15-12-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“समय प्रमाण लक्ष्य और लक्षण की समानता द्वारा बाप समान बनो”
आज चारों ओर के सर्व स्वमानधारी बच्चों को देख हार्षित हो रहे हैं। इस संगम पर जो आप बच्चों को स्वमान मिलता है उससे बड़ा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता है। कितना बड़ा स्वमान है, इसको जानते हो? स्वमान का नशा कितना बड़ा है, यह स्मृति में रहता है? स्वमान की माला बहुत बड़ी है। एक एक दाना गिनते जाओ और स्वमान के नशे में लवलीन हो जाओ। यह स्वमान अर्थात् टाइटल्स स्वयं बापदादा द्वारा मिले हैं। परमात्मा द्वारा स्वमान प्राप्त है। इसलिए इस स्वमान के रूहानी नशे को कोई अथॉरिटी नहीं जो हिला सके क्योंकि आलमाइटी अथॉरिटी द्वारा प्राप्ति है।
तो बापदादा ने आज अमृतवेले सारे विश्व के सर्व बच्चों के तरफ चक्कर लगाते देखा कि हर एक बच्चे की स्मृति में कितने स्वमानों की माला पड़ी हुई है। माला को धारण करना अर्थात् स्मृति द्वारा उसी स्थिति में स्थित रहना। तो अपने को चेक करो - यह स्मृति की स्थिति कहाँ तक रहती है? बापदादा देख रहे थे कि स्वमान का निश्चय और उसका रूहानी नशा दोनों का बैलेन्स कितना रहता है? निश्चय है - नॉलेजफुल बनना और रूहानी नशा है - पॉवरफुल बनना। तो नॉलेजफुल में भी दो प्रकार देखे - एक हैनॉलेजफुल। दूसरे हैं नॉलेजेबुल (ज्ञान स्वरूप) तो अपने से पूछो – मैं कौन? बापदादा जानते हैं कि बच्चों का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। लक्ष्य ऊंचा है ना, क्या ऊंचा है? सभी कहते हैं बाप समान बनेंगे। तो जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप समान बनने का लक्ष्य कितना ऊंचा है! तो लक्ष्य को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं लेकिन.... लेकिन बतायें क्या? लेकिन क्या...वह टीचर्स वा डबल फारेनर्स सुनेंगे? समझ तो गये होंगे। बापदादा लक्ष्य और लक्षण समान चाहते हैं। अभी अपने से पूछो कि लक्ष्य और लक्षण अर्थात् प्रैक्टिकल स्थिति समान है? क्योंकि लक्ष्य और लक्षण का समान होना - यही बाप समान बनना है। समय प्रमाण इस समानता को समीप लाओ।
वर्तमान समय बापदादा बच्चों की एक बात देख नहीं सकते। कई बच्चे भिन्न-भिन्न प्रकार की बाप समान बनने की मेहनत करते हैं, बाप की मोहब्बत के आगे मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं। जब उल्टा नशा देह-अभिमान का नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। क्या देह-अभिमान में आने में पुरूषार्थ करना पड़ता? या 63 जन्म पुरूषार्थ किया? नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। जो अभी भी कभी-कभी ही कहते हो कि देही के बजाए देह में आ जाते हैं। तो जैसे देह-अभिमान, नेचर और नेचुरल रहा वैसे अभी देही-अभिमानी स्थिति भी नेचुरल और नेचर हो, नेचर बदलना मुश्किल होती है। अभी भी कभी-कभी कहते हो ना कि मेरा भाव नहीं है, नेचर है। तो उस नेचर को नेचुरल बनाया है और बाप समान नेचर को नेचुरल नहीं बना सकते! उल्टी नेचर के वश हो जाते हैं और यथार्थ नेचर बाप समान बनने की, इसमें मेहनत क्यों? तो बापदादा अभी सभी बच्चों की देही-अभिमानी रहने की नेचुरल नेचर देखने चाहते हैं। ब्रह्मा बाप को देखा चलते-फिरते कोई भी कार्य करते देही-अभिमानी स्थिति नेचुरल नेचर थी।
बापदादा ने समाचार सुना कि आजकल विशेष दादियां यह रूहरूहान करती हैं - फरिश्ता अवस्था, कर्मातीत अवस्था, बाप समान अवस्था नेचुरल कैसे बनें? नेचर बन जाए, यह रूहरूहान करते हो ना! दादी को भी यही बार-बार आता है ना - फरिश्ता बन जाएं, कर्मातीत बन जाएं, बाप प्रत्यक्ष हो जाए। तो फरिश्ता बनना वा निराकारी कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है - निरहंकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है।
इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरहंकारी कहा। सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फंसना, इसको ही देह अहंकार या देह- भान नहीं कहा जाता है। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। जो पुरूषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरूषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं। लेकिन देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत है क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरूषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो। यह तो सहज है ना? सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा।
बापदादा सेवा का समाचार भी सुनते हैं, सेवा में आजकल भिन्न-भिन्न कोर्स कराते हो, लेकिन अभी एक कोर्स रह गया है। वह है हर आत्मा में जो शक्ति चाहिए, वह फोर्स का कोर्स कराना। शक्ति भरने का कोर्स, वाणी द्वारा सुनाने का कोर्स नहीं, वाणी के साथ-साथ शक्ति भरने का कोर्स भी हो। जिससे अच्छा-अच्छा कहें नहीं लेकिन अच्छा बन जाएं। यह वर्णन करें कि आज मुझे शक्ति की अंचली मिली। अंचली भी अनुभव हो तो उन आत्माओं के लिए बहुत है। कोर्स कराओ लेकिन पहले अपने को कराके फिर कहो। तो सुना बापदादा क्या चाहते हैं? लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। लक्ष्य सभी का देखकर बापदादा बहुत-बहुत खुश होते हैं। अब सिर्फ समान बनाओ, तो बाप समान बहुत सहज बन जायेंगे।
बापदादा तो बच्चों को समान से भी ऊंचा, अपने से भी ऊंचा देखते हैं। सदा बापदादा बच्चों को सिर का ताज कहते हैं। तो ताज तो सिर से भी ऊंचा होता है ना! टीचर्स - सिर के ताज हो?
टीचर्स से - देखो, कितनी टीचर्स हैं। एक ग्रुप में इतनी टीचर्स तो हर ग्रुप में कितनी टीचर्स होंगी! टीचर्स ने बापदादा की एक आश पूरी करने का संकल्प किया है लेकिन सामने नहीं लाया है। जानते हो कौन-सी? एक तो बापदादा ने कहा है कि अभी वारिसों की माला बनाओ। वारिसों की माला, जनरल माला नहीं। दूसरा - सम्बन्ध-सम्पर्क वालों को माइक बनाओ। आप नहीं भाषण करो लेकिन वह आपकी तरफ से मीडिया बन जायें। अपनी मीडिया बनाओ। मीडिया क्या करता है? उल्टा या सुल्टा आवाज फैलाता है ना! तो माइक ऐसे तैयार हों जो मीडिया समान प्रत्यक्षता का आवाज फैलाये। आप कहेंगे भगवान आ गया, भगवान आ गया.... वह तो कामन समझते हैं लेकिन आपकी तरफ से दूसरे कहें, अथॉरिटी वाले कहें, पहले आप लोगों को शक्तियों के रूप में प्रत्यक्ष करें। जब शक्तियां प्रत्यक्ष होंगी तब बाप प्रत्यक्ष होगा। तो बनाओ, मीडिया तैयार करो। देखेंगे। किया है? चलो कंगन ही सही, माला छोड़ो, तैयार किया है? हाथ उठाओ जिसने ऐसे तैयार किया है? बापदादा देखेंगे कौन से तैयार किये हैं, अच्छा हिम्मत तो रखी है। सुना - टीचर्स को क्या करना है! शिवरात्रि पर वारिस क्वालिटी तैयार करो। माइक तैयार करो, तब फिर दूसरे वर्ष शिवरात्रि पर सबके मुख से शिव बाप आ गया, यह आवाज निकले। ऐसी शिवरात्रि मनाओ। प्रोग्राम तो बहुत अच्छे बनाये हैं। प्रोग्राम सबको भेजे हैं ना। प्रोग्राम तो ठीक बनाया है लेकिन हर प्रोग्राम से कोई माइक तैयार हो, कोई वारिस तैयार हो। यह पुरूषार्थ करो, भाषण किया चले गये, ऐसा नहीं। यह तो 66 वर्ष हो गये और 50 वर्ष सेवा के भी मना लिए। अभी शिवरात्रि की डायमण्ड जुबली मनाओ। यह दो प्रकार की आत्मायें तैयार करो, फिर देखो नगाड़ा बजता है या नहीं। नगाड़े आप थोड़ेही बजायेंगे। आप तो देवियां हो साक्षात्कार करायेंगी। नगाड़े बजाने वाले तैयार करो। जो प्रैक्टिकल गीत गायें शिव शक्तियां आ गई।
सुना - शिवरात्रि पर क्या करेंगी! ऐसे ही भाषण करके पूरा नहीं करना। फिर लिखेंगी बाबा 500-1000, लाख आदमी आ गये, आ तो गये सन्देश दिया, लेकिन वारिस कितने निकले, माइक कितने निकले, अभी वह समाचारदेना। जो अभी तक किया धरनी बनाई, सन्देश दिया, उसको बाबा अच्छा कहते हैं, वह सेवा व्यर्थ नहीं गई है, समर्थ हुई है। प्रजा तो बनी है, रॉयल फैमिली तो बनी है लेकिन राजा रानी भी तो चाहिए। राजा रानी तख्त वाले नहीं, राजा रानी के साथ वहाँ दरबार में भी राजे समान बैठते हैं, ऐसे तो बनाओ। राज्य दरबार शोभा वाली हो जाए। सुना, शिवरात्रि पर क्या करना है। पाण्डव सुन रहे हो। हाथ उठाओ। ध्यान दिया। अच्छा। बड़े-बड़े महारथी बैठे हैं। बापदादा खुश होते हैं, यह भी दिल का प्यार है, क्योंकि आप सबका संकल्प चलता है ना, प्रत्यक्षता कब होगी, कब होगी... तो बापदादा सुनता रहता है। क्या सुना मधुबन वालों ने? मधुबन वालों ने सुना। मधुबन, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर वाले, सभी मधुबन निवासी हैं। अच्छा।
मधुबन से नगाड़ा बजेगा, कहाँ से नगाड़ा बजेगा? (दिल्ली से) मधुबन से नहीं? कहो चारों ओर से। एक तरफ से नहीं बजेगा। मधुबन से भी बजेगा, तो चारों ओर से बजेगा तभी कुम्भकरण जागेंगे। मधुबन वाले जैसे सेवा में अथक होकर सेवा का पार्ट बजा रहे हो ना, ऐसे यह भी मन्सा सेवा करते रहो। सिर्फ कर्मणा नहीं, मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों सेवा, करते भी हो और ज्यादा करना। अच्छा। मधुबन वाले भूले नहीं हैं। मधुबन वाले सोचते हैं बापदादा आते मधुबन में है लेकिन मधुबन का नाम नहीं लेते। मधुबन तो सदा याद है ही। मधुबन नहीं होता तो यह आते कहाँ! आप सेवाधारी सेवा नहीं करते तो यह खाते, रहते कैसे! तो मधुबन वालों को बापदादा भी दिल से याद करते और दिल से दुआयें देते हैं। अच्छा। मधुबन से भी प्यार, टीचर्स से भी प्यार, मीठी-मीठी माताओं से भी प्यार और साथ में महावीर पाण्डवों से भी प्यार। पाण्डवों के बिना भी गति नहीं है। इसीलिए चतुर्भुज रूप की महिमा ज्यादा है। पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का कम्बाइण्ड रूप विष्णु चतुर्भुज है।
माताओं से - मातायें तो बहुत हैं। अभी मातायें वह कपड़े का झण्डा नहीं अव्यक्त उठाओ। कपड़े का झण्डा उठाकर कहते हो ना भगवान आ गया, जागो जागो... लेकिन अभी सच्चा आवाज निकालो। सबके दिल से आवाज निकलवाओ। सच्ची शिवरात्रि मनाओ। सुना माताओं ने। दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ। झण्डा लहराना आता है ना! होशियार हैं। मातायें कम नहीं हैं। बस अभी जगाओ। आपके बच्चे कुम्भकरण सोये हुए हैं। अभी समय आ गया है, अभी उन्हों को जगाओ। उनके मुख से निकालो - बाप आ गया। मातायें ऐसी शिवरात्रि मनाना, कमाल दिखाना। हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हो, बापदादा खुश है। इस शिवरात्रि पर देखेंगे क्या समाचार आता है। फंक्शन किया, यह नहीं। फंक्शन करो लेकिन निकालना जरूर। अच्छा। मातायें तो बहुत हैं, माताओं से ही ब्राह्मण परिवार की शोभा है। माताओं की विशेषता है, चाहे कैसे भी गांव की मातायें हों लेकिन जिस सेवाकेन्द्र पर माताओं की संख्या ज्यादा होगी वहाँ भण्डारी और भण्डारा भरपूर। चाहे पाण्डव एक हो, मातायें 25 हों, लेकिन दिल बड़ी है। अच्छा।
डबल फारेनर्स से - डबल फारेनर्स फारेन से मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? हाथ उठाओ जो मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? बापदादा ने सुना कि 30 देशों से आये हैं। तो कम से कम 30 देशों में तो जाकर आलमाइटी मीडिया बनायेंगे ना? क्या करेंगी बहनें? शक्तियां क्या करेंगी? अच्छा है, देखो कितना बाप से प्यार है, कितने समुद्र पार करके आते हैं। बापदादा को डबल विदेशियों पर नाज़ है, प्यार तो सभी से है लेकिन प्यार के साथ नाज़ भी है कि बाप का सन्देश कोने-कोने में फैलाने के लिए निमित्त बन गये। नहीं तो इण्डिया की बहनें पहले तो लैंग्वेज सीखें फिर सन्देश देवें। लेकिन आप लोगों ने देखो चैरिटी बिगन्स एट होम करके दिखाया है। अभी तो सिर्फ 30 देश आये हैं लेकिन है तो बहुत देशों में ना! तो बहुत अच्छा सन्देश वाहक बने हो। एक-एक बच्चे की विशेषता देख-देख बापदादा बहुत खुश होते हैं। एक बात की डबल विदेशियों में विशेषता है। भारत के विशेषता की लिस्ट अपनी है लेकिन अभी डबल विदेशियों के विशेषता की बात है। तो डबल विदेशी अनुभव से कहते हैं हम ब्रह्मा के बच्चे हैं। हैं विदेशी लेकिन अनुभव से कहते हैं सिर्फ दिमाग से नहीं। दिल से कहते हैं हम ब्रह्माकुमार हैं, हम ब्रह्माकुमारी हैं। दिल से, अनुभव से कहते हो ना! कहने से नहीं कहते, सुनने से नहीं कहते, अनुभव से कहते हैं। रूहानी नशा है ना, ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी बनने का। है नशा? जितना नशा है उतना जोर से हाथ हिलाओ। यह तो बापदादा भी वेरीफाय करते हैं कि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का नशा है। अभी विदेश में शिवरात्रि इतना नहीं करते, 18 जनवरी मनाते हैं। शिवरात्रि यहाँ मनाते हैं और 18 जनवरी या जनवरी में सेवा की धूम मचाते हैं, यह भी अच्छा है लेकिन सेवा में अभी बापदादा देखेंगे कि वारिस और माइक पहला नम्बर कौन निकालते हैं। उसको चांदी का ब्रह्मा बाप देंगे। इनाम देंगे। चाहे भारत वाला हो, चाहे विदेश वाला हो। जो भी निकालेंगे, उनको वह प्राइज मिलेगी। जितने भी सेन्टर्स निकालें, बापदादा के पास भण्डारा भरपूर है। ठीक है ना!
पाण्डव क्या करेंगे? पाण्डव क्या करत भये? पाण्डवों की विजय गाई हुई है। बापदादा पाण्डवों के मस्तक में सदा विक्ट्री देखते हैं और विक्ट्री के बीच में आत्मा चमक रही है। जैसे पाण्डवों का गायन है, पाण्डवों को ड्रामानुसार यादगार में भी विजय का वरदान मिला हुआ है। गायन ही है विजयी पाण्डव। तो पाण्डवों को कभी भी किसी भी बात में हार नहीं खाना है। बापदादा के गले का हार बनना, हार खाना नहीं। जब भी कोई ऐसी बात आवे ना, तो कहो हम बापदादा के गले का हार हैं, हार खाने वाले नहीं हैं। ऐसे पक्के हो? कि थोड़ी-थोड़ी हार खा भी लेते हो? चलो बीती सो बीती। अभी हार नहीं खाना। विजय गले का हार है, हम बाप के गले का हार हैं। हार खाने वाले नहीं। हार खाने वाले तो करोड़ों आत्मायें हैं, आप नहीं हैं। आप तो करोड़ों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हो। मधुबन वाले पाण्डव नशा है ना? विजय का नशा और नशा नहीं। अच्छे हैं, पाण्डव भवन में मैजारिटी पाण्डव हैं, पाण्डव नहीं होते तो आप सबको मधुबन में मजा नहीं आता इसलिए बलिहारी मधुबन निवासियों की जो आपको मौज से रहाते, खिलाते और उड़ाते हैं। आज बापदादा को मधुबन निवासी अमृतवेले से याद आ रहे हैं। चाहे यहाँ हैं, चाहे ऊपर बैठे हुए हैं, चाहे मधुबन वाले कोई यहाँ भी ड्युटी पर हैं लेकिन चारों तरफ के मधुबन निवासियों को बापदादा ने अमृतवेले से याद दिया है।
यू.पी. के सेवाधारियों से - यह (मधुबन वाले) तो सदा के सेवाधारी हैं, आप एक टर्न के सेवाधारी हैं। हर एक ने अपना एक टर्न में अविनाशी पुण्य का खाता बना दिया। थोड़े समय की सेवा अनेक जन्मों के पुण्य की लकीर, भाग्य की बना ली। तो चतुरसुजान निकले ना! एक जन्म में अनेक जन्मों का बना दिया। बापदादा सेवाधारियों को देख विशेष खुश होता है, क्यों? क्यों खुश होता है? क्योंकि आप सब पुरानों को याद होगा कि ब्रह्मा बाप जब साइन करते थे तो क्या करते थे? वर्ल्ड सर्वेन्ट। सेवाधारी। और निराकार बाप भी किसलिए आया है? सेवाधारी बनकर आया है ना? इसलिए बापदादा को सेवाधारी बहुत याद आते, प्यारे लगते हैं। और यह भी अच्छा है जो मैजारिटी सभी आत्माओं को यज्ञ सेवा का पुण्य प्रोग्राम प्रमाण मिल जाता है। यह भी अच्छा है। अच्छा। यू.पी. की सेवाधारी टीचर्स ठीक है ना? बहुत अच्छा। बापदादा ने कहा ना टीचर्स को सदा बापदादा गुरूभाई के रूप में देखता है। अच्छा।
छोटे बच्चों से - बच्चे महात्मा है ना? देखो, बच्चों को भी कितना प्यार है। बच्चे तो चैलेन्ज करने वाले हैं। आजकल प्रेजीडेंट भी बच्चों की बात मानते हैं। भारत का प्रेजीडेंट भी बच्चों को मानते हैं। तो बापदादा भी बच्चों को प्यार करते हैं। ठीक हैं सब बच्चे। ठीक हैं तो हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा। सदा बाबा, बाबा, बाबा कहते रहना। याद में रहना।
कुमारियों से - कुमारियां भी बहुत हैं लेकिन कौन सी कुमारियां हों? 21 जन्म तारने वाली कुमारियां हो या बंधन वाली कुमारियां हो? कुमारी वह जो आत्माओं के 21 जन्म श्रेष्ठ बनाये। कुमारियों की यह महिमा है। अगर बंधन भी है नौकरी का या संबंध का, तो भी कुमारी शक्ति है। अपने योग की शक्ति से अपने को निर्बन्धन बना सकती है। बापदादा यह नहीं कहते कि नौकरी नहीं करो, लेकिन नौकरी करते हुए डबल नौकरी, सेवा करो। फारेन की यह विशेषता है, बापदादा ने फारेन में यह विशेषता देखी है जॉब भी करते, सेन्टर भी सम्भालते, इसलिए बापदादा ऐसे बच्चों को डबल मुबारक देते हैं। सरकमस्टांश हैं तो बापदादा मना नहीं करते, लेकिन बैलेन्स। तो ऐसी कुमारियां हो? सेन्टर खोलें, सेन्टर सम्भालेंगी? इतनी कुमारियां मिलेंगी! सेन्टर खोले? हाथ उठाओ जो हाँ करती हैं, आर्डर करें सेन्टर खोलो, जायेंगी सेन्टर पर? थोड़े हाथ उठा रहे हैं। देखना टी.वी. में आपका फोटो आ गया। अच्छा। हिम्मत वाली हैं। हिम्मत से बाप की मदद मिलती है। अच्छा, मुबारक हो। सेन्टर पर आने की मुबारक हो।
कुमारों से - कुमार - वारिस बना सकते हैं। कुमार माइक भी बना सकते हैं। कुमार तो गवर्मेन्ट को जगा सकते हैं। कुमार कमाल करके दिखायेंगे। वह दिन भी आना ही है। तो कुमारों को जगाओ, समीप लाओ। उनको जगाओ कहो आप भी कुमार, हम भी कुमार, आओ तो आपको कहानियां सुनायें। अच्छा।
बापदादा ने जो रूहानी एक्सरसाइज दी है, वह सारे दिन में कितने बार करते हो? और कितने समय में करते हो? निराकारी और फरिश्ता। बाप और दादा, अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता स्वरूप। दोनों में देह-भान नहीं है। तो देह-भान से परे होना है तो यह रूहानी एक्सरसाइज कर्म करते भी अपनी ड्युटी बजाते हुए भी एक सेकण्ड में अभ्यास कर सकते हो। यह एक नेचुरल अभ्यास हो जाए - अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई) ऐसे निरन्तर भव!
