18-01-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"’स्मृति-स्वरूप’ का आधार याद और सेवा"
आज बापदादा अपनी अमूल्य मणियों को देख रहे हैं। हरेक मणी अपने-अपने स्थिति रूपी स्थान पर चमकती हुई मणियों के स्वरूप में बाप-दादा का श्रृंगार है। आज बाप-दादा अमृतवेले से अपने श्रृंगार (मणियों) को देख रहे हैं। आप सभी साकारी सृष्टि में हर स्थान को सजाते हो, भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्पों से सजाते हो। यह भी बच्चों की मेहनत बाप-दादा ऊपर से देखते रहते हैं। आज के दिन जैसे आप सब बच्चे मधुबन के हर स्थान की परिक्रमा लगाते हो, बाप-दादा भी बच्चों के साथ परिक्रमा पर होते हैं। मधुबन में भी 4 धाम विशेष बनाये हैं। जिसकी परिक्रमा लगाते हो, तो भक्तों ने भी 4 धाम का महत्व रखा है। जैसे आज के दिन आप परिक्रमा लगाते हो, वैसे भक्तों ने फालो किया है। आप लोग भी क्यू बनाकर जाते हो, भक्त भी क्यू लगाए दर्शन के लिए इन्तजार करते हैं। जैसे भक्ति में सत वचन महाराज कहते हैं वैसे संगम पर सत वचन के साथ-साथ आपके सत कर्म महान हो जाते हैं। अर्थात् यादगार बन जाते हैं। संगमयुग की यह विशेषता है। भक्त, भगवान के आगे परिक्रमा लगाते हैं लेकिन भगवान अब क्या करते हैं? भगवान बच्चों के पीछे परिक्रमा लगाते हैं। आगे बच्चों को करते पीछे खुद चलते हैं। सब कर्म में चलो बच्चे- चलो बच्चे कहते रहते हैं। यह विशेषता है ना। बच्चों को मालिक बनाते, स्वयं बालक बन जाते, इसलिए रोज मालेकम् सलाम कहते हैं।
भगवान ने आपको अपना बनाया है या आपने भगवान को अपना बनाया है। क्या कहेंगे? किसने किसको बनाया? बाप-दादा तो समझते हैं बच्चों ने भगवान को अपना बनाया है। बच्चे भी चतुर तो बाप भी चतुर। जिस समय आर्डर करते हो और हाजिर हो जाते हैं।
आज का दिन मिलन का दिन है आज के दिन को वरदान है- ‘सदा स्मृति भव''। तो आज स्मृति भव का अनुभव किया? आज स्मृति भव के रिर्टन में मिलन मनाने आये हैं। याद और सेवा देनों का बैलेन्स स्मृति स्वरूप स्वत: ही बना देता है। बुद्धि में भी बाबा मुख से भी बाबा। हर कदम विश्व कल्याण की सेवा प्रति। संकल्प में याद और कर्म में सेवा हो यही ब्राह्मण जीवन है। याद और सेवा नहीं तो ब्राह्मण जीवन ही नहीं। अच्छा –
सर्व अमूल्यण मणियों को, स्मृति स्वरूप वरदानी बच्चों को हर कर्म सत कर्म करनेव ले महान और महाराजन, सदा बाप के स्नेह और सहयोग में रहने वाले, ऐसी विशेष आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात - बाप-दादा हर बच्चे को सदैव किस नजर से देखते हैं? बाप-दादा की नजर हरेक बच्चे की विशेषता पर जाती है। और ऐसा कोई भी नहीं हो सकता जिसमें कोई विशेषता न हो। विशेषता है तब विशेष आत्मा बनकर ब्राह्मण परिवार में आये हैं। आप भी जब किसी के सम्पर्क में आते हो तो विशेषता पर नजर जानी चाहिए। विशेषता द्वारा उनसे वह कार्य करा सकते हो और लाभ ले सकते हो। जैसे बाप होपलेस को होपवाला बना देते। ऐसा कोई भी हो कैसा भी हो उनसे कार्य निकालना है, यह है संगम- युगी ब्राह्मणों की विशेषता। जैसे जवाहरी की नजर सदा हीरे पर रहती, आप भी ज्वैलर्स हो आपनी नजर पत्थर की तरफ न जाए, हीरे को देखो। संगमयुग है भी हीरे तुल्य युग। पार्ट भी हीरो, युग भी हीरे तुल्य, तो हीरा ही देखो। फिर स्टेज कौन-सी होगी? अपनी शुभ भावना की किरणें सब तरफ फैलाते रहेंगे। वर्त्तमान समय इसी बात का विशेष अटेन्शन चाहिए। ऐसे पुरूषार्थी को ही तीव्र पुरू- षार्था कहा जाता है। ऐसे पुरूषार्थी को मेहनत नहीं करनी पड़ती सब कुछ सहज हो जाता है। सहजयोगी के आगे कितनी भी बड़ी बात ऐसे सहज हो जाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं, सूली से काँटा। तो ऐसे सहजयोगी हो ना? बचपन में जब चलना सीखते हैं तब मेहनत लगती, तो मेहनत का काम भी बचपन की बातें हैं, अब मेहनत सामप्त सब में सहज। जहाँ कोई भी मुश्किल अनुभव होता है वहाँ उसी स्थान पर बाबा को रख दो। बोझ अपने ऊपर रखते हो तो मेहनत लगती। बाप पर रख दो तो बाप बोझ को खत्म कर देंगे। जैसे सागर में किचड़ा ड़ालते हैं तो वह अपने में नहीं रखता किनारे कर देता, ऐसे बाप भी बोझ को खत्म कर देते। जब पण्डे को भूल जाते हो तब मेहनत का रास्ता अनुभव होता। मेहनत में टाइम वेस्ट होता। अब मंसा सेवा करो, शुभाचिंतन करो, मनन शक्ति को बढ़ाओ। मेहनत मजदूर करते आप तो अधिकारी हैं। शक्ति को बढ़ाओ। मेहनत मजदूर करते आप तो अधिकारी हैं।
20-01-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"मन, बुद्धि, संस्कार के अधिकारी ही वरदानी मूर्त्त"
आज वरदाता और विधाता बाप अपने महादानी और वरदानी बच्चों को देख रहें हैं। वर्त्तमान समय महादानी का पार्ट सभी यथा शक्ति बजा रहे हैं। लेकिन अब अन्तिम समय समीप आते हुए विशेष वरदानी रूप का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाना पड़े। महादानी विशेष वाणी द्वारा सेवा करते हैं, लेकिन साथ में मंसा की परसेन्टेज कम होती है। वाणी कम और मंसा की परसेन्टेज ज्यादी होती है। अर्थात् संकल्प द्वारा शुभ भावना और कामना द्वारा थोड़े समय में ज्यादा सेवा का प्रत्यक्ष फल देख सकते हो।
वरदानी रूप द्वारा सेवा करने के लिए पहल स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए। तथा अन्य संकल्पों को सेकेण्ड में कन्ट्रोल करने का विशेष अभ्यास चाहिए। सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराता रहे और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेंस स्वरूप हो जाए अर्थात् ब्रेक पावरफुल हो। संकल्प शक्ति अपने कन्ट्रोल में हो। साथ-साथ आत्मा की और भी विशेष दो शक्तियाँ बुद्धि और संस्कार, तीनों ही अपने अधिकार में हों। तीनों में से एक शक्ति के ऊपर भी अगर अधिकारी कम है तो वरदानी स्वरूप की सेवा जितनी करनी चाहिए उतनी नहीं कर सकते।
इस वर्ष में जितना ही महा कार्य, महायज्ञ का रचा है उतना ही इस महायज्ञ में महादानी का पार्ट भी विशेष बजाना है। और साथ-साथ आत्म की तीनों शक्तियों के ऊपर सम्पूर्ण अधिकार की जो भी कमी हो उसको भी महायज्ञ में स्वाहा करना। जितना ही विशाल कार्य करना है उतना ही इस विशाल कार्य के बाद स्व चिन्तक, शुभ चिंतक, सर्व शक्तियों के मास्टर विधाता, श्रेष्ठ संकल्प द्वारा मास्टर वरदाता सदा सागर के तले के अन्दर अति मीठे शान्त स्वरूप लाइट और माइट हाउस बन इसी स्वरूप की सेवा करना।
जितना ही साधनों द्वारा सेवा की स्टेज पर आना है उतना ही सिद्धि स्वरूप बन साइलेन्स के स्वरूप की अनुभूति करनी है। सेवा के साधन भी बहुत अच्छे बनाये हैं। जितना विशाल सेवा का यज्ञ रच रहे हैं, वैसे ही वैसे ही संगठित रूप का, ज्वाला रूप शान्ति कुण्ड का महायज्ञ रचना है। यह सेवा का यज्ञ है - विश्व की आत्माओं में वाणी द्वारा हल चलाना। हल चलाने में हलचल होती है। उसके बाद जो बीज डालेंगे उसको शीतलता के रूप से, साइलेन्स की पावन से शीतल जल डालेंगे तभी शीतल जल पड़ने से फल निकलेगा। ऐसे नहीं समझना कि महायज्ञ हुआ तो सेवा का बहुत पार्ट समाप्त किया। यह तो हल चला करके बीज डालेंगे। मेहनत ज्यादा इसमें लगती है। उसके बाद फल निकालने के लिए महादानी के बाद वरदानी की सेवा करनी पड़े। वरदानी मूर्त्त अर्थात् स्वयं सदा वरदानों से सम्पन्न। सबसे पहला वरदान कौन सा है? सभी को दिव्य जन्म मिलते ही पहला वरदान कौन-सा मिला? वरदान अर्थात् जिसमें मेहनत नहीं। सहज प्राप्ति हो जाए वह वरदान क्या मिला? हरेक का अलग-अलग वरदान है या एक ही है? सुनाने में तो अलग-अलग अपना वरदान सुनाते हो ना। सभी का एक ही वरदान है जो बिना मेहनत के, बिना सोचे समझे हुए बाप ने कैसी भी कमजोर आत्मा को हिम्मतहीन आत्मा को अपना स्वीकार कर लिया। जो है जैसा है मेरा है। यह सेकेण्ड में वर्सें के अधिकारी बनाने की लाटरी कहो, भाग्य कहो, वरदान कहो, बाप ने स्वयं दिया। स्मृति के स्वीच को ऑन कर दिया कि तू मेरा है। सोचा नहीं था कि ऐसा भाग्य भी मिल सकता है। लेकिन भाग्य विधाता बाप ने भाग्य का वरदान दे दिया। इसी सेकेण्ड के वरदान ने जन्मजन्मान्तर के वर्से का अधिकारी बनाया, इस वरदान को स्मृति स्वरूप में लाना अर्थात् वरदानी बनना। बाप ने तो सबको एक ही सेकेण्ड में एक जैसा वरदान दिया। चाहे छोटा बच्चा हो चाहे वृद्ध हो, चाहे बड़े आक्यूपेशन वाले हों, चाहे साधारण हो, तन्दरूस्त हो वा बीमार हो, किसी भी धर्म के हों, किसी भी देश के हों, पढ़ा हुआ हो वा अनपढ़ हो सभी को एक ही वरदान दिया। इसी वरदान को जीवन में लाना, स्मृति स्वरूप बनना इसमें नम्बर बन गये। कोई न निरंतर बनाया, कोई ने कभी-कभी का बनाय। इस अन्तर के कारण दो मालायें बन गई। जो सदा वरदान के स्मृति स्वरूप रहे उनकी माला भी सदा सिमरी जाती है। और जिन्होंने वरदान को कभी-कभी जीवन में लाया वा स्मृति स्वरूप में लाया उन्हों की माला भी कभी-कभी सिमरी जाती है। वह वरदानी स्वरूप अर्थात् इस पहले वरदान में सदा स्मृति स्वरूप रहे। जो स्वयं बाप का सदा बना हुआ होगा वही औरों को भी बाप का सदा बना सकेगा। यह वरदान लेने में कोई मेहनत नहीं की। यह तो बाप ने स्वंय अपनाया। इस एक वरदान को ही सदा याद रखो तो मेहनत से छूट जायेंगे। वरदान को भूलते हो तो मेहनत करते रहो। अब वरदानी मूर्त्त द्वारा संकल्प शक्ति की सेवा करो।
इस वर्ष स्वयं शक्तियों द्वारा, स्वयं के गुणों द्वारा निर्बल आत्माओं को बाप के समीप लाओ। वर्त्तमान समय मैजारिटी में शुभ इच्छा उत्पन्न हो रही है कि आध्यात्मिक शक्ति जो कुछ कर सकती है वह और कोई कर नहीं सकता। लेकिन आध्यात्मिकता की ओर चलने के लिए अपने को हिम्मतहीन समझते। तो इच्छा रूपी एक टाँग अब प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे रही है। लेकिन उन्हें अपनी शक्ति से हिम्मत की दूसरी टाँग दो। तब बाप के समीप चल करके आ सकेंगे। अभी तो समीप आने में भी हिम्मतहीन हैं। पहले तो अपने वरदानों से हिम्मत में लाओ। उल्लास में लाओ कि आप भी बन सकते हो। तब निर्बल आत्माएं आपके सहयोग से वर्से के अधिकारी बन सकेंगी। लंगडों को चलाना है। तब आप वरदानी मूर्तों का बार-बार शुक्रिया मानेंगे। कुछ भक्त बनेंगे, कुछ प्रजा बनेंगे और कोई फिर लास्ट सो फास्ट भी होंगे। तो समझा इस वर्ष क्या करना है?
जैसे महायज्ञ की सेवा की धूम चारों और मचाई है वैसे इस यज्ञ के कार्य के साथ-साथ शान्ति कुण्ड के वायुमण्डल, वायब्रेशन्स - उसी धूम चारों ओर मचाओ। जैसे महायज्ञ के नये चित्र बनायें हैं, झाँकियाँ बना रहे हो, भाषण तैयार कर रहे हो, स्टेज तैयार कर रहे हो, वैसे चारों ओर हर ब्राह्मण बाप-समान चैतन्य चित्र बन जाए, लाइट और माइट हाउस की झाँकी बन जाए, संकल्प शक्ति का, साइलेन्स का भाषण तैयार करे, और कर्मातीत स्टेज पर वरदानी मूर्त्त का पार्ट बजावे तब सम्पूर्णता समीप आयेगी। इसी वर्ष में अति विशाल सेवा कार्य जो करना है वह भी इतना ही संगठित रूप में प्रत्यक्षता का, एक बल एक भरोसे का नारा लेकर सेवा की स्टेज पर आना है। सर्व ब्राह्मणों की अंगुली से कार्य को सम्पन्न करना है। वैसे ही इस ही वर्ष में सर्व के एक संकल्प द्वारा वरदानी रूप का भी ऐसा ही विशाल कार्य प्रैक्टिकल में लाना है। समझा अभी क्या करना है?
ऐसे आवाज में आते हुए भी आवाज से परे स्थिति में स्थित रहने वाले, अपनी हिम्मत द्वारा अन्य आत्माओं को हिम्मत देने वाले, अपनी समीपता द्वारा औरों को भी समीप लाने वाले लंगड़ी आत्माओं को दौड़ की रेस में लगाने वाले, ऐसे वरदानी और महादानी, बाप-दादा के समीप आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - समय समीप आ रहा है वा आप समय के समीप आ रही हो? स्वयं को ला रहे हैं वा समय स्वयं को खींच रहा है? ड्रामा आपको चला रहा है या आप ड्रामा को चला रहे हैं? मास्टर आप हो या ड्रामा? रचता ड्रामा है या आप हो?
अभी कई बार वाणी में निकलता है कि जो ड्रामा में होगा वही होगा। लेकिन आगे चलते हुए ड्रामा में क्या होना है वह इतना स्पष्ट टच होगा जो फिर ऐसा नहीं कहेंगे कि जो होना होगा वह होगा। अथार्टी से कहेंगे कि यही ड्रामा में होना है। और वही होगा। जैसे भविष्य प्रालब्ध स्पष्ट है वैसे ड्रामा में क्या होना है वह भी स्पष्ट होगा। कोई कितना भी कहे कि यह नूंध है नहीं, बनते हैं वा नहीं बनते, क्या पता। तो मानेंगे? नहीं। जेसे इस बात में नालेजफुल के आधार पर मास्टर हो गये, बस होना ही है। जो कल होना है वा एक सेकेण्ड के बाद होना है वह भी इतना अथार्टी से, नालेजफुल की पावर से स्पष्टता की पावर से ऐसे बोलेंगे कि यह होना ही है। जो होगा वह देख लेंगे - नहीं। देखा हुआ है, और वही होगा। इतना अथार्टी वाले बनते जायेंगे। यह भी एक अथार्टी है ना। बनना ही है, राज्य हमारा होना ही है। कितनी भी हिलाने की कोशिश कोई करे लेकिन वह स्पष्ट है जैसे इस पाइंट की अथार्टी हो जायेंगे। यह तब होगा जब थोड़ा सा एकान्तवासी होंगे। जितना एकान्तवासी होंगे उतना टचिंग्स अच्छी आयेंगी। क्या होना है, यह वर्त्तमान समान भविष्य किलियर हो जायेगा। अभी समय कम मिलता है। पर्दे के अन्दर ड्रामा की यह सीन है। यह भी अनुभूति होगी। इसलिए कहा कि इस वर्ष में जितना सेवा की हलचल उतना ही बिल्कुल जेस अण्डरग्राउण्ड चले जाओ। कोई भी नई इन्वेंशन और शक्तिशाली इन्वेंशन होती है तो उतना अन्डरग्राउण्ड करते हैं तो एकान्तवासी बनना ही अन्डरग्राउण्ड है। जो भी समय मिले, इकठ्ठा एक घण्टा वा आधा घण्टा समय नहीं मिलेगा। यह भी अभ्यास हो जायेगा। अभी-अभी बात की, अभी-अभी 5मिनट भी मिले तो सागर के तले में चले जायेंगे। जो आने वाला भी समझेगा कि यह कहाँ और स्थान पर है। यहाँ नहीं है। उनके भी संकल्प ब्रेक में आ जायेंगे। वाणी में आना चहेंगे तो आ न सकेंगे। साइलेन्स द्वारा ऐसा स्पष्ट उत्तर मिलेगा जो वाणी द्वारा भी कम स्पष्ट होता। जैसे साकार में देखा बीच-बीच में कारोबार में रहते भी गुम अवस्था की अनुभूति होती थी ना। सुनते-सुनाते डायरेक्शन देते अन्डरग्राउण्ड हो जाते थे। तो अभी इस अभ्यास की लहर चाहिए। चलते-चलते देखें कि यह जैसे कि गायब है। इस दुनिया में है नहीं। यह फरिश्ता इस देह की दुनिया और देह के भान से परे हो गये। इसको ही सब साक्षात्कार कहेंगे। जो भी सामने आयेगा वह इसी स्टेज में साक्षात्कार का अनुभव करेगा। जैसे शुरू में साक्षात्कार की लहर थी ना। उसी से ही आवाज फैला ना। चाहे जादू अथवा कुछ भी समझते थे परन्तु आवाज तो इससे हुआ ना। ऐसी स्टेज में जब अनुभव समान साक्षात्कार होंगे तो फिर प्रत्यक्षता होगी। नाम बाला होगा। साक्षात्कार होगा। प्रत्यक्षफल अनुभव होगा। इसी प्रत्यक्ष फल की सीजन में प्रत्यक्षता होगी। इसी को ही वरदानी रूप कहा जाता। जो आये वह अनुभव कर जाए। बात करते-करते खुद भी गुम दूसरे को भी गुम कर देंगे। यह भी होना है। वाणी द्वारा कार्य चलाकर देख रहे हैं। लेकिन यह अनुभव करने और कराने की स्टेज समस्याओं का हल सेकेण्ड में करेगी। टाइम कम और सफलता ज्यादा होगी। आजकल किसको भी कोई बात वाणी द्वारा दो तो क्या कह देते? हाँ यह तो सब पता है। नालेजफुल हो गये हैं। सेकेण्ड में कहेंगे यह तो हम जानते हैं। यही सुनने को मिलेगा। यह भी सब समझ गये हैं कि फलानी भूल की क्या शिक्षा मिलेगी। तो अब नया तरीका चाहिए। वह यह है। अनुभूति की कमी है, पाइंटस की कमी नहीं है। एक सेकेण्ड भी किसी को अनुभूति करा दो, शक्ति रूप की, शान्ति रूप की तो वह चुप हो जायेंगे।
पर्सनल मुलाकात - ब्राह्मण जीवन की विशेषता है अनुभव। नालेज के साथ-साथ हर गुण की अनुभूति होनी चाहिए। अगर एक भी गुण वा शक्ति की अनुभूति नहीं तो कभी-न-कभी विघ्न के वश हो जायेंगे। अभी अनुभूति का कोर्स शुरू करो। हर गुण वा शक्ति रूपी खज़ाने को यूज़ करो। जिस समय जि्ास गुण की आवश्यकता है उस समय उसका स्वरूप बन जाओ। जैसे आत्मा का गुण है प्रेम स्वरूप, सिर्फ प्रेम नहीं लेकिन प्रेम स्वरूप में आना चाहिए। जिस आत्म को देखो उसे रूहानी प्रेम की अनुभूति होनी हो। अगर स्वयं को वा दूसरों को अनुभव नहीं होता तो जो मिला है उसे यूज़ नहीं किया है। जैसे आजकल भी खज़ाना लाकर्स में पड़ा हो तो खुशी नहीं होती। वैसे नालेज की रीति से बुद्धि के लाकर में खज़ाने को रख न दो, यूज़ करो। फिर देखो यह ब्राह्मण जीवन कितना श्रेष्ठ लगता है। फिर वाह रे मैं का गीत गाते रहेंगे। अनुभवी के बोल और नालेज वाले के बोल में अन्तर होता है। सिर्फ नालेज वाला अनुभव नहीं करा सकता। तो चेक करो कि कहाँ तक मैं अनुभवी मूर्त्त बना हूँ। कौन-सी शक्ति किस परसेन्टेज में प्राप्त की है और समय पर कार्य में ला सकते हैं या नहीं। ऐसा न हो दुश्मन आवे और तलवान चले नहीं अथवा ढ़ाल के समय तलवार , और तलवार के समय ढाल याद आ जाए। जिस समय जिस चीज़ की आवश्यकता है वही यूज़ करो तब विजयी हो सकेंगे।
इस मुरली का सार
1. वरदानी रूप द्वारा सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प चाहिए। संकल्प शक्ति कंट्रोल में हो। आत्मा की तीनों शक्तियाँ अधिकार में हों।
2. जितना एकान्तवासी होंगे उतनी टचिंग अच्छी आएगी। क्या होना है - वर्त्तमान समान भविष्य स्पष्ट दिखाई देगा।
07-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"शान्ति स्वरूप के चुम्बक बन चारों ओर शान्ति कि किरणें फैलाओ"
आज होलीएस्ट बाप होली हंसों से मिलन मनाने आये हैं। यह न्यारा और प्यारा मेला सिर्फं तुम सर्वश्रेष्ठ आत्मायें अनुभव कर सकती हो और अभी ही अनुभव कर सकती हो। बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड देने के लिए बाप आये हैं। बच्चों ने स्नेह का रेसपान्ड सेवा में संगठित रूप में सहयोग का दिखाया। बाप-दादा स्नेह रूपी संगठन को देख अति हर्षित हो रहे हैं। लगन से प्रकृति और कलियुगी आसुरी सम्प्रदाय के विघ्नों कोपार करतेम निर्विघ्न कार्य समाप्त किया इस सहयोग और लगन के रिर्टन में बाप-दादा बच्चों को बधाई के पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं। बाप का कार्य सो मेरा कार्य इसी लगन से सफलता की मुबारक हो। यह एक संगठन की शक्ति का पहला कार्य अभी आरम्भ किया है। अभी सैम्पुल के रूप में किया है। अभी तो आपकी रचना और वृद्धि को पाते हुए और विशाल कार्य के निमित्त बनायेगी। अनुभव किया कि संगठित शक्ति के आगे भिन्न-भिन्न प्रकार के विघ्न कैसे सहज समाप्त हो जाते हैं। सबका एक श्रेष्ठ संकल्प कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इस संकल्प ने कार्य को सफल बनाया। बच्चों के हिम्मत उल्लास मेहनत और मुहब्बत को देख बाप-दादा भी हर्षित हो रहे हैं।
इस संगठन ने विशेष क्या पाठ सिखाया? जानते हो? भी कार्य होता है वह आगे के लिए पाठ भी सिखाता है तो क्या पाठ पढ़ा? (सहन करने का) अभी तो यह पाठ और भी पढ़ाना है। इस कार्य ने आगे के लिए प्रैक्टिकल पाठ पढ़ाया - ‘‘सदा डबल लाइट बन एवररेडी कैसे रहो।'' जो डबल लाइट होगा वह स्वयं को हर बात में सहज ही सफलतामूर्त्त बना सकेगा। जैसा समय जैसे सर्कम्स्टॉन्स वैसे अपने को सरल रीति से चला सकेगा। मन से सदा मग्न अवस्था में रह सकेगा।
आज तो सिर्फ बच्चों के मेहनत की मुबारक देने आये हैं। और भी आगे विशाल कार्य करते चलो, बढ़ते चलो। बाप-दादा ने आप लोगों से भी ज्यादा सर्व कार्य देखे। आप लोग तो स्थूल साधनों के कारण कभी पहुँच सकते कभी नहीं पहुँच सकते। बाप-दादा को हर स्थान पर पहुँचने में कितना टाइम लगता है? जो आपने न देखा वह हमने देखा। बाप का स्नेह ही पाँव दबाता है। निमित्त दिल्ली वालों ने लेकिन सर्व ब्राह्मण आत्माओं के सहयोग से जो भी बच्चे सेवा के मैदान पर आये, सेवा के पहाड़ को अंगुली दी उन सभी बच्चों को बाप-दादा स्नेह और सदा साथ की छत्रछाया अन्दर याद प्यार से पाँव दबा रहे हैं। थक तो नहीं गये हो ना! निमित्त कहने में विदेशी आते हैं लेकिन हैं स्वदेशी। उन्होंने भी बहुत अच्छी लगन से अथक बन भारत के कुम्भकरणों को जगाने के लिए सफलता पूर्वक कार्य किया, इसलिए बाप-दादा सबको नम्बरवन का टाइटिल देते हैं। सुना विदेशियों ने? ऐसा भी दिन आयेगा जो विदेश में भी इतना बड़ा कार्य होगा। सब खुशी में नाच रहे हैं।
आज के इस मधुर मेले का विशेष यादगार बन रहा है। बाप-दादा को भी यह विशाल मेला अति प्रिय है। जो भी दूर-दूर से बच्चे मेहनत करके लगन से पहुँचे हैं उन सबको बाप-दादा विशेश याद प्यार दे रहे हैं। स्नेह दूर को नजदीक लाता है। तो भारत के भी सबसे दूर रहने वाले स्नेह के बन्धन में सहयोग की लगन में नजदीक अनुभव कर रहे हैं। इसलिए भारतवासी देश के हिसाब से दूर रहने वाले बच्चों को बाप-दादा विशेष स्नेह दे रहे हैं। बहुत भोले और बहुत प्यारे हैं। इसलिए भोलानाथ बाप की विशेष स्नेह की दृष्टि ऐसे बच्चों पर है। सभी अपने को इतना ही श्रेष्ठ पदमापदम भाग्यशाली समझते हो ना? अच्छा-
अब आगे वर्ष में क्या करना है? जो किया बहुत अच्छा किया अब आगे क्या करना है? वर्त्तमान समय विश्व की मैजारिटी आत्माओं को सबसे ज्यादा आवश्यकता है - सच्ची शान्ति की। अशान्ति के अनेक कारण दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और बढ़ते जायेंगे। अगर स्वयं अशान्त न भी होंगे तो औरों के अशान्ति का वायुमण्डल अशान्ति के वायब्रेशन्स उन्हों को भी अपने तरफ खीचेंगे। चलने में, रहने में, खाने में, कार्य करने में, सबसे अशान्ति का वातावरण शान्त अवस्था में बैठने नहीं देगा अर्थात् औरों की अशान्ति का प्रभाव भी आत्मा पर पड़ेगा। अशान्ति के तनाव का अनुभव बढ़ेगा। ऐसे समय पर आप शान्ति के सागर के बच्चों की सेवा क्या है? जैसे कहाँ आग लगती है तो शीतल पानी से आग को बुझाकर गर्म वायुमण्डल को शीतल बना देते हैं। वैसे आप सबका आजकल विशेष स्वरूप ‘‘मास्टर शान्ति के सागर का'' इमर्ज होना चाहिए। मंसा संकल्पों द्वारा शान्त स्वरूप की स्टेज द्वारा चारों ओर शान्ति कि किरणों को फैलाओ। ऐसा पावरफुल स्वरूप बनाओ जो अशान्त आत्माएं अनुभव करें कि सारे विश्व के कोने में यही थोड़ी सी आत्मायें शान्ति का दान देने वाली मास्टर शान्ति के सागर हैं। जैसे चारों ओर अंधकार हो और एक कोने में रोशनी जग रही हो तो सबका अटेन्शन स्वत: ही रोशनी की ओर जाता है। ऐसे सबको आकर्षण हो कि चारों ओर की अशान्ति के बीच यहाँ से शान्ति प्राप्त हो सकती है। शान्ति स्वरूप के चुम्बक बनो। जो दूर से ही अशान्त आत्माओं कतो खींच सको। नयनों द्वारा शान्ति का वरदान दो। मुख द्वारा शान्ति स्वरूप की स्मृति दिलाओ। संकल्प द्वारा अशान्ति के संकल्पों को मर्ज कर शान्ति के वायब्रेशन को फैलाओ। इसी विशेष कार्य अर्थ याद की विशेष विद्धि द्वारा सिद्धि को प्राप्त करो।
इस वर्ष में विशेष जो भक्त आपकी महिमा करते हैं - शान्ति देवा। इसी स्वरूम को इमर्ज करो। अभ्यास करो, मुझ आत्मा के शान्त स्वरूप के वायब्रेशन कहाँ तक कार्य करते हैं। शान्ति के वायब्रेशन नजदीक की आत्माओं तक पहुँचते हैं वा दूर तक भी पहुँचते हैं। अशान्त आत्मा के ऊपर अपने शान्ति के वायब्रेशन्स का अनुभव करके देखो। समझा - क्या करना है? अच्छा - अब तो मिलते रहेंगे।
सभी सदा स्नेह में रहने वाले, हर कार्य में सदा सहयोगी, मुहब्बत से मेहनत को खत्म करने वाले, सदा अथक बाप-दादा की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले, सदा विघ्न विनाशक ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
“उड़ीसा तथा कर्नाटक जोन के भाई बहनों से पर्सनल मुलाकात” आप सबका कितना श्रेष्ठ भाग्य है जो बच्चों से मिलने बाप खुद आते हैं। इसी भाग्य का सिमरण कर सदा हर्षित रहो - कि बाबा हमारे लिए आया है। भगवान को मैंने लाया। भगवान को अपने प्रेम के बंधन में बाँध लेना और क्या चाहिए। ऐसे नशे में रहो तो माया भाग जायेगी। माया को तो सबने तलाक दे दिया है ना! तलाक देना अर्थात् संकल्प में भी न आवे। मंसा से भी खत्म करना यह हुआ तलाक। तो तलाकनाम दे दिया ना। आप सब कितने लकीएस्ट हो जो दूर-दूर से बाप ने अपने बच्चों को ढूंढ लिया। इसलिए सदा अपने को सिकीलधे समझो।
2. फरिश्ते समान स्थिति बनाने के लिए - अपने को बाप की छत्रछाया के नीचे समझो –
अपने को सदा बाप की याद की छत्रछाया के अन्दर अनुभव करते हो? जितना-जितना याद में रहेंगे उतना अनुभव करेंगे कि मैं अकेली नहीं लेकिल बाप-दादा सदा साथ है। कोई भी समस्या सामने आयेगी तो अपने को कम्बाइन्ड अनुभव करेंगे, इसलिए घबरायेंगे नहीं। कम्बाइन्ड रूप की स्मृति से कोई भी मुश्किल कार्य सहज हो जायेगा। कभी भी कोई ऐसी बात सामने आवे तो बापदादा की स्मृति रखते अपना बोझ बाप के ऊपर रख दो तो हल्के हो जायेंगे। क्योंकि बाप बड़ा है और आप छोटे बच्चे हो। बड़ों पर ही बोझ रखते हैं। बोझ बाप पर रख दिया तो सदा अपने को खुश अनुभव करेंगे। फरिश्ते के समान नाचते रहेंगे। दिन रात 24 ही घंटे मन से डाँस करते रहेंगे। देह अभिमान में आना अर्थात् मानव बनना। देही अभिमानी बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। सदैव सवेरे उठते ही अपने फरिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहो और खुशी में नाचते रहो तो कोई भी बात सामने आयेगी उसे खुशी-खुशी से क्रास कर लेंगे। जैसे दिखाते हैं देवियों ने असुरों पर डाँस किया। तो फरिश्ते स्वरूप की स्थिति में रहने से आसुरी बातों पर खुशी की डाँस करते रहेंगे। फरिश्ते बन फरिश्तों की दुनिया में चले जायेंगे। फरिश्तों की दुनिया सदा स्मृति में रहेगी।
3. पाप कर्मों से छुटकारा पाने का साधन है - लाइट हाउस की स्थिति –
