07-11-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘बापदादा की विशेष पसन्दगी और ज्ञान का फाउण्डेशन - पवित्रता’’
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार के स्वरूप बच्चों से मिलने आये हैं। सभी बच्चों के अन्दर बाप का प्यार समाया हुआ है। प्यार सभी बच्चों को दूर से समीप ले आता है। भक्त आत्मा थे तो बाप से कितना दूर थे। इसलिए चारों ओर ढूंढते रहते थे और अभी इतना समीप हो जो हर एक बच्चा निश्चय और फ़लक से कहते हैं कि मेरा बाबा मेरे साथ है। साथ है या ढूँढना पड़ता है - इस तरफ है, उस तरफ है? तो कितना समीप हो गया! कोई भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या कहेंगे? मेरे साथ है। फ़लक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी बन गये हो। आप भी एक सेकण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो। लेकिन जब माया आती है तब कौन साथ होता है? उस समय बाप अगर साथ है तो माया आ सकती है? लेकिन न चाहते भी बीच-बीच में बच्चे बाप से आंख मिचौली का खेल कर देते हैं। बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा बाबा, मेरा बाबा और दूसरे तरफ किनारा भी कर लेते हैं। अगर अभी यहाँ ऐसे किनारा करेंगे तो आपको देख नहीं सकेंगे ना। तो आप भी माया की तरफ़ ऐसे कर लेते हो। बाप को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है। तो आंख मिचौली खेल कभी-कभी खेलते हो? बाप फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है। वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से खोल देते हैं।
बापदादा पूछते हैं कि सभी का प्यार कितने परसेन्ट में है? तो सभी कहते हैं - 100 परसेन्ट से भी ज्यादा है। पद्मगुणा प्यार है। ऐसा कहते हो ना? अच्छा जिसका पद्मगुणा से कम है, करोड़ है, लाख है, हज़ार है, सौ है, वो हाथ उठाओ। (कोई ने नहीं उठाया) अच्छा, सभी पक्के हैं! बापदादा फिर दूसरा क्वेश्चन करेंगे, फिर नहीं बदलना। अच्छा, ये तो बहुत खुशखबरी सुनाई कि पद्मगुणा प्यार है।
अभी बाप पूछते हैं कि प्यार का सबूत क्या होता है? (समान बनना) तो समान बने हो? (नहीं) फिर पद्मगुणा से तो कम हो गया। आप सभी कहेंगे कि अभी सम्पूर्ण बनने में थोड़ा-सा टाइम पड़ा है इसलिए हो जायेंगे - ऐसे? लेकिन अगर प्यार वाला कहता है कि तुम प्यार के पीछे जान कुर्बान कर लो तो वो जान देने के लिए भी तैयार होते हैं। बापदादा जान तो लेते नहीं हैं क्योंकि जान से तो सेवा करनी है। लेकिन एक बात पर बापदादा को थोड़े समय के लिए आश्चर्य करना पड़ता है। आश्चर्य करना नहीं चाहिए, वो तो आपको भी कहते हैं, लेकिन बापदादा को आश्चर्य करना पड़ता है, पार्ट बजाते हैं। जान कुर्बान छोड़ो लेकिन प्यार की निशानी है न्योछावर होना, जो कहे वो करना। तो बाप सिर्फ एक बात में न्योछावर होना देखना चाहते हैं। बातें अनेक हैं, लेकिन बाप अनेक को नहीं लेते सिर्फ एक बात में न्योछावर होना है। उसके लिए हाथ उठा लेते हैं, प्रतिज्ञा भी कर लेते हैं लेकिन प्रतिज्ञा करने के बाद भी करते रहते हैं वो क्या? हर एक स्वयं समझते हैं कि मेरा बार-बार बाप से किनारा होने का मूल संस्कार या मूल कमज़ोरी क्या है। हर एक अपनी मूल कमज़ोरी को जानते हो ना? तो वो कमज़ोरी जानते हुए भी न्योछावर क्यों नहीं करते हो? 63 जन्म की साथी है इसीलिए उससे प्यार है?
प्यार का अर्थ ही है जो प्यार वाला पसन्द करे वो करना। अगर मानो प्यार करने वाला एक बात कहता है और वो दूसरा कुछ करते हैं तो क्या हो जाता है? प्यार होता है या झगड़ा होता है? उस समय प्यार कहेंगे कि अच्छी तरह से लाठी उठाकर एक-दो को लगायेंगे? तो बाप को क्या पसन्द है? बापदादा कहते हैं कि समान बनने में तो कई बातें हैं। ब्रह्मा बाप की विशेषताएं देखो और ब्रह्मा बाप समान ही बनना है तो कितनी बड़ी लिस्ट है! उसके लिए भी बापदादा कहते हैं चलो कोई बात नहीं। एक-दो बात कम है तो भी हर्जा नहीं। लेकिन जो मूल फाउण्डेशन है, जो ब्रह्मा बाप वा ज्ञान का आधार है वो क्या है? ब्रह्मा बाबा शिव बाप की विशेष पसन्दगी क्या है? (पवित्रता, अन्तर्मुखता, निश्चयबुद्धि, सच्चाई-सफाई)। वास्तव में फाउण्डेशन है - पवित्रता। लेकिन पवित्रता की परिभाषा बहुत गुह्य है। पवित्रता जहाँ होगी वहाँ निश्चय, सच्चाई-सफ़ाई, ये सब आ जाता है। लेकिन बापदादा देखते हैं कि पवित्रता की गुह्य भाषा, पवित्रता का गुह्य रहस्य अभी बुद्धि में पूरा स्पष्ट नहीं है। व्यर्थ संकल्प चलना या चलाना, अपने अन्दर भी चलता है और दूसरों को भी चलाने के निमित्त बनते हैं। तो व्यर्थ संकल्प - क्या ये पवित्रता है? तो फिर संकल्प की पवित्रता का रहस्य सभी को प्रैक्टिकल में लाना चाहिए ना। वैसे देखा जाये तो पांचों ही विकार, चाहे काम हो, चाहे मोह हो, सबसे नम्बरवन है काम और लास्ट में है मोह। लेकिन कोई भी विकार जब आता है तो पहले संकल्प में आता है। व्यर्थ संकल्प क्रोध भी पैदा करता है तो काम अर्थात् व्यर्थ दृष्टि, किसी आत्मा के प्रति अगर व्यर्थ दृष्टि भी जाती है तो उस समय पवित्रता नहीं मानी जायेगी। तो यह व्यर्थ संकल्प बाप के प्यार के पीछे न्योछावर क्यों नहीं करते? कर सकते हो? (हाँ जी) हाँ जी कहना बहुत सहज है। लेकिन बापदादा के पास तो सबका चार्ट रहता है ना। अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी विकार हो। ये क्यों, ये क्या, ऐसा होना नहीं चाहिए, ऐसा होना चाहिए....... या कॉमन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने गुण का, अपनी विशेषता का अभिमान आता है या तो जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात में कमी को देख करके, कमी अपने पुरूषार्थ की नहीं लेकिन नाम में, मान में, शान में, पूछने में, आगे आने में, सेन्टर इन्चार्ज बनाने में, सेवा में, विशेष पार्ट देने में - ये कमी, ये व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है। तो आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान या दूसरे शब्दों में कहो अपमान - मेरे को कम क्यों, मेरा भी ये पद होना चाहिए, मेरे को भी आगे करना चाहिए, तो ये अपमान समझते हो ना। तो ये दो बातें अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्पो का कारण है। इन दोनों को अगर न्योछावर कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है। तो क्या न्योछावर करने की शक्ति है? अच्छा, कितने समय में? अभी आज नवम्बर है ना, नया साल आयेगा तो दो मास हो जायेगा ना! नये साल में वैसे भी नया खाता रखा जाता है, तो हर एक चाहे टीचर, चाहे विद्यार्था हैं, चाहे महारथी हैं, चाहे प्यादा हैं। ऐसे नहीं कि ये तो महारथियों के लिए है, हम तो हैं ही छोटे! राज्य-भाग्य लेने के टाइम तो कोई नहीं कहेगा कि मैं छोटा हूँ, उस समय तो कहेंगे कि सेकण्ड नारायण मुझे ही बना दो। तो हर एक को सिर्फ दो शब्द अपना समाचार देना है और उस पोस्ट के ऊपर विशेष ये लिखना- ‘‘अवस्था का पोतामेल’’। तो वो पोस्ट अलग हो जायेगी। और अन्दर लिखना कि व्यर्थ संकल्प किस परसेन्टेज में न्योछावर हुए? 50 परसेन्ट या 100 परसेन्ट न्योछावर हुए? बस एक लाइन लिखना, लम्बा-चौड़ा नहीं लिखना। जो लम्बा-चौड़ा लिखेंगे उसको पहले ही फाड़ देंगे। तो तैयार हो? ज़ोर से बोलो - हाँ जी या ना जी? जो समझते हैं कि इसमें हिम्मत चाहिए, टाइम भी चाहिए, तो अभी से हाथ उठा लो तो आपको पहले से ही छुट्टी है। कोई है या पीछे लिखेंगे - पुरूषार्थ तो बहुत किया लेकिन हुआ नहीं। ऐसे तो नहीं लिखेंगे? पक्के हैं? अच्छा।
बापदादा ने देखा कि प्यार मधुबन तक तो ले आता है। लेकिन इसी प्यार से पहुँचना कहाँ है? बाप समान बनना है ना! तो जैसे मधुबन में भागते-भागते आते हो ना, मेरा नाम ज़रुर लिखो, मेरा नाम ज़रुर लिखो। और नहीं लिखते तो टीचर को थोड़ी आंख भी दिखा देते हो। तो जैसे मधुबन के लिए प्यार में भागते हो, आते हो ऐसे ही पुरूषार्थ करो कि मेरा नाम बाप समान बनने में पहले हो। तो ये पवित्रता का फाउण्डेशन पक्का करो। ब्रह्मा बाप ने पवित्रता के कारण, एक नवीनता के कारण गालियाँ भी खाईं। तो पवित्रता फाउण्डेशन है और फाउण्डेशन का ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना ये तो एक कॉमन बात है लेकिन अभी आगे बढ़े हो तो बचपन की स्टेज नहीं है, अभी तो वानप्रस्थ स्थिति में जाना है। मैं ब्रह्मचारी तो रहता हूँ, पवित्रता तो है ही, सिर्फ इसमें खुश नहीं हो जाओ। वैसे तो अभी दृष्टि-वृत्ति में पवित्रता को और भी अण्डरलाइन करो लेकिन मूल फाउण्डेशन है अपने संकल्प को शुद्ध बनाओ, ज्ञान स्वरूप बनाओ, शक्ति स्वरूप बनाओ। संकल्प में कमज़ोरी बहुत है। क्या करें, कर नहीं सकते हैं, पता नहीं क्या हो गया..... क्या ये पवित्रता की शक्ति है? पवित्र आत्मा कहेगी - क्या करें, हो गया, हो जाता है, चाहते तो नहीं हैं लेकिन.....? ये कौन-सी आत्मा है? पवित्र आत्मा बोलती है कि कमज़ोर आत्मा बोलती है? त्रिकालदर्शी आत्मायें हो। जब क्यों, क्या कहते हो, तो बापदादा कहते हैं इन्हों को जिज्ञासु के आगे ले जाओ, उनको चित्र समझाते हैं कि 84 जन्मों को हम जानते हैं। समझाते हो 84 जन्म और करते हो अभी क्या और क्यों? जब जानते हो तो जानने वाला क्या, क्यों करेगा? वो जानता है कि ये इसलिए होता है। क्या का जवाब स्वयं ही बुद्धि में आयेगा कि माया के प्रभाव के परवश है। चाहे महारथी हो, चाहे प्यादा हो। अगर महारथी से भी ग़लती होती है तो उस समय वो महारथी नहीं है, परवश है। तो परवश वाला कहाँ भी लहर में लहरा जाता है लेकिन आप उस रूप में देखते हो कि ये महारथी होकर कर रहा है! उस समय महारथी नहीं, परवश है। समझा, नये साल में क्या करना है? व्यर्थ के समाप्ति का नया खाता। ठीक है? पक्का? कि कोई न कोई कारण बतायेंगे। अगर कारण होगा तो कोई नया प्लैन बतायेंगे। अभी नहीं बतायेंगे। अभी बतायेंगे तो आप कोई रीज़न निकाल लेंगे। कारण नहीं निवारण। समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप।
अभी प्रकृति भी थक गई है। प्रकृति की भी ताकत सारी खत्म हो गई है। तो प्रकृति भी आप प्रकृतिपति आत्माओं को अर्जा कर रही है कि अभी जल्दी करो। अभी देरी नहीं करो। अच्छा!
बापदादा को भी तन को चलाना पड़ता है। चले, नहीं चले, लेकिन चलाना तो पड़ता है। क्योंकि बाप का बच्चों से प्यार है। तो इतने प्यार वाली आत्मायें आवें और बाप रूहरिहान नहीं करे तो कैसे होगा! तो जबरदस्ती भी चलाना ही पड़ता है। अच्छा, सभी खुश हैं? बाप मिला - सन्तुष्ट हैं ना?
इस्टर्न
कितना अन्दाज़ आये हैं? (550) तो साढ़े पांच सौ आये हो ना तो साढ़े को निकाल देना बाकी रहा पांच, तो पांचों पर विजय पहला नम्बर इस्टर्न ज़ोन होना चाहिए। (सभी ने तालियां बजाई) लिखने के टाइम भी ताली बजाना। नम्बरवन। वैसे तो इस्टर्न ब्रह्मा बाबा का प्रवेशता का भी पहला नम्बर है। तो बाप समान बनने में, बाप के प्यार के पीछे न्योछावर करने में भी इस्टर्न को पहला नम्बर लेना है। सभी टीचर्स हाँ कर रही हैं तो स्टूडेण्ट को भी करना पड़ेगा। इस्टर्न की टीचर्स उठो। सभी टीचर्स वायदा करते हो कि समझते हो कि पता नहीं क्या होगा! देखना टी.वी. में आ रहा है। इस्टर्न तो नम्बरवन होना ही है।
बम्बई, महाराष्ट्र
बाम्बे क्या करेगा? महाराष्ट्र क्या करेगा? सोलापुर भी है, जलगांव भी है। कोई भी पुर हो लेकिन बापदादा कहते हैं कि सोलापुर नहीं, सोला सम्पूर्ण। कोल्हापुर है, सोलापुर है, कई पुर हैं तो उन्हों को तो याद आना चाहिए कि हम पूर तो हैं सिर्फ सम्पूर्ण आगे एड करना। ठीक है सोलापुर। सोलापुर वाली टीचर्स हाथ उठाओ। अभी क्या होगा? सोलापुर या सोला सम्पूर्ण? हिम्मत है कि कहेंगे कि हम तो छोटी टीचर्स हैं। छोटी सुभान अल्लाह। समझा? अच्छा जलगांव और उदगीर। तो जलगांव क्या करेगा? अपने व्यर्थ विकल्पों को जल में खत्म कर देगा। एकदम खत्म। जल में हो गया खत्म। तो क्या करेंगे? विकल्पों को जलमय करना। कोई विकल्प रहे नहीं। जैसे कहाँ-कहाँ जलमय होता है ना तो एक भी निशानी नहीं रहती। ऐसे आप समाप्त कर लेना। ठीक है? अच्छा, बाम्बे वाले क्या करेंगे? आजकल बहुत बड़े-बड़े बॉम्ब निकाले हैं। दीपावली में देखा होगा ना, इतने बॉम्ब इकट्ठे जलाते हैं जो लाइन की लाइन खत्म। तो बाम्बे वाले अनेक विकल्पों की लाइन को एक तीली लगाना और सारे के सारे खत्म हो जायें। बॉम्बे वाली टीचर्स उठो। अच्छा! तीली तो है ना? अच्छी पॉवरफुल तीली है? कि तीली लगी फिर बुझ जायेगा। दृढ़ संकल्प की तीली से फटाफट। एक के पीछे एक, एक के पीछे एक खत्म। सभी खुश हो जायेंगे। अच्छा।
तामिलनाडु
तामिलनाडु क्या करेगा? तामिलनाडु में डांस बहुत अच्छी करते हैं। कोई भी दादियाँ जाती हैं तो अच्छी-अच्छी डांस दिखाते हैं। जैसे शास्त्रों में शंकर के लिए दिखाते हैं, नृत्य करते-करते सारा विनाश कर दिया। तो डांस करते-करते क्या करेंगे? भिन्न-भिन्न प्रकार से सभी विघ्नों का विनाश। जैसे डांस वे भिन्न-भिन्न पोज़ रखते हो ना ऐसे एक-एक विकल्प को अच्छी तरह से, ऐसे खत्म करना जो नाम-निशान भी नहीं रहे। ठीक है? तामिलनाडु, तामिलनाडु की टीचर्स उठो। अच्छा। तामिलनाडु की टीचर्स बहुत आई हैं। टीचर्स को भी मिलने का चांस मिलता है। बापदादा को टीचर्स वैसे बहुत प्यारी लगती हैं। इसमें तो ताली बजा दी लेकिन वैसे के पीछे ऐसे भी है। वैसे तो टीचर्स को बापदादा एकदम समान दृष्टि से देखते हैं कि ये बाप समान हैं, निमित्त हैं लेकिन जब ऐसी-वैसी उल्टी डांस कर देती हैं, जो मन को नहीं भाती है, कभीकभी ऐसी डांस करते हैं तो सब कहते हैं बन्द करो, बन्द करो। तो जब टीचर्स ऐसा कुछ करती हैं तो बापदादा की, खास ब्रह्मा बाबा की आंखे नीचे हो जाती हैं। इतना टीचर्स को अटेन्शन रखना चाहिए। टाइटल तो टीचर्स को बहुत अच्छा है, बैज भी बहुत जल्दी पहन लेते हो। लेकिन टीचर का अर्थ ही है बाप समान। विशेष ब्रह्मा बाबा टीचर्स को दिल से प्यार करते हैं लेकिन कभी-कभी दृष्टि नीचे भी करनी पड़ती है। तो ऐसे नहीं करना। बाकी अच्छा है, तामिलनाडु ने विस्तार अच्छा किया है और एक विशेषता ये भी है कि हैण्ड्स भी अपने निकालते जाते और सेवा भी बढ़ाते जाते। तो ये भी अच्छी बात है। हैण्ड्स तैयार भी करना और सेवा भी बढ़ाना - दोनों ही करना।
आन्ध्र प्रदेश
आन्ध्र प्रदेश में एक विशेषता ब्राह्मण परिवार की है जो वहाँ से एक लाडला बच्चा निकला राजु, तो उस एक ने एक एग्ज़ाम्पल बन अनेक वी.आई.पी., आई.पी. की सर्विस कर सैम्पल बनाया। सेवा बहुत होती है लेकिन इसने हिम्मत रख करके एक एग्ज़ाम्पल स्थापन किया और वैसे भी आन्ध्र में वी.आई.पी., आई.पी. ज्यादा ही हैं। चाहे वो किसी भी देश में चले जाते हैं लेकिन आन्ध्र के आई.पी., वी.आई.पी. चारों ओर बहुत होते हैं। तो आन्ध्र ने जैसे एक एग्ज़ाम्पल तैयार किया, ऐसे ये विकल्प विनाश का एग्ज़ाम्पल भी आन्ध्र को दिखाना है। तैयार हैं? आन्ध्रा वाली टीचर्स उठो। अच्छा, टीचर्स तो बहुत हैं। अभी ये भी एग्ज़ाम्पल दिखायेंगे। देखो कितना अच्छा रत्न निकला और एडवांस पार्टी में भी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। तो करेंगे ना! खिटखिट नहीं होनी चाहिए। खिटखिट खत्म। विजय का झण्डा हर सेवाकेन्द्र पर लहराये। ये नहीं बापदादा सुने कि फलाने सेन्टर पर खिटखिट है इसलिए फलानी दादी को भेजो। ये नहीं होना चाहिए। ऐसे थोड़ा-थोड़ा बीचबी च में खेल करते है। अभी खत्म। पहले टीचर्स खत्म करेंगी तभी वायब्रेशन्स फैलेगा। ये सूक्ष्म वायब्रेशन्स है। आप समझेंगे एक ने किया ना, सभी को क्या पता? लेकिन वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो न पता होते भी...। मैंने सिर्फ किया, नहीं। मैंने सभी बाबा के सेवाकेन्द्रों का वायब्रेशन खराब किया। इतनी ज़िम्मेवारी हर एक टीचर के ऊपर है। बैज पहनना तो बहुत अच्छा है। अच्छा भी लगता है। सभी एक जैसा बैज पहन कर बैठती हैं तो अच्छा लगता है लेकिन बैज की लाज रखना। अच्छा!
कर्नाटक
बैंगलोर आया है। बैंगलोर की विशेषता है कि जगदम्बा सरस्वती माँ ने बैंगलोर में बहुत-बहुत सेवा कर बीज डाला है। बाम्बे और बैंगलोर में किया है। तो बाम्बे को और बैंगलोर को जगदम्बा माँ के बीज का सदा फल देना है। और देखा जाये तो बैंगलोर के जो विशेष सेवाधारी हैं वो हैं भी जगदम्बा के पालना के फल। तो बैंगलोर वालों को, जैसे जगदम्बा सम्पूर्ण बन भिन्न नाम-रूप में सेवा के निमित्त है, ऐसे जगदम्बा का नाम बाला करना है। वैसे बैंगलोर का वायुमण्डल दुनिया के हिसाब से भी औरों से कुछ अच्छा है। सेवा भी है बहुत। अभी सेवा को निरव्यर्थ संकल्प बनाना-ये बैंगलोर का काम है। समझा? बैंगलोर की टीचर्स उठो। अच्छा है, निर्विघ्न बनाना है ना? कि थोड़ी-थोड़ी खिटखिट अच्छी लगती है? तो नम्बरवन जगदम्बा की पालना का फल बैंगलोर को अवश्य देना है। समझा?
राजस्थान
राजस्थान क्या करेगा? राजस्थान की एक सेवा बहुत काल से बापदादा ने कही है लेकिन हुई नहीं। राजस्थान की मिनिस्ट्री को बहुत समीप लाना चाहिए। चाहे मिनिस्टर हो, चाहे सेक्रेटरी, लेकिन एक बार राजस्थान को कमाल करके दिखानी चाहिए। चाहे किसकी भी मदद लो। सभी मदद देंगे। लेकिन राजस्थान की गवर्नमेंट के विशेष ऑफिसर्स का एक कम से कम 20-25 का ग्रुप लाना चाहिए। क्योंकि राजस्थान का प्रभाव सारे इण्डिया पर पड़ता है। जैसे दिल्ली की सेवा वर्ल्ड में नाम बाला करती है। चाहे जिज्ञासु बने, नहीं बने, लेकिन राजस्थान के इतने लोग यहाँ इकट्ठे होकर आये, तो यहाँ के जो छोटे-मोटे ऑफिसर्स हैं उनका भी कुछ दिमाग खुले। अभी मॉरीशियस का आ गया, और राजस्थान? तो राजस्थान को यह सेवा किसी भी रीति से करनी चाहिए। चाहे किसी से भी मदद लो, ग्रुप बनाओ। जहाँ से कहेंगे वहाँ से मदद मिलेगी। लेकिन एक बारी आबू वालों की आँख खुलनी चाहिए और वो ही ऑफिसर्स यहाँ भाषण करें, अनुभव सुनायें तो आबू वाले देखो पीछे-पीछे.....। नहीं तो एक तरफ सेवा होती और दूसरे तरफ आबू वाले मज़ाक करते रहते हैं। तो राजस्थान को बापदादा की ये एक आशा पूर्ण करनी है। मुश्किल है क्या? फिर यहाँ लड्डु बांटेंगे। जो भी होंगे ना उनके मुख में लड्डु पड़ेगा। चाहे उदयपुर हो, चाहे जोधपुर, .. जहाँ कार्य बढ़ता है वहाँ के लोग बहुत सहयोगी होने चाहिए। अभी देखो दिल्ली के ऑफिसर राजस्थान के ऑफिसर को हिम्मत देकर ठीक कर रहे हैं और वहाँ के बिल्कुल हिलते नहीं हैं। तो करो कमाल। आबू वाले भी प्लैन बनाओ। बापदादा समझते हैं कि जब तक आबू वाले अच्छा नहीं कहते, चाहे अखबार में, चाहे मुख से नहीं बोलते तब तक सेवा की रिज़ल्ट पर्दे के अन्दर है। प्रत्यक्ष नहीं होती। तो राजस्थान के बड़े लोग छोटों को भी ठीक कर देंगे। परमात्म कार्य और इतने छोटे ऑफिसर परमात्म कार्य के बीच में विघ्न रूप बनें तो ये हैं तो चींटी ना। तो अभी कुछ हिलें। कमाल करके दिखाओ। प्लैन बनाओ। एक बार इन तीन-चार मुख्य स्थानों की सेवा लगकर करनी चाहिए। ऐसे नहीं, जब काम पड़ा तो काम के टाइम भागते हैं और काम पूरा हुआ तो खत्म। वैसे तो राजस्थान के ब्राह्मणों को बहुत नशा है ना कि राजस्थान में ही मुख्य केन्द्र है। ये राजस्थान का लक है लेकिन अभी इसी नशे से यह करके दिखाना। चारों ओर फैल जाये कि राजस्थान का सम्मेलन है। राजस्थान का योग शिविर है। फिर देखो आपके ये व्यापारी वगैरह सब आपेही कहेंगे हम भी बैठें। अच्छा, तो राजस्थान यह कमाल करेगा। क्यों, हेड क्वार्टर की ज़िम्मेवारी राजस्थान पर है। बहुत बड़ा ताज पड़ा है। अच्छा! पाण्डव भी कुछ हिम्मत करेंगे ना, हिम्मत करके दिखाओ। अच्छा। राजस्थान की टीचर्स सामने बैठी हैं, ये तो बहुत टीचर्स हैं। ये एक-एक टीचर एक-एक आई.पीज़. को ला सकती हैं। एक-एक को तो लाओ तो भी 20-25 का ग्रुप बन जायेगा। बहुत अच्छी-अच्छी टीचर्स हैं। अच्छा।
आगरा
आगरा वाले क्या कर रहे हैं? आगरा वालों ने भी कोई नई कमाल करके दिखाई नहीं है। होनी तो है ना! सारे विश्व में बाप का नाम बाला तो होना ही है। लेकिन जो निमित्त बनता है उसको एक्स्ट्रा मार्क मिल जाती हैं। उसका पद, जितनी सेवा की उस अनुसार एड होकर मार्कस जमा होती जाती हैं। समझो साधारण है लेकिन सेवा निर्विघ्न है, तो सेवा की मार्क्स एडीशन होने से साधारण राजा से आगे नम्बर में आ जाते हैं। और आगे-आगे जाते आखिर विश्व महाराजा के रॉयल फैमिली में आ जाते हैं। तो ये करना है ना! आगरा भी कमाल करेगा। बापदादा को तो सदा ही सभी बच्चों में आशायें रहती हैं और वो भी आशाओं के दीपक जगे हुए। हर एक बच्चा जगे हुए आशाओं के दीपक हैं। तो कमाल करके दिखाना। देखेंगे, ये कितने समय में कमाल करते हैं। ठीक है ना? अच्छा।
डबल विदेशी
डबल विदेशी क्या करेंगे? डबल कमाल करेंगे। डबल विदेशियों की ये विशेषता अच्छी है कि सेवा के बिना उन्हों को चैन नहीं आता, मज़ा नहीं आता। उनको सेवा बहुत चाहिए। और उमंग-उत्साह से चाहे टाइम कम मिलता है, थक भी जाते हैं, स्थूल काम करते हैं, लेकिन फिर भी सेवा के लिए एवररेडी रहते हैं, सेवा के लिए बुलावा हो तो बैठेंगे या भागेंगे? भागेंगे। तो सेवा का उमंग-उत्साह यही आप डबल विदेशी आत्माओं की सेफ्टी का साधन है। सेवा में लगे हुए हो तो माया से भी बचे हुए हो। माया भी देखती है कि इन्हों को फुरसत नहीं है इसलिए वो भी वापस चली जाती है। और दूसरी बात अपने पुरूषार्थ में सच्चाई से अपनी चेकिंग अच्छी करते हैं, वो सच्चाई बापदादा के पास पहुँचती है। और सच्चाई बापदादा को प्रिय है। इसलिए सच्चाई के फलस्वरूप बापदादा द्वारा विशेष मदद भी मिलती है। चाहे कोई कमज़ोरी आ भी जाती है लेकिन बाप और सेवा से प्यार होने के कारण वो भी एक्स्ट्रा हिम्मत की मदद दिलाते हैं। समझा? अच्छा! सभी तरफ के हैं। मौरिशियस ने तो कमाल की। क्योंकि कोई भी विदेशी वी.आई.पी. या आई.पी. इण्डिया में आकर अपने देश से यहाँ का प्रोग्राम सेट करे और कराये-ये एक एक्जैम्पुल मॉरिशियस ने दिखाया। दरवाजा खोल दिया, वी.आई.पी., आई.पी. का। तो मॉरिशियस वालों को मुबारक। कहते हैं, बड़े तो बड़े छोटे शुभान अल्लाह। तो मॉरिशियस ने शुभान अल्लाह करके दिखाया। बहुत अच्छा, मुबारक। अच्छा!
मधुबन, ज्ञान सरोवर, हॉस्पिटल, तलहटी
हर एक अपना नाम समझे। बापदादा अभी मधुबन में तो आते ही रहेंगे। तो हर एक चाहे मधुबन हो, चाहे डबल मधुबन, चाहे उपसेवाकेन्द्र हैं, चाहे गीता पाठशालायें हैं, सभी को बापदादा की याद-प्यार मिल रही है और मिलती रहेगी।
नेपाल
(नेपाल का नाम भूल गये) तो नेपाल भूलने का अर्थ है कि आप गुप्त महारथी हो। छिपे हुए रूस्तम हो। नेपाल तो बापदादा को सदा प्यारा है। क्योंकि नेपाल में गवर्नमेंट की सेवा सहज और अच्छी है भी और होती भी रहेगी। आखिर नेपाल का राजा भी आना ही है। अच्छा, सेवा अच्छी है। हिम्मत वाली टीचर्स हैं। इसने (राज बहन ने) नया जन्म लेकर सेवा का सबूत दिया। शीला को भी खास याद देना। अच्छा।
चारों ओर के पद्मगुणा प्रेम स्वरूप आत्माओं को, सदा स्वयं को निर्विकल्प बनाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा बाप और निर्विघ्न सेवा वे लगन में मग्न रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह में न्योछावर होने वाले सभी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अच्छा! सब खुश! कोई नाराज़ तो नहीं हुआ - मैं नहीं मिला? राज़ को जानने वाले कभी नाराज़ नहीं होते।
दादियों से
देखो आप आदि रत्नों में सभी का प्यार के साथ-साथ शुद्ध मोह बढ़ता जाता है। सभी देखते हैं कि आदि रत्न ठीक हैं तो सब ठीक हैं। तो आप लोगों में सबका शुद्ध मोह बढ़ गया है। बापदादा इन दोनों (चन्द्रमणी दादी, रतनमोहनी दादी) के ऊपर भी खुश हैं। ज्ञान सरोवर की जिम्मेवारी सभांली है। जिम्मेवारी तो क्या, खेल है। भारीपन है क्या? खेल हल्का होता है ना? तो जिम्मेवारी क्या है? खेल है। तो बापदादा खुश है कि समय पर सहयोगी बने हैं और आदि से सहयोगी रहे हैं। आदि से हाँ जी करने वाले हैं - यही साकार बाप का आप सबको विशेष वरदान है। ब्रह्मा बाबा को ‘ना’ शब्द कभी अच्छा नहीं लगता। ये तो मालूम है, अनुभवी हैं।
(ईशू बहन से) इसने आदि से अब तक बहुत अच्छा पार्ट बजाया है। और आपकी (दादी की) तो विशेष सहयोगी है। कोई भी बात में सुनने-सुनाने वाली बहुत अच्छी है क्योंकि गम्भीर रहती है। ये गम्भीरता का गुण बहुत आगे बढ़ाता है। कोई भी बात बोल दी ना, समझो अच्छा किया और बोल दिया तो आधा खत्म हो जाता है, आधा फल खत्म हो गया, आधा जमा हो गया। और जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता है। कहते हैं ना-देखो जगदम्बा गम्भीर रही, चाहे सेवा स्थूल में आप लोगों से कम की, आप लोग ज्यादा कर रहे हो लेकिन ये गम्भीरता के गुण ने फुल खाता जमा किया है। कट नहीं हुआ है। कई करते बहुत हैं लेकिन आधा, पौना कट हो जाता है। करते हैं, कोई बात हुई तो पूरा कट हो जाता है या थोड़ी बात भी हुई तो पौना कट हो जाता है। ऐसे ही अपना वर्णन किया तो आधा कट हो जाता है। बाकी बचा क्या? तो जब जगदम्बा की विशेषता - जमा का खाता ज्यादा है। गम्भीरता की देवी है। ऐसे और सभी को गम्भीर होना चाहिए, चाहे मधुबन में रहते हैं, चाहे सेवाकेन्द्र में रहते हैं लेकिन बापदादा सभी को कहते हैं कि गम्भीरता से अपनी मार्क्स इकट्ठी करो, वर्णन करने से खत्म हो जाती हैं। चाहे अच्छा वर्णन करते हो, चाहे बुरा। अच्छा अपना अभिमान और बुरा किसका अपमान कराता है। तो हर एक गम्भीरता की देवी और गम्भीरता का देवता दिखाई दे। अभी गम्भीरता की बहुत-बहुत आवश्यकता है। अभी बोलने की आदत बहुत हो गई है क्योंकि भाषण करते हैं ना तो जो भी आयेगा वो बोल देंगे। लेकिन प्रभाव जितना गम्भीरता का पड़ता है इतना वाणी का नहीं पड़ता। अच्छा।
(बापदादा को गुलदस्ते भेंट किये) –
ये गुलदस्ते तो क्या हैं, आप एक-एक रूहानी गुलाब सबसे प्यारे हो।
(प्रसिद्ध गायक ओमव्यास जी ने नये गीतों की कैसेट का विमोचन बाबा से कराया) - अच्छा है, ड्रामा ने निमित्त बनाया है और निमित्त बनना ही भाग्य की निशानी है। तो भाग्य बना रहे हो और बनाते ही रहेंगे। अच्छा-ओम् शान्ति।
16-11-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘बापदादा की चाहना - डायमण्ड जुबली वर्ष को लगाव मुक्त वर्ष के रूप में मनाओ’’
आज बापदादा सदा दिल से बाप की याद में रहने वाले अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों से मिलने आये हैं। जितना बच्चों का स्नेह है उतना बाप का भी स्नेह बच्चों से है। बाप सभी बच्चों को एक जैसा अति स्नेह देते हैं। लेकिन बच्चे अपने-अपने शक्ति अनुसार स्नेह को धारण करते हैं। इसीलिए बाप को भी कहना पड़ता है नम्बरवार याद-प्यार। लेकिन बाप सभी बच्चों को नम्बरवन दिल का प्यार अमृतवेले से लेकर देते हैं। इसलिए अमृतवेला विशेष बच्चों के लिए ही रखा हुआ है। क्योंकि अमृतवेला सारे दिन का आदि समय है। तो जो बच्चे आदि समय पर बाप का स्नेह दिल में धारण कर लेते हैं तो दिल में परमात्म स्नेह समाया हुआ होने के कारण और कोई स्नेह आकर्षित नहीं करता है। अगर अपने स्थिति अनुसार पूरा दिल भर करके दिल में स्नेह नहीं धारण करते, थोड़ा भी खाली है, अधूरा लिया है तो दिल में जगह होने के कारण माया भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह, चाहे व्यक्ति, चाहे वैभव-दोनों रूप में उन स्नेहों में आकर्षित कर लेती है।
कई बच्चे बापदादा से कहते हैं कि हमारे पास अभी तक भी माया क्यों आती है? जब मास्टर सर्वशक्तिमान बन गये तो माया के आने का क्वेश्चन ही नहीं है। लेकिन कारण है कि आदि काल अमृतवेले अपने दिल में परमात्म स्नेह सम्पूर्ण रूप से धारण नहीं करते। अगर कोई भी चीज़ अधूरी भरी हुई है, कहाँ भी खाली है तो हलचल तो होगी ना! बैठते भी हो, उठते भी हो, लक्ष्य भी है और कहते भी हो कि एक बाप, दूसरा न कोई....... यह दिल से कहते हो या मुख से? तो फिर दिल में और आकर्षण का कारण क्या है? ज़रुर कहाँ और व्यक्ति या वैभव की तरफ स्नेह जाता है तब वो आकर्षित करती है। दिल में सम्पूर्ण परमात्म प्यार पूरा भरा हुआ नहीं होता है। आप सोचो-अगर एक हाथ में आपको कोई हीरा देवे और दूसरे हाथ में मिट्टी का गोला देवे तो आपकी आकर्षण कहाँ जायेगी? हीरे में जायेगी, मिट्टी में नहीं! मिट्टी से भी खेलना तो अच्छा होता है ना! तो व्यर्थ संकल्प ये भी क्या है? हीरा है या मिट्टी है? तो मिट्टी से खेलते तो हो ना! आदत पड़ी हुई है इसीलिए! व्यक्ति भी क्या है? मिट्टी है ना! मिट्टी-मिट्टी में मिल जाती है। देखने में आपको बहुत सुन्दर आता है, चाहे सूरत से, चाहे कोई विशेषता से, चाहे कोई गुण से, तो कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं है, स्नेह नहीं है लेकिन इनका ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह है, शब्द नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है-ये होता तो बहुत अच्छा.... ये भी आकर्षण है। व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौन? वो व्यक्ति या बाप देता है? कौन देता है? तो व्यक्ति बहुत अच्छा है, अच्छा है वो ठीक है लेकिन जब कोई भी विशेषता को देखते हैं, गुणों को देखते हैं, सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी लेवता है, दाता नहीं है। बिना बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती है? या वह विशेषता अज्ञान से ही ले आता है? ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती। अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो ज्ञान भरने वाला कौन? बाप। तो किसकी देन हुई, दाता कौन? तो आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है? तो लेवता के पीछे क्यों भागते हो?
