17-11-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
हर गुण व शक्ति के अनुभवों में खो जाना अर्थात् खुशनसीब बनना
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों से मिलन मना रहे हैं। बाप का भी प्यार बच्चों से अति है और बच्चों का भी प्यार बाप से अति है। ये प्यार की डोर बच्चों को भी खींचकर लाती है और बाप को भी खींच कर लाती है। बच्चे जानते हैं कि ये परमात्मप्यार कितना सुखदायी है। अगर एक सेकण्ड भी प्यार में खो जाते हो तो अनेक दु:ख भूल जाते हैं। सुख के झूले में झूलने लगते हो। ऐसा अनुभव है ना? बापदादा देख रहे हैं कि दुनिया के हिसाब से आत्मायें कितनी साधारण हैं लेकिन भाग्य कितना श्रेष्ठ है! जो सारे कल्प में, चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य न तो किसी को प्राप्त है, न हो सकता है। तो अति साधारण और अति श्रेष्ठ भाग्यवान! बापदादा को साधारण आत्मायें ही पसन्द हैं - क्यों? बाप स्वयं भी साधारण तन में आते हैं। कोई राजा के तन में या रानी के तन में नहीं आते। कोई धर्मात्मा, महात्मा के तन में नहीं आते। साधारण तन में स्वयं भी आते हैं और बच्चे भी साधारण ही आते हैं। आज का करोड़पति भी साधारण है। साधारण बच्चों में भावना है। और बाप को भावना चाहिये, देह भान वाले नहीं चाहिए। जितना बड़ा होगा उतना भावना नहीं होगी लेकिन भान होगा। तो बाप को भावना का फल देना है और भावना साधारण आत्माओं में होती है। नामीग्रामी आत्माओं के पास न भावना है, न समय है। तो बाप देख रहे हैं कि कितने साधारण और कितने श्रेष्ठ भावना का फल प्राप्त कर रहे हैं। इसलिये ड्रामानुसार संगमयुग में साधारण बनना- ये भी भाग्य की निशानी है। क्योंकि संगम पर ही भाग्यविधाता भाग्य की श्रेष्ठ लकीर खींच रहे हैं और साथसाथ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी बच्चों को दे दिया है। कलम मिली है ना? भाग्य की लकीर खींचना आता है? कितनी लम्बी लकीर खींची है? छोटीमोटी तो नहीं खींच ली? जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो। खुली छुट्टी है और सभी को छुट्टी है। चाहे नये हो, चाहे पुराने हो, सप्ताह कोर्स किया, बाप को पहचाना और बाप भाग्य की कलम दे देता है। यही परमात्म प्यार है। प्यार की निशानी क्या होती है? जो जीवन में चाहिये वह अगर कोई किसको देता है तो वही प्यार की निशानी है। तो बाप के प्यार की निशानी है - जो जीवन में चाहिये वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देते हैं। सुखशान्ति तो चाहिये ना! अगर कोई वस्तु एकदो को देते हैं तो उससे सुख मिलता है ना? तो बाप सुख क्या देता लेकिन सुख का भण्डार आप सबको बना देते हैं। सुख का भण्डार है ना! पूरा स्टॉक है या एक कमरा, दो कमरा है! भण्डार है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी और तलाव नहीं है, सागर है, तो बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है। कोई सुख की कमी है क्या? कोई अप्राप्ति है? फिर यह नहीं कहना कि थोड़ीसी शक्ति दे दो! ‘दे दिया’। ‘दे दो’ कहने की आवश्यकता ही नहीं है। बाप ने दे दिया है, सिर्फ उसको कार्य में लगाने की विधि चाहिये। और विधि भी बाप द्वारा अनेक प्रकार की मिलती है। सिर्फ उसको समय प्रति समय कार्य में लगाते नहीं हो इसीलिये होते हुए भी उसका लाभ नहीं ले सकते। कितना बड़ा भाग्य है! और कितना सहज मिला है! कोई मेहनत की है क्या? एक टांग पर खड़ा तो नहीं होना पड़ा ना? या सेकण्ड के दर्शन के लिए क्यू में खड़े हो-ऐसे तो नहीं है ना। आराम से बैठे हो ना। नीचे भी फोम पर बैठे हो। आराम से ही सहज श्रेष्ठ भाग्य बना रहे हो। यह नशा है ना? सभी नशे से कहेंगे कि भाग्य विधाता हमारा है। जब भाग्य विधाता आपका हो गया तो भाग्य किसको देगा?
भाग्य विधाता को अपना बनाया अर्थात् भाग्य के अधिकार को प्राप्त कर लिया। जिसको नशा है वो सदा यही अनुभव करते हैं कि भाग्य मेरा नहीं होगा तो किसका होगा? क्योंकि भाग्य विधाता ही मेरा है। इतना नशा है या कभीकभी चढ़ता है, कभी उतरता है? संगम का समय ही कितना छोटासा है। और आप मैजारिटी तो सब नये हो। कितना थोड़ा समय मिला है! लेकिन ड्रामा में विशेष इस संगमयुग की ये विशेषता है कि कोई भी नया हो या पुराना हो, नये को भी गोल्डन चांस है-नम्बर आगे लेने का। तो नयों में उमंग है या समझते हो हमारे से आगे तो बहुत हैं, हम तो आये ही अभी हैं....। नहीं, ये खुली छुट्टी है - जितना आगे बढ़ना चाहें उतना बढ़ सकते हैं - सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो। कोईकोई पुराने अलबेले हो जाते हैं और आप नये अलबेले नहीं होना तो आगे बढ़ जायेंगे। नम्बर ले लेंगे। नम्बर लेना है ना? फर्स्ट नम्बर नहीं, फर्स्ट डिविजन। फर्स्ट नम्बर तो ब्रह्मा बाप निश्चित हो गये ना। लेकिन फर्स्ट डिविजन में जितने चाहे उतने आ सकते हैं। तो सभी किस डिविजन में आयेंगे? सभी फर्स्ट में आयेंगे तो सेकण्ड में कौन आयेगा? मातायें किसमें आयेगी? फर्स्ट में आयेंगी? बहुत अच्छा। ‘आना ही है’ - यह दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है। पता नहीं.... आयेंगे, नहीं आयेंगे...., पता नहीं आगे चलकर कोई माया आ जाये..., माया बड़ी चतुर है - ऐसे व्यर्थ संकल्प कभी भी नहीं करना। जब सर्वशक्तिमान् साथ है तो माया तो उसके आगे पेपर टाइगर है। इसलिये घबराना नहीं। ‘पता नहीं’ का संकल्प कभी नहीं करना। मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ का अनुभव सदा ही सहज और सेफ रखता है। साथ भूल जाते हैं तो मुश्किल हो जाता है। लेकिन सभी का वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे - यही वायदा है ना? कि अकेले रहेंगे, अकेले जायेंगे? तो साथ का अनुभव बढ़ाओ। जानते हो कि साथ हैं, मानते भी हो लेकिन फर्क क्या पड़ता है? जानते भी हो, मानते भी हो लेकिन समय पर उसी प्रमाण चलते नहीं हो। माया का फोर्स ये जो कोर्स है उसको भुला देता है। लेकिन क्या माया बहुत बलवान है? वह बलवान है या आप बलवान हो? या कभी माया बलवान, कभी आप बलवान? आपकी कमज़ोरी माया है, और कुछ नहीं है। आपकी कमज़ोरी माया बनकर सामने आती है। जैसे शरीर की कमज़ोरी बीमारी बनकर सामने आती है ना, ऐसे आत्मा की कमज़ोरी माया बन करके सामना करती है। तो न कमज़ोर बनना है, न माया आनी है। लक्ष्य ही है - मायाजीत जगतजीत। कितने बार विजयी बने हो? अनगिनत बार, फिर भी घबरा जाते हो! कोई नई बात होती है तो कहा जाता है - नई बात थी ना, मुझे पता नहीं था इसीलिये घबरा गये। लेकिन एक तरफ कहते हो अनेक बार विजयी बने हैं। फिर क्यों घबराते हो? बाप का प्यार ही ये है कि हर बच्चा श्रेष्ठ आत्मा बन राज्य अधिकारी बने। प्रजा अधिकारी तो नहीं बनना है ना? तो राज्य अधिकारी अर्थात् हर कर्मेन्द्रिय जीत। अगर अपनी कर्मेन्द्रियों के ऊपर, मनबुद्धिसंस्कार के ऊपर विजय नहीं तो प्रजा पर क्या राज्य करेंगे! अगर ऐसे राजे बने जो अपने ऊपर विजय नहीं पा सकते तो सतयुग भी कलियुग बन जायेगा। इसीलिये ये चेक करो कि मनबुद्धिसंस्कार कन्ट्रोल में हैं? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाने वाले हो? जब ये कम्पलेन्ट करते हो कि मेरा मन आज लगता नहीं, मेरा मन आज भटक रहा है तो ये मनजीत हुए? आज मन उदास है, आज मन और आकर्षण की तरफ जा रहा है - ये विजयी के संकल्प हैं? तो जो स्वयं पर विजय नहीं पा सकते हैं वो विश्व पर कैसे विजय प्राप्त करेंगे? इसलिये चेक करो कर्मेन्द्रिय जीत, मन जीत कहाँ तक बने हैं? अगर फर्स्ट डिविजन में आना है तो इस लक्षण से लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो।
बापदादा ने देखा कि बच्चे उमंगउत्साह में भी रहते हैं, ज्ञान की जीवन अच्छी भी लगती है, ज्ञान सुननासुनाना इसमें भी अच्छे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन चलतेचलते अगर कमज़ोरी आती है तो उसका कारण क्या है? विशेष कारण है कि जो कहते हो, जो सुनते हो, उस एकएक गुण का, शक्ति का, ज्ञान के पॉइन्ट्स का अनुभव कम है। मानो सारे दिन में स्वयं भी वा दूसरे को भी कितने बार कहते हो - मैं आत्मा हूँ, आप आत्मा हो, शान्त स्वरूप हो, सुख स्वरूप हो, कितने बार स्वयं भी सोचते हो और दूसरों को भी कहते हो। लेकिन चलते फिरते आत्मिक अनुभूति, ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, शान्त स्वरूप की अनुभूति, वो कम होती है। सुननाकहना ज्यादा है और अनुभूति कम है। लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की होती है तो उस अनुभव में खो जाओ। जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो। एकएक गुण का वर्णन करते हो, शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये। कई तो बोलते भी रहते हैं कि सहनशक्ति धारण करनी चाहिये, सहनशीलता अच्छी है, लेकिन अनुभूति नहीं होती। अनुभूति की कमी होने के कारण जितना चाहते हो उतना पा नहीं सकते। अगर सभी से पूछें कि जितना पुरूषार्थ होना चाहिये उतना है तो थोड़े हाँ कहेंगे। तो जितना मिल रहा है उतना जीवन में वा कर्म में अनुभव हो। सिर्फ सोचने में अनुभव नहीं हो लेकिन चलन में, कर्म में - शक्तियाँ, गुण स्वयं को भी अनुभव हो, दूसरों को भी अनुभव हो। कहते ही हो कि ज्ञान स्वरूप हैं। तो वह स्वरूप दिखाई देना चाहिये ना? और स्वरूप सदा होता है। स्वरूप कभीकभी नहीं होता है। अज्ञानकाल की जीवन में यदि किसी का क्रोधी स्वरूप होता है तो जब भी कोई बात होगी तो वो स्वरूप दिखाई देता है, छिपता नहीं है। चाहे छोटी बात हो या बड़ी बात हो लेकिन जिसका जो स्वरूप होता है वह दिखाई देता है। स्वयं को भी अनुभव होता है और दूसरे को भी अनुभव होता है। क्या कहते हैं - ये है ही क्रोधी, इसका संस्कार ही क्रोध का है। तो संस्कार दिखाई देता है ना। ऐसे ये ज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप अनुभव में आये। तो अनुभवीमूर्त - ये है श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी। तो अनुभव को बढ़ाओ। जो कहा वो अनुभव किया? अगर अनुभव नहीं होता है तो उसका कारण ये है कि जो समय प्रति समय विधि मिलती है उस विधि के ऊपर अटेन्शन कम है? जितनाज्ञान को, शक्तियों को, गुणों को रिवाइज करते रहेंगे तो रियलाइज सहज होगा। रिवाइज नहीं करते तो रियलाजेशन भी कम है। सुना, बहुत अच्छा। लेकिन चलते फिरते रिवाइज होना चाहिये। जैसे दुनिया वाले कहते हैं कि कर्म ही योग है। कर्म योग अलग नहीं मानते। कर्म ही योग मानते हैं। कर्म से योग लगाना, इसी को ही कर्मयोग समझते हैं। लेकिन कर्म और योग दोनों का बैलेन्स चाहिये। कर्म में बिजी रहना योग नहीं है। कर्म करते योग का अनुभव होना चाहिये। कर्म में बिजी हो जाते हैं तो कर्म ही श्रेष्ठ हो जाता है, योग किनारे हो जाता है। चलतेचलते यही अलबेलापन आता है। तो कर्म में योग का अनुभव होना-इसको कहा जाता है कर्मयोगी। मूल बात है अनुभवी स्वरूप बनो। एकएक गुण के अनुभव में खो जाओ। शक्ति स्वरूप बन जाओ। आपके स्वरूप से शक्तियाँ दिखाई दें। अभी भी देखो, अगर कोई में कोई विशेष शक्ति होती है तो उसके लिये कहते हो - ये बहुत सहनशील स्वरूप है, इसमें समाने की शक्ति बहुत दिखाई देती है। तो कोई में दिखाई देती है, कोई में नहीं और कभी दिखाई देती है, कभी नहीं तो अटेन्शन कम हुआ ना। तो हर शक्ति, हर गुण, हर ज्ञान की पॉइन्ट्स आपके स्वरूप में अनुभव करें और वो तब होगा जब पहले स्वयं को अनुभव होगा। अगर स्वयं अनुभवी होगा तो दूसरे को उससे स्वत: ही अनुभव होगा। और जब अनुभव करते हो तो कितनी खुशी होती है! एक सेकण्ड भी अगर किसी गुण वा शक्ति का अनुभव होता है तो कितनी खुशी बढ़ जाती है और जब सदा अनुभवी स्वरूप होंगे तो सदा चेहरे पर खुशी की झलक, खुशनसीब की झलक अनुभव होगी। तो अनुभव को बढ़ाओ। विधि तो स्पष्ट है ना? अच्छा, सभी खुशनसीब तो हो ही लेकिन विशेष खुशी मनाने आये हो। तो सबको खुशी मिली है?
सब आराम से रहे हुए हो? मन आराम में है तो तन को आराम मिल ही जाता है। ये तो होना ही है, जितना स्थान बढ़ायेंगे उतना कम होना ही है। ये भावी है, उसको क्या करेंगे। और अच्छा है, रिहर्सल हो जाती है, जहाँ बिठाओ, जैसे बिठाओ, जैसे सुलाओ, इसकी रिहर्सल हो जाती है। तो पट में सोना अच्छा है, पटराजा बन गये ना। शास्त्र में तो पटरानी और पटराजा का बड़ा गायन है, आप तो बहुत सहज बन गये। कोई तकलीफ है? बापदादा और निमित्त आत्मायें सोचती तो यही हैं कि सब आराम से रहें लेकिन अगर ज्यादा संख्या में भी आराम लगता है तो खुशी की बात है। जहाँ भी रहे हुए हो, वहाँ खुश हो? कोई तकलीफ नहीं है, और बुलायें? सिर्फ एक सूचना चली जाये कि जो आना चाहे वो आ जाये, तो क्या करना पड़ेगा? अखण्ड तपस्या करनी पड़ेगी। खुशी की खुराक खाओ और अखण्ड योग करो फिर तो सभी आ सकते हैं। करेंगे? थक नहीं जायेगे, भूख नहीं लगेगी, सात दिन नहीं खायेंगे? सात दिन खाना नहीं मिलेगा! बापदादा ऐसा हठ कराना नहीं चाहते। सहजयोगी हो ना।
ये परमात्म मिलन कम भाग्य नहीं है! ये परमात्म मिलन का श्रेष्ठ भाग्य कोटो में कोई आप आत्माओं को ही मिलता है। अच्छा! मिल लिया ना! भक्ति में तो जड़ चित्र मिलता है और यहाँ चैतन्य में बाप बच्चों से मिलते भी हैं, रूहरिहान भी करते हैं। तो ये भाग्य कोई कम है! फिर भी आप सब लक्की हो, समय की गति बदलती जाती है। अभी फिर भी आराम से बैठकर सुन रहे हो। आगे चलकर वृद्धि होगी तो बदलेगा ना, फिर भी आप लक्की हो क्योंकि टूलेट के टाइम पर नहीं आये हो। लेट के टाइम पर आये हो। तो सब खुश हो? अच्छा, कौनसे कौनसे जोन आये हैं?
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र वाले सदा विशेष सन्तुष्ट मणियाँ हैं - इस वरदान को स्वरूप में लाना। और फिर बापदादा दूसरे ग्रुप में पूछेंगे कि महाराष्ट्र ने सन्तुष्टता का स्वरूप दिखाया? तो सदा सन्तुष्ट मणि हैं, असन्तुष्टता का नामय्निशान नहीं। तो अभी इसमें नम्बर लेना। रिजल्ट बताना कि इस 6 मास में कोई असन्तुष्ट रहा क्या या सन्तुष्ट किया? स्वयं भी सन्तुष्ट दूसरे भी सन्तुष्ष्ट। तो महाराष्ट्र को ये पसन्द है? अगर कोई आपको असन्तुष्ट करे तो क्या करेंगे? फिर तो असन्तुष्ट होंगे ना। करने वाले ने असन्तुष्ट कर दिया तो आप क्या करेंगे? शीतलता धारण करेंगे। वो सेक दे रहा है और आप शीतल रहेंगे? थोड़ाथोड़ा असन्तुष्ट होंगे? देखना। वो असन्तुष्ट करे और आप सन्तुष्टता का जल डालो, वो आग जलाये आप पानी डालो। ये तो कर सकते हो या नहीं? तो रिजल्ट देखेंगे। तो महाराष्ट्र अर्थात् सन्तुष्ट रहने वाले और सन्तुष्ट करने वाले।
तामिलनाडु: तामिलनाडु क्या करेगा? तामिलनाडु सदा सुखदाता के बच्चे मास्टर सुख दाता हैं। कोई दु:ख भी दे तो उसको सुख में परिवर्तन कर लेंगे। तो 6 मास की रिजल्ट देखेंगे। ऐसे ताली नहीं बजाना। रिजल्ट के समय भी ताली बजे, ऐसा करना। तो तामिलनाडु भी रेस अच्छी कर रहे हैं। सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। प्रकृति को भी तामिलनाडु अच्छा लगता है। वहाँ प्रकृति भी वार करती है। तामिलनाडु वाले क्या बनेंगे? मास्टर सुखदाता। अब देखेंगे महाराष्ट्र आगे जाता है या तामिलनाडु आगे जाता है? लक्ष्य तो सभी का यही है कि सबसे आगे जाना है और जा सकते हैं। कोई मुश्किल बात नहीं है।
इस्टर्न जोन (बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, नेपाल):
पांच नदियां मिलकर इस्टर्न जोन बना है। तो इस्टर्न जोन क्या करके दिखायेंगे? सदा स्वयं कम्बाइन्ड स्वरूप, मास्टर सर्वशक्तिमान अनुभव करेंगे। सबसे ज्यादा विस्तार ईस्टर्न जोन का है। देखो, नेपाल भी इस्टर्न में आ गया, इस्टर्न में फॉरेन भी आ गया तो कितना बड़ा है। बड़ा जोन है तो बड़ा ही दिखायेंगे ना। इस्टर्न जोन महान लक्की जोन है। क्यों लक्की है? क्योंकि ब्रह्मा बाप की कर्म भूमि और प्रवेशता भूमि है। इसलिये सदा कम्बाइन्ड स्वरूप में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मायें हैं - ये प्रैक्टिकल में दिखायेंगे ना। सेकण्ड भी अलग नहीं होना। कम्बाइन्ड कभी अलग नहीं होता। सदा साथ और सदा साथ रहकर औरों को भी साथ में मिलाने वाला। समझा? अभी देखेंगे कि नम्बर कौन लेते हैं? अभी तो नाम का नम्बर है ना फिर काम का नम्बर आयेगा।
यू.पी.: लौकिक कहावत में यू.पी.की विशेषता है कि यू.पी. वाले ‘पहले आप, पहले आप’ का मन्त्र ज्यादा पढ़ते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण कौनसा मन्त्र पढ़ते हो? पहले बाप। हर बात में पहले बाप। बाप याद आया तो सब कुछ आ गया। तो हर कर्म में पहले बाप की याद हो। इसलिये यू.पी. वाले सदा मस्तक में पदमपति, पदमापदम भाग्य की लकीर वाले। सदा मस्तक में ये पदमापदम भाग्यवान की लकीर चमकती हुई दिखाई दे। इसमें यू.पी. वाले नम्बर लेंगे ना? सदा भाग्यवान भव। अच्छा, स्थापना में दिल्ली का भी पार्ट है तो यू.पी. का भी विशेष पार्ट है। इसलिये विशेष भाग्यवान आत्मायें हैं।
इन्दौर: इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन्दौर वाले विशेष महादानी हैं। सदा अपने कर्म द्वारा, बोल द्वारा महादानी। दान करने वाले हो। लेने वाले नहीं, देने वाले। तो महादानी हैं? दान करना आता है ना? जो महादानी होते हैं वही वरदानी होते हैं। तो वरदान लेने वाले और औरों को वरदान देने वाले - महादानी और मास्टर वरदानी। कोई कैसा भी हो वरदान दो, महादानी बनो - यही विशेषता है। तो इन्दौर वाले क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे। कोई गाली भी देंगे तो वरदानी बनेंगे ना। कोई इन्सल्ट करेंगे तो क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे कि उस समय थोड़ा शक्ल बदली करेंगे? थोड़ी शक्ल बदली नहीं होगी? वरदान देंगे! वो गाली देवे, आप वरदान देंगे! फिर तो बहुत पास हो गये, अभी से ही पास हो गये।
कर्नाटक: कर्नाटक वाले क्या करेंगे? सदा अपने को पुण्य आत्मायें समझ पुण्य करते रहेंगे। कर्नाटक वालों के पुण्य की पुंजी सदा जमा होगी। तो पुण्यात्मायें बन पुण्य की पूंजी जमा करने वाले और पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्यात्मा बनाने वाले। तो कर्नाटक वाले क्या हैं? पुण्यात्मायें। पाप तो खत्म हो गये ना। कर्नाटक वालों ने पाप का खाता खत्म कर दिया ना? कि थोड़ाथोड़ा रखा है? सारा खत्म। तब तो पुण्य आत्मा बने हैं ना। तो पुण्यात्मायें हैं और सदा पुण्यात्मायें रहेंगे और औरों को भी पुण्यात्मा बनायेंगे। बनाने में तो होशियार हो ना। कर्नाटक की वृद्धि बहुत जल्दी होती है ना। सबसे ज्यादा किस जोन की संख्या है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, जैसा नाम है वैसा काम है। अच्छा!
डबल विदेशी: डबल विदेशी बहुत होशियार हैं। कौनसी होशियारी करते हैं? भागने में होशियार हैं! और भाग्य लेने और भाग्य देने में भी होशियार हैं! थोड़ा लेने वाले नहीं हैं, पूरा लेने वाले हैं। भाग्य लेने में होशियार हैं? डबल विदेशियों की विशेषता है कि हर बात में डबल हिस्सा लेते हैं। भारत वालों में भी हिस्सा लेते हैं तो अपने में भी हिस्सा लेते हैं। और विदेश वालों को विशेष अव्यक्त पालना की अनुभूति का वरदान विशेष है। तो अनुभव स्वयं भी करते हैं और ड्रामानुसार डबल विदेशियों को बापदादा द्वारा भी अव्यक्त पालना का विशेष वरदान मिला है। लेकिन लेने में भी आगे हैं। इसलिये बापदादा डबल यादप्यार देते हैं। इन्हों के आगे जाने का एक विशेष कारण है। ऐसे ही वरदान नहीं मिला है, कोई कारण से मिलता है। तो इन्हों की विशेषता यह है कि जो भी होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा, स्पष्टवादी हैं। अन्दर एक, बाहर दूसरे नहीं हैं। जो अन्दर है, वो बाहर है। तो स्पष्ट होने के कारण जल्दी में आगे कदम उठा लेते हैं। छिपाने वाले नहीं हैं। तो यह स्पष्टवादी बनने के कारण विशेष अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकारी बने हैं और बनते रहेंगे। समझा!
तो आप भी जितने स्पष्टवादी होंगे उतने अनुभव ज्यादा करेंगे। स्पष्टवादी बनना अर्थात् सहज श्रेष्ठ बनना। ये वरदान स्वत: ही मिल जाता है।
आन्ध्रप्रदेश: आन्ध्रा में भी सेन्टर्स तो बहुत हैं ना। आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा वाले कमाल करने वाले हैं। (बीच में ही ताली बजा दी) इससे ही सिद्ध होता है कि कमाल करने में होशियार हैं। तो आन्ध्रा वालों को यही कमाल करनी है कि सदा डबल लाइट बन उड़ना है और उड़ाना है। उड़ती कला और औरों का भी भला। स्वयं भी उड़ती कला और औरों की भी उड़ती कला में सबसे आगे जाना है। अपने भी बोझ को सेकण्ड में समाप्त करने वाले और दूसरों के भी बोझ को समाप्त कर उड़ाने वाले। अभी उड़ती कला की कमाल आन्ध्रा को दिखानी है। हिम्मत है? तो 6 मास में पूरे आन्ध्रा जोन में कोई भी विघ्न नहीं आना चाहिये। हो सकता है? अभी हाँ नहीं करते, खिटखिट है क्या? मिटा नहीं सकते? तो आन्ध्रा को प्राइज लेनी चाहिये। 6 मास के बाद आन्ध्रा वाले प्राइज लेंगे?
6 मास के बाद सभी को प्राइज देंगे। जो वरदान मिला है, उसमें जो सब पास होंगे उनको प्राइज मिलेगी। पहले पास होंगे फिर प्राइज मिलेगी। तो फुल पास होना है। फिर यह नहीं कहना कि क्या करें, चाहता नहीं था, हो गया..., भाषा बदली कर देना - हो ही नहीं सकता। इतना निश्चय है? अच्छा है। नये कमाल करके दिखायेंगे ना। तो बाप कहेंगे पुराने तो पुराने, नये समान बाप होंगे। तो आगे जाने के लिए ये वरदान लेना है ना।
अच्छा, बाकी मधुबन निवासी और ज्ञान सरोवर। बापदादा ने पहले भी कहा तो आबू में सबका यादप्यार देने के लिये पांच मुखी ब्रह्मा है, ब्रह्मावत्स हैं। एक मधुबन है और दूसरा ज्ञान सरोवर है, तीसरा हॉस्पिटल है, चौथा तहलटी है और पांचवा आबू निवासी। तो पांच मुखी ब्रह्मावत्स। पांचों को बापदादा सदा उमंगउत्साह के पंखों से उड़ने वाले और औरों को भी उड़ाने वाले-ऐसा विशेष वरदान वा यादप्यार दे रहे हैं। तो मधुबन निवासियों को विशेष उमंगउत्साह के पंख सदा लगे हुए रहते हैं। उमंगउत्साह के पंख कभी कमज़ोर नहीं होते। इसका प्रूफ है ज्ञान सरोवर में पंख लग गये हैं ना। जो भी देखता है वो क्या कहता है? कमाल है। तो उमंगउत्साह के पंख का प्रैक्टिकल प्रूफ है ज्ञान सरोवर। आप समझते हो इतने में इतना बड़ा बन सकता है? कॉमन कोई सोच सकता है? तो ज्ञान सरोवर वाले या मधुबन वाले उमंगउत्साह के पंखों से उड़ाने वाले भी हैं और उड़ने वाले भी हैं। बापदादा ज्ञान सरोवर के सेवाधारियों को विशेष दुआओं भरी यादप्यार दे रहे हैं। विशेषता है कि निश्चयबुद्धि हैं। कितना भी कोई हिलाता है, डेट पर तैयार होगा? नहीं हो सकता! लेकिन ज्ञान सरोवर वाले निश्चयबुद्धि नम्बरवन हैं। ज्ञान सरोवर वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं। अच्छा, हमारे विशेष सेवाधारी भी आये हुए हैं। अच्छे हैं, सबकी हिम्मत, सबका उत्साह, कार्य को आगे बढ़ा रहा है, इसलिये बापदादा प्यार की मसाज करते रहते हैं। मधुबन वाले अर्थात् सदा ताजा भोजन करने वाले। फैक्स द्वारा या टाइप द्वारा खाने वाले नहीं, ताजा माल खाने वाले। मधुबन वाले शरीर से नीचे हैं, (हाल फुल होने कारण पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) मन से बापदादा के सामने ऊपर हैं। ऐसे तो चारों ओर के बच्चों के दिल की टी.वी. खुली हुई है, उसमें देख रहे हैं। चाहे देश, चाहे विदेश के, सभी बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। तो देखो आप विशेष लक्की हो जो पहला चांस आप लोगों को मिला है। अच्छा-सभी सन्तुष्ट हो ना? सन्तुष्ट हो और रहेंगे भी। अच्छा!
चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्य विधाता के भाग्यवान आत्माओं को, सदा मनजीतजगतजीत के निश्चय और नशे में रहने वाले, सदा हर गुण, शक्ति और ज्ञान के अनुभवी आत्मायें, सदा बाप को साथ रखने वाले कम्बाइन्ड स्वरूप आत्मायें, सदा श्रेष्ठ भाग्य की लकीर को सहज श्रेष्ठ बनाने वाले, ऐसे अति समीप और श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
26-11-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
परमात्म पालना और परिवर्तन शक्ति का प्रत्यक्ष स्वरूप - सहजयोगी जीवन
आज बापदादा हर एक बच्चों के मस्तक पर विशेष श्रेष्ठ भाग्य की तीन आ लकीरें देख रहे हैं। सर्व बच्चों का भाग्य तो सदा सर्वश्रेष्ठ है ही लेकिन आज विशेष तीन लकीरें चमक रही हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की लकीर और दूसरी है बेहद के ऊंचे ते ऊंचे पढ़ाई के भाग्य की लकीर। तीसरी है श्रेष्ठ मत प्राप्त होने के भाग्य की लकीर। चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक, हर एक को इस जीवन में ये तीन प्राप्तियाँ होती ही हैं। पालना भी मिलती, पढ़ाई भी मिलती और मत भी मिलती है। इन तीनों द्वारा ही हर आत्मा अपना वर्तमान और भविष्य बनाने के निमित्त बनती हैं। आप सभी श्रेष्ठ आत्माओं को किसकी पालना मिल रही है? परमात्मपालना के अन्दर हर सेकण्ड पल रहे हो। जैसे परम आत्मा ऊंचे ते ऊंचे हैं तो परमात्मपालना भी कितनी श्रेष्ठ है! और इस परमात्मपालना के पात्र कौन बने हैं और कितने बने हैं? सारे विश्व की आत्मायें ‘बाप’ कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं। और आप कितनी थोड़ीसी आत्मायें इस भाग्य के पात्र बनती हो! सारे कल्प में यही थोड़ासा समय परमात्मपालना मिलती है। दैवी पालना, मानव पालना-ये तो अनेक जन्म मिलती है लेकिन ये श्रेष्ठ पालना अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे श्रेष्ठ भाग्य की श्रेष्ठ लकीर सदा अपने मस्तक में चमकते हुए अनुभव करते हो? कोई भी प्राप्ति सदा करना चाहते हो या कभीकभी करना चाहते हो? तो प्राप्ति का पुरूषार्थ भी सदा चाहिये या कभीकभी चाहिये? और सदा तीव्र चाहिये या कभी साधारण, कभी तीव्र? प्रैक्टिकल क्या है? चाहना और प्रैक्टिकल में अन्तर हो जाता है ना! सोचते तो बहुत हो लेकिन स्मृति में कम रखते हो। सोचना स्वरूप बनना है या स्मृति स्वरूप बनना है? स्मृति स्वरूप बनने वाले हो ना! तो एक बात भी स्मृति में रखो कि अमृतवेले आपको उठाने वाला कौन? बाप का प्यार उठाता है। दिन का आरम्भ कितना श्रेष्ठ है! और बाप स्वयं मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रूहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! तो हर दिन का आदि कितना श्रेष्ठ है! बाप की मोहब्बत से उठते हो कि कभीकभी मजबूरी से भी उठते हो? यथार्थ तो मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। अमृतवेले से बाप कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। तो जिसका आदि इतना श्रेष्ठ है तो मध्य और अन्त क्या होगा? श्रेष्ठ होगा ना!