सभी अपने को लाइट हाउस और माइट हाउस समझते हो? जहाँ लाइट होती है वहाँ कोई भी पाप का कर्म नहीं होता है। तो सदा लाइट हाउस रहने से माया कोई पाप कर्म नहीं करा सकती। सदा पुण्य आत्मा बन जायेंगे। ऐसे अपने को पुण्य आत्मा समझते हो? पुण्य आत्मा संकल्प में भी कोई पाप कर्म नहीं कर सकती। और पाप वहाँ होता है जहाँ बाप की याद नहीं होती। बाप है तो पाप नहीं, पाप है तो बाप नहीं। तो सदा कौन रहता है? पाप खत्म हो गया ना? जब पुण्य आत्मा के बच्चे हो तो पाप खत्म। तो आज से मैं पुण्य आत्मा हूँ पाप मेरे सामने आ नहीं सकता यह दृढ़ संकल्प करो। जो समझते हैं आज से पाप को स्वप्न में भी संकल्प में भी नहीं आने देंगे वह हाथ उठाओ। दृढ़ संकल्प की तीली से 21 जन्मों के लिए पाप कर्म खत्म। बाप-दादा भी ऐसे हिम्मत रखने वाले बच्चों को मुबारक देते हैं। यह भी कितना भाग्य है जो स्वयं बाप बच्चों को मुबारक देते हैं। इसी स्मृति में सदा खुश रहो और सबको खुश बनाओ।
4. संगमयुग में बाप द्वारा मिले हुए सर्व टाइटिल स्मृति में रहते हैं? बाप-दादा बच्चों को पहला-पहला टाइटिल देते हैं स्वदर्शन चक्रधारी । बाप-दादा द्वारा मिला हुआ टाइटिल स्मृति में रहता है? जितना-जितना स्वदर्शन चक्रधारी बनेंगे उतना मायाजीत बनेंगे। तो स्वदर्शन चक्र चलाते रहते हो? स्वदर्शन चक्र चलाते-चलाते कब स्व के बजाय पर-दर्शन चक्र तो नहीं चल जाता। स्वदर्शन चक्रधारी बनने वाले स्व राजय और विश्व राज्य के अधिकारी बन जाते हैं। स्वराज्य अधिकारी अभी बने हो? जो अभी स्वराज्य अधिकारी बनते वही भविष्य राज्य अधिकारी बन सकते हैं। राज्य अधिकारी बनने के लिए कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। जब जिस कर्म इन्द्रिय द्वारा जो कर्म कराने चाहें वह करा सकें, इसको कहा जाता है अधिकारी। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर है? कभी ऑखें वह मुख धोखा तो नहीं देते। जब कन्ट्रोलिंग पावर होती है तो कोई भी कर्मइन्द्रिय कभी संकल्प रूप में भी धोखा नहीं दे सकती।
5. साक्षीपन की सीट शान की सीट है, इस सीट पर बैठने वाले परेशानी से छूट जाते हैं –
जो कुछ भी ड्रामा में होता है उसमें कल्याण ही भरा हुआ है, अगर यह स्मृति में सदा रहे तो कमाई जमा होती रहेगी। समझदार बच्चे यही सोचेंगे कि जो कुछ होता है वह कल्याणकारी है। क्यों क्या का क्वेशचन समझदार के अन्दर उठ नहीं सकता। अगर स्मृति रहे कि यह संगमयुग कल्याणकारी युग है, बाप भी कल्याणकारी है तो श्रेष्ठ स्टेज बनती जायेगी। चाहे बाहर की रीति से नुकसान भी दिखाई दे लेकिन उस नुकसान में भी कल्याण समाया हुआ है, ऐसा निश्चय हो। जब बाप का साथ और हाथ है तो अकल्याण हो नहीं सकता। अभी पेपर बहुत आयेंगे, उसमें क्या क्यों का क्वेशचन न उठे। कुछ भी होता है होने दो।। बाप हमारा हम बाप के तो कोई कुछ नहीं सकता, इसको कहा जाता है निश्चय बुद्धि। बात बदल जाए लेकिन आप न बदलो - यह है निश्चय। कभी भी माया से परे- शान तो नहीं होते हो? कभी वातावरण से कभी घर वालों से, कभी ब्राह्मणों से परेशान होते हो। शान की सीट पर रहो। साक्षीपन की सीट शान की सीट है इससे परे न हो तो परेशानी खत्म हो जायेगी। प्रतिज्ञा करो कि कभी भी कोई बात में न परेशान होंगे न करेंगे। जब नालेजफुल बाप के बच्चे बन गये, त्रिकालदर्शी बन गये तो परेशान कैसे हो सकते। संकल्प में भी परेशानी न हो। क्यों शब्द को समाप्त करो। क्यों शब्द के पीछे बड़ी क्यू है।
विदाई के समय - दीदी से
मेला देखकर खुशी हो रही है ना? यह भी ड्रामा में जो कुछ होता है वह अच्छे ते अच्छा होता है। अभी तो बहुत आयेंगे, यह तो कुछ भी नहीं है। प्रबन्ध बढ़ाते जायेंगे, बढ़ने वाले बढ़ते जायेंगे। जब मधुबन में भीड़ लगे तब भक्ति में यादगार बनें। जितना बनाते जायेंगे उतना बढ़ते ही जायेंगे यह भी वरदान मिला हुआ है। यही यादगार में कहानियाँ बनाकर दिखाते हैं कि सागर तक भी पहुँच गये। फिर भी छोटा हो गया। अभी आबूरोड तक तो पहुँचो तब गायन हो। आबू रोड से माउण्ट तब बैठें तब प्रत्यक्षता होगी। सोचेंगे यह क्या हो रहा है। अटेन्शन तो जाता है ना। ब्र0कु0 कहाँ तब पहुँच गई हैं। अभी यह तो बच्चों का मेला है लेकिन बच्चे और भक्त जब मिक्स हो जायेंगे तब क्या हो जायेगा। अभी तो बहुत तैयारी करनी है। जब बाप का आना है तो बच्चों का भी बढ़ना है। वृद्धि न हो तो सेवा काहे की। सेवा का अर्थ ही है वृद्धि।
मुरली का सार
1. आप शान्ति के सागर बच्चों को अपनी मनसा संकल्पों द्वारा शान्त स्वरूप स्टेज द्वारा चारों ओर शान्ति की किरणें फैलानी हैं। अब शान्ति स्वरूप के चुम्बक बनो।
2. जो सदा अपने को बापदादा के साथ समझते, कभी अकेला नहीं समझते ऐसे कम्बाइन्ड अनुभव करने वाले सदा हल्के रहते हैं।
3. सदा अपने को लाइट हाउस, माइट हाउस समझने से पाप कर्म नहीं होगा।
09-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"मेहनत सामप्त कर निरन्तर योगी बनो"
आज दिलवाला बाप बच्चों के दिल की लगन को देख हर्षित हो रहे हैं। आज का मिलन दिलाराम बाप और दिलरूबा बच्चों का है। चाहे सम्मुख हैं, चाहे शरीर से दूर हैं लेकिन दिल के समीप हैं। दूर रहने वाले बच्चे भी अपनी दिल की लगन से दिलाराम बाप के सम्मुख हैं। ऐसे दिलरूबा बच्चे जिनके दिल से बाबा का ही साज बजता रहता है - अनहद साज, हद का नहीं - ऐसे बच्चे बाप के अब भी नयनों में समाये हुए हैं। उन्हों को भी बाप-दादा विशेष याद का रेसपान्ड कर रहे हैं। दिलाराम बाप के दिल तख्तनशीन तो सब बच्चे हैं फिर भी नम्बरवार तो कहेंगे ही। जैसे माला के मणके तो सब हैं लेकिन कहाँ आठ और कहाँ 16 हजार का लास्ट दाना। कहेंगे मणके दोनों को लेकिन अन्तर महान है। इन नम्बर का आधार मुख्य सलोगन है - ‘पवित्र और योगी बनो।' एक हैं योग लगाने वाले योगी। दूसरे हैं सदा योग में रहने वाले योगी। तीसरे हैं योग द्वारा विघ्न हटाने, पाप मिटाने की मेहनत में रहने वाले। जितनी मेहनत उतना फल पाने वाले। जैसे आजकल की दुनिया में एक हैं जो पूर्व जन्म के, भक्ति के हिसाब से किए हुए श्रेष्ठ कर्म के आधार से, हद की राजाई का वर्सा बिना मेहनत के पाते हैं। वर्सें के अधिकार से प्राप्ति है इस कारण राजाई का नशा स्वत: ही रहता है। याद नहीं करना पड़ता कि मैं राजकुमार हूँ या राजा हूँ। नैचुरल स्मृति और सम्पत्ति की प्रापति होती है। आजकल तो राजायें हैं नहीं लेकिन यह द्वापर के आरम्भ की बात है, सतोगुणी भक्ति के समय की बात है। ऐसे नम्बर वन बच्चे स्वत: योगी जीवन में रहते हैं। प्राप्ती के भण्डार वर्से के आधार से सदा भरपूर रहते हैं। मेहनत नहीं करते - आज सुख दो, आज शान्ति दो। संकल्प का बटन दबाया और खान खुल जाती है। सदा सम्पन्न रहते हैं। अर्थात् योगयुक्त, योग लगा हुआ ही रहता है।
2. दूसरे नम्बर के हैं - योग लाने वाले। वह ऐसे हैं जैसे आजकल के बिजनेसमैन। कभी बहुत कमाते कभी कम कमाते। फिर भी खज़ाने रहते हैं।द्य कमाई का नशा रहता है खुशी भी रहती है लेकिन निरन्तर एकरस नहीं रहती है। कभी देखा तो बहुत सम्पन्नता का स्वरूप होगा और कभी - अभी और चाहिए अभी और चाहिए का संकल्प मेहनत में लायेगा। सदा सम्पन्न सदा एकरस नहीं होंगे। सदा स्वयं से सन्तुष्ट नहीं होगें। यह है योग लगाने वाले। लगाने वाले अर्थात् टूटता तब फिर लगाते हैं।
3. तीसरे हैं - जैसे आजकल के नौकरी करने वाले। कमाया और खाया। जितना कमाया उतना आराम से खाया। लेकिन स्टाक जमा नहीं होगा। इसलिए सदा खुशी में नाचने वाले नहीं होंगे। मेहनत के कारण कब दिलशिक्स्त और कब दिलखुश होंगे। ऐसे तीन प्रकार के बच्चे हैं।
बाप कहते हैं - सबको वर्से में सर्व प्राप्तियों का खज़ाना मिला है, अधिकारी हो, नैचुरल योगी हो, नैचुरल स्वराज्यधारी हो। बाप के खज़ाने के बालक सो मालिक हो। तो इतनी मेहनत क्यों करते हो? मास्टर रचता और नौकर के समान मेहनत करें यह क्यों? जैसे वह 200 कमाते और 200 खाते। दो हजार कमाते और दो हजार खाते वैसे दो घण्टा योग लगाते और दो घण्टा उसका फल लेते। आज 6 घण्टा योग लगा आज 4 घण्टा योग लगा यह क्यों? वारिस कभी भी यह नहीं कहता कि दो दिन की राजाई है, 4 दिन की राजाई है। सदा बाप के बच्चे हैं और सदा खज़ाने के मालिक हैं। कहना बाबा और करना याद की मेहनत, दोनों बाते एक दो के विपरीत हैं। तो सदा यह सलोगन याद रखो - कि मैं एक श्रेष्ठ आत्मा बालक सो मालिक हूँ। सर्व खज़ानें की अधिकारी हूँ। खोया - पाया, खोया - पाया यह खेल नहीं करो। जो पाना था वह पा लिया फिर खोना और पाना क्यों! नहीं तो यह गीत को बदली करो। पा रहा हूँ, पा रहा हूँ यह अधिकारी के बोल नहीं। सम्पन्न बाप के बालक हो सागर के बच्चे हो। अब क्या करेंगे? निरंतर योगी बनो - मैं कौन हूँ? हम सो ब्राह्मण सो देवता हैं व हम सो क्षत्रिय सो देवता हैं? बाप-दादा को बच्चों की मेहनत देख तरस पड़ता है। राजा के बच्चे नौकरी करें, यह शोभता है? सब मालिक बनो।
आज तो सिर्फ पार्टियों से ही मिलना है। लेकिन मुरली क्यों चली, इसका भी राज है। आज बहुत महावीर बच्चे बाबा को खींच रहे हैं। बाप-दादा आज उन्हों को सम्मुख रख मुरली चला रहे हैं। देश-विदेश के बहुत महावरी बच्चे याद कर रहे हैं। बाप-दादा भी ऐसे सेवाधारी आज्ञाकारी स्वत: योगी बच्चों को विशेष याद दे रहे हैं।
मधुबन निवासी विदेशी बच्चों को भी जो बड़े स्नेह से चात्रक बन मुरली सुनने के सदा अभिलाषी रहते हैं, ऐसे सर्विसएबुल लव- फुल, लवलीन बच्चों को भी बाप-दादा विशेष याद प्यार दे रहे हैं। मुधुबन निवासी और जो भी नीचे बैठे हैं लेकिन बाप-दादा के नयनों के सामने हैं ऐसे अथक सेवाधारी बच्चों को विशेष यादप्यार। साथ-साथ सम्मुख बैठे लेकी सितारे को भी विशेष यादप्यार और नमस्ते।
‘‘बंगाल बिहार, नेपाल जोन के भाई बहनों से प्रसनल मुलाकात''
मुरली तो सुनी, अब सुनने के बाद स्वरूप में लाना। एक होता है स्मृति में लाना और दूसरा हैं स्वरूप में लाना। जो कुछ सुनते हैं। स्मृति में तो सब लाते हैं, अज्ञानी भी सुने हुए को याद करते हैं लकिन ज्ञान का अर्थ ही है स्वरूप में लाना। तो कौन सी बात स्वरूप में लायेंगे। बालक सो मालिक , यह है स्वरूप में लाना। पुरूषार्थ के साथ-साथ प्रालब्ध का अनुभव हो। ऐसे नहीं अभी तो पुरूषार्थी हैं प्रालब्ध भविष्य में मिलेगी। संगमयुग की विशेषता ही है अभी-अभी पुरूषार्थ अभी-अभी प्रत्यक्ष फल। अभी स्मृति स्वरूप अभी अभी प्राप्ती का अनुभव। भविष्य की गारन्टी तो है लेकिन भविष्य से भी श्रेष्ठ भाग्य अब का है। अभी का वर्सा तो प्राप्त है ना? पा लिया है या पाना है? अगर पा लिय है तो फिर फरियाद तो नहीं करतेहो अमृत बेले? या तो है याद या है फरियाद। जहाँ यद है वहाँ फरियाद नहीं, जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं। तो फरियाद समाप्त हुई? क्वेश्चन मार्क खत्म? फरियाद में होता है क्वेश्चन मार्क और याद में फुलस्टाप अर्थात् बिन्दी। बिन्दी स्वरूप बन बिन्दी को याद करना है। बाप भी बिन्दी आप भी बिन्दी। तो परिवर्त्तन भूमि में आकर कोई न कोई विशेष परिवर्त्तन जरूर करना चाहिए। अब फिरयाद को छोड़कर स्वत: योगी बनरक जाना। फिरयाद में उलझन होती है खुश नहीं। तो बाप से खुशी का खज़ाना लेना है, उलझन नहीं। उलझन तो लौकिक बाप का खज़ाना था अब वह तो खत्म हो गया। लौकिक सम्बन्ध खत्म तो फरियाद भी खत्म। अलौकिक बाप अलौकिक वर्सा। तो फरियाद की लिस्ट की चिटठी खत्म हो गया ना! फाड़ दिया ना! अगर मिटा हुआ होगा तो भी कहेंगे कि लिखा हुआ था, इसलिए फाड़कर खत्म करो। सेवा में समय दो जब तक तैयार नहीं होते हो तब तक राज्य आने में देरी है। सेवा का कोई नया प्लैन बनाया है? महायज्ञ में तो सभी ने सेवा की ना! ब्राह्मणों का संगठन होना ही, हाजिर होना ही सेवा है। यह कोई कम बात नहीं है। समय पर हाजिर होना, एवररेडी होना सहनशक्ति का लक्ष्य रखना यह भी रजिस्टर में जमा होता है। जिसका फिर लास्ट रिजल्ट से कनेक्शन होता है। जैसे आजकल भी 3 मास 6 मास में इम्तिहान लेते हैं फिर सबको मार्क्स का फाइनल से कनेक्शन करते हैं तो जो भी ब्राह्मणों के श्रेष्ठ कार्य होते हैं उनमें सहयोगी बनना इसकी भी मार्क्स हैं। वह मार्क्स अन्तिम रिजल्ट के लिए जमा हो गई। सहन किया, तन-मन-धन लगाया, लगाना माना पाना। डायरेक्शन प्रमाण किया यह भी मार्क्स जमा हुई। महायज्ञ में सिर्फ आना नहीं हुआ लेकिन फाइनल रिजल्ट की मार्क्स जमा हुई। तो सेवा हुई ना। यह आवाज बुलन्द करना भी सेवा का एक सबजेक्ट है। सेवा के कई स्वरूप होते हैं तो यह संगठि त रूप में आवाज बुलन्द होना भी यह भी सेवा है। परिवार को देखकर खुशी हुई ना। कितने भाई बहनों को देखा। इतना बड़ा परिवार को कभी किसी युग में किसका होता नहीं। यह भी सैम्पुल था सारा परिवार तो नहीं था ना। सारा परिवार इक्टठा करें तो पूरी दिल्ली अपनी बनानी पड़े। आबू में इकट्ठा करें तो आबूरोड़ तक अपना बनाना पड़े। वह भी दिन आयेगा जो सब आफर करेंगे कि जमारे मकान में आओ। कलकत्ता का विक्टोरिया ग्राउण्ड आपको तैयार करके देंगे। कहेंगे आओ - पधारो। धीरे-धीरे आवाज। फैलेगी। अभी यह तो समझते हैं ना कि यह कोई कम नहीं हैं। ब्रह्मा बाप के अव्यक्त होने के बाद इतना संगठन कहो यह देखकर बलिहारी जाते हैं। अब जगह संस्था टूटती है यहाँ बढ़ती है यह कमाल देखते हैं। सभी ने अपने-अपने शुद्ध संकल्प से, सहयोग की शक्ति, संगठन की शक्ति से, सेवा की। अभी सब जगह से निमन्त्रण मिलेगा। यह राष्ट्रपति भवन आपका घर हो जायेगा।
2. अपने को सदा दिल तख्तनशीन समझते हो? यह दिलतख्त सारे कल्प में सिवाए इस संगम युग के कहाँ भी प्राप्ति नहीं हो सकता। दिखतख्त पर कौन बैठ सकता है? जिसकी दिल सदा एक दिलाराम बाप के साथ है। एक बाप दूसरा न कोई ऐसी स्थिति में रहने वालों के लिए स्थान है दिलतख्त। तो किस स्थान पर रहते हो? अगर तख्त छोड़ देते हो तो फाँसी के तख्तेपर चले जाते। जनम जन्मान्तर के लिए माया की फाँसी में फंस जाते हो। यह तो है बाप का दिलतख्त या है माया की फाँसी का तख्ता। तो कहाँ रहना है? एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये अपना शरीर भी नहीं। अगर देह याद आई तो देह के साथ देह के सम्बन्ध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे। जरा संकल्प रूप में भी अगर सूक्ष्म धागा जुटा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खींच लेगा। इसलिए मंसा, वाचा कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी रस्सी न हो। सदा मुक्त रहो तब औरों को भी मुक्त कर सकेंगे। आजकल सारी दुनिया माया के जाल में फँसकर तड़प रही है, उन्हें इस जाल से मुक्त करने के लिए पहले स्वयं को मुक्त होना पड़े। सूक्ष्म संक्लप में भी बंधन न हो। जितना निर्बन्धन होंगे उतना अपनी ऊंची स्टेज पर स्थित हो सकेंगे। बंधन होगा तो ऊंचा चाहते भी नींच आ जायेंगे।
3. सभी अपने को इस विश्व के अन्दर सर्व आत्माओं में से चुनी हुई श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? यह समझते हो कि स्वंय बाप ने हमें अपना बनाया है? बाप ने विश्व के अन्दर से कितनी थोड़ी आत्माओं को चुना। और उनमें से हम श्रेष्ठ आत्मायें हैं। यह संकल्प करते ही क्या अनुभव होगा? अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होगी। ऐसे अनुभव करते हो? अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति होती है वा सुना है? प्रैक्टिकल का अनुभव है वा सिर्फ नालेज है? क्योंकि ज्ञान अर्थात् समझ। समझ का अर्थ ही है अनुभव में लाना। सुनना, सनाना अलग चीज़ है, अनुभव करना और चीज़ है। यह श्रेष्ठ ज्ञान है अनुभवी बनने का। द्वापर से अनेक प्रकार ज्ञान सुने और सुनाये। जो आधाकल्प किया वह अभी भी किया तो क्या बड़ी बात! यह नई जीवन, नया युग, नई दुनिया के लिए नया ज्ञान, तो इसकी नवीनता ही तब है जब अनुभव में लाओ। एक एक शब्द, आत्मा, परमात्मा, चक्र कोई भी ज्ञान का शब्द अनुभव में आये। । रियलाइजेशन हो। आत्मा हूँ यह अनुभूति हो, परमात्मा का अनुभव हो इसको कहा जाता है नवीनता। नया दिन, नई रात, नया परिवार सब कुछ नया ऐसे अनुभव होता है? भक्ति का फल अभी ज्ञान मिल रहा है तो ऐसे ज्ञान के अनुभवी बनो अर्थात् स्वरूप में लाओ।
4. सब विजयी रतन हो ना? विजय का झण्डा पक्का है ना। विजय हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। यह मुख का नारा नहीं लेकिन प्रैक्टिकल जीवन का नारा है। कल्प-कल्प के विजय हैं अब की बार नहीं हर कल्प के, अनगिनत बार के विजयी हैं। ऐसे विजयी सदा हर्षित रहते हैं। हार के अन्दर दुख की लहर होती है। सदा विजयी जो होंगे वह सदा खुश रहेंगे,कभी भभ् किसी सर्कमस्टाँस में भी दुख की लहर नहीं आ सकती। दुख की दुनिया से किनारा हो गया, रात खत्म हुई, प्रभात में आ गये तो दुख की लहर कैसे आ सकती। विजय का झण्डा सदा लहराता रहे नींचे न हो।
विदाई के समय दीदी से - बाप-दादा भी प्रेम के बंधन में बंधे हुए हैं। छूटने चाहें तो भी छूट नहीं सकते हैं? इसीलिए भक्ति में भी बंधन का चित्र दिखाया है। प्रैक्टिकल में प्रेम के बन्धन में अव्यक्त होते भी बंधना पड़ता है। व्यक्त से छुड़ाया फिर भी छूट नहीं सकते। इसीलिए आप भी बंधन में हो। बाप भी बंधन में है। (विदेशियों की ओर इशारा) यह भी तपस्या कर रहे हैं। दिन है वा रात है? इसीलिए तो कहते हैं जादू लगा दिया।
मुरली का सार
1. संगम युग की विशेषता है अभी-अभी पुरूषार्थ अभी-अभी प्रत्यक्ष फल।
2. जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं, जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं।
3. एक बाप दूसरा न कोई ऐसी स्थिति में स्थित रहने वालों के लिए स्थान है बाप का दिल तख्त। या तो है बाप दादा का दिल तख्त या है माया की फाँसी का तख्ता।
11-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"सफलता के दो मुख्य आधार"
आज खुदा दोस्त अपने बच्चों से फ्रेंड के रूप में मिल रहे हैं। एक खुदा दोस्त के कितने फ्रेंडस होंगे? वैसे सतगुरू भी हैं, शिक्षक भी हैं, सर्व सम्बन्ध निभाने वाले हैं। आप सबको सबसे ज्यादा प्यारा सम्बन्ध कौन-सा लगता है? किसको टीचर अच्छा लगता, किसको साजन अच्छा लगता, किसको फ्रेंड अच्छा लगता है। लेकिन है तो एक ही ना। इसलिए एक से कोई भी सम्बन्ध निभाने से सर्व प्राप्ति हो ही जायेगी। यही एक जादूगरी है। जो एक से ही जो चाहो वह सम्बन्ध निभा सकते हो। और कहाँ जाने की आवश्यकता ही नहीं। इससे कोई और मिले यह इच्छा खत्म हो जाती है। सर्व सम्बन्ध की प्रीत निभाने के अनुभवी हो चुके हो? हो चुके हो या अभी होना है? क्या समझते हो! पूर्ण अनुभवी बन चुके हो? आज आफीशल मुरली चलाने नहीं आये हैं। बाप-दादा भी अपने सर्व सम्बन्धों से दूर-दूर से आई हुई आत्माओं को देख हर्षित हो रहे हैं। सबसे दूरदेशी कौन हैं? आप तो फिर भी साकारी लोक से आये हो, बाप-दादा आकारी लोक से भी परे निराकारी वतन से आकारी लोक में आये फिर साकार लोक में आये हैं। तो सबसे दूरदेशी बाप हुआ या आप हुए? इस लोक से हिसाब से जो सबसे ज्यादा दूर से आये हैं उन्हो को भी बाप-दादा स्नेह से मुबारक दे रहे हैं। सबसे दूर से आने वाले हाथ उठाओ। जितना दूर से आये हो, जितने मालइ चलकर आये हो उतने माइल से पदमगुणा एड करके मुबारक स्वीकार करें।
फारेनर्स अर्थात् फार एवर। ऐसे वरदानी हो ना? फारेनर्स नहीं लेकिन फार एवर। सदा सेवा के लिए एवररेडी। डायरेक्शन मिला और चल पड़े, यह है फार एवर ग्रुप की विशेषता। अभी-अभी अनुभव किया और अभी-अभी अनुभव कराने के लिए हिम्मत रख सेवा परउपस्थित हो जाते। यह देख बाप-दादा भी अति हर्षित होते हैं। एक से अनेक सेवाधज्ञरी निमित्त बन गये। सेवा की सफलता के विशेष दो आधार हैं, वह जानते हो? (कई उत्तर निकले) सबके उत्तर अपने अनुभव के हिसाब से बहुत राइट हैं। वैसे सेवा में वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार। बाप सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ। ऐसी लवलीन आत्मा एक शब्द भी बोलती है तो उसके स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देते हैं। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू की वस्तु का काम करता है। लवलीन आत्मा रूहानी जादूगर बन जाती है। एक बाप का लव अर्थात् लवलीन आत्मा। दूसरा सफलता का आधार हर ज्ञान की पाइंट के अनुभवी मूत होना। जैसे ड्रामा की पाइंट देते हैं, तो एक होता है नालेज के आधार पर पाइंट देना। दूसरा होता है। अनुभवी मूर्त्त होकर पाइंट देना ड्रामा की पाइंट के जो अनुभवी होंगे वह सदा साक्षीपन की स्टेज पर स्थिति होंगे। एक रस, अचल और अडोल होंगे। ऐसी स्थिति में स्थित रहने वाले को अनुभवी मूर्त्त कहा जाता है। रिजल्ट में बाहर के रूप से भले अच्छा हो वा बुरा हो। लेकिन ड्रामा के पाइंट की अनुभवी आत्म कभी भी बुरे में भी बुराई को न देख अच्छाई ही देखेगी अर्थात् स्व के कल्याण का रास्ता दिखाई देगा। अकल्याण का खाता खत्म हुआ। कल्याणकारी बाप के बच्चे होने कारण कल्याणकारी युग होने कारण अब कल्याण खाता आरम्भ हो चुका है। इस नालेज और अनुभव की अथार्टी से सदा अचल रहेंगे। अगर गिनती करो तो आप सबके पास कितने प्रकार की अथार्टीज हैं। और आत्माओं के पास एक दो अथार्टी होगी। किसको साइन्स की, किसको शास्त्र की, किसको डाक्टरी के नालेज की, किसको इन्जीनियरी के नालेज की अथार्टी होगी, आपको कौन सी अथार्टी है? लिस्ट निकालो तो बहुत लम्बी लिस्ट हो जायेगी। सबसे पहली अथार्टी वर्ल्ड आलमाइटी आपका हो गया। वर्ल्ड आलमाइटी की अथार्टी। जब वर्ल्ड आलमाइटी बाप आप का हो गया तो वर्ल्ड की जो भी अथार्टीज हैं वह आपकी हो गई। ऐसे लिस्ट निकालो। वर्ल्ड के आदि मध्य अन्त के नालेज की अथार्टी, जिस नालेज के यादगार शास्त्र बाइबिल वा कुरान आदि सब हैं। इसलिए गीता ज्ञान को सर्व शास्त्र वा बुक्स का माई बाप कहते हैं। शिरोमणी कहा जाता है। डायरेक्ट गीता कौन सुन रहा है? तो अथार्टी हो गये ना। इसी प्रकार सर्व धर्में में से नम्बरवन धर्म किसका है? (ब्राह्मणों का) आपके ब्राह्मण धर्म द्वारा ही सब धर्म पैदा होते हैं ब्राह्मण धर्म तना है। और भी इस धर्म की विशेषता है। ब्राह्मण धर्म डायरेक्ट परमपिता का स्थापन किया हुआ है। और धर्म, धर्मपिताओं के हैं और यह धर्म परमपिता का है। वह बच्चों द्वारा हैं। सन आफ गाड कहते हैं। वह गाड नहीं हैं। तो डायरेक्ट परमपिता द्वारा श्रेष्ठ धर्म की स्थापन हुआ, उस धर्म की अथार्टी हो। आदि पिता ब्रह्मा के डायरेक्ट मुख वंशावली की अथार्टी वाले हो। सर्वश्रेष्ठ कर्म के प्रैक्टिकल जीवन की अथार्टी हो। श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध विश्व के अखण्ड राज्य के अधिकार की अथार्टी हो। भक्तों के पूज्य की अथार्टी हो। ऐसे और भी लिस्ट निकालो तो बहुत निकलेगा। समझा आप कितनी बड़ी अथार्टी हो! भक्तों के पूज्य की अथोर्टी हो। ऐसे और भी लिस्ट निकालो तो बहुत निकलेगा। समझा आप कितनी बड़ी अथार्टी! ऐसे अथार्टी वालों को बाप भी नमस्ते करते हैं। यह सबसे बड़ी अथार्टी है। ऐसे अथार्टी वालों को देख बाप-दादा भी हर्षित होते हैं।
सबने बहुत अच्छी मेहनत कर सेवा के कार्य को विस्तार में लाया है। अपने भटके हुए भाई बहनों को रास्ता बताया है। प्यासी आत्माओं को शान्ति और सुख की अंचली दे तृप्त आत्मा बनाने का अच्छा पुरूषार्थ कर रहे हैं। बाप से किया हुआ वायदा प्रैक्टिकल में निभा के बाप के सामने गुलदस्ते लाये हैं, चाहे छोटे हैं वा बड़े हैं। लेकिन छोटे भी बाप को प्रिय हैं। अब यह वायदा तो निभाया है, और भी विस्तार को प्राप्त करते रहेंगे। कोई ने नैकलेस बनाके लाया है, कोई ने माला बनाके लाई है। कोई ने कंगन, कोई ने रिंग बना के लाई है। तो सारी बाप-दादा की ज्वैलरी। एक-एक रतन वैल्युबल रतन है। ज्वैलरी तो बहुत बढ़िया लाई है बाप के सामने। अब आगे क्या करना है? ज्वैलरी को अब क्या करेंगे? (पालिश) मधुबन में आये हो तो पालिश हो ही जायेगी। अब शो केस मे रखो। वर्ल्ड के शोकेस में यह ज्वैलरी चमकती हुई सभी को दिखाई दे। शोकेस में कैसे आयेंगे? बाप के सामने आये, ब्राह्मणों के सामने आये यह तो बहुत अच्छा हुआ। अब वर्ल्ड के सामने आवे। ऐसा प्लैन बनाओ जो वर्ल्ड के कोने-कोने से यह आवाज निकले। कि यह भगवान के बच्चे कोने-कोने में प्रत्यख हो चुके हैं। चारों ओर एक ही लहर फैल जाए। चाहे भारत में चाहे विदेश के कोने-कोने में। जैसे एक ही सूर्य वा चन्द्रमा समय के अन्तर में दिखाई तो एक ही देता है ना। ऐसे यह ज्ञान सूर्य के बच्चे कोने-कोने से दिखाई दें। ज्ञान सितारों की रिमझिम चारों ओर दिखाई दे। सबके संकल्प में, मुख में यही बात हो कि ज्ञान सितारे ज्ञान सूर्य के साथ प्रगट हो चुके हैं। तब सब तरफ का मिला हुआ आवाज चारों आरे गूंजेगा। और प्रत्यक्षता का समय आयेगा। अभी तो गुप्त पार्ट चल रहा है। अब प्रत्यक्षता में लाओ। इसका प्लैन बनाओ फिर बाप-दादा भी बतायेंगे।
एक-एक रतन की विशेषता वर्णन करें तो अनेक रातें बीत जाएं। हरेक बच्चे की विशेषता हरेक के मस्तक पर मणी के माफिक चमक रही है।
ऐसे सर्व विशेष आत्माओं को, सर्व सपूत अर्थात् सर्विस के सबूत देने वाले, सदा सेवा और याद में रहने वाले सर्विसएबुल मास्टर आलमाइटी अथार्टी, सर्व की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले अति लवली, लवलीन बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
प्रश्न:- बाप सदा बच्चों को आहवान करते हैं, बाप को भी सभी बच्चे बहुत प्रिय हैं - क्यों?
