31-10-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“सदा स्नेही के साथ अखण्ड महादानी बनो तो विघ्न-विनाशक, समाधान स्वरूप बन जायेंगे”
आज प्रेम के सागर अपने परमात्म प्रेम के पात्र बच्चों से मिलने आये हैं। आप सब भी स्नेह के अलौकिक विमान से यहाँ पहुंच गये हो ना! साधारण प्लेन में आये हो वा स्नेह के प्लेन में उड़कर पहुंच गये हो? सभी के दिल में स्नेह की लहरें लहरा रही हैं और स्नेह ही इस ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन है। तो आप सभी भी जब आये तो स्नेह ने खींचा ना! ज्ञान तो पीछे सुना, लेकिन स्नेह ने परमात्म स्नेही बना दिया। कभी स्वप्न में भी नहीं होगा कि हम परमात्म स्नेह के पात्र बनेंगे। लेकिन अब क्या कहते हो? बन गये। स्नेह भी साधारण स्नेह नहीं है, दिल का स्नेह है। आत्मिक स्नेह है, सच्चा स्नेह है, नि:स्वार्थ स्नेह है। यह परमात्म स्नेह बहुत सहज याद का अनुभव कराता है। स्नेही को भूलना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं, भूलना मुश्किल होता है। स्नेह एक अलौकिक चुम्बक है। स्नेह सहज योगी बना देता है। मेहनत से छुड़ा देता है। स्नेह से याद करने में मेहनत नहीं लगती। मुहब्बत का फल खाते हैं। स्नेह की निशानी विशेष चारों ओर के बच्चे तो हैं ही लेकिन डबल विदेशी स्नेह में दौड़-दौड़ कर पहुंच गये हैं। देखो, 90 देशों से कैसे भागकर पहुंच गये हैं! देश के बच्चे तो हैं ही प्रभु प्रेम के पात्र, लेकिन आज विशेष डबल विदेशियों को गोल्डन चांस है। आप सबका भी विशेष प्यार है ना! स्नेह है ना। स्नेह है कितना! कितना? तुलना कर सकते हो किससे! कोई तुलना नहीं हो सकती।
आप सबका एक गीत है ना - न आसमान में इतने तारे हैं, ना सागर में इतना जल है..., बेहद का प्यार, बेहद का स्नेह है। बापदादा भी स्नेही बच्चों से मिलने पहुंच गये हैं। आप सब बच्चों ने स्नेह से याद किया और बापदादा आपके प्यार में पहुंच गये हैं। जैसे इस समय हर एक के चेहरे पर स्नेह की रेखा चमक रही है। ऐसे ही अब एडीशन क्या करना है? स्नेह तो है, यह तो पक्का है। बापदादा भी सर्टीफिकेट देते हैं कि स्नेह है। अभी क्या करना है? समझ तो गये हो। अभी सिर्फ अण्डरलाइन करना है - सदा स्नेही रहना है, सदा। समटाइम नहीं। स्नेह है अटूट लेकिन परसेन्टेज में अन्तर पड़ जाता है। तो अन्तर मिटाने के लिए क्या मन्त्र है? हर समय महादानी, अखण्डदानी बनो। सदा दाता के बच्चे विश्व सेवाधारी समान। कोई भी समय मास्टर दाता बनने के बिना नहीं रहें क्योंकि कार्य विश्व कल्याण का बाप के साथ-साथ आपने भी मददगार बनने का संकल्प किया है। चाहे मन्सा द्वारा शक्तियों का दान वा सहयोग दो। वाचा द्वारा ज्ञान का दान दो, सहयोग दो, कर्म द्वारा गुणों का दान दो और स्नेह सम्पर्क द्वारा खुशी का दान दो, कितने अखण्ड खज़ानों के मालिक, रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड हो। अखुट और अखण्ड खज़ाने हैं। जितने देंगे उतने बढ़ते जाते हैं। कम नहीं होंगे, बढ़ेंगे क्योंकि वर्तमान समय इन खज़ानों के मैजॉरिटी आप सबके आत्मिक भाई और बहनें प्यासी हैं। तो क्या अपने भाई बहिनों के ऊपर तरस नहीं पड़ता! क्या प्यासी आत्माओं की प्यास नहीं बुझायेंगे? कानों में आवाज नहीं आता ‘‘हे हमारे देव देवियाँ हमें शक्ति दो, सच्चा प्यार दो’’। आपके भक्त और दु:खी आत्मायें दोनों ही दया करो, कृपा करो, हे कृपा के देव और देवियाँ कहकर चिल्ला रहे हैं। समय की पुकार सुनाई देती है ना! और समय भी देने का अब है। फिर कब देंगे? इतना अखुट अखण्ड खज़ाने जो आपके पास जमा हैं, तो कब देंगे? क्या लास्ट टाइम, अन्तिम समय देंगे? उस समय सिर्फ अंचली दे सकेंगे।
तो अपने जमा हुए खज़ाने कब कार्य में लगायेंगे? चेक करो हर समय कोई न कोई खज़ाना सफल कर रहे हैं! इसमें डबल फायदा है, खज़ाने को सफल करने से आत्माओं का कल्याण भी होगा और साथ में आप सब भी महादानी बनने के कारण विघ्न-विनाशक, समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप सहज बन जायेंगे। डबल फायदा है। आज यह आया, कल यह आया, आज यह हो गया, कल वह हो गया। विघ्न-मुक्त, समस्या मुक्त सदा के लिए बन जायेंगे। जो समस्या के पीछे समय देते हो, मेहनत भी करते हो, कभी उदास बन जाते, कभी उल्हास में आ जाते, उससे बच जायेंगे क्योंकि बापदादा को भी बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। जब बापदादा देखते हैं, बच्चे मेहनत में हैं, तो बच्चों की मेहनत बाप से देखी नहीं जाती। तो मेहनत मुक्त, पुरूषार्थ करना है लेकिन कौन सा पुरूषार्थ? क्या अभी तक अपनी छोटी-छोटी समस्याओं में पुरूषार्थी रहेंगे! अब पुरूषार्थ करो अखण्ड महादानी, अखण्ड सहयोगी, ब्राह्मणों में सहयोगी बनो और दु:खी आत्मायें, प्यासी आत्माओं के लिए महादानी बनो। अब इस पुरूषार्थ की आवश्यकता है। पसन्द है ना! पसन्द है! पीछे वाले पसन्द है! तो अभी कुछ चेंज भी करना चाहिए ना, वही स्व प्रति पुरूषार्थ बहुत टाइम किया। कैसे पाण्डव! पसन्द है? तो कल से क्या करेंगे? कल से ही शुरू करेंगे या अब से? अब से संकल्प करो - मेरा समय, संकल्प विश्व प्रति, विश्व की सेवा प्रति। इसमें स्व का ऑटोमेटिक हो ही जायेगा, रहेगा नहीं, बढ़ेगा। क्यों? किसी को भी आप उसकी आशायें पूरी करेंगे, दु:ख के बजाए सुख देंगे, निर्बल आत्माओं को शक्ति देंगे, गुण देंगे, तो वह कितनी दुआयें देंगे। और दुआयें लेना सबसे लेना सबसे सहज साधन है, आगे बढ़ने का। चाहे भाषण नहीं करो, प्रोग्राम ज्यादा नहीं कर सकते हो, कोई हर्जा नहीं, कर सकते हो तो और ही करो। लेकिन नहीं भी कर सकते हो तो कोई हर्जा नहीं, सफल करो खज़ानों को। सुनाया ना - मन्सा से शक्तियों का खज़ाना देते जाओ। वाणी से ज्ञान का खज़ाना, कर्म से गुणों का खज़ाना और बुद्धि से समय का खज़ाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से खुशी का खज़ाना सफल करो। तो सफल करने से सफलता मूर्त बन ही जायेंगे, सहज। उड़ते रहेंगे क्योंकि दुआयें एक लिफ्ट का काम करती हैं, सीढ़ी का नहीं। समस्या आई, मिटाया, कभी दो दिन लगाया, कभी दो घण्टा लगाया, यह सीढ़ी चढ़ना है। दुआयें सफल करो, सफलता मूर्त बनो, तो लिफ्ट में सेकण्ड में पहुंच जायेंगे, जहाँ चाहो। चाहे सूक्ष्मवतन में पहुंचों, चाहे परमधाम में पहुंचो, चाहे अपने राज्य में पहुंचो, सेकण्ड में। लण्डन में प्रोग्राम किया था ना वन मिनट। बापदादा तो कहते हैं वन सेकण्ड। वन सेकण्ड में दुआओं की लिफ्ट में चढ़ जाओ। सिर्फ स्मृति का स्वीच दबाओ बस, मेहनत मुक्त।
तो बापदादा आज डबल विदेशियों का दिन है ना तो पहले डबल विदेशियों को किस स्वरूप में देखने चाहते हैं? मेहनत मुक्त, सफलता मूर्त, दुआओं के पात्र। बनेंगे ना? क्योंकि डबल विदेशियों का बाप से प्यार अच्छा है, शक्ति चाहिए लेकिन प्यार अच्छा है। कमाल तो की है ना? देखो 90 देशों से अलग-अलग देश, अलग-अलग रसम-रिवाज लेकिन 5 ही खण्डों के एक चन्दन के वृक्ष बन गये हैं। एक वृक्ष में आ गये हैं। एक ही ब्राह्मण कल्चर हो गया, अभी है क्या इंगलिश है, कल्चर हमारा इंगलिश है, नहीं ना। ब्राह्मण है ना? जो समझते हैं अभी तो हमारा ब्राह्मण कल्चर है वह हाथ उठाओ। ब्राह्मण कल्चर और एडीशन नहीं। एक हो गये ना। इसकी मुबारक दे रहे हैं बापदादा कि सभी एक वृक्ष के बन गये। कितना अच्छा लगता है! किसी से भी पूछो, अमेरिका से पूछो, यूरोप से पूछो, आप कौन हो? तो क्या कहेंगे? ब्राह्मण है ना! कि नहीं, यू.के. के हैं, अफ्रीकन हैं, अमेरिकन हैं नहीं, सब एक ब्राह्मण हो गये। एक मत हो गये, एक स्वरूप के हो गये ब्राह्मण और एक मत श्रीमत। मजा आता है ना इसमें। मजा है? कि मुश्किल है? मुश्किल तो नहीं है ना! कांध हिला रहे हैं, अच्छा है।
बापदादा सेवा में नवीनता क्या चाहता है? जो भी सेवा कर रहे हो - बहुत-बहुत-बहुत अच्छी कर रहे हो, उसकी तो मुबारक है ही। लेकिन आगे एडीशन क्या करना है? आप लोगों के मन में है ना कोई नवीनता चाहिए। तो बापदादा ने देखा, जो भी प्रोग्राम किये हैं, समय भी दिया है, और मुहब्बत से ही किया है, मेहनत भी मुहब्बत से की है और अगर स्थूल धन भी लगाया है तो वह तो पदमगुणा होके आपके परमात्म बैंक में जमा हो गया है। वह लगाया क्या, जमा किया है। रिजल्ट में देखा गया कि सन्देश पहुँचाने का कार्य, परिचय देने का कार्य सभी ने बहुत अच्छा किया है। चाहे कहाँ भी किया, अभी दिल्ली में हो रहा है, लण्डन में हुआ और बापदादा को डबल फारेनर्स का कॉल ऑफ टाइम करते हैं, पीस ऑफ माइण्ड करते हैं, यह सब प्रोग्राम बहुत अच्छे लगते हो। जो भी और काम कर सको करते रहो, लेकिन सन्देश मिलता है, स्नेही भी बनते हैं, सहयोगी भी बनते हैं, सम्बन्ध में भी कोई-कोई आ जाते हैं लेकिन अभी एडीशन चाहिए- कि जब भी कोई बड़ा प्रोग्राम करते हो उसमें सन्देश तो मिलता है, अनुभव करके जायें कुछ, अनुभव बहुत जल्दी आगे बढ़ाता है। जैसे यह कॉल ऑफ टाइम में, या पीस ऑफ माइन्ड में थोड़ा-थोड़ा अनुभव ज्यादा करते हैं। लेकिन जो बड़े प्रोग्राम होते हैं उसमें सन्देश तो अच्छा मिल जाता है, लेकिन जो भी आवे उसके पीठ करके कुछ न कुछ अनुभव करे, क्योंकि अनुभव कभी भूलता नहीं है और अनुभव ऐसी चीज़ है जो न चाहते हुए भी उस तरफ खीचेंगे। तो पहले बापदादा कहते हैं जो सभी ब्राह्मण भी हैं, जो भी ज्ञान की प्वाइंटस हैं, उनका स्वयं अनुभवी बने हो? हर शक्ति का अनुभव किया है, हर गुण का अनुभव किया है? आत्मिक स्थिति का अनुभव किया है? परमात्म प्यार का अनुभव किया है? ज्ञान समझना इसमें तो पास हो, नॉलेजफुल तो बन गये हो, इसमें तो बापदादा भी रिमार्क्स देते हैं, ठीक है। आत्मा क्या, परमात्मा क्या, ड्रामा क्या, ज्ञान तो समझ लिया है, लेकिन जब चाहे जितना समय चाहें, जिस भी परिस्थिति में हो, उस परिस्थिति में आत्मिक बल का अनुभव हो, परमात्म शक्ति का अनुभव हो, वह होता है? जिस समय, जितना समय, जैसे अनुभव करने चाहो वैसे होता है? कि कभी कैसे कभी कैसे? सोचो आत्मा हूँ, और फिर बार-बार देहभान आ जाए, तो क्या अनुभव काम में आया? अनुभवी मूर्त हर सब्जेक्ट के अनुभवी मूर्त, हर शक्तियों के अनुभवी मूर्त। तो स्वयं में भी अनुभव को और बढ़ाओ, है, ऐसे नहीं कि नहीं है, लेकिन कभी-कभी है, समटाइम। तो बापदादा समटाइम नहीं चाहते हैं, समाथिंग हो जाता है, तो समटाइम भी हो जाता है क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, पूछते हैं क्या बनने का लक्ष्य है? तो कहते हो बाप समान। एक ही जवाब सभी देते हो। तो बाप समान, तो बाप समटाइम और समाथिंग नहीं था, ब्रह्मा बाप सदा राज़युक्त, योगयुक्त, हर शक्ति में सदा, कभी-कभी नहीं। अनुभव जो होता है, वह सदाकाल चलता है, वह सम टाइम नहीं होता है। तो स्वयं अनुभवी मूर्त बन हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी, ज्ञान स्वरूप में अनुभवी, योगयुक्त में अनुभवी, धारणा स्वरूप में अनुभवी। आलराउण्ड सेवा मन्सा वाचा कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें अनुभवी, तब कहेंगे पास विद आनर। तो क्या बनने चाहते हो? पास होने चाहते हो या पास विद ऑनर बनने चाहते हो? पास करने वाले तो पीछे भी आयेंगे, आप तो टूलेट से पहले आ गये हो, चाहे अभी नये भी आये हैं लेकिन टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है। लेट का लगा है, टूलेट का नहीं लगा है। इसीलिए चाहे कोई नये भी हैं लेकिन अभी भी तीव्र पुरूषार्थ करे, पुरूषार्थ नहीं तीव्र, तो आगे जा सकता है। क्योंकि नम्बर आउट नहीं हुआ है। सिर्फ दो नम्बर आउट हुए हैं, बाप और माँ। अभी कोई भी भाई बहन का तीसरानम्बर आउट नहीं हुआ है। भले आप कहेंगे दादियों से बहुत प्यार है, बाप का भी दादियों से प्यार है, लेकिन नम्बर आउट नहीं हुआ है। इसीलिए आप बहुत-बहुत सिकीलधे, लाडले भाग्यवान हो, जितना उड़ने चाहो उड़ो क्योंकि देखो जो छोटे बच्चे होते हैं ना उसको बाप अपनी अंगुली देके चलाता है, एकस्ट्रा प्यार करता है, और बड़े को अंगुली से नहीं चलाता है, अपने पांव से चलता है। तो नया भी कोई मेकप कर सकता है। गोल्डन चांस है। लेकिन जल्दी में जल्दी टूलेट का बोर्ड लगना है, इसलिए पहले ही कर लो। नये जो आये हैं पहली बारी, वह हाथ उठाओ। अच्छा। मुबारक हो। पहले बारी अपने घर मधुबन में पहुंच गये हो, इसलिए बापदादा और सारे परिवार चाहे देश वाले, चाहे विदेश वाले सबकी तरफ से पदम-पदमगुणा मुबारक हो।
अभी सुना - जितना हो सके योग्य आत्मायें देख करके अनुभवी मूर्त बनाओ। फिर आपको कहना नहीं पड़ेगा, आते रहो। आप कहेंगे नहीं आओ, तो भी आयेंगे। अनुभव ऐसी चीज़ है। स्वयं को भी अनुभव में बढ़ाओ, जितना-जितना अनुभव में और महादानी बनके सेवा में बिजी रहेंगे ना, तो यह जो टाइम वेस्ट होता है ना समस्याओं में, दादियों को भी समय देना पड़ता है और अपने को भी समय देना पड़ता है, वह समय बच जायेगा क्योंकि समय के महत्व को भी जानते हो, अचानक होना है। कई भाई बहिनें सोचते हैं थोड़ा सा इशारा मिल जाए ना, 10 साल हैं, 20 साल है, कितना है, लेकिन बापदादा ने कह दिया है, अचानक होना है। एवररेडी रहना है। फास्ट गति करो अभी - स्वयं की भी, औरों को भी योग्य बनाने की। अच्छा है, फॉरेन की सेवा भी अच्छी वृद्धि को प्राप्त कर रही है। 90 देशों तक पहुंच गये हो, बाकी क्या रहा! 10 तो और बढ़ाओ, 100 तो हो जायें। (जयन्ती बहन ने सुनाया, 129 कन्ट्री तक पहुंच गये हैं, 100 में रजिस्ट्री भी हो चुकी है, बाकी में कुछ न कुछ बाबा का कार्य चल रहा है) अच्छा है, बापदादा ने अफ्रीका का भी समाचार सुना, वह भी थोड़े टाइम में अच्छी वृद्धि कर ली है। अच्छा है। बापदादा खुश होते हैं, कि मर्सीफुल आत्मायें हैं। आत्माओं के प्रति प्यार है, और देखो कहाँ-कहाँ से बच्चे पहुंचे हुए हैं चाहे और धर्म में भी चले गये हैं, कितने बिखर गये हैं। तो अपने परिवारको तो ढूंढकर निकालना है ना। अच्छा कर रहे हैं सभी। अभी दिल्ली में भी बड़ा प्रोग्राम, है तो मेला कामन, लेकिन नये रूप से करने से लोगों को भी रूचि होती है। लण्डन का प्रोग्राम भी बहुत अच्छा किया, और इतने लोगों को परिचय भी मिला, अभी जो एड्रेसेज हैं उससे कान्टैक्ट करके, जहाँ से भी आये, जिस प्रोग्राम में भी कोई आते हैं तो एड्रेस और फोन जरूर लिखाओ, चाहे 8-10 जगह पर रखो, क्योंकि तभी उन्हों को बुला करके, समय दे करके फिर उनको आगे बढ़ा सकेंगे। बाकी समय का बिगुल तो अचानक बजना है, उसके पहले अपने भाई बहिनों का कल्याण तो करना है ना। तरस आता है ना? अब छोटी-छोटी बातों में टाइम नहीं लगाओ। जैसे देखो मक्खी आती है, मच्छर आता है, ठहरने देते हो, फौरन उड़ा देते हो, कि बैठने देंगे। अच्छा मच्छर भले आओ। कोई भी समस्या क्या है? मच्छर और मक्खी तो है। फौरन भगाओ। उन्हों का काम है आना, माया आने का काम नहीं छोड़ती है, लेकिन ब्राह्मण भगाने के काम में कभी कभी थोड़ी देरी लगा देते हैं। बाकी बापदादा ने सभी देशों का कुछ-कुछ परिवर्तन किया है, वह लिखत देखी, 5-6 खण्डों का देखा। लेकिन परिवर्तन किया और लिखा है, उसकी मुबारक तो है लेकिन इसको अविनाशी बनाना। ऐसे नहीं कि कोई छोटी सी बात आ गई, परिवर्तन बदल जाये, यह नहीं करना। अमरभव का वरदान लो। जो परिवर्तन किया है, बापदादा ने सुना, कोई कोई ने परिवर्तन अच्छा किया है लेकिन सदा शब्द को कभी नहीं भूलना क्योंकि माया भी सुन रही है तो यह प्रतिज्ञा कर रहे हैं, वह भी तो अपना अजमाइस करेगी ना, लेकिन आप तो मायाजीत हो ना, मायाजीत तब तो जगतजीत बनेंगे। तो माया को देख करके, माया का आना देख करके आप याद करो मेरा काम भगाना है। वह भी आपको सिखलाती है, कि मैं आना नहीं छोडूंगी, आप विजय पाना नहीं छोड़ो, तो क्या? अभी छोटे-छोटे मच्छर और मक्खी को आने नहीं देना। सम्पूर्ण स्थिति के आगे यह छोटी-छोटी चीज़ें क्या हैं!
अच्छा आप सबकी प्यारी-प्यारी मीठी दादी सम्मुख आ गई है। (वीडियो कानफ्रेनसिंग से) बहुत मीठा मुस्करा रही है | देखो सभी हाथ हिलाओ, देखेगी वहाँ दिखाई देगा। अच्छा है। देखो, दादी ने ब्रह्मा बाप से भी ज्यादा समय सेवा का पार्ट बजाया है। तो विशेष हीरो एक्टर है ना। देखो दादी आपको देख करके सभी बहुत-बहुत खुश हो रहे हैं। (दादी ने सभी डबल विदेशियों को खास याद देते दीवाली की मुबारक दी) देखो, यह भी प्रैक्टिकल दिवाली है ना, आप प्रैक्टिकल इतने जगे हुए दीपक चमक रहे हो तो दादी को दीवाली याद आ रही है। कितनी रिमझिम है, एक एक के मस्तक में आत्मा चमक रही है, तो यह दीपक कितने अच्छे हैं, अविनाशी दीपक हैं। (दादी ने कहा - सभी बाबा-बाबा कर रहे हैं, बाबा आपकी बहुत याद आ रही है) अभी जल्दी आ जायेगी। देखो, बीमारी कितनी भी हो लेकिन दर्द की फीलिंग नहीं हो तो वह बीमारी आराम देती है। हीरो एक्टर है ना, शान्ति की देवी है। अभी जल्दी आ जायेगी, मिलेगी आप सबसे। अच्छा, लण्डन के प्रोग्राम का जस्ट ए मिनट ग्रुप:- बहुत अच्छा यह विशेषता अच्छी रही जो एक साथ और देशों ने भी भाग लिया या देखा भी, तो यह नवीनता अच्छी रही और इसको और भी रिफाइन कर एक ही समय पर अनेक तरफ एक ही सेवा का आवाज हो। तो यह अच्छा है। रिफाइन होता जायेगा और बढ़ता जायेगा तो सभी को पता पड़ेगा कि एक ही समय पर एक ही आवाज चारों ओर गूंज रहा है, तो सभी ने मेहनत बहुत अच्छी की और दिल से किया और विशेषता लण्डन की यह रही कि बड़ी दिल से बेफिक्र होकरके किया। इसकी मुबारक हो। कोई भी प्रोग्राम अगर बड़ी दिल से करते हैं तो अच्छा होता है। क्या होगा, कैसे होगा, यह कै कै नहीं आवे, होना ही है, करना ही है, सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। तो यह अच्छा रिजल्ट है। बड़ी दिल लण्डन की है ही। जनक बच्ची की बड़ी दिल नम्बरवन है क्यों, क्या नहीं सोचती। और हो ही जाता है। सभी ने देखा होगा तो कितना सहज हो गया। बापदादा ने सुना कि खर्चा तो हुआ लेकिन और ही बचत हुई। बच गया, और ही बढ़ गया, कम नहीं हुआ। तो यह किसकी कमाल है? बड़े दिल की। कभी भी कोई भी प्रोग्राम करो तो पहले बड़ी दिल करेंगे तो सफलता होगी। तो मुबारक है। बड़ी दिल की और बड़े प्रोग्राम की। बाकी रिफाइन तो होता रहेगा। एडीशन तो होती रहेगी। अभी पीठ करना, इतने जो आये, उनसे कम से कम कुछ तो सम्बन्ध सम्पर्क वाले स्टूडेन्ट तो बने ना, बनेंगे। (अमेरिका की मोहिनी बहन का बहुत अच्छा सहयोग रहा) सभीने मिलके किया है ना। अच्छा है। बहुत अच्छा। संगठन की शक्ति कमाल करती ही है। तो संगठित होकरके किया, सफलता है, सफलता रहेगी। थकावट नहीं हुई ना। खुशी हो गई। जब देखा सभा में रौनक हो गई तो खुशी हो गई। अच्छा। मुबारक हो।
आई.टी. ग्रुप:- अच्छा है आप लोगों के कार्य से सभी तरफ जो समाचार मिलता है तो सभी की दिल खुश हो जाती है क्योंकि परिवार है ना, तो परिवार में समाचार मिलने से खुशी होती है। तो अच्छा किया है, चलता तो रहता था काम, लेकिन अभी संगठित रूप में मिल करके कायदे प्रमाण कर रहे हैं, बढ़ा रहे हैं, यह बहुत अच्छा बनाया भी है और बढ़ाया भी है। इसमें आपोजीशन तो होगी लेकिन आप अपनी पोजीशन में दृढ़ हैं तो आपोजीशन खत्म हो जायेगी। आपोजीशन हो तब तो आपको उमंग आवे, यह करें, यह करें.. तो आपोजीशन पोजीशन को बढ़ा लेती है और सफलता मिलती भी है और मिलती रहेगी। यह निश्चित है। कभी भी कुछ भी हो जाए घबराना नहीं, सफलता आपके साथ है। आपोजीशन के साथ नहीं है, पोजीशन वालों के साथ है। बहुत अच्छा कर रहे हैं, हर एक देश में सिस्टम अच्छी बनाई है। (आई.टी.ग्रुप की मुख्य मोहिनी बहन हैं) अच्छा है, कोई कायदे प्रमाण निमित्त बनता है ना तो जो भी कार्य होता है उसमें कायदे से फायदा होता है। अच्छा हिम्मत रखकर उठाया है, इसकी बहुत-बहुत मुबारक हो। हर एक देश से बापदादा के पास समाचार आते रहते हैं, कैसे आपस में मीटिंग करते हो, कैसे आगे का प्लैन बनाते हो वह बापदादा के पास पहुंचते हैं इसीलिए मुबारक हो, मुबारक हो।
आर.सी.ओ ग्रुप:- अच्छा यह प्लैनिंग बुद्धि वाली आत्मायें हैं। नये-नये प्लैन बनाते रहते हो। चारों ओर सेवा की वृद्धि और ब्राह्मण आत्माओं में भी वृद्धि कैसे हो, विधि क्या हो, यह आपस में मिलकर जो मीटिंग करते हो वह बहुत अच्छा है। बापदादा के पास सब समाचार तो उसी समय ही पहुंच जाते हैं, क्योंकि बाप स्विच आन करता है टी.वी. का तो उसमें सब दिखाई-सुनाई देता है, तो बापदादा को पसन्द है। आपस में मिलके प्लैन और प्रोग्राम बनाते हो और प्रैक्टिकल में लाने का अच्छा पुरूषार्थ करते हो। बढ़ते चलो, बढ़ना है और सफलता बच्चों के गले का हार है। अच्छा है। मुख्य सभी इकट्ठे हो जाते हैं तो प्लैन भी ऐसे ही बड़े अच्छे बनते हैं। सभी देश के मिल जाते हैं। अच्छा, बहुत अच्छा। बढ़ते रहो, उड़ते रहो।
सेवा के निमित्त और भी मुख्य बहिनें बाबा के सामने खड़ी हुई:- अच्छा यह भिन्न-भिन्न देश की हैं, आपस में मिलके भविष्य सेवा के प्लैन बनाते हैं, चारों ओर के वायुमण्डल को जानकर, वायुमण्डल को भी एक दो की राय से पावरफुल बनाते हो क्योंकि वायुमण्डल का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। तो सेवा के भी प्लैन वृद्धि के बनाते हो और फिर सेन्टर्स के भी वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने के प्लैन जो आपस में राय सलाह करके बनाते हो, उससे देखा गया है कि समय प्रति समय वायुमण्डल अच्छा ही बनता जाता है। वृद्धि भी अच्छी है और विधि भी अच्छी है। और विधि की सिद्धि भी है। तो संगठन की शक्ति है ना! संगठन की शक्ति बहुत कमाल करती है, करना ही है। आपस का मिलना भी हो जाता है और सेवा की वृद्धि विधि भी हो जाती और एक दो के समीप भी आ जाते हैं। तो यह जो प्रोग्राम बनाया है, बापदादा को पसन्द है। और ड्रामानुसार आपको मधुबन का भी चांस मिल जाता है। यह संगठन बहुत करके मधुबन के वायुमण्डल में होता है। और भी संगठन की शक्ति को बढ़ाते जाओ। जब शक्ति सेना अपने को प्रत्यक्ष करेगी तब बाप प्रत्यक्ष होगा क्योंकि शक्ति और पाण्डवों के द्वारा ही बाप प्रत्यक्ष होना है। तो पहले शक्तियां या पाण्डव खुद अपने को सम्पूर्ण प्रत्यक्ष करेंगे तब बाप प्रत्यक्ष होगा। हर एक के चेहरे में बाप ही दिखाई देगा। इतनी संगठन में शक्ति है। तो अच्छा लगा। आप सभी को भी अच्छा लग रहा है ना। संगठन की शक्ति को बढ़ाते चलो। बाप को प्रत्यक्ष करते चलो। मुबारक हो। अच्छा है, मैजारटी भारत की बहनें हैं। देखो, पहले भारत गया है विदेश को जगाने, अभी विदेश भारत में जगायेगा। मैजारिटी भारत की है। तो विदेश भारत को कब जगायेंगे? यह आई.टी. ग्रुप जगायेगा? अच्छा है, कनेक्शन अच्छा हो रहा है।
सर्व अफ्रीका ग्रुप:- देखो, अफ्रीका वालों को एक बात की बहुत-बहुत मुबारक है - जो वायदा किया वह पूरा निभाया है। संगठन की शक्ति से एक दो के सहयोगी अच्छे बने हैं और ऐसे देश जहाँ अपने परिवार के लोग पहुंच गये हैं, उन भाई बहिनों को ढूंढकर निकालना, मेहनत भी की है, तो विधि भी अच्छी की है और समय पर सफलता प्राप्त कर ली है, उसकी बहुत-बहुत मुबारक हो। अच्छा किया है, मेहनत अच्छी की है। जो निमित्त बने हैं ना, वह भी आपस में संगठित रूप में अच्छे चले हैं और चल रहे हैं, यह भी है ना? (जयन्ती बहन को, आप भी उठो) अच्छा किया, एक दो का सहयोग अच्छा है। बापदादा को दिखाया था शक्तियां भी निमित्त हैं और पाण्डव भी निमित्त हैं। बहुत अच्छा रिकार्ड रखा है। बहुत अच्छा, सफलता की माला तो बापदादा पहना रहा है, वह माला तो क्या पहनायेंगे फिर उतार देंगे लेकिन सफलता की माला एक एक को बापदादा पहना रहा है। अच्छा। पदमगुणा मुबारक हो।
दिल्ली ओ.आर.सी. में एस.एम.एल की ट्रेनिंग करने, कराने वाला ग्रुप:- अच्छा है जितना अभ्यास करते हैं उतना पुण्य कमाते हैं, दूसरों को सेवा करके परिवर्तन कराना, यह सेवा का पुण्य जमा हो जाता है और यह पुण्य वर्तमानसमय खुशी दिलाता है और भविष्य में भी जमा होता है। जितनों को करायेंगे, किसलिए किया है? कराने के लिए ना! तो इतने सारे हैण्ड कराने के लिए तैयार हो गये। तो कितने पुण्य जमा होंगे! सेवा अर्थात् पुण्य जमा करना, कोई भी ग्रुप हो। जितने भी ग्रुप ने भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवायें की हैं, उन्हों का पुण्य जमा हो गया और जमा करते रहना। इसीलिए सीखे हो ना! होशियार हो गये ना! औरों को भी करा सकेंगे ना? एक दो को आगे बढ़ाना, यह भी अच्छा किया, निमित्त बने ना? निमित्त बनने वाले का भी पुण्य जमा होता है। तो बापदादा खुश है, लेकिन जो सीखा है वह सिखाने में नम्बरवन आना। अपने तक नहीं रखना। काम में लगाना। समय दिया है और निमित्त का समय लिया है तो और आगे बढ़ाना। मुबारक हो, मुबारक हो। बहुत अच्छा, जो ग्रुप में नहीं भी उठे हैं, उन्हों को भी बहुत-बहुत मुबारक है। किसी न किसी सेवा में तो आपका भी ग्रुप है, इसीलिए इनएडवांस मुबारक हो।
