06-09-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘दादी के हाथ में प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने का बटन है, इसमें आप सब सहयोगी बनो’’
आज बालक सो मालिक बच्चों के बुलावे पर बापदादा हजूर हाजर हो गये हैं। बापदादा हर बच्चे को अपने सिर का ताज देखते हैं। बापदादा ने देखा आप सबकी प्यारी दादी अपने इच्छा कारण, बहुत प्यार से निरसंकल्प समाधि में वा साधना में रहते हुए स्व-इच्छा से बाप समान तीव्र बेहद की सेवा का अनुभव करने के लिए, साथी, साक्षी और समान स्थिति का अनुभव करने के लिए बाप के साथ वतन में पहुंच गई। साथ-साथ यह भी सभी ने अनुभव किया कि आदि से अन्त तक नि:स्वार्थ प्यार, निर्विकल्प साधना, परिस्थिति और स्तुति दोनों से न्यारी और सर्व की प्यारी जीवन का प्रभाव चारों ओर बिना मेहनत के, बिना कहने के देश विदेश में पवित्र प्यार का वायब्रेशन स्वत: सहज फैल गया। न बुलाते भी सबके दिल में प्यार का रेसपान्ड देने का उमंग-उत्साह स्वत: ही प्रगट हो रहा है। यह है प्रत्यक्ष स्नेही सहयोगी, समान स्थिति का प्रभाव। दादी की जीवन का एक ही संकल्प रहा कि अब जल्दी से जल्दी बाप की प्रत्यक्षता का आवाज फैलायें। तो प्रत्यक्षता, दादी की प्रत्यक्षता द्वारा ईश्वरीय विश्व विद्यालय और बापदादा की प्रत्यक्षता का फर्स्ट चैप्टर, छोटा सा चैप्टर आरम्भ हुआ है। यह कौन है, यह आध्यात्मिक विद्यालय क्या है, सबकी दृष्टि में, मन में, दिल में क्वेश्चन मार्क के रूप में उत्पन्न हुआ है। पहले क्या है, क्या है... यह क्वेश्चन होता, फिर यह है, यह है का उत्तर सामने आयेगा। दादी का एक ही उमंग था कोई नवीनता करें, सेवा का विशाल रूप हो, तो स्वत: ही सहज ही विशाल परिचय का झण्डा लहर रहा है। अब आप सबको प्यार का स्वरूप प्रत्यक्ष रूप में दिखाकर इस प्रत्यक्षता के झण्डे को ऊंचा लहराना है। दादी ने प्रत्यक्षता के झण्डे का, प्रत्यक्षता के पर्दे का स्वीच ऑन करने के लिए बटन हाथ में पकड़ा है, तो आप सब साथी हो ना। बहुत प्यार है ना दादी से, तो जैसे दादी स्व-इच्छा से एवररेडी, नष्टोमोहा बन गई। सभी सामने खड़े थे, फिर भी निर्मोही मूर्त उड़ गई। ऐसे, जैसे दादी ने फॉलो ब्रह्मा बाप किया। अचानक के पार्ट में पास हो गई। यह अन्तिम पाठ का आप स्नेही प्रेमी आत्माओं को भी इशारा देकर गई। अब आप अपने लिए सोचो, जो दादी ने प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने का बटन हाथ में उठाया है, उस पार्ट में हमें कैसे सहयोगी बनना है! बटन खोलने में देरी नहीं लगेगी लेकिन प्रत्यक्षता के झण्डे को ऊंचा लहराने वाले प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने के पहले विशेष पार्टधारी साथी एवररेडी हैं? अब यह नहीं समझो कि हम सेन्टर निवासी, मधुबन निवासी हद के सेवाधारी हैं, नहीं, लेकिन विश्व की स्टेज के विशेष पार्टधारी हैं। सारे विश्व की नज़र अब दादी की प्रत्यक्षता के साथ आप सबके तरफ है। विश्व की नज़र जो भी ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हैं, छोटा है, बड़ा है, किसी भी कार्य के अर्थ निमित्त है, चाहे छोटे कार्य के भी निमित्त है लेकिन एक एक के ऊपर, विश्व के आत्माओं की नज़र आपके ऊपर है। समझते हो इतनी जिम्मेवारी हमारे ऊपर है, या बड़ों को देखते हैं? बड़े जानें, इसमें संगठन की शक्ति चाहिए। यह रूहानी किला है। किले की एक एक ईट जिम्मेवार है। ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी मानना अर्थात् इस रूहानी किले की प्रत्यक्षता के निमित्त आत्मायें हो, एक एक किले की ईट जिम्मेवार है। चाहे नीचे की ईट हो, चाहे बीच की हो, चाहे ऊपर की हो, लेकिन एक ईट भी हिलती है तो उसका प्रभाव पड़ता है। तो अभी दादी से तो प्यार है लेकिन दादी का प्यार किससे है! बापदादा ने देखा दादी को अपने प्यार के मूर्त का रिटर्न बेहद प्यार मिला लेकिन अभी दादी का प्यार किस बात में है? दादी कहती है कल की बातें छोड़ो, आज भी नहीं, अब.. प्रत्यक्षता का झण्डा ऊंचा करने वाले ऊंची स्थिति का अपना सम्पन्न स्वरूप दिखाओ। तो जो भी अभी बैठे हैं, तो दादी कह रही थी, आप सभी से पूछना कि मेरे संकल्प को या बाबा के संकल्प को सब पूर्ण करने के लिए कुछ भी परिवर्तन करना पड़े, सहन करना पड़े, रहम की भावना रखनी पड़े, निर्मल वाणी बनानी पड़े, शुभ भावना, शुभ कामना की नेचुरल नेचर बनानी पड़े, तो दादी ने कहा आप पूछना मेरी इस बात को, मेरे समान बनने के लिए तैयार हैं? तो आप बताओ तैयार हैं? ऐसे हाथ नहीं उठाना, दिल का हाथ उठाना। यह बांहों का हाथ कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन निशानी फिर भी यही हाथ उठाना पड़ता है। कुछ भी हो जाए मुझे बदलना है। बदलके बातेंबदली कराना है, यह ऐसा, यह ऐसा, यह करते, यह बोलते नहीं, वह तो होगा लेकिन मुझे क्या करना है? दादी के समान तो बनना है ना, दादी ने इतनों को चलाके दिखाया, कितने वर्ष, एक दो वर्ष नहीं, चाहे बड़े चाहे छोटे, चाहे कर्मणा वाले, चाहे भाषण वाले, चाहे जोन वाले, चाहे दादियां, दादाओं को भी। निर्मोही बन गई ना, लास्ट में किसी को याद किया? किया? आप सामने खड़े थे, अगर किसको भी कोई स्मृति हो तो श्वांस प्रगट हो जाता है, अनुभव किया - जैसे शान्ति की देवी रही, सम भावना, श्रेष्ठ भावना, प्रत्यक्ष रूप दिखाया। ऐसे सांस किसका भी नहीं गया है जो सारे आसपास खड़े हैं और देख रहे हैं जा रहे हैं, जा रहे हैं, यह हिस्ट्री में पहला एक्जैम्पुल है। बापदादा तो दिल में रहा लेकिन साकार में सामने सब थे, ऐसी छुट्टी किसने भी नहीं ली है।
तो सुना, अभी क्या करना है? सुना। ध्यान से सुना। पीछे वालों ने सुना, अच्छा जो समझते हैं कुछ भी हो जायेगा, कितना भी सहन करना पड़ेगा, परिवर्तन होना ही है, वह हाथ उठाओ। अच्छा पक्का हाथ है या थोड़ा ऐसे ऐसे है, अन्दर का? देखेंगे, ट्रायल करेंगे, नहीं। कोशिश करेंगे, गे गे तो नहीं है ना? गे गे है, नहीं? बहुत अच्छा। दादी को आपका सन्देश दिया, दादी कहती है मैं खास आऊंगी, रूहरिहान करूंगी, बाकी आप सबका प्यार भावना, सब दादी के आगे ऐसा स्पष्ट है, जैसे सामने दिखाई दे रहा है। किसके मन की स्थिति भी रीयल क्या है, वह भी सभी का चक्कर लगाके नोट किया है। कहती थी कि मैं आकर सुनाऊंगी। कितना भी कोई छिपावे ना, वतन में छिप नहीं सकता है। वहाँ का यन्त्र रूहानी यन्त्र है। अच्छा।
चारों ओर के दादी के प्यार का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले, जैसे दादी ने फॉलो ब्रह्मा बाप साकार जीवन में फॉलोकरके दिखाया, ऐसे बाप और मुरब्बी बच्चे दादी को फॉलो कर प्रत्यक्षता का पर्दा प्रत्यक्षता का झण्डा लहराने केसाथी आत्माओं को, बापदादा देख रहे हैं, देश विदेश के बच्चे समान बनने के उमंग-उत्साह के प्लैन बना रहे हैं,वह दिन अब समीप लाना है, समय आने पर नहीं, समय को आपको समीप लाना है। तो ऐसे स्व-परिवर्तक, दृढ़संकल्पधारी चारों ओर के बच्चों को, चाहे देख रहे हैं या सामने हैं या नहीं हैं, लेकिन बापदादा और दादी चारों ओर के गीता पाठशालाओं के बच्चों को भी देख रहे हैं। तो सभी बाप के साथी, दादी के साथी, ब्राह्मण आत्माओं को बापदादा और दादी की तरफ से एक एक को नाम और विशेषता सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।
दादी आपके क्लास में आती रहती है, ऐसे नहीं, नहीं आती है। आपने जो समाधि बनाई है, उसमें भी चक्कर लगाती रहती है। लेकिन आपसे बहुत-बहुत रूहरिहान करने चाहती है इसलिए थोड़ा समय चाहिए। बाकी दादी के 12 दिन समाप्त हो रहे हैं, दादी को साकार वतन में विशेष न्यारा और प्यारा इसेन्शियल कार्य के लिए निमित्तमात्र पार्ट बजाना पड़ रहा है। लेकिन दादी का जन्म, कार्य अति न्यारा है, वह फिर आकर विस्तार सुनायेंगे। बापदादा को भी ड्रामा का नूंधा हुआ पार्ट बजाना पड़ता है, बजवाना पड़ता है। अलौकिकता क्या है, वह सुनायेंगे फिर। ठीक है। सभी पहली लाइन ठीक है, दादियां ठीक है? पाण्डव भी ठीक हैं? सब पाण्डव ठीक हैं ना। डबल फॉलो। तीन शब्द दादी के सदा याद करना - निमित्त, निर्मान और निर्मल वाणी। यह तीन शब्द हर घड़ी, हर कार्य आरम्भ करने के पहले, कार्य भले बदले लेकिन यह तीन शब्दों की स्मृति नहीं बदले, कैसा भी कठिन कार्य हो लेकिन यह तीन शब्द ऐसे समझना जैसे अभी बापदादा, दीदी, दादी तीन हैं ना, तो यह तीन शब्द भूलना नहीं, हर कार्य शुरू करने के पहले यह याद करना फिर कार्य शुरू करना। तो बहुत जल्दी दादी के समान, सहज समान बन जायेंगे। अच्छा - अभी क्या करना है?
(सभी दादियां बापदादा से मिल रही हैं, पहले निर्मलशान्ता दादी मिली फिर दूसरी दादियां) दादी शान्तामणि:- गैलप अच्छा किया, जो लक्ष्य रखा, वह प्रैक्टकिल में आ रहा है, इसकी मुबारक हो।
मनोहर दादी:- यज्ञ की आदि सहयोगी आत्मा हो। सहयोगी हूँ, सहयोगी रहूंगी, अण्डरलाइन क्योंकि दादियां तो श्रृंगार हैं तो आप एक दादी भी मिस नहीं होनी चाहिए। हाँ जी करो, ताकत आ जायेगी, हाँ जी करके देखना, करना ही है, कोई कितना भी रोके मुझे करना ही है। दादी की सखी है ना। तो दादी ने ना कभी नहीं किया, हर कार्य में हाँ जी, हाँ जी, हाँ जी किया। ऐसे ही करना। रतनमोहिनी दादी:- आप तो आलराउन्डर हैं, अभी दादियों को, सभी को अपना पार्ट विशेष संगठन के आगे दिखाना है। सबकी नज़र पाण्डव और दादियों के तरफ नेचुरल जाती है। हैं, कर रही हैं, करती रहेंगी। अच्छा है।
पाण्डव क्या करेंगे? तीनों ही आओ। (निर्वैर भाई, रमेश भाई, बृजमोहन भाई) आप तीनों को अभी क्या करना है? तीन शब्द विशेष दादी की विशेषता रही, छोटा बड़ा अपना मानता था, अपनेपन की भासना सबसे ज्यादा दादी ने दी है, यह दादियां हैं लेकिन दादी में यह विशेषता रही, तो आप लोगों का भी ऐसा कर्तव्य हो, ऐसा मिलन हो जो हर एक अनुभव करे यह अपने हैं, अपनापन महसूस करें, ड्युटी वाले नहीं। अपनापन जितना लाते हैं उतना, दादी को इतना प्यार का रेसपान्ड क्यों मिला? चाहे वी.आई. पी. चाहे कोई भी हो लेकिन अपनापन महसूस करता था, हमारी दादी है अभी भी देखो दादी माँ, दादी माँ.. कोई कहता नहीं है लेकिन जिगर से कहते हैं, तो यह है अपनेपन की अनुभूति कराने की रिजल्ट। तो जैसे दादियों की तरफ सबकी नज़र है, ऐसे विशेष निमित्त पाण्डवों की तरफ भी है। तो करना पड़ेगा। पड़ेगा ना। करना पड़ेगा ना? करना ही है। अभी हर एक की चाहे मीडिया वाले चाहे वी.आई. पी. चाहे साधारण जनता, सबने श्रधांजलि घर बैठे भी दी है, चाहे आये नहीं हैं लेकिन टी.वी. द्वारा सबने मैजॉरिटी ने देखा भी है और सहयोगी भी बने हैं श्रंधाजलि देने में, तो अब यह ईश्वरीय विश्व विद्यालय छिपा हुआ नहीं रहेगा, एक एक एक्टिविटी तरफ खुली नज़र हो गई है, उल्टे वाले उल्टा देखेंगे, सुल्टे वाले सुल्टा देखेंगे, लेकिन विशेष नज़र पड़ गई। तो उसी अनुसार आप सबको मिलकर सभी स्थानों के वायुमण्डल को पावरफुल बनाना होगा, क्योंकि दादी ने विश्व की नज़र में लाया है। एक - पहले जो प्रेजीडेंट बननी थी उसके कारण सबकी नज़र में आया और फिर दादी के कारण ज्यादा नज़र में आया तो सबकी नज़र अभी विशेष इस विद्यालय की तरफ है। इसलिए अण्डरलाइन। सुना।
मुन्नी बहन:- (बाबा दादी का क्वॉटेज सूना-सूना लगता है) अभी भी वहाँ सेवा का साधन बनाकर रखना। (हम किस बात का ध्यान रखें) जैसे दादी करती थी वैसे मुस्कराते शक्तिशाली नजर, रहमदिल भावना, सन्तुष्टता की भावना, सन्तुष्टता का सेव खिलाते रहना। खाली हाथ नहीं भेजना। (दादी की बहुत याद आती है) वह तो आयेगी ना, ऐसे कैसे होगा कि भूल जाए, कुछ दिन तो जरूर याद आयेगी साकार के हिसाब से, क्योंकि 24 घण्टा साथ रही हो। तो याद तो आयेगी। दादी मिलने आयेगी तारीख नहीं फिक्स किया है, आयेगी जरूर!
दादी जानकी:- (कल विदेश जा रही है) छुट्टी दी है लेकिन शार्ट कट, बना हुआ है ना। मोहिनी बहन:- (अभी हमें क्या करना है) दादी की भासना देना। दादी का ऐसा ही पार्ट है जब चाहेगी आ जायेगी, आपको भासना आयेगी। आप भी तो वतन की अनुभवी हो ना, भासना आयेगी आपको। बापदादा अच्छे ते अच्छा पार्ट बजवायेगा, सिर्फ यह तीन शब्द हर कर्म के पहले याद करना। सेवा करो, आलराउण्ड सेवा में बिजी रहो, यहाँ भी बिजी रहो, चारों ओर की सेवा में टाइम नहीं मिलता था, अभी टाइम दो, अच्छी सेवा होगी, फिकर नहीं करो, बाप साथ है।
(जिन्होंने दादी जी की सेवा की है वह सारा ग्रुप बापदादा के सामने है) बहुत अच्छा - कितना अच्छा ग्रुप है। देखो सभी ने ड्रामानुसार हर एक ने अपना अपना पार्ट बजाया। और सबने अच्छा पार्ट बजाया है लेकिन अभी स्वपरिवर्तन से वायुमण्डल परिवर्तन। आपमें बाप के लक्षण दिखाई दें। जैसे लौकिक में भी कई बच्चों में बाप के लक्षण, बाप जैसी शक्ल दिखाई देती है, तो आप हर एक में बाप के लक्षण दिखाई दें। लक्षण आने से क्या होगा, लक्ष्य स्पष्ट हो जायेगा। आजकल लक्ष्य ऊंचा रखते हैं लेकिन लक्षण नहीं होते, आप लक्षण द्वारा लक्ष्य को स्पष्ट करो क्योंकि सबकी नज़र लक्षण पर पड़ती है। तो जितना लक्षणधारी चलन होगी तो लक्ष्य आटोमेटिकली सिद्ध होगा - यह कौन हैं, क्या करने चाहते हैं। चलो कोई की भी बात हो जाए, बातें तो होंगी, माला है ना, नम्बरवार हैं ना, तो यह नहीं बोलो यह क्या करते हैं, यह क्यों होता है! नहीं। मुझे क्या करना है, मैं क्या मदद ऐसी हालत में कर सकता हूँ, नहीं कर सकते हो तो किनारा करो लेकिन उसमें बह नहीं जाओ, वायुमण्डल में। आप निमित्त आत्मायें ऐसी स्थिति में रहेंगी तो आटोमेटिकली वायुमण्डल बन जायेगा। मेहनत नहीं लगेगी सिर्फ अपने को करना बस, पक्का। ठीक है ना। शक्ति सेना कम थोड़ेही है। शक्तियां भी कम नहीं है। मुझे वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाना है। कोई भी हल्की सी बात हो, रिपीट नहीं करो। एक को वर्णन करना, माना अनेकों के कानों में जाना। अन्तर्मुखी सदा सुखी। जैसे दादी ने रूहानी अपनापन दिया, शारीरिक नहीं, अपनापन का यह रिजल्ट है, एक उपराम, एक अपनापन। इशारा भी दिया लेकिन दिल में नहीं, जबान पर आया खत्म, दिल में नहीं रखा। ऐसे आप निमित्त हो, तो निमित्त को दादी को फॉलो करना बहुत जरूरी है। शक्ति तो सभी में नहीं है ना, नम्बरवार है ना, सहयोग दो, शक्ति दो, रहम करो, आत्मिक प्यार दो क्योंकि सबकी नज़र अभी देश विदेश की निमित्त आत्माओं पर है क्योंकि यह मीडिया ने चारों ओर स्पष्ट कर लिया है, अभी सबकी नज़र है। क्या हो रहा है, क्या हो रहा है, और ही ज्यादा सोचेंगे। क्या है, कैसा है, इसीलिए किले को मजबूत करना, आप निमित्त हो। चाहे थोड़ी आई हो लेकिन सुनेंगे तो सभी। फिर भी पहुंच गये | मुबारक है। एवररेडी तो हो गई ना। दादी के साथ आप लोगों ने भी एवररेडी का पाठ तो पढ़ लिया ना। तो ठीक है। सभी को समझना चाहिए मैं निमित्त हूँ, वायुमण्डल को पावरफुल बनाने के लिए मैं निमित्त हूँ, दूसरे नहीं, दूसरे तो नम्बरवार हैं आप तो निमित्त हो। बहुत अच्छा, ठीक है।
(दादी की सेवा करने वाली बहनों से) बहुत अच्छी सेवा की, (दादी बहुत याद आती है) याद तो आयेगी, बापदादा के वतन से जायेगी तो बापदादा को याद नहीं आयेगी, आयेगी। लेकिन सेवा है ना, जग की दादी है ना सिर्फ मधुबन की तो नहीं है ना। बाकी सभी ने सेवा प्यार से की और अभी भी समान बनने की सेवा करना। प्यार का रिटर्न यही होता है, अच्छा। पाण्डव भी सेवा में रहे। पाण्डवों ने भी सेवा अच्छी की। प्यार का स्वरूप दिखाया। सभी ने अपने अपने सेवा अनुसार अच्छा सहयोग दिया। अभी वायुमण्डल को पावरफुल बनाने की सेवा में ऐसे ही साथी बनना, जैसे दादी की सेवा में साथी रहे क्योंकि सबकी नज़र तो है ना, यह क्या करेंगे अभी। देखेंगे क्या करते हैं, सबकी नज़र तो है ना। तो आप ऐसा करके दिखाना जो वाह वाह के गीत बजने लगे। दादी का प्रत्यक्ष स्नेह आपकी चलन से दिखाई देगा। देगा, क्योंकि प्यार था ना। प्यार में तो सभी पास हो गये हैं। प्यार का सर्टीफिकेट तो बहुत अच्छा है। अच्छा।
बापदादा सभी से विदाई लेकर वतन में गये और दादी गुल्जार वतन से जब वापस आई तो वतन का दृश्य सुनाया:-
वैसे दादी की विदाई शाम को होनी है, इसलिए बाबा ने कहा मैं मिलकर आया हूँ, मैं भी दादी भी मिली, दादी ने कहा मुझे बाबा भेज रहा है लेकिन मैंने जो 12 दिन में अनुभव किया वह बहुत बहुत बढ़िया, अनुभव किया है और बहुत बातें जो वैसे न देखने वाली, जो नहीं देख सकती थी वह देखी है। यह सुनाया और कहा बाबा अभी भेज रहा है और मुझे यही है, मेरा संकल्प था कि मैं जन्म नहीं लूं लेकिन बाबा ने मुझे रहस्य समझाया है, इसलिए मैं खुशी से जा रही हूँ। हम लोगों को भी था कि दादी को बाबा ऐसे कैसे भेज रहा है। तो दादी ने कहा मैं बाबा के राज़ को समझ गई हूँ इसलिए मैं खुशी से जा रही हूँ। दूसरी बात - दादी ने कहा फिर शाम को विदाई होगी वह देखकर फिर सबको सुनाना। बाकी मेरे तरफ से सभी को एक एक को कहना आपको नाम सहित दादी ने याद दी है। याद के साथ प्यार तो होता ही है। विदाई का सन्देश फिर सुनायेंगे।
अच्छा - ओम् शान्ति।
15-10-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"संगमयुग की जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए सब बोझ वा बंधन बाप को देकर डबल लाइट बनो"
आज विश्व रचता बापदादा अपनी पहली रचना अति लवली और लक्की बच्चों से मिलन मेला मना रहा है। कई बच्चे सम्मुख हैं, नयनों से देख रहे हैं और चारों ओर के कई बच्चे दिल में समाये हुए हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के तीन सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक भाग्य है - बापदादा की श्रेष्ठ पालना का, दूसरा है शिक्षक द्वारा पढ़ाई का, तीसरा है सतगुरू द्वारा सर्व वरदानों का चमकता हुआ सितारा। तो आप सब भी अपने मस्तक पर चमकते हुए सितारे अनुभव कर रहे हो ना! सर्व सम्बन्ध बापदादा से है फिर भी जीवन में यह तीन सम्बन्ध आवश्यक हैं और आप सभी सिकीलधे लाडले बच्चों को सहज ही प्राप्त हैं। प्राप्त हैं ना! नशा है ना! दिल में गीत गाते रहते हैं ना - वाह! बाबा वाह! वाह! शिक्षक वाह! वाह! सतगुरू वाह! दुनिया वाले तो लौकिक गुरू जिसको महान आत्मा कहते हैं, उस द्वारा भी एक वरदान पाने के लिए कितना प्रयत्न करते हैं और आपको बाप ने जन्मते ही सहज वरदानों से सम्पन्न कर दिया। इतना श्रेष्ठ भाग्य क्या स्वप्न में भी सोचा था कि भगवान बाप इतना हमारे ऊपर बलिहार जायेगा! भक्त लोग भगवान के गीत गाते हैं और भगवान बाप किसके गीत गाते? आप लक्की बच्चों का।
अभी भी आप सभी भिन्न-भिन्न देशों से किस विमान में आये हो? स्थूल विमानों में कि परमात्म प्यार के विमान में सब तरफ से पहुंच गये हैं! परमात्म विमान कितना सहज ले आता है, कोई तकलीफ नहीं। तो सभी परमात्म प्यार के विमान में पहुंच गये हो इसकी मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बापदादा एक एक बच्चे को देख चाहे पहले बार आये हैं, चाहे बहुतकाल से आ रहे हैं। लेकिन बापदादा एक-एक बच्चे की विशेषता को जानते हैं। बापदादा का कोई भी बच्चा चाहे छोटा है, चाहे बड़ा है, चाहे महावीर है, चाहे पुरूषार्थी है, लेकिन हर एक बच्चा सिकीलधा है, क्यों? आपने तो बाप को ढूंढा मिला नहीं, लेकिन बापदादा ने आप हर बच्चे को बहुत प्यार, सिक, स्नेह से कोने-कोने से ढूंढा है। तो प्यारे हैं तब तो ढूंढा। क्योंकि बाप जानते हैं मेरा कोई एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जिसमें कोई भी विशेषता नहीं हो। कोई विशेषता ने ही लाया है। कम से कम गुप्त रूप में आये हुए बाप को पहचान तो लिया। मेरा बाबा कहा, सब कहते हो ना मेरा बाबा! कोई है जो कहता है नहीं तेरा बाबा, कोई है? सब कहते हैं मेरा बाबा। तो विशेष है ना। इतने बड़े बड़े साइन्सदान, बड़े बड़े वी.आई.पी. पहचान नहीं सके, लेकिन आप सबने तो पहचान लिया ना। अपना बना लिया ना। तो बाप ने भी अपना बना लिया। इसी खुशी में पलते हुए उड़ रहे हो ना! उड़ रहे हो, चल नहीं रहे हो, उड़ रहे हो क्योंकि चलने वाले बाप के साथ अपने घर में जा नहीं सकेंगे। क्योंकि बाप तो उड़ने वाले हैं, तो चलने वाले कैसे साथ पहुंचेंगे! इसलिए बाप सभी बच्चों को क्या वरदान देते हैं? फरिश्ता स्वरूप भव। फरिश्ता उड़ता है, चलता नहीं है, उड़ता है। तो आप सभी भी उड़ती कला वाले हो ना! हो? हाथ उठाओ जो उड़ती कला वाले हैं, कि कभी चलती कला, कभी उड़ती कला? नहीं? सदा उड़ने वाले, डबल लाइट हो ना! क्यों? सोचो, बाप ने आप सभी से गैरन्टी ली है कि जो भी किसी भी प्रकार का बोझ अगर मन में, बुद्धि में है तो बाप को दे दो, बाप लेने ही आये हैं। तो बाप को बोझ दिया है या थोड़ा-थोड़ा सम्भाल के रखा है? जब लेने वाला ले रहा है, तो बोझ देने में भी सोचने की बात है क्या? कि 63 जन्म की आदत है बोझ सम्भालने की, तो कई बच्चे कभी कभी कहते हैं चाहते नहीं हैं, लेकिन आदत से मजबूर हैं। अभी तो मजबूर नहीं हो ना! मजबूर हो कि मजबूत हो? मजबूर कभी नहीं बनना। मजबूत हैं। शक्तियां मजबूत हो या मजबूर? मजबूत हैं ना? आगे बैठी हुई क्या हैं? मजबूत हैं ना! बोझ रखना अच्छा लगता है क्या? दिल लग गई है, बोझ से दिल लग गई है? छोड़ो, छोड़ो तो छूटो। छोड़ते नहीं हैं तो छूटते नहीं हैं। छोड़ने का साधन है - दृढ़ संकल्प। कई बच्चे कहते हैं दृढ़ संकल्प तो करते हैं, लेकिन, लेकिन.... कारण क्या है? दृढ़ संकल्प करते हो लेकिन किये हुए दृढ़ संकल्प को रिवाइज नहीं करते हो। बार-बार मन से रिवाइज करो और रियलाइज करो, बोझ क्या और डबल लाइट का अनुभव क्या! रियलाइजेशन का कोर्स अभी थोड़ा और अण्डरलाइन करो। कहना और सोचना यह करते हो, लेकिन दिल से रियलाइज करो - बोझ क्या है और डबल लाइट क्या होता है? अन्तर सामने रखो क्योंकि बापदादा अभी समय की समीपता प्रमाण हर एक बच्चे में क्या देखने चाहते हैं? जो कहते हैं वह करके दिखाना है। जो सोचते हो वह स्वरूप में लाना है क्योंकि बाप का वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है मुक्ति और जीवनमुक्ति। सभी को निमन्त्रण भी यही देते हो ना तो आकर मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो। तो अपने से पूछो क्या मुक्तिधाम में मुक्ति का अनुभव करना है वा सतयुग में जीवनमुक्ति का अनुभव करना है वा अब संगमयुग में मुक्ति, जीवनमुक्ति का संस्कार बनाना है? क्योंकि आप कहते हो कि हम अभी अपने ईश्वरीय संस्कार से दैवी संसार बनाने वाले हैं। अपने संस्कार से नया संसार बना रहे हैं। तो अब संगम पर ही मुक्ति जीवनमुक्ति के संस्कार इमर्ज चाहिए ना! तो चेक करो सर्व बंधनों से मन और बुद्धि मुक्त हुए हैं? क्योंकि ब्राह्मण जीवन में कई बातों से जो पास्ट लाइफ के बन्धन हैं, उससे मुक्त हुए हो। लेकिन सर्व बन्धनों से मुक्त हैं या कोई कोई बंधन अभी भी अपने बन्धन में बांधता है? इस ब्राह्मण जीवन में मुक्ति जीवनमुक्ति का अनुभव करना ही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठता है क्योंकि सतयुग में जीवनमुक्त, जीवनबंध दोनों का ज्ञान ही नहीं होगा। अभी अनुभव कर सकते हो, जीवनबंध क्या है, जीवनमुक्त क्या है, क्योंकि आप सबका वायदा है, सबका वायदा है, अनेक बार वायदा किया है, क्या करते हो वायदा, याद है? किसी से भी पूछते हैं आपके इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या जवाब देते हो? बाप समान बनना है। पक्का है ना? बाप समान बनना है ना? कि थोड़ा थोड़ा बनना है? समान बनना है ना! बनना है समान? कि थोड़ा भी बन गये तो चलेगा! चलेगा? उसको समान तो नहीं कहेंगे ना। तो बाप मुक्त है, या बंधन है? अगर किसी भी प्रकार का चाहे देह का, चाहे कोई देह के सम्बन्ध, माता पिता बंधु सखा नहीं, देह के साथ जो कर्मेन्द्रियों का सम्बन्ध है, उस कोई भी कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध का बंधन है, आदत का बंधन है, स्वभाव का बंधन है, पुराने संस्कार का बंधन है, तो बाप समान कैसे हुए? और रोज वायदा करते हो बाप समान बनना ही है। हाथ उठवाते हैं तो सभी क्या कहते हैं? लक्ष्मी नारायण बनना है। बापदादा को खुशी होती है, वायदा बहुत अच्छे अच्छे करते हैं लेकिन वायदे का फायदा नहीं उठाते हैं। वायदा और फायदा का बैलेन्स नहीं जानते। वायदों का फाइल बापदादा के पास बहुत बहुत बहुत बड़ा है, सभी का फाइल है। ऐसे ही फायदे का भी फाइल हो, बैलेन्स हो, तो कितना अच्छा लगेगा। यह सेन्टर्स की टीचर्स बैठी है ना। यह भी सेन्टर निवासी बैठे हैं ना? तो समान बनने वाले हुए ना। सेन्टर निवासी निमित्त बने हुए बच्चे तो समान चाहिए ना! हैं? हैं भी लेकिन कभी-कभी थोड़ा नटखट हो जाते हैं?
बापदादा तो सभी बच्चों का सारे दिन का हाल और चाल दोनों देखते रहते हैं। आपकी दादी भी वतन में थी ना, तो दादी भी देखती थी तो क्या कहती थी? पता है, कहती थी बाबा ऐसा भी है क्या? ऐसा होता है, ऐसे करते हैं, आप देखते रहते हैं? सुना, आपकी दादी ने क्या देखा। अभी बापदादा यही देखने चाहते हैं कि एक-एक बच्चा मुक्ति जीवनमुक्ति के वर्से का अधिकारी बने, क्योंकि वर्सा अभी मिलता है। सतयुग में तो नेचरल लाइफ होगी, अभी के अभ्यास की नेचुरल लाइफ, लेकिन वर्से का अधिकार अभी संगम पर है। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक स्वयं चेक करे अगर कोई भी बंधन खींचता है, तो कारण सोचो। कारण सोचो और कारण के साथ निवारण भी सोचो। निवारण बापदादा ने अनेक बार भिन्न-भिन्न रूप से दे दिये हैं। सर्वशक्तियों का वरदान दिया है, सर्वगुणों का खज़ाना दिया है, खज़ाने को यूज करने से खज़ाना बढ़ता है। खज़ाना है, सबके पास है, बापदादा ने देखा है। हर एक के स्टॉक को भी देखता है। बुद्धि है स्टॉक रूम। तो बापदादा ने सबका देखा है। है, स्टॉक में है लेकिन खज़ाने को समय पर यूज नहीं करते हैं। सिर्फ प्वाइंट के रूप से सोचते हैं, हाँ यह नहीं करना है, यह करना है, प्वाइंट के रूप से यूज करते हैं, सोचते हैं लेकिन प्वाइंट बनके प्वाइंट को यूज नहीं करते हैं। इसीलिए प्वाइंट रह जाती है, प्वाइंट बनके यूज करो तो निवारण हो जाए। बोलते भी हैं, यह नहीं करना है, फिर भूलते भी हो। बोलने के साथ भूलते भी हो। इतना सहज विधि सुनाई है, सिर्फ है ही संगमयुग में बिन्दी की कमाल, बस बिन्दी यूज करो और कोई मात्रा की आवश्यकता नहीं। तीन बिन्दी को यूज करो। आत्मा बिन्दी, बाप बिन्दी और ड्रामा बिन्दी है। तीन बिन्दी यूज करते रहो तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं। लगाने चाहते हो बिन्दी लेकिन लगाने के समय हाथ हिल जाता, तो क्वेश्चन मार्क हो जाता या आश्चर्य की रेखा बन जाती है। वहाँ हाथ हिलता, यहाँ बुद्धि हिलती है। नहीं तो तीन बिन्दी को स्मृति में रखना क्या मुश्किल है? है मुश्किल है?