बाप के आगे या दादियों के आगे बहुत मीठा-मीठा बोलते हैं, कहेंगे दादी मेरा कुछ लगाव नहीं, बिल्कुल नहीं, सिर्फ सेवा के कारण थोड़ा सा है। थोड़ा सा कहकर अपने को छुड़ा लेते हैं। लेकिन ये लगाव चाहे गुण का हो, चाहे सेवा का हो लेकिन लगाव आज नहीं तो कल कहाँ ले जायेगा? कोई को तो लगाव पुरानी दुनिया तक भी ले जाता है लेकिन मैजारिटी पुरानी दुनिया तक नहीं जाते हैं, थोड़े जाते हैं। मैजारिटी को लगाव पुरूषार्थ में अलबेलेपन की तरफ ले जाता है। फिर सोचते हैं कि ये तो थोड़ा-बहुत होता ही है फिर बाप को भी समझाने लगते हैं-कहते हैं बाबा आप तो साकार में हो नहीं, ब्रह्मा बाबा भी अव्यक्त हो गया और आप तो हो ही बिन्दी, ज्योति। अभी हम तो साकार में हैं, इतना मोटा-ताजा शरीर है और शरीर से सब करना है, चलना है, तो हम हैं साकार और आप आकार और निराकार हो, अभी साकार में कोई तो चाहिए ना! अच्छा बहुत नहीं, एक तो चाहिए ना! एक भी नहीं चाहिए? देखना बापदादा तो कहते हैं एक चाहिए। नहीं चाहिए? (एक बाबा चाहिए) बाप तो है ही लेकिन कई बार मन में कई बातें आ जाती है और मन भारी हो जाता है, जब तक मन को हल्का नहीं करते हैं तो योग भी नहीं लगता। फिर क्या करें? बाप का भी क्वेश्चन है कि ऐसे टाइम पर क्या करें? मन भारी है और योग लगता नहीं है तो क्या करें? उल्टी नहीं करे, अन्दर ही मचलता रहे? डॉक्टर्स लोग क्या कहते हैं? अगर पेट भारी हो जाये तो उल्टी करके निकालनी चाहिए या अन्दर ही रखनी चाहिए? डॉक्टर्स क्या कहते हैं? उल्टी करनी चाहिए ना? तो डॉक्टर भी कहते हैं उल्टी करनी चाहिए। अच्छा।
ये तो हुआ तन का डॉक्टर और आप सभी मन के डॉक्टर हो। तो तन वाले ने अपना जवाब दिया, अभी मन के डॉक्टर बताओ-अगर मन में कोई उलझन हो तो कहाँ उल्टी करें? बाबा के सामने उल्टी करेंगे! (बाबा के कमरे में जाकर करें) कमरे में उल्टियाँ करके आवें! सोचो! बाप के आगे उल्टी करेंगे? नहीं तो कहाँ करे? कोई स्थान तो बताओ ना? बापदादा तो बच्चों का तरफ लेता है कि उस समय तो कोई चाहिए ज़रुर। (बाबा को सुनायें) अगर बाप सुनता ही नहीं, तो क्या करें? कई बच्चों की कंप्लेंट है ना कि हमने तो बाबा को सुनाया, बाबा ने सुना ही नहीं, जवाब ही नहीं दिया। फिर क्या करें? वास्तव में अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल है, ज़रा भी खाली नहीं है तो कभी भी किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता।
कई कहते हैं लगाव नहीं है लेकिन सिर्फ अच्छा लगता है तो इसको कौन-सी लाइन कहेंगे? लगाव नहीं है, अच्छा लगता है तो ये क्या है? इतनी छुट्टी दें कि अच्छा भले लगे, लगाव नहीं है, उनसे बैठना, उनसे बात करना, उनसे सेवा कराना वो अच्छा लगता है, तो ये छुट्टी दें? जो समझते हैं थोड़ी-थोड़ी देनी चाहिए, अभी सम्पूर्ण तो बने नहीं हैं, पुरूषार्थ कर रहे हैं, थोड़ी छुट्टी होनी चाहिए! वह हाथ उठायें। अभी हाथ तो उठायेंगे नहीं, क्योंकि शर्म आयेगी ना! लेकिन अगर आप समझते हो कि थोड़ी सी छुट्टी होनी चाहिए तो दादी को प्रायवेट चिटकी लिखकर दे देना। ऐसे नहीं कहना कि दादी पांच मिनट बात करना है, इसमें तो फिर टाइम चाहिए। चिटकी में लिख दो तो बापदादा उनका अच्छा संगठन करेंगे। और ही अच्छा हो जायेगा ना! अच्छा, अभी सब ना कर रहे हैं और सभी का वीडियो निकल रहा है। यदि ना करके फिर करेंगे तो वो कैसेट भेजेंगे कि आपने ना किया था फिर क्यों किया? भेजनी पड़ेगी या सेफ रहेंगे? पक्का या थोड़ा-थोड़ा कच्चा, थोड़ा-थोड़ा पक्का!
उस दिन भी सुनाया कि ये सीज़न डायमण्ड जुबली का आरम्भ करने वाली है तो इस सीज़न में आप लोगों ने तो कांफ्रेंस का, भाषणों का, मेलों का बहुत प्रोग्राम बनाया है लेकिन बापदादा विशेष इस डायमण्ड जुबली में एक प्रोग्राम बनाना चाहते हैं, तैयार हो?
बापदादा चाहते हैं कि डायमण्ड जुबली में जिस बच्चे को देखें-चाहे दो वर्ष का है, चाहे साठ वर्ष का है, चाहे दो मास का है, चाहे टीचर है, चाहे स्टूडेण्ट है, चाहे समर्पण है, चाहे प्रवृत्ति में है लेकिन डायमण्ड जुबली के वर्ष में, ये जो बाप के साथ आप सबने भी पान का बीड़ा उठाया है कि पवित्रता द्वारा हम प्रकृति को भी पावन करेंगे। तो ये संकल्प है या बाप को करना है? बाप के साथी हैं? थोड़ा सा हाथ ऐसे रख देते हैं, चतुराई करते हैं। ऐसे नहीं करना। तो बापदादा चाहते हैं कि सारे विश्व में हर एक बच्चा लगाव मुक्त बने - चाहे साधनों से, चाहे व्यक्ति से। साधनों से भी लगाव नहीं। यूज़ करना और चीज़ है और लगाव अलग चीज़ है। तो बापदादा लगाव-मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। ये फंक्शन करना चाहते हैं। तो इस फंक्शन में आप लोग साथी बनेंगे? फिर ये तो नहीं कहेंगे कि यह कारण हो गया! कोई भी कारण हो, चाहे हिमालय का पहाड़ भी गिर जाये, लेकिन आप उस हिमालय के पहाड़ से भी किनारे निकल आओ। इतनी हिम्मत है? पहले टीचर्स बोलो। स्टूडेण्ट खुश होते हैं कि हमारी टीचर्स को बापदादा कहता है। और टीचर्स तो सहयोग के लिए सदा साथी हैं ही ना। क्योंकि आगे चलकर आजकल की दुनिया में ये सभी जो भी अपने को धर्म आत्मा, महान आत्मा कहलाते हैं उन्हों की भी पवित्रता के फाउण्डेशन हिलेंगे। और ऐसे टाइम पर आदि में जब ब्रह्मा बाप निमित्त बने तो गाली किस बात के कारण खाई? पवित्रता के कारण ना। नहीं तो कोई बड़े आयु वाले की भी हिम्मत नहीं थी जो ब्रह्मा बाप के पास्ट लाइफ में भी कोई अंगुली उठाए। ऐसी पर्सनालिटी थी। लेकिन पवित्रता के कारण गाली खानी पड़ी। और इस परमात्म ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है। फ़लक से कहते हैं ना कि आग-कापूस इकठ्ठा रहते भी आग नहीं लग सकती। चैलेन्ज है ना! जो युगल हैं वो हाथ उठाओ। तो आप सभी युगलों की ये चैलेन्ज है या थोड़ी-थोड़ी आग लगेगी फिर बुझा देंगे? वर्ल्ड को चैलेन्ज है ना! सारे विश्व को आप लोग भाषणों में कहते हो कि पवित्रता के बिना योगी तू आत्मा, ज्ञानी तू आत्मा बन ही नहीं सकते। ये आप सबकी चैलेन्ज है ना? जो युगल समझते हैं कि मेरी ये चैलेन्ज है वो हाथ उठाओ।अच्छा है - एक ही ग्रुप में साथी तो बहुत हैं। तो डायमण्ड जुबली में क्या करेंगे? लगाव मुक्त। क्रोधमुक्त का किया ना। थोड़ा-थोड़ा क्रोध तो बापदादा ने भी कइयों में देखा, लेकिन इस बारी थोड़ा का छोड़ दिया। फिर भी चाहे देश, चाहे विदेश में जिन्होंने अटेन्शन रखा और सम्पूर्ण रूप से क्रोध मुक्त जीवन का प्रैक्टिकल में अनुभव किया, करके दिखाया, उन सबको बापदादा पद्मगुणा से भी ज्यादा मुबारक देते हैं। क्योंकि इस समय चाहे विदेश वाले, चाहे देश वाले, सबके बुद्धि रूपी टेलीफोन यहाँ मधुबन में लगे हुए हैं। अभी सबका कनेक्शन मधुबन में है। तो सभी ने यह अनुभव तो किया ही होगा कि जिन्हों ने अच्छी तरह से दृढ़ संकल्प किया - उन्हों को बापदादा की तरफ से विशेष एक्स्ट्रा मदद भी मिली है। तो ऐसे नहीं समझना कि एक साल तो क्रोध को खत्म किया, अभी तो फ्री हैं। नहीं। अगर सम्पूर्ण लगाव मुक्त अनुभव करेंगे तो क्रोध मुक्त ऑटोमेटिकली हो जायेंगे। क्यों? क्रोध भी क्यों होता है? जिस बात को, जिस चीज़ को आप चाहते हो और वो पूर्ण नहीं होता है या प्राप्त नहीं होता है तो क्रोध आता है ना! क्रोध का कारण - आपके जो संकल्प हैं वो चाहे उल्टे हों, चाहे सुल्टे हों लेकिन पूर्ण नहीं होंगे - तो क्रोध आयेगा। मानो आप चाहते हो कि कांफ्रेंस होती है, फंक्शन होते हैं तो उसमें हमारा भी पार्ट होना चाहिए। आख़िर भी हम लोगों को कब चांस मिलेगा? आपकी इच्छा है और आप इशारा भी करते हैं लेकिन आपको चांस नहीं मिलता है तो उस समय चिड़चिड़ापन आता है कि नहीं आता है? चलो, महा क्रोध नहीं भी करो, लेकिन जिसने ना की उनके प्रति व्यर्थ संकल्प भी चलेंगे ना? तो वह पवित्रता तो नहीं हुई। ऑफर करना, विचार देना इसके लिए छुट्टी है लेकिन विचार के पीछे उस विचार को इच्छा के रूप में बदली नहीं करो। जब संकल्प इच्छा के रूप में बदलता है तब चिड़चिड़ापन भी आता है, मुख से भी क्रोध होता है वा हाथ पांव भी चलता है। हाथ पांव चलाना-वह हुआ महाक्रोध। लेकिन निस्वार्थ होकर विचार दो, स्वार्थ रखकर नहीं कि मैंने कहा तो होना ही चाहिए-ये नहीं सोचो। ऑफर भले करो, ये रांग नहीं है। लेकिन क्यों-क्या में नहीं जाओ। नहीं तो ईर्ष्या, घृणा - ये एक-एक साथी आता है। इसलिए अगर पवित्रता का नियम पक्का किया, लगाव मुक्त हो गये तो यह भी लगाव नहीं रखेंगे कि होना ही चाहिए। होना ही चाहिए, नहीं। ऑफर किया ठीक, आपकी निस्वार्थ ऑफर जल्दी पहुँचेगी। स्वार्थ या ईर्ष्या के वश ऑफर और क्रोध पैदा करेगी। तो टीचर्स क्या करेंगी? 100 परसेन्ट लगाव मुक्त। बोलो हाँ या ना? फॉरेनर्स बोलो, हाँ जी।
बापदादा को तो अपने टी.वी. में बहुत नई-नई बातें दिखाई देती हैं। अभी 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं तो अब तक जो बातें नहीं हुई थी वो नये-नये खेल भी बहुत दिखाई देते हैं। इस सीज़न में एक-एक करके वर्णन करेंगे। लेकिन याद रखना अगर किसी के प्रति भी स्वप्न मात्र भी लगाव हो, स्वार्थ हो तो स्वप्न में भी समाप्त कर देना। कई कहते हैं कि हम कर्म में नहीं आते लेकिन स्वप्न आते हैं। लेकिन अगर कोई व्यर्थ वा विकारी स्वप्न, लगाव का स्वप्न आता है तो अवश्य सोने के समय आप अलबेलेपन में सोये। कई कहते हैं कि सारे दिन में मेरा कोई संकल्प तो चला ही नहीं, कुछ हुआ ही नहीं फिर भी स्वप्न आ गया। तो चेक करो-सोने समय बापदादा को सारे दिन का पोतामेल देकर, खाली बुद्धि हो करके नींद की? ऐसे नहीं कि थके हुए आये और बिस्तर पर गये और गये -ये अलबेलापन है। चाहे विकर्म नहीं किया और संकल्प भी नहीं किया लेकिन ये अलबेलेपन की सज़ा है। क्योंकि बाप का फरमान है कि सोते समय सदा अपने बुद्धि को क्लीयर करो, चाहे अच्छा, चाहे बुरा, सब बाप के हवाले करो और अपने बुद्धि को खाली करो। दे दिया बाप को और बाप के साथ सो जाओ, अकेले नहीं। अकेले सोते हो ना तभी स्वप्न आते हैं। अगर बाप के साथ सोओ तो कभी ऐसे स्वप्न भी नहीं आ सकते। लेकिन फरमान को नहीं मानते हो तो फरमान के बदले अरमान मिलता है। सुबह को उठकर के दिल में अरमान होता है ना कि मेरी पवित्रता स्वप्न में खत्म हो गई। ये कितना अरमान है! कारण है अलबेलापन। तो अलबेले नहीं बनो। जैसे आया वैसे यहाँ वहाँ की बातें करते-करते सो जाओ, क्योंकि समाचार तो बहुत होते हैं और दिलचश्प समाचार तो व्यर्थ ही होते हैं। कई कहते हैं-और तो टाइम मिलता ही नहीं, जब साथ में एक कमरे में जाते हैं तो लेन-देन करते हैं। लेकिन कभी भी व्यर्थ बातों का वर्णन करते-करते सोना नहीं, ये अलबेलापन है। ये फरमान को उल्लंघन करना है। अगर और टाइम नहीं है और जरूरी बात है तो सोने वाले कमरे में नहीं, लेकिन कमरे के बाहर दो सेकण्ड में एक-दो को सुनाओ, सोते-सोते नहीं सुनाओ। कई बच्चों की तो आदत है, बापदादा तो सभी को देखते हैं ना कि सोते कैसे हैं? एक सेकण्ड में बापदादा सारे विश्व का चक्कर लगाते हैं, और टी.वी. से देखते हैं कि सो कैसे रहे हैं, बात कैसे कर रहे हैं ... सब बापदादा देखते हैं। बापदादा को तो एक सेकण्ड लगता है, ज्यादा टाइम नहीं लगता। हर एक सेन्टर, हर एक प्रवृत्ति वाले सबका चक्कर लगाते हैं। ऐसे नहीं सिर्फ सेन्टर का, आपके घरों का भी टी.वी. में आता है। तो जब आदि अर्थात् अमृतवेला और अन्त अर्थात् सोने का समय अच्छा होगा तो मध्य स्वत: ही ठीक होगा। समझा? और बातें करते-करते कई तो बारह साढ़े बारह भी बजा देते हैं। मस्त होते हैं, उनको टाइम का पता ही नहीं। और फिर अमृतवेले उठकर बैठते हैं तो आधा समय निद्रालोक में और आधा समय योग में। क्योंकि जो अलबेले होकर सोये तो अमृतवेला भी तो अलबेला होगा ना! ऐसे नहीं समझना कि हमको तो कोई देखता ही नहीं है। बापदादा देखता है। यह निद्रा भी बहुत शान्ति वा सुख देती है, इसीलिए मिक्स हो जाता है। अगर पूछेंगे तो कहेंगे-नहीं, मैं बहुत शान्ति का अनुभव कर रहा था। देखो, नींद को भी आराम कहा जाता है। अगर कोई बीमार भी होता है तो डॉक्टर लोग कहते हैं - आराम करो। आराम क्या करो? नींद करो टाइम पर। तो निद्रा भी आराम देने वाली है। फ़्रेश तो करती है ना। तो नींद से फ़्रेश होकर उठते हैं ना तो कहते हैं आज (योग में) बहुत फ़्रेश हो गये। अच्छा!
सभी दूर-दूर से आये हैं। जो इस ग्रुप में पहली बारी आये हैं वो हाथ उठाओ। जो छोटे बच्चे होते हैं ना वो बड़ों से और ही प्यारे होते हैं। लेकिन जो नये-नये आये हो वो मेकप करना। जो बड़ों ने 10 साल में किया वो आप 10 दिन में करना। और कर सकते हो क्योंकि बापदादा समझते हैं कि जब नये नये आते हैं ना तो उमंग-उत्साह बहुत होता है और जितने पुराने होते हैं तो..... समझ गये पुराने! इसलिए कहने की जरूरत क्या है! सभी नये, चाहे कुमारियाँ हैं, चाहे कुमार हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं, प्रवृत्ति वालों को तो इन सभी महात्माओं को चरणों में झुकाना है। सब आपके गुण गायेंगे कि ये प्रवृत्ति में रहते भी निर्विघ्न पवित्रता के बल से आगे बढ़ रहे हैं। एक दिन आयेगा जो आप सबके आगे ये महात्मायें झुकेंगे। लेकिन अपना वायदा याद रखना-लगाव मुक्त रहना। अच्छा।
टीचर्स से
टीचर्स तो हर बात के निमित्त है। हो ना निमित्त-ये बात पक्की है ना! टीचर्स का अर्थ ही है निमित्त। तो अभी भी इस वर्ष - लगाव मुक्त बनने में टीचर्स नम्बर वन निमित्त बनें। ठीक है! पक्का! ताली बजाओ। बापदादा भी आप टीचर्स के प्रति विशेष ताली बजाता है। अच्छा।
कुमारियाँ
कुमारियाँ हाथ उठाओ। कुमारियाँ क्या करेंगी? कुमारियों को अपने जीवन का स्वयं, स्वयं का मित्र बन निर्बन्धन बनाने में नम्बरवन जाना चाहिए। इन कुमारियों की लिस्ट इकट्ठी करो फिर देखेंगे कि सचमुच कितनी निर्बन्धन बनती हैं? कुमारयाँ अगर समझती हो कि हम निर्बन्धन होकर सेवा में निमित्त बनेंगी तो हाथ उठाओ। इन्हों की ट्रेनिंग रखेंगे। अभी तो ज्ञान सरोवर में भी रखते हैं। तो कुमारियाँ क्या बनेंगी? निर्बन्धन। न मन का बन्धन, न सम्बन्ध का बन्धन। डबल बन्धन से मुक्त। अच्छा।
कुमार
कुमार हाथ उठाओ। कुमार तो बहुत हैं। तो कुमार क्या विशेषता दिखायेंगे? कुमार ऐसे अपने को तैयार करो-चाहे अपने-अपने स्थान पर हो लेकिन जहाँ भी हो वहाँ अपने को ऐसा तैयार करो जो आपका 400-500 का ग्रुप बना करके गवर्नमेंट के इन बड़े लोगों से मिलायें कि देखो कि ये इतने यूथ विश्व की सेवा के लिए या भारत की सेवा के लिए डिस्ट्रक्शन का काम न कर, कन्स्ट्रक्शन का काम कर रहे हैं। तो ऐसा ग्रुप बनाओ। तो कितने टाइम में अपने को तैयार करेंगे? क्योंकि गवर्नमेंट यूथ को आगे रखना चाहती है लेकिन उनको ऐसे यूथ मिलते नहीं हैं और बाप के पास तो हैं ना! तो ऑलमाइटी गवर्नमेंट इस हलचल वाली गवर्नमेंट के आगे एक प्रैक्टिकल मिसाल दिखा सकती है। लेकिन कच्चे नहीं होने चाहिए। ऐसा नहीं, आप कहो हम तो बहुत अच्छे चलते हैं और आपके साथी जो हैं वो रिपोर्ट करें कि नहीं, ये तो ऐसे ही कहता है। ऐसे नहीं। पवित्रता के लिए बिगड़ते हैं वो बात अलग है लेकिन दिव्यगुणों की धारणा में आपका प्रभाव घर वालों के ऊपर पड़ना चाहिए। समझा? तो जो समझते हैं हम डायमण्ड जुबली तक तैयार हो जायेंगे वो हाथ उठाओ। अभी थोड़े कम हो गये। अच्छा, टीचर्स रिपोर्ट देना इस डायमण्ड जुबली के बीच में, एण्ड में नहीं। गवर्नमेंट को यूथ दिखायें। अभी तो 8 मास हैं। तो आठ मास ठीक है।
अधरकुमार-कुमारियाँ
अधरकुमार-कुमारियाँ क्या करेंगे? वैसे प्रवृत्ति वालों को एक नया सबूत देना चाहिए। जो घर में हैं, आपकी फैमली है, किसके चार बच्चे होंगे, किसके आठ होंगे, किसके दो होंगे, जो भी हैं लेकिन हर प्रवृत्ति वाले अपने बच्चों को ऐसे मूल्य सिखाकर तैयार करें जो बच्चों का ऐसा धारणा वाला ग्रुप सैम्पुल हो, जो कॉलेज-स्कूल के पढ़े हैं, उनके आगे उन बच्चों को दिखायें। प्रवृत्ति वालों को अपने बच्चों के ग्रुप को तैयार करना चाहिए। जो किसी से भी रिपोर्ट पूछें चाहे उसके टीचर्स से पूछें, चाहे उसके मोहल्ले के दोस्तों से पूछे, सब उसकी रिपोर्ट अच्छी देवें। ऐसे नहीं - आप कहो बहुत अच्छे हैं और टीचर कहे कि ये तो पढ़ते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं। तो प्रवृत्ति वालों को ऐसे बच्चे तैयार करने चाहिए। ज्ञान में आते हैं, अच्छे भी हैं लेकिन उन्हों को थोड़ा और अटेन्शन दिलाकर ऐसा ग्रुप तैयार करो। तो एज्युकेशन का सर्टिफिकेट वो बच्चे हो जायेंगे। नहीं तो एज्युकेशन वाले कहते हैं ना आप सर्टिफिकेट नहीं देते हो। तो आप कहो सर्टिफिकेट देखो ये चैतन्य है। आप कागज का सर्टिफिकेट देते हो, हम आपको चैतन्य का सर्टिफिकेट दिखाते हैं। समझा? ऐसे ही डायमण्ड जुबली नहीं मनानी है। डायमण्ड जुबली में कुछ नवीनता दिखानी है। जो गवर्नमेंट की आँख खुले कि ये क्या है! किसी कार्य में वो ना कर नहीं सके। और ही ऑफर करें, जैसे यहाँ जब महामण्डलेश्वर आये थे तो उन्हों ने क्या ऑफर की? कि हमारे आश्रम ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ चलायें। ऐसे मांगनी की थी ना! तो सभी डिपार्टमेन्ट ऑफर करें कि हमारे डिपार्टमेन्ट में आप लोग ही कर सकते हैं। ऐसा प्रैक्टिकल स्वरूप करना - ये है डायमण्ड जुबली। लेकिन पहला वायदा याद है? क्या बनना है? (लगाव मुक्त) तभी ये सभी हो सकता है। अभी भी बच्चे को मारते रहेंगे तो बच्चा कैसे अच्छा होगा। और आपस में कमज़ोर होते रहेंगे तो महात्मा कैसे चरणों में आयेंगे। जितना-जितना पवित्रता के पिल्लर को पक्का करेंगे उतना-उतना ये पवित्रता का पिल्लर लाइट हाउस का काम करेगा। अच्छा।
डबल विदेशी
डबल विदेशियों में बापदादा को उसमें भी विशेष ब्रह्मा बाप को डबल प्यार है। क्यों डबल प्यार है बताओ? समझते हो डबल प्यार है? क्यों डबल प्यार है? ( लौकिक-अलौकिक डबल काम करते हैं) अच्छा जवाब दिया। लेकिन और भी है, ब्रह्मा बाबा को डबल विदेशियों से विशेष प्यार इसलिए है कि ब्रह्मा बाप हर कार्य में क्विक एक्ज़ाम्पल स्वयं भी रहे और बच्चों को भी बनाया तो डबल विदेशी आते ही कोर्स किया, थोड़ा-सा पक्के हुए और सेन्टर खोल देते हैं। ऐसे करते हो ना? इन्हों की तो बहुत ट्रेनिंग होती है, लेकिन डबल विदेशी सेवा में क्विक एक्ज़ाम्पल हैं। तो ब्रह्मा बाबा को ऐसे बच्चों का बहुत समय से आव्हान था कि ऐसे बच्चे निकलें। तो डबल विदेशी सेवा में ज्यादा टाइम नहीं लगाते। जल्दी लग जाते हैं। कितना भी बिज़ी होते हुए भी सेवा का शौक अच्छा रहता है। अभी भी ये म्यूजियम बनाने के लिए आये हैं। (ज्ञान सरोवर में 5 डबल विदेशी भाई-बहिनें म्यूजियम बना रहे हैं) देखो डबल विदेशियों की विशेषता है तब तो विदेश से खास आप लोगों को बुलाया है। विशेषता तो है ना! ये पूरा ग्रुप अच्छा है। देखो, विशेष आत्मायें हो गये ना, विशेष कार्य के लिए आपको बुलाया गया तो विशेष आत्मायें हो गये। वैसे बापदादा को तो अच्छे लगते ही हो। शिव बाबा को भी अच्छे लगते हो लेकिन ब्राह्मण परिवार को भी अच्छे लगते हो। आप लोगों को देखते हैं ना तो यहाँ भारत वालों को भी नशा रहता है कि देखो हमारा सिर्फ भारत में नहीं, विश्व में है। तो सभी के सिकीलधे हो। अच्छा।
म्यूजियम बनाने वाले ग्रुप को बापदादा ने सम्मुख बुलाया
ये भी ड्रामानुसार विशेष वरदाता का वरदान मिलता है। कोई भी आर्ट है तो आर्ट वरदान समझकर कार्य में लगाओ। ये बाप का वरदान ड्रामानुसार विशेष निमित्त बना है तो उससे कार्य सहज और सफल हुआ ही पड़ा है। ऐसे है ना? तो विशेष वरदानी आत्मायें हैं, उसको उसी विशेषता से कार्य में लगाते रहो। बाप का वरदान है - यह सदा स्मृति में रहे। तो आपके सिर्फ हाथ काम नहीं करेंगे लेकिन बाप की शक्ति आपके हाथों के साथ काम करेगी। बहुत अच्छा है। अच्छा।
अहमदाबाद - महादेव नगर, सेवाकेन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर जिन 19 कुमारियों का समर्पण समारोह मनाया गया, वे सब बापदादा से मिलने मधुबन में आई हैं, उन्हें बापदादा ने सम्मुख बुलाया:- देखो, कुमारियों की वैसे भी महिमा है। भक्ति मार्ग में आप सभी ने कुमारियों के चरण भी धोये होंगे। पूजा भी की होगी और अभी यही कुमारियाँ आप सभी को परमात्म मिलन और परमात्म वर्से के अधिकारी बना रही हैं। सभी कुमारियाँ पक्की हो? फोटो तो निकला हुआ है। कोई कच्चा तो नहीं? कोई पुरानी दुनिया में तो नहीं चले जायेंगे। पक्के हैं! अच्छा।
चारों ओर के दिल में समाये हुए बापदादा के सिकीलधे श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के हर एक फरमान मानने से, स्वयं का और औरों का भी अरमान समर्पित कराने वाले, सदा पवित्रता के पिल्लर को मज़बूत बनाने वाले और पवित्रता की लाइट, लाइट हाउस बन फैलाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं को लगावमुक्त बनाने वाले बाप के समीप आने वाले, रहने वाले सभी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
विदेश में रहने वाले चारों ओर के बच्चों को बापदादा का विशेष याद-प्यार क्योंकि वो यादप्यार के पत्र सदा ही भेजते रहते हैं। जिन्हों ने पत्र भेजा है उन्हों को भी विशेष याद और जिन्हों ने दिल से याद प्यार भेजा है उन्हों को भी विशेष यादप्यार।
25-11-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘परमत, परचिन्तन और परदर्शन से मुक्त बनो और पर-उपकार करो’’
आज बापदादा अपने चारों ओर जो बाप के बच्चे हैं, विशेष हैं, उन सर्व विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। चाहे भारत के वा विदेश के किसी भी कोने में हैं, लेकिन बापदादा सर्व विशेष आत्माओं को समीप देख रहे हैं। बापदादा को अपने विशेष बच्चों को देख हर्ष होता है। जैसे आप बच्चों को बाप को देखकर खुशी होती है ना! खुशी होती है तब तो भाग करके आये हो ना। तो बाप को भी खुशी होती है कि मेरा एक-एक बच्चा विशेष आत्मा है। चाहे बुजुर्ग हैं, अनपढ़ हैं, छोटे बच्चे हैं, युवा हैं, प्रवृत्ति वाले हैं लेकिन सारे विश्व के आगे विशेष हैं। चाहे कितने भी बड़े-बड़े वैज्ञानिक चमत्कार दिखाने वाले भी हैं, चन्द्रमा तक पहुँचने वाले भी हैं लेकिन बाप के विशेष बच्चों के आगे वो भी अन्जान हैं। पांचों ही तत्वों को जान लिया, उन्हों पर विजय भी प्राप्त कर ली लेकिन छोटी सी बिन्दु आत्मा को नहीं जाना। यहाँ छोटे बच्चे से भी पूछेंगे-तुम कौन हो, तो क्या कहेगा? आत्मा हूँ कहेगा ना। आत्मा कहाँ रहती है, वो भी बतायेगा। और वैज्ञानिक से पूछो आत्मा क्या है? आत्मा के ज्ञान को अभी तक जान नहीं सके। तो कितने भी बड़े हिस्ट्री के हिसाब से, इस दुनिया के हिसाब से विशेष हों लेकिन जिसने अपने को नहीं जाना, उससे तो यहाँ का पांच वर्ष वाला बच्चा विशेष हो गया। आप लोगों का शुरू-शुरू का बहुत फ़लक का गीत है, याद है कौन सा गीत है? एक गीत था-कितना भी बड़ा सेठ, स्वामी हो लेकिन अलफ़ को नहीं जाना....। तो कितने भी बड़े हो, चाहे नेता हो, चाहे अभिनेता हो लेकिन अपने आपको नहीं जाना तो क्या जाना? तो ऐसी विशेष आत्मायें हो। यहाँ की अनपढ़ बुजुर्ग माता है और दूसरी तरफ अच्छा महात्मा है लेकिन बुजुर्ग माता फ़लक से कहेगी कि हमने परमात्मा को पा लिया। और महात्मा कहेगा-परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन यहाँ 100 वर्ष के आयु वाली भी निश्चयबुद्धि होगी तो वो क्या कहेगी? तुम ढूंढते रहो, हमने तो पा लिया। तो महात्मा भी आपके आगे क्या है! प्रवृत्ति वाले फ़लक से कहेंगे कि हम डबल पलंग पर सोते, इकट्ठे रहते भी पवित्र हैं, क्योंकि हमारे बीच में बाप है। और महात्मायें क्या कहेंगे? कहेंगे - आग-कापूस इकठ्ठा रहना, यह तो असम्भव लगता है। और आपके लिये क्या है? प्रवृत्तिवाले बताओ-पवित्र रहना मुश्किल है या सहज है? सहज है या कभी-कभी मुश्किल हो जाता है? जो पक्के हैं वो तो बड़ी सभा हो या कुछ भी हो फ़लक से कह सकते हैं कि पवित्रता तो हमारा स्वधर्म है। परधर्म नहीं है, स्वधर्म है। तो स्व सहज होता है, पर मुश्किल होता है। अपवित्रता परधर्म है लेकिन पवित्रता स्वधर्म है। तो ऐसे अपनी विशेषता को जानते हो ना? क्योंकि नये-नये भी बहुत आये हैं ना? लेकिन कितने भी नये हैं पवित्रता का पाठ तो पक्का है ना? कई बच्चे ऐसा भी करते हैं - जब तक बाप से मिलने का एक साल पूरा नहीं होता, सबको पता है कि यह नियम पक्का है, तो मधुबन में आने तक तो ठीक रहते हैं लेकिन देख लिया, पहुँच गये, तो कई वापस जाकर अलबेले भी हो जाते हैं लेकिन सोचो कि पवित्रता की प्रतिज्ञा किससे की? बाप से की ना? बाप का फरमान है ना? तो बाप से प्रतिज्ञा कर और फिर अगर अलबेले होते हैं तो नुकसान किसको होगा? ब्राह्मण परिवार में तो एक जाते, 10 आते हैं। लेकिन नुकसान कमज़ोर होने का, उन आत्माओं को होता है इसलिए जो भी नये-नये पहली बार आये हैं वो बाप के घर में तो पहुँच गये-यह तो भाग्य की बात है ही लेकिन तकदीर की लकीर को कभी भी कम नहीं करना। तकदीर को बड़ा करना।
अच्छा, जितने भी आये हैं, सबका नाम रजिस्टर में तो है ही। रजिस्टर में अपना नाम पक्का कराया है या थोड़ा-थोड़ा कच्चा है? अच्छा, जो भी नये जहाँ से भी आये हैं, टीचर्स के पास तो लिस्ट है ही और प्रेजेन्ट मार्क भी डालते हैं या नहीं डालते? कौन-सा सेन्टर है जहाँ प्रेजेन्ट मार्क नहीं पड़ती हो, कोई सेन्टर है? टीचर सच बताओ। कभी नींद आ जाती होगी, कभी बीमार हो गये, कभी क्लास में पहुँच नहीं सके, तो रोज़ की प्रेजेन्ट मार्क पड़ती है? जो टीचर्स कहती हैं रोज का रजिस्टर और प्रेजेन्ट मार्क है वो हाथ उठाओ। अच्छा, रेग्युलर है या कभी-कभी? कि दो-तीन दिन मिस हो जाता है? सब टीचर्स पास हैं तो ताली बजाओ। तो अभी क्या करना - जो भी आप नये लाये हैं, चाहे भाई, चाहे बहनें, उनका तीन-चार मास के बाद, क्योंकि पहले थोड़ा नशा रहता है, पीछे धीरे-धीरे कम होता है, तो चार मास के बाद जितने नये आये, उतने कायम हैं या चक्कर लगाने गये हैं कहाँ? यह रिज़ल्ट लिखना। क्योंकि कई चक्कर लगाने भी जाते हैं। दो साल की माया की यात्रा करके फिर यहाँ पहुँचते हैं। तो रिज़ल्ट में सिर्फ यह दो शब्द लिखना कि 60 आये और 60 ही हैं। या 60 आये 40 हैं। सिर्फ ये दो अक्षर विशेष रतनमोहिनी के नाम से अलग लिखना। बाहर में (लिफाफे पर) ब्रह्माकुमारीज़ तो लिखेंगे लेकिन बड़े अक्षरों में रतनमोहिनी लिखना, अन्दर नहीं। तो समझेंगे इसका है, नहीं तो उसके पास (ईशू के पास) पोस्ट बहुत आ जाती है। देखेंगे, कितनी विशेष आत्मायें अपनी विशेषता दिखाती हैं?