उत्तर:- बच्चे न हों तो बाप का नाम भी बाला न हो। बाप को बच्चे सदा प्रिय हैं क्योंकि बाप हर बच्चे की विशेषता को देखते हैं। बाप बच्चों के तीनों कालों को जानते हैं। भक्ति में भी कितना धक्का खाया यह भी जानते हैं और अब भी अपने-अपने यथाशक्ति कितना पुरूषार्थ कर आगे बढ़ रहे हैं यह भी जानते हैं और भविष्य में क्या बनने वाले हैं यह भी बाप के आगे स्पष्ट है, तो तीनों कालों को देख बाप को हर बच्चा अति प्रिय लगता है। को देख बाप को हर बच्चा अति प्रिय लगता है।
13-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"डबल रूप से सेवा द्वारा ही आध्यात्मिक जागृति"
आज बाप-दादा सर्व शुभ चिन्तक संगठन को देख रहे हैं। शुभ चिन्तक अर्थात् सदा शुभ चिन्तन में रहने वाले, स्व-चिन्तन में रहने वाले - ऐसे स्व-चिन्तक वा शुभ चिन्तक, सदा बाप द्वारा मिली हुई सर्व प्राप्तियाँ, सर्व खज़ाने वा शक्तियाँ, इन प्राप्तियों के नशे में, साथ-साथ सम्पूर्ण फरिश्ते वा सम्पूर्ण देवता बनने के निशाने के स्मृति स्वरूप रहते है? जितना नशा उतना निशाना स्पष्ट होगा। समीप होने कारण ही स्पष्ट होता है। जैसे अपने पुरूषार्थ का रूप स्पष्ट है वैसे सम्पूर्ण फरिश्ता रूप भी इतना हीह स्पष्ट अनुभव होगा। बनूंगा या नहीं बनूंगा यह संकल्प भी उत्पन्न नहीं होगा। अगर ऐसा कोई संकल्प आता है कि बनना तो चाहिए, वा जरूर बनेंगे ही। इससे सिद्ध होता है अपना फरिश्ता स्वरूप इतना समीप वा स्पष्ट नहीं। जैसे अपना ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी का स्वरूप स्पष्ट है और निश्चयबुद्धि होकर कहेंगे कि हाँ हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, ऐसे नहीं कहेंगे कि हम भी ब्रह्माकुमार कुमारी होने तो चाहिए। हूँ तो मैं ही। यह ‘‘तो' 'शब्द नहीं निकलेगा। कहेंगे हाँ हम ही हैं। क्वेशचन नहीं उठेगा कि मैं हूँ या नहीं हूँ। कोई कितना भी क्रास एग्जामिन करे कि आप ब्रह्माकुमार कुमारी नहीं हो, भारत के ही ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, बड़े-बड़े महारथी ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, आप तो विदेशी क्रिश्चियन हो, ब्रह्मा तो भारत का है, आप कैसे ब्रह्मा कुमार कुमारी बनेंगे! गलती से क्रिश्चियन कुमार कुमारी के बदले ब्रह्माकुमार कुमारी कहते हो। ऐसा कोई कहे तो मानेंगे? नहीं मानेंगे ना। निश्चय बुद्धि हो उत्तर देंगे कि ब्रह्माकुमार कुमारी हम अभी के नहीं हैं लेकिन अनेक कल्पों के हैं। ऐसा निश्चय से बोलेंगे ना। वा कोई पूछेगा तो सोच में पड़े जायेंगे? क्या करेंगे? सोचेंगे वा निश्चय से कहेंगे कि हम ही हैं जैसे यह ब्रह्माकुमार कुमारी का पक्का निश्चय है, स्पष्ट है, अनुभव है, ऐसे ही सम्पूर्ण फरिश्ता स्टेज भी इतनी किलियर और अनुभव में आती है? आज पुरूषार्थी हैं कल फरिश्ता। ऐसा पक्का निश्चय हो जो कोई भी इस निश्चय से टाल न सके। ऐसे निश्चयबुद्धि हो? फरिश्ते स्वरूप की तस्वीर स्पष्ट सामने है! फरिश्ते स्वरूप की स्मृति, वृत्ति, दृष्टि, कृति वा फरिश्ते स्वरूप की सेवा क्या होती है उसकी अनुभूति है? क्योंकि ब्रह्माकुमार वा कुमारी स्वरूप की सेवा का रूप तो हरेक यथा शक्ति अनुभव कर रहे हैं। इस सेवा का परिणाम आदि से अब तक देख लिया। इस रूप की सेवा की भी आवश्यकता थी जो हुई और हो भी रही है,होती भी रहेगी।
आगे चल समय और आत्माओं की इच्छा की आवश्यकता अनुसार डबल रूप के सेवा की आवश्यकता होगी। एक ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप अर्थात् साकारी स्वरूप की, दूसरी सूक्ष्म आकारी फरिश्ते स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा बाप की दोनों ही सेवायें देखी। साकार रूप की भी, और फरिश्ते रूप की भी। साकार रूप की सेवा से अव्यक्त रूप के सवा की स्पीड तेज है। यह तो जानते हो, अनुभवी हो ना? अब अव्यक्त ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन अर्थात् फरिश्ता रूप बन बच्चों को अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप की स्टेज में खींच रहे हैं। फालो फादर करना तो आता है ना। ऐसे तो नहीं सोचते हम भी शरीर छोड़ अव्यक्त बन जावें। इसमें फालो नहीं करना। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना ही इसलिए कि अव्यक्त रूप का अग्जैम्पुल देख फालो सहज कर सको। साकार रूप में न होते हुए भी फरिश्ते रूप से साकार रूप समान ही साक्षात्कार कराते हैं ना। विशेष विदेशियों को अनुभव है। मधुबन में साकार ब्रह्मा की अनुभूति करते हो ना। कमरे में जा करके रूहरूहाण करते हो ना! चित्र दिखाई देता है या चैतन्य दिखाई देता है। अनुभव होता है तब तो जिगर से कहते हो ब्रह्मा बाबा। आप सबका ब्रह्मा बाबा है या पहले वाले बच्चों का ब्रह्मा बाबा है? अनुभव से कहते हो वा नालेज के आधार से कहते हो? अनुभव है? जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप साकार रूप की पालना दे रहे हैं। साकार रूप की पालना का अनुभव करा रहे हैं, वैसे आप व्यक्त में रहते अव्यक्त फरिश्ते रूप का अनुभव करो। सभी को यह अनुभव हो कि यह सब फरिश्ते कौन हैं और कहाँ से आये हुए हैं! जैसे अभी चारों ओर यह आवाज फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! वैसे चारों ओर अब फरिश्ते रूप का साक्षात्कार हो। इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। सफेद वस्त्रधारी औरसफेद लाइटधारी। जिसको देख न चाहते भी ऑख खुल जाए। जैस अन्धकार में कोई बहुत तेज लाइट सामने आ जाती है तो अचानक ऑख खुल जाती है ना कि यह क्या है, यह कौन है, कहाँ से आई! तो ऐसे अनोखी हलचल मचाओ। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फरिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ। इसको कहा जाता है - आध्यात्मिक जागृति। इतने सब जो देश विदेश से आये हो, ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप की सेवा की! आवाज बुलन्द करने की जागृति का कार्य किया। संगठन का झण्डा लहराया। अब फिर नया प्लैन करेंगे ना। जहाँ भी देखें तो फरिश्ते दिखाई दें, लण्डन में देखें, इण्डिया में देखें जहाँ भी देखें फरिश्ते-ही- फरिश्ते नजर आयें। इसके लिए क्या तैयारी करनी है। वह तो 10 सूत्री प्रोग्राम बनया था, इसके कितने सूत्र हैं? वह 10 सूत्री कार्यक्रम, यह है 16 कला के सूत्र का कार्यक्रम। इस पर आपस में भी रूह-रूहान करना और फिर आगे सुनाते रहेंगे। प्लैन बताया अब प्रोग्राम बनाना। मुख्य थीम बता दी है, अब डिटेल प्रोग्राम बनाना। ऐसे सदा शुभ-चिंतन में रहने वाले, शुभ चिन्तक, डबल रूप द्वारा सेवा करने वाले, डबल सेवाधारी, ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, निराकार बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा बाप समान सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।
पर्सनल मुलाकात टीचर्स के साथ - टीचर्स तो है ही सदा भरपूर आत्मायें। ड्रामा अनुसार निमित्त बने हो, अच्छी मेहनत कर रहे हो और आगे भी करते ही रहेंगे। रिजल्ट अच्छी है। और भी अच्छी होगी। समय समीप आने के कारण जल्दी-जल्दी सेवा का विस्तार बढ़ता ही जायेगा। क्योंकि संगम पर ही त्रेता के अन्त तक की प्रजा, रायल फैमली और साथ-साथ कलियुग के अन्त तक की अपने धर्म की आत्मायें तैयार करनी है। विदेश के सभी स्थान पिकनिक के स्थान बनेंगे लेकिन ब्राह्मण आत्मायें तो राजाई घराने में आयेंगी, वहाँ राजाई नहीं करनी है, राजाई तो यहाँ करेंगे। सब अच्छी सेवा कर रहे हो लेकिन अभी और भी सेवा में, मनसा सेवा पावरफुल कैसे हो इसका विशेष प्लैन बनाओ। वाचा के साथ-साथ मंसा सेवा भी बहुत दूर तक कार्य कर सकती है। ऐसे अनुभव होगा। जैस आजकल फलाईग सासर देखते हैं वैस आप सबका फरिश्ता स्वरूप चारों ओर देखने में आयेगा और आवाज निकलेगा कि यह कौन हैं जो चक्र लगाते हैं। इस पर भी रिसर्च करेंगे। लेकिन आप सबका साक्षात्कार ऊपर से नीचे आते ही हो जायेगा और समझेंगे यह वही ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं जो फरिश्ते रूप में साक्षात्कार करा रही हैं। अभी यह धूम मचाओ। अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास करो। ऐसा समय आयेगा जो प्लेन भी नहीं मिल सकेगा। ऐसा समय नाजुक होगा तो आप लोग पहले पहुँच जायेंगे। अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास जरूरी है। ऐसा अभ्यास करो जैस प्रैक्टिकल में सबदेखकर मिलकर आये हैं। दूसरे भी अनुभव करें - हाँ यह जमारे पास वहीं फरिश्ता आया था। फिर ढूंढने निकलेंगे फरिश्तों को। अगर इतने सब फरिश्ते चक्र लगायें तो क्या हो जाये? ऑटोमेटिकली सबका अटेन्शन जायेगा। तो अभी साकारी के साथ-साथ आकारी सेवा भी जरूर चाहिए। अच्छा - अभी अमृतबेले शरीर से डिटैच हो कर चक्र लगाओ।
प्रश्न:- सबसे बड़े ते बड़ी सेवा कौन-सी है जो तुम रूहानी सेवाधारियों को जरूर करनी है?
उत्तर:- किसी के दु:ख लेकर सुख देना यह है सबसे बड़ी सेवा। तुम सुख के सागर बाप के बच्चे हो, तो जो भी मिले उनका दु:ख लेते जाना और सुख देते जाना। किसका दु:ख लेकर सुख देना यही सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य का काम है। ऐसे पुण्य करते-करते पुण्यात्मा बन जायेंगे। पुण्यात्मा बन जायेंगे।
15-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"स्वदर्शन चक्रधारी तथा चक्रवर्ता ही विश्व-कल्याणकारी"
आज नालेजफुल बाप अपने मास्टर नालेजफुल बच्चों को देखकर हर्षित हो रहे हैं हरेक बच्चा, बाप द्वारा मिली हुई नालेज में अच्छी तरह से रमण कर रहे हैं। हरेक नम्बरवार यथा योग यथा शक्ति अनुसार नालेजफुल स्टेज का अनुभव कर रहे हैं। नालेजफुल स्टेज अर्थात् सारी नालेज के हरेक पाइंट के अनुभवी स्वरूप बनना। जब बाप-दादा डायरेक्शन देते हैं कि नालेजफुल स्टेज पर स्थित हो जाओ तो एक सेकेण्ड में उस स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो वा हो गये हो? उस स्थिति में स्थित होकर फिर विश्व की आत्माओं तरफ देखो। क्या अनुभव करते हो? सर्व आत्मायें कैसे दिखाई देती हैं, अनुभव कर रहे हो? विश्व का दृश्य क्या दिखाई देता है? आज बापदादा के साथ-साथ नालेजफुल स्टेज पर स्थित हो जाओ। अनुभव करो कि इतनी शक्तिशाली विशाल बुद्धि की स्टेज है। त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, दूरांदेशी, वर्ल्ड आलमाइटी अथार्टी, सर्व गुण और प्राप्ति सम्पन्न खज़ाने के मालिक पन की कितनी ऊंची स्टेज है! उस ऊंची स्टेज पर बैठ नीचे देखो। सब प्रकार की आत्माओं को देखो। पहले-पहले अपनी भक्त आत्माओं को देखो - क्या दिखाई दे रहा है? हरेक ईष्ट देव के अनेक प्रकार की भक्ति करने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के भक्तों की लाइनें हैं। अनगिनत भक्त हैं। कोई सतोप्रधान भक्त हैं अर्थात् भावना पूर्वक भक्ति करने वाले भक्त हैं। कोई रजो, तमोगुणी अर्थात् स्वार्थ अर्थ भक्त। लेकिन हैं वह भी भक्तों की लाइन में। बिचारे ढूंढ़ रहे हैं, भटक रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। क्या उन्हों की पुकार सुन सकते हो? (एक मक्खी बाबा के आगे घूम रही थी।) जैसे यह मक्खी भटक रही है तो जैसे इनको ठिकाना देने का संकल्प आता है वैसे भक्तों के लिए ऐसा तीव्र संकल्प आता है? अच्छा - भक्तों को तो देख लिया।
अब धार्मिक लोगों को देखो। कितने प्रकार के नाम, वेष और कार्य की विधि है, कितने वैरायटी प्रकार के आकर्षण करने वाले साधन अपनाये हुए हैं। यह भी बड़ी अच्छी रौनक की धर्म की बड़ी बाजार लगी हुई है। हरेक के शोकेस में अपने-अपने विधि का शोपीस दिखाई देता है। कोई खूब खा पी रहा है। कोई खाना छोड़ के तपस्या कर रहा है। एक की विधि है खाओ पियो मौज करो, दूसरे की विधि है - सबका त्याग करो। वन्डरफुल दृश्य है ना! कोई लाल तो कोई पीला। भाँति-भाँति की थ्योरी है। उन्हों को देख - हे मास्टर नालेजफुल! क्या संकल्प आता है? धर्म आत्माओं के भी कल्याणकारी मास्टर परमात्मा, क्या सोच चलता है? विश्व के उद्धारमूर्त्त को इन आत्माओं के भी उद्धार का संकल्प उत्पन्न होता है। वा स्व के उद्धार में ही बिजी हो। अपने सेवाकेन्द्रों में ही बिजी हो? सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। हे मास्टर नालेजफुल, अपने भाइयों के तरफ संकल्प की नजर भी कब जाती है? विशाल बुद्धि दूरांदेशी अनुभव करते हो? छोटी-छोटी बातों में तो समय नहीं जा रहा है, ऊंची स्टेज पर स्थित हो विशाल कार्य दिखाई देता है?
अब तीसरे तरफ भी देखो। वर्त्तमान संगम समय पर और साथ-साथ भविष्य में भी आपके राज्य में सहयोग देने वाले विज्ञानी आत्मायें, वह भी कितनी मेहनत कर रहे हैं। क्या-क्या इन्वेन्शन निकाल रहे हैं। अभी भी आप जो सुन रहे हो, वैज्ञानियों के सहयोग (माइक, हैडफोन आदि) कारण सुन रहे हो। रिफाइन इन्वेन्शन तैयार कर आप श्रेष्ठ आत्माओं को गिफ्ट में दे चले जायेंगे। इन आत्माओं का भी कितना त्याग है! कितनी मेहतनत है! कितना दिमाग है! मेहनत खुद करते और प्रालब्ध आपको देते। इन आत्माओं को भी आफरीन और थैंक्स तो देंगे ना! विश्व कल्याणकारी इन आत्माओं के कल्याण की भी विधि संकल्प में आती है? वा यह समझकर छोड़ देते कि यह तो नास्तिक हैं, यह क्या जानें? लेकिन नास्तिक हैं वा आस्तिक हैं, फिर भी बच्चे तो हैं ना! आपके भाई तो हैं! ब्रदरहुड के नाते से भी इन आत्माओं को भी किसी प्रकार से वर्सा तो मिलेगा ना! विश्व-कल्याणकारी के रूप में इस तरफ आपके कल्याण की नजर नहीं तो जायेगी! वा इन आत्माओं के तरफ कल्याण की नजर नहीं डालेंगे? यह भी अधिकारी हैं। हरेक के अधिकार लेने का रूप अपना-अपना है। अच्छा, चलो आगे।
देश और विदेश के राज्य अधिकारियों को देखो। देखा? राज्य हिल रहा है वा अचल है? राजनीति का दृश्य क्या नजर आता है? कल्प पहले के यादगार में एक खेल दिखाया हुआ है, जानते हो कौन-सा खेल? जो साकार बाप का भी प्रिय खेल था। चौपड़ का खेल। अभी-अभी किसके तरफ पऊं बारह, अभी-अभी फिर इतनी हार जो अपने परिवार को पालने की भी हिम्मत नहीं। अभी- अभी बेताज बादशाह और अभी-अभी वोट के भिखारी। ऐसा खेल देख रहे हो। नाम और शान के भूखे हैं। ऐसी आत्माओं को भी कुछ तो अंचली देंगे। इन्हों पर भी रहम दिल आत्मायें बन रहम की दृष्टि, दाता के स्वरूप से कुछ कणा दाना देकर सन्तुष्ट करेंगे ना। हर सेक्शन की सेवा अपनी-अपनी है। वह फिर विस्तार आप करना। आगे चलो।
चारों ओर की आम पब्लिक जिसमें बहुत प्रकार की वैरायटी है। कोई क्या गीत गा रहे हैं कोई क्या गीत गा रहे हैं। चारों ओर ‘‘चाहिए'' ‘‘चाहिए'' के गीत बज रहे हैं। अब ऐसे गीत गाने वालों को कौन-सा गीत सुनाओ जो यह गीत समाप्त हो जाए? सर्व आत्माओं के प्रति महाज्ञानी, महादानी, महाशक्ति स्वरूप, वरदानी मूर्त्त, मास्टर दाता, सेकेण्ड के दृष्टि विधाता, ऐसे कल्याण करने का श्रेष्ठ संकल्प उत्पन्न होता है? फुर्सत है चारों तरफ देखने की? सर्च लाइट बने हो वा लाइट हाउस बने हो? अब चारों ओर चक्र लगाया।
ऐसे विश्व कल्याणकारी त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, मास्टर नालेजफुल, मास्टर विश्व रचयिता, विश्व के चारों आरे परिक्रमा लगाओ। नजर डालो। रोज विश्व का च्रक लगाओ तब स्वदर्शन चक्रधारी कहलायेंगे। साथ-साथ चक्रवर्ता कहलायेंगे। सिर्फ स्वदर्शन चक्रधारी हो वा चक्रवर्ता भी हो? दोनों ही हो ना!
ऐसे मास्टर नालेजफुल, विश्व परिक्रमा देने वाले, चक्रवर्ता स्वराज्य अधिकारी, सदा सर्व आत्माओं के प्रति रहमदिल, कल्याण की भावना रखने वाले, ऐसे बाप समान श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
(आज दीदी-दादी दोनों ही बापदादा के सम्मुख बैठी हैं)
बापदादा विशेष निमित्त आत्माओं को देख क्यों खुश होते हैं? कोई भी बाप अपने बच्चों को तख्त देने के बाद कैसे तख्त पर बैठ राज्य चला रहे हैं। वह इस कलियुगी दुनिया में नहीं देखते हैं लेकिन अलौकिक बाप, पारलौकिक बाप, बच्चे सेवा के तख्तनशीन बन कैसे सेवा का कार्य चला रहे हैं, वह प्रैक्टिकल में देख हर्षित होते हैं। यह संगमयुग की विशेषता है जो बाप स्वयं बच्चों को देख सकते हैं। यही परम्परा सतयुग में भी चलेगी। वहाँ भी बाप बच्चों को राज्य तिलक दे देखेंगे, कलियुग में कोई नहीं देखता। बापदादा तो रोज देखते हैं। हर घड़ी का दृश्य, संकल्प बोल, कर्म, सर्व के सम्पर्क बापदादा के पास इतना स्पष्ट है जो आप लोगों से भी ज्यादा क्लीयर है। हर घड़ी का कार्य देख बाप खुश होते हैं। प्रैक्टिकल रिटर्न देख रहे हैं। बाप ने आप समान बनाया और बच्चों ने रेसपान्ड दिया। इसलिए बच्चों को देख हर्षित होते हैं।
एक दृश्य देख विशेष हर्षाते। रोज की एक वन्डरफुल रास देखते हैं आप लोगों की। जो सारे दिन में बहुत करते हो। करते सभी हैं लेकिन विशेष निमित्त यह हैं। इसलिए निमित्त वालों को भी ज्यादा करनी पड़ती हैं। वह है संस्कार मिलाने की रास। वैसे भी कोई कार्य शुरू करते तो रास मिलाते हैं ना। और रास करने में भी एक दो का मिलन होता है तो सारा दिन यह रास कितना समय करते हो? बापदादा के पास टी.वी. अथवा रेडियो आदि सब हैं, उसमें कैसी सीन लगती होगी? जब संस्कार, संस्कार में टकराते हैं वह भी सीन अच्छी होती है। फिर जैसे फारेन वालों की बाडी इलास्टिक होती है, जहाँ मोड़ने चाहें मोड़ लेते, तो वर्त्तमान समय अपने को मोड़ने में भी इजी होते जा रहे हैं। इसलिए वह भी दृश्य अच्छा लगता है। पहले टाइट होते फिर भी थोड़ा लूज होते फिर लूज होने के बाद मिलन हो जाता। फिर मिलने के बाद खुशी का नाच करते। तो सीन कितनी अच्छी होगी! बापदादा के पास सब आटोमेटिकली चलता है। सब साज, सब साधन एवररेडी हैं। संकल्प किया और इमर्ज हुआ। आजकल की साइन्स भी सब साधनों को बहुत सूक्ष्म कर रही है ना। अति छोटा और अति पावरफुल। सूक्ष्मवतन तो हैं ही पावरफुल वतन। इतनी बिन्दी के अन्दर आप सब देख सकते हो।। विस्तार करो तो बहुत बड़ा देखेंगे, छोटा करो तो बिल्कुल बिन्दी। फिर भी बच्चों की मेहनत और हिम्मत के ऊपर बापदादा भी न्योछावर हो जाते हैं। क्योंकि भले कैसे भी बच्चे हैं लेकिन एक बार जब बाबा कहा तो न्योछावर हो ही गये। फिर भी बच्चे ही हैं। तो जब बच्चे न्योछावर हुए तो बाप भी न्याछावर होता। और बाप सदा बच्चे की भूल में भी भले को ही देखते हैं। भूल को नहीं देखते। भूल से भ्ज्ञला क्या निकला बाप उसको देखते हैं। जैसे आपकी इस साकारी दुनिया में छोटे-छोटे बच्चों को खुश करने के लिए अगर कोई गिरता है तो उनको कहते हैं - क्या मिला? चेन्ज कर लेते हैं। तो यहाँ भी बच्चे अगर चलते-चलते ठोकर खा लेते हैं तो बाप कहते - ठोकर से अनुभवी बन ठाकुर बन गया। बाप ठोकर को नहीं देखते। ठोकर से ठाकुरपन कितना आया, बाप वह देखते हैं। इसलिए बाप को हर बच्चा अति प्रिय है। । चाहे प्यादा है, चाहे घोड़सवार हैं, लेकिन प्यारा न हो तो विजय नहीं पा सकते। इसलिए हरेक आत्मा की आवश्यकता है। बाप तीनों कालों को देखते हैं। सिर्फ वर्त्तमान नहीं देखते। बच्चे सिर्फ वर्त्तमान देखते हैं इसलिए कभी-कभी घबड़ा जाते हैं कि यह क्यों, यह क्या!
टीचर्स के साथ- टीचर्स ने आप समान कितनी टीचर्स तैयार की हैं? बड़े तो बड़े-छोटे समान बाप हैं। जब हैण्डस तैयार हो जायेंगे तो सेवा के बिना रह न सकेंगे। फिर सेवा स्वत: ही बढ़ेगी। बापदादा के एडवांस में जो उच्चारे हुए महावाक्य हैं वह फिर प्रैक्टिकल हो जायेंगे। अभी कहाँ तक पहुँचे हो? जैसे नक्शे में हरेक स्टेट भी बिन्दी माफिक दिखाते हैं। वैसे सेवा में कहाँ तक पहुँचे हो? अभी तो बहुत सेवा पड़ी हुई है। अभी बहुत-बहुत बढ़ाते जाओ। कितने वर्ष पहले के बोल अभी सुन रहे हो। बाप की यही आश है कि एक-एक अनेक सेन्टर सम्भालें। तब कहेंगे नम्बर वन टीचर। जब कलियुगी प्राइम मिनिस्टर एक दिन में कितने चक्र लगाते, तो संगमयुगी टीचर्स को कितने चक्र लगाने चाहिए। तब कहेंगे चक्रवर्ता राजा। तो क्या करना पड़ेगा? प्लैन बनाओ। विदेश की सेवा में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, भारत में बहुत मेहनत लगती है। विदेश की धरनी फिर भी सुनी-सुनाई बातों से साफ है। भारत में यह भी मेहनत करनी पड़ती है। दूसरी बात - विदेशी आत्मायें अभी सब कुछ देखकर थक गई हैं, और भारत वालों ने देखना शुरू किया है। भारत वालों के अन्दर अभी इच्छा उत्पन्न हुई है, और उन्हों की पूरी हो गई है। इसलिए भारत की सेवा से विदेश की सेवा इजी है। लकी हो। जल्दी प्रत्यक्षफल निकाल सकते हो।
पार्टियों से - लौकिक में जब कोई घर से जाता है तो घर वालों को खुशी नहीं होती। लेकिन बापदादा बच्चों को बाहर जाते हुए देख खुश होते हैं, क्यों? क्योंकि समझते हैं कि एक-एक सपूत बच्चा सबूत निकालने के लिए जा रहा है? जाते नहीं हो लेकिन दूसरों को लाने के लिए जाते हो। एक जायेंगे अनेकों को लायेंगे तो खुशी होगी ना। कहाँ भी जायेंगे बापदादा साथ छोड़ नहीं सकते। बाप छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते, बच्चे छोड़ने चाहें तो भी नहीं छोड़ सकते। दोनों बंधन में बँधे हुए हैं। (सतयुग में तो छोड़ देते) सतयुग में भी राज्यभाग देकर खुश हो जाते हैं। फेथ है ना बच्चों में कि यह अच्छा राज्य करेंगे इसलिए निश्चिन्त रहते हैं। लण्डन वालों ने अपने आस-पास वृद्धि तो अच्छी की है। अभी और भी चारों ओर विश्व में फैलाना चाहिए। जो भी स्थान खाली हैं, लण्डन में इतने हैण्डस हैं जो सेवा में सहयोगी बन सकते हैं। सबूत अच्छा दिया है।
अमृतबेले पावरफुल स्टेज रखने का भिन्न-भिन्न अनुभव करते रहो। कभी नालेजफुल स्टेज की अनुभूति करो, कभी प्रेम स्वरूप की अनुभूति करो। ऐसे भिन्न-भिन्न स्टेज के अनुभव में रहने से एक तो अनुभव बढ़ता जायेगा दूसरा याद में जो कभी-कभी आलस्य व थकावट आती है वह भी नहीं आयेगी। क्योंकि रोज नया अनुभव होगा। भिन्न-भिन्न स्टेज का अनुभव करते रहो। कभी कर्मातीत स्टेज का, कभी फरिश्ते रूप का, कब रूह-रूहाना का अनुभव करो। वैरायटी अनुभव करो। कब सेवाधारी बनकर सूक्ष्म रूप से परिक्रमा लगाओ। इसी अनुभव को आगे बढ़ाते रहो।
न्यूजीलैण्ड पार्टी - न्यूजीलैण्ड वालों को सदा क्या याद रहता है? न्यूजीलैण्ड को सदा याद रहे कि विश्व को क्या न्यू न्यूज दें। न्यूजीलैण्ड को विश्व में रोज न्यू न्यूज देनी चाहिए। तो न्यूजीलैण्ड क्या बन जायेगा? सारी विश्व के लिए लाइट हाउस बन जायेगा। सबकी नजर न्यूजीलैण्ड की तरफ जायेगी कि कहाँ से यह न्यूज आई है! अभी भी देखो अखबारों में कोई न्यू न्यूज आती है तो सबका अटेन्शन कहाँ जाता है? यह न्यूज कहाँ से आई? तो न्यूजीलैण्ड को यह कमाल करनी चाहिए। अब कोई नई बात करो। कोई नया प्लैन बनाओ। कमाल तो यह करो जो वहाँ से इतनी टीचर्स निकलें जो सब तरफ फैल जाएं। फिर कहेंगे जैसा नाम है वैसा काम है। सभी बहुत-बहुत सिकीलधे हो जो दूर-दूर से बाप ने चुन लिया। भारत छोड़ करके भी गये लेकिन भारत के बाप ने नहीं छोड़ा। न्यूजीलैण्ड की फुलवाड़ी भी बहुत खिली हुई है।
ट्रिनीडाड पार्टी- बापदादा सदा बच्चों में क्या विशेषता देखते हैं? बापदादा हरेक बच्चे को देख, हरेक बच्चों में उनके 21 जन्मों की प्रालब्ध को देखते हैं? क्या थे, क्या बने हैं और क्या बनने वाले हैं? तीनों काल देखते हुए भविष्य कितना श्रेष्ठ है, उसको देखकर हर्षित होते हैं। आप हरेक भी अपनी प्रालब्ध को समझकर, अनुभव कर हर्षित होते हो? अपनी प्रालब्ध इतनी स्पष्ट है कि आज हम यह हैं, कल यह बनने वाले हैं। यह तो अवश्य है जब बाप का बन गये तो बाप का बनना अर्थात् ब्राह्मण बनना। ब्राह्मण सो देवता भी अवश्य बनेंगे। बाकी देवता में भी क्या पद मिलना है वह है हरेक के अपने पुरूषार्थ पर।
अभी तो सेवा के अनेक साधन हैं। वाचा के साथ-साथ एक स्थान पर बैठे हुए भी विश्व की सेवा कर सकते हो। मंसा सेवा का भी बहुत अच्छा चांस है। सारा दिन कोई न कोई प्रकार से सेवा में बिजी रहो।। मधुबन में रिफ्रेश होना अर्थात् सेवा के लिए निमित्त बन करके सेवाधारी बनाकर सेवा का चांस लेना। सेवा करने के पहले जो निमित्त बने हुए सेवाधारी हैं उन्हों से सम्पर्क रखते हुए आगे बढ़ते चलो तो सफलता मिलती जायेगी। अभी देखेंगे कितने सेन्टर खोलकर आते हो। बुलेटिन में निकलेगा कि कितने नये सेवाकेन्द्र खोले।
सदा यही स्मृति रहे कि हम सब रूहानी सोशल वर्कर, सभी को भटकने से छुड़ाने वाले हैं। अनेक आत्मायें भटक रही हैं तो भटकती हुई आत्माओं को देख तरस आता है ना। जैसे अपनी पास्ट लाइफ को देखकर समझते हो कितना भटके हैं, कितने जन्मों से भटके हैं, अपने अनुभव के आधार से और ही ज्यादा तरस पड़ना चाहिए। तो सदा अपने अन्दर प्लैन बनाते रहो कि इन आत्माओं को भटकने से कैसे छुड़ायें। रोज नई-नई पाइंट सोचो। कौन-सी ऐसी पोइंट दें जो जल्दी से परिवर्त्तन हो जाएं। अब भक्तों को भक्ति का फल दिलाओ। सदा बाप से मिलाने के सहज रास्ते सोचते रहो। यही मनन चलता रहे।
अमेरिका - सदा अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते रहते हो? बापदादा के सिकीलधे बच्चे हो। तो सिकीलधे बच्चों को माँ बाप सदा ऐसे स्थान पर बिठाते हैं जहाँ कोई भी तकलीफ न हो। बाप-दादा ने आप सिकीलधे बच्चों को कौन सा स्थान बैठने के लिए दिया है? दिलतख्त। यह दिलतख्त कितना बड़ा है? इस तख्त पर बैठकर जो चाहो वह कर सकते हो, तो सदा तख्तनशीन रहो। नीचे नहीं आओ। जैसे फारेन में जहाँ-तहाँ गलीचे लगा देते हैं कि मिट्टी न लगे। बापदादा भी कहते हैं - देहभान की मिट्टी में मैले न हो जाए इसलिए सदा दिल तख्तनशीन रहो। जो अभी तख्तनशीन होंगे वही भविष्य में भी तख्तनशीन बनेंगे। तो चेक करो कि सदा तख्तनशीन रहते हैं या उतरते चढ़ते हैं? तख्त पर बैठने के अधिकारी भी कौन बनते? जो सदा डबल लाइट रूप में रहते हैं। अगर जरा भी भारीपन आया तो तख्त से नीचे आ जायेंगें। तख्त से नीचे आये तो माया से सामना करना पड़ेगा। तख्तनशीन हैं तो माया नमस्कार करेगी। बापदादा द्वारा बुद्धि के लिए जो रोज शक्तिशाली भोजन मिलता है, उसे हजम करते रहो तो कभी भी कमजोरी आ नहीं सकती। माया का वार हो नहीं सकता।
17-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"इस सहज मार्ग में मुश्किल का कारण और निवारण"
आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। डबल विदेशी डबल भाग्यशाली हैं, क्यों? एक तो बापदादा को जाना और वर्से के अधिकारी बने। दूसरा लास्ट में आते भी फास्ट जाए फर्स्ट जाने के बहुत ही उम्मीदवार हैं। लास्ट में आने वाले किसी हिसाब से भाग्यशाली हैं जो बने बनाये पर आये हैं। पहले पहले वाले बच्चों ने मनन किया, मेहनत की, मक्खन निकाला और आप सब मक्खन खाने के समय पर आये हो। आप लोगों के लिए बहुत-बहुत सहज है क्योंकि पहले वाले बच्चे रास्ता तय करके अनु- भवी बन गये हैं और आप सभी उन अनुभवियों के सहयोग से सहज ही मंजिल पर पहुँच गये हो। तो डबल भाग्यशाली हुए ना?
डबल भाग्य तो ड्रामा अनुसार मिला ही है, अभी और आगे क्या करना है?