बापदादा ने तो दूसरी भी सहज युक्ति बताई है, वह क्या? दुआ दो और दुआ लो। अच्छा, योग शक्तिशाली नहीं लगता, धारणायें थोड़ी कम होती हैं, भाषण करने की हिम्मत नहीं होती है, लेकिन दुआ दो और दुआ लो, एक ही बात करो और सब छोड़ो, एक बात करो, दुआ लेनी है दुआ देनी है। कुछ भी हो जाए, कोई कुछ भी दे लेकिन मुझे दुआ देनी है, लेनी है। एक बात तो पक्की करो, इसमें सब आ जायेगा। अगर दुआ देंगे और दुआ लेंगे तो क्या इसमें शक्तियां और गुण नहीं आयेंगे? आटोमेटिकली आ जायेंगे ना! एक ही लक्ष्य रखो, करके देखो, एक दिन अभ्यास करके देखो, फिर सात दिन करके देखो, चलो और बातें बुद्धि में नहीं आती, एक तो आयेगी। कुछ भी हो जाए लेकिन दुआ देनी और लेनी है। यह तो कर सकते हैं या नहीं? कर सकते हैं? अच्छा, तो जब भी जाओ ना तो यह ट्रायल करना। इसमें सब योगयुक्त आपेही हो जायेंगे। क्योंकि वेस्ट कर्म करेंगे नहीं तो योगयुक्त हो ही गये ना। लेकिन लक्ष्य रखो दुआ देना है, दुआ लेनी है। कोई कुछ भी देवे, बददुआ भी मिलेगी, क्रोध की बातें भी आयेंगी क्योंकि वायदा करेंगे ना, तो माया भी सुन रही हैं, कि यह वायदा करेंगे, वह भी अपना काम तो करेगी ना। मायाजीत बन जायेंगे फिर नहीं करेंगी, अभी तो मायाजीत बन रहे हैं ना, तो वह अपना काम करेगी लेकिन मुझे दुआ देनी है और दुआ लेनी है। हो सकता है? हो सकता है? हाथ उठाओ जो कहते हैं हो सकता है। अच्छा, शक्तियां हाथ उठाओ। हाँ, हो सकता है! तो सब तरफ की टीचर्स आई हैं ना। सब तरफ की टीचर्स आई है ना। तो जब आप अपने देश में जाओ तो पहले पहले सभी को एक सप्ताह यह होमवर्क करना है और रिजल्ट भेजनी है, कितने जने क्लास के मेम्बर कितने हैं, कितने ओ.के. हैं और कितने थोड़े कच्चे और कितने पक्के हैं, तो ओ.के. के बीच में लाइन लगाना बस ऐसे समाचार देना। इतने जने ओ.के., इतने जनों में ओ.के. में लकीर लगी है। इसमें देखो डबल फारेनर्स आये हैं तो डबल काम करेंगे ना। एक सप्ताह की रिजल्ट भेजना फिर बापदादा देखेंगे, सहज है ना, मुश्किल तो नहीं है। माया आयेगी, आप कहेंगे बाबा मेरे को पहले तो कभी नहीं आता था, अभी आ गया, यह होगा, लेकिन दृढ़ निश्चय वाले की निश्चित विजय है। दृढ़ता का फल है सफलता। सफलता न होने का कारण है दृढ़ता की कमी। तो दृढ़ता की सफलता प्राप्त करनी ही है।
डबल फारेनर्स नम्बर वन हो जाना। डबल है ना, डबल फारेनर्स हैं ना, तो कमाल दिखाना। विदेश के कितने आये हैं? (90 देशों से 300 सेन्टर्स के आये हैं) तो 90 कमाल करेंगे ना? 90 देश के डबल फारेनर्स हैं, और 10इन्डिया के एड हो जायेंगे तो 100 हो जायेंगे। तो करेंगे? जो भी आये हैं, कुछ भी हो, करके ही दिखाना है। है इतने दृढ़ कि सोचते हैं देखेंगे, कोशिश करेंगे.... कोई है ऐसा, जो समझते हैं कोशिश करेंगे, कोशिश वाले हाथ उठाओ। कोई नहीं। तो मुबारक हो, ताली बजाओ। दादियां कहाँ हैं? पक्का है। अच्छा है। क्योंकि डबल फारेनर्स का वैसे नेचर, संस्कार भी गाये हुए हैं कि जो सोचते हैं करना है, वह करके ही छोड़ते हैं, यह डबल फारेनर्स की नेचर गाई हुई है, अभी इस नेचर को इस कार्य में लगाना। ठीक है ना! करके ही दिखाना है, कुछ भी हो जाए। सहनशक्ति का वरदान विशेष लेके जाना। लेकिन बापदादा ने समय प्रति समय बच्चों की एक सीन देखी है, बच्चों की सीन बाप देखता रहता है ना तो क्या देखा! कि बच्चों ने सहन बहुत अच्छा किया, बापदादा वाह! वाह! कर रहे थे बहुत अच्छा बहुत अच्छा देख रहे थे ना, लेकिन बाद में क्या किया, सहन कर लिया, पास हो गये लेकिन पीछे समाने की शक्ति कम होने के कारण, समा नहीं सके ना, तो जहाँ तहाँ वर्णन करते रहे, समाने की शक्ति नहीं थी, सहन करने की शक्ति थी, पार्ट अच्छा बजाया लेकिन समाने की शक्ति कम होने के कारण फिर वर्णन करने लगे ऐसा हुआ, ऐसा हुआ तो गंवा दिया ना। तो ऐसे नहीं करना। बापदादा बहुत दृश्य देखते हैं बच्चों के, पहले ताली बजाते हैं फिर चुप हो जाते हैं, तो ऐसे नहीं करना। सहनशक्ति, समाने की शक्ति, सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है, इसीलिए बाप को सर्वशक्तिवान कहा है, शक्तिवान नहीं कहा है, आपका भी टाइटल मास्टर सर्वशक्तिवान है, शक्तिवान है क्या? सर्वशक्तिवान है ना? तो सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है इसीलिए यह अटेन्शन रखना। अच्छा।
बापदादा खुश है, डबल फारेनर्स ने अपने अपने स्थानों में वृद्धि की है। प्रैक्टिकल में रहमदिल मर्सीफुल का पार्ट अच्छा बजा रहे हैं। बापदादा के पास समाचार तो आते रहते हैं। बापदादा ने अभी भी सुना अफ़्रीका और रशिया दोनों ही तरफ जो भी रहे हुए स्थान हैं, उसमें सन्देश अच्छा दे रहे हैं और भारत में हर एक वर्ग वाले अच्छे हिम्मत और उमंग से अपने अपने वर्ग के तरफ से मर्सीफुल बन आत्माओं को सन्देश देने का, परिचय देने का और सम्बन्ध जोड़ने का कार्य अच्छे उमंग उत्साह से कर रहे हैं। इसकी भी बापदादा मुबारक दे रहे हैं। हाँ ताली बजाओ भले।
जैसे इसकी ताली बजाई ना अभी 6 मास बापदादा देते हैं क्योंकि अभी सीजन तो शुरू होनी ही है, तो 6 मास, ज्यादा टाइम दे रहे हैं। जैसे सेवा उमंग-उत्साह से कर रहे हैं ऐसे स्वयं को भी स्व के प्रति सेवा, स्व सेवा और विश्व सेवा, स्व सेवा अर्थात् चेक करना और अपने को बाप समान बनाना। कोई भी कमी, कमज़ोरी बाप को दे दो ना, क्यों रखी है, बाप को अच्छा नहीं लगता है। क्यों कमज़ोरी रखते हो? दे दो। देने के टाइम छोटे बच्चे बन जाओ। जैसे छोटा बच्चा कोई भी चीज़ सम्भाल नहीं सकता, कोई भी चीज़ पसन्द नहीं आती है तो क्या करता है? मम्मी पापा यह आप ले लो। ऐसे ही कोई भी प्रकार का बोझ, बंधन जो अच्छा नहीं लगता, क्योंकि बापदादा देखता है, एक तरफ यह सोच रहे हैं है तो अच्छा नहीं, ठीक तो नहीं है लेकिन क्या करूं, कैसे करूं, तो यह तो अच्छा नहीं है। एक तरफ अच्छा नहीं है कह रहे हैं, दूसरे तरफ सम्भाल के रख रहे हैं, तो इसको क्या कहें! अच्छा कहें? अच्छा तो नहीं है ना। तो आपको क्या बनना है? अच्छे ते अच्छा ना। अच्छा भी नहीं, अच्छे ते अच्छा। तो जो भी कोई ऐसी बात हो, बाबा हाजिरा हजूर है, उसको दे दो, और अगर वापस आवे तो अमानत समझके फिर दे दो। अमानत में ख्यानत नहीं की जाती है। क्योंकि आपने तो दे दी, तो बाप की चीज़ हो गई, बाप की चीज़ या दूसरे की चीज़ आपके पास गलती से आ जाए, आप अलमारी में रख देंगे? रख देंगे? निकालेंगे ना। कैसे भी करके, निकालेंगे, रखेंगे नहीं। सम्भालेंगे तो नहीं ना। तो दे दो। बाप लेने के लिए आया है। और तो कुछ आपके पास है नहीं जो दो। लेकिन यह तो दे सकते हो ना। अक के फूल हैं, वह दे दो। सम्भालना अच्छा लगता है क्या? तो 6 मास जैसे अभी उमंग से कर रहे हैं सेवा, रशिया का भी समाचार सुना, और अफ़्रीका का भी समाचार सुना, औरों का भी समाचार सुनते रहते हैं, कर रहे हैं।
अभी स्व सेवा के प्रति खास समय दे रहे हैं। अभी देख तो लिया, बापदादा ने कितने समय से दो शब्द बार-बार रिवाइज कराये हैं, वह दो शब्द कौन से हैं? अचानक और एवररेडी। याद है ना! याद है? आपकी बहुत अच्छी दादी चन्द्रमणि, अचानक गई थी, याद है? तभी से, कितना टाइम हो गया, (10 साल) और उसके बाद कितने अचानक के हुए हैं? आपकी दादी कैसे गई? अचानक गई ना। अच्छा दादी से प्यार है, तो यह अचानक का पाठ दादी को याद करके याद करो। जैसे दादी अपने लक्ष्य को पूरा करके गई, ऐसे नहीं गई। उसको सर्टीफिकेट मिला, कर्मातीत, कर्मेन्द्रियों ने भी अपनी आकर्षण में नहीं बांधा, साक्षी होके कर्मेन्द्रियां शीतल होती रही, होती रही। आकर्षण ने नहीं खींचा, न कर्मेन्द्रियों ने खींचा, न किसी आत्मा के मोह ने खींचा, निर्मोही, नष्टोमोहा, नहीं तो कई लोग जाते जाते याद में बोल पड़ते हैं, फलाना, फलाना, फलाना... लेकिन दादी नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप में गई, कर्मेन्द्रियां जीत बनके गई। कोई कर्मेन्द्रिय ने अपने तरफ दु:ख की लहर में नहीं खींचा। तो दादी कहते हो, याद आती है ना, आनी ही चाहिए क्योंकि नम्बरवन थी ना। तो वन नम्बर ने विन तो किया ना। लेकिन जब भी दादी की याद आवे तो सिर्फ चित्र नहीं देखना लेकिन यह याद करो कि मैं भी एवररेडी हूँ। मुझे भी अचानक का पाठ याद है? अभी-अभी मैं भी अचानक चली जाऊं, तो नष्टोमोहा, प्रकृतिजीत हूँ? यही दादी की सौगात सब अपने पास रखो। समझा।
अच्छा - चारों ओर के आये हुए पत्र सन्देश ईमेल सब बापदादा के पास पहुंच गये हैं। सबने अपने प्यार की निशानी, खुद नहीं आ सके तो पत्र द्वारा ईमेल द्वारा भेज दी है। बापदादा ने एक-एक दिल के प्यार के पत्र सन्देश सौगात स्वीकार की और हर एक को बापदादा अपने नयनों में इमर्ज कर, प्यार का रेसपान्ड यादप्यार के रूप में दे रहे है। अच्छा है यह परमात्म प्यार बहुत पुरूषार्थ में सहयोग देता है। तो हर एक बच्चा प्यारा है, प्यारे रहेंगे और प्यार के झूले में झूलते हुए बापदादा के साथ अपने घर चलेंगे। वह भी टाइम आ जायेगा। जो सब साथ चलेंगे, साथ चलने वाले हो ना। पीछे पीछे नहीं आना, मजा नहीं आयेगा। मजा है हाथ में हाथ, साथ में साथ, हाथ है श्रीमत, श्रीमत बुद्धि में होगी, आत्मा परमात्मा का साथ होगा और घर चलेंगे। चलने वाले हो ना सभी, रह नहीं जाना। अभी भी साथ है, चाहे किसी भी कोने में हो, लेकिन बाप साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और फिर ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे। पक्का वायदा है ना। बीच में नहीं रह जाना। कोई कस्टम की चीज़ होगी तो रूक जायेगी। रावण की चीज़ हुई ना कस्टम। कोई भी रावण का संस्कार, स्वभाव वह धर्मराज पुरी कस्टम में फंसा देगी। और बाप के साथ चले जायेंगे, और कोई अगर होगा तो कस्टम में रूकना पड़ेगा, अच्छा लगेगा। नहीं लगेगा ना? बाप को भी अच्छा नहीं लगेगा। जब वायदा है साथ का, तो सदा साथ रहना। पीछे वाले वायदा है ना पक्का, पीछे वाले हाथ उठाओ, पक्का वायदा है! अच्छा, ठीक है। जो भी आये हैं, जहाँ से भी आये हैं, एक तो साथ नहीं छोड़ना, हर समय बाप और आप, कितना मजा आयेगा। बाप और आप, मजा है ना। टीचर्स मजा है ना इसमें। कि कभी कभी अलग-अलग भी हो जाएं, अच्छा है, बाबा का साथ छोड़ देंगे! नहीं छोड़ना, पक्का? एक सेकेण्ड भी नहीं। इसी को ही सच्चा प्यार कहा जाता है। ठीक है ना? पक्का, पक्का, पक्का है! यह फोटो निकल रहा है आपका, वतन में निकल रहा है। इस कैमरा में तो आयेगा नहीं, वतन में निकल रहा है, बहुत अच्छा।
अच्छा, चारों ओर के सभी बापदादा के दिल पसन्द बच्चे, दिलाराम है ना, तो दिलाराम के दिल पसन्द बच्चे, प्यार के अनुभवों में सदा लहराने वाले बच्चे, एक बाप दूसरा न कोई, स्वप्न में भी दूसरा न कोई, ऐसे बापदादा के अति प्यारे और अति देहभान से न्यारे, सिकीलधे, पदमगुणा भाग्यशाली बच्चों को दिल का यादप्यार और पदम-पदमगुणा दुआयें हों, साथ में बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का नमस्ते।
अफ्रीका के 28 देशों से जो पहली बार आये हैं वह खड़े हुए:- बहुत अच्छा, भले पधारे। अफ्रीका के निमित्त बने हुए कहाँ है! देखो, आप कितने भाग्यवान हैं, स्वयं बाप ने आप बच्चों को याद किया और कोई न कोई द्वारा सन्देश भिजवाया। तो अपने भाग्य को देख करके खुश हो रहे हो ना! सभी आपको देखके खुश हो रहे हो, क्योंकि ब्राह्मण परिवार में वृद्धि हो गई ना। परिवार में कोई भी बढ़ता है तो खुशी होती है ना। तो सब देखो खुश हो रहे हैं आप सबको देख करके। दूसरे देशों से जो पहली बार आये हैं वह उठो:- मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
दादियों से:- सिकीलधी दादियां हैं ना। दादियां हैं या साथी हैं, लेकिन सिकीलधी हैं। (दादी जानकी से) बैठो। अभी तो सीट पर सेट हो ना। बापदादा ने निमित्त बनाया है। इस बच्ची को (गुल्जार दादी को) भी निमित्त बनाया है, दोनों तीनों मिलकर बहुत अच्छी रीति से स्व पुरूषार्थ और विश्व सेवा में और विधि से सिद्धि प्राप्त कराने के निमित्त बनेंगी। वह तो रिद्धि सिधि वाले हैं अल्पकाल के, आपकी है विधि से सिद्धि। विधि से सिद्धि के बजाए उन्होंने रिधि सिद्धि कर दी है। बापदादा ने दादी जानकी के सिर पर हाथ रखा) ठीक है ना। सभी मिलकर करेंगे, सभी मिल करके संगठन को उमंग-उत्साह में लायेंगे। यह तो निमित्त पहला नम्बर, दूसरा नम्बर, तीसरा नम्बर दे देते हैं लेकिन हैं सभी सेवा के साथी। एक दो को उमंग दिलाते आगे बढ़ेंगे और जो दादी का संकल्प रहा है, बाप को प्रत्यक्ष करने का, दादी ने भी बटन तो हाथ में लिया है लेकिन दबायेंगे तो आप ना। आप ही दबायेंगे ना। तो सभी मिलके, जो भी निमित्त बने हुए हैं, सभी मिलके एक दो में राय करके, क्योंकि संगठन की शक्ति बहुत जल्दी सहज कार्य कर लेती है। हाँ जी, हाँ जी करते विश्व को अपने चरणों में हाँ जी कराना है। तो संगठन तो अच्छा है। हर एक की विशेषता है, और विशेषता को आप लोग आपस में वर्णन भी करते हो। क्लास करते हो ना विशेषताओं का। बस विशेष हैं, विशेषतायें देखनी हैं, विशेषतायें देनी हैं। विशेष कार्य करने के लिए विशेषता देखो, विशेषता का एक दो में सहयोग दो। अच्छा है (दादी जानकी से) भारी तो नहीं हो ना। भारी तो नहीं होती ना! (भारी रहने का अक्ल ही नहीं है) अक्ल नहीं है, यही अच्छा है। यह बच्ची (गुल्जार दादी) भी आपको साथ देती है, यह सब साथी हैं। (परदादी भी खुशी में नाचती रहती है) अच्छा खुश रहती है, नाचती रहती है। (अच्छे गीत गाती है) दादी भी गीत गाती थी ना। बचपन के साथी हैं ना। (मनोहर दादी से) ठीक है ना। इसकी विशेषता यह है जो साकार बाप के समय सब तरफ चक्र लगाने में नम्बरवन थी। बापदादा कहता था चक्कर लगाओ, चक्कर लगाओ तो पहला नम्बर आप तैयार होती थी। अभी भी पहला नम्बर क्लास कराने में पहला नम्बर, संगठन में पहुंचने में, हर कार्य में पहला नम्बर। (अभी शांत ज्यादा रहती है) अभी बचपन को याद करो, बीमारी को नहीं, बचपन याद करो। (किडनी में स्टोन हो गया है) आजकल यह बीमारियां तो कामन है, बैठे बैठे भी हो जाता है। सोते, बैठते हो जाता है। न सोना है न बैठना है चक्कर लगाना है।
विदेश की मुख्य बड़ी बहिनों से:- अच्छा फॉरेन ग्रुप आया है। बापदादा को खुशी होती है कि निमित्त फॉरेन में भी इन्डिया की बहनें ही बनी हैं। इन्डिया ने फारेन में रौनक लाई है। लेकिन इन्डिया की समझके नहीं रहती हो, विश्व की समझके रहती हो तभी सेवा हो सकी है अगर इन्डिया का भान हो ना तो सेवा नहीं हो सके, लेकिन यह अच्छा किया है कि फॉरेन में जाते विश्व सेवा का लक्ष्य रखा है। बेहद में गई, हद में नहीं। इसीलिए बापदादा खुश है। और उन्हों को भी साथ लेकर चलते हो ना तो वह भी अपने को आगे से आगे समझते हैं। तो संगठन भी अच्छा एक दो में लेन देन भी अच्छी करते हो, ठीक है बापदादा को पसन्द है। सर्टीफिकेट अच्छा है। सारी विश्व कितना याद करती है। और यह भी अच्छा है लक्ष्य जो रखा है एक दो के तरफ चक्कर लगाने का, यह बहुत अच्छा किया है। जैसे एक देश की दूसरे देश में, बीच बीच में चक्कर लगाते हो यह रिफ्रेशमेंट बहुत जरूरी है। चाहे छोटी बहन हो लेकिन वह दूर से आके क्लास करायेगी चेंज होता है ना तो सबको अच्छा लगता है। बड़ी होते भी छोटी क्लास कभी कभी कराती है तो रौनक आती है। इसलिए यह सिस्टम अच्छी रखी है चक्कर लगाने की। तो अच्छा चल रहा है ना। अच्छा है। (इस बारी और कोई नवीनता आवे) (जर्मनी में बुक फेयर बहुत अच्छा रहा) दिन प्रतिदिन अनुभवी भी होते जाते हो ना, अनुभव भी काम करता है। तो अच्छा है। अच्छा चला रहे हैं।
31-10-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘अपने श्रेष्ठ स्वमान के फखुर में रह असम्भव को सम्भव करते बेफिक्र बादशाह बनो’’
आज बापदादा अपने चारों ओर के श्रेष्ठ स्वमानधारी विशेष बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे का स्वमान इतना विशेष है जो विश्व में कोई भी आत्मा का नहीं है। आप सभी विश्व की आत्माओं के पूर्वज भी हो और पूज्य भी हो। सारे सृष्टि के वृक्ष की जड़ में आप आधारमूर्त हो। सारे विश्व के पूर्वज पहली रचना हो। बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख खुश होते हैं। चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग मातायें हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं। हर एक की अलग-अलग विशेषतायें हैं। आजकल कितने भी बड़े ते बड़े साइंसदान हैं, दुनिया के हिसाब से विशेष हैं लेकिन प्रकृतिजीत तो बनें, चन्द्रमां तक भी पहुंच गये लेकिन इतनी छोटी सी ज्योति स्वरूप आत्मा को नहीं पहचान सकते। और यहाँ छोटा सा बच्चा भी मैं आत्मा हूँ, ज्योति बिन्दु को जानता है। फलक से कहता है मैं आत्मा हूँ। कितने भी बड़े महात्मायें हैं और ब्राह्मण मातायें हैं, मातायें फलक से कहती हमने परमात्मा को पा लिया। पा लिया है ना! और महात्मायें क्या कहते? परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। प्रवृत्ति वाले चैलेन्ज करते हैं कि हम सब प्रवृत्ति में रहते, साथ रहते पवित्र रहते हैं क्योंकि हमारे बीच में बाप है। इसलिए दोनों साथ रहते भी सहज पवित्र रह सकते हैं क्योंकि पवित्रता हमारा स्वधर्म है। पर धर्म मुश्किल होता है, स्व धर्म सहज होता है। और लोग क्या कहते? आग और कपूस साथ में रह नहीं सकते। बड़ा मुश्किल है और आप सब क्या कहते? बहुत सहज है। आप सबका शुरू शुरू का एक गीत था - कितने भी सेठ, स्वामी हैं लेकिन एक अल्फ को नहीं जाना है। छोटी सी बिन्दी आत्मा को नहीं जाना लेकिन आप सभी बच्चों ने जान लिया, पा लिया। इतने निश्चय और फखुर से बोलते हो, असम्भव सम्भव है। बापदादा भी हर एक बच्चे को विजयी रत्न देख हर्षित होते हैं क्योंकि हिम्मते बच्चे मददे बाप है। इसलिए दुनिया लिए जो असम्भव बातें हैं वह आपके लिए सहज और सम्भव हो गई हैं। फखुर रहता है कि हम परमात्मा के डायरेक्ट बच्चे हैं। इस नशे के कारण, निश्चय के कारण परमात्म बच्चे होने के कारण माया से भी बचे हुए हो। बच्चा बनना अर्थात् सहज बच जाना। तो बच्चे हो और सब विघ्नों से, समस्याओं से बचे हुए हो।
तो अपने इतने श्रेष्ठ स्वमान को जानते हो ना! क्यों सहज है? क्योंकि आप साइलेन्स की शक्ति द्वारा, परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते हो। निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेते हो। माया कितने भी समस्या के रूप में आती है लेकिन आप परिवर्तन की शक्ति से, साइलेन्स की शक्ति से समस्या को समाधान स्वरूप बना देते हो। कारण को निवारण रूप में बदल देते हो। है ना इतनी ताकत, कोर्स भी कराते हो ना! निगेटिव को पॉजिटिव करने की विधि सिखाते हो। यह परिवर्तन शक्ति बाप द्वारा वर्से में मिली है। एक ही शक्ति नहीं, सर्वशक्तियां परमात्म वर्सा मिला है, इसीलिए बापदादा हर रोज कहते हैं, हर रोज मुरली सुनते हो ना! तो हर रोज बापदादा यही कहते- बाप को याद करो और वर्से को याद करो। बाप की याद भी सहज क्यों आती है? जब वर्से की प्राप्ति को याद करते तो बाप की याद प्राप्ति के कारण सहज आ जाती है। हर एक बच्चे को यह रूहानी फखुर रहता है, दिल में गीत गाते हैं - पाना था वो पा लिया। सभी के दिल में यह स्वत: ही गीत बजता है ना! फखुर है ना! जितना इस फखुर में रहेंगे तो फखुर की निशानी है, बेफिक्र होंगे। अगर किसी भी प्रकार का संकल्प में, बोल में या सम्बन्ध-सम्पर्क में फिकर रहता है तो फखुर नहीं है। बापदादा ने बेफिक्र बादशाह बनाया है। बोलो, बेफिक्र बादशाह हो? है, हाथ उठाओ जो बेफिकर बादशाह हैं? बेफिकर कि कभी कभी फिकर आ जाता है? अच्छा है। जब बाप बेफिक्र है, तो बच्चों को क्या फिकर है। बापदादा ने तो कह दिया है सब फिक्र वा किसी भी प्रकार का बोझ है तो बापदादा को दे दो। बाप सागर है ना। तो बोझ सारा समा जायेगा। कभी बापदादा बच्चों का एक गीत सुनके मुस्कराता है। पता है कौन सा गीत? क्या करें, कैसे करें.... कभी कभी तो गाते हो। बापदादा तो सुनता रहता है। लेकिन बापदादा सभी बच्चों को यही कहते हैं हे मीठे बच्चे, लाडले बच्चे साक्षी-दृष्टा के स्थिति की सीट पर सेट हो जाओ और सीट पर सेट होके खेल देखो, बहुत मजा आयेगा, वाह! त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित हो जाओ। सीट से नीचे आते इसलिए अपसेट होते हो। सेट रहो तो अपसेट नहीं होंगे।
यह तीन चीज़ें बच्चों को परेशान करती हैं। कौन सी तीन चीज़ें? - चंचल मन, भटकती बुद्धि और क्या कहते हैं? पुराने संस्कार। बापदादा को बच्चों की एक बात सुनके हंसी आती है, पता है कौन सी बात है? कहते हैं बाबा क्या करें, मेरे पुराने संस्कार हैं ना! बापदादा मुस्कराता है। जब कह ही रहे हो, मेरे संस्कार, तो मेरा बनाया है? तो मेरे पर तो अधिकार होता ही है। जब पुराने संस्कार को मेरा बना दिया, तो मेरा तो जगह लेगा ना। क्या यह ब्राह्मण आत्मा कह सकती है मेरे संस्कार? मेरा-मेरा कहा है तो मेरे ने अपनी जगह बना दी है। आप ब्राह्मण मेरा नहीं कह सकते। यह पास्ट जीवन के संस्कार हैं। शूद्र जीवन के संस्कार हैं। ब्राह्मण जीवन के नहीं है। तो मेरा-मेरा कहा है तो वह भी मेरे अधिकार से बैठ गये हैं। ब्राह्मण जीवन के श्रेष्ठ संस्कार जानते हो ना! और यह संस्कार जिनको आप पुराने कहते हो, वह भी पुराने नहीं हैं, आप श्रेष्ठ आत्माओं का पुराने ते पुराना संस्कार अनादि और आदि संस्कार है। यह तो द्वापर मध्य के संस्कार हैं। तो मध्य के संस्कार को समाप्त कर देना, बाप की मदद से कोई मुश्किल नहीं है। होता क्या है? कि समय पर बाप कम्बाइन्ड है, उसे कम्बाइन्ड जान, कम्बाइन्ड का अर्थ ही है समय पर सहयोगी। लेकिन समय पर सहयोग न लेने के कारण मध्य के संस्कार महान बन जाते हैं।
बापदादा जानते हैं कि सभी बच्चे बाप के प्यार के पात्र हैं, अधिकारी हैं। बाबा जानते हैं कि प्यार के कारण ही सभी पहुंच गये हैं। चाहे विदेश से आये हैं, चाहे देश से आये हैं, लेकिन सभी परमात्म प्यार की आकर्षण से अपने घर में पहुंचे हैं। बापदादा भी जानते हैं प्यार में मैजॉरिटी पास हैं। विदेश से प्यार के प्लेन में पहुंच गये हो। बोलो, सभी प्यार की डोर में बंधे हुए यहाँ पहुंच गये हो ना! यह परमात्म प्यार दिल को आराम देने वाला है। अच्छा - जो पहली बार यहाँ पहुचे हैं वह हाथ उठाओ। हाथ हिलाओ। भले पधारे। अभी बापदादा ने होम वर्क दिया था, याद है होमवर्क? याद है? बापदादा के पास कई तरफ से रिजल्ट आई है। लेकिन अभी क्या करना है? सभी की रिजल्ट नहीं आई है। कोई की कितने परसेन्ट में भी आई है। बापदादा क्या चाहते हैं? बापदादा यही चाहते हैं कि सब पूज्यनीय आत्माये हैं। तो पूज्यनीय आत्माओं का विशेष लक्षण दुआ देना ही है। तो आप सभी जानते हो कि आप सभी पूज्यनीय आत्मायें है, तो यह दुआ देना, दुआ देना अर्थात् दुआ लेना अण्डरस्टुड हो जाता है। जो दुआ देता है, जिसको देते हैं उसकी दिल से बार-बार देने वाले के लिए दुआ निकलती है। तो पूज्य आत्मायें आपका तो निजी संस्कार है - दुआ देना। अनादि संस्कार है दुआ देना। जब आपके जड़ चित्र भी दुआ दे रहे हैं तो आप चैतन्य पूज्य आत्मायें दुआ देना यह तो नेचुरल संस्कार है। इसको कहो मेरा संस्कार। मध्य द्वापर के संस्कार नेचुरल हो गया है। नेचर हो गया है। वास्तव में यह संस्कार दुआ देने का नेचुरल नेचर है। जब किसी को दुआ देते हैं, तो वह आत्मा कितनी खुश होती है, वह खुशी का वायुमण्डल कितना सुखदाई होता है! तो जिन्होंने भी किया है उन सबको, चाहे आये हैं, चाहे नहीं आये हैं, लेकिन बापदादा के सामने हैं। तो उन्हों को बापदादा मुबारक दे रहे हैं। किया है और अपनी नेचुरल नेचर बनाते हुए आगे भी करते, कराते रहना। और जिन्होंने थोड़ा बहुत किया भी है, नहीं भी किया है तो वह सभी अपने को सदा मैं पूज्य आत्मा हूँ, मैं बाप की श्रीमत पर चलने वाली विशेष आत्मा हूँ, इस स्मृति को बार-बार अपनी स्मृति और स्वरूप में लाना क्योंकि हर एक से जब पूछते हैं कि आप क्या बनने वाले हो? तो सब कहते हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं। राम-सीता में कोई नहीं हाथ उठाता। जब लक्ष्य है, 16 कला बनने का। तो 16 कला अर्थात् परमपूज्य, पूज्य आतमा का कर्तव्य ही है दुआ देना। यह संस्कार चलते फिरते सहज और सदा के लिए बनाओ। हो ही पूज्य। हो ही 16 कला। लक्ष्य तो यही है ना!