देखो, कोई भी बच्चा लौकिक में भी पैदा होता है तो सभी क्या कहते हैं? सदा ज़िन्दा रहे, बड़ी आयु रहे। तो बापदादा भी विशेष आत्माओं की अविनाशी विशेषता देखना चाहते हैं। थोड़े टाइम की नहीं। एक साल चले, दो साल चले-ये नहीं। अविनाशी रहने वाले को ही अविनाशी प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो मातायें भी पक्की हैं? क्योंकि चाहे आप एक साल के हो या दो साल के हो, चार के हो लेकिन समाप्ति तो एक ही समय होनी है ना! विनाश तो इकठ्ठा ही होगा ना! कि आप कहेंगे कि हम तो दो साल के हैं हमारी सिल्वर जुबली हो जावे, पीछे विनाश होवे! यह तो नहीं होगा ना। इसलिए पीछे आने वाले को और आगे जाना है। थोड़े समय में बहुत कमाई कर सकते हो। फिर भी आप लोगों को पुरूषार्थ का समय मिला है। आगे चल करके तो इतना समय भी नहीं मिलेगा। सुनाया था ना कि अभी लेट का बोर्ड तो लग गया है लेकिन टू लेट का नहीं लगा है। तो आप सभी लक्की हो। सिर्फ अपने भाग्य को स्मृति में रखते हुए बढ़ते चलना। कोई बातों में नहीं जाना।
आज बापदादा देख रहे थे कि बच्चों के पुरूषार्थ का समय वेस्ट क्यों जाता है? चाहता कोई नहीं है, सब चाहते हैं कि हमारा समय सफल हो लेकिन बीच-बीच में कहाँ आधा घण्टा, कहाँ 15 मिनट, कहाँ 5 मिनट वेस्ट चला जाता है। तो उसका कारण क्या? आज बापदादा ने देखा कि मैजारिटी का विशेष पुरूषार्थ जो कम या ढीला होता है उसके तीन कारण हैं। पहले भी सुनाया है, नई बात नहीं है लेकिन डायमण्ड जुबली में विशेष क्या अटेन्शन दो वो बापदादा शुरू से सुना रहे हैं तो तीन कारण –
पहला, चलते-चलते श्रीमत के साथ-साथ आत्माओं की परमत मिक्स कर देते हैं। कोई ने कोई बात सुना दी और आप समझते हो कि सुनाने वाला तो अच्छा, सच्चा महारथी है और आपका उस पर फेथ भी है, जब ऐसी कोई आत्मा आपको कोई ऐसी बातें सुनाती है जिसमें इन्टरेस्ट भी आता है, समाचार तो अच्छा है.... जैसे संसार समाचार अच्छा लगता है ना तो ब्राह्मण संसार समाचार भी अच्छा लगता है, तो आपने उस पर फेथ रख करके वो बात सुन ली माना अपने अन्दर समा ली, कट नहीं किया, तो बात सच्ची भी है, समाचार सच्चा भी होता है, सब झूठा नहीं होता, कोई सच्चा भी होता है लेकिन बाप का फरमान क्या है? कि ऐसे समाचार भले सुनो - ये है फरमान? नहीं, जिससे आपका कोई कनेक्शन नहीं है, सिर्फ दिलचस्प समाचार है, आप कर कुछ नहीं सकते, सिर्फ सुन लिया तो वह समाचार बुद्धि में तो गया, टाइम वेस्ट तो हुआ या नहीं? और बाप की श्रीमत में परमत मिक्स कर दी। क्योंकि बाप की आज्ञा है - सुनते हुए नहीं सुनो। तो आपने सुना क्यों? उसकी आदत डाली। मानो एक बारी आपको समाचार सुनाया, आपको भी बहुत अच्छा लगा, नई बात है, ऐसा भी होता है-ये पता तो पड़ गया, लेकिन अगर एक बारी आपने उनकी बात सुनी तो दूसरे बारी वो कहाँ जायेगा? आपके पास आयेगा। आप उसके लिए कूड़े का डिब्बा बन गये ना! जो भी ऐसा समाचार होगा वो आपके पास ही आकर सुनायेगा। क्योंकि आपने सुना! इसलिए या तो उसको समझाओ, ऐसी बातों से उसको भी मुक्त करो। सुन करके इन्टरेस्ट नहीं बढ़ाओ लेकिन अगर सुनते हो तो आपमें इतनी ताकत हो जो उसको भी सदा के लिए फुल स्टॉप लगा दो। अपने अन्दर भी फुल स्टॉप लगाओ। जिस व्यक्ति का समाचार सुना उसके प्रति दृष्टि में वा संकल्प में भी घृणा भाव बिल्कुल नहीं हो। इतनी पॉवर आपमें है तो यह सुनना नहीं हुआ, उसका कल्याण करना हुआ। लेकिन रिज़ल्ट में देखा जाता है मैजारिटी थोड़ा-थोड़ा किचड़ा इकठ्ठा होते-होते ये घृणा भाव या चाल-चलन में अन्तर आ जाता है। और कुछ भी नहीं होगा तो भी उस आत्मा के प्रति सेवा करने की भावना नहीं होगी, भारीपन होगा। इसको कहा जाता है-श्रीमत में परमत मिलाना। समाचार तो बापदादा भी सुनते हैं, लेकिन होता क्या है? मैजारिटी का भाव बदल जाता है। सुनाने में भी भाव बदल जाता है। एक आकर कहता है मैंने देखा कि ये दो बात कर रहे थे और एक का सुना हुआ दूसरा फिर कहते हैं नहीं-नहीं खड़े भी थे और बहुत अच्छी तरह से नहीं खड़े थे, दूसरा एडीशन हुआ। फिर तीसरा कहेगा इन्हों का तो होता ही है। कितना भाव बदल गया। उन्हों की भावना क्या और बातों में भाव कितना बदल जाता है। तो ये परमत वायुमण्डल को खराब कर देता है। तो जो टाइम वेस्ट जाता है उसका एक कारण परमत और दूसरा कारण है परचिन्तन। एक से बात सुनी तो आठ-दस को नहीं सुनावे, यह नहीं हो सकता। अगर कोई दूरदेश में भी होगा ना तो भी उसको पत्र में भी लिख देंगे-यहाँ बहुत नई बात हुई है, आप आयेंगे ना तो ज़रुर सुनायेंगे। तो ये क्या हो गया? परचिन्तन। समझो आपने चार को सुनाया, उन चार की भावना उस आत्मा के प्रति आपने खराब तो की ना और परचिन्तन शुरू हुआ तो इसकी गति बड़ी फास्ट और लम्बी होती है।
परचिन्तन एक-दो सेकण्ड में पूरा नहीं होता। जैसे बापदादा सुनाते हैं कि जब किसको भी ज्ञान सुनाओ तो इन्टरेस्ट दिलाने के लिए उसको कहानी के रीति से सुनाओ। पहले ये हुआ, फिर क्या हुआ, फिर क्या हुआ, फिर क्या हुआ.....। तो इन्टरेस्ट बढ़ता है ना। ऐसे जो परचिन्तन होता है वो भी एक इन्ट्रेस्टेड होता है। उसमें दूसरा ज़रुर सोचेगा, फिर क्या हुआ, फिर ऐसे हुआ, हाँ ऐसे हुआ होगा.... तो ये भी कहानी बड़ी लम्बी है। बापदादा तो सबकी दिल की बातें सुनते भी हैं, देखते भी हैं। कोई कितना भी छिपाने की कोशिश करे सिर्फ बापदादा कहाँ-कहाँ लोक संग्रह के अर्थ खुला इशारा नहीं देते, बाकी जानते सब हैं, देखते सब हैं। कोई कितना भी कहे कि नहीं, मैं तो कभी नहीं करता, बापदादा के पास रजिस्टर है, कितने बार किया, क्या-क्या किया, किस समय किया, कितनों से किया - यह सब रजिस्टर है। सिर्फ कहाँ-कहाँ चुप रहना पड़ता है। तो दूसरी बात सुनाई-परचिन्तन। उसका स्वचिन्तन कभी नहीं चलेगा। कोई भी बात होगी, परचिन्तन वाला अपनी ग़लती भी दूसरे पर लगायेगा। और परचिन्तन वाले बात बनाने में नम्बरवन होते हैं। पूरी अपनी ग़लती दूसरे के प्रति ऐसे सिद्ध करेंगे जो सुनने वाले बड़ों को भी चुप रहना पड़ता है। तो स्वचिन्तन इसको नहीं कहा जाता है कि सिर्फ ज्ञान की पॉइन्ट्स रिपीट कर दीं या ज्ञान की पॉइन्ट्स सुन लीं, सुना दीं-सिर्फ यही स्वचिन्तन नहीं है। लेकिन स्वचिन्तन अर्थात् अपनी सूक्ष्म कमज़ोरियों को, अपनी छोटी-छोटी गलतियों को चिंतन करके मिटाना, परिवर्तन करना, ये स्वचिन्तन है। बाकी ज्ञान सुनना और सुनाना उसमें तो सभी होशियार हो। वो ज्ञान का चिन्तन है, मनन है लेकिन स्वचिन्तन का महीन अर्थ अपने प्रति है। क्योंकि जब रिज़ल्ट निकलेगी तो रिज़ल्ट में यह नहीं देखा जायेगा कि इसने ज्ञान का मनन अच्छा किया या सेवा में ज्ञान को अच्छा यूज़ किया। इस रिज़ल्ट के पहले स्वचिन्तन और परिवर्तन, स्वचिन्तन करने का अर्थ ही है परिवर्तन करना। तो जब फाइनल रिज़ल्ट होगी, उसमें पहली मार्क्स प्रैक्टिकल धारणा स्वरूप को मिलेगी। जो धारणा स्वरूप होगा वो नैचरल योगी तो होगा ही। अगर मार्क्स ज्यादा लेनी है तो पहले जो दूसरों को सुनाते हो, आजकल वैल्यूज़ पर जो भाषण करते हो, उसकी पहले स्वयं में चेकिंग करो। क्योंकि सेवा की एक मार्क तो धारणा स्वरूप की 10 मार्कस होती हैं, अगर आप ज्ञान नहीं दे सकते हो लेकिन अपनी धारणा से प्रभाव डालते हो तो आपके सेवा की मार्कस जमा हो गई ना।
आजकल कई समझते हैं कि हमको सेवा का चांस बहुत कम मिलता है, हमको चांस मिलना चाहिए, दूसरे को मिलता है, मेरे को क्यों नहीं? सेवा करना बहुत अच्छा है क्योंकि अगर बुद्धि फ्री रहती है तो व्यर्थ बहुत चलता है। इसीलिए सेवा में बुद्धि बिज़ी रहे यह साधन अच्छा है। सेवा का उमंग तो अच्छा ही है लेकिन ड्रामानुसार या सरकमस्टांस अनुसार मानों आपको चांस नहीं मिला और आपकी अवस्था दूसरों की सेवा करने की बजाय अपनी भी गिरावट में आ जाये या वो सेवा आपको हलचल में लाये तो वो सेवा क्या हुई? उस सेवा का प्रत्यक्षफल क्या मिलेगा? सच्ची सेवा, प्यार से सेवा, सभी की दुआओं से सेवा, उसका प्रत्यक्षफल खुशी होती है और अगर सेवा में फीलिंग आ गई तो यहाँ ब्राह्मण फीलिंग को क्या कहते हैं? फ्लु। फ्लु वाला क्या करता है? सो जाता है। खाना नहीं खायेगा, सो जायेगा। यहाँ भी फीलिंग आती है तो या खाना छोड़ेगा या रूस करके बैठ जायेगा। तो यह फ्लु हुआ ना। अगर आप धारणा स्वरूप हो, सच्चे सेवाधारी हो, स्वार्था सेवा नहीं। एक होती है कल्याण के भावना की सेवा और दूसरी होती है स्वार्थ से। मेरा नाम आ जायेगा, मेरा अखबार में फोटो आ जायेगा, मेरा टी.वी. में आ जायेगा, मेरा ब्राह्मणों में नाम हो जायेगा, ब्राह्मणी बहुत आगे रखेगी, पूछेगी..... यह सब भाव स्वार्था-सेवा के हैं। क्योंकि आजकल के हिसाब से, प्रत्यक्षता के हिसाब से, अभी सेवा आपके पास आयेगी, शुरू में स्थापना की बात दूसरी थी लेकिन अभी आप सेवा के पिछाड़ी नहीं जायेंगे। आपके पास सेवा खुद चलकर आयेगी। तो जो सच्चा सेवाधारी है उस सेवाधारी को चलो और कोई सेवा नहीं मिली लेकिन बापदादा कहते हैं अपने चेहरे से, अपने चलन से सेवा करो। आपका चेहरा बाप का साक्षात्कार कराये। आपका चेहरा, आपकी चलन बाप की याद दिलावे। ये सेवा नम्बरवन है। ऐसे सेवाधारी जिनमें स्वार्थ भाव नहीं हो। ऐसे नहीं मुझे ही चांस मिले, मेरे को ही मिलना चाहिए। क्यों नहीं मिलता, मिलना चाहिए - ऐसे संकल्प को भी स्वार्थ कहा जाता है। चाहे ब्राह्मण परिवार में आपका नाम नामीग्रामी नहीं है, सेवाधारी अच्छे हो फिर भी आपका नाम नहीं है, लेकिन बाप के पास तो नाम है ना, जब बाप के दिल पर नाम है तो और क्या चाहिए! और सिर्फ बाप के दिल पर नहीं लेकिन जब फाइनल में नम्बर मिलेंगे तो आपका नम्बर आगे होगा। क्योंकि बापदादा हिसाब रखते हैं। आपको चांस नहीं मिला, आप राइट हो लेकिन चांस नहीं मिला तो वो भी नोट होता है। और मांग कर चांस लिया, वो किया तो सही लेकिन वो भी मार्कस कट होते हैं। ये धर्मराज का खाता कोई कम नहीं है। बहुत सूक्ष्म हिसाब-किताब है। इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनो, अपना स्वार्थ नहीं हो। कल्याण का स्वार्थ हो। यदि आपको चांस है और दूसरा समझता है कि हमको भी मिले तो बहुत अच्छा और योग्य भी है तो अगर मानो आप अपना चांस उसको देते हो तो भी आपका शेयर उसमें जमा हो जाता है। चाहे आपने नहीं किया, लेकिन किसको चांस दिया तो उसमें भी आपका शेयर जमा होता है। क्योंकि सच्चा डायमण्ड बनना है ना। तो हिसाब-किताब भी समझ लो, ऐसे अलबेले नहीं चलो, ठीक है, हो गया...... बहुत सूक्ष्म में हिसाब-किताब का चौपड़ा है। बाप को कुछ करना नहीं पड़ता है, ऑटोमेटिक है। कभी-कभी बापदादा बच्चों का चौपड़ा देखते भी हैं। तो पहली बात परमत और दूसरी बात परचिन्तन।
तीसरी बात है परदर्शन। दूसरे को देखने में मैजारिटी बहुत होशियार हैं। परदर्शन - जो देखेंगे तो देखने के बाद वह बात कहाँ जायेगी? बुद्धि में ही तो जायेगी। और जो दूसरे को देखने में समय लगायेगा उसको अपने को देखने का समय कहाँ मिलेगा? बातें तो बहुत होती हैं ना, और जो बातें होती हैं वो देखने में भी आती हैं, सुनने में भी आती हैं, जितना बड़ा संगठन उतनी बड़ी बातें होती हैं। ये बातें क्यों होती हैं? कई सोचते हैं यह बातें होनी नहीं चाहिए। नहीं होनी चाहिये वो ठीक है लेकिन जिसके लिए आप समझ रहे हो नहीं होनी चाहिए, उसमें समय क्यों दिया? और ये बातें ही तो पेपर हैं। जितनी बड़ी पढ़ाई उतने बड़े पेपर भी होते हैं। यह वायुमण्डल बनना - यह सबके लिए पेपर भी है कि परमत या परदर्शन या परचिन्तन में कहाँ तक अपने को सेफ रखते हैं? दो बातें अलग हैं। एक है ज़िम्मेवारी, जिसके कारण सुनना भी पड़ता है, देखना भी पड़ता है। तो उसमें कल्याण की भावना से सुनना और देखना। ज़िम्मेवारी है, कल्याण की भावना है, वो ठीक है। लेकिन अपनी अवस्था को हलचल में लाकर देखना, सुनना या सोचना - यह रांग है। अगर आप अपने को ज़िम्मेवार समझते हो तो ज़िम्मेवारी के पहले अपनी ब्रेक को पॉवरफुल बनाओ। जैसे पहाड़ी पर चढ़ते हैं तो पहले से ही सूचना देते हैं कि अपनी ब्रेक को ठीक चेक करो। तो ज़िम्मेवारी भी एक ऊंची स्थिति है, ज़िम्मेवारी भले उठाओ लेकिन पहले यह चेक करो कि सेकण्ड में बिन्दी लगती है? कि लगाते हो बिन्दी और लग जाता है क्वेश्चनमार्क? वो रांग है। उसमें समय और इनर्जा वेस्ट जायेगी। इसलिए पहले अपना ब्रेक पॉवरफुल करो। चलो - देखा, सुना, जहाँ तक हो सका कल्याण किया और फुलस्टॉप। अगर ऐसी स्थिति है तो ज़िम्मेवारी लो, नहीं तो देखते नहीं देखो, सुनते नहीं सुनो, स्वचिन्तन में रहो। फायदा इसमें है।
तो आज का पाठ क्या हुआ? परमत, परचिन्तन और परदर्शन इन तीन बातों से मुक्त बनो और एक बात धारण करो, वो एक बात है पर-उपकारी बनो। तीन प्रकार की पर को खत्म करो और एक पर - पर-उपकारी बनो। बनना आयेगा? तो किन बातों से मुक्त बनेंगे? मातायें क्या करेंगी? बच्चों के उपकारी या पर-उपकारी? सर्व उपकारी। सहज है या कठिन है? जो नये-नये आये हैं वो समझते हैं यह सहज है कि मुश्किल है? टीचर्स बोलो-सहज है? (हाँ जी) नहीं, बापदादा समझते हैं मुश्किल है। बातें इतनी होती हैं, बड़ा मुश्किल है! अभी यहाँ बैठे हो तो सहज-सहज कह रहे हैं। फिर जब ट्रेन से उतरेंगे और कोई छोटी-मोटी बात हुई तो कहेंगे मुश्किल है। और घर गये, सेन्टर पर गये तो कोई न कोई बात पेपर लेने आयेगी ज़रुर। अच्छा-डबल विदेशियों को सहज लगता है या मुश्किल लगता है? अगर सहज लगता है तो हाथ उठाओ। टीचर्स तो नम्बरवन लेंगी ना? उस समय नहीं कहना कि हमको तो पता ही नहीं था, हमको यह ज्ञान ही नहीं था। इसीलिए बापदादा पहले से ही सुना रहे हैं - किसमें मार्क्स जमा होती है और किसमें मार्क्स कट होती हैं। अगर नम्बर लेना है तो मेकप करो। अभी कोई भी कर सकते हैं। सीट फिक्स कोई नहीं हुई है। सिवाए ब्रह्मा बाप और जगदम्बा के और सब सीट खाली हैं। कोई भी ले सकता है। एक साल वाला भी ले सकता है।
तो सदा क्या याद रखेंगे? अपनी विशेषताओं को याद रखो। विशेष समझेंगे तो यह खेल की बातें होंगी नहीं। तो विशेष हैं और सदा सारे कल्प में विशेष होंगे। और किसी भी धर्म नेता या महात्माओं की ऐसे विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे देवताओं की पूजा होती है, वैसे किसी की भी नहीं होती। नेताओं को तो बिचारों को धूप में लटका देते हैं। अच्छा!
(फिर सभी ज़ोन के भाई बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाये)
अच्छा है, सभी को टर्न मिल जाता है। अभी ज्ञान सरोवर में अच्छे रहे पड़े हो। ज्ञान सरोवर में अच्छे हैं या यहाँ आना चाहते हो? पसन्द है ना? पंजाब को पसन्द है? भोपाल भी वहाँ है। भोपाल को अच्छा लगा? (बहुत अच्छा लगा) अच्छा, तो इन्हों को हमेशा वहीं भेजना। संगम पर इतना अच्छा प्रबन्ध मिला है। सतयुग में तो एक-एक महल ज्ञान सरोवर से भी बड़ा होगा लेकिन अभी संगम पर तो तीन पैर पृथ्वी भी अच्छी। और बापदादा ने तो देखा है। साकार में भी देखा है और वैसे तो देखते ही हैं। दूर भी नहीं है और प्रबन्ध भी अच्छा है। इसीलिए टर्न बाई टर्न किसको देना। दूसरे बारी पंजाब यहाँ आ जायेगा। अच्छा।
कुमारियों से
कुमारियाँ क्या कमाल करेंगी? कमाल करनी चाहिए ना! जो सब करते हैं अगर वही किया तो कमाल क्या हुई? तो ये कुमारियों का ग्रुप क्या करेगा? अगर आप नहीं बतायेंगे तो जो बापदादा बतायेगा वो करना पड़ेगा। नहीं तो आप लोग बता दो। इस डायमण्ड जुबली में कुमारियाँ क्या करेंगी? क्योंकि आप लोगों को तो अभी डायमण्ड जुबली का चांस है। फिर बाद में तो मिलेगा नहीं। तो कुमारियाँ क्या करेंगी, डायमण्ड जुबली को सामने रख करके फिर सोचो। पहले तो वे हाथ उठाओ जिनका लक्ष्य है कि हम सेवा में लगेंगी। खड़ी हो जाओ। अच्छा, इन्हों का फोटो निकालो। ये तो बहुत हैं। तो कुमारियों को क्या करना है? आप लोगों ने तो हाथ उठाया, खड़े भी हो गये और फोटो भी आपका निकल गया तो आप सभी को तो सेवा में लगना चाहिये, ये तो पक्का है ना? कि घर जाकर टीचर को कहेंगी कि नहीं, मैं तो नौकरी करूँगी। ऐसी तो नहीं हो? जिन्हों ने हाथ उठाया वो पक्की हो ना कि नौकरी करने वाली? सेवा करेंगी ना? अच्छा, जो निर्बन्धन है, सिर्फ पढ़ाई का एक साल है या थोड़ा सा है वो हाथ उठाओ, जो निर्बन्धन हो सकती हैं? अच्छा। क्योंकि बापदादा ने कहा है कि अभी समाप्ति का समय समीप आ रहा है। डेट नहीं बतायेंगे। लेकिन समीप आ रहा है उसी प्रमाण सेवा में वृद्धि तो होनी है ना। तो जो भी कुमारियाँ उठी थीं, वो अगर खुद निर्बन्धन नहीं हो सकतीं, कोई कारण है तो अपने कोई न कोई हमजिन्स कुमारी को तैयार ज़रुर करो। मानो आपको घर का बन्धन है। स्वयं अगर निर्बन्धन नहीं हो सकती तो कोई एक को तैयार ज़रुर करो। यह कर सकती हो? एक साल है, एक साल में एक को आप समान नहीं बना सकते? बनाना पड़ेगा ना। तो हर एक कुमारी जो स्वयं सेवा में लगनी है वो लगेंगी लेकिन अगर कोई स्वयं नहीं लग सकती है तो अपने हमजिन्स को तैयार करो। पसन्द है कुमारियों को? हाँ या ना बोलो? सोच रही हैं। अच्छा, पंजाब की कुमारियाँ हाथ उठाओ। पंजाब वाले सब मिलकर बोलो कि ये सेवा करेंगी? पंजाब का शेर कहाँ गया? क्यों आंतकवादियों से घबरा गये क्या? पंजाब को शेर कहते हैं तो शेर तो आगे आना चाहिये ना, घर में थोड़ेही बैठना चाहिए। तो कुमारियों को अपने हम जिन्स को तैयार करना है। क्योंकि देखो भाई सभी हंसते हैं कि कुमारियाँ तीन साल की ट्रायल वाली भी होंगी, और कुमार 40 साल के पुराने होंगे, तो सेन्टर पर रहने वाली कुमारी को दीदी-दादी कहना शुरू कर देते और कुमारों को दादा कोई नहीं कहते। कुमारों की ये रिपोर्ट है ना, उलहना है। अच्छा, कुमार हाथ उठाओ।
कुमारों से
कुमार दादा तो नहीं बनेंगे, दादा तो कोई नहीं कहेगा लेकिन राजा बन सकते हैं। डायमण्ड जुबली में कुमार कम से कम आठ मोतियों का एक-एक कंगन वा माला तैयार करो। अष्ट का गायन है ना। तो आपकी प्रजा बन जायेगी और प्रजा बनाने से आप राजा बन जायेंगे। कुमारियों को दादी-दीदियाँ बनने दो। आप और ही राजा बन जाओ। कुमार तो बहुत हैं, अगर एक-एक आठ भी लावे तो प्रजा बन जायेगी। और प्रजा तैयार हो गई तो आपको राजतिलक ज़रुर मिलेगा। क्योंकि बहुत करके अभी वारिस क्वालिटी कम निकलती है। अगर कुमारों ने एक भी वारिस क्वालिटी निकाल दिया तो महाराजा बन जायेंगे। कुमार तैयार हैं? समझते हो वारिस किसको कहते हैं? साधारण तो आते ही रहते हैं ना लेकिन वारिस जो होगा उस एक को देख करके और अनेक भी आयेंगे। उसको कहते हैं वारिस क्वालिटी, छोटे-छोटे माइक। तो कुमार राजा बनेंगे ना! (हाँ जी) अच्छा, यहाँ मधुबन में हाँ जी है या पंजाब और बाम्बे या जहाँ भी जायेंगे वहाँ भी हाँ जी होंगे?
कुमारों को देख करके बापदादा खुश होते हैं। सिर्फ कुमार, कुमारियों से बाप को एक बात का डर भी लगता है। खुशी भी होती है तो डर भी लगता है। समझदार हो ना कुमार, बोलने की आवश्यकता नहीं। बस इसमें सदा एक बाप दूसरा न कोई, थोड़ा-थोड़ा भी नहीं। क्या करूँ.. थोड़ा सा तो चाहिए...ऐसा नहीं। ये ऐसी माया है जो देखा है ना, गज और ग्राह की कहानी सुनी है ना, वो क्या करता है? पहले थोड़ा अन्दर करेगा, फिर पूरा अन्दर कर लेता है। पता नहीं पड़ेगा। तो डायमण्ड जुबली में यह डर तो निकाल लेना। ऐसा एक भी पत्र नहीं आना चाहिए। डायमण्ड जुबली अर्थात् कुछ कमी नहीं है। तो बापदादा देखेंगे कि हाथ तो सभी ने उठाया लेकिन राजा कितने बने वो भी लिस्ट आ जायेगी ना! अच्छा।
प्रवृत्ति वालों से
प्रवृत्ति वालों को बापदादा एक बात के लिए मुबारक देते हैं कि जब से प्रवृत्ति मार्ग वाले सेवा साथी बने हैं तो सेवा में नाम बाला करने में एग्ज़ाम्पल बने हैं। पहले लोग समझते थे कि ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी बनना माना घरबार छोड़ना.... यह डर था ना। और अभी समझते हैं कि इन्हों का तो घर भी बहुत अच्छा चलता, धन्धा भी बहुत अच्छा चलता, खुद भी खुश रहते, तो यह देख करके समझते हैं कि हम भी बन सकते हैं। तो एग्ज़ाम्पल बन गये ना। पहले कहते थे हमारा बनना मुश्किल है और अभी कहते हैं कि पवित्र प्रवृत्ति में रहना अच्छा है। तो सेवा में वृद्धि के लिए निमित्त बन गये ना - इसकी मुबारक हो। अभी प्रवृत्ति वाले क्या करेंगे? मुबारक में तो खुश हो गये। अभी कुछ करना भी तो हैं ना।
बापदादा का डायमण्ड जुबली के प्रति एक शुभ संकल्प है कि जो प्रवृत्ति में रहते हैं, एग्ज़ाम्पल हैं, लौकिक और अलौकिक सेवा भी करते हैं, डबल सेवाधारी हैं, तो हर एक प्रवृत्ति वाले ऐसी माला तैयार करो जो हर सेवाकेन्द्र पर हर वर्ग का कोई न कोई ज़रुर हो। जो भी हमारे 13 भिन्न-भिन्न वर्ग बने हुए हैं, उस हर वर्ग का ग्रुप हो जिसमें सब वर्ग हों, कोई भी वर्ग नहीं रह जाये, बड़ा ज़मीनदार भी हो, साइंसदान भी हो ....., सब वर्ग के हों, ऐसी वर्गों की भिन्न-भिन्न माला प्रवृत्ति वाले हर सेवाकेन्द्र पर तैयार करें। कम से कम सब वर्गों का एक-एक तो होना ही चाहिए लेकिन हर सेन्टर पर हर वर्ग का हो। तो सभी वर्गों के तैयार करो फिर सभी सेन्टर के सभी वर्गों की डायमण्ड जुबली मनायेंगे। समझा? प्रवृत्ति वालों को पसन्द है। हर सेवाकेन्द्र पर हर वर्ग का होना चाहिए, कम से कम एक। बाकी ज्यादा होंगे तो महाराजा बन जायेंगे। माताओं को पसन्द है? कि महिलायें सिर्फ महिलायें ले आयेंगी, महिलाओं में भी कोई वकील है, कोई डॉक्टर है। अच्छा!
डबल विदेशियों से
डबल विदेशी क्या करेंगे? लण्डन वाले बताओ क्या करेंगे? माइक तैयार करेंगे। तो कांफ्रेंस तक माइक आयेंगे या अभी तैयार हो रहे हैं? अच्छी बात है, अगर डबल विदेशी हर एक स्टेट से एक-एक माइक भी लायें तो कितने माइक हो जायेंगे? फिर माइक की सेरीमनी करेंगे। ठीक है? अच्छा, सभी को याद-प्यार मिल गया?