बापदादा देख रहे थे कि कितना पालना का भाग्य वर्तमान समय बच्चों को प्राप्त है! जितना प्राप्त है उतना फायदा उठाते हो? स्वप्न में भी संकल्प मात्र नहीं था कि इतने भाग्य के पात्र बनेंगे! सोचने से बाहर था लेकिन मिला कितना सहज! बाप के प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ही है ‘सहज योगी जीवन’। जिससे प्यार होता है उसके लिये मुश्किल परिस्थिति या मुश्किल कोई भी बात देखीसुनी नहीं जाती। तो बाप ने भी मुश्किल को सहज बनाया है ना! सदा सहज है। तो सदा ही पुरूषार्थ की गति तीव्र हो। आज बहुत अच्छा पुरूषार्थ है और कल थोड़ी परसेन्टेज कम हो गई तो क्या सदा सहज कहेंगे? सदा मुश्किल कौन बनाते हैं? स्वयं ही बनाते हो ना? कारण क्या? सोचने की तो आदत है लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कार कभी इमर्ज रखते हो, कभी मर्ज हो जाते हैं। क्योंकि स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। सोचना, यह समर्थी स्वरूप नहीं है। स्मृति समर्थी है। विस्मृति में क्यों आ जाते हो? आदत से मजबूर हो जाते हो। अगर मजबूत नहीं तो मजबूर हो जायेंगे। जहाँ मजबूत हैं वहाँ मजबूरी नहीं है। जब ओरीजिनल आदत विस्मृति की नहीं है। आदि में स्मृति स्वरूप प्रालब्ध प्राप्त करने वाली देवात्मायें हो, योग लगाने का पुरूषार्थ नहीं करते लेकिन स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त करते हो। तो आदि में भी स्मृति स्वरूप का प्रत्यक्ष जीवन है और अनादि आत्मा, जब आप परमधाम से आई तो आप विशेष आत्माओं के संस्कार स्वत: ही स्मृति स्वरूप हैं। और अन्त में संगम पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो ना! तो अनादि, आदि और अन्त - तीनों ही काल स्मृति स्वरूप हैं। विस्मृति तो बीच में आई। तो आदि, अनादि स्वरूप सहज होना चाहिये या मध्य का स्वरूप? सोचते हो कि हाँ, मैं आत्मा हूँ लेकिन स्मृति स्वरूप हो चलना, बोलना, देखना उसमें अन्तर पड़ जाता है। तो यह स्मृति में रखो कि हम परमात्म पालना की अधिकारी आत्मायें हैं।
बापदादा चार्ट चेक करते हैं तो लकीर कभी ऊंची, कभी नीची होती है, कभी कोई दाग होता है, कभी जीवन के कागज में कोई दाग नहीं भी होता है
और कोई समय दाग ही दाग, एक पीछे दूसरा, दूसरे के पीछे तीसरा दाग ही नजर आते हैं। क्यों? एक तो गलती हो जाती है लेकिन गलती होने के बाद भी उसी गलती को सोचते रहते हो। क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं, वैसे..... कई रूप से बात को छोड़ते नहीं हो। बात आपको छोड़ कर चली जाती है लेकिन आप बात को नहीं छोड़ते हो। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो, यथार्थ स्मृति स्वरूप नहीं बनते हो, तो दाग के ऊपर दाग लगते जाते हैं। पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार होने के कारण पेपर का टाइम बढ़ा देते हो। सेकण्ड पूरा हुआ और निर्विकल्प स्थिति बन जाये - यह संस्कार इमर्ज करो।
निर्विकल्प बनना आता है ना? अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में लाकर सदा हर्षित रहो। अपने परमात्म पालना को सदा बारबार स्मृति में लाओ। सुनना भी आता है, सोचना भी आता है लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? बापदादा बच्चों का खेल देखते रहते हैं। सारे दिन में क्याक्या खेल करते हो - ये रात्रि को चेक करते हो ना? माया के खिलौने बड़े आकर्षण वाले हैं। तो उन खिलौनों से खेलने लग जाते हो। पहले तो बहुत प्यार से माया खेल कराती है और खेल करातेकराते जब हार खिलाती है तब होश में आते हैं। मैजारिटी में एक विशेष शक्ति की कमी रह जाती है। कभी बहुत अच्छे चलते हो, कभी चलते हो, कभी उड़ते हो, आगे बढ़ते हो लेकिन फिर नीचे क्यों आ जाते हो? इसका विशेष कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमज़ोरी है। समझते भी हो कि ये यथार्थ नहीं है लेकिन परिवर्तित होने की कमी हो जाती है। ब्राह्मण जीवन में परिवर्तन में आ गये, अब कोई कहेंगे कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ? सभी अपने को बी.के. लिखते हो ना! हम ब्राह्मण हैं, यह समझते हो ना? ब्राह्मण जीवन में जो परीक्षायें आती हैं उसमें परिवर्तन करने की शक्ति आवश्यक होती है। जब व्यर्थ संकल्प चलते हैं तो समझते भी हो कि ये व्यर्थ हैं। लेकिन व्यर्थ संकल्पों का बहाव इतना तेज होता है जो अपने तरफ खींचता जाता है। जैसे नदी का वा सागर का बहुत फोर्स होता है तो कितना भी अपने को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन फिर भी बहते जाते हैं। समझते भी हो, सोचते भी हो कि ये ठीक नहीं है, इससे नुकसान है फिर भी बहाव में बह जाते हो-इसका कारण क्या? परिवर्तन शक्ति की कमी। पहला विशेष परिवर्तन है स्वरूप का परिवर्तन। मैं शरीर नहीं, लेकिन आत्मा हूँ, यह स्वरूप का परिवर्तन है। यह आदि परिवर्तन है। इसमें भी चेक करो तो जब देहभान का फोर्स होता है तो आत्म अभिमान के स्वरूप में टिक सकते हो या बह जाते हो? अगर सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति काम में आ जाये तो समय, संकल्प कितने बच जाते हैं। वेस्ट से बेस्ट में जमा हो जाते हैं।
पहली परिवर्तन शक्ति है स्वरूप का परिवर्तन और स्वभाव का परिवर्तन। पुराना स्वभाव पुरूषार्थी जीवन में धोखा देता है। समझते भी हो कि यह मेरा स्वभाव यथार्थ नहीं है और यह स्वभाव समय प्रति समय धोखा भी देता है-यह भी समझते हो, लेकिन फिर भी स्वभाव के वश हो जाते हो। फिर अपने बचाव के लिये कहते हो कि मेरा भाव नहीं था, मेरा स्वभाव ऐसा है, मैं चाहता या चाहती नहीं हूँ लेकिन मेरा स्वभाव है। ब्राह्मण बन गये तो जन्म बदल गया, सम्बन्ध बदल गया, माँबाप बदल गये, परिवार बदल गया लेकिन स्वभाव नहीं बदला। फिर रॉयल शब्द कहते कि मेरी नेचर है। तो पहली कमज़ोरी स्वरूप का परिवर्तन, दूसरा स्वभाव का परिवर्तन, तीसरा संकल्प का परिवर्तन। सेकण्ड में व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करो। कई समझते हैं बस आधा घण्टे का तूफान था, आधा घण्टा, 15 मिनट चला, लेकिन आधा घण्टा वा 15 मिनट की कमज़ोरी संस्कार बना देती है ना? जैसे शरीर में अगर कोई बारबार कमज़ोर होता रहे तो सदा के लिये कमज़ोर बन जाते हैं। तो 15 मिनट कोई कम नहीं हैं। संगमयुग का एकएक सेकण्ड वर्षों के समान है। तो ऐसे अलबेले नहीं बनो। भल थोड़ा ही चला लेकिन गँवाया कितना? जब कदम में पदम कहते हो तो 15 मिनट में कितने कदम उठेंगे और कितने पदम गंवाये? जमा में तो हिसाब अच्छा रखते हो कि कदम में पदम जमा हो गया लेकिन गँवाने का भी तो हिसाब रखो। तो न चाहते हुए भी संस्कार खींचते हैं। जो भी बात बारबार होती वो संस्कार रूप में भर जाती है। तो संकल्प परिवर्तन करो। सिर्फ सोचते नहीं रहो - करना नहीं चाहिये, हो गया, क्या करूँ? नहीं, सोचो और करके दिखाओ? कहते हो बीती को बिन्दी लगाओ, एकदो को ज्ञान देते हो ना - कोई आकर बात करेंगे तो कहेंगे ठीक है, बिन्दी लगा दो, लेकिन स्वयं बिन्दी लगाते हो? बिन्दी लगाने लिये कौनसी शक्ति चाहिए? परिवर्तन शक्ति। परिवर्तन शक्ति वाला सदा ही निर्मल और निर्माण रहता है। जैसे पहले भी बापदादा ने सुनाया है कि मोल्ड होने वाला ही रीयल गोल्ड है। रीयल गोल्ड की निशानी है वो मोल्ड हो जायेगा। तो चेक करो कि परिवर्तन शक्ति समय पर काम आती है या समय बीत जाने के बाद सोचते ही रहते हैं? तो परिवर्तन शक्ति को बढ़ाना है। जिसमें परिवर्तन शक्ति है वो सबका प्यारा बनता है। विचारों में भी सहज रहेगा, आगे बढ़ते सेवा में रहते हो ना? सेवा में भी विघ्न रूप क्या होता है? मेरा विचार, मेरा प्लैन, मेरी सेवा इतनी अच्छी होते हुए भी मेरा क्यों नहीं माना गया? तो उसको रीयल गोल्ड कहेंगे? मेरापन आ गया, मेरापन आना अर्थात् अलाय मिक्स होना। जब रीयल गोल्ड में अलाए मिक्स हो जाता है तो वो रीयल रहता है? उसका मूल्य रहता है? कितना फर्क पड़ जाता है! तो समय और वायुमण्डल को परखकर अपने को परिवर्तन करना, इसकी आवश्यकता है। मोटीमोटी बातों में परिवर्तन करना तो सहज है लेकिन हर परिस्थिति में, हर सम्बन्ध, सम्पर्क में समय और वायुमण्डल को समझ स्वयं को परिवर्तन करना, यही नम्बरवन बनना है। ये नहीं सोचो कि फलाना भी समझे ना, ये भी तो परिवर्तन करे ना, सिर्फ मैं ही परिवर्तन करूँ क्या? जो ओटे सो अर्जुन, इसमें अगर आपने अपने को परिवर्तन किया तो ये परिवर्तन ही विजयी बनने की निशानी है। समझा।
अच्छा, सब आराम से पहुँच गये ना? आराम से रहे हुए हो ना? भक्ति मार्ग के मेलों में कितनी मेहनत और मुश्किल होती है! और ये मेला आराम देने वाला है ना? नींद तो आराम से करते हो ना? फिर भी नीचे (पट में) सोने के लिये, बैठने के लिये फोम तो मिला है ना। और नदी के किनारे के मेले में तो भोजन भी खाओ तो मिट्टी भी खाओ। मेले में अपना भी प्रोग्राम रखते हो तो कितनी मिट्टी होती है! यहाँ तो आराम से अच्छा ब्रह्मा भोजन मिलता है। प्राप्तियों को सदा सामने रखो तो प्राप्ति के स्मृति स्वरूप से कमज़ोरियाँ सहज समाप्त हो जायेंगी। अमृतवेले से लेकर क्याक्या प्राप्त होता है? अगर कोई पूछे आपको अमृतवेले कौन उठाता है? कोई समझेगा कि परमात्मा इन्हों को उठाता है? हंसेंगे कि परमात्मा आपके लिये बहुत फ्री बैठा है क्या? पढ़ाने के लिये भी फ्री है, उठाने के लिये भी फ्री है? तो फलक से कहते हो ना कि है ही हमारे लिये। कोई बुजुर्ग माताओं से पूछे - आपका टीचर कौन है तो क्या कहेंगी? परमात्मा हमें पढ़ाता है! आश्चर्य की बात है ना! परमात्मा को और कोई स्टूडेण्ट नहीं मिले! अच्छा!
जैसे मधुबन में खुश रहते हो - ऐसे अपने स्थानों को मधुबन बनाओ। माताओं को सबसे ज्यादा खुशी है ना? खुशी को सम्भालना आता है? माताओं को वैसे भी चीज़ें सम्भालने की आदत होती है तो खुशी को सदा सम्भालकर रखना। पाण्डवों को जमा करना आता है, कमाना अर्थात् जमा करना। तो पाण्डव जमा करने में होशियार हैं। जेब खर्च रखने में होशियार होते हैं। तो सदा चेक करो - कितना गँवाया, कितना जमा किया? जमा का खाता सदा बढ़ता रहे। अच्छे कमाने वाले की निशानी यही होती है कि आज एक हजार है तो कल दो होना चाहिये। ऐसे होशियार हो ना?
दूर बैठने वाले और ही बापदादा के अति समीप है। क्योंकि बापदादा के पास ऐसी टी.वी. है जो दूर वाले बिल्कुल नयनों में आ जाते हैं। अच्छा! सब नाच रहे हैं। बस, नाचो, गाओ और ब्रह्मा भोजन खाओ।
डबल विदेशी: डबल विदेशी बहुत चतुर हैं। सभी ग्रुप में डबल विदेशी होते ही हैं। वैसे विदेशियों की सीजन में भी भारत वाले तो होते ही हैं। पहले तो यहाँ के (आबू के) पांच स्थानों के होते हैं। तो डबल विदेशी फ्रीखदिल हैं तो भारतवासी भी फ्रीखदिल बने हैं। डबल विदेशी सिकीलधे हैं। विशेष उमंग उड़ती कला का ज्यादा रहता है। तो जैसे उड़ती कला का लक्ष्य है, वैसे ही लक्ष्य और लक्षण को समान बनाते हुए उड़ते चलो और उड़ाते चलो। उड़ने वाले तो वैसे भी हो। प्लेन में तो उड़कर आते हो ना। तो शरीर से भी उड़ने वाले हो और पुरूषार्थ में भी उड़ती कला। लेकिन लक्ष्य और लक्षण को और समीपता में आगे लाओ। है, लेकिन और समीपता में लाओ। इससे सदा ही श्रेष्ठ रहेंगे। समझा! अच्छा!
दिल्ली: दिल्ली की कल्प के आदि से अब अन्त तक क्या विशेषता है? (राजधानी रही है) तो देहली वाले अपने को सदा राज्य अधिकारी आत्मायें हैं ऐसे श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप अनुभव करते हो? क्योंकि बापदादा ने अभी भी स्वराज्य अधिकारी बनाया है। तो स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी। स्वराज्य अधिकारी कम तो विश्व राज्य अधिकारी भी कम। इसलिये दिल्ली वालों को विशेष ये नशा है और सदा रहना है कि हम स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी हैं। अभी विश्व सेवाधारी और स्वराज्यधारी हैं। क्योंकि दिल्ली में जो भी कार्य होते हैं वो विश्व के कोनेकोने में पहुँच जाते हैं। तो विश्व सेवाधारी भी हो और स्वराज्य अधिकारी भी हो और विश्व के राज्य अधिकारी भी हो। तो सेवा और राज्य दोनों की स्मृति स्वरूप, ये है दिल्ली की विशेषता। समझा? अच्छा।
राजस्थान: राजस्थान की विशेषता क्या है? राजस्थान अर्थात् ताजतख्तधारी। राजाओं की निशानी-ताज होता है ना। तो राजस्थान अर्थात् सदा सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी। और साथसाथ बाप के दिलतख्त नशीन। एक सेवा की जिम्मेवारी का ताज और दूसरा लाइट का। तो डबल ताजधारी भी हैं और डबल तख्तधारी भी। बाप का दिलतख्त भी है और अकालतख्त भी है। तो दोनों तख्त के अधिकारी। डबल तख्तधारी और डबल ताजधारी। समझा।
अभी राजस्थान वालों को और सेवा स्थान बढ़ाने हैं। राजस्थान के सेवाकेन्द्र की संख्या और बढ़ाओ। सभी जोन में से सेवाकेन्द्र की लिस्ट सबसे कम से कम किसकी है? (राजस्थान की) आज तो राजस्थान है ना! राजस्थान वाले अभी क्या करेंगे? सेवाकेन्द्र बढ़ायेंगे? करके दिखाओ। थोड़ी मेहनत लगती है ना। लेकिन अभी समय सहयोगी बन रहा है इसलिये अभी मेहनत कम लगेगी। अच्छा!
बनारस, यू.पी.: यू.पी.वाले क्या करेंगे? विशेषता करेंगे ना। देहली और यू.पी. में पहलेपहले ब्रह्मा बाप ने साकार में बहुत प्यार से निमन्त्रण स्वीकार किया। ब्रह्मा बाप के साकार में जाने की धरनी है। तो जहाँ ब्रह्मा बाप के पांव पड़े हैं वहाँ क्या होगा? ज्यादा में ज्यादा पावन होंगे ना! तो यू.पी. वाले सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रख हीरो पार्टधारी बन हीरो पार्ट बजायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप की विशेषता हीरो पार्ट रहा, वैसे यू.पी.निवासी हर एक हीरो पार्टधारी बन विशेष पार्ट बजाने के निमित्त हैं और रहेंगे। समझा!
कर्नाटक: कनार्टक में संख्या अच्छी है, सेवा अच्छी है लेकिन विशेष निर्विघ्न सेवाधारी बनना है। निर्विघ्न सेवाधारी सो निर्विघ्न विश्व राज्य अधिकारी भव। तो कर्नाटक निवासियों को विशेष टाइटल है-विघ्न विनाशक आत्मायें। इसी का ही गायन और पूजन है । तो कर्नाटक वाले अपना यह विशेष टाइटल स्मृति में रख अपने पूज्य स्वरूप को सदा सामने रखो। हर एक विघ्न विनाशक हैं ना? फलक से कहो कि विघ्न विनाशक हैं और सदा रहेंगे। अभी देखेंगे कि क्या समाचार आते हैं? विघ्न विनाशक का समाचार आता है?
महाराष्ट्र: जैसा नाम है महाराष्ट्र वैसा विस्तार भी है। नाम है महाराष्ट्र तो जोन वा संख्या में भी महान महाराष्ट्र है। इसलिये महाराष्ट्र को सदा महादानी बनना है। कौनसा दान करेंगे? पहले सबसे बड़ा दान है सर्विस हैण्ड्स। तो महाराष्ट्र को सेवा के हैण्ड्स निकालने में महादानी बनना है। वैसे निकलते भी हैं लेकिन और निकालो। तो महाराष्ट्र अर्थात् महादानी, महादानी बनना अर्थात् महान बनना। तो थोड़ा और फ्रीखदिल बनो। वैसे रिजल्ट में देखा गया है कि ट्रेनिंग में जो हैण्ड्स निकलते हैं वो ज्यादा महाराष्ट्र के ही निकलते हैं। ये विशेषता है। इसलिये बापदादा इस विशेषता की मुबारक दे रहे हैं। अब इस मुबारक को और बढ़ाते जाना फिर और मुबारक देंगे।
बम्बई वाले भी सदा सेवा में आगे बढ़ते रहते हैं और बढ़ते रहेंगे। सेवा के प्लैन विशेष देहली और बाम्बे में ज्यादा बनते हैं। और बाम्बे को विशेष वरदान है कि यज्ञ सहयोगी आत्माओं के निमित्त बाम्बे है। आन्ध्रा में आई.पीज सहयोगी हैं और बाम्बे के वारिस सहयोगी हैं। तो बाम्बे की विशेषता वारिस क्वालिटी के सहयोगी अच्छे हैं। ऐसे है ना? भण्डारा भरपूर करने वाले।
आन्ध्र प्रदेश: आन्ध्रा वाले सदा स्वयं को आगे बढ़ाने के उमंगउत्साह में अच्छे हैं। और आगे बढ़ो तो आन्ध्रा से विशेष आई.पीज आत्मायें निकल सकती हैं। आन्ध्रा वालों को विशेष सहयोगी आत्मायें बनाने का वरदान है, तो सहयोगी बनाओ। रेग्युलर स्टूडेण्ट नहीं बनेंगे सहयोगी बनेंगे। तो जो विशेषता है उसको और बढ़ाते चलो। जितनी सहयोगी आत्मायें निकालने चाहो उतने निकालो। क्योंकि कर्नाटक और आन्ध्रा दोनों भावना प्रधान हैं। कर्नाटक से भी स्नेही आत्मायें बहुत निकल सकती हैं। अभी उन्हों को आगे लाओ। हैं बहुत। तो अभी देखेंगे कि ज्ञान सरोवर में सहयोगी आत्मायें कितने निकालते हैं? समझा?
केरला: (3-4 हैं) अच्छा है, आप केरला वाले लाडले हो। जो थोड़े होते हैं वो लाडले होते हैं। विशेष लाडली आत्मायें हो।
गुजरात: गुजरात तो मधुबन का कमरा है। गुजरात की विशेषता हर कार्य में सहयोगी बनने की है। आप ब्रह्मा भोजन खाते हो, तो गुजरात की मातायें जो रोटी पकाती हैं वो और कोई नहीं पका सकता। इसीलिये कांफ्रेंस में या कोई भी फंक्शन होता है तो गुजरात की माताओं को निमन्त्रण ज्यादा मिलता है। तो गुजरात की विशेषता है सहयोग देना। सब प्रकार का सहयोग देते हैं। सेवा स्थान और गीता पाठशालाओं की विशेषता भी गुजरात में है। तो सेवा की विधि भी अच्छी है और वृद्धि भी है इसीलिये वरदानी हैं। तो गुजरात को जन्म से ही वरदान है - ‘‘बढ़ते रहो, बढ़ाते रहो।’’ आवाज दो और पहुँच जाते हैं ना। जैसे कमरे से किसी को बुला लेते हैं ना, वैसे आवाज दो तो पहुँच जाते हैं। अच्छे हैं, हल्के भी हैं और उमंगउत्साह वाले भी हैं। सेवा में अथक हैं। जो भी मुश्किल ड्यूटीज होती हैं वो गुजरात वाले ही उठाते हैं। सबसे मुश्किल ड्यूटी होती है आवासय्निवास की, वो भी गुजरात उठाता है ना। भोजन बनाने की, रोटी बनाने की गुजरात उठाता है। और सबको सन्तुष्ट करने की विशेषता भी है। तो गुजरात सैल्वेशन आर्मा है। सब सैलवेशन देने वाले हैं। गुजरात ने अपनी विशेषता को समझा, अभी इसको और बढ़ाना। अच्छा!
टीचर्स: सभी टीचर्स तो सदा ही ज्ञान स्वरूप, स्मृति स्वरूप हैं ही। क्योंकि जैसे बाप शिक्षक बनकर आते हैं तो बाप समान निमित्त शिक्षक हो। बाप जैसे नहीं हो, लेकिन निमित्त शिक्षक हो। तो टीचर्स की विशेषता निमित्त भाव और निर्मान भाव। सफल टीचर वही बनती है जिसका निर्मल स्वभाव हो। अभी निर्मल स्वभाव के ऊपर विशेष अण्डरलाइन करो। कुछ भी हो जाए लेकिन अपना स्वभाव सदा निर्मल रहे। यही निर्मल स्वभाव निर्मानता की निशानी है। तो अण्डरलाइन करो ‘निर्मल स्वभाव’। बिल्कुल शीतल। शीतलता का गायन शीतला देवी है। तो निर्मल स्वभाव अर्थात् शीतल स्वभाव। बात जोश दिलाने की हो लेकिन आप निर्मल हो तब कहेंगे सफल टीचर। तो बापदादा फिर भी अण्डरलाइन करा रहा है किस पर? निर्मल स्वभाव। समझा? अच्छा!
अच्छा, चारों ओर के सर्व सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सेकण्ड में परिवर्तन शक्ति द्वारा स्व परिवर्तन करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा सहज योगी अनुभव करने वाले अनुभवी आत्माओं को, सदा बाप के समीप और समान बनने के उमंगउत्साह में रहने वाली सर्व आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
05-12-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
वर्तमान समय की आवश्यकता - बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाना
आज स्नेह के सागर बाप अपने स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। यह ईश्वरीय स्नेह सिवाए आप बच्चों के किसी को भी प्राप्त नहीं होता। आप सभी को ये विशेष प्राप्ति है। प्राप्ति सभी बच्चों को है लेकिन पहली स्टेज है प्राप्ति होना और आगे की स्टेज है प्राप्ति के अनुभव में खो जाना। पहली बात, प्राप्ति की नशे से सभी कहते हो कि हमें बाप का प्यार मिला। बाप मिला अर्थात् प्यार मिला। सभी के मुख से यही निकलता है ‘मेरा बाबा’। तो पहली स्टेज में प्राप्ति सभी को है। लेकिन अनुभूति में सदा खोये रहें, इसमें नम्बरवार हैं। जो परमात्म प्यार में खोये हुए रहते हैं उनको इस प्यार से कोई हटा नहीं सकता। परमात्म प्यार में खोई हुई आत्मा की झलक और फलक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होती हैं जो कोई भी समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। ऐसी अनुभूति सदा रहे तो कभी भी किसी भी प्रकार की मेहनत नहीं होगी। अभी योग लगातेलगाते युद्ध करनी पड़ती है। बैठते योग में हैं लेकिन अनुभूति में खोये हुए नहीं होने के कारण कभी योग, कभी युद्ध दोनों चलते रहते हैं। मैं बाप का हूँ-ये बारबार स्मृति में लाना पड़ता है। तो बारबार स्मृति में लाना, विस्मृति है तब तो स्मृति में लाते हो ना? तो हाँना, स्मृतिय्विस्मृति-ये युद्ध लवलीन अनुभूति करने नहीं देती है। वर्तमान समय बच्चों को जो युद्ध वा मेहनत करनी पड़ती है वो व्यर्थ और समर्थ की युद्ध ज्यादा चलती है। कोईकोई बच्चों में व्यर्थ देखने के संस्कार नेचुरल नेचर हो गई है। कोई में सुनने की, कोई में वर्णन करने की, कोई में सोचने की-ऐसी नेचुरल नेचर हो गई है जो वो समझते ही नहीं हैं कि ये हम करते भी हैं। अगर कोई इशारा भी देते हैं तो माया की समझदारी होने के कारण अपने को बहुत समझदार समझते हैं। या तो माया के समझदार बन जाते वा अलबेलापन आ जाता-ये तो चलता ही है, ये तो होता ही है.....। माया की समझदारी से रांग में भी अपने को राइट समझते हैं। होती माया की समझदारी है लेकिन समझेंगे-मेरे जैसा ज्ञानी, मेरे जैसा योगी, मेरे जैसा सेवाधारी कोई है ही नहीं। क्योंकि उस समय माया की छाया मन और बुद्धि को ऐसे वशीभूत कर देती है जो यथार्थ निर्णय कर नहीं सकते। मायावी योगी वा मायावी ज्ञानी समझदार, ईश्वरीय समझ से किनारा करा देती है। माया की समझदारी भी कम नहीं है। माया से योग लगाने वाले भी अचलअटल योगी हैं। इसलिये फर्क नहीं समझते। उस समय के बोल का नशा भी सभी जानते हो ना-कितना बढ़िया होता है! इसलिये बापदादा सदा बच्चों को कहते हैं कि प्राप्तियों की अनुभूतियों के सागर में समाये रहो। सागर में समाना अर्थात् सागर समान बेहद के प्राप्ति स्वरूप बन कर्म में आना।
बापदादा ने चारों ओर के बच्चों का चार्ट चेक किया। क्या देखा? समय के समीपता के प्रमाण वर्तमान के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष स्वरूप में होना आवश्यक है। बेहद का वैराग्य वर्णन भी करते हो। पॉइन्ट्स बहुत निकालते हो, भाषण भी बहुत अच्छे करते हो। सभी के पास पॉइन्ट्स हैं ना? पॉइन्ट्स वर्णन करना वा सोचना-इसमें तो मैजारिटी पास हैं। इन छोटीछोटी कुमारियों को भी भाषण तैयार करके देंगे तो कर लेंगी। यथार्थ वैराग्य वृत्ति का सहज अर्थ है-चाहे आत्माओं के सम्पर्क में आयें, चाहे साधनों के सम्बन्ध में आयें, चाहे सेवा के चांस में चांसलर बनने का भाग्य मिले लेकिन सर्व के सम्बन्धसम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा-इसका बैलेन्स रहे। होता क्या है? कभी न्यारेपन की परसेन्टेज बढ़ जाती और कभी प्यारेपन की परसेन्टेज बढ़ जाती। प्यारापन का अर्थ है निमित्त भाव, निर्मान भाव। लेकिन इसके बदले मेरेपन का भान आ जाता। ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे ही सर्व साधन भाग्य अनुसार मिले हुए हैं, इतनी मेहनत से मैंने ये साधन, स्थान वा सेवा वा सेवा साथी (स्टूडेन्ट्स भी साथी हैं) बनायें हैं। ये मेरा है, क्या मेरी मेहनत की कोई वैल्यू नहीं है? ये निमित्त भाव और मेरेपन के भाव में अन्तर है या एक ही है? ये मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है। ये मेरेपन की रॉयल भाषा, रॉयल संकल्प बाप से रूहरिहान में भी बापदादा बहुत सुनते हैं। बहुत प्यार से बाप को या निमित्त आत्माओं को मनाने या मनवाने आते हैं-बाबा आप ही इसमें मेरे को मदद करना, आप क्या समझते हो कि ये मेरा काम नहीं है, मेरी जिम्मेदारी नहीं है, मेरा अधिकार मेरे को ही मिलना चाहिये। बाप को भी ज्ञान देने के लिये बहुत होशियारी करते हैं। बापदादा मुस्कराते रहते हैं। निमित्त हैं, जो मिला, जैसे मिला, जहाँ बिठायेंगे, जो खिलायेंगे, जो करायेंगे वही करेंगे। ये पहलापहला सभी का वायदा है। वायदा है ना? ये वायदा है या सिर्फ खानेपीने के लिये है? मेरेपन के भाव का वैराग्य ही बेहद का वैराग्य है। नयेनये प्रकार के मेरेपन और इमर्ज हो रहे हैं। माया वर्तमान समय नयेनये प्रकार के मेरेपन की छाया डाल रही है। इसलिये समय की समीपता प्रत्यक्ष रूप में नहीं आ रही है। ज्ञानी, चाहे अज्ञानी, दोनों जानते हैं और कहते भी हैं कि दुनिया की हालतें बहुत खराब है, ये दुनिया कहाँ तक चलेगी, कैसे चलेगी? लेवि्ान फिर भी दुनिया चल रही है। समय की समीपता का फाउण्डेशन है - बेहद की वैराग्य वृत्ति। बापदादा ने चेक किया बेहद की वैराग्य वृत्ति के बजाय नयेनये प्रकार के छोटेछोटे लगाव का विस्तार बहुत बड़ा है। इस विस्तार ने सार को छिपा लिया है। समझा? अब क्या करना है?
यह लगाव बड़े टेस्टी लगते हैं। एकदो बार टेस्ट किया तो वो टेस्ट खींचते रहते हैं। सेवा कर रहे हो बहुत अच्छा लेकिन अपनी चेकिंग करो कि निमित्त भाव है वा लगाव का भाव है? ‘बाबाबाबा’ के बदले ‘मेरामेरा’ तो नहीं आ जाता? मानना है तेरा और बन जाता है मेरा। तो अब क्या करेंगे? मेरामेरा पसन्द है? बापदादा ने पहले भी सुनाया है-एक बहुत बड़ी गलती करते हैं वा चलतेचलते हो जाती है, करना नहीं चाहते हैं लेकिन हो जाती है, वह क्या? दूसरे के जज बन जाते हैं और अपने वकील बन जाते हैं। बनना है अपना जज और बनते हैं दूसरों का। इसको यह नहीं करना चाहिये, इनको बदलना चाहिये। और अपने लिये समझेंगे-यह बात बिल्कुल सही है। मैं जो कहती हूँ, वही राइट है, ये ऐसे है, ये वैसे है। वकील लोग भी सिद्ध करते हैं ना-सच को झूठ, झूठ को सच। और जितने प्रमाण देना वकीलों को आता है उतना और किसको नहीं आता। अपना जज बनना-ये गलती हो जाती है। दूसरे के लिये रिमार्क देना बहुत सहज है। लेकिन अपने को बदलना है। सलोगन भी है-’’स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।’’ पहले ‘स्व’ है। सुना, क्या चार्ट देखा?
बापदादा भी माया की चाल को देख मुस्कराते रहते हैं-माया कितनी चतुर है! मास्टर सर्वशक्तिमान् आत्माओं को भी अपना बना लेती है। तो अभी क्या चाहिये? बेहद की वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाओ। जैसे सेवा का वायुम ण्डल बनाते हो ना, प्रोग्राम बनाते हो। सिर्फ दिमाग तक ये वृत्ति नहीं, दिल तक पहुँचे। सबके दिमाग में तो है-होना चाहिये, करना चाहिये लेकिन दिल में ये लहर उत्पन्न हो जाये इसकी आवश्यकता है। समझा? सभी ने अच्छी तरह से समझा? कि अभी समझ में आया फिर उठने के बाद सोचेंगे-ये कैसे होगा, ये करना मुश्किल है, सुननाबोलना तो सहज है, करना मुश्किल है। तो अभी ऐसे नहीं कहेंगे ना?
स्नेह से आप भी पहुँच गये हैं और बापदादा भी पहुँच गये हैं। स्नेह में देखो कितनी शक्ति है! स्नेह अव्यक्त को व्यक्त में ले आता है। आप सबको मधुबन में ले आया है। सभी स्नेह में ठीक पहुँच गये हैं ना? किसने लाया? ट्रेन ने लाया कि स्नेह ने लाया? जहाँ स्नेह है वहाँ मेहनत, मेहनत नहीं लगती, मुश्किल, मुश्किल नहीं लगता। ये तीन पैर के बजाय दो पैर पृथ्वी भी मिले तो क्या लगता है? सतयुग के पलंगों से भी श्रेष्ठ है। सब आराम से रहे हुए हैं कि मजबूरी से? क्या करें, रहना ही है....। भक्ति मार्ग में तो सिर्फ पांव रखने के लिये इतनी मेहनत करते हैं, आपको सोने के लिये तीन पैर नहीं तो दो पैर तो मिलता है। आपने तो मांगा था कि चरणों में जगह दे दो लेकिन बाप ने चरणों की बजाय पटरानी बना दिया। फिर भी मधुबन का आंगन है ना। चाहे कहाँ भी सोते हो लेकिन हैं तो मधुबन के आंगन में। इतना बाप के समीप आने का अधिकार मिलेगा-ये तो स्वप्न में भी नहीं था। तो सब खुश हो ना? दो पैर की बजाय एक पैर मिले तो भी राजी रहेंगे? बैठेबैठे सोयेंगे! कइयों को बैठने में नींद अच्छी आती है। सोयेंगे तो नींद नहीं आयेगी। योग में बैठना और सोना शुरू। पांच दिन अखण्ड तपस्या करनी पड़े तो सब तैयार हो? खाना भी नहीं मिले तो चलेगा? कि समझते हो ये होना नहीं है? जो चीज़ वहाँ नहीं खाते वो और ही मधुबन में मिलती है। लेकिन एवररेडी रहना चाहिये। मिले तो बहुत अच्छा, न मिले तो बहुतबहुत अच्छा। क्योंकि सबको अमृतवेले दिलखुश मिठाई तो मिलती ही है और सारा दिन खुशी की खुराक भी मिलती है। तो चल सकता है ना? ये भी ट्रॉयल करेंगे। अच्छा!