चारों ओर के बापदादा की याद में मगन रहने वाले बाप समान बनने के लक्ष्य को लक्षण में समान बनाने वाले, जो कोने-कोने में साइंस के साधनों से दिन वा रात जाग करके बैठे हुए हैं, उन बच्चों को भी बापदादा यादप्यार, मुबारक और दिल की दुआयें दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं सभी के दिल में इस समय दिलाराम बाप की याद समाई हुई है। हर एक कोने-कोने में बैठे हुए बच्चों को बापदादा पर्सनल नाम से यादप्यार दे रहे हैं। नामों की माला जपें तो रात पूरी हो जायेगी। बापदादा सभी बच्चों को याद देते हैं, चाहे पुरूषार्थ में कौन सा भी नम्बर हो लेकिन बापदादा सदा हर बच्चे के श्रेष्ठ स्वमान को यादप्यार देते हैं और नमस्ते करते हैं। यादप्यार देने के समय बापदादा के सामने चारों ओर का हर बच्चा याद है। कोई एक बच्चा भी किसी भी कोने में, गांव में, शहर में, देश में, विदेश में, जहाँ भी है, बापदादा उसको स्वमान याद दिलाते हुए यादप्यार देते हैं। सब यादप्यार के अधिकारी हैं क्योंकि बाबा कहा तो यादप्यार के अधिकारी हैं ही। आप सभी सम्मुख वालों को भी बापदादा स्वमान के मालाधारी स्वरूप में देख रहे हैं। सभी को बाप समान स्वमान स्वरूप में यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - ठीक हो गई, अभी कोई बीमारी नहीं है। भाग गई। वह सिर्फ दिखाने के लिए आई जो सभी देखें कि हमारे पास भी आती है तो कोई बड़ी बात नहीं है। सभी दादियां बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो। बापदादा सबके पार्ट को देख करके खुश होते हैं। (निर्मलशान्ता दादी से) आदि रत्न हो ना! अनादि रूप में भी निराकारी बाप के समीप हो, साथ-साथ रहते हो और आदि रूप में भी राज्य दरबार के साथी हो। सदा रॉयल फैमिली के भी रॉयल हो और संगम पर भी आदि रत्न बनने का भाग्य मिला है। तो बहुत बड़ा भाग्य है, है ना भाग्य? आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। बोलो नहीं बोलो, कुछ करो नहीं करो लेकिन आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। अच्छा।
ओम् शान्ति।
15-12-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘एक राज्य एक धर्म लॉ एण्ड आर्डर की स्थापना के समय स्वयं का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक बनो’’
आज बापदादा अपने चारों ओर के राजदुलारे बच्चों को देख रहे हैं। यह परमात्म दुलार कोटों में कोई को प्राप्त होता है। परमात्म दुलार में बापदादा ने हर एक बच्चे को तीन तख्त का मालिक बनाया है। पहला स्वराज्य अधिकार का भ्रकुटी का तख्त दूसरा बापदादा का दिलतख्त और तीसरा है विश्व के राज्य अधिकार का तख्त यह तीन तख्त बाप ने अपने स्नेही दुलारे बच्चों को दिया है। तो यह तीनों तख्त सदा स्मृति में रहने से हर एक बच्चे को रूहानी नशा रहता है। तो सभी बच्चे बाप द्वारा प्राप्त वर्से को देख खुशी में रहते हैं ना! दिल में स्वत: यह गीत बजता ही रहता है वाह बाबा वाह! और वाह मेरा भाग्य वाह! जो स्वप्न में भी नहीं था वह प्रैक्टिकल जीवन में मिल गया। तख्त के साथसाथ बापदादा ने इस संगम पर डबल ताज द्वारा उड़ती कला का अनुभवी भी बनाया है।
तो बापदादा चारों ओर के बच्चों की यह डबल ताजधारी प्युरिटी की रॉयल्टी, डबल ताजधारी देख रहे हैं। बापदादा ने आज चारों ओर के बच्चों के पुरूषार्थ की रफ्तार को चेक किया क्योंकि समय की रफ्तार को तो आप सभी भी देख और जान रहे हो। तो बापदादा देख रहे थे कि जो हर एक को बाप द्वारा राज-भाग का वर्सा मिला है, अपने राज्य का, फ्युचर प्राप्ति का, तो फ्युचर में जो आप सबके संस्कार नैचुरल और नेचर होगी वह अब से बहुतकाल के संस्कार अनुभव होने चाहिए क्योंकि यह नया संसार आप सबके नये संस्कार द्वारा ही नया संसार बन रहा है। तो जो नये संसार की विशेषतायें हैं उसको भी अनुभव तो करते हो ना। हमारे राज्य में क्या होगा, नशा है ना। दिल कहती है ना कि हमारा राज्य, हमारा नया संसार आया कि आया। तो बापदादा देख रहे थे नये संसार की जो विशेषतायें हैं वह बच्चों में पुरूषार्थी जीवन में कहाँ तक इमर्ज हैं! जानते तो हो, कि नये संस्कार और नया संसार की विशेषतायें क्या होंगी। सभी की बुद्धि में नये संसार की विशेषतायें इमर्ज हैं ना! जानते हो ना! गाते भी हो, जानते भी हो, पहली विशेषता, चेक करना एक-एक विशेषता मेरे में कहाँ तक इमर्ज है? मुख्य विशेषता है - एक राज्य, तो जैसे वहाँ एक राज्य स्वत: ही होता है, दूसरा कोई राज्य नहीं, ऐसे अपने संगम की जीवन में देखो कि आपके जीवन में भी एक राज्य है? कि कभी-कभी दूसरा राज्य भी होता है? अगर चलते-चलते स्व के राज्य के साथ-साथ माया का भी राज्य चलता है तो क्या एक राज्य के संस्कार होंगे? एक राज्य से दूसरा भी राज्य तो नहीं चलता? परमात्मा की श्रीमत का राज्य है या कभी कभी माया का भी दबाव है? दिल में माया का राज्य तो नहीं होता? तो यह चेक करो। इस बातों से अपने चार्ट को चेक करो। अभी संगम पर एक परमात्मा का राज्य है या माया का भी दबाव हो जाता है? चेक किया? अभी अभी चेक करो, चार्ट तो देखते रहते हो ना अपना। तो अगर अभी तक भी दो राज्य है तो एक राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे? क्या श्रीमत के साथ माया की मत भी मिक्स हो जाती है क्या? ऐसे ही एक धर्म - एक राज्य भी होगा तो एक धर्म भी होगा। धर्म अर्थात् धारणा। तो आपकी विशेष धारणा कौन सी है? पवित्रता की धारणा। तो चेक करो - सदा मन, वचन, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पूर्ण और सदा पवित्रता की नेचर नैचुरल बनी है? जैसे वहाँ अपने राज्य में पवित्रता का स्वधर्म स्वत: ही होगा, ऐसे ही इस समय पवित्रता की धारणा नैचुरल और नेचर बन गई है? क्योंकि जानते हो कि आपका अनादि स्वरूप और आदि स्वरूप पवित्रता है। तो चेक करो - कि एक धर्म अर्थात् पवित्रता नैचुरल है? जो नेचर होती है वह न चाहते भी काम कर लेती है क्योंकि कई बच्चे जब रूहरिहान करते हैं तो क्या कहते हैं? बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं, कहते हैं चाहता नहीं हूँ, चाहती नहीं हूँ, लेकिन कभी मन्सा में, कभी वाचा में कोई न कोई अपवित्रता का अंश इमर्ज हो जाता है? संस्कार बहुत जन्मों का है ना इसीलिए हो जाता है। तो एक धर्म का अर्थ है पवित्रता की धारणा नेचर और नैचुरल हो। चाहे वाणी में भी आवेश आ जाता है, कहते हैं क्रोध नहीं था थोड़ा सा आवेश आ गया। तो आवेश क्या है? क्रोध का ही तो बच्चा है। तो एक धर्म के संस्कार कब नैचुरल बनेंगे? तो चेक करो लेकिन चेक के साथ बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों द्वारा चेन्ज करो। अभी फिर भी बापदादा पहले से ही अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि अभी फिर भी चेक करके चेन्ज करने का तीव्र पुरूषार्थ करेंगे तो मार्जिन है लेकिन कुछ समय के बाद अचानक टूलेट का बोर्ड लगना ही है। फिर नहीं कहना कि बाबा ने तो बताया ही नहीं। इसलिए अभी पुरूषार्थ का समय तो गया लेकिन तीव्र पुरूषार्थ का समय अभी भी है तो चेक करो लेकिन सिर्फ चेक नहीं करना, चेन्ज करो साथ में। कई चेक करते हैं लेकिन चेन्ज करने की शक्ति नहीं है। चेक और चेन्ज दोनों साथ-साथ होना चाहिए क्योंकि आप सबका स्वमान वा आप सबकी महिमा क्या है? टाइटिल क्या है? मास्टर सर्वशक्तिवान। है, मास्टर सर्वशक्तिवान है या शक्तिवान है? जो कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, वह हाथ उठाओ। अच्छा। तो मास्टर सर्वशक्तिवान मुबारक हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान और चेन्ज नहीं कर सकें तो क्या कहा जायेगा? अपने ही संस्कार को, नेचर को परिवर्तन करने चाहे भी और नहीं कर सके तो क्या कहेंगे? अपने से पूछो मास्टर शक्तिवान, या मास्टर सर्वशक्तिवान? मास्टर सर्वशक्तिवान ने संकल्प किया - करना ही है और हुआ पड़ा है। होगा देखेंगे.... यह होता नहीं है। तो अभी समय के प्रमाण रिजल्ट यह होनी है कि जो सोचा तो संकल्प और स्वरूप बनना साथसाथ हो।
अभी नया वर्ष, अव्यक्त वर्ष आने वाला ही है। 40 वर्ष अव्यक्त पालना का हो रहा है। तो अव्यक्ति पालना और व्यक्त रूप की पालना को 72 वर्ष हो चुके हैं। तो क्या दोनों बाप की पालना का रिटर्न बापदादा को नहीं देंगे! सोचो - पालना क्या और प्रैक्टिकल क्या है? बापदादा ने देखा अभी भी अलबेलापन और रॉयल आलस्य, रॉयल आलस्य है - हो जायेगा, बन ही जायेंगे, पहुंच ही जायेंगे और अलबेलापन है कर तो रहे हैं, तो तो.. यह तो होना ही है, यह तो करना ही है, कहने और करने में अन्तर हो जाता है। बापदादा एक दृश्य देख करके मुस्कराता रहता है कि क्या कहते? यह हो जाये ना, यह कर लो ना, तो बहुत अच्छा मैं आगे बढ़ सकता हूँ। दूसरे को बदलने की वृत्ति रहती है लेकिन स्व परिवर्तन की वृत्ति कहाँ कहाँ कम हो जाती है। अभी दूसरे को देखना यह वृत्ति चेन्ज करो। अगर देखना है तो विशेषता देखो, यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है, यह भी तो करते हैं... यह भावना कम करो। अपने को देखो, बाप को सामने रखो, बाकी तो कोई भी है, चाहे महारथी है, चाहे बीच वाला है, पुरूषार्थ में कोई न कोई कमी को परिवर्तन कर ही रहे हैं। इसलिए सी फादर, सी डबल फादर, ब्रह्मा बाप को देखो, शिव बाप को देखो। जब बाप ने आपको अपने दिलतख्त पर बिठाया है और आपने भी अपने दिलतख्त पर बाप को बिठाया है, आपका स्लोगन भी है सी फादर। सी सिस्टर, सी ब्रदर यह स्लोगन है ही नहीं। कुछ न कुछ कमी सबमें अभी रही हुई है लेकिन अगर दूसरे को देखना है तो विशेषता देखो, जो कमी वह निकाल रहे हैं अपने से, उसको नहीं देखो। दूसरी बात - तो अपने राज्य में, याद है ना अपना राज्य। कल तो था और कल फिर होने वाला है। आपकी बुद्धि में, नयनों में अपना राज्य स्पष्ट आ गया ना। कितने बार राज्य किया है? गिनती किया है? अनेक बार राज्य किया है। कहने से ही सामने आ जाता है। अपना राज्य अधिकारी रूप और श्रेष्ठ राज्य, तो जैसे अपने राज्य में लॉ एण्ड आर्डर स्वत: ही चलता है। सब नॉलेजफुल संस्कार वाले हैं, जानते हैं लॉ क्या है, आर्डर क्या है, ऐसे अभी अपने जीवन में देखो, बाप के आर्डर में चलते हो या कभी माया का भी आर्डर चल जाता है? कभी परमत, मनमत, श्रीमत के सिवाए चलता तो नहीं? और लॉ क्या है? लॉ है बेफिकर बादशाह, कोई फिकर नहीं क्योंकि सर्व प्राप्तियां हैं। ऐसे ही चेक करो संगम के श्रेष्ठ जन्म में भी सर्व प्राप्तियां हैं जो बाप ने दी है, यह भगवान का जैसे प्रसाद होता है ना, तो प्रसाद का कितना महत्व रखते हैं। तो बाप की जो भी प्राप्तियां हैं, वह प्रभु प्रसाद प्राप्त है, प्रभु प्रसाद का महत्व है! वर्सा भी है, अधिकार भी है और प्रसाद भी है। तो चेक करो - लॉ और आर्डर दोनों में सम्पन्न हैं?
बापदादा देख रहे थे कि एक बात की मैजारिटी को समय पर जो शक्ति मिली है परिवर्तन करने की, वह परिवर्तन शक्ति समय पर कार्य में लगायें तो कोई मेहनत नहीं। देखो, सभी को अनुभव है कि अगर कभी भी, किसी भी प्रकार की हार होती है, माया से तो सभी भाषण में कहते हो, क्लास भी कराते हो तो यही कहते हो कि दो शब्द गिराने वाले भी हैं, चढ़ाने वाले भी हैं, वह दो शब्द जानते हैं, सबके मन में आ गया है। वह दो शब्द है मैं, मेरा। भाषण में कहते हो ना, क्लास भी कराते हो ना। बापदादा क्लास भी सुनते हैं, क्या कहते हैं? अभी इन दो शब्दों को परिवर्तन शक्ति द्वारा जब भी मैं शब्द बोलो तो मैं फलानी या फलाना, या ब्राह्मण हूँ लेकिन मैं कौन? जो बापदादा ने स्वमान दिये हैं, जब भी मैं शब्द बोलो तो कोई न कोई स्वमान साथ में बोलो, यानी बुद्धि में लाओ। मैं शब्द बोला और स्वमान याद आ जाये। मेरा शब्द बोला बाबा याद आ जाये। मेरा बाबा। यह नैचुरल स्मृति हो जाए, यह परिवर्तन कर लो बस। और दूसरी बात बहुत करके जब सम्बन्ध सम्पर्क में आते हो तो दो शब्द द्वारा माया आती है, एक भाव और दूसरी भावना। तो जब भी भाव शब्द बोलते हो सोचते हो तो आत्मिक भाव, भाव शब्द बोलते ही आत्मिक भाव पहले याद आवे और भावना तो शुभ भावना याद आये। शब्द का अर्थ परिवर्तन कर लो। आपका टाइटिल क्या है? विश्व परिवर्तक। विश्व परिवर्तक क्या यह शब्द परिवर्तन नहीं कर सकते? तो समय पर परिवर्तन शक्ति को यूज़ करके देखो। पीछे आता है, जब बीत जाता है और मन को अच्छा नहीं लगता है, खुद ही अपना मन सोचता है लेकिन समय तो बीत चुका ना। इसलिए अब तीव्रगति की आवश्यकता है, कभी कभी नहीं। ऐसे नहीं सोचो बहुत समय तो ठीक रहता हूँ लेकिन बापदादा ने सुना दिया है कि अन्तिम घड़ी का कोई भरोसा नहीं। अचानक के खेल होने हैं। कई बच्चे बाप को भी बहुत मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं, कहते हैं समय थोड़ा और अति में जायेगा ना, तो वैराग्य तो होगा, तो वैराग्य के समय आपेही रफ्तार तेज हो जायेगी। लेकिन बापदादा ने कह दिया है कि बहुत समय का पुरूषार्थ चाहिए। अगर थोड़े समय का पुरूषार्थ होगा तो प्रालब्ध भी थोड़े समय की मिलेगी, फुल 21 जन्म की प्रालब्ध नहीं बनेगी। तीन शब्द बापदादा के सदा याद रखो - एक अचानक, दूसरा एवररेडी और तीसरा बहुतकाल। यह तीनों शब्द सदा बुद्धि में रखो। कब और कहाँ भी किसकी भी अन्तिम काल हो सकता है। अभी अभी देखो कितने ब्राह्मण जा रहे हैं, उन्हों को पता था क्या, इसीलिए बहुतकाल के पुरूषार्थ से फुल 21 जन्म का वर्सा प्राप्त करना ही है, यह तीव्र पुरूषार्थ स्मृति में रखो। फर्स्ट नम्बर, फर्स्ट जन्म, अपने राज्य का। क्या सोचा है? फर्स्ट जन्म में आना है ना। मजा किसमें होगा? फर्स्ट जन्म में या कोई में भी?जो समझता है कि अपने राज्य के फर्स्ट जन्म में श्रीकृष्ण के साथ-साथ हमारा भी पार्ट हो, वह हाथ उठाओ। अच्छा पार्ट फर्स्ट में? हाथ देख करके तो खुश हो गये। ताली बजाओ। लेकिन फर्स्ट जन्म में आओ उसकी मुबारक है। लेकिन कहें क्या... नहीं कहें, आना ही है फर्स्ट, फिर दूसरी बात क्यों कहें। अच्छा है, जितने भी आये हैं फर्स्ट जन्म में आना ही है। ताली तो बजा दी, फर्स्ट जन्म और फर्स्ट स्टेज भी। तो फर्स्ट स्टेज बनानी ही है, यह जिसका दृढ़ संकल्प है, फास्ट जाना ही है, चाहे कुछ भी विघ्न हो लेकिन विघ्न, विघ्न नहीं रहे, विघ्न विनाशक के आगे विजय का रूप बदल जाये क्योंकि आप सभी विघ्न विनाशक हो। टाइटिल क्या है? विघ्न विनाशक। तो आवे भी, खेल खेलने आयेगा लेकिन आप दूर से ही जान जाओ, रॉयल रूप में आयेगा लेकिन आप विघ्न विनाशक दूर से ही जान जायेंगे कि यह क्या खेल हो रहा है, इसलिए बापदादा भी यही चाहते हैं कि सब बच्चे साथ चलें। पीछे नहीं रहे। बापदादा को बच्चों के बिना मजा नहीं आता है। तो दृढ़ता को कभी भी कमज़ोर नहीं करना। करना ही है। गे गे नहीं करना, करेंगे देखेंगे, हो जायेगा...देख लेना, यह बातें नहीं करना। दृढ़ता सफलता की चाबी है, इस चाबी को कभी भी गंवाना नहीं। माया भी चतुर है ना, वह चाबी को ढूंढ लेती है, इसलिए इस चाबी को अच्छी तरह से सम्भालके रखो।
तो अभी चेक करना - अपने राज्य के संस्कार अभी से धारण करने ही हैं। गे गे नहीं करना, एक गे गे, दूसरा तो तो कहते हो..यह शब्द ब्राह्मण डिक्शनरी से निकाल दो। चलो, कोई की भी कोई कमज़ोरी देखते भी हो, पुरूषार्थी तो सब हैं, नहीं तो ब्राह्मण जीवन से चले जाते, पुरूषार्थी हैं तब तो ब्राह्मण जीवन में चल रहे हैं ना, मानो कई ऐसे कहते हैं मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ लेकिन दूसरे करते हैं ना तो वह सामने विघ्न बन जाता है। यह नहीं करे ना, यह बदले ना, लेकिन बाप ने पहले से ही स्लोगन दिया है, हमको बदलके उनको बदलाना है। मुझे बदलना है। वह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। सुनाया भाव और भावना को चेंज करो। भाव आत्मा का, और भावना, शुभ भावना। आप करके देखो, थक नहीं जाओ। शुभ भावना बहुत रखके देखी, बदलता नहीं है, बदलना ही नहीं है। आप ब्राह्मणों के मुख से यह श्ब्द बोलना, बदलना नहीं है तो क्या यह वरदान हुआ। ब्राह्मण क्या वरदान देते हैं। जो सहारा दे सको, सहारा दो शुभ भावना का, नहीं तो किनारा करो। दिल में नहीं रखो। शुभ भावना की दुआ दो, और शब्द नहीं दो। एक यह करते हैं, दूसरा, दूसरा शब्द बतायें क्या कहते हैं? क्योंकि आज बापदादा ने अच्छी तरह से चेंकिग की, दूसरा क्या करते हैं? यह तो चलता ही है, यह भी तो करता है ना, तो मैंने किया तो क्या हुआ। वह कुएं में गिर रहा है और आप भी गिरके देख रहे हो क्या यह समझदारी है! अभी एक बात 18 जनवरी तक बापदादा पुरूषार्थ के लिए होमवर्क दे रहा है - करेंगे? करेंगे, हाथ उठाओ। कुछ भी हो जाए, बदलना पड़े, समाना पड़े, किनारा करना पड़े, लेकिन बदलेंगे। हाथ उठाया। पक्का? कि कहेंगे मैंने बहुत कोशिश की, नहीं हुआ, यह जवाब नहीं देना क्योंकि अभी अचानक के खेल बहुत होने हैं। और बापदादा चाहता है एक बच्चा भी पीछे नहीं रह जाए, साथ चले। इसलिए एक तो अगर कोई नहीं बदलता है, शुभ भावना रखी और कोई नहीं बदलता है तो आप अपने को बदलो, उसने यह कहा, उसने यह किया इसीलिए मुझे भी करना पड़ा, यह नहीं। करते सिखाने के भाव से हो, लेकिन देखते कमी को हो। इसीलिए भाव और भावना आत्मिक भाव, शुभ भावना। और यह शब्द यह तो होता ही रहता है, यह तो करते ही हैं ना, चल ही रहा है ना तो मैंने किया तो क्या हुआ... तो क्या बाप जब चलेंगे तो आप कहेंगे यह भी रह रहे हैं ना, मैं भी रह जाता हूँ, इसमें क्या है। तो सी फादर, और भाव और भावना दोनों का परिवर्तन। जब 5 तत्वों के प्रति आप शुभ भावना रखते हो और ब्राह्मण परिवार के प्रति शुभ भावना नहीं रख सकते, यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है, यह शब्द समाप्त करो। मुझे बदलके दिखाना है। मैं बदलूंगा, और भी बदलेगा, अवश्य बदलेगा। इस निश्चय और शुभ भावना से चलो फिर देखो जल्दी जल्दी अपना राज्य आ जायेगा। तो यह 18 तारीख को दो बातें सदा के लिए धारण कर ली, यह बापदादा नहीं कहता है कि लिखकर सिर्फ भेजो, प्रतिज्ञा करने की फाइल लिखत वाले बापदादा के पास बहुत फाइल पड़े हैं वतन में। प्रतिज्ञा नहीं, दृढ़ता का संकल्प के रूप में यह दो बातें धारण करनी हैं। ठीक है टीचर्स? करनी है ना। अच्छा। मातायें हाथ उठाओ, करेंगी? बड़ा हाथ उठाओ। पाण्डव हाथ उठाओ। पाण्डव। पाण्डव भी उठा रहे हैं, ठीक है। बापदादा तो रोज़ देखता रहेगा। बापदादा को देखने में देरी नहीं लगती है। ठीक है ना। अच्छा।
टीचर्स जो भी आई हैं, मुरली तो सबके पास जायेगी, ऐसे नहीं सिर्फ जो आये हो, उनके लिए ही है, देश विदेश दोनों बच्चों, सर्व बच्चों के प्रति है। अभी बहुत आप लोगों का काम बढ़ना है। यह नहीं सेवा कर ली, भाषण कर ली, वर्ग को चला लिया। नहीं बहुत सेवा रही हुई है। अभी तो मन्सा द्वारा सकाश देने का काम करना है। जैसे शुरू-शुरू में शिव बाप ब्रह्मा में प्रवेश हुआ तो घर बैठे कैसे सकाश दी। किसको साक्षात्कार हुआ, किसको आवाज आया फलाने स्थान पर जाओ, किसे प्रेरणा आई सुन करके मुझे जाना ही है, भाग कर आई ना और जो शुरू में आये वह कितने पक्के हैं। याद करते हो ना, दादी को, दूसरी भी दादियों को याद करते हो ना। तो जो शुरू में हुआ वह अभी अन्त में भी रिपीट होना है। इसलिए अपनी मन्सा शक्ति को मन्सा सेवा को बढ़ाओ। उस समय भाषण आपका कोई नहीं सुनेगा, कोर्स कोई नहीं करेगा, हालतें ही गम्भीर होंगी। मन्सा सकाश देने की सेवा करनी पड़ेगी। इसीलिए अभी अभ्यास करो। अमृतवेले सिर्फ नहीं, भले कर्म कर रहे हो लेकिन बीच-बीच में माइण्ड को कन्ट्रोल करके सब तरफ से, एकाग्र हो करके सकाश दे सकता हूँ या नहीं दे सकता हूँ, इसकी ट्रायल करो। बहुत आवश्यकता होगी, आखिर दुख हर्ता सुख कर्ता आपके चित्र भी बनते हैं। तो क्या चैतन्य में नहीं बनेंगे? अन्तर्मुखी होके बीच बीच में 5 मिनट निकालो। अमृतवेला सिर्फ नहीं है, दिन रात यह अभ्यास चाहिए। रात को आंख खुलती है ट्रायल करो, फिर जाके भले सो जाओ। लेकिन थोड़ा टाइम ट्रायल करो और काम के लिए भी तो उठते हो ना। तो यह अभ्यास भी करो। तभी आपकी पूजा होगी। नहीं तो आपकी पूजा नाममात्र होगी। बड़े-बड़े मन्दिर नहीं बनेंगे, चालू मन्दिर बनेंगे। सुना। अच्छा।
