03-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


डबल विदेशी बच्चों से बापदादा की रूह-रूहान

सर्व की विशेषताओं को बेहद के कार्य में लगाने वाले, बेहद की स्थिति में स्थित करने वाले विश्व-पिता बोले-

आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। सभी बच्चे दूर-दूर से अपने स्वीट होम में पहुँच गये। जहाँ सर्व प्राप्ति का अनुभव करने का स्वत: ही वरदान प्राप्त होता है। ऐसे वरदान भूमि पर वरदाता बाप से मिलने आये हैं। बापदादा भी कल्प-कल्प के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा देख रहे हैं भारत में नज़दीक रहने वाली कई आत्मायें अभी तक प्यासी बन ढूंढ रही हैं। लेकिन साकार रूप से दूर-दूर रहने वाले डबल विदेशी बच्चों ने दूर से ही अपने बाप को पहचान, अधिकार को पा लिया। दूर वाले समीप हो गये और समीप वाले दूर हो गये। ऐसे बच्चों के भाग्य की कमाल देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। आज वतन में भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों की विशेषताओं पर रूह-रूहान कर रहे थे। भारतवासी बच्चों की और डबल विदेशी बच्चों की, दोनों की अपनी अपनी विशेषता थी। आज बच्चों की कमाल के गुण गा रहे थे। त्याग क्या किया और भाग्य क्या लिया! लेकिन बच्चों की चतुराई देख रहे थे कि त्याग भी बिना भाग्य के नहीं किया है। सौदा करने में भी पक्के व्यापारी हैं। पहले प्राप्ति का अनुभव हुआ, अच्छी प्राप्ति को देख व्यर्थ बातों का त्याग किया। तो छोड़ा क्या और पाया क्या? उसकी लिस्ट निकालो तो क्या रिजल्ट निकलेगी? एक छोड़ा और पदम पाया। तो यह छोड़ना हुआ या पाना हुआ? हम आत्मायें विश्व की ऐसी श्रेष्ठ विशेष आत्मायें बनेंगी, डायरेक्ट बाप से सम्बन्ध में आने वाली बनेंगी - ऐसा कब सोचा था! क्रिश्चियन से कृष्णपुरी में आ जायेंगे यह कभी सोचा था! धर्मपिता के फालोअर थे। तना के बजाए टाली में अटक गये। और अब इस वैरायटी कल्प वृक्ष का तना आदि सनातन ब्राह्मण सो देवता धर्म के बन गये। फाउन्डेशन बन गये। ऐसी प्राप्ति को देख छोड़ा क्या? अल्पकाल की निंद्रा को जीता। नींद में सोने को छोड़ा और स्वयं सोना (गोल्ड) बन गये। बापदादा डबल विदेशियो का सवेरे-सवेरे उठ तैयार होना देख मुस्कराते हैं। आराम से उठने वाले और अभी कैसे उठते हैं! नींद का त्याग किया - त्याग के पहले भाग्य को देख, अमृतवेले का अलौकिक अनुभव करने के बाद यह नींद भी क्या लगती है! खान-पान छोड़ा या बीमारी को छोड़ा? खाना पीना छोड़ना अर्थात् कई बीमारियों से छूटना। मुक्त हो गये ना। और ही हैल्थ वैल्थ दोनों मिल गई। इसलिए सुनाया कि पक्के व्यापारी हो।

विदेशी बच्चों की और एक विशेषता यह देखते कि जिस तरफ भी लगते हैं तो बहुत तीव्रगति से उस तरफ चलते हैं। तीव्रगति से चलने के कारण प्राप्ति भी सर्व प्रकार की फुल करने चाहते हैं। बहुत फास्ट चलने के कारण कभी कभी चलते चलते थोड़ी सी भी माया की रूकावट आती है तो घबराते भी फास्ट हैं। यह क्या हुआ। ऐसे भी होता है क्या! ऐसे आश्चर्य की स्थिति में पड़ जाते हैं। फिर भी लगन मजबूत होने के कारण विघ्न पार हो जाता है और आगे के लिए मजबूत बनते जाते हैं। मंज़िल पर चलने में महावीर हो, नाजुक तो नहीं हो ना! घबराने वाले तो नहीं हो? ड्रामा तो बहुत अच्छा करते हो। ड्रामा में माया को भगाने के साधन भी बहुत अच्छे बनाते हो। तो इस बेहद के ड्रामा अन्दर प्रैक्टिकल में भी ऐसे ही महावीर पार्टधारी हो ना? मुहब्बत और मेहनत , दोनों में से मुहब्बत में रहते हो वा मेहनत में? सदा बाप की याद में समाये हुए रहते हो वा बार बार याद करने वाले हो वा याद स्वरूप हो? सदा साथ रहते हो वा सदा साथ रहें, इसी मेहनत में लगे रहते हो? बाप समान बनने वाले सदा स्वरूप रहते हैं। याद स्वरूप, सर्वगुण स्वरूप, सर्व शक्तियों स्वरूप। स्वरूप का अर्थ ही है अपना रूप ही वह बन जाये। गुण वा शक्ति अलग नहीं हो। लेकिन रूप में समाये हुए हों। जैसे कमज़ोर संस्कार वा कोई अवगुण बहुत काल से स्वरूप बन गये हैं, उसको धारण करने की कोई मेहनत नहीं करते हो लेकिन नेचर और नैचुरल हो गये हैं। उनको छोड़ने चाहते हो, महसूस करते हो कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन समय पर फिर से न चाहते भी वह नेचर वा नैचरल संस्कार अपना कार्य कर लेते हैं। क्योंकि स्वरूप बन गये हैं। ऐसे हर गुण वा हर शक्ति निजी स्वरूप बन जाए। मेरी नेचर और नैचुरल गुण बाप समान बन जाएँ। ऐसा गुण स्वरूप, शक्ति स्वरूप, याद स्वरूप हो जाता है। इसको ही कहा जाता है -बाप समान। तो सब अपने को ऐसे स्वरूप अनुभव करते हो? लक्ष्य तो यही है ना। पाना है तो फुल पाना या थोड़े में भी राजी हो? चन्द्रवंशी बनेंगे? (नहीं) चंद्रवंशी राज्य भी कम थोड़े ही है। सूर्यवंशी कितने बनेंगे? जो भी सब बैठे हैं सूर्यवंशी बनेंगे? राम की महिमा कम तो नहीं है। उमंग उत्साह सदा श्रेष्ठ रहे यह अच्छा है।

अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही हैं। सिर्फ बाप को नही पुकार रहे हैं। लेकिन बाप के साथ आप पूज्य आत्माओं को भी पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं - हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो, वह आवे और हमें साथ ले चले। यह विश्व की पुकार पूर्ण करने वाले कौन हैं?

आप पूज्य देव आत्माओं का इन्तजार कर रहे हैं कि हमारे देव आयेंगे, हमें जगायेंगे और ले जायेंगे। उसके लिए क्या तैयारी कर रहे हो? इस कांफ्रेंस के बाद देव प्रत्यक्ष होंगे अभी कांफ्रेंस के पहले स्वयं को श्रेष्ठ आत्मा प्रत्यक्ष करने का स्वयं और संगठित रूप से प्रोग्राम बनाओ। इस कांफ्रेंस द्वारा निराशा से आशा अनुभव होनी चाहिए। वह दीपक तो उद्घाटन में जगायेंगे, नारियल भी तोड़ेंगे। साथ-साथ सर्व आत्माओं प्रति शुभ आशाओं का दीपक भी जगायेंगे। ठिकाना दिखाने का ठका हो जाए। जैसे नारियल का ठका करते हो ना। तो विदेशी चाहे भारतवासी दोनों को मिलकर ऐसी तैयारी पहले से करनी है। तब है महातीर्थ की प्रत्यक्षता। प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैले। जैसे कहते भी हो कि आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। यही लाइट अन्धकार के बीच नई जागृति का अनुभव करावे। इसके लिए ही सब आये हो ना! वा सिर्फ स्वयं रिफ्रेश हो चले जायेंगे?

सर्व ब्राह्मणों का एक संकल्प, वही कार्य की सफलता का आधार है। सबको सहयोग चाहिए। किले की एक ईंट भी कमज़ोर होती तो किले को हिला सकती है। इसलिए छोटे बड़े सब इस ब्राह्मण परिवार के किले की ईंट हो तो सभी को एक ही संकल्प द्वारा कार्य को सफल करना है। सबके मन से यह आवाज़ निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। अच्छा - जितना बच्चे याद करते हैं उतना बाप भी याद प्यार देते हैं। अच्छा –

ऐसे सदा दृढ़ संकल्प करने वाले, सफलता के जन्म-सिद्ध अधिकार को साकर में लाने वाले, सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखते हुए समर्थ रहने वाले, स्वयं की विशेषता को सदा कार्य में लगाने वाले, सदा हर कार्य में बाप का कार्य सो मेरा कार्य ऐसे अनुभव करने वाले, सर्व कार्य में ऐसे बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले विशाल बुद्धि बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।’’

ब्राजील पार्टी से

देश में सबसे दूर लेकिन दिल के समीप रहने वाली आत्मायें हो ना! सदा अपने को दूर बैठे भी बाप के साथ अनुभव करते हो ना। आत्मा उड़ता पंछी बन सेकण्ड में बाप के वतन में, मधुबन में पहुँच जाती है ना! सदा सैर करते हो? बापदादा बच्चों की मुहब्बत को देख रहे हैं कि कितनी दिल से साकार रूप में मधुबन में पहुँचने का प्रयत्न कर पहुँच गये हैं। इसके लिए मुबारक देते हैं। बापदादा आगे के लिए सदा विजयी रहो और सदा औरों को भी विजयी बनाओ यही वरदान देते हैं। अच्छा –

अब विश्व की आत्मायें आप सबसे क्या चाहती हैं वह जानते हो? अभी हर आत्मा अपने पूज्य आत्माओं को प्रत्यक्ष रूप में पाने के लिए पुकार रही है। सिर्फ बाप को नही पुकार रहे हैं। हरेक समझते हैं हमारा पैगम्बर कहो, मैसेन्जर कहो, देव आत्मा कहो वह आवे और हमें साथ ले चले। आप पूज्य देवात्माओं का इन्तजार कर रहे हैं।

शान्ति शान्ति शान्ति शान्ति


06-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


निरंतर सहज योगी बनने की सहज युक्ति
याद और सेवा की धुन में लगाने वाले
, सदा स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले माता-पिता अपने सिकीलधे बच्चों प्रति बोले –


आज बागवान अपने वैरायटी खुशबूदार फूलों के बगीचे को देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा वैरायटी रूहानी पुष्पों की खुशबू और रूप की रंगत देख हरेक की विशेषता के गीत गा रहे हैं। जिसको भी देखो हरेक एक दो से प्रिय और श्रेष्ठ है। नम्बरवार होते हुए भी बापदादा के लिए लास्ट नम्बर भी अति प्रिय है। क्योंकि चाहे अपनी यथा शक्ति मायाजीत बनने में कमज़ोर है फिर भी बाप को पहचान दिल से एक बार भी मेरा बाबाकहा तो बापदादा रहम के सागर ऐसे बच्चे को भी एक बार के रिटर्न में पदमगुणा उसी रूहानी प्यार से देखते कि मेरे बच्चे विशेष आत्मा हैं। इसी नजर से देखते हैं फिर भी बाप का तो बना ना! तो बापदादा ऐसे बच्चे को भी रहम और स्नेह की दृष्टि द्वारा आगे बढ़ाते रहते हैं क्योंकि मेराहै। यही रूहानी मेरे-पन की स्मृति ऐसे बच्चों के लिए समर्थी भरने की आशीर्वाद बन जाती है। बापदादा को मुख से आशीर्वाद देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि शब्द, वाणी सेकेण्ड नम्बर है लेकिन स्नेह का संकल्प शक्तिशाली भी है और नम्बरवन प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। बापदादा इसी सूक्ष्म स्नेह के संकल्प से मात पिता दोनों रूप से हर बच्चे की पालना कर रहे हैं। जैसे लौकिक में सिकीलधे बच्चे की माँ बाप गुप्त ही गुप्त बहुत शक्तिशाली चीजों से पालना करते हैं। जिसको आप लोग खोरश (खातिरी) कहते हो। तो बापदादा भी वतन में बैठे सभी बच्चों की विशेष खोरश (खातिरी) करते रहते हैं। जैसे मधुबन में आते हो तो विशेष खोरश (खातिरी) होती है ना। तो बापदादा भी वतन में हर बच्चे को फरिश्ते आकारी रूप में आह्वान कर सम्मुख बुलाते हैं और आकारी रूप में अपने संकल्प द्वारा सूक्ष्म सर्व शक्तियों की विशेष बल भरने की खातिरी करते हैं। एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा शक्ति की प्राप्ति करना। यह है मात-पिता के स्नेह की पालना के रूप में विशेष खातिरी करना। जैसे यहाँ भी किस-किस की खातिरी करते हो। नियम प्रमाण रोज के भोजन से विशेष वस्तुओं से खातिरी करते हो ना। एक्स्ट्रा देते हो। ऐसे ब्रह्मा माँ का भी बच्चों में विशेष स्नेह है। ब्रह्मा माँ वतन में भी बच्चों की रिमझिम बिना रह नहीं सकते। रूहानी ममता है। तो सूक्ष्म स्नेह के आह्वान से बच्चों के स्पेशल ग्रुप इमर्ज करते हैं। जैसे साकार में याद हैं ना, हर ग्रुप को विशेष स्नेह के स्वरूप में अपने हाथों से खिलाते थे और बहलाते थे। वही स्नेह का संस्कार अब भी प्रैक्टिकल में चल रहा है। इसमें सिर्फ बच्चों को बाप समान आकारी स्वरूपधारी बन अनुभव करना पड़े। अमृतवेले ब्रह्मा माँ - ‘‘आओ बच्चे, आओ बच्चे’’ कह विशेष शक्तियों की खुराक बच्चों को खिलाते हैं। जैसे यहाँ घी पिलाते थे और साथ-साथ एक्सरसाइज भी कराते थे ना! तो वतन में भी घी भी पिलाते अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों की (ताकत की) चीजें देते और अभ्यास की एक्सरसाइज भी कराते हैं। बुद्धि बल द्वारा सैर भी कराते हैं। अभी-अभी परमधाम, अभी-अभी सूक्ष्मवतन। अभी-अभी साकारी सृष्टि, ब्राह्मण जीवन। तीनों लोकों में दौड़ की रेस कराते हैं। जिससे विशेष खातिरी जीवन में समा जाए। तो सुना ब्रह्मा माँ क्या करते हैं।

डबल विदेशी बच्चों को वैसे भी छुट्टी के दिनों में कहाँ दूर जाकर एक्जरशन करने की आदत हैं। तो बापदादा भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष निमंत्रण दे रहे हैं। जब भी फ्री हो तो वतन में आ जाओ। सागर के किनारे मिट्टी में नहीं जाओ। ज्ञान सागर के किनारे आ जाओ। बिगर खर्चे के बहुत प्राप्ति हो जायेगी। सूर्य की किरणें भी लेना, चन्द्रमा की चाँदनी भी लेना, पिकनिक भी करना और खेल कूद भी करना। लेकिन बुद्धि रूपी विमान में आना पड़ेगा। सबका बुद्धि रूपी विमान एवररेडी है ना। संकल्प रूपी स्विच स्टार्ट किया और पहुँचे। विमान तो सबके पास रेडी है ना कि कभी-कभी स्टार्ट नहीं होता है वा पेट्रोल कम होता आधा में लौट आते। वैसे तो सेकण्ड में पहुँचने की बात है। सिर्फ डबल रिफाइन पेट्रोल की आवश्यकता है। डबल रिफाइण्ड पेट्रोल कौन सा है? एक है निराकारी निश्चय का नशा कि मैं आत्मा हूँ, बाप का बच्चा हूँ। दूसरा है साकार रूप में सर्व सम्बन्धों का नशा। सिर्फ बाप और बच्चे के सम्बन्ध का नशा नहीं। लेकिन प्रवृत्ति मार्ग पवित्र परिवार है। तो बाप से सर्व सम्बन्धों के रस का नशा साकार रूप में चलते फिरते अनुभव हो। यह नशा और खुशी निरंतर सहज योगी बना देती है। इसलिए निराकारी और साकारी डबल रिफाइण्ड साधन की आवश्यकता है।

अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है इसलिए फिर दुबारा साकारी और निराकारी नशे पर सुनायेंगे। डबल विदेशी बच्चों को सर्विस के प्रत्यक्ष फल की, आज्ञा पालन करने की विशेष मुबारक बापदादा दे रहे हैं। हरेक ने अच्छा बड़ा ग्रुप लाया है। बापदादा के आगे अच्छे ते अच्छे बड़े गुलदस्ते भेंट किये हैं। उसके लिए बापदादा ऐसे वफादार बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से यही वरदान दे रहे हैं –

‘‘सदा जीते रहो - बढ़ते रहो’’

अच्छा - चारों ओर के स्नेही बच्चों को, जो चारों ओर याद और सेवा की धुन में लगे हुए हैं, ऐसे बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हुए सिकीलधे बच्चों की सेवा के रिटर्न में प्यार और याद के रिटर्न में अविनाशी याद। ऐसे अविनाशी लग्न में रहने वालों को अविनाशी याद प्यार और नमस्ते।’’

आस्ट्रेलिया पार्टी से - आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों की विशेषता बापदादा देख रहे हैं। आस्ट्रेलिया निवासियों की विशेषता क्या है, जानते हो? (पहली बार आये हैं इसलिए नहीं जानते हैं) नये स्थान पर आये हो वा अपने पहचाने हुए स्थान पर आये हो? यहाँ पहुँचने से कल्प पहले की स्मृति इतनी स्पष्ट हो जाती है जैसे इस जन्म में भी अभी-अभी देखा है। यही निशानी है समीप आत्मा की। इसी अनुभव द्वारा ही अपने को जान सकते हो कि हम ब्राह्मण आत्माओं में भी समीप की आत्मा हैं वा दूर की आत्मा है। फर्स्ट नम्बर है या सेकण्ड नम्बर हैं। यही इस अलौकिक सम्बन्ध में विशेषता है जो हरेक समझता है कि मैं फर्स्ट जाऊँगा। लौकिक में तो नम्बरवार समझेंगे यह बड़ा है, यह दूसरा नम्बर, यह तीसरा नम्बर है। लेकिन यहाँ लास्ट वाला भी समझता है कि मैं लास्ट सो फर्स्ट हूँ। यही लक्ष्य अच्छा है। फर्स्ट आना ही है। तो फर्स्ट की निशानी - सदा बाप के साथ रहना। प्रयत्न नहीं करना है लेकिन सदा साथ का अनुभव रहे। जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेराहोता है वह स्वत: ही याद रहता है, याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’, कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है - सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना! तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती। जैसे अपने शरीर के रहने का स्थान मालूम है, बना हुआ है तो जब भी फ्री होते हो तो सहज ही अपने घर में जाकर रेस्ट करते हो। इसी रीति से जब मालूम है कि मुझे बाप के पास रहना है, यही ठिकाना है तो कार्य करते भी रह सकते हो। ऐसे बुद्धि द्वारा अनुभव हो। हरेक अपनी तकदीर बना कर, तकदीर बनाने वाले के सामने पहुँच गये। बापदादा हरेक की तकदीर का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। वैरायटी ग्रुप है। बच्चे भी हैं, बुजुर्ग भी हैं, यूथ भी हैं। लेकिन अभी तो सब छोटे बच्चे बन गये। अभी कोई कहेंगे 8 मास के हैं, कोई 12 मास के। अलौकिक जन्म का ही वर्णन करेंगे ना! अच्छा - सभी कल्प पहले वाली सिकीलधी आत्मायें हो। सदा बाप के अटूट लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं को हल कर, उड़ता पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। बापदादा के दिलतख्त-नशीन रहते हुए सदा इसी नशे में रहो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। कल्प-कल्प अपना अधिकार लेते रहेंगे। मुबारक हो। सदा ही मुबारक लेने पात्र आत्मायें हो।

मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। ‘‘मेरा बाबा और मैं बाबा का’’ कितने थोड़े से शब्द हैं और सेकण्ड की बात हैं। इसको ही कहा जाता है सहजयोगी। आपके बोर्ड में भी सहज राजयोग केन्द्र लिखा हुआ है ना। तो ऐसा ही सहज योग सीखे हो? माया आती है? तो फर्स्ट की निशानी है - सदा बाप के साथ रहना। बाप के साथ रहने वाले के सामने माया आ नहीं सकती।



09-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


व्यर्थ को छोड़ समर्थ संकल्प चलाओ

सर्व खज़ानों से भरपूर करने वाले, पद्मापद्म, भाग्यशाली बनाने वाले शिवबाबा बोले –

आज बापदादा सभी सिकीलधे बच्चों से मिलन मनाने के लिए विशेष आये हैं। डबल विदेशी बच्चे मिलने मनाने के लिए सदा इन्तजार में रहते हैं। तो आज बापदादा डबल विदेशी बच्चों से एक-एक की विशेषता की रूह-रूहान करने आये हैं। एक-एक स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। कहाँ संख्या ज्यादा है और कहाँ संख्या कम होते भी अमूल्य रत्न, विशेष रत्न थोड़े चुने हुए होते भी अपना बहुत अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे बच्चों के उमंग-उत्साह को देख, बच्चों की सेवा को देख बापदादा हर्षित होते हैं। विशेष रूप में विदेश के चारों ही कोनों में बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन प्रैक्टिकल करने में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। सर्व धर्मों की आत्माओं को बाप से मिलाने का प्रयत्न अच्छा कर रहे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। अपनी भटकती हुई आत्मा को ठिकाना मिलने के अनुभवी होने के कारण औरों के प्रति भी रहम आता है। जो भी दूर-दूर से आये हैं उन्हों का एक ही उमंग है कि जाना है और अन्य को भी ले जाना है। इस दृढ़ संकल्प ने सभी बच्चों को दूर होते भी नज़दीक का अनुभव कराया है। इसलिए सदा अपने को बापदादा के वर्से के अधिकारी आत्मा समझ चल रहे हैं। कभी भी किसी व्यर्थ संकल्प के आधार पर अपने को हलचल में नहीं लाओ। कल्प-कल्प के पात्र हो। अच्छा - आज तो पार्टियों से मिलना है। पहला नम्बर मिलने का चान्स अमेरिका पार्टी को मिला है। तो अमेरिका वाले सभी मिलकर सेवा में सबसे नम्बरवन कमाल भी तो दिखायेंगे ना। अभी बापदादा देखेंगे कि कांफ्रेंस में सबसे बड़े ते बड़े वी.आई.पी. कौन ले आते हैं। नम्बरवन वी.आई.पीज कहाँ से आ रहा है? (अमेरिका से) वैसे तो आप बाप के बच्चे वी.वी.वी.आई.पी. हो। आप सबसे बड़ा तो कोई भी नहीं है लेकिन जो इस दुनिया के वी.आई.पी. हैं उन आत्माओं को भी सन्देश देने का यह चान्स है। इन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह पुरूषार्थ करना पड़ता है क्योंकि वे तो अपने को इस पुरानी दुनिया के बड़े समझते हैं ना। तो छोटे-छोटे कोई प्रोग्राम में आना वह अपना रिगार्ड नहीं समझते। इसलिए बड़े प्रोग्राम में बड़ों को बुलाने का चान्स है। वैसे तो बापदादा बच्चों से ही मिलते और रूह-रूहान करते। विशेष आते भी बच्चों के लिए ही हैं। फिर ऐसे-ऐसे लोगों का भी उल्हना न रह जाए कि हमें हमारे योग्य निमंत्रण नहीं मिला, इस उल्हने को पूरा करने के लिए यह सब प्रोग्राम रचे जाते हैं। बापदादा को तो बच्चों से प्रीत है और बच्चों को बापदादा से प्रीत है। अच्छा –

सभी डबल विदेशी तन से और मन से सन्तुष्ट हो? थोड़ा भी किसको कोई संकल्प तो नहीं है। कोई तन की वा मन की प्राब्लम है? शरीर बीमार हो लेकिन शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को भी चलाओ तो दोनो एक्सरसाइज हो जायेगी। खुशी है दुआऔर एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों होने से सहज हो जायेगा। (एक बच्चे ने कहा रात्रि को नींद नहीं आती है।) सोने के पहले योग में बैठो तो फिर नींद आ जायेगी। योग में बैठने समय बापदादा के गुणों के गीत गाओ। तो खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। खुशी के बिना सिर्फ यह प्रयत्न करते हो कि मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, तो इस मेहनत के कारण दर्द भी फील होता है। खुशी में रहो तो दर्द भी भूल जायेगा।

कोई भी बात में किसको भी कोई क्वेश्चन हो या छोटी सी बात में कब कनफ्यूज भी जल्दी हो जाते, तो वह छोटी-छोटी बातें फौरन स्पष्ट करके आगे चलते चलो। ज्यादा सोचने के अभ्यासी नहीं बनो। जो भी सोच आये उसको वहाँ ही खत्म करो। एक सोच के पीछे अनेक सोच चलने से फिर स्थिति और शरीर दोनों पर असर आता है। इसलिए डबल विदेशी बच्चों को सोचने की बात पर डबल अटेन्शन देना चाहिए। क्योंकि अकेले रहकर सोचने के नैचरल अभ्यासी हो। तो वह अभ्यास जो पड़ा हुआ है, इसलिए यहाँ भी छोटी-छोटी बात पर ज्यादा सोचते। तो सोचने में टाइम वेस्ट जाता और खुशी भी गायब हो जाती। और शरीर पर भी असर आता है, उसके कारण फिर सोच चलता है। इसलिए तन और मन दोनों को सदा खुश रखने के लिए - सोचो कम। अगर सोचना ही है तो ज्ञान रत्नों को सोचो। व्यर्थ संकल्प की भेंट में समर्थ संकल्प हर बात का होता है। मानों अपनी स्थिति वा योग के लिये व्यर्थ संकल्प चलता है कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग लगता नहीं। अशरीरी होते नहीं। यह है - व्यर्थ संकल्प। उनकी भेंट में समर्थ संकल्प करो - याद तो मेरा स्वधर्म है। बच्चे का धर्म ही है बाप को याद करना। क्यों नहीं होगा, जरूर होगा। मैं योगी नहीं तो और कौन बनेगा! मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। तो व्यर्थ के बजाए इस प्रकार के समर्थ संकल्प चलाओ। मेरा शरीर चल नहीं सकता, यह व्यर्थ संकल्प नहीं चलाओ। इसके बजाए समर्थ संकल्प यह है कि - इसी अन्तिम जन्म में बाप ने हमको अपना बनाया है। कमाल है, बलिहारी इस अन्तिम शरीर की। जो इस पुराने शरीर द्वारा जन्म-जन्म का वर्सा ले लिया। दिलशिकस्त के संकल्प नहीं करो। लेकिन खुशी के संकल्प करो। वाह मेरा पुराना शरीर! जिसने बाप से मिलाने के निमित्त बनाया! वाह वाह कर चलाओ। जैसे घोड़े को प्यार से, हाथ से चलाते हैं तो घोड़ा बहुत अच्छा चलता है अगर घोड़े को बार-बार चाबुक लगायेंगे तो और ही तंग करेगा। यह शरीर भी आपका है। इनको बार-बार ऐसे नहीं कहो कि यह पुराना, बेकार शरीर है। यह कहना जैसे चाबुक लगाते हो। खुशी-खुशी से इसकी बलिहारी गाते आगे चलाते रहो। फिर यह पुराना शरीर कब डिस्टर्ब नहीं करेगा। बहुत सहयोग देगा। (कोई ने कहा- प्रामिस भी करके जाते हैं, फिर भी माया आ जाती है।)

माया से घबराते क्यों हो? माया आती है आपको पाठ पढ़ाने लिए। घबराओ नहीं। पाठ पढ़ लो। कभी सहनशीलता का पाठ कभी एकरस स्थिति में रहने का पाठ पढ़ाती। कभी शान्त स्वरूप बनने का पाठ पक्का कराने आती। तो माया को उस रूप में नहीं देखो। माया आ गई, घबरा जाते हो। लेकिन समझो कि माया भी हमारी सहयोगी बन, बाप से पढ़ा हुआ पाठ पक्का कराने के लिए आई है। माया को सहयोगी के रूप में समझो। दुश्मन नहीं। पाठ पक्का कराने के लिए सहयोगी है तो आपका अटेन्शन सारा उस बात में चला जायेगा। फिर घबराहट कम होगी और हार नहीं खायेंगे। पाठ पक्का करके अंगदके समान बन जायेंगे। तो माया से घबराओ नहीं। जैसे छोटे बच्चों को माँ बाप डराने के लिए कहते हैं, हव्वा आ जायेगा। आप सबने भी माया को हव्वा बना दिया है। वैसे माया खुद आप लोगों के पास आने में घबराती है। लेकिन आप स्वयं कमज़ोर हो, माया का आह्वान करते हो। नहीं तो वह आयेगी नहीं। वह तो विदाई के लिए ठहरी हुई है। वह भी इन्तजार कर रही है कि हमारी लास्ट डेट कौन सी है? अब माया को विदाई देंगे या घबरायेंगे!

डबल विदेशियों की यह एक विशेषता है - उड़ते भी बहुत तेज हैं और फिर डरते हैं तो छोटी सी मक्खी से भी डर जाते हैं। एक दिन बहुत खुशी में नाचते रहेंगे और दूसरे दिन फिर चेहरा बदली हो जायेगा। इस नेचर को बदली करो। इसका कारण क्या है?