अच्छा - अभी सेकण्ड में जिस स्थिति में बापदादा डायरेक्शन दे उसी स्थिति में सेकण्ड में पहुंच सकते हो! कि पुरूषार्थ में समय चला जायेगा? अभी प्रैक्टिस चाहिए सेकण्ड की क्योंकि आगे जो फाइनल समय आने वाला है, जिसमें पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है, उसका अभ्यास अभी से करना है। सेकण्ड में जहाँ चाहे, जो स्थिति चाहिए उस स्थिति में स्थित हो जाएं। तो एवररेडी। रेडी हो गये। अभी पहले एक सेकण्ड में पुरूषोत्तम संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण हूँ, इस स्थिति में स्थित हो जाओ.... अभी मैं फरिश्ता रूप हूँ, डबल लाइट हूँ..., अभी विश्व कल्याणकारी बन मन्सा द्वारा चारों ओर शक्ति की किरणें देने का अनुभव करो। ऐसे सारे दिन में सेकण्ड में स्थित हो सकते हैं! इसका अनुभव करते रहो क्योंकि अचानक कुछ भी होना है। ज्यादा समय नहीं मिलेगा। हलचल में सेकण्ड में अचल बन सकें इसका अभ्यास स्वयं ही अपना समय निकाल बीच-बीच में करते रहो। इससे मन का कन्ट्रोल सहज हो जायेगा। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर बढ़ती जायेगी। अच्छा - चारों ओर के बच्चों के पत्र भी बहुत आये हैं, अनुभव भी बहुत आये हैं, तो बापदादा बच्चों को रिटर्न में बहुत-बहुत दिल की दुआयें और दिल का याद प्यार पदम-पदमगुणा दे रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं - चारों ओर के बच्चे सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं। जो नहीं भी देख रहे हैं, वह भी याद में तो हैं। सबकी बुद्धि इस समय मधुबन में ही है। तो चारों ओर वे हर एक बच्चे को नाम सहित यादप्यार स्वीकार हो। सभी सदा उमंग-उत्साह के पंखों द्वारा ऊंची स्थिति में उड़ते रहने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्नेह में लवलीन रहने वाले समाये हुए बच्चों को, सदा मेहनत मुक्त, समस्या मुक्त, विघ्न मुक्त, योगयुक्त, राज़युक्त बच्चों को, सदा हर परिस्थिति में सेकण्ड में पास होने वाले, हर समय सर्व शक्ति स्वरूप रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। आप सबकी प्यारी दादी को भी बहुत-बहुत दुआयें और यादप्यार।
दादियों से:- यह मुक्त अवस्था भी बहुत काल की चाहिए। ग्रहचारी हो या विघ्न हो, कोई भी ऐसी चीज़ न रहे। स्वदर्शन चलाते रहें ना, तो परदर्शन, पराचिंतन खत्म हो जाए। पहले डबल विदेशी करके दिखायें, करेंगे ना? निमित्त बनके दिखाना। मायामुक्त, माया को विदाई दे दो, बाप की बधाईयां मिलेगी। माया को सदा के लिए विदाई देना अर्थात् बाप की बधाईयां लेना। (दादी की तरफ से मोहिनी बहन ने भाकी पहनी) आप सबको पता है कि आप सबकी एक परदादी भी है, तो वह भी बहुत मीठा पार्ट बजाने वाली है। उसने भी बहुत-बहुत बाप के साथ आप सबको भी बहुत याद भेजी है और बापदादा उसकी हिम्मत पर बहुत खुश है। कोई भी डाक्टर आता है, तो डाक्टर को भी ज्ञान देने शुरू कर देती है। डाक्टर उसको समझते हैं पेशेन्ट और वह उसको ज्ञान देकरके पेशेन्स में रहना सिखाती है। तो वह भी बहुत अच्छा पार्ट बजा रही है और याद में रह करके आगे से आगे उड़ रही है। बेड में होते भी उड़ रही है। तो सबने याद दी, परदादी को तो बहुत बड़ी याद चाहिए ना। अच्छा। बहुत अच्छा। (दादी की तरफ से मोहनी बहन ने और दादी जानकी ने बापदादा को भाकी पहनी) आप तो भाकी में हो, ऐसे औरों को भी लेना पड़ेगा। (मुन्नी बहन, ईशू दादी ने भी खास याद दी है) अच्छा – दादी के साथ सेवा के निमित्त बने हुए मुन्नी बच्ची, डाक्टर जी, और भी जो भाई बहिनें दिल से सेवा कर रहे हैं, अच्छी सेवा कर रहे हैं, इसीलिए दिल से सेवा करने वालों को बापदादा दिलाराम की दिल से दुआयें भी हैं, यादप्यार भी है। परदादी के भी सेवाधारियों को यादप्यार विशेष बापदादा दे रहे हैं। आप भी दे रहे हो ना? मुन्नी, ईशू, पारला की योगिनी और साथी भी सेवा अच्छी कर रहे हैं और हॉस्पिटल में जो ब्राह्मण आत्मायें सेवा कर रही हैं, उन सबको यादप्यार। (मुन्नी बहन कह रही हैं - 40 साल में बाबा पहली बार ऐसा हुआ है जो आप मधुबन में हो हम बम्बई में हैं) बापदादा आप सबको मधुबन में देख रहे हैं, कहाँ भी हो मधुबन में बाप के सामने हो। सामने हैं सिर्फ फरिश्ते रूप में हैं। (दादी बाबा को भाकी पहन रही है)
विदेश की बड़ी बहिनों से:- एक दो के विचार से, विचार लेकर संगठित रूप में सेवा में चल रहे हो इसकी मुबारक हो। बापदादा का जन्म से वरदान है। (सब टेन्शन मुक्त हैं) अगर इन्हों को टेन्शन होगा तो दूसरों का क्या हाल होगा! इन्हों के पीछे तो लाइन है ना। इन्हों को तो टेन्शन स्वप्न में भी नहीं क्योंकि लाइन बड़ी है। यह तो हैं लेकिन विश्व की भी लाइन है, वही लहर फैलेगी। हेल्थ भी अच्छी है, वेल्थ भी बहुत है, हैपी भी है। सब हेल्दी हैं, बापदादा को खुशी है कि भारत की बहनों ने विदेश सम्भाल लिया है। (बम्बई, दिल्ली की कमाल है) गुजरात भी है, गुजरात का नाम भी तो रखो ना। कारोबार भी अच्छी चल रही है। (इस बार जनवरी मास स्पेशल होगा) इस बार जनवरी मास ऐसा मनाओ जो विघ्नमुक्त का सर्टीफिकेट हो। सभी को सर्टीफिकेट मिले। नवीनता करो। नवीनता होगी तो उड़ जायेंगे। अभी उड़ने का ही समय है क्योंकि अचानक कुछ भी हो सकता है, हलचल का समय है। उसमें आप अचल। यही सबको वायब्रेशन आवे कि हम हलचल में हैं, यह अचल हैं। होना ही है। अच्छा है। बहुत-बहुत मुबारक।
दादी शान्तामणि, दादी मनोहर इन्द्रा, दादी रत्नमोहिनी:- त्रिमूर्ति मधुबन के निमित्त हो, मधुबन अर्थात् उसमें सब आ गया। तो निमित्त समझकर चलते चलो, उड़ते चलो। आदि रत्न तो हो ना। तो आदि रत्न में आदि देव के संस्कार आटोमेटिकली भरे हुए हैं, उसको प्रैक्टिकल में लाओ। सभी आप लोगों को देखके कितने खुश हो जाते हैं। तो खुशी दे रहे हो, खुशी देते रहेंगे। बहुत अच्छा। (दादी शान्तामणि) शान्तामणि दादी तो पांच चिड़ियाओं में भी है, जो निमित्त बनी, उसमें भी है।
16-11-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“अपने स्वमान की शान में रहो और समय के महत्व को जान एवररेडी बनो”
आज बापदादा चारों ओर के अपने परमात्म प्यार के पात्र स्वमान की सीट पर सेट बच्चों को देख रहे हैं। सीट पर सेट तो सब बच्चे हैं लेकिन कई बच्चे एकाग्र स्थिति में सेट हैं और कोई बच्चे संकल्प में थोड़ा-थोड़ा अपसेट हैं। बापदादा वर्तमान समय के प्रमाण हर बच्चे को एकाग्रता के रूप में स्वमानधारी स्वरूप में सदा देखने चाहते हैं। सभी बच्चे भी एकाग्रता की स्थिति में स्थित होना चाहते हैं। अपने भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वमान जानते भी हैं, सोचते भी हैं लेकिन एकाग्रता हलचल में ले आती है। सदा एकरस स्थिति कम रहती है। अनुभव होता है और यह स्थिति चाहते भी हैं लेकिन कब-कब क्यों होती है, कारण! सदा अटेन्शन की कमी। अगर स्वमान की लिस्ट निकालो तो कितनी बड़ी है। सबसे पहला स्वमान है - जिस बाप को याद करते रहे, उनके डायरेक्ट बच्चे बने हो, नम्बरवन सन्तान हो। बापदादा ने आप कोटों में से कोई बच्चों को कहाँ-कहाँ से चुनकर अपना बना लिया। 5 ही खण्डों से डायरेक्ट बाप ने अपने बच्चों को अपना बना लिया। कितना बड़ा स्वमान है। सृष्टि रचता की पहली रचना आप हो। जानते हो ना इस स्वमान को! बापदादा ने अपने साथ-साथ आप बच्चों को सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज बनाया है। विश्व के पूर्वज हो, पूज्य हो। बापदादा ने हर बच्चे को विश्व के आधारमूर्त, उदाहरणमूर्त बनाया है। नशा है? थोड़ा-थोड़ा कभी कम हो जाता है। सोचो, सबसे अमूल्य जो सारे कल्प में ऐसा मूल्य तख्त किसको नहीं प्राप्त होता। वह परमात्म तख्त, लाइट का ताज, स्मृति का तिलक दिया। स्मृति आ रही है ना - मैं कौन! मेरा स्वमान क्या! नशा चढ़ रहा है ना! कितना भी सारे कल्प में सतयुगी अमूल्य तख्त है लेकिन परमात्म दिलतख्त आप बच्चों को ही प्राप्त होता है। बापदादा सदा लास्ट नम्बर बच्चे को भी फरिश्ता सो देवता स्वरूप में देखते हैं। अभी-अभी ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण से फरिश्ता, फरिश्ता से देवता बनना ही है। जानते हो अपने स्वमान को? क्योंकि बापदादा जानते हैं कि स्वमान को भूलने के कारण ही देहभान, देह अभिमान आता है। परेशान भी होते हैं, जब बापदादा देखते हैं देह-अभिमान वा देहभान आता है तो कितने परेशान होते हैं। सभी अनुभवी हैं ना! स्वमान की शान में रहना और इस शान से परे परेशान रहना, दोनों को जानते हो। बापदादा देखते हैं कि सभी बच्चे मैजॉरिटी नॉलेजफुल तो अच्छे बने हैं, लेकिन पावर में फुल, पावरफुल नहीं हैं। परसेन्टेज में हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे को अपने सर्व खज़ानों के बालक सो मालिक बनाया, सभी को सर्व खज़ाने दिये हैं, कम ज्यादा नहीं दिये हैं क्योंकि अनगिनत खज़ाना है, बेहद खज़ाना है। इसलिए हर बच्चे को बेहद का बालक सो मालिक बनाया है।
तो अभी अपने आपको चेक करो - बेहद का बाप, हद का बाप नहीं है, बेहद का बाप है, बेहद खज़ाना है। तो आपके पास भी बेहद है? सदा है कि कभी-कभी कुछ चोरी हो जाता है? गुम हो जाता है? बाबा क्यों अटेन्शन दिला रहे हैं? परेशान न हो, स्वमान की सीट पर सेट रहो, अपसेट नहीं। 63 जन्म तो अपसेट का अनुभव कर लिया ना! अभी और करने चाहते हो? थक नहीं गये हो? अभी स्वमान में रहना अर्थात् अपने ऊंचे ते ऊंचे शान में रहना। क्यों? कितना समय बीत गया। 70 साल मना रहे हो ना! तो स्वयं की पहचान अर्थात् स्वमान की पहचान, स्वमान में स्थित रहना। समय अनुसार अभी सदा शब्द को प्रैक्टिकल लाइफ में लाना, शब्द को अण्डरलाइन नहीं करना लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में अण्डरलाइन करो। रहना है, रहेंगे, कर तो रहे हैं.. कर लेंगे। यह बेहद के बालक और मालिक का बोल नहीं है। अभी तो हर एक के दिल से यह अनहद शब्द निकले, पाना था वह पा लिया। पा रहे हैं, यह बेहद खज़ाने के बेहद बाप के बच्चे नहीं बोल सकते। पा लिया, जब बापदादा को पा लिया, मेरा बाबा कह दिया, मान लिया, जान भी लिया, मान भी लिया, तो यह अनहद शब्द पा लिया... क्योंकि बापदादा जानते हैं कि बच्चे स्वमान कभी-कभी होने के कारण समय के महत्व को भी स्मृति में कम रखते हैं। एक स्वयं का स्वमान, दूसरा है समय का महत्व। आप साधारण नहीं हो, पूर्वज हो, आप एक-एक के पीछे विश्व की आत्माओं का आधार है। सोचो, अगर आप हलचल में आयेंगे तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होगा! ऐसे नहीं समझो कि जो महारथी कहलाये जाते हैं, उनके पीछे विश्व का आधार है, अगर नये-नये भी हैं, क्योंकि आज नये भी बहुत आये होंगे। नये हैं, जिसने दिल से माना ‘‘मेरा बाबा’’। मान लिया है? जो नये नये आये हैं वह मानते हैं? जानते हैं नहीं, मानते हैं ‘‘मेरा बाबा’’ वह हाथ उठाओ। लम्बा उठाओ। नये नये हाथ उठा रहे हैं। पुराने तो पक्के ही हैं ना, जिसने दिल से माना मेरा बाबा और बाप ने भी माना मेरा बच्चा, वह सभी जिम्मेवार हैं। क्यों? जब से आप कहते हो मैं ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी हूँ, ब्रह्माकुमार और कुमारी हो वा शिवकुमार शिवकुमारी हो, या दोनों के हो? फिर तो बंध गये। जिम्मेवारी का ताज पड़ गया। पड़ गया है ना? पाण्डव बताओ जिम्मेवारी का ताज पड़ा है? भारी तो नहीं लग रहा है? हल्का है ना! है ही लाइट का। तो लाइट कितनी हल्की होती है।
तो समय का भी महत्व अटेन्शन में रखो। समय पूछ के नहीं आना है। कई बच्चे अभी भी कहते हैं, सोचते हैं, कि थोड़ा सा अन्दाज मालूम होना चाहिए। चलो 20 साल हैं, 10 साल हैं, थोड़ा मालूम हो। लेकिन बापदादा कहते हैं समय का फाइनल विनाश का छोड़ो, आपको अपने शरीर के विनाश का पता है? कोई है जिसको पता है कि मैं फलाने तारीख में शरीर छोडूंगा है पता? और आजकल तो ब्राह्मणों के जाने का भोग बहुत लगाते हो। कोई भरोसा नहीं। इसलिए समय का महत्व जानो। यह छोटा सा युग है आयु में छोटा, लेकिन बड़े ते बड़ी प्राप्ति का युग है क्योंकि बड़े ते बड़ा बाप इस छोटे से युग में ही आता है और बड़े युगो में नहीं आता। यही छोटा सा युग है जिसमें सारे कल्प की प्राप्ति का बीज डालने का समय है। चाहे विश्व का राज्य प्राप्त करो, चाहे पूज्य बनो, सारे कल्प के बीज डालने का समय यह है और डबल फल प्राप्त करने का समय है। भविÌत का फल भी अभी मिलता और प्रत्यक्षफल भी अभी मिलता है। अभी-अभी किया, प्रत्यक्ष फल मिलता है और भविष्य भी बनता है। ऐसा सारे कल्प में देखो, है कोई युग ऐसा? क्योंकि इस समय ही बाप ने हर बच्चे की हथेली पर बड़े ते बड़ी सौगात दी है, याद है सौगात अपनी? स्वर्ग का राज़-भाग। नई दुनिया के स्वर्ग की गिफ्ट, हर बच्चे की हथेली में दी है। इतनी बड़ी गिफ्ट कोई नहीं देता और कभी नहीं दे सकता। अभी मिलती है। अभी आप मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो और कोई युग में मास्टर सर्वशक्तिवान का मर्तबा नहीं मिलता है। तो स्वयं के स्वमान में भी एकाग्र रहो और समय के महत्व को भी जानो। स्वयं और समय, स्वयं को स्वमान है, समय का महत्व है। अलबेला नहीं बनना। 70 साल बीत चुके हैं, अभी अगर अलबेले बनें तो बहुत कुछ अपनी प्राप्ति कम कर देंगे। क्योंकि जितना आगे बढ़ते हैं ना उतना एक अलबेलापन, बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे चल जायेंगे, पहुंच जायेंगे, देखना पीछे नहीं रहेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन और रॉयल आलस्य। अलबेलापन और आलस्य। कब शब्द है आलस्य, अब शब्द है तुरत दान महापुण्य।
तो अभी आज पहला टर्न है ना! तो बापदादा अटेन्शन खिंचवा रहा है। इस सीजन में न स्वमान से उतरना है, न समय के महत्व को भूलना है। अलर्ट, होशियार, खबरदार। प्यारे हैं ना! जिससे प्यार होता है ना उसकी जरा भी कमज़ोरी-कमी देखी नहीं जाती है। सुनाया ना कि बापदादा का लास्ट बच्चा भी है तो उससे भी अति प्यार है। बच्चा तो है ना। तो अभी इस चलती हुई सीजन में, सीजन भले इन्डिया वालों की है लेकिन डबल विदेशी भी कम नहीं हैं, बापदादा ने देखा है, कोई भी टर्न ऐसा नहीं होता जिसमें डबल विदेशी नहीं हो। यह उन्हों की कमाल है। अभी हाथ उठाओ डबल विदेशी। देखो कितने हैं! स्पेशल सीजन बीत गई, फिर भी देखो कितने हैं! मुबारक है। भले पधारे, बहुत-बहुत मुबारक है। तो सुना अभी क्या करना है? इस सीजन में क्या-क्या करना है, वह होम वर्क दे दिया। स्वयं को रियलाइज करो, स्वयं को ही करो, दूसरे को नहीं और रीयल गोल्ड बनो क्योकि बापदादा समझते हैं जिसने मेरा बाबा कहा वह साथ में चले। बराती होके नहीं चले। बापदादा के साथ श्रीमत का हाथ पकड़ साथ चले और फिर ब्रह्मा बाप के साथ पहले राज्य में आवे। मजा तो पहले नये घर में होता है ना। एक मास के बाद भी कहते, एक मास पुराना है। नया घर, नई दुनिया, नई चाल, नया रसम रिवाज और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आये। सभी कहते हैं ना, ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी क्या होती है? साथ रहे, साथ चले, साथ आये। यह है प्यार का सबूत। पसन्द है? साथ रहना, साथ चलना, साथ आना, पसन्द है? है पसन्द? तो जो चीज़ पसन्द होती है उसको छोड़ा थोड़ेही जाता है! तो बाप की हर बच्चे के साथ प्रीत की रीत यही है कि साथ चलें, पीछे-पीछे नहीं। अगर कुछ रह जायेगा तो धर्मराज की सजा के लिए रूकना पड़ेगा। हाथ में हाथ नहीं होगा, पीछे-पीछे आयेंगे। मजा किसमें है? साथ में है ना! तो पक्का वायदा है ना? पक्का वायदा है साथ चलना है या पीछे-पीछे आना है? देखो हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं। हाथ देख करके बापदादा खुश तो होते हैं लेकिन श्रीमत का हाथ उठाना। शिवबाबा को तो हाथ होगा नहीं, ब्रह्मा बाबा, आत्मा को भी हाथ नहीं होगा, आपको भी यह स्थूल हाथ नहीं होगा, श्रीमत का हाथ पकड़कर साथ चलना। चलेंगे ना! कांध तो हिलाओ। अच्छा हाथ हिला रहे हैं। बापदादा यही चाहते हैं एक भी बच्चा पीछे नहीं रहे, सब साथ-साथ चलें। एवररेडी रहना पड़ेगा। अच्छा।अब बापदादा चारों ओर के बच्चों का रजिस्टर देखता रहेगा। वायदा किया, निभाया अर्थात् फायदा उठाया। सिर्फ वायदा नहीं करना, फायदा उठाना। अच्छा। अभी सभी दृढ़ संकल्प करेंगे! दृढ़ संकल्प की स्थिति में स्थित होकर बैठो, करना ही है, चलना ही है। साथ चलना है। अभी यह दृढ़ संकल्प अपने से करो, इस स्थिति में बैठ जाओ। गे गे नहीं करना। करना ही है। अच्छा। अभी क्या करना है!
सेवा का टर्न का राजस्थान का है, इन्दौर, गुजरात सहयोगी है:- अच्छा जो भी सेवा के लिए आये हैं, सब उठो। अच्छा है, आधा क्लास तो सहयोगी है। सहयोग देना, देना नहीं है बहुत-बहुत दुआयें लेना है क्योंकि जिसकी भी सेवा करते हैं, वह खुश होते हैं। तो जो खुश होते हैं, उनकी दुआयें ऑटोमेटिकली निकलती हैं, तो कितनी दुआयें जमा की! राजस्थान है ना। निमित्त राजस्थान है तो यह गोल्डन चांस मिलता है, पुण्य का खाता जमा करने का। अच्छा है, राजस्थान को तो सहज नशा है कि बापदादा राजस्थान में ही आया है। बापदादा को राजस्थान अच्छा लगा ना। अच्छा है साथ देने वाले गुजरात तो है ही साथी, जब भी कुछ होता है तो पहले गुजरात ही मददगार बनता है। तो गुजरात को टाइटल है एवररेडी ग्रुप। अच्छा है। कभी ना नहीं करते हैं, पहुंच ही जाते हैं। कहाँ है सरला? अच्छा गुजरात को साथी बनाया है। राजस्थान के नजदीक गुजरात ही है, इसलिए ज्यादा पुण्य जमा होता है। अभी टर्न निमित्त राजस्थान है। तो अगली सीजन बीती, अभी दूसरी सीजन शुरू हुई है, 6 मास बीच में पड़ता है तो उसमें राजस्थान ने कितने वारिस तैयार किये हैं? नाम ही है राजस्थान, बाप भी राजस्थान में आया है, तो बोलो कितने वारिस तैयार विये हैं? क्योंकि बापदादा ने कहा था कि वारिस निकालने हैं, तो पहला टर्न आपका आया है, निकले हैं, हाथ उठाओ। दो निकला हो एक निकला हो या निकलने की उम्मींद हो तो हाथ उठाओ। कितने एक या 5, कितने? (जयपुर से 3-4 निकले हैं, पुरूषार्थ जारी है, जोधपुर से 2 निकले हैं) 5 तो हो गये ना। और कितने हैं! देखेंगे 5 कौन से निकले हैं, तैयार किया उसकी मुबारक है। अभी कभी बुलायेंगे उन वारिसों को। अच्छा है, जो जोन सेवा में आये, अभी तो पहला टर्न है ना, तो जो जोन सेवा में आये उनको वारिसों की लिस्ट जरूर लानी है। ठीक है ना, आपको पसन्द है ना। डबल फारेन भी लेकर आना। डबल फारेनर्स ने किस देश में कितने वारिस निकाले, देखेंगे क्योंकि अभी 108 की माला तो तैयार करनी है ना। बापदादा ने सुना है आबू वाले भी सेवा करते हैं। आबू के आस पास भी आबू वाले बहुत सेवा करते हैं, आबू वाले उठो। ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सभी उठो। अच्छा। आबू निवासी नीचे ऊपर एक ही आबू है। तो आबू निवासी कहते हैं कि बापदादा हमको यादप्यार नहीं देते हैं। तो आज विशेष आबू निवासियों को चाहे चार भुजायें हैं विशेष, दादी को कहते हैं बहुत भुजाधारी है, तो 4 मुख्य भुजायें हैं तो सभी को बापदादा सेवा के पुण्य के आरम्भ की दुआयें और मुबारक दे रहे हैं क्योंकि चाहे सेवाधारी कितने भी आये लेकिन फिर भी आबू निवासियों के बिना तो काम नहीं चलता। इसीलिए आपके पुण्य के खाते की भण्डारी खुल गई है। अभी देखेंगे कितनी-कितनी भरते हैं। गवर्मेन्ट वह भण्डारी बंद कराती हैं ना तो बापदादा पुण्य की भण्डारी खोल रहे हैं। आबू निवासियों को नशा है ना, खुशी है ना, घर बैठे पुण्य जमा होता रहता है, प्यार और नि:स्वार्थ से सेवा करते तो पुण्य की भण्डारी भरती जाती, ऑटोमेटिक। हाथ से डालने की जरूरत नहीं है सिर्फ प्यार से सेवा करने की बात है। तो दिल और चुल पर तो हो ही। चुल पर भी हो दिल पर भी हो, अभी आबू वालों ने कितने वारिस निकाले, हिसाब तो पूछेंगे ना! ऊपर का निमित्त कौन है? पाण्डव भवन का। कौन है निमित्त! मृत्युंजय, हाँ आप बताओ, आबू की एरिया से कितने वारिस निकले? निकले हैं कि हिसाब करना है! अभी हिसाब देखना है कितने निकले, चलो दूसरे टर्न में सुनाना और नीचे कौन है! (भूपाल भाई) हाँ कितने वारिस निकले, 6 मास तो पक्का हो गया। और इसमें सभी ने सेवा कहाँ न कहाँ की है, अभी हिसाब नहीं निकाला है चलो कोई हर्जा नहीं, बहुत बिजी रहे होंगे, दूसरे टर्न में पूछेंगे। नहीं निकाले हो तो निकालना। क्योंकि आबू तो हेड क्वार्टर है ना, तो हेड क्वार्टर का समाचार भी हेड हो। अच्छा है।
इन्दौर होस्टल की कुमारियाँ:- सभी कुमारियाँ 100 ब्राह्मण से उत्तम गाई जाती हैं। साधारण कुमारियां नहीं, ब्रह्माकुमारियाँ। तो हर एक ब्रह्माकुमारी 100 ब्राह्मण से उत्तम गाई जाती है तो आप कुमारियों ने कितने स्टूडेन्ट तैयार किये हैं! वारिस नहीं पूछ रहे हैं, वारिस पीछे पूछेंगे, स्टूडेन्ट कितने तैयार किये हैं या अपने को ही तैयार कर रहे हैं? बोलो, आपकी टीचर कहाँ है! (हॉस्टल की टीचर, करूणा बहन, शकुन्तला बहन) आगे आओ। अच्छा कितने स्टूडेन्ट तैयार हुए हैं। (कई कुमारियां, ब्रह्माकुमारियां बनी हैं, उनके माता पिता भी ज्ञान में आ जाते हैं) कितने स्टूडेन्ट बने हैं, एवरेज बताओ। अच्छा है, कुमारियां तैयार होके सेन्टर सम्भालेगी ना, कि नौकरी करेंगी? जो सेन्टर सम्भालने के लिए तैयार हो रही हैं, वह हाथ उठाओ। यह बहुत हैं। तो इन्हों की ट्रेनिंग कब पूरी होगी! (अभी पढ़ाई चल रही हैं) कब तक पढ़ेंगी? जिसका ग्रेजुएशन पूरा हुआ है वह हाथ उठाओ। 3-4 हैं, यह 3-4 ही सेन्टर सम्भालेगी या नौकरी करेंगी या दोनों करेंगी! (ओम प्रकाश भाई ने सुनाया - अभी तक लगभग 450 कुमारियाँ ऐसी हैं, जो पढ़कर सेन्टर सम्भाल रही हैं) फिर तो अच्छा है। अच्छा है, हैण्डस तो बनते हैं, तो टीचर्स को मुबारक हो। आप जो भी आई हो, वह पुरूषार्थ में सन्तुष्ट हो? अपने पुरूषार्थ में सन्तुष्ट हो, पढ़ाई में सन्तुष्ट हो? हाँ या अभी नई नई हैं! खुश रहती हैं, सन्तुष्ट रहती हैं? अच्छा हैण्डस तैयार करो क्योंकि समय कम है, सेवा बहुत है। सेवा बहुत-बहुत रही हुई है। आपका गीत भी है, समय की पुकार का प्रोग्राम भी करते हो ना, तो समय की पुकार टीचर्स की बहुत है। इसलिए जल्दी-जल्दी तैयार करो। अच्छा - खुश रहना और खुशी से उड़ती रहना।
30 देशों से लगभग 300 डबल विदेशी भाई बहिनें आये हुए हैं:- तो डबल विदेशियों का डबल पुरूषार्थ चलता है, एक है सेवा का, दूसरा है स्वयं का। तो टाइटल तो डबल विदेशी अच्छा है, डबल सेवा चल रही है सबकी, इन्डिविज्युअल। डबल सेवा। किस समय एक चलती, किस समय दूसरी चलती या साथ-साथ चलती है! जो समझते हैं कि दोनों ही सेवा स्वयं की और साथ की जो भी आत्मायें हैं उनकी सेवा साथ-साथ चलती है वह हाथ उठाओ। मैजारिटी पास हैं। ठीक रफ्तार से चलती है और आगे बढ़ाओ क्योंकि अभी समय के अनुसार एक ही समय डबल सेवा चाहिए। विश्व की भी और स्वयं की भी। सारे वर्ल्ड में सुख शान्ति की किरणें देना है। तो आप सोचो अभी कितनी आत्मायें रही हुई हैं। चाहे विदेश में चाहे देश में, तो वह सेवा करनी है ना। हर रोज यह चेक करो - कि डबल सेवा हुई? कितनी परसेन्ट में हुई? पावरफुल हुई या परसेन्टेज में हुई? वैसे सभी के लिए यह कह रहे हैं, सिर्फ डबल विदेशियों के लिए नहीं है, भारतवासियों को भी करनी है। अभी थोड़ी फास्ट गति करो, फास्ट गति से आत्मायें निकलें, कम से कम इतना तो कहें कि हमारा बाबा आ गया। बाबा शब्द तो बोले दिल से। मुख से नहीं, दिल से। तो यह अभी चार्ट रखना। क्योंकि डबल विदेशी तो डबल रफ्तार में जाने वाले है ना? बापदादा खुश होते हैं क्यों? बापदादा को एक विशेषता डबल विदेशियों की बहुत प्यारी लगती है। जानते हो ना वह! सच बोलते हैं। चाहे गिरते भी हैं तो भी सच बोलते हैं, चढ़ते हैं तो भी सच बोलते हैं। तो सच्ची दिल पर साहेब राजी होता है। अब ऐसा वायुमण्डल बनाओ जो एक दो को देखकर सभी जैसे रेस करते हैं ना, रीस नहीं रेस करते हैं तो कोशिश करते हैं नम्बर आगे जायें। लेकिन आप खुद तो आगे जाओ लेकिन साथियों को भी ऐसी लिफ्ट दो जो वह भी आगे जायें। ठीक है ना? ऐसी हिम्मत है ना? हर एक सेन्टर का वायुमण्डल ऐसा हो जैसे मधुबन का वायुमण्डल। मधुबन वाले सम्पूर्ण नहीं बन गये हैं लेकिन जो भी आते हैं वह मधुबन के वायुमण्डल से खुश हो जाते हैं, ऐसा सेन्टर का वायुमण्डल हो। जो गाया हुआ है ना, घर घर स्वर्ग बनेगा। तो सब सेन्टर इन्डिया वालों के लिए भी है, तो सब सेन्टर ऐसे हों जो स्वर्ग का नक्शा हो। तब तो कहेंगे घर-घर स्वर्ग बन गया। अच्छा है, फारेनर्स की यह भी विशेषता है अगर दृढ़ संकल्प किया किसी भी बात का, तो वह करके दिखाते हैं। अभी इस संस्कार को इस कार्य में लगाओ, करके ही छोड़ना है। ठीक है। करना है ना? तो अगली सीजन में यह रिजल्ट पूछेंगे। हर एक सेन्टर स्वर्ग का नक्शा हो। अच्छा। मुबारक हो।