बापदादा खुश है कि जिन्होंने भी किया है, उन्होंने अपने मस्तक में विजय का तिलक बाप द्वारा लगा दिया। साथ में सेवा के समाचार भी बापदादा के पास सबकी तरफ से, वर्गो की तरफ से, सेन्टर्स की तरफ से बहुत अच्छी रिजल्ट सहित पहुंच गये हैं। तो एक होमवर्क करने की मुबारक और साथ में सेवा की भी मुबारक। पदम-पदमगुणा है। बाप ने देखा कि गांव-गांव में सन्देश देने की सेवा बहुत अच्छे तरीके से मैजॉरिटी एरिया में की है, तो यह सेवा भी रहमदिल बनकर सेवा के उमंग-उत्साह में रिजल्ट भी अच्छी दिखाई दी है। जिन्होंने भी मेहनत नहीं, लेकिन बाप से प्यार अर्थात् सन्देश देने से प्यार, तो प्यार के मुहब्बत में सेवा की है तो बाप की भी पदम पदमगुणा प्यार का रिटर्न सब सेवाधारियों को स्वत: ही प्राप्त है, होगा। साथ में सभी ने अपनी प्यारी दादी को बहुत स्नेह से याद करते हुए, दादी को प्यार का रिटर्न दे रहे हैं, यह प्यार की खुशबू बापदादा के पास बहुत अच्छी तरह से पहुंच गई है। और अभी भी जो भी मधुबन में कार्य चल रहे हैं, चाहे विदेशियों के, चाहे भारत के वह सब कार्य भी एक दो के सहयोग, सम्मान के आधार से बहुत अच्छे सफल हुए हैं और आगे भी होने वाले कार्य सफल हुए पड़े हैं क्योंकि सफलता तो आपके गले का हार है। बाप के गले के भी हार हो, बाप ने याद दिलाया था कि कभी भी हार खाना नहीं क्योंकि आप बाप के गले के हार हो। तो गले का हार कभी हार नहीं खा सकता। तो हार बनना है या हार खानी है? नहीं ना! हार बनना अच्छा है ना! तो हार कभी नहीं खाना। हार खाने वाले तो अनेक करोड़ों आत्मायें हैं, आप हार बनके गले में पिरोये गये हो। ऐसे है ना! तो संकल्प करो बाप के प्यार में कितना भी माया तूफान सामने लाये लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के आगे तूफान भी तोहफा बन जायेगा। ऐसा वरदान सदा याद करो। कितना भी ऊंचा पहाड़ हो, पहाड़ बदल के रूई बन जायेगा। अभी समय की समीपता प्रमाण वरदानों को हर समय अनुभव में लाओ। अनुभव की अथॉरिटी बनो। जब चाहो तब अपने अशरीरी बनने की, फरिश्ता स्वरूप बनने की एक्सरसाइज करते रहो। अभी-अभी ब्राह्मण, अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी अशरीरी, चलते फिरते, कामकाज करते हुए भी एक मिनट, दो मिनट निकाल अभ्यास करो। चेक करो जो संकल्प किया, वही स्वरूप अनुभव किया? अच्छा।
चारों ओर के सदा श्रेष्ठ स्वमानधारी, सदा स्वयं को परमपूज्य और पूर्वज अनुभव करने वाले, सदा अपने को हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनाने वाले, सदा बाप के दिलतख्त नशीन, भृकुटी के तख्तनशीन, सदा श्रेष्ठ स्थिति के अनुभवों में स्थित रहने वाले, चारों ओर के सभी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
सभी तरफ से सभी के पत्र, ईमेल, समाचार सभी बापदादा के पास पहुंच गये हैं, तो सेवा का फल और बल, सभी सेवाधारियों को प्राप्त है और होता रहेगा। प्यार के पत्र भी बहुत आते हैं, परिवर्तन के पत्र भी बहुत आते हैं। परिवर्तन की शक्ति वालों को बापदादा अमर भव का वरदान दे रहे हैं। सेवाधारियों को जिन्होंने बहुत श्रीमत को फॉलो किया है, ऐसे फॉलो करने वाले बच्चों को बापदादा सदा फरमानबरदार बच्चे वाह! यह वरदान दे रहे हैं और प्यार वालों को बहुत-बहुत प्यार से दिल में समाने वाले अति प्यारे और अति माया के विघ्नों से न्यारे ऐसा वरदान दे रहे हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न कर्नाटक जोन का है:- सभी के हाथ में झण्डे झण्डियां हैं, सभी झण्डियों तो बहुत अच्छी हिला रहे हैं, अच्छा है। कर्नाटक वालो ने प्रोग्राम भी बहुत अच्छा स्वार्णिम कर्नाटक ऐसा किया है ना। तो यह प्रोग्राम भी बापदादा ने भिन्न-भिन्न स्थानों का देखा भी है, सुना भी है और मैजारिटी ने अच्छे उमंग-उत्साह से गांव-गांव में बापदादा का सन्देश पहुंचाया है। इसीलिए बापदादा कर्नाटक के सेवाधारियों को बहुत-बहुत सेवा की और श्रीमत के पालन करने की मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा है, सेवा का जो चांस लिया है वह भी सभी सन्तुष्ट है और सन्तुष्ट किया है, इससे अपने जमा का खाता बहुत अच्छा जमा किया है। कर्नाटक की संख्या भी कम नहीं है, संख्या अच्छी है और जैसे अभी संगठित रूप में मिलकर निर्विघ्न सेवा का रिकार्ड दिखाया है, ऐसे ही आगे भी कर्नाटक संगठित रूप में बहुत कुछ कमाल कर सकते हैं। बापदादा के पास नक्शा है, कमाल कर सकते हैं। इसलिए संगठित रूप का जलवा दिखाना। अभी अच्छा किया है। सारा परिवार कर्नाटक पर खुश है। अच्छा - बापदादा ने कर्नाटक वालों को काम दिया था, याद है। क्या दिया था! वारिस क्वालिटी निकाले के लिए, याद है? सेवा में तो नम्बर लिया अच्छा, अभी इतने वारिस निकालो जो नम्बरवन आ जाओ। जो निमित्त हैं वह तो हैं, नये नये निकालो। तो बापदादा सभी बच्चों को देख खुश है। आप भी खुश है, बाप भी खुश है। जितना आप बाप को देखकर खुश होते हैं, उससे ज्यादा बच्चों को देख बाप खुश होते हैं। (कर्नाटक ने शुरू से अच्छे अच्छे वारिस निकाले हैं) अभी और भी निकालेंगे। ह्दयपुष्पा को रिटर्न तो देंगे ना। एडवांस पार्टी में वह भी वतन में इमर्ज होती है ना तो सब समाचार सुनते हैं। उसने अच्छे अच्छे वारिस निकाले हैं। लेकिन नम्बरवन वारिस निकालने में अभी नम्बरवन। पहले के तो हैं ही, है ना हिम्मत। टीचर्स हिम्मत है? हाथ उठाओ, हिम्मत है? सभी में हिम्मत है, बहुत हिम्मत है। तो बाप की भी बहुत-बहुत मदद है। अच्छा है। सेवा भी अच्छी की है, फर्स्ट टर्न मिला है। फर्स्ट टर्न में सब बात में फास्ट, तीव्र पुरूषार्थ। अच्छा - सबने बहुत दिल से सेवा की ना। थकावट तो नहीं हुई? थके नहीं ना! अथक बनके सेवा की। अच्छा।
डबल विदेशी, 60 देशों से 600 आये हैं:- अभी बापदादा ने देखा है कि विदेश में भी सेवा का उमंग अच्छा बढ़ रहा है। पहले कहते थे विदेश में स्टूडेन्ट बनना बड़ा मुश्किल है और अभी क्या है? अभी मुश्किल है या सहज है? सहज है? और बापदादा को बहुत अच्छा लगा कि आपस में मिलकर निर्विघ्न बनाने का प्लैन बनाया है और निर्विघ्न बनाने का प्लैन बहुत विधि पूर्वक निर्विघ्न बनाया है। इसकी बहुत-बहुत मुबारक हो, पदमगुणा मुबारक हो। जो भी प्रोग्राम किये हैं वह बहुत सफल रहे हैं। तो सदा सफलता की मुबारक है और सदा मुबारक पात्र रहेंगे। बापदादा को सेवा का प्रत्यक्ष फल देख करके भी खुशी है। यह काल आफ टाइम के आये हैं ना! हाथ उठाओ जो काल आफ टाइम में आये हैं। अच्छा। बहुत अच्छा किया। बहुत चतुर हैं। पहले ही आ गये हैं। अच्छा किया, बाप को भी बहुत प्यारे हो। और आपका भी बाप से प्यार है इसीलिए पहुंच गये हो। तो सभी ब्राह्मण परिवार की तरफ से, बाप की तरफ से भी आप एक एक को पदमगुणा मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है। अच्छा है यह सभी बहुत अच्छे फॉरेन सेवा के लिए माइक और बच्चे दोनों पार्ट बजायेंगे। बच्चों का भी पार्ट बजायेंगे और माइक और लाइट बनके सेवा में और वृद्धि को प्राप्त करायेंगे। तो सभी ब्राह्मणों की तरफ से, बाप की तरफ से आप सबको मुबारक हो। अच्छा है। इस ईश्वरीय नॉलेज की प्रोपोगण्डा अब विदेश में भी निमित्त बनके कर रहे हो। अभी वहाँ भी आवाज फैल रहा है, अच्छी तरह से फैल रहा है और ड्रामानुसार आप सबकी और बाप की प्यारी दादी के निमित्त भी चारों ओर ब्राह्मण परिवार का बाप का नाम अच्छा प्रत्यक्ष हो गया है। दादी ने नाम प्रत्यक्ष किया, नाम और काम दो चीज़ होती हैं तो दादी ने नाम बहुत अच्छा फैलाया, अभी उन आत्माओं को अपना बनाना यह काम आपका है।
बापदादा ने देखा कि जैसे अभी हर साल वृद्धि करके बाप के सामने ला रहे हो, ऐसे आगे भी ज्यादा से ज्यादा वृद्धि करते रहेंगे। बाप और अपनी प्रत्यक्षता करते रहेंगे। अच्छा ग्रुप है। सभी निश्चयबुद्धि और ईश्वरीय नशे में रहने वाले, उड़ने वाले हैं। चलने वाले नहीं बनना, उड़ने वाले। चलने वाले समय पर नहीं पहुंच सकेंगे, उड़ने वाले बनना। डबल लाइट। बाकी बापदादा खुश है। जो किया वह सफल हो गया। तो आप सब कौन हुए? सफलता के सितारे। अच्छा है। बहुत अच्छा।
पोलीटिशियन, महिला और सिक्युरिटी तीन विंग आई हैं:- देखों कितने उमंग-उत्साह से सभी विंग सेवा कर रहे हैं। तीनों की रिजल्ट अच्छी है। गवर्मेन्ट में भी आवाज अच्छा फैल रहा है। तो सेवा की है तभी आवाज फैल रहा है। तो आपके वर्ग ने अच्छे प्लैन बनाके बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा अच्छा फैला रहे हैं। पहले तो कोई मुश्किल से आता था और अभी खुद कहते हैं हम भी आने चाहते हैं। फर्क हो गया ना। अभी खुद ही कहते हैं कि आपके यहाँ कार्य बहुत अच्छा सफल होता है। तो अभी आंख खुलने शुरू हो गई है। धीरे-धीरे आंख खुल जायेगी। वैसे सभी वर्ग अपने अपने वर्ग में सेवा अच्छी कर रहे हैं। महिला वर्ग भी कर रहा है, सिक्युरिटी वर्ग भी कर रहा है, पोलीटिशन भी कर रहा है। लेकिन बापदादा ने देखा है कि दिनप्रतिदिन वर्गो के प्रमाण सेवा करने का उमंग अच्छा बढ़ रहा है। लोगों को रोकना पड़ता है, नहीं आओ। पहले आने के लिए मेहनत करनी पड़ती थी अभी संख्या से ज्यादा आ जाते हैं। क्वान्टिटी और क्वालिटी दोनों ही आ रहे हैं। लेकिन क्वालिटी भी आने शुरू हो गई है इसीलिए तीनों ही वर्गो के सेवाधारियों को बापदादा की तरफ से और ब्राह्मण परिवार की तरफ से मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। और आपकी दादी ने तो सभी वर्गो में सेवा की वृद्धि का कलम लगा दिया है। दादी भी आप सभी को बहुत याद देती है। उसका भी मन संगम पर है और तन एडवांस पार्टी की तरफ है। अच्छा है। ट्रेनिंग की टीचर्स और इन्दौर,
नडियाद होस्टल की कुमारियां:- (बाबा ही हमारा संसार है यह बैनर दिखा रहे हैं) अच्छा है स्लोगन तो बहुत अच्छा लिखा है, ऐसा ही रोज अमृतवेले यह स्लोगन याद करना, सभी कुमारियां चाहे इन्दौर की हैं, चाहे मधुबन की ट्रेनिंग की है चाहे नड़ियाद की हैं लेकिन सभी कुमारियां अमृतवेले से यह स्लोगन याद करना है क्योंकि बाबा ही हमारा संसार है। तो सारी आकर्षण, सारा दिल का प्यार कहाँ जायेगा? बाबा में। नयनों में सदा कौन दिखाई देगा? बाबा। मुख में सदा क्या निकलेगा? बाबा। और चेहरे में सदा बाप का नशा दिखाई देगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा ही बाप से सर्व सम्बन्ध जुटे रहेंगे। तो क्या हो जायेंगे? नो प्राब्लम। दादी के दो अक्षर याद है। दादी बार बार कहती है निर्विघ्न और निर्विकल्प। तो दादी से प्यार है ना, सभी कुमारियों का प्यार है दादी से। बहुत प्यार है। तो जो प्यारा होता है ना, उनके बोल, उनके शब्द सदा कानों में गूंजते रहते हैं। तो सदा यह बुद्धि में कानों में आवाज आता रहे निर्विघ्न और निर्विकल्प बनना ही है। बनेंगी ना। बनेंगी, बनेंगी, जरूर बनेंगी। क्योंकि बापदादा का कुमारियों के तरफ बहुत अटेन्शन है और कुमारियां लकी भी हैं। भाई, पाण्डव सेना जो हैं ना, वह हंसती है, कहते हैं कुमारियां तो जल्दी दादी बन जाती हैं। और पाण्डव को दादा नहीं कहते हैं। भाई कहते हैं। तो देखो आपका लक कितना बढ़िया है। आते ही लक प्राप्त हो जाता है। बापदादा का, गुरू का तख्त मिल जाता है। यह मुरली का तख्त गुरू का तख्त है। इसीलिए बापदादा टीचर्स को गुरूभाई कहता है। तो याद रखना गुरूभाई हैं। गुरू का तख्त मिला है। अच्छा है। यह ट्रेनिंग की जो विधि रखी है उससे अच्छी रिजल्ट निकलेगी। लेकिन आप सभी आपेही अपना चार्ट मधुबन में भेजते रहना। सिर्फ ओ.के. लिखना ज्यादा नहीं लिखना। अगर और कोई कारण हो या कुछ न कुछ कमज़ोरी हो तो ओ.के. के बीच में लाइन लगा देना। बाकी ज्यादा नहीं पत्र लिखना, बस। अच्छा है। टीचर्स भी अच्छी मेहनत कर रही हैं। बापदादा तो देखते हैं कि किसी भी डिपार्टमेंट के लिए मेहनत नहीं कर रहे हैं, अभी यह नहीं है, मेहनत सब कर रहे हैं। चाहे स्थूल सेवा वाले भी मेहनत बहुत कर रहे हैं। अभी एक बात चाहिए सुनाये क्या? एक बात जैसे सेवा में, कार्य में हर डिपार्टमेंट, हर वर्ग, हर सेन्टर, हर जोन, सेवा बढ़ा रहा है। लेकिन अभी आवश्यकता है - एकता और एकानामी की। यह दो चीज़ें, सम्मान देना और सम्मान लेना। तो एकता, हर एक के सहयोग की अंगुली है ही है। चाहे महारथी हैं, चाहे थोड़ा कम पुरूषार्थी हैं, लेकिन हर एक का सहयोग तो है। अगर कर्मणा करने वाले का सहयोग नहीं मिलता तो आप सेवा कैसे करते, टाइम पर कैसे निकलते, टाइम पर कैसे सेवा करते। ठीक है ना। हर एक विशेष है। सम्मान के अधिकारी हैं इसीलिए हरेक छोटे बड़े को सम्मान दो और सम्मान लो। दो अक्षर याद रखना - एकता और एकॉनामी। बाकी सब अच्छा है। (ट्रेनिंग कराने वाली टीचर्स) बहुत अच्छा, उमंग उल्हास में लाया, इसकी मुबारक हो। अच्छा। बापदादा तो एक-एक को देखकर, एक-एक की विशेषता को देखकर बहुत खुश होते हैं।
कर्नाटक की माताओं से:- मातायें ठीक हैं? मातायें हाथ उठाओ। बहुत हैं। कर्नाटक की मातायें उठो। अच्छा है, माताओं की संख्या तो अच्छी है। अभी कर्नाटक की मातायें क्या कमाल दिखायेंगी? कोई नई कमाल दिखाना। सेवा तो करती हो लेकिन अभी कोई नई मातायें अपनी चलन दिखाना और बापदादा का वरदान है माताओं को, कि जहाँ सेन्टर पर मातायें ज्यादा होती हैं, सेन्टर पर सेवा करती हैं, वहाँ भण्डारा और भण्डारी दोनों बहुत भरपूर रहती हैं। चाहे कमाती नहीं हैं लेकिन दिल बड़ी है। तो माताओं की महिमा बापदादा भी करते हैं, आदि से शुरूआत से, जब सेवाकेन्द्र खुले तो जहाँ मातायें रही हैं वहाँ कभी भी न भण्डारा खाली रहा है, न भण्डारी खाली रही है। इसीलिए मातायें पालन करने वाली है ना! तो नई नई आत्माओं की पालना बहुत अच्छी होती है। अच्छा।
कर्नाटक के पाण्डव:- अच्छा, हर सेन्टर पर पाण्डवों की भी आवश्यकता है क्योंकि पाण्डव आलराउण्ड सेवा में मददगार बनते हैं। चाहे हार्ड वर्कर में चाहे बाहर अन्दर सन्देश फैलाने में पाण्डव अच्छे मददगार बनते हैं और पाण्डव सेन्टर को चलाने और आगे बढ़ाने के लिए भी निमित्त बनते हैं। पाण्डव भी कम नहीं हैं। इसीलिए आपको याद है, पाण्डव और शक्तियां दोनों की आवश्यकता है इसका चतुर्भुज रूप दिखाया गया है। चतुर्भुज रूप में एक नहीं है, दोनों साथ हैं। मातायें पाण्डवों से आगे हैं, और पाण्डव माताओं से आगे हैं। तो अच्छा है कर्नाटक में पाण्डवों की भी कमी नहीं हैं, माताओं की भी कमी नहीं हैं और अच्छे-अच्छे जैसे जनक बच्ची ने कहा ना, तो कर्नाटक में बहुत वारिस पहले-पहले निकले हैं, यह राइट है। अभी उन्हों को ऐसे वारिस तैयार करने हैं, ठीक है ना। उमंग है ना। तो दूसरे वर्ष रिजल्ट तो बतायेंगे ना, कितने वारिस निकले। रिजल्ट बताना फिर बापदादा बुलायेगा। पहले रिजल्ट देखेगा। वर्ग वाले भी पहले लिस्ट निकालो, फॉरेन वाले भी ऐसे, नये नये वारिस निकालो, उसकी लिस्ट अगले वर्ष में ले आना फिर बापदादा बुलायेगा।
ठीक है, टीचर्स। टीचर्स सभी उठो:- टीचर्स भी कम नहीं हैं। बापदादा तो सभी टीचर्स को गुरूभाई देखते हैं। गुरूभाई का अर्थ है बाप समान। तो टीचर्स को विशेष हर कर्म बाप समान करना ही है। करेंगे नहीं, करना ही है क्योंकि टीचर्स बाप की तरफ से स्टूडेन्ट के आगे एक निमित्त साकार रूप में बाप समान हैं। टीचर का हर कर्म स्टूडेन्ट के आगे बाप समान दिखाई दे। सबके मुख से निकले यह तो बाप को फॉलो कर बाप समान बने हुए हैं। तो ऐसा लक्ष्य है ना। यही लक्ष्य है ना। कांध हिलाओ। टीचर निमित्त हैं। तो निमित्त के ऊपर जिम्मेवारी भी है ना। तो कर रही हो। लेकिन
और भी आगे करना है। लक्ष्य बहुत अच्छा है। और बाप तो यही हर टीचर में शुभ भावना रखते हैं कि बाप समान बनना ही है। और क्या करेंगी? और कोई रास्ता है क्या, समान बाप के बनने के और कोई रास्ता नहीं है इसीलिए देखो इन्होंने यह स्लोगन बनाया है, बाप ही संसार है। अच्छा बनाया है। लेकिन कपड़े पर नहीं रह जाये, दिल में रह जाए। अच्छी हैं टीचर्स। संगठन तो बहुत बढ़िया है। अभी कमाल करेंगी। जैसे अभी कमाल करके दिखाई ना। स्वार्णिम कनार्टक का अच्छा जलवा दिखाया अच्छा, ऐसे आगे भी कमाल दिखायेंगी। बाप की शुभ भावना है। ठीक है। अच्छा। अभी सबके दिल में क्या उमंग आ रहा है? एक ही उमंग बाप समान बनना ही है। है यह उमंग? पाण्डव, हाथ उठाओ। बनना ही है। बनेंगे, गे गे नहीं करना। देखेंगे, बनेंगे, गे गे नहीं करना... लेकिन बनना ही है। पक्का। पक्का? अच्छा। हर एक अपना ओ.के. का कार्ड अपने टीचर के पास चार्ट के रूप में देते रहना। ज्यादा नहीं लिखो, बस एक कार्ड ले लो उसमें ओ.के. लिखो या लाइन डालो बस। यह तो कर सकते हो ना। लम्बा पत्र नहीं। अच्छा।
दादियों से:- (जानकी दादी ने बापदादा को गले लगाया) सभी आपस में हाथ मिलाओ। बहुत अच्छा। (परदादी कलकत्ता जा रही है) कलकत्ते में चक्कर लगाने जा रही है। चक्कर लगाने जाना चाहिए। आप सभी भी सभी को हिम्मत, उमंग उत्साह दिलाने के निमित्त बन यही सेवा करते रहते हो ना! क्योंकि आज हिम्मत और उमंग उत्साह सदा कायम रहे, इसी की आवश्यकता है। तो सभी को जो भी सामने आये, उसको हिम्मत उमंग उत्साह सेकेण्ड की दृष्टि से भी प्राप्त हो। क्योंकि आप सभी मास्टर दाता हो। जो भी आवे, कुछ ले जावे। चाहे स्नेह ले जाये, चाहे सहयोग ले जाये। चाहे हिम्मत ले जाये। चाहे उमंग ले जाये, कुछ न कुछ ले जावे क्योंकि दाता के बच्चे हैं। वैसे तो सभी का काम यह है, कभी भी किससे मिलते हो, कोई मिलने आता है, खाली हाथ नहीं जाये। चलो दृष्टि का स्नेह ले जाये, टाइम नहीं है, बात करने की आवश्यकता भी नहीं रहती है, लेकिन जो आया वह गया कैसे? कुछ ले गया। सेकण्ड की दृष्टि से भी बहुत कुछ ले सकते हैं। दृष्टि की रूहानियत वा दृष्टि से दिल का स्नेह तो सेकण्ड में भी ले सकते हैं। अभी ब्राह्मणों का आपस में मिलना यह होना चाहिए। तभी आपका वायुमण्डल विश्व में स्नेह, सहयोग, हिम्मत फैलायेगा। सभी ब्राह्मण जो अपने को ब्रह्माकुमार कुमारी समझते हैं, उनको ऐसे ही सेवा में बिजी रहना है। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सेकण्ड तो मिला ना। मिनट भी मिला ना। गाया हुआ है नज़र से निहाल। तो ऐसे संगठन में लहर फैलाओ फिर टाइम देने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। अच्छा।
डबल विदेशी टीचर्स बहनों से:- आप सबने आपस में मिलकर अच्छा पार्ट बजाया। सब प्रोग्राम अच्छे ते अच्छे रहे। ऐसे ही सदा एक दो को सम्मान देते हुए, सहयोग देते हुए कार्य को सफल कर सकते हो। सफलता का तो वरदान है ही। निमित्त बनने वालों को तो विशेष बापदादा की तरफ से एकस्ट्रा सहयोग मिलता है। तो हर एक ने अपना-अपना अच्छा पार्ट बजाया। बापदादा खुश है। अपना कार्य पूरा किया तो अभी रहो या जाओ आपके ऊपर है। जिसकी ड्युटी होगी वह तो रूकेगी। बाकी अच्छी हिम्मत की और ड्रामानुसार आप लोग ही निमित्त बने हुए हो क्योंकि कन्ट्रोलिंग पावर है आपमें, चला सकती हो। अच्छा है, बापदादा खुश है।
30-11-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सत्यता और पवित्रता की शक्ति को स्वरूप में लाते बालक और मालिकपन का बैलेन्स रखो’’
आज सत बाप, सत शिक्षक, सतगुरू अपने चारों ओर के सत्यता स्वरूप, शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं क्योंकि सत्यता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ है। इस सत्यता की शक्ति का आधार है सम्पूर्ण पवित्रता। मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क, स्वप्न में भी अपवित्रता का नाम निशान न हो। ऐसी पवित्रता का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या दिखाई देता? ऐसी पवित्र आत्मा के चलन और चेहरे में स्पष्ट दिव्यता दिखाई देती है। उनके नयनों में रूहानी चमक, चेहरे में सदा हर्षितमुखता और चलन में हर कदम में बाप समान कर्मयोगी। ऐसे सत्यवादी सत बाप द्वारा इस समय आप सभी बन रहे हो। दुनिया में भी कई अपने को सत्यवादी कहते हैं, सच भी बोलते हैं लेकिन सम्पूर्ण पवित्रता ही सच्ची सत्यता शक्ति है। जो इस समय इस संगमयुग में आप सभी बन रहे हो। इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति है - सत्यता की शक्ति, पवित्रता की शक्ति। जिसकी प्राप्ति सतयुग में आप सभी ब्राह्मण सो देवता बन आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र बनते हो। सारे सृष्टि चक्र में और कोई भी आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र नहीं बनते। आत्मा से पवित्र बनते भी हैं लेकिन शरीर पवित्र नहीं मिलता। तो ऐसी सम्पूर्ण पवित्रता इस समय आप सब धारण कर रहे हो। फलक से कहते हो, याद है क्या फलक से कहते हो? याद करो। सभी दिल से कहते हैं, अनुभव से कहते हैं कि पवित्रता तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, जन्म सिद्ध अधिकार सहज प्राप्त होता है क्योंकि पवित्रता वा सत्यता प्राप्त करने के लिए आप सभी ने पहले अपने सत स्वरूप आत्मा को जान लिया। अपने सत बाप, शिक्षक, सतगुरू को पहचान लिया। पहचान लिया और पा लिया। जब तक कोई अपने सत स्वरूप वा सत बाप को नहीं जानते तो सम्पूर्ण पवित्रता, सत्यता की शक्ति आ नहीं सकती। तो आप सभी सत्यता और पवित्रता की शक्ति के अनुभवी है ना! हैं अनुभवी? अनुभवी हैं? वह लोग प्रयत्न रते हैं लेकिन यथार्थ रूप में ना अपने स्वरूप, न सत बाप के यथार्थ स्वरूप को जान सकते। और आप सबने इस समय के अनुभव द्वारा पवित्रता को ऐसे सहज अपनाया जो इस समय की प्राप्ति का प्रालब्ध देवताओं की पवित्रता नेचरल है और नेचर है। ऐसी नेचरल नेचर का अनुभव आप ही प्राप्त करते हो। तो चेक करो कि पवित्रता वा सत्यता की शक्ति नेचरल नेचर के रूप में बनी है? आप क्या समझते हो? जो समझते हैं कि पवित्रता तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है वह हाथ उठाओ। जन्म सिद्ध अधिकार है कि मेहनत करनी पड़ती है? मेहनत करनी तो नहीं पड़ती ना! सहज है ना! क्योंकि जन्मसिद्ध आधिकार तो सहज प्राप्त हाता है | मेहनत नह करनी पड़ती। दुनिया वाले असम्भव समझते हैं और आपने असम्भव को सम्भव और सहज बना दिया है।
जो नये नये बच्चे आये हैं, जो पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा जो नये नये बच्चे हैं, मुबारक हो नये पहली बार आने वालों को क्योंकि बापदादा कहते हैं कि भले लेट तो आये हो लेकिन टू लेट में नहीं आये हो। और नये बच्चों को बापदादा का वरदान है कि लास्ट वाला भी फास्ट पुरूषार्थ कर फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। फर्स्ट नम्बर नहीं लेकिन फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। तो नये बच्चों को इतनी हिम्मत है, हाथ उठाओ जो फर्स्ट आयेंगे। देखना टी.वी. में आपका हाथ दिखाई दे रहा है। अच्छा। हिम्मत वाले हैं। मुबारक हो हिम्मत की। और हिम्मत है तो बाप की तो मदद है ही लेकिन सर्व ब्राह्मण परिवार की भी शुभ भावना, शुभ कामना आप सबके साथ है। इसलिए जो भी नये पहले बारी आये हैं उन सबके प्रति बापदादा और परिवार की तरफ से दुबारा पदमगुणा बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। आप सभी जो पहले आने वाले हैं उन्हों को भी खुशी हो रही है ना! बिछुड़ी हुई आत्मायें फिर से अपने परिवार में पहुंच गये हैं। तो बापदादा भी खुश हो रहे हैं और आप सब भी खुश हो रहे हैं।
बापदादा ने वतन में दादी के साथ एक रिजल्ट देखी। क्या रिजल्ट देखी? आप सभी जानते हो, मानते हो कि हम मालिक सो बालक हैं। हैं ना! मालिक भी हो, बालक भी हो। सभी हैं? हाथ उठाओ। सोच के उठाना, ऐसे नहीं। हिसाब लेंगे ना! अच्छा, हाथ नीचे करो। बापदादा ने देखा कि बालकपन का निश्चय और नशा यह तो सहज रहता है क्योंकि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो बालक हो तभी तो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हो। और सारा दिन मेरा बाबा, मेरा बाबा यही स्मृति में लाते हो फिर भूल भी जाते हो लेकिन बीच-बीच में याद आता है। और सेवा में भी बाबा बाबा शब्द नेचरल मुख से निकलता है। अगर बाबा शब्द नहीं निकलता तो ज्ञान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभाव जो भी सेवा करते हो, भाषण करते हो, कोर्स कराते हो, भिन्न-भिन्न टॉपिक पर करते हो। सच्ची सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप वा प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि सुनने वाले भी अनुभव करें कि मैं भी बाबा का हूँ। उनके मुख से भी बाबा बाबा शब्द निकले। कोई ताकत है, यह नहीं। अच्छा है, यह नहीं। लेकिन मेरा बाबा अनुभव करें इसको कहेंगे सेवा का प्रत्यक्ष फल। तो बालकपन का नशा वा निश्चय फिर भी अच्छा रहता है। लेकिन मालिकपन का निश्चय और नशा नम्बरवार रहता है। बालकपन से मालिकपन का प्रैक्टिकल चलन और चेहरे से नशा कभी दिखाई देता है, कभी कम दिखाई देता है। वास्तव में आप डबल मालिक हो एक बाप के खज़ानों के मालिक हो। सभी मालिक हो ना खज़ानों के? और बाप ने सभी को एक जितना ही खज़ाना दिया है। कोई को लाख दिया हो, कोई को हजार दिया हो, ऐसा नहीं है। सभी को सब खज़ाने बेहद के दिये हैं क्योंकि बाप के पास बेहद के खज़ाने हैं। कम नहीं हैं। तो बापदादा ने सभी को सर्व खज़ाने दिये हैं और एक जैसे, एक जितने दिये हैं। और दूसरा मालिक है - स्व राज्य के मालिक हो। इसीलिए बापदादा फलक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है। तो राजा बच्चे हो ना! प्रजा तो नहीं? राजयोगी हो कि प्रजायोगी हो? राजयोगी हो ना! तो स्वराज्य के मालिक हो।