इन सब कारणों का भी फाउन्डेशन है - सहनशक्ति की कमी। सहन करने के संस्कार शुरू से नहीं है, इसलिए जल्दी घबरा जाते हो। स्थान को बदलेंगे या जिनसे तंग होंगे उनको बदल लेंगे। अपने को नहीं बदलेंगे। यह जो संस्कार है वह बदलना है। ‘‘मुझे अपने को बदलना है’’, स्थान को वा दूसरे को नहीं बदलना है लेकिन अपने को बदलना है। यह ज्यादा स्मृति में रखो, समझा! अब विदेशी से स्वदेशी संस्कार बना लो। सहनशीलताका अवतार बन जाओ। जिसको आप लोग कहते हो अपने को एडजस्ट करना है। किनारा नहीं करना है, छोड़ना नहीं है।

हंस और बगुले की बात अलग है। उन्हों की आपस में खिट-खिट है। वह भी जहाँ तक हो सके उसके प्रति शुभ भावना से ट्रायल करना अपना फर्ज है। कई ऐसे भी मिसाल हुए हैं जो बिल्कुल एन्टी थे लेकिन शुभ भावना से निमित्त बनने वाले से भी आगे जा रहे हैं। तो शुभ भावना से फुल फोर्स से ट्रायल करनी चाहिए। अगर फिर भी नहीं होता है तो फिर डायरेक्शन लेकर कदम उठाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसे किनारा कर देने से कहाँ डिस सर्विस भी हो जाती है। और कई बार ऐसा भी होता है कि आने वाली ब्राह्मण आत्मा की कमी होने के कारण अन्य आत्मायें भी भाग्य लेने से वंचित रह जाती हैं। इसलिए पहले स्वयं ट्रायल करो फिर अगर समझते हो यह बड़ी प्राबल्म है तो निमित्त बनी आत्माओं से वेरीफाय कराओ। फिर वह भी अगर समझती है कि अलग होना ही ठीक है फिर अलग हुए भी तो आपके ऊपर जवाबदारी नहीं रही। आप डायरेक्शन पर चले। फिर आप निश्चिन्त। कई बार ऐसा होता है - जोश में छोड़ दिया, लेकिन अपनी गलती के कारण छोड़ने के बाद भी वह आत्मा खींचती रहती है। बुद्धि जाती रहती है यह भी बड़ा विघ्न बन जाता है। तन से अलग हो गये लेकिन मन का हिसाब-किताब होने के कारण खींचता रहता इसलिए निमित्त बनी हुई आत्माओं से वेरीफाय कराओ। क्योंकि यह कर्मों की फिलासफी है। जबरदस्ती तोड़ने से भी मन बार-बार जाता रहता है। कर्म की फिलासफी को ज्ञान स्वरूप होकर पहचानो और फिर वेरीफाय कराओ। फिर कर्म-बन्धन को ज्ञान युक्त होकर खत्म करो।

बाकी ब्राह्मण आत्माओं में जब हम-शरीक होने के कारण ईर्ष्या उत्पन्न होती है, ईर्ष्या के कारण संस्कारों का टक्कर होता है लेकिन इसमें विशेष बात यह सोचो कि जो हम-शरीक हैं उसको निमित्त बनाने वाला कौन? उनको नहीं देखो - फलाना इस ड्यिटी पर आ गया, फलानी टीचर हो गई, नम्बरवन सर्विसएबुल हो गई। लेकिन यह सोचो कि उस आत्मा को निमित्त बनाने वाला कौन? चाहे निमित्त बनी हुई विशेष आत्मा द्वारा ही उनको ड्यिटी मिलती है लेकिन निमित्त बनने वाली टीचर को भी निमित्त किसने बनाया? इसमें जब बाप बीच में हो जायेगा तो माया भाग जायेगी। ईर्ष्या भाग जायेगी लेकिन जैसे कहावत है ना - या होगा बाप या होगा पाप। जब बाप को बीच से निकालते हो तब पाप आता है। ईर्ष्या भी पाप कर्म है ना। अगर समझो बाप ने निमित्त बनाया है तो बाप जो कार्य करते उसमें कल्याण ही है। अगर उसकी कोई ऐसी बात अच्छी न भी लगती है, रांग भी हो सकती है, क्योंकि सब पुरुषार्थी हैं। अगर रांग भी है तो अपनी शुभ भावना से ऊपर दे देना चाहिए। ईर्ष्या के वश नहीं। लेकिन बाप की सेवा सो हमारी सेवा है - इस शुभ भावना से, श्रेष्ठ जिम्मेवारी से ऊपर बात दे देनी चाहिए। देने के बाद खुद निश्चिन्त हो जाओ। फिर यह नहीं सोचो कि यह बात दी फिर क्या हुआ? कुछ हुआ नहीं। हुआ वा नहीं यह जिम्मेवारी बड़ों की हो जाती है। आपने शुभ भावना से दी, आपका काम है अपने को खाली करना। अगर देखते हो बड़ों के ख्याल में बात नहीं आई तो भल दुबारा लिखो। लेकिन सेवा की भावना से। अगर निमित्त बने हुए कहते हैं कि इस बात को छोड़ दो तो अपना संकल्प और समय व्यर्थ नहीं गँवाओ। ईर्ष्या नहीं करो। लेकिन किसका कार्य है, किसने निमित्त बनाया है, उसको याद करो। किस विशेषता के कारण उनको विशेष बनाया गया है वह विशेषता अपने में धारण करो तो रेस हो जायेगी न कि रीस। समझा।

अपसेट कभी नहीं होना चाहिए। जिसने कुछ कहा उनसे ही पूछना चाहिए कि आपने किस भाव से कहा? - अगर वह स्पष्ट नहीं करते तो निमित्त बने हुए से पूछो कि इसमें मेरी गलती क्या है? अगर ऊपर से वेरीफाय हो गया, आपकी गलती नहीं है तो आप निश्चिन्त हो जाओ। एक बात सभी को समझनी चाहिए कि ब्राह्मण आत्माओं द्वारा यहाँ ही हिसाब-किताब चुक्तू होना है। धर्मराजपुरी से बचने के लिए ब्राह्मण कहाँ न कहाँ निमित्त बन जाते हैं। तो घबराओ नहीं कि यह ब्राह्मण परिवार में क्या होता है। ब्राह्मणों का हिसाब-किताब ब्राह्मणों द्वारा ही चुक्तू होना है। तो यह चुक्तू हो रहा है इसी खुशी में रहो। हिसाब-किताब चुक्तू हुआ और तरक्की ही तरक्की हुई। अभी एक वायदा करो - कि छोटी-छोटी बात में कन्फ्यूज नहीं होंगे, प्राब्लम नहीं बनेंगे लेकिन प्राब्लम को हल करने वाले बनेंगे। समझा।

अमेरिका पार्टी से - आप सब बापदादा के सिर के ताज, श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! श्रेष्ठ आत्माओं का हर संकल्प, हर बोल श्रेष्ठ होगा। कभी कभी नहीं - सदा। क्योंकि सदा का वर्सा पा रहे हो ना! तो जब सदा का वर्सा पाने के अधिकारी हो तो स्थिति भी सदाकाल की। सदाशब्द को सदा याद रखना। यही वरदान सभी बच्चे को बापदादा देते हैं। सदा खुश रहेंगे, सदा उड़ती कला में रहेंगे, सदा सर्व खज़ानों से सम्पन्न रहेंगे। ऐसे वरदान लेने वाली आत्मायें सहजयोगी स्वत: हो जाती हैं। आज खुशी का दिन है! सबसे अधिक खुशी किसको है, बाप को है या बच्चों को है? (बच्चों को है) बापदादा को यह खुशी है कि ऐसा कोई बाप सारे वर्ल्ड में नहीं होगा जिसका हरेक बच्चा श्रेष्ठ हो। बापदादा एक-एक बच्चे की अगर विशेषता का वर्णन करें तो कई वर्ष बीत जाएँ। हरेक बच्चे की महिमा के बड़े-बड़े शात्र बन जाएँ। विशेष आत्मा हो - ऐसा निश्चय हो तो सदा मायाजीत स्वत: हो जायेंगे।

मैक्सिको ग्रुप से - जितना दूर है उतना दिल से समीप हो? ऐसा अनुभव करते हो ना? सभी ने अपनी सीट बापदादा का दिलतख्त रिजर्व कर लिया है? बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न स्थापना के कार्य को सफल करने के निमित्त है। तो अपने को इतने अमूल्य रत्न समझते हो? कितनी भाग्यवान आत्मायें हो जो इतनी दूर से भी बाप ने ढूँढ कर अपना बनाया है। आज की दुनिया में जो बड़े-बडे विद्वान, आचार्य हैं, उन्हों से आप पद्मगुणा अधिक भाग्यवान हो। बस इसी खुशी मे रहो कि - ‘‘जो जीवन में पाना था वह पा लिया’’

न्यूजीलैण्ड - न्यूजीलैण्ड को न्यू लैण्ड बना रहे हो ना? स्वयं को भी नया बनाया तो विश्व को भी नया बनायेंगे ना। अपना आक्यूपेशन यही सुनाते और लिखते हो ना कि हम सभी विश्व का नव-निर्माण करने वाले हैं। तो जहाँ रहते हो उसको तो नया बनायेंगे ना। हरेक स्थान की अपनी विशेषता है। न्यूजीलैण्ड की विशेषता क्या है? न्यूजीलैण्ड में गये हुए भारतवासियों ने फिर से भारत के श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले बाप को पहचान लिया है। भारत में रहते भारतवासी बच्चों ने नहीं जाना लेकिन विदेश में रहते भारत की महिमा को और बाप को जान लिया। न्यूजीलैण्ड में भारत के बिछड़े हुए बच्चे अच्छे-अच्छे निकले हैं। टीचर्स पीछे मिली हैं। लेकिन सर्विस की स्थापना पहले की। इसलिए हिम्मत वाले बच्चे, उमंग उल्लास वाले बच्चे विशेष हैं। समझा।!

जर्मन और हेमबर्ग - सभी बापदादा के अमूल्य रत्न हो? कौन से रत्न हो और कहाँ रहते हो? मस्तक मणी हो? गले का हार हो या कंगन हो? (तीनों हैं) तो बापदादा के विशेष श्रृंगार हो गये ना! सभी को यह नशा है ना कि हम विश्व के विशेष के मालिक के बालक हैं। इसी नशे में खुशी में सदा नाचते रहो। बाप के हाथ में हाथ है, बाप के साथ खुशी में सारा समय नाचो। बापदादा की कम्पनी और बापदादा के परिवार के हो। अभी और कहाँ क्लब आदि में जाने की आवश्यकता नहीं। सदा चेहरे में ऐसी खुशी की झलक हो जो आपका चेयरफुल चेहरा बोर्ड का काम करे। इसमें स्वत: एडवरटाइज हो जायेगी। बापदादा को भी ग्रुप को देख करके खुशी हो रही है। जिस भी स्थान पर रहते हो उस स्थान से बहुत चुने हुए रत्न बापदादा ने जो निकाले हैं वह रत्न यहाँ पहुँच गये। बापदादा की इलेक्शन में विशेष आत्मायें हो। इस इलेक्शन में मिनिस्टर आदि नहीं बनते लेकिन यहाँ तो विश्व महाराजा बनते हो।



11-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


समर्थ की निशानी संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, स्ंस्कार बाप समान

लंदन ग्रुप के प्रति बापदादा बोले –

आज रूहानी बाप बच्चों से दिलाराम को दी हुई दिल का समाचार पूछने आये हैं। सभी ने दिलाराम को दिल दी है ना। जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिवाए और कोई आ नहीं सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना। इसी को ही सहज योग कहा जाता हे। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमार्ग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग में भी अर्थात् स्मृति में भी दिलाराम। और कोई भी स्मृति वा व्यक्ति दिलाराम के बीच आ नहीं सकता - ऐसा अनुभव करते हो? जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या। मन, वाणी और कर्म से बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या। मन, वाणी और कर्म से बाप के हो गये। संकल्प भी यह किया कि हम बाप के हैं और वाणी से भी यही कहते हो मेरा बाबा’, मैं बाबा का। और कर्म में भी जो सेवा करते हो वह भी बाप की सेवा वह मेरी सेवा - ऐसे ही मन, वाणी और कर्म से बाप के बन गये ना। बाकी मार्जिन क्या रही, जहाँ से कोई संकल्प मात्र भी आवे। कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता हैं ही मन, बुद्धि, वाणी और कर्म - चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं है। मार्जिन है? ड्रीम्स (स्वप्न) भी इसी ही आधार पर आते हैं। जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरंतर याद कहा जाता है। कहने और करने में अन्तर तो नहीं कर देते हो? तेरा में मेरा मिक्स तो नहीं कर देते हो? सूर्यवंशी अर्थात् गोल्डन एज। उसमें मिक्स तो नहीं होगा ना। डाइमन्ड भी बेदाग हो। कोई दाग तो नहीं गया है।

जिस समय भी कोई कमज़ोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार स्वभाव की, तो शब्द क्या कहते हो? मेरा विचार ऐसा कहता है। वा मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा संस्कार, संकल्प। जब बाप जैसा संकल्प, संस्कार हो जाता है तो ऐसे बोल कब नहीं बोलेंगे कि क्या करूँ, मेरा स्वभाव संस्कार ऐसा हे। कया करूँ, यह शब्द ही कमज़ोरी का है। समर्थ की निशानी है - सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता। उनके संकल्प में, बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नैचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है - यह अनुभव होगा। जब सब में बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती। या बाप होगा या माया। लण्डन निवासी बाबा, बाबा कहते, स्मृति में रखते सदाकाल के लिए मायाजीत हो गये हैं। जब वर्सा सदाकाल का लेते हो तो याद भी सदाकाल की चाहिए ना। मायाजीत भी सदाकाल के लिए चाहिए।

लण्डन है सेवा का फाउन्डेशन स्थान। तो फाउण्डेशन के स्थान पर रहने वाले भी फाउन्डेशन के समान सदा मजबूत हैं। क्या करें, कैसे करें, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट तो नहीं है ना। बहुत करके ड्रामा भी माया के ही करते हो ना। हर ड्रामा में माया न आने वाली भी जाती है। माया के बिना शायद ड्रामा नहीं बना सकते हो। माया के भी भिन्न-भिन्न स्वरूप दिखाते हो ना। हर बात का परिवर्तक स्वरूप हो, इसका ड्रामा दिखाओ। माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ। जैसे शारीरिक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रूप में बदल जाता - ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।

लण्डन निवासियौं ने विशेष स्व की उन्नति प्रति और विश्व कल्याण प्रति कौन सा लक्ष्य रखा है? सभी को विशेष सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फिरश्ते का स्वरूप कया, बोल क्या, कर्म क्या होता वह स्वत: ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। ‘‘फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ’’ - इसी स्मृति को सदा रखो। जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गये ना। तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं - यह स्मृति में रहे। जहाँ मेरा आवे तो वहाँ तेरा कह दो। फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। हर वर्ष कदम आगे  बढ़ रहा है और सदा आगे बढ़ते रहेंगे, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ते हैं यह तो पक्का है ना। नीचे ऊपर, नीचे ऊपर होने वाले नहीं। अच्छा - लण्डन निवासियों की महिमा तो सभी जानते हैं। आपको सब किस नजर से देखते हैं? सदा मायाजीत। क्योंकि पावरफुल डबल पालना मिल रही है। बापदादा की तो सदा पालना है ही लेकिन बाप ने जिन्हों को निमित्त बनाया है वह भी पावरफुल पालना मिल रही है। निराकार, आकार और साकार तीनों को फालो करो तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता बन जायेंगे ना। लण्डन निवासी अर्थात् नो कम्पलेन्ट, नो कन्फ्यूज। अलौकिक जीवन वाले, स्वराज्य करनेवाले सब किंग और क्वीन हो ना। आपका नशा है ना।’’

कुमारियों से - कुमारियाँ तो अपना भाग्य देख सदा हर्षित होती हैं। कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गई जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें। ऐसे अपने को महान समझती हो? आप तो हाँऐसे कहो जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नजर न लगे। ऐसे अमूल्य रतन हो। कुमारियाँ सदा पढ़ाई और सेवा इसी में ही बिजी रहती हैं। कुमारी जीवन में बाप मिल गया और चाहिए ही क्या। अनेक सम्बन्धों में भटकना नहीं पड़ा, बच गई। एक में सर्व सम्बन्ध मिल गये। नहीं तो पता है कितने व्यर्थ के सम्बन्ध हो जाते, सासू का, नंनद का, भाभियों का....सबसे बच गई ना। न जाल में फँसी, न जाल से छुड़ाने का समय ही था। कुमारियाँ तो हैं ही डबल लाइट। कुमारियाँ सदा बाप समान सेवाधारी और बाप समान सर्व धारणाओं स्वरूप। कुमारी जीवन अर्थात् प्युअर जीवन। प्युअर आत्मायें श्रेष्ठ आत्मायें हुई ना। तो बापदादा कुमारियों को महान पूज्य आत्मा के रूप में देखते हैं। पवित्र आत्मायें सर्व की और बाप की प्रिय हैं।

अपने भाग्य को सदा सामने रखते हुए समर्थ आत्मा बन सेवा में समर्थी लाते रहो। यही बड़ा पुण्य है। जो स्वयं को प्राप्ति हुई है वह औरों को भी कराओ। खज़ानों को बाँटने से खज़ाना और ही बढ़ेगा - ऐसे शुभ संकल्प रखने वाली कुमारी हो ना। अच्छा –

टीचर्स के साथ :- विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना। सबकी नजर निमित्त बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। कितनी बड़ी स्टेज है। और कितने देखने वाले हैं। सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? सेन्टर पर रहती हो वा स्टेज पर रहती हो? सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो। इसलिए सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूण करते रहो। महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना। निमित्त सेवाधारियों को बापदादा अपना फ्रेंडस समझते हैं। क्योंकि बाप भी शिक्षक है तो बाप समान निमित्त बनने वाले फ्रेंडस हुए ना। तो इतनी समीप की आत्मायें हो। ऐसे सदा अपने को बाप के साथ वा समीप अनुभव करती हो? जब भी बाबा कहो तो हजार भुजाओं के साथ बाबा आपके साथ है। ऐसे अनुभव होता है? जो निमित्त बने हुए हैं उन्हीं को बापदादा एकस्ट्रा सहयोग देते हैं। इसीलिए बड़े फखुर से बाबा कहो, बुलाओ, तो हाजिर हो जायेंगे। बापदादा तो ओबीडियन्ट हैं ना।

अच्छा - ओम् शान्ति।



13-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


स्वर्द्शन चक्रधारी ही चक्रवर्ती राज्य-भाग्य के अधिकारी

विश्व कल्याणकारी, वरदानी व महादानी, नजर से निहाल करने वाले बाबा बोले :-

‘‘सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो? स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् अपने सारे चक्र के अन्दर सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। इस अन्तिम जन्म में हीर-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हौ। आदि से अन्त तक क्या क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में हैं? क्योंकि इस समय नालेजफुल बनते हो। इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया। कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनायेंगे भी तो दो चार छे जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बतादी है। तो आप सभी मास्टर नालेजफुल बन गये ना। सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। तो जरूर जानते हो तब तो चित्रों में दिखाया है ना। अपनी जन्मपत्री का चित्र देखा है? उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है। वा समझते हो नालेज समझाने का चित्र है। यह तो नशा है ना कि हम ही विशेष आत्मयें सृष्टि के आदि से अन्त तक कापार्ट बजाने वाली हैं। ब्रह्मा बाप के साथ साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हो ना। ब्रह्मा बाप के साथ पूरे कल्प की प्रीत कीरीति निभाने वाले हो ना। निर्वाण जाने की इच्छा वाले तो नहीं हो ना। जिसने आदि नहीं देखी उसने क्या किया। आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है। वह समय वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन, अच्छी तरह से याद है वा याद दिलाने की जरूरत है? अपने आदि के जन्म अर्थात् पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है ना। दोनों की महिमा अपरमपार है।

जैसे आदिदेव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनां का अन्तर दिखाते हो और दोनो को साथ-साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राहमण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। तो बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बनने वाले दोनों की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते हैं। चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर पूज्य आत्म की लिस्ट में हैं। आधा कल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधा कल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। जो अपने चित्रों की पूजा, मान्यता चैतन्य रूप में ब्राहमण रूप से देव रूप की अभी भी देख रहे हो। तो इससे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है। सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो। फिर बार-बार नीचे की स्टेज से ऊपर की स्टेज पर जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

सभी जहाँ से भी आए हैं। लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। मधुबन निवासी बनाना भी भाग्यवान की निशानी है। क्योंकि मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदान स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना। सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों काभी स्वत: खुशी में मन नाचते। जैस स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर भी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो। अच्छा –

डबल विदेशी बच्चों को यह भी विशेष चान्स है क्योंकि अभी सिकीलधे हो। जब डबल विदेशियों को भी संख्या बहुत हो जायेगी तो फिर क्या करेंगे। जैसे भारतवासी बच्चों ने डबल विदेशियों को चान्स दिया है ना, तो आप भी ऐसे दूसरों को चान्स देंगेना। दूसरों की खुशी से अपनी खुशी अनुभव करना यही महादानी बनना है।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

सिंगापुर पार्टी- सिंगापुर को बापदादा, बाप का श्रृंगार कहते हैं आप सब कौन सा श्रृंगार हो? मस्तक की मणि हो? मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप याद रहे। ऐसी मस्तक मणि हो। इसी कोही उंची स्टेज कहा जाता है।सदा अपने को ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ - ऐसे समझते हुए आगे बढ़ते रहो। इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाले नीचे की अनेक प्रकार की बातों को ऐसे पार करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। समस्याएँ नीचे रहेंगी आप ऊपर होजायेंगे। सदा अपना मस्तकमणि का टाइटिल याद रखना। नीचे नहीं आना। सदा ऊपर। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हो। बापदादा ने विशेष श्रृंगार को चुन लिया है। अपने भाग्य को सदा स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो। उड़ती कला में उड़ते और उड़ाते चलो। संगमयुग है ही उड़ने और उड़ाने का युग। समय को वरदान प्राप्त है ना।

अफ्रीका पार्टी से - सदा के स्नेही और सदा के सहयोगी आत्मायें। स्नेह औरसहयोग के कारण अविनाशी रतन बन गये। अविनाशी बाप ने, बाप समान अविनाशी रतन बना दिया। ऐसे अविनाशी रतन जो किसी भी प्रकार से कोई हिला न सके। ऐसे अविनाशी रतन अमरभवके वरदानी हो। रीयल गोल्ड हो ना। बाप के साथी - बाप का कार्य सो आपका कार्य। सदा साथ रहेंगे इसलिए अविनाशी रहेंगे।

सच्ची लगन विघ्नों को समाप्त कर देती है। कितनी भी रूकावटें आएं लेकिन एक बल एक भरोसे के आधार पर सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी, ऐसा अनुभव होता रहता है ना। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप साथ है वहाँ यह छोटी छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती हैं जैसे कुछ भी थी ही नहीं। असम्भव भी सम्भव हो जाता है क्योंकि सर्व शक्तिवान के बच्चे बन गए। मक्खन से बालसमान सब बातें सिद्ध हो जाती हैं। अपने को ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो ना। कमज़ोरी तो नहीं आती। बाप सर्वशक्तिवान हैं, तो बच्चों को बाप अपने से भी आगे रखते हैं। बाप ने कितना ऊंच बनाया है, क्या क्या दिया है - इसी का सिमरण करते-करते सदा हर्षित और शक्तिशाली रहेंगे।

ट्रिनीडाड, ग्याना - सदा अपने को बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हैं - ऐसे अनुभव करते हो? बाप के बच्चे तो सदा हो ना। जब बच्चे सदा हैं तो बाप समान धारणा स्वरूप भी सदा चाहिए ना। यही सदा अपने आप से पूछो कि बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ। अधिकारी आत्मको अधिकार कभी भूल नहीं सकता। जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए।

हिम्मत रखकर, निर्भय होकर आगे बढ़ते रहे हो इसलिए मदद मिलती रही है। हिम्मत की विशेषता से सर्व का सहयोग मिल जाता है। इसी एक विशेषता से अनेक विशेषताएँ स्वत: आती जाती हैं। एक कदम आगे रखा और अनेक कदम सहयोग के अधिकारी बने इसलिए इसी विशेषता का औरों को भी दान और वरदान देते आगे बढ़ाते रहो। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से फलदायक हो जाता है, वैसे विशेषताओं को सेवा में लगाने से फलदायक बन जाते हैं। तो ऐसे विशेषताओं को सेवा में लगाए फल पाते रहना। अच्छा–

मौरीशियस - सदा अपने को बाप समान महादानी और वरदानी आत्मा समझते हो? बापदादा अपने समान शिक्षक अर्थात् निमित्त सेवाधारी आत्माओं को देख हर्षित होते हैं। सदा पहले स्वंय को बाप समान स्वरूप सम्पन्न स्वरूप समझते हो? क्योंकि सेवाधारी अगर स्वंय सम्पन्न नहीं तो औरों को क्या होगा। सुना,अनुभव किया और ऐसा गोल्डन चान्स बाप समान सेवाधारी बनने का मिला, इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा। इसी प्राप्त हुए भाग्य को सदा आगे बढ़ाते चलो। अच्छा –



15-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सहजयोगी और प्रयोगी की व्याख्या

सदा सहजयोगी की स्थिति में स्थित करने वाले सुख के सागर शिव बाबा बोले :-

आज बाप दादा अपने सहयोगी भुजाओं को देख रहे हैं। कैसे मेरी सहयोगी भुजायें श्रेष्ठ कार्य को सफल बना रही हैं। हर भुजा के दिव्य अलौकिक कार्य की रफतार को देख बापदादा हर्षित हो रूहरिहान कर रहे थे। बापदादा देखते रहते हैं कि कोई-कोई भुजायें सदा अथक और एक ही श्रेष्ठ उमंग और उत्साह और तीव्रगति से सहयोगी हैं और कोई-कोई कार्य करते रहते लेकिन बीच-बीच में उमंग उत्साह की तीव्रगति में अन्तर पड़ जाता है। लेकिन सदा अथक तीव्रगति वाली भुजाओं के उमंग उत्साह को देखते-देखते स्वयं भी फिर से तीव्रगति से कार्य करने लग पड़ते हैं। एक दो के सहयोग से गति को तीव्र बनाते चल रहे हैं।

बापदादा आज तीन प्रकार के बच्चे देख रहे थे। एक सदासहज योगी। दूसरे हर विधि को बार-बार प्रयोग करने वाले प्रयोगी। ताrसरे सहयोगी। वैसें हैं तीनों ही योगी लेकिन भिन्न-भिन्न स्टेज के हैं। सहजयोगी, समीप सम्बन्ध औरसर्व प्राप्ति के कारण सहज योग का सदा स्वत: अनुभव करता है। सदा समर्थ स्वरूप होने के कारण इसी नशे में सदा अनुभव करता कि मैं हूँ ही बाप का। याद दिलाना नहीं पड़ता स्वयं को मैं आत्मा हूँ, मैं बाप का बच्चा हूँ। ‘‘मैं हूँ ही’’ सदा अपने कोइस अनुभव के नशे में प्राप्ति स्वरूप नैचुरल निश्चय करता है। सहयोगी को सर्व सिद्धियाँ स्वत: ही अनुभव होती हैं। इसलिए सहजयोगी सदा ही श्रेष्ठ उमंग उत्साह खुशी में एकरस रहता है। सहजयोगी सर्व प्राप्तियों के अधिकारी स्वरूप में सदा शक्तिशाली स्थिति में स्थित रहते हैं।

प्रयोग करने वाले प्रयोगी सदा हर स्वरूप के, हर पाइंट के, हर प्राप्ति स्वरूप के प्रयोग करते हुए उस स्थिति को अनुभव करते हैं। लेकिन कभी सफलता का अनुभव करते, कभी मेहनत अनुभव करते। लेकिन प्रयोगी होने के कारण, बुद्धि अभ्यास की प्रयोगशाला में बिजी रहने के कारण 75% माया से सेफ रहते हैं। कारण? प्रयोगी आत्मा को शौक रहता है कि नये ते नये भिन्नभिन्न अनुभव करके देखे। इसी शौक में लगे रहने के कारण माया से प्रयोगशाला में सेफ रहते हैं। लेकिन एकरस नहीं होते। कभी अनुभव होने के कारण बहुत उमंग उत्साह में झूमते और कभी विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति कम होने के कारण उमंग उत्साह में फर्क पड़ जाता है। उमंग उत्साह कम होने के कारण मेहनत अनुभव होती है। इसलिए कभी सहजयोगी, कभी मेहनत वाले योगी। ‘‘हूँ ही’’ के बजाय ‘‘हूँ हूँ’’‘‘आत्मा हूँ’’ बच्चा हूँ, मास्टर सर्व शक्तिवान हूँ’’ - इस स्मृति द्वारा सिद्धि को पाने का बार-बार प्रयत्न करना पड़ता है। इसलिए कभी तो इस स्टेज परस्थित होते जो सोचा और अनुभव हुआ। कभी बार-बार सोचने द्वारा स्वरूप की अनुभूति करते हैं। इसको कहा जाता है - प्रयोगी आत्मा। अधिकार का स्वरूप है सहजयोगी। बार-बार अध्ययन करने का स्वरूप है प्रयोगी आत्मा। तो आज देख रहे थे- सहज योगी कौन और प्रयोगी कौन है? प्रयोगी भी कभी कभी सहजयोगी बन जाते है। लेकिन सदा नहीं। जिस समय जो पोजीशन होती है, उसी प्रमाण स्थूल चेहरे के पोज़ भी बदलते है। मन की पोजीशन को भी देखते हैं। और पोज़ को भी देखते हैं। सारे दिन में कितनी पोज़ बदलते हो। अपने भिन्न-भिन्न पोज़ को जानते हो? स्वयं को साक्षी होकर देखते हो? बापदादा सदा यह बेहद का खेल जब चाहे तब देखते रहते हैं।

जैसे यहाँ लौकिक दुनिया में एक के ही भिन्न-भिन्न पोज़ हंसी के खेल में स्वयं ही देखते हैं। विदेश में यह खेल होता है? यहाँ प्रैक्टिकल में ऐसा खेल तो नहीं करते हो ना। यहाँ भी कभी बोझ के कारण मोटे बन जाते हैं और कभी फिर बहुत सोंचने के संस्कार के कारण अन्दाज से भी लम्बे हो जाते हैं और कभी फिर दिलशिकस्त होने के कारण अपने को बहुत छोटा देखते हैं। कभी छोटे बन जाते, कभी मोटे बन जाते, कभी लम्बे बन जाते हैं। तो ऐसा खेल अच्छा लगता है?