स्प्रीचुअल्टी इन रिसर्चेज डायलाग करने के लिए प्लैनिंग ग्रुप:- (रमेश भाई ने बापदादा को सुनाया कि हर वर्ग में जो कोई न कोई विशेष किसी विषय पर रिसर्च कर रहे हैं, उन मुख्य लोगों का एक डायलाग करने काविचार है, उसकी मीटिंग चल रही है) अच्छा कोई प्रोग्राम बनाया। अच्छा - हर एक विंग अपनी सेवा करके उसमें से निकालेंगे, फिर उसका डायलाग रखेंगे, तो हर एक विंग का बापदादा भी देखेंगे, किस विंग ने क्या निकाला,कौन सी, कौन सी आत्मायें रूचि वाली निकाली, अच्छा है फिर सब मिलकर डायलाग करेंगे, बहुत अच्छा। (सभी विंग्स और सभी जोन के कनेक्शन से सबके सहयोग से यहाँ डायलाग का कार्यक्रम होगा) पहले हर एक विंग अपने अपने जोन में करेंगे, फिर उसमें जो निकले उन्हें यहाँ इकट्ठे करो, फिर यहाँ डायलाग करो। ठीक है ना। साथ-साथ समाचार देते रहे, सहयोग देते रहें। करो हर एक वर्ग, देखें किसमें कितने निकलते हैं। बहुत अच्छा।
दिल्ली का प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा:- जो दिल्ली से आये हैं वह उठो। अच्छा इतने आये हैं, भले आये। दिल्ली का मेला तो अच्छा हुआ, आवाज फैला। आवाज फैला ना! क्योंकि टी.वी. द्वारा भी सन्देश मिला। यह तो अच्छा हुआ क्योंकि 10 दिन करने से लोगों को सन्देश मिल गया। एक दिन में तो जितने आते हैं उतने ही सुनते हैं सन्देश। लेकिन 10 दिन में वैरायटी आई होगी और अपना अपना सन्देश लिया होगा। तो अच्छा लगा। आप सबको अच्छा लगा? मेला करना अच्छा लगा? (बहुत अच्छा लगा, बाबा को स्पेशल थैंक्स दिल्ली वालों की तरफ से) बापदादा ने देखा कि चारों ओर और जोन वालों में भी उमंग है कि ऐसा हम भी करें, तो दिल्ली निमित्त बन गई, औरों को भी प्रेरणा देने के लिए। अच्छा हुआ बहुत समय के बाद मेला शुरू किया है। पहले तो मेला ही था ना। चारों ओर मेले होते थे, अभी बड़े प्रोग्राम हो गये हैं, तो मेला भी वैरायटी अच्छा है। तो मुबारक हो सभी दिल्ली वालों को। और दिल्ली वालों ने ही किया इसकी भी मुबारक। (इन्टरनेशनल था, आबू का भी था) फारेन वालों को भी मुबारक, आबू वालों को भी मुबारक है। अच्छा रहा, बापदादा को समाचार मिला। एक दो को देख करके आगे बढ़ते चलो। बापदादा यही देखने चाहते हैं कि इतनी करोड़ आत्माओं को कम से कम यह सन्देश तो मिले। अभी काफी रहे हुए हैं, जैसे अफ़्रीका ने किया, बापदादा ने सुना कि यूरोप में भी कोई देश नहीं रहा है ना। यूरोप और अफ्रीका दोनों तरफ कोई विशेष देश नहीं रहे हैं, ऐसे सब तरफ होना चाहिए। सन्देश तो पहुंचे ना। नहीं तो उलाहना बहुत मिलेंगे आपको। सब उल्हना देंगे हमारा बाप आया और आपने हमको सुनाया भी नहीं। उल्हना नहीं रह जाए। अच्छा।
हैदराबाद, सिकन्द्राबाद से ओल्डएज होम का ग्रुप आया है:- (फरिश्ता भवन, ओमनिवास बूढ़ा घर बनाया है। उसमें अनेक वी.आई.पीज देखने के लिए आते हैं, सभी मिलकर बहुत अच्छा पुरूषार्थ करते हैं) भिन्न भिन्न सेवाओं से आगे बढ़ रहे हैं, बढ़ते रहो। अच्छा।
सब तरफ के डबल सेवाधारी बच्चों को, चारों ओर के सदा एकाग्र स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बापदादा के मस्तक मणियां, चारों ओर के समय के महत्व को जान तीव्र पुरूषार्थ का सबूत देने वाले सपूत बच्चों को, चारों ओर के उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते, उड़ाने वाले डबल लाइट फरिश्ते बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- सभी साथ देते चल रहे हैं - यह बापदादा को खुशी है, हर एक अपनी विशेषता की अंगुली दे रहे हैं। (दादी जी से) सभी को आदि रत्न देख करके खुशी होती है ना। आदि से लेके सेवा में अपनी हड्डियाँ लगाई है। हड्डि सेवा की है। बहुत अच्छा है। देखो कुछ भी होता है लेकिन एक बात देखो, चाहे बेड पर हैं, चाहे कहाँ भी हैं लेकिन बाप को नहीं भूले हैं। बाप दिल में समाया हुआ है। ऐसे है ना। देखो कितना अच्छा मुस्करा रही है। बाकी आयु बड़ी है, और धर्मराजपुरी से टाटा करके जाना है, सजा नहीं खानी है, धर्मराज को भी सिर झुकाना पड़ेगा। स्वागत करनी पड़ेगी ना। टाटा करना पड़ेगा, इसीलिए यहाँ थोड़ा बहुत बाप की याद में हिसाब पूरा कर रहे हैं। बाकी कष्ट नहीं है, बीमारी भले है लेकिन दु:ख की मात्रा नहीं है।
(परदादी से) यह बहुत मुस्करा रही है। सबको दृष्टि दो। अच्छा। (दादी ने बाबा को भाकी पहनी) बहुत अच्छा। (मुन्नी बहन ने कहा बाबा हमने एक बार मिस किया) मिस नहीं किया, बापदादा ने तो देखा। योगिनी बहन से:- सेवा अच्छी लगी ना, महारथी से महारथी उनकी सेवा में मजा है। रौनक लगी ना। चाहे हॉस्पिटल हो, चाहे क्या भी हो लेकिन रौनक लग गई ना। (मेहमान-निवाजी अच्छी की) मेहमान-निवाजी नहीं की, अपना पुण्य जमा किया। जिन्होंने भी सेवा की, उन्होंने अपना पुण्य का खाता जमा किया। (आपकी गाइडेन्स में सब अच्छा हुआ) सबकी सेवा की दृढ़ता ने काम किया। अशोक मेहता को बहुत-बहुत याद। जो भी डाक्टर्स निमित्त बने, जिन्होंने भी सेवा की है, दिल से और प्यार से की है। (बापदादा आपको बहुत-बहुत थैंक्स) बापदादा को तो मुबारक दी, लेकिन बापदादा बच्चों को मुबारक देते हैं। (मुन्नी बहन ने बहुत धैर्य रखा) धैर्य तो रखना ही पड़ेगा। बहुतकाल किया है। देखो फिर भी इन्होंने (दादियों ने) मिलके जो यहाँ थे सबने मिलकर किया ना।
(निरवैर भाई ने कहा - दादी जी और भी ठीक हो जायेगी थोड़ा टाइम लगेगा) हो जायेगी कोई बात नहीं, टाइम तो लगता ही है क्योंकि बहुतकाल का बहुत समय देना पड़ता है। सब दादियों को देखकर कितनी खुशी है। (बम्बई के सभी सेवाधारी भाई बहिनों ने, विशेष टीचर्स बहनों ने भी बहुत-बहुत याद दी है) उन सभी को सेवा की दुआयें और यादप्यार। (बृजमोहन भाई को) अच्छा किया, मेले की मुबारक हो।
30-11-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“ज्वालामुखी तपस्या द्वारा मैं-पन की पूंछ को जलाकर बापदादा समान बनो तब समाप्ति समीप आयेगी”
आज अखुट अविनाशी खज़ानों के मालिक बापदादा अपने चारों ओर के सम्पन्न बच्चों के जमा का खाता देख रहे हैं। तीन प्रकार के खाते देख रहे हैं - एक है अपने पुरूषार्थ द्वारा श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा का खाता। दूसरा है सदा सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, यह सन्तुष्टता द्वारा दुवाओं का खाता। तीसरा है मन्सा-वाचा-कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा बेहद के नि:स्वार्थ सेवा द्वारा पुण्य का खाता। आप सभी भी अपने इन तीन खातों को चेक करते ही हो। यह तीनों खाते जमा कितने हैं, हैं वा नहीं हैं उसकी निशानी हैं - सदा सर्व प्रति, स्वयं प्रति सन्तुष्टता स्वरूप, सर्व प्रति शुभ भावना, शुभ कामना और सदा अपने को खुशनुम:, खुशनसीब स्थिति में अनुभव करना। तो चेक करो दोनों खाते की निशानियां स्वयं में अनुभव होती हैं? इन सर्व खज़ानों को जमा करने की चाबी है -निमित्त भाव, निर्माण भाव, नि:स्वार्थ भाव। चेक करते जाओ और चाबी का नम्बर पता है! चाबी का नम्बर है – तीन बिन्दी। थ्री डॉट। एक आत्मा बिन्दी, दूसरा बाप बिन्दी, तीसरा - ड्रामा का फुल स्टाप बिन्दी, चाबी तो है ना आप सभी के पास? खज़ाने को खोलकर देखते रहते हो ना! इन सभी खज़ानों के वृद्धि की विधि है - दृढ़ता। दृढ़ता होगी तो किसी भी कार्य में यह संकल्प नहीं चलेगा कि होगा या नहीं होगा। दृढ़ता की स्थिति है - हुआ ही पड़ा है, बना ही पड़ा है। बनेगा, जमा होगा, नहीं होगा, नहीं। करते तो हैं, होना तो चाहिए, तो तो भी नहीं। दृढ़ता वाला निश्चयबुद्धि, निश्चिंत और निश्चित अनुभव करेगा।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है - अगर ज्यादा से ज्यादा सर्व खज़ाने का खाता जमा करना है तो मनमनाभव के मन्त्र को यन्त्र बना दो। जिससे सदा बाप के साथ और पास रहने का स्वत: अनुभव होगा। पास होना ही है, तीन रूप के पास हैं - एक है पास रहना, दूसरा है जो बीता सो पास हुआ और तीसरा है पास विद ऑनर होना। अगर तीनों पास हैं, तो आप सबको राज्य अधिकारी बनने की फुल पास है। तो फुल पास ले ली है वा लेनी है? जिन्होंने फुल पास ले ली है वह हाथ उठाओ। लेनी नहीं है, ले ली है? पहली लाइन वाले नहीं उठाते, लेनी है आपको? सोचते हैं अभी सम्पूर्ण नहीं बने हैं, इसीलिए। लेकिन निश्चयबुद्धि विजयी हैं ही, या होना है? अभी तो समय की पुकार, भक्तों की पुकार, अपने मन की आवाज क्या आ रही है? अभी-अभी सम्पन्न और समान बनना ही है। वा यह सोचते हैं बनेंगे, सोचेंगे, करेंगे...! अब समय के अनुसार हर समय एवररेडी का पाठ पक्का रहना ही है। जब मेरा बाबा कहा, प्यारा बाबा, मीठा बाबा मानते ही हैं। तो जो प्यारा होता है उसके समान बनना मुश्किल नहीं होता। बापदादा ने देखा है कि समय प्रति समय समान बनने में जो विघ्न पड़ता है वह सबके पास प्रसिद्ध शब्द है, सब जानते हैं अनुभवी हैं। वह है ‘‘मैं’’, मैंपन। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा है जब भी मैं शब्द बोलते हो तो सिर्फ मैं नहीं बोलो, मैं आत्मा। जुड़वा शब्द बोलो। तो मैं कभी अभिमान ले आता, बॉडी कान्सेस वाला मैं, आत्मा वाला नहीं। कभी अभिमान भी लाता, कभी अपमान भी लाता है। कभी दिलशिकस्त भी बनाता। इसलिए इस बॉडी कान्सेस के मैंपन को स्वप्न में भी नहीं आने दो।
बापदादा ने देखा है स्नेह की सब्जेक्ट में मैजॉरिटी पास हैं। आप सभी को किसने यहाँ लाया? सभी चाहे प्लेन में आये हो, चाहे ट्रेन में, चाहे बस में आये हो, लेकिन वास्तव में बापदादा के स्नेह के विमान में यहाँ पहुंचे हो। तो जैसे स्नेह की सबजेक्ट में पास है, अब यह कमाल करो समान बनने की सबजेक्ट में भी पास विद आनर बनके दिखाओ। पसन्द है? समान बनना पसन्द है? पसन्द है लेकिन बनने में थोड़ा मुश्किल है! समान बन जाओ तो समाप्ति सामने आयेगी। लेकिन कभी-कभी जो दिल में प्रतिज्ञा करते हो, बनना ही है। तो प्रतिज्ञा कमज़ोर हो जाती और परीक्षा मजबूत हो जाती है। चाहते सभी हैं लेकिन चाहना एक होती है प्रैक्टिकल दूसरा हो जाता है क्योंकि प्रतिज्ञा करते हो लेकिन दृढ़ता की कमी पड़ जाती है। समानता दूर हो जाती है, समस्या प्रबल हो जाती है। तो अब क्या करेंगे? बापदादा को एक बात पर बहुत हंसी आ रही है। कौन सी बात? हैं महावीर लेकिन जैसे शास्त्रों में हनुमान को महावीर भी कहा है लेकिन पूंछ भी दिखाया है। यह पूंछ दिखाया है मैंपन का। जब तक महावीर इस पूंछ को नहीं जलायेंगे तो लंका अर्थात् पुरानी दुनिया भी समाप्त नहीं होगी। तो अभी इस मैं, मैं की पूंछ को जलाओ तब समाप्ति समीप आयेगी।जलाने के लिए ज्वालामुखी तपस्या, साधारण याद नहीं। ज्वालामुखी याद की आवश्यकता है। इसीलिए ज्वाला देवी की भी यादगार है। शक्तिशाली याद। तो सुना क्या करना है?अब यह मन में धुन लगी हुई हो - समान बनना ही है, समाप्ति को समीप लाना ही है। आप कहेंगे संगमयुग तो बहुत अच्छा है ना तो समाप्ति क्यों हो? लेकिन आप बाप समान दयालु, कृपालु, रहमदिल आत्मायें हो, तो आज की दु:खी आत्मायें और भक्त आत्माओं के ऊपर हे रहमदिल आत्मायें रहम करो। मर्सीफुल बनो। दु:ख बढ़ता जा रहा है, दु:खियों पर रहम कर उन्हों को मुक्तिधाम में तो भेजो। सिर्फ वाणी की सेवा नहीं लेकिन अभी आवश्यकता है मन्सा और वाणी की सेवा साथ-साथ हो। एक ही समय पर दोनों सेवा साथ हो। सिर्फ चांस मिले सेवा का, यह नहीं सोचो, चलते फिरते अपने चेहरे और चलन द्वारा बाप का परिचय देते हुए चलो। आपका चेहरा बाप का परिचय दे। आपकी चलन बाप को प्रत्यक्ष करती चले। तो ऐसे सदा सेवाधारी भव! अच्छा।
बापदादा के सामने स्थूल में तो आप सभी बैठे हो लेकिन सूक्ष्म स्वरूप से चारों ओर के बच्चे दिल में हैं। देख भी रहे हैं, सुन भी रहे हैं। देश विदेश के अनेक बच्चों ने ईमेल द्वारा, पत्रों द्वारा, सन्देशों द्वारा यादप्यार भेजी है। सभी की नाम सहित बापदादा को याद मिली है और बापदादा दिल ही दिल में सभी बच्चों को सामने देख गीत गा रहे हैं- वाह बच्चे वाह! हर एक को इस समय इमर्ज रूप में याद रहती है। सब सन्देशी को अलग-अलग कहते हैं फलाने ने याद भेजी है, फलाने ने याद भेजी है। बाप कहते हैं, बाप के पास तो जब संकल्प करते हो, साधन द्वारा पीछे मिलती है लेकिन स्नेह का संकल्प साधन से पहले पहुंच जाता है। ठीक है ना! कईयों को याद मिली है ना! अच्छा।
अच्छा - पहले हाथ उठाओ जो पहले बारी आये हैं। यह सेवा में भी पहले बारी आये हैं। अच्छा बापदादा कहते हैं, भले पधारे, आपके आने की मौसम है। अच्छा अभी बोलो।
इन्दौर जोन(आरती बहन)के सेवाधारी आये हैं:- (सबके हाथ में ‘‘मेरा बाबा’’ का दिल के सेप में सिम्बल है) हाथ तो बहुत अच्छे हिला रहे हैं, लेकिन दिल को भी हिलाना। सिर्फ सदा याद रखना, भूलना नहीं मेरा। अच्छा चांस लिया है, बापदादा सदा कहते हैं, हिम्मत रखने वालों को बापदादा पदमगुणा मदद देता है। तो हिम्मत रखी है ना! अच्छा किया है। इन्दौर जोन है। अच्छा है इन्दौर जोन साकार बाबा का लास्ट स्मृति का स्थान है। अच्छा है। सभी बहुत खुश हो रहे हो ना! गोल्डन लाटरी मिली है। जोन की सेवा मिलने से सभी सेवाधारियों को छुट्टी मिल जाती है और वैसे संख्या में मिलती है इतने लाओ और अभी देखो इतने हैं। यह भी जोन-जोन को अच्छा चांस है ना, जितने लाने हो लाओ। तो आप सभी का थोड़े समय में पुण्य का खाता कितना बड़ा इकट्ठा हो गया। यज्ञ सेवा दिल से करना अर्थात् अपने पुण्य का खाता तीव्रगति से बढ़ाना क्योंकि संकल्प, समय और शरीर तीनों सफल किया। संकल्प भी चलेगा तो यज्ञ सेवा का, समय भी यज्ञ सेवा में व्यतीत हुआ और शरीर भी यज्ञ सेवा में अर्पण किया। तो सेवा है या मेवा है? प्रत्यक्ष फल किसी के पास यज्ञ सेवा करते कोई व्यर्थ संकल्प आया? आया किसके पास? खुश रहे और खुशी बांटी। तो यह जो यहाँ गोल्डन अनुभव किया, इस अनुभव को वहाँ भी इमर्ज कर बढ़ाते रहना। कभी भी कोई माया का संकल्प भी आवे तो मन के विमान से शान्तिवन में पहुंच जाना। मन का विमान तो है ना! सभी के पास मन का विमान है। बापदादा ने हर ब्राह्मण को जन्म की सौगात श्रेष्ठ मन का विमान दे दिया है। इस विमान में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। स्टार्ट करना है तो मेरा बाबा, बस। चलाना आता है ना विमान! तो जब भी कुछ हो मधुबन में पहुंच जाओ। भक्ति मार्ग में चार धाम करने वाले अपने को बहुत भाग्यवान समझते हैं और मधुबन में भी चार धाम हैं, तो चार धाम किये? पाण्डव भवन में देखो, चार धाम हैं। जो भी आते हो पाण्डव भवन तो जाते हो ना, एक शान्ति स्तम्भ महाधाम। दूसरा बापदादा का कमरा, यह स्नेह का धाम। और तीसरा झोपड़ी, यह स्नेहमिलन का धाम और चौथा - हिस्ट्री हाल, तो आप सभी ने चार धाम किये? तो महान भाग्यवान तो हो ही गये। अभी किसी भी धाम को याद कर लेना, कब उदास हो जाओ तो झोपड़ी में रूहरिहान करने आ जाना। शक्तिशाली बनने की आवश्यकता हो तो शान्ति स्तम्भ में पहुंच जाना और वेस्ट थॉट्स बहुत तेज हो, बहुत फास्ट हों तो हिस्ट्री हाल में पहुंच जाना। समान बनने का दृढ़ संकल्प उत्पन्न हो तो बापदादा के कमरे में आ जाना। अच्छा है, सभी ने गोल्डन चांस लिया है लेकिन सदा वहाँ रहते भी गोल्डन चांस लेते रहना। अच्छा। हिम्मतवान अच्छे हैं।
कैड ग्रुप:- (दिल वाले बैठे हैं, बहुत अच्छी कानफरेन्स सबने मिलकर की):- अच्छा किया है, आपस में मीटिंग भी की है और प्रेजीडेंट जो है उसकी भी इच्छा है यह कार्य होना चाहिए। तो जैसे उसकी भी इच्छा है, उसको भी साथ मिलाते हुए आगे बढ़ते रहो और साथ-साथ जो ब्राह्मणों की मीटिंग है, उसमें भी अपने प्रोग्राम का समाचार सुना करके राय ले लेना तो सर्व ब्राह्मणों की राय से और शक्ति भर जाती है। बाकी कार्य अच्छा है, करते चलो, फैलाते चलो और भारत की विशेषता प्रगट करते चलो। मेहनत अच्छी कर रहे हो। प्रोग्राम भी अच्छा किया है, और दिल वालों ने अपनी बड़ी दिल दिखाई, उसकी मुबारक हो। अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनें:- अच्छा है हर टर्न में डबल विदेशियों का आना इस संगठन को चार चांद लगा देता है। डबल विदेशियों को देखकर सभी को उमंग भी आता है, सब डबल विदेशी डबल उमंग उत्साह से आगे उड़ रहे हैं, चल नहीं रहे हैं, उड़ रहे हैं, ऐसे है। उड़ने वाले हो या चलने वाले हो? जो सदा उड़ता रहता है, चलता नहीं वह हाथ उठाओ। अच्छा। वैसे भी देखो विमान में उड़ते ही आना पड़ता है। तो उड़ने का तो आपको अभ्यास है ही। वह शरीर से उड़ने का, यह मन से उड़ने का, हिम्मत भी अच्छी रखी है। बापदादा ने देखो कहाँ कोने-कोने से अपने बच्चों को ढूंढ लिया ना! बहुत अच्छा है, डबल विदेशी है कहलाने में, वैसे तो ओरीज्नल भारत के हैं। और राज्य भी कहाँ करना है? भारत में करना है ना! लेकिन सेवा अर्थ पांच ही खण्डों में पहुंच गये हो। और पांच ही खण्डों में भिन्न-भिन्न स्थान में सेवा भी अच्छी उमंग-उत्साह से कर रहे हैं। विघ्न विनाशक हो ना! कोई भी विघ्न आवे घबराने वाले तो नहीं हो ना, यह क्यों हो रहा है, यह क्या हो रहा है, नहीं। जो होता है उसमें हमारी और हिम्मत बढ़ाने का साधन है। घबराने का नहीं, उमंग उत्साह बढ़ाने का साधन है। ऐसे पक्के हो ना! पक्के हो? या थोड़ा-थोड़ा कच्चे? नहीं, कच्चा शब्द अच्छा नहीं लगता। पक्के हैं, पक्के रहेंगे, पक्के होके साथ चलेंगे। अच्छा।
दादी जानकी आस्ट्रेलिया का चक्कर लगाकर आई हैं, उन्होंने बहुत याद दी है:- बापदादा के पास ईमेल में भी सन्देश आये हैं, और बापदादा देखते हैं कि आजकल बड़े प्रोग्राम भी ऐसे हो गये हैं जैसे हुए ही पड़े हैं। सभी सीख गये हैं। सेवा के साधनों को कार्य में लगाने का अच्छा अभ्यास हो गया है। बापदादा को आस्ट्रेलिया नम्बरवन दिखाई देता है लेकिन अभी, पहले-पहले नम्बरवन लिया अभी यू.के. थोड़ा नम्बर आगे जा रहा है लेकिन आस्ट्रेलिया को नम्बरवन होना ही है। यू.के. नम्बर दो नहीं होगा, वह भी नम्बर वन ही होगा। पुराने-पुराने आस्ट्रेलिया के बच्चे बापदादा को याद हैं। और बापदादा की लाडली निर्मल आश्रम, आप लोग तो कहते हैं निर्मला दीदी, दीदी कहते हो ना, लेकिन बापदादा ने शुरू से उसको टाइटल दिया है निर्मल आश्रम, जिस आश्रम में अनेक आत्माओं ने सहारा लिया और बाप के बने हैं और बन रहे हैं, बनते जायेंगे। तो एक-एक आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों को विशेष याद है, यह सामने बैठे हैं, आस्ट्रेलिया के हैं ना! आस्ट्रेलिया वाले उठो। बहुत अच्छे। कितना अच्छा उमंग आ रहा है इन्हों को, विश्व की सेवा के लिए खूब तैयारियां कर रहे हैं। बापदादा की मदद है और सफलता भी है ही। अच्छा - अभी क्या दृढ़ संकल्प कर रहे हो? अभी इसी संकल्प में बैठो कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। विजय हमारे गले की माला है। इस निश्चय और रूहानी नशे में अनुभवी स्वरूप होके बैठो।
अच्छा। चारों ओर के फिकर से फारिग बेफिक्र बादशाहों को, सदा बेगमपुर के बादशाह स्वरूप में स्थित रहने वाले बच्चों को, सर्व खज़ानों से सम्पन्न रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड सर्व बच्चों को, सदा उमंग- उत्साह के पंखों से उड़ती कला वाले बच्चों को, सदा समाप्ति को समीप लाने वाले बापदादा समान बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुवायें, वरदाता के वरदान और नमस्ते।
दादियों से:- कितना प्यार से सभी देख रहे हैं। ठीक हो जायेगी। ठीक है, ठीक ही होगी। अच्छा - सभी खुश हो रहे हैं। खुश रहना यह सबसे बड़े ते बड़े भाग्य के प्राप्ति की निशानी है। खुश रहने वाला अपने चेहरे से अनेको को खुशी का अनुभव कराते हैं। (दादी जानकी ने विदेश का समाचार सुनाया) अभी तो सारा भारत आपके हाथ में आना है। खुद ही आफर करेंगे आओ, अभी आपको थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है, पर्चे आदि छपाने पड़ते हैं, मेहनत करनी पड़ती है। अभी आपेही सब आफर करेंगे। बस अभी यह सीन रही हुई है कि सबके मुख से एक ही आवाज निकले हमारा बाबा आ गया। यह भी समीप आ रहा है, सिर्फ आप उड़ते रहो, फरिश्ते बन करके उड़ते रहो तो उन्हों को फरिश्तों का साक्षात्कार होगा।
डा. अशोक मेहता:- अच्छा कार्य के निमित्त बन गये हो। अनेक आत्माओं का सहज ही परिचय होता रहता है और हॉस्पिटल का जो लाभ उठाया, पेशेन्ट को मधुबन तक पहुंचाया, यह सेवा बहुत अच्छी की। पेशेन्ट को पेशेन्स सिखला दिया। अच्छा हुआ ना, सभी का फायदा हुआ। अच्छा है। इस हॉस्पिटल से भी कई वी.आई.पी सन्देश लेने आयेंगे। (हेल्थ फेयर और डाक्टर्स की कानफरेन्स करने जा रहे हैं) अच्छा है, हेल्थ का नाम सुन करके अट्रैक्शन होती है, जैसे यहाँ भी ग्लोबल हॉस्पिटल खुलने के बाद वायुमण्डल चेंज हो गया ना। ऐसे हेल्थ का नाम सुनके, सब आजकल हेल्थ कान्सेस बहुत हैं ना तो उन्हों को लगता है डबल फायदा हो जायेगा। यह अच्छी सेवा है।
बम्बई के प्रसिद्ध गीतकार समीर भाई: अब डबल गीत गाना। मुख से तो गाते हो बहुत अच्छा, बनाते भी हो ना, अच्छे बनाते हो, शब्द खराब नहीं बनाते हो, ठीक बनाते हो। अभी मन से बाप के गुणों के भी गीत गाते रहना। डबल गीत। तो आपका चेहरा खुशमिजाज हो जायेगा। आपके चेहरे से लगेगा कुछ पा लिया है। अच्छा है, टाइम पर पहुंच गये हो।
नारायण दादा:- (परदादी से मिलने आये थे, परदादी अहमदाबाद हास्पिटल में है) वह भी ठीक हो रही है। बड़ी आयु है ना। बड़ी आयु के कारण थोड़ा टाइम लग जाता है। आप ठीक हैं, सेट हो? सब सेट है ना। सभी को याद देना। अच्छा।
15-12-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘स्मृति स्वरूप, अनुभवी मूर्त बन सेकण्ड की तीव्रगति से परिवर्तन कर पास विद ऑनर बनो’’
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों में तीन विशेष भाग्य की रेखायें मस्तक में चमकती हुई देख रहे हैं। सभी के मस्तक भाग्य की रेखाओं से चमक रहे हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की रेखा। दूसरी है श्रेष्ठ शिक्षक द्वारा शिक्षा के भाग्य की रेखा। तीसरी है सतगुरू द्वारा श्रीमत के भाग्य की रेखा। वैसो भाग्य आपका अथाह है फिर भी आज यह विशेष तीन रेखायें देख रहे हैं। आप भी अपने मस्तक में चमकती हुई रेखायें अनुभव कर रहे हो ना! सबसे श्रेष्ठ है परमात्म प्यार के पालना की रेखा। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो परमात्म पालना भी ऊंचे ते ऊंची है। यह पालना कितने थोड़ों को प्राप्त होती है, लेकिन आप सब इस पालना के पात्र बने हो। यह पालना सारे कल्प में आप बच्चों को एक ही बार प्राप्त होती है। अब नहीं तो कब प्राप्त नहीं हो सकती। यह परमात्म पालना, परमात्म प्यार, परमात्म प्राप्तियां कोटों में कोई आत्माओं को ही अनुभव होती हैं। आप सभी तो अनुभवी हो ना! अनुभव है? पालना का भी अनुभव है, पढ़ाई का भी और श्रीमत का भी। अनुभवी मूर्त हो। तो सदा अपने मस्तक में यह भाग्य का सितारा चमकता हुआ दिखाई देता है, सदा? कि कभी चमकता हुआ सितारा डल भी हो जाता है क्या! ढीला नहीं होना चाहिए। अगर चमकता हुआ सितारा ढीला होता है, उसका कारण क्या है? जानते हो?
