्टोमोहा हैं।
टीचर्स से मुलाकात
जो स्नेह में सदा रहने वाली स्नेही आत्मायें हैं, ऐसे स्नेही आत्माओं को बाप दादा भी सदा स्नेह का रिटर्न देते हैं - किस समय देते हैं? अमृतवेले विशेष। अमृतवेले सहज वरदान मिलता है। वैसे तो सारा दिन अधिकार है फिर भी वह खास समय है वह बाप है। जैसे विशेष टाइम होता है ना कि इस टाइम पर यह चीज़ सस्ती मिलेगी, सीज़न होती है ना अमृतवेला विशेष सीज़न है इसलिए सहज प्राप्ति होती है, सभी टीचर्स निर्विघ्न हो ना योग का किला मजबूत करो, विशेष जब कोई विघ्न कहाँ आते हैं तो जैसे अन्तर्राष्ट्रीय योग रखते हो। वैसे हर मास संगठित रूप में चारों ओर विशेष टाइम पर एक साथ योग का प्रोग्राम रखो। पूरा ज़ोन का ज़ोन योगदान दें। जिससे किला मजबूत होगा। कोई भी तार नहीं काट सकेगा। जितना सेवा बढ़ाते जायेंगे उतना माया अपना बनाने की कोशिश भी करेगी तो जैसे कोई कार्य शुरू किया जाता है तो शुद्धि की विधियाँ की जाती है ना तो सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो विजयी, यह हो गई शुद्धि द्वारा विधि चारों ओर एक साथ किला मजबूत करो - तो विजयी हो जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
08-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
संगमयुग में समानता में समीप भविष्य सम्बन्ध में भी समीप आत्माएं
सर्व के विघ्नों का विनाश करने वाले रूहानी पिता शिव बाबा बोले –
आज बाप-दादा चारों ओर के विदेशी और देशवासी बच्चों को दूर होते भी सन्मुख देख सर्व बच्चों को उसमें भी विशेष रूप में विदेशी बच्चों को एक बात के लिए विशेष शाबास दे रहे हैं। क्योंकि कोने-कोने में बाप के छिपे हुए बच्चों ने बाप को पहचान निश्चय से बहुत अच्छा जम्प लगाया है। भिन्न-भिन्न धर्म के पर्दे के अन्दर होते हुए भी सेकेण्ड में पर्दे को हटाए बाप के साथ सहयोगी आत्माएं बन गए, लगन में आए हुए विघ्नों को भी सहज ही पार कर रहे हैं। इसलिए बाप-दादा विशेष शाबास देते हैं। ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों के साथ बाप-दादा का सदा सहयोग है - हर बच्चे के साथसाथ हर कर्म में बाप का साथ हैं - सभी बच्चों को बाप-दादा द्वारा बुद्धि रूपी लिफ्ट की गिफ्ट मिली हुई है। गिफ्ट तो सबको मिली हुई है लेकिन उसको कार्य में लाना हरेक के ऊपर है। बहुत पावरफुल और बहुत सहज लिफ्ट की गिफ्ट है। सेकेण्ड में जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। यह वन्डरफुल लिफ्ट तीनों लोकों तक जाने वाली है। जैसे ही स्मृति का स्वीच आन किया तो एक सेकेण्ड में वहाँ पहुँच जावेंगे। लिफ्ट द्वारा जितना समय जिस लोक का अनुभव करना चाहो उतना समय वहाँ स्थित रह सकते हो - इस लिफ्ट को विशेष यूज़ करने की विधि है अमृतबेले केयरफुल बन स्मृति के स्वीच को यथार्थ रीति से सेट करो तो सारा दिन आटोमेटिकली चलती रहेगी। सेट करना तो आता हे ना। अच्छी तरह से अभ्यासी हो ना। दिव्य बुद्धि रूपी लिफ्ट सारे दिन में कहाँ अटकती तो नहीं है। अथॉरिटी होकर इस लिफ्ट को कार्य में लगाने से कभी भी यह लिफ्ट धोखा नहीं देगी। वर्तमान संगमयुग की लिफ्ट यह दिव्य बुद्धि की लिफ्ट है। साथ साथ भविष्य स्वर्ग के राज्य की गिफ्ट भी बाप-दादा अभी देते हैं - स्वर्ग के गेट की चाबी बाप-दादा बच्चों को ही देते हैं। चाबी है अधिकारपन अर्थात् अधिकारी बनना। अधिकार की चाबी से गेट खुला हुआ है। तो नम्बर वन अधिकारी कौन बनता अर्थात् अधिकार द्वारा गेट पहले कौन खोलता उसको भी अच्छी तरह से जानते हो - लेकिन अकेले नहीं खोलते। उद्घाटन के समय आप भी सभी होंगे ना। देखने वाले होंगे वा करने वाले होंगे! कौन होंगे! साथी होंगे ना! कम से कम ताली बजाने के साथी तो होंगे ना। खुशियों की पुष्प वर्षा करेंगे ना। बाप-दादा समय की समीपता को देख हर बच्चे का बाप-दादा के साथ क्या समीप सम्बन्ध है, देख रहे हैं। अति समीप कौन है और समीप कौन हैं - और थोड़ा सा दूर से देखने वाले कौन है। बच्चों का डबल भविष्य बापदादा के सामने आता है। एक संगमयुग का भविष्य अर्थात् बाप समान बनने का भविष्य और दूसरा फर्स्ट जन्म का भविष्य अर्थात् स्वर्ग का भविष्य। यहाँ समानता में समीप होंगे और वहाँ सम्बन्ध में समीप होंगे। जितना यहाँ समीपता द्वारा सदा साथ है उतना ही मूलवतन में भी ऐसी आत्माएं साथ-साथ हैं। और स्वर्ग में भी हर दिनचर्या में सम्बन्ध का साथ है - जैसे यहाँ तुम्ही से बोलूँ तुम्ही से खेलूँ, तुम्हीं से साथ निभाऊंगा वैसे भविष्य में भी सवेरे से साथ बगीचे में खेलेंगे, रास करेंगे, पाठशाला मे पढ़ेंगे, सदा मिलते रहेंगे और फिर साथ-साथ राज्य करेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप सदा स्वराज्य करने वाले अर्थात् स्व अधीन नहीं लेकिन स्व अधिकारी थे। ऐसे ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले जिन्हों का सदा संकल्प साकार में है कि स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, ऐसे स्वराज्य करने वाले वहाँ भी साथ में राज्य करेंगे। यहाँ के नम्बरवन रेगुलर और पंचुअल गाडली स्टुडेन्ट वहाँ भी साथ-साथ पढ़ेंगे क्योंकि ब्रह्मा बाप नम्बरवन गाडली स्टुडेन्ट है - जो यहाँ अतिइन्द्रिय सुख के झुले में बाप के साथ-साथ सदा झूलते हैं वह वहाँ भी झूले में साथ झूलेंगे। जो यहाँ अनेक प्राप्तियों की खुशी में नाचते हैं वह वहाँ भी साथसाथ रास करेंगे। जो यहाँ बाप के गुण और संस्कार के समीप सर्व सम्बन्धों से बाप का साथ अनुभव करते हैं वही वहाँ रायल कुल के समीप सम्बन्ध में आवेंगे - तो बापदादा हरेक के नयनों से दोनों भविष्य देखते हैं - फर्स्ट जन्म में आना ही फर्स्ट नम्बर की प्रालब्ध है। तो विदेशी बच्चे सब फर्स्ट जन्म में आवेंगे ना। इतने सब फर्स्ट में आवेंगे! फर्स्ट में कौन आवेंगे उसकी पहचान विशेष एक बात से करो। वह कौनसी? आदि से अब तक अव्यभिचारी और निर्विघ्न होंगे, विघ्न आए भी हों तो विघ्नों को जम्प दे पार किया है वा विघ्नों के वश हुए - निर्विघ्न का अर्थ यह नहीं कि विघ्न आए ही न हों - लेकिन विघ्न विनाशक वा विघ्नों के ऊपर सदा विजयी रहे। यह दोनों बातें अगर आदि से अन्त तक ठीक हैं तो फर्स्ट जन्म में साथी बन सकते हैं - सहज मार्ग हैं ना। अच्छा –
कर्नाटक के बच्चे भी आए हैं। यह भी भारत का विदेश ही है। लण्डन से सहज आ सकते हैं लेकिन यह बहुत मेहनत से आते हैं। इसलिए मेहनत का फल प्रत्यक्ष बाप का मिलन हुआ है। लगन वाले अच्छे हैं - बच्चों की लगन को देख बाप भी हर्षित होते हैं। सदा इसी लगन के दीपक को बार-बार अटेन्शन के घृत से अविनाशी रखना। कर्नाटक के तरफ दीप बहुत जगाते भी हैं - जैसे स्थूल दीपक जगाते रहे वैसे अब लगन का दीपक सदा जगता रहे। सब अपने को बाप के खुशनशीब बच्चे समझते हो ना - अच्छा आज तो मिलने का दिन है –
सभी सिकीलधे बच्चों को श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बच्चों को सदा स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, तिलक और तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात (6-1-79)
1. ब्राह्मण जन्म की मुख्य पर्सनालीटी है प्यूरिटी -
सदा अपने को मन-वाणी और कर्म में सम्पूर्ण प्यूरिटी की पर्सनैलिटी वाले अनुभव करते हैं? क्योंकि ब्राह्मणों की परसनाल्टी है ही प्यूरिटी तो जो ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है वह अपने जीवन में अनुभव करते हो? जितनी पर्सनैलिटी होगी उतना ही विशेष आत्माएं गाई जाएंगी। मुख्य पर्सनैलिटी प्यूरिटी है। ब्रह्मा बाप भी आदि देव वा पहला प्रिन्स कैसे बने। इस प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के आधार पर वन नम्बर की पर्सनैलिटी की लिस्ट में आए। तो फालो फादर है ना। संस्कार ही पवित्रता के हैं। ब्राह्मण जन्म के संस्कार ही पवित्र हैं। इसलिए आजकल के ब्राह्मणों द्वारा ही किसी भी प्रकार की शुद्ध वा श्रेष्ठ कार्य कराते हैं। क्योंकि उन्हों को महान समझते हैं, श्रेष्ठता ही पवित्रता है। तो ऐसे ब्राह्मण जीवन के निजी जन्म संस्कार अपने में अनुभव करते हो। पवित्रता जन्म संस्कार बनी है? जैसे कोई के क्रोध के संस्कार जन्म से होते हैं तो कहते हैं चाहते नहीं हैं, मेरे जन्म के संस्कार हैं, ऐसे यह जन्म के संस्कार स्वत:ही कार्य करते हैं। कभी स्वप्न में भी अपवित्रता के संकल्प नहीं आए इसको कहा जाता है प्यूरिटी की परसनाल्टी वाले। इस परसनाल्टी के कारण ही विश्व की आत्माएं आज तक नमस्कार कर रही हैं। महान आत्माओं को न जानते भी नमस्कार करते हैं, साधारण को नहीं, तो ऐसे महान हो ना।
2. मोह का बीज है सम्बन्ध – उस बीज को कट करने से सब शिकायतें समाप्त - मातायें सब नष्टोमोहा हो ना। जब बाप के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ लिए तो और किसमें मोह हो सकता है क्या? बिना सम्बन्ध के कोई में मोह नहीं हो सकता। सदा यह याद रखो जब सम्बन्ध नहीं तो मोह कहाँ से आया, मोह का बीज है सम्बन्ध। जब बीज को ही कट कर दिया तो बिना बीज के वृक्ष कैसे पैदा होगा। अगर अभी तक होता है तो सिद्ध है कि कुछ तोड़ा है कुछ जोड़ा है, दो तरफ है। तो दो तरफ वाले को न मंजिल मिलती न किनारा होता। तो ऐसे तो नहीं हो ना। सब नष्टोमोहा हो ना। फिर कभी शिकायत नहीं करना कि क्या करें बन्धन हैं, कटता नहीं...जहाँ मोह नष्ट हो गया तो स्मृति स्वरूप स्वत: हो जाते फिर कटता नहीं मिटता नहीं यह भाषा खत्म हो जाती। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो जाते। सदा मनमनाभव रहने वाले मन के बन्धन से भी मुक्त रहते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।
विदेशी भाई बहनों के साथ –
सभी बाप के सदा नियरेस्ट और डियरेस्ट हो? क्या समझते हो अपने को? अपनी कल्प पहले की प्रालब्ध स्पष्ट सामने है ना। डबल विदेशी आत्माओं का नम्बरवार इस संगमयुग के विशेष पार्टो में विशेष पार्ट जुड़ा हुआ है। डबल विदेशी बच्चों को बाप दादा द्वारा विशेष वरदान है, कौन सा? विदेशी बच्चे जब से जन्म लेते हैं तभी पहली घड़ी में ही बापदादा द्वारा विशेष वरदान सदा छत्रछाया के अन्दर रहने का मिल जाता है जैसे भारत के शास्त्रों में दिखाया है, जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो जेल में जन्म होते हुए भी जब नदी पार किया तो साँप ही सेफ्टी के साधन बन गये, तो विदेशी बच्चों को वरदान है कि कैसे भी वातावरण अशुद्ध है, कैसी भी जीवन पार्ट देख रहे हैं लेकिन फिर भी बाप की छत्रछाया बच्चों को सदा सेफ रखती आई है और अन्त तक रखेगी।
2. साथ-साथ विदेशी बच्चों को बाप के सदा साथ के अनुभव की विशेष मदद है। तीसरी बात विदेशी बच्चों को विशेष रूप से जन्मते ही सेवा के संस्कार का सहयोग है। यह भी विशेष ड्रामानुसार पार्ट मिला हुआ है। चौथी बात - याद की यात्रा में सहज ही अनुभवों की खान प्राप्त होने का वरदान भी विदेशियों को प्राप्त है। तो बताओ कितने लकीएस्ट हो? बापदादा के संगमयुगी विशेष अमुल्य रत्न ही जिन अमूल्य रत्नों द्वारा बाप दादा विश्व में ऐसे रत्नों को सेम्पुल के रूप में रखेंगे। इसलिए सदा बाप और सेवा के सिवाए कोई भी बात याद न रहे। साथ का अनुभव करते हो? शक्ति सेना क्या समझती है? शिव और शक्ति सदा साथ हैं ना, नाम ही है शक्ति, शिव शक्ति नहीं। जो शिव शक्ति है वह याद के सिवाए रह नहीं सकती। कभी भी कोई कार्य करो तो सदा यह सोचो कि विश्व सेवा के अर्थ निमित्तमात्र यह कार्य कर रहे हैं, इसी को ही कमल पुष्प के समान कहा जाता है तो सभी कमल पुष्प के समान कार्य करते न्यारे और बाप के प्यारे बन कर रहते हो? पाण्डव कमलपुष्प के समान हैं ना। यह लौकिक कार्य भी अनेक आत्माओं को सम्पर्क में लाने का साधन है क्योंकि ईश्वरीय सेवा के लिए सम्पर्क तो बनाना ही पड़ता है ना यही बना बनाया सम्पर्क मिल जाता है। इसलिए डबल कार्य के लिए डायरेक्शन दिये जाते हैं। और जैसे सम्पर्क आगे बढ़ते जायेंगे, सम्पर्क की आवश्यकता नहीं रहेगी फिर लौकिक खड़ा हो जायेगा अलौकिक कार्य के निमित्त बन जायेंगे। सभी की यह स्टेज आती है और सदा है। यह भी सेवा का चान्स समझकर कार्य करो।
आस्ट्रेलिया पार्टी - आस्ट्रेलिया वालों ने बाप को प्रत्यक्ष करने का संकल्प साकार में बहुत अच्छा लाया है। जो अनुभव किया वह अन्य आत्माओं को भी कराने का जो प्रैक्टिकल रूप दिखाया वह बहुत अच्छा। इस विशेषता के कारण आस्ट्रेलिया का नम्बर बापदादा के पास नम्बर वन में है। जैसे गायन है भारत के लिए घर-घर मन्दिर जैसे आस्ट्रेलिया वालों के घर-घर में अर्थात् जो भी आने वाले हैं, यह सेवा का सबूत देने में घर-घर को मन्दिर बनाने में नम्बर वन आ रहे हैं। तो आप सब कोन हो गये? मन्दिर में रहने वाली चैतन्य मूर्तियाँ। आप सब समझते हो हम नम्बर वन हैं? बाप को भी खुशी है। ऐसे ही आपको देखकर सब फालो करेंगे। आस्ट्रेलिया में क्यू सबसे पहले लगेगी। जैसे बाप बच्चों में उम्मीद रखते हैं तो आप सभी उम्मीदों के सितारे हो। चारों ओर ऐसे आवाज़ फैलाओ जो आस्ट्रेलिया का आवाज़। भारत में पहले पहुँच जाए। आवाज़ तब पहुँचेगा जब बुलन्द होगा। बुलन्द आवाज़ करने के लिए चारों ओर से एक आवाज़ निकले कि हमारा बाप गुप्तवेष में आ गया है। जैसे बाप ने आप बच्चों को गुप्त से प्रत्यक्ष किया वैसे आप सबको फिर बाप को प्रत्यक्ष करना है। सब शक्तियाँ मिलकर अंगुली देंगी तो सहज ही हो जायेगा। बहुत अच्छे-अच्छे रतन हैं। एक-एक रत्न की अपनी अपनी विशेषता है। सदा अपने को कल्प पहले वाले रत्न समझ कर चलेंगे तो विजय का जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त हो जायेगा विजयी रहेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
10-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अब वेस्ट और वेट को समाप्त करो
व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन कराने वाले शिव बाबा बोले:-
बापदादा आज विशेष बच्चों की लगन और स्नेह को देख हर्षित हो रहे हैं - कैसे लगन से परवाने समान शमा पर आये हैं। सभी परवानों की एक ही विशेष मिलन की लगन है - इसलिए बापदादा को भी मिलन मनाने के लिए साकार महफिल में आना पड़ता है - हरेक के पुरूषार्थ की रफ्तार को देख बापदादा जानते हैं कि हरेक यथाशक्ति मंजिल पर पहुँचने का संकल्प कर चल रहे हैं। संकल्प एक है, मंजिल भी एक है गाइड भी एक है, श्रीमत भी एक ही है फिर भी नम्बरवार क्यों हैं। है भी सहज मार्ग और वर्तमान स्वरूप भी सहयोगी का है फिर भी स्पीड में अन्तर क्यों है। नम्बरवन और कोई फिर 16 हजार की माला का भी लास्ट मणका। दोनों ही के पुरूषार्थ का समय और साथी एक ही है, पढ़ाई का स्थान भी लास्ट अथवा फर्स्ट का एक ही शिक्षक भी एक है, शिक्षा भी एक ही है फर्स्ट वाले के लिए स्पेशल ट्युशन भी नहीं है फिर भी इतना अन्तर क्यों? कारण क्या है संगमयुग के टाइटिल्स भी बहुत बड़े हैं - फर्स्ट अथवा लास्ट के टाइटिल भी एक है - मास्टर सर्वशक्तिवान मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी, मास्टर जानीजाननहार फिर भी लास्ट क्यों कुल भी एक ही है ब्राह्मण कुल - वंश भी एक ब्रह्मा के हैं कर्तव्य भी एक विश्व कल्याण का है फिर भी इतना अन्तर क्यों? वर्सा भी बेहद के बाप का हरेक के लिए बेहद है - अर्थात् मुक्ति जीवन मुक्ति का अधिकार सभी के लिए अन्तर भी है, क्यों। कारण क्या।
बापदादा ने सब बच्चों के पुरूषार्थ को देख मुख्य दो कारण देखें - एक तो वेस्ट अर्थात् व्यर्थ गँवाना दूसरा वेट अर्थात् वज़न ज्यादा। जैसे आजकल के जमाने में शारीरिक रोगों का कारण वेट जास्ती हैं, सर्व बीमारियों का निवारण वेट कम करना है वैसे पुरूषार्थ की गति के लास्ट और फर्स्ट कारण भी वेट कम न करना जैसे शरीर में भारीपन होने के कारण आटोमेटिकली बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं वैसे आत्मा के बोझ से आत्मिक रोग भी स्वत: पैदा हो जाता है - सबसे ज्यादा वेट बढ़ने का कारण जैसे शारीरिक हिसाब से ज्यादा वेट बढ़ने का कारण सड़ी हुई चीजें कहते हैं वैसे यहाँ भी सड़ी हुई वस्तु अर्थात् बीती हुई बातें जो न सोचने की हैं अर्थात् न खाने की हैं ऐसे सड़ी हुई बातों को बुद्धि द्वारा स्वीकार कर लेते हैं अथवा हर आत्माओं की कमियों वा अवगुणों का स्वयं में धारण करना इसको भी सड़ी हुई वस्तु कहेंगे। तली हुई वस्तु खाने में बड़ी अच्छी लगती है - अपने तरफ आकर्षण भी बहुत करती हैं - न दिल होते भी थोड़ा सा खा लेते हैं - जितना ही आकर्षण वाली होती हैं उतना ही नुकसान वाली भी होती हैं वैसे यहाँ फिर आकर्षण की चीजें हैं एक दो द्वारा व्यर्थ समाचार सुनना और सुनाना। रूप रूहरूहान का होता, लेन-देन करने का होता लेकिन उसका रिजल्ट एक दो के प्रति घृणा दृष्टि होती है। समझते हैं मनोरंजन है लेकिन अनकों के मन को रन्ज करते हैं। तो बाहर का रूप आकर्षण का है लेकिन रिजल्ट गिराना है ऐसी बातों का बुद्धि द्वारा धारण करना अर्थात् सेवन करना इस कारण वेट बढ़ जाता है। जैसे शारीरिक वेट बढ़ने के कारण दौड़ नहीं लगा सकेंगे, चढ़ाई नहीं चढ़ सकेंगे वैसे यहाँ भी पुरूषार्थ में तीव्र गति नहीं प्राप्त कर सकते। हर कदम में चढ़ती कला का अनुभव नहीं कर सकते। वजन भारी वाला हर स्थान पर सेट नहीं हो पाते। वजन भारी वाले को चलते-चलते एक तो रूकना पड़ता है दूसरा किसका सहारा लेना पड़ता है, इसी रीति पुरूषार्थ में चलते-चलते थक जाते हैं अर्थात् विघ्नों के वश हो जाते हैं पार नहीं कर पाते हैं। साथ-साथ कोई न कोई आत्मा को सहारा बनाकर चल सकते। एक बाप का सहारा तो सभी को मिला हुआ है लेकिन यह आत्माओं को सहारा बनाकर चलते। अगर थोड़ा भी आत्माओं का सहारा अर्थात् सहयोग नहीं मिलता तो चल नहीं पाते।
बार-बार कहेंगे सहयोग मिले तो आगे बढ़ें चान्स मिले कोई बढ़ावे तो आगे बढ़े। क्योंकि स्वयं भारी होने कारण दूसरे के सहारे द्वारा अपना बोझ हल्का करना चाहते हैं। इसलिए बापदादा भी कहते हैं वेट कम करो। इसका साधन है - जैसे शारीरिक हल्केपन का साधन है एक्सरसाइज़। वैसे आत्मिक एक्सरसाइज़ योग अभ्यास द्वारा अभी-अभी कर्मयोगी अर्थात् साकारी स्वरूपधारी बन साकार सृष्टि का पार्ट बजाना, अभी-अभी आकारी फरिश्ता बन आकारी वतनवासी अव्यक्त रूप का अनुभव करना - अभी-अभी निराकारी बन मूल वतनवासी का अनुभव करना, अभी-अभी अपने राज्य स्वर्ग अर्थात् वैकुण्ठवासी बन देवता रूप का अनुभव करना। ऐसे बुद्धि की एक्सरसाइज़ करो तो सदा हल्के हो जावेंगे। भारीपन खत्म हो जावेगा। पुरूषार्थ की गति तीव्र हो जावेगी। सहारा लेने की आवश्यकता नहीं होगी। सदा बाप के सहारे अर्थात् छत्रछाया के नीचे अनुभव करेंगे। दौड़ लगाने के बजाए हाईजम्प वाले हो जावेंगे। तो साधन है एक एकसरसाइज़ - दूसरा है खान-पान की परहेज करो। जो बुद्धि द्वारा कोई भी अशुभ वस्तु का सेवन करना अर्थात् धारण करना इसकी परहेज़ करो - जो सुनाया सड़ी हुई और तली हुई वस्तु का सेवन नहीं करो - दूसरा वेस्ट न करो। क्यों वेस्ट करते हो? जो वस्तु जैसी मूल्यवान है उसको वैसे यूज़ न करना इसको भी वेस्ट कहा जाता। बाप द्वारा यह समय संगमयुग का खज़ाना मिला है - संगमयुग का सेकेण्ड अनेक पदमों की वैल्यू का है - सेंकेण्ड का भी स्वयं के प्रति वा सर्व के प्रति पदमों के मूल्य समान यूज़ नहीं किया यह भी वेस्ट किया अर्थात् जैसा मूल्य है वैसे जमा नहीं किया। हर सेकेण्ड में पदमों की कमाई का वरदान ड्रामा में संगम के समय को ही मिला हुआ है - ऐसे वरदान को स्वयं प्रति भी जमा नहीं किया, औरों के प्रति भी दान न किया तो इसको भी व्यर्थ कहा जावेगा। ऐसे नहीं समझो कि कोई पाप तो किया नहीं वा कोई भूल तो की नहीं, लेकिन समय का लाभ न लेना भी व्यर्थ है। मिले हुए वरदान को न स्वयं प्राप्त किया न कराया तो इसको भी वेस्ट अर्थात् व्यर्थ कहेंगे। इसी प्रकार संकल्प भी एक खज़ाना है, ज्ञान भी खज़ाना है, स्थूल धन भी ईश्वर अर्थ समर्पण करने से एक नया पैसा एक रतन समान वैल्यू का हो जाता है, इन सब खज़ानों को स्वयं के प्रति वा सेवा के प्रति कार्य में नहीं लगाते तो भी व्यर्थ कहेंगे। हर सेकेण्ड स्व कल्याण वा विश्व कल्याण के प्रति हों। ऐसे सर्व खजाने इसी प्रति ही बाप ने दिये हैं - इसी कार्य में लगाते हो! कई बच्चे कहते हैं न अच्छा किया न बुरा किया - तो किस खाते में गया! वैल्यू न रखना इसको भी व्यर्थ कहेंगे। इस कारण पुरूषार्थ की रफ्तार तीव्र नहीं हो पाती और इसी के कारण नम्बरवार बढ़ जाते हैं। तो अब समझा नम्बरवार बनने का कारण क्या हुआ। वेट और वेस्ट। इन दोनों बातों को अब समाप्त करो तो फर्स्ट डिवीजन में आ जावेंगे। नहीं तो जास्ती वेट वाले को फिर वेट (इन्तजार) भी करना पड़ेगा। फर्स्ट राज्य के बजाए सेकेण्ड राज्य में आना पड़ेगा। वेट करना पसन्द है वा सीट लेना पसन्द है। अब क्या करेंगे - डबल लाइट बन जाओ। अच्छा –
