02-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्वोत्तम स्नेह, सम्बन्ध और सेवा

सर्व स्नेही, सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोले

‘‘आज बापदादा सभी बच्चों की स्नेह भरी सौगातें देख रहे थे। हर एक बच्चे की स्नेह सम्पन्न याद सौगात भिन्न-भिन्न प्रकार की थी। एक बापदादा को, अनेक बच्चों की सौगातें अनेक संख्या में मिलीं। ऐसी सौगातें और इतनी सौगातें विश्व में किसी को भी मिल नहीं सकती। यह थी दिल की सौगातें दिलाराम को! और सभी मनुष्य आत्मायें स्थूल सौगात देते हैं। लेकिन संगमयुग में यह विचित्र बाप और विचित्र सौगातें हैं। तो बापदादा सभी के स्नेह की सौगात देख हर्षित हो रहे थे। ऐसा कोई भी बच्चा नहीं था - जिसकी सौगात नहीं पहुँची हो। भिन्न-भिन्न मूल्य की जरूर थीं। किसकी ज्यादा मूल्य की थी। किसी की कम। जितना अटूट और सर्व सम्बन्ध का स्नेह था उतने वैल्यु की सौगात थी। नम्बरवार स्नेह और सम्बन्ध के आधार से दिल की सौगात थी। दोनों ही बाप सौगातों में से नम्बरवार मूल्यवान की माला बना रहे थे, और माला को देख चेक कर रहे थे कि मूल्य का अन्तर विशेष किस बात से है। तो क्या देखा? स्नेह सभी का है, सम्बन्ध भी सभी का है, सेवा भी सभी की है लेकिन स्नेह में आदि से अब तक संकल्प द्वारा वा स्वप्न में भी और कोई व्यक्ति या वैभव की तरफ बुद्धि आकर्षित नहीं हुई हो। एक बाप के एक रस अटूट स्नेह में सदा समाये हुए हों। सदा स्नेह के अनुभवों के सागर में ऐसा समाया हुआ हो जो सिवाए उस संसार के और कोई व्यक्ति वा वस्तु दिखाई न दे। बेहद के स्नेह का आकाश और बेहद के अनुभवों का सागर। इस आकाश और सागर के सिवाए और कोई आकर्षण न हो। ऐसे अटूट स्नेह की सौगात नम्बरवार वैल्युएबल थी। जितने वर्ष बीते हैं उतने वर्षों के स्नेह की वैल्यु आटोमेटिक जमा होती रहती है और उतनी वैल्यु की सौगात बापदादा के सामने प्रत्यक्ष हुई। तीनों बातों की विशेषता सभी की देखी-

1. स्नेह अटूट है - दिल का स्नेह है वा समय प्रमाण आवश्यकता के कारण, अपने मतलब को सिद्ध करने के कारण है - ऐसा स्नेह तो नहीं है? 2. सदा स्नेह स्वरूप इमर्ज रूप में है वा समय पर इमर्ज होता, बाकी समय मर्ज रहता है? 3. दिल खुश करने का स्नेह है वा जिगरी दिल का स्नेह है? तो स्नेह में यह सब बातें चेक की।

2. सम्बन्ध में - पहली बात सर्व सम्बन्ध है वा कोई-कोई विशेष सम्बन्ध है? एक भी सम्बन्ध की अनुभूति अगर कम है तो सम्पन्नता में कमी है और समय प्रति समय वह रहा हुआ एक सम्बन्ध भी अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। जैसे बाप शिक्षक सतगुरू यह विशेष सम्बन्ध तो जोड़ लिया लेकिन छोटा सा सम्बन्ध पोत्रा धोत्रा भी नहीं बनाया तो वह भी सम्बन्ध अपने तरफ खींच लेगा। तो सम्बन्ध में सर्व सम्बन्ध है?

दूसरी बात - बाप से हर सम्बन्ध 100 प्रतिशत है वा कोई सम्बन्ध 100 प्रतिशत है, कोई 50 प्रतिशत है वा नम्बरवार हैं? परसेन्टेज में भी फुल है वा थोड़ा अलौकिक थोड़ा लौकिक, दोनों में परसेन्टेज में बांटा हुआ है?

तीसरा - सर्व सम्बन्ध की अनुभूति का रूहानी रस सदा अनुभव करते वा जब आवश्यकता होती है तब अनुभव करते? सदा सर्व सम्बन्धों का रस लेने वाले हैं वा कभी-कभी?

3. सेवा में - सेवा में विशेष क्या चेक किया होगा? पहली बात - जो मोटे रूप में चेकिंग है - मन वाणी कर्म वा तन-मन-धन सब प्रकार की सेवा का खाता जमा है? दूसरी बात - तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म इन 6 बातों में जितना कर सकते हैं उतना किया है वा जितना कर सकते हैं, उतना न कर यथा शक्ति स्थिति के प्रमाण किया है? आज स्थिति बहुत अच्छी है तो सेवा की परसेन्टेज भी अच्छी, कल कारण अकारण स्थिति कमज़ोर है तो सेवा की परसेन्टेज भी कमज़ोर रही है। जितना और उतना नहीं हुआ। इस कारण यथा शक्ति नम्बरवार बन जाते हैं।

तीसरी बात - जो बापदादा द्वारा ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना, गुणों का खजाना, खुशियों का खजाना, श्रेष्ठ समय का खजाना, शुद्ध संकल्पों का खजाना मिला है, उन सब खजानों द्वारा सेवा की है वा कोई-कोई खजाने द्वारा सेवा की है? अगर एक खजाने में भी सेवा करने में कमी की है वा फराखदिल हो खजानों को कार्य में नहीं लगाया है, थोड़ा बहुत कर लिया अर्थात् कन्जूसी की तो इसका भी रिजल्ट में अन्तर पड़ जाता है!

चौथी बात - दिल से की है वा ड्युटी प्रमाण की है! सेवा की सदा बहती गंगा है वा सेवा में कभी बहना कभी रूकना। मूड है तो सेवा की, मूड नहीं तो नहीं की। ऐसे रूकने वाले तालाब तो नहीं है।

ऐसे तीनों बातों की चेकिंग प्रमाण हरेक की वैल्यु चेक की। तो ऐसे-ऐसे विधिपूर्वक हर एक अपने आपको चेक करो। और इस नये वर्ष में यही दृढ़ संकल्प करो कि कमी को सदा के लिए समाप्त कर सम्पन्न बन, नम्बरवार मूल्यवान सौगात बाप के आगे रखेंगे। चेक करना और फिर चेन्ज करना आवेगा ना। रिजल्ट प्रमाण अभी किसी न किसी बात में मैजारिटी यथाशक्ति है। सम्पन्न शक्ति स्वरूप नहीं है। इसलिए अब बीती को बीती कर वर्तमान और भविष्य में सम्पन्न, शक्तिशाली बनो।

आप लोगों के पास भी सौगातें इकट्ठी होती हैं तो चेक करते हो ना - कौनसी कौन-सी वैल्युएबल है। बापदादा भी बच्चों का यही खेल कर रहे थे। सौगातें तो अथाह थीं। हर एक अपने अनुसार अच्छे ते अच्छा उमंग उत्साह भरा संकल्प, शक्तिशाली संकल्प बाप के आगे किया है। अब सिर्फ यथाशक्ति के बजाए सदा शक्तिशाली - यह परिवर्तन करना। समझा। अच्छा –

सभी सदा के स्नेही, दिल के स्नेही, सर्व सम्बन्धों के स्नेही, रूहानी रस के अनुभवी आत्मायें, सर्व खजानों द्वारा शक्तिशाली, सदा सेवाधारी, सर्व बातों में यथाशक्ति को सदा शक्तिशाली में परिवर्तन करने वाले, विशेष स्नेही और समीप सम्बन्धी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

दादी जानकी जी से - मधुबन का शृंगार मधुबन में पहुंच गया। भले पधारे। बापदादा और मधुबन का विशेष शृंगार हो, विशेष शृंगार से क्या होता है? चमक हो जाती है ना। तो बापदादा और मधुबन विशेष शृंगार को देख हर्षित हो रहे हैं। विशेष सेवा में बाप के स्नेह और सम्बन्ध को प्रत्यक्ष किया यह विशेष सेवा सबके दिलों को समीप लाने वाली है। रिजल्ट तो सदा अच्छी है। फिर भी समय-समय की अपनी विशेषता की रिजल्ट होती है तो बाप के स्नेह को अपनी स्नेही सूरत से, नयनों से प्रत्यक्ष किया यह विशेष सेवा की। सुनने वाला बनाना यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन स्नेही बनाना यह है विशेष सेवा। जो सदा होती रहेगी। कितने पतंगे देखे, शमा पर फिदा होने की इच्छा वाले कितने परवाने देखे? अभी नयनों की नजर से परवानों को शमा की ओर इशारा करने का ही विशेष समय है। इशारा मिला और चलते रहेंगे। उड़ते-उड़ते पहुँच जायेंगे। तो यह विशेष सेवा आवश्यक भी है और की भी है। ऐसी रिजल्ट है ना! अच्छा है हर कदम में अनेक आत्माओं की सेवा समाई हुई है, कितने कदम उठाये? तो जितने कदम उतने ही आत्माओं की सेवा। अच्छा चक्र रहा। उन्हों के भी उमंग उत्साह की अभी सीजन है। जो होता है वह अच्छे से अच्छा होता होता है। बापदादा के मुरबी बच्चों के हर कर्म की रेखा से अनेकों के कर्मों की रेखा बदलती है। तो हर कर्म की रेखा से अनेकों की तकदीर की लकीर खींची। चलना अर्थात् तकदीर खींचना। तो जहाँ-जहाँ जाते हैं अपने कर्मों की कलम से अनेकों की तकदीर का कलम है। कलम से लकीर खिचेंगी ना। अनेक आत्माओं के तकदीर की लकीरें खींचते जाते। तो कदम अर्थात् कर्म ही मुरबी बच्चों के तकदीर की लकीर खींचने की सेवा के निमित्त बनीं। तो अभी बाकी लास्ट आवाज़ है - ‘‘यही हैं, यही हैं’’ जिसको ढूँढते हैं वे यही हैं। अभी सोचते हैं - यह हैं वा वह हैं। लेकिन सिर्फ एक ही आवाज़ निकले - यही है। अभी वह समय समीप आ रहा है। तकदीर की लकीर लम्बी होते-होते यह भी बुद्धि का जो थोड़ा सा ताला रहा हुआ है वह खुल जायेगा। चाबी तो लगाई है, खुला भी है लेकिन अभी थोड़ा सा अटका हुआ है, वह भी दिन आ जायेगा। अच्छा – ओम शान्ति।

सदा स्नेह के अनुभवों के सागर में ऐसा समाया हुआ हो जो सिवाए उस संसार के और कोई व्यक्ति वा वस्तु दिखाई न दे। बेहद के स्नेह का आकाश और बेहद के अनुभवों का सागर। इस आकाश और सागर के सिवाए और कोई आकर्षण न हो।



07-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


नये वर्ष का विशेष संकल्प

सदा दाता, भाग्य विधाता अव्यक्त बापदादा बोले

आज विधाता बाप अपने मास्टर विधाता बच्चों से मिलने आये हैं। विधाता बाप हर बच्चे के चार्ट को देख रहे हैं। विधाता द्वारा मिले हुए खजानों में से कहाँ तक विधाता समान मास्टर विधाता बने हैं? ज्ञान के विधाता हैं? याद के शक्तियों के विधाता हैं? समय प्रमाण आवश्यकता प्रमाण हर शक्ति के विधाता है? गुणों के विधाता बने हैं? रूहानी दृष्टि के, रूहानी स्नेह के विधाता बने हैं? समय प्रमाण हर एक आत्मा को सहयोग देने के विधाता बने हैं? निर्बल को अपने श्रेष्ठ संग के विधाता, सम्पर्क के विधाता बने हैं? अप्राप्त आत्माओं को तृप्त आत्मा बनाने के उमंग-उत्साह के विधाता बने हैं? यह चार्ट हर मास्टर विधाता का देख रहे थे।

विधाता अर्थात् हर समय, हर संकल्प द्वारा देने वाले। विधाता अर्थात् फराखदिल। सागर समान देने में बड़ी दिल वाले। विधाता अर्थात् सिवाए बाप के और किसी आत्मा से लेने की भावना रखने वाले नहीं। सदा देने वाले। अगर कोई रूहानी स्नेह, सहयोग देते भी हैं तो एक के बदले में पद्मगुणा देने वाले। जैसे बाप लेते नहीं, देते हैं। अगर कोई बच्चा अपना पुराना कखपन देता भी है, उसके बदले में इतना देता है जो लेना, देना में बदल जाता है। ऐसे मास्टर विधाता अर्थात् हर संकल्प, हर कदम में देने वाला। महान दाता अर्थात् विधाता। सदा देने वाला होने कारण सदा निःस्वार्थी होंगे। स्व के स्वार्थ से सदा न्यारे और बाप समान सर्व के प्यारे होंगे। विधाता आत्मा के प्रति स्वत: ही सर्व का रिगार्ड का रिकार्ड होगा। विधाता स्वत: ही सर्व की नजर में दाता अर्थात् महान होंगे। ऐसे विधाता कहाँ तक बने हैं? विधाता अर्थात् राजवंशी। विधाता अर्थात् पालनहार। बाप समान सदा स्नेह और सहयोग की पालना देने वाले। विधाता अर्थात् सदा सम्पन्न। तो अपने आपको चेक करो कि लेने वाले हो वा देने वाले मास्टर विधाता हो?

अब समय प्रमाण मास्टर विधाता का पार्ट बजाना है। क्योंकि समय की समीपता है अर्थात् बाप समान बनना है। अब तक भी अपने प्रति लेने की भावना वाले होंगे तो विधाता कब बनेंगे? अभी देना ही लेना है, जितना देंगे उतना स्वत: ही बढ़ता जायेगा। किसी भी प्रकार के हद की बातों के लेवता नहीं बनो। अभी तक अपने हद की आशायें पूर्ण करने की इच्छा होगी तो विश्व की सर्व आत्माओं की आशायें कैसे पूर्ण करेंगे? थोड़ा-सा नाम चाहिए, मान चाहिए, रिगार्ड चाहिए, स्नेह चाहिए, शक्ति चाहिए। अब तक स्वार्थी अर्थात् स्व के अर्थ यह इच्छायें रखने वाले होंगे तो इच्छा मात्रम् अविद्याकी स्थिति का अनुभव कब करेंगे? यह हद की इच्छायें कभी भी अच्छा बनने नहीं देंगी। यह इच्छा भी रायल भिखारीपन का अंश है। अधिकारी के पीछे यह सब बातें स्वत: ही आगे आती हैं। चाहिए-चाहिए का गीत नहीं गाते मिल गया, बन गया, यही गीत गाते हैं। बेहद के विधाता के लिए यह हद की आशायें वा इच्छायें स्वयं ही परछाई के समान पीछे-पीछे चलती हैं। जब गीत गाते हो - पाना था वह पा लियाफिर यह हद के नाम, मान,शान, पाने का कैसे रह जाता है? नहीं तो गीत को बदली करो। जब 5 तत्व भी आप विधाता के आगे दासी बन जाते हैं, प्रकृति जीत मायाजीत बन जाते हो, उसके आगे यह हद की इच्छायें ऐसी हैं जैसे सूर्य के आगे दीपक। जब सूर्य बन गये तो इन दीपकों की क्या आवश्यकता है? चाहिए की तृप्ति का आधार है, जो चाहिए वह ज्यादा से ज्यादा देते जाओ। मान दो, लो नहीं। रिगार्ड दो, रिगार्ड लो नहीं। नाम चाहिए तो बाप के नाम का दान दो। तो आपका नाम स्वत: ही हो जायेगा। देना ही लेने का आधार है। जैसे भक्ति मार्ग में भी यह रसम चली आई है, कोई भी चीज़ की कमी होगी तो प्राप्ति के लिए उसी चीज़ का दान कराते हैं। तो वह देना लेना हो जायेगा। ऐसे आप भी दाता के बच्चे देने वाले देवता बनने वाले हो। आप सबकी महिमा देने वाले देवा, शान्ति देवा, सम्पत्ति देवा, कहा करते हैं। लेवा कहकर महिमा नहीं करते हैं। तो आज यह चार्ट देख रहे थे। देवता बनने वाले कितने हैं और लेवता (लेने वाले) कितने हैं। लौकिक आशायें, इच्छायें तो समाप्त हो गई। अब अलौकिक जीवन की बेहद की इच्छायें समझते हैं कि यह तो ज्ञान की हैं ना। यह तो होनी चाहिए ना। लेकिन कोई भी हद की चाहना वाला माया का सामना नहीं कर सकता है। मांगने से मिलने वाली यह चीज़ ही नहीं है। कोई को कहो मुझे रिगार्ड दो या रिगार्ड दिलाओ। मांगने से मिले यह रास्ता ही रांग है तो मंज़िल कहाँ से मिलेगी। इसलिए मास्टर विधाताबनो। तो स्वत: ही सब आपको देने आयेंगे। शान मांगने वाले परेशान होते हैं। इसलिए मास्टर विधाता की शान में रहो। मेरा मेरा नहीं करो। सब तेरा-तेरा। आप तेरा करेंगे तो सब कहेंगे तेरा-तेरा। मेरा-मेरा कहने से जो आता है वह भी गँवा देंगे। क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता नहीं वहाँ प्राप्ति भी अप्राप्ति के समान है। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ थोड़ा भी सर्व समान है तो तेरातेरा कहने से प्राप्ति स्वरूप बन जायेंगे। जैसे यहाँ गुम्बद के अन्दर आवाज़ करते हो तो वही आवाज़ वापस आता है। ऐसे इस बेहद के गुम्बद के अन्दर अगर आप मन से मेरा कहते हो तो सबकी तरफ से वही मेराका ही आवाज़ सुनते हो!

आप भी कहेंगे मेरा, वह भी कहेगा मेरा। इसलिए जितना मन के स्नेह से (मतलब से नहीं) तेरा कहेंगे उतना ही मन के स्नेह से आगे वाले आपको तेराकहेंगे। इस विधि से मेरे-मेरे की हद बेहद में परिवर्तन हो जायेगी। और लेवता के बजाए मास्टर विधाता बन जायेंगे। तो इस वर्ष यह विशेष संकल्प करो कि सदा मास्टर विधाता बनेंगे। समझा –

महाराष्ट्र जोन आया है, तो महान बनना है ना। महाराष्ट्र अर्थात् सदा महान बन सर्व को देने वाले बनना। महाराष्ट्र अर्थात् सदा सम्पन्न राष्ट्र। देश सम्पन्न हो न हो लेकिन आप महान आत्मायें तो सम्पन्न हो। इसलिए महाराष्ट्र अर्थात् महादानी आत्मायें।

दूसरे यू.पी. के हैं। यू.पी. में भी पतित पावनी गंगा का महत्व है। तो सदा प्राप्ति स्वरूप हैं, तब पतित पावनीबन सकते हैं। तो यू.पी. वाले भी पावनता के भण्डार हैं। सदा सर्व के प्रति पावनता की अंचली देने वाले मास्टर विधाता हैं। तो दोनों ही महान हुए ना। बापदादा भी सर्व महान आत्माओं को देख हर्षित होते हैं।

डबल विदेशी तो हैं ही डबल नशे में रहने वाले। एक याद का नशा, दूसरा सेवा का नशा। मैजारिटी इस डबल नशे में सदा रहने वाले हैं। और यह डबल नशा ही अनेक नशों से बचाने वाला है। सो डबल विदेशी बच्चे भी दोनों ही बातों की रेस में नम्बर अच्छा ले रहे हैं। बाबा और सेवा के गीत स्वप्न में भी गाते रहते हैं। तो तीनों नदियों का संगम है। गंगा, जमुना, सरस्वती तीनों हो गये ना। सच्चा अल्लाह का आबाद किया हुआ स्थान तो यही मधुबन है ना। इसी अल्लाह के आबाद किये हुए स्थान पर तीनों नदियों का संगम है। अच्छा –

सभी सदा मास्टर विधाता, सदा सर्व को देने की भावना में रहने वाले, देवता बनने वाले, सदा तेरा-तेरा का गीत गाने वाले सदा अप्राप्त आत्माओं को तृप्त करने वाले, सम्पन्न आत्माओं को विधाता वरदाता बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

टीचर्स के साथ मुलाकात - सेवाधारी सेवा करने से स्वयं भी शक्तिशाली बनते हैं और दूसरों में भी शक्ति भरने के निमित्त बनते हैं। सच्ची रूहानी सेवा सदा स्व उन्नति और औरों की उन्नति के निमित्त बनाती है। दूसरे की सेवा करने से पहले अपनी सेवा करनी होती। दूसरे को सुनाना अर्थात् पहले खुद सुनते, पहले अपने कानों में जायेगा ना। सुनाना नहीं होता, सुनना होता है। तो सेवा से डबल फायदा होता है। अपने को भी और दूसरों को भी। सेवा में बिजी रहना अर्थात् सहज मायाजीत बनना। बिजी नहीं रहते तब माया आती है। सेवाधारी अर्थात् सदा बिजी रहने वाली। सेवाधारियों को कभी फुर्सत ही नहीं होती। जब फुर्सत ही नहीं तो माया कैसे आयेगी। सेवाधारी बनना अर्थात् सहज विजयी बनना। सेवाधारी माला में सहज आ सकते हैं। क्योंकि सहज विजयी हैं। तो विजयी विजय माला में आयेंगे। सेवाधारी का अर्थ है ताजा मेवा खाने वाले। ताजा फल खाने वाले बहुत हेल्दी होंगे। डाक्टर भी कहते हैं ताजा फल ताजी सब्जियाँ खाओ। तो सेवा करना माना विटमिन्स मिलना। ऐसे सेवाधारी हो ना! कितना महत्व है सेवा का। अभी इसी बातों को चेक करना। ऐसी सेवा की अनुभूति हो रही है। कितना भी कोई उलझन में हो - सेवा खुशी में नचाने वाली है। कितना भी कोई बीमार हो सेवा तन्दरूस्त करने वाली है। ऐसे नहीं सेवा करतेकरते बीमार हो गये। नहीं। बीमार को तन्दरूस्त बनाने वाली सेवा है। ऐसे अनुभव हो। ऐसे विशेष सेवाधारी विशेष आत्मायें हो। बापदादा सेवाधारियों को सदा श्रेष्ठ सम्बन्ध से देखते हैं क्योंकि सेवा के लिए त्यागी तपस्वी तो बने हैं ना। त्याग और तपस्या को देख बापदादा सदा खुश है।

(2) सभी सेवधारी अर्थात् सदा सेवा के निमित्त बनी हुई आत्मायें। सदा अपने को निमित्त समझ सेवा में आगे बढ़ते रहो। मैं सेवाधारी हूँ, यह मैं-पन तो नहीं आता है ना। बाप करावनहार है, मैं निमित्त हूँ। कराने वाला करा रहा है। चलाने वाला चला रहा है - इस श्रेष्ठ भावना से सदा न्यारे और प्यारे रहेंगे। अगर मैं करने वाली हूँ तो न्यारे और प्यारे नहीं। तो सदा न्यारे और सदा प्यारे बनने का सहज साधन है करावनहार करा रहा है, इस स्मृति में रहना। इससे सफलता भी ज्यादा और सेवा भी सहज। मेहनत नहीं लगती। कभी मैं-पन के चक्र में आने वाली नहीं। हर बात में बाबा-बाबा कहा तो सफलता है। ऐसे सेवाधारी सदा आगे बढ़ते भी हैं और औरों को भी आगे बढ़ाते हैं। नहीं तो स्वयं भी कभी उड़ती कला कभी चढ़ती कला, कभी चलती कला। बदलते रहेंगे और दूसरे को भी शक्तिशाली नहीं बना सकेंगे। सदा बाबा-बाबा कहने वाले भी नहीं लेकिन करके दिखाने वाले। ऐसे सेवाधारी सदा बापदादा के समीप हैं। सदा विघ्न विनाशक हैं।

(3) टीचर्स अर्थात् सदा सम्पन्न। तो सम्पन्नता की अनुभूति करने वाली हो ना! स्वयं सर्व खजानों से सम्पन्न होंगे तब दूसरों की सेवा कर सकेंगे। अपने में सम्पन्नता नहीं तो दूसरे को क्या देंगे। सेवाधारी का अर्थ ही है सर्व खजानों से सम्पन्न। सदा भरपूरता का नशा और खुशी। कोई एक भी खजाने की कमी नहीं। शक्ति है, गुण नहीं। गुण हैं शक्ति नहीं - ऐसा नहीं, सर्व खजाने से सम्पन्न। जिस शक्ति का जिस समय आह्वान करें, शक्ति स्वरूप बन जाएँ - इसको कहा जाता है - सम्पन्नता। ऐसे हो? जो याद और सेवा के बैलेंस में रहता है, कभी याद ज्यादा हो कभी सेवा ज्यादा हो - नहीं, दोनों समान हों, बैलेंस में रहने वाले हो, वही सम्पन्नता की ब्लैसिंग के अधिकारी होते हैं। ऐसे सेवाधारी हो, क्या लक्ष्य रखती हो? सर्व खजानों में सम्पन्न, एक भी गुण कम हुआ तो सम्पन्न नहीं। एक शक्ति भी कम हुई तो भी सम्पन्न नहीं कहेंगे। सदा सम्पन्न और सर्व में सम्पन्नता दोनों ही हो। ऐसे को कहा जाता है - योग्य सेवाधारी। समझा। हर कदम में सम्पन्नता। ऐसे अनुभवी आत्मा अनुभव की अथॉरिटी है। सदा बाप के साथ का अनुभव हो!

कुमारियों से - सदा लकी कुमारियाँ हो ना। सदा अपना भाग्य का चमकता हुआ सितारा अपने मस्तक पर अनुभव करते हो! मस्तक में भाग्य का सितारा चमक रहा है ना कि चमकने वाला है। बाप का बनना अर्थात् सितारा चमकना। तो बन गये या अभी सौदा करने का सोच रही हो? सोचने वाली हो या करने वाली हो? कोई सौदा तुड़ाने चाहे तो टूट सकता है? बाप से सौदा कर फिर दूसरा सौदा किया तो क्या होगा? फिर अपने भाग्य को देखना पड़ेगा। कोई लखपति का बनकर गरीब का नहीं बनता। गरीब साहूकार का बनता है। साहूकार वाला गरीब का नहीं बनेगा। बाप का बनने के बाद कहाँ संकल्प भी जा नहीं सकता - ऐसे पक्के हो? जितना संग होगा उतना रंग पक्का होगा। संग कच्चा तो रंग भी कच्चा। इसलिए पढ़ाई और सेवा दोनों का संग चाहिए। तो सदा के लिए पक्के अचल रहेंगे। हलचल में नहीं आयेंगे। पक्का रंग लग गया तो इतने हैण्डस से इतने ही सेन्टर खुल सकते हैं। क्योंकि कुमारियाँ हैं ही निर्बन्धन। औरों का भी बन्धन खत्म करेंगी ना। सदा बाप के साथ पक्का सौदा करने वाली। हिम्मत है तो बाप की मदद भी मिलेगी। हिम्मत कम तो मदद भी कम। अच्छा –

सेवा में बिजी रहना अर्थात् सहज मायाजीत बनना। बिजी नहीं रहते तब माया आती है। सेवाधारी अर्थात् सदा बिजी रहने वाली। सेवाधारियों को कभी फुर्सत ही नहीं होती। जब फुर्सत ही नहीं तो माया कैसे आयेगी। सेवाधारी बनना अर्थात् सहज विजयी बनना। सेवाधारी माला में सहज आ सकते हैं। क्योंकि सहज विजयी हैं।



09-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं की रूहानी पर्सनैलिटी

भाग्य विधाता बाप अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले

आज भाग्यविधाता बाप अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य की लकीर कितनी श्रेष्ठ और अविनाशी है। भाग्यवान तो सभी बच्चे हैं क्योंकि भाग्यविधाता के बने हैं। इसलिए भाग्य तो जन्म-सिद्ध अधिकार है। जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में सभी को स्वत: ही अधिकार प्राप्त है। अधिकार तो सभी को है लेकिन उस अधिकार को स्व प्रति वा औरों के प्रति जीवन में अनुभव करना और कराना उसमें अन्तर है। इस भाग्य के अधिकार को अधिकारी बन उस खुशी और नशे में रहना। और औरों को भी भाग्यविधाता द्वारा भाग्यवान बनाना है, यह है अधिकारीपन के नशे में रहना। जैसे स्थूल सम्पत्तिवान की चलन और चेहरे से सम्पत्ति का अल्पकाल वा नशा दिखाई देता है, ऐसे भाग्य की सम्पत्ति का प्राप्ति स्वरूप अलौकिक और रूहानी है। श्रेष्ठ भाग्य की झलक और रूहानी फलक विश्व में सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ, न्यारी और प्यारी है। श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा सदा भरपूर, फखुर में रहने वाले अनुभव होंगे। दूर से ही श्रेष्ठ भाग्य के सूर्य की किरणें चमकती हुई अनुभवी होंगी। भाग्यवान के भाग्य की प्रॉपर्टी की पर्सनैलिटी दूर से ही अनुभव होगी। श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा की दृष्टि से सदा सर्व को रूहानी रायल्टी अनुभव होगी। विश्व में कितने भी बड़े-बड़े रायल्टी वा पर्सनैलिटी वाले हों लेकिन श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा के आगे विनाशी पर्सनैलिटी वाले स्वयं अनुभव करते कि यह रूहानी पर्सनैलिटी अति श्रेष्ठ अनोखी है। ऐसे अनुभव करते कि यह श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें न्यारे अलौकिक दुनिया के हैं। अति न्यारे हैं। जिसको अल्लाह लोग कहते हैं। जैसे कोई नई चीज़ होती है तो बड़े स्नेह से देखते ही रह जाते हैं। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को देख-देख अति हर्षित होते हैं। श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं की श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा वायुमण्डल ऐसा बनता जो दूसरे भी अनुभव करते कि कुछ प्राप्त हो रहा है। अर्थात् प्राप्ति का वातावरण वायुमण्डल अनुभव करते हैं। कुछ पा रहे हैं, मिल रहा है इसी अनुभूति में खो जाते हैं। श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा को देख ऐसा अनुभव करते जैसे प्यासे के आगे कुंआ चलकर आये। अप्राप्त आत्मा प्राप्ति के उम्मीदों का अनुभव करती है। चारों ओर के नाउम्मीदों के अंधकार के बीच शुभ आशा का जगा हुआ दीपक अनुभव करते हैं। दिलशिकस्त आत्मा को दिल की खुशी की अनुभूति होती है। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान बने हो? अपनी इन रूहानी विशेषताओं को जानते हो? मानते हो? अनुभव करते हो? वा सिर्फ सोचते और सुनते हो? चलते-फिरते इस साधारण रूप में छिपे हुए अमूल्य हीरा श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा को कभी स्वयं भी भूल तो नहीं जाते हो, अपने को साधारण आत्मा तो नहीं समझते हो? तन पुराना है, साधारण है लेकिन आत्मा महान और विशेष है। सारे विश्व के भाग्य की जन्मपत्रियाँ देख लो, आप जैसी श्रेष्ठ भाग्य की लकीर किसी की भी नहीं हो सकती है। कितनी भी धन से सम्पन्न आत्मायें हों, शास्त्रं के आत्म ज्ञान के खजाने से सम्पन्न आत्मायें हों, विज्ञान के नॉलेज की शक्ति से सम्पन्न आत्मा हों लेकिन आप सबके भाग्य की सम्पन्नता के आगे वह क्या लगेंगे? वह स्वयं भी अभी अनुभव करने लगे हैं कि हम बाहर से भरपूर हैं, लेकिन अन्दर खाली है और आप अन्दर भरपूर हैं, बाहर साधारण हैं। इसीलिए अपने श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हुए समर्थ-पन के रूहानी नशे में रहो। बाहर से भले साधारण दिखाई दो लेकिन साधारणता में महानता दिखाई दे। तो अपने को चेक करो हर कर्म में साधारणता में महानता अनुभव होती है? जब स्वयं, स्वयं को ऐसे अनुभव करेंगे तब दूसरों को भी अनुभव करायेंगे। जैसे और लोग कार्य करते हैं ऐसे ही आप भी लौकिक कार्य व्यवहार ही करते हो वा अलौकिक अल्लाह लोग होकर कार्य करते हो? चलते फिरते सभी के सम्पर्क में आते यह जरूर अनुभव कराओ जो समझें कि इन्हों की दृष्टि में, चेहरे में न्यारा पन है। और देखते हुए स्पष्ट समझ में न भी आये लेकिन यह क्वेश्चन जरूर उठे कि यह क्या है? यह कौन है? यह क्वेश्चन रूपी तीर बाप के समीप ले ही आयेगा। समझा। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें हो। बापदादा कभी-कभी बच्चों के भोलेपन को देख मुस्कराते हैं। भगवान के बने हैं लेकिन इतने भोले बन जाते हैं जो अपने भाग्य को भी भूल जाते हैं। अपने आपको कोई भूलता है? बाप को कोई भूलता है? तो कितने भोले हो गये! 63 जन्म उल्टा पाठ इतना पक्का किया जो भगवान भी कहते कि भूल जाओ तो भी नहीं भूलते। और श्रेष्ठ बात भूल जाते हैं। तो कितने भोले हो! बाप भी कहते ड्रामा में इन भोलों से ही मेरा पार्ट है। बहुत समय भोले बने, अब बाप समान मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर पावरफुल बनो। समझा। अच्छा –

सदा श्रेष्ठ भाग्यवान, सर्व को अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा भाग्यवान बनने की शक्ति देने वाले, साधारणता में महानता अनुभव कराने वाले, भोले से भाग्यवान बनने वाले, सदा भाग्य के अधिकार के नशे में और खुशी में रहने वाले, विश्व में भाग्य का सितारा बन चमकने वाले, ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को भाग्यविधाता बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