अभी बापदादा का समाचार तो सुना, आज अच्छी तरह से चेक किया। चेक करने में बापदादा को टाइम नहीं लगता है। अच्छा। अभी अभी अपने मन को एकाग्र कर सकते हो? कर सकते हो कि विचार आयेगा टाइम हो गया है, थक गये हैं, खाने की भूख लग रही है, नहीं। नहीं, ऐसे बापदादा जानते हैं, बाप से स्नेह बहुत है बच्चों का। यह सर्टीफिकेट स्नेह का बापदादा भी देता है, आप अभी जो सभी आये हैं वह किस विमान में आये हो? आपको पता है भले ट्रेन में आये हो, या प्लेन से आये हो लेकिन आप लोग एक विचित्र विमान से आये हो, वह पता है, वह है स्नेह का विमान। स्नेह के विमान से आये हो ना। चाहे ट्रेन हो चाहे कुछ भी हो लेकिन बाप से स्नेह है इसीलिए आये हो। अभी सिर्फ जिस समय थोड़ा बहुत आता है ना, माया का खेल होता है उस समय बाप के स्नेह में खो जाओ, दिखाई नहीं दो माया को। बापदादा ने शुरू-शुरू में ट्रांस द्वारा बहुत नजारे दिखाये थे कि अन्तिम समय जब कोई हलचल होगी सब वृत्तियां बाहर आयेंगी, खराब वृत्तियां भी तो सहारा देने की वृत्तियां भी। तो बापदादा ने शुरू-शुरू में बच्चों को दिखाया था कि कई बुरी दृष्टि वाले पीछे आते हैं लेकिन उन्हों को लाइट ही दिखाई देती है। मनुष्य दिखाई नहीं देता लाइट ही दिखाई देती, फरिश्ता रूप ही दिखाई देता। ऐसे आपका एकाग्रता का अभ्यास होते भी आप ऐसे सामने बैठे हो लेकिन उनको दिखाई नहीं देगा। लाइट लाइट ही दिखाई देगी। ऐसे होना है। लेकिन अभ्यास अब से करो। फरिश्ता। अच्छा। अभी तीन मिनट मन की एकाग्रता का अभ्यास करो। यह ड्रिल करो। अच्छा।
सेवा का टर्न भोपाल जोन का है:- अच्छा भोपाल वाले भी अच्छी संख्या में पहुंच गये हैं। अभी भोपाल वालों ने नवीनता क्या सोची? जो कर चुके वह तो सभी कर ही रहे हैं। लेकिन नवीनता क्या करेंगे? बापदादा ने अगले टर्न में भी कहा कि अभी वी.आई.पीज की सेवा तो की है, सभी जोन ने की है, सभी वर्गो ने की है, लेकिन अभी बापदादा सम्बन्ध में आने वाले वी.आई.पीज जो माइक बनकर औरों को अपने आवाज से परिवर्तन करें, उन्हों को नजदीक लाओ। 6 मास में 12 मास में एक बारी आये या 4-5 बारी आये, भाषण भी किया, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी आये, लेकिन ऐसे माइक जिनकी आवाज से अनेकों का कल्याण हो जाए, उन्हों को वारिस क्वालिटी बनाओ। नामीग्रामी भी हो। लेकिन आजकल के लोग जो हैं बाहरमुखी हैं ना, तो वह बाहर का शो भी देखने चाहते हैं, तो कोई ऐसा प्लैन बनाओ जो लगातार चलता रहे और ऐसी वारिस क्वालिटी निकालो, क्योंकि वर्गीकरण शुरू हुए भी कितना वर्ष हो गया!हो गया है ना! तो अभी उन्हों को इतना नजदीक लाओ जो वारिस क्वालिटी हो। अभी वी.आई.पी की लाइन में हैं, सहयोगी हैं, सेवा भी करते हैं लेकिन वारिस क्वालिटी नहीं हैं। तो ऐसा सहयोगी बनें, जो जिस समय जो कार्य करने की आवश्यकता है, जो उनकी क्वालिफिकेशन है, उस क्लालिफिकेशन के कार्य में हाँ जी, हाँ जी करें। कनेक्शन अच्छे जोड़े हैं, बापदादा इस बात में खुश है लेकिन अभी वह भी एवररेडी सेवाधारी बनें। ऐसी क्वालिटी वाले सभी वर्ग वाले इकट्ठे करो, बापदादा के पास ले आना है, यह नहीं। लेकिन किसी भी स्थान पर उन्हों का संगठन इकठ्ठा करो। कहाँ भी करो, जहाँ सभी को थोड़ा आने में सहज हो सके, और उनका स्पेशल कोई न कोई प्रोग्राम रखते रहो। प्रोग्राम होता है तो जाते हो, मिलते हो, सहयोग भी देते हैं लेकिन थोड़ा होमली बन जाएं, जो समय पर सहयोगी बन सकें। शुरू शुरू में भोपाल वालों ने सर्विस की है, वी.आई.पीज के कनेक्शन बनाये हैं, लेकिन अभी इसी विधि की सर्विस करके दिखाओ। ब्राह्मण तो बन रहे हैं, अभी सभी क्लास में ब्राह्मणों की वृद्धि हो रही है, यह तो अच्छा है। क्लासेज सब अच्छे हैं लेकिन अभी ऐसे व्यक्ति, सर्विसएबुल निकलें जिसकी आवाज वा परिचय सुनके सेवा हो जाए और समय पर वह रेडी रहे। कर सकते हो, अभी करके दिखाओ। लिस्ट तो देते हैं कि इतने वी.आई.पी हैं लेकिन संगठन इकठ्ठा करेंगे तो होंगे! वह संगठन भी दिखाई दे, एक दो को देख करके भी उमंग आता है, सोचते हैं, यह भी आते हैं, यह भी आते हैं... उमंग आता है। तो अभी जो भी जोन आते हैं, वर्ग भी आते हैं, अभी पहले थोड़े मुख्य-मुख्य स्थान के इकट्ठे करो सिर्फ मधुबन में इकट्ठे हों नहीं, किसी भी स्थान पर इकट्ठे करके उन्हों को स्नेह और सहयोग में और आगे बढ़ाओ। क्या करेंगी टीचर्स? टीचर्स करके दिखायेंगी ना! क्या नहीं कर सकते हो। एक एक चाहे छोटी हो, चाहे बड़ी हो, अगर दृढ़ संकल्प हो तो छोटी भी कमाल कर सकती है। सिर्फ दृढ़ संकल्प हो, करना ही है। अभिमान से आगे नहीं बढ़ना है लेकिन स्वमान से आगे बढ़ना है। बापदादा जिस भी बच्चे को जिस भी जोन को देखते हैं तो उसी दृष्टि से देखते हैं कि यह हर एक बच्चा होवनहार है। कोई नये बच्चे भी अन्दर ही अन्दर सेवा की बहुत अच्छी कमाल कर रहे हैं, बापदादा के पास समाचार भले नहीं आये लेकिन बापदादा जानते हैं। तो कमाल करके दिखाना, शुरू में बहुत अच्छी सेवा की, आरम्भ किया था, बापदादा को याद है, अब कोई कमाल करके दिखाओ। करेंगे ना, करेंगे? अच्छा है। संख्या तो बढ़ रही है लेकिन अभी क्वालिटी बढ़ाओ। अच्छा।
सेवा का गोल्डन चांस तो हर ज़ोन को बहुत अच्छा मिलता है। बाप भी खुश हो जाते और आप सब भी खुशी से चांस लेते हो। अच्छा है बापदादा खुश है, वृद्धि को देखके खुश है।
एज्युकेशन और एडमिनिस्ट्रेटर विंग:- (शिक्षा एवं प्रशासक वर्ग): अच्छा है, एज्युकेशन के लिए गवर्मेन्ट भी समझती है, कि जीवन के लिए एज्युकेशन आवश्यक है और आजकल मैजारिटी समझने लगी है कि एज्युकेशन में स्प्रीचुअल्टी जरूरी है। अभी वायुमण्डल चेंज हो गया है। पहले कहते थे यह तो बड़े बूढ़ों का काम है स्प्रीचुअल बनना। अभी समझते हैं कि एज्युकेशन में अगर आध्यात्मिकता नहीं है तो परिवर्तन नहीं हो सकता है। इसीलिए अभी दुनिया का इम्प्रेशन बदलता जा रहा है। इसीलिए जहाँ तक हो सके हर एक शहर वाले छोटे बड़े स्कूल कालेजेस या भिन्न-भिन्न एज्युकेशन जहाँ भी चलती हैं, उसमें ट्रायल करके वहाँ अपना पार्ट लो। कई बच्चे, अपने माँ बाप को बदल सकते हैं। स्कूलों में हर एक स्थान में सेवा होनी चाहिए, स्कूल के कारण टीचर्स और माँ बाप दोनों ही आपके कनेक्शन में आ जायेंगे। आज बच्चे प्राब्लम है और बच्चे की चलन में माँ बाप वा टीचर थोड़ा भी फर्क देखते हैं तो वह समझते हैं कि यह बहुत अच्छी बात है। तो कहाँ-कहाँ तो करते हैं लेकिन सब तरफ होना चाहिए। किसी को भी अगर सहयोग चाहिए, भाषण करने वाले का या प्रोग्राम बनाने का, तो एक दो से मदद ले सकते हो। और आप डिपार्टमेंट चेक करो, कहाँ-कहाँ हो सकता है, कहाँ कोई मदद दे सकते हैं, करा सकते हैं, थोड़ा फैलाओ। कहाँ कहाँ फैलाते हैं, लेकिन चारों ओर गांव में भी फैलाओ। कोई कोई गांव में तो फैला रहे हैं। एज्युकेशन डिपार्टमेंट बहुत कुछ कर सकता है। दुनिया की रीति से भी अगर बच्चे एज्युकेट बनते हैं तो दुनिया को भी फायदा है और आप लोगों का भी पुण्य इकठ्ठा हो जायेगा। अच्छा है, कर भी रहे हो, बापदादा सुनते हैं लेकिन चारों ओर आवाज फैले कि ब्रह्माकुमारियों की आध्यात्मिक नॉलेज जरूरी है, यह आवाज फैले। आवाज फैलाने वाला ग्रुप तैयार करो। जो भी वर्ग बनाये हैं, सभी वर्ग अपनी-अपनी रीति से आवश्यक हैं। आवाज फैला सकते हैं। जहाँ भी जायें, एज्युकेशन में जाये, डाक्टरी में जायें, मिनस्ट्री में जायें, कहाँ भी जाये, किस भी वर्ग में जायें तो यह आवाज सुनें कि इस वर्ग में भी आवश्यक है, इस वर्ग में भी आवश्यक है, ऐसे आवाज फैल जाये। थोड़ा थोड़ा अभी शुरू हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां जो कर सकती हैं वह और कोई नहीं कर सकता है, थोड़ा फैला है। मैनेजमेंट के लिए भी अभी समझते हैं कि ब्रह्माकुमारियां जो मैनेजमेंट करती हैं वह और कोई नहीं कर सकता, ऐसे हर वर्ग हर स्थान में यह आवाज फैलाओ। जहाँ भी जाएं वहाँ यही सुनें कि ब्रह्माकुमारियों का कार्य अच्छा है, तभी तो अच्छा बनेंगे। अच्छा है। बाकी जो कर रहे हो वह अच्छा कर रहे हो आगे और अच्छा करते चलो, फैलाते चलो। अच्छा।
डबल विदेशी:- सभी डबल विदेशी उठो, यूथ भी उठो। आप सबकी तरफ से डबल पुरूषार्थी बच्चों को मुबारक दे रहे हैं। आप सभी मधुबन के श्रृंगार बन जाते हो। तो मधुबन के श्रृंगार को मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अभी सभी ने यह संकल्प अच्छा किया है जो हर टर्न में कोई न कोई हाजिर होता है। बापदादा खुश होते हैं। अभी पहले-पहले कोई भी प्रोग्राम बड़ा होता था किसी भी देश में तो पहले स्टेज पर वी.आई.पी विदेश के आते थे, अभी स्पीकर वी.आई.पी नहीं आते हैं, ब्राह्मण आते हैं वह तो खुशी की बात है, अपने घर का श्रृंगार आता है। लेकिन बापदादा ने सुना तो प्रोग्राम बनाया है, विदेशी देश में आके सेवा करें, बनाया है ना! यह सामने खड़ा है ना, (निजार भाई) प्लैन बनाया है? अच्छा किया है क्योंकि शुरू शुरू में बापदादा के महावाक्य हैं कि विदेश वाले इन्डिया के कुम्भकरण को जगायेंगे। तो अभी यह भी कोशिश करो, कि जो भी बड़े प्रोग्राम होते हैं, उसमें स्पीकर भी आने चाहिए। वी.आई भी। तो अच्छा प्लैन बनाया है। अपने ब्राह्मण तो आते हैं लेकिन वी.आई. पी अपना अनुभव आके सुनाये - हमको क्या मिला है। यह भी हो जायेगा। अभी कनेक्शन में तो बहुत हैं।
बाकी डबल पुरूषार्थी हैं ना। जो समझते हैं कि हम डबल पुरूषार्थी हैं, वह हाथ उठाओ। डबल पुरूषार्थी! डबल!डबल पुरूषार्थी? मैजारिटी तो उठा रही है, कोई-कोई नहीं उठा रहा है। तो ढीला नहीं करना इसको। अभी डबल पुरूषार्थी का टाइटल मिला है ना। फिर आपको टाइटिल मिलेगा, फरिश्ता पुरूषार्थी क्योंकि जैसे आते हो, तो फ्लाय करके आते हो ना! ऐसे ही स्थिति में भी फरिश्ता अर्थात् उड़ती कला वाले। चढ़ती कला, चलती कला नहीं, उड़ती कला। अटेन्शन है, सेवा भी बढ़ रही है। अभी ऐसा ग्रुप बनाओ जो सदा एकरस एकाग्र रहे, कभी कभी शब्द नहीं आवे। सदा शब्द हो, ऐसा ग्रुप बनाओ। सदा शब्द इतना पक्का हो, जो कभी-कभी क्या होता है, उस पुरूषार्थ में अन्जान हो जाए। चलते फिरते सदा शब्द प्रैक्टिकल हो, हर सबजेक्ट में। ऐसा ग्रुप विदेश में भी बना सकते हैं, देश में भी बना सकते हैं। रेस करो, चाहे छोटा ग्रुप बने, बड़ा ग्रुप बने, लेकिन कहाँ भी ऐसा ग्रुप बनाके दिखाओ। बनायेंगे! डबल पुरूषार्थी बच्चों की आदत है - जो सोचते हैं वह करके दिखाते हैं। तो यह करके दिखाओ। है हिम्मत? हिम्मत है? टीचर बताओ। जनक बताओ, है? अभी सोच रहे हैं। सोचो। भले सोचो, ट्रायल करो और फिर सभी के तरफ से बापदादा उस ग्रुप को सौगात देंगे। कोई भी बनाये, चाहे देश, चाहे विदेश, सदा नो प्राबलम का आवाज हो। अच्छा।
अच्छा - चारों ओर के बच्चों की यादप्यार जो भिन्न-भिन्न भेजते रहते हैं, वह बापदादा को जरूर मिलती है और बापदादा भी उन बच्चों को दिल में समाते हुए समीप इमर्ज करते हैं। आजकल कई बच्चे अपने अपने पिछले जन्मों के हिसाब-किताब चुक्तू करने में लगे हुए हैं। उन्हों का भी यादप्यार बापदादा के पास पहुंचता है। जैसे अंकल, (अंकल स्टीवनारायण) फर्स्ट वी.आई.पी निमित्त बना। तो बापदादा और सर्व परिवार जो जानते हैं, उनकी सकाश अवश्य बच्चे तक पहुंचती है। सभी अपने दिल की याद दे रहे हैं। ऐसे ही कई बच्चे बाबा बाबा कहके अपना हिसाब किताब चुक्तू कर भी रहे हैं और सकाश लेते हुए चल भी रहे हैं। तो जो भी देश में या विदेश में शरीर का हिसाब चुक्तू कर रहे हैं, उन सब विशेष बच्चों को बापदादा का प्यार दुआयें, सदा मिल रही हैं और मिलती रहेंगी। साथ-साथ चारों ओर के पत्र, आजकल तो पत्रों से भी फास्ट साधन निकल गये हैं, तो जिन्होंने भी याद भेजी है, उन सब बच्चों को एक एक को नाम और उनकी विशेषताओं सहित बापदादा यादप्यार दे रहे हैं। साथ साथ बांधेली गोपिकायें उन्हों के भी दिल के आवाज बहुत आते हैं लेकिन बापदादा ऐसे लवली बच्चों को याद करते हैं कि कमाल है, बंधन में रहते भी दिल से ब्रंधनमुक्त हैं। अपनी कमाई गुप्त रूप में भी कड़े बंधन में भी कर रही हैं, वह सोते हैं, यह कमाई करती हैं। यह बांधेलियों के चरित्र विचित्र होते हैं। बापदादा चारों ओर के ऐसे बंधन वाली सच्ची गोपिकाओं को भी यादप्यार दे रहे हैं। उन्हों का स्पेशल टाइम होता है और बापदादा उसी टाइम पर उन्हों को किरणें देते हैं। अच्छा।
चारों ओर के लवली और लक्की दृढ़ संकल्प वाले बच्चों को सोचा और किया, करेंगे, देखेंगे नहीं, सोचा और किया, सदा अपने को नष्टोमोहा में, सिर्फ संबंध का मोह नहीं, अपने देहभान और देह अभिमान का भी मोह नहीं। ऐसे नष्टोमोहा एवररेडी बच्चों को सदा श्रीमत में हाथ में हाथ देते, साथ उड़ने वाले और साथ में ब्रह्मा बाप के साथ अपने राज्य में आने वाले ऐसे तीव्र पुरूषार्थी उड़ती कला वाले बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत दुआयें और यादप्यार स्वीकार हो और बालक सो मालिक बच्चों को नमस्ते।
दादियों से:-(दादी जानकी वा मोहिनी बहन ने बापदादा को भाकी पहनी) निमित्त यह दो बनी लेकिन सबको भाकी पड़ गई।
शान्तामणि दादी:- अच्छा है भले बेड पर हो लेकन सबके दिल में याद हो क्योंकि आदि रत्न हो ना। आदि रत्न अमूल्य रत्न हैं गिनती के रत्न हैं। सभी को दादियां बहुत याद हैं ना।
ग्राम विकास प्रभाग की ओर से पूरे गुजरात में 18 दिसम्बर से 29 दिसम्बर 2008 तक ‘‘शास्वत यौगिक खेती जागृति अभियान’’ निकाल रहे हैं जिसकी लाचिंग का कार्यक्रम कल नदी पर रखा था: -
बापदादा ने समाचार सुना कि गांव की सेवा करने वाले बहुत अच्छा प्रत्यक्ष स्वरूप दिखा रहे हैं। खेती में जो भिन्न-भिन्न प्रकार की खाद डालते हैं, वह खाद न डाल कर योगबल से, बिना खाद डाले फल या सब्जी बहुत अच्छी बनाते हैं और प्रैक्टिकल ट्रायल करके दिखाई है और प्रैक्टिकल में चेक भी कराया है। तो जो योग से फल या फूल या अनाज़ पैदा होता है, वह बीमारियां नहीं पैदा करता है। बीमारियों के कीटाणु खत्म हो जाते हैं योगबल से। तो यह प्रैक्टिकल सबूत कई जगहों पर दिखाया है और जो निमित्त वी.आई. पी हैं, उन्होंने भी माना है कि योगबल से अगर कोशिश करें तो यह वृद्धि को प्राप्त हो सकता है, तो यह बहुत अच्छा प्रत्यक्ष सबूत है, तो प्रत्यक्ष सबूत देख करके सब मानने के लिए तैयार हो ही जाते हैं। तो यह भी ब्राह्मण परिवार की अच्छी सबूत दिखाने वाली सेवा है। कई स्थानों में किया है ना। वह आये हुए हैं, कहाँ हैं गांव सेवा वाले। ग्राम विकास वाले उठो।
यहाँ आबू में भी ऐसी खेती कर रहे हैं। तो खेती से क्या निकाला? अभी क्या तैयार किया है? (अभी पपीता निकाला है, चना और मटर तैयार हो रहे हैं) तो अच्छा है ना। अपनी भी कमाई हुई, योग किया। चाहे किसी भी कारण से लगातार योग किया होगा ना! तो अपना भी फायदा और लोगों का भी फायदा। अच्छी बात है। प्रैक्टिकल कभी क्लास में दिखाना, जो भी निकला है, (पपीता वा चना) वह सबको दिखाना। अच्छा है अगर ऐसे ही आवाज फैलता जायेगा तो बुलाने के बिना ही सब आयेंगे। निमन्त्रण छपाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुबारक हो, बहुत अच्छी सेवा है।
18 जनवरी तक के लिए विशेष होमवर्क
1) अव्यक्ति पालना और व्यक्त रूप की पालना का रिटर्न रायल आलस्य और अलबेलेपन से मुक्त बनो।
2) दूसरों को बदलने की वृत्ति का परिवर्तन कर स्वयं को परिवर्तन करो। आत्मिक भाव और शुभ भावना को धारण करो।
3) दूसरों की कमियों को देखने के बजाए विशेषता देखो सी डबल फादर।
05-04-13 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“शुभ भावना से एक दो के सहयोगी बन, निर्विघ्न रहना और सबको निर्विघ्न बनाना, सदा ख़ुश रहना और सबको ख़ुश करना”
आज सर्व ख़ज़ानों के मालिक अपने ख़ज़ानों से सम्पन्न बच्चों को देख खुश हो रहे हैं और दिल से निकलता है वाह बच्चे वाह! हर एक बच्चे के सूरत में खज़ानों के प्राप्ति की चमक चमक रही है। मैजॉरिटी बच्चों की ख़ज़ानों से भरपूरता की चमक दिखाई दे रही है। बापदादा एक-एक बच्चे का गुणगान कर रहे है - वाह बच्चे वाह! बोलो, वाह वाह बच्चे हो ना! बाप ने कहा बच्चों ने किया। बाप कहते हैं हर एक बच्चे की सूरत में, मस्तक में खज़ाने के मालिकपन की झलक दिखाई देनी चाहिए। वह बापदादा आज हर खज़ाने के अधिकारी बच्चों को देख खुश हो रहे हैं और क्या गीत गा रहे हैं? वाह बच्चे वाह! जैसे आज हर एक के सूरत में खज़ाने से भरपूरता की झलक है ऐसे ही सदा रहो। कोई भी देखे तो आपकी शक्ल बोले, आपको बोलने की आवश्यकता नहीं। तो सदा चेक करो जैसे अभी आपके चेहरे चमक रहे हैं ऐसे सदा रहता है? जो कोई भी देखे चेहरा बताये, मुख से बोलने की आवश्यकता नहीं, चेहरा बोले। ऐसे ही सदा खज़ाने से सम्पन्न चाहे कर्म करते, चाहे योग करते, चाहे बाप की याद में रहते, ऐसे ही दिखाई दे। हर एक अपने चमकते हुए चेहरे समान रह सकते हैं ना! क्योंकि आजकल जैसे समय आगे बढ़ेगा वैसे हालातों के प्रमाण टेन्शन बढ़ेगा। तो आपके चेहरे उन्हों को खुश करेंगे। ऐसी सेवा करने के लिए हर एक बच्चे को तैयारी करनी है। खज़ाने कौन से हैं? जानते हो ना! विशेष खज़ाना है ज्ञान, योग, धारणा तो अपने में चेक करो। बापदादा आज की सभा में विशेष खज़ानों से सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। वैसे सबसे श्रेष्ठ खज़ाना आजकल का संगम का समय है क्योंकि आजकल के समय मे स्वयं बाप, बाप गुरू के सम्बन्ध में आये हुए हैं। आज के समय में स्वयं बाप बच्चो को खज़ानो से सम्पन्न बना रहे हैं। तो बोलो समय से प्यार है ना! तो सभी चेक करो हमारे में सर्व खज़ाने जमा हैं? बाप समान सर्व खज़ाने बाँट रहे हैं? जो समझते हैं कि बाप समान हम भी खज़ाने के अधिकारी हैं, वह हाथ उठाना। बापदादा खुश है, हाथ तो मैजॉरिटी उठा रहे हैं। बापदादा हर बच्चे को खज़ानों से भरपूरता की बधाई दे रहे हैं। अच्छा है, बापदादा अपने खज़ाने से भरपूर बच्चों को देख खुश हो रहे हैं।
तो सभी तरफ के आये हुए बच्चों को देख बापदादा हर एक बच्चे की स्वागत कर रहे हैं। जैसे अभी सब खुशी में भरपूर दिखाई दे रहे हैं ऐसे ही सदा रहते हैं? कोई भी बात आये लेकिन बातें हमारे खज़ानों की खुशी नहीं ले जाये। जैसे अभी खुशी का चेहरा है, स्नेह प्रेम का चेहरा है ऐसे सदा रहे। बोलो, रह सकता है? जो समझते हैं सदा रहेगा, बीती सो बीती, अभी सदा रहेगा वह हाथ उठाओ। देखो, हाथ तो सभी उठा रहे हैं मैजॉरिटी उठा रहे हैं। तो कभी भी कोई भी बात आये ऐसे ही चेहरा रहेगा, कांध तो हिलाओ। रहेगा? रहेगा? तो सब देखेंगे यह कौन आये है, आपको देख करके आधे खुश तो वह भी हो जायेगे। अच्छा। आज कौन से ज़ोन आये है?