ऐसे सदा फरिश्ते समान सदा हल्के रहने वाले हर खज़ाने को सदा स्वंय प्रति वा सर्व प्रति कार्य में लगाने वा सदा बाप के सहारे का अनुभव कर सहजयोगी जीवन अपनाने वाले, ऐसे तीव्र पुरूषार्थ बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
दीदी जी के साथ बातचीत:-
महारथी अर्थात् वेटलेस - ऐसे महारथी सदा उड़ने वाली परियों के समान दिखाई देंगे। यह है ज्ञान परियाँ - ज्ञान और विज्ञान इन दोनों पंखों वाली परियाँ का स्थान परिस्तान है। परिस्तान किसको कहते हैं? स्वर्ग को तो परिस्तान कहते ही हैं लेकिन अब भी इस स्थूल स्थान से पर स्थान परिस्थान कौनसा है? दिलतख्त। सबसे बड़े से बड़ा दिलतख्त है - तो दिलतख्तनशीन अर्थात् परिस्तान की परियाँ। इसको कहा जाता परिस्तान की परियाँ। सदा स्थान ही यह हुआ। तख्त से नीचे नहीं आते। तख्त से नीचे आना अर्थात् बाप के सम्मुख के बजाए किनारे होना - जैसे बाप सदा बच्चों के सन्मुख हैं वैसे बच्चे भी सदा बाप के सन्मुख हैं। बाप के सन्मुख कौन रहते? बच्चे। भक्त किनारे रहते बच्चे सदा सन्मुख रहते। तो इसको कहेंगे परिस्तान की परियाँ। परियों का भी संगठन होता है साथ-साथ उड़ती हैं। जहाँ चाहें वहाँ उड़कर पहुँच सकती हैं - कोई आधार की आवश्यकता नहीं। तो ऐसी परिस्तान की परियाँ जो जब चाहें वहाँ उड़ सकें इसको कहा जाता है महारथी। महारथियों की अवस्था का यादगार चित्र भी है - हरेक गोपी के साथ गोपी वल्लभ का चित्र देखा है। हरेक गोपी के मुख से यही निकलता कि मेरा गोपी वल्लभ। तो ऐसे सदा साथ का चित्र यह है स्थिति का यादगार चित्र। एक दो से अलग नहीं - सदा साथ है। बाप पर पूरा हरेक का अधिकार है। ऐसे अधिकारियों का यह चित्र है जिन्होंने सदा के लिए बाप को अपना साथी बना लिया है - यह है महारथियों की स्थिति का चित्र। महारथी अर्थात् सदा साथ रहने वाले। साथ निभाने का यह चित्र है - महारथियों के सिवाए और आत्माएं तो कब सन्मुख, कब किनारा कर लेती। सदा साथ का अनुभव नहीं कर सकती। साथ छूटता और साथ पकड़ते हैं - इसलिए उन्हों का यह यादगार नहीं कह सकते। अच्छा –
महारथियों ने पुरूषार्थ की कोई नई इन्वेन्शन निकाली है जो बहुत रिफाइन हो - संकल्प किया और हुआ - इसको कहते हैं रिफाइन। ऐसा सहज साधन निकालो जिससे साधना कम हो और सिद्धि ज्यादा हो। जैसे आजकल साइन्स वाले इन्वेन्शन करते हैं दुख कम हो - और जिस कार्य अर्थ करते हैं वह सफलता भी ज्यादा हो - इसी प्रकार पुरूषार्थ के साधनों में ऐसा सहज साधन इनवैन्ट को अपने अनुभवों के आधार पर जो जैसे सेकेण्ड में साइन्स के साधन विधि को पाता है वैसे यह साइलेन्स का साधन सेकेण्ड में विधि प्राप्त हो। बाप नॉलेज देते हैं लेकिन जैसे साइन्स प्रयोगशालाओं में सब इन्वेन्शन प्रैक्टिकल में लाते हैं, ऐसे प्रयोग में तो आप बच्चे लाते हैं, प्रयोग में लाने वाले साधन अर्थात् अनुभव में लाने वाले साधन - उनमें से ऐसा कोई सहज साधन सुनाओ जिसमें मेहनत कम हो और अनुभव ज्यादा हो - ऐसे चारों ओर के वातावरण, चारों ओर की कमजोर आत्माओं के समाचार प्रमाण ऐसा साधन निकालो - जैसी बीमारी होती है वैसी दवाई निकाली जाती है - तो चारों ओर के समाचार अनुसार ऐसा साधन निकालो और फिर प्रैक्टिकल करके दिखायें अब महारथियों को ऐसा नया साधन इनवैन्ट करना चाहिए। ऐसा ग्रुप हो जिसको रीसर्च ग्रुप कहते हैं - अब समझा महारथियों को क्या करना है - फिर कारोबार भी हल्की हो जायेगी।
जैसे पहले-पहले मौन व्रत रखा था तो सब फ्री हो गए थे, टाइम बच गया था - तो ऐसा कोई साधन निकालो जिससे सबका टाइम बच जाए - मन का मौन हो व्यर्थ संकल्प आवे ही नहीं। यह भी मन का मौन है ना। जैसे मुख से आवाज़ न निकले वैसे व्यर्थ संकल्प न आयें - यह भी मन का मौन है। तो व्यर्थ खत्म हो जावेगा। सब समय बच जावेगा, तब फिर सेवा आरम्भ होगी। मन के मौन से नई इन्वेन्शन निकलेगी - जैसे शुरू के मौन से नई रंगत निकली वैसे इस मन के मौन से नई रंगत होगी। तो अभी पहले निमित्त कौन बनेंगे। महारथी ग्रुप - जो बाप द्वारा युक्तियाँ मिलती रहती हैं उनको प्रयोग करने के रूप में लाओ। वह रूप रेखा सभी को नहीं आती। वर्णन करना आता है लेकिन उसी साधन से सिद्धि को प्राप्त करें वह प्रयोग करना नहीं आता है - इसलिए योग भी नहीं लगता - तो ऐसा प्लैन बनाओ जिससे सहज ही विधि प्राप्त हो। अच्छा।
12-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
वरदाता बाप द्वारा मिले हुए खुशी के खज़ानों का भंडार
विश्व के रचयिता, सर्व खज़ानों के दाता, सर्व वरदानों के दाता बाप-दादा बोले:-
बाप-दादा बच्चों के राजभाग्य को देख कर हर्षित हो रहे हैं। सारी सृष्टि की सर्व आत्माओं से कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं। कितनी सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मायें हैं। इस समय की सम्पन्नता का गायन आप श्रेष्ठ आत्माओं के कारण स्थान का गायन सदा चलता आ रहा है। अब अन्त तक भी भारत भूमि का गायन विदेश में भी महान है। स्थान का महत्व आप चैतन्य महान आत्माओं के कारण है। आज तक भी आध्यात्मिक खजाने के लिए सबकी नज़र भारत के तरफ ही जाती है। स्थूल धन में गरीब माना जाता है लेकिन आध्यात्मिक खज़ाने अविनाशी सुख और शान्ति, शक्ति इन खज़ानों में भारत ही सबसे सम्पत्तिवान गाया जाता है - तो आपकी इस संगमयुगी की सम्पन्न स्थिति के कारण ही स्थान का गायन है। इतने खज़ानों से सम्पन्न होते हो जो आधा कल्प वही प्राप्त खजाने चलते रहते हैं। इतना खज़ाना जमा होता जो अनेक जन्म खाते रहते। ऐसा कभी कोई सारे कल्प में नहीं बन सकता। संगमयुग सर्व युगों में से छोटा युग होने के कारण इनकी बहुत थोड़ी-सी आयु है। जितनी छोटी-सी जीवन है छोटा-सा युग है इतनी कमाई सब युगों से श्रेष्ठ है। सदा अपने खज़ानों को स्मृति में रखते हो। क्या-क्या खज़ाने मिले हैं, किस द्वारा मिले हैं और कितने समय तक चलने वाले हैं - बाप ने खज़ाने तो सबको एक समान दिये हैं किसको एक लाख, किसको हजार नहीं दिया हे। सब बच्चों को बेहद का अखुट खज़ाना बाप द्वारा मिला है। ऐसे अखुट खज़ाने से स्वयं को सदा भरपूर तृप्त आत्मा समझते हो! तृप्त आत्मा को सदा बाप और खज़ाना ही सामने रहता है। सदा इसी नशे में झूमते रहते हैं - सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना, जिस खज़ाने के लिए अनेक आत्मायें अनेक प्रकार के साधनों को अपनाती हैं फिर भी वन्चित हैं। वह कौनसा खज़ाना आपको मिल गया है। आज दुनिया में किस खजाने की इच्छा है जिस इच्छा के कारण आत्मायें जगह-जगह भटक रही हैं। आप सबके पास सिर्फ अब के लिए नहीं लेकिन अनेक जन्मों के लिए भी जमा है - वह कौन-सा खज़ाना मिला है? सबसे बड़े से बड़ा खज़ाना है खुशी का खज़ाना। इसी खुशी के लिए लोग तड़फते हैं। और आप सब सदा खुशी में नाचने वाले हो। आप सबके यादगार चित्र में भी खुशी का पोज़ दिखाया हुआ है - अपना चित्र याद है ना! अमृतवेले से लेकर इस खुशी के खज़ाने को यूज़ करो - सोचो - वा अपने आप से बातें करो - ऑख खुलते कौन सामने आता है! पहले-पहले संकल्प में किससे मिलन होता है - विश्व के रचता, सर्व खज़ानों के दाता, सर्व वरदानों के दात बीज से मिलन होता है। जिसमें सारा वृक्ष समाया हुआ है - सर्व आत्मायें भिखारी बन बाप की एक सेकेण्ड की झलक देखने की इच्छा से कितने कठिन मार्ग अपनाते हैं - और आप श्रेष्ठ आत्मायें सर्व सम्बन्धों से मिलन मनाने के अनुभवों के श्रेष्ठ खजाने के अधिकारी हो - तो सबसे पहली खुशी की बात है अमृतवेले सर्व सम्बन्ध से बाप से मिलन मनाना। दुनिया भिखारी है और आप हो बच्चे - इससे बड़ी खुशी और कोई हो सकती है क्या - तो अमृतवेले से इस खुशी के खजाने को यूज़ करो। यूज़ करना ही खज़ानों की चाबी है।
दूसरा खुशी का खज़ाना, इतनी सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें हो जो स्वयं भगवान आपको पढ़ाने के लिए परमधाम से आते हैं। लण्डन वा अमेरिका से नहीं आते हैं - इस लोक से भी पार जहाँ तक साइन्स वाले स्वप्न में भी पहुँच नहीं सकते ऐसे परमधाम से स्पेशल आपके पढ़ाने के लिए आते हैं। और फिर पढ़ाने की फी नहीं लेते। और ही पढ़ाई की प्रालबध स्वर्ग का स्वराज्य स्वयं नहीं लेते, आपको देते हैं। तो इससे बड़ी खुशी और क्या होती है। इस स्मृति से खज़ाने को यूज़ करो - इससे आगे चलो।
कार्य करते हुए कर्मयोगी का पार्ट बजाते कर्मयोगी अर्थात् सदा बाप के साथ रहते हुए हर कार्य करने वाला कर्मयोगी के समय भी चाहे कोई भी कर्म कर रहे हो। लौकिक वा अलौकिक लेकिन आलमाइटी अथॉरिटी आपका साथी अर्थात् फ्रेंड बनकर हर समय साथ निभाते हैं। ऐसा फ्रेंड फिर कभी मिल नहीं सकता। कभी फ्रेंडशिप निभाते हैं - कभी कम्बाइन्ड युगल रूप निभाते हैं - ऐसा कम्बाइन्ड स्वरूप विचित्र युगल रूप जो सदा आपको कहते हैं - सारा बोझ हमें दे दो - और तुम सदा हल्के रहो - जहाँ भी कोई मुश्किल कार्य आये तो वह मुझे अर्पण कर दो तो मुश्किल सहज हो जावेगा। ऐसे कर्मयोग के पार्ट में सदा साथी पन के खज़ाने को वा सदा साथ के खुशी को यूज़ करो - और आगे चलो –
जब कार्य से खाली हो जाओ तो सबसे बड़े ते बड़ा मनोरंजन का धन प्राप्त है - अगर आपको सैर करने की रूचि है वा देखने की रूचि है, पढ़ने की रूचि है, श्रृंगार की रूचि है, डान्स की रूचि है, रूह-रूहान करने की रूचि है जो भी रूचि हो वह सब मनोरंजन के साधन आप के साथ हैं। देखने चाहते हो तो स्वर्ग को देखो - संगमयुग की श्रेष्ठता को देखो। अपने और बाप के कर्तव्य की अलौकिक कहानी का ड्रामा देखो। सैर करना चाहते हो तो तीन लोकों का सैर करो। श्रृंगार करना चाहते हो तो हर गुण के विस्तार से स्वयं को सजा लो। ड्रामा देखने चाहते हो तो पांच हजार वर्ष का ड्रामा देखो। हिस्ट्री पढ़ने चाहते हो तो अपने 84 जन्मों की हिस्ट्री देखो। रूह-रूहान करना चाहते हो तो रूह बन रूहों के रचता से रूह-रूहान करो। और क्या चाहिए। इन सब साधनों से सदा अपने को खुश रखो अर्थात् खजाने को यूज़ करो।
भोजन बनाते हो, भोजन बनाने के समय पहले भोग लगाना है अर्थात् प्यारे ते प्यारे बाप को स्वीकार कराना है - इस स्मृति से भोजन बनाओ कि किसको खिलाना है! आजकल की दुनिया में अगर कोई प्राईम मिनिस्टर वा प्रेजीडेन्ट आपके पास खाने आते हैं कितनी खुशी होती है लेकिन बाप के आगे यह सब क्या हैं! तो सदा बाप आपके साथ भोजन खाते हैं - भक्त बिचारे बार-बार घण्टियाँ बजा-बजा कर थक जाते हैं, बुलाते-बुलाते भूल भी जाते हैं - लेकिन बच्चों के साथ बाप का वायदा है सदा साथ रहेंगे। तुम्हीं से खावें, तुम्हीं से बैठें, तो इससे बड़ी खुशी और क्या चाहिए - तो भोजन के समय भी तुम्हीं से खाऊं यह सलोगन याद रखो - ऐसे खुशी के खजाने को यूज़ करो। और आगे चलो।
अभी दिन का अन्त समय आ गया - अर्थात् रात का समय आया - अब रात को क्या करेंगे? सोने के पहले सारे दिन के समाचार की लेन-देन चाहे कम्बाइन्ड रूप में करो - चाहे बाप के रूप में करो - एक दिन का समाचार दो और दूसरे दिन का श्रेष्ठ संकल्प और कर्म की प्रेरण लो - सब समाचार की लेन-देन करना अर्थात् हल्के बन जाना। जैसे रात को हल्की ड्रेस से सोते हैं ना - ऐसे बुद्धि को हल्का करना अर्थात् हल्की ड्रेस पहनना है - ऐसे तैयार हो साथ में सो जाओ - अकेले नहीं सोओ - अकेले होंगे तो माया चान्स लेगी, इसलिए सदा साथ रहो। अकेले रहने से डर भी लगता है, निर्भय भी हो जावेंगे। आप निर्भय रहेंगे ओर माया डराएगी। तो ऐसे सदा साथ के खुशी के खजाने को सारी रात के लिए यूज़ करो। अब बताओ सारे दिन में श्रेष्ठ खुशी के खजाने प्राप्त होते हुए भी श्रेष्ठ आत्मा कभी उदास हो सकती है! वा अन्य कोई मनोरंजन के तरह वा अल्पकाल के खज़ानों की तरफ आकर्षित हो सकती हैं! ऐसी श्रेष्ठ अर्थात् सम्पन्न आत्मायें हैं। आपके नाम से भी जब अनेक भक्त अल्पकाल की खुशी में आ जाते हैं। आपके जड़ चित्रों को देख खुशी में नाचने लगते हैं। ऐसे खुशनसीब आप सब को खज़ाने बहुत मिले हैं, अब सिर्फ यूज़ करो अर्थात् चाबी लगाओ। चाबी होते हुए भी समय पर नहीं मिलती है - समय पर खो जाती है इसलिए सदा सामने रखो अर्थात् सदा स्मृति में रखो। बार-बार स्वरूप स्मृति को रिफ्रेश करो। खज़ाना क्या और चाबी क्या! हर कर्म में जैसे सुनाया वैसे प्रैकिकल में लाओ - अर्थात् स्मृति को स्वरूप में लाओ। समझा - क्या करना है। अच्छा –
ऐसे सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्मायें हर कर्म में बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले सदा बाप को अपना साथी अनुभव करने वाले सदा माया के भय से निर्भय रहने वाले ऐसी तृप्त आत्माओं को, खजाने के मालिक आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।ओम् शान्ति।
पार्टीयों के साथ मुलाकात (कर्नाटक जोन)
1. सदा अपना कल्प पहले वाला सम्पन्न फरिश्ता स्वरूप सामने रहता है? कल्प पहले भी हम ही फरिश्ते थे - और अब भी हम ही फरिश्ते हैं। ऐसे अनुभव होता है? फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के साथ सर्व रिश्ता हो। अर्थात् सर्व सम्बन्ध हो। एक बाप दूसरा न कोई ऐसे अनुभव होता है कि और भी सम्बन्ध स्मृति में आते हैं, जिसके सर्व सम्बन्ध एक बाप के साथ होंगे उसको और सब सम्बन्ध निमित्त मात्र अनुभव होंगे। वह सदा खुशी में नाचने वाले होंगे। कभी भी थकावट का अनुभव नहीं करेंगे बाप समान स्टेज वाले सदा अथक होंगे, थकेंगे नहीं। सदा बाप और सेवा इसी लगन में मगन होंगे। तो हरेक विघ्न विनाशक हो या लगन और विघ्न दोनों साथ-साथ चलते हैं? विघ्नों के आने से रूकने वाले तो नहीं हो, हर कल्प विघ्न आये हैं और हर कल्प विघ्न विनाशक बने हो। जो हर कल्प के अनुभवी हैं उनको रिपीट करने में क्या मुश्किल! सदा यह स्मृति रहे कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं। अनेक बार कर चुके हैं अब सिपर् रिपीट कर रहे हैं, तो सहज योगी होना चाहिए ना - क्या करें कैसे करें, इन सब कम्पलेन (Complaint) से कम्पलीट (Complete) कम्पलीट आत्माओं की सब कम्पलेन खत्म हो जाती हैं। सम्पन्न होना अर्थात् सन्तुष्ट, असन्तुष्ट होने का कारण है अप्राप्ति, अप्राप्ति ही असन्तुष्टता को जन्म देती है। अप्राप्त नहीं कोई वस्तु...यह देवताओं का गायन नहीं, आप ब्राह्मणों का गायन है, मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है सम्पन्न स्वरूप। जैसा लक्ष्य होता वैसे लक्षण भी होते हैं, लक्ष्य एक हो और लक्षण दूसरे हों, लक्ष्य है सम्पूर्ण बनने का और धारणा अर्थात् प्रैक्टिकल रूप में कमी हैं तो अन्तर हुआ ना। अच्छा - सभी सदा हंसते रहते हो - रोते तो नहीं हो! रोने वाले बाप के युगल नहीं बन सकते। क्या करूँ, चाहता हूँ यह होने नहीं देते, मदद करो, कृपा करो यह भी रोना है, ऐसे रोने वालों को बाप अपने साथ कैसे ले जायेंगे! साथ चलने के लिए जैसा बाप वैसे बच्चे बनो, बाप समान बनो, जो भी कर्म करो पहले चेक करो यह बाप समान है, बाप समान नहीं है तो कट कर दो, आगे नहीं बढ़ो। कोई भी कर्म अगर श्रेष्ठ नहीं साधारण है तो उसे परिवर्तन कर श्रेष्ठ बनाओ, इससे सदा सम्पन्न अर्थात् बाप समान हो जायेंगे।
2. अनेक आत्माओं की दुआयें प्राप्त करने का साधन सेवा - सभी बाप के सहयोगी विश्व कल्याणकारी समझकर हर कार्य करते हो? जब यह लक्ष्य रहता है कि हम विश्व कल्याणकारी हैं तो अकल्याण का कर्तव्य हो नहीं सकता, जैसा कार्य होता है वैसी अपनी धारणायें होती हैं, अगर कार्य याद रहे तो सदा रहमदिल रहेंगे, सदा महादानी रहेंगे। विश्व कल्याणकारी की स्मृति से स्वयं भी हर कदम में कल्याणकारी की स्मृति से स्वयं भी हर कदम में कल्याणकारी वृति से चलेंगे और चलायेंगे। स्वयं प्रति भी हर कदम कल्याणकारी हो तब विश्व का कल्याण हो सकता है, सदा यह याद रहे कि निमित्त मात्र यह कार्य कर रहे हैं मैं पन समाप्त हो जायें और निमित्त पन याद रहे, ऐसे सदा सेवा करने से बाप की याद स्वत: रहती है। जितनी सेवा करते उतनी विश्व की अनेक आत्माओं द्वारा दुआयें मिलती हैं। आशीर्वाद मिलती हैं। अच्छा –
3. ईश्वरीय नशे की मस्ती से कर्मातीत अवस्था का निशाना अति समीप - आप श्रेष्ठ आत्मायें ज्ञान सागर बाप द्वारा डायरेक्ट सर्व प्राप्ति करने वाली हो और जो भी आत्मायें हैं वह श्रेष्ठ आत्माओं के द्वारा कुछ न कुछ प्राप्ति करती हैं, लेकिन आप डायरेक्ट बाप द्वारा सर्व प्राप्ति करने वाले हो, ऐसा श्रेष्ठ नशा रहता है? जितना नशा होगा उतना अपना कर्मातीत अवस्था का निशाना नज़दीक दिखाई देगा। अगर नशा कम होगा तो निशाना भी दूर दिखाई देगा। इस ईश्वरीय नशे में रहने से दुखों की दुनिया को सहज ही भूल जाते हैं, उस नशे में भी सब कुछ भूल जाता है ना तो इस ईश्वरीय नशे में रहने से सदाकाल के लिए पुरानी दुनिया भूल जाती। इस नशे में कोई नुकसान नहीं, जितना नशा चढ़ाओ उतना अच्छा, उस नशे को तो ज्यादा पिया तो खत्म हो जाते। यहाँ इस नशे से अविनाशी बन जाते। जो नशे में रहते हैं उनको देखने वाले भी अनुभव करते कि यह नशे में हैं, ऐसे आपको भी देख यह अनुभव करें कि यह नशे में हैं। अभी- अभी नशा चढ़ा अभी-अभी उतरा तो जो मज़ा आना चाहिए वह नहीं आयेगा, इसलिए सदा नशे में मस्त रहो, इस नशे में सर्व प्राप्ति है। एक बाप दूसरा न कोई यह स्मृति ही नशा चढ़ाती है। इसी स्मृति से समर्थी आ जाती।
सुना तो बहुत है अब जो सुना है उसका स्वरूप बन साक्षात कराओ। बापदादा सभी बच्चों को चैतन्य साक्षात्कार कराने वाली साक्षात मूर्तियाँ देखना चाहते हैं, जब चैतन्य मूतियाँ तैयार हो जायेंगी तब यह जड़ मूर्तियाँ समाप्त हो जायेंगी और यही भारत बेहद का मन्दिर बन जायेगा, अनेक समाप्त होकर एक ही बड़ा मन्दिर हो जायेगा। अच्छा।
4. संगमयुग के समय को हर कदम में पदमों की कमाई का वरदान - सदा स्वयं को हर कदम में पदमों की कमाई करने वाले पदमापदम भाग्यशाली आत्मायें समझते हो - चेक करते हो कि हर कदम में जमा होता जा रहा है! संगमयुग को यही वरदान मिला हुआ है, हर कदम में पदम जमा। तो एक सेकेण्ड भी वा एक कदम भी जमा नहीं किया तो कितना नुकसान हो गया, लौकिक में भी अगर कोई दिन कमाई नहीं होती है तो चिंता लग जाती है, वह तो हद की कमाई है यह बेहद की कमाई है, अभी का एक कदम पदमों की कमाई जमा करने वाला है तो यहाँ कितना अटेन्शन चाहिए। इतना अटेन्शन है कि साधारण कदम उठाते हो? अभी अलौकिक जन्म हुआ तो हर कदम अलौकिक होना चाहिए, साधारण नहीं। जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले होंगे उनकी निशानी क्या दिखाई देंगी? उनके चेहरे से सदा प्राप्ति की झलक दिखाई देगी, जैसे स्थूल कोई चीज की चमक दिखाई देती है ना वैसे प्राप्ति की, झलक चेहरे से दिखाई देगी। सम्पर्क में आने वाले भी समझेंगे कि इनको कुछ प्राप्त हुआ है। वह स्वयं ही आकर्षित हो करके आपके सामने आयेंगे, तो आपका सम्पन्न चेहरा सेवा के निमित्त बन जायेगा। सभी सदा खुश रहते हो कि कभी-कभी खुशी का खज़ाना माया छीन ले जाती है, माया का गेट बन्द है या खुला हुआ है! अब गेट में अच्छी तरह से डबल लाक लगाओ - सिंगल लाक भी माया खोल कर अन्दर आ जायेगी। डबल लाक अर्थात् याद और सेवा में बिजी रहो, अगर सिर्फ याद में होंगे सेवा में नहीं तो भी माया आ जायेगी। डबल लाक में माया अन्दर नहीं आयेगी। खटकायेगी अन्दर नहीं आयेगी अर्थात् वार नहीं करेगी। मन्सा सेवा भी बहुत है, अपनी वृति से वातावरण को शक्तिशाली बनाओ। सारे विश्व का परिवर्तन है ना, तो वृति से वातावरण परिवर्तन होगा। अच्छा।
5. फर्स्ट जन्म की सम्पन्न स्टेज तक पहुँचने का साधन - हाईजम्प :- अभी पुरूषार्थ का समय गया, क्योंकि समय की स्पीड बहुत तीव्र है, पीछे आने वालों को थोड़े समय में सब पढ़ाई पूरी करनी है। इसलिए तीव्र पुरूषार्थ कर हाईजम्प लगाओ। तीव्र पुरूषार्थ के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन रखो - अपनी सम्पूर्ण स्टेज को सामने रखते वर्तमान का पोतामेल चैक करो - सम्पूर्ण स्टेज 16 कला है, तो 16 कलाओं में कितनी कलायें मैंने धारण की, ऐसे चैक करते जाओ, जो कमी है उसको भरते जाओ इसको कहा जाता है पुरूषार्थ। अच्छा –
विदाई के समय - जैसे बाप बच्चों को देख खुश होते हैं वैसे हर बच्चा सदैव खुशी में नाचता रहे। वह खुशी का चेहरा वाणी से भी ज्यादा सेवा करता है, चेहरा चैतन्य चलता फिरता म्युजियम हो जाए, जैसे म्यूजियम में भिन्न-भिन्न चित्र रखते हो - वैसे चेहरे में बाप के सर्व गुण दिखाई दें - मुख की सर्विस से तो जाकर के सुनाना पड़ता है, चेहरे द्वारा न बुलाते भी आप ही आयेंगे। तो अभी सब अपने को चैतन्य म्यूजियम बनाओ। जब इतने सारे म्यूजियम बन जायेंगे तभी स्वर्ग का उद्घाटन होगा। ब्रह्मा बाप इसी उद्घाटन के लिए रूके हुए हैं, तो जल्दी तैयार हो जाओ तो जल्दी उद्घाटन हो। कब उद्घाटन करेंगे? डेट फिक्स हो सकती है कि अचानक होगा, क्या होगा?