मधुबन निवासी भाई-बहनों से - मधुबन निवासी अर्थात् सदा अपने मधुरता से सर्व को मधुर बनाने वाले और सदा अपने बेहद के वैराग वृत्ति द्वारा बेहद का वैराग दिलाने वाले। यही मधुबन निवासियों की विशेषता है। मधुरता भी अति और वैरागवृत्ति भी अति। ऐसे बैलेन्स रखने वाले सदा ही सहज और स्वत: आगे बढ़ने का अनुभव करते हैं। मधुबन की इन दोनों विशेषताओं का प्रभाव विश्व में पड़ता है। चाहे अज्ञानी आत्मायें भी हैं लेकिन मधुबन लाइट हाउस, माइट हाउस है। तो लाइट हाउस की रोशनी कोई चाहे न चाहे लेकिन सबके ऊपर पड़ती है। जितना यहाँ का यह वायब्रेशन होता है उतना वहाँ समझते हैं कि यह कुछ न्यारे हैं। चाहे समस्याओं के कारण, चाहे सरकमस्टांस के कारण, चाहे अप्राप्ति के कारण, लेकिन अल्पकाल की भी वैराग वृत्ति का प्रभाव जरूर पड़ता है। जब आप यहाँ शक्तिशाली बनते हो तो वहाँ भी शक्तिशाली कोई न कोई विशेष बात होती है। यहाँ की लहर ब्राह्मणों के साथ-साथ दुनिया वालों पर भी पड़ती है। अगर विशेष निमित्त बने हुए थोड़ा उमंग में आते और फिर साधारण हो जाते तो वहाँ भी उमंग में आते फिर साधारण हो जाते हैं। तो मधुबन एक विशेष स्टेज है। जैसे उस स्टेज पर कोई भाषण करने वाला है या स्टेज सेक्रेट्री है, अटेन्शन तो स्टेज का रखेगा ना। या समझेगा यह तो भाषण करने वाले के लिए है। कोई छोटा सा गीत गाने वाला या गुलदस्ता देने वाला भी होगा तो भी जिस समय वह स्टेज पर आयेगा तो उसी विशेषता से, अटेन्शन से आयेगा। तो मधुबन में किस भी ड्युटी पर रहते हो, अपने को छोटा समझो या बड़ा समझो लेकिन मधुबन की विशेष स्टेज पर हो। मधुबन माना महान स्टेज। तो महान स्टेज पर पार्ट बजाने वालों महान हुए ना। सभी आपको ऊँची नजर से देखते हैं ना। क्योंकि मधुबन की महिमा अर्थात् मधुबन निवासियों की महिमा।

तो मधुबन वालों का हर बोल मोती है। बोल नहीं हो लेकिन मोती हो। जैसे मोतियों की वर्षा हो रही है, बोल नहीं रहे हैं, मोतियों की वर्षा हो रही है। इसको कहा जाता है - मधुरता। ऐसा बोल बोलें जो सुनने वाले सोचें कि ऐसा बोल हम भी बोलेंगे। सबको सुनकर सीखने की प्रेरणा मिले, फॉलो करने की प्रेरणा मिले। जो भी बोल निकलें वह ऐसे हों जो कोई टेप करके फिर रिपीट करके सुने। अच्छी बात लगती है तब तो टेप करते हैं ना - बार-बार सुनते रहें। तो ऐसे मधुरता के बोल हों। ऐसे मधुर बोल का वायब्रेशन विश्व में स्वतः ही फैलता है। यह वायुमण्डल वायब्रेशन को स्वत: ही खींचता है। तो आपका हर बोल महान हो। हर मंसा संकल्प हर आत्मा के प्रति मधुर हो, महान हो। और दूसरी बात - मधुबन में जितने भण्डारे भरपूर हैं उतने बेहद के वैरागी। प्राप्ति भी अति और वैराग वृत्ति भी उतनी ही, तब कहेंगे बेहद की वैराग वृत्ति है। हो ही नहीं तो वैराग वृत्ति कैसी। हो और होते हुए भी वैराग वृत्ति हो इसको कहा जाता है - बेहद के वैरागी। तो जितना जो करता है उतना वर्तमान भी फल पाता है और भविष्य में तो मिलना ही है। वर्तमान में सच्चा स्नेह वा सबके दिल की आशीर्वादें अभी प्राप्त होती हैं और यह प्राप्ति स्वर्ग के राज्य भाग्य से भी ज्यादा है। अभी मालूम पड़ता है कि सबका स्नेह और आशीर्वाद दिल को कितनी आगे बढ़ाती है। तो वह सबके दिल की आशीर्वाद की खुशी और सुख की अनुभूति एक विचित्र है। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई सहज हाथों पर उड़ाते हुए लिए जा रहा है। यह सर्व का स्नेह और सर्व की आशीर्वाद इतना अनुभव कराने वाली हैं। अच्छा –

इस नये वर्ष में सभी ने नया उमंग-उत्साह भरा संकल्प किया है ना। उसमें दृढ़ता है ना! अगर कोई भी संकल्प को रोज रिवाइज करते रहो तो जैसे कोई भी चीज़ पक्की करते जाओ तो पक्की हो जाती। तो जो संकल्प किया उसे छोड़ नहीं दो। रोज उस संकल्प को रिवाइज कर दृढ़ करो तो फिर यही दृढ़ता सदा कार्य में आयेगी। कभी-कभी सोच लिया क्या संकल्प किया था, या चलते-चलते संकल्प भी भूल जाए क्या किया था तो कमज़ोरी आती है। रोज रिवाइज करो और रोज बाप के आगे रिपीट करो तो पक्का होता जायेगा और सफलता भी सहज मिलेगी। सभी जिस स्नेह से मधुबन में एक एक आत्मा को देखते हैं वह बाप जानते हैं। मधुबन निवासी आत्माओं की विशेषताओं का कम महत्व नहीं है। अगर कोई एक छोटा-सा विशेष कार्य भी करते हैं तो एक स्थान पर वह कार्य होता है और सभी को प्रेरणा मिलती है, तो वह सारा विशेषता के फायदे का हिस्सा उस आत्मा को मिल जाता है। तो मधुबन वाले कोई भी श्रेष्ठ संकल्प करते हैं, प्लैन बनाते हैं, कर्म करते हैं वह सभी को सीखने का उत्साह होता है। तो सभी के उत्साह बढ़ाने वाली आत्मा को कितना फायदा होगा! इतना महत्व है आप सबका। एक कोने में करते हो और फैलता सभी जगह है। अच्छा –

इस वर्ष के लिए नया प्लैन - इस वर्ष ऐसा कोई ग्रुप बनाओ जिस ग्रुप की विशेषताओं को प्रैक्टिकल में देखकर दूसरों को प्रेरणा मिले और वायब्रेशन फैले। जैसे गवर्मेन्ट भी कहती है कि आप कोई ऐसा स्थान लेकर एक गाँव को उठा करके ऐसा सैम्पुल दिखाओ जिससे समझ में आये कि आप प्रैक्टिकल कर रहे हैं तो उसका प्रभाव फैलेगा। ऐसे ही कोई ग्रुप बने जिससे दूसरों को प्रेरणा मिले। कोई भी अगर देखना चाहे गुण क्या होता है, शक्ति क्या होती है, ज्ञान क्या होता है, याद क्या होती है तो उसका प्रैक्टिकल स्वरूप दिखाई दे। ऐसे अगर छोटे-छोटे ग्रुप प्रैक्टिकल प्रमाण बन जाएँ तो वह श्रेष्ठ वायब्रेशन वायुमण्डल में स्वत: ही फैलेगा। आजकल सभी लोग प्रैक्टिकल देखने चाहते हैं, सुनने नही चाहते हैं। प्रैक्टिकल का प्रभाव बहुत जल्दी पहुँचता है। तो ऐसा कोई तीव्र उमंग उत्साह का प्रैक्टिकल रूप हो, ग्रुप हो जिसको सहज सभी देख करके प्रेरणा लें और चारों तरफ यह प्रेरणा पहुँच जाए। तो एक से दो, दो से तीन ऐसे फैलता जायेगा। इसलिए ऐसी कोई विशेषता करके दिखाओ। जैसे विशेष निमित्त बनी हुई आत्माओं के प्रतिसभी समझते हैं कि यह प्रूफ है और प्रेरणा मिकलती है। ऐसा और भी पू्रफ बनाओ। जिसको देखकर सब कहें कि हाँ, प्रैक्टिकल ज्ञान का स्वरूप अनुभव हो रहा है। इस शुभ श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ संकल्प की वृत्ति से वायुमण्डल बनाओ। ऐसा कुछ करके दिखाओ। आजकल मंसा का प्रभाव जितना पड़ता है उतना वाणी का नहीं पड़ता। वाणी एक शब्द बोलो और वायब्रेशन 100 शब्दों का फैलाओ तभी असर होता है। शब्द तो कामन हो गये हैं ना लेकिन शब्द के साथ जो वायब्रेशन शक्तिशाली हैं वह और कहाँ नहीं होता है, यह यहाँ ही होता है। यह विशेषता करके दिखाओ। बाकी तो कांफ्रेंस करेंगे, यूथ का प्रोग्राम करेंगे यह तो होते रहेंगे और होने भी हैं। इससे भी उमंग-उत्साह बढ़ता है लेकिन अभी आत्मिक-शक्ति की आवश्यकता है। यह है वृत्ति से वायब्रेशन फैलाना। वह शक्तिशाली है। अच्छा –

विदेशी बच्चों से -  बापदादा रोज स्नेही बच्चों को स्नेह का रिर्टन देते हैं। बाप का बच्चों से इतना स्नेह है,जो बच्चे संकल्प ही करते, मुख तक भी नहीं आता और बाप उसका रिर्टन पहले से ही कर देता। संगमयुग पर सारे कल्प का यादप्यार दे देते हैं। इतना याद और प्यार देते हैं जो जन्म-जन्म यादप्यार से झोली भरी हुइ रहती है। बापदादा स्नेही आत्माओं को सदा सहयोग दे आगे बढ़ाते रहते हैं। बाप ने जो स्नेह दिया है उस स्नेह का स्वरूप बनकर किसी को भी स्नेही बनायेंगे तो वह बाप का बन जायेंगे। स्नेह ही सब को आकर्षित करने वाला है। सभी बच्चों का स्नेह बाप के पास पहुँचता रहता है। अच्छा –



14-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सदा सर्व के शुभ चिन्तक अव्यक्त बापदादा बोले

आज बापदादा चारों ओर के विशेष बच्चों को देख रहे हैं। कौन से विशेष बच्चे हैं जो सदा स्वचिन्तन, शुभ चिन्तन में रहने के कारण सर्व के शुभ चिन्तक हैं। जो सदा शुभ चिन्तन में रहता है वह स्वत: ही शुभचिन्तक बन जाता है। शुभ चिन्तन का आधार है शुभ चिन्तक बनने का। पहला कदम है स्वचिन्तन। स्वचिन्तन अर्थात् जो बापदादा ने ‘‘मैं कौन’’ की पहली बताई है उसको सदा स्मृति स्वरूप में रखना। जैसे बाप और दादा जो है, जैसा है - वैसा उसको जानना ही यथार्थ जानना है और दोनों को जानना ही जानना है। ऐसे स्व को भी - जो हूँ जैसा हूँ अर्थात् जो आदि-अनादि श्रेष्ठ स्वरूप हूँ, उस रूप से अपने आपको जानना और उसी स्वचिन्तन में रहना इसको कहा जाता है - स्वचिन्तन। मैं कमज़ोर हूँ, पुरुषार्थी हूँ लेकिन सफलता स्वरूप नहीं हूँ, मायाजीत नहीं हूँ, यह सोचना स्वचिन्तन नहीं। क्योंकि संगमयुगी पुरूषोत्तम ब्राह्मण आत्मा अर्थात् शक्तिशाली आत्मा। यह कमज़ोरी वा पुरूषार्थहीन वा ढीला पुरूषार्थ देह-अभिमान की रचना है। स्व अर्थात् आत्म-अभिमानी। इस स्थिति में यह कमज़ोरी की बातें आ नहीं सकतीं। तो यह देह-अभिमान की रचना का चिन्तन करना यह भी स्वचिन्तन नहीं। स्व-चिन्तन अर्थात् जैसा बाप वैसे मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ। ऐसा स्वचिन्तन वाला शुभ चिन्तन कर सकता है। शुभ चिन्तन अर्थात् ज्ञान रत्नों का मनन करना। रचता और रचना के गुह्य रमणीक राजों में रमण करना। एक है सिर्फ रिपीट करना, दूसरा है ज्ञान सागर की लहरों में लहराना अर्थात् ज्ञान खजाने के मालिकपन के नशे में रह सदा ज्ञान रत्नों से खेलते रहना। ज्ञान के एक-एक अमूल्य बोल को अनुभव में लाना अर्थात् स्वयं को अमूल्य रत्नों से सदा महान बनाना। ऐसा ज्ञान में रमण करने वाला ही शुभ चिन्तन करने वाला है। ऐसा शुभ चिन्तन वाला स्वत: ही व्यर्थ चिन्तन परचिन्तन से दूर रहता है। स्वचिन्तन, शुभ चिन्तन करने वाली आत्मा हर सेकण्ड अपने शुभ चिन्तन में इतना बिजी रहती है जो और चिन्तन करने के लिए सेकण्ड वा श्वांस भी फुर्सत का नहीं। इसलिए सदा परचिन्तन और व्यर्थ चिन्तन से सहज ही सेफ रहता है। न बुद्धि में स्थान है, न समय है। समय भी शुभ चिन्तन में लगा हुआ है, बुद्धि सदा ज्ञान रत्नों से अर्थात् शुभ संकल्पों से सम्पन्न अर्थात् भरपूर है। दूसरा कोई संकल्प आने की मार्जिन ही नहीं। इसको कहा जाता है - शुभ चिन्तन करने वाला। हर ज्ञान के बोल के राज़ में जाने वाला। सिर्फ साज़ के मजे में रहने वाला नहीं। साज़ अर्थात् बोल के राज़ में जाने वाला। जैसे स्थूल साज़ भी सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं ना। ऐसे ज्ञान मुरली का साज़ अच्छा बहुत लगता है लेकिन साज़ के साथ राज़ समझने वाले ज्ञान खजाने के रत्नों के मालिक बन मनन करने में मगन रहते हैं। मगन स्थिति वाले के आगे कोई विघ्न आ नहीं सकता। ऐसा शुभ चिन्तन करने वाले स्वत: ही सर्व के सम्पर्क में शुभ चिन्तक बन जाता है। स्वचिन्तन फिर शुभ चिन्तन, ऐसी आत्मायें शुभचिन्तक बन जाती हैं। क्योंकि जो स्वयं दिन रात शुभ चिन्तन में रहते वह औरों के प्रति कभी भी न अशुभ सोचते, न अशुभ देखते। उनका निजी संस्कार वा स्वभाव शुभ होने के कारण वृत्ति, दृष्टि सर्व में शुभ देखने और सोचने की स्वत: ही आदत बन जाती है। इसलिए हरेक के प्रति शुभ चिन्तक रहता है। किसी भी आत्मा का कमज़ोर संस्कार देखते हुए भी उस आत्मा के प्रति अशुभ वा व्यर्थ नहीं सोचेंगे कि यह तो ऐसा ही है। लेकिन ऐसी कमज़ोर आत्मा को सदा उमंग हुल्लास के पंख दे शाक्तिशाली बनाए ऊँचा उड़ायेंगे। सदा उस आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा सहयोगी बनेंगे। शुभ चिन्तक अर्थात् नाउम्मीदवार को उम्मीदवार बनाने वाले। शुभ चिन्तन के खजाने से कमज़ोर को भी भरपूर कर आगे बढ़ायेगा। यह नहीं सोचेगा इसमें तो ज्ञान है ही नहीं। यह ज्ञान के पात्र नहीं। यह ज्ञान में चल नहीं सकते। शुभचिन्तक बापदादा द्वारा ली हुई शक्तियों के सहारे की टांग दे लंगड़े को भी चलाने के निमित्त बन जायेंगे। शुभ चिन्तक आत्मा अपनी शुभचिन्तक स्थिति द्वारा दिलशिकस्त आत्मा को दिल खुश मिठाई द्वारा उनको भी तन्दुरूस्त बनायेगी। दिलखुश मिठाई खाते हो ना। तो दूसरे को खिलाने भी आती है ना। शुभचिन्तक आत्मा किसी की कमज़ोरी जानते हुए भी उस आत्मा की कमज़ोरी भुलाकर अपनी विशेषता के शक्ति की समर्थी दिलाते हुए उसको भी समर्थ बना देंगे। किसी के प्रति घृणा दृष्टि नहीं। सदा गिरी हुई आत्मा को ऊँचा उड़ाने की दृष्टि होगी। सिर्फ स्वयं शुभ चिन्तन में रहना वा शक्तिशाली आत्मा बनना यह भी फर्स्ट स्टेज नहीं। इसको भी शुभचिन्तक नहीं कहेंगे। शुभचिन्तक अर्थात् अपने खजानों को मंसा द्वारा, वाचा द्वारा, अपने रूहानी सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अन्य आत्माओं प्रति सेवा में लगाना। शुभ चिन्तक बने हो? सदा वृत्ति शुभ, दृष्टि शुभ। तो सृष्टि भी श्रेष्ठ ब्राहमणों की शुभ दिखाई देगी। वैसे भी साधारण रूप में कहा जाता है - शुभ बोलो। ब्राह्मण आत्मायें तो हैं ही शुभ जन्म वाली। शुभ समय पर जन्मे हो। ब्राहमणों के जन्म की घड़ी अर्थात् वेला शुभ है ना। भाग्य की दशा भी शुभ है। सम्बन्ध भी शुभ है। संकल्प, कर्म भी शुभ है। इसलिए ब्राह्मण आत्माओं के साकार में तो क्या लेकिन स्वप्न में भी अशुभ का नाम निशान नहीं - ऐसी शुभचिन्तक आत्मायें हो ना। स्मृति दिवस पर विशेष आये हो - स्मृति दिवस अर्थात् समर्थ दिवस। तो विशेष समर्थ आत्मायें हो ना। बापदादा भी कहते हैं - सदा समर्थ आत्मायें समर्थ दिन मनाने भले पधारे। समर्थ बापदादा समर्थ बच्चों का सदा स्वागत करते हैं, समझा!

अच्छा - सदा स्वचिन्तन के रूहानी नशे में रहने वाले, शुभ चिन्तन के खजाने से सम्पन्न रहने वाले, शुभचिन्तक बन सर्व आत्माओं को उड़कर उड़ाने वाले, सदा बाप समान दाता वरदाता बन सभी को शक्तिशाली बनाने वाले, ऐसे समर्थ समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों के साथ - माताओं के ग्रुप से -  1. मातायें सदा अपना श्रेष्ठ भाग्य देख हर्षित रहती हो ना। चरणों की दासी से सिर के ताज बन गई यह खुशी सदा रहती है? कभी खुशी का खजाना चोरी तो नहीं हो जाता? माया चोरी करने में होशियार है। अगर सदा बहादुर हैं, होशियार हैं तो माया कुछ नहीं कर सकती और ही दासी बन जायेगी, दुश्मन सेवाधारी बन जायेगी। तो ऐसे मायाजीत हो? बाप की याद है अर्थात् सदा संग में रहने वाले हैं। रूहानी रंग लगा हुआ है। बाप का संग नहीं तो रूहानी रंग नहीं। तो सभी बाप के संग के रंग में रंगे हुए नष्टोमोहा हो? या थोड़ा-थोड़ा मोह है? बच्चों में नहीं होगा लेकिन पोत्रों-धोत्रों में होगा। बच्चों की सेवा पूरी हुई दूसरों की सेवा शुरू हुई। कम नहीं होती। एक के पीछे एक लाइन लग जाती है। तो इससे बन्धन मुक्त हो! माताओं की कितनी श्रेष्ठ प्राप्ति हो गई। जो बिल्कुल हाथ खाली बन गई थीं वह अभी मालामाल हो गई। सब कुछ गँवाया अभी फिर से बाप द्वारा सर्व खजाने प्राप्त कर लिए तो मातायें क्या से क्या बन गई? चार दीवारों में रहने वाली विश्व का मालिक बन गई। यह नशा रहता है ना कि बाप ने हमको अपना बनाया तो कितना भाग्य है। भगवान आकर अपना बनाये ऐसा श्रेष्ठ भाग्य तो कभी नहीं हो सकता। तो अपने भाग्य को देख सदा खुश रहती हो ना। कभी यह खजाना माया चोरी न करे।

2. सभी पुण्य आत्मायें बने हो? सबसे बड़ा पुण्य है - दूसरों को शक्ति देना। तो सदा सर्व आत्माओं के प्रति पुण्य आत्मा अर्थात् अपने मिले हुए खजाने के महादानी बनो। ऐसे दान करने वाले जितना दूसरों को देते हैं उतना पद्मगुणा बढ़ता है। तो यह देना अर्थात् लेना हो जाता है। ऐसे उमंग रहता है? इस उमंग का प्रैक्टिकल स्वरूप है सेवा में सदा आगे बढ़ते रहो। जितना भी तन-मन-धन सेवा में लगाते उतना वर्तमान भी महादानी पुण्य आत्मा बनते और भविष्य भी सदाकाल का जमा करते। यह भी ड्रामा में भाग्य है जो चांस मिलता है अपना सब कुछ जमा करने का। तो यह गोल्डन चांस लेने वाले हो ना। सोचकर किया तो सिल्वर चांस, फराखदिल होकर किया तो गोल्डन चांस तो सब नम्बरवन चांसलर बनो।



16-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


भाग्यवान युग में भगवान द्वारा वर्से और वरदानों की प्राप्ति

वरदाता, भाग्यविधाता बाप अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले

आज सृष्टि वृक्ष के बीजरूप बाप अपने वृक्ष के फाउन्डेशन बच्चों को देख रहे हैं। जिस फाउण्डेशन द्वारा सारे वृक्ष काविस्तार होता है। विस्तार करने वाले सार स्वरूप विशेष आत्माओं को देख रहे हैं अर्थात् वृक्ष के आधार मूर्त आत्माओं को देख रहे हैं। डायरेक्ट बीजरूप द्वारा प्राप्त की हुई सर्व शक्तियों को धारण करने वाली विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। सारे विश्व की सर्व आत्माओं में से सिर्फ थोड़ी-सी आत्माओं को यह विशेष पार्ट मिला हुआ है। कितनी थोड़ी आत्मायें हैं जिन्हों को बीज के साथ सम्बन्ध द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति का पार्ट मिला हुआ है।

आज बापदादा ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों के भाग्य को देख रहे हैं। सिर्फ बच्चों को यह दो शब्द याद रहें ‘‘भगवान और भाग्य’’। भाग्य अपने कर्मों के हिसाब से सभी को मिलता है। द्वापर से अब तक आप आत्माओं को भी कर्म और भाग्य इस हिसाब किताब में आना पड़ता है लेकिन वर्तमान भाग्यवान युग में भगवान भाग्य देता है। भाग्य के श्रेष्ठ लकीर खींचने की विधि ‘‘श्रेष्ठ कर्म रूपी कलम’’ आप बच्चों को दे देते हैं, जिससे जितनी श्रेष्ठ स्पष्ट, जन्म जन्मान्तर के भाग्य की लकीर खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। और कोई समय को यह वरदान नहीं है। इसी समय को यह वरदान है जो चाहो जितना चाहो उतना पा सकते हो। क्यों? भगवान भाग्य का भण्डारा बच्चों के लिए फराखदिली से, बिना मेहनत के दे रहा है। खुला भण्डार है, ताला चाबी नहीं है। और इतना भरपूर, अखुट है जो जितने चाहें, जितना चाहें ले सकते हैं। बेहद का भरपूर भण्डारा है। बापदादा सभी बच्चों को रोज यही स्मृति दिलाते रहते हैं कि जितना लेने चाहो उतना ले लो। यथाशक्ति नहीं, लो बड़ी दिल से लो। लेकिन खुले भण्डार से, भरपूर भण्डार से लो। अगर कोई यथाशक्ति लेते हैं तो बाप क्या कहेंगे? बाप भी साक्षी हो देख-देख हर्षाते रहते कि कैसे भोले-भाले बच्चे थोड़े में ही खुश हो जाते हैं। क्यों? 63 जन्म भक्तपन के संस्कार होने के कारण अभी भी सम्पन्न प्राप्ति के बजाए थोड़े को ही बहुत समझ उसी में राजी हो जाते हैं।

इस समय अविनाशी बाप द्वारा सर्व प्राप्ति का समय है, यह भूल जाते हैं। बापदादा फिर भी बच्चों को स्मृति दिलाते, समर्थ बनो। अब भी टूलेट नहीं हुआ है। लेट आये हो लेकिन टूलेट का समय अभी नहीं है। इसलिए अभी भी दोनों रूप से बाप रूप से वर्सा, सतगुरू के रूप से वरदान मिलने का समय है। तो वरदान और वर्से के रूप में सहज श्रेष्ठ भाग्य बना लो। फिर यह नहीं सोचना पड़े कि भाग्य विधाता ने भाग्य बाँटा लेकिन मैंने इतना ही लिया। सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे यथाशक्ति नहीं हो सकते।। अभी वरदान है जो चाहो वह बाप के खजाने से अधिकार के रूप से ले सकते हो! कमज़ोर हो तो भी बाप की मदद से, हिम्मते बच्चे मददे बाप, वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बना सकते हो। बाकी थोड़ा समय है - बाप के सहयोग और बाप के भाग्य के खुले भण्डार मिलने का। अभी स्नेह के कारण बाप के रूप में हर समय हर परिस्थिति में साथी है लेकिन इस थोड़े समय के बाद साथी के बजाए साक्षी हो देखने का पार्ट चलेगा। चाहे सर्वशक्ति सम्पन्न बनो, चाहे यथाशक्ति बनो - दोनों को साक्षी हो देखेंगे। इसलिए इस श्रेष्ठ समय में बापदादा द्वारा वर्सा, वरदान, सहयोग, साथ इस भाग्य की जो प्राप्ति हो रही है उसको प्राप्त कर लो। प्राप्ति में कभी भी अलबेले नहीं बनना। अभी इतने वर्ष पड़े हैं, सृष्टि परिवर्तन के समय और प्राप्ति के समय दोनों को मिलाओ मत। इस अलबेले पन के संकल्प से सोचते नहीं रह जाना। सदा ब्राह्मण जीवन में सर्व प्राप्ति का, बहुतकाल की प्राप्ति का यही बोल याद रखो ‘‘अब नहीं तो कब नहीं।’’

इसलिए कहा कि सिर्फ दो शब्द भी याद रखो - भगवान और भाग्य। तो सदा पदमापदम भाग्यववान रहेंगे। बापदादा आपस में भी रूहरूहान करते हैं कि ऐसे पुरानी आदत से मजबूर क्यों हो जाते हैं? बाप मजबूत बनाते, फिर भी बच्चे मजबूर हो जाते हैं। हिम्मत की टाँगे भी देते हैं, पंख भी देते हैं, साथ-साथ भी उड़ाते फिर भी नीचे ऊपर नीचे ऊपर क्यों होते हैं। मौजों के युग में भी मूंझते रहते हैं। इसको कहते हैं - पुरानी आदत से मजबूर! मजबूत हो या मजबूर हो? बाप डबल लाइट बनाते, सब बोझ स्वयं उठाने के लिए साथ देते फिर भी बोझ उठाने की आदत, बोझ उठा लेते हैं। फिर कौन-सा गीत गाते हैं, जानते हो? क्या, क्यों, कैसे यह ‘‘के के’’ का गीत गाते हैं। दूसरा भी गीत गाते हैं ‘‘गे गे’’ का। यह तो भक्ति के गीत हैं। अधिकारीपन का गीत है ‘‘पा लिया’’। तो कौनसा गीत गाते हो? सारे दिन में चेक करो कि आज का गीत कौन-सा था? बापदादा का बच्चों से स्नेह है इसलिए स्नेह के कारण सदा यही सोचते कि हर बच्चा सदा सम्पन्न हो। समर्थ हो। सदा पद्मापद्म भाग्यवान हो। समझा। अच्छा –

सदा समय प्रमाण वर्से और वरदान के अधिकारी, सदा भाग्य के खुले भण्डार से सम्पूर्ण भाग्य बनाने वाले, यथाशक्ति को सर्व शक्ति सम्पन्न से परिवर्तन करने वाले, श्रेष्ठ कर्मों की कलम द्वारा सम्पन्न तकदीर की लकीर खींचने वाले, समय के महत्व को जान सर्व प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का सम्पन्न बनाने का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - 1. सदा अपना अलौकिक जन्म, अलौकिक जीवन, अलौकिक बाप, अलौकिक वर्सा याद रहता है? जैसे बाप अलौकिक है तो वर्सा भी अलौकिक है। लौकिक बाप हद का वर्सा देता, अलौकिक बाप बेहद का वर्सा देता। तो सदा अलौकिक बाप और वर्से की स्मृति रहे। कभी लौकिक जीवन के स्मृति में तो नहीं चले जाते? मरजीवा बन गये ना। जैसे शरीर से मरने वाले कभी भी पिछले जन्म को याद नहीं करते, ऐसे अलौकिक जीवन वाले, जन्म वाले, लौकक जन्म को याद नहीं कर सकते। अभी तो युग ही बदल गया। दुनिया कलियुगी है, आप संगमयुगी हो, सब बदल गया। कभी कलियुग में तो नहीं चले जाते। यह भी बार्डर है। बार्डर क्रास किया और दुश्मन के हवाले हो गये। तो बार्डर क्रास तो नहीं करते? सदा संगमयुगी अलौकिक जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मा है, इसी स्मृति में रहो। अभी क्या करेंगे? बड़े से बड़ा बिजनेस मैन बनो। ऐसा बिजनेस मैन जो एक कदम से पदमों की कमाई जमा करनेवाले। सदा बेहद के बाप के हैं, तो बेहद की सेवा में, बेहद के उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते रहो।

2. सदा डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हो? डबल लाइट स्थिति की निशानी है - सदा उड़ती कला। उड़ती कला वाले सदा विजयी? उड़ती कला वाले सदा निश्चय बुद्धि, निश्चिन्त। उड़ती कला क्या है? उड़ती कला अर्थात् ऊँचे से ऊँची स्थिति। उड़ते हैं तो ऊँचा जाते हैं ना? ऊँचे ते ऊँची स्थिति में रहने वाली ऊँची आत्माये समझ आगे बढ़ते चलो। उड़ती कला वाले अर्थात् बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह-भान से ऊपर। जो देह-भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं। जिसका धरनी से कोई रिश्ता नहीं। देह-भान को भी जान लिया, देही-अभिमानी स्थिति को भी जान लिया। जब दोनों के अन्तर को जान गये तो देह-अभिमान में आ नहीं सकते। जो अच्छा लगता है वही किया जाता है ना। तो सदा यही स्मृति से सदा उड़ते रहेंगे। उड़ती कला में चले गये तो नीचे की धरनी आकर्षित नहीं करती, ऐसे फरिश्ता बन गये तो देह रूपी धरनी आकर्षित नहीं कर सकती।

3. सदा सहयोगी, कर्मयोगी, स्वत: योगी, निरन्तर योगी - ऐसी स्थिति का अनुभव करते हो? जहाँ सहज है वहाँ निरंतर है। सहज नहीं तो निरंतर नहीं। तो निरंतर योगी हो या अन्तर पड़ जाता है? योगी अर्थात् सदा याद में मगन रहने वाले। जब सर्व सम्बन्ध बाप से हो गये तो जहाँ सर्व सम्बन्ध हैं वहाँ याद स्वत: होगी और सर्व सम्बन्ध हैं तो एक की ही याद होगी। है ही एक तो सदा याद रहेगी ना। तो सदा सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई। सर्व सम्बन्ध से एक बाप... यही सहज विधि है, निरंतर योगी बनने की। जब दूसरा सम्बन्ध ही नहीं तो याद कहाँ जायेगी। सर्व सम्बन्धों से सहजयोगी आत्मायें यह सदा स्मृति रखो। सदा बाप समान हर कदम में स्नेह और शक्ति दोनों का बैलेंस रखने से सफलता स्वत: ही सामने आती है। सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है। बिजी रहने के लिए काम तो करना ही है लेकिन एक है मेहनत का काम, दूसरा है खेल के समान। जब बाप द्वारा शक्तियों का वरदान मिला है तो जहाँ शक्ति है वहाँ सब सहज है। सिर्फ परिवार और बाप का बैलेंस हो तो स्वत: ही ब्लैसिंग प्राप्त हो जाती है। जहाँ ब्लैसिंग है वहाँ उड़ती कला है। न चाहते हुए भी सहज सफलता है।

4. सदा बाप और वर्सा दोनों की स्मृति रहती है? बाप कौन और वर्सा क्या मिला है यह स्मृति स्वत: समर्थ बना देती है। ऐसा अविनाशी वर्सा जो एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाला है, ऐसा वर्सा कभी मिला है? अभी मिला है, सारे कल्प में नहीं। तो सदा बाप और वर्सा इसी स्मृति से आगे बढ़ते चलो। वर्से को याद करने से सदा खुशी रहेगी और बाप को याद करने से सदा शक्तिशाली रहेंगे। शक्तिशाली आत्मा सदा मायाजीत रहेगी और खुशी है तो जीवन है। अगर खुशी नहीं तो जीवन क्या? जीवन होते भी ना के बराबर है। जीते हुए भी मृत्यु के समान है। जितना वर्सा याद रहेगा उतनी खुशी। सदा खुशी रहती है? ऐसा वर्सा कोटो में कोई को मिलता है और हमें मिला है। यह स्मृति कभी भी भूलना नहीं। जितनी याद उतनी प्राप्ति। सदा याद और सदा प्राप्ति की खुशी।

कुमारों से - कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है। तो ब्रह्माकुमार अर्थात् रूहानी शक्तिशाली। जिस्मानी शक्तिशाली नहीं, रूहानी शक्तिशाली। कुमार जीवन में जो चाहे वह कर सकते हो। तो आप सब कुमारों ने अपने इस कुमार जीवन में अपना वर्तमान और भविष्य बना लिया, क्या बनाया? रूहानी बनाया। ईश्वरीय जीवन वाले ब्रह्माकुमार बने तो कितने श्रेष्ठ जीवन वाले हो गये। ऐसी श्रेष्ठ जीवन बन गई जो सदा के लिए दुख से और धोखे से, भटकने से किनारा हो गया। नहीं तो जिस्मानी शक्ति वाले कुमार भटकते रहते हैं। लड़ना, झगड़ना दुख देना, धोखा देना....यही करते हैं ना। तो कितनी बातों से बच गये। जैसे स्वयं बचे हो वैसे औरों को भी बचाने का उमंग आता है। सदा हमजिन्स को बचाने वाले। जो शक्तियाँ मिली हैं वह औरों को भी दो। अखुट शक्तियाँ मिली है ना। तो सबको शक्तिशाली बनाओ। निमित्त समझकर सेवा करो। मैं सेवाधारी हूँ, नहीं। बाबा कराता है, मैं निमित्त समझकर सेवा करो। मैं सेवाधारी हूँ नहीं। बाबा कराता है, मैं निमित्त हूँ। मैं पन वाले नहीं। जिसमें मैंपन नहीं है वह सच्चे सेवाधारी हैं।