पंजाब- सभी चलते फिरते सदा ये अनुभव करते हो कि हम विश्व की सर्व आत्माओं के पूर्वज हैं? आपसे ही सब निकले हैं ना? तो सबसे बड़े ते बड़े पूर्वज आप आत्मायें हो। पूर्वज स्वरूप से सदा विश्व की सर्व आत्माओं को रहम की भावना से देखते, वरदानी बन शुभ भावना और शुभ कामना का वरदान देते रहो। साधारण नहीं, पूर्वज हैं। पूर्वज अर्थात् रहमदिल आत्मा। रहम की भावना, शुभ भावना यही विश्व की आवश्यकता है। तो सभी अपने को ऐसा विश्व का पूर्वज समझते हो या कभीकभी अपने को साधारण समझ लेते हो? जैसे ब्रह्मा बाप ग्रेटग्रेट ग्रैण्ड फादर है तो ब्राह्मण क्या हैं? पूर्वज हैं ना? समझा?
पंजाब ने क्या कमाल की है? देखो, आपके वायब्रेशन्स से वायुमण्डल तो बदल गया है ना। समझते हो कि हमारे वायब्रेशन का प्रभाव है? योग तपस्या तो सभी ने अच्छी की ना। तो जो तपस्या का बल है वो व्यर्थ नहीं जाता। फल जरूर निकलता है। वैसे भी जब कोई विघ्न आता है तो अखण्ड योग रख देते हो ना? उससे फर्क पड़ता है। तो पंजाब वालों को तपस्या का समय तो बहुत मिला? अच्छा वायुमण्डल परिवर्तन हुआ है तो अभी धूमधाम से सेवा कर रहे हो? अभी चारों ओर सेवा की धूम मचा दो। जितना भी समय मिलता है उतना समय प्रमाण फायदा उठा लो। एक से अनेक निकलते हैं तो उस एक से जो अनेक निकलते हैं उनका वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है। धरनी की सपलता बदल जाती है। तो अभी जोरशोर से सेवा करो। अभी चांस है सेवा करने का। लेकिन निमित्त भाव से करना, ‘मेरा’ नहीं लाना। अच्छा!
आगरा - आगरा में विशेषता क्या है? आगरा को कहते ही हैं ताज नगरी। तो आगरा वालों को सदा ही सेवा की निर्विघ्न वृद्धि की जिम्मेदारी का ताज धारण करना है। सेवा हो लेकिन उसकी विशेषता है निर्विघ्न सेवा। तो सेवा की जिम्मेदारी के ताजधारी और साथसाथ सदा लाइट के ताजधारी अर्थात् सम्पूर्ण पवित्रता की जिम्मेदारी के ताजधारी होंगे ना? सेवा और लाइट ये डबल ताज सदा प्रैक्टिकल स्वरूप में रहे। तो ये ताज ही सर्व आत्माओं को सहज आकर्षित करेगा। तो सेवा में भी आगे बढ़ो और लाइट के ताजधारी बन दूसरों को बनाने में भी आगे बढ़ो। समझा?
हुबली, गुलबर्गा - कर्नाटक की विशेषता क्या है? वहाँ भावना ज्यादा होती है ना। तो जैसे धरनी की विशेषता है भावना, वैसे ही कर्नाटक निवासी चाहे किसी भी स्थान के हो, सभी विशेष हर सेकण्ड, हर संकल्प में शुभ भावना, शुभ कामना - इसके नेचुरल स्वरूपधारी। कर्नाटक निवासियों की विशेषता है कि व्यर्थ की समाप्ति और शुभ भावना, शुभ कामना स्वरूप सदा रहे। व्यर्थ को फुल स्टॉप। शुभ भावना और शुभ कामना का सदा फुल स्टॉक। तो स्टॉप लगाना आता है? और शुभ भावना का स्टॉक जमा करना भी आता है? स्टॉक जमा करने और स्टॉप लगाने में होशियार हो ना? जैसे आगे बैठना पसन्द करते हो ऐसे सदा हर श्रेष्ठ धारणा में भी आगे से आगे रहना। अच्छा।
तामिलनाडु, केरला - तामिल वाले क्या करेंगे? क्या विशेष नशा रखेंगे? सबसे बड़े ते बड़ा रूहानी नशा है-हम बाप के और बाप हमारा। जो इस नशे में रहते हैं वो सदा ही निश्चित सहज विजयी हैं। तो तामिल वाले वा केरला वाले सदा इस रूहानी नशे में रहने वाले और सदा सहज विजय प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। समझा?
हैदराबाद, सिकन्दराबाद - आन्ध्रा वाले भाषा नहीं जानते हैं लेकिन भावना की भाषा जानते हैं। तो आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा में भी सेवा तो अच्छी है। सदा अपने को हम कोटों में कोई और कोई में भी कोई आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? जो गायन है कोटों में कोई, कोई में भी कोई, तो वो कौनसी आत्मायें हैं, किसका गायन है? आन्ध्रा वालों का है? चाहे कैसी भी आत्मायें हो लेकिन बाप की तो प्यारी हो ना। तो ये खुशी सदा रहे कि जो हूँ, जैसी हूँ लेकिन बाप की प्यारी हूँ इसलिये कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा बनने का भाग्य आपको मिला है। अच्छा।
महाराष्ट्र - ‘महाराष्ट्र’ नाम लेने से ही नशा चढ़ता है ना? देश का नाम भी महान और ब्राह्मण बन गये तो आत्मायें भी महान और महान आत्माओं का कर्तव्य है सभी आत्माओं को महान बनाना। तो महाराष्ट्र वालों को हर समय संकल्प में, बोल में, कर्म में, सम्बन्ध में ‘महान’ शब्द सदा स्मृति में रहे। महान स्वरूप के स्मृति स्वरूप। संकल्प भी साधारण नहीं, महान। एक बोल भी साधारण नहीं, महान। तो ऐसे महान हो? बोलो, हाँ जी। महान हैं और महान बनाने वाले हैं तो महान शब्द सदा स्वरूप में रहे। सिर्फ मुख में नहीं लेकिन स्वरूप में।
इन्दौर, हॉस्टल की कुमारियों से - हॉस्टल की कुमारियाँ हो या हाइएस्ट, होलिएस्ट कुमारियाँ हो? हाइएस्ट भी हो, होलिएस्ट भी। ऊंचे ते ऊंचे भी हो और महान पवित्र आत्मायें भी हो। क्योंकि कुमारी जीवन का अर्थ ही है महान पवित्र। इसीलिये कुमारियों को पूजते हैं। और कुमारी से माता बनी तो सबके पांव छूने पड़ेंगे। अगर बहु बनकर घर में आई तो क्या करेंगे? सबके पांव छुयेंगे और कुमारियों के पांव पूजे जाते हैं। तो कुमारी जीवन अर्थात् महान पवित्र जीवन। ऐसी कुमारियाँ हो ना कि कभीकभी जोश आ जाता है? आपस में एकदो में जोश आता है कि नहीं आता? क्योंकि क्रोध भी अपवित्रता है। सिर्फ काम विकार नहीं, लेकिन उसके और भी साथी हैं। तो महान पवित्र अर्थात् अपवित्रता का नामय्निशान नहीं। इसको कहा जाता है होलीएस्ट, हाइएस्ट कुमारियाँ। तो ऐसी हो या थोड़ाथोड़ा कभी माया को छुट्टी दे देते हो? माया प्यारी लगती है ना तो आती है! लेकिन माया कभी भी न आये इसका सहज साधन है कि सदा गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ में रहो, स्टडी, स्टडी, स्टडी। और कोई बातों में नहीं जाना। अगर कर्मणा सेवा भी करते हो तो वो भी स्टडी की सब्जेक्ट है। खाना बनाना भी स्टडी है। कर्मयोगी का पाठ है, तो पढ़ाई हुई ना? तो कुमारी जीवन में सफलता का आधार है स्टूडेण्ट लाइफ। और बातों में जाना ही नहीं है, रास्ता बन्द। ऐसे है या कभीकभी गलत गली में चली जाती हो? नहीं। अच्छा है, अपना भाग्य तो बना लिया। अभी भाग्य की लकीर को जितना लम्बा बनाने चाहो, उतना बना सकती हो। तो छोटी लकीर नहीं खींचना, लम्बी खींचना। बापदादा भी खुश होते हैं कि कुमारी जीवन में बच गई। भाग्यवान बन गयी। और भी कुछ स्थानों से कुमारियाँ आई हैं। ट्रेनिंग वाली कुमारियां हाथ उठाओ। ट्रेनिंग करना माना सेवा की ट्रेन में चढ़ना। तो सेवा की ट्रेन में चढ़ गये कि अभी फैसला कर रहे हैं? सेवा में लग गये? अच्छा है, आदि से निःस्वार्थ सेवाधारी। सेवाधारी सभी हैं लेकिन निःस्वार्थ सेवाधारी, वो कोईकोई हैं। आप किस लाइन में हो? निःस्वार्थ सेवाधारी या थोड़ाथोड़ा स्वार्थ तो रखना ही पड़ेगा! नहीं। फाउण्डेशन ही ऐसा मजबूत रखना, क्योंकि सेवा में स्वार्थ मिक्स करने से सफलता भी मिक्स मिलती है। तो अच्छा है, बापदादा खुश होते हैं, जो कुमारियाँ हिम्मत रखकर सेवा में आगे बढ़ती हैं। आगे बढ़ने की मुबारक। अच्छा।
डबल विदेशी - (सभी स्थानों से पहुंचे हैं) होशियार हैं डबल फारेनर्स। जैसे सब देश के एम्बेसेडर भेजते हैं ना। तो इन्टरनेशनल ब्राह्मण परिवार हो गया ना। डबल विदेशियों की विशेषता है कि सदा हाथ में हाथ है और साथ है। विदेश का फैशन है ना हाथ में हाथ देना। तो अभी किसके हाथ में हो? बाप के। सदा बाप के हाथ से हाथ मिलाके आगे चलने वाले। हाथ है श्रीमत, तो श्रीमत का हाथ सदा हाथ में है। पक्का है कि कभी थक जाते हैं तो छोड़ देते हैं? कभी हाथ छूटता है? माया छुड़ावे तो? नहीं छूटता है? तो सदा साथ रहने वाले और सदा श्रीमत के हाथ में हाथ देकर चलने वाले। जिसका साथी बाप है, जिसका हाथ बाप के हाथ में है वो सदा ही निश्चिन्त, बेफिक्र बादशाह है। क्योंकि हाथ और साथ दोनों मजबूत हैं। ठीक है ना? नैरोबी वाले, पक्का हाथ और साथ है ना? चाहे सारी दुनिया के अक्षौहिणी लोग हाथ छुड़ाये तो छूटेगा? वो अक्षौहिणी शक्तिहीन हैं और आप एक मास्टर सर्व शक्तिमान हैं। इसीलिये डबल विदेशियों को नशा है कि बापदादा का एक्स्ट्रा हाथ और साथ है, लिफ्ट है। अच्छा।
टीचर्स - जैसे टीचर्स का टाइटल है, तो जैसा टाइटल है वैसे विशेष बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल बनाने में टाइट रहना। हल्के नहीं होना। क्योंकि निमित्त टीचर्स का वायुमण्डल अनेकों तक पहुँचता है। तो टीचर्स अभी ये कमाल करके दिखायें। जैसे परिवर्तन में आज्ञाकारी तो बने। आज्ञाकारी बनने का, हाँ जी करने का एक पाठ तो पक्का कर लिया। लेकिन दूसरा पाठ बेहद के वैराग्य वृत्ति का, अभी ये पाठ पक्का करके दिखाओ। क्योंकि निमित्त हो ना। तो निमित्त आत्मायें ही निर्मान बन निर्माण का कर्तव्य बहुत सहज कर सकती हैं। अभी ये वर्ष तो पूरा हो ही रहा है। लेकिन नये वर्ष में इस नवीनता की झलक बापदादा भी देखेंगे। सेवा की, सेन्टर खोले, बहुत बढ़ाया, आई.पीज भी आ गये, वी.आई.पीज भी आ गये, ये तो होता ही रहता है लेकिन सेवा में बेहद की वैराग्य वृत्ति अन्य आत्माओं को और समीप लायेगी। मुख की सेवा सम्पर्क में लाती है और वृत्ति से वायुमण्डल की सेवा समीप लायेगी। समझा? बापदादा तो चार्ट देखते ही हैं ना? फिर भी सेवा के निमित्त हो-ये श्रेष्ठ भाग्य कम नहीं है! ये भी विशेष वर्सा है। तो इस विशेष वर्से के भाग्य के अधिकारी बने हो। समझा? अच्छा।
चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को, सदा सर्व प्राप्तियों के अनुभूतियों में समाये हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा परखने की, निर्णय करने की शक्ति को तीव्र बनाने वाले समीप आत्माओं को, सदा सेवा में समर्थ बन समर्थ बनाने के निमित्त आत्माओं को, सदा न्यारा और प्यारा दोनों का बैलेन्स रखने वाली ब्लैसिंग के पात्र आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
14-12-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
समयसंकल्पबोल द्वारा कमाई जमा करने का आधार - तीन बिन्दी लगाना
आज बापदादा किस सभा में आये हैं? ये सारी सभा किन आत्माओं की है? आ बापदादा देख रहे हैं कि हर एक हाइएस्ट (Highest), रिचेस्ट (Richest) हैं। दुनिया वाले तो कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप सभी हैं रिचेस्ट इन कल्पा। इस समय का जमा किया हुआ खज़ाना सारा कल्प साथ में चलता है। सारे कल्प में ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा जो ये सोचे कि इस जन्म में तो रिचेस्ट हूँ लेकिन भविष्य में भी अनेक जन्म साहूकार से साहूकार रहूंगा। और आप सभी निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा ये खज़ाना अनेक जन्म साथ रहेगा। गैरेन्टी है ना? तो ऐसा रिचेस्ट सारे कल्प में देखा? तो आज बापदादा अपने शाहन के भी शाह, राजाओं के भी राजा बच्चों को देख रहे हैं। एकएक दिन में कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकालो, जमा का खाता कितना तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है? और बढ़ाने का साधन कितना सहज है! इसमें मेहनत है क्या? आपकी कमाई वा जमा खाता बढ़ने का सबसे सहज साधन है - बिन्दी लगाते जाओ और बढ़ाते जाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में भी बीती को बिन्दी लगाना। तो कमाई का आधार है बिन्दी लगाना। और कोई मात्रा है ही नहीं। क्या, क्यों, कैसे-ये क्वेश्चन मार्क की मात्रा, आश्चर्य की मात्रा, किसी की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल बन गये। तो ‘कैसे’ शब्द ‘ऐसे’ में बदल गया। बदल गया या अभी भी ‘कैसेकैसे’ कहते हो? ‘पता नहीं’ ये शब्द संकल्प में भी बदल गया? त्रिकालदर्शी ये स्वप्न में भी नहीं सोच सकते तो मुख से तो बोलने का सवाल ही नहीं है। संगम पर सारा खेल ही तीन बिन्दियों का है। सबसे सहज बिन्दी होती या क्वेश्चन मार्क सहज है? बिन्दी सहज है ना? बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता? सेकण्ड से भी कम। बिन्दी लगाना आता है कि कलम खिसक जाती है? कई बार बिन्दी के बजाय कलम भी लम्बी लकीर खींच लेती है। बिन्दी लगाने से एक सेकण्ड में आपके कितने खज़ाने बच जाते हैं। खज़ानों की लिस्ट तो जानते हो ना? अगर बिन्दी के बजाय और कोई मात्रा लगाते हो वा लग जाती है, तो सोचो ज्ञान का खज़ाना गया, शक्तियों का खज़ाना गया, गुणों का खज़ाना गया, संकल्प का खज़ाना गया, इनर्जा गई, श्वास सफल के बजाय असफलता में गया, समय गया! कितना गया? लम्बी लिस्ट हो गई ना? तो ये कभी भी नहीं सोचो कि एकदो सेकण्ड ही तो गया। लेकिन एक सेकण्ड में गँवाया कितना? एक सेकण्ड भी कितना भारी हो गया? हर समय अपने जमा का खाता बढ़ाते चलो। कमाया क्या और गँवाया क्या? इन सभी खज़ानों में से कितने खज़ाने गँवाये? बापदादा भी बच्चों के जमा के खाते चेक करते रहते हैं। जब खाता देखते हैं तो मुस्कराते रहते हैं। क्या देखते होंगे जो मुस्कराते हैं? अमृतवेले मिलन भी मनाते, रूहरिहान भी करते, वायदे भी बहुत अच्छे करते कि ये करेंगे, ये करेंगे, बहुत अच्छीअच्छी बातें करते हैं लेकिन चलतेचलते सारे दिन में कोई न कोई खज़ाना गँवा भी देते हैं। फिर आधार क्या बनाते हैं? बापदादा को भी अपनी अच्छीअच्छी बातें सुनाने लगते हैं। अगर व्यर्थ संकल्प चला तो क्या ये जमा हुआ या गँवाया? तो फिर बातें क्या करते हैं? सिर्फ संकल्प में चला ना-वो तो ठीक हो जायेगा, बाप को भी दिलासे दिलाते हैं कि ठीक हो जायेगा, पुरूषार्थी हैं ना, सम्पूर्ण तो नहीं हुए हैं, हो जायेगा.....। तो बापदादा कहते हैं कि ये गागा के गीत सारे दिन में बहुत सुनते हैं लेकिन ये भी कब तक? क्या अंत में सम्पूर्ण होना है? कि बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल का वर्सा पाना है? वर्सा अविनाशी चाहते हो? सम्पूर्ण वर्सा चाहते हो कि अधूरा चलेगा? और पुरूषार्थ में अधूरा पुरूषार्थ चलेगा? तो पुरूषार्थ के समय तो करेंगे, देखेंगे, बनेंगे, कर ही लेंगे, हो ही जायेगा..... ये सोचते हो और प्राप्ति के समय गेगे करेंगे? उसमें तो सम्पूर्ण प्राप्ति चाहिये, सम्पूर्ण वर्सा चाहिये। सभी लक्ष्मीनारायण बनने में हाथ उठाते हो। मालूम भी है कि लक्ष्मीनारायण की भी आठ गद्दियाँ चलेंगी लेकिन हाथ तो लक्ष्मीनारायण में उठाते हो ना? तो लक्ष्मीनारायण का अर्थ है नम्बरवन पास विद् ऑनर होना। बापदादा बच्चों की हिम्मत को देखकर खुश भी होते हैं। रामसीता में कोई नहीं हाथ उठाता। हिम्मत अच्छी है और हिम्मत वाले को मदद भी मिलती है। सिर्फ पुरूषार्थ के समय भी जैसे बाप के आगे संकल्प करते हो वैसे ही ये बोल और कर्म में लाओ।
बापदादा ने देखा समय के खज़ाने का महत्व जितना रखना चाहिये उतना कई बच्चे नहीं रखते हैं। एक दिन का भी चार्ट चेक करें तो मैजारिटी का समय वेस्ट के खाते में जाता दिखाई देता है। द्वापर काल से व्यर्थ सुनने, देखने और फिर सोचने की आदत न चाहते भी आकर्षित कर लेती है और इसी कारण समय का खज़ाना वेस्ट के खाते में चला जाता है। पहले भी सुनाया कि सेकण्ड का भी कितना महत्व है! दूसरी बात, मैजारिटी व्यर्थ बोल में भी समय वेस्ट करते हैं। एक घण्टे के अन्दर भी चेक करो कि जो भी बोल बोला, हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना है? बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है। अगर हर बोल में शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना नहीं है तो अवश्य माया की भावनायें हैं। वो तो अनेक हैं, ईर्ष्या, हषद, घृणा, ये भावनायें चाहे किसी भी परसेन्ट में समाई हुई होती है। कई बार बोल के टेप रिकॉर्ड बापदादा सुनते हैं। हर एक की ऑटोमेटिक टेप भरती जाती है और जिस घड़ी जिसकी भी सुनना चाहे वो सुन सकते हैं। हर बोल का सार नहीं होता। कई बार कहते भी हो मेरी भावना, मेरा भाव खराब नहीं था, ऐसे ही निकल गया वा बोल दिया लेकिन जिस बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना नहीं, वो किस खाते में जमा होगा? वेस्ट में हुआ ना? तो कमाई का खाता ज्यादा होगा या गँवाने का खाता ज्यादा होगा? ये तो गँवाया ना? तो बोल में भी गँवाने का खाता ज्यादा होता है। तो बोल को भी चेक करो। ऐसे ही बोल दिया-ये भाषा बदली करो। समर्थ बोल का अर्थ ही है-जिस बोल में किसी आत्मा को प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर सार नहीं है तो जमा का खाता तो नहीं होगा ना? जितना एक दिन में जमा कर सकते हो, तो बापदादा ने देखा जितने के हिसाब से उतना नहीं है। तो क्या करना पड़ेगा? लक्ष्मीनारायण तो बनना ही है ना? कि नहीं बने तो भी हर्जा नहीं! पहले जन्म से लेकर श्रेष्ठ प्रालब्ध पानी है कि दूसरेतीसरे जन्म से शुरू करेंगे? पहले जन्म में नहीं आओ, दूसरेतीसरे में आओ, पसन्द है? नहीं पसन्द है ना? तो इतना जमा का खाता है? अगर खाता कम जमा होगा तो प्रालब्ध क्या खायेंगे? उतना ही खायेंगे जितना जमा किया है। तो आज बापदादा ने सभी के जमा के खाते देखे। दूसरों को समय का महत्व बहुत अच्छा सुनाते हो, संगमयुग की महिमा कितनी अच्छी करते हो! तो स्वयं भी सदा समय के महत्व को सामने रखो। समय के पहले अपने श्रेष्ठ भाग्य के आधार से प्राप्तियों का खाता फुल जमा करो।
संगमयुग के समय की विशेषता है कि तीनों रूप की प्राप्ति है। एक-वर्से के रूप में, दूसरा-पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहते हैं तो पढ़ाई की प्राप्ति के आधार से और तीसरा है वरदान के रूप में। वर्सा भी है, इनकम भी है और वरदान भी है। प्राप्ति बहुत भारी है, बहुत बड़ी है! सिर्फ सम्भालने वाले बनो। वर्सा भी बेहद है, इनकम भी बेहद है और वरदान भी बेहद के हैं। कभी सोचा था कि रोज भगवान का वरदान मिलेगा? इतने वरदान किसी को भी, कभी भी नहीं मिल सकते। लेकिन आप तो कहते हो हमारा तो अधिकार है। वर्से पर भी, पढ़ाई पर भी और वरदान पर भी। छोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी है! तीनों ही सम्बन्ध से तीनों के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया ना? सभी फखुर से कहते हैं ना-बाप मेरा है। ये कहते हो क्या कि मेरा नहीं, तेरा है? हमारे लिये बाप पढ़ाने आता है-ये समझते हो ना? तो पढ़ाई पर अधिकार है ना? और वरदाता के पास वरदान है ही किसके लिये? हरेक सोचता है कि मेरे लिये ही वरदाता बाप है। तो तीनों पर अधिकार है। कहने में तो बहुत साधारण है। इसीलिये तो दुनिया वाले हंसते हैं कि, हैं क्या और कहते क्या हैं? तो अधिकार को सदा स्मृति में रख कदम उठाओ। इमर्ज रूप में रखो, मर्ज रूप में नहीं। हैं तो ब्रह्माकुमार, हैं ही बाबा के... ऐसे नहीं। इमर्ज रूप में, मन में, बुद्धि में, कर्म में इमर्ज रखो। मन में ये संकल्प इमर्ज हो कि मैं ये हूँ, बुद्धि में स्मृति स्वरूप हो और कर्म में अधिकारी के निश्चय और नशे से हर कर्म हो। ऐसे नहीं, अमृतवेले तो इमर्ज रहता है फिर सारे दिन में मर्ज हो जाता है। नहीं, सदा इमर्ज रूप में रहे। तो जमा का खाता बढ़ाओ। तीव्र गति से बढ़ाना, ढीलाढाला नहीं करना। क्योंकि समय आप मास्टर रचयिता के लिये रूका हुआ है। अभी भी प्रकृति को ऑर्डर करें तो क्या नहीं कर सकती है? अगर पांचों ही तत्व हलचल मचाना शुरू कर दें तो क्या नहीं हो सकता और कितने में हो सकता? तो समय, प्रकृति और माया विदाई के लिये इन्तजार कर रही है। आप सम्पूर्णता की बधाइयाँ मनाओ तो वो विदाई लेकर ही जायेगी। माया भी देखती है अभी ये तैयार नहीं हैं तो चांस लेती रहती है। प्रकृति को ऑर्डर करें? पुरूष तैयार हैं? प्रकृति तो तैयार हो जायेगी। ऑर्डर करें? कि ज्ञान सरोवर तैयार हो पीछे ऑर्डर करें? ऐसे एवररेडी हो, कि रेडी हो? शक्तियाँ एवररेडी हैं? सम्पूर्ण हो गये? थोड़े को तो एवररेडी नहीं कहेंगे ना? ये सोचो, चेक करो कि अगर इस घड़ी भी महाविनाश हो जाये तो अपनी तस्वीर देखो नॉलेज के आइने में, कि मैं क्या बनूँगा? आइना तो सबके पास है ना? क्लीयर है ना? तो अपने तकदीर की तस्वीर देखो। बाप को क्या टाइम लगेगा? जब ब्रह्मा के लिये गायन है कि संकल्प से सृष्टि रच ली तो क्या संकल्प से विनाश नहीं हो सकता? बाप जानते हैं राजधानी चलनी है तो उसमें एक ब्रह्मा क्या करेगा? साथी चाहिये ना? तो ब्रह्मा बाप भी आप साथियों के लिये रूके हुए हैं। तो बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं, बच्चे तो बाप से प्रश्न बहुत कर चुके हैं। अभी बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं कि डेट फिक्स करो। सभी काम की डेट फिक्स करते हो ना? तो इसकी भी डेट फिक्स करो, इसका भी मुहूर्त होना है ना। ज्ञान सरोवर की भी डेट फिक्स है, हॉस्पिटल की भी डेट फिक्स है। इसकी डेट क्या है? ये किसको फिक्स करनी है? बाप को नहीं करनी है। ये बाप ने आप बच्चों के हाथ में दिया है। कोई काम तो आप भी करेंगे, कि सब बाप करेंगे? डेट फिक्स का प्रोग्राम बनाना। अच्छा!
(नये बच्चों को देखते हुए) देखो, आप नयेनये बच्चे जो आये हैं, आप से सबका कितना प्यार है? पहला चांस आप सबको ही देते हैं। सब खुशराजी हैं? कितने पैर पृथ्वी मिली है? दो पैर या तीन पैर? (दो पैर) दो पैर में भी राजी तो हो, तकलीफ तो नहीं है ना? खानापीना तो अच्छा मिल रहा है ना? मेले में ऐसी पालना और कोई की हो ही नहीं सकती। मेले देखे हैं ना? ऐसा ब्रह्मा भोजन, ऐसा परमात्म परिवार कहाँ मिलता है? सर्दी लगती है? मौसम की भी मिठाई होती है। तो ये सर्दी भी मौसम की मिठाई है, मिठाई तो खानी चाहिये ना? सबको शालों की सौगात तो मिलती है ना? कोई मेले में ऐसी सौगात मिलती है या खाली होकर आते हो? अच्छा-नयों की दिल पूरी हुई, मधुबन देख लिया? पहले स्वप्न में था, अभी साकार में हो गया। कितना भी स्थान बढ़ायेंगे लेकिन कम होना ही है। क्यों? सोचो, अभी 9 लाख जमा हुए हैं? पहले जन्म की संख्या ही तैयार नहीं हुई है। वो तो होनी है ना? कितने मकान बनायेंगे? कितने ज्ञान सरोवर बनायेंगे? सभी कहते हैं संख्या बढ़ाओ। जितना संख्या बढ़ायेंगे, उतनी संख्या दूसरे वर्ष और हो जायेगी तो क्या करेंगे? जितना मिले उतने में राजी रहो। मेला भी करना है ना? (तलहटी में ब्राह्मणों का विशाल संगठन होना है) ये तो मेले में आने नहीं हैं, ये तो आ गये। दूसरों के लिये इतना बड़ा मेला पसन्द है? दस हजार सोयेंगे! भीड़ नहीं हो जायेगी? ये तो समझते हैं हमको तो चांस मिलना नहीं है। इन्तजार की घड़ियाँ भी प्यारी होती हैं। एक साल के बाद जाना है-ये इन्तजार होता है ना? तो इन्तजार में पुरूषार्थ कितना अच्छा चलता है! और जब होकर चले जायेंगे तो देख लिया, फिर क्या होगा? फिर अलबेलापन आयेगा? नहीं आयेगा? और आगे बढ़ेंगे? ये भी ड्रामा में जो विधि बनी है वो बहुत ही फायदे वाली है। एक साल में पक्के तो हो जाते हो ना? नहीं तो कच्चेकच्चे आ जाते फिर युद्ध करनी पड़ती।
हर साल में आपके यहाँ (मधुबन में) इन्टरनेशनल मेले कितने लगते हैं? अभी भी ये मेला क्या है? इन्टरनेशनल है ना? देशय्विदेश सब तरफ के हैं ना? दुनिया वाले तो सोचते हैं इन्टरनेशनल प्रोग्राम पांच साल में एक किया तो बहुत कर लिया। और मधुबन में कितने होते हैं, पता पड़ता है? इन्टरनेशनल मेला हो गया। और सब खुश! मजा आता है ना? लेकिन आना टर्न पर। अभी तो देखो दस हजार में भी टेन्ट तो मिलेगा ना? आखिर में ये सब साधन समाप्त हो जायेंगे। सारे आबू के पहाड़ों को सोने के स्थान बना लो तो कितने रह सकते हैं? अच्छा!
दिल्ली ग्रुप - पहले तो दिल्ली वालों को डेट फिक्स करनी पड़ेगी। क्योंकि देहली को परिस्तान बनाना है ना? राज गद्दी तो दिल्ली में होनी है ना? तो पहले दिल्ली वालों को तैयारी करनी पड़ेगी तब तो राज्य करेंगे ना? तो दिल्ली वाले क्या तैयारी करेंगे? दिल्ली वालों को एक्स्ट्रा सेवा करनी पड़ेगी। क्योंकि एक तो आत्माओं को योग्य और योगी बनाना है, दूसरा धरणी को भी तैयार करना है। तो विशेष अपने वाणी के साथसाथ वृत्ति को और तीव्र गति देनी पड़ेगी। क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनेगा और वायुमण्डल का प्रभाव प्रकृति पर पड़ेगा, तब तैयार होंगे। तो दिल्ली वालों को डबल सेवा का सदा अटेन्शन रखना है। वाणी और वृत्ति दोनों साथसाथ सेवा में लगे रहें। सभी पावरफुल वृत्ति वाले हो ना? ढीला पुरूषार्थ नहीं करना। क्योंकि अगर आप देरी करेंगे तो राज्य भी देरी से स्थापन होगा। इसलिये दिल्ली वालों को सदा ही डबल सेवा द्वारा तीव्र गति से तैयारी करनी है, राजधानी बनानी है। बनायेंगे तो नजदीक भी रहेंगे ना? तो डबल सेवा द्वारा ऐसा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ जो प्रकृति भी दासी बन जाये, हलचल करने के बजाय दासी बनकर सेवा करे। तो देहली निवासी विश्व परिवर्तक तो हो ही लेकिन विश्व में भी राजधानी परिवर्तन के विशेष निमित्त हो। नशा है ना? तो डबल सेवा करनी है, तब ही डबल ताज मिलेगा, ऐसे नहीं मिलेगा। सेवाधारी सो ताजधारी। अच्छा।
बम्बई, महाराष्ट्र - बम्बई वाले क्या करेंगे? देहली वाले राजधानी तैयार करेंगे, आप प्रजा और राजारानी तैयार करेंगे? बाम्बे वालों को विशेष ब्रह्मा बाप का वरदान है। (रमेश भाई से) कौनसा वरदान है? (नरदेसावर) नरदेसावर का अर्थ है सदा सम्पूर्ण, सदा भरपूर। कभी कोई कमी नहीं होगी। नरदेसावर अर्थात् सदा कमाने वाले, कमाने में होशियार। ऐसे नरदेसावर, सदा भरपूर हो? या कभी खाली हो जाते हो? इतना भरपूर जो औरों को भी भरपूर करने वाले। बाम्बे वाले राजधानी के राजारानी और प्रजा तैयार करेंगे। बाम्बे वालों का तो बहुत बड़ा काम हो गया! देहली वालों को भी राज्य अधिकारी तो बनाने पड़ेंगे। क्योंकि अभी भी देखो लास्ट जन्म में भी राज्य अधिकारी तो देहली में ही हैं। तो देहली और बाम्बे दोनों को मिलकर राजधानी जल्दीजल्दी तैयार करनी है। पसन्द है? डेट भी फिक्स करेंगे ना? डेट नहीं भूल जाना। देहली और बाम्बे वाले जब कहेंगे राजधानी तैयार हो गई तब तो काम होगा ना? राज्य अधिकारी हो नहीं और राज्य तैयार हो जाये, कैसे होगा? बाम्बे में सेवा के रत्न भी अच्छेअच्छे हैं। अच्छे हैं या अच्छे ते अच्छे हैं? बाप कहते हैं अच्छे ते अच्छे हैं। देखो, एकएक रत्न, पुरानेपुराने रत्न गिनती करो तो कितने अच्छे हैं। दिल्ली में भी हैं, बाम्बे में भी हैं। क्योंकि आदि से सेवा के निमित्त बने हो। ऐसे तो गुजरात भी कम नहीं हैं। गुजरात लास्ट सो फास्ट है और ये आदि हैं। गुजरात ने वृद्धि बहुत जल्दी की है।
नागपुर, पूना - नागपुर वा पूना वाले राजधानी में विशेष क्या करेंगे? राजधानी को सजायेंगे? महाराष्ट्र सजाने की ड्युटी ज्यादा लेता है ना? कितना भी तैयार हो जाये कोई लेकिन सजावट नहीं तो कुछ नहीं। तो महाराष्ट्र वाले राजधानी को सजायेंगे। सजाने के लिये साधन तैयार करने पड़ते हैं ना? तो महाराष्ट्र वाले सदा अपने सहयोग से सहयोगी आत्माओं को निमित्त बनायेंगे। क्योंकि जितना आगे चलते जायेंगे, सहयोगी आत्मायें सदा ही सहयोग के हाथ बढ़ाते हुए परिवर्तन में आगे बढ़ेंगे। ब्राह्मणों के जोन में तो महाराष्ट्र बहुत बड़ा है ना? तो जैसे अभी भी सेवा में, हर कार्य में सहयोगी बनते हो और आगे भी अनेक सहयोगी आत्माओं द्वारा राजधानी को सजाने में सहयोगी बनेंगे। तो महाराष्ट्र वाले सहयोग देने में और सहयोगी बनाने में अच्छे निमित्त हैं और आगे भी रहेंगे। ऐसे हैं ना? योग शिविर में भी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के आते हैं ना और ब्राह्मण परिवार में संख्या किसकी ज्यादा आती है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, वृद्धि है और सहयोग की विधि से सफलता को पाते रहना ही है। समझा? अच्छा!