सेवा का टर्न इन्दौर जोन का है:- अच्छा, आधा हाल तो इन्दौर ज़ोन खडे हुए हैं। वाह बच्चे वाह! अच्छा है, बापदादा हर बच्चे को देख खुशी की ताली बजा रहे हैं। लेकिन वहाँ जाके भी जैसे आज अभी खुशमिजाज़ चेहरा है, ऐसे ही सदा रहे, ऐसी प्रामिस करो अपने से। देखो यह अच्छा लगता है ना! मुरझाया चेहरा भी रखो और मुस्कराता चेहरा भी रखो, क्या अच्छा लगेगा? मुस्कराता चेहरा अच्छा लगेगा ना! तो आज से सभी बच्चे, सिर्फ ज़ोन नहीं सभी बच्चे अपने दिल मे प्रॉमिस करो सदा खुश रहेगे और सभी को खुश करेंगे क्योकि खुशी जैसी कोई ख़ुराक नहीं, बापदादा ने अनेक बार खुशी की कमाल सुनाई है। जो एक खुशी में कमाल है। देखो कोई भी चीज़ अगर बाँटते हैं तो अपने पास कम होती है, लेकिन ख़ुशी अगर बाँटो, कम होगी? बढ़ेगी ना! तो बापदादा का स्लोगन है, यह याद रखो। यहाँ लिख दो खुश रहना है और खुश करना है। है पसन्द? जिसको पसन्द है वह हाथ उठाओ। तो आप इतने खुशमिजाज़ बच्चों को देख कितने खुश हो जायेंगे। तो पक्का प्रॉमिस करो, क्या करो? खुश रहेगे और खुशी बाँटेंगे। पक्का है? कि यहाँ भी कोई बात हो गई तो ख़ुशी गायब हो जायेगी। नहीं। ख़ुशी गायब होने की बात ही नही है। आज से सभी चेक करना। ख़ुशी को जाने नही देना। है ताकत? है हाथ उठाओ। अच्छा। देखना। आपके जोन वाले, आपके सेन्टर वाले आपका हाथ देख रहे हैं। बापदादा खुश है। हिम्मत तो रखी है। आपकी हिम्मत बाप की मदद साथ मे रहेगी। सभी का फोटो तो निकाल रहे हो ना! फिर यह फोटो इस ज़ोन को भी देना। अगर आने वाले चाहे तो उन्हों को यह फोटो देना। आज जैसी शक्ल सदा रहे। तो सभी को मंज़ूर है, सदा खुश रहेंगे और खुशी बाँटेंगे? है मंज़ूर। दो-दो हाथ उठाओ। अच्छा। यह फोटो अपना याद रखना।
अभी बापदादा यही चाहते हैं कि आप एक-एक को कोई भी दूर से देखे तो खुद भी मुस्कराये, आपके खुशी की शक्ल देख करके खुद भी खुश हो जाये, यह सेवा करेगे! करेगे? अच्छा, हाथ उठाओ। बाप वाह बच्चे वाह! कह रहे हैं। आज से सभी स्थानों में अचानक कोई भी आये, बापदादा भी भेजेंगे क्योंकि बापदादा बच्चों का ऐसा-वैसा चेहरा देखने नहीं चाहते हैं। तो बापदादा को खुश करना है ना! करेंगे? सभी दिल से हाँ जी कह रहे है। अभी हर एक सेन्टर अपने साथियों को चेक करना, कहना नहीं कुछ, क्यों, क्या नहीं कहना लेकिन अपनी शक्ल ऐसी प्यार की करना जो चुप हो जाए। ऐसी सेवा करेंगे ना। खुद रहना औरों को भी आप समान बनाना। कोई भी अचानक कभी भी किसी सेन्टर पर जाये तो ऐसे अनुभव करे कि हम खुशी के स्थान पर आये हैं। जहाँ खुशी है वहाँ सब कुछ है। कभी भी देखो, कोई भी किसी से विदाई लेते हिं, तो क्या कहते हैं? खुश रहो, आबाद रहो। तो अभी बापदादा अचानक कोई को भेजेगा गुप्त, देखेंगे क्योंकि आप सभी बच्चे बडे-बडे बाप के बच्चे हो। बापदादा भी बच्चो को देख खुश हो रहे हैं और दिल से बधाई दे रहे हैं। सदा खुश आबाद रहो और आज तो बापदादा देख रहे हैं कि नये-नये भी बहुत आये है।
जो आज पहली बार आये हैं वह हाथ उठाना, देखो कितने हैं! बापदादा आने वालों को मुबारक दे रहे है। टू लेट के समय के पहले आ गये, लेकिन कमाल करके दिखाना। है हिम्मत। पहले बारी आने वाले उठो, देखो। सभी ने देखा कितने आये हैं। अच्छा।
इन्दौर हॉस्टल की कुमारियाँ (150 आई है):- अच्छा है बापदादा खुश है। हर एक कुमारी सर्विसएबुल रत्न होके निकलेगी। सभी में हिम्मत है? हिम्मत है, तो हाथ उठाओ। तो हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही। बापदादा भी खुश है, हिम्मत वाले के ऊपर एक्स्ट्रा मदद का संकल्प बापदादा का साथ रहता है। तो आज जो भी आये हैं उन एक- एक को बापदादा विशेष हिम्मत दे रहे हैं। कभी घबराना नहीं। मेरा बाबा कहा, बाबा हाजिर हो जायेगा। सिर्फ दिल से कहना, ऐसे नहीं मेरा बाबा, बाबा का भी बच्चों से प्यार है। हिम्मत आपकी मदद बाप की है ही।
इस वर्ष की यह लास्ट मीटिंग है लेकिन दूसरी सीज़न के लिए हर एक को दो कार्य करने हैं - एक तो अपने सेवा स्थान को सदा शुभ भावना, शुभ कामना से सदा निर्विघ्न बनाना। स्वयं निर्विघ्न रहना, सर्व को निर्विघ्न बनाना। मंज़ूर है, हाथ उठाओ। हाथ तो अच्छा उठाते हो। बापदादा हाथ को देख करके खुश भी होते हैं लेकिन बाप को सदा खुश रखना। सोचना नहीं, सोच देना नहीं। फिर भी बाप तो सदा खुश है और सदा ही हर बच्चे को दुआयें देते हैं अमर भव! लेकिन दूसरी सीज़न के लिए विशेष क्या करेगे? बापदादा का यही सकल्प है कि हर एक बच्चा अपनी कमज़ोरी को तो जानते ही हैं, जो विशेष कमज़ोरी हो, आप तो जानते हो ना अपनी कमज़ोरी को। वह कमज़ोरी समाप्त करके आना। चाहे व्यर्थ सकल्प हो, चाहे क्रोध हो, छोटा-छोटा क्रोध भी स्वयं को और स्थान को तंग करता है। तो जो भी कमी हो उसको समाप्त करके आना। पसन्द है! पसन्द है तो दो-दो हाथ उठाओ। वाह भाई वाह! जैसे हाथ उठाने में एवररेडी हो गये ना, ऐसे ही त्याग करने में भी एवररेडी रहना। तो दूसरी सीज़न कौन-सी सभा होगी? निर्विघ्न बाप के दिलपसन्द सभा होगी। दादियाँ पसन्द है? हाथ उठाओ। अभी देखेंगे। सेन्टर वाले रोज रात्रि को यह याद दिलाना कि प्रॉमिस क्या किया है? प्रॉमिस प्रमाण चल रहे हैं? शुभ भावना से, टोकने के रूप से नहीं पूछना। शुभ भावना से एक-दो के सहयोगी बन एक-दो को आगे बढ़ाने की शुभ भावना से इशारा देना।
तो अभी आज का स्लोगन क्या रहा? खुश रहेगे, खुश करेगे। पसन्द है ना। हाथ उठाओ पसन्द है? फोटोग्राफर यह फोटो निकालना। तो आज जो भी कमज़ोरी हो वह इसी हॉल मे छोड के जाना, साथ नहीं ले के जाना। कर सकते हो? इसमें हाथ उठाओ। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।
डवल विदेशी:- बापदादा डबल विदेशी नहीं कहते, डबल पुरुषार्थी कहते है, पसन्द है ना। बापदादा ने देखा कि डबल विदेशी भी अन्दर- अन्दर परिवर्तन की विधि बहुत अच्छी कर रहे हैं। बापदादा खुश होते हैं डबल विदेशी आगे बढ रहे हिं। पुरुषार्थ में उमंग उत्साह बढाते रहेंगे, यह प्रॉमिस करके जा रहे हिं। ऐसे है ना! प्रॉमिस करते हैं ना। और इस बारी देखा यह डबल पुरुषार्थी अच्छी रिजल्ट में आपस में मिले भी हैं और संकल्प भी श्रेष्ठ किया है। लेकिन इस संकल्प को वहाँ जाते भी रोज स्मृति में लाना। रात्रि के समय जब सोने जाओ तो चेक करना जो संकल्प किया वह हो रहा है? अगर नहीं हो रहा हो तो रात को सोने के पहले ही दूसरे दिन के उमंग उत्साह को इमर्ज करके फिर सोना। और सुबह को उठकर देखना कि किया हुआ संकल्प अभी भी इमर्ज है या थोड़ा भी मर्ज हो गया। अगर मर्ज हो गया हो फिर उमंग में लाना। बापदादा ने देखा विदेशियों में काफी फ़र्क है और बापदादा दिल से मुबारक भी देते हैं वाह बच्चे वाह! (वाह बाबा वाह!) बापदादा समझता है एक भी बच्चा कम नहीं हो। एक-दो से आगे हो, चाहे विदेश के चाहे देश के। बापदादा को खुशी है विदेश वालों ने जो मधुबन में उन्नति के साधन रखे है, मधुबन का भी लाभ उठाते हैं वह देख करके बाबा खुश होते हैं क्योंकि विदेश में तो इतने सारे इकटठे नहीं हो सकते, लेकिन मधुबन में आकर सभी विदेशी मधुबन का लाभ उठाने में अच्छे जा रहे हैं, यह देख करके बापदादा खुश है। आप देश वाले भी विदेशियो के पुरुषार्थ को देख खुश है ना! देखो सभी खुश हैं आप पर। अच्छा है बापदादा की विशेष मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
2000 टीचर्स आई है:- हाथ उठाओ टीचर्स। बहुत है टीचर्स। टीचर अर्थात् अपने फीचर से फ़्युचर दिखाने वाली। बापदादा टीचर्स को बहुत-बहुत-बहुत दिल से प्यार करते है क्योंकि टीचर बाप समान ड्यूटी पर है। बापदादा खुश है लेकिन लेकिन है, अभी लेकिन नहीं सुनाते। लेकिन हर एक टीचर माना फीचर से बाप को प्रगट करने वाली। अच्छा है, मेहनत करते हो वह भी बापदादा देखता है लेकिन सेन्टर को निर्विघ्न बनाना, यह अभी बापदादा की दिल पूरी नहीं की है। अभी इसी साल यह प्रयत्न करना। हर एक की तरफ से यह पत्र आये “हमारा जोन निर्विघ्न है। “ हो सकता है? हो सकता है? कम हिम्मत रखते हैं! अभी इस साल कमाल करके दिखाना। हिम्मत है ना! हिम्मत है, हो जायेगा। बापदादा साथ है। फिर भी बापदादा आपके भाग्य को देख खुश है। अब और खुश करना। समझ तो गई हो। अच्छा। अगली सीजन में क्या करेंगे? दृढ़ संकल्प की माला पहनो। जो बापदादा चाहता हाँ वह सुनाने की आवश्यकता नहीं है। जो बापदादा चाहते हैं, आप भी चाहते हो वह प्रैक्टिकल करना है। ठीक है। ठीक है टीचर्स। हाथ उठाओ। बहुत टीचर्स है, वाह टीचर्स वाह! अच्छा, सुना तो दिया दूसरी सीजन में क्या करना है। करना ही है। सब जोर से बोलो, करना ही है। बापदादा कितना खुश होगा वाह बच्चे वाह।
जो भी कमी है उसको छोड़ना ही है। छोड़ना ही है, यह है पक्का? जिसको पक्का संकल्प है, करना ही है, वह हाथ उठाओ। अच्छा। हाथ तो बहुत अच्छा उठाया। बापदादा हाथ देख करके तो खुश हैं। अभी करने में नम्बर लेना है। तो इस सीजन में जो संकल्प कर रहे हो वह सनकल्प नहीं लेकिन करना ही है। कुछ भी हो जाए बदलना ही है। यह दृढ़ संकल्प करो। आखिर समय को समीप तो लाना है। अपने राज्य में चलना है ना। चलना है ना! हाथ उठाओ चलना है। चलना है? तो देखेंगे, चलने की तैयारी करनी ही है। अच्छा।
सभी को बहुत-बहुत-बहुत बापदादा का यादप्यार। आजकल तो सभी साइंस के साधनों से नजदीक ही देखने वाले है। तो सभी देखने वाले और सम्मुख वाले सभी को बापदादा का यादप्यार और दिल का हार बापदादा पहना रहे हैं। अच्छा, ओम् शान्ति।
दादियों से:- बापदादा तो साथ है ही। (साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चला) पक्का वायदा है। जब तक है अच्छे रहेंगे।
मोहिनी बहन:- देखो, यह मरजीवा हुई है। अच्छा है। (आशीर्वाद है) आशीर्वाद सबको है, (गुलजार दादी को भी) तब तो चल रही है।
(निर्वेर भाई ने बाबा को कहा शुक्रिया बाबा) शुक्रिया बच्चे।
(दिल्ली मेले का समाचार दिखाया) अच्छी रिजल्ट है।
गोलक भाई से:- अपने को खुश रखो। कोई भी बात हो, बात बाप को दे दो।
रूकमणि दादी से:- ठीक हो जायेगी। सबका प्यार है ना। सबका प्यार है, बाप का भी प्यार है तो प्यार सब ठीक कर देगा। (कल कह रही थी कर्जा उतारने आई हूँ) कर्जा कुछ नहीं है, बात को छोटा करो, बडा नहीं करो, सब ठीक हो जायेगा। अच्छा। सभी को यादप्यार।
वी. आई पीज. से:- अभी तो मेहमान नहीं, घर के हैं। बोलो, घर के हैं ना! हाथ उठाओ। बाप के दिल में है। बाप को अपने दिल में बिठाया है। दिलाराम है ना! तो दिल में बिठाओ। जो भी कुछ होगा दिलाराम सहयोग देगा। सब आये हैं दिलाराम के स्थान पर आये हैं। जो दिल की आशायें है यहाँ आने से समाप्त कर देना। बच्चों से मिल के लेन-देन करके जो भी दिल में हो वह खत्म करके जाना। और दिल में मौज भर के जाना। मौज ही मौज। बापदादा मुबारक दे रहे हैं, आ तो गये। खुश है बापदादा। अपने घर पहुच गये, रास्ता तो देख लिया। अभी भी आते रहना, सम्पर्क- सम्बन्ध रखते रहना। अच्छा। भले पधारे। बापदादा यादप्यार दे रहे हैं।
दुबई में नया भवन बना है, जिसका उद्घाटन रिमोट कन्ट्रोल से बापदादा ने किया : (ज्योति बहन दुबई) सेवा साथी ठीक है। बढ़ाओ। नजदीक है ना। तो नजदीक में जो भी शक्ति है वह आपको पहुच जाती है। मौज में रहो। जो भी कार्य हो, बाबा आपका कार्य आप करो। बापदादा मददगार है।
(जयपुर में भी नया आडोटोरियम बनाया है, उसका भी उद्घाटन बापदादा ने रिमोट से किया) मुबारक हो।
अच्छा सभी लगन में मगन है। साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ में राज्य करेगे। अच्छा।
ओम् शान्ति।
03-02-05 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सेवा करते उपराम और बेहद द्वारा एवररेडी बन, बह्मा बाप समान सम्पन्न बनो
आज ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर अपने चारों ओर के कोटों में कोई और कोई में भी कोई बच्चों के भाग्य को देख हर्षित हो रहेहैं। इतना विशेष भाग्य और किसी को भी मिल नहीं सकता। हर एक बच्चे की विशेषता को देख हर्षित होते हैं। जिन बच्चों ने बापदादा से दिल से सम्बन्ध जोड़ा उन हर एक बच्चों में कोई न कोई विशेषता जरूर है। सबसे पहली विशेषता साधारण रूप में आयें हुए बाप को पहचान "मेरा बाबा" मान लिया। यह पहचान सबसे बडी विशेषता है। दिल से माना मेरा बाबा, बाप ने माना मेरा बच्चा। जो बड़े-बडे फिलासोफर साइंसदान धर्मात्मा नहीं पहचान सके, वह साधारण बच्चों ने पहचान अपना अधिकार ले लिया। कोई भी आकर इस सभा के बच्चों को देखे तो समझ नहीं सकेंगे कि इन भोली भोली माताओं ने, इन साधारण बच्चों ने इतने बडे बाप को पहचान लिया। तो यह विशेषता - पहचानना, बाप को पहचान अपना बनाना, यह आप कोटों में कोई बच्चों का भाग्य है। सभी बच्चों ने जो भी सम्मुख बैठे हैं वा दूर बैठे सन्मुख अनुभव कर रहे हैं, तो सभी बच्चों ने दिल से पहचान लिया है! पहचान लिया है कि पहचान रहे हैं? जिसने पहचान लिया है वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) पहचान लिया? अच्छा। तो बापदादा पहचानने के विशेषता की हर एक बच्चे को मुबारक दे रहे हैं। वाह भाग्यवान बच्चे वाह! पहचानने का तीसरा नेत्र प्राप्त कर लिया। बच्चों के दिल का गीत बापदादा सुनते रहते हैं, कौन सा गीत? पाना था वो पा लिया। बाप भी कहते ओ लाडले बच्चे, जो बाप से लेना था वो ले लिया। हर एक बच्चा अनेक रूहानी खज़ानों के बालक सो मालिक बन गयें।
तो आज बापदादा खज़ानों के मालिक बच्चों के खज़ाना का पोतामेल देख रहे थे। बाप ने खज़ाना तो सबको एक जैसा, एक जितना दिया है। किसको पदम, किसको लाख नहीं दिया है। लेकिन खज़ानों को जानना और प्राप्त करना, जीवन में समाना इसमें नम्बरवार हैं। बापदादा आजकल बार-बार भिन्न-भिन्न प्रकार से बच्चों को अटेंशन दिला रहे हैं - समय की समीपता को देख अपने आपको सूक्ष्म विशाल बुद्धि से चेक करो क्या मिला, क्या लिया और निरन्तर उन खज़ानों में पलते रहते है? चेकिंग बहुत आवश्यक है क्योकि माया वर्तमान समय भिन्न-भिन्न रॉयल प्रकार के अलबेलापन और रॉयल आलस्य के रूप में ट्रायल करती रहती है। इसलिए अपनी चेकिंग सदा करते चलो। इतने अटेंशन से, अलबेले रूप से चेकिंग नहीं - बुरा नहीं किया, दुख नहीं दिया. बुरी दृष्टि नहीं हुई, यह चेकिंग तो हुई लेकिन अच्छे ते अच्छा क्या किया? सदा आत्मिक दृष्टि नेचरल रही? या विस्मृति स्मृति का खेल किया? कितनो को शुभ भावना, शुभ कामना, दुआयें दी? ऐसे जमा का खाता कितना और कैसे रहा? क्योंकि अच्छी तरह से जानते हो कि जमा का खाता सिर्फ अभी कर सकते हैं। यह समय, फुल सीजन खाता जमा करने की है। फिर सारा समय जमा प्रमाण राज्य भाग्य और पूज्य देवी-देवता बनने का है। जमा कम तो राज्य भाग्य भी कम और पूज्य बनने में भी नम्बरवार होता है। जमा कम तो पूजा भी कम, विधिपूर्वक जमा नहीं तो पूजा भी विधिपूर्वक नहीं, कभी-कभी विधिपूर्वक है तो पूजा भी और पद भी कभी-कभी है। इसलिए बापदादा का हर एक बच्चे से अति प्यार है, तो बापदादा यही चाहते कि हर एक बच्चा सम्पन्न बने, समान बने। सेवा करो लेकिन सेवा में भी उपराम बेहद।
बापदादा ने देखा है मैजारिटी बच्चों की योंग अर्थात् याद की सबजेक्ट में रुचि वा अटेंशन कम होता है, सेवा में ज्यादा है। लेकिन बिना याद के सेवा में ज्यादा है तो उसमें हद आ जाती है। उपराम वृत्ति नहीं होती। नाम और मान का, पोजीशन का मिक्स हो जाता है। बेहद की वृत्ति कम हो जाती है। इसलिए बापदादा चाहते है कि कोटो में कोई, कोई में कोई मेरे बच्चे अभी से एवररेडी हो जायें, क्यों? कई सोचते है समय आने पर हो जायेंगे। लेकिन समय आपकी क्रियेंशन है, क्या क्रियेंशन को अपना शिक्षक बनायेंगे? दूसरी बात जानते हो कि बहुतकाल का हिसाब है, बहुतकाल की सम्पन्नता बहुतकाल की प्राप्ति कराती है। तो अभी समय की समीपता प्रमाण बहुतकाल का जमा होना आवश्यक है फिर उल्हना नहीं देना कि हमने तो समझा बहुतकाल में समय पडा है। अभी से बहुतकाल का अटेंशन रखो। समझा! अटेंशन प्लीज़।
बापदादा यही चाहते कि बच्चे में भी किमी भी एक सब्जेक्ट की कमी नहीं रह जाए। ब्रह्मा बाप से तो प्यार है ना! प्यार का रिटर्न तो देंगे ना! तो प्यार का रिटर्न है - अपनी कमी को चेक करो और रिटर्न दो, टर्न करो। अपने आपको टर्न करना, यह रिटर्न है। तो रिटर्न देने की हिम्मत है? हाथ तो उठा लेते हो, बहुत खुश कर लेते हो। हाथ देखकर तो बापदादा खुश हो जाते हैं, अभी दिल में पक्का-पक्का एक परसेन्ट भी कच्चा नहीं, पक्का व्रत लो - रिटर्न देना ही है। अपने आपको टर्न करना है।
अभी शिवरात्रि आ रही है ना! तो सभी बच्चों को बाप की जयन्ती सो अपनी जयन्ती मनाने का उमंग बहुत प्यार से आता है। अच्छे-अच्छे प्रोग्राम बना रहे हैं। सेवा के प्लैन तो बहुत अच्छे बनाते हो, बापदादा खुश होता है। लेकिन, लेकिन कहना अच्छा नहीं लगता है। जगत अम्बा माँ लेकिन शब्द को कहती थी, सिन्धी भाषा में, ले-किन, किन कहते हैं किचडे को। तो लेकिन कहना माना कुछ न कुछ किचडा लेना। तो लेकिन कहना अच्छा नहीं लगता है। कहना पडता है। जैसे और सेवा के प्लैन बनाये भी है और बनायेंगे भी लेकिन इस व्रत लेने का भी प्रोग्राम बनाना। रिटर्न देना ही है क्योंकि जब बापदादा या कोई पूछते हैं कैसे हैं? तो मैजारिटी का यही उत्तर आता है, हैं तो बहुत अच्छे लेकिन जितना बापदादा कहते हैं उतना नहीं। अभी यह उत्तर होना चाहिए जो बापदादा चाहते हैं वही है। नोट करो बापदादा क्या चाहता है, वह लिस्ट निकालो और चेक करो बापदादा यह चाहता है, वह है या नहीं है? दुनिया वाले आप पूर्वजो द्वारा मुक्ति चाहते हैं, चिल्ला रहे हैं, मुक्ति दो, मुक्ति दो। जब तक मैजारिटी बच्चे अपने पुराने संस्कार, जिसको आप नेचर कहते हो, नेचरल नहीं नेचर, उसमें कुछ भी थोडा रहा हुआ है. मुक्त नहीं हुए है तो सर्व आत्माओं को मुक्ति नहीं मिल सकती। तो बाप दादा कहते हैं - हे मुक्तिदाता के बच्चे मास्टर मुक्तिदाता अभी अपने को मुक्त करो तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का द्वार खुल जाए। सुनाया था ना - गेट की चाबी क्या है, “बेहद का वैराग्य”। कार्य सब करो लेकिन जैसे भाषणों में कहते हो प्रवृत्ति वालों को कमल पुष्प समान बनो, ऐसे सब कुछ करते, कर्त्तापन से मुक्त, न्यारे, न साधनों के वश, न पोजीशन के। कुछ न कुछ मिल जाए यह पोजीशन नहीं आपोजीशन है माया की। न्यारे और बाप के प्यारे। मुश्किल है क्या, न्यारे और प्यारे बनना? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। (किसी ने हाथ नहीं उठाया) किसको भी मुश्किल नहीं लगता है फिर तो शिवरात्रि तक सब सम्पन्न हो जायेंगे। जब मुश्किल नहीं है तो बनना ही है। ब्रह्मा बाप समान बनना ही है। संकल्प में भी, बोल में भी, सेवा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, सबमें ब्रह्मा बाप समान।
अच्छा जो समझते हैं, ब्रह्मा बाप और दादा, ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर, उससे मेरा बहुत-बहुत 100 परसेन्ट से भी ज्यादा प्यार है, वह हाथ उठाओ। खुश नहीं करना, सिर्फ अभी- अभी खुश नहीं करना। सभी ने उठाया है। टी.वी. में निकाल रहे हो ना। शिवरात्रि पर यह टी.वी. देखेंगे और हिसाब लेंगे। ठीक है! जरा भी समानता में अन्तर नहीं हो। प्यार के पीछे कुर्बान करना, क्या बडी बात है। दुनिया वाले तो अशुद्ध प्यार के पीछे जीवन भी देने के लिए तैयार हो जाते हैं। बापदादा तो सिर्फ कहते हैं, किचडा दे दो बस। अच्छी चीज नहीं दो, किचडा दे दो। कमज़ोरी, कमी क्या है? किचडा है ना! किचडा कुर्बान करना क्या बड़ी बात है! परिस्थिति समाप्त हो जाए, स्व-स्थिति श्रेष्ठ हो जाए। बताते तो यही हैं ना, क्या करें परिस्थिति ऐसी थी। तो हिलाने वाली परस्थिति का नाम ही नहीं हो, ऐसी स्व-स्थिति शक्तिशाली हो। समाप्ति का पर्दा खुले तो सब क्या दिखाई देवें? फरिश्ते चमक रहे हैं। सभी बच्चे चमकते हुए दिखाई दें। इसीलिए अभी पर्दा खुलना रुका हुआ है। दुनिया वाले चिल्ला रहे हैं, पर्दा खोलो, पर्दा खोलो। तो अपना प्लैन आप ही बनाओ। बना हुआ प्लैन देते हैं ना तो फिर कई बातें होती है। अपना प्लैन अपनी हिम्मत से बनाओ। दृढ़ता की चाबी लगाओ तो सफलता मिलनी ही है। दृढ संकल्प करते हो और बापदादा खुश होते हैं वाह बच्चे वाह! दृढ़ संकल्प किया लेकिन दृढ़ता में फिर थोड़ा- थोडा अलबेलापन मिक्स हो जाता है। इसीलिए सफलता भी कभी आधी, कभी पौनी परसेंटेज में हो जाती है। जैसे प्यार 100 परसेन्ट है वैसे पुरुषार्थ में सम्पन्नता, यह भी 100 परसेन्ट हो। ज्यादा भले हो, कम नहीं हो। पसन्द है? पसन्द है ना? शिवरात्रि पर जलवा दिखायेंगे ना! बनना ही है। हम नहीं बनेगे तो कौन बनेगा! यह निश्चय रखो, हम ही थे, हम ही है और फिर भी हम ही होंगे। यह निश्चय विजयी बना देगा। पर-दर्शन नहीं करना, अपने को ही देखना। कई बच्चे रूहरिहान करते हैं ना, कहते हैं बस इसको थोडा सा ठीक कर दो, फिर मै ठीक हो जाऊँगा। इसे थोडा बदली कर दो तो मैं भी बदली हो जाऊँगा लेकिन न वह बदलेगा न आप बदलेंगे। स्वयं को बदलेंगे तो वह भी बदल जायेंगा। कोई भी आधार नहीं रखो, यह हो तो यह हो। मुझे करना ही है। अच्छा - शिवरात्रि अभी आनी है ना!
