08-10-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“आत्मिक प्यार की मूर्ति बन शिक्षा और सहयोग साथ-साथ दो” (विशेष मधुबन निवासी भाई-बहनों से मुलाकात)
आज प्यार के सागर बापदादा अपने मास्टर ज्ञान सागर बच्चों से मिलन मना रहे हैं। ये परमात्म प्यार बच्चों की पालना का आधार है। जैसे परमात्म प्यार ब्राह्मण जीवन का आधार है, ऐसे ही ब्राह्मण संगठन का आधार आत्मिक प्यार है। जो आत्मिक प्यार आप बच्चे ही अनुभव कर सकते हो। आज के विश्व की आत्मायें इस सच्चे, नि:स्वार्थ आत्मिक परमात्म प्यार की प्यासी हैं। ऐसा सच्चा प्यार सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के किसी को प्राप्त नहीं हो सकता। प्यासी आत्माओं की प्यास पूर्ण करने वाले अपने को हर समय परमात्म प्यार वा आत्मिक प्यार में समाये हुए अनुभव करते हो? प्यार के दाता व देवता सदा रहे हो? चलते-फिरते आत्मिक प्यार की वृत्ति, दृष्टि, बोल, सम्बन्ध-सम्पर्क अर्थात् कर्म अनुभव करते हो? कैसी भी आत्मा हो लेकिन आप ब्राह्मणों की नेचुरल वृत्ति, ब्राह्मण नेचर बन गयी है? बनानी पड़ती है या बन गयी है? फालो फादर, फालो मदर। अपने ब्राह्मण जन्म के आदि समय को याद करो। भिन्न-भिन्न नेचर वाले बाप के बने। प्यार के सागर बाप ने एक ही प्यार के सागर के स्वरूप की अनादि नेचर से अपना बना लिया ना! अगर आप सबकी भिन्न-भिन्न नेचर देखते तो अपना बना सकते? तो अपने से पूछो, मेरी नेचुरल नेचर क्या है? किसी की भी कमज़ोर नेचर; वास्तव में ब्राह्मण जीवन की नेचुरल नेचर मास्टर प्रेम का सागर है। जब दुनिया वाले भी कहते हैं कि प्यार पत्थर को भी पानी करता है, तो आत्मिक प्यार, परमात्म प्यार ले के देने वाले, भिन्न-भिन्न नेचर को परिवर्तन नहीं कर सकते? कर सकते है या नहीं? पीछे वाले बोलो? जो समझते हैं कर सकते हैं वो एक हाथ उठाओ। बड़ा हाथ उठाओ, छोटा नहीं। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा मुबारक हो! फिर सरकमस्टान्स आते हैं। सरकमस्टान्स तो आने ही हैं। ये तो ब्राह्मण जीवन के रास्ते के साइडसीन्स हैं। और साइडसीन कभी एक जैसे नहीं होते हैं। कोई सुन्दर भी होती है, कोई गन्दगी की भी होती है। लेकिन पार करना राही का काम है, ना कि साइडसीन बदलने की बात है। तो बापदादा क्या चाहते हैं! सब जानने में तो होशियार हो गये हो ना।
आज मधुबन निवासियों को विशेष चान्स मिला है। गोल्डन चान्स है ना। अच्छा। इस गोल्डन चान्स का रिटर्न क्या? बड़े उमंग-उत्साह से चान्स लिया है। वैसे नीचे बैठने वाले भी मधुबन निवासी हैं (मधुबन निवासी भाई- बहनों के अलावा अन्य सभी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) लेकिन आज सिर्फ ग्रुप-ग्रुप को मिलने का चान्स है। इतना इकट्ठा तो दूर-दूर हो जाते हैं। इसलिए थोड़े-थोड़े भाग बनाये हैं। बाकी हैं सभी मधुबन निवासी। जब सेन्टर पर रहने वालों की भी परमानेन्ट एड्रेस मधुबन ही है ना, तो ब्राह्मण अर्थात् परमानेन्ट एड्रेस मधुबन। घर मधुबन है बाकी सेवा स्थान हैं। तो नीचे वाले ऐसे नहीं समझें कि आज हमको मधुबन निवासियों से निकाल लिया है। नहीं, आप सब मधुबन निवासी हैं। सिर्फ आपको सामने बापदादा देखने चाहते हैं। तो छोटे ग्रुप में देख सकते हैं। अभी देखो, पीछे देखने वाले भी इतने स्पष्ट नहीं दिखाई देते हैं, ये नजदीक वाले स्पष्ट दिखाई देते हैं। लेकिन पीछे वाले दिल से दूर नहीं हैं। नीचे वाले भी दिल से दूर नहीं हैं। तो बापदादा यही चाहते हैं कि वर्तमान समय प्रमाण लव और लॉ का बैलेन्स रखना पड़ता है, लेकिन लॉ और लव का बैलेन्स मिलकरके लॉ नहीं लगे। लॉ में भी लव महसूस हो। जैसे साकार स्वरूप में बाप को देखा। लॉ के साथ लव इतना दिया जो हरेक के मुख से यही निकलता कि बाबा का मेरे से प्यार है। मेरा बाबा है। लॉ जरूर उठाओ लेकिन लॉ के साथ लव भी दो। सिर्फ लॉ नहीं। सिर्फ लॉ से कहाँ-कहाँ आत्मायें कमज़ोर होने के कारण दिलशिकस्त हो जाती हैं। जब स्वयं आत्मिक प्यार की मूर्ति बनेंगे तब दूसरों के प्यार की, (आत्मिक प्यार, दूसरा प्यार नहीं) आत्मिक प्यार अर्थात् हर समस्या को हल करने में सहयोगी बनना। सिर्फ शिक्षा देना नहीं, शिक्षा और सहयोग साथ-साथ देना - ये है आत्मिक प्यार की मूर्ति बनना। तो आज विशेष बापदादा हर ब्राह्मण आत्मा को, चाहे देश, चाहे विदेश चारों ओर के सर्व बच्चों को यही विशेष अण्डरलाइन करते हैं कि आत्मिक प्यार की मूर्ति बनो। और आत्माओं के आत्मिक प्यार की प्यास बुझाने वाले दाता-देवता बनो। ठीक है ना! अच्छा।
(फिर बापदादा ने मधुबन वालों से चिटचैट की तथा सभी को नजर से निहाल करते दृष्टि दी)।
हॉस्पिटल, आबू निवासी तथा पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
सभी अपने को खुशनसीब समझते हो? सारे विश्व में सबसे बड़े ते बड़ा नसीब किसका है? हरेक क्या समझते हैं कि सबसे बड़े ते बड़ा नसीब मेरा है! हर एक ऐसा समझते हैं? जब खुशनसीब हैं तो खुश रहते हैं? सदा खुश रहते हैं? कभी-कभी तो नहीं ना! जब बापदादा ने भाग्य का सितारा चमका दिया तो चमकते हुए सितारे को देख खुश रहते हो? दिल में सदा खुशी के बाजे बजते हैं। बजते हैं? कौन सा गीत दिल गाती है? ``वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य'' - यह गीत गाते हो? सारा कल्प आपके भाग्य का गायन होता रहता है। आधाकल्प भाग्य की प्रालब्ध भोगते हो और आधा कल्प आपके भाग्य का गायन अनेक आत्मायें गाती रहती हैं। सबसे विशेष बात है कि बाप को सारे विश्व में से कौन पसन्द आया? आप पसन्द आये ना! कितनी आत्मायें हैं लेकिन आप ही पसन्द आये। जिसको भगवान ने पसन्द कर लिया, उससे ज्यादा क्या होगा! तो सदा बाप के साथ अपना भाग्य भी याद रखो। भगवान और भाग्य। सारे कल्प में ऐसी कोई आत्मा होगी जिसको रोज याद प्यार मिले, प्रभु प्यार मिले। रोज यादप्यार मिलता है ना। सबसे ज्यादा लाडले कौन हैं? आप ही लाडले हो ना। तो सदा अपने भाग्य को याद करने से व्यर्थ बातें भाग जायेंगी। भगाना नहीं पड़ेगा, सहज ही भाग जायेंगी।
अभी वर्तमान समय के प्रमाण संगमयुग के समय का महत्त्व समझकर हर सेकण्ड अपनी प्रालब्ध श्रेष्ठ बनाते रहो। एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं जाये क्योंकि एक-एक सेकण्ड का बहुत बड़ा महत्त्व है। सेकण्ड नहीं जाता लेकिन बहुत समय जाता है और यह समय फिर नहीं मिलना है। समय का परिचय है ना - अच्छी तरह से। स्मृति में रहता है? देखो, आज आप सबको स्पेशल टाइम मिला है ना। अगर इकùे आते तो दिखाई भी नहीं देते। अभी देख तो रहे हैं कौन-कौन हैं। सब विशेष आत्मायें हो। सिर्फ अपनी विशेषता को जान विशेषता को कार्य में लगाओ। ड्रामा अनुसार हर ब्राह्मण आत्मा को कोई न कोई विशेषता प्राप्त है। ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो। तो अपनी विशेषता को सदा स्मृति में रखो और उसको सेवा में लगाओ। हरेक की विशेषता, उड़ती कला की बहुत तीव्र विधि बन जायेगी। सेवा में लगाना, अभिमान में नहीं आना क्योंकि संगम पर हर विशेषता ड्रामा अनुसार परमात्म देन है। परमात्म देन में अभिमान नहीं आयेगा। जैसे प्रसाद होता है ना उसको कोई अपना नहीं कहेगा कि मेरा प्रसाद है, प्रभु प्रसाद है। ये विशेषतायें भी प्रभु प्रसाद हैं। प्रसाद सिर्फ अपने प्रति नहीं यूज किया जाता है, बांटा जाता है। बांटते हो, महादानी हो, वरदानी भी हो। पाण्डव भी वरदानी, महादानी हैं, शक्तियां भी महादानी हैं? एक दो घण्टे के महादानी नहीं, खुला भण्डार। इसीलिए बाप को भोला भण्डारी कहते हैं, खुला भण्डार है ना। आत्माओं को अंचली देते जाओ, कितनी बड़ी लाइन हैं भिखारियों की। और आपके पास कितना भरपूर भण्डार है? अखुट भण्डार है, खुटने वाला है क्या? बांटने में एकानामी तो नहीं करते? इसमें फ्राख दिली से बांटो। व्यर्थ गंवाने में एकानामी करो लेकिन बांटने में खुली दिल से बांटो।
सभी खुश हैं? कभी-कभी थोड़ा-थोड़ा होता है। कभी मूड आफ, कभी मूड बहुत खुश ऐसे तो नहीं ना। फालो फादर, बापदादा मूड आफ करता है क्या? तो फालो फादर हैं ना। बापदादा के पास स्पेशल ब्राह्मण बच्चों के लिए टी.वी. है, उसमें सबकी भिन्न-भिन्न मूड आती है। कितना मजा आता होगा देखने में! सदा महादानी बनने वाले की मूड बदलती नहीं है। दाता हैं ना, देते जाओ। देवता बनने वाले माना देने वाले। लेवता नहीं देवता। कितने बार देवता बने हो, अनेक बार बने हो ना। तो देवता अर्थात् देने के संस्कार वाले। कोई कुछ भी दे लेकिन आप सुख की अंचली, शान्ति की अंचली प्रेम की अंचली दो। लोगों के पास है ही दु:ख अशान्ति तो क्या देंगे वो ही देंगे ना। और आपके पास क्या है - सुख-शान्ति। सब ठीक है ना! अच्छा! मिलन मनाया, ऐसे तो नहीं समझते हम तो पीछे आये। स्पेशल आये हो। नजदीक तो मधुबन के रह रहे हो। मधुबन का घेराव तो अच्छा किया है।
हॉस्पिटल वाले भी सेवा अच्छी कर रहे हैं। शान्तिवन के भी बहुत हैं। पार्टी वाले सिकीलधे हैं। थोड़े हैं इसलिए सिकीलधे हैं। फारेनर्स के बिना भी शोभा नहीं है, इसलिए हर ग्रुप में अपनी शोभा बढ़ाने अच्छा आ जाते हैं। अच्छा |
सेवाधारियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
सभी सेवा के निमित्त अपना भाग्य बनाने वाले हो क्योंकि इस यज्ञ सेवा का पुण्य बहुत बड़ा है। तन से सेवा तो करते हो लेकिन मन से भी सेवा करते रहो, तो डबल पुण्य हो जाता है। मन्सा सेवा और तन की सेवा। जो भी आते हैं सेवाधारियों की सेवा से वायुमण्डल में देख करके अपना लाभ लेकर जाते हैं। तो जितने भी आते हैं सेवा के समय, उतनी आत्माओं का पुण्य या दुआयें जमा हो जाती हैं। ऐसे सेवा करते हो, तन से भी और मन से भी। डबल सेवाधारी हो या सिंगल, कौन हो? डबल। डबल करते हो? सेवा का प्रत्यक्षफल भी मिलता रहता है। जितना समय रहते हो, एक्स्ट्रा खुशी मिलती है ना! तो प्रत्यक्ष फल भी खाते हो, दुआयें भी जमा होती है, भविष्य भी बना और वर्तमान भी बना। बापदादा को भी खुशी होती है कि बच्चे अपनी प्रालब्ध बहुत सहज और श्रेष्ठ बना रहे हैं। बस सेवा, सेवा और सेवा। और किसी बातों में नहीं जाना। सेवा अर्थात् जमा करना। जितना भी समय मिलता है तो डबल कमाई करो। प्रत्यक्षफल भी, भविष्य भी। सेवा का चांस भी आप आत्माओं को प्राप्त है। सेवाधारियों से बापदादा का विशेष प्यार होता है क्योंकि बापदादा भी विश्व का सेवक है। तो समान हो गये ना! मन को बिजी रखते हो या खाली रखते हो? मधुबन अर्थात् याद और सेवा। चलते-फिरते मन याद में या सेवा में बिजी रहे। सभी खुश रहते हो? कभीकभी वाले तो नहीं हो? सदा खुश रहने वाले। आपकी खुशी को देख दूसरे भी खुश हो जाते है। सेवाधारियों को भी टर्न मिला, खुश हो ना! टर्न मिला ना विशेष? मधुबन वालों के निमित्त आपका भी गोल्डन चांस हो गया। स्वयं सदा स्वमान में रह उड़ते रहो। स्वमान को कभी नहीं छोड़ो, चाहे झाड़ू लगा रहे हो लेकिन स्वमान क्या है? विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ आत्मा हूँ। तो अपना रूहानी स्वमान कोई भी काम करते भूलना नहीं। नशा रहता है ना, रूहानी नशा। हम किसके बन गये! भाग्य याद रहता है ना? भूलते तो नहीं हो? जितना भी समय सेवा के लिए मिलता है उतना समय एक-एक सेकण्ड सफल करो। व्यर्थ नहीं जाए, साधारण भी नहीं। रूहानी नशे में, रूहानी प्राप्तियों में समय जाए। ऐसा लक्ष्य रखते हो ना। अच्छा।
ओम् शान्ति।
25-10-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“ब्राह्मण जीवन का आधार - प्युरिटी की रॉयल्टी”
आज स्नेह का सागर अपने स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। चारों ओर के स्नेही बच्चे रूहानी सूक्ष्म डोरी में बंधे हुए अपने स्वीट होम में पहुंच गये हैं। जैसे बच्चे स्नेह से खिंचकर पहुंच गये हैं वैसे बाप भी बच्चों के स्नेह की डोर में बंधा हुआ बच्चों के सम्मुख पहुंच गये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर के बच्चे भी दूर बैठे भी स्नेह में समाये हुए हैं। सम्मुख के बच्चों को भी देख रहे हैं और दूर बैठे हुए बच्चों को भी देख देख हार्षित हो रहे हैं। ये रूहानी अविनाशी स्नेह, परमात्म स्नेह, आत्मिक स्नेह सारे कल्प में अभी अनुभव कर रहे हो।
बापदादा हर एक बच्चे की पवित्रता की रॉयल्टी देख रहे हैं। ब्राह्मण जीवन की रॉयल्टी है ही प्युरिटी। तो हर एक बच्चे के सिर पर रूहानी रॉयल्टी की निशानी प्युरिटी की लाइट का ताज देख रहे हैं। आप सभी भी अपने प्युरिटी का ताज, रूहानी रॉयल्टी का ताज देख रहे हो? पीछे वाले भी देख रहे हो? कितनी शोभनिक ताजधारी सभा है। है ना पाण्डव? ताज चमक रहा है ना! ऐसी सभा देख रहे हो ना! कुमारियां, ताजधारी कुमारियां हो ना! बापदादा देख रहे हैं कि बच्चों की रायल फैमिली कितनी श्रेष्ठ है! अपने अनादि रॉयल्टी को याद करो, जब आप आत्मायें परमधाम में भी रहती हो तो आत्मा रूप में भी आपकी रूहानी रॉयल्टी विशेष है। सर्व आत्मायें भी लाइट रूप में हैं लेकिन आपकी चमक सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है। याद आ रहा है परमधाम? अनादि काल से आपकी झलक फलक न्यारी है। जैसे आकाश में देखा होगा सितारे सभी चमकते हैं, सब लाइट ही हैं लेकिन सर्व सितारों में कोई विशेष सितारों की चमक न्यारी और प्यारी होती है। ऐसे ही सर्व आत्माओं के बीच आप आत्माओं की चमक रूहानी रॉयल्टी, प्युरिटी की चमक न्यारी है। याद आ रहा है ना? फिर आदिकाल में आओ, आदिकाल को याद करो तो आदिकाल में भी देवता स्वरूप में रूहानी रॉयल्टी की पर्सनालिटी कितनी विशेष रही? सारे कल्प में देवताई स्वरूप की रॉयल्टी और किसी की रही है? रूहानी रॉयल्टी, प्युरिटी की पर्सनाल्टी याद है ना! पाण्डवों को भी याद है? याद आ गया? फिर मध्यकाल में आओ तो मध्यकाल द्वापर से लेकर आपके जो पूज्य चित्र बनाते हैं, उन चित्रों की रॉयल्टी और पूजा की रॉयल्टी द्वापर से अभी तक किसी चित्र की है? चित्र तो बहुतों के हैं लेकिन ऐसे विधि पूर्वक पूजा और किसी आत्माओं की है? चाहे धर्म पितायें हैं, चाहे नेतायें हैं, चाहे अभिनेतायें हैं, चित्र तो सबके बनते लेकिन चित्रों की रॉयल्टी और पूजा की रॉयल्टी किसी की देखी है? डबल फारेनर्स ने अपनी पूजा देखी है? आप लोगों ने देखी है या सिर्फ सुना है? ऐसे विधिपूर्वक पूजा और चित्रों की चमक, रूहानियत और किसकी भी नहीं हुई है, न होगी। क्यों? प्युरिटी की रॉयल्टी है। प्युरिटी की पर्सनाल्टी है। अच्छा देख लिया अपनी पूजा? नहीं देखी हो तो देख लेना। अभी लास्ट में संगमयुग पर आओ तो संगम पर भी सारे विश्व के अन्दर प्युरिटी की रॉयल्टी ब्राह्मण जीवन का आधार है। प्युरिटी नहीं तो प्रभु प्यार का अनुभव भी नहीं। सर्व परमात्म प्राप्तियों का अनुभव नहीं। ब्राह्मण जीवन की पर्सनाल्टी प्युरिटी है और प्युरिटी ही रूहानी रॉयल्टी है। तो आदि अनादि, आदि मध्य और अन्त सारे कल्प में यह रूहानी रॉयल्टी चलती रही है।
तो अपने आपको देखो - दर्पण तो आप सबके पास है ना? दर्पण है? देख सकते हो? तो देखो। हमारे अन्दर प्युरिटी की रॉयल्टी कितने परसेन्ट में है? हमारे चेहरे से प्युरिटी की झलक दिखाई देती है? चलन में प्युरिटी की फलक दिखाई देती है? फलक अर्थात् नशा। चलन में वह फलक अर्थात् रूहानी नशा दिखाई देता है? देख लिया अपने को? देखने में कितना समय लगता है? सेकण्ड ना? तो सभी ने देखा अपने को?
कुमारियां - झलक फलक है? अच्छा है, सभी उठो, खड़े हो जाओ। (कुमारियां लाल पट्टा लगाकर बैठी हैं, जिस पर लिखा है एकव्रता) सुन्दर लगता है ना। एकव्रता का अर्थ ही है प्युरिटी की रॉयल्टी। तो एकव्रता का पाठ पक्का कर लिया है! वहाँ जाकर कच्चा नहीं कर लेना। और कुमार ग्रुप उठो। कुमारों का ग्रुप भी अच्छा है। कुमारों ने दिल में प्रतिज्ञा का पट्टा बांध लिया है, इन्होंने (कुमारियों ने) तो बाहर से भी बांध लिया है। प्रतिज्ञा का पट्टा बांधा है कि सदा अर्थात् निरन्तर प्युरिटी की पर्सनाल्टी में रहने वाले कुमार हैं। ऐसे हैं? बोलो, जी हाँ। ना जी या हाँ जी? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे थोड़ा-थोड़ा ढीला हो गया! ऐसे नहीं करना। जब तक ब्राह्मण जीवन में जीना है तब तक सम्पूर्ण पवित्र रहना ही है। ऐसा वायदा है? पक्का वायदा है तो हाथ हिलाओ। टी.वी. में आपके फोटो निकल रहे हैं। जो ढीला होगा ना उसको यह चित्र भेजेंगे। इसलिए ढीला नहीं होना, पक्का रहना। हाँ पक्के हैं, पाण्डव तो पक्के होते हैं। पक्के पाण्डव, बहुत अच्छा।
प्युरिटी की वृत्ति है - शुभ भावना, शुभ कामना। कोई कैसा भी हो लेकिन पवित्र वृत्ति अर्थात् शुभ भावना, शुभ कामना और पवित्र दृष्टि अर्थात् सदा हर एक को आत्मिक रूप में देखना वा फरिश्ता रूप में देखना। तो वृत्ति, दृष्टि और तीसरा है कृति अर्थात् कर्म में, तो कर्म में भी सदा हर आत्मा को सुख देना और सुख लेना। यह है प्युरिटी की निशानी। वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में यह धारणा हो। कोई क्या भी करता है, दु:ख भी देता है, इन्सल्ट भी करता है, लेकिन हमारा कर्त्तव्य क्या है? क्या दु:ख देने वाले को फालो करना है या बापदादा को फालो करना है? फालो फादर है ना! तो ब्रह्मा बाप ने दु:ख दिया वा सुख दिया? सुख दिया ना! तो आप मास्टर ब्रह्मा अर्थात् ब्राह्मण आत्माओं को क्या करना है? कोई दु:ख देवे तो आप क्या करेंगे? दु:ख देंगे? नहीं देंगे? बहुत दु:ख देवे तो? बहुत गाली देवे, बहुत इनसल्ट करे, तो थोड़ा तो फील करेंगे या नहीं? कुमारियां फील करेंगी? थोड़ा। तो फालो फादर। यह सोचो मेरा कर्त्तव्य क्या है! उसका कर्त्तव्य देख अपना कर्त्तव्य नहीं भूलो। वह गाली दे रहा है, आप सहनशील देवी, सहनशील देव बन जाओ। आपकी सहनशीलता से गाली देने वाले भी आपको गले लगायेंगे। सहनशीलता में इतनी शक्ति है, लेकिन थोड़ा समय सहन करना पड़ता है। तो सहनशीलता के देव वा देवियां हो ना? हो? सदा यही स्मृति रखो – मैं सहनशील का देवता हूँ, मैं सहनशीलता की देवी हूँ। तो देवता अर्थात् देने वाला दाता, कोई गाली देता है, रिस्पेक्ट नहीं करता है तो किचड़ा है ना कि अच्छी चीज़ है? तो आप लेते क्यों हो? किचड़ा लिया जाता है क्या? कोई आपको किचड़ा देवे तो आप लेगें? नहीं लेंगे ना। तो रिस्पेक्ट नहीं करता, इन्सल्ट करता, गाली देता, आपको डिस्टर्व करता, तो यह क्या है? अच्छी चीज़ें हैं। फिर आप लेते क्यों हो? थोड़ा-थोड़ा तो ले लेते हो, पीछे सोचते हो नहीं लेना था। तो अभी लेना नहीं। लेना अर्थात् मन में धारण करना, फील करना। तो अपने अनादिकाल, आदिकाल, मध्यकाल, संगम काल, सारे कल्प के प्युरिटी की रॉयल्टी, पर्सनाल्टी याद करो। कोई क्या भी करे आपकी पर्सनाल्टी को कोई छीन नहीं सकता। यह रूहानी नशा है ना? और डबल फारेनर्स को तो डबल नशा है ना! डबल नशा है ना? सब बात का डबल नशा। प्युरिटी का भी डबल नशा, सहनशील देवी-देवता बनने का भी डबल नशा। है ना डबल? सिर्फ अमर रहना। अमर भव का वरदान कभी नहीं भूलना।
अच्छा - जो प्रवृत्ति वाले हैं अर्थात् युगल, वैसे सिंगल रहते हैं, कहने में युगल आता है, वह उठो। खड़े हो जाओ। युगल तो बहुत हैं, कुमार, कुमारियां तो थोड़े हैं। कुमारों से तो युगल बहुत हैं। तो युगल मूर्त बापदादा ने आप सबको प्रवृत्ति में रहने के लिए डायरेक्शन क्यों दिया है? आपको युगल रहने की छुट्टी क्यों दी है? प्रवृत्ति में रहने की छुट्टी क्यों दी है, जानते हो? क्योंकि युगल रूप में रहते इन महामण्डलेश्वरों को आपको पांव में झुकाना है। है इतनी हिम्मत? यह लोग कहते हैं कि साथ रहते पवित्र रहना मुश्किल है और आप क्या कहते हो? मुश्किल है या सहज है? (बहुत सहज है) पक्का है? या कभी इजी, कभी लेजी? इसलिए बापदादा ने ड्रामानुसार आप सबको दुनिया के आगे, विश्व के आगे एग्जैम्पुल बनाया है। चैलेन्ज करने के लिए। तो प्रवृत्ति में रहते भी निवृत्त, अपवित्रता से निवृत्त रह सकते हो? तो चैलेन्ज करने वाले हो ना? सभी चैलेन्ज करने वाले हो, थोड़ा-थोड़ा डरते तो नहीं हो, चैलेन्ज तो करें लेकिन पता नहीं क्या हो! तो चैलेन्ज करो विश्व को क्योंकि नई बात यही है कि साथ रहते भी स्वप्न मात्र भी अपवित्रता का संकल्प नहीं आये, यही संगमयुग के ब्राह्मण जीवन की विशेषता है। तो ऐसे विश्व के शोकेस में आप एग्जैम्पुल हो, सैम्पुल कहो एग्जैम्पुल कहो। आपको देख करके सबमें ताकत आयेगी हम भी बन सकते हैं। ठीक है ना? शक्तियां ठीक है? पक्के हो ना? कच्चे पक्के तो नहीं? पक्के। बापदादा भी आपको देख करके खुश है। मुबारक हो। देखो कितने हैं? बहुत अच्छे।
बाकी रही टीचर्स। टीचर्स के बिना तो गति नहीं। टीचर्स उठो। अच्छा - पाण्डव भी अच्छे-अच्छे हैं। वाह! टीचर्स की विशेषता है कि हर टीचर के फीचर से फ्युचर दिखाई दे। या हर एक टीचर के फीचर्स से फरिश्ता स्वरूप दिखाई दे। ऐसे टीचर्स हो ना! आप फरिश्तों को देखकर और भी फरिश्ते बन जायें। देखो कितने टीचर्स हैं। फारेन ग्रुप में टीचर्स बहुत हैं। अभी तो थोड़े आये हैं। जो नहीं आये हैं उनको भी बापदादा याद कर रहे हैं। अच्छा है, अभी टीचर्स मिलकरके यह प्लैन बनाओ कि अपने चलन और चेहरे से बाप को प्रत्यक्ष कैसे करें? दुनिया वाले कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है और आप कहते हो नहीं है। लेकिन बापदादा कहते हैं कि अभी समय प्रमाण हर टीचर में बाप प्रत्यक्ष दिखाई दे तो सर्वव्यापी दिखाई देगा ना! जिसको देखे उसमें बाप ही दिखाई दे। आत्मा, परमात्मा के आगे छिप जाये और परमात्मा ही दिखाई दे। यह हो सकता है? अच्छा इसकी डेट क्या? डेट तो फिक्स होनी चाहिए ना? तो डेट कौन सी है इसकी? कितना समय चाहिए? (अब से चालू करेंगे) चालू करेंगे, अच्छी हिम्मत है, कितना समय चाहिए? 2002 तो चल रहा है अभी दो हजार कब तक? तो टीचर्स को यही अटेन्शन रखना है किबस अभी बाप के अन्दर मैं समाई हुई दिखाई दूं। मेरे द्वारा बाप दिखाई दे। प्लैन बनायेंगे ना! डबल विदेशी मीटिंग करने में तो होशियार हैं? अभी यह मीटिंग करना, इस मीटिंग के बिना जाना नहीं - कि कैसे हम एक एक से बाप दिखाई दे। अभी ब्रह्माकुमारियां दिखाई देती हैं, ब्रह्माकुमारियां बहुत अच्छी हैं लेकिन इनका बाबा कितना अच्छा है, वह देखें। तभी तो विश्व परिवर्तन होगा ना! तो डबल विदेशी इस प्लैन को प्रैक्टिकल शुरू करेंगे ना! करेंगे? पक्का। अच्छा। तो आपकी दादी है ना, उसकी आशा पूर्ण हो जायेगी। ठीक है ना? अच्छा।
अधरकुमार और मातायें - जो सिंगल हैं वह उठो। आप भी सिंगल नहीं हो। आपका युगल तो बहुत पॉवरफुल है क्योंकि बापदादा सभी बच्चों को कहते हैं कि आप सभी ``आप और बाप'' कम्बाइण्ड हैं। तो कम्बाइण्ड हैं तो सिंगल हुए क्या? लौकिक जीवन अलग चीज़ है, लेकिन ब्राह्मण जीवन में कम्बाइण्ड रूप में हो। ऐसे कम्बाइण्ड हो जो कोई भी अलग कर नहीं सकता। ऐसे कम्बाइण्ड हो ना? या अकेले हो? कम्बाइण्ड हो। सदा बाप हर कार्य में सहयोगी है, साथी है। यह नशा रहता है ना? कभी अपने को अकेले तो नहीं समझते? कभी-कभी समझते हो? नहीं। पहले बापदादा आप सबका साथी है और अविनाशी साथ निभाने वाले हैं। बाबा कहा और बाबा हाजिर है। कहते हैं हजूर सदा हाजर है। तो मौज में रहते हो ना? उदास तो नहीं होते? होते हैं? हाँ ना नहीं करते? उदास तो नहीं हैं ना? मौज में रहते हो ना! मौज ही मौज है, हम बाप के, बाप हमारे। बाप आपकी हर सेवा में सहयोग देने वाले हैं। इसलिए इसी रूहानी नशे में सदा रहना - हम कम्बाइण्ड हैं। कम्बाइण्ड हैं ना? बहुत अच्छे रूहानी नशे वाले हैं। नशा है ना? बापदादा को अति प्रिय से भी प्रिय हैं।
छोटे बच्चे भी आये हैं - बच्चों ने बापदादा को स्पेशल कार्ड भेजे थे, कार्ड भेजे हैं ना? आप सबके कार्ड मिल गये हैं। सुना बच्चों ने। अच्छे अच्छे कार्ड हैं। (कार्ड सभी को दिखाये गये) बहुत अच्छे कार्ड लिखे हैं। देखा बच्चों की कमाल, देखी ना! बच्चों की लगन अच्छी है तब यहाँ पहुंचते हैं। और यही बाप से प्यार बच्चों को आगे बढ़ाता रहेगा। अच्छा।
पहली बार बहुत आये हैं - अच्छा हाथ ऊपर करो। पहली बारी आने वालों को पहला नम्बर जाना है। लास्ट सो फास्ट होना है। ऐसे है ना! फास्ट जायेंगे ना, पहला नम्बर लेना है। सारा ब्राह्मण परिवार आप सब पहली बारी आने वालों को बहुत-बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं।
अच्छा - बाकी जो भारत वाले बैठे हैं, वह भी उठो। भारत वाले, भारत महान है, तो भारतवासी भी महान हैं। भारत से बाप का प्यार है तब तो भारत में आया ना। विदेश में नहीं आया, भारत में ही आया। लेकिन विदेश, देश वालों को भी जगाने के निमित्त बनेगा। तो भारत वाले तो चांस लेने में होशियार हैं। देखो डबल विदेशियों के टर्न में भी कितने भारत वाले आये हैं। इसीलिए अभी भारत के टर्न में विशेष डबल विदेशियों को निमन्त्रण है। ठीक है ना! वेलकम। तो डबल विदेशी तो होशियार हैं, जाते ही पहले टिकेट इकट्ठी करने लग जाते हैं। मधुबन से भी प्यार है ना! मधुबन वा भारत से प्यार है क्यों? क्योंकि असुल में आप सब भारतवासी थे, यह तो सेवा के कारण गये हो। अगर भारतवासी नहीं होते तो भारत की फिलॉसाफी से भी प्यार नहीं होता। भारत की कलचर से भी प्यार नहीं होता, इससे सिद्ध है कि आप भारत वाले ही हो। सिर्फ सेवा के लिए गये हो, विश्व सेवा है ना। तो विश्व सेवा के कारण अलग-अलग स्थान में पहुंचे हो। भाषायें देखो कितनी हैं। तो भारत से भाषायें सीखने जायें या सेवा करने जायें, इसलिए आपको सेवा के लिए वहाँ का जन्म मिला है। आदि सतयुग में भी भारत में थे, बीच में भी भारत के ही थे, अभी थोड़े समय के लिए सेवा के लिए गये हुए हो। नशा है ना – हम भारत के हैं! बीज आपका भारत ही है। खुशी होती है ना, हम भारत के हैं। थे, हैं और होंगे। हर कल्प में होंगे। अच्छा।
पीस आफ माइण्ड रिट्रीट के गेस्ट भी बैठे हैं - अच्छा है, आप सभी गेस्ट नहीं हो लेकिन होस्ट हो। बच्चे जो सभी हैं वह सब होस्ट हैं, गेस्ट नहीं हैं। निशानी में कहते हैं गेस्ट लेकिन हो होस्ट। मधुबन अच्छा लगता है ना? अभी औरों को भी निमन्त्रण देकर अपने साथी बनाना। हमेशा ऐसे ही समझो कि हम परमात्म सन्देश देने वाले सन्देशवाहक हैं। अच्छा है। तो सदा बाप की याद और सेवा करते रहना। अच्छा।
पाण्डव भवन में भी बहुत बैठे हैं, ज्ञान सरोवर, शान्तिवन सभी जगह सुन रहे हैं - साइंस का फायदा तो आप लोग ले रहे हैं। साइंस आपके लिए ही बनी है। जब से स्थापना का पार्ट हुआ है तो थोड़ा समय पहले ही यह साइंस की इन्वेन्शन तीव्रगति पर जा रही है। लोग चाहे फायदा लेवें, नुकसान लेवें। लेकिन आप तो फायदा ले रहे हो ना। इसलिए बापदादा साइंस के साधन देने वालों को भी मुबारक देते हैं। नीचे भी आराम से सुन रहे हैं। विदेश में भी कोई-कोई सुन रहे हैं, मोहिनी बहन (न्यूयार्क) और चन्द्रू बहन (सेनफ्रानसिसको) भी सुन रहे हैं। (न्युयार्क की मोहिनी बहन ने आपरेशन कराया है) चाहे बीमारी आती है, चाहे सेवा आती है, दोनों को अपनी शक्ति से पार करके विजयी बन जाते हैं। यह बीमारी भी एक पेपर है। जैसे और पेपर पास करते हो ऐसे यह भी एक पेपर पास हो जाता है और सहज पास हो जाता है।
तो मधुबन निवासी जो भी हैं, बापदादा शान्तिवन, हॉस्पिटल, आबू निवासी, ज्ञान सरोवर निवासी, संगम निवासी, सभी को मधुबन निवासी कहते हैं। अच्छा है, यह भी अच्छा पुण्य कमाया जो औरों को चांस दिया, तो चांस देना भी आपके पुण्य के खाते में जमा हो गया। आराम से बैठ कर सुन रहे हैं। तो बापदादा जो भी नीचे सुन रहे हैं, पहले याद उन्हों को दे रहे हैं। उनके साथ-साथ जो फारेन में सुन रहे हैं, जो दूर बैठे सुन रहे हैं, चाहे भारत में चाहे विदेश में, उन सबको भी पहले याद दे रहे हैं। और साथ में सभी बच्चों ने जिन्होंने भी कार्ड भेजे हैं, पत्र भेजे हैं, वह सबके पत्र, कार्ड, दिल के समाचार, सेवा के समाचार, हिम्मत के समाचार सब बापदादा के पास पहुंच गये हैं और बापदादा रिटर्न में एक-एक बच्चे को नाम सहित दिल से बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं। बहुत प्यार से पत्र लिखते हैं। कितना खर्चा करते हैं। कार्ड कितना बढ़िया भेजते हैं। लेकिन बापदादा खर्च को नहीं देखते, उन्हों के प्यार को देखते हैं। प्यार के आगे कोई बड़ी चीज़ नहीं है। अच्छा।
हॉस्पिटल के सभी ट्रस्टी भी आये हैं - अच्छा है, यह हॉस्पिटल भी विश्व में आवाज फैलाने का अच्छा साधन है क्योंकि इसमें डबल लाभ मिल जाता है। एक शरीर का और दूसरा आत्मा को भी लाभ मिलता है, डबल लाभ है इसीलिए बापदादा, जो भी हॉस्पिटल में ट्रस्टी हैं वा सेवाधारी हैं, सभी को विशेष सेवा की मुबारक देते हैं। यह हॉस्पिटल, नाम हॉस्पिटल है लेकिन है आत्माओं को बाप से मिलाने का साधन। हॉस्पिटल के नाम से सहज आ जाते हैं। तो सब अच्छा चल रहा है ना। जहाँ भी हॉस्पिटल हैं, ठीक चल रहे हैं। बाम्बे का अच्छा चल रहा है? ग्लोबल हॉस्पिटल का तो नाम प्रसिद्ध हो गया है। बहुत अच्छा है। मुबारक हो।
विदेश के पुराने-पुराने भाई-बहनों को देख कर - अच्छा है आदि रत्न हो ना। यह चार्ला भी आदि है। बापदादा को खुशी होती है कि आदि रत्न, फारेन सेवा के आदि रत्न बहुत अच्छे सेवाधारी हैं। अथक भी हैं और आगे बढ़ने वाले भी हैं। (25 वर्ष वाले बहुत बैठे हैं) अच्छा - सभी लम्बा हाथ उठाओ। अच्छा है। अमर भव के वरदानी हैं। जन्म से अमर वरदान मिला है। अमर रहे हैं, अमर रहेंगे। अच्छा है। सबका मिलन हो गया या कोई रह गया?