भोपाल - भोपाल वाले राजधानी में क्या तैयारी करेंगे? भोपाल वाले नगाड़ा बजायेंगे। वैसे भी जब तक नगाड़ा नहीं बजेगा तो तैयारी कैसे होगी? तो भोपाल वाले बहुत जोरशोर से चारों ओर नगाड़ा बजायेंगे। क्या नगाड़ा बजायेंगे? बाप आ गया, वर्सा ले लो-ये नगाड़ा बजायेंगे। नक्शे के हिसाब से भी मध्य प्रदेश है ना। वैसे भी जब कोई आवाज फैलाना होता है तो बीच में खड़े होकर फैलायेंगे ना? तो खूब नगाड़ा बजाओ। बजा भी रहे हैं और बजायेंगे भी। सबको खुशनसीब बनने की खुशखबरी सुनायेंगे। खुशखबरी सुनाने में होशियार हो ना? सबको खुशखबरी सुनाना, यही सबसे बड़ा श्रेष्ठ कर्तव्य है। क्योंकि चारों ओर दु:खअशान्ति की खबरें सुनते रहते हैं। तो ऐसी आत्मायें खुशखबरी सुनकर कितनी खुश होंगी! सबके दिल से निकलेगा कि वाह! परमात्म बच्चे वाह! तो ऐसा श्रेष्ठ कार्य करना ही है। हुआ ही पड़ा है, सिर्फ निमित्त करना है। राजधानी भी तैयार हुई पड़ी है, प्रजा भी तैयार है, आप सिर्फ ठप्पा लगाते जाओ, बस। अच्छा।
कर्नाटक - कर्नाटक वाले क्या करेंगे? कर्नाटक के धरनी की क्या विशेषता है? भावना वाले ज्यादा हैं, तो भावना प्रधान आत्मायें क्या करेंगी? आत्माओं में श्रेष्ठ भावना पैदा करने के निमित्त बनेंगी। जैसे धरनी की विशेषता है, वैसे चारों ओर सारे विश्व को तैयार करने के लिये सभी में श्रेष्ठ भावना, शुभ भावना उत्पन्न करेंगे। श्रेष्ठ भावना क्या है? हम बाप के और बाप हमारा। इस श्रेष्ठ भावना से सभी भावना का फल सहज प्राप्त करेंगे। भावना का फल बहुत जल्दी मिलता है। तो ऐसी सहज सेवा करो जो भावना उत्पन्न करो और भावना का फल सहज प्राप्त करो। तो ये सेवा करना आता है कि नहीं? अभी से फरिश्ते बन गये हैं क्योंकि भाषा नहीं समझते हैं लेकिन इशारों से समझ जाते हैं। तो समझा, कर्नाटक वालों को क्या करना है? सहज फल खिलाओ, मेहनत नहीं कराओ। कर्नाटक की धरनी में वृद्धि बहुत सहज होती है। तो जैसे आप लोगों की धरनी है वैसे औरों की धरनी को भी तैयार करो और फल की प्राप्ति करो।
आन्ध्र प्रदेश - आन्ध्र प्रदेश क्या करेंगे? ऐसा कोई नया प्लैन बनाओ, जैसे साइन्स वाले नईनई इन्वेन्शन निकालते रहते हैं ना, तो थोड़े समय में प्राप्ति ज्यादा हो तो आन्ध्र प्रदेश ऐसे ही इन्वेन्शन करो जो थोड़े समय में आत्मायें अनुभूति की प्राप्तियाँ ज्यादा अनुभव करें, उसका साधन क्या है जो समय कम लगे और प्राप्ति ज्यादा हो? इसका साधन है आन्ध्र प्रदेश की हर ब्राह्मण आत्मा को लाइट हाउस, माइट हाउस बनना पड़े। लाइट हाउस कितना जल्दी लाइट फैलाता है और चारों ओर फैला देता है। तो आन्ध्र प्रदेश लाइट हाउस, माइट हाउस बन ऐसा प्रकाश फैलाओ जो सबको दिखाई दे कि मैं आत्मा हूँ और बाप आ चुका है। रोशनी में दिखाई देता है ना कि मैं कौन हूँ? तो ऐसे लाइट और माइट हाउस बनकर लाइट और माइट फैलाओ।
डबल विदेशी - डबल विदेशियों ने बाप का एक टाइटल तो प्रैक्टिकल कर लिया है। कौन सा? सर्वव्यापी का। कोई ऐसा प्रोग्राम नहीं होता जिसमें डबल विदेशी न हो। तो सर्व कार्य में व्यापी हो गये और बापदादा को भी खुशी होती है। क्योंकि डबल विदेशियों से इन्टरनेशनल हो जाता है। बाप का टाइटल भी विश्व कल्याणकारी है ना। भारत कल्याणकारी तो नहीं है ना। तो जब डबल विदेशी आते हैं तो बाप का भी विश्व कल्याणकारी टाइटल सिद्ध कर देते हैं। रौनक हो जाती है। डबल विदेशियों की विशेषता है - हर कार्य में रौनक करने वाले। वहाँ गोल्डन दुनिया में भी क्या करेंगे? चारों ओर रौनक मचा देंगे। विदेश में वैसे भी लाइट की सजावट की रौनक बहुत होती है ना। तो ब्राह्मण परिवार की रूहानी रौनक डबल विदेशी हैं। डबल विदेशी कहाँकहाँ से आये हैं? (लन्दन, नैरोबी, न्युजीलैण्ड, जर्मनी, जापान, मैक्सिको) मैक्सिको नाच रहा है, मैक्सिको वालों की बहादुरी भी बहुत अच्छी है, स्थान भी दूर है और इकॉनॉमी सिस्टम भी विचित्र ही है। फिर भी भावना और स्नेह पहुँचा देता है। इसलिये मैक्सिको वालों को मुबारक। अच्छा, देखो लन्दन वाले भी बहुत आगे बढ़ा रहे हैं, समाचार सुना चाबी मिल गई है। (लन्दन शहर में म्यूजयम के लिए मकान मिला है) इससे क्या सिद्ध हुआ कि ब्राह्मणों का दृढ़ संकल्प जो चाहे वो कर सकता है। बुद्धिवान बन किसी की भी बुद्धि को बदल सकते हैं। कायदे भी बदल करके फायदे में दिखाई देते हैं। विदेश के कायदे कितने सख्त हैं लेकिन कायदे के ऊपर फायदा विजय प्राप्त कर लेता है। (बाबा करनकरावनहार बन करा लेता है) लेकिन ब्राह्मण बच्चे भी भुजायें हैं। भुजाओं के बिना तो कोई काम नहीं होता।
जीतू भाई (ज्ञान सरोवर के कान्ट्रैक्टर) परिवार सहित बापदादा के सामने सभा में बैठे हैं: बाप की भुजा हो ना? (राइट हैण्ड हैं) मुबारक हो। राइट हैण्ड की मुबारक हो। परमात्म भुजा बनना कितना बड़ा भाग्य है! सेवा के सहयोगी बनना अर्थात् भुजा बनना। सभी का बाप से अच्छा प्यार है। बाप को भी प्यार है। बाप से ज्यादा प्यार है या प्रवृत्ति से ज्यादा प्यार है? (दोनों से) जवाब देने में होशियार हैं। अच्छा है कितने शेयर्स आप लोगों ने इकट्ठा किया है? अपना एकाउण्ट देखा है? सारे परिवार को कितने शेयर्स मिले हैं? अगर घर बैठे शेयर मिल जायें, बिना मेहनत के तो इसको भाग्य कहेंगे ना? अच्छा है, बाप से भी मिल लिया, मना भी लिया। परिवार ही अच्छा है।
(डा.अशोक मेहता से) ये क्या मनाने आये हैं? बर्थ डे मनाने आये हैं। जन्मते ही भाग्य की लकीर श्रेष्ठ लेकर आये हो। गीत है ना तकदीर जगाकर आये हैं। तो जन्मते मेहनत करनी पड़ी है कि सहज प्राप्ति से आगे बढ़ते जाते हैं? सहज प्राप्ति है ना! तो तकदीर लेकरके ही आये हैं। और कलम तो हाथ में है ही। सेवा का बल, परिवार का सहयोग और बाप का प्यार तीनों प्राप्त हैं। तो तीनों सहज कर रहे हैं और करते रहेंगे। परिवार के भी समीप आने में देरी नहीं लगी ना? बाप के समीप जल्दी आये तो परिवार के समीप भी बहुत तीव्र गति से आ रहे हो। देखो, कितने प्यारे हो सबके! जिसका बाप से और सेवा से प्यार है ना तो बाप का और परिवार का प्यार स्वत: ही मिलता है। ऐसे हैं ना? सब पहचाने हुए लगते हैं ना। कहाँ भी जाओ तो आपको जल्दी पहचान लेंगे ना? अच्छा, सभी ने दिल खुश मिठाई खाई?
टीचर्स - देखो, टीचर्स नहीं होती तो आप लोग कैसे आते? टीचर्स का महत्व है ना! फिर भी निमित्त टीचर्स तो हैं। आप सभी को पाठ पक्का कराने वाले निमित्त हैं ना? उमंगउत्साह बढ़ाने वाले निमित्त टीचर्स हैं। टीचर्स का विशेष कार्य ही है उमंगउत्साह के पंख लगाए, स्वयं भी उड़ने वाले और दूसरों को भी उड़ाने वाले। योग्य टीचर्स की विशेषता ही यह है कि आने वाले हर स्टूडेण्ट सदा ही सहज पुरूषार्थ द्वारा आगे से आगे उड़ते रहेंगे। वैसे टीचर्स का भाग्य ब्राह्मण परिवार में एक्स्ट्रा भी है। क्योंकि निमित्त बनना ये एक एक्स्ट्रा लिफ्ट है। सेवा के अधिकारी बनना-ये एक्स्ट्रा अधिकार अन्दर बहुत मदद करता है। तो टीचर्स को बापदादा सदा निमित्त और समान सेवाधारी समझते हैं। जो बाप का कार्य वो निमित्त टीचर्स का कार्य। तो बापदादा सदा टीचर्स को समान स्वरूप से देखते हैं। इतना स्नेह और इतना रिगार्ड बाप सदा देते हैं और उसी नजर से देखते हैं कि ये समान सेवाधारी हैं। टीचर्स के बिना तो काम नहीं चलेगा ना! आप लोगों को ठप्पा तो टीचर्स का लगाना पड़ता है ना? अगर टीचर्स आपके फॉर्म पर ठप्पा नहीं लगायेंगी तो कैसे आयेंगे? अच्छा!
चारों ओर के हाइएस्ट और रिचेस्ट श्रेष्ठ आत्माओं को, हर खज़ानों के मालिक सम्पन्न आत्माओं को, सदा स्वयं को एवररेडी बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी आत्माओं को, सदा समय, संकल्प, बोल द्वारा श्रेष्ठ कमाई का खाता जमा करने वाले अति समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से :
सब सहज चल रहा है ना? मेला चल रहा है या खेल चल रहा है? सन्तुष्टता का खेल चल रहा है। सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्ट करते हैं और सन्तुष्ट होने वाले सन्तुष्ट होते हैं। ये सन्तुष्टता का खेल सभी को प्यारा लगता है। और सब ठीक है? (तलहटी में दो टर्न का सोचा है) पहले लिस्ट देखो, पीछे दो बारी भी होगा तो कोई बात नहीं। बाप बच्चों की सब आशायें पूर्ण करता है। बाप को आने में तो कोई तकलीफ नहीं है ना। चाहे मधुबन, पाण्डव भवन में आये, चाहे तलहटी में आये, उनको आने में कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ तो बच्चों को है, लेकिन वो तकलीफ नहीं लगती। जब बच्चे हिम्मत रखते हैं कि हमारे लिये तकलीफ नहीं है, मनोरंजन है, तो बाप को तो तन में ही आना है ना, बस। संगम पर करना ही क्या है? मेला और खेला। सेवा है खेल। मेला मचाओ, सेवा का खेल करो, और क्या करना है? खाओपियो, ब्रह्मा भोजन खाओ। अच्छा।
23-12-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अपने तीन स्वरूप सदा स्मृति में रहें - 1संगमयुगी ब्राह्मण, 2ब्राह्मण सो फरिश्ता और 3फरिश्ता सो देवता
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं। सबसे श्रेष्ठ स्वरूप है ब्राह्मण और ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता। ब्राह्मण स्वरूप, फरिश्ता स्वरूप और देवता स्वरूप। ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता सर्व शक्तियों सम्पन्न स्वरूप की है। क्योंकि ब्राह्मण अर्थात् मायाजीत। तो सर्व शक्ति सम्पन्न बनना ही मायाजीत बनना है। पहला स्वरूप ब्राह्मण-स्वयं को देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता (सर्व शक्तियाँ) धारण हुई हैं? सर्व शक्तियाँ हैं वा कोईकोई शक्ति है? अगर एक शक्ति भी कमज़ोर है वा कम है तो ब्राह्मण स्वरूप के बदले बारबार क्षत्रिय अर्थात् युद्ध करने वाले बन जाते हैं। क्षत्रिय का कर्तव्य है युद्ध करना और ब्राह्मण का कर्तव्य है - सदा और सहज मायाजीत बनना। ब्राह्मण अर्थात् विजयी। सदा सर्व शक्तियाँ अर्थात् सर्व शस्त्रों से सम्पन्न हैं। और क्षत्रिय अर्थात् कभी विजयी और कभी हार खाने वाले। क्योंकि शक्तियाँ मिलते हुए भी धारण नहीं कर सकते इसलिये समय और परिस्थिति प्रमाण सदा विजयी नहीं बन सकते। ब्राह्मण स्वरूप अर्थात् सदा ताज, तख्त और तिलकधारी। विश्व कल्याण की जिम्मेदारी के ताजधारी, सदा स्वत: स्मृति के तिलकधारी, सदा बाप के दिलतख्तनशीन। क्षत्रिय एकरस, अचल, अडोल न होने के कारण कभी अचल, कभी हलचल, कभी अधिकारी और कभी बाप से शक्ति मांगने वाले रॉयल भिखारी। ब्राह्मण अर्थात् सदा अलौकिक मौज के जीवन में रहने वाले। सदा रूहानी सीरत और सूरत वाले। क्षत्रिय अर्थात् कभी ऐसे, कभी कैसे। तो अपने से पूछो मैं कौन? कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय या सदा ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं से सम्पन्न हैं? लक्ष्य ब्राह्मण जीवन का है लेकिन कभी ब्राह्मण, कभी क्षत्रिय-ऐसे लक्षण तो नहीं हैं? लक्ष्य और लक्षण समान हैं वा अन्तर है? बोल और कर्म समान हैं वा अन्तर है? सभी ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना? कि क्षत्रिय कहलाते हो? चन्द्रवंशी कहलाना भी पसन्द नहीं करते ना? कोई कहे आप चन्द्रवंशी हैं तो पसन्द आयेगा? नहीं। और कर्म क्या है? जिस समय युद्ध में लगे हुए हो उस समय का फोटो अपना निकालो। फोटो निकालने का शौक बहुत होता है ना? तो अपना फोटो निकालना आता है या दूसरों का फोटो निकालना आता है? तो अपना फोटो निकालो कि मैं कौन हूँ? अगर फोटो भी कोई का अच्छा नहीं निकलता है तो पसन्द नहीं करते हो ना? तो सारे दिन में वा कितने बारी समय प्रति समय ब्राह्मण के बजाय क्षत्रिय बन जाते हैं-ये चेक करो और चेक करके चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। चेक किया जाता है चेंज करने के लिये। तो सभी के पास परिवर्तन शक्ति है? कि कोई के पास नहीं है? ये तो बहुत अच्छी खुशी की बात है कि सभी के पास है। अब समय पर काम में लगाना आती है या कभी नहीं भी लगती है? क्योंकि शक्ति है तो समय पर काम आवे। दुश्मन है ही नहीं और शस्त्र बहुत बढ़िया हैं मेरे पास और जब दुश्मन आवे तो शस्त्र काम में ही नहीं आवे-क्या उसको शक्तिशाली कहेंगे? सिर्फ ये चेक नहीं करो कि शक्ति है लेकिन कर्म में समय प्रमाण जो शक्ति चाहिये वही शक्ति कार्य में लगाना आता है? कि दुश्मन वार कर देता, पीछे शक्ति याद आती है? तो ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं को चेक करो। ब्राह्मण सो फरिश्ता बनेगा। क्षत्रिय सो फरिश्ता नहीं। दूसरा स्वरूप है फरिश्ता। सभी को फरिश्ता बनना ही है ना? कि फरिश्ता बनना मुश्किल है? सहज है या मुश्किल? या कभी मुश्किल, कभी सहज? तो फरिश्ता स्वरूप की विशेषता सभी जानते भी हो कि फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट? तो डबल लाइट हैं? कि कभी बोझ उठाने को दिल करती और उठा लेते हो? वा उठाने नहीं चाहते हो लेकिन माया सिर पर टोकरी रख देती है? माया अपनी आर्टीफिशियल टेम्पररी शक्ति ऐसी दिखाती है जो मजबूरी से भी बोझ उठाना न चाहते भी उठा लेते हैं। क्योंकि कमज़ोर होने के कारण कमज़ोर सदा परअधीन होता है। तो माया भी अधीन बना देती है। अधिकारीपन भूल जाता है और अधीन बन जाते। उस समय भाषा क्या होती है? चाहते तो नहीं हैं लेकिन पता नहीं.....। हर बात में ‘पता नहीं’, ‘पता नहीं’ कहते रहेंगे। अधिकारी अर्थात् सदा स्वतन्त्र और अधीन अर्थात् सदा परवश। तो परवश कभी भी मौज की जीवन में नहीं रह सकते। ब्राह्मण अर्थात् मौज की जीवन। अगर कोई भी समय मौज के बजाय मूँझते हो-ये क्या है, ये कैसा है, क्या यही होता है..... तो ये मौज नहीं, ये मूँझने की जीवन है। अगर कोई भी समय मौज की कमी अनुभव करते हो तो फिर से ये पाठ पहला याद करो कि मैं कौन हूँ? सिर्फ आत्मा नहीं लेकिन कौनसी आत्मा हूँ? इसके कितने जवाब आयेंगे? लम्बी लिस्ट है ना! रोज की मुरली में ‘मैं कौन’ का भिन्नभिन्न पाठ पढ़ते रहते हो, सुनते रहते हो।
तो फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। लाइट अर्थात् हल्कापन। हल्कापन का अर्थ है सिर्फ परिस्थिति के समय हल्का नहीं लेकिन सारे दिन में स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में लाइट रहे? वैसे ठीक हैं लेकिन स्वभावसंस्कार में भी अगर हल्कापन नहीं है तो फरिश्ता कहेंगे? और हल्के की निशानी है-हल्की चीज़ सभी को प्यारी लगती है। कोई बोझ वाली चीज़ आपको देवे तो पसन्द करेंगे? और हल्की बढ़िया चीज़ हो तो पसन्द करेंगे ना? तो जो स्वभाव, संस्कार, सम्बन्ध, सम्पर्क में हल्का होगा उसकी निशानी-वो सर्व के प्यारे और न्यारे होंगे। क्योंकि ब्राह्मण स्वभाव है, अलग स्वभाव नहीं। ब्राह्मण अर्थात् सबके दिल पसन्द स्वभावसंस्कार वा सम्बन्धसम्पर्क वाले हो। मैजारिटी 95% के दिलपसन्द जरूर हो-इतनी रिजल्ट जरूर होनी चाहिये। 5% अभी भी मार्जिन दे रहे हैं, अन्त तक नहीं है लेकिन अभी दे रहे हैं। 95% सर्व के दिल पसन्द अर्थात् सर्व से लाइट। और वो हल्कापन बोल, कर्म और वृत्ति से अनुभव हो। ऐसे नहीं, मैं तो हल्का हूँ लेकिन दूसरे मेरे को नहीं समझते, पहचानते नहीं। अगर नहीं पहचानते तो आप अपने विल पॉवर से उन्हों को भी पहचान दो। आपके कर्म, वृत्ति उसको परिवर्तन करे। इसमें सिर्फ परिवर्तन करने में सहनशक्ति की आवश्यकता होती है। और फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी देह और पुरानी दुनिया से रिश्ता नहीं। ये सभी को याद है ना? कि अभी भी वो रहा हुआ है? पुरानी देह से लगाव है क्या? देह के सम्बन्ध से हल्के हो गये हो कि नहीं? काका, चाचा, मामा, उससे न्यारे हो गये हो ना? कि अभी भी हैं? न्यारे और प्यारे हैं? प्यारे हैं लेकिन न्यारे होकरके प्यारे बनते हैं, ये गलती हो जाती है। ये मिस हो जाता है। या तो न्यारे हो जाना सहज लगता है या तो प्यारा होना सहज लगता। लेकिन ये देह के सम्बन्ध काका, चाचा, मामा, ये फिर भी सहज हैं। सहज हैं या थोड़ाथोड़ा स्वप्न में, संकल्प में आ जाता है? जब ब्राह्मण परिवार में कोई परिस्थिति आती है तो चाचा, काका, मामा याद आते हैं? बापदादा देखते हैं कि परिस्थिति के समय कई आत्माओं को ब्राह्मण परिवार के बजाय लौकिक सम्बन्ध जल्दी स्मृति में आता है। परिस्थिति किनारे के बजाय सहारा अनुभव कराती है। जब मरजीवा बन गये तो अगले जन्म के सम्बन्धी काका, चाचा, माँ, बाप, याद हैं क्या? स्वप्न में भी आते हैं क्या? तो सम्बन्ध, जन्म बदल गया ना। तो फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, यही परिभाषा बोलते हो ना? फिर समय पर कहाँ से निकल आते हैं? टूटा हुआ रिश्ता जुड़ जाता है? मरे हुए से जिन्दा हो जाते हो? फरिश्ता अर्थात् पुराने से रिश्ता नहीं, सब नया। बापदादा ने देखा कि फरिश्ता बनने में जो रूकावट होती है उसका कारण एक पहली सीढ़ी है देह भान को छोड़ना, दूसरी सीढ़ी जो और सूक्ष्म है वो है देह अभिमान को छोड़ना। देह भान और देह अभिमान। देह भान फिर भी कॉमन चीज़ है लेकिन जितने ज्ञानी तू आत्मा, योगी तू आत्मा बनते हैं उतना देह अभिमान रूकावट डालता है। और अभिमान अनेक प्रकार का आता है-अपने बुद्धि का अभिमान, अपने श्रेष्ठ संस्कार का अभिमान, अपने अच्छे स्वभाव का अभिमान, अपनी विशेषताओं का अभिमान, अपनी कोई विशेष कला का अभिमान, अपनी सेवा की सफलता का अभिमान। ये सूक्ष्म अभिमान देह भान से भी बहुत महीन हैं। अभिमान का दरवाजा तो जानते हो ना? मैंपन, मेरापन-ये है अभिमान के दरवाजे। तो फरिश्ता का अर्थ ये नहीं कि सिर्फ देह भान वा देह के आकर्षण से परे होना वा देह के स्थूल सम्बन्ध से परे होना, लेकिन फरिश्ता अर्थात् देह के सूक्ष्म अभिमान के सम्बन्ध से भी न्यारे होना। और अभिमान की निशानी-जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान भी जल्दी फील होता है। जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग बहुत जल्दी होती है। क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ के दरवाजे खुले हुए होते हैं। फरिश्ते का यथार्थ स्वरूप है देह भान और देह के सम्बन्ध से, देह अभिमान से न्यारा। अगर कोई गुण हैं, कोई शक्ति है तो दाता को क्यों भूल जाते हैं? और दूसरी बात इससे सहज न्यारे होने का रास्ता वा विधि बहुत सहज है, एक अक्षर है। एक अक्षर में इतनी ताकत है जो देह अभिमान और देह भान सदा के लिये समाप्त हो जाता है। वो एक शब्द कौनसा है? करनकरावनहार बाप करा रहा है। ‘करनकरावनहार’ शब्द भान और अभिमान दोनों को मिटा देता है। एक शब्द याद करना तो सहज है ना? और सारी पॉइन्ट्स भूल भी जाओ, भूलना तो नहीं है लेकिन अगर भूल भी जाओ तो एक शब्द तो याद कर सकते हो ना? करनकरावनहार बाबा है। तो देखो, फरिश्ते जीवन का अनुभव कितना सहज अनुभव होता। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना-किस आधार से? सदा करनकरावनहार की स्मृति से समर्थ बन फरिश्ते बने। फॉलो फादर है ना? या फॉलो माया है? कभी माया भी मदर फादर बन जाती है, बड़ी अच्छी पालना और प्राप्ति कराती है। लेकिन वो सब है धोखे की प्राप्ति। पहले प्राप्ति, फिर धोखा। परखने की शक्ति तो है ना? माया है या बाप है-इसको समय पर परखना है। धोखा खाकर परखना, यह कोई समझदारी नहीं हुई। धोखा खाकर तो सब समझ जाते हैं लेकिन ज्ञानी तू आत्मा पहले यह परखकर स्वयं को बचा लेता है। तो समझा फरिश्ता किसको कहते हैं?
तीसरा है फरिश्ता सो देवता। अभी देवता बनना है या भविष्य में बनेंगे? देवता अर्थात् सर्व गुणों से सजेसजाये। ये दिव्यगुण संगम के देवता जीवन के श्रृंगार हैं। इस समय दिव्य गुणों से सजेसजाये होते हो तब ही भविष्य में स्थूल श्रृंगार से सजेसजाये रहते हो। तो देवता अर्थात् दिव्यगुणों से सजेसजाये। और दूसरा देवता अर्थात् देने वाला। लेवता नहीं, लेकिन देवता। तो मास्टर दाता हो? वा कभी लेवता, कभी देवता? चेक करो कि दिव्य गुणों का श्रृंगार सदा रहता है वा कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है, कभी कोई श्रृंगार भूल जाता है? सम्पूर्ण सर्व गुण सम्पन्न...... यही देवता जीवन की निशानी है। ये गुण ही गहने हैं। तो देखो कि ब्राह्मण स्वरूप की सर्व शक्तियाँ, फरिश्ते स्वरूप की डबल लाइट स्थिति और देवता स्वरूप की दातापन की निशानी और दिव्य गुणों सम्पन्न बने हैं? तीनों स्वरूप अनुभव करते हो? जैसे बाप के तीन सम्बन्ध-बाप, शिक्षक, सद्गुरू सदा याद रहते, ऐसे ये तीन स्वरूप सदा याद रखो। समझा? बनना तो आपको ही है या और कोई आने वाले हैं? आपको ही बनना है ना? आज ब्राह्मण, कल फरिश्ता और कल देवता। अपने फरिश्ते स्वरूप को ज्ञान के दर्पण में देखो। फरिश्ते सदा उड़ते रहते हैं और मैसेज देते रहते हैं। फरिश्ता आया, सन्देश दिया और उड़ा। तो वो फरिश्ते कौन हैं? आप ही हो ना? फलक से कहो-हम ही थे, हम ही हैं और हम ही रहेंगे। पक्का है ना? इसको कहा जाता है निश्चयबुद्धि विजयी। क्षत्रिय हो वा विजयी हो? क्षत्रिय कोई तो बनेगा? वो दूसरे बनेंगे! तो आप ब्राह्मण हो। चलतेचलते कभी क्षत्रिय नहीं बनना। अगर बारबार क्षत्रिय बनते रहेंगे, युद्ध करते रहेंगे तो युद्ध के संस्कार ले जाने वाले कहाँ पहुँचेंगे? चन्द्रवंशी में या सूर्यवंशी में? तो चन्द्रवंशी तो पसन्द नहीं है ना, कि कभीकभी हो गये तो भी हर्जा नहीं? तो सब कौन हो? ब्राह्मण? पक्के ब्राह्मण हो या थोड़ेथोड़े कच्चे? शक्तियाँ पक्की हैं? पाण्डव पक्के हैं? अगर पक्के हैं तो सदा खुशखबरी के पत्र आवें। माया आ गई, ये हो गया, पता नहीं क्या हो गया, कैसे हो गया-ये संकल्प में भी नहीं हो। बाप तो कहते हैं स्वप्न मात्र भी नहीं। स्वप्न में भी क्यों, क्या नहीं-ऐसे पक्के हो? शक्तियाँ महा पक्की हो? कहो, पाण्डव पक्के तो हम महा पक्के। क्योंकि शक्तियों को ही निमित्त बनाया है। तो निमित्त वाले ही कच्चेपक्के होंगे तो औरों का क्या हाल होगा! पाण्डव बैकबोन हैं। बैकबोन बनना अच्छा लगता है ना? या सामना करना अच्छा लगता है? बैकबोन बनना अच्छा है, सेफ हो बहुत, नहीं तो मार खाते। अच्छा।
सभी अपने स्वीट होम में पहुँच गये। संकल्प था-जाना है, जाना है और अभी फिर क्या संकल्प है? अभी भी जाना है ना? सेवा अर्थ जा रहे हैं इसलिये खुशीखुशी से जाते हैं। सेवा पर जायेंगे या दुकान पर जायेंगे, घर में जायेंगे, दफ्तर में जायेंगे? चाहे दफ्तर हो, चाहे घर हो, लेकिन सभी सेवा के स्थान हैं। सेवाधारियों की हर जगह सेवा है। तो मधुबन में आना और उमंगउत्साह का खज़ाना भरना और फिर सेवा पर जाना। खुशीखुशी से जाते हो ना? कि मजबूरी से जाते हो? सेवा माना खुशी। हिसाबकिताब है, कर्ज चुकाने जा रहे हैं, ऐसे नहीं। फर्ज चुकाने जा रहे हैं। घर में बगुले बहुत हैं। अगर बगुले नहीं होंगे तो ज्ञान किसको देंगे? हंस को हंस बनायेंगे क्या? बगुलों को ही तो हंस बनायेंगे ना? तो क्या याद रखेंगे? ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। पक्का रहेगा ना? कि ट्रेन में जातेजाते एक भूल जायेगा? अपने स्थान पर जातेजाते बाकी एक रह जाये-ऐसे तो नहीं होगा ना?
सभी आराम से रहे हुए हैं? डबल फॉरेनर्स फिर भी खटाराणे हैं और भारतवासी पटराने। पट में सोना सहज लगता है ना? पलंग याद तो नहीं आते? हाँ, कोई समय ऐसा आयेगा जो सभी को पलंग मिलेगा। लेकिन कब आयेगा? जब सारा आबू अपना बनायेंगे। ये संगठन का सुख पलंग और डनलप से भी ज्यादा है। यहाँ भी आराम से नींद तो आती है ना? ज्ञान अमृत पीतेपीते सो जाते हो, तो कितनी अच्छी नींद करेंगे। ज्ञान अमृत पीना और ब्रह्मा भोजन खाना। सभी को बनाबनाया भोजन मिलता है। सभी खुश हैं। खुशनसीब भी हैं और खुशमिजाज भी हैं। कि कभी सीरियस, कभी खुश मिजाज? कभी शक्ल में अन्तर नहीं आना चाहिए। जब क्रोध या गुस्सा आता है तो चेहरा लालपीला होता है ना? सदा चेहरा हर्षितमुख हो। इसको कहते हैं खुशमिजाज रहना। अच्छा, सभी जितना बाप को याद करते हैं और दिल से प्यार करते तो बाप सभी को आपसे पदमगुणा याद करते और प्यार करते हैं। बाप से पूछते हैं कि सारा दिन क्या करते हो? बाप क्या कहते हैं कि सारा दिन बच्चों को ही याद करते हैं। और काम ही क्या है? ये नशा है ना? दुनिया वाले बाप को याद करते हैं और बाप आपको याद करते हैं। अच्छा!
गुजरात - गुजरात को एवररेडी रहने, जी हाँ करने का वरदान मिला हुआ है। गुजरात में दो विशेषताओं की निशानी अभी भी दिखाई देती है और आगे भी दिखाते रहना है। वो दो निशानियाँ व दो विशेषतायें कौनसी हैं? सन्तुष्टता और प्रसन्नता। प्रसन्नता भी तब रहती है जब सन्तुष्टता है। तो ये दो विशेषतायें विशेष हैं और सदा रहेंगी। समझा? गुजरात वाले कभी असन्तुष्ट न रहेंगे, न करेंगे। दो विशेषताओं के कारण सदा उड़ते रहेंगे। गुजरात विशेष ब्रह्मा बाप ने अपने संकल्प से स्थापन किया। और जन्मते ही सदा सहयोगी रहे हैं और अब भी हैं। समझा! सहयोग की अंगुली सदा है ही है। देखो, कोई भी प्रोग्राम होता है, सीजन भी होती है तो ब्रह्मा भोजन में गुजरात की माताओं को याद करते हैं ना। कितनी भी कोई रोटी बनावे लेकिन गुजरात जैसी नहीं बना सकते, ये विशेषता है। तो हर कार्य में एवररेडी रहने वाले। अच्छा!