सभी डबल विदेशी सहजयोगी हो? आज के दिन का सहज योगी का चार्ट रहा? सिर्फ प्रयोग करने वाले प्रयोगी तो नहीं हो ना। डबल विदेशी मधुबन से सदाकाल के लिए सहजयोगी रहने का अनुभव लेकर जा रहे हो? अच्छा - सहयोगी भी योगी हैं इसका फिर सुनायेंगे।

(सभी टीचर्स नीचे हाल में मुरली सुन रही थीं)

बापदादा के साथ निमित्त सेवाधारी कहो, निमित्त शिक्षक कहो तो आज साथियों का ग्रुप भी आया हुआ है ना। छोटे तो और ही अति प्रिय होते हैं। नीचे होते भी सब ऊपर ही बैठे हैं। बापदादा छोटे वा बड़े लेकिन हिम्मत रखने वाले सेवा के क्षेत्र में स्वयं को सदा बिजी रखने वाले सेवाधारियों को बहुत बहुत यादप्यार दे रहे हैं। इसलिए त्यागी बन अनेकों के भाग्य बनाने के निमित्त बनाने वाले सेवाधारियों को बापदादा त्याग की विशेष आत्मायें देख रहे हैं। ऐसी विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बधाई के साथ-साथ यादप्यार। डबल कमाल कौन सी है? एक तो बाप को जानने की कमाल की। दूरदेश, धर्म का पर्दा रीति रसम, खान-पान सबकी भिन्नता के पर्दे के बीच रहते हुए भी बाप को जान लिया। इसलिए डबल कमाल। पर्दे के अन्दर छिप गये थे। सेवा के लिए अब जन्म लिया है। भूल नहीं की लेकिन ड्रामा अनुसार सेवा के निमित्त चारों ओर बिखर गये थे। नहीं तो इतनी विदेशों में सेवा कैसे होती। सिर्फ सेवा के कारण अपना थोड़े समय का नाम मात्र हिसाब किताब जोड़ा, इसलिए डबल कमाल दिखाने वाले सदा बाप के स्नेह के चात्रक, सदा दिल से मेरा बाबाके गीत गाने वाले, ‘जाना है, जाना है,’ 12 मास इसी धुन में रहने वाले, ऐसे हिम्मत कर बाप दादा के मददगार बनने वाले बच्चों को यादप्यार औ नमस्ते।

सेवाधारी भाई बहनों से :- महायज्ञ की महासेवा का प्रसाद खाया? प्रसाद तो कभी भी कम होने वाला नहीं है। ऐसा अविनाशी महाप्रसाद प्राप्त किया? कितना वैरयटी प्रसाद मिला? सदाकाल के लिए खुशी, सदा के लिए नशा, अनुभूति ऐसे सर्व प्रकार का प्रसाद पाया? तो प्रसाद बांटकर खाया जाता है। प्रसाद आंखों के ऊपर, मस्तक के ऊपर रखकर खाते हैं। तो यह प्रसाद ऑखों मे समा जाए। मस्तक में स्मृति स्वरूप हो जाए अर्थात् समा जाए। ऐसा प्रसाद इस महायज्ञ में मिला? महाप्रसाद लेने वाले कितने महान भाग्यवान हुए ऐसे चान्स कितनों को मिलता है? बहुत थोड़ों को उन थोड़ो में से आप हो। तो महान भाग्यवान हो गये ना। जैसे यहाँ बाप और सेवा इसके सिवाए तीसरा कुछ भी याद नहीं रहा, तो यहाँ का अनुभव सदा कायम रखना है। वैसे भी कहाँ जाते हैं तो विशेष वहाँ से कोई न कोई यादगार ले जाते हैं, तो मधुबन का विशेष यादगार क्या ले जायेंगे? निरन्तर सर्व प्राप्ति स्वरूप हो रहेंगे। तो वहाँ भी जाकर ऐसे ही रहेंगे या कहेंगे वायुमण्डल ऐसा था, संग ऐसा था। परिवर्तन भूमि से परिवर्तन होकर जाना। कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन आप अपनी शक्ति से परिवर्तन कर लो। इतनी शक्ति है ना। वायुमण्डल का प्रभाव आप पर न आवे। सभी सम्पन्न बन करके जाना।

माताओं के साथ - माताओं के लिए तो बहुत खुशी की बात हैं - क्योंकि बाप आया ही है माताओं के लिए। गऊपाल बनकर गऊ माताओं के लिए आये हैं। इसी का तो यादगार गाया हुआ है। जिसको किसी ने भी योग्य नहीं समझा लेकिन बाप ने योग्य आपको ही समझा - इसी खुशी में सदा उड़ते चलो। कोई दु:ख की लहर आ नहीं सकती। क्योंकि सुख के सागर के बच्चे बन गये। सुख क सागर में समाने वालों को कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती है - ऐसे सुख स्वरूप।



21-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगम पर बाप और ब्राह्मण सदा साथ-साथ

बेहद की सेवा के निमित्त बनाने वाले बाप दादा अपने फ्रेंडस बच्चों के प्रति बोले :-

आज बापदादा अपने राइट हैन्डज से सिर्फ हैन्डशेक करने के लिए आये हैं। तो हैन्डशेक कितने में होती है? सभी ने हैन्डशेक कर ली? फिर भी एक दृढ़ संकल्प कर सच्चे साजन की सजनियाँ तो बन गई हैं। तब ही विश्व की सेवा का कार्य सम्भालने के निमित्त बनी हो? वायदे के पक्के होने के कारण बाप दादा को भी वायदा निभाना पड़ा। वायदा तो पूरा हुआ ना। सबसे नज़दीक से नज़दीक गाड के फ्रेंडस कौन हैं? अभी सभी गाड के अति समीप के फ्रेंडस हो। क्योंकि समान कर्तव्य पर हो। जैसे बाप बेहद की सेवा प्रति है वैसे ही आप छोटे बड़े बेहद के सेवाधारी हो। आज विशेष छोटे-छोटे फ्रेंडस के लिए खास आये हैं। क्योंकि हैं छोटे लेकिन जिम्मेदारी तो बड़ी ली है ना। इसलिए छोटे फ्रेंडस ज्यादा प्रिय होते हैं। अभी उल्हना तो नहीं रहा ना। अच्छा। (बहनों जो गीत गाया - जो वायदा किया है, निभाना पड़ेगा)’’

बापदादा तो सदा ही बच्चों की सेवा में तत्पर ही है। अभी भी साथ हैं और सदा ही साथ हैं। जब हैं ही कम्बाइन्ड तो कम्बाइन्ड को कोई अलग कर सकता है क्या? यह रूहानी युगल स्वरूप कभी भी एक दो से अलग नहीं हो सकते। जैसे ब्रह्मा बाप और दादा कम्बाइन्ड हैं, उन्हों को अलग कर सकते हो? तो फालो फादर करने वाले ब्राहमण श्रेष्ठ और बाप कम्बाइन्ड हैं। यह तो आना और जाना तो ड्रामा में ड्रामा है। वैसे अनादि ड्रामा अनुसार अनादि कम्बाइन्ड स्वरूप संगमयुग पर बन ही गये हो। जब तक संगमयुग है, तब तक बाप और श्रेष्ठ आत्मायें सदा साथ हैं। इसलिए खेल में खेल करके गीत भले गाओ, नाचो गाओ, हंसो-बहलो लेकिन कम्बाइन्ड रूप को नहीं भूलना। बाप दादा तो मास्टर शिक्षक को बहुत श्रेष्ठ नजर से देखते हैं, वैसे तो सर्व ब्राहमण श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं लेकिन जो मास्टर शिक्षक बन अपने दिल व जान, सिक व प्रेम से दिन रात सच्चे सेवक बन सेवा करते वह विशेष में विशेष और विशेष में भी विशेष हैं। इतना अपना स्वमान सदा स्मृति में रखते हुए संकल्प,बोल और कर्म में आओ। सदा यही याद रखना कि हम नयनों के नूर हैं। मस्तक की मणि हैं, गले के विजय माला के मणके हैं और बाप के होठों की मुस्कान हम हैं। ऐसे सर्व चारों ओर से आये हुए छोटे-छोटे और बड़े प्रिय फ्रेंडस को वा जो भी सभी बच्चे आये हैं, वह सभी अपने-अपने नाम से अपनी याद स्वीकार करना। चाहे नीचे बैठे हैं, चाहे ऊपर बैठे हैं, नीचे वाले भी नयनों में और ऊपर वाले नयनों के सम्मुख हैं। इसलिए अभी वायदा निभाया, अभी सभी फ्रेंडस में सर्व साथियों से यादप्यार और नमस्ते।

थोड़ा-थोड़ा मिलना अच्छा है। आप लोगों ने इतना ही वायादा किया था। (गीत अभी न जाओ छोड़ के, कि दिल अभी भरा नहीं.....) दिल भरने वाली है कभी? यह तो जितना मिलेंगे उतना दिल भरेगी। अच्छा - (दीदी जी को देखते हुए) - ठीक है ना। दीदी से वायदा किया हुआ है, साकार का। तो यह भी निभाना पड़ता है। दिल भर जाए तो खाली करना पड़ेगा, इसलिए भरता ही रहे तो ठीक है। (दीदी जी से) इनका संकल्प ज्यादा आ रहा था। आप सब छोटी-छोटी बहनों से दादी-दीदी का ज्यादा प्यार रहता है। दीदी-दादी जो निमित्त है, उन्हों का आप लोगों से विशेष प्यार। अच्छा किया, बाप दादा भी आफरीन देते हैं। जिस प्यार से आप लोगों को यह चांस मिला है, उस प्यार से मिलन भी हुआ। नियम प्रमाण आना यह कोई बड़ी बात नहीं, यह भी एक विशेष स्नेह का विशेष प्यार का रिर्टन मिल रहा है। इसलिए जिस उमंग से आप लोग आये, ड्रामा में आप सबका बहुत ही अच्छा गोल्डन चांस रहा। तो सब गोल्डन चान्सलर हो गये ना। वह सिर्फ चांसलर होते हैं, आप गोल्डन चांसलर हो अच्छा’’


 


26-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग दो

सर्व को सहयोग देने के निमित्त बनाने वाले, सदा दाता शिव बाबा अपने सेवाधारी बच्चों के प्रति बोले:-

आज बापदादा अपने सेवाधारी साथियों से मिलने आये हैं, जैसे बापदादा ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा अर्थ निमित्त हैं, ऐसे ही आप सभी भी ऊंचे ते ऊंचे साकार स्थान पर स्थित हो बेहद की सेवा प्रति निमित्त हो। जिस स्थान के तरफ अनेक आत्माओं की नजर है। जैसे बाप के यथार्थ स्थान को न जानते हुए भी फिर भी सबकी नजर ऊंचे तरफ जाती है, ऐसे ही साकार में सर्व आत्माओं की नजर इस महान स्थान पर ही जा रही है और जायेगी। ‘‘कहाँ पर है’’ अभी तक इसी खोज में हैं। समझते हैं कि कोई श्रेष्ठ ठिकाना मिले। लेकिन यही वह स्थान है, इसकी पहचान के लिए चारों ओर परिचय देने की सेवा सभी कर रहे हैं। यह बेहद का विशेष कार्य ही इसी सेवा को प्रसिद्ध करेगा कि मिलना है वा पाना है तो यहाँ से। यही अपना श्रेष्ठ ठिकाना है। विश्व के इसी श्रेष्ठ कोने से ही सदाकाल का जीयदान मिलना है। इस बेहद के कार्य द्वारा यह एडवरटाइज विशाल रूप में होनी है, जैसे धरती के अन्दर कोई छिपी हुई वा दबी हुई चीजें अचानक मिल जाती हैं तो खुशी-खुशी से सब तरफ प्रचार करते हैं। ऐसे ही यह आध्यात्मिक खज़ानों की प्राप्ति का स्थान जो अभी गुप्त है, इसको अनुभव के नेत्र द्वारा देख ऐसे ही समझेंगे जैसे गँवाया हुआ, खोया हुआ गुप्त खज़ाने का स्थान फिर से मिल गया है। धीरे-धीरे सबके मन से, मुख से यही बोल निकलेंगे कि ऐसे कोने में इतना श्रेष्ठ प्रापति का स्थान। इसको तो खूब प्रसिद्ध करो। तो विचित्र बाप, विचित्र लीला और विचित्र स्थान, यही देख-देख हर्षित होंगे। वन्डरफुल बात है, वन्डरफुल कार्य है यही सबके मुख से सुनते रहेंगे। ऐसे सदाकाल की अनुभूति कराने के लिए क्या-क्या तैयारियाँ की हैं।

हाल तो तैयार कर रहे हैं, हाल के साथ चाल भी ठीक है? हाल के साथ चाल भी देखेंगे ना। तो हाल और चाल दोनों ही विशाल और बेहद है ना। जेसे मजदूरों से लेकर बड़े-बड़े इन्जीनियर्स, दोनों के सहयोग और संगठन से हाल की सुन्दर रूप रेखा तैयार हुई है, अगर मजदूर न होते तो इन्जीनियर भी क्या करते। वे कागज पर प्लैन बना सकते हैं, लेकिन प्रैक्टिकल स्वरूप तो बिना मजदूरों के हो नहीं सकता। तो जेसे स्थूल सहयोग के आधार पर सर्व की अंगुली लगने से हाल तैयार हो गया है। वैसे हाल के साथ वन्डरफुल चाल दिखाने के लिए ऐसा विशेष स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ। सिर्फ बुद्धि में संकल्प किया, यह नहीं। लेकिन जैसे इन्जीनियर के बुद्धि की मदद और मजदूरों के कर्म की मदद से कार्य सम्पन्न हुआ। इसी रीति मन के श्रेष्ठ संकल्प साथ-साथ हर कर्म द्वारा ही दिखाई देता है। तो ऐसे चलने और करने को संकल्प , वाणी हाथ वा पाँव द्वारा संगठित रूप में विचित्र स्वरूप से दिखाने का दृढ़ संकल्प किया है? ऐसी चाल का नक्शा तैयार किया है? सिर्फ 3 हजार की सभा नहीं लेकिन 3 हजार में सदा त्रिमूर्ति दिखाई दे। यह सब ब्रह्मा के समान कर्मयोगी,विष्णु के समान प्रेम और शक्ति से पालना करने वाले, शंकर के समान तपस्वी वायुम- ण्डल बनाने वाले हैं, ऐसा अनुभव हर एक द्वारा हो। ऐसा स्वंय में सर्व शक्तियों का स्टाक जमा किया है? यह भी भण्डारा भरपूर किया है? यह स्टाक चेक किया है? वा सभी ऐसे बिजी हो गये हो जो चेक करने की फुर्सत ही नहीं?

सेवा की अविनाशी सफलता के लिए स्वयं के किस विशेष परिवर्तन की आहुति डालेंगे? ऐसा अपने आप से प्लैन बनाया है? सबसे बड़े ते बड़ी देन है दाता के बच्चे बन सर्व को सहयोग देना। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगडे हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के सहयोगी बनना - यह है बड़े ते बड़ी विशेष देन। इसने यह कहा, यह किया, यह देखते, सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टाक द्वारा परिवर्तन कर देना जैसे कोई खाली स्थान होता है तो आलराउन्ड सेवाधारी समय प्रमाण जगह भर देते हैं। ऐसे अगर किसी भी द्वारा कोई शक्ति की कमी अनुभव भी हो तो अपने सहयोग से जगह भर दो। जिससे दूसरे की कभी का भी अन्य कोई को अनुभव न हो। इसको कहा जाता है - दाता के बच्चे बन समय प्रमाण उसे सहयोग की देन देना। यह नहीं सोचना है, इसने यह किया, ऐसा किया, लेकिन क्या होना चाहिए वह करते रहो। कोई की कमी न देखना, लेकिन आगे बढ़ते रहना। अच्दे ते अच्छा क्या हो सकता है वह भी सिर्फ सोचना नहीं है लेकिन करना है। इसको ही विचित्र चाल का प्रत्यक्ष स्वरूप कहा जायेगा। सदा अच्छे ते अच्छा हो रहा है और सदा अच्दे ते अच्छा करते रहना है - इसी समर्थ संकल्प को साथ रखना। सिर्फ वर्णन नहीं करना लेकिन निवारण करते नव निर्माण के कर्तव्य की सफलता को प्रत्यक्ष रूप में देखते और दिखाते रहना। ऐसी तैयारी भी हो रही है ना क्योंकि सभी की जिम्मेवारी होते हुए भी विशेष मधुबन निवासियों की जिम्मेवारी है। डबल जिम्मेवारी ली है ना। जेसे हाल का उद्घाटन कराया तो चाल का भी उद्घाटन हो गया है? वह भी रिर्हसल हुई वा नहीं। दोनों का मेल हो जायेगा तब ही सफलता का नगाड़ा चारों ओर तक पहुँचेगा। जितना ऊंचा स्थान होता है उतनी लाइट चारों ओर ज्यादा फैलती है। यह तो सबसे ऊंचा स्थान है तो यहाँ से निकला हुआ आवाज़ चारों ओर तक पहुंचे उसके लिए लाइट माइट हाउस बनना है। अच्छा –

सदा स्वंय को हर गुण, हर शक्ति सम्पन्न साक्षात् बाप स्वरूप बन सर्व को साक्षात्कार कराने वाले, सदा वचित्र स्थिति में स्थित हो साकार चित्र द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, ऊंचे ते ऊंची स्थिति द्वारा ऊंचे ते ऊंचे स्थान को, ऊंचे ते ऊंचे प्राप्तियों के भण्डार को प्रत्यक्ष करने वाले, सर्व के मन से मिल गया, पा लिया का गीत निकलने की सदा शुभभावना, शुभकामना रखने वाले - ऐसे सर्व श्रेष्ठ बेहद सेवाधारियों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

मधुबन निवासियों के साथ :- वरदान भूमि पर रहने वालों को सदा सन्तुष्ट रहने का वरदान मिला हुआ है ना। जो जितना अपने को सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न अनुभव करेंगे वह सदा सन्तुष्ट होंगे। अगर जरा भी कमी की महसूसता हुई तो जहाँ कमी है वहाँ असन्तुष्टता है। तो सर्व प्राप्ति है ना। संकल्प की सिद्धि तो फिर भी हो रही हैना। थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि अपना राज्य तो है नहीं। जितनी औरों के आगे प्राबलम आती है उतना यहाँ नहीं। यहाँ प्राबलम तो खेल हो गई है फिर भी समय पर बहुत सहयोग मिलता रहा है - क्योंकि हिम्मत रखी है। जहाँ हिम्मत है वहाँ सहयोग प्राप्त हो ही जाता है। अपने मन मे कोई हलचल नहीं होनी चाहिए। मन सदैव हल्का रहने से सर्व के पास भी आपके लिए हल्कापन रहेगा। थोडा बहुत हिसाब किताब तो होता ही है लेकिन उस हिसाब किताब को भी ऐस ही पार करो जैसे कोई बड़ी बात नहीं। छोटी बात को बड़ा नहीं करो। छोटा करना वा बड़ा करना यह अपनी बुद्धि के ऊपर है। अभी बेहद की सेवा का समय है तो बुद्धि भी बेहद की रखो। वातावरण शक्तिशाली बनाना है, यह हरेक आत्मा स्वयं को जिम्मेवार समझे। जबकि एक दो के स्वभाव संस्कार से टक्कर नहीं खा सकते। जैसे किसको पता है कि यहाँ खड्डा है वा पहाड़ा है तो जानने वाला कब टकरायेगा नहीं। किनारा कर लेगा । तो स्वयं को सदा सेफ रखना है। जब एक टक्कर नहीं खायेगा तो दूसरा स्वयं ही बच जायेगा। किनारा करो अर्थात् अपने को सेफ रखो और वायुमण्डल को सेफ रखो। काम से किनारा नहीं करना है। अपनी सेफ्टी की शक्ति से दूसरे को भी सेफ करना यह है किनारा करना। ऐसी शक्ति तो आ गई है ना।

साकार रूप में फालो करने के हिसाब से सबको मधुबन ही दिखाई देता है क्योंकि ऊंचा स्थान है। मधुबन वाले तो सदा झूले में झूलते रहते। यहाँ तो सब झूले। स्थूल प्राप्ति भी बहुत है तो सूक्ष्म प्राप्ति भी बहुत है सदा झूले में होंगे तो कब भूलें नहीं होंगी। प्राप्ति के झूले से उतरते हैं तो भूलें अपनी भी दसरे को भी दिखाई देंगी। झूले में बैठने से धरनी को छोड़ना पड़ता है। तो मधुबन वाले तोसर्व प्राप्ति के झूले में सदा झूलते रहते। सिर्फ प्राप्ति के आधार पर जीवन न हो। प्राप्ति आपके आगे भल आवे लेकिन आप प्राप्ति को स्वीकार नहीं कर लो। अगर इच्छा रखी तो सर्व प्राप्ति होते भी कभी महसूस होगी। सदा अपने को खाली समझेंगे। तो ऐसा भाग्य है जो बिना मेहनत के प्राप्ति स्वयं आती है। तो इस भाग्य को सदा स्मृति में रखो। जितना स्वयं निष्काम बनेंगे उतना प्राप्ति आपके आगे स्वत: ही आयेगी। अच्छा –

सेवाधारियों से :- सेवाधारी का अर्थ ही है प्रत्यक्षफल खाने वाले। सेवा की और खुशी की अनुभूति की तो यह प्रत्यक्षफल खाया ना। सेवाधारी बनना यह तो बड़े ते बड़े भाग्य की निशानी है। जन्म-जन्म के लिए अपने को राज्य अधिकारी बनने का सहज साधन है। इसलिए सेवा करना अर्थात् भाग्य का सितारा चमकना। तो ऐसे समझते हुए सेवा कर रहे हो ना। सेवा लगती है या प्राप्ति लगती है? नाम सेवा है लेकिन यह सेवा करना नहीं है, मिलना है। कितना मिलता है? करते कुछ भी नहीं हो और मिलता सब कुछ है। करने में सब सुख के साधन मिलते हैं। कोई मुश्किल नहीं करना पड़ता है, कितना भी हार्ड वर्क हो लेकिन सैलवेशन भी साथ-साथ मिलती है तो वह हार्ड वर्क नहीं लगता खेल लगता है। इसलिए सेवाधारी बनना अर्थात् प्राप्तियों के मालिक बनना। सारे दिन में कितनी प्राप्ति करते हो? एक एक दिन की, एक एक घण्टे को प्राप्ति का अगर हिसाब लगाओ तो कितना अनगिनत है, इसलिए सेवाधारी बनना भाग्य की निशानी है। सेवा का चान्स मिला अर्थात् प्राप्तियों के भण्डार भरपूर हो हुए। स्थूल प्राप्ति भी है और  सूक्ष्म भी। कहीं भी कोई सेवा करो तो स्थूल साधन इतने नहीं मिलते जितने मधुबन में मिलते हैं। यहाँ सेवा के साथ-साथ पहले तो अपने आत्मा की , शरीर की पालना, डबल होती है। तो सेवा करते खुशी होती है या थकावट होती है? सेवा करते सदैव यह चेक करो कि डबल सेवा कर रहा हूँ। मंसा द्वारा वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने की ओर कर्म द्वारा स्थूल सेवा। तो एक सेवा नहीं करनी है। लेकिन एक ही समय पर डबल सेवाधारी बन करके अपना डबल कमाई का चांस लेना है।

सभी सन्तुष्ट हो? सभी अपने-अपने कार्य में अच्छी तरह से निर्विघ्न हो? कोई भी कार्य में कोई खिट-खिट तो नहीं है? कभी आपस में खिट-खिट तो नहीं करते हो। कभी तेरा मेरा, मैंने किया तुमने किया - यह भावना तो नहीं आती है? क्योंकि अगर किया और यह संकल्प में भी आया मैंने तो जो भी किया वह सारा खत्म हो गया। मेरा-पन आना माना सारे किये हुए कार्य पर पानी डाल देना। ऐसे तो नहीं करते हो? सेवाधारी अर्थात् करावनहार बाप निमित्त बनाए करा रहे हैं। करावनहार को नही भूलें। जहाँ निमित्त भाव होगा मैं पन आया तो माया भी आई। निमित्त हूँ निर्माण हूँ तो माया आ नहीं सकती। संकल्प या स्वप्न में भी माया आती है तो सिद्ध होता कि कहाँ मैं-पन का दरवाजा खुला है। मैं-पन का दरवाजा बन्द रहे तो कभी भी माया आ नहीं सकती। अच्छा –


 


15-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


विश्व शांति सम्मलेन के समाप्ति समारोह पर प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर अनमोल महावाक्य

आज बेहद का बाप सेवा के निमित्त बने हुए सेवाधारी बच्चों को देख रहे हैं। जिस भी बच्चे को देखें, हरेक, एक दो से श्रेष्ठ आत्मा है। तो बापदादा हरेक श्रेष्ठ आत्मा की, सेवाधारी आत्मा की विशेषता को देख रहे हैं। बापदादा को हर्ष है कि हरेक बच्चा इस विश्व परिवर्तन के कार्य में आधारमूर्त, उद्धारमूर्त है। सभी बच्चे बापदादा के कार्य में सदा सहयोगी आत्मा हैं। ऐसे सहयोगी, सहजयोगी, श्रेष्ठ विशेष आत्माओं को वा सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को देख बापदादा अति स्नेह के सुनहरी पुष्पों से बच्चों का स्वागत और मुबारक की सैरीमनी मना रहे हैं। बापदादा हर बच्चे को मस्तकमणि, सन्तुष्टमणि, ह्दयमणि जैसे चमकते हुए स्वरूप में देखते हैं। बापदादा भी सदा एक गीत गाते रहते हैं, कौन सा गीत गाते हैं, जानते हो ना? यही गीत गाते- वाह मेरे बच्चे, वाह! वाह मीठे बच्चे, वाह! वाह प्यारे ते प्यारे बच्चे, वाह! वाह श्रेष्ठ आत्मायें वाह! ऐसा ही निश्चय और नशा सदा रहता है ना। सारे कल्प में ऐसा भाग्य प्राप्त नहीं हो सकता जो भगवान बच्चों के गीत गाये। भक्त, भगवान के गीत बहुत गाते हैं। आप सब ने भी बहुत गीत गाये हैं। लेकिन ऐसे कब सोचा कि कब भगवान भी हमारे गीत गायेंगे! जो सोचा नहीं था वह साकार रूप में देख रहे हो। विश्व शान्ति की कांफ्रेंस कर ली। सभी बच्चों ने मुख द्वारा बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाई और मन द्वारा सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना के शुभ संकल्प के वायब्रेशन भी चारों ओर, ज्ञान सूर्य बन फैलाए। लेकिन बापदादा सभी भाषण करने वालों का सार सुना रहे हैं। । आप लोगों ने तो चार दिन भाषण किये और बापदादा एक सेकण्ड का भाषण करते हैं। वह दो शब्द हैं - रियलाइजेशन और सॉल्युशन। जो भी आप सबने बोला उसका सार रियलाइजेशनही है। आत्मा को नहीं भी समझें लेकिन मानव के मूल्य को जानें तो भी शान्ति हो जाए। मानव विशेष शक्तिशाली स्वरूप है। अगर यह भी रियलाइज कर लें तो मानव के हिसाब से भी मानव धर्म स्नेहहै, न कि लड़ाई झगड़ा। इससे आगे चलो  - मानव जीवन का व मानवता का आधार आत्मा पर है। मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ, यह रियलाइज कर लें तो शान्ति तो स्वधर्म हो जायेगा। फिर आगे चलो - ‘‘मै श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिवान की सन्तान हूँ’’, यह रियलाइजेशन निर्बल से शक्ति स्वरूप बना देगी। शक्ति स्वरूप आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल में कर सकती है, इसलिए सुनाया कि सारे भाषणों का सार एक ही है -’’रियलाइजेशन’’। तो बापदादा ने सभी भाषण सुने हैं ना।! बापदादा सदा बच्चों के साथ हैं ही। अच्छा –

सभी सेवा में समर्पित बच्चों को, सभी जोन से आये हुए बच्चों को, एक- एक यही समझे कि बापदादा मेरे को कह रहे हैं। एक एक से बात कर रहे हैं। सभी बच्चों ने जो प्रत्यक्ष सबूत दिखाया, उसके रिटर्न में बापदादा हरेक बच्चे को नाम सहित, रूप तो देख रहे हैं, नाम सहित मुबारक दे रहे हैं। अब तो जब आप समय परिवर्तन की सूचना दे रहे हो, तो बापदादा के मिलने का भी परिवर्तन होगा ना। आप सबका संकल्प है हमारा परिवार वृद्धि को पाए तो पुरानों को त्याग करना पड़ेगा। लेकिन यह त्याग ही भाग्य है। दूसरों को आगे बढ़ाना ही स्वयं को आगे बढ़ाना है। ऐसे नहीं समझना - क्यों बाप दादा को विदेशी बच्चे प्रिय हैं, देश वाले नहीं हैं। वा कोई विशेष बच्चे प्रिय है। बापदादा का तो हरेक बच्चा दिल का सहारा, मस्तक के ताज की मणी है। इसलिए बापदादा सबसे पहले अपने राइट हैण्ड्स सहयोगी बच्चों को अति दिल व जान, सिक व प्रेम से याद दे रहे हैं। यह तो जरूर है दूर से आने वाले, सम्पर्क में आने वालों को सम्बन्ध में लाने के लिए आप सभी खुशी-खुशी उन्हीं को आगे बढ़ा रहे हो और बढ़ाते रहेंगे।