जैसे अनुभवी महारथी निमित्त आत्माओं ने आप सबकी अनुभवों द्वारा सेवा की है। उसे आप सबको भी अपने अनुभवों के आधार से अनेकों को अनुभवी बनाना है। अनुभव सुनाना सबसे सहज है। जो भी ज्ञान की पाइंट्स है, वह पाइंटस नहीं हैं लेकिन हर पाइंट का अनुभव है। तो हर पाइंट का अनुभव सुनाना कितना सहज है! इतना सहज अनुभव करते हो वा मुश्किल लगता है? एक तो अनुभव के आधार के कारण सहज है, दूसरी बात - आदि से अन्त तक का ज्ञान एक कहानी के रूप में बापदादा सुनाते हैं। तो कहानी सुनना और सुनाना बहुत सहज होता है। तीसरी बात - बाप अभी जो सुना रहे हैं वह आपस सर्व आत्माओं ने पहली बार नहीं सुना है लेकिन अनेक बार सुना है और अब फिर से रिपीट कर रहे हो। तो कोई भी बात को रिपीट करने में, सुनने में या सुनाने में अति सहज होता है। नई बात मुश्किल लगती है लेकिन कई बार की सुनी हुई बातें रिपीट करना तो अति सहज होता है। याद को देखो - कितने प्यारे और समीप सम्बन्ध की याद है। नजदीक के सम्बन्ध को याद करना मुश्किल नहीं होता, न चाहते भी उनकी याद आती ही रहती है। और प्राप्ति को देखो, प्राप्ति के आधार पर भी याद करना अति सहज है। ज्ञान भी अति सहज और याद भी अति सहज। और अब तो ज्ञान और योग को आप अति सिकीलधों के लिए ज्ञान का कोर्स सात दिन में ही समाप्त हो जाता है और योग शिविर 3 दिन में ही पूरा हो जाता। तो सागर को गागर में समा दिया। सागर को उठाना मुश्किल है, गागर उठाना मुश्किल नहीं। आपको तो सागर को गागर में समा करके सिर्फ गागर दी है, बस। दो शब्दों में ज्ञान और योग आ जाता है - ‘‘आप और बाप''। तो याद भी आगया और ज्ञान भी आ गया, तो दो शब्दों को धारण करना कितना सहज है। इसीलिए टाइटिल ही है - सहज राजयोगी। जैसा नाम है वैसे ही अनुभव करते हो? और कुछ इनसे सहज हो सकता है क्या? वैसे मुश्किल क्यों होता है उसका कारण अपनी ही कमजोरी है। कोई न कोई पुराना संस्कार सहज रास्ते के बीच में बंधन बन रूकावट डालता है और शक्ति न होने के कारण पत्थर को तोड़ने लग जाते हैं और तोड़ते-तोड़ते दिलशिकस्त हो जाते हैं। लेकिन सहज तरीका क्या है? पत्थर को तोड़ना नहीं है लेकिन जम्प लगाके पार होना है। यह क्यों हुआ? यह होना नहीं चाहिए। आखिर यह कहाँ तक होगा। यह तो बड़ा मुश्किल है। ऐसा क्यों? यह व्यर्थ संकल्प पत्थर तोड़ना है। लेकिन एक ही शब्द ‘‘ड्रामा'' याद आ जाता तो एक ड्रामा शब्द के आधार से हाई जम्प दे देते। उसमें जो कुछ दिन वा मास लग जाते हैं, उसमें एक सेकेण्ड लगता। तो अपनी कमजोरी हुई या नालेज की?
दूसरी कमजोरी यह होती जो समय पर वह पाइंट टच नहीं होती है वैसे सब पाइंटस बुद्धि वा डायरियों में भी बहुत होती हैं, लेकिन समय रूपी डायरी में उस समय वह पाइंट दिखाई नहीं देती। इसके लिए सदा ज्ञान की मुख्य पाइंटस को रोज रिवाइज करते रहो। अनुभव में लाते रहो, चेक करते रहो और अपने को चेक करते चेन्ज करते रहो। फिर कभी भी टाइम वेस्ट नहीं होगा। और थोड़े ही समय में अनुभव बहुत कर सकेंगे। सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान अनुभव करेंगे। समझा। अभी कभी भी व्यर्थ संकल्पों के हेमर से समस्या के पत्थर को तोड़ने में नहीं लगना। अब यह मजदूरी करना छोड़ो, बादशाह बनो। बेगमपुर के बादशाह हो। तो न समस्या काशब्द होगा न बार-बार समाधान करने में समय जायेगा। यही संस्कार पुराने, आपके दास बन जायेंगे, वार नहीं करेंगे। तो बादशाह बनो। तख्तनशीन बनो। ताजधारी बनो। तिलकधारी बनो।
जर्मन पार्टी से - सहज ज्ञान और योग के अनुभवी मूर्त्त हो? बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की श्रेष्ठ तकदीर को देखते हैं। जैसे बाप हरेक के मस्तक पर चमका हुआ सितारा देखते हैं। वैसे आप भी अपने मस्तक पर सदा चमकता हुआ सितारा देखते हो? सितारा चमकता है? माया चमकते हुए सितारे को कभी ढक तो नहीं देती? माया आती है? मायाजीत जगतजीत कब बनेंगे? आज और अब यह दृढ़ संकल्प करो कि मास्टर सर्वशक्तिवान बन, मायाजीत जगतजीत बन करके ही रहेंगे। हिम्मत है ना? अगर हिम्मत रखेंगे तो बापदादा भी मदद अवश्य ही करेंगे। एक कदम आप उठाओ तो हजार कदम बाप मदद देंगे। एक कदम उठाना तो सहज है ना। तो आज से सब सहजयोगी का टाइटिल मधुबन वरदान भूमि से वरदान ले जाना। यह ग्रुप जर्मन ग्रुप नहीं लेकिन सहज योगी ग्रुप है। कोई भी बात सामने आये तो सिर्फ बाप के ऊपर छोड़ दो। जिगर से कहो - ‘‘बाबा''। तो बात खत्म हो जायेगी। यह ‘‘बाबा'' शब्द दिल से कहना ही जादू है। इतना श्रेष्ठ जादू का शब्द मिला हुआ है। सिर्फ जिस समय माया आती है उस समय भुला देती है। माया पहला काम यही करती है कि बाप को भुला देती। तो यह अटेन्शन रखना पड़े। जब यह अटेन्शन रखेंगे तो सदा कमल के फूल के समान अपने को अनुभव करेंगे। चाहे माया के समस्याओं की कीचड़ कितनी भी हो लेकिन आप याद के आधार पर कीचड़ से सदा परे रहेंगे। आपका ही चित्र है ना - कमल पुष्प! इसीलिए देखो जर्मन वालों ने झाँकी में कमल पुष्प बनाया ना। सिर्फ ब्रह्मा बाप कमल पर बैठे हैं या आप भी बैठे हो? कमल पुष्प की स्टेज आपका आसन है। आसन को कभी नहीं भुलाना। तो सदा चियरफुल रहेंगे। कभी भी किसी भी बात में हलचल में नहीं आयेंगे। सदा एक ही मूड़ होगी - ‘चियरफुल'। सब देख करके आपकी महिमा करेंगे कि यह सदा सहजयोगी, सदा चियरफुल हैं। समझा? कमल पुष्प के आसन पर सदा रहो। सदा चियरफुल रहो। सदा बाप शब्द के जादू को कायम रखो। यह तीन बातें याद करना। जर्मन वालों की विशेषता है जो मधुबन में बहुत प्यार से भागते हुए आकर्षित होते हुए आये हैं। मधुबन से प्यार अर्थात् बाप से प्यार। बापदादा का भी इतना ही बच्चों से प्यार है। बाप का प्यार ज्यादा है या बच्चों का? (बाप का) आपका भी बाप से पदमगुणा ज्यादा है। बाप तो सदा बच्चों को आगे रखेंगे ना। बच्चे बाप के भी मालिक हैं। देखो, आप विश्व के मालिक बनेंगे, बाप मालिक बनायेगा, बनेगा नहीं। तो आप आगे हुए ना। इतना प्यार बाप का है बच्चों से। एक जन्म की तकदीर नहीं है, 21 जन्मों की तकदीर और अविनाशी तकदीर है। यह गैरन्टी है ना?
जर्मन ग्रुप को कमाल दिखानी है, जैसे अभी मेहनत करके गीता के भगवान के चित्र बनाये, ऐसे कोई नामीग्रामी व्यक्ति निकालो तो आवाज निकाले कि हाँ गीता का भगवान शिव है। बापदादा बच्चों की मेहनत को देख बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। टापिक बहुत अच्छी चुनी है। इसी टापिक को सिद्ध किया तो सारे विश्व में जयजयकार हो जायेगी। जैसे अभी मेहनत की है वैसे और भी मेहनत करके आवाज बुलन्द करना। विचार सागर मंथन अच्छा किया है, चित्र बहुत अच्छे बनाये।
प्रश्न:- बापदादा हर स्थान की रिजल्ट किस आधार पर देखते हैं?
उत्तर:- उस स्थान का वायुमण्डल वा परिस्थिति कैसी है, उसी आधार पर बापदादा रिजल्ट देखते हैं। अगर सख्त धरनी से कलराठी जमीन से दो फूल भी निकल आये तो वह 100 से भी ज्यादा है। बाबा ‘‘दो को नहीं देखते लेकिन दो भी 100 के बराबर देखते हैं।'' कितना भी छोटा सेन्टर हो, छोटा नहीं समझना। कहाँ क्वालिटी है तो कहाँ क्वान्टिटी है। जहाँ भी बच्चों का जाना होता है वहाँ सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है।
प्रश्न:- किस डबल स्वरूप से सेवा करो तो वृद्धि होती रहेगी?
उत्तर:- रूप और बसन्त - दोनों स्वरूप से सेवा करो, दृष्टि से भी सेवा और मुख से भी सेवा। एक ही समय दोनों रूप की सेवा डबल रिजल्ट निकालेगी।''
18-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"मुश्किल को सहज करने की युक्ति ‘‘सदा बाप को देखो"
आज विशेष लण्डन निवासियों से मिलने आये हैं। मिलने का अर्थ है - बाप समान बनना। जब से बाप से मिले तो बापदादा ने क्या इशारा दिया? बच्चे, आप सब श्रेष्ठ आत्मायें बाप समान सर्व गुणों में, सर्व प्राप्तियों में मास्टर हो। बाप से भी श्रेष्ठ बाप के सिर के ताज हो। जो पहले-पहले इशारा मिला उसी इशारे प्रमाण बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर सर्वगुण सम्पन्न बने हो? जब अभी बाप समान बनो तब ही भविष्य में विश्व राज्य-अधिकारी देवता बन सकते हो। बाप समान कहाँ तक बने हैं यह चेकिंग करते रहते हो? एक-एक गुण, एक-एक शक्ति को सामने रखते हुए अपने में चेक करो कि कितने परसेन्ट में गुण व शक्ति स्वरूप बने हैं। यह फालो करना तो सहज है ना। बापदादा सामने एग्जाम्पल हैं। निराकारी रूप में और साकार रूप में दोनों ही रूप में बाप को देख फालो करते चलो। वैसे भी कहावत है जैसा बाप वैसे बच्चे और सन शोज फादर भी गाया हुआ है। बाप और बच्चे का सम्बन्ध ही है फालो फादर करने का। मुश्किल है नहीं, लेकिन बना लेते हो। क्योंकि अगर मुश्किल हो तो सदा ही मुश्किल लगना चाहिए। कोई को सहज लगता कोई को मुश्किल लगता। यह क्यों? अबौर कभी उसी को सहज लगता - कभी मुश्किल लगता। यह क्यों? इससे क्या सिद्ध होता है? चलने वाले की कोई कमजोरी है जो मुश्किल लगता है।
बाप की महिमा है जो अभी तक भक्त भी गाते हैं, साथ-साथ आप महान आत्माओं, पूज्य आत्माओं की भी वही महिमा है। याद है वह कौन-सी महिमा है? कोई भी मुश्किल कार्य आत्माओं के ऊपर आते हैं तो किसके पास जाते हैं? या बाप के पास या आप देव आत्माओं के पास। जो औरों की भी मुश्किल को सहज करने वाले हैं वह स्वयं मुश्किल अनुभव कैसे करेंगे? मुश्किल अनुभव करने के समय विशेष कौन-सी बात बुद्धि में आती है जो मुश्किल बना देती है? बहुत अनुभवी हो ना। ‘‘बाप को देखने के बजाए बातों को देखने लग जाते हो। बातों में जाने से फिर कई क्वेश्चन उत्पन्न हो जाते हैं। अगर बाप को देखो, जैसे बाप बिन्दु है वैसे ही हर बात को बिन्दु लगा दो। बातें हैं वृक्ष, और बाप है बीज। आप विस्तार वाले वृक्ष को हाथ उठाने चाहते हो इस लिए न बाप हाथ में आता, न वृक्ष। बाप को भी किनारे कर देते हो और वृक्ष के विस्तार को भी अपनी बुद्धि में समा नहीं सकते हो। तो जो चाहना रखते हो वह न पूरी होने के कारण दिलशिकस्त हो जाते हो। दिलशिकस्त की मुख्य निशानी होगी - बार-बार किसी न किसी परिस्थिति की, चाहे व्यक्ति की शिकायतें ही करते रहेंगे। और जितनी शिकायतें करते उतना ही खुद आपेही फँसते जाते। क्योंकि यह विस्तार एक जाल बन जाता है। जितना ही फिर उससे निकलने की कोशिश करते हैं उतना फँसते जाते। यह होगी बातें या होगा बाप। बातें सुनना और बातें सुनाना यह तो आधा कल्प किया। भक्ति मार्ग का भागवत या रामायण क्या है? कितनी लम्बी बातें हैं। जब बातें थी तो बाप नहीं था। अब भी जब बातों में जाते हो तो बाप को खो लेते हो। फिर कौन-सा खेल करते हो? (ऑख मिचौनी का)' तीसरे नेत्र को पटटी बाँधकर और ढूंढते हो। बाप बुलाता रहता और आप ढूंढते रहते। आखिर क्या होता? बाप स्वयं ही आकर स्वयं का साथ दिलाते। ऐसा खेल क्यों करते हो? क्योंकि बातों के विस्तार में रंग बिरंगी बातें होती हैं, वह अपनी तरफ आकर्षित कर लेती हैं। उससे किनारा हो जाए तो सदा सहज योगी हो जाएं। लण्डन निवासी तो मुश्किल का अनुभव नहीं करते हैं ना?
अपने आपको बिजी रखने का तरीका सीखो। न समय होगा न विस्तार में जायेंगे। जैसे जब कोई विशाल प्रोग्राम रखते हो और बहुत बिजी होते हो उस समय कुछ भी होता रहे आप उससे किनारे होते हो। सेवा की ही धुन में लगे हुए होते हो। खाने वा सोने का भी ख्याल नहीं रहता। ऐसे विश्व-कल्याणकारी आत्मायें सदा विशाल कार्य का प्लान इमर्ज रखो। इतना विशाल कार्य अपनी बुद्धि को दो जिससे फुर्सत ही नहीं हो। अपनी बुद्धि को बिजी रखने की डेली डायरी बनाओ। इससे सदा सहजयोग का स्वत: अनुभव करेंगे।
वर्णन करते हो ‘सहज राजयोग', यह तो नहीं कहते हो - कभी सहज योग कभी मुश्किल योग। तो जैसा नाम है उसी स्वरूप में सब बच्चों को बापदादा देखने चाहते हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान बनने के बाद भी मुश्किल अनुभव करेंगे तो सहज कब होगा? अब नहीं तो कब नहीं। इसके लिए आपस में प्रोग्राम बनाओ।
लण्डन पार्टी - एक-एक रतन अति प्रिय और अमूल्य है। क्योंकि हरेक रतन की अपनी-अपनी विशेषता है। सर्व की विशेषताओं द्वारा ही विश्व का कार्य सम्पन्न होना है। जैसे कोई स्थूल चीज़ भी बनाते हैं, उसमें अगर सब चीजें न डालो, साधारण मीठा या नमक भी न डालो तो चाहे कितनी भी बढ़िया चीज़ बनाओ लेकिन वह खाने योग्य नहीं बन सकती। तो ऐसे ही विश्व के इतने श्रेष्ठ कार्य के लिए हरेक रतन की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। चित्र में भी सबकी अंगुली दिखाते हैं ना। सिर्फ महारथियों की नहीं, सबकी अंगुली से ही विश्व परिवर्त्तन का कार्य सम्पन्न होना है। सब अपनी-अपनी रीति से महारथी हैं। बापदादा भी अकेले कुछ नहीं कर सकते। बापदादा बच्चों को आगे रखते हैं, निमित्त आत्मायें भी सबको आगे रखती हैं। तो सभी बहुत-बहुत आवश्यक और श्रेष्ठ रतन हो। बापदादा के स्वीकार किये हुए रतन हो। यादगार में तो दिखाते हैं - भगवान की पत्थर पर भी नजर पड़ जाए तो पत्थर भी पारस बन जाता है, आप तो उनके स्वीकार किये हुए श्रेष्ठ रतन हो। अपने कार्य की श्रेष्ठता की मूल्य को जानो। शक्तियों का अपना गायन है और पाण्डवों का अपना। तो आप सब महान आत्मायें हो। महान आत्मा की निशानी क्या है? जो जितना महान होगा उतना निमार्कण होगा। महान आत्मायें सदा अपने को ओबीडियन्ट सर्वेन्ट ही अनुभवी करती हैं। ऐसा ही ग्रुप है ना। शक्ति भवन की शक्तियों को तो अपना शक्ति स्वरूप स्वत: याद रहता होगा? स्थान से स्थिति भी याद आती है। शक्ति की विशेषता है मायाजीत। शक्ति के आगे किसी भी प्रकार की माया आ नहीं सकती, क्योंकि शक्ति माया के ऊपर सवारी करती है। शक्तियों के हाथ में सदा त्रिशूल दिखाते हैं। यह किसकी निशानी है? त्रिशूल स्टेज की निशानी है। संगमयुग के जो टाइटिल हैं - मास्टर त्रिमूर्ति, त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी, त्रिलोकीनाथ, यह सब स्थिति की निशानी इस त्रिशूल में आ जाती हैं। तो यह स्टेज स्मृति में रहती हैं? ‘निरन्तर' को अन्डरलाइन करो। बहुत अच्छा भाग्य बनाया है जो विश्व के वायुमण्डल से किनारे किया। बापदादा भी बच्चों के भाग्य को देख खुश होते हैं।
2. सदा अपने को पूज्य आत्मायें समझकर चलते हो? पूज्य आत्मायें अर्थात् महान आत्मायें। महान बनने की विशेषता है - सदा अपने को मेजमान समझ चलना। जो मेजमान समझकर चलता है वही महान पूज्य बन जाता है। क्यों? क्योंकि त्याग का भाग्य बन जाता है। मेजमान समझने से अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते। मेजमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तु लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा, इसलिए न्यारा भी और सर्व वस्तुओं को कार्य में लाने वाला प्यारा भी। ऐसे मेजमान समझने वाले प्रवृत्ति में रहते, सेवा के साधनों को अपनाते, सदा न्यारे और बाप के प्यारे रहते हैं। ऐसे महान हो ना? मेजमान समझते हो ना? आज यहाँ हैं कल चलेंगे अपने घर। फिर आयेंगे अपने राज्य में। यही धुन लगी है ना? इसलिए सदा देह से उपराम। जब देह से उपराम हो जाते हैं तो देह के सम्बन्घ और वैभवों से उपराम हुए ही पड़े हैं। यह उपराम अवस्था कितनी प्यारी है! अभी-अभी कार्य में आये, अभी-अभी उपराम। ऐसा अनुभव हैं ना? आपके जड़ चित्र पूज्य रूप में मन्दिरों में रखते हैं, लेकिन भक्ति में भी संगम की उपराम स्टेज की परम्परा चली आती है। मन्दिर लक्ष्मी नारायण का, लेकिन लक्ष्मी-नारायण अपना समझेंगे? उपराम हैं ना? जड़ चित्र जो पूज्य बनते हैं उन्हों में भी अपनापन नहीं तो चैतन्य पूज्य आत्मायें उनमें भी सदा मेजमान वृत्ति। जितनी मेजमान की वृत्ति रहेगी उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहेगी। लण्डन निवासी नाम मात्र कहा जाता है, लेकिन हैं सब ‘मेजमान'। आज यहाँ हैं कल वहाँ होंगे। आज और कल - दो शब्दों में सारा चक्कर स्मृति में आ जाता। ऐसी महान आत्मायें पूज्य हो ना? लण्डन निवासि यों का निश्चय और उमंग बहुत अच्छा है। कमजोर आत्मायें नहीं हैं। विघ्न आया और पार किया। बकरियाँ नहीं हैं, सब शेरनियाँ हैं। बकरीपन अर्थात् मैं-मैं पन खत्म। शक्ति सेना का झण्डा अच्छा बुलन्द है। एक-एक शक्ति सर्वशक्तिवान बाप को प्रत्यक्ष करने वाली है। जब शक्ति सेना मैदान में आ जायेगी तब जय-जयकार होगी। पहले जय-जयकार का नारा कहाँ बजेगा? लण्डन में या अमेरिका में? बापदादा सदा स्नेही बच्चों को अमृतबेले मुबारक देते हैं। ‘‘ वाह मेरे बच्चे, वाह''! यह गीत गाते हैं। गीत सुनने आता है?
टीचर्स के साथ - यह लण्डन की सेवा श्रृंगार है। जैसे लण्डन के म्यूजियम में रानी का श्रृंगार रखा है ना। वैसे बापदादा के भी म्यूजियम में बापदादा की सेवा के श्रृंगार हो। सदा महान और सदा निमार्कन। यही विशेषता स्वयं को भी महान बनाती है और सेवा को भी महान बनाती हैं। संस्कार मिलाने में तो होशियार हो ना? जैसे स्थूल में अगर किसको हाथ पाँव चलाने नहीं आते तो दूसरे साथी क्या करते? हाथ में हाथ में मिला कर साथ दे करके उनको सिखा देते हैं। तो आप भी क्या करती हो? आगे बढ़ सहयोगी बन सह- योग का हाथ दे, संस्कार मिलाने की डान्स सिखाती हो ना? इसमें तो नम्बरवन हो ना? इसी विशेषता के आधार पर, जो सबसे ज्यादा संस्कार मिलाने की डान्स करता, बाप का सहयोगी बनता वही फर्स्ट जन्म में श्रीकृष्ण के साथ हाथ मिलाकर डान्स करेगा। डान्स करनी है ना? संस्कारों की रास मिलाने का सबसे सहज तरीका है - स्वयं नम्रचित बन जाओ और दूसरे को श्रेष्ठ सीट दे दो। उनको सीट पर बिठायेंगे तो वह आपको स्वत: ही उतरकर बिठा देगा। अगर आप बैठने की कोशिश करेंगे तो वह बैठने नहीं देगा। लेकिन आप उसे बिठायेंगे तो वह आपेही उतरकर आपको बिठायेगा। तो बिठाना ही बैठना हो जायेगा। ‘‘पहले आप'' का पाठ पक्का हो। फिर संस्कार सहज ही मिल जायेंगे। सीट भी मिल जायेगी, रास भी हो जायेगी। और भविष्य में भी रास करने का चान्स मिल जायेगा तो कितनी सहज बात हैं।
लण्डन का सच्चा सेवाधारी ग्रुप है, 'सेवाधारी' शब्द ही बहुत मीठा है। टीचर शब्द अच्छा लगता है या सेवाधारी? बाप भी अपने को ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट कहते हैं, सर्वेन्ट कहने से ताजधारी स्वत: बन जायेंगे। तो चतुर बनने का यह तरीका है। मेहनत भी नहीं, प्राप्ति भी ज्यादा। तो चतुर सुजान बाप के चतुर सुजान बच्चे बनो।
फ़्रांन्स - याद की यात्रा में सदा चलते हुए हर कदम में पदमों की कमाई जमा कर रहे हो? हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले कितने मालामाल होंगे! ऐसी सम्पन्न आत्मा अपने को अनुभव करते हो? अखुट खज़ाना मिल गया है? खज़ाने की चाबी मिल गई है ना? चाबी लगाना आती है? कभी चाबी लगाते लगाते अटक तो नहीं जाती है। बहुत सहज चाबी है। ‘‘मैं अधिकारी हूँ।' अधिकारी पन की स्मृति ही खज़ानों की चाबी है। यह चाबी लगाने आती है? इस चाबी से जो खज़ाना जितना भी चाहिए ले सकते हो। सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, प्रेम चाहिए, सब कुछ मिल सकता है।
प्रश्न:- कौन सा वेट कम करो तो आत्मा शक्तिशाली बन जायेगी?
उत्तर:- आत्मा पर वेस्ट का ही वेट है। वेस्ट संकल्प, वेस्ट वाणी, वेस्ट कर्म - इनसे ही आत्मा भारी हो जाती है। जब इस वेट को खत्म करो। इस वेट को समाप्त करने के लिए सदा सेवा में बिजी रहो। मनन शक्ति को बढ़ाओ। मनन शक्ति से आत्मा शक्ति- शाली बन जायेगी। जैसे भोजन हजम करने से खून बनता है, फिर वही शक्ति का काम करता, ऐसे मनन करने से आत्मा की शक्ति बढ़ती है।
प्रश्न:- कौन सा मंत्र भक्ति में बहुत ही प्रसिद्ध है, जिसकी स्मृति में रहो तो खुशी के झूले में झूलते रहेंगे?
उत्तर:- भक्ति में ‘‘हम सो, सो हम'' का मंत्र बहुत प्रसिद्ध है, अभी आप बच्चे ‘हम सो' का राज प्रैक्टिकल में अनुभव कर रहे हो। यह मंत्र जमारे लिए है, हम ब्राह्मण सो देवता बनेंगे। हम ही सो देवता थे, सो देवता हम ब्राह्मण बने हैं। यह अभी पता चला। अब देवताओं के चित्र देखकर बुद्धि में आता - यह जमारे ही चित्र हैं। यही वन्डर हैं! इसी स्मृति में रहो तो खुशी के झूले में झूलते रहेंगे देवताओं के चित्र देखकर बुद्धि में आता - यह जमारे ही चित्र हैं। यही वन्डर हैं! इसी स्मृति में रहो तो खुशी के झूले में झूलते रहेंगे ।
19-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"विश्व के राज्य-अधिकारी कैसे बने?"
आज बापदादा अपने राइट हैन्डस को देख रहे हैं। बाप की कितनी भुजायें अथक सेवा में तत्पर हैं। एक-एक भुजा में अपनी-अपनी विशेषता है। राइट हैन्ड अर्थात् जो सदा बापदादा के डायरेक्शन प्रमाण हर संकल्प वा हर कदम उठावें। बाप की भुजायें बने हो इसलिए बापदादा भी अपनी भुजाओं को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी राइट हैण्डस के हाथ में क्या है? राज्य भाग्य का गोला हाथ में हैं। चित्र भी देखा है ना कृष्ण के हाथ में गोला दिखाया है! तो एक कृष्ण अकेला थोड़े ही राज्य करेगा। आप सब भी साथ होंगे ना। तो आपका भी चित्र है। क्योंकि अधिकारी तो अब बनते हो। अभी के अधिकारीपन के संस्कार 21 जन्म तक चलेंगे। अभी भी राजे और भविष्य में भी राजे बनेंगे। अभी के राज्य-अधिकारी ही विश्व के राज्य-अधिकारी बनते हैं। तो अभी के राज्य-अधिकारी हो? राज्य-कारोबार सबकी ठीक चल रही है? आप सबके राज्य का क्या हाल चाल है? सभी राज्य कारोबारी ला एण्ड आर्डर में हैं? यहाँ ही अगर कभी-कभी के रूलर्स होंगे तो वहाँ क्या करेंगे? वहाँ भी एक-दो जन्म के राजे बन जायेंगे। बनना 21 जन्मों का है तो यहाँ फिर कभी-कभी का क्यों? यहाँ के संस्कार ही वहाँ चलेंगे। तो इसलिए सदा के राजे बनना पड़े। आस्ट्रेलिया निवासी तो रेस कर रहे हैं ना सभी से। कितने नम्बर तक पहुँचे हो? (दिलतख्त तक) उसमें भी नम्बर कौन-सा है? फिर भी पुरूषार्थी अच्छे हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम के संस्कार भरने का लक्ष्य रखने में अच्छे हैं। सच्ची सीतायें बन लकीर के अन्दर रहने के लक्ष्य में अच्छे हिम्मत- वान हैं। रावण की अट्रैक्शन में तो नहीं आते हो ना? रावण के बहुरूपों को अच्छी तरह से जान गये हो? रावण के भी नालेजफुल बन गये हो? नालेज कम होने के कारण ही वह (रावण) अपना बना सकता है। नालेजफुल के आगे वह नजदीक भी नहीं आ सकते। चाहे सोने का, चाहे हीरे का रूप धारण करे। आस्ट्रेलिया में रावण आता है? वार करने नहीं, सिखाने आता है ना। रावण को भी आप सब आधे कल्प के मित्र बड़े प्यारे लगते हो। इसलिए छोड़ने नहीं चाहता। फिर क्या करेंगे? उसकी मित्रता नहीं निभा- येंगे? (नहीं)
अभी रावण 10 भुजाओं से आपकी 10 प्रकार की सेवा करेगा। इतनी भुजायें सेवा में तो लगायेगा ना। 10 भुजाओं के जोर से आपके लिए बहुत जल्दी-से-जल्दी और बहुत सुन्दर-से-सुन्दर राज्य तैयार करेगा। क्योंकि रावण भी समझ गया है कि अभी हम राज्य नहीं कर सकेंगे लेकिन राज्य तैयार करके देना पड़ेगा। कोई भी कार्य करना होता तो कहने में आता है 10 नाखून का जोर दे यह कार्य करना है। तो यह प्रकृति के 5 तत्व और साथ-साथ जो 5विकार हैं वह ट्रान्सफर होकर 5 विशेष दिव्य गुणों के रूप में आपकी सेवा के लिए आयेंगे। फिर तो रावण को धन्यवाद देंगे ना। रावण की बहुत सेना आपके लिए बहुत मेहनत कर रही है। कितने लगे हुए हैं। देखते हो? विदेश में तो विज्ञान द्वारा कितनी तैयारियाँ कर रहे हैं। यह सब किसके लिए हो रहा है? बोलो - जमारे लिए।
आस्ट्रेलिया वालों ने धैर्यता का गुण बहुत अच्छा दिखाया है। इसलिए बापदादा आज विशेष पिकनिक आस्ट्रेलिया वालों से करेंगे। हरेक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। जो औरों को चांस दिया, ऐसे चान्सलर्स बनने के लिए बापदादा सभी को विशेष एक गिफ्ट दे रहे हैं। । कौन-सी? विशेष एक श्रृंगार दे रहे हैं। वह है - ‘‘‘सदा शुभ चिन्तक की चिन्दी''। ताज के साथ-साथ यह चन्दी जरूर होती है। जैसे आत्मा बिन्दी चमक रही है ऐसे मस्तक के बीच यह चिन्दी की मणी भी चमक रही है। यह सारा ही शुभचिन्तक ग्रुप है ना। परचिन्तन को तलाक देने वाले, सदा शुभ चिन्तक। जब भी कोई ऐसी बात सामने आये तो शुभ-चिन्तक की मणी की गिफ्ट सदा स्मृति में रखो। तो आस्ट्रेलिया में सदा पावरफुल वायब्रेशन, पावरफुल सर्विस और सदा फरिश्तों की सभा दिखाई देगी। शक्तियों और पाण्डवों का संगठन भी अच्छा है, सेवा का उमंग भी अच्छा है। सेवा तो सब करते हैं लेकिन सफलता स्वरूप सेवा वह है जिस सेवा में किसी भी संस्कार वा संकल्प का विघ्न न हो। यही बातें सर्विस की वृद्धि में समय लगा देती हैं। इसलिए सदा निर्विघ्न सेवाधारी बनो। आस्ट्रेलिया निवासियों ने कितने सेवा केन्द्र खोले हैं? सेवा का उमंग अच्छा रहे फिर भले ही कहीं भी जाओ। अपनीसेवा समझ कार्य करो। ऐसा नहीं यह जर्मनी की है, यह आस्ट्रेलिया की है नहीं। बाबा की सेवा वा विश्व की सेवा जमारी है। इसको कहा जाता है - बेहद की वृत्ति। बेहद वृत्ति वाले हो ना। जहाँ जाओ अपना ही है। विश्व के कल्याणकारी हो, न कि सिर्फ आस्ट्रेलिया के वा आस-पास के। यह तो निमित्त सेवा की वृद्धि कारण नियम बनाये हैं। अच्छी तरह से सेवा को सम्भाल सकें इसलिए निमित्त बनाया है। अभी आगे क्या करना है? सेवाकेन्द्र भी खोले, गीता पाठशाला भी खोली। अभी क्या करेंगे? (सूक्ष्म सेवा) सूक्ष्म सेवा के साथ-साथ और भी कुछ करना है। अभी आस्ट्रेलिया से कोई ऐसा वी.आई.पी. नहीं लाये हो। ऐसा वी.आई.पी लाओ जो भारत की सरकार को उनका स्वागत करना पड़े। गवर्मेन्ट तक आवाज जाना अर्थात् आवाज बुलन्द होना। अभी सारे विदेश में से कोई भी स्थान ऐसी सेवा करे। न चाहते भी भारत वालों के कानों में जबरदस्ती भी आवाज पड़े। जैसे कुम्भकरण के चित्र में दिखाते हो ना, अमृत कान में डाल रहे हैं। तो ऐसी सेवा हो तब कहेंगे विदेश का आवाज भारत तक पहुँचा। अभी छोटी छोटी तूतारियाँ तक पहुँचे हो, बिगुल बजाना पड़ेगा। फिर आप सबको बापदादा बहुत अच्छी गिफ्ट देंगे। जब ऐसा आवाज निकलेगा तब जय-जयकार की शहनाइयाँ बजेंगी। नहीं तो भारत के कुम्भकरण ऐसे सहज जागने वाले नहीं हैं। अब तो सिर्फ ‘‘क्या''कह करके खर्राटे मारते रहते। समझा, अब क्या करना है। विदेश में हर स्थान पर ऐसी हिम्मत वाले हैं। इस वारी नैरोबी वालों ने कोशिश बहुत अच्छी की। मेहनत अच्छी की। आफीशल प्रोग्राम बनायेंगे तब आवाज होगा। पर्सनल पोग्राम बनाते तो आवाज बुलन्द नहीं हो सकता। आप फिर जब ऐसी सेवा करेंगे तक महायज्ञ की समाप्ति समारोह करेंगे। अभी तो आरम्भ किया है।
शक्ति सेना ऐसे लग रही है जैसे बनी बनाई है। सूरत और सीरत दोनों ही शक्ति रूप के दिखाई दे रहे हैं। यूनीफार्म भी अच्छी है, सबके बैज भी अच्छे चमक रहे हैं। मेहनत अच्छी की है। आस्ट्रेलिया निवासी जितने ही शुरू में स्वतन्त्र संस्कार के रहे उतना ही अभी मर्यादा में भी अच्छे रह रहे हैं। अभी बाप के मीठे बन्धन में आ गये हैं। सब अच्छे हैं। जैसे जेवर होता है उनको स्वरूप में लाया जाता है यह भी जेवर अच्छे तैयार हो गये हैं। पालिश हो गई। पाण्डव भी सर्विसएबुल अच्छे हैं। रिगार्ड देना और रिगार्ड लेना, इस मंत्र से सदा सहज सेवा की वृद्धि होती रहती है। अभी रिगार्ड देने भी सीख गये हैं। लेने भी सीख गये हैं। रिगार्ड देना ही लेना है। यह सदा याद रखो। सिर्फ रिगार्ड लेने से नहीं मिलेगा, लेकिन देने से मिलेगा। इसलिए एक दो में स्नेह और युनिटी अच्छी रहती। यह मंत्र पक्का याद हैं ना।
दीदी-दादी को देख - वायरलेस सेट आपके पास हैं ना। जो सेकेण्ड से भी जल्दी जहाँ कर्त्तव्य कराना हो वहाँ वायरलेस द्वारा डायरेक्शन दे सकते। क्योकिं जितनी सेवा वृद्धि को प्राप्त होती जायेगी तो फिर यह पत्र व्यवहार या टेलीग्राम, टेलीफोन आदि क्या कर सकेंगे। आज यह तो ठीक हैं, कल नहीं। फिर सारी सेवा कैसे हैन्डल करेंगे? इसका भी साधन अपनाना पड़े। हाल भी बनायेंगे, भण्डारा भी बना दिया यह तो जो आयेंगे उन्हों के लिए ठीक हैं लेकिन चारों ओर के सेवाकेन्द्रों के इतने विस्तार को कैसे हैन्डल करेंगे? सबको यहाँ बुलायेंगे? क्यू तो प्रजा की होगी वारिस तो क्यू में नहीं आयेंगे ना। इसलिए विशेष सेकेण्ड में कर्मातीत स्टेज के आधार से आपने संकल्प किया और वहाँ ऐसे पहुँचेगा जैसे आप कहते जा रहे हैं और पहुँच रहा है। ऐसे भी अनुभव बहुत होते रहेंगे जो समाचार में भी आयेंगे कि आज ऐसा अनुभव हुआ। साक्षात्कार भी होंगे और संकल्पों की सिद्धि भी होगी। अभी यह विशे- षता आती जायेगी। महारथियों का पुरूषार्थ अभी विशेष इसी अभ्यास का ही है। अभी-अभी कर्म योगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज। एक स्थान पर खड़े होते भी चारों ओर संकल्प की सिद्धि द्वारा सेवा में सहयोगी बन सकते हो।
बहुत समय देना पड़ता है। जितना टाइम देते हो उतनी ही खुशी की खान सबके पास भरती जा रही है। आपका टाइम देना अर्थात् खुशी की खान भरना। दूसरों की खुशी को देख और ही उन्हों को उमंग उत्साह दिलाने के लिए संकल्प होता है। सब अच्छा ही अनुभव कर रहे हैं। समय जरूर देना पड़ता है लेकिन समय की सफलता हजार गुणा ज्यादा हो जाती। इसलिए मधुबन की आकर्षण सबको दिन-प्रतिदिन और ही बढ़ती जाती। यह आप निमित्त आत्माओं की सेवा का फल है।
आस्ट्रेलिया के भिन्न-भिन्न सेवाकेन्द्रों से आये हुए भाई-बहनों के साथ अव्यक्त बापदादा की मधुर मुलाकात।
1. हर कदम में पदमों की कमाई जमा हो रही है? ऐसे अपने को पदमापदम भाग्यशाली अनुभव करतेहो? सारे दिन में कितने पदम जमा होते हैं? हिसाब निकाल सकते हो? पाण्डव मिलकर सेवा को वृद्धि में ला रहे हैं, यह बहुत अच्छा है। सदा एक दो से सन्तुष्ट रहते हो? सब सदा एकमत और एकरस हैं, यह भी एक बहुत अच्छा एग्जाम्पल है। एक ने कहा दूसरे ने माना, यह है सच्चे स्नेह का रेसपान्ड। ऐसे एग्जाम्पल को देख और भी सम्पर्क में आने के लिए हिम्मत रखते हैं। संगठन भी सेवा का साधन बन जाता है। एक बाप, एक मत, यही संस्कार सतयुग में एक राज्य की स्थापना करते हैं। निर्विघ्न सेवा चल रही है ना? कोई खिटखिट तो नहीं है? जहाँ माया देखती है कि इनकी युनिटी अच्छी है, घेराव है तो वहाँ आने की हिम्मत ही नहीं रखती। एक-एक अपने को सेवा के निमित्त समझकर चलते हैं। एक नहीं लेकिन हम सब निमित्त हैं। बाप ने निमित्त बनाया है, यह स्मृति रहे तो सफलता होती रहेगी। मनन की शक्ति से स्वयं की स्टेज भी पावरफुल होती जायेगी।
2. सदा अपने को निर्बन्धन आत्मा महसूस करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन तो नहीं महसूस करते? नालेजफुल की शक्ति से बन्धनों को खत्म नहीं कर सकते हो? नालेज में लाइट और माइट दोनों हैं ना। नालेजफुल बन्धन में कैसे रह सकते हैं? जैसे दिन और रात इकठ्ठा नहीं रह सकते, वैसे मास्टर नालेजफुल और बन्धन, यह दोनों इकठ्ठा कैसे हो सकते। नालेजफुल अर्थात् निर्बन्धन। बीती सो बीती। जब नया जन्म हो गया तो पास्ट के संस्कार अभी क्यों इमर्ज करते हो? जब ब्रह्माकुमार-कुमारी बन गये तो बन्धन कैसे हो सकता? ब्रह्मा बाप निर्बन्धन है तो बच्चे बन्धन में कैसे रह सकते? इसलिए सदा यह स्मृति में रखो कि हम मास्टर नालेज- फुल हैं। तो जैसा बाप वैसे बच्चे।
3. सदा सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इतना नशा रहता है? सफलता होगी या नहीं होगी यह क्वेश्चन ही नहीं। सफलता मूर्त्त हैं - ऐसे नशा रहता है? मास्टर शिक्षक हो ना। जैसे बाप शिक्षक की क्वालीफिकेशन है वैसे मास्टर शिक्षक की भी होगी ना। बाप समान बने हो ना? (हाँ) यह हाँ-हाँ के गीत अच्छा गाती हैं। इससे सिद्ध है कि यह बाप के गुण सभी को सुनाकर डांस करती कराती हैं। कुमारियों को देख करके बापदादा बहुत खुश होते हैं। क्योंकि कुमार और कुमारियाँ त्याग कर तपस्वी आकर बने हैं। बच्चों के त्याग की हिम्मत देख, तपस्या का उमंग देख बापदादा खुश होते हैं। बाप की महिमा तो भक्त करते हैं लेकिन बच्चों की महिमा बाप करते हैं। कितने जन्म आपने माला सिमरण की? अभी बाप रिटर्न में बच्चों की माला सिमरण करते हैं। आप लोग देखते हो किस समय बाप माला सिमरण करते हैं? (अमृतबेले) तो जिस समय बाप माला सिमरण करते उस समय आप सो तो नहीं जाते हो? शक्तियाँ तो सोने वालों को जगाने वाली हैं। खुद कैसे सोयेंगी? रिजल्ट अच्छी है। सर्टीफिकेट मिलना भी लक है। आस्ट्रेलिया वालों को अच्छा सर्टीफिकेट मिल रहा है। अपनी फुलवाड़ी को निश्चय और हिम्मत के जल से सींचते रहने से वृद्धि को पाते रहेंगे। वृद्धि होती रहेगी।
निर्मला बहन को - बापदादा जितनी भी महिमा करे उतनी कम है, ऐसे महिमा योग्य रतन हो। जैसा नाम है वैसे निमार्कनचित्त के गुण से विजयी बनी हो। सहनशक्ति और सामना करने की शक्ति के आधार पर सर्व स्थानों को निर्विघ्न बनाया है। तो बापदादा प्रत्यक्ष- फल को देखकर बहुत खुश हैं। इसलिए सदा विशेष आत्माओं की लिस्ट में हो। सदा बाप की मदद मिलती रहती है और मिलती रहेगी। विशेष बच्ची के मस्तक पर सदा बाप का हाथ है। सदा यही चित्र अपने पास रखना। सर्व दैवी परिवार का भी स्नेह और सर्टीफिकेट है।
मुरली का सार –
1. अभी के अधिकारी पन के संस्कार 21 जन्म तक चलेंगे, अभी के राज्य-अधिकारी ही विश्व के राज्य-अधिकारी बनते हैं।
2. जैसे रात दिन इकठ्ठा नहीं रह सकते वैसे मास्टर नालेजफुल और बन्धन दोनों इकठ्ठा नहीं हो सकते। नालेजफुल की शक्ति से बन्धनों को खत्म करो।
21-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"सच्ची होली कैसे मनायें?"