संगमयुग तो अच्छा है लेकिन सबको सुख और शान्ति देने का भी संकल्प चाहिए, औरों को दुखी देख, तड़फता हुआ देख रहम भी तो आना चाहिए ना। अच्छा - ओम् शान्ति।
14-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार - पवित्रता
पवित्रता, सुख और शान्ति का ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त करने वाले वत्सों के प्रति बाप-दादा बोले:-
आज अमृतवेले बाप-दादा बच्चों के मस्तक द्वारा हरेक की प्यूरिटी (Purity) की परसनाल्टी देख रहे थे - हरेक में नम्बरवार पुरूषार्थ प्रमाण प्यूरिटी की झलक चमक रही थी। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार प्यूरिटी ही है। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठता प्यूरिटी ही है - प्यूरिटी ही इस भारत देश की महानता है, प्यूरिटी ही आप ब्राह्मण आत्माओं की प्रोस्पेर्टी (Prosperty) है जो इस जन्म में प्राप्त करते हो वही अनेक जन्मों के लिए प्राप्त करते हो। प्यूरिटी ही विश्व परिवर्तन का आधार है, प्यूरिटी के कारण ही आज तक भी विश्व आपके जड़ चित्रों को चैतन्य से भी श्रेष्ठ समझता है। आजकल की नामीग्रामी आत्मायें भी प्यूरिटी के आगे सिर झुकाती रहती हैं। ऐसी प्यूरिटी तुम बच्चों को बाप द्वारा जन्म-सिद्ध अधिकार में प्राप्त होती है - लोग प्यूरिटी को मुश्किल समझते हैं लेकिन आप सब अति सहज अनुभव करते हो - प्यूरिटी की परिभाषा तुम बच्चों के लिए अति साधारण है - क्योंकि स्मृति आयी कि वास्तविक आत्म स्वरूप है ही सदा प्योर। अनादि स्वरूप भी पवित्र आत्मा है। और आदि स्वरूप भी पवित्र देवता है, और अब का अन्तिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है - इस स्मृति के आधार पर पवित्र जीवन बनाना अति सहज अनुभव करते हो - अपवित्रता परधर्म है पवित्रता स्वधर्म है। स्वधर्म को अपनाना सहज लगता है। आज्ञाकारी बच्चों को बाप की पहली आज्ञा है - पवित्र बनो तब ही योगी बन सकेंगे। इस आज्ञा का पालन करने वाले आज्ञाकारी बच्चों को बाप दादा देख हर्षित होते हैं। उसमें भी विशेष आज विदेशी बच्चों को, जिन्होंने बाप की इस श्रेष्ठ मत को धारण कर जीवन को पवित्र बनाया है, ऐसे पवित्र आज्ञाकारी आत्माओं को देख बच्चों के गुणगान करते हैं। बच्चे ज्यादा बाप के गुणगान करते हैं वा बाप बच्चों के ज्यादा गुणगान करते हैं? बाप के सामने वतन में विशेष श्रृंगार कौनसा है?
जैसे आप लोग यहाँ कोई स्थान का श्रृंगार मालाओं से करते हो - बापदादा के पास भी हर बच्चे के गुणों की माला की सजावट है। कितनी अच्छी सजावट होगी! दूर से ही देख सकते हो ना - हरेक अपनी माला का नम्बर भी जान सकते हैं कि हमारी गुण माला बड़ी है वा छोटी है - बापदादा के अति समीप हैं, सन्मुख हैं वा थोड़ा सा किनारे हैं। समीप किन्हीं की माला होती, यह तो जानते हो ना। जो बाप के गुणों और कर्तव्य के समीप हैं वही सदा समीप हैं - हर गुण से बाप का गुण प्रत्यक्ष करने वाले हैं, हर कर्म से बाप के कर्तव्य को सिद्ध करने वाले समीप रतन हैं।
आज बापदादा प्यूरिटी की सबजेक्ट में मार्क्स दे रहे थे - मार्क्स देने में विशेषता क्या देखी - पहली विशेषता मन्सा की पवित्रता - जब से जन्म लिया तब से अभी तक संकल्प में भी अपवित्रता के संस्कार इमर्ज न हों। अपवित्रता अर्थात् विष को छोड़ चुके। ब्राह्मण बनना अर्थात् अपवित्रता का त्याग। अपवित्रता का त्याग और पवित्रता का श्रेष्ठ भाग्य। ब्राह्मण जीवन में संस्कार ही परिवर्तन हो जाते हैं। मन्सा में सदा श्रेष्ठ स्मृति - आत्मिक स्वरूप अर्थात् भाई-भ्ई की रहती है - इस स्मृति के आधार पर मन्सा प्यूरिटी के मार्क्स मिलते हैं। वाचा में सदा सत्यता और मधुरता - विशेष इस आधार पर वाणी की मार्क्स मिलती हैं। कर्मणा में सदा नम्रता और सन्तुष्टता इसका प्रत्यक्ष फल सदा हर्षितमुखता होगी, इस विशेषता के आधार पर कर्मणा में मार्क्स मिलती हैं। अब तीनों को सामने रखते हुए अपने आपको चैक करो कि हमारा नम्बर कौनसा होगा। विदेशी आत्माओं का नम्बर कौनसा है?
आज विशेष मिलने के लिए आए हैं - कोई आत्माओं के कारण बाप को भी विदेशी से देशी बनना पड़ता है - सबसे दूर देश का विदेशी तो बाप है - विदेशी बाप इस लोक के विदेशियों से मिलने आये हैं। भारतवासी भी कम नहीं हैं - भारतवासी बच्चों का विदेशियों को चान्स देना भी भारत की महानता है - चान्स तो देने वाले भारतवासी सब चान्सलर हो गये। विदेशियों की विशेषता को जानते हो? जिस विशेषता के कारण नम्बर आगे ले रहे हैं - विशेष बात यह है कि कई विदेशी बच्चे आने से ही अपने को इसी परिवार के, इसी धर्म की बहुत पुरानी आत्मायें अनुभव करते हैं, इसी को कहा जाता है आने से ही अधिकारी आत्मायें अनुभव होते। मेहनत ज्यादा नहीं लेते - सहज ही कल्प पहले की स्मृति जागृत हो जाती है। इसलिए ‘हमारा बाबा’ यह बोल अनुभव के आधार से बहुत जल्दी कईयों के मुख से वा दिल से निकलता है। दूसरी बात गाडली स्टडी की विशेष सबजेक्ट सहज राजयोग - इस सबजेक्ट में मेजोरिटी विदेशी आत्माओं को अनुभव भी बहुत अच्छे और सहज होने लगते हैं। इस मुख्य सबजेक्ट के तरफ विशेष आकर्षण होने के कारण निश्चय का फाउन्डेशन मजबूत हो जाता है। यह है दूसरी विशेषता। अंगद के समान मजबूत हो ना - माया हिलाती तो नहीं हैं - आज विशेष विदेशियों का टर्न है इसलिए भारत के बच्चे साक्षी हैं –
भारतवासी बच्चे अपने भाग्य को तो अच्छी रीति जानते हैं - विदेशियों को भी राज्य तो यहाँ ही करना है ना - अपने भाग्य को जानते हो। आगे चल सेवा के निमित्त बनन का अच्छा पार्ट है। भाग्य प्राप्त हुआ देख सभी को खुशी होती है। (दादाराम सावित्री का परिवार मधुबन आया है - उन्हों को देख बाबा कहे) किसी विशेष भाग्यशाली आत्माओं (राम सावित्री) के कारण परिवार का भी भाग्य है। जब कोई संकल्प सिद्ध होता है तो खुशी जरूर होती है। अच्छा –
ऐसे सदा खुशी में झूमने वाले, सदा अपने भाग्य के सितार को चमकता हुआ देख चढ़ती कला की ओर जाने वाले, सदा प्यूरिटी की परसानाल्टी वाले, प्यूरिटी की महानता के आधार पर विश्व को परिवर्तन करने वाले, विश्व कल्याणकारी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टीयों से मुलाकात
लन्दन पार्टी :- सभी अपने को सदा बाप के साथी अनुभव करते हो? कम्बाइन्ड रूप अपना देखते हो ना - अकेले नहीं, जहाँ बच्चे हैं वहाँ बाप हर बच्चे के साथ है। सदैव बाप की याद के छत्रछाया के अन्दर हो। किसी भी प्रकार के माया के विघ्न छत्रछाया के अन्दर आ नहीं सकते। तो जहाँ भी रहते हो, जो भी कार्य करते हो - लेकिन सदा ऐसे अनुभव करो कि हम सेफ्टी के स्थान पर हैं, ऐसे अनुभव करते हो? खास विदेशियों के ऊपर बापदादा का विशेष स्नेह और सहयोग है। विदेशी आत्मायें सेवा के क्षेत्र में भी अपना अच्छा पार्ट आगे चल करके बजायेंगी। सेवा का भविष्य भी बहुत अच्छा है। सेवा का नया प्लैन क्या बनाया है? जनरल प्रोग्राम के साथ-साथ विशेष आत्माओं की सेवा करो - उसके लिए मेहनत जरूर लगेगी लेकिन सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, यह नहीं सोचो बहुत किया है फल नहीं दिखाई देता। फल तैयार हो रहे हैं। कोई भी कर्म का फल निष्फल हो ही नहीं सकता, क्योंकि बाप की याद में करते हो ना। याद में किये हुए का फल सदा श्रेष्ठ रहता है। इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनना। जैसे बाप को निश्चय है कि फल निकलना ही है वैसे स्वयं भी निश्चयबुद्धि रहो। कोई फल जल्दी निकलना कोई थोड़ा देरी से इसलिए इसका भी सोचो नहीं - करते चलो, अभी जल्दी ही ऐसा समय आयेगा जो स्वत: आपके पास इनक्वायरी करने आयेंगे कि यह सन्देश वा सूचना कहाँ से मिली थी। थोड़ा सा विनाश का ठका होने दो सिर्फ - तो फिर देखो कितनी लम्बी क्यू लग जाती है फिर आप लोग कहेंगे हमको समय नहीं है, अभी वह लोग कहते हैं हमें टाइम नहीं, फिर आप कहेंगे टू लेट।
जिस बात में मुश्किल अनुभव करो वह मुश्किल की बात बाप पर छोड़ दो - स्वयं सदा सहजयोगी रहो। सहजयोगी रहना ही सदा सर्विस करना है। आपकी सूक्ष्म योग की शक्ति स्वत: ही आत्माओं को आपके तरफ आकर्षित करेगी तो यही सहज सेवा है, यह तो सभी करते हो ना। लण्डन निवासियों ने सेवा का विस्तार अच्छा किया है। हमजिन्स अच्छी तैयार की है? माला तैयार हो गई है? 108 रतन तैयार किये हैं? अब लण्डन वाले ऐसा ग्रुप तैयार करें जिसमें सब वैरायटी हों, वैज्ञानिक भी हों, धार्मिक भी हों, नेतायें भी हों, और जो भिन्न-भिन्न ऐसेसियेशनस हैं उनकी भी विशेष आत्मायें हों। जब तक स्थापना के लिए सब प्रकार की वैरायटी आत्मायें स्थापना के कार्य में बीज नहीं डालेगी तो विनाश कैसे होगा! क्योंकि सतयुग में सब प्रकार के कार्य वाले काम में आयेंगे। सेवाधारी बनकर आपकी सेवा करेंगे। अभी एक जन्म थोड़े समय की आप सेवा कर ऐसे सेवाधारी तैयार करो जो अनेक जन्म आपकी सेवा करें। साइन्स वालों का भी वहाँ पार्ट है, जो वहाँ के सुख के साधनों की विशेषता है वह यहाँ से सहज मार्ग का बीज डालकर जायेंगे, यही बीज वहाँ काम में आयेगा। तो विदेश में यह सेवा अभी तीव्रगति से होनी चाहिए। राजधानी तैयार करो, प्रजा भी तैयार करो, रायल फैमली भी तैयार करो, सेवाधारी भी तैयार करो। कोई भी ऐसा वर्ग न रह जाए जो उल्हना दे कि हमें सन्देश नहीं मिला है।
2. ईश्वरीय सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका:- संकल्पों द्वारा ईश्वरीय सेवा करना यह भी सेवा का श्रेष्ठ और नया तरीका है, जैसे जवाहरी होता है तो रोज सुबह को दुकान खोलते अपने हर रतन को चैक करता कि साफ हैं, चमक ठीक है, ठीक जगह पर रखे हुए हैं, वैसे रोज़ अमृतवेले अपने सम्पर्क में आने वाली आत्माओं पर संकल्प द्वारा नजर दौड़ाओ, जितना आप उन्हों को संकल्प से याद करेंगे उतना वह संकल्प उन्हों के पास पहुँचेगा और वह कहेंगे कि हमने भी बहुत वारी आपको याद किया था इस प्रकार सेवा के नये-नये तरीके अपनाते आगे बढ़ते जाओ - हर मास सम्पर्क वाली आत्माओं का विशेष कोई प्रोग्राम रखो, स्नेह मिलन रखो, अनुभव की लेन-देन वा मनोरंजन का प्रोग्राम रखो, किसी न किसी तरह से बुलाकर सम्पर्क बढ़ाओ, यह नहीं सोचो दो निकले या तीन निकले, एक भी निकले तो भी अच्छा, एक ही दीपक दीपमाला तैयार कर देगा।
जर्मनी :- जर्मनी वालें ने अपने देश में बाप का परिचय देने का साधन अच्छा बनाया है, अभी जर्मनी के आस-पास हैन्डस तैयार करके सेवा के फील्ड को और बढ़ाओ जो भी आये हैं वह सब एक-एक सेवा केन्द्र सम्भालो क्योंकि समय कम है और राजधानी बनानी है। जर्मनी का ग्रुप फालो फादर करने वाला है ना! सर्विस करो लेकिन सम्पर्क के आधार से, इन्डिपिन्डेंट नहीं। जैसे हर डाली का तने से कनेक्शन होता है इसी रीति से विशेष निमित्त आत्माओं से सम्पर्क अच्छा हो फिर सफलता अच्छी मिलती हैं, ऐसा प्लैन बनाना। अच्छा।
विदाई के समय :- संगमयुग के यह दिन भी बहुत अमूल्य हैं, बापदादा भी बच्चों का मेला संगम पर ही साकार रूप में देखते हैं। संगमयुग अच्छा लगता हैं ना? विश्व परिवर्तन नहीं करेंगे? संगमयुग की विशेषता अपनी है और नई दुनिया की विशेषता अपनी है। जब नई दुनिया में जायेंगे तो बाप को भी भूल जायेंगे उस समय याद होगा? बाप को भी खुशी है कि बच्चे इतने श्रेष्ठ पद को प्राप्त कर लेते हैं। सदैव बाप यही चाहते हैं कि बच्चे बाप से भी आगे रहें। बच्चों का श्रेष्ठ भाग्य देख बाप खुश होते हैं। थोड़े ही टाइम में भाग्य कितना बना लेते हो? संगमयुग की यही विशेषता है - हर घड़ी हर संकल्प अपना भाग्य बना सकते हो! जितना चाहो उतना भाग्य ऊँचे से ऊंचा बना सकते हो, तो चैक करो कि कितना भाग्य बनाने का चान्स है उतना ही पूरा चान्स ले रहे हैं। प्राप्ति का समय अभी ज्यादा नहीं है इसलिए जितना चाहो उतना अभी कर लो नहीं तो यह प्राप्ति का समय याद आयेगा कि करना चाहिए था लेकिन किया नहीं! अपने याद की यात्रा को पावरफुल बनाते जाओ। संकल्प में सर्व शक्तियों का सार भरते जाओ। हर संकल्प में शक्ति भरते रहो। संकल्प की शक्ति से भी बहुत सेवा कर सकते हो। अच्छा - ओम् शान्ति।
16-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
तिलक, ताज और तख्तधारी बनने की युक्तियाँ
देह से न्यारे, देही रूप में स्थित रहने वाले प्यारे बच्चों के प्रति बाबा बोले:-
बापदादा सर्व बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों के अन्तर को देखते, आज बापदादा बच्चों के वर्तमान को देखते हुए हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ कई बच्चों के विचित्र चलन को देख रहम भी आ रहा था - बाप कितना श्रेष्ठ बनाते हैं और बच्चे अपनी ही थोड़ी सी गफलत करने के कारण वा अलबेलेपन के कारण श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं। आज बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हंसी के रूप देख रहे थे - ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा संगमयुगी विश्व सेवा की जिम्मेदारी का ताजधारी बनाता। लेकिन आज रमणीक खेल देखा - कोई-कोई तो ताज और तिलकधारी भी थे लेकिन कोई-कोई ताजधारी के बदले किए हुए पिछले वा अबके भी छोटे सो बड़े पाप वा चलते-चलते की हुई अवज्ञाओं की गठरी सिर पर थी। कोई ताजधारी तो कोई सिर पर गठरी लिए हुए थे। उसमें भी नम्बरवार छोटी बड़ी गठरी थी और कोई के सिर पर डबल लाइट के बजाए, अपने ब्राह्मण जीवन के सदा ट्रस्टी स्वरूप के बजाय गृहस्थीपन के भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ की टोकरी भी सिर पर थी। जिसको देख बापदादा को रहम भी आ रहा था - और क्या देखा! कई बच्चे अनेक प्रकार के सहज साधन बाप द्वारा प्राप्त होते हुए भी निरंतर बुद्धि का कनेक्शन जुटा हुआ न होने के कारण सहज को मुश्किल बनाने के कारण, अनेक प्रकार के मुश्किल साधन अपनाने में थके हुए रूप में दिखाई दे रहे थे। सहज मार्ग के बजाए पुरूषार्थ के साधन, हठ के प्रमाण यूज़ कर रहे थे। और क्या देखा!
जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते। कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं। साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते रहते हैं। ज्ञान रतनों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं। बाप बार-बार मिट्टी से किनारा कराते लेकिन नटखट संस्कारों के कारण फिर भी मैले बन जाते। कोई-कोई बच्चे अल्पकाल के सुखों के आकर्षणमय वस्तुओं की आकर्षण में आकर उन ही वस्तुओं में इतने बिजी हो जाते जो समय और अविनाशी प्राप्ति उतना समय भूल जाती है। फिर होश में आते हैं - ऐसे अनेक प्रकार के विचित्र रूप बच्चों के देखे। अब अपने आपको देखो मेरा रूप कौनसा है? बापदादा तो हर बच्चे को सदा श्रेष्ठ स्वरूप में देखना चाहते हैं। ताज को, दिलतख्त को छोड़ गठरी क्यों उठाते हो? ताज अच्छा वा टोकरी, गठरी अच्छी लगती हैं! तीनों के फोटो सामने रखो तो कौनसा चित्र पसन्द आवेगा। 63 जन्म यह सब वन्डरफुल खेल खेले - अब संगमयुग पर कौनसा खेल खेलना है। सबसे अच्छे ते अच्छा खेल है बाप और बच्चों के मेले का खेल। बाप द्वारा मिले हुए ज्ञान रतनों से खेला। कहाँ रतन और कहाँ मिट्टी! अब क्या करना है? बचपन के अलबेलेपन के वा नटखट के खेल बहुत समय खेले अब तो वानप्रस्थ में जाने का समय समीप आ रहा है इसलिए अब इन सब बातों की समाप्ति का दृढ़ संकल्प करो - सदा ताज, तख्त और तिलकधारी बनो। इन तीनों का आपस में सम्बन्ध है। तिलक होगा तो ताज तख्त जरूर होगा। अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों को बार-बार सामने लाओ - जब सर्व प्राप्तियों को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से सामना करने में कमजोर नहीं बनेंगे। सिर्फ एक बात याद रखो - सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में बापदादा सदा साथ है। साथ छोड़ने के कारण ही यह विचित्र खेल खेलने पड़ते हैं। विश्व की जिम्मेवारी उठाने वाले बाप का साथ होते भी अपने हद की जिम्मेवारी के बोझ की टोकरी क्यों उठाते हो? क्या विश्व का बोझ उठाने वाले आपका यह छोटा सा बोझ नहीं उठा सकते हैं क्या? फिर भी पुराने संस्कार के वश बार-बार बोझ भी उठाते और फिर थक कर चिल्लाते भी हैं कि अब हमको छुड़ाओ। एक तरफ पकड़ते हैं दूसरे तरफ पुकारते हैं - छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की हिम्मत अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के बोझ से छुड़ा देगी। पहलापहला वायदा बाप से क्या किया - याद है? मेरा तो एक दूसरा न कोई। जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की जिममेवारियों का मेरापन कहाँ से आया! देह का मेरापन कहाँ से आया। कमजोरियों के संस्कारों का मेरापन कहाँ से आया - स्वयं को ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हो - ज्ञान स्वरूप अर्थात् कहना, सोचना और करना समान हो। सदा समर्थ हों - ज्ञानी तू आत्मा का हर कर्म समर्थ बाप समान, संस्कार गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान हों - तो समर्थ स्टेज पर स्थित होने वाले यह व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते। सदा मिलन के खेल में बिज़ी रहते, बाप से मिलन मनाना और औरों को बाप समान बनाना - तो इस वर्ष क्या करेंगे? 78 वर्ष भी बीत गया - आप सब तो 76 में तैयार थे ना। विनाश के साथ स्थापना वाले भी तैयार थे ना - यह अभी का तो एकस्ट्रा टाइम मिला है - किसलिए? स्वयं के प्रति मिला है? इस एकस्ट्रा समय का भी रहस्य है - पीछे आने वाले उल्हना न दें कि हमें बहुत थोड़ा समय मिला - जैसे सौदे के पीछे एकस्ट्रा रूंग (घाता) दी जाती है - वैसे ड्रामा अनुसार यह समय भी सेवा के प्रति अमानत रूप में मिला हुआ है इसी अमानत को बापदादा की श्रेष्ठ मत प्रमाण यूज़ करो - समझा इस वर्ष क्या करना है।
हर समय और संकल्प में स्वयं को विश्व सेवा में इतना बिजी रखो जो यह सब व्यर्थ के खेल स्वत: समाप्त हो जाएं - यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं।
अच्छा –
सदा संकल्प और सेकेण्ड के भी ट्रस्टी समझने वाले, ‘एक बाप मेरा और नहीं कोई मेरा’ ऐसे बेहद के समर्थ संकल्प वाले, सदा विश्व कल्याण के संकल्प में बिजी रहने वाले, बाप समान समर्थ संस्कार वाले, व्यर्थ को बाप के साथ से सदा के लिए विदाई देने वाले, ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को बाप की बार-बार बधाई हो - साथसाथ ऐसे तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों से मुलाकात (मद्रास जोन)
सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का साधन - चमकता हुआ दिव्य सितारा :-
आपका दिव्य सितारा सदा चमकता दिखाई दे तो सितारे की चमक सर्व को अपने तरफ स्वत: ही आकर्षण करेगी। कोई भी लाइट की वस्तु चलती हुई आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है। यह तो अविनाशी सितारा है, तो चमकते हुए सितारों के तरफ सर्व की आकर्षण स्वत: होगी। सितारों की तरफ आकर्षित होना अर्थात् बाप के तरफ आकर्षित होना तो सदा अनुभव करते हो कि हमारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक रहा है! सदा चमकता है वा कभी-कभी चमकता है। जब बाप द्वारा, नॉलेज द्वारा सितारा चमक गया तो अभी बुझ तो सकता नहीं लेकिन चम्क की परसेन्टेज कम और ज्यादा हो सकती है, उसका कारण क्या? अटेन्शन की कमी। जैसे दीपक में अगर सदा घृत डालते रहें। तो वह एकरस जलता रहेगा, घृत कम हुआ तो हलचल करेगा। ऐसे अटेन्शन कम हो जाता है तो परसेन्टेज भी चमक की कम हो जाती। इसलिए बापदादा की श्रेष्ठ मत है रोज अमृतवेले सारे दिन के लिए अटेन्शन रखो। रोज अमृतवेले अपनी दिनचर्या को सैट करो। अगर कोई भी प्रोग्राम सैट नहीं होता है तो उसकी रिजल्ट क्या निकलती? सफल नहीं होता, तो यहाँ भी अगर रोज अपनी दिनचर्या सैट नहीं करेंगे तो सफलता मूर्त अनुभव नहीं कर सकेंगे। अटेन्शन रहता भी है, लेकिन और अन्डर लाइन करो। वहां अटेन्शन होगा वहाँ किसी भी प्रकार का टेन्शन नहीं हो सकता। जैसे रात होगा तो दिन नहीं हो सकता, टेन्शन है रात, अटेन्शन हैं दिन। तो दिन और रात दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते। अगर किसी भी प्रकार का टेन्शन है तो सिद्ध है अटेन्शन नहीं है। साधारण अटेन्शन और सम्पूर्ण अटेन्शन में भी अन्तर है। सम्पूर्ण अटेन्शन अर्थात् जो बाप के गुण वा शक्तियाँ हैं वह अपने में हो। बाप के बच्चे बने तो उसका प्रूफ भी तो चाहिए ना। साधारण अटेन्शन अर्थात् हम हैं ही बाप के बच्चे....। अगर इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और श्रेष्ठता न हो तो कौन मानेगा कि यह श्रेष्ठ बाप के बच्चे हैं। तो जो बाप में विशेषता वही बच्चों में दिखाई दे - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचना और करना समान। प्लैन और प्रैक्टिकल समान।
2. आपका स्वधर्म है याद और कर्त्तव्य है सेवा :- सभी सदा याद और सेवा इसी में तत्पर रहते हो? जो सदा याद और सेवा में लगे हुए हैं उन्हों से माया भी सदा के लिए नमस्कार करके किनारा कर लेती है। माया भी जानती है कि यह सदा बिज़ी रहने वाले हैं तो डिस्टर्ब नहीं करती। खाली रहने वालों को डिस्टर्ब करती हैं। तो सदा बिज़ी रहो फिर माया आ नहीं सकती। याद से अपना भविष्य बनाते, सेवा से औरों का भी और अपना भी। तो याद ही आपका स्वधर्म है और सेवा करना ही आपका कर्त्तव्य है।
3. चढ़ती कला की निशानी - सम्पूर्ण मंजिल समीप दिखाई दे :- सदा हर कर्म में चढ़ती कला का अनुभव करते हैं? कदम आगे बढ़ाया अर्थात् चढ़ती कला हुई। हर कदम में चढ़ती कला होने से सम्पूर्ण स्टेज तक बहुत जल्दी पहुँच जायेंगे। चढ़ती कला वाले को सदा अपनी सम्पूर्ण स्टेज अर्थात् मंजिल स्पष्ट दिखाई देगी। जितना जिस वस्तु के नज़दीक जाते हैं उतना ही वह वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्टता ही समीपता की निशानी है। अभी समय है तीव्र पुरूषार्थ का, दौड़ लगाने का समय अब आ गया, अब हाई जम्प लगाओ। समय कम है और मंजिल ऊंची है। हाई जम्प देने के लिए डबल लाइट चाहिए। बिना डबल लाइट बने जम्प नहीं दे सकते।
4. हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन - फालो फादर :- जैसे साकार बाप के ऊपर इतनी जिम्मेवारी होते हुए भी सदा डबल लाइट देखी - उसके अन्तर में तो आपके पास भी तो कुछ भी जिममेवारी नहीं है, अपने को सदा निमित्त समझकर चलो, जिम्मेवार बापदादा हैं आप निमित्त हैं, निमित्त समझकर चलने से डबल लाइट हो जायेंगे। बाप भी इतनी बड़ी जवाबदारी संभालते हुए निमित्त समझकर चले, तो फालो फादर। हर कर्म करने के पहले चैक करो कि फालो फादर हैं? इससे हर कर्म अति श्रेष्ठ होगा। श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी। बाप को कापी करो तो भी बाप समान बन जायेंगे। समान बनने वाले ही समीप रतन बनते हैं।
5. देह से न्यारे देही रूप में स्थित रहने वाले ही बाप के प्यारे :- सभी अपने को देह से न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता। जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते। जो बाप का प्यारा होगा वह न्यारा जरूर होगा-क्योकि जिससे प्यार है वह जैसा होगा वैसा ही बनेगा। बाप सदा न्यारा है तो जो बाप का प्यारा होगा वह भी सदा न्यारा होगा। तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।
नैराबी पार्टी से मुलाकात :- सभी अपने को कोटों में कोई और कोई में भी कोई ऐसी महान आत्मा समझते हो? जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही? अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी। ऐसी स्मृति रहती है? अच्छा - आपका आक्यूपेशन है पतित पावनी - इस स्मृति से सहज मायाजीत बनेंगे :- आप सब सदा सागर से सम्बन्ध रखने वाली ज्ञान नदियाँ हो जिसमें अनेक आत्मायें ज्ञान स्नान कर पावन बनती हैं तो पावन बनाने की सेवा में सदा तत्पर रहते हो? नदियों का महत्व तब है जब सागर से सम्बन्ध है, अगर सागर से सम्बन्ध नहीं तो नदी भी नाला बन जाती। तो आप चैतन्य ज्ञान नदियों का ही गायन है पतित पावनी, इसी सेवा में सदा बिज़ी रहो। माया का वार होना अर्थात् खाली होना। बिजी रहना अर्थात् माया के वार से बच जाना। तो सदा बिजी रहते हो या बहुत समय की साथी के ऊपर रहम आता है जो उसे भी चान्स दे देते हों! जिसका जो आक्यूपेशन होता वह कभी भूलता नहीं। आपका आक्यूपेशन ही है पतित पावनी तो अपना आक्यूपेशन न भूलना है, न छोड़ना है तो मायाजीत बन जायेंगे। सदा के मायाजीत ही बाप के दिलतख्तनशीन बनते हैं। हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना। अगर कोई हार खाले तो तख्त थोड़ा ही मिलेगा। तो यहाँ भी माया से हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना।
टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को संतुष्ट बनाने की सेवा पर उपस्थित। जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी बना सकेंगे। टीचर्स की विशेषता ही है हर बात में सन्तुष्ट। सन्तुष्ट भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और कर्त्तव्य में समान बनेंगे। सदा यह चैक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्त्तव्य वही मेरा कर्त्तव्य है। ऐसे चैक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं। टीचर्स अर्थात् सन्तुष्टता की खान। सदा सम्पन्न, खान के समान अखुट हो। यही टीचर्स का अक्यूपेशन है।
विदाई के समय :- कितनी 18 जनवरी आ गई? 10 वर्ष समाप्त हो गए उसका रिजल्ट क्या? वैसे भी 10 वर्ष तो कोई कम नहीं हैं। साकार के 42-43 वर्ष और अव्यक्त के 10 वर्ष, तो 50 से ऊपर चले गये ना। तो उसकी रिजल्ट क्या? रिजल्ट चाहिए - परिवर्तन। जो अगले वर्ष की बातें हैं वह इस वर्ष में नहीं होनी चाहिए। तो नवीनता क्या आई? जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा क्या पाया। तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा क्या पाया। क्या-क्या वरदान पाये, क्या-क्या व्यर्थ छोड़ा। दोनों की रिजल्ट देखो। न्यू इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् नवीनता भरा हुआ। इसकी आपस में रिजल्ट निकालना। टोटल मेजोरिटी भी कहाँ तक अपने में परिवर्तन समझते हैं। इसलिए बाप-दादा ने पहले भी कहा कि रिजल्ट लेने के लिए आयेंगे तो वह रिजल्ट क्या हुई? सेवा वृद्धि को पा रही है, सेवाधारी आत्मायें स्वयं के पुरूषार्थ में क्या वृद्धि पा रही हैं, दोनों का बैलेन्स जब समान होगा तब समाप्ति होगी। सभी सदा संगमयुग के श्रेष्ठ भाग्य को सुमिरण कर हार्षित् रहते हो? संगमयुग का भाग्य और कोई भी युग में पा नहीं सकते। संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है। एक सेकेण्ड कई जन्मों का भागय बनाने के निमित्त बनता है। तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य को देख करके सदा खुशी में नाचते रहो। वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है। ऐसे सदा खुश रहो। सदा अटेन्शन रखो तो माया खुशी का खज़ाना छीन नहीं सकती। अच्छा - ओम् शान्ति।
18-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
18 जनवरी ‘स्मृति दिवस’को सदाकाल का समर्थी दिवस मनाने के लिए शिक्षाएं
सर्वसमर्थ शिव बाबा ‘सदा अमर भव’ का वरदान देते हुए बोले :-
आज सभी बच्चे विशेष साकारी याद - प्रेम स्वरूप की स्मृति में ज्यादा रहे। साकारी सो आकारी बाप सभी के नयनों में समाये हुए हैं। अमृतवेले से लेकर देशविदेश के बच्चों की याद के सन्देश सारे वतन में वायुमण्डल की रीती से फैले हुए थे - प्रेम के आसुँओं की मालायें वतन को सजा रही थीं। हरेक बच्चा ब्रह्मा बाप के लव में लवलीन थे। चारों ओर दिल के दिलरूबा की आवाज़ बापदादा के पास पहुँच रही थी - हरेक के मन से बाप की महिमा के सुन्दर आलाप साजों के समान वतन में गूँज रहे थे। हरेक के आशाओं के दीपक जगे हुए, वतन को जगमगा रहे थे। बापदादा बच्चों के स्नेह को देख मुस्करा रहे थे। विदेशी वा देशवासी बच्चे अपने बुद्धियोग द्वारा वतन में भी पहुँचे हुए थे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के स्नेह के सागर में बच्चों के लव में लवलीन थे - याद का रिटर्न दे रहे थे।
बच्चे बाप से पूछते हैं हम सबसे पहले अकेले वतनवासी क्यों? मेजोरिटी बच्चों का यही स्नेह का सवाल था। बाप बोले - जैसे आदि में स्थापना के कार्य प्रति साकार रूप में निमित्त एक ही बने - अल्फ की तार पहले एक को आई। सेवा अर्थ - सर्वस्व त्यागमूर्त एक अकेले बने। जिसको देख बच्चों ने फालो फादर किया। त्याग और भाग्य दोनों में नम्बरवन बाप निमित्त बने। अब अन्त में भी बच्चों को ऊंचा उठाने के लिए वा अव्यक्त बनाने के लिए बाप को ही अव्यक्त वतनवासी बनना पड़ा। इस साकारी दुनिया से ऊंचा स्थान अव्यक्त वतन अपनाना पड़ा - अभी बाप कहते हैं बाप समान स्वयं को और सेवा को सम्पन्न करो। बाप समान अव्यक्त वतनवासी बन जाओ। बापदादा अभी भी आह्वान करते हैं। देर किसकी है? ड्रामा की देर हैं! ड्रामा में भी निमित्त कारण कौन। सिर्फ एक छोटी-सी बात दृढ़ संकल्प रूप से धारण करो तो सदाकाल का मिलन हो जावेगा। जैसे आज के दिन सहजयोगी, निरन्तरयोगी, एक बाप दूसरा न कोई - इसी स्थिति में स्थित रहे, ऐसे ही सदा अमर भव के वरदानी बनो। तो क्या होगा। सदाकाल के लिए जुदाई को विदाई मिल जावेगी और सदा मिलन की बधाई होगी। स्नेह स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन करो। जैसे जिस भी आत्मा से स्नेह होता है तो स्नेह का स्वरूप यही है कि जो स्नेही को पसन्द हो वही स्नेह करने वाले को पसन्द हो - चलना- खाना-पीना-रहना स्नेही के दिल पसन्द हो। ऐसे ही बाप से स्नेह - जानते हो बाप का स्नेह किससे हैं? बाप को सदा क्या पसन्द है? अपने दिल पसन्द नहीं लेकिन स्नेही बाप के दिलपसन्द। तो सदा जो भी संकल्प करो वा कर्म करो पहले यह सोचो कि स्नेही बाप के दिलपसन्द है। अगर बाप को पसन्द नहीं तो लोकपसन्द भी नहीं। तो सिर्फ इतनी सी बात है स्नेही के पसन्दी से चलना है। इतना रिटर्न सदा कर सकते हो ना! सर्व सम्बन्ध के स्नेह से इतना सा रिटर्न क्या मुश्किल लगता है? आज के स्मृति दिवस को सदाकाल के लिए समर्थी दिवस मनाओ। यह संकल्प करो - जो बाप को पसन्दी वही मेरी पसन्दी। सदा बाप पसन्द लोक पसन्द रहना है।
दिलशिकस्त होना, किसी भी संस्कार वा परिस्थितियों के वशीभूत होना, अल्पकाल की प्राप्ति कराने वाले व्यक्ति वा वैभवों के तरफ आकार्षि होना - इन सब कमजोरियों रूपी कलियुगी पर्वत को आज के समर्थी दिवस पर सब बच्चे दृढ़ संकल्प की अंगुली दे सदाकाल के लिए समाप्त करो अर्थात् सदाकाल के विजयी बनो। विजय आपका तिलक है। विजय आपके गले की माला है। विजय जन्मसिद्ध अधिकार है। सदा इस समर्थी स्वरूप में रहो। यह है स्नेह का रिटर्न। बाप बच्चों से पूछते हैं - जैसे ब्रह्मा बाप ने सारे ज्ञान का सार स्वयं धारण कर बच्चों को फालो फादर करने की हिम्मत दी, साकार रूप द्वारा अन्तिम महावाकय अमूल्य सौगात दी - उस सौगात को स्वरूप में लाया? सौगात की रिटर्न में बाप को स्वरूप बन दिखाया? सिर्फ तीन बोल जो थे उनको साकार में लाया। साकार स्नेह के रिटर्न में साकार रूप है। इन ही तीन बोल से बाप ने कर्मातीत अवस्था को पाया - फालो फादर। साकार बाप ने स्थिति का स्तम्भ बनकर दिखाया - जिसके स्नेह में यह स्मृति स्तम्भ भी बनाया है - ऐसे ही तत्वम - सर्वगुणों के स्तम्भ बनो। जो विश्व के हर धर्म वाली आत्मायें धारणा स्वरूप स्तम्भ आपको माने - विश्व के आगे आदि पिता के समान शक्ति और शान्ति स्तम्भ बनो।
स्नेह के सन्देश जो बच्चों ने भेजे रिटर्न में बापदादा भी सभी स्नेही बच्चों को पदमगुणा स्नेह दे रहे हैं। अब पदमापदम भाग्यशाली सदा रहो। अच्छा –
ऐसे सदा बाप के स्मृति सो समर्थी स्वरूप, बाप के सदा दिलपसन्द, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा स्वयं का ओर विश्व का सेकेण्ड में परिवर्तन करने वाले, सदा विश्व के आगे शक्ति और शन्ति स्तम्भ समान स्थित रहने वाले - ऐसे बापदादा के समीप सिकीलधे बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी जी से बातचीत :- आज का दिन स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रहा? आज के दिन विशेष साकार बाप को याद किया वा दानों का बैलेन्स था - बैलेन्स रखने वाले बच्चे बाप द्वारा ब्लिसफुल के वरदान को प्राप्त करते हैं। आज साकार बाप ने भी बच्चों को याद किया - हर बच्चे की विशेषता रूपी रतनों को देखते हर्षाया। लौकिक शरीर के संस्कार भी जवाहरी के थे। अलौकिक जीवन में भी जवाहरी के कार्य में ही रहे। जवाहरी की नज़र कहाँ जाती है? अमूल्य रतनों के तरफ, तो बाप भी अपने रतनों को देख रतनों को ही सजा रहे थे। ब्रह्मा बाप के तीव्र पुरूषार्थ के संस्कार को तो जानती हो - आज भी बाबा बोले अब माला तैयार करो - माला तैयार होना अर्थात् खेल खत्म। फिर क्या हुआ होगा। ब्रह्मा अपने तीव्र पुरूषार्थ के संस्कार प्रमाण माला बनाने लगे और बाप मुस्कराने लगे। माला तैयार भी हुई, लेकिन तैयार होने के बाद जब देखने लगे तो दिलपसन्द नहीं लगी। तो फटाफट बदली करने लगे। संकल्प था कि करके दिखावेंगे - बाप बोले - फुल पावर्स हैं - जो चाहे जैसे चाहे तैयार करके दिखाओ। ब्रह्मा बाप तो रोज आह्वान करते हैं। आप आह्वान करते हो? फिर रिजल्ट क्या हुई। बहुत रमणीक दृश्य हुआ। रूहरिहान भी चली और एक-दो को देख मुस्कराये। 100 की माला फिर भी 90% बन गई 8 की माला में बदली बहुत थी - किसको 4 नम्बर दें किसको 5 नम्बर दें - उसकी रूह-रूहान थी। मतलब तो आज ब्रह्मा को माला तैयार करने का तीव्र संकल्प था।
जैसे बाप विचित्र है, विचित्र बाप की लीला भी विचित्र है - दुनिया वाले समझते हैं बाप चले गये और बाप बच्चों से विचित्र रूप में जब चाहें तब मिलन मना सकते। दुनिया वालों की आँखों के आगे पर्दा आ गया - वैसे भी स्नेही मिलन पर्दे के अन्दर अच्छा होता है - तो दुनिया की आँखों में पर्दा आ गया - लेकिन बाप बच्चों से अलग हो नहीं सकता। वायदा है साथ चलेंगे, वही वायदा याद है ना। जो आदि से अन्त।
पार्टियों से मुलाकात
1. सभी ने बापदादा की आज के वतन की रूह-रूहान सुनी। उससे अपने को एवररेडी बनाने की प्रेरणा भी ली। सदैव यह अटैन्शन रहे कि हम सभी बाप समान विजयी बने हैं - क्योंकि बहुत समय के विजयी, विजयी माला के मणके बन सकते हैं। अगर अभी-अभी हार होगी तो कभी भी विजय माला के मणके नहीं बन सकते। विजयी बनने के लिए सदैव क्या याद रहे? विजयी बनने के लिए सदा बाप को सामने रखो - जो बाप ने किया वह हमें करना है। हर कदम-कदम के ऊपर जो बाप का संकल्प वही बच्चों का संकल्प, जो बाप के बोल वही बच्चों के बोल तब विजयी बन सकते हो। ऐसा अटेन्शन सदैव रहता है? जब सदा काल का राज्य-भाग्य पाना है तो अटेन्शन भी सदाकाल का चाहिए, अगर अल्पकाल का राज्य लेना है तो थोड़ समय के लिए याद रखो। जैसा पुरूषार्थ वैसी प्रालब्ध। तो सदा का राज्य और सदा का पुरूषार्थ - ऐसे पुरुषार्थी हो? माया के भी नॉलेजफुल हो, तो नॉलेजफुल कभी धोखा नहीं खाते। अनजान होते हैं तो धोखा खा लेते हैं। नॉलेज को लाइट और माइट कहा जाता है। जो नॉलेजफुल हैं अर्थात् लाइट और माइट दोनों हैं वह कभी माया से हार नहीं खा सकते। सिर्फ संकल्प में दृढ़ता की कमी होती है। संकल्प करते हो कि यह करेंगे लेकिन दृढ़ता न होने के कारण सोचने-करने में फर्क पड़ जाता है। संकल्प में दृढ़ता हो तो सोचना और करना दोनों समान हो जाएं। तो सुना बहुत है लेकिन अब जो सुना वह साकार स्वरूप में लाओ।
2. संगमयुग के महत्व को जानते हुए हर संकल्प और सेकेण्ड जमा करते हो? व्यर्थ तो नहीं जाता है? सेकेण्ड भी व्यर्थ गया तो सेकेण्ड की वैल्यू बहुत बड़ी है। जैसे एक का लाख गुना बनता है वैसे एक सेकेण्ड भी व्यर्थ जाता तो लाख गुना व्यर्थ गया। इतना अटेन्शन रहता है। अलबेलापन तो नहीं आता। अभी वह समय नहीं है। अभी तो चल जाता है, कोई हिसाब लेने वाला ही नहीं है लेकिन थोड़े समय के बाद अपने आपको ही पश्चाताप होगा। समय की वैल्यू है समय के वरदान से ही अमूल्य रतन बनते हो। अमूल्य रतन समय भी अमूल्य रीति से व्यतीत करते हैं। अमूल्य रतन समझने से सेकेण्ड और संकल्प भी अमूल्य हो जायेंगे।
3. सभी अपने को सदा सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ आत्मा समझ श्रेष्ठ कर्म करते हो? जैसा आक्यूपेशन होता है वैसे कर्म होता है। अगर कोई बड़ा पोजीशन वाला होगा तो उसकी एक्टिविटी भी उसी प्रमाण होगी। आपका आक्यूपेशन क्या है? सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ आत्मा। तो श्रेष्ठ आत्मा का हर संकल्प हर सेकेण्ड भी ऐसा ही होगा! आप जैसा विशेष पार्ट बाप को पा लेना, ऐसा पार्ट और किसका हो नहीं सकता। जब ब्रह्माकुमार कहलाते हो, परमात्मा के बच्चे कहलाते हो तो चलन भी तो ऐसी चाहिए। सदा आक्यूपेशन और एक्टिविटी को मिलाओ। बड़ा आदमी कर्म बेसमझी के वा बच्चे जैसे करे तो लोग हसेंगे ना। ऐसे ही जब ब्रह्माकुमार कहलाते हो और साधारण ऐक्ट चलो तो क्या कहेंगे! आधाकल्प बेसमझ रहे अब समझदार बने - तो समझदार का हर संकल्प शक्तिशाली होगा।
4. सदा कल्प पहले माफिक अपने को अंगद के समान अचल समझते हो? अंगद के समान अचल अर्थात् सदा निश्चय बुद्धि विजयन्ती। जरा भी हलचल में आये तो विजयी बन नहीं सकेंगे। माया के विघ्न यह तो ड्रामा में महावीर बनाने के लिए पेपर के रूप में आते हैं। बिना पेपर के कभी क्लास चेन्ज नहीं होता। पेपर आना अर्थात् क्लास आगे बढ़ना। तो पेपर आने से खुश होना चाहिए न कि हलचल में आना है। माया से भी लेसन सीखो, वह कभी भी हलचल में नहीं आती - अटल रहती, यही लेसन माया से सीख मायाजीत बन जाओ।
5. स्नेह का रेसपान्ड है फालोफादर। जिससे स्नेह होता है उसको आटोमेटिकली फालो करना होता है। सदा याद रहे कि यह कर्म जो कर रहे हैं यह फालो फादर है। अगर नहीं तो स्टाप। फालो फादर है तो करते चलो, कापी ही करनी हैं ना। बाप को कापी करते बाप बन जाओ। कापी करने के लिए जैसे कार्बन पेपर डालते हैं वैसे अटेन्शन का पेपर डालो तो कापी हो जायेगा।
अभी अपने को तीव्र पुरुषार्थी नहीं बनायेंगे तो आगे चलकर यह समय भी खत्म हो जायेगा फिर टू लेट हो जायेंगे, वंचित रह जायेंगे। अभी हर शक्ति से स्वयं को सम्पन्न बनाने का समय है। अगर स्वयं-स्वयं को सम्पन्न नहीं कर सकते हो तो सहयोग लो, छोड़ नहीं दो। सम्पन्नता की निशानी है सन्तुष्टता। इसलिए सदा सन्तुष्ट आत्मा बनो। अच्छा - ओम् शान्ति।
23-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सदा सुहागिन ही सदा सम्पन्न है
अमरनाथ शिव बाबा की सच्ची सुहागिन पार्वतियों के प्रति पतिपरमेश्वर शिव बाबा बोले :-
आज बाप-दादा बच्चों के श्रेष्ठ भाग्य और सदा सुहाग को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक बच्चा भाग्यशाली और सदा सुहागिन है। भाग्य विधाता द्वारा जो भाग्य प्राप्त हुआ है उसको अच्छी तरह से जानते हो? विश्व में जीवन की श्रेष्ठता इन दो बातों की होती है एक सुहाग दूसरा भाग्य। अगर सदा सुहाग नहीं तो सारी जीवन बेकार अनुभव करते हैं, नीरस समझते हैं। लेकिन आप सबका अविनाशी सुहाग है - जो कभी मिटने वाला नहीं। क्योंकि अविनाशी अमरनाथ ही आपका सुहाग है। जैसे वह अमर है वैसे आपका सुहाग भी अमर है। सुहागवती स्वयं को सदा दुनिया में श्रेष्ठ समझती हैं - सुहागवती सदा साथ के कारण स्वयं को सन्तुष्ट समझती है। आजकल की दुनिया में जिसको श्रेष्ठ कार्य समझते हैं, उस श्रेष्ठ कार्य के निमित्त सुहागिन को ही रखते हैं। सुहागिन सदा श्रृंगार की अधिकारी होती है। सुहागिन नहीं तो श्रृंगार भी नहीं। सुहाग की निशानी तिलक और कंगन होती है। सुहागिन सदा सुहाग के कारण सुहाग के खजाने को सर्व खज़ाने अनुभव करती है अर्थात् अपने को सम्पन्न समझती है। ऐसे ही यह सब रीति-रसम अविनाशी सुहाग का यादगार चला आ रहा है।