सिन्धी ग्रुप रह गया - सिन्धी तो अभी ब्राह्मण ग्रुप हो गया। अभी अपने को सिन्धी समझते हो या ब्राह्मण? क्या समझते हो? लेकिन नशा है कि जहाँ से ब्रह्मा बाप निकला वहाँ के हम हैं। यह नशा भी अच्छा है लेकिन अभी तो ब्राह्मण परिवार के विशेष सेवाधारी आत्मायें हो। सेवाधारी हो ना? बापदादा जानते हैं कि सेवा का शौक सारे ग्रुप को है। और धीरे-धीरे सिन्धी ग्रुप को बढ़ा रहे हैं, बढ़ता रहता है, बढ़ता रहेगा। इसीलिए आप सबको डबल मुबारक है, एक सिन्धी होने की और दूसरा ब्राह्मण जीवन की। अच्छा है सभी पक्के हैं। बापदादा देख करके खुश हैं। अच्छा।
देखो, डबल विदेशी कितने सेवाधारी हो, आपके कारण सबको यादप्यार मिल रहा है। बापदादा को भी डबल विदेशियों से ज्यादा तो नहीं कहेंगे लेकिन स्पेशल प्यार है। क्यों प्यार है? क्योंकि डबल विदेशी आत्मायें जोसेवा के निमित्त बन गये हैं, वह विश्व के कोने-कोने में बाप का सन्देश पहुंचाने के निमित्त बने हुए हैं। नहीं तो विदेश की आत्मायें चारों ओर की प्यासी रह जाती। अभी बाप को उल्हना तो नहीं मिलेगा ना कि भारत में आये, विदेश में क्यों नहीं सन्देश दिया। तो बाप का उल्हना पूरा करने के निमित्त बने हो। और जनक को तो उमंग बहुत है, कोई देश रह नहीं जावे। अच्छा है। बाप का उल्हना तो पूरा करेंगे ना! लेकिन आप (दादी जानकी) साथियों को थकाती बहुत हो। थकाती है ना! जयन्ती, थकाती नहीं है? लेकिन इस थकावट में भी मौज समाई हुई होती है। पहले लगता है कि यह बार-बार क्या है, लेकिन जब भाषण करके दुआयें ले आते हैं ना तो चेहरा बदल जाता है। अच्छा है, दोनों दादियों में उमंग-उत्साह बढ़ाने की विशेषता है। यह शान्त करके बैठ नहीं सकते। सेवा अभी रही हुई तो है ना? अगर नक्शा लेके देखो चाहे भारत में, चाहे विदेश में, अगर नक्शे में एक-एक स्थान पर राइट लगाते जाओ तो दिखाई देंगे कि अभी भी रहे हुए हैं। इसलिए बापदादा खुश भी होते हैं और कहते भी हैं ज्यादा नहीं थकाओ। आप सब सेवा में खुश हो ना! अभी यह कुमारियां भी तो टीचर बनेंगी ना। जो टीचर हैं वह तो हैं ही लेकिन जो टीचर नहीं हैं वह टीचर बनके कोई न कोई सेन्टर सम्भालेंगी ना। हैण्डस बनेंगी ना! डबल विदेशी बच्चों को दोनों काम करने का अभ्यास तो है ही। जॉब भी करते हैं सेन्टर भी सम्भालते हैं, इसीलिए बापदादा डबल मुबारक भी देते हैं। अच्छा -
चारों ओर के अति स्नेही, अति समीप सदा आदिकाल से अब तक रॉयल्टी के अधिकारी, सदा अपने चेहरे और चलन से प्युरिटी की झलक दिखाने वाले, सदा स्वयं को सेवा और याद में तीव्र पुरूषार्थ द्वारा नम्बरवन बनने वाले, सदा बाप के समान सर्व शक्ति, सर्व गुण सम्पन्न स्वरूप में रहने वाले, ऐसे सर्व तरफ के हर एक बच्चे को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - (तबियत ठीक है) है ही ठीक, और सदा ठीक रहना ही है। सभी की दुआयें मिल गई हैं ना। दुआयें सबसे बड़ी दवाई है। यह दुआओं की दवाई ठीक कर रही है, बाकी तो निमित्त है। (आपकी भी दवाई रोज लेते हैं) वह भी दुआयें हैं। सबका दादियों से बहुत प्यार है ना। कितना प्यार है? बाप का तो है ही। लेकिन साकार रूप में तो आप लोग हो ना। निमित्त तो हैं ना!
विदेश की मुख्य टीचर्स बहनों से - सभी ने सेवा के प्लैन अच्छे-अच्छे बनाये हैं ना क्योंकि सेवा समाप्त हो तब आपका राज्य आये। तो सेवा का साधन भी आवश्यक है। लेकिन मन्सा भी हो, वाचा भी हो, साथ-साथ हो। सेवा और स्व-उन्नति दोनों ही साथ हों। ऐसी सेवा सफलता को समीप लाती है। तो सेवा के निमित्त तो हो ही और सभी अपने-अपने स्थान पर सेवा तो अच्छी कर ही रहे हो। बाकी अभी जो काम दिया है, उसका प्लैन बनाओ। उसके लिए क्या-क्या स्वयं में वा सेवा में वृद्धि चाहिए, एडीशन चाहिए वह प्लैन बनाओ। बाकी बापदादा सेवाधारियों को देख करके खुश तो होते ही हैं। सभी अच्छे सेवाकेन्द्र उन्नति को पा रहे हैं ना! उन्नति है ना? अच्छा है। अच्छा हो रहा है ना। हो रहा है और होता रहेगा। अभी सिर्फ जो अलग-अलग बिखरे हुए हैं, उनके संगठन करके उन्हों को पक्का करो। प्रैक्टिकल सबूत सबके आगे दिखाओ। चाहे कोई भी सेवा कर रहे हो, भिन्न-भिन्न प्लैन बनाते हो, कर भी रहे हो, अच्छे चल भी रहे हैं, अभी उन सभी का ग्रुप एक सामने लाओ। जो सेवा का सबूत सारे ब्राह्मण परिवार के सामने आ जाए। ठीक है ना! बाकी सभी अच्छे हो, अच्छे ते अच्छे हो।
अच्छा। ओम् शान्ति।
14-11-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन और सफलता का आधार – निश्चयबुद्धि”
आज समर्थ बाप अपने चारों ओर के समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा समर्थ बन बाप समान बनने के श्रेष्ठ पुरूषार्थ में लगे हुए हैं। बच्चों की इस लगन को देख बापदादा भी हार्षित होते रहते हैं। बच्चों का यह दृढ़संकल्प बापदादा को भी प्यारा लगता है। बापदादा तो बच्चों को यही कहते कि बाप से भी आगे जा सकते हो क्योंकि यादगार में भी बाप की पूजा सिंगल है, आप बच्चों की पूजा डबल है। बापदादा के सिर के भी ताज हो। बापदादा बच्चों के स्वमान को देख सदा यही कहते वाह श्रेष्ठ स्वमानधारी, स्वराज्यधारी बच्चे वाह! हर एक बच्चे की विशेषता बाप को हर एक के मस्तक में चमकती हुई दिखाई देती है। आप भी अपनी विशेषता को जान, पहचान विश्व सेवा में लगाते चलो। चेक करो - मैं प्रभु पसन्द, परिवार पसन्द कहाँ तक बना हूँ? क्योंकि संगमयुग में बाप ब्राह्मण परिवार रचते हैं, तो प्रभु पसन्द और परिवार पसन्द दोनों आवश्यक हैं।
आज बापदादा सर्व बच्चों के ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन देख रहे थे। फाउण्डेशन है निश्चयबुद्धि। इसलिए जहाँ हर संकल्प में, हर कार्य में निश्चय है वहाँ विजय हुई पड़ी है। सफलता जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में स्वत: और सहज प्राप्त है। जन्म सिद्ध अधिकार के लिए मेहनत की आवश्यकता नहीं होती। सफलता ब्राह्मण जीवन के गले का हार है। ब्राह्मण जीवन है ही सफलता स्वरूप। सफलता होगी वा नहीं होगी यह ब्राह्मण जीवन का क्वेश्चन ही नहीं है। निश्चयबुद्धि सदा बाप के कम्बाइन्ड है, तो जहाँ बाप कम्बाइन्ड है वहाँ सफलता सदा प्राप्त है। तो चेक करो - सफलता स्वरूप कहाँ तक बने हैं? अगर सफलता में परसेन्टेज है तो उसका कारण निश्चय में परसेन्टेज है। निश्चय सिर्फ बाप में है, यह तो बहुत अच्छा है। लेकिन निश्चय - बाप में निश्चय, स्व में निश्चय, ड्रामा में निश्चय और साथ-साथ परिवार में निश्चय। इन चारों निश्चय के आधार से सफलता सहज और स्वत: है।
बाप में निश्चय सभी बच्चों का है तब तो यहाँ आये हैं। बाप का भी आप सबमें निश्चय है तब अपना बनाया है। लेकिन ब्राह्मण जीवन में सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनने के लिए स्व में भी निश्चय आवश्यक है। बापदादा के द्वारा प्राप्त हुए श्रेष्ठ आत्मा के स्वमान सदा स्मृति में रहे कि मैं परमात्मा द्वारा स्वमानधारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। साधारण आत्मा नहीं, परमात्म स्वमानधारी आत्मा। तो स्वमान हर संकल्प में, हर कर्म में सफलता अवश्य दिलाता है। साधारण कर्म करने वाली आत्मा नहीं, स्वमानधारी आत्मा हूँ। तो हर कर्म में स्वमान आपको सफलता सहज ही दिलायेगा। तो स्व में निश्चयबुद्धि की निशानी है - सफलता वा विजय। ऐसे ही बाप में तो पक्का निश्चय है, उसकी विशेषता है - ``निरन्तर मैं बाप का और बाप मेरा।'' यह निरन्तर विजय का आधार है। ``मेरा बाबा'' सिर्फ बाबा नहीं, मेरा बाबा। मेरे के ऊपर अधिकार होता है। तो मेरा बाबा, ऐसी निश्चयबुद्धि आत्मा सदा अधिकारी है - सफलता की, विजय की। ऐसे ही ड्रामा में भी पूरा-पूरा निश्चय चाहिए। सफलता और समस्या दोनों प्रकार की बातें ड्रामा में आती हैं लेकिन समस्या के समय निश्चयबुद्धि की निशानी है - समाधान स्वरूप। समस्या को सेकण्ड में समाधान स्वरूप द्वारा परिवर्तन कर देना। समस्या का काम है आना, निश्चयबुद्धि आत्मा का काम है समाधान स्वरूप से समस्या को परिवर्तन करना। क्यों?
आप हर ब्राह्मण आत्मा ने ब्राह्मण जन्म लेते माया को चैलेन्ज किया है। किया है ना या भूल गये हो? चैलेन्ज है कि हम मायाजीत बनने वाले हैं। तो समस्या का स्वरूप, माया का स्वरूप है। जब चैलेन्ज किया है तो माया सामना तो करेगी ना! वह भिन्न-भिन्न समस्याओं के रूप में आपकी चैलेन्ज को पूरा करने के लिए आती है। आपको निश्चयबुद्धि विजयी स्वरूप से पार करना है, क्यों? नथिंगन्यु। कितने बार विजयी बने हो? अभी एक बार संगम पर विजयी बन रहे हो वा अनेक बार बने हुए को रिपीट कर रहे हो? इसलिए समस्या आपके लिए नई बात नहीं है, नथिंगन्यु। अनेक बार विजयी बने हैं, बन रहे हैं और आगे भी बनते रहेंगे। यह है ड्रामा में निश्चयबुद्धि विजयी। और है - ब्राह्मण परिवार में निश्चय, क्यों? ब्राह्मण परिवार का अर्थ ही है संगठन। छोटा परिवार नहीं है, ब्रह्मा बाप का ब्राह्मण परिवार सर्व परिवारों से श्रेष्ठ और बड़ा है। तो परिवार के बीच, परिवार के प्रीत की रीति निभाने में भी विजयी। ऐसा नहीं कि बाप मेरा, मैं बाबा का, सब कुछ हो गया, बाबा से काम है, परिवार से क्या काम! लेकिन यह भी निश्चय की विशेषता है। चार ही बातों में निश्चय, विजय आवश्यक है। परिवार भी सभी को कई बातों में मजबूत बनाता है। सिर्फ परिवार में यह स्मृति में रहे कि सब अपने-अपने नम्बरवार धारणा स्वरूप हैं। वैरायटी है। इसका यादगार 108 की माला है। सोचो - कहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वां नम्बर, क्यों बना? सब एक नम्बर क्यों नहीं बने? 16 हजार क्यों बना? कारण? वैरायटी संस्कार को समझ नॉलेजफुल बन चलना, निभाना, यही सक्सेसफुल स्टेज है। चलना तो पड़ता ही है। परिवार को छोड़कर कहाँ जायेंगे। नशा भी है ना कि हमारा इतना बड़ा परिवार है। तो बड़े परिवार में बड़ी दिल से हर एक के संस्कार को जानते हुए चलना, निर्माण होके चलना, शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से चलना... यही परिवार के निश्चयबुद्धि विजयी की निशानी है। तो सभी विजयी हो ना? विजयी हैं?
डबल फारेनर्स विजयी हैं? हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हैं। बहुत अच्छा। बापदादा को खुशी है। अच्छा - टीचर्स विजयी हैं? या थोड़ा-थोड़ा होता है? क्या करें, यह तो नहीं! `कैसे' के बजाए `ऐसे' शब्द को यूज करो, कैसे करें नहीं, ऐसे करें। 21 जन्म का कनेक्शन परिवार से है। इसलिए जो परिवार में पास है, वह सबमें पास है। तो चार ही प्रकार का निश्चय चेक करो क्योंकि प्रभु पसन्द के साथ परिवार पसन्द भी होना अति आवश्यक है। नम्बर इन चारों निश्चय के परसेन्टेज अनुसार मिलना है। ऐसे नहीं मैं बाबा की, बाबा मेरा, बस हो गया। ऐसा नहीं। मेरा बाबा तो बहुत अच्छा कहते हो और सदा इस निश्चय में अटल भी हो, इसकी मुबारक है लेकिन तीन और भी हैं। टीचर्स, चार ही जरूरी हैं कि नहीं? ऐसे तो नहीं तीन जरूरी है एक नहीं? जो समझते हैं चारों ही निश्चय जरूरी हैं वह एक हाथ उठाना। सभी को चारों ही बातें पसन्द हैं? जिसको तीन बातें पसन्द हों वह हाथ उठाओ। कोई नहीं। निभाना मुश्किल नहीं है? बहुत अच्छा। अगर दिल से हाथ उठाया तो सब पास हो गये। अच्छा।
देखो, कहाँ-कहाँ से, भिन्न-भिन्न देश की टालियां मधुबन में एक वृक्ष बन जाता है। मधुबन में याद रहता है क्या, मैं दिल्ली की हूँ, मैं कनार्टक की हूँ, मैं गुजरात की हूँ...! सब मधुबन निवासी हैं। तो एक झाड़ हो गया ना। इस समय सब क्या समझते हैं, मधुबन निवासी हो या अपने-अपने देश के निवासी हो? मधुबन निवासी हो? सभी मधुबन निवासी हो, बहुत अच्छा। वैसे भी हर ब्राह्मणों की परमानेन्ट एड्रेस तो मधुबन ही है। आपकी परमानेन्ट एड्रेस कौन सी है? बाम्बे है? दिल्ली है? पंजाब है? मधुबन परमानेंट एड्रेस है। यह तो सेवा के लिए सेवाकेन्द्र में भेजा गया है। वह सेवा के स्थान हैं, घर आपका मधुबन है। आखिर भी एशलम कहाँ मिलना है? मधुबन में ही मिलना है। इसीलिए बड़े-बड़े स्थान बना रहे हैं ना!
सभी का लक्ष्य बाप समान बनने का है। तो सारे दिन में यह ड्रिल करो - मन की ड्रिल। शरीर की ड्रिल तो शरीर के तन्दरूस्ती के लिए करते हो, करते रहो क्योंकि आजकल दवाईयों से भी एक्सरसाइज आवश्यक है। वह तो करो और खूब करो टाइम पर। सेवा के टाइम एक्सरसाइज नहीं करते रहना। बाकी टाइम पर एक्सरसाइज करना अच्छा है। लेकिन साथ-साथ मन की एक्सरसाइज बार-बार करो। जब बाप समान बनना है तो एक है - निराकार और दूसरा है - अव्यक्त फरिश्ता। तो जब भी समय मिलता है सेकण्ड में बाप समान निराकारी स्टेज पर स्थित हो जाओ, बाप समान बनना है तो निराकारी स्थिति बाप समान है। कार्य करते फरिश्ता बनकर कर्म करो, फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। कार्य का बोझ नहीं हो। कार्य का बोझ अव्यक्त फरिश्ता बनने नहीं देगा। तो बीच-बीच में निराकारी और फरिश्ता स्वरूप की मन की एक्सरसाइज करो तो थकावट नहीं होगी। जैसे ब्रह्मा बाप को साकार रूप में देखा - डबल लाइट। सेवा का भी बोझ नहीं। अव्यक्त फरिश्ता रूप। तो सहज ही बाप समान बन जायेंगे। आत्मा भी निराकार है और आत्मा निराकार स्थिति में स्थित होगी तो निराकार बाप की याद सहज समान बना देगी। अभी-अभी एक सेकण्ड में निराकारी स्थिति में स्थित हो सकते हो? हो सकते हो? (बापदादा ने ड्रिल कराई) यह अभ्यास और अटेन्शन चलते फिरते, कर्म करते बीच-बीच में करते जाना। तो यह प्रैक्टिस मन्सा सेवा करने में भी सहयोग देगी और पॉवरफुल योग की स्थिति में भी बहुत मदद मिलेगी। अच्छा -
डबल फारेनर्स से - देखो डबल फारेनर्स को इस सीजन में कारणे- अकारणे सब ग्रुप में चांस मिला है। हर ग्रुप में आ सकते हैं, फ्रीडम है। तो यह भाग्य है ना, डबल भाग्य है। तो इस ग्रुप में भी बापदादा देख रहे हैं कुछ पहली बारी भी आये हैं, कुछ पहले वाले भी आये हैं। बापदादा की दृष्टि सभी फारेनर्स के ऊपर है। जितना प्यार आपका बाप से है, बाप का प्यार आपसे पद्मगुणा है। ठीक है ना! पद्मगुणा है? आपका भी प्यार, दिल का प्यार है तब यहाँ पहुंचे हो। डबल फारेनर्स इस ब्राह्मण परिवार का शृंगार हैं। स्पेशल शृंगार हो। हर देश में बापदादा देख रहे हैं - याद में बैठे हैं, सुन भी रहे हैं तो याद में भी बैठे हैं। बहुत अच्छा।
टीचर्स - टीचर्स का झुण्ड भी बड़ा है। बापदादा टीचर्स को एक टाइटल देते हैं। कौन-सा टाइटल देते हैं? (फ्रैण्डस) फ्रैण्डस तो सभी हैं ही। डबल फारेनर्स तो पहले फ्रैण्डस हैं। इन्हों को फ्रैण्ड का सम्बन्ध अच्छा लगता है। टीचर्स जो योग्य हैं, सभी को नहीं, योग्य टीचर्स को बापदादा कहते हैं – यह गुरूभाई हैं। जैसे बड़े बच्चे बाप के समान हो जाते हैं ना, तो टीचर्स भी गुरूभाई हैं क्योंकि सदा बाप की सेवा के निमित्त बने हुए हैं। बाप समान सेवाधारी हैं। देखो, टीचर्स को बाप का सिंहासन मिलता है मुरली सुनाने के लिए। गुरू की गद्दी मिलती है ना! इसलिए टीचर्स अर्थात् निरन्तर सेवाधारी। चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा कर्मणा - सदा सेवाधारी। ऐसे है ना! आराम पसन्द तो नहीं ना! सेवाधारी। सेवा, सेवा और सेवा। ठीक है ना? अच्छा।
सेवा में दिल्ली, आगरा का टर्न है - आगरा साथी है। दिल्ली का लश्कर तो बहुत बड़ा है। अच्छा - दिल्ली में स्थापना का फाउण्डेशन पड़ा, यह तो बहुत अच्छा। अभी प्रत्यक्षता बाप की करने का फाउण्डेशन कहाँ से होगा? दिल्ली से या महाराष्ट्र से? कर्नाटक से, लंदन से.... कहाँ से होगा? दिल्ली से होगा? करो निरन्तर सेवा और तपस्या। सेवा और तपस्या दोनों के बैलेन्स से प्रत्यक्षता होगी। जैसे सेवा का डायलॉग बनाया ना, ऐसे दिल्ली में तपस्या का वर्णन करने का डायलॉग बनाओ तब कहेंगे दिल्ली, दिल्ली है। दिल्ली बाप की दिल तो है लेकिन बाप के दिल पसन्द कार्य करके भी दिखायेंगे। पाण्डव करना है ना? करेंगे, जरूर करेंगे। तपस्या ऐसी करो जो सब पतंग बाबा, बाबा कहते दिल्ली के विशेष स्थान पर पहुंच जाएं। परवाने बाबा-बाबा कहते आवें तब कहेंगे प्रत्यक्षता। तो यह करना है, अगले साल यह डायलॉग करना है, यह रिजल्ट सुनानी है कि कितने परवाने बाबा-बाबा कहते स्वाहा हुए। ठीक है ना? बहुत अच्छा, मातायें भी बहुत हैं।
कुमार-कुमारियां - कुमार और कुमारियां, तो आधा हाल कुमारकुमारि यां हैं। शाबास कुमार-कुमारियों को। बस कुमार कुमारियां ज्वाला रूप बन - आत्माओं को पावन बना देने वाले। कुमार और कुमारियों को तरस पड़ना चाहिए, आज के कुमार और कुमारियों पर, कितने भटक रहे हैं। भटके हुए हमजिन्स को रास्ते पर लगाओ। अच्छा, जो भी कुमार और कुमारी आये हैं उनमें से इस सारे वर्ष में जिसने आत्माओं को सेवा में आप समान बनाया है वह बड़ा हाथ उठाओ। कुमारियों ने आप समान बनाया है? अच्छा प्लैन बना रही हैं। यह हॉस्टल वाली हाथ उठा रही हैं। अभी सेवा का सबूत नहीं लाया है। तो कुमार और कुमारियों को सेवा का सबूत लाना है। ठीक है!