आज बेगमपुर के बादशाह अपने बेगमपुर के मालिकों से मिलने आये हैं। ऐसे मालिकों को देख बापदादा भी खुश हो रहे हैं कि हर बालक, मालिक बन गये हैं। संगमयुग बेगमपुर, मूलवतन बेगमपुर, स्वर्ग बेगमपुर, तीनों के मालिक। बापदादा ऐसे मालिकों को देख, मालिकों को आज के होली की मुबारक देते हैं। रंग के होली की मुबारक नहीं। लेकिन ‘हो-लिए' की मुबारक है। सब बाप के हो लिए अर्थात् हो गये। हो लिए ना? गीत क्या गाते हो? बाप के हो-लिए। जो बाप के हो लिए उन्हों को ही होली मुबारक। होंगे वा हो लिए? क्या कहेंगे? जब होली अर्थात् पास्ट इज पास्ट कर बाप के होलिए तब खुशी की पिचकारी लगाते हो। पिचकारी से रंग डालते हैं ना! तो आपकी पिचकारी से कितनी धारायें निकलती हैं? आजकल एक ही पिचकारी से भिन्न-भिन्न रंग भी डालते हैं। वह रंग लगने के बाद बेरंगी हो जाते हैं। इसलिए उन्हें वस्त्र वा अपनी सूरत ठीक करना पड़ता है। और आपका रंग इतना श्रेष्ठ और प्रिय है। जो जिसको भी लगाओ वह यही कहेगा कि और लगाओ। सदा लगाओ। आपकी खुशी की पिचकारी मनुष्य को कितना परिवर्त्तन कर देव आत्मा मना देती है। एक धारा - ‘‘मैं एक श्रेष्ठ आत्मा हूँ'', यह खुशी की धारा है। मैं विश्व के मालिक का बालक हूँ। मैं सृष्टि के आदि मध्य अन्त का नालेजफुल हूँ। ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ श्रेष्ठ मंच पर मेरा हीरो पार्ट है। इसी प्रकार कितनी खुशी की पाइंटस की धारायें आपकी पिचकारी में हैं। एक तो यह खुशी की पिचकारी एक-दो को लगाते हो ना। दूसरी सर्व प्राप्तियों के धाराओं की पिचकारी। जैसे अतीन्द्रिय सुख। आत्मा और परमात्मा के मिलन का रूहानी प्रेम। ऐसे और भी सोचो। यह तो कामन है। तीसरी पिचकारी, सर्व शक्तियों की पिचकारी। इन विदेशियों ने पिचकारी कब देखी है? जैसे गुलाबाशी होती है उसमें कितने सुराख होते हैं। ऐसे पिचकारी दूर से लगाई जाती है जो फोर्स से दूर-दूर तक जाती है। ज्ञान की अलौकिक पिचकारि याँ तो देखी हैं ना। अच्छा - चौथी पिचकारी ज्ञान की मूल पाइंटस। ऐसे पिचकारियों से होली खेलने से देव आत्मा बन जाते हो। गोपी-वल्लभ, गोप गोपियों से एक दिन होली नहीं खेलते लेकिन संगमयुग का हर दिन होली डे है। संगम पर होली और सतयुग मे होगी हाली डे। अभी हाली डे नहीं मनाना है। अभी तो मेहनत ही मुहब्बत के कारण हाली डे की अनुभूति कराती है। बापदादा ने बच्चों का एक दृश्य ऊपर से देखा। मेहनत का दृश्य देखा। (जहाँ नया हाल बनना है वहाँ भाई लोग रोज पत्थर उठाते हैं) कहाँ मन्दिरों में पूजे जाने वाले, प्रकृति भी आपकी दासी बनकर सेवा करने वाली, बाप भी बच्चों की माला सिमरण करते हैं - लेकिन बच्चे क्या कर रहे थे? पत्थर उठा रहे थे। यह मेहनत, मेहनत नहीं लगी मुहब्बत के कारण। समझा हमारा कार्य है, घर का कार्य है। यज्ञ सेवा है। तो बापदादा से मुहब्बत होने के कारण यह मेहनत भी एक खेल लग रहा था ना। संगमयुग की जितनी मेहनत उतनी फ्रीडम है। क्योंकि बुद्धि और शरीर बिजी रहते उतना व्यर्थ संकल्पों से फ्री रहते हैं। इसलिए कहा कि संगम पर मेहनत ही हाली डे है। बच्चों को देख बापदादा आपस में रूह-रूहाण कर रहे थे। अभी हॉल बनाने के लिए पत्थर उठा रहे हैं। लेकिन यह एक पत्थर हजार गुणा वृद्धि को पा कर हीरे मोती बन जायेंगे। जो आपके महलों में यह हीरे मोती कितनी सजावट करेंगे! वहाँ महल बनाना नहीं पड़ेगा। अभी जो मेहनत की उसका फल सजा सजाया महल मिलेगा। बापदादा देख रहे थे। बड़ी खुशी-खुशी से सेवा की लगन में मगन थे। तो अब समझा ‘होली' कौन-सी है!
पहले जलाना है फिर मनाना है। एक दिन जलाते हैं दूसरे दिन मनाते हैं। आप भी एक दिन होली अर्थात् ‘पास्ट इज पास्ट' करते हो। अर्थात् पिछला सब जलाते हो। तब ही फिर गीत गाते हो - हम तो बापदादा के हो लिए। यह है खुशी में मनाना। यादगार की होली में भी मनाने के दिन देवताओं के रूप साँग के रूप में बनाते हैं। लेकिन उसमें भी विशेष मस्तक पर लाइट जलाते हैं। यह आपका यादगार है। जब मस्तक की ज्योति जगती तो देवता बन जाते हो। बाप के हो लिए तो देवता बन जाते हो। आपका यह अनुभव और उन्हों का है- आपके अनुभव का यादगार मनाना। तो समझा आप लोगों ने होली कैसे मनाई और वह लोग क्या करते हैं? यथार्थ क्या और यादगार क्या! (बड़े-बड़े लोग एक महामूर्ख सम्मेलन भी करते हैं।) यह भी राइट है। क्योंकि जब बाप आते हैं तो बड़े-बडे लोग महामूर्ख ही बन जाते हैं, जितने बड़े उतने ही मूर्ख बनते। जो बाप को ही नहीं जान सकते तो महामूर्ख हुए ना! देखो बड़े-बड़े नेतायें जानते हैं? तो महामूर्ख हुए ना। यह भी अपनी कल्प पहले की महामूर्खता की यादगार मनाते हैं। सारा उल्टा कार्य करते हैं। बाप कहते - मेरे को जानो, वह कहते - बाप हैं ही नहीं। तो उल्टे हुए ना! आप कहते हो - बाप आया है, वह कहते - हो ही नहीं सकता। तो उल्टा कार्य करते हैं ना। ऐसे तो बहुत कुछ विस्तार कर लिया है। लेकिन सार है - बाप और बच्चों के मंगल मिलन का यादगार। संगमयुग ही मंगल मिलन का युग है। भारत में रहने वाले बच्चे तो इन बातों को जानते हैं, आज विदेश से आये हुए बच्चों को सुना रहे हैं। क्योंकि राज्य तो भारत में ही करना हैं ना। अमेरिका में तो नहीं करना है। भारत की बातें जरूर सुनेंगे, समझेंगे ना! आपकी बातें क्या बना दी हैं! कितना फर्क कर दिया है!
ऐसे होली कर होली के गीत गाने वाले, सदा भिन्न-भिन्न पिचकारियों द्वारा आत्मा की चोली रंगने वाले, सदा बाप से मंगल मिलन मनाने वाले, ब्राह्मण सो देवता बनने वाले, बेगमपुर के मालिकों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते। मुरलियाँ तो बहुत सुनी हैं। कुछ रहा है सुनने का? अभी तो मिलना और मनाना है। सुनना और सुनाना भी बहुत हो गया। साकार रूप में सुनाया, अव्यक्त रूप में कितना सुनाया, एक वर्ष नहीं लेकिन 13 वर्ष। अभी तेरहवें में ‘तेरा' ही होना चाहिए ना। तेरा हूँ - इसी धुन में रहो तो सारा सुनाने का सार आ जावेगा।
कल बच्चों के मनाने का दृश्य भी देखा है। खूब हँसा, खूब खेला। बापदादा मुस्कराते रहे। सदा ही ऐसे हँसते नाचते रहो। लेकिन अविनाशी। बापदादा बच्चों को बहलते हुए देख यही वरदान देते कि ‘अविनाशी भव'। टांगे तो थक जायेंगे लेकिन बुद्धि से खुशी में नाचते रहेंगे। अव्यक्त वतन वासी बन फरिश्ते की ड्रेस में नाचते रहेंगे तो अविनाशी और निरंतर कर सकेंगे। यह भी संगमयुग के स्वेहज है। फिर नहीं होंगे। इसलिए खूब खेलो, खाओ, मौज करो लेकिन ‘अविनाशी' शब्द भी याद रखो।
अमेरिका - एक-एक रतन अनेक आत्माओं के कल्याण के निमित्त बने हुए हैं। आत्माओं को भटकते हुए देख रहम आता है ना। अभी तो और भी ज्यादा दु:ख की हाहाकार बढ़ेगी। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे सुख की एक जरा-सी झलक भी नहीं दिखाई देती। यह सुख के साधन सब उन्हों को दु:ख के साधन अनुभव होने लगेंगे। ऐसे टाइम पर सिर्फ एक ही बाप और बाप के बच्चों का सहारा उन्हों को दिखाई देगा। सारे देश में अन्धकार के बीच में एक ही लाइट हाउस दिखाई देगा। यह धीरे-धीरे अति में जल्दी-जल्दी जाता रहेगा। तो ऐसे समय पर लाइट और माइट देने के अभ्यासी आत्मायें चाहिए। इसी अभ्यास में रहते हो? एक समय पर तीनों प्रकार की सेवा करनी पड़ेगी। मंसा भी, वाचा भी, कर्मणा भी। कर्मणा से उनको बिठाकर आथत देना। तो ऐसी तैयारी करते चलो। क्योंकि अमेरिका में जितने ज्यादा वैभव है, जितना बड़ा स्थान है उतना ही बड़ा दु:ख का अनुभव भी करेंगे। तो विनाश की तैयारियाँ चल रही हैं ना! विनाश के निमित्त आत्माओं के साथ-साथ आप स्थापना करने वाली आत्मायें भी अपना झण्डा बुलल्द करेंगी। तो स्थापना के कार्य में विशेष आत्मा को कौन लायेगा? अमेरिका। विशेष आत्माओं को लाने से अमेरिका का सेवाकेन्द्र भी वी.आई.पी. हो जायेगा ना!
2. सानफ़्रांसिसको - जैसा स्थान है, स्थान के अनुसार कौन सा झण्डा लहरायेंगे। साइंस वाले तो और भी जगह हैं। लेकिन यहाँ की विशेषता क्या है? (धार्मिक नेतायें बहुत हैं) एक भी धार्मिक नेता को अगर अनुभव करा दिया तो कितना नाम बाला हो जायेगा! तो यह विशेषता दिखाओ। जब वह लोग भी प्रैक्टिकल अनुभव सुनेंगे तो अनुभव के आधार पर आकर्षित होंगे। तो यह नवीनता दिखाओ। कुमारियाँ ऐसे विद्वानों को बाण मारें। यह कल्प पहले की यादगार है ना। तो वह कौन सी कुमारियाँ हैं? आप हो ना। कोई भी निमित्त बनें। ब्रह्माकुमार नजदीक लायेंगे और ब्रह्मा कुमारियाँ जीत प्राप्त कर विजय का झण्डा लहरायेंगी। आप ब्रह्माकुमार शिकार को लायेंगे और आप शिकार को अपना बनाकर मरजीवा बना देंगी। पहला कार्य पाण्डवों का है। फल निकालने में थोड़ा समय लगता है, जो बीज डाल रहे हो उसका फल निकलेगा जरूर। प्यार से उन्हों की सेवा करनी है। उन्हों को महान-महान कहते हुए अपनी महानता दिखानी है अगर पहले उनको कहेंगे आप तो कुछ नहीं हैं, आप रांग कर रहे हैं, तो वह तुम्हारी सुनेंगे भी नहीं। इसलिए पहले महिमा करो। जैसे मुरली में सुनते हो ना - चूहा क्या करता है? पहले फूंक देता फिर काटता है, ऐसे करो। क्योंकि फिर भी विकारी दुनिया को पिलर्स देकर ठहराने का काम तो किया है ना। तो जो किया है उसकी महिमा तो करेंगे ना। अच्छा- अच्छा कहते, अच्छा बनाते जाओ। तो समझा आपको कौन-सा कार्य करना है! यह भी आपके मैसेन्जर बन जायेंगे। इन्हों का आवाज तो बड़ा होता है ना! माइक बड़े होते हैं, इसलिए ऐसे-ऐसे को सम्पर्क में लाओ। जिसका नाम अच्छा हो, बड़ा हो। आप उन्हों द्वारा अपना बड़ा कार्य निकाल सकते हो। ब्राह्मण बढ़ाने की सेवा तो करनी ही है। लेकिन यह है एडीशन। कोई बडा प्रोग्राम रखो, उस प्रोग्राम में ऐसे वी.आई.पीज को कोई पोजीशन देकर बुलाने की कोशिश करो। उन्हों को इस कार्य में सहयोगी बनाओ। उनके पास कोई अनुभवी परिवार ले जाओ तो उसके प्रैक्टिकल लाइफ का प्रभाव उन पर ज्यादा पड़ेगा। क्योंकि वह भी प्रूफ देखने चाहते हैं कि यह क्या करते हैं।
आफ्रिका - सेवा की वृद्धि का उमंग उत्साह तो सदा रहता है ना। जैसे दृष्टान्त देते हैं कि मछली नीर के बिना नहीं रह सकती वैसे ब्राह्मण सेवा के बिना नहीं रह सकते। क्योंकि सेवा करने से एक तो स्व उन्नति और साथ-साथ अनेक आत्माओं की भी उन्नति हो जाती है। तो अपनी उन्नति के कारण भी प्राप्ति होती और दूसरे की जो उन्नति होती उसका भी शेयर जमा हो जाता। इसलिए बापदादा सदा कहते - ब्राह्मण वह जो याद और सेवा में सदा तत्पर रहें। याद में रहकर सेवा करना अर्थात् मेवा ही मेवा है। जैसे मेहनत मुहब्बत में बदल जाती, वैसे सेवा मेवा में बदल जाती। तो ऐसे सेवा का उमंग रहता है? जो जितना करता है उसका पदमगुणा हो जमा हो जाता है। अफ्रीका में भावना वाली सहयोगी आत्मायें हैं। सेवा में सहयोग देने का अच्छा उमंग-उत्साह है। एक-एक रत्न बहुत वैल्युबल और लाडला है।
‘‘सी फादर'' - इस मंत्र को सदा सामने रखते हुए चढ़ती कला में चलते चलो। जब सी फादर और फालो फादर है तो उड़ते रहेंगे जब आत्मा को फॉलो करते तो नीचे आ जाते। कभी भी आत्मा को नहीं देखना। क्योंकि आत्मायें सब पुरूषार्थी हैं। पुरूषार्थी को फॉलो करोंगे तो पुरूषार्थी में अच्छाई भी होती और कुछ कमी भी होती है। सम्पन्न नहीं। तो फालो फादर, न कि ब्रदर या सिस्टर। जैसे फादर एकरस है तो फालो फादर करने वाले भी एकरस रहेंगे।
भारतवासी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले - फारेनर्स का अपना भाग्य, भारत वालों का अपना भाग्य। भारत वाले भाग्यशाली न बनते तो फारेन वाले कैसे आते? विदेश की महिमा लास्ट सो फास्ट के हिसाब से है लेकिन जो हैं ही आदि में वह आदि में ही रहेंगे। भारत वालों ने भगवान को अपना बनाया है, और उन्हों को बना बनाया भगवान मिला है। अगर भारतवासी बाप को न पहचानते तो उन्हों को पहचान कौन देता? बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त तो फिर भी पहले भारत वाले हैं। गुप्त से प्रत्यक्ष पहले भारत वालों ने किया, फिर उन्होंने माना। जैसे दुकान खोलते हैं तो पहली रेढ़ी पर या पटरी पर लगाते हैं। फिर वृद्धि होते-होते बड़ी दुकान हो जाती। ऐसे भारत वालों ने पहले बहुत मेहनत की, दुकान खोले तब तो आप लोग आये हो ना! जितना सहन भारत वालों ने किया उतना फारेनर्स ने कहाँ किया है? इसलिए भारतवासी बच्चे इसमें नम्बरवन हैं। जो सहन करने में नम्बरवन हैं उन्हें वर्सा भी उसी हिसाब से मिलता है। आप लोग प्रैक्टिकल चरित्र करने वाले हो और वह सुनने वाले हैं। आप कहेंगे हमने ऑखों से ब्रह्मा में शिव बाप को देखा यही विशेषता है। वैसे तो सब एक-दो से आगे हैं क्योंकि ड्रामा अनुसार संगमयुग को ऐसा वरदान मिला हुआ है जो हरेक में कोई-न-कोई विशेषता सब से विशेष है। अभी देखो भोली की विशेषता और भाषण करने वालों की विशेषता। अगर भोली न होती तो भी काम नहीं चलता। अच्छा - यह भी होली खेल रहे हैं। आज है ही मनाना। यह भी पिचकारी लग रही है।
मुरली का सार
1. बाप दादा रंग की मुबारक नहीं देते परन्तु बाप के हो लिए अर्थात् हो गये उसकी मुबारक देते हैं।
2. खुशी की प्राप्तियों की, सर्वशक्तियों की, ज्ञान के मूल पांइन्टस आदि आदि की पिचकारियों से खेलते-खेलते तुम देव-आत्मा बन जाते हो। 3. ‘सी फादर' और फालो फादर करने से चढ़ती कला का अनुभव करेंगे।
23-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"फर्स्ट या एयरकन्डीशन में जाने का सहज साधन"
आज बादादा सब बच्चों की सूरत में विशेष एक बात देख रहे हैं। वह कौन-सी है? हरेक के चेहरे पर प्यूरिटी की ब्यूटी कहाँ तक आई है। अर्थात् पवित्रता के महानता की चमक कहाँ तक दिखाई देती है। जैसे शरीर की ब्यूटी में मस्तक, नयन,मुख आदि सब देखते हैं वैसे प्युरिटी की ब्यूटी में बापदादा, मस्तक में संकल्प की रेखायें अर्थात् स्मृति शक्ति, नयनों में आत्मिक वृत्ति की दृष्टि, मुख पर महान आत्मा बनने की खुशी की मुस्कान, वाणी में सदा महान बन महान बनाने के बोल, सिर पर पवित्रता की निशानी लाइट का ताज - ऐसा चमकता हुआ चेहरा हरेक का बापदादा देख रहे थे। आज वतन में प्यूरिटी की काम्पीटीशन थी। आप सबका नम्बर कितना होगा। यह जानते हो? फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड प्राइज होती है। आप सबको कौन-सी प्राइज मिली?
फर्स्ट प्राइज के अधिकारी वह बच्चे बनते हैं जिन्हों की पाँचों ही बातें सम्पन्न होंगी। एक लाइट का ताज, उस ताज में भी जिसका ताज फुल सार्किल में है। जैसे चन्द्रमा का भी पूरा सार्किल होता है। कब अधूरा होता है, तो किन्हों का आधा था, किसका पूरा था। और किन्हों का तो लकीर मात्र था, जिसको कहेंगे नाम-मात्र। तो पहला नम्बर अर्थात् फर्स्ट प्राइज वाले फुल लाइट के ताजधारी।
दूसरा - जैसे मस्तक में तिलक चमकता है वैसे भाई-भाई की स्मृति अर्थात् आत्मिक स्मृति की निशानी मस्तक बीच बिन्दी चमक रही थी। तीसरा - नयनों में रूहानियत की चमक, रूहानी नजर। जिस्म को देखते हुए न देख रूहों को देखने के अभ्यास की चमक थी। रूहानी प्रेम की झलक थी। होंठों पर प्रभु प्राप्ति आत्मा और परमात्मा के महान मिलन की और सर्व प्राप्तियों की मुस्कान थी। चेहरे पर मात-पिता और श्रेष्ठ परिवार से बिछुड़े हुए कल्प बाद मिलने के सुख की लाली थी। बाप भी लाल, आत्मा भी लाल, घर भी लाल और बाप के भी बने तो लाल हो गये। कितने प्रकार की लाली हो गई? ऐसी पाँचों ही रेखायें सम्पूर्ण स्वरूप वाले फर्स्ट प्राइज में हैं। अब इसके आधार पर सोचो - फर्स्ट प्राइज 100 पाँचों ही रेखाओं में है? सेकेण्ड प्राइज वाले 70, थर्ड प्राइज वाले 30, अब बताओ आप कौन हो? सेकेण्ड प्राइज वाले - उसमें भी नम्बरवार मैजारिटी थे। फर्स्ट और थर्ड में कम थे। 30 से 50 के अन्दर मैजारिटी थे। कहेंगे उसको भी सेकेण्ड में, लेकिन पीछे। फर्स्ट क्लास वालों में भी दो प्रकार थे - एक जन्म से ही प्यूरिटी के ब्यूटी की पाँचों ही निशानियाँ जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त किये हुए थे। प्राप्त करना नहीं पड़ा लेकिन प्राप्त किया हुआ है। उन्हों के चेहरे पर अपवित्रता के नालेज की रेखायें नहीं हैं। निजी संस्कार नैचुरल लाइफ है। संस्कार परिवर्त्तन करने की मेहनत नहीं। स्वप्न में भी संकल्प मात्र अपवित्रता का वार नहीं। अर्थात् प्यूरिटी की ब्यूटी में जरा भी महीन दाग नहीं।
दूसरे जन्म से नालेज की लाइट और माइट के आधार पर सदा प्यूरिटी की ब्यूटी वाले। अन्तर यह रहा जो पहले वाले सुनाये उन्हों के लास्ट जन्म के पिछले संस्कार का भी दाग नहीं। इसलिए पिछले जन्म के संस्कारों को मिटाने के मेहनत की रेखा नहीं। नालेज है कि पिछले जन्म का बोझ आत्मा पर है लेकिन चौरासिवें जन्म के पास्ट का ड्रामा अनुसार अपवित्रता के संकल्प का अनुभव नहीं। इसलिए यह भी लिफ्ट की गिफ्ट मिली हुई है। इसलिए निजी संस्कार के रूप में सहज महान आत्मा हैं। जैसे सहज योगी वैसे सहज पवित्र आत्मा। बी होली नहीं, वह हैं ही होली। उन्हों के लिए यह स्लोगन नहीं है कि ‘‘बी होली''। वह बने बनाये हैं। फर्स्ट प्राइज में भी नम्बरवन। समझो एयरकन्डीशन ग्रुप हो गया। फिर फर्स्टक्लास, उन्हों का सिर्फ थोडा सा अन्तर है। निजी संस्कार नहीं, संस्कार बनाना पड़ता है। अर्थात् मर जीवे जन्म के आदि में निमित्त मात्र नालेज के आधार पर अटेन्शन रखना पड़ा। जरा-सी पुरूषार्थ की रेखायें जन्म के आदि में दिखाई देती हैं, अभी नहीं। पहले आदि काल की बात है। एयरकन्डीशन अर्थात् बना बनाया था। और फर्स्टक्लास वालों ने आदि में स्वयं को बनाया। उसमें भी पुरूषार्थ सहज किया है। सहज पुरूषार्थ, तीव्र पुरूषार्थ, समर्थ पुरूषार्थ। लेकिन फिर भी पुरूषार्थ की रेखा है। यह प्यूरिटी की बात चल रही है। प्यूरिटी की सब्जेक्ट में वह बने बनाये और वह पुरूषार्थ की रेखा वाले हैं। बाकी टोटल सब सब्जेक्ट कीबात अलग है। यह एक सब्जेक्ट की बात है। वह 8 रत्नों की माला और वह 100 में पहले नम्बर। थर्ड क्लास तो इण्डिया गवर्मेण्ट भी कैन्सिल प्रजा है, थर्ड क्लास वाले तो सतयुग की पहली नामीग्रामी प्रजा है, जो रायल फैमली के सम्बन्ध में सदा रहेगी। अन्दर की प्रजा होगी। बाहर की नहीं। अन्दर वाले कनेक्शन में बहुत नजदीक होंगे, लेकिन मर्त्तबे से पीछे होंगे। लक्ष्य तो एयरकन्डीशन का है ना। फर्स्टक्लास के अन्तर से सेकेण्ड क्लास को तो समझ गये होंगे। सेकेण्ड क्लास से फर्स्ट वा एयरकन्डीशन में जाने का बहुत सहज साधन है। सिर्फ एक संकल्प का साधन है। वह एक संकल्प है - ‘‘मैं हूँ ही ओरीजनल पवित्र आत्मा।'' ओरीजनल स्वरूप अपवित्र तो नहीं था ना! अनादि और आदि दोनों काल का ओरीजनल स्वरूप पवित्र था। अपवित्रता तो आर्टिफीशियल है। रीयल नहीं है। शूद्रों की देन है। शूद्रों की चीज़ ब्राह्मण कैसे यूज़ कर सकते? सिर्फ यह एक संकल्प रखो - अनादि आदि रीयल रूप पवित्र आत्मा हूँ। किसी को भी देखों तो उसका भी अनादि आदि रीयल रूप देखो, स्वयं का भी, औरों का भी। रीयल को रियलाइज करो। लाल चश्मा लगाओ। स्मृति का चश्मा । वह चश्मा नहीं। मैं भी लाल वह भी लाल, बाप भी लाल। तो लाल चश्मा हो गया ना। फिर लाल किले के ऊपर झण्डा लहरायेंगे। अभी मैदान तक कदम उठाया है। गवर्मेन्ट की नजर तक आये हो फिर नजर के बाद दिल पर आ जायेंगे। सबकी दिल से निकलेगा कि अगर हैं तो यही हैं। अभी यह आवाज फैला कि यह बडी संस्था है। बड़ा कार्य है। यह काई साधारण संस्था नहीं। नामीग्रामियों की लिस्ट में है। अभी आपके मेहनत की प्रशंसा कर रहे हैं। फिर आपके परमात्म-मुहब्बत की महिमा करेंगे। अभी 81 में यह किया है, 82 में क्या करेंगे? यह भी अच्छा किया। बापदादा खुश हैं। संगठन का स्वरूप विश्व के आगे एक वन्डरफुल चित्र में रखा है ‘‘हम सब एक है'' इसका झण्डा लहराया। लोग समझते हैं कि हमने तो समझा यह ब्रह्माकुमारियाँ गई कि गई, कहाँ तक चलेंगी। लेकिन संगठन के नक्शे ने अनेक साधनों द्वारा जैसे रेडियो, टी.वी. अखबारें, नेतायें इन सबके सम्पर्क द्वारा अभी यह आवाज है कि ब्रह्माकुमारियाँ चढ़ती कला में अमर हैं, जाने वाली नहीं है, लेकिन सभी को ले जाने वाली हैं। जो सबने तन-मन-धन लगाया, विश्व के कोने-कोने के ब्राह्मण भावनाओं की मिट्टी देहली में पड़ गई। यह भी शुभ-भावनाओं की मिट्टी डालने की सेरीमनी हो गई। अपने राज्य की नींव को मजबूत किया। इसलिए कुछ फल निकला, कुछ निकलेगा। सब फल इकठ्ठा नहीं निकलता है। उल्हनों से बच गये। अब कोई उल्हना नहीं दे सकेगा कि बाहर की स्टेज पर कहाँ आते हो। लाल किले तक पहुँच गये तो उल्हना समाप्त हुआ। अपनी कमजोरी रही, आपका उल्हना नहीं रहा। इसलिए सफलतामूर्त्त हैं और सदा रहेंगे। आगे और नया प्लैन बनेगा। खर्चे का नहीं सोचों। खर्चा क्या किया - 10 पैसे ही तो दिये। लोग तो मनोरंजन संगठन के लिए, संगठित प्रोग्राम्स के लिए कितना खर्चा जमा करते हैं और खर्च करते हैं। आप सबका तो 10 पैसे या 10 रूपये में काम हो गया। इतना बड़ा परिवार देखना और मिलना। यह भी स्नेह का सबूत देखा। युनिटी की खुशबू, सेवा के स्नेह की खुशबू, श्रीमत पर एवररेडी रहने की खुशबू, उमंग-उत्साह और इन्वेंशन की खुशबू चारों ओर अच्छी फैलाई। बापदादा के वतन तक पहुँची। अब सिर्फ एक खुशबू रह गई। कौन सी? भगवान के बच्चे हैं, यह खुशबू रह गई है। महान आत्मायें हैं, यहाँ तक पहुँचे हो। आत्मिक बाम्ब लगा है। लेकिन परमात्म बाम्ब नहीं लगा है। बाप आया है, बाप के यह बच्चे वा साथी हैं, अब यह लास्ट झण्डा लहराना है। भाषणों द्वारा, झाँकियों में माइक द्वारा तो सन्देश दिया। लेकिन अब सबके ह्दय तक सन्देश पहुँच जाए। समझा अभी क्या करना है? यह भी दिन आ जायेगा। सुनाया ना विदेश से कोई ऐसे विशेष व्यक्ति लायेंगे तो यह भी हलचल मचेगी। सब फर्स्टक्लास प्यूरिटी की ब्यूटी में आ जायें, सेकेण्ड क्लास भी खत्म हो जाए तो यह भी दिन दूर नहीं होगा। सेकेण्ड क्लास वाले को ब्यूटीफुल बनने के लिए मेहनत का मेकप करना पड़ता। अभी यह भी छोड़ो। नैचुरल ब्यूटी में आ जाओ। जैसे देवताओं के संस्कारों में अपवित्रता की अविद्या है वही ओरीजनल संस्कार बनाओ तो विश्व के आगे प्यूरिटी की ब्यूटी का रूहानी आकर्षण स्वरूप हो जायेगा। समझा आज क्या काम्पीटीशन थी?