आप सब सच्ची सुहागिन विश्व के अन्दर सर्व श्रेष्ठ आत्मायें गाई और पूजी जाती हो - आज का विश्व आप सदा सुहागिन के जड़ चित्रों को देख खुश होता कि यह आत्मायें अमरनाथ अर्थात् पति परमेश्वर की सच्ची पार्वतियाँ हैं। आप सच्ची सुहागिन आत्मायें सदा स्मृति के तिलकधारी और मर्यादाओं के कंगनधारी आत्मायें, सदा दिव्य गुणों के श्रृंगार से सजी सजाई आत्मायें, आप सदा सुहागिन आत्मायें सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न और विश्व के परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य वा शुभ कार्य के निमित्त हो - संगम- युग के इस श्रेष्ठ वा अविनाशी बेहद के सुहाग की रीति रसम हद के सुहाग में भी चलती आ रही है। अपने आप से पूछो ऐसे सदा सुहागिन अर्थात् सदा सम्पन्न और सदा हर्षित अनुभव करते हो - सदा अपने को आत्मा और परमात्मा के कम्बाइण्ड (Combined) रूप का अनुभव करते हो - सिंगल हो वा युगल हो? अकेले समझेंगे तो वियोगी जीवन अनुभव करेंगे। सदा सुहागिन अर्थात् कम्बाइण्ड समझेंगे तो सदा मिलन महफिल में अपने को अनुभव करेंगे।
बहुकाल से अलग हो गये तो अपने अविनाशी साथी को भी भूल गये। सुहाग खोया, तिलक को भी मिटा दिया - श्रृंगार को भी गवां दिया - खज़ानों से भी वंचित हो गये। सदा सुहागिन से क्या बन गये? भिखारी बन गये। वियोगी बन गये। फिर भी अमरनाथ ने आकर बहुकाल से बिछुड़ी हुई पार्वतियों को अपना स्मृति का तिलक दे सुहागिन बना दिया। अब बहुकाल के बाद जो सुन्दर मेला हो गया इस मेले से अब सेकेण्ड भी वंचित नहीं रहने वाले हो - ऐसी कम्पेनियनशिप निभाने वाले हो ना - आज बाप-दादा अपनी पार्वतियों का श्रृंगार देख रहे थे कि हरेक पार्वती कहाँ तक सजी सजाई रहती है। श्रृंगार तो सब करते हो लेकिन फिर भी नम्बरवार - माला सभी पहनते हैं लेकिन कहाँ नौ लखा हार और कहाँ साधारण मोतियों का हार। ऐसे ही बाप के गुणों की माला वा अमरनाथ की महिमा की माला सबके गले में पड़ी हुई है। फिर भी अन्तर है। अन्तर तो समझते हो ना। गाने वाले हैं वा बनने वाले हैं! इनमें अन्तर पड़ जाता है। ऐसे ही मर्यादाओं के कंगन तो सबने पहने हैं। सब मर्यादाओं के कंगन से सज रहे हैं लेकिन सदा मर्यादा पुरूषोत्तम बनने में कोई हीरे तुल्य बने हैं कोई सोने तुल्य बने हैं और कोई फिर चाँदी तुल्य बने हैं। कहाँ हीरा और कहाँ चाँदी! तो नम्बरवार हो गये ना। इसलिए कहा कि नम्बरवार श्रृंगार देख रहे हैं।
दूसरी बात सुहाग के साथ भाग्य देखा। लौकिक रीति से भी भाग्य का आधार - तन की तन्दरूस्ती, मन की खुशी, धन की समृद्धि, सम्बन्ध की सदा सन्तुष्टी और सम्पर्क में सदा सफल मूर्त होता है, इन सब बातों से भाग्य को देखते हैं - तो अब संगमयुग का श्रेष्ठ भाग्य अनुभव कर रहे हो ना। संगमयुग के अलौकिक जीवन की विशेषतओं को जानते हो ना। सदा स्वस्थ अर्थात् सदा स्व में स्थित रहने से तन का कर्मभोग भी कर्मयोग से सूली से काँटा हो जाता है। कर्मभोग को भी बेहद के ड्रामा के अन्दर खेल समझ कर खेलते हैं। तो तन का रोग योग में परिवर्तन हो गया। इसलिए सदा स्वस्थ हो। बीमारी को बीमारी नहीं समझते लेकिन अनेक जन्मों का बोझ हल्का हो रहा है, हिसाब चुक्तू हो रहा है - ऐसे समझने से सदा स्वस्थ समझते हो - साथ-साथ मन की खुशी तो सदा प्राप्त है ही। मनमना भव होना अर्थात् खुशियों के खज़ाने से सम्पन्न होना। ज्ञान धन सब धनों से श्रेष्ठ है। ज्ञान धन वालों की प्रकृति स्वत: ही दासी बन जाती है। जहाँ ज्ञान धन हैं वहाँ स्थूल धन की कोई कमी नहीं। तो धन का भाग्य भी सदा प्राप्त है। तीसरा है सम्बन्ध - सर्व सम्बन्ध निभाने वाले परम आत्मा को अपना बना लिया, जब चाहो, जैसा सम्बन्ध चाहो वैसा ही सम्बन्ध का रस एक द्वारा सदा निभा सकते हो, और सम्बन्ध भी ऐसे जो देने वाले होंगे लेने वाले नहीं। कभी धोखा भी नहीं देने वाले - सदा प्रीति की रीति निभाने वाले - ऐसे अमर सम्बन्ध अनुभव करते हो ना? और बात सम्पर्क - संगमयुगी जीवन में सम्पर्क भी सदा होली हंसों से है। बाप के सम्पर्क के आधार पर ब्राह्मण परिवार का सम्पर्क है - हंस और बगुलों का सम्पर्क नहीं लेकिन ब्राह्मण आत्माओं का सम्पर्क है बगुलों का सम्पर्क सिर्फ सेवा अर्थ है। सेवा का सम्पर्क होने का कारण - सदा विश्व कल्याण की भावना, विश्व परिवर्तन की कामना रहती है। इस कारण सेवा के सम्पर्क में भी कोई दुख की लहर नहीं। निन्दा करे तो भी मित्र, गुणगान करे तो भी मित्र - सदा भाई-भाई की दृष्टि रहम की वृत्ति रहती है तो सम्पर्क भी श्रेष्ठ है। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य भाग्यविधाता से प्राप्त है। तो सदा श्रेष्ठ भाग्यवान हुए ना। आज बच्चों के इस सुहाग और भाग्य को देख रहे थे। सदा सम्पन्न आत्मायें, अप्राप्त नहीं कोई वस्तु इस ब्राह्मण जीवन में - ऐसे अनुभव करते हो ना। सदा सुहाग का तिलक वा भाग्य का सितारा चमक रहा हैं ना? चमक की परसेन्टेज कितनी है? चमक तो सभी में है लेकिन वरसेन्टेज के अनुसार नम्बरवार है - विदेशियों का नम्बर कौन सा है? विजय माला में नम्बर हैं ना। चाहे देश के हो चाहे विदेश के हो, माला तो एक ही है - जो सदा सुहाग और भाग्य के अधिकारी हैं वही विजय माला के भी अधिकारी हैं।
बाप-दादा को विशेष काम है ही बच्चों का - तो सदा बच्चों की माला जपते हैं। बाप की माला तो आत्मायें जपती हैं लेकिन बच्चों की माला परमात्मा जपते हैं। तो भाग्यशाली कौन हुए! अच्छा –
ऐसे सदा सुहागिन, सदा श्रेष्ठ भाग्य के अधिकारी, सदा कम्पेनियनशिप निभाने वाले, सदा स्मृति के तिलकधारी, मर्यादा सम्पन्न श्रेष्ठ आत्माओं को, विश्व कल्याणकारी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी से बातचीत - सदा सुहागिन का गायन शास्त्रों में किस रूप में है! सदा सुहागिन का गायन पटरानियों के रूप में है - फिर पटरानियों में भी नम्बर हैं - कोई सदा साथ रहती है और कोई कभी-कभी। उन्होंने देहधारी की कहानी बना दी है - लेकिन हैं आत्माओं और परमात्मा की कहानी। जो एक ही समय पर सभी से मिलन मना सकते हैं जो भी आह्वान करे। तो पटरानियाँ तो सब बनती हैं लेकिन उनमें भी नम्बर है। प्राप्ति में भी अन्तर है और पूजन में भी अन्तर है। राधे और गोपियों में भी अन्तर है। पूजन में भी अन्तर है तो प्राप्ति में भी अन्तर है। राधे की प्राप्ति अपनी - गोपियों की अपनी। कोई विशेषता राधे के पार्ट में है और कोई विशेषता पटरानियों वा गोपियों के पार्ट में है। इसका भी गुह्य रहस्य है। मिलन मेला मनाने वाले कौन? सर्व सुखों का अनुभव परमात्म पार्ट से है - यह भी सबसे विशेष भाग्य है। इसका भी आत्माओं के विशेष पार्ट से सम्बन्ध है।
संगमयुग पर विशेष यही चैक करना है कि सर्व प्राप्ति की है। सर्व खजाने सामने रखो, सर्व सम्बन्ध सामने रखो - सर्वगुण सामने रखो, कर्तव्य सामने रखो - सर्व बातों में अनुभवी हुए हैं! कर्तव्य में भी मन्सा का कर्तव्य, वाणी द्वारा है कर्म अर्थात् सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा है। उसकी भी चैकिंग चाहिए कि सर्व रूप से कर्तव्य के भी अनुभवी हैं। अगर कोई भी अनुभव रह गया हो तो उसी अनुभव को सम्पन्न बनाना चाहिए। क्योंकि संगमयुग के अनुभव फिर कभी भी नहीं हो सकते। इसलिए अब रहे हुए थोड़े समय में सर्व बातें में स्वयं को सम्पन्न बनाना चाहिए। ऐसी चैकिंग जरूर होनी चाहिए। अगर एक भी सम्बन्ध वा गुण की कमी है तो सम्पूर्ण स्टेज वा सम्पूर्ण मूर्त नहीं कहला सकते। बाप का गुण वा अपना आदि स्वरूप का गुण अनुभव न हो तो सम्पन्न मूर्ति कैसे कहेंगे। इसलिए सबमें सम्पूर्ण बनना है।
जैसे ब्रह्मा बाप सम्पूर्ण बने तो बच्चे भी फालो फादर। ऐसा ही लक्ष्य सदा रहता है ना। ततत्वम् का वरदान मिला है ना। निमित्त बनना अर्थात् ततत्वम् के वरदानी - अभी भी और जन्म जन्मान्तर के भिन्न-भिन्न पार्ट में भी। अभी का ततत्वम् का वरदान सारा कल्प चलता है। संगम पर भी, पूज्य के समय भी और पुजारी के समय भी तो विशेष आत्माओं को विशेष वरदान है ततत्वम का। यह बहुत थोड़ों को मिलता है। अच्छा।
पार्टियों से मुलाकात 1. अनेक मतों का विनाश प्रारम्भ करो तो विजय का झण्डा लहरा जाए :- अनेक मत वाले सिर्फ एक बात को मान जाएं कि हम सबका बाप एक है और वही अब कार्य कर रहे हैं, कम से कम यह आवाज़ सब तरफ पहुँचे कि हम सब एक की सन्तान एक हैं और एक ही यथार्थ है। चाहे धारण करे न करे लेकिन मान लें, चलना तो पीछे की बात है। जैसे कई आत्मायें सम्पर्क में आती तो समझती हैं यह अच्छा काम कर रहे हैं, इतना सब मान लें तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इसी संकल्प से मुक्तिधाम में चली जायें तो भी ठीक है। इसी संकल्प से मुक्तिधाम जायेंगे तो जब अपना-अपना पार्ट बजाने आयेंगे तो पहले यही संस्कार होंगे कि गाड इज वन। यह गोल्डन एज की स्मृति है। अनेकों में फँसना यह आइरन एज है। अथॉरिटी से और सत्यता से बोलो, संकोच से नहीं। सत्यता प्रत्यक्षता का आधार है। प्रत्यक्षता करने के लिए पहले स्वयं को प्रत्यक्ष करो, निर्भय बनो।
एक बल एक भरोसे पर अचल और अटल रहने वाले - यह अनुभव अनेकों को निश्चयबुद्धि बनाने वाला होता। निश्चयबुद्धि की नाव कितना भी कोई हिलावे लेकिन कभी भी कोई बात का असर नहीं हो सकता।
2. अलौकिक और अविनाशी झूला है - अतीन्द्रिय सुख :- सभी सदा संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति अतीन्द्रिय सुख में झूलते रहते हो? यह सुख ही सबसे बड़ा अलौकिक अविनाशी झूला है, जैसे जो लाडले बच्चे होते हैं उनको झूले में झुलाते हैं, जैसे कृष्ण को लाडला होने के कारण झूले में झुलाते हैं ना। संगमयुगी ब्राह्मणें का झूला अतीन्द्रिय सुख का झूला है। तो इसी झूले में सदा झूलते रहते हो! कभी भी देह अभिमान में आना अर्थात् झूले से निकल धरनी पर पांव रखना। धरनी पर पाँव रखते तो मैले हो जाते हैं। तो ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे सदा स्वच्छ होते - मैले नहीं। तो सदा इसी अतीन्दिय सुख में झूलते रहो।
3. सभी अपने को सदा बाप के समीप आत्मायें समझते हो? जो बाप के समीप आत्मायें होंगी उन्हों की निशानी क्या होगी? जितनी समीप होंगी उतना बाप के समान होगी। तो समान व समीप आत्मा बनने के लिए विशेष कौन-सी धारणा की आवश्यकता है? सदा याद और सेवा में तत्पर रहो। अगर सदा याद और सेवा में फालो फादर होंगे तो नम्बर वन जरूर आयेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप ने इसी धारणा से नम्बरवन पद को प्राप्त किया वैसे आप भी फालो कर नम्बरवन डिवीजन में आ जायेंगे। नम्बर वन तो ब्रह्मा की आत्मा गई - लेकिन आप भी सब उसके साथ फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे अर्थात् राजधानी में साथ-साथ होंगे जितना-जितना लाइट हाउस माइट हाउस बनेंगे उतना माया दूर से ही भाग जायेगी। लाइट हाउस के आगे अन्धकार रूपी माया आ नहीं सकती। अच्छा - ओम् शान्ति।
25-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्मान देना ही सम्मान लेना है
सर्व के बाप, शिक्षक और सतगुरू शिवबाबा बोले :-
आज भाग्यविधाता बाप सर्व भाग्यशाली बच्चों का विशेष एक बात का आदि से अब तक का रिकार्ड (Record) देख रहे थे। कौन सी बात का? रिगार्ड का रिकार्ड देख रहे थे। रिगार्ड (Regard) भी विशेष ब्राह्मण जीवन के चढ़ती कला का साधन है। जो रिगार्ड देते हैं वही विशेष आत्मा वर्तमान समय और जनम जन्मान्तर भी अन्य आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं। बापदादा भी साकार सृष्टि पर पार्ट बजाते आदि काल से पहले बच्चों को रिगार्ड दिया। बच्चों को स्वयं से भी श्रेष्ठ मानकर बच्चों के आगे समर्पण हुआ। पहले बच्चे पीछे बाप, बच्चे सिर के ताज बने। बच्चे ही डबल पूज्य बनते - बच्चे ही बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनते हैं। बाप ने भी आदि काल से रिगार्ड रखा - ऐसे ही फालो फादर करने वाले बच्चे आदिकाल से अपना रिगार्ड का रिकार्ड बहुत अच्छा रखते आये हैं। हरेक अपने आपको चैक करो कि हमारा रिकार्ड अब तक कैसा रहा।
रिकार्ड रखने के लिए पहली बात है - बाप में रिगार्ड - दूसरी बात...बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज का रिगार्ड - तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - चौथी बात - जो भी आत्मायें चाहे ब्राह्मण परिवार वा अन्य आत्मायें जो भी सम्पर्क में आती हैं उन आत्माओं के प्रति आत्मा का रिगार्ड। इन चारों ही बार्तें में अपने आपको चैक करो कि हमारा रिकार्ड कैसा रहा। चारों ही बातों में कितनी मार्क्स हैं! चारों ही बातों में सम्पन्न रहे हैं वा यथा शक्ति किस बात में मार्क्स अच्छी हैं और किसमें कम!
पहली बात - बाप का रिगार्ड - अर्थात् सदा जो है जैसा है वैसे स्वरूप से, यथार्थ पहचान से बाप के साथ सर्व सम्बन्धों की मर्यादाओं को निभाना। बाप के सम्बन्ध का रिगार्ड है फालो फादर करना। शिक्षक के सम्बन्ध का रिगार्ड है सदा पढ़ाई में रेगुलर (Regular) और पंक्चुअल (Punctual) रहना। पढ़ाई की सर्व सबजेक्ट में फुल अटैन्शन देना - सतगुरू के सम्बन्ध में रिगार्ड रखना - अर्थात् सतगुरू की आज्ञा देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध भूलकर देही स्वरूप अर्थात् सतगुरू के समान निराकारी स्थिति में स्थिति रहना। सदा वापस घर जाने के लिए एवररेडी रहना। ऐसे ही साजन के सम्बन्ध का रिगार्ड - हर संकल्प और सेकेण्ड में उसी एक की लगन में आशिक रहना। तुम्ही से खाऊं, तुम्हीं से हर कार्य में सदा संग रहूँ...इस वफादारी को निभाना। सखा वा बन्धु के सम्बन्ध का रिगार्ड अर्थात् सदा अपना सर्व बातों में साथीपन का अनुभव करना। ऐसे सर्व सम्बन्धों का नाता निभाना ही रिगार्ड रखना है। रिगार्ड रखना अर्थात् जैसे कहावत है एक बाप दूसरा न कोई - बाप ने कहा और बच्चे ने किया। कदम के ऊपर कदम रख चलना। मनमत वा परमत बुद्धि द्वारा ऐसे समाप्त हो जाए जैसे कोई चीज़ होती ही नहीं। मनमत वा परमत को संकल्प से टच करना भी स्वप्नमात्र भी न हो - अर्थात् अविद्या हो। सिर्फ एक ही श्रीमत बुद्धि में हो - सुनो तो भी बाप से - बोलो तो भी बाप का - देखो तो भी बाप को, चलो तो भी बाप के साथ, सोचो तो भी बाप की बातें सोचो, करो तो भी बाप के सुनाये हुए श्रेष्ठ कर्म करो। इसको कहा जाता है बाप के रिगार्ड का रिकार्ड।
ऐसे चैक करो कि पहली बात में रिकार्ड फर्स्ट क्लास रहा है वा सेकेण्ड क्लास। अखण्ड रहा है वा खण्डित हुआ है, अटल रहा है या माया की परिस्थितियों प्रमाण रिगार्ड का रिकार्ड हलचल में रहा है। लकीर सदा सीधी रही है वा टेढ़ी बाँकी भी रही है।
दूसरी बात - नॉलेज का रिगार्ड - अर्थात् आदि से अभी तक जो भी महावाक्य उच्चारण हुए उन हर महावाक्य में अटल निश्चय हो - कैसे होगा, कब होगा, होना तो चाहिए, है तो सत्य...इस प्रकार के क्वेश्चन उठाना भी अर्थात् सूक्ष्म संकल्प के रूप में संशय उठाना है। यह भी नॉलेज का डिस रिगार्ड है।
आजकल के अल्पकाल के चमत्कार दिखाने वाले अर्थात् बाप से वंचित करने वाले यथार्थ से दूर करने वाले नामधारी महान आत्मायें उन्हों के लिए भी सतवचन महाराज कहते हैं। तो सतगुरू जो महान आत्माओं का भी रचता परमपिता है उसकी सत्य नॉलेज में क्वेश्चन करना वा संकल्प उठाना यह भी रायल रूप का संशय अर्थात् डिसरिगार्ड है। एक क्वेश्चन होता है स्पष्ट करने के लिए - दूसरा क्वेश्चन होता है सूक्ष्म संशय के आधार से - इसको कहा जाता है डिसरिगार्ड। बाप तो ऐसे कहते हैं लेकिन होना असम्भव है वा मुश्किल है - ऐसा संकल्प भी किस खाते में जावेगा - यह चैक करो।
तीसरी बात - स्वयं का रिगार्ड - इसमें भी बाप द्वारा इस अलौकिक श्रेष्ठ जीवन वा ब्राह्मण जीवन के जो भी टाइटिल हैं वा अनेक गुणों और कर्तव्य के आधार पर जो स्वरूप वा स्थिति का गायन हे - जैसे स्वदर्शन चक्रधारी - ज्ञान स्वरूप प्रेम स्वरूप फ़रिश्तेपन की स्थिति - जो बाप ने नॉलेज के आधार पर टाइटिल दिये हैं ऐसे अपने को अनुभव करना वा ऐसी स्थिति में स्थित रहना। जो हूँ वैसा अपने को समझकर चलना - जो हूँ अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा हूँ, डायरेक्ट बाप की सन्तान हूँ, बेहद के प्रॉपर्टी की अधिकारी हूँ, मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ ऐसे जो हूँ वैसे समझकर चलना इसको कहा जाता है स्वयं का रिगार्ड। मैं तो कमजोर हूँ, मेरी हिम्मत नहीं हैं। बाप कहते हैं लेकिन मैं नहीं बन सकती, मेरा ड्रामा में पार्ट ही पीछे का है, जितना है उतना ही अच्छा है, ऐसे स्वयं से दिलशिकस्त होना यह भी स्वयं का डिसरिगार्ड है। यह भी चैक करो कि स्वयं के रिगार्ड का रिकार्ड क्या रहा।
चौथी बात - आत्माओं द्वारा सम्बन्ध वा सम्पर्क वाली आत्माओं का रिगार्ड - इसका अर्थ है हर आत्मा को चाहे ब्राह्मण आत्मा, चाहे अज्ञानी आत्मा हो लेकिन हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात् ऊंचे उठाने की वा आगे बढ़ाने की भावना हो, विश्व कल्याण की कामना हो इसी धारणा से हर आत्मा से सम्पर्क में आना यह है रिगार्ड रखना। सदा आत्मा के गुणों वा विशेषतओं को देखना - अवगुण को देखते हुए न देखना वा उससे भी ऊंचा अपनी शुभ वृत्ति से वा शुभचिन्तक स्थिति से अन्य के अवगुण को भी परिवर्तन करना इसको कहा जाता है आत्मा का आत्मा प्रति रिगार्ड। सदा अपने स्मृति की समर्थी द्वारा अन्य आत्माओं का सहयोगी बनना यह है रिगार्ड। सदा ‘पहले आप’ का मंत्र संकल्प और कर्म में लाना, किसी की भी कमजोरी वा अवगुण को अपनी कमजोरी वा अवगुण समझ वर्णन करने के बजाए वा फैलाने के बजाए समाना और परिवर्तन करना यह है रिगार्ड। किसी की भी कमजोरी की बड़ी बात को छोटा करना, पहाड़ को राई बनाना चाहिए न कि राई को पहाड़ बनाना है। इसको कहा जाता है रिगार्ड। दिलशिकस्त को शक्तिवान बनाना - संग के रंग में नहीं आना - सदा उमंग उल्लास में लाना इसको कहा जाता है रिगार्ड। ऐसे इस चौथी बात में भी चैक करो कि इसमें भी कितनी मार्क्स हैं! समझा कैसे रिगार्ड देना है। ऐसे चारों ही बातों में रिगार्ड अच्छा रखने वाले विश्व की आत्माओं द्वारा रिगार्ड लेने के पात्र बनते हैं। अर्थात् अब विश्व कल्याणकारी रूप में और भविष्य विश्व महाराजन के रूप में और मध्य में श्रेष्ठ पूज्य के रूप में प्रसिद्ध होते हैं। तो विश्व महाराजन बनने के लिए रिकार्ड भी ऐसा बनाओ।
रिगार्ड रखना अर्थात् रिगार्ड लेना है। देना, लेना हो जाता है। एक देना और दस पाना है। सहज हुआ ना।
कर्नाटक वाले सदा बाप के स्नेहमूर्त रहते हैं - कर्नाटक की धरनी बहुत सहज है। भावना के कारण धरनी फलीभूत है। इसलिए वृद्धि बहुत होती है। कर्नाटक की धरनी को सहज संदेश मिलने का ड्रामा अनुसार वरदान है। विशेष आत्मायें भी इस धरनी से सहज निकल सकती। लेकिन अभी आगे क्या करना है! जो वृद्धि होती है उसको विधिपूर्वक चलाना। सर्वशक्तियों के आधार से पालना में सदा महावीर बनाना हैं। स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रखना यह विशेषता लानी है। वैसे भोलानाथ बाप के भोले बच्चे अच्छे हैं। परवाने अच्छें हैं। बापदादा को पसन्द हैं। अभी बाप-पसन्द के साथ लोक पसन्द भी बनना है। अच्छा –
ऐसे सदा बाप को फालो करने वाले, आज्ञाकारी, वफ़ादार, फरमानवरदार, सदा महादानी वरदानी अर्थात् विश्व कलयाणकारी, हर आत्मा को रिगार्ड दे आगे बढ़ाने वाले, सदा शुभचिन्तक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
‘‘बाप-दादा के पर्सनल (पार्टियों के साथ) उच्चारे हुए मधुर महावाक्य’’
1. सभी अपने को होलीहंस समझते हो? होली हंस अर्थात् जो सदा व्यर्थ को छोड़ समर्थ को अपनाने वाले हों। वह हंस क्षीर और नीर को अलग-अलग करता है लेकिन होलीहंस व्यर्थ और समर्थ को अलग कर व्यर्थ को छोड़ देंगे, समर्थ को अपनायेंगे। जैसे हंस कभी भी कंकड़ नहीं चुगेंगे - रतन को धारण करेंगे, ऐसे होलीहंस जो सदा बाप के गुणें को धारण करें किसी के भी अवगुण अर्थात् कंकड़ को धारण न करें उसको कहा जाता है होलीहंस अर्थात् पवित्र आत्मायें, शुद्ध आत्मायें। जैसा शुद्ध आत्मा होगा वैसा उसका आहार व्यवहार भी शुद्ध होगा, होली हंस का आहार भी शुद्ध, व्यवहार भी शुद्ध। अशुद्धि खत्म हो जाती है। क्योंकि शुद्ध दुनिया में जा रहे हैं। जहाँ अपवित्रता वा अशुद्धि का नामनिशान भी नहीं। अब होलीहंस बनते हो तब ही भविष्य में भी हिज़ होलीनेस कहलाते हो। कभी गलती से भी किसका अवगुण धारण न करने वाले, सदा गले में गुण माला हो। शक्तियों के गले में भी माला दिखाते हैं, देवताओं के गले में भी माला दिखाते हैं। तो संगम में गुणों की माला धारण करने वालों की यादगार में माला दिखाई है। बाप के गुणों को धारण करते हुए सर्व के गुण देखने वाले हो तो यह गुणमाला सभी के गले में पड़ी है? गुणमाला धारण करने वाले ही विजय माला में आते हैं। तो चैक करना चाहिए माला छोटी है या बड़ी है। जितने बाप के और सर्व के गुण स्वयं में धारण करने वाले हैं वही बड़ी माला धारण करने वाले हैं। गुणमाला को सुमिरण करने से स्वयं भी गुणमूर्त बन जाते हैं। जैसे बाप गुणमूर्त है वैसे बच्चे भी सदा गुणमूर्त हैं।
2. सदा कमल पुष्प के समान प्रवृति में रहते हर कार्य करते हुए न्यारे अर्थात् बाप के प्यारे समझते हो? जितना न्यारा होगा उसके न्यारे पन की निशानी होगी - बाप का प्यारा होगा। बाप के प्यारे कहाँ तक बने हैं - प्यारे की निशानी क्या है? जिससे प्यार होता है उसकी याद स्वत: रहती है। याद करना नहीं पड़ता। अगर ऐसा अनुभव होता तो समझो प्यारे हैं। प्यार की निशानी स्वत: याद, अगर मेहनत करनी पड़ती है तो कम प्यार है। जहाँ जाएँ वहाँ बाप और बच्चे का मिलन मेला ही हो, जैसे कम्बाइन्ड होते हैं तो कभी एक दो से अलग नहीं हो सकते, ऐसे अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करो। जहाँ जाएंँ वहाँ बाप ही बाप, इसको कहा जाता है निरनतर योगी। बाप की याद मुश्किल न हो बाप को भूलना मुश्किल हो। जैसे आधाकल्प करना मुश्किल था वैसे अब संगम पर भूलना मुश्किल हो, कोई कितना भी भुलाने की कोशिश करे लेकिन अभुल। ऐसे पक्के अंगद के समान, संकल्प रूपी नाखून भी माया हिला न सके - ऐसे ही बाप के अति प्यारे हैं।
3. सर्विस में कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टैन्शन आने का कारण है - स्वयं और सेवा का बैलेन्स नहीं, स्वयं का अटैन्शन कम हो जाने के कारण सर्विस में भी कोई न कोई प्रकार का विघ्न वा टैन्शन पैदा हो जाता है। सर्विस के प्लैन के साथ पहले अपना प्लैन बनाओ। मर्यादाओं के लकीर के अन्दर रहते हुए सर्विस करो। लकीर से बाहर निकल सर्विस करेंगे तो सफलता नहीं मिल सकती। पहले अपनी धारणा की कमेटी बनाओ। आपस में प्लैन बनाओ फिर सर्विस वृद्धि को सहज पा लेगी। 4. सदा अपने को शमा के ऊपर फिदा होने वाले परवाने समझते हो? परवाने को सिवाए शमा के और कुछ सूझता नहीं। जैसे परवाना स्वयं को मिटाकर शमा में समा जाता है वैसे अपने देहभान को भूल बाप समान बन जाना इसको कहा जाता है समान बनना अर्थात् समा जाना। सारा कल्प तो बीत चुका, अब संगम को वरदान है जो बनने चाहो वह बन सकते हो। भाग्यविधाता भाग्य की लकीर अभी ही खींचते हैं, जो चाहो वह भाग्य बनाओ। अच्छा - ओम् शान्ति।
30-01-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व बन्धनों से मुक्ति की युक्ति
सर्व बन्धनों से मुक्ति दिलानेवाले मुक्तेश्वर शिवबाबा, त्रिकालदर्शी साक्षी दृष्टा बच्चों प्रति बोले –
आज बाप-दादा सभी स्नेही सिकीलधे बच्चों को देख हर्षा रहे हैं। जैसे बापदादा दूर देश से बच्चों से मिलने आते हैं वैसे बच्चे भी दूर देशों से बाप के साथ मिलने आते हैं। यह अलौकिक मेला अर्थात् बाप बच्चों का मिलन कल्प के अन्दर अब संगम पर ही होता है - अब नहीं तो कब नहीं। बाप-दादा सभी बच्चों की विशेष धारणाओं को देख रहे हैं। सुनना - यह तो जन्म-जन्मान्तर से करते ही आये लेकिन इस अलौकिक जन्म में अर्थात् ब्राह्मण जीवन में विशेषता है ही धारणा स्वरूप बनने की। तो बाप-दादा रिज़ल्ट देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण बच्चा कर्म करने के पहले त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थित हो तीनों कालों को जानने वाले बन कर्म के आदि, मध्य, अन्त को जान कर्म करते हैं! और फिर कर्म करते समय साक्षी दृष्टा हो पार्ट बजाते हैं। ऐसे पार्ट बजाने वाले वर्तमान समय और भविष्य में भी पूज्य स्वरूप बन अनेक आत्माओं के आगे दृष्टान्त रूप बनते हैं। त्रिकालदर्शी, साक्षी दृष्टा और फिर दृष्टान्त रूप। तीनों ही स्थिति में अभी कहाँ तक पहुँचे हैं? जैसे साकार बाप को देखा ऐसे फालो फादर हैं? हर कर्म त्रिकालदर्शी बन करने से कभी भी कोई कर्म विकर्म नहीं हो सकता, सदा सुकर्म होगा। त्रिकालदर्शी न बनने के कारण ही व्यर्थ कर्म वा पाप कर्म होते हैं। ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्म बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आवेंगे, बन्धन में नहीं। सदा कर्म करते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करेंगे ऐसी न्यारी और प्यारी आत्मायें अभी भी अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त अर्थात् एक्जैम्पुल बनते हैं - जिसको देखकर अनेक आत्मायें स्वयं भी कर्मयोगी बन जाती हैं और भविष्य में भी पूज्यनीय बन जाती हैं। ऐसे बाप समान बने हो? बन्धन मुक्त आत्मा बने हो? सर्व सम्बन्ध बाप के साथ जोड़ना अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त होना। अनेक जन्मों के अनेक प्रकार के बन्धन को समाप्त करने का सहज साधन बाप से सर्व सम्बन्ध। अगर किसी भी प्रकार का बन्धन अनुभव करते हो तो उसका कारण है सम्बन्ध नहीं। बाप-दादा रिज़ल्ट देख रहे थे कि अभी तक कौन-कौन से बन्धन युक्त हैं। देह के बन्धन का कारण है देही का सम्बन्ध बाप से नहीं जोड़ा है। बाप की स्मृति और देही स्वरूप के स्मृति की धारणा नहीं हुई है। पहला पाठ कच्चा है। सेकेण्ड में देह से न्यारे बनने का अभ्यास सेकेण्ड में देह के बन्धन से मुक्त बना देता है। स्वीच आन हुआ और भस्म। जैसे साइन्स के साधनों द्वारा भी वस्तु सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाती है वैसे साइलेन्स की शक्ति से, देही के सम्बन्ध से बंधन खत्म। अब तक भी अगर पहली स्टेज देह के बन्धन में हैं तो क्या कहेंगे! अभी तक पहले क्लास में हैं। जैसे कोई स्टूडेन्ट कमज़ोर होने के कारण कई वर्ष एक ही क्लास में रहते हैं - तो सोचो ईश्वरीय पढ़ाई का लास्ट टाइम चल रहा है और अब तक भी देह के सम्बन्ध की पहली चौपड़ी में हैं, ऐसे स्टूडेन्ट को क्या कहेंगे। किस लाइन में आवेंगे! पाने वाले वा देखने वाले। तो अब तक पहली क्लास में तो नहीं बैठे हो। परधर्म में स्थित होना सहज होता है वा स्वधर्म में? स्वधर्म है देही अर्थात् आत्मिक स्वरूप। परधर्म है देह स्वरूप - तो सहज क्या अनुभव होता है। जैसा नाम है सहज राजयोगी वैसा ही अनुभव है? वा नाम और काम में फर्क है!