अधर कुमार - अधरकुमार भी कम नहीं हैं। अधरकुमार क्या सेवा की नवीनता दिखायेंगे? अधरकुमार विश्व में यह चैलेन्ज करके दिखावें कि सारे कल्प में जो कार्य हुआ है उससे अनोखा कार्य अभी हो रहा है। अधरकुमार प्रवृत्ति में रहते चैलेन्ज करें कि दोनों साथ रहते भी स्वप्न तक भी पवित्र रह सकते हैं। यह विश्व में चैलेन्ज करो जो असम्भव समझते हैं वह सम्भव करके दिखाओ। असम्भव समझते हैं ना। वह कहते हैं आग और कपूस इकट्ठी नहीं रह सकती है। और आप क्या कहते हो? साथ रहते भी पवित्र रह सकते हैं। ऐसी चैलेन्ज है? कमज़ोर तो नहीं हैं ना! स्वप्न में भी संकल्प मात्र नहीं हो तब चैलेन्ज होगी। वह भी दिन आयेगा जो बड़े-बड़े महामण्डलेश्वर आपके चरणों में झुकेंगे। लेकिन ऐसे सम्पन्न बनना है। अच्छा है अधरकुमारों की संख्या भी कम नहीं है, बहुत है। ब्राह्मण परिवार की शोभा है। अच्छा।
अच्छा अभी रह गई - भोलानाथ की मीठी-मीठी मातायें, अच्छा देखो दादी देखो कितनी माताओं का झुण्ड है। बहुत अच्छा झुण्ड है। टी.वी. में दिखाओ सभी को। साइंस के साधन से फायदा तो उठा रहे हैं। अच्छा हैशक्ति सेना। शक्तियों की विजय हो, विजय हो, विजय हो। देखो बापदादा ने अबला से शक्तियां बना दिया। अभी अपने को अबला तो नहीं समझतेना! शक्ति हैं। तो शक्तियां तो हैं ही विजयी। शक्तियों को विजय की निशानी शस्त्र दिखा दिये हैं। शाश्त्रधारी शक्तियां अर्थात् सर्व शक्तियों धारीशक्तियां। तो सदा अपने को सर्व शक्ति स्वरूप अनुभव करो। आपका यादगार सर्व शक्तियों का सूचक है। तो ऐसे है ना? सब शक्तियां, शक्ति सम्पन्न हैं? बहुत अच्छा। विजयी है और सदा विजयी रहेंगी। अच्छा।
अभी तो कोई नहीं कहेंगे कि हम बाबा से मिले नहीं। सबसे मिले ना। सबसे मिलन हो गया।
इन्दौर हॉस्टल की कुमारियां - कुमारी वह जो आत्माओं के 21 कुल का उद्धार करे। तो कितनी आत्माओं के 21 कुल सुधारे हैं? सेवा करते हो या सेवाधारी बन रहे हो? तैयार हो रहे हो अच्छा है। फिर भी देखो जब भी कुछ होता है तो आपको निमन्त्रण मिलता है ना। विशेष आत्मा हो गई ना। विशेष निमन्त्रण देकर आपको बुलाया जाता है, तो बहुत अच्छा है। स्वयं भी शक्ति रूप बन रही हो और दूसरों को भी बनाने में भी ऐसे ही होशियार बन जलवा दिखायेंगी। अच्छा है। मुबारक हो।
पोलीटिकल विंग के आये हैं - बहुत अच्छा किया जो अपने घर में पहुंच गये हैं। होस्ट हो या गेस्ट हो? (होस्ट) बाप का घर सो बच्चे का घर, इसीलिए होस्ट हो।
अच्छा - चारों ओर के विजयी रत्नों को, सदा निश्चय बुद्धि सहज सफलता मूर्त बच्चों को, सदा मेरा बाबा के अधिकार से हर सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सफलता मूर्त बच्चों को, सदा समाधान स्वरूप, समस्या को परिवर्तन करने वाले परिवर्तक आत्मायें, ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को सदा बाप को प्रत्यक्ष करने के प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार, मुबारक, अक्षोणी बार मुबारक और नमस्ते।
दादी जी से - सबका आपसे प्यार है, बाप का भी आपसे प्यार है। (रतनमोहिनी दादी से) सहयोगी बनने से बहुत कुछ सूक्ष्म में प्राप्त होता है। ऐसे है ना! आदि रतन हैं। आदि रतन अब तक भी निमित्त हैं। अच्छा -
नारायण दादा से - (कोई आज्ञा) आज्ञा यही है - बैलेन्स रखो। अलौकिक और लौकिक दोनों में बैलेन्स रखो। यह बैलेन्स जो है वह स्वत: ही ब्लैसिंग दिलाता रहेगा।
ओम शान्ति
30-11-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“रिटर्न शब्द की स्मृति से समान बनो और रिटर्न-ज़र्नी के स्मृति स्वरूप बनो”
आज बापदादा अपने चारों ओर के दिल तख्तनशीन, भ्रकुटी के तख्त नशीन, विश्व के राज्य के तख्त नशीन, स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख हार्षित हो रहे हैं। परमात्म दिल तख्त सारे कल्प में अब आप सिकीलधे, लाडले बच्चों को ही प्राप्त होता है। भ्रकुटी का तख्त तो सर्व आत्माओं को है लेकिन परमात्म दिल तख्त ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए किसी को प्राप्त नहीं है। यह दिल तख्त ही विश्व का तख्त दिलाता है। वर्तमान समय स्वराज्य अधिकारी बने हो, हर एक ब्राह्मण आत्मा का स्वराज्य गले का हार है। स्वराज्य आपके जन्म का अधिकार है। ऐसे स्वयं को ऐसा स्वराज्य अधिकारी अनुभव करते हो? दिल में यह दृढ़ संकल्प है कि हमारे इस बर्थ राइट को कोई छीन नहीं सकता। साथ-साथ यह भी रूहानी नशा है कि हम परमात्म दिल तख्तनशीन भी हैं। मानव जीवन में, तन में भी विशेष दिल ही महान गाई जाती है। दिल रूक गई तो जीवन समाप्त। तो आध्यात्मिक जीवन में भी दिल तख्त का बहुत महत्त्व है। जो दिल तख्तनशीन हैं वही आत्मायें विश्व में विशेष आत्मायें गाई जाती हैं। वही आत्मायें भक्तों के लिए माला के मणकों के रूप में सिमरी जाती हैं। वही आत्मायें कोटों में कोई, कोई में भी कोई गाई जाती है। तो वह कौन हैं? आप हो? पाण्डव भी हैं? मातायें भी हैं। (हाथ हिला रहे हैं) तो बाप कहते हैं हे लाडले बच्चे कभी-कभी दिल तख्त को छोड़कर देह रूपी मिट्टी से क्यों दिल लगाते हो? देह मिट्टी है। तो लाडले बच्चे कभी मिट्टी में पांव नहीं रखते हैं, सदा तख्त पर, गोदी में या अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते। आपके लिए बापदादा ने भिन्न-भिन्न झूले दिये हैं, कभी सुख के झूले में झूलो, कभी खुशी के झूले में झूलो। कभी आनंदमय झूले में झूलो।
तो आज बापदादा ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे थे कि कैसे नशे से झूलों में झूल रहे हैं। झूलते रहते हो? झूलते हो? मिट्टी में तो नहीं जाते! कभी-कभी दिल होती है क्या, मिट्टी में पांव रखने की? क्योंकि 63 जन्म मिट्टी में ही पांव रखते, मिट्टी से ही खेलते। तो अभी तो नहीं मिट्टी से खेलते? कभीकभी मिट्टी में पांव जाता है कि नहीं जाता है? कभी-कभी चला जाता है। देहभान भी मिट्टी में पांव रखना है। देह अभिमान तो बहुत गहरी मिट्टी में पांव है। लेकिन देह भान अर्थात् बॉडीकान्सेसनेस यह भी मिट्टी है। जितना संगम का समय ज्यादा से ज्यादा तख्तनशीन होंगे उतना ही आधाकल्प सूर्यवंश की राजधानी में और चन्द्रवंश में भी सूर्यवंश के राज्य घराने में होंगे। अगर अभी संगम पर कभी-कभी तख्तनशीन होंगे तो सूर्यवंश के रॉयल फैमिली में इतना ही थोड़ा समय होंगे। तख्तनशीन चाहे टर्न बाई टर्न होंगे लेकिन रॉयल फैमिली, राज्य घराने की आत्माओं के सदा सम्बन्ध में होंगे। तो चेक करो - कि संगमयुग के आदि समय से अब तक चाहे 10 साल हुए हैं, चाहे 50, चाहे 66 साल हो गये, लेकिन जब से ब्राह्मण बनें तब आदि से अब तक कितना समय दिल तख्तनशीन स्वराज्य तख्त नशीन रहे? बहुतकाल रहा, निरन्तर रहा वा कभी-कभी रहा? जो परमात्म तख्त नशीन होगा उसकी निशानी - प्रत्यक्ष चलन और चेहरे से सदा बेफिकर बादशाह होगा। अपने मन में, स्थूल बोझ तो सिर पर होता है लेकिन सूक्ष्म बोझ मन में होता है। तो मन में कोई बोझ नहीं होगा। फिकर है बोझ, बेफिकर है डबल लाइट। अगर किसी भी प्रकार का चाहे सेवा का, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क का, चाहे स्थूल सेवा का, रूहानी सेवा का भी बोझ नहीं, क्या होगा, कैसा होगा....सफलता होगी या नहीं होगी! सोचना, प्लैन बनाना अलग चीज़ है, बोझ अलग चीज़ है। बोझ वाले की निशानी सदा चेहरे में बहुत या थोड़ा थकावट के चिन्ह होंगे, थकावट होना अलग चीज़ है, थकावट के चिन्ह थोड़ा भी यह भी बोझ की निशानी है। और बेफिकर बादशाह का यह अर्थ नहीं कि अलबेले रहें, हो अलबेलापन और कहे हम तो बेफिकर रहते हैं। अलबेलापन, यह बहुत धोखा देने वाला है। तीव्र पुरूषार्थ के भी वही शब्द हैं और अलबेलेपन के भी वही शब्द हैं। तीव्र पुरूषार्थी सदा दृढ़ निश्चय होने के कारण यही सोचता है - हर कार्य हिम्मत और बाप की मदद से सफल हुआ ही पड़ा है और अलबेलेपन के भी यही शब्द हैं, हो जायेगा, हो जायेगा, हुआ ही पड़ा है। कोई कार्य रहा है क्या, हो जायेगा। तो शब्द एक है लेकिन रूप अलग अलग है।
वर्तमान समय माया के विशेष दो रूप बच्चों का पेपर लेते हैं। जानते हो? जानते तो हो। एक व्यर्थ संकल्प, विकल्प नहीं, व्यर्थ संकल्प। दूसरा भी सुनायें क्या? दूसरा है ''मैं ही राइट हूँ``। जो किया, जो कहा, जो सोचा.... मैं कम नहीं, राइट हूँ। बापदादा समय के प्रमाण अब यही चाहते - एक शब्द सदा स्मृति में रखो - बाप से हुई सर्व प्राप्तियों का, स्नेह का, सहयोग का रिटर्न करना है। रिटर्न करना अर्थात् समान बनना। दूसरा – अब हमारी रिटर्न-जरनी (वापिसी यात्रा) है। एक ही शब्द रिटर्न सदा याद रहे। इसके लिए बहुत सहज साधन है - हर संकल्प, बोल और कर्म को ब्रह्मा बाप से टाली करो। बाप का संकल्प क्या रहा? बाप का बोल क्या रहा? बाप का कर्म क्या रहा? इसको ही कहा जाता है फालो फादर। फालो करना तो सहज होता है ना! नया सोचना, नया करना उसकी आवश्यकता है ही नहीं, जो बाप ने किया वह फालो फादर। सहज है ना!
टीचर्स - टीचर्स हाथ उठाओ। फालो करना सहज है या मुश्किल है? सहज है ना! बस फालो फादर। पहले चेक करो, जैसे कहावत है पहले सोचो फिर करो, पहले तौलो फिर बोलो। तो सभी टीचर्स इस वर्ष में, अभी इस वर्ष का लास्ट मंथ है, पुराना जायेगा नया आयेगा। नये आने के पहले क्या करना है, उसकी तैयारी कर लो। यह संकल्प करो कि सिवाए बाप के कदम पर कदम रखने के और कोई भी कदम नहीं उठायेंगे। बस फुट स्टेप। कदम पर कदम रखना तो इजी है ना! नये वर्ष में अभी से संकल्प में प्लैन बनाओ, जैसे ब्रह्मा बाप सदा निमित्त और निर्माण रहे ऐसे निमित्त भाव और निर्माण भाव। सिर्फ निमित्त भाव नहीं, निमित्त भाव के साथ निर्माण भाव, दोनों आवश्यक हैं क्योंकि टीचर्स तो निमित्त हैं ना! निमित्त हैं ना! तो संकल्प में भी, बोल में भी और किसी के भी संबंध में, कर्म में, हर बोल में निर्माण। जो निर्माण है वही निमित्त भाव में है। जो निर्माण नहीं है उसमें थोड़ा बहुत सूक्ष्म, महान रूप में अभिमान नहीं भी हो तो रोब होगा। ये रोब, यह भी अभिमान का अंश है और बोल में सदा निर्मल भाषी, मधुर भाषी। जब सम्बन्ध-सम्पर्क में आत्मिक रूप की स्मृति रहती है तो सदा निराकारी और निरहंकारी रहते हैं। ब्रह्मा बाप के लास्ट के तीनों शब्द याद रहते हैं? निराकारी, निरहंकारी वही निर्विकारी। अच्छा, फालो फादर। पक्का रहा ना!
अगले वर्ष की मुख्य लक्ष्य स्वरूप की स्मृति है - यह तीन शब्द, निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी। अंश भी नहीं हो। मोटा-मोटा रूप तो ठीक हो गया है लेकिन अंश भी नहीं हो क्योंकि अंश ही धोखा देता है। फालो फादर का अर्थ ही है - इन तीन शब्दों को सदा स्मृति में रखें। ठीक है?
अच्छा - डबल फारेनर्स उठो। अच्छा ग्रुप आया है। बापदादा को डबल फारेनर्स की एक बात पर खुशी है, जानते हो कौन सी? जानते हो? देखो, जितना ही दूर से, दूरदेश से आते हो लेकिन जो डायरेक्शन मिला कि इस टर्न में भी आना है तो पहुंच गये ना। कैसे भी पुरूषार्थ कर बड़ा ही ग्रुप पहुंच गया है। दादी का डायरेक्शन ठीक माना है ना! इसकी मुबारक हो। बापदादा एक-एक को देख रहा है, दृष्टि दे रहा है। ऐसा नहीं कि स्टेज पर ही दृष्टि मिलती है। दूर से और ही अच्छा दिखाई दे रहा है। डबल फारेनर्स हाँ जी का पाठ अच्छा पढ़े हुए हैं। बापदादा को डबल फारेनर्स के ऊपर प्यार तो है ही लेकिन नाज़ भी है, क्योंकि विश्व के कोने-कोने में सन्देश पहुंचाने के लिए डबल फारेनर्स ही निमित्त बने हैं। विदेश में अभी कोई विशेष स्थान रहा है, गांव-गांव रहे हैं या विशेष स्थान? कोने-कोने, गांव-गांव छोटे स्थान या
विशेष स्थान रह गया है? कौन-सा स्थान रहा है? फिर भी देखो यह भी ग्रुप जो आया है कितने देशों का ग्रुप है? गिनती किया है? नहीं किया है। फिर भी बापदादा जानते हैं कि विश्व के अनेक भिन्न-भिन्न देशों में आप आत्मायें निमित्त बने हो। बापदादा हमेशा कहते ही हैं कि विश्व कल्याणकारी का टाइटल बाप का डबल विदेशियों ने ही प्रत्यक्ष किया है। अच्छा है। हर एक अपने-अपने स्थान पर खुद अपने पुरूषार्थ में और सेवा में आगे बढ़ रहे हैं और सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सफलता के सितारे है ही। बहुत अच्छा।
कुमारों से - मधुबन के कुमार भी हैं। देखो, कुमारों की संख्या देखो कितनी है? आधा क्लास तो कुमारों का है। कुमार अभी साधारण वुमार नहीं हैं। अभी कुमारों का टाइटल है, कौन से कुमार हो? ब्रह्माकुमार तो हो ही। लेकिन ब्रह्माकुमारों की विशेषता क्या है? कुमारों की विशेषता है कि सदा जहाँ भी अशान्ति होगी उसमें शान्ति फैलाने वाले शान्तिदूत हैं। न मन की अशान्ति, न बाहर की अशान्ति। कुमारों का कार्य ही है मुश्किल काम करना, हार्ड वर्कर होते हैं ना! तो आज सबसे हार्ड में हार्ड वर्क है – अशान्ति को मिटाए शान्तिदूत बन शान्ति फैलाना। ऐसे कुमार हो? हो? अशान्ति का नाम निशान नहीं रहे। ऐसे शान्तिदूत हो? न विश्व में, न आपके सम्बन्धसम्पर्व में। शान्तिदूत, जैसे आग बुझाने वाले कहाँ भी आग होगी तो आग बुझायेंगे ना। तो शान्तिदूत का कार्य ही है अशान्ति को शान्ति में बदलना। तो शान्तिदूत हो ना! पक्का! पक्का? पक्का? बहुत अच्छा लग रहा है, बापदादा इतने कुमारों को देख खुश होते हैं। पहले भी बापदादा ने प्लैन दिया था कि दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा कुमार, जो गवर्मेन्ट समझती है कुमार अर्थात् झगड़ा करने वाले, डरती है कुमारों से। ऐसे डरने वाली गवर्मेन्ट, हर ब्रह्माकुमार कर शान्तिदूत के टाइटल से स्वागत करें, तब है कुमारों की कमाल। सारे विश्व में छा जावें कि ब्रह्माकुमार शान्तिदूत हैं। हो सकता है ना? दिल्ली में करना। करना है ना - दादियां करेंगे? इतने कुमार हैं, एक ग्रुप में इतने हैं तो सभी ग्रुप में कितने होंगे? विश्व में कितने होंगे? (लगभग 1 लाख) तो करो कमाल कुमार। गवर्मेन्ट में जो कुमारों के प्रति उल्टा भरा हुआ है वह सुल्टा कर दो। लेकिन मन में भी अशान्ति नहीं। साथियों में भी अशान्ति नहीं और अपने स्थान पर भी अशान्ति नहीं। अपने शहर में भी अशान्ति नहीं। बस कुमारों के चेहरे में बोर्ड लगाने की जरूरत नहीं लेकिन मस्तक में आटोमेटिक लिखा हुआ अनुभव हो कि यह शान्तिदूत हैं। ठीक है ना!
कुमारियाँ उठो - कुमारियां भी बहुत हैं। जो सेन्टर पर रहती हैं वह नहीं, जो सेन्टर पर नहीं रहती हैं, वह उठो। तो इन सब कुमारियों का लक्ष्य क्या है? नौकरी करनी है या विश्व सेवा करनी है? ताज सिर पर रखना है या टोकरी रखनी है? क्या रखना है? देखो, सब कुमारियों को रहमदिल बनना है। विश्व की आत्माओं का कल्याण हो जाए, कुमारियों के लिए गायन है 21 कुल का उद्धार करने वाली, तो आधाकल्प 21 कुल हो जायेंगे। तो ऐसी कुमारियां हो? जो 21 कुल का कल्याण करेंगी वह हाथ उठाओ। एक परिवार का नहीं, 21 परिवारों का। करेंगी? देखो आपका नाम नोट होगा और फिर देखा जायेगा कि रहमदिल है या कोई हिसाब-किताब रहा हुआ है? अभी समय सूचना दे रहा है कि समय के पहले तैयार हो जाओ। समय को देखते रहेंगे तो समय बीत जायेगा। इसीलिए लक्ष्य रखो कि हम सभी विश्व कल्याणी रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल हैं। ठीक हैं ना? रहमदिल हो ना! रहमदिल और बनो। थोड़ा और तीव्रगति से बनो। कुमारियों को तो बाप का बहुत सहज तख्त मिलता है। देखेंगे नये वर्ष में क्या कमाल करके दिखाती हो। अच्छा।
मातायें उठो - आधा क्लास मातायें हैं। हाथ हिलाओ दृश्य अच्छा लगता है। फारेनर्स में भी मातायें हैं। मातायें क्या कमाल करेंगी? मातायें जो गीत बना हुआ है ना आप सबका। गीत याद है - गीत क्या कहता है? कि शक्तियां आ गई...सुना है गीत! नहीं सुना हो तो कल सुना देना। तो शक्तियों का झुण्ड विश्व में चारों तरफ आ गया है, तो आप शक्तियां, शक्ति माता, माताओं का काम क्या है? बच्चों को जगाना, पालना करना और अधिकारी बनाना। तो मातायें अभी जो आपके भारत में या विश्व में बाप के बच्चे, आपकी बहनें सोई हुई हैं, उनको जगाओ। गीत तो बहुत गाते हो - जागो, जागो...तो अभी सोई हुई आत्माओं को जल्दी-जल्दी जगाओ। कुछ तो अपना थोड़ा सा अंचली का वर्सा भी ले लें क्योंकि अभी तक टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है। लेट हैं लेकिन टू लेट नहीं है। तो टू लेट के पहले सोये हुए हमजिन्स को जगाओ। जगायेंगे ना? अपने-अपने स्थान पर जहाँ भी सेवा करते हो वहाँ जगाओ और ऐसे जगाओ जो पूरे परवाने बन शमा तक पहुंच जायें। ठीक है मातायें। अभी दूसरे वर्ष की रिजल्ट में एक एक माता एक- एक मास में एक-एक तैयार करो। हो सकता है? एक दिन मे नहीं, एक मास में। अच्छा अगर एक मास में नहीं करो तो चलो दो मास में करो। रिजल्ट आती है ना! इस साल में इतनी मातायें, दूसरे साल में इतनी हो गई। तो बापदादा देखेंगे कि नये साल में जो इतनी मातायें आई उन्होंने संख्या कितनी बढ़ाई। लिस्ट है कितनी मातायें आई हैं? अलग लिस्ट नहीं निकालते? (4 हजार मातायें हैं) अच्छा, 4 हजार मातायें आई हैं तो कितनी वृद्धि होगी देख लेंगे। हिम्मत है? जो समझते हैं हो सकता है वह हाथ उठाओ। ऐसे ही हाथ नहीं उठाना, टी.वी. में फोटो आ रहा है। माताओं से तो विशेष प्यार है तभी देखो माताओं के कारण बाप का गऊपाल नाम पड़ा है। तो माताओं के कारण गऊपाल नाम है। बहुत अच्छा, मातायें भी बहुत हैं।
अधर कुमार उठो - अधर कुमार भी कम नहीं हैं। देखो, अधरकुमारों ने बापदादा का बहुत नाम बाला किया है। जानते हो क्या? जो बहुतकाल से व्यर्थ वायब्रेशन था तो यह परिवार छुड़ाते हैं लेकिन अधरकुमारों ने यह जो व्यर्थ संकल्प था, वह समाप्त कर दिया। तो मुबारक हो आपको क्योंकि बाप की सेवा में प्रैक्टिकल जीवन से रेसपान्ड दिया, तो बहुत अच्छा। अधरकुमार और अधरकुमारियों को बापदादा सदा महात्माओं को जीतने वाले कहते हैं। आपके चरणों में आयेंगे। जो महात्मायें काम नहीं कर सके वह आपने करके दिखाया। कमल पुष्प, एक एक कमल पुष्प समान प्रवृत्ति में रहते, पर-वृत्ति में रहने वाले। इसलिए सदा बढ़ते रहो और बढ़ाते रहो। अधरकुमारों की संख्या भी बढ़नी चाहिए। ठीक है ना! हिम्मत है? कहो हाँ बाबा हिम्मत हमारी, मदद आपकी। बहुत अच्छा। कमाल है। साथ रहते न्यारे और प्यारे। इसलिए बापदादा सभी अधरकुमार और कुमारियों को भी दिल से बहुत-बहुत दुआयें देते हैं। सदा बढ़ते रहो। अच्छा।
सेवा में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, नेपाल, तामिलनाडु (ईस्टर्न) का टर्न है। अच्छा - टीचर्स उठो। देखो निमित्त टोटल ईस्टर्न जोन कहते हैं, तो निमित्त आपकी परदादी है। परदादी मिली है इसलिए कितनी स्टेट आ गई हैं। परदादी बड़ी होती है ना! तो इसमें स्टेट भी अच्छी-अच्छी हैं। अच्छा है। आपकी सेना अच्छी है। देखो, परदादी को देखा है। अच्छा है। आदि से अब तक कितना अच्छा पार्ट बजाया है। फालो लौकिक फादर और फालो अलौकिक फादर और फालो पारलौकिक फादर। बहुत अच्छा देखो लश्कर कितना अच्छा है। अच्छी सेवा दिल से की है। रिजल्ट बहुत अच्छी है। दिल से सेवा की है और दिल से सहयोगी भी बने हो। इसलिए सदा और ज्यादा-से-ज्यादा बढ़ाते चलो। बढ़ते रहेंगे और सदा बढ़ाते रहेंगे। अच्छा है। पुरानी-पुरानी टीचर्स भी बहुत हैं। सर्विस के आदिकाल की टीचर्स हैं। स्थापना के आदि की थोड़ी हैं। लेकिन सेवा के आदि रत्न अच्छे-अच्छे हैं। बहुत अच्छा, एक एक की महिमा क्या करें। एक एक रत्न महान है, विशेष आत्मा है। अच्छा। हिम्मत रखकर आ गई बहुत अच्छा किया। अच्छा। सभी से स्पेशल मिलना हुआ ना! कोई रह गये?
बच्चे रह गये हैं - बच्चे सदा हर स्थान का शृंगार होते हैं तो बच्चे कैसे रहेंगे, बच्चे पहले। बच्चों से तो बापदादा का अक्षोणी प्यार है। देखो, अपना हक ले लिया ना! चतुर है। अच्छा है। इस विश्व विद्यालय की स्थापना भी बच्चों से हुई है। पहले बच्चे ही तो बड़े हुए हैं ना! बहुत अच्छा। बच्चे हैं बापदादा के सिर के ताज। अच्छा। तो सदा डबल पढ़ाई में नम्बरवन लेते रहना। लौकिक पढ़ाई में भी नम्बर दो तीन नहीं, नम्बरवन और अलौकिक पढ़ाई में भी नम्बरवन। ऐसे बच्चे बनना है। अच्छा।
मीडिया - (108 रत्न आये हैं) अच्छा है मीडिया वाले कमाल करके दिखावें जो सबके बुद्धि में आवे कि बाप से वर्सा लेना ही है। कोई वंचित नहीं रह जाए। मीडिया का काम ही है आवाज फैलाना। तो यह आवाज फैलाओ कि बाप से वर्सा ले लो। कोई वंचित नहीं रह जाए। अभी विदेश में भी मीडिया का प्रोग्राम चलता रहता है ना! अच्छा है। भिन्न-भिन्न रूप से जो प्रोग्राम रखते हैं तो अच्छे इन्ट्रेस्टेड होते हैं। अच्छा कर रहे हैं और करते रहेंगे और सफलता तो है ही। सभी वर्ग वाले जो भी सेवा कर रहे हैं बापदादा के पास समाचार आता रहता है, हर वर्ग की अपनी-अपनी सेवा के साधन और सेवा की रूपरेखा है लेकिन यह देखा कि वर्ग अलग-अलग होने से हर वर्ग एक दो से रेस भी करते हैं, अच्छा है। रीस नहीं करना, रेस भले करो। हर वर्ग की रिजल्ट, वर्ग की सेवा के बाद आई.पी. और वी.आई.पी. सम्पर्क में काफी आये हैं, अभी माइक नहीं लाये हैं लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में आये हैं। अच्छा -
बापदादा वाली एक्सरसाइज याद है? अभी-अभी निराकारी, अभी- अभी फरिश्ता...यह है चलते फिरते बाप और दादा के प्यार का रिटर्न। तो अभी-अभी यह रूहानी एक्सरसाइज करो। सेकण्ड में निराकारी, सेकण्ड में फरिश्ता। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा - चलते-फिरते सारे दिन में यह एक्सरसाइज बाप की सहज याद दिलायेगी।
चारों ओर के बच्चों की याद सभी तरफ से बापदादा को पहुंची है। हर एक बच्चा समझता है हमारी याद देना, हमारी याद देना। कोई पत्र द्वारा भेजते, कोई कार्डों द्वारा, कोई मुख द्वारा लेकिन बापदादा चारों ओर के बच्चों को, एक-एक को नयनों में समाते हुए याद का रेसपान्ड पद्मगुणा यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं सबके मन में इस समय कितना भी बजा है लेकिन मैजारिटी के मन में मधुबन और मधुबन का बापदादा है।
चारों ओर के तीनों तख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी बच्चों को, सदा बापदादा को रिटर्न बाप समान बनने वाले बच्चों को, सदा रिटर्न जरनी के स्मृति स्वरूप बच्चों को, सदा संकल्प, वाणी और कर्म में फालो फादर करने वाले हर एक बच्चे को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से - सब अच्छा सहयोग दे रहे हैं और देते रहेंगे, स्थापना के साथी हो। मैजारिटी सब आदि रत्न हैं, जो अभी आगे बैठे हैं। (सभी ने चार्ट लिखा है) बापदादा ने समाचार सुना लेकिन मध्यम से श्रेष्ठ बनना ही है।
15-12-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“समय प्रमाण लक्ष्य और लक्षण की समानता द्वारा बाप समान बनो”
आज चारों ओर के सर्व स्वमानधारी बच्चों को देख हार्षित हो रहे हैं। इस संगम पर जो आप बच्चों को स्वमान मिलता है उससे बड़ा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता है। कितना बड़ा स्वमान है, इसको जानते हो? स्वमान का नशा कितना बड़ा है, यह स्मृति में रहता है? स्वमान की माला बहुत बड़ी है। एक एक दाना गिनते जाओ और स्वमान के नशे में लवलीन हो जाओ। यह स्वमान अर्थात् टाइटल्स स्वयं बापदादा द्वारा मिले हैं। परमात्मा द्वारा स्वमान प्राप्त है। इसलिए इस स्वमान के रूहानी नशे को कोई अथॉरिटी नहीं जो हिला सके क्योंकि आलमाइटी अथॉरिटी द्वारा प्राप्ति है।
तो बापदादा ने आज अमृतवेले सारे विश्व के सर्व बच्चों के तरफ चक्कर लगाते देखा कि हर एक बच्चे की स्मृति में कितने स्वमानों की माला पड़ी हुई है। माला को धारण करना अर्थात् स्मृति द्वारा उसी स्थिति में स्थित रहना। तो अपने को चेक करो - यह स्मृति की स्थिति कहाँ तक रहती है? बापदादा देख रहे थे कि स्वमान का निश्चय और उसका रूहानी नशा दोनों का बैलेन्स कितना रहता है? निश्चय है - नॉलेजफुल बनना और रूहानी नशा है - पॉवरफुल बनना। तो नॉलेजफुल में भी दो प्रकार देखे - एक हैनॉलेजफुल। दूसरे हैं नॉलेजेबुल (ज्ञान स्वरूप) तो अपने से पूछो – मैं कौन? बापदादा जानते हैं कि बच्चों का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। लक्ष्य ऊंचा है ना, क्या ऊंचा है? सभी कहते हैं बाप समान बनेंगे। तो जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप समान बनने का लक्ष्य कितना ऊंचा है! तो लक्ष्य को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं लेकिन.... लेकिन बतायें क्या? लेकिन क्या...वह टीचर्स वा डबल फारेनर्स सुनेंगे? समझ तो गये होंगे। बापदादा लक्ष्य और लक्षण समान चाहते हैं। अभी अपने से पूछो कि लक्ष्य और लक्षण अर्थात् प्रैक्टिकल स्थिति समान है? क्योंकि लक्ष्य और लक्षण का समान होना - यही बाप समान बनना है। समय प्रमाण इस समानता को समीप लाओ।
वर्तमान समय बापदादा बच्चों की एक बात देख नहीं सकते। कई बच्चे भिन्न-भिन्न प्रकार की बाप समान बनने की मेहनत करते हैं, बाप की मोहब्बत के आगे मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं। जब उल्टा नशा देह-अभिमान का नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। क्या देह-अभिमान में आने में पुरूषार्थ करना पड़ता? या 63 जन्म पुरूषार्थ किया? नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। जो अभी भी कभी-कभी ही कहते हो कि देही के बजाए देह में आ जाते हैं। तो जैसे देह-अभिमान, नेचर और नेचुरल रहा वैसे अभी देही-अभिमानी स्थिति भी नेचुरल और नेचर हो, नेचर बदलना मुश्किल होती है। अभी भी कभी-कभी कहते हो ना कि मेरा भाव नहीं है, नेचर है। तो उस नेचर को नेचुरल बनाया है और बाप समान नेचर को नेचुरल नहीं बना सकते! उल्टी नेचर के वश हो जाते हैं और यथार्थ नेचर बाप समान बनने की, इसमें मेहनत क्यों? तो बापदादा अभी सभी बच्चों की देही-अभिमानी रहने की नेचुरल नेचर देखने चाहते हैं। ब्रह्मा बाप को देखा चलते-फिरते कोई भी कार्य करते देही-अभिमानी स्थिति नेचुरल नेचर थी।
बापदादा ने समाचार सुना कि आजकल विशेष दादियां यह रूहरूहान करती हैं - फरिश्ता अवस्था, कर्मातीत अवस्था, बाप समान अवस्था नेचुरल कैसे बनें? नेचर बन जाए, यह रूहरूहान करते हो ना! दादी को भी यही बार-बार आता है ना - फरिश्ता बन जाएं, कर्मातीत बन जाएं, बाप प्रत्यक्ष हो जाए। तो फरिश्ता बनना वा निराकारी कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है - निरहंकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है।
इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरहंकारी कहा। सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फंसना, इसको ही देह अहंकार या देह- भान नहीं कहा जाता है। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। जो पुरूषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरूषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं। लेकिन देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत है क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरूषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो। यह तो सहज है ना? सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा।
बापदादा सेवा का समाचार भी सुनते हैं, सेवा में आजकल भिन्न-भिन्न कोर्स कराते हो, लेकिन अभी एक कोर्स रह गया है। वह है हर आत्मा में जो शक्ति चाहिए, वह फोर्स का कोर्स कराना। शक्ति भरने का कोर्स, वाणी द्वारा सुनाने का कोर्स नहीं, वाणी के साथ-साथ शक्ति भरने का कोर्स भी हो। जिससे अच्छा-अच्छा कहें नहीं लेकिन अच्छा बन जाएं। यह वर्णन करें कि आज मुझे शक्ति की अंचली मिली। अंचली भी अनुभव हो तो उन आत्माओं के लिए बहुत है। कोर्स कराओ लेकिन पहले अपने को कराके फिर कहो। तो सुना बापदादा क्या चाहते हैं? लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। लक्ष्य सभी का देखकर बापदादा बहुत-बहुत खुश होते हैं। अब सिर्फ समान बनाओ, तो बाप समान बहुत सहज बन जायेंगे।
बापदादा तो बच्चों को समान से भी ऊंचा, अपने से भी ऊंचा देखते हैं। सदा बापदादा बच्चों को सिर का ताज कहते हैं। तो ताज तो सिर से भी ऊंचा होता है ना! टीचर्स - सिर के ताज हो?