बापदादा ने देखा है कि कारण यह होता है, स्मृति स्वरूप नहीं बने हो। सोचते हो मैं आत्मा हूँ, लेकिन सोचता स्वरूप बनते हो, स्मृति स्वरूप कम बनते हो। जब तक स्मृति स्वरूप सदा नहीं बनते तो स्मृति ही समर्थी दिलाती है। स्मृति स्वरूप ही समर्थ स्वरूप है। इसलिए भाग्य का सितारा कम चमकता है। अपने आपसे पूछो कि ज्यादा समय सोच स्वरूप बनते हो वा स्मृति स्वरूप बनते हो? सोच स्वरूप बनने से सोचते बहुत अच्छा हो, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ.... लेकिन स्मृति न होने के कारण सोचते, व्यर्थ संकल्प साधारण संकल्प भी मिक्स हो जाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो आपका अनादि स्वरूप स्मृति सो समर्थ स्वरूप है। सोचने वाला नहीं, स्वरूप है। और आदि में भी इस समय के स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो अनादि और आदि स्मृति स्वरूप है और इस समय अन्त में संगम समय पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो। तो आदि अनादि और अन्त तीनों कालों में स्मृति स्वरूप हो। सोचना स्वरूप नहीं हो। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा कि वर्तमान समय अनुभवी मूर्त बनना श्रेष्ठ स्टेज है। सोचते हो आत्मा हूँ, परमात्म प्राप्ति है, लेकिन समझना और अनुभव करना इसमें बहुत अन्तर है। अनुभवी मूर्त कभी भी न माया से धोखा खा सकता, न दु:ख की अनुभूति कर सकता। यह जो बीच-बीच में माया के खेल देखते हो, या खेल खेलते भी हो, उसका कारण है अनुभवी मूर्त की कमी है। अनुभव की अथॉरिटी सबसे श्रेष्ठ है। तो बापदादा ने देखा कि कई बच्चे सोचते हैं लेकिन स्वरूप की अनुभूति कम है। आज की दुनिया में मैजॉरिटी आत्मायें देखने और सुनने से थक गये हैं लेकिन अनुभव द्वारा प्राप्ति करने चाहते हैं। तो अनुभव कराना, अनुभवी ही करा सकता है। और अनुभवी आत्मा सदा आगे बढ़ती रहेगी, उड़ती रहेगी क्योंकि अनुभवी आत्मा में उमंग-उत्साह सदा इमर्ज रूप में रहता है। तो चेक करो हर प्वाइंट के अनुभवी मूर्त बने हैं? अनुभव की अथॉरिटी आपके हर कर्म में दिखाई देती है? हर बोल, हर संकल्प अनुभव की अथॉरिटी से है या सिर्फ समझने के आधार पर है? एक है समझना, दूसरा है अनुभव करना। हर सबजेक्ट में, ज्ञान की प्वाइंट्स वर्णन करना, वह तो बाहर के स्पीकर भी बहुत स्पीच कर लेते हैं। लेकिन हर प्वाइंट का अनुभवी स्वरूप बनना, यह है ज्ञानी तू आत्मा। योग लगाने वाले बहुत हैं, योग में बैठने वाले बहुत हैं, लेकिन योग का अनुभव अर्थात् शक्ति स्वरूप बनना और शक्ति स्वरूप की परख यह है कि जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय उस शक्ति को आह्वान कर निर्विघ्न स्वरूप बन जाए। अगर एक भी शक्ति की कमी है, वर्णन है लेकिन स्वरूप नहीं है तो भी समय पर धोखा खा सकते हैं। चाहिए सहनशक्ति और आप यूज करो सामना करने की शक्ति, तो योगयुक्त अनुभवी स्वरूप नहीं कहेंगे। चार ही सबजेक्ट में स्मृति स्वरूप वा अनुभवी स्वरूप की निशानी क्या होगी? स्थिति में निमित्त भाव, वृत्ति में सदा शुभ भाव, आत्मिक भाव, नि:स्वार्थ भाव। वायुमण्डल में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा निर्माण भाव, वाणी में सदा निर्मल वाणी। यह विशेषतायें अनुभवी मूर्त की हर समय नेचुरल नेचर होगी। नेचुरल नेचर। अभी कई बच्चे कभी-कभी कहते हैं कि हम चाहते नहीं हैं यह करें लेकिन मेरी पुरानी नेचर है। नेचर नेचुरल काम वही करती है, सोचना नहीं पड़ता, लेकिन नेचर नेचुरल काम करती है। तो अपने को चेक करो- मेरी नेचुरल नेचर क्या है? अगर कोई भी पुरानी नेचर अंश मात्र भी है, तो हर समय वह कार्य में आते-आते पक्का संस्कार बन जाता है। उसको समाप्त करने के लिए पुरानी नेचर, पुराना स्वभाव, पुराना संस्कार को समाप्त करने के लिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो, उसका कारण क्या है? नॉलेजफुल तो सबमें बन गये हो, लेकिन जो चाहते हो होना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है, कारण क्या है? परिवर्तन करने की शक्ति कम है। मैजॉरिटी में दिखाई देता है कि परिवर्तन की शक्ति, समझते हैं, वर्णन भी करते हैं, अगर सभी को परिवर्तन शक्ति की टॉपिक पर लिखने के लिए कहें या भाषण करने के लिए कहें तो बापदादा समझते हैं सभी बहुत होशियार हैं, बहुत अच्छा भाषण भी कर सकते हैं, लिख भी सकते हैं और दूसरा कोई आता है उसको समझाते भी बहुत अच्छा है - कोई हर्जा नहीं, परिवर्तन कर लो। लेकिन स्वयं में परिवर्तन करने की शक्ति और वर्तमान समय के महत्व को जानते हुए परिवर्तन करने में समय नहीं लगाना चाहिए। सेकण्ड में परिवर्तन की शक्ति, क्योंकि जब समझते हो - होना नहीं चाहिए, समझते हुए भी अगर परिवर्तन नहीं कर पाते हो, उसका कारण है - सोचते हो लेकिन स्वरूप नहीं बने हो।
सोचना स्वरूप ज्यादा सारे दिन में बनते हो, स्मृति सो समर्थ स्वरूप वह मैजॉरिटी कम है। अभी तीव्रगति का समय है, तीव्र पुरूषार्थ का समय है, साधारण पुरूषार्थ का समय नहीं है, सेकण्ड में परिवर्तन का अर्थ है - स्मृति स्वरूप द्वारा एक सेकण्ड में निर्विकल्प, व्यर्थ संकल्प निवृत्त हो जाए, क्यों? समय को समाप्ति को समीप लाने वाले निमित्त हो। तो अभी के समय के महत्व प्रमाण जब जानते भी हो कि हर कदम में पदम समाया हुआ है, तो बढ़ाने का तो बुद्धि में रखते हो लेकिन गवॉने का भी तो बुद्धि में रखो। अगर कदम में पदम बनता भी है तो कदम में पदम गंवाते भी तो हो, या नहीं? तो अभी मिनट की बात भी गई, दूसरों के लिए कहते हो वन मिनट साइलेन्स में रहो लेकिन आप लोगों के लिए सेकण्ड की बात होनी चाहिए। जैसे हाँ और ना सोचने में कितना टाइम लगता है? सेकण्ड। तो परिवर्तन शक्ति इतनी फास्ट चाहिए। समझा ठीक है, नहीं ठीक है, ना ठीक को बिन्दी और ठीक को प्रैक्टिकल में लाना है। अभी बिन्दी के महत्व को कार्य में लगाओ। तीन बिन्दियों को तो जानते हो ना! लेकिन बिन्दी को समय पर कार्य में लगाओ। जैसे साइंस वाले सब बात में तीव्रगति कर रहे हैं, और परिवर्तन की शक्ति भी ज्यादा कार्य में लगा रहे हैं। तो साइलेन्स की शक्ति वाले अभी लक्ष्य रखो अगर परिवर्तन करना है, नॉलेजफुल हो तो अभी पावरफुल बनो, सेकण्ड की गति से। कर रहे हैं, हो जायेंगे... कर लेंगे...., नहीं। हो सकता है या मुश्किल है? क्योंकि लास्ट समय सेकण्ड का पेपर आना है, मिनट का नहीं, तो सेकण्ड का अभ्यास बहुतकाल का होगा तब तो सेकण्ड में पास विद आनर बनेंगे ना! परमात्म स्टूडेन्ट हैं, परमात्म पढ़ाई पढ़ रहे हैं, तो पास विद ऑनर बनना ही है ना! पास मार्क्स लिया तो क्या हुआ। पास विद ऑनर। क्या लक्ष्य रखा है? जो समझते हैं पास विद ऑनर बनना है वह हाथ उठाओ, पास विद ऑनर, ऑनर शब्द अण्डरलाइन करना। अच्छा।
तो अभी क्या करना पड़ेगा? मिनट मोटर तो कामन है, सेकण्ड का काम है अभी। हाँ पंजाब वाले, सेकण्ड का मामला है अभी। इसमें नम्बरवन कौन होगा? पंजाब। क्या बड़ी बात है। जितना फलक से कहते हो, बहुत अच्छा कहते हो, फलक से कहते हो, बापदादा जब सुनते हैं बहुत खुश होते हैं, कहते हो - क्या बड़ी बात है, बापदादा साथ है। तो साथ तो अथॉरिटी है, तो क्या करना है अभी? तीव्र बनना पड़ेगा अभी। सेवा तो कर रहे हो, और सेवा के बिना और करेंगे भी क्या? खाली बैठेंगे क्या? सेवा तो ब्राह्मण आत्माओं का धर्म है, कर्म है। लेकिन अभी सेवा के साथ-साथ समर्थ स्वरूप, जितना सेवा का उमंग-उत्साह दिखाया है, बापदादा खुश है, मुबारक भी देते हैं। लेकिन जैसे सेवा का ताज मिला है ना, ताज पहना हुआ है देखो कितना अच्छा लग रहा है। अभी स्मृति स्वरूप बनने का ताज पहनके दिखाना। यूथ ग्रुप है ना! तो कमाल क्या करेंगे? सेवा में भी नम्बरवन और समर्थ स्वरूप में भी नम्बरवन। सन्देश देना भी ब्राह्मण जीवन का धर्म और कर्म है लेकिन अभी बापदादा इशारा दे रहा है कि परिवर्तन की मशीनरी तीव्र करो। नहीं तो पास विद आनर होने में मुश्किल हो जायेगा। बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। सोचा और किया। सिर्फ सोचना स्वरूप नहीं बनो, समर्थ स्मृति सो समर्थ स्वरूप बनो। व्यर्थ को तीव्र गति से समाप्त करो। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ समय और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी व्यर्थ विधि, रीति सब समाप्त करो। जब ब्राह्मण आत्मायें तीव्रगति से यह स्व के व्यर्थ की समाप्ति करेंगे तब आत्माओं की दुआयें और अपने पुण्य का खाता तीव्रगति से जमा करेंगे।
बापदादा ने पहले भी सुनाया कि बापदादा तीन खाते चेक करते हैं। पुरूषार्थ की गति का खाता, दुआओं का खाता, पुण्य का खाता लेकिन मैजॉरिटी के खाते अभी भरपूर कम हैं। इसलिए बापदादा आज यही स्लोगन याद दिला रहे हैं कि अब तीव्र बनो, तीव्र पुरूषार्थी बनो। तीव्र गति से समाप्ति वाले बनो। तीव्र गति से मन्सा द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन वाले बनो। बापदादा एक बात में सभी बच्चों पर बहुत खुश भी है। किस बात में? प्यार सबका बाप से जिगरी है, इसकी मुबारक है। लेकिन बोलूं क्या करो! इस सीजन की समाप्ति तक, अभी तो टाइम पड़ा है, इस सीजन के समाप्त तक तीव्र गति का कुछ न कुछ जलवा दिखाओ। पसन्द है? पसन्द है? जो समझते हैं लक्ष्य और लक्षण दोनों ही स्मृति में रखेंगे वह हाथ उठाओ। लक्ष्य और लक्षण दोनों सामने रखेंगे वह हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स भी रखेंगे, टीचर्स भी रखेंगे और यूथ भी रखेगा, और पहली लाइन वाले भी रखेंगे। तो पदम, पदम, पदमगुणा इनएडवांस मुबारक हो। अच्छा अभी क्या करना है?
सेवा का टर्न पंजाब का है:- आधा क्लास तो पंजाब है। बहुत अच्छा किया है। सेवा में एवररेडी बन पहुंच गये हो, इसकी मुबारक है। अच्छा, पंजाब वाले क्या कोई नया प्लैन बना रहे हैं? जो किसने नहीं किया हो, कोई ऐसा प्लैन टच होता है? होता है। सुबह को हो जायेगा। ऐसा करके दिखाओ, जो सब ब्राह्मण थैंक्स भी दें, मुबारक भी दें, वाह! वाह! के गीत भी गायें। अभी तक जो किया है, वह तो कर ही रहे हैं, अच्छा कर रहे हैं। बापदादा सेवा के समाचार सुनते रहते हैं और सुनकर दिल में दिल का प्यार भी देते हैं। अभी कुछ और नवीनता करके दिखाओ। पंजाब को शेर कहा जाता है ना। तो ऐसी कोई गजघोर करके दिखाओ जो सबकी नज़र बापदादा की तरफ सहज ही आ जाए। हो जायेगा। बापदादा को संकल्प है, पंजाब कोई नवीनता करेगा ही। अभी भी गोल्डन चांस मिला है, सेवा का गोल्डन चांस लिया और हर साल लेते भी रहते हैं और अच्छे हिम्मत उमंग से सभी मिल करके कर भी रहे हैं। संख्या तो बहुत अच्छी आई है। अच्छे-अच्छे महावीर हैं। देखो ब्रह्मा बाप का भी पंजाब से प्यार रहा तो पंजाब में पहुंच गये थे। तो ब्रह्मा बाप का भी विशेष प्यार देखा। सभी महारथियों का भी पंजाब में पांव पड़ा है। कोई ऐसी नवीनता करके दिखाओ। कर सकते हैं। पंजाब की पांच नदियां मशहूर हैं। बापदादा तो देख रहे हैं कि अच्छे ब्रह्मा बाप की पालना वाले भी हैं। तो पालना का रिटर्न तो देना पड़ेगा ना। अच्छा है बापदादा की बहुत बढ़िया उम्मींद है पंजाब में। करेंगे ना! कोई ऐसा कार्य करके दिखाओ जो सबकी नज़र बाप की तरफ पड़ जाए। है पाण्डवों में हिम्मत है? पाण्डव हिम्मत वाले हैं? अच्छा है, माताओं की संख्या भी काफी है, टीचर्स भी बहुत हैं। अच्छा - प्लैन बनाना आपस में। पाण्डव प्लैन बनाना। कमाल का प्लैन बनाना। अच्छा।
सारे भारत से युवा पद यात्री आये हैं:- अच्छा - बापदादा ने स्वागत समारोह भी देखा और जो युवा वर्ग वालों ने सेवा की, वह समाचार भी सुना। तो सेवा तो बहुत अच्छी की है और हिम्मत और उमंग से अथक बन सेवा की है, यह भी सर्टीफिकेट अच्छा दिखाया है। जहाँ उमंग-उत्साह होता है वहाँ सफलता होती ही है। तो देखा गया कि विशेष सब यात्राओं में उमंग-उल्हास अच्छा रहा। उमंग-उत्साह के कारण निरोगी भी रहे, निर्विघ्न भी रहे। अभी जैसे यात्रा के समय निर्विघ्न रहे, ऐसे इस ब्राह्मण जीवन में सदा निर्विघ्न, निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प, अगर सभी कुमार एक मास भी यह बहुत अच्छा चार्ट दिखायें, तो बापदादा और सुनहरी पुष्पों की वर्षा करेंगे। बिल्कुल स्वप्न मात्र भी निर्विघ्न। बोल और कर्म तो बड़ी चीज़ है लेकिन स्वप्न मात्र भी निर्विघ्न हो। स्व को देखो, समय को देखो, दूसरे की कमी को देखो ही नहीं, अगर देखते भी हो तो अपने मन में नहीं रखो। अगर किसी की कमज़ोरी मन में रखेंगे, तो बाप कैसे याद आयेगा! कमज़ोरी के साथ बाप नहीं ठहरता। एक सेकण्ड की तीव्रगति का, सभी यूथ जैसे उमंग उत्साह से यात्रा में सफल हुए, वैसे इस विषय पर सफल होके दिखाओ, फिर सेरीमनी बापदादा मनायेगा। करेंगे! ऐसी हिम्मत है? पक्का? क्योंकि यहाँ से जाने के बाद, माया सुन रही है। माया को पता है कि यह प्रामिस कर रहे हैं। अगर कोई भी कमी देखी तो विधिपूर्वक अपने जो निमित्त बड़े हैं उन्हों को सुना दिया लेकिन पीठ नहीं करो, उसको सजा मिली, नहीं मिली, क्या कदम उठाया गया, क्यों नहीं उठाया गया! इस व्यर्थ में नहीं जाओ। हिसाब-किताब बापदादा देख रहे हैं, देखते रहते हैं। तो निर्विघ्न भव का वरदान जीवन में लायेंगे? लायेंगे? टी.वी. में इनका फोटो निकालो। देखो, सभी सेवाकेन्द्र से, मैजॉरिटी सब जोन से हैं। अगर आप जो भी हैं, बहनें भी हैं, भाई भी हैं, अगर आप स्वयं हर जोन में करके दिखायेंगे तो आपकी वृत्ति का वायुमण्डल फैलेगा। यह नहीं सोचना वायुमण्डल फैला या नहीं फैला, यह नहीं सोचना। अवश्य फैलेगा। तो यूथ ऐसी कमाल करके दिखायें तो गवर्मेन्ट को रिजल्ट दिखायेंगे। स्वप्न मात्र भी पास विद ऑनर हो। बाकी जो सेवा की, वह अच्छी की है, सबको पसन्द भी आई, आपकी सेवा बाप को भी पसन्द है लेकिन आगे के लिए कोई कमाल करके दिखाओ। संख्या भी अच्छी है। देखो यह अनुभव करके देखा कि सेवा के उमंग-उत्साह में रहे तो चार्ट ठीक रहा ना। कोई खिटखिट नहीं हुई ना, न शरीर की, न विघ्न की, मैजॉरिटी। तो ऐसे ही उमंग-उत्साह से कोई भी संकल्प करेंगे तो विजय है ही है। तो याद रखना - यूथ का स्लोगन है - करना ही है। बुरा नहीं करना, अच्छा करना। विजयी बनना ही है। सफलता का सितारा बनना ही है। ठीक है। अच्छा।
डबल विदेशी:- बहुत अच्छा सितारा हिला रहे हैं। बापदादा कहते हैं डबल विदेशी मधुबन का विशेष श्रृंगार हैं। डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। अभी देखेंगे तीव्र गति के पुरूषार्थ में नम्बरवन कौन सा जोन जाता है। मधुबन जायेगा, मधुबन वाले बैठे हैं ना। मधुबन वाले उठो। अच्छा। मधुबन वाले तो बहुत हैं। तो क्या करेगा मधुबन। तीव्र पुरूषार्थ में नम्बरवन। है! हिम्मत है? हिम्मत है? हिम्मत वाले हाथ उठाओ। अभी मधुबन की कोई भी, ऐसी कोई भी बात बापदादा के पास नहीं आयेगी, यह हुआ, यह हुआ नहीं आयेगा। अच्छा हुआ, अच्छा हुआ, अच्छा हुआ... ठीक है। पक्का? पक्का? देखो। हाथ उठाया है या मन का हाथ उठाया है? मन का हाथ उठाया है ना? थोड़ों ने अभी हाथ उठाया। मन का हाथ उठा रहे हो ना। अभी बापदादा हर मास की रिजल्ट पूछेंगे। पूछें? पूछें? बहुत अच्छा। मधुबन वालों का स्वमान, सारे विदेश में, इन्डिया में हैं। मधुबन वासियों को बहुत ऊंची नज़र से देखते हैं। अति स्नेह की नज़र से देखते हैं। तो ऐसा ही रिजल्ट सुनते रहेंगे अभी। मन में तो सभी जानते हैं क्या करना है, क्या नहीं करना है, बापदादा क्या चाहते हैं, समझते तो सभी हैं, अभी सिर्फ करना है। नॉलेजफुल हो लेकिन अभी पावरफुल बनना। अच्छा | डबल विदेशी बापदादा को बहुत प्यारे लगते हैं, प्यारे तो सभी हैं लेकिन इसीलिए प्यार करते कि सच्ची दिल वाले हैं। महसूस जल्दी करते हैं लेकिन परिवर्तन की शक्ति अभी और एड करनी है। एड करेंगे ना। परिवर्तन की शक्ति एडीशन करो। बाकी महसूस करते हो, जानते हो, इसीलिए बाबा का प्यार है कि सच्चे हैं लेकिन परिवर्तन करने की थोड़ी और एडीशन करो। ठीक है सभी खुश हैं? खुशी में नाचते रहते, और बाप के गुणों के गीत गाते रहते। बहुत अच्छा।
अच्छा। जो पहली बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। खड़े हो जाओ। अच्छा - बहुत आये हैं। पहले बारी वाले बहुत हैं। बापदादा पहले बारी आने वालों को यही कहते हैं कि जैसे पहले बारी आये हो वैसे हर सबजेक्ट में पहला नम्बर आना। आने में देखो उमंग उत्साह से आये हो ना। प्यार के विमान में चढ़के पहुंच गये हो। अभी उमंग और उत्साह के पंखों से सब सबजेक्ट में नम्बरवन आना है, यह दृढ़ संकल्प रखो। अच्छा है मुबारक हो। अच्छा।
अभी-अभी अभ्यास करो - एक सेकण्ड में निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प बन एकाग्र, एक बाप दूसरा न कोई, इस एक ही संकल्प में एकाग्र होकर बैठ सकते हो! और कोई संकल्प नहीं हो। एक ही संकल्प की एकाग्रता शक्ति के अनुभव में बैठ जाओ। टाइम नहीं लगाना, एक सेकण्ड में। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के जिन्होंने भी विशेष याद प्यार भेजा है, वह हर एक बच्चा अपने नाम से यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार करना। बापदादा देख रहे हैं कि सभी के दिल में आता है हमारी भी याद, हमारी भी याद, लेकिन आप बच्चे संकल्प करते हो और बापदादा के पास उसी समय ही पहुंच जाता है। इसलिए सभी बच्चों को हर एक को नाम और विशेषता सम्पन्न यादप्यार दे रहे हैं। तो सभी सदा स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप, अनुभव स्वरूप श्रेष्ठ बच्चों को, सदा जो सोचा शुभ, वह तुरत किया, जैसे तुरत दान का महत्व है वैसे तुरत परिवर्तन का भी महत्व है। तो तुरत परिवर्तन करनेवाले विश्व परिवर्तक बच्चों को, सदा परमात्म पालना, परमात्म प्यार, परमात्म पढ़ाई और परमात्म श्रीमत को हर कर्म में लाने वाले महावीर बच्चों को, सदा हिम्मत और एकाग्रता, एकता द्वारा नम्बरवन तीव्र पुरूषार्थ करने वाले बच्चों को बापदादा का दिल का यादप्यार और दिल की दुआयें और नमस्ते।
दादी जी से:- विजय प्राप्त करके दिखा रही है। दादियों से:- सभी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। बाप दादा हर एक के पार्ट को देख खुश होते हैं। छोटे छोटे भी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे नहीं समझना हम तो छोटे हैं। छोटे सुभान अल्लाह हैं। शक्तियों का अपना पार्ट है, पाण्डवों का अपना पार्ट है। पाण्डव नहीं हों तो भी काम नहीं चले, शक्तियां नहीं हो तो भी काम नहीं चले, इसीलिए भारत में चतुर्भुज का यादगार है। और कोई भी धर्म में चतुर्भुज नहीं दिखाते लेकिन भारत के यादगार में चतुर्भुज का महत्व है। तो दोनों अच्छा पार्ट बजा रहे हैं लेकिन अभी जल्दी करना है, बस। कभी-कभी थोड़ा ढीला पड़ जाते हैं। अभी ढीले पड़ने का समय नहीं है। बातें तो भिन्न-भिन्न होती ही हैं लेकिन हमें बातों का राज़ समझ राज़युक्त, योगयुक्त, स्नेहयुक्त, सहयोग युक्त बन चलना है। अच्छा है ना। (दादी जी से) बहुत अच्छा लगता है ना? देखो कितने आये हैं। क्यों आये हैं? यह सभी क्यों आये हैं! आप से मिलने आये हैं। बापदादा से तो मिलने आये हैं लेकिन साथ में दादियां नहीं हों तो कहते हैं ना मजा नहीं आता। और आप सभी नहीं हो तो भी मजा नहीं होता।
(शान्तामणी दादी बीमार है, अहमदाबाद हॉस्पिटल में है, परदादी भी अहमदाबाद में हैं): ठीक है, हिसाब चुक्तू करने का कुछ समय है।
31-12-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"नये वर्ष की नवीनता - ‘‘दृढ़ता और परिवर्तन शक्ति से कारण व समस्या शब्द को विदाई दे निवारण व समाधान स्वरूप बनो"
आज नवयुग रचता बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों से नया वर्ष और नवयुग दोनों की मुबारक देने आये हैं। चारों ओर के बच्चे भी मुबारक देने पहुंच गये हैं। क्या सिर्फ नये वर्ष की मुबारक देने आये हो वा नवयुग की भी मुबारक देने आये हो? जैसे नये वर्ष की खुशी होती है और खुशियां देते हैं। तो आप ब्राह्मण आत्माओं को नवयुग भी इतना याद है? नवयुग नयनों के सामने आ गया है? जैसे नये वर्ष के लिए दिल में आ रहा है कि आया कि आया, ऐसे ही अपने नवयुग के लिए इतना अनुभव करते हो कि आया कि आया? उस नवयुग की स्मृति इतनी समीप आती है? वह अपने शरीर रूपी ड्रेस चमकती हुई सामने नज़र आ रही है? बापदादा डबल मुबारक देते हैं। बच्चों के मन में, नयनों में नवयुग की सीन सीनरियां इमर्ज हैं, कितना अपने नवयुग में तन-मन-धन-जन श्रेष्ठ है, सर्व प्राप्तियों के भण्डार हैं। खुशी है कि आज पुरानी दुनिया में हैं और अभी-अभी अपने राज्य में होंगे! याद है अपना राज्य? जैसे आज डबल कार्य के लिए आये हो, पुराने को विदाई देने और नये वर्ष को बधाई देने आये हैं। तो सिर्फ पुराने वर्ष को विदाई देने आये हो वा पुरानी दुनिया के पुराने संस्कार, पुराने स्वभाव, पुरानी चाल उसको भी विदाई देने आये हो? पुराने वर्ष को विदाई देना तो सहज है, लेकिन पुराने संस्कार को विदाई देना भी इतना सहज लगता है? क्या समझते हो? माया को भी विदाई देने आये हो वा वर्ष को विदाई देने आये हैं? विदाई देना है ना! कि थोड़ा प्यार है माया से? थोड़ा-थोड़ा रखने चाहते हो?