दूसरे नम्बर का बन्धन है मन का बन्धन। इस मन के बन्धन का साधन है सदा मनमनाभव। यह पहला मन्त्र सदा जीवन में अनुभव करते हो? सदा एक बाप दूसरा न कोई। यह पहला वायदा निभाना अर्थात् मन के बन्धनों से मुक्त होना - तो पहला वायदा निभाना आता है ना! कहना आता है वा निभाना आता है? निभाना अर्थात् पाना - इसमें भी चैक करो कि कहाँ तक बन्धन मुक्त बने हैं। सदा सर्व आकर्षणों से परे एक ही लगन में मगन हैं? एक रस हैं? अचल हैं वा चंचल हैं। अगर अब तक चंचल हैं तो क्या कहेंगे? अभी तक छोटा बच्चा है और स्टेज आकर पहुँची हैं वानप्रस्थ की, ऐसी स्टेज के समय यह चंचलता! बचपन की स्टेज अच्छी लगती है? ब्राह्मण जन्म का अधिकार मास्टर सर्वशक्तिवान का प्राप्त किया है - अधिकार के आगे यह देह वा मन के बन्धन रह सकते हैं! प्रैक्टिकल अनुभव क्या है? सदा यह तीन बातें याद करो - त्रिकालदर्शी फिर साक्षी दृष्टा और उसकी रिज़ल्ट विश्व के आगे दृष्टान्त रूप। इस स्थिति को सदा याद रखो तो सदा बन्धन मुक्त जीवनमुक्त अवस्था का अनुभव करेंगे। पुरूषार्थ का समय बहुत बीत चुका। अब थोड़े का भी थोड़ा-सा रहा है। समय के प्रमाण अपनी रिज़ल्ट चैक करो। इस मेले का भी थोड़ा-सा समय रह गया है - इसलिए अब सुना तो बहुत, सुनना अर्थात् वाणी द्वारा ही यह ब्राह्मण जन्म लिया इसलिए मुख वंशावली कहलाते हो। तो जन्म से ही सुनते आये हो अब क्या करना है? सुनने के बाद है स्वरूप बनना। इसलिए लास्ट स्टेज स्मृति स्वरूप की है। ऐसी स्टेज तक कहाँ तक पहुँचे हो। सीज़न की रिजल्ट भी क्या! सुनना और मिलना वा समान बनना। स्नेह का सबूत है ही समान बनना। जिस स्टेज से बाप का स्नेह है ऐसी स्टेज को पाना। ऐसे स्नेही हो ना? सदा अपने सम्पूर्ण स्वरूप को सामने रखने से माया का सामना करना बहुत सहज होगा। बाप-दादा यही रिज़ल्ट देखने चाहता - इस रिज़ल्ट को प्रैक्टिकल में लाने के लिए विशेष धारणायें याद रखो - 1. मधुरता 2. नम्रता। इन विशेष दो धारणाओं से सदा विश्व कल्याणकारी महादानी वरदानी बन जावेंगे - और सहज ही स्नेह का सबूत दे सकेंगे। समझा - अभी क्या करना है? यह करना है और कुछ छोड़ना भी है। छोड़ना क्या है? ज्ञानी तू आत्मा होने के कारण भक्ति के संस्कार भिखारी बन मांगने का वा सिर्फ बाप की महिमा वा कीर्तन गाने का, मन द्वारा यहाँ वहाँ भटकने का, अपने खज़ानों को व्यर्थ गँवाने का यह पुराने संस्कार सदा के लिए समाप्त करो अर्थात् पुराने संस्कारों का संस्कार करो। यह है छोड़ना। तो अब समझा क्या करना है। क्या छोड़ना है। ज्ञानी तू आत्मा अर्थात् विजयी। अच्छा –
ऐसे सेकेण्ड में स्व परिवर्तन करने वाले, स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले, सर्व बन्धनों से मुक्त सदा योगयुक्त, जीवन मुक्त, बाप-दादा के स्नेही अर्थात् समान बनने वाले ऐसे सदा विजयी रतनों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
बाप-दादा की व्यक्तिगत मुलाकात - (बंगाल बिहार ज़ोन)
1. सदा अपने को पदमापदमपति समझते हो? जो हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते हैं वह क्या हो गये? पदमापदमपति हो गये ना! आपके आगे आजकल के नम्बरवन धनवान भी क्या हैं? भिखारी। क्योंकि जितना धन होगा तो धन के साथ और क्या होता है, दुख भी होता है। तो जो दुखी होंगे वह सुख के भिखारी तो होंगे ना। तो चाहे जितना भी बड़ा विश्व में प्रसिद्ध नामी-ग्रामी धनवान हो लेकिन आपके आगे सब भिखारी हैं। अब ऐसा समय प्रैक्टिकल में देखेंगे जो नामी-ग्रामी धनवान अभी सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, जिन्हें सोचने की फुर्सत नहीं है वह सब आपके आगे भिखारी की क्यू में होंगे, तरसेंगे, तड़फेंगे एक सेकेण्ड के सुख के लिए। ऐसे समय पर आप सभी महादानी स्टेज पर स्थित हो सबको दान देंगे। तो इतना नशा रहता है? कि हम विश्व में सबसे मालामाल हैं। शुरू में भी स्थापना के समय अखबार में क्या डलवाया था - लोगों ने कहा ओम मण्डली गई कि गई और बाप ने डलवाया ओम मण्डली सारे वर्ल्ड में रिचेस्ट है, मालामाल है, सब भूख मर सकते हैं लेकिन बाप के बच्चे भूखे नहीं मर सकते। क्योंकि ‘अमरभव’ का वरदान मिला हुआ है। जो वरदानी हैं वह सदा मालामाल हैं तो ऐसा नशा और खुशी सदा कायम रहे, कभी-कभी नहीं। अमरभव अर्थात् निरन्तर सदा खुशी में बाप के साथ समानता की रास खेलते रहो। बाप के साथ रास भी वही खेलेंगे जो समान होंगे। सदा समानता ही रास है तो ऐसे रास खेलते हो? जो यहाँ सदा बाप के समान रहते हैं वा खुशी में नाचते रहते हैं वही फिर भविष्य में भी साथ-साथ रास करेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ पार्ट बजाना, तो बाप समान होंगे तब तो पार्ट बजायेंगे ना।
शक्ति सेना सदा विजय का झण्डा लहराने वाली हो ना? कितना ऊँचा झण्डा लहराया है? इतना ऊंचा झण्डा है जो सारी विश्व देख सकेंगे। झण्डा लहराया जरूर है लेकिन अभी ऊंचा उठाना है। अगर कोई अट्रैक्शन की वस्तु कहाँ भी नजर आती तो सबकी नज़र आटोमेटिकली जाती है, न चाहते भी आकर्षण होती है। तो ऐसा आकर्षण वाला झण्डा लहराओ जो न चाहते भी सबकी नज़र जाए। वैसे तो धरनी अभी परिवर्तन होती जा रही है, अभी सबके कानों में यह आवाज़ गूँजने वाला है कि अगर सत्य कार्य है तो इनहों का ही है, सब तरफ से निराश होंगे और इसी तरफ आशा का दीपक दिखाई देगा। इसके लिए सम्पर्क बढ़ाओ। समय पर सम्पर्क नही सदा सम्पर्क। सम्पर्क में आने वालों को आगे बढ़ाते चलो, कोई न कोई प्रोग्राम समय प्रति समय रखते हो। हर वर्ग की सेवा करनी है, अन्त में कोई भी उल्हना न दे सके कि हमें नही बताया। इसलिए सब धर्म वालों को सन्देश जरूर देना है।
2. तमोगुणी वातावरण से सेफ्टी का साधन - बाप का साथ :- अपने को इस पुरानी दुनिया में रहते कमल पुष्प के समान न्यारे और बाप के अति प्यारे अनुभव करते हो? जैसे कमल का पुष्प कीचड़ में रहते भी न्यारा रहता है, ऐसे पुरानी दुनिया में रहते हुए, तमोगुणी वातावरण से न्यारे रहते हो? तमोगुणी वातावरण का प्रभाव तो नहीं पड़ता। जो सदा बाप को अपना साथी बनाते और साक्षी हो पार्ट बजाते वह सदा न्यारे होंगे। जैसे वाटरप्रूफ होता है ना तो कितना भी पानी पड़े लेकिन एक बूँद भी असर नहीं करेंगी। ऐसे सदा मायाप्रूफ हो कि माया का असर होता है? जब बाप के साथ का किनारा करते हो तब असर होता है। किनारा देख माया अपना वार कर देती हैं। सदा साथ रहो तो माया का वार नहीं हो सकता। सभी बच्चों को मायाजीत बनने का वरदान है लेकिन मायाजीत का पेपर तो होगा ना! पास नहीं होंगे तो पास विद ऑनर कैसे कहलायेंगे। सदा यह याद रखो कि हम सर्वशक्तिवान के साथ हैं। अगर कोई बहादुर का साथ होता है तो कितना निर्भय रहते हैं, यह तो सर्वशक्तिवान का साथ है तो कितना निर्भय रहना चाहिए। सदा अपने भाग्य का सितारा चमकता हुआ देखो। दुनिया वाले आज भी आपके भाग्य का वर्णन कर रहे हैं, तो अपने भाग्य का सितारा देखते रहो।
3. डबल लाइट की स्थिति से पहाड़ जैसा कार्य भी रूई समान :- सभी डबल लाइट हो ना! किसी भी प्रकार का बोझ अनुभव न हो यह है डबल लाइट। डबल लाइट अर्थात् बिन्दी स्वरूप आत्मा में भी कोई बोझ नहीं और जब फरिश्ते बन जाते तो उसमें भी कोई बोझ नहीं। तो या तो अपना बिन्दु रूप याद रहे या कर्म में फरिश्ता स्वरूप - ऐसी स्टेज पर स्थित होने से कितना भी बड़ा कार्य ऐसे अनुभव करेंगे जैसे करन करावनहार करा रहे हैं। निमित्त समझेंगे तो डबल लाइट रहेंगे। ट्रस्टी अर्थात् डबल लाइट, गृहस्थी अर्थात् बोझ वाला। ट्रस्टी होकर चलने से बोझ भी नहीं और सफलता भी ज्यादा। गृहस्थी समझने से मेहनत भी ज्यादा और सफलता भी कम। तो सदा डबल लाइट के स्वरूप की स्मृति की समर्थी में रहो तो कोई भी पहाड़ जैसा कार्य भी राई नहीं लेकिन रूई जैसा हो जायेगा। राई फिर भी सख्त होती है, रूई उससे भी हल्की, तो रूई के समान अर्थात् असम्भव भी सम्भव हो जायेगा। अच्छा –
4. अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने का साधन है - श्रेष्ठ स्मृति :- सदा अपने को श्रेष्ठ आत्मा समझते हुए हर संकल्प और कर्म श्रेष्ठ करते हो? क्योंकि जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है। तो स्मृति रहती है कि हम महान श्रेष्ठ आत्मा हैं। स्मृति को सदा चैक करो कि निरंतर विशेष आत्मा की रहती है - या चलते- चलते साधारण बन जाती है। सदा अपना आक्यूपेशन कि मैं विश्व में ब्राह्मण चोटी हूँ। सदा अपने मस्तक पर स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। लौकिक रीति से भी ब्राह्मण तिलक लगाते हैं, तो यह निशानी अब संगमयुग की है, तो सदा तिलक कायम रहता है? माया मिटाती तो नहीं है। सदा अटेन्शन रहे तो स्मृति का तिलक अमिट और अविनाशी रहेगा। अच्छा - ओम् शान्ति।
01-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मनन-शक्ति ही माया जीत बनने का साधन
मनन द्वारा मग्न रहने वाले मास्टर भगवान बच्चों बच्चों प्रति बाप-दादा बोले –
आज बापदादा बच्चों के अनेक प्रकार के पुरूषार्थ की विधि को देखते हुए बच्चों के उमंग, उत्साह, मिलन की लगन, स्नेह का संकल्प सदा सहयोगी बनने के कार्य में तत्पर रहना, सब संग तोड़ एक संग जोड़ने की मेहनत को देख बापदादा हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ स्नहे के कारण तरस भी पड़ रहा था - हरेक अपने-अपने यथाशक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तीव्रगति से लगे हुए हैं। सबकी एक ही इच्छा है कि फास्ट जावें फर्स्ट आवें। दिन रात इसी लगन में चल रहे हैं - लेकिन लक्ष्य एक है, लगन भी एक से ही है। साथ भी एक का ही है फिर भी कोई महावीर हैं और कोई बहुत मेहनत अनुभव करते हैं - कोई सहजयोगी हैं - कोई पुरुषार्थी योगी हैं, कोई सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं - कोई सर्व प्राप्ति करने में खूब लगे हुए हैं। कोई मायाजीत हैं - और कोई माया के विघ्नों से युद्ध करने में लगे हुए हैं - कोई के मन का आवाज़ जो पाना था पा लिया - और कोई का आवाज़ है अभी पा रहे हैं। कोई सदा साथ का अनुभव करते और कोई सदा साथी बनाने के प्रयन्त में रहते। ऐसा देख बापदादा को मेहनत करने वालों के ऊपर तरस पड़ता है - एक बाप के बच्चे दो प्रकार के क्यों? और यह मेहनत भी कब तक? यह अलौकिक जन्म जिस जन्म को वरदान है क्योंकि वरदाता द्वारा यह जन्म है - ऐसा वरदानी जन्म प्राप्त होते हुए भी यह जन्म भी मनाने के बजाए मेहनत में ही जाए तो ऐसा वरदानी जन्म फिर कब मिलेगा! इसलिए इस वरदानी जन्म का हर सेकेण्ड और सर्व प्राप्ति करने का सुहावना सेकेण्ड है। ऐसे समय को पाने के बजाए मेहनत में लगाना क्या अच्छा लगता है! चाहते भी नहीं हैं फिर भी कर लेते हैं - क्यों? आज बापदादा ने विशेष कारण देखे। मूल कारण है जो चाहते नहीं हो लेकिन परवश हो जाते किसके वश हो जाते हो - उसको भी अच्छी तरह से जानते हो। जानते हुए बचने का प्रयत्न करते हुए भी फिर चक्कर में आ जाते हो - क्योंकि माया भी जानी जाननहार रूप में आती है - वह भी जानती है कि इन ब्राह्मण आत्माओं का मुख्य आधार बुद्धि योग है – दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप से मिलन मना सकते तो माया भी पहले-पहले बुद्धि में वार करती है। कमजोर बना देती है। किस द्वारा? माया का विशेष बाण व्यर्थ संकल्पों के रूप में होता है। इस बाण द्वारा दिव्यबुद्धि को कमजोर बना देती है और कमज़ोर बनने के कारण परवश हो जाते हैं। कमज़ोर व्यक्ति जो चाहे वह नहीं कर पाते इसलिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो। इस कारण का निवारण सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो प्राप्त हुआ है उस शक्ति को कार्य में नहीं लगाते हो। वह विशेष शक्ति है मनन शक्ति। मनन शक्ति को यूज़ करना नहीं आता। मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुराक है। खुराक को न खाने से कमजोर बन जाते। और कमज़ोर होने के कारण परवश हो जाते। मनन शक्ति का विस्तार बहुत बड़ा है। लेकिन विधि नहीं आती।
जब से ब्राह्मण जन्म हुआ तब से अभी तक डायरेक्टर बाप द्वारा जीवन के कितने टाइटिल्स सुने हैं - अगर वर्णन करो तो पूरी लम्बी माला बन जाए - भक्ति मार्ग में भी सुमिरण करने के अभ्यासी हैं - एक-एक मणके पर सुमिरण करते हैं। भक्ति में सुमिरण शक्ति है और ज्ञान में स्मृति की शक्ति है। जब भक्त आत्मायें अपनी शक्ति को नहीं भूलती। अल्पकाल की विधि से अल्पकाल की सिद्धि को पाती रहती हैं - तो आप ज्ञानी तू आत्मायें स्मृति की शक्ति की विधि को क्यों भूल जाते हो। अगर रोज़ अमृतवेले अपने एक टाइटिल को भी स्मृति में लाओ और मनन करते रहो तो मनन शक्ति से सदा बुद्धि शक्तिशाली रहेगी। शक्तिशाली बुद्धि के ऊपर माया का वार नहीं हो सकता अर्थात् परवश नहीं हो सकती। तो मूल कारण है बुद्धि की कमजोरी और कमजोरी का निवारण है मनन शक्ति।
जैसे आजकल की विशेष आत्मायें अर्थात् पढ़े लिखे लोग जैसा कार्य होगा जैसा स्थान होगा वैसी अपनी ड्रेस चेन्ज करते हैं - आपके जड़ चित्रों का भी हर समय ड्रेस चेन्ज करते हैं। भविष्य देवताई रूप में भी हर कार्य की ड्रेस अलग-अलग होगी। यह संस्कार भविष्य का वर्तमान के आधार पर है - इस समय का फैशन वा रीति रसम सतयुग में तो चलेगी लेकिन आपके जड़ चित्रों में भी रस्म चली आ रही है - तो संगमयुग की रीति रसम कौन सी है? जैसा कार्य करते हो वैसे टाइटिल प्रमाण अपना स्वरूप याद रखो - सबसे ज्यादा फैशनेबुल संगमयुगी ब्राह्मण हैं। जैसा समय वैसा स्वरूप - यह स्वरूप भी आपकी ड्रेस है। जैसी स्मृति वैसी वृति वैसी दृष्टि और वैसी स्थिति अर्थात् स्वरूप। जैसे आजकल का फैशन है ना जैसा श्रृंगार - वस्त्र भी वैसे, तिलक भी वैसे लगावेंगे तो आँखों का श्रृंगार भी वैसा करेंगे। तो सबसे फैशनेबुल आप ब्राह्मण हो। ऐसी स्मृति वृति और दृष्टि बनाओ। स्मृति है तिलक और दृष्टि है आँखों का श्रृंगार - और वृति है मेकप करना। वृति से जैसा परिवर्तन चाहो वैसे कर सकते हो। तो सदैव रूहानी सजी सजाई मूर्त हो विश्व को परिवर्तन करने वाले!
मनन शक्ति अर्थात् अपने अनेक टाइटिलज़ अर्थात् स्वरूप स्मृति में रखो। अनेक गुणों के श्रृंगार को स्मृति में रखो - अनेक प्रकार के खुशी की प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रूहानी नशे के प्वाईन्टस स्मृति में रखो, रचता बाप के परिचय की प्वाईन्टस बुद्धि में रखो, रचना के विस्तार की प्वाईन्टस स्मृति में रखो। याद द्वारा अनेक प्रकार के अनुभव और प्राप्तियों की प्वाईन्टस को स्मृति में रखो तो मनन शक्ति का साधन कितना बड़ा है! जो चाहे वह मनन करो। जो आपकी पसन्दी हो वह पसन्द करो - तो मनन करते मगन अवस्था भी सहज प्राप्त हो जावेगी। परवश के बजाए मायाजीत बनने का वशीकरण मन्त्र सदा साथ रहेगा और माया सदा के लिए नमस्कार करेगी। संगमयुग का पहला भक्त आपकी माया बनेगी। मास्टर भगवान बनो तो भक्त भी बने ना। अगर खुद ही भगत होंगे तो वह किसका भक्त बने। तो भक्त बनेंगे वा मास्टर भगवान बनेंगे - इसका सहज साधन सुनाया। मनन शक्ति को बढ़ाओ। समझा।
बंगाल बिहार का ज़ोन तो श्रृंगार करना जानता है, जैसे देवियों को बहुत सजाते हैं, अपने जड़ चित्रों को सजाने आता है ना। ऐसे स्वयं को सजाना है। इस ज़ोन की भी विशेषता है - जो बाप को अति प्रिय है। ऐसे बच्चे बहुत हैं - वह कौन? गरीब भी हैं और भोलेनाथ के भोले भी हैं - दोनों ही बाप को अति प्रिय हैं। इसलिए इस ज़ोन का ग्रुप देखो बड़ा है ना - इस ज़ोन की विशेषता है - इस ज़ोन में कितने अलग- अलग प्रदेश है - नेपाल भी है तो आसाम भी है, वैराइटी फूलों का गुलदस्ता है - सेवा भी अब विस्तार को पाती जा रही है। साकार तन को ढूंढा भी यहाँ से ही है। तो स्थान की विशेषता रही ना। जैसे गवर्मेन्ट को किस स्थान से कोई विशेष अमूल्य वस्तु मिलती है तो उस स्थान का महत्व रहता है - नामीग्रामी रहती है - हिस्ट्री में आ जाती है। ऐसे यह स्थान भी बाप की हिस्ट्री में विशेष स्थान है। आगे चलकर इस स्थान का महत्व विश्व में महत्वपूर्ण होगा - जैसे देहली की विशेषता अपनी है, बाम्बे की अपनी है। इस स्थान का महत्व भी बहुत बड़ा अपना है, इसलिए आगे चलकर और भी इस स्थान को विशेष भूमि की रीति से देखेंगे और सुनेंगे। ऐसे विशेष भूमि के निवासी भी विशेष आत्मायें हो। भूमि के साथ आप लोग के भाग्य का भी सब वर्णन करेंगे। अच्छा
सदा शक्तिशाली स्वरूप में स्थित रह माया दुश्मन को भी अपना भक्त बनाने वाले, सदा सजे सजाये स्वरूप में स्थित रहने वाले, वशीकरण मन्त्र द्वारा माया को वश करने वाले, सदा स्मृति द्वारा समर्थ रहने वाले, सर्वशक्तिवान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियो से मुलाकात
1. हर संकल्प वा कर्म बाप समान करने से - निरन्तर सहजयोगी की स्टेज का अनुभव :- संगमयुग का श्रेष्ठ स्थान है बाप का दिलतख्त, जो इस तख्त पर बैठते हैं वही विश्व के तख्त के अधिकारी बनते हैं। और जैसे बाप परमपूज्य है वैसे बच्चे भी पूज्य बन जाते हैं। क्योंकि दिल में वही समाये जाते हैं जो समान होते हैं, तो बाप समान फालो फादर करने वाली आत्मायें हो ना - ऐसे अनुभव होता है जो बाप की स्मृति वह बच्चों की स्मृति, जो बाप के गुण वह बच्चों के गुण, जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चे का। इसको कहा जाता है फालो फादर। जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले चेक करो कि बाप समान है, अगर बाप समान है तो सहजयोगी की स्टेज का अनुभव होगा। मेहनत नहीं लगेगी। और कोई भी परिस्थिति में बाप को सामने लाने से, स्वस्थिति के आधार से परिवर्तन हो जायेगी। चाहे कितने भी देश के हालात नाजुक हों लेकन आप सदा कमलपुष्प के समान बाप की छत्रछाया में न्यारे और प्यारे रहेंगे। सदा छत्रछाया में हो ना? बाप सेवाधारी बन करके आते हैं तो छत्रछाया के रूप में बच्चों की सदा सेवा करते हैं। बाप को याद किया और साथ अनुभव किया, वैसे कोई भी शरीरधारी का साथ लेने में समय लग जाता है लेकिन बाप तो सेकेण्ड में हाज़र होगा - तो दूर रहते भी सदा समीप आत्मा हो ऐसा अनुभव होता है? जो जितना प्यारा होगा उतना समीप होगा - तो कितने समीप हो? अभी भी समीप हो और परमधाम में भी समीप होंगे फिर भविष्य में भी समीप - तो तीनों ही स्थानों के समीप हो ना। जहाँ भी ब्राह्मण बच्चों के पांव पड़ते हैं वहाँ कोई न कोई आत्मायें हैं तब जाना होता है। जो बच्चे बाप की याद में रहते हैं, याद में रहने वाले बच्चों को बाप सदा रेसपान्ड देते भी रहते हैं और सदा देते रहेंगे, क्योंकि याद द्वारा ही अनुभवों का अधिकार प्राप्त होता है।
भाषण ही सिर्फ सेवा का साधन नहीं है, अनुभव द्वारा भी प्रभावित कर सकते हो, अनुभव की टापिक सबसे ज्यादा अट्रैक्ट करने वाली होती है। सेवा ज़रूर करनी है, जैसे भी करो। सब सबजेक्ट में मार्क्स लेनी हैं, अगर एक भी कम रह गई तो पास विद आनद कैसे होंगे, इसलिए सब सबजेक्ट को कवर करो।
2. सारे कल्प में संगमयुग ही बहारी मोसम है :- सदा बहार के समान खिले हुए पुष्प खुशबूदार रूहे गुलाब अपने को समझते हो? जब बहार का मौसम आता है तो सब फूलों में रगत आ जाती है, खिल जाते हैं, सुन्दर लगते हैं, संगमयुग भी सारे कल्प के अन्दर बहारी मौसम है, जिसमें हरेक आत्मा रूपी पुष्प खिला हुआ रहता है। तो ऐसे अपने को सदा खिला हुआ अर्थात् सदा रूहानी याद में रहने वाला रूहे गुलाब समझते हो? कि कभी फूल से मुखड़ी भी बन जाते हो? जो पहले छोटी कली होती है वह बन्द होती है, फिर खिल जाती है तो फूल कहा जाता। तो सदा खिले हुए हो या कभी फूल या कभी कली। सदा खिला हुआ पुष्प वह है जो दूर से ही सबको आकर्षित करे। ऐसी रूहानियत है? जो भी सम्पर्क में आए उसको यह रूहानी खुशबू आकर्षित करे - खिले हुए फुल ही किसी को भेंट किये जाते। बापदादा के ऊपर भी खिले हुए फुल ही बलिहार होते हैं। जो सच्चे भक्त होते हैं वह कभी देवताओं पर सड़े हुए फूल नहीं चढ़ायेंगे, अच्छे खिले हुए फूल देवाताओं पर भेंट करेंगे। तो ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब हो जो बाप के ऊपर बलिहार हो सकें। सदा यह याद है कि हम किस बागवान के बगीचे के फूल हैं। डायरेक्ट बाप फूलों को अपने स्नेह का पानी दे रहे हैं, तो कितने लकी हो गये!