युगलों से - सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हो? स्व का राज्य अर्थात् सदा अधिकारी। अधिकारी कभी अधीन नहीं हो सकते। अधीन हैं तो अधिकार नहीं। जैसे रात है तो दिन नहीं। दिन है तो रात नहीं। ऐसे अधिकारी आत्मायें किसी भी कर्मइन्द्रियों के, व्यक्ति के, वैभव के अधीन नहीं हो सकते। ऐसे अधिकारी हो? जब मास्टर सर्वशविÌतवान बन गये तो क्या हुए? अधिकारी! तो सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं इस समर्थ स्मृति से सदा सहज विजयी बनते रहेंगे। स्वप्न में भी हार का संकल्प मात्र न हो। इसको कहा जाता है - सदा के विजयी। माया भाग गई कि भगा रहे हो? इतना भगाया है जो वापस न आये। किसको वापस नहीं लाना होता है तो उसको बहुत-बहुत दूर छोड़कर आते हैं। तो इतना दूर भगाया है। अच्छा –

मौरीशियस पार्टी से - सभी लकी सितारे हो ना? कितना भाग्य प्राप्त कर लिया! इस जैसा बड़ा भाग्य कोई का हो नहीं सकता। क्योंकि भाग्य विधाता बाप ही आपका बन गया। उसके बच्चे बन गये। जब भाग्य विधाता अपना बन गया तो इससे श्रेष्ठ भाग्य क्या होगा! तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान चमकते हुए सितारे हो। और सबको भाग्यवान बनाने वाले हो। क्योंकि जिसको कोई अच्छी चीज़ मिलती है वह दूसरों को देने के सिवाए रह नहीं सकते। जैसे याद के बिना नहीं रह सकते वैसे सेवा के बिना भी नहीं रह सकते। एक-एक बच्चा अनेकों का दीप जलाए दीपमाला करने वाला है। दीपमाला राजतिलक की निशानी है। तो दीपमाला करने वालों को राज्य तिलक मिल जाता है। सेवा करना अर्थात् राज्य तिलकधारी बनना। सेवा के उमंग उत्साह में रहने वाले दूसरों को भी उमंग-उत्साह के पंख दे सकते हैं। अच्छा – ओम शान्ति।



18-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


स्मृति दिवस पर अव्यक्त बापदादा के अनमोल महावाक्य

सर्व समर्थ बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले

आज समर्थ दिवस पर समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। आज का दिन विशेष ब्रह्मा बाप द्वारा विशेष बच्चों को समर्थी का वरदान आर्पित करने का दिन है। आज के दिन बापदादा अपनी शक्ति सेना को विश्व की स्टेज पर लाते - तो साकार स्वरूप में शिव-शक्तियों को प्रत्यक्ष रूप में पार्ट बजाने का दिन है। शक्तियों द्वारा शिव बाप प्रत्यक्ष हो स्वयं गुप्त रूप में पार्ट बजाते रहते हैं। शक्तियों को प्रत्यक्ष रूप में विश्व के आगे विजयी प्रत्यक्ष करते हैं। आज का दिन बच्चों को बापदादा द्वारा समान भव के वरदान का दिन है। आज का दिन विशेष स्नेही बच्चों को नयनों में स्नेह स्वरूप से समाने का दिन है। आज का दिन बापदादा विशेष समर्थ और स्नेही बच्चों को मधुर मिलन द्वारा अविनाशी मिलन का वरदान देता है। आज के दिन अमृतवेले से चारों ओर के सर्व बच्चों के दिल का पहला संकल्प मधुर मिलन मनाने का, मीठे-मीठे महिमा के दिल के गीत गाने का, विशेष स्नेह की लहर का दिन है। आज के दिन अमृतवेले अनेक बच्चों के स्नेह के मोतियों की मालायें, हर एक मोती के बीच बाबा, मीठे बाबा का बोल चमकता हुआ देख रहे थे। कितनी मालायें होंगी। इस पुरानी दुनिया में 9 रत्नों की माला कहते हैं लेकिन बापदादा के पास अनेक अलौकिक अनोखी अमूल्य रत्नों की मालायें थीं। ऐसी मालायें सतयुग में भी नहीं पहनेंगे। यह मालायें सिर्फ बापदादा ही इस समय बच्चों द्वारा धारण करते हैं। आज का दिन अनेक बंधन वाली गोपिकाओं के दिल के वियोग और स्नेह से सम्पन्न मीठे गीत सुनने का दिन है। बापदादा ऐसी लगन में मगन रहने वाली स्नेही सिकीलधे आत्माओं को रिटर्न में यही खुशखबरी सुनाते कि अब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजने वाला ही है। इसलिए हे सहज योगी और मिलन के वियोगी बच्चे यह थोड़े से दिन समाप्त हुए कि हुए। साकार स्वीट होम में मधुर मिलन हो ही जायेगा। वह शुभ दिन समीप आ रहा है।

आज का दिन हर बच्चे के दिल से दृढ़ संकल्प करने से सहज सफलता का प्रत्यक्ष फल पाने का दिन है। सुना आज का दिन कितना महान है! ऐसे महान दिवस पर सभी बच्चे जहाँ भी हैं, दूर होते भी दिल के समीप हैं। बापदादा भी हर एक बच्चे को स्नेह और बापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा के उमंग-उत्साह के रिटर्न में स्नेह भरी बधाई देते हैं। क्योंकि मैजारिटी बच्चों की रूह-रूहान में स्नेह और सेवा के उमंग की लहरें विशेष थीं। प्रतिज्ञा और प्रत्यक्षता दोनों बातें विशेष थीं। सुनते-सुनते बापदादा क्या करते! सुनाने वाले कितने होते हैं। लेकिन दिल का आवाज़ दिलाराम बाप एक ही समय में अनेकों का सुन सकते हैं। प्रतिज्ञा करने वालों को बापदादा बधाई देते। लेकिन सदा इस प्रतिज्ञा को अमृतवेले रिवाइज करते रहना। प्रतिज्ञा कर छोड़ नहीं देना। करना ही है, बनना ही है। इस उमंग-उत्साह को सदा साथ रखना। साथ-साथ कर्म करते हुए जैसे ट्रैफिक कन्ट्रोल की विधि द्वारा याद की स्थिति को लगातार बनाने में सफलता को पा रहे हो। ऐसे कर्म करते अपने प्रति अपने आपको चेक करने के लिए समय निश्चित करो। तो निश्चित समय प्रतिज्ञा को सफलता स्वरूप बनाता रहेगा।

प्रत्यक्षता के उमंग-उत्साह वाले बच्चों को बापदादा अपने राइट हैण्ड रूप से स्नेह की हैंडशेक कर रहे हैं। सदा मुरब्बी बच्चे सो बाप समान बन उमंग की हिम्मत से पदमगुणा बाप दादा की मदद के पात्र हैं ही हैं। सुपात्र अर्थात् पात्र हैं।

तीसरे प्रकार के बच्चे - दिन-रात स्नेह में समाये हुए हैं। स्नेह को ही सेवा समझते हैं। मैदान पर नहीं आते लेकिन ‘‘मेरा बाबा, मेरा बाबा’’ - यह गीत जरूर गाते हैं। बाप को भी मीठे रूप से रिझाते रहते हैं। जो हूँ जैसी हूँ आपकी हूँ। ऐसी भी विशेष स्नेही आत्मायें हैं। ऐसे स्नेही बच्चों को बापदादा स्नेह का रिटर्न स्नेह तो जरूर देते हैं लेकिन यह भी हिम्मत दिलाते हैं कि राज्य अधिकारी बनना है। राज्य में आने वाला बनना है - फिर तो स्नेही हो तो भी ठीक है। राज्य अधिकारी बनना है तो स्नेह के साथ पढ़ाई की शक्ति अर्थात् ज्ञान की शक्ति, सेवा की शक्ति, यह भी आवश्यक है। इसलिए हिम्मत करो। बाप मददगार है ही। स्नेह की रिटर्न में सहयोग मिलना ही है। थोड़ी सी हिम्मत से, अटेन्शन से राज्य अधिकारी बन सकते हो। सुना आज की रूह-रूहान का रेसपान्ड? देश विदेश चारों ओर के बच्चों की वतन में रौनक देखी। विदेशी बच्चे भी लास्ट सो फास्ट जाकर फर्स्ट आने के उमंग-उत्साह में अच्छे बढ़ते जा रहे हैं। वह समझते हैं जितना विदेश के हिसाब से दूर हैं उतना ही दिल में समीप रहते हैं। तो आज भी अच्छे-अच्छे उमंग-उत्साह की रूह-रूहान कर रहे थे। कई बच्चे बड़े स्वीट हैं। बाप को भी मीठी-मीठी बातों से मनाते रहते हैं। कहते बड़ा भोले रूप से हैं लेकिन हैं चतुर। कहते हैं - आप प्रामिस करो। ऐसे मनाते हैं। बाप क्या कहेंगे? खुश रहो, आबाद रहो, बढ़ते रहो। बातें तो बहुत लम्बी चौड़ी हैं, कितनी सुनाए कितनी सुनावें। लेकिन बातें सभी मजे से बड़ी अच्छी करते हैं। अच्छा –

सदा स्नेह और सेवा के उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा सुपात्र बन सर्व प्राप्तियों के पात्र बनने वाले, सदा स्वयं के कर्मों द्वारा बापदादा के श्रेष्ठ दिव्यकर्म प्रत्यक्ष करने वाले, अपने दिव्य-जीवन द्वारा ब्रह्मा बाप की जीवन कहानी स्पष्ट करने वाले - ऐसे सर्व बापदादा के सदा साथी बच्चों को समर्थ बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

दादी जी तथा दादी जानकी जी बापदादा के सामने बैठी हैं - आज तुम्हारी सखी (दीदी) ने भी खास यादप्यार दी है। आज वह भी वतन में इमर्ज थी। इसलिए उनकी भी सभी को याद। वह भी (एडवांस पार्टी) में अपना संगठन मजबूत बना रहे हैं। उन्हों का कार्य भी आप लोगों के साथ-साथ प्रत्यक्ष होता जायेगा। अभी तो सम्बन्ध और देश के समीप हैं इसलिए छोटे-छोटे ग्रुप उन्हों में भी कारण अकारण आपस में न जानते हुए भी मिलते रहते हैं। यह पूर्ण स्मृति नहीं है लेकिन यह बुद्धि में टचिंग है कि हमें मिलकर कोई नया कार्य करना है। जो दुनिया की हालतें हैं, उसी प्रमाण जो कोई नहीं कर सकता है वह हमें मिलके करना है। इस टचिंग से आपस में मिलते जरूर हैं। लेकिन अभी कोई छोटे, कोई बड़े, ऐसा ग्रुप है। लेकिन गये सभी प्रकार के हैं। कर्मणा वाले भी गये हैं, राज्य स्थापना करने की प्लैनिंग बुद्धि वाले भी गये हैं। साथ-साथ हिम्मत हुल्लास बढ़ाने वाले भी गये हैं। आज पूरे ग्रुप में इन तीन प्रकार के बच्चे देखे और तीनों ही आवश्यक हैं। कोई प्लैनिंग वाले हैं, कोई कर्म में लाने वाले हैं और कोई हिम्मत बढ़ाने वाले हैं। ग्रुप तो अच्छा बना रहा है। लेकिन दोनों ग्रुप साथ-साथ प्रत्यक्ष होंगे। अभी प्रत्यक्षता की विशेषता बादलों के अन्दर है। बादल बिखर रहे हैं लेकिन हटे नहीं हैं। जितना-जितना शक्तिशाली मास्टर ज्ञान सूर्य की स्टेज पर पहुँच जाते हैं वैसे यह बादल बिखरते जा रहे हैं। मिट जायेंगे तो सेकण्ड में नगाड़ा बज जायेगा। अभी बिखर रहे हैं। वह भी पार्टी अपनी तैयारी खूब कर रही है। जैसे आप लोग यूथ रैली का प्लैन बना रहे हो ना, तो वह भी यूथ हैं अभी। वह भी आपस में बना रहे हैं। जैसे अभी भारत में अनेक पार्टियों की जो विशेषता थी वह कम हो फिर भी एक पार्टी आगे बढ़ रही है ना। तो बाहर की एकता का भी रहस्य है। अनेकता कमज़ोर हो रही है और एक शक्तिशाली हो रहे हैं। यह स्थापना के राज में सहयोग का पार्ट है। मन से मिले हुए नहीं है, मजबूरी से मिले हैं, लेकिन मजबूरी का मिलन भी रहस्य है। अभी स्थापना की गुह्य रीति-रसम स्पष्ट होने का समय समीप आ रहा है। फिर आप लोगों को पता पड़ेगा कि एडवांस पार्टी क्या कर रही है और हम क्या कर रहे हैं। अभी आप भी क्वेश्चन करते हो कि वह क्या कर रहे हैं और वह भी क्वेश्चन करते हैं कि यह क्या कर रहे हैं? लेकिन दोनों ही ड्रामा अनुसार बढ़ रहे हैं।

जगदम्बा तो है ही चन्द्रमा। तो चन्द्रमा जगत अम्बा के साथ दीदी का शुरू से विशेष पार्ट रहा है। कार्य में साथ का पार्ट रहा है। वह चन्द्रमा (शीतल) है और वह तीव्र है। दोनों का मेल है। अभी थोड़ा बड़ा होने दो उसको। जगदम्बा तो अभी भी शीतलता की सकाश दे रही है लेकिन प्लैनिंग में आगे आने में साथी भी चाहिए ना। पुष्पशान्ता और दीदी इन्हों का भी शुरू में आपस में हिसाब है। यहाँ भी दोनों का हिसाब आपस में समीप का है। भाऊ (विश्वकिशोर) तो बैकबोन है। इसमें भी पाण्डव बैकबोन हैं शक्तियाँ आगे हैं। तो वह भी उमंग- उत्साह में लाने वाले ग्रुप हैं। अभी प्लैनिंग करने वाले थोड़ा मैदान पर जायेंगे फिर प्रत्यक्षता होगी। अच्छा –

विदेशी भाई-बहिनों से - सभी लास्ट सो फास्ट जाने वाले और फर्स्ट आने के उमंग-उत्साह वाले हो ना। सेकण्ड नम्बर वाला तो कोई नहीं है। लक्ष्य शक्तिशाली है तो लक्षण भी स्वत: शक्तिशाली होंगे। सभी आगे बढ़ने में उमंग-उत्साह वाले हैं। बापदादा भी हर बच्चे को यही कहते कि सदा डबल लाइट बन उड़ती कला से नम्बरवन आना ही है। जैसे बाप ऊँचे ते ऊँचा है वैसे हर बच्चा भी ऊँचे ते ऊँचा है।

सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ने वाले ही उड़ती कला का अनुभव करते हैं। इस स्थिति में स्थित रहने का सहज साधन है - जो भी सेवा करते हो, वह बाप करन-करावहार करा रहा है, मैं निमित्त हूँ, कराने वाला करा रहा है, चला रहा है, इस स्मृति से सदा हल्के हो उड़ते रहेंगें। इसी स्थिति को सदा आगे बढ़ाते रहो।

विदाई के समय - यह समर्थ दिन सदा समर्थ बनाता रहेगा। इस समर्थ दिन पर जो भी आये हो वह विशेष समर्थ भव का वरदान सदा साथ रखना। कोई भी ऐसी बात आये तो यह दिन और यह वरदान याद करना तो स्मृति समर्थी लायेगी। सेकण्ड में बुद्धि के विमान द्वारा मधुबन में पहुँच जाना। क्या था, कैसा था और क्या वरदान मिला था। सेकण्ड में मधुबन निवासी बनने से समर्थी आ जायेगी। मधुबन में पहुँचना तो आयेगा ना। यह तो सहज है, साकार में देखा है। परमधाम में जाना मुश्किल भी लगता हो, मधुबन में पहुँचना तो मुश्किल नहीं। तो सेकण्ड में बिना टिकट के, बिना खर्चे के मधुबन निवासी बन जाना। तो मधुबन सदा ही हिम्मत हुल्लास देता रहेगा। जैसे यहाँ सभी हिम्मत हुल्लास में हो, किसी के पास कमज़ोरी नहीं है ना। तो यही स्मृति फिर समर्थ बना देगी।



21-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ईश्वरीय जन्म दिन की गोल्डन गिफ्ट - ‘‘दिव्य बुद्धि’’

ज्ञानसागर, दिव्य बुद्धि विधाता बापदादा अपने नूरे जहान बच्चों प्रति बोले

आज विश्व रचता बाप अपने जहान के नूर, नूरे जहान बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ आत्मायें जहान के नूर हो। अर्थात् जहान की रोशनी हो। जैसे स्थूल नूर नहीं तो जहान नहीं। क्योंकि नूर अर्थात् रोशनी। रोशनी नहीं तो अंधकार के कारण जहान नहीं। तो आप नूर नहीं तो दुनिया में रोशनी नहीं। आप हैं तो रोशनी के कारण जहान है। तो बापदादा ऐसे जहान के नूर बच्चों को देख रहे हैं। ऐसे बच्चों की महिमा सदा गाई और पूजी जाती है। ऐसे बच्चे ही विश्व के राज्य भाग्य के अधिकारी बनते हैं। बापदादा हर ब्राह्मण बच्चे को जन्म लेते ही विशेष दिव्य जन्म-दिन की दिव्य दो सौगात देते हैं। दुनिया में मनुष्य आत्मायें, मनुष्य आत्मा को गिफ्ट देती है लेकिन ब्राह्मण बच्चों को स्वयं बाप दिव्य सौगात इस संगमयुग पर देते हैं। क्या देते हैं? एक दिव्य बुद्धि और दूसरा दिव्य नेत्र अर्थात् रूहानी नूर। यह दो गिफ्ट हर एक ब्राह्मण बच्चे को जन्म-दिन की गिफ्ट है। इसी दोनों गिफ्ट को सदा साथ रखते इन द्वारा सदा सफलता स्वरूप रहते हो? दिव्य बुद्धि ही हर बच्चे को दिव्य ज्ञान, दिव्य याद, दिव्य धारणा स्वरूप बनाती है। दिव्य बुद्धि ही धारणा करने की विशेष गिफ्ट है। तो दिव्य बुद्धि सदा है अर्थात् धारणा स्वरूप हैं। दिव्य बुद्धि में अर्थात् सतोप्रधान गोल्डन बुद्धि में जरा भी रजो तमो का प्रभाव पड़ता है तो धारणा स्वरूप के बजाए माया के प्रभाव में आ जाते हैं। इसलिए हर सहज बात भी मुश्किल अनुभव करते हैं। सहज गिफ्ट के रूप में प्राप्त हुई दिव्य बुद्धि कमज़ोर होने के कारण मेहनत अनुभव करते हैं। जब भी मुश्किल वा मेहनत का अनुभव करते हो तो अवश्य दिव्य बुद्धि किसी माया के रूप से प्रभावित है तब ऐसा अनुभव होता है। दिव्य बुद्धि सेकण्ड में बापदादा की श्रीमत धारण कर सदा समर्थ, सदा अचल, सदा मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति का अनुभव करते हैं। श्रीमत अर्थात् श्रेष्ठ बनाने वाली मत। वह कभी मुश्किल अनुभव नहीं कर सकते। श्रीमत सदा सहज उड़ाने वाली मत है। लेकिन धारण करने की दिव्य बुद्धि जरूर चाहिए। तो चेक करो - अपने जन्म की सौगात सदा साथ है? कभी माया अपना बनाकर दिव्य बुद्धि की गिफ्ट छीन तो नहीं लेती? कभी माया के प्रभाव से भोले तो नहीं बन जाते जो परमात्म गिफ्ट भी गंवा दो। माया को भी ईश्वरीय गिफ्ट अपना बनाने की चतुराई आती है। तो स्वयं चतुर बन जाती और आपको भोला बना देती है। इसलिए भोलेनाथ बाप के भोले बच्चे भले बनो लेकिन माया के भोले नहीं बनो। माया के भोले बनना अर्थात् भूलने वाला बनना। ईश्वरीय दिव्य बुद्धि की गिफ्ट सदा छत्रछाया है। और माया अपनी छाया डाल देती है। छत्र उड़ जाता है, छाया रह जाती है। इसलिए सदा चेक करो - बाप की गिफ्ट कायम है। दिव्य बुद्धि की निशानी गिफ्ट, लिफ्ट का कार्य करती है। जो श्रेष्ठ संकल्प रूपी स्विच आन किया उस स्थिति में सेकण्ड में स्थित हुए। अगर दिव्य बुद्धि के बीच माया की छाया है तो यह गिफ्ट की लिफ्ट कार्य नहीं करेगी। जैसे स्थूल लिफ्ट भी खराब हो जाती है तो क्या हालत होती है? न ऊपर न नीचे। बीच में लटक जाते। शान के बजाए परेशान हो जाते। कितना भी स्विच आन करेंगे लेकिन मंजल पर पहुँचने की प्राप्ति नहीं कर सकेंगे। तो यह गिफ्ट की लिफ्ट खराब कर देते हो इसलिए मेहनत रूपी सीढ़ी चढ़नी पड़ती है। फिर क्या कहते हो? हिम्मत रूपी टांगे चल नहीं सकतीं। तो सहज को मुश्किल किसने बनाया और कैसे बनाया? अपने आपको अलबेला बनाया। माया की छाया में आ गये इसलिए सेकण्ड की सहज बात को बहुत समय की मेहनत अनुभव करते हो। दिव्य बुद्धि की गिफ्ट अलौकिक विमान है। जिस दिव्य विमान द्वारा सेकण्ड के स्विच आन करने से जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। स्विच है संकल्प। साइन्स वाले तो एक लोक का सैर कर सकते। आप तीनों लोकों का सैर कर सकते हो। सेकण्ड में विश्व-कल्याणकारी स्वरूप बन सारे विश्व को लाइट और माइट दे सकते हो। सिर्फ दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा ऊँची स्थिति में स्थित हो जाओ। जैसे उन्होंने विमान द्वारा हिमालय के ऊपर राख डाली, नदी में राख डाली, किसलिए? चारों ओर फैलाने के लिए ना! उन्होंने तो राख डाली, आप दिव्य बुद्धि रूपी विमान द्वारा सबसे ऊँची चोटी की स्थिति में स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं के प्रति लाइट और माइट की शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना के सहयोग की लहर फैलाओ। विमान तो शक्तिशाली है ना? सिर्फ यूज़ करना आना चाहिए।

बापदादा की रिफाइन श्रेष्ठ मत का साधन चाहिए। जैसे आजकल रिफाइन से भी डबल रिफाइन चलता है ना। तो बापदादा का यह डबल रिफाइन साधन है। जरा भी मन-मत, परमत का किचड़ा है तो क्या होगा? ऊँचे जायेंगे या नीचे? तो यह चेक करो - दिव्य बुद्धि रूपी विमान में सदा डबल रिफाइन साधन है? बीच में कोई किचड़ा तो नहीं आ जाता? नहीं तो यह विमान सदा सुखदाई है। जैसे सतयुग में कभी भी कोई एक्सीडेंट हो नहीं सकते। क्योंकि आपके श्रेष्ठ कर्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध है। ऐसे कोई कर्म होते नहीं जो कर्म के भोग के हिसाब से यह दुःख भोगना पड़े। ऐसे संगमयुगी गाडली गिफ्ट दिव्य बुद्धि सदा सर्व प्रकार के दुःख और धोखे से मुक्त हैं। दिव्य बुद्धि वाले कभी धोखे में आ नहीं सकते। दुःख की अनुभूति कर नहीं सकते। सदा सेफ हैं। आपदाओं से मुक्त हैं। इसलिए इस गाडली गिफ्ट के महत्व को जान इस गिफ्ट को सदा साथ रखो। समझा? इस गिफ्ट का महत्व। गिफ्ट सभी को मिली है या किसी की रह गई है? मिली तो सबको हैं ना। सिर्फ सम्भालने आती या नहीं वह आपके ऊपर है। सदा अमृतवेले चेक करो - जरा भी कमी हो तो अमृतवेले ठीक कर देने से सारा दिन शक्तिशाली रहेगा। अगर स्वयं ठीक नहीं कर सकते हो तो ठीक कराओ। लेकिन अमृतेवेले ही ठीक कर दो। अच्छा - दिव्य दृष्टि की बात फिर सुनायेंगे। दिव्य दृष्टि कहो, दिव्य नेत्र कहो, रूहानी नूर कहो बात एक ही है। इस समय तो दिव्य बुद्धि की यह गिफ्ट सभी के पास है ना। सोने का पात्र हो ना। यही दिव्य बुद्धि है। मधुबन में सभी दिव्य बुद्धि रूपी सम्पूर्ण सोने का पात्र लेकर आये हो ना। सच्चे सोने में सिल्वर वा कापर मिक्स तो नहीं है ना! सतोप्रधान अर्थात् सम्पूर्ण सोना। इसको ही दिव्य बुद्धि कहा जाता है। अच्छा - जिस भी तरफ से आये हो, सब तरफ से ज्ञान नदियाँ आए सागर में समाई। नदी और सागर का मेला है। महान मेला मनाने आये हो ना। मिलन मेला मनाने आये हो। बापदादा भी सर्व ज्ञान नदियों को देख हर्षित होते हैं कि कैसे उमंग-उत्साह से कहाँ-कहाँ से इस मिलन मेले में पहुँच गये हैं। अच्छा –

सदा दिव्य बुद्धि के गोल्डन गिफ्ट को कार्य में लाने वाले, सदा बाप समान चतुर सुजान बन माया की चतुराई को जानने वाले, सदा बाप की छत्रछाया में रह माया की छाया से दूर रहने वाले, सदा ज्ञान सागर से मधुर मिलन मेला मनाने वाले, हर मुश्किल को सहज बनाने वाले, विश्व-कल्याणकारी, श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पर्सनल मुलाकात - 1. दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल गई है ना! दृष्टि श्रेष्ठ हो गई तो सृष्टि भी श्रेष्ठ हो गई! अभी सृष्टि ही बाप है। बाप में सृष्टि समाई हुई है। ऐसे ही अनुभव होता है ना! जहाँ भी देखो, सुनो तो बाप भी साथ में अनुभव होता है ना! ऐसा स्नेही सारे विश्व में कोई हो नहीं सकता जो हर सेकण्ड, हर संकल्प में साथ निभाये। लौकिक में कोई कितना भी स्नेही हो लेकिन फिर भी सदा साथ नहीं दे सकता। यह तो स्वप्न मे भी साथ देता है। ऐसा साथ निभाने वाला साथी मिला है, इसलिए सृष्टि बदल गई। अभी लौकिक में भी अलौकिक अनुभव करते हो ना! लौकिक में जो भी सम्बन्ध देखते तो सच्चा सम्बन्ध स्वत: स्मृति में आता, इससे उन आत्माओं को भी शक्ति मिल जाती। जब बाप सदा साथ है तो बेफकर बादशाह हो। ठीक होगा या नहीं यह भी सोचने की जरूरत नहीं रहती। जब बाप साथ है तो सब ठीक ही ठीक है। तो साथ का अनुभव करते हुए उड़ते चलो। सोचना भी बाप का काम है, हमारा काम है साथ में मगन रहना। इसलिए कमज़ोर सोच भी समाप्त। सदा बेफिकर बादशाह रहो, अभी भी बादशाह और सदा के लिए बादशाह।

2. सदा अपने को सफलता के सितारे समझो और दूसरी आत्माओं को भी सफलता की चाबी देते रहो। इस सेवा से सभी आत्मायें खुश होकर आपको दिल से आशीर्वाद देंगी। बाप और सर्व की आशीर्वादें ही आगे बढ़ाती हैं।



23-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


दिव्य जन्म की गिफ्ट - ‘‘दिव्य नेत्र’’

दिव्य बुद्धि दिव्य दृष्टि विधाता त्रिकालदर्शी बापदादा बोले

आज त्रिकालदर्शी बाप अपने त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा, दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र जिसको तीसरा नेत्र भी कहते हैं, वह नेत्र कहाँ तक स्पष्ट और शक्तिशाली है, हर एक बच्चे के दिव्य नेत्र के शक्ति की परसेन्टेज देख रहे हैं। बापदादा ने सभी को 100 प्रतिशत शक्तिशाली दिव्य नेत्र जन्म की गिफ्ट दी है। बापदादा ने नम्बरवार शक्तिशाली नेत्र नहीं दिया लेकिन इस दिव्य नेत्र को हर एक बच्चे ने अपने-अपने कायदे प्रमाण, परहेज प्रमाण, अटेन्शन देने प्रमाण प्रैक्टिकल कार्य में लगाया है। इसलिए दिव्य नेत्र की शक्ति किसी की सम्पूर्ण शक्तिशाली है, किसी की शक्ति परसेन्टेज में रह गई है। बापदादा द्वारा यह तीसरा नेत्र दिव्य नेत्र मिला है, जैसे आजकल साइन्स का साधन दूरबीन है जो दूर की वस्तु को समीप और स्पष्ट अनुभव कराती है, ऐसे यह दिव्य नेत्र भी दिव्य दूरबीन का काम करते हैं। सेकण्ड में परमधाम, कितना दूर है। जिसके माइल गिनती नहीं कर सकते, साइंस का साधन इस साकार सृष्टि के सूर्य चांद सितारो तक देख सकते हैं। लेकिन यह दिव्य नेत्र तीनों लोकों को, तीनों कालों को देख सकते हैं। इस दिव्य नेत्र को अनुभव का नेत्र भी कहते हैं। अनुभव की आँख, जिस आँख द्वारा 5000 वर्ष की बात इतनी स्पष्ट देखते जैसे कि कल की बात है। हाँ, 5 हजार वर्ष और कहाँ कल! तो दूर की बात समीप और स्पष्ट देखते हो ना। अनुभव करते हो - कल मैं पूज्य देव आत्मा थी और कल फिर बनेंगी। आज ब्राह्मण कल देवता। तो आज और कल की बात सहज हो गई ना। शक्तिशाली नेत्र वाले बच्चे अपने डबल ताजधारी सहज सजाये स्वरूप को सदा सामने स्पष्ट देखते रहते हैं। जैसे स्थूल चोला सजा सजाया सामने दिखाई देता और समझते हो अभी का अभी धारण किया कि किया। ऐसे यह देवताई शरीर रूपी चोला सामने देख रहे हो ना। बस कल धारण करना ही है। दिखाई देता है ना। अभी तैयार हो रहा है वा सामने तैयार हुआ दिखाई दे रहा है? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, अपना भविष्य चोला श्रीकृष्ण स्वरूप सदा सामने स्पष्ट रहा। ऐसे आप सभी को भी शक्तिशाली नेत्र से स्पष्ट और सामने दिखाई देता है? अभी-अभी फरिश्ता सो देवता। नशा भी है और साक्षात् देवता बनने का दिव्य नेत्र द्वारा साक्षात्कार भी है। तो ऐसा शक्तिशाली नेत्र है? वा कुछ देखने की शक्ति कम हो गई है? जैसे स्थूल नेत्र की शक्ति कम हो जाती है तो स्पष्ट चीज़ भी जैसे पर्दे के अन्दर वा बादलों के बीच दिखाई देती है। ऐसे आपको भी देवता बनना तो है, बना तो था लेकिन क्या था, कैसा था इस थाके पर्दे के अन्दर तो नहीं दिखाई देता? स्पष्ट है? निश्चय का पर्दा और स्मृति का मणका दोनों शक्तिशाली हैं ना। वा मणका ठीक है और पर्दा कमज़ोर है! एक भी कमज़ोर रहा तो स्पष्ट नहीं होगा। तो चेक करो वा चेक कराओ कि कहाँ नेत्र की शक्ति कम तो नहीं हुई है? अगर जन्म से श्रीमत रूपी परहेज करते आये हो तो नेत्र सदा शक्तिशाली है। श्रीमत की परहेज में कमी है तब शक्ति भी कम है। फिर से श्रीमत की दुआ कहो, दवा कहो, परहेज कहो, वह करो तो फिर शक्तिशाली हो जायेंगे। तो यह नेत्र है दिव्य दूरबीन।

यह नेत्र शक्तिशाली यंत्र भी है। जिस द्वारा जो जैसा है, आत्मिक रूप को आत्मा की विशेषता को सहज और स्पष्ट देख सकते हो। शरीर के अन्दर विराजमान गुप्त आत्मा को ऐसे देख सकते जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल शरीर को देखते हो। ऐसे स्पष्ट आत्मा दिखाई देती है ना वा शरीर दिखाई देता है? दिव्य नेत्र द्वारा दिव्य सूक्ष्म आत्मा ही दिखाई देगी। जैसे नेत्र दिव्य है तो विशेषता अर्थात् गुण भी दिव्य है। अवगुण कमज़ोरी है। कमज़ोर नेत्र कमज़ोरी को देखते हैं। जैसे स्थूल नेत्र कमज़ोर होता है तो काले-काले दाग दिखाई देते हैं। ऐसे कमज़ोर नेत्र अवगुण के कालेपन को देखते हैं। बापदादा ने कमज़ोर नेत्र नहीं दिया है। स्वयं ने ही कमज़ोर बनाया है। वास्तव में यह शक्तिशाली यंत्र रूपी नेत्र चलते-फिरते नैचुरल रूप में सदा आत्मिक रूप को ही देखते। मेहनत नहीं करनी पड़ती कि यह शरीर है या आत्मा है। यह है या वह है। यह कमज़ोर नेत्र की निशानी है जैसे साइन्स वाले शक्तिशाली ग्लासेज द्वारा सभी जर्मस को स्पष्ट देख सकते हैं। ऐसे यह शक्तिशाली दिव्य नेत्र माया की बीमारी को पहले से ही जान समाप्त कर सदा निरोगी रहते हैं।

ऐसा शक्तिशाली दिव्य नेत्र है। यह दिव्य नेत्र दिव्य टी.वी. भी है। आजकल टी.वी. सभी को अच्छी लगती है ना। इसको टी.वी. कहो वा दूरदर्शन कहो इसमें अपने स्वर्ग के सर्व जन्मों को अर्थात् अपने 21 जन्मों के दिव्य फिल्म को देख सकते हो। अपने राज्य के सुन्दर नजारे देख सकते हो। हर जन्म की आत्म-कहानी को देख सकते हो। अपने ताज तख्त राज्य-भाग्य को देख सकते हो। दिव्य दर्शन कहो वा दूरदर्शन कहो। दिव्य दर्शन का नेत्र शक्तिशाली है ना। जब फ्री हो तो यह फिल्म देखो, आजकल की डांस नहीं देखना वह डेन्जर डांस है। फरिश्तों की डांस, देवताओं की डांस देखो। स्मृति का स्विच तो ठीक है ना। अगर स्विच ठीक नहीं होगा तो चलाने से भी कुछ दिखाई नहीं देगा। समझा - यह नेत्र कितना श्रेष्ठ है। आजकल मैजारिटी कोई भी चीज़ की इन्वेंशन करते हैं तो लक्ष्य रखते हैं कि एक वस्तु भिन्न-भिन्न कार्य में आवे। ऐसे यह दिव्य नेत्र अनेक कार्य सिद्ध करने वाला है। बापदादा बच्चों के कमज़ोरी की कभी-कभी कम्पलेन सुन यही कहते, दिव्य बुद्धि मिली, दिव्य नेत्र मिला, इसको विधिपूर्वक सदा यूज़ करते रहो तो न सोचने की फुर्सत, न देखने की फुर्सत रहेगी। न और सोचेंगे न देखेंगे। तो कोई भी कम्पलेन रह नहीं सकती। सोचना और देखना यह दोनों विशेष आधार हैं कम्पलीट होने के वा कम्पलेन करने के। देखते हुए, सुनते हुए सदा सोचो जैसा सोचना वैसा करना हाेता है। इसलिए इन दोनों दिव्य प्राप्तियों को सदा साथ रखो। सहज है ना। हो समर्थ लेकिन बन क्या जाते हो? जब स्थापना हुई तो छोटे-छोटे बच्चे डायलाग करते थे, भोला भाई का। तो हैं समर्थ लेकिन भोला भाई बन जाते हैं। तो भोला भाई नहीं बनो। सदा समर्थ बनो। और औरों को भी समर्थ बनाओ। समझा - अच्छा।

सदा दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र को कार्य में लगाने वाले, सदा दिव्य बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ मनन, दिव्य नेत्र द्वारा दिव्य दृश्य देखने में मगन रहने वाले, सदा अपने भविष्य देव स्वरूप को स्पष्ट अनुभव करने वाले, सदा आज और कल इतना समीप अनुभव करने वाले, ऐसे शक्तिशाली दिव्य नेत्र वाले त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!”