लेकिन बापदादा ने दादी के साथ रिजल्ट देखा - तो जितना बालकपन का नशा रहता है, उतना मालिकपन का कम रहता है। क्यों? अगर स्वराज्य के मालिकपन का नशा सदा रहता तो यह जो बीच-बीच में समस्यायें वा विघ्न आते हैं वह आ नहीं सकते। वैसे देखा जाता है तो समस्या वा विघ्न आने का आधार विशेष मन है। मन ही हलचल में आता है। इसीलिए बापदादा का महामन्त्र भी है मनमनाभव। तनमनाभव, धनमनाभव नहीं है, मनमनाभव है। तो अगर स्वराज्य का मालिक है तो मन मालिक नहीं है। मन आपका कर्मचारी है, राजा नहीं है। राजा अर्थात् अधिकारी। अधीन वाले को राजा नहीं कहा जाता है। तो रिजल्ट में क्या देखा? कि मन का मालिक मैं राज्य अधिकारी मालिक हूँ। यह स्मृति, यह आत्म स्थिति की सदा स्थिति कम रहती है। है पहला पाठ, आप सबने पहला पाठ क्या किया था? मैं आत्मा हूँ, परमात्मा का पाठ दूसरा नम्बर है। लेकिन पहला पाठ मैं मालिक राजा इन कर्मेन्द्रियों का अधिकारी आत्मा हूँ। शक्तिशाली आत्मा हूँ। सर्वशक्तियां आत्मा के निजीगुण हैं। तो बापदादा ने देखा कि जो मैं हूँ, जैसा हूँ, उसको नेचरल स्वरूप स्मृति में चलना, रहना, चेहरे से अनुभव होना, समस्या से किनारा होना, इसमें अभी और अटेन्शन चाहिए। सिर्फ मैं आत्मा नहीं, लेकिन कौन सी आत्मा हूँ, अगर यह स्मृति में रखो तो मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा के आगे समस्या वा विघ्न की कोई शक्ति नहीं जो आ सके। अभी भी रिजल्ट में कोई न कोई समस्या वा विघ्न दिखाई देता है। जानते हैं लेकिन चलन और चेहरे में निश्चय का प्रत्यक्ष स्वरूप रूहानी नशा वह और ही प्रत्यक्ष होना है। इसके लिए यह मालिकपन का नशा इसको बार-बार चेक करो। सेकण्ड की बात है चेक करना। कर्म करते, कोई भी कर्म आरम्भ करते हो, आरम्भ करने टाइम चेक करो - मालिकपन की अथॉरिटी से कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाला कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर वाली आत्मा हूँ? कि साधारण कर्म शुरू हुआ? स्मृति स्वरूप से कर्म आरम्भ करना और साधारण स्थिति से कर्म आरम्भ करना उसमें बहुत फर्क है। जैसे हद के मर्तबे वाले अपना कार्य करते हैं तो कार्य की सीट पर सेट होके फिर कार्य आरम्भ करते हैं ऐसे अपने मालिकपन के स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होके फिर हर कार्य करो। इस मालिकपन के अथॉरिटी की चेकिंग को और बढ़ाना है। और इसकी निशानी है, मालिकपन के अथॉरिटी की निशानी है सदा हर कार्य में डबल लाइट और खुशी की अनुभूति होगी और रिजल्ट सफलता सहज अनुभव होगी। अभी कहाँ-कहाँ, अभी तक भी अधिकारी के बजाए अधीन बन जाते हो। अधीनता की निशानी क्या दिखाई देती? जो बार-बार कहते हैं मेरे संस्कार हैं, चाहते नहीं हैं लेकिन मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है। बापदादा ने पहले भी सुनाया कि जिस समय यह कहते हैं कि मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, क्या यह कमज़ोरी के संस्कार आपके संस्कार हैं? मेरे हैं? यह तो रावण के मध्य के संस्कार हैं, रावण की देन है। उसको मेरा कहना ही रांग है। आपके संस्कार तो जो बाप के संस्कार हैं वही संस्कार हैं। उस समय सोचो कि मेरा-मेरा कहके मेरे हैं, तो वह अधिकारी बन गये हैं और आप अधीन बन जाते हैं। समान बाप जैसे बनना है तो मेरे संस्कार नहीं, जो बाप के संस्कार वह मेरे संस्कार। बाप के संस्कार क्या हैं? विश्व कल्याणकारी, शुभ भावना, शुभ कामनाधारी। तो उस समय बाप के संस्कार सामने लाओ, लक्ष्य है बाप समान बनने का और लक्षण रहे हुए हैं रावण के। तो मिक्स हो जाते हैं, कुछ अच्छे बाप के, कुछ वह मेरे पास्ट के संस्कार। इसीलिए दोनों मिक्स रहते हैं ना तो खिटखिट होती रहती है। और संस्कार बनते कैसे हैं? वह तो सभी जानते हैं ना! संस्कार मन और बुद्धि के संकल्प और कार्य से संस्कार बनते हैं। पहले मन संकल्प करता, बुद्धि सहयोग देती और अच्छे या बुरे संस्कार बन जाते।
तो बापदादा ने दादी के साथ-साथ रिजल्ट में देखा कि मालिकपन का नेचुरल और नचर का नशा रहे वह बालकपन की भेंट में अभी भी कम है। इसीलिए बापदादा देखते हैं कि समाधान करने के लिए फिर युद्ध करने लग पड़ते हैं। हैं ब्राह्मण लेकिन बीच-बीच में क्षत्रिय बन जाते हैं। तो क्षत्रिय नहीं बनना है। ब्राह्मण सो देवता बनना है। क्षत्रिय बनने वाले तो बहुत आने वाले हैं, वह पीछे आने वाले हैं आप तो अधिकारी आत्मायें हैं। तो सुना रिजल्ट। इसलिए बारबार मैं कौन, यह स्मृति में लाओ। है ही, नहीं लेकिन स्मृति स्वरूप में लाओ। ठीक है ना। अच्छा। रिजल्ट भी सुनाई। अभी समस्या का नाम, विघ्न का नाम, हलचल का नाम, व्यर्थ संकल्प का नाम, व्यर्थ कर्म का नाम, व्यर्थ सम्बन्ध का नाम, व्यर्थ स्मृति का नाम समाप्त करो और कराओ। ठीक है ना, करेंगे? करेंगे? जो दृढ़ संकल्प का हाथ उठायें, यह हाथ उठाना तो कामन हो गया है इसलिए हाथ नहीं उठवाते हैं, मन में दृढ़ संकल्प का हाथ उठाओ। मन में, शरीर का हाथ नहीं, वह बहुत देख लिया है। जब सभी का मिलकर मन से दृढ़ संकल्प का हाथ उठेगा तब ही विश्व के कोने-कोने में सभी का खुशी से हाथ उठेगा - हमारा सुखदाता, शान्तिदाता बाप आ गया।
बाप को प्रत्यक्ष करने का बीड़ा उठाया है ना! उठाया है? पक्का? टीचर्स ने उठाया है? अच्छा। पाण्डवों ने उठाया है, पक्का। अच्छा डेट फिक्स की है। डेट नहीं फिक्स है? कितना टाइम चाहिए? एक वर्ष चाहिए, दो वर्ष चाहिए? कितना वर्ष चाहिए? बापदादा ने कहा था हर एक अपने पुरूषार्थ की यथा शक्ति प्रमाण अपनी नेचुरल चलने की या उड़ने की विधि समान अपनी डेट सम्पन्न बनने की खुद ही फिक्स करो। बापदादा तो कहेगा अब करो, लेकिन यथाशक्ति अपने पुरूषार्थ अनुसार अपनी डेट फिक्स करो और समय प्रति समय उसको चेक करो कि समय प्रमाण मन्सा की स्टेज, वाचा की स्टेज, सम्बन्ध-सम्पर्क की स्टेज में प्रोग्रेस हो रहा है? क्योंकि डेट फिक्स करने से स्वत: ही अटेन्शन जाता है।
बाकी सभी की तरफ से, चारों ओर की तरफ से सन्देश भी आये हैं। ईमेल भी आये हैं। तो बापदादा के पास तो ईमेल जब तक पहुंचे उसके पहले ही पहुंच जाता है, दिल के संकल्प का ईमेल बहुत रफ्तार का होता है। वह पहले पहुंच जाता है। तो जिन्होंने भी यादप्यार, समाचार अपने स्थिति का, अपनी सेवा का भेजा है, उन सबको बापदादा ने स्वीकार किया, यादप्यार सभी ने बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से भी भेजी है। तो बापदादा उन सभी को चाहे विदेश चाहे देश सभी को रिटर्न में यादप्यार और दिल की दुआओं सहित प्यार और शक्ति की सकाश भी दे रहे हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न राजस्थान और इन्दौर का है:- अच्छा है, दोनों ने यज्ञ सेवा की सेवा का चांस लिया है, यह भी गोल्डन चांस लेने वाले गोल्डन चांसलर हैं। बापदादा ने देखा है कि सभी को इन्तजार रहता है कि कब हमारा टर्न सेवा का बल और सेवा का फल मिलने का आयेगा। तो आप दोनों का तो प्रत्यक्ष फल पाने का चांस आ गया। और बापदादा ने देखा है कि हर जोन जो भी निमित्त बनते हैं वह रूचि से सेवा करते हैं क्योंकि संगमयुग में सेवा का वा हर कर्म का प्रत्यक्षफल मिलता है। अभी अभी दिल से सेवा की और अभी अभी ही दिल की खुशी में नाचते रहते हैं। तो जब भी जितने दिन भी मधुबन में चांस मिला है तो सभी ने हर समय मन की खुशी का डांस का अनुभव किया? और डांस तो कामन है, लेकिन आपके मन की डांस, माइंड डांस, पांव की डांस नहीं, अनुभव किया है ना! मन की खुशी की डांस का अनुभव किया? हाथ उठाओ जिन्होंने किया, थकावट तो नहीं हुई ना। अथकपन का अनुभव किया ना। और पुण्य कितना जमा किया? लोग तो एक ब्राह्मण को खिलाते हैं, सेवा करते हैं तो समझते हैं बड़ा पुण्य जमा हो गया। और आपने कितने ब्राह्मणों को खिलाया, सम्भाला, क्लास कराया, रिफ्रेश किया, तो आपके पुण्य का खाता कितना जमा हो गया! और सबसे खुशी की बात तो यह है कि अपना ब्राह्मण परिवार एक समय में एक साथ कितने बड़े परिवार को देखा। और विश्व के चारों ओर के भाई बहिनें अपना ईश्वरीय परिवार देखने का चांस मधुबन में ही मिलता है। विदेश से भी आते, देश से भी आते हैं। इतना बड़ा परिवार का मिलन यह भी एक विशेष खुशी की बात है। दिल में उमंग आता है ना वाह बाबा और वाह मेरा ब्राह्मण परिवार! तो बहुत अच्छा किया, हिम्मत आपकी, मदद मधुबन निवासियों की और बाप की। क्योंकि मधुबन निवासी भी साथी बनते हैं तब तो कार्य कर सकते हो। तो लाटरी ले ली। लाटरी की मुबारक हो। अच्छा है। टीचर्स को भी चांस मिलता, परिवार वालों को भी चांस मिलता, छोटे बड़े साथी टीचर्स को भी चांस मिलता। देखो कितनी टीचर्स आई हैं? दोनों जोन कीकितनी टीचर्स आई हैं? (350 दोनों जोन की टीचर्स आई हैं) अच्छा है, तो मुबारक तो है ही और आगे भी चांस लेते रहना। बाकी दोनों में एक साल में हर एक जोन बताये तो वारिस कितने निकाले? जोन हेड कौन है? हाथ उठाओ। तो सारे जोन में कितने वारिस निकले, कितने माइक निकले? लिस्ट निकाली है? चुप हो गये क्यों? अभी वारिस क्वालिटी एक साल में तो निकलनी चाहिए ना! क्योंकि हर साल के बाद जोन को चांस मिलता है। ठीक है ना! एक साल में कुछ तो वारिस या माइक निकलने चाहिए ना! बोलो ना हाँ जी। ऐसे ही हाँ जी नहीं। लिस्ट चाहिए। अच्छा अगले साल निकालकर आना। अभी तैयार कर रहे होंगे, फिर लिस्ट ले आना। अभी जिसका भी जोन का टर्न होगा इनएडवांस बापदादा कह रहे हैं कि हर जोन से यह दोनों रिजल्ट लेंगे। पहले ही तैयारी करके आना। कितने माइक निकले और कितने वारिस निकले? पहले वाले हैं वह तो लक्की और लवली हैं, अभी कितने निकले? ठीक है ना? रिजल्ट निकलनी चाहिए ना? बापदादा ने अभी तक हर विंग द्वारा भी वारिस या माइक की लिस्ट नहीं देखी है। हर साल विंग मिलते हैं, बापदादा खुश भी होते हैं लेकिन रिजल्ट अभी तक नहीं आई है। यह विंग्स का प्रोग्राम कितने साल से चल रहा है? कितने साल हुए हैं? (22 साल) तो 22 साल में हर साल में एक तो निकलना चाहिए। लिस्ट नहीं आई है। एक विंग की भी लिस्ट नहीं आई है। तो अच्छा है, आप लोगों ने दिल से सेवा की है इसीलिए दिलाराम बाप की तरफ से बहुत-बहुत-बहुत दिल की दुआयें हैं। अच्छा। दूसरे वर्ष के लिए तैयारी करके आना।
डबल विदेशी:- डबल विदेशी चतुर बहुत हैं। हर टर्न में अपना अच्छा अधिकार रखा है। बापदादा को और सभी ब्राह्मण परिवार को खुशी होती है कि बापदादा का संगठन इन्टरनेशनल संगठन है। अच्छी हिम्मत करके आते हैं। सबसे ज्यादा ग्रुप कहाँ का है? (मलेशिया से 61 आये हैं) अच्छा है, जितना बड़ा ग्रुप है ना, उतनी बड़ी बड़ी बड़ी मुबारक हो। अच्छा है फारेन का विशेष गायन है कि वहाँ की लाइफ फास्ट लाइफ होती है तो जो डबल विदेशी ब्राह्मण परिवार के बन गये उनका भी फास्ट पुरूषार्थ है? जब देश की फास्ट लाइफ है तो ब्राह्मण परिवार की फास्ट पुरूषार्थ की लाइफ है? फास्ट है या स्लो है? फास्ट है? हाँ या ना कहो। जिसकी फास्ट है वह हाथ उठाओ। आधा है, आधा नहीं है। अभी अगले वर्ष जब आओ ना, आना ही पड़ेगा ना। तो इस साल में लक्ष्य रखो कि पुरूषार्थी तो हैं लेकिन पुरूषार्थ के आगे तीव्र शब्द एड कर दो। पुरूषार्थी बनना कामन है, तीव्र पुरूषार्थी बनना विशेष है। तो आप सभी विशेष आत्मायें हो, साधारण थोड़ेही हो, विशेष हो। तो विशेष आत्माओं की पहली निशानी है तीव्र पुरूषार्थी। सोचा और किया। ऐसे नहीं करेंगे, हो जायेगा... होना तो है ही.. नहीं। करना ही है। उड़ना ही है। बाप समान बनना ही है, इसको कहते हैं तीव्र पुरूषार्थी। तो क्या करेंगे? तीव्र पुरूषार्थ है ना! अभी समय तीव्र समीप आ रहा है। समय में तीव्रता आ गई है लेकिन दु:ख के अशान्ति के समय को समाप्त करने वाले, उन्हों को तो समय से भी तीव्र बनना ही है। फिर भी अच्छे हैं, लगन है, पहुंच गये हो, उसकी मुबारक है। अच्छा। तीव्र पुरूषार्थी? ठीक है, जो कहते हैं हाँ, वह हाथ उठाओ। साधारण पुरूषार्थ नहीं, तीव्र पुरूषार्थ? कि बीच बीच में साधारण पुरूषार्थ करेंगे? साधारण नहीं सदा तीव्र पुरूषार्थ। बस मालिकपन का नशा हर समय चेहरे से ही दिखाई दे। मुख से भी ज्यादा चेहरा बोलता है। तो बहुत अच्छा, अगले साल रिजल्ट देखेंगे। अच्छा। बैठ जाओ, बहुत-बहुत मुबारक हो।
धार्मिक विंग, सोशल विंग और ट्रांसपोर्ट विंग मीटिंग के लिए आये हैं:- समाज सेवा में कोई न कोई सेवा का साधन लोगों को देते हैं, कुछ न कुछ सेवा करते हैं। तो समाज सेवा वाले यही लक्ष्य रखो जो भी आत्मायें सम्पर्क में आती हैं उनको कोई न कोई गुण, कोई न कोई ज्ञान की प्वाइंट, कोई न कोई खज़ाना, जो बाप से मिला है, वह देना है। यह सोशल सेवा हर एक की करनी है, खाली हाथ कोई न जाए, कुछ लेकर ही जाये क्योंकि दाता के बच्चे हैं, कैसे भी लोगों को चाहे किसी साधन द्वारा, चाहे डायरेक्ट कनेक्शन द्वारा लेकिन कुछ न कुछ देना है। यह सोशल सेवा, आध्यात्मिक सेवा चारों ओर फैलानी है, चाहे किसी भी विधि से, जो हर एक के मुख से निकले कि हमें बहुत अच्छी सेवा का साधन मिला। बहुत अच्छी प्राप्ति कराई। आजकल बहुत प्यासी भी हैं, तो कुछ न कुछ प्राप्ति कराके भरपूर बनाओ। अच्छा।
एक बात जो बापदादा ने फिर से कही, लिस्ट आनी चाहिए। एक भी विंग की लिस्ट नहीं आई है। और उन्हों की जो आप लिस्ट लिखो, उसमें उनकी प्राप्ति का अनुभव भी शार्ट में साथ में हो। जैसे यहाँ कहकर जाते हैं ना बहुत प्राप्ति हुई बहुत मिला। लेकिन जो प्राप्ति हुई वह इकट्ठा रहा, उसको बढ़ाया? बापदादा ने देखा है जो भी विंग्स है, चाहे ट्रांसपोर्ट का है चाहे धार्मिक है। लेकिन जब प्रोग्राम करते हैं कनेक्शन में आते हैं, उनसे लगातार कनेक्शन में रखते रहें, वह नहीं होता है। जब फिर प्रोग्राम होगा तब पत्र भेजेंगे, निमन्त्रण भेजेंगे, फिर से आओ। बापदादा ने एक फारेन का समाचार सुना है, जो कॉल ऑफ टाइम का प्रोग्राम करते हैं, उसमें जो भी आते हैं, अच्छा लगता है, जिज्ञासा उठती है, कनेक्शन होता है तो उन्हें रिलेशन में लाने के लिए समय प्रति समय लगातार हर सप्ताह कुछ न कुछ भेजते रहते हैं। ऐसे आप पीठ नहीं करते हो, 6 मास, साल के बाद वह याद आ गया तो आ गया, कनेक्शन हो गया तो हो गया। लेकिन हर एक की एड्रेस प्रमाण उनको कुछ न कुछ सप्ताह में भेजना चाहिए, जिससे उन्हों की पालना होती रहे, बिना पालना के वृक्ष भी नहीं बड़ा होता। तो यह करना चाहिए। हर एक विंग को, सिर्फ प्रोग्राम नहीं, प्रोग्रेस भी उन्हों की करानी चाहिए। नजदीक आते जायें। और रिजल्ट अपने पास रखते रहो। इस वर्ष में कितने नजदीक रिलेशन में आये? समझा, सुना ना। अच्छा है फारेन का रिजल्ट अच्छा है | यह भी करते होंगे लेकिन बापदादा के पास रिजल्ट नहीं आई है। बाकी अच्छा है जब यह वर्गो की सेवा हुई है, तो कनेक्शन में बहुत आये हैं और परिवर्तन भी हुआ है, पहले बुलाना पड़ता था अभी बिना बुलाये भी आने चाहते हैं, फर्क तो है। लेकिन इसकी रिजल्ट सारे परिवार को पता होना चाहिए। एक दो की रिजल्ट से उमंग आता है। और एक का सुनके दूसरे को आता है, हम भी कर सकते हैं, हिम्मत भी आती है। बाकी बापदादा खुश है कि वर्गो की डिपार्टमेंट बनने से भिन्न भिन्न प्रकार की भिन्न भिन्न वर्गो की सेवा बढ़ती जा रही है इसलिए सभी वर्ग वालों को सेवा की मुबारक भी है और आगे बढ़ने का और भी साधन करेंगे तो प्रत्यक्ष फल दिखाई देगा। आखिर तो सभी वर्ग वाले मिलकरके कहें हम सब एक बाप के एक हैं। इस विश्व की स्टेज पर एक है, एक मत हैं, एक के ही हैं। यह आवाज फैले। धार्मिक लोग भी कहें हम एक हैं। एक के हैं। बाकी सेवा की है उसकी मुबारक। अच्छा।
कैड ग्रुप भी आया है:- इसमें ब्राह्मण भी हैं, फायदा उठाया है? तो दिल वालों ने दिलाराम को तो पहचान लिया। इसीलिए दिलाराम को पहचाना तो दिल खुश हो गई और अच्छा है जितना-जितना आप साथ वालों को अनुभवसुनायेंगे, उतना यह सेवा फैलती जायेगी। क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण है ना। आप स्वयं ही प्रत्यक्ष प्रमाण है तो कोई भी प्रत्यक्ष प्रमाण देख करके जल्दी खुश हो जाते हैं। हिम्मत आती है। तो अपना अनुभव जो भी सम्पर्क में आये वा सम्पर्क करके भी फैलाते जाओ। क्योंकि आवश्यकता तो है। गरीबी बढ़ती जाती है और गरीबी के समय अगर सहज साधन मिल जाए तो सभी खुश होते हैं। तो अच्छा है। समय प्रति समय करते भी रहते हैं और आगे भी करते चलो। अच्छा। मुबारक हो। अच्छा |
ट्रेनिंग में आई हुई टीचर्स से:- ट्रेनिंग तो की, बहुत अच्छा किया लेकिन ट्रेनिंग करने के बाद दिल में स्टैम्प कितनी पक्की लगाई? क्या सदा निर्विघ्न बन औरों को भी निर्विघ्न बनाती रहेंगी? यह वायदा किया? निर्विघ्न रहेंगी? कि थोड़ा थोड़ा बीच में विघ्न आयेगा? अच्छा आ भी जाए तो परिवर्तन करने की शक्ति विघ्न को, समस्या को समाधान के रूप में परिवर्तन करने की शक्ति अनुभव करते हो? जो समझते हैं कि परिवर्तन की शक्ति कार्य में लगाके बापदादा को या जिन टीचर्स ने सेवा की, उसको सबूत दिखायेंगे ऐसी हिम्मत रखने वाले हाथ उठाओ। दिल का हाथ उठाया है ना! कुछ भी हो जाए, सी फादर। औरों की विशेषता को देखना लेकिन फॉलो फादर। अच्छा। कितने हैं ग्रुप में? (70 बहिने हैं) तो आप सभी अपनी टीचर द्वारा मधुबन में रिजल्ट लिखते रहना, बार बार नहीं लिखना, 15 दिन में टीचर द्वारा ओ.के. लिखना, बस। छोटा सा कार्ड भेजना, लम्बा पत्र नहीं भेजना। सुनाया था ना - अगर कोई कमज़ोरी आ भी जाए तो सिर्फ ओ.के.के बीच में लाइन लगा देना। तो यहाँ से फिर आपको याद दिलाते रहेंगे। अभी 70 तो निर्विघ्न आत्मायें बन गई ना और निर्विघ्न बनायेंगी भी। जहाँ भी जायेंगी वहाँ निर्विघ्न बन निर्विघ्न बनायेंगी। है ना हिम्मत? हिम्मत है? अच्छा। रिजल्ट देखना। रिपोर्ट आती जायेगी ना तो पता पड़ता जायेगा। अच्छा।
सब कुछ सुना। जैसे सुनना सहज लगता है ना! ऐसे ही सुनने से परे स्वीट साइलेन्स की स्थिति भी जब चाहो जितना समय चाहो उतना समय मालिक होके, पहले विशेष है मन के मालिक, इसीलिए कहा जाता है, मन जीते जगतजीत। तो अभी सुना, देखा, आत्मा राजा बन मन बुद्धि संस्कार को अपने कन्ट्रोल में कर सकते हो? मन-बुद्धि-संस्कार तीनों के मालिक बन ऑर्डर करो स्वीट साइलेन्स, तो अनुभव करो कि आर्डर करने से, अधिकारी बनने से तीनों ही आर्डर में रहते हैं? अभी-अभी अधिकारी की स्टेज पर स्थित हो जाओ। अच्छा।
चारों ओर के सदा स्वमानधारी, सत्यता के शक्ति स्वरूप, पवित्रता के सिद्धि स्वरूप, सदा अचल अडोल स्थिति के अनुभवी स्व परिवर्तक और विश्व परिवर्तक, सदा अधिकारी स्थिति द्वारा सर्व आत्माओं को बाप द्वारा अधिकार दिलाने वाले चारों तरफ के बापदादा के लकी और लवली आत्माओं को परमात्म यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार हो और बापदादा का मीठे मीठे बच्चों को नमस्ते।
दादियों से:- अच्छा है बापदादा ने रिजल्ट देखी। अच्छा रहा। शुभचिंतन और शुभचिंतक दोनों ही स्थिति में बिजी रहना, वायुमण्डल फैलाना यह अच्छा है। अच्छा कर रही हैं। अच्छा कर रहे हैं करते रहेंगे। मैजारिटी दिखा गया है कि जो आप निमित्त हैं, सब निमित्त हैं, तो जो भी आप निमित्त हैं, उन्हों को विशेष इस समय यह अटेन्शन रखना है कि सन्तुष्ट रहना तो है ही लेकिन सन्तुष्ट रहे, वायुमण्डल सन्तुष्ट रहे, उसके लिए आपस में कोई न कोई प्लैन बनाते रहना। यह तीन पाण्डव भी आवें। जो भी निमित्त बने हुए हैं उन्हों को आजकल के वायुमण्डल प्रमाण स्वयं तो सन्तुष्ट रहना ही है लेकिन सन्तुष्ट करना भी है। असन्तुष्टता का वायुमण्डल में प्रभाव नहीं हो क्यां कि आजकल सन्तुष्टता सबको चाहिए। लेकिन हिम्मत नहीं है। इसीलिए बीच-बीच में कुछ न कुछ ऐसा परवश होके कर लेते हैं लेकिन उन्हों को भी कुछ शिक्षा, कुछ क्षमा, कुछ रहम, कुछ आत्मिक स्नेह उसकी आवश्यकता है और देखा जाता है कि वायुमण्डल में मैजारिटी को बैलेन्स रखना नहीं आता। बैलेन्स से शिक्षा भी हो और फिर साथ-साथ उनको हिम्मत भी दो। सिर्फ शिक्षा से, अभी सभी शिक्षक बन गये हैं, इसीलिए शिक्षा के साथ हिम्मत और स्नेह दिल का, बाहर का नहीं लेकिन दिल का स्नेह दोनों का बैलेन्स रख करके देना है। और ऐसे प्लैन बनाओ जो चारों ओर कोई न कोई ऐसा प्लैन चलता रहे। जैसे समय प्रति समय भट्टियाँ चलाते हो वह तो चलाते ही रहो लेकिन छोटा मोटा प्रोग्राम सदा चलता रहे, तो ऐसी विधि निकालो जिससे चारों ओर का वायुमण्डल शक्तिशाली बनें। चाहना है लेकिन हिम्मत कम है। तो आपस में मिलके कोई न कोई हर मास के लिए ऐसा वर्क निकालो जो सभी उसमें बिजी हो जाएं, रिजल्ट आती रहे। और चेकिंग भी हो, अगर नहीं करते हैं तो क्यों? अलबेलापन है तो उनके ऊपर स्नेह से सहयोग देना पड़ेगा क्योंकि समय तीव्रता से समीप आ रहा है। तो ऐसा कोई प्लैन बनाओ। कोई न कोई वर्क इन्ट्रेस्ट का निकालके सबको बिजी रखो उसमें। ठीक है। अच्छा है सभी हिम्मत वाले हो ना। हिम्मत कम तो नहीं होती? हिम्मत कम होती है, तो बाप की मदद का भी अनुभव नहीं होता है, बाप मदद देता है, लेकिन कैच नहीं कर पाते हैं। फायदा नहीं उठा सकते हैं। इसीलिए सदा अपने को देखो, हिम्मत बढ़ाओ। कोई न कोई ऐसी बात बुद्धि में रखो जिससे हिम्मत बढ़ती रहे। जितनी हिम्मत बढ़ेगी ना तो हिम्मत के आगे और बातें आनी भी कम हो जायेंगी। अच्छा है, सोचना इस पर।
सन्देशी दादी ने शरीर छोड़ा है, उनके प्रति भोग लगाने के लिए भुवनेश्वर से ग्रुप आया है:- बापदादा की बहुत रमणीक बच्ची कहें, या सखी कहें जो सन्देशी, इस शरीर को छोड़ करके एडवांस पार्टी में गई, अपने जीवन का बापदादा से साकार में फायदा भी बहुत अच्छा उठाया, सखीपन का पार्ट भी बजाया, खेलने वाली बनी, और अपने स्मृति से अपना भविष्य बनाया। अभी जो आये हैं साथी बनके, वह उठो। जो भी आये हैं। अच्छा है। प्यार का सबूत तो दिया ना। अभी आगे भी प्यार का सबूत है, सभी को सन्तुष्ट रहके सन्तुष्ट करना। हिम्मतहीन को हिम्मत देना। नम्बरवार तो होते ही हैं ना। तो हिम्मत देते रहना। उमंग-उल्हास बढ़ाते रहना। सिर्फ याद नहीं करना, लेकिन उसकी पालना का प्रत्यक्ष सबूत देना। बाकी अच्छा पार्ट बजाया। आप सभी भी अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाते रहना और बजायेंगे। सभी ठीक हैं! हाथ हिलाओ। अच्छा।
दादी जानकी बापदादा को भोग स्वीकार करा रही हैं बापदादा बोले:- देखो अच्छी दादियां मिली हैं ना! यह सब साथी भी हैं, दादियों की साथी भी हैं, दादियां भी हैं। तो सदा हर दादी की, हर साथियों की विशेषता को देख, विशेषता को कार्य में लाना क्योंकि बापदादा ने हर एक बच्चे को कोई न कोई विशेषता स्पेशल दी है, आप सबको भी है, ऐसे नहीं सिर्फ दादियों को है, आपको भी है लेकिन क्या है कोई विशेषता को कार्य में ला रहा है इसलिए वह प्रसिद्ध हो जाता और कोई विशेषता को कार्य में नहीं लाता तो गुप्त रह जाता। बाकी विशेषता सबमें है। छोटे से छोटा जो प्यादे में प्यादा है ना उसमें भी विशेषता है। वह भी स्मृति दिलाता है कि आप महारथी हो, आप महान हो हम प्यादे हैं। इसलिए संगठन सभी जगह मजबूत करो, चाहे दो हैं चाहे 4 हैं, चाहे 12 हैं, लेकिन दो का भी संगठन ऐसा मजबूत हो जो दोनों एकमत हों। स्वभाव एक दो में श्रेष्ठ बनाए, मिलाने की कोशिश करो। जैसे दादी को याद करते हैं ना, क्यों याद करते हो? उसकी विशेषता सबको अपनापन दिया है ना, ऐसे सभी को अपनापन दिया ना, तो क्यों आप सभी नहीं कर सकते हो? जैसे सभी ने अनुभव किया, हमारी दादी है। ऐसे नहीं मधुबन की दादी है, हमारी है, ऐसे सभी ब्राह्मण एक दो में अपनापन अनुभव करें। यह है दादी को याद करना। इसी को ही याद कहा जाता है। समान बनना, विशेषता धारण करना, इसको कहते हैं याद। ठीक है ना! हर एक यही सोचोसब अपने हैं। अपनापन महसूस हो, ऐसे नहीं यह तो पता नहीं कौन है, क्या है। एक परिवार है ना! दादी भी सभी सेन्टर पर तो नहीं रहती थी ना, एक ही स्थान पर रहती थी मधुबन में, लेकिन सभी को अपनापन दिया। तो आप सभी भी अपने अपने स्थान पर रहते भी अपनापन दे सकते हो। यह दिल की स्थिति है। साथ रहने की बात नहीं है, यह दिल का वायब्रेशन अपनापन लाता है। अच्छा।
15-12-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘समय के महत्व को जान, कर्मों की गुह्य गति का अटेन्शन रखो, नष्टोमोहा, एवररेडी बनो’’
आज सर्व खज़ानों के दाता, ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, सर्व गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना देने वाला बापदादा अपने चारों ओर के खज़ाने के बालक सो मालिक अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। अखण्ड खज़ानों के मालिक बाप सभी बच्चों को सर्व खज़ानों से सम्पन्न कर रहा है। हर एक को सर्व खज़ाने देते हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं देते क्योंकि अखण्ड खज़ाना है। चारों ओर के बच्चे बापदादा के नयनों में समाये हुए हैं। सभी खज़ानों से भरपूर हर्षित हो रहे हैं। आजकल के समय प्रमाण सबसे अमूल्य श्रेष्ठ खज़ाना है - पुरूषोत्तम संगम का समय क्योंकि इस संगम पर ही सारे कल्प की प्रालब्ध बना सकते हो। इस छोटे से युग का एक सेकण्ड प्राप्तियों और प्रालब्ध के प्रमाण एक सेकण्ड की वैल्यु एक वर्ष के समान है। इतना यह अमूल्य समय है। इस समय के लिए ही गायन है - अब नहीं तो कब नहीं क्योंकि इस समय ही परमात्म पार्ट नूंधा हुआ है। इसलिए इस समय को हीरे तुल्य कहा जाता है। सतयुग को गोल्डन एज कहा जाता है। लेकिन इस समय, समय भी हीरे तुल्य है और आप सब बच्चे भी हीरे तुल्य जीवन के अनुभवी आत्मायें हो | इस समय ही बहुतकाल की बिछुड़ी हुई आत्मायें परमात्म मिलन, परमात्म प्यार, परमात्म नॉलेज, परमात्म खज़ानों के प्राप्ति के अधिकारी बनते हैं। सारे कल्प में देव आत्मायें, महान आत्मायें हैं लेकिन इस समय परमात्म ईश्वरीय परिवार है। इसलिए जितना इस वर्तमान समय का महत्व है, इस महत्व को जान, जितना अपने को श्रेष्ठ बनाने चाहे उतना बना सकते हैं। आप सब भी इस महान युग के परमात्म भाग्य को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान हो ना! ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य के रूहानी नशे और भाग्य को जानते, अनुभव कर रहे हो ना! खुशी होती है ना! दिल में क्या गीत गाते हो? वाह मेरा भाग्य वाह! क्योंकि इस समय के श्रेष्ठ भाग्य के आगे और कोई भी युग में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हो नहीं सकता।