इस समय सब सेवा के प्रति आये हो। इसलिए यह भी सेवा हो गई। हरेक जोन का नाम लेवे क्या? अगर एक-एक नाम लेंगे तो कोई रह जाए तो? इसलिए सभी जोन समझें कि बापदादा मुझे पहला नम्बर रख रहे हैं। सर्व देश के वा विदेश के, अब तो सभी मधुबन निवासी हे, इसलिए सर्व विश्व शान्ति हाल में उपस्थित बच्चों को, ओम् शान्ति भवन निवासी बच्चों को बाप दादा, सदा याद में रहो, याद दिलाते रहो, हर कदम यादगार चरित्र बनाते चलते चलो। हर सेकण्ड अपने प्रैक्टिकल लाइफ के आइने द्वारा सर्व आत्माओं को स्वका, बाप का साक्षात्कार कराते चलो, ऐसे वरदानी महादानी सदा सम्पन्न बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

राबर्ट मूलर (असिस्टेंट सेके्रट्री जनरल यू.एन.ओ.) के प्रति महावाक्य –

सेवा में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मा हो। जैसे मन में यह श्रेष्ठ संकल्प रखा कि जिस कार्य के लिए निमित्त बने हो वह करके ही दिखायेंगे। यह संकल्प बाप दादा और सारे ब्राह्मण परिवार के सहयोग से साकार में आता ही रहेगा। संकल्प बहुत अच्छा है। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे सोचते हो। अभी इसी प्लैन के बीच में जब यह स्प्रिचुअल पावर एड हो जायेगी तो यह प्लैन साकार रूप लेते रहेंगे। बाप दादा के पास बच्चों के सभी उमंग पहुँचते रहते हैं। सदा अटल रहना। हिम्मतवान बनकर आगे बढ़ते जाना। वह दिन भी इन आँखों से दिखाई देगा कि विश्व शान्ति का झण्डा विश्व के चारों ओर लहरायेगा। इसलिए आगे बढ़ते चलो। दुनिया वाले दिलशिकस्त बनायेंगे। आप मत बनना। एक बल एक भरोसा, इसी निश्चय से चलते रहना। जिस समय कोई भी परिस्थिति आये तो बाप को साथी बना लेना। तो ऐसा अनुभव करेंगे कि मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ विशेष शक्ति है। स्वप्न पूरा हो जायेगा। जहाँ बाप है, वहाँ कितने भी चाहे तूफान हों, वह तोफा बन जायेंगे। निश्चय बुद्धि विजयन्ति’ - यह टाइटल याद रखना कि मैं निश्चय बुद्धि विजयी रत्न हूँ। अच्छा ।

स्टीव नारायण (वाइस प्रेजीडेन्ट, ग्याना) के प्रति महावाक्य –

अपने को बाप के दिलतख्तनशीन समीप रत्न अनुभव करते हो? दूरदेश में रहते भी दिल से दूर नहीं हो। बच्चों का सर्विस में उमंग उल्लास देख बापदादा हर्षित होते हैं और नम्बरवन देते हैं। सदा उड़ती कला में रहने वाले, बाप दादा के नूरे रत्न हो। इसलिए बाप दादा मुबारक देते हैं।

(आन्टी बेटी से) - आपको नया जन्म लेते ही आशीर्वाद मिली हुई है कि आप सर्विसएबुल हो। अनुभवी मूर्त हो। ग्याना में रहते हुए भी विश्व सेवा अर्थ निमित्त मूर्त हो और रहेंगी। याद द्वारा बाप के सहयोग और वरदानों का अनुभव होता है ना! आपकी याद बाप को पहुँचती रहती है। सर्व संकल्प सिद्ध होते रहते हैं ना! आप एक श्रेष्ठ आत्मा के एक ही श्रेष्ठ संकल्प से सारा परिवार श्रेष्ठ पद को पा रहा है। पद्मापद्म भाग्यशाली हो।

 


 

15-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"विश्व शांति सम्मेलन में सम्मिलित होने वाले भाई-बहेनो के प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश"

(गुलजार बहन द्वारा)

सदा की रीति प्रमाण आज जैसे ही मैं वतन में पहुँची तो बाप दादा बहुत मीठी नजर से दृष्टि द्वारा सर्व बच्चों को यादप्यार दे रहे थे। बाबा की दृष्टि से आज ऐसे अनुभव हो रहा था जैसे अति शान्ति, शक्ति, प्रेम और आनन्द की किरणें निकल रही हों। ऐसी रूहानी दृष्टि जिससे चार ही बातों की प्राप्ति हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे हम बहुत कुछ पा रहे हैं। ऐसे बाप दादा ने हम सभी बच्चों का स्वागत किया और बोले - ‘‘बच्ची, सभी की याद लाई हो?’’ मैनें कहा -’’याद तो लाई हूँ लेकिन सबके आह्वान का संकल्प भी लाई हूँ’’ तो बाबा बोले - ‘‘इस समय तो मेरे इतने प्यारे बच्चे, जो भी आये हैं, जानने के लिए आए हैं, ऐसा भी दिन आएगा जो फिर मिलने के लिए आयेंगे। बापदादा तो सभी बच्चों का दृश्य वतन में रहते हए भी सदा देखते रहते हैं।’’ ऐसा कहते बाबा ने एक दृश्य दिखाया - जैसे भारत देश में भक्त लोग मन्दिरों में शिवालिंग की प्रतिमा बनाते हैं। ऐसे वतन में भी एक प्रतिमा दिखाई दी लेकिन उस प्रतिमा का गोल आकार था। और उस गोल आकार में अनेक चमकते हुए हीरे चारों ओर नजर आ रहे थे। उन चमकते हुए हीरों पर चार प्रकार की लाइट पड़ रही थी। एक रंग था सफेद, दूसरा हरा, तीसरा हल्का ब्ल्यु और चौथा गोल्ड। थोड़े समय में वह लाइट शब्दों में बदल गई। सफेद लाइट के अक्षरों से लिखा था शान्ति। दूसरे पर उमंग’, तीसरे पर उत्साहऔर चौथी लाइट से सेवा

तो बाबा बोले - ‘‘सभी बच्चों ने बहुत ही उमंग उत्साह और शान्ति के संकल्प द्वारा विश्व की सेवा की। एक-एक आत्मा संगठित रूप में देखो कितनी चमक रही है।’’ फिर बाबा ने कहा - ‘‘मेरे बच्चे मुझे यथा शक्ति जान पाए हैं, फिर भी हैं तो मेरे ही बच्चे। मेरे सभी मीठे-मीठे बच्चों को यादप्यार देना। जो भी बच्चे आये हैं। सबके मुख से यह आवाज़ तो निकलती है कि हम अपने घर में आये हैं - बापदादा बच्चों की यह आवाज़ सुनकर मुस्कराते हैं। जब बच्चे घर में आए हैं तो पूरा अधिकार लेने आए हैं, या थोड़ा सा?’’ तो बाबा ने कहा - ‘‘सागर के किनारे पर आकर गागर भरकर नहीं जाना लेकिन मास्टर सागर बनकर जाना। खान पर आकर दो मुट्ठी भर कर नहीं जाना।’’ फिर बाप दादा ने तीन प्रकार के बच्चों को तीन प्रकार की सौगात दी –

1. बाबा बोले - ‘‘मेरे कलमधारी बच्चे (प्रेस वाले) जो आये हैं उन्हें बाप दादा कमल पुष्प की सौगात देते हैं। मेरे कलमधारी बच्चों को कहना कि सदा कमल समान सारे विश्व के तमोगुणी वायब्रेशन से न्यारे और पिता परमात्मा के प्यारे बनें। अगर ऐसी स्थिति में स्थित हो कलम चलायेंगे तो आपका व्यवहार भी सिद्ध हो जायेगा और परमार्थ भी सिद्ध हो जायेगा।’’

2. वी.आई.पी. बच्चे जो भी आये हैं, उन्हों को बाबा ने सिंहासन नहीं लेकिन हंस-आसन दिया। बाबा बोले - ‘‘यह जो मेरे वी.आई.पी. बच्चे आये हैं उन्हों के मुख में शक्ति है। इन्हें मैं हंस-आसन देता हूँ। इस आसन पर बैठकर फिर कोई वार्य करना। हंस-आसन पर बैठने से आपकी निर्णय शक्ति रेष्ठ होगी और जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता होगी। जैसे कुर्सा पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस-आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी।’’

3. सरेन्डर सेवाधारी बच्चों को बाप दादा ने एक बहुत अच्छा लाइट के फूलों का बना हुआ हारदिया। हरेक लाइट पर कोई न कोई दिव्यगुण लिखा था तो बाबा बोले - ‘‘ये मेरे बच्चे सर्वगुण धारण करने वाले गुण मूर्त बच्चे हैं। सभी बच्चों ने एक बल एक मत होकर जो यह बेहद की सेवा की, उसके रिटर्न में बाप दादा यह दिव्यगुणों की माला सभी बच्चों को सौगात रूप में देते हैं। और लास्ट में कहा - ‘‘सभी बच्चों को बाप दादा के यही महावाक्य सुनाना - कि सदा खुश रहना, खुशनसीब बनना और सर्व को खुशी के वरदानों से, खज़ानों से सम्पन्न बनाते रहना।’’ ऐसे मधुर महावाक्य सुनते, यादप्यार देते और लेते मैं अपने साकार वतन में पहुँच गई।

 


 

18-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सदा उमंग-उत्साह में रहने की युक्तियाँ

सदा सेवा की लगन में मगन बनाने वाले बापदादा बोले:-

आज सर्व बच्चों के दिलाराम बाप, बच्चों के दिल की आवाज़, दिल की मीठी-मीठी बातों का रेसपांड देने के लिए बच्चों के बीच आए हैं। अमृतवेले से लेकर बापदादा चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न राज़ भरे हुए साज सुनते रहते हैं। सारे दिन में कितने बच्चों के और कितने प्रकार के साज सुनते होंगे। हरेक बच्चे के भी समय-समय भिन्न-भिन्न साज होते हैं। सबसे पहले ज्यादा नैचरल साज कौन सुनता है? नैचरल वस्तु सदा प्रिय लगती है। तो सब बच्चों के भिन्नभिन्न साज सुनते हुए बापदादा बच्चों के सार में मुख्य बातें सुनाते हैं।

सभी बच्चे यथाशक्ति लगन में मगन अवस्था में स्थित होने के लिए वा मगन स्वरूप के अनुभवी मूर्त बनने के लिए अटेन्शन बहुत अच्छा रखते चल रहे हैं। सबकी दिल का एक ही उमंग उत्साह है कि मैं बाप समान समीप रतन बन सदा सपूत बच्चे का सबूत दूँ । यह उमंग उत्साह सर्व के उड़ती कला का आधार है। यह उमंग कई प्रकार के आने वाले विघ्नों को समाप्त कर सम्पन्न बनने में बहुत सहयोग देता है। यह उमंग का शुद्ध और दृढ़ संकल्प विजयी बनाने में विशेष शक्तिशाली शस्त्र बन जाता है। इसलिए सदा दिल में उमंग उत्साह को वा इस उड़ती कला के साधन को कायम रखना। कभी भी उमंग- उत्साह को कम नहीं करना। उमंग है - मुझे बाप समान सर्व शक्तियों, सर्व गुणों, सर्व ज्ञान के खज़ानों से सम्पन्न होना ही है - क्योंकि कल्प पहले भी मैं श्रेष्ठ आत्मा बना था। एक कल्प की तकदीर नहीं लेकिन अनेक बार के तकदीर की लकीर भाग्य विधाता द्वारा खींची हुई है। इसी उमंग के आधार पर उत्साह स्वत: ही उत्पन्न होता है। उत्साह क्या होता? ‘‘वाह मेरा भाग्य’’। जो भी बाप दादा ने भिन्न-भिन्न टाइटिल दिये हैं। उसी स्मृति स्वरूप में रहने से उत्साह अर्थात् खुशी स्वत: ही और सदा ही रहती है। सबसे बड़े ते बड़े उत्साह की बात है कि अनेक जन्म आपने बाप को ढूँढा लेकिन इस समय बापदादा ने आप लोगों को ढूँढा। भिन्न-भिन्न पर्दों के अन्दर छिपे हुए थे। उन पर्दों के अन्दर से भी ढूँढ लिया ना? बिछुड़कर कितने दूर चले गये! भारत देश को छोड़कर कहाँ चले गये! धर्म, कर्म, देश, रीति-रसम, कितने पर्दों के अन्दर आ गये। तो सदा इसी  उत्साह और खुशी में रहते हो ना! बाप ने अपना बनाया या आपने बाप को अपना बनाया! पहले मैसेज तो बाप ने भेजा ना। चाहे पहचानने में कोई ने कितना समय, कोई ने कितना समय लगाया। तो सदा उमंग और उत्साह में रहने वाली आत्माओं को, एक बल एक भरोसे में रहने वाले बच्चों को, हिम्मते बच्चे मददे बाप का सदा ही अनुभव होता रहता है। ‘‘होना ही है’’ यह है हिम्मत। इसी हिम्ते से मदद के पात्र स्वत: ही बन जाते हैं। और इसी हिम्मत के संकल्प के आगे माया हिम्मतहीन बन जाती है। पता नहीं, होगा या नहीं होगा, मैं कर सकूंगा या नहीं, - यह संकल्प करना , माया का आह्वान करना है। जब आह्वान किया तो माया क्यों नहीं आयेगी? यह संकल्प आना अर्थात् माया को रास्ता देना। जब आप रास्ता ही खोल देते हो तो क्यों नहीं आयेगी? आधाकल्प की प्रीत रखने वाली रास्ता मिलते कैसे नहीं आयेगी? इसलिए सदा उमंग उत्साह में रहने वाली हिम्मतवान आत्मा बनो। विधाता और वरदाता बाप के सम्बन्ध से बालक सो मालिक बन गए। सर्व खज़ानों के मालिक, जिस खज़ाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। ऐसे मालिक उमंग उत्साह में न रहेंगे तो कौन रहेगा! यह सलोगन सदा मस्तक में स्मृति रूप में रहे - ‘‘हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे।’’ याद है ना! इसी स्मृति ने यहाँ तक लाया है। सदा इसी स्मृति भव। अच्छा –

आज तो डबल विदेशी, सबसे ज्यादा में ज्यादा दूरदेशवासी, दूर से आने वाले बच्चों से विशेष मिलने के लिए आये हैं। वैसे तो भारत के बच्चे भी सदा अधिकारी हैं ही। फिर भी चान्सलर बन चान्स देते हैं इसलिए भारत में महादानी बनने की रीति-रसम अब तक भी चलती है। सबने अपने-अपने रूप से विश्व सेवा के महायज्ञ में सहयोग दिया। हरेक ने बहुत लगन से अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया। सर्व के एक संकल्प द्वारा विश्व की अनेक आत्माओं को बाप के समीप आने वा सन्देश मिला। अभी इसी सन्देश द्वारा जगी हुई ज्योति अनेको को जगाती रहेगी। डबल विदेशी बच्चों ने अपने दृढ़ संकल्प को साकार में लाया। भारतवासी बच्चों ने भी अनेक नाम फैलाने वाले, सन्देश पहुँचाने वाले विशेष आत्माओं को समीप लाया। कलमधारियों को भी स्नेह ओर सम्पर्क में समीप लाया। कलम की शक्ति और मुख की शक्ति दोनों ही मिलकर सन्देश की ज्योति जगाते रहेंगे। इसके लिए डबल विदेशी बच्चों को और देश में समीप रहने वाले बच्चों को, दोनों को बधाई। डबल विदेशी बच्चों ने पावरफुल आवाज़ फैलाने के निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को लाया उसके लिए भी विशेष बधाई हो। बाप तो सदा बच्चों के सेवाधारी हैं। पहले बच्चे। बाप तो बैकबोन है ना! सामने मैदान पर तो बच्चे ही आते हैं। मेहनत बच्चों की मुहब्बत बाप की। अच्छा –

ऐसे सदा उमंग उत्साह में रहने वाले, सदा बाप दादा की मदद के पात्र, हिम्मतवान बच्चे, सदा सेवा की लगन में मगन रहने वाले, सदा स्वंय को प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को शक्तियों की प्राप्ति कराने वाले- ऐसे बाप के सदा अधिकारी वा बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का विशेष स्नेह सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।’’

जानकी दादी से :- बाप समान भव की वरदानी हो ना! डबल सेवा करती हो। बच्ची की मंसा सेवा की सफलता बहुत अच्छी दिखाई दे रही है। सफलता स्वरूप का प्रत्यक्ष सबूत हो। सभी, बाप के साथ-साथ बच्ची के भी गुण गाते हैं। बाप साथ-साथ चक्कर लगाते हैं ना! चक्रवर्ती राजा हो। प्रकृतिजीत का अच्छा ही प्रत्यक्ष पार्ट बजा रही हो। अब तो संकल्प द्वारा भी सेवा का पार्ट अच्छा चल रहा है। प्रैक्टिकल सबूत अच्छा है। अभी तो बहुत बड़े बड़े आयेंगे। विदेश का आवाज़ देश वालों तक पहुँचेगा। सभी विदेशी बच्चों ने सर्विस के उमंग उत्साह का अच्छा ही प्रैक्टिकल सबूत दिखाया है। इसीलिए सभी के तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाई हो। अच्छा माइक लाया, याद का स्वरूप बनकर सेवा की है। इसलिए सफलता है। अच्छा बगीचा तैयार किया है। अल्लाह अपने बगीचे को देख रहे हैं।

जयन्ती बहन से :- जन्म से लकी और लवली तो हो ही। जन्म ही लक से हुआ है। जहाँ भी जायेंगी वह स्थान भी लकी हो जायेगा। देखो, लण्डन की धरती लकी हो गई ना। जहाँ भी चक्कर लगाती हो तो क्या सौगात देकर आती हो। जो भाग्य विधाता द्वारा भाग्य मिला है वह भाग्य बाँटकर आती हो! सभी आपको किस नजर से देखते हैं, मालूम है? भाग्य का सितारा हो। जहाँ सितारा चमकता है वहाँ जगमग हो जाता है। ऐसे अनुभव करती हो ना! कदम बच्ची का और मदद बाप की। फालो फादर तो हो ही लेकिन फालो साथी(जानकी दादी को) भी ठीक किया है। यह भी समान बनने की रेस अच्छी कर रही है। अच्छा –

(न्यूयार्क से सिंगर शैली ने बापदादा को यादप्यार भेजी है।) इसी मधुबन के यादप्यार ने ही उन्हें नया जन्म दिया है। उनके ओरीजनल नये जन्म की भूमि मधुबन है। तो बर्थ प्लेस उन्हें कैसे भूलेगा! जितनी शक्ति ली है उस शक्ति के हिसाब से बहुत ही अच्छा सर्विस का सबूत दिया है। अपने साथियों को अच्छा ही सन्देश देकर समीप लाया है। शेयर होल्डर है। क्योंकि जितनों को भी मैसेज मिलता है, इसके निमित्त उन सबका शेयर इसको मिलता रहता है।

(गायत्री बहन न्यूयार्क से):- गायत्री भी कम नहीं, बहुत अच्छा सर्विस का साधन अपनाया है। जो भी निमित्त बन करके आत्मायें मधुबन तक पहुँचाई, तो निमित्त बनने वालों को भी बाप दादा और परिवार की शुभ स्नेह के पुष्प की वर्षा होती रहती है। जितना ही शैली अच्छी आत्मा है, उतना ही यह जो बच्चा आया (राबर्ट मूलर) यह भी बहुत अच्छा सेवा के क्षेत्र में सहयोगी आत्मा है। सच्ची दिल पर साहिब राजी। साफ दिल वाला है। इसलिए बाप के स्नेह को, बाप की शक्ति को सहज कैच कर सका। उमंग-उत्साह और संकल्प बहुत अच्छा है। सेवा में अच्छा जम्प लगायेगा। बाप दादा भी निमित्त बने हुए बच्चों को देख हर्षित होते हैं। उनको कहना कि सेवा में उड़ती कला वाले फरिश्ता स्वरूप हो और ऐसे ही अनुभव करते रहना। सर्विस में उड़ती कला वाला बच्चा है। सर्विस करने का उमंग अच्छा है। अच्छा - सभी के सहयोग से सफलता मधुबन तक दिखाई दे रही है। नाम किसका भी नहीं ले रहे हैं। लकिन सब समझना कि हमें बाबा कह रहे हैं। कोई भी कम नहीं है। समझो पहले हम सेवा में आगे हैं। छोटे बड़े सभी ने तन-मन-धन-समय, संकल्प सब कुछ सेवा में लगाया है।

मुरली भाई और रजनी बहन से :- बाप दादा के स्नेह की डोर ने खींच लाया ना। सदा अभी क्या याद रहता है? श्वासों श्वासं सेकण्ड-सेकण्ड क्या याद रहता? सदा दिल से बाबा ही निकलता है ना! मन की खुशी, याद के अनुभव द्वारा अनुभव की! अभी एकाग्र हो जो सोचेंगे वह सब आगे बढ़ने का साधन हो जायेगा। सिर्फ एक बल एक भरोसे से एकाग्र हो कर के सोचो। निश्चय में एक बल और एक भरोसा, तो जो कुछ होगा वह अच्छा ही होगा। बापदादा सदा साथ हैं और सदा रहेंगे। बहादुर हो ना! बाप दादा बच्चे की हिम्मत और निश्चय को देख के निश्चय और हिम्मत पर बधाई दे रहे हैं। बेफिकर बादशाह के बच्चे बादशाह हो ना! ड्रामा की भावी ने समीप रत्न तो बना ही दिया है। साथ भी बहुत अच्छा मिला है। साकार का साथ भी शक्तिशाली है। आत्मा का साथ तो है ही बाप। डबल लिफ्ट है। इसलिए बेफिकर बादशाह। समय पर पुण्यात्मा बन पुण्य का कार्य किया है। इसलिए बाप दादा के सहयोग के सदा पात्र हो। कितने पुण्य के अधिकारी बने। पुण्य-स्थान के निमित्त बने। किसी भी रीति से बच्चे का भाग्य बना ही दिया ना। पुण्य की पूँजी इकट्ठी है। मुरलीधर का मुरली, मास्टर मुरली है। बाप का हाथ सदा हाथ में है। सदा याद करते और शक्ति लेते रहो।

बाप का खज़ाना सो आपका, अधिकारी समझकर चलो। बाप दादा तो घर का बालक सो घर का मालिक समझते हैं। परमार्थ और व्यवहार दोनों साथ-साथ हों। व्यवहार में भी साथ रहे। अच्छा।

यू.के. ग्रुप से :- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी समझते हो? वैसे भी लण्डन राजधानी है ना! तो राजधानी में रहते हुए अपना राज्य सदा याद रहता है ना! रानी का महल देखते हुए अपने महल याद आते हैं? आपके महल कितने सुन्दर होंगे, जानते हो ना! ऐसा आपका राज्य है जो अब तक कोई ऐसा राज्य न हुआ ह। न होगा। ऐसा नशा है? भल अभी तो सब विनाश हो जायेगा। लेकिन आप तो भारत में आ जायेंगे ना। यह तो पक्का है ना! जहाँ भी ब्राहमण आत्माओं ने इतनी सेवा की है वह पिकनिक स्थान जरूर रहेंगे। आदमशुमारी कम होगी, इतने विस्तार की आवश्यकता नहीं होगी। अच्छा - अपना घर, अपना राज्य, अपना बाप, अपना कर्त्तव्य सब याद रहे।

प्रश्न:- सदा आगे बढ़ने का साधन क्या है?

उत्तर:- नालेज और सेवा। जो बच्चे नालेज को अच्छी रीति धारण करते हैं और सेवा की सदा रूचि बनी रहती है वह आगे बढ़ते रहते हैं। हजार भुजा वाला बाप आपके साथ है, इसलिए साथी को सदा साथ रखते आगे बढ़ते रहो।

प्रश्न:- प्रवृत्ति में जो सदा समर्पित होकर रहते हैं - उनके द्वारा कौन सी सेवा स्वत: हो जाती है?

उत्तर:- ऐसी आत्माओं के श्रेष्ठ सहयोग से सेवा का वृक्ष फलीभूत हो जाता है। सबका सहयोग ही वृक्ष का पानी बन जाता है। जैसे वृक्ष को पानी मिले तो वृक्ष से फल कितना अच्छा निकलता है, ऐसे श्रेष्ठ सहयोगी आत्माओं के सहयोग से वृक्ष फलीभूत हो जाता है। तो ऐसे बाप दादा के दिलतख्तनशीन, सेवा की धुन में सदा रहने वाले, प्रवृत्ति में भी समर्पित रहने वाले बच्चे हो ना। अच्छा।

ओम् शान्ति।



21-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


शांति की शक्ति

विश्व परिवर्तन तथा विश्व कल्याण के निमित्त बनाने वाले कल्याणकारी शिव बाबा बोले:-

आज बाप दादा अमृतवेले चारों ओर बच्चों के पास चक्कर लगाने गये। चक्कर लगाते हुए बाप दादा आज अपनी शक्ति सेना वा पाण्डव सेना, सभी की तैयारी देख रहे थे कि कहाँ तक सेना शक्तिशाली शस्त्रधारी एवररेडी हुई है। समय का इंतजार है वा स्वयं सदा ही सम्पन्न रहने का इंतजाम करने वाली है। तो आज बापदादा सेनापति के रूप में सेना को देखने गये। विशेष बात, साइन्स की शक्ति पर साइलेन्स के शक्ति की विजय है। तो साइलेन्स की शक्ति संगठित रूप में और व्यक्तिगत रूप में कहाँ तक प्राप्त कर ली है? वह देख रहे थे। साइन्स की शक्ति द्वारा प्रत्यक्ष फल रूप में स्व-परिवर्तन वायुमण्डलपरिवर्त न, वृत्ति-परिवर्तन, संस्कार-परिवर्तन कहाँ तक कर सकते हैं वा किया है तो आज सेना के हरेक सैनिक की साइलेन्स के शक्ति की प्रयोगशाला चेक की कि कहाँ तक प्रयोग कर सकते हैं।

स्मृति में रहना, वर्णन करना वह भी आवश्यक है लेकिन वर्तमान समय के प्रमाण सर्व आत्मायें प्रत्यक्षफल देखना चाहती हैं। प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रैक्टिकल प्रूफ देखने चाहती हैं। तो तन के ऊपर साइलेन्स की शक्ति का प्रयोग करते हैं। ऐसे ही मन के ऊपर, कर्म के ऊपर, सम्बन्ध सम्पर्क में आने से सम्बन्ध सम्पर्क में क्या प्रयोग होता है, कितनी परजेन्टेज में होता है? -यह विश्व की आत्मायें भी देखने चाहती हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा भी स्व में प्रत्यक्ष प्रूफ के रूप में सदा विशेष से विशेष अनुभव करने चाहती है। रिजल्ट में साइलेन्स की शक्ति का जितना महत्व है, उतना उसे विधि पूर्वक प्रयोग में लाने में अभी कम है। चाहना बहुत है, नालेज भी है लेकिन प्रयोग करते हुए आगे बढ़ते चलो। साइलेन्स शक्ति की प्राप्ति की महीनता अनुभव करते, स्व प्रति वा अन्य प्रति कार्य में लगाना, उसमें अभी और विशेष अटेन्शन चाहिए। विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध, सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूस हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्मा वा विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही है। हरेक से चलता फिरता ‘‘शान्ति यज्ञ कुण्ड’’ का अनुभव हो। जैसे आपकी रचना में छोटा-सा फायरफ्लाई दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। दूर से ही देखते सब कहेंगे यह फायरफ्लाई आ रहा है, जा रहा है। ऐसे इस बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि यह शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गया है। चारों ओर की अशान्त आत्मायें, शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आवें। जैसे प्यासा पानी की तरफ स्वत: ही खिंचता हुआ जाता है। ऐसे आप शान्ति के अवतार आत्माओं की तरफ खिंचे हुए आवें। इसी शान्ति की शक्ति का अभी और अधिक प्रयोग करो। शान्ति की शक्ति वायरलेस से भी तेज आपका संकल्प किसी भी आत्मा प्रति पहुँचा सकती है। जैसे साइन्स की शक्ति परिवर्तन भी कर लेती, वृद्धि भी कर लेती है, विनाश भी कर लेती, रचना भी कर लेती, हाहाकार भी मचा देती और आराम भी दे देती। लेकिन साइलेन्स की शक्ति का विशेष यंत्र है - ‘‘शुभ संकल्प’’, इस संकल्प के यंत्र द्वारा जो चाहो वह सिद्धि स्वरूप में देख सकते हो। पहले स्व के प्रति प्रयोग करके देखो। तन की व्याधि के ऊपर प्रयोग करके देखो तो शान्ति की शक्ति द्वारा कर्म बन्धन का रूप, मीठे सम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। बन्धन सदा कड़वा लगता है, सम्बन्ध मीठा लगता है। यह कर्मभोग - कर्म का कड़ा बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना भोग रही हूँ - यह नहीं लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब किताब का दृश्य भी देखते रहेंगे। इसलिए तन के साथ-साथ मन की कमज़ोरी, डबल बीमारी होने के कारण जो कड़े भोग के रूप में दिखाई देता है वह अति न्यारा और बाप का प्यारा होने के कारण डबल शक्ति अनुभव होने से कर्मभोग के हिसाब की शक्ति के ऊपर वह डबल शक्ति विजय प्राप्त कर लेगी। बीमारी चाहे कितनी भी बड़ी हो लेकिन दुःख वा दर्द का अनुभव नहीं करेंगे। जिसको दूसरी भाषा में आप कहते होकि सूली से कांटे के समानअनुभव होगा। ऐसे टाइम में प्रयोग करके देखो। कई बच्चे करते भी हैं। इसी प्रकार से तन पर, मन पर, संस्कार पर अनुभव करते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। यह रिसर्च करो। इसमें एक दो को नहीं देखो। यह क्या करते, इसने कहाँ किया है। पुराने करते वा नहीं करते, बड़े नहीं करते, छोटे करते, यह नहीं देखो। पहले मैं इस अनुभव में आगे आ जाऊं क्योंकि यह अपने आन्तरिक पुरूषार्थ की बात है। जब ऐसे व्यक्तिगत रूप में इसी प्रयोग में लग जायेंगे। वृद्धि को पाते रहेंगे तब एक-एक के शान्ति की शक्ति का संगठित रूप में विश्व के सामने प्रभाव पड़ेगा। अभी फर्स्ट स्टेप विश्व शान्ति की कांफ्रेंस कर निमंत्रण दिया लेकिन शान्ति की शक्ति का पुंज जब सर्व के संगठित रूप में प्रख्यात होगा तो आपको निमंत्रण आयेंगे कि हे शक्ति, शान्ति के अवतार इस अशान्ति के स्थान पर आकर शान्ति दो। जैसे सेवा में अभी भी जहाँ अशान्ति का मौका (मृत्यु) होता है तो आप लोगों को बुलाते हैं कि आओ आकर शान्ति दो। और यह धीरे- धीरे प्रसिद्ध भी होता जा रहा है कि ब्रह्माकुमारियाँ ही शान्ति दे सकती हैं। ऐसे हर अशान्ति के कार्य में आप लोगों को निमंत्रण आयेंगे। जैसे बीमारी के समय सिवाए डाक्टर के कोई याद नहीं आता ऐसे अशान्ति के कोई भी बातों में सिवाए आप शान्ति-अवतारों के और कोई दिखाई नहीं देगा। तो अभी शक्ति सेना, पाण्डव सेना, विशेष शान्ति की शक्ति का प्रयोग करो। प्रयोग करके दिखाओ। शान्ति की शक्ति का केन्द्र प्रत्यक्ष करो। समझा क्या करना है?