पर्सनल मुलाकात - 1- सहजयोगी बनने की विधि - सभी सहजयोगी आत्मायें हो ना। सदा बाप के सर्व सम्बन्धों के स्नेह में समाये हुए। सर्व सम्बन्धों का स्नेह ही सहज कर देता है। जहाँ स्नेह का सम्बन्ध है वहाँ सहज है। और जो सहज है वह निरंतर है। तो ऐसे सहजयोगी आत्मा बाप के सर्व स्नेही सम्बन्ध की अनुभूति करते हो? ऊधव के समान हो या गोपियों के समान? ऊधव सिर्फ ज्ञान का वर्णन करता रहा। गोपगोपि याँ प्रभु प्यार का अनुभव करने वाली। तो सर्व सम्बन्धों का अनुभव यह है विशेषता। इस संगमयुग में यह विशेष अनुभव करना ही वरदान प्राप्त करना है। ज्ञान सुनना सुनाना अलग बात है। सम्बन्ध निभाना, सम्बन्ध की शक्ति से निरंतर लगन में मगन रहना वह अलग बात है। तो सदा सर्व सम्बन्धों के आधार पर सहयोगी भव। इसी अनुभव को बढ़ाते चलो। यह मगन अवस्था गोप-गोपियों की विशेष हैं। लगन लगाना और चीज़ है लेकिन लगन में मगन रहना यही श्रेष्ठ अनुभव हैं।

2. ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे है - कभी किसी भी विघ्न के प्रभाव में तो नहीं आते हो? जितनी ऊँची स्थिति होगी तो ऊँची स्थिति विघ्नों के प्रभाव से परे हो जाती है। जैसे स्पेस में जाते हैं तो ऊँचा जाते हैं, धरनी के प्रभाव से परे हो जाते। ऐसे किसी भी विघ्नों के प्रभाव से सदा सेफ रहते। किसी भी प्रकार की मेहनत का अनुभव उन्हें करना पड़ता - जो मुहब्बत में नहीं रहते। तो सर्व सम्बन्धों से स्नेह की अनुभूति में रहो। स्नेह है लेकिन उसे इमर्ज करो। सिर्फ अमृतेवेले याद किया फिर कार्य में बिजी हो गये तो मर्ज हो जाता। इमर्ज रूप में रखो तो सदा शक्तिशाली रहेंगे।



28-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


विश्व सेवाधारी का सहज साधन मंसा सेवा

विश्व-कल्न्याणकारी, सदा पर-उपकारी बापदादा बोले

आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्ति सेना, पाण्डव सेना, रूहानी सेना को देख रहे हैं। सेना के महावीर अपनी रूहानी शक्ति से कहाँ तक विजयी बने हैं। विशेष तीन शक्तियों को देख रहे हैं। हर एक महावीर आत्मा की मंसा शक्ति कहाँ तक स्व परिवर्तन प्रति और सेवा के प्रति धारण हुई है? ऐसे ही वाचा शक्ति, कर्मणा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की शक्ति कहाँ तक जमा की है? विजयी रत्न बनने के लिए यह तीनों ही शक्तियाँ आवश्यक हैं। तीनों में से एक शक्ति भी कम है तो वर्तमान प्राप्ति और प्रालब्ध कम हो जाती है। विजयी रत्न अर्थात् तीनों शक्तियों से सम्पन्न। विश्व-सेवाधारी सो विश्व-राज्य अधिकारी बनने का आधार यह तीनों शक्तियों से सम्पन्नता है। सेवाधारी बनना और विश्वसेवाधारी बनना, विश्व-राजन बनना वा सतयुगी राजन बनना इसमें भी अन्तर है। सेवाधारी अनेक हैं विश्व-सेवाधारी कोई-कोई हैं। सेवाधारी अर्थात् तीनों शक्तियों की नम्बरवार यथाशक्ति धारणा। विश्व-सेवाधारी अर्थात् तीनों शक्तियों की सम्पन्नता। आज हरेक के तीनों शक्तियों की परसेन्टेज देख रहे थे।

सर्वश्रेष्ठ मंसा शक्ति द्वारा चाहे कोई आत्मा सम्मुख हो, समीप हो वा कितना भी दूर हो - सेकण्ड में उस आत्मा को प्राप्ति की शक्ति की अनुभूति करा सकते हैं। मंसा शक्ति किसी आत्मा की मानसिक हलचल वाली स्थिति को भी अचल बना सकती है। मानसिक शक्ति अर्थात् शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, इस श्रेष्ठ भावना द्वारा किसी भी आत्मा के संशय बुद्धि को भावनात्मक बुद्धि बना सकते हैं। इस श्रेष्ठ भावना से किसी भी आत्मा का व्यर्थ भाव परिवर्तन कर समर्थ भाव बना सकते हैं। श्रेष्ठ भाव द्वारा किसी भी आत्मा के स्वभाव को भी बदल सकते हैं। श्रेष्ठ भावना की शक्ति द्वारा आत्मा को भावना के फल की अनुभूति करा सकते हैं। श्रेष्ठ भावना द्वारा भगवान के समीप ला सकते हैं। श्रेष्ठ भावना किसी आत्मा के भाग्य की रेखा बदल सकती है। श्रेष्ठ भावना हिम्मतहीन आत्मा को हिम्मतवान बना देती है। इसी श्रेष्ठ भावना की विधि प्रमाण मंसा सेवा किसी भी आत्मा की कर सकते हो। मंसा सेवा वर्तमान समय के प्रमाण अति आवश्यक है। लेकिन मंसा सेवा वही कर सकता जिसकी स्वयं की मंसा अर्थात् संकल्प सदा सर्व के प्रति श्रेष्ठ हो, निःस्वार्थ हो। पर-उपकार की सदा भावना हो। अपकारी पर भी उपकार की श्रेष्ठ शक्ति हो। सदा दातापन की भावना हो। सदा स्व परिवर्तन, स्व के श्रेष्ठ कर्म द्वारा औरों को श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा देने वाले हो। यह भी करें, तब मैं करूँगी, कुछ यह करें कुछ मैं करूँ वा थोड़ा तो यह भी करें, इस भावना से परे। मैं करूँगी या करूँगा और आवश्यक करेंगे। कमज़ोर है, नहीं कर सकता है, फिर भी रहम की भावना, सदा सहयोग की भावना, हिम्मत बढ़ाने की भावना हो। इसको कहा जाता है - मंसा सेवाधारी। मंसा सेवा एक स्थान पर स्थित रहकर भी चारों ओर की सेवा कर सकते हो। वाचा और कर्म के लिए तो जाना पड़े। मंसा सेवा कहाँ भी बैठे हुए कर सकते हो।

मंसा सेवा’ - रूहानी वायरलेस सेट है। जिस द्वारा दूर का संबंध समीप बना सकते हो। दूर बैठे किसी भी आत्मा को बाप के बनने का, उमंग उत्साह पैदा करने का सन्देश दे सकते हो। जो वह आत्मा अनुभव करेगी कि मुझे कोई महान शक्ति बुला रही है। कुछ अनमोल प्रेरणायें मुझे प्रेर रही हैं। जैसे कोई को सम्मुख सन्देश दे उमंग उत्साह में लाते हो, ऐसे मंसा शक्ति द्वारा भी वह आत्मा ऐसे ही अनुभव करेगी जैसे कोई सम्मुख बोल रहा है। दूर होते भी सम्मुख का अनुभव करेगी। विश्व-सेवाधारी बनने का सहज साधन ही मंसा सेवाहै। जैसे साइंस वाले इस साकार सृष्टि से, पृथ्वी से ऊपर अन्तरिक्ष यान द्वारा अपना कार्य शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। स्थूल से सूक्ष्म में जा रहे हैं। क्यों? सूक्ष्म शक्तिशाली होता है। मंसा शक्ति भी अन्तर्मुखी यानहै। जिस द्वारा जहाँ भी चाहो, जितना जल्दी चाहो पहुँच सकते हो। जैसे साइंस द्वारा पृथ्वी की आकर्षण से परे जाने वाले स्वत: ही लाइट (हल्के) बन जाते हैं। ऐसे मंसा शक्तिशाली आत्मा स्वत: ही डबल लाइट स्वरूप सदा अनुभव करती है। जैसे अन्तरिक्ष यान वाले ऊँचे होने के कारण सारे पृथ्वी के जहाँ के भी चित्र खींचने चाहें खींच सकते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से अन्तर्मुखी यान द्वारा मंसा शक्ति द्वारा किसी भी आत्मा को चरित्रवान बनने की, श्रेष्ठ आत्मा बनने की प्रेरणा दे सकते हो! साइंस वाले तो हर चीज़ पर समय और सम्पत्ति खूब लगाते हैं, लेकिन आप बिना खर्चे थोड़े समय में बहुत सेवा कर सकते हो। जैसे आजकल कहाँ-कहाँ फ्लाइंग सासर (उड़न तश्तरी) देखते हैं। सुनते हो ना - समाचार। वह भी सिर्फ लाइट ही देखने में आती है। ऐसे आप मंसा सेवाधारी आत्माओं का आगे चल अनुभव करेंगे कि कोई लाइट की बिन्दी आई, विचित्र अनुभव कराके गई। यह कौन थे? कहाँ से आये? क्या देकर गये! यह चर्चा बढ़ती जायेगी। जैसे आकाश के सितारों की तरफ सबकी नजर जाती है, ऐसे धरती के सितारे दिव्य ज्योति चारो ओर अनुभव करेंगे। ऐसी शक्ति मंसा सेवाधारियों की है। समझा? महानता तो और भी बहुत है लेकिन आज इतना ही सुनाते हैं। मंसा सेवा को अब तीव्र करो तब 9 लाख तैयार होंगे। अभी गोल्डन जुबली तक कितनी संख्या बनी है? सतयुग की डायमण्ड जुबली तक 9 लाख तो चाहिए ना। नहीं तो विश्व राजन किस पर राज्य करेगा, 9 लाख तारे गाये हुए हैं ना। सितारा रूपी आत्मा का अनुभव करेंगे तब 9 लाख सितारे गाये जायेंगे। इसलिए अब सितारों का अनुभव कराओ। अच्छा - चारों ओर के आये हुए बच्चों को मधुबन निवासी बनने की मुबारक हो वा मिलन मेले की मुबारक हो। इसी अविनाशी अनुभव की मुबारक सदा साथ रखना। समझा!

सदा महावीर बन मंसा शक्ति की महानता से श्रेष्ठ सेवा करने वाले, सदा श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना की विधि से बेहद के सेवा की सिद्धि पाने वाले, अपनी ऊँची स्थिति द्वारा चारों ओर की आत्माओं को श्रेष्ठ प्रेरणा देने के विश्वसेवाधारी, सदा अपनी शुभ भावना द्वारा अन्य आत्माओं को भी भावना का फल देने वाले, ऐसे विश्व-कल्याणकारी पर-उपकारी, विश्व-सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदाई के समय अमृतवेले सभी बच्चों को यादप्यार दी - हर कार्य मंगल हो। हर कार्य सदा सफल हो। उसकी सभी बच्चों को बधाई। वैसे तो हर दिन संगमयुग के शुभ हैं, श्रेष्ठ हैं, उमंग उत्साह दिलाने वाले हैं। इसलिए हर दिन का महत्व अपना-अपना है। आज के दिन हर संकल्प भी मंगलमय हो अर्थात् शुभचिन्तक रूप वाला हो। किसी के प्रति मंगल कामना अर्थात् शुभ कामना करने वाला संकल्प हो। हर संकल्प मंगलम् अर्थात् खुशी दिलाने वाला हो। तो आज के दिन का यह महत्व संकल्प बोल और कर्म तीनों में विशेष स्मृति में रखना। और यह स्मृति रखना ही हर सेकण्ड बापदादा की यादप्यार स्वीकार करना है तो सिर्फ अभी यादप्यार नहीं दे रहे हैं लेकिन प्रैक्टिकल करना अर्थात् यादप्यार लेना। सारा दिन आज यादप्यार लेते रहना। अर्थात् याद में रह हर संकल्प बोल द्वारा प्यार की लहर में लहराते रहना। अच्छा - सभी को विशेष याद - गुडमॉर्निंग!



30-01-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


माया जीत और प्रकृति जीत ही स्वराज्य-अधिकारी

माया और प्रकृति जीत बनाने वाले अपने स्नेही सिकीलधे बच्चों प्रति बोले

आज चारों ओर के राज्य अधिकारी बच्चों की राज्य दरबार देख रहे हैं। चारों ओर सिकीलधे स्नेही बेहद के सेवाधारी अनन्य बच्चे हैं। ऐसे बच्चे अभी भी स्वराज्य अधिकारी राज्य दरबार में उपस्थित हैं। बापदादा ऐसे योग्य बच्चों को सदा के योगी बच्चों को अति निर्मान, ऊँचे स्वमान, ऐसे बच्चों को देख हर्षित होते हैं। स्वराज्य दरबार सारे कल्प में अलौकिक, सर्व दरबार से न्यारी और अति प्यारी है। हर एक स्वराज्य अधिकारी विश्व के राज्य के फाउण्डेशन, नये विश्व के निर्माता हैं। हर एक स्वराज्य अधिकारी चमकते हुए दिव्य तिलकधारी सर्व विशेषताओं के चमकते हुए अमूल्य मणियों से सजे हुए ताजधारी हैं। सर्व दिव्य गुणों की माला धारण किये हुए, सम्पूर्ण पवित्रता का लाइट का ताज धारण किया हुआ श्रेष्ठ स्थिति के स्व सिंहासन पर उपस्थित हैं। ऐसे सजे सजाये हुए राज्य अधिकारी दरबार में उपस्थित हैं। ऐसी राज्य दरबार बापदादा के सामने उपस्थित हैं। हर एक स्वराज्य अधिकारी के आगे कितने दास दासियाँ हैं? प्रकृति जीत और विकारों जीत। विकार भी 5 हैं प्रकृति के तत्व भी 5 हैं। तो प्रकृति ही दासी बन गई है ना! दुश्मन सेवाधारी बन गये हैं। ऐसे रूहानी फखर में रहने वाले, विकारों को भी परिवर्तित कर काम विकार को शुभ कामना, श्रेष्ठ कामना के स्वरूप में बदल, सेवा में लगाने वाले, ऐसे दुश्मन को सेवाधारी बनाने वाले, प्रकृति के किसी भी तत्व की तरफ वशीभूत नहीं होते हैं। लेकिन हर तत्व को तमोगुणी रूप से सतोप्रधान स्वरूप बना लेते हैं। कलियुग में यह तत्व धोखा और दुख देते हैं। संगमयुग में परिवर्तन होते हैं। रूप बदलते हैं। सतयुग में यह 5 तत्व देवताओं के सुख के साधन बन जाते हैं। यह सूर्य आपका भोजन तैयार करेगा तो भण्डारी बन जायेगा ना! यह वायु आपका नैचरल पंखा बन जायेगी। आपके मनोरंजन का साधान बन जायेगी। वायु लगेगी वृक्ष हिलेंगे और वह टाल टालियाँ ऐसे झूलेंगी जो उन्हों के हिलने से भिन्न-भिन्न साज़ स्वत: ही बजते रहेंगे। तो मनोरंजन का साधन बन गया ना! यह आकाश आप सबके लिए राज्य पथ बन जायेगा। विमान कहाँ चलायेंगे? यह आकाश ही आपका पथ बन जायेगा। इतना बड़ा हाईवे और कहाँ पर है? विदेश में है? कितने भी माइल बनावें लेकिन आकाश के पथ से तो छोटे ही है ना। इतना बड़ा रास्ता कोई है? अमेरिका में है? और बिना एक्सीडेंट के रास्ता होगा। चाहे 8 वर्ष का बच्चा भी चलावे तो भी गिरेंगे नहीं। तो समझा! यह जल इत्र-फुलेल का कार्य करेगा। जैसे जड़ी-बूटियों के कारण गंगा जल अभी भी और जल से पवित्र है। ऐसे खुशबूदार जड़ी-बूटियाँ होने के कारण जल में नैचरल खुशबू होगी। जैसे यहाँ दूध शक्ति देता है ऐसे वहाँ का जल ही शक्तिशाली होगा, स्वच्छ होगा। इसलिए कहते हैं - दूध की नदियाँ बहती हैं। सब अभी से खुश हो गये हैं ना! ऐसे ही यह पृथ्वी ऐसे श्रेष्ठ फल देगी जो जिस भी भिन्न-भिन्न टेस्ट के चाहते हैं उस टेस्ट का फल आपके आगे हाजर होगा। यह नमक नहीं होगा। चीनी भी नहीं होगी। जैसे अभी खटाई के लिए टमाटर है, तो बना बनाया है ना। खटाई आ जाती है ना। ऐसे जो आपको टेस्ट चाहिए उसके फल होंगे। रस डालो और वह टेस्ट हो जायेगी। तो यह पृथ्वी एक तो श्रेष्ठ फल, श्रेष्ठ अन्न देने की सेवा करेगी। दूसरा नैचरल सीन-सीनरियाँ जिसको कुदरत कहते हैं - तो नैचरल नजारे, पहाड़ भी होंगे। ऐसे सीधे पहाड़ नहीं होंगे। नैचरल ब्युटी भिन्न-भिन्न रूप के पहाड़ होंगे। कोई पंछी के रूप में कोई पुष्पों के रूप में। ऐसे नैचरल बनावट होगी। सिर्फ निमित्त मात्र थोड़ा-सा हाथ लगाना पड़ेगा। ऐसे यह 5 तत्व सेवाधारी बन जायेंगे। लेकिन किसके बनेंगे? स्वराज्य अधिकारी आत्माओं के सेवाधारी बनेंगे। तो अभी अपने को देखो 5 ही विकार दुश्मन से बदल सेवाधारी बने हैं? तब ही स्वराज्य अधिकारी कहलायेंगे। क्रोध अग्नि, योग अग्नि में बदल जाए। ऐसे लोभ विकार, लोभ अर्थात् चाहना। हद की चाहना बदल शुभ चाहना हो जाए कि मैं सदा हर संकल्प से, बोल से, कर्म से निःरस्वार्थ बेहद सेवाधारी बन जाऊँ। मैं बाप समान बन जाऊँ - ऐसे शुभ चाहना अर्थात् लोभ का परिवर्तन स्वरूप। दुश्मन के बजाए सेवा के कार्य में लगाओ। मोह तो सभी को बहुत है ना। बापदादा में तो मोह है ना। एक सेकेण्ड भी दूर न हों - यह मोह हुआ ना! लेकिन यह मोह सेवा कराता है। जो भी आपके नयनों में देखे तो नयनों में समाये हुए बाप को देखे। जो भी बोलेंगे मुख द्वारा बाप के अमूल्य बोल सुनायेंगे। तो मोह विकार भी सेवा में लग गया ना। बदल गया ना। ऐसे ही अहंकार। देह-अभिमान से देही-अभिमानी बन जाते। शुभ अहंकार अर्थात् ईश्वरीय नशा सेवा के निमित्त बन जाता है। तो ऐसे पाँचों ही विकार बदल सेवा का साधन बन जाए तो दुश्मन से सेवाधारी हो गये ना! तो ऐसे चेक करो मायाजीत, प्रकृति जीत कहाँ तक बने हैं? राजा तब बनेंगे जब पहले दास-दासियाँ तैयार हों। जो स्वयं दास के अधीन होगा वह राज्य अधिकारी कैसे बनेगा!

आज भारत के बच्चों के मेले का प्रोग्राम प्रमाण लास्ट दिन है। तो मेले की अन्तिम टुब्बी है। इसका महत्व होता है। इस महत्व के दिन जैसे उस मेले में जाते हैं तो समझते हैं - जो भी पाप हैं वह भस्म करके खत्म करके जाते हैं। तो सबको 5 विकारों को सदा के लिए समाप्त करने का संकल्प करना, यही अन्तिम टुब्बी का महत्व है। तो सभी ने परिवर्तन करने का दृढ़ संकल्प किया? छोड़ना नहीं है लेकिन बदलना है। अगर दुश्मन आपका सेवाधारी बन जाए तो दुश्मन पसन्द है या सेवाधारी पसन्द है? तो आज के दिन चेक करो और चेन्ज करो तब है मिलन मेले का महत्व। समझा क्या करना है? ऐसे नहीं सोचना - चार तो ठीक हैं बाकी एक चल जायेगा। लेकिन एक चार को भी वापस ले आयेगा। इन्हों का भी आपस में साथ है इसलिए रावण के शीश साथ-साथ दिखाते हैं। तो दशहरा मना के जाना है। प्रकृति जीत, विकार जीत 10 हो गये ना। तो विजय दशमी मना के जाना। खत्म कर जलाकर राख साथ नहीं ले जाना। राख भी ले जायेंगे तो फिर से आ जायेंगे। भूत बनकर आ जायेंगे। इसलिए वह भी ज्ञान सागर में समाप्त करके जाना। अच्छा –

‘‘ऐसे सदा स्वराज्य अधिकारी, अलौकिक तिलकधारी, ताजधारी, प्रकृति को दासी बनाने वाले, 5 दुश्मनों को सेवाधारी बनाने वाले, सदा बेफकर बादशाह, रूहानी फखर में रहने वाले बादशाह ऐसे बाप समान सदा के विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

कुमारियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात (1) सभी अपने को श्रेष्ठ कुमारियाँ अनुभव करती हो? साधारण कुमारियाँ या तो नौकरी की टोकरी उठाती या तो दासी बन जाती हैं। लेकिन श्रेष्ठ कुमारियाँ विश्व-कल्याणकारी बन जाती हैं। ऐसी श्रेष्ठ कुमारियाँ हो ना! जीवन का श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है? संगदोष के या संबंध के बंधन से मुक्त होना यही लक्ष्य है ना? बन्धन में बंधने वाली नहीं। क्या करें बंधन है, क्या करें नौकरी करनी है, इसको कहा जाता है बंधन वाली। तो न संबंध का बंधन, न नौकरी टोकरी का बंधन। दोनों बंधन से न्यारे वही बाप के प्यारे बनते हैं। ऐसी निर्बन्धन हो? दोनों ही जीवन सामने हैं। साधारण कुमारियों का भविष्य और विशेष कुमारियों का भविष्य, दोनों सामने हैं। तो दोनों को देख स्वयं ही जज कर सकती हो। जैसे कहेंगे वैसे करेंगे यह नहीं। अपना फैसला स्वयं जज होकर करो। श्रीमत तो है विश्व-कल्याणकारी बनो। वह तो ठीक लेकिन श्रीमत के साथ-साथ अपने मन के उमंग से जो आगे बढ़ते हैं वह सदा सहज आगे बढ़ते हैं। अगर कोई के कहने से या थोड़ा-सा शर्म के कारण दूसरे क्या कहेंगे, नहीं बनूँगी तो सब मुझे ऐसे देखेंगे कि यह कमज़ोर है। ऐसे अगर कोई के फोर्स से बनते भी हैं तो परीक्षाओं को पास करने में मेहनत लगती है। और स्व के उमंग वालों को कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो वह सहज अनुभव होती है क्योंकि मन का उमंग है ना। अपना उमंग उत्साह पंख बन जाते हैं। कितना भी पहाड़ हो लेकिन उड़ने वाला पंछी सहज पार कर लेगा और चलने वाला या चढ़ने वाला कितनी मुश्किल से कितने समय में पार करेंगे? तो यह मन का उमंग पंख हैं इन पंखों से उड़ने वाले को सदा सहज होता है। समझा। तो श्रेष्ठ मत है - विश्व-कल्याणकारी बनोलेकिन फिर भी स्वयं अपना जज बनकर अपनी जीवन का फैसला करो। बाप ने तो फैसला दे ही दिया है, वह नई बात नहीं हैं। अभी अपना फैसला करो तो सदा सफल रहेंगी। समझदार वह जो सोच-समझकर हर कदम उठाये। सोचते ही न रहें लेकिन सोचा-समझा और किया। इसको कहते हैं समझदार। संगमयुग पर कुमारी बनना यह पहला भाग्य है। यह भाग्य तो ड्रामा अनुसार मिला हुआ है। अभी भाग्य में भाग्य बनाते जाओ। इसी भाग्य को कार्य में लगाया तो भाग्य बढ़ता जायेगा। और इसी पहले भाग्य को गंवाया तो सदा के सर्व भाग्य को गंवाया। इसलिए भाग्यवान हो। भाग्यवान बन अभी और सेवाधारी का भाग्य बनाओ। समझा!

सेवाधारी (टीचर्स) बहिनों से:- सेवाधारी अर्थात् सदा सेवा की मौज में रहने वाले। सदा स्वयं को मौजों की जीवन में अनुभव करने वाले। सेवाधारी जीवन माना मौजों की जीवन। तो ऐसे सदा याद और सेवा की मौज में रहने वाले हो ना! याद की भी मौज है और सेवा की भी मौज है। जीवन भी मौज की और युग भी मौजों का। जो सदा मौज में रहने वाले हैं उसको देख और भी अपने जीवन में मौज का अनुभव करते हैं। कितने भी कोई मूँझे हुए आवें लेकिन जो स्वयं मौज में रहते वह दूसरों को भी मूंझ से छुड़ाए मौज में ले आयेंगे। ऐसे सेवाधारी जो मौज में रहते वह सदा तन-मन से तन्दरूस्त रहते हैं। मौज में रहने वाले सदा उड़ते रहते क्योंकि खुशी रहती है। वैसे भी कहा जाता यह तो खुशी में नाचता रहता है। चल रहा है, नहीं, नाच रहा है। नाचना माना ऊँचा उठना। ऊँचे पाँव होंगे तब नाचेंगे ना! तो मौजों में रहने वाले अर्थात् खुशी में रहने वाले। सेवाधारी बनना अर्थात् वरदाता से विशेष वरदान लेना। सेवाधारी को विशेष वरदान है, एक अपना अटेन्शन दूसरा वरदान, डबल लिफ्ट है। सेवाधारी बनना अर्थात् सदा मुक्त आत्मा बनना, जीवनमुक्त अनुभव करना।

(2) सभी सेवाधारी सदा सफलता स्वरूप हो? सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। अधिकार सदा सहज मिलता है। मेहनत नहीं लगती। तो अधिकार के रूप में सफलता अनुभव करने वाले हो। सफलता हुई पड़ी है यह निश्चय और नशा रहे। सफलता होगी या नहीं ऐसा संकल्प तो नहीं चलता है? जब अधिकार है तो अधिकारी को अधिकार न मिले यह हो नहीं सकता। निश्चय है तो विजय हुई पड़ी है। सेवाधारी की यही परिभाषा है। जो परिभाषा है वही प्रैक्टिकल है। सेवाधारी अर्थात् सहज सफलता का अनुभव करने वाले।

विदाई के समय बच्चों ने स्नेह के गीत गाये:- बापदादा जितना प्यार का सागर है उतना न्यारा भी है। स्नेह के बोल बोले यह तो संगमयुग की मौजें हैं। मौज तो भले मनाओ, खाओ, पियो, नाचो, लेकिन निरन्तर। जैसे अभी स्नेह में समाये हुए हो ऐसे सदा समाये रहो। बापदादा तो हर बच्चे के दिल के गीत तो सुनते ही रहते हैं। आज मुख के भी गीत सुन लिए। बापदादा शब्द नहीं देखते, ट्यून नहीं देखते, दिल का आवाज़ सुनते हैं। अभी तो सदा साथ हो चाहे साकार में चाहे अव्यक्त रूप में, सदा साथ हो। अभी वियोग के दिन तो समाप्त हो गये। अभी संगमयुग पूरा ही मिलन मेला है। सिर्फ मेले में भिन्न-भिन्न नजारे बदलते हैं। कभी व्यक्त, कभी अव्यक्त। अच्छा - गुडमोर्निंग !