तो बोलो, सदा अपने भाग्य को स्मृति में रखते हर्षित होते हो ना! होते हो? जो समझते हैं कि सदा हर्षित होते हैं, कभी-कभी वाले नहीं, जो सदा हर्षित रहते हैं वह हाथ उठाओ। सदा, सदा....। अण्डरलाइन करना सदा। अभी टी.वी. में आपका फोटो आ रहा है। सदा वालों का फोटो आ रहा है। मुबारक हो। मातायें उठायें, शक्तियां उठायें, डबल फारेनर्स...। क्या शब्द याद रखेंगे? सदा। कभी-कभी वाले तो पीछे आने वाले हैं।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि समय की रफ्तार बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। समय की गति को जानने वाले अपने को चेक करो कि मास्टर सर्वशक्तिवान हमारी गति तीव्र है? पुरूषार्थ तो सब कर रहे हैं लेकिन बापदादा क्या देखने चाहते? हर बच्चा तीव्र पुरूषार्थी, हर सबजेक्ट में पास विद आनर है वा सिर्फ पास है? तीव्र पुरूषार्थी के लक्षण विशेष दो हैं - एक - नष्टोमोहा, दूसरा - एवररेडी। सबसे पहले नष्टोमोहा, इस देहभान, देह-अभिमान से है तो और बातों में नष्टोमोहा होना कोई मुश्किल नहीं है। देह-भान की निशानी है वेस्ट, व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, यह चेकिंग स्वयं ही अच्छी तरह से कर सकते हो। साधारण समय वह भी नष्टोमोहा होने नहीं देता। तो चेक करो हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कर्म, सफल हुआ? क्योंकि संगमयुग पर विशेष बाप का वरदान है, सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो अधिकार सहज अनुभूति कराता है। और एवररेडी, एवररेडी का अर्थ है- मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में समय का आर्डर हो अचानक तो एवररेडी और अचानक ही होना है। जैसे अपनी दादी को देखा अचानक एवररेडी। हर स्वभाव में, हर कार्य में इजी रहे हैं। सम्पर्क में इजी, स्वभाव में इजी, सेवा में इजी, सन्तुष्ट करने में इजी, सन्तुष्ट रहने में इजी। इसीलिए बापदादा समय की समीपता का बार-बार इशारा दे रहा है। स्व-पुरूषार्थ का समय बहुत थोड़ा है, इसलिए अपने जमा के खाते को चेक करो। तीन विधियां खज़ानों को जमा करने की पहले भी बताई हैं, फिर से सुना रहे हैं। उन तीनों विधियों को स्वयं चेक करो। एक है – स्वयं के पुरूषार्थ से प्रालब्ध का खज़ाना जमा करना। प्राप्तियों का खज़ाना जमा करना। दूसरा है- सन्तुष्ट रहना, इसमें भी सदा शब्द एड करो और सर्व को सन्तुष्ट करना, इससे पुण्य का खाता जमा होता है। और यह पुण्य का खाता अनेक जन्मों के प्रालब्ध का आधार रहता है। तीसरा है - सदा सेवा में अथक, नि:स्वार्थ और बड़ी दिल से सेवा करना, इससे जिसकी सेवा करते हैं उनसे स्वत: ही दुआयें मिलती हैं। यह तीन विधियां हैं, स्वयं का पुरूषार्थ, पुण्य और दुआ। यह तीनों खाते जमा हैं? तो चेक करो क्योंकि अगर अचानक कोई भी पेपर आ जाए, क्योंकि आजकल के समय अनुसार प्रकृति के हलचल की छोटी-छोटी बातें कभी भी आ सकती हैं। इसलिए कर्मो के गति का नॉलेज विशेष अटेन्शन में रहे। कर्मो की गति बड़ी गुह्य है। जैसे ड्रामा का अटेन्शन रहता, आत्मिक स्वरूप का अटेन्शन रहता, धारणाओं का अटेन्शन रहता, ऐसे ही कर्मो की गुह्य गति का भी अटेन्शन आवश्यक है। साधारण कर्म, साधारण समय, साधारण संकल्प इससे प्रालब्ध में फर्क पड़ जाता है। इस समय आप सभी जो पुरूषार्थी हैं वह श्रेष्ठ विशेष आत्मायें हैं, साधारण आत्मायें नहीं हो। विश्व कल्याण के निमित्त, विश्व परिवर्तन के निमित्त बनी हुई आत्मायें हो। सिर्फ अपने को परिवर्तन करने वाले नहीं हो, विश्व के परिवर्तन के जिम्मेवार हो। इसलिए अपने श्रेष्ठ स्वमान के स्मृति स्वरूप बनना ही है।
बापदादा ने देखा सभी का बापदादा और सेवा से अच्छा प्यार है। सेवा का वातावरण चारों ओर कोई न कोई प्लैन प्रमाण चल रहा है। साथ-साथ अभी समय के प्रमाण विश्व की आत्मायें जो दु:खी, अशान्त हो रही हैं उन आत्माओं को दु:ख अशान्ति से छुड़ाने के लिए अपनी शक्तियों द्वारा सकाश दो। जैसे प्रकृति का सूर्य सकाश से अंधकार को दूर कर रोशनी में लाता। अपनी किरणों के बल से कई चीजों को परिवर्तन करता। ऐसे ही मास्टरज्ञानसूर्य अपने प्राप्त हुए सुख-शान्ति की किरणों से, सकाश से दुख-अशान्ति से मुक्त करो | मन्सा सेवा से, शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करो। तो अभी मन्सा सेवा करो। जैसे वाचा सेवा का विस्तार किया है, वैसे मन्सा सकाश द्वारा आत्माओं में, जो आपकी टॉपिक रखी है, हैप्पी और होप, यह फैलाओ, हिम्मत दिलाओ, उमंग-उत्साह दिलाओ। बाप का वर्सा, इन बातों से मुक्ति तो दिलाओ। अभी आवश्यकता सकाश देने की ज्यादा है। इस सेवा में मन को बिजी रखो तो मायाजीत विजयी आत्मा स्वत: ही बन जायेंगे | बाकी छाटी- छाटी बातें तो साइडसीन हैं | साइडसीन में कुछ अच्छा भी आता है, कुछ बुरी चीज़ें भी आती हैं। तो साइडसीन को क्रास कर मंज़िल पर पहुंचना होता है। साइडसीन देखने के लिए साक्षीदृष्टा की सीट पर सेट रहो, बस। तो साइडसीन मनोरंजन हो जायेगी।
तो एवररेडी हो ना? कल भी कुछ हो जाए, एवररेडी हैं? पहली लाइन एवररेडी है? कल भी हो जाए तो? टीचर्स तैयार हैं तो अच्छा। यह वर्ग वाले तैयार हैं। जितने भी वर्ग आये हो, एवररेडी। सोचना। देखना दादियां, देख रही हो सब हाथ हिला रहे हैं। अच्छा है, मुबारक हो। अगर नहीं भी हैं ना तो आज की रात तक हो जाना। क्योंकि समय आपका इन्तजार कर रहा है। बापदादा मुक्ति का गेट खोलने का इन्जार कर रहा है। एडवांस पार्टी आपका आह्वान कर रही है। क्या नहीं कर सकते हो? मास्टर सर्वशक्तिवान तो हो ही। दृढ़ संकल्प करो यह करना है, यह नहीं करना है, बस। नहीं करना है, तो दृढ़ संकल्प से ‘नहीं’ को ‘नहीं’ करके दिखाओ। मास्टर तो हो ही ना! अच्छा।
अभी पहली बार कौन आये हैं? जो पहली बार आये हैं वह हाथ उठाओ। ऊंचा हाथ उठाओ, हिलाओ। इतने आये हैं। अच्छा है। जो भी पहले बारी आये हैं उनको पदमगुणा मुबारक है, मुबारक है। बापदादा खुश होते हैं, कि कल्प पहले वाले बच्चे फिर से अपने परिवार में पहुंच गये। इसलिए अभी पीछे आने वाले कमाल करके दिखाना। पीछे रहना नहीं, पीछे आये हो लेकिन पीछे नहीं रहना। आगे से आगे रहना। इसके लिए तीव्र पुरूषार्थ करना पड़ेगा। हिम्मत है ना! हिम्मत है? अच्छा है। हिम्मते बच्चे मददे बापदादा और परिवार है। अच्छा है क्योंकि बच्चे घर का श्रृंगार हो। तो जो भी आये हैं वह मधुबन के श्रृंगार हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न भोपाल जोन का है:- अच्छा, बहुत आये हैं। (झण्डियां हिला रहे हैं) अच्छा है गोल्डन चांस तो मिला है ना। अच्छा जो भी सेवा के निमित्त आये हुए हैं इनमें से सभी ने सेवा का जो बल है, फल है, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति का, वह अनुभव किया? किया? अभी भले हाँ के लिए झण्डी हिलाओ, जिसने किया हो। अच्छा अभी तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया, यह सदा रहेगा? या थोड़ा समय रहेगा? जो दिल से प्रॉमिस करता है, देखा देखी हाथ नहीं उठाना, जो दिल से समझता है कि मैं इस प्राप्ति को सदा कायम रखूंगा, विघ्न विनाशक बनूंगा, वह झण्डी हिलाओ भले। अच्छा। देखो, आप टी.वी. में आ रहे हो फिर यह टी.वी. का फोटो भेजेंगे। अच्छा। यह चांस जो रखा है वह बहुत अच्छा है। चांस लेते भी खुशी से हैं और टर्न बाई टर्न सभी को खुली दिल से छुट्टी भी मिल जाती है आने की। अच्छा, अभी कमाल क्या करेंगे? (2008 में आपको प्रत्यक्ष करके दिखायेंगे) अच्छा है, एक दो को सहयोग देकर इस वायदे को पूरा करना। जरूर करेंगे। मास्टर सर्वशक्तिवान के लिए कोई भी वायदा निभाना, कोई बड़ी बात नहीं है। सिर्फ दृढ़ता को साथी बनाके रखना। दृढ़ता को नहीं छोड़ना क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो जहाँ दृढ़ता होगी वहाँ सफलता है ही है। ऐसे है ना! करके दिखायेंगे। बापदादा को भी खुशी है, अच्छा है। देखो कितनों को चांस मिलता है। आधा क्लास तो सेवा करने वालों की तरफ का होता है। अच्छा है। देखो साकार बाबा के होते हुए बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, पहला-पहला म्युजियम इसने (महेन्द्र भाई ने) तैयार किया था। तो देखो, साकार बाप की दुआयें सारे जोन को हैं। अभी कोई नवीनता करके दिखायेंगे। अभी बहुत समय हो गया है, कोई नई इन्वेन्शन नहीं निकाली है। वरगीकरण भी अभी पुराना हो गया है। प्रदर्शनियां, मेला, कांफ्रेंस, स्नहे मिलन यह सब हो गये हैं | अभी कोई नई बात निकालो | शोर्ट और स्वीट , खर्चा कम आरै सेवा ज्यादा। रायबहादुर हो ना! तो रायबहादुर नई राय निकालो। जैसे प्रदर्शनी निकली, फिर मेला निकला, फिर वर्गीकरण निकला, ऐसे कोई नई इन्वेन्शन निकालो। देखेंगे कौन निमित्त बनता है। अच्छा है, हिम्मत वाले हैं इसीलिए बापदादा हिम्मत रखने वालों को सदा एडवांस में मदद की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा। इस ग्रुप में 5 विंग वाले आये हैं।
एज्युकेशन विंग, एडमिनिस्ट्रेटर्स विंग, बिजनेस विंग, यूथ विंग, स्पोर्टस विंग:- अच्छा है हर एक विंग अपने अपने वर्ग की सेवा कर रहे हैं और उमंग से करते हैं। हर एक रेस भी करते हैं, एक दो की विंग से रेस भीअच्छी कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों के उमंग-उत्साह को देख बार-बार बच्चों पर मुहब्बत के फूल बरसाते हैं। थोड़ी सी मेहनत करते हैं लेकिन मुहब्बत में करते हैं इसलिए हर एक वर्ग एक दो से आगे जा रहा है। एज्युकेशन कितना अच्छा कार्य है। अभी जैसे गांव वालों ने कहाँ कहाँ, कोई गांव जो है उसको लेकरके गांव में आलराउण्ड सेवा की है, डाक्टर्स ने भी प्रैक्टिकल की है, हार्ट वालों ने अच्छा किया है। ऐसे एज्युकेशन वाले कोई स्कूल को अपना बनाओ। सारा स्कूल, कॉलेज इस आध्यात्मिक नॉलेज को माने | पढ़ाई तो नहीं छोड़ेंगे ना लेकिन आध्यात्मिक नॉलेज को एड करें सब क्लासेज में। एडाप्ट करो ऐसी कोई स्कूल या कॉलेज। हो सकता है। (युनिवार्सिटी, कॉलेज तथा स्कूलों में इस वर्ष विशेष सेवा के प्लैन बनायें हैं) रिजल्ट सुनाना, अच्छा है। रिजल्ट प्रैक्टिकल आयेगी तो और भी करेंगे ना। ऐसे सभी वर्ग बिजनेस वाले, एक बिजनेस का ग्रुप निकालें, यूथ वाले सभी तरफ से विशेष रिजल्ट का ग्रुप निकालें। जो भी वर्ग हैं, वह प्रैक्टिकल एक ग्रुप रिजल्ट का दिखाये। पहले लिखत में ले आना। यह वी.आई. पीज की लिस्ट लेकर आये हैं। (भोपाल से) ऐसे ग्रुप बनाओ। ग्रुप बनाके अभी अलग अलग शहरों में हैं, और जो भी भिन्न भिन्न शहरों में हैं उसका एक बारी संगठन करो। भिन्न भिन्न स्थान के एक स्थान पर इकटठा करो उनको और उमंग दिलाओ, आगे बढ़ाओ। हर एक को ग्रुप बनाना ही चाहिए। अभी थोड़े निकाले हैं और भी निकलेंगे। कोई आपस में बैठकर यह राय करो कैसे हर एक वर्ग का ग्रुप बनें और वह समझे, ग्रुप समझे हमारी जिम्मेवारी है। कहाँ भी प्रोग्राम हो तो विशेष ग्रुप को सहयोग देना ही चाहिए। ग्रुप बनाओ, 5-5, 6-6 का, हर स्थान पर उनको पहुंचना चाहिए। उनसे सेवा लो तो उनको खुशी होगी और आगे बढ़ेंगे। अच्छा यूथ वर्ग का कुछ आया है, स्कूलों में अच्छी सेवा की है, बापदादा ने देखा समाचार सुना है। अच्छा है एक ग्रुप बनाओ विशेष। उन्हों का नाम ही हो सेवाधारी ग्रुप, सहयोगी ग्रुप, सर्विसएबुल ग्रुप। जितने भी अच्छे निकल सकें वह बनाओ। अच्छा, तो सभी वर्ग वालों को बापदादा मुबारक दे रहा है, सभी अच्छी सेवा कर रहे हैं और अभी अगले वर्ष अपने ग्रुप का नाम ले आना। हर एक ले आवें और अपने तरफ उस ग्रुप का संगठन करके फिर नाम देना। पक्के हों। कोई वारिस होगा कोई माइक होगा, दोनों प्रकार के ग्रुप में हो सकते हैं। (स्प्रोर्टस विंग के भी हैं, बहुत अच्छे प्लैन स्पोर्टस् परसन की सेवा के बनाये हैं) प्रैक्टिकल में करना। (बिजनेस विंग की भी प्रदर्शनी बनाई है) अच्छा है, मुबारक हो। अगर सेवा की वृद्धि का प्लैन्स चलता रहेगा तो यह भी वायब्रेशन फैलता है, यह भी आत्माओं को पहुंचता है। एक द्वारा 10 को पहुंचता है। बापदादा ने तो सुनाया कि सेवा में अच्छी रूचि भी रख रहे हैं और आगे भी बढ़ रहे हैं। लेकिन... लेकिन है स्व उन्नति, स्व परिवर्तन, स्व के अटेन्शन की सेवा। दोनों का बैलेन्स चाहिए। वह बैलेन्स अभी बनता जा रहा है। वह बैलेन्स जरूर अटेन्शन में रखो। आपका बैलेन्स होगा और विश्व में नारा लगेगा। अभी कुछ न कुछ क्रान्ति होनी ही है। अच्छा। (यूथ विंग की तरफ से स्व-उन्नति का प्लैन बनाया है) अच्छा है। कोई न कोई नवीनता करते रहो।
डबल विदेशी 30 देशों से आये हैं:- अच्छा - आपका यह तो नाम प्रसिद्ध हो गया है, डबल फारेनर्स। अभी डबल पुरूषार्थी यह नाम रखें? डबल पुरूषार्थी, रखें? पक्का। डबल पुरूषार्थ करेंगे? करने वाले हैं। अच्छा। एक एक्साम्पल दिखाओ कि फारेन में कोई भी विघ्न नहीं आवे। न मन्सा संकल्प का, न वाणी का, न बोल का, न सम्बन्धसम्पर्क का। बापदादा सभी भारत के जोन को भी कहता है, डबल विदेशियों को तो कह रहा है लेकिन भारत के सभी जोन को भी कहते हैं कोई ऐसा एक्जैम्पुल बनाओ जो सभी जोन और सब डबल विदेशी निर्विघ्न, निरविकल्प, निरव्यर्थ संकल्प हों। करो रेस। हर एक जोन रेस करे, फारेन भी तो एक जोन हो गया ना। उसको बापदादा बहुत प्राइज देगा। पूरे जोन में विघ्न का नाम निशान न हो। एक-दो को सहयोग देंगे तो हो जायेगा। जहाँ भी कुछ हो वहाँ एक दो के सहयोगी बनके भी उन्हें निर्विघ्न बनाओ। हिम्मत दो। उमंग-उल्हास दो। ऐसा नक्शा बापदादा देखने चाहते हैं। जैसे सेवा में करके दिखाया ना। जो भी एरिया रही हुई है उसको पूरा करके दिखा रहे हैं, दिखाया भी है तो जैसे सेवा में प्रैक्टिकल करके दिखाया, बापदादा खुश है। हर एक जोन ने सेवा का कोई न कोई प्रोग्राम बनाया है, फारेन वालों ने भी बनाया है, प्रैक्टिकल किया है, ऐसे स्व पुरूषार्थ का भी प्लैन बनाओ। एक दो के सहयोगी बनो। जैसे अपने को सहयोगी निर्विघ्न बनाने का अटेन्शन रखते हो, वैसे सारे जोन में सभी सेन्टर्स में अटेन्शन हो। उसमें देखें कौन नम्बरवन आता है। हो सकता है या मुश्किल है? जोन वाले उठो। उठो। जोन के बड़े आये हैं, रमेश, बृजमोहन भी उठो, यह मधुबन भी उसमें हैं। मधुबन तो पहला नम्बर है ना। तो यह हो सकता है? हो सकता है? आप (निर्वैर भाई) बोलो, हो सकता है? थोड़ा मुश्किल लगता है? (आपका संकल्प है तो कुछ भी मुश्किल नहीं है) चलो पुरूषार्थ शुरू करो, सभी जोन अपना ग्रुप बनाओ, जो भी आपके सहयोगी हैं, उनका ग्रुप बनाओ, प्लैन बनाओ, फिर शुरू करो, फिर देखेगे रिजल्ट क्या है। ग्रुप जरूर बनाना पड़ेगा। इसमें क्या है, पहले आपकी दीदी थी, बुजुर्ग थी, जगहजगह पर चक्कर लगाती थी। बस में, यह थ्रीव्हीलर भी नहीं थी, बसों में आधा-आधा घण्टे ठहरके हर छोटे-छोटे स्थान में चक्कर लगाती थी। वह आजकल कम है। ऐसा ग्रुप बनाओ जो चक्कर लगाता ही रहे, उमंग-उत्साह लाता रहे। कोई न कोई प्लैन बनाओ क्योंकि समय की पुकार है, जल्दी करो, जल्दी करो। और अचानक होना है। इसलिए मीटिंग में कोई न कोई प्लैन बनाओ। कैसे करें, कया करें? वह डिटेल बनाओ। डबल फारेनर्स भी बनाना। देखें कौन नम्बरवन जाता है।
डबल फारेनर्स जब भी मधुबन के संगठन में आते हो तो मधुबन के संगठन में रौनक हो जाती है क्योंकि इन्टरनैशनल संगठन हो जाता है, नहीं तो सिर्फ भारत का संगठन होता है। तो बापदादा को अभी देख करके खुशी होती है कि हर सीजन के टर्न में डबल विदेशी होते ही हैं। यह प्रोग्रेस अच्छी की है। और बापदादा का विशेष प्यार तो है ही क्यों? भारतवासी त्याग करते हैं लेकिन आपका डबल त्याग है। आपका कल्चर भी अलग है। भारत का कल्चर तो वही होता है। इसीलिए बापदादा को खुशी होती है तो अभी अनुभव करते हैं कि हम भारत के थे, भारत के रहने वाले हैं। आगे तो भारत ही होना है ना। यह अमेरिका, लण्डन नहीं होगा। यह सब पिकनिक के स्थान बन जायेंगे। बाकी जो भी होगा एक ही भारत। तो अभी यह अनुभव करते हैं कि हम सेवा के लिए विदेश में गये हैं। आप सोचो अभी भी 30 स्थानों से आये हैं, सीजन जब थी फारेन की तो कितने तरफ के थे? (90 देशों के आये थे) तो सोचो, 90 देशों की भाषा अगर इन्डिया की बहिनें सीखें और सेवा करें तो योग लगायेंगे या भाषा सीखेंगे? इसीलिए आपको भिन्न भिन्न देश में सेवा के लिए भेजा गया है। परमानेंट एड्रेस आपकी कौन सी है? पता है। परमानेंट एड्रेस कौन सी? मधुबन कि लण्डन अमेरिका? मधुबन है? बोलो, परमानेंट एड्रेस मधुबन है, पक्का है? सेवा के लिए गये हो। घर मधुबन है, सेवा स्थान अलग-अलग है। इन्डिया में भी अलग अलग है ना, कोई महाराष्ट्र में है, कोई राजस्थान में है, यह सेवार्थ है। तो डबल विदेशी अभी टाइटल ही रखो डबल पुरूषार्थी | डबल विदेशी नहीं डबल पुरूषार्थी । अच्छा।
ट्रेनिंग की कुमारियां:- यह भी झण्डियां लेकर आई हैं, अच्छी पहचान हो जाती है। अच्छा, ट्रेनिंग हो गई? पक्की हो गई? या थोड़ी-थोड़ी कच्ची? पक्की? अभी वहाँ जाके ट्रेनिंग जो की है, उसका सबूत रूप दिखायेंगे ना। दिखायेंगी? कि कहेंगी क्या करें, हो गया... माया आ गई...। ऐसे तो नहीं कहेंगे। विजयी। सदा विजयी का तिलक लगाके जा रही हो। कभी भी कोई आपसे पूछे आपका हालचाल क्या है? क्या कहेंगी? अच्छे ते अच्छा कहेंगी। अभी झण्डियां हिलाओ। अच्छा। तो हर मास जो इन्चार्ज है ना दादी, उनको ओ.के. ओ.के का लिखना। बड़ा पत्र नहीं लिखना, यह हो गया, यह कह गया नहीं। ओ.के. या बीच में कुछ हुआ तो लकीर डाल दो बस। क्योंकि टाइम नहीं होता है पढ़ने का। शार्टकट या ओ.के., अगर कोई गड़बड़ हुई तो ओ.के. के बीच में लकीर लगाना बस। ठीक है अभी रिजल्ट देखेंगे। जो ग्रुप होके गये हैं, उनकी रिजल्ट आई है? रतनमोहिनी कहाँ है, (रिजल्ट आती रहती है) रिजल्ट जरूर आनी चाहिए। नहीं तो क्या है, ढीली हो जायेंगी। हर मास रिजल्ट आनी चाहिए। छोटा सा कार्ड भेजना। बड़ा कागज नहीं लेना, खर्चा नहीं करना। लेकिन रिजल्ट आवे जरूर, तभी पता पड़े कि ट्रेनिंग से फायदा क्या है। इतना महल बनाया है आपके लिए। सारे शान्तिवन में सबसे बढ़िया स्थान ट्रेनिंग का है। तो बापदादा और मधुबन निवासियों ने, आपसे प्यार है उसका सबूत दिया है, अभी आपको सबूत देना है। ठीक है। रिपोर्ट लिखते रहना, मास में एक बार। ज्यादा नहीं लिखना। अच्छा। बापदादा खुश है क्योंकि विश्व के सामने तो टीचर्स ही रहती हैं ना। टीचर्स विजयी तो सेन्टर विजयी। सेन्टर विजयी तो जोन विजयी और जोन विजयी तो विश्व विजयी। इसलिए यह पुरूषार्थ पक्का करना। ठीक है। अच्छा।
अभी एक सेकण्ड में सभी बहुत मीठी मीठी स्वीट साइलेन्स की स्टेज के अनुभव में खो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा सफलता को प्राप्त करने वाले, सदा विजय के तिलकधारी, बापदादा के दिल तख्तधारी, डबल ताजधारी, विश्व कल्याणकारी, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान करने वाले परमात्म प्यार में पलने वाले ऐसे सर्व श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुआयें और नमस्ते।
दादियों से:- बच्चे हाजिर हैं, तो बाप तो हाजिर है ही। न बाप बच्चों से दूर हो सकता, न बच्चे बाप से दूर हो सकते। वायदा है साथ हैं, साथ चलेंगे, आधाकल्प ब्रह्मा बाप के साथ रहेंगे। (दादी जानकी जी ने कहा, वह भी तो समाया हुआ साथ में है) आपकी यह अनुभूति ठीक है। अभी तो गैरेन्टी है लेकिन जब राज्य करेंगे तो नहीं आयेंगे। कोई देखने वाला भी चाहिए ना। (ऊपर मन कैसे लगेगा) ड्रामा में पार्ट है। ब्रह्मा बाप तो साथ है ना। देखो, ड्रामा क्या करता है? अच्छा है सब एक दो को सम्मान देते, स्वमान में रहते, चल रहे हो, चलते रहो। हाँ यह भी साथी हैं ही (मनोहर दादी और शान्तामणी दादी) थोड़ी तबियत है, कोई हर्जा नहीं। शुरू से निमित्त बने हैं स्थापना के तो स्थापना अभी पूरी नहीं हुई है ना, तो साथी हैं ना। (अंकल आंटी ने यादप्यार भेजा है)| कहो बापदादा आपसे भी ज्यादा पदमगुणा याद करता है। अच्छे हैं। अच्छा। अपना रिटर्न अच्छा दे रहे हैं। अच्छा। (दादी निर्मलशान्ता ने भी याद भेजी है।) (भाकी पहनते समय जानकी दादी ने कहा कि दादी की भाकी याद आती है) दादी आपके साथ है ही।
डा.अशोक मेहता से:- देखो, यह तो शरीर का बर्थ डे मनाया, बहुत अच्छा किया। लेकिन आपका अलौकिक बर्थ भी न्यारा और प्यारा है। और अच्छा है, यह भी जो बर्थ डे मनाया, तो यह सच्चे दिल से जो सेवा की है उसका रिटर्न मिल रहा है। दूसरों ने मिलके खास मनाया ना। तो यह सेवा का रिटर्न मिला। और अलौकिक जन्म में भी सेवा, सोशल सेवा विश्व में प्रसिद्ध करने की सेवा के निमित्त बने हो। जब से ग्लोबल हॉस्पिटल बनी तब से आबू का वायुमण्डल परिवर्तन हो गया। और सभी इन्ट्रेस्ट लेते हैं कि यह सिर्फ आध्यात्मिक सेवा नहीं करते लेकिन सोशल वर्क भी करते और हेल्थ का भी करते हैं, तो यह प्रभाव बदलते बदलते सेवा बढ़ती गई है। तो निमित्त बने ना। तो कितनी दुआयें हैं? बहुत दुआयें मिली हैं। दुआओं का खज़ाना भरपूर है। अभी स्व पुरूषार्थ का जो खाता है, उसमें ज्यादा थोड़ा एडीशन करो, दुआयें और पुण्य का खाता ठीक है स्व पुरूषार्थ का जो खाता है उसमें थोड़ा और तीव्र करो। नम्बर लेना है ना। ले सकते हैं। अच्छा है आलराउण्डर है। हेल्थ में भी, वेल्थ में सहयोग में भी। अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। यह भी साथी हैं। (सिरिन बहन से) निमित्त यह बनी। आपके उमंग से यह भी आ गये। सारी फैमिली अच्छी है। साक्षी भी है और साथी भी है। अच्छा पार्ट बजाया है, बापदादा खुश है। यह भी बहुत अच्छा पार्ट बजा रही है। बापदादा तो देखते रहते हैं ना। बहुत युक्तियुक्त पार्ट बजा रही हो।
(डा.जैन, दादी जी के डाक्टर बापदादा से मिलने आये हैं):- अच्छा रोज पढ़ाई पढ़ते हो? रोज मुरली लेके भी पढ़ो। पढ़ तो सकते हैं ना। जो ड्युटी कर रहे हो ना कनेक्शन में, वह ठीक है। इसमें प्रोग्रेस करते जाओ। (दादी हमारी ठीक है) वह तो बहुत-बहुत ठीक है। निमित्त बनी हुई है ना, विशेषता है पार्ट बजाने की। वह तो अवतार की रीति से पैदा होगी। (सफलता के लिए वरदान दो) कोई भी काम शुरू करो पहले विशेष याद करो फिर कार्य करो तो सफलता है ही है।
एम.पी.(भोपाल) के मिनिस्टर, जज तथा अन्य मेहमान बापदादा से मिल रहे हैं:- कोई भी सेवा कर रहे हो, बहुत अच्छा लेकिन अभी विश्व परिवर्तन के कार्य में सहयोगी हो? हैं? यह संकल्प किया है कि विश्वपारिवर्तन में सदा सहयोगी रहेंगे। यह संकल्प किया? क्योंकि आप लोग आत्माओं की सेवा बहुत सहज कर सकते हो। कैसे कर सकते हो? आपके सम्पर्क में एक दिन में कितने लोग आते हैं? सम्पर्क में आते हैं ना! और कुछ भी नहीं करो लेकिन जो अपना कार्ड छपाते हो ना, कार्ड तो छपाते हो ना, परिचय का। उसके पीछे कोई न कोई ज्ञान का स्लोगन लिखो और उसमें यह लिखो - अगर टेन्शनफ्री होना है तो यह एड्रेस है, कोई सेन्टर की एड्रेस लिखो। तो आपकी सेवा हो जायेगी। जिसको रूचि होगी वह आपेही आयेगा। तो घर बैठे सेवा कर सकते हो। कर सकते हो ना। इसमें मुश्किल तो नहीं है ना? क्योंकि ईश्वरीय कार्य में अंगुली देना इससे बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। उसकी निशानी है गुरूद्वारे में देखो बड़े बड़े वी.आई.पी. भी सेवा करने जाते हैं? क्यों? जुत्तियां भी सम्भाल के रखते हैं। क्योंकि पुण्य प्राप्त होता है। तो यह तो डायरेक्ट ईश्वर के कार्य में सहयोगी बनना, कितना पुण्य है और पुण्य की पूंजी साथ में जायेगी और कुछ नहीं जायेगा। तो अपने पुण्य का खाता जमा करते रहो। स्नेही, सहयोगी बनते रहो। अभी शिव शक्ति होके रहो। शिव परमात्मा साथ है। शिव शक्ति। सदा खुश रहना, कभी भी खुशी नहीं गंवाना। (महेन्द्र जी से) अच्छा ग्रुप है। सिर्फ इन्हों को कनेक्शन में रखते हुए आगे बढ़ाते रहो।
आंध्र प्रदेश के वी.आई.पीज से:- यह तो अनुभव करते हो कि हम ईश्वरीय परिवार के सहयोगी साथी हैं। सहयोगी हैं? देखो, परमात्म कार्य में सहयोगी बनना, यह कितना पुण्य है। क्योंकि जितना सहयोगी बनेंगे, अपने लिए पुण्य जमा करेंगे। समझते हैं? और पुण्य की पूंजी साथ चलेगी और सब यहाँ रह जायेगा। तो जितना हो सके उतना अपने पुण्य की पूंजी इकट्ठी करो। तो जन्म-जन्म यह पुण्य काम आयेगा क्योंकि ईश्वरीय कार्य है ना। तो जैसे ईश्वर अविनाशी है ना वैसे उनके कार्य में सहयोगी बनना वह भी अविनाशी है। तो सहयोग देते रहना। स्वपरिवर्तन और विश्व परिवर्तन। कुछ भी हो जाए खुशी कभी नहीं गंवाना। सदा खुश रहना। अच्छा। सदा अपने को परमात्मा के याद से शक्तिशाली बनाना। शिव शक्ति हैं। चारदीवार वाली माता नहीं, शिव शक्ति हो। यह निश्चय रखना।
जस्टिस ईश्वरैय्या (युगल से):- खुश हैं। खुशी जायेगी तो नहीं? कभी नहीं जाये, सदा खुश रहना। खुशनसीब हो जो साथ मिला है। तो खुश रहना। परमात्म कार्य में लग गया तो वह कार्य क्या है? यह तो पक्का है, विजयी है। जो भी ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनता है उसको अन्दर खुशी की अनुभूति होती है। तो खुशी होती है ना। क्योंकि अविनाशी बाप द्वारा आटोमेटिक प्राप्ति होती है तो सदा खुशनसीब हो। खुशनसीब हैं और खुशी देने वाले हैं। ठीक है। अच्छा है।
31-12-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“नये वर्ष में अखण्ड महादानी, अखण्ड निर्विघ्न, अखण्ड योगी और सदा सफलतामूर्त बनना’’
आज बापदादा अपने सामने डबल सभा को देख रहे हैं। एक तो साकार में सम्मुख बैठे हैं और दूसरे दूर बैठे भी दिल के समीप दिखाई दे रहे हैं। दोनों सभाओं की श्रेष्ठ आत्माओं के मस्तक में आत्म दीप चमक रहा है। कितना सुन्दर चमकता हुआ नजारा है। इतने सब एक संकल्प, एकरस स्थिति में स्थित परमात्म प्यार में लवलीन एकाग्र बुद्धि से स्नेह में समाये हुए कितने प्यारे लग रहे हैं। आप सभी भी आज विशेष नया वर्ष मनाने के लिए पहुंच गये हो। बापदादा भी सभी बच्चों का उमंग-उत्साह देख चमकते हुए आत्म दीप को देख हर्षित हो रहे हैं।
आज का दिन संगम का दिन है। एक वर्ष की पुराने की विदाई है और नये वर्ष की बधाई होने वाली है। नया वर्ष अर्थात् नया उमंग और उत्साह, स्व परिवर्तन का उमंग है, सर्व प्राप्तियों को स्वयं में प्राप्त देख दिल में उत्साह है। दुनिया वाले भी यह उत्सव मनाते हैं, उन्हों के लिए एक दिन का उत्सव है और आप लकी लवली बच्चों के लिए संगमयुग का हर दिन उत्सव है क्योंकि खुशी का उत्साह है। दुनिया वाले तो बुझे हुए दीपक को जलाके वर्ष मनाते हैं और बापदादा और आप इतने सारे चारों ओर के जगे हुए दीपकों के साथ नया वर्ष का उत्सव मनाने आये हैं। यह तो रीति रसम मनाने की निमित्त मात्र करते हो लेकिन आप सभी जगे हुए दीपक हो। अपना चमकता हुआ दीप दिखाई देता है ना! जो अविनाशी दीप है।