आजकल तो डबल विदेशी बच्चों के निमित्त, सभी बच्चों को भी खज़ाना मिलता रहता है। जहाँ से भी जो सभी बच्चे आये हैं, बाप दादा सभी तरफ के बच्चों की लगन को देख खुश होते हैं। पाँचो ही खण्डों के भिन्न-भिन्न देश से आये हुए बच्चों को बापदादा देख रहे हैं। सभी ने कमाल की है। जो सभी ने लक्ष्य रखा था उसी प्रमाण प्रैक्टिकल पुरूषार्थ का रूप भी लाया है। विदेश से टोटल कितने वी.आई.पी. आये हैं? (75) और भारत के कितने वी.आई.पी. आये थे?(700) भारत की विशेषता अखबार वालों की अच्छी रही। और विदेश से 75 भी आये, यह कोई कम नहीं। बहुत आये। दूसरे वर्ष फिर बहुत आयेंगे। अभी गेट तो खुल गया ना, आने का। पहले तो विदेश की टीचर्स कहती थीं वी. आई.पी. को लाना बड़ा मुश्किल है। ऐसा तो कोई दिखाई नहीं देता। अब तो दिखाई दिया ना। भले विघ्न पड़े, यह तो ब्राह्मणों के कार्यों में विघ्न न पड़े तो लगन भी लग न सके। नहीं तो अलबेले हो जायें। इसलिए ड्रामा अनुसार लगन बढ़ाने के लिए विघ्न पड़ते हैं। अभी एक एक द्वारा आवाज़ सुनकर फिर अनेकों में उमंग आयेगा।

बच्चों ने अच्छी कमाल की है। सर्विस मे सबूत अच्छा दिखाया है। सेवा का चांस दिलाने के निमित्त तो बन गये ना। एक द्वारा सहज ही अनेको तक आवाज़ तो फैला ना! अमेरिका वालों ने अच्छी मेहनत की। हिम्मत अच्छी की, ज्यादा से ज्यादा आवाज़ फैलाने वाली निमित्त आत्मा को ड्रामा अनुसार विदेश वालों  ने ही लाया ना। भारतवासी बच्चों ने भी मेहनत बहुत अच्छ की। उस मेहनत का फल संख्या अच्छी आई। अभी भारत की विशेष आत्मायें भी आयेंगी। अच्छा।

ऐसे सर्व विदेश से आये हुए बच्चों को और भारत के चारों तरफ के बच्चों को जो सब एक ही विशेष शुद्ध संकल्प में हैं कि विश्व के कोने-कोने में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे - ऐसे शुभ संकल्प लेने वाले, विश्व-परिवर्तक विश्व कल्याणकारी, सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात –

1. वरदान भूमि पर आकर वरदान लिया? सबसे बड़े ते बड़ा वरदान है सदा अपने को बाप द्वारा बाप के साथ का अनुभव करना। सदा बाप की याद में अर्थात् सदा साथ में रहना। तो सदा ही खुश रहेंगे, कभी भी कोई भी बात संकल्प में आये तो बाप वे साथ में सब समाप्त हो जायेगा और खुशी में झूमते रहेंगे। तो सदा खुश रहने का यह तरीका याद रखना और दूसरों को भी बताते रहना। दूसरों को भी खुशी में रहने का साधन देना। तो आपको सभी आत्मायें खुशी का देवता मानेंगी। क्योंकि विश्व में आज सबसे ज्यादा खुशी की आवश्यकता है। वह आप देते जाना। अपना टाइटिल याद रखना कि मैं खुशी का देवता हूँ!

याद और सेवा इसी बैलन्स द्वारा बाप की ब्लैसिंग मिलती रहेगी। बैलेन्स सबसे बड़ी कला है। हर बात में बैलेन्स हो तो नम्बरवन सहज ही बन जायेंगे। बैलेन्स ही अनेक आत्माओं के आगे ब्लिसफुल जीवन का साक्षात्कार करायेगा। बैलेन्स को सदा स्मृति में रखते, सर्व प्राप्तियों का अनुभव करते स्वयं भी आगे बढ़ो और औरों को भी बढ़ाओ।

सदा इसी स्मृति में रहो कि बाप को जानने वाली, बाप को पाने वाली कोटो में कोई जो गाई हुई आत्मायें हैं, वह हम हैं। इसी खुशी में रहो तो आपके यह चेहरे चलते फिरते सेवा-केन्द्र हो जायेंगे। जैसे सर्विस सेन्टर पर आकर बाप का परिचय लेते हैं वैसे आपके हर्षित चेहरे से बाप का परिचय मिलता रहेगा। बापदादा हर बच्चे को ऐसा ही योग्य समझते हैं। इतने सब सेवा-केन्द्र बैठे हैं। तो सदा ऐसे समझो, चलते फिरते खाते पीते हमको बाप की सेवा, अपनी चलन से व चेहरे से करनी है। तो सहज ही निरंतर योगी बन जायेंगे। जो बच्चे आदि से सेवा में उमंग उत्साह का सहयोग देते रहे हैं, ऐसी आत्माओं को बापदादा भी सहयोग देते हुए, 21 जन्म आराम से रखेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। खाओ, पिओ और स्वर्ग का राज्य भाग्य भोगो। आधाकल्प मेहनत शब्द ही नहीं होगा। ऐसी तकदीर बनाने आए हो।

कुमारों प्रति- कुमार जीवन में एनर्जी बहुत होती है। कुमार जो चाहे वह कर सकते हैं। इसलिए बापदादा कुमारों को देख विशेष खुश होते हैं कि अपनी एनर्जी डिस्ट्रक्शन के बजाए कनस्ट्रक्शन के कार्य में लगायें। एक-एक कुमार विश्व को नया बनाने में अपनी एनर्जी को लगा रहे हैं। कितना श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। एक कुमार 10 का कार्य कर सकते हैं। इसलिए कुमारों पर बापदादा को नाज है। कुमार जीवन में अपनी जीवन सफल कर ली। ऐसी विशेष आत्मायें हो ना! बहुत अच्छा, समय पर जीवन का फैसला किया। फैसला करने में कोई गलती तो नहीं की है ना! पक्का है ना! कोई गलत कहकर खींचे तो? चाहे दुनिया की अक्षौणी आत्मायें एक तरफ हो जाएं, आप अकेले हो, फिर क्या होगा? बोलो, मैं अकेला नही हूँ, बाप मेरे साथ है। बापदादा खुश होते हैं - स्वयं की भी जीवन बनाई और अनेको की जीवन बनाने के निमित्त बने हो। अच्छा –

पत्रों के उत्तर देते हुए, बापदादा ने सभी बच्चों प्रति टेप में याद प्यार भरी –

चारों ओर के सभी सिकीलधे, स्नेही, सहयोगी, सर्विसएबुल बच्चों के पत्र तो क्या लेकिन दिल के मीठे-मीठे साजों भरे गीत बापदादा ने सुने। जितना बच्चे दिल से याद करते हैं उससे पद्मगुणा ज्यादा बापदादा भी बच्चों को याद करते, प्यार करते और इमर्ज करके टोली खिलाते। अभी भी सामने टोली रखी है। सभी बच्चे बाप के सामने हैं। केक काट रहे हैं और सभी बच्चे खा रहे हैं। जो भी बच्चों ने समाचार लिखा है, अपनी अवस्था व सर्विस का, बापदादा ने सुने। सर्विस का उमंग उत्साह बहुत अच्छा है। अभी थोड़ा बहुत जो माया के विघ्न देखते हो, वह भी नथिंग न्यू। माया सिर्फ पेपर लेने आती है। माया से घबराओ मत। खिलौना समझकर खेलो तो माया वार नहीं करेगी। लेकिन आराम से विदाई ले सो जायेगी। इसलिए ज्यादा नहीं सोचो यह क्या हुआ, हो गया फुलस्टाप लगाओ और आगे जाकर पदमगुणा जो कुछ रह गया वह भर लो।। बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। बापदादा साथ है, माया की चाल चलने वाली नहीं है इसलिए घबराओ नहीं। खुशी में नाचो, गाओ। अब तो अपना राज्य आया कि आया। हे स्वराज्य अधिकारी, विश्व का राज्य भाग्य आपका इंतजार कर रहा है। अच्छा-

सर्व को बहुत बहुत यादप्यार और निर्विघ्न भवका वरदान बापदादा दे रहे हैं। जो बच्चे स्थूल धन की कमी के कारण पहुँच नहीं सकते उन्हें भी बापदादा याद दे रहे हैं। भल धन कम है लेकिन हैं बादशाह। क्योंकि आजकल के राजाओं के पास जो नहीं है वह इन्हीं के पास अविनाशी और जन्म -जन्म के लिए जमा है। बापदादा ऐसे वर्तमान बेगमपुर के बादशाह और भविष्य विश्व के बादशाहों को बहुत बहुत यादप्यार देते हैं। ऐसे बच्चे दिल से यहाँ है, शरीर से वहाँ हैं। इसलिए बापदादा सम्मुख बच्चों को देख, सम्मुख यादप्यार देते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

प्रश्न :- परखने की शक्ति किस आधार पर प्राप्त हो सकती है?

उत्तर:- क्लीयर बुद्धि। ज्यादा बातें सोचने के बजाए एक बाप की याद में रहो, बाप से क्लीयर रहो तो परखने की शक्ति प्राप्त हो जायेगी और उसके आधार पर सहज ही हर बात का निर्णय कर लेंगे। जिस समय जैसी परिस्थिति, जैसा सम्पर्क सम्बन्ध वाले का मूड, उसी समय पर उस प्रमाण चलना, उसको फौरन परख लेना, यह भी बहुत बड़ी शक्ति है।

प्रश्न:- शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने की निशानी क्या होगी?

उत्तर :- शमा पर जो फिदा हो चुके वह स्वयं भी शमा के समान हो गये। समा गये तो समान हो गये। जैसे शमा सबको रास्ता बताती है ऐसे शमा समान रोशनी द्वारा रास्ता बताने वाले। रास्ते में भटकने वाले नहीं। यह करें वा वह करें, यह क्वेश्चन समाप्त। फुलस्टाप आ जाता तो याद और सेवा इसी में रहो, चक्र सब समाप्त। कोई भी चक्कर रहा हुआ होगा तो चक्र लगाने जायेंगे। कभी सम्बन्ध का चक्र, कभी अपने स्वभाव संस्कार का चक्र, अगर सब चक्र समाप्त हो गये, पूरा फिदा हो गये तो फिदा होना अर्थात् जल मरना। उन्हों को सिवाए शमा के और कुछ नहीं।


 


24-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


दिलाराम बाप का दिलरुबा बच्चो से मिलन

सदा सर्व बच्चों की विशेषता देखने वाले, दया और प्यार के सागर शिव बाबा बोले

आज विशेष मिलन मनाने के लिए सदा उमंग उल्लास में रहने वाले बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। दिन रात यही संकल्प रहता है कि मिलन मनाना है। आकार रूप में भी मिलन मनाते फिर भी साकार रूप द्वारा मिलने की शुभ आशा सदा ही रहती है, सब दिन गिनती करते रहते कि आज हमको मिलना है, यह संकल्प हर बच्चे का बापदादा के पास पहुँचता रहता है और बापदादा भी यही रेसपान्ड देने के लिए हर बच्चे को याद करते रहते हैं। इसलिए आज मुरली चलाने नहीं लेकिन मिलने का संकल्प पूरा करने के लिये आये हैं। कोई-कोई बच्चे दिल ही दिल में मीठे-मीठे उल्हनें भी देते हैं कि हमें तो बोल द्वारा मुलाकात नहीं कराई। बापदादा भी हरेक बच्चे से दिल भर-भर के मिलने चाहते हैं। लेकिन समय और माध्यम को देखना पड़ता है। आकारी रूप से एक ही समय पर जितने चाहें जितना समय चाहें उतना समय और उतने सब मिल सकते हैं। उसके लिए टर्न आने की बात नहीं है। लेकिन जब साकार सृष्टि में साकार तन द्वारा मिलन होता है तो साकारी दुनिया और साकार शरीर के हिसाब को देखना पड़ता है। आकारी वतन मे कभी दिन मुकरर होता है क्या कि फलाना ग्रुप फलाने दिन मिलेगा वा एक घण्टे के बाद, आधा घण्टे के बाद मिलने के लिए आना। यह बन्धन आपके वा बाप के सूक्ष्मवतन में, सूक्ष्म शरीर में नहीं है। आकारी रूप से मिलन मनाने के अनुभवी हो ना। वहाँ तो भल सारा दिन बैठ जाओ, कोई उठाएगा नहीं। यहाँ तो कहेंगे अभी पीछे जाओ, अभी आगे जाओ। फिर भी दोनों मिलना मीठा है। आप डबल विदेशी बच्चे वा देश में रहने वाले बच्चे जो साकार रूप में ड्रामा अनुसार पालना वा प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं देख पाए हैं, ऐसे बहुत समय से ढूँढने पर फिर से आकर मिले हुए बच्चों को ब्रह्मा बाप बहुत याद करते हैं। ब्रह्मा बाप ऐसे सिकीलधे बच्चों का विशेष गुणगान करते हैं कि आए भल पीछे हैं लेकिन आकार रूप द्वारा भी अनुभव साकार रूप का करते हैं। ऐसे अनुभव के आधार से बोलते हैं कि हमें ऐसा नहीं लगता कि साकार को हमने नहीं देखा। साकार में पालना ली है और अब भी ले रहे हैं। तो आकार रूप में साकार का अनुभव करना, यह बुद्धि की लगन का, स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है। ऐसे लगता है, आकार में भी साकार को देख रहे हैं। ऐसे अनुभव करते हो ना! तो यह बच्चों के बुद्धि का चमत्कार का सबूत है। और दिलाराम बाप के समीप दिलाराम के दिलरूबा बच्चे हैं, यह सबूत है। दिलरूबा बच्चे हो ना! दिलरूबा के दिल में सदा क्या गीत बजता है? वाह बाबा, वाह मेरा बाबा!

बापदादा हर बच्चे को याद करते हैं। ऐसे नहीं समझना - इनको याद किया, मेरे को पता नहीं याद किया वा नहीं। इनसे ज्यादा प्यार है, मेरे से कम प्यार है। नहीं। आप सोचो 5 हजार वर्ष के बाद बापदादा को बिछड़े हुए बच्चे मिले हैं तो 5 हजार वर्ष का इकठ्ठा प्यार हर बच्चे को मिलेगा ना। तो 5 हजार वर्ष का प्यार 5-6 वर्ष में या 10-12 वर्ष में देना तो कितना स्टाक थोड़े समय में देंगे। ज्यादा से ज्यादा दें तब तो पूरा हो। इतना प्यार का स्टाक हरेक बच्चे के लिए बाप के पास है। प्यार कम हो नहीं सकता।

दूसरी बात कि बापदादा सदा बच्चों की विशेषता देखता। चाहे कोई समय बच्चे माया के प्रभाव कारण थोड़ा डगमग होने का खेल भी करते हैं। फिर भी बापदादा उस समय भी उसी नजर से देखते कि यह बच्चा, आया हुआ विघ्न लगन से पार कर फिर भी विशेष आत्मा बन विशेष कार्य करने वाला है। विघ्न में भी लगन रूप को ही देखते हैं। तो प्यार कम कैसे होगा! हरेक बच्चे से ज्यादा से ज्यादा सदा प्यार है और हर बच्चा सदा ही श्रेष्ठ है। समझा!

पार्टियों से

1. न्यूयार्क :- बाप का बनना अर्थात् विशेष आत्मा बनना। जब से बाप के बने उस घड़ी से विश्व के अन्दर सर्व से श्रेष्ठ गायन योग्य और पूज्यनीय आत्मा बने। अपनी मान्यता, अपना पूजन फिर से चैतन्य रूप में देख भी रहे हो और सुन भी रहे हो। ऐसे अनुभव करते हो? कहाँ भारत और कहाँ अमेरिका लेकिन बाप ने कोने से चुनकर एक ही बगीचे में लाया। अभी सब कौन हो? अल्लाह के बगीचे के रूहे गुलाब। यह तो नाम लेना पड़ता है फलाना देश, फलाना देश, वैसे एक ही बगीचे के, एक ही बाप की पालना में आने वाले, रूहे गुलाब हो। अभी ऐसे महसूस होता है ना, हम सब एक के हैं। और हम सब एक रास्ते पर, एक मंज़िल पर जाने वाले हैं। बाप भी हरेक को देख हर्षित होते हैं। सबकी शुभ भावना, सबके सेवा की अथक लगन ने, दृढ़ संकल्प ने प्रत्यक्ष सबूत दिया। चारों ओर के उमंग उत्साह के सहयोग ने रिजल्ट अच्छी दिखाई है। बाहर का आवाज़ भारत वालों को जगाएगा। इसलिए बापदादा मुबारक देते हैं।

2. बारबेडोज- बापदादा सदा बच्चों को नम्बरवन बनने का साधन बताते हैं। चाहे कितना भी कोई पीछे आए लेकिन आगे जाकर नम्बरवन ले सकता है। ऐसे तो नहीं सोचते हो - पता नहीं हमारा ऊँचा पार्ट होगा या नहीं, हम आगे कैसे जायेंगे? बापदादा के पास चाहे पीछे आने वाले हों, चाहे किस भी देश के हों, चाहे किस भी धर्म के हों, किस भी मान्यता के हो लेकिन सबके लिए एक ही फुल अधिकार है। बाप एक है तो हक भी एक जैसा है। सिर्फ हिम्मत और लगन की बात है। कभी भी हिम्मतहीन नहीं बनना। चाहे कोई कितना भी दिलशिकस्त बनाए, कहे - पता नहीं आपको क्या हुआ है, कहाँ चले गये हो लेकिन आप उनकी बातों में नहीं आना। पक्का जान पहचान कर सौदा किया है ना! हम बाप के, बाप हमारा! बाप हर बच्चे को अधिकारी आत्मा समझते हैं। जितना जो ले उसके लिए कोई रूकावट नहीं। अभी कोई सीट्स बुक नहीं हुई है। अभी सब सीट खाली हैं। सीटी बजी ही नहीं है। इसलिए हिम्मत रखते रहेंगे तो बाप भी पद्मगुणा मदद देते रहेंगे।

3. कैनाडा - सदा उड़ती कला में जाने का आधार क्या है? ‘डबल लाइट। तो सदा उड़ते पंछी हो ना। उड़ता पंछी कभी किसके बन्धन में नहीं आता। नीचे आयेंगे तो बन्धन में बंधेंगे। इसलिए सदा ऊपर उड़ते रहो। उड़ते पंछी अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवन मुक्त। कैनाडा में साइन्स भी उड़ने की कला सिखाती है ना! तो कैनाडा निवासी सदा ही उड़ते पंछी हैं।

4. सैनफ्रींसिसको - सभी अपने को विश्व के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर समझकर पार्ट बजाते हो? (कभी-कभी) बापदादा को बच्चों का कभी -कभी शब्द सुनकर आश्चर्य लगता है। जब सदा बाप का साथ है तो सदा उसकी ही याद होगी ना। बाप के सिवाए और कौन है जिसको याद करते हो? औरों को याद करते-करते क्या पाया और कहाँ पहुँचे? इसका भी अनुभव है। जब यह भी अनुभव कर चुके तो अब बाप के सिवाए और याद आ ही क्या सकता? सर्व सम्बन्ध एक बाप से अनुभव किया है या कोई रह गया है? जब एक द्वारा सर्व सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही नहीं। इसको ही कहा जाता है - एक बल एक भरोसा। अच्छा - सभी ने अच्छी मेहनत कर विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाया, जिन्होंने भी सेवा में सहयोग दिया उस सहयोग का रिर्टन अनेक जन्मों तक सहयोग प्राप्त होता रहेगा। एक जन्म की मेहनत और अनेक जन्म मेहनत से छूट गये। सतयुग में मेहनत थोड़े ही करेंगे! बापदादा बच्चों की हिम्मत और निमित्त बनने का भाव देखकर खुश होते हैं। अगर निमित्त भाव से नहीं करते तो रिजल्ट भी नहीं निकलती। अच्छा।



27-02-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


संगमयुग पर श्रृंगारा हुआ मधुर अलौकिक मेला

स्नेह का जादू लगाने वाले बच्चों प्रति बाप दादा बोले :-

आज बाप और बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। मेले में बहुत ही वैरायटी और सुन्दर-सुन्दर वस्तु बहुत सुन्दर सजावट और एक दो में मिलना होता है। बापदादा इस मधुर मेले में क्या देख रहे हैं, ऐसा अलौकिक शृंगारा हुआ मेला सिवाय संगमयुग के कोई मना नहीं सकता। हरेक, एक दो से विशेष शृंगारे हुए अमूल्य रतन हैं। अपने श्रृंगार को जानते हो ना। सभी के सिर पर कितना सुन्दर लाइट का ताज चमक रहा है। इसी लाइट के क्राउन के बीच आत्मा की निशानी कितनी चमकती हुई मणि मुआफिक चमक रही है। अपना ताजधारी स्वरूप देख रहे हो! हरेक दिव्य गुणों के शृंगार से कितने सुन्दर सजी-सजाई मूर्त हो। ऐसा सुन्दर शृंगार, जिससे विश्व की सर्व आत्मायें आपके तरफ न चाहते हुए भी स्वत: ही आकर्षित होती हैं। ऐसा श्रेष्ठ अविनाशी शृंगार किया है? जो इस समय के शृंगार का यादगार आपके जड़ चित्रों को भी सदा ही भक्त लोग सुन्दर से सुन्दर सजाते रहेंगे। अभी का शृंगार, आधा कल्प चैतन्य देव-आत्मा के रूप में शृंगारे जायेंगे और आधा कल्प जड़ चित्रों के रूप में शृंगारे जायेंगे। ऐसा अविनाशी शृंगार बापदादा द्वारा सर्व बच्चों का अभी हो गया है! बापदादा आज हर बच्चे के तीनों ही स्वरूप वर्तमान और अपने राज्य का देव आत्मा का और फिर भक्ति मार्ग में यादगार चित्र, तीनों ही स्वरूप हरेक बच्चे के देख हर्षित हो रहे हैं। आप सब भी अपने तीनों रूपों को जान गये हो ना! तीनों ही अपने रूप नालेज के नेत्र द्वारा देखे हैं ना!

आज तो बापदादा मिलने का उल्हाना पूरा करने आये हैं। कमाल तो बच्चों की है जो निर्बन्धन को भी बन्धन में बाँध देते हैं। बापदादा को भी हिसाब सिखा देते कि इस हिसाब से मिलो। तो जादूगर कौन हुए - बच्चे वा बाप? ऐसा स्नेह का जादू बच्चे बाप को लगाते हैं जो बाप को सिवाए बच्चों के और कुछ सूझता ही नहीं। निरन्तर बच्चों को याद करते हैं। तुम सब खाते हो तो भी एक का आह्वान करते हो। तो कितने बच्चों के साथ खाना पड़े। कितने बारी तो भोजन पर ही बुलाते हो। खाते हैं, चलते हैं, चलते हुए भी हाथ में हाथ देकर चलते, सोते भी साथ में हैं। तो अब इतने अनेक बच्चों साथ खाते,सोते,चलते तो और क्या फुर्सत होगी! कोई कर्म करते तो भी यही कहते कि काम आपका है, निमित्त हम हैं। करो कराओ आप, निमित्त हाथ हम चलाते हैं। तो वह भी करना पड़े ना। और फिर जिस समय थोड़ा बहुत तूफान आता तो भी कहते - आप जानो। तूफानों को मिटाने का कार्य भी बाप को देते। कर्म का बोझ भी बाप को दे देते। साथ भी सदा रखते, तो बड़े जादूगर कौन हुए? भुजाओ के सहयोग बिना तो कुछ हो नहीं सकता। इसलिए ही तो माला जपते हैं ना। अच्छा –

आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों ने भी बहुत अच्छा त्याग किया है और हर बार त्याग करते हैं। सदा ही लास्ट सो फास्ट जाते और फर्स्ट आते हैं। जितना ही वह त्याग करते हैं, औरों को आगे करते हैं उतना ही जितने भी मिलते रहते उन सब का थोड़ा-थोड़ा शेयर आस्ट्रेलिया वालों को भी मिल जाता है। तो त्याग किया या भाग्य लिया! और फिर साथ-साथ यू.के. का भी बड़ा ग्रुप है। यह दोंनों ही पहले-पहले के निमित्त बने हुए सेन्टर्स हैं और विशाल सेन्टर्स हैं। एक से अनेक स्थानों पर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चे हैं। इसलिए दोनों ही (आस्ट्रेलिया और यू.के.) बड़ों को, औरों को आगे तो रखना पड़ेगा ना। दूसरों की खुशी में आप सब खुश हो ना। जहाँ तक देखा गया है दोनों ही स्थान के सेवाधारी, सहयोगी, स्नेही बच्चे सब बात में फराखदिल हैं। इस बात में भी सहयोगी बनने में महादानी हैं। बापदादा को सब बच्चे याद है। सबसे मिल लेंगे, बापदादा को तो खुशी होती है, कितना दूर-दूर से बच्चे मिलने के उमंग से अपने स्वीट होम में पहुँच जाते हैं। उड़ते-उड़ते पहुँच जाते हो। भले स्थूल में किसी भी देश के हैं लेकिन हैं तो सब एक देशी। सब ही एक हैं। एक बाप, एक देश, एक मत और एक रस स्थिति में स्थित रहने वाले। यह तो निमित्त मात्र देश का नाम लेकर थोड़ा समय मिलने के लिए कहा जाता है। हो सब एक देशी। साकार के हिसाब में भी इस समय तो सब मधुबन निवासी हैं। मधुबन निवासी अपने को समझना अच्छा लगता है ना।

नये स्थान पर सेवा की सफलता का आधार :- जब भी किसी नये स्थान पर सेवा शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। मंसा में शुभ भावना, वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने और शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और सम्बन्ध सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकर्षित करो। ऐसे सर्व प्रकार की सेवा से सफलता को पायेंगे। सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन एक ही समय साथ-साथ सेवा हो। ऐसा प्लैन बनाओ। क्योंकि किसी भी सर्विस करने के लिए विशेष स्वयं को स्टेज पर स्थित करना पड़ता है। सेवा में रिजल्ट कुछ भी हो लेकिन सेवा के हर कदम में कल्याण भरा हुआ है, एक भी यहाँ तक पहुँच जाए यह भी सफलता है। इसी निश्चय के आधार पर सेवा करते चलो। सफलता तो समाई हुई है ही। अनेक आत्माओं के भाग्य की लकीर खींचने के निमित्त हैं। ऐसी विशेष आत्मा समझकर सेवा करते चलो।

अच्छा - ओम् शान्ति।



01-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाईट और ज्ञान जल पहुँचाओ

सदा एकरस स्थिति में स्थित करने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

आज बापदादा वतन में रूह-रूहान कर रहे थे। साथ-साथ बच्चों की रिमझिम भी देख रहे थे। वर्तमान समय मधुबन वरदान भूमि पर कैसे बच्चों की रिमझिम लगी हुई है वह देख-देख हर्षा रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मधुबन पावर हाउस से चारों ओर कितने कनेक्शन्स गये हुए हैं। जैसे स्थूल पावर हाउस से अनेक तरफ लाइट के कनेक्शन जाते हैं। ऐसे इस पावर हाउस से कितने तरफ कनेक्शन गये हैं। विश्व के कितने कोनों मे लाइट के कनेक्शन गये हैं और कितने कोनों में अभी कनेक्शन नहीं हुआ है। जैसे आजकल की गवर्मेन्ट भी यही कोशिश करती है कि अपने राज्य में सभी कोनों में सभी गाँवों में चारों तरफ लाइट और पानी का प्रबन्ध जरूर हो। तो पाण्डव गवर्मेन्ट क्या कर रही है! ज्ञान गंगायें चारों ओर जा रही हैं। पावर हाउस से चारों ओर लाइट का कनेक्शन जा रहा है। जैसे ऊपर से किसी भी शहर को या गाँव को देखो तो कहाँ-कहाँ रोशनी है। नज़दीक में रोशनी है या दूर-दूर है, वह दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। बापदादा भी वतन से दृश्य देख रहे थे कि कितने तरफ लाइट है और कितने तरफ अभी तक लाइट नहीं पहुँची है। रिजल्ट को तो आप लोग भी जानते हो कि देश विदेश में अभी तक कई स्थान रहे हुए हैं जहाँ अभी कनेक्शन्स देने हैं। जैसे लाइट और पानी बिगर उस स्थान की वैल्यु नहीं होती। ऐसे जहाँ आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल की पूर्ति नहीं हुई है वहाँ की चैतन्य आत्मायें किस स्थिति में है! अंधकार में प्यास में भटक रहीं हैं, तड़प रहीं हैं। ऐसे आत्माओं की वैल्यु क्या बताते हो? चित्र बनाते हो ना कौड़ी तुल्य और हीरे तुल्य! लाइट और ज्ञान जल मिलने से कौड़ी से हीरा बन जाते हैं। तो वैल्यु बढ़ जाती है ना। बापदादा देख रहे थे कि आये हुए देश-विदेश से बच्चे, पावर हाउस से विशेष पावर लेकर अपने अपने स्थान पर जा रहे हैं।

एक तरफ तो बच्चों के स्नेह में बापदादा समझते हैं कि मधुबन अर्थात् बापदादा के घर का शृंगार जा रहे हैं। जब भी बच्चे मधुबन में आते हैं तो मधुबन की रौनक या स्वीट होम की झलक क्या हो जाती है! बच्चे भी खुश होते हैं और घर भी सजा हुआ लगता है। मधुबन वाले भी ऐसे महसूस करते हैं कि मधुबन की रौनक बढ़ाने वाले हमारे स्नेही साथी आये हैं। जैसे आप लोग वहाँ याद करते हो, चलते, फिरते, उठते-बैठते मधुबन की स्मृति सदा ताजी रहती है वैसे बापदादा और मधुबन निवासी भी आप सबको याद करते हैं। स्नेह के साथ-साथ सेवा भी विशेष सब्जेक्ट है - इसलिए स्नेह से तो समझते हैं यहाँ ही बैठ जाएँ। लेकिन सेवा के हिसाब से चारों ओर जाना ही पड़े। हाँ, ऐसा भी सयम आयेगा जो जाना नहीं पड़ेगा लेकिन एक ही स्थान पर बैठे-बैठे चारों ओर के परवाने स्वत: शमा पर आयेंगे। यह तो छोटा सा सैम्पुल देखा कि आबू हमारा ही है। अभी तो किराये पर मकान लेने पड़े ना! फिर भी थोड़ी सी रौनक देखी। ऐसा समय आयेगा जो चारों ओर फरिश्ते नजर आयेंगे। अभी मुख द्वारा सेवा का पार्ट चल रहा है और अभी कुछ रहा हुआ है इसलिए दूर-दूर जाना पड़ता है। अभी श्रेष्ठ संकल्प की शक्तिशाली सेवा जो पहले भी सुनाई है, अन्त में वही सेवा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देगा। हमें कोई बुला रहा है कोई दिव्य बुद्धि द्वारा, शुभ संकल्प का बुलावा हो रहा है, ऐसे अनुभव करेंगे। कोई दिव्य दृष्टि द्वारा बाप और स्थान को देखेंगे। दोनों प्रकार के अनुभवों द्वारा बहुत तीव्रगति से अपने श्रेष्ठ ठिकाने पर पहुँच जायेंगे। इस वर्ष क्या करेंगे?