कर्नाटक वाले खुश है? पंजाब खुश है? बाम्बे खुश है? भोपाल खुश है? आन्ध्रा वाले खुश हैं? यू.पी. नेपाल खुश है? नेपाल की टोपियाँ होती हैं, अच्छे लगते हैं। ये कलियुग के ताज हैं।
अच्छा, टीचर्स सभी खुश हैं? देखो, मुरली तो नयों के हिसाब से गुह्य है लेकिन बापदादा को डायमण्ड जुबली में सभी से मुक्त कराना ही है। नहीं करेंगे तो धर्मराज बनेंगे। अभी तो प्यार से कह रहे हैं, फिर धर्मराज का साथ लेना पड़ेगा ना। लेकिन क्यों लें? क्यों नहीं बाप के रूप से ही सब मुक्त हो जायें। पुराने-पुराने सोचते हैं कि बापदादा ऐसा कुछ करें ना तो सब ठीक हो जायें। लेकिन बाप नहीं चाहते। बाप को धर्मराज का साथ लेना पसन्द नहीं है। कर क्या नहीं सकता है! एक सेकण्ड में किसी को भी अन्दर ही अन्दर सज़ा दे सकते हैं और वो सेकण्ड की सज़ा बहुत-बहुत तेज़ होती है। लेकिन बापदादा नहीं चाहते। बाप का रूप प्यारा है, धर्मराज साथी बना तो कुछ नहीं सुनेगा। इसलिए बापदादा को डायमण्ड जुबली में सभी को सब बातों से मुक्त करना ही है। समझा?
चारों तरफ के सर्व विश्व के विशेष आत्माओं को सदा स्वचिन्तन, ज्ञान चिन्तन करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के श्रेष्ठ मत पर हर संकल्प, बोल और कर्म करने वाले समीप आत्माओं को, चारों ओर के डायमण्ड जुबली के लिए स्वयं को और सेवा को आगे बढ़ाने वाले-ऐसे विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से
दैवी परिवार का विशेष श्रृंगार है ना। तो श्रृंगार को देख करके क्या होता है? खुशी होती है कि ये होता है कि हम भी ऊपर चलें? लोक संग्रह करने वाले हो ना।
वैसे बापदादा का एक-एक बच्चे से एक-दो से ज्यादा प्यार है। ऐसे नहीं, दादियों से बहुत है, टीचर्स से बहुत है, स्टूडेन्ट से कम। नहीं, सभी से प्यार है और सदा ही रहेगा। अगर प्यार नहीं होता तो शिक्षा क्यों देते? ये शिक्षा भी प्यार है। क्योंकि बाप बच्चों को किसी भी बात में कम नहीं देखना चाहते। हर एक को आगे देखना चाहते हैं। ऐसे नहीं, दादियाँ तो ठीक हो गईं, आप लोग होवे या नहीं..... पहले आप। इसीलिए ही आते हैं। चाहे गला चले या नहीं चले लेकिन चलाते हैं। जब बच्चे दूर-दूर से, बुजुर्ग भी आते हैं, छोटे भी आते हैं, सब आते हैं तो बाप कैसे नहीं आयेंगे! ज़रुर आयेंगे। तो दादियों से प्यार ज्यादा है वा टीचर्स से ज्यादा है वा स्टूडेन्ट्स से ज्यादा है? किससे है? सभी से। चाहे बापदादा सभी को नज़दीक भी नहीं बिठा सकते, नाम भी नहीं ले सकते लेकिन दिल पर नाम सबका है। दिल के नज़दीक सभी हो। समझा? अच्छा! तो यह ब्राह्मण संसार का श्रृंगार अच्छा लगता है ना। देखो फाउण्डेशन से कितने थोड़े बचे हैं। जब आदि में आये और अभी देखो तो कितने थोड़े बचे। डायमण्ड जुबली वाले तो कितने चले गये।
मीटिंग के मुख्य भाइयों से
अच्छी मेहनत कर रहे हो। बापदादा के पास तो सब समाचार पहुँचता है। जब सभी मिलकर किसी भी कार्य को करते हैं तो आप भी अनुभव करते होंगे वो कार्य सहज भी और सफल भी होता है। और यह आपस में मिलना जल्दी-जल्दी होना चाहिये। क्योंकि यज्ञ के जो स्थूल कारोबार है, खाना-पीना छोड़ो, वो तो इन्हों का काम है, लेकिन जो ऑफिशिअल कारोबार है वो तो आप लोग ही समझ सकते हो। इसीलिए कार्य बढ़ता जाता है और जब 9 लाख बनाना है तो कार्य कितना बढ़ेगा! बहुत बढ़ेगा ना! तो आप लोगों को आपस में जल्दी-जल्दी मिलना चाहिये। फोन और फैक्स का मिलना और है, और सम्मुख मिलने से एक-दो के विचार क्लीयर कर सकते हैं। अगर नहीं भी हुआ तो करा भी सकते हैं। इसीलिए आपस में राय करना। जब एक मीटिंग पूरी करते हो ना तो दूसरे की डेट पहले से ही फिक्स करो। अच्छा।
आप लोगों से पूछने की आवश्यकता नहीं कि खुशराजी हो? बस निमित्त हैं, तो निमित्त समझने से नेचरली ज़िम्मेवारी भी है और हल्कापन तो रहेगा ही। अच्छा।
04-12-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘यथार्थ निश्चय के फाउण्डेशन द्वारा सम्पूर्ण पवित्रता को धारण करो’’
आज बापदादा देश-विदेश चारों ओर के नये-नये बच्चों को देख रहे थे। चाहे मधुबन में साकार रूप में आये हैं, चाहे आकार रूप में अपने- अपने सेवा-स्थान में आये हुए हैं, तो नयों-नयों को देख बापदादा सभी के निश्चय को देख रहे थे। क्योंकि निश्चय इस ब्राह्मण जीवन के सम्पन्नता का फाउण्डेशन है और फाउण्डेशन मज़बूत है तो सहज और तीव्र गति से सम्पूर्णता तक पहुँचना निश्चित है। तो बापदादा देख रहे थे कि निश्चय भी भिन्नभिन्न प्रकार का है। जो यथार्थ निश्चय है कि मैं परमात्मा बाप का बन गया, स्वयं को भी आत्म-स्वरूप में जानना, मानना, चलना और बाप को भी जो है वैसे जानना - ये है यथार्थ निश्चय।
दूसरा निश्चय है -योग द्वारा थोड़े समय के लिए अशान्ति से शान्ति का अनुभव करते हैं और स्थान का शक्तिशाली शान्त वायुमण्डल आकर्षित करता है वा ब्राह्मण परिवार, ब्राह्मण आत्माओं का आत्मिक प्यार और पवित्रता की जीवन का प्रभाव पड़ता है, कम्पनी अच्छी लगती है, दुनिया के वायुमण्डल के कान्ट्रास्ट में ये संग अच्छा लगता है, ज्ञान भी अच्छा, परिवार भी अच्छा, वायुमण्डल भी अच्छा ..... तो वो अच्छा लगना, उस फाउण्डेशन के आधार पर चलते रहते हैं। ये है दूसरा नम्बर। पहला नम्बर सुनाया ‘यथार्थ निश्चय’ और दूसरा नम्बर ‘अच्छा लगता है’ और तीसरा नम्बर - दुनिया के सम्बन्धियों के दु:खमय वातावरण से बचकर जितना समय भी सेवाकेन्द्र पर आते हैं उतना समय दु:ख से किनारा होकर शान्ति का अनुभव करते हैं। ज्ञान की गुह्यता में नहीं जायेंगे लेकिन शान्ति की प्राप्ति के कारण कभी आते हैं और कभी नहीं भी आते हैं। लेकिन यथार्थ निश्चय बुद्धि विजयी होते हैं। और देखा जाता है कि जब शुरू- शुरू में आते हैं तो अशान्ति से तंग होते हैं, शान्ति के इच्छुक होते हैं। तो जैसे प्यासे को एक बूंद भी अगर पानी की मिल जाये तो वो बहुत बड़ी बात अनुभव करता है। तो अप्राप्ति से प्राप्ति होती है, परिवार में, ज्ञान में, योग में, वायुमण्डल में अन्तर दिखाई देता है। तो पहला समय बहुत अच्छे उमंग- उत्साह से चलते हैं, बहुत नशा रहता है, खुशी भी होती है। लेकिन अगर पहले नम्बर के यथार्थ निश्चय का फाउण्डेशन पक्का नहीं है, दूसरे या तीसरे नम्बर का निश्चय है तो धीरे-धीरे जो शुरू की खुशी, शुरू का जोश है, उसमें फर्क आ जाता है।
इस सीज़न में नये-नये बहुत आये हैं और चांस भी मिला है, यह तो बहुत अच्छा है। बापदादा को भी नये-नये बच्चों को देख खुशी होती है कि ये फिर से अपने परिवार में पहुँच गये। लेकिन ये चेक करो कि निश्चय का फाउण्डेशन पक्का है? हमारा निश्चय नम्बरवन है वा नम्बर टू है? अगर नम्बरवन निश्चय है तो चलते-चलते मुख्य पवित्रता धारण करने में मुश्किल नहीं लगेगा। अगर पवित्रता स्वप्न मात्र भी हिलाती है, हलचल में आती है, तो समझो नम्बरवन फाउण्डेशन कच्चा है। क्योंकि आत्मा का स्वधर्म पवित्रता है। अपवित्रता परधर्म है और पवित्रता स्वधर्म है। तो जब स्वधर्म का निश्चय हो गया तो परधर्म हिला नहीं सकता। कई बच्चे कहते हैं कि पहले तो बहुत अच्छे आते थे, अभी पता नहीं क्या हो गया? तो क्या हो जाता है कि बाप जो है, जैसा है, वैसे अनुभव में नहीं लाते। अगर पूछेंगे कि बाप साथ है? तो हाथ सब उठायेंगे। हाथ उठाना तो बहुत सहज है। लेकिन बाप साथ है तो बाप की पहली-पहली जो महिमा करते हो कि वो सर्वशक्तिमान है - ये मानते हो या सिर्फ जानते हो? तो जब सर्वशक्तिमान बाप साथ है तो सर्वशक्तिमान के आगे अपवित्रता आ सकती है? नहीं आ सकती। लेकिन आती तो है, तो आती फिर कहाँ से है? कोई और जगह है? चोर लोग जो होते हैं वो अपना स्पेशल गेट बना लेते हैं। चोर गेट होता है। तो आपके पास भी छिपा हुआ चोर गेट तो नहीं है? चेक करो। नहीं तो माया आई कहाँ से? ऊपर से आ गई? अगर ऊपर से भी आ गई तो ऊपर ही खत्म हो जानी चाहिये। कोई छिपे हुए गेट से आती है जो आपको पता नहीं पड़ता है तो चेक करो कि माया ने कोई चोर गेट तो नहीं बनाकर रखा है? और गेट बनाती भी कैसे है, मालूम है? आपके जो विशेष स्वभाव या संस्कार कमज़ोर होंगे तो वहीं माया अपना गेट बना देती है। क्योंकि जब कोई भी स्वभाव या संस्कार कमज़ोर है तो आप कितना भी गेट बन्द करो, लेकिन कमज़ोर गेट है, तो माया तो जानीजाननहार है, उसको पता पड़ जाता है कि ये गेट कमज़ोर है, इससे रास्ता मिल सकता है और मिलता भी है। चलते- चलते अपवित्रता के संकल्प भी आते हैं, बोल भी होता, कर्म भी हो जाता है। तो गेट खुला हुआ है ना, तभी तो माया आई। फिर साथ कैसे हुआ? कहने में तो कहते हो कि सर्वशक्तिमान साथ है तो ये कमज़ोरी फिर कहाँ से आई? कमज़ोरी रह सकती है? नहीं ना? तो क्यों रह जाती है? चाहे पवित्रता में कोई भी विकार हो, मानो लोभ है, लोभ सिर्फ खाने-पीने का नहीं होता। कई समझते हैं हमारे में पहनने, खाने या रहने का ऐसा तो कोई आकर्षण नहीं है, जो मिलता है, जो बनता है, उसमें चलते हैं। लेकिन जैसे आगे बढ़ते हैं तो माया लोभ भी रॉयल और सूक्ष्म रूप में लाती है। वो रॉयल लोभ क्या है? चाहे स्टूडेण्ट हो, चाहे टीचर हो, माया दोनों में रॉयल लोभ लाने का फुल पुरूषार्थ करती है। मानो स्टूडेण्ट है, बहुत अच्छा निश्चयबुद्धि, सेवाधारी है, सबमें अच्छा है लेकिन जब आगे बढ़ते हैं तो ये रॉयल लोभ आता है कि मैं इतना कुछ करता हूँ, सब रूप (तरह) से मददगार हूँ, तन से, मन से, धन से और जिस समय चाहिये उस समय सेवा में हाज़र हो जाता हूँ फिर भी मेरा नाम कभी भी टीचर वर्णन नहीं करती कि ये जिज्ञासु बहुत अच्छा है। अगर मानों ये भी नहीं आवे तो फिर दूसरा रूप क्या होता है? अच्छा, नाम ले भी लिया तो नाम सुनते-सुनते-मैं ही हूँ, मैं ही करता हूँ, मैं ही कर सकता हूँ, वो आभिमान के रूप में आ जायेगा। या बहुत काम करके आये और किसी ने आपको पूछा भी नहीं, एक गिलास पानी भी नहीं पिलाया, देखा ही नहीं, अपने आराम में या अपने काम में बिज़ी रहे, तो ये भी आता है कि करो भी और पूछे भी कोई नहीं। तो करना ही क्या है, करना या ना करना एक ही बात है। पूछने वाला तो कोई है नहीं, इससे आराम से घर में बैठो, जब होगा तब सेवा करेंगे। तो ये भिन्न-भिन्न प्रकार का विकारों का रॉयल रूप आता है। और एक भी विकार आ गया ना, मानो लोभ नहीं आया लेकिन अभिमान आ गया या अपने मानने तक का, हमारी मान्यता हो - उसका भान आ गया तो जहाँ एक विकार होता है वहाँ उनके चार साथी छिपे हुए रूप में होते हैं। और एक को आपने चांस दे दिया तो वो छिपे हुए जो हैं वो भी समय प्रमाण अपना चांस लेते रहते हैं। फिर कहते हैं कि पहले जैसा नशा अभी नहीं है, पहले बहुत अच्छा था, पहले अवस्था बड़ी अच्छी थी, अभी पता नहीं क्या हो गया है। माया चोर गेट से आ गई - ये है पता, ये नहीं कहो पता नहीं।
और टीचर को भी आता है। टीचर को क्या चाहिये? सेन्टर अच्छा हो, कपड़े भले कैसे भी हो लेकिन सेन्टर थोड़ा रहने लायक तो अच्छा हो। और जो साथी हो वो अच्छे हो, स्टूडेण्ट अच्छे हो, बाबा की भण्डारी अच्छी हो। अगर अच्छा स्टूडेन्ट चेंज हो जाये तो दिल थोड़ा धड़कता है। फिर समझते हैं कि क्या करें, ये मददगार था ना, अभी वो चला गया। मददगार जिज्ञासु था वा बाप है? तो उस समय कौन दिखाई देता है? जिज्ञासु या बाप? तो ये रॉयल माया फाउण्डेशन को हिलाने की कोशिश करती है। अगर आपको निश्चय है-सर्वशक्तिमान साथ है तो बाप किसी न किसी को निमित्त बना ही देता है। कई फिर सोचते हैं हमें कम से कम एक बार आबू की कांफ्रेंस में या किसी बड़ी कांफ्रेंस में चांस मिलना चाहिए, चलो और नहीं, योग शिविर तो करा लें, ये भी तो चांस होना चाहिये ना, चलो भाषण नहीं करे, स्टेज पर तो आवें, आखिर विनाश हो जायेगा, क्या विनाश तक भी हमारा नम्बर नहीं आयेगा, नम्बर तो आना चाहिये ना! लेकिन पहले भी बापदादा ने सुनाया कि अगर योग्य हैं, चांस मिलता है तो खुशी से करो लेकिन ये संकल्प करना कि हमें चांस मिलना चाहिए...... यह भी मांगना है। चाहिये-चाहिये ये है रॉयल मांगना। ये होना चाहिये..... ये हमें पहचानते नहीं हैं, दादी-दीदियाँ भी सभी को पहचानती नहीं हैं, जो आगे आते हैं उसको आगे कर लेते हैं-तो ये संकल्प आना यह भी एक सूक्ष्म मांगना है। लेकिन बापदादा ने सुना दिया है कि मानों आप स्टेज पर आ गई या आपकी कोई भी विशेषता के कारण, योग नहीं भी है, अवस्था इतनी अच्छी नहीं है लेकिन बोल में, कैचिंग पॉवर में विशेषता है तो चांस मिल जाता है, क्योंकि किसी की वाणी में मिठास होता है, स्पष्टता होती है और कैचिंग पावर होती है तो यहाँ के वहाँ के मिसाल वगैरह कैच करके सुनाते हैं इसीलिए उन्हों का नाम भी हो जाता है। कौन चाहिये? फलानी चाहिये। कौन आवे? फलानी आवे, चाहे योग में कच्ची भी हो.... तो इस पर नम्बर फाइनल नहीं होने हैं। जो फाइनल नम्बर मिलेंगे वो ये नहीं होगा कि इसने कितने भाषण किये या इसने कितने स्टूडेण्ट वा सेन्टर बनाये हैं, लेकिन योग्य कितनों को बनाया है? सेन्टर बनाना बड़ी बात नहीं है लेकिन योग्य कितनी आत्माओं को बनाया? नाम हो गया-30 सेन्टर की इंचार्ज है और 30 में से 15 हिल रहे हैं, 15 ठीक हैं तो फायदा हुआ या सिर्फ नाम हुआ? सिर्फ नाम होता है कि फलानी के 30 सेवाकेन्द्र हैं। लेकिन नम्बर इससे नहीं मिलेगा। फाइनल नम्बर जितनों को सुख दिया, जितना स्वयं शक्तिशाली रहे, उसी प्रमाण मिलेंगे। इसीलिये ये भी चाहिये-चाहिये खत्म कर दो। नहीं तो योग नहीं लगेगा। रोज़ यही देखते रहेंगे कि फलानी जगह प्रोग्राम हुआ मेरे को फिर भी नहीं बुलाया, अभी परसों यहाँ हुआ, कल वहाँ हुआ, आज यहाँ हुआ! तो योग लगेगा या गिनती होती रहेगी?
तो मुख्य बात - जो यथार्थ निश्चय है उसको पक्का करो। कहने में तो कह देते हो मैं आत्मा हूँ और बाप सर्वशक्तिमान है लेकिन प्रैक्टिकल में, कर्म में आना चाहिये। बाप सर्वशक्तिमान है लेकिन मेरे को माया हिला रही है तो कौन मानेगा आपका बाप सर्वशक्तिमान है! क्योंकि उससे ऊपर तो कोई है नहीं। तो बापदादा आज निश्चय के फाउण्डेशन को देख रहे हैं। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन इस निश्चय के फाउण्डेशन को प्रैक्टिकल में लाओ और समय पर यूज़ करो। समय बीत जाता है फिर बाप के आगे पश्चाताप के रूप में आते हो-क्या करें, बाबा हो गया, आप तो रहमदिल हो, रहम कर दो......तो ये क्या हुआ? ये भी रॉयल पश्चाताप है। साथ है तो किसी की हिम्मत नहीं है, निश्चयबुद्धि का अर्थ ही है विजयी। अगर कोई हिसाब-किताब आता भी है तो मन को नहीं हिलाओ। स्थिति को नीचे-ऊपर नहीं करो। चलो आया और फट से उसको दूर से ही खत्म कर दो। अभी योद्धे नहीं बनो। कई अभी निरन्तर योगी नहीं हैं। कुछ समय योगी हैं और कुछ समय युद्ध करने वाले योद्धे हैं। लेकिन अपने को कहलाते क्या हो? योद्धे कि योगी? कहलाते तो सहजयोगी हो। तो नये जो भी आये हैं उनको बापदादा फिर से भाग्य प्राप्त करने की मुबारक देते हैं। लेकिन मुबारक के साथ ये चेक भी करना कि फाउण्डेशन नम्बरवन है या नम्बर दो का है?
कई कहते हैं ज्ञान-योग बहुत अच्छा लगता है, अच्छा है वो तो ठीक है लेकिन कर्म में लाते हो? ज्ञान माना आत्मा, परमात्मा, ड्रामा....यह कहना नहीं। ज्ञान का अर्थ है समझ। समझदार जैसा समय होता है वैसे समझदारी से सदा सफल होता है। कभी भी देखो जीवन में दु:ख आते हैं तो क्या सोचते हो? पता नहीं, मुझे यह क्यों नहीं समझ में आया - यहीं कहेंगे। तो समझदार हो? ज्ञानी हो? बोलो हाँ या ना? (हाँ जी) हाँ तो बहुत अच्छी बोलते हैं। समझदार की निशानी है कभी धोखा नहीं खाना - ये है ज्ञानी की निशानी, और योगी की निशानी है - सदा क्लीन और क्लियर बुद्धि। क्लीन भी हो और क्लियर भी हो। योगी कभी नहीं कहेगा-पता नहीं, पता नहीं। उनकी बुद्धि सदा ही क्लियर है। और धारणा स्वरूप की निशानी है सदा स्वयं भी डबल लाइट। कितनी भी ज़िम्मेवारी हो लेकिन धारणामूर्त, सदा डबल लाइट। चाहे मेला हो, चाहे झमेला हो-दोनों में डबल लाइट। और सेवाधारी की निशानी है-सदा निमित्त और निर्माण भाव। तो ये सभी अपने में चेक करो। कहने में तो सभी कहते हो ना कि चारों ही सब्जेक्ट के गॉडली स्टूडेण्ट हैं। तो निशानी दिखाई देनी चाहिये।
तो नये-नये क्या करेंगे? अपने निश्चय को और पक्का करना। नहीं तो फिर क्या होता है दो साल चलेंगे, तीन साल चलेंगे फिर वापस पुरानी दुनिया में चले जायेंगे। और फिर जो वापस जाते हैं वो उस दुनिया में भी सेट नहीं हो सकते हैं। न इस दुनिया के रहते, न उस दुनिया के। इसलिए अपना फाउण्डेशन बहुत पक्का करो। अनुभव करो-सर्वशक्तिमान बाप साथ है। बस एक बात भी अनुभव किया तो सबमें पास हो जायेंगे। रिवाज़ी प्राइम मिनिस्टर है, मिनिस्टर है उसके साथ का भी नशा रहता है। ये तो सर्वशक्तिमान है! अच्छा!
जो इस कल्प में पहले बारी आये हैं वो हाथ उठाओ। जो पहली बार आये हैं वो सदा खुश रहना और सदा आबाद रहना। अच्छा-टीचर्स भी बहुत आती हैं। एक साल में कितने चांस मिलते हैं? एक ही मिलता है। 12 मास को 13 मास तो कर नहीं सकते। बापदादा को तो दिल होती है टीचर्स ऐसे रिफ़्रेश हो जायें, शक्तिशाली बन जायें जो किसी भी सेन्टर पर कोई भी जाये तो एक आत्मा भी कमज़ोर नहीं दिखाई दे। निर्विघ्न सेवाकेन्द्र, उसको ही मार्क्स मिलती हैं। बापदादा इसमें खुश नहीं होते कि इस ज़ोन में हज़ार सेन्टर हैं, हज़ार गीता पाठशालायें हैं। बापदादा खुश होते हैं जिस ज़ोन में कोई खिटखिट नहीं हो, कोई कंप्लेंट नहीं हो। क्योंकि वास्तव में मानो टीचर मेहनत कर रही है और कमज़ोर संस्कार ही माया के आने का चोर गेट है। 52 खिटखिट भी हो रही है, वातावरण वैसे का वैसा है तो क्या वो सेवा है? कि झमेला है? तो आये किसलिए? ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारियां किसलिए बनें? झमेले के लिए? अगर झमेले ही चाहियें तो दुनिया में बहुत जगह हैं। बापदादा वहाँ का एड्रेस भी दे सकते हैं। लेकिन ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ बनना माना मिलन मेला मनाना, न कि झमेला। देखो अभी आये हो तो किस लक्ष्य से आये हो? झमेले के लिए आये हो? मिलन मनाने आये हो तो अच्छा लगता है ना! तो कभी भी, कोई भी स्टूडेन्ट हो वा टीचर हो, हैं तो सभी स्टूडेन्ट-कभी भी झमेला नहीं करो। झमेला करना अर्थात् क्या कहें! बापदादा को कहना भी अच्छा नहीं लगता। इसलिए चाहे टीचर, चाहे मधुबन, चाहे मधुबन के उप सेवाकेन्द्र, गीता पाठशालायें या आपके ज़ोन के उपसेवाकेन्द्र या केन्द्र, जो भी अपने को ब्राह्मण आत्मा कहलाते हैं, नहीं तो अपने को ब्राह्मण नहीं कहलाओ, क्षत्रिय कहलाओ, ब्राह्मण नाम को खराब नहीं करो। ब्राह्मण माना विजयी। अगर झमेला करते हैं तो क्षत्रिय हैं, न कि ब्राह्मण।
तो आज का पाठ क्या पक्का करेंगे? कौन सा संकल्प करेंगे? हर एक को मन, वाणी, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क में झमेला मुक्त बनना है। झमेला नहीं होना चाहिये। रोज़ चेक करो। ये व्यर्थ संकल्प का भी झमेला है। दूसरे के साथ नहीं है लेकिन अपने मन में तो झमेला है। तो सभी क्या संकल्प करेंगे? क्या बनेंगे? बोलो, झमेला मुक्त। क्योंकि डायमण्ड जुबली आ रही है तो डायमण्ड जुबली में झमेला वाला डायमण्ड चाहिये क्या? आप लोग पसन्द करेंगे? या बहुत सुन्दर डायमण्ड के बीच में दो-चार झमेले वाले डायमण्ड हों तो पसन्द करेंगे? नहीं करेंगे। लेकिन इसकी बहुत सहज विधि है, मेहनत करने की भी ज़रुरत नहीं। झमेला मुक्त होने की विधि सबसे सहज है कि पहले स्वयं को झमेले मुक्त करो। दूसरे के पीछे नहीं पड़ो। ये स्टूडेन्ट ऐसा है, ये साथी ऐसा है, ये सरकमस्टांस ऐसे हैं-उसको नहीं देखो लेकिन अपने को झमेला मुक्त करो। जहाँ झमेला हो वहाँ अपने मन को, बुद्धि को किनारे कर लो। आप सोचते हो-ये झमेला पूरा होगा तो बहुत अच्छा हो जायेगा, हमारी सेवा भी अच्छी, हमारी अवस्था भी अच्छी हो जायेगी। लेकिन झमेले पहाड़ के समान हैं। क्या पहाड़ से माथा टकराना है? पहाड़ हटेगा क्या? स्वयं किनारा कर लो या उड़ती कला से झमेले के पहाड़ के भी ऊपर चले जाओ। तो पहाड़ भी आपको एकदम सहज अनुभव होगा। मुझे बनना है। अमृतवेले से ये स्वयं से संकल्प करो कि मुझे झमेला मुक्त बनना है। बाकी तो है ही झमेलों की दुनिया, झमेले तो आयेंगे ही। आपकी दुनिया आपका सेवाकेन्द्र है तो आपकी दुनिया ही वो है, तो वहाँ ही आयेंगे ना। आप पेपर देने के लिए अमेरिका, लण्डन जायेंगी क्या? सेन्टर पर ही देंगी ना! तो झमेला नहीं आवे-यह नहीं सोचो। झमेला मुक्त बनना है-ये सोचो। हो सकता है? कि वहाँ सेन्टर पर या घर में जायेंगे तो कहेंगे कि ये झमेला तो मेरे से नहीं होगा। ऐसे तो नहीं? जब बाप ने कहा है कि पुरानी दुनिया से, पुरानी दुनिया के प्राप्तियों से अभी अपने मन और बुद्धि को ऊंचा करो। पुरानी दुनिया से लंगर उठा लिया कि अभी लगा हुआ है? बंधा हुआ तो नहीं है? वो कहानी सुनाते हैं ना तो अन्जान रहना ये भी अन्धकार है। वो अन्धकार नहीं लेकिन अन्जान रहना भी अन्धकार है। तो अन्धकार में नहीं रह जाना। अच्छी तरह से चेक करो। देखेंगे, ये झमेला मुक्त नम्बरवन कौन सा सेवाकेन्द्र या मधुबन बनता है?
मधुबन वालों को भी बनना है। ऐसे नहीं जो ग्रुप आया है उनको ही बनना है। मधुबन वाले नीचे बैठे हैं ना। (ओम् शान्ति भवन का हाल फुल होने के कारण सभी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) चाहे यहाँ बैठे हैं, चाहे नीचे बैठे हैं, लेकिन बापदादा के तो सामने हैं। आप टी.वी. के सामने हो, बापदादा आपके सामने है। तो मधुबन वाले या जो भी देश-विदेश सभी इसमें नम्बरवन बनो फिर डायमण्ड जुबली बहुत धूमधाम से मनायेंगे। अभी बापदादा को थोड़ा- थोड़ा होता है कि क्या सभी मुक्त हो जायेंगे! लेकिन ये बापदादा का संकल्प ठीक नहीं है, ऐसे ना? बाप को तो बच्चों पर निश्चय है ना! लेकिन थोड़ा-थोड़ा आता है - क्या करेंगे! बाकी है ही क्या? एक मास। डायमण्ड जुबली तो जनवरी से शुरू है। डायमण्ड जुबली के बीच में करेंगे, आरम्भ में करेंगे, क्या करेंगे? बताओ, राय बताओ कि डायमण्ड जुबली के आरम्भ में मुक्त हो जायेंगे या समाप्ति में मुक्त होंगे? जो समझते हैं थोड़ा समय तो चाहिये, इतने में कैसे हो जायेंगे, 63 जन्म के संस्कार हैं, एक मास में खत्म हो जायेंगे-मुश्किल लगता है....! टाइम चाहिये? 2 मास, 6 मास, क्या समझते हो? जो समझते हैं कुछ टाइम चाहिये वो हाथ उठाओ। अच्छा, जिन्होंने हाथ उठाया वो खड़े हो जाओ। सच्चे तो हैं ना। इन्हों का फोटो निकालो, इन्हों को टाइम देंगे। घबराओ नहीं। जिन्होंने भी हाथ उठाया है वो अपनी चिटकी में सेन्टर और अपना नाम ये परिचय लिख करके शान्तामणि को देना। कोई हर्जा नहीं है, आप लोगों ने सच बोला - तो जल्दी हो जायेंगे। बाकी इतने सभी अगर मुक्त हो गये तो ये थोड़े तो आपकी पूँछ पकड़कर भी मुक्त हो जायेंगे। अच्छा, पोस्ट वाली इशू कहाँ है? इसके पास पोस्ट आती है। तो एक मास के बाद कोई ऐसी झमेले की पोस्ट नहीं आनी चाहिये। अगर आवे तो आप बापदादा को बताना। ठीक है ना। पक्का काम करना चाहिये। इनको पहचानते हो ना। इससे सबका काम पड़ता है। भविष्य बनाने के निमित्त तो रखा हुआ है ना! सभी जमा यहीं आ करके करते हैं।
अच्छा, डबल विदेशियों ने क्या कहा? ज़ोन तो बहुत आये हैं। (सभी ज़ोन वालों से बापदादा ने हाथ उठवाये)
अच्छा, सभी ज़ोन, चाहे दिल्ली, चाहे गुजरात, चाहे तामिलनाडु जो भी हैं बापदादा ने देखा कि सभी के मन में डायमण्ड जुबली का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। और सभी समझते हैं कि ये डायमण्ड जुबली, यज्ञ की स्थापना निर्विघ्न 60 साल चली है और आगे भी चलती रहेगी। तो 60 साल वृद्धि होती रही है, खत्म नहीं हो जाये संस्था या खिटखिट में बिगड़ नहीं जाये... यह इस विश्वविद्यालय की दुनिया के लिए बहुत बड़ी शान है। तो डायमण्ड जुबली मनाना अर्थात् हर ब्राह्मण का ये शान है कि हम ऐसे विश्वविद्यालय के या ऐसे श्रेष्ठ कार्य के साथी हैं। 60 साल कोई कम नहीं हैं, दुनिया के लिए तो असम्भव बात है। लेकिन आप जानते हो कि परमात्म कार्य सदा अचल, अविनाशी है। तो संस्था की शान अर्थात् हर ब्राह्मण आत्मा की शान है। फ़लक से कह सकते हो कि हमारे कार्य की डायमण्ड जुबली है। दुनिया वाले तो समझते हैं कि कोई भी बड़ा गुरू गया तो संस्था भी गई। इन्हों का ब्रह्मा बाबा गया तो सब कुछ गया.... लेकिन आप जानते हो कि ब्रह्मा बाप द्वारा भी चलाने वाला अविनाशी बाप है। तो ये डायमण्ड जुबली - एक कार्य के सफलता की निशानी है। इसमें चाहे युवा हो चाहे प्रवृत्ति वाले हो, सभी को डायमण्ड बन और अन्य डायमण्ड की माला बनानी है। अगर स्वयं निर्विघ्न श्रेष्ठ डायमण्ड हैं तो औरों को भी ऐसे ही बनायेंगे।
युवकों से
युवा हाथ उठाओ। मैजारिटी देश-विदेश में देखा जाता है कि जो नये-नये आते हैं वो मैजारिटी युवा आते हैं, युवा वर्ग का आना ये संस्था की शान है। क्योंकि गवर्नमेंट तो हार गई, वो तो साफ कहती है हमारी हिम्मत नहीं। तो आप युवा वर्ग ऐसी कमाल करके दिखाओ जो बाप का नाम हर युवा के चलन से, परिवर्तन से दिखाई दे। इसके लिए हर एक युवा को अपने को क्या बनाना है? दिव्य दर्पण। दर्पण में शक्ल दिखाई देती है ना। तो आपके चेहरे से औरों को फरिश्ता या दिव्य गुणधारीमू्र्त्त दिखाई दे।
(एजुकेशन विंग की ओर से गुजरात में चले अभियान का समाचार बापदादा को सुनाया) अच्छा है, कितनी आत्माओं को परिचय मिल गया ना! तो सेवा किया अर्थात् अपने पुण्य का खाता जमा किया। अभी एजुकेशन डिपार्टमेन्ट या वर्ग वालों ने चक्कर तो लगाया, बहुत अच्छा किया लेकिन एजुकेशन डिपार्टमेन्ट या वर्ग गवर्नमेंट को यह सिद्ध करके दिखावे कि सचमुच जो नाम है विश्वविद्यालय वो रीयल विश्वविद्यालय यही है। अभी मान्यता नहीं दिलाई है। तो ये काम अभी रहा हुआ है, अधूरा है अभी। तो ऐसा प्लैन बनाओ जो गवर्नमेंट स्वयं बोले कि हमारे विश्वविद्यालय इस विद्यालय के आगे कुछ नहीं हैं। अगर है तो ये है। यही है, यही है - ये बोले, तब एजुकेशन वालों को इनाम देंगे। अभी तो युद्ध चल रही है - एजुकेशन है या नहीं है? तो जो रीयल है, जो सत्य है वो सिद्ध तो होना है ना। तो थोड़ी और मेहनत करो। होना तो है लेकिन वो बिचारे इतने भटक रहे हैं, जल्दी से बच जावें। अच्छा, युवा अर्थात् दिव्य दर्पण। समझा?