तो नये वर्ष में हर एक ने दिल में स्व प्रति, विश्व की आत्माओं प्रति कोई नया प्लैन बनाया है? 12 बजे के बाद नया वर्ष शुरू हो जायेगा तो इस वर्ष को विशेष किस रूप में मनायेंगे? जैसे पुराना वर्ष विदाई लेगा तो आप सबने भी पुराने संकल्प, पुराने संस्कार उन्हों को विदाई देने का संकल्प किया? वर्ष के साथ-साथ आप भी पुराने को विदाई दे नये उमंग-उत्साह के संकल्पों को प्रैक्टिकल में लायेंगे ना! तो सोचो अपने में क्या नवीनता लायेंगे? कौन से नये उमंग-उत्साह की लहर फैलायेंगे? कौन से विशेष संकल्प का वायब्रेशन फैलायेंगे? सोचा है? क्योंकि आप सभी ब्राह्मण सारे विश्व की आत्माओं के लिए परिवर्तन निमित्त आत्मायें हो। विश्व के फाउण्डेशन हो, पूर्वज हो, पूज्य हो। तो इस वर्ष अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा क्या वायब्रेशन फैलायेंगे? जैसे प्रकृति चारों ओर कभी गर्मी का, कभी सर्दी का, कभी बहार का वायब्रेशन फैलाती है। तो आप प्रकृति के मालिक प्रकृतिजीत कौन सा वायब्रेशन फैलायेंगे? जिससे आत्माओं को थोड़े समय के लिए भी सुख-चैन का अनुभव हो। इसके लिए बापदादा यही इशारा दे रहे हैं कि जो भी खज़ाने प्राप्त हुए हैं उन खज़ानों को सफल करो और सफलता स्वरूप बनो। विशेष समय का खज़ाना कभी भी व्यर्थ न जाये। एक सेकण्ड भी व्यर्थ को कार्य में लगाओ। समय को सफल करो, हर श्वांस को सफल करो, हर संकल्प को सफल करो, हर शक्ति को सफल करो, हर गुण को सफल करो। सफलतामूर्त बनने का यह विशेष वर्ष मनाओ क्योंकि सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। उस अधिकार को अपने कार्य में लगाए सफलतामूर्त बनो क्योंकि अब की सफलता आपके अनेक जन्म साथ रहने वाली है। आपके समय सफलता का प्रालब्ध पूरा आधाकल्प सफलता का फल प्राप्त होगा। अब के समय की सफलता का प्रालब्ध पूरा समय ही प्राप्त होगा। श्वांस को सफल करने से भविष्य में भी देखो आपके श्वांस सफलता का परिणाम भविष्य में सभी आत्मायें पूरा समय स्वस्थ रहती हैं। बीमारी का नाम नहीं। डाक्टर्स की डिपार्टमेंट ही नहीं क्योंकि डाक्टर्स क्या बन जायेंगे? राजा बन जायेंगे ना! विश्व के मालिक बन जायेंगे। लेकिन इस समय आप श्वांस सफल करते हो और सर्व आत्माओं को स्वस्थ रहने का प्रालब्ध प्राप्त होता है। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना, उसका फल स्वरूप स्वर्ग में आपके अपने राज्य में इतने समझदार, शक्तिवान बन जाते जो वहाँ कोई वजीर से राय लेने की आवश्यकता नहीं, स्वयं ही समझदार शक्तिवान होते हैं। शक्तियों को सफल करते हो, उसकी प्रालब्ध वहाँ सब शक्तियां विशेष धर्म सत्ता, राज्य सत्ता दोनों ही विशेष शक्तियां, सत्तायें वहाँ प्राप्त होंगी। गुणों का खज़ाना सफल करते हो तो उसकी प्रालब्ध देवता पद का अर्थ ही है दिव्यगुणधारी और साथ-साथ अभी लास्ट जन्म में आपकी जड़ मूर्ति का पूजन करते हैं तो क्या महिमा करते हैं? सर्वगुण सम्पन्न। तो इस समय की सफलता का प्रालब्ध स्वत: ही प्राप्त हो जाती। इसलिए चेक करो खज़ाने मिले, खज़ानों से सम्पन्न हुए हैं लेकिन स्व प्रति वा विश्व प्रति कितना सफल किया? पुराने वर्ष को विदाई देंगे तो पुराने वर्ष में क्या जमा खज़ाना सफल किया, कितना किया? यह चेक करना और आने वाले वर्ष में भी इन खज़ानों को व्यर्थ के बजाए सफल करना ही है। एक सेकण्ड भी और कोई खज़ाना भी व्यर्थ न जाये। पहले बताया है कि संगम समय का सेकण्ड, सेकण्ड नहीं है वर्ष के बराबर है। ऐसे नहीं समझना एक सेकण्ड, एक मिनट ही तो गया, व्यर्थ जाना इसको ही अलबेलापन कहा जाता है। आप सबका लक्ष्य है कि बाप ब्रह्मा समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनना है। तो ब्रह्मा बाप ने सर्व खज़ाने आदि से अन्तिम दिन तक सफल किया, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखा। सम्पूर्ण फरिश्ता बन गया। अपनी प्यारी दादी को भी देखा सफल किया और औरों को भी सफल करने का सदा उमंग उत्साह बढ़ाया। तो ड्रामानुसार विशेष विश्व सेवा के अलौकिक पार्ट के निमित्त बनी।
तो इस वर्ष, कल से हर दिन अपना चार्ट रखना - सफल और व्यर्थ... क्या हुआ कितना हुआ? अमृतवेले ही दृढ़ संकल्प करना, स्मृति स्वरूप बनना कि सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। सफलता मेरे गले का हार है। सफलता स्वरूप ही समान बनना है। ब्रह्मा बाप से प्यार है ना। तो ब्रह्मा बाप का सबसे ज्यादा प्यार किससे था? जानते हो? किससे प्यार था? मुरली से। लास्ट दिन भी मुरली का पाठ मिस नहीं किया। समान बनने में यह चेक करना - ब्रह्मा बाप का जिससे प्यार रहा, ब्रह्मा बाप के प्यार का सबूत है - जिससे बाप का प्यार था उससे मेरा प्यार स्वत: ही सहज होना चाहिए। ब्रह्मा बाप की और विशेषता क्या रही? सदा अलर्ट, अलबेलापन नहीं। लास्ट दिन भी कितना अलर्ट रूप में अपने सेवा का पार्ट बजाया। शरीर कमज़ोर होते भी कैसे अलर्ट होके, आधार लेके नहीं बैठे और अलर्ट करके गये। तीन बातों का मन्त्र देके गये। याद है ना सबको। तो जितना अलर्ट रहेंगे, फॉलो करेंगे, अलबेलापन खत्म होगा। अलबेलेपन के विशेष बोल बापदादा बहुत सुनते रहते हैं। जानते हो ना! अगर इन तीन शब्दों को (निराकारी, निर्विकारी और निरंहकारी) सदा अपने मन में रिवाइज और रियलाइज करते चलो तो आटोमेटिकली सहज और स्वत: समान बन ही जायेंगे। तो एक बात सफल करो सफलतामूर्त बनो।
दूसरी बात - बापदादा ने बच्चों की वर्ष की रिजल्ट देखी। क्या देखा? महादानी बने हो, लेकिन अखण्ड महादानी, अखण्ड अण्डरलाइन, अखण्ड महादानी, अखण्ड योगी, अखण्ड निर्विघ्न अभी इसकी आवश्यकता है। क्या अखण्ड हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन वाले अखण्ड हो सकता है? हाथ उठाओ अगर हो सकता है तो। जो कर सकता है, कर सकते हो? मधुबन वाले भी उठा रहे हैं। बापदादा मधुबन वालों को पहले देखता है। मधुबन से प्यार है। शान्तिवन या पाण्डव भवन या जो भी दादी की भुजायें हैं, सबको ध्यान से देखते हैं। अगर अखण्ड हो गया, मन्सा से शक्ति फैलाने की सेवा में बिजी रहो, वाचा से ज्ञान की सेवा और कर्म से गुणदान वा गुण का सहयोग देने की सेवा।
आजकल चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं सभी को गुण का दान, गुणों का सहयोग देना आवश्यक है। अगर स्वयं सहज सिम्पुल रूप में सैम्पुल बनके रहे तो आटोमेटिक दूसरे को आपके गुणमूर्त का सहयोग स्वत: ही मिलेगा। आजकल ब्राह्मण आत्मायें भी सैम्पुल देखने चाहती हैं, सुनने नहीं चाहती हैं। आपस में भी क्या कहते हो? कौन बना है? तो प्रत्यक्ष रूप में गुणमूर्त देखने चाहते हैं। तो कर्म से विशेष गुणों का सहयोग, गुणों का दान देने की आवश्यकता है। सुनने कोई नहीं चाहता, देखने चाहता है। तो अभी यह विशेष ध्यान में रखना कि मुझे ज्ञान से, वाचा से तो सेवा करते ही रहते हो और करते ही रहना है, छोड़ना नहीं है लेकिन अभी मन्सा और कर्म, मन्सा द्वारा वायब्रेशन फैलाओ। सकाश फैलाओ। वायब्रेशन वा सकाश दूर बैठे भी पहुंचा सकते हो। शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा किसी भी आत्मा को मन्सा सेवा द्वारा वायब्रेशन वा सकाश दे सकते हो।
तो अभी इस वर्ष एक मन्सा शक्तियों का वायब्रेशन, शक्तियों द्वारा सकाश और कर्म द्वारा गुण का सहयोग वा अज्ञानी आत्माओं को गुणदान, नये वर्ष में गिफ्ट भी देते हो ना। तो इस वर्ष स्वयं गुणमूर्त बन गुणों की गिफ्ट देना। गुणों की टोली खिलाते हो ना। मिलते हो तो टोली खिलाते हो ना। टोली खिलाने में खुश हो जाते हैं ना। कोई आत्मायें, भागन्ती भी टोली को याद करते हैं। और भूल जाते हैं लेकिन टोली याद आती है। तो इस वर्ष कौन सी टोली खिलायेंगे? गुणों की टोली खिलाना। गुणों की पिकनिक करना क्योंकि बाप समान समय की समीपता प्रमाण और दादी के इशारे प्रमाण समय की सम्पन्नता अचानक कभी भी होना सम्भव है। इसलिए बाप समान बनना है वा दादी को प्यार का रिटर्न देना है तो जो आवश्यकता है - मन्सा और कर्म द्वारा सहयोगी बनने का, कोई कैसा भी है यह नहीं सोचो, यह बनें तो मैं बनूं। नम्बरवन बनना है तो बने तो बनूं, तो पहला नम्बर तो बनने वाला बन जायेगा। आपका नम्बर तो दूसरा हो जायेगा। क्या आप दूसरा नम्बर बनने चाहते हैं कि पहला नम्बर बनने चाहते हैं? वैसे अगर किसको कहो आप दूसरा नम्बर ले लो तो लेंगे? सभी यही कहेंगे पहला नम्बर लेना है। तो पहला निमित्त बनना है। दूसरे को निमित्त क्यों बनाते हो। अपने को निमित्त बनाओ ना। ब्रह्मा बाप ने क्या कहा? हर बात में खुद निमित्त बनके निमित्त बनाया। हे अर्जुन बन पार्ट बजाया। मुझे निमित्त बनना है। मुझे करना है। दूसरा करेगा, मुझे देखके और करेंगे। और को देख मैं करूंगा नहीं। मुझे देख और करेंगे। यह ब्रह्मा बाप का पहला पाठ है। तो सुना क्या करना है? सफलता मूर्त, सफल सफलता मूर्त, अखण्ड दानी, माया को आने की हिम्मत ही नहीं बनेंगी। जब अखण्ड महादानी बन जायेंगे, निरन्तर सेवाधारी रहेंगे, बिजी रहेंगे, मन बुद्धि सेवाधारी रहेगा तो माया कहाँ आयेगी। तो अभी इस वर्ष क्या बनना है? सबका एक आवाज निकले दिल से, यह बापदादा चाहता है, वह क्या? नो प्राब्लम, कम्पलीट। प्राब्लम नहीं लेकिन कम्पलीट बनना ही है। दृढ़ निश्चयबुद्धि, विजयमाला के नजदीक मणका बनना ही है। ठीक है ना! बनना है ना! मधुबन वाले बनना है। नो कम्पलेन? नो कम्पलेन। हाथ उठाओ हिम्मत रखने वाले। नो प्राब्लम। वाह! मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
देखो, निश्चय का प्रत्यक्ष प्रमाण है रूहानी नशा। अगर रूहानी नशा नहीं तो निश्चय भी नहीं है। फुल निश्चय नहीं है, थोड़ा बहुत है। तो नशा रखो क्या बड़ी बात है! कितने कल्प आप ही बाप समान बने हैं, याद है? अनगिनत बार बने हो। तो यह नशा रखो हम ही बने हैं, हम ही हैं और हम ही बार-बार बनते रहेंगे। यह नशा सदा ही कर्म में दिखाई दे। संकल्प में नहीं, बोल में नहीं, लेकिन कर्म में, कर्म का अर्थ है चलन में, चेहरे में दिखाई दे। तो होमवर्क मिल गया। मिला ना? अब देखेंगे नम्बरवार में आते हो या नम्बरवन में आते हो। अच्छा।
बापदादा के पास कार्ड, पत्र, ईमेल, याद-प्यार कम्प्यटुर द्वारा भी बहुत आये हैं और बापदादा दूर बैठे दिलतख्तनशीन बच्चों को, हर एक को नाम सहित विशेषता सहित यादप्यार और दिल की दुआयें सम्मुख इमर्ज कर दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि यादप्यार, प्यार तो सबको रहता ही है और बापदादा सदा अमृतवेले विशेष ब्राह्मण आत्माओं को यादप्यार का रेसपान्ड विशेष करता है। इसीलिए कार्ड भी अच्छे अच्छे बनाये हैं, बापदादा के पास तो वतन में, यहाँ रखते हैं लेकिन वतन में पहले पहुंचते हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न यू.पी. जोन और पश्चिम नेपाल का है:- बापदादा ने देखा है, जिस भी जोन का टर्न होता है ना तो आधा ग्रुप तो वहाँ का होता है। अभी आप बैठ जाओ और जो दूसरे हैं इस जोन के बिना जो आये हैं वह उठो। इस जोन के बिना, अच्छा, आधा-आधा है, बैठ जाओ। अच्छा चांस मिलता है ना अपने सेवा के टर्न में कितने भी लाते हो ना तो खुला निमन्त्रण मिलता है। एक मिलन का चांस, दूसरा सेवा का चांस। तो डबल चांस लेने वाले। यू.पी. की विशेषता क्या है? पता है। यू.पी. सिकीलधी है। क्यों सिकीलधी है? क्यों है सिकीलधी? मम्मा बाबा के ज्यादा चक्कर लगे हैं। जैसे बाम्बे, दिल्ली वैसे यू.पी. में भी चक्कर लगे हैं। यू.पी. में ब्रह्मा का यादगार है ना। ब्रह्मा का है। जैसे राजस्थान में पुष्कर में ब्रह्मा का यादगार है ना, ऐसे यू.पी. में भी ब्रह्मा कुण्ड है और प्रैक्टिकल में ब्रह्मा बाप ने यू.पी. में सेवा की है। बच्चों को बहुत लाडप्यार दिया है। जो उस समय थे, बहुत लाडप्यार प्यारा है। अच्छा।
अभी यू.पी. नया क्या कर रही है? बापदादा ने लास्ट मुरली में कहा था कि नया कोई प्लैन निकालो। यह प्रदर्शनी, कान्फ्रेन्स, यह मेला, यह अभी कामन हो गये हैं। कई बार कई देख चुके हैं तो जब सुनते हैं ना मेला लगा है, प्रदर्शनी लगी है तो कहते हमने देखा है। समझा नहीं समझा लेकिन देख तो लिया ना। अभी नई कोई इन्वेन्शन निकालो। अब कम खर्चा बालानशीन ऐसी इन्वेन्शन निकालो जो छोटा सेन्टर भी कर सके, बड़ा सेन्टर भी कर सके। देखेंगे, कौन सा बच्चा नई इन्वेन्शन करने के निमित्त बनता है। यू.पी. वाले बनेंगे। यू.पी. में बुद्धिवान तो बहुत हैं। निकाल सकते हैं। यू.पी. की विशेषता दूसरी है कि यू.पी. के सेवा के आरम्भ में वारिस निकले। अच्छे अच्छे वारिस निकले। ऐसे दिल्ली में भी निकले हैं, बाम्बे में भी निकले हैं लेकिन यू.पी. में भी निकले हैं। अभी कर्नाटक में भी स्वार्णिम कर्नाटक कर रहे हैं बापदादा रिजल्ट देखेंगे वारिस कितने निकले, माइक कितने निकले? सन्देश तो मिला उसकी मुबारक है। और यू.पी. में भक्ति का यादगार भी बहुत है। भक्त क्वालिटी भी बहुत हैं। अन्धश्रधा वाले भी हैं और भावना वाले भी हैं, दोनों हैं। अभी यू.पी. वाले कमाल दिखाना। सबसे पहला नम्बर वारिस क्वालिटी आप निकालके लास्ट टर्न पर लिस्ट भेजना फिर यहाँ से तारीख जायेगी तब ले आना। वारिस बनाने की विधि क्या है? जानते हो ना! जो स्वयं हर बात में अनुभव मूर्त बन उन्हों के प्रति अपना दिल का अनुभव सुनाता नहीं है, लेकिन अपना अनुभव का स्वरूप उन्हों को अनुभव कराता है। वह वारिस बना सकता है। जो सिर्फ ज्ञान देता है वह अच्छा बनाता है लेकिन अच्छे ते अच्छा नहीं बनाता है। अच्छे ते अच्छा है वारिस क्वालिटी। तो देखेंगे लास्ट टर्न में क्या कोई लिस्ट आती है। कोई भी करे, निमित्त यू.पी. है लेकिन कोई भी जोन वारिस की लिस्ट भेजे। नम्बरवन देखें कौन बनता है! अच्छा। मुबारक है यू.पी. वालों को। बापदादा ने सुना है कि यज्ञ सेवा का पार्ट बहुत अच्छी तरह से निभाया है। इसलिए सेवा की भी मुबारक है और साथ-साथ जी हाजिर का पाठ अच्छा बजाया, इसकी भी मुबारक। अच्छा।
डबल विदेशी:- (60 देशों से 800 भाई बहिनें आये हैं):- अच्छा- बच्चों ने तो निशानी लगाई है, अच्छे हैं। बच्चों को चाकलेट की टोली दी है। दी है? खिलाई है। कौन है निमित्त। बच्चों को चाकलेट अच्छा लगता है ना! और अपने आगे उड़ने की विधि भी बताई है? कौन है निमित्त? बच्चों के लिए कौन निमित्त है हाथ उठाओ। तो अगले वर्ष यह बच्चे आयेंगे तो और चेंज होके आयेंगे ना। हाँ बच्चे आगे आओ।
(बच्चों ने गीत गाया - बाबा आप कितने अच्छे हो, कितने प्यारे हो..) अच्छी मेहनत की है। अभी दूसरे साल आयेंगे तो इससे भी आगे उड़ते हुए उड़ने वाले फरिश्ते बनके आयेंगे। ठीक है ना! दूसरे वर्ष और प्रोग्रेस करके आयेंगे। अच्छा - सुनो, कल बापदादा के तरफ से बच्चों को विशेष चाकलेट बनाके खिलाना। अच्छा। डबल विदेशी - बापदादा ने कहा था कि डबल विदेशी नहीं, अभी डबल पुरूषार्थी। तो डबल हैं? बापदादा को याद है पहले की बात कि बापदादा ने कहा था कभी भी विदेशी जो हैं ना, वह वाह! वाह! के बजाए, व्हाई व्हाई बहुत करते हैं। व्हाई और आई... आप तो नहीं करने वाले हो ना। आप व्हाई कहने वाले हो या वाह! वाह! कहने वाले हो। वाह! वाह! सदा? सदा वाह! वाह! कभी किसी बात में व्हाई नहीं। व्हाई माना हाय। तो हाय हाय नहीं, व्हाई नहीं वाह! वाह!। जो हो रहा है वह बहुत अच्छा, जो हो गया वह उससे भी अच्छा, जो होने वाला है वह परम अच्छा। यह है डबल पुरूषार्थ की निशानी। नो प्राब्लम वाले हो ना। नो प्राब्लम कि थोड़ी-थोड़ी प्राब्लम है। अच्छा यहाँ प्राब्लम छोड़के जाना, प्लेन में नहीं ले जाना क्योंकि बाप के पास आये हो तो बाप को कुछ तो कमाल दिखायेंगे ना। तो यह कमाल दिखाओ, कभी-कभी नहीं, थोड़ा-थोड़ा है यह नहीं, सदा रूहानी गुलाब। खिला हुआ गुलाब। क्योंकि सभी भारतवासियों के फारेन वाले बाप के भी, दादियों को भी फारेन वाले बहुत लाडले हैं, प्यारे हैं। फारेन वालों को देखके खुश होते हैं। तो आप भी सदा खुश रहेंगे ना। सदा शब्द याद कर लो। इस वर्ष की यह सौगात ले जाओ। सदा शब्द कभी नहीं भूलना। विघ्न आने में सदा नहीं करना, निर्विघ्न बनने में सदा। अच्छा है, मधुबन का श्रृंगार हो। डबल विदेशी विशेष मधुबन का श्रृंगार हो। तो श्रृंगार की बहुत वैल्यु होती है। तो वैल्युबुल हो। अच्छा है। यह बहुत अच्छा करते हो। बापदादा ने देखा है हर ग्रुप में इन्टरनेशनल ग्रुप होता है। अभी कितने देशों के हैं? (60 देशों के) तो देखो रौनक है ना! 60 देशों से भाग भागकर पहुंच गये हो। तो बापदादा के तरफ से मधुबन के तरफ से आपको पदम पदम मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
इन्टरनेशनल यूथ ग्रुप:- अच्छा इतना बड़ा है। यूथ ग्रुप भी बड़ा है। बापदादा ने यूथ ग्रुप का समाचार सुना। जो आपस में प्लैन बनाया है वह अच्छा प्लैन बनाया है लेकिन स्व उन्नति का प्लैन पहले नम्बर प्रैक्टिकल में लाना क्योंकि यूथ ग्रुप को दुनिया वाले भी कमाल करने की आशा से देखते हैं। गवर्मेन्ट भी इसी आशा से देखती कि यूथ कुछ करके दिखाये, बनके दिखाये और बनाके दिखाये। प्रोग्राम तो अच्छा बनाया है। सिस्टम भी अच्छी बनाई है। बनाने वालों को मुबारक दे रहे हैं। अभी हर समय अपनी रिजल्ट निमित्त बनने वालों को भेजते रहना क्योंकि चेकिंग करते रहेंगे ना तो चेंज हो जायेंगे। चेकिंग में अलबेलापन आयेगा तो चेंज भी नहीं हो सकेंगे। इसीलिए जैसे डायरेक्शन मिले हैं वैसे अपनी रिपोर्ट, रिपार्ट बुरी नहीं अच्छी, अपना चार्ट देते रहना। इसमें थकना नहीं, अलबेले नहीं होना। फिर फारेन के यूथ को इन्डिया में दिखायेंगे, गवर्मेन्ट से मिलायेंगे और इन्डिया के ग्रुप को फारेन गवर्मेन्ट से मिलायेंगे। तो तैयार हो जाओ। उनको चार्ट दिखायेंगे ना कि यह कैसे अपना पुरूषार्थ करते हैं, परिवर्तन करते हैं और सफलता पाई है। तो ठीक है, बहुत अच्छा किया है, करते रहना। अच्छा।
ज्युरिस्ट और कलचरल विंग:- अच्छा है बापदादा के पास समाचार तो सब पहुंचता रहता है। दोनों ही विंग कोई न कोई प्लैन बनाते रहते हैं और अच्छा प्रोग्रेस भी कर रहे हैं। जो स्पार्क विंग है, उसमें क्या रिसर्च किया है? क्या एक्जैम्पुल कोई रिसर्च करने के बाद प्रैक्टिकल प्रूफ बनाया है, जैसे हार्ट पेशेन्ट निरोगी बन गये हैं, वह सबूत है, यूथ का भी समाचार सुना, तो अच्छा गवर्मेन्ट तक सबूत जा रहा है। ऐसे गांव वालों की सेवा में भी प्रत्यक्ष सेन्टर गीता पाठशालायें खुल गये हैं, यह रिकार्ड तो अच्छा है, ऐसे स्पार्क वालों ने, स्पार्क वाले हैं कल्चर वाले खड़े हैं तो ऐसा कोई विशेष एक्जैम्पुल बनाया है कि रिसर्च से यह परिवर्तन का सैम्पुल बना है, बापदादा वह सैम्पुल देखने भी चाहते, सुनने भी चाहते। क्या रिसर्च किया और कितनों ने उस रिसर्च करने का प्रैक्टिकल लाभ उठाया। यह देखने चाहते हैं। कल्चर वालों ने क्या कल्चरल डिपार्टमेंन्टस में, कोई ऐसी डिपार्टमेंट तैयार की है जो प्रत्यक्ष रूप में वर्णन करें कि हमनें आध्यात्मिक कल्चर द्वारा यह-यह अनुभव किया है। हमारी सारी डिपार्टमेंट परिवर्तन हुई है। ऐसे सभी वर्ग को, सभी वर्ग को बापदादा यही कहते हैं ऐसे सात-आठ, दस-बारह एक्जैम्पुल तैयार करो जो फिर गवर्मेन्ट को, वर्गीकरण क्या करता है उसका एक्जैम्पुल सुनायें। तो गवर्मेन्ट का भी सहयोग मिल सकता है। बापदादा ने सुना था एक डिपार्टमेंट ने कहा है कि पैसा हमारे पास है, काम आपके पास है। तो काम का प्रत्यक्ष सबूत देखने से उन्हों का भी सफल कराओ ना, नहीं तो ऐसे ही बिचारा खज़ाना चला जायेगा। उन्हों को यूज करने नहीं आता, आप सफल करा सकते हो, प्रभाव से। तो सभी वर्ग वाले मिलके ऐसा कोई प्लैन बनाओ जो प्रैक्टिकल में हर वर्ग का सबूत दिखाई दे। (ऊषा बहन ने चन्द्रपुर, भोपाल के कलचरल प्रोग्राम का समाचार सुनाया) प्रोग्राम अच्छा किया उसकी मुबारक है, अभी अच्छा बनाके दिखाओ।
सभी को माइन्ड डांस आती है? मन की डांस आती है? तो सारे दिन में कितना समय मन में खुशी की डांस करते हो? इसमें तो थकने की बात नहीं। गोड़ों के दर्द की भी बात नहीं, बिजी की भी बात नहीं, टाइम देना पड़ेगा यह भी नहीं, खर्चा भी नहीं। तो क्या करना चाहिए? जब भी बापदादा टी.वी. खोले तो क्या दिखाई दे? हर बच्चा मन की डांस में बिजी है। तो सदा बिजी रहेंगे तो बापदादा अचानक टी.वी. खोलेगा और देखेगा कौन-कौन डांस कर रहा है। खुशी की डांस तो अच्छी है ना। तो सदा यह डांस करते रहना। अच्छा - अभी क्या करना है? बापदादा तो मिलन मनाने में ही बिजी हो गये हैं। अच्छा।
चारों ओर के चमकते हुए आत्म दीप बच्चों को, सदा सफल करने वाले सफलता स्वरूप बच्चों को, सदा अखण्ड महादानी, अखण्ड निर्विघ्न, अखण्ड ज्ञान और योगयुक्त, सदा एक ही समय में तीन सेवा करने वाले मन्सा वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल द्वारा, वाचा वाणी द्वारा और चलन और चेहरे कर्म द्वारा, तीनों सेवा एक ही समय इकट्ठा हो तब आपका प्रभाव अच्छा कहने वाले नहीं, लेकिन अच्छा बनने वालों के ऊपर पड़ेगा। तो ऐसे अनुभवी मूर्त द्वारा अनुभव कराने वाले बच्चों को बापदादा का नये वर्ष के लिए पदम पदमगुणा यादप्यार, दुआयें और दिल का तख्त सदा तख्तनशीन बनाने वाला है, इसलिए चारों ओर के बच्चों को जो सम्मुख है, वा दूर बैठे दिलतख्त पर हैं, सभी को नाम और विशेषता सहित यादप्यार और नमस्ते।
अच्छा - जो पहली बार आये हैं वह उठकर खड़े हो जाओ। हाथ हिलाओ। देखो आधा क्लास पहले बारी का आया है। पीछे वाले हाथ हिलाओ। दिखाई दे रहा है टी.वी. में। बहुत हैं। अच्छा पहले वारी आने वालों को बापदादा की बहुत-बहुत दिल से मुबारक भी है, और दिल का यादप्यार भी है। जैसे अभी आये हो, तो अभी के आने वालों को बापदादा का वरदान है अमर भव।
दादी जानकी से:- अच्छा सम्भाल रही हैं। आप सन्तुष्ट हो। बीज सन्तुष्ट तो सब सन्तुष्ट। दादी की भी छत्रछाया है। उनकी भी दृष्टि है। यह सिर्फ सेवा के लिए बुलाया है बाकी है जैसे सेवा पर ही। (मनोहर दादी से) अच्छा पार्ट बजा रही है। क्लास में हाजिरी देती हो, यह बहुत अच्छा स्वयं भी रिफ्रेश औरों को भी रिफ्रेश करती हो। यह छोड़ना नहीं। इसने संकल्प किया है, बिना डाक्टर के ठीक रहूंगी। हो जायेगी।
(तीनों भाईयों से):- अच्छा त्रिमूर्ति ठीक है, त्रिमूर्ति हो ना। अभी जैसे बाप त्रिमूर्ति रूप में प्रसिद्ध है ना, ऐसे आप तीनों भी कोई ऐसा विशाल कार्य करके दिखाओ जो सब कहें वाह! सब वाह! वाह! के गीत गायें। स्व प्रति और सेवा प्रति, दोनों। स्व प्रति भी तीन नहीं, एक। एक ने कहा दूसरे ने माना। विचार दिया, सन्तुष्ट किया। यह सब देखने चाहते हैं। करना तो पड़ेगा ना। एक कोई निमित्त बन जाओ। मुझे निमित्त बनना है। हर एक अपने को समझे, मुझे निमित्त बनना है। प्राइज मिलेगी ना। दिल का प्यार यह प्राइज सबसे बड़ी है। इस बात पर प्यार। वैसे प्यार है लेकिन इस बात पर प्यार कौन लेता है वह प्यार प्राइज के रूप में, ठीक है ना। अच्छा।
2008 के आगमन पर प्यारे बापदादा द्वारा नये वर्ष की बधाईयां (रात्रि 12 बजे के बाद)
चारों ओर के सभी लकी और लवली बच्चों को नये वर्ष की बहुत-बहुत मुबारक भी है और दुआयें भी हैं। नये वर्ष में सदा नये उमंग-उत्साह में रहना और नये संकल्प सेवा की वृद्धि और स्वयं के तीव्र पुरूषार्थ की सिद्धि को प्राप्त करते उड़ते रहना और उड़ाते रहना। अभी के लिए गुडनाइट और साथ में कल के लिए अभी-अभी शुरू हो गया तो गुडमार्निगं भी गुडनाइट भी। अच्छा।
18-01-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सच्चे स्नेही बन, सब बोझ बाप को देकर मौज का अनुभव करो, मेहनत मुक्त बनो’’
आज बापदादा अपने चारों ओर के बेफिक्र बादशाहों के संगठन को देख रहे हैं। इतनी बड़ी बादशाहों की सभा सारे कल्प में इस संगम के समय होती है। स्वर्ग में भी इतनी बड़ी सभा बादशाहों की नहीं होगी। लेकिन अब बापदादा सर्व बादशाहों की सभा को देख हर्षित हो रहे हैं। दूर वाले भी दिल के नजदीक दिखाई दे रहे हैं। आप सब नयनों में समाये हुए हो, वह दिल में समाये हुए हैं। कितनी सुन्दर सभा है, सबके चेहरों पर आज के विशेष दिवस पर अव्यक्त स्थिति के स्मृति की झलक दिखाई दे रही है। सबके दिल में ब्रह्मा बाप की स्मृति समाई हुई है। आदि देव ब्रह्मा बाप और शिव बाप दोनों ही सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं।
आज तो सवेरे दो बजे से लेकर बापदादा के गले में भिन्न-भिन्न प्रकार की मालायें पड़ी हुई थी। यह फूलों की मालायें तो कामन है। हीरों की मालायें भी कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन स्नेह के अमूल्य मोतियों की माला अति श्रेष्ठ है। हर एक बच्चे के दिल में आज के दिन स्नेह विशेष इमर्ज रहा। बापदादा के पास चार प्रकार की भिन्नभिन्न मालायें इमर्ज थी। पहला नम्बर श्रेष्ठ बच्चों की जो बाप समान बनने के श्रेष्ठ पुरूषार्थी बच्चे हैं, ऐसे बच्चे माला के रूप में बाप के गले में पिरोये हुए थे। पहली माला सबसे छोटी थी। दूसरी माला - दिल के स्नेह समीप समान बनने के पुरूषार्थी बच्चों की माला, वह श्रेष्ठ पुरूषार्थी यह पुरूषार्थी। तीसरी माला थी - जो बड़ी थी वह थी स्नेही भी, बाप की सेवा में साथी भी लेकिन कभी तीव्र पुरूषार्थी और कभी, कभी-कभी तूफानों का सामना ज्यादा करने वाली। लेकिन चाहने वाले, सम्पन्न बनने की चाहना भी अच्छी रहती है। चौथी माला थी उल्हनें वालों की। भिन्न-भिन्न प्रकार के बच्चों की मालायें अव्यक्त फरिश्ते फेस के रूप में मालायें थी। बापदादा भी भिन्न-भिन्न मालाओं को देख खुश भी हो रहे थे और स्नेह और सकाश साथ-साथ दे रहे थे। अभी आप सब अपने आपको सोचो मैं कौन? लेकिन चारों ओर के बच्चों में विशेष संकल्प वर्तमान समय दिल में इमर्ज है कि अब कुछ करना ही है। यह उमंग-उत्साह मैजारिटी में संकल्प रूप में है। स्वरूप में नम्बरवार है लेकिन संकल्प में है।
बापदादा सभी बच्चों को आज के स्नेह के दिन, स्मृति के दिन, समर्थी के दिन की विशेष दिल की दुआयें और दिल की बधाईयां दे रहे हैं। आज का विशेष दिन स्नेह का होने कारण मैजारिटी स्नेह में खोये हुए हैं। ऐसे ही पुरूषार्थ में सदा स्नेह में खोये हुए रहो। लवलीन रहो तो सहज साधन है स्नेह, दिल का स्नेह। बाप के परिचय की स्मृति सहित स्नेह। बाप के प्राप्तियों के स्नेह सम्पन्न स्नेह। स्नेह बहुत सहज साधन है क्योंकि स्नेही आत्मा मेहनत से बच जाती है। स्नेह में लीन होने के कारण, स्नेह में खोये हुए होने के कारण किसी भी प्रकार की मेहनत मनोरंजन के रूप में अनुभव होगी। स्नेही स्वत: ही देह के भान, देह के सम्बन्ध का ध्यान, देह की दुनिया के ध्यान से ऊपर स्नेह में स्वत: ही लीन रहती। दिल का स्नेह बाप के समीप का, साथ का, समानता का अनुभव कराता है। स्नेही सदा अपने को बाप की दुआओं के पात्र समझते हैं। स्नेह असम्भव को भी सहज सम्भव कर देता है। सदा अपने मस्तक पर माथे पर बाप के सहयोग का, स्नेह का हाथ अनुभव करते हैं। निश्चयबुद्धि, निश्चिंत रहते हैं। आप सभी आदि स्थापना के बच्चों को आदि के समय का अनुभव है, अभी भी सेवा के आदि निमित्त बच्चों को अनुभव है कि आदि में सभी बच्चों को बाप मिला, उस स्मृति से स्नेह का नशा कितना था! नॉलेज तो पीछे मिलती लेकिन पहला-पहला नशा स्नेह में खोये हुए हैं। बाप स्नेह का सागर है तो मैजारिटी बच्चे आदि से स्नेह के सागर में खोये हुए हैं, पुरूषार्थ की रफ्तार में बहुत अच्छे स्पीड से चले हैं। लेकिन कोई बच्चे स्नेह के सागर में खो जाते हैं, कोई सिर्फ डुबकी लगाके बाहर आ जाते हैं। इसीलिए जितना खोये हुए बच्चों को मेहनत कम लगती उतनी उन्हों को नहीं। कभी मेहनत, कभी मुहब्बत, दोनों में रहते हैं। लेकिन जो स्नेह में लवलीन रहते हैं वह सदा अपने को छत्रछाया के अन्दर रहने का अनुभव करते हैं। दिल के स्नेही बच्चे मेहनत को भी मुहब्बत में बदल लेते हैं। उन्हों के आगे पहाड़ जैसी समस्या भी पहाड़ नहीं लेकिन रूई समान अनुभव होती है। पत्थर भी पानी समान अनुभव होता है। तो जैसे आज विशेष स्नेह के वायुमण्डल में रहे तो अनुभव किया मेहनत है या मनोरंजन हुआ!