प्रयत्न अच्छा किया है। इस वर्ष रहे हुए स्थानों को लाइट तो देंगे ही। लेकिन हर स्थान की विशेषता इस वर्ष यही दिखाओ कि हर सेवा केन्द्र उसमें भी विशेष बड़े-बड़े केन्द्र जो हैं उसमें यह लक्ष्य रखो, जैसे कभी धर्म सम्मेलन करते हो तो सभी धर्म वाले इकट्ठे करते हो या राजनीतिक को बुलाते हो, साइंस वालों को विशेष बुलाते हो, अलग-अलग प्रकार के स्नेह मिलन करते हो तो इस वर्ष हर स्थान पर सर्व प्रकार के विशेष आक्यूपेशन वाले, सम्बन्ध में आने वाले तैयार करो। तो जैसे अभी ऐसे कहते हैं कि यहाँ काले गोरे सब प्रकार की वैरायटी है। एक स्थान पर सर्व रंग, देश, धर्म वाले हैं, ऐसे यह कहें कि यहाँ सर्व आक्यूपेशन वाले हैं। विशेष आत्मायें एक ही गुलदस्ते में वैरायटी फूलों के मिसल दिखाई दें। हर सेन्टर पर हर आक्यूपेशन वाली विशेष आत्माओं का संगठन हो। जो दुनिया में यह आवाज़ बुलन्द हो कि यह एक बाप एक ही सत्य ज्ञान सर्व आक्यूपेशन वालों के लिए कितना सहज और सरल है! अर्थात् हर सेवा स्थान की स्टेज पर सर्व आक्यूपेशन वाले इकट्ठे दिखाई दें। कोई भी आक्यूपेशन वाला रह न जाएँ। गरीब से लेकर साहूकार तक, गाँव वालों से लेकर बड़े शहर वाले तक, मजदूर से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक, सर्व प्रकार की विशेष आत्माओं की अलौकिक रौनक दिखाई दे। जिससे कोई भी यह नहीं कह सके कि क्या यह ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ इन्हीं के लिए है? सर्व का बाप सर्व के लिए है - बच्चे से लेकर परदादे तक, सभी ऐसा अनुभव करें कि विशेष हमारे लिए यह ज्ञान है जैसे आप सभी ब्राह्मणों के मन से, दिल से एक ही आवाज़ निकलती है, कि हमारा बाबा है। ऐसे विश्व के कोने-कोने से, विश्व के हर आक्यूपेशन वाली आत्मा दिल से कहे कि हमारे लिए बाप आये हैं, हमारे लिए ही यह ज्ञान सहारा है। ज्ञान दाता और ज्ञान दोनों के लिए सब तरफ से सब प्रकार की आत्माओं से यह ही आवाज़ निकले। वैसे सर्व आक्यूपेशन वालों की सेवा करते भी रहते हो लेकिन हर स्थान पर सब वैरायटी हो। और फिर ऐसे वैरायटी आक्यूपेशन वालों का गुलदस्ता बापदादा के पास ले आओ। तो हर सेवाकेन्द्र विश्व की सर्व आत्माओं के संगठन का एक विशेष चैतन्य म्यूजियम हो जायेगा। समझा! जो भी सम्पर्क में हैं, उन्हीं को सम्बन्ध में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाओ। समय प्रति-समय जो भी वी.आई.पीज. वा पेपर्स वाले आये हैं उन्हीं को सेवा की स्टेज पर लाते रहो तो मुख से बोलने से भी वह मुख का बोल उन आत्माओं के लिए ईश्वरीय बन्धन में बन्धने का साधन बन जाता है। एक बार बोला कि बहुत अच्छा है और फिर सम्बन्ध से दूर हो गये, तो भूल जाते हैं। लेकिन बार-बार बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहते रहें, अनेकों के सामने, तो वह बोल भी उन्हीं को अच्छा बनने का उत्साह बढ़ाता है। और साथ-साथ सूक्ष्म नियम भी है कि जितनों को अनेक बोल द्वारा परिचय मिलता है अर्थात् उनके नाम द्वारा, बोल द्वारा जितनों पर प्रभाव पड़ता है उन आत्माओं का शेयर उनको मिल जाता है। अर्थात् उन्हों के खाते में पुण्य की पूंजी जमा हो जाती है। और वही पुण्य की पूंजी अर्थात् पुण्य का श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ बनने के लिए उन्हीं को खींचता रहेगा। इसलिए जो अभी डायरेक्ट बाप की भूमि से कुछ न कुछ ले गये हैं चाहे थोड़ा, चाहे बहुत लेकिन उन्हीं से दान कराओ। अर्थात् सेवा कराओ। तो जैसे स्थूल धन का फल सकामी अल्पकाल का राज्य मिलता है वैसे इस ज्ञान धन वा अनुभव के धन दान करने से भी नये राज्य में आने का पात्र बना देगा। बहुत अच्छे प्रभावित हुए, अब उन प्रभावित हुई आत्माओं द्वारा सेवा कराए उन आत्माओं को भी सेवा के बल द्वारा आगे बढ़ाओ और अनेकों के प्रति निमित्त बनाओ। समझा क्या करना है! सर्विस वृद्धि को तो पा ही रही है और पाती रहेगी लेकिन अब क्लास में स्टूडेन्ट्स की वैरायटी बनाओ

अभी तो विदेश वालों का मिलने का साकार रूप का इस वर्ष के लिए सीजन का पार्ट पूरा हो रहा है। लेकिन देश वालों का तो आह्वान हो रहा है सुनाया ना साकार वतन में तो समय का नियम बनाना पड़ता है और आकारी वतन में इस बन्धन से मुक्त हैं अच्छा –

चारों ओर के उमंग उत्साह वाले सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप के साथसाथ अनुभव करने वाले समीप आत्मायें बच्चों को, सदा एक ही याद में एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।



21-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


गीता पाठशाला चलने वाले भाई-बहेनो के सम्मुख अव्यक्त बापदादा के महावाक्य

आज परम आत्मा अपने महान आत्माओं से मिलने आये हैं। बापदादा सभी बच्चों को महान आत्मायें देखते हैं। दुनिया वाले जिन आत्माओं को महात्मा कहते ऐसे महात्मायें भी आप महान आत्माओं के आगे क्या दिखाई देंगे! सबसे बड़े से बड़ी महानता जिससे महान बने हो, वह जानते हो?

जिन आत्माओं को, विशेष माताओं को हर बात में अयोग्य बना दिया है ऐसी अयोग्य आत्माओं को योग्य अर्थात् बाप के भी अधिकारी आत्मायें बना दिया। जिनको चरणों की जूती समझा है, बाप ने नयनों का नूर बना दिया। जैसे कहावत है - नूर नहीं तो जहान नहीं। ऐसे ही बापदादा भी दुनिया को दिखा रहे हैं - भारत माता शक्ति अवतार नहीं तो भारत का उद्धार नहीं। ऐसे अयोग्य आत्माओं से योग्य आत्मा बनाया। तो महान आत्मायें बन गये ना! जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वह महान हैं। पाण्डवों ने भी जाना है और अपना बनाया है वा सिर्फ जाना है? अपना बनाने वाले हो ना! जानने की लिस्ट में तो सभी हैं। अपना बना लेना इसमें नम्बरवार बन जाते हैं।

अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना और अधिकार अनुभव होना अर्थात् सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त होना। अधीनता अनेक प्रकार की है। एक है स्व की स्व प्रति अधीनता । दूसरी है सर्व के सम्बन्ध में आने की। चाहे ज्ञानी आत्मायें, चाहे अज्ञानी आत्मायें, दोनों के सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अधीनता । तीसरी है प्रकृति और परिस्थितियों द्वारा प्राप्त हुई अधीनता। तीनों में से किसी भी अधीनता के वश हैं तो सिद्ध है सर्व अधिकारी नहीं है।

अभी अपने को देखो कि अपना बनाना अर्थात् अधिकारी बनने का अनुभव सदा और सर्व में होता है। वा कभी कभी और किस बात में होता है और किसमें नहीं होता है। बापदादा बच्चों के श्रेष्ठ तकदीर को देख हर्षित भी होते हैं। क्योंकि दुनिया की अनेक प्रकार की आग से बच गये। आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है। और आप बच्चे शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। जहाँ सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो। एटामिक बाम्बस या अनेक प्रकार के बाम्बस की अग्नि ज्वाला जिससे लोग इतना घबरा रहे हैं, वह तो सिर्फ सेकण्डों की, मिनटों की बात है। लेकिन आजकल के अनेक प्रकार के दुख, चिन्तायें, समस्यायें यह भिन्न-भिन्न प्रकार की चोट जो आत्माओं को लगती है यह अग्नि जीते हुए जलाने का अनुभव कराती है। न जिन्दा हैं, न मरे हुए हैं। न छोड़ सकते, न बना सकते। ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये हो - इसलिए सदा सर्व के प्रति रहम आता है ना। तब तो घर-घर में सेवाकेन्द्र बनाया है। बहुत अच्छा सेवा का लक्ष्य रखा है। अब तो गाँव गाँव या मोहल्ले में हैं, लेकिन अब गली गली में ज्ञान-स्थानहो। भक्ति में देव-स्थान बनाते हैं लेकिन यहाँ घर-घर में ब्राह्मण आत्मा हो। जैसे घर घर में और कुछ नहीं तो देवताओं के चित्र जरूर होंगे। ऐसे घर घर में चैतन्य ब्राह्मण आत्मा हो। गली गली में ज्ञान-स्थान हो तब हर गली में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। अभी तो सेवा बहुत पड़ी है। फिर भी बच्चों ने हिम्मत रख जितनी भी सेवा की है, बापदादा हिम्मतवान बच्चों को मुबारक देते हैं। और सदा मदद लेते हुए आगे बढ़ने की शुभ आशीर्वाद भी देते हैं। और फिर जब घर- घर में दीपक जगाकर दीपावली मनाकर आयेंगे तो इनाम भी देंगे।

बापदादा को यह देख खुशी है कि महान आत्माओं को भी चैलेन्ज करने वाले पवित्र प्रवृत्ति का सबूत दिखाने वाले, हद के घर को बाप की सेवा का स्थान बनाने वाले, सपूत बच्चों का प्रत्यक्ष पार्ट बजा रहे हैं। इसलिए बापदादा ऐसे सेवाधारी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं। इसमें भी संख्या ज्यादा माताओं की है। अगर पाण्डव किसी भी बात में आगे जाते हैं तो शक्तियों को सदा खुशी होती है। बापदादा भी पाण्डवों को आगे करते हैं। पाण्डव स्वयं भी शक्तियों को आगे रखना जरूरी समझते हैं। पहली कोशिश क्या करते हो? मुरली कौन सुनाव, इसमें भी ब्रह्मा बाप को फालो करते हो। शिव बाप ने ब्रह्मा माँ को आगे बढ़ाया और ब्रह्मा माँ ने सरस्वती माँ को आगे बढाया। तो फालो फादर मदर हो गया ना। सदैव यह स्मृति में रखो कि आगे बढ़ाने में आगे बढ़ता समाया हुआ है। जबसे बापदादाने माताओं के ऊपर नजर डाली तब से दुनिया वालों ने भीलेडीज फर्स्टका नारा जरूर लगाया। नारा तो लगाते हैं ना? भारत की राजनीति में भी देखो तो सभी पुरूष भी नारी के लिए महिमा तो गाते हैं ना। ऐसे तो पाण्डव भी किसी हिसाब से नारियाँ ही हो। आत्मा नारी है और परमात्मा पुरूष है। तो क्या हुआ। आत्मा कहती है, आत्मा कहता है - ऐसे नहीं कहा जाता। कुछ भी बन जाओ लेकिन नारी तो हो। परमात्मा के आगे तो आत्मा नारी है। आशिक नहीं हो? सर्व सम्बन्ध एक बाप से निभाने वाले हो। यह तो वायदा है ना। यह तो बापदादा बच्चों से रूह-रूहान कर रहे हैं। सभी सिकीलधे बच्चे सदाएक बाप दूसरा न कोई’ - इसी अनुभव में सदा रहने वाले हैं। ऐसे बच्चे ही बाप समान श्रेष्ठ आत्मायें बनते हैं। अच्छा –

ऐसे सदा सेवा के उमंग उत्साह में रहने वाले, सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ कल्याण की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ हिम्मत द्वारा बाप दादा के मदद के पात्र आत्मायें - ऐसे सेवास्थान के निमित्त बने हुए महान आत्माओं को परम आत्मा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

बापदादा ने बच्चों की विशेषता के गुण तो सुना ही दिये। जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं उन बच्चों को बापदादा सदा कहाँ रखते हैं? (नयनों में) नयन सारे शरीर में सूक्ष्म हैं ओर नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। अति न्यारे और बाप के प्यारे। ऐसे ही अनुभव करते हो ना! बहुत अच्छा चांस ड्रामा अनुसार मिला है। क्यों अच्छा कहते हैं? क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही मायाजीत हो जायेंगे। बिजी रहेने का अच्छा साधन मिला है ना। सेवा बिजी रहने का साधन है। चाहे किसी भी समय माया का विघ्न आया हुआ है लेकिन जब सेवा वाले सामने आयेंगे तो अपने को ठीक करके उनकी सेवा करेंगे। क्या भी होगा, तैयार होकर के ही मुरली सुनायेंगे ना। और सुनाते सुनाते स्वयं को भी सुना लेंगे। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है। इसलिए बहुत बहुत श्रेष्ठ साधन मिला हुआ है। एक होता है अपना पुरूषार्थ करना, एक होता है दूसरे के सहयोग का साधन। तो डबल हो गया ना! प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भाल रहे हो यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी भी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। ट्रस्टी को क्या थकावट। अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। पाण्डव को कभी लौकिक व्यवहार, लौकिक वायुमण्डल में बोझ तो नहीं लगता। बिल्कुल न्यारे और प्यारे! बालक सो मालिक,ऐसा नशा रहता है? मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा। सदा इस बेहद के नशे को स्मृति में लाओ कि क्या-क्या बाप ने दिया है, उस दिये हुए खज़ाने को सामने लाते हुए फिर अपने को देखो कि सर्व खज़ानों से सम्पन्न हुए हैं, अगर नहीं तो कौन सा खज़ाना और क्यों नहीं धारण हुआ है, फिर उसी प्रमाण से देखो और धारण करो। समय कौन सा है? बाप भी श्रेष्ठ, प्राप्ति भी श्रेष्ठ और स्वयं भी। जहाँ श्रेष्ठता है वहाँ जरूर प्राप्ति है ही। साधारणता है तो प्राप्ति भी साधारण। अच्छा –



27-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


कुमारियों की भठ्ठी में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

आज बापदादा सब बच्चो से कहाँ मिलन मना रहे हैं? किस स्थान पर बैठे हो? सागर और नदियों के मिलन स्थान पर मिलन मना रहे हैं। सागर का कण्ठा पसन्द आता है ना! सिर्फ सागर नहीं लेकिन अनेक नदियों का सागर के साथ मिलन स्थान कितना श्रेष्ठ होगा। सागर को भी नदियों का मिलन कितना प्यारा लगता है। ऐसा मिलन मेला फिर किसी युग में होगा? इस युग का मिलनसारा कल्प भिन्न-भिन्न रूप और रीति से गाया मनाया जायेगा। ऐसा मेला मनाने के लिए आये हो ना, यहाँ वहाँ से इसलिए भागे हो ना! सागर में समाए, समान मास्टर ज्ञान सागर बनने का अनुभव है ना! जब सागर में समा जाते हो तो नदी से मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो अर्थात् बाप समान बेहद के स्वरूप में स्थित हो जाते हो। ऐसा बेहद का अनुभव करते हो? बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति - मास्टर विश्व कल्याणकारी। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं, लेकिन सर्व के कल्याण की वृति हो। मैं तो ब्रह्माकुमारी बन गई, पवित्र आत्मा बन गई - अपनी उन्नति में, अपनी प्राप्ति में, अपने प्रति सन्तुष्टता में राजी होकर चल रहे हैं, यह बाप समान बेहद की वृत्ति रखने की स्थिति नहीं है। हद की वृत्ति अर्थात् सिर्फ स्वयं प्रति सन्तुष्टता की वृत्ति। क्या यहाँ तक ही सिर्फ रहना है वा आगे बढ़ना है? कई बच्चे बेहद की सेवा का समय, बेहद की प्राप्ति का समय, बाप समान बनने का गोल्डन चान्स वा गोल्डन मैडल लेने के बजाए, मैं ठीक चल रही हूँ, कोई गलती नहीं करती, लौकिक, अलौकिक जीवन दोनों अच्छा निभा रही हूँ, कोई खिट-खिट नहीं, कोई संगठन के संस्कारों का टक्कर नहीं, इसी सिल्वर मैडल में ही खुश हो जाते हैं। बाप समान बेहद की वृत्ति तो नहीं रही ना! बाप विश्व-कल्याणकारी और बच्चे - स्व कल्याणकारी, ऐसी जोड़ी अच्छी लगेगी? सुनने में अच्छी नहीं लग रही है। और अब बनकर चलते हो तब अच्छी लगती है? सर्व खज़ानों के मालिक के बालक खज़ानों के महादानी नहीं बने तो उसको क्या कहा जायेगा? किसी से भी पूछो तो बाप के सर्व खज़ानों के वर्से के अधिकारी हो? तो सब हाँ कहेंगे ना। खज़ाना किसलिए मिला है? सिर्फ स्वयं खाओ पियो और अपनी मौज में रहो, इसलिए मिला है? बाँटो और बढ़ाओ यही डायरेक्शन मिले हैं ना। तो कैसे बाँटेंगे? गीता पाठशाला खोल ली वा जब चांस मिला तब बाँट लिया इसमें ही सन्तुष्ट हो? बेहद के बाप से बेहद की प्राप्ति और बेहद की सेवा के उमंग उत्साह में रहना है। कुमारी जीवन संगमयुग में सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन है। तो ऐसी वरदानी जीवन ड्रामा अनुसार आप विशेष आत्माओं को स्वत: प्राप्त है। ऐसी वरदानी जीवन सर्व को वरदान, महादान देने में लगा रहे हो? स्वत: प्राप्त हुए वरदान की लकीर श्रेष्ठ कर्म की कलम द्वारा जितनी बड़ी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। यह भी इस समय को वरदान है। समय भी वरदानी, कुमारी जीवन भी वरदानी, बाप भी वरदाता। कार्य भी वरदान देने का है तो इसका पूरा पूरा लाभ लिया है? 21 जन्मों तक लम्बी लकीर खींचने का चांस, 21 पीढ़ी सदा सम्पन्न बनने का चान्स जो मिला है वह ले लिया? कुमारी जीवन में जितना चाहो कर सकते हो। स्वतंत्र आत्मा का भाग्य प्राप्त है। अपने से पूछो - स्वतन्त्र हो या परतंत्र हो? परतंत्रता के बन्धन अपने ही मन के व्यर्थ कमज़ोर संकल्पों की जाल है। उसी रची हुई जाल में स्वयं को परतंत्र तो नहीं बना रहे हो? क्वेश्चन की जाल है। जो जाल रचते हो उसका चित्र निकालो तो क्वेश्चन का ही रूप होगा। क्वेश्चन क्या उठते हैं, अनुभवी हो ना! क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे तो नहीं होगा, यह है जाल। पहले भी सुनाया था - संगमयुगी ब्राह्मणों का एक ही सदा समर्थ संकल्प है कि - ‘‘जो होगा वह कल्याणकारी होगा। जो होगा श्रेष्ठ होगा, अच्छे ते अच्छा होगा।’’ यह संकल्प है जाल को समाप्त करने का। जबकि बुरे दिन, अकल्याण के दिन समाप्त हो गये। संगमयुग का हर दिन बड़ा दिन है, बुरा दिन नहीं। हर दिन आपका उत्सव है ना। हर दिन मनाने का है। इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ संकल्पों की जाल को समाप्त करो।

कुमारियाँ तो बापदादा की, ब्राह्मण कुल की शान हैं। फर्स्ट चान्स कुमारियों को मिलता है। पाण्डव हँसते हैं कि छोटी छोटी कुमारियाँ टीचर बन जातीं, दादी बन जातीं, दीदी बन जातीं। तो इतना चान्स मिलता है। फिर भी चान्स न लें तो क्या कहेंगें। क्या बोलती हो, पता है? सहयोगी रहेंगे लेकिन समर्पण नहीं होंगे। जो समर्पण नहीं होंगे वह समान कैसे बनेंगे! बाप ने क्या किया? सब कुछ समर्पित किया ना! वा सिर्फ सहयोगी बना? ब्रह्मा बाप ने क्या किया? समर्पण किया वा सिर्फ सहयोगी रहा? जगत अम्बा ने क्या किया? वह भी कन्या ही रही ना। तो फालो फादर मदर करना है वा एक दो में सिस्टर्स को फालो करते हो? ‘‘इसका जीवन, जीवन देखकर मुझे भी यही अच्छा लगता है।’’ तो फालो सिस्टर्स हो गया ना! अब क्या करेंगी? डर सिर्फ अपनी कमज़ोरी से होता है। और किसी से नहीं होता। अब क्या लेंगी? गोल्डन मैडल लेंगी वा सिलवर ही ठीक है। कमज़ोरियों को नहीं देखो। वह देखेंगी तो डरेंगी। न स्वयं कमज़ोर बनो न दूसरों की कमज़ोरियों को देखो! समझा, क्या करना है!

बापदादा को तो कुमारियाँ देख करके खुशी होती है। लोगों के पास कुमारी आती है तो दुख होता है। और बापदादा के पास जितनी कुमारियाँ आवें उतना ज्यादा से ज्यादा खुशी मनाते हैं। क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हर कुमारी विश्वकल्याणकारी, महादानी, वरदानी है। तो समझा, कुमारी जीवन का महत्व कितना है! आज विशेष कुमारियों का दिन है ना। भारत में अष्टमी पर कुमारियों को खास बुलाते हैं। तो बापदादा भी अष्टमी मना रहे हैं। हर कन्या अष्ट शक्ति स्वरूप है। अच्छा –

ऐसे सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन अधिकारी , गोल्डन चांस अधिकारी, 21 पीढ़ी की श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींचने के अधिकारी , स्वतंत्र आत्मा के वरदान अधिकारी, ऐसे शिव वंशी ब्रह्माकुमारियों, श्रेष्ठ कुमारियों को विशेष रूप में और साथ-साथ सर्व मिलन मनाने वाले पद्मापदम भाग्यवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कर्मभोग पर कर्मयोग की विजय

कर्मभोग पर विजय पाने वाले विजयी रत्न हो ना! वे कर्मभोग भोगने वाले होते और आप कर्मयोगी हो। भोगने वाले नहीं हो लेकिन सदा के लिए भस्म करने वाले हो। ऐसा भस्म करते हो जो 21 जन्म कर्मभोग का नाम निशान न रहे। आयेगा तब तो भस्म करेंगे? आयेगा जरूर लेकिन आता है भस्म होने के लिए, न कि भोगना के लिए। विदाई लेने के लिए आता है। क्योंकि कर्मभोग को भी पता है कि हम अभी ही आ सकते हैं फिर नहीं आ सकते। इसलिए थोड़ा थोड़ा बीच में चाँस लेता है। जब देखते यहाँ तो दाल गलने वाली नहीं है तो वापस चला जाता।

दादी दीदी को देखते हुए

इतने हैण्डस देखकर खुशी हो रही है ना? जो स्वप्न देख रही थी वह साकार हो गया ना! इतने हैण्डस हों, इतने सेन्टर बढें यह स्वप्न देख रही थी ना! क्योंकि हैण्ड्स की दादी दीदी को सबसे ज्यादा आश रहती है। तो इनते सब बने बनाये हैण्ड्स देखकर खुशी होगी ना। भारत की कुमारियों में और विदेश की कुमारियों में भी अन्तर है, इन्हें कमाई की क्या आवश्यकता है। (डिग्री लेनी है) जब तक सेवा में प्रैक्टिस नहीं की है तब तक डिग्री की भी वैल्यु नहीं है। डिग्री की वैल्यु सेवा से है। पढ़ाई पढ़कर कार्य में नहीं लगाया, पढ़ाई के बाद भी गृहस्थी में रहे तो लौकिक में भी कहते हैं, पढ़ाई से क्या लाभ! अनपढ़ भी बच्चे सम्भालते और यह भी सम्भालते तो फर्क क्या हुआ? ऐसे ही यह भी पढ़कर अगर स्टेज पर आ जाए तो डिग्री की वैल्यु भी है। अगर यहाँ चांस मिलता है तो डिग्री आप ही मिल जायेगी। यह डिग्री कम है क्या! जगदम्बा सरस्वती को कितनी बड़ी डिग्री मिली। यहाँ की डिग्री का तो वर्णन भी नहीं कर सकते हो। कितनी बड़ी डिग्री मिली है - मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर सर्वशक्तिवान - कितनी डिग्री हैं। इसमें एम.ए, ऐम.बी.ए. सब आ जाता है। इंजीनियर डाकटर सब आ जायेगा। अच्छा।

कुमारियों के अलग-अलग गु्रप से बापदादा की मुलाकात

(1) वरदानी कुमारियाँ हो ना! धीरे-धीरे चलने वाली हो या उड़ने वाली हो? उड़ने वाली अर्थात् हद की धरनी को छोड़ने वाली। जब धरनी को छोड़ें तब उड़ेंगी ना! नीचे तो नहीं उड़ेंगी। नीचे वाले को शिकारी पकड़ लेते हैं। नीचे आया पिंजरे में फँसा। उड़ने वाला पिंजरे में नहीं आता। तो पिंजरा छोड़ दिया! अभी क्या करेंगी? नौकरी करेंगी? ताज पहनेंगी या टोकरी उठायेंगी? जहाँ ताज होगा वहाँ टोकरी चलेगी नहीं। ताज उतारेंगी तब टोकरी रख सकेंगी। टोकरी रखेंगी तो ताज गिर जायेगा। तो ताजधारी बनना है या टोकरीधारी। अभी विश्व की सेवा की जिम्मेवारी का ताज और भविष्य रत्न जड़ित ताज। अभी विश्व की सेवा का ताज पहनो तो विश्व आपको धन्य आत्मा, महान आत्मा माने। इतना बड़ा ताज पहनने वाले टोकरी क्या उठायेंगे! 63 जन्म तो टोकरी उठाते रहे, अब ताज मिलता है तो ताज पहनना चाहिए ना! क्या समझती हो? दिल नहीं है लेकिन करना पड़ता है! क्या ऐसे सरकमस्टांस हैं? धीरे-धीरे लौकिक को सन्तुन्ट करते अपने को निर्बन्धन कर सकती हो। निर्बन्धन होने का प्लैन बनाओ। बेहद सेवा का लक्ष्य रखो तो हद के बन्धन स्वतः टूट जायेंगे। लक्ष्य दो तरफ का होता है तो लौकिक अलौकिक दोनों में सफल नहीं हो सकते। लक्ष्य क्लीयर हो तो लौकिक में भी मदद मिलती है। निमित्त मात्र लौकिक, लेकिन बुद्धि में अलौकिक सेवा हो तो मजबूरी भी मुहब्बत के आगे बदल जाती है।