इस्टर्न - इस्टर्न का सूर्य उदय हो गया। इस्टर्न जोन वाले सदा ही स्वयं को और औरों को पूज्य आत्मा बनाने की प्रेरणा देने वाले हैं। क्योंकि इस्टर्न में पूजा बहुत होती है। तो पुजारी बहुत हैं। तो पुजारियों को पूज्य बनाना - इस सेवा का चांस इस्टर्न जोन को बहुत है। और जो ज्यादा में ज्यादा पुजारी से पूज्य बनाते हैं, उसकी पूजा बहुत जन्म और बहुत विधिपूर्वक होती है। तो इस्टर्न वाले पूज्य बनाने के कारण बहुत बड़े पूज्य आत्मा अनेक जन्म बनने वाले हैं। यही सेवा करते हो ना? पुजारी से पूज्य बनते हैं या सिर्फ दर्शन करने वाले बनते हैं? क्या होता है? तो इस्टर्न जोन को पूज्य बनाने का विशेष वरदान भी मिला हुआ है और चांस भी मिला हुआ है। तो नशा रहता है कि हम पूज्य आत्मायें हैं और औरों को भी पूज्य बनाने के निमित्त हैं। समझा? इस्टर्न जोन की विशेषता - ब्रह्मा बाप की प्रत्यक्षता भूमि है। तो भूमि को भी वरदान है। इस्टर्न जोन में ही ब्रह्मा बाप में प्रत्यक्षता हुई। तो कितनी श्रेष्ठ भूमि है! भूमि भी श्रेष्ठ, सेवा भी श्रेष्ठ और सेवाधारी भी सदा श्रेष्ठ। अच्छा-(सभी ने खूब तालियां बजाई) ऐसे ही सदा खुशी में तालियाँ बजाते रहना। खुशी की तालियाँ कौनसी होती हैं? खुशी की ताली बजाने आती हैं? ये तालियाँ तो स्थूल हैं। खुशी की ताली कौनसी है? खुशी की ताली है मुस्कराना। यहाँ भले बजाओ, मना नहीं है लेकिन वहाँ जाकर खुशी की ताली सदा बजाते रहना। सभी ऐसे करना। आपकी खुशी और मुस्कराहट ऐसी हो जो आपको देखने वाले भी ताली बजाना शुरू कर दें।
बाम्बे, पूना - पूना और बाम्बे सदा ही िफक्र से फारिग रहने वाले। बाम्बे भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है और पूना भी बेफिक्र बादशाहों का स्थान है। तो सभी बेफिक्र हो? या थोड़ाथोड़ा िफक्र है? स्वयं बेफिक्र बादशाह हैं और दूसरों के भी िफक्र को मिटाने वाले हैं। सभी को बेफिक्र बादशाह बनाने वाले हैं। तो बादशाही देने में होशियार हो ना। गरीब को बादशाह बनाना आता है? बेफिक्र बादशाह बनाने वाले और स्वयं भी सदा बेफिक्र रहने वाले, यही संगमयुग के श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषता है-बेफिक्र बादशाह। तो बादशाह हो कि कभी प्रजा भी बन जाते हो? सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। पूना वालों ने कितने सेवास्थान बनाये हैं? (22) और गीता पाठशालायें कितनी हैं? (300) तो देखो सेवा में होशियार हो ना। और बाम्बे में सेवाकेन्द्र कितने हैं? (36) और गीता पाठशालायें? वो अनगिनत! अच्छा है, वैसे तो चारों ओर सेवायें वृद्धि को प्राप्त कर ही रही हैं लेकिन सेवा की दुआओं द्वारा स्व की उड़ती कला और सर्व की उड़ती कला, ऐसी स्पीड तीव्र बनाते चलो। इसलिये बापदादा सेवा पर सदा खुश हैं। आप भी खुश हो ना? अभी 9 लाख पूरे नहीं किये हैं। अभी वो करना है लेकिन फिर भी कर रहे हैं, तो जो कर रहे हैं उस पर बापदादा खुश हैं। लेकिन अभी करने की मार्जिन है, समाप्त नहीं हुआ है। अभी कितने तैयार हुए हैं? (3 लाख) अभी तो डबल पड़ा है। अभी एक परसेन्ट बना है, दो परसेन्ट रह गया है। तो देखेंगे 9 लाख का हार (नौलखा हार) बाप को कौन पहनाता है? कौन तैयार करता है? अच्छा।
कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश - कर्नाटक में मैजारिटी स्नेही आत्मायें बहुत हैं, बाप के स्नेही मैजारिटी हैं। तो स्नेह सहज याद का साधन है। और जो स्वयं स्नेही होता है वो औरों को भी सहज स्नेही बना देता है। तो कर्नाटक को विशेष यह वरदान है वा विशेषता है। तो स्नेह है और स्नेह के कारण वृद्धि भी है। अभी स्नेह को प्रैक्टिकल में लाते भी हो और और ज्यादा स्नेह की शक्ति से और आगे बढ़ते रहना। तो स्नेह के कारण बाप को भूलते कम हैं लेकिन भूलते हैं तो बहुत भूलते हैं। क्यों? कभीकभी भूलने के भी समाचार आते हैं। लेकिन स्नेह की विशेषता को कभी भी छोड़ना नहीं। ये एक ड्रामानुसार कर्नाटक को विशेषता मिली हुई है, इसको यूज कर भी रहे हैं, और भी आगे अन्डरलाइन कर आगे बढ़ते रहना। ऐसे तैयार हैं? अच्छा। टीचर्स ये समझती हैं कि आज के बाद कर्नाटक से स्नेह के बिना और कोई समाचार नहीं आयेंगे? हिम्मत है टीचर्स में? हाँ बोलो या ना बोलो। अच्छा, ऐसी गैरेन्टी है? जो समझते हैं कि इस विशेषता को प्रैक्टिकल में लाना ही है, वो हाथ उठाओ। अभी देखना कोई पत्र ऐसा नहीं आयेगा। ठीक है? मंजूर है? अच्छा है, स्नेही तो बहुत हैं। दृष्टि के इतने स्नेही हैं, भाषा नहीं समझें लेकिन स्नेह बहुत है। तो बापदादा स्नेह को देख खुश होते हैं। लेकिन सम्पूर्ण तो बनना है ना। तो थोड़ा भी स्नेही आत्माओं के बीच में रूकावट नहीं आनी चाहिये। इसलिये कर्नाटक सदा ये स्नेह का नाटक करके दिखाये। फिर भी बापदादा देखते हैं कि वृद्धि करने में भी होशियार हैं। लेकिन सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना, स्नेह का ही नाटक करना। समझा?
अच्छा - आन्ध्रा वाले क्या कमाल करेंगे? सेवा में स्वउन्नति में नम्बरवन। ठीक है? नम्बरवन बनना है। अच्छा!
डबल विदेशी - डबल विदेशी क्रिसमस मनाने आये हैं, न्यु इयर मनाने आये हैं। तो पहले सभी डबल विदेशियों को क्रिसमस की मुबारक। क्योंकि चारों ओर से कार्ड और पत्र भी बहुत आये हैं ना। बापदादा के पास तो पोस्ट के पहले ही पहुँच जाते हैं। आप लोग एयरमेल से भेजते हो ना और बापदादा के पास एयरफ्लाई से पहुँच जाते हैं। विदेश में भी सेवा और स्व पुरूषार्थ की लहर अच्छी चल रही है और मैजारिटी सभी के अन्दर ये उमंग बहुत अच्छा है। दिनरात एक ही लगन है कि विश्व में बाप के प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी से जल्दी लहरायें। क्योंकि विदेशियों की ड्युटी है भारत को जगाना। तो ऊंचा झण्डा लहरायेंगे तब तो सबकी नजर जायेगी। लेकिन बापदादा डबल विदेशियों को कमाल करने वाले भी कहते हैं। तो कौनसी कमाल की है? दूरी को समीप अनुभव करने की कमाल की है। जितना देश दूर है ना, इतना दिल से समीप हैं। चारों ओर से आये हैं। बापदादा सभी डबल विदेशियों को विशेष विशेषता का वरदान देते हैं कि सदा दिल तख्त नशीन। बाप के दिल पर आप हैं और आपके दिल पर बाप है। रशिया वाले भी कमाल कर रहे हैं ना! आगे बढ़ते जाते हैं। रशिया वालों को सबसे ज्यादा किस बात की विशेष खुशी है? रशिया वालों को विशेष खुशी इस बात की है - जो स्वतन्त्रता की प्रिय इच्छा थी वो स्वतन्त्रता मिल गई। समझा? देश के हिसाब से, आत्मा के बन्धन के हिसाब से परतन्त्र बहुत रहे और अभी स्वतन्त्र हो गये। स्वतन्त्र है ना! तो स्वतन्त्रता का झण्डा रशिया में लहरा रहा है। शिव बाबा के झण्डे के साथ सभी स्थानों पर स्वतन्त्रता का झण्डा भी लहरा रहा है। और कितने खुश होते हैं। सारे परतन्त्रता के बन्धन से मुक्त हो गये और कितना सहज सर्व प्राप्तियाँ कर ली! सर्व प्राप्तियाँ हो गई ना! (हाँ जी) अच्छा है, हिम्मत भी अच्छी है। डबल विदेशी अपने को चलाने की हिम्मत और औरों को भी चलाने की हिम्मत अच्छी रखते हैं। और हिम्मत के कारण ही विदेश में सेवा में आगे बढ़ते हैं। तो विशेष हिम्मत और मदद दोनों के पात्र आत्मायें हैं। देखो, लन्दन वालों ने भी हिम्मत करके म्युजियम ले लिया ना! चाबी मिल गई ना! स्वर्ग की चाबी के पहले सेवा की चाबी मिल गई। अच्छी कमाल की। सबकी नजर जाती है कि आखिर भी ये राजयोगी हैं क्या? ये गुप्त ही गुप्त क्या कर रहे हैं? ऑस्ट्रेलिया या जो भी भिन्नभिन्न देशों से आये हैं तो बापदादा सभी बच्चों को विशेष क्रिसमस की सौगात दे रहे हैं कि ‘‘सदा दिल खुश मिठाई खाते रहो और खिलाते रहो।’’ स्वर्ग की बादशाही की सौगात तो सभी को मिली हुई है ना। सभी के हाथ में नई दुनिया, स्वर्ग का गोला है ना? पत्र और कार्ड भेजने में फास्ट गति वाले हैं। बापदादा समझते हैं कि अपने याद का सबूत वा निशानी भेजने में होशियार हैं। ठीक है? मौज में रहने वाले हैं ना? सभी स्थान के सिकीलधे, लाडले आत्माओं को विशेष बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सदा समीप रहने की विशेषता से आगे बढ़ते रहेंगे। समझा? अच्छा!
चारों ओर के सर्व ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता, तीनों स्वरूप के स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा एक शब्द ‘करनकरावनहार’ की स्मृति से स्वयं को डबल लाइट बनाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा देवता अर्थात् दाता बन देने वाले, सर्व खज़ानों से सम्पन्न आत्माओं को, सदा वरदानों को कर्म में लाने वाले कर्मयोगी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और क्रिसमस की मुबारक और नमस्ते।
(सभी दादियाँ बापदादा के सम्मुख स्टेज पर खड़ी हैं)
दादी जानकी से - अच्छा है उड़ने में होशियार हो गई है। जीवन दान मिला है। और जितनी सेवा करते जाते तो जीवन की तन्दुरूस्ती और बढ़ती जाती है। क्योंकि सबकी दुआएं तन्दुरूस्त बना देती हैं। बाप की तो मदद है ही लेकिन दुआयें जवान बना रही हैं। जब किसको दुआयें मिलती हैं ना, या कोई भी खुशी, शान्ति की प्राप्ति होती है तो मुख से, दिल से यही दुआयें होती हैं कि हमारी आयु आपको लग जाये। कार्ड में भी क्या भेजते हैं कि हमारी आयु आपको मिल जाये। तो आप एक चक्र में हजारों की सेवा करते हो तो यही जार गुणा दुआयें मिल जाती हैं। अच्छा है, सभी अपनीअपनी सेवा अच्छी करते रहते हो।
सभी का दादियों में शुभ मोह है ना? साधारण मोह तो नहीं है ना। दु:ख देने वाला मोह नहीं, सुख देने वाला। लेकिन जितना मोह, उतने ही निर्मोही। न्यारे भी और प्यारे भी। ऐसे है ना? कि सिर्फ प्यारे हैं, न्यारे नहीं? न्यारे और प्यारे दोनों का बैलेन्स रखने वाले। ये भी ड्रामा में आदि से विशेष आत्माओं का निमित्त बनने का पार्ट है। पालना ली भी बहुत है, जितनी आप लोगों ने पालना ली है डायरेक्ट बाप की, उतनी इन्होंने तो नहीं ली है। तो जितनी पालना ली है उतनी पालना करने का पार्ट भी मिला है। तो सब खुश हैं? हजार साल सभी की आयु बन जाये! हजार साल! घर नहीं जाना है? पुरानी दुनिया में ही रहना है?
अच्छा है, यह म्युजियम भी कमाल करेगा। ये है दृढ़ता का प्रत्यक्ष स्वरूप। तो दृढ़ता सफलता के लिये असम्भव से भी सम्भव करा देती है। हिम्मत वाले हैं। तो सभी जो विशेष निमित्त बने हैं उन्हों को विशेष याद प्यार। यह भी सेवा का अच्छा साधन है, कोई न कोई निमित्त बन अपना भाग्य बनाते हैं। देने वाले पहले ही ड्रामा में नूँधे हुए हैं। अच्छा।
चन्द्रमणि दादी से - ये भी चक्र लगाकर आई। चक्रवर्ता राजा में नाम पक्का हो गया ना। अच्छा है, सेवा भविष्य को प्रत्यक्ष कर रही है। नाम तो नहीं लेंगे ना कि ये ये हैं लेकिन सेवा स्वयं में प्रत्यक्ष कर रही है। कितने चक्रवर्ता राजा तैयार हो रहे हैं? एक चक्र में अनेक आत्मायें सन्तुष्ट हो जाती हैं तो उस चक्र में चक्रवर्ता राजा का वरदान होता है। कितनी आत्मायें सन्तुष्ट होती हैं? बहुत होती हैं। जितनी आयु बढ़ती जाती है उतने ज्यादा चक्र लगाते हैं।
दादी जी - अभी मेले का सोच रही है। दिल्ली और बाम्बे के भी बैठे हैं ना। कमाल करके ही दिखायेंगे। दिल्ली और बाम्बे निमित्त हैं ही। स्थापना के भी निमित्त हैं तो प्रत्यक्षता के भी निमित्त हैं। ऐसे ही विदेश में लन्दन, स्थापना के भी निमित्त है और प्रत्यक्ष करने के भी निमित्त है। अच्छा।
31-12-94 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नये वर्ष को शुभ भावना, गुण स्वरूप वर्ष के रूप में मनाओ
आज नवयुग रचता बापदादा अपने नवयुग राज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। नव वर्ष को देख अपना नवयुग याद आता है! नवयुग के आगे यह नव वर्ष कोई बड़ी बात नहीं। जिस नवयुग में हर वस्तु, हर व्यक्ति, प्रकृति-सब नया है। नया वर्ष जब शुरू होता है तो पुरानी वस्तु वा व्यक्ति के पुराने स्वभाव, संस्कार, चालचलन कुछ नये होते हैं, कुछ पुराने होते हैं। लेकिन आपके नवयुग में पुराने का नामय्निशान नहीं। व्यक्ति भी नया अर्थात् सतोप्रधान है और प्रकृति भी सतोप्रधान अर्थात् नई है। प्रकृति में भी आजकल जैसा पुरानापन नहीं होगा। तो नवयुग की मुबारक के साथ नव वर्ष की मुबारक।
आज विशेष नया वर्ष मनाने के उमंगउत्साह से, खुशीखुशी से सभी पहुँच गये हैं। तो बापदादा भी दिल से दिल की दुआओं सहित नव युग की और नये वर्ष की डबल मुबारक देते हैं। आप सभी को भी डबल याद है या सिंगल याद है? अपना नया युग नयनों के आगे बुद्धि में स्पष्ट है ना? जैसे कहेंगे कल से नया वर्ष शुरू है, ऐसे ही कहेंगे कल नवयुग आया कि आया-इतना स्पष्ट है? नशा है? सभी नवयुग के राज्य अधिकारी हैं? सभी राजा बनेंगे तो प्रजा बनाई है? आप सब तो राजा हो लेकिन राज्य किस पर करेंगे? अपने ऊपर! तो बापदादा नवयुग और नया वर्ष डबल देख रहे हैं। कल की बात है ना, वो भी कल और ये भी कल की बात है। फिर नवयुग होगा ना! अपने नवयुग की ड्रेस (शरीर) सामने दिखाई देती है? बस, पुरानी ड्रेस छोड़ेंगे और नई ड्रेस धारण करेंगे। तो वो ड्रेस अच्छी, चमकीली, सुन्दर है ना! अभी तो देखो हर व्यक्ति में कोई ना कोई नुक्स होगा। कोई की नाक टेढ़ी होगी, किसकी आंख टेढ़ी होगी, किसके ओंठ ऐसे होंगे और नवयुग में सब नम्बरवन, हर कर्मेन्द्रिय एक्यूरेट। तो ऐसी ड्रेस सामने खूटी पर लगी हुई है ना! बस पहननी है। अपनी ड्रेस अच्छी, पसन्द है? देख रहे हो ना?
बापदादा सदैव जब हर एक बच्चे को देखते हैं तो क्या देखते हैं? एक तो हर एक के मस्तक की चमकती हुई मणि श्रेष्ठ आत्मा को देखते हैं और साथसाथ हर एक बच्चे के भाग्य की श्रेष्ठ लकीर को देखते हैं। हर एक का भाग्य कितना श्रेष्ठ है! सभी का भाग्य श्रेष्ठ है ना! कि किसका मध्यम भी है? सभी वन हैं? सेकण्ड, थर्ड और आने वाले हैं? अच्छा है, दुनिया वाले कहते हैं आपके मुख में गुलाब और बापदादा कहते हैं आपके मुख में गुलाबजामुन। गुलाबजामुन सबको बहुत अच्छा लगता है ना? गुलाबजामुन या मिठाई खाने के लिये ही बापदादा ने हर गुरूवार भोग का रखा है। भोग में खुद भी खाते हो और बापदादा को भी स्वीकार कराते हो। घर में बनाये, नहीं बनाये, लेकिन गुरूवार को तो मीठा मिलेगा ना। और जब कभी खुशी का उत्सव होता है तो मुख ही मीठा कराते हैं। मीठा मुख अर्थात् मीठा मुखड़ा। मुख मीठा तो सब करते हैं लेकिन आप सबका मुख भी मीठा है तो मुखड़ा (फेस) भी मीठा है, या थोड़ाथोड़ा कड़ुवा भी है? अगर एक लकीर भी कड़ुवे की हो तो आज वर्ष को विदाई देने के साथसाथ इस थोड़े से कड़ुवेपन को भी विदाई दे देना। विदाई देना आता है कि पास में रखना अच्छा लगता है? या विदाई देकर फिर बुला लेंगे? फिर कहेंगे हम तो छोड़ना चाहते हैं लेकिन माया नहीं छोड़ती है! ऐसे तो नहीं कहेंगे कि हमने छोड़ दिया लेकिन माया आ गई? वहाँ जाकर फिर ऐसे पत्र लिखेंगे? विदाई, तो सदा काल के लिये विदाई। विदाई देने का अर्थ ही है फिर आने नहीं देना। कि कभीकभी आ जाये तो कोई हर्जा नहीं? क्योंकि पुराने संस्कार कइयों को बहुत अच्छे लगते हैं। आज कहेंगे कल से नहीं होगा और फिर परसों परवश हो जायेंगे। तो उसको विदाई नहीं कहेंगे ना। तो विदाई देना भी सीखो। वर्ष को विदाई देना तो कॉमन बात है लेकिन आप सबको अंश, वंश सहित माया को विदाई देना है। अंश मात्र भी नहीं रहे। कई बच्चे कहते हैं 75% तो फर्क पड़ गया है, और भी पड़ जायेगा। लेकिन माया अंश से वंश बहुत जल्दी पैदा करती है। 25% अंश मात्र भी रहा तो 25 से 50 तक भी बहुत जल्दी पहुँच सकता है। इसीलिये अंश सहित समाप्त करना है। तो नये वर्ष में क्या करेंगे? पुराने वर्ष को विदाई देने के साथसाथ माया के अंश को भी विदाई देना। और विदाई के साथ बधाई भी देते हो ना! कल सभी एकदो को मिलेंगे तो कहेंगे नये वर्ष की मुबारक हो, बधाई हो। तो विदाई दो और विदाई के साथसाथ अपने को भी और दूसरों को भी सदा फरिश्ते स्वरूप की बधाई दो। हैं ही फरिश्ता। ऊपर से नीचे आये, अपना कार्य किया और उड़ा। फरिश्ते यही करते हैं ना! उड़ती कला की निशानी पंख दिखाये हैं। कोई आर्टीफिशियल पंख नहीं हैं। लेकिन ये फरिश्तों को जो पंख दिखाते हैं उसका अर्थ है फरिश्ता अर्थात् उड़ती कला वाले। तो फरिश्ते स्वरूप की बधाई स्वयं को भी दो और दूसरों को भी। सदा फरिश्ते स्वरूप के स्मृति में भी रहो और दूसरे को भी उसी स्वरूप से देखो। फलानी है, फलाना है......। नहीं, फरिश्ता है। ये फरिश्ता संदेश देने के निमित्त है। समझा? तो सभी को फरिश्ते स्वरूप की मुबारक दो। चाहे कोई कैसा भी हो लेकिन दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है। जब दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है तो क्या ब्राह्मण नहीं बदल सकता? आपकी दृष्टिस्मृति हर आत्मा को बदल देगी।
बापदादा को कभीकभी बच्चों पर हंसी आती है। आप लोगों को भी अपने ऊपर आती है? एक तरफ कहते हैं कि हम विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं.... और फिर विश्व परिवर्तक आकर कहता है कि ये मेरे से बदली नहीं होता! अपने प्रति भी कभी रूहरिहान में कहते हैं-चाहते हैं, ये नहीं करें, फिर भी कर लेते हैं..... तो विश्व परिवर्तक और स्वयं के लिए ही कहे कि मैं चाहता हूँ लेकिन कर नहीं पाता हूँ तो उसका टाइटल क्या होना चाहिये? उसको विश्व परिवर्तक कहना चाहिये या कमज़ोर कहना चाहिये? गीत सुनाते हैं ना-क्या करें, कैसे करें, पता नहीं कब होगा...... यह गीत बापदादा तो सुनते हैं ना! जब विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं तो क्या कोई आत्मा को नहीं बदल सकते? स्वयं को नहीं बदल सकते? अगर स्व परिवर्तक भी नहीं तो विश्व परिवर्तक कैसे होंगे?
बापदादा कहते हैं इस वर्ष की विशेष दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करो। प्रतिज्ञा का अर्थ ही है - कि शरीर चला जाये लेकिन जो प्रतिज्ञा की है, वह प्रतिज्ञा नहीं जाये। तो प्रतिज्ञा करने की इतनी हिम्मत है? करेंगे? डरेंगे तो नहीं? तो यही प्रतिज्ञा स्वयं से करो कि ‘‘ कभी भी किसी की कमज़ोरी वा कमी को नहीं देखेंगे। किसी की कमज़ोरीकमी को नहीं सुनेंगे, नहीं बोलेंगे।’’ न सुनेंगे, न बोलेंगे, न देखेंगे - तो ये वर्ष क्या हो जायेगा? ये वर्ष हो जायेगा शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। हर वर्ष को अपनाअपना नाम देते हो ना। जब ये प्रतिज्ञा सभी कर लेंगे तो ये वर्ष हुआ - शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। मंजूर है? फिर वहाँ जाकर नहीं बदल जाना! फिर कहेंगे मधुबन में तो वायुमण्डल अच्छा था ना और यहाँ तो वायुमण्डल का संग है ना! परिवर्तक किसी के संग में नहीं आता, किसी के प्रभाव में नहीं आता। अगर परिवर्तक ही प्रभाव में आ जायेगा तो परिवर्तन क्या करेगा? इसलिये इस वर्ष को गुण मूर्त, शुभ भावना वर्ष के रूप में मनाओ। किसकी अशुभ बात को भी आप अपने पास शुभ करके उठाओ। अशुभ देखते हुए भी आप शुभ दृष्टि से देखो। जब प्रकृति को बदल सकते हो तो मनुष्यात्माओं को नहीं बदल सकते हो? और उसमें भी ब्राह्मण आत्मायें हैं, उनको नहीं बदल सकते हो? जब सबके प्रति शुभ भावना होगी तो ‘कारण’ शब्द समाप्त होकर ‘निवारण’ शब्द ही दिखाई देगा। इस कारण से ये हुआ, इस कारण हुआ.......। नहीं, कारण को निवारण में परिवर्तन करो। हिम्मत है? अच्छा! बापदादा जब टी.वी.खोलते हैं तो बड़ा मजा आता है। ये कलियुगी टी.वी.नहीं देखते। ब्राह्मणों की टी.वी.देखते हैं। ऐसे नहीं, आप लोग वह टी.वी. खोल लो, ऐसे नहीं करना। तो जब बच्चों का खेल देखते हैं तो बहुत मजा आता है। मिक्की माउस का खेल तो करते हो ना! थोड़े टाइम के लिये कोई शेर बन जाता, कोई कुत्ता बन जाता। जिस समय क्रोध करते हो उस समय क्या हो? जिस समय किससे डिस्कस करते हो, उसके ऊपर वार करते जाते हो, सिद्ध करते जाते हो तो उस समय क्या हो? मिक्की माउस ही बन जाते हो ना। तो इस वर्ष मिक्की माउस नहीं बनना। फरिश्ता बनना। मिक्की माउस का खेल बहुत किया। तो ये वर्ष ऐसे शक्तिशाली वर्ष मनाना। क्योंकि समय तो समीप आना भी है और लाना भी है। ड्रामानुसार आना तो है ही लेकिन लाने वाले कौन हैं? आप ही हो ना?
दूसरी विशेषता इस वर्ष में क्या करेंगे? नये वर्ष में एक तो बधाइयाँ देते हो और दूसरा गिफ्ट देते हो। तो इस नये वर्ष में सदैव हर एक को, जो भी जब भी सम्बन्धसम्पर्क में आये, चाहे ब्राह्मण परिवार, चाहे और आत्मायें हो, उन सबको एक तो मधुर बोल की गिफ्ट दो, स्नेह के बोल की सौगात दो और दूसरा सदैव कोई न कोई गुण की, शक्ति की सौगात दो। यह सौगात सेकण्ड में भी दे सकते हो। ऐसे नहीं कह सकते हो कि टाइम ही नहीं मिला, न लेने वाले को टाइम था, न देने वाले को टाइम था। लेकिन अगर अपनी श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति है तो सेकण्ड के संकल्प से, दृष्टि से अपने दिल के मुस्कराहट से सेकण्ड में भी किसी को बहुत कुछ दे सकते हो। जो भी आवे उसको गिफ्ट देनी है, खाली हाथ नहीं जावे। तो इतनी गिफ्ट आपके पास है? कि दो दिन देंगे तो खत्म हो जायेगी? सभी का स्टॉक भरपूर है? कि कोई का स्टॉक थोड़ा कम हो गया है? जिसके पास कम हो वो हाथ उठा लो। भर देंगे। जिसके पास कमी हो वो चिटकी लिखकर जनक (दादी जानकी) को देना वो क्लास करा लेगी। कमी तो नहीं रहनी चाहिये ना! दाता के बच्चे और कमी हो तो अच्छा नहीं है ना! इसलिये भरपूर होकर जाना। कमी को लेकर नहीं जाना। वर्ष के साथ कमियों को भी विदाई देकर जाना। ऐसे नहीं, कि सिर्फ कल एक दिन ही गिफ्ट देना है। नहीं, सारा वर्ष सबको गिफ्ट बांटते जाओ। बिना गिफ्ट के कोई नहीं जाये। तो कितना अच्छा लगेगा। अगर कोई आता है उसको छोटीसी प्यार से गिफ्ट दे दो तो कितना खुश होता है। चीज़ को नहीं देखते हैं लेकिन गिफ्ट अर्थात् स्नेह के स्वरूप को देखते हैं। गिफ्ट से कोई मालामाल नहीं हो जाते हैं लेकिन स्नेह से मालामाल हो जाते हैं। तो स्नेह देना और स्नेह लेना। अगर कोई आपको स्नेह नहीं भी दे, तो भी आप उनसे ले लेना। लेना आयेगा कि शर्म करेंगे-कैसे लें? इस लेने में कोई हर्जा नहीं है। वो आप पर क्रोध करे, आप स्नेह के रूप में ले लेना। आप विश्व परिवर्तक हो ना। तो विश्व परिवर्तक किसी के निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकता! तो ये वर्ष सदा स्नेह देना और स्नेह लेना। ऐसे नहीं कहना-कोई ने दिया ही नहीं, क्या करूँ......। वो दे या न दे, आप ले लो। कुछ तो देगा ना, निगेटिव दे या पॉजिटिव दे कुछ तो देगा ना! लेकिन हे विश्व परिवर्तक, आप निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेना। समझा, इस वर्ष क्या करना है! अच्छा। डबल विदेशी क्या करेंगे? गिफ्ट देंगे? दाता बन गये हो? वाह, दातापन की मुबारक हो।
बापदादा रोज बच्चों की एक बात देखते हैं। कौनसी? कि ये ‘मैं’ और ‘मेरा’ ये परेशान कर देता है। कभी ‘मेरा’ आ जाता है, कभी ‘मैं’ आ जाता है, जो बीचबीच में परेशान करता है। तो जब वर्ष परिवर्तन हो रहा है तो इस ‘मैं’ और ‘मेरे’ को भी परिवर्तन करो। शब्द भले ‘मैं’ बोलो लेकिन मैं कौन? ओरिजनल ‘मैं’ किसको कहते हैं? शरीर को या आत्मा को? मैं आत्मा हूँ। तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज करते हो तो क्यों नहीं ‘मैं’ शब्द का ओरिजनल स्वरूप, ओरीजिनल अर्थ स्मृति में रखते हो। और सारे दिन में कितने बार ‘मैं’ शब्द यूज करते हो? करना ही पड़ता है ना। ‘मेरा’ भी कई बार यूज करते हो और ‘मैं’ भी कई बार यूज करते हो। तो जितने बार ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उतने बार अगर वास्तविक अर्थ से ‘मैं’ स्मृति में लाओ तो ‘मैं’ धोखा देगा या उड़ायेगा? तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उस समय यही सोचो मैं आत्मा हूँ। क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ शब्द के बिना रह भी नहीं सकते हो। बोलना ही पड़ता है और आदत भी है, ‘मैं’ ‘मेरे’ के पक्के संस्कार हो गये हैं। तो जिस समय ‘मैं’ शब्द यूज करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी गलती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? गलती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो ‘मैं’ शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है। तो परिवर्तन करो। विश्व परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। तो ‘मैं’ शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी ‘मैं’ शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा’ शब्द यूज करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन? सारे दिन में मेरामेरा तो बहुत बनाते हो! मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी ये चीज़ें, मेरा परिवार, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरी सेवा, मेरी सेवा इसने क्यों की? ये कहते हो ना? खेल तो करते हो ना। तो जब ‘मेरा’ शब्द बोलते हो तो ‘मेरा’ कहने से पहले ये याद करो कि मेरा कौन? पहले ‘मेरा बाबा’ याद करो। फिर मेरा और याद करो। तो जहाँ बाप होगा वहाँ देह अभिमान वा गिरावट नहीं आयेगी। तो ‘मैं’ और ‘मेरा’ इन दोनों शब्दों को उस वृत्ति से, उस दृष्टि से, उस अर्थ से देखो और बोलो। ‘मेरा’ शब्द मुख से निकले और पहले ‘मेरा बाबा’ याद आये। तो निरन्तर योगी तो हो जायेंगे ना! क्योंकि हर घण्टे में ‘मेरा’ और ‘मैं’ शब्द यूज करते हो। कारोबार में भी करना पड़ता है ना! तो जितने बार ये रिपीट करो, मुख से बोलो वा मन से सोचो-मैं या मेरा, तो अर्थ का परिवर्तन करो।
हद से बेहद में जाना है ना। जब बेहद सृष्टि की परिवर्तक आत्मायें हो तो हद में क्यों जाते हो? सिर्फ भारत परिवर्तक तो नहीं हो ना? या डबल विदेशी सिर्फ फॉरेन परिवर्तक तो नहीं हो ना? विश्व परिवर्तक हो। विश्व अर्थात् बेहद। विश्व परिवर्तक हैं-यह पक्का याद है ना? तो ऑटोमेटिकली निरन्तर योगी सहज बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। क्योंकि भाव और भावना बदल जायेगी। जब मैं आत्मा सोचेंगे तो हर कर्म या बोल में भाव भी बदल जायेगा, भावना भी बदल जायेगी। क्योंकि भाव और भावना ही धोखा भी देती है, सुख भी देती है। तो यह परिवर्तन करेंगे ना? फिर यह पत्र नहीं लिखना क्या करें, कैसे करें....? ओ.के. का पत्र आयेगा या ये हुआ, वो हुआ..... हुआहुआ तो नहीं आयेगा ना? बापदादा के पास सबके पत्रों के फाइल हैं। कभी देखते हैं शुरू से लेकर क्याक्या पत्र हैं, जो मन में सोचते हैं, वो भी सबका टेप रिकॉर्ड है।
तो नया वर्ष अर्थात् नवीनता लाना। नवीनता सभी को प्रिय लगती है ना? पुरानी चीज़ शो में रखने के लिये तो पसन्द करेंगे लेकिन यूज करने के लिये नहीं। यूज करने के लिये तो सोचेंगे नया। तो हर बात में नवीनता हो, संकल्प भी नया हो। रमणीकता से पुरूषार्थ करो। कभीकभी कोईकोई बच्चे इतना हठ से पुरूषार्थ करते हैं जो बापदादा को देखकरके तरस पड़ता है। बहुत युद्ध करते हैं। आवश्यकता नहीं है लेकिन करते हैं, क्यों? अपनी कमज़ोरी के कारण। तो मेहनत का पुरूषार्थ नहीं करो। पुरूषार्थ भी मौजमौज से करो। करना भी क्या है? याद कोई ना कोई तो रहता ही है, कोई नई बात तो है नहीं। एक घड़ी भी बिना याद के रहते हो क्या? कोई न कोई तो याद रहता ही है। चाहे बात याद रहे, चाहे कोई व्यक्ति याद रहे, चाहे कोई वस्तु याद रहे लेकिन याद तो रहती है ना। बिना याद के होता है क्या? किसी को तो याद करना ही है। तो जो मतलब की बात है उसको याद करो। याद वरना किसे नहीं आता है? कोई है जिसको याद करना नहीं आता हो? छोटी कुमारियों को याद करना आता है? अच्छा। तो जब याद करना ही है तो क्यों नहीं जिससे फायदा है, प्राप्ति है उसको करें, जिससे नुकसान है उसको क्यों करें? याद भी करते हैं और फिर परेशान भी होते हैं। क्यों याद आया, नहीं याद आना चाहिये.... तो अपने आपको परेशान क्यों करते हो? बस मेरा बाबा। मेरेपन की अनेक हद की भावनायें एक ‘मेरे बाबा’ में समा दो। खिलौने होते हैं ना, एक में एक, एक में एक होते हैं ना? एक खोलो तो दूसरा होता है, दूसरा खोलो तो और होता है। तो एक ‘मेरे बाबा’ में सब समा लो। अन्दर बन्द कर दो। लेकिन एक होता है मुख से कहना ‘मेरा बाबा’, एक होता है दिल से लग जाये ‘मेरा बाबा’, जो दिल से मेरा मान लेते हैं वो कभी नहीं भूलते हैं। देखो, सम्बन्ध में भी अगर कोई नजदीक परिवार का शरीर भी छोड़ता है और ज्ञान नहीं है तो कितना मेरामेरा कहते हैं। उसकी चीज़ देखेंगे, उसका चित्र देखेंगे, और मेरामेरा कह परेशान होंगे। तो जाने वाले को भी याद करते हैं। पता भी है जाने वाला आना नहीं है फिर भी मेरा है तो याद आता है। तो जब दिल से मान लिया ‘मेरा बाबा’ तो इससे बड़ी बात और है ही क्या? तो जो कॉमन शब्द बोलते हो, उसे ही उड़ती कला का साधन बना लो-मैं और मेरा। पुरूषार्थ भी रमणीक करो। कई याद में बैठते हैं सोचते हैं ‘‘मैं ज्योति बिन्दु, मैं ज्योति बिन्दु’’ और ज्योति टिकती नहीं, शरीर भूलता नहीं। ज्योति बिन्दु तो हैं ही लेकिन कौनसी ज्योतिबिन्दु हैं! हर रोज अपना नयानया टाइटल याद रखो कि ज्योति बिन्दु भी कौन है? रोज सर्व प्राप्तियों में से कोई न कोई प्राप्ति को याद करो। प्राप्तियों की लिस्ट तो बुद्धि में है ना? अगर नहीं हो, याद नहीं पड़ती हो तो अपने टीचर से लिस्ट ले लेना, अगर टीचर के पास भी नहीं हो तो मधुबन से ले लेना। तो रोज एक नया टाइटल परिवर्तन करो। आज नूरे रत्न हैं तो कल मस्तक मणि हैं.... कितना अच्छा लगेगा। और हर रोज वेराइटी प्राप्तियों को सामने रखो-बाप ने क्या दिया, क्या मिला! तो जब अविनाशी प्राप्ति सामने रहेंगी तो प्राप्ति से खुशी होती है ना? अगर मानों किसी को बहुत दर्द हो रहा है और कोई ऐसी प्राप्ति की सूचना आ जाये कि एक करोड़ लॉटरी में आ गये हैं तो दर्द याद रहेगा कि लॉटरी याद आयेगी? तो प्राप्ति दु:ख को, परेशानी को भुला देती है। तो रोज नई प्राप्ति की पॉइन्ट को याद रखो। अपने टाइटल याद रखो। टाइटल की सीट पर सेट होकर बैठो। छोटे बच्चे की तरह घड़ीघड़ी नीचे नहीं आओ। जैसे छोटे बच्चे को कुर्सा पर बिठाओ तो नीचे आ जाता है। मन भी नटखट होता है, तो कितना भी सीट पर बिठाओ नीचे आ जाता है। तो अपने टाइटल के नशे की सीट पर अच्छी तरह से सेट होना आता है ना? प्लेन में भी देखो कोई नीचे नहीं आ जाये तो बेल्ट बांध देते हैं। तो दृढ़ संकल्प की बेल्ट सबके पास है! जब देखो थोड़ा हलचल में आते हैं तो बेल्ट बांध लो।
तो इस वर्ष की नवीनता यह है कि किसी का भी निगेटिव समाचार नहीं आयेगा। ठीक है? हाँ जी या ना जी? अभी ये आपका आवाज भी टेप में भर रहा है। आप सभी भी चाहते हो, सिर्फ बाप नहीं चाहता लेकिन आप सभी भी चाहते हो कि बस अभीअभी फरिश्ते बन जायें, चाहते हो ना? (सभी ने हाँ जी की) हाँ बहुत अच्छी करते हो। हाँ सुनकर बाप भी खुश हो जाता है। परन्तु ऐसे ऐसे पत्र आते हैं जो वेस्ट पेपर बॉक्स में डालने वाले होते हैं, ऐसे भी पत्र आते हैं जो पढ़ने की भी दिल नहीं होती। लिफाफे से ही समझ जाते हैं कि ये ऐसा ही कोई समाचार है। अच्छे भी आते हैं। प्यार के भी आते हैं, उमंग के भी आते हैं, खुशी के भी आते हैं लेकिन फालतू भी आते हैं। वेस्ट मनी, वेस्ट टाइम, अपना भी और दूसरों का भी। आपके सेवाकेन्द्र पर ऐसे पत्र लिखने वाले हों तो उन्हें भी परिवर्तन करना। फिर ये वर्ष कौनसा वर्ष होगा? मौज का वर्ष। फरिश्ता स्वरूप, फरिश्तों की दुनिया में रहने वाले। जहाँ देखो वहाँ फरिश्ता ही फरिश्ता। कोई फरिश्ता उड़ रहा है, कोई सन्देश दे रहा है, कोई नीचे धरनी पर आकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कर रहा है-ऐसे ही दिखाई दे। सृष्टि बदल जाये। जहाँ भी देखो फरिश्तों की दुनिया। दृष्टि परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन। अच्छा!