अच्छा, जो पहले बारी आये हैं - वह हाथ उठाओ। तो जो पहली बारी आये हैं उन्हों के लिए विशेष बापदादा कहते हैं कि ऐसे समय पर आये हो जब समय बहुत कम बचा है लेकिन पुरुषार्थ इतना तीव्र करो जो लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट नम्बर आ जाओ क्योंकि अभी चेयर्स गेम चल रही है। अभी किसकी जीत है, वह आउट नहीं हुआ है। लेट तो आये हो लेकिन फास्ट चलने से पहुँच जायेंगे। सिर्फ अपने आपको अमृतवेले अमर भव का वरदान याद दिलाना। अच्छा - सभी कोई दूर से कोई नजदीक से आये हैं। बापदादा कहते हैं भले पधारे अपने घर में। संगठन अच्छा लगता है। टी वी में देखते हो ना, सभा कुल होने से कितना अच्छा लगता है। अच्छा। तो एवररेडी? एवररेडी का पाठ पढ़ेंगे ना। अच्छा।
सेवा का टर्न – इंदौर जोन:- इन्दौर वाले उठो, हाथ हिलाओ। बहुत आये हैं। बहुत अच्छा। चांस लेना यह भी बहुत श्रेष्ठ तकदीर बनाना है। तकदीरवान हो जो चांस मिला भी है और लिया भी है। बापदादा तो सदा कहते हैं कि यह 15 - 20 दिन हर जोन को जो गोल्डन चांस मिलता है, यह बहुत-बहुत स्वमान, स्व-स्थिति और पुण्य का खाता जमा करने का चांस है। तो सभी ने उमंग- उत्साह से सेवा की है, उसकी मुबारक है। अच्छा है इन्दौर तो सदा अन्तर्मुख रहता होगा, इन-डोर है ना, डोर के अन्दर रहने वाले तो अन्तर्मुखी हो गये ना। तो अन्तर्मुखी सदा सुखी होता है। तो इन्दौर निवासियों को नेचरल वरदान हो गया - अन्तर्मुखी सदा सुखी। तो कमाई जमा की? ज्यादा में ज्यादा की या थोड़ी की? सबने बहुत कमाई की' अच्छा। एक ब्राह्मण को खिलाते हैं, सेवा करते हैं उसका भी पुण्य मानते हैं। आपने तो कितने ब्राह्मणों की सेवा की। तो आपके पुण्य का खाता बहुत बड़ा जमा हो गया। और सच्चे ब्राह्मणों की सेवा की। तो पुण्य का खाता भी इतना महान हो गया। अच्छा है। उमंग-उत्साह से स्व-उन्नति कर रहे हैं, करते रहना और आगे उड़ते रहना। अच्छा।
मेडीकल विंग:- अच्छा किया है, इन्होंने अपने विंग में विशेष धारणा बहुत अच्छी रखी है। दया, दुआ एवम दवा। दया, दुआ, दवा तो कितना अच्छा रखा है। तो चेक करना - दया भाव रहा? तंग होके तो सेवा नहीं की? कोई ऐसा पेशेन्ट आ जाए तंग तो नहीं होते! दुआ भी दो, दवा भी दो तो सदा के लिए पेशेन्ट नहीं, पेशेन्स हो जाए। पेशेन्स में आ जाए। देखो, जो डाक्टर्स होते हैं ना उनको नेक्स्ट गॉड कहते हैं, तो आपकी सेवा का कितना महत्त्व है, टाइटिल मिला है नेक्स्ट गाड। इसीलिए लक्ष्य अच्छा रखा है दया और दुआ। दवाई देना तो कार्य है ही। जो भी पेशेन्ट आवे, रोता आवे और मुस्कराते जावे तब कहेंगे दया और दुआ की। चिल्लाता आवे और आराम से जायें। अच्छा है। मेंडिकल विंग का तो सबूत है, डाक्टर बैठा है ना (डा. सतीष गुप्ता) मेडिकल विंग ने सबूत दिया है, गवर्मेंट तक आवाज पहुँचा है। बापदादा चाहता है ऐसे हर एक विंग का गवर्मेंट तक आवाज जाये। देखो, प्रेजीडेंट ने भी कहा कि ब्रह्माकुमारियाँ बिना खर्चे के हार्ट ठीक कर देती है। तो यह भी आवाज फैला ना। गवर्मेंट तक आवाज जरूर जाना चाहिए। गवर्मेंट तक जाने का मतलब है कि वह आवाज ऑटोमेटिक फैलेगा। जैसे पहले आप लोग क्या करते थे, कोई न कोई नेता को बुला लेते थे और टी वी में निकलता था। अभी तो टीवी आपकी हो गई है लेकिन पहले बुलाते थे तो नाम होवे। टी वी वाले आवे, आवाज फैले। अभी इससे ऊपर चले गयें है, अभी टीवी. वाले आपको और ही पूछने के लिए आते हैं, आप क्या करते हो, कैसे करते हो। तो फर्क हुआ ना। तो गवर्मेंट तक पहुँचने से आवाज फैल जाता है। तो अच्छा कर रहे हैं, मुबारक हो।
स्पोर्ट विंग:- अच्छा। (मम्मा, बाबा, दीदी, दादी का फोटो बैडमिंटन खेलते हुए दिखा रहे हैं) चित्र दिखा रहे हैं। अच्छा सभी को दिखाओ। अच्छा है - कोई न कोई ऐसी आत्माओं को सन्देश दो जो वह माइक बनके आवाज फैलायें। प्रोग्राम बनाया है ना अच्छा है। बापदादा चाहते हैं जैसे स्पोर्ट में जो गाये हुए नामीग्रामी हैं, वह माइक बने। इतना पुरुषार्थ करो। हर एक वर्ग का जो सबसे विशेष गाया हुआ है, वह आपका माइक बने। आपको माइक बनने की आवश्यकता नहीं पडेगी। हर एक वर्ग वाला यह कोशिश करो भिन्न-भिन्न सबजेक्ट होती हैं, उसमें से कोई नामीग्रामी ढूंढो उसको अनुभव कराओ और वह अपना अनुभव सुनाये। आपको खर्चा भी नहीं करना पड़ेगा, मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। हर वर्ग को ऐसे करना चाहिए। साधारण की तो कर ही रहे हो। यह मेगा प्रोग्राम कर रहे हो तो जनरल आ रहे हैं लेकिन अभी थोडा क्वालिटी की सेवा करो। हर एक वर्ग ऐसा एक दो माइक तैयार करो क्योंकि अभी तो काफी समय हो गया है, वर्ग वाले सेवा कर रहे हैं, परिचय तो अभी काफी हो गया है। अभी एक एक कोई ऐसा तैयार करो, चलो रेग्युलर स्टूडेंट नहीं हो लेकिन माइक तो बने क्योंकि ऐसी आत्मायें रेग्युलर स्टूडेंट मुश्किल बनते हैं, अनुभव तो सुनावें। तो इस वर्ष यह करना। हर एक वर्ग कोशिश करो और फिर उन्हों का संगठन हो जाए, छोटा संगठन, बडा नहीं। तो एक दो को देख करके भी उमंग आता है। ठीक है ना! तो पहले कौन करेगा? आप करेंगे। अच्छा – इन एडवांस मुबारक हो।
सिक्यूरिटी विंग:- (बैनर दिखा रहे है) लक्ष्य तो अच्छा रखा है, इन्होंने लक्ष्य रखा है, “सुरक्षा, सेवा, सम्पूर्ण समर्पण”। सम्पूर्ण समर्पण हो गया तो फिर तो सम्पूर्ण हो ही जायेंगे। अच्छा लक्ष्य रखा है। अपने को समर्पण करना अर्थात् निमित्त और निर्माण बनना। निमित्त और निर्माण बनने से सफलता तो है ही। अच्छा है, आप लोगों को तो अन्त तक सेवा करनी पडेगी। अन्त के समय आपकी सेवा ज्यादा होगी। अच्छा है हर एक विंग लक्ष्य को दोहराते रहना। लिखा तो सभी ने अच्छा है, लक्ष्य को लक्षण बनाके ही छोडना है। आज तो लथ्य दिखाया है, अभी लक्षण देखेंगे। सभी विंग ने अच्छा लक्ष्य रखा है। अच्छा - कोई मिलेट्री वाले तैयार कर रहे हो? सिक्यूरिटी के हर ग्रूप में कनेक्शन रखो। चाहे देश के लिए, चाहे आत्माओं के लिए जो सिक्युरेटी डिपार्टमेंट है उन सबकी सेवा हो क्योंकि यह समय पर बहुत काम में आने हैं। जैसा समय नाजुक होगा तो आपको उन्हों की मदद से आवाज फैलाने में बहुत अच्छा होगा। कनेक्शन सबसे रखो। जो भी शाखायें है, उन्हों से भी सम्पर्क रखो। सेवाधारी बहुत होते है ना तो समय पर सेवाधारी काम में आवे। अच्छा है फिर भी बापदादा देखते हैं हर वर्ग कोशिश अच्छी कर रहे हैं। अच्छा, मुबारक हो।
स्पार्क ग्रुप:- (मूल्यनिष्ठ समाज की रचना करने का लक्ष्य रख अभियान निकालने का सोचा है, जिसमें हर जोन हर विंग इसी के अन्तर्गत सेवा करे, साथ- साथ अन्तिम समय की तैयारियाँ तथा संस्कार परिवर्तन के विषय पर गहन अनुभूति कराने का लक्ष्य रखा है)
बहुत अच्छा, घर घर में आवाज फैल जायेगा। और ऐसा ग्रुप तैयार करो जो गवर्मेंट तक भी आवाज जाये, यह अभियान करायेंगे तो आवाज जायेगा। अच्छा सोचा है। संख्या तो बहुत है। सब रिजल्ट निकालना, फिर बापदादा और मुबारक देंगे। अच्छा है यह उमंग-उत्साह, अपने पुरुषार्थ में भी उमंग-उत्साह बढ़ायेगा। सिर्फ सेवा में ही नहीं, साथ में अपने पुरुषार्थ में भी उमंग-उत्साह बढता जाए, सेवा भी बढती जाए। बाकी अच्छा किया है, मुबारक हो।
यूथ ग्रुप भी सेवा करके आयें हैं:- सेवा में खुशी का मेवा खाया क्योंकि सेवा का मेवा मिलता है खुशी, उमंग-उत्साह। तो सिर्फ सेवा की, सेवा के साथ मेवा खाया, कितनी खुशी रही? खुश रहे और खुशी बाँटी यह मेवा खाया और मेवा खिलाया। ऐसे ही आगे बढते चलो। अच्छा किया है । मेहनत अच्छी की है। मेहनत की मुबारक और आगे बढने की भी मुबारक हो। अच्छा।
डबल विदेशी:- कितने देशों से हैं? (35 देशों से) अच्छा है डबल विदेशियों से मधुबन सज जाता है। चाहे ज्ञान सरोवर में रहो, चाहे नीचे रहो लेकिन आप मधुबन के डबल श्रृंगार हो। सब आपको देखकर खुश होते हैं। और बापदादा ने सुनाया कि जब स्थापना हुई तो बापदादा का एक टाइटल नहीं था, और जब विदेश सेवा हुई है तो प्रैक्टिकल में वह टाइटल आ गया। वह कौन-सा टाइटल? विश्व कल्याणकारी। तो अभी विश्व में कोने-कोने में सेवाकेन्द्र हैं। हर खण्ड में अनेक सेवाकेन्द्र हैं। एक यू.के., यूरोप में कितने होंगे, आस्ट्रेलिया में कितने होंगे? तो विश्व कल्याणकारी का टाइटल डबल फॉरिन सेवा से सिद्ध हुआ और आप जानते हो ना - बापदादा को एक डबल फरिनर्स की विशेषता बहुत अच्छी लगती है। जानते हो? सच्चाई सफाई। बता देते हैं। हिम्मत थोडी- थोड़ी भले कम हो लेकिन बता देते हैं । छिपाने की आदत नहीं है। तो सच्चाई बाप को प्रिय है। सत्यता, महानता को प्राप्त कराने वाली होती है। बहुत अच्छा किया है, जिस देश से निकले उसी देश के सेवाधारी बन गये। नहीं तो भारतवासी बच्चों को कितनी भाषायें सीखनी पडती। पहले तो यह पढ़ाई पढनी पडती लेकिन आप आये सेवाधारी बन गये। सेवा का सबूत भी लाते हो इसकी बहुत-बहुत-बहुत मुबारक। और सभी ओ. के. रहने वाले, ओ .के. कभी नहीं भूलना। अच्छे हैं, अच्छे ते अच्छे रहना ही है। विदेश को नम्बरवन लेना है। विन करके वन लेना है। ठीक है ना! विन करने वाले वन नम्बर लेने वाले। ठीक है? ऐसे हैं? टू नम्बर नहीं ना! वन। विन और वन। अच्छे हैं, सभी को प्यारे लगते हैं। आपको सब देखने चाहते हैं। बापदादा ने तो देख लिया, अभी घूम जाओ जो सब आपको देखें। देखों, दर्शनीय मूर्त बन गये। (जयन्ती बहन से) यह ठीक है! अच्छा है। अच्छा।
जिब्राल्टर सबसे छोटा बच्चा है, बहुत अच्छा निमित्त बन आगे जा रहे हैं:-
बहुत अच्छा। सबसे नम्बरवन जाना। अच्छा। सभी अपनी- अपनी सेवा कर रहे हैं, करते रहेंगे, सबको उडाते रहेंगे।
मधुबन निवासियों से:- मधुबन वाले हाथ उठाओ। बहुत है। मधुबन वाले होस्ट हैं और तो गेस्ट होकर आते हैं चले जाते हैं लेकिन मधुबन वाले होस्ट हैं। नियरेस्ट भी हैं, डियरेस्ट भी हैं। मधुबन वालों को देखकर सब खुश होते हैं ना। किसी भी स्थान पर मधुबन वाले जाते हैं तो किस नजर से देखते हैं। वाह मधुबन से आये हैं। क्योंकि मधुबन नाम सुनने से मधुबन का बाबा याद आ जाता है। इसलिए मधुबन वालों का महत्व है। है महत्व? खुश होते हो ना! ऐसा प्रेमपूर्वक पालना का स्थान कोटों में कोई को ही मिला है। सब चाहते हैं मधुबन में ही रह जाए, रह सकते हैं क्या। आप रह रहे हो। तो अच्छा है। मधुबन वाले भूलते नहीं हैं, समझते हैं हमारे को पूछा नहीं लेकिन बापदादा सदा दिल में पूछते हैं। पहले मधुबन वाले। मधुबन वाले नहीं हों तो आयेंगे कहाँ! सेवा के निमित्त तो है ना! सेवाधारी कितने भी मिले, फिर भी फाउण्डेशन तो मधुबन वाले हैं। तो जो ऊपर ज्ञान सरोवर में, पाण्डव भवन में है, उन सबको भी बापदादा दिल की दुआयें और यादप्यार दे रहे हैं। यहाँ जो टोली देते हैं वह ऊपर मधुबन में मिलती है? तो मधुबन वालों को टोली भी मिलती, बोली भी मिलती। दोनो मिलती है। अच्छा।
ग्लोबल हॉस्पिटल वालों से:- सभी हॉस्पिटल वाले ठीक है क्योंकि हॉस्पिटल का भी विशेष पार्ट है ना। आते हैं नीचे। अच्छा थोड़े आते हैं। हॉस्पिटल वाले भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। देखो आईवेल में तो फिर भी हॉस्पिटल ही काम में आती है ना। और जब से हॉस्पिटल खुली है तब से सबकी नजर में यह आया है कि ब्रह्माकुमारियाँ सिर्फ ज्ञान नहीं देती, लेकिन समय पर मदद भी करती है, सोशल सेवा भी करती है। तो हॉस्पिटल के बाद आबू में यह वायुमण्डल बदली हो गया। पहले जिस नजर से देखते थे, अभी उस नजर से नहीं देखते हैं। अभी सहयोग की नजर से देखते हैं। ज्ञान माने या नहीं माने लेकिन सहयोग की नज़र से देखते हैं तो हॉस्पिटल वालों ने सेवा की ना। अच्छा है।
अच्छा - आज की बात याद रही? सम्पन्न बनना ही है, कुछ भी हो जाए, सम्पन्न बनना ही है। यह धुन लग जाए, सम्पन्न बनना है, समान बनना है। अच्छा।
चारों ओर के कोटों में कोई, कोई में भी कोई भाग्यवान, भगवान के बच्चे श्रेष्ठ आत्मायें, सदा तीब्र पुकपार्थ द्वारा जो सोचा वह किया, श्रेष्ठ सोचना, श्रेष्ठ करना, लक्ष्य और लक्षण को समान बनाना, ऐसे विशेष आत्माओं को सदा बहुतकाल के पुरुषार्थ द्वारा राज्य भाग्य और पूज्य बनने बाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह का रिटर्न अपने को टर्न करने वाले नम्बरबन, विन करने वाले भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादीजी से:- आपका नाम ही सेवा कर रहा है। दादी, दादी कहके ही सेवा हो रही है। अच्छा सभी सहयोगी और स्नेही नम्बरवन हैं। स्नेही भी हैं, राजयोगी भी हैं। ग्रूप अच्छा है।
(रतनमोहिनी दादी कल रीवा (म.प्र) के मिनी मेगा प्रोग्राम में जा रही हैं) सेवा तो बहुत अच्छी चल रही है। अच्छा है उमंग-उत्साह से करते हैं, रेसपान्स भी मिलता है, अच्छा है सबको याद देना।
जयन्ती बहन से:- प्रक्रितिजीत हो गई ना। प्रकृति तो नटखट है ही। लास्ट जन्म की है ना। इसलिए नटखट तो करती है लेकिन प्रकृति जीत होके उड़ते चलो, बापदादा की और परिवार की भी दुआयें बहुत है। तो दुआयें भी दवाई का काम कर रही है।
डा. हंसा रावल से:- सेवा में बहुत अच्छा फल मिलता है। प्रत्यक्षफल मिलता है खुशी, समीपता। तो यह फल लेने वाले, होशियार हो।
ओम शान्ति।
20-03-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस वर्ष को विशेष जीवनमुक्त वर्ष के रूप में मनाओ, एकता और एकाग्रता से बाप की प्रत्यक्षता करो”
आज स्नेह के सागर चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। बाप का भी बच्चों से दिल का अविनाशी स्नेह है और बच्चों का भी दिलाराम बाप से दिल का स्नेह है। यह परमात्म स्नेह, दिल का स्नेह सिर्फ बाप और ब्राह्मण बच्चे ही जानते हैं। परमात्म स्नेह के पात्र सिर्फ आप ब्राह्मण आत्मायें हो। भक्त आत्मायें परमात्म प्यार के लिए प्यासी हैं, पुकारती हैं। आप भाग्यवान ब्राह्मण आत्मायें उस प्यार की प्राप्ति के पात्र हो। बापदादा जानते हैं कि बच्चों का विशेष प्यार क्यों हैं, क्योंकि इस समय ही सर्व खज़ानों के मालिक द्वारा सर्व खज़ाने प्राप्त होते हैं। जो खज़ाने सिर्फ अब का एक जन्म नहीं चलते लेकिन अनेक जन्मों तक यह अविनाशी खज़ाने आपके साथ चलते हैं। आप सभी ब्राह्मण आत्मायें दुनिया के मुआफिक हाथ खाली नहीं जायेंगे, सर्व खज़ाने साथ रहेंगे। तो ऐसे अविनाशी खज़ानों की प्राप्ति का नशा रहता है ना! और सभी बच्चों ने अविनाशी खज़ाने जमा किये हैं ना! जमा का नशा, जमा की खुशी भी सदा रहती है। हर एक के चेहरे पर खज़ानों के जमा की झलक नजर आती है। जानते हो ना - कौन से खज़ाने बाप द्वारा प्राप्त हैं? कभी अपने जमा का खाता चेक करते हो? बाप तो सभी बच्चों को हर एक खज़ाना अखुट देते हैं। किसको थोड़ा, किसको ज्यादा नहीं देते हैं। हर एक बच्चा अखुट, अखण्ड, अविनाशी खज़ानों के मालिक हैं। बालक बनना अर्थात् खज़ानों का मालिक बनना। तो इमर्ज करो कितने खज़ाने बापदादा ने दिये हैं।
सबसे पहला खज़ाना है - ज्ञान धन, तो सभी को ज्ञान धन मिला है? मिला है या मिलना है? अच्छा - जमा भी है? या थोड़ा जमा है थोड़ा चला गया है? ज्ञान धन अर्थात् समझदार बन, त्रिकालदर्शी बन कर्म करना। नॉलेजफुल बनना। फुल नॉलेज और तीनों कालों की नॉलेज को समझ ज्ञान धन को कार्य में लगाना। इस ज्ञान के खज़ाने से प्रत्यक्ष जीवन में, हर कार्य में यूज करने से विधि से सिद्धि मिलती है - जो कई बंधनों से मुक्ति और जीवनमुक्ति मिलती है। अनुभव करते हो? ऐसे नहीं कि सतयुग में जीवनमुक्ति मिलेगी, अभी भी इस संगम के जीवन में भी अनेक हद के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। जीवन, बंधन मुक्त बन जाती है। जानते हो ना, कितने बन्धनों से फ्री हो गये हो! कितने प्रकार के हाय-हाय से मुक्त हो गये हो! और सदा हाय-हाय खत्म, वाह! वाह! के गीत गाते रहते हो। अगर कोई भी बात में जरा भी मुख से नहीं लेकिन संकल्प मात्र भी, स्वप्न मात्र भी हाय.. मन में आती है तो जीवन-मुक्त नहीं। वाह! वाह! वाह! ऐसे है? मातायें, हाय-हाय तो नहीं करती? नहीं? कभी-कभी करती हैं? पाण्डव करते हैं? मुख से भले नहीं करो लेकिन मन में संकल्प मात्र भी अगर किसी भी बात में हाय है तो फ्लाय नहीं। हाय अर्थात् बंधन और फ्लाय, उड़ती कला अर्थात् जीवन-मुक्त, बंधन-मुक्त। तो चेक करो क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें जब तक स्वयं बन्धन मुक्त नहीं हुए हैं, कोई भी सोने की, हीरे की रॉयल बंधन की रस्सी बंधी हुई है तो सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुल नहीं सकता। आपके बंधन-मुक्त बनने से सर्व आत्माओं के लिए मुक्ति का गेट खुलेगा। तो गेट खोलने की वा सर्व आत्माओं के दु:ख, अशान्ति से मुक्त होने की जिम्मेवारी आपके ऊपर है।
तो चेक करो - अपनी जिम्मेवारी कहाँ तक निभाई है? आप सबने बापदादा के साथ विश्व परिवर्तन का कार्य करने का ठेका उठाया है। ठेकेदार हो, जिम्मेवार हो। अगर बाप चाहे तो सब कुछ कर सकता है लेकिन बाप का बच्चों से प्यार है, अकेला नहीं करने चाहते, आप सर्व बच्चों को अवतरित होते ही साथ में अवतरित किया है। शिवरात्रि मनाई थी ना! तो किसकी मनाई? सिर्फ बाप-दादा की? आप सबकी भी तो मनाई ना! बाप के आदि से अन्त तक के साथी हो। यह नशा है - आदि से अन्त तक साथी हैं? भग-वान के साथी हो।
तो बापदादा अभी इस वर्ष की सीजन के अन्त के पार्ट बजाने में यही सब बच्चों से चाहते हैं, बतायें क्या चाहते हैं? करना पड़ेगा। सिर्फ सुनना नहीं पड़ेगा, करना ही होगा। ठीक है टीचर्स? टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स पंखें भी हिला रही हैं, गर्मी लगती है। अच्छा, सभी टीचर्स करेंगी और करायेंगी? करायेंगी, करेंगी? अच्छा। हवा भी लग रही है, हाथ भी हिला रहे हैं। सीन अच्छी लगती है। बहुत अच्छा। तो बापदादा इस सीजन के समाप्ति समारोह में एक नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा! नये प्रकार की दीपमाला मनाने चाहते हैं। तो आप सभी दीपमाला मनाने के लिए तैयार हैं? जो तैयार हैं वह हाथ उठाओ। ऐसे ही हाँ नहीं करना। बापदादा को खुश करने के लिए हाथ नहीं उठाना, दिल से उठाना। अच्छा। बापदादा अपने दिल की आशाओं को सम्पन्न करने के दीप जगे हुए देखने चाहते हैं। तो बापदादा के आशाओं के दीपकों की दीपमाला मनाने चाहते हैं। समझा, कौन सी दीपावली? स्पष्ट हुआ?