(2) सभी कुमारियों ने अपनी तकदीर का फैंसला कर लिया है या करना है? जितना समय अपने जीवन के फैसले में लगाती हो उतना प्राप्ति का समय चलता जाता है। इसलिए फैसला करने में समय नहीं गँवाना चाहिए। सोचा और किया - इसको कहा जाता है नम्बरवन सौदा करने वाले। सेकण्ड में फैसला करने वाले गोल्डन मैडल लेते हैं। सोच-सोचकर फैसला करने वाले सिलवर मैडल लेते और सोचकर भी फैसला नहीं कर पाते वह कापर वाले हो गये। आप सब तो गोल्डन मैडल वाले हो ना! जब गोल्डन एज में जाना है तो गोल्डन मैडल चाहिए ना। राम सीता बनने में कोई हाथ नहीं उठाते। लक्ष्मी नारायण तो गोल्डन एजड हैं ना। तो सभी ने अपने तकदीर की लकीर ऐसी खींच ली है या कभी-कभी हिम्मत नहीं होती। सदा उमंग उत्साह में उड़ने वाली, कुछ भी हो लेकिन अपनी हिम्मत नहीं छोड़ना। दूसरे की कमज़ोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त नहीं होना। पता नहीं हमारा तो ऐसा नहीं होगा! अगर एक कोई ख·े में गिरता है तो दूसरा क्या करेगा? खुद गिरेगा या उसको बचाने की कोशिश करेगा? इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं होना। सदा उमंग उत्साह के पंखों से उड़ते रहना। किसी भी आकर्षण में नीचे नहीं आना। शिकारी जब फँसाते हैं तो अच्छा- अच्छा दाना डाल देते हैं। माया भी ऐसे करती है। इसलिए सदा उड़ती कला में रहना तो सेफ रहेंगी। पीछे की बात सोचना, कमज़ोरी की बात सोचना पीछे देखना है, पीछे देखना अर्थात् रावण का आना।

(3) शक्ति सेना हो ना। सबके हाथ में विजय का झण्डा है। विश्व के ऊपर विजय का झण्डा है या सिर्फ स्टेट के ऊपर है? विश्व के अधिकारी बनने वाले विश्व सेवाधारी होंगे। हद के सेवाधारी नहीं। बेहद के सेवाधारी जहाँ भी जाएं वहाँ सेवा करेंगे। तो ऐसे बेहद सेवा के लिए तैयार हो? विश्व की शक्तियाँ हो तो स्वयं ही आफर करो। 2 मास 6 मास की छुट्टी लेकर ट्रायल करो। एक कदम बढ़ायेंगी तो 10 कदम बढ़ जायेंगे, एक दो मास निकल कर अनुभव करो। जब कोई बढ़िया चीज़ से दिल लग जाती है तो घटिया स्वतः छुट जाती है। ऐसे ट्रायल करो। संगमयुग आगे बढ़ने का समय है। ब्रह्माकुमारी बन गयी, ज्ञान स्वरूप बन गयी, यह तो बहुत समय हो गया। अब आगे बढ़ो। कुछ तो आगे कदम बढ़ाओ वहाँ ही नहीं ठहरो। कमज़ोर को नहीं देखो। शक्तियों को देखो, बकरियों को क्यों देखते! बकरियों को देखने से खुद का भी कांध नीचे हो जाता। डर लगता है - पता नहीं क्या होगा? कमज़ोर को देखने से डरते हो इसलिए उन्हें मत देखो। शक्तियों को देखो तो डर निकल जायेगा।

(4) आप सब कुमारियाँ अपने को विशेष आत्मायें समझती हो ना? विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष कार्य के निमित्त। एक-एक विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हो। एक एक कुमारी 21 कुल तारने वाली हैं। जब भी जहाँ भी आर्डर मिले तो हाजिर। ऐसे निर्विघ्न सेवाधारी हो ना! जिस समय जो भी सेवा मिले, हाजिर। सेवा करना अर्थात् प्रत्यक्ष फल खाना। जब प्रत्यक्षफल मिल जाता है, तो फल खाने से शक्ति आती है। प्रत्यक्षफल खाने से आत्मा शक्तिशाली बन जाती है। जब ऐसी प्राप्ति हो तो करनी चाहिए ना। लौकिक में तो एक मास नौकरी करेंगे फिर पीछे तनखा मिलेगी। यहाँ तो प्रत्यक्षफल मिलता है। भविष्य तो जमा ही होता है लेकिन वर्तमान में भी मिलता है। तो ऐसे डबल फल मिलने वाला कार्य तो पहले करना चाहिए ना! कइयों को बापदादा, दादी-दीदी डायरेक्शन देते हैं सर्विस करो, श्रीमत पर करने से जिम्मेवार खुद नहीं रहते। अपने मन के लगाव से, कमज़ोरी से करते तो श्रेष्ठ नहीं बन सकते। ट्रायल में स्वयं भी सन्तुष्ट रहें और दूसरों को भी करें तो सर्टिफिकेट मिल जाता है। अपने को मिलाकर चलने का लक्ष्य हो। मुझे बदलना है। स्वयं को बदलने की भावना वाला सभी बातों में विजयी हो जाता है। दूसरा बदले यह देखने वाला धोखा खा लेते हैं। इसलिए सदैव मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करना है, अभिमान में नहीं - करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है।

(5) बाप का बनना अर्थात् उड़ती कला के वरदानी बनना। इसी वरदान को जीवन में लाने से कभी भी किसी कदम में भी पीछे नहीं होंगे। आगे ही बढ़ते रहेंगे। सर्वशक्तिवान बाप का साथ है तो हर कदम में आगे है। स्वयं भी सदा सम्पन्न और दूसरों को भी सम्पन्न बनाने की सेवा करो। किसी प्रकार की कमी अनुभव न हो। सर्व-प्राप्ति स्वरूप। इसको कहा जाता है सम्पन्न। किसी भी प्रकार की रूकावट अपने कदमों को रूकाने वाली न हो। उड़ती कला वाले किसी के बन्धन में नहीं आ सकते। सर्व बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।

संगठन में सफलता पाने का साधन ही एक है - स्वयं को बदलना है। दूसरे को बदलने का नहीं सेचना लेकिन स्वयं बदलना है। जो मोल्ड होने जाना है वही रीयल गोल्ड बन जाता है। क्या थे और क्या बन गये यह भाग्य देख सदा हर्षित रहो। बाप की बनी अर्थात् महान बनी। अभी अनेक आत्माओं को महान बनाने की सेवा करो।

(6) सेवाधारी आत्मायें चलते फिरते याद और सेवा की लगन में रहती हैं। सदा बाप के परिचय द्वारा सर्व आत्माओं को बाप के समीप लाने का प्लैन बनाती रहती हैं। लौकिक काम करते भी यही याद रहता है कि मैं ट्रस्टी हूँ। जिसने ट्रस्टी बनाया वह याद रहेगा ना! बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं। लौकिक कार्य निमित्त मात्र। लौकिक कार्य भी बाप की याद से सहज और सफल हो जाता है। जब स्वयं की प्रालब्ध बन जाती है तो दूसरों की प्रालब्ध बनाने के बिना रह नहीं सकते। क्योंकि स्वयं को जब अच्छे ते अच्छी चीज़ का अनुभव होता है तो औरों को प्राप्ति कराने के बिना रह कैसे सकते? ऐसा उमंग सदा रहता है ना! अच्छा

होली की मुबारक

सभी रंगों में श्रेष्ठ रंग कौन सा है? बाप के श्रेष्ठ संग का रंग। ऐसा रंग जो सदा ही लाल-बाप, लाल-घर, लाल-बच्चे। ऐसे लाल रंग से सदा रंगे हुए हो? यह रंग तो लगाया है ना! इस लाल रंग के संग का रंग ऐसा लगाया है जो 21 जन्म तक नहीं उतरेगा। चाहे कितना भी भट्टी में डालो नहीं उतरेगा ना। ऐसी होली मना ली है या मनानी है? ऐसा होलीएस्ट बाप होली बच्चों से रूहानी होली मना रहे हैं। ऐसी होली जिससे सदा होली बन जाए। होली मनाना क्या लेकिन होली बन गये। मनाना थोड़े समय का होता, बनना सदाकाल का होता। वह होली मनाते, आप बनते हो। ऐसी रूहानी होली मनाने वाले सभी होली बच्चों को मुबारक हो। हो गई होली, रंग पड़ गया ना। लाल हो गये ना! बाप के लाल बन गये तो लाल हो गये।

अच्छा - ओम शान्ति



30-03-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


कन्याओं के ग्रुप में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

आज बेहद ड्रामा के रचयिता बाप, बेहद ड्रामा के वन्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अन्दर मधुबन के विशेष दृश्य को देख रहे हैं। मधुबन स्टेज पर हर घड़ी कितने दिलपसन्द रमणीक पार्ट चलते हैं। जिसको बापदादा दूर बैठे भी समीप से देखते रहते हैं। इस समय स्टेज के हीरो एक्टर कौन हैं? डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं। क्या क्या प्लैन बनाते हो, क्या क्या संकल्प करते हो, कौन सी हलचल में भी आते हो, यह हिम्मत और हलचल दोनों ही खेल देख रहे थे। हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हो। उमंग उल्लास भी बहुत आता है लेकिन साथ-साथ थोड़ा सा, हाँ वा ना का मिक्स संकल्प भी रहता है। बापदादा हँसी का खेल देख रहे थे। चाहना बहुत श्रेष्ठ है कि दिखायेंगे, करके दिखायेंगे। लेकिन मन के उमंग की चाहना वा संकल्प चेहरे पर झलक के रूप में नहीं दिखाई देता है। शुद्ध संकल्प चेहरे पर चमकती हुई दिखाई दे वह परसेन्टेज में देखा। यह क्यों? इसका कारण? शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए।

सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है, हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की पाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता। अनुभव बड़े ते बड़ी अथार्टी है। अथार्टी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है। बापदादा वर्तमान के हीरो पार्टधारियों को देखते हुए मुस्करा रहे थे। खुशी में नाच भी रहे हैं लेकिन कोई कोई नाचते हैं तो सारे वायुमण्डल को ही नचा देते हैं। उनकी एक्ट में रौनक दिखाई देती है। जिसको आप लोग कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया। तो ऐसी रौनक वाली झलक अभी और दिखानी है। उसका आधार सुन लिया। सुनने सुनाने वाले तो बन ही गये हो। साथ-साथ अनुभवी मूर्त्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ। अनुभव की अथार्टी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे। अनुभवी अथार्टी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी। निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है - मास्टर आलमाइटी अथार्टी। ऐसे के आगे माया झुकेगी, न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथार्टी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं ना। क्योंकि अथार्टी की महानता सबको स्वत: ही झुकाती है। तो विशेष क्या देखा? अनुभव की अथार्टी की सीट पर अभी सेट हो रहे हैं। स्पीकर की सीट ले ली है लेकिन ‘‘सर्व अनुभवों की अथार्टी का आसन’’, अभी यह लेना है। सुनाया था ना, दुनिया वालों का है सिंहासन और आप सबका है अथार्टी का आसन। इसी आसन पर सदा स्थित रहो। तो सहज योगी, सदा के योगी, स्वत: योगी हैं ही।

अभी तो अमृतवेले का दृश्य भी हँसने हँसाने वाला है। कोई निशाना लगाते लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई कोई लगन में मगन भी होते हैं। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन दो। योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। जो मन में होता है वह मस्तक पर झलक जरूर रहती है। ऐसे नहीं समझना मन में तो हमारा बहुत है। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो कि हम खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। खोया-खोया हुआ चेहरा और पाया हुआ चेहरा इसका अन्तर तो जानते हो ना। ‘‘पा लिया’’ इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे। बापदादा हीरो पार्टधारी बच्चों की महिमा भी गाते हैं। फिर भी आजकल की फैशनेबल दुनिया से, मन से, तन से किनारा कर बाप को सहारा तो बना लिया। इस दृढ़ संकल्प की बहुत बहुत मुबारक। सदा इसी संकल्प में जीते रहो। बापदादा यह वरदान देते हैं। इसी श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में, स्नेह के पुष्प भी चढ़ाते हैं। साथसाथ हर बच्चा सम्पन्न, बाप समान अथार्टी हो, इस शुद्ध संकल्प की विधि बताते हैं। बधाई भी देते हैं और विधि भी बताते हैं।

सभी ने समारोह तो मना लिया ना! सभी समारोह मनाते सम्पन्न बनने का लक्ष्य लेते हुए जा रहे हो ना! पहले वाले पुराने तो पुराने रहे लेकिन आप सुभान अल्ला हो जाओ। सबका फोटो तो निकला है ना। फोटो तो यादगार हो गया ना यहाँ। अब दीदी दादी भी देखेंगी कि अथार्टी के आसन पर कौन कौन कितने स्थित हुए। सेन्टर पर रहना भी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन विशेष पार्टधारी बन पार्ट बजाना यह है कमाल! जो सभी कहें कि इस ग्रुप की हर आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है। खाली नहीं बनो। खाली चीज़ में हलचल होती है। सयाने बनो अर्थात् सम्पन्न बनो। सिर्फ कुमारियों के लिए नहीं है लेकिन सभी के लिए है। सम्पन्न तो सभी को बनना है ना। जो भी सभी आये हैं मधुबन की विशेष सौगात ‘‘सर्व अनुभवों की अथार्टी का आसन’’, यह साथ में ले जाना। इस सौगात को कभी भी अपने से अलग नहीं करना। सबको सौगात है ना कि सिर्फ कुमारियों को है। मधुबन निवासियों को भी आज की यह सौगात है। चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन बाप के सम्मुख हैं। आने वाले सर्व कमल पुष्प समान बच्चों को, मधुबन निवासियों को, चारों ओर के देश विदेश के बच्चों को और वर्तमान स्टेज के हीरो पार्टधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी को अनुभवी भवके वरदान के साथ वरदाता बाप की याद प्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों ने विशेष संकल्प लिया! विशेष संकल्प द्वारा विशेष आत्मायें बनीं? विशेष संकल्प क्या लिया? सदा महावीरनी बन विजयी रहेंगी, यही संकल्प लिया है ना! सदा विजयी, सदा महावीरनी या थोड़े समय के लिए लिया? इसके बाद कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आयेगी ना! आधाकल्प के लिए खत्म हुई, कभी संकल्पों का टक्कर तो नहीं होगा। कभी व्यर्थ संकल्प का तूफान तो नहीं आयेगा? अगर बार बार माया के वार से हार खाते तो कमज़ोर हो जाते है। जैसे कोई बार बार धक्का खाता तो उसकी हड्डी कमज़ोर हो जाती है ना। फिर प्लास्टर लगाना पड़ता। इसलिए कभी भी कमज़ोर बन हार नहीं खाना। तो महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये। ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे...यह गूँगे वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय जयकार हो जायेगी। संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। हर मास अपनी रिजल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना। यह संस्कार यहाँ खत्म करके जाना। आगे बढ़ेंगी, विजयी बनेंगी - यह दृढ़ संकल्प करके जाना। अच्छा –

सभी की आशायें पूरी हुई? कुमारियों की आशायें पूरी हुई तो माताओं की तो हुई पड़ी हैं। अभी आप लोग थोड़े आये हो इसलिए अच्छा चांस मिल गया। इस बारी सभी कुमारियों का उल्हना तो पूरा हुआ। कोई कम्पलेन्ट नहीं, सभी कम्पलीट होकर जा रही हो ना! अभी देखेंगे, नदियाँ कहाँ बहती हैं। तालाब बनती हैं, बड़ी नदी बनती हैं, छोटी बनती हैं या कुआँ बनता है। तालाब से भी छोटा कुआं होता है ना। तो देखेंगे क्या बनती हैं! वह रिजल्ट आयेगी ना! कुमारियों को देखकर आता है इतने हैण्ड्स निकलें, माताओं को देखकर कहेंगे कि निकलना थोड़ा मुश्किल है। तो अब निर्विघ्न हैण्ड्स बनना। ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। सेवा के साथ अगर कम्पलेन्ट निकलती रहे तो सेवा का फल नहीं निकलता। इसलिए निर्विघ्न हैण्ड बनना। ऐसे नहीं आप ही विघ्न रूप बन, दादी दीदी के सामने आते रहो, मददगार हैण्ड बनना। खुद सेवा नहीं लेना। तो सदा निर्विघ्न रहेंगे और सेवा को निर्विघ्न बढ़ायेंगे - ऐसा पक्का संकल्प करके जाना। अच्छा –

प्रश्न:- बाप को किन बच्चों पर बहुत नाज रहता है?

उत्तर:- जो बच्चे कमाई करने वाले होते, ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को बहुत नाज रहता, एक एक सेकण्ड में पद्मों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।



03-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


प्रथम और अंतिम पुरूषार्थ

सदा बेहद की स्थिति में स्थित करने वाले, सदा कर्मातीत शिव बाबा बोले:-

आज बेहद का बाप, बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, बेहद की बुद्धि, बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद के सेवाधारी ऐसे - श्रेष्ठ बच्चों से साकार स्वरूप में साकार वतन में बेहद के स्थान पर मिलने आये हैं। सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ‘‘बेहद’’ है। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है - देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना। और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना है। इसका भी अर्थ है - सर्व हद के रिश्ते से परे फरिश्ता बनना। तो आदि और अन्त पुरूषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ‘‘बेहद’’। आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना! जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव स्वरूप बन जाते।

हद हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक - ‘‘मेरा मेरा’’। एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई, इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है। विस्तार मुश्किल होता है या सार मुश्किल होता है? तो आदि और अन्त का पाठ क्या हुआ? - बेहद। इसी अन्तिम मंज़िल पर कहाँ तक समीप आये हैं, इसको चेक करो। हद की लिस्ट सामने रख देखो कहाँ तक पार किया है! लिस्ट का वर्णन करने की तो आवश्यकता नहीं है। सबके पास कितने बार की सुनी हुई यह लिस्ट कापियों में तो बहुत नोट है। सबके पास ज्यादा से ज्यादा माल डायरियॉ वा कापियाँ होंगी। जानते तो सभी हो, वर्णन भी बहुत अच्छा कर सकते हो। ज्ञान भी हो, वक्ता भी हो। बाकी क्या रहा? बापदादा भी सभी टीचर्स अथवा स्टुडेन्ट्स, सबके भाषण सुनते हैं। बापदादा के पास वीडियो नहीं है क्या? आपकी दुनिया में तो अभी निकला है। बापदादा तो शुरू से वतन में देखते रहते हैं। सुनते रहते हैं। वर्णन करने करने का श्रेष्ठ रूप देखकर बापदादा मुबारक भी देते हैं क्योंकि बापदादा की एक प्वाइंट को भिन्न-भिन्न रमणीक रूप से सुनाते हो। जैसे गाया हुआ है - बाप तो बाप है लेकिन बच्चे बाप के भी सिरताज हैं। ऐसे सुनाने में बाप से भी सिरताज हो। बाकी क्या फालो करना है? तीसरी स्टेज है - पार कर्ता। इसमें कोई न कोई हद की दीवार को पार करने में, कोई तो उस हद में लटक जाते हैं, कोई अटक जाते हैं। पार करने वाले कोई-कोई मंज़िल के समीप दिखाई देते हैं। किसी भी हद को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना। तो उपराम बनना ही पार करने की निशानी है। उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला की निशानी। उड़ता पंछी बन कर्म के इस वल्प वृक्ष की डाली पर आयेगा। उड़ती कला के बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बन्धन में नहीं फँसेगा। कर्म बन्धन में फँसा अर्थात् हद के पिंजरे में फँसा। स्वतन्त्र से परतन्त्र बना। पिंजरे के पंछी को उड़ता पंछी तो नहीं कहेंगे ना। ऐसे कल्प वृक्ष के भिन्न-भिन्न कर्म की डाली पर बाप के उड़ते पंछी श्रेष्ठ आत्मायें कभी-कभी कमज़ोरी के पंजों से डाली के बन्धन में आ जाते हैं। फिर क्या करते? कहानी सुनी है ना! इसको कहा जाता है हद को पार करने की शक्ति कम है। इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवी डाली ज्यादा आकर्षण वाली है। गोल्डन, सिल्वर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली। फिर हीरो बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म है ना। यह श्रेष्ठ कर्म ही हीरे की डाली है। चाहे संगमयुगी कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के भी बन्धन में फँस गया, जिसको दूसरे शब्दों में आप सोने की जंजीर कहते हो। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है। चाहे डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की हो लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना! बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं। सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बने हो!

आज का विशेष संगठन गऊपाल की माताओं का है। इतने बड़े संगठन को देख गऊपाल भी खुश हो रहे हैं। बापदादा भी मीठी-मीठी माताओं को ‘‘वन्दे मात्रम्’’ कहते हैं। क्योंकि नई सृष्टि की स्थापना के कार्य में ब्रह्मा बाप ने भी माता गुरू को सब समर्पण किया। इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना। माता गुरू का सिलसिला स्थापन करना, यही नवीनता है। इसलिए यादगार में भी गऊ मुख का गायन पूजन है। ऐसे हद की मातायें नहीं लेकिन बेहद की जगत मातायें हो, नशा है ना! जगत का कल्याण करने वाली हो, जगज्ञ्-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना। कब घर-कल्याणी का गीत सुना है क्या? विश्व-कल्याणी का सुना है। तो ऐसी बेहद की माताओं का संगठन, श्रेष्ठ संगठन हुआ ना। मातायें तो अनुभवीमूर्त्त हो ना! कुमारियों को धोखे से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण हद के धोखे में नहीं आने वाली हो ना! मैजारटी नये-नये हैं। नये-नये छोटे बच्चों पर ज्यादा ही स्नेह होता है। बापदादा भी सभी माताओं का ‘‘भले पधारे’’ कहकर के स्वागत करते हैं।

अच्छा - ऐसे सदा बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा उड़ता पंछी, उड़ती कला में उड़ने वाले, सदा अन्तिम फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करने वाले, सदा बाप समान कर्मबन्धनों से कर्मातीत, ऐसे मंज़िल के समीप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

(सेवाधारियों के प्रति)

बापदादा सभी निमित्त सेवाधारी बच्चों को किस रूप में देखते हैं? निमित्त सेवाधारी कौन हैं? निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बाप भी सेवाधारी बन करके ही आते हैं ना। जो भी भिन्न-भिन्न रूप हैं वह हैं तो सेवा के लिए ना! तो बाप का भी विशेष रूप सेवा का है। तो निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी नजर से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना! जन्मते ही बाप ने क्या गिफ्ट में दिया? सेवा ही दी है ना। सेवा की गिफ्ट के आदि रत्न हो। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं। जन्म से वरदान मिलना यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है। वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के समय में निमित्त बनना यह भी किसी-किसी की विशेषता है। जो है ही आवश्यकता के समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है। अच्छा - सभी में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं, अगर एक-एक की विशेषता का वर्णन करें तो कितना समय चाहिए। लेकिन बापदादा के पास हरेक की विशेषता सदा सामने है। कितनी हरेक में विशेषतायें हैं, कभी अपने आपको देखा हैविशेषतायें सबमें अपनी अपनी हैं लेकिन बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं, कौन-सी? जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा प्रैक्टिकल में आते हो तो सदा बाप समान स्थिति में स्थित होकर फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में आओ। जैसे बाप सबका है, कोई भी नहीं कहेगा कि यह फलाने का बाप है, फलाने का नहीं, सब कहेंगे - मेरा बाबा। ऐसे जो निमित्त सेवाधारी हैं उन्हों की विशेषता यही है कि हरेक महसूस करे, अनुभव करे कि यह हमारे हैं। 4-6 का है, हमारा नहीं यह नहीं। हमारे हैं, हरेक के मुख से यह आवाज़ न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं। इसको ही कहा जाता है - फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का है। यही तो बाप की विशेषता है ना। हरेक के मन से निकलता है - मेरा बाबा। तेरा बाबा कोई कहता है? तो यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है वा दीदी है, दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद निकले। यह मेरा है क्योंकि चाहे कहाँ भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद की हो ना! निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना। प्लैन भी बेहद का, विश्व का बनाते हो या हरेक अपने-अपने स्थान का बनाते हो। यह तो नहीं करते ना! बेहद का प्लैन बनाते, देश विदेश सबका बनाते हो ना। तो बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना यह है - फालो फादर। अभी यह प्रैक्टिकल अनुभव करो। अभी सब बुजुर्ग हो। बुजुर्ग का अर्थ ही है अनुभवी। अनेक बातों के अनुभवी हो ना! कितने अनुभव हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा अनेकों के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् बुजुर्ग आत्मा। वैसे भी कोई बुजुर्ग होता है तो हद के हिसाब से भी उसको पिताजी, काकाजी कहते हैं। ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो।

सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं। सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो। इसलिए देंगे क्या, सबको स्नेह ही देंगे। सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नजर में स्नेह अनुभव हो। यही तो विशेषता है ना! ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो। चाहे भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे - यह विशेष आत्मायें हैं। हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई मानेंगे विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली नहीं लेकिन करने वाली। अच्छा –

महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं। क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा अगर मन निरोगी है तो सदा तन्दुरूस्त है। सिर्फ शेश शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमित्त मात्र खेल करते। सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो।

कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है - विजयी रत्न। सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी प्लैनिंग का स्थान बन गया।

(माताओं के ग्रुप से)

सभी ऐसा अनुभव करते हो कि तकदीर का सितारा चमक रहा है? जिस चमकते हुए सितारे को देख और आत्मायें भी ऐसा बनने की प्रेरणा लेती रहें, ऐसे सितारे हो ना! कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना! सदा एक रस हो या कभी उड़ती कला कभी ठहरती कला? सदा उड़ती कला का युग है। उड़ती कला के समय पर कोई चढ़ती कला भी करे तो भी अच्छा नहीं लगेगा। प्लेन की सवारी मिले तो दूसरी सवारी अच्छी लगेगी? तो उड़ती कला के समयवाले नीचे नहीं आओ। सदा ऊपर रहो। पिंजरे के पंछी नहीं, पिंजरा टूट गया है या दो चार लकीरें अभी रही हैं।

तार भी अगर रह जाती है तो वह अपनी तरफ खींचेगी। 10 रस्सी तोड़ दीं, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब हदें पार करने वाले ऐसे बेहद के उड़ते पंछी, हद में नहीं फंस सकते। 63 जन्म तो हद में फँसते आये। अब एक जन्म हद से निकालो। यह एक जन्म है ही हद से निकालने का तो जैसा समय वैसा काम करना चाहिए ना। समय हो उठने का और कोई सोये तो अच्छा लगेगा? इसलिए सदा हदों से पार बेहद में रहो। माताओं को अविनाशी सुहाग का तिलक तो लगा हुआ है ना। जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे अविनाशी सुहाग अर्थात् सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी सुहागिन सदा भागिन (भाग्यवान) है। कल्प-कल्प की भाग्यवान आत्मायें हो। ऐसा भाग्य जो कोई भाग्य को छीन नहीं सकता। सदा अधिकारी आत्मायें हो, विश्व का मालिक, विश्व का राज्य ही आपका हो गया। राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो अधीनता नहीं।

प्रश्न:- आप बच्चों की कमाई अखुट और अविनाशी है, कैसे?

उत्तर:- आप ऐसी कमाई करते हो जो कभी कोई छीन नहीं सकता। कोई गड़बड़ हो नहीं सकती। दूसरी कमाई में तो डर रहता है, इस कमाई को अगर कोई छीनना भी चाहे तो भी आपको खुशी होगी क्योंकि वह भी कमाई वाला हो जायेगा। अगर कोई लूटने आये तो और ही खुश होंगे, कहेंगे लो। तो इससे और ही सेवा हो जायेगी। तो ऐसी कमाई करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो।

अच्छा - ओम् शान्ति।



05-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सर्व वरदान आपका जन्म-सिद्ध अधिकार

सर्व वरदानों से सम्पन्न श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

बापदादा, बाप और बच्चों का मेला देख हर्षित हो रहे हैं। द्वापर से जो भीमेलेविशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं। एक ही शिवरात्रि - बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं। द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा देवताओं के होते हैं। लेकिन यह मेला महानदी और सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है। ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं सकता। मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला देखते। साथ साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते। तो मेला तो मना लिया ना! यह मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा। एक तरफ सेवा करते हो कि वृद्धि को पाते रहें। तो वृद्धि को प्राप्त होना ही है और मेला भी मनाना ही है।

बापदादा आपस में रूह-रूहान कर रहे थे। ब्रह्मा बोले - ब्राह्मणों की वृद्धि तो यज्ञ समाप्ति तक होनी है। लेकिन साकारी सृष्टि में साकारी रूप से मिलन मेला मनाने की विधि, वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन तो होगी ना! लोन ली हुई वस्तु और अपनी वस्तु में अन्तर तो होता ही है। लोन ली हुई वस्तु को कड़ी सम्भाल से कार्य में लगाया जाता है। अपनी वस्तु को जैसे चाहे वैसे कार्य में लगाया जाता है। और लोन भी साकार शरीर अन्तिम जन्म का शरीर है। लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की विधि भी देखनी होगी ना। तो शिव बाप मुस्कराते हुए बोले कि तीन सम्बन्धों से तीन रीति की विधि वृद्धि प्रमाण परिवर्तन हो ही जायेगा। वह क्या होगा?