सेवा क्या करेंगे? इस वर्ष में कोई विशेष सेवा भी करेंगे? क्या करेंगे? मेला करेंगे, प्रदर्शनियाँ करेंगे, कांफ्रेंस करेंगे? ये तो करते ही रहते हो। नवीनता क्या लायेंगे? बापदादा का एक संकल्प अभी बच्चों ने पूरा नहीं किया है। बापदादा बारबार इशारा देते हैं कि वर्तमान समय क्वान्टिटी तो बढ़ाते जाते हो लेकिन क्वालिटी अर्थात् वारिस, लिस्ट में तो आ जाता है इतने बढ़ गये, प्राइज भी ले ली ना। बापदादा ने सुना था कि चान्दी का गिलास भी गिफ्ट में ले लिया। वो भी अच्छी बात है। क्योंकि राजधानी में सब प्रकार के चाहिये। लेकिन अभी बहुत समय से वारिस क्वालिटी बहुत कम निकलती है। सम्पर्क वाले बढ़ रहे हैं, संख्या बढ़ रही है। वो भी ड्रामानुसार होनी ही है और आवश्यक है लेकिन ये मिस है। अब वारिस क्वालिटी प्रत्यक्ष करो। क्वान्टिटी को देखकर बापदादा भी खुश होते हैं लेकिन साथसाथ इसके ऊपर भी अण्डरलाइन करो। और दूसरी बात, अभी ज्ञान सरोवर भी तैयार हो जाना है और इसे विशेष बनाया ही है सम्पर्क वालों को वारिस बनाने के लिये। बापदादा ने पहले भी कहा है किज्ञान सरोवर है ही - सेवा के वृद्धि की खान। तो जब सेवा का स्थान तैयार हो ही रहा है और होना ही है, हुआ ही पड़ा है तो सेवा भी तो करेंगे? कि सिर्फ देखकर खुश होंगे कि बहुत अच्छा बना, बहुत अच्छा बना? तो एक ऐसा विशाल प्रोग्राम करो - जैसे कोई विशेष स्थान बनाते हैं तो विशेष स्थान की सेरीमनी में अलगअलग देश वाले सभी, या पानी डालते हैं, या मिट्टी डालते हैं। तो आप पानी या मिट्टी तो नहीं डलवायेंगे लेकिन सारे विश्व में एक भी स्टेट खाली नहीं रहे, सब तरफ के आवें, चाहे विदेश, चाहे देश की जो भिन्न भिन्न स्टेट हैं उसका एकएक जरूर आवे। तो इन्टरनेशनल इसको कहेंगे ना। या दो चार लण्डन के आ गये, अमेरिका का आ गया तो इन्टरनेशनल हो गया क्या? तो इन्टरनेशनल प्रोग्राम बनाओ। अब डबल स्थान हो गया ना। नहीं तो सोचते हैं स्थान चाहिये, वो चाहिये, सैलवेशन चाहिये। तो अभी ज्ञान सरोवर का स्थान भी मिला है। इसलिये इस वर्ष में ऐसा देशय्विदेश दोनों मिलकर, दोनों की राय से, दोनों के प्लैन से, दोनों के हाँ जी से, दोनों की समानता से ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो विदेश वाले भी कहे कि हाँ, हमारे योग्य है और देश वाले भी कहें कि हमारे योग्य है। विदेश की भी विधि और देश की भी विधि-दोनों विधि को सम्मिलित करके एकदो को आगे रखकर, देश विदेश को आगे रखे, विदेश देश को आगे रखे, और ऐसा अच्छा प्रोग्राम बनाओ जो कोई एक देश भी वंचित नहीं रह जाये। विदेश वाले बताओ, हो सकता है? होना ही है ना! देश वाले बताओ, करना है? अच्छा, इनका (दादी का) तो संकल्प है। दादी को संकल्प बहुत आते हैं, सेवा के अच्छे संकल्प, नींद नहीं करने देते हैं। अच्छा है। शुद्ध संकल्पों से नींद की कमज़ोरी का प्रभाव नहीं पड़ता। वैसे नींद खुल जाये तो कमज़ोरी या कमी महसूस होती है। तो अच्छा है, सबकी मिट्टी नहीं लाना लेकिन सबके विचारों की मिट्टी इकट्ठी करेंगे। दुनिया वाले तो मिट्टी, मिट्टी कर देते हैं ना, मिट्टी मिट्टी में मिल जाती है। और ये सभी के विचार, सब तरफ विश्व में आवाज फैलायेंगे। कोई भी देश वंचित क्यों रह जाये। और अगर एक कोई आता है तो अपने देश में अपने अखबार में तो डालेगा। तो हरेक विश्व के चारों कोनों की सेवा भी हो जायेगी।। लेकिन बापदादा इस वर्ष देशविदेश की विधि का मिला हुआ प्रोग्राम चाहते हैं। विदेश वाले भी पीछे नहीं हटें और देश वाले भी पीछे नहीं हटें। विचार भी तो मिलाने हैं ना। एकदो को कहो-पहले आप। अच्छा हो सकता है ना।
तो ज्ञान सरोवर का ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो विश्व में ऐसा सेवा समाचार किसी स्थान का नहीं हो। चाहे यू.एन. हो या उससे भी बड़ा स्थान हो, उससे भी बड़ा हो जाये। इसमें सबका तन भी लगा है, मन भी लगा है और छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी का धन भी लगा है। तो जैसे सबके सहयोग की अंगुली लगी है तो सेवा में भी सबके सहयोग की अंगुली लगनी ही है। प्लैन देते रहो लेकिन प्लैन बनाने के टाइम, देने के टाइम, मालिक बनकर दो और जब फाइनल मैजारिटी करे तो बालक बन जाना। बालक क्या करता है? हाँ जी और मालिक क्या कहता है? नहीं, ऐसा करो। तो बालक और मालिक। प्लैन देना अच्छा है लेकिन प्लैन होना ही चाहिये, ये सोच के नहीं। जो होगा वो अच्छा। किनारा नहीं करो, प्लैन दो लेकिन बालक भी बनो, मालिक भी बनो। बनाने के टाइम मालिक और फाइनल के टाइम बालक। बालक और मालिक बनना आता है कि सिर्फ मालिक बनना आता है? क्योंकि सभी होशियार हो गये हैं ना। मालिक जल्दी बन जाते हैं। अभी समझा, नये वर्ष में क्या करना है? सेवा भी करनी है और सेवा के पहले स्वयं परिवर्तक। दोनों ही चाहिये ना!
तो नया वर्ष मना लिया। मनाना अर्थात् बनना और बनाना। यही मनाना है, न कि सिर्फ डांस कर लिया तो मनाया। वो भी करो, डांस भी बापदादा को अच्छी लगती है। लेकिन मन की भी डांस करो। बापदादा सब गीत भी सुनते हैं, डांस भी देखते हैं, कोई प्रोग्राम मिस नहीं करते। क्यों? देखो, कोई भी प्रोग्राम आप करते हो तो पहले गीत में बाप को याद करते हो ना? जब बाप को याद करेंगे तो आना ही पड़ेगा, देखना ही पड़ेगा। जब प्रोग्राम करते हो तो बापदादा को भी अच्छा लगता है। अच्छा!
हॉस्टल की कुमारियों से: हॉस्टल की कुमारियों को देखकर आदि स्थापना का समय याद आता है। पहले तो ऐसे ही हॉस्टल खोली थी ना। पहले जब ब्रह्मा बाप ने, हॉस्टल अथवा गुरूकुल वा बो\डग खोला तो फाउण्डेशन निकले। आज यज्ञ के जो भी निमित्त फाउण्डेशन हैं, वो सभी बो\डग के ही तो हैं। चाहे टीचर हैं, चाहे स्टूडेण्ट हैं, लेकिन हैं तो आदि स्थापना के ना। तो जहाँ भी हॉस्टल है वहाँ से ऐसे फाउण्डेशन तैयार होने चाहिये। समझा? सिर्फ कॉलेजस्कूल में पढ़ लिया, सेन्टर सम्भाल लिया। नहीं, इतना बड़ा कार्य करना है। अच्छा है, साधन अच्छा है।
डबल विदेशी:
यू.के.यूरोप: यू.के. और यूरोप वाले दोनों इकट्ठे हाथ उठाओ। सेकण्ड में देखो, हाथ नीचे कर लिये। ऐसे मन की ड्रिल भी सेकण्ड में। अभीअभी उड़ती कला, अभीअभी कर्मयोगी। हाथ की एक्सरसाइज अच्छी है, मन की एक्सरसाइज भी ऐसे है? तो यू.के. या यूरोप की विशेषता क्या है? यू.के. विदेश सेवा के वृक्ष का बीज है। तो बीज की विशेषता क्या होती है? बीज में पानी दे दो तो सारे झाड़ के पत्तेपत्ते को पानी पहुँच जाता है। तो आज भी विदेश के वृक्ष की सेवा का फाउण्डेशन यू.के. निमित्त है, विदेश के सभी देशों को पालना का पानी कहाँ से मिलता है? यू.के. से ना! तो यू.के. अपना बीज का कार्य अच्छा कर रहे हैं। ऐसे नहीं, सिर्फ एक, लेकिन सभी सहयोगी हो। आप सब भी यू.के. वाले या यूरोप वाले सहयोगी हो ना? दादियों को मदद देते हो? कि कहते हैं कि दादी का काम दादी जाने। ऐसे तो नहीं कहते ना! भुजायें अच्छी मिली है ना! तो बापदादा बीज को सदा शक्तिशाली देख हर्षित होते हैं। और दूसरी यू.के. या यूरोप की विशेषता यह है कि सेवा में तनमनधन तीनों में एवररेडी हैं। कोई भी कार्य जो साधारण सोचने में लगता-कैसे होगा लेकिन यू.के. की विशेषता है कि कोई भी कार्य दृढ़ संकल्प और सहयोग के अंगुली से सहज हो जाता है। सहज हो जाता है ना! म्युजयम बनने के पहले करने वाले तैयार है ना! तो इसको कहा जाता है विशेषता। सर्व के सहयोग की अंगुली शक्तिशाली है। अगर कोई हिम्मत भी दिलाते हैं कि हाँ कर लो, कर लो, कर लो तो वो हिम्मत भी सहयोग की अंगुली है। लेकिन रिजल्ट में देखा गया है कि तनमनधन तीनों में सदा जी हाँ करने वाले हैं, सोचने वाले नहीं हैं। इसलिये सब कार्य सहज हो जाता है। अगर सोचने वाले होते हैं ना तो वो सूक्ष्म वायब्रेशन, वो अंगुली कम हो जाती है। तो सर्व के अंगुली से सफलता होती है। अगर थोड़ा भी सोचने वाले होते हैं कि कैसे होगा, क्या होगा तो संगठन की स्नेह की अंगुली न होने के कारण सफलता में कमी पड़ जाती है। इसलिये यू.के. वा यूरोप वालों को विशेष और सर्व विदेश के सहयोगी आत्माओं को कार्य में आगे बढ़ने की मुबारक हो। समझा!
ऑस्ट्रेलिया-बापदादा जब ऑस्ट्रेलिया का नाम सुनते हैं तो नाम सुनकर ऑस्ट्रेलिया का बचपन बहुत याद आता है। ऑस्ट्रेलिया और न्युजीलैण्ड वाले हाथ उठाओ। ऑस्ट्रेलिया में बहुत अच्छेअच्छे रत्न पैदा हुए। ऑस्ट्रेलिया की ये विशेषता रही कि यू.के. में फिर भी मिक्स हैं, भारतवासी भी हैं तो विदेशी
भी हैं, मिक्स क्लास है लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सेवा ने विदेशियों की संख्या को काफी बढ़ा दिया। और क्लास की रौनक, विदेश की आत्माओं के क्लास की रौनक सबसे नम्बरवन ऑस्ट्रेलिया की रही। कोई थोड़ा बहुत आतेजाते हैं, चक्कर लगाते हैं लेकिन फाउण्डेशन तो निमित्त बने। और जाने वाले भी कहाँ जायेंगे? आना तो है ही। सिर्फ चक्कर लगाने जाते हैं। फिर जब चक्कर पूरा हो जाता है तो कहते हैं बाबा मैं आपका ही हूँ, आपका ही रहूँगा। और ऑस्ट्रेलिया की विशेषता ये है कि वहाँ प्लैंनिंग बुद्धि बहुत अच्छी है। सेवा के प्लैन बनाने में और सेवा में सहयोग देने में, बड़ीबड़ी इन्वेन्शन को प्रैक्टिकल में लाने में प्लेन बुद्धि भी हैं और सहयोगी भी हैं। प्लेन बुद्धि होकर प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने में और थोड़ा सिर्फ अण्डरलाइन करो। समझा? थोड़ा अण्डर लाइन करना है - प्लैनिंग के साथ प्लेन बुद्धि। जब प्लेन बुद्धि होकर प्लैन बनाते हैं तो प्लेन में सर्व शक्तियाँ भर जाती हैं और जहाँ सर्वशक्तियाँ होती हैं वहाँ सफलता भी निर्विघ्न 100% होती है। तो ऑस्ट्रेलिया के अच्छेअच्छे रत्न बापदादा के नजर में सदा रहते हैं। सफलता स्वरूप भी हैं, सेवा में आगे बढ़ने वाले भी हैं, बढ़ाने वाले भी हैं। तो ऑस्ट्रेलिया की विशेषता भी कम नहीं। ऑस्ट्रेलिया को बापदादा सदा आगे बढ़ने वालों की नजर से देखते हैं। और तीसरी विशेषता है कि पाण्डव और शक्तियाँ दोनों ही सेन्टर खोलने के निमित्त हैं। पाण्डव भी शक्तियों से कम नहीं हैं। पाण्डव भी निमित्त बनने में अच्छे सहयोगी हैं। वहाँ जायेंगे तो क्या देखेंगे? ये पाण्डवों का सेन्टर है, वो शक्तियों का सेन्टर है और दोनों की साथसाथ रेस चल रही है। समझा? ऑस्ट्रेलिया वालों ने अपनी विशेषतायें सुनी? अच्छा।
साउथ एशिया - एशिया की भी विशेषता है। हर स्थान की विशेषता है। एशिया भारत के नजदीक है। तो एशिया का आवाज भारत में जल्दी पहुँचेगा। भारत के कुम्भकरण को जगाने में एशिया सहज कार्य कर सकता है। जैसे यू.के., यूरोप, अमेरिका में क्रिश्चियन्स ज्यादा निकले हैं, ऐसे एशिया में बौद्ध धर्म वाले ज्यादा निकले हैं। वो क्रिश्चियन्स और ये बौद्धी। तो देखो दूसरे धर्म का विस्तार ज्यादा एशिया में है। वैसे भी बुद्ध धर्म को भारत से कनेक्ट ज्यादा करते हैं। तो एशिया की विशेषता और भी है कि एक ही एशिया में
ऑफिशियल प्रेजीडेन्ट सम्पर्क वाला है। मलेशिया का प्रेजीडेन्ट, फिलिपिन्स का प्रेजीडेन्ट होमली है ना और संख्या भी अच्छी है। वैसे तो हर स्थान की संख्या वृद्धि को प्राप्त कर रही है। सभी अच्छे उमंगउत्साह से बढ़ रहे हैं। अभी सिर्फ एशिया को क्या करना है कि जो वहाँ निमित्त बने हुए हैं, उन्हों को भारत तक पहुँचाना है। अभी भारत तक नहीं पहुँचाया है। ये एडीशन करना है। जो विशेष सेवा के निमित्त हैं, वो सभी मिलकर जो भी सम्पर्क में हैं उन्हें समीप लाओ। जितना देश समीप है उतना आवाज भी समीप लाओ। और ऐसा हो जो आवाज को जल्दी पहुँचा सके। तो अभी जल्दीजल्दी भारत तक आवाज पहुँचाओ। अभी भारत तक नहीं पहुँचा है। अच्छा!
मॉरिशियस: मॉरिशियस की विशेषता ही ये है कि मॉरिशियस के स्टूडेण्ट अच्छे एकरस होकर चलने वाले हैं। थोड़ा बहुत नीचेऊपर होता है, वो कोई बात नहीं। लेकिन मैजारिटी देखा जाता है कि मॉरिशियस के स्टूडेन्ट ज्यादा हलचल में नहीं आते। तो मॉरिशियस की विशेषता-एक तो हलचल कम है, अचल ज्यादा हैं और दूसरा सहयोगी सहज बन जाते हैं, चाहे आई.पी. हो, चाहे वी.आई.पी. हो लेकिन सहयोग देने में अच्छे निमित्त बन जाते हैं। आई.पी. या वी.आई.पी. की सेवा में मेहनत नहीं लगती। इजी धरनी है। खिटपिट वाली धरनी नहीं। मेहनत लेने वाली धरनी नहीं। और इसीलिये मॉरिशियस भी भारत के बहुत नजदीक है। मॉरिशियस वाले तो भारत की फिलॉसॉफी को भी मानते हैं। इसलिये मॉरिशियस की आवाज भी भारत में जल्दी पहुँच सकती है। प्रत्यक्षता करने में पहले झण्डा किसका पहुँचेगा? मॉरिशियस का या एशिया का? मॉरिशियस का पहले पहुँचेगा? एशिया वाले भी दौड़दौड़ कर फ्लैग ले आयेंगे और मॉरिशियस वाले भी ले आयेंगे। सब विदेश की तरफ से प्रत्यक्षता का झण्डा भारत में आयेगा। तो अच्छा है मॉरिशियस वालों की भी सहज सफलता है। ये विशेष धरनी को और ब्राह्मण सेवाधारियों को वरदान है।
अफ्रीका: अफ्रीका की विशेषता ये है जो ये देश सदा ही भय के देश हैं और भय में निर्भय रहना, ये अफ्रीका वालों की विशेषता है। बापदादा सदा बिल्ली के पूंगरों की कहानी याद करते हैं, कि चारों ओर आग के बीच में बिल्ली के पूंगरे सेफ रहे। तो जैसे अफ्रीका के सरकमस्टांश हैं, उस सरकमस्टांश के अनुसार जो भी बाप के बच्चे हैं वो हिम्मत और निर्भयता में बहुत अच्छे एवन हैं। कमाल है उन्हों की। कैसी भी हालत हो लेकिन सेवा को छोड़ते नहीं। पक्के हैं। तो बापदादा उन्हों के निर्भयता और हिम्मत को देखकरके सदा छत्रछाया भी देते और मुबारक भी देते हैं कि कमाल के बच्चे हैं। कैसी भी हालत हो लेकिन परिस्थिति में स्व स्थिति का सबूत देने वाले हैं। इसलिये जो आने वाले हैं उन्हों में भी हिम्मत भरते रहते हैं। अगर निमित्त हलचल में आ जाये तो आने वाले भी हलचल में आ जाये और ये देश वंचित रह जाये। लेकिन बच्चों की कमाल है जो अचल रह करके हिम्मत रखी है। सदा आगे बढ़ते रहते हैं और सेवाकेन्द्र खोलते जाते हैं, लोग भागते जाते हैं और ये खोलते जाते हैं। तो ये विशेषता है। और जो नाम है कि बाप विश्व कल्याणकारी है, तो काले हो या गोरे हो लेकिन कालों को भी सफेद बनाना - ये भी विशेष सेवा है। विश्व कल्याण में ये भी तो होने चाहिये ना। अगर ये नहीं हो तो विश्व कल्याण तो नहीं कहेंगे ना। साउथ अफ्रीका भी देखो सेवा के उमंग के कारण स्वतन्त्र हो गया ना। तो ये हिम्मत की कमाल है। साउथ अफ्रीका में भी सेवा का चांस अभी सहज मिल गया ना। तो ये किसने हिम्मत रखी? बच्चों ने हिम्मत रखी और स्वतन्त्र हो गये। आपकी सेवा ने देश को स्वतन्त्र कर दिया। तो अफ्रीका की रिजल्ट अच्छे उमंगउत्साह वाली है। सबसे हिम्मत में नम्बरवन है। समझा? अफ्रीका वाले हिम्मत वाले हैं? डरते तो नहीं हैं ना? अच्छा, सबूत देने वाले हैं। तो सबूत देने वाले को बापदादा सपूत कहते हैं। जो सपूत होता है वो सबूत देता है। तो अच्छा बढ़ रहा है और बढ़ता रहेगा। समझा? श्री लंका भी छोटा है लेकिन कमाल कर रहा है।
जापान: जापान में सेवा की मेहनत है लेकिन मेहनत से डरने वाले नहीं। कोईकोई धरनी मेहनत वाली होती है। तो जापान में मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है लेकिन फाउन्डेशन पक्के हो गये हैं ना। तो फाउन्डेशन में मेहनत लगती है, अभी फाउण्डेशन अच्छे हैं इसलिये अभी सहज होना चाहिये। तो जो सेवा के फाउण्डेशन निमित्त बनते हैं वो बापदादा के सदा सामने रहते हैं। तो जापान भी अच्छा प्रोग्रेस कर रहा है। अच्छा।
अमेरिका: अमेरिका की भी विशेषता ये है कि अमेरिका में विस्तार बहुत अच्छा किया है। अमेरिका के चारों ओर अच्छेअच्छे सेवास्थान खुले हैं, चल रहे हैं। तो अमेरिका ने विस्तार अच्छा किया है। कोनेकोने में आवाज फैलाया है। एरिया के हिसाब से सबसे ज्यादा सेवाकेन्द्र अच्छी हिम्म्त से खोल रहे हैं और खुलते रहेंगे। तो जैसे अमेरिका देश का विस्तार है ना, तो सेवा का भी विस्तार अच्छा किया है। और हर स्थान में बाप के बच्चे निकल ही आते हैं। चाहे कहाँ थोड़े हैं, कहाँ ज्यादा हैं लेकिन आवाज तो पहुँच गया ना। और दूसरी अमेरिका की विशेषता-ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, उसको प्रसिद्ध करने के लिये यू.एन. के द्वारा अमेरिका ही तो निमित्त है ना। तो अमेरिका, विश्वविद्यालय को, कार्य को सहज प्रत्यक्ष करने के निमित्त बना हुआ है। और जो भी सुनते हैं तो सब आश्चर्य खाते हैं, ब्रह्माकुमारियाँ यू.एन. तक पहुँच गई! तो ये भी विशेष सेवा का साधन है। और साधन बनाने के निमित्त अमेरिका ही है। तो अमेरिका का विस्तार चारों ओर नाम फैलाने में अच्छा आगे बढ़ रहा है। अच्छा।
रशिया: आपके चित्रों में भी रशिया और अमेरिका विशेष दिखाया हुआ है। एक बिल्ला बिचारा कमज़ोर हो गया है। लेकिन रशिया वालों ने, जो एक भाग सेवा का रहा हुआ था वो भाग पूरा कर लिया। और हिम्मत है इन्हों की जो इकॉनॉमी डाउन होते हुए भी ये स्वयं डाउन नहीं होते। हिम्मत नहीं हारते। फिर भी देखो इतना ग्रुप पहुँच जाता है। समाचार सुनो तो कहते हैं बड़ा मुश्किल है, बड़ा मुश्किल है फिर ग्रुप भी पहुँच जाता है। इसको कहा जाता है सच्ची दिल पर साहब राजी। कहाँ न कहाँ से पहुँचने की हिम्मत अच्छी रखते हैं। नम्बर पीछे नहीं हटते। और भी अगर संख्या मिल जायेगी तो आ जायेंगे। तो इकॉनॉमी होते हुए एकनामी में होशियार हैं। इकॉनॉमी की परवाह नहीं करते लेकिन एकनामी बनने में आगे बढ़ते हैं। तो अच्छा है, बापदादा का नाम बाला करने में सहयोगी हैं, स्नेही हैं और सदा आगे बढ़ते रहेंगे।
भारत: अच्छा, भारत तो पहले है, विदेश वाले भारत में ही तो आये हैं। लेकिन हैं भारतवासी। भारतवासी हो या विदेशी? असली तो भारतवासी हो ना? ये तो सेवा के लिये गये हो। ओरिजनल आत्मा के संस्कार कौनसे हैं? विदेश के या भारत के कि विदेश का कल्चर अलग है? पहले बहुत कहते थे, पहले विदेशियों की ये कम्पलेन आती थी, कि विदेशियों का कल्चर और है, भारत का कल्चर और है। अभी परिवर्तन हो गया है। अभी ऐसी कम्पलेन कोई बिरले की आती है। अभी बदल गये हैं, अभी संस्कार इमर्ज हो गये हैं, कि मुश्किल लगता है भारत का कल्चर? मुश्किल तो नहीं लगता? तो भारत वालों की विशेषता है सदा डबल विदेशियों की मेहमान निवाजी करना। आने और जाने वाले को भी मेहमान कहा जाता है। ऐसे तो मालिक हो लेकिन आते हो और जाते हो तो उस हिसाब से मेहमान भी हो। बापदादा भी मेहमान होकर आता है। तो बापदादा भी भारत का मेहमान हो गया ना! विदेश का मेहमान बना? नहीं बना। भारत के ही मेहमान बने। तो भारत की विशेषता है कि भगवान भी भारत में ही मेहमान होकर आते हैं और आप सभी को राज्यभाग्य भी भारत वाले देंगे ना। भारत में महल बनायेंगे या विदेश में? कहाँ महल बनायेंगे? भारत में बनायेंगे ना? तो देखो, भारत कितना बड़े दिल वाला है। जो भगवान को भी मेहमान बना सकते हैं वो कितने बड़े हो गये। तो भारत की विशेषता है एक तो सभी की बड़े दिल से मेहमान निवाजी करते हैं और दूसरा भारत स्थापना के निमित्त है। अगर भारत की बहनें विदेश सेवा में नहीं जातीं तो आप लोग कैसे आते? विदेश सेवा के अर्थ भारत की बहनें निमित्त बनी ना। तो भारत स्थापना के निमित्त है। और भारत ही आप सबको राज्य के साथी बनाने के निमित्त है। पहले आपको महल देंगे, पहले आपको रखेंगे। भारत फ्रीखदिल है, ‘पहले आप’ करने वाले हैं। ‘मैंमैं’ करने वाले नहीं हैं। भारत सदा ही दानपुण्य करने में होशियार है। तो औरों को आगे बढ़ाना ये पुण्य है। अच्छा-
(विदेश से सिन्धी भाईबहिनों का ग्रुप आया है) सिन्धी ग्रुप हाथ उठाओ। यह ब्रह्मा बाप के देश के साथी हैं। तो नजदीक के साथी हो। सिर्फ आये थोड़ा देरी से हो। लेकिन लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट - ऐसे है ना? पीछे रहने वाले नहीं हैं। स्नेह और सहयोग में सिन्धी ग्रुप पहला नम्बर जाता है। बाकी एक बात एड करनी है। तीन शब्द हैं-एक सहयोग, दूसरा स्नेह, तीसरा शक्ति। तो स्नेह और सहयोग में सभी पास हो। अभी शक्ति रूप में थोड़ा और आगे बढ़ना है। शक्ति रूप बनेंगे ना तो राजधानी में भी नम्बर लेंगे। अभी सभी आपको स्नेह की दृष्टि से देखते हैं कि ये देश के साथी हैं, बाबा के देश के साथी हैं। अभी शक्ति रूप बनने से और सिन्धियों को सहज जगायेंगे। अभी स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो। शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ, कि इतनी शक्ति आ गई है। धारणा की शक्ति, चलने की शक्ति। अभी ये एड करना है। बाकी बापदादा को पसन्द हो, अच्छे लगते हो। अच्छा। एकएक कम से कम कितनों को जगायेंगे? एक दीपक कितनी दीपमाला बनायेंगे? (लाखों की! ) वाह! अच्छी हिम्मत रखी है! हजार भी नहीं, लाख। मुख में गुलाब जामुन। अच्छा है और ये तो जरूर है कि एक आता है तो अनेकों का वायुमण्डल बदलता है। चाहे आने में देरी करते हैं लेकिन वायुमण्डल तो बदलता ही है। वायुमण्डल बदल रहा है ना? अभी अच्छाअच्छा सब कहने लगे हैं। अच्छा बनने की हिम्मत नहीं है लेकिन अच्छा है, यहाँ तक तो पहुँचे हैं ना? पहला कदम तो हुआ है, धरनी तो बनी है ना। अभी और बीज डालकर फल निकालना। अभी जहाँ तहाँ देखने में आता है ये वायुमण्डल बदलता जाता है। पहले आना नहीं चाहते थे, अभी आना चाहते हैं लेकिन यहाँ से मना होती है। फर्क तो पड़ गया ना। आप लोग आते हैं, सुनाते हैं तो दूसरे भी कहते हैं ना कि हमको भी ले चलना, हमको भी ले चलना। तो फर्क आ गया ना। अभी माला तैयार करके आना। अभी दूसरी बारी आओ तो माला तैयार करके आयेंगे या कंगन तैयार करके आयेंगे? (माला) माला तैयार करके आयेंगे। अच्छा है, हिम्मते बच्चे मददे बाप। सदा मददगार है बाप। सिर्फ हिम्मत का एक कदम बढ़ाओ और बाप हजार कदम बढ़ाने के लिये बंधा हुआ है। बाप को भी बांधने वाले हो ना। स्नेह की रस्सी में बांधने में होशियार हो। अच्छा! बाप को शुद्ध दिल वाले प्रिय लगते हैं और बाप आपको प्रिय लगता है-ऐसे? जादू तो नहीं लग गया। यह जादू फायदे वाला है, नुकसान वाला नहीं। तो अच्छी तरह से जादू लगा? थोड़ा तो नहीं लगा जो वहाँ उतर जाये। जादू माना परिवर्तन। तो परिवर्तन हो ही गया ना। इस जादू से खुश हो ना, घबराते तो नहीं हो?