प्रवृत्ति वालों से
प्रवृत्ति वाले क्या करेंगे? बापदादा प्रवृत्ति वालों की सदा किस पुष्प से तुलना करते हैं? (कमलपुष्प से)
अच्छा तो आप प्रवृत्ति वाले कमल पुष्प हो? कभी-कभी कोई बूंद तो नहीं लग जाती? कोई मिट्टी का प्रभाव तो नहीं पड़ जाता? तो प्रवृत्ति वाले इस सारी पुरानी दुनिया को, कमल पुष्प का तालाब बना दो। तालाब के बीच में कमल पुष्प बहुत अच्छे लगते हैं। तो इस पुरानी दुनिया को कमल पुष्प का बड़े से बड़ा तालाब बनाओ, जो जहाँ भी देखे ना तो कमल ही कमल दिखाई दें। इतनी हिम्मत है? डायमण्ड जुबली तक बनायेंगे? एक मास में नहीं कहते लेकिन एक वर्ष में तो बनाओ। बिचारे आत्माओं की हालतें देखो तो सचमुच रहम आता है। दुनिया की हालत देखो और अपने को देखो-कितना अन्तर है! कितनी बातों से, दु:खों से, दर्दों से छूट गये हो। समझते हो - दुनिया की ऐसी हालत है? किसी से भी पूछो क्या हालचाल है तो कहेंगे कि दुनिया का तो बेहाल है। और आपसे पूछे क्या हाल है? खुशहाल है। तो दुनिया बेहाल और आप सभी खुशहाल। पक्का है या कभी-कभी खुशी कम होती है? कम नहीं होने देना। तो सभी प्रवृत्ति वाले कमल हो ना! पक्का याद रखो कि हम कमल हैं। न्यारे और बाप के प्यारे। अच्छा!
कुमारियों से
कुमारियों की तो महिमा सदा बापदादा करते हैं। क्योंकि कुमारी साधारण कुमारी से विश्व की सेवाधारी कुमारी बन गई। कहाँ घर की चार दीवारों में रहने वाली और कहाँ विश्व के सेवाधारी बन गये या बन रहे हैं। तो कुमारियाँ अपने को ऐसे योग्य समझती हो? ऐसे योग्य हो या टोकरी उठाने वाली हो? टोकरी उठाते-उठाते तो सिरदर्द करता है। अभी कुमारियों को टोकरी वाली बनना है या ताज वाली बनना है? टोकरी छोड़ देंगी? कि टोकरी उठाना ज़रूरी है? कुमारियां क्या समझती हैं? जो समझती हैं कि नौकरी करनी ही पड़ेगी, मजबूरी है, वो हाथ उठाओ। मजबूरी वाली कोई नहीं है। तो घरों में क्यों बैठे हो? जब नौकरी की आवश्यकता नहीं तो क्यों बैठे हो? क्यों नहीं आते हो मैदान में? घर अच्छा लगता है? छोटा सा घर है, कोई खिटखिट नहीं है, माँ-बाप का प्यार मिल रहा है, ठीक है। सेवाकेन्द्र पर पता नहीं क्या-क्या होगा, कैसे चलेंगे, चल सकेंगे या नहीं सकेंगे, इसीलिए चार दीवारी ठीक है... ऐसे समझती हो? कुमारियों पर तो सब युगों में से संगमयुग पर विशेष परमात्म-कृपा है। अगर संगम पर परमात्म कृपा के अधिकारी नहीं बने तो सारे कल्प में नहीं बनेंगे। तो कुमारियों को परमात्म वरदान है या परमात्म-कृपा है, वो कभी भी छोड़नी नहीं चाहिये, लेनी चाहिये। समझा कुमारियों ने? डरो नहीं। आजकल समाचार सुना है, कई कुमारियाँ डरती हैं-पता नहीं, पता नहीं, पता नहीं! लेकिन सभी सेवाकेन्द्र एक जैसे नहीं होते हैं। अगर कोई बात है भी तो बड़ों को दे सकते हैं। उसके लिए कोई को मना नहीं है। अगर टीचर मना भी करती है तो बापदादा की छुट्टी है कि कहाँ से भी पत्र डाल सकते हो। सिर्फ क्या होता है-बापदादा पत्र के लिए तो कहते हैं लेकिन लम्बा बहुत लिख देते हैं। थोड़े में ही समझ में आ जाता है, लेकिन लम्बी कहानी होगी तो जो चार्ज वाली देखेगी ना, वो भी किनारे रख देगी। जब टाइम मिलेगा तब पढ़ेगी। और बड़ों तक भी नहीं जायेगा। उन्हों को भी टाइम मिले ना, तब तो आपका रामायण पढ़ेंगे। इसलिए लम्बा नहीं लिखो। शॉर्टकट में लिखो कि ये तकलीफ है और इसकी ये सैलवेशन चाहिये। फिर स्पष्टीकरण लेना होगा तो बड़े आपको आपेही बुलायेंगे। और ही मधुबन में आने का चांस मिलेगा। तो लम्बा नहीं लिखना। बाकी सबको छुट्टी है, अगर कोई ऐसी अयथार्थ बात है तो सुना सकते हैं। डरो नहीं। डरने के कारण अपनी परमात्म-कृपा का भाग्य नहीं गँवाओ। समझा कुमारियों ने? न अपने को तंग करो, न दूसरे को तंग करो। भाग्य अच्छा है। कुमारियाँ हिम्मत रखती हैं तभी सेन्टर खुल सकते हैं। अगर कुमारियाँ हिम्मत नहीं रखतीं तो सेन्टर भी नहीं खुलते। तो लक्की तो हो ना। सभी दीदी जी, दादी जी तो कहते हैं। यहीं टाइटल मिल जाता है। अच्छा।
बाकी मधुबन वाले या जो भी सम्पर्क में गीता पाठशालायें कहो, उपसेवाकेन्द्र कहो, जो भी हैं सभी को बापदादा अभी अपने समान सम्पन्न और मास्टर सर्वशक्तिमान देखना चाहते हैं। सबसे बड़े ते बड़ा मॉडल मधुबन है। मधुबन कौन सा मॉडल बनाता है, वह देखेंगे। जो सच्ची दिल से सेवा करते हैं उसको बापदादा भी पद्मगुणा मुबारक देते हैं। मधुबन वाले खातिरी तो करते हैं ना। चाहे ज्ञान सरोवर में, चाहे यहाँ पाण्डव भवन में, खातिरी तो करते हैं। तो खातिरी करने वालों को आप सभी भी मुबारक दे रहे हो ना। तो सारी सभा की तरफ से मुबारक।
अच्छा, चारों ओर के सदा श्रेष्ठ भाग्यवान भाग्य विधाता को अपना बनाने वाले ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बापदादा के श्रीमत को सुना और किया ऐसे सर्व सपूत बच्चों को, सदा सेवा में अचल रहने वाले झमेला मुक्त और परमात्म-मिलन मेला मनाने वाले सभी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अच्छा-डबल विदेशियों को डबल नशा है ना? डबल विदेशी अर्थात् डबल लाइट, डबल नशा और डबल बापदादा और परिवार के प्यारे। समझा?
अच्छा! हेल्थ मेला करने वालों को भी मुबारक। वैसे रिज़ल्ट अच्छी है और रहेगी।
(दादियां बापदादा के सामने बैठी हैं) टीचर्स को अच्छा चांस मिल जाता है। मेहनत भी करती हैं, यहाँ थकावट उतर जाती है। यहाँ रिफ़्रेश होते हो या यहाँ भी पार्टी की चिन्ता रहती है? वैसे तो मधुबन की दिनचर्या ऐसी सेट है जो टाइम भी नहीं है। बिज़ी रहने चाहे, क्लासेस का लाभ उठाना चाहे तो स्टूडेण्ट को फुर्सत मिलती है? मधुबन में फ्री होते हो? पाण्डवों से पूछते हैं कि क्लासेस में बिज़ी रहते हो, क्या होता है? मधुबन में यहाँ वहाँ की बातें करने का फ्री टाइम मिलता है? क्लासेस में बिज़ी रहते हो? सभी क्लासेस अटेण्ड करते हो? क्लासेस ज़रुर अटेण्ड करना चाहिये क्योंकि हर एक रत्न में बापदादा वा ड्रामानुसार कोई न कोई विशेषता भरी हुई है। तो क्लास कोई भी करावे। ऐसे नहीं फलाने का क्लास है तो सभी भागो और कोई दूसरे का है तो आधा घूमना...। कोई भी क्लास कराता है उसमें विशेषता होती है। और आप लोगों के पास सभी तो पहुँच भी नहीं सकते। यहीं मिलते हैं। तो जिन्हों ने सभी क्लास अटेण्ड किये हैं, एक भी मिस नहीं किया है, वह हाथ उठाओ। अच्छा, टीचर्स अपने काम उतारती हैं। आप एक तो ऑफिशियल राउण्ड लगाने जाते हो वो तो अच्छी बात है, लेकिन क्लास के टाइम जो क्लास छोड़ करके और कहाँ घूमने गये हैं वो हाथ उठाओ। तो अभी ऐसे नहीं करना। क्लास की कई बातें समय पर बरोबर काम में आयेंगी। अभी सुनते हो, तो समझते हो बहुत सुन लिया। लेकिन कोई-कोई पॉइन्ट ऐसे टाइम में काम पर आती हैं जो आप अन्दर ही अन्दर शुक्रिया मानेंगे, इसलिए बिजी रहो। मधुबन माना पढ़ाई में बिज़ी। बाकी खाओ पियो मौज करो, वो भले करो लेकिन टाइम पर। अच्छा है, नयों-नयों को तो नई बातें मिलती हैं। पढ़ाई में अटेन्शन बहुत ज़रूरी है। पढ़ाई माना सिर्फ सुनना नहीं। पढ़ाई का अर्थ है सुनना और करना। अच्छा, सब खुशहाल तो हैं ही। बेहाल नहीं, खुशहाल हो। अच्छा। (एजुकेशन अभियान के भाई-बहनें बापदादा के सामने खड़े हुए) अच्छा है, सेवा का फल, मधुबन में आने की छुट्टी मिल गई। लेकिन इनाम तभी देंगे जब गवर्नमेंट से कहलवायेंगे। कहने से भी कुछ नहीं होता। ये तो ऑफिशियल लिखा-पढ़ी हो। कहने में तो प्राइम मिनिस्टर भी कहकर गया-बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। तो चाहे डॉक्टर्स, एजुकेशन वाले वा इन्जीनियर्स आदि, जो भी सेवा अर्थ रैली निकालते हैं वो अच्छा है। तो मुबारक हो।
अच्छा! ओम् शान्ति।
13-12-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘व्यर्थ बोल, डिस्टर्ब करने वाले बोल से स्वयं को मुक्त कर बोल की इकॉनॉमी करो’’
आज बापदादा चारों ओर की आत्माओं को आप सभी के साथ देख रहे हैं। चारों ओर के बच्चे आकार रूप से बापदादा के सामने हैं। डबल सभा, साकारी और आकारी दोनों कितनी बड़ी सभा है। बापदादा दोनों सभा के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। क्योंकि बापदादा हर बच्चे को विशेष दो रूपों से देख रहे हैं। एक - हर एक बच्चा इस सर्व मनुष्यात्माओं के पूर्वज, सारे वृक्ष का फाउण्डेशन है। क्योंकि जड़ से सारा वृक्ष निकलता है और दूसरे रूप में पूर्वज बड़े को भी कहते हैं। तो सृष्टि के आदि में आप आत्माओं का ही पार्ट है। इसलिए बड़े ते बड़े हो, इस कारण सर्व आत्माओं के पूर्वज हो। साथ-साथ ऊंचे ते ऊंचे बाप की पहली रचना आप ब्राह्मण आत्मायें हो। तो जैसे ऊंचे ते ऊंचा भगवन है वैसे बड़े ते बड़े पूर्वज आप हो। तो इतने सारे पूर्वज बच्चों को देख बाप हर्षित होते हैं। आप भी हर्षित होते हो कि हम पूर्वज हैं - उसी निश्चय और नशे में रहते हो? तो बापदादा आज पूर्वजों की सभा देख रहे हैं।
आप सभी जो भी बाप के बच्चे हो, माया से बचे हुए हो। बच्चे का अर्थ ही है बाप का बनना अर्थात् बच्चे बनना। तो माया से बचे हुए बाप के बच्चे बनते हैं। आप सभी माया से बचे हुए हो ना? कि कभी चक्कर में आ जाते हो? कहते हैं ना ऐसा भी चक्रव्युह होता है जो बहुत तरीके से निकलना होता है। तो कोई भी माया के चक्रव्युह में फंसने वाले तो नहीं हो? क्या कोई चक्कर है? बचे हुए हो? (हाँ जी) ऐसे नहीं करना कि यहाँ हाँ जी करके जाओ और वहाँ जाकर कहो ना जी। जब एक बार चक्कर से निकलने का रास्ता या विधि आ गई, तो फिर फंसने की तो बात ही नहीं है। माया को भी अच्छी तरह से जान गये हो ना कि कभी अनजान बन जाते हो? फिर कहते हैं हमको तो पता ही नहीं पड़ा कि ये माया है। क्योंकि जैसे आजकल का फैशन है भिन्न-भिन्न फेस बहुत पहन लेते हैं। अभी-अभी क्या बनेंगे, अभी-अभी क्या बनेंगे। तो माया के पास भी ये फंसाने के फेस बहुत हैं। उसके पास अच्छा बड़ा दुकान है। जिस समय जो रूप धारण करना चाहे उस समय कर लेती है। और अगर जाने-अनजाने फंस गये तो निकलने में बहुत टाइम लगता है। और संगम का एक सेकण्ड व्यर्थ जाना अर्थात् एक वर्ष गँवाना है, सेकण्ड नहीं। आप सोचो संगमयुग कितना छोटा है। अभी तो डायमण्ड जुबली मना रहे हो और इस थोड़े से समय में जो बनना है, जो जमा करना है वो अभी बन सकते हैं। तो बापदादा देख रहे थे कि बनने का समय कितना थोड़ा है और बनते हो सारा कल्प। तो कहाँ 5 हज़ार और कहाँ अभी 60 वर्ष, चलो आगे कितना भी समय होगा लेकिन हज़ारों के गिनती में तो नहीं होगा ना!
तो इस थोड़े से समय में राज्य अधिकारी बनने वा रॉयल फैमिली में आने के लिए क्या करना होगा? वैसे संख्या के हिसाब से सतयुग में विश्व का तख्त सभी को तो मिल भी नहीं सकता। मानों पहले लक्ष्मी-नारायण तो तख्त पर बैठेंगे लेकिन जो पहले लक्ष्मी-नारायण की रॉयल फैमिली है, उन्हों को भी इतना ही सभी द्वारा स्नेह और सम्मान मिलता है। तो अगर पहली राजधानी के रॉयल फैमिली में भी आते हैं तो वो पहला नम्बर हैं। चाहे बड़े तख्त पर नहीं बैठते लेकिन प्रालब्ध नम्बरवन के हिसाब से ही है। नहीं तो आप सभी लोगों को त्रेता तक भी तख्त थोड़े ही मिलेगा। लेकिन विश्व राज्य अधिकारी का लक्ष्य सभी का है ना? कि वहाँ भी एक स्टेट के राजा बन जायेंगे? तो पहले नम्बर के रॉयल फैमिली में आना ये भी श्रेष्ठ पुरूषार्थ है। कोई को तख्त मिलता और किसको रॉयल फैमिली मिलती है। इसके भी गुह्य रहस्य हैं।
जो सदा संगम पर बाप के दिल तख्तनशीन स्वत: और सदा रहता है, कभी-कभी नहीं, जो सदा आदि से अन्त तक स्वप्न मात्र भी, संकल्प मात्र भी पवित्रता के व्रत में सदा रहा है, स्वप्न तक भी अवित्रता को टच नहीं किया है, ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें तख्तनशीन हो सकती हैं। जिसने चारों ही सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स लिये हैं, आदि से अन्त तक अच्छे नम्बर से पास हुए हैं, उसी को ही पास विद् ऑनर कहा जाता है। बीच-बीच में मार्क्स कम हुई हैं फिर मेकप किया है, मेकप वाला नहीं लेकिन आदि से चारों ही सब्जेक्ट में बाप के दिल पसन्द हैं वो तख्त ले सकता है। साथ-साथ जो ब्राह्मण संसार में सर्व के प्यारे, सर्व के सहयोगी रहे हैं, ब्राह्मण परिवार हर एक दिल से सम्मान करता है, ऐसा सम्मानधारी तख्त नशीन बन सकता है। अगर इन बातों में किसी न किसी में कमी है तो वो नम्बरवार रॉयल फैमिली में आ सकता है। चाहे पहली में आवे, चाहे आठवीं में आए, चाहे त्रेता में आए। तो अगर तख्तनशीन बनना है तो इन सभी बातों को चेक करो। अगर सेवा में 100 मार्क्स जमा हैं और धारणा में 25 परसेन्ट तो क्या होगा? वो अधिकारी बनेगा? कई बच्चे और सब्जेक्ट में आगे चले जाते हैं लेकिन प्रैक्टिकल धारणा में जैसा समय है वैसा अपने को मोल्ड करना वो है रीयल गोल्ड। कहाँ-कहाँ माया बच्चों से भी होशियार हो जाती है। वो फट से समय प्रमाण स्वरूप धारण कर लेती है और बच्चे क्या कहते हैं? बाप के पास तो सबकी बातें आती हैं ना! मानो एक रांग है और दूसरा राइट है। ऐसे भी होता है कि दोनों तरफ की कोई ना कोई कमी होती है लेकिन मानों आप बिल्कुल ही अपने को राइट समझते हो और दूसरा बिल्कुल ही रांग है, तो आप राइट हो और वो रांग है फिर भी जैसा समय, जैसा वायुमण्डल देखा जाता है वैसे अपने को ही, चाहे समाना पड़ता है, चाहे मिटाना पड़ता है, चाहे किनारा करना पड़ता है, लेकिन बच्चे क्या कहते हैं कि क्या हर बात में हर समय हमको ही मरना है क्या! मरने के लिये हम हैं और मौज मनाने के लिए ये हैं! सदा ही मरना है, ये मरना तो बहुत मुश्किल है, मरजीवा तो बन गये वो तो सहज है। ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी बन गये ये भी तो मरजीवा बने ना! ये मरना तो बहुत सहज हो गया। मर गये, ब्रह्माकुमारी बन गये। लेकिन ये बारबार का मरना ये बहुत मुश्किल है! मुश्किल है ना? छोटियाँ कहती हैं कि हमको ही ज्यादा मरना पड़ता है और बड़े कहते हैं कि हमको ही ज्यादा सुनना पड़ता है। तो आपको सहन करना पड़ता, उन्हों को सुनना पड़ता, तो मरना किसको है? कौन मरें? एक मरे, दोनों मरें? दोनों ही मर गये तो बात खत्म, खेल खत्म। तो मरना आता है या थोड़ा मुश्किल लगता है? थोड़ा सांस हांफता हैं, मुश्किल सांस निकलता है। तकलीफ होती है? उस समय जब कहते हो ना कि क्या हमें ही मरना है, हमें ही बदलना है, क्या मेरी ही जिम्मेवारी है बदलने की? दूसरे की भी तो है! आधा-आधा बांट लो-तुम इतना मरो, मैं इतना मरूँ। बापदादा को तो उस समय रहम भी बहुत आता है लेकिन ये मरना, मरना नहीं है। ये मरना सदा के लिये जीना है। लोग कहते हैं ना कि बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलेगा। तो उस मरने से तो स्वर्ग मिलता नहीं लेकिन इस मरने से स्वर्ग का अधिकार ज़रुर मिलेगा। इसलिए ये मरना अर्थात् स्वर्ग का अधिकारी बनना। डर जाते हो ना-मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, सहन करना पड़ेगा तो छोटी बात बड़ी हो जाती है। आप सोचो कोई भी डाकू या चोर है नहीं लेकिन आपको डर बैठ गया कि डाकू है, चोर है तो भय से क्या होता है? भय से या तो हार्ट नीचे-ऊपर होगी या ब्लड प्रेशर नीचे-ऊपर होगी। डर से होता है ना? तो डर जाते हो। मरना बड़ी बात नहीं है लेकिन आपका डर बड़ी बात बना देता है फिर कहते हैं पता नहीं हमको क्या होता है, पता नहीं! लेकिन जैसे हिम्मत से मरजीवा बनने में भय नहीं किया, खुशी-खुशी से किया, ऐसे खुशी-खुशी से परिवर्तन करना है। मरना शब्द नहीं है लेकिन आपने मरना-मरना शब्द कह दिया है इसलिए डर जाते हैं। वास्तव में ये मरना नहीं है लेकिन अपने धारणा की सब्जेक्ट में नम्बर लेना है। सहन करने में घबराओ मत। क्यों घबराते हो? क्योंकि समझते हो कि झूठी बात में हम सहन क्यों करें? लेकिन सहन करने की आज्ञा किसने दी है? झूठ बोलने वाले ने दी है? कई बच्चे सहन करते भी हैं लेकिन मज़बूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना, इसमें अन्तर है। बात के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो। तो बाप की आज्ञा मानते हो तो परमात्मा की आज्ञा मानना ये खुशी की बात है ना कि मजबूरी है । तो कई बार सहन करते भी हो लेकिन थोड़ा मिक्स होता है, मोहब्बत भी होती है, मजबूरी भी होती है। सहन कर ही रहे हो तो क्यों नहीं खुशी से ही करो। मजबूरी से क्यों करो! वो व्यक्ति सामने आता है ना तो मजबूरी लगती है और बाप सामने आवे, कि बाप की आज्ञा पालन कर रहे हैं तो मोहब्बत लगेगी, मजबूरी नहीं। तो ये शब्द नहीं सोचो। आजकल ये थोड़ा कॉमन हो गया है - मरना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, कब तक मरना पड़ेगा, अन्त तक या दो साल, एक साल, 6 मास, फिर तो अच्छा मर जायें... लेकिन कब तक मरना है? लेकिन यह मरना नहीं है अधिकार पाना है। तो क्या करेंगे? मरेंगे? यह मरना शब्द खत्म कर दो। मरना सोचते हो ना तो मरने से तो डर लगता है ना। देखो अपनी मृत्यु तो छोड़ो, कोई-कोई तो दूसरे की मृत्यु देखकर भी डर जाते हैं। तो ये शब्द परिवर्तन करो, ऐसे-ऐसे बोल नहीं बोलो। शुद्ध भाषा बोलो। ब्राह्मणों की डिक्शनरी में यह शब्द है ही नहीं। पता नहीं किसने शुरू किया है। किया तो आप लोगों में से ही है ना! आप माना जो सामने बैठे हैं, वह नहीं। ब्राह्मणों ने ही किया है। बापदादा ने ये तो एक मिसाल सुनाया लेकिन सारे दिन में ऐसे व्यर्थ बोल या मज़ाक के बोल बहुत बोलते हैं, अच्छे शब्द नहीं बोलेंगे, लेकिन कहेंगे मेरा भाव नहीं था, यह तो मज़ाक में कह दिया। तो ऐसा मज़ाक क्या ब्राह्मण जीवन में आपके नियमों में है? लिखा हुआ तो नहीं है? कभी पढ़ा है कि मज़ाक कर सकते हैं? मज़ाक करो लेकिन ज्ञानयुक्त, योगयुक्त। बाकी व्यर्थ मज़ाक जिसको आप मज़ाक समझते हो लेकिन दूसरे की स्थिति डगमग हो जाती है, तो वह मज़ाक हुआ या दु:ख देना हुआ?
तो आज बापदादा ने देखा कि एक तो सभी पूर्वज हैं और दूसरा सबसे बड़े ते बड़े पूज्य आत्मायें भी आप हो। आप जैसी पूजा सारे कल्प में किसकी नहीं होती। तो पूर्वज भी हो और पूज्य भी। लेकिन पूज्य भी नम्बरवार हैं। जो भी ब्राह्मण बनते हैं उनकी पूजा होती ज़रुर है लेकिन किसकी विधिपूर्वक होती है और किसकी काम चलाऊ होती है। तो जो ब्राह्मण यहाँ भी योग में बैठते हैं लेकिन काम चलाऊ, कुछ नींद किया, कुछ योग किया, कुछ व्यर्थ सोचा और कुछ शुभ सोचा। तो यह काम चलाऊ हुआ ना! सफेद बत्ती जल गई, काम पूरा हो गया। ऐसे धारणा में भी काम चलाऊ बहुत होते हैं। कोई भी सरकमस्टांस आयेगा तो कहेंगे अभी तो ऐसे करके चलाओ, पीछे देखा जायेगा। तो ऐसों की पूजा काम चलाऊ होती है। देखो लाखों सालग्राम बनाते हैं लेकिन क्या होता है? विधिपूर्वक पूजा होती है? काम चलाऊ होती है ना! पाइप से नहला दिया और तिलक भी कटोरी भरके पण्डित लोग ऐसे-ऐसे कर देते हैं। (छिड़क देते हैं) तिलक लग गया। तो ये क्या हुआ? काम चलाऊ हुआ ना। पूज्य सभी बनते हो लेकिन कैसे पूज्य बनते हो वो नम्बरवार है। किसकी हर कर्म की पूजा होती है। दातन (दातून) का भी दर्शन होता है, दातन हो रहा है। मथुरा में जाओ तो दातन का भी दर्शन कराते हैं, इस समय दातन का समय है। तो काम चलाऊ नहीं बनना। नहीं तो पूजा भी ऐसी होगी।
टीचर्स क्या समझती हो? आगे बैठती हो तो नम्बर भी आगे लेना है ना! कम नहीं रह जाना। नशा रखो कि हम पूर्वज भी हैं और पूज्य भी हैं। तो जितने बड़े, उतनी बड़ी जिम्मेवारी है। बड़ा बनना सिर्फ खुश होने वाली बात नहीं है। नाम बड़ा तो काम भी बड़ा। सभी टीचर्स खुश हो? या कोई-कोई इच्छा अभी भी मन में है? कोई भी इच्छा होगी तो अच्छा बनने नहीं देगी। या इच्छा पूर्ण करो या अच्छा बनो। आपके हाथ में है। और देखा जाता है कि ये इच्छा ऐसी चीज़ है जैसे धूप में आप चलते हो तो आपकी परछाई आगे जाती है और आप उसको पकड़ने की कोशिश करो, तो पकड़ी जायेगी? और आप पीठ करके आ जाओ तो वो परछाई कहाँ जायेगी? आपके पीछे-पीछे आयेगी। तो इच्छा अपने तरफ आकर्षित कर रूलाने वाली है और इच्छा को छोड़ दो तो इच्छा आपके पीछे-पीछे आयेगी। मांगने वाला कभी भी सम्पन्न नहीं बन सकता। और कुछ नहीं मांगते हो लेकिन रॉयल मांग तो बहुत है। जानते हो ना-रॉयल मांग क्या है? अल्पकाल का कुछ नाम मिल जाये, कुछ शान मिल जाये, कभी हमारा भी नाम विशेष आत्माओं में आ जाये, हम भी बड़े भाइयों में गिने जायें, हम भी बड़ी बहनों में गिने जायें, आाखिर हमको भी तो चांस मिलना चाहिए। लेकिन जब तक मंगता हो तब तक कभी खुशी के खज़ाने से सम्पन्न नहीं हो सकते। ये मांग के पीछे या कोई भी हद की इच्छाओं के पीछे भागना ऐसे ही समझो जैसे मृगतृष्णा है। इससे सदा ही बचकर रहो। छोटा रहना कोई खराब बात नहीं है। छोटे सुभान अल्लाह हैं। क्योंकि बापदादा के दिल पर नम्बर आगे हैं। अल्पकाल की इच्छा का अनुभव करके देखा होगा, तो रूलाती है या हंसाती है? रूलाती है ना! तो रावण की आज्ञा है रूलाओ, आप तो बाप के हो ना तो बाप हंसाने वाला है या रूलाने वाला?