बाप रूप से विशेष अधिकार है - मिलन की विशेष टोली। और शिक्षक के रूप में मुरली। सतगुरू के रूप में नजर से निहाल। अर्थात् अव्यक्त मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि। इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने वाले बच्चो का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा। सभी को संकल्प होता है कि हमें कोई वरदान मिले। बापदादा बोले जब हैं ही वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अभी तो क्या लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये। विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर जन्मपत्री में नूँध दी। लौकिक में भी जन्मपत्री नाम संस्कार के पहले बना देते हैं। भाग्य विधाता बाप ने, वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। तो सदा के वरदानी तो हो ही। स्मृति-स्वरूप बच्चों को तो सदा सर्व वरदान प्राप्त ही हैं। प्राप्ति स्वरूप बच्चे हो। अप्राप्ति है क्या जो प्राप्ति करनी पड़े। तो ऐसी रूह-रूहान आज बापदादा की चली। यह हाल बनाया ही क्यों है! तीन हजार, चार हजार ब्राह्मण आवें। मेला बढ़ता जाए। तो खूब वृद्धि को पाते रहो। मुरली बात करना नहीं है क्या! हाँ, नजर पड़नी चाहिए, यह सब बातें तो पूर्ण हो ही जायेंगी।

अभी तो आबू तक लाइन लगानी है ना। इतनी वृद्धि तो करनी है ना! वा समझते हो हम थोड़े ही अच्छे हैं। सेवाधारी सदा स्वयं का त्याग कर दूसरे की सेवा में हर्षित होते हैं। मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं ना! अपनी नींद भी त्याग करेंगी और बच्चे को गोदी के झूले में झुलायेंगी। आप लोगों द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे ना। अच्छा –

इस बारी तो बापदादा ने भी सब भारत के बच्चों का उल्हना मिटाया है। जहाँ तक लोन का शरीर निमित्त बन सकते वहाँ तक इस बारी तो उल्हना पूरा कर ही रहे हैं। अच्छा –

सब रूहानी स्नेह को, रूहानी मिलन को अनुभव करने वाले, जन्म से सर्व वरदानों से सम्पन्न, अविनाशी श्रेष्ठ भाग्यवान, ऐसे सदा महात्यागी, त्याग द्वारा भाग्य पाने वाले ऐसे पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को, चारों ओर के स्नेह के चात्रक बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’



07-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


माताओं के प्रति अव्यक्त बापदादा के दो अनमोल बोल

हलचल से परे ले जाने वाले, निश्चय बुद्धि आत्माओं के प्रति शिवबाबा बोले:-

आज विशेष निमित्त बनी हुई डबल सेवाधारी, बापदादा की स्नेही माताओं को विशेष दो बोल सुना रहे हैं। जो सदा बाप के शिक्षा की सौगात साथ रखना। एक सदा लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की स्मृति। सदा ट्रस्टीपन की स्मृति। सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना। जैसे अन्य आत्माओं को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो। हद में नहीं आओ। मेरा बच्चा, मेरा पति इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की दृष्टि दे नहीं सकेंगे। मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं - बच्चा बदल जाए, पति साथ दे, घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश क्यों रखते हो! इस हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक पहुँचती नहीं। इसलिए संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिजल्ट कैसे निकले? इसलिए यह कम्पलेन्ट चलती रहती है। तो सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है। इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं। बहुत मेहनत की है वा यह तो कभी बदलना ही नहीं है - ऐसे दिलशिकस्त भी नहीं बनो। निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो चलते चलो। कोई-कोई आत्माओं का ईश्वरीय वर्सा लेने के लिए भक्ति का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है। इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, निराश न हो। शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। ऐसी स्थिति में स्थित रहकर लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले, डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बच्चों का महत्व बहुत बड़ा है। अपने महत्व को जानो। तो दो बोल क्या याद रखेंगे?

नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा बाप की हूँ’, बाप सदा साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना! बस यही दो बातें विशेष याद रखना। हरेक यही समझे कि बापदादा हरेक शक्ति वा पाण्डव से यह पर्सनल बात कर रहे हैं। सभी सोचते हो ना कि मेरे लिए पर्सनल क्या है। सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं। पब्लिक में भी प्राइवेट बोल रहे हैं। समझा! एक एक बच्चे को एक दो से ज्यादा प्यार दे रहे हैं। इसलिए ही आते हो ना! प्यार मिले, सौगात मिले। इससे ही रिफ्रेश होते हो ना। प्यार के सागर हरेक स्नेही आत्मा को स्नेह की खान दे रहे हैं जो कभी खत्म ही नहीं हो और कुछ रह गया क्या! मिलना, बोलना और लेना। यही चाहते हो ना। अच्छा –

ऐसे सर्व हद के सम्बन्ध से न्यारे, सदा प्रभु प्यार के पात्र, नष्टोमोहा, विश्व कल्याण के स्मृति स्वरूप, सदा निश्चय बुद्धि विजयी, हलचल से परे अचल रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

(पार्टियों के साथ-अलग अलग ग्रुप से मुलाकात)

बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए माया को विदाई दो:- सदा अपने को बाप के साथी अनुभव करते हो? जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियाँ हैं। उनके सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती। माया को विदाई दे दी है? कभी माया की मेहमानी तो नहीं करते? जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें? इसलिए सदा विदाई देने वाले और बधाई पाने वाले। ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया! बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।

अनेक मेरा मैला बना देता और एक मेरा मैलापन समाप्त कर देता

सभी एक बाप के स्नेह में समाये हुए रहते हो? जैसे सागर में समा जाते हैं ऐसे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए। जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण  सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दूनिया की स्मृति नहीं। घर मेरा, बच्चा मेरा, यह चीज़ मेरी, ये मेरा मेरा खत्म। बस एक बाप मेरा और सब मेरा खत्म। और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।

बाप को जानना ही सबसे बड़ी विशेषता है:- बाप को हरेक बच्चा अति प्यारा है। सब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हो। चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार, चाहे पढ़े लिखे हो चाहे अनपढ़, सब एक दो से अधिक प्यारे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्माये हैं। कौन सी विशेषता है सभी में? बाप को जानने की विशेषता है। जो बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान सके वह आपने जान लिया, पा लिया। वह बिचारे तो नेती नेती करके चले गये। आपने सब कुछ जान लिया। तो बापदादा ऐसी विशेष आत्माओं को रोज याद-प्यार देते हैं। रोज मिलन मनाते हैं। अमृतवेले का समय खास बच्चों के लिए है। भक्तों की लाइन पीछे, बच्चों की पहले। जो विशेष आत्मायें होती हैं उनसे मिलने का समय भी जरूर विशेष होगा ना! तो सदा ऐसी विशेष आत्मा समझो और सदा खुशी में उड़ते चलो।

बीमारी की सहज दवा

खुशी की गोली और इन्जेक्शन:- ब्राह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे वह लोग पॉवरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेन्ज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टॉक हरेक के पास है ना! नॉलेज के आधार पर शरीर को चलाना है। नॉलेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है। सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेंगी। जैसे शुरू में सन्देशियाँ जाती थीं, एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी ऐसे ही कुछ भी हो तो वतन में आ जाओ। बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे, लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आर्डर है।

प्रश्न:- सहजयोगी जीवन की विशेषता क्या है?

उत्तर:- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन। तो जो सहजयोगी हैं वह सदासुख के झूले में झूलने वाले होते हैं। जब सुखदाता बाप ही अपना हो गया तो सुख ही सुख हो गया ना। तो सुख के झूले में झूलते रहो। सुखदाता बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है योगी जीवन की विशेषता जिसमें दुख का नाम निशान नहीं।

प्रश्न:- बुजुर्ग और अनपढ़ बच्चों को किस आधार पर सेवा करनी है?

उत्तर:- अपने अनुभव के आधार पर। अनुभव की कहानी सबको सुनाओ। जैसे घर में दादी वा नानी बच्चों को कहानी सुनाती है ऐसे आप भी अनुभव की कहानी सुनाओ, क्या मिला है, क्या पाया है... यही सुनाना है। यह सबसे बड़ी सेवा है। जो हरेक कर सकता है। याद और सेवा में ही सदा तत्पर रहो यही है बाप समान कर्त्तव्य।



11-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


सहज पुरुषार्थी के लक्षण

सर्व खज़ानों से मालामाल करने वाले, सहज पुरुषार्थी, सहज योगी बच्चों के प्रति बापदादा बोले:-

बापदादा अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। स्नेह और मिलन की भावना इन दो शक्तियों के आधार पर निराकार और आकार बाप को आप समान साकार रूप में, साकारी सृष्टि में लाने के निमित्त बन जाते हो। बाप को भी बच्चे स्नेह और भावना के बन्धन में बांध लेते हैं। मैजारटी अभी भी माताओं की है। माताओं का ही चरित्र और चित्र दिखाया है - भगवान को भी बांधने का। किस वृक्ष से बांधा? इस बेहद के कल्प वृक्ष के अन्दर स्नेह और भावना की रस्सी से कल्प पहले भी बांधा था और अब भी रिपीट हो रहा है। बाप दादा ऐसे बच्चों को स्नेह के रेसपान्ड में, जिस रस्सी से बाप को बांधते हो, इन स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे, झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं। इस कल्प वृक्ष के अन्दर पार्ट बजाने वाले इसी झूले में सदा झूलते रहो। सभी को झूला मिला हुआ है ना! आसन से हिल तो नहीं जाते हो? स्नेह और भावना की रस्सियाँ सदा मजबूत है ना! नीचे ऊपर तो नहीं होते! झूला झुलाता भी है, ऊंचा उड़ाता भी है और अगर जरा भी नीचे ऊपर हुए तो ऊपर से नीचे गिराता भी है। झूला तो बापदादा ने सभी को दिया है। तो सदा झूलते रहते हो! माताओं को झूलने और झुलाने का अनुभव होता है ना! जिस बात के अनुभवी हो वह ही बातें बापदादा कहते हैं। कोई नई बात तो नहीं है ना! अनुभव की हुई बातें सहज होती हैं वा मुश्किल!

आज की यह कौन सी सभा है? सभी सहजयोगी, सहज पुरुषार्थी, सहज प्राप्ति स्वरूप हो वा कभी सहज, कभी मुश्किल के योगी हो? सहज पुरुषार्थी अर्थात् आये हुए हिमालय पर्वत जितनी समस्या को भी उड़ती कला के आधार पर सेकण्ड में पार करने वाले। पार करने का अर्थ ही है कि कोई चीज़ होगी तब तो उसको पा करेंगे। ऐसे सहज पार करते, उड़ते जा रहे हो वा कभी पहाड़ पर उतर आते, कभी नदीं में उतर आते, कभी कोई जंगल में उतर आते। फिर क्या कहते? निकालो वा बचाओ। ऐसे करने वाले तो नहीं हो ना! मातायें अब भी बात बात पर वही पुकार तो नहीं करती रहती! भक्ति के संस्कार तो समाप्त हो गये ना! द्रोपदी की पुकार पूरी हो गई या अभी भी चल रही है? अभी तो अधिकारी बन गये ना! पुकार का समय समाप्त हुआ। संगमयुग प्राप्ति का समय है न कि पुकार का समय है? सहज पुरुषार्थी अर्थात् सबको पार कर सर्व सहज प्राप्ति करने वाले। सहज पुरुषार्थी सदा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध पाने के अनुभवी होंगे। प्रालब्ध सदा ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा अर्थात् तीसरे दिव्य नेत्र द्वारा प्रालब्ध दिखाई देगी। सहज पुरुषार्थी हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करेंगे। ऐसा स्वयं को सदा संगमयुगी सर्व खज़ानों से भरपूर आत्मा अनुभव करेंगे। किसी भी शक्ति से, किसी भी गुण के खज़ाने से, ज्ञान के किसी भी पाइंट के खज़ाने से, खुशी से, नशे से कभी खाली नहीं होंगे। खाली होना गिरने का साधन है। खड्डा बन जाता है ना। तो खड्डे में गिर जाते हैं। थोड़ी सी भी मोच आ जाती है तो परेशान हो जाते हैं ना! यह भी बुद्धि की मोच आ जाती है। संकल्प टेढ़ा हो जाता है। शक्तिशाली मालामाल के बदले कमज़ोर और खाली हो जाते हैं। तो संकल्प की मोच आ गई ना! ऐसे करते क्यों हो? फिर कहते हो रास्ता टेढ़ा है। आप टेढ़े नहीं हो? टेढ़े रास्ते को तो सीधा बनाया है ना। शक्ति अवतार किसलिए हो? टेढ़े को सीधा करने के लिए। कान्ट्रैक्ट क्या लिया है? जैसे इस हाल को टेढ़े बांके से सीधा किया तब तो आराम से बैठे हो। तो हाल के कान्ट्रैक्टर से पूछो उसने यह सोचा क्या कि टेढ़ा है, मोच आयेगी। सीधा किया वा टेढ़े को ही सोचता रहा। कहाँ पत्थर को उड़ाया, कहाँ पत्थर को डाला, मेहनत की ना। तो आप सबको स्वर्ग बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! टेढ़े को सीधा बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! ऐसे कान्ट्रैक्ट लेने वाले तो नहीं कह सकते कि रास्ता टेढ़ा है। अचानक गिरना यह भी अटेन्शन की कमी है। साकार रूप में याद है ना, कोई गिरते थे तो क्या करते थे! उसकी टोली बन्द होती थी। क्यों? आगे के लिए सदा अटेन्शन रखने के लिए। टोली देना तो कोई बड़ी बात नहीं है। टोली तो होती ही बच्चों के लिए है। लेकिन यह भी स्नेह है। टोली देना भी स्नेह है, टोली बन्द करना भी स्नेह है। फिर क्या सोचा? अचानक गिर जाते हैं वा रास्ता टेढ़ा है, यह कहेंगे? अभी तो इस पुरूषार्थ के मार्ग में इतनी भीड़ कहाँ हुई है! अभी तो 9 लाख प्रजा भी नहीं बनी है। अभी तो एक लाख में ही खुश हो रहे हो। पुरूषार्थ का मार्ग बेहद का मार्ग है। तो समझा सहज पुरुषार्थी किसको कहा जाता है! जो मोच न खाये और ही औरों के लिए स्वयं गाइड, पण्डा बन सहज रास्ता पार करावे। सहज पुरुषार्थी सिर्फ लव में नहीं लेकिन लव में लीन रहता। ऐसी लवलीन आत्मा सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से वायुमण्डल से दूर रहती है। क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली, सर्व बातों से सेफ रहना। लीन रहना अर्थात् समाया हुआ रहना। समाना अर्थात् समान होना। तो समानता बड़े ते बड़ी सेफ है। है ही मायाप्रूफ सेफ। तो समझा सहज पुरूषार्थ क्या है! सहज पुरूषार्थ अर्थात् अलबेलापन नहीं। कई अलबेलेपन को भी सहज पुरूषार्थ मानकर चलते हैं। वो सदा मालामाल नहीं होगा। अलबेले पुरुषार्थी की सबसे बड़ी विशेषता अन्दर मन खाता रहेगा और बाहर से गाता रहेगा! क्या गाता रहेगा? अपनी महिमा के गीत गाता रहेगा। और सहज पुरुषार्थी सदा हर समय में बाप के साथ का अनुभव करेगा। ऐसे सहज पुरुषार्थी हो? सहज पुरुषार्थी सदा सहज योगी जीवन का अनुभव कर सकता है। तो क्या पसन्द है? सहज पुरूषार्थ या मुश्किल? पसन्द तो सहज पुरूषार्थ है ना! दिलपसन्द चीज़ जब बाप दे ही रहे हैं तो क्यों नहीं लेते? न चाहते भी हो जाता है, यह शब्द भी मास्टर सर्वशक्तिवान का बोल नहीं है। चाहना एक, कर्म दूसरा तो क्या उसको शिव-शक्ति कहेंगे!

शिव-शक्ति अर्थात् अधिकारी। अधीन नहीं। तो यह बोल भी ब्राह्मण भाषा के नहीं हुए ना! अपने ब्राह्मण भाषा को तो जानते हो ना! संगमयुग का अर्थात् सहज प्राप्ति का बहुत समय गया। अब बाकी थोड़ा सा समय रहा हुआ है। इसमें भी समय के वरदान, बाप के वरदान को प्राप्त कर स्वयं को सहज पुरुषार्थी बना सकते हो। ब्राह्मण की परिभाषा है ही -मुश्किल को सहज बनाने वाला। ब्राह्मण का धर्म, कर्म सब यही है। तो जन्म के, कर्म के ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सहज योगी। सहज पुरुषार्थी। अब यहाँ से क्या बन करके जायेंगे?

मधुबन को परिवर्तन भूमि कहते हो ना! मुश्किल शब्द को तपोभूमि में भस्म करके जाना। और सहज पुरूषार्थ का वरदान ले जाना। परिवर्तन का पात्र अर्थात् दृढ़ संकल्प के पात्र को धारण करके जाना तब वरदान धारण कर सकेंगे। नहीं तो कई कहते हैं वरदान तो बाबा ने दिया लेकिन आबू में ही रह गया। वहाँ जाकर देखते हैं वरदान तो साथ आया ही नहीं। वरदाता का वरदान योग्य पात्र में लिया? अगर लिया ही नहीं तो रहेगा कहाँ? जिसने दिया उसके पास ही रहा ना! ऐसे नहीं करना। होशियार बहुत हो गये हैं। अपना कसूर नहीं समझेंगे। कहेंगे पता नहीं बाबा ने क्यों ऐसे किया! अपनी कमज़ोरियाँ सब बाप के ऊपर रखते हैं। बाबा चाहे तो कर सकता है लेकिन करना नहीं है। बाप दाता है या लेता है? दाता तो देता है लेकिन लेने वाले लेवें भी ना! या देवे भी बाप और लेवे भी बाप। बाप लेंगे तो आप कैसे भरपूर होंगे! इसलिए लेना तो सीखो ना! अच्छा - मिलन तो हो गया ना। सबसे हंसे, बहले, सबके चेहरे देखे। इस समय तो बहुत अच्छे चेयरफुल चेहरे हैं। सभी खुशी के झूले में झूल रहे हैं। तो यह मिलना नहीं हुआ! मिलना अर्थात् मुखड़ा देखना और दिखलाना। देखा ना! पात्र भी मिला, वरदान भी मिला। बाकी क्या रह गया? टोली तो दीदी दादी से खा ली है। जब व्यक्त रूप में निमित्त बना दिया है तो अव्यक्त को क्यों व्यक्त बनाते हो! दीदी दादी भी बाप समान हैं ना! जब भी दीदी दादी से टोली लेते हो तो क्या समझकर लेते हो? बाप दादा टोली दे रहे हैं। अगर दीदी दादी समझ लेते तो यह भी भूल हो जायेगी। अच्छा, तो बाकी टोली की इच्छा अभी है। समझते हैं टोली खायेंगे तो आगे तो आयेंगे ना। तो आज ही सबकी क्यू लगाओ और टोली खाओ। दिल तो कब भरने वाली है नहीं। दिल भरती रहनी चाहिए। भर नहीं जानी चाहिए। कुछ न कुछ रहना ठीक है। तब तो याद करते रहेंगे और भरते रहेंगे। भर गई तो फिर कहेंगे भर गया अब खाओ पीयो मौज करो। अच्छा –

सब सदा के सहज योगी, सहज पुरुषार्थी, सदा सर्व की मुश्किलातों को सहज करने वाले, ऐसे बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा मालामाल, सर्व खज़ानों से स्व सहित विश्व की सेवा करने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप दादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ (माताओं के अलग-अलग ग्रुप से)

(1) सभी अपना कल्प पहले वाला चित्र देखते रहते हो? ऐसा कौन सा चित्र है जिस चित्र में बाप का साथ भी है और सेवा भी दिखाई है? गोवर्धन पर्वत उठाने काङ इस चित्र में बाप के साथ बच्चें भी हैं। और दोनों ही सेवा कर रहे हैं। पर्वत को अंगुली देना सेवा हुई ना! तो इस चित्र में आप सभी हो ना! खुशी खुशी से कहो कि हमारा ही यह चित्र है! मन में उमंग आता है ना कि सहयोगी बनने का भी यादगार बन गया है। अंगुली सहयोग की निशानी है। सभी बाप दादा के सहयोगी हो ना! जन्म ही किसलिए लिया है? सहयोगी बनने के लिए। तो सदा स्मृति में रखो कि हम जन्म से सहयोगी आत्मा हैं। तन-मन-धन जैसे पहले मालूम नहीं था तो भक्ति में लगाया और अभी जो बचा हुआ है वह सच्ची सेवा से, बाप के सहयोगी बन लगा रहे हो! 99% तो गंवा दिया बाकी 1% बचा है। अगर वह भी सहयोग में नहीं लगायेंगे तो कहाँ लगायेंगे! देखो कहाँ सतयुगी राजा और आज क्या हो? तन में भी शक्ति कहाँ हैं! आज के जवान बूढ़े हैं। जितना बूढ़े काम कर सकते उतना आज के जवान नहीं कर सकते। नाम की जवानी है। और धन भी गँवा दिया, देवता से बिजनेस वाले वैश्य बन गये। और मन की शान्ति भी कहाँ रही, भटक रहे हो। तो मन की शान्ति, तन, धन सब गँवा दिया, बाकी क्या रहा! फिर भी शुक्र करो 1ज्ञ् भी बचा हुआ तन-मन- धन ईश्वरीय कार्य में लगाकर फिर से पद्मगुणा जमा कर लेते हो। 1% भी बचा हुआ तन-मन-धन ईश्वरीय कार्य में लगाने से 21 जन्म, 2500 वर्ष के लिए जमा हो जाता है। ऐसे सहयोगी बच्चों को बाप भी सदा स्नेह देते हैं, सहयोग देते हैं। और इसी सहयोग का चित्र अभी भी देख रहे हो। अभी प्रैक्टिकल कर भी रहे हो और चित्र भी देख रहे हो। वैसे कोई मरने के बाद अपना चित्र नहीं देखता। आप चैतन्य में कल्प पहले वाला चित्र देख रहे हो। पहले अपने ही चित्र की पूजा करते थे। अगर पता होता तो गायन नहीं करते, बन जाते। तो ऐसे सभी सहयोगी हो ना! सदा हर कार्य में सहयोग देने का शुभ संकल्प, कभी भी किसी भी प्रकार के वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सदा सहयोगी। वातावरण को भी नीचे ऊपर नहीं होने देना। सहयोगी बनने के बदले कभी हलचल करने वाले नहीं बन जाना। सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। एक बाप दूसरा न कोई, चलते चलो, उड़ते चलो। कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प होकर चलते जाओ। विचार देना, इशारा देना यह दूसरी बात है, हलचल में आना यह दूसरी बात है। तो सदा एकरस। संकल्प दिया और निर्संकल्प बने। सदा स्व उन्नति और सेवा की उन्नति में बिजी रहो और सर्व के प्रति शुभ भावना रखो। जिस शुभ भावना से जो संकल्प रखते वह सब पूरा हो जाता है। शुभ संकल्प पूरे होने का साधन है - एकरस अवस्था। शुभ चिन्तन, शुभाचिंतक - इसी से सब बातें सम्पन्न हो जायेगी। चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बनाना यही है शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं का कर्त्तव्य।

(2) सदा बाप और सेवा दोनों ही याद रखते हैं ना! याद और सेवा दोनों का बैलेन्स सदा रखते हो? क्योंकि याद के बिना सेवा सफल नहीं होती और सेवा के बिना मायाजीत नहीं बन सकते। क्योंकि सेवा में बिजी रहने से, इस ज्ञान का मनन करने से माया सहज ही किनारा कर लेती है। बिना याद के सेवा करेंगे तो सफलता कम और मेहनत ज्यादा। और याद में रहकर सेवा करेंगे तो सफलता ज्यादा और मेहनत कम। तो दोनों का बैलेन्स रहता है? बैलेन्स रखने वाले को स्वत: ही ब्लैसिंग मिलती रहती, मांगना नहीं पड़ता। जिन आत्माओं की सेवा करते, उन आत्माओं के मन से, वाह श्रेष्ठ आत्मा सुनाने वाली, वाह मेरी तो जीवन बदल दी...यह वाह-वाह ही आशीर्वाद बन जाती है। ऐसी आशीर्वाद का अनुभव करते हो? जिस दिन याद में रहकर सेवा करेंगे उस दिन अनुभव करेंगे- बिना मेहनत के नैचुरल खुशी। ऐसी खुशी का अनुभव है ना! इसी आधार से सभी आगे बढ़ते जा रहे हो? समझते हो कि हर समय हमारी स्व उन्नति और विश्व उन्नति होती जा रही है? अगर स्व उन्नति नहीं तो विश्व उन्नति के भी निमित्त नहीं बन सकेंगे। स्व उन्नति का साधन है यादऔर विश्व उन्नति का साधन है सेवा। सदा इसी में आगे बढ़ते चलो। संगम पर बाप ने सबसे बड़ा खज़ाना कौन सा दिया है? खुशी का! कितने प्रकार की खुशी का खज़ाना प्राप्त है! अगर खुशी की वैरायटी पाइंटस निकालो तो कितने प्रकार की होंगी! संगमयुग पर सबसे बड़े ते बड़ी सौगात, खज़ाना पिकनिक का सामान...सब खुशी है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक पाइंट सोचो...तो सारा दिन खुशी में रहेंगे। कई बच्चे कहते हैं मुरली में तो रोज़ वही पाइंट होती है, लेकिन जो पाइंट पक्की नहीं हुई है वह पक्की कराने के लिए रोज़ देनी पड़ती है। जैसे स्कूल में स्टूडेन्ट कोई बात पक्की याद नहीं करते तो 50 बार भी वही बात लिखते हैं, तो बापदादा भी रोज़ कहते बच्चे, अपने को आत्मा समझो और मुझे याद करो क्योंकि यह पाइंट अभी तक कच्ची है। तो रोज़ खुशी की नई-नई पाइंट्स बुद्धि में रखो और सारा दिन खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो। यही सबसे बड़े ते बड़ा दान है। दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास वही खुशी है तो खुशी का दान देते रहो।

(3) सदा अपने को कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और एक बाप के प्यारे, ऐसा अनुभव करते हो? जो न्यारा वही प्यारा और जो प्यारा वही न्यारा। तो कमल समान हो या वातावरण में रहकर उसके प्रभाव में आ जाते हो? जहाँ भी जो भी पार्ट बजा रहे हो वहाँ पार्ट बजाते पार्ट से सदा न्यारे रहते हो या पार्ट के प्यारे बन जाते हो, क्या होता है? कभी योग लगता, कभी नहीं लगता इसका भी कारण क्या है? न्यारेपन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता। जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद कैसे आयेगी! जितना ज्यादा प्यार उतना ज्यादा याद। बाप के प्यार के बजाए दूसरों के प्यारे हो जाते हो तो बाप भूल जाता है। पार्ट से न्यारा और बाप का प्यारा बनो, यही लक्ष्य और प्रैक्टिकल जीवन हो। लौकिक में पार्ट बजाते प्यारे बने तो प्यार का रिटर्न क्या मिला? कांटों की शैया ही मिली ना! बाप के प्यार में रहने से सेकण्ड में क्या मिलता है? अनेक जन्मों का अधिकार प्राप्त हो जाता है। तो सदा पार्ट बजाते हुए न्यारे रहो। सेवा के कारण पार्ट बजा रहे हो। सम्बन्ध के आधार पर पार्ट नहीं, सेवा के सम्बन्ध से पार्ट। देह के सम्बन्ध में रहने से नुकसान है, सेवा का पार्ट समझ कर रहो तो न्यारे रहेंगे। अगर प्यार दो तरफ है तो एकरस स्थिति का अनुभव नहीं हो सकता है।

(4) सदा निर्विघ्न, सदा हर कदम में आगे बढ़ने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! किसी प्रकार का विघ्न रोकता तो नहीं है? जो निर्विघ्न होगा उसका पुरूषार्थ भी सदा तेज होगा क्योंकि उसकी स्पीड तेज होगी। निर्विघ्न अर्थात् तीव्रगति की रफ्तार। विघ्न आये और फिर मिटाओ इसमें भी समय जाता है। अगर कोई गाड़ी को बार-बार स्लो और तेज करे तो क्या होगा? ठीक नहीं चलेगी ना। विघ्न आवे ही नहीं उसका साधन क्या है? सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्मृति में रहो। सदा की स्मृति शक्तिशाली बना देगी। शक्तिशाली के सामने कोई भी माया का विघ्न आ नहीं सकता। तो अखण्ड स्मृति रहे। खण्डन न हो। खण्डित मूर्ति की पूजा भी नहीं होती है। विघ्न आया फिर मिटाया तो अखण्ड अटल तो नहीं कहेंगे। इसलिए सदाशब्द पर और अटेन्शन। सदा याद में रहने वाले सदा निर्विघ्न होंगे। संगमयुग विघ्नों को विदाई देने का युग है। जिसको आधा कल्प के लिए विदाई दे चुके उसको फिर आने न दो। सदा याद रखो कि हम विजयी रत्न हैं। विजय का नगाड़ा बजता रहे। विजय की शहनाईयाँ बजती रहती हैं, ऐसे याद द्वारा बाप से कनेक्शन जोड़ा और सदा यह शहनाईयाँ बजती रहें। जितना-जितना बाप के प्यार में, बाप के गुण गाते रहेंगे तो मेहनत से छूट जायेंगे। सदा स्नेही, सदा सहजयोगी बन जाते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

प्रश्न:- धर्मराजपुरी क्या है उसका अनुभव कब और कैसे होता है?

उत्तर:- धर्मराजपुरी कोई अलग स्थान नहीं है। सजाओं के अनुभव को ही धर्मराजपुरी कहते हैं। लास्ट में अपने पाप सामने आते हैं, और चैतन्य में जमदूत नहीं है, लेकिन अपने ही पाप डरावने रूप में सामने आते हैं। उस समय पश्चाताप और वैराग की घड़ी होती है। उस समय छोटे-छोटे पाप भी भूत की तरह लगते हैं। जिसको ही कहते हैं - यमदूत आये, काले-काले आये, गोरे-गोरे आये...ब्रह्मा बाप भी आफीशियल रूप में सामने दिखाई देते और छोटा सा पाप भी बड़े विकराल रूप में दिखाई देता, जैसे कई आइने होते हैं जिसमें छोटा आदमी भी मोटा या लम्बा दिखाई देता है, ऐसे अन्त समय में पश्चाताप की त्राहि-त्राहि होगी। अन्दर ही कष्ट होगा। जलन होगी। ऐसे लगेगा जैसे चमड़ी को कोई खींच रहा है। यह फीलिंग आयेगी। ऐसे ही सब पापों के सजाओं की अनुभूति होगी जो बहुत ही कड़ी है। इसको ही धर्मराज पुरीकहा गया है।



13-04-83       ओम शान्ति