बापदादा आज चारों ओर के बच्चों से पुराने संस्कार स्वभाव से विदाई दिलाने चाहते हैं। दे सकते हो? हिम्मत है कि सोचते हो कि विदाई देने चाहते हैं लेकिन फिर माया आ जाती है! क्या आज के दिन दृढ़ संकल्प की शक्ति से पुराने संस्कार को विदाई दे नये युग के संस्कार को, जीवन को बधाई देने की हिम्मत है? है हिम्मत? जो समझते हैं हो सकता है, हो सकता है, वा होना ही है, है हिम्मत वाले? जो समझते हैं हिम्मत है वह हाथ उठाओ। हिम्मत है? अच्छा जिन्होंने नहीं उठाया है वह सोच रहे हैं? डबल फॉरेनर्स ने उठाया हाथ, जिसमें हिम्मत है वह हाथ उठाओ, सभी नहीं। अच्छा, डबल फॉरेनर्स तो होशियार हैं। डबल नशा है इसीलिए। देखना, बापदादा हर मास रिजल्ट देखेगा। बापदादा को खुशी है कि हिम्मत वाले बच्चे हैं। चतुराई से जवाब देने वाले बच्चे हैं। क्यों? क्योंकि जानते हैं कि एक कदम हमारी हिम्मत का और हजारों कदम बाप की मदद का तो मिलना ही है। अधिकारी हो। हजार कदम मदद के अधिकारी हो। सिर्फ हिम्मत को माया हिलाने की कोशिश करती है। बापदादा देखते हैं कि हिम्मत अच्छी रखते हैं, बापदादा दिल से मुबारक भी देते हैं लेकिन हिम्मत रखते फिर साथ में अपने अन्दर ही व्यर्थ संकल्प उत्पन्न कर लेते, कर तो रहे हैं, होना तो चाहिए, करेंगे तो जरूर, पता नहीं.... पता नहीं का संकल्प आना यह हिम्मत को कमज़ोर कर देता है। तो तो आ जाता है ना, करते तो हैं, करना तो है.. आगे उड़ना तो है..। यह हिम्मत को हिला देते हैं। तो नहीं सोचो, करना ही है। क्यों नहीं होगा! जब बाप साथ है, तो बाप के साथ में तो-तो नहीं आ सकता।
तो इस नये वर्ष में नवीनता क्या करेंगे? हिम्मत के पांव को मजबूत बनाओ। ऐसी हिम्मत का पांव मजबूत बनाओ जो माया खुद हिल जाये लेकिन पांव नहीं हिले। तो नये वर्ष में नवीनता करेंगे, या जैसे कभी हिलते कभी मजबूत रहते, ऐसे तो नहीं करेंगे ना! आप सभी का कर्तव्य वा आक्यूपेशन क्या है? अपने को क्या कहलाते हो? याद करो। विश्व कल्याणी, विश्व परिवर्तक, यह आपका आक्यूपेशन है ना! तो बापदादा को कभी-कभी मीठी-मीठी हंसी आती है। विश्व परिवर्तक टाइटिल तो है ना! विश्व परिवर्तक हो? या लण्डन परिवर्तक, इण्डिया परिवर्तक? विश्व परिवर्तक हो ना, सभी? चाहे गांव में रहते हैं चाहे लण्डन या अमेरिका में रहते हैं लेकिन विश्व कल्याणकारी हो ना? हो तो कांध हिलाओ। पक्का ना! कि 75 परसेन्ट हो। 75 परसेन्ट विश्व कल्याणी और 25 परसेन्ट माफ है, ऐसे? चैलेन्ज क्या है आपकी? प्रकृति को भी चैलेन्ज की है कि प्रकृति को भी परिवर्तन करना ही है। तो अपना आक्यूपेशन याद करो। कभी-कभी अपने लिए भी सोचते हो - करना तो नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है। तो विश्व परिवर्तक, प्रकृति परिवर्तक, स्व परिवर्तक नहीं बन सकते? तो शक्ति सेना क्या सोचते हो? इस वर्ष में अपना आक्यूपेशन विश्व परिवर्तक का स्व प्रति वा अपने ब्राह्मण परिवार प्रति, क्योंकि पहले तो चैरिटी बिगन्स एट होम है ना! तो अपने आक्यूपेशन का प्रैक्टिकल स्वरूप प्रत्यक्ष करेंगे ना। स्व परिवर्तन जो स्वयं भी चाहते हो और बापदादा भी चाहते हैं, जानते तो हो ना! बापदादा पूछते हैं कि आप सभी बच्चों का लक्ष्य क्या है? तो एक ही जवाब देते हैं मैजारिटी कि बाप समान बनना है। ठीक है ना! बाप समान बनना ही है ना, कि देखेंगे, सोचेंगे...! तो बाप भी यही चाहते हैं कि इस नये वर्ष में 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं अब 71 वर्ष में कोई कमाल करके दिखाओ। सब इतनी सेवा के उमंग में भिन्न-भिन्न प्रोग्राम बनाते रहते हैं, सफल भी होते रहते हैं, बापदादा को खुशी भी होती है कि मेहनत जो करते हैं उसकी सफलता मिलती है। व्यर्थ नहीं जाती है लेकिन किसलिए सेवा करते? तो क्या जवाब देते हैं? बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए। तो बाप आज बच्चों से प्रश> पूछते हैं, कि बाप को प्रत्यक्ष तो करना ही है, करेंगे ही। लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने के पहले स्व को प्रत्यक्ष करो। बोलो, शिव शक्तियां यह वर्ष स्व को प्रत्यक्ष शिव शक्ति के रूप में करेंगे? करेंगे? जनक बोलो? करेंगे? (करना ही है) साथी, पहली लाइन दूसरी लाइन टीचर्स। टीचर्स हाथ उठाओ जो इस वर्ष में करके दिखायेंगे। करेंगे नहीं, करके दिखाना ही है। अच्छा - सभी टीचर्स ने उठाया या कोई ने नहीं उठाया। अच्छा - मधुबन वाले। करना ही है, करना पड़ेगा। मधुबन वाले क्योंकि मधुबन तो नजदीक है ना। तारीख नोट कर देना, 31 तारीख है। टाइम भी नोट करना (9 बजकर 20 मिनट)। और पाण्डव सेना, पाण्डवों को क्या दिखाना है! विजयी पाण्डव। कभी कभी के विजयी नहीं, है ही विजयी पाण्डव। हैं? दिखाना है इस वर्ष में, कि कहेंगे क्या करें? माया आ गई ना, चाहते नहीं थे आ गई! बापदादा ने पहले भी कहा है माया अपना लास्ट टाइम तक आना बन्द नहीं करेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम क्या है? विजयी बनना। तो यह नहीं सोचो, चाहते थोड़ेही हैं लेकिन माया आ जाती है। हो जाता है। अब यह शब्द बापदादा इस वर्ष के साथ, इन शब्दों को विदाई दिलाने चाहते हैं।
12 बजे इस वर्ष को विदाई देंगे ना। तो जो घण्टे बजाओ ना, आज जब घण्टे बजाओ तो किसका घण्टा बजायेंगे? दिन का, वर्ष का या माया की विदाई का घण्टा बजाना। दो बातें हैं - एक तो परिवर्तन शक्ति, उसकी कमज़ोरी है। प्लैन बहुत अच्छे बनाते हो, ऐसे करेंगे, ऐसे करेंगे, ऐसे करेंगे...। बापदादा भी खुश हो जाते हैं, बहुत अच्छे प्लैन बनाये हैं लेकिन परिवर्तन शक्ति की कमी होने के कारण कुछ परिवर्तन होता है, कुछ रह जाता है। और दूसरी कमी है - दृढ़ता की। संकल्प अच्छे अच्छे करते हो, आज भी देखो कितने कार्ड, कितने अंजाम, कितने वायदे देखे, बापदादा ने देखा है। बहुत पत्र अच्छे-अच्छे आये हैं। (कार्ड पत्र आदि सब स्टेज पर सजे हुए रखे हैं) तो करेंगे, दिखायेंगे, होना ही है, बनना ही है, पदम-पदमगुणा यादप्यार, सब बापदादा के पास पहुंचा है, आप जो सम्मुख बैठे हो, उन्हों के दिल का आवाज भी बाप के पास पहुंचा। लेकिन अभी बापदादा इन दो शक्तियों के ऊपर अण्डरलाइन करा रहा है। एक दृढ़ता की कमी आ जाती है। कमी का कारण, अलबेलापन, दूसरे को देखने का। हो जायेगा, कर तो रहे हैं, करेंगे, जरूर करेंगे...। बापदादा यही चाहते हैं कि इस वर्ष एक शब्द को विदाई दो - सदा के लिए। बतायें, बोलें? देनी पड़ेगी। इस वर्ष बापदादा कारण शब्द को विदाई दिलाने चाहते हैं, निवारण हो, कारण खत्म। समस्या खत्म, समाधान स्वरूप। चाहे स्वयं का कारण हो, चाहे साथी का कारण हो, चाहे संगठन का कारण हो, चाहे कोई सरकमस्टांश का कारण हो, ब्राह्मणों की डिक्शनरी में कारण शब्द, समस्या शब्द परिवर्तन हो, समाधान और निवारण हो जाए क्योंकि बहुतों ने आज अमृतवेले भी बापदादा से रूहरिहान में यही बातें की, कि नये वर्ष में कुछ नवीनता करें। तो बापदादा चाहते हैं कि यह नया वर्ष ऐसा मनाओ जो यह दो शब्द समाप्त हो जाएं। पर-उपकारी। स्वयं कारण बनते हैं या दूसरा कोई कारण बनता है, लेकिन पर-उपकारी आत्मा बन, रहमदिल आत्मा बन, शुभ भावना, शुभ कामना के दिल वाले बन सहयोग दो, स्नेह लो।
तो इस नये वर्ष को क्या नाम देंगे? पहले हर वर्ष को नाम देते थे, याद है ना? तो बापदादा इस वर्ष को श्रेष्ठ शुभ संकल्प, दृढ़ संकल्प, स्नेह सहयोग संकल्प वर्ष - यह नाम नहीं, लेकिन ऐसा देखने चाहते हैं। दृढ़ता की शक्ति, परिवर्तन की शिक्त को सदा साथी बनाओ। कोई कुछ भी निगेटिव दे लेकिन जैसे आप दूसरों को कोर्स कराते हो निगेटिव को पॉजिटिव में बदली करो, तो क्या आप स्वयं निगेटिव को पॉजिटिव में चेन्ज नहीं कर सकते? दूसरा परवश होता है, परवश पर रहम किया जाता है। आपके जड़ चित्र, आपके ही चित्र है ना। भारत में डबल फॉरेनर्स के भी चित्र हैं ना, जो पूजे जाते हैं? दिलवाला मन्दिर में तो अपना चित्र देखा है ना! बहुत अच्छा। जब आपके जड़चित्र रहमदिल हैं, कोई भी चित्र के आगे जाते हैं तो क्या मांगते हैं? दया करो, कृपा करो, रहम करो, मर्सी, मर्सी... | तो सदा पहले अपने ऊपर रहम करो, फिर ब्राह्मण परिवार के ऊपर रहम करो, अगर कोई परवश है, संस्कार के वश है, कमज़ोर है, उस समय बेसमझ हो जाता है, तो क्रोध नहीं करो। क्रोध की रिपोर्ट ज्यादा आती है। क्रोध नहीं तो उसके बाल बच्चों से बहुत प्यार है। रोब, रोब क्रोध का बच्चा है। तो जैसे परिवार में होता है ना, बड़े बच्चों से प्यार कम हो जाता है और पोत्रे धोत्रों से प्यार ज्यादा होता है। तो क्रोध बाप है और रोब और उल्टा नशा, नशे भी भिन्नभिन्न होते हैं, बुद्धि का नशा, ड्युटी का नशा, सेवा के कोई विशेष कर्तव्य का नशा, यह रोब होता है। तो दयालु बनो, कृपालु बनो। देखो, नये वर्ष में एक दो का मुख मीठा भी करते हैं, बधाई देंगे, तो मुख मीठा भी कराते हैं ना! तो सारा वर्ष कडुवापन नहीं दिखाना। वह मुख मीठा करते आप सिर्फ मुख मीठा नहीं कराते लेकिन आपका मुखड़ा भी मीठा हो। सदा अपना मुखड़ा रूहानियत के स्नेह का हो, मुस्कराने का हो। कडुवापन नहीं। मैजारिटी जब बापदादा से रूहरिहान करते हैं ना तो अपनी सच्ची बात सुना देते हैं और तो कोई सुनता ही नहीं है। तो मैजारिटी की रिजल्ट में और विकारों से क्रोध या क्रोध के बाल बच्चे की रिपोर्ट ज्यादा है। तो बापदादा इस नये वर्ष में इस कडुवाइस को निकालने चाहते हैं। कईयों ने अपना वायदा भी लिखा है कि चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाता है। तो बापदादा ने कारण सुनाया कि दृढ़ता की कमी है। बाप के आगे संकल्प द्वारा वचन भी लेते हैं, लेकिन दृढ़ता ऐसी शक्ति है जो दुनिया वाले भी कहते हैं शरीर चला जाए लेकिन वचन नहीं जाए। मरना पड़े, झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना पड़े, लेकिन वचन में दृढ़ रहने वाला हर कदम में सफलतामूर्त है क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है। चाबी है सभी के पास, लेकिन समय पर गुम हो जाती है।
तो क्या विचार है? नया वर्ष नवीनता करनी ही है - स्व के, सहयोगियों के और विश्व के परिवर्तन की। पीछे वाले सुन रहे हैं? तो करना है ना, यह नहीं सोचना पहले तो बड़े करेंगे ना, हम तो छोटे हैं ना। छोटे समान बाप। हर एक बच्चा बाप के अधिकारी है, चाहे पहले बारी भी आये हो लेकिन मेरा बाबा कहा तो अधिकारी है। श्रीमत पर चलने के भी अधिकारी और सर्व प्राप्तियों के भी अधिकारी। टीचर्स आपस में प्रोग्राम बनाना, फारेन वाले भी बनाना, भारत वाले भी मिलकर बनाना। बापदादा प्राइज देंगे, कौन सा जोन, चाहे फॉरेन हो चाहे इण्डिया हो, कौन सा जोन नम्बरवन लेता है, उसको गोल्डन कप देंगे। सिर्फ अपने को नहीं बनाना, साथियों को भी बनाना क्योंकि बापदादा ने देखा कि बच्चों के परिवर्तन बिना विश्व का परिवर्तन भी ढीला हो रहा है। और आत्मायें नये-नये प्रकार के दु:ख के पात्र बन रही हैं। दु:ख अशान्ति के नये नये कारण बन रहे हैं। तो बाप अभी बच्चों के दु:ख की पुकार सुनते हुए परिवर्तन चाहते हैं। तो हे मास्टर सुखदाता बच्चे, दु:खियों पर रहम करो। भक्त भी भक्ति कर करके थक गये हैं। भक्तों को भी मुक्ति का वर्सा दिलाओ। रहम आता है कि नहीं? अपनी ही सेवा में, अपनी ही दिनचर्या में बिजी हैं? निमित्त हो, ऐसे नहीं बड़े निमित्त हैं, एक एक बच्चा जिसने मेरा बाबा कहा है, माना है वह सब निमित्त हैं। तो नये वर्ष में एक दो को गिफ्ट भी देते हैं ना। तो आप भक्तों की आश पूरी करो उसको गिफ्ट दिलाओ। दु:खियों को दु:ख से छुड़ाओ, मुक्तिधाम में शान्ति दिलाओ - यह गिफ्ट दो। ब्राह्मण परिवार में हर आत्मा को दिल के स्नेह और सहयोग की गिफ्ट दो। आपके पास गिफ्ट का स्टॉक है? स्नेह है? सहयोग है? मुक्ति दिलाने की शक्ति है? जिसके पास स्टॉक बहुत है, वह हाथ उठाओ। है स्टॉक। स्टॉक कम है? पहली लाइन वालों के पास स्टॉक कम है क्या? यह बृजमोहन हाथ नहीं उठा रहा है। स्टॉक तो है ना, स्टॉक है? सभी ने उठाया? स्टॉक है? तो स्टॉक रखके क्या कर रहे हो? जमा करके रखा है! टीचर्स स्टॉक है ना? तो दो ना, फ्राकदिल बनो। मधुबन वाले क्या करेंगे? है स्टॉक, मधुबन में है? मधुबन में तो चारों ओर स्टॉक भरा हुआ है। तो अभी दाता बनो, जमा नहीं करो सिर्फ। दाता बनो, देते जाओ। ठीक है।
अच्छा - बापदादा देखेंगे, हर सप्ताह, हर जोन, अपनी रिजल्ट ओ.के. या ओ.के. में लाइन लगाकर भेजे। अगर नहीं हैं ओ.के. तो, और कुछ नहीं लिखना, पत्र कोई नहीं पढ़ेगा। बहुत लम्बे पत्र भेजते हैं तो पढ़ने की फुर्सत नहीं होती है इसलिए सिर्फ ओ.के. लिखें और ओ.के. नहीं हैं, तो बीच में लाइन लगा दें, बस। उसी से पता पड़ जायेगा कि अभी मार्जिन है। जोन नहीं तो हर एक सेन्टर लिखे, सभी सेवा में, भक्तों की, दु:खियों की, ब्राह्मणों की आपसी, तीनों सेवा में ओ.के. या लाइन। परिवर्तन शक्ति, दृढ़ता की शक्ति अच्छी तरह से यूज करना। अच्छा।
सेवा का टर्न, दिल्ली, आगरा का है:- अच्छा है, देखो स्थापना के कार्य में निमित्त पहले दिल्ली बनी, बाम्बे भी साथ में थोड़ा-थोड़ा बनी, लेकिन दिल्ली स्थापना के कार्य में निमित्त बनी तो स्थापना वाले गोल्डन कप लेने में भी निमित्त बनेंगे? बनेंगे? इस बारी बापदादा गोल्डन कप बनवा रहे हैं, कितने लेते हैं वह देखेंगे। लेकिन दिल्ली को नम्बरवन जाना ही है, ऐसे है ना! जायेंगे नहीं, जाना ही है राइट बोल रहे हैं तो हाथ उठाओ। जाना ही है कि देखेंगे, सोचेंगे, गे गे वाले तो नहीं हैं? बहादुर हैं। देखो, बापदादा और आपकी मम्मा ने डायरेक्ट दिल्ली और बाम्बे की पालना की है। और जगह गये हैं तो थोड़ा-थोड़ा लेकिन दिल्ली और बाम्बे में डायरेक्ट बापदादा, माँ ने पालना दी है। तो दिल्ली वालों को नशा है ना? तो इसमें भी नम्बरवन, क्या नहीं हो सकता है! दृढ़ निश्चय, निश्चित विजयी बना देता है। दृढ़ता को यूज कम करते हो, देखेंगे, करेंगे, हो जायेगा, यह गे गे आ जाती है। अच्छा है, दिल्ली वालों को एक्जैम्पुल बनना चाहिए, जो एक्जैम्पुल बनता है उसको फाइनल एक्जाम में एक्स्ट्रा मार्क्स मिल जाती हैं। तो मार्क्स लेने वाले हो ना। हो? टीचर्स लेंगी? अच्छा। अभी क्या पत्र आयेगा? ओ.के. का या लाइन वाला? लाइन वाला नहीं भेजना। ओ.के. भेजेंगे क्योंकि दिल्ली के ऊपर सबकी नज़र तो है ही। सभी ब्राह्मणों को यही है कि दिल्ली में ही राज्य करना है। तो आपको दिल्ली को तो पहले पूरा करना पड़ेगा ना। अच्छा है। अच्छा और क्या दिल्ली वाले करेंगे? कोई नया प्लैन बनाया है? क्योंकि दिल्ली और बाम्बे दोनों आदि से अभी तक कोई न कोई नवीनता के निमित्त बनते आये हैं। तो अभी भी दिल्ली वाले शार्टकट और सफलता ज्यादा, ऐसा कोई प्लैन निकालो, जो सभी करके दिखावें, कर सकें। शार्ट भी हो और सफलता मूर्त भी हो। अच्छा आधी सभा तो दिल्ली लग रही है। संख्या भी बहुत है। तो गोल्डन कप लेने वाले हो ना। बापदादा नाम रख दे पहला नम्बर। रखें? पीछे वाले, सहयोग सबको देना पड़ेगा। पहले है स्व परिवर्तन, फिर है साथियों का परिवर्तन, साथी माना आपस में 4-5 नहीं, दिल्ली निवासी साथी, फिर है विश्व परिवर्तन, सहयोग देना। तो अच्छा है। एक दो को सहयोग देते हुए, दिल का स्नेह देते हुए बढ़ाते चलो, उड़ाते चलो। अच्छा है, हिम्मत है दिल्ली में। हिम्मत है लेकिन संगठित रूप में हिम्मत प्रत्यक्ष करके दिखाओ। सबकी नज़र दिल्ली के ऊपर जाती है। अच्छा है। सेवा का शौक रखा है, इसकी मुबारक है। अपने पुण्य का खाता जमा कर लिया है। अच्छा।
सिन्धी ग्रुप:- सिन्धी ग्रुप उठो। आप लोगों को एक स्पेशल नशा है, है नशा? अच्छा नशा, बुरा नहीं अच्छा नशा है कि बापदादा को भी सिन्ध में आना पड़ा, तो सिन्धियों का कुछ भाग्य है ना। आदि रत्न, आदि स्थापना सिंध में हुई और यह ग्रुप बड़ा अच्छा बनाया है। जैसे सोचा है, तो बापदादा ने देखा कि हर वर्ष संगठन रूप में अच्छा ग्रुप बनकर आता है। विशेष एक दो को उमंग दिलाने वाले अच्छे हैं। अब आपका ग्रुप क्या करेगा? विशेष सिन्धी ग्रुप क्या करेगा? क्या करेंगे? कोई कमाल करके दिखाओ ना। सिन्धी सम्मेलन तो करते रहते हो। आपका ग्रुप अच्छा है। और इस ग्रुप का एक-एक विशेष कार्य अर्थ निमित्त बन सकता है क्योंकि मैजारिटी युगल, युगल हैं, अकेले कम हैं। तो जहाँ युगल युगल आते हैं, एकमत हैं, वह सेवा बहुत अच्छी कर सकते हैं। एक्जैम्पुल हैं ना। आप लोगों ने छोड़ा नहीं है, परिवार में रहते हैं, एकमत होके चलते हैं तो आपके थोड़े से बोल भी सेवा कर सकते हैं। अभी अपना ग्रुप थोड़ा बढ़ाओ। अभी छोटा भी नहीं है, बीच का है, अभी थोड़ा और बढ़ाओ। उमंग उल्हास में लाओ। जैसे एक वर्ष में एक बारी आते हो ऐसे और नामीग्रामी जो सेवा के निमित्त बन सकें, ऐसे और भी अपने ग्रुप में एड करो। (दादी जानकी ने सुनाया कि यह दादाराम, दादा रत्नचन्द का मोस्टली परिवार है जो सारे विश्व में फैला हुआ है) हाँ यह प्रसिद्ध परिवार है और देखो दोनों परिवार के जो निमित्त बनें, एक रत्नचन्द की विशेषता - कुछ नहीं सोचा, स्वाहा। उमंग-उत्साह दिखाया। ब्रह्मा बाप को फॉलो किया। तो आज उसका परिवार उसकी दुआओं से बहुत अच्छा चल रहा है और राम सावित्री दिल से सेवा के निमित्त बनें। समय पर गुप्त सहयोगी बनें, उसकी दुआयें परिवार को हैं। काम उसने किया और नाम परिवार को दिया है। यह उन्हों का त्याग है। उसके त्याग का भाग्य आपको प्राप्त हो रहा है। संगठन अच्छा है, आपका ग्रुप बापदादा को पसन्द है। अच्छा। मुबारक हो। सभी परिवार की तरफ से भी बापदादा की तरफ से भी मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
डबल विदेशी बच्चों की रिट्रीट चल रही है:- (बच्चे गीत गा रहे हैं - बाबा का बच्चों से, बच्चों का बाबा से प्यार है ना) अच्छा है। जैसे बच्चे उमंग-उत्साह में अपना प्रोग्राम यहाँ कर रहे हो, वैसे अपने-अपने शहरों में भी बच्चों का ग्रुप बढ़ाओ। जो बच्चा ज्यादा में ज्यादा बच्चों का ग्रुप तैयार करेंगे, उसको प्राइज देंगे। बापदादा को भी बच्चे अच्छे लगते हैं क्योंकि बच्चे दिल के सच्चे हैं। अच्छा - कभी क्रोध तो नहीं करते बच्चे, कभी-कभी करते हो? थोड़ा थोड़ा करते हो? तो इस वर्ष अपने अपने सेन्टर में अपनी रिजल्ट लिखाना फिर वह टीचर लिख करके भेजेगी कि इन बच्चों ने सारा साल क्रोध नहीं किया। और बहुत अच्छा पुरूषार्थ किया फिर प्राइज देंगे। अच्छा।
डबल विदेशी:- फारेनर्स वृद्धि भी कर रहे हैं और भिन्न-भिन्न देश जो रहे हुए हैं, उसमें उमंग-उत्साह से बढ़ रहे हैं, यह बापदादा को खुशी है कि प्रैक्टिकल रहमदिल बन आत्माओं के ऊपर रहम कर रहे हैं। सेवा का उमंग भी है और सेवा का प्रत्यक्ष रूप भी दिखा रहे हैं। अभी डबल तीव्र पुरूषार्थ कर गोल्डन कप फॉरेन वाले लेवें। ले सकते हैं। सभी की तरफ से ईमेल आयेगा आपके पास, ओ.के. ओ.के, ज्यादा नहीं आयेगा। पढ़ना पड़ता है ना आपको। (दादी जानकी को), बस सिर्फ ओ.के. बाप भी ओ.के. वालों को गुप्त में बहुत स्नेह की दुआओं की वर्षा करते हैं। वाह! बच्चे वाह! का गीत गाते हैं। चाहे भारत वाले, चाहे विदेश वाले लेकिन कोई-कोई बच्चे गुप्त रीति से तीव्र पुरूषार्थ कर रहे हैं और बापदादा के पास लिस्ट भी है, भारत में भी है विदेश में भी है लेकिन बापदादा अभी बहुतकाल देखने चाहता है, कर रहे हैं लेकिन बहुतकाल चाहिए। तो बहुतकाल बापदादा नोट कर रहे हैं, कि बहुतकाल के तीव्र पुरूषार्थी कौन कौन हैं। बीच-बीच में अगर ढीले हो जाते हैं तो बहुतकाल तो कट हो जाता है ना इसीलिए बापदादा लिस्ट निकाल रहा है, अभी थोड़े हैं। बनना तो सबको है। भारत वालों को भी बनना है, विदेश वालों को भी बनना है लेकिन कोई कोई गुप्त अच्छे है। बापदादा गिनती करते रहते हैं, कितने बच्चे हैं ऐसे। अभी बहुतकाल पर अटेन्शन रखो। क्योंकि बहुतकाल के विजयी बहुतकाल का फुल आधा कल्प के राज्यभाग्य के अधिकारी बनेंगे। अगर बीच बीच में किया, आधा समय किया, पौना समय किया तो प्राप्ति राज्य भाग्य की भी इतनी होगी। इसीलिए बापदादा डबल विदेशियों को विशेष थैंक्स भी देते हैं अटेन्शन है, लेकिन बीच बीच में टेन्शन भी आ जाता है। अभी टेन्शन खत्म, अटेन्शन। ऐसी लिस्ट में आ जाओ, बहुतकाल के तीव्र पुरूषार्थी। कभी-कभी वाले नहीं, लगातार। ठीक है ना। हैं, बापदादा देखते हैं कि उम्मींदवार सितारे हैं। प्रैक्टिकल स्टेज पर आ जायेंगे। ठीक है ना। है ना ऐसे! उम्मींदवार सितारे हैं ना। बाप की आशाओं के सितारे बच्चे हैं। अच्छा। मुबारक हो, मुबारक हो।
इन्टरनेशनल यूथ ग्रुप:- यूथ ग्रुप की विशेषता यह प्रसिद्ध है कि यूथ जो चाहे वह कर सकते हैं। तो इस वर्ष आप यूथ ग्रुप क्या संकल्प पूरा करेंगे? जो बापदादा ने कहा है - वह यूथ ग्रुप करके दिखायेंगे! करेंगे? निवारण स्वरूप। कारण नहीं, निवारण स्वरूप। समाधान स्वरूप। आपस में लेन-देन करते रहते हैं ना। तो यह लक्ष्य रखके जाओ कि बहुतकाल समाधान स्वरूप बनके ही उड़ना है। कारण आयेंगे लेकिन आप यूथ में ताकत है कारण को निवारण में चेंज करना। क्या करें, कारण है ना, यह यूथ नहीं बोल सकता। शक्तिवान हो। तो ठीक है यह होम वर्क करेंगे! करेंगे होमवर्क? अच्छा रिजल्ट लिखते रहना। ओ.के. ओ.के. की रिजल्ट लिखना। अच्छा है। बापदादा को यूथ ग्रुप में बहुत अच्छी आशायें हैं। कर रहे हैं, प्लैन बना रहे हैं अब प्रैक्टिकल में करके दिखाओ, जो भी आपको देखे कहे यह तो फरिश्ता है। फरिश्ता फरिश्ता दिखाई दो। फरिश्ते की चाल उड़ती कला। नीचे ऊपर नहीं। उड़ने वाले और उड़ाने वाले। कमज़ोर को भी उड़ाने वाले। नीचे आने वाले नहीं। तो ऐसा प्लैन बनाया है! ऐसा सोचा है? कोई कमाल करके दिखाना। बाकी अच्छा है हर वर्ष मिलते हो, यह बहुत अच्छा। उमंग उल्हास बढ़ता है। अभी की रिजल्ट भी सुनी है, कुछ बनाया है ना, चिटकियां लिखी हैं, वह भी सुना है। यह अच्छा बनाया है। अच्छा पुरूषार्थ किया है। अभी सभी की यह चिटकी नीचे गिरे कि अच्छे ते अच्छे हैं। परसेन्टेज नहीं, अच्छे ते अच्छे। हो सकता है बड़ी बात नहीं है। अच्छा। (सबने वायदा किया है कि बाबा की आश पूरा करेंगे, विदेश और भारत में साथ-साथ सेवा करेंगे, ऐसा संकल्प है, इसका प्लान बनायेंगे) अच्छा है। अच्छा - मधुबन के आप सभी श्रृंगार हो। देखो आप जब आते हो मधुबन में तो कितना मधुबन सज जाता है। मधुबन में आना अच्छा लगता है ना कि मुश्किल लगता है? मेहनत लगती है? लगती है मेहनत या खुशी होती है?
अच्छा। अभी हर एक अपने को मन के मालिक अनुभव कर एक सेकण्ड में मन को एकाग्र कर सकते हो? आर्डर कर सकते हो? एक सेकण्ड में अपने स्वीट होम में पहुंच जाओ। एक सेकण्ड में अपने राज्य स्वर्ग में पहुंच जाओ। मन आपका आर्डर मानता है वा हलचल करता है? मालिक अगर योग्य है, शक्तिवान है, तो मन नहीं माने, हो नहीं सकता। तो अभी अभ्यास करो एक सेकण्ड में सभी अपने स्वीट होम में पहुंच जाओ। यह अभ्यास सारे दिन में बीच-बीच में करने का अटेन्शन रखो। मन की एकाग्रता स्वयं को भी और वायुमण्डल को भी पावरफुल बनाती है। अच्छा।
चारों ओर के अति सर्व के स्नेही, सर्व के सहयोगी श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के विजयी बच्चों को, चारों ओर के परिवर्तन शक्तिवान बच्चों को, चारों ओर के सदा स्वयं को प्रत्यक्ष कर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चों को, सदा समाधान स्वरूप विश्व परिवर्तक बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार हों। साथ में सभी बच्चों को जो बाप के भी सिरताज हैं, ऐसे सिरताज बच्चों को बापदादा की नमस्ते।
दादियों से:- (दादी जी से):- सभी आपका मुस्कराता हुआ चेहरा देखना चाहते हैं। देखो सभी मुस्करा रहे हैं, आपको देखकरके सब मुस्करा रहे हैं। अच्छा है, सभी को दिल से स्नेह दिया है, इसलिए सभी के दिल का स्नेह है और स्नेह आपको लिफ्ट माफिक आगे बढ़ा रहा है। सीढ़ी नहीं चढ़ने वाली हो, लिफ्ट में पहुंच जाओगी। सब दादियों को देखकर खुश होते हैं ना। क्योंकि दादियों ने नि:स्वार्थ सेवा की है। हर एक को दिल की दुआओं से पालना की है। चाहे साथ रहते हैं, चाहे दूर रहते हैं, लेकिन दुआओं की, स्नेह की, एक सेकण्ड की दुआओं की दृष्टि या दुआओं भरा संकल्प पालना कर देता है। तो आप सभी को दिल होती है ना दादियों की दृष्टि मिले, दादियों की दृष्टि मिले। तो यह विशेषता जो दादियों ने आपको दी, उससे आप भी सेकण्ड में किसी को स्नेह देकर खुश कर दो। कैसा भी कोई हो लेकिन स्नेह दिल का, सिर्फ बोल का नहीं, बाहर का नहीं लेकिन दिल का स्नेह किसी को भी स्नेही बना सकता है। जैसे दादियां जल्दी से दिलशिकस्त नहीं होती - यह तो बदलना ही नहीं है, यह तो होना ही नहीं है। सदा शुभ उम्मीदें रखती हैं, बापदादा को फॉलो किया। बापदादा के पास पहले बारी जब आप आये तो कैसे आये थे, 63 जन्म के पाप इकट्ठे किये हुए आये, लेकिन बापदादा ने आशाओं के दीपक समझ चमकता हुआ सिताराबना दिया। न घृणा रखी, न दिलशिकस्त हुए, ऐसे आप भी इस वर्ष किसी से भी न दिलशिकस्त होना, न थकना, स्नेह और सहयोग देते रहना। पॉजिटिव में परिवर्तन करते रहना, निगेटिव नहीं देखना। तो देखना इस वर्ष में ही समय को समीप ले आयेंगे। ऐसा वायुमण्डल बनाओ। कहाँ भी किसी के प्रति कोई भाव और नहीं, शुभ भावना शुभ कामना। गिरे हुए परवश आत्माओं को अपना सहयोग देके उठाओ। सब उठके उड़ेंगे। सबको नज़र आयेंगे फरिश्ते ही फरिश्ते घूम रहे हैं। यह साक्षात्कार होना है। अनुभव करेंगे पता नहीं कहाँ फरिश्तों का झुण्ड सृष्टि पर आ गया है हमको उठाने के लिए। एक दो को देखो ही फरिश्ते स्वरूप में। यह फलाना है, फलाना है नहीं, फरिश्ता है। ठीक है। दादियों से यह सीखो। शुभ भावना, शुभ कामना दो, स्टाक है आपके पास, लेकिन देने में दाता कम बनते हो। निगेटिव न देखो, न सुनो, न बोलो, न सोचो। उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ते रहो और उड़ाते रहो। अच्छा है ना, दादियां स्टेज पर आती हैं, सबके चेहरे मुस्कराने लगते हैं। अच्छा। (दादी बाबा को कह रही हैं - बाबा सबका आपसे बहुत प्यार है) आपसे भी सबका हजारगुणा ज्यादा प्यार है।
तीनों बड़े भाईयों से:- मधुबन के बिना तो गति ही नहीं है। आपसे भी पाण्डवों से, ऐसे उन्हों को फीलिंग आये, यह दादियों को फॉलो करने वाले हैं। फॉलो बाप को करते हैं लेकिन निमित्त आप सबसे फीलिंग आवे कि यह हमको देने वाले हैं, सहयोग देने वाले हैं, दिल का स्नेह देने वाले हैं। कभी भी कोई दिलशिकस्त हो, तो समझें यह हमको सहयोग देने वाले हैं। अभी इस रूप को प्रत्यक्ष करो। अन्दर होगा लेकिन अभी प्रत्यक्ष करो। ठीक है ना। कमाल करेंगे, पाण्डव कम थोड़ेही हैं। पाण्डवों का गायन भी विशेष है। साथी पाण्डव दिखाये गये हैं। शक्तियों को मैदान में दिखाया गया है लेकिन पाण्डव साथी दिखाये गये हैं। साथ देने वाले और साथ रहने वाले, बाप के साथ रहने वाले और सर्व को साथ देने वाले। ठीक है। (रमेश भाई से) तबियत ठीक है, सम्भाल करो। (गोलक भाई से) अथक है ना या थक जाते हो। खिटखिट होती है लेकिन खिटखिट को खुशी के रूप में परिवर्तन करो। माला है ना। नम्बरवन और लास्ट कुछ तो अन्तर होगा ना, सब एक जैसे तो नहीं होंगे। ठीक है। ठीक चल रहा है।
2006 वर्ष की विदाई और 2007 की बधाई
(रात्रि 12 बजे के बाद बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष की बधाई वा मुबारक दी)
सभी को नये वर्ष की पदम-पदमगुणा बधाईयां भी हों, दिल की दुआयें भी हैं और दिलाराम के दिल की यादप्यार भी है। सदा इस वर्ष में उड़ते रहना और उड़ाते रहना। सभी आत्माओं को अपने मन की कामनायें पूर्ण करने वाले दाता के बच्चे मास्टर दाता बन सुख, शान्ति, प्यार, दुआयें देते रहना और हर एक को बाप का परिचय देते हुए मुक्ति का वर्सा देते रहना। अच्छा - विदाई और बधाई के संगम का विशेष यादप्यार।
18-01-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘अब स्वयं को मुक्त कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो’’
आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की लहरें बाप के पास अमृतवेले से भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से ऑटोमेटिक गीत बज रहा है - ‘‘मेरे बाबा’’। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता -’’मेरे बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे’’। आज स्मृति दिवस के कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं।
यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहलीपहली स्मृति याद है ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म अभिमानी बनने से परमात्म बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा निकला? ‘‘मेरा मीठा बाबा’’ और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खज़ाना मेरा खज़ाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता। जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है? भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया। एक शब्द मेरा बाबा ने। भाग्य विधाता अखुट खज़ाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओं की पालना तो मिलती है लेकिन परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है।
तो आज के स्मृति सो समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी युद्ध करनी पड़ी याद के लिए? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। अच्छा -सहजयोगी रहे? आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई सदा के लिए हो जायेगी क्योंकि अभी 70 साल पूरे हो रहे हैं, तो बापदादा इस वर्ष को न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओं को मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना! क्योंकि आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का खेल।
बापदादा ने सबका फाइल देखा, तो फाइल में क्या देखा? मैजॉरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से फाइल भरा हुआ है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ है - जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या करेंगे? बोलो पाण्डव? फाइनल करेंगे? जो समझते हैं - झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो। यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ। देखो जैसे एक तरफ साइन्स दूसरे तरफ भ्रष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो क्रियेटर के बच्चे हो, वर्ल्ड क्रियेटर के बच्चे हो तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़ हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी हों। अलग-अलग नहीं हों।
एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो, प्रत्यक्षता हो जाए, अभी तक यह रिजल्ट अच्छी है। पहले से बहुत अच्छी रिजल्ट है, सब अच्छा अच्छा, बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा-कर्मणा में स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्राह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना यह है कर्मणा सेवा में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही पड़ता है, देखना ही पड़ता है... यह नहीं। इतने वर्षो में देख लिया, बापदादा ने छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक? बापदादा से सभी रूहरिहान में मैजॉरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक? बापदादा का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा। क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी खोल सकता है, इस सेकण्ड लेकिन पहले राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे। किसी भी कमज़ोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना।
बापदादा सारे दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। जैसे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है। तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की एक ही आशा है निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन - हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे वाले हो सकता है? हो सकता है? अच्छा। तो कल अगर टी.वी. खोलेंगे, टी.वी में देखेगे जरूर ना। तो कल टी.वी. देखेंगे तो चाहे फारेन चाहे इन्डिया, चाहे छोटे गांव चाहे बहुत बड़ी स्टेट, कहाँ भी कारण दिखाई नहीं देगा? पक्का? इसमें हाँ नहीं कर रहे हैं? होगा? हाथ उठाओ। हाथ बहुत अच्छा उठाते हो, बापदादा खुश हो जाता। कमाल है हाथ उठाने की। खुश करना तो आता है बच्चों को। क्योंकि बापदादा देखते हैं सोचो - जो आप कोटों में कोई, कोई में कोई निमित्त बने हो, अभी इन बच्चों के सिवाए और कौन करेगा? आपको ही तो करना है ना! तो बापदादा की आप बच्चों में उम्मीदें हैं। और आयेंगे ना, वह तो आपकी अवस्था देख करके ही ठीक हो जायेंगे, उन्हों को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप बन जाओ बस क्योंकि आप सभी ने जन्म लेते ही बाप से वायदा किया है - साथ रहेंगे, साथी बनेंगे और साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह वायदा किया है ना? जब साथ रहेंगे, साथ चलेंगे तो साथ में सेवा के साथी भी तो हो ना!