आज बापदादा विशेष इस पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि व्यर्थ बोल जो किसको भी अच्छे नहीं लगते, आपको अच्छा लगता है लेकिन दूसरे को अच्छा नहीं लगता, तो सदा के लिए उस शब्द को समाप्त कर दो। ऐसे सारे दिन में अगर बापदादा अपने पास बच्चों के शब्द नोट करे तो काफी फाइल बन सकती है। यह अपशब्द, व्यर्थ शब्द, ज़ोर से बोलना..... ये ज़ोर से बोलना भी वास्तव में अनेकों को डिस्टर्ब करना है। ये नहीं बोलो-मेरा तो आवाज़ ही बड़ा है। मायाजीत बन सकते हो और आवाज़ जीत नहीं बन सकते! तो ऐसे किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल और व्यर्थ बोल नहीं बोलो। बात होती है दो शब्दों की लेकिन आधा घण्टा उस बात को बोलते रहेंगे, बोलते रहेंगे। तो ये जो लम्बा बोल बोलते हो, जो चार शब्दों में काम हो सकता है वो 12-15 शब्द में नहीं बोलो। आप लोगों का स्लोगन है ‘‘कम बोलो, धीरे बोलो’’। तो जो कहते हैं ना हमारा आवाज़ बहुत बड़ा है, हम चाहते नहीं हैं लेकिन आवाज़ ही बड़ा है, तो वो गले में एक स्लोगन लगाकर डाल लेवें। होता क्या है? आप लोग तो अपनी धुन में ज़ोर से बोल रहे हो लेकिन आने-जाने वाले सुन करके ये नहीं समझते हैं कि इसका आवाज़ बड़ा है। वो समझते हैं पता नहीं झगड़ा हो रहा है। तो ये भी डिससर्विस हुई। इसलिए आज का पाठ दे रहे हैं - व्यर्थ बोल या किसी को भी डिस्टर्ब करने वाले बोल से अपने को मुक्त करो। व्यर्थ बोल मुक्त। फिर देखो अव्यक्त फरिश्ता बनने में आपको बहुत मदद मिलेगी। बोल, बोल, बोल, बोलते ही रहते हो। अगर बापदादा टेप भरकर आपको सुनाये ना तो आपको भी हंसी आयेगी। तो क्या पाठ पक्का किया है? बोल की इकॉनॉमी करो, अपने बोल की वैल्यु रखो। जैसे महात्माओं को कहते हैं ना-सत्य वचन महाराज तो आपके बोल सदा सत वचन अर्थात् कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले वचन हों। किसको चलते-फिरते हंसी में कह देते हो - ये तो पागल है, ये तो बेसमझ है, ऐसे कई शब्द बापदादा अभी भूल गये हैं लेकिन सुनते हैं। तो ब्राह्मणों के मुख से ऐसे शब्द निकलना ये मानों आप सतवचन महाराज वाले, किसी को श्राप देते हो। किसको श्रापित नहीं करो, सुख दो। युक्तियुक्त बोल बोलो और काम का बोलो, व्यर्थ नहीं बोलो। तो जब बोलना शुरू करते हो तो एक घण्टे में चेक करो कि कितने बोल व्यर्थ हुए और कितने सत वचन हुए? आपको अपने बोल की वैल्यु का पता नहीं, तो बोल की वैल्यु समझो। अपशब्द नहीं बोलो, शुभ शब्द बोलो। क्योंकि अभी लास्ट मास है और आदि का मास डायमण्ड जुबली है, तो सारा साल डायमण्ड बनेंगे या 6 मास बनेंगे? सारा साल बनेंगे ना! इसलिए बापदादा डायमण्ड जुबली के पहले बच्चों को विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं। बापदादा चारों ओर के दृश्य तो देखते ही रहते हैं। सारा दिन नहीं देखते रहते हैं, सेकण्ड में सब देख सकते हैं। तो पाठ पक्का किया - मुक्त बनना है? या थोड़ा-थोड़ा युक्त और थोड़ा- थोड़ा मुक्त? हर एक अपने को देखो। ये नहीं शुरू करना कि बाबा ने वाणी चलाई फिर भी बोल रहा है, दूसरे को नहीं देखना। अपने को देखो-मैंने बाप की श्रीमत को कितना अपनाया है? अभी तो एक-दो को देखते हैं-ये कर रहा है... लेकिन जब अधिकार मिलने में वो नीचे पद में जायेगा तो उस समय आप साथ देंगे? उस समय देखेंगे? उस समय नहीं देखेंगे। फिर अभी क्यों देखते हो।
अच्छा-सभी मुक्त बनेंगे ना? जो समझते हैं कि मुक्त होना मुश्किल है वो हाथ उठाओ। अगले बार जब चिटकी लिखने के लिए कहा था तो बापदादा के पास रिज़ल्ट आई, अभी तो वो चले गये लेकिन बापदादा उन बच्चों को मुबारक के साथ-साथ हिम्मत और देते हैं कि जैसे सोचा है, कोई ने लिखा है 6 मास चाहिये, किसी ने लिखा है 2 मास चाहिये, जितना भी लिखा है तो बाप की मत से अवश्य पूरा होगा। बाकी अच्छा है, सच तो बोला ना।
अच्छा, अभी एक मास में भी तो आधा मास चला गया। बाकी हैं थोड़े से दिन। तो मुक्त बनना ज़रुर। कम से कम पहले-दूसरे नम्बर के रॉयल फैमिली में तो आ जाओ। अच्छा।
इस कल्प में जो अभी पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। जो भी आये हैं वो हिम्मत रखते हो कि हम तीव्र पुरूषार्था बन डायमण्ड जुबली अपने जीवन और सेवा से मनायें, ऐसी हिम्मत अपने में समझते हो? जो समझते हैं कि हम बाप को करके ही दिखायेंगे, वो हाथ उठाओ। जो पहली बार नये आये हैं लेकिन समझते हैं कि डायमण्ड जुबली के अन्त तक कर लेंगे वो हाथ उठाओ। शर्म नहीं करो। हाथ उठाने में थोड़ा संकोच हो रहा है। लेकिन बापदादा उन्हों को भी कहते हैं कि हिम्मत से क्या नहीं हो सकता! हिम्मत रखो। हिम्मत लेने के पात्र बनो तो थोड़े समय में भी आगे जा सकते हैं। इसलिए दिलशिकस्त नहीं बनो कि पता नहीं हो सकेगा या नहीं हो सकेगा।
अच्छा, अभी कौन से ज़ोन आये हैं? (बापदादा सभी ज़ोन से हाथ उठवा कर मिल रहे हैं)
बापदादा को खुशी है भले आये। डबल विदेशी जो इस बार आये हैं वो हाथ उठाओ। अच्छा।
युवाओं से
सब तरफ वाले युवा हाथ उठाओ। डायमण्ड जुबली में युवा क्या करेंगे? युवा में डबल शक्ति है। शारीरिक शक्ति भी है तो आत्मिक शक्ति भी है। तो डबल शक्ति से डायमण्ड जुबली में क्या विशेषता दिखायेंगे? रैली निकालना, फंक्शन करना ये तो करते ही रहते हो। कितने बारी किया है, बहुत बार किया है। अभी क्या करेंगे? हर एक युवा जो आजकल के अज्ञानी युवा एसोसिएशन्स हैं या ग्रुप हैं, जो और भी देश में नुकसान करते हैं, गवर्नमेंट को भी तंग करते हैं, ऐसे कोई एसोसिएशन तैयार करना, उनमें से जो ऐसे नुकसान करने वाले हैं उन्हों को परिवर्तन करके दिखाओ। प्रैक्टिकल में हर एक युवा अपने-अपने सेवास्थान पर ऐसा परिवर्तन किया हुआ ग्रुप तैयार करो। जो भी ज़ोन आये हैं हरेक ज़ोन में कहाँ 100 हैं, कहाँ 50 सेवाकेन्द्र हैं, गीता पाठशालायें तो बहुत हैं लेकिन हर एक ज़ोन अपने एरिया में जहाँ-जहाँ सेवाकेन्द्र हैं, वहाँ से ऐसे परिवर्तन किया हुआ सेम्पुल तैयार करो। आप लोगों को मालूम है, जब डाकुओं का हुआ था तो एक डाकू परिवार्तित हुआ, एक एग्ज़ाम्पल निकला और देखा गया कि एक डाकू कहाँ भी अपना अनुभव सुनाता था तो सभी को बहुत रूचि होती थी। तो आप लोग फिर ऐसे एसोसिएशन्स जहाँ संगठन होता है, वहाँ से जितने तैयार कर सको उतने निकालो। एग्ज़ाम्पल तैयार करो। फिर सभी ज़ोन के जो निकलेंगे उनका विशेष सभी का मिल करके फंक्शन रखेंगे और उसमें गवर्नमेंट के डिपार्टमेन्ट को दिखायेंगे कि ये युवा क्या करते हैं और वो युवा क्या करते हैं। तो युवा तैयार हैं? नम्बर लेना है? हाँ या ना? कितना टाइम चाहिये? डायमण्ड जुबली के 6 मास चाहिए, 4 मास चाहिए, कितना टाइम चाहिए? महाराष्ट्र के युवा क्या करेंगे? जवाब दो। मुश्किल लगता है क्या? तो जो हाँ कहते हैं, करेंगे, वो हाथ उठाओ। अच्छा। यू.पी. वाले करेंगे? हाँ बोलो या ना बोलो। कितने टाइम में करेंगे? डायमण्ड जुबली के 6 मास चाहिए? 6 मास के बाद ऐसे नहीं कहना, तो कोई मानता नहीं, दुबारा मार्क्स दे दो। चाहे कोई ज्यादा एग्ज़ाम्पल तैयार करे, चाहे कम करे, लेकिन ना शब्द नहीं आना चाहिए। तो इसमें पहला नम्बर कौन लेगा? टीचर्स समझती हैं हो जायेगा? होना ही है। गवर्नमेंट को प्रैक्टिकल मिसाल चाहिए। आप लोग कहते हो ना कि हम सोशल वर्क बहुत करते हैं। तो वो मिसाल चाहती है। तो ऐसा ग्रुप तैयार करना और टीचर्स का काम है कराना। अच्छा।
कुमारियों से
सबसे ज्यादा कुमारियाँ कहाँ से आई हैं? कुमारियाँ तो हल्की हैं ना, उठकर खड़ी हो जाओ। अच्छा, जहाँ से भी आयी हो लेकिन कुमारियों के लिए गाया हुआ है कि कुमारी वो जो अपने दो परिवार का कल्याण करे। तो आपको तो एक ही परिवार है। दूसरा तो है नहीं। तो कुमारियाँ अपने ग्रुप में से, जैसे युवा को कहा वैसे फीमेल्स की भी ऐसी एसोसिएशन्स हैं, और जहाँ-तहाँ हैं, तो जहाँ भी रहते हो वहाँ बिगड़ी हुई आत्माओं को परिवर्तन करके दिखाओ। आप भी ग्रुप बनाओ। तो डायमण्ड जुबली में गवर्नमेंट को दिखायें कि देखो मातायें भी बदल सकती और युवा भी बदल सकते हैं।
माताओं से
प्रवृत्ति वाली मातायें क्या करेंगी? बहुत ऐसी दु:खी आत्मायें हैं जो खराब संग के कारण फंस गई हैं। ऐसी एसोसिएशन्स में नियम प्रमाण जाना, ऐसे नहीं चले जाना जो इन्सल्ट करे और लौटकर आओ, कायदे प्रमाण जाना और टीचर्स देखें तो इसका बोल, चाल, चलन प्रभावशाली है, ऐसा ग्रुप माताओं का, चाहे कुमारियों का, चाहे यूथ का हो। अभी ये माला तैयार करो, तो आप माला में आ जायेंगे। बिगड़े हुए को सुधारो। मातायें कर सकती हैं? बिना छुट्टी के कोई नहीं करना। टीचर्स की छुट्टी से नियम प्रमाण 2-3 का ग्रुप बनाकर जाना। ऐसे नहीं कि सभी चल पड़ो। ऐसे नहीं करना। नियम प्रमाण चलना। समझा। तो मातायें और प्रवृत्ति वाले पाण्डव क्या करेंगे?
प्रवृत्ति वालों से
प्रवृत्ति वाले पाण्डव क्या करेंगे? पाण्डव, जो भी जिस डिपार्टमेन्ट में काम करते हो, हरेक का अपना-अपना क्षेत्र है, तो जहाँ भी लौकिक काम करते हो तो लौकिक कार्य करते हुए भी अलौकिक चाल-चलन से अपना प्रभाव डाल सकते हैं। तो पाण्डवों को कोई न कोई अपने जैसे दो-तीन को तैयार करना है क्योंकि डायमण्ड जुबली में नम्बर बढ़ाना है। इसलिए पाण्डवों को इस कार्य में सहयोग देना है। समझा।
अच्छा, सभी को पाठ याद है? कौन सा पाठ? व्यर्थ बोल मुक्त... याद है? भूल तो नहीं गया? अच्छा।
चारों ओर के पूर्वज आत्माओं को, सदा इस निश्चय और नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कर्म करने वाले कर्मयोगी आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प से बाप के हर कदम पर कदम रखने वाले फॉलो फादर बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार और नमस्ते। डबल विदेशियों को डबल नमस्ते।
22-12-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सर्व प्राप्ति सम्पन्न जीवन की विशेषता है - अप्रसन्नता मुक्त और प्रसन्नता युक्त’’
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्रेम स्वरूप आत्माओं को देख रहे हैं। हर एक के दिल में परमात्म प्यार समाया हुआ है। ये परमात्म प्यार प्राप्त भी एक ही जन्म में होता है। 83 जन्म देव आत्मायें वा साधारण आत्माओं द्वारा मिला। सोचो, याद करो, सारे कल्प का चक्कर लगाओ-स्वदर्शन चक्रधारी हो ना! तो एक सेकण्ड में सारे कल्प का चक्कर लगाया? 83 जन्मों में परमात्म-प्यार मिला था? नहीं मिला। सिर्फ इस संगम पर एक जन्म में परमात्म प्यार प्राप्त हुआ। तो अन्तर को जान लिया ना! आत्माओं का प्यार और परमात्म प्यार-कितना अन्तर है! साधारण आत्माओं का प्यार कहाँ ले गया? क्या प्राप्त कराया - अनुभव है ना? और परमात्म-प्यार कहाँ ले जाता? अपने स्वीट होम और स्वीट राजधानी में। आत्म-प्यार राज्य-भाग्य गँवाता है और परमात्म-प्यार राज्य-भाग्य दिलाता है, और इसी जन्म में। ऐसे नहीं कि सिर्फ भविष्य के आधार पर चल रहे हो। नहीं। डायरेक्ट परमात्म प्राप्ति तो अब है। वर्तमान के आगे भविष्य भी कुछ नहीं है। आप लोग गीत गाते हो ना कि स्वर्ग में क्या होगा और क्या नहीं होगा। और अभी का गीत क्या है? जो पाना था वो पा लिया.... वा पाना है? पा लिया। पाण्डवों ने पा लिया? गोपियों का तो गायन है ही। इस समय का गायन है कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु ब्राह्मणों के खज़ाने में। देवताओं के खज़ाने में नहीं, ब्राह्मणों के खज़ाने में। तो अभी ब्राह्मण हो ना? तो अनुभव करते हो कि अप्राप्त नहीं कोई वस्तु? और ये प्राप्तियाँ अविनाशी हैं, अल्पकाल की नहीं हैं। तो जिसको सर्व प्राप्तियाँ हैं उसके जीवन में क्या विशेषता होगी? सब प्राप्तियाँ हैं, एक भी कम नहीं है तो उसकी चलन और चेहरे में क्या विशेषता दिखाई देगी? सदा प्रसन्नता। कुछ भी हो जाये लेकिन सर्व प्राप्तिवान अपनी प्रसन्नता छोड़ नहीं सकता। अप्रसन्नता कभी भी होती है तो चेक करो कि अप्राप्ति का अनुभव होता है या सर्व प्राप्तियों का?
आज बापदादा ने बहुत ही, सेवाकेन्द्र और उप-सेवाकेन्द्र देखे, विदेश में नहीं, देश में सेवाकेन्द्र देखे। सेवाकेन्द्र में विशेष तो सेवाधारी हैं, तो आज चक्कर लगाते हुए सेवाधारी और सेवास्थान, दोनों देखे। हर एक स्थान में, चाहे छोटे, चाहे बड़े, सभी में चेक किया कि सेवाधारी तन से, मन से, धन से और सेवा के सम्बन्ध-सम्पर्क से कितने प्रसन्न हैं? क्योंकि विशेष तो यही बातें हैं ना! तो क्या देखा?
तन तो सबके पुराने हैं ही, चाहे जवान हैं, चाहे बड़े हैं, छोटे और ही बड़ों से भी कहाँ-कहाँ कमज़ोर हैं, चाहे बीमारी बड़ी है लेकिन बीमारी की महसूसता कि मैं कमज़ोर हूँ, मैं बीमार हूँ - ये बीमारी को बढ़ा देती है। क्योंकि तन का प्रभाव मन पर आ गया तो डबल बीमार हो गये। तन और मन दोनों से डबल बीमार होने के कारण बार-बार सोल कान्सेस के बजाय बीमारी कान्सेस हो जाते हैं। तो क्या देखा? कि तन से तो मैजारिटी, बीमार कहो या हिसाब-किताब चुक्तु करना कहो, कर रहे हैं, लेकिन 50 परसेन्ट डबल बीमार और 50 परसेन्ट सिंगल बीमार हैं। बाकी होना क्या चाहिए? कभी भी मन में बीमारी का संकल्प नहीं लाना चाहिये-मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ..... लेकिन होता क्या है? ये पाठ पक्का हो जाता है कि मैं बीमार हूँ.... कभी-कभी किसी समय बीमार होते नहीं हैं लेकिन मन में खुशी नहीं है तो बहाना करेंगे कि मेरे कमर में दर्द है। क्योंकि मैजारिटी को या तो टांग दर्द, या कमर का दर्द होता है, कई बार दर्द होता नहीं है फिर भी कहेंगे मेरे को कमर में दर्द है। अभी उसकी चेकिंग कैसे हो? डॉक्टर्स के पास इसका कोई थर्मामीटर है, जो कमर दर्द है या नहीं वो चेक कर सके? एक्सरे कराओ, ये कराओ, वो तो और ही खर्चा लगाओ। तो क्या देखा, तन के बारे में सुनाया। कई सेवाधारी ऐसे दिखाई दिये। सेवाधारी आप सभी हो। ऐसे नहीं समझना सिर्फ टीचर्स की बात है। सेवाधारी आप प्रवृत्ति वाले भी हो ना? कि जो सेन्टर्स पर रहते हैं वो सेवाधारी हैं? आप लोग प्रवृत्ति में रहने वाले भी सेवाधारी हो। कभी आपके घरों का भी चक्कर लगायेंगे। देखेंगे कि कैसे सोते हो, कैसे उठते हो? डबल बेड है, सिंगल बेड है? अच्छा ये तो आज के चक्कर की बात है।
आजकल के हिसाब से दवाइयाँ खाना ये बड़ी बात नहीं समझो। क्योंकि कलियुग का वर्तमान समय सबसे शक्तिशाली फ्रूट ये दवाइयाँ हैं। देखो कोई रंग-बिरंगी तो हैं ना। कलियुग के लास्ट का यही एक फ्रूट है तो खा लो प्यार से। दवाई खाना ये बीमारी याद नहीं दिलाता। अगर दवाई को मज़बूरी से खाते हो तो मज़बूरी की दवाई बीमारी याद दिलाती है और शरीर को चलाने के लिये एक शक्ति भर रहे हैं, उस स्मृति में खायेंगे तो दवाई बीमारी याद नहीं दिलायेगी, खुशी दिलायेगी तो बस दो-तीन दिन में दवाई से ठीक हो जायेंगे। आजकल के तो बहुत नये फैशन हैं, कलियुग में सबसे ज्यादा इन्वेन्शन आजकल दवाइयाँ या अलग-अलग थेरापी निकाली है, आज फलानी थेरापी है, आज फलानी, तो ये कलियुग के सीजन का शक्तिशाली फल है। इसलिए घबराओ नहीं। लेकिन दवाई कांसेस, बीमारी कांसेस होकर नहीं खाओ। तो तन की बीमारी होनी ही है, नई बात नहीं है। इसलिए बीमारी से कभी घबराना नहीं। बीमारी आई और उसको फ्रूट थोड़ा खिला दो और विदाई दे दो। अच्छा ये हुआ तन की रिज़ल्ट। फिर और क्या देखा?
मन, मन में क्या देखा? एक बात खुशखबरी की ये देखी कि मैजारिटी हर एक सेवाधारी के मन में बाप का प्यार और सेवा का उमंग दोनों हैं। बाकी 25 परसेन्ट कोई मज़बूरी से चल रहा है, वो छोड़ो। लेकिन मैजारिटी के मन में ये दोनों बातें देखी। और ये भी देखा कि बाप से प्यार होने के कारण याद में भी शक्तिशाली हो बैठने का, चलने का, सेवा करने का अटेन्शन बहुत देते हैं लेकिन खेल क्या होता है कि चाहते हैं कि याद की सीट पर अच्छी तरह से सेट होकर बैठ जायें लेकिन थोड़ा टाइम तो सेट होते हैं फिर हिलना-डुलना शुरू होता है। जैसे बच्चा होता है, उसको ज्यादा टाइम सीट पर बिठाओ तो हिलेगा ज़रुर। तो मन भी अगर कन्ट्रोल में, ऑर्डर में नहीं है तो थोड़ा टाइम तो बहुत अच्छे बैठते हैं, चलते हैं, सेवा भी करते हैं लेकिन कभी सेट होते हैं, कभी अपसेट भी हो जाते हैं। कारण क्या है? होना सेट चाहते हैं लेकिन अपसेट क्यों होते हैं? कारण क्या है? एकाग्रता की शक्ति, दृढ़ता की शक्ति, उसकी कमी है। प्लैन बहुत अच्छा सोचते हैं, ऐसे बैठेंगे, ये अनुभव करेंगे फिर ये सेवा करेंगे, फिर ऐसे चलेंगे, लेकिन कर्म करने में या बैठे-बैठे भी दृढ़ता की शक्ति कम हो जाती है। और बातों में मन-बुद्धि बट जाते हैं। चाहे काम में बिज़ी नहीं है लेकिन व्यर्थ संकल्प ये सबसे बड़ा काम है जो अपने तरफ खींच लेता है। तो स्थूल काम नहीं भी हो लेकिन दृढ़ता की शक्ति बंटने के कारण मन और बुद्धि सीट पर सेट होने के बजाए हलचल में आ जाते हैं।
बापदादा ने आप सबको जो काम दिया था वो देखा। बापदादा के पास सब चिटकियाँ पहुँची। लेकिन कई बच्चे बड़े चालाक हैं। चालाकी क्या करते हैं? चिटकी लिखते हैं लेकिन नाम नहीं लिखते। ऐसे समझकर करते हैं बाबा तो जानता है। जानता है, फिर भी अगर काम दिया है तो काम तो पूरा करो ना। टीचर अगर कहे ये लिखकर आओ और टीचर को कहो कि आप तो जानते हो ना - मुझे ये लिखना आता है, तो टीचर मानेगा? तो कई तो नाम ही नहीं लिखते। लेकिन जो भी जिस ग्रुप में काम दिया है, मैजारिटी सबकी ये खुशी की बात देखी, कि सबने लिखा है कि हम डायमण्ड जुबली तक करके दिखायेंगे। ये मैजारिटी का है। आप सबका भी है? जीवनमुक्त हो जायेंगे? अगर सभी बातों से मुक्त हो गये तो क्या हो जायेंगे? जीवनमुक्त हो जायेंगे ना। तो सभी ने अपनी हिम्मत, उमंग अच्छा दिखाया है, चाहे फॉरेन वालों ने, चाहे भारत वालों ने, उमंग-उत्साह सभी का अच्छा है। कोई-कोई ने, बहुत थोड़ों ने लिखा है, कि हमको टाइम लगेगा। लगने दो उन्हों को। आप लोग तो जीवनमुक्त हो जाओ। तो रिज़ल्ट में देखा कि सभी को उमंग है कि डायमण्ड जुबली में कुछ करके दिखायें। लेकिन बापदादा ने देखा कि जितना अपने आपको डायमण्ड बनाने का उमंग-उत्साह है, उतना ही डायमण्ड जुबली वर्ष में सेवाओं के प्लैन भी बहुत फास्ट बनाये हैं। फास्ट बनाये हैं इसमें बापदादा खुश है लेकिन ऐसा नहीं कहना कि बहुत सेवा का बोझ था ना इसीलिए थोड़ा नीचे-ऊपर हो गया। ये बापदादा नहीं चाहते। सेवा जो स्वयं को वा दूसरे को डिस्टर्ब करे वो सेवा नहीं है, स्वार्थ है। और निमित्त कोई न कोई स्वार्थ ही होता है इसलिए नीचे-ऊपर होते हैं। चाहे अपना, चाहे दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्टर्बेन्स होती है। इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के सम्बन्ध में प्यारे बनकर सेवा करो, तब जो संकल्प किया है वा लक्ष्य रखा है कि डायमण्ड जुबली में डायमण्ड बन डायमण्ड जुबली मनायेंगे, वह पूरा हो सकेगा। आधा नहीं याद करना। कई ऐसे जवाब देते हैं, कहते हैं डायमण्ड जुबली तो मनाने की थी तो मनाया, उसमें बिज़ी हो गये। लेकिन बापदादा के दोनों शब्द याद रखना। आधा नहीं। डायमण्ड बन, डायमण्ड जुबली मनानी है। सिर्फ मनानी है नहीं, बनकर मनानी है। तो मतलब का अर्थ नहीं लेना - मना लिया ना। लेकिन बनकर मनाया? बनकरके मनाना - ये है डायमण्ड जुबली का लक्ष्य। तो आधा लक्ष्य नहीं पूरा करना। डबल है - बनना और मनाना। सिर्फ बनना नहीं, सिर्फ मनाना नहीं। दोनों साथ-साथ हो। और आप सबको मालूम है कि जब आप डायमण्ड जुबली के वा डायमण्ड बनने के प्लैन बना रहे हो तो आप सबसे पहले माया भी अपना प्लैन बना रही है। इसलिए ये नहीं कहना - क्या करें बाबा, हिम्मत कम हो गई, माया बहुत तेज है, माया को अपने पास रखो। राज्य आप करेंगे और माया को बाबा सम्भालेंगे! राज्य तो आपको करना है ना। मायाजीत जगतजीत बनता है, तो माया को जीतने के बिना जगतजीत कैसे बनेंगे? इसीलिये चारों ओर अटेन्शन प्लीज़। समझा? अच्छा।
चक्कर का आधा सुनाया, आधा फिर सुनायेंगे। सेन्टर कोई-कोई तो बहुत अच्छे सजे-सजाये और कोई सिम्पल तो कोई बहुत रॉयल, कोई बीच के भी थे। ज्यादा हैं जो समझते हैं कि रॉयल लगे, कोई वी.आई.पी. आवे तो उसको लगे कि सेन्टर अच्छा है, लेकिन अपना (ब्राह्मणों का) आदि से अब तक का नियम है कि न बिल्कुल सादा हो, न बहुत रॉयल हो। बीच का होना चाहिये। ब्रह्मा ने तो बहुत साधारण देखा और रहा। लेकिन अभी साधन हैं, साधन देने वाले भी हैं फिर भी कोई भी कार्य करो तो बीच का करो। ऐसा भी कोई न कहे कि यह क्या लगा दिया है - पता नहीं, और न कोई कहे कि ये तो अभी राजाई ठाठ हो गया है। तो आज का पाठ क्या है? मुक्त तो सबसे हो गये ना! सबसे मुक्त होने की प्रतिज्ञा हो गई है ना! पक्की है या घर जायेंगे तो कहेंगे कि मुश्किल है! पक्का रहना। माया को डायमण्ड जुबली में मज़ा चखाकर दिखाओ। मास्टर सर्वशक्तिमान हो, कम तो नहीं हो!
अच्छा, डबल फोरेनर्सभी बहुत आये हैं। स्थापना के कार्य की डबल शोभा-डबल विदेशी हैं। बापदादा जानते हैं कि कितने मेहनत से, युक्ति से यहाँ पहुँचते हैं। अगर लगन कम हो तो पहुँचना भी मुश्किल लगे। एक तरफ बापदादा सुनते हैं कि मनी डाउन हो गई है और दूसरे साल देखते हैं तो और भी विदेशी ज्यादा आ गये हैं। तो ये हिम्मत है। रशिया का ग्रुप भी आया है ना! रशिया वालों ने टिकेट कहाँ से लाई? इन्हों की कहानियाँ बहुत अच्छी सुनने वाली हैं। टिकेट कैसे इकट्ठी करते हैं, उसकी कहानी बहुत अच्छी है। ये तो सब होना ही है। जब है ही कागज़, पेपर ही तो है, चाहे डालर कहो, चाहे पौण्ड कहो, है तो पेपर ही, तो पेपर कहाँ तक चलेगा! सोने का मूल्य है, हीरे का मूल्य है, पेपर का क्या है? मनी डाउन तो होनी ही है। और आपकी मनी सबसे ज्यादा मूल्यवान है। जैसे शुरू में अखबार में डलवाया था ना कि ओम् मण्डली-रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। कमाई का साधन कुछ नहीं था। ब्रह्मा बाप के साथ एक-दो समर्पण हुए और अखबार में डाला रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। तो अभी भी जब चारों ओर ये स्थूल हलचल होगी फिर आपको अखबार में नहीं डालना पड़ेगा। आपके पास अखबार वाले आयेंगे और खुद ही डालेंगे, टी.वी. में दिखायेंगे कि ब्रह्माकुमारीज़ रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड। क्योंकि आपके चेहरे चमकते रहेंगे, कुछ भी हो जाये। दिन में खाने की रोटी भी नहीं मिले तो भी आपके चेहरे चमकते रहेंगे। तो चारों ओर होगा दु:ख और आप खुशी में नाचते रहेंगे। इसी को ही कहते हैं मिरूआ मौत मलू का शिकार। इसलिए बापदादा ने आज कहा कि ब्राह्मण जो सच्चे हैं, ब्राह्मण जीवन में श्रेष्ठ जीवन के लक्ष्य वाले हैं उसकी विशेषता है प्रसन्नता। चाहे कोई गाली भाr दे रहे हो तो भी आपके चेहरे पर दु:ख की लहर नहीं आनी चाहिये। प्रसन्नचित्त। गाली देने वाला भी थक जायेगा.., हो सकता है? यह नहीं कि उसने एक घण्टा बोला, मैंने सिर्फ एक सेकण्ड बोला। सेकण्ड भी बोला या सोचा, शक्ल पर अप्रसन्नता आई तो फेल हो गये। इतना सहन किया ना, एक घण्टा सहन किया, फिर गुब्बारे से गैस निकल गई। तो गैस वाले गुब्बारे नहीं बनना। और चाहिये ही क्या? बाप मिला, सब कुछ मिला - गीत तो यही गाते हो ना। तो ऐसे टाइम पर ऐसी-ऐसी बातें याद करो तो चेहरा नहीं बदलेगा। ऐसे नहीं उसके आगे जोर-जोर से हंसने लग जाओ, तो वो और ही गर्म हो जाये। प्रसन्नता अर्थात् आत्मिक मुस्कराहट। बाहर की नहीं, आत्मिक। तो आज का पाठ क्या रहा? सदा अप्रसन्नता मुक्त और प्रसन्नता युक्त, डबल - समझा? अच्छा।
पंजाब
पंजाब ने कोई शेर मधुबन तक लाया है? चीता लाये हैं या शेर लाये हैं? कि अभी शेर को अच्छी तरह से सजाते हो! छोटे-छोटे तो आये हैं। फिर भी पंजाब की सेवा में फर्क तो है। तो वो भी हो जायेगा।
इन्दौर
इन्दौर क्या तैयार कर रहे हैं? क्या नया प्लैन बनाया है जो मधुबन तक बड़े ते बड़े पहुँचे? डायमण्ड जुबली में लास्ट में एक ऐसा प्रोग्राम करो जो सब तरफ के विशेष वी.आई.पी. पहुँचे। आई.पी. नहीं, वी.आई.पी.। चाहे विदेश, चाहे देश - दोनों तरफ से वी.आई.पी. ग्रुप पहुँचे। चाहे थोड़ी संख्या हो लेकिन हो सारा ग्रुप वी.आई.पी. का। ऐसे नहीं बापदादा कहते हैं कि हज़ारों ले आओ, वो तो हो नहीं सकता। थोड़े लाओ लेकिन क्वालिटी लाओ जो एक-एक स्वयं सेवा करे। तैयार कर रहे हो ना? सेवा तो वृद्धि को प्राप्त हो रही है और होती रहेगी। होनी ही है। सिर्फ आप डायमण्ड बन जाओ तो चारों ओर आपकी चमक खींच करके लायेगी।
आसाम, गोहाटी
गोहाटी वाले क्या विशेषता कर रहे हैं? नया प्लैन क्या बनाया है? गोहाटी का कोई मिनिस्टर आया है? (नहीं) तो लाओ ना। गोहाटी का मिनिस्टर रह जावे तो उलहना मिलेगा।
बम्बई
बाम्बे वाले क्या कर रहे हैं? क्या नया प्लैन बनाया है? देखो भाषण किया, मिनिस्टर आया, प्रेज़ीडेन्ट आया, वो तो आये और गये लेकिन ऐसा समीप लाओ जैसे मॉरीशियस वालों ने समीप लाकर खुद अपनी हिम्मत से प्रोग्राम बनाया और इण्डिया गवर्नमेंट ने पूरी मदद दी। ये पहला हिम्मत वाला है। नहीं तो विदेश वाले कहते हैं आना तो चाहते हैं, आप लोग करो। वो नहीं होना है लेकिन जैसे उसने हिम्मत रखा, अपना प्रोग्राम दिया, ऐसे विदेश से अपना प्रोग्राम बनाकर यहाँ के मिनिस्ट्री की आँख खोले कि दूर-दूर से आते हैं और हम यहीं रहे हुए हैं। तो मॉरीशियस को, चाहे छोटा है मॉरीशियस लेकिन हिम्मत में छोटे ने ही तो कमाल की। मॉरीशियस को इस सेवा की मुबारक हो। अच्छा है, देखो ये किसी को भी दृष्टान्त तो दे सकते हो ना! एक्जाम्पल दे सकते हो कि जैसे ये आया वैसे बड़े को तो और ही ज्यादा मदद मिलेगी। तो मॉरीशियस ने आई.पी. के आने का दरवाजा खोला - ये अच्छा किया।
अच्छा, बाम्बे वाले क्या करेंगे? (पीस पार्क बनायेंगे) पीस पार्क बनायेंगे, वो भी अच्छा है। कोई कमाल करके दिखाओ। पीस पार्क बनाना ये भी अच्छी हिम्मत रखी। लेकिन डायमण्ड जुबली में कोई नवीनता करो। सेवा करके कोई शेर को ले आओ..... बॉम्बे के शेर हैं बड़े-बड़े नामीग्रामी इण्डस्ट्रियलिस्ट। ऐसे कोई लाओ जो एक अनेकों को जगाये और सेवा में निमित्त बने। तो बाम्बे वाले ऐसे नामीग्रामी को लाना। ऐसा लाओ जो आगे भी सम्पर्क में आये और लाये। जैसे हैदराबाद में राजू का छोटा मिसाल देखा ना, था तो बहुत छोटा लेकिन आया भी और लाया भी। ऐसा कोई लाओ। नाम तो बाला करके गया ना।
अच्छा, इसी की ट्रेनिंग हो रही है। (ज्ञान सरोवर में सेल्फ मैनेजमेंट लीडरशिप ट्रेनिंग का कार्यक्रम चल रहा है) देखेंगे, ट्रेनिंग तो की, ट्रेनिंग का फल बापदादा के आगे कौन सा लाते हो? ट्रेनिंग कराने वाले डायमण्ड जुबली में बापदादा के आगे फल लाओ। समझा? सेवा बहुत अच्छी है लेकिन अब सम्बन्ध-सम्पर्क में लाओ, ज्ञान-योग में लाओ। सिर्फ अच्छा है, अच्छा है - यहाँ तक ये फल नहीं हो। ये तो छोटा सा एक अंगूर है। बड़ा फल लाओ। कहाँ भी जायेंगे, किसको फल देंगे तो क्या एक अंगूर ले जायेंगे? अगर गिफ्ट देंगे तो कुछ बड़ा फल लायेंगे ना। अच्छा है, कर रहे हो लेकिन इसी लक्ष्य से करो कि डायमण्ड बन और डायमण्ड जुबली में नवीनता करके दिखायेंगे। इसको कहा जाता है ट्रेनिंग की सफलता। चांस तो अच्छा मिला है। अभी देखेंगे कितने फ्रूट थाली भरकर आते हैं या एक फ्रूट आता है या एक अंगूर आता है? अच्छा।
केरला, कर्नाटक
केरला क्या करेगा? केरला की विशेषता क्या होती है? (पढ़े-लिखे बहुत होते हैं) तो इस पढ़ाई में नहीं? सेन्टर तो होने ही हैं। कृष्णा अय्यर जैसा, वो केरला ने नहीं निकाला वो दिल्ली ने निकाला। ऐसा कोई तैयार करो। ऐसे ही चार-पांच का ग्रुप तैयार करो। अच्छा, केरला में नारियल के पेड़ बहुत होते हैं ना! तो आई.पीज.का बिगड़े हुए को सुधारना यह सबसे बड़ी सेवा है। 79 पेड़ पूरा ले आओ। कृष्णा अय्यर छोटा माइक तो है ही, आदि से अन्त तक सेवा में सहयोगी है और रहेगा। अच्छा है। जैसे कृष्णा अय्यर है, मद्रास का गवर्नर है ऐसे निकालो। और ऐसों का संगठन करो फिर देखो आप आराम से बैठे रहेंगे और वो आवाज़ फैलाते रहेंगे। जैसे आजकल की जो नई-नई टीचर्स आती हैं ना वो देखती हैं कि पुरानी दादियाँ तो बड़े आराम से रहती हैं और हम लोगों को भाग-दौड़ कराती हैं। तो आप लोगों को तैयार किया ना तो वो आराम से बैठी हैं। तो आप भी ऐसे तैयार करो जो आप आराम से बैठो। अच्छा।
आन्ध्र प्रदेश
आन्ध्र प्रदेश से एक राजू तो निकला लेकिन वो जल्दी चला गया। अभी आन्ध्र प्रदेश को और ग्रुप तैयार करना चाहिये। क्योंकि आन्ध्र प्रदेश में आई.पी. बहुत हैं। चाहे कहाँ भी मिनिस्टर बन जाते हैं लेकिन फिर भी अपने देश को वैल्यु देते हैं। आन्ध्र प्रदेश का कोई मिलेगा ना तो उसको रिगार्ड से मिलते हैं। देश का नशा होता है ना। तो आन्ध्रा को भी ग्रुप तैयार करना चाहिये। सेन्टर बढ़ रहे हैं, गीता पाठशालायें बढ़ रहीं हैं, ये तो होना ही है, ये अभी बड़ी बात नहीं है। कोई नवीनता करो। बढ़ाओ, और भी गीता पाठशालायें, सेन्टर बढ़ाओ, लेकिन साथ-साथ माइक भी तैयार करो जो प्रत्यक्षता करें। अच्छा।
बेलगाम
बेलगाम क्या कर रहा है? कितने आई.पी. तैयार किये हैं? कम से कम एक कंगन तो तैयार करो। माला छोड़ो। अच्छा।
डबल विदेशी
(यू.के., जर्मनी, सभी से हाथ उठवा कर बापदादा मिल रहे हैं।) फ्रेंकफर्ट ने अपना वायदा तो पूरा कर लिया। बापदादा फ्रेंकफर्ट वालों की हिम्मत पर खुश है और सुदेश बच्ची भी सेवा मन से कर रही है इसीलिए उसको भी मुबारक। सेवा साधारण करना ये कोई बड़ी बात नहीं है, बिगड़ी को बनाना, अनेकता में एकता लाना ये है बड़ी बात। तो जर्मनी वालों प्रति आप सभी भी मुबारक की ताली बजाओ। (स्पेन, .. फ्रांस, हालैण्ड) हॉलैंड भी अच्छा चल रहा है। (साउथ अफ्रीका, मलेशिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्युजीलैण्ड) अच्छा, ऑस्ट्रेलिया वाले खुश हैं, सन्तुष्ट हैं? यस या नो बोलो। (यस)
देखो कहाँ से भी आये हो लेकिन डबल विदेशी सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक (विक्ट्री का) लगा हुआ देखो। क्योंकि आप लोग बाप के और सर्व ब्राह्मणों के प्यारे हो। तो हम विजयी हैं, विजयी थे और विजयी रहेंगे। ये विजय का तिलक सदा अपने मस्तक में देखो। बहुत-बहुत-बहुत लक्की हो जो कोने-कोने से बापदादा ने आप सबको निकाला है। प्यार से ढूँढ कर आपको अपना बनाया है। देखो कितने कोने-कोने में हो लेकिन बाप ने तो पहचान लिया ना! इसलिए सदा विजयी हैं - ये नशा प्रैक्टिकल में अनुभव करो। सिर्फ मुख से नहीं कहना, मुख से कहो विजय और हार खा रहे हो, ऐसे नहीं। हार हो ही नहीं सकती, हैं ही विजयी। तो विजयी का नशा डबल विदेशियों को सहज और सदा रहे। समझा?