सभी चैरिटी बिगन्स एट होम सिद्ध करने वाले बने हो। नहीं तो जब ये सेवा करते हैं तो सभी लोग पूछते हैं-सिन्धी लोग क्यों नहीं आते? तो आप कहेंगे आते हैं ना, तो सहयोगी बन गये ना। टूलेट में नहीं आये, लेट में आये। फिर भी लक्की हैं। (सभी हंसते हैं) अच्छा है रोते तो नहीं हैं ना। लोग तो रूलाते हैं, आप हंसाते हो तो अच्छा है ना। रोने वाले को भी हंसा दो। परवाह नहीं करो, हंसने दो। फिर ये हंसने वाले आपको नमस्कार करने वाले हैं। आज हंसते हैं, कल नमस्कार करेंगे। अच्छा!
दुबई - अच्छा, गुप्त सेवाधारी। अननोन बट वेरी वेल नोन। राज्य के हिसाब से गुप्त रूप में सेवा कर रहे हैं और अविनाशी रत्न हैं, चाहे कितनी भी हलचल हो जाये लेकिन अविनाशी रत्न होने के कारण अचल हैं। गुप्त में भी आगे बढ़ रहे हैं। दुबई वाले पक्के हैं ना! हिलने वाले तो नहीं है ना? तो अच्छी हिम्मत रखने वाले हैं। इसीलिये बापदादा की स्पेशल मदद और मुबारक। अच्छा!
नया वर्ष मनाया कि 12 बजे मनायेंगे? आपकी तो हर घड़ी नई है ना कि 12 बजे नया होगा? हर घड़ी नई है, हर सेकण्ड नया दिन है। जब भी मनाओ आपके लिये नया वर्ष है। जब युग ही नया है तो नवयुग स्थापन करने वालों का सब नया है कि 12 बजे नया होगा? आपके लिये नया है ना। क्योंकि आप नये बन गये ना! वो तो घण्टा बजायेंगे। अभी 12 घण्टे बजा दो इसमें क्या है? अच्छा!
चारों ओर के नवयुग के राज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन के निमित्त विशेष आत्माओं को, सदा पुरूषार्थ में नवीनताश्रेष्ठता लाने वाले सर्व स्नेही आत्माओं को, सदा बाप का नाम प्रत्यक्ष करने वाले सपूत आत्माओं को, सदा ‘मेरा’ और ‘मैं’ को यथार्थ भाव और अर्थ में लाने वाले सहजयोगी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अच्छा, चारों ओर के न्यु वर्ष के कार्ड बहुत आये। वैसे तो कार्ड खरीद करते हो और बापदादा के पास पहले ही आपकी मुबारक पहुँच जाती है। कार्ड में लिखने के पहले बाप के दिल में लिख जाती है। लेकिन फिर भी सुहेज मनाने के लिये भेज देते हैं। तो बापदादा सभी देशय्विदेश के न्यु वर्ष के पत्र वा कार्ड भेजने वालों को विशेष पदमगुणा मुबारक के साथ सदा उड़ने वाले और उड़ाने वाले, सदा सहज विश्व परिवर्तक बनने वाले, इस स्वरूप से पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं-मुबारक हो! मुबारक हो! !
दादी जी से - आपके संकल्प पूरे हो रहे हैं ना! अच्छा है, जो निमित्त बनता है उसको टचिंग होती है। ब्रह्मा बाप के समान हो। ब्रह्मा बाप को नींद आती थी क्या? तो निमित्त बनने वालों को निमित्त बनने के कारण संकल्प अच्छे आते ही हैं। अच्छा है, आपके सहयोगी भी अच्छेअच्छे हैं। आदि रत्नों का ग्रुप अच्छा है। फाउण्डेशन जो होते हैं, फाउण्डेशन के पिल्लर्स अगर मजबूत होते हैं तो चाहे कितना भी कोई हिलाये, अगर पिल्लर्स पक्के हैं तो सब सहज होता है। (दादियों से) बापदादा आप निमित्त पिल्लर्स का ग्रुप देखकर खुश होता है। मजबूत पिल्लर हैं ना? हिलने वाले हैं ही नहीं। चाहे कितना भी कोई पिल्लर को हिलावे लेकिन अविनाशी हैं। अच्छा है, भारत और विदेश दोनों ही सेवास्थान और सेवा में रेस कर रहे हैं। एडवांस मुबारक हो। जो सेवा कर रहे हैं उन्हों को विशेष यादप्यार देना। अच्छा है। क्या नहीं हो सकता! जो चाहे वो कर सकते हैं। (आप जो चाहे करा सकते हो) और बच्चे निमित्त बन सकते हैं। अच्छे हैं, चारों ओर के, चाहे देश, चाहे विदेश, लेकिन सहयोगी बहुत अच्छे हैं। और समय पर सहयोगी बनने के कारण, जो समय पर सहयोगी होते हैं-उनको एक का पदमगुणा फल मिल जाता है। स्थान अपना साधन लेकर आता है। ज्ञान सरोवर का देखकर समझते हो ना, इतना कैसे होगा, क्या होगा, लेकिन सहज बढ़ता जाता है, होता जाता है। प्रैक्टिकल सभी ब्राह्मणों की अंगुली उमंगउत्साह से पड़ रही है इसीलिये सहज हो रहा है। खर्चा भी खूब हो रहा है और सहयोग भी खूब मिल रहा है, मिलता रहेगा। अभी आगे भी तो सहयोग देना है या मकान बन गया, बस। (अभी दादी को मेला करना है) मेला तो उसके आगे कुछ भी नहीं है। वो तो सहज है। ये करोड़ों की बात है वो लाखों की बात है। फर्क है ना! अच्छा है, जो कार्य हो जाये और जितना तुरन्त हो जाये उतना अच्छा है।
(12 बजे रात तक भाईबहिनों ने खूब गीत गाये फिर बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष (1995 की मुबारक दी)
चारों ओर के सभी बच्चों को नये वर्ष की पदम पदम पदम गुणा मुबारक हो। इस नये वर्ष में यही दृढ़ संकल्प करो कि सदा खुश रहेंगे और सभी को दिलखुश मिठाई बांटेंगे। कैसी भी परिस्थिति हो, परिस्थिति चली जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। कोई आपको दु:ख देने की बातें भी करे लेकिन हम सदा सुख देंगे, सुख लेंगे-इस दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ नये वर्ष को आरम्भ किया? तो पुरानी बातों को, पुरानी दुनिया की बातों को विदाई दी? वापस तो नहीं लेंगे? तो सदा विदाई की बधाइयाँ हो, मुबारक हो। अच्छा!
09-01-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
निश्चयबुद्धि की निशानियाँ - निश्चित विजयी और सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव
आज सर्व बच्चों के रक्षक और शिक्षक बापदादा अपने सभी ब्राह्मण बच्चों के फाउण्डेशन को देख रहे थे। ये तो सभी जानते हो कि वर्तमान श्रेष्ठ जीवन का फाउण्डेशन निश्चय है। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होती है। हर समय चलन और चेहरे से उनकी झलक अनुभव होती है क्योंकि ब्राह्मण जीवन में सिर्फ जानना नहीं है कि ‘मैं ये हूँ और बाप ये है’, लेकिन जानने का अर्थ है जो जानते हैं वो मानना और चलना।
बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ब्राह्मण कहलाते हैं वो सभी ये फलक से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं। तो बापदादा सभी निश्चयबुद्धि बच्चों से पूछते हैं, जब आप सभी कहते हो कि हम निश्चयबुद्धि विजयी हैं तो कभी विजय, कभी हार क्यों होती है? जब कभीकभी थोड़ी हलचल होती है तो क्या उस समय निश्चय खत्म हो जाता है? जब निश्चयबुद्धि सदा हो तो विजयी सदा हो कि बीचबीच में घुटका और झुटका होता है? निश्चय का फाउण्डेशन चारों ओर से मजबूत है या चारों ओर के बजाय कभी एक ओर कभी दो ओर ढीले हो जाते हैं? कोई भी चीज़ को मजबूत किया जाता है तो चारों ओर से टाइट किया जाता है ना। अगर एक साइड भी थोड़ासा हलचल वाला हो तो हिलेगा ना! तो चारों प्रकार का निश्चय अर्थात् बाप में, आप में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय। ये चार ही तरफ के निश्चय को जानना नहीं लेकिन मानकर चलना। अगर जानते हैं लेकिन चलते नहीं हैं तो विजय डगमग होती है। जिस समय विजय हलचल में आती है, तो चेक करना कि चारों तरफ से कौनसा तरफ हलचल में है? बापदादा देखते हैं कि कई बच्चों को बाप में पूरा निश्चय है, इसमें पास हैं लेकिन अपने आपमें जो निश्चय चाहिए उसमें अन्तर पड़ जाता है। जानते भी हैं, कहते भी हैं कि मैं ये हूँ, मैं ये हूँ, लेकिन जो जानते हैं, मानते हैं वो स्वरूप में, चलन में, कर्म में हो-इसमें ही अन्तर पड़ जाता है। एक तरफ सोचते हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ, विश्व कल्याणकारी हूँ, दूसरे तरफ छोटीसी परिस्थिति पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान् लेकिन ये परिस्थिति बहुत बड़ी है, ये बात ही ऐसी है! तो क्या ये निश्चय है कि सिर्फ जानना है लेकिन मानकर चलना नहीं? कहते वा सोचते हैं कि मैं विश्व कल्याणकारी हूँ लेकिन विश्व को तो छोड़ो, स्व कल्याण में भी कमज़ोर होते हैं। अगर उस समय उन्हें कहो कि क्या स्वयं को परिवर्तन कर स्व कल्याणकारी नहीं बन सकते? तो जवाब देते हैं कि हैं तो विश्व कल्याणकारी लेकिन स्व कल्याण बहुत मुश्किल है! ये बात बदलना मुश्किल है! तो विश्व कल्याणकारी कहेंगे या कमज़ोर? तो स्व में भी परिस्थिति प्रमाण, समय प्रमाण, सम्बन्धसम्पर्क प्रमाण निश्चय स्वरूप में आये, ऐसे निश्चय बुद्धि की विजय हुई ही पड़ी है। जैसे सभी को ये पक्का निश्चय है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, इसके लिए कोई दुनिया के वैज्ञानिक भी आपको हिलाने की कोशिश करें कि आत्मा नहीं शरीर हो, तो मानेंगे नहीं और ही उसको मनायेंगे। तो जैसे ये पक्का है कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौनसी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है। और ये भी निश्चित है कि बातें भी अन्त तक आनी हैं। लेकिन उसमें विजयी बनने के लिए एक ही समय पर चारों ही तरफ का निश्चय पक्का चाहिये। तीन में निश्चय है और एक में नहीं है तो विजय निश्चित नहीं है लेकिन मेहनत से विजय होगी। निश्चित विजय वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
कई बार कई कहते हैं बापदादा तो बहुत अच्छा, वो तो पक्का है कि बाप है और हम बच्चे हैं, हमारा बाप से ही सम्बन्ध है लेकिन दैवी परिवार में खिटखिट होती है, उसमें निश्चय डगमग हो जाता है इसीलिये परिवार को छोड़ देते हैं, हल्का कर देते हैं। तो एक साइड ढीला हो गया ना। बिना परिवार के माला में कैसे आयेंगे? माला कब बनती है? जब दाना दाने से मिलता है और एक ही धागे में पिरोये हुए होते हैं। अगर अलगअलग धागे में अलग अलग दाना हो तो उसको माला नहीं कहेंगे। तो परिवार है माला। अगर परिवार को छोड़कर तीन निश्चय पक्के हैं तो भी विजय निश्चित नहीं है। चलो परिवार की खिटखिट से किनारा कर लो, बाप का सहारा हो, परिवार का किनारा हो, तो चलेगा? काम तो बाप से है या भाइयों से है? बाप से काम है, वर्सा बाप से मिलना है, भाईबहनों से क्या मिलेगा? लेकिन ब्राह्मण जीवन में यही न्यारापन है कि धर्म और राज्य दोनों की स्थापना होती है, सिर्फ धर्म की नहीं। और धर्म पितायें सिर्फ धर्म की स्थापना करते हैं, बाप की विशेषता है धर्म और राज्य की स्थापना करना। तो राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा तख्त भी हो, ताज भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो राजधानी अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार। इसलिए ब्राह्मण परिवार में हर परिस्थिति में निश्चयबुद्धि, तब राज्यभाग्य में भी सदा राज्य अधिकारी होंगे। तो ऐसे नहीं समझना-कोई बात नहीं, परिवार से नहीं बनती है, बाप से तो बनती है! ड्रामा अगर भूल जाता है तो बाप तो याद रहता ही है! लेकिन कोई भी कमज़ोरी एक ही समय पर होती है, स्व स्थिति अर्थात् स्वय्निश्चय भी अगर कमज़ोर होता है तो विजय निश्चित के बजाय हलचल में आ जाती है। तो बापदादा निश्चय के फाउण्डेशन को चेक कर रहे थे। क्या देखा?
सदा चार ही प्रकार का निश्चय एक समय पर साथ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। फिर सोचते हैं-होना तो ये चाहिये लेकिन पता नहीं क्यों नहीं हुआ? किया तो बहुत मेहनत, सोचा तो बहुत अच्छा.... लेकिन सोचना और होना इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसका अर्थ ही है कि निश्चय के चारों तरफ मजबूत नहीं हैं। और हंसी की बात तो ये है कि ड्रामा भी कह रहे हैं, है तो ड्रामा, है तो ड्रामा.... लेकिन अच्छी तरह से हिल भी रहे हैं। कभी संकल्प में हिलते, कभी बोल तक भी हिल जाते, कभी कर्म तक भी आ जाते। उस समय क्या लगता होगा, दृश्य सामने लाओ, ड्रामाड्रामा भी कह रहे हैं और हिलडुल भी रहे हैं! लेकिन निश्चयबुद्धि की निशानी है निश्चित विजयी। अगर विधि ठीक है तो सिद्धि प्राप्त न हो, ये हो नहीं सकता। तो जब भी कोई भी कार्य में विजय प्राप्त नहीं होती है तो समझ लो कि निश्चय की कमी है। चारों ओर चेक करो, एक ओर नहीं।
और बात, निश्चयबुद्धि की निशानी जैसे निश्चित विजय है वैसे निश्चिन्त होंगे। कोई भी व्यर्थ चिन्तन आ ही नहीं सकता। सिवाए शुभ चिन्तन के व्यर्थ का नामय्निशान नहीं होगा। ऐसे नहीं, व्यर्थ आया, भगाया। निश्चयबुद्धि के आगे व्यर्थ आ नहीं सकता। क्योंकि क्यों, क्या, और कैसे-ये व्यर्थ होता है। जब ड्रामा के राज को जानते हैं, आदिमध्यअन्त को जानने वाले हैं तो जो ड्रामा के आदिमध्यअन्त को जानने वाले हैं वो छोटीसी बात के आदिमध्यअन्त को नहीं जान सकते! न जानने के कारण क्यों, क्या, कैसे, ऐसे-ये व्यर्थ संकल्प चलते हैं। अगर ड्रामा में अटल निश्चय है, नॉलेजफुल भी हैं, पॉवरफुल भी हैं तो व्यर्थ संकल्प हिलाने की हिम्मत भी नहीं रख सकते। परन्तु जब हिलते हैं तो सोचते हैं पता नहीं क्या हो गया! तो बापदादा हंसते हैं कि ड्रामा के आदिमध्यअन्त को जान लिया, अपने 84 जन्म को जान लिया और एक बात को नहीं जानते! बड़े होशियार हो! होशियारी दिखाते हो ना समय प्रति समय! कल्प वृक्ष के सभी पत्तों को जानते हो कि नहीं? सभी वृक्ष के फाउण्डेशन में बैठे हो या 7-8 बैठे हैं? तो जड़ में बैठे हुए वृक्ष को जानते हो? पत्तेपत्ते को जानते हो और ये पता नहीं कैसे? तो निश्चय की निशानियाँ निश्चिन्त स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको निश्चिन्त नहीं कहेंगे। और फिर बाप के आगे ही फरियाद करते हैं-आप मददगार हो ना, आप रक्षक हो ना, आप ये हो ना, आप ये हो ना....। फरियाद करना अर्थात् अधिकार गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् निश्चिन्त। तो ये प्रैक्टिकल निशानियाँ अपने आपमें चेक करो। ऐसे अलबेले नहीं रह जाना-हम तो हैं ही निश्चयबुद्धि। कौनसा निश्चय कमज़ोर है वो चेक करो और चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। बापदादा ने कहा था ना चेकर के साथ मेकर भी हो। सिर्फ चेकर नहीं। चेक करने का अर्थ ही है सेकण्ड में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में दिलशिकस्त के संस्कार पक्के होते जायेंगे और जो बहुतकाल के संस्कार हैं वही अन्त में अवश्य सामना करते रहेंगे। कोई सोचे अन्त में तो मैं सिवाए बाप के और कुछ नहीं सोचूँगा। लेकिन हो नहीं सकता। बहुतकाल का अभ्यास चाहिये। नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा शिवबाबा.... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी। यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे। और कोई यमदूत नहीं आते हैं, ये व्यर्थ संकल्प अपनी कमज़ोरियाँ, यही यमदूत के रूप में आते हैं। यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और दूसरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से पार हो जायेंगे। कोई विमान आदि नहीं हैं लेकिन उड़ती कला का अनुभव है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक?
अच्छा - आज मधुबन निवासियों का भी टर्न है। मधुबन वालों से तो विशेष बापदादा का स्नेह है। सबसे है लेकिन फिर भी थोड़ासा विशेष मधुबन निवासियों से है क्योंकि निमित्त हैं। फिर भी देखो आप आते हैं, खातिरी तो ठीक करते हैं ना। मधुबन वाले खातिरी करने में पास हैं ना। मेहमानय्निवाजी करना ही महानता है। जिसको मेहमानय्निवाजी करना आता है, वो महान हो ही जाता है। सिर्फ खानेपीने से नहीं लेकिन दिल के स्नेह की मेहमानय्निवाजी, वो सबसे श्रेष्ठ है। चाहे पिकनिक कितनी भी वरा लो लेकिन दिल का स्नेह नहीं मिला तो कहेंगे कुछ नहीं मिला। तो मधुबन वाले दिल के स्नेह सहित मेहमानय्निवाजी करते हैं। करते हो ना कि कोई नीचेऊपर करेंगे तो कहेंगे बापदादा ने ऐसे ही कहा? ऐसे नहीं करना। स्नेह के सागर के बच्चे हो ना, कब तक स्नेह देंगे? नहीं। गागर के बच्चे नहीं, सागर के बच्चे, बेहद।
सबके पास स्नेह का स्टॉक है ना? माताओं के पास भी है, कुमारियों के पास भी है, पाण्डवों के पास भी है। सागर है या थोड़ा है? तो कभी क्रोध तो नहीं करते होंगे ना? जब स्नेह के सागर हैं तो क्रोध कहाँ से आया? किसके संस्कारों को जानकर सेटिस्फाय करते हो ना। चाहे वो रांग है लेकिन आप तो नॉलेजफुल हो ना, आप तो जानते हो ना कि ये क्या है लेकिन उस समय क्या कहते हैं-इसने ऐसे किया ना, इसीलिये हमने भी किया। रांग से रांग हो गया तो क्या कमाल की? उसने रांग किया और आपने उसका रेसपॉन्ड भी रांग ही दिया। कई कहते हैं ना क्रोध एक बारी करते हैं तो कुछ नहीं होता, बारबार करता रहता है! तो जानते हो कि जिसका स्वभाव ही क्रोध का है तो वो क्रोध नहीं करेगा तो क्या करेगा? उसका काम है क्रोध करना और आपका काम है स्नेह देना या क्रोध करना? वो 10 बारी करे तो आप एक बारी तो जवाब देंगे ना? नहीं देंगे तो वो 20 बारी करेगा, फिर क्या करेंगे? तो इतनी सहनशक्ति है या उसने 10 किया, आपने आधा किया कोई हर्जा नहीं? उसने झूठ बोला, आपने क्रोध किया, तो क्या ठीक हुआ? फिर बड़े बहादुरी से कहते हैं-झूठ बोला ना, इसीलिये क्रोध आ गया। लेकिन झूठ बोलना तो अच्छा नहीं लगा और क्रोध करना अच्छा है! तो स्नेह के सागर के मास्टर स्नेह के सागर। मास्टर स्नेह के सागर के नयन, चैन, वृत्ति, दृष्टि में जरा भी और कोई भाव नहीं आ सकता। यदि थोड़ाथोड़ा जोश आ गया तो क्या उसको स्नेह का सागर कहेंगे कि लोटा है? चाहे कुछ भी हो जाये, सारी दुनिया क्यों नहीं आप पर क्रोध करे लेकिन मास्टर स्नेह के सागर दुनिया की परवाह नहीं करेंगे। बेपरवाह बादशाह हो। जो परवाह थी वो पा लिया। अभी इन व्यर्थ बातों से बेपरवाह बादशाह। चेकिंग की परवाह करो, चेंज होने की परवाह करो, लेकिन व्यर्थ में बेपरवाह। कर सकते हो कि बच्चा, पोत्रा, धोत्रा, धोत्री.... थोड़ासा क्रोध करेगा, थोड़ासा नीचेऊपर करेगा, तो स्नेह के बजाय और भावना भी आ जायेगी? दफतर में जायेंगे, बिजनेस में जायेंगे, नौकर ऐसा मिल जायेगा, वायुमण्डल ऐसा मिल जायेगा.... लेकिन व्यर्थ से बेपरवाह बादशाह। समर्थ में बेपरवाह नहीं होना। कई उल्टा भी उठा लेते हैं, जहाँ मर्यादा होगी वहाँ कहेंगे बापदादा ने कहा ना कि बेपरवाह बादशाह बन जाओ। लेकिन मर्यादाओं में बेपरवाह नहीं। आपका टाइटल है मर्यादा पुरूषोत्तम। ये मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं। अगर कदम पर कदम नहीं रखा तो मंज़िल कैसे मिलेगी? ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो। तो ये मर्यादायें ही कदम हैं। अगर इस कदम में थोड़ा भी नीचेऊपर होते हो तो मंज़िल से दूर हो जाते हो और फिर मेहनत करनी पड़ती है। और बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती, कहते हैं सहज योगी और करते हैं मेहनत। तो अच्छा लगता है क्या? अच्छा।
(बापदादा ने ड्रिल कराई) एवररेडी हो? अभीअभी बापदादा कहें सब इकट्ठे चलो तो चल पड़ेंगे? कि सोचेंगे कि फोन करें, टेलीग्राम करें कि हम जा रहे हैं? टेलीफोन के ऊपर लाइन नहीं लगेगी? आपके घर वाले सोचेंगे कहाँ गये फिर? सेकण्ड में आत्मा चल पड़ी-है तो अच्छा ना कि याद आयेगा कि अभी तो एक सब्जेक्ट में कमज़ोर हूँ? अच्छा, यह याद आयेगा कि चीजों को सिर्फ ठिकाने लगाकर आऊं? सिर्फ इतल्ला करके आऊं कि हम जा रहे हैं? यह सोच थोड़ाथोड़ा चलेगा? नहीं। सभी बंधनमुक्त बनेंगे। अभी से चेक करो कि कोई सोने का, चांदी का धागा तो नहीं है? लोहा मोटा होता है तो दिखाई देता है लेकिन ये सोना और चांदी आकर्षित कर लेता है। एवररेडी का अर्थ ही है ऑर्डर हुआ और चल पड़ा। इतना मेरेपन से मुक्त हो? सबसे बड़ा मेरापन सुनाया ना कि देहभान के साथ देहअभिमान के सोनेचांदी के धागे बहुत हैं। इसलिये सूक्ष्म बुद्धि से, महीन बुद्धि से चेक करो कि कोई भी अल्पकाल का नशा ये धागा बन करके रोकने के निमित्त तो नहीं बनेगा? मोटी बुद्धि से नहीं सोचना कि मेरा कुछ नहीं है, कुछ नहीं है। फॉलो करने में सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। सर्व प्रति गुणग्राहक बनना अलग चीज़ है लेकिन फॉलो फादर। कई हैं जो भाईबहनों को फॉलो करने लगते हैं लेकिन वो फॉलो किसको करते हैं? वो फॉलो ब्रह्मा बाप को करते हैं और आप फिर उनको करते! डायरेक्ट क्यों नहीं करते? सभी ब्रह्मा कुमार हो ना? कि फलाने भाई कुमार, फलानी बहन कुमार? यह तो नहीं? फॉलो फादर गाया हुआ है या फॉलो ब्रदर्स सिस्टर? विशेषता देखो, लेकिन फॉलो फादर। रिगार्ड रखो लेकिन गाइड एक बाप है। कोई भाईबहन गाइड नहीं बन सकता। गाइड एक है। गॉड गाइड है और साकार एग्जाम्पल ब्रह्मा बाप है। बस। तो फॉलो फादर करते हो कि सोचते हो कि ब्रह्मा को तो देखा ही नहीं, जाना ही नहीं, तो कैसे फॉलो करें? जानते नहीं हो, देखा नहीं है? टीचर्स को देखा, भाईबहनों को देखा, बाप को देखा ही नहीं-ऐसे तो नहीं सोचते? कोई भी निमित्त हैं लेकिन निमित्त बनाया किसने? अपने आप ही तो निमित्त नहीं बने ना? बाप ने बनाया। तो फिर बाप याद आयेगा ना?
अच्छा। सभी अच्छी तरह से सेट हो गये हैं। सोनाखाना ठीक है? कि बहुत दूर कोने में भेज दिया है? भक्ति मार्ग में तो यात्राओं में कितना पैदल करते हो और आप अगर दूर भी रहते हो तो लेने के लिए बस आती है। आराम से आते हो ना? और ब्रह्मा बाप के आगे तो यह कोचकुर्सियाँ भी नहीं थी। अभी तो देखो, कोच और कुर्सियों वाले हो गये। कितने आराम से बैठे हो। बापदादा भी जानते हैं कि पुराने शरीर हैं तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सा मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा। सब आराम से रहे हुए हो कि खटिया चाहिये? घरों में तो खटिया पर सोते हो ना, यहाँ भी खटिया मिली तो क्या बात हुई! चेंज चाहिये ना। चेंज के लिये कितना खर्चा करके जाते हैं। वहाँ खटिया पर सोते हो, यहाँ पट पर सोते हो, चेंज हो गई ना। ये तो सुना दिया कि जितना साधन बढ़ायेंगे उतनी संख्या डबल, ट्रिबल बढ़ेगी। तो ये तो चलना ही है। अभी ज्ञान सरोवर बना रहे हैं फिर दूसरे वर्ष कहेंगे ज्ञान सरोवर छोटा हो गया। ये तो होना ही है। क्योंकि सेवा को समाप्त भी करना है या चलते रहना है? सम्पन्न करके समाप्त करना है। तो सम्पन्न तब होगी जब कम से कम 9 लाख की माला बनाओ। अच्छा।
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल अच्छा, ये कितनी माला लायेंगे? लाख, दो, तीन, कितनी? (4 लाख) 4 लाख लायेंगे! फिर तो अच्छा है, और जोन मौज मनाये और पंजाब माला बनाये। अच्छा, ऐसा कौनसा जोन है जो अभी 50 हजार तक पहुँचा हो? कोई भी जोन में 50 हजार नहीं हैं। तो कम से कम हर जोन 50 हजार तो बनाये। पंजाब की संख्या कितनी है? (12 हजार) अच्छी बात है, 4 लाख का लक्ष्य रखा है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू कश्मीर 4 तो हैं, तो चार एकएक लाख बनाये तो क्या बड़ी बात है। लेकिन कब तक बनायेंगे? सतयुग के आदि तक या अभी? पंजाब वाले समीपता को समीप लाने वाले हैं। सम्पूर्णता समीपता का आधार है। तो पंजाब की विशेषता है स्वयं को सम्पूर्ण बनाये अन्तिम समय को समीप लाने वाले। हिम्मत है? जितना जितना स्वयं को सम्पन्न बनाते जायेंगे उतना सम्पूर्णता और समीपता नजदीक आ जायेगी। तो सदा समीप रहने वाले और सदा समय को समीप लाने वाले। देखो, पंजाब वालों ने एक विजय तो प्राप्त कर ली, वायुमण्डल को परिवर्तन कर लिया। आतंकवादियों का वायुमण्डल तो बदला अभी अंत लाने में भी इतने बहादुर बनो। पंजाब माना बहादुर। शरीर में भी, आत्मा में भी। तो सदा यह याद रखना कि-सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाने वाले हैं, समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। जो बाप समान होंगे वो ही समीप रहेंगे । तो ऐसे समीप रहने वाली आत्मायें हो। इसी स्मृति के समर्थी से सदा आगे बढ़ते चलो। समझा? अच्छा!