आज तो स्नेह का सबको अनुभव हुआ ना! स्नेह में खोये हुए थे? खोये हुए थे सभी! आज मेहनत का अनुभव हुआ? किसी भी बात की मेहनत का अनुभव हुआ? क्या, क्यों, कैसे का संकल्प आया? स्नेह सब भुला देता है। तो बापदादा कहते हैं सब बापदादा के स्नेह को भूलो नहीं। स्नेह का सागर मिला है, खूब लहराओ। जब भी कोई मेहनत का अनुभव हो ना, क्योंकि माया बीच-बीच में पेपर तो लेती है, लेकिन उस समय स्नेह के अनुभव को याद करो। तो मेहनत मुहब्बत में बदल जायेगी। अनुभव करके देखो। क्या है, गलती क्या हो जाती है! उस समय क्या, क्यों.. इसमें बहुत चले जाते हो। जो आया है वह जाता भी है लेकिन जायेगा कैसे? स्नेह को याद करने से मेहनत चली जायेगी क्योंकि सभी को भिन्न-भिन्न समय पर बापदादा दोनों के स्नेह का अनुभव तो है। है ना अनुभव! कभी तो किया है ना, चलो सदा नहीं है कभी तो है। उस समय को याद करो - बाप का स्नेह क्या है! बाप के स्नेह से क्या-क्या अनुभव किया! तो स्नेह की स्मृति से मेहनत बदल जायेगी क्योंकि बापदादा को किसी भी बच्चे की मेहनत की स्थिति अच्छी नहीं लगती। मेरे बच्चे और मेहनत! तो मेहनत मुक्त कब बनेंगे? यह संगमयुग ही है जिसमें मेहनत
मुक्त, मौज ही मौज में रह सकते हैं। मौज नहीं है तो कोई न कोई बोझ बुद्धि में है, बाप ने कहा है बोझ मुझे दे दो। मैंपन को भूल ट्रस्टी बन जाओ। जिम्मेवारी बाप को दे दो और स्वयं दिल के सच्चे बच्चे बन खाओ, खेलो और मौज करो क्योंकि यह संगमयुग सभी युग में से मौजों का युग है। इस मौजों के युग में भी मौज नहीं मनायेंगे तो कब मनायेंगे? बापदादा जब देखते हैं ना कि बच्चे बोझ उठाके बहुत मेहनत कर रहे हैं। दे नहीं देते, खुद ही उठा लेते। तो बाप को तो तरस पड़ेगा ना, रहम आयेगा ना। मौजों के समय मेहनत! स्नेह में खो जाओ, स्नेह के समय को याद करो। हर एक को कोई न कोई समय विशेष स्नेह की अनुभूति होती ही है, हुई है। बाप जानता है हुई है लेकिन याद नहीं करते हो। मेहनत को ही देखते रहते, उलझते रहते। अगर आज भी अमृतवेले से अब तक दिल से बापदादा दोनों अथॉरिटी के स्नेह का अनुभव किया होगा तो आज के दिन को भी याद करने से स्नेह के आगे मेहनत समाप्त हो जायेगी।
अभी बापदादा इस वर्ष में हर बच्चे को स्नेह युक्त, मेहनत मुक्त देखने चाहते हैं। मेहनत का नामनिशान दिल में नहीं रहे, जीवन में नहीं रहे। हो सकता है? हो सकता है? जो समझते हैं करके ही छोड़ना है, हिम्मत वाले हैं वो हाथ उठाओ। आज विशेष ऐसे हर बच्चे को बाप का विशेष वरदान है - मेहनत मुक्त होने का। स्वीकार है? है! फिर कुछ हो जाए तो क्या करेंगे! क्या क्यों तो नहीं करेंगे ना? मुहब्बत के समय को याद करना। अनुभव को याद करना और अनुभव में खो जाना। आपका वायदा है। बाप भी बच्चों से प्रश्न पूछते हैं, कि आप सबका वायदा है कि हम बाप द्वारा 21 जन्मों के लिए जीवनमुक्त अवस्था का पद प्राप्त कर रहे हैं, करेंगे ही, तो जीवनमुक्त में मेहनत होती है क्या? 21 जन्म में एक जन्म संगम का है। आपका वायदा 21 जन्मों का है, 20 जन्मों का नहीं है। तो अभी से मेहनत मुक्त अर्थात् जीवनमुक्त, बेफिक्र बादशाह। अभी के संस्कार आत्मा में 21 जन्म इमर्ज रहेंगे। तो 21 जन्म का वर्सा लिया है ना! या लेना है अभी? तो अटेन्शन प्लीज, मेहनत मुक्त, सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। सिर्फ रहना नहीं, करना भी है। तभी मेहनत मुक्त रहेंगे। नहीं तो रोज कोई न कोई बोझ की बातें, मेहनत की बातें, क्या क्यों की भाषा में आयेंगी। अभी समय की समीपता को देख रहे हो। जैसे समय की समीपता हो रही है ऐसे आप सबका भी बाप के साथ समीपता का अनुभव बढ़ना चाहिए ना। बाप से आपकी समीपता समय की समीपता को समाप्त करेगी। क्या आप सभी बच्चों को आत्माओं के दु:ख अशान्ति का आवाज कानों में नहीं सुनाई देता! आप ही पूर्वज भी हो, पूज्य भी हो। तो हे पूर्वज आत्मायें, हे पूज्य आत्मायें, कब विश्व कल्याण का कार्य सम्पन्न करेंगे?
बापदादा ने समाचारों में देखा है, हर वर्ग वाले अपनी-अपनी मीटिंग करते हैं, प्लैन बनाते हैं कि विश्व कल्याण की गति को तीव्र कैसे करें? प्लैन तो बहुत अच्छे बनाते हैं, लेकिन बापदादा पूछते हैं आखिर भी कब तक? इसका उत्तर दादियां देंगी - आखिर कब तक? पाण्डव देंगे - आखिर कब तक? बाप की प्रत्यक्षता हो, यही सभी हर वर्ग के प्लैन बनाने में लक्ष्य रखते हैं। लेकिन प्रत्यक्षता होगी दृढ़ प्रतिज्ञा से। प्रतिज्ञा में दृढ़ता, कभी किसी कारण से वा बातों से दृढ़ता कम हो जाती है। प्रतिज्ञा बहुत अच्छी करते हैं, अमृतवेले अगर आप सुन सको ना, बाप तो सुनते हैं, आपके पास ऐसा अभी साइंस ने साधन नहीं दिया है जो सभी के दिल का आवाज सुन सको। बापदादा सुनते हैं, वायदों की मालायें, संकल्प करने की बातें इतनी अच्छी-अच्छी दिल खुश करने वाली होती हैं जो बापदादा कहते वाह बच्चे वाह! सुनायें क्या क्या करते हो! जब कर्म में आते हो ना, मुरली तक भी 75 परसेन्ट ठीक होते हैं। लेकिन जब कर्मयोग में आते हो उसमें फर्क आ जाता है। कुछ संस्कार कुछ स्वभाव, स्वभाव और संस्कार सामना करते हैं, उसमें प्रतिज्ञा दृढ़ के बजाए साधारण हो जाती है। दृढ़ता की परसेन्टेज कम हो जाती है।
बापदादा एक खेल बच्चों का देख मुस्कराते हैं। कौन सा खेल करते हो, बतायें क्या? बतायें तब जब इस खेल को खत्म करो। करेंगे, करेंगे? आज तो स्नेह की शक्ति है ना! करेंगे? हाथ उठाओ। हाथ सिर्फ नहीं, दिल का हाथ उठाना, करना ही पड़ेगा। फिर बापदादा थोड़ा..., थोड़ा-थोड़ा करेगा कुछ। बतायें? पाण्डव बोलो, बतायें? यह पहली लाइन बोलो बतायें? बोलो। करना पड़ेगा। बतायें? अगर हाँ है तो पहली लाईन हाथ उठाओ। यह दो लाइन वाले हाथ उठाओ। मधुबन वाले भी हाथ उठायें। दिल का हाथ है ना। अच्छा। बापदादा को तो खेल देखने में रहम आता है, मजा नहीं आता है क्योंकि बापदादा देखते हैं बच्चे अपनी बात दूसरे के ऊपर रखने में बहुत होशियार हैं। क्या खेल करते? बातें बना देते हैं। सोचते हैं कौन देखने वाला है! मैं जानूं मेरी दिल जाने। बाप तो परमधाम में, सूक्ष्मवतन में बैठा है। अगर किसको कहो कि यह नहीं करना चाहिए, तो खेल क्या करते हैं पता है? हाँ हुआ तो है लेकिन... लेकिन जरूर डालते हैं। लेकिन क्या? ऐसा था ना, ऐसा किया ना, ऐसे होता है ना, तभी हुआ, मैंने नहीं किया, ऐसे हुआ तभी | अभी इसने किया, तभी किया। नहीं तो मैं नहीं करता, तो यह क्या हुआ? अपनी महसूसता, रियलाइजेशन कम है। अच्छा, मानों उसने ऐसा किया, तभी आपने किया, चलो बहुत अच्छा। पहला नम्बर वह हुआ, दूसरा नम्बर आप हुए, ठीक है। बापदादा यह भी मान लेते हैं। आप पहला नम्बर नहीं है, दूसरा नम्बर हैं लेकिन अगर आप सोचते हो कि पहला नम्बर परिवर्तन करे तो मैं ठीक हूँगा, ठीक है? यह समझते हैं ना उस समय। मानो पहला नम्बर परिवर्तन करता है। बापदादा और सभी पहले नम्बर वाले को कहते हैं आपकी गलती है, आपको परिवर्तन करना है, ठीक है। अच्छा अगर पहले नम्बर वाले ने परिवर्तन किया, तो पहला नम्बर किसको मिलेगा? आपका तो पहला नम्बर नहीं होगा। परिवर्तन शक्ति में आपका पहला नम्बर नहीं होगा। पहला नम्बर आपने उसको दिया तो आपका कौन सा नम्बर हुआ? दूसरा नम्बर हुआ ना। अगर आपको कहें दूसरा नम्बर हैं तो मंजूर करेंगे। करेंगे? कहेंगे नहीं, ऐसे था, वैसे था, कैसे था... यह भाषा बहुत खेल में आती है। ऐसे वैसे कैसे यह खेल बन्द करके मुझे परिवर्तन होना है। मैं परिवर्तन होके दूसरे को परिवर्तन करूँ, लेकिन अगर दूसरे को परिवर्तन नहीं कर सकते हो तो शुभ भावना, शुभ कामना तो रख सकते हो! वह तो आपकी अपनी चीज़ है ना! तो हे अर्जुन मुझे बनना है। पहला विश्व के राज्यधारी लक्ष्मी-नारायण के समीप आपको आना है या दूसरे नम्बर वाले को?
बापदादा की इस वर्ष की यही आश है कि सभी ब्राह्मण आत्मायें, ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी जैसे यहाँ यह बैज लगाते हो ना, सभी लगाते हैं ना! यहाँ भी आते हो तो आपको बैज मिलता है ना, चाहे कागज का, चाहे सोने का, चाहे चांदी का। तो जैसे यहाँ बैज लगाते हो वैसे दिल में, मन में यह बैज लगाओ, मुझे परिवर्तन होना है। मुझे निमित्त बनना है। परिवर्तन के कार्य में ब्रह्मा बाप समान पहले मैं, दूसरी बातों में भले पीछे रहो, व्यर्थ बातों में। लेकिन परिवर्तन में पहले मैं। ठीक है ना! मंजूर है? तो कल अमृतवेले बापदादा देखेगा, बापदादा को देरी नहीं लगती है, स्वीच आन हुआ तो सब वर्ल्ड दिखाई देती है। तो कल अमृतवेले सभी बाप से मिलन मनायेंगे ना। तो मिलन मनाते हुए यह बैज लगाना। देखेंगे कौन बैज लगाता है प्रैक्टिकल में। ऐसे नहीं, शो के लिए नहीं लगाना है, परिवर्तन होना ही है। दृढ़ता है ना। दृढ़ हैं ना! हाथ उठाते हैं ना सभी, तो बापदादा को थोड़ा सा लगता है पता नहीं करेंगे, या नहीं करेंगे। यह भी अच्छा, यह हाथ उठाते हो तो एक सेकण्ड तो संकल्प अच्छा किया, लेकिन करके ही छोड़ना है। मुझे बदलना है, बदलकर बदलाना है। यह बदले, यह बात बदले, यह व्यक्ति बदले, यह सरकमस्टांश बदले, नहीं। मुझे बदलना है। बातें तो आयेंगी, आप ऊंचे जा रहे हो, ऊंचे स्थान पर समस्यायें भी तो ऊंची आती है ना! लेकिन जैसे आज नम्बरवार यथाशक्ति स्नेह के स्मृति का वायुमण्डल था। ऐसे अपने मन में सदा स्नेह में लवलीन रहने का वायुमण्डल सदा इमर्ज रखो।
बापदादा के पास समाचार बहुत अच्छे अच्छे आते हैं। संकल्प तक बहुत अच्छे हैं। स्वरूप में आने में यथाशक्ति हो जाते हैं।
अभी दो मिनट के लिए सभी परमात्म स्नेह, संगमयुग के आत्मिक मौज की स्थिति में स्थित हो जाओ। अच्छा - इसी अनुभव में बार-बार हर दिन में समय प्रति समय अनुभव करते रहना। स्नेह को नहीं छोड़ना। स्नेह में खो जाना सीखो। अच्छा।
सेवा का टर्न गुजरात जोन का है:- गुजरात के कुमार उठो। अच्छा है - कुमार का अर्थ ही है कि शरीर में शक्तिशाली, मन की शक्ति में भी शक्तिशाली और शरीर से भी हल्के, आत्मा में भी हल्के। तो ऐसे कुमार हो? हाथ हिलाओ, हैं? कोई बोझ की रिपोर्ट तो नहीं आयेगी। आज से गुजरात के यूथ की कोई रिपोर्ट नहीं आयेगी ना! ऐसा होगा? रिपोर्ट नहीं आयेगी या आयेगी? जो कहते हैं रिपोर्ट नहीं आयेगी वह हाथ उठाओ। हाँ फोटो निकालो। पक्का काम करना है ना। अच्छा है। बापदादा के पास एक यूथ ग्रुप का समाचार भी आया है, अच्छा पुरूषार्थ किया है, हिम्मत अच्छी रखी है, प्रोग्राम की विधि भी अच्छी है। अगर कोई और जोन वाले इस विधि को अपनाने चाहे तो बापदादा को अच्छा लगा है, प्रोग्राम जो बनाया है और अभी किया है, उसके लिए बापदादा की तरफ से अमरभव का वरदान है। अभी सभी जो भी यूथ आये हैं, सभी को पहले मैं परिवर्तन में आगे कदम उठाऊंगा, यह मंजूर है ना। पहले मैं या पहले यह? पहले मैं वाला हाथ उठाओ | देखो, आप अच्छी तरह से फोटो निकालो। बापदादा को रिजल्ट देखनी है ना। अच्छा है। यूथ सारे विश्व विद्यालय की रिजल्ट को प्रत्यक्ष कर सकते हैं। गवर्मेन्ट की प्राब्लम्स दूर कर सकते हैं, दोनों गवर्मेन्ट। आलमाइटी गवर्मेन्ट भी निर्विघ्न देखने चाहती और आजकल की गवर्मेन्ट भी निर्विघ्न भारत को देखने चाहती, लेकिन निमित्त यूथ को बनाने चाहती। तो करके दिखाना है, अमर रहना है। वायदे निभाने में भी अमर रहना। बाकी पुरूषार्थ कर रहे हैं, संकल्प किया है, आगे भी करते और कराते रहना। तो गुजरात के युवा आज से निर्विघ्न। निर्विघ्न रहेंगे ना! बहुत अच्छा।
मातायें उठो:- अच्छा है, माताओं को वरदान है क्योंकि दुनिया वाले भी यही नवीनता देखते हैं कि मातायें विश्व परिवर्तक बन गई हैं। तो मातायें सदा यह पाठ पक्का कर लो कि हमें सदैव शुभचिंतक और शुभचिंतन में रहना है। रह सकती हो? रहेंगे? कोई भी आत्मा हो, लेकिन आप शुभचिंतक रहो और सदा शुभचिंतन, व्यर्थ चिंतन नहीं। खराब चिंतन नहीं। शुभचिंतन। जो शुभचिंतन और शुभचिंतक है वही 21 जन्म के वर्से के अधिकारी बनते हैं। तो याद रखना - दो शब्द शुभचिंतक और शुभचिंतन। अच्छी संख्या है। कभी पराचिंतन नहीं करना, व्यर्थ चिंतन भी नहीं करना। यह रिजल्ट दिखायेंगी। टीचर्स सभी अपने-अपने सेन्टर्स में यह गुजरात की वरदानों को वरदान है, यह पक्का कराना और रिजल्ट देना। पराचिंतन बन्द, व्यर्थ चिंतन बन्द। शुभचिंतन और शुभचिंतक। हर आत्मा के प्रति, चाहे आपके पीछे ही पड़ा रहे, आपका उल्टा मित्र बना हआ हो। तो भी शुभचिंतन, पक्का। मातायें हाथ उठाओ | आप टीचर्स रिजल्ट देखना, हर सप्ताह इस बात की रिजल्ट देखना। देख सकती हैं ना। अच्छा।
पाण्डव उठो:- पाण्डवों की संख्या भी कम नहीं है। अच्छा पाण्डव क्या करेंगे! पाण्डवों का गायन क्या है? पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथ और साथी रहे हैं। साथ भी रहे हैं, साथी भी रहे हैं इसीलिए पाण्डवों का टाइटिल क्या है? विजयी पाण्डव। विजय हो गई ना पाण्डवों की। कारण? परमात्मा साथ और साथी है। तो आज से दिल से मन से बाप का साथ नहीं छोड़ना है। साथ छोड़ते हैं तो माया आती है। बाप का साथ छोड़ना अर्थात् माया के आने का फाटक खोलना। जब दरवाजा खोलते हो तो वह आयेगी ना। क्यों नहीं आयेगी, 63 जन्म की पुरानी है ना। तो बाप को भूलो नहीं, भूलना माना माया का आना। तो सदा साथ रहना है और सेवा में विश्व के परिवर्तन के कार्य में सदा साथी होके रहना है। परमात्म कार्य के साथी, इसी में ही मन्सा वाचा कर्मणा अर्थात् चेहरे और चलन में साथी रहो। पसन्द है? साथ रहेंगे, साथी रहेंगे? माया का दरवाजा बन्द? डबल लॉक लगाया, सिंगल लॉक नहीं लगाना। डबल लॉक। निरन्तर सेवाधारी और निरन्तर याद। यह डबल लॉक लगाना। ठीक है? पाण्डव भी निर्विघ्न। निर्विघ्न, हाथ उठाओ। दिल से हाथ उठा रहे हो? जो दिल से उठा रहे हैं वह ज्यादा हिलाओ। देखना टीचर्स। हाथ उठा रहे हैं। अच्छा है। पड़ोसी हो ना गुजरात। मधुबन के पड़ोसी हो, तो पड़ोसी तो कमाल करेंगे ना। अच्छा।
टीचर्स और कुमारियां दोनों ही उठो:- जो भी कुमारियां हैं, वह बननी तो टीचर्स है ना। कुमारियां क्या बननी है! टीचर्स तो बननी है ना। इसलिए टीचर्स के साथ उठाया है। नौकरी करनी भी पड़ती है तो भी बापदादा कहते हैं अगर टीचर वा विश्व सेवा का लक्ष्य है, कुमारियों को तो भी हर शनिवार जब छुट्टी होती है तो सेन्टर पर रहना है। लेकिन वहाँ सेवा करनी है, ऐसे ही नहीं रहना है। सेवा का अभ्यास करना है। तो थोड़ा हिसाब किताब है तो उसे पूरा करें, अगर आवश्यक हिसाब है तो, चल नहीं सकते हैं इसलिए नौकरी करते हैं तब तो फेल हैं। सचमुच कोई कारण है, कईयों के सरकमस्टांश हैं लेकिन कईयों की दिल भी है। शनिवार और इतवार सेवा करो। इतवार के दिन पूरी सेवा करो। संस्कार डालो। सिर्फ रहने के संस्कार नहीं, सेवा के संस्कार डालो। समझो मैं सर्विसएबुल बनने के कारण आई हूँ। प्रैक्टिस करते रहो, जितना प्रैक्टिस करती रहेंगी ना, मजा आ जायेगा तो आपेही भी कोई बहाना बनाके अपने को छुड़ा सकेंगी। कुमारियां चतुर होती हैं, भोलीभाली नहीं होती हैं। इसीलिए कुमारियां अर्थात् स्व-उन्नति में हर समय कदम उठाती रहें। सिर्फ नौकरी नहीं, स्व उन्नति में अपने सरकमस्टांश अनुसार कदम आगे बढ़ाती रहें। ऐसे नहीं बस चल रही हैं, नौकरी करनी है, कब तक करेंगे, कब तक नहीं करेंगे, कुछ सोच नहीं। कुमारियां ब्रह्माकुमारी तो हो ही। सभी कुमारियां ब्रह्माकुमारी हैं। सर्विस करने वाली भी ब्रह्माकुमारी है, लेकिन ब्रह्माकुमारी वह जो विश्व कल्याण की भावना, कामना रखे। तो बापदादा देखेंगे कि कुमारियां योग्य टीचर बनी, खिटखिट वाली नहीं बनना। योग्य टीचर, क्योंकि योग्य टीचर्स की आवश्यकता है। आजकल क्या होता है, ट्रेनिंग भी कर लेती हैं, लेकिन सेन्टर पर जाते ही कोई प्राब्लम हो जाती, तो हैण्डस तो नहीं बन सकेंगी ना। कुमारी अर्थात् बापदादा के सेवा साथी और निर्विघ्न साथी। अपने को एडजेस्ट करने वाली। एडजेस्ट करने वाली हो ना कि अगेन्स्ट होने वाली हो | किसी के प्रति भी अगेन्स्ट नहीं हो, एडजस्ट हानेवाली। अच्छा तो ऐसी कुमारियां बनेंगी, हाथ उठाओ। एडजेस्ट होने वाली। सोच के हाथ उठाओ। तो सबसे मिलनसार। सबसे अपने को साथी बनाने वाली। निर्विघ्न। तब तो बहुत हैण्डस बन सकते हैं। अभी हैण्डस की कमी है, बापदादा सभी कुमारियों को कह रहा है। मददगार बनेंगी ना। जो मददगार बनेंगी वह हाथ उठाओ | लेकिन कौन-सी मददगार! निर्विघ्न मददगार। अभी उठाओ | निर्विघ्न मददगार? फिर इनएडवांस मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
टीचर्स से:- टीचर्स भी गुजरात में बहुत हैं। अभी टीचर्स को क्या करना है? टीचर्स को अभी बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल फैलाना है। चाहे सेन्टर पर, चाहे विश्व में | विश्व में भी वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल की आवश्यकता है क्योंकि भ्रष्टाचार पापाचार बढ़ रहा है। बिना वैराग्य वृत्ति के इन आत्माओं का कल्याण नहीं होगा। जो सन्देश देने का कार्य कर रहे हो, अच्छा कर रहे हो। बापदादा को पसन्द है लेकिन उससे सहयोगी बनते हैं, माइक बनते हैं। आप जैसे बाप के वारिस बच्चे समर्पण बच्चे कम बनते हैं। चारों ओर के सेन्टर्स पर वैराग्य वृत्ति की आवश्यकता है। वैराग्य वृत्ति सिर्फ खाने पीने पहनने की नहीं, साधनों की नहीं, लेकिन टोटल मानसिक वृत्ति, दृष्टि और कृति्ा, चारों ओर के जोन में अभी वैराग्य वृत्ति से उपराम, देहभान से उपराम वह अभी लहर चाहिए। बेहद की वैराग्य वृत्ति पहले देह भान की वैराग्य वृत्ति, देह की बातों से वैराग्य वृत्ति, देह की भावना, भाव, इससे वैराग्य वृत्ति चाहिए। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों को यह अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि तीव्रगति से चाहे ब्राह्मण, चाहे सहयोगी आत्माओं में श्रेष्ठ उन्नति तब होगी जब वैराग्य वृतति का वायुमण्डल स्वयं में और सर्व में फैलायेंगे तब आवाज फैलेगा। सभी वर्ग वाले भी यही सोचते हैं प्रत्यक्षता करने चाहते हैं, प्रोग्राम भी बनाते हैं लेकिन अभी तक हुई नहीं है क्यों? कारण है चारों ओर, चाहे पाप कर्म चाहे भ्रष्टाचार, चाहे बातों में, पोजीशन में वैराग्य वृत्ति नहीं है। तो प्रत्यक्षता सहज नहीं हो सकती है। तो अभी चारों ओर बेहद की वैराग्य वृत्ति, ब्रह्मा बाप को अन्त तक देखा कितनी बेहद की वैराग्य वृत्ति रही। अपनी देह से भी वैराग्य वृत्ति। बच्चों के सम्बन्ध में भी वैराग्य वृत्ति। तो क्या करेंगे? यही लक्ष्य लक्षण में लाना। अच्छा। गुजरात वाले तो सेवा में सदा हाजिर होने वाले हैं। वृद्धि भी सेवा की अच्छी है, संख्या भी अच्छी है, अभी वारिस और माइक, ऐसे माइक निकालो जिसके आवाज का प्रभाव हो। सबके मुख से निकले, यह कहता है, यह कहता है... कुछ तो होगा। अच्छा, मुबारक हो सेवा की। निर्विघ्न सेवा की इसकी बहुत-बहुत मुबारक।
डाक्टर्स (मेडीकल) और इंजीनियर विंग :- अच्छा। दोनों ही वर्ग बहुत आवश्यक हैं। बापदादा ने दोनों ही वर्गो के प्लैन सुने। डाक्टर्स ने जो प्लैन बनाया है, अच्छा बनाया है। बापदादा को पसन्द है। मुबारक हो क्यों पसन्द है? क्योंकि सब डिटेल क्लीयर रूप से बनाया है। क्या करना है, किसको करना है, कब तक करना है, रिजल्ट क्या निकालनी है, यह सारा स्पष्ट रूप से बनाया है। बापदादा जैसे गांव वालों ने, यूथ ग्रुप ने अपना क्लीयर बनाकरके और प्रैक्टिकल किया इसलिए बापदादा इन दोनों के प्लैन और प्रैक्टिकल में भी मुबारक देते हैं, ऐसे ही डाक्टर्स ने भी जो अभी प्लैन बनाया है वह बहुत स्पष्ट बनाया है और हेल्थ का नाम सुन करके तो सभी इच्छुक होते ही हैं क्योंकि दिन प्रतिदिन नई नई बीमारियां तो निकल ही रही हैं, इलाज भी बहुत निकल रहे हैं तो बीमारियां भी बहुत निकल रही हैं और तंग हैं बीमारियों से। तो यह प्लैन देख करके सेवा सहज हो सकती है। तो अच्छी हिम्मत रखी है। सभी सहयोगी भी अच्छे अच्छे आ गये हैं और चारों ओर आवाज फैलाने का प्लैन बनाया है, एक जोन का नहीं है, सारे भारत का है, तो चारों ओर आवाज फैलने से अच्छा आवाज फैल जाता है। मुबारक हो। प्लैन को अभीप्रैक्टिकल करते चलो, सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। डाक्टर्स की संख्या भी बहुत है। अगर सारे वर्ल्ड के डाक्टर्स इकट्ठे करें तो बहुत संख्या है। काम में आयेंगे डाक्टर्स। पिछाड़ी के समय आपको बहुत सेवा करनी पड़ेगी। बहुत दु:ख खत्म करने पड़ेंगे। सब चिल्लायेंगे और आप तन और मन के डबल डाक्टर बनके सेवा करेंगे। अच्छा।
इन्जीनियर और साइंस:- दोनों ही डिपार्टमेंट बाढिया है तो ऐसा प्लैन बनाओ जिसमें जैसे साइंस प्रत्यक्ष एक्साम्प्ल दिखाती है, ऐसे ही साइलेन्स पावर के प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाओ क्योंकि आजकल सुनने के बजाए, प्रमाण देखने चाहते हैं। तो ऐसे कोई प्रमाण बनाओ, जैसे साइंस सिद्ध करके सुनाती है, साइन्स से यह प्रमाण है, फायदा हुआ है, या परिवर्तन हुआ है, ऐसे आप भी साइलेन्स शक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण निकालो। तो लोगों में आकर्षण होगी। ठीक है ना। अभी इस वर्ष में इस रूप का कोई प्लैन बनाओ। बन सकता है, होशियार हो। बना देंगे। अच्छा। फिर भी अच्छा है। वर्गीकरण जबसे बने हैं, सेवा में वृद्धि तो हुई है। अच्छा।
डबल विदेशी:- बापदादा को बहुत अच्छा लगता है कि विदेशियों ने चतुराई बहुत की है, हर टर्न में चांस लेते हैं। और सभी कितने देशों से आये हैं! 35 देशों से आ गये हैं। तो 35 देशों का कल्याण तो हो रहा है ना। जहाँ से आप आये हो उस देश का कल्याण तो हो रहा है ना। तो यह टाइटल यथार्थ है ना, विश्व कल्याणकारी हैं। कोई भी कोना रह नहीं जाये। बापदादा ने समाचार सुना है कि विदेश में भी यही प्लैन बनाया है, कि कोई भी कोना सन्देश के बिना खाली नहीं रहे। बनाया है ना? बनाया है। तो बाप के इस विश्व कल्याणी टाइटल को आपने अच्छा प्रैक्तिकल में लाया है। पहले सिर्फ भारत कल्याणकारी था, अभी फलक से कहते हैं विश्व कल्याणकारी। तो बाप का यह टाइटल विश्व कल्याणकारी का आप डबल विदेशियों ने प्रैक्टिकल में लाया है और विदेशी एक बात में चारों ओर होशियार हैं, बतायें कौन सी? हमेशा विदेशी हाथ में हाथ देके चलते हैं। आदत है। तो डबल विदेशी बाप को हाथ में हाथ देकरके चलने वाले। हैं? हाथ में हाथ है? हाथ कौन सा है? निराकार को तो हाथ है नहीं? निराकार का हाथ है श्रीमत। तो श्रीमत पर हाथ में हाथ देकर चलने वाले हो ना। कभी थक तो नहीं जाते हो हाथ में हाथ देने में। थकते हो! थोड़ा-थोड़ा? सदा बाप के श्रीमत रूपी हाथ में हाथ अर्थात् साथी सहयोगी बनने वाले। जो बाप ने कहा वह किया। ऐसे हो ना? ऐसे हो? सामने वाले ऐसे हो? पक्का? देखना, बापदादा पोतामेल देखेगा ना! बाप ने कहा बच्चे ने किया, वह है सुपात्र बच्चा। सोचे नहीं, करूं नहीं करूं, यह तो नहीं होगा, वह तो नहीं होगा... बाप ने कहा मैंने किया, यह हैं पक्के वारिस। सोचने वाले नहीं, करने वाले। कई कहते हैं ना करेंगे, देखना करेंगे जरूर, नहीं। तुरत कर्म, वह तो तुरत दान कहते हैं लेकिन यहाँ बापदादा कहते हैं तुरत हर कर्म में फॉलो करना महापुण्य है। महापुण्य और पुण्य में भी फर्क है। जैसे भक्ति में देखा है ना जब बालि चढाते हैं तो जो झाटकू होता है उसको महाप्रसाद कहा जाता है, अगर सोच सोच के मरता है तो उसको महाप्रसाद नहीं कहा जाता है। तो श्रीमत को फौरन फॉलो करना इसको कहा जाता है महापुण्य। ठीक है। समझदार तो बहुत हो। अच्छा लगता है, यह सिन्धियों का ग्रुप भी अच्छा लगता है। मधुबन का श्रृंगार हैं ना। तो बहुत अच्छा है, तो डबल फारेनर्स डबल पुरूषार्थी। आगे ग्रुप में वरदान दिया था डबल फारेनर्स का अर्थ ही है डबल पुरूषार्थी। सोचने वाले पुरूषार्थी नहीं। अच्छा, बाकी सेवा करते हो, जहाँ से भी आये हो, सेवा अच्छी कर रहे हो, स्व पुरूषार्थ में भी अटेन्शन है और आगे तीव्र करना। पुरूषार्थ है लेकिन तीव्र करना क्योंकि समय बहुत फास्ट जा रहा है। अचानक कुछ भी हो सकता है। अच्छा। सभी को दुआयें भी हैं और दिल का यादप्यार भी है। अच्छा।