भारत वालों से
आप सभी ने देखा, आपका परिवार कितना बड़ा है! पंजाब वालों ने देखा... बाम्बे वालों ने देखा.... सभी भारत वालों को ये खुशी होती है कि हमारा बाबा का स्थान कोने-कोने में है। जहाँ जाओ वहाँ फ़लक से कह सकते हो कि हमारा घर यहाँ भी है, यहाँ भी है। जहाँ जाओ अपना घर है। तो भारत वालों को डबल विदेशियों को देखकर खुशी होती है? अच्छा!
चारों ओर के बापदादा के प्रेम स्वरूप आत्माओं को, सदा स्वयं को अप्रसन्नता से मुक्त करने वाले तीव्र पुरूषार्था आत्माओं को, सदा याद और सेवा के बैलेन्स द्वारा सेवा की सफलता पाने वाले भाग्यवान आत्माओं को, सदा बाप को प्रत्यक्ष करने के उमंग-उत्साह में रहने वाले देश-विदेश दोनों के सर्व बच्चों को, बाप को अपनी खुशखबरी लिखने वाले, अपनी सेवा का उमंग रखने वाले ऐसे बाप के सदा स्नेही और समीप बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
(विदेश के 4 भाई फिल्म निकाल रहे हैं)
अच्छा, ये ग्रुप भी सेवा के लिए आये हैं। सभी सेवा से खुश हैं? हिम्मत है ना! क्या होगा, कैसे होगा, ये नहीं सोचो। अच्छा है, अच्छा होना ही है। जो श्रेष्ठ स्मृति से कार्य करते हो वो सदा ही अच्छा है। तो ये कभी नहीं सोचो पता नहीं क्या होगा, पता है अच्छा होगा। समझा? अच्छा है हिम्मत बहुत अच्छी रखी। जहाँ हिम्मत है पावरफुल वह है जो फौरन परखकर फैसला कर दे। 81 वहाँ मदद है। अच्छा।
दादियों से
जब आप और ये (दादी और दादी जानकी) मिलते हो तो आपको क्या लगता है? (दादियों ने कहा-बाबा आपको क्या लगता है?) बाप को तो अच्छा लगता है। आपको क्या लगता है? (बाबा ने अच्छी जोड़ी तैयार की है, देश-विदेश अलग होते भी साथ हैं) ये भी ड्रामा में पार्ट है। फिर भी ब्राह्मण परिवार के फाउण्डेशन हो ना। तो आप लोगों को भी अच्छा लगता है ना। बापदादा अपने निमित्त फाउण्डेशन वाली आत्माओं को अपने से भी आगे रखता है। क्योंकि अभी देखो बाप तो है ही निराकार, ब्रह्मा बाप भी आकारी हो गया, अभी साकार में सुनना पड़े, सुनाना पड़े, देखना पड़े, देना पड़े - इसके लिए निमित्त तो ये लोग हैं ना। और सहज चल रहे हैं ये देख आप सभी भी खुश होते हो ना? देखो आप द्वारा (दादी जानकी) ये विदेश सेवा नूँधी हुई थी तो ड्रामा को कोई बदल नहीं सकता। आपको जाना पड़ा और निमित्त बनना पड़ा। विदेश के लिए जरूरी है ना? (बाबा की सकाश है) बापदादा तो अलग हो ही नहीं सकता, ऐसा चिपका हुआ है। क्योंकि आप लोगों को सारा दिन यही कहना पड़ता कि बाबा यह करते, बाबा यह कहते.... बाबा-बाबा ही निकलता रहता है ना। याद कराने के लिए भी कहना पड़ता कि शिवबाबा याद है? कोई रो करके आये और आप बाबा-बाबा कहकर उसको हँसा देते हो। ठीक है? देखो बहुत छोटा सा ग्रुप है लेकिन बहुत काम का है। कितने थोड़े गिनती के हैं। अभी डायमण्ड जुबली तो है ही। लेकिन इस बारी बापदादा नम्बर देंगे कि रीयल में डायमण्ड कितने बनें? देखेंगे विदेश जीतता है या देश? और इसमें भी युवा ज्यादा नम्बर लेते हैं, प्रवृत्ति वाले लेते हैं वा युवा कुमारियाँ लेती हैं? बापदादा को तो खुशी है जो भी नम्बर लेवे। लेकिन इसमें साथियों का भी सर्टिफिकेट चाहिए। ऐसे नहीं अपने आप सिर्फ कहो मैं तो ठीक हूँ। नहीं, सर्टिफिकेट चाहिये। देखेंगे कितने निकलते हैं? वृद्धि तो होनी ही है।
अच्छा। ओम् शान्ति।
31-12-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘डायमण्ड वर्ष में फरिश्ता बनकर बापदादा की छत्रछाया और प्यार की अनुभूति करो’’
आज विश्व को सच्चे डायमण्ड समान चमकाने वाले, प्रकृति को भी डायमण्ड समान चमकाने वाले, विश्व की आत्माओं में से अपने डायरेक्ट बच्चों को डायमण्ड बनाने वाले, साथ-साथ नये वर्ष के साथ नव-युग, नये-विश्व स्थापन करने वाले बाप डायमण्ड बनने वाले बच्चों को देख रहे हैं। साकार स्वरूप में भी बापदादा के सामने कितने डायमण्ड चमक रहे हैं और विश्व के कोने-कोने में चारों ओर चमकते हुए डायमण्ड देख रहे हैं। आत्मा सभी के मस्तक में चमकती हुई डायमण्ड कितनी अच्छी लगती है! सामने से चमकती हुई आत्मा डायमण्ड और इतने संगठित रूप में चारों ओर डायमण्ड ही डायमण्ड देखने में दृश्य कितना प्यारा लगता है! तो ये संगठन किसका है? डायमण्ड्स का है ना? चाहे नम्बरवार हैं फिर भी चमक रहे हैं। चमकते हुए डायमण्ड की सभा बाप के सामने है। आप भी क्या देख रहे हो? डायमण्ड देख रहे हो ना कि शरीर देख रहे हो? 63 जन्म शरीर को ही देखा लेकिन अभी शरीर में चमकता हुआ डायमण्ड दिखाई देता है? कि छिपा हुआ है इसलिए कभी दिखाई देता है, कभी छिप जाता है?
डायमण्ड जुबली है, तो जुबली में क्या होता है? क्या सजाते हैं? आजकल वेरायटी लाइट्स की सजावट ज्यादा होती है। आप लोग भी वृक्ष में यहाँ-वहाँ लाइट लगाते हो ना? वो तो एक दिन के लिए जुबली मनायेंगे या क्रिसमस मनायेंगे या कोई भी उत्सव मनायेंगे लेकिन आप क्या मना रहे हो? डायमण्ड दिवस कहते हो या डायमण्ड वर्ष कहते हो? (डायमण्ड वर्ष) डायमण्ड वर्ष मना रहे हो - पक्का? अगर यही सभी का दृढ़ संकल्प है कि डायमण्ड वर्ष मना रहे हैं, तो आपके मुख में गुलाब-जामुन हो। तो मनाना अर्थात् बनना। तो सारा वर्ष डायमण्ड बनेंगे कि थोड़ा-थोड़ा दाग लगेगा? बापदादा तो बच्चों का उमंग-उत्साह देख पद्मगुणा डबल मुबारक देते हैं। आज डबल है ना, एक नया वर्ष और दूसरा डायमण्ड जुबली - दोनों का संगठन है। तो डायमण्ड वर्ष में बापदादा यही विशेषता देखना चाहते हैं कि हर बच्चे को जब देखो, जिसे देखो तो चमकता हुआ डायमण्ड ही दिखाई दे। मिट्टी के अन्दर वाला डायमण्ड नहीं, चमकता हुआ डायमण्ड। तो सारे वर्ष के लिए ऐसे डायमण्ड बन गये? क्योंकि संकल्प तो आज करना है ना कि डायमण्ड बनेंगे भी और देखेंगे भी। चाहे वो दूसरी आत्मा काला कोयला भी हो, एकदम तमोगुणी आत्मा हो लेकिन आप क्या देखेंगे? कोयला देखेंगे या डायमण्ड? डायमण्ड देखेंगे, अच्छा। तो आपकी दृष्टि पड़ने से उसका भी कालापन कम होता जायेगा। डायमण्ड जुबली में यही सेवा करनी है ना? अमृतवेले से लेकर रात तक जितनों के भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ तो डायमण्ड बन डायमण्ड देखना है। ये पक्का किया है या डायमण्ड जुबली मनाना है तो हर स्थान पर सिर्फ दो तीन फंक्शन किया और डायमण्ड जुबली हो गई? फंक्शन करो, निमन्त्रण दो, जगाओ, ये तो करना ही है और कर भी रहे हैं लेकिन सिर्फ फंक्शन नहीं करने हैं, इस डायमण्ड जुबली में डायमण्ड बन डायमण्ड देखना, डायमण्ड बनाना, ये रोज का फंक्शन है। तो रोज फंक्शन करेंगे या दो-चार दिन, सप्ताह करेंगे?
इस वर्ष में बापदादा की विशेष यही सभी बच्चों के प्रति शुभ आशा कहो वा श्रेष्ठ श्रीमत कहो कि डायमण्ड के बिना और कुछ नहीं बनना है। कुछ भी हो जाये डायमण्ड में दाग नहीं लगाना। अगर किसी भी विघ्न वश हो गये या स्वभाव के वश हो गये तो दाग लग गया। विघ्न तो आने चाहिए ना? विघ्न विनाशक टाइटल है तो विघ्न आयेंगे तब तो विनाश होंगे? अगर कोई विजयी कहे कि दुश्मन नहीं आवे लेकिन मैं विजयी हूँ तो कोई मानेगा? नहीं। तो विघ्न तो आयेंगे, चाहे प्रकृति के, चाहे आत्माओं के, चाहे अनेक प्रकार की परिस्थितियों के विघ्न आये लेकिन आप डायमण्ड ऐसे पावरफुल हो जो दाग का प्रभाव नहीं पड़े। ये हो सकता है?
यह डायमण्ड जुबली वर्ष महान् वर्ष है। जैसे कोई विशेष मास मनाते हैं ना तो ये डायमण्ड जुबली वर्ष महान् वर्ष है। बापदादा इस वषर् में सभी को चलता-फिरता फरिश्ता देखना चाहते हैं। कई कहते हैं कि आत्मा को देखने की सिर्फ सेवाकेन्द्र कल्याणी नहीं, विश्व कल्याणी बनो। 84 कोशिश तो करते हैं लेकिन आत्मा बहुत छोटी बिन्दी है ना तो शरीर दिखाई दे देता है। तो बापदादा कहते हैं चलो बिन्दी खिसक जाती है लेकिन फरिश्ता रूप तो लम्बा-चौड़ा शरीर है, वो तो बिन्दी नहीं है ना, फरिश्ता माना लाइट का आकार। तो फरिश्ते स्वरूप में स्थित होकर हर कर्म करो। ऐसा नहीं है कि फरिश्ता रूप में कर्म नहीं कर सकते हो। कर सकते हो कि साकार चाहिये? क्योंकि साकार शरीर से बहुत जन्मों का प्यार है। तो भूलना चाहते हैं लेकिन भूल नहीं पाते। तो बाप कहते हैं अच्छा अगर आपको शरीर को ही देखने की आदत पड़ गई है तो कोई हर्जा नहीं, अभी लाइट का शरीर देखो। शरीर ही चाहिए तो फरिश्ता भी शरीरधारी है। और आप सभी कहते भी हो कि शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा से बहुत प्यार है। तो प्यार का अर्थ है समान बनना। तो जैसे ब्रह्मा बाबा फरिश्ता रूप है ऐसे ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता स्वरूप में स्थित होकर हर कर्म करो। क्योंकि जब डायमण्ड जुबली मना रहे हो, स्थापना के 60 वर्ष सम्पन्न हुए, तो विशेष स्थापना के निमित्त शिव बाप तो है लेकिन निमित्त ब्रह्मा बाबा बना। आप भी अपने को शिव कुमार और शिव कुमारी नहीं कहते हो। ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहते हो। तो ब्रह्मा बाप के स्थापना के कार्य की जुबली मना रहे हो। तो जिसकी जुबली मनाई जाती है उसको क्या दिया जाता है? (गिफ्ट) तो आप सभी गिफ्ट देंगे? कि ये गुलाब का पुष्प ले आकर देंगे और कहेंगे कि गिफ्ट हो गई। कोई हाथी ले आयेगा, कोई घोड़ा ले आयेगा, ये गिफ्ट तो है मनोरंजन। ये मनोरंजन भी अच्छा है। सभी देखकरके खुश होते हैं। आज घोड़ा नाच रहा है, आज कोई मनुष्य नाच रहा है, खिलौने देखकर खुश होते हैं। वो भले लाना लेकिन ब्रह्मा बाप को दिल पसन्द गिफ्ट कौन-सी देंगे? देखो, किसी को भी गिफ्ट दी जाती है तो देखा जाता है इसको क्या पसन्द है? देखते हैं कि यह ये पसन्द करेगा या नहीं करेगा? तो ब्रह्मा बाप को क्या प्रिय है? कौन-सी गिफ्ट उसको अच्छी लगती है? बाप के दिल पसन्द गिफ्ट है चलता-फिरता फरिश्ता स्वरूप। तो फरिश्ता समान बन जाओ। फरिश्ते रूप में कोई भी विघ्न आपको प्रभाव नहीं डालेगा। आपके संकल्प, वृत्ति, दृष्टि - सब डबल लाइट हो जायेंगे। तो गिफ्ट देने के लिए तैयार हो? (हाँ जी) देखना आपका टेप भी हो रहा है। अच्छी बात है गोल्डन दुनिया को लाने के लिए फरिश्ते बनेंगे तो जैसे हीरा चमकता है ऐसे आपका फरिश्ता रूप चमकेगा। ये अभ्यास अच्छी तरह से करते रहो।
अमृतवेले उठते स्मृति में लाओ - मैं कौन? फरिश्ता हूँ। संकल्प तो करते हो और चाहते भी हो, फिर भी जब अपनी रिजल्ट देखते हो वा लिख करके भी देते हो, तो मैजारिटी कहते हो कि जितना चाहते हैं उतना नहीं हुआ। 50 परसेन्ट हुआ, 60 परसेन्ट हुआ। तो डायमण्ड जुबली में भी ऐसे परसेन्टेज़ में होंगे या फुल में होंगे? क्या होगा? डबल फोरेनर्स बोलो परसेन्टेज़ होगी? हाँ या ना? थोड़ा-थोड़ा छुट्टी दें! शक्तियों में परसेन्टेज होगी? हाँ उमंग से नहीं करते, सोच के करते हैं। डबल विदेशी या भारत वाले अगर परसेन्टेज़ के बिना फुल पास हो गये तो ब्रह्मा बाबा पता है क्या करेगा? (शाबास देंगे) बस, सिर्फ शाबास दे देगा! और क्या करेगा? रोज़ आपको अमृतवेले अपनी बाहों में समा लेगा। आपको महसूसता होगी कि ब्रह्मा बाबा की बाहों में, अतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं। बड़ी-बड़ी भाकी मिलेगी। ब्रह्मा बाबा का बच्चों के साथ बहुत प्यार है ना तो अमृतवेले भाकी मिलेगी और सारा दिन क्या मिलेगा? जैसे चित्रों में दिखाते हैं ना, कि जब तूफान आया, पानी बढ़ गया तो सांप छत्रछाया बन गया। उन्होंने तो श्रीकष्ण के लिए स्थूल बात दिखा दी है लेकिन वास्तव में ये है रूहानी बात। तो जो फरिश्ता बनेगा उसके सामने अगर कोई भी परिस्थिति आई या कोई भी विघ्न आया तो बाप स्वयं आपकी छत्रछाया बन जायेंगे। करके देखो। क्योंकि ऐसे ही बापदादा नहीं कहते हैं। अच्छा।
जिन बच्चों की डायमण्ड जुबली है वो हाथ उठाओ। अभी डायमण्ड जुबली वालों से बापदादा बात करते हैं, आप लोगों ने 14 वर्ष में योग तपस्या की तो विघ्न कितने आये लेकिन आपको कुछ हुआ? तो बापदादा छत्रछाया बना ना, कितनी बड़ी-बड़ी बातें हुई। सारी दुनिया, मुखी, नेतायें, गुरू लोग सब एन्टी हो गये, एक ब्रह्माकुमारियाँ अटल रही, प्रैक्टिकल में बेगरी लाइफ भी देखी, तपस्या के समय भिन्न-भिन्न विघ्न भी देखे। बन्दूक भी आई तो तलवारें भी आई, सब आया लेकिन छत्रछाया रही ना। कोई नुकसान हुआ? जब पाकिस्तान हुआ तो लोग हंगामें में डरकर सब छोड़कर भाग गये। और आपका टेनिस कोर्ट सामान से भर गया। क्योंकि जो अच्छी चीज़ लगती थी, वो छोड़ें कैसे, उससे प्यार होता है ना, तो जो सिन्धी लोग उस समय एन्टी थे वो गाली भी देते थे और सामान भी दिया। जो बढ़िया-बढ़िया चीजें थीं वो हाथ जोड़कर देकर गये कि आप ही यूज़ करो। तो दुनिया वालों के लिए हंगामा था और ब्रह्माकुमारियों के लिए पांच रूपये में सब्जियों की सारी बैलगाड़ी थी। पांच रूपये में सब्जियाँ। आप कितने मजे से सब्जियाँ खाते थे। तो दुनिया वाले डरते थे और आप लोग नाचते थे। तो प्रैक्टिकल में देखा कि ब्रह्मा बाप, दादा - दोनों ही छत्रछाया बन कितना सेफ्टी से स्थापना का कार्य किया। तो जब इन्हों को अनुभव है तो क्या आप अनुभव नहीं कर सकते? पहले आप। जो चाहे, जितना चाहे इस डायमण्ड वर्ष में छत्रछाया का और ब्रह्मा बाप के प्यार का प्रैक्टिकल अनुभव कर सकते हो। ये इस वर्ष को वरदान अर्थात् सहज प्राप्ति है। ज्यादा पुरूषार्थ नहीं करना पड़ेगा। पुरूषार्थ से थक जाते हो ना। जब कोई पुरूषार्थ करके थक जाता है तो उस समय बापदादा उसका चेहरा देखते हैं, रहम भी बहुत आता है। तो अभी क्या करेंगे? क्या बनेंगे? फरिश्ता। फरिश्ता रूप में चलनाफिरना यही डायमण्ड बनना है। क्योंकि जो बहुत कीमती, मूल्यवान, बेदाग डायमण्ड होता है उसकी निशानी क्या होती है? उसे लाइट के आगे रखो तो चमकेगा और जब चमकता है तो उससे किरणें निकलती हैं, उसमें भिन्न-भिन्न रंग दिखाई देते हैं। तो जब आप रीयल डायमण्ड बनेंगे, फरिश्ता बन जायेंगे तो आपके फरिश्ते स्वरूप से ये अष्ट शक्तियाँ दिखाई देंगी। जैसे वो रंग किरणों के रूप में दिखाई देते हैं, ऐसे आप डायमण्ड अर्थात् फरिश्ता रूप बनो तो चलते-फिरते आप द्वारा अष्ट शक्तियों के किरणों की अनुभूति होगी। कोई को आपसे सहनशक्ति की फीलिंग आयेगी, कोई को आपसे निर्णय करने के शक्ति की फीलिंग आयेगी, कोई से क्या, कोई से क्या शक्तियों की फीलिंग आयेगी। आप जितना ज्यादा अभ्यास करेंगे, मानो अभी कल से नया वर्ष भी शुरू होगा और डायमण्ड जुबली भी शुरू होगी तो कल से अर्थात् पहला मास जो जनवरी है उस एक मास में आप फरिश्ता रूप में अभ्यास करेंगे और दूसरा मास आयेगा उसमें आपका अभ्यास और बढ़ेगा, तीसरे मास में और बढ़ेगा और जितना-जितना बढ़ता जायेगा ना उतना-उतना आप द्वारा औरों को महसूसता होगी। समझा? तो ये है ब्रह्मा बाप की गिफ्ट। सभी देंगे या कोई-कोई देगा?
अच्छा, मधुबन वाले भी गिफ्ट देंगे ना! मधुबन वाले तो हाँ जी में होशियार हैं। (ज्ञान सरोवर में भी मुरली सुन रहे हैं) ज्ञान सरोवर वाले फरिश्ते बन जायेंगे और ये जो ट्रांसलेट कर रहे हैं, माइक वाले, लाइट वाले, सभी को डबल लाइट, फरिश्ता बनना है। मुश्किल तो नहीं लगता है? 63 जन्म इस शरीर से प्यार है, तो मुश्किल नहीं होगा? जो दृढ़ निश्चय रखते हैं तो निश्चय की विजय कभी टल नहीं सकती। चाहे पांच ही तत्व या आत्मायें कितना भी सामना करें लेकिन वो सामना करेंगे और आप समाने की शक्ति से उस सामना को समा लेंगे। क्योंकि अटल निश्चय है। ये 60 वर्ष जो स्थापना के चले इसमें भी आदि से कमाल ब्रह्मा बाप और अनन्य बच्चों का रहा। कभी निश्चय में हलचल नहीं हुई। विजय हुई पड़ी है, यही बोल सदा ब्रह्मा बाप के रहे।
तो आज विशेष ब्रह्मा बाप ने सभी बच्चों को विशेष मुबारक और बहुतबहुत प्यार दिया। जितने भी हो, चाहे चार लाख हो, चाहे 14 लाख हो, लेकिन ब्रह्मा बाप की भुजायें इतनी बड़ी हैं जो 14 लाख भी एक साथ भुजाओं में समा सकते हैं। इसीलिये परमात्मा का भक्ति मार्ग में विराट रूप दिखाते हैं, जिसमें सब समाये हुए हैं। तो सभी ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये हुए हो। कुछ भी हो, जैसे छोटा बच्चा क्या करता है, अगर कोई उसको कुछ भी कहता है या कुछ भी होता है तो वह माँ या बाप की बाहों में समा जायेगा। ऐसे होता है ना! तो आप भी ऐसे करो। बच्चे हो ना कि अभी बड़े हो गये हो? 100 साल का भी बाप के आगे तो छोटा बच्चा ही है। तो आपको भी कुछ भी हो ना, बस ब्रह्मा बाप की बाहों में समा जाओ, बस। ये तो सहज है ना?
अच्छा, ये तो है डायमण्ड जुबली की बातें। अभी साथ में आज नया वर्ष भी मनायेंगे ना? तो 12 बजे ये साल पूरा होगा। अभी है थोड़ा टाइम। अभी पुराने साल में बैठे हैं लेकिन नया साल मना रहे हैं। इसके लिये आये हैं ना? डबल विदेशी ज्यादा क्यों आये हो? वैसे तो इण्डिया का टर्न है, डबल विदेशी क्यों आये हो? न्यू इयर मनाने के लिये, क्रिसमस मनाने के लिए। बापदादा को अच्छा लगता है डबल विदेशियों से चिटचैट करने में। तो नया वर्ष भी मनाना है तो पुराने वर्ष को क्या करेंगे? विदाई देंगे। बस सिर्फ मुख से कह दिया विदाई देंगे। या चित्र बनायेंगे वो जा रहा है, वो आ रहा है? पुराने वर्ष को विदाई कैसे देंगे? सिर्फ गीत गायेंगे, नाचेंगे, कूदेंगे! काम क्या करेंगे? देखो साल समाप्त हो रहा है वो विदाई ले रहा है फिर ये वर्ष कब आयेगा? (5 हज़ार वर्ष के बाद) तो ये पांच हज़ार वर्ष के लिये आपसे विदाई लेगा! जो विदाई लेता है उसको भी कुछ दिया जाता है। देखो आप लोग भी जाने वाले होते हो तो आपको विदाई की गिफ्ट मिलती है, तो आप इस पुराने वर्ष को क्या देंगे? कुछ देंगे या खाली भेज देंगे-जाओ, जाओ। क्या देंगे? पुराने को क्या अच्छा लगेगा? पुरानी चीज़। (कमज़ोरी देंगे) बापदादा ने देख् कि कमज़ोरी देते तो हो लेकिन फिर वापस ले लेते हो। देखो, वो (वर्ष) अक्ल वाला है जो पांच हज़ार वर्ष के पहले वापस नहीं आयेगा और आप पुरानी चीजें वापस क्यों लेते हो? चिटकी लिखकर देंगे-हाँ.. बाबा, बस, क्रोध मुक्त हो जायेंगे.... बहुत अच्छा लिखते हैं और रूहरिहान भी करते हैं तो बहुत अच्छा कांध हिलाते हैं, हाँ, हाँ करते हैं। फिर पता नहीं क्यों वापस ले लेते हैं। पुरानी चीजों से प्रीत रखते हैं। फिर कहते हैं हमने तो छोड़ दिया वो हमको नहीं छोड़ती हैं। बाप कहते हैं आप चल रहे हो और चलते हुए कोई कांटा या ऐसी चीज़ आपके पीछे चिपक जाती है तो आप क्या करेंगे? ये सोचेंगे कि ये मुझे छोड़े या मैं छोडूँ? कौन छोड़ेगा? अच्छा, अगर फिर भी वो हवा में उड़ती हुई आपके पास आ जाये तो फिर क्या करेंगे? फिर रख देंगे या फेंक देंगे? फेकेंगे ना? तो ये चीज़ क्यों नहीं फेंकते? अगर गलती से आ भी गई तो जब आपको पसन्द नहीं है और वो चीज़ आपके पास फिर से आती है तो क्या आप वो चीज सम्भाल कर रखेंगे? कोई भी किसको ग़लती से भी अगर कोई खराब चीज़ दे देवे तो क्या उसे आलमारी में सजाकर रखेंगे? फेंक देंगे ना? उसकी फिर से शक्ल भी नहीं दिखाई दे, ऐसे फेंकेंगे। तो ये फिर क्यों वापस लेते हो? बापदादा की ये श्रीमत है क्या कि वापस लो? फिर क्यों लेते हो? वो तो वापस आयेगी क्योंकि उसका आपसे प्यार है लेकिन आपका प्यार नहीं है। उसको आप अच्छे लगते हो और आपको वो अच्छा नहीं लगता है तो क्या करना पड़े? तो बापदादा सभी बच्चों को कहते हैं पुराने वर्ष को विदाई देना अर्थात् जो बातें दिल में सोची है ना, कितनी बातों का इशारा दिया? कितनी बातें हैं, ज्यादा है क्या? (8 बातें हैं) तो विदाई के साथ इन आठ को ही अच्छी तरह से सजाधजा कर विदाई दे दो। समझा? दे सकते हो? हिम्मत है देने की? (हाँ जी) बापदादा को सबसे अच्छा लगता है कि हाँ जी बहुत जल्दी करते हैं।
तो अभी जब वर्ष, पांच हज़ार वर्ष के लिये विदाई लेता है तो आप कम से कम ये छोटा सा ब्राह्मण जन्म एक ही जन्म है, ज्यादा नहीं है, एक ही है और उसमें भी कल का भरोसा नहीं तो वो पांच हज़ार की विदाई लेता है तो आप कम से कम एक जन्म के लिए तो विदाई दो। दे सकते हो? हाँ जी तो करते हो। लेकिन जिस समय वो वापस आती है तो सोचते हो - बड़ा मुश्किल लगता है, छूटता ही नहीं है, क्या करें! छोड़ो तो छूटे। वो नहीं छूटेगा, आप छोड़ो तो छूटेगा। क्योंकि आपने उनसे प्यार बहुत कर लिया है तो वो नहीं छोड़ेगा, आपको छोड़ना पड़ेगा। तो पुराने वर्ष को इस विधि से दृढ़ संकल्प और सम्पूर्ण निश्चय, इस ट्रे में ये आठ ही बातें सजा कर उसको दे दो तो फिर वापस नहीं आयेंगी, निश्चय को हिलाओ नहीं। निश्चय हिल जाता है - क्या हुआ, हो जायेगा, अभी दो हज़ार वर्ष पूरे हुए नहीं, दो हज़ार तक ठीक हो जायेगा.... ये है निश्चय में अलबेलापन। बापदादा को भी बहुत अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं-बाबा आप फिक्र नहीं करो, दो हज़ार में पूरा हो जायेगा। अभी थोड़ा-थोड़ा....। लेकिन दो हज़ार की डेट तो बाप ने दी नहीं है, तो ऐसे न हो कि आप दो हज़ार का इन्तज़ार करते रहो और नई दुनिया का इन्तज़ाम पहले से हो जाये। इसीलिये अलबेले मत बनना। रिवाइज़ करो, बार-बार रिवाइज़ करो। क्यों भूल जाते हो? जब कोई काम शुरू करते हो ना तो बहुत अच्छा सोचते हो - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, ये भी आत्मा है, आत्मा शरीर से ये काम करा रही है, शुरू ऐसे करते हो। लेकिन काम करते-करते आत्मा मर्ज हो जाती है। आप जो काम करते हो, उसमें हाथ तो चलता ही है लेकिन मन-बुद्धि सहित अपने को बिज़ी कर देते हो। भल बॉडी कान्सेस कम होते हो लेकिन एक्शन कॉन्सेस ज्यादा हो जाते हो। फिर कहते हो बाबा मेरे से कुछ गलती नहीं हुई, मैंने किसको कुछ नहीं कहा, लेकिन बापदादा कहते हैं कि मानो आप बॉडी कान्सेस नहीं हो, एक्शन कान्सेस हो और उसी समय कुछ हो जाये तो रिज़ल्ट क्या होगी? सोल कान्सेस जितना तो नहीं मिलेगा। तो इसकी विधि है बार-बार रिवाइज़ करो, बार-बार चेक करो। जब काम पूरा होता है फिर आप सोचते हो, लेकिन नहीं, जब तक नेचरल सोल कान्सेस हो जाओ तब तक ये सहज विधि है बार-बार रिवाइज़ करना। रिवाइज़ करेंगे तो जो पीछे सोचना पड़ता है वो नहीं होगा। तो रिवाइज़ करने का टाइम है कि बहुत बिज़ी रहते हो? कभी भी अपना चार्ट चेक करते हो तो दो बातें चेक करो। एक बात नहीं। मैंने बुरा नहीं किया अर्थात् कुछ गँवाया नहीं, वो तो ठीक हुआ लेकिन जमा कितना किया? गँवाया नहीं इसकी तो मुबारक हो। लेकिन गँवाया भी नहीं और कमाया भी नहीं तो वो किस लिस्ट में जायेगा? तो चेक करो कि मैंने जमा कितना किया? जमा का खाता चेक करो। क्योंकि सारा कल्प चाहे राज्य करेंगे, चाहे पूजे जायेंगे लेकिन जमा अभी करना है या द्वापर में या सतयुग में करेंगे? तो ये चेक करो कि मैंने जमा कितना किया? कम से कम इतना तो जमा करो जो 21 जन्म रॉयल फैमिली में प्रालब्ध भोगते रहो। अगर कम जमा होगा तो त्रेता में आयेंगे, सतयुग मिस करेंगे। त्रेता में आना पसन्द है? सारा पहला-पहला सुख तो सूर्यवंशी ले लेंगे, चन्द्रवंशियों को बाद में बचा हुआ मिलेगा। तो जमा का खाता चेक करो। सारे दिन में ज्यादा से ज्यादा जमा हो तो सहज ही आप निर्विघ्न हो ही जायेंगे और फरिश्ते रूप में स्थित हो जायेंगे। तो विधि क्या हुई? हर घण्टे रिवाइज़ करो। कौन-सी कान्सेस रहे? कर सकते हो? हो सकता है?