बापदादा सदा हर बच्चे को देख क्या सोचते? कि हर बच्चा विश्व के मालिक बने
हद के नहीं, स्टेट के नहीं लेकिन विश्व के। विश्व का मालिक कौन बनेंगे? जो विश्वकल्याणकारी होंगे? तो आप सब कौन हो विश्व पर राज्य करने वाले या स्टेट पर? जो विश्व पर राज्य करने वाले होंगे वह सदा बेहद की स्थिति में स्थित होंगे - सम्बन्ध, संस्कार स्वभाव सब बेहद में होंगे, हद नहीं होगी। हद की प्रवृति में अपना ज्यादा समय समय देते हो या बेहद में? बनना है बेहद का मालिक और समय देते हद में - तो क्या होगा? बेहद के मालिक बनने वाले बेहद की सेवा में ज़रूर लगेंगे। हद निमित्तमात्र, सारा अटेन्शन बेहद की सेवा में। बेहद में जाकर सेवा करो, सर्विस में नया मोड़ लाओ। बहुत समय से दिल में जो प्लैन हैं वह प्रैक्टिकल में लाओ। इस वर्ष की योजना बनाओ - कि इतने सेन्टर खोलने हैं - हैन्डस भी आटोमेटिकली निकल आते हैं। वहाँ के भी हैन्डस तैयार करो। अच्छा - ओम्शान्ति।
03-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्व पर रहम करो, ‘वहम’ और ‘अहम’ भाव को मिटाओ
विश्व कल्याणकारी, राज्य भाग्य प्राप्त करने वाली, देव पद प्राप्त करने वाली आत्माओं प्रति बाबा बोले –
बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप, विश्व कल्याणकारी रूप में देख रहे हैं। वर्तमान समय अन्तिम स्वरूप वा अन्तिम कर्त्तव्य विश्व कल्याण का ही है। इस अन्तिम स्वरूप में स्थित रहने के लिए हरेक ब्राह्मण यथाशक्ति पुरूषार्थ कर रहे हैं। लक्ष्य सबका एक ही विश्व कल्याण करने का है लेकिन कोई अभी तक स्व कल्याण में ही लगे हुए हैं, और कोई स्वदेश के कल्याण करने में लगे हुए हैं। बहुत थोड़े बेहद के बाप समान बेहद अर्थात् विश्व की सेवा में अथवा विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित रहते हैं। विश्व कल्याणकारी श्रेंष्ठ आत्मा की निशानी क्या होगी?
1. विश्व कल्याणकारी जानते हैं कि समय कम है और कार्य महान है इसलिए विश्व कल्याणकारी हर सेकेण्ड वा संकल्प विश्व कल्याण के प्रति ही लगायेंगे।
2. तन मन और प्राप्त धन सदा विश्व सेवा में अर्पण करेंगे।
3. उनके मस्तक और नयनों में सदा विश्व की सर्व आत्मायें स्मृति वा दृष्टि में होंगी कि इन अप्राप्त आत्माओं को भी तृप्त आत्मा कैसे बनायें। भिखारी आत्माओं को सम्पन्न बनायें। वंचित हुई आत्माओं को सम्पर्क और सम्बन्ध में कैसे लायें। दिन-रात बाप द्वारा शक्तियों का वरदान लेते हुए सर्व को देने वाले दाता होंगे।
4. अथक, निरन्तर सेवाधारी होंगे। प्रोग्राम प्रमाण सेवाधारी नहीं लेकिन सदा एवररेडी आलराउन्डर होंगे।
5. ऐसे विश्व कल्याणकारी अर्थात् रहमदिल आत्मायें ही कैसी भी अवगुण वाली आत्मा हो, कड़े संस्कार वाली आत्मा हो, कम बुद्धि वाली आत्मा हो, पत्थर बुद्धि हो, सदा ग्लानि करने वाली आत्मा हो, सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी अर्थात् लाफुल और लवफुल होंगे। लक्ष्य सभी का ऐसा ही है लेकिन करते क्या हैं? चलते- चलते रहम के बदले दो बातों में बदल जाते हैं। कोई रहम करने के बदले आत्माओं में वहम भाव पैदा कर देते हैं - यह कभी बदल नहीं सकते, यह हैं ही ऐसे, सब तो राजा बनने वाले नहीं हैं, इस प्रकार के अनेक वहम भाव रहम को खत्म कर देते हैं। दूसरी बात - रहम भाव के बदले अहम् भाव ‘‘मैं ही सब कुछ हूँ - यह कुछ नहीं है। यह कुछ नहीं कर सकते मैं सब कुछ कर सकता हूँ।’’ इस प्रकार के अहम् भाव अर्थात् मैं-पन का अभिमान रहमदिल बनने नहीं देता। यह दोनों बातें बेहद के विश्व कल्याणकारी बना नहीं सकती। इसलिए स्व कल्याण वा स्व-देश कल्याण तक रह जाते हैं। विश्व कल्याणकारी बनने का सहज साधन जानते भी हो लेकन समय पर भूल जाते हो। कैसी भी अवगुणधारी आत्मा हो -कैसी भी पतित आत्मा वा पुरूषार्थहीन आत्मा दोनों में से कोई भी हो अज्ञानी पतित आत्मा होगी और ब्राह्मण परिवार की पुरूषार्थहीन आत्मा होगी-दोनों आत्माओं के प्रति विश्व कल्याणकारी अर्थात् बेहद की दाता आत्मा, विश्व परिवर्तन अधिकारी आत्मा सदा उन आत्माओं की बुराई वा कमज़ोरियों को कल्याणकारी होने के नाते पहले क्षमा करेंगी। जैसे बेहद का बाप बच्चों को क्षमा करते हैं किस बात पर? बच्चों की बुराई वा कमज़ोरियों को दिल में न समाए क्षमा करते हैं, पूज्य देवता भक्तों पर क्षमा करते हैं। तो विश्व कल्याणकारी मास्टर रचता भी हैं, विश्व अधिकारी भी हैं अर्थात् छोटों के आगे बड़ा राजा के समान हैं, बाप के समान हैं, पूज्य आत्मा हैं, इन तीनों सम्बन्ध के आधार से बुराई वा कमजोरी दिल पर न रख क्षमा करेंगे। उसके बाद ऐसी आत्मा के कल्याण प्रति सदा हर आत्मा के वास्तविक स्वरूप ओर गुण को सामने रखते हुए महिमा करेंगे अर्थात् उस आत्मा को अपनी महानता की स्मृति दिलायेंगे। किसके बच्चे हो - किस कुल के हो! संगमयुग की विशेषता वा वरदान क्या है! बाप का कर्त्तव्य असम्भव को भी सम्भव करने का है, तुम आत्मा आदिकाल की राजवंशी हो, अब ब्रह्मावंशी हो, मास्टर सर्वशक्तिवान हो, इस प्रकार की महिमा करेंगे - जिससे वह आत्मा गुणों को सुनते हुए स्मृति और समर्थी में आये और कमज़ोरी को वा बुराई को मिटाने की हिम्मत में आये।
जैसे आज की दुनिया में राजपूत वंश वाले अपने वंश की स्मृति दिलाते तो कमज़ोर में भी हिम्मत आ जाती - ऐसे विश्व कल्याणकारी - कमज़ोर आत्मा को भी महिमा से महान बना देंगे। अर्थात् अपनी रहमदिल की शकि्त से स्वयं तो उसके अवगुण धारण नहीं करेंगे लेकिन उसको भी अपने अवगुण विस्मृत कराए समर्थ बना देंगे। ऐसे समर्थ धरनी बनाने के बाद ऐसी आत्मा प्रति थोड़ी-सी मेहनत करने से, वहम भाव और अहम् भाव न रखने से ऐसी आत्मा भी परिवर्तन हो जायेगी। कभी भी ब्राह्मण परिवार में कमजोर आत्मा को - ‘‘तुम कमजोर हो, तुम कमजोर हो’’ नहीं कहना, नहीं तो जैसे शारीरिक कमज़ोर आत्मा अगर डाक्टर द्वारा सुने कि मैं तो मरने वाली हूँ तो हार्टफेल हो जायेगा। ऐसे आप सब भी मास्टर अथॉरिटी हो, श्रेष्ठ आत्मायें हों, विश्व परिवर्तक हो, आप लोगों के मुख से सदैव हर आत्मा के प्रति शुभ बोल निकलने चाहिए, दिलशिकस्त बनाने वाले नहीं, दिलशिकस्त बनना भी हार्टफेल होना हैं। चाहे कितना भी कमजोर हो उसको ईशारा भी देना हो, शिक्षा भी देनी हो, तो पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा दो। पहले उनकी विशेषता की महिमा करो फिर उसको आगे के लिए और भी श्रेष्ठ आत्मा बनने का साधन, कमज़ोरी पर अटेन्शन रीति से दिलाओ। पहले धरनी पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाओ फिर बीज डालो तो सहज ही बीज का फल निकलेगा। नहीं तो हिम्मतहीन कमज़ोर संस्कार वश आत्मा अर्थात् कलराठी जमीन में बीज डालते हैं इसलिए मेहनत और समय ज्यादा लगता है और सफलता भी कम निकलती है, विश्व कल्याण के कार्य में सोचने वा करने की फुर्सत नहीं मिलती, स्व कल्याण या देश कल्याण में ही लगे रहते हैं। विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते। समझा। तो विश्व कल्याणकारी बनने के लिए क्या करना है और क्या न करना है। तब ही विश्व कल्याण की सेवा की गति तीव्र हो सकेगी। अभी मध्यम गति है इसलिए इस वर्ष में विश्व कल्याणकारी स्थिति की विधि द्वारा विश्व कल्याण के सेवा की गति तीव्र बनाओ, रहमदिल बनो। अब तक जो कुछ चला ड्रामा अनुसार जो चलता था वह चला। इससे भी आगे के लिए कल्याण की भावना ले, चढ़ती कला की भावना ले अब आगे बढो। कमज़ोरियों को सदा के लिए दृढ़ संकल्प द्वारा विदाई दो और विदाई दिलाओ। तो विश्व परिवर्तन का कार्य तीव्रगति से हो जायेगा। स्पीड और स्टेज को बढ़ाओ अर्थात् हर बात को नॉलेजफुल समर्थ स्थिति द्वारा सदा सहज पास करो और सदा पास हो जाओ तो फाइनल स्टेज पर पास विद आनर हो जायेंगे। समझा ऐसी तैयारी करो - जो दूसरी सीज़न में बापदादा सबको तीव्र पुरूषाथ्री के रूप में देखें। सभी आत्मायें फर्स्ट डिवीजन वाली आत्मायें हों - ऐसी महान आत्माओं का मिलन मेला मनाने आयें। हर ब्राह्मण बच्चा सदा ताज तिलक और तख्तधारी हो, ऐसी राज्य सभा में बाप आये। जब यहाँ राज्य अधिकारी सभा बनेगी तब वहाँ राज्य दरबार लगेगी। निमन्त्रण दिया जाता है तो विशेष आत्माओं के लिए विशेष स्टेज तैयार करनी पड़ती है। तो बापदादा को भी फिर आने का निमन्त्रण देते हो - तो हरेक प्रैक्टिकल सम्पूर्ण स्टेज तैयार करेंगे तब तो बापदादा आयेंगे। इसलिए हरेक एक दो से श्रेष्ठ वा सुन्दर स्टेज तैयार करो। अच्छा अब देखेंगे कौन-सा ज़ोन नम्बर वन जाता है, विदेश आगे जाता है, वा देश आगे जाता है अच्छा –
ऐसे सदा विश्व कल्याणकारी, सर्व प्रति रहमदिल, सदा शुभ चिंतन में रहने वाले और सदा शुभाचिंतक बनने वाले, हर आत्मा में हिम्मत और हुल्लास दिलाने वाले, ऐसे सदा राज्य अधिकारी सर्व को सदा सम्पन्न बनाने वाले समर्थ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
टीचर्स से बातचीत - सेवा का भाग्य प्राप्त आत्मायें हो! कितनी वंचित आत्माओं को बाप का परिचय दे तृप्त आत्मा बनाने वाली हो! सेवा में विशेष रहमदिल का गुण याद रहता है? रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल बन कर सेवा करते तो सफलता बहुत मिलती है। तो सभी बाप समान रहमदिल हो, अन्जान आत्माओं के प्रति तरस पड़ता है? सदा सम्पन्न मूर्त बन वरदानी और महादानी बनो। कमजोर आत्माओं को शक्ति दे आगे बढ़ाओ। सम्पन्न मूर्त बन सेवा करो। अच्छा।
‘‘43 वीं शिवजयन्ती महोत्सव मनाने सम्बन्धित अव्यक्त बापदादा का सन्देश’’ –
इस शिवरात्रि पर बाप को प्रत्यक्ष करने का कार्य करना है। अथॉरिटी से निर्भय हो वास्तविक परिचय देना है। इस शिवरात्रि उत्सव मनाने समय सब ऐसा प्रोग्राम रखें जिसमें सबका अटेन्शन विश्व के रचयिता तथा जिसके द्वारा पार्ट बजाया उस आदिदेव अर्थात् साकार ब्रह्मा को पहचानें। यह शिवरात्रि विशेष बाप को प्रत्यक्ष करने वाली, नवीनता वाली हो। बोलने समय यह विशेष अटेन्शन रहे कि प्वाइन्टस में ज्यादा न जावें, भाषण का लेविल ठीक रहे, प्वाइन्टस में ज्यादा जाने से जो लक्ष्य होता वह खत्म हो जाता। भाषण में शब्द कम हों लेकिन ऐसे शक्तिशाली हों जिसमें बाप का परिचय और स्नेह समाया हुआ हो, जो स्नेह रूपी चुम्बक आत्माओं को परमात्मा तरफ खैंचे। भाषण का स्थूल रूप तो अनेक लोग जानते हैं लेकिन हरेक के भाषण में रूहानी नशा हो, शब्दों में परमात्म स्नेह हो, मस्तक में बाप के प्रत्यक्षता की चमक हो तब बाप का साक्षात्कार सभी को करा सकेंगे। यह शिवरात्रि प्रत्यक्षता की शिवरात्रि करके मनाओ। सबका अटेन्शन जाए यह कौन हैं और किसके प्रति सम्बन्ध जोड़ने वाले हैं, सब अनुभव करें कि जो आवश्यकता है वह यहाँ से ही मिल सकती है, सब सुखों के खान की चाबी यहाँ ही मिलेगी। अच्छा।
सभी शिवरात्रि पर विश्व कल्याणकारी बन सेवा में उपस्थित होने वाले होवनहार सफलता के सितारों को यादप्यार।
पार्टियों से मुलाकात
1. स्व-स्थिति की सीट पर रहने से परिस्थितियों पर विजय:-
सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति में स्थित हो हर प्रकार की परिस्थितयों के ऊपर विजयी रहते हो? जब तक स्व स्थिति शक्तिशाली नहीं होगी - तो परिस्थिति के ऊपर विजय नहीं होगी परिस्थिति प्रकृति द्वारा आती है इसीलीए परिस्थिति रचना हो गई और स्वस्थिति वाला रचता है। तो सदा रचना के ऊपर विजय होती हैं ना। अगर रचता रचना से हार खा ले तो उसे रचता कहेंगे? तो प्रकृति द्वारा आई हुई परिस्थितियाँ रचना है, तो मास्टर रचता अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान कभी हार खा नहीं सकते, असम्भव है। अगर अपनी सीट छोड़ते हो तो हार होती, सीट पर सेट होने वाले में शक्ति होती, सीट छोड़ी तो शक्तिहीन। तो मास्टर रचता की सीट पर सेट रहना है, सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आयेगी। नीचे नहीं आना, नीचे है ही देहअभिमान रूपी माया की धूल। नीचे आयेंगे तो धूल लग जायेगी अर्थात् शुद्ध आत्मा से अशुद्ध हो जायेंगे। बच्चा भी अगर स्थान से नीचे आ जाता है तो मैला हो जाता है, बच्चे के लिए भी अटेन्शन रखते - मैला न हो जाए। तो देहभान में आना अर्थात् मैला होना। आप शुद्ध आत्मा हो, शुद्ध पर अगर ज़रा भी मिट्टी लग जाए तो स्पष्ट दिखाई देती, जरा भी देहअभिमान की मैल आप शुद्ध आत्माओं में स्पष्ट दिखाई देगी - बार-बार देहभान में आना अर्थात् मिट्टी में खेलना वा मिट्टी खाना। तो ऐसे तो नहीं हो ना! कभी पिछले संस्कार तो नहीं आ जाते। जब मरजीवा हो गये तो पिछला खत्म हुआ। मरजीवा अर्थात् ब्राह्मण जीवन। ब्राह्मण कभी मिट्टी से नहीं खेलेंगे, यह तो शूद्रपन की बातें हैं। तो सदा बाप की याद की गोद में रहो। याद ही याद है, लाडले बच्चों को माँ-बाप गोद में रखते, मिट्टी में नहीं जाने देते, तो आप लाडले बच्चे हो ना - तो मिट्टी में नहीं खेल सकते। रतनों से खेलते रहो। मिट्टी में खेलने वाले बाप के बच्चे हो नहीं सकते। रायल बाप के बच्चे मिट्टी से नहीं खेलते। तो सबसे बड़े से बड़े बाप के बच्चे सदा ज्ञान रतनों से खेलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें - ऐसे हो ना। अच्छा।
कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन सदा बाप का साथ स्मृति में रहे तो मायाजीत, बाप को साथी बनाने से विजयी रतन हो जायेंगे। बाप का साथ याद रहे तो सदा खुश और सदा निर्विघ्न रहेंगे। एक से डबल बन गये - तो सदा महावीर रहेंगे, निर्भय रहेंगे। बाप का साथ होने से मायाजीत बन जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।
‘‘प्राण प्यारे अव्यक्त बापदादा की व्यक्तिगत मुलाकात’’ (बिहार बंगाल ज़ोन) उड़ीसा :-
जितना वृद्धि को पाता जाए उतना सेवा का इनाम मिलता है। जो जितनी आत्माओं को बाप का परिचय देने के निमित्त बनते हैं उतना ही अभी भी खुशी की प्राप्ति होती है और भविष्य में भी राज्य पद की प्राप्ति होती है। वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल श्रेष्ठ बन जाते हैं। ऐसा श्रेष्ठ कार्य जिससे दोनों काल श्रेष्ठ हो जाएं तो कितना करना चाहिए। लौकिक में भी किसी कार्य में फायदा अधिक होता तो दिन रात लग जाते हैं यह तो सबसे श्रेष्ठ बिज़नेस है। 21 जन्म के लिए सौदा करते हो। इस सीज़न में इतना जमा कर लेते हो जो फिर आराम से खाते रहेंगे। कितनी बड़ी लाटरी मिलती है, एक जन्म की थोड़ी मेहनत और अनेक जन्म खाते रहते। वह हद की लाटरी होती उसमें एक डालते तो लाख की लाटरी लग सकती लेकिन यह तो बेहद की अविनाशी लाटरी है। घर बैठे इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति है, घर बैठे भगवान मिल गया ना! तो अपने भागय की सदा महिमा करते रहो, सदा मन में अपने भाग्य के गीत गाते हुए खुश रहो, अगर कहीं भी लगाव होगा, मोह होगा तो दुख की लहर आयेगी। कभी दुख होता है? बाप जन्म-जन्मान्तर के लिए रोना बन्द कराते हैं, दुख होगा तो रोयेंगे, दुख ही नहीं तो रोना बन्द। सब सुखदाता के बच्चे मास्टर बन गये तो दुख तो आ नहीं सकता। दुख का दरवाज़ा बन्द, स्वर्ग अर्थात् सुख का दरवाज़ा खुल गया। स्वर्ग की टिकट ले ली है ना - सदा खुशी में नाचते रहो, खुशी होगी तो दूसरे भी आपको देखकर खुश होंगे और बाप के समीप आयेंगे। आपकी खुशी बाप का परिचय देगी। कभी भी वियोग में नहीं आना, सदा योगी - संगमयुग पर विशेष प्राप्ति बाप से मिलन मनाने की है। सदा मिलन मनाने वाले, ऐसे खुशी में रहो। अच्छा –
2. सदा अपने को महावीर अर्थात् सदा ज्ञान के शस्त्रधारी अनुभव करते हो? महावीर को सदा ज्ञान के शस्त्र दिखाते हैं। वह है विजय की निशानी। ऐसे सदा ज्ञान के शस्त्रं से सजे हुए महावीर हो? शस्त्रं को समय पर काम में लगाते हो वा समय पर कार्य नहीं करते? ऐसे भी होता है चीज़ें सब होती हैं लेकिन समय पर याद नहीं रहतीं। तो जैसी परिस्थिति वैसे ज्ञान के शस्त्र द्वारा महावीर बन मायाजीत बन जाते हो। कितने समय में विजयी होते हैं? सेकेण्ड में विजयी बनते हो या टाइम लगता है। अगर टाइम लगता है तो महावीर नहीं कहेंगे। अगर विजयी बनने में एक घण्टा लगा और उसी टाइम के अन्दर अन्तिम घड़ी आ जाए तो किस पद को प्राप्त होंगे। तो महावीर अर्थात् हर घड़ी अटेन्शन। पास विद आनर वही होगा जो हर परिस्थिति में पास होगा - तो सदा पास होने वाले हो ना। अच्छा –
टीचर्स से मुलाकात - टीचर्स को विशेष लिफ्ट की गिफ्Ìट है? क्यों? टीचर्स को सिवाए ईश्वरीय सेवा के और कोई भी बोझ नहीं। एक की ही याद, एक के ही प्रति सेवा। जब एक काम है तो एक काम में अच्छी तरह से आगे बढ़ सकते हैं ना! प्रवृति वालों को तो दो कार्य निभाने पड़ते, टीचर्स सहज ही एक रस रह सकती हैं। बातें करनी हैं तो भी बाप का परिचय देना है, कर्मणा सेवा करनी है तो भी बाप ने जिसके निमित्त बनाया। तो टीचर्स को नैचुरल गिफ्ट मिली हुई है। इस गिफ्ट का लाभ उठाते रहो। टीचर्स अर्थात् डबल लाइट। निमित्त बनकर चलना अर्थात् डबल लाइट तो सदा इसी स्थिति का अनुभव होना चाहिए। करनकरावनहार करा रहे हैं मैं निमित्त हूँ तब सफलता होती है। मैं-पन आया अर्थात् माया का गेट खुला, निमित्त समझा अर्थात् माया का गेट बन्द हुआ। निमित्त समझने से मायाजीत भी बन जाते, डबल लाइट भी बन जाते और सफलता भी मिल जाती। तो टीचर्स को यह लिफ्ट है। जितना लाभ उठाना चाहो उतना उठा सकती हो। तो टीचर्स को चैक करना चाहिए - हमारा नम्बर क्या है! अच्छा - ओम्शान्ति।
05-02-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘मधुबन निवासियों के साथ बाप दादा की रूह रूहान’’
आज विशेष यादगार भूमि, जिसकी महिमा आज भी भक्त लोग कर रहे हैं ऐसे महान भूमि वा महान तीर्थ स्थान पर रहने वाले विशेष भाग्यशाली आत्माओं से मिलने आये हैं। जैसे भूमि समर्थ है, जिस भूमि में आने से अनेक आत्माओं का व्यर्थ समाप्त हो जाता है - सब समर्थ बन जाते हैं, अनेक प्रकार के अनुभवों का खज़ाना सहज प्राप्त कर लेते - ऐसी भूमि जिस द्वारा जो वरदान चाहें वह वरदान याद और भूमि के आधार से सहज ही पा सकते हैं। ऐसी भूमि के निवासी स्वयं क्या होंगे! भक्त लोग इस दिव्य भूमि के वा श्रेष्ठ स्थान के दर्शन के लिए अब तक भी तड़पते रहते। ऐसे भूमि पर रहने वाले दर्शनीय मूर्त हैं? जैसा स्थान का महत्व है ऐसे ही स्थिति भी रहती है वा स्थिति से स्थान की महिमा ज्यादा है? दूर रहने वाले सिर्फ मधुबन की स्मृति से ही समर्थ बन जाते हैं - तो मधुबन निवासी क्या होंगे? जैसा महत्व है वैसे ही महान हैं? मधुबन स्थूल सूक्ष्म प्राप्तियों का भण्डारा हैं - सभी अपनी स्पीड और स्टेज श्रेष्ठ समझते हो? मधुबन निवासियों को जो साधन हैं, संग हैं, भूमि के महत्व का सहयोग है, वायुमण्डल का सहज साधन है उसी प्रमाण सिद्धि स्वरूप है? वर्ष बीते, यह वर्ष भी बीत गया, नया वर्ष चालू हो गया इसका भी मास पूरा हो गया - एक मास की रीजल्ट मे भी अनुभव क्या रहा। चढ़ती कला का अनुभव रहा? हर कदम जमा करने वाला अर्थात् समर्थ रहा - स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति विघ्न विनाशक रहे? जबकि समय समीप आ रहा है तो चारों ही सबजेक्ट में मार्क्स चाहिए। जैसे सेवा के लिए सभी के मुख से एक आवाज़ निकलता है कि सेवाधारी बहुत अच्छे हैं, वैसे ही ज्ञान - योग और धारणायुक्त भी हों। जैसे टोटल वायुमण्डल में स्वर्ग का अनुभव करते हैं, वैसे व्यक्तिगत भी स्वर्गवाले अर्थात् सर्व प्राप्ति स्वरूप अनुभव करें। चलते फिरते एक दो को फरिश्ता नज़र आयें। अच्छा –
इस वर्ष सभी वर्ग वालों को सम्पर्क में लाओ। ऐसे सम्पर्क में हों जो अपनी अथॉरिटी से इशारा मिलते ही सब कार्य सम्पन्न कर दें। समय पर सम्पर्क करते हो, बाद में सम्पर्क हल्का हो जाता है, अभी सम्पर्क बढ़ाओ। जैसे शुरू में लक्ष्य रहता था कि हरेक का भाग्य ज़रूर बनाना है, वैसे अब लक्ष्य हो कि हर वर्ग की आत्माओं को सम्पर्क में लाकर विशेष सेवा के अर्थ निमित्त बनाकर सहयोग लें। अभी सभी स्थानों पर मध्यम क्वालिटी है, लेकिन आखरीन तो सब तक पहुँचना है, ऐसी विशेष आत्मा निकले जो एक द्वारा अनेकों को सन्देश प्राप्त हो जाए। उमंग-उत्साह पैदा हो जाए, तब तो क्यू लगेगी। इस वर्ष यह क्वालिटी की सर्विस होनी चाहिए। विश्व पिता का टाइटिल है तो विश्व में तो वैरायटी चाहिए ना। नास्तिक भी हों तो भी सम्पर्क में जरूर आयें। ज्ञान को भी न सुनें लेकिन परिवर्तन देखकर सम्पर्क में आयें। नई विश्व के स्थापना के लिए सब प्रकार के बीज चाहिए। तब विश्व कल्याणकारी बन सकेंगे। धर्म, राज्य के नेतायें भी इतना जरूर मानें कि इन्हों का परिवर्तन और जो विधि है वह बहुत अच्छी है। धर्म नेतायें भी ऐसे अनुभव कर सहयोग में आयेंगे। अच्छा –
टीचर्स के साथ मुलाकात :-
सभी टीचर्स विशेष सेवाधारी अर्थात् बाप को अपनी वाणी द्वारा और कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करना। प्रत्यक्ष करना ही विशेष सेवाधारियों का कर्त्तव्य है - अब तक जो किया वह यथाशक्ति नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बहुत अच्छा किया लेकिन अब तक रिज़ल्ट में आत्माओं को यह अनुभव - कि यह महान आत्मायें हैं, महान जीवन वाली हैं यह अनुभव कोई-कोई आत्माओं ने किया और वर्णन भी करते हैं लेकिन अब बाकी क्या रहा? बाप ने जीवन बनाकर बच्चों को आगे किया जो जीवन की महिमा करते रहते लेकिन अब बच्चों का कर्तव्य क्या हैं?