तो अभी क्या करेंगे? हाथ तो बहुत अच्छा उठाया, बापदादा खुश हो गये लेकिन जब भी कोई बात आवे ना तो यह दिन, यह तारीख, यह टाइम याद करना तो हमने क्या हाथ उठाया था। मदद मिल जायेगी। बनना तो पड़ेगा आपको। अभी सिर्फ जल्दी बन जाओ। आप सोचते हो ना, हम ही कल्प पहले भी थे, अभी भी हैं और हर कल्प हमें ही बनना है, यह तो पक्का है ना कि दो साल बनेंगे तीसरे साल जायेंगे, ऐसे तो नहीं होगा। तो सदा याद रखो हम ही निमित्त हैं, हम ही कोटों में कोई, कोई में कोई हैं। कोटो में कोई तो आयेंगे लेकिन आप कोई में कोई हो।
तो आज स्नेह का दिन है, तो स्नेह में कुछ भी करना मुश्किल नहीं होता। इसलिए बापदादा आज ही सभी को याद दिला रहे हैं। शिवबाबा को, ब्रह्मा बाबा से कितना बच्चों का प्यार है, यह देख करके बहुत खुशी होती है। चारों ओर देखा चाहे सप्ताह का स्टूडेन्ट है, चाहे 70 साल वाला है। 70 साल वाला और 7 दिन वाला भी आज के दिन प्यार में समाया हुआ है। तो शिव बाप भी ब्रह्मा बाप से बच्चों का प्यार देख करके हर्षित होते हैं।आज के दिन का और समाचार सुनायें। आज के दिन एडवान्स पार्टी भी बापदादा के पास इमर्ज होती है। तो एडवांस पार्टी भी आपको याद कर रही है कि कब बाप के साथ मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेंगे! आज सारी एडवांस पार्टी बापदादा को यही कह रही थी कि हमको तारीख बताओ। तो क्या जवाब दें? बताओ क्या जवाब दें? जवाब देने में कौन होशियार है? बापदादा तो यही उत्तर देते हैं कि जल्द से जल्द हो ही जायेगा। लेकिन इसमें आप बच्चों का बाप को सहयोग चाहिए। सभी साथ चलेंगे ना! साथ चलने वाले हैं या रूक-रूक कर चलने वाले हैं? साथ में चलने वाले हैं ना! पसन्द है ना साथ में चलना? तो समान तो बनना पड़ेगा ना। अगर साथ में चलना है तो समान तो बनना ही पड़ेगा ना! कहावत क्या है? हाथ में हाथ हो, साथ में साथ हो। तो हाथ में हाथ अर्थात् समान। तो बोलो दादियां बोलो, तैयारी हो जायेगी? दादियां बोलो। दादियां हाथ उठाओ। दादायें हाथ उठाओ। आपको कहा जाता है ना बड़े दादा। तो बताओ दादियां, दादायें क्या तारीख है कोई? (अभी नहीं तो कभी नहीं) अभी नहीं तो कभी नहीं का अर्थ क्या हुआ? अभी तैयार है ना! जवाब तो अच्छा दिया। दादियां? पूरा होना ही है। हर एक अपने को जिम्मेवार समझे। छोटे बड़े, इसमें छोटे नहीं होना है। 7 दिन का बच्चा भी जिम्मेवार है। क्यों साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना है ना! निभाना है ना? यह मधुबन वाले बैठते हैं ना!
मधुबन में जो भी चार्ज के हेडस हैं, चार्जेज तो बहुत हैं ना, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सब जगह हैं। तो जो चार्ज वाले हैं उनके नामों की लिस्ट बापदादा को देना, उनसे हिसाब लेंगे। और जो सभी टीचर्स इन्चार्ज हैं, सेन्टर इन्चार्ज हैं या जोन इन्चार्ज है, उन्हों का एक दिन संगठन करेंगे, हिसाब-किताब तो पूछेंगे ना! क्योंकि बापदादा के पास बहुत दु:ख और अशान्ति के आवाज आते हैं। परेशानी के आवाज आते हैं। आप लोगों के पास नहीं सुनने आते, आपके भी तो भक्त होंगे ना! तो भक्तों की पुकार आप इष्ट देवों को नहीं आती? टीचर्स को भक्तों की आवाज सुनाई देती है? अच्छा।
महाराष्ट्र जोन, बम्बई और आंध्रप्रदेश के सेवाधारी:- अच्छा सभी चांस अच्छा ले लेते हैं। नाम ही महाराष्ट्र है। अच्छी संख्या आई है। तो महाराष्ट्र अर्थात् महान आत्माओं का राष्ट्र है। तो बापदादा देखते हैं कि महाराष्ट्र में बापदादा के महान बच्चे बहुत अच्छे-अच्छे हैं क्योंकि बापदादा की नजर, महाराष्ट्र के बाम्बे और दिल्ली में ज्यादा है। बाम्बे नरदेसावर है और दिल्ली आवाज बुलन्द करने के निमित्त है और ड्रामानुसार महाराष्ट्र बाम्बे या आसपास और दिल्ली दोनों को साकार ब्रह्मा बाप और जगदम्बा की पालना मिली है। विशेष पालना मिली है। तो कोई भी कार्य होता है तो बापदादा महाराष्ट्र और दिल्ली को याद करते हैं। बाकी जो भी हैं वह तो साथी बन ही जाते हैं। दूसरे छोटे जोन नहीं हैं, दूसरे भी बड़े बड़े जोन हैं लेकिन साकार पालना के लिए विशेष बापदादा दिल्ली और बाम्बे को याद करते हैं। छोटे जोन भी कमाल कर सकते हैं, छोटे को हमेशा बापदादा कहता है बड़े तो बड़े हैं लेकिन छोटे समान बाप हैं। अभी महाराष्ट्र को कुछ महान कार्य करना पड़ेगा। अभी बहुत टाइम हो गया है कोई नये कार्य की इन्वेन्शन नहीं निकाली है। वर्गीकरण का कार्य भी अभी काफी टाइम चल चुका, कानफरेन्सेज भी चल चुकी, यूथ यात्रायें भी चल गई। अभी कोई नई सेवा की विधि निकालो। सोचो। जिससे आवाज सहज फैल जाये। अभी तक जो भी किया है, सेवा के प्लैन बापदादा को पसन्द हैं और वृद्धि भी हुई है। लेकिन बहुत समय यह प्रोग्रामस चल चुके। अभी कोई नई इन्वेन्शन तैयार करो। कोई भी करे, छोटे करे तो इनएडवांस मुबारक हैं। अच्छा है महाराष्ट्र में भी वृद्धि अच्छी हो रही है। अभी महाराष्ट्र का टर्न है तो महाराष्ट्र क्यों नहीं नम्बरवन में बाप के स्नेह का रिटर्न देवे। बापदादा ने सुना दिया है - बापदादा को स्नेह का रिटर्न है - स्वयं को और विश्व को टर्न करना। बस रिटर्न में रि निकाल दो तो टर्न हो जायेगा क्योंकि बापदादा को बच्चों में बहुत-बहुत, अच्छी-अच्छी उम्मीदें हैं, उम्मींदवार हो। तो क्या करेगा महाराष्ट्र? रिटर्न देगा? अच्छा है, अच्छे अच्छे महारथी हैं महाराष्ट्र में। संगठित रूप में मीटिंग करो, चारों ओर महाराष्ट्र में बापदादा ने देखा है उम्मींदवार सितारे हैं। जो चाहे वह कर सकते हैं। तो ऐसे संगठित रूप में प्रोग्राम करना और नया कोई प्लैन बनाना, कर सकते हैं। महाराष्ट्र कर सकता है। करेंगे ना! अरे नाम ही महाराष्ट्र है तो महान कार्य करना ही है ना! क्या समझते हैं पाण्डव? करेंगे? पाण्डव सेना करेंगे, शक्ति सेना करेंगे? टीचर्स भी बहुत हैं। बहुत अच्छा है।
डबल विदेशी:- बहुत अच्छा - बापदादा ने पहले भी कहा तो जब डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। डबल विदेशियों से सभी का प्यार बहुत है। जब भी आपके ग्रुप को देखते हैं ना तो सभी खुश हो जाते हैं क्योंकि आप भी कोटों में कोई, कोई में कोई निकले हो और आजकल विदेश सेवा की अच्छी न्यूज है। अच्छे-अच्छे मुस्लिम धर्म में भी सन्देश दे रहे हैं। डबल विदेशियों की विशेषता एक बहुत अच्छी गाई हुई है कि डबल विदेशी अगर किसी भी कार्य में लगेंगे तो हाँ तो हाँ, ना तो ना। जिस कार्य में लगेंगे उस कार्य में फिर विजयी बनेंगे। तो आप जो भी ग्रुप में है वह विजयी ग्रुप है ना। विजय का तिलक लगा हुआ है ना। बापदादा देख रहे हैं कि सेवा में वृद्धि भी हो रही है, सन्देश दे रहे हैं, रहमदिल आत्मा बनके आत्माओं को सन्देश देना यह बाप समान सेवाधारी बनना है। अभी सुनाया ना आज अभी एक समय पर एक सेवा नहीं करो, तीनों ही सेवायें इकट्ठी-इकट्ठी हों तो उसका प्रभाव जल्दी होगा। अपने चेहरे से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हैं। चलते-फिरते म्युजियम हो। जैसे म्युजियम में वा प्रदर्शनी में भिन्न-भिन्न चित्र होते हैं ना वैसे आपके नयन, आपका मस्तक, आपके मुस्कराते हुए होंठ, यह भिन्न-भिन्न जो साधन हैं, उससे सेवा कर सकते हैं। अच्छे हैं, बापदादा को हिम्मत वाले भी लगते हैं सिर्फ अभी थोड़ा सा रियलाइजेशन सूक्ष्म चाहिए। रियलाइज करते हो लेकिन थोड़ा सा सूक्ष्म रूप से रियलाइजे- शन करके नम्बरवन बन जाओ। विन करो और वन, सेकण्ड नम्बर नहीं, वन। ठीक है ना! वन है ना, टू तो नहीं ना! वन नम्बर हैं? कांध हिलाओ। अच्छा। अच्छा है, बापदादा को विदेशियों का ग्रुप मधुबन में आता रहे, यह अच्छा लगता है। सज जाता है मधुबन। अच्छा।
इण्डियन यूथ ग्रुप:- यूथ ग्रुप आया है ना - इन्डियन यूथ ग्रुप उठो। अच्छा इन्डिया का यूथ ग्रुप क्या कमाल करेगा? सन्देश देने में चारों ओर आवाज फैलाने में यूथ में डबल ताकत है। बापदादा ने सुना, टॉपिक बहुत अच्छी रखी है, विक्ट्री। ऐसा है ना। तो सदा विजयी बन, विजयी बनाने वाले। तो विजयी तब बनेंगे जो बापदादा ने इस वर्ष का काम दिया है, वह एक्जैम्पुल बनकर दिखाना। सब कहें यूथ ग्रुप विजयी अर्थात् निर्विघ्न। ऐसा संकल्प किया है? किया है? कोई कारण तो नहीं बतायेंगे ना! ऐसा वैसा तो नहीं कहेंगे ना! मुझे बदलना है। मुझे एडजेस्ट होना है। मुझे सहयोग देना है। मुझे स्नेह देना है। पहले मैं, इसमें पहले मैं भले करो। अच्छा है आपस में संगठन फॉरेन वालों ने भी किया, इन्डिया वाले भी कर रहे हैं, अच्छा है। मुबारक हो। आगे उड़ते रहना। अच्छा।
बापदादा के पास फूलों के श्रृंगार वाले ग्रुप की यादप्यार भी आई है, (कलकत्ता के भाई बहिनें) वह संगठन उठो कहाँ है। देखो सभी को फूलों का श्रृंगार अच्छा लगा ना। फूलों का श्रृंगार तो कामन बात है, लोग भी करते हैं लेकिन आपके श्रृंगार और लोगों के श्रृंगार में फर्क है कि आपने स्नेही स्वरूप बन श्रृंगार किया है, वह ड्युटी समझके करते हैं और आपने स्नेह से किया है तो जहाँ स्नेह होता है वह फूलों की सुगन्ध और श्रृंगार और सुन्दर हो जाती है। तो बापदादा को अच्छा लगा कि स्नेह देखो कलकत्ता से यहाँ ले आते हैं तो स्नेह के विमान में लाये ना, ट्रेन में नहीं लाये, स्नेह के विमान में लाये हैं, अच्छा है। जो आने वाले आपके भाई-बहिन हैं वह भी देख करके खुश हो जाते हैं, वाह! कमाल है, कमाल है। तो आप सभी ने जिस स्नेह से सजाया है, तो बापदादा उससे ज्यादा पदमगुणा आपको स्नेह दे रहा है, मुबारक हो। अच्छा। चारों ओर के पत्र, याद-पत्र ईमेल, फोन, चारों ओर के बहुत-बहुत आये हैं, यहाँ मधुबन में भी आये हैं तो वतन में भी पहुंचे हैं। आज के दिन जो बंधन वाली मातायें हैं, उन्हों की भी बहुत स्नेह भरी मन की यादें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। बापदादा ऐसे स्नेही बच्चों को बहुत याद भी करते और दुआयें भी देते हैं। आजकल बापदादा देख रहे हैं सब बहुत खुशी खुशी से दूर बैठे भी नजदीक में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन मधुबन में सम्मुख आना, अपनी झोली भरना, इतने बड़े परिवार से मिलना, यह परिवार कम नहीं है, किसी भी र ति से देख लिया लेकिन सम्मुख परिवार को देख कितनी खुशी होती है क्योंकि 5 हजार वर्ष के बाद मिले हैं। तो वह अनुभव अपना है लेकिन मधुबन निवासी बनना यह गोल्डन चांस बहुत सहयोग देता है। अनुभव भी करते हैं सभी। लेकिन बापदादा खुश है कि सभी को मुरली से प्यार है और मुरली से प्यार अर्थात् मुरलीधर से प्यार। कोई कहे मुरलीधर से तो प्यार है लेकिन मुरली कभी कभी सुन लेते हैं, बापदादा कहते हैं बापदादा उसका प्यार, प्यार नहीं समझते हैं। प्यार निभाना अलग है, प्यार करना अलग है। जिसको मुरली से प्यार है वह है प्यार निभाने वाले और मुरली से प्यार नहीं तो प्यार करने वालों की लिस्ट में है निभाने वाले नहीं। मधुबन में मुरली बाजे, मधुबन का गायन है। मधुबन की धरनी का ही महत्व है। अच्छा।
तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम जमा करने वाले नॉलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी, सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का लेकिन आज वतन में जो आपकी एडवांस पार्टी वाले बच्चे हैं, उन्होंने भी, एकएक ने यही कहा है कि हमारी तरफ से भी सभी को, चारों ओर के बच्चों को यादप्यार हमारी देना और हमारा सन्देश देना कि हम आपका इन्तजार कर रहे हैं। आप जल्दी से जल्दी इन्तजाम करो। विशेष आप सबकी प्यारी माँ, दीदी, भाऊ विश्वकिशोर और जो भी साथी गये हैं उन्होंने, सभी ने आप सबको याद प्यार दिया है और साथ-साथ मीठी माँ आपकी, उसने यही कहा है कि अभी विजयी बन दु:ख दर्द दूर कर जल्दी-जल्दी मुक्तिधाम का गेट खोलने के लिए बाप के साथी बन जाओ। ब्रह्मा बाप ने, जिन्होंने साकार में बाप को नहीं देखा है तो ब्रह्मा बाप भी विशेष आप सभी को बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं। तो यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- (दादी रतनमोहिनी, दादी मनोहर इन्द्रा से) आप भी देखो आलराउन्ड पार्ट बजा रही हो ना। जितना भी कर सकी सेवा में नम्बरवन। आप तो शुरू से नम्बरवन रही हैं। ब्रह्मा बाप के दिल में आपका नाम है। कुछ भी हो करते चलो, देख करके औरों को भी हिम्मत आती है। करावनहार साथ में है ही। दादी जी से:- बहुत अच्छी, आप मुस्कराती हो ना तो सभी खुश होते हैं। अभी एक बात करो, करेंगी? करेंगी पक्का? अभी खाना अच्छी तरह से खाओ। ऑख खोलके खाना खाओ। बन्द नहीं करो क्योंकि आपकी ऑखें बन्द होती है ना, तो सभी का संकल्प चलता है क्यों किया, क्यों किया। इसलिए अभी खाना बहुत प्यार से खाओ। अभी ऑखे बन्द नहीं करना। करेंगी ना। यह बहुत खुश हो जायेंगे। हाँ करेंगी। करना ही है, करना ही है। दादी शान्तामणी:- अरे वाह! आपको याद है ना, आपको बापदादा ने एक स्पेशल टाइटल दिया था, (सचली कौड़ी) बापदादा ने खास टाइटल दिया था - सचली कौड़ी। उस दिनों में कौड़ी का महत्व था। सभी को दादियों को देखकर खुशी होती है ना। क्या गीत गाते हो? वाह! दादियां वाह! और यह वाह! वाह! नहीं होते तो आप भी नहीं होते। अच्छा।
02-02-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्मा की निशानी- होलीएस्ट, हाइएस्ट और रिचेस्ट”
आज विश्व परिवर्तक बापदादा अपने साथी बच्चों से मिलने आये हैं। हर एक बच्चे के मस्तक में तीन परमात्म विशेष प्राप्तियां देख रहे हैं। एक है होलीएस्ट, 2- हाइएस्ट और 3- रिचेस्ट। इस ज्ञान का फाउण्डेशन ही है होली अर्थात् पवित्र बनना। तो हर एक बच्चा होलीएस्ट है, पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता। आप देखो, आप परमात्म ब्राह्मण आत्मायें आदि-मध्य-अन्त तीनों ही काल में होलीएस्ट रहती हो। पहले-पहले आत्मा जब परमधाम में रहते हो तो वहाँ भी होलीएस्ट हो फिर जब आदि में आते हो तो आदिकाल में भी देवता रूप में होलीएस्ट आत्मा रहे। होलीएस्ट अर्थात् पवित्र आत्मा की विशेषता है - प्रवृत्ति में रहते सम्पूर्ण पवित्र रहना। और भी पवित्र बनते हैं लेकिन आपकी पवित्रता की विशेषता है - स्वप्नमात्र भी अपवित्रता मन-बुद्धि में टच नहीं करे। सतयुग में आत्मा भी पवित्र बनती और शरीर भी आपका पवित्र बनता। आत्मा और शरीर दोनों की पवित्रता जो देव आत्मा रूप में रहती है, वह श्रेष्ठ पवित्रता है। जैसे होलीएस्ट बनते हो, इतना ही हाइएस्ट भी बनते हो। सबसे ऊंचे ते ऊंचे ब्राह्मण आत्मायें और ऊंचे ते ऊंचे बाप के बच्चे बने हो। आदि में परमधाम में भी हाइएस्ट अर्थात् बाप के साथ-साथ रहते हो। मध्य में भी पूज्य आत्मायें बनते हो। कितने सुन्दर मन्दिर बनते हैं और कितनी विधिपूर्वक पूजा होती है। जितनी विधिपूर्वक आप देवताओं के मन्दिर में पूजा होती है उतने औरों के मन्दिर बनते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा आपके देवता रूप की होती है। तो होलीएस्ट भी हो और हाइएस्ट भी हो, साथ में रिचेस्ट भी हो। दुनिया में कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें रिचेस्ट इन कल्प हैं। सारा कल्प रिचेस्ट हो। अपने खज़ाने स्मृति में आते हैं, कितने खज़ानों के मालिक हो! अविनाशी खज़ाने जो इस एक जन्म में प्राप्त करते हो वह अनेक जन्म चलते हैं। और कोई का भी खज़ाना अनेक जन्म नहीं चलते। लेकिन आपके खज़ाने आध्यात्मिक हैं। शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना और वर्तमान समय का खज़ाना, यह सर्व खज़ाने जन्म-जन्म चलते हैं। एक जन्म के प्राप्त हुए खज़ाने साथ चलते हैं क्योंकि सर्व खज़ानों के दाता परमात्मा बाप द्वारा प्राप्त होता है। तो यह नशा है कि हमारे खज़ाने अविनाशी हैं?
इस आध्यात्मिक खज़ानों को प्राप्त करने के लिए सहजयोगी बने हो। याद की शक्ति से खज़ाने जमा करते हो। इस समय भी इन सर्व खज़ानों से सम्पन्न बेफिक्र बादशाह हो, कोई फिक्र है? है फिक्र? क्योंकि यह खज़ाने जो हैं इसको न चोर लूट सकता, न राजा खा सकता, न पानी डुबो सकता, इसलिए बेफिक्र बादशाह हो। तो यह खज़ाने सदा स्मृति में रहते हैं ना! और याद भी सहज क्यों है? क्योंकि सबसे ज्यादा याद का आधार होता है एक सम्बन्ध और दूसरा प्राप्ति। जितना प्यारा सम्बन्ध होता है उतनी याद स्वत: आती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह होता है और जहाँ स्नेह होता है तो स्नेही की याद करना मुश्किल नहीं होता, लेकिन भूलना मुश्किल होता है। तो बाप ने सर्व सम्बन्ध का आधार बना दिया है। सभी अपने को सहजयोगी अनुभव करते हो? वा मुश्किल योगी हैं? सहज है? कि कभी सहज है, कभी मुश्किल है? जब बाप को सम्बन्ध और स्नेह से याद करते हो तो याद मुश्किल नहीं होती और प्राप्तियों को याद करो। सर्व प्राप्तियों के दाता ने सर्व प्राप्तियां करा दी। तो अपने को सर्व खज़ानों से सम्पन्न अनुभव करते हो? खज़ानों को जमा करने की सहज विधि भी बापदादा ने सुनाई - जो भी अविनाशी खज़ाने हैं उन सभी खज़ानों की प्राप्ति करने की विधि है- बिन्दी। जैसे विनाशी खज़ानों में भी बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना। तो अविनाशी खज़ानों की जमाकरने की विधि है बिन्दी लगाना। तीन बिन्दियां हैं - एक मैं आत्मा बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो भी बीत जाता वह फुलस्टाप अर्थात् बिन्दी। तो बिन्दी लगाने आती है? सबसे ज्यादा सहज मात्रा कौन सी है? बिन्दी लगाना ना! तो आत्मा बिन्दी हूँ, बाप भी बिन्दी है, इस स्मृति से स्वत: ही खज़ाने जमा हो जाते हैं। तो बिन्दी को सेकण्ड में याद करने से कितनी खुशी होती है! यह सर्व खज़ाने आपके ब्राह्मण जीवन का अधिकार हैं क्योंकि बच्चे बनना अर्थात् अधिकारी बनना। और विशेष तीन सम्बन्ध का अधिकार प्राप्त होता है - परमात्मा को बाप भी बनाया है, शिक्षक भी बनाया है और सतगुरू भी बनाया है। इन तीनों सम्बन्ध से पालना, पढ़ाई से सोर्स आफ इनकम और सतगुरू द्वारा वरदान मिलता है। कितना सहज वरदान मिलता है? क्योंकि बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है बाप के वरदान प्राप्त करने का।
बापदादा हर बच्चे का जमा का खाता चेक करते हैं। आप सभी भी अपने हर समय का जमा का खाता चेक करो। जमा हुआ वा नहीं हुआ, उसकी विधि है जो भी कर्म किया, उस कर्म में स्वयं भी सन्तुष्ट और जिसके साथ कर्म किया वह भी सन्तुष्ट। अगर दोनों में सन्तुष्टता है तो समझो कर्म का खाता जमा हुआ। अगर स्वयं में वा जिससे सम्बन्ध है, उसमें सन्तुष्टता नहीं आई तो जमा नहीं होता।
बापदादा सभी बच्चों को समय की सूचना भी देते रहते हैं। यह वर्तमान संगम का समय सारे कल्प में श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ समय है क्योंकि यह संगम ही श्रेष्ठ कर्मो के बीज बोने का समय है। प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का समय है। इस संगम समय में एक एक सेकण्ड श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है। सभी एक सेकण्ड में अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हो? बापदादा ने सहज विधि सुनाई है कि निरन्तर याद के लिए एक विधि बनाओ - सारे दिन में दो शब्द सभी बोलते हो और अनेक बार बोलते हो वह दो शब्द हैं ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरा’’। तो जब मैं शब्द बोलते हो तो बाप ने परिचय दे दिया है कि मैं आत्मा हूँ। तो जब भी मैं शब्द बोलते हो तो यह याद करो कि मैं आत्मा हूँ। अकेला मैं नहीं सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह साथ में सोचो क्योंकि आप तो जानते हो ना कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, परमात्म पालना के अन्दर रहने वाली आत्मा हूँ और जब मेरा शब्द बोलते हो तो मेरा कौन? मेरा बाबा अर्थात् बाप परमात्मा। तो जब भी मैं और मेरा शब्द कहते हो उस समय यह एडीशन करो, मैं आत्मा और मेरा बाबा। जितना मेरापन लायेंगे बाप में, उतना याद सहज होती जायेगी क्योंकि मेरा कभी भूलता नहीं है। सारे दिन में देखो मेरा ही याद आता है। तो इस विधि से सहज निरन्तर योगी बन सकते हो। बापदादा ने हर बच्चे को स्वमान की सीट पर बिठाया है। स्वमान की लिस्ट अगर स्मृति में लाओ तो कितनी लम्बी है! क्योंकि स्वमान में स्थित हैं तो देह अभिमान नहीं आ सकता। या देह अभिमान होगा या स्वमान होगा। स्व मान का अर्थ ही है - स्व अर्थात् आत्मा का श्रेष्ठ स्मृति का स्थान। तो सभी अपने स्वमान में स्थित हैं? जितना स्वमान में स्थित होंगे उतना दूसरे को सम्मान देना स्वत: ही हो जाता है। तो स्वमान में स्थित रहना कितना सहज है!
तो सभी खुशनुमा रहते हैं? क्योंकि खुशनुमा रहने वाला दूसरे को भी खुशनुमा बना देता है। बापदादा सदा कहते हैं कि सारे दिन में खुशी कभी नहीं गंवाओ। क्यों? खुशी ऐसी चीज़ है जो एक ही खुशी में हेल्थ भी है, वेल्थ भी है और हैपी भी है। खुशी नहीं तो जीवन नीरस रहती है। खुशी को ही कहा जाता है - ‘‘खुशी जैसा कोई खज़ाना नहीं।’’ कितने भी खज़ाने हो लेकिन खुशी नहीं तो खज़ाने से भी प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। खुशी के लिए कहा जाता है - खुशी जैसी कोई खुराक नहीं। तो वेल्थ भी है खुशी और खुशी हेल्थ भी है और नाम ही खुशी है तो हैपी तो है ही है। तो खुशी में तीनों ही चीजे हैं। और बाप ने अविनाशी खुशी का खज़ाना दिया है, बाप का खज़ाना गंवाना नहीं। तो सदा खुश रहते? बापदादा ने होमवर्क दिया तो खुश रहना है और खुशी बांटनी है क्योंकि खुशी ऐसी चीज़ है जो जितनी बांटेंगे उतनी बढ़ेगी। अनुभव करके देखा है! किया है ना अनुभव? अगर खुशी बांटते हैं तो बांटने से पहले अपने पास बढ़ती है। खुश करने वाले से पहले स्वयं खुश होते हैं। तो सभी ने होमवर्क किया है? किया है? जिसने किया है वह हाथ उठाओ। जिसने किया है - खुश रहना है, कारण नहीं निवारण करना है, समाधान स्वरूप बनना है। हाथ उठाओ। अभी यह तो नहीं कहेंगे ना - यह हो गया! बापदादा के पास कई बच्चों ने अपनी रिजल्ट भी लिखी है कि हम कितने परसेन्ट ओ.के. रहे हैं। और लक्ष्य रखेंगे तो लक्ष्य से लक्षण स्वत: ही आते हैं। अच्छा। अभी क्या करना है?
सेवा का टर्न कर्नाटक का है:- कर्नाटक वाले उठो। अच्छा है कर्नाटक वालों ने सेवा का गोल्डन चांस ले लिया है क्योंकि अब संगमयुग में प्रत्यक्ष फल मिलता है। जमा भी होता है लेकिन प्रत्यक्षफल मिलता है जो उसी समय खुशी प्राप्त होती है। तो जितना दिन भी सेवा की है, तो प्रत्यक्षफल अपने में खुशी अनुभव किया? खुशी मिली? हाथ उठाओ। माया आई? नहीं आई? जिसको माया नहीं आई वह हाथ उठाओ। पाण्डवों को माया आई? थोड़ी-थोड़ी आई है? अच्छा है, यहाँ का वायुमण्डल बहुत सहयोग देता है। जैसे साइन्स वाले साइन्स की शक्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन कर देते हैं ना। गर्मी में सर्दी, हवा का वायुमण्डल बना देते हैं ना! सर्दी में गर्मी का वायुमण्डल बना देते हैं, तो साइलेन्स की शक्ति आध्यात्मिक स्मृति का वायुमण्डल बना देता है क्योंकि यहाँ सेवा करते वृत्ति में क्या रहता है? यज्ञ सेवा है, यज्ञ का पुण्य बहुत बड़ा होता है। तो इस अविनाशी यज्ञ में सेवा करने से वृत्ति श्रेष्ठ बन जाती है। तो वायुमण्डल भी श्रेष्ठ बन जाता है। अभी कर्नाटक वाले क्या विशेषता दिखायेंगे? कोई नया कार्य करके दिखाओ। देखो कर्नाटक में संख्या बहुत है और एरिया भी बहुत है। सेवा की एरिया बहुत बड़ी है। कर्नाटक वाले बड़े ते बड़ी सेवा यही कर सकते हैं जो कर्नाटक के कोई भी छोटे बड़े कोई स्थान नहीं रहें जो आपको उल्हना देवें कि हमारा बाप आया और हमें आपने सूचना नहीं दी, सन्देश नहीं दिया। यह उल्हना नहीं रह जाये। जैसे अफ्रीका वालों ने अपनी एरिया को सन्देश देने का कार्य सफल किया है। बापदादा को यह कार्य अच्छा लगता है, कोई का भी उल्हना नहीं रह जाना चाहिए। आपका काम है सन्देश देना, वह अभी आवे या पीछे आवे लेकिन आपने अपना कार्य सम्पन्न किया तो कर्नाटक वाले दूसरे वर्ष में जब आयेंगे, क्या करके आयेंगे? कोई भी एरिया खाली नहीं रहनी चाहिए। क्योंकि आप तो जानते हो ना - कि बाप का परिचय मिलने से, बाप के सम्बन्ध में आने से आत्मायें कितनी सुखी बन जायेंगी। अभी तो दिन-प्रतिदिन दु:ख और अशान्ति बढ़ती जा रही है क्योंकि दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार, पापाचार बढ़ रहा है। अति में जा रहा है। लेकिन आप जानते हो कि अति के बाद क्या होता है? अन्त आती है। और अन्त किसको लाती है? आदि को। तो अपने भाई फिर भी बाप तो एक ही है ना, चाहे जाने चाहे मानें, नहीं भी मानें लेकिन बाप तो बाप ही है। तो अपने भाईयों को, अपनी बहनों को सन्देश जरूर दे दो। तो क्या करेंगे? रिकार्ड बनायेंगे, टीचर्स? कोई गांव भी नहीं रहना चाहिए। हाथ उठाओ, जो करेगा, ऐसेही नहीं हाथ उठाना। करेंगे? रिजल्ट जाके भेजना, प्लैन बनाना। कमाल तो करना है ना! जितनी कमाल करने में लग जायेंगे, उतनी छोटी छोटी धमाल खत्म हो जायेगी। तो बहुत अच्छा चांस मिला है, चांस लिया है और चांस का जो काम मिला है वह भी करके आयेंगे। पक्का है ना? पाण्डव, पक्का? थक नहीं जाना। कितना पुण्य जमा होगा! तो अच्छा है, बापदादा को भी खुशी होती है कि बच्चे अपने पुण्य का खाता भिन्नभिन्न विधि से आगे बढ़ा रहे हैं। बापदादा ने सुनाया ना - तीन खाते जमा करने हैं - एक अपने पुरूषार्थ से जमा हुआ खाता और दूसरा है - दूसरी आत्माओं को सन्तुष्ट करने में पुण्य का खाता। सन्तुष्टता पुण्य का खाता जमा करती है और तीसरा है मन्सा-वाचा-स्नेह सम्बन्ध द्वारा सेवा का खाता। तो तीनों खाते चेक करना। तीनों में कमी नहीं होनी चाहिए। तो नम्बरवन लेंगे? जमा के खाते में नम्बरवन लेना। कर्नाटक है, कम थोड़ेही है। बापदादा की नज़र में है कर्नाटक। बहुत कुछ कर सकते हैं, इस नज़र में है। हाँ आगे लाइन में खड़े हुए क्या करेंगे? कमाल करेंगे ना! करो कमाल, लो नम्बर। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति, दोनों का बैलेन्स रखना। ठीक है बैठ जाओ। (बैंगलोर की सेवा मम्मा ने शुरू की और दादी ह्दयपुष्पा और सुन्दरी बहन ने बहुत प्यार से सेवा की है) ह्दयपुष्पा बच्ची ने बहुत प्यार से सेवा की है। तो प्यार का सबूत देना है। जगदम्बा माँ की सेवा का रिटर्न करना है। तो कितने दिनों में समाचार देंगे। हर मास अपने समाचार देते रहना, कि यह कर रहे हैं और यह हुआ है, यह होना है। बापदादा तो हर जोन को कहते हैं लेकिन जिसका विशेष टर्न होता है उसको विशेष अटेन्शन रखना है।
तो सभी सदा मन को बिजी रखो क्योंकि मन ही धोखा देता, मन में ही टेन्शन आता, मन ही यहाँ वहाँ भागता है। तो मन को बिजी रखना अर्थात् सम्पन्न स्थिति में जल्दी से जल्दी स्थित रहना। बापदादा कहते हैं जब स्थूल कर्मेन्द्रियों को मेरा कहते हो, मेरा हाथ कहते हो, तो हाथ को कन्ट्रोल कर सकते हो ना! जहाँ चाहे जैसे चाहे वैसे करते हो ना! तो मन मेरा है, या आप मन के हो? मन के मालिक भी तो आप हो ना! मैं मन तो नहीं है ना? मन राजा तो नहीं है, आत्मा राजा है। तो कन्ट्रोलिंग पावर रूलिंग पावर धारण करेंगे तो मन आपके अच्छे ते अच्छा नम्बरवन सहयोगी साथी बन जायेगा। करके देखो। सिर्फ मालिक बनो, राजा बनो। इस दुनिया में तीन शक्तियां तो चल रही हैं - देखो यह राजनीति की आई है ना?