फारेन ग्रुप तो बहुत जाने वाला है। एक जाना अनेकों को लाना है। एक-एक स्टार अपनी दुनिया बनायेंगे। यह चैतन्य सितारों की दुनिया है इसलिए साइन्स वाले आपके यादगार सितारों में दुनिया ढूंढ रहे हैं। अभी उन्हों को भी अपनी दुनिया में ले आओ। तो मेहनत से बच जायें। उन्हों को अनुभव कराओ कि सितारों की दुनिया कौन सी है? जो आज भारत के बच्चों के साथ-साथ विदेशियों की भी विशेष ज्ञान के पिकनिक की खातिरी कर रहे हैं। जो जाने वाला होता है उनको पिकनिक देते हैं ना। तो बापदादा भी पार्टी दे रहे हैं। यह ज्ञान की पार्टी है।
ऐसे प्यूरिटी की ब्यूटी में नम्बरवन, इमप्युरिटी पर सदा विन करने वाले, प्युरिटी को निजी संस्कार बनाने वाले, सर्व सम्बन्ध का सुख एक बाप से सदा लेने वाले, एक में सारा संसार देखने वाले - ऐसे सदा आशिकों को माशुक बाप का याद प्यार और नमस्ते। महायज्ञ में सभी ने बहुत अच्छी मेहनत की है। मेहनत का फल मिल ही जाता है। आवाज बुलन्द करने में खर्चा तो करना ही पड़ता, कोई नई इन्वेंशन निकलने में खर्चा लगता है लेकिन उसकी सफलता पीछे भी फल देती रहती है। कहाँ नाम बाला होता, कहाँ आवाज निकलता, कहाँ ब्राह्मण परिवार में वृद्धि होती। महायज्ञ के कारण गवर्मेंन्ट द्वारा जो सहयोग प्राप्त हुआ वह भी हमेशा के लिए उनके रिकार्ड में तो आ गया ना। जैसे रेलवे कन्शेसन का हुआ, तो यह भी रिकार्ड में आ गया। ऐसे गुप्त कई कार्य होते हैं। प्रेजीडेन्ट तक भी आवाज तो गया कि इतने सेवाकेन्द्रों से इतने लगन से आये हैं। यह भी प्रत्यक्षफल है। जिन्होंने जो सेवा की, बापदादा रिजल्ट से सन्तुष्ट हैं। इसलिए मेहनत की मुबारक हो।
सेवाधारी भाई-बहनों से - हरेक अपने को कोटों में कोऊ, कोऊ मे कोऊ, ऐसी श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? सेवा की लाटरी मिलना यह भी एक भाग्य की लकीर है। यह सेवा, सेवा नहीं है लेकिन प्रत्यक्ष मेवा है। एक होता है ताजा फ्रीट, एक होता है सूखा फ्रीट। यह कौन सा फल है? यह प्रत्यक्ष भाग्य का फल है। अभी अभी करो, अभी-अभी खाओ। भविष्य में जमा होता ही है लेकिन भविष्य से भी पहले प्रत्यक्ष फल होता है। वायुमण्डल के सहयोग की छत्रछाया कितना सहज श्रेष्ठ बनाती है। साथ-साथ पुरानी दुनिया के आवाज और नजर से दूर हो जाते हो। नौकरी के बजाय, यज्ञ-सेवा घर की सेवा हो जाती है। नौकरी की टोकरी भी तो उतर जाती है ना। सेवा का ताज धारण हो जाता है। नौकरी की टोकरी तो मजबूरी से उठा रहे हो, दिल से नहीं, डायरेक्शन है तो कर रहे हो। तो इस सेवा से कितने फायदे हो जाते? संग कितना श्रेष्ठ मिल जाता, सागर का कण्ठा और सदा ज्ञान की चर्चा, बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं। यह मदद है ना। तो कितना भाग्य है। मातायें क्या समझती हैं? बना बनाया भाग्य हथेली पर आ जाता है। जैसे कृष्ण के चित्र में स्वर्ग हथेली पर है तो संगम पर भाग्य का गोला हाथ में है। इतने भाग्यवान हो। यह सेवा अभी साधारण बात लगती लेकिन यह साधारण नहीं है। यह वन्डरफुल लकीर है। जितना समय यह लाटरी मिलती है, इसी लाटरी को अविनाशी बना सकते हो। ऐसे अभ्यासी बन जाओ जो कहाँ भी रहते यहाँ जैसी स्थिति बना सको। यहाँ सहज योगी की अनुभूति होती है ना! मेहनत समाप्त हो जाती, तोय ही सहजयोग का अनुभव परम्परा चलाते रहो। संगमयुग में परम्परा। मधुबन में यह अनुभव छोड़ के नहीं जाना लेकिन साथ ले जाना। ऐसे कई कहते हैं - मधुबन से नीचे उतरे तो मीटर भी नीचे उतर गया। ऐसे नहीं करना। इसी अभ्यास का लाभ लो। सेवा करते हुए भी सहजयोगी की स्थिति पर अटेन्शन रखो। ऐसे नहीं सिर्फ कर्मणा सेवा में बिजी हो जाओ। कर्मणा के साथ-साथ मंसा स्थिति भी सदा श्रेष्ठ रहे, तब सेवा का फायदा है। शक्तियाँ भी अच्छी स्नेही हैं, अथक हैं, बाहों में दर्द तो नहीं पड़ता, बापदादा स्नेह से पाँव और बाँहें दबा रहे हैं। स्नेह ही पाँव दबाना है। अच्छा - मधुबन में सेवा का बीज डाला अर्थात् सदा के लिए श्रेष्ठ कर्मों का फल बोया।
मुरली का सार
1. फर्स्ट प्राइज के अधिकारी वे हैं जिनकी निम्नलिखित 5 बातें सम्पन्न होंगी -
अ- फुल लाइट के ताजधारी।
ब- जैसे मस्तक में तिलक चमकता है वैसे भाई-भाई की स्मृति, आत्मिक स्मृति की निशानी।
स- नयनों मे रूहानियत की चमक।
य- होठों पर परिवार प्राप्ति, आत्मा और परमात्मा के महान मिलन की और सर्व प्राप्तियों की मुस्कान।
र- चेहरे पर मात-पिता और श्रेष्ठ परिवार से कल्प बाद मिलने के सुख की लाली।
2. फर्स्ट वा एयरकन्डीशन में आने का सहज साधन है - सिर्फ यह सकंल्प रखो कि मैं अनादि, आदि रियल-रूप पवित्र आत्मा हूँ। किसको भी देखो उसका भी आदि अनादि पवित्र रूप देखो।
25-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"महानता का आधार संकल्प, बोल और कर्म की चेकिंग"
आज बापदादा अपने चरित्र भूमि, कर्म-भूमि, वरदान भूमि, महान तीर्थ भूमि, महान यज्ञ भूमि के सर्व साथियों से मिलने आये हैं। मधुबन निवासी अर्थात् महान पावन धरनी निवासी। इस धरनी पर आने वालों का भी महान पार्ट है तो सोचो रहने वालों का कितना महान पार्ट है! महान आत्माओं का निवास स्थान भी महान ही गाया जाता है। जब आने वाले भी अपने को भाग्यशाली अनुभव करते हैं, अनेक अनुभवों की स्वयं में अनुभूति करते हैं तो रहने वाले का अनुभव क्या होगा! जो रहते ही ज्ञान सागर में हैं, ऐसी आत्मायें कितनी श्रेष्ठ हैं! ऐसे सब मधुबन निवासी अपने को इतना महान अनुभव करते हो? जैसे टाप का स्थान है, ऐसे ही स्थिति भी टाप की रहती है। नीचे तो नहीं आते हो? मधुबन निवासियों को कितने प्रकार की लिफ्ट की गिफ्ट है, उसको जानते हो? कभी गिनती की है? वा इतनी है जो गिनती नहीं कर सकते हो? मधुबन की महिमा के गीत सभी गाते हैं। लेकिन मधुबन निवासी वह गीत गाते हैं? मधुबन वासियों का चित्र दूर-दूर रहने वाले भी अपने दिल में कितना श्रेष्ठ चित्र खींचते हैं, यह जानते हो? ऐसा चित्र चैतन्य में अपना तैयार किया है? जैसे स्थूल पहाड़ी है वैसे सदा ऊंची स्टेज की पहाड़ी पर रहते हो? ऐसी ऊंची स्टेज जहाँ पुरानी दुनिया के वातावरण का कोई प्रभाव आ नहीं सकता। ऐसी स्टेज पर रहते हो कि नीचे आ जाते हो?नीचे आने की आवश्यकता है? मधुबन को डबल लकीर है। एक तो मधुबन निवासी मधुबन की लकीर के अन्दर हैं। और दूसरा सदा श्रीमत की लकीर के अन्दर हैं। तो डबल लकीर के अन्दर हो। डबल लकीर के अन्दर रहने वालों की स्टेज कितनी श्रेष्ठ होगी। आज बापदादा अपने भूमि निवासियों से मिलने आये हैं। बाप की चरित्र भूमि है ना। तो भूमि निवासियों से विशेष स्नेह होगा ना।
बिचारे आज के भक्त तो भूमि की मिटटी मस्तक में लगाने के लिए तरस रहे हैं और आप सदा वहाँ निवास करते हो तो कितने भाग्यशाली हो! दिल तख्तनशीन तो सब हैं लेकिन मधुबन निवासी चुल्ह पर भी हैं तो दिल पर भी हैं। डबल हो गया ना। सबसे ताजा माल मधुबन निवासियों को मिलता है। सबसे बढ़िया अनुभवों की पिकनिक मधुबन निवासी करते हैं। सबसे ज्यादा मिलन महफिल मधुबन निवासी करते हैं। सबसे ज्यादा चारों ओर के समाचारों के नालेजफुल भी मधुबन निवासी हैं। मधुबन निवासियों से मिलने सभी को आना पड़ता है। तो इतना श्रेष्ठ भाग्य, और वर्णन कौन करता है? बाप बच्चों का भाग्य वर्णन कर रहे हैं। मधुबन निवासियों का कितना श्रेष्ठ भाग्य है! अगर एक बात भी सदा याद रखो तो नीचे कभी आ नहीं सकते। अब जितनी बाप ने मधुबन निवासियों के भाग्य की महिमा की, उतनी ही महान आत्मा समझकर चलते हो? मधुबन की महिमा सुनकर फारेनर्स भी देखो खुश हो रहे हैं। इन सबके मन में उमंग आ रहा है कि हम भी मधुबन निवासी हो जावें। आज फारेनर्स जैसे गैलरी में बैठे हैं। गैलरी में बैठकर देखने में मजा होता है। कब मधुबन निवासी देखने वाले कभी फारेनर्स देखने वाले। मधुबन निवासियों के लिए सिर्फ एक ही बात स्मृति में रख समर्थ बनने की है। वह कौन सी? जिस एक बात में सब समया हुआ है।
जो भी संकल्प करो, बोल बोलो, कर्म करो, सम्बन्ध वा सम्पर्क में आओ, सिर्फ एक चेकिंग करो कि यह सब बाप समान हैं? जो मेरा संकल्प वह बाप का संकल्प है? मेरा बोल बाप का बोल है? क्योंकि सबकी यही प्रतिज्ञा है बाप से, ‘‘कि जो बाप से सुना है वही सुनायेंगे। जो बाप सुनायेंगे वहीं सुनेंगे। जो बाप ने सोच के लिए दिया है वहीं सोचेंगे। यह तो सबका वायदा है ना? जब यह वायदा है तो सिर्फ यह चेकिंग करो। यह चेकिंग करना मुश्किल तो नहीं हैं ना। पहले मिलाओ फिर प्रैक्टिकल में लाओ। हर संकल्प पहले बाप समान है - यह चेक करो। पहले भी सुनाया था कि जो द्वापर युगी राज वा रजवाड़े होकर गये हैं, कोई भी चीज़ स्वीकार करेंगे तो पहले चेकिंग होती है फिर स्वीकार करते हैं। तो द्वापर के राजे आपके आगे क्या लगते हैं! आप लोग तो फिर भी अच्छे राजे बने होंगे। लेकिन गिरे हुए राजाओं की भी इतनी खातिरी होती तो आप सबका संकल्प भी बुद्धि का भोजन है। बोल भी मुख का भोजन ही है। कर्म - हाथों का, पाँव का भोजन है। तो सब चेक करना चाहिए ना। पहले करके पीछे सोंचना इसको क्या कहा जायेगा? डबल समझदार।
सिर्फ यह एक बात सदा अपना निजी संस्कार बना दो जैसे स्थूल में भी कई आत्माओं के संस्कार होते हैं, ऐसे वैसे कोई चीज़ कब स्वीकार नहीं करेंगे। पहले चेक करेंगे, देखेंगे फिर स्वीकार करेंगे। आप तो सब महान पवित्र आत्मायें हों, सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हो। तो ऐसी आत्मायें बिना चेकिंग के संकल्प को स्वीकार कर दे , वाणी से बोल दें, कर्म को कर लें - यह महानता नहीं लगेगी। तो मधुबन निवासियों के लिए सिर्फ एक ही बात है। चेकिंग की मशीनरी तो है ना। अभ्यास ही मशीनरी है।
मधुबन वालों की महिमा भी बहुत गाते हैं। अथकपन की खुशबू तो बहुत काल से आती है। जैसे अथक पन की खुशबू आती है यह सर्टिफिकेट तो मिला है,इसके साथ और क्या ऐड करेंगे? जैसे अथक हो वैसे ही सदा एकरस। जब भी रिजल्ट देखें तो सबकी रिजल्ट एकरस अवस्था में एक नम्बर हो। दूसरा तीसरा नम्बर भी नहीं। क्योंकि मधुबन है सबको लाइट और माइट देने वाला। अगर लाइट-हाउस, माइट-हाउस ही हिलता रहेगा तो दूसरों का क्या हाल होगा! मधुबन निवासियों का सब वायुमण्डल बहुत जल्दी चारों ओर फैलता है। यहाँ की छोटी बात भी बाहर बड़े रूप में पहुँचती है। क्योंकि बड़े आदमी हो ना। सदा छत्रछाया में रहने वाले। स्वर्ग में तो प्रालब्ध मिलेगी लेकिन यहाँ भी काफी प्रालब्ध है।मधुबन निवासियों को सब बना बनाया मिलता है। एक डियूटी बजाई बाकी सब बना बनाया। कहाँ से आता है, कितना आता है, कोई संकल्प की जरूरत ही नहीं। सिर्फ सेवा करो और मेवा खाओ। 36 प्रकार के भोजन भी मधुबन वालों को बार-बार मिलते हैं। तो 36 गुण भी तो धारण करने पड़ेंगे। हरेक मधुबन निवासी को पवित्रता की लाइट के ताजधारी तो होना ही है। लेकिन डबल ताज। एक गुणों का ताज, दूसरा - पवित्रता का ताज जिस ताज में कम से कम 36 हीरे तो होने ही चाहिए।
आज बापदादा मधुबन निवासियों को खास और सभी को आम - गुणों के ताज की क्राउन-सेरीमनी करा रहे हैं। हरेक को जो भी देखे तो ताजधारी देखे। हरेक गुण रूपी रत्न चमकता हुआ औरों को भी चमकाने वाला हो। (बापदादा ने ड्रिल कराई)।
सभी लवलीन स्टेज पर स्थित हो ना! एक बाप दूसरा न कोई। इसी अनुभूति में कितना अतीन्द्रिय सुख है! सर्व गुणों से सम्पन्न श्रेष्ठ स्थिति अच्छी लगती है ना। इसी स्थिति में दिन और रात भी बीत जाये फिर भी सदा इसी में रहने का संकल्प रहेगा। सदा इसी स्मृति में समर्थ आत्मा रहो।
बापदादा निरंतर बच्चों से मिलन मनाते रहते हैं और मनाते रहेंगे। अनेक बच्चे होते भी हरेक बच्चे के साथ बाप मिलन मनाते ही हैं। क्योंकि शरीर के बन्धन से मुक्त बाप औरा दादा दोनों एक सेकेण्ड के अन्दर अनेकों को भासना दे सकते हैं।
दीदी जी के साथ - रायल फैमली बन चुकी है या अभी बन रही है? राज्य कारोबार चलाने वाले निकल चुके हैं या अभी निकलने हैं? एक हैं चलानेवाले, एक हैं कारोबार में आनेवाले। जो तख्त नशीन होंगे वह राज्य चलाने वाले। और जो सम्बन्ध में होंगे वह हैं राज्य कारोबार में आने वाले। तो राज्य कारोबार चलाने वाले भी अभी बन रहे हैं ना। राज्य कारोबार चलाने वालों की विशेषता क्या होगी? तख्त पर तो सब नहीं बैठेंगे, तख्त वालों के सम्बन्धी तो बनेंगे लेकिन तख्त पर बैठने वालों की तो लिमिट है ना। रायल फैमली में आनेवाले और राज्य सिंहासन पर बैठने वाले उन्हों में भी अन्तर होगा। कहलायेंगे तो वह भी नम्बर वन, नम्बर टू विश्वमहाराजन की रायल फैमली। लेकिन अन्तर क्या होगा? तख्तनशीन कौन होंगे, उसके भी कोई कायदे होंगे ना। इस पर सोचना।
संगमयुग पर तो दिलतख्त के अधिकारी सबको बाप बनाते हैं। भविष्य में राजे-महाराजे तो बनेंगे लेकिन फर्स्ट नम्बर वाला तख्त जो फर्स्ट लक्ष्मी नारायण वाला होगा उसके तख्तनशीन कौन होंगे? छोटे-छोटे तख्त और राज्य दरबार तो लगेगी लेकिन विश्व-महाराजन के तख्त का विशेष आधार है- हर बात में, हर सब्जेक्ट में बाप को पूरा फालो करने वाले। अगर एक भी सब्जेक्ट में फालो करने में कमी पड़ गई तो फर्स्ट तख्त के अधिकारी नहीं बन सकते। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी पद पा लेंगे लेकिन फर्स्ट नम्बर का ताज और तख्त उसके लिए बापदादा दोनों को हर बात में फालो करना पड़े। तब तख्त भी फालो में मिलेगा। हर बात में, हर संस्कार में, हर संकल्प में फालो फादर करना है। इसके आधार पर नम्बर भी बनेंगे। तख्त वहीं मिलेगा लेकिन उसमें भी नम्बर होंगे। सेकेण्ड लक्ष्मी-नारायण और आठवाँ लक्ष्मी-नारायण अन्तर तो होगा ना। यह फालो में अन्तर पड़ जाता है। इसमें भी गुह्य रहस्य है। महाराजा बनना और महारानी बनने का भी रहस्य है। बापदादा भी राजधानी देखते रहते हैं। कौन-कौन किस राज्य के अधिकारी बनते हैं। किस रेखाओं के हिसाब से बनते हैं, यह भी राज है ना।
फालो फादर की भी बड़ी गुह्य गति है। जन्म में फालो फादर। बचपन जीवन में फालो फादर। युवा जीवन में फालो फादर। सेवा की जीवन में फालो फादर। फिर अन्तिम जीवन में फालो फादर। स्थापना के कार्य के साथ और सहयोग में कितने समय से कितने परसेन्ट में फालो किया? पालना के कार्य में कहाँ तक फालो किया? अपने और औरों के विघ्न विनाशक कार्य में कहाँ तक फालो किया? यह हिसाब की मार्क्स मिलाकर फिर टोटल होता है। टोटल के हिसाब से फाइनल नम्बर होता है।
आप सब जम्प लगा सकते हो। कोटो में कोई ऐसी कमाल दिखा सकते हैं। अब वह कोटो में कोई कौन है? वह अपने से पूछो। ऐसे नहीं कि देरी से आये हो तो नहीं कर सकते हो। कर सकते हो। इतना बड़ा जम्प लगाना पड़े, लगाओ जम्प, बापदादा एकस्ट्रा मदद भी देंगे।
पर्सनल - जैसे बाप बच्चों की श्रेष्ठता को जानते हैं वैसे आप सभी जानते हो? इतना नशा रहता है वा समझते हो कभी रहता है कभी नहीं रहता? बातों को देखते हो या बाप को देखते हो? किसको देखते हो? क्योंकि जितना बड़ा संगठन है तो बातें भी तो इतनी ही होंगी ना। बातों का होना, यह तो संगठन में होगा ही। बातों के समय बाप याद रहता है? यह नहीं सोंचो कि बातें खत्म हों तो बाप याद आवे। लेकिन बातों को खत्म करने के लिए ही बाप की याद है। बातें खत्म ही तब होंगी जब हम आगे बढ़ेंगे। ऐसे नहीं, बातें खत्म हों तब हम आगे बढ़े, हम आगे बढ़ेंगे तो बातें पीछे हो जायेंगी। रास्ता नहीं आगे बढ़ता है, चलने वाला आगे बढ़ता है। कभी रास्ता आगे बढ़ता है क्या? कोई रास्ता पार करने वाला सोचे, रास्ता आगे बढ़े तो मैं बढूँ। रास्ता तो वहीं रहेगा लेकिन उसे तय करने वाला आगे बढ़ेगा। साइडसीन नहीं आगे बढ़ेंगी लेकिन देखने वाला आगे बढ़ेगा। तो यह शक्ति है? ‘एक बाप दूसरा न कोई' - यह पाठ मंसा वाचा कर्मणा में निरंतर याद है? दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है, यह भी एक सब्जेक्ट है, लेकिन कोई वैभव है? कोई विघ्न है? कोई व्यर्थ संकल्प है, अगर एक बाप और दूसरा व्यर्थ संकल्प भी होगा तो दो हो गये ना! संकल्प में भी व्यर्थ न हो, बोल में भी और कुछ नहीं। आत्माओं से सम्पर्क निभाते स्मृति में बाबा। व्यक्ति वा सम्पर्क का विस्तार न हो। ऐसे हैं? आज तन पर, कल मन पर, परसों वस्तु पर कभी व्यक्ति पर, इसमें तो टाइम नहीं चला जाता है? व्यक्ति जायेगा, वैभव आयेगा, वैभव जायेगा, व्यक्ति आयेगा। यह तो लाइन होती है। क्योंकि माया जानती है, थोड़ा भी चांस आने का मिला तो वह बहुरूप से आयेगी। एक रूप से नहीं। यहाँ से वहाँ से, कोने से, छत से, बहु रूपों से, बहुत तरफ से आ जायेगी। लेकिन परखने वाला, एक बाप दूसरा न कोई इस पाठ के आधार पर उनको दूर से ही नमस्कार करायेगा। करेगा नहीं, करायेगा। तो एक बाप दूसरा न कोई यह चारों तरफ। का वातावरण हो। क्योंकि नालेज तो सब मिल गई है। कितनी पाइंटस हैं, पाइंटस होते हुए पाइंटस रूप में रहें, यह है उस समय की कमाल जिस समय कोई नीचे खींच रहा हो। कभी बात नीचे खींचेगी, कभी कोई व्यक्ति निमित्त बन जायेगा, कभी वायुमण्डल, कभी कोई चीज़, यह तो होगा। यह न हो, ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन आप उसमें एकरस रहो, उसकी युक्ति सोचो, कोई नई इन्वेंशन निकालो। ऐसी इन्वेंशन हो जो सब वाह-वाह करें, यह अच्छी युक्ति सुनाई।
मुरली का सार
1. जो भी संकल्प करो, बोल बोलो कर्म करो, सम्बन्ध वा सम्पर्क में आओ, सिर्फ चेकिंग करो कि ये बाप समान हैं।
2. डबल ताजधारी बनो - एक गुणों का ताज, दूसरा - पवित्रता का ताज धारण करो।
3. विश्व-महाराजन के तख्त का विशेष आधार है - हर बात में, हर सब्जेक्ट में बाप को पूरा फालो करना।
3. माया कनैक्शन लूज करती है, कनफ्यूज करती है। क्यों, क्या को खत्म कर कनैक्शन ठीक करो तो सब ठीक हो जायेगा।
27-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"बाप पसन्द, लोक पसन्द, मन पसन्द कैसे बनें?"
आज बापदादा विशेष किस लिए आये हैं? आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से रूह-रूहान करने के लिए आये हैं। लेन-देन करने के लिए आये हैं। दूर-दूर से सब बच्चे मधुबन में आये हैं तो मधुबन वाले बाप आये हुए बच्चों को खास ज्ञान के रूह रूहान की खातिरी करने आये हैं। आज बापदादा बच्चों से सुनने के लिए आये हैं कि किसी को भी किसी बात में कोई मुश्किल तो अनुभव नहीं होता। बाप और आपका मिलना भी सहज हो गया ना। जब मिलन सहज हुआ, परिचय सहज मिला, मार्ग सहज मिला, फिर भी कोई मुश्किल तो नहीं है। मुश्किल है नहीं, लेकिन कोई ने मुश्किल बना तो नहीं दिया है? बाप द्वारा जो खज़ाना मिला है उनकी चाबी जब चाहो तब लगाओ, ऐसी विधि आ गई? विधि है तो सिद्धि भी जरूर है। विधि में कमी है तो सिद्धि भी नहीं होती। क्या हाल चाल है?