टीचर्स से - देखो, कितनी टीचर्स हैं। एक ग्रुप में इतनी टीचर्स तो हर ग्रुप में कितनी टीचर्स होंगी! टीचर्स ने बापदादा की एक आश पूरी करने का संकल्प किया है लेकिन सामने नहीं लाया है। जानते हो कौन-सी? एक तो बापदादा ने कहा है कि अभी वारिसों की माला बनाओ। वारिसों की माला, जनरल माला नहीं। दूसरा - सम्बन्ध-सम्पर्क वालों को माइक बनाओ। आप नहीं भाषण करो लेकिन वह आपकी तरफ से मीडिया बन जायें। अपनी मीडिया बनाओ। मीडिया क्या करता है? उल्टा या सुल्टा आवाज फैलाता है ना! तो माइक ऐसे तैयार हों जो मीडिया समान प्रत्यक्षता का आवाज फैलाये। आप कहेंगे भगवान आ गया, भगवान आ गया.... वह तो कामन समझते हैं लेकिन आपकी तरफ से दूसरे कहें, अथॉरिटी वाले कहें, पहले आप लोगों को शक्तियों के रूप में प्रत्यक्ष करें। जब शक्तियां प्रत्यक्ष होंगी तब बाप प्रत्यक्ष होगा। तो बनाओ, मीडिया तैयार करो। देखेंगे। किया है? चलो कंगन ही सही, माला छोड़ो, तैयार किया है? हाथ उठाओ जिसने ऐसे तैयार किया है? बापदादा देखेंगे कौन से तैयार किये हैं, अच्छा हिम्मत तो रखी है। सुना - टीचर्स को क्या करना है! शिवरात्रि पर वारिस क्वालिटी तैयार करो। माइक तैयार करो, तब फिर दूसरे वर्ष शिवरात्रि पर सबके मुख से शिव बाप आ गया, यह आवाज निकले। ऐसी शिवरात्रि मनाओ। प्रोग्राम तो बहुत अच्छे बनाये हैं। प्रोग्राम सबको भेजे हैं ना। प्रोग्राम तो ठीक बनाया है लेकिन हर प्रोग्राम से कोई माइक तैयार हो, कोई वारिस तैयार हो। यह पुरूषार्थ करो, भाषण किया चले गये, ऐसा नहीं। यह तो 66 वर्ष हो गये और 50 वर्ष सेवा के भी मना लिए। अभी शिवरात्रि की डायमण्ड जुबली मनाओ। यह दो प्रकार की आत्मायें तैयार करो, फिर देखो नगाड़ा बजता है या नहीं। नगाड़े आप थोड़ेही बजायेंगे। आप तो देवियां हो साक्षात्कार करायेंगी। नगाड़े बजाने वाले तैयार करो। जो प्रैक्टिकल गीत गायें शिव शक्तियां आ गई।
सुना - शिवरात्रि पर क्या करेंगी! ऐसे ही भाषण करके पूरा नहीं करना। फिर लिखेंगी बाबा 500-1000, लाख आदमी आ गये, आ तो गये सन्देश दिया, लेकिन वारिस कितने निकले, माइक कितने निकले, अभी वह समाचारदेना। जो अभी तक किया धरनी बनाई, सन्देश दिया, उसको बाबा अच्छा कहते हैं, वह सेवा व्यर्थ नहीं गई है, समर्थ हुई है। प्रजा तो बनी है, रॉयल फैमिली तो बनी है लेकिन राजा रानी भी तो चाहिए। राजा रानी तख्त वाले नहीं, राजा रानी के साथ वहाँ दरबार में भी राजे समान बैठते हैं, ऐसे तो बनाओ। राज्य दरबार शोभा वाली हो जाए। सुना, शिवरात्रि पर क्या करना है। पाण्डव सुन रहे हो। हाथ उठाओ। ध्यान दिया। अच्छा। बड़े-बड़े महारथी बैठे हैं। बापदादा खुश होते हैं, यह भी दिल का प्यार है, क्योंकि आप सबका संकल्प चलता है ना, प्रत्यक्षता कब होगी, कब होगी... तो बापदादा सुनता रहता है। क्या सुना मधुबन वालों ने? मधुबन वालों ने सुना। मधुबन, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर वाले, सभी मधुबन निवासी हैं। अच्छा।
मधुबन से नगाड़ा बजेगा, कहाँ से नगाड़ा बजेगा? (दिल्ली से) मधुबन से नहीं? कहो चारों ओर से। एक तरफ से नहीं बजेगा। मधुबन से भी बजेगा, तो चारों ओर से बजेगा तभी कुम्भकरण जागेंगे। मधुबन वाले जैसे सेवा में अथक होकर सेवा का पार्ट बजा रहे हो ना, ऐसे यह भी मन्सा सेवा करते रहो। सिर्फ कर्मणा नहीं, मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों सेवा, करते भी हो और ज्यादा करना। अच्छा। मधुबन वाले भूले नहीं हैं। मधुबन वाले सोचते हैं बापदादा आते मधुबन में है लेकिन मधुबन का नाम नहीं लेते। मधुबन तो सदा याद है ही। मधुबन नहीं होता तो यह आते कहाँ! आप सेवाधारी सेवा नहीं करते तो यह खाते, रहते कैसे! तो मधुबन वालों को बापदादा भी दिल से याद करते और दिल से दुआयें देते हैं। अच्छा। मधुबन से भी प्यार, टीचर्स से भी प्यार, मीठी-मीठी माताओं से भी प्यार और साथ में महावीर पाण्डवों से भी प्यार। पाण्डवों के बिना भी गति नहीं है। इसीलिए चतुर्भुज रूप की महिमा ज्यादा है। पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का कम्बाइण्ड रूप विष्णु चतुर्भुज है।
माताओं से - मातायें तो बहुत हैं। अभी मातायें वह कपड़े का झण्डा नहीं अव्यक्त उठाओ। कपड़े का झण्डा उठाकर कहते हो ना भगवान आ गया, जागो जागो... लेकिन अभी सच्चा आवाज निकालो। सबके दिल से आवाज निकलवाओ। सच्ची शिवरात्रि मनाओ। सुना माताओं ने। दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ। झण्डा लहराना आता है ना! होशियार हैं। मातायें कम नहीं हैं। बस अभी जगाओ। आपके बच्चे कुम्भकरण सोये हुए हैं। अभी समय आ गया है, अभी उन्हों को जगाओ। उनके मुख से निकालो - बाप आ गया। मातायें ऐसी शिवरात्रि मनाना, कमाल दिखाना। हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हो, बापदादा खुश है। इस शिवरात्रि पर देखेंगे क्या समाचार आता है। फंक्शन किया, यह नहीं। फंक्शन करो लेकिन निकालना जरूर। अच्छा। मातायें तो बहुत हैं, माताओं से ही ब्राह्मण परिवार की शोभा है। माताओं की विशेषता है, चाहे कैसे भी गांव की मातायें हों लेकिन जिस सेवाकेन्द्र पर माताओं की संख्या ज्यादा होगी वहाँ भण्डारी और भण्डारा भरपूर। चाहे पाण्डव एक हो, मातायें 25 हों, लेकिन दिल बड़ी है। अच्छा।
डबल फारेनर्स से - डबल फारेनर्स फारेन से मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? हाथ उठाओ जो मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? बापदादा ने सुना कि 30 देशों से आये हैं। तो कम से कम 30 देशों में तो जाकर आलमाइटी मीडिया बनायेंगे ना? क्या करेंगी बहनें? शक्तियां क्या करेंगी? अच्छा है, देखो कितना बाप से प्यार है, कितने समुद्र पार करके आते हैं। बापदादा को डबल विदेशियों पर नाज़ है, प्यार तो सभी से है लेकिन प्यार के साथ नाज़ भी है कि बाप का सन्देश कोने-कोने में फैलाने के लिए निमित्त बन गये। नहीं तो इण्डिया की बहनें पहले तो लैंग्वेज सीखें फिर सन्देश देवें। लेकिन आप लोगों ने देखो चैरिटी बिगन्स एट होम करके दिखाया है। अभी तो सिर्फ 30 देश आये हैं लेकिन है तो बहुत देशों में ना! तो बहुत अच्छा सन्देश वाहक बने हो। एक-एक बच्चे की विशेषता देख-देख बापदादा बहुत खुश होते हैं। एक बात की डबल विदेशियों में विशेषता है। भारत के विशेषता की लिस्ट अपनी है लेकिन अभी डबल विदेशियों के विशेषता की बात है। तो डबल विदेशी अनुभव से कहते हैं हम ब्रह्मा के बच्चे हैं। हैं विदेशी लेकिन अनुभव से कहते हैं सिर्फ दिमाग से नहीं। दिल से कहते हैं हम ब्रह्माकुमार हैं, हम ब्रह्माकुमारी हैं। दिल से, अनुभव से कहते हो ना! कहने से नहीं कहते, सुनने से नहीं कहते, अनुभव से कहते हैं। रूहानी नशा है ना, ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी बनने का। है नशा? जितना नशा है उतना जोर से हाथ हिलाओ। यह तो बापदादा भी वेरीफाय करते हैं कि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का नशा है। अभी विदेश में शिवरात्रि इतना नहीं करते, 18 जनवरी मनाते हैं। शिवरात्रि यहाँ मनाते हैं और 18 जनवरी या जनवरी में सेवा की धूम मचाते हैं, यह भी अच्छा है लेकिन सेवा में अभी बापदादा देखेंगे कि वारिस और माइक पहला नम्बर कौन निकालते हैं। उसको चांदी का ब्रह्मा बाप देंगे। इनाम देंगे। चाहे भारत वाला हो, चाहे विदेश वाला हो। जो भी निकालेंगे, उनको वह प्राइज मिलेगी। जितने भी सेन्टर्स निकालें, बापदादा के पास भण्डारा भरपूर है। ठीक है ना!
पाण्डव क्या करेंगे? पाण्डव क्या करत भये? पाण्डवों की विजय गाई हुई है। बापदादा पाण्डवों के मस्तक में सदा विक्ट्री देखते हैं और विक्ट्री के बीच में आत्मा चमक रही है। जैसे पाण्डवों का गायन है, पाण्डवों को ड्रामानुसार यादगार में भी विजय का वरदान मिला हुआ है। गायन ही है विजयी पाण्डव। तो पाण्डवों को कभी भी किसी भी बात में हार नहीं खाना है। बापदादा के गले का हार बनना, हार खाना नहीं। जब भी कोई ऐसी बात आवे ना, तो कहो हम बापदादा के गले का हार हैं, हार खाने वाले नहीं हैं। ऐसे पक्के हो? कि थोड़ी-थोड़ी हार खा भी लेते हो? चलो बीती सो बीती। अभी हार नहीं खाना। विजय गले का हार है, हम बाप के गले का हार हैं। हार खाने वाले नहीं। हार खाने वाले तो करोड़ों आत्मायें हैं, आप नहीं हैं। आप तो करोड़ों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हो। मधुबन वाले पाण्डव नशा है ना? विजय का नशा और नशा नहीं। अच्छे हैं, पाण्डव भवन में मैजारिटी पाण्डव हैं, पाण्डव नहीं होते तो आप सबको मधुबन में मजा नहीं आता इसलिए बलिहारी मधुबन निवासियों की जो आपको मौज से रहाते, खिलाते और उड़ाते हैं। आज बापदादा को मधुबन निवासी अमृतवेले से याद आ रहे हैं। चाहे यहाँ हैं, चाहे ऊपर बैठे हुए हैं, चाहे मधुबन वाले कोई यहाँ भी ड्युटी पर हैं लेकिन चारों तरफ के मधुबन निवासियों को बापदादा ने अमृतवेले से याद दिया है।
यू.पी. के सेवाधारियों से - यह (मधुबन वाले) तो सदा के सेवाधारी हैं, आप एक टर्न के सेवाधारी हैं। हर एक ने अपना एक टर्न में अविनाशी पुण्य का खाता बना दिया। थोड़े समय की सेवा अनेक जन्मों के पुण्य की लकीर, भाग्य की बना ली। तो चतुरसुजान निकले ना! एक जन्म में अनेक जन्मों का बना दिया। बापदादा सेवाधारियों को देख विशेष खुश होता है, क्यों? क्यों खुश होता है? क्योंकि आप सब पुरानों को याद होगा कि ब्रह्मा बाप जब साइन करते थे तो क्या करते थे? वर्ल्ड सर्वेन्ट। सेवाधारी। और निराकार बाप भी किसलिए आया है? सेवाधारी बनकर आया है ना? इसलिए बापदादा को सेवाधारी बहुत याद आते, प्यारे लगते हैं। और यह भी अच्छा है जो मैजारिटी सभी आत्माओं को यज्ञ सेवा का पुण्य प्रोग्राम प्रमाण मिल जाता है। यह भी अच्छा है। अच्छा। यू.पी. की सेवाधारी टीचर्स ठीक है ना? बहुत अच्छा। बापदादा ने कहा ना टीचर्स को सदा बापदादा गुरूभाई के रूप में देखता है। अच्छा।
छोटे बच्चों से - बच्चे महात्मा है ना? देखो, बच्चों को भी कितना प्यार है। बच्चे तो चैलेन्ज करने वाले हैं। आजकल प्रेजीडेंट भी बच्चों की बात मानते हैं। भारत का प्रेजीडेंट भी बच्चों को मानते हैं। तो बापदादा भी बच्चों को प्यार करते हैं। ठीक हैं सब बच्चे। ठीक हैं तो हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा। सदा बाबा, बाबा, बाबा कहते रहना। याद में रहना।
कुमारियों से - कुमारियां भी बहुत हैं लेकिन कौन सी कुमारियां हों? 21 जन्म तारने वाली कुमारियां हो या बंधन वाली कुमारियां हो? कुमारी वह जो आत्माओं के 21 जन्म श्रेष्ठ बनाये। कुमारियों की यह महिमा है। अगर बंधन भी है नौकरी का या संबंध का, तो भी कुमारी शक्ति है। अपने योग की शक्ति से अपने को निर्बन्धन बना सकती है। बापदादा यह नहीं कहते कि नौकरी नहीं करो, लेकिन नौकरी करते हुए डबल नौकरी, सेवा करो। फारेन की यह विशेषता है, बापदादा ने फारेन में यह विशेषता देखी है जॉब भी करते, सेन्टर भी सम्भालते, इसलिए बापदादा ऐसे बच्चों को डबल मुबारक देते हैं। सरकमस्टांश हैं तो बापदादा मना नहीं करते, लेकिन बैलेन्स। तो ऐसी कुमारियां हो? सेन्टर खोलें, सेन्टर सम्भालेंगी? इतनी कुमारियां मिलेंगी! सेन्टर खोले? हाथ उठाओ जो हाँ करती हैं, आर्डर करें सेन्टर खोलो, जायेंगी सेन्टर पर? थोड़े हाथ उठा रहे हैं। देखना टी.वी. में आपका फोटो आ गया। अच्छा। हिम्मत वाली हैं। हिम्मत से बाप की मदद मिलती है। अच्छा, मुबारक हो। सेन्टर पर आने की मुबारक हो।
कुमारों से - कुमार - वारिस बना सकते हैं। कुमार माइक भी बना सकते हैं। कुमार तो गवर्मेन्ट को जगा सकते हैं। कुमार कमाल करके दिखायेंगे। वह दिन भी आना ही है। तो कुमारों को जगाओ, समीप लाओ। उनको जगाओ कहो आप भी कुमार, हम भी कुमार, आओ तो आपको कहानियां सुनायें। अच्छा।
बापदादा ने जो रूहानी एक्सरसाइज दी है, वह सारे दिन में कितने बार करते हो? और कितने समय में करते हो? निराकारी और फरिश्ता। बाप और दादा, अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता स्वरूप। दोनों में देह-भान नहीं है। तो देह-भान से परे होना है तो यह रूहानी एक्सरसाइज कर्म करते भी अपनी ड्युटी बजाते हुए भी एक सेकण्ड में अभ्यास कर सकते हो। यह एक नेचुरल अभ्यास हो जाए - अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई) ऐसे निरन्तर भव!
चारों ओर के बापदादा की याद में मगन रहने वाले बाप समान बनने के लक्ष्य को लक्षण में समान बनाने वाले, जो कोने-कोने में साइंस के साधनों से दिन वा रात जाग करके बैठे हुए हैं, उन बच्चों को भी बापदादा यादप्यार, मुबारक और दिल की दुआयें दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं सभी के दिल में इस समय दिलाराम बाप की याद समाई हुई है। हर एक कोने-कोने में बैठे हुए बच्चों को बापदादा पर्सनल नाम से यादप्यार दे रहे हैं। नामों की माला जपें तो रात पूरी हो जायेगी। बापदादा सभी बच्चों को याद देते हैं, चाहे पुरूषार्थ में कौन सा भी नम्बर हो लेकिन बापदादा सदा हर बच्चे के श्रेष्ठ स्वमान को यादप्यार देते हैं और नमस्ते करते हैं। यादप्यार देने के समय बापदादा के सामने चारों ओर का हर बच्चा याद है। कोई एक बच्चा भी किसी भी कोने में, गांव में, शहर में, देश में, विदेश में, जहाँ भी है, बापदादा उसको स्वमान याद दिलाते हुए यादप्यार देते हैं। सब यादप्यार के अधिकारी हैं क्योंकि बाबा कहा तो यादप्यार के अधिकारी हैं ही। आप सभी सम्मुख वालों को भी बापदादा स्वमान के मालाधारी स्वरूप में देख रहे हैं। सभी को बाप समान स्वमान स्वरूप में यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - ठीक हो गई, अभी कोई बीमारी नहीं है। भाग गई। वह सिर्फ दिखाने के लिए आई जो सभी देखें कि हमारे पास भी आती है तो कोई बड़ी बात नहीं है। सभी दादियां बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो। बापदादा सबके पार्ट को देख करके खुश होते हैं। (निर्मलशान्ता दादी से) आदि रत्न हो ना! अनादि रूप में भी निराकारी बाप के समीप हो, साथ-साथ रहते हो और आदि रूप में भी राज्य दरबार के साथी हो। सदा रॉयल फैमिली के भी रॉयल हो और संगम पर भी आदि रत्न बनने का भाग्य मिला है। तो बहुत बड़ा भाग्य है, है ना भाग्य? आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। बोलो नहीं बोलो, कुछ करो नहीं करो लेकिन आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। अच्छा।
ओम् शान्ति।
31-12-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस नये वर्ष में सर्व खज़ाने सफल कर सफलतामूर्त बनने की विशेषता दिखाओ”
आज नव युग रचता, नव जीवन दाता बापदादा नव वर्ष मनाने आये हैं। आप सभी भी नव वर्ष मनाने आये हो वा नव युग मनाने के लिए आये हो? नव वर्ष तो सभी मनाते हैं लेकिन आप सभी नव जीवन, नव युग और नव वर्ष तीनों ही मना रहे हो। बापदादा भी त्रिमूर्ति मुबारक दे रहे हैं। नव वर्ष की एक दो को मुबारक देते हैं और साथ में कोई न कोई गिफ्ट भी देते हैं। गिफ्ट देते हो ना! लेकिन बापदादा ने आप सबको कौन सी गिफ्ट दी है? गोल्डन दुनिया की गिफ्ट दी है। सभी को गोल्डन दुनिया की गिफ्ट मिल गई है ना! जिस गोल्डन दुनिया में, नव युग में सर्व प्राप्तियां हैं। याद है अपना राज्य? कोई अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं है। ऐसी गिफ्ट सिवाए बापदादा के और कोई दे नहीं सकता। सारे विश्व में अगर कोई बड़े ते बड़ी सौगात देंगे भी तो क्या देंगे? बड़े ते बड़ा ताज वा तख्त दे देंगे। जब स्थापना हुई थी, (आगे-आगे बैठे हैं स्थापना वाले) तब आदि में ही ब्रह्मा बाप बच्चों से पूछते थे कि अगर आपको आजकल की कोई भी रानी ताज और तख्त देवे तो आप जायेंगे? याद है ना! तो बच्चे कहते थे इस ताज और तख्त को क्या करेंगे, जब बाप मिल गया तो यह क्या! तो इस गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट के आगे कोई भी गिफ्ट बड़ी नहीं हो सकती। कई बच्चे पूछते हैं वहाँ क्या-क्या प्राप्ति होगी? तो बापदादा कहते हैं प्राप्तियों की लिस्ट तो लम्बी है लेकिन सार रूप में क्या कहेंगे! अप्राप्त कोई नहीं वस्तु, जो जीवन में चाहिए वह सब प्राप्त होंगे। तो ऐसी गोल्डन गिफ्ट की अधिकारी आत्मायें हो। अधिकारी हैं ना! डबल विदेशी अधिकारी हैं? (हाथ हिलाते हैं) सभी राजा बनेंगे? राजा बनेंगे, अच्छा। इतने तख्त तैयार करने पड़ेंगे। बापदादा कहते हैं वह तख्त तो तख्त है, सर्व प्राप्ति हैं लेकिन इस संगमयुग का स्वराज्य उससे कम नहीं है। अभी भी राजा हो ना! प्रजा हो या रॉयल फैमिली हो? क्या हो? एक ही बाप है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा राजा बच्चा है। राजा हो ना! राजयोगी हो कि प्रजा योगी हो? इस समय सब दिलतख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा हो। इतना रूहानी नशा रहता है ना? क्योंकि इस समय के स्वराज्य से ही भविष्य राज्य प्राप्त होता है। यह संगमयुग बहुतबहुत- बहुत अमूल्य श्रेष्ठ है। संगमयुग को बापदादा और सभी बच्चे जानते हैं, खुशी-खुशी में संगमयुग को नाम क्या देते हैं? मौजों का युग। क्यों? यहाँ संगम जैसी मौज सारे कल्प में नहीं है। कारण? परमात्म मिलन की मौज सारे कल्प में अब मिलती है। संगमयुग का एक एक दिन क्या है? मौज ही मौज है। मौज है ना? मौज है, मूंझते तो नहीं हो ना! हर दिन उत्सव है क्योंकि उत्साह है। उमंग है, उत्साह है कि अपने सर्व भाई बहनों को परमात्मा पिता का बनायें। सेवा का उमंग-उत्साह रहता है ना! यह करें, यह करें, यह करें... प्लैन बनाते हो ना! क्योंकि जो श्रेष्ठ प्राप्ति होती है तो दूसरे को सुनाने के बिना रह नहीं सकते हैं। इसी संगमयुग की प्राप्ति गोल्डन वर्ल्ड में भी होगी। अभी के पुरूषार्थ की प्रालब्ध भविष्य गोल्डन वर्ल्ड है। तो संगमयुग अच्छा लगता है या सतयुग अच्छा लगता है? क्या अच्छा लगता है? संगम अच्छा है ना? सिर्फ बीच-बीच में माया आती है। थोड़ा-थोड़ा कभी-कभी मूंझ जाते हैं। कई बच्चे सहज योग को मुश्किल योग बना देते हैं, है नहीं लेकिन बना देते हैं। वास्तव में है बहुत सहज, मुश्किल लगता है? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। सदा नहीं, कभी कभी मुश्किल है? या सहज है? जो मुश्किल योगी हैं वह हाथ उठाओ। मुश्किल वाले हाथ उठाओ। मातायें मुश्किल योगी हो या सहज होगी? कोई मुश्किल योगी है? हाथ नहीं उठायेंगे, सारी सभा में कैसे उठायेंगे!