चारों ओर के योगयुक्त, युक्तियुक्त, राज़युक्त, खुद भी राज़ को जान सदा राजी करने वाले और राजी रहने वाले, सिर्फ स्वयं राजी नहीं रहना है, राजी करना भी है, ऐसे सदा स्नेह के सागर में लवलीन बच्चों को, सदा बाप समान बनने के तीव्रगति के पुरूषार्थी बच्चों को, सदा असम्भव को भी सहज सम्भव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के साथ रहने वाले और बाप की सेवा में साथी रहने वाले ऐसे बहुत-बहुत लक्की और लवली बच्चों को आज के अव्यक्त दिवस की, अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप की यादप्यार और दिल की दुआयें, अच्छा।
आज बहुत अच्छा वतन का दृश्य था। आज बापदादा ने वतन में सभी एडवांस पार्टी वालों को बुलाया। एडवांस पार्टी ने कहा कि हम सब एडवांस पार्टी वालों का एडवांस स्टेज वालों को यादप्यार देना। तो आप एडवांस स्टेज वाले हो, वह एडवांस पार्टी वाले हैं, तो आपको बहुत यादप्यार दिया और आज बापदादा ने काफी वर्ष अव्यक्त पार्ट चलाने के निमित्त दादी को और गुल्जार को, दोनों को अपने साथ बिठाया। काफी वर्ष अव्यक्त पार्ट को हो गया है, व्यक्त की सेवा से भी अधिक अलौकिक पार्ट का चला है। तो बापदादा ने आज दोनों को बहुत-बहुत स्नेह दिया और एडवांस पार्टी वालों ने बहुत स्वागत की। बापदादा ने दोनों को बाहों का हार पहनाया, गले लगाया और दोनों के कार्य का सुनाया। दादी के लिए कहा तो दादी ने परिवार और सेवा को, साथियों को, सभी को बहुत अच्छी तरह से चलाया, निमित्त बनी चलाने के और निमित्त समझके चलाया। और गुल्जार बच्ची ने बापदादा को समाने का कार्य किया। तो दोनों का कार्य विशेष रहा इसीलिए दोनों को विशेष वतन में स्वागत की और साथ में जो आदि से आदि रत्न दादियां कहो, उन्हों की भी स्वागत की। बापदादा ने यही विशेषता सुनाई कि दोनों के कार्य में सफलता का कारण मैंपन नहीं, गुल्जार बच्ची की भी महिमा की कि निर्मल निर्मान, सेवा के निमित्त बनी और समाने की शक्ति प्रमाण, परमात्मा और आत्मा दोनों को ब्रह्मा बाप आत्मा और परमात्मा को समाने की शक्ति बाप द्वारा जो प्राप्त हुई, उसको कार्य में लगाया। दादी को जो अन्त में हाथ में हाथ देके बापदादा ने विल पावर्स की विल की उस विल पावर से कार्य निर्विघ्न चलाया, तो दोनों की विशेषता कम नहीं हैं। दोनों ने अपना अच्छा, अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया है और अभी भी पार्ट बजाते रहेंगे। तो बापदादा कहते हैं कि जो विशेष कार्य के निमित्त बनते हैं उनको बापदादा की और ब्राह्मणों की बधाईयां जरूर मिलती हैं। उनकी मुबारकें शुभ भावनायें, शुभ कामनायें बहुत मिलती हैं, तो दोनों का पार्ट अपना अपना रहा। लेकिन सफल रहा, सफल रहेगा। अव्यक्त पार्ट भी चल रहा है, चलता रहेगा और दादी का भी सकाश देने का, समय को समीप लाने का पार्ट अच्छा चलेगा और साथ में सभी दादियों को और दोनों के साथी बहिनें जो सेवा के निमित्त बनी, साथ में रही, बहुत अच्छा योगयुक्त हो सेवा की है, कर रही हैं उन्हों को भी बापदादा ने इमज र् किया और वरदान दिया - सदा ऐसे ही योगयुक्त राज़युक्त बनके चलते चलो। बाप की दुआओं का हाथ आपके मस्तक पर है, ऐसे वहाँ वतन में सीन चली और सभी एडवांस पार्टी वाले और जो आदि रत्न सेवा साथी रहे हैं वह सभी इमर्ज थे। उन्होंने दोनों के ऊपर आज वतन में सोने के पुष्प डाले। देखा है, सोने के फूल देखे हैं? बहुत हल्के होते हैं, भारी नहीं होते हैं जो लगें, दर्द करें, ऐसे नहीं होते हैं। बहुत हल्के से पतरे के होते हैं लेकिन बहुत रंगबिरंगी अच्छी डिजाइन के होते हैं, तो बापदादा ने आज दोनों के पार्ट की विशेषता सुनाते हुए सभी द्वारा सोने के पुष्पों की वर्षा कराई। बापदादा ने दोनों को बहुत प्यार किया। और दोनों बाबा बाबा कह रही थी, बाबा आपने कराया, बाबा आपने कराया, बाबा आपने कराया ऐसे ही गीत गा रहे थी। यह था दृश्य आज वतन का। अच्छा।
दादियों से:- आदि रत्न फिर भी आदि रत्न हैं। आदि रत्नों की रौनक ही अपनी है। अच्छा है। बापदादा ने देखा कि सभी आप जो निमित्त बने हुए हो, यह सारा ग्रुप निमित्त ही है ना तो सारा निमित्त ग्रुप अच्छा है। एक दो को सहयोग देके अभी भी चला रही हो, और अच्छा चला रही हो, बापदादा देखके दुआयें देते हैं। एक ने कहा दूसरे ने माना और कार्य सफल हो गया। रायबहादुर भी हो और कार्य कर्ता भी हो। लेकिन सब मिल करके चाहे पाण्डव निमित्त हैं, चाहे शक्तियां निमित्त हैं, लेकिन अच्छा चल रहा है, और अच्छा चलता रहेगा। यही बापदादा का वरदान है।
दादी निर्मलशान्ता से:- खुश रहती हो, खुशी में रहती हो, बीमारी में भी चिल्लाती नहीं हो यह बहुत अच्छा है। योग भी अच्छा लगा रही हो। यह बहुत अच्छा है। (दादी ने गीत गाया, खुश रहो आबाद रहो...) यह पाठ बहुत अच्छा है। अच्छा पार्ट बजा रही हो।
शान्तामणी दादी से :- अच्छा है शरीर को चलाते रहो चल जायेगा क्योंकि विल पावर है ना। इतने वर्षों की विल पावर काम में आती है। काम में लगा रही हो लगाते रहो। सेवा भी अच्छी कर रही हो।
मनोहर दादी से:- आदि रत्न सबकी नजरों में हैं। कैसे भी हो, कहाँ भी हो लेकिन सबकी नज़र में आदि रत्न आदि ही हैं। सभी आदि रत्न हैं। विल पावर है।
(दादी जानकी जी ने कहा, बाबा बहुत अच्छा है) अच्छे बच्चे भी हैं ना। अच्छे बाप ने आप समान बनाया है। अच्छा।
आज विशेष ब्रह्मा बाप ने आप एक एक को याद करते हुए बहुत बहुत बाहों की माला पहनाई। (प्रैक्टिकल करके दिखायें) प्रैक्टिकल हो नहीं सकता ना, क्योंकि एक तो नहीं है सब हैं। सभी हकदार हैं। ब्रह्मा बाप को प्यार बहुत है बच्चों से। ऐसे ही दादी को भी भूलता नहीं है। बार बार याद आता है। कैसे है? कैसे चल रहा है? ठीक चल रहा है, मुझे सुनाया करो, कैसे हो रहा है? पूछती रहती है। फिर भी सखियां तो याद आयेंगी, पाण्डव भी याद आते हैं, यही पूछती है कारोबार ठीक चल रही है। ठीक चल रही है? ठीक चल रही है ना! दादी भी खुश और ब्रह्मा बाबा उनसे ज्यादा खुश। (दादी का पार्ट क्या है!) दादी सकाश और टचिंग देकर उन्हों को तीव्र करेगी। छोटेपन से ही उनके मन में बहुत प्लैन चलेंगे। (जन्म ले लिया है?) अभी नहीं। जन्म टाइम पर लेगी ना। अभी नहीं लिया। टाइम से ही लेना आजकल के समय में यथार्थ है। लेकिन आप सबसे मिलती रहेगी, सूक्ष्म। (रमेश भाई ने सुनाया कि आपकी यादगार सोमनाथ जा रहे हैं) सन्देश तो सबको मिलता है लेकिन अभी ऐसा माइक और वारिस नहीं निकला है वह निकालो क्योंकि भक्ति के रूप से भी वो बहुत हैं, सन्देश देने का ठीक है लेकिन ऐसा कोई निमित्त बनें वह अभी पुरूषार्थ करो। निकल सकता है, मेहनत थोड़ी चाहिए क्योंकि भक्ति का प्रभाव तो है।
नारायण दादा तथा मनोज से:- खुश रहते हैं, शरीर निर्वाह की चिंता तो नहीं है! इसको है? नहीं। बेफिक्र है? कभी भी सोचना नहीं। आपका परिवार बेहद का है इसलिए बेफिक्र। कोई चिंता नहीं। (बाबा सेवा में लगा दो अभी) अच्छा राय करेंगे फिर बतायेंगे।
भूपाल भाई से:- बापदादा ने सभी को याद करके बांहों की माला पहनाई। सभी को याद करते हैं। दादी को अपनी भुजायें भी नहीं भूली हैं। बड़े तो छोड़ो लेकिन भुजायें भी नहीं भूली है।
02-02-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सम्पूर्ण पवित्रता द्वारा रूहानी रॉयल्टी और पर्सनालिटी का अनुभव करते, अपने मास्टर ज्ञान सूर्य स्वरूप को इमर्ज करो’’
आज बापदादा चारों ओर के अपने रॉयल्टी और पर्सनालिटी के परिवार को देख रहे हैं। यह रॉयल्टी वा रूहानी पर्सनालिटी का फाउण्डेशन है सम्पूर्ण प्युरिटी। प्युरिटी की निशानी सभी के मस्तक में, सभी के सिर पर लाइट का ताज चमक रहा है। ऐसे चमकते हुए ताजधारी रूहानी रॉयल्टी, रूहानी पर्सनालिटी वाले सिर्फ आप ब्राह्मण परिवार ही हैं क्योंकि प्युरिटी को अपनाया है। आप ब्राह्मण आत्माओं की प्युरिटी का प्रभाव आदिकाल से प्रसिद्ध है। याद आता है अपना अनादि और आदिकाल! याद करो अनादिकाल में भी आप प्युअर आत्मायें आत्मा रूप में भी विशेष चमकते हुए सितारे, चमकते रहते हैं और भी आत्मायें हैं लेकिन आप सितारों की चमक सबके साथ होते भी विशेष चमकती है। जैसे आकाश में सितारे अनेक होते हैं लेकिन कोई कोई सितारे स्पेशल चमकने वाले होते हैं। देख रहे हो सभी अपने को, फिर आदिकाल में आपके प्युरिटी की रॉयल्टी और पर्सनालिटी कितनी महान रही है! सभी पहुंच गये आदिकाल में? पहुंच जाओ। चेक करो मेरी चमकने की रेखा कितनी परसेन्ट में है? आदिकाल से अन्तिम काल तक आपके प्युरिटी की रॉयल्टी, पर्सनालिटी सदा रहती है। अनादि काल का चमकता हुआ सितारा, चमकते हुए बाप के साथ-साथ निवास करने वाले। अभी-अभी अपनी विशेषता अनुभव करो। पहुंच गये सब अनादिकाल में? फिर सारे कल्प में आप पवित्र आत्माओं की रॉयल्टी भिन्न-भिन्न रूप में रहती है क्योंकि आप आत्माओं जैसा कोई सम्पूर्ण पवित्र बने ही नहीं हैं। पवित्रता का जन्म सिद्ध अधिकार आप विशेष आत्माओं को बाप द्वारा प्राप्त है। अभी आदिकाल में आ जाओ। अनादिकाल भी देखा, अब आदिकाल में आपके पवित्रता की रॉयल्टी का स्वरूप कितना महान है! सभी पहुंच गये सतयुग में। पहुंच गये! आ गये? कितना प्यारा स्वरूप देवता रूप है। देवताओं जैसी रॉयल्टी और पर्सनालिटी सारे कल्प में किसी भी आत्मा की नहीं है। देवता रूप की चमक अनुभव कर रहे हो ना! इतनी रूहानी पर्सनालिटी, यह सब पवित्रता की प्राप्ति है। अभी देवता रूप का अनुभव करते मध्यकाल में आ जाओ। आ गये? आना अनुभव करना सहज है ना। तो मध्यकाल में भी देखो, आपके भक्त आप पूज्य आत्माओं की पूजा करते हैं, चित्र बनाते हैं। कितने रॉयल्टी के चित्र बनाते और कितनी रॉयल्टी से पूजा करते। अपना पूज्य चित्र सामने आ गया है ना! चित्र तो धर्मात्माओं के भी बनते हैं। धर्म पिताओं के भी बनते हैं, अभिनेताओं के भी बनते हैं लेकिन आपके चित्र की रूहानियत और विधि पूर्वक पूजा में फर्क होता है। तो अपना पूज्य स्वरूप सामने आ गया! अच्छा फिर आओ अन्तकाल संगम पर, यह रूहानी ड्रिल कर रहे हो ना! चक्कर लगाओ और अपने प्युरिटी का, अपनी विशेष प्राप्ति का अनुभव करो। अन्तिमकाल संगम पर आप ब्राह्मण आत्माओं का परमात्म पालना का, परमात्म प्यार का, परमात्म पढ़ाई का भाग्य आप कोटों में कोई आत्माओं को ही मिलता है। परमात्मा की डायरेक्ट रचना, पहली रचना आप पवित्र आत्माओं को ही प्राप्त होती है। जिससे आप ब्राह्मण ही विश्व की आत्माओं को भी मुक्ति का वर्सा बाप से दिलाते हो। तो यह सारे चक्कर में अनादिकाल, आदिकाल, मध्यकाल और अन्तिमकाल सारे चक्र में इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति का आधार पवित्रता है। सारा चक्कर लगाया अभी अपने को चेक करो, अपने को देखो, देखने का आइना है ना! अपने को देखने का आइना है? जिसको है वह हाथ उठाओ। आइना है, क्लीयर है आइना? तो आइने में देखो मेरी पवित्रता का कितना परसेन्ट है? पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन ब्रह्माचारी। मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता है? कितनी परसेन्ट में है? परसेन्टेज निकालने आती है ना! टीचर्स को आती है? पाण्डवों को आती है? अच्छा होशियार हो। माताओं को आती है? आती है माताओं को? अच्छा। पवित्रता की परख है - वृत्ति, दृष्टि और कृति तीनों में चेक करो, सम्पूर्ण पवित्रता की जो वृत्ति होगी, वह आ गई ना बुद्धि में। सोचो, सम्पूर्ण पवित्रता की वृत्ति अर्थात् हर आत्मा के प्रति शुभभावना, शुभकामना। अनुभवी हो ना! और दृष्टि क्या होगी? हर आत्मा को आत्मा रूप में देखना। आत्मिक स्मृति से बोलना, चलना। शार्ट में सुना रहे हैं। डिटेल तो आप भाषण कर सकते हैं और कृति अर्थात् कर्म में सुख लेना सुख देना। यह चेक करो - मेरी वृत्ति, दृष्टि, कृति इसी प्रमाण है? सुख लेना, दु:ख नहीं लेना। तो चेक करो कभी दु:ख तो नहीं ले लेते हो! कभी कभी थोड़ा-थोड़ा? दु:ख देने वाले भी तो होते हैं ना। मानों वह दु:ख देता है तो क्या आपको उसको फॉलो करना है! फॉलो करना है कि नहीं? फॉलो किसको करना है? दु:ख देने वाले को वा बाप को? बाप ने, ब्रह्मा बाप ने निराकार की तो बात है ही, लेकिन ब्रह्मा बाप ने किसी बच्चे का दु:ख लिया? सुख दिया और सुख लिया। फॉलो फादर है या कभी-कभी लेना ही पड़ता है? नाम ही है दु:ख, जब दु:ख देते हैं, इनसल्ट करते हैं, तो जानते हो कि यह खराब चीज़ है, कोई आपकी इनसल्ट करता है तो उसको आप अच्छा समझते हो? खराब समझते हो ना! तो वह आपको दु:ख देता है या इनसल्ट करता है, तो खराब चीज़ अगर आपको कोई देता है, तो आप ले लेते हो? ले लेते हो? थोड़े समय के लिए, ज्यादा समय नहीं थोड़ा समय? खराब चीज़ लेनी होती है? तो दु:ख या इनसल्ट लेते क्यों हो? अर्थात् मन में फीलिंग के रूप में रखते क्यों हो? तो अपने से पूछो हम दु:ख लेते हैं? या दु:ख को परिवर्तन के रूप में देखते हैं? क्या समझते हो पहली लाइन। दु:ख लेना राइट है? है राइट? मधुबन वाले राइट है? थोड़ा थोड़ा ले लेना चाहिए? पहली लाइन, दु:ख ले लेना चाहिए ना! नहीं लेना चाहिए लेकिन ले लेते हो। गलती से ले लेते हो। यह दु:ख की फीलिंग, परेशान कौन होता? मन में किचड़ा रखा तो परेशान कौन होगा? जहाँ किचड़ा होगा वहाँ ही परेशान होंगे ना! तो उस समय अपने रॉयल्टी और पर्सनालिटी को सामने लाओ और अपने को किस स्वरूप में देखो? जानते हो आपका क्या टाइटल है? आपका टाइटल है सहनशीलता की देवी, सहनशीलता का देव। तो आप कौन हो? सहनशीलता की देवियां हो, सहनशीलता के देव हो? कि नहीं? कभी-कभी हो जाते हैं। अपना पोजीशन याद करो, स्वमान याद करो। मैं कौन! यह स्मृति में लाओ। सारे कल्प के विशेष स्वरूप की स्मृति को लाओ। स्मृति तो आती है ना!
बापदादा ने देखा कि जैसे मेरा शब्द को सहज याद में परिवर्तन किया है। तो मेरा के विस्तार को समेटने के लिए क्या कहते हो? मेरा बाबा। जब भी मेरा मेरा आता तो मेरा बाबा में समेट लेते हो। और बार-बार मेरा बाबा कहने से याद भी सहज हो जाती है और प्राप्ति भी ज्यादा होती है। ऐसे ही सारे दिन में अगर किसी भी प्रकार की समस्या या कारण आता है, उसके यह दो शब्द विशेष हैं - मैं और मेरा। तो जैसे बाबा शब्द कहते ही मेरा शब्द पक्का याद हो गया है। हो गया है ना? सभी अभी बाबा बाबा नहीं कहते, मेरा बाबा कहते हैं। ऐसे ही यह जो मैं शब्द है, इसको भी परिवर्तन करने के लिए जब भी मैं शब्द बोलो तो अपने स्वमान की लिस्ट सामने लाओ। मैं कौन? क्योंकि मैं शब्द गिराने के निमित्त भी बनता और मैं शब्द स्वमान की स्मृति से ऊंचा भी उठाता है। तो जैसे मेरा बाबा का अभ्यास हो गया है, ऐसे ही मैं शब्द को बॉडीकान्सेसनेस की स्मृति के बजाए अपने श्रेष्ठ स्वमान को सामने लाओ। मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तख्तनशीन आत्मा हूँ, विश्व कल्याणी आत्मा हूँ, ऐसे कोई न कोई स्वमान मैं से जोड़ लो। तो मैं शब्द उन्नति का साधन हो जाए। जैसे मेरा शब्द अभी मैजारिटी बाबा शब्द याद दिलाता है क्योंकि समय प्रकृति द्वारा अपनी चैलेन्ज कर रहा है।
समय की समीपता को कामन बात नहीं समझो। अचानक और एवररेडी शब्द को अपने कर्मयोगी जीवन में हर समय स्मृति में रखो। अपने शान्ति की शक्ति का स्वयं प्रति भी भिन्न-भिन्न रूप से प्रयोग करो। जैसे साइन्स अपना नया-नया प्रयोग करती रहती है। जितना स्व के प्रति प्रयोग करने की प्रैक्टिस करते रहेंगे उतना ही औरों प्रति भी शान्ति की शक्ति का प्रयोग होता रहेगा। अभी विशेष अपने शक्तियों की सकाश चारों ओर फैलाओ। जब आपकी प्रकृति सूर्य की शक्ति, सूर्य की किरणें अपना कार्य कितने रूप से कर रहा है। पानी बरसाता भी है, पानी सुखाता भी है। दिन से रात, रात से दिन करके दिखाता है। तो क्या आप अपने शक्तियों की सकाश वायुमण्डल में नहीं फैला सकते? आत्माओं को अपनी शक्तियों की सकाश से दु:ख अशान्ति से नहीं छुड़ा सकते! ज्ञान सूर्य स्वरूप को इमर्ज करो। किरणें फैलाओ, सकाश फैलाओ। जैसे स्थापना के आदिकाल में बापदादा के तरफ से अनेक आत्माओं को सुख-शान्ति की सकाश मिलने का घर बैठे अनुभव हुआ। संकल्प मिला जाओ। ऐसे अब आप मास्टर ज्ञान सूर्य बच्चों द्वारा सुख-शान्ति की लहर फैलाने की अनुभूति होनी चाहिए। लेकिन वह तब होगी, इसका साधन है मन की एकाग्रता। याद की एकाग्रता। एकाग्रता की शक्ति को स्वयं में बढ़ाओ। जब चाहो जैसे चाहो जब तक चाहो तब तक मन को एकाग्र कर सको। अभी मास्टर ज्ञान सूर्य के स्वरूप को इमर्ज करो और शक्तियों की किरणें, सकाश फैलाओ।
बापदादा ने सुना और खुश है कि बच्चे सेवा के उमंग-उत्साह में जगह-जगह पर सेवा अच्छी कर रहे हैं, बापदादा के पास सेवा के समाचार सब तरफ के अच्छे अच्छे पहुंचे हैं, चाहे प्रदर्शनी करते हैं, चाहे समाचार पत्रों द्वारा, टी.वी. द्वारा सन्देश देने का कार्य बढ़ाते जाते हैं। सन्देश भी पहुंचता है, सन्देश अच्छा पहुंचा रहे हो। गांव में भी जहाँ रहा हुआ है, हर एक जोन अच्छा अपनी अपनी एरिया को बढ़ा रहा है। अखबारों द्वारा टी.वी. द्वारा भिन्न भिन्न साधनों द्वारा उमंग उत्साह से कर रहे हो। उसकी सब करने वाले बच्चों को बापदादा बहुत स्नेहयुक्त दुआओं भरी मुबारक दे रहे हैं। लेकिन अभी सन्देश देने में तो अच्छा उमंग-उत्साह है और चारों ओर ब्रह्माकुमारीज क्या है, बहुत अच्छा शक्तिशाली कार्य कर रही हैं, यह भी आवाज अच्छा फैल रहा है और बढ़ता जा रहा है। लेकिन, लेकिन सुनायें क्या? सुनायें लेकिन... लेकिन ब्रह्माकुमारियों का बाबा कितना अच्छा है, वह आवाज अभी बढ़ना चाहिए। ब्रह्माकुमारियां अच्छा काम कर रही हैं लेकिन कराने वाला कौन हैं, अभी यह प्रत्यक्षता आनी चाहिए। बाप आया है, यह समाचार मन तक पहुंचना चाहिए। इसका प्लैन बनाओ।
बापदादा से बच्चों ने प्रश्न पूछा कि वारिस या माइक किसको कहें? माइक निकले भी हैं, लेकिन बापदादा माइक अभी के समय अनुसार ऐसा चाहते हैं या आवश्यक है जिसके आवाज की महानता हो। अगर साधारण बाबा शब्द बोल भी देते हैं, अच्छा करते हैं इतने तक भी लाया है, तो बापदादा मुबारक देते हैं लेकिन अभी ऐसे माइक चाहिए जिनके आवाज की भी लोगों तक वैल्यु हो। ऐसे प्रसिद्ध हो, प्रसिद्ध का मतलब यह नहीं कि श्रेष्ठ मर्तबे वाला हो लेकिन उसका आवाज सुनकर समझें कि यह कहने वाला जो कहता है, इसकी आवाज में वैल्यु है। अगर यह अनुभव से कहता है, तो उसकी वैल्यु हो। जैसे माइक तो बहुत होते हैं लेकिन माइक भी कोई पावर वाला कितना होता है, कोई कितना होता है, ऐसे ही ऐसा माइक ढूंढो, जिसकी आवाज में शक्ति हो। उसकी आवाज को सुनकर समझ में आवे कि यह अनुभव करके आया है तो अवश्य कोई बात है लेकिन फिर भी वर्तमान समय हर जोन, हर वर्ग में माइक निकले जरूर हैं। बापदादा यह नहीं कहते कि सेवा का प्रत्यक्ष रिजल्ट नहीं निकली है, निकली है। लेकिन अभी समय कम है और सेवा के महत्व वाली आत्मायें अभी निमित्त बनानी पड़ेंगी। जिसके आवाज की वैल्यु हो। मर्तबा भले नहीं हो लेकिन उनकी प्रैक्टिकल लाइफ और प्रैक्टिकल अनुभव की अथॉरिटी हो। उनके बोल में अनुभव की अथॉरिटी हो। समझा कैसा माइक चाहिए? वारिस को तो जानते ही हो। जिसके हर श्वांस में, हर कदम में बाप और कर्तव्य और साथ-साथ मन-वचन-कर्म, तन-मन-धन सबमें बाबा और यज्ञ समाया हुआ हो। बेहद की सेवा समाई हुई हो। सकाश ने की समर्थी हो।
अच्छा - अभी किसका टर्न है? तामिलनाडु, ईस्टर्न और नेपाल:- तो पहले कौन? निमित्त बंगाल, बंगाल वाले उठो। अच्छा। बंगाल वालों ने सेवा का चांस लिया है। तो इन थोड़े दिनों में अपने आपको देखा कि कर्मणा सेवा द्वारा यज्ञ सेवा के महत्व को जान, अपने अन्दर यज्ञ सेवा का पुण्य का खाता कितना जमा किया? सेवा तो वहाँ भी करते रहते हो लेकिन यज्ञ सेवा का महत्व अपना है। तो डबल सेवा की, एक कर्मणा सेवा की और दूसरी सेवा से वायुमण्डल शक्तिशाली बनाया, सन्तुष्ट करने का बनाया, उसका भी डबल पुण्य यज्ञ सेवा का प्रत्यक्षफल भी खाया, खुशी हुई ना। खुश रहे ना बहुत सभी। तो खुशी का प्रत्यक्षफल भी मिला और भविष्य भी जमा हुआ, डबल प्राप्ति की। क्योंकि सब देख करके खुश होते हैं कि कितनी निर्विघ्न सेवा हो रही है। कितने स्नेह से सेवा हो रही है। यह वायुमण्डल फैलाना वा निमित्त बनना इसका भी बड़ा पुण्य मिलता है। तो जिसको भी चांस मिलता है वह यही समझे विशेष पुण्य का खाता जमा करने का चांस मिलाहै। तो जमा किया? हाथ हिलाओ। वर्तमान भी जमा भविष्य में भी जमा। यह साधन है डबल फल प्राप्त करने का। अच्छा है। तो बंगाल वालों ने कोई नवीनता दिखाई? कोई नया कार्य किया है? कोई इन्वेन्शन की है? की है? क्योंकि बंगाल में बाप की पधरामणी हुई है, प्रवेशता हुई है। तो नया कार्य करना है ना! कोई नई इन्वेन्शन निकालो, बापदादा ने पहले भी कहा कि अभी यह जो सेवा कर रहे हो, अच्छी कर रहे हो, बापदादा ने मुबारक दी लेकिन अभी कुछ नया निकालो। किसी भी जोन ने नया कोई प्लैन बनाया है? किसी ने भी? कि वही रिपीट कर रहे हैं? फारेन वालों ने कुछ नया निकाला? सेवा का साधन कोई नया निकालो। जो चल रहे हैं वह तो अच्छा है लेकिन और अच्छा, कोई ने भी निकाला हो वह हाथ उठाओ। कोई ने नहीं निकाला है। वर्गीकरण की सेवा भी अभी तो बहुत समय से चल रही है। अभी कुछ तो नवीनता होनी चाहिए। तो कौन, बंगाल निकालेगा? बाकी अच्छा है।
बापदादा को यह अच्छा लगता है कि हर जोन को चांस मिलता है। सेवा तो वृद्धि को पा रही है, यह तो बापदादा को समाचार मिलते हैं। सेन्टर बढ़ रहे हैं, स्टूडेन्टस भी बढ़ रहे हैं, यह तो है। लेकिन कम खर्चा बालानशीन, ऐसा कोई नया साधन निकालो। बाकी बापदादा बंगाल के जोन (इस्टर्न जोन) में वृद्धि को देख करके खुश है। अच्छा। तो पुण्य जमा किया और यह पुण्य की पूंजी साथ में जायेगी। हाथ खाली नहीं जायेंगे। पुण्य की पूंजी साथ में ले जायेंगे। जितना पुण्य जमा करने चाहो उतना कर सकते हो। बाकी हिम्मत अच्छी की है, हर एक एरिया के सेवासाथी अच्छे हैं। यज्ञ सेवा में पहुंच भी गये हैं और सफल भी किया है। ईस्टर्न में बहुत नदियां इकट्ठी है। बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, नेपाल, तामिलनाडु, आधी सभा है। इतने योग्य बनाया है, इसकी बहुत-बहुत बधाई हो। देखो, टी.वी. में देखो कितने हैं। बहुत अच्छे अच्छे हैं। हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा। बापदादा को खुशी है कि यज्ञ सेवा से कितना प्यार है और कितने पहुंच गये हैं। अभी 5 ही नदियां मिलके कोई नया प्लैन बनाओ। आवाज फैलाने का तो किया, अभी और कुछ करो। बाकी बापदादा को खुशी है, कि 5 ही तरफ की संख्या बहुत अच्छी आई है। इतने यहाँ हैं, वहाँ कितने होंगे, इतनी वृद्धि की है, इसकी सब परिवार को भी खुशी है, बापदादा को भी खुशी है। तो अभी स्व परिवर्तन और सेवा में नवीनता इसकी प्राइज लेना। नम्बर लेंगे ना। 5 हैं, और बड़े बड़े हैं छोटे नहीं हैं। कमाल करके दिखाना। आपस में मीटिंग करके कोई नवीनता का प्लैन निकालो क्योंकि अभी कई आत्मायें ऐसी हैं जो सुनते हैं ना, मेला है, प्रदर्शनी है, यात्रायें हैं, कानफ्रेन्स है, तो वह समझते हैं यह तो हमने कर लिया है, देख लिया है। इसलिए नवीनता निकालो। बाकी अच्छी हिम्मत रखी है। बाप की विशेष 5 ही को बहुत-बहुतदिल की दुआयें। वरदान भी है, वरदान बतायें कौन सा है? अमरभव का वरदान है। अमर हैं, अमर रहेंगे और बापदादा के साथ अमरलोक में चलेंगे। चलेंगे ना! पहले जन्म में आना। दूसरे तीसरे में नहीं आना। सभी को उमंग है ना। पहले साथ चलेंगे अपने घर में फिर राज्य में जब आयेंगे तो पहले जन्म में आना। दूसरे तीसरे में मजा नहीं आयेगा। पहले जन्म में कौन आयेंगे? सभी आयेंगे। पहले जन्म की विधि का पता है ना! विधि का पता है - जो पहला नम्बर चार ही सबजेक्ट में होंगे