तो बापदादा के आशाओं के दीपक क्या हैं? अगले वर्ष से लेकर, यह वर्ष भी सीजन का पूरा हो गया। बापदादा ने कहा था - आप सबने भी संकल्प किया था, याद है? कोई ने वह संकल्प सिर्फ संकल्प तक पूरा किया है, कोई ने संकल्प को आधा पूरा किया है और कोई सोचते हैं लेकिन सोच, सोचने तक है। वह संकल्प क्या? कोई नई बात नहीं है, पुरानी बात है - स्व-परिवर्तन से सर्व परिवर्तन। विश्व की तो बात छोड़ो लेकिन बापदादा स्व-परिवर्तन से ब्राह्मण परिवार परिवर्तन, यह देखने चाहते हैं। अभी यह नहीं सुनने चाहते कि ऐसे हो तो यह हो। यह बदले तो मैं बदलूं, यह करे तो मैं करूं... इसमें विशेष हर एक बच्चे को ब्रह्मा बाप विशेष कह रहा है कि मेरे समान हे अर्जुन बनो। इसमें पहले मैं, पहले यह नहीं, पहले मैं। यह ``मैं'' कल्याणकारी मैं है। बाकी हद की मैं, मैं नीचे गिराने वाली है। इसमें जो कहावत है - जो ओटे सो अर्जुन, तो अर्जुन अर्थात् नम्बरवन। नम्बरवार नहीं, नम्बरवन। तो आप नम्बर दो बनने चाहते हो या नम्बरवन बनने चाहते हो? कई कार्य में बापदादा ने देखा है - हँसी की बात, परिवार की बात सुनाते हैं। परिवार बैठा है ना! कोई ऐसे काम होते हैं तो बापदादा के पास समाचार आते हैं, तो कई कार्य ऐसे होते हैं, कई प्रोग्राम्स ऐसे होते हैं जो विशेष आत्माओं के निमित्त होते हैं। तो बापदादा के पास दादियों के पास समाचार आते हैं, क्योंकि साकार में तो दादियां हैं। बापदादा के पास तो संकल्प पहुंचते हैं। तो क्या संकल्प पहुंचता है? मेरा भी नाम इसमें होना चाहिए, मैं क्या कम हूँ! मेरा नाम क्यों नहीं! तो बाप कहते हैं - हे अर्जुन में आपका नाम क्यों नहीं! होना चाहिए ना! या नहीं होना चाहिए? होना चाहिए? सामने महारथी बैठे हैं, होना चाहिए ना! होना चाहिए? तो ब्रह्मा बाप ने जो करके दिखाया, किसको देखा नहीं, यह नहीं करते, यूं नहीं करते, नहीं। पहले मैं। इस मैं में जो पहले सुनाया था अनेक प्रकार के रॉयल रूप के मैं, सुनाया था ना! वह सब समाप्त हो जाते हैं। तो बापदादा की आशायें इस सीजन के समाप्ति की यही हैं कि हर एक बच्चा जो ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं, मानते हैं, जानते हैं, वह हर एक ब्राह्मण आत्मा जो भी संकल्प रूप में भी हद के बन्धन हैं, उस बंधनों से मुक्त हो। ब्रह्मा बाप समान बन्धनमुक्त, जीवन-मुक्त। ब्राह्मण जीवन मुक्त, साधारण जीवन मुक्त नहीं, ब्राह्मण श्रेष्ठ जीवनमुक्त का यह विशेष वर्ष मनायें। हर एक आत्मा जितना अपने सूक्ष्म बंधनों को जानते हैं, उतना और नहीं जान सकता है। बापदादा तो जानते हैं क्योंकि बापदादा के पास तो टी.वी. है, मन की टी.वी., बॉडी की नहीं, मन की टी.वी. है। तो क्या अभी जो फिर से सीजन होगी, सीजन तो होगी ना या छुट्टी करें? एक वर्ष छुट्टी करें? नहीं? एक साल तो छुट्टी होनी चाहिए? नहीं होनी चाहिए? पाण्डव एक साल छुट्टी करें? (दादी जी कह रही हैं, मास में 15 दिन की छुट्टी) अच्छा। बहुत अच्छा, सभी कहते हैं, जो कहते हैं छुट्टी नहीं करनी है वह हाथ उठाओ। नहीं करनी है? अच्छा। ऊपर की गैलरी वाले हाथ नहीं हिला रहे हैं। (सारी सभा ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा। बाप तो सदा बच्चों को हाँ जी, हाँ जी करते हैं, ठीक है। अभी बाप को बच्चे कब हाँ जी करेंगे! बाप से तो हाँ जी करा ली, तो बाप कहते हैं, बाप भी अभी एक शर्त डालते हैं, शर्त मंजूर होगी? सभी हाँ जी तो करो। पक्का? थोड़ा भी आनाकानी नहीं करेंगे? अभी सबकी शक्लें टी.वी. में निकालो। अच्छा है। बाप को भी खुशी होती है कि सभी बच्चे हाँ जी, हाँ जी करने वाले हैं।
तो बापदादा यही चाहते हैं कि कोई कारण नहीं बताये, यह कारण है, यह कारण है, इसलिए यह बंधन है! समस्या नहीं, समाधान स्वरूप बनना है और साथियों को भी बनाना है क्योंकि समय की हालत को देख रहे हो। भ्रष्टाचार का बोल कितना बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार, अत्याचार अति में जा रहा है। तो श्रेष्ठाचार का झण्डा पहले हर ब्राह्मण आत्मा के मन में लहराये, तब विश्व में लह-रेगा। कितनी शिवरात्रि मना ली! हर शिवरात्रि पर यही संकल्प करते हो कि विश्व में बाप का झण्डा लहराना है। विश्व में यह प्रत्य-क्षता का झण्डा लहराने के पहले हर एक ब्राह्मण को अपने मन में सदा दिल-तख्त पर बाप का झण्डा लहराना होगा। इस झण्डे को लहराने के लिए सिर्फ दो शब्द हर कर्म में लाना पड़ेगा। कर्म में लाना, संकल्प में नहीं, दिमाग में नहीं। दिल में, कर्म में, सम्बन्ध में, सम्पर्क में लाना होगा। मुश्किल शब्द नहीं है कॉमन शब्द है। वह है-एक सर्व सम्बन्ध, सम्पर्क में आपस में एकता। अनेक संस्कार होते, अनेकता में एकता। और दूसरा - जो भी श्रेष्ठ संकल्प करते हो, बापदादा को बहुत अच्छा लगता है, जब आप संकल्प करते हो ना, तो बापदादा वह संकल्प देखकर, सुनकर बहुत खुश होते हैं, वाह! वाह! बच्चे वाह! वाह! श्रेष्ठ संकल्प वाह! लेकिन, लेकिन... आ जाता है। आना नहीं चाहिए लेकिन आ जाता है। संकल्प मैजारिटी, मैजारिटी अर्थात् 90 परसेन्ट, कई बच्चों के बहुत अच्छे-अच्छे होते हैं। बापदादा समझते हैं आज इस बच्चे का संकल्प बहुत अच्छा है, प्रोग्रेस हो जायेगी लेकिन बोल में थोड़ा आधा कम हो जाता, कर्म में फिर पौना कम हो जाता, मिक्स हो जाता है। कारण क्या? संकल्प में एकाग्रता, दृढ़ता नहीं। अगर संकल्प में एकाग्रता होती तो एकाग्रता सफलता का साधन है। दृढ़ता सफलता का साधन है। उसमें फर्क पड़ जाता है। कारण क्या? एक ही बात बापदादा देखते हैं रिजल्ट में, दूसरे के तरफ ज्यादा देखते हैं। आप लोग बताते हो ना, (बापदादा ने एक अंगुली आगे करके दिखाई) ऐसे करते हैं, तो एक अंगुली दूसरे तरफ, चार अपने तरफ हैं। तो चार को नहीं देखते, एक को बहुत देखते हैं। इसीलिए दृढ़ता और एकाग्रता, एकता हिल जाती है। यह करे, तो मैं करूं, इसमें ओटे अर्जुन बन जाते, उसमें दूजा नम्बर बन जाते हैं। नहीं तो स्लोगन अपना बदली करो। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के बजाए करो - विश्व परिवर्तन से स्व परिवर्तन। दूजे परिवर्तन से स्व परिवर्तन। बदली करें? बदली करें? नहीं करें? तो फिर बापदादा भी एक शर्त डालता है, मंजूर है, बतायें? बाप-दादा 6 मास में रिजल्ट देखेंगे, फिर आयेंगे, नहीं तो नहीं आयेंगे। जब बाप ने हाँ जी किया, तो बच्चों को भी हाँ जी करना चाहिए ना! कुछ भी हो जाए, बापदादा तो कहता है, स्व परिवर्तन के लिए इस हद के मैं पन से मरना पड़ेगा, मैं पन से मरना, शरीर से नहीं मरना। शरीर से नहीं मरना, मैं पन से मरना है। मैं राइट हूँ, मैं यह हूँ, मैं क्या कम हूँ, मैं भी सब कुछ हूँ, इस मैं पन से मरना है। तो मरना भी पड़े तो यह मृत्यु बहुत मीठा मृत्यु है। यह मरना नहीं है, 21 जन्म राज्य भाग्य में जीना है। तो मंजूर है? मंजूर है टीचर्स? डबल फारेनर्स? डबल फारेनर्स जो संकल्प करते हैं ना, वह करने में हिम्मत रखते हैं, यह विशेषता है। और भारतवासी ट्रिपल हिम्मत वाले हैं, वह डबल तो वह ट्रिपल। तो बापदादा यही देखने चाहते हैं। समझा! यही बापदादा की श्रेष्ठ आशाओं का दीपक, हर बच्चे के अन्दर जगा हुआ देखने चाहते हैं। अभी इस बारी यह दीवाली मनाओ। चाहे 6 मास के बाद मनाओ। फिर जब बापदादा दीपावली का समारोह देखेंगे फिर अपना प्रोग्राम देंगे। करना तो है ही। आप नहीं करेंगे तो और पीछे वाले करेंगे क्या! माला तो आपकी है ना! 16108 में तो आप पुराने ही आने हैं ना। नये तो पीछे-पीछे आयेंगे। हाँ कोई-कोई लास्ट सो फास्ट आयेंगे। कोई-कोई मिसाल होंगे जो लास्ट सो फास्ट जायेंगे, फर्स्ट आयेंगे। लेकिन थोड़े। बाकी तो आप ही हैं, आप ही हर कल्प बने हो, आप ही बनने हैं। चाहे कहाँ भी बैठे हैं, विदेश में बैठे हैं, देश में बैठे हैं लेकिन जो आप पक्के निश्चय बुद्धि बहुतकाल के हैं, वह अधिकारी हैं ही हैं। बापदादा का प्यार है ना, तो जो बहुतकाल वाले अच्छे पुरूषार्थी, सम्पूर्ण पुरूषार्थी नहीं, लेकिन अच्छे पुरूषार्थी रहे हैं उनको बापदादा छोड़ के जायेगा नहीं, साथ ही ले चलेगा। इसीलिए पक्का, निश्चय करो हम ही थे, हम ही हैं, हम ही साथ रहेंगे। ठीक है ना! पक्का है ना? बस सिर्फ शुभचिंतक, शुभचिंतन, शुभ भावना, परिवर्तन की भावना, सहयोग देने की भावना, रहम दिल की भावना इमर्ज करो। अभी मर्ज करके रखी है। इमर्ज करो। शिक्षा बहुत नहीं दो, क्षमा करो। एक दो को शिक्षा देने में सब होशियार हैं लेकिन क्षमा के साथ शिक्षा दो। मुरली सुनाने, कोर्स कराने या जो भी आप प्रोग्राम्स चलाते हो, उसमें भले शिक्षा दो, लेकिन आपस में जब कारोबार में आते हो तो क्षमा के साथ शिक्षा दो। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, रहमदिल बनके शिक्षा दो तो आपका रहम ऐसा काम करेगा जो दूसरे की कमज़ोरी की क्षमा हो जायेगी। समझा।
बाकी सेवायें तो सभी ने बहुत प्रकार की की हैं और अभी कर भी रहे हैं लेकिन बापदादा एक इशारा देते हैं कि क्वान्टिटी और क्वालिटी, क्वान्टिटी की भी सेवा करो लेकिन क्वान्टिटी को सेवा के सहयोगी बनाओ। क्वालिटी वालों को सामने लाओ, सेवा की स्टेज पर लाओ। क्वालिटी और क्वान्टिटी दोनों की सेवा साथ-साथ हो। ऐसे नहीं क्वान्टिटी के पीछे क्वालिटी रह जाये क्योंकि समय समीप आ रहा है। बाप की प्रत्यक्षता तब होगी जब क्वालिटी वाले कार्य को और बाप को प्रत्यक्ष करें। सन्देश देना वह भी जरूरी है लेकिन सन्देश वाहक बनाना वह भी आवश्यक है। अभी भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं। बापदादा ने सुना, जो भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हैं वह एक एक हाथ उठाओ।
(स्पोर्ट, एडमिनिस्टेटर, यूथ, आई. टी. ग्रुप, सभी वर्ग वालों से बापदादा ने हाथ उठवाये) जो भी वर्ग वाले आये हैं, मीटिंग तो की लेकिन बापदादा को हर वर्ग ने अपना सेवा में नम्बरवन आई.पी. सामने नहीं दिखाया है। कौन से वर्ग का कोई माइक तैयार हुआ है, बताओ। हर एक वर्ग का कोई ऐसा माइक तैयार किया है जो आप माइट बनो और वह माइक बनें? किस वर्ग वाले ने किया है? हाथ उठाओ। कौन किया है? अभी जो वर्गो का प्रोग्राम होगा, उसमें हर एक वर्ग अपने छोटे माइक ग्रुप को मधुबन में सामने लावे। यह तो कर सकते हैं ना! बापदादा भी देखे तो सही, कौन से बच्चे तैयार हुए हैं। बाप-दादा के आगे नहीं लाना, पहले दादियों के आगे लाओ। फिर वह पास करेंगे फिर बापदादा के सामने लाना। अच्छा है। अच्छा - सुना तो बहुत है। अभी सुनना अर्थात् समाना। समाना अर्थात् स्वरूप में लाना। अभी 6 लाख ब्राह्मण परिवार एक दो में सदा स्नेही, सहयोगी और सदा हिम्मत बढ़ाने वाले हों। अच्छा।
सेवा का टर्न राजस्थान का है, यू.पी. मददगार है:- अच्छा है ना, राजस्थान को बहुत चांस मिला है - ज्यादा पुण्य जमा करने का। देखो जितनी संख्या बढ़ गई, उतनी आत्माओं का पुण्य सेवाधारियों के खाते में जमा हुआ। तो राजस्थान को बिना संकल्प किये गोल्डन लाटरी पुण्य की मिली है। अच्छा है। राजस्थान को मिली तो सभी खुश हो रहे हैं। अच्छा है सबने अच्छा समय दे करके निभाया। और सेवा में सफलता प्राप्त की, इसकी मुबारक हो। अच्छा। (सभा से, आज सभा में 25 हजार से भी ज्यादा भाई बहिनें पहुंचे हैं) आप सभी ने भी दादियों को, सेवाधारियों को मुबारक दी। इतनी मेहनत कराई है। खूब तालियां बजाओ। अच्छा।
अभी एक सेकेण्ड में मन के मालिक बन मन को जितना समय चाहे उतना समय एकाग्र कर सकते हो? कर सकते हो? तो अभी यह रूहानी एक्सरसाइज करो। बिल्कुल मन की एकाग्रता हो। संकल्प में भी हलचल नहीं। अचल। अच्छा -
चारों ओर के सर्व अविनाशी अखण्ड खज़ानों के मालिक, सदा संगमयुगी श्रेष्ठ बन्धनमुक्त, जीवनमुक्त स्थिति पर स्थित रहने वाले, सदा बापदादा की आशाओं को सम्पन्न करने वाले, सदा एकता और एकाग्रता के शक्ति सम्पन्न मास्टर सर्व शक्तिवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
चारों ओर दूर बैठने वाले बच्चों को, जिन्होंने यादप्यार भेजी है, पत्र भेजे हैं, उन्हों को भी बापदादा बहुत-बहुत दिल के प्यार सहित यादप्यार दे रहे हैं। साथ-साथ बहुत बच्चों ने मधुबन की रिफ्रेशमेंट के पत्र बहुत अच्छे-अच्छे भेजे हैं, उन बच्चों को भी विशेष याद-प्यार और नमस्ते।
31-12-09 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘नये वर्ष में सभी आत्माओं को सन्देश देकर गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट दो, बाप समान बनने के लिए देही-अभिमानी रहने की नेचर नेचुरल बनाओ’’
आज बापदादा हर एक बच्चे को स्नेह और बापदादा के लव में लवलीन स्वरूप में देख रहे हैं। एक एक बच्चा परमात्म प्यार में चमक रहा है। सभी बच्चे प्यार के विमान में पहुंच गये हैं। वैसे तो न्यु ईयर मनाने के लिए आये है लेकिन सभी के नयनों में क्या दिखाई दे रहा है? न्यु ईयर, नया साल तो निमित्त मात्र है लेकिन आप सभी के नयनों में क्या उमंग है? तीन बधाईयां दे रहे हो। एक अपने नये जीवन की बधाई और दूसरी नये युग की बधाई और तीसरी परिवार और बाप से मिलन की बधाई। आपके नयनों में क्या घूम रहा है? अपना नव युग सामने आ रहा है ना! दिल में उमंग आ रहा है कि नया युग आया कि आया। नये युग की चमकीली ड्रेस इतना सामने स्पष्ट है कि आज संगमयुग पर हैं और जल्दी से यह चमकीली ड्रेस पहननी है। सामने देख देख खुश हो रहे हैं। विदाई भी दे रहे हैं और बधाई भी ले रहे हैं। जैसे पुराने साल को विदाई देते हैं फिर वह साल भूल जाता है, नया साल ही सामने आता है। ऐसे ही आपके सामने पुरानी दुनिया को बधाई नहीं, लेकिन नई दुनिया को बधाई दे रहे हैं। पुरानी दुनिया को विदाई दे रहे हैं। तो आज सभी को उमंग-उत्साह है नये युग का, लोग भी नये वर्ष की बधाई देते हैं और साथ-साथ गिफ्ट भी देते हैं। तो बापदादा भी आप बच्चों को पुराने स्वभाव संस्कार को विदाई देकरके नई दुनिया में जाने की गिफ्ट दे रहे हैं, जिस नई दुनिया में प्राप्ति ही प्राप्ति है। शॉर्ट में यही कहे तो अप्राप्त नहीं कोई वस्तु नई दुनिया में। ऐसे गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट बापदादा ने आप हर एक बच्चे को सौगात दे दी है। आपको भी नशा है ना कि हम गोल्डन वर्ल्ड के अधिकारी बन रहे हैं। ऐसी गिफ्ट और कोई दे नहीं सकते हैं। बाप ने हर एक बच्चे को यह डायरेक्शन दिया है कि सभी आत्माओं को यह बाप का वर्सा गोल्डन वर्ल्ड का सन्देश देकरके उनको भी आप गिफ्ट दो। आपके पास कौन सी गिफ्ट है? एक तो नई दुनिया की गिफ्ट दो और दूसरा आपके पास बहुत खज़ाने हैं। गुणों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, स्वमान के खज़ाने, कितने खज़ाने हैं। तो सभी को कोई न कोई गुण, कोई न कोई शक्ति की गिफ्ट दो जिस गिफ्ट से उन्हों की जीवन बदल जाए और गोल्डन दुनिया के अधिकारी बन जाये क्योंकि आजकल देख रहे हो चारों ओर दु:ख अशान्ति बढ़ रहा है। चारों ओर भय और चिंता हर एक में है। ऐसे दु:खी अशान्त आत्माओं को कम से कम यह सन्देश जरूर दो कि अब बाप आये हैं अब से अविनाशी वर्से के अधिकारी बन जाओ। यह सन्देश हर आत्मा को दे भी रहे हो लेकिन अभी भी कई बाप के बच्चे सन्देश से भी वंचित रहे हुए हैं। फिर भी एक बाप के बच्चे हैं ना तो अपने भाई बहिनों को यह सन्देश की गिफ्ट जरूर दो। कोई भी रह नहीं जाए। कर रहे हैं सेवा, बापदादा बच्चों की सेवा देख खुश है लेकिन बाप की यही आशा है कि मेरा कोई भी बच्चा सन्देश से रह नहीं जाये। उल्हना नहीं दे कि आपको गोल्डन वर्ल्ड की सौगात मिली और हमको पता नहीं पड़ा। हमारा बाप आया लेकिन हमें सन्देश नहीं मिला इसलिए इस नये साल में यही प्रयत्न करो, आपस में प्लैन बनाओ कि कोई भी कोना रह नहीं जाये। उल्हना नहीं मिले लेकिन खुश हो जाये, मालूम तो पड़े कि हमारा बाप आ गया। वंचित नहीं रह जाएं। तो इस नये साल में क्या करेंगे? आपस में मिलके प्लैन बनाओ, बापदादा को हर एक बच्चे के ऊपर रहम आता है। तो आपको भी भाई-बहिनों के ऊपर अभी विशेष रहमदिल, कल्याणकारी स्वरूप धारण कर सबको सन्देश देना है। कम से कम ऐसा तो उल्हना नहीं देवे।
तो आज सभी बच्चे नये वर्ष मनाने के उमंग उत्साह से पहुंच गये हैं। बापदादा एक-एक बच्चे को देख क्या गीत गाते?जानते हो ना! वाह बच्चे वाह! जो पहले बारी भी आये हैं उन्हों को भी बापदादा कह रहे हैं कि लक्की हो जो समय समाप्त के पहले बाप के बन गये। नये बच्चों को बापदादा पदम पदमगुणा लक्की बनने की मुबारक दे रहे हैं। आजकल बापदादा एक बात सभी बच्चों में देखने चाहते हैं जानते हो कौन सी? जैसे हर एक के दिल में उमंग है, लक्ष्य है कि हम बाप समान बनने वाले ही हैं, बनेंगे नहीं, बनने वाले ही हैं तो जैसे लक्ष्य है, ऐसे अभी बापदादा लक्ष्य के साथ लक्षण भी देखने चाहते हैं। जैसे समान बनने का लक्ष्य है ऐसे ही समान बनने के लक्षण भी हों। अभी लक्ष्य बहुत ऊंचा है लेकिन लक्षण पर विशेष अटेन्शन देना है। समान, जितना बड़ा लक्ष्य उतना ही बड़ा लक्षण हो। अभी कोई-कोई बच्चे लक्षण धारण करना चाहते हैं लेकिन बीच-बीच में फिर भी कह देते हैं, चाहते बहुत हैं लेकिन.... तो यह लेकिन निकल जाए। आपकी चलन और चेहरा दूर से ही जितना बड़ा लक्ष्य है, इतना लक्षण चेहरे से दिखाई दे, चलन से दिखाई दे। जैसे आप पहले देह-अभिमान में थे लेकिन जब देह-अभिमान में थे तो देह-अभिमान की नेचर नेचुरल थी, कभी पुरूषार्थ किया क्या कि देह अभिमान आवे, नेचर नेचुरल देह-अभिमान रहा। आधाकल्प पुरूषार्थ नहीं किया, ऐसे ही अब भी देही-अभिमानी बनने की नेचर नेचुरल है! जब देह-अभिमान की नेचर नेचुरल रही, कभी याद आता है कि देह-अभिमान में आ जाऊं, यह पुरूषार्थ किया? अभी भी देह-अभिमान और देही-अभिमान, तो देही-अभिमानी बनने में भी मेहनत क्यों! क्योंकि बापदादा के पास समाचार आते हैं कि कभी-कभी देह-अभिमान को मिटाने की मेहनत करनी पड़ती है। जब देह-अभिमान नेचुरल रहा तो देही-अभिमान में मेहनत क्यों? तो बापदादा को मेहनत बच्चों की अच्छी नहीं लगती। मेहनत मुक्त बन जाएं और नेचुरल नेचर बन जाए, इसको कहा जाता है लक्ष्य और लक्षण समान। फिर आप देखो बाप समान बनना बहुत सहज और नेचुरल लगेगा। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा इतने बड़े परिवार की जिम्मेवारी होते भी नेचुरल नेचर देही अभिमानी की रही। चाहे बच्चों के ऊपर भी जिम्मेवारी है लेकिन ब्रह्मा बाप के आगे वह जिम्मेवारी क्या लगती है! कोई भी जिम्मेवारी है, मानो ज़ोन की जिम्मेवारी है, या कोई आफीशियल यज्ञ कारोबार की जिम्मेवारी है लेकिन वह जिम्मेवारी ब्रह्मा बाबा के आगे क्या है! ब्रह्मा बाप ने शिवबाबा की मदद से प्रैक्टिकल में दिखाया कि करावनहार करा रहे हैं, हम करनहार बन बाप समान न्यारे और प्यारे हैं। तो बाप समान बनने चाहते तो यह चेक करो कुछ भी चाहे मन्सा, चाहे वाचा चाहे कर्मणा ड्युटीज हैं लेकिन मैं करनहार हूँ, ट्रस्टी हूँ, करावनहार मालिक शिवबाबा है, यह करावनहार का पाठ चलते-चलते भूल जाता है। तो लक्ष्य और लक्षण दोनों को समान बनाना है। अब पुराने साल को विदाई देने के साथ इस लक्ष्य को लक्षण में लाना है। नया साल तो नई बातें। क्या करूं, माया आ जाती है, चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती है यह शब्द वा संकल्प पुराने वर्ष के साथ इसको भी विदाई दो। सिर्फ साल को विदाई नहीं देना। बापदादा ने सुनाया था कि माया भी बापदादा के पास आती है और क्या कहती है? मैं तो समझती हूँ, मेरे जाने का समय है लेकिन कोई-कोई बच्चे आह्वान करते हैं मेरा तो मैं क्या करूं। तो आज विदाई के साथ माया के भिन्न-भिन्न रूप को भी विदाई देनी है। है हिम्मत? हिम्मत है? हाथ उठाओ। विदाई देने की हिम्मत है? पीछे वालों को हिम्मत है? जिसमें हिम्मत हो, वह हाथ उठाओ। तो बाप इस हिम्मत की बहुत पदम-पदम गुणा बधाई देते हैं। क्यों? क्यों बापदादा इस पर जोर दे रहे हैं? क्योंकि आप सभी देख रहे हो दुनिया की हालतें बिगड़ने में शुरू जोर से हो रही हैं और बापदादा का यह महावाक्य कुछ समय से चल रहा है कि अचानक होना है। तो अचानक होना है और अगर बहुत समय का अभ्यास नहीं होगा तो बताओ अचानक के समय अभ्यास की आवश्यकता है ना! अभी-अभी देखो बापदादा ने होम वर्क दिया, 10 मिनट, टोटल 24 बारी 10-10 मिनट का होमवर्क दिया, तो कई बच्चों को मुश्किल हो रहा है। तो सोचो, अगर 10 मिनट का अभ्यास का नहीं हो सकता तो अचानक में उस समय क्या करेंगे? बापदादा जानते हैं कि 24 बारी में कईयों को समय थोड़ा कम मिलता है, लेकिन बापदादा ने ट्रायल की कि 10 मिनट एक ही स्मृति में जब चाहे, जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं, बापदादा यह नहीं कहते अभी भी 10 मिनट करो, अच्छा नहीं हो सकता, जिसको हो सकता है वह करे, अगर नहीं हो सकता है तो 5 मिनट करो, 5 मिनट से 7 मिनट, 6 मिनट, जितना भी बढ़ा सको उतनी ट्रायल करो। बापदादा खुद ही कह रहा है इसमें ऐसी बात नहीं है। अगर 10 मिनट ज्यादा टाइम लगता है तो चलो 8 मिनट करो, 9 मिनट करो, जितना ज्यादा कर सको उतनी आदत डालो क्योंकि बहुतकाल का वरदान प्रैक्टिकल में अभी कर सकते हैं। अगर अभी बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो अभी के बहुतकाल का पुरूषार्थ की जो प्राप्ति है, आधाकल्प की उस बहुतकाल में फर्क पड़ जायेगा। अगर अभी कम समय देंगे, जितना हो सकता है उतना बापदादा ने छुट्टी दे दी है, अगर 5 मिनट से ज्यादा करो, 10 मिनट नहीं हो सकता है तो 7 मिनट करो, 8 मिनट करो, 5 मिनट की भी छुट्टी है। लेकिन अगर कोई भी समय 10 मिनट हो तो अच्छा है। ऐसा समय आयेगा जो आप लोगों को खुद अपने लिए और विश्व के लिए भी किरणें देनी पड़ेगी। इसीलिए बापदादा छुट्टी देते हैं, जितना ज्यादा समय कर सको, उतना प्रैक्टिस करो क्योंकि अभी का बहुत समय भविष्य का आधार है। ठीक है? मुश्किल लगता है, कोई बात नहीं है, अभी तो कोई हर्जा नहीं है और बाप को सुनाया यह बहुत अच्छा किया क्योंकि मानो 10 मिनट बैठ नहीं सको, सोच में ही चला जाए, तो 5 मिनट भी गये, इसीलिए बापदादा कहे कम से कम 5 मिनट से कम नहीं करना। जितना बढ़ा सको उतना बढ़ाओ। ठीक है स्पष्ट हुआ? क्योंकि बापदादा हर एक को बहुत श्रेष्ठ स्वरूप में देखते हैं। बापदादा ने इसकी निशानी हर एक बच्चे को कितने स्वमान दिये हैं। स्वमान की लिस्ट अगर निकालो तो कितनी बड़ी है?
आज बापदादा अमृतवेले चक्कर लगाने गये। क्या देखने गये? कि बापदादा ने स्वमानों की बहुत बड़ी माला दी है। अगर एक-एक स्वमान में स्थित होके उस स्थिति में बैठो, चलो तो स्वमान कहते जाओ और माला घुमाते जाओ तो बहुत मजा आयेगा। स्वमान की लिस्ट रखी है लेकिन एक-एक स्वमान कितना बड़ा है और किसने दिया है! वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी ने एक-एक बच्चे को अनेक स्वमानों की लिस्ट दी है। उसको यूज करो क्योंकि और कोई अथॉरिटी नहीं जो इस स्वमान को आपके कम कर सके। और किस को भी इतने स्वमानों की माला नहीं मिली है। तो बापदादा ने देखा सतयुग में तो राज्य भाग्य मिलेगा लेकिन यह स्वमानों की माला संगमयुग की देन है। बापदादा जब भी बच्चों को देखते हैं तो हर एक बच्चे के स्वमान की स्थिति से देखता है - वाह बच्चा वाह! तो स्वमान की अथॉरिटी में रहो, मैं कौन! कभी कौन सा स्वमान सामने रखो, कभी कौन सा स्वमान सामने रखो और चेक करो तो आज अमृतवेले जो विशेष स्वमान बुद्धि में रखा वह स्वमान खज़ाना है ना, इसको यूज किया! क्योंकि खज़ाना बढ़ने का साधन है जितना खज़ाने को कार्य में लगायेंगे उतना खज़ाना बढ़ता है। तो आज बापदादा देख रहे थे कौन-कौन बच्चा है, किसके पास स्वमान के स्मृति की माला बड़ी थी किसके पास छोटी। जहाँ स्वमान होगा वहाँ देहभान खत्म हो जाता है। तो आज बापदादा ने चक्र लगाया और देखा जैसे स्वमान का खज़ाना है, ऐसे एक-एक शक्ति, एक-एक गुण इस्तेमाल करो उसको, कार्य में लगाओ। तो यह जो प्राबलम होती है माया आ गई, माया आ नहीं जाती लेकिन माया के लिए तो बाबा ने सुना दिया है कि माया कहती है मेरे को आवाह्न करते हैं तब जाती हूँ, ऐसे नहीं जाती हूँ, कोई भी हल्का संकल्प करना माना माया को आवाह्न किया, शक्तियों को छोड़ता है तो माया को आवाह््न किया। चाहते नहीं है लेकिन आ जाती है। बलवान कौन? चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती, तो माया बलवान हुई या आप? तो आज पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नये वर्ष में नया उमंग, नया उत्साह, क्योंकि संगमयुग का गायन है, एक-एक दिन उत्साह भरा हुआ है अर्थात् उत्सव है। तो उमंग-उत्साह है तो हर दिन उत्सव है इसलिए पक्का रखना, राज अपना चलते फिरते भी चार्ट देखना। चेक करना, चेक करेंगे तो चेंज करेंगे ना। चेक ही नहीं करेंगे तो चेंज कैसे करेंगे!