सम्मेलन के प्रति अव्यक्त बापदादा का विशेष सन्देश

बापदादा बोले, बच्चे सम्मेलन कर रहे हैं। सम्मेलन का अर्थ है सम-मिलन। तो जो इस सम्मेलन में आने वाले हैं उन्हें बाप समान नहीं तो अपने समान निश्चय बुद्धि तो अवश्य बनाना। जो भी आये कुछ बनकर जाए सिर्फ बोलकर न जाए। यह दाता का घर है। तो आने वाले यह नहीं समझें कि हम इन्हें मदद करने आये हैं या इन्हें सहयोग देने आये हैं। लेकिन वह समझें कि यह स्थान लेने का स्थान है, देने का नहीं। यहाँ हरेक छोटा बड़ा जिससे भी मिले जो उस समय यहाँ पर हो उनको यह संकल्प करना है कि दृष्टि से, वायुमण्डल से, सम्पर्क-सम्बन्ध से मास्टर दाताबनकर रहना है। सबको कुछ न कुछ देकर ही भेजना है। यह हरेक का लक्ष्य हो, आने वाले को रिगार्ड तो देना ही है लेकिन सबका रिगार्ड एक बाप में बिठाना है। बाबा कह रहे थे - मेरे इतने सब लाइट हाउस बच्चे चारों ओर से मंसा सेवा द्वारा लाइट देंगे तो सफलता हुई ही पड़ी है। वह एक लाइट हाउस कितनों को रास्ता दिखाता - आप लाइट हाउस, माइट हाउस बच्चे तो बहुत कमाल कर सकते हो। अच्छा –

कुमारों के प्रति विशेष अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

कुमार, ब्रह्माकुमार तो बन ही गये। लेकिन ब्रह्माकुमार बनने के बाद फिर क्या बनना है? शक्तिशाली कुमार। जब तक शक्तिशाली नहीं बने तो विजयी नहीं बन सकते। शक्तिशाली कुमार सदा नॉलेजफुल और पावरफुल आत्मा होंगे। नॉलेजफुल अर्थात् रचता को भी जानने वाले, रचना को भी जानने वाले और माया के भिन्न-भिन्न रूपों को भी जानने वाले। ऐसे नॉलेजफुल पावरफुल सदा विजयी हैं। नॉलेज जीवन में धारण करना अर्थात् नॉलेज को शस्त्र बना देना। तो शस्त्रधारी शक्तिशाली होंगे ना। आज मिलिट्री वाले शक्तिशाली किस आधार से होते हैं? शस्त्र हैं, बन्दूक हैं तो निर्भय हो जाते हैं। तो नॉलेजफुल जो होगा वह पावरफुल जरूर होगा। तो माया की भी पूरी नॉलेज है। क्या होगा कैसे होगा पता नहीं पड़ा, माया कैसे आ गई, यह नॉलेजफुल नहीं हुए। नॉलेजफुल आत्मा पहले से ही जानती है। जैसे समझदार जो होते हैं वह बीमारी को पहले से ही जान लेते हैं। बुखार आने वाला होता तो पहले से ही समझेंगे कि कुछ हो रहा है, पहले से ही दवा लेकर अपने को ठीक कर देंगे और स्वस्थ हो जायेंगे। बेसमझ को बुखार आ भी जायेगा तो चलता-फिरता रहेगा और बुखार बढ़ता जायेगा। ऐसे ही माया आती है लेकिन आने के पहले ही समझ लेना और उसे दूर से ही भगा देना। तो ऐसे समझदार शक्तिशाली कुमार हो ना! सदा विजयी हो ना! या आपको भी माया आती और भगाने में टाइम लगाते हो। शक्ति को देखकर दूर से ही दुश्मन भाग जाता है। अगर आ जावे फिर उसे भगाओ तो टाइम भी वेस्ट और कमज़ोरी की आदत पड़ जाती है। कोई बार-बार बीमार हो तो कमज़ोर हो जाता है ना! या बार-बार पढ़ाई में फेल हो तो कहेंगे यह पढ़ने में कमज़ोर है। ऐसे माया बार-बार आये और वार करती रहे तो हार खाने की आदती हो जायेंगे। और बार-बार हार खाने से कमज़ोर हो जायेंगे। इसलिए शक्तिशाली बनो। ऐसी शक्तिशाली आत्मा सदा प्राप्ति का अनुभव करती है, युद्ध में अपना समय नहीं गँवाती। विजय की खुशी मनाती है। तो कभी किसी बात में कमज़ोरी न हो। कुमार बुद्धि सालिम है। अधरकुमार बनने से बुद्धि बंट जाती है। कुमारों को एक ही काम है, अपनी ही जीवन है। उन्हों को तो कितनी जिम्मेवारियाँ हो जाती हैं। आप जिम्मेवारियों से स्वतन्त्र हो। जो स्वतन्त्र होगा वह आगे बढ़ेगा। बोझ वाला धीरे-धीरे चलेगा। स्वतन्त्र हल्का होगा वह तेज चलेगा। तो तेज रफ्तार वाले हो। एकरस हो? सदा तीव्र अर्थात् एकरस। ऐसे भी नहीं 6 मास बीत जाएँ। जैसे हैं वैसे ही चल रहे हैं इसको भी तीव्रगति नहीं कहेंगे। तीव्रगति वाले आज जो हैं कल उससे आगे, परसों उससे आगे। इसको कहा जाता है - तीव्रगति वाले। तो सदा अपने को शक्तिशाली कुमार समझो। ब्रह्माकुमार बन गये सिर्फ इस खुशी में रहे, शक्तिशाली नहीं बने तो विजयी नहीं बन सकते। ब्रह्माकुमार बनना बहुत अच्छा लेकिन शक्तिशाली ब्रह्माकुमार सदा समीप होते हैं। अब के समीप वाले राज्य में भी समीप होंगे। अभी की स्थिति में समीपता नहीं तो राज्य में भी समीपता नहीं। अभी की प्राप्ति सदा की प्रालब्ध बना देती है। इसलिए सदा शक्तिशाली। ऐसे शक्तिशाली ही विश्व-कल्याणकारी बन सकते हैं। कुमारों में शक्ति तो है ही। चाहे शारीरिक शक्ति चाहे आत्मा की। लेकिन विश्व-कल्याण के प्रति शक्ति है या श्रेष्ठ विश्व को विनाशकारी बनाने के कार्य में लगने की शक्ति है? तो कल्याणकारी कुमार हो ना! अकल्याण करने वाले नहीं। संकल्प में भी सदा सर्व के प्रति कल्याण की भावना हो। स्वप्न में भी कल्याण की भावना हो, इसको कहा जाता है - श्रेष्ठ शक्तिशाली। कुमार शक्ति द्वारा जो सोचें वह कर सकते हैं। जो वही संकल्प और कर्म, दोनों साथ-साथ हों। ऐसे नहीं संकल्प आज किया कर्म पीछे। संकल्प और कर्म एक हो और साथ-साथ हो। ऐसी शक्ति हो। ऐसी शक्ति वाले ही अनेक आत्माओं का कल्याण कर सकते हैं। तो सदा सेवा में सफल बनने वाले हो या कभी खिट-खिट करने वाले हो? मन में, कर्म में, आपस में सबमें ठीक। किसी में भी खिट-खिट न हो। सदा अपने को विश्वकल् याणकारी कुमार समझो तो जो भी कर्म करेंगे उसमें कल्याण की भावना समाई होगी। अच्छा –



16-02-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शिव बाप की अवतरण जयन्ति सो अवतरित हुए अवतारबच्चों की जयन्ति की मुबारक

भोलालाथ, अमरनाथ शिव बाबा अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले

आज भोलेनाथ बाप भोले भण्डारी अपने अति स्नेही, सदा सहयोगी, सहजयोगी सर्व खजानों के मालिक बच्चों से मिलन मनाने आये हैं। अब भी मालिक, भविष्य में भी मालिक। अभी विश्व रचयिता के बालक सो मालिक हो, भविष्य में विश्व के मालिक हो। बापदादा अपने ऐसे मालिक बच्चों को देख हर्षित होते हैं। यह बालक सो मालिकपन का अलौकिक नशा, अलौकिक खुशी है। ऐसे सदा खुशनसीब सदा सम्पन्न श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। आज सभी बच्चे बाप के अवतरण की जयन्ती मनाने के लिए उमंग उत्साह में हर्षित हो रहे हैं। बापदादा कहते हैं बाप की जयन्ती सो बच्चों की भी जयन्ती है। इसलिए यह वन्डरफुल जयन्ती है। वैसे बाप और बच्चे की एक ही जयन्ती नहीं होती है। होती है? वही दिन बाप के जन्म का हो और बच्चे का भी हो, ऐसा कब सुना है? यही अलौकिक जयन्ती है। जिस घड़ी बाप ब्रह्मा बच्चे में अवतरित हुए उसी दिन उस घड़ी ब्रह्मा का भी साथ-साथ अलौकिक जन्म हुआ। इकठ्ठा जन्म हो गया ना। और ब्रह्मा के साथ अनन्य ब्राह्मणों का भी हुआ इसलिए दिव्य जन्म की तिथि, वेला, रेखा ब्रह्मा की और शिवबाबा के अवतरण की एक ही होने कारण शिव बाप और ब्रह्मा बच्चा, परम आत्मा और महान आत्मा होते हुए भी ब्रह्मा बाप समान बना। समानता के कारण कम्बाइन्ड रूप बन गये। बापदादा, बापदादा सदा इकट्ठे बोलते हो। अलग नहीं। ऐसे ही अनन्य ब्राह्मण बापदादा के साथ-साथ ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी के रूप में अवतरित हुए।

तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी यह भी कम्बाइण्ड बाप और बच्चे की स्मृति का नाम है। तो बापदादा बच्चों के ब्राह्मण जीवन की अवतरण जयन्ती मनाने आये हैं। आप सभी भी अवतार हो ना! अवतार अर्थात् श्रेष्ठ स्मृति -’’मैं दिव्य जीवन वाली ब्राह्मण आत्मा हूँ।’’ तो नया जन्म हुआ ना! ऊँची स्मृति से इस साकार शरीर में अवतरित हो विश्व-कल्याण के कार्य में निमित्त बने हो। तो अवतार हुए ना। जैसे बाप अवतरित हुए हैं वैसे आप सब अवतरित हुए हो विश्वपरिवर्त न के लिए। परिवर्तन होना ही अवतरित होना है। तो यह अवतारों की सभा है। बाप के साथ-साथ आप ब्राह्मण बच्चों का भी अलौकिक बर्थ डे है। तो बच्चे बाप की जयन्ती मनायेंगे या बाप बच्चों की मनायेंगे। या सभी मिल करके एक दो की मनायेंगे! यह तो भक्त लोग सिर्फ यादगार मनाते रहते और आप सम्मुख बाप के साथ मनाते हो। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य, कल्प-कल्प के भाग्य की लकीर अविनाशी खिंच गई। सदा यह समृति में रहे कि हमारा भगवान के साथ भाग्य है। डायरेक्ट भाग्य विधाता के साथ भाग्य प्राप्त करने का पार्ट है। ऐसे डबल हीरो, हीरो पार्टधारी भी हो और हीरे तुल्य जीवन वाले भी हो। तो डबल हीरो हो गये ना! सारे विश्व की नजर आप हीरो पार्टधारी आत्माओं की तरफ है। आप भाग्यवान आत्माओं की आज अन्तिम जन्म में भी वा कल्प के अन्तिम काल में भी कितनी याद, यादगार के रूप में बनी हुई है। बाप के वा ब्राह्मणों के बोल यादगार रूप में शास्त्र बन गये हैं जो अभी भी दो वचन सुनने के लिए प्यासे रहते हैं। दो वचन सुनने से शान्ति का, सुख का अनुभव करने लगते हैं।

आप भाग्यवान आत्माओं के श्रेष्ठ कर्म चरित्र के रूप में अब तक भी गाये जा रहे हैं। आप भाग्यवान आत्माओं की श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना का श्रेष्ठ संकल्प दुआके रूप में गाये जा रहे हैं। किसी भी देवता के आगे दुआ मांगने जाते हैं। आप भाग्यवान आत्माओं की श्रेष्ठ स्मृति-सिमरण के रूप में अब भी यादगार चल रहा है। सिमरण की कितनी महिमा करते हैं। चाहे नाम सिमरण करते, चाहे माला के रूप में सिमरण करते। यह स्मृति का यादगार सिमरण रूप में चल रहा है। तो ऐसे भाग्यवान कैसे बने! क्योंकि भाग्य विधाता के साथ भाग्यवान बने हो। तो समझते हो कितना भाग्यवान दिव्य जन्म है? ऐसे दिव्य जन्म की, बापदादा भगवान, भाग्यवान बच्चों को बधाई दे रहे हैं। सदा बधाईयाँ ही बधाईयाँ हैं। यह सिर्फ एक दिन की बधाई नहीं। यह भाग्यवान जन्म हर सेकेण्ड, हर समय बधाईयों से भरपूर है। अपने इस श्रेष्ठ जन्म को जानते हो ना? हर श्वाँस में खुशी का साज़ बज रहा है। श्वाँस नहीं चलता लेकिन खुशी का साज़ चल रहा है। साज़ सुनने में आता है ना! नैचरल साज़ कितना श्रेष्ठ है! इस दिव्य जन्म का यह खुशी का साज़ अर्थात् श्वाँस, दिव्य जन्म की श्रेष्ठ सौगात है। ब्राह्मण जन्म होते ही यह खुशी का साज़ गिफ्ट में मिला है ना। साज़ में भी अंगुलियाँ नीचे ऊपर करते हो ना। तो श्वाँस भी नीचे ऊपर चलता है। तो श्वाँस चलना अर्थात् साज़ चलना। श्वाँस बन्द नहीं हो सकता। तो साज़ भी बन्द नहीं हो सकता। सभी का खुशी का साज़ ठीक चल रहा है ना! डबल विदेशी क्या समझते हैं? भोले भण्डारी से सभी खजाने ले अपना भण्डारा भरपूर कर लिया है ना। जो इक्कीस जन्म भण्डारे भरपूर रहेंगे। भरने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आराम से प्रालब्ध प्राप्त होगी। अभी का पुरूषार्थ इक्कीस जन्म की प्रालब्ध। इक्कीस जन्म सदा सम्पन्न स्वरूप में होंगे। तो पुरूषार्थ क्या किया? मेहनत लगती है? पुरूषार्थ अर्थात् सिर्फ अपने को इस रथ में विराजमान पुरूष अर्थात् आत्मा समझो। इसको कहते हैं पुरूषार्थ। यह पुरूषार्थ किया ना। इस पुरूषार्थ के फलस्वरूप इक्कीस जन्म सदा खुश और मौज में रहेंगे। अब भी संगमयुग मौजों का युग है। मूँझने का नहीं। मौजों का युग है। अगर किसी भी बात में मूँझते हैं तो संगमयुग से पांव थोड़ा कलियुग तरफ ले जाते, इसलिए मूँझते हैं। संकल्प अथवा बुद्धि रूपी पांव संमगयुग पर है तो सदा मौजों में हैं। संगमयुग अर्थात् दो का मिलन मनाने का युग है। तो बाप और बच्चे का मिलन मनाने का संगमयुग है। जहाँ मिलन है वहाँ मौज है। तो मौज मनाने का जन्म है ना। मूँझने का नाम निशान नहीं। मौजों के समय पर खूब रूहानी मौज मनाओ। डबल विदेशी तो डबल मौज में रहने वाले हैं ना। ऐसे मौजों के जन्म की मुबारक हो। मूँझने के लिए विश्व में अनेक आत्मायें हैं, आप नहीं हो। वह पहले ही बहुत हैं। और मौज मनाने वाले आप थोड़े से हो। समझा-अपनी इस श्रेष्ठ जयन्ती को! वैसे भी आजकल ज्योतिष विद्या वाले दिन, तिथि और वेला के आधार पर भाग्य बताते हैं। आप सबकी वेला कौन-सी है! तिथि कौन-सी है? बाप के साथ-साथ ब्राह्मणों का भी जन्म है ना। तो भगवान की जो तिथि वह आपकी।

भगवान के अवतरण अर्थात् दिव्य जन्म की जो वेला वह आपकी वेला हो गई। कितनी ऊँची वेला है। कितनी ऊँची रेखा है, जिसको दशा कहते हैं। तो दिल में सदा यह उमंग उत्साह रहे कि बाप के साथ-साथ हमारा जन्म है। ब्रह्मा, ब्राह्मणों के बिना कुछ कर नहीं सकते। शिव बाप ब्रह्मा के बिना कुछ कर नहीं सकते। तो साथ-साथ हुआ ना। तो जन्म तिथि, जन्म वेला का महत्व सदा याद रखो। जिस तिथि पर भगवान उतरे उस तिथि पर हम आत्मा अवतरित हुई। नाम राशि भी देखो -ब्रह्मा-ब्राह्मण। ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी। नाम राशि भी वही श्रेष्ठ है, ऐसे श्रेष्ठ जन्म वा जीवन वाले बच्चों को देख बाप सदा हर्षित होते हैं। बच्चे कहते - वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे! ऐसे बच्चे भी किसको नहीं मिलेंगे।

आज के इस दिव्य दिवस की विशेष सौगात बापदादा सभी स्नेही बच्चों को दो गोल्डन बोल दे रहे हैं। एक सदा अपने को समझो -’’मैं बाप का नूरे रत्न हूँ।’’ नूरे रत्न अर्थात् सदा नयनों में समाया हुआ। नयनों में समाने का स्वरूप बिन्दी होता है। नयनों में बिन्दी की कमाल है। तो नूरे रत्न अर्थात् बिन्दु बाप में समाया हुआ हूँ। स्नेह में समाया हुआ हूँ। तो एक यह गोल्डन बोल याद रखना कि नूरे रत्न हूँ। दूसरा -’’सदा बाप का साथ और हाथ मेरे ऊपर है।’’ साथ भी है और हाथ भी है। सदा आशीर्वाद का हाथ है और सदा सहयोग का साथ है। तो सदा बाप का साथ और हाथ है ही है। साथ देना हाथ रखना नहीं है, लेकिन है ही। यह दूसरा गोल्डन बोल सदा साथ और सदा हाथ। यह आज के इस दिव्य जन्म की सौगात हैं। अच्छा –

ऐसे चारों ओर के सदा श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को, सदा हर श्वाँस को खुशी का साज़ अनुभव करने वाले बच्चों को, डबल हीरो बच्चों को, सदा भगवान और भाग्य ऐसे स्मृति स्वरूप बच्चों को, सदा सर्व खजानों से भरपूर भण्डार वाले बच्चों को भोलेनाथ, अमरनाथ वरदाता बाप का बहुत-बहुत दिव्य जन्म की बधाइयों के साथ-साथ यादप्यार और नमस्ते।’’

दादियों से- बेहद बाप की स्नेह की बाहें बहुत बड़ी हैं, उसी स्नेह की बाहों में वा भाकी में सभी समाये हुए हैं। सदा ही सभी बच्चे बाप की भुजाओं के अन्दर भुजाओं की माला के अन्दर हो तभी मायाजीत हो। ब्रह्मा के साथ-साथ जन्म लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। तिथि में जरा भी अन्तर नहीं है इसीलिए ब्रह्मा के बहुत मुख दिखाये हैं। ब्रह्मा को ही पाँच मुखी वा तीन मुखी दिखाते हैं क्योंकि ब्रह्मा के साथ-साथ ब्राह्मण हैं। तो तीन मुख वाले में आप हो या पाँच मुख वाले में हो। मुख भी सहयोगी होता है ना। बाप को भी नशा है -कौन-सा? सारे विश्व में कोई भी बाप ऐसे बच्चे ढूँढकर लाये तो मिलेंगे? (नहीं) बाप कहेंगे ऐसे बच्चे नहीं मिलेंगे, बच्चे कहते ऐसा बाप नहीं मिलेगा। अच्छा है - बच्चे ही घर की रौनक होते हैं। अकेले बाप से घर की रौनक नहीं होती। इसलिए बच्चे इस विश्व रूपी घर की रौनक हैं। इतने सारे ब्राह्मणों की रौनक लगाने के निमित्त कौन बने? बच्चे बने ना! बाप भी बच्चों की रौनक देख खुश होते हैं। बाप को आप लोगों से भी ज्यादा मालायें सिमरण करनी पड़ती हैं। आपको तो एक ही बाप को याद करना पड़ता और बाप को कितनी मालायें सिमरण करनी पड़ती। जितनी भक्तिमार्ग में मालायें डाली हैं उतनी बाप को अभी सिमरण करनी पड़ती। एक बच्चे की भी माला बाप एक दिन भी सिमरण न करे, यह हो नहीं सकता। तो बाप भी नौधा भक्त हो गया ना। एक-एक बच्चे के विशेषताओं की, गुणों की माला बाप सिमरण करते और जितने बार सिमरण करते उतने वह गुण विशेषता यें और फ्रेश होती जाती। माला बाप सिमरण करते लेकिन माला का फल बच्चों को देता, खुद नहीं लेता। अच्छा - बापदादा तो सदा बच्चों के साथ ही रहते हैं। एक पल भी बच्चों से अलग नहीं रह सकते हैं। रहने चाहें तो भी नहीं रह सकते। क्यों? जितना बच्चे याद करते उसका रिसपान्ड तो देंगे ना! याद करने का रिटर्न तो देना पड़ेगा ना। तो सेकेण्ड भी बच्चों के सिवाय रह नहीं सकते। ऐसा भी कभी वण्डर नहीं देखा होगा जो साथ ही रहें। बाप बच्चों से अलग ही न हों। ऐसी बाप बेटे की जोड़ी कभी नहीं देखी होगी। बहुत अच्छा बगीचा तैयार हुआ है। आप सबको भी बगीचा अच्छा लगता है ना। एक-एक की खुशबू न्यारी और प्यारी है। इसलिए अल्लाह का बगीचा गाया हुआ है।

सभी आदि रत्न हो, एक-एक रत्न की कितनी वैल्यु है और हरेक रत्न की हर समय हर कार्य में आवश्यकता है। तो सभी श्रेष्ठ रत्न हो। जिन्हों की अभी भी रत्नों के रूप में पूजा होती है। अभी अनेक आत्माओं के विघ्न विनाशक बनने की सेवा करते हो तब यादगार रूप में एक-एक रत्न की वैल्यु होती है। एक-एक रत्न की विशेषता होती है। कोई विघ्न को नाश करने वाला रत्न होता, कोई कौन-सा! तो अभी लास्ट तक भी स्थूल यादगार रूप सेवा कर रहा है। ऐसे सेवाधारी बने हो। समझा।

सम्मेलन में आये हुए विदेशी प्रतिनिधियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - सभी कहाँ पहुँचे हो? बाप के घर में आये हैं, ऐसा अनुभव करते हो? तो बाप के घर में मेहमान आते हैं या बच्चे आते हैं? बच्चे हो, अधिकारी हो या मेहमान हो? बाप के घर में आये हो, बाप के घर में सदा अधिकारी बच्चे आते हैं। अभी से अपने को मेहमान नहीं लेकिन बाप के बच्चे महान आत्मायें समझते हुए आगे बढ़ना। भाग्यवान थे तब इस स्थान पर पहुँचे हो। अभी क्या करना है? यहाँ पहुँचना यह भाग्य तो हुआ लेकिन आगे क्या करना है। अभी सदा साथ रहना। याद में रहना ही साथ है। अकेले नहीं जाना। कम्बाइण्ड होकर जहाँ भी जायेंगे जो भी कर्म करेंगे वह कम्बाइण्ड रूप से करने से सदा सहज और सफल अनुभव करेंगे। सदा साथ रहेंगे यह संकल्प जरूर करके जाना। पुरूषार्थ करेंगे, देखेंगे, यह नहीं। करना ही है। क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो यह चाबी सदा अपने साथ रखना। यह ऐसी चाबी है जो खजाना चाहिए वह संकल्प किया और खजाना मिला। यह चाबी साथ रखना अर्थात् सदा सफलता पाना। अभी मेहमान नहीं अधिकारी आत्मा। बापदादा भी ऐसे अधिकारी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। जो अनुभव किया है वह अनुभव का खजाना सदा बांटते रहना, जितना बांटेंगे उतना बढ़ता रहेगा। तो महादानी बनना सिर्फ अपने पास नहीं रखना। अच्छा।

बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा लहराया तथा यादप्यार दी

चारों ओर के सभी सदा स्नेही बच्चों को बापदादा इस दिव्य जन्म की शुभ दिवस की मुबारक दे रहे हैं। सदा मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। सदा अविनाशी भव, सदा सम्पन्न भव, सदा समान भव के वरदानों से झोली भरी रहे। अच्छा!

विदाई के समय 3-30 बजे

सभी बच्चों को मुबारक के साथ-साथ गुडमोर्निंग। जैसे आज की रात शुभ मिलन की मौज में बिताया वैसे सदा दिन रात बाप के मिलन मौज में मनाते रहना। पूरा ही संगमयुग सदा बाप से बधाईयाँ लेते हुए वृद्धि को पाते हुए, आगे बढ़ते हुए, सभी को आगे बढ़ाते रहना। सदा महादानी वरदानी बनकर अनेक आत्माओं को दान भी देना, वरदान भी देना।

अच्छा - ऐसे सदा विश्व-कल्याणकारी, सदा रहमदिल, सदा सर्व के प्रति शुभ भावना रखने वाले बच्चों को यादप्यार और गुडमोर्निंग।



18-02-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


संगमयुग तन-मन-धन और समय सफल करने का युग

विश्व कल्याणकारी बापदादा सफलतामूर्त बच्चों प्रति बोले

आज विश्व-कल्याणकारी बाप अपने सहयोगी बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे की दिल में बाप को प्रत्यक्ष करने की लगन लगी हुई है। सभी का एक ही श्रेष्ठ संकल्प है और सभी इसी कार्य में उमंग-उत्साह से लगे हुए हैं। एक बाप से लगन होने कारण सेवा से भी लगन लगी हुई है। दिन-रात साकार कर्म में वा स्वप्न में भी बाप और सेवा यही दिखाई देता है। बाप का सेवा से प्यार है इसलिए स्नेही सहयोगी बच्चों का भी प्यार सेवा से अच्छा है। यह स्नेह का सबूत है अर्थात् प्रमाण है। ऐसे सहयोगी बच्चों को देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। अपना तन-मन-धन, समय कितना प्यार से सफल कर रहे हैं। पाप के खाते से बदल पुण्य के खाते में वर्तमान भी श्रेष्ठ और भविष्य में भी जमा कर रहे हैं। संगमयुग है ही एक का पद्मगुणा जमा करने का युग। तन सेवा में लगाओ और 21 जन्मों के लिए सम्पूर्ण निरोगी तन प्राप्त करो। कैसा भी कमज़ोर तन हो, रोगी हो लेकिन वाचा-कर्मणा नहीं तो मंसा सेवा अन्तिम घड़ी तक भी कर सकते हो। अपने अतीन्द्रिय सुख-शान्ति की शक्ति चेहरे से, नयनों से दिखा सकते हो। जो सम्पर्क वाले देखकर यही कहें कि यह तो वण्डरफुल पेशेन्ट है। डाक्टर्स भी पेशेन्ट को देख हर्षित हो जाएँ। वैसे तो डाक्टर्स पेशेन्ट को खुशी देते हैं, दिलाते हैं लेकिन यह देने के बजाए लेने का अनुभव करें। कैसे भी बीमार हो अगर दिव्य-बुद्धि सालिम है तो अन्त घड़ी तक भी सेवा कर सकते हैं। क्योंकि यह जानते हो कि इस तन की सेवा का फल 21 जन्म खाते रहेंगे। ऐसे तन से, मन से-स्वयं सदा मन के शान्ति स्वरूप बन, सदा हर संकल्प में शक्तिशाली बन, शुभ भावना शुभ कामना द्वारा, दाता बन सुख-शान्ति के शक्ति की किरणें वायुमण्डल में फैलाते रहो। जब आपकी रचना सूर्य चारों ओर प्रकाश की किरणें फैलाते रहते हैं तो आप मास्टर रचता, मास्टर सर्वशक्तिवान, विधाता, वरदाता, भाग्यवान, प्राप्ति की किरणें नहीं फैला सकते हो? संकल्प शक्ति अर्थात् मन द्वारा एक स्थान पर होते हुए भी चारों ओर वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बना सकते हो। थोड़े से समय की इस जन्म में मन द्वारा सेवा करने से 21 जन्म मन सदा सुख-शान्ति की मौज में होगा। लेकिन आधाकल्प भक्ति द्वारा, चित्रों द्वारा मन की शान्ति देने के निमित्त बनेंगे। चित्र भी इतना शान्ति का, शक्ति का देने वाला बनेगा। तो एक जन्म के मन की सेवा सारा कल्प चैतन्य स्वरूप से वा चित्र से शान्ति का स्वरूप बनेगा।

ऐसे धन द्वारा सेवा के निमित्त बनने वाले 21 जन्म अनगिनत धन के मालिक बन जाते हैं। साथ-साथ द्वापर से अब तक भी ऐसे आत्मा कभी धन की भिखारी नहीं बनेंगी। 21 जन्म राज्य भाग्य पायेंगे। जो धन मिट्टी के समान होगा। अर्थात् इतना सहज और अकीचार होगा। आपकी प्रजा की भी प्रजा अर्थात् प्रजा के सेवाधारी भी अनगिनत धन के मालिक होंगे। लेकिन 63 जन्मों में किसी जन्म में भी धन के भिखारी नहीं बनेंगे। मजे से दाल-रोटी खाने वाले होंगे। कभी रोटी के भिखारी नहीं होंगे। तो एक जन्म दाता के प्रति धन लगाने से, दाता भी क्या करेगा? सेवा में लगायेगा। आप तो बाप के भण्डारी में डालते हो ना और बाप फिर सेवा में लगाते हैं। तो सेवा अर्थ वा दाता के अर्थ धन लगाना अर्थात् पूरा कल्प भिखारी पन से बचना। जितना लगाओ उतना द्वापर से कलियुग तक भी आराम से खाते रहेंगे। तो तन-मन-धन और समय सफल करना है।

समय लगाने वाले, एक तो सृष्टि चक्र के सबसे श्रेष्ठ समय - सतयुग में आते हैं। सतोप्रधान युग में आते हैं। जिस समय का भक्त लोग अब भी गायन करते रहते हैं। स्वर्ग का गायन करते हैं ना। तो सतोप्रधान में भी वन-वन-वन ऐसे समय पर अर्थात् सतयुग के पहले जन्म में, ऐसे श्रेष्ठ समय का अधिकार पाने वाले, पहले नम्बर वाली आत्मा के साथ-साथ जीवन का समय बिताने वाले होंगे। उनके साथ पढ़ने वाले, खेलने वाले, घूमने वाले होंगे। तो जो संगम पर अपना समय सफल करते हैं उसका श्रेष्ठ फल सम्पूर्ण सुनहरे, श्रेष्ठ समय का अधिकार प्राप्त होता है। अगर समय लगाने में अलबेले रहे तो पहले नम्बर वाली आत्मा अर्थात् श्रीकृष्ण स्वरूप में स्वर्ग के पहले वर्ष में न आकर पीछे-पीछे नम्बरवार आयेंगे। यह है समय देने का महत्व। देते क्या हो और लेते क्या हो? इसलिए चारों ही बातों को सदा चेक करो तन-मन-धन, समय चारों ही जितना लगा सकते हैं उतना लगाते हैं? ऐसे तो नहीं जितना लगा सकते उतना नहीं लगाते? यथाशक्ति लगाने से प्राप्ति भी यथाशक्ति होगी। सम्पूर्ण नहीं होगी। आप ब्राह्मण आत्मायें सभी को सन्देश में क्या कहती हो? सम्पूर्ण सुख-शान्ति आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। यह तो नहीं कहते हो यथा शक्ति आपका अधिकार है। सम्पूर्ण कहते हो ना। जब सम्पूर्ण अधिकार है तो सम्पूर्ण प्राप्ति करना ही ब्राह्मण जीवन है। अधूरा है तो क्षत्रिय है। चन्द्रवंशी आधे में आते हैं ना। तो यथा शक्ति अर्थात् अधूरापन और ब्राह्मण जीवन अर्थात् हर बात में सम्पूर्ण। तो समझा, बापदादा बच्चों के सहयोग देने का चार्ट देख रहे थे। हैं सब सहयोगी। जब सहयोगी बने हैं तब सहज योगी बने हैं। सभी सहयोगी, सहजयोगी, श्रेष्ठ आत्मायें हों। बापदादा हर एक बच्चे को सम्पूर्ण अधिकारी आत्मा बनाते हैं। फिर यथाशक्ति क्यों बनते हो? वा यह सोचते हो - कोई तो बनेगा! ऐसे बनने वाले बहुत हैं। आप नहीं हो। अभी भी सम्पूर्ण अधिकार पाने का समय है। सुनाया था ना - अभी टूलेट का बोर्ड नहीं लगा। लेट अर्थात् पीछे आने वाले आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए अभी भी गोल्डन चांस है। जब टूलेट का बोर्ड लग जायेगा फिर गोल्डन चांस के बजाए सिल्वर चांस हो जायेगा। तो क्या करना चाहिए? गोल्डन चांस लेने वाले हो ना। गोल्डन एज में न आये तो ब्राह्मण बन करके क्या किया? इसलिए बापदादा स्नेही बच्चों को फिर भी स्मृति दिला रहे हैं, अभी बाप के स्नेह कारण एक का पद्मगुणा मिलने का चांस है। अभी जितना और उतना नहीं है। एक का पद्मगुणा है। फिर हिसाब-किताब जितना और उतने का रहेगा। लेकिन अभी भोलेनाथ के भरपूर भण्डार खुले हुए हैं। जितने चाहो, जितना चाहो ले सकते हो। फिर कहेंगे अभी सतयुग के नम्बरवन की सीट खाली नहीं। इसलिए बाप समान सम्पूर्ण बनो। महत्व को जान महान बनो। डबल विदेशी गोल्डन चांस वाले हो ना! जब इतनी लगन से बढ़ रहे हो, स्नेही हो, सहयोगी हो तो हर बात में सम्पूर्ण लक्ष्य द्वारा सम्पूर्णता के लक्षण धारण करो। लगन न होती तो यहाँ कैसे पहुँचते! जैसे उड़ते-उड़ते पहुँच गये हो ऐसे ही सदा उड़ती कला में उड़ते रहो। शरीर से भी उड़ने के अभ्यासी हों। आत्मा भी सदा उड़ती रहे। यही बापदादा का स्नेह है। अच्छा –

सदा सफलता स्वरूप बन संकल्प, समय को सफल करने वाले, हर कर्म में सेवा का उमंग-उत्साह रखने वाले, सदा स्वयं को सम्पन्न बनाए सम्पूर्ण अधिकार पाने वाले, मिले हुए गोल्डन चांस को सदा लेने वाले, ऐसे फॉलो फादर करने वाले सपूत बच्चों को, नम्बरवन बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

काठमाण्डू तथा विदेशी भाई-बहिनों के ग्रुप से बापदादा की पर्सनल मुलाकात - (1) सभी सदा अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे विश्व में ऐसी विशेष आत्मायें कितनी होंगी? जो कोटों में कोई गायन है, वह कौन हैं? आप हो ना! तो सदा अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? कभी स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि इतनी श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे लेकिन साकार रूप में अनुभव कर रहे हो। तो सदा अपना यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है? वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो भगवान ने खुद आपका भाग्य बनाया है। डायरेक्ट भगवान ने भाग्य की लकीर खींची, ऐसा श्रेष्ठ भाग्य है। जब यह श्रेष्ठ भाग्य स्मृति में रहता है तो खुशी में बुद्धि रूपी पाँव इस पृथ्वी पर नहीं रहते। ऐसे समझते हो ना। वैसे भी फरिश्तों के पाँव धरनी पर नहीं होते। सदा ऊपर। तो आपके बुद्धि रूपी पाँव कहाँ रहते हैं? नीचे धरनी पर नहीं। देह- अभिमान भी धरनी है। देह-अभिमान की धरनी से ऊपर रहने वाले। इसको ही कहा जाता है - फरिश्ता। तो कितने टाइटिल हैं - भाग्यवान हैं, फरिश्ते हैं, सिकीलधे हैं - जो भी श्रेष्ठ टाइटिल हैं वह सब आपके हैं। तो इसी खुशी में नाचते रहो। सिकीलधे धरती पर पाँव नहीं रखते, सदा झूले में रहते। क्योंकि नीचे धरनी पर रहने के अभ्यासी तो 63 जन्म रहे। उसका अनुभव करके देख लिया। धरनी में मिट्टी में रहने से मैले हो गये। और अभी सिकीलधे बने तो सदा धरनी से ऊपर रहना। मैले नहीं, सदा स्वच्छ। सच्ची दिल, साफ दिल वाले बच्चे सदा बाप के साथ रहते हैं। क्योंकि बाप भी सदा स्वच्छ है ना। तो बाप के साथ रहने वाले भी सदा स्वच्छ हैं। बहुत अच्छा, मिलन मेले में पहुँच गये। लगन ने मिलन मनाने के लिए पहुँचा ही दिया। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं क्योंकि बच्चे नहीं तो बाप भी अकेला क्या करेगा? भले पधारे अपने घर में। भक्त लोग यात्रा पर निकलते तो कितना कठिन रास्ते क्रास करते हैं। आप तो काठमाण्डू से बस में आये हो। मौज मनाते हुए पहुँच गये। अच्छा –