(राजस्थान की राज्यपाल महामहिम प्रतिभा पाटिल जी बापदादा से मिलने आई हैं) तो तीन सत्तायें तो चल रही हैं, राज्य सत्ता भी चल रही है। धर्मसत्ता भी चल रही है और साइन्स की सत्ता भी चल रही है, लेकिन रिजल्ट? आपमें कितनी सत्तायें हैं? आपमें चार सत्तायें हैं क्योंकि विश्व में आध्यात्मिक शक्ति की कमी है। आपमें राज्य सत्ता है? अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बने हो ना! स्वराज्य अधिकारी हो ना! और धर्मसत्ता भी है, धर्म का अर्थ है दिव्य गुणों की धारणा, श्रेष्ठ चरित्र की धारणा, श्रेष्ठ कर्म की धारणा। जहाँ चरित्र है वहाँ सब कुछ है। चरित्र नहीं तो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है। और साइन्स की सत्ता, उसके साधन हैं आपके साइलेन्स की साधना है। तो चारों ही सत्ता जब इकट्ठी होती है तब विश्व परिवर्तन होता है। इसलिए बापदादा कहते हैं, बच्ची को भी कहते हैं, बहुत अच्छा किया पहुंच गई है। राज्य सत्ता में है ना तो अभी कम से कम राजस्थान को तो आध्यात्मिक सत्ता से भरपूर करो। राजस्थान पान का बीड़ा उठावे, विश्व परिवर्तन तो आपेही हो जायेगा। पहले राजस्थान को परिवर्तन करो। (बाबा राजस्थान तो आध्यात्मिकता का गढ़ है, यहाँ से विश्व में परिवर्तन का कार्य चल रहा है) विश्व को मिल तो रही है लेकिन राजस्थान के राज्य अधिकारी भी सहयोगी बन जायें। देखो आप शक्ति रूप हो, बापदादा ने शक्तियों को आगे रखा है। तो आप भी शिव शक्ति हो। शक्ति जो चाहे वह कर सकती है। अच्छा है, बापदादा ने देखा है उमंग इनको बहुत है, राजस्थान को बहुत अच्छे ते अच्छा बनायें, लेकिन आपके सभी सहयोगी भी हैं, सब मिल करके करेंगे तो क्या नहीं हो सकता। राजस्थान दीपक जगायेगा, चरित्र का और वह दीपक चारों ओर दौड़ेगा। अच्छा किया। बापदादा को बच्चों का इस कार्य में सहयोगी बनने का उमंग-उत्साह देख खुशी होती है। आपके साथ और भी तो आये हैं ना। जो साथ में आये हैं वह हाथ उठाओ। बापदादा को बहुत अच्छा लगता है, अभी आप सभी आपस में मीटिंग करना, प्लैन बनाना कि क्या-क्या कर सकते हैं। और सब यहाँ के आपके सहयोगी बनेंगे। उमंग है ना! अच्छा है। राजस्थान को निमित्त बनना चाहिए। अच्छा है।
डबल विदेशी:- विदेशियों को अपना ओरीज्नल विदेश तो नहीं भूलता होगा। ओरीज्नल आप किस देश के हो, वह तो याद रहता है ना। इसलिए सभी आपको कहते हैं डबल विदेशी। सिर्फ विदेशी नहीं हो, डबल विदेशी। तो आपको अपना स्वीट होम कभी भूलता नहीं होगा। तो कहाँ रहते हो? बापदादा के दिलतख्त नशीन हो ना। बापदादा कहते हैं जब कोई भी छोटी मोटी समस्या आये, समस्या नहीं है लेकिन पेपर है आगे बढ़ाने के लिए। तो बापदादा का दिलतख्त तो आपका अधिकार है। दिलतख्तनशीन बन जाओ तो समस्या खिलौना बन जायेगी। समस्या से घबरायेंगे नहीं, खेलेंगे। खिलौना है। सब उड़ती कला वाले हो ना? उड़ती कला है? या चलने वाले हो? उड़ने वाले हो या चलने वाले हैं? जो उड़ने वाले हैं वह हाथ उठाओ। उड़ने वाले। आधा आधा हाथ उठा रहे हैं। उड़ने वाले हैं? अच्छा। कभी कभी उड़ना छोड़ते हैं क्या? चल रहे हैं नहीं, कई बापदादा को कहते हैं बाबा हम बहुत अच्छे चल रहे हैं। तो बापदादा कहते हैं चल रहे हो या उड़ रहे हो? अभी चलने का समय नहीं है, उड़ने का समय है। उमंग-उत्साह के, हिम्मत के पंख हर एक को लगे हुए हैं। तो पंखों से उड़ना होता है। तो रोज चेक करो, उड़ती कला में उड़ रहे हैं? अच्छा है, रिजल्ट में बापदादा ने देखा है कि सेन्टर्स विदेश में भी बढ़ रहे हैं। और बढ़ते जाने ही हैं। जैसे डबल विदेशी हैं वैसे डबल सेवा मंसा भी, वाचा भी साथ-साथ करते चलो। मन्सा शक्ति द्वारा आत्माओं की आत्मिक वृत्ति बनाओ। वायुमण्डल बनाओ। अभी दु:ख बढ़ता हुआ देख रहम नहीं आता है? आपके जड़ चित्र के आगे चिल्लाते रहते हैं, मर्सी दो, मर्सी दो, अब दयालु कृपालु रहमदिल बनो। अपने ऊपर भी रहम और आत्माओं के ऊपर भी रहम। अच्छा है - हर सीजन में, हर टर्न में आ जाते हैं। यह सभी को खुशी होती है। तो उड़ते चलो और उड़ाते चलो। अच्छा है, रिजल्ट में देखा है कि अभी अपने को परिवर्तन करने में भी फास्ट जा रहे हैं। तो स्व के परिवर्तन की गति विश्व परिवर्तन की गति बढ़ाता है। अच्छा।
जो पहली बार आये हैं वह उठो:- तो आप सभी को ब्राह्मण जन्म की मुबारक हो। अच्छा मिठाई तो मिलेगी लेकिन बापदादा दिलखुश मिठाई खिला रहे हैं। पहले बारी मधुबन आने की यह दिलखुश मिठाई सदा याद रखना। वह मिठाई तो मुख में डाला और खत्म हो जायेगी लेकिन यह दिलखुश मिठाई सदा साथ रहेगी। भले आये, बापदादा और सारा परिवार देश विदेश में आप अपने भाई बहनों को देख खुश हो रहे हैं। सभी देख रहे हैं, अमेरिका भी देख रही है, रशिया वाले भी देख रहे हैं, लण्डन वाले भी देख रहे हैं, 5 खण्ड ही देख रहे हैं। तो जन्म दिन की आप सबको वहाँ बैठे बैठे मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
बापदादा की रूहानी ड्रिल याद है ना! अभी बापदादा हर बच्चे से चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, चाहे छोटे हैं चाहे बड़े हैं, छोटे और ही समान बाप जल्दी बन सकते हैं। तो अभी सेकण्ड में जहाँ मन को लगाने चाहो वहाँ मन एकाग्र हो जाए। यह एकाग्रता की ड्रिल सदा ही करते चलो। अभी एक सेकण्ड में मन के मालिक बन मैं और मेरा बाबा संसार है, दूसरा न कोई, इस एकाग्र स्मृति में स्थित हो जाओ। अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को सदा उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ती ला के अनुभवी मूर्त बच्चों को, सदा अपने स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बच्चों को, सदा रहमदिल बन विश्व की आत्माओं को मन्सा शक्ति द्वारा कुछ न कुछ अंचली सुख-शान्ति की देने वाले दयालु, कृपालु बच्चों को, सदा बाप के स्नेह में समाये हुए दिलतख्तनशीन बच्चों को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- अच्छा है - सभी आदि रत्न हैं। आदि रत्नों में विशेषता है, सभी रत्नों को देख खुश हो जाते हैं। दादी को भी सभी याद कर रहे हैं। (दादी जी को विशेष ट्रीटमेंट और चेकिंग निमित्त बम्बई हॉस्पिटल में 31 जनवरी को लेकर गये हैं। मोहिनी बहन, मुन्नी बहन, निर्वैर भाई, योगिनी बहन आदि सबने याद भेजी है) बड़ों के आगे कुछ तो अनुभव आयेंगे ना। न्यारे और बाप के प्यारे, न्यारे रहते छोटी-छोटी बातों में पार होने का एक एक्जैम्पुल बनते हैं। बिल्कुल 100 परसेन्ट सम्पन्न बनना है क्योंकि पहले नम्बर वाले जरा भी अंश का अंश भी रह नहीं जाए, सब यहाँ खत्म होना है क्योंकि इन्हों के आधार से नई दुनिया का राज्य स्थापन होना है और राज्य घराना बनना है। तो अंश मात्र को भी भस्म कर रहे हैं। इसीलिए कुछ भी होता है लेकिन फिर भी न्यारापन रहता है। सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरूषोत्तम यह प्रैक्टिकल सम्पन्न बनने के लिए थोड़ा बहुत यह खेल तो करना ही पड़ता है। (दादी जानकी जी ने कहा बाबा के लिए खेल है) आपके लिए भी खेल है, यह भी पार्ट है। जैसे और पार्ट बजाते हैं, यह भी पार्ट नूंधा हुआ है। यह जरा सा भी भस्म हो रहा है। बिल्कुल प्युअर, अंश मात्र भी नहीं रहे। तो सभी को प्यार तो है, और प्यार की दुआयें दादी को भी मिल रही हैं। अच्छा है, आप सब मिल करके, निमित्त बनके चला रहे हैं, यह भी बहुत अच्छा है। (परदादी ने भी याद दी है) यह भी एक खेल में खेल है कि सभी इकट्ठे प्युअर बन रहे हैं। इसने (शान्तामणि दादी) तो हिम्मत दिखाई और करके दिखाया। डाक्टरों को भी अपनी हिम्मत तो दिखा दी ना। हर एक की अपनी अपनी विशेषता है। तो अच्छा है मिलके, साथी बनके, यज्ञ का कार्य तो रूकना है ही नहीं, अमर है, चलना है और बढ़ना है। सभी साक्षी होके खेल देख रहे हो या क्वेश्चन मार्क उठता है? क्यों, क्या तो नहीं उठता ना! जो होता है, उसमें कई रा ज समाये हुए होते हैं। वह बाप जाने और ड्रामा जाने। अच्छा। सब ठीक है ना! अच्छा है।
अव्यक्त बापदादा से राजस्थान की राज्यपाल महामहिम बहन प्रतिभा पाटिल जी की मुलाकात
आपने हिम्मत अच्छी की है और बापदादा को एक बात की खुशी है कि राजस्थान में दोनों ही विशेष मातायें हैं। त्रिमूर्ति है। (चीफ मिनिस्टर, राज्यपाल और स्पीकर तीनों ही बहनें हैं) तो बापदादा ने यहाँ भी माताओं द्वारा स्थापना की। तो अभी सहयोगी बन सेवा को बढ़ाओ। राजस्थान को नम्बरवन होना चाहिए। (हो जायेगा, आपका आशीर्वाद है) क्यों नहीं होगा, जहाँ दृढ़ संकल्प है वहाँ सफलता है ही है। सफलता की चाबी दृढ़ संकल्प है। यह चाबी सदा साथ रखना। अभी आप साथी बन गई। आशीर्वाद तो शुभ कार्य और हिम्मत वाले को स्वत: मिलती है। कहे न कहे जिसमें हिम्मत है, उमंग है उसको मिलती है। बाप का वायदा है एक कदम आपकी हिम्मत का, हजार कदम बाप की मदद का। यह सब साथी भी सहयोग देना। बहुत अच्छा। आप सभी सहयोग देना। क्या नहीं कर सकते हैं, जब मनुष्यात्मा विश्व को अकल्याण कर सकते हैं तो कल्याण क्यों नहीं कर सकते। अकल्याण का पार्ट बजा रहे हैं ना! (यह क्यों हो रहा है?) यह सब अति में जाना है। देखो 10 साल पहले भ्रष्टाचार, पापाचार गुप्त था, आजकल खुले बजार में हो गया है, अति में जाना है। कलियुग है ना। कलियुग अति में जा रहा है। (इसे खत्म करने का उपाय क्या है?) इसका उपाय है आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना। यह सन्देश देके उन्हों में श्रेष्ठ कर्म की भावना पैदा करना। अच्छा।
(जयकुमार रावल, एम.एल.ए. दोढांइचा महाराष्ट्र) कुछ भी हैं लेकिन बाप के कार्य में सहयोगी बनना है। (राज्यपाल से) यह तो घर की बन गई है। देखो दादियों के साथ आ गई है। अच्छा।
पटना से कमिशनर आये हैं: कुछ भी हो, अभी ईश्वरीय कार्य में साथी बनना है। बस यह दृढ़ संकल्प करके जाओ, करना ही है। साथ देना ही है। हिलो नहीं, दृढ़ता रखो।
भ्राता प्रभाकर रेडी जी (जिलाध्यक्ष) आंध्र प्रदेश:- कुछ भी हो, अभी क्या करना है? अभी ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनके चलना। अच्छा।
दादियों की सेवा में रहने वाली बहनों से:- आप सेन्टर पर नहीं रहती हो, मधुबन में नहीं रहती हो, सब ब्राह्मण परिवार के बीच में रहती हो। सबकी नज़र आपके ऊपर है, बड़ी जिम्मेवारी है, थकना नहीं, साधारण नहीं हो। फरिश्तों जैसे चलो, दादियों को सम्भाल रही हो, कोई कम्पलेन नहीं है, बापदादा खुश है।
बापदादा ने बाम्बे हॉस्पिटल में दादी जी की सेवा में गये हुए सभी भाई बहिनों को विशेष याद दी:- बापदादा बॉम्बे में सबकी प्यारी, सबके दिल की दुलारी दादी की जो सेवा के निमित्त हैं उन सबको याद-प्यार दे रहे हैं। दादी का जो भी ड्रामा में देखते हो, देखते हए साक्षी होके, दुआओं की, दिल के स्नेह की और स्नेह की सकाश देने की सेवा करते रहते हैं, करते रहो। खेल में खेल देखते रहो। साक्षी होके देखो और उड़ते रहो। बापदादा दिल से सबको दुआयें दे रहे हैं और सब प्यार से सेवा कर रहे हैं। सेवा की भी मुबारक है। (दादी जानकी जी ने कहा डाक्टर्स भी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं) जो भी होता है उसमें सेवा औरकल्याण तो भरा हुआ ही है। अच्छा। सभी बहुत-बहुत-बहुत खुश हैं, खुश है! बहुत खुश है? कितना बहुत? तो सदा ऐसे रहना। कुछ भी हो जाये होने दो, अभी खुश रहना है। हमें उड़ना है, कोई नीचे नहीं ला सकता। पक्का! पक्का वायदा है? कितना पक्का? बस, खुश रहो सबको खुशी दो। कोई भी बात अच्छी नहीं लगे तो भी खुशी नहीं गँवाओ। बात को चला लो, खुशी नहीं चली जाये। बात तो खत्म हो ही जानी है लेकिन खुशी तो साथ में चलनी है ना! तो जो साथ में चलने वाली है उसको छोड़ देते हो और जो छूटने वाली है उस छोड़ने वाली को पास में रख देते हो। यह नहीं करना। अमृतवेले रोज पहले अपने आपको खुशी की खुराक खिलाओ। अच्छा।
15-02-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“अलबेलेपन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद से जागना ही शिवरात्रि का सच्चा जागरण है”
आज बापदादा विशेष अपने चारों ओर के अति लाडले, अति सिकीलधे, परमात्म प्यार के पात्र बच्चों से मिलने और विचित्र बाप बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप सभी भी आज विशेष विचित्र बर्थ डे मनाने आये हो ना! यह बर्थ डे सारे कल्प में किसी का नहीं होता। कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप और बच्चे का एक ही दिन में बर्थ डे हो। तो आप सभी बाप का बर्थ डे मनाने आये हो वा बच्चों का भी मनाने आये हो? क्योंकि सारे कल्प में परमात्म बाप और परमात्म बच्चों का इतना अथाह प्यार है जो जन्म भी साथ-साथ है। बाप को अकेला विश्व परिवर्तन का कार्य नहीं करना है, बच्चों के साथ-साथ करना है। यह अलौकिक साथ रहने का प्यार, साथी बनने का प्यार इस संगम पर ही अनुभव करते हो। बाप और बच्चों का इतना गहरा प्यार है, जन्म भी साथ है और रहते भी कहाँ हो? अकेले या साथ में? हर एक बच्चा उमंग-उत्साह से कहते हैं कि हम बाप के कम्बाइन्ड हैं। कम्बाइन्ड रहते हो ना! अकेले तो नहीं रहते हो ना! साथ जन्म है, साथ रहते हैं और आगे भी क्या वायदा है? साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे अपने स्वीट होम में। इतना प्यार कोई और बाप बच्चों का देखा है? कोई भी बच्चा हो, कहाँ भी है, कैसा भी है, लेकिन साथ है और साथ ही चलने वाले हैं। तो ऐसा यह विचित्र और प्यारे ते प्यारा जन्म दिन मनाने आये हैं। चाहे सम्मुख मना रहे हो, चाहे देश विदेश में चारों ओर एक ही समय साथ-साथ मना रहे हैं।
बापदादा चारों ओर देख रहे हैं कि कैसे सभी बच्चे उमंग-उत्साह से दिल ही दिल में वाह बाबा! वाह बाबा! वाह बर्थ डे! का गीत गा रहे हैं। अगर स्विच खोलते हैं तो चारों ओर के आवाज, दिल के आवाज, उमंग-उत्साह के आवाज बापदादा के कानों में सुनाई दे रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों का उत्साह देख बच्चों को भी अपने दिव्य जन्म की पदम-पदम-पदमगुणा बधाईयां दे रहे हैं। वास्तव में उत्सव का अर्थ ही है उमंग-उत्साह में रहना। तो आप सभी उत्साह से यह उत्सव मना रहे हैं।नाम भी भक्तों ने शिवरात्रि रखा है। आज बापदादा उस भगत आत्मा, जिसने आपके इस विचित्र जन्म दिन मनाने को, आप ज्ञान और प्रेम रूप में मनाते और उस भगत आत्मा ने भावना, श्रद्धा के रूप में आपके मनाने की कापी अच्छी की है, तो आज उस बच्चे को मुबारक दे रहे थे कि कापी करने में अच्छा पार्ट बजाया है। देखो हर बात को कापी की है। कापी करने का भी तो अक्ल चाहिए ना! मुख्य बात तो इस दिन भक्त लोग भी व्रत रखते हैं, वह व्रत खाने पीने का रखते हैं, भावना में वृत्ति को श्रेष्ठ बनाने के लिए व्रत रखते हैं, उन्हों को हर वर्ष रखना पड़ता और आपने क्या व्रत लिया? एक ही बार व्रत लेते हो, वर्ष-वर्ष व्रत नहीं लेते। एक ही बार व्रत लिया पवित्रता का। सभी ने पवित्रता का व्रत लिया है, पक्का लिया है? जिन्होंने पक्का लिया है वह हाथ उठाओ, पक्का, थोड़ा भी कच्चा नहीं। पक्का? अच्छा। दूसरा भी प्रश्न है, अच्छा व्रत तो लिया मुबारक हो। लेकिन अपवित्रता के मुख्य पांच साथी हैं, ठीक है ना! कांध हिलाओ। अच्छा पांचों का व्रत लिया है? या दो तीन का लिया है? क्योंकि जहाँ पवित्रता है वहाँ अगर अंश मात्र भी अपवित्रता है तो क्या सम्पूर्ण पवित्र आत्मा कहा जायेगा? और आप ब्राह्मण आत्माओं की तो पवित्रता ब्राह्मण जन्म की प्रापर्टी है, पर्सनैलिटी है, रॉयल्टी है। तो चेक करो - कि सम्पूर्ण पवित्रता में ऐसे तो नहीं, मुख्य पवित्रता के ऊपर अटेन्शन है लेकिन और जो साथी हैं, उसको हल्का तो नहीं छोड़ा है? छोटों से प्यार रखा है और बड़े को ठीक किया है। तो क्या बाप की छुट्टी है कि जो और चार हैं। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य को नहीं कहा जाता, ब्रह्माचारी। ब्रह्माचारी बनना अर्थात् पवित्रता का व्रत पालन किया। कई बच्चे रूहरिहान में कहते हैं, रूहरिहान तो सभी करते हैं ना। तो बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। कहते हैं बाबा मुख्य तो अच्छा है ना, बाकी छोटे-छोटे ऐसे कभी मन्सा संकल्प में आ जाते हैं। मन्सा में आते हैं, वाचा में नहीं आते और मन्सा को तो कोई देखता नहीं है। और कोई फिर कहते हैं कि छोटे छोटे बाल बच्चों से प्यार होता है ना। तो इन चारों से भी प्यार हो जाता है। क्रोध आ जाता है, मोह आ जाता है, चाहते नहीं हैं आ जाता है। बापदादा कहते हैं कोई भी आता है तो आपने दरवाजा खोला है तब आता है ना! तो दरवाजा खोला क्यों है? दरवाजा खोला है कमज़ोरी का, कमज़ोरी का दरवाजा खोलना अर्थात् आह्वान करना। तो आज के दिन बर्थ डे तो बाप का और अपना मना रहे हो लेकिन जो जन्मते व्रत का वायदा किया है। पहला-पहला वरदान बाप ने क्या दिया, याद है? बर्थ डे का वरदान याद है? क्या दिया? पवित्र भव, योगी भव। सभी को याद है ना वरदान? याद है भूल तो नहीं गये? पवित्र भव का वरदान एक का नहीं दिया, पांचों का दिया। तो आज बापदादा क्या चाहते हैं? बर्थ डे मनाने आये हो, बाप का भी मनाने आये हो ना। शिवरात्रि मनाने आये हो, तो बर्थ डे की सौगात लाये हो या खाली हाथ आये हैं?