तो आज नये साल के लिए बापदादा का विशेष यही संकल्प है कि हर बच्चा जैसे पुराने वर्ष को विदाई देते हो वैसे माया को विदाई दो। व्यर्थ संकल्प को विदाई दो क्योंकि मैजारिटी यही देखा गया है कि व्यर्थ संकल्प ज्यादा आते हैं। ज्यादा विकारी संकल्प कम हैं, हैं कम लेकिन व्यर्थ जो हैं, उसका नाम निशान समाप्त हो जाए, हर संकल्प समर्थ हो, व्यर्थ नहीं हो क्योंकि व्यर्थ संकल्प में, सिर्फ संकल्प नहीं चलता लेकिन व्यर्थ टाइम भी जाता और बाप समान बनने में दूरी हो जाती है। आपकी चाहना तो है समान बनें, तो हाथ तो उठाया है। लेकिन बापदादा सदा कहता है कि मन का हाथ उठाना, यह हाथ उठाना तो इजी है। तो विदाई देने की हिम्मत है? है हिम्मत? हाथ उठाओ। अच्छा, हिम्मत वाले हैं। बस हिम्मत को कायम रखना। अगर हिम्मत होगी तो जो लक्ष्य रखा है वह हो ही जायेगा क्योंकि बापदादा भी साथ है। बापदादा चाहते हैं कि मेरा कोई भी बच्चा पीछे नहीं रह जाए। हाथ में हाथ देके चले। शिव बाप निराकार है, हाथ नहीं है लेकिन श्रीमत ही उनके हाथ हैं। श्रीमत पर कदम-कदम चलना अर्थात् हाथ में हाथ देके चलना। तो सभी को नये वर्ष की नव जीवन की और नव युग की तीनों की पदम पदमगुणा मुबारक हो।
अच्छा जो इस बारी नये आये हैं वह उठ खड़े हो जाओ। अच्छा। बहुत आये हैं। आधा संगठन तो नया है। तो आपको सभी नये आने वालों को, सारे ब्राह्मण परिवार, बापदादा सबके तरफ से मधुबन आने का मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है। मुबारक के साथ एक बात याद रखना तो अभी कामन पुरूषार्थ का समय गया, अभी समय है तीव्र पुरूषार्थ का, तो आप सभी लेट आये हो लेकिन बापदादा के प्यारे हो। टू लेट के बजाए लेट आये हो, बापदादा खुश है कि फिर भी लक के समय पहुंच गये हो इसलिए जो भी आये हो, बापदादा के प्यारे हो इसलिए चलना नहीं उड़ना। अभी चलेंगे ना तो नम्बर आगे नहीं ले सकेंगे इसीलिए उड़ती कला में चलना। चलना नहीं उड़ना। तो उड़ना तो फास्ट होता है ना। तो उड़ती कला से आगे जा सकते हो। यह मार्जिन है। इसी को ही तीव्र पुरूषार्थ कहते हैं। तो क्या करेंगे? उड़ेंगे। उड़ेंगे? अच्छा। जो भी बातें ऐसी आवे जो बेकार हैं, आनी नहीं चाहिए लेकिन आ जाती हैं क्योंकि पेपर तो होना है ना! तो क्या करेंगे? अगर ऐसी कोई बात आवे तो बापदादा को दे देना। देना आता है ना! लेना तो आता है लेकिन देना भी आता है ना। छोटे बन जाना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना वह क्या करते हैं कोई भी चीज़ पसन्द नहीं आती है तो क्या करते हैं? मम्मी यह आप सम्भालो। ऐसे ही छोटे बनके बाप को दे दो। फिर अगर आवे, आयेगी, बापदादा ने देखा है कि बहुत समय रखी है ना, तो छोडने से फिर आती भी है लेकिन अगर आवे भी तो यही सोचना कि दी हुई चीज़ यूज की जाती है क्या! देना अर्थात् आपके पास आई, तो अमानत आई। आपने तो दे दी ना! तो आपकी रही नहीं। अमानत में ख्यानत नहीं करना चाहिए। आपको मदद मिलेगी तो यह मेरी नहीं है, यह अमानत है। मैंने दे दी इसमें फायदा हो जायेगा। क्योंकि समय कम है और पुरूषार्थ आपको तीव्र करना है। तो जो भी नये आये हैं बापदादा उन्हों को लक्की और लवली कहते हैं, जो आ तो गये अभी मेरा बाबा कहा है ना। हाथ उठाओ जो कहते हैं मेरा बाबा। जो भी आये हैं, मेरा बाबा कहते हैं। तो जब मेरा बाबा कहा तो और कोई मेरा है क्या! बाबा ही मेरा है ना। तो बाप पर अधिकार रख वरके अमानत समझके बाप को दे दो। अपने पास आने नहीं देना। अच्छा है। फिर भी बाप को खुशी है, बाप को पहचान तो लिया। अभी सिर्फ यह ध्यान पक्का-पक्का रखना, उड़ना है, चलना नहीं है उड़ना है। अच्छा, बहुत हैं। अच्छा ब्राह्मणियाँ जो हैं क्लास टीचर्स, उन्हों को भी अपने नये भाई-बहिनों के ऊपर क्षमा करनी है। हर सप्ताह इन्हों का हालचाल पूछते रहना, कोई प्रॉबलम तो नहीं है! और कोई भी प्रॉबलम हो तो सुना देना, उसका निवारण ले लेना। छोड़ नहीं देना। आया और गया, दिल में रखना नहीं। अच्छा। सारे परिवार की भी मुबारक है।
सेवा का टर्न गुजरात ज़ोन का है:- (8 हजार गुजरात के हैं) बापदादा ने पहले भी कहा था गुजरात अर्थात् गुजर गई रात। तो गुजरात में सदा ही आगे से आगे बढ़ने और बढ़ाने का उमंग-उत्साह रहता भी है और रहना भी चाहिए क्योंकि गुजरात में भी, महाराष्ट्र में भी हैं लेकिन गुजरात में भी संख्या या सेन्टर कम नहीं हैं। तो गुजरात में सेवा तो चारों ओर है, गीता पाठशालायें भी बहुत हैं लेकिन अभी रहा हुआ काम क्या है? अभी गुजरात को हर एक सेन्टर, गीता पाठशाला की बात छोडो, अपने-अपने सेन्टर के वारिसों की लिस्ट निकालनी चाहिए। वारिस, स्टूडेन्ट नहीं वारिस उनकी लिस्ट गुजरात में सबसे बड़ी होनी चाहिए क्योंकि बापदादा समय की सूचना तो दे रहे हैं तो समय अनुसार अभी नये वर्ष में यह भी सेवा में अटेन्शन देना है। सभी ज़ोन वालों को भी कहते हैं कि यह ज़ोन में लिस्ट निकालो, कि सभी ज़ोन में से वारिसों की लिस्ट में नम्बरवन कौन है? क्योंकि अभी गोल्डन एज के लिए राजाई तैयार करनी है ना! तख्त पर तो लक्ष्मी नारायण ही बैठेंगे, एक ही बैठेंगे लेकिन जो वहाँ की राज्य अधिकारी सभा है, वह भी तो बनानी है ना। रॉयल प्रजा भी बनानी है, साधारण प्रजा भी बनानी है। तो ऐसे वारिस बनाओ जो सम्बन्ध-सम्पर्क में अभी भी नजदीक हों और वहाँ भी नजदीक हों। जो वारिस होगा उसकी निशानी क्या होगी? एक तो वारिस अर्थात् हर श्रीमत पर चलने वाले। बाप ने कहा और बच्चे ने किया। हर कार्य में चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध सम्पर्क में फैमिली लाइफ वाला हो, आने वाला स्टूडेन्ट नहीं फैमिली नेचर वाला हो। फैमिली का अर्थ होता है एक दो को जानना और एक दो को समझकर चलना, परिवार में भी ठीक हो और 4 निश्चय जो सुनाये थे, 4 ही निश्चय में जो वारिस होगा वह प्रैक्टिकल लाइफ में हो। सारे परिवार का प्यारा होगा, कोई का प्यारा कोई का नहीं, नहीं। सारे परिवार का प्यारा होगा। तो ऐसे वारिस क्वालिटी अभी वह चाहिए। प्रजा तो बनती जायेगी, साधारण प्रजा। लेकिन अभी नजदीक वाले वारिस क्वालिटी बनाओ। राजधानी तो यहाँ ही तैयार करनी है ना। इसलिए इसमें कौन सा ज़ोन वारिस क्वालिटी में नम्बरवन है, यह इस वर्ष में देखना है और दूसरा काम दिया था वर्ग वालों को, एक वारिस बनाना और दूसरा जो सम्बन्ध सम्पर्क में हैं उन्हों को माइक बनाना। तो माइक और वारिस यह दोनों बनाना, अभी समय है। जैसा समय बीतता जायेगा तो उसमें बहुत समय का पुरूषार्थ कम हो जायेगा। इसलिए गुजरात कमाल करेगा ना! अच्छा है। गुजरात में टीचर्स भी बहुत हैं। टीचर्स हाथ उठाओ। देखो कितनी टीचर्स हैं तो एक-एक सेन्टर एक-एक वारिस तो निकालो और पुराने सेन्टर हैं। बापदादा के डायरेक्ट इशारे से गुजरात की सेवा आरम्भ हुई है तो बापदादा की दृष्टि से गुजरात हुआ है। वह भी तो काम करेगी ना। हैण्डस अच्छे हैं। कर सकते हैं। करने वाले हैं और कर भी सकते हैं। तो सेन्टर ने प्रोग्राम तो बहुत किये हैं और अच्छे करते हैं। प्रोग्राम अच्छे किये हैं अभी वारिस में नम्बरवन जाओ। ठीक है! करेंगे? टीचर्स हाथ उठाओ। तो इस वर्ष में, वर्ष के अन्दर जितनी टीचर हैं उतने वारिस मधुबन में लायेंगे। लायेंगे? हाँ आज तो गुजरात का टर्न है इसलिए उसको कह रहे हैं लेकिन बापदादा सभी ज़ोन को कह रहा है। नम्बरवन कौन जाता है उसको प्राइज देंगे। जो वन नम्बर जायेगा उसको अच्छी प्राइज देंगे। सभी ज़ोन वाली जो बैठी हैं ना वह हाथ उठाओ। और कौन है? भाई भी उठाओ। ठीक है। उठाया। अच्छा है। अभी देखेंगे पहला नम्बर कौन जाता है। क्वालिटी भी देखेंगे। वारिस तो बनाया लेकिन उसकी क्वालिटी क्या है! क्योंकि बापदादा अभी समय की सूचना बार-बार दे रहे हैं। फिर नहीं कहना हमने तो समझा अभी टाइम पड़ा है क्योंकि अपने को भी सम्पन्न बनाना है, सेवा में भी आगे जाना है दो काम हैं। एक पुरूषार्थ, पुरूषार्थ में एक याद और दूसरी सेवा दोनों में नम्बरवन हो। तीसरा स्वभाव संस्कार उसमें परिवर्तन। यह नहीं कोई कहे यह है तो अच्छा, है तो अच्छा.. नहीं कहे। है अच्छा। इसको कहा जाता है अच्छे ते अच्छा क्योंकि हालतें बदलती जायेंगी। आप चाहते हुए भी सेवा नहीं कर सकेंगे। बातें ऐसी होंगी जो व्यर्थ संकल्प चला देंगी। इसलिए तीव्र पुरूषार्थ, धरनी पर पांव नहीं हो, उड़ते रहो। फरिश्ते के पांव धरती पर नहीं दिखाते हैं। तो स्थूल पांव नहीं लेकिन यह स्थिति के पांव। तो गुजरात बापदादा के मधुबन के सहयोगी बहुत हैं। नजदीक हैं ना। तो कभी भी कोई भी बात हो तो पहले किसको बुलावा होता है? आते हैं ना फोन, गुजरात से इतने भेज दो। अच्छा है। नजदीक का फायदा है, प्राप्ति भी है। इसलिए गुजरात के जो रेग्युलर स्टूडेन्ट हैं उन सबको बापदादा की एक-एक श्रीमत पर चलने वाला सैम्पुल बनना है। कोई भी सेन्टर पर जाये तो ऐसे दिखाई दे कि यह सब बापदादा के नजदीक वाले रत्न हैं। ठीक है! स्टूडेन्ट समझते हैं हाथ उठाओ, ऐसा, कोई भी श्रीमत कम नहीं हो। ठीक है हिम्मत वाले हैं। अच्छी हिम्मत है।
ज्युरिस्ट, कलचरल और सिक्युरिटी विंग:- अच्छा है तीनों ही विंग अपना-अपना कार्य अच्छा बढ़ा रही हैं। बापदादा ने देखा है कि हर एक को उमंग रहता है कि हमको करना है लेकिन अभी जो बापदादा ने काम दिया है कि ऐसे माइक तैयार करो जो सभा में एक एक्जैम्पुल दिखाये, जो वायुमण्डल है तो ब्रह्माकुमार बनने से कारोबार नहीं कर सकेंगे, वह अनुभव सुनने से प्रैक्टिकल देखे कि यहाँ एक नहीं है, एक वर्ग के भी अनेक हैं। तो प्रैक्टिकल अनुभवी देखने से उमंग आता है और सहज भी लगता है कि हम भी ऐसे कर सकते हैं। तो विंग में रेग्युलर स्टूडेन्ट बनाने की सेवा बहुत अच्छी हो सकती है। जितनी भी आपने सेवा की है उससे रेग्युलर स्टूडेन्ट कितने बने हैं? जब से वर्गों की सेवा शुरू हुई है तब से लेके अब तक रिजल्ट निकालो कि हर एक वर्ग वालों के स्टूडेन्ट रेग्युलर कितने बने हैं! और कौन सी क्वालिटी वाले बने हैं? क्योंकि काफी समय वर्ग की सेवा चली है और करते सभी प्यार से हैं। क्योंकि चांस मिला है, अलग-अलग सेवा करने का। इसीलिए अभी यह रिजल्ट निकालो। कनेक्शन वाले कितने हैं? रेग्युलर कितने हैं? जो रेग्युलर होंगे उनका तो चार्ट अच्छा ही होगा। तो हर एक वर्ग वाले यह रिजल्ट निकाले, कभी कभी आने वाले तो होते हैं। कोई फंक्शन में आ गये, कोई प्रोग्राम में आ गये लेकिन बाप के बने कितने? क्योंकि यह कार्य चलता ही रहता है तो रिजल्ट भी तो निकलनी चाहिए। अच्छा है। यह तीनों ही विंग बापदादा ने देखा है कि उमंग उत्साह से आपस में मीटिंग भी करते हैं बीच-बीच में उत्साह दिलाने के पत्र व्यवहार भी करते हैं और रिजल्ट तो होगी ही क्योंकि हर वारी हर वर्ष बापदादा भी डायरेक्शन देते रहते हैं तो अच्छा है सेवा का चांस लेते हैं। सब सन्तुष्ट हैं? तीनों के हेड हाथ उठाओ। अच्छा। तो आपके विंग में जो भी आते हैं, मीटिंग करते हैं, प्रोग्राम बनाते हैं, आपस में मिलते रहते हैं तो सभी उमंग उत्साह में हैं?जो प्लैन बनता है, मानो मीटिंग में प्रोग्राम बना लेकिन जो सभी ज़ोन हैं उसमें जो आपका प्लैन बना, वह आपके विंग का मेम्बर उसी अपनी एरिया में प्रैक्टिकल में लाते हैं, यह समाचार आप लेते रहते हो? क्योंकि विंग का बड़ा आफिस तो एक सेन्टर पर होता है लेकिन सेवा सारे जोन में होनी है, सिर्फ एक दो में नहीं, जो मेम्बर हैं वह अपने स्थान में तो कराते होंगे लेकिन जिस सेन्टर के मेम्बर नहीं हैं वहाँ भी आपने जो प्लैन बनाया वह चला क्योंकि वर्ल्ड की बात है ना यह। तो यह भी अटेन्शन रखो रिजल्ट मांगो, एक-एक सेन्टर ने प्रैक्टिकल में लाया और मुश्किल क्या है, नहीं लाया तो क्या मुश्किल है? उसको विंग वाले सैलवेशन दें। जैसे अभी प्रोग्राम किया, एक साथ किया तो उसका प्रभाव अलग होता है ऐसे एक ही प्रोग्राम विंग का सभी जगह चले तो वह नाम बाला हो जायेगा। ऐसे रिपोर्ट लो और सभी शहरों में हर एक विंग का काम चलना चाहिए। तभी तो नाम बाला होगा ना। बाकी बापदादा खुश है। मेहनत करते हैं, तीनों ही अपना-अपना नाम समझना। काम कर रहे हैं लेकिन फैलाओ। हर स्थान से ऐसा कोई नामीग्रामी निकले। उसको उमंग दिलाना पड़ेगा। ठीक है ना! अच्छा।
60 देशों से 650 डबल विदेशी भाई बहिनें आये हैं:- पहले फॉरेन का यूथ ग्रुप उठे। अच्छा है। फॉरेन में यूथ ग्रुप सेवा कर रहा है। यह बापदादा ने समाचार भी सुना है और बापदादा को अच्छा लगा है कि ऐसे विशेष यूथ फॉरेनर्स तैयार हो जो एक दिन दिल्ली में सारे यूथ नहीं लेकिन थोड़े-थोडे फॉरेन के थोड़े यहाँ के ऐसे ग्रुप बनाके दिल्ली में प्राइम मिनिस्टर या जो बड़े मिनिस्टर हैं उनसे मिलने जावें, वह प्रैक्टिकल देखें तो फॉरेन वाले भी यूथ बदल रहे हैं। इन्डिया वाले भी बदल रहे हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को अभी यूथ की प्रॉबलम ज्यादा है तो ऐसे समय पर अगर गवर्मेन्ट के पास प्रैक्टिकल देखे, एक्जैम्पुल देंखे तो वह समझेंगे और गवर्मेन्ट का जो विशेष वर्ग का मिनिस्टर है उस वर्ग वाले उनके पास खास जाके मिले तो वह समझे कि ऐसे दु:ख और अशान्ति के वायुमण्डल में, एक तरफ दु:ख अशान्ति दूसरे तरफ तमोगुणी वायब्रेशन, दोनों के बीच यह यूथ परिवर्तन कर चल रहा है तो उनका संस्था के तरफ अटेन्शन जायेगा। हर वर्ग अपने मुख्य जो मिनिस्टर हों, प्राइममिनिस्टर नहीं उसके वर्ग का मिनिस्टर, कम से कम उसके पास छोटा ग्रुप ही जाये जो समाचार सुनावे। सारे मिनिस्ट्री में यह पता पड़ जायेगा तो यह सब वर्गो की सेवा करते हैं। अच्छा है। बापदादा भी यूथ ग्रुप में परिवर्तन देख खुश होते हैं। लेकिन ऐसे यूथ जायें जो स्वयं अपने से सन्तुष्ट हों। प्रैक्टिकल लाइफ में हो। भले कोई सुनाये नहीं सुनाये लेकिन बाप का नियम है कि एक्जैम्पुल वह बनें जो पहले खुद में सन्तुष्ट हो। और यूथ प्रॉबलम अपनी हल करने के लिए जो भी निमित्त हैं उनकी मदद लें। कुछ भी हो अपनी कमज़ोरी मिटाना ही है। ऐसे यूथ वायबे्रशन फैला सकते हैं। आवाज फैला सकते हैं। जैसे जैसे आवाज फैलेगा वैसे वैसे इस कार्य का दुनिया में प्रभाव पड़ेगा। तो ग्रुप वाले जो ग्रुप निमित्त बने हैं उनको बहुत अपनी सम्भाल करनी है, पूरा एक्जैम्पुल बनना है। ठीक है ना। सब यूथ ठीक हैं। हाथ उठाओ। तो बापदादा आप सभी को देखके बहुत-बहुत खुश है। ऐसे एक्जैम्पुल बहुत कार्य करेंगे। अभी तो आप जायेंगे फिर आपको खुद निमन्त्रण देंगे। अच्छा है। बढ़ रहे हो और बढ़ते चलो, बापदादा की यही सारे यूथ, इन्डिया के यूथ या फॉरेन के यूथ दोनों में बहुत बहुत शुभ आशायें हैं। बधाई भी है और आशायें भी हैं। अच्छा।
डबल विदेशी छोटे बच्चे:- यह एक ही ग्रुप है बच्चों का। (बच्चों ने गीत गाया - छोटे-छोटे फूल हैं हम और किसी से नहीं हैं कम) सभी बच्चे फूल बनकर ही रहते हो ना। जो बाप की श्रीमत है उस पर चलते हो? जो चलता है वह हाथ उठाओ। अच्छा। अच्छा है लक्की बच्चे हो जो छोटेपन में ही बाप का मिलन हो गया। और सभी आपको देख खुश हो रहे हैं। ऐसा भी दिन आयेगा जो बड़े बड़े लोग, बड़ी बड़ी कम्पन्नी वाले आप बच्चों को बुलायेंगे, ऐसे तकदीरवान बच्चे कौन हैं जो ऐसे बने हैं इसीलिए हर बच्चा अपनी धारणायें पक्की रखना। कभी भी कोई धारणा भूलना नहीं क्योंकि आप बापदादा और लौकिक बाप तीन के बच्चे हो। तो कमाल दिखायेंगे ना। तो सभी बहुत अच्छी कमाल करके दिखाना। अच्छा।
सभी डबल विदेशी भाई बहिनों से:- अच्छा, सिन्धी ग्रुप भी आया है, बहुत अच्छा। प्यार है ना बाबा से। बाप से प्यार है ना बहुत। बाप भी याद करते हैं क्यों? क्यों याद करते हैं? सिन्ध में ही बाप आया ना! तो जिस देश में आया वहाँ की सौगात तो होनी चाहिए ना। इसीलिए बाप कहते हैं कि सिन्धी ग्रुप ऐसा कोई कार्य करके दिखावे जो अनेक सिन्धी आत्माओं की सेवा के निमित्त बनें।
बापदादा को अच्छा लगता है कि हर सीजन में फॉरेनर्स मधुबन के श्रृंगार बनते हैं। अच्छा उमंग उत्साह है, 60 देशों से आये हैं तो इतनी सेवा है ना। और जो भी जिस देश में हैं वहाँ सेवा के बिना तो रह नहीं सकते। जो भी मिलता होगा उसको क्या सुनायेंगे? और बातों में तो जायेंगे नहीं तो इतने देशों में सेवा हो रही है ना। अभी तो औरों को सन्देश देने के लिए फॉरेनर्स के अच्छे-अच्छे ग्रुप बन गये हैं। भिन्न भिन्न कोर्स भी कराते हैं। तो बापदादा ने देखा जैसे भारत वाले सेवा फैला रहे हैं ऐसे फॉरेनर्स भी सेवा फैलाते रहेंगे तो सारे विश्व में बाप का सन्देश तो पहुंच जायेगा। फॉरेन वाले भी अपनी अपनी एरिया में कोशिश कर रहे हैं, किया भी है तो आस पास में कोई न कोई प्रोग्राम बनाके भी सन्देश दे दो। तो बापदादा को अच्छा लगता है जो सेवा में भिन्न- भिन्न प्रोग्राम करते रहते हैं, सन्देश देते रहते हैं वह हाथ उठाओ। सेवा करते रहते हैं, करते हैं ना! क्यों? बाप कहते हैं मेरा एक-एक बच्चा पैगाम देने वाला पैगम्बर है। पैगाम तो देते हो ना! तो हर बच्चा पैगम्बर है, पैगाम देने वाला है। किसी से भी मिलेंगे तो क्या बात करेंगे? कम से कम अनुभव तो जरूर सुनायेंगे ना। तो सन्देश तो दिया ना! तो बापदादा को भी अच्छा लगता है। और फॉरेनर्स को बापदादा खास क्यों याद करता है? करते तो सभी बच्चों को हैं लेकिन फॉरेनर्स को खास भी याद करता है क्यों याद करता? कि यही एक ब्रह्माकुमारियों की स्टेज है जहाँ एक ही स्टेज पर सब भिन्न-भिन्न धर्म वाले, भिन्न-भिन्न डे्रस वाले, एक ही डे्रस वाले बन स्टेज पर बैठते हैं। अभी आप किस ड्रेस में बैठते हैं? सफेद ड्रेस में बैठते हैं, तो धर्म मुस्लिम भी क्रिश्चियन भी, बौद्धी भी सब एक स्टेज पर बैठते हैं और एक परिवार के बन गये। यह विशेषता बहुत अच्छी है। सभी सेवा करते हो ना! अभी नया वर्ष आ रहा है ना तो नया वर्ष का फायदा उठाना, अपने अपने कनेक्शन वालों को यह बात सुनाना, गिफ्ट देना, कहना कि हमारी गिफ्ट न्यारी है। हर एक सम्बन्धी को, कनेक्शन वाले को मुबारक देने जाना और गिफ्ट देना कोई न कोई गुण या शक्ति की, कहना हम आपको सबसे न्यारी गिफ्ट देने आये हैं। इस गिफ्ट से आपका वर्तमान और भविष्य बहुत अच्छा बन जायेगा उनको ऐसी अच्छी अच्छी बातें सुनाना। क्योंकि नया वर्ष एक चांस है सेवा करने का। अच्छा बापदादा खुश है, फॉरेन सेवा पर खुश है। संगठन भी अच्छा करते हैं। अभी और आगे बढ़ते जाना। हर कार्य में आगे से आगे बढ़ते रहना। अच्छा। पीछे बैठने वाले उठो।
पीछे बैठने वालों को बापदादा वरदान देते हैं मधुबन में मेले में आये हो ना। तो मधुबन के मेले में जो भी आये हैं, पीछे बैठने को मिला है तो ऐसे नहीं समझना कि हम पीछे वाले हैं, जो पीछे बैठे हैं ना वह बाप के दिल में हैं। (आने वाले 22 हजार से ऊपर हैं, टोटल 25 हजार का ग्रुप है, बाहर सब जगह बैठे हैं) भले आये, मौसम को नहीं देखा, जगह को नहीं देखा, सर्दी को नहीं देखा, टेन्ट में भी सोये हैं। जो टेन्ट में सोये हैं ना, बापदादा सभी टेन्ट में खास चक्र लगाने आया था। पीछे बैठे हुए को बापदादा अपने दिल में समाते हैं। इसलिए बापदादा का जो भी जहाँ बैठे हैं वहाँ उन्हों को बापदादा सामने नयनों में समाकर यादप्यार भी दे रहे हैं, मुबारक भी दे रहे हैं। अभी तो दिनप्रतिदिन अपना ब्राह्मण परिवार बढ़ना ही है। तो बापदादा भी परिवार को देख खुश होते हैं, वाह ईश्वरीय परमात्म परिवार वाह! अच्छा।