लण्डन ग्रुप - सभी स्नेह के सूत्र में बंधे हुए बाप के माला के मणके हो ना! माला का इतना महत्व क्यों बना है? क्योंकि स्नेह का सूत्र सबसे श्रेष्ठ सूत्र है। तो स्नेह के सूत्र में सब एक बाप के बने हैं, इसका यादगार माला है। जिसका एक बाप दूसरा न कोई हैवही एक ही स्नेह के सूत्र में माला के मणके बन पिरोये जाते हैं। सूत्र एक है और दाने अनेक हैं। तो यह एक बाप के स्नेह की निशानी है। तो ऐसे अपने को माला के मणके समझते हो ना। यह समझते हो 108 में तो बहुत थोड़े आयेंगे। क्या समझते हो? यह तो 108 का नम्बर निमित्त मात्र है। जो भी बाप के स्नेह में समाये हुए हैं वह गले की माला के मोती हैं ही। जो ऐसे एक ही लगन में मगन रहने वाले हैं तो मगन अवस्था निर्विघ्न बनाती है और निर्विघ्न आत्माओं का ही गायन और पूजन होता है। सबसे ज्यादा गायन कौन करता है? बाप करता है ना! आप सभी एक बाप का गायन करते और बाप कितनों का करता? तो सबसे ज्यादा कौन करता? अगर एक बच्चे का भी गायन न करे तो बच्चा रूठ जायेगा। इसलिए बाबा हरेक बच्चे का गायन करते हैं। क्योंकि हरेक बच्चा अपना अधिकार समझता है। अधिकार के कारण हरेक अपना हक समझता है। बाप की गति इतनी फास्ट है जो और कोई इतनी फास्ट स्पीड वाला है ही नहीं। एक ही सेकण्ड में अनेकों को राजी कर सकता है। तो बाप बच्चों से बिजी रहते और बच्चे बाप में बिजी रहते। बाप को बिजनेस ही बच्चों का है।

अविनाशी रत्न बने हो - इसकी मुबारक हो। 10 साल या 15 साल से माया से जीते रहे हो - इसकी मुबारक हो। आगे संगमयुग पूरा ही जीते रहो। सभी पक्के हो। इसलिए बापदादा ऐसे पक्के अचल बच्चों को देख खुश हैं। हरेक बच्चे की विशेषता ने बाप का बनाया है, ऐसा कोई बच्चा नहीं जिसमें विशेषतान हो। इसलिए बापदादा हरेक बच्चे की विशेषता देख सदा खुश होते हैं। नहीं तो कोटों में कोई, कोई में कोई, आप ही क्यों बनें! जरूर कोई विशेषता है। कोई कौन सा रत्न है, कोई कौन सा? भिन्न-भिन्न विशेषताओं के 9 रत्न गाये हुए हैं। हरेक रत्न विशेष विघ्न-विनाशक होता है। तो आप सभी भी विघ्न-विनाशक हो।

विदेशी भाई-बहिनों के याद प्यार तथा पत्रों का रेसपाण्ड देते हुए

सभी स्नेही बच्चों का स्नेह पाया। सभी के दिल के उमंग और उत्साह बाप के पास पहुँचते हैं और जैसे उमंग उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं - सदा आगे बढ़ने वाले बच्चों के ऊपर बापदादा और परिवार की विशेष ब्लेसिंग है। इसी ब्लेसिंग द्वारा आगे बढ़ते रहेंगे और दूसरों को भी आगे बढ़ाते रहेंगे। अच्छी सेवा में रेस कर रहे हो। जैसे उमंग-उत्साह में रेस कर रहे हो ऐसे अविनाशी उन्नति को पाते रहना। तो अच्छा नम्बर आगे ले लेंगे। सभी अपने नाम, विशेषता से याद स्वीकार करना। अभी भी सभी बच्चे अपनी-अपनी विशेषता से बापदादा के सम्मुख हैं। इसलिए पद्मगुणा यादप्यार।

दादी चन्द्रमणि जी ने पंजाब जाने की छुट्टी ली - सभी बच्चों को यादप्यार भी देना और विशेष सन्देश देना कि उड़ती कला में जाएं। औरों को उड़ाने के लिए समर्थ स्वरूप धारण करो। कैसे भी वातावरण में उड़ती कला द्वारा अनेक आत्माओं को उड़ाने का अनुभव करा सकते हो। इसलिए सभी को, याद और सेवा सदा साथ-साथ चलती रहे, यह विशेष स्मृति दिलाना। बाकी तो सभी सिकिलधे हैं। अच्छी विशेषता वाली आत्मायें हैं। सभी को अपनी-अपनी विशेषता से याद प्यार स्वीकार हो। अच्छा है डबल पार्ट बजा रही हो। बेहद के आत्माओं की यही निशानी है - जिस समय जहाँ आवश्यकता है, वहाँ पहुँचना। अच्छा-

युगलों के साथ - अव्यक्त बापदादा की मुलाकात (1) प्रवृत्ति में रहते सर्व बंधनों से न्यारे और बाप के प्यारे हो ना? फंसे हुए तो नहीं हो? पिंजड़े के पंछी तो नहीं, उड़ते पंछी हो ना! जरा भी बंधन फँसा लेता है। बंधनमुक्त हैं तो सदा उड़ते रहेंगे। तो किसी भी प्रकार का बंधन नहीं। न देह का, न संबंध का, न प्रवृत्ति का, न पदार्थ का। कोई भी बंधन न हो इसको कहा जाता है - न्यारा और प्यारा। स्वतन्त्र सदा उड़ती कला में होंगे और परतन्त्र थोड़ा उड़ेंगे भी फिर बंधन उसको खींच कर नीचे ले आयेगा। तो कभी नीचे, कभी ऊपर, टाइम चला जायेगा। सदा एकरस उड़ती कला की अवस्था और कभी नीचे, कभी ऊपर यह अवस्था, दोनों में रात-दिन का अन्तर है। आप कौन-सी अवस्था वाले हो? सदा निर्बन्धन, सदा स्वतन्त्र पंछी? सदा बाप के साथ रहने वाले? किसी भी आकर्षण में आकर्षित होने वाले नहीं। वही जीवन प्यारी है। जो बाप के प्यारे बनते उनकी जीवन सदा प्यारी बनती। खिट-खिट वाली जीवन नहीं। आज यह हुआ, कल यह हुआ, नहीं। लेकिन सदा बाप के साथ रहने वाले, एकरस स्थिति में रहने वाले। वह है मौज की जीवन। मौज में नहीं होंगे तो मूँझेंगे जरूर। आज यह प्राब्लम आ गई, कल दूसरी आ गई, यह दुःखधाम की बातें दुःखधाम में तो आयेंगी ही लेकिन हम संगमयुगी ब्राह्मण हैं तो दुःख नीचे रह जायेगा। दुःखधाम से किनारा कर लिया तो दुःख दिखाई देते भी आपको स्पर्श नहीं करेगा। कलियुग को छोड़ दिया, किनारा छोड़ चुके, अब संगमयुग पर पहुँचे तो संगम सदा ऊँचा दिखाते हैं। संगमयुगी आत्मायें भी सदा ऊँची, नीचे वाली नहीं। जब बाप उड़ाने के लिए आये हैं तो उड़ती कला से नीचे आयें ही क्यों! नीचे आना माना फँसना। अब पंख मिले हैं तो उड़ते रहो, नीचे आओ ही नहीं। अच्छा!

अधरकुमारों से - सभी एक ही लगन में मगन रहने वाले हो ना? एक बाप दूसरे हम, तीसरा न कोई। इसको कहा जाता है लगन में मगन रहने वाले। मैं और मेरा बाबा। इसके सिवाए और भी कोई मेरा है? मेरा बच्चा, मेरा पोत्रा....ऐसे तो नहीं। ‘‘मेरे’’ में ममता रहती है। मेरा-पन समाप्त होना अर्थात् ममता समाप्त होना। तो सारी ममता यानी मोह बाप में हो गया। तो बदल गया, शुद्ध मोह हो गया। बाप सदा शुद्ध है तो मोह बदलकर प्यार हो गया। एक मेरा बाबा, इस एक मेरे से सब समाप्त हो जाता और एक की याद सहज हो जाती। इसलिए सदा सहजयोगी। मैं श्रेष्ठ आत्मा और मेरा बाबा बस! श्रेष्ठ आत्मा समझने से श्रेष्ठ कर्म स्वत: होंगे, श्रेष्ठ आत्मा के आगे माया आ नहीं सकती।

माताओं से - मातायें सदा बाप के साथ खुशी के झूले में झूलने वाली हैं ना! गोप गोपियाँ सदा खुशी में नाचते या झूले में झूलते। तो सदा बाप के साथ रहने वाले खुशी में नाचते हैं। बाप साथ है तो सर्वशक्तियाँ भी साथ हैं। बाप का साथ शक्तिशाली बना देता। बाप के साथ वाले सदा निर्मोही होते, उन्हें किसी का मोह सतायेगा नहीं। तो नष्टोमोहा हो? कैसी भी परिस्थिति आवे लेकिन हर परिस्थिति में नष्टोमोहा। जितना नष्टमोहा होंगी उतना याद और सेवा में आगे बढ़ती रहेंगी।

मधुबन में आये हुए सेवाधारियों से - सेवा का खाता जमा हो गया ना। अभी भी मधुबन के वातावरण में शक्तिशाली स्थिति बनाने का चांस मिला और आगे के लिए भी जमा किया। तो डबल प्राप्ति हो गई। यज्ञ सेवा अर्थात् श्रेष्ठ सेवा, श्रेष्ठ स्थिति में रहकर करने से पद्मगुणा फल बन जाता है। कोई भी सेवा करो, पहले यह देखो कि शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो सेवाधारी बन सेवा कर रहे हैं? साधारण सेवाधारी नहीं, रूहानी सेवाधारी। रूहानी सेवाधारी की रूहानी झलक, रूहानी फलक सदा इमर्ज रूप में होनी चाहिए। रोटी बेलते भी स्वदर्शन चक्रचलता रहे। लौकिक निमित्त स्थूल कार्य लेकिन स्थूल सूक्ष्म दोनों साथ-साथ, हाथ से स्थूल काम करो और बुद्धि से मंसा सेवा करो तो डबल हो जायेगा। हाथ द्वारा कर्म करते हुए भी याद की शक्ति से एक स्थान पर रहते भी, बहुत सेवा कर सकते हो। मधुबन तो वैसे भी लाइट हाउस है, लाइट हाउस एक स्थान पर स्थित हो, चारों ओर सेवा करता है। ऐसे सेवाधारी अपनी और दूसरों की बहुत श्रेष्ठ प्रालब्ध बना सकते हैं। अच्छा – ओम शान्ति।



21-02-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शीतलता की शक्ति

ज्ञानसूर्य शिव बाबा अपने लक्की सितारों प्रति बोले

आज ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अपने लकी और लवली सितारों को देख रहे हैं। यह रूहानी तारामण्डल सारे कल्प में कोई देख नहीं सकता। आप रूहानी सितारे और ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा इस अति न्यारे और प्यारे तारामंडल को देखते हो। इस रूहानी तारामण्डल को साइंस की शक्ति नहीं देख सकती। साइंस की शक्ति वाले इस तारामण्डल को देख सकते, जान सकते हैं। तो आज तारामण्डल का सैर करते भिन्न-भिन्न सितारों को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। कैसे हर एक सितारा - ज्ञान सूर्य द्वारा सत्यता की लाइट माइट ले बाप समान सत्यता की शक्ति सम्पन्न सत्य स्वरूप बने हैं। और ज्ञान चन्द्रमा द्वारा शीतलता की शक्ति धारण कर चन्द्रमा समान शीतलास्वरूप बने हैं। यह दोनों शक्तियाँ - ‘सत्यता और शीतलतासदा सहज सफलता को प्राप्त कराती हैं। एक तरफ सत्यता की शक्ति का ऊँचा नशा दूसरे तरफ जितना ऊँचा नशा उतना ही शीतलता के आधार से कैसे भी उल्टे नशे वा क्रोधित आत्मा को भी शीतल बनाने वाले। कैसा भी अहंकार के नशे में मैं, मैंकरने वाला हो लेकिन शीतलता की शक्ति से मैं, मैं के बजाए बाबा-बाबाकहने लग पड़े। सत्यता को भी शीतलता की शक्ति से सिद्ध करने से सिद्धि प्राप्त होती है। नहीं तो सिवाए शीतलता की शक्ति के सत्यता को सिद्ध करने के लक्ष्य से, करते सिद्ध हैं लेकिन अज्ञानी, सिद्ध को जिद्द समझ लेते हैं। इसलिए सत्यता और शीतलता दोनों शक्तियाँ समान और साथ चाहिए। क्योंकि आज के विश्व का हर एक मानव किसी न किसी अग्नि में जल रहा है। ऐसी अग्नि में जलती हुई आत्मा को पहले शीतलता की शक्ति से अग्नि को शीतल करो तब शीतलता के आधार से सत्यता को जान सकेंगे।

शीतलता की शक्ति अर्थात् आत्मिक स्नेह की शक्ति। चन्द्रमा माँस्नेह की शीतलता से कैसे भी बिगड़े हुए बच्चे को बदल लेती है। तो स्नेह अर्थात् शीतलता की शक्ति किसी भी अग्नि में जली हुई आत्मा को शीतल बनाए सत्यता को धारण कराने के योग्य बना देती है। पहले चन्द्रमा की शीतलता से योग्य बनते फिर ज्ञान सूर्य के सत्यता की शक्ति से योगीबन जाते! तो ज्ञान चन्द्रमा के शीतलता की शक्ति बाप के आगे जाने के योग्य बना देती है। योग्य नहीं तो योगी भी नहीं बन सकते हैं। तो सत्यता जानने के पहले शीतल हो? सत्यता को धारण करने की शक्ति चाहिए। तो शीतलता की शक्ति वाली आत्मा स्वयं भी, संकल्पों की गति में, बोल में, सम्पर्क में हर परिस्थिति में शीतल होगी। संकल्प की स्पीड फास्ट होने के कारण वेस्ट भी बहुत होता और कन्ट्रोल करने में भी समय जाता है। जब चाहें तब कन्ट्रोल करें वा परिवर्तन करें। इसमें समय और शक्ति ज्यादा लगानी पड़ती। यथार्थ गति से चलने वाले अर्थात् शीतलता की शक्ति स्वरूप रहने वाले व्यर्थ से बच जाते हैं। एक्सीडेंट से बच जाते। यह क्यों, क्या, ऐसा नहीं वैसा इस व्यर्थ फास्ट गति से छूट जाते हैं। जैसे वृक्ष की छाया किसी भी राही को आराम देने वाली है, सहयोगी है। ऐसे शीतलता की शक्ति वाला अन्य आत्माओं को भी अपने शीतलता की छाया से सदा सहयोग का आराम देता है। हर एक को आकर्षण होगा कि इस आत्मा के पास जाए दो घड़ी में भी शीतलता की छाया में शीतलता का सुख, आनन्द लेवें। जैसे चारों ओर बहुत तेज धूप हो तो छाया का स्थान ढूँढेंगे ना। ऐसे आत्माओं की नजर वा आकर्षण ऐसी आत्माओं तरफ जाती है। अभी विश्व में और भी विकारों की आग तेज होनी है - जैसे आग लगने पर मनुष्य चिल्लाता है ना। शीतलता का सहारा ढूँढता है। ऐसे यह मनुष्य आत्मायें, आप शीतल आत्माओं के पास तड़पती हुई आयेंगी। जरा-सा शीतलता के छींटे भी लगाओ। ऐसे चिल्लायेंगी। एक तरफ विनाश की आग, दूसरे तरफ विकारों की आग, तीसरे तरफ देह और देह के संबंध, पदार्थ के लगाव की आग, चौथे तरफ पश्चाताप की आग। चारों ओर आग ही आग दिखाई देगी। तो ऐसे समय पर आप शीतलता की शक्ति वाली शीतलाओं के पास भागते हुए आयेंगे। सेकण्ड के लिए भी शीतल करो। ऐसे समय पर इतनी शीतलता की शक्ति स्वयं में जमा हो जो चारों ओर की आग का स्वयं में सेक न लग जाए। चारों तरफ की आग मिटाने वाले शीतलता का वरदान देने वाले शीतला बन जाओ। अगर जरा भी चारों प्रकार की आग में से किसी का भी अंश मात्र रहा हुआ होगा तो चारों ओर की आग अंश मात्र रही हुई आग को पकड़ लेगी। जैसे आग, आग को पकड़ लेती है ना। तो यह चेक करो।

विनाश ज्वाला की आग्नि से बचने का साधन - निर्भयता की शक्ति है। निर्भयता, विनाश ज्वाला के प्रभाव से डगमग नहीं करेगी। हलचल में नहीं लाएगी। निर्भयता के आधार से विनाश ज्वाला में भयभीत आत्माओं को शीतलता की शक्ति देंगे। आत्मा भय की अग्नि से बच शीतलता के कारण खुशी में नाचेगी। विनाश देखते भी स्थापना के नजारे देखेंगे। उनके नयनों में एक आँख में मुक्ति-स्वीट होम दूसरी आँख में जीवन मुक्ति अर्थात् स्वर्ग समाया हुआ होगा। उसको अपना घर, अपना राज्य ही दिखाई देगा। लोग चिल्लायेंगे हाय गया, हाय मरा और आप कहेंगे अपने मीठे घर में, अपने मीठे राज्य में गया। नथिंग न्यू। यह घुँघरू पहनेंगे। हमारा घर, हमारा राज्य - इस खुशी में नाचते-गाते साथ चलेंगे। वह चिल्लायेंगे और आप साथ चलेंगे। सुनने में ही सबको खुशी हो रही है तो उस समय कितनी खुशी में होंगे! तो चारों ही आग से शीतल हो गये हो ना? सुनाया ना - विनाश ज्वाला से बचने का साधन है - ‘निर्भयता। ऐसे ही विकारों की आग के अंश मात्र से बचने का साधन है - अपने आदि-अनादि वंश को याद करो। अनादि बाप के वंश सम्पूर्ण सतोप्रधान आत्मा हूँ। आदि वंश-देव आत्मा हूँ। देव आत्मा 16 कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी है। तो अनादि-आदि वंश को याद करो तो विकारों का अंश भी समाप्त हो जायेगा।

ऐसे ही तीसरी देह, देह के सम्बन्ध और पदार्थ के ममता की आग - इस अग्नि से बचने का साधन है - बाप को संसार बनाओ। बाप ही संसार है तो बाकी सब असार हो जायेगा। लेकिन करते क्या हैं वह फिर दूसरे दिन सुनायेंगे। बाप ही संसार है यह याद है तो न देह, न सम्बन्ध, न पदार्थ रहेगा। सब समाप्त।

चौथी बात-पश्चाताप की आग- इसका सहज साधन है सर्व प्राप्ति स्वरूप बनना। अप्राप्ति पश्चाताप कराती है। प्राप्ति पश्चाताप को मिटाती है। अब हर प्राप्ति को सामने रख चेक करो। किसी भी प्राप्ति का अनुभव करने में रह तो नहीं गये हैं। प्राप्तियों की लिस्ट तो आती हैं ना। अप्राप्ति समाप्त अर्थात् पश्चाताप समाप्त। अब इन चारों बातों को चेक करो तब ही शीतलता स्वरूप बन जायेंगे। औरों की तपत को बुझाने वाले शीतल योगी व शीतला देवीबन जायेंगे। तो समझा, शीतलता की शक्ति क्या है। सत्यता की शक्ति का सुनाया भी है। आगे भी सुनायेंगे। तो सुना तारामण्डल में क्या देखा। विस्तार फिर सुनायेंगे। अच्छा –

ऐसे सदा चन्द्रमा समान शीतलता के शक्ति स्वरूप बच्चों को, सत्यता की शक्ति से सतयुग लाने वाले बच्चों को, सदा शीतलता की छाया से सर्व को दिल का आराम देने वाले बच्चों को, सदा चारों ओर की अग्नि से सेफ रहने वाले शीतल योगी शीतला देवी बच्चों को ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का यादप्यार और नमस्ते।’’

विदेशी टीचर्स भाई-बहिनों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - यह कौन-सा ग्रुप है? (सेवाधारियों का, राइट हैंण्डस का) आज बापदादा अपने फ्रेंड्स से मिलने आये हैं। फ्रेंड्स का नाता रमणीक है। जैसे बाप सदा बच्चों के स्नेह में समाये हुए हैं वैसे बच्चे भी बाप के स्नेह में समाये हुए हैं। तो यह लवलीन ग्रुप है। खाते-पीते, चलते कहाँ लीन रहते हो? लव में ही रहते हो ना! यह लवलीन रहने की स्थिति सदा हर बात में सहज ही बाप समान बना देती है। क्योंकि बाप के लव में लीन हैं तो संग का रंग लगेगा ना। मेहनत वा मुश्किल से छूटने का सहज साधन है - लवलीन रहना। यह लवलीन अवस्था लकी है, इसके अन्दर माया नहीं आ सकती है। तो बापदादा के अति स्नेही, समीप, समान ग्रुप है। आपके संकल्प और बाप के संकल्प में अन्तर नहीं है। ऐसे समीप हो ना? तब तो बाप समान विश्व-कल्याणकारी बन सकते हो। जो बाप का संकल्प वह बच्चों का। जो बाप के बोल वह बच्चों के। तो हर कर्म आपके क्या बन जाएँ? (आइना) तो हर कर्म ऐसा आइना हो जिसमें बाप दिखाई दे। ऐसा ग्रुप है ना! जैसे कई आइने होते हैं, दुनिया में भी ऐसे आइने बनाते हैं जिसमें बड़े से छोटा, छोटे से बड़ा दिखाई पड़ता है। तो आपका हर कर्म रूपी दर्पण क्या दिखायेगा? डबल दिखाई दे - आप और बाप। आपमें बाप दिखाई दे। आप, बाप के साथ दिखाई दो। जैसे ब्रह्मा बाप में सदा डबल दिखाई देता था ना। ऐसे आप हरेक में सदा बाप दिखाई दे तो डबल दिखाई दिया ना। ऐसे आइने हो? सेवाधारी विशेष किस सेवा के निमित हो! बाप को प्रत्यक्ष करने की ही विशेष सेवा है। तो अपने हर कर्म, बोल, संकल्प द्वारा बाप को दिखाना। इसी कार्य में सदा रहते हो ना! कभी भी कोई आत्मा अगर आत्मा को देखती है कि यह बहुत अच्छा बोलती, यह बहुत अच्छी सेवा करती, यह बहुत अच्छी दृष्टि देती। तो यह भी बाप को नहीं देखा आत्मा को देखा। यह भी रांग हो जाता है। आपको देखकर मुख से यह निकले - ‘‘बाबा’’! तभी कहेंगे पावरफुल दर्पण हो। अकेली आत्मा नहीं दिखाई दे, बाप दिखाई दे। इसी को कहा जाता है यथार्थ सेवाधारी। समझा! जितना आपके हर संकल्प में, बोल में बाबा-बाबाहोगा उतना औरों को आप से बाबादिखाई देगा। जैसे आजकल के साइंस के साधनों से आगे जो पहली चीज़ दिखाते वह गुम हो जाती और दूसरी दिखाई देती। ऐसे आपके साइलेन्स की शक्ति आपको देखते हुए आपको गुम कर दे। बाप को प्रत्यक्ष कर दे। ऐसी शक्तिशाली सेवा हो। बाप से संबंध जोड़ने से आत्मायें सदा शक्तिशाली बन जाती हैं। अगर आत्मा से संबंध जुट जाता तो सदा के लिए शक्तिशाली नहीं बन सकते। समझा। सेवाधारियों की विशेष सेवा क्या है? अपने द्वारा बाप को दिखाना। आपको देखें और बाबा-बाबाके गीत गाने शुरू कर दें। ऐसी सेवा करते हो ना! अच्छा –

सभी अमृतवेले दिल खुश मिठाई खाते हो? सेवाधारी आत्मायें रोज दिलखुश मिठाई खायेंगी तो दूसरों को भी खिलायेंगी। फिर आपके पास दिलशिकस्त की बातें नहीं आयेंगी, जिज्ञासु यह बातें नहीं लेकर आयेंगे। नहीं तो इसमें भी समय देना पड़ता है ना। फिर यह टाइम बच जायेगा। और इसी टाइम में अनेक औरों को दिलखुश मिठाई खिलाते रहेंगे। अच्छा –

आप सभी दिलखुश रहते हो? कभी कोई सेवाधारी रोते तो नहीं। मन में भी रोना होता है सिर्फ आँखों का नहीं। तो रोने वाले तो नहीं हो ना! अच्छा, शिकायत करने वाले हो? बाप के आगे शिकायत करते हो? ऐसा मेरे से क्यों होता! मेरा ही ऐसा पार्ट क्यों है! मेरे ही संस्कार ऐसे क्यों हैं! मेरे को ही ऐसे जिज्ञासु क्यों मिले हैं या मेरे को ही ऐसा देश क्यों मिला है! ऐसी शिकायत करने वाले तो नहीं? शिकायत माना भक्ति का अंश। कैसा भी हो लेकिन परिवर्तन करना, यह सेवाधारियों का विशेष कर्त्तव्य है। चाहे देश है, चाहे जिज्ञासु हैं, चाहे अपने संस्कार हैं, चाहे साथी हैं, शिकायत के बजाए परिवर्तन करने को कार्य में लगाओ। सेवाधारी, कभी भी दूसरों की कमज़ोरी को नहीं देखो। अगर दूसरे की कमज़ोरी को देखा तो स्वयं भी कमज़ोर हो जायेंगे। इसलिए सदा हर एक की विशेषता को देखो। विशेषता को धारण करो। विशेषता का ही वर्णन करो। यही सेवाधारी के विशेष उड़ती कला का साधन है। समझा! और क्या करते हैं सेवाधारी? प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं। उमंग-उत्साह भी अच्छा है। बाप और सेवा से स्नेह भी अच्छा है। अभी आगे क्या करना है?

अभी विश्व में विशेष दो सत्तायें हैं (1) राज्य सत्ता (2) धर्म सत्ता। धर्म नेतायें और राज्य नेतायें। और आक्यूपेशन वाले भी अलग-अलग हैं लेकिन सता इन दो के साथ में है। तो अभी इन दोनों सत्ताओं को ऐसा स्पष्ट अनुभव हो कि धर्म सत्ता भी अभी सत्ताहीन हो गई है और राज्य सत्ता वाले भी अनुभव करें कि हमारे में नाम राज्य सत्ता है लेकिन सत्ता नहीं है। कैसे अनुभव करओ - उसका साधन क्या है? जो भी राज नेतायें वा धर्म नेतायें हैं उन्हों को ‘‘पवित्रता और एकता’’ इसका अनुभव कराओ। इसी की कमी के कारण दोनों सत्तायें कमज़ोर हैं। तो प्युरिटी क्या है, युनिटी क्या है, इसी पर उन्हों को स्पष्ट समाझानी मिलने से वह स्वयं ही समझेंगे कि हम कमज़ोर हैं और यह शक्तिशाली हैं। इसी के लिए विशेष मनन करो। धर्मसत्ता को धर्मसत्ता हीन बनाने का विशेष तरीका है - पवित्रता को सिद्ध करना। और राज्य सत्ता वालों के आगे एकता को सिद्ध करना। इस टॉपिक पर मनन करो। प्लैन बनाओ और उन्हों तक पहुँचाओ। इन दोनों ही शक्तियों को सिद्ध किया तो ईश्वरीय सत्ता का झण्डा बहुत सहज लहरायेगा। अभी इन दोनों की तरफ विशेष अटेन्शन चाहिए। अन्दर तो समझते हैं लेकिन अभी बाहर का अभिमान है। जैसे-जैसे प्युरिटी और युनिटी की शक्ति से इन्हों के समीप सम्पर्क में आते रहेंगे वैसे-वैसे वह स्वयं ही अपना वर्णन करने लगेंगे। समझा! जब दोनों ही सत्ताओं को कमज़ोर सिद्ध करो तब प्रत्यक्षता हो। अच्छा!

बाकी तो सेवाधारी ग्रुप है ही सदा सन्तुष्ट। अपने से, साथियों से, सेवा से सर्व प्रकार से सन्तुष्ट योगी। यह सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट लिया है ना। बापदादा, निमित्त दादी-दीदियाँ सब आपको सर्टिफिकेट दें कि हाँ, यह सन्तुष्ट योगी है। चलते-फिरते भी सर्टिफिकेट मिलता है। अच्छा, कभी मूड आफ तो नहीं करते? कभी सेवा से थक कर मूड आफ तो नहीं होती है? क्या करना है, इतनी क्या पड़ी है? ऐसे तो नहीं!

तो अभी यह सब बातें अपने में चेक करना। अगर कोई हो तो चेन्ज कर लेना। क्योंकि सेवाधारी अर्थात् स्टेज पर हर कर्म करने वाले। स्टेज पर सदा श्रेष्ठ और युक्तियुक्त हर कदम उठाना होता है। ऐसे कभी भी नहीं समझना कि मैं फलाने देश में सेन्टर पर बैठी हूँ। लेकिन विश्व की स्टेज पर बैठी हो। इस स्मृति में रहने से हर कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होगा। आपको फॉलो करने वाले भी बहुत हैं। इसलिए सदा आप बाप को फॉलो करेंगे तो आपको फॉलो करने वाले भी बाप को फॉलो करेंगे। तो इन्डायरेक्ट फॉलोफादर हो जायेगा। क्योंकि आपका हर कर्म फॉलो फादर है। इसलिए यह स्मृति सदा रखना। अच्छा - मुहब्बत के कारण मेहनत से परे हो।

पार्टियों से - सभी अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन वाली विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सारे कल्प में ऐसी श्रेष्ठ जीवन कभी भी नहीं मिलनी है। सतयुग में भी ऐसी जीवन नहीं होगी क्योंकि अभी बाप के डायरेक्ट बच्चे बने हो फिर तो बाप की याद समा जायेगी, ऐसे इमर्ज रूप में नहीं होगी। अभी याद की विशेष खुशी होती है ना। इसीलिए यह जीवन अति श्रेष्ठ है। ऐसे जीवन की सदा खुशी रहे। बाप के बने हो तो बाप बच्चों को सदा सम्पन्न बनने के लिए ही आगे बढ़ाते हैं। जैसे बाप वैसे बच्चे बनें। बाप सब बातों में सम्पन्न है, यथाशक्ति नहीं हैं तो बच्चे भी सम्पन्न हों। यही लक्ष्य स्मृति में रहे। बाप बच्चों को देख-देख खुश होते हैं कि कहाँ-कहाँ से बाप के बन गये। बाप ने कहाँ से भी ढूँढकर अपना बना लिया। बाप ने अपने बच्चों को छोड़ा नहीं, ढूँढ लिया, भले कितना भी दूर चले गये। क्योंकि बाप जानते हैं कि बच्चे बाप से अलग होने से किस स्थिति में जाकर पहुँचते हैं। बच्चों का इतना ऊँचा जो प्राप्ति स्वरूप था वह बाप को सदा याद रहता है। आपको क्या याद रहता? अपना सम्पूर्ण स्वरूप याद रहता है? सदा अपने सम्पन्न फरिश्ता स्वरूप वी याद में रहो।

आप सभी लाइट हाउस हो। स्वयं तो लाइट स्वरूप हो ही लेकिन औरों को भी लाइट देने वाले हो। लाइट के आगे अंधियारा स्वत: भाग जाता है। भगाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। तो सदा लाइट हाउस रहने वाले सहज मायाजीत हो जाते हैं। अभी तो बहुत समय के अनुभवी हो गये। चाहे एक वर्ष हुआ चाहे 6 मास हुए। संगमयुग के 6 मास भी कितने बड़े हैं। 6 मास का अनुभवी भी बहुत काल का अनुभवी हो गया। तो सभी अनुभव की अथॉरिटी वाली आत्मायें हो। औरों को भी अथॉरिटी सम्पन्न बनाओ। बापदादा की पालना का पानी फूलों को देते हुए अच्छे-अच्छे रूहानी गुलाब बाप के सामने लाओ। सदा बाप समान निमित्त बन अनेक आत्माओं के कल्याण करने की शुभ भावना से आगे बढ़ते रहो। बाप समान निमित्त बनने वाली आत्माओं की सदा सफलता है ही। अच्छा –ओम शान्ति।