70 वर्ष स्थापना के समाप्त हो रहे हैं। याद है ना! 70 वर्ष सोचो, चाहे आप पीछे आये हो लेकिन स्थापना के तो 70 वर्ष हो गये ना! चाहे अभी आये हो, लेकिन स्थापना के कर्तव्य में आप सभी साथी हो ना! साथी तो हो ना! चाहे आज पहले बारी आये हैं। पहले बारी जो आये हैं वह हाथ उठाओ। जो मधुबन में पहली बार मिलने आये हैं वह हाथ उठाओ। लम्बा हाथ उठाओ। अच्छा
आप सभी भी चाहे अभी एक साल हुआ है, दो साल हुआ है लेकिन अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमारी, ब्रह्माकुमार या पुरूषार्थी कुमार? क्या कहलाते हो? कोई अपने को पुरूषार्थी कुमार कहते है क्या! ब्रह्माकुमार का साइन लगाते हो ना! सभी बी.के. लिखते हो या पी.के. लिखते हो? पुरूषार्थी कुमार। तो वायदा क्या है? साथी रहेंगे, साथ चलेंगे, कम्बाइण्ड रहेंगे, तो कम्बाइण्ड में समानता तो चाहिए ना! आज के 70 वर्ष का उत्सव तो मनाते आते हो, बापदादा ने देखा है, जो भी जोन टर्न देता है वह 70 वर्ष का मनाते हैं। सम्मान समारोह मनाते हैं। मनाते हैं ना सभी। बस सिर्फ छोटी छोटी गिफ्ट दे देते हैं बस। लेकिन आज एक तो बर्थ डे है, मनाने आये हो ना, पक्का है ना? और दूसरा 70 वर्ष समाप्त हुए, तो सम्मान भी मना रहे हो, बर्थ डे भी मना रहे हो, उसमें सौगात क्या देंगे? ट्रे दे देंगे, चादर दे देंगे? क्या सौगात लाये हो? चलो चांदी का गिलास दे देंगे! लेकिन आज के दिन बापदादा की शुभ आशा है अपने आशाओं के दीपक बच्चों प्रति। तो बतायें, पहली लाइन बताओ बतायें? बताना वा सुनना माना क्या? एक कान से सुनना और दिल में समा देना, ऐसे? निकालेंगे तो नहीं, इतना तो नहीं है लेकिन दिल में ही समा देते हैं। तो आज के दिन, बतायें पहली लाइन बताओ, कांध हिलाओ, टीचर्स कांध हिलाओ। अच्छा झण्डा हिला रहे हैं। डबल फारेनर्स बतायें? अपने को बांधना पड़ेगा, तभी कहो हाँ, ऐसे ही नहीं। क्योंकि 70 वर्ष देखो, 70 वर्ष तो बापदादा ने भी अलबेलेपन, आलस्य और बहाने बाजी, 70 वर्ष खेल देख लिया। चलो 70 नहीं तो 50, 40, 30, 20 लेकिन इतना समय तो यह तीन खेल तो खूब देखे बच्चों के।
तो आज के दिन भक्त जागरण करते हैं, सोते नहीं हैं, तो आप बच्चों का जागरण कौन सा है? कौन सी नींद में घड़ी-घड़ी सो जाते हो, अलबेलापन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद में आराम से सो जाते हैं। तो आज बापदादा इन तीन बातों का हर समय जागरण देखने चाहता है। कभी भी देखो क्रोध आता है, अभिमान आता है, लोभ आता है, कारण क्या बताते हैं? एक बापदादा को ट्रेडमार्क दिखाई देती है, कोई भी बात होती है ना! तो क्या कहते हैं, यह तो चलता है, पता नहीं किसने चलाया है? लेकिन शब्द यही कहते हैं यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है। यह कोई नई बात थोड़े ही है, यह होता ही है। यह क्या है? अलबेलापन नहीं है? यह भी तो करता है, मैजॉरिटी क्रोध से बचने के लिए यह किया तब हुआ। मैंने किया रांग वह नहीं कहेंगे। यह किया ना, यह हुआ ना, इसलिए हुआ। दूसरे पर दोष रखना बहुत सहज है। यह ना करे तो नहीं होगा। और बाप ने कहा वह नहीं होगा। वह करे तो होगा, बाप की श्रीमत पर क्या क्रोध को नहीं खत्म कर सकते? आजकल क्रोध का बच्चा रोब, रोब भी भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। तो क्या आज चार का भी व्रत लेंगे? जैसे पहली बात का विशेष दृढ़ संकल्प मैजारिटी ने किया है। क्या ऐसे ही चार का संकल्प, यह बहाना नहीं देना, इसने यह किया तब मेरा हुआ, और बाप जो बार-बार कहता है, वह याद नहीं, उसने जो किया वह याद आ गया, तो यह बहानेबाजी हुई ना! तो आज बापदादा बर्थ डे की गिफ्ट चाहते हैं यह तीन बातें, जो चार को हल्का कर देती हैं। संस्कार का सामना तो करना ही है, संस्कार का सामना नहीं, यह पेपर है। एक जन्म की पढ़ाई और सारे कल्प की प्राप्ति, आधाकल्प राज्य भाग्य, आधाकल्प पूज्य, सारे कल्प की एक जन्म में प्राप्ति, वह भी छोटा जन्म, फुल जन्म नहीं है, छोटा जन्म है। तो क्या हिम्मत है? जो समझते हैं, हिम्मत रखेंगे जरूर, यह नहीं पुरूषार्थ करेंगे, अटेन्शन रखेंगे.. गे गे नहीं चाहिए। छोटे बच्चे नहीं हो, 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। वह तो तीन चार मास के बच्चे गे गे करते हैं। तो आप बाप के साथी हो ना! विश्व कल्याणकारी हो, उसको तो 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं। बापदादा हाथ नहीं उठवाते क्योंकि बापदादा ने देखा है हाथ उठाके भी कभी कभी अलबेले हो जाते हैं। लेकिन जो समझते हैं कुछ भी हो जाए, पहाड़ जैसा पेपर भी आ जाए लेकिन पहाड़ को रूई बना देंगे, ऐसा दृढ़ संकल्प करने की, क्योंकि संकल्प बहुत अच्छे करते हो, बापदादा भी खुश हो जाते हैं, जिस समय संकल्प करते हो। लेकिन है क्या, 70 वर्ष तो हल्का छोड़ा लेकिन बापदादा देख रहे हैं कि समय का कोई भरोसा नहीं और इस ज्ञान के आधार पर हर पुरूषार्थ की बात में बहुतकाल का हिसाब है। अच्छा अभी अभी कर लेंगे, बहुतकाल का हिसाब है। क्योंकि प्राप्ति हर एक क्या चाहता है? अभी हाथ उठवाते हैं, राम सीता बनेगा कोई? जो रामसीता बनने चाहते हैं वह हाथ उठाओ, राजाई मिलेगी। कोई हाथ उठा रहे हैं। राम सीता बनेंगे, लक्ष्मी नारायण नहीं बनेंगे? उठा रहे हैं? देखो, आप देखो उठा रहे हैं। फारेनर्स उठा रहे हैं? डबल फारेनर्स में कोई उठाता है? जब बहुतकाल का भाग्य प्राप्त करने चाहते हो, लक्ष्मी नारायण बनना अर्थात् बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करना। तो बहुतकाल की प्राप्ति है। तो हर बात में बहुतकाल तो चाहिए ना! अभी 63 जन्म के बहुतकाल का संस्कार है तो कहते हो ना, हमारा भाव नहीं है, भावना नहीं है, संस्कार है 63 जन्म का। तो बहुतकाल का हिसाब है ना। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि संकल्प में दृढ़ता की कमी हो जाती है, हो जायेगा.. चलता है, चलने दो, कौन बना है, और एक तो बहुत अच्छी बात सबको आती है, बापदादा ने नोट किया है बातें, अपनी हिम्मत नहीं चलती ना, तो कहते हैं महारथी भी ऐसे करते हैं, हमने किया तो क्या हुआ? लेकिन बापदादा पूछते हैं कि क्या जिस समय महारथी गलती करता है, उससमय महारथी है? तो महारथी का नाम क्यों खराब करते हो? उस समय वह महारथी है ही नहीं, तो महारथी कहके अपने को कमज़ोर करना यह अपने को धोखा देना है। दूसरे को देखना सहज होता है, अपने को देखने में थोड़ी हिम्मत चाहिए। तो आज बापदादा हिसाब लेने आये हैं। लेकिन हिसाब का किताब खत्म कराने की गिफ्ट लेने आये हैं। कमज़ोरी और बहानेबाजी का हिसाब किताब, बहुत बड़ा किताब है उसको खत्म करना है। तो हर एक जो समझते हैं हम करके दिखायेंगे, करना ही है, झुकना ही है, बदलना ही है, परिवर्तन सेरीमनी मनानी ही है। जो समझते हैं संकल्प करेंगे वह हाथ उठाओ। दृढ़ या चालू? चालू संकल्प भी होता है और दृढ़ संकल्प भी होता है। तो आप सबने दृढ़ उठाया है? दृढ़ उठाया है? मधुबन वाले बड़ा हाथ उठाओ, इतना नहीं। यहाँ मधुबन वाले बैठते हैं। बहुत नजदीक बैठने का चांस हैं। मधुबन वाले तो एकदम सामने बैठे हैं। पहली सीट मधुबन वालों को मिलती है, बापदादा खुश है। पहले बैठे हो, पहले ही रहना। तो आज की गिफ्ट तो बढ़िया हुई ना। बापदादा को भी खुशी है क्योंकि आप एक नहीं हो। आपके पीछे अपनी राजधानी में आपकी रॉयल फैमिली, आपकी रॉयल प्रजा, फिर द्वापर से आपके भक्त, सतो रजो तमोगुणी, तीन प्रकार के भक्त, लम्बी लाइन है आपके पीछे। जो आप करेंगे वह आपके पीछे वाले करते हैं। आप बहानेबाजी देते हो तो आपके भक्त भी बहुत बहानेबाजी करते हैं। अभी ब्राह्मण परिवार भी आपको देख उल्टी कापी करने में तो होशियार होते हैं ना। तो अभी दृढ़ संकल्प करो, संस्कार का टक्कर हो, स्वभाव का मतभेद हो, तीसरी बात कमज़ोरों की होती है, कोई ने किसी के ऊपर झूठी बात कह दी, तो कई बच्चे कहते हैं हमको ज्यादा क्रोध आता है, झूठ पर। लेकिन सच्चे बाप से वेरीफाय कराया, सच्चा बाप आपके साथ है, तो सारी झूठी दुनिया एक तरफ हो और एक बाप आपके साथ है, विजय आपकी निश्चित हुई पड़ी है। कोई आपको हिला नहीं सकता, क्योंकि बाप आपके साथ है। कह रहे हैं, झूठ है। तो झूठ को झूठा ही कर दो ना, बढ़ाते क्यों हो! तोआज बाप को बहानेबाजी अच्छी नहीं लगती, यह हुआ, यह हुआ, यह हुआ... यह यह का गीत समाप्त होना चाहिए। अच्छा हुआ, अच्छा होगा, अच्छा रहेंगे, अच्छा सबको बनायेंगे। अच्छा अच्छा अच्छा का गीत गाओ। तो पसन्द है? पसन्द है? बहानेबाजी को खत्म करेंगे? करेंगे? दो-दो हाथ उठाओ। दो-दो हाथ उठाओ। अच्छा। हाँ अच्छी तरह से हिलाओ। अच्छा, देखने वाले भी हाथ हिला रहे हैं। कहाँ भी देख रहे हैं, हाथ हिलाओ। आप तो हिला रहे हो। अच्छा अभी नीचे करो, अभी अपने परिवर्तन की ताली बजाओ। अच्छा
यह दिन, यह समय, संगठन का चित्र सदा अपने सामने रखना। कभी भी कमज़ोरी आ जाए, आने नहीं देना, गेट बन्द। गेट तो पता है ना! बन्द करो। डबल बन्द करो, डबल ताला लगाना, आजकल सिंगल ताला नहीं चलता। एक याद का, एक मन को सेवा में बिजी रखने का। यह दो आलमाइटी ताले लगा देना। गाडरेज का नहीं गॉड का। पक्का जागरण करना, पक्का व्रत रखना। बापदादा को हर बच्चे से अति प्यार है। चाहे लास्ट नम्बर भी हो फिर भी बापदादा का उस बच्चे पर भी अति प्यार है। क्यों? ऐसे बच्चे कोई बाप को मिलने हैं? एक ही बापदादा है, जिसको ब्राह्मण बच्चे मिलते हैं। कोई भी महात्मा हो, महामण्डेश्वर हो, धर्मपिता हो, कोई को भी ऐसे बच्चे मिले हैं? जो हर बच्चा कहे मेरा बाबा। है कोई, हिस्ट्री में है? इसीलिए बापदादा हर बच्चे के महत्व को जानते हैं। बच्चे कहते हैं हम गीत गाते हैं वाह बाबा वाह! बाप कहते हैं आपसे भी 100 गुणा ज्यादा बाप गीत गाता है, वाह बच्चे वाह! ठीक है ना! वाह वाह हो ना! मधुबन वाले वाह वाह बच्चे हो ना! पीछे वाले वाह वाह बच्चे हो ना! अच्छा।
भोपाल जोन की सेवा का टर्न है:- हाँ झण्डा हिलाओ तो पता पड़े। अच्छा है, भोपाल भी मध्यप्रदेश में है और मध्यप्रदेश बहुत बड़ा है। सेवा तो की है, शुरू-शुरू में अच्छे-अच्छे गवर्नर और वी.आई.पी. लाये हैं लेकिन अभी इतना कोई नहीं लाया है। लाये हैं, लेकिन ऐसे गवर्नर या कोई विशेष नहीं लाये हैं। तो भोपाल को विशेष बापदादा, टीचर्स सुनना ध्यान से, दो सेवायें देना चाहते हैं। बतायें कौन सी? एक तो कोई ऐसा वी.आई.पी लायें जैसे अभी अभी एक्जैम्पुल देखा राजस्थान की गवर्नर आई और दैवी फैमिली है, यह अनुभव अच्छा करके गई। और साथ-साथ जिम्मेवारी भी सेवा की उठाके गई। सिर्फ अच्छा है, अच्छा है, बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, नहीं। अपने ऊपर जिम्मेवारी उठाके गई। ऐसे कोई विशेष वी.आई.पी मध्य प्रदेश में हैं, बापदादा जानते हैं, छिपे हुए हैं, सिर्फ उसको मैदान पर लाना है। और दूसरा जो भी बड़े-बड़े सेवाकेन्द्र हैं, जिसको आप बड़े कहते हो वह लिस्ट देना। तो हर एक बड़े सेन्टर जिसके अन्डर छोटे उपसेवाकेन्द्र गीता पाठशालायें बहुतबहुत हैं। क्योंकि गीता पाठशालाओं की लिस्ट बापदादा पूछते हैं तो बहुत-बहुत गीता पाठशालायें भी हैं। उन बड़े सेन्टरों को कम से कम एक साल के अन्दर, बहुत टाइम दे रहे हैं, इतना देना नहीं चाहिए। लेकिन एक साल के अन्दर कम से कम बड़े सेन्टर को अपना एक वारिस क्वालिटी सामने लाना है। चाहे अभी हो भी, लेकिन यज्ञ के अन्दर वह वारिस क्वालिटी प्रसिद्ध हो। ऐसे नहीं हैं तो बहुत। कई सेन्टर कहते हैं हमारे पास वारिस हैं, लेकिन वारिस छिप नहीं सकते। वारिस की क्वालिटी होगी तो वह छिप नहीं सकता। बापदादा गुप्त वारिस को नहीं मानता है। उसका कनेक्शन उसका रिलेशन कायदे प्रमाण होना ही चाहिए। ऐसा वारिस हरेक बड़ा सेन्टर सामने लाये। ला सकते हैं ना बड़े सेन्टर्स? इसमें नहीं कहना हम तो छोटे हैं। छोटे नहीं बनना। छोटे भी बड़े बनना। ठीक है टीचर्स? ठीक बोला। हाथ उठाओ जो समझते हैं छोटे भी बड़े बनकर दिखायेंगे, वह झण्डा हिलाओ। दिल से हिला रहे हो ना! तो यह दो कार्य भोपाल को करना है, ठीक है। भोपाल वाले, आपमें से ही तो कोई वारिस बनेंगे ना। तो देखेंगे, वैसे तो 6 मास में तैयार होना चाहिए लेकिन फिर भी बापदादा एक वर्ष की छुट्टी देते हैं। ठीक है। बाकी सेवा का यह गोल्डन चांस लेते हो, यह अच्छा है। बापदादा सदा ही सुनाते हैं, कि बहुत स्व उन्नति के लिए अच्छा चांस है क्योंकि सेवा की जिम्मेवारी भी अलग नहीं है, यज्ञ सेवा की जिम्मेवारी है। वहाँ तो फिर भी समय और अटेन्शन देना पड़ता है यहाँ तो एक ही अटेन्शन है स्व उन्नति या यज्ञ सेवा। यज्ञ सेवा का पुण्य अगर हर समय जमा करो तो आपके पुण्य का खाता बहुत बहुत जल्दी बढ़ सकता है। तो अच्छा किया है, संख्या भी अच्छी लाये हैं। चांस अच्छा लिया है। अभी आगे की रिजल्ट देखेंगे। अच्छा।
60 देशों के 700 डबल विदेशी आये हैं:- बापदादा को डबल विदेशियों को देख एक बात की विशेष खुशी होती है, एकस्ट्रा खुशी होती है। वह इस बात की कि शुरू शुरू में जब डबल फारेनर्स आये थे, टीचर्स को याद होगा तो भिन्न-भिन्न कल्चर से ट्रांसफर होने में बड़ी मेहनत लगती थी
लेकिन अभी बापदादा ने देखा है कि इसकी चर्चा इतनी नहीं होती है, क्यों कारण क्या है? क्योंकि एक दो के संगठन को देख वृद्धि अच्छी हुई है ना! और बापदादा ने सुना भी है कि मैजॉरिटी अपने अपने आसपास सन्देश देने का कोई न कोई साधन अपनाते हैं, सन्देश देने का उमंग अच्छा है। तो उसकी रिजल्ट में देखा गया है कि हर टर्न में विदेशियों का ग्रुप कम नहीं होता है। क्वालिटी भी अच्छी है और क्वान्टिटी भी बढ़ती जाती है इसलिए एक चंदन का वृक्ष बन गये हैं। तो चंदन का वृक्ष देख बापदादा खुश होते हैं। समाचार तो बापदादा के पास पहुंच ही जाता है। चाहे आप ईमेल में भेजते हो, तो बापदादा के पास तो कापी पहले आती है। सेवा का उमंग अच्छा है। अभी सिर्फ आज का व्रत पक्का करना है। नम्बर लेंगे ना विदेशी? नम्बर लेना है? कौन सा नम्बर? पहला कि दूसरा भी चलेगा? (पहला) जिसका एक बाप से प्यार है वह एक समान एक ही नम्बर बनेंगे। जो स्लोगन है एक बाप ही संसार है, जब है ही एक संसार तो नम्बर एक हुआ ना। जैसे आपका टाइटल डबल फारेनर्स। तो पुरूषार्थ में संकल्प के दृढ़ता में भी डबल फोर्स का पुरूषार्थ करके दिखाओ। अटेन्शन रखते हैं, सिर्फ अन्तर क्या हो जाता है? तीव्रता की दृढ़ता कम हो जाती है, प्रोग्राम बहुत अच्छा बनाते हो, बापदादा भी टापिक सुनते हैं, ग्रुप ग्रुप के पुरूषार्थ के विषय देखकर बहुत खुश होते हैं लेकिन क्या है, जब टापिक शुरू करते या लक्ष्य रखते हो वह बहुत फोर्स का रखते हो फिर कुछ न कुछ पेपर तो आता ही है, और आना ही है बिना पेपर कोई पास नहीं होता। उसमें दृढ़ता की कमी हो जाती है और साधारण पुरूषार्थ हो जाता है। सदा दृढ़ता रहे इसकी कमी हो जाती है। तो सबमें डबल पुरूषार्थी। करके ही दिखायेंगे, बनके ही दिखायेंगे। ठीक है ना। इतना उमंग-उत्साह है ना! है? है, सिर्फ दृढ़ता को चेक करो, बातों में नहीं जाओ। दृढ़ता को देखो। अच्छा।
डबल विदेशी कुमारियों का ग्रुप:- अच्छा यह बैनर बनाया है। हाथ हिलाओ। यह अच्छा करते हो क्योंकि मधुबन के वायुमण्डल का भी प्रभाव पड़ता है। दादियों का भी प्यार और वृत्तियों के वायुमण्डल का साथ होता है तो यह जो स्पेशल टापिक रखते हो और आपस में रूहरिहान करते हो तो इसमें समझते हो कि स्पेशल मदद मिलती है। मिलती है मदद? अच्छा, यह नशा कितना समय रहता है? 6-8 मास रहता है कि सदा रहता है? इसको रिवाइज करो, अन्दर में रिवाइज करो और रियलाइज करो, जो भी ज्ञान की बातें हैं ना, उसको रिवाइज भी करो और रियलाइज भी करो, एक एक प्वाइंट जो शिक्षा की मिलती है, या नशे की खुशी की मिलती है उसको रियलाइज करो। अपने आपसे रियलाइज करो, कि हर बात अनुभव में है? अनुभव किया है या सिर्फ नॉलेज के आधार से सोचते हैं, सुनते हैं, वर्णन करते हैं? बापदादा ने टोटल देखा है चाहे देश में, चाहे विदेश में हर प्वाइंट के अनुभव में डीप में जाना यह थोड़ा अटेन्शन कम है। सुनने और सुनाने में अटेन्शन अच्छा है, उसमें नम्बरवन हैं, लेकिन अनुभवी मूर्त बनना, चलते फिरते आत्मा का अनुभव होना, बाप के कम्बाइण्ड रूप का अनुभव होना, अनुभव में कमी है? इसलिए रियलाइज करो, तो रीयल गोल्ड बन जायेंगे। बाकी बापदादा खुश है, अटेन्शन भी टीचर्स देती हैं, आपकी दादी (जानकी दादी) बहुत अटेन्शन देती है। इतना ही अटेन्शन, जितना यह आपके ऊपर देती है और उम्मीदें रखती है, उतना हर एक अपने ऊपर जो बाप की उम्मीदें हैं, वह अटेन्शन रखें तो नम्बरवन तो हुए ही पड़े हो। अपनी कमी को रियलाइज करते भी हो लेकिन परिवर्तन करने में कमी पड़ जाती है। उसमें बापदादा ने देखा है एक दृढ़ता की कमी है और दूसरी मन को एकाग्र करने की विशेषता जिस घड़ी चाहे उस घड़ी मन एकाग्र हो जाए, जहाँ चाहो वहाँ हो जाए, इसकी कमी है। इसके ऊपर अटेन्शन देंगे, चाहे भारत वाले चाहे फारेनर्स। दृढ़ता और एकाग्रता, अभी तक वेस्ट है, एकॉनामी नहीं है। संकल्प, वाणी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, हर संस्कार स्वभाव में भी एकॉनामी से खर्च करो। एकॉनामी भी जरूरी है। यज्ञ की एकॉनामी, जितनी संकल्पों की एकॉनामी होगी उतनी यज्ञ की एकॉनामी के बिना रह नहीं सकेंगे। यज्ञ की एकॉनामी का नहीं आता, संस्कार इमर्ज नहीं होता, इससे समझो, समय, संकल्प खज़ाने के एकानामी की आदत नहीं है इसलिए यज्ञ एकानामी का संस्कार इमर्ज नहीं होता। तो दृढ़ता, एकाग्रता और एकॉनामी। ठीक है। बाकी बापदादा खुश है, सेवा के प्लैन में भी खुश है। अच्छी सेवा कर रही है ना। यह सामने गायत्री बैठी है ना। सेवा का उमंग बहुत है ना।
इन्टरनेशनल मदर ग्रुप:- चित्र बहुत अच्छा बना लेते हैं, यह इन्हों की विशेषता है। अच्छा बनाते हैं। देखो इतनी मदर्स अगर एक एक मदर जगतमाता बन जाए, वृत्ति से हर समय, हर संकल्प में हर माता जगत माता के स्वरूप में स्थित हो जाए तो कितने वायब्रेशन वर्ल्ड में मिलेंगे। क्योंकि माँ की भावना जल्दी पहुंचती है। तो जितनी भी मदर्स खड़ी हुई हैं, हर समय अपने जगत के बच्चों को, भाईयों को वायब्रेशन देती रहो। जैसे माँ प्यार से बच्चे की पालना करती, ऐसे आप सभी को बच्चे समझके पालना करो। वायब्रेशन फैलाओ। ठीक है। अभी देखेंगे, सारे दिन में हर माता ने जगतमाता बन वायब्रेशन फैलाये! इसमें स्व-उन्नति ऑटोमेटिक है, यह करके दिखाना। अच्छी हैं मातायें, बापदादा की नज़र में हैं, और हिम्मत वाली हैं, कर सकती हैं। तो आगे बढ़ते रहना। अच्छा।
रसिया वालों ने प्रोजेक्ट बनाया है, जिसमें 50 हजार किलोमीटर का सफर तय करके 150 शहरों की सेवा करेंगे:- अच्छा है, बापदादा ने बच्ची द्वारा भी समाचार सुना था और बापदादा को एक बात यह भी अच्छी लगी, जो बापदादा ने कहा था तो ओ.के. में रिजल्ट भेजना, वह भी अच्छी तरह से भेजी थी, तो मुबारक हो। और यह भी प्लैन सुना था, अच्छा उमंग-उत्साह से बनाया है और विधि भी जो बनाई है वह सहज हो जायेगी। तो उमंग-उत्साह में सफलता समाई हुई है। हैण्डस भी अच्छे हैं। संख्या भी अच्छी है। तो बापदादा को पसन्द है। और सबकी शुभ भावना, अभी सभी सुन रहे हैं तो सभी की शुभ भावना भी आपके इस प्रोग्राम के साथ है, मुबारक हो।
मोहनी बहन ने सुनाया- बाम्बे से दादी जी ने और साथ में सभी सेवा साथियों ने बहुत-बहुत याद भेजी है:- दादी तो सबके दिल की प्यारी दादी है। सभी दिल से अपने प्यार की बहुत शुभ लहरें भेज रहे हैं। और बापदादा ने सुनाया था, कि चाहे दादी के लिए कहेंगे ऐसे कि पेशेन्ट है, लेकिन वह प्रैक्टिकल में डाक्टर्स भी आश्चर्य खाते हैं, कि यह पेशेन्ट नहीं है लेकिन पेशन्स में रहने वाली, पेशेन्ट होते भी पेशन्स का स्वरूप क्या होता है, वह दिखा रही है। आपको लगेगा दादी को कुछ हो रहा है, लेकिन दादी से पूछेंगे, तो कहेगी कुछ नहीं है। तो यह पेशेन्ट नहीं है, पेशन्स स्वरूप दिखा रही है। बीमारी भी है लेकिन न्यारी और प्यारी है। बीमारी चल रही है लेकिन वह अपनी मस्ती में है। यह शरीर प्युअरीफाय हो रहा है। अपनी लास्ट स्टेज, भविष्य और भक्ति की स्टेज बन रही है। अभी है जीवन में होते मुक्त और लास्ट समय में है अष्ट देवता प्रसिद्ध होना और भक्ति में है इष्ट देव बनना। तीनों ही संस्कार का पार्ट बजा रही है। बाकी जो भी सेवाधारी सेवा करते हैं, वह भी दिल से कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हों के लिए नहीं है, वह तो दिन रात अपने दिल से कर रहे है लेकिन सारे ब्राह्मण परिवार में भी कोई वेस्ट थाट्स नहीं चलाओ। दादी आपकी है, आपकी ही रहेगी। बापदादा ने देखा है जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए और दादी को दृष्टि दी उस दृष्टि की विल पावर से बहुत सर्व स्नेही, सर्व समर्थ, सर्व कार्यकर्ता निमित्त और निर्माण इसमें ब्रह्मा बाप को पूरा-पूरा फॉलो करते हुए सारे ब्राह्मण परिवार में शक्ति भरी और बापदादा के अपनी दादियों के साथ-साथ रहके बहुत अच्छा पार्ट बजाया, अभी भी सूक्ष्म में आपके साथ पार्ट बजा रही है। बापदादा भी दादी की कमाल गाते हैं। सबको संगठन के बंधन में, स्नेह और सहयोग के आधार से बांधा और यह अमर वरदान है। सबका प्यार अच्छा है, यह देख करके भी बापदादा को खुशी है। बाकी बापदादा देख रहे हैं - जो भी सभी ने कार्ड भेजे हैं, पत्र भेजे हैं, ग्रीटिंग्स भेजे हैं, वह बापदादा ने स्वीकार की और रिटर्न में एक एक को नाम और विशेषता सहित यादप्यार और दुआयें दे रहे हैं। जिन्होंने कार्ड और पत्र द्वारा नहीं लेकिन दिल से, संकल्प से भी अपना उमंग-उत्साह भेजा है, उन सभी बच्चों को बहुत-बहुत पदमगुणा यादप्यार और बाप के दिल की दुआयें। बाकी आप सभी सम्मुख बैठे हो, सम्मुख का मजा अपना ही है। साइंस के साधनों द्वारा चाहे कितना भी स्पष्ट हो, कितना भी अच्छा लगता हो, लेकिन सम्मुख मधुबन में उन्नति का द्वार अपना ही अनुभव कराता है। अच्छा अभी जो बापदादा ने कहा वह हरेक एक मिनट के लिए दृढ़ संकल्प स्वरूप में बैठो कि बहानेबाजी, आलस्य, अलबेलापन को हर समय दृढ़ संकल्प द्वारा समाप्त कर बहुतकाल का हिसाब जमा करना ही है। कुछ भी हो, कुछ नहीं देखना है लेकिन बाप के दिलतख्तनशीन बनना ही है, विश्व के तख्तनशीन बनना ही है। इस दृढ़ संकल्प स्वरूप में सभी बैठो। अच्छा।
चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह के अनुभव में रहने वाले, सदा दृढ़ता सफलता की चाबी को कार्य में लगाने वाले, सदा बाप के साथ और हर कार्य में साथी बन रहने वाले, सदा एकनामी और एकॉनामी, एकाग्रता स्वरूप में आगे से आगे उड़ते रहने वाले, बापदादा के अति लाडले, सिकीलधे, विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- अभी दादियां भी सिकीलधी हो गई हैं। गिनती में आ गई हैं। सिकीलधी हो गई हैं ना। बस गीत गाते रहो इतना प्यार करेगा कौन! बाप कहता है इतना करते हैं बच्चे | बच्चे नहीं होते तो बाप क्या करता। बच्चे नहीं होते तो बाप कौन कहता! (जानकी दादी ने कहा, बाबा संसार तो है लेकिन संस्कार में आ जाए, बाबा यह करो ना) लेकिन बाप करेगा तो पायेगा कौन? यह भी बाप करे तो बाप को तो फल पाना नहीं है। सहयोग देना यह बाप का कर्तव्य है, टांग भी लगा दे, पांव भी लगा दे, लेकिन चलना तो खुद को पड़ेगा ना। अच्छा। बहुत अच्छा।
तीनों बड़े भाईयों से:- शिवरात्रि का यादगार बाप और बच्चों के इकट्ठे जन्म का यादगार है, तो संगठन की शक्ति, बाप ने भी अकेला कुछ नहीं किया, बच्चों के साथ हर कार्य किया, तो संगठन की शक्ति, उसको फिर से प्रैक्टिकल स्टेज पर लाना चाहिए। एक ने कहा और दूसरे ने किया। एक दो की बातों को न देख संगठन को मिलाना, यही आवश्यक है। आप निमित्त आत्माओं का यह काम है। संगठन को स्टेज पर प्रत्यक्ष करना। यही आवश्यकता है। ठीक है ना!
भोली दादी ने 9 फरवरी को शरीर छोड़ दिया:- भोली से भी सबका प्यार था। चाहे कैसी भी तबियत रही लेकिन भण्डारा नहीं छोड़ा, जो ब्रह्मा बाप ने भण्डारे में बिठाया तो अन्त तक भण्डारा नहीं छोड़ा। यह भी कर्मणा की विशेष देवी रही। इसलिए सभी का आन्तरिक प्यार अच्छा रहा। (अभी मीरा भी अच्छा करेगी) हाँ क्यों नहीं करेगी, जरूर करेगी। पालना तो अच्छी ली है। अच्छा।
बापदादा ने डायमण्ड हाल की स्टेज पर अपने हस्तों से शिवध्वज फहराया और सबको बधाईयां दी:-
सभी ने बहुत-बहुत प्यार से बाप का बर्थ डे और अपना बर्थ डे मनाया, इसकी पदम पदम पदमगुणा मुबारक हो, बधाई हो। जैसे यह चिन्ह रूप का झण्डा लहराया और फूल बरसाये ऐसे ही हर एक आत्मा के दिल में बाप की याद का झण्डा, स्मृति का झण्डा लहराओ। आपके दिल में तो है ही लेकिन अभी सर्व के दिलों में बाप का झण्डा अर्थात् याद का झण्डा लहराओ तो सारा विश्व फूलों का बगीचा बन जायेगा। कांटों का जंगल खत्म हो फूलों का बगीचा बन जायेगा। ऐसा संकल्प सदा दिल में इमर्ज करो, करना ही है, होना ही है, हुआ ही पड़ा है, सिर्फ निमित्त बनना है। अच्छा।
03-03-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘परमात्म संग में, ज्ञान का गुलाल, गुण और शक्तियों का रंग लगाना ही सच्ची होली मनाना है’’
आज बापदादा अपने लकीएस्ट और होलीएस्ट बच्चों से होली मनाने आये हैं। दुनिया वाले तो कोई भी उत्सव सिर्फ मनाते हैं लेकिन आप बच्चे सिर्फ मनाते नहीं, मनाना अर्थात् बनना। तो आप होली अर्थात् पवित्र आत्मायें बन गये। आप सभी कौन सी आत्मायें हो? होली अर्थात् महान पवित्र आत्मायें। दुनिया वाले तो शरीर को स्थूल रंग से रंगते हैं लेकिन आप आत्माओं ने आत्मा को कौन से रंग में रंगा है? सबसे अच्छे ते अच्छा रंग कौनसा है? अविनाशी रंग कौनसा है? आप जानते हो, आप सबने परमात्म संग का रंग आत्मा को लगाया जिससे आत्मा पवित्रता के रंग में रंग गई। यह परमात्म संग का रंग कितना महान और सहज है इसलिए परमात्म संग का महत्व अभी अन्त में भी सतसंग का महत्व होता है। सतसंग का अर्थ ही है परमात्म संग, जो सबसे सहज है। संग में रहना और ऊंचे ते ऊंचे संग में रहना क्या मुश्किल है क्या? और इस संग के रंग में रहने से जैसे परमात्मा ऊंचे ते ऊंचा है वैसे आप बच्चे भी ऊंचे ते ऊंचे पवित्र महान आत्मायें पूज्य आत्मायें बन गई। यह अविनाशी संग का रंग प्यारा लगता है ना! दुनिया वाले कितना प्रयत्न करते हैं परम आत्मा का संग तो छोड़ो सिर्फ याद करने में भी कितनी मेहनत करते हैं। लेकिन आप आत्माओं ने बाप को जाना, दिल से कहा मेरा बाबा। बाप ने कहा ‘‘मेरे बच्चे’’ और रंग लग गया। बाप ने कौन सा रंग लगाया? ज्ञान का गुलाल लगाया, गुणों का रंग लगाया, शक्तियों का रंग लगाया, जिस रंग से आप तो देवता बन गये लेकिन अब कलियुग अन्त तक भी आपके पवित्र चित्र देव आत्माओं के रूप में पूजे जाते हैं। पवित्र आत्मायें बहुत बनते हैं, महान आत्मायें बहुत बनते हैं, धर्म आत्मायें बहुत बनते हैं लेकिन आपकी पवित्रता देव आत्माओं के रूप में आत्मा भी पवित्र बनती और आत्मा के साथ शरीर भी पवित्र बनता है। इतनी श्रेष्ठ पवित्रता बनी कैसे? सिर्फ संग के रंग से। आप सभी फलक से कहते हो, अगर कोई आप बच्चों से पूछे, परमात्मा कहाँ रहता है? परमधाम में तो है ही लेकिन अभी संगम में परमात्मा आपके साथ कहाँ रहता है? आप क्या जवाब देंगे? परमात्मा को अभी हम पवित्र आत्माओं का दिलतख्त ही अच्छा लगता है। ऐसे है ना? आपके दिल में बाप रहता, आप बाप के दिल में रहते। रहते हैं? हाथ उठाओ जो रहता है? रहते हैं? अच्छा। बहुत अच्छा। फलक से कहते हो परमात्मा को मेरे दिल के सिवाए और कहाँ अच्छा नहीं लगता है क्योंकि कम्बाइण्ड रहते हो ना! कम्बाइण्ड रहते हो ना! कई बच्चे कम्बाइण्ड कहते हुए भी सदा बाप की कम्पनी का लाभ नहीं लेते हैं। कम्पैनियन तो बना लिया है, पक्का है। मेरा बाबा कहा तो कम्पैनियन तो बना लिया लेकिन हर समय कम्पनी का अनुभव करना, इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसमें बापदादा देखते हैं नम्बरवार फायदा उठाते हैं। कारण क्या होता, आप सभी अच्छी तरह से जानते हो।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है अगर दिल में रावण की कोई पुरानी जायदाद, पुराने संस्कार के रूप में रह गये है तो रावण की चीज़ पराई चीज़ हो गई ना! पराई चीज़ को कभी भी अपने पास रखा नहीं जाता है। निकाल दिया जाता है। लेकिन बापदादा ने देखा है, रूहरिहान में सुनते भी हैं कि क्या कहते बच्चे, बाबा मैं क्या करूं, मेरे संस्कार ही ऐसे हैं। क्या यह आपके हैं, जो कहते हो मेरे संस्कार? यह कहना राइट है कि मेरे पुराने संस्कार हैं, मेरी नेचर है, राइट है? राइट है? जो समझते हैं राइट है वह हाथ उठाओ। कोई नहीं उठाता। तो कहते क्यों हो? गलती से कह देते हो? जब मरजीवा बन गये, आपका अभी सरनेम क्या है? पुराने जन्म का सरनेम है वा बी.के. का सरनेम है। क्या अपना लिखते हो? बी.के. या फलाना, फलाना..? जब मरजीवा बन गये तो पुराने संस्कार मेरे संस्कार कैसे हुए? यह पुराने तो पराये संस्कार हुए। मेरे तो नहीं हुए ना! तो इस होली में कुछ तो जलायेंगे ना! होली जलाते भी हैं और रंग लगाते भी हैं तो आप सभी इस होली पर क्या जलायेंगे? मेरे संस्कार, यह अपने ब्राह्मण जीवन की डिक्शनरी से समाप्त करना। जीवन भी एक डिक्शनरी है ना! तो अभी कभी स्वप्न में भी यह नहीं सोचना, संकल्प की तो बात ही छोड़ो लेकिन पुराने संस्कार को मेरे संस्कार मानना, यह स्वप्न में भी नहीं सोचना। अब तो जो बाप के संस्कार वह आपके संस्कार, सभी कहते हो ना हमारा लक्ष्य है बाप समान बनना। तो सभी ने अपने दिल में यह दृढ़ संकल्प का अपने से प्रतिज्ञा की? गलती से भी मेरा नहीं कहना। मेरा मेरा कहते हो ना, तो जो पुराने संस्कार हैं ना वह फायदा उठाते हैं। जब मेरा कहते हैं तो वह बैठ जाते हैं, निकलते नहीं हैं।
बापदादा सभी बच्चों को किस रूप में देखना चाहते हैं? जानते तो हो, मानते भी हो। बापदादा हर एक बच्चे को भ्रकुटी के तख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा, अधीन बच्चा नहीं, राजा बच्चा, कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर, मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप में देख रहे हैं। आप अपना कौन सा रूप देखते? यही ना, राज्य अधिकारी हो ना! अधीन तो नहीं हैं ना? अधीन आत्माओं को आप सभी अधिकारी बनाने वाले हो। आत्माओं के ऊपर रहमदिल बन अधीन से उन्हों को भी अधिकारी बनाने वाले हो। तो आप सभी भी होली मनाने आये हो ना? बापदादा को भी खुशी है कि सभी स्नेह के विमान द्वारा, सभी के पास विमान है ना! है विमान? बापदादा ने हर ब्राह्मण को जन्मते ही गिफ्ट दी मन के विमान की। तो मन का विमान है सभी के पास? अच्छा हाथ उठा रहे हैं। ठीक है? पेट्रोल ठीक है? पंख ठीक हैं? स्टार्ट करने का आधार ठीक है? चेक करते हो? ऐसा विमान जो तीनों लोकों में सेकण्ड में जा सकता है। अगर हिम्मत और उमंग उत्साह के दोनों पंख यथार्थ हैं तो एक सेकण्ड में स्टार्ट हो सकता है। स्टार्ट करने की चाबी क्या है? मेरा बाबा। मेरा बाबा कहो तो मन जहाँ पहुंचना चाहे वहाँ पहुंच सकता है। दोनों पंख ठीक होने चाहिए। हिम्मत कभी नहीं छोड़नी है। क्यों? बापदादा का वायदा है, वरदान है, एक कदम हिम्मत का आपका और हजार कदम मदद बाप की। चाहे कैसा भी कड़ा संस्कार हो, हिम्मत कभी नहीं हारो। कारण? सर्वशक्तिवान बाप मददगार है और कम्बाइण्ड है, सदा हाजर है। आप हिम्मत से सर्वशक्तिवान कम्बाइण्ड बाप के ऊपर अधिकार रखो और दृढ़ रहो, होना ही है, बाप मेरा, मैं बाप की हूँ, यह हिम्मत नहीं भूलो। तो क्या होगा? जो कैसे करूं, यह संकल्प उठता है वह कैसे शब्द बदल ऐसे हो जायेगा। कैसे करूं, क्या करूं, नहीं। ऐसे हुआ ही पड़ा है। सोचते हो, करते तो हैं, होगा, होना तो चाहिए, बाप मदद तो देगा...। हुआ ही पड़ा है, बाप बंधा हुआ है, दृढ़ निश्चयबुद्धि वाले को मदद देने के लिए। सिर्फ रूप थोड़ा चेंज कर देते हो,