बाम्बे, नागपुर, पूना, जलगांव (महाराष्ट्र) - महाराष्ट्र वाले कितनी माला तैयार करेंगे? (5 लाख) महाराष्ट्र में बाम्बे भी है और बाम्बे को नरदेसावर का टाइटल है तो सिर्फ पैसे में थोड़ेही नरदेसावर होंगे, माला के मणके बनाने में भी नरदेसावर। तो महाराष्ट्र पांच लाख बनायेंगे! कोई ख्याल नहीं करना कि 9 लाख तो पूरे हो गये! पंजाब वाले चार लाख लायेंगे और महाराष्ट्र पांच लाख लायेगा। फिर छांट छूट भी तो होगी ना? कोई त्रेता की प्रजा होगी, कोई सतयुग की होगी, इसलिये इतने भले बनाओ। महाराष्ट्र की महानता अर्थात् सदा विजयी। महानता है ही विजय में। तो सदा निर्विघ्न स्थिति द्वारा सदा विजयी आत्मायें। विजय निश्चित है ऐसे निश्चय बुद्धि विजयी। क्योंकि आप विजयी नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा? बनना ही है। तो महाराष्ट्र प्रजा भी महान बनायेंगे। छोटीमोटी नहीं बनाना। और पंजाब बहादुर बनाना, कमज़ोर नहीं।
कर्नाटक - अच्छा कर्नाटक वाले कितनी माला बनायेंगे? (दो लाख) अच्छा है, कर्नाटक वालों को स्नेह का जादू बहुत जल्दी लगता है। ज्ञान समझे, नहीं समझे, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। भाषा के कारण ज्ञान समझेंगे आधा, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। देखो, स्नेह की निशानी है कि सेन्टर बहुत खोलते जाते हैं, सिर्फ एडीशन ये करना कि निर्विघ्न प्रजा बनानी है और निर्विघ्न राजधानी बनानी है। तो कर्नाटक वालों को क्या याद रखना है-निर्विघ्न राज्य अधिकारी और निर्विघ्न साथी बनाना। वृद्धि में बहुत अच्छे हैं लेकिन सिर्फ बैलेन्स रखना-जितना स्नेह उतना ही निर्विघ्न स्थिति। दोनों के बैलेन्स से सदा स्वत: ही कर्नाटक वालों को ब्लैसिंग मिलती रहेगी। तो कर्नाटक वाले अण्डरलाइन करना-निर्विघ्न वृद्धि। अच्छा।
गुजरात - गुजरात के ऊपर बापदादा का, दादियों का अधिकार बहुत है। कोई भी काम पड़ता है तो गुजरात पर अधिकार रखते हैं। तो गुजरात की विशेषता क्या हुई? सेवा में भी अधिकारी। जो सेवा में अधिकारी हैं वो राज्य में तो अधिकारी बनेंगे ही। देखो, सेवा में हाँ जी, हाँ जी करते हैं तो राज्य में क्या होगा? जी हजूर, जी हजूर। तो सहयोग देने में नम्बरवन हैं क्योंकि ड्रामानुसार नजदीक का भाग्य मिला हुआ है। अभी अगर गुजरात को कहें कि सभी भले एकएक बस तैयार करके पहुँच जायें तो कितनी बसें आयेंगी? बहुत आ जायेंगी ना! तो एवररेडी संख्या तो है ना! महाराष्ट्र को, दूर वालों को बुलाओ तो दूर के कारण मुश्किल होता है। लेकिन गुजरात को तो भाग्य है। और सेवा में जिम्मेदारी उठाने वाले भी अच्छेअच्छे हैं। पूछपूछ करने वाले नहीं हैं। जिम्मेदारी उठाने में अच्छे हैं। तो ये भी ड्रामा में भाग्य स्वत: ही प्राप्त है, जो रेडी हो जाते हैं, जितनों को ऑर्डर करते हैं आ जाते हैं। (दादी से) अभी देखो मेले के लिए आप निश्चिन्त हो ना। क्योंकि गुजरात ने जिम्मेदारी उठाई। तो बापदादा भी जिम्मेदारी का ताज पहनने वाले बच्चों को देखकर खुश होते हैं।
भोपाल - भोपाल की संख्या कितनी है? (5 हजार) बहुत थोड़ी है। तो क्या करेंगे? पांच हजार के आगे एक बिन्दी लगायेंगे। अच्छी प्रजा लायेंगे ना! अच्छा है, सदा विधि द्वारा सहज वृद्धि को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें। जल्दी वृद्धि को प्राप्त करेंगे ना? फिर भी सेवा के साधन अच्छे हैं। अगर दोचार माइक तैयार कर लो तो बिन्दी लगना कोई मुश्किल नहीं होगी और चांस है। देखो सेन्ट्रल वाले समय मुश्किल देते हैं और स्टेट वाले समय सहज देते हैं, सम्बन्धसम्पर्क में सहज आ सकते हैं इसलिये माइक तैयार करो। तो माइक तैयार करने से उनके पीछे अनेक आत्मायें सहज आ जाती हैं। एक के आवाज से अनेकों का कल्याण हो सकता है। उन्हों को सिर्फ स्नेही, सम्पर्क वाले नहीं बनाओ लेकिन नजदीक सम्बन्धी बनाओ। तो भोपाल वाले माइक तैयार करके लायेंगे? कि हुए ही पड़े हैं? ला सकते हो, मार्जिन अच्छी है। सम्बन्ध है लेकिन थोड़ा और सम्बन्ध नजदीक का हो। तो सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि को प्राप्त करने वाले। समझा, क्या विशेषता है? सहज वृद्धि करने वाले। अच्छा।
राजस्थान - राजस्थान में आबू वाले भी हैं कि अलग हैं? ये सेन्ट्रल है, वो सेन्टर है। मुख्य केन्द्र राजस्थान में है, ये तो कमाल है राजस्थान की। लाइट हाउस तो राजस्थान में ही हुआ ना। अभी सेन्ट्रल में हो गया लाइट हाउस और सेन्टर्स पर क्या है? लाइट है या लाइट हाउस है? जयपुर लाइट है या लाइट हाउस है? कितनी जगह लाइट दिया है? लाइट हाउस का काम क्या होता है? चारों ओर लाइट देना या सिर्फ आसपास लाइट देना? चारों ओर लाइट देते हैं ना। तो राजस्थान को चारों ओर राजस्थान में लाइट देना है। जगाया तो है, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर.... आदि में जगाया तो है लेकिन अभी लाइट से लाइट हाउस बनाओ। राजस्थान में एक भी एरिया खुश्क नहीं रह जाये। राजस्थान को वैसे कहते हैं बड़ा खुश्क है लेकिन ब्राह्मण जीवन में सबसे हराभरा राजस्थान। जो कहते हैं ना राजस्थान में रेत है तो रेत के बजाए सोने के महल हो जायेंगे। होना तो है ना! तो रेती को सोना बनाओ। राजस्थान क्या करेगा? सोने जैसी आत्मायें तैयार करेंगे और सोने के महल तैयार करेंगे। देखो, देहली में राजधानी बनेगी तो राजस्थान कितना नजदीक है। तो वहाँ भी बनेंगे ना। तो राजस्थान मिट्टी को सोना बनायेगा। इतना उमंग है ना? राजस्थान को परिस्तान बनाने वाले। चारों ओर परिस्तान की खुशबू दिखाई दे। संख्या भी बढ़ाओ और संख्या के साथसाथ माइक भी तैयार करो। हर एक स्टेट के सहज माइक निकाल सकते हैं। चाहे छोटा माइक हो, चाहे बड़ा हो, चलो बड़ा नहीं तो छोटा ही सही। देखो राजस्थान के माइक ने कमाल तो किया ना। आज ज्ञान सरोवर में माइक ने ही काम किया ना। तो हर स्टेट को महाराष्ट्र, कर्नाटक.... जो भी हैं, सभी स्टेट को माइक तैयार करने चाहिये। और एकएक स्टेट के माइक अगर सभी मिल जायेंगे तो संगठन बन जायेगा और संगठन का आवाज सहज फैलेगा। तो राजस्थान वाले माला भी तैयार करना और माइक भी। अच्छा।
आगरा - आगरा वाले क्या करेंगे? जैसे आगरा में मिट्टी का, इंटों का ताजमहल आकर्षित करता है वैसे आगरा में ये प्रसिद्ध हो जाये कि यहाँ ताजमहल तो है लेकिन ताजधारी भी गुप्त वेश में हैं। सिर्फ ताजमहल देखने नहीं आयें लेकिन यहाँ ताजधारी कौन हैं-वो भी देखने आयें। आपको ढूंढे कि कहाँ हैं? इतनी ताजधारी आत्माओं की आकर्षण हो। उन्हों को वायब्रेशन आये कि यहाँ कोई श्रेष्ठ आत्मायें गुप्त हुए वेश में है। जैसे द्वापर में जो ऋषिमुनि सतोप्रधान स्थिति में थे तो दूर से ही प्रभाव पड़ता था ना, ढूँढ करके उन्हों के पास पहुँचाते थे। वो खुद तो नहीं बुलाते थे। तो जब ऋषिमुनि आत्मिक ज्ञान वाले आकर्षित कर सकते हैं तो परमात्म ज्ञानी क्या नहीं कर सकते! तो हर एक अपने को ऐसा ताजधारी अर्थात् जिम्मेदार समझे, कि मेरी जिम्मेदारी है-लोगों को आकर्षित कर बाप का बनाना। अपना नहीं बनाना, बाप का बनाना। तो आगरा वाले यह नवीनता दिखाओ, जो सबकी नजर जाये। समझा? हीरे तैयार करो। ताज में झूठे हीरे हैं ना। आप सच्चे हीरे तैयार करो। अच्छा!
नेपाल - नेपाल को देश भी कहते हैं तो विदेश भी कहते हैं। डबल फायदा उठाते हैं। जब फारेनर्स का टर्न होता तो कहते हैं हम फारेनर्स हैं, जब इण्डिया का टर्न होता है तो कहते हैं हम इण्डियन हैं। डबल चांस लेते हैं। अच्छा है। नेपाल के भी कई लोग भावना वाले बहुत हैं। प्यार से सुनने वाले अच्छे हैं। नेपाल की धरनी में भी भावना अच्छी है। और दूसरी विशेषता देखी है कि ज्यादा बातों में कम जाते हैं, अपने में मस्त रहते हैं। खिटखिट कम करते हैं। इसीलिये वृद्धि भी अच्छी हो रही है और क्वालिटी भी अच्छी है। बहुत अच्छी नहीं कहेंगे लेकिन अच्छी है। नेपाल वालों ने भी माइक नहीं तैयार किया है। सहयोगी हैं, समय पर सहयोग दे देते हैं लेकिन समीपसम्बन्ध में लाने से बुलन्द आवाज होगा। अभी छोटासा आवाज होता है तो सिर्फ नेपाल में ही फैलता है, बस। बुलन्द आवाज करने वाले तैयार करो। अगर हर स्टेट के माइक दोतीन, दोतीन भी तैयार हो जायें तो क्या रौनक नहीं होगी? फिर आप लोगों को सेवा करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप लाइट हो जायेंगे, वो माइक हो जायेंगे। आप सिर्फ लाइट देते रहेंगे। अभी लाइट भी देते हो तो माइक भी बनते हो। फिर माइक वो बनेंगे और आप लाइट देते रहेंगे। तो सेवा में नया मोड़ लाओ। नवीनता लाओ। इसके लिये ये प्रोग्राम रखा है ना कि विदेश से भी हर देश से आवें, यहाँ के भी हर स्टेट से आवें। लेकिन माइक तैयार करो तो माइक की दरबार हो जायेगी। और इतने माइक इकट्ठे हो जायेंगे तो आवाज भी बुलन्द होगा। तो ऐसे नवीनता का प्रोग्राम करो। अभी माइक तैयार करके फिर डेट फिक्स करो। लेकिन कोई भी कोना, कोई भी स्टेट रहनी नहीं चाहिये। अगर कहाँ भी आवाज बुलन्द करना होता है तो चारों ओर माइक लगाते हो ना, चारों ओर माइक लगने से आवाज बड़ा हो जाता है। सभी माइक एक ही आवाज बोलें तो चारों ओर से एक ही आवाज निकलेगा-यही प्रत्यक्षता का झण्डा है। तो अभी तैयारी करो। तो सभी जोन वाले सिर्फ इसमें खुश नहीं होना कि हमको भी वरदान मिला लेकिन जाकर सेवा करना। देहली वालों को पहले करना है। देहली, बाम्बे दोनों ही नाम बाला करने वाले हैं। तो ऐसी कमाल करो जो सबके मुख से यही निकले कि सचमुच परिवर्तक आप ही हो। ये भी हैं, नहीं, ये ही हैं। अभी कहते हैं ये भी हैं, वो भी हैं, ये भी अच्छे हैं। ये ही अच्छे हैं-जब ये आवाज निकले तब झण्डा लहरायेगा। अनेक हैं, नहीं। एक हैं। तो सभी जोन वाले ऐसा करने के लिए तैयार हो ना? कोई मन्सा सेवा करो, कोई वाचा करो। मन्सा सेवा तो सभी कर सकते हो ना? तो वायब्रेशन फैलाओ। वाणी से नहीं तो मंसा से योगदान दो। सबकी अंगुली चाहिये। समझा? अच्छा।
डबल विदेशी - डबल विदेशी अर्थात् दूरदेशी और दूरांदेशी। भारत में जो मैसेज देने वाले होते हैं उनको दरवेश भी कहते हैं। तो डबल विदेशी दूरांदेश बुद्धि वाले अच्छे हैं। दूरांदेश बुद्धि अर्थात् हर परिस्थिति, हर बात को आदिमध्यअन्त तीनों कालों से जानने और देखने वाले। जिसको दूसरे शब्दों में कहेंगे त्रिकालदर्शी। तो जो भी कार्य करें त्रिकालदर्शी होकर करें। एक काल नहीं देखें। तीनों ही कालों को जानने, समझने और समझकर चलने वाले। इसको कहते हैं दूरांदेश बुद्धि, दूरांदेशी दृष्टि। तो जो तीनों काल को जानकर करते हैं वो कभी भी भटकेंगे नहीं। तीनों कालों को जानकर करने वाले सदा ही विजयी होंगे। सहज विजयी। मेहनत के बाद विजयी नहीं। मेहनत करके विजय प्राप्त होती है तो मेहनत में आधा मौज तो खत्म हो जाती है। और जो सहज विजय होती है उसमें नशा, खुशी, मौज-सब होती है। तो डबल विदेशी त्रिकालदर्शी हो? कि एकदर्शी हो? जल्दीजल्दी में एक काल देखकर तो नहीं कर लेते? त्रिकालदर्शी अर्थात् सोचसमझ कर कार्य करने वाले। जल्दीजल्दी में सिर्फ वर्तमान देखकर कर लिया तो धोखा खा लेते हैं। लेकिन त्रिकालदर्शी बनकर कार्य करते तो सदा सफलता सहज मिलती है। तो सहज सफलता प्राप्त करने वाले त्रिकालदर्शी अर्थात् दूरांदेशी बुद्धि वाले। समझा।
मधुबन निवासी - (बापदादा ने आबू के भिन्नभिन्न स्थानों पर सेवा में उपस्थित भाईबहिनों से हाथ उठवाया) देखो, पीस पार्क भी कम नहीं है। लण्डन अमेरिका सबको भूल जाता है। जो पीस पार्क देखते हैं तो कॉपी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कितनी भी कॉपी करें, रूहानियत की झलक तो आ नहीं सकती, प्यार की झलक तो आ नहीं सकती। तो मेहनत का फल मिल रहा है। मेहनत तो अच्छी की है। प्यार से मेहनत की है ना। सिर्फ पानी नहीं दिया है लेकिन प्यार का पानी दिया है इसीलिये वायुमण्डल न्यारा और प्यारा है। औरज्ञान सरोवर वाले भी बहुत प्यार से मेहनत कर रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। और निश्चयबुद्धि सबसे नम्बरवन हैं। कितना भी कोई जाकर हिलाता है-नहीं तैयार होगा, नहीं तैयार होगा, जितना वो ना करते हैं उतना ये हाँ करते हैं। इसलिये निश्चय की विजय होती है। तैयार होना ही है, बाप को आना ही है। इसलिये मुबारक हो निश्चय की। अच्छा। तलहटी वाले भी मौज में आ गये हैं, मेला मनाने की तैयारी कर रहे हैं। अच्छा है, रौनक तो चाहिये ना। कोई नवीनता चाहिये ना। ओम् शान्ति भवन के हाल में तो सदा बैठते ही हो। लेकिन नवीनता भी चाहिये ना। और कितनी आत्माओं का संकल्प पूरा हो जायेगा। उल्हने कम हो जायेंगे। तो तलहटी में ठीक तैयारी हो रही है? बड़ी बात तो नहीं लगती? खुशी में मुश्किल भी सहज हो जाती है। अच्छा। आबू निवासी क्या कर रहे हैं? सहयोग का साथ दे रहे हैं। कभी भी कोई कार्य होता है तो आबू निवासी कार्य कर लेते हैं। अच्छा है, म्युजियम भी अच्छी सेवा कर रहा है, म्युजियम वाले बच्चे भी मेहनत अच्छी करते हैं। म्युजियम तो चलताफिरता एक सेवा का स्थान है। इस म्युजियम ने भी वि्ातने सेवाकेन्द्र खोले होंगे। कितनी आत्माओं की धरनी परिवर्तन कर दी है। यहाँ का प्रभाव वहाँ स्थानों पर भी काम में आता है। क्योंकि यहाँ आने वाले फ्री होते हैं तो बुद्धि फ्री होने के कारण प्रभाव अच्छा पड़ता है फिर वही वहाँ काम में आता है। तो म्युजियम की सेवा भी कम नहीं है। सभी स्थानों की सेवा अच्छी है। यहाँ (ओम् शान्ति भवन में) भी जो ग्रुप समझाते हैं, वो भी अच्छी सेवा है। तो सब जगह सेवा सहज होती जाती है, प्रभाव पड़ता जाता है। अच्छा है।
अच्छा, मधुबन वाले क्या करेंगे? मधुबन वाले सदा ही अपने को आधारमूर्त और उदाहरणमूर्त समझो। साकार कर्म में मधुबन निवासी उदाहरण हैं और आधारमूर्त भी हैं। क्योंकि जो भी रूहानी साधन चाहिये वो सब तो मधुबन से ही जाते हैं। इसलिये मधुबन वाले ये नहीं समझें कि हम मधुबन के कमरे में हैं या पाण्डव भवन के अन्दर रहते हैं लेकिन हर कर्म में, हर संकल्प में, हर बोल में आधारमूर्त हो। हर एक जो विशेषता देखते हैं कर्म में, वाणी में, वो प्रैक्टिकल मधुबन में ही देखते हैं। तो सदा हर समय आधारमूर्त भी हो और उदाहरणमूर्त भी हो। चाहे अच्छा करते हो तो भी उदाहरण बनते हो और मिक्स करते हो तो भी उदाहरण। उदाहरण सभी मधुबन का ही देते हैं। इसीलिये इतना जिम्मेदारी का बड़ा ताज मधुबन निवासियों को पड़ा हुआ है। अच्छा-संगम भवन के थोड़े हैं लेकिन सेवा बहुत अथक करते हैं। संगम निवासी भागदौड़ का काम अच्छा करते हैं।
अच्छा - हॉस्पिटल का क्या हालचाल है? हॉस्पिटल बहुत अच्छा है कि अच्छा है? देखो हॉस्पिटल की विशेषता क्या है? वैसे सोचते हैं कि पेशेन्ट कोई नहीं हो, और हॉस्पिटल सोचती है कि पेशेन्ट आवें। अगर पेशेन्ट नहीं आते तो उदास हो जाते हैं। पेशेन्ट को पेशन्स में लाते हैं। तो हॉस्पिटल में सिर्फ पेशेन्ट नहीं लेकिन पेशन्स धारण करने वाले पेशेन्ट भी आते हैं। अच्छा है, सबसे ज्यादा हॉस्पिटल का फायदा ब्राह्मणों को है। एम्बुलेन्स में बैठे और पहुँच गये। अच्छी मदद है। एक तो ब्राह्मणों को मदद है और दूसरा जो लोग समझते हैं कि ये कुछ नहीं करते हैं वो समझते हैं कि हाँ ये करते हैं, बहुत करते हैं। हॉस्पिटल ने सेवा बढ़ाई ना। ‘कुछ नहीं’ को ‘करते हैं’ में परिवर्तन कर लिया। ऐसे है ना। अच्छा है, हॉस्पिटल वाले अगर फुर्सत मिलती है तो मंसा सेवा बहुत करो। उससे फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा।
चारों ओर के सर्व निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्मायें, सदा निश्चित विजयी आत्मायें, सदा निश्चिन्त आत्मायें, सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि करने के निमित्त बनने वाली विशेष आत्मायें, सदा एक बाप एक बल एक भरोसे में अचलअडोल रहने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से: (दादी जी बाम्बे अहमदाबाद तथा जानकी दादी पूना सेवा पर गई थी) चक्कर लगाकर आई। सन्तुष्टता दिलाने वाली सन्तुष्ट मणियाँ हो। तो सन्तुष्ट मणियाँ जहाँ भी जायेंगी तो सन्तुष्ट करेंगी ना! चाहे तन वालों को, चाहे मन वालों को, दोनों प्रकार से सन्तुष्ट करते हैं। इसीलिये बापदादा सदा सन्तुष्ट मणियाँ कहते हैं। (सभी की याद दी) अच्छा है। याद का टोकरा भरकर आये हैं। कदम में पदम भरे हुए हैं। इसलिये आपके चक्कर लगाने से अनेकों के चक्कर समाप्त हो जाते हैं। जिनको जो चाहिये वो मिल जाता है। इसलिये अनेकों के व्यर्थ चक्कर खत्म हो जाते हैं। ऐसे ही अनुभव होता है ना? दादियों में सबका प्यार है ना। जो भी निमित्त हैं उन्हों में प्यार है। (दादी जानकी) अच्छा है, दृढ़ निश्चय से सब ठीक हो जाता है। कितने भी कड़े संस्कार हो लेकिन जहाँ दृढ़ता है वहाँ सब एकदम मोम के समान खत्म हो जाते हैं।
जगदीश भाई से - अब क्या करेंगे नवीनता? (विशाल प्रोग्राम माइक बनाने का) एक बारी इकट्ठा सभी कोने से आवाज आये तो बुलन्द हो। हाँ जी, हाँ जी करते चलो और सबका हाँ जी हो ही जाना है। विदेश वाले देश वालों को कहे हाँ जी और देश वाले विदेश वालों को कहे हाँ जी। तो जहाँ हाँ जी होगा वहाँ हुआ ही पड़ा है।
साधन बहुत अच्छा है सिर्फ बालक और मालिक बनना आ जाये। समय पर बालक, समय पर मालिक। सभी को बनना आता है? कि जिस समय बालक बनना है उस समय मालिकपन आ जाता है? तो बापदादा देखेंगे कि हाँ जी का पाठ किसने पक्का किया है? सभी करते हैं, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन कार्य के टाइम देखेंगे। अच्छा!
(दादी चन्द्रमणी इलाहाबाद कुम्भ मेले में जा रही हैं) आपको सीट बहुत अच्छी मिली है, चक्कर लगाते रहो, मौज मनाते रहो। और दूसरों को भी मौज में लाते रहो।
अच्छा, पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का संगठन अच्छा है। शक्ति के बिना पाण्डव नहीं चलते, पाण्डवों के बिना शक्तियाँ नहीं चल सकतीं। दोनों की आवश्यकता आदि से अन्त तक रही है और रहेगी।
अच्छा-जो भी जहाँ से भी आये हो, सब अच्छे ते अच्छे भाग्यवान हो, श्रेष्ठ हो, बाप के प्यारे हो। चाहे विदेश से आये हो, चाहे देश से आये हो, हर एक बाप का प्यारा है। सभी बाप का श्रृंगार हो। बिना आपके बाप कुछ नहीं कर सकता। इसलिये बापदादा भी कहते हैं पहले बच्चे। तो हरेक समझता है कि मैं प्यारा हूँ? एक ही बेहद का बाप सबको प्यार दे सकता है। आत्मायें नहीं दे सकती, बाप दे सकता है। क्योंकि बेहद है। तो हर एक समझता है मैं बाप का प्यारा हूँ। नाम लेवें, नहीं लेवें लेकिन प्यारे सब हैं। अच्छा!
18-01-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ज्ञान सरोवर उद्घाटन के शुभ मुहूर्त्त पर अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य प्रात: 11.00 बजे
आज स्नेह सम्पन्न दिवस पर स्नेह के सागर बापदादा अपने अति स्नेही, स्नेह में समाए हुए लवलीन बच्चों से मिलने आए हैं। सबके स्नेह के गीत बापदादा सुनते रहे हैं और सुनते रहेंगे। हर एक बच्चे का स्नेह बापदादा देख, बाप भी गीत गाते हैं वाह मेरे स्नेही बच्चे वाह! बच्चों ने भी आज के समर्थ दिवस को सेवा में साकार किया है और करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के गुणगान करते हैं। लेकिन साकार रूप से अव्यक्त रूप में और समीप वा साथ का विशेष अनुभव करा रहे हैं। क्या बच्चों को ऐसे लगता है कि बाप साथ नहीं है? लगता है? साथ जन्म लिया है, साथ सेवाधारी साथी रहे हैं और आगे भी साथसाथ हैं और साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप को भी अकेला अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को लगता है अकेले हैं? साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथसाथ राज्य करेंगे। शिव बाप को आराम देंगे और आपके साथ ब्रह्मा बाप भी राज्य करेंगे। अपना राज्य याद है ना? आज सेवाधारी हैं और कल राज्य अधिकारी हैं। अपना राज्य सामने दिखाई दे रहा है ना? अपने राज्य का वो स्वर्ग का स्थान, स्वर्ग का दिव्य शरीर रूपी चोला सबके सामने स्पष्ट है ना। बस धारण किया कि किया। ऐसे अनुभव होता है ना? अपना भविष्य स्पष्ट है ना? आज वर्तमान है और कल भविष्य वर्तमान हो जायेगा-निश्चय है ना? पक्का निश्चय है?
सब पुरानेपुराने पक्के आए हैं ना। बापदादा को भी, विशेष ब्रह्मा बाप को भी खुशी है कि स्थापना के एक हैं आदि साथी रत्न, जो सामने बैठे हैं और दूसरे हैं स्थापना की वृद्धि के श्रेष्ठ रत्न। तो इस संगठन में ब्रह्मा बाप दोनों प्रकार के रत्नों को देख हर्षित हो रहे हैं। और बच्चे भी कितने उमंगउत्साह से, शरीर का भी, सैलवेशन का भी ख्याल न करते हुए ठण्डीठण्डी हवाओं में पहुँच गए। ये ठण्डी हवाएं आप बच्चों से सलाम करने आती हैं। वैसे भी देखो जब राज्य तख्त पर बैठते हैं तो पीछे से क्या होता है? चंवर झुलाते हैं ना, तो उससे ठण्डीठण्डी हवाएं तो होती है। तो ये ठण्डी हवाएं भी चंवर झुलाने आती हैं। क्योंकि आप सब भी ऊंचे ते ऊंची विशेष आत्माएं हो। नशा है ना? तो आज ब्रह्मा बाप विशेष अपने जन्म के साथी और सेवा के साथी (सेवा के निमित्त पहले रत्न और जन्म के समय के पहले रत्न) दोनों को देखदेख हर्षित होते हैं।
अच्छा, यह हाल भी राज दरबार माफिक बनाया है। (ज्ञान सरोवर का ऑडोटोरियम हाल) राज दरबार लगती है तो गैलरी में बैठते हैं, तो गैलरी वाले भी अच्छे लग रहे हैं। (हाल में सभी भाई बैठे हैं, मातायें सब बाहर बैठी हैं) अच्छा आज तो माताओं के त्याग का भाग्य उन्हों को अभी मिल ही जाएगा। अच्छी तरह से तपस्या कर ही रही हैं। तपस्या का फल मिल जाएगा। ठण्डी ठण्डी हवा आ रही है तो धूप भी आ रही है। अच्छा।
ज्ञान सरोवर कहेंगे या स्नेह का सरोवर कहेंगे? ज्ञान सरोवर में स्नेह का सरोवर अच्छा है। ये ज्ञान सरोवर सेवा का विशेष लाइट हाउस और माइट हाउस है। इस धरनी से अनेक आत्माओं के भाग्य का सितारा चमकेगा। अनेक आत्माएं अपने बिछुड़े हुए बाप से मिलन मनायेंगी। अनेक आत्माओं के दु:ख दूर करने वाली धरनी है। सरोवर में आते ही सुख की लहरों में लहराने का अनुभव करते रहेंगे। इस ज्ञान सरोवर द्वारा तीन प्रकार के लोग, तीन प्रकार की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे-कोई वर्से के अधिकारी, कोई वरदानों के अधिकारी और कोई सिर्फ दुआओं के अधिकारी। तो तीन प्रकार के प्राप्ति सम्पन्न। ये श्रेष्ठ सरोवर है। साधारण आत्माएं आयेंगी और फरिश्ता जीवन का अनुभव कर जायेंगी। साथसाथ अनेक ब्राह्मण आत्माएं तपस्या के सूक्ष्म अनुभूतियों द्वारा अव्यक्त पालना और सूक्ष्म योग के सहज अनुभव और प्राप्तियों का लाभ लेंगी। कई ब्राह्मण आत्माओं की श्रेष्ठ आशायें स्व उन्नति की पूर्ण होने का साधन बहुत श्रेष्ठ है। स्थान तो कॉमन है लेकिन स्थिति श्रेष्ठ अनुभव कराने वाला है। विधिपूर्वक ज्ञान के नॉलेज को विश्व में प्रत्यक्ष करने का स्थान है। और सबसे पहला फायदा तो बाप और बच्चों के मिलने का है। देखो, डबल संख्या में मिल तो रहे हैं ना! चाहे बाहर बैठे हैं या कहाँ भी रहे हैं, डबल संख्या तो है ना। तो सबसे प्रत्यक्षफल बच्चों की संख्या डबल मिलन मना रही है। समझा? ऐसे सरोवर में, सरोवर बनाने वालों को, सहयोग देने वालों को, संकल्प से हिम्मत दिलाने वालों को, स्नेह के हाथों से सरोवर को सम्पन्न करने वाले देश विदेश के बच्चों को पदमगुणा मुबारक हो, मुबारक हो।
यह पहला ही स्थान है जिसमें छोटे बच्चों से लेकर जो भी ब्राह्मण हैं उनके सहयोग का तनमनधन लगा है। तन से इंट नहीं भी उठाई है लेकिन तन से अपनेअपने साथियों को साथी बनाया है, उमंग दिलाया है तो ऐसे स्नेह, सहयोग, शक्ति की बूँदबूँद से सजा हुआ सरोवर श्रेष्ठ सफलता का अनुभव कराता रहेगा। तो सभी सहयोगियों को, कोनेकोने के विदेश, देश वालों को और विशेष जिन्होंने ठण्डीठण्डी हवाओं में, बारिश में भी हिम्मत नहीं हारी है, उन्हों को विशेष मुबारक है, मुबारक है। बापदादा जानते हैं बच्चों ने थोड़ी तकलीफ तो उठाई लेकिन प्यार से उठाई है। मोहब्बत में मेहनत का अनुभव नहीं किया है और जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की पदमगुणा मदद भी है ही। इसलिये बापदादा मसाज करते रहे हैं, करते रहेंगे। अच्छा, यहाँ के इंजीनियर्स हाथ उठाओ। समय पर सम्पन्न करने की बहुतबहुत मुबारक हो। आपको बैठने योग्य तो बना कर दे दिया ना! बाप तो आ गए ना! वायदा ही ये था। आप सब भी इन्हों को मुबारक दे रहे हो ना! जिन्होंने हाल को सजाया वो कहाँ है? ये मुन्नी पार्टी है। देखो, स्नेह का सरोवर है ना तो कलकत्ता से यहाँ फूल आ गए। (कलकत्ता से बहुत सुन्दर रंगय्बिरंगे फूल आये हैं जिससे सारी स्टेज सजी हुई है) अच्छा! आप सबको भी पहुँचने की मुबारक है और माताओं को पदमगुणा मुबारक है।
(जाल मिस्त्री, जिन्होंने हाल में साउण्ड का प्रबन्ध किया है) देखो अगर इनकी हिम्मत नहीं होती तो आप मुरली नहीं सुन सकते थे। सभी मुरली के पीछे तो दीवाने हैं ना। मुरली का साधन सबसे श्रेष्ठ है। कितना अच्छा प्रबन्ध किया है। आराम से सुनने आ रहा है। बाहर भी सुनाई दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा प्रबन्ध किया है। जो भी सेवा के निमित्त हैं एकएक डिपार्टमेन्ट का नाम नहीं लेते हैं लेकिन हर एक समझे मुझे स्नेह और सहयोग की मुबारक। अच्छा, सबसे पहली मुबारक किसको दें? दादी को। (बापदादा को) बापदादा तो देने वाला है ना। बापदादा सदा कहते हैं कि बच्चों का नम्बरवन सर्वेन्ट है तो बाप है। बाप तो सदा सेवाधारी है लेकिन बच्चे भी सेवा में बाप से भी आगे सहयोगी हैं। क्या एकएक का नाम लें लेकिन दिल में एकएक बच्चे का नाम ले रहे हैं और यादप्यार दे रहे हैं। सभी डिपार्टमेन्ट को मुबारक है। लाइट के बिना भी काम नहीं, माइक के बिना भी काम नहीं। लाइट, माइट, माइक सभी को मुबारक।
(टीचर्स से) आप लोग नहीं होते तो सेन्टर्स नहीं खुलते। एकएक ने देखो कितने सेन्टर्स खोले हैं। यहाँ सेवा की राजधानी और वहाँ राज्य की राजधानी होगी। अच्छा। पाण्डव भी देख रहे हैं। अच्छेअच्छे पाण्डव भी पहुँच गये हैं। पाण्डव के बिना भी गति नहीं लेकिन पाण्डवों ने शक्तियों को आगे रखा है। आप लोगों ने रखा है कि बाप ने रखा है? फॉलो फादर किया है। वैसे आप सभी भी बाप के समीप बैठे हो। ऐसे नहीं समझना ये ही हैं समीप। लेकिन जो सामने हैं वो अति समीप हैं।
डबल फारेनर्स भी आए हैं। यह भी कमाल कर रहे हैं। देशय्विदेश में प्रत्यक्ष करने की सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा! (फिर बापदादा ने ज्ञान सरोवर की विशाल स्टेज पर खड़े होकर इंजीनियर्स के साथ मोमबत्ती जलाई तथा मुख्य टीचर्स एवं दादियों के साथ केक काटी, फिर मुख्य दादियां बापदादा के साथ हाल के बाहर प्लाजा में आई, जहाँ पर बापदादा ने 2 हजार से भी अधिक संख्या में बैठी हुई माताओं से हाथ हिलाते हुए मुलाकात की तथा ध्वज फहराया, तत्पश्चात् जो महावाक्य उच्चारण किये वह इस प्रकार हैं):
बापदादा, आप सभी बच्चों के दिल में जो बाप के स्नेह का झण्डा लहरा रहा है, उसको देख हर्षित हो रहे हैं। यह सेवा के लिए है और बाप बच्चों के बीच में दिल में स्नेह का झण्डा है। तो जैसे यह फ्लैग सेरीमनी करते हो तो ऊंचा लहराते हो ना, ऐसे ही सदा स्नेह में ऊंचे ते ऊंचा लहराते रहो। यह झण्डा भी बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा है। यह कपड़े का झण्डा है लेकिन इस कपड़े के झण्डे में आप सबका आवाज समाया हुआ है कि ‘‘बाप आ गये हैं।’’ यही प्रत्यक्षता का झण्डा अभी कोनेकोने में लहरायेगा। और आप सभी वह लहराया हुआ प्रत्यक्षता का झण्डा देखेंगे, सुनेंगे, हर्षित होंगे। तो आज ज्ञान सरोवर में है, कल विश्व में यह झण्डा लहरायेगा। आप सभी को तपस्या करनी पड़ी उसकी मुबारक लेकिन बहुत आराम से अच्छे बैठे हो और जितना आपको देखने में आ रहा है उतना अन्दर पीछे वालों को नहीं। आप बाहर नहीं थे लेकिन दिल के अन्दर थे। सब बहुतबहुत खुशनसीब हो इसलिये सदा खुशी बांटते रहना। खुश रहना और खुशी बांटते रहना।
19-01-95 ओम शान