24-02-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


संगमयुग - सर्व श्रेष्ठ प्राप्तियों का युग

सदा महादानी,वरदानी बापदादा अपने-अपने बच्चों प्रति बोले

आज बापदादा चारों ओर के प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को देख रहे थे। एक तरफ अनेक आत्मायें अल्पकाल के प्राप्ति वाली हैं जिसमें प्राप्ति के साथ-साथ अप्राप्ति भी है। आज प्राप्ति है, कल अप्राप्ति है। तो एक तरफ अनेक प्राप्ति सो अप्राप्ति स्वरूप। दूसरे तरफ बहुत थोड़े सदाकाल की प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्मायें। दोनों के महान अन्तर को देख रहे थे। बापदादा प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख हर्षित हो रहे थे। प्राप्ति स्वरूप बच्चे कितने पद्मापद्म भाग्यवान हो। इतनी प्राप्ति कर ली जो आप विशेष आत्माओं के हर कदम में पद्म है। लौकिक में प्राप्ति स्वरूप जीवन में विशेष चार बातों की प्राप्ति आवश्यक है। (1) सुखमय सम्बन्ध। (2) स्वभाव और संस्कार सदा शीतल और स्नेही हो। (3) सच्ची कमाई की श्रेष्ठ सम्पत्ति हो। (4) श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ सम्पर्क हो। अगर यह चारों ही बातें प्राप्त हैं तो लौकिक जीवन में भी सफलता और खुशी है। लेकिन लौकिक जीवन की प्राप्तियाँ अल्पकाल की प्राप्तियाँ हैं। आज सुखमय सम्बन्ध है कल वही सम्बन्ध दुःखमय बन जाता है। आज सफलता है कल नहीं है। इसके अन्तर में आप प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को इस अलौकिक श्रेष्ठ जीवन में चारों ही बातें सदा प्राप्त हैं। क्योंकि डायरेक्ट सुखदाता सर्व प्राप्तियों के दाता के साथ अविनाशी सम्बन्ध है। जो अविनाशी सम्बन्ध कभी भी दुख वा धोखा देने वाला नहीं है। विनाशी सम्बन्धों में वर्तमान समय दुख है वा धोखा है। अविनाशी सम्बन्ध में सच्चा स्नेह है। सुख है। तो सदा स्नेह और सुख के सर्व सम्बन्ध बाप से प्राप्त हैं। एक भी सम्बन्ध की कमी नहीं हैं। जो सम्बन्ध चाहो उसी सम्बन्ध से प्राप्ति का अनुभव कर लो। जिस आत्मा को जो सम्बन्ध प्यारा है उसी सम्बन्ध से भगवान प्रीत की रीति निभा रहे हैं। भगवान को सर्व सम्बन्धी बना लिया। ऐसा श्रेष्ठ सम्बन्ध सारे कल्प में प्राप्त नहीं हो सकता। तो सम्बन्ध भी प्राप्त है। साथसाथ इस अलौकिक दिव्य-जन्म में सदा श्रेष्ठ स्वभाव, ईश्वरीय संस्कार होने कारण स्वभाव संस्कार कभी दुःख नहीं देते। जो बापदादा के संस्कार वह बच्चों के संस्कार। जो बापदादा का स्वभाव वह बच्चों का स्वभाव। स्व-भाव अर्थात् सदा हर एक के प्रति स्व अर्थात् आत्म-भाव। स्वश्रेष्ठ को भी कहा जाता है। स्व का भाव वा श्रेष्ठ भाव यही स्वभाव हो। सदा महादानी रहमदिल विश्व-कल्याणकारी। यह बाप के संस्कार सो आपके संस्कार हों। इसलिए स्वभाव और संस्कार सदा खुशी की प्राप्ति कराते हैं। ऐसे ही सच्ची कमाई की सुखमय सम्पत्ति है। तो अविनाशी खजाने कितने मिले हैं? हर एक खजाने की खानियों के मालिक हो। सिर्फ खजाना नहीं, अखुट अनगिनत खजाने मिले हैं। जो खर्चो, खाओ और बढ़ाते रहो। जितना खर्च करो उतना बढ़ता है। अनुभवी हो ना। स्थूल सम्पत्ति किसलिए कमाते हैं? दाल रोटी सुख से खावें। परिवार सुखी हो। दुनिया में नाम अच्छा हो! आप अपने को देखो कितने सुख और खुशी की, दाल रोटी मिल रही है। जो गायन भी है - दाल रोटी खाओ भगवान के गीत गाओ। ऐसे गायन की हुई दाल रोटी खा रहे हो। और ब्राह्मण बच्चों को बापदादा की गैरन्टी है - ब्राह्मण बच्चा दाल रोटी से वंचित हो नहीं सकता। आसक्ति वाला खाना नहीं मिलेगा लेकिन दाल रोटी जरूर मिलेगी। दाल रोटी भी है, परिवार भी ठीक है और नाम कितना बाला है! इतना आपका नाम बाला है जो आज लास्ट जन्म तक आप पहुँच गये हो। लेकिन आपके जड़ चित्रों के नाम से अनेक आत्मायें अपना काम सिद्ध कर रही हैं। नाम आप देवी-देवताओं का लेते हैं। काम अपना सिद्ध करते हैं। इतना नाम बाला है। एक जन्म नाम बाला नहीं होता, सारा कल्प आपका नाम बाला है। तो सुखमय, सच्चे सम्पत्तिवान हो। बाप के सम्पर्क में आने से आपका भी श्रेष्ठ सम्पर्क बन गया है। आपका ऐसा श्रेष्ठ सम्पर्क है जो आपके जड़ चित्रों की सेकण्ड के सम्पर्क की भी प्यासी हैं। सिर्फ दर्शन के सम्पर्क के भी कितने प्यासे हैं! सारी-सारी रातें जागरण करते रहते हैं। सिर्फ सेकण्ड के दर्शन के सम्पर्क के लिए पुकारते रहते हैं। चिल्लाते रहते वा सिर्फ सामने जावें उसके लिए कितना सहन करते हैं! हैं चित्र और ऐसे चित्र घर में भी होते हैं फिर भी एक सेकण्ड के सम्मुख सम्पर्क के लिए कितने प्यासे हैं! एक बेहद के बाप के बनने के कारण सारे विश्व की आत्माओं से सम्पर्क हो गया। बेहद के परिवार के हो गये। विश्व की सर्व आत्माओं से सम्पर्क बन गया। तो चारों ही बातें अविनाशी प्राप्त हैं। इसलिए सदा सुखी जीवन है। प्राप्ति स्वरूप जीवन है। अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के जीवन में। यही आपके गीत हैं। ऐसे प्राप्ति स्वरूप हो ना वा बनना है? तो सुनाया ना आज प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे थे। जिस श्रेष्ठ जीवन के लिए दुनिया वाले कितनी मेहनत करते हैं। और आपने क्या किया? मेहनत की वा मुहब्बत की? प्यार-प्यार में ही बाप को अपना बना लिया। तो दुनिया वाले मेहनत करते हैं और आपने मुहब्बत से पा लिया। बाबा कहा और खजानों की चाबी मिली। दुनिया वालों से पूछो तो क्या कहेंगे? कमाना बड़ा मुश्किल है। इस दुनिया में चलना बड़ा मुश्किल है और आप क्या कहते हो? कदम में पद्म कमाना है। और चलना कितना सहज है! उड़ती कला है तो चलने से भी बच गये। आप कहेंगे - चलना क्या, उड़ना है। कितना अन्तर हो गया! बापदादा आज विश्व के सभी बच्चों को देख रहे थे। सभी अपनी-अपनी प्राप्ति की लगन में लगे हुए हैं लेकिन रिजल्ट क्या है! सब खोज करने में लगे हुए हैं। साइन्स वाले देखो अपनी खोज में इतने व्यस्त हैं जो और कुछ नहीं सूझता। महान आत्मायें देखो प्रभु को पाने की खोज में लगी हुई हैं। वा छोटी सी भ्रान्ति के कारण प्राप्ति से वंचित हैं। आत्मा ही परमात्मा है वा सर्वव्यापी परमात्मा है इस भ्रान्ति के कारण खोज में ही रह गये। प्राप्ति से वंचित रह गये हैं। साइन्स वाले भी - अभी और आगे है और आगे है, ऐसा करते-करते चन्द्रमा में, सितारों में दुनिया बनायेंगे, खोजते-खोजते खो गये हैं। शास्त्रवादी देखो शास्त्रर्थ के चक्कर में विस्तार में खो गये हैं। शास्त्रर्थ का लक्ष्य रख अर्थ से वंचित हो गये हैं। राजनेताऐं देखो कुर्सा की भाग दौड़ में खोये हुए हैं। और दुनिया के अन्जान आत्मायें देखो विनाशी प्राप्ति के तिनके के सहारे को असली सहारा समझ बैठ गई हैं। और आपने क्या किया? वह खोये हुए हैं और आपने पा लिया। भ्रान्ति को मिटा लिया। तो प्राप्ति स्वरूप हो गये। इसलिए सदा प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्मायें हो।

बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों को मुबारक देते हैं कि विश्व में अनेक आत्माओं के बीच आप श्रेष्ठ आत्माओं की पहचान का नेत्र शक्तिशाली रहा। जो पहचाना और पाया। तो बापदादा डबल विदेशी बच्चों की पहचान के नेत्र को देख बच्चों के गुण गा रहे हैं कि वाह बच्चे, वाह! जो दूरदेशी होते, भिन्न धर्म के होते, भिन्न रीति रसम के होते अपने असली बाप को दूर होते भी समीप से पहचान लिया। समीप के सम्बन्ध में आ गये। ब्राह्मण जीवन की रीति रसम को अपनी आदि रीति रसम समझ, सहज अपने जीवन में अपना लिया है। इसको कहा जाता है - विशेष लवली और लकी बच्चे। जैसे बच्चों को विशेष खुशी है, बापदादा को भी विशेष खुशी है। ब्राह्मण परिवार की आत्मायें विश्व के कोनेकोने में पहुँच गई थी लेकिन कोने-कोने से बिछुड़ी हुई श्रेष्ठ आत्मायें फिर से अपने परिवार में पहुँच गई हैं। बाप ने ढूँढा, आपने पहचाना। इसलिए प्राप्ति के अधिकारी बन गये। अच्छा –

ऐसे अविनाशी प्राप्ति स्वरूप बच्चों को, सदा सर्व सम्बन्धों के अनुभव करने वाले बच्चों को, सदा अविनाशी सम्पत्तिवान बच्चों को, सदा बाप समान श्रेष्ठ संस्कार और सदा स्व के भाव में रहने वाले सर्व प्राप्तियों के भण्डार सर्व प्राप्तियों के महान दानी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

आज बापदादा ने पूरी रात सभी बच्चों से मिलन मनाया और सुबह 7 बजे यादप्यार दे विदाई ली, सुबह का क्लास बापदादा ने ही कराया! रोज बापदादा द्वारा महावाक्य सुनते-सुनते महान आत्मायें बन गयी। तो आज के दिन का यही सार, सारा दिन मन के साज़ के साथ सुनना कि महावाक्य सुनने से महान बने हैं। महान ते महान कर्त्तव्य करने के लिए सदा निमित्त हैं। हर आत्मा के प्रति मंसा से, वाचा से, सम्पर्क से महादानी आत्मा हैं और सदा महान युग के आह्वान करने वाले अधिकारी आत्मा हैं। यही याद रखना। सदा ऐसे महान स्मृति में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सिकीलधे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और गुडमोर्निंग। होवनहार और वर्तमान बादशाहों को बाप की नमस्ते। अच्छा!



27-02-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शिव शक्ति तथा पाण्डव सेना की विशेषताएँ

अव्यक्त बापदादा बोले

आज बापदादा अमृतवेले से विशेष सम्मुख आये वा दूरदेश में रहने वाले दिल से समीप रहने वाले डबल विदेशी बच्चों को देख रहे थे। बाप और दादा की आपस में आज मीठी रूह-रूहान चल रही थी। किस बात पर? ब्रह्मा बाप विशेष डबल विदेशी बच्चों को देख हर्षित हो बोले - कि कमाल है बच्चों की जो इतना दूर देशवासी होते हुए भी सदा स्नेह से एक ही लगन में रहते कि सभी को किस भी रीति से बापदादा का सन्देश जरूर पहुँचायें। उसके लिए कई बच्चे डबल कार्य करते हुए लौकिक और अलौकिक में डबल बिजी होते भी अपने आराम को भी न देखते हुए रात दिन उसी लगन में लगे हुए हैं। अपने खानेपीने की भी परवाह न करके सेवा की धुन में लगे रहते हैं। जिस प्युरिटी की बात को अननैचुरल जीवन समझते रहे, उसी प्युरटी को अपनाने के लिए इम्प्युरिटी को त्याग करने के लिए हिम्मत से, दृढ़ संकल्प से, बाप के स्नेह से, याद की यात्रा द्वारा शान्ति की प्राप्ति के आधार से, पढ़ाई और परिवार के संग के आधार से अपने जीवन में धारण कर ली है। जिसको मुश्किल समझते थे वह सहज कर ली है। ब्रह्मा बाप विशेष पाण्डव सेना को देख बच्चों की महिमा गा रहे थे। किस बात की? हर एक की दिल में है कि पवित्रता ही योगी बनने का पहला साधन है।पवित्रता ही बाप के स्नेह को अनुभव करने का साधन है, पवित्रता ही सेवा में सफलता का आधार है। यह शुभ संकल्प हरेक की दिल में पक्का है। और पाण्डवों की कमाल यह है जो शक्तियों को आगे रखते हुए भी स्वयं को आगे बढ़ाने के उमंग-उत्साह में चल रहे हैं। पाण्डवों के तीव्र पुरूषार्थ करने की रफ्तार, अच्छी उन्नति को पाने वाली दिखाई दे रही है। मैजारिटी इसी रफ्तार से आगे बढ़ते जा रहे हैं।

शिव बाप बोले- पाण्डवों ने अपना विशेष रिगार्ड देने का रिकार्ड अच्छा दिखाया है। साथ-साथ हँसी की बात भी बोली। बीच-बीच में संस्कारों का खेल भी खेल लेते हैं। लेकिन फिर भी उन्नति के उमंग कारण बाप से अति स्नेह होने के कारण समझते हैं स्नेह के पीछे यह परिवर्तन ही बाप को प्यारा है। इसलिए बलिहार हो जाते हैं। बाप जो कहते, जो चाहते वही करेंगे। इस संकल्प से अपने आपको परिवर्तन कर लेते हैं। मुहब्बत के पीछे मेहनत, मेहनत नहीं लगती। स्नेह के पीछे सहन करना, सहन करना नहीं लगता। इसलिए फिर भी बाबा-बाबा कह करके आगे बढ़ते जा रहे हैं। इस जन्म के चोले के संस्कार पुरूषत्व अर्थात् हद के रचता पन के होते हुए फिर भी अपने को परिवर्तन अच्छा किया है। रचता बाप को सामने रखने कारण निरअहंकारी और नम्रता भाव इस धारणा का लक्ष्य और लक्षण अच्छे धारण किये हैं और कर रहे हैं। दुनिया के वातावरण के बीच सम्पर्क में आते हुए फिर भी याद की लगन की छत्रछाया होने के कारण सेफ रहने का सबूत अच्छा दे रहे हैं। सुना - पाण्डवों की बातें। बापदादा आज माशूक के बजाए आशिक हो गये हैं। इसलिए देख-देख हर्षित हो रहे हैं। दोनों का बच्चों से विशेष स्नेह तो है ना। तो आज अमृतवेले से बच्चों के विशेषताओं की वा गुणों की माला सिमरण की। आप लोगों ने 63 जन्मों में मालायें सिमरण की और बाप रिटर्न में अभी माला सिमरण कर रेसपाण्ड दे देते हैं।

अच्छा शक्तियों की क्या माला सिमरण की? शक्ति सेना की सबसे ज्यादा विशेषता यह है - स्नेह के पीछे हर समय एक बाप में लवलीन रहने की, सर्व सम्बन्धों के अनुभवों में अच्छी लगन से आगे बढ़ रही हैं। एक आँख में बाप दूसरी आँख में सेवा, दोनों नयनों में सदा यही समाया हुआ है। विशेष परिवर्तन यह है जो अपने अलबेलेपन, नाजुकपन का त्याग किया है। हिम्मत वाली शक्ति स्वरूप बनी हैं। बापदादा आज विशेष छोटी-छोटी आयु वाली शक्तियों को देख रहे थे। इस युवा अवस्था में अनेक प्रकार के अल्पकाल के आकर्षण को छोड़ एक ही बाप की आकर्षण में अच्छे उमंग उत्साह से चल रहे हैं। संसार को असार संसार अनुभव कर बाप को संसार बना दिया है। अपने तन-मन-धन को बाप और सेवा में लगाने से प्राप्ति का अनुभव कर आगे उड़ती कला में जा रही हैं। सेवा की जिम्मेवारी का ताज धारण अच्छा किया है। थकावट को कभी-कभी महसूस करते हुए, बुद्धि पर कभी-कभी बोझ अनुभव करते हुए भी बाप को फॉलो करना ही है। बाप को प्रत्यक्ष करना ही है, इस दृढ़ता से इन सब बातों को समाप्त कर फिर भी सफलता को पा रही हैं। इसलिए बापदादा जब बच्चों की मुहब्बत को देखते हैं तो बार-बार यही वरदान देते हैं -’’हिम्मते बच्चे मददे बाप’’। सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है ही है। बाप का साथ होने से हर परिस्थिति से ऐसे पार कर लेते जैसे माखन से बाल। सफलता बच्चों के गले की माला है। सफलता की माला आप बच्चों का स्वागत करने वाली है। तो बच्चों के त्याग, तपस्या और सेवा पर बापदादा भी कुर्बान जाते हैं। स्नेह के कारण कोई भी मुश्किल अनुभव नहीं करते। ऐसे है ना! जहाँ स्नेह है, स्नेह की दुनिया में वा बाप के संसार में बाप की भाषा में मुश्किल शब्दहै ही नहीं। शक्ति सेना की विशेषता है - मुश्किल को सहज करना। हर एक की दिल में यही उमंग है कि सबसे ज्यादा और जल्दी से जल्दी सन्देश देने के निमित्त बन बाप के आगे रूहानी गुलाब का गुलदस्ता लावें। जैसे बाप ने हमको बनाया है वैसे हम औरों को बनाकर बाप के आगे लावें। शक्ति सेना एक दो के सहयोग से संगठित रूप में भारत से भी कोई विशेष नवीनता विदेश में करने के शुभ उमंग में है। जहाँ संकल्प है वहाँ सफलता अवश्य है। शक्ति सेना हर एक अपने भिन्न-भिन्न स्थानों पर वृद्धि और सिद्धि को प्राप्त करने में सफल हो रही है और होती रहेगी। तो दोनों के स्नेह को देख, सेवा के उमंग को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। एक-एक के गुण कितने गायन करें लेकिन वतन में एक-एक बच्चे के गुण बापदादा वर्णन कर रहे थे। देश वाले सोचते-सोचते कई रह जायेंगे लेकिन विदेश वाले पहचान कर अधिकारी बन गये हैं। वह देखते रह जायेंगे, आप बाप के साथ घर पहुँच जायेंगे। वह चिल्लायेंगे और आप वरदानों की दृष्टि से फिर भी कुछ न कुछ अंचली देते रहेंगे।

तो सुना आज विशेष बापदादा ने क्या किया? सारा संगठन देख बापदादा भाग्यवान बच्चों के भाग्य बनाने की महिमा गा रहे थे। दूर वाले नजदीक के हो गये और नजदीक आबू में रहने वाले कितने दूर हो गये हैं! पास रहते भी दूर हैं। और आप दूर रहते भी पास हैं। वह देखने वाले और आप दिलतख्त पर सदा रहने वाले। कितने स्नेह से मधुबन आने का साधन बनाते हैं। हर मास यही गीत गाते हैं - बाप से मिलना है, जाना है। जमा करना है। तो यह लगन भी मायाजीत बनने का साधन बन जाती है। अगर सहज टिकट मिल जाए तो इतनी लगन में विघ्न ज्यादा पड़ें। लेकिन फुरी-फुरी तालाब करते हैं। इसलिए बूँद-बूँद जमा करने में बाप की याद समाई हुई होती है। इसलिए यह भी ड्रामा में जो होता है कल्याणकारी है। अगर ज्यादा पैसे मिल जाएँ तो फिर माया आ जाए फिर सेवा भूल जायेगी। इसलिए धनवान, बाप के अधिकारी बच्चे नहीं बनते हैं।

कमाया और जमा किया। अपनी सच्ची कमाई का जमा करना इसी में बल है। सच्ची कमाई का धन, बाप के कार्य में सफल हो रहा है। अगर ऐसे ही धन आ जाए तो तन नहीं लगेगा। और तन नहीं लगेगा तो मन भी नीचे ऊपर होगा। इसलिए तन-मन-धन तीनों ही लग रहे हैं। इसलिए संगमयुग पर कमाया और ईश्वरीय बैंक में जमा किया, यह जीवन ही नम्बरवन जीवन है। कमाया और लौकिक विनाशी बैंकों में जमा किया तो वह सफल नहीं होता। कमाया और अविनाशी बैंक में जमा किया तो एक पद्मगुणा बनता। 21 जन्मों के लिए जमा हो जाता। दिल से किया हुआ दिलाराम के पास पहुँचता है। अगर कोई दिखावे की रीति से करते तो दिखावे में ही खत्म हो जाता है। दिलाराम तक नहीं पहुँचता। इसलिए आप दिल से करने वाले अच्छे हो। दिल से दो करने वाले भी पद्मापद्म पति बन जाते हैं और दिखावा से हजार करने वाले भी पद्मापद्म पति नहीं बनते। दिल की कमाई, स्नेह की कमाई सच्ची कमाई है। कमाते किसलिए हो? सेवा के लिए ना - कि अपने आराम के लिए? तो यह है सच्ची दिल की कमाई। जो एक भी पद्मगुणा बन जाता है। अगर अपने आराम के लिए कमाते वा जमा करते हैं तो यहाँ भले आराम करेंगे लेकिन वहाँ औरों को आराम देने लिए निमित्त बनेंगे! दास-दासियाँ क्या करेंगे! रायल फैमली को आराम देने के लिए होंगे ना! यहाँ के आराम से वहाँ आराम देने के लिए निमित्त बनना पड़े। इसलिए जो मुहब्बत से सच्ची दिल से कमाते हो, सेवा में लगाते हो, वही सफल कर रहे हो। अनेक आत्माओं की दुआयें ले रहे हो। जिन्हों के निमित्त बनते हो वही फिर आपके भक्त बन आपकी पूजा करेंगे। क्योंकि आपने उन आत्माओं के प्रति सेवा की तो सेवा का रिटर्न वह आपके जड़ चित्रों की सेवा करेंगे! पूजा करेंगे! 63 जन्म सेवा का रिटर्न आपको देते रहेंगे। बाप से तो मिलेगा ही लेकिन उन आत्माओं से भी मिलेगा। जिनको सन्देश देते हो और अधिकारी नहीं बनते हैं तो फिर वह इस रूप से रिटर्न देंगे। जो अधिकारी बनते वह तो आपके सम्बन्ध में आ जाते हैं। कोई सम्बन्ध में आ जाते। कोई भक्त बन जाते। कोई प्रजा बन जाते। वैराइटी प्रकार की रिजल्ट निकलती है। समझा! लोग भी पूछते हैं ना कि आप सेवा के पीछे क्यों पड़ गये हो। खाओ-पियो मौज करो। क्या मिलता है जो इतना दिन-रात सेवा के पीछे पड़ते हो? फिर आप क्या कहते हो? जो हमको मिला है वह अनुभव करके देखो। अनुभवी ही जाने इस सुख को। यह गीत गाते हो ना! अच्छा –

सदा स्नेह में समाये हुए, सदा त्याग को भाग्य अनुभव करने वाले, सदा एक को पद्मगुणा बनाने वाले, सदा बापदादा को फॉलो करने वाले, बाप को संसार अनुभव करने वाले ऐसे दिलतख्तनशीन बच्चों को दिलाराम बाप का यादप्यार और नमस्ते।’’

विदेशी भाई बहिनों से पर्सनल मुलाकात - (1) अपने को भाग्यवान आत्मायें समझते हो? इतना भाग्य तो बनाया जो भाग्यविधाता के स्थान पर पहुँच गये। समझते हो यह कौन-सा स्थान है? शान्ति के स्थान पर पहुँचना भी भाग्य है। तो यह भी भाग्य प्राप्त करने का रास्ता खुला। ड्रामा अनुसार भाग्य प्राप्त करने के स्थान पर पहुँच गये। भाग्य की रेखा यहाँ ही खींची जाती है। तो अपना श्रेष्ठ भाग्य बना लिया।

अभी सिर्फ थोड़ा समय देना। समय भी है और संग भी कर सकते हो। और कोई मुश्किल बात तो है नहीं। जो मुश्किल होता उसके लिए थोड़ा सोचा जाता है। सहज है तो करो। इससे जो भी जीवन में अल्पकाल की आशायें वा इच्छायें हैं वह सब अविनाशी प्राप्ति में पूरी हो जायेंगी। इन अल्पकाल की इच्छाओं के पीछे जाना ऐसे ही है जैसे अपनी परछाई के पीछे जाना। जितना परछाई के पीछे जायेंगे उतना वह आगे बढ़ती है, पा नहीं सकते। लेकिन आप आगे बढ़ते जाओ तो वह आप ही पीछे-पीछे आयेगी। तो ऐसे अविनाशी प्राप्ति के तरफ जाने वाले के पीछे विनाशी बातें सब पूरी हो जाती हैं। समझा! सर्व प्राप्तियों का साधन यही है। थोड़े समय का त्याग सदाकाल का भाग्य बनाता है। तो सदा इसी लक्ष्य को समझते हुए आगे बढ़ते चलो। इससे बहुत खुशी का खजाना मिलेगा। जीवन में सबसे बड़े ते बड़ा खजाना खुशी है। अगर खुशी नहीं तो जीवन नहीं। तो अविनाशी खुशी का खजाना प्राप्त कर सकते हो।

सर्विस ही स्टेज बनाने का साधन है

(2) बापदादा बच्चों का सदा आगे बढ़ने का उमंग उत्साह देखते हैं। बच्चों का उमंग बापदादा के पास पहुँचता है। बच्चों के अन्दर है कि विश्व के वी.वी.आई.पी. बाप के सामने ले जाऊँ - यह उमंग भी साकार में आता जायेगा। क्योंकि नि:स्वार्थ सेवा का फल जरूर मिलता है। सेवा ही स्व की स्टेज बना देती है। इसलिए यह कभी नहीं सोचना कि सर्विस इतनी बड़ी है मेरी स्टेज तो ऐसी है नहीं। लेकिन सर्विस आपकी स्टेज बना देगी। दूसरों की सर्विस ही स्व उन्नति का साधन है। सर्विस आपेही शक्तिशाली अवस्था बनाती रहेगी। बाप की मदद मिलती है ना। बाप की मदद मिलते-मिलते वह शक्ति बढ़ते-बढ़ते वह स्टेज भी हो जायेगी। समझा! इसलिए यह कभी नहीं सोचो कि इतनी सर्विस मैं कैसे करूँगा-करूँगी, मेरी स्टेज ऐसी है। नहीं। करते चलो। बापदादा का वरदान है - आगे बढ़ना ही है। सेवा का मीठा बंधन भी आगे बढ़ने का साधन है। जो दिल से और अनुभव की अथॉरिटी से बोलते हैं उनका आवाज़ दिल तक पहुँचता है। अनुभव की अथॉरिटी के बोल औरों को अनुभव करने की प्रेरणा देते हैं। सेवा में आगे बढ़ते-बढते जो पेपर आते हैं वह भी आगे बढ़ाने का ही साधन हैं। क्योंकि बुद्धि चलती है, याद में रहने का विशेष अटेन्शन रहता है। तो यह भी विशेष लिफ्ट बन जाती है। बुद्धि में सदा रहता कि हम वातावरण को कैसे शक्तिशाली बनायें। कैसा भी बड़ा रूप लेकर विघ्न आए लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं का उसमें फायदा ही है। वह बड़ा रूप भी याद की शक्ति से छोटा हो जाता है। वह जैसे कागज का शेर।

ब्राजील, अर्जनटाइना, मैक्सिको तथा अन्य दूरदेश वालों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - (1) सदा अपने को बाप के समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? दूर रहते भी सदा समीप का, साथ का अनुभव करते हो? सदा अपने को बाप के वरदानों से आगे बढ़ने वाली श्रेष्ठ आत्मायें समझ सहज आगे बढ़ते रहते हो ना? कभी भी कोई मुश्किल अनुभव हो तो सदा बाप के साथ का अनुभव करने से सेकण्ड में मुश्किल सहज हो जायेगी। जहाँ बाप है वहाँ मुश्किल हो नहीं सकती। सदा सफलता का अनुभव करते रहेंगे। जो निमित्त समझकर कार्य करते हैं उन्हें सफलतास्वत: प्राप्त होती है। निमित्त भावही सफलता का साधन है। इस स्मृति रूपी चाबी को सदा साथ रखना। दूर होते भी सभी हिम्मतवान बच्चे हैं। सभी को बापदादा - ‘‘हिम्मते बच्चे मददे बाप’’ के टाइटिल से याद प्यार देते हैं। जितना स्नेह से याद करते हैं उतना ही बापदादा के पास सबका स्नेह पहुँचता है। बापदादा स्नेह की रिटर्न में पद्मगुणा याद प्यार देते हैं।

अर्जनटाइना की सभी आत्मायें अर्जुनसमान प्यासी आत्मायें हैं। दिन रात वह घड़ी देखते रहते हैं कि कौन-सी घड़ी आयेगी जब मधुबन निवासी बनेंगे। बापदादा बच्चों की इस लगन को देखते हैं, जानते हैं कि सभी अर्जुन समान आत्मायें हैं। उन्हों को कहना कि अर्जुन के लिए ही विशेष बाप आये थे और आये हैं। इसलिए दूर बैठे भी सिकीलधे हो। दूर रहने वाले बच्चों का दिलतख्त पर सदा नम्बर है। सभी बच्चों के पत्र बापदादा के पास पहले ही पहुँच गये हैं। सभी की पुकार और उल्हनें बाप के पास पहुँचे। बापदादा कहते हैं - ड्रामा में कभी भी किसी बच्चों का ऐसा भाग्य नहीं हो सकता जो दूर होने के कारण वंचित रह जाएं। ड्रामा में सभी को अधिकार मिलना ही है। बापदादा देख रहे हैं-कि बच्चे कैसे लवलीन आत्मा बन, मायाजीत बन, आगे बढ़ने के उमंग उत्साह में सफलता को पा रहे हैं और आगे भी सफलता का अनुभव करते रहेंगे। बापदादा के पास सभी के खुशी की रूह-रूहान पहुँचती है। बापदादा भी सभी बच्चों को रूह-रूहान का रेसपाण्ड देते रहते हैं - और आज भी दे रहे हैं कि सदा विजयी रत्न हो और विजय आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। जहाँ स्व उन्नति का अटेन्शन है वहाँ न स्वयं के प्रति प्राबलम है, न सेवा में प्राब्लम है! क्योंकि अटेन्शन सर्व प्रकार के टेन्शन को उड़ा देता है। अभी जो विशेष सम्पर्क में हैं उन्हों को और समीप लाने का अटेन्शन रखना। सम्पर्क वाले और सम्बन्ध में आ जाएं क्योंकि उन्हों की धरनी अच्छी है तब तो सम्पर्क में हैं। दूरदेश में भी अनेक प्यासी आत्मायें छिपी हुई हैं, उन छिपी हुई आत्माओं को बाप के अधिकारी बनाना ही है।



02-03-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


वर्तमान ईश्वरीय जन्म - अमूल्य जन्म

रत्नागर बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले

आज रत्नागर बाप अपने अमूल्य रत्नों को देख रहे हैं। यह अलौकिक अमूल्य रत्नों की दरबार है। एक एक रत्न अमूल्य है। इस वर्तमान समय के विश्व की सारी प्रॉपर्टी वा विश्व के सारे खजाने इकट्ठे करो उसके अन्तर में एक एक ईश्वरीय रत्न कई गुणा अमूल्य हैं। आप एक रत्न के आगे विश्व के सारे खजाने कुछ भी नहीं है। इतने अमूल्य रत्न हो। यह अमूल्य रत्न सिवाए इस संगमयुग के सारे कल्प में नहीं मिल सकते। सतयुगी-देव-आत्मा का पार्ट इस संगमयुगी ईश्वरीय अमूल्य रत्न बनने के पार्ट के आगे सेकण्ड नम्बर हो जाता है। अभी तुम ईश्वरीय सन्तान हो, सतयुग में दैवी सन्तान होंगे। जैसे ईश्वर का सबसे श्रेष्ठ नाम है, महिमा है, जन्म है, वर्म है, वैसे ईश्वरीय रत्नों का वा ईश्वरीय सन्तान आत्माओं का मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। इस श्रेष्ठ महिमा का वा श्रेष्ठ मूल्य का यादगार अभी भी 9 रत्नों के रूप में गाये और पूजे जाते हैं। 9 रत्नों को भिन्न-भिन्न विघ्न विनाशक रत्न गाया जाता है जैसा विघ्न वैसी विशेषता वाला रत्न रिंग बनाकर पहनते हैं वा लाकेट में डालते हैं। वा किसी भी रूप से उस रत्न को घर में रखते हैं। अभी लास्ट जन्म तक भी विघ्न-विनाशक रूप में अपना यादगार देख रहे हो। नम्बरवार जरूर हैं लेकिन नम्बरवार होते हुए भी अमूल्य और विघ्न विनाशक सभी हैं। आज भी श्रेष्ठ स्वरूप से आप रत्नों का आत्मायें स्वमान रखती हैं। बड़े प्यार से स्वच्छता से सम्भाल के रखती हैं। क्योंकि आप सभी जो भी हो चाहे अपने को इतना योग्य नहीं भी समझते हो लेकिन बाप ने आप आत्माओं को योग्य समझ अपना बनाया है। स्वीकार किया - तू मेरा मैं तेरा। जिस आत्मा के ऊपर बाप की नजर पड़ी वह प्रभू नजर के कारण अमूल्य बन ही जाते हैं। परमात्म दृष्टि के कारण ईश्वरीय सृष्टि के, ईश्वरीय संसार के श्रेष्ठ आत्मा बन ही जाते हैं। पारसनाथ से सम्बन्ध में आये तो पारस का रंग लग ही जाता है। इसलिए परमात्म-प्यार की दृष्टि मिलने से सारा कल्प चाहे चैतन्य देवताओं के रूप में, चाहे आधा कल्प जड़ चित्रों के रूप में वा भिन्न-भिन्न यादगार के रूप में, जैसे रत्नों के रूप में भी आपका यादगार है, सितारों के रूप में भी आपका यादगार है। जिस भी रूप में यादगार है, सारा कल्प सर्व के प्यारे रहे हो। क्योंकि अविनाशी प्यार के सागर के प्यार की नजर सारे कल्प के लिए प्यार के अधिकारी बना देती है। इसलिए भक्त लोग आधी घड़ी एक घड़ी की दृष्टि के लिए तड़पते हैं कि नजर से निहाल हो जावें। इसलिए इस समय के प्यार की नजर, अविनाशी प्यार के योग्य बना देती है। अविनाशी प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है। प्यार से याद करते, प्यार से रखते। प्यार से देखते।

दूसरी बात- स्वच्छता अर्थात् पवित्रता। तुम इस समय बाप द्वारा पवित्रता का जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त करते हो। पवित्रता वा स्वच्छता अपना स्वधर्म जानते हो - इसलिए पवित्रता को अपनाने के कारण जहाँ आपका यादगार होगा वहाँ पवित्रता वा स्वच्छता अभी भी यादगार रूप में चल रही है। और आधाकल्प तो है ही पवित्र पालना। पवित्र दुनिया। तो आधाकल्प पवित्रता से पैदा होते, पवित्रता से पलते और आधाकल्प पवित्रता से पूजे जाते हैं।