सब उड़ रहे हो? जब ऊंचे बाप के सिकीलधे बच्चे बन गये तो चलने की भी क्या जरूरत है? उड़ना ही है। रास्ते पर चलेंगे तो कहाँ बीच में रूकावट आ सकती है, लेकिन उड़ने में कोई रूकावट नहीं होती। सब उड़ते पंछी हैं। ज्ञान और योग के पंख सभी को अच्छी तरह से उड़ा रहे हैं। उड़ते उड़ते थकावाट तो नहीं होती? सबको ‘अथक भव' का वरदान मिल चुका है। बात भी बड़ी सहज ही है। अनुभव होता है ना। अपनी ही बात सुनाते हो। इसलिए है ही बहुत सहज। सम्बन्धों की बातें सुनाना इसमें मुश्किल क्या है। दो बातें सिर्फ सुनानी है :-
एक - अपने परिवार की अर्थात् सम्बन्ध की बात और दूसरी - प्राप्ति की बात। इसलिए बापदादा सदा बच्चों को हर्षित ही देखते हैं। कभी सारे दिन में एकरस स्थिति के बजाए और रस आकर्षित तो नहीं करते हैं? एक रस हो गये हो? नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप हो गये? अब तो गीता का युग समाप्त होना चाहिए। ज्ञान की प्रालब्ध में आ गये ना सभी! स्मृति स्वरूप होना - यह है ज्ञान की प्रालब्ध। तो अब पुरूषार्थ समाप्त हुआ। जो वर्णन करते हो स्व-स्वरूप का, वह सर्वगुण सदा अनुभव रहते हैं ना। जब चाहो आनन्द स्वरूप हो जाओ, जब चाहो तब प्रेम स्वरूप हो जाओ। जो स्वरूप चाहो जितना समय चाहो, उसी स्वरूप में स्थित हो सकते हो, यह भी नहीं, हुए पड़े हो ना? बाप के गुण वहीं बच्चों के गुण। जो बाप का कर्त्तव्य वह बच्चों का कर्त्तव्य। जो बाप की स्टेज वह बच्चों की स्टेज। इसको कहा जाता है - संगमयुगी प्रालब्ध। तो प्रालब्धी हो या पुरूषार्थी हो? प्राप्ति स्वरूप हो? प्राप्त करना है, होता नहीं है, कैसे होगा, यह भाषा बदल गई ना? आज धरनी पर, कल आकाश में, ऐसे आते जाते तो नहीं हो ना? आज क्वेश्चन में कल फुलस्टाप में। ऐसे तो नहीं करते हो। एकरस अर्थात् एक ही सम्पन्न मूड में रहने वाला। मूड भी बदली न हों। बापदादा वतन से देखते हैं - कई बच्चों के मूड बहुत बदलते हैं। कभी आश्चर्यवत की मूड, कभी क्वेश्चन मार्ग की मूड। कभी कनफ्यूज की मूड। कभी टेन्शन, कभी अटेन्शन का झूला तो नहीं झूलते? मधुबन से प्रालब्धी स्वरूप में जाना है। बार-बार पुरूषार्थ कहाँ तक करते रहेंगे। जो बाप वह बच्चा। बाप की मूड आफ होती है क्या? अभी तो बाप समान बनना है। मास्टर हैं ना। मास्टर तो बड़ा होना चाहिए। कम्पलेन्टस् सब खत्म हुई? वास्तव में बात होती है छोटी। लेकिन सोच-सोचकर छोटी बात को बड़ा कर देते हो। सोचने की खातिरी से वह बात छोटी से मोटी बन जाती। सोचने की खातिरी नहीं करो। यह क्यों आया, यह क्यों हुआ। पेपर आया है तो उसको करना है। पेपर क्यों आया यह क्वेश्चन होता है क्या? वेस्ट और बैस्ट सेकेण्ड मैं जज करो और सेकेण्ड में समाप्त करो। वेस्ट है तो आधाकल्प के लिए वेस्ट पेपर बाक्स में उसको डाल दो। वेस्ट पेपर बाक्स बहुत बड़ा है। जज बनो, वकील नहीं बनो। वकील छोटे केस को भी लम्बा कर देते हैं। और जज सेकेण्ड में हाँ वा ना की जजमेंट कर देता है। वकील बनते हो तो काला कोट आ जाता है। है एक सेकेण्ड की जजमेंट, यह बाप का गुण है वा नहीं। नहीं है, तो वेस्ट पेपर बाक्स में डाल दो। अगर बाप का गुण है तो तो बैस्ट के खाते में जमा करो। बापदादा का सैम्पुल तो सामने है ना। कापी करना अर्थात् फालो करना। कोई नया मार्ग नहीं बनाना है। कोई नई नालेज इन्वैन्ट नहीं करनी है। बाप जो सुनाता है वह स्वरूप बनना है। सब विदेशी 100 प्रालब्ध पा रहे हो। संगमयुगी प्रालब्ध है - ‘‘बाप समान।''भविष्य प्रालब्ध है ‘‘देवता पद''। तो बाप समान बन बाप के साथ-सथ उसी स्टेज पर बैठने का कुछ समय तो अनुभव करेंगे ना। कोई भी राजा तख्त पर बैठते हैं, कुछ समय तो बैठेगा ना। ऐसे तो नहीं, अभी-अभी बैठा और अभी-अभी उतरा। तो संगमयुग की प्रालब्ध है - बाप समान स्टेज अर्थात् सम्पन्न स्टेज के तख्तनशीन बनना। यह प्रालब्ध भी तो पानी है ना। और बहुत समय पानी है। बहुत समय कें संस्कार अभी भरने हैं। सम्पन्न जीवन है। सम्पन्न की सिर्फ कुछ घडियाँ नहीं हैं। लेकिन जीवन है। फरिश्ता जीवन है, योगी जीवन है। सहज जीवन है। जीवन कुछ समय की होती है, अभी-अभी जन्मा, अभी- अभी गया। वह जीवन नहीं कहेंगे? कहते हो पा लिया, तो क्या पा लिया? सिर्फ उतरना चढ़ना पा लिया? मेहनत पा लिया? प्रालब्ध को पा लिया? बाप समान जीवन को पा लिया? मेहनत कब तक करेंगे? आधाकल्प अनेक प्रकार की मेहनत की। गृहस्थ व्यवहार, भक्ति, समस्यायें - कितनी मेहनत की! संगमयुग तो है मुहब्बत का युग, मेहनत का युग नहीं। मिलन का युग है। शमा और परवाने के समाने का युग है। नाम मेहनत कहते हो, लेकिन मेहनत है नहीं। बच्चा बनना मेहनत होती है क्या? वर्से में मिला है कि मेहनत में मिला है? बच्चा तो सिर का ताज होता है। घर का श्रृंगार होता है। बाप का बालक सो मालिक होता है। तो मालिक फिर नीचें क्यों आते? आपके नाम देखो कितने ऊंचे हैं! कितने श्रेष्ठ नाम हैं! तो नाम और काम एक हैं ना! सदा बाप के साथ श्रेष्ठ स्टेज पर रहो। असली स्थान तो वही है। अपना स्थान क्यों छोड़ते हो? असली स्थान को छोड़ना अर्थात् भिन्न-भिन्न बातों में भटकना। आराम से बैठो। नशे से बैठो। अधिकार से बैठो। नीचे आकर फिर कहते हो - अब क्या करें? नीचे आते ही क्यों हो? जो भी कोई बोझ अनुभव हो, बोझ अपने सिर पर नहीं रखो। जब मैं-पन आता है तो बोझ सिर पर आ जाता है। मैं क्या करूँ, कैसे करूँ, करना पड़ता है। क्या आप करते हो?वा सिर्फ नाम आपका है काम बाप का रहता है। उस दिन खिलौना देखा - वह खुद चल रहा था या कोई चला रहा था? साइन्स चला सकती है, बाप नहीं चला सकता? यह तो बाप बच्चों का नाम बाला करने के लिए निमित्त बना देते हैं। क्योंकि बाप इस नाम रूप से न्यारा है। जब बाप आपको आफर कर रहे हैं कि बोझ बाप को दे दो आप सिर्फ नाचो, उड़ो फिर बोझ क्यों उठाते हो? कैसे सर्विस होगी, कैसे भाषण करेंगे यह तो क्वेश्चन ही नहीं। सिर्फ निमित्त समझ कनेक्शन पावर हाउस से जोड़कर बैठ जाओ। फिर देखो भाषण होता है वा नहीं! वह खिलौना चल सकता है, आपका मुख नहीं चल सकता? आपकी बुद्धि में प्लैन नहीं चल सकते? कैसे कहने से जैसे तार के ऊपर रबड़ आ जाता है। रबड़ आ जाने के कारण कनेक्शन जुटता नहीं और प्रत्यक्षफल नहीं दिखाई देता। इसलिए थक जाते हो - पता नहीं क्या होगा! बाप ने निमित्त बनाया है तो अवश्य होगा। अगर कोई स्थान पर हैं ही 6-8 तो दूसरे स्थान से निकालो। दिलशिकस्त क्यों होते हो? चक्कर लगाओ। आसपास जाओ, चक्कर तो बहुत बड़ा है। कहाँ से 8 निकले वह भी कम नहीं। फिर भी कोने में छिपे हुए को निकाला तो आपके कितने गुण गायेंगे। बाप के साथ निमित्त बनी हुई आत्मा को भी दिल से दुवायें तो देते हैं ना। कहाँ से एक रतन भी निकला, एक के लिए भी जाना तो पड़ेगा। ना। क्या उसको छोड़ देंगे? वह आत्मा वंचित रह जायेगी। जितने निकलें उतने निकालो। फिर आगे बढ़ो। अब तो विश्व के सिर्फ कोने तक पहुँचे हो। शिकार भी बहुत है, जंगल भी बहुत बड़ा है। सोचते क्यों हो? सोचने के कारण क्या होता? बुद्धि में व्यर्थ भर जाने के कारण टचिंग नहीं होती। परखने की शक्ति कार्य नहीं करती। जितना स्पष्ट होगा उतना जो जैसी चीज़ होगी, वह स्पष्ट दिखाई देगी। तो क्यों क्या के कारण निर्णय शक्ति, टचिंग पावर कार्य नहीं करती। फिर थकावट होती है या दिलशिकस्त होते हैं। जहाँ भी गये हो वहाँ कोई न कोई छिपा हुआ रतन निकला तब तो पहुँचे हो ना! ऐसा तो कोई स्थान नहीं जहाँ से एक भी न निकला हो। कहाँ वारिस निकलेंगे, कहाँ प्रजा, कहाँ साहुकार! सब चाहिए ना! सब राजा तो नहीं बनेंगे। प्रजा भी चाहिए। प्रजा बनाने का यह कार्य निमित्त बने हुए बच्चों को ही करना है। या आप रायल फैमली बनायेंगे, बाबा प्रजा बनायेंगे। दोनों ही बनाना है ना। सिर्फ दो बातें देखो, एक - लाइन किलियर है। दूसरा - मर्यादाओं की लकीर के अन्दर हैं। अगर दोनों बातें ठीक हैं तो कभी भी दिलशिकस्त नहीं होंगे। जिसका कनेक्शन ठीक है, चाहे बाप से चाहे निमित्त बनने वालों से, वह कभी भी असफल नहीं हो सकता। सिर्फ बाप से ही कनेक्शन हो वह भी करेक्ट नहीं। परिवार से भी चाहिए। क्योंकि बाप से तो शक्ति मिलेगी लेकिन सम्बन्ध में किसके आना है। सिर्फ बाप से? राजधानी अर्थात् परिवार से सम्पर्क में आना है। तीन सर्टीफिकेट लेने हैं। सिर्फ एक नहीं।
एक - बाप पसन्द अर्थात् बाप का सर्टीफिकेट। दूसरा - लोक पसन्द अर्थात् दैवी परिवार से सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट। तीसरा - मन पसन्द। अपने मन में भी सन्तुष्टता हो। अपने आप से भी मूंझा हुआ न हो - पता नहीं कर सकूंगा, चल सकूंगा? तो अपने मन पसन्द अर्थात् मन की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट। यह तीन सर्टीफिकेट चाहिए। त्रिमूर्ति हैं ना। तो यह त्रिमूर्ति सर्टीफिकेट चाहिए। दो से भी काम नहीं चलेगा। तीनों चाहिए। कोई समझते हैं - हम अपने से सन्तुष्ट हैं, बाप भी सन्तुष्ट है। चल जायेगा। लेकिन नहीं। जब बाप सन्तुष्ट है, आप भी सन्तुष्ट हो तो परिवार सन्तुष्ट न हो, यह हो नहीं सकता। परिवार को सन्तुष्ट करने के लिए सिर्फ छोटीसी एक बात है। ‘‘ रिगार्ड दो और रिगार्ड लो।'' यह रिकार्ड दिन रात चलता रहे। रिगार्ड का रिकार्ड निरन्तर चलता रहे। कोई कैसा भी हो लेकिन आप दाता बन देते जाओ। रिटर्न दे वा न दे लेकिन आप देते जाओ। इसमे निष्काम बनो। मैंने इतना दिया। उसने तो कुछ दिया नहीं। हमने सौ बार दिया, उसने एक बार भी नहीं। इसमें निष्काम बनो तो परिवार स्वत: ही सन्तुष्ट होंगे। आज नहीं तो कल। आपका देना जमा होता जायेगा, वह जमा हुआ फल जरूर देगा। और बाप पसन्द बनने के लिए क्या चाहिए? बाप तो बड़े भोले हैं। बाप जिसको भी देखते हैं, सब अच्छे ते अच्छे हैं। ‘अच्छा नहीं' ऐसा तो कोई नजर ही नहीं आता। एक एक पाण्डव, एक एक शक्ति एक से एक आगे है। तो बाप पसन्द बनने के लिए -’’सच्ची दिल पर साहेब राजी।''जो भी हो सच्चाई, सत्यता बाप को जीत लेती है। और मन पसन्द बनने के लिए क्या चाहिए? मनमत पर नहीं चलना। मनपसन्द और चीज़ हैं। मन पसन्द बनने के लिए बहुत सहज साधन है - श्रीमत की लकीर के अन्दर रहो। संकल्प करो तो भी श्रीमत की लकीर के अन्दर। बोलो, कर्म करो, जो कुछ भी करो लकीर के अन्दर। तो सदा स्वयं से भी सन्तुष्ट और सर्व को भी सन्तुष्ट कर सकेंगे। संकल्प रूपी नाखून भी बाहर न हो।
बापदादा भी जानते हैं कि कितनी लगन है, कितना दृढ़ संकल्प है। सिर्फ बीच बीच में थोड़े से नाजुक हो जाते। जब नाजुक बनते तो नखरे बहुत करते। प्यार ही इन्हों की टिकेट है तब पहुँचते हैं। प्यार न होता तो प्यार की टिकेट बिना यहाँ कैसे पहुँच सकते? यही टिकेट मधुबन निवासी बनाती। चारों ओर सेवा के लिए निमित्त बनाती। बापदादा ने आफरीन तो दी ना? जो वायदा करके गये वह निभाया। बाकी वृद्धि होती रहेगी। स्थापना तो कर ली ना। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति - दोनों का बैलेन्स हो तो सदा वृद्धि होती रहेगी।
यह भी एक विशेषता देखी। बहुत समय के इन्डीपैडेंट रहने वाले, अपने को संगठित रूप में चला रहे हैं। यह भी बहुत अच्छा परि- वर्त्तन है। एक एक अलग रहने वाले 4-6 इकट्ठे रहें और फिर संस्कार मिलाकर रहें - यह भी स्नेह का रिटर्न है। पाण्डव भवन, शक्ति भवन सफल रहे यह भी विशेषता है। बाप दादा इस रिटर्न को देख हर्षित होते हैं। एकनामी, एकानामी यह भी रिटर्न है ना। अपना शरीर निर्वाह और सेवा का निर्वाह दोनों में हाफ-हाफकर चलाना - यह भी अच्छी इन्वेंशन निकाली है। डबल कार्य हो गया ना। कमाया और लगाया। यहाँ एक बैंक बैलेन्स नहीं बनता लेकिन भविष्य जमा होता है। बुद्धि तो फ्री है ना? आया और लगाया। बेफकर बादशाह! शक्तियों और पाण्डवों दोनों की रेस है। दीपक जगाऔर जगाने चल पड़तीं। लक्ष्य बहुत अच्छा रखा है। भारत में हैन्डस निकालने की मेहनत करते और वहाँ बने बनाये हैन्डस सहज निकल आते हैं, यह भी वरदान है। पीछे आने वालों को यह लिफ्ट है। यहाँ वालों को बंधन काँटने में टाइम लगता और इन्हों को बंधन कटा कटाया है। तो लिफ्ट हो गई ना। सिर्फ मन का बन्धन नहीं हो।
टीचर्स ने भी मेहनत की है। टीचर बनना अर्थात् सेवा के बन्धन में बंधना। लेकिन नाम सेवा है प्राप्ति बड़ी हैं। क्योंकि पुण्य-आत्मा बनते हो ना। टीचर का अर्थ ही है महापुण्य-आत्मा बनना। पुण्य का फल तो भक्ति में भी मिलता है। और यहाँ प्रत्यक्ष फल मिलता है। जितनी सेवा करते उतना हुल्लास हिम्मत, उमंग रहता। और ज्ञान के मुख्य राज अन्दर ही अन्दर स्पष्ट होते जाते। तो सेवाधारी बनना अर्थात् प्राप्ति स्वरूप बनना। इसलिए सब फालो करते हैं कि हम भी सेवाधारी बनें।
सिर्फ टीचर कहते हैं तो कभी टीचर का थोड़ा सा रोब भी आ जाता है। लेकिन हम मास्टर शिक्षक हैं। मास्टर कहने से बाप स्वत: याद आता है। बनाने वाले की याद आने से स्वयं स्वत: ही निमित्त हूँ यह स्मृति में आ जाता है। विशेष स्मृति यह रखो कि हम पुण्य आत्मा है। पुण्य का खाता जमा करना और कराना। यह है विशेष सेवा। पाप का खाता रावण ने जमा कराया और पुण्य का खाता बाप निमित्त शिक्षकों के द्वारा कराते। तो पुण्य करना और कराना, पुण्य-आत्मा कभी पाप का एक परसेन्ट, संकल्प मात्र भी नहीं कर सकती। पाप का संकल्प भी आया तो पुण्य आत्मा नहीं। मास्टर शिक्षक का अर्थ ही है - पुण्य का खाता जमा करने और कराने वाले। शिक्षक का बापदादा विशेष समान फ्रेंडस का रूप देखते। फ्रेंडस तब बनते जब समानता होती। संस्कार मिलन होता। जो निमित्त बनते हैं उनके हर संकल्प में, बोल में, कर्म में बाप ही दिखाई दे। जो भी देखें तो उनके मुख से यही निकले कि यह तो बाप समान है। जो कहावत है - ‘बड़े ते बड़े, छोटे सुभान अल्ला'। यह कहावत प्रैक्टिकल अनुभव करेंगे।
याद प्यार तो है ही। महिमा योग्य को सदा हर पल बाप द्वारा यादप्यार मिलता है। यह तो रीति रसम के कारण देना पड़ता है। याद और प्यार के सिवाए आप सब बड़े कैसे हुए? इसी याद प्यार से ही बड़े हुए हो। यादप्यार ही मुख्य पालना है। इसी पालना के आधार पर मास्टर बन गये हो।
विदेशी बच्चों ने विशेष कौन सा नया प्लैन बनाया है? (प्लैन सुनाया) सभी ने चारों ओर कोन्फेरेंस रखी है। कोन्फेरेंस के कनेक्शन से वी.आई.पीज से तो मिलना होगा ही, जाल डालने का तरीका अच्छा है। हरेक के शुद्ध संकल्प से आत्माओं को आकर्षण तो होती ही है। इसलिए चारों ओर के संकल्प और प्लैन चारों ओर नाम बाला करेंगे। जितना जल्दी विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लायेंगे उतना ही जल्दी आवाज बुलन्द होगा। जब भारत में आवाज निकले तब समझो सेवा की समाप्ति होगी। एक तरफ आवाज बुलन्द होगा दूसरे तरफ हालते खराब होंगी। दोनों का मेल होगा। इसलिए सहज ही अनुभव करेंगे कि हमने क्या किया अब जल्दी जल्दी तैयारी करो। जैसे फारेन में विनाश के साधन बहुत बढ़िया बना रहे हैं ना! वैसे नाम बाला, आवाज बुलन्द करने के स्थापना के निमित्त भी आप अच्छे प्लैन बनाओ। अभी सन्देश मिलना रहा हुआ है। इसलिए विनाश का बुलन्द आवाज नहीं निकला वह भी बिचारे सोच में हैं क्या हो रहा है। स्थापना के कारण विनाश रूका हुआ है। जैसे विनाश की सामग्री सिर्फ बटन तक रही हुई है, इतनी तैयारी हो गई है, ऐसे स्थापना की तैयारी भी इतनी पावरफुल हो जाए। जो आवे सेकेण्ड में जो प्राप्ति चाहे वह कर ले। संकल्प का बटन दबाना पड़े, बस। तब वह भी बटन दबेगा। तो इसकी भी तैयारी करनी पड़े। संकल्प इतने पावरफुल हों। सिर्फ एक बाप सदा संकल्प में हो तो सेवा भी स्वत: होती रहेगी। अभी अटेन्शन रखना पड़ता है लेकिन नैचुरल पावरफुल स्टेज बन जाए। तो ऐसे बटन तैयार हैं? टीचर्स क्या समझती हैं? अभी कोन्फेरेंस करना माना शस्त्र चलाना, और वह बटन दबाना। अभी तो आपको निमंत्रण देना पड़ता, स्टेज बनानी पड़ती और फिर स्वयं आयेंगे, अभी सुनने के लिए आते हैं फिर लेने के लिए आयेंगे। कुछ दे दो, माँगनी करेंगे, जरा भी दे दो। बटन दबाते जायेंगे और स्टैम्प लगती जायेगी - प्रजा, साहूकार, पहली प्रजा, दूसरी प्रजा। तो अब यह करना पड़ेगा।
विश्व-महाराजन के तख्त का विशेष आधार है - हर बात में, हर सब्जेक्ट में बाप को पूरा फालो करना।
29-03-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"ज्ञान का सार ‘मैं’ और ‘मेरा बाबा’"
बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप बनाने के लिए रोज-रोज भिन्न-भिन्न प्रकार से पाइंटस बताते रहते हैं। सभी पाइंटस का सार है - सभी को सार में समाए बिन्दु बन जाओ। यह अभ्यास निरंतर रहता है? कोई भी कर्म करते हुए यह स्मृति रहती है कि - मैं ज्योतिबिन्दु इन कर्मेन्द्रियों द्वारा यह कर्म कराने वाला हूँ। यह पहला पाठ स्वरूप में लाया है? आदि भी यही है ओर अन्त में भी इसी स्वरूप में स्थित हो जाना है। तो सेकेण्ड का ज्ञान, सेकेण्ड के ज्ञान स्वरूप बने हो? विस्तार को समाने के लिए एक सेकेण्ड का अभ्यास है। जितना विस्तार को समाने के लिए एक सेकेण्ड का अभ्यास है। जितना विस्तार में आना सहज है उतना ही सार स्वरूप में आना सहज अनुभव होता है? सार स्वरूप में स्थित हो फिर विस्तार में आना, यह बात भूल तो नहीं जाते हो? सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी। विस्तार को देखते, सुनते, वर्णन करते ऐसे अनुभव करेंगे जैसे एक खेल कर रहे हैं। ऐसा अभ्यास सदा कायम रहे। इसको ही ‘सहज याद' कहा जाता है।
जीवन के हर कर्म में दो शब्द काम में आते हैं, चाहे ज्ञान में, चाहे अज्ञान में। वह कौन से? - मैं और मेरा। इन दो शब्दों में ज्ञान का भी सार है। मैं ज्योति-बिन्दु वा श्रेष्ठ आत्मा हूँ। ब्रह्माकुमार वा कुमारी हूँ। और मेरा तो एक बाप दूसरा न कोई। मेरा बाबा इसमें सब आ जाता है। मेरा बाबा अर्थात् मेरा वर्सा हो ही गया। तो यह ‘मैं' और ‘मेरा' दो शब्द तो पक्का है ना! मेरा बाबा कहने से अनेक प्रकार का मेरा समा जाता है। तो दो शब्द स्मृति में लाना मुश्किल है वा सहज है? पहले भी यह दो शब्द बोलते थे, अभी भी यही दो शब्द बोलते लेकिन अन्तर कितना है? मैं और मेरा यही पहला पाठ भूल सकता है क्या? यह तो छोटासा बच्चा भी याद कर सकता है। आप नालेजफुल होना। तो नालेजफुल दो शब्द याद न कर सकें, यह हो सकता है क्या! इसी दो शब्दों से मायाजीत, निर्विघ्न, मास्टर सर्वशक्तिवान बन सकते हो। दो शब्दों को भूलते हो तो माया हजारों रूपों में आती है। आज एक रूप में आयेगी, कल दूसरे रूप में। क्योंकि माया का मेरा-मेरा' बहुत लम्बा चौड़ा है। और मेरा बाप तो एक ही है। एक के आगे माया के हजार रूप भी समाप्त हो जाते हैं। ऐसे माया जीत बन गये हो? माया को तलाक देने में टाइम क्यों लगाते हो? सेकेण्ड का सौदा है। उसमें वर्ष क्यों लगाते हो। छोड़ो तो छूटो। सिर्फ ‘मेरा बाबा', फिर उसमें ही मगन रहेंगे। बाप को बार-बार यही पाठ पढ़ाना पड़ता है। दूसरों को पढ़ाते भी हो फिर भी भूल जाते हो। दूसरों को कहते हो याद करो, याद करो। और खुद फिर क्यों भूलते हो? कौन-सी डेट फिक्स करेंगे जो अभुल बन जाओ। सभी की एक ही डेट होगी या अलग-अलग हो सकती होगी? जितने यहाँ बैठे हो उन्हों की एक ही डेट हो सकती है। फिर बातें करना तो खत्म हो गया। खुश खबरी भल सुनाओ, समस्यायें नहीं सुनाओ। जैसे मेला वा प्रदर्शनी करते हो तो उद्घाटन के लिए कैंची से फूलों की माला कटवाते हो। तो आज क्या करेंगे? खुद ही कैंची हाथ में उठायेंगे। वह भी दो तरफ जब मिलती है तब चीज़ कटती है। तो ज्ञान और योग दोनों के मेल से माया की समस्याओं का बन्धन खत्म हो गया, यह खुशखबरी सुनाओ। आज इसी समस्याओं के बन्धन को काटने का दिन है एक सेकेण्ड की बात है ना? तैयार हो ना? जो सोचकर फिर यह बंधन काटेंगे वह हाथ उठाओ। फिरतो सब डबल विदेशी तीव्र पुरूषार्थी की लिस्ट में आ जायेंगे। सुनने समय ही सब के चेहरे चेन्ज हो गये हैं तो जब सदा के लिए हो जायेंगे तो क्या हो जायेगा? सभी चलते फिरते अव्यक्त वतन के फरिश्ते नजर आयेंगे। फिर संगमयुग फरिश्तों का युग हो जायेगा। इसी फिरश्तों द्वारा फिर देवताय प्रगट होंगे। फरिश्तों का देवतायें भी इन्तजार कर रहे हैं। वह भी देख रहे हैं कि जमारे आने के लिए योग्य स्टेज तैयार है। फरिश्ता और देवता दोनों का लास्ट घड़ी मेल होगा। देवतायें आप सब फरिश्तों के लिए वरमाला लेकर के इन्तजार कर रहे हैं फरिश्तों को वरने लिए। आपका ही देवपद इन्त- जार कर रहा है। देवताओं की प्रवेशता सम्पन्न शरीर में होगी ना। वह इन्तजार कर रहे हैं कि यह 16 कला सम्पन्न बनें और वरमाला पहनें। कितनी कला तैयार हुई है। सूक्ष्मवतन में सम्पन्न फरिश्ते स्वरूप और देवताओं के मिलन का दृश्य बहुत अच्छा होता है। फरिश्तों के बजाए जब पुरूषार्थी स्वरूप होता तो देवतायें भी दूर से देखते रहते। समय के प्रमाण समीप आते-आते भी सम्पन्न न होने के कारण रह जाते हैं। यह वरमाला पहनाने की डेट भी फिक्स करनी पड़ेगी। यह फिर कौन-सी डेट होगी? डेट फिक्स होने से ‘जैसा लक्ष्य वैसे लक्षण' आ जाते हैं। वह डेट तो आज हो गई। तो यह भी नजदीक हो जायेगी ना। क्योंकि निर्विघ्न भव की स्टेज कुछ समय लगातार चाहिए। तब बहुतकाल निर्विघ्न राज्य कर सकेंगे। अभी समस्याओं के और समाधान के भी नालेजफुल हो गये हो। जो बात किससे पूछते हो उससे पहले नालेज के आधार से समझते भी हो कि यह ऐसा होना चाहिए। दूसरे से मेहनत लेने के बजाय, समय गंवाने के बजाय क्यों न उसी नालेज की लाइट और माइट के आधार पर सेकेण्ड में समाप्त करके आगे बढ़ते हो? सिर्फ क्या है कि माया दूर से ऐसी परछाई डालती है जो निर्बल बना देती है। आप उसी घड़ी कनेक्शन को ठीक करो। कनेक्शन ठीक करने से मास्टर सर्वशक्तिवान स्वत: हो जायेंगे।
माया कनेक्शन को ही ढ़ीला करती है उसकी सिर्फ सम्भाल करो। यह समझ लो कि कनेक्शन कहाँ लूज हुआ है तब निर्बलता आई है। क्यों हुआ, क्या हुआ यह नहीं सोचो। क्यों क्या के बजाए कनेक्शन को ही ठीक कर दो तो खत्म। सहयोग के लिए समय भल लो। योग का वायुमण्डल वायब्रेशन बनाने के लिए सहयोग भल लो, बाकी और व्यर्थ बातें करना वा विस्तार में जाना इसके लिए कोई का साथ न लो। वह हो जायेगा शुभचिन्तन और वह हो जायेगा परचिन्तन। सब समस्याओं का मूल कारण कनेक्शन लूज होना है। है ही यह एक बात। मेरा ड्रामा में नहीं है, मेरे को सहयोग नहीं मिला, मेरे को स्थान नहीं मिला। यह सब फालतू बातें हैं। सब मिल जावेगा सिर्फ कनेक्शन को ठीक करो तो सर्व शक्तियाँ आपके आगे घूमेंगी। कहाँ जाने की फुर्सत ही नहीं होगी। बापदादा के सामने जाकर बैठ जाओ तो कनेक्शन जोड़ने के लिए बापदादा आपके सहयोगी बन जायेंगे। अगर एक दो सेकेण्ड अनुभव न भी हो तो कनफ्यूज न हो जाओ। थोड़ा सा जो टूटा हुआ कनेक्शन है उसको जोड़ने में एक सेकेण्ड वा मिनट लग भी जाता है तो हिम्मत नहीं हारो। निश्चय ही फाउन्डेशन को हिलाओ नहीं। और ही निश्चय को परिपक्व करो। बाबा मेरा, मैं बाबा का - इसी आधार से निश्चय की फाउन्डेशन को और ही पक्का करो। बाप को भी अपने निश्चय के बन्धन में बाँध सकते हो। बाप भी जा नहीं सकते। इतनी अथार्टी इस समय बच्चों को मिली हुई है। अथार्टी को, नालेज को यूज़ करो। परिवार के सहयोग को यूज़ करो। कम्पलेन्ट लेकर नहीं जाओ, सहयोग की भी माँग नहीं करो। प्रोग्राम सेट करो, कमजोर हो कर नहीं जाओ, क्या करूँ, कैसे करूँ, घबरा के नहीं जाओ। लेकिन सम्बन्ध के आधार से, सहयोग के आधार से जाओ। समझा! सेकेण्ड में सीढ़ी नीचे, सेकेण्ड में ऊपर, यह संस्कार चेन्ज करो। बापदादा ने देखा है - डबल विदेशी नीचे भी जल्दी उतरते, ऊपर भी जल्दी जाते। नाचते भी बहुत हैं लेकिन घबराने की डान्स भी अच्छी करते हैं। अभी यह भी परिवर्त्तन करो। मास्टर नालेजफुल हो, फिर यह डान्स क्यों करते हो?