सभी बच्चे फलक से कहते हैं मेरा बाबा। कहते हैं, मेरा बाबा? मेरा बाबा है कि दादियों का बाबा है? मेरा बाबा है ना! हर एक कहेगा पहले मेरा। ऐसे है? यह सिन्धी लोग सभी बैठे हैं ना! मेरा बाबा है या दादी जानकी का है? दादी प्रकाशमणि का है? किसका है? मेरा है? मेरा है? सारा दिन क्या याद रहता है? मेरा ना! बाप कहते हैं बहुत सहज युक्ति है जितने बार मेरा- मेरा कहते हैं, सारे दिन में कितने बार मेरा शब्द कहते हो? अगर गिनती करो तो बहुत बार मेरा शब्द बोलते हो। जब मेरा शब्द बोलते हो तो बस मेरा कौन? मेरा बाबा। मुश्किल है? कभी-कभी भूल तो जाते हो? बापदादा कोई नया शब्द नहीं देता है, जो सदैव कार्य में लाते हो मैं और मेरा, तो मैं कौन और मेरा कौन! कई बच्चे मुश्किल पुरूषार्थ क्यों करते? सिर्फ सोचते हैं बिन्दू सामने आ जाए, बिन्दु-बिन्दु-बिन्दु.... और बिन्दु खिसक जाती है। बिन्दु तो है लेकिन कौन-सी बिन्दु? मैं कौन हूँ, यह अपने स्वमान स्मृति में लाओ तो रमणीक पुरूषार्थ हो जायेगा सिर्फ ज्योति बिन्दु कहते हो ना तो मुश्किल हो जाता है। सहज पुरूषार्थ, मौज का पुरूषार्थ करो।
इस नये वर्ष में पुरूषार्थ भी श्रेष्ठ हो लेकिन श्रेष्ठ के साथ पहले सहज हो। सहज भी हो और श्रेष्ठ भी हो यह हो सकता है? दोनों साथ हो सकता है? डबल फारेनर्स बोलो, हो सकता है? तो बापदादा देखेंगे। बापदादा तो चेक करते रहते हैं ना! तो मुश्किल योगी कौन-कौन बनता है! सहज योगी का यह मतलब नहीं है कि अलबेलेपन का पुरूषार्थ हो। श्रेष्ठ भी हो और सहज भी हो। तो पाण्डव सहज योगी हैं? सहजयोगी जो हैं वह हाथ उठाओ। देखना टी.वी. में आ रहा है। मुबारक हो। तो यह वर्ष कोई के आगे कोई मुश्किलात नहीं आयेगी क्योंकि सहज योगी हो। अलबेले नहीं बनना। समय प्रमाण इस नये वर्ष में सभी को विशेष यह लक्ष्य रखना है कि जो भी खज़ाने प्राप्त हैं - समय है, संकल्प हैं, गुण हैं, ज्ञान है, शक्तियां हैं... सबसे बड़ा खज़ाना संकल्प है - श्रेष्ठ संकल्प, शुद्ध संकल्प। इन सभी खज़ानों को हर रोज सफल करना है। खूब बांटो। दाता के बच्चे मास्टर दाता बनो। खूब बांटों। क्यों? सफल करना अर्थात् सफलता को प्राप्त करना। तो यही इस वर्ष की विशेषता सदा कायम रखना। सफल करना है और सफलता है ही है। सभी कहते भी हो ना कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। है अधिकार? तो सफल करो और सफलता प्राप्त करो। कोई भी कार्य करो, कोई न कोई खज़ाना सफल करते जाओ और सफलता का अनुभव करते चलो। सोचो - सफलता का अधिकार आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और किसका अधिकार हो सकता है! क्यों? क्योंकि बाप ने आपको सफलता भव का वरदान दिया है। बापदादा सदा कहते हैं कि एक-एक ब्राह्मण आत्मा सफलता का सितारा है। सफलता स्वरूप है। सफलता कि सितारे हो ना या मेहनत के सितारे हो? बापदादा सभी बच्चों को सफलता का सितारा इसी स्वरूप में देखते हैं। याद है ब्रह्मा बाप ने आदि में कितने समय में सब सफल किया? अन्त तक अपना समय सफल किया, चाहे कर्मातीत भी बन गये फिर भी कितने पत्र लिखे! समय सफल किया ना! लास्ट दिन भी मुख से महावाक्य उच्चारण किये। लास्ट दिन तक सब सफल किया इसीलिए सफलता को प्राप्त हो गये। तो फालो फादर। वास्तव में संगमयुग का एक-एक संकल्प, एक-एक सेकण्ड सफल करना ही सफलता मूर्त बनना है। सभी निश्चय से कहते हैं ना कि ब्रह्मा बाप से तो हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी है जो बाप को प्रिय था वह बच्चों को प्रिय हो। समय, संकल्प और सर्व खज़ाने सफल हो। व्यर्थ नहीं हो। प्यार की निशानी फालो फादर। ब्रह्मा बाप ने विशेषता क्या दिखाई? जो सोचा वह सेकण्ड में किया। सिर्फ सोचा नहीं, सिर्फ प्लैन नहीं बनाया, प्रैक्टिकल में करके दिखाया। तो ऐसे है? फालो करने वाले हैं ना? अच्छा है।
आज बहुत ही आ गये हैं न्यु ईयर मनाने के लिए। अच्छा है। अगर हाल छोटा पड़ गया तो दिल तो बड़ी है। देखो दिल बड़ी है तो समा गये है ना? (आज सभा में 18-19 हजार भाई बहनें बैठे हैं) सभी बाहर बैठे हुए भी सुन रहे हैं ना? बाहर बैठने वाले सुन रहे हैं, वह तो दिखाई नहीं देंगे। बापदादा ने सुना कि फारेन में सबसे ज्यादा आस्ट्रेलिया वाले 12 बजे बैठते हैं। रात के 12 बजे बैठते हैं और 4 बजे अमृतवेला करके उठते हैं। तो बापदादा ने भी आज आस्ट्रेलिया को याद किया। सुन रहे हैं। यहाँ आस्ट्रेलिया वाले हैं हाथ उठाओ। त्रिमूर्ति मुबारक पहले आस्ट्रेलिया को फिर सभी को।
इस वर्ष का लक्ष्य तो बताया - सफल करो, सफलता है ही। यह सभी ने पक्का किया? सफल करना है। व्यर्थ नहीं। संगमयुग समर्थ युग है, सफलता का युग है, व्यर्थ का नहीं है। व्यर्थ के 63 जन्म समाप्त हुए। अब यह छोटा सा युग सफल करने का युग है। अगर समय सफल करेंगे तो भविष्य में भी आधाकल्प का पूरा समय राज्य अधिकारी बनेंगे। अगर कभी-कभी सफल करेंगे तो राज्य अधिकारी भी कभी-कभी बनेंगे। समय सफल की प्रालब्ध यह है। श्वांस सफल कर रहे हो तो 21 जन्म ही स्वस्थ रहेंगे। चलते-चलते हार्टफेल नहीं होगी। किसकी हार्ट रूक जाती, किसकी नलियां बन्द हो जाती, वह नहीं होगी।
ज्ञान के खज़ाने को भी सफल करो तो ज्ञान का अर्थ है समझ, वहाँ इतने समझदार बन जायेंगे जो कोई मन्त्रियों की जरूरत नहीं है। आजकल तो देखो शपथ लेते ही पहले मन्त्रीमण्डल बनाते हैं। वहाँ साथी होंगे लेकिन मन्त्री नहीं होगे। रायल फैमिली हर एक दरबार में बैठने वाले ताजधारी होंगे। रॉयल फैमिली कम नहीं होगी, चाहे तख्त पर नहीं भी बैठे लेकिन मर्तबा एक ही जैसा होगा। इसलिए यह नहीं सोचो कि तख्तनशीन बहुत थोड़े बनेंगे लेकिन आप लोग भी राज दरबार में राज्य अधिकारी के रूप में होंगे। आपके सिर पर भी ताज होगा और आपका पूरा अधिकार होगा। तो क्या बनेंगे? नम्बरवन या नम्बरवार? क्या बनेंगे? नम्बरवार बनेंगे या नम्बरवन बनेंगे? क्या बनेंगे? नम्बरवन या नम्बरवार? तो क्या करना पड़ेगा, पता है? हिम्मत दिखाई, यह बहुत अच्छा है। लेकिन वन नम्बर बनने के लिए पहले विन करना पड़ेगा। कर रहे हैं ना! करेंगे नहीं कहना, कर रहे हैं। दूसरे भी सुन रहे हैं। आज सुना कि पुराने सिन्ध के ब्रह्मा के साथी बहुत आये हैं। हाथ उठाओ। हिन्दी नहीं सिन्धी। बच्चे उठो, परिवार के परिवार आये हैं। अच्छा। कोई कमाल दिखायेंगे ना! क्या दिखायेंगे? (मैसेज देंगे) वह तो कर ही रहे हो। अच्छा 38 आये हैं, तो क्या कमाल करेंगे? चलो ज्यादा नहीं कहते हैं, छोटी-सी बात कहते हैं, करने के लिए तैयार हो? बच्चे भी कमाल करेंगे ना? (38 लाख बनायेंगे) पद्मगुणा मुबारक हो। आपने तो बड़ी बात बता दी लेकिन बापदादा छोटी बात कहते हैं वह एक एक, एक को लाओ। लाना है? एक, एक को लाओ। बच्चे हैं तो बच्चों को लाओ। मातायें हैं तो भाई को लायें या बहन को लायें, लेकिन एक-एक को एक लाना है। यह ग्रुप देख लो, आप इसको गाइड करना, अगले साल लेकर ही आना, डबल ग्रुप लेकर आना। बापदादा यही चाहते हैं कि जहाँ से आदि हुई, वहाँ ही प्रत्यक्षता होनी है। रहम आता है ना! ब्रह्मा बाप के देश के वासी हो तो देश वासियों से प्यार होता है।
आपके पास खज़ाने बहुत हैं, गुणों का खज़ाना कितना बड़ा है, शक्तियों का खज़ाना कितना बड़ा है। तो गुण दान, शक्तियों का दान करने वाले मास्टर दाता बनो। जो भी आये चाहे सम्बन्ध में आये, चाहे सम्पर्क में आये लेकिन उनको कोई न कोई गुण या शक्ति की गिफ्ट दे देना। कोइर् खाली हाथ नहीं जाये। और कुछ नहीं तो बाप के सन्देश के मीठे बोल, वह मीठे बोल भी गिफ्ट देना। दुनिया वाले तो कोई भी उत्सव होता है ना तो एक दो को मुख मीठा कराते हैं। लेकिन बापदादा कहते हैं मुख मीठा तो कराना ही है लेकिन अपना मीठा मुखड़ा भी दिखाना है। सिर्फ मुख मीठा नहीं, मुखड़ा भी मीठा। इतनी मधुरता जमा है ना! जो बांटो तो भी भरपूर रहो और इस खज़ाने को तो जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा, कम नहीं होगा। तो इस वर्ष नोट करना, जो भी आत्मा आई उसको कुछ दिया? अगर सुनने वाला नहीं है तो मीठी शक्तिशाली दृष्टि देना। लेकिन देना जरूर। खाली नहीं जाये। यह तो सहज है ना! कि मुश्किल है? यूथ ग्रुप सहज है? हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हैं। यूथ ग्रुप भी अच्छा आया है।
डबल विदेशी यूथ रिट्रीट ग्रुप - सबसे श्रेष्ठ शक्ति यूथ के लिए है - परिवर्तन शक्ति। सोचा और किया। यूथ ने वायदे बहुत किये हैं ना! बापदादा ने समाचार सुना है। सभी यूथ कौन बन गये? (सभी यूथ हाथ हिला रहे हैं) सब तिलकधारी बनकर आये हैं, जिन्होंने विशेष रिफ्रेशमेंट की है वह तिलकधारी खड़े रहो। (तिलक लगाकर बैठे हैं) अच्छी निशानी लगाई है। आत्मा चमक गई है ना? जो समझते हैं कि हमारी इस ट्रेनिंग से गोल्डन हार्ट बन गई, वह हाथ उठाओ। गोल्डन हार्ट बन गई। यह तो सबसे आगे चले गये। गोल्डन स्टार नहीं, गोल्डन हार्ट। फिर तो सफलता मूर्त हो गये। अभी गोल्डन हार्ट प्लेन में थोड़ा नीचे तो नहीं आ जायेगी, अच्छा अपने देश में जाके थोड़ा गोल्डन सिल्वर बनेंगी? नहीं बनेगी? अच्छा है। ऐसे तैयार हो जाओ जो भारत की आत्माओं को जगाओ। है हिम्मत? भारत को जगायेंगे? बहुत टेढ़े-बांके क्वेश्चन करेंगे भारत वाले। उत्तर देंगे? आप सबका फोटो टी.वी. में आ रहा है। तो आप सबको निमन्त्रण आयेगा भारत को जगाने के लिए। तो एवररेडी रहना। अगर टिकेट नहीं होगी तो मिल जायेगी। बापदादा को पता है कि डबल फारेनर्स की विशेषता है, एक साल होकर जाते हैं, दूसरे साल की तैयारी सारे वर्ष में करते जाते हैं। अच्छा है। कितने देशों के यूथ हैं? (21 देशों के) बापदादा जानते हैं कि यह गोल्डन हार्ट कमाल करेंगे। अटेन्शन अच्छा रखा है। स्व-पुरूषार्थ का अटेन्शन ज्यादा इस बारी अन्डरलाइन किया है। बापदादा खुश है। अच्छा है ग्रुप-ग्रुप बनने से अटेन्शन जाता है। सारे संगठन के बजाए ग्रुप अच्छा होता है लेकिन पॉजिटिव हो।
अच्छा-(बापदादा ग्रुप-ग्रुप उठा रहे हैं) (अन्तर्मुखी ग्रुप) अच्छा पुरूषार्थ किया है। बापदादा देखते है कि हर ग्रुप यही चाहता है कि हम आगे से आगे जायें। रीस नहीं करते, रेस करते हैं। अच्छा है, अन्तर्मुखी सदा सुखी। (शक्ति ग्रुप) - बापदादा शक्ति ग्रुप से पूछते हैं कि प्रत्यक्षता का झण्डा कब लहरायेंगे? बोलो, शक्तियां तो झण्डा लहराने वाली हैं ना! तो प्रत्यक्षता का झण्डा शक्तियां लहरायेंगी ना! अच्छा है। अभी आपस में रूहरूहान कर डेट को फिक्स करना। जैसे और डेट फिक्स करते हो वैसे यह भी डेट फिक्स करना कि प्रत्यक्षता का झण्डा कब लहरेगा? लहरायेंगे ना! (महावीर ग्रुप) महावीर ग्रुप क्या करेगा? साल के साथ-साथ सदा के लिए माया को भी विदाई देना। हो सकता है? माया को विदाई देंगे? कि आवे कोई हर्जा नहीं? महावीर का अर्थ ही है जैसे ब्रह्मा बाप ने जो कहा वह किया है, जो सोचा वह तुरत दान महापुण्य समान किया। ऐसे ही महावीर ग्रुप का यह लक्ष्य है ना! करेंगे? अच्छा है। हिम्मत तो आती है। (विदेश के छोटे बच्चों का ग्रुप) सभी ने अपनी निशानी लगाई है। (यूथ ने तिलक लगाया है, इन्होंने बैनर बनाया है, झण्डी हाथ में है।) एंजिल से देवता बन गये, कितना अच्छा है। तो देवता माना दिव्य गुण वाले। तो दिव्य गुण को कभी नहीं छोड़ना। अच्छा है। बच्चों का उमंग-उत्साह बढ़ता है। इण्डिया के बच्चे भी उठो - (भारत से 1000 बच्चे आये हैं) अच्छा है भारत और विदेश के सब देशों के मिलकरके दिल्ली को घेराव करो। दिल्ली को अपनी राजधानी बनाना है ना? तो पहले राजधानी तैयार करेंगे, तब तो राज्य करेंगे ना! ऐसा दिल्ली के चारों ओर घेराव करो जो सारे भारत के वी.आई.पी. जग जावें। भारत के बच्चे भी करेंगे ना! अच्छे हैं, भारत भी कम नहीं है। बच्चे अच्छे-अच्छे आये हैं। अच्छा।
अभी इस वर्ष नवीता क्या करेंगे? अभी बापदादा ने जो काम दिया है, वह किया नहीं है। माइक और वारिस का ग्रुप कहाँ लाया है। बापदादा यही कहते हैं वेट एण्ड सी। प्रत्यक्षता का झण्डा यह माइक लहराने में होशियार होते हैं। हैं अलग-अलग देशों में कोई-कोई माइक हैं लेकिन संगठित रूप में सामने नहीं आये हैं, अभी उन्हों को इकट्ठा करो। इकट्ठा करने से क्या होता है? एक दो को देखकरके उन्हों को उमंग आता है, उत्साह आता है। भारत में भी माइक चाहिए, तो विदेश में भी चाहिए। तैयार हो रहे हैं ना? लेकिन अभी छिपे हुए हैं, पर्दे के अन्दर हैं, अभी बाहर लाओ। बाहर लाना है ना! बहुत अच्छा।
माताओं का झुण्ड तो बहुत बड़ा है। अगर उठायेंगे तो सारा हाल छिप जायेगा। माताओं को देखकर बापदादा खुश होते हैं। क्यों खुश होते हैं? क्योंकि संगम में माताओं को ही बापदादा के द्वारा चांस मिलता है। द्वापर, कलियुग में नहीं मिला, अभी मिल रहा है। चाहे महात्माओं में भी अभी दिन प्रतिदिन ज्यादा चांस मिल रहा है। गवर्मेन्ट में भी अभी माताओं को सेवा करने का चांस मिल रहा है। बापदादा सदा कहते हैं कि यह मातायें जिस भी सेन्टर पर होंगी ना वह सेन्टर सदा फलीभूत होगा। चाहे कमायें नहीं लेकिन दिल बड़ी होती है, भावना बड़ी होती है। तो बाप भी भावना और सच्ची दिल को पसन्द करते हैं। हर ग्रुप में देखा है मातायें ज्यादा ही होती हैं। तो मातायें अभी हमजिन्स को और जगाओ। आप लाओ हाल आपेही बड़ा हो जायेगा। यह नहीं सोचो हाल अभी भर गया, कहाँ बैठेंगे, लाओ तो सब कुछ हो जायेगा। हो जायेगा ना? दादी यह तो नहीं सोचती कि क्या करेंगे? कम से कम 9 लाख बैठ सकें, इतनी प्रजा तो तैयार करेंगे या नहीं? कब करेंगे? कब करेंगे, वह डेट फिक्स करेंगे। 9 लाख लायेंगे पहले, पाण्डव लायेंगे। बापदादा हाल तैयार कर लेंगे लेकिन 9 लाख लाओ। (एक एक लाख हर वर्ष लायेंगे) ऐसा नहीं। वह तो आवें, उसकी तो मना है ही नहीं। लेकिन आखिर स्टेज पर 9 लाख तो लायेंगे या नहीं? नहीं तो राज्य किस पर करेंगे? आपके पहले जन्म में 9 लाख भी प्रजा या रॉयल फैमिली नहीं होगी तो किस पर राज्य करेंगे? मधुबन वाले क्या सोचते हैं? 9 लाख चाहिए या नहीं? 9 लाख चाहिए, मुख्य पाण्डव क्या कहते हैं? चाहिए, नहीं चाहिए? हो जायेगा। जब 9 लाख आयेंगे तो साधन स्वत: जुट जायेगा। घबराओ नहीं, हाल बनाना पड़ेगा। देखो, भविष्य बहुत-बहुत उज्जवल है। सब साधन मिल जायेंगे। बने बनाये हाल आपको मिलेंगे। बनाने नहीं पड़ेंगे। सिर्फ जो इस वर्ष का स्लोगन दिया है ना - सफल करो, सफलता है ही। अच्छा। पाण्डव हाथ हिलाओ।
टीचर्स - टीचर्स अभी स्वयं भी सफल करो और सफल कराओ। सेवा में वृद्धि होना अर्थात् खज़ानों को सफल किया और कराया। तो इस वर्ष इस स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना तो स्वत: ही वृद्धि होती जायेगी। हिम्मत दिलाओ। बापदादा ने देखा है, कोई-कोई स्थान में हिम्मत कम दिलाने की शक्ति है। हिम्मत दिलाओ, हर कार्य में मन्सा में भी, वाचा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, कर्म में भी हिम्मत दिलाओ। टीचर्स की सीट ही है -हिम्मत में रहना और हिम्मत दिलाना। क्यों? क्योंकि टीचर्स को जो बाप की मुरली सुनाने का चांस मिला है और तख्त मिला है, यह एकस्ट्रा मदद है। तो हिम्मत और उल्हास दिलाओ। सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे। सुना टीचर्स ने। उल्हास में लाओ क्लास को।
सेवा का टर्न इन्दौर जोन का है - अच्छा इन्दौर का ग्रुप उठो। अच्छा है - सेवा के लिए डायमण्ड चांस मिला है। एक कर्मणा और दूसरा स्व-उन्नति का भी डायमण्ड चांस। अच्छा - सभी ने हिम्मत अच्छी रखी है। सेवा का उमंग भी अच्छा रहा है। सबसे बड़े ग्रुप को सम्भाला है। तो हिम्मत के रिटर्न में बापदादा का पदम-पद्मगुणा मुबारक है। सदा ही डायमण्ड बन सेवा में डायमण्ड चांस लेते रहना। अच्छा है। बहुत अच्छा। ज्युरिस्ट विंग के भाई बहनों की मीटिंग हो रही है - इन्टरनेशनल है ना। अगर इतने वकील या जज हो गये, फिर तो गीता का भगवान सिद्ध हो जायेगा। अच्छा है। बहुत अच्छा। ऐसा प्लैन बनाओ जो कोई ने नहीं किया हो, वर्ग तो बहुत बने हुए है ना! तो आपका वर्ग सबसे नम्बरवन ले लेवे। अच्छा है। ग्रुप अच्छा है। लेकिन ऐसे प्लैन बनाओ जो सांप मरे और लाठी भी नहीं टूटे। प्रत्यक्षता हो, धमाल नहीं हो, कमाल हो। अच्छा है और भी संगठन इकट्ठा करो। (प्लान बनाया है) मुबारक हो। अच्छा।
कल्चरल ग्रुप - नाचना गाना तो सभी को आता है, बाप के गुणों का गीत गाना भी आता है और खुशी में नाचना भी आता है। अच्छा है। कल्चर द्वारा भारत का कैरेक्टर प्रसिद्ध करो। हो कल्चर लेकिन कैरेक्टर सिद्ध हो जाए कि श्रेष्ठ कैरेक्टर क्या है! अच्छा है वर्ग जबसे बने हैं, अलग-अलग सेवा तो कर रहे हैं। कमाल करके दिखाना। सब कमाल करने वाले हैं ना? कमाल करना है ना! हर वर्ग को अभी नया-नया प्लैन बनाना चाहिए। यह वर्ग बनके कितना साल हो गये हैं? (20 साल) बापदादा ने सभी वर्ग वालों को कहा था, याद है कि अपने-अपने वर्ग का विशेष सेवा में माइक बने, या वारिस बनें, ऐसा संगठन तैयार करो। तो आपके कल्चरल में कौन तैयार हुआ है? लाया है? तो बाप का सन्देश देने के लिए आपकी तरफ (बाम्बे के प्रसिद्ध एक्टर परिक्षित सहानी परिवार बापदादा के सामने खड़ा है) सब अंगुली कर रहे हैं। अच्छा है। प्लैन बनायेगा। हिम्मत आपकी, मदद बाप की है ही है।
अच्छा - एक सेकण्ड में मन की ड्रिल याद है? हर एक सारे दिन में कितने बार यह ड्रिल करते हो? यह नोट करो। यह मन की ड्रिल जितना बार करेंगे उतना ही सहज योगी, सरल योगी बनेंगे। एक तरफ मन्सा सेवा दूसरे तरफ मन्सा एक्सरसाइज। अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। ब्रह्मा बाप आप फरिश्तों का आह्वाहन कर रहे हैं। फरिश्ता बनके ब्रह्मा बाप के साथ अपने घर निराकार रूप में चलना। फिर देवता बन जाना। अच्छा -
चारों तरफ से बहुत-बहुत यादप्यार चाहे कार्ड के रूप में, चाहे पत्रों के रूप में बापदादा के पास पहुंच गये हैं। बापदादा जानते हैं कि हर बच्चा यही समझते हैं मेरी याद बाबा को देना, लेकिन मिल गई है। यादप्यार देने वाले बहुत लाडले बच्चे बापदादा के सामने हैं। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर एक बच्चा अपने-अपने नाम से मुबारक अौर दिल की दुआयें स्वीकार करे।
आप सभी को भी नव जीवन, नव युग और नये वर्ष की बहुत-बहुत पदम-पदम-पदम-पद्मगुणा मुबारक और दिल की दुआयें हैं, यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी, दादी जानकी जी से - आप दोनों एक मत होकरके सारे परिवार को चलाने के निमित्त बनी हो। यह सभी आपके साथी हैं। सुनाया ना - अगर सफल करते जायेंगे तो मायाजीत बन ही जायेंगे। दादियां कहती हैं कि इस साल में सभी एकमत हो जाएं। जिसको भी देखो एक हैं। जैसे दादियों के लिए कहते हो एक हैं, ऐसे आप दीदियां, दादे सब एकमत। इसका स्लोगन है अभी-अभी बालक बनो, अभी-अभी मालिक बनो। बालक के समय मालिक नहीं बनो, मालिक के समय बालक नहीं बनो। तो दादियों को यह संकल्प उठा है, वो पूरा कौन करेगा? आप सभी करेंगे ना? अगर विचारों में फर्क हो जाये तो क्या करेंगे? अच्छा। सभी को देख बापदादा खुश हो रहे हैं। एक दिन आयेगा, बहुत जल्दी आयेगा जो सब कहेंगे कि हम सभी स्व-परिवर्तन करने वाले शक्ति पाण्डव सेना हैं। स्व-परिवर्तन। पुराने साल को विदाई देने के साथ-साथ माया को भी विदाई दे दो। वह भी थक गई है। विदाई और बधाई दोनों साथ-साथ।
नया वर्ष 2003 का शुभारम्भ - 31 दिसम्बर 2002, रात्रि 12 बजे के बाद बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष की बधाई दी।
चारों ओर के बहुत मीठे, बहुत प्यारे बच्चों को पदम-पदम गुणा न्यु ईयर की मुबारक हो। यह जो घड़ी बीत गई, यह है विदाई और बधाई की घड़ी। एक तरफ विदाई देनी है, जो अपने में सम्पन्न बनने में कमी अनुभव करते हो, उसको विदाई, सदा के लिए विदाई देना और आगे उड़ने के लिए बधाई। बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। अच्छा
ओम् शान्ति।
18-01-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“ब्राह्मण जन्म की स्मृतियों द्वारा समर्थ बन सर्व को समर्थ बनाओ”
आज चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह के मीठे-मीठे याद के भिन्न-भिन्न बोल, स्नेह के मोती की मालायें बापदादा के पास अमृतवेले से भी पहले पहुंच गई। बच्चों का स्नेह बापदादा को भी स्नेह के सागर में समा लेता है। बापदादा ने देखा हर एक बच्चे में स्नेह की शक्ति अटूट है। यह स्नेह की शक्ति हर बच्चे को सहजयोगी बना रही है। स्नेह के आधार पर सर्व आकर्षणों से उपराम हो आगे से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा एक बच्चा भी नहीं देखा जिसको बापदादा द्वारा या विशेष आत्माओं द्वारा न्यारे और प्यारे स्नेह का अनुभव न हो। हर एक ब्राह्मण आत्मा का ब्राह्मण जीवन का आदिकाल स्नेह की शक्ति द्वारा ही हुआ है। ब्राह्मण जन्म की यह स्नेह की शक्ति वरदान बन आगे बढ़ा रही है। तो आज का दिन विशेष बाप और बच्चों के स्नेह का दिन है। हर एक ने अपने दिल में स्नेह के मोतियों की बहुत-बहुत मालायें बापदादा को पहनाई। और शक्तियां आज के दिन मर्ज हैं लेकिन स्नेह की शक्ति इमर्ज है। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के सागर में लवलीन है।
आज के दिन को स्मृति दिवस कहते हो। स्मृति दिवस सिर्फ ब्रह्मा बाप के स्मृति का दिवस नहीं है लेकिन बापदादा कहते हैं आज और सदा यह याद रहे कि बापदादा ने ब्राह्मण जन्म लेते ही आदि से अब तक क्या-क्या स्मृतियां दिलाई हैं। वह स्मृतियों की माला याद करो, बहुत बड़ी माला बन जायेगी। सबसे पहली स्मृति सबको क्या मिली? पहला पाठ याद है ना! मैं कौन! इस स्मृति ने ही नया जन्म दिया, वृत्ति दृष्टि स्मृति परिवर्तन कर दी है। ऐसी स्मृतियां याद आते ही रूहानी खुशी की झलक नयनों में, मुख में आ ही जाती है। आप स्मृतियां याद करते और भक्त माला सिमरण करते हैं। एक भी स्मृति अमृतवेले से कर्मयोगी बनने समय भी बार-बार याद रहे तो स्मृति समर्थ स्वरूप बना देती है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी ही समर्थी स्वत: ही आती है। इसलिए आज के दिन को स्मृति दिन साथ-साथ समर्थ दिन कहते हैं। ब्रह्मा बाप सामने आते ही, बाप की दृष्टि पड़ते ही आत्माओं में समर्थी आ जाती है। सब अनुभवी हैं। सभी अनुभवी हैं ना! चाहे साकार रूप में देखा, चाहे अव्यक्त रूप की पालना से पलते अव्यक्त स्थिति का अनुभव करते हो, सेकण्ड में दिल से बापदादा कहा और समर्थी स्वत: ही आ जाती है। इसलिए ओ समर्थ आत्मायें अब अन्य आत्माओं को अपनी समर्थी से समर्थ बनाओ। उमंग है ना! है उमंग, असमर्थ को समर्थ बनाना है ना! बापदादा ने देखा कि चारों ओर कमज़ोर आत्माओं को समर्थ बनाने का उमंग अच्छा है।
शिव रात्रि के प्रोग्राम धूमधाम से बना रहे हैं। सबको उमंग है ना! जिसको उमंग है बस इस शिवरात्रि में कमाल करेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसी कमाल जो धमाल खत्म हो जाए। जय-जयकार हो जाये वाह! वाह समर्थ आत्मायें वाह! सभी जोन ने प्रोग्राम बनाया है ना! पंजाब ने भी बनाया है ना! अच्छा है। भटकती हुई आत्मायें, प्यासी आत्मायें, अशान्त आत्मायें, ऐसी आत्माओं को अंचली तो दे दो। फिर भी आपके भाई-बहने हैं। तो अपने भाईयों के ऊपर, अपनी बहनों के ऊपर रहम आता है ना! देखो, आजकल परमात्मा को आपदा के समय याद करते लेकिन शक्तियों को, देवताओं में भी गणेश है, हनुमान है और भी देवताओं को ज्यादा याद करते हैं, तो वह कौन हैं? आप ही हो ना! आपको रोज याद करते हैं। पुकार रहे हैं – हे कृपालु, दयालु रहम करो, कृपा करो। जरा सी एक सुख शान्ति की बूंद दे दो। आप द्वारा एक बूंद के प्यासी हैं। तो दु:खियों का, प्यासी आत्माओं का आवाज हे शक्तियां, हे देव नहीं पहुंच रहा है! पहुंच रहा है ना? बापदादा जब पुकार सुनते हैं तो शक्तियों को और देवों को याद करते हैं। तो अच्छा प्रोग्राम दादी ने बनाया है, बाबा को पसन्द है। स्मृति दिवस तो सदा ही है लेकिन फिर भी आज का दिन स्मृति द्वारा सर्व समार्थियां विशेष प्राप्त की, अब कल से शिवरात्रि तक बापदादा चारों ओर के बच्चों को कहते कि यह विशेष दिन यही लक्ष्य रखो कि ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा वा सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा किसी भी विधि से सन्देश रूपी अंचली जरूर देना है। अपना उल्हना उतार दो। बच्चे सोचते हैं अभी विनाश की डेट तो दिखाई नहीं देती है, तो कभी भी उल्हना पूरा कर लेंगे लेकिन नहीं अगर अभी से उल्हना पूरा नहीं करेंगे तो यह भी उल्हना मिलेगा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया। हम भी कुछ तो बना देते, फिर तो सिर्फ अहो प्रभू कहेंगे। इसलिए उन्हें भी कुछ-कुछ तो वर्से की अंचली लेने दो। उन्हों को भी कुछ समय दो। एक बूंद से भी प्यास तो बुझाओ, प्यासे के लिए एक बूंद भी बहुत महत्त्व वाली होती है। तो यही प्रोग्राम है ना कि कल से लेके बापदादा भी हरी झण्डी नहीं, नगाड़ा बजा रहे हैं कि आत्माओं को, हे तृप्त आत्मायें सन्देश दो, सन्देश दो। कम से कम शिवरात्रि पर बाप के बर्थ डे का मुख तो मीठा करें कि हाँ हमें सन्देश मिल गया। यह दिलखुश मिठाई सभी को सुनाओ, खिलाओ। साधारण शिवरात्रि नहीं मनाना, कुछ कमाल करके दिखाना। उमंग है? पहली लाइन को है? बहुत धूम मचाओ। कम से कम यह तो समझें कि शिवरात्रि का इतना बड़ा महत्त्व है। हमारे बाप का जन्म दिन है, सुनके खुशी तो मनायें।
अच्छा - जितने भी यहाँ बैठे हैं, चारों ओर तो जाना ही है लेकिन जितने भी बैठे हैं, कितनी संख्या है? (12-13 हजार बैठे हैं) अच्छा, जो भी बैठे हैं, मधुबन वाले कहेंगे हम कहाँ सन्देश देंगे? आजकल तो मधुबन के आसपास भी गांव बहुत हैं। चाहे ऊपर, चाहे नीचे बहुत लोग हैं। कम से कम एक आत्मा को तो अपना बनाओ, सन्देश तो बहुतों को देना लेकिन एक आत्मा तो अपना वर्सा लेने के लायक बनाओ। सभी एक एक को तैयार करे तो 9 लाख तो पूरे हो जायेंगे। मजूंर है, करेंगे कि सिर्फ बोलेंगे। सिर्फ हाथ नहीं उठाना लेकिन दिल से करना है। करना है? (नारायण से पूछते हैं) करना है? तो जो बापदादा ने कहा है 9 लाख की लिस्ट होनी चाहिए, वह तो हो ही जायेगी ना। तो अगली सीजन में बापदादा यह खुशखबरी सुनने चाहते हैं कि 6 लाख नहीं, 9 लाख तो हो गये हैं, उससे ज्यादा ही हो गये हैं। ठीक है, शक्तियां, टीचर्स ठीक है! टीचर्स को तो कंगन तैयार करना चाहिए। पंजाब और राजस्थान की टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स तो बहुत ही बना सकती है, लेकिन औरों को भी बनाने की प्रेरणा देना। अच्छा है टीचर्स कितनी हैं? एक एक भी 9 को तैयार करें तो 9 लाख तो हो जायेंगे। क्या समझते हो अगले सीजन तक यह खुशखबरी मिलेगी? हाँ निर्वैर बोलो, मिलेगी? होगा? यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। 6 लाख हैं, 3 लाख चाहिए बस। हो जायेगा, सब सिर्फ हिम्मत रखो करना ही है। क्या बोलेंगे? कहो करना ही है। संकल्प शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है। आप ब्राह्मण आत्माओं का संकल्प क्या नहीं कर सकता है। हर एक को अपने श्रेष्ठ संकल्प का महत्त्व स्मृति में रखना है।
बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्म योगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है। कारण क्या है? कर्म करते, सोल कान्सेस और कर्म कान्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियां कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ। क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, ड्युटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ। यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है.... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ।
करनहार अलग है, करावनहार अलग है। ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेन्द्रियां, कर्मचारी हैं। तो रोज रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हालचाल पूछा है ना! तो जैसे ब्रह्मा बाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते फिरते अनुभव होता रहा। चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पड़ा लेकिन साक्षी हो, न स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, न औरों को कर्म के हिसाब-किताब चुक्तू होने का अनुभव कराया। आपको मालूम पड़ा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पड़ा ना! तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात् कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ। यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है। ऐसे नहीं सोचो कि अन्त में देहभान छोड़ देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए। अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है। इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी। इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है। बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं। कार्य को छोड़कर अशरीरी बनना, यह तो थोड़ा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पॉवरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो। आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार ले सन्देश देने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो। फरिश्ता अर्थात् देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है। देखा अनुभव किया। जो भी निमित्त हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन जीने वाले बहुत हैं। बड़े-बड़े कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है।
तो आज स्मृति दिवस पर बापदादा समानता में समीप आओ, समीप आओ, समीप आओ का वरदान दे रहे हैं। सभी हद के किनारे, चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क कोई भी हद का किनारा, अपने मन की नईया को इन हद के किनारों से मुक्त कर दो। अभी से जीवन में रहते मुक्त ऐसे जीवनमुक्ति का अलौकिक अनुभव बहुतकाल से करो। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के पत्र बहुत मिले हैं और मधुबन वालों की क्रोधमुक्त की रिपोर्ट, समाचार भी बापदादा के पास पहुंचा है। बापदादा हिम्मत पर खुश है, और आगे के लिए सदा मुक्त रहने के लिए सहनशक्ति का कवच पहने रखना, तो कितना भी कोई प्रयत्न करेगा लेकिन आप सदा सेफ रहेंगे। ऐसे सर्व दृढ़ संकल्पधारी, सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सर्व समार्थियों को समय पर कार्य में लाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं के रहमदिल आत्माओं को, सदा बापदादा समान बनने के संकल्प को साकार रूप में लाने वाले ऐसे बहुत-बहुत-बहुत प्यारे और न्यारे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पंजाब के सेवाधारियों से:- पंजाब वालों ने भी अपना बेहद सेवा का पार्ट अच्छा बजाया है, बापदादा खुश होते हैं कि हर एक जोन बड़े उमंग-उत्साह से सेवा का गोल्डन चांस प्रैक्टिकल में ला रहे हैं। पंजाब नाम ही नदियों के आधार पर पड़ा है। आजकल नदियों को ही पावन बनाने वाली मानते हैं। तो पंजाब वाले सबको सन्देश देने में नम्बरवन हैं ना! नदियां तो बहती रहती हैं, तो पंजाब भी सन्देश देते आगे बढ़ता रहता है। बहुत प्रोग्राम अच्छे बनाये हैं ना। बापदादा ने सुना है, सबका अच्छा उमंग है। आदि स्थापना का स्थान है इसलिए शक्ति ज्यादा है, इसीलिए आपके निमित्त चन्द्रमणि बच्ची को टाइटल ही दिया - पंजाब की शेरनी। तो सब शेरणियां हो ना! कमज़ोर तो नहीं हैं। पाण्डव कमज़ोर तो नहीं, शक्तिशाली हो ना? कहो हाँ जी। बापदादा जानते हैं एक एक पंजाब का शेर या शेरनी शिकार करने में होशियार है। शेर तो शिकार करने में होशियार होता है ना। तो आप कितने होशियार हो। अगली सीजन में सबसे ज्यादा संख्या पंजाब लायेगा। तो इनएडवांस मुबारक है। अच्छा है।
एक एक को देख बापदादा खुश होते हैं, वाह मेरे सर्विसएबुल बच्चे वाह! पाण्डव भी वाह वाह हैं। शक्तियां भी वाह वाह हैं। अभी वाह बाबा वाह का नगाड़ा बजाओ। सब लोग कहें - वाह हमारा बाबा वाह! ठीक है ना! हिम्मत है? हिम्मत भी है और बापदादा की पद्मगुणा मदद भी है। ठीक है। देखो नाम ही अचल है और प्रेम है। जहाँ प्रेम है, अचल है तो सब कुछ आ गया ना। चाहिए ही क्या, प्रेम चाहिए और अचल स्थिति चाहिए और क्या चाहिए। ऐसे निमित्त का नाम ले रहे हैं। सभी का नाम बहुत अर्थ वाला है। सामने खड़े हैं तो दो का नाम ले रहे हैं बाकी हैं सभी एक एक रत्न, बापदादा के दिलतख्तनशीन। तो ठीक है ना।
डबल फारेनर्स - डबल फारेनर्स को डबल नशा है। क्यों डबल नशा है? क्योंकि समझते हैं कि हम भी जैसे बाप दूरदेश के हैं ना, तो हम भी दूरदेश से आये हैं। बापदादा ने डबल विदेशी बच्चों की एक विशेषता देखी है कि दीप से दीप जगाते हुए अनेक देशों में बापदादा के जगे हुए दीपकों की दीवाली मना दी है। अभी भी सुना कितने देश के आये हैं? (35) इस टर्न में 35 देशों के आये हैं और बाहर कितने होंगे? तो डबल विदेशियों को सन्देश देने का शौक अच्छा है। हर ग्रुप में बापदादा ने देखा 35-40 देशों के होते हैं। मुबारक हो। सदा स्वयं भी उड़ते रहो और फरिश्ते बनकरके उड़ते-उड़ते सन्देश देते रहो। अच्छा है, आप 35 देश वालों को बापदादा नहीं देख रहा है और भी देश वालों को आपके साथ देख रहे हैं। तो नम्बरवन बाप समान बनने वाले हो ना! नम्बरवन कि नम्बरवार बनने वाले हो? नम्बरवन? नम्बरवार नहीं? नम्बरवन बनना अर्थात् हर समय विन करने वाले। जो विन करते हैं वह वन होते हैं। तो ऐसे हो ना? बहुत अच्छा। विजयी हैं और सदा विजयी रहने वाले। अच्छा और सभी को, जहाँ जहाँ जाओ वहाँ यह स्मृति दिलाना कि सभी डबल फारेनर्स को वन नम्बर बनना है। अच्छा - सभी को याद देना। और शिव रात्रि यहाँ मनाते हैं लेकिन आप सन्देश तो दे सकते हो ना! तो जितनी संख्या है उससे डबल संख्या दूसरे सीजन में होनी ही है। होगी ना! होनी है।
अच्छा - बापदादा सभी माताओं को गऊपाल की प्यारी माताओं को बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं और पाण्डव चाहे यूथ हो, चाहे प्रवृत्तिवाले हो, पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथी रहे हैं, ऐसे साथी पाण्डवों को भी बापदादा बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं। टीचर्स सोच रही हैं हमको तो देखा नहीं, देख रहे हैं।
टीचर्स से - टीचर्स तो अपने फीचर्स से ही बापदादा का साक्षात्कार कराने वाली हैं। बापदादा का भी और अपने फ्युचर का भी फीचर्स द्वारा प्रत्यक्ष करने की सेवा विशेष टीचर्स की है। हर एक का फीचर्स सदा ही जैसे प्रदर्शनी हो। प्रदर्शनी के चित्र स्वत: ही अपना परिचय देते हैं तो आपके फीचर्स चलता फिरता प्रदर्शनी हो और हर एक को स्वत: ही स्मृति दिलाते रहो। समझा। 100 ब्राह्मणों से उत्तम कुमारियों को भी बहुत-बहुत यादप्यार। अच्छा।
बच्चों से - बच्चों के बिना तो रौनक ही नहीं है। घर का शृंगार, बापदादा का शृंगार बच्चे हैं। बच्चों को तो बापदादा राजा बच्चा के रूप में देखते हैं। एक-एक बच्चा राजा बच्चा है। ऐसे है ना! ऐसे हैं बच्चे, राजा बच्चे हो या प्रजा बच्चे हो? बहुत अच्छा। बच्चों को देखकर सब खुश होते हैं। अभी बच्चे कमाल करके दिखाना। बच्चे भी अपने हमजिन्स बच्चों को तैयार करना। करेंगे ना! अच्छा। आज के दिन क्या याद आता है? विल पावर्स मिली ना! विल पावर्स का वरदान है। बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, इसकी मुबारक है। सभी की दुआयें आपको बहुत हैं। आपको देख करके ही सभी खुश हो जाते हैं, बोलो या नहीं बोलो। आपको कुछ होता है ना तो सब ऐसे समझते हैं हमको हो रहा है। इतना प्यार है। सभी का है। (हमारा भी सबसे बहुत प्यार है) प्यार तो है बहुत सभी से। यह प्यार ही सभी को चला रहा है। धारणा कम हो ज्यादा हो, लेकिन प्यार चला रहा है। बहुत अच्छा।
ईशू दादी से - इसने भी हिसाब चुक्तू कर लिया। कोई बात नहीं। इसका सहज पुरूषार्थ, सहज हिसाब चुक्तू। सहज ही हो गया, सोते सोते। आराम मिला विष्णु के मुआफिक। अच्छा। फिर भी साकार से अभी तक यज्ञ रक्षक बने हैं। तो यज्ञ रक्षक बनने की दुआयें बहुत होती हैं। सभी दादियां बापदादा के बहुत-बहुत समीप हैं। समीप रत्न हैं और सबको दादियों का मूल्य है। संगठन भी अच्छा है। आप दादियों के संगठन ने इतने वर्ष यज्ञ की रक्षा की है और करते रहेंगे। यह एकता सभी सफलता का आधार है। (बाबा बीच में है) बाप को बीच में रखा है, यह अटेन्शन बहुत अच्छा दिया है। अच्छा। सभी ठीक हैं।
मोहिनी बहन से - तबियत ठीक है, आपमें भी हिम्मत अच्छी है, चला लेती हो। आता है और चला जाता है, यह भी शक्ति है।
मनोहर दादी से - प्रकृति को चलाने आ गया है। पुरानी मोटर को धक्का बीच-बीच में देना होता है। इसलिए चला रहे हो, बहुत अच्छा चला रहे हो। आप लोगों का हाजिर रहना, यही सब कुछ सफलता है। अच्छा है। सभी स्मृति दिवस देखने वाली हो। अच्छा।
ओम शान्ति।
13-02-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“वर्तमान समय अपना रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष करो”
आज वरदाता बाप अपने ज्ञान दाता, शक्ति दाता, गुण दाता, परमात्म सन्देश वाहक बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा मास्टर दाता बन आत्माओं को बाप के समीप लाने के लिए दिल से प्रयत्न कर रहे हैं। विश्व में अनेक प्रकार की आत्मायें हैं, किन आत्माओं को ज्ञान अमृत चाहिए, अन्य आत्माओं को शक्ति चाहिए, गुण चाहिए, आप बच्चों के पास सर्व अखण्ड खज़ाने हैं। हर एक आत्मा की कामना पूर्ण करने वाले हो। दिन-प्रतिदिन समय समाप्ति का समीप आने के कारण अब आत्मायें कोई नया सहारा ढूंढ रही हैं। तो आप आत्मायें नया सहारा देने के निमित्त बनी हुई हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख खुश है। एक तरफ आवश्यकता है और दूसरे तरफ उमंग-उत्साह है। आवश्यकता के समय एक बूंद का भी महत्त्व होता है। तो इस समय आपकी दी हुई अंचली का, सन्देश का भी महत्त्व है।
वर्तमान समय आप सभी बच्चों का रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष होने का समय है। आप ब्राह्मण आत्माओं के अनादि स्वरूप में भी दातापन के संस्कार भरे हुए हैं इसलिए कल्प वृक्ष के चित्र में आप वृक्ष के जड़ में दिखाये हुए हैं क्योंकि जड़ द्वारा ही सारे वृक्ष को सब कुछ पहुंचता है। आपका आदि स्वरूप देवता रूप, उसका अर्थ ही है देव ता अर्थात् देने वाला। आपका मध्य का स्वरूप पूज्य चित्र हैं तो मध्य समय में भी पूज्य रूप में आप वरदान देने वाले, दुआयें देने वाले, आशीर्वाद देने वाले दाता रूप हो। तो आप आत्माओं का विशेष स्वरूप ही दातापन का है। तो अभी भी परमात्म सन्देश वाहक बन विश्व में बाप की प्रत्यक्षता का सन्देश फैला रहे हैं। तो हर एक ब्राह्मण बच्चा चेक करो कि अनादि, आदि दातापन के संस्कार हर एक के जीवन में सदा इमर्ज रूप में रहते हैं? दातापन के संस्कार वाली आत्माओं की निशानी है - वह कभी भी यह संकल्प-मात्र भी नहीं करते कि कोई दे तो देवें, कोई करे तो करें, नहीं। निरन्तर खुले भण्डार हैं। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों के दातापन के संस्कार देख रहे थे। क्या देखा होगा? नम्बरवार तो है ही ना! कभी भी यह संकल्प नहीं करो - यह हो तो मैं भी यह करूं। दातापन के संस्कार वाले को सर्व तरफ से सहयोग स्वत: प्राप्त होता है। न सिर्फ आत्माओं द्वारा लेकिन प्रकृति भी समय प्रमाण सहयोगी बन जाती है। यह सूक्ष्म हिसाब है कि जो सदा दाता बनता है, उस पुण्य का फल समय पर सहयोग, समय पर सफलता उस आत्मा को सहज प्राप्त होता है। इसलिए सदा दातापन के संस्कार इमर्ज रूप में रखो। पुण्य का खाता एक का 10 गुणा फल देता है। तो सारे दिन में नोट करो – संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य का खाता कितना जमा किया? मन्सा सेवा भी पुण्य का खाता जमा करती है। वाणी द्वारा किसी कमज़ोर आत्मा को खुशी में लाना, परेशान को शान की स्मृति में लाना, दिलशिकस्त आत्मा को अपनी वाणी द्वारा उमंग-उत्साह में लाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से आत्मा को अपने श्रेष्ठ संग का रंग अनुभव कराना, इस विधि से पुण्य का खाता जमा कर सकते हो। इस जन्म में इतना पुण्य जमा करते हो जो आधाकल्प पुण्य का फल खाते हो और आधाकल्प आपके जड़ चित्र पापी आत्माओं को वायुमण्डल द्वारा पापों से मुक्त करते हैं। पतित-पावनी बन जाते हो। तो बापदादा हर एक बच्चे का जमा हुआ पुण्य का खाता देखते रहते हैं।
बापदादा वर्तमान समय का बच्चों का सेवा का उमंग-उत्साह देख खुश हो रहे हैं। मैजारिटी बच्चों में सेवा का उमंग अच्छा है। सभी अपने-अपने तरफ से सेवा का प्लैन प्रैक्टिकल में ला रहे हैं। इसके लिए बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं और अच्छा करते रहेंगे। सबसे अच्छी बात यह है - सभी का संकल्प और समय बिजी हो गया है। हर एक को यह लक्ष्य है कि चारों ओर की सेवा से अभी उल्हनें को पूरा जरूर करना है। दादी कहती है 9 लाख चाहिए, अगर 3-4 जगह पर लाख-लाख आयेंगे, तो क्या होगा! 6 लाख तो हैं, बाकी 3 लाख चाहिए ना। तो इतने सब जो सन्देश दे रहे हो देश में या विदेश में भी बापदादा ने सुना उमंग अच्छा है। बना रहे हैं ना - वहाँ भी बहुत अच्छे प्रोग्राम बना रहे हैं। हर एक स्थान की विधि अपनी होती है लेकिन सेवा का उमंग सभी में है। तो 9 लाख क्या, 3 लाख बढ़ाने हैं वह क्या बड़ी बात है। बड़ी बात है? पहला नम्बर गुजरात ने बीड़ा उठाया है, अच्छा किया है। गुजरात के कितने सेन्टर हैं? (200 सेन्टर हैं, 1000 उपसेवाकेन्द्र/पाठशालायें हैं), एक एक सेन्टर से अगर 10-10 भी आ जाएं तो कितने हो जायेंगे? ऐसे दिल्ली है, बाम्बे हैं, मद्रास है। मद्रास की तो फ्लाइंग उड़ने वाली है। कलकत्ता है, हैदराबाद है, फारेन है। 3 लाख क्या बड़ी बात है! है बड़ी बात? टीचर्स बताओ बड़ी बात है? तो 9 लाख हो जायेंगे ना! इसमें हाथ नहीं हिला रहे हो! पाण्डव हाथ हिला रहे हैं। ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है। अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ। योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के पीछे आत्मायें स्वत: ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता दिखाई देगा। अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है। सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है। आपकी दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए जो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें।
बापदादा को, फारेन वालों ने यह जो सेवा की थी - काल आफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से संगठन को समीप लाया। ऐसे हर जोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई सर्व वर्गो का संगठन बनाओ। बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा बहुत है, लेकिन बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते रहो और उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ। बापदादा देखते हैं कि ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पॉवरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है। अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है। यह, ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूंगा, तो उमंग आता है। बापदादा अभी सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप देखने चाहते हैं। मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने वर्ग की, एरिया की, जोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं। अब कुछ सामने लाओ। प्रवृत्ति वालों का भी उमंग बापदादा के पास पहुंचता है और डबल फारेनर्स का भी डबल कार्य में रहते सेवा में स्वयं के पुरूषार्थ में उमंग अच्छा है, यह देख करके भी बापदादा खुश है।
ब्राह्मण आत्मायें वर्तमान वायुमण्डल को देख विदेश में डरते तो नहीं हैं? कल क्या होगा, कल क्या होगा.. यह तो नहीं सोचते हैं? कल अच्छा होगा। अच्छा है और अच्छा ही होना है। जितनी दुनिया में हलचल होगी उतनी ही आप ब्राह्मणों की स्टेज अचल होगी। ऐसे है? डबल विदेशी हलचल है या अचल है? अचल है? हलचल में तो नहीं हैं ना! जो अचल हैं वह हाथ उठाओ। अचल हैं? कल कुछ हो जाये तो? तो भी अचल हैं ना! क्या होगा, कुछ नहीं होगा। आप ब्राह्मणों के ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ा-थोड़ा फिकर है, क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचल- अडोल सीट पर सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता।
मातायें क्या समझती हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है, जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें? ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है।
आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी। चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी। माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है। इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़ को जैसे भी यूज करो, जब भी यूज करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव? मास्टर सर्व शक्तिवान भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं। ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने आर्डर दिया जो निकल गया! देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया। यह किसके आर्डर पर होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनो, अधीन नहीं। अच्छा।
सभी पहुंच गये हैं, यह संगठन भी कितना प्यारा लगता है। बाप को भी बच्चों का संगठन अच्छा लगता है। अपने परिवार को देखने का चांस तो मिलता है। किसको कह तो सकते हैं कि हमने अपने बड़े परिवार को देखा है। मधुबन में सब सैलवेशन मिल रही है ना! पानी मिला? पानी मिल रहा है ना! खाना, सोना, मिलना, सब मिल रहा है। बापदादा कहते हैं जैसे अभी मधुबन में सब बहुत-बहुत खुश हो, ऐसे ही सदा खुश-आबाद रहना। रूहे गुलाब हैं। देखो, चारों ओर देखो सभी रूहे गुलाब खिले हुए गुलाब हैं। मुरझाये हुए नहीं हैं, खिले हुए गुलाब हैं। तो सदा ऐसे ही खुशनसीब और खुशनुम: चेहरे में रहना। कोई आपके चेहरे को देखे तो आपसे पूछे – क्या मिला है आपको, बड़े खुश हो! हर एक का चेहरा बाप का परिचय दे। जैसे चित्र परिचय देते हैं ऐसे आपका चेहरा बाप का परिचय दे कि बाप मिला है। अच्छा।
सब ठीक हैं? विदेश वाले भी पहुंच गये हैं। अच्छा लगता है ना यहाँ? (मोहिनी बहन-न्युयार्क) चलो हलचल सुनने से तो बच गई। अच्छा किया है, सभी इकट्ठे पहुंच गये हैं, बहुत अच्छा किया है। अच्छा - डबल फारेनर्स, डबल नशा है ना! कहो इतना नशा है जो दिल कहता है कि अगर हैं तो हम डबल विदेशी हैं। डबल नशा है, स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी। डबल नशा है ना! बापदादा को भी अच्छा लगता है। अगर किसी भी ग्रुप में डबल विदेशी नहीं होते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। विश्व का पिता है ना तो विश्व के चाहिए ना! सब चाहिए। मातायें नहीं हों तो भी रौनक नहीं। पाण्डव नहीं हो तो भी रौनक कम हो जाती है। देखो जिस सेन्टर पर कोई पाण्डव नहींहो सिर्फ मातायें हों तो अच्छा लगेगा! और सिर्फ पाण्डव हों, शक्तियां नहीं हो, तो भी सेवाकेन्द्र का शृंगार नहीं लगता है। दोनों चाहिए। बच्चे भी चाहिए। बच्चे कहते हैं, हमारा नाम क्यों नहीं लिया। बच्चों की भी रौनक है।
महाराष्ट्र-आंध्र प्रदेश के सेवा का टर्न है - अच्छा है यह भी नजदीक आने का चांस है। नहीं तो ग्रुप में जब आते हो तो स्पेशल दादियां नहीं मिलती हैं। सेवा में आते हो तो स्पेशल दादियां भी मिलती हैं ना! अच्छा। महाराष्ट्र उठो। महाराष्ट्र की भुजायें बहुत हैं, इसी कारण जैसे नाम है महाराष्ट्र तो संख्या भी महा है। बापदादा ने समाचार सुना है कि महाराष्ट्र भी चांस ले रहा है। अच्छा - इतने ही सेन्टर्स के, यह 3 लाख जो पूरे करने हैं, महाराष्ट्र भी कर रहा है, गुजरात भी कर रहा है, पंजाब भी कर रहा है... तो 3 लाख तो पूरे हो ही जायेंगे। और भी कर रहे हैं। 3 लाख तो कोई बड़ी बात नहीं है। 3 लाख पूरे करेंगे? पंजाब, करेंगे? गुजरात भी करेगा। और भी कर रहे हैं। जब दूसरी सीजन हो तो बापदादा को खुशखबरी मिले कि 9 लाख ब्राह्मण हो गये। ठीक है, हो जायेंगे? अभी तो 9 लाख है, 9 करोड़ तक जाना है। अच्छा - देखो सतयुग में शुरू-शुरू में 9 लाख होंगे, त्रेता तक बढ़ेंगे या बढ़ेंगे ही नहीं! तो तैयार तो करने हैं ना! बहुत अच्छा, महाराष्ट्र सदा महान स्थिति में स्थित रहने वाले महा राष्ट्र। अच्छा।
भोपाल - भोपाल में भी वृद्धि हो रही है ना! तो 3 लाख में भोपाल कितना एड करेगा? (50 हजार भोपाल लायेगा) मुबारक हो, बहुत अच्छा। क्या बड़ी बात है, विश्व कल्याणकारी है तो 50 हजार का क्यों नहीं कल्याण करेंगे! हो जायेगा। बहुत अच्छा चांस लिया, इसलिए चांसलर बन गये। मातायें भी हैं, पाण्डव भी हैं, बहुत अच्छा। चांस लेने में सदा आगे बढ़ना चाहिए। हर बात का चांस लेने में, उल्टे काम में नहीं, सुल्टे काम में। यह भोपाल भी अच्छा आदि से निमित्त बने हैं। बापदादा हर जोन को मुबारक देते हैं। तो मुबारक हो और सदा वृद्धि को पाते रहेंगे। अच्छा।
ट्रांसपोर्ट विंग - ट्रांसपोर्ट वाले तो सभी को प्लेन से भी ऊंचा उड़ायेंगे ना। प्लेन तो यहाँ तक चलता है, आप तो परमधाम तक उड़ा लेंगे। तीनों लोकों का सैर कराने वाले ट्रांसपोर्ट है। अच्छा है यह जो वर्ग बनाये हैं उसमें भी हर एक वर्ग अपने वर्ग को जाग्रत करने के उमंग-उत्साह में अच्छे रहते हैं। रेस भी करते हैं। पाण्डवों ने बापदादा को एक दृश्य दिखाया, कौन सा? यहाँ शान्तिवन का दृश्य देखा। हर एक वर्ग के टेबुल लगे हुए हैं और हर वर्ग वाले एक दो से रेस करते हैं, हम भी आगे, हम भी आगे। बापदादा ने खास टी.वी. में देखा, टेबुल सजाकर रखते हैं। अच्छा है, उमंग उत्साह अच्छा है लेकिन रीस नहीं करना, रेस जरूर करना। ट्रांसपोर्ट भी अच्छा उमंग-उत्साह में है। कोई नवीनता के प्लैन निकाले होंगे। अच्छा है, बापदादा खुश है।
इंजीनियर-साइंटिस्ट विंग - साइंस और इंजीनियर, आप लोगों ने तो बहुत प्लैन बनाये होंगे। ऐसा प्लैन बनाओ जो जल्दी से जल्दी जैसे आजकल साइंस बहुत फास्ट जा रही है तो आप भी ऐसा सेवा का प्लैन बनाओ जो जल्दी से जल्दी स्थापना की बिल्डिंग तैयार हो जाए, तब तो विनाश होगा ना। स्थापना के कार्य की बिल्डिंग जल्दी से जल्दी तैयार हो जाए। इंजीनियर्स भी कर सकते हैं तो साइंस वाले भी कर सकते हैं। अभी तीव्रगति का कोई प्लैन बनाओ। दृष्टि दी और दृष्टि से सृष्टि बदल जाए, ऐसे होना है। लास्ट में आपके एक सेकण्ड की दृष्टि कमाल करेगी। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। ऐसी कोई नई इन्वेन्शन निकालो। अच्छा है। वर्ग की सेवा तो हो रही है। अच्छा।
गुजरात ने अच्छा जम्प लगाया - (गुजरात में 23 फरवरी को 1 लाख की सभा इकट्ठी कर विशाल प्रोग्राम कर रहे हैं) गुजरात की टीचर्स और पाण्डव उठो। कम आये हैं, तैयारी कर रहे हैं। अच्छा है, अभी गुजरात को सब फालो करेंगे। एक दो को देखकर उमंग आता रहेगा। अच्छा बैठ जाओ, बहुत अच्छी हिम्मत रखी है। हिम्मत रखने की बापदादा इनएडवांस गुजरात को मुबारक दे रहे हैं।
अच्छा - अभी एक सेकण्ड में निराकारी आत्मा बन निराकार बाप की याद में लवलीन हो जाओ। (ड्रिल)
चारों ओर के सर्व स्वराज्य अधिकारी, सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रहने वाली अचल अडोल आत्मायें, सदा दातापन की स्मृति से सर्व को ज्ञान, शक्ति, गुण देने वाले रहमदिल आत्माओं को, सदा अपने चेहरे से बाप का चित्र दिखाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा खुशनसीब, खुशनुम: रहने वाले रूहे गुलाब, रूहानी गुलाब बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से - (सेवा के साथ सब तरफ 108 घण्टे योग के भी अच्छे प्रोग्राम चल रहे हैं) इस योग ज्वाला से ही विनाश ज्वाला फोर्स में आयेगी। अभी देखो बनाते हैं प्रोग्राम, फिर सोच में पड़ जाते हैं। योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर निकल आता है। इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर यहाँ भी पानी में डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमज़ोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल रही है। संस्कार बीच-बीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार परिवर्तन - यह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। (समय करेगा या स्वयं का पुरूषार्थ) दोनों मिलकर करेंगे, समय भी स्वयं का पुरूषार्थ करायेगा। संस्कार मिलन की महारास गाई हुई है। जो यादगार में है महारास, वह संस्कार मिलन की महारास है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्न-भिन्न प्रकार का है। अच्छा। आप सब तो ठीकअव्यक्त ही हैं ना!