जो बाप बैकबोन है, गुप्तरूप में पार्ट बजा रहे हैं, बाप को प्रत्यक्ष करना है, सुनाने वालों को पहचानते हैं, लेकिन बनाने वाला अभी भी गुप्त है तो अब बनाने वाले को प्रत्यक्ष करना अर्थात् विजय का झण्डा लहराना है। विशेष जिस समय स्टेज पर आते हो उस समय स्वयं भी बाप के स्नेह और प्राप्ति में लवलीन स्वरूप हो - जैसे लौकिक रीति से भीं कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन हैं - आशुक है - ऐसे जब स्टेज पर आते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना स्नेह का बाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा।
भाषण की लिंक सोचना, प्वाइन्टस दुहराना, यह स्वरूप नहीं हो लेकिन स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप हो - अथॉरिटी हो - जिस चीज़ की अथॉरिटी होते हैं उनको सोचना नहीं पड़ता है। सोचा हुआ ही होता है। स्टेज पर आने के पहले मनन करके बुद्धि में पहले से ही टापिक का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। उस समय इस अटेन्शन में नहीं रहना चाहिए। टापिक तैयार होगी तो टापिक की भी अथॉरिटी हो बोलेंगे। प्वाइन्ट को ही सोचते रहेंगे तो अथॉरिटी अनुभव नहीं होगी। पहले स्नेह ओर प्राप्ति स्वरूप हो - दूसरा जब बोलना शुरू करते हो तो एक अन्दर की अथॉरिटी और बोल में पहले दिल की आवाज़ से बाप की महिमा हो - जैसे दिन है शिवरात्री का - तो शिवरात्री अर्थात् बाप को प्रत्यक्ष करने का दिन इसी को ही परमात्म-बाम्ब कहा जाता। जो अन्दर में समाया हुआ है वह लोगों को प्रत्यक्ष दिखाई दे। यह है बाम्ब का फटना। जैसे बाम्ब फटता है तो क्या करता है - सबको अग्नि में जला देता है तो यह परमात्म-बाम्ब अर्थात् स्नेह का बाम्ब, सम्बन्ध जोड़ने का बाम्ब - दिल के आवाज़ से महिमा करने का बाम्ब - सभी को लगन में मगन की आग में सभी को हिला दे। जब बाम्ब फटता है तो सब हिल जाते हैं ना। तो सबकी बुद्धि को हिलावे यह किसकी महिमा है! यह किसकी अथॉरिटी से बोल रहे हैं, यह क्या और किसका सन्देश दे रहे हैं - अथॉरिटी भी हो, मधुरता भी हो - शब्दों की मधुरता हो लेकिन अन्दर समाई हुई अथॉरिटी हो - शब्द भी रहमदिल की भावना के हों - स्पष्ट भी करते रहें लेकिन स्पष्ट करते हुए बाप की महिमा करते हुए सम्बन्ध भी जोड़ते जाएं। हम यह क्यों कहते, इससे क्या प्राप्ति होगा, हम लोगों का अनुभव क्या है। एक घड़ी की भी प्राप्ति क्या है। ऐसे बीच-बीच में निज़ी अनुभव का आवाज़ लगे - सिर्फ भाषण नहीं लगे - लगन में मगन मूर्त अनुभव हो - यह नवीनता है - लोग कहते हैं लेकिन स्वरूप नहीं बनते - आपका बोल और स्वरूप दोनों साथसाथ हों - स्पष्ट भी हों, स्नेह भी हो, नम्रता भी, मधुरता भी और महानता भी हो, सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो, इसी रूप से बाप को प्रत्यक्ष करना है। निर्भय हो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों - दोनों बातों का बैलेन्स हो - जहाँ बैलेन्स होता है वहाँ कमाल दिखाई देती है और वह शब्द कड़े नहीं, मीठे लगते हैं तो अथॉरिटी और नम्रता दोनों के बैलेन्स की कमाल दिखाओ। इसको कहा जाता है बाप की प्रत्यक्षता का साधन। जैसे झूठे शास्त्रों की अथॉरिटी वाले भी कितनी अथॉरिटी से बोलते हैं। जो बिल्कुल असत्य बात उसको कैसे सिद्ध कर बताते हैं। न सिर्फ सिद्ध करते हैं लेकिन मनवाते भी हैं, सतवचन महाराज कहलवाते भी हैं, जब वह झूठ की अथॉरिटी वाले भी इतना प्रभाव डाल सकते यह तो अनुभव के बोल हैं-प्राप्ति स्वरूप के बोले हैं - बाप से सम्बन्ध है उसकी बातें हैं, तो क्यों नहीं कहलवायेंगे वा मनवायेंगे। तो अब समझा क्या करना है –
परिचय को पूरा स्पष्ट करना है - एक प्वाइन्ट सुनाकर बाप के तरफ अटेन्शन खिंचवाओ, सारी प्वाइन्टस बोलकर बाप की महिमा के बोल, बोल करके बाप तरफ अटेन्शन खिंचवाओ, बार-बार पत्थर पर स्नेह का पानी डालते जाओ तब यह पत्थर पानी होगा।
और जितना हो सके साइलेन्स का प्रभाव हो - रूप रेखा ही अलौकिक हो - सिम्पुल स्वच्छ, रूहानियत वा प्यूरिटी के वायब्रेशन हों - सुनने वाली जो सहयोगी ब्राह्मण आत्मायें होती उन्हों में भी वायुमण्डल को बनाने का संकल्प हो - जैसे अगरबत्ती वायुमण्डल को परिवर्तन कर देती वैसे सब ब्राह्मण आत्माओं की वृत्ति रहम की वृति अगरबत्ती का काम करे - जो आने से ही उनको महसूस हो यह सभा कोई अलौकिक सभा है। अच्छा - स्नेह मिलन से स्नेह की झोली भरकर जावेंगे और फिर सबको स्नेह बाँट देंगे। बाप का स्नेह - ऐसा स्नेह स्वरूप हो जावेंगे जो सबको आपके चित्र, चलन से बाप का स्नेह नज़र आये। ऐसा मिलन मना रहे हो ना। स्नेह मिलन अर्थात् दृढ़ संकल्प द्वारा स्वपरिवर्तन और सब के परिवर्तन सहयोगी बनना। यह है स्नेह मिलन की विशेषता। स्नेह मिलन अर्थात् प्रैक्टिकल संस्कार मिलन - जैसे मिलन में हाथ मिलते हैं ना - यह मिलन हैं संस्कार मिलन - अगर सबके संस्कार मिलकर बाप समान हो जाएं - एक ही सबके संस्कार हो जाएं तो क्या होगा? एक राज्य, एक धर्म वाली दुनिया आ जावेगी। यहाँ एक होना ही एक धर्म एक राज्य की दुनिया को लाने का आधार बनेगी। स्नेह मिलन अर्थात् कम्पलेन खत्म और कम्पलीट होकर जाएं। उल्हने खत्म उल्लास में आ जायें - यह है स्नेह मिलन।
विदेशी भाई बहनों से मुलाकात :- बापदादा सभी लवलीन रहने वाले बच्चों को देख हर्षात होते हैं - जो सदा लवलीन रहते उसकी निशानी क्या होती? लवलीन आत्मा को याद में रहने का पुरूषार्थ नहीं करना पड़ेगा। लेकिन स्वत: योगी होगा। सिवाय बाप और सेवा के कुछ दिखाई नहीं देगा। जब बुद्धि को एक ही ठिकाना मिल जाता तो बुद्धि का भटकना स्वत: ही बन्द हो जाता। लवलीन आत्मा सर्व प्राप्तियों में रह औरों को प्राप्ति कराने में तत्पर होगी। इसलिए सदा मायाजीत होगी - लवलीन रहने वाले हो या मेहनत करने वाले हो - विदेश में रहने वाली आत्माओं को विशेष विदेश की सेवाअर्थ योगी जीवन का अनुभव सेवा में सफलता मूर्त बना सकता है। जितना-जितना अपनी स्टेज को पावरफुल बनावेंगे, पावरफुल अर्थात् सर्व प्राप्ति के अनुभवी मूर्त। तब सफलतामूर्त होंगे। क्योंकि दिन प्रतिदिन वैरायटी प्रकार की इच्छा वाली आत्मायें आपके सामने आवेंगी तो सर्व इच्छाओं को पूर्ण करने वाले तब बन सकेंगे जब सर्व प्राप्ति के अनुभवी स्वरूप होंगे। आपको सभी ढूढ़ने आवेंगे कि सुख शान्ति के मास्टर दाता कहाँ हैं! जब अपने पास सर्वशक्तियों का स्टाक होगा तब तो सबको सन्तुष्ट कर सकेंगे। जैसे विदेश में रिवाज है एक ही स्टोर में सब चीज़ें मिल जाती। ऐसे आपको भी बनना है। ऐसे भी नहीं कि सहन शक्ति हो लेकिन सामना करने की शक्ति नहीं। सर्वशक्तियों का स्टाक चाहिए तब सफलता मूर्त बन सकेंगे। अभी विदेश में मन्सा सेवा का वातावरण और भी पावरफुल बनाओ। क्योंकि वहाँ की वैरायटी आत्मायें वायुमण्डल से प्रभावित होंगी। पहले वायब्रेशन उन्हों को खीचेंगा फिर नॉलेज सुन सकेंगे। मन्सा सेवा करने के लिए सदा एकाग्रता का अभ्यास चाहिए। व्यर्थ समाप्त हो तब मन्सा सेवा कर सकेंगे। मधुबन से मन्सा पावरफुल सर्विस का अनुभव करके और वहाँ के लिए अभ्यासी बनकर जाओ। जो भी देखें वह अनुभव करें कि यह शक्तियों की खान आये हुए हैं। जो शक्तियाँ अनुभव में आ गई तो अनुभव सदाकाल जीवन का अंग होता है, ज्यादा से ज्यादा अनुभवों की खान बनकर जा रहे हैं? जैसे बाप परफैक्ट है तो बच्चे भी बाप समान - कोई डीफैक्ट न हो। अच्छा।
सेवाधारी ग्रुप से बात चीत
सेवाधारी अर्थात् बाप समान। क्योंकि बाप भी सेवाधारी बनकर आते हैं। बाप का स्वरूप ही है विश्व सेवक। जैसे बाप विश्व सेवाधारी है वैसे आप सब भी बाप समान विश्व सेवाधारी हो! शरीर द्वारा स्थूल सेवा करते हो लेकिन मन्सा द्वारा विश्व परिवर्तन की सेवा में तत्पर रहते। तन-मन दोनों में सेवाधारी। एक ही समय पर दोनों ही इकट्ठी सेवा करते हो। ऐसे नहीं तन की सेवा करते तो मन की नहीं कर सकते। दोनों ही एक समय पर करने से डबल प्राप्ति होगी। डबल सेवाधारी ही डबल ताजधारी बनते हैं। अगर सिंगल सेवा करेंगे तो डबल ताज नहीं मिलेगा। कर्म करते हुए चैक करो डबल सेवा के बदले सिंगल तो नहीं हो गई। अटेन्शन रखते-रखते संस्कार बन जायेंगे। जो मन्सा और कर्मणा दोनों सेवा साथ-साथ करते, साक्षात्कार देखने वाले को अनुभव होगा यह कोई अलौकिक शक्ति है। लोग स्वत: ही आपके पीछे होंगे। इसी अभ्यास को आगे बढ़ाओ। इतना अभ्यास बढ़ाओ जो नैचुरल और निरन्तर हो जाए। अच्छा –
12-11-79 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
बंगाल-बिहार, तामिलनाडू तथा विदेशी भाई बहनों के सम्मुख उच्चारे हुए महावाक्य
‘‘आज चारों ओर के लवली बच्चों के स्नेह के साज़ अमृतवेले से बाप-दादा ने सुने। स्नेह का रिटर्न, बाप-दादा दूर देश वासी से, अव्यक्त वतन वासी से, बच्चों के समान साकार वतन निवासी आकर बने। स्नेह का स्वरूप है समान बनना। तो बाप-दादा समान स्वरूप में स्नेह का रिटर्न (Return) दे रहे हैं, अब बच्चों को क्या रिटर्न करना है? जब बाप बच्चों के समान बन सकते हैं तो बच्चों को भी समान बनना है। यही स्नेह का रिटर्न है।’’
2. अब इस वर्ष में कौन-सी विशेष समानता दिखावेंगे? समय की रफ़्तार तीव्र गति से चल रही है। बाप-दादा की सर्व सृष्टि की आत्मायें बाप-दादा और आप सर्व परम पूज्य आत्माओं के प्रति संकल्प द्वारा भिन्न-भिन्न रूप से एक अर्ज़ी रख रहे हैं। उस अर्ज़ी को पूर्ण करने वाले, आत्माओं की अर्ज़ी की आवाज़ सुनते हो?
अमृतवेले का महत्व
3. अमृतवेले चारों ओर के तमोगुणी वातावरण या वाइब्रेशन के वायुमण्डल में प्राय: लोप स्थिति का समय होता है अर्थात् तमोगुण का प्रभाव दबा हुआ होता है। ऐसे समय पर सहज ही पुकार और उपकार होता। पुकार सुनना भी सहज है, उपकार करना भी सहज है। वरदान लेना भी सहज है और दान देना भी सहज है क्योंकि वातावरण वृत्ति को बदलने वाला होता है। ऐसे समय पर, आप सर्व वरदानी आत्माओं की स्वयं की स्थिति भी, बाप की विशेष वरदानों की छत्रछाया के कारण, बाप के समान सम्पन्न और दातापन की होती है। ब्रह्मलोक के निवासी बाप विशेष रूप से ज्ञान-सूर्य की लाईट और माइट की किरणें विशेष बच्चों को वरदान रूप में देते हैं। इसलिए इस समय को ‘ब्रह्म मुहूर्त्त’ का समय कहते हैं।
4. क्या इस समय पर आप स्वयं का सारे दिन की श्रेष्ठ स्थिति वा कर्म का मुहूर्त्त निकालते हो? जैसा मुहूर्त्त निकालना चाहो वह निकाल सकते हो। साथ-साथ अव्यक्त वतन-वासी ब्रह्मा बाप भाग्य-विधाता के रूप में इस अमृतवेले भाग्य अर्थात् अमृत बाँटते हैं। जितना भाग्य रूपी अमृत ब्रह्मा बाप द्वारा लेना चाहो वह ले सकते हो। लेकिन बुद्धि रूपी कलश अमृत धारण करने के योग्य हो। किसी भी प्रकार का विघ्न या रूकावट न हो। तो ऐसे समय पर लेना और देना साथ-साथ चलना है। वरदानी और महादानी दोनों पार्ट साथ-साथ चलना है। ऐसी स्थिति में स्थित होने वाली उपकारी आत्माओं को, आत्माओं की पुकार भी स्पष्ट सुनाई देगी। इतनी स्पष्ट सुनाई देगी जैसे कानों में कोई बात कह रहा हो।
पुकार पर उपकार कैसे?
5. तो वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धार्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वाले और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पावर चाहिए। इस चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है। अब उसको और तेज़ करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प का घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सको। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाईट भी शिक्षा दे रही है। जैसे लाइट एक सेकेण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकेण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ। ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी- अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धार्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई हैं। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। अब सबकी थकावट उतारने वाले कौन?
द्रोपदी के पाँव दबाने का अर्थ
6. जैसे कल्प पहले के यादगार शास्त्रों में वर्णन हैं कि स्वयं बाप ने द्रोपदी के पाँव दबाये, तो बाप समान उपकारी बच्चे बन सर्व आत्माओं की थकावट मिटाओ। अब बुद्धि रूपी पाँव थक गये हैं, बुद्धि में स्मृति के स्विच को दबाओ। यही बुद्धि रूपी पाँव दबाना है।
7. अब सुना इस वर्ष क्या करना है? एक सेकेण्ड में झलक और फरिश्तेपन की फ़लक दिखाओ। यही बाप के स्नेह का रिटर्न है। अन्य आत्माओं की समस्याओं का समाधान स्वरूप बनने से स्वयं की समस्यायें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी। इसलिए अब समाधान स्वरूप बनो। एक वर्ष में ऐसा स्वरूप परिवर्तन किया है ना? विश्व-परिवर्तक स्वयं के परिवर्तक बन चुके हैं ना? वा अभी भी बनना है? बनना है वा अब विश्व-सेवा करनी है? अब सेवा करने का समय है, लेने के साथ देने का समय है। एक ही संकल्प में लेना है और देना है। ऐसी फास्ट स्पीड चाहिए।
अंतिम सीज़न और उनकी तैयारी
इन्तज़ार तो किया लेकिन इन्तज़ाम भी किया? इन्तज़ार किया बाप के आने का और बाप आकर क्या देखेंगे? इन्तज़ाम। कोई ऐसा इन्तज़ाम किया? जैसे यहाँ स्थूल सीज़न का इन्तज़ाम करते हो, सेवाधारी तैयार करते हो, सामग्री तैयार करते हो कि किसी को भी कोई तकलीफ न हो, समय व्यर्थ न हो, कहीं क्यू में खड़ा न रहना पड़े, इसके लिए सब साधन अपनाते हो। यह तो है ब्राह्मणों की मधुबन की सीज़न। लेकिन अब अन्तिम सीज़न कौन-सी आने वाली है? सर्व आत्माओं की गति-सद्गति करने की सीज़न आनी वाली है। उसके लिए साधन अपनाये हैं? तड़फती हुई आत्माओं को क्यू में खड़ा करने का कष्ट नहीं देना है। आते जाएं और लेते जाएं। तड़फती आत्माएं एक सेकेण्ड भी रूक नहीं सकेंगी। हाहाकार कर देंगी। ऐसे सीज़न की तैयारी की है। महारथियों को क्यू में खड़ा करने नहीं देना चाहिए और लूले-लंगड़े, ऐसी आत्माओं को क्यू में क्या खड़ा करेंगे! लण्डन में भी क्यू लगावेंगे क्या? फारेनर्स क्यू में खड़े होंगे? फिर क्या करेंगे? एवररेडी बनना पड़ेगा। भारत वाले या फारेन वाले एवररेडी बने बिना मास्टर गति सद्गति दाता नहीं बन सकते। ज्यादा पुरुषार्थी जीवन में रहने से भी ऊपर अब दातापन की स्थिति में रहो। हर सेकेण्ड चेक करो कि दाता के बच्चे दाता बने हैं? हर संकल्प और हर सेकण्ड में दाता बन करके चलो। तो आप सबका भी सेकेण्ड में हाईजम्प हो जावेगा। देने में बीज़ी होंगे तो माया भी बिज़ी देख वार करने की बजाए नमस्कार करेगी। समझा? अब क्या करना है? चारों ओर के बच्चों को जो साकार रूप से भले दूर हैं लेकिन स्नेह से समीप हैं, ऐसे स्नेही और समीप बच्चों को बाप-दादा समान भव के वरदान से याद का रिटर्न दे रहे हैं। (बिज़ली बन्द) चंचल में भी अचल। यह तो कुछ भी नहीं हैं, अन्तिम सीज़न के समय किसी भी प्रकार के साधन नहीं मिलेंगे। अभी तो बहुत साधन हैं। यह भी प्रैक्टिस करो कि वातावरण में हलचल हो लेकिन स्मृति और वृत्ति अचल हो। ज़रा भी हलचल न हो कि यह क्या हुआ! यह प्रैक्टिस हो रही है? बाप-दादा को भी ड्रामा अनुसार पुरानी दुनिया की कोई तो सीन सीनरी दिखावेंगे ना। अच्छा –
ऐसे सदा उपकारी, हर सेकेण्ड मास्टर गति-सद्गति दाता, शक्तियों के भण्डार से भरपूर, अखुट खज़ाने के दाता, सर्व आत्माओं की थकावट मिटाने वाले अथक सेवाधारी, ऐसे बाप समान, समीप बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदेशी बच्चों के साथ - सभी सदा एक-रस स्थिति में स्थित रहते हुए, औरों का भी एक बाप से सम्बन्ध जुड़ाने में, सर्व प्राप्ति कराने में तत्पर रहते हो? एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति निरन्तर और नेचुरल बनी है कि बनानी पड़ती है? अभ्यास करना पड़ता है या स्वत: ही यह स्टेज रहती है? कहाँ तक पहुँचे हो? जब परिचय मिल गया अपना भी और बाप का भी फिर बार-बार अटेन्शन देने की आवश्यकता है?
माया-एक खिलौना और शिकार
माया तंग करती है क्या? अब नमस्कार करने का समय है न कि वार करने का। क्या अभी तक माया का वार होता है? समय प्रति समय जैसे स्टेज आगे बढ़ती जा रही है, अब माया का वार नहीं होना चाहिए। अगर माया आये भी, तो उसे खेल समझकर देखो। ऐसे अनुभव हो जैसे साक्षी होकर हद का ड्रामा देखते हैं। ऐसे इस माया के खेल का ड्रामा देखो तो बहुत मज़ा आयेगा, फिर घबरायेंगे नहीं। तो ऐसी स्टेज अभी होनी चाहिए। कैसी भी विकराल रूप से माया आये लेकिन आप उसको खिलौना समझेंगे तो वह खेल हो जायेगा। जैसे शिकारी शिकार करता है, उसमें भी वार होता है, लेकिन शिकार समझने के कारण वह घबराता नहीं है। खुश होता है। आप सब भी माया के शिकारी हो। शिकारी कभी डरते नहीं। घबराते नहीं, खुश होते हैं। इस बार मधुबन से यह दृढ़ संकल्प करके जाओ कि सदा खिलाड़ी बन करके खेल देखेंगे। ताकि विदेश से माया वार करने की बजाए नमस्कार करना शुरू कर दे। ऐसे विदेशी संकल्प करते हैं? अब सभी तरफ से माया का वार समाप्त।
टीचर्स के साथ –
टीच