तीसरी बात- बहुत दिल से, श्रेष्ठ समझ, अमूल्य समझ सम्भालते हैं। क्योंकि इस समय स्वयं भगवान मात-पिता के रूप से आप बच्चों को सम्भालते हैं अर्थात् पालना करते हैं। तो अविनाशी पालना होने के कारण, अविनाशी स्नेह के साथ सम्भालने के कारण सारा कल्प बड़ी रायल्टी से, स्नेह से, रिगार्ड से सम्भाले जाते हो। ऐसे प्यार, स्वच्छता, पवित्रता और स्नेह से सम्भालने के अविनाशी पात्र बन जाते हो। तो समझा, कितने अमूल्य हो? हर एक रत्न का कितना मूल्य है! तो आज रत्नागर बाप हर एक रतन के मूल्य को देख रहे थे। सारे दुनिया की अक्षोणी आत्मायें एक तरफ हैं लेकिन आप 5 पाण्डव अक्षोणी से शक्तिशाली हो। अक्षोणी आपके आगे एक के बराबर भी नहीं हैं। इतने शक्तिशाली हो। तो कितने मूल्यवान हो गये! इतने मूल्य को जानते हो? कि कभी-कभी अपने आपको भूल जाते हो। जब अपने आपको भूलते हो तो हैरान होते हो। अपने आपको नहीं भूलो। सदा अपने को अमूल्य समझ करके चलो। लेकिन छोटी सी गलती नहीं करना। अमूल्य हो लेकिन बाप के साथ के कारण अमूल्य हो। बाप को भूलकर सिर्फ अपने को समझेंगे तो भी रांग हो जायेगा। बनाने वाले को नहीं भूलो। बन गये लेकिन बनाने वाले के साथ बने हैं, यह है समझने की विधि। अगर विधि को भूल जाते तो समझ, बेसमझ के रूप में बदल जाती। फिर मैं-पन आ जाता है। विधि को भूलने से सिद्धि का अनुभव नहीं होता। इसलिए विधि पूर्वक अपने को मूल्यवान जान विश्व के पूर्वज बन जाओ। हैरान भी नहीं हो कि - मैं तो कुछ नहीं। न यह सोचो कि मैं कुछ नहीं, न यह समझो कि मैं ही सब कुछ हूँ। दोनों ही रांग हैं। मैं हूँ लेकिन बनाने वाले ने बनाया है। बाप को निकाल देते हो तो पाप हो जाता है। बाप है तो पाप नहीं है। जहाँ बाप का नाम है वहाँ पाप का नाम निशान नहीं। और जहाँ पाप है वहाँ बाप का नामनिशान नहीं है। तो समझा अपने मूल्य को।

भगवान की दृष्टि के पात्र बने हो, साधारण बात नहीं। पालना के पात्र बने हो। अविनाशी पवित्रता के जन्म-सिद्ध अधिकार के अधिकारी बने हो। इसलिए जन्म सिद्ध अधिकार कभी मुश्किल नहीं होता है। सहज प्राप्त होता है। ऐसे ही स्वयं अनुभवी हो कि जो अधिकारी बच्चे हैं उन्हों को पवित्रता मुश्किल नहीं लगती। जिन्हों को पवित्रता मुश्किल लगती वह डगमग ज्यादा होते हैं। पवित्रता स्वधर्म है, जन्म सिद्ध अधिकार है तो सदा सहज लगेगा। दुनिया वाले भी दूर भागते हैं वह किसलिए? पवित्रता मुश्किल लगती है। जो अधिकारी आत्मायें नहीं उन्हों को मुश्किल ही लगेगा। अधिकारी आत्मा आते ही दृढ़ संकल्प करती कि पवित्रता बाप का अधिकार है, इसलिए पवित्र बनना ही है। दिल को पवित्रता सदा आकर्षित करती रहेगी। अगर चलते-चलते कहाँ माया परीक्षा लेने आती भी है, संकल्प के रूप में, स्वप्न के रूप में तो अधिकारी आत्मा नॉलेजफुल होने के कारण घबरायेगी नहीं। लेकिन नॉलेज की शक्ति से संकल्प को परिवर्तित कर देगी। एक संकल्प के पीछे अनेक संकल्प पैदा नहीं करेगी। अंश को वंश के रूप में नहीं लायेगी। क्या हुआ, यह हुआ...यह है वंश। सुनाया था ना क्यों से क्यू लगा देते हैं। यह वंश पैदा कर देते हैं। आया और सदा के लिए गया। पेपर लेने के लिए आया, पास हो गये, समाप्त। माया क्यों आई, कहाँ से आई। यहाँ से आई वहाँ से आई। आनी नहीं चाहिए थी। क्यों आ गई। यह वंश नहीं होना चाहिए। अच्छा आ भी गई तो आप बिठाओ नहीं। भगाओ! आई क्यों...ऐसा सोचेंगे तो बैठ जायेगी। आई आगे बढ़ाने के लिए, पेपर लेने के लिए। क्लास को आगे बढ़ाने के लिए, अनुभवी बनाने के लिए आई! क्यों आई, ऐसे आई, वैसे आई यह नहीं सोचो। फिर सोचते हैं क्या माया का ऐसा रूप होता है? लाल है, हरा है, पीला है। इस विस्तार में चले जाते हैं। इसमें नहीं जाओ। घबराते क्यों हो। पार कर लो। पास विद् ऑनर बन जाओ। नॉलेज की शक्ति है, शस्त्र हैं। मास्टर सर्वशक्तिवान हो, त्रिकालदर्शी हो, त्रिवेणी हो। क्या कमी है! जल्दी में घबराओ नहीं। चींटी भी आ जाती तो घबरा जाते हैं। ज्यादा सोचते हो। सोचना अर्थात् माया को मेहमानी देना। फिर वह घर बना देगी। जैसे रास्ते चलते कोई गन्दी चीज़ दिखाई भी दे तो क्या करेंगे! खड़े होकर सोचेंगे कि यह किसने फेंकी, क्यों-क्या हुआ! होनी नहीं चाहिए, यह सोचेंगे वा किनारा कर चले जायेंगे। ज्यादा व्यर्थ संकल्पों के वंश को पैदा होने न दो। अंश के रूप में ही समाप्त कर दो। पहले सेकण्ड की बात होती है फिर उसको घण्टों में, दिनों में, मास में बढ़ा देते हो। और अगर एक मास के बाद पूछेंगे कि क्या हुआ था तो बात सेकण्ड की होगी। इसलिए घबराओ नहीं। गहराई में जाओ - ज्ञान की गहराई में जाओ, बात की गहराई में नहीं जाओ। बापदादा इतने श्रेष्ठ मूल्यवान रत्नों को छोटे-छोटे मिट्टी के कणों से खेलते हुए देखते तो सोचते हैं यह रत्न, रत्नों से खेलने वाले, मिट्टी के कणों से खेल रहे हैं! रत्न हो रत्नों से खेलो!

बापदादा ने कितने लाडप्यार से पाला है फिर मिट्टी के कण कैसे देख सकेंगे। फिर मैले होकर कहते - अभी साफ करो, साफ करो। घबरा भी जाते हैं। अभी क्या करूँ, कैसे करूँ। मिट्टी से खेलते ही क्यों हो। वह भी कण जो धरनी में पड़े रहने वाले। तो सदा अपने मूल्य को जानो।

अच्छा - ऐसे सारे कल्प के मूल्यवान आत्माओं को, प्रभू प्यार की पात्र आत्माओं को, प्रभू पालना की पात्र आत्माओं को, पवित्रता के जन्म-सिद्ध अधिकार के अधिकारी आत्माओं को, सदा बाप और मैं इस विधि से सिद्धि को पाने वाली आत्माओं को, सदा अमूल्य रत्न बन रत्नों से खेलने वाले रायल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!

पार्टियों से - सदा बाप के नयनों में समाई हुई आत्मा स्वयं को अनुभव करते हो? नयनों में कौन समाता है? जो बहुत हल्का बिन्दु है। तो सदा हैं ही बिन्दु और बिन्दु बन बाप के नयनों में समाने वाले। बापदादा आपके नयनों में समाये हुए हैं और आप सब बापदादा के नयनों में समाये हुए हो। जब नयनों में है ही बापदादा तो और कुछ दिखाई नहीं देगा। तो सदा इस स्मृति से डबल लाइट रहो कि मैं हूँ ही बिन्दु। बिन्दु में कोई बोझ नहीं। यह स्मृति स्वरूप सदा आगे बढ़ाता रहेगा। आँखों में बीच में देखो तो बिन्दू ही है। बिन्दु ही देखता है। बिन्दू न हो तो आँख होते भी देख नहीं सकते। तो सदा इसी स्वरूप को स्मृति में रख उड़ती कला का अनुभव करो। बापदादा बच्चों के वर्तमान और भविष्य के भाग्य को देख हर्षित हैं, वर्तमान कलम है भविष्य के तकदीर बनाने की। वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने का साधन है - बड़ों के ईशारों को सदा स्वीकार करते हुए स्वयं को परिवर्तन कर लेना। इसी विशेष गुण से वर्तमान और भविष्य तकदीर श्रेष्ठ बन जाती है। अच्छा – ओम शान्ति।



06-03-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


होलीका रूहानी रहस्य

पतित पावन शिव बाबा अपने बच्चों प्रति बोले

आज होलीएस्ट, हाइएस्ट बाप अपने होली और हैपी हंसों से होली मनाने आये हैं। त्रिमूर्ति बाप तीन प्रकार की होली का दिव्य राज़ सुनाने आये हैं। वैसे संमगयुग होली युग है। संमगयुग उत्सव का युग है। आप श्रेष्ठ आत्माओं का हर दिन, हर समय उत्साह भरा उत्सव है। अज्ञानी आत्मायें स्वयं को उत्साह में लाने के लिए उत्सव मनाते हैं। लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए यह ब्राह्मण जीवन उत्साह की जीवन है। उमंग, खुशी से भरी हुई जीवन है। इसलिए संगमयुग ही उत्सव का युग है। ईश्वरीय जीवन सदा उमंग उत्साह वाली जीवन है। सदा ही खुशियों में नाचते, ज्ञान का शक्तिशाली अमृत पीते, सुख के गीत गाते, दिल के स्नेह के गीत गाते, अपनी श्रेष्ठ जीवन बिता रहे हैं। अज्ञानी आत्मायें एक दिन मनाती, अल्पकाल के उत्साह में आती फिर वैसे की वैसी हो जाती। आप उत्सव मनाते हुए होली बन जाते हो और दूसरों को भी होली बनाते हो। वह सिर्फ मनाते हैं, आप मनाते बन जाते हो। लोग तीन प्रकार की होली मनाते हैं - एक जलाने की होली। दूसरी रंग लगाने की होली। तीसरी मंगल मिलन मनाने की होली। ये तीनों होली हैं रूहानी रहस्य से। लेकिन वह स्थूल रूप में मनाते रहते हैं। इस संमगयुग पर आप महान आत्मायें जब बाप की बनती हो अर्थात् होली बनती हो तो पहले क्या करती हो? पहले सब पुराने स्वभाव संस्कार योग अग्नि से भस्म करते हो अर्थात् जलाते हो। उसके बाद ही याद द्वारा बाप के संग का रंग लगता है। आप भी पहले जलाने वाली होली मनाते हो फिर प्रभु संग के रंग में रंग जाते हो अर्थात् बाप समान बन जाते हो। बाप ज्ञान सागर तो बच्चे भी संग के रंग में ज्ञान स्वरूप बन जाते हैं। जो बाप के गुण वह आपके गुण हो जाते। जो बाप की शक्तियाँ वह आपका खजाना बन जाता। आपकी प्रॉपर्टी हो जाती। तो संग का रंग ऐसा अविनाशी लग जाता जो जन्म-जन्मान्तर के लिये यह रंग अविनाशी बन जाता है। और जब संग का रंग लग जाता, यह रूहानी रंग की होली मना लेते तो आत्मा और परमात्मा का, बाप और बच्चों का श्रेष्ठ मिलन का मेला सदा ही होता रहता। अज्ञानी आत्माओं ने आपके इस रूहानी होली को यादगार के रूप में मनाना शुरू किया है। आपकी प्रैक्टिकल उत्साह भरी जीवन का भिन्न भिन्न रूप में यादगार मनाकर अल्पकाल के लिए खुश हो जाते। हर कदम में, आपके श्रेष्ठ जीवन में जो विशेषतायें प्राप्त हुई उनको याद कर थोड़े समय के लिए वह भी मौज मनाते रहते हैं। यह यादगार देख वा सुन हर्षित होते हो ना कि हमारी विशेषताओं का यादगार है! आपने माया को जलाया और वह होलिका बनाके जला देते हैं। इतनी रमणीक कहानियाँ बनाई हैं जो सुनकर आपको हँसी आयेगी कि हमारी बात को कैसे बना दिया है! होली का उत्सव आपके भिन्न-भिन्न प्राप्ति के याद रूप में मनाते हैं। अभी आप सदा खुश रहते हो। खुशी की प्राप्ति का यादगार बहुत खुश होकर होली मनाते हैं। उस समय सब दुख भूल जाते हैं। और आप सदा के लिए दुख भूल गये हो। आपकी खुशी की प्राप्ति का यादगार मनाते हैं।

और बात मनाने के समय छोटे बड़े बहुत ही हल्के बन, हल्के रूप में मनाते हैं। उस दिन के लिए सभी का मूड भी हल्का रहता है। तो यह आपके डबल लाइट बनने का यादगार है। जब प्रभु-संग के रंग में रंग जाते हो तो डबल लाइट बन जाते हो ना। तो इस विशेषता का यादगार है। और बात - इस दिन छोटे बड़े किसी भी सम्बन्ध वाले समान स्वभाव में रहते हैं। चाहे छोटा-सा पोत्रा भी हो वह भी दादा को रंग लगायेगा। सभी सम्बन्ध का, आयु का भान भूल जाते हैं। समान भाव में आ जाते हैं। यह भी आपके विशेष समान भाव अर्थात् भाई- भाई की स्थिति और कोई भी देह के सम्बन्ध की दृष्टि नहीं। यह भाई-भाई की समान स्थिति का यादगार है। और बात - इस दिन भिन्न-भिन्न रंगों से खूब पिचकारियाँ भर एक दो को रंगते हैं। यह भी इस समय की आपकी सेवा का यादगार है। कोई भी आत्मा को आप दृष्टि की पिचकारी द्वारा प्रेम स्वरूप बनाने का रंग, आनन्द स्वरूप बनाने का रंग, सुख का, शान्ति का, शक्तियों का कितने रंग लगाते हो? ऐसा रंग लगाते हो जो सदा लगा रहे। मिटाना नहीं पड़ता। मेहनत नहीं करनी पड़ती। और ही हर आत्मा यही चाहती कि सदा इन रंगों में रंगी रहूँ। तो सभी के पास रूहानी रंगों की रूहानी दृष्टि की पिचकारी है ना! होली खेलते हो ना! यह रूहानी होली आप सबके जीवन का यादगार है। ऐसा बापदादा से मंगल मिलन मनाया है जो मिलन मनाते बाप समान बन गये। ऐसा मंगल मिलन मनाया है जो कम्बाइण्ड बन गये हो। कोई अलग कर नहीं सकता।

और बात - यह दिन सभी बीती हुई बातों को भुलाने का दिन है। 63 जन्म की बीती को भुला देते हो ना! बीती को बिन्दी लगा देते हो। इसलिए होली को बीती सो बीती के अर्थ में भी कहते हैं। कैसी भी कड़ी दुश्मनी को भूल मिलन मनाने का दिन माना जाता है। आपने भी आत्मा के दुश्मन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव भूल कर प्रभु मिलन मनाया ना! संकल्प मात्र भी पुराना संस्कार स्मृति में न आये। यह भी आपके इस भूलने की विशेषता का यादगार मना रहे हैं। तो सुना आपकी विशेषतायें कितनी हैं? आपके हर गुण का, हर विशेषता का, कर्म का अलग-अलग यादगार बना दिया है। जिसके हर कर्म का यादगार बन जाए, जो याद कर खुशी में आ जाएँ वह स्वयं कितने महान हैं? समझा -अपने आपको कि आप कौन हो? होली तो हो लेकिन कितने विशेष हो!

डबल विदेशी भल यह अपनी श्रेष्ठता का यादगार न भी जानते हो लेकिन आपके याद का महत्व दुनिया वाले याद कर यादगार बना रहे हैं। समझा होली क्या होती है? आप सब तो रंग में रंगे हुए हो। ऐसे प्रेम के रंग में रंग गये हो जो सिवाए बाप के और कुछ दिखाई नहीं देता। स्नेह में ही खाते-पीते, चलते, गाते, नाचते रहते हो। पक्का रंग लग गया है ना कि कच्चा है? कौन सा रंग लगा है? कच्चा वा पक्का? बीती सो बीती कर ली? गलती से भी पुरानी बात याद न आवे। कहते हो ना, क्या करें आ गई। यह गलती से आ जाती है। नया जन्म, नई बातें, नये संस्कार, नई दुनिया, यह ब्राह्मणों का संसार भी नया संसार है। ब्राह्मणों की भाषा भी नई है! आत्मा की भाषा नई है ना! वह क्या कहते और आप क्या कहते! परमात्मा के प्रति भी नई बातें हैं। तो भाषा भी नई, रीत रसम भी नई। सम्बन्ध-सम्पर्क भी नया, सब नया हो गया। पुराना समाप्त हुआ। नया शुरू हुआ, नये गीत गाते हो। पुराने नहीं। क्या, क्यों के हैं पुराने गीत। अहा, वाह, ओहो! यह हैं नये गीत। तो कौन से गीत गाते हो? हाय-हाय के गीत तो नहीं गाते हो ना! हाय-हाय करने वाले दुनिया में बहुत हैं, आप नहीं हो। तो अविनाशी होली मना ली अर्थात् बीती सो बीती कर सम्पूर्ण पवित्र बन गये। बाप के संग के रंग में रंग गये हो। तो होली मना ली ना!

सदा बाप और मैं, साथ-साथ हैं। और संगमयुग सदा साथ रहेंगे। अलग हो ही नहीं सकते। ऐसा उमंग उत्साह दिल में है ना कि - मैं और मेरा बाबा! कि पर्दे के पीछे तीसरा भी कोई है? कभी चूहा कभी बिल्ली निकल आती, ऐसे तो नहीं! सब समाप्त हो गये ना! जब बाप मिला तो सब कुछ मिला। और कुछ रहता नहीं। न सम्बन्धी रह जाता, न खजाना रह जाता, न शक्ति, न गुण रह जाता, न ज्ञान रह जाता, न कोई प्राप्ति रह जाती। तो बाकी और क्या चाहिए। इसको कहा जाता है - होली मनाना। समझा!

आप लोग कितना मौज में रहते हो। बेफकर बादशाह! बिन कौड़ी बादशाह! बेगमपुर के बादशाह! ऐसी मौज में कोई रह न सके। दुनिया के साहूकार से साहूकार हो वा दुनिया में नामीग्रामी कोई व्यक्ति हो, बहुत ही शास्त्रवादी हो, वेदों के पाठ पढ़ने वाले हो, नौधा भक्त हो, नम्बरवन साइन्सदान हो, कोई भी आक्यूपेशन वाले हो लेकिन ऐसी मौज की जीवन नहीं हो सकती। जिसमें मेहनत नहीं। मुहब्बत ही मुहब्बत है। चिंता नहीं। लेकिन शुभचिन्तक है, शुभचिन्तन है। ऐसी मौज की जीवन सारे विश्व में चक्कर लगाओ, अगर कोई मिले तो ले आओ। इसलिए गीत गाते हो ना। मधुबन में, बाप के संसार में मौजें ही मौजें हैं। खाओ तो भी मौज, सोओ तो भी मौज। गोली लेकर सोने की जरूरत नहीं। बाप के साथ सो जाओ तो गोली नहीं लेनी पड़ेगी। अकेले सोते हो तो कहते हाय ब्लडप्रेशर है, दर्द है। तब गोली लेनी पड़ती। बाप साथ हो, बस बाबा आपके साथ सो रहे हैं, यह है गोली। ऐसा भी फिर समय आयेगा जैसे आदि में दवाईयाँ नहीं चलती थी। याद है ना। शुरू में कितनी समय दवाईयाँ नहीं थी। हाँ, थोड़ा मलाई मक्खन खा लिया। दवाई नहीं खाते थे। तो जैसे आदि में प्रैक्टिस कराई है ना। थे तो पुराने शरीर। अन्त में फिर वह आदि वाले दिन रिपीट होंगे। साक्षात्कार भी सब बहुत विचित्र करते रहेंगे। बहुतों की इच्छा है ना - एक बार साक्षात्कार हो जाए। लास्ट तक जो पक्के होंगे उन्हों को साक्षात्कार होंगे फिर वही संगठन की भट्टी होगी। सेवा पूरी हो जायेगी। अभी सेवा के कारण जहाँ तहाँ बिखर गये हो! फिर नदियाँ सब सागर में समा जायेंगी। लेकिन समय नाजुक होगा। साधन होते हुए भी काम नहीं करेंगे। इसलिए बुद्धि की लाइन बहुत क्लीयर चाहिए। जो टच हो जाए कि अभी क्या करना है। एक सेकण्ड भी देरी की तो गये। जैसे वह भी अगर बटन दबाने में एक सेकण्ड भी देरी की तो क्या रिजल्ट होगी? यह भी अगर एक सेकण्ड टचिंग होने में देरी हुई तो फिर पहुँचना मुश्किल होगा। वह लोग भी कितना अटेन्शन से बैठे रहते हैं। तो यह बुद्धि की टचिंग। जैसे शुरू में घर बैठे आवाज़ आया, बुलावा हुआ कि आओ, पहुँचो। अभी निकलो। और फौरन निकल पड़े। ऐसे ही अन्त में भी बाप का आवाज़ पहुँचेगा। जैसे साकार में सभी बच्चों को बुलाया। ऐसे आकार रूप में सभी बच्चों को - आओ-आओका आह्वान करेंगे। सब आना और साथ जाना। ऐसे सदा अपनी बुद्धि क्लीयर हो और कहाँ अटेन्शन गया तो बाप का आवाज़, बाप का आह्वान मिस हो जायेगा। यह सब होना ही है।

टीचर्स सोच रहीं हैं - हम तो पहुँच जायेंगे। यह भी हो सकता है कि आपको वहाँ ही बाप डायरेक्शन दें। वहाँ कोई विशेष कार्य हो। वहाँ कोई औरों को शक्ति देनी हो। साथ ले जाना हो। यह भी होगा लेकिन बाप के डायरेक्शन प्रमाण रहें। मनमत से नहीं। लगाव से नहीं। हाय मेरा सेन्टर; यह याद न आये। फलाना जिज्ञासु भी साथ ले जाउँ, यह अनन्य है, मददगार है। ऐसा भी नहीं। किसी के लिए भी अगर रूके तो रह जायेंगे। ऐसे तैयार हो ना! इसको कहते हैं एवररेडी। सदा ही सब कुछ समेटा हुआ हो। उस समय समेटने का संकल्प नहीं आवे। यह कर लूँ, यह कर लूँ। साकार में याद है ना - जो सर्विसएबुल बच्चे थे उन्हों की स्थूल बैग बैगेज सदा तैयार होती थी। ट्रेन पहुँचने में 5 मिनट हैं और डायरेक्शन मिलता था कि जाओ। तो बैग बैगेज तैयार रहते थे। एक स्टेशन पहले ट्रेन पहुँच गई है - और वह जा रहे हैं। ऐसे भी अनुभव किया ना। यह भी मन की स्थिति में बैग बैगेज तैयार हो। बाप ने बुलाया और बच्चे जी हाजर हो जाएँ। इसको कहते हैं एवररेडी। अच्छा –

ऐसे सदा संग के रंग में रंगे हुए, सदा बीती सो बीती कर वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बनाने वाले, सदा परमात्म-मिलन मनाने वाले, सदा हर कर्म याद में रह करने वाले अर्थात् हर कर्म का यादगार बनाने वाले, सदा खुशी में नाचते - गाते संगमयुग की मौज मनाने वाले, ऐसे बाप समान बाप के हर संकल्प को कैच करने वाले, सदा बुद्धि श्रेष्ठ और स्पष्ट रखने वाले, ऐसे होली हैपी हंसों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!’’

बापदादा ने सभी बच्चों के पत्रों का उत्तर देते हुए होली की मुबारक दी -

चारों ओर के देश विदेश के सभी बच्चों के स्नेह भरे, उमंग-उत्साह भरे और कहाँ-कहाँ अपने पुरूषार्थ के प्रतिज्ञा भरे सभी के पत्र और सन्देश बापदादा को प्राप्त हुए। बापदादा सभी होली हंसों को सदा ‘‘जैसा बाप वैसे मैं’’ यह स्मृति का विशेष स्लोगन वरदान के रूप में याद दिला रहे हैं। कोई भी कर्म करते संकल्प करते पहले चेक करो जो बाप का संकल्प वह यह संकल्प है। जो बाप का कर्म वही मेरा कर्म है? सेकण्ड में चेक करो और फिर साकार में लाओ। तो सदा ही बाप समान शक्तिशाली आत्मा बन सफलता का अनुभव करेंगे। सफलता जन्म-सिद्ध अधिकार है, ऐसा सहज प्राप्ति का अनुभव करेंगे। सफलता का सितारा मैं स्वयं हूँ तो सफलता मेरे से अलग हो नहीं सकती। सफलता की माला सदा गले में पिरोई हुई है अर्थात् हर कर्म में अनुभव करते रहेंगे। बापदादा आज के इस होली के संगठन में आप सभी होली हंसों को सम्मुख देख रहे हैं, मना रहे हैं। स्नेह से सभी को देख रहे हैं - सभी के विशेषता की वैराइटी खुशबू ले रहे हैं। कितनी मीठी खुशबू है हरेक के विशेषता की! बाप हर विशेष आत्मा को विशेषताओं से देखते हुए यही गीत गाते - वाह मेरा सहज योगी बच्चा, वाह मेरा पद्मापद्म भाग्यशाली बच्चा। तो सभी अपनी-अपनी विशेषता और नाम सहित सम्मुख अपने को अनुभव करते हुए यादप्यार स्वीकार करना और सदा बाप की छत्रछाया में रह माया से घबराना नहीं। छोटी बात है, बड़ी बात नहीं है। छोटी को बड़ा नहीं करना। बड़ी को छोटा करना। ऊँचे रहेंगे तो बड़ा छोटा हो जायेगा। नीचे रहेंगे तो छोटा भी बड़ा हो जायेगा। इसलिए बापदादा का साथ है, हाथ है तो घबराओ नहीं, खूब उड़ो, उड़ती कला से सेकण्ड में सबको पार करो। बाप का साथ सदा ही सेफ रखता है। और रखेगा। अच्छा - सभी को सिकीलधा, लाड़ला कह बापदादा होली की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा - (फिर तो बापदादा से सभी बच्चों ने होली मनाई तथा पिकनिक की)

बांधेलियों को यादप्यार देते हुए - बांधेलियों की याद तो सदा बाप के पास पहुँचती है और बापदादा सभी बांधेलियों को यही कहते कि योग अर्थात् याद की लगन को अग्नि रूप बनाओ। जब लगन अग्नि रूप बन जाती तो अग्नि में सब भस्म हो जाता। जो यह बन्धन भी लगन की अग्नि में समाप्त हो जायेंगे और स्वतन्त्र आत्मा बन जो संकल्प करते उसकी सिद्धि को प्राप्त करेंगी। स्नेही हो, स्नेह की याद पहुँचती है। स्नेह के रेसपाण्ड में स्नेह मिलता है लेकिन अभी याद को शक्तिशाली अग्नि रूप बनाओ। फिर वह दिन आ जायेगा जो सम्मुख पहुँच जायेंगी।

पार्टियों से - सभी के मस्तक पर सदा भाग्य का सितारा चमक रहा है ना! सदा चमकता है? कभी टिमटिमाता तो नहीं है? अखण्ड ज्योति बाप के साथ आप भी अखण्ड ज्योति अर्थात् सदा जगने वाले सितारे बन गये। ऐसे अनुभव करते हो। कभी वायु हिलाती तो नहीं है दीपक वा सितारे को? जहाँ बाप की याद है वह अविनाशी जगमगाता हुआ सितारा है। टिमटिमाता हुआ नहीं। लाइट भी जब टिमटिम करती है तो बन्द कर देते हैं, किसी को अच्छी नहीं लगती। तो यह भी सदा जगमगाता हुआ सितारा। सदा ज्ञान सूर्य बाप से रोशनी ले औरों को भी रोशनी देने वाले। सेवा का उमंग उत्साह सदा कायम रहता है। सभी श्रेष्ठ आत्मायें हो, श्रेष्ठ बाप की श्रेष्ठ आत्मायें हो।

याद की शक्ति से सफलता सहज प्राप्त होती है। जितना याद और सेवा साथ-साथ रहती है तो याद और सेवा का बैलेन्स सदा की सफलता की आशीर्वाद स्वत: प्राप्त कराता है। इसलिए सदा शक्तिशाली याद स्वरूप का वातावरण बनने से शक्तिशाली आत्माओं का आह्वान होता है और सफलता मिलती है। निमित्त लौकिक कार्य है लेकिन लगन बाप और सेवा में है। लौकिक भी सेवा प्रति है, अपने लगाव से नहीं करते, डायरेक्शन प्रमाण करते हैं, इसलिए बाप के स्नेह का हाथ ऐसे बच्चों के साथ है। सदा खुशी में गाओ, नाचो यही सेवा का साधन है। आपकी खुशी को देख दूसरे खुश हो जायेंगे तो यही सेवा हो जायेगी। बापदादा बच्चों को सदा कहते हैं - जितना महादानी बनेंगे उतना खजाना बढ़ता जायेगा। महादानी बनो और खजानों को बढ़ाओ। महादानी बन खूब दान करो। यह देना ही लेना है। जो अच्छी चीज़ मिलती है वह देने के बिना रह नहीं सकते।

सदा अपने भाग्य को देख हर्षित रहो। कितना बड़ा भाग्य मिला है, घर बैठे भगवान मिल जाए इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा! इसी भाग्य को स्मृति में रख हर्षित रहो। तो दुःख और अशान्ति सदा के लिए समाप्त हो जायेंगे। सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप बन जायेंगे। जिसका भाग्य स्वयं भगवान बनाये वह कितने श्रेष्ठ हुए। तो सदा अपने में नया उमंग, नया उत्साह अनुभव करते आगे बढ़ते चलो। क्योंकि संगमयुग पर हर दिन का नया उमंग, नया उत्साह है।

जैसे चल रहे हैं, नहीं। सदा नया उमंग, नया उत्साह सदा आगे बढ़ाता है। हर दिन ही नया है। सदा स्वयं में वा सेवा में कोई न कोई नवीनता जरूर चाहिए। जितना अपने को उमंग उत्साह में रखेंगे उतना नई-नई टचिंग होती रहेगी। स्वयं किसी दूसरी बातों में बिजी रहते तो नई टचिंग भी नहीं होती। मनन करो तो नया उमंग रहेगा। अच्छा - ओमशान्ति।



09-03-85   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


गोल्डन जुबली द्वारा गोल्डन एज के आगमन की सूचना

गोल्डन दुनिया के स्थापक शिव बाबा अपने विजयी रत्नों प्रति बोले

आज बापदादा सभी बच्चों के पुरूषार्थ की लगन को देख रहे थे। हर एक बच्चा अपने-अपने हिम्मत-उल्लास से आगे बढ़ते जा रहे हैं। हिम्मत भी सबमें हैं, उमंग-उल्लास भी सबमें हैं। हर एक के अन्दर एक ही श्रेष्ठ संकल्प भी है कि हमें बापदादा के समीप रत्न, नूरे रतन, दिल तख्तनशीन दिलाराम के प्यारे बनना ही है। लक्ष्य भी सभी का सम्पन्न बनने का है। सभी बच्चों के दिल का आवाज़ एक ही है कि स्नेह की रिटर्न में हमें समान और सम्पन्नबनना है। और इसी लक्ष्य प्रमाण आगे बढ़ने में सफल भी हो रहे हैं। किसी से भी पूछो - क्या चाहते हो? तो सभी का एक ही उमंग का आवाज़ है कि सम्पूर्ण और सम्पन्न बनना ही है। बापदादा सभी का यह उमंग-उत्साह देख, श्रेष्ठ लक्ष्य देख हर्षित होते हैं। और सभी बच्चों को ऐसे एक उमंग-उत्साह की, एक मत की आफरीन देते हैं कि कैसे एक बाप, एक मत, एक ही लक्ष्य और एक ही घर में, एक ही राज्य में चल रहे हैं वा उड़ रहे हैं। एक बाप और इतने योग्य वा योगी बच्चे, हर एक, एक दो से विशेषता में विशेष आगे बढ़ रहे हैं। सारे कल्प में ऐसा न बाप होगा, न बच्चे होंगे जो कोई भी बच्चा उमंग-उत्साह में कम न हो। विशेषता सम्पन्न हो। एक ही लगन में मगन हो। ऐसा कभी हो नहीं सकता। इसलिए बापदादा को भी ऐसे बच्चों पर नाज़ है। और बच्चों को बाप का नाज़ है। जहाँ भी देखो एक ही विशेष आवाज़ सभी की दिल अन्दर है। बाबा और सेवा’! जितना बाप से स्नेह है उतना सेवा से भी स्नेह है। दोनों स्नेह हरेक के ब्राह्मण जीवन का जीयदान हैं। इसी में ही सदा बिजी रहने का आधार मायाजीत बना रहा है।

बापदादा के पास सभी बच्चों के सेवा के उमंग-उत्साह के प्लैन्स पहुँचते रहते हैं। प्लैन सभी अच्छे ते अच्छे हैं। ड्रामा अनुसार जिस विधि से वृद्धि को प्राप्त करते आये हो वह आदि से अब तक अच्छे ते अच्छा ही कहेंगे। अभी सेवा की वा ब्राह्मणों के विजयी रत्न बनने की वा सफलता के बहुत वर्ष बीत चुके हैं। अभी गोल्डन जुबली तक पहुँच गये हो। गोल्डन जुबली क्यों मना रहे हो? क्या दुनिया के हिसाब से मना रहे हो। वा समय के प्रमाण विश्व को तीव्रगति से सन्देश देने के उमंग से मना रहे हो! चारों ओर बुलन्द आवाज़ द्वारा सोई हुई आत्माओं को जगाने का साधन बना रहे हो! जहाँ भी सुनें, जहाँ भी देखें वहाँ चारों ओर यही आवाज़ गूँजता हुआ सुनाई दे कि समय प्रमाण अब गोल्डन एज सुनहरी समय, सुनहरी युग आने का सुनहरी सन्देश द्वारा खुशखबरी मिल रही है। इस गोल्डन जुबली द्वारा गोल्डन एज के आने की विशेष सूचना वा सन्देश देने के लिए तैयारी कर रहे हो। चारों ओर ऐसी लहर फैल जाए कि अब सुनहरी युग आया कि आया! चारों ओर ऐसा दृश्य दिखाई दे जैसे सवेरे के समय अंधकार के बाद सूर्य उदय होता है तो सूर्य का उदय होना और रोशनी की खुशखबरी चारों ओर फैलना। अंधक