दादी जी से - ठीक चेकिंग हो गई। (सब ओ.के. है), ठीक तो रहना ही है। फिर भी बहुत अच्छे चल रहे हैं, चलते रहेंगे। सभी की दुआयें चला रही हैं। आप लोगों को शरीर की आयु के हिसाब से देख तो सब खुश होते हैं, इतना कर रहे हैं, इतना चल रहे हैं और चलना ही है। यह भी निश्चित है कि चलना ही है। अच्छा।
ओम् शान्ति।
28-02-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“सेवा के साथ-साथ अब सम्पन्न बनने का प्लैन बनाओ, कर्मातीत बनने की धुन लगाओ”
आज शिव बाप अपने सालिग्राम बच्चों के साथ अपनी और बच्चों के अवतरण की जयन्ती मनाने आये हैं। यह अवतरण की जयन्ती कितनी वण्डरफुल है। चारों तरफ के सभी बच्चे भाग-भाग कर आये हैं बाप की जयन्ती और अपनी जयन्ती मनाने के लिए। बाप और बच्चों की जयन्ती अर्थात् अवतरण दिवस एक ही है। बाप और बच्चों का एक दिवस जन्म यही वण्डर है। तो आज आप सभी सालिग्राम बच्चे बाप को मुबारक देने आये हो वा बाप से मुबारक लेने आये हो? देने भी आये हो, लेने भी आये हो। साथ-साथ की निशानी है कि आप बच्चों का और बाप का आपस में बहुत-बहुत-बहुत स्नेह है। इसलिए जन्म भी साथ-साथ है और रहते भी सारा जन्म कम्बाइण्ड अर्थात् साथ हैं। इतना प्यार देखा है! अगर आक्युपेशन भी है तो बाप और बच्चों का एक ही विश्व परिवर्तन करने का आक्युपेशन है और वायदा क्या है? कि परमधाम, स्वीट होम में भी साथ-साथ चलेंगे या आगे पीछे चलेंगे? साथ-साथ चलना है ना! तो ऐसा स्नेह आपका और बाप का है। न बाप अकेला कुछ कर सकता, न बच्चे अकेले कुछ कर सकते। कर सकते हो? सिवाए बाप के कुछ कर सकते हो! और बाप भी कुछ नहीं कर सकता। इसीलिए ब्रह्मा बाप का आधार लिया आप ब्राह्मणों को रचने के लिए। सिवाए ब्राह्मणों के बाप भी कुछ नहीं कर सकते। इसलिए इस अलौकिक अवतरण के जन्म दिवस पर बाप बच्चों को और बच्चे बाप को पदमापदम बार मुबारक दे रहे हैं। आप बाप को दे रहे हैं, बाप आपको दे रहे हैं।
अमृतवेले से लेकर, उससे भी पहले से बच्चों की मुबारकें, कार्ड, पत्र, दिल के मीठे-मीठे गीत बाप को मिले और अभी भी बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर के देश-विदेश के बच्चे सूक्ष्म में बापदादा को मुबारक दे रहे हैं। पहुंच रही हैं। बच्चों के पास आवाज पहुंच रहा है और बच्चों के दिल का आवाज बाप को पहुंच रहा है। चारों ओर बच्चे खुशी में झूम रहे हैं। वाह! बाबा, वाह! हम सालिग्राम आत्मायें! वाह! वाह! के गीत गा रहे हैं। इसी आपके जन्म दिवस की यादगार द्वापर से अब तक भक्त भी मनाते रहते हैं। भक्त भी भावना में कम नहीं हैं। लेकिन भगत हैं, बच्चे नहीं हैं। वह हर वर्ष मनाते हैं और आप सारे कल्प में एक बार अवतरण का महत्त्व मनाते हो। वह हर वर्ष व्रत रखते हैं, व्रत रखते भी हैं और व्रत लेते भी हैं। आप एक ही बार व्रत ले लेते हो, कापी आपकी ही की है लेकिन आपका महत्त्व और उनके यादगार के महत्त्व में अन्तर है। वह भी पवित्रता का व्रत लेते हैं लेकिन हर वर्ष व्रत लेते हैं एक दिन के लिए। आप सभी ने भी जन्म लेते एक बार पवित्रता का व्रत लिया है ना! लिया है कि लेना है? ले लिया है। एक बार लिया, वह वर्ष-वर्ष लेते हैं। सभी ने लिया है? सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं, सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत लिया है। पाण्डव, सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत लिया है? या सिर्फ ब्रह्मचर्य में ठीक हैं! ब्रह्मचर्य तो फाउण्डेशन है लेकिन सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं साथ में और चार भी हैं। चार का भी व्रत लिया है कि सिर्फ एक का लिया है? चेक करो।
क्रोध करने की तो छुट्टी है ना? नहीं छुट्टी है? थोड़ा-थोड़ा तो क्रोध करना पड़ता है ना? नहीं करना पड़ता है? बोलो पाण्डव, क्रोध नहीं करना पड़ता है? करना तो पड़ता है! चलो, बापदादा ने देखा कि क्रोध और सभी साथी जो हैं, महाभूत का तो त्याग किया है लेकिन जैसे माताओं को, प्रवृत्ति वालों को बड़े बच्चों से इतना प्यार नहीं होता, मोह नहीं होता लेकिन पोत्रों धोत्रों से बहुत होता है। छोटे-छोटे बच्चे बहुत प्यारे लगते हैं। तो बापदादा ने देखा कि बच्चों को भी यह 5 विकारों के महाभूत जो हैं, महारूप उनसे तो प्यार कम हो गया है लेकिन इन विकारों के जो बाल बच्चे हैं ना, छोटे-छोटे अंश मात्र, वंश मात्र, उससे अभी भी थोड़ा-थोड़ा प्यार है। है प्यार! कभी-कभी तो प्यार हो जाता है। हो जाता है? मातायें? डबल फारेनर्स, क्रोध नहीं आता? कई बच्चे बड़ी चतुराई की बातें करते हैं, सुनायें क्या कहते हैं? सुनायें? अगर सुनायें तो आज छोड़ना पड़ेगा। तैयार हैं? तैयार हैं छोड़ेंगे? या सिर्फ फाइल में कागज जमा करेंगे? जैसे हर साल करते हो ना, प्रतिज्ञा के फाइल बाप के पास बहुत-बहुत बड़े हो गये हैं, तो अभी भी ऐसे तो नहीं कि एक प्रतिज्ञा का कागज फाइल में एड कर देंगे, ऐसे तो नहीं! फाइनल करेंगे या फाइल में डालेंगे? क्या करेंगे? बोलो, टीचर्स क्या करेंगे? फाइनल? हाथ उठाओ। ऐसे ही वायदा नहीं करना। बापदादा फिर थोड़ा सा रूप धारण करेगा। ठीक है। डबल फारेनर्स - करेंगे फाइनल? जो फाइनल करेंगे वह हाथ उठाओ। टी.वी. में निकालो। छोटा, त्रेतायुगी हाथ बड़ा उठाओ। अच्छा, ठीक है। सुनो - बाप और बच्चों की बातें क्या होती हैं? बापदादा मुस्कराते रहते हैं। बाप कहते हैं क्रोध क्यों किया? कहते हैं मैंने नहीं किया, लेकिन क्रोध कराया गया। किया नहीं, मुझे कराया गया। अभी बाप क्या कहे? फिर क्या कहते हैं, अगर आप भी होते ना तो आपको भी आ जाता। मीठी-मीठी बातें करते हैं ना! फिर कहते हैं निराकार से साकार तन लेके देखो। अभी बताओ ऐसे मीठे बच्चों को बाप क्या कहे! बाप को फिर भी रहमदिल बनना ही पड़ता है। कहते हैं अच्छा, अभी माफ कर रहे हैं लेकिन आगे नहीं करना। लेकिन जवाब बहुत अच्छे-अच्छे देते हैं।
तो पवित्रता आप ब्राह्मणों का सबसे बड़े से बड़ा श्रृंगार है, इसीलिए आपके चित्रों का कितना श्रृंगार करते हैं। यह पवित्रता का यादगार श्रृंगार है। पवित्रता, सम्पूर्ण पवित्रता, काम चलाऊ पवित्रता नहीं। सम्पूर्ण पवित्रता आप ब्राह्मण जीवन की सबसे बड़े ते बड़ी प्रापर्टी है, रॉयल्टी है, पर्सनाल्टी है। इसीलिए भक्त लोग भी एक दिन पवित्रता का व्रत रखते हैं। यह आपकी कॉपी की है। दूसरा व्रत लेते हैं - खाने-पीने का। खाने पीने का व्रत भी आवश्यक होता है। क्यों? आप ब्राह्मणों ने भी खाने-पीने का व्रत पक्का लिया है ना! जब मधुबन आने का फार्म सबसे भराते हो, तो यह भी फार्म में भराते हो ना - खाना-पीना शुद्ध है? भराते हो ना! तो खाने-पीने का व्रत पक्का है? है पक्का कि कभी-कभी कच्चा हो जाता है? डबल विदेशियों का तो डबल पक्का होगा ना! डबल विदेशियों का डबल पक्का है या कभी थक जाते हो तो कहते हो अच्छा आज थोड़ा खा लेते हैं। थोड़ा ढीला कर देते हैं, नहीं। खाने-पीने का पक्का है, इसीलिए भक्त लोग भी खाने-पीने का व्रत लेते हैं। तीसरा व्रत लेते हैं जागरण का - रात जागते हैं ना! तो आप ब्राह्मण भी अज्ञान नींद से जागने का व्रत लेते हो। बीच-बीच में अज्ञान की नींद तो नहीं आती है ना! भक्त लोग आपको कॉपी कर रहे हैं, तो आप पक्के हैं तभी तो कॉपी करते हैं। कभी भी अज्ञान अर्थात् कमज़ोरी की, अलबेलेपन की, आलस्य की नींद नहीं आये। या थोड़ा-थोड़ा झुटका आवे तो हर्जा नहीं है? झुटका खाते हो? ऐसे अमृतवेले भी कई झुटके खाते हैं। लेकिन यह सोचो कि हमारे यादगार में भक्त लोग क्या-क्या कॉपी कर रहे हैं! वह इतने पक्के रहते हैं, कुछ भी हो जाए, लेकिन व्रत नहीं तोड़ते हैं। आज के दिन भक्त लोग व्रत रखेंगे खाने-पीने का भी और आप क्या करेंगे आज? पिकनिक करेंगे? वह व्रत रखेंगे आप पिकनिक करेंगे, केक काटेंगे ना! पिकनिक करेंगे क्योंकि आपने जन्म से व्रत ले लिया है इसीलिए आज के दिन पिकनिक करेंगे।
बापदादा अभी बच्चों से क्या चाहते हैं? जानते तो हो। संकल्प बहुत अच्छे करते हो, इतने अच्छे संकल्प करते हैं जो सुन-सुन खुश हो जाते हैं। संकल्प करते हो लेकिन बाद में क्या होता है? संकल्प कमज़ोर क्यों हो जाते हैं? जब चाहते भी हो क्योंकि बाप से प्यार बहुत है, बाप भी जानते हैं कि बापदादा से सभी बच्चों का दिल से प्यार है और प्यार में सभी हाथ उठाते हैं कि 100 परसेन्ट तो क्या लेकिन 100 परसेन्ट से भी ज्यादा प्यार है और बाप भी मानते हैं प्यार में सब पास हैं। लेकिन क्या है? लेकिन है कि नहीं है? लेकिन आता है कि नहीं आता है? पाण्डव, बीच-बीच में लेकिन आ जाता है? ना नहीं करते हैं, तो हाँ है। बापदादा ने मैजारिटी बच्चों की एक बात नोट की है, प्रतिज्ञा कमज़ोर होने का एक ही कारण है, एक ही शब्द है। सोचो, वह एक शब्द क्या है? टीचर्स बोलो एक शब्द क्या है? पाण्डव बोलो एक शब्द क्या है? याद तो आ गया ना! एक शब्द है - `मैं'। अभिमान के रूप में भी`मैं' आता है और कमज़ोर करने में भी `मैं' आता है। मैंने जो कहा, मैंने जो किया, मैंने जो समझा, वही राइट है। वही होना चाहिए। यह अभिमान का `मैं'। मैं जब पूरा नहीं होता है तो फिर दिलशिकस्त में भी आता है, मैं कर नहीं सकता, चल नहीं सकता, बहुत मुश्किल है। एक बॉडीकॉन्सेसनेस का `मैं' बदल जाए, `मैं' स्वमान भी याद दिलाता है और `मैं' देह-अभिमान में भी लाता है। `मैं' दिलशिकस्त भी करता है और `मैं' दिलखुश भी करता है और अभिमान की निशानी जानते हो क्या होती है? कभी भी किसी में भी अगर बॉडीकॉन्सेस का अभिमान अंश मात्र भी है, उसकी निशानी क्या होगी? वह अपना अपमान सहन नहीं कर सकेगा। अभिमान अपमान सहन नहीं करायेगा। जरा भी कोई कहेगा ना - यह ठीक नहीं है, थोड़ा निर्माण बन जाओ, तो अपमान लगेगा, यह अभिमान की निशानी है।
बापदादा वतन में मुस्करा रहे थे - यह बच्चे शिवरात्रि पर यहाँ-वहाँ भाषण करते हैं ना, अभी बहुत भाषण कर रहे हैं ना। उसमें कहते हैं, बापदादा को बच्चों की प्वाइंट याद आई। तो उसमें कहते हैं कि शिवरात्रि पर बकरे की बलि चढ़ाते हैं - वह बकरा में-में बहुत करता है ना, तो ऐसे शिवरात्रि पर यह "मैं" "मैं" की बलि चढ़ा दो। तो बाप सुन-सुनकर मुस्करा रहे थे। तो इस 'मैं' की आप भी बलि चढ़ा दो। सरेण्डर कर सकते हो? कर सकते हैं? पाण्डव कर सकते हो? डबल फारनेर्स कर सकते हो? फुल सरेण्डर या सरेण्डर? फुल सरेण्डर। आज बापदादा झण्डे पर ऐसे ही प्रतिज्ञा नहीं करायेगा। आज प्रतिज्ञा करो और फाइल में कागज जमा करना पड़े, ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करायेगा। क्या सोचते हो, दादियां आज भी ऐसी प्रतिज्ञा करायें? फाइनल करेंगे या फाइल में जमा करेंगे? बोलो, (फाइनल कराओ) हिम्मत है? हिम्मत है? सुनने में मगन हो गये हैं, हाथ नहीं उठा रहे हैं। कल तो कुछ नहीं हो जायेगा! नहीं ना! कल माया चक्कर लगाने आयेगी। माया का भी आपसे प्यार है ना क्योंकि आजकल तो सभी धूमधाम से सेवा का प्लैन बना रहे हैं ना। जब सेवा जोर-शोर से कर रहे हो तो सेवा जोर-शोर से करना अर्थात् सम्पूर्ण समाप्ति के समय को समीप लाना है। ऐसे नहीं समझो भाषण करके आये लेकिन समय को समीप ला रहे हो। सेवा अच्छी कर रहे हो। बापदादा खुश है। लेकिन बापदादा देखते हैं कि समय समीप आ रहा है, ला रहे हो आप, ऐसे ही लाख डेढ़ लाख इकट्ठा नहीं किया, यह समय को समीप लाया। अभी गुजरात ने किया, बॉम्बे करेगा और भी कर रहे हैं। चलो लाख नहीं तो 50 हजार ही सही लेकिन सन्देश दे रहे हो तो सन्देश के साथ-साथ सम्पन्नता की भी तैयारी है? तैयारी है? विनाश को बुला रहे हो तो तैयारी है? दादी ने क्वेश्चन किया था कि अभी क्या ऐसा प्लैन बनायें जो जल्दीजल्दी प्रत्यक्षता हो जाए? तो बापदादा कहते हैं - प्रत्यक्षता तो सेकण्ड की बात है लेकिन प्रत्यक्षता के पहले बापदादा पूछते हैं स्थापना वाले एवररेडी हैं? पर्दा खोलें? कि कोई कान का शृंगार कर रहा होगा, कोई माथे का? तैयार हैं? हो जायेंगे, कब? डेट बताओ। जैसे अभी डेट फिक्स की ना! इस मास के अन्दर सन्देश देना है, ऐसे सभी एवररेडी, कम से कम 16 हजार तो एवररेडी हों, 9 लाख छोड़ो, उसको भी छोड़ दो। 16 हजार तो तैयार हों? हैं तैयार? बजायें ताली? ऐसे ही हाँ नहीं करना। एवररेडी हो जाओ तो बापदादा टच करेगा, ताली बजायेगा, प्रकृति अपना काम शुरू करेगी। साइंस वाले अपना काम शुरू कर देंगे। क्या देरी है, सब रेडी हैं। 16 हजार तैयार हैं? हैं तैयार? हो जायेंगे। (आपको ज्यादा पता है) यह जवाब तो छुड़ाने का है। 16 हजार की रिपोर्ट आनी चाहिए एवररेडी, सम्पूर्ण पवित्रता से सम्पन्न हो गये।
बापदादा को ताली बजाने में कोई देरी नहीं है। डेट बताओ। (आप डेट दो) सभी से पूछो। देखो होना तो है ही लेकिन जो सुनाया एक `मैं' शब्द का सम्पूर्ण परिवर्तन, तब बाप के साथ चलेंगे। नहीं तो पीछे-पीछे चलना पड़ेगा। बापदादा इसीलिए अभी गेट नहीं खोलते हैं क्योंकि साथ चलना है। ब्रह्मा बाप सभी बच्चों से पूछते हैं कि गेट खोलने की डेट बताओ। गेट खोलना है ना! चलना है ना! आज मनाना अर्थात् बनना। सिर्फ केक नहीं काटेंगे लेकिन मैं को समाप्त करेंगे। सोच रहे हैं या सोच लिया है? क्योंकि बापदादा के पास अमृतवेले सबके बहुत वैरायटी संकल्प पहुंचते हैं। तो आपस में राय करना और डेट बाप को बताना। जब तक डेट नहीं फिक्स की है ना, तब तक कोई कार्य नहीं होता। पहले आपस में महारथी डेट फिक्स करो फिर सब फालो करेंगे। फालो करने वाले तैयार हैं और आपकी हिम्मत से और बल मिल जायेगा। जैसे देखो अभी उमंग उल्हास दिलाया तो तैयार हो गये ना! ऐसे सम्पन्न बनने का प्लैन बनाओ। धुन लगाओ, कर्मातीत बनना ही है। कुछ भी हो जाए बनना ही है, करना ही है, होना ही है। साइंस वालों का भी आवाज, विनाश करने वालों का भी आवाज बाप के कानों में आता है, वह भी कहते हैं क्यों रोकते हैं, क्यों रोकते हैं...। एडवांस पार्टी भी कहती है डेट फिक्स करो, डेट फिक्स करो। ब्रह्मा बाप भी कहते हैं डेट फिक्स करो। तो यह मीटिंग करो। बाकी सेवा जो कर रहे हैं, बापदादा सन्तुष्ट हैं। हर एक कर रहा है, फारेन भी कर रहा है, भारत में सब जोन वाले भी कर रहे हैं, प्रवृत्ति वाले भी कर रहे हैं, सब कर रहे हैं। इसकी मुबारक हो, सेवा की मुबारक हो, मुबारक हो। अब यह कमाल करके दिखाओ। दादियों को खास कह रहे हैं, बड़े भाईयों को खास कह रहे हैं। अब दूसरी शिवरात्रि में धमाल और कमाल दोनों साथ-साथ हों। ठीक है। आगे लाइन वाली टीचर्स ठीक है? मीटिंग करेंगे ना! बापदादा को अभी डेट चाहिए, ऐसे नहीं हो जायेगा, कर रहे हैं, यह नहीं। यह बहुत हो गया। पहले बच्चे डेट देवें फिर बाप फाइनल करेंगे। बापदादा तो कहते हैं दूसरी शिवरात्रि पर कमाल और धमाल दोनों साथ हों। अभी करो तैयारी। टीचर्स मंजूर है? डबल विदेशी मंजूर है? पहली लाइन मंजूर है? पाण्डव मंजूर है? (हाँ जी) मुबारक हो। बहुत दु:खी हैं। बापदादा को अभी इतना दु:ख देखा नहीं जाता है। पहले तो आप शक्तियों को, देवता रूप पाण्डवों को रहम आना चाहिए। कितनापुकार रहे हैं। अभी आवाज पुकार का आपके कानों में गूंजना चाहिए।
समय की पुकार का प्रोग्राम करते हो ना! अभी भक्तों की पुकार भी सुनो, दु:खियों की पुकार भी सुनो। सेवा में नम्बर अच्छा है, यह तो बापदादा भी सर्टीफिकेट देते हैं, उमंग-उत्साह अच्छा है, गुजरात ने नम्बरवन लिया, तो नम्बरवन की मुबारक है। अभी थोड़ी-थोड़ी पुकार सुनो तो सही, बिचारे बहुत पुकार रहे हैं, जिगर से पुकार रहे हैं, तड़फ रहे हैं। साइंस वाले भी बहुत चिल्ला रहे हैं, कब करें, कब करें, कब करें, पुकार रहे हैं। आज भले केक काट लो, लेकिन कल से पुकार सुनना। मनाना तो संगमयुग के स्वहेज हैं। एक तरफ मनाना दूसरे तरफ आत्माओं को बनाना। अच्छा। तो क्या सुना?
आपका गीत है - दु:खियों पर कुछ रहम करो। सिवाए आपके कोई रहम नहीं कर सकता। इसलिए अभी समय प्रमाण रहम के मास्टर सागर बनो। स्वयं पर भी रहम, अन्य आत्माओं प्रति भी रहम। अभी अपना यही स्वरूप लाइट हाउस बन भिन्न-भिन्न लाइट्स की किरणें दो। सारे विश्व की अप्राप्त आत्माओं को प्राप्ति की अंचली की किरणें दो। अच्छा।
डबल विदेशी - डबल विदेशियों को देखकरके बापदादा को डबल खुशी होती है क्यों? डबल क्यों खुशी होती है? बापदादा को इस बात की विशेष खुशी होती है कि डबल विदेशियों ने डबल कमाल दिखाई है। कौन सी कमाल दिखाई है? देखो अभी इस ग्रुप में भी भिन्न-भिन्न देश के वृक्ष की टालियां आई हुई हैं। अभी भी 60 देशों से आये हुए हैं और आगे भी बहुत हैं। तो भिन्न-भिन्न वृक्ष की डालियां एक चंदन का वृक्ष बन गये हैं। यह कमाल की है। एक ही वृक्ष की डालियां हो ना! कि अलग-अलग हैं? एक हैं? और दूसरी कमाल - भिन्न-भिन्न देश का कल्चर एक कल्चर बना दिया। न
विदेश का कल्चर, न भारत का कल्चर लेकिन एक ब्राह्मण कल्चर बन गया। तो अभी किस कल्चर के हो? विदेश के या ब्राह्मण कल्चर है? ब्राह्मण कल्चर। तो एक कल्चर, एक चंदन का वृक्ष बन गये। तो डबल कमाल पर बापदादा को डबल खुशी होती है। 60 देश याद हैं या एक ही मधुबन याद है? मधुबन निवासी हो ना! इसलिए बापदादा को डबल खुशी है। आप सबको बहुत खुशी है ना! कितनी खुशी है? बहुत खुशी है। सदा खुश रहो, आबाद रहो, औरों को भी खुशी से आबाद करते रहो। सभा अच्छी लगती है, इन्टरनेशनल सभा है ना! तो आप सभी को बापदादा अलौकिक जन्म की मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
सेवा का टर्न कर्नाटक का है - अच्छा है, यह गोल्डन चांस सेवा का, परिवार के नजदीक लाने का चांस है। देखो सेवा में आये हो तो सबकी नजर कहाँ पड़ती है। कर्नाटक वाले सेवा कर रहे हैं। तो सबको कर्नाटक याद आता है और आपको याद की दुआयें मिलती हैं। अभी कर्नाटक में एक बापदादा की श्रेष्ठ आशा है, वह अभी पूरी नहीं की है। बताऊं क्या? बताऊं टीचर्स? कर्नाटक में बापदादा ने देखा है कि वारिस क्वालिटी बन सकते हैं। जितने वारिस क्वालिटी, भले दो-चार स्थान और भी हैं, उसकी बात नहीं करते हैं लेकिन कर्नाटक की धरनी से वारिस बहुत निकल सकते हैं। (सभी ने ताली बजाई) सिर्फ ताली नहीं बजाना, निकाल के दिखाना है। अच्छे अच्छे हैं, बापदादा की नजर पड़ती है लेकिन टीचर्स की नजर नहीं पड़ी है। सुना। पाण्डव, सुना। बहुत निकल सकते हैं। बापदादा को कोने-कोने में याद आते हैं। सारा यज्ञ कर्नाटक के वारिस चला सकते हैं। क्या समझा? अभी निकालना और बहुत सहज निकल सकते हैं। सिर्फ अटेन्शन नहीं दिया है। जनरल सेवा में लग गये हैं। पर्सनल सेवा, मन्सा सेवा का चमत्कार वारिस निकाल सकता है। पालना चाहिए। उठाओ, पान की बीड़ा उठाओ। दादी को कहो हम सहयोगी बनेंगे। बनायेंगे और बनेंगे। बनेंगे? अच्छा। देखेंगे, 6 मास में देखेंगे। (तीनों दादियाँ आयें) दादियाँ तो आ जायेंगी, पहले आप निकालो। दादियाँ आयेंगी कुछ वारिस तैयार करो फिर दादियों को बुलाओ। आयेंगी। जो प्लैन बनाने चाहो, बनाओ लेकिन वारिस निकल सकते हैं। पालना देनी पड़ेगी। टीचर्स यह एक क्लास करके जाना कि वारिस क्वालिटी कैसे निकाली जाती है। (दादी जानकी से) यह क्लास कराना। क्या समझते हो, हो सकता है। अच्छा, 6 मास का टाइम दे रहे हैं, देखेंगे। देखो कहाँ से माइक ज्यादा निकल सकते हैं, कहाँ से वारिस ज्यादा निकल सकते हैं। होना ही है। जब समय समाप्त होगा तो सब निकलेंगे ना। निकलेंगे जरूर। सुना। सिर्फ कांध नहीं हिलाना, करके दिखाना। कर्नाटक वाले कांध बहुत अच्छा हिलाते हैं, ऐसे ऐसे करते हैं। अच्छा लगता है। क्वालिटी बहुत है। अच्छा।
स्पार्क ग्रुप - अच्छा, ऐसा ही प्लैन बनाओ जो आपकी मीटिंग से आप ही अपने-अपने स्थान पर समय को समीप लाने के एक्जैम्पल बन जाओ। यही प्लैन बना रहे हो ना! कि आने वाले समय में क्या तैयारी चाहिए! बापदादा यही इशारा देते हैं - कोई भी समस्या को सामना करने के लिए सहज विधि है पहले एकाग्रता की शक्ति। मन एकाग्र हो जाए, तो एकाग्रता की शक्ति निर्णय बहुत अच्छा करती है। इसीलिए देखो कोर्ट में भी तराजू दिखाते हैं। निर्णय की निशानी तराजू इसलिए दिखाते हैं - एकाग्र कांटा हो जाता है। तो कोई भी समस्या को जिस समय चारों ओर हलचल हो उस समय अगर मन की एकाग्रता की शक्ति हो, जहाँ मन को चाहो वहाँ एकाग्र हो जाए, निर्णय हो जाए किस परिस्थिति में कौन सी शक्ति कार्य में लायें, तो एकाग्रता की शक्ति दृढ़ता स्वत: ही दिलाती है और दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो ऐसे अपने को एक एक्जैम्पुल बनाके औरों को प्रेरणा देते रहो। ठीक है ना! अच्छा है। हर एक वर्ग अपने सेवा की उन्नति के उमंग-उत्साह में अच्छा है। अच्छा है और अच्छा ही होगा। अच्छा है, सब भिन्न-भिन्न सेन्टर के अच्छे-अच्छे कार्य में लगे हुए हैं, प्लैन बनाने में। सफलता तो है ही। अच्छा।
अच्छा - सभी मीठी-मीठी माताओं को, कुमारियों को खास बापदादा की दुआओं भरी यादप्यार। मातायें तो शृंगार हैं। माताओं के बिना शृंगार नहीं होता, न सेन्टर का, न मधुबन का। खास माताओं को आगे बढ़ाने के लिए बाप को आना पड़ा। अगर माताओं को उठायेंगे तो सारा हाल खड़ा हो जायेगा, इसलिए बैठे रहो।
आज पाण्डव भी कम नहीं हैं, आधा-आधा है। अच्छा है, देखो विजय का गायन पाण्डवों का है। शक्तियों का गायन शक्ति देने का है। तो पाण्डव नाम ही विजय की स्मृति दिलाते हैं। इसीलिए हर एक पाण्डव को अपने मस्तक में विजय का तिलक सदा स्मृति में रखना चाहिए।
अच्छा - बच्चे भी आये हैं। बच्चे कहते हैं हम नहीं रह जायें। बच्चों से भी श्रृंगार है। छोटे-छोटे बच्चे भी, बापदादा ने सुना कि कई बच्चे, माँ-बाप को ज्ञान में ले आये हैं। वाह! बच्चे वाह! परिवार के कल्याण के लिए बच्चे निमित्त बन जाते हैं। तो बच्चों की भी बलिहारी है।
अच्छा। सभी टीचर्स तो हैं ही बापदादा के राइट हैण्डस। पाण्डव लेफ्ट हैण्ड नहीं हैं, पाण्डव भी राइट हैण्ड हैं। लेफ्ट हैण्ड तो दूसरे हैं, आप सब राइट हैण्डस हो। टीचर्स को अभी साक्षात्कार मूर्त बनना है। अभी थोड़ा सा यह `मैं' को आज फुल सरेण्डर करेंगे ना तो साक्षात्कार होने शुरू हो जायेंगे। यह मैं पन का पर्दा थोड़ा आगे आ जाता है, यह पर्दा हट जायेगा तो हर एक से बाप का साक्षात्कार होगा। तब यह नारा लगेगा - साक्षात् बाप आ गये, आ गये, आ गये। साक्षात्कार दिव्य दृष्टि से नहीं, साक्षात् रूप का साक्षात्कार होगा। सबके मुख से एक ही आवाज निकलेगा - यह तो साक्षात् बाप हैं। ऐसी तैयारी कर रहे हो ना! अच्छा।
सर्व साक्षात् बाप मूर्त श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले बाप के समीप आत्माओं को, सदा सर्व कदम बाप समान करने वाले बच्चों को, चारों ओर के ब्राह्मण जन्म के मुबारक पात्र बच्चों को, सदा एकाग्रता की शक्ति सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और पदमापद्मगुणा जन्म मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो और नमस्ते।
दादियों से - (गुजरात की सेवा का समाचार सुनाया-सब एकमत हो गये जो 28 दिन में इतना बड़ा प्रोग्राम किया) प्रत्यक्ष स्वरूप तो देख लिया ना - कि संकल्प में कितनी शक्ति है। व्यर्थ से छुट्टी हो गई। एकता आ गई। सेवा और योग दोनों अच्छे चल रहे हैं। (थके भी नहीं) सेवा का चार्ट चारों ओर का अच्छा है, अभी सिर्फ सबको सम्पन्न बनाओ। कर्नाटक बहुत कुछ कर सकता है। सिर्फ पालना चाहिए वहाँ। (कर्नाटक में बहुत सेन्टर हैं) सेन्टर तो क्या लेकिन हस्तियां भी हैं। कोई करके दिखावे, कर्नाटक में कोई सेवा करके दिखावे। कर सकते हैं, प्लैन बनाओ। अच्छा है। बाकी आप (दादी) तो हैं ही सदा भुजाओं में। भुजाओं में समाई हुई रहती हैं। बापदादा की सहयोगी भुजायें भी हो और भुजाओं में ही रहती हो। सेवा के लिए भुजायें हो और रहने के लिए भुजाओं में हो। अच्छा - दादियां कह रही हैं, हम भुजायें भी हैं, भुजाओं में भी हैं, ततत्वम्। आप कहाँ रहते हो? बाप की भुजाओं में रहते हो ना, कि बाहर निकल जाते हो? जो प्यारे होते हैं वह सदा भुजाओं में ही रहते हैं। और भुजायें बनके सेवा में लग जाते हैं। कितने भाग्यवान हो, भगवान की भुजायें, तो भुजाओं को ही बाहुबल कहा जाता है। तो बाप की भुजायें अर्थात् बाप के बल की निशानी हो। इसीलिए देवियों को, देवताओं को ज्यादा भुजायें ही दिखाई हैं। टांगे नहीं दिखाई हैं, भुजायें दिखाई हैं। सिर भी रावण को दिखाये हैं। देवी-देवताओं को भुजायें दिखाई हैं क्योंकि भुजायें बल की निशानी हैं। तो कितनी भुजायें हैं, देखो। अच्छा। फर्स्ट भुजायें हों। आदि रत्नों ने एकता का ठेका उठाया हुआ है। एक है स्थापना के आदि रत्न और दूसरे हैं सेवा के आरम्भ के आदि रत्न। दोनों आदि रत्नों का महत्त्व है। है ना! सेवा के आदि रत्न हैं ना - यह सामने बैठे हैं सब। अच्छा है। समय को समीप लावें। प्रवृत्ति वाले और ही निवृत्त ज्यादा रहते हैं। देखो, जब से प्रवृत्ति वाले सेवा में आगे आये हैं तब से वायुमण्डल परिवर्तन हुआ है। नहीं तो आप लोगों से भागते थे, अभी कहते हैं आओ, हमारे पास आओ। यह प्रवृत्ति वालों की कमाल है। ऐसे नहीं है कि प्रवृत्ति वाले 108 की माला में नहीं आ सकते हैं। मन से सरेण्डर, सरेण्डर की लिस्ट में ही हैं। अच्छा।
67वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती पर प्यारे अव्यक्त बापदादा ने अपने हस्तों से शिव ध्वज फहराया और सबको बधाईयां दी।
आज के दिन सभी ने अपने जन्म दिन की मुबारक दी और ली और झण्डा भी लहराया। लेकिन अभी वह दिन जल्दी लाना है जो विश्व के ग्लोब के ऊपर सर्व आत्मायें खड़ी होकर आप सबके फेस में बाप का झण्डा देखें। कपड़े का झण्डा तो निमित्त मात्र है लेकिन एक-एक बच्चे का फेस बाप का चित्र दिखावे। ऐसा झण्डा लहराना है। वह दिन भी बहुत-बहुत-बहुत जल्दी लाना है, आना है, आना है।
ओम् शान्ति।
17-03-03 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस वर्ष - स्वमान में रहना, सम्मान देना, सबका सहयोगी बनना और समर्थ बनाना”
आज भाग्य विधाता बापदादा चारों ओर के हर एक बच्चे के मस्तक में भाग्य की तीन लकीरें देख रहे हैं। एक परमात्म पालना की भाग्यवान लकीर, दूसरी सत शिक्षक की श्रेष्ठ शिक्षा की भाग्यवान लकीर, तीसरी श्रीमत की चमकती हुई लकीर। चारों ओर के बच्चों के मस्तक बीच तीनों लकीरें बहुत अच्छी चमक रही हैं। आप सभी भी अपने तीनों भाग्य की लकीर को देख रहे हैं ना। जब भाग्य विधाता आप बच्चों का बाप है तो आपके सिवाए श्रेष्ठ भाग्य और किसका हो सकता है! बापदादा देख रहे हैं विश्व की अनेक करोड़ आत्मायें हैं लेकिन उन करोड़ों में से 6 लाख परिवार... कितने थोड़े हैं! कोटों में कोई हो गये ना! वैसे हर मानव के जीवन में यह तीनों बातें पालना, पढ़ाई और श्रेष्ठ मत, तीनों ही आवश्यक हैं। लेकिन यह परमात्म पालना और देव आत्मायें वा मानव आत्माओं की मत, पालना, पढ़ाई में रात-दिन का अन्तर है। तो इतना श्रेष्ठ भाग्य जो संकल्प में भी नहीं था लेकिन अब हर एक का दिल गाता है - पा लिया। पा लिया वा पाना है? क्या कहेंगे? पा लिया ना! बाप भी ऐसे बच्चों के भाग्य को देख हार्षित होते हैं। बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह! बस इसी भाग्य को सिर्फ स्मृति में नहीं रखना है लेकिन सदा स्मृति स्वरूप रहना है। कई बच्चे सोचते बहुत अच्छा हैं लेकिन सोचना स्वरूप नहीं बनना है, स्मृति स्वरूप बनना है। स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप है। सोचना स्वरूप समर्थ स्वरूप नहीं है।
बापदादा बच्चों की भिन्न-भिन्न लीला देखते मुस्कराते रहते हैं। कोई- कोई सोचता स्वरूप रहते हैं, स्मृति स्वरूप सदा नहीं रहते। कभी सोचता स्वरूप, कभी स्मृति स्वरूप। जो स्मृति स्वरूप रहते हैं वह निरन्तर नेचरल स्वरूप रहते हैं। जो सोचता स्वरूप रहते हैं उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। यह संगमयुग मेहनत का युग नहीं है, सर्व प्राप्तियों के अनुभवों का युग है। 63 जन्म मेहनत की लेकिन अब मेहनत का फल प्राप्त करने का युग अर्थात् समय है।
बापदादा देख रहे थे कि देहभान की स्मृति में रहने में क्या मेहनत की - मैं फलाना हूँ, मैं फलाना हूँ... यह मेहनत की? नेचरल रहा ना! नेचर बन गई ना बॉडी कान्सेस की! इतनी पक्की नेचर हो गई जो अभी भी कभी-कभी कई बच्चों को आत्म-अभिमानी बनने के समय बॉडी कान्सेसनेस अपने तरफ आकर्षित कर लेती है। सोचते हैं मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, लेकिन देहभान ऐसा नेचरल रहा है जो बार-बार न चाहते, न सोचते देहभान में आ जाते हैं। बापदादा कहते हैं अब मरजीवा जन्म में आत्म-अभिमान अर्थात् देही-अभिमानी स्थिति भी ऐसे ही नेचर और नेचरल हो। मेहनत नहीं करनी पड़े - मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ। जैसे कोई भी बच्चा पैदा होता है और जब उसे थोड़ा समझ में आता है तो उसको परिचय देते हैं आप कौन हो, किसके हो, ऐसे ही जब ब्राह्मण जन्म लिया तो आप ब्राह्मण बच्चों को जन्मते ही क्या परिचय मिला? आप कौन हो? आत्मा का पाठ पक्का कराया गया ना! तो यह पहला परिचय नेचरल नेचर बन जाए। नेचर नेचरल और निरन्तर रहती है, याद करना नहीं पड़ता। ऐसे हर ब्राह्मण बच्चे की अब समय प्रमाण देही- अभिमानी स्टेज नेचरल हो। कई बच्चों की है, सोचना नहीं पड़ता, स्मृति स्वरूप हैं। अब निरन्तर और नेचरल स्मृति स्वरूप बनना ही है। लास्ट अन्तिम पेपर सभी ब्राह्मणों का यही छोटा-सा है - ''नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप।``
तो इस वर्ष में क्या करेंगे? कई बच्चे पूछते हैं - इस वर्ष में क्या विशेष लक्ष्य रखें? तो बापदादा कहते हैं सदा देही-अभिमानी, स्मृति स्वरूप भव। जीवनमुक्ति तो प्राप्त होनी ही है लेकिन जीवनमुक्त होने के पहले मेहनत मुक्त बनो। यह स्थिति समय को समीप लायेगी और आपके सर्व विश्व के भाई और बहनों को दु:ख, अशान्ति से मुक्त करेगी। आपकी यह स्थिति आत्माओं के लिए मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेगी। तो अपने भाई बहनों के ऊपर रहम नहीं आता! कितना चारों ओर आत्मायें चिल्ला रही हैं तो आपकी मुक्ति सर्व को मुक्ति दिलायेगी। यह चेक करो - नेचरल स्मृति सो समर्थ स्वरूप कहाँ तक बने हैं? समर्थ स्वरूप बनना ही व्यर्थ को सहज समाप्त कर देगा। बार-बार मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
अभी इस वर्ष बापदादा बच्चों के स्नेह में कोई भी बच्चे की किसी भी समस्या में मेहनत नहीं देखने चाहते। समस्या समाप्त और समाधान समर्थ स्वरूप। क्या यह हो सकता है? बोलो दादियां हो सकता है? टीचर्स बोलो, हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? फिर बहाना नहीं बताना, यह था ना, यह हुआ ना! यह नहीं होता तो नहीं होता! बापदादा बहुत मीठे-मीठे खेल देख चुके हैं। कुछ भी हो, हिमालय से भी बड़ा, सौ गुणा समस्या का स्वरूप हो, चाहे तन द्वारा, चाहे मन द्वारा, चाहे व्यक्ति द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा समस्या, पर-स्थिति आपकी स्व-स्थिति के आगे कुछ भी नहीं है और स्व-स्थिति का साधन है - स्वमान। नेचरल रूप में स्वमान हो। याद नहीं करना पड़े, बारबार मेहनत नहीं करनी पड़े, नहीं-नहीं मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं नूरे रत्न हूँ, मैं दिलतख्तनशीन हूँ.... हूँ ही। और कोई होने हैं क्या! कल्प पहले कौन बने थे? और बने थे या आप ही बने थे? आप ही थे, आप ही हैं, हर कल्प आप ही बनेंगे। यह निश्चित है। बापदादा सब चेहरे देख रहे हैं यह वही कल्प पहले वाले हैं। इस कल्प के हो या अनेक कल्प के हो? अनेक कल्प के हो ना! हो? हाथ उठाओ जो हर कल्प वाले हैं? फिर तो निश्चित है ना, आपको तो पास सर्टीफिकेट मिल गया है ना कि लेना है? मिल गया है ना? मिल गया है या लेना है? कल्प पहले मिल गया है, अभी क्यों नहीं मिलेगा। तो यही स्मृति स्वरूप बनो कि सर्टीफिकेट मिला हुआ है। चाहे पास विद आनर का, चाहे पास का, यह फर्क तो होगा, लेकिन हम ही हैं। पक्का है ना! कि ट्रेन में जाते-जाते भूलता जायेगा, प्लेन में जाके उड़ जायेगा? नहीं।
जैसे देखो इस वर्ष संकल्प दृढ़ किया कि शिवरात्रि चारों ओर उमंग- उत्साह से मनानी है, मना ली ना! दृढ़ संकल्प से जो सोचा वह हो गया ना! तो यह किस बात की कमाल है? एकता और दृढ़ता। सोचा था 67 प्रोग्राम करने का लेकिन बापदादा ने देखा कि उससे भी ज्यादा कई बच्चों ने प्रोग्राम किये हैं। यह है समर्थ स्वरूप की निशानी, उमंग-उत्साह का प्रत्यक्ष प्रमाण। स्वत: ही चारों ओर कर लिया ना! ऐसे ही सब मिलकर एक दो को हिम्मत बढ़ाके यह संकल्प करो - अब समय को समीप लाना ही है। आत्माओं को मुक्ति दिलानी है। लेकिन तब होगा जब आप सोचना स्मृति स्वरूप में लायेंगे।
बापदादा ने सुना है कि फारेन वालों की भी विशेष स्नेह मिलन वा मीटिंग है और भारत वालों की भी मीटिंग है तो मीटिंग में सिर्फ सेवा के प्लैन नहीं बनाना, बनाना लेकिन बैलेन्स का बनाना। ऐसा एक दो के सहयोगी बनो जो सभी मास्टर सर्वशक्तिवान बन आगे उड़ते चलें। दाता बनकर सहयोग दो। बातें नहीं देखो, सहयोगी बनो। स्वमान में रहो और सम्मान देकर सहयोगी बनो क्योंकि किसी भी आत्मा को अगर आप दिल से सम्मान देते हो, यह बहुत-बहुत बड़ा पुण्य है क्योंकि कमज़ोर आत्मा को उमंग-उत्साह में लाया तो कितना बड़ा पुण्य है! गिरे हुए को गिराना नहीं है, गले लगाना है अर्थात् बाहर से गले नहीं लगाना, गले लगाना अर्थात् बाप समान बनाना। सहयोग देना।
तो पूछा है ना कि इस वर्ष क्या-क्या करना है? बस सम्मान देना और स्वमान में रहना। समर्थ बन समर्थ बनाना। व्यर्थ की बातों में नहीं जाना। जो कमज़ोर आत्मा है ही कमज़ोर, उसकी कमज़ोरी को देखते रहेंगे तो सहयोगी कैसे बनेंगे! सहयोग दो तो दुआयें मिलेंगी। सबसे सहज पुरूषार्थ है, और कुछ भी नहीं कर सकते हो तो सबसे सहज पुरूषार्थ है - दुआयें दो, दुआयें लो। सम्मान दो और महिमा योग्य बनो। सम्मान देने वाला ही सर्व द्वारा माननीय बनते हैं। और जितना अभी माननीय बनेंगे, उतना ही राज्य अधिकारी और पूज्य आत्मा बनेंगे। देते जाओ लेने का नहीं, लो और दो यह तो बिजनेस वालों का काम है। आप तो दाता के बच्चे हो। बाकी बापदादा चारों ओर के बच्चों की सेवा को देख खुश है, सभी ने अच्छी सेवा की है। लेकिन अभी आगे बढ़ना है ना! वाणी द्वारा सभी ने अच्छी सेवा की, साधनों द्वारा भी अच्छी सेवा की रिजल्ट निकाली। अनेक आत्माओं का उल्हना भी समाप्त किया।
साथ-साथ समय के तीव्रगति की रफ्तार देख बापदादा यही चाहते हैं कि सिर्फ थोड़ी आत्माओं की सेवा नहीं करनी है लेकिन विश्व की सर्व आत्माओं के मुक्तिदाता निमित्त आप हो क्योंकि बाप के साथी हो, तो समय की रफ्तार प्रमाण अभी एक ही समय इकट्ठा तीन सेवायें करनी हैं :- एक वाणी, दूसरा स्व शक्तिशाली स्थिति और तीसरा श्रेष्ठ रूहानी वायब्रेशन जहाँ भी सेवा करो वहाँ ऐसा रूहानी वायब्रेशन फैलाओ जो वायब्रेशन के प्रभाव में सहज आकर्षित होते रहें। देखो, अभी लास्ट जन्म में भी आप सबके जड़ चित्र कैसे सेवा कर रहे हैं? क्या वाणी से बोलते? वायब्रेशन ऐसा होता जो भक्तों की भावना का फल सहज मिल जाता है। ऐसे वायब्रेशन शक्तिशाली हों, वायब्रेशन में सर्व शक्तियों की किरणें फैलती हों, वायुमण्डल बदल जाए। वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो दिल में छाप लग जाती है। आप सबको अनुभव है किसी आत्मा के प्रति अगर कोई अच्छा या बुरा वायब्रेशन आपके दिल में बैठ जाता है तो कितना समय चलता है? बहुत समय चलता है ना! निकालने चाहो तो भी नहीं निकलता है, किसका बुरा वायब्रेशन बैठ जाता है तो सहज निकलता है? तो आपका सर्व शक्तियों की किरणों का वायब्रेशन, छाप का काम करेगा। वाणी भूल सकती है, लेकिन वायब्रेशन की छाप सहज नहीं निकलती है। अनुभव है ना! है ना अनुभव?
यह गुजरात ने, बाम्बे ने जो उमंग-उत्साह दिखाया, उसको भी बापदादा पदम-पद्मगुणा मुबारक देते हैं। क्यों? विशेषता क्या रही? क्यों मुबारक देते हैं? फंक्शन तो बड़े-बड़े करते रहते हो लेकिन खास मुबारक क्यों दे रहे हैं? क्योंकि दोनों तरफ की विशेषता रही - एकता और दृढ़ता की। जहाँ एकता और दृढ़ता है वहाँ एक वर्ष के बजाए एक मास वर्ष के समान है। सुना - गुजरात और बाम्बे ने।
गुजरात - गुजरात वाले बहुत हैं। सेवा का टर्न है। गुजरात से 4500 आये हैं। (आज की सभा में करीब 18-19 हजार भाई बहनें डायमण्ड हाल में मुरली सुन रहे हैं) सभी को मुबारक हो। सिर्फ टीचर्स को नहीं, पहले आप लोगों को, अगर आपका सहयोग नहीं होता ना, तो टीचर्स भी क्या करती। इसीलिए गुजरात के सर्व बच्चों को अभी के गोल्डन चांस की भी मुबारक है और सेवा की भी मुबारक है, ऐसे ही सदा स्व उन्नति में, सेवा की उन्नति में एक ने कहा, दूसरे ने हाँ जी किया, ऐसे सदा एकता और दृढ़ता से बढ़ते रहना। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
मुम्बई, महाराष्ट्र - (बाम्बे के शिवाजी पार्क में करीब 75-80 हजार का विशाल संगठन हुआ) अच्छा मुबारक तो मिल गई। बापदादा दोनों को बहुत-बहुत, महाराष्ट्र, बाम्बे, आन्ध्रप्रदेश सभी को, सर्व ब्राह्मण परिवार की तरफ से और बापदादा की तरफ से गुजरात और महाराष्ट्र को दिल की बहुत-बहुत दुआयें हो। यह दिल की दुआयें, सदा दिल में उमंग-उत्साह बढ़ाती रहेंगी। ठीक है ना पाण्डव! सभी ने बहुत अच्छी सेवा की। सबके सहयोग से लाखों का प्रोग्राम सफल हुआ। अच्छा।
बिजनेस इन्डस्ट्री वर्ग - बापदादा बिजनेस वर्ग वालों को विशेष संकल्प दे रहे हैं, क्योंकि बिजनेस वालों के पास ग्राहक तो लेने के लिए आते ही हैं, आपको जाना नहीं पड़ता है, आते ही हैं। तो जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हैं उन्हों को कम से कम सन्देश देते रहो, हर एक बिजनेस या इन्डस्ट्री वाले ने अपना-अपना कार्ड छपाया हुआ है, जिसमें अच्छे से अच्छा शार्ट में ज्ञान का स्लोगन हो, एड्रेस हो और दो शब्दों में निमन्त्रण हो। ऐसे सबने अपना-अपना कार्ड छपाया है, जिसने छपाया है वह हाथ उठाओ। इतनों ने छपाया ही नहीं है। बिजनेस वाले तो घर बैठे सेवा कर सकते हैं। उल्हना तो नहीं देंगे कि हम ग्राहक बनकर आपके पास आये, हमको सन्देश भी नहीं दिया। तो कार्ड जरूर छपाना। ऐसा सुन्दर कार्ड छपाना जो वेस्ट पेपर बाक्स में कोई डाले नहीं, सम्भाल के रखे। और बिजनेसमैन को सौदा कराना तो बहुत अच्छा आता है ना, बिजनेसमैन वह अच्छा है जो कोई भी ग्राहक को सौदे के बिना वापस नहीं भेजे। तो आप भगवान से सौदा नहीं कराते हो! सिर्फ कपड़े का और चीजों का कराते हो! बिजनेसमैन बहुत ही आत्माओं को सहयोगी बना सकते हो और सहयोगी से धीरे-धीरे योगी भी बन जायेंगे। तो सहयोगी की लिस्ट हर एक को इस वर्ष में बनानी है। हर एक बिजनेसमैन ने कितनी आत्माओं को सन्देश दिया, कितनी आत्माओं को सहयोगी बनाया, कितनी आत्माओं को सहजयोगी बनाया? ठीक है, करेंगे? दादी कहती है ना संख्या बढ़ाओ तो हर एक बिजनेसमैन भी संख्या बढ़ा सकता है। ठीक है ना। अभी बापदादा भी रिजल्ट देखेंगे। ऐसे नहीं सोचना बापदादा को पता क्या पड़ेगा। बापदादा देखता है, वतन में बैठकर भी देख सकता है। पूछने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। तो बिजनेस वाले कमाल करेंगे ना। जो अच्छा काम करते हैं तो उनके लिए कहते हैं मुख में गुलाब और बापदादा कहते हैं बिजनेसमैन के मुख में गुलाबजामुन। पड़ गया मुख में! अच्छा।
स्पोर्ट विंग (खेलकूद प्रभाग) - खेल-कूद भी चाहिए जरूर। आप कौन सा खेल कराते हो? खेल देखते हो या कराते भी हो? देखते तो सभी हैं, आजकल तो सभी देखने में मशगूल (मगन) रहते हैं। बापदादा को पता है। अच्छा यह भी बहुत जरूरी है क्योंकि आजकल आत्माओं में टेन्शन बहुत है तो खेलकूद भी चाहिए ना। बापदादा ने सुना कि फारेन में एक बच्चे ने बच्चों के लिए खेल बहुत अच्छा बनाया है। किसने बनाया है? बापदादा को समाचार मिला और बापदादा को पसन्द आया है, सभी को दिखाना। तो खेलकूद डिपार्टमेंट एक इसकी इन्वेन्शन देख करके ऐसी कोई इन्वेन्शन्स निकालो, जिसमें खेल का खेल हो और ज्ञान का ज्ञान हो। चाहे कोई कोर्स कराओ तो भी खेल में। अच्छी इन्वेन्शन है, मुबारक हो। तो ऐसा कोई रमणीक प्रोग्राम बनाओ। भाषण तो सभी ने बहुत सुने हैं ना लेकिन ऐसी कोई नई चीज़ निकालो जो न चाहते हुए भी लोग आवें और आपके भाई बहन जाग जावें। बाकी अच्छा है प्लैन बनाते रहते हो, मीटिंग करते रहते हो, दादा को यह बच्चों का प्लैन अच्छा लगता है। तो इस वर्ष में ऐसे कोई चीज़ बनाना जैसे बापदादा को याद है जब पहले मेले करते थे उसमें भी ऐसी ऐसी चीज़ें रखते थे जो लोग स्वत: ही एक दो को भेजते थे कि आप भी जाके देखो। तो ऐसी इन्वेन्शन निकालना। ठीक है ना! इसकी इन्चार्ज (शशी बहन) है, फिर तो होशियार है, करेंगे। अच्छा। मुबारक हो।
एज्युकेशन विंग - एज्युकेशन का महत्त्व है, इसलिए गवर्मेन्ट भी एज्युकेशन की तरफ बहुत रूचि रख रही है तो आप सभी भी ने मिलकर एज्युकेशन के प्रोग्राम किये भी हैं, कर भी रहे हैं लेकिन और भी आगे बढ़ाते चलना। इस वर्ग से भी बहुत आत्मायें निकल सकती हैं। अच्छा।
विदेश के 125 भाई-बहनें मीटिंग के लिए आये हैं - तो क्या कमाल करेंगे? इतने सभी बापदादा के सिकीलधे सर्विसएबुल इकट्ठे होंगे तो क्याक् या जलवा दिखायेंगे? कोई नवीनता करेंगे ना! अच्छा है। सभी मिलकर ऐसा कोई ज्वालारूप प्रोग्राम बनाओ, साधारण प्लैन नहीं, ज्वाला रूप प्लैन बनाओ। एक तो सब ज्वाला रूप हो जाएं, बन जाएं। स्व में ज्वाला स्वरूप और सेवा में ऐसे इन्वेन्शन निकालो जो शार्टकट हो क्योंकि आजकल के समय अनुसार लोगों को सबसे बड़ी समस्या समय निकालने की है। तो ऐसा कोई प्लैन बनाओ, चाहे वृत्ति हो, चाहे दृष्टि हो, चाहे वायब्रेशन हो, थोड़े समय में वह समझ जाए कि यहाँ से ही कुछ मिल सकता है। चुम्बक जैसी सेवा का प्लैन बनाओ। जैसे चुम्बक से कोई हटने चाहते हैं तो भी नहीं हटते हैं। दूर से ही समीप आ जाते हैं। ऐसे नया प्लैन बनाओ, डबल विदेशी हैं ना! और आपके निमित्त बनी हुई दादी या दीदियां, आपकी दीदियां और दादियां सभी होशियार हैं। पाण्डव भी कम नहीं हैं। देखो, यहाँ 5 पाण्डव खड़े हैं। तो 5 पाण्डवों ने क्या किया था? अक्षोणी सेना को खत्म कर दिया। तो पाण्डव भी कम नहीं हैं। एक एक पाण्डव महान है। तो करेंगे ना कमाल? कैसे भी बनाओ, चाहे वृत्ति से, चाहे दृष्टि से, चाहे दृढ़ संकल्प से, कोई प्लैन बनाना। दादियां, दीदियां ठीक है ना! डबल फारेनर्स इन्डिया की टीचर्स से कम नहीं हैं, बहुत संख्या है। फिर तो कमाल हुई पड़ी है। अच्छा है आप पहले प्लैन निकालना फिर इन्डिया की जो मीटिंग होगी वह उस प्लैन में रत्न जड़ित भरेंगी। आप घाट बनाना उसमें हीरा मोती इन्डिया की मीटिंग वाले लगायेंगे। लगायेंगे ना? मीटिंग में लगायेंगे? मुबारक हो। बापदादा साकार रूप में सामने अभी देख-देख खुश हो रहे हैं, फारेन में इतने तैयार हो गये हैं, देखो। सभी को बहुत अच्छा लगता है, खुशी होती है। सभी ने देखा कितने टीचर्स तैयार हो गये हैं। वह भी विशेष टीचर्स हैं, दूसरे तो बहुत हैं। तो बापदादा डबल विदेशी सेवाधारी बच्चों को देख बहुत-बहुत-बहुत-बहुत खुश हैं। यह समझते हैं, हम क्यों ताली बजायें, दूसरे बजायें ना? मुबारक तो आप लोग देंगे ना। (सभी ने तालियां बजाई) अच्छा किया खूब ताली बजाओ।
(76 देशों के डबल विदेशी आये हुए हैं, कुमारों की रिट्रीट भी चली)- कुमारों ने निशानी अच्छी लगाई है। यूथ ग्रुप ने कोई नया प्लैन बनाया, या अभी सोच रहे हो? आप भी ब्राह्मण परिवार से ब्राह्मण संसार का वर्ल्ड कप लो। अभी दिल्ली वालों ने यूथ के प्रोग्राम का प्लैन नहीं बनाया है। दिल्ली वाले उठो दिल्ली वालों को वर्ल्ड के कुमारों को, यूथ को इकठ्ठा कर, चुन करके और ब्राह्मण संसार से वर्ल्ड कप दिलाना है। करना है ना? हिम्मत है ना? प्लैन बनाना। बना सकते हो। प्राइममिनिस्टर और प्रेजीडेंट यूथ के फेवर में हैं। अभी वर्तमान समय वर्ल्ड में एक क्रिकेट का खेल नहीं कहते हैं लेकिन और खेल चल रहा है एक तरफ है हलचल और दूसरे तरफ है अचल। तो अभी दोनों का फुल फोर्स है, हलचल का भी फोर्स है तो अचल स्थिति वालों का भी फोर्स है इसलिए वायुमण्डल प्रमाण फायदा उठा सकते हैं। प्लैन बनाना। यह मीटिंग करेंगे ना, उसमें बनाना। बहुत अच्छा दिल्ली वाले। यूथ आप भी सोचो, आप भी प्लैन बनाना सुनाना शुरू करो और दिल्ली वाले भी प्लैन बनाना शुरू करें, कमाल करके दिखाना, विजय तो आपकी है ही। अच्छा।
अहमदाबाद से ट्रेनिंग की कुमारियां आई हैं - कुमारियां क्या सोच रही हैं? कुमारियां तो बहुत लक्की हैं। सरेण्डर हुई और दीदी कहलाई। और देखो कितना भाग्य है जो टीचर बनने से बापदादा के मुरली सुनाने का तख्त मिलता है। गुरू की गद्दी मिलती है। बापदादा टीचर्स को कहते ही हैं गुरूभाई हैं। तो ऐसे बनेंगी ना! अभी ट्रेनिंग कर रही हैं, या पूरी कर ली? पूरी हो गई। अभी सेन्टर्स पर रहती हैं, मुबारक हो। देखो ऐसी टीचर बनना जो सभी कहें टीचर है तो यह! नि:स्वार्थ सेवाधारी टीचर। टीचर्स तो बहुत हैं लेकिन आप ऐसी टीचर बनना, नि:स्वार्थ सेवाधारी। निर्माण और निर्मलचित। ऐसी बनेंगी ना! उमंग अच्छा है। उमंग भी है, उत्साह भी है, सफल होंगे नहीं लेकिन हुए पड़े हैं। अच्छा।
अभी सेकण्ड में ज्ञान सूर्य स्थिति में स्थित हो चारों ओर के भयभीत, हलचल वाली आत्माओं को, सर्व शक्तियों की किरणें फैलाओ। बहुत भयभीत हैं। शक्ति दो। वायब्रेशन फैलाओ। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)
चारों ओर के बच्चों के भिन्न-भिन्न यादप्यार और समाचार के पत्र और ई-मेल बाप के पास पहुंच गये हैं। हर एक कहता है मेरी भी याद देना, मेरी भी याद देना। बापदादा कहते हैं हर एक प्यारे बच्चों की बापदादा के पास याद पहुंच गई है। दूर बैठे भी बापदादा के दिलतख्त नशीन हैं। तो आप सबको जिन्होंने भी कहा है ना - याद देना, याद देना। तो बाबा के पास पहुंच गई। यही बच्चों का प्यार और बाप का प्यार बच्चों को उड़ा रहा है। अच्छा। चारों ओर के अति श्रेष्ठ भाग्यवान, कोटों में कोई विशेष आत्माओं को सदा स्वमान में रहने वाले, सम्मान देने वाले, सर्विसएबुल बच्चों को, सदा स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप आत्माओं को, सदा अचल अडोल स्थिति के आसन पर स्थित सर्वशक्ति स्वरूप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - बापदादा आपके ऊपर विशेष खुश है। क्यों खुश है? विशेष इस बात पर खुश है कि जैसे ब्रह्मा बाप सभी को आर्डर करता था यह करना है, अभी करना है, ऐसे आपने भी ब्रह्मा बाप को फालो किया। (आप भी मेरे साथ हैं) वह तो है ही, निमित्त तो आप बनी ना। और ऐसा दृढ़ संकल्प किया जो चारों ओर सफलता है, इसीलिए आपमें रूहानी ताकत बहुत गुप्त भरी हुई है। तबियत ठीक है, रूहानी शक्ति इतनी भरी हुई है जो तबियत कुछ भी नहीं है। कमाल है ना! (गुजरात ने किया, बाम्बे ने एक-एक लाख का प्रोग्राम किया, अभी पंजाब और मद्रास कर रहा है) यह कलकत्ता भी करेगा। (दादा निर्मलशान्ता से) आप सिर्फ बैठ जाना कुर्सा पर बस और कुछ नहीं करना, आपके सब सहयोगी बनेंगे। सब आपेही तैयारी कर लेंगे। (बाबा को बिठा देंगे) बाबा के साथ आप भी बैठना। दोनों बैठना। (अगली सीजन में बापदादा का प्रोग्राम कैसे चलेगा?) जैसे चलता है वैसे ही चलेगा। बाबा का मिलना चलता रहेगा। अभी तो एक साल की बात हो रही है। फिर अगले साल, अगले साल की बतायेंगे। दादियों का मिलना देखकर सबकी दिल होती है हम भी दादी होते तो मिलते ना। आप भी दादी बनेंगे। अभी बापदादा ने प्लैन बनाया है दिल में, अभी दिया नहीं है। तो जो सेवा के, ब्रह्मा बाबा के साकार समय में सेवा में आदि रत्न निकले हैं, उन्हों का संगठन पक्का करना है। (कब करेंगे?) जब आप करो। यह ड्युटी आपकी (दादी जानकी की) है। आपके दिल का संकल्प भी है ना? क्योंकि जैसे आप दादियों का एकता और दृढ़ता का संगठन पक्का है, ऐसे आदि सेवा के रत्नों का संगठन पक्का हो, इसकी बहुत-बहुत आवश्यकता है क्योंकि सेवा तो बढ़नी ही है। तो संगठन की शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। संगठन की निशानी का यादगार है पांच पाण्डव। पांच हैं लेकिन संगठन की निशानी है। अच्छा - अभी जो साकार ब्रह्मा के होते हुए सेवा के लिए सेन्टर पर रहे हैं, सेवा में लगे हैं, वह उठो। भाई भी हैं, पाण्डवों के बिना थोड़े ही गति है। यहाँ तो थोड़े हैं लेकिन और भी हैं। संगठन को जमा करने की जिम्मेवारी इनकी (दादी जानकी की) है, यह (दादी) तो बैकबोन है। बहुत अच्छे-अच्छे रत्न हैं। अच्छा। सब ठीक हैं। कुछ भी करते रहते हो लेकिन आपके संगठन की महानता है। किला मजबूत है। अच्छा।
सभी बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात बापदादा के साथ बच्चों ने होली खेली - खूब गुलाबवाशी एक दूसरे पर डाली, बाद में बापदादा ने सभी बच्चों को होली उत्सव की याद दी। चारों ओर के होली बच्चे परमात्मा के संग-संग का होली का उत्सव मना रहे हो, उमंग और उत्साह है और सदा ही इसी उत्सव में उत्साह में रहना। तो हर दिन उत्सव हो जायेगा। उत्साह में रहना अर्थात् उत्सव मनाना। तो सभी उत्साह में हैं ना। तो होली है और होली मना रहे हैं। सदा इस परमात्म संग के रंग की होली में रहना। अच्छा। सभी को होली उत्सव की मुबारक।
ओम् शान्ति।