सच्चाई और सफाई की लिस्ट के कारण आगे भी बढ रहे हैं। यह विशेषता नम्बरवन है। इस विशेषता को देख बापदादा खुश होते हैं। अब सिर्फ घबराने की डान्स को छोड़ो तो बहुत फास्ट जायेंगे। नम्बर बहुत आगे ले लेंगे। यह बात तो सबको पक्की है कि ‘लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट'। खुशी की डान्स भल करो। बाप का हाथ छोड़ते हो तो बाप को भी अच्छा नहीं लगता कि यह कहाँ जा रहे हैं! बाप के हाथ में हाथ हो फिर तो घबराने की डान्स हो नहीं सकती। माया का हाथ पकड़ते हो तब वह डान्स होती है। बाप का इतना प्रेम है आप लोगों से, जो दूसरे के साथ जाना देख भी नहीं सकते। बाप जानते हैं कि कितना भटक कर परेशान हो फिर बाप के पास पहुँचे हैं, तो कनफ्यूज करने कैसे देंगे? साकार रूप में भी देखा, स्थूल में भी बच्चे कहाँ जाते थे तो बच्चों को कहते थे - ‘आओ बच्चे, आओ बच्चे।' जब माया अपना रूप दिखावे तो यह शब्द याद करना।
अमृतवेले की याद पावरफल बनाने के लिए पहले अपने स्वरूप को पावरफुल बनाओ। चाहे बिन्दु रूप हो बैठो, चाहे फरिश्ता स्वरूप हो बैठो। कारण क्या होता है स्वयं अपना रूप चेन्ज नहीं करते। सिर्फ बाप को उस स्वरूप में देखते हो। बाप को बिन्दु रूप में या फरिश्ते रूप में देखने की कोशिश करते लेकिन जब तक खुद नहीं बने हैं तब तक मिलन मना नहीं सकते। सिर्फ बाप को उस रूप में देखने की कोशिश करना यह तो भक्ति मार्ग समान हो जाता, जैसे वह देवताओं को उस रूप में देखते और खुद वैसे के वैसे होते। उसी समय वायुमण्डल खुशी का होता। थोड़े समय का प्रभाव पड़ता लेकिन वह अनुभूति नहीं होती। इसलिए पहले स्वस्व रूप को चेन्ज करने का अभ्यास करो। फिर बहुत पावरफुल स्टेज का अनुभव होगा।
दीदी से - वैरायटी देख करके खुशी होती है ना! फिर भी अच्छी हिम्मत वाले हैं। अपना सब कुछ चेन्ज करना और दूसरे को अपना बनाना, यह भी इन्हों को हिम्मत है। इतना ट्रान्सफर हो गये हैं जो अपने ही परिवार के लगते हैं। यह भी ड्रामा में इन्हों का विशेष पार्ट है। अपने पन की भासना से ही यह आगे बढ़ते हैं। एक-एक को देख करके खुशी होती है। पहले तो थे एक ही भारत की अनेक लकड़ियों का एक वृक्ष। लेकिन अभी विश्व के चारों कोनो से अनेक संस्कार, अनेक भाषायें, अनेक खानपान, सब आत्मायें एक वृक्ष के बन गये हैं, यह भी तो वन्डर है! यही कमाल है जो सब एक थे और है और होंगे। ऐसा ही अनुभव करते हैं। विशेष सर्व का स्नेह प्राप्त हो ही जाता है।
पाण्डवों से - सभी महादानी हो ना? किसी को खुशी देना यह सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य का कार्य है। सेवा है। पाण्डव तो सदा एकरस, एकता में रहने वाले एकानामी करने वाले हैं ना। सभी पाण्डव महिमा योग्य हैं, पूज्यनीय भी हैं। भक्तों के लिए तो अभी भी पूज्यनीय हो सिर्फ प्रत्यक्ष नहीं हो। (पाण्डवों की पूजा सिर्फ गणेश व हनुमान के रूप में ही होती है।) नहीं, और देवतायें भी हैं। गणेश वह हैं जो पेट में सब बातें छिपाने वाले हैं। हनुमान - पूँछ से आसुरी संस्कार जलाने वाला है। पूँछ भी सेवा के लिए है। पूछपूछ का पूँछ नहीं है। पाण्डवों की यह विशेषता है - बात पचाने वाले हैं, इधर-उधर करने वाले नहीं। सभी सदा सन्तुष्ट हो ना? पाण्डवपति और पाण्डव यह सदा का कम्बाइन्ड रूप है। पाण्डवपति पाण्डवों के सिवाए कुछ नहीं कर सकते। जैसे शिवशक्ति है, वैसे पाण्डवपति। जैसे पाण्डवों ने पाण्डवपति को आगे किया, पाण्डवपति ने पाण्डवों को आगे किया। तो सदा कम्बाइन्ड रूप याद रहता है? कभी अपने को अकेले तो नहीं महसूस करते हो? कोई फ्रेंड चाहिए, ऐसे तो नहीं महसूस करते? किसको कहें, कैसे कहें, ऐसे तो नहीं? जो सदा कम्बाइन्ड रूप में रहते हैं उसके आगे बापदादा साकार में जैसे सब सम्बन्धों से सामने होते हैं। जितनी लगन होगी उतना जल्दी बाप सामने होगा। यह नहीं निराकार है, आकार है बातें कैसे करें? जो आपस में भी बातें करने में टाइम लगता, ढूंढेंगे। यहाँ तो ढूंढने व टाइम की भी जरूरत नहीं। जहाँ बुलाओ वहाँ हाजिर। इसलिए कहते हैं हाजिरा हजूर। तो ऐसा अनु- भव होता है? अभी तो दिन-प्रतिदिन ऐसे देखेंगे कि जैसे प्रैक्टिकल में अनुभव किया कि आज बापदादा आये, सामने आये हाथ पकड़ा, बुद्धि से नहीं, ऑखों से देखेंगे, अनुभव होगा। लेकिन इसमें सिर्फ ‘एक बाप दूसरा न कोई', यह पाठ पक्का हो। फिर तो जैसे परछाई घूमती है ऐसे बापदादा ऑखों से हट नहीं सकते।
कभी हद का वैराग तो नहीं आता है? बेहद का तो रहना चाहिए। सभी ने यज्ञसेवा की जिम्मेवारी का बीड़ा तो उठा लिया है। अभी सिर्फ हम सब एक हैं, हम सबका सब काम एक है, प्रैक्टिकल दिखाई दे। अभी एक रिकार्ड तैयार करना है, वह कौन-सा है? वह रिकार्ड मुख का नहीं है। एक दो को रिगार्ड का रिकार्ड। यही रिकार्ड फिर चारों ओर बजेगा। रिगार्ड देना, रिगार्ड लेना। छोटे को भी रिगार्ड देना, बड़े को भी देना। यह रिगार्ड का रिकार्ड अभी निकलना चाहिए। अभी चारों ओर इस रिकार्ड की आवश्यकता है।
स्व-उन्नति और विश्व-उन्नति दोनों का प्लैन साथ-साथ हो। दैवीगुणों के महत्व का मनन करो। एक-एक गुण को धारण करने में क्या समस्या आती है? उसे समाप्त कर धारण कर चारों तरफ खुशबू फैलाओ जो सभी अनुभव करें। समझा।
मुरली का सार
1. सार स्वरूप में स्थित हो विस्तार में आने से कोई भी प्रकार के विस्तार की आकर्षण नहीं होगी।
2. ‘‘मैं और मेरा'' इन दो शब्दों की स्मृति से मायाजीत, निर्विघ्न, मास्टर सर्वशक्तिवान बन सकते हो।
3. माया कनैक्शन लूज करती है, कनफ्यूज करती है। क्यों, क्या को खत्म कर कनैक्शन ठीक करो तो सब ठीक हो जायेगा।
03-04-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"ज्ञान मार्ग की यादगार - भक्ति मार्ग"
आज मधुबन के तट पर कौन-सा मेला है? आज अनेक नदियों और सागर का मेला है। हरेक छोटी-बड़ी ज्ञान-नदियाँ पतित-पावन बाप समान पतित-पावनी हैं। बाप अपने सेवा के साथियों को देख रहे हैं। देश से विदेश तक भी पतित पावनी नदियाँ पहुँच गई हैं। देश-विदेश की आत्मायें पावन बन कितने महिमा के गीत गाती हैं। यह मन के गीत फिर द्वापर में मुख के गीत बन जाते हैं। अभी बाप श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ कार्य, श्रेष्ठ जीवन की कीर्ति गाते हैं। फिर भक्ति मार्ग में कीर्त्तन हो जायेगा। अभी अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति के कारण खुशी में आत्माओं का मन नाचता है और भक्ति में फिर पाँव से नाचेंगे। अभी श्रेष्ठ आत्माओं के गुणों की माला सिमरण करते हैं वा वर्णन करते हैं फिर भक्ति मार्ग में मणकों की माला सिमरण करेंगे। अभी आप सब स्वयं बाप को भोग लगाते हो, भक्ति में इसका रिटर्न आप सबको भोग लगायेंगे। जैसे अभी आप सब सिवाए बाप को स्वीकार कराने कोई भी वस्तु स्वीकार नहीं करते, ‘‘पहले बाप'' यह स्नेह सदा दिल में रहता है, ऐसे ही भक्ति में सिवाए आप देव आत्माओं को स्वीकार कराने के खुद स्वीकार नहीं करते हैं। पहले देवता, पीछे हम। जैसे अभी आप कहते हो पहले बाप फिर हम। तो सब कापी की है। आप याद स्वरूप बनते, वह यादगार के स्मृति स्वरूप रहते। जैसे आप सब अटूट अव्यभिचारी अर्थात् एक की याद में रहते हो, कोई भी हिला नहीं सकता, बदल नहीं सकता, ऐसे ही नौधा भक्त, सच्चे भक्त, पहले भक्त, अपने इष्ट के निश्चय में अटूट और अटल निश्चय बुद्धि होते हैं। चाहे हनुमान के भक्त को राम भी मिल जाए तो भी वह हुनमान के भक्त रहेंगे। ऐसे अटल विश्वासी होते हैं। आपका एक बल, एक भरोसा - इसको कापी की है।
आप सभी अभी रूहानी यात्रु बनते। आपकी याद की यात्रा और उन्हों की यादगार की यात्रा। आप लोग वर्त्तमान समय ज्ञान स्तम्भ, शान्ति स्तम्भ के चारों ओर शिक्षा के स्मृति स्वरूप महावाक्य के कारण चक्कर लगाते हो और सभी को लगवाते हो। आप शिक्षा के कारण चक्कर लगाते हो, एक तरफ भी छोड़ते नहीं हो। जब चारों तरफ चक्कर सम्पन्न होता तब समझते हो सब देखा, अनुभव किया। भक्तों ने आपके याद स्वरूपों का चक्कर लगाना शुरू किया। जक तक परिक्रमा नहीं लगाते तो भक्ति सम्पन्न नहीं सम- झते। सबका सब कर्म और गुण सूक्ष्म स्वरूप से स्थूल रूप का भक्ति में कापी किया हुआ है। इसलिए बापदादा सर्व देव आत्माओं को सदा यही शिक्षा देते कि सदा एक में अटल निश्चय बुद्धि रहो। अगर आप अभी एक की याद में एकरस नहीं रहते, एकाग्र नहीं रहते, अटल नहीं बनते तो आपके भक्त अटल निश्चय बुद्धि नहीं होंगे। यहाँ आपकी बुद्धि भटकती है और भक्त पाँव से भटकेंगे। कब किसको देवता बनायेंगे, कब किसको। आज राम के भक्त होंगे, कल कृष्ण के बन जायेंगे। ‘‘सर्व प्राप्ति एक द्वारा'' - ऐसी स्थिति आपकी नहीं होगी तो भक्त आत्मायें भी हर प्राप्ति के लिए अलग-अलग देवता के पास भटकेंगे। आप अपनी श्रेष्ठ शान से परे हो जाते हो तो आपके भक्त भी परेशान होंगे। जैसे यहाँ आप याद द्वारा अलौकिक अनुभूतियाँ करने के बजाए अपनी कमजोरि यों के कारण प्राप्ति के बजाए उल्हनें देते हो। चाहे दिलशिकस्त हो उल्हनें देते, चाहे स्नेह से उल्हनें देते, तो आपके भक्त भी उल्हनें देते रहेंगे। उल्हनें तो सब अच्छी तहर जानते हो इसलिए सुनाते नहीं हैं।
बाप कहते हैं - रहमदिल बनो, सदा रहम की भावना रखो। लेकिन रहम के बदले अहम् भाव वा वहम् भाव हो जाता है। तो भक्तों में भी ऐसा होता है। वहम् भाव अर्थात् यह करें, ऐसा होगा, नहीं होगा, ऐसे तो नहीं होगा। इसी में रहम भूल जाता है। स्वयं के प्रति भी रहम दिल और सर्व के प्रति भी रहमदिल। स्वयं के प्रति भी वहम् होता है और औरों के प्रति भी वहम् होता है। अगर वहम् की बीमारी बढ़ जाए तो कैन्सर के समान रोग हो जाता। फर्स्ट स्टेज वाला फिर भी बच सकता है लेकिन लास्ट स्टेज वाले का बचना मुश्किल है। न जिंदा रह सकता है, न मर सकता। तो यहाँ भी न पूरा अज्ञानी बन सकता न ज्ञान बन सकता। उन्हों की निशानी होगी - एक ही सलोगन रटते रहेंगे वा कहेंगे - मैं हूँ ही ऐसा, वा दूसरे के प्रति कहेंगे - यह है ही ऐसा। कितना भी बदलने की कोशिश करेंगे, कहेंगे यह है ही ऐसा। कितना भी बदलने की कोशिश करेंगे लेकिन यही रट होगी। कैन्सर वाला पेशेन्ट खाता पीता बहुत अच्छा है। बाहर का रूप अच्छा दिखाई देगा लेकिन अन्दर शक्तिहीन होगा। वहम् की बीमारी वाले बाहर से अपने को बहुत अच्छा चलायेंगे, बाहर कोई कमी नहीं रखेंगे, न कोई और रखेगा तो स्वीकार करेंगे। लेकिन अन्दर ही अन्दर आत्मा असन्तुष्ट होने के कारण खुशी और सुख की प्राप्ति कमजोर होते जाते। ऐसे ही दूसरा है - अहम् भाव। रहम भाव की निशानी है - हर बोल में, हर सकंल्प में ‘एक बाप दूसरा न कोई'। रहम भाव वाले को जहाँ देखो बाप ही बाप दिखाई देगा। और अहम् वाले को जहाँ जाओ, जहाँ देखो मैं ही मैं। वह मैं-मैं की माला सिमरण वाला और वह बाप की माला सिमरण वाला। मैं-पन बाप में समा गया इसको कहा जाता है - लव में लीन हो गया। वह लवलीन आत्मा और वह है मैं-मैं लीन आत्मा। अब समझा। आपको कापी करने वाले सारे कल्प में हैं। भक्ति के मास्टर भगवान हो, सतयुग त्रेता में प्रजा के लिए प्रजापिता हो। संगम पर बापदादा के नाम और कर्त्तव्य को प्रतयक्ष करने के आधारमूर्त्त हो। चाहे अपने श्रेष्ठ कर्म द्वारा, परिवर्त्तन द्वारा बाप का नाम बाला करो, चाहे व्यर्थ कर्म द्वारा, साधारण चलन द्वारा नाम बदनाम करो। है तो बच्चों के ही हाथ में।
विनाशकाल में विश्व के लिए महान कल्याणकारी, महावरदानी, महादानी, महान पुण्य आत्माओं के स्वरूप में होंगे। तो सर्व काल में कितने महान हो! हर काल में आधारमूर्त्त हो। ऐसे अपने को समझते हो? आदि में भी, मध्य में भी और अन्त में भी, तीनों ही काल का परिचय स्मृति में आया। आप एक नहीं हो, आपके पीछे अनेक कापी करनेवाले हैं। इसलिए सदा हर संकल्प में भी अटेन्शन। ऐसे तीनों कालों में महान, सदा एक बाप की स्मृति के समर्थ स्वरूप, सदा रहमदिल, हर सेकेण्ड प्राप्ति स्वरूप और प्राप्ति दाता, ऐसे बाप समान सदा सम्पन्न स्वरूप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
टीचर्स प्रति अव्यकत बापदादा के महावाक्य- टीचर्स का वास्तविक स्वरूप है ही निरंतर सेवाधारी। यह तो अच्छी तरह से जानते हो। और सेवाधारी की विशेषता क्या होती है? सेवाधारी सफल किस बात से बनते हैं? सेवा में सदा खोया हुआ रहे, ऐसे सेवाधारी की विशेषता यह है जो मैं सेवा कर रही हूँ, मैंने सेवा की - इस सेवा-भाव का भी त्याग हो। जिसको आप लोग कहते हो त्याग का भी त्याग। मैंने सेवा की, तो सेवा सफल नहीं होती। मैंने नहीं की लेकिन मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। तो बाप की महिमा आयेगी। जहाँ मैं सेवाधारी हूँ, मैंने किया मैं करूँगी, तो यह ‘मैं-पन' सेवाधारी के हिसाब से भी ‘‘मैं पन'' जो आता है वह सेवा की सफलता नहीं होने देता। क्योंकि सेवा में मैं-पन जब मिक्स हो जाता है तो स्वार्थ भरी सेवा हो जाती है, त्याग वाली नहीं। दुनिया में भी दो प्रकार के सेवाधारी होते हैं - एक स्वार्थ के हिसाब से सेवाधारी, दूसरे स्नेह के हिसाब से त्यागमूर्त्त सेवाधारी। तो कौन से सेवाधारी हो? जैसे सुनाया ना - मैं पन बाबा के लव में लीन हो गया हो, इसको कहा जाता है - ‘सच्चे सेवाधारी'। मैं और तू की भाषा ही खत्म। कराने वाला बाबा,हम निमित्त हैं। कोई भी निमित्त बन जाए। मैं पन जब आता है तो मैं-पन क्या होता है? मैं मैं कौन करता है? (बकरी)। मैं मैं कहने से मोहताजी आ जाती है। जैसे बकरी की गर्दन सदा झुकी हुई रहती है और शेर की गर्दन सदा ऊपर रहती है, तो जहाँ मैं पन आ जाता है वहाँ किसी न किसी कामना के कारण झुक जाते हैं। सदा नशे में सिर ऊंचा नहीं रहता। काई न कोई विघ्न के कारण सिर बकरी के समान नीचे रहता। गृहस्थी जीवन भी बकरी समान जीवन है, क्योंकि झुकते हैं ना। निमार्कनता से झुकना वह अलग चीज़ है, वह माया नहीं झुकाती है, यह तो माया बकरी बना देती है। जबरदस्ती सिर नीचे करा देती, ऑखें नीचे करा देती। सेवा में मैं-पन का मिक्स होना अर्थात् मोहताज बनना। फिर चाहे किसी व्यक्ति के मोहताज हों, पार्ट के मोहताज हों, वस्तु के हों या वायुमण्डल के हों, किसी न किसी के मोहताज बन जाते हैं। अपने संस्कारों के भी मोहताज बन जाते हैं। मोहताज अर्थात् परवश। जो मोहताज होता है वह परवश ही होता है। सेवाधारी में यह संस्कार हो ही नहीं सकते।
सेवाधारी चैलेन्ज करने वाला होता है। चैलेन्ज हमेशा सिर ऊंचा करके करेंगे, गलती होगी तो ऐसे नीचे झुककर बोलेंगे। सेवाधारी अर्थात् चैलेन्ज करने वाला, माया को भी और विश्व की आत्माओं को भी बाप का चैलेन्ज देने वाला। चैलेन्ज भी वह दे सकते है जिन्होंने स्वयं अपने पुराने संस्कारों को चैलेन्ज दी है। पहले अपने संस्कारों को चैलेन्ज देना है फिर जनरल विघ्न जो आते हैं उनको चैलेन्ज देना है। विघ्न कभी भी ऐसे सेवाधारी को रोक नहीं सकते। चैलेन्ज करने वाला माया के पहाड़ के रूप को सेकेण्ड में राई बना देगा। आप लोग भी ड्रामा करते हो ना - माया वाला, उसमें क्या कहते हो? पहाड़ को राई बना देंगे।
तो सच्चे सेवाधारी अर्थात् बाप समान। क्योंकि बाप पहले पहले अपने को क्या कहते? मैं वर्ल्ड सर्वेन्ट हूँ। सेवाधारी बनना अर्थात् बाप समान बनना। एक जन्म की सेवा अनेक जन्मों के ताज और तख्तधारी बना देती है। संगमयुग सेवा का युग है ना। वह भी कितना समय? संगमयुग की आयु वैसे भी छोटी है और उसमें भी हरेक को सेवा का चांस कितना थोड़ा टाइम मिलता! अच्छा, समझो किसी ने 50-60 वर्ष की सेवा की, तो 5000 वर्ष में से 60 भी कम कर दो, बाकी तो सब प्रालब्ध है। 60 वर्ष की सेवा बाकी सब मेवा। क्योंकि संगमयुग के पुरूषार्थ के अनुसार पूज्य बनेंगे। पूज्य के हिसाब से नम्बरवार पुजारी बनेंगे। पुजारी भी नम्बरवन बनते हो। फिर लास्ट जन्म भी देखो कितना अच्छा रहा। जो अच्छे पुरूषार्थी है उनका लास्ट जन्म भी इतना अच्छा रहा तो आगे क्या होगा। यह तो सुख के हिसाब से दु:ख कहा जाता है। जैसे कोई साहुकार हो और थोड़ा गरीब बन जाए तो कहने में तो आता है ना। कोई बड़े आदमी को थोड़ा आधा डिग्री भी बुखार हो तो कहेंगे फलाने को बुखार आ गया लेकिन अगर गरीब को 5 डिग्री भी ज्यादा बुखार हो जाए तो कोई पूछता भी नहीं। तो आप भी इतने दु:खी होते नहीं हो लेकिन अति सुखी के हिसाब से दु:खी कहा जाता है। लास्ट जन्म में भी भिखारी तो नहीं बने ना! दर-दर दो रोटी माँगने वाले तो नहीं बने। इसलिए कहा - पुरूषार्थ का समय बहुत थोड़ा है और प्रारब्ध का समय बहुत बड़ा है। प्रालब्ध कितनी श्रेष्ठ है और कितने समय के लिए यह स्मृति में रहे तो क्या स्टेज हो जायेगी? श्रेष्ठ हो जायेगी ना! तो सेवाधारी बनना अर्थात् पूरे कल्प मेवे खाने के अधिकारी बनना। यह कभी नहीं सोचो कि क्या संगमयुग सारा सेवा ही करते रहेंगे? जब मेवा खायेंगे तब कहेंगे क्या कि सारा कल्प मेवा ही खाते रहेंगे। अभी तो याद है ना कि मिलेगा। एक का लख गुणा जो बनता है तो हिसाब भी होगा ना! सेवाधारी बनना अर्थात् सारे कल्प के लिए सदा सुखी बनना। कम भाग्य नहीं है। टीचर्स कहो या सेवाधारी कहो क्योंकि मेहनत का हजार गुणा फल मिलता है। और वह भी मेहनत क्या है? यहाँ भी स्टूडेन्ट के लिए तो दीदी-दादी बन जाती हो। टाइटल तो मिल जाता है ना। 10 वर्ष का स्टूडेन्ट भी दो वर्ष की आने वाली जो टीचर बनती उसको दीदी-दादी कहने लगते। यहाँ भी ऊंची स्टेज पर तो देखते हैं ना। रिगार्ड तो देते हैं ना। अगर सच्चे सेवाधारी हैं तो यहाँ भी रिगार्ड मिलने के योग्य बन जाते। अगर मिक्स है तो आज दीदी-दादी कहेंगे, कल सुना भी देंगे। सेवा मिक्स है तो रिगार्ड भी मिक्स ही मिक्स है, इसलिए सेवाधारी अर्थात् बाप समान। सेवाधारी अर्थात् बाप के कदम के ऊपर कदम रखने वाले, जरा भी आगे पीछे नहीं। चाहे मंसा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्पर्क सबमें फुट स्टैप लेने वाले। एकदम पाँव के ऊपर पाँव रखने वाले, इसको कहा जाता है ‘फुट स्टैप लेने वाले'। क्या समझते हो, ऐसा ही ग्रुप है ना? टीचर्स तो सदा सहजयोगी है ना। टीचर्स मेहनत का अनुभव करेंगे तो स्टूडेन्ट का क्या हाल होगा?
05-04-81 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"समर्थ कर्मों का आधार - धर्म"
आज बापदादा अपने विश्व परिवर्त्तक विश्व-कल्याण कारी बच्चों को देख रहे हैं। जब से ब्राह्मण जीवन हुआ तब से इसी महान कर्त्तव्य का संकल्प किया। ब्राह्मण जीवन का मुख्य कर्म ही यह है। मानव जीवन में हरेक आत्मा की विशेष दो धारणायें हैं। एक धर्म, दूसरा - कर्म। धर्म में स्थित होना है और कर्म करना है। धर्म के बिना जीवन के कर्म में सफलता मिल नहीं सकती। धर्म अर्थात् विशेष धारणा। मैं क्या हूँ? इसी धारणा अर्थात् धर्म के आधार से मुझे क्या करना है - वह बुद्धि में स्पष्ट होता है। चाहे यथार्थ धर्म अर्थात् धारणा हो चाहे अयथार्थ हो। असमर्थ कर्म भी अयथार्थ धारणा है। अर्थात् मैं मानव हूँ, मेरा धर्म ही मानव धर्म है, जिसको देह अभिमान कहते हो। इसी धर्म के आधार पर कर्म भी उल्टे हुए। ऐसे ब्राह्मण जीवन में भी यथार्थ यह धारणा है कि - मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ। मैं आत्मा शान्त, सुख, आनंद स्वरूप हूँ। इसी आधार पर कर्म बदल गया। अगर कर्म में श्रेष्ठ के बजाए साधारण कर्म हो जाता है, उसका भी आधार इसी धर्म अर्थात् धारणा की कमी हो जाती कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, श्रेष्ठ गुणों का स्वरूप हूँ। तो फाउन्डेशन क्या हुआ? इसी कारण धर्मात्मा शब्द कहा जाता है। आप सब धर्मात्मा हो ना। धर्मात्माओं द्वारा स्वत: ही व्यर्थ वा साधारण कर्म समाप्त हो जाते हैं। पहले यह चेक करो कि सदा धर्म में स्थित रहता हूँ। तो कर्म स्वत: ही समर्थ चलता रहेगा। यही पहला पाठ है - मैं कौन? इसी - मैं कौन के क्वेश्चन में सारा ज्ञान आ जाता है। मैं कौन, इसी प्रश्न के उत्तर निकालो तो कितनी लिस्ट बन जायेगी। अभी अभी सेकेण्ड में अगर स्मृति में लाओ तो कितने टाइटल्स याद आ जायेंगे। क्योंकि कर्म के आधार पर सबसे ज्यादा टाइटल्स वह आपके भी टाइटल्स। सबमें मास्टर हो गये ना। सारे कल्प के अन्दर टाइटल्स की लिस्ट इतनी बड़ी किसकी भी नहीं होगी। देवताओं की भी नहीं है। सिर्फ अपने टाइटल्स लिखने लगो तो छोटा सा पुस्तक बन सकता है। यह इस संगम के टाइटल्स आपकी डिग्री हैं। उन्हों की डिग्री भले कितनी भी बड़ी हो लेकिन आप लोगों के आगे वह कुछ नहीं है। इतना नशा रहता है? फिर भी शब्द यही आयेगा - मैं कौन? रोज नया नया टाइटल स्मृति में रखो अर्थात् उसी टाइटल के धारणा स्वरूप धर्मात्मा बन कर्म करो। कर्म करते धर्म को न छोड़ो। धर्म और कर्म का मेल होना यही संगमयुग की विशेषता है।
जैसे आत्मा और परमात्मा के टूटे हुए सम्बन्ध को बाप ने जोड़ लिया, ऐसे धर्म और कर्म के सम्बन्ध को भी जोड़ लो। तब धर्मात्मा प्रत्यक्ष होंगे। आज बापदादा सर्व बच्चों का यही खेल देख रहे थे कि कौन धर्म और कर्म का मेल कर चलते हैं, एक को पकड लेते हैं, एक को छोड़ देते। जैसे कर्मयोग, तो कर्म और योग का मेल है, अगर दोनों में से एक को छोड़ दें तो ऐसे ही होगा जैसे झूला झूलने में दोनों रस्सी जरूरी होती है, अगर एक रस्सी टूट जाए वा नीचे ऊपर हो जाए, वा छोटी बड़ी हो, समान न हो तो क्या हाल होगा! ऐसे ही धर्म और कर्म दोनों के मेल से सर्व प्राप्तियों के झूले में झूलते रहेंगे। नीचे ऊपर हो जाने से प्राप्ति के झूले से अप्राप्त स्वरूप का अनुभव कर लेते हो। चलते चलते चेक करना नहीं आता इसलिए झूलने के बजाए चिल्लाने लग जाते हो कि क्या करें, कैसे करें? जैसे अज्ञानियों को कहते हो - मैं कौन हूँ यह पहली नहीं जानते हो। ऐसे अपने से पूछो - मैं कौन हूँ? यह अच्छी तरह से जाना? इसमें भी तीन स्टेजेज है। एक है जानना है दूसरा है स्वयं को मानना, तीसरा है मानकर चलना अर्थात् वह स्वरूप बनना। तो किस स्टेज तक पहुँचे हो? जानने में तो सब पास हो ना। मानने में भी सब पास हो। और तीसरा नम्बर है - मानकर चलना अर्थात् स्वरूप बनना, इसमें क्या समझते हो? जब स्वरूप बन गये तो स्वरूप कब भूल नहीं सकता। जैसे देह का स्वरूप कब भूल सकते हो क्या? भल करके देह समझना उल्टा है लेकिन स्वरूप तक आ गया तो भुलाते भी नहीं भूलते हो ना! ऐसे ही हर टाइटल सामने रख करके देखो स्वरूप में लाया है? जैसे रोज बापदादा स्वदर्शन चक्रधारी का टाइटल स्मृति में दिलाते हैं। ऐसे चेक करो - स्वदर्शन चक्रधारी यह संगम का स्वरूप है, तो जानने तक लाया है वा मानने तक वा स्वरूप तक? सदा स्वदर्शन चलता है वा पर-दर्शन स्वदर्शन को भुला देता है। यह देह को देखना भी परदर्शन है। स्व आत्मा है, देह पर है, प्रकृति पर है। प्रकृति भाव में आना भी प्रकृति के वशीभूत होना है। यह भी परदर्शन चक्र है। जब अपनी देह को देखना भी परदर्शन हुआ तो दूसरे की देह को देखना - इसको स्वदर्शन कैसे कहेंगे? व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार यह भी देहभान के सम्बन्ध से हैं। आत्मिक स्वरूप के संस्कार जो बाप के संस्कार वह आत्मा के संस्कार। बाप के संस्कार जानते हो? वह सदा विश्व कल्याणकारी, परोपकारी रहमदिल, वरदाता है। ऐसे संस्कार नैचुरल स्वरूप में बने हैं? संस्कार बनना अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म स्वत: ही उसी प्रमाण सहज चलना। संस्कार ऐसी चीज़ हैं जो आटोमेटिक आत्मा को अपने प्रमाण चलाते रहते। संस्कार समझो आटोमेटिक चाबी है जिसके आधार पर चलते रहते हो। जैसे खिलौने को नाचने की चाबी देते तो वह नाचता ही रहता। अगर किसको गिरने की देंगे तो गिरता ही रहेगा। ऐसे जीवन में संस्कार भी चाबी है। तो बाप के संस्कार निजी संस्कार बनाये हैं? जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो - मेरी यह नेचर है। बाप समान नेचर हो जाए - सदा वरदानी, सदा उपकारी, सदा रहमदिल। तो मेहनत करनी पड़ेगी। जब मैं कौन हूँ को स्वरूप में लाओ, इसी धर्म को कर्म में अपनाओ तब कहेंगे स्वरूप तक लाया। नहीं तो जानने और मानने वाली लिस्ट में चले जायेंगे। सदा यह स्मृति रखो - मेरा धर्म ही यह है। इसी धर्म में सदा स्थित रहो, कुछ भी हो जाए, चाहे व्यक्ति, चाहे प्रकृति, चाहे परिस्थिति लेकिन आप लोगों का सलोगन है ‘‘धरत परिये धर्म न छोड़िये।'' इसी सलोगन को अथवा प्रतिज्ञा को सदा स्मृति में रखो।
इस समय कल्प पहले वाले पुराने सो नये बच्चे आये हैं। पुराने ते पुराने भी हो और नये भी हो। नये बच्चे अर्थात् सबसे छोटे, छोटे सबसे लाडले होते हैं। नये पत्ते सबको सुन्दर लगते हैं ना! तो भल नये हैं लेकिन अधिकार में नम्बर वन। ऐसे सदा पुरूषार्थ करते चलो। सबसे पहला अधिकार पवित्रता का। उसके आधार पर सुख-शान्ति, सर्व अधिकार प्राप्त हो जाते। तो पहला पवित्रता का अधिकार लेने में सदा नम्बरवन रहना। तो प्राप्ति में भी नम्बरवन हो जायेंगे। पवित्रता की फाउन्डेशन को कभी कमजोर नहीं करना। तब ही लास्ट सो फास्ट जायेंगे। बापदादा को भी बच्चों को देख खुशी होती है कि फिर से अपना अधिकार लेने पहुँच गये हैं। इसलिए खूब रेस करो। अभी भी टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। सब सीट्स खाली है, फिक्स नहीं हुई हैं। जो नम्बर लेने चाहो वह ले सकते हो, इतना अटेन्शन रखते चलते चलो। अधिकारी बनते चलो। योग्यताओं को धारण कर योग्य बनते चलो।
ऐसे बाप समान सदा श्रेष्ठ धर्म और श्रेष्ठ कर्मधारी, सदा धर्म-आत्मा, सदा स्वदर्शन चक्रधारी स्वरूप, सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
होवनहार टीचर्स कुमारियों के ग्रुप से बापदादा की मुलाकात –
यह ग्रुप होवनहार विश्व कल्याणकारी ग्रुप है ना। यही लक्ष्य रखा है ना। स्व-कल्याण कर विश्व-कल्याणकारी बनेंगे - यही दृढ़ संकल्प किया है ना? बापदादा हर निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं को देख खुश होते हैं कि यह एक-एक कुमारी अनेक आत्माओं के कल्याण के प्रति निमित्त बनने वाली है। वैसे कुमारी को 100 ब्राह्मणों से उत्तम कहते हैं लेकिन 100 भी हद हो गई। यह तो सब बेहद के विश्व कल्याणकारी हैं बेहद की हो ना? हद का संकल्प भी नहीं। फिर सभी एक दो से रेस में आगे हो वा नम्बरवार हो? क्या समझती हो? हरेक में अपनी अपनी विशेषता तो होगी लेकिन यहाँ सर्व विशेषताओं से सम्पन्न हो? जब सब विशेषताएं धारण करो तब सम्पन्न बनो। तो क्या लक्ष्य रखा है? बात बहुत छोटी है, कोई बड़ी बात नहीं है, संकल्प दृढ है तो प्राप्ति स्वत: हो जाती है। अगर सिर्फ संकल्प है, उसमें दृढ़ता नहीं तो भी अन्तर पड़ जाता है। कभी कहते हैं ना विचार तो है, करना तो चाहिए इसको दृढ संकल्प नहीं कहेंगे। दृढ़ संकल्प अर्थात् करना ही है, होना ही है। तो ‘‘शब्द'' निकल जाता है। बनना तो है, नहीं। लेकिन बनना ही है। यह लक्ष्य रखो तो नम्बरवन हो जायेंगे। सहज जीवन अनुभव होती है? मुश्किल तो नहीं लगता? कालेज का वातावरण प्रभाव तो नहीं ड़ालता, आपका वातावरण उन्हों पर प्रभाव डालता है? सदा निर्विघ्न रहना। स्व को देखना अर्थात् निर्विध्न बनना। सुनाया ना - बाप के संस्कार सो अपने संस्कार, फिर जैसे निमित्त मात्र कर रहे हैं लेकिन करावनहार बाप है। करन-करावनहार जो गाया जाता है वह इस समय का ही प्रैक्टिकल अनुभव है। अच्छा एगजाम्पुल बनी हो। सदा सपूत बन सबूत देते रहना। सपूत उसको ही कहा जाता है जो सबूत दे। कभी आपस में खिट-खिट तो नहीं होती है? नालेजफुल हो जाने से एक दो के संस्कार को भी जानकर संस्कार परिवर्त्तन की लगन में रहते हैं। यह नहीं सोचते कि यह तो ऐसे हैं ही लेकिन यह ऐसे से ऐसा कैसे बने, यह सोचेंगे। रहमदिल बनेंगे। घृणा दृष्टि नहीं रहम की दृष्टि - क्योंकि नालेजफुल हो गये ना! सहज जीवन और श्रेष्ठ प्राप्ति, इस जैसा भाग्य और कब मिल सकता है? अच्छे सर्विसएबुल हैन्डस हैं, ऐसे ही हैन्डस निकलते जाएं तो बहुत अच्छा। हिम्मते बच्चे मददे बाप। शक्तियाँ तो हैं ही विजयी। शक्ति की विजय न हो यह हो नहीं सकता।
“सर्व ब्राह्मण बच्चों प्रति इस वर्ष के लिए अव्यक्त बापदादा का विशेष इशारा”
इस वर्ष हरेक बच्चे को यह विशेष अटेन्शन देना है कि हमें तीनों ही सर्टीफिकेट (मनपसंद, लोकपसंद और बाप पसंद) लेने हैं। मन पसंद का सर्टीफिकेट है या नहीं उसकी परख बापदादा के कमरे में जाकर कर सकते हो, क्योंकि उस समय बाप बन जाता है दर्पण और उस दर्पण में जो कुछ होता है वह स्पष्ट दिखाई देता है। अगर उस समय बाप के आगे अपना मन सर्टीफिकेट देता है कि मैं ठीक हूँ तो समझो ठीक, अगर उस समय मन में चलता - यह ठीक नहीं है, तो अपने को परिवर्त्तन कर देना चाहिए। अगर मानो मैजारिटी किसी बात के प्रति कोई इशारा देते हैं लेकिन स्वयं नहीं समझते कि मैं राँग हूँ, फिर भी जब लोक-संग्रह के प्रति ऊपर से डायरेक्शन मिले कि यह अटेन्शन रखना चाहिए तो फिर उस समय अपनी नहीं चलानी चाहिए। क्योंकि अगर सत्यता की शक्ति है तो सत्य को कहा ही जाता है - ‘‘ सत्यता महानता है।'' और महान वही है जो स्वयं झुकता है। अगर मानो कल्याण के प्रति झुकना भी पड़ता है तो वह झुकना नहीं है, लेकिन महानता है। अनेकों की सेवा के अर्थ महान को झुकना ही पड़ता है। तो यह विशेष अटेन्शन रखो। इसी में ही अलबेलापन आ जाता है। मैं ठीक हूँ, ठीक तो हो लेकिन जो ठीक रह सकता है वह स्वयं को मोल्ड भी कर सकता है। अगर मानो दूसरे को मेरी कोई चलन से कोई भी संकल्प उत्पन्न होता है तो स्वयं को मोल्ड करने में नुकसान ही क्या है? फिर भी सबकी आशीर्वाद तो मिल जायेगी। यह आशीर्वाद भी तो फायदा हुआ ना। क्यों-क्या में नहीं जाओ। यह क्यों, यह ऐसे होगा वैसे होगा। इसको फुलस्टाप लगाओ। अब यह विशेषता चारों ओर लाइट हाउस के मुआफिक फैलाओ। इसको कहा जाता है - एक ने कहा, दूसरे ने माना अर्थात् अनेकों को सुख देने के निमित्त। इसमें यह नहीं सोचो कि मैं कोई नीचे हो गया। नहीं। गलती की तभी मैं परिवर्त्तन कर रहा हूँ, यह नहीं सोचो लेकिन सेवा के लिए परिवर्त्तन कर रहा ह। सेवा के लिए स्थूल में भी कुछ मेहनत करनी पड़ती है ना! तो श्रेष्ठ, महान आत्मा बनने के लिए थोड़ा बहुत परिवर्त्तन भी क्या तो हर्जा ही क्या है? इसमें हे! अर्जुन, बनो। इससे वातावरण बनेगा। एक से दो, दो से तीन अगर कोई गलती है और मान ली तो यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन गलती नहीं है और लोक-संग्रह अर्थ करना पड़ता है। यह है महानता। इसमें अगर कोई समझता भी है कि इसने यह किया अर्थात् नीचे हो गया, तो दूसरों के समझने से कुछ नहीं होता, बाप की लिस्ट में तो आगे नम्बर है ना। इसको दबाना नहीं कहा जाता है। यह भी ब्राह्मणों की भाषा होती है ना - कहाँ तक दबेंगे, कहाँ तक मरेंगे, कब तक सहन करेंगे, अगर यहाँ दबेंगे भी तो अनेक आप के पाँव दबायेंगे। यह दबाना नहीं है लेकिन अनेकों के लिए पूज्य बनना है। महान बनना है।
2. इस वर्ष ऐसा कोई नया प्लैन बनाओ जैसे मोहजीत परिवार की कहानी सुनाते हैं कि जिस भी सम्बन्धी के पास गया उसको ज्ञान सुनाया, तो यहाँ भी आप