बापदादा ने सबका चार्ट चेक किया तो टोटल 50 परसेन्ट बच्चे दूसरों को देख स्वयं अलबेले रहते हैं। कहाँ-कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी अलबेलेपन में बहुत आते हैं। ये तो होता ही है..... ये तो चलता ही है.... चलने दो... सभी चलते हैं.... बापदादा को हंसी आती है कि क्या अगर एक ने ठोकर खाई तो उसको देखकर आप अलबेलेपन में आकर ठोकर खाते हो, ये समझदारी है? तो इस अलबेलेपन का पश्चाताप बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है। अभी बड़ी बात नहीं लगती है, हाँ चलो... लेकिन बापदादा सब देखते हैं कि कितने अलबेले होते हैं, कितने औरों को नीचे जाने में फॉलो करते हैं? तो बापदादा को बहुत रहम आता है कि पश्चाताप की घड़ियाँ कितनी कठिन होगी। इसलिए अलबेलेपन की लहर को, दूसरों को देखने की लहर को इस पुराने वर्ष में मन से विदाई दो। जब थोड़ा उमंग-उत्साह आता है ना तो थोड़े समय के लिए वैराग्य आता है लेकिन वो अल्पकाल का वैराग्य होता है। इसलिए जो बापदादा ने मुक्त होने की बातें सुनाई हैं, उसके ऊपर बहुत अटेन्शन देना। जितने पुराने होते हैं ना तो देखा गया है कि पुरानों में अलबेलापन ज्यादा आता है। जो पहले-पहले का जोश, उमंग होता है, वो नहीं होता है। पढ़ाई का भी अलबेलापन आ जाता है, सब सुन लिया, समझ लिया। सोचो, अगर समझ लिया, सोच लिया तो बापदादा पढ़ाई पूरी कर देते। जब स्टूडेन्ट पढ़ चुके तो फिर क्यों पढ़ाई पढ़ाये? फिर तो समाप्त कर दें ना! लेकिन इस अलबेलेपन को अच्छी तरह से विदाई दो। औरों को नहीं देखो। बाप को देखो। ब्रह्मा बाप को देखो। अगर कोई ठोकर खाता है तो महारथी का काम है ठोकर से बचाना, न कि खुद फॉलो करना। तो पुराने वर्ष को अच्छी तरह से विदाई देंगे ना? अभी कितना बजा है? पौने दस। अच्छा! तो अभी दो घण्टे हैं, दो घण्टे में विदाई का सामान तैयार कर दो। बापदादा देखेंगे कि बाप को गिफ्ट देने में ज्यादा नम्बर डबल विदेशी लेते हैं या भारत वाले लेते हैं? दोनों लेंगे ना? हाँ या ना बोलो। अच्छा, डबल विदेशी कितने देशों से आये हैं? (36) और भारत के कितने ज़ोन आये? (पांच) भारत के पांच ज़ोन से आये हैं और वो 36 देशों से आये हैं। डबल विदेशी सदा बापदादा को अपना साथी समझकर साथ रहते हैं ना। जितना नाम है विदेश, उतना ही साथ भी बाप का नज़दीक अनुभव करते हो? क्योंकि जब तक बाप साथ है तो माया भी बाप का साथ देखकर दूर से ही भाग जाती है। अकेले होते हो तो माया को चांस मिलता है। अकेले नहीं हो तो माया को चांस मिल नहीं सकता। और जब बाप स्वयं ऑफर करता है कि मैं बच्चों का साथी हूँ तो भगवान की ऑफर सारे कल्प में फिर मिलेगी? तो स्वयं बाप की ऑफर है - साथ रहो। कोई भी मुश्किल बात साथ से सहज हो जाती है। तो साथ का अनुभव होता है? डबल विदेशी ब्राह्मण परिवार का विशेष श्रृंगार हैं। जैसे आज विशेष श्रृंगार किया है ना। (पूरी स्टेज सुगन्धित फूल मालाओं से सजाई गई है) अच्छा लगता है ना! तो आप लोग भी एक- एक रत्न ब्राह्मण परिवार का श्रृंगार हो। तो श्रृंगार कभी गिर नहीं जाये, श्रृंगार गिर गया तो कैसे लगेगा? अभी श्रृंगार किया है और गिर जाये तो क्या अच्छा लगेगा? सदैव समझो कि हम ब्राह्मण परिवार के ताज के हीरे हैं। तो ताज से एक भी हीरा गिर जाये तो अच्छा लगेगा? तो इतना अपना महत्व समझो। साधारण नहीं समझो, महान् हो।
अच्छा है, चारों ओर से सेवा के समाचार भी बहुत अच्छे आते रहते हैं। भारत के अपने प्रोग्राम हैं, विदेश के अपने हैं। तो सेवा में अपने को बिज़ी रखते हैं और सदा रखना भी है। सेवा सेफ्टी का साधन है। जितना अपने को बिज़ी रखेंगे उतना सेफ रहेंगे। समझा?
(विदेश से सिन्धी भाई-बहिनों का ग्रुप आया है, बापदादा ने सभी को आगे बुलाकर बिठाया) इतना बड़ा ब्राह्मण परिवार देख खुशी होती है? देखो कितने हैं आपके परिवार में! और सारा परिवार चुने हुए श्रेष्ठ आत्माओं का है। तो भारत वाले आप लोगों को देखकर खुश होते हैं क्योंकि खास जो बरखिलाफ थे वो फेवर में हो गये। सिन्ध में काके, चाचे, मामे, गायन भी है मामा, काका, चाचा ... तो उन्हीं परिवार से निकल आये। तो कितने लक्की हो। सिन्धी लोग बहुत बरखिलाफ थे ना और अभी नज़दीक आये हैं इसीलिये इस ग्रुप को नज़दीक बिठाया है। आपका ग्रुप सब खुश है? अच्छा।
सभी डबल विदेशी सदा बाप के साथी हैं इसीलिये साथी का स्थान कौन सा है? साथी कहाँ रहते हैं? दिलतख्त पर। तो रहते हो या कभी-कभी उतर आते हो? सदा बाप के साथी हैं, इसीलिये तख्त नशीन हैं, अधिकार है तख्त पर। जो साथी होता है, मानो राजा है, अभी राजा तख्त पर बैठेगा तो रानी अधिकारी है ना। क्योंकि साथी है। तो आप सभी डबल विदेशी साथी हो ना? तो आपका दिलतख्त संगमयुग का अधिकार है। इसका मतलब ये नहीं है कि भारतवासी नहीं हैं। अभी डबल विदेशियों से बात कर रहे हैं इसलिये डबल विदेशी कह रहे हैं, बाकी जो भी साथी हैं वो सब अधिकारी हैं। फिर भी दौड़- धूप करके पहुँच तो जाते हो ना! तो क्या याद रखेंगे? कौन हो? साथी हैं और तख्तनशीन हैं। समझा?
भारत वासियों प्रति
भारतवासी ठीक हैं? भारतवासियों को तो नशा है कि अगर भारत में बाप नहीं आते तो विदेशी कहाँ से आते? क्योंकि बापदादा को ड्रामा में गरीब निवाज़ कहा जाता है तो विदेश गरीब नहीं है, भारत गरीब है और बाप को गरीब पसन्द हैं। इसीलिये गरीब से गरीब भारत में आया, लण्डन में नहीं आया। अमेरिका में भी नहीं आया। भारत अविनाशी है। अविनाशी खण्ड फिर भी भारत ही होगा। ये अमेरिका तो अभी निकली है, अभी खत्म हो जायेगी। बाप अविनाशी है तो अविनाशी खण्ड में ही आता है। भारत को नशा भी बहुत है। भारत को सबसे बड़ा नशा है कि हमने भगवान को भी अपने प्यार के रस्सी में बांध लिया है। देखो अभी भी भारत में आते हैं ना। आप सबको भी भारत में मिलने आना है। तो भारत भी कम नहीं और विदेश भी कम नहीं। दोनों लाडले हैं। अच्छा।
(सिन्धी भाई-बहिनों से) कितने आये हैं? 70 आये हैं। अभी फिर माला पूरी करके आयेंगे। दो प्रकार के आये हैं। लेकिन आते-आते आखिर जायेंगे कहाँ? कितना भी कोशिश करें किनारे करने की, लेकिन नहीं हो सकता। बाप को छोड़ सकते हो? बाप कहे आप नहीं आओ फिर क्या करेंगे? (आयेंगे) क्यों आयेंगे? बाप कहे नहीं आओ फिर भी आयेंगे क्यों? कहो अधिकार है मेरा। मेरा घर है, मेरा बाप है। तो अधिकार है। सोचते हैं बाबा मिलेगा, नहीं मिलेगा, देखेगा, नहीं देखेगा...। देख लिया ना! अभी इन्हों को सभी सिन्धियों को जगाना है। सब ओर जग रहे हैं। जितना बड़ा करना चाहो करो। ऐसी सीज़न में करो जो सब होटल पहले से बुक कर लें। जिस होटल में भी जायें तो ब्रह्माकुमारियों का हो। जगाना तो सबको है और भारत में तो जगाने के बहुत अच्छे-अच्छे प्रोग्राम रखे हैं। बापदादा के पास सब समाचार आये हैं कि भारत जम्प लगा रहा है कि भारत में कोने-कोने में सन्देश मिल जाये। कोई रह नहीं जाये। तो ये बहुत अच्छी बात है। उलहना पूरा हो जायेगा।
यूथ से
यूथ की रिट्रीट चल रही है। देश-विदेश का मिलकर प्रोग्राम हो रहा है। इनका टीचर कौन है? तो अच्छा लगता है यूथ को? स्टूडेन्ट भी राजी और टीचर भी राजी, दोनों राजी। अच्छा। बहुत अच्छा प्रॉमिस किया है, पक्का रखना। सभी ने मिलकर जो प्रॉमिस किया है वो मुख से बोलो। (सभी ने बोलकर प्रॉमिस की) बहुत अच्छा, ताली बजाओ। अच्छा। देखो ऐसे देश-विदेश के यूथ इकट्ठे होकर कमाल करके दिखायें तो गवर्नमेंट क्या करेगी? जब देखेगी कि देश-विदेश के सब मिलकर दृढ़ संकल्प किया है तो आप यूथ के संकल्प के आगे आपेही सरेण्डर हो जायेंगे। कभी प्रोग्राम बनायेंगे तो देशविदेश के यूथ इण्डिया की गवर्नमेंट को जगायेंगे। वो भी खुश होंगे। अच्छा!
चारों ओर के चमकते हुए सच्चे डायमण्डस को, सदा निश्चय और दृढ़ संकल्प द्वारा स्वयं को सच्चा डायमण्ड बनाए औरों को बनाने वाले, सदा बापदादा के समान डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप में स्थित होने वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बाप और सेवा दोनों में बिज़ी रहने वाले मायाजीत सो विश्व के राज्य-भाग्य जीत, ऐसे संगमयुगी डायमण्ड्स को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
देखो, यह यहाँ का रिवाज़ है 12 बजे बेल बजेगा, तो बापदादा को बच्चों की बात रखनी पड़ती है। वैसे तो 11 बजे बेल लगाओ या 12 बजे। ब्राह्मण नहीं मनायेंगे तो कौन मनायेंगे!
(डायमण्ड जुबली के उपलक्ष्य में बच्चों ने गीत गाये, नये वर्ष की बधाइयाँ दी, कार्ड आदि बापदादा को दिये, तत्पश्चात् नये वर्ष का शुभारम्भ होते ही बापदादा ने सभी को बधाइयाँ दी)
आज के दिन डबल मुबारक है। एक नये वर्ष की और दूसरी डायमण्ड जुबली वर्ष की। तो सदा इस वर्ष को अपने दोनों स्वरूप एक डबल लाइट फरिश्ता और दूसरा सच्चा डायमण्ड, बेदाग डायमण्ड, अमूल्य डायमण्ड। तो डायमण्ड बनकर अनेक आत्माओं को डायमण्ड बनाना - यही इस वर्ष का लक्ष्य है। और बापदादा जानते हैं कि ब्राह्मण बच्चे लक्ष्य और लक्षण को साथ-साथ करके दिखाते हैं। तो ये डायमण्ड जुबली वर्ष अनेक आत्माओं के, बाप के समीप आने का वर्ष है। और साथ-साथ यह वर्ष सहज बाप के साथ रहने से सहज ही प्राप्ति का वर्ष है। इसलिए चारों ओर के बच्चे इस सहज वरदान का पूरा-पूरा लाभ लेंगे और औरों को दिलायेंगे। डायमण्ड गुडनाइट और गुडमोर्निंग दोनों।
चारों ओर के बच्चों के बहुत खुशी और उमंग-उत्साह के कार्ड मिले, पत्र भी मिले और सभी को रिटर्न में डबल प्यार और मुबारक हो।
(4 जनवरी को तलहटी में बहुत बड़े हाल का फाउण्डेशन स्टोन लगा रहे हैं, यह समाचार बापदादा को सुनाया गया)
जब डायमण्ड जुबली में सेवा करेंगे तो उन्हों को बैठने के लिए जगह बनाई है कि आप बाहर बैठेंगे उन्हों को अन्दर बिठायेंगे, क्या करेंगे? आप अन्दर ही बैठेंगे, बाहर नहीं। अगर बाहर माइक में सुनने आये तो अन्दर बैठेंगे? तो क्या करना पड़े? इसी शुभ संकल्प से अभी नीचे ज्यादा में ज्यादा मिल सके, बैठ सके, उसके लिए पहले स्टेज का फाउण्डेशन डाल रहे हैं और सभी डालेंगे ना। चारों ओर के देश-विदेश के बच्चों के अंगुली से जब ज्ञान सरोवर बन गया तो ये तो उसके आगे कुछ भी नहीं है। वो तो सभी के संकल्प और सहयोग से सहज से सहज बनना ही है। आपको पसन्द है? डबल विदेशियों को ज्यादा अच्छा लगता है कि भारतवासियों को अच्छा लगता है? दोनों को अच्छा लगता। तो फिर फाउण्डेशन डालना अर्थात् अंगुली देना। पहाड़ तो उठा ही पड़ा है। ठीक है ना? देश और विदेश का संगठन का मेला है तो देश और विदेश दोनों मिलकर जो फाउण्डेशन डालेंगे वो कितना अच्छा होगा! तो जो भी होंगे उन सबके तरफ से उस धरनी पर स्नेह से फाउण्डेशन डालेंगे। अच्छा!
09-01-96 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘बालक सो मालिकपन के नशे में रहने के लिए मन का राजा बनो’’
आज विश्व के मालिक बाप अपने चारों ओर के मालिक सो बालक बच्चों को देख रहे हैं। बालक भी हो तो मालिक भी हो। विश्व के मालिक भविष्य में बनेंगे लेकिन बाप के सर्व खजानों के मालिक अभी हो। विश्व राज्य अधिकारी भविष्य में बनेंगे लेकिन स्वराज्य अधिकारी अभी हो। इसलिए बालक भी हो और मालिक भी हो। दोनों हो ना! बालकपन का नशा सदा रहता ही है। बापदादा ने देखा कि बालकपन का नशा चाहे इमर्ज रूप में, चाहे मर्ज रूप में मैजारिटी को रहता है। क्योंकि अगर याद में बैठते हो तो भी क्या याद रहता है? बाबा। तो ‘बाबा’ ये सोचना वा कहना, बच्चा है तब बाबा कहते हैं। और जो सच्चे सेवाधारी हैं उनके मुख से बार-बार क्या निकलता है? बाबा ने ये कहा, बाबा ये कहते हैं। सारे दिन में चेक करो तो कितने बारी ‘बाबा-बाबा’ शब्द सेवा में कहते रहते हो? लेकिन दो प्रकार से ‘बाबा’ शब्द कहने वाले हैं। एक है दिल से ‘बाबा’ कहने वाले और दूसरे हैं नॉलेज के दिमाग से कहने वाले। जो दिल से ‘बाबा’ कहते हैं उनको सदा सहज दिल में बाबा द्वारा प्रत्यक्ष प्राप्ति खुशी और शक्ति मिलती है और जो सिर्फ दिमाग अच्छा होने के कारण नॉलेज के प्रमाण ‘बाबा-बाबा’ शब्द कहते हैं उन्हों को उस समय बोलने में अपने को भी खुशी होती और सुनने वालों को भी उस समय तक खुशी होती, अच्छा लगता लेकिन सदाकाल के लिए दिल में खुशी और शक्ति दोनों हो, वो सदा नहीं रहती, कभी रहती, कभी नहीं, क्यों? दिल से ‘बाबा’ नहीं कहा। तो बापदादा ने देखा कि बालकपन का निश्चय सभी को है, नशा कभी है, कभी नहीं है। बाबा के हैं - ये निश्चय, इसमें मैजारिटी ठीक हैं। बालक तो हो ही लेकिन सिर्फ बालक नहीं हो बालक सो मालिक हो। डबल है।
तो मालिकपन - एक स्वराज्य अधिकारी मालिक और दूसरा बाप के सर्व खज़ानों के मालिक, क्योंकि सर्व खजानों को अपना बनाते हो, मेरा वर्सा है, दाता बाप है लेकिन बाप ने दिया कि आप वर्से के मालिक हो। तो यह वर्सा सबको मिला है? किसको कम, किसको ज्यादा तो नहीं मिला है? सबको एक जैसा मिला है ना? या किसको एक करोड़ मिला है और किसको 10 करोड़, ऐसे तो नहीं है ना? क्योंकि बाप के खज़ाने बेहद के हैं। कितने भी बच्चे हो लेकिन बाप के खज़ाने कम होने वाले नहीं हैं। खुला और सम्पन्न भण्डार है। इसलिए बाप किसको कम क्यों देवें! जब है ही बच्चों के लिए तो किसको ज्यादा, किसको कम क्यों दें! तो एक बाप के वर्से के अधिकारी मालिक और दूसरा स्वराज्य के मालिक। तो स्वराज्य मिला है? दोनों के मालिक हो? पक्का है ना? तो मालिक होकर कितना समय चलते हो? कहते भी हो कि स्वराज्य हमारा बर्थ राइट है। कहते हो ना या महारथियों का बर्थ राइट है, हमारा थोड़ा है? स्वराज्य का अधिकार सभी को मिला है कि थोड़ा-थोड़ा मिला है? इस पर पूरा पक्का रहना। तो चेक करो कि स्व की सर्व कर्मेन्द्रियाँ आर्डर प्रमाण हैं? कर्मेन्द्रियाँ, आप स्वराज्य अधिकारी बच्चों के कर्मचारी हैं ना? मालिक तो नहीं हैं? आप मालिक हो, ये ठीक है? कि कर्मचारी मालिक हैं और आप कर्मचारी बन जाते हो?
तो बापदादा ने देखा कि बच्चों की स्थिति में सबसे ज्यादा जो मालिकपन भुलाने वाला है वा समय प्रति समय राजा से अपने वश में करने वाला है - वो है मन। इसलिए बाप का मन्त्र भी है मन्मनाभव। तन-मनाभव, धन-मनाभव या बुद्धि-मनाभव नहीं है। मन्मनाभव है। तो मन अपना प्रभाव डाल देता है। मन के वश में आ जाते हैं। देखो कोई भी छोटी सी व्यर्थ बात वा व्यर्थ वातावरण वा व्यर्थ दृश्य सबका प्रभाव पहले किस पर पड़ता है? मन पर प्रभाव पड़ता है ना, फिर बुद्धि उसको सहयोग देती है। मन और बुद्धि अगर उसी प्रकार चलती रहती तो संस्कार बन जाता है। अभी भी अपने को चेक करो तो मेरा जो व्यर्थ संस्कार है वो बना कैसे? मानो किसी का संस्कार छोटी सी बात में सेकण्ड में, मन में फीलिंग आने का बन गया है तो ये संस्कार बना कैसे? फिर कहते हैं चाहते नहीं हैं, सोचते भी हैं लेकिन हो जाता है। इसको कहा जाता है संस्कारवश। कोई का थोड़े टाइम में मन मायूस हो जाता, थोड़ा सा देखा, सुना और मन मायूस हो गया। फिर अगर कोई पूछेगा तो क्या कहेंगे? कहेंगे, नहीं कोई बात नहीं, ये मेरे संस्कार हैं। ठीक हो जायेगा, संस्कार हैं। लेकिन बना कैसे? मन और बुद्धि के आधार से संस्कार बन गया। फिर भिन्न-भिन्न संस्कार हैं जो ब्राह्मण संस्कार नहीं हैं। बापदादा तो सोचते हैं कि कहलाने में तो किसी से भी पूछेंगे कि आप कौन हो? तो क्या कहेंगे? ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार हैं। तो ब्रह्मा के बच्चे क्या हुए? ब्राह्मण। लेकिन जब व्यर्थ संस्कार के वश हो जाते हो तो क्या उस समय ब्रह्माकुमार, ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो? उस समय कौन हो? यदि अपने से युद्ध करते हो - ये नहीं, ये नहीं... तो ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो? कई बच्चे कहते हैं दो दिन से मेरे मन में खुशी गुम हो गई, पता नहीं क्यों? वैसै तो अन्दर समझते हैं लेकिन बाहर से कहते हैं पता नहीं क्यों! लेकिन वो दिन ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय हैं? जिसकी खुशी गुम हो जाये तो ब्राह्मण हैं? तो क्या कभी क्षत्रिय बनते हो, कभी ब्राह्मण बनते हो? सभी ने कहा ना मालिक हैं, लेकिन उस समय क्या हैं? मालिक हैं या परवश हैं?
तो बापदादा ने देखा कि मालिकपन को हिलाने वाला विशेष मन है। और आप स्वराज्य अधिकारी राजा हो, मन आपका मन्त्री है। वा मन मालिक है, आप मन्त्री हो? आप राजा हो ना, मन तो राजा नहीं है? मन्त्री है, सहयोगी है। तो मन का मालिकपन - ये सदा हो तब कहेंगे कि स्वराज्य अधिकारी। नहीं तो कभी अधिकारी, कभी अधीन। इसका कारण क्या है? क्यों नहीं परिवर्तन होता? जब समझते भी हो फिर भी संस्कार के वश हो जाते हो। इसलिए पहले मन को कन्ट्रोल करो। कहते हो राजा हैं लेकिन राजा का अर्थ है जिसमें रूलिंग पॉवर हो। अगर नाम राजा हो और रूलिंग पॉवर नहीं तो उसका क्या हाल होगा? उसका राज्य चलेगा? नहीं चलेगा। तो रूलिंग पॉवर कितने परसेन्टेज में आई है - ये चेक करो।
एक ग़लती बहुत करते हो उसके कारण भी संस्कार के ऊपर विजय नहीं प्राप्त कर सकते, बहुत टाइम लगता है समझते हैं कल से नहीं करेंगे लेकिन जब कल होता है तो आज से कल की बात बड़ी हो जाती है। तो कहते हैं कल छोटी बात थी ना आज तो बहुत बड़ी बात थी। तो बड़ी बात होने के कारण थोड़ा हो गया, फिर ठीक कर लेंगे-ये बड़ों को वा अपने दिल को दिलासा देते हो और ये दिलासा देते हुए चलते हो लेकिन ये दिलासा नहीं है, ये धोखा है। उस समय थोड़े समय के लिए अपने को या दूसरों को दिलासा देना-बस अभी ठीक हो जायेंगे, लेकिन ये स्वयं को धोखा देने की आदत पक्की करते जाते चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप में रहना-यही ब्रह्मा बाप की दिल-पसन्द गिफ्ट है। 99 हो। जो उस समय पता नहीं पड़ता लेकिन जब प्रैक्टिकल में धोखा मिलता है तभी समझते हैं कि हाँ ये धोखा ही है। तो भूल क्या करते हो? जब बड़े या छोटे एक-दो को शिक्षा देते हैं तो क्या कहते हो? ये मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, कोई का फीलिंग का, कोई का किनारा करने का, कोई का बार-बार परचिन्तन करने का, कोई का परचिन्तन सुनने का, भिन्न-भिन्न हैं, उसको तो आप बाप से भी ज्यादा जानते हो। लेकिन बापदादा कहते हैं कि जिसको आपने मेरा संस्कार कहा वो मेरा है? किसका है? (रावण का) तो मेरा क्यों कहा? ये तो कभी नहीं कहते हो कि ये रावण के संस्कार हैं। कहते हो मेरे संस्कार हैं। तो ये ‘मेरा’ शब्द - यही पुरूषार्थ में ढीला करता है। ये रावण की चीज़ अन्दर छिपाकर क्यों रखी है? लोग तो रावण को मारने के बाद जलाते हैं, जलाने के बाद जो भी कुछ बचता है वो भी पानी में डाल देते हैं, और आपने मेरा बनाकर रख दिया है! तो जहाँ रावण की चीज़ होगी वहाँ अशुद्ध के साथ शुद्ध संस्कार इकट्ठे रहेंगे क्या? और राज्य किसका है? अशुद्ध का। शुद्ध का तो नहीं है ना! तो राज्य है अशुद्ध का और अशुद्ध चीज़ अपने पास सम्भाल कर रख दी है। जैसे सोना या हीरा सम्भाल के रखा हो। इसलिए अशुद्ध और शुद्ध दोनों की युद्ध चलती रहती है तो बार-बार ब्राह्मण से क्षत्रिय बन जाते हैं। मेरा संस्कार क्या है? जो बाप का संस्कार है, विशेष है ही विश्व कल्याणकारी, शुभ चिन्तनधारी। सबके शुभ भावना, शुभ कामनाधारी। ये हैं ओरिजनल मेरे संस्कार। बाकी मेरे नहीं हैं। और यही अशुद्धि जो अन्दर छिपी हुई है ना, वो सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है। तो जो बनना चाहते हो, लक्ष्य रखते हो लेकिन प्रैक्टिकल में फर्क पड़ जाता है।
मैजॉरिटी ने सोचा है, कइयों ने तो अपना संकल्प किया भी, लिखा भी कि इस डायमण्ड जुबली में बाप समान डायमण्ड बनना ही है। ये संकल्प है या सोचना है? सोचना हो तो सोच लो! लेकिन नम्बर पीछे मिलेगा। कहावत भी है कि जो करेगा वो पायेगा। ये तो नहीं है ना कि जो सोचेगा वो पायेगा! तो संकल्प बहुत अच्छा करते हो। बापदादा भी पढ़ करके, सुन करके खुश होते हैं लेकिन ये रावण की चीज़ जो छिपाकर रखी है ना वो मन का मालिक बनने नहीं देती। मेरी आदत है, मेरा स्वभाव है, मेरा संस्कार है, मेरी नेचर है-ये सब रावण की जायदाद साथ में, दिल में रख दी है, तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! रावण के वर्से के ऊपर बैठे क्या! तो अभी इसको मिटाओ। जब मेरा शब्द बोलते हो तो याद करो-मेरा स्वभाव या मेरी नेचर क्या है? और मन को दुनिया वाले भी कहते हैं ये घोड़ा है, बहुत भागता है और तेज भागता है लेकिन आपका मन भागना चाहिये? आपको श्रीमत का लगाम मज़बूत है। अगर लगाम ठीक है तो कुछ भी हलचल नहीं हो सकती। लेकिन करते क्या हो? बापदादा तो देखते रहते हैं ना तो हंसी भी आती है, जैसे सवारी को चला रहे हो, लगाम हाथ में है लेकिन अगर चलते-चलते लगाम पकड़ने वाले की बुद्धि या मन कोई साइटसीन के तरफ लग गई तो क्या होगा? लगाम ढीला होगा! और लगाम ढीला होने से मन चंचलता जरूर करेगा। तो श्रीमत का लगाम सदा अपने अन्दर स्मृति में रखो। जब भी कोई बात हो, मन चंचल हो तो श्रीमत का लगाम टाइट करो। फिर कुछ नहीं होगा। फिर मंज़िल पर पहुँच जायेंगे। तो श्रीमत हर कदम के लिए है, श्रीमत सिर्फ ब्रह्मचारी बनो ये नहीं है। हर कर्म के लिये श्रीमत है। चलना, खाना, पीना, सुनना, सुनाना - सबकी श्रीमत है। है, कि नहीं है? मानो आप परचिन्तन कर रहे हो तो क्या ये श्रीमत है? श्रीमत को ढीला किया तो मन को चांस मिलता है चंचल बनने का। फिर उसको आदत पड़ जाती है। तो आदत डालने वाला कौन? आप ही हो ना! तो पहले मन का राजा बनो। चेक करो - अन्दर ही अन्दर ये मन्त्री अपना राज्य तो नहीं स्थापन कर रहे हैं? जैसे आजकल के राज्य में अलग ग्रुप बना करके और पॉवर में आ जाते हैं। और पहले वालों को हिलाने की कोशिश करते हैं तो ये मन भी ऐसे करता है, बुद्धि को भी अपना बना लेता है। मुख को, कान को, सबको अपना बना लेता है। तो रोज़ चेक करो, समाचार पूछो-हे मन मन्त्री तुमने क्या किया? कहाँ धोखा तो नहीं दिया? कहाँ अन्दर ही अन्दर ग्रुप बना देवे और आपको राजा की बजाय गुलाम बना दे! तो ऐसा न हो। देखो ब्रह्मा बाप आदि में रोज़ ये दरबार लगाते थे जिसमें सभी सहयोगी साथियों से समाचार पूछते, ये रोज़ की ब्रह्मा बाप की आदि की दिनचर्या है। सुना है ना? तो ब्रह्मा बाप ने भी मेहनत की है ना! अटेन्शन रखा तब स्वराज्य अधिकारी सो विश्व के राज्य अधिकारी बने। शिव बाप तो है ही निराकार लेकिन ब्रह्मा बापने तो आपके समान सारी जीवन पुरूषार्थ से प्रालब्ध प्राप्त की। तो ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। ये मन बहुत चंचल है और बहुत क्वीक है, एक सेकण्ड में आपको सारा फॉरेन घुमाकर आ सकता है। तो क्या सुना? बालक सो मालिक। ऐसे नहीं खुश रहना-बालक तो बन गये, वर्सा तो मिल गया लेकिन अगर वर्से के मालिक नहीं बने तो बालकपन क्या हुआ? बालक का अर्थ ही है मालिक। लेकिन स्वराज्य के भी मालिक बनो। सिर्फ वर्से को देख करके खुश नहीं हो, स्वराज्य अधिकारी बनो। इतनी छोटी सी आंख बिन्दी है, वो भी धोखा दे देती है। तो मालिक नहीं हुए तभी धोखा देती है। तो बापदादा सभी बच्चों को स्वराज्य अधिकारी राजा देखना चाहते हैं। अधिकारी, अधीन नहीं रहेगा। समझा? क्या बनेंगे? बालक सो मालिक। रावण की चीज़ को तो यहाँ हाल में ही छोड़कर जाना। ये तपस्या का स्थान है ना। तो तपस्या को अग्नि कहा जाता है। तो अग्नि में खत्म हो जायेगा।
बापदादा ने देखा कि बच्चों का रावण से अभी भी प्यार है। दिल से चाहते नहीं हैं लेकिन रह गया है। अभी इसको खत्म करो। टीचर्स क्या करेंगी? यहीं छोड़कर जायेंगी या ट्रेन में फेकेंगी? क्योंकि 63 जन्मों की पुरानी चीज है तो थोड़ी तो प्रीत है। पाण्डव क्या करेंगे? यहीं छोड़ कर जायेंगे या नीचे आबूरोड पर छोड़ेंगे? यहीं छोड़कर जाना। छोड़ने के लिये तैयार हो? ढीलाढाला हाँ कर रहे हो। बापदादा रोज़ कोई न कोई बच्चों की बातें चेक करता है। आप भी चेक करेंगे तब तो चेंज होंगे ना!
अच्छा, ये चांस तो एक्स्ट्रा चांस मिला है। ये भी नयों को या पुरानों को अचानक की लॉटरी मिली है। तो अचानक की लॉटरी का महत्व होता है। तो इस लॉटरी को सदा प्रैक्टिकल कर्म में लाते हुए बढ़ाते रहना। जितना स्वयं प्रति या औरों प्रति कार्य में लगायेंगे उतना बढ़ता रहेगा। तो बढ़ाते रहना ये लॉटरी का दिन भूलना नहीं। याद रखना।
कुमारियों से
कुमारियाँ क्या करेंगी? कुमारी का अर्थ ही है कमाल करने वाली। तो कमाल करनी है। क्या कमाल करेंगी? बापदादा सदा जब भी कुमारियों को देखते हैं तो उसी नज़र से देखते हैं कि ये कमाल करने वाली कुमारी है। चाहे कुमारी अपना क्या भी करे लेकिन बापदादा हर कुमारी में कमाल करने वाली शुभ भावना, शुभ कामना रखते हैं। तो कुमारियाँ क्या करेंगी? क्योंकि कुमारियाँ बहुत बन्धनों से फ्री हैं। अगर कुमारी पुरूषार्थ में अच्छी है तो उसको सेन्टर मिल जाता है। एक तो सेन्टर की सेवाधारी का भाग्य मिलता है और सेन्टर पर अकेले नहीं लेकिन साथी भी मिल जाते हैं। कुमारों को तो अकेला-अकेला खाना बनाना पड़ता है और कुमारियों को चाहे टर्न-बाई-टर्न बनाओ लेकिन एक-दो में मददगार तो होते हैं ना! और दूसरा कमाने की कोई चिन्ता नहीं। अगर कोई कुमार आपके पास (दादी के पास) जाता है तो आप नौकरी छुड़ायेंगी? कहेंगे नौकरी करो। तो कुमारियों का तो लक है, कहते हैं नौकरी छोड़कर आ जाओ। खुद कुमारी का लगाव होता है पढ़ने में या नौकरी में। तो ये तो उसका भाग्य हुआ। लेकिन कुमारियों को चांस तो अच्छा है। और फिर सेवा का चांस कितना मिलता है? जितना करना चाहो उतना कर सकते हो।
ब्रह्मा बाप पुराने बच्चों के प्रति ये बोल रहे हैं कि अगर कोई कहता है कि सेवा है ही नहीं, बहुत करते हैं लेकिन सेवा दिखाई नहीं देती है, कोई सेवा के लिए मिलता नहीं है तो ब्रह्मा बाप क्या कहता था कि जंगल पड़ा हुआ है और शिकारी कहे कि शिकार नहीं मिलता, ये हो सकता है! शिकारी को परखने की शक्ति नहीं है, देखने की वो जो तेज़ आंख चाहिये, वो नहीं है। बाकी जंगल में शिकार न हो ये हो ही नहीं सकता। कितनी संख्या बढ़ रही है। चाहे छोटा गांव है, चाहे बड़ा शहर है सब जगह संख्या बढ़ रही है। तो संख्या बढ़ रही है और सेवा नहीं हो ये कैसे हो सकता है! करने की विधि नहीं आती। तो कुमारियों को अपने आपको निर्बन्धन बनाने की विशेष सेवा करनी है। पहले अपने को निर्बन्धन बनाओ। क्या है कुमारियाँ डरती हैं सेन्टर पर रहने से और कुमार चाहते हैं सेन्टर पर रहना। कारण क्या है? कमज़ोर आत्मायें हैं, नम्बरवार तो होना ही है ना। तो कमजोर आत्माओं की कमजोरी को देख घबरा जाते हैं। अच्छों को नहीं देखते, जो कमजोर है, उसको फॉलो करते हैं। इसीलिए बापदादा ने कहा भी है-सी फादर-मदर। फॉलो फादर-मदर। न कि कमज़ोर को फॉलो करो। तो कुमारियों को तो दिल में उछल आनी चाहिये। कि बस, सेवा करें और सेवा के सफलता का सितारा बनें, कमज़ोर नहीं।
कुमारों से
कुमारों को भी चांस मिलेगा। जब सेवा बहुत बढ़ेगी, इतनी सब आत्माओं को सन्देश देना है तो क्या थोड़ी सी आत्मायें कर सकेंगी! तो आप लोगों को चांस मिलेगा लेकिन आप लोग ऐसे पहले से तैयार हो जाओ। जो टीचर्स को सप्ताह कोर्स कराना पड़ता है और आप एक सेकण्ड में अपनी दृष्टि-वृत्ति द्वारा परिचय दे सको। ऐसी सेवा कुमारों को करनी है। अभी देखो बापदादा स्पष्ट सुनाता है कि कुमारों को सेन्टर पर क्यों नहीं रखते हैं? कारण क्या है? डर लगता है दादियों को। और कभी-कभी प्रैक्टिकल में नुकसान होते भी हैं। ऐसे ही डर नहीं लगता, होता भी है। अगर कुमार पक्के योगी बन ज