आज 12 बजे तक बैठना है। साथ बैठने का चांस है।
अभी चारों ओर के देश विदेश के हर एक बाप के प्यारे, बाप के लाडले, बाप के सिकीलधे बच्चों को विदाई और बधाई। और बापदादा ने सुनाया कि पुराने वर्ष के साथ पुराने संस्कार को भी विदाई देने वाले, स्वभाव को भी विदाई देने वाले महावीर बच्चे, हर कदम में पदमों की कमाई करने वाले बापदादा जो सदा स्वमान देते हैं, उस स्वमान की स्थिति में रह अनुभव करने वाले, हर एक बच्चे को बापदादा ऐसे रूप में देखते कि यह एक एक बच्चा 21 जन्म के वर्से के अधिकारी, सारे कल्प में 21 जन्म के अधिकारी बनने का वर्सा आप बच्चों को ही मिलता है। तो ऐसे श्रेष्ठ अधिकारी चारों ओर के बच्चों को बापदादा, बाप शिक्षक और गुरू के रूप से तीनों ही रूपों से यादप्यार और नमस्ते दे रहा है।
दादी रूकमणी से:- अच्छा है शरीर को चलाना आता है। मन की जवानी है, मन जवान है। अच्छा है। लेकिन सेवा की साथी तो बनकर रही है ना। अच्छा।
परदादी से:- अच्छा है इसको भी चलना अच्छा आता है। चलाने वाले भी अच्छे हैं चलना भी अच्छा आता है।
तीनों भाईयों से:- नये वर्ष में कुछ नया करके दिखायेंगे ना। (नये वर्ष में क्या नवीनता करना है?) एक तो परिवार को अपनी स्थिति में पावरफुल बनाने के प्लैन और दूसरा सेवा में नये नये प्रकार के, जैसे फंक्शन किया, यह भी एक तरीका हुआ लेकिन अभी दूसरे प्रकार से कोई ग्रुप-ग्रुप को उन्हों का बड़ा संगठन करके जैसे वकील है, जज है, उनके ग्रुप को अलग सारे ज़ोन को इकठ्ठा करे एक बड़े स्थान पर और हों अलग-अलग वर्ग के लेकिन ज़ोन वाइज हर वर्ग के इकठ्ठे हो। ऐसा बड़ा संगठन, भले टेंट लगाओ बड़े स्थान पर लेकिन ऐसा-ऐसा एक एक ग्रुप की रिजल्ट निकालो और उनका कनेक्शन जोड़ो कि इसके बाद आपको क्या करना है। भाषण सुनकर चले जावें नहीं, लेकिन भाषण के बाद आप जितने भी चाहें यह यह कर सकते हो और उनका प्रोग्राम बनाओ कि कनेक्शन में रहें, फोन द्वारा कनेक्शन रखें, लिखापढ़ी द्वारा रखें, कनेक्शन उसका बढ़ता जाए। एक एक प्रोग्राम बड़े-बड़े स्थान पर हो। कहाँ वकीलों का रखो, कहाँ नेताओं का रखो। ऐसे बड़े-बड़े स्थान पर ग्रुप को नजदीक लाओ, मिक्स ग्रुप भी हो। दोनों प्रकार का कर सकते हो, एक वर्ग का ग्रुप होता है तो सबका अटेन्शन जाता है। मिक्स करने से अटेन्शन कम जाता है। दोनों करके देखो। एक जगह वह करो, एक जगह वह करो दोनों की रिजल्ट देखो फिर आगे का प्रोग्राम बनाओ।
ओमेक्स कम्पन्नी के चेयरमैन भ्राता रोहतास गोयल तथा उनके परिवार से:-
जैसे बिल्डिंग का काम सफल हो रहा है ना, ऐसे यह सेवा का काम भी सफल करना। जहाँ भी जाओ वहाँ सन्देश दे दो। जाना तो है ही तो सन्देश तो दे सकते हो। सेन्टर्स की बहनें कोर्स करावे लेकिन आप सन्देश दो। तो आपको जो अनुभव हुआ है, वो अनुभव सुनाओ। आप कनेक्शन रखो और दूसरों का कनेक्शन जुडवाओ। अच्छा है। सभी मिलके सन्देशवाहक बनो, जायेंगे सेन्टर पर। एड्रेस दो, फोन पर कनेक्शन रखो बस। पैगम्बर बनो, पैगाम दो। सभी अच्छे हैं। सभी सेवा कर सकते हैं।
सभी अच्छे हैं, उमंग उत्साह में हैं उन्हों को सन्देश देकर उमंग दिलाओ। दु:खी हैं उन्हों को सुख का सन्देश दो। देखो, यह आयु में भी अनुभवी है तो बहुत सेवा कर सकते हैं।
2009 की विदाई 2010 की बधाई - रात्रि 12 बजे के बाद:-
सभी ने हैपी न्यु ईयर कहा, लेकिन हम आप सभी के लिए सदा हैपी है, आज की दुनिया के हिसाब से हैपी न्यु ईयर किया लेकिन संगमयुग का हर दिन हमारा उत्सव है। सदा उत्सव रहता है क्योंकि उत्साह रहता है। संगमयुग का हैपी संगमयुग है। तो आप सभी को बहुत-बहुत-बहुत परिवर्तन की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। जैसे नया वर्ष है वैसे नये संस्कार, पुराने संस्कार को विदाई और नये संस्कार का आगमन इसीलिए सदा ही हर्षित है और सदा ही हर्षित रहेंगे, हमारे लिए आपके लिए हर वर्ष कल्याणकारी है, आगे बढ़ने बढ़ाने वाला है इसलिए सदा हैपी, हैपी, हैपी।
18-01-11 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘ब्रह्मा बाप समान जीवन में रहते जीवनमुक्त स्थिति की मजा लो स्नेह की सौगात मनजीत जगतजीत बनकर दो’’
आज का दिन विशेष ब्रह्मा बाप के अव्यक्त होने का स्मृति का दिन है। सभी बच्चों के नयनों में ब्रह्मा बाप का स्नेह समाया हुआ है। आज चार बजे से भी पहले बच्चों का स्नेह वतन में पहुंच गया। ब्रह्मा बाप से मिलन मनाने और स्नेह की अपने दिल के स्नेह की निशानियां मालायें ब्रह्मा बाप के पास पहुंच गई। हर एक माला के खुशबू में बच्चों का स्नेह समाया हुआ था। हर एक बच्चे के नयन और मुस्कराहट दिल की बातें बोल रही थी। ब्रह्मा बाप भी हर एक को स्नेह का रिटर्न दे रहे थे। बाप देख रहे हैं कि अभी भी हर बच्चा नयनों की भाषा में अपने दिल का स्नेह दे रहे हैं क्योंकि यह परमात्म स्नेह हर बच्चे को सहज बाप का बनाने वाला है। यह अलौकिक स्नेह मेरा बाबा के अनुभव से अपना बनाने वाला है। यह स्नेह बाप के खज़ानों का मालिक बनाने वाला है क्योंकि बच्चों ने कहा मेरा बाबा तो मेरा बाबा कहना और सर्व खज़ानों के मालिक बनना। यह स्नेह देह का भान सेकण्ड में भुलाकर देही अभिमानी बना देता है। सिवाए बाप के और कुछ भी आत्मा को आकर्षित नहीं करता। इस दिन का बहुत बड़ा महत्व है। सिर्फ स्मृति दिवस नहीं लेकिन समर्थी दिवस है क्योंकि इस दिन बाप ने बच्चों को विश्व सेवा के लिए स्वयं करावनहार बन बच्चों को करनहार बनाने का तिलक दिया। सन शोज फादर का करनहार निमित्त बनाया। सेवा में सफलता का साधन स्वयं करावनहार बना और बच्चों को करनहार बनाया क्योंकि सेवा में सफलता का साधन मैं करनहार हूँ करावनहार करा रहा है यह स्मृति वा यह स्थिति बहुत आवश्यक है क्योंकि 63 जन्म की स्मृति मैं पन देह अभिमान में ले आती है। करावनहार करा रहा है मैं निमित्त करनहार हूँ इस स्मृति से ही अपने को निमित्त समझने से देह अभिमान समाप्त हो जाता है। तो बच्चों को इसीलिए करनहार बनाया स्वयं करावनहार बनें। करनहार बनने से स्वत: ही निमित्त हैं निर्माण बन जाते हैं। अभी भी बापदादा बच्चों को सेवा में निमित्त बन करने के कारण बाप ने देखा कि जो सेवाधारी हैं उन्हों के मस्तक में सेवा का फल सितारा चमक रहा है। मैजारिटी बच्चों की सेवा को देख बापदादा खुश है इसलिए ऐसे बच्चों को विशेष ब्रह्मा बाप वाह बच्चे वाह! कहके मुबारक दे रहे हैं।
ब्रह्मा बाप विशेष खुश भी हो रहे हैं और आगे भी सेवा को निमित्त बन आगे बढ़ाने के लिए मुबारक दे रहे हैं। अभी भी ब्रह्मा बाप बच्चों को आप समान फरिश्ता स्थिति में रहने के लिए इशारे दे रहे हैं। बापदादा ने देखा है कि बच्चों का अटेन्शन है कि सदा जैसे ब्रह्मा बाप जीवन में रहते जीवनमुक्त थे इतनी जिम्मेवारी होते भी इतने बड़े परिवार को सम्भालना सभी को योगी जीवन वाला बनाना इतनी सेवा की जिम्मेवारी सम्भालना सेवा में सदा आगे बढ़ाना सब कुछ जिम्मेवारी होते भी जीवनमुक्त के मजे में रहा इसलिए भक्ति मार्ग में ब्रह्मा का आसन कमल आसन दिखाते हैं। जीवनमुक्त बन अभी जीवनमुक्त का मजा लिया और आप सभी बच्चों को भी ऐसा ही बनाया। अभी भी आप बच्चों को फरिश्ता बनने की भिन्न-भिन्न युक्तियां बताए आप समान बनाने चाहते हैं।
बापदादा ने देखा लक्ष्य हर बच्चे का अच्छा है कोई से भी पूछते हैं आपका लक्ष्य क्या है तो क्या कहते हो? याद है क्या कहते हो? बाप समान बनना ही है। तो बाप समान क्या बनेंगे? इसी जीवन में जीवनमुक्त जीवन का सैम्पुल बनेंगे। बापदादा ने देखा है जो होमवर्क देते हैं उसमें अटेन्शन तो देते हैं अनुभव भी करते हैं लेकिन सदा नहीं करते हैं। अभी भी जो काम दिया था उसकी रिपोर्ट कई बच्चों ने पुरूषार्थ कर एक-एक मास अटेन्शन दिया है। कई जोन की रिपोर्ट एक मास की रिजल्ट में अच्छी भी आई है। जिन्होंने रिपोर्ट भेजी है जिस जोन वालों ने भेजी है उसको बापदादा वाह बच्चे वाह! कह करके मुबारक दे रहे हैं लेकिन बापदादा अभी क्या चाहता है? अभी बापदादा हर बच्चे से यही चाहता है कि अभी कभी-कभी ठीक रहते हैं लेकिन बाप सदा चाहता है। योगी भी अच्छे बने हैं लेकिन सदा योगी बनाने चाहते हैं। आजकल बापदादा ने बच्चों को काम भी दिया था सदा रहने के लिए हर घण्टे अपने ऊपर कोई न कोई युक्ति रखो जो कभी-कभी को बदल सदा शब्द आ जाए। अभी बापदादा यही चाहते हैं जैसे कहावत है मन जीते जगतजीत मन को जो संकल्प दो वही करे। क्यों? जैसे और कर्मेन्द्रियां जब चाहो जैसे चाहो वैसे करती हैं ना! ऐसे ही मन को भी जो आर्डर करो वही करे। अभ्यास करते हो लेकिन कभीव भी नहीं भी करते हैं। बापदादा अभी यही चाहते हैं कि मन को शक्तियों की लगाम से जैसे चलाने चाहो वैसे चलाओ। जो गायन है मन जीते जगतजीत वह किसका गायन है? आप बच्चों का ही तो गायन है। हर कल्प किया है तभी गायन है क्योंकि जैसे और कर्मेन्द्रियों को मेरी कहते हो वैसे ही मन को भी मेरा कहते हो। मेरा कहना अर्थात् मालिक बनो। मन में जो संकल्प करने चाहो जितना समय वह संकल्प करने चाहो वह बंधा हुआ है क्योंकि मेरा है। तो बापदादा इस स्नेह के दिन यही होमवर्क देने चाहते हैं कि जो संकल्प करने चाहो वही चले अगर आप शुद्ध संकल्प करने चाहते हो तो व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्प व्यर्थ को खत्म कर दे। चाहो योग लगाना और संस्कार के कारण व्यर्थ संकल्प चलें या योग की सिद्धि नहीं मिले यह कन्ट्रोल होना चाहिए। अगर एक घण्टा योग लगाने चाहते हो तो मन डिस्टर्ब नहीं करे। आत्मा मालिक है मन मालिक नहीं है मन तो आत्मा का साथी है। तो साथी को प्यार से आर्डर करो मनजीत बनो क्योंकि बापदादा के पास बहुत बच्चों का समाचार आता है - व्यर्थ संकल्प समय प्रति समय आते हैं। नहीं चाहते हैं तो भी आते हैं। तो क्या यह मालिक कहेंगे! तो ब्रह्मा बाप से स्नेह है ना तो बाप आज स्नेह में अपने दिल की चाहना सुना रहे हैं कि अभी मनजीत जगतजीत बनना ही है। तो ब्रह्मा बाप को यह स्नेह की सौगात देंगे? स्नेह में क्या दिया जाता है? गिफ्ट दी जाती है ना! तो आज ब्रह्मा बाप बच्चों से यह सौगात देने के लिए कह रहे हैं। तैयार हैं? तैयार हैं? हाथ उठाओ। तो अभी जब भी आर्डर करे तो आज के दिन से व्यर्थ संकल्प आने नहीं देना कर सकते हो? आज दो घण्टा चार घण्टा योग की स्टेज में कर्म भी करो योग भी लगाओ कर सकते हो? कर सकते हो करेंगे? चलो अभी बीती सो बीती लेकिन अब आर्डर करें कि आज के दिन व्यर्थ संकल्प को फुलस्टॉप तो करना पड़ेगा ना।
आज योग में यही लक्ष्य रखो उसी प्रमाण सारे दिन का पुरूषार्थ करना पड़ेगा ना! बाप से स्नेह में जो बाप कहे वह करना है। संकल्प व्यर्थ बन्द इसकी युक्ति है ब्रह्मा बाप के स्नेह को दिल से याद करो। चाहे साकार में देखा चाहे नहीं देखा लेकिन बुद्धिबल द्वारा तो सभी ने देखा है ना! देखा है या नहीं देखा है? जो कहते हैं मैंने बाबा का प्यार देखा मैंने ब्रह्मा बाप की पालना देखी तो क्या उसी से चल रहा हूँ वह हाथ उठाओ। अच्छा। हाथ उठाके तो खुश कर दिया। बापदादा को खुशी है हिम्मत तो रखी है ना। लेकिन जब भी कोई ताकत कम हो जाए ना तो सदा बाप के सम्बन्ध कितने सम्बन्ध हैं कभी बाप कभी बच्चा भी बन जाता है। कभी बाप तो कभी सखा भी बन जाते हैं इसलिए या संबंध याद करो या प्राप्तियां याद करो। प्राप्तियां और संबंध जैसे आज दिल से याद कर रहे हो ना! ऐसे याद करने से प्यार पैदा हो जायेगा। आज भी सबके दिल में ब्रह्मा बाप का प्यार आ रहा है ना! तो जब कुछ नीचे ऊपर हो तो सम्बन्ध और प्राप्तियां याद करना। बाप हर बच्चे के साथ सहयोगी है सिर्फ आप याद करना। तो समझा आज क्या करना है? मनजीत जगतजीत जो गायन है वह स्वरूप धारण करना है। आर्डर से चलाओ। अभी थोड़ा फ्री छोड़ दिया है ना तो वह अपना काम करता है। अभी अटेन्शन दो। मन मेरे आर्डर में चले न कि आप मन के आर्डर में चलो। चाहते हो ज्ञान की बातों का रमण करें और आ जाती फालतू बात। तो क्या हुआ? मन मालिक बना या आप मालिक बनें? तो सभी ने यह होमवर्क समझा! मन जीत बनना है। जो आर्डर करें वह मानेगा जरूर मानेगा अटेन्शन देना पड़ेगा बस। मातायें या टीचर्स हो सकता है? हो सकता है? टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स हाथ उठा रहे हैं। अगर समझते हैं हो सकता है तो हाथ हिलाओ। पहली लाइन तो हिलाओ। भाई हाथ हिलाओ। वाह! फिर तो ब्रहमा बाप को स्नेह की सौगात दी इसकी मुबारक हो मुबारक हो।
अच्छा है बापदादा से स्नेह बहुत सहयोग देता है। मेरा बाबा कहा दिल से तो मेरा बाबा कहा तो मैं कौन? बाप का सिकीलधा बच्चा। सभी कितने बारी कहते हो मेरा बाबा मेरा बाबा कितने बार कहते हो? बाप सुनता है ना सब नोट करता है। डबल फॉरेनर्स भी सुन रहे हैं ना। बापदादा ने देखा कि फुल सीजन में डबल फॉरेनर्स ने हाजिरी भरी है। मधुबन में हर टाइम हाजिर रहे हैं। अभी भी 350 से हैं। अपने टर्न में भी आते हैं लेकिन हर टर्न में भी थोड़े-थोड़े कहाँ न कहाँ से आते हैं। तो अभी यह रिजल्ट बापदादा भी देखते रहेंगे और आप सब भी साक्षी होकर अपने आपकी रिजल्ट देखते रहना। यही याद रखना कि बापदादा को मालिक बनने का वायदा किया है। बापदादा अभी बच्चों को कम से कम एक एक जोन को तो यह कार्य दे सकते हैं कि यह जोन इस सप्ताह या 15 दिन रिजल्ट दे कि व्यर्थ संकल्प नहीं लेकिन जो विषय मन को दिया वह किया या नहीं किया? यह मंजूर है टीचर्स? मंजूर है? जोन को कार्य देवें? हाथ उठाओ। टीचर्स। महाराष्ट्र है ना। तो महाराष्ट्र को तो महान काम देंगे ना। बापदादा को हर एक जोन के लिए प्यार है और सदा यह निश्चय रखते हैं कि यह बच्चे बाप ने कहा और बच्चों ने किया। ऐसा है? महाराष्ट्र जो बाप ने कहा वह किया ऐसा है? महाराष्ट्र वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं। पौना क्लास है। तो हर एक जोन बाप के आज्ञाकारी हैं कांध हिला रहे हैं सभी। बाप को भी निश्चय है कि यह मेरे बच्चे हैं ही निश्चयबुद्धि।
बापदादा यही चाहते हैं कि जो रोज के महावाक्य सुनते हो वह होम वर्क है। अगर रोज की मुरली जो बाप ने कहा और बच्चों ने किया तो उसको कहा जाता है बाप के सिकीलधे बच्चे आज्ञाकारी बच्चे। क्या करना है वह रोज की मुरली पढ़ लो। क्योंकि बापदादा ने देखा है मैजारिटी बच्चे मुरली से प्यार रखते हैं। अगर कोई नहीं भी रखता हो तो बापदादा को कोई बच्चा कहे बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है लेकिन बाप का प्यार किससे है? मुरली से। मुरली के लिए कितना दूर से आते हैं। कोई टीचर ऐसा होगा जो इतना दूर से पढ़ाई पढ़ाने आये। तो जब बाप का प्यार मुरली से है तो जो मेरा बाबा कहता है उसका पहला प्यार बाप के साथ बाप की मुरली से होना चाहिए। देखो ब्रह्मा बाप ने एक दिन भी मुरली मिस नहीं की। चाहे बाम्बे भी जाते रहे कारणे अकारणे तो मुरली लिखते थे और मातेश्वरी वह मुरली सुनाती थी। लास्ट डे तबियत थोड़ी ढीली थी सवेरे का क्लास नहीं कराया लेकिन शाम को क्लास कराने के बाद अव्यक्त हुए। तो ब्रह्मा बाप का प्यार किससे हुआ? मुरली से। जो कोई समझते हैं कि मेरा बाबा से प्यार है तो बाप का जिससे प्यार रहा बच्चे का रहना चाहिए ना! इसलिए आप समझते हो कि मुरली पढ़ना या क्लास में पढ़ो अगर मजबूरी है बहाना नहीं है सही कारण है तो किससे सुनो। जो समझते हैं कि मुरली का इतना महत्व रखूंगा वह हाथ उठाओ। अच्छा यहाँ तो सब दिखाई दे रहा है बाप आप पीछे वालों को भी देख रहा है। अच्छा बहुत अच्छा। बाप बीच-बीच में पेपर लेगा। आज किसने मुरली नहीं सुनी वह टीचर लिखके भेजे। पसन्द तो है ना। अच्छा।
आज ब्रह्मा बाप हर बच्चों से मिलकर बहुत-बहुत नयनों द्वारा हर बच्चे को स्नेह से नयनों द्वारा स्नेह दे रहे हैं। अच्छा –
चारों ओर से बच्चों द्वारा सन्देश आये हैं। चारों ओर के आये हुए प्यार के मीठे-मीठे भाव या भिन्न-भिन्न शब्दों की याद चारों ओर से भिन्न-भिन्न पत्र आये हैं सभी को बापदादा रेसपान्ड कर रहे हैं हर बच्चा स्नेह में बाप के दिल में समाया हुआ है और यह अविनाशी स्नेह सदा बाप का और बच्चों का अनादि अविनाशी है और सारा संगमयुग यह बाप बच्चों का मिलन निश्चित ही है। अच्छा।
महाराष्ट्र बाम्बे आन्ध्र प्रदेश:- (14 हजार आये हैं):- सभी को विशेष बापदादा का स्नेही दिन पर स्नेह है और सदा यह स्नेह अमर रहेगा। बाकी आने वाले तो सब उठे ही हैं टर्न बाई टर्न आने का जो चांस मिलता है वह पसन्द है ना! पसन्द है? कोई का भी उल्हना नहीं रह सकता। हर जोन को टर्न मिलता है। तो यह सिस्टम पसन्द है? पसन्द है? यह सिस्टम पसन्द है ना! अच्छा है। देखा गया हर एक जोन खुली दिल से अपने तरफ के साथी ले आते हैं। यज्ञ सेवा का चांस भी है और मिलने का चांस भी है। यह यज्ञ सेवा चाहे थोड़े से दिन मिलते हैं लेकिन यज्ञ सेवा करके जाने के बाद आपके जीवन में यज्ञ की आकर्षण अनुभव हो जाती है इसलिए परिवार क्या है यहाँ इतना परिवार इकठ्ठा होता है जोन में भी इतना परिवार इकठ्ठा नहीं होगा लेकिन मधुबन में आना बापदादा से मिलना साथ में परिवार से भी मिलना होता है। एक बार यज्ञ सेवा की तो सदा यज्ञ नयनों में आता रहेगा। देखी हुई चीज और सुनी हुई चीज में फर्क हो जाता है ना। मधुबन हर एक बच्चे का घर है। यह तो सेवा अर्थ भिन्न-भिन्न स्थान में भेजा गया है क्योंकि विश्वसेवक बनना है ना। उल्हना नहीं रह जाए हमको पता नहीं पड़ा हमारा बाप आया वर्सा देके गया और हमें पता नहीं पड़ा यह उल्हना रह नहीं जाए इसीलिए बापदादा हर समय यही कहते अड़ोसी-पड़ोसी गांवगांव एरिया-एरिया में यह सन्देश जरूर दो कि आपका बाप आ गया मानें न मानें उन्हों का अपना भाग्य है लेकिन उल्हना नहीं रह जाए। सन्देश देना आपका काम है मानना भाग्य बनाना वह उन्हों के हाथ में है। लेकिन आपके तरफ से कोई उल्हना नहीं रहना चाहिए। तो बहुत अच्छा है महाराष्ट्र में सेवा का विस्तार बहुत अच्छा है। इसके लिए बापदादा टीचर्स या सेवा करने वालों को विशेष मुबारक दे रहा है। जैसा नाम है वैसे ही काम है विस्तार किया है। बाकी नये-नये प्लैन जैसे अभी दिल्ली वाले प्लैन बना रहे हैं बाप ने ही कहा और प्रैक्टिकल में ला रहे हैं ऐसे महाराष्ट्र भी कोई न कोई नया प्लैन वही नहीं लेकिन कोई नये रूप से सेवा का प्लैन बनाए और चारों ओर आवाज फैलाये। महाराष्ट्र में तो फैला रहे हैं लेकिन चारों ओर फैलाने के लिए कोई न कोई प्लैन बनाओ। जिससे भिन्नभिन्न देश में आपके द्वारा सेवा का आवाज जाये। अच्छा लगता है। बिजी रहना अर्थात् मायाजीत बनना। तो बापदादा खुश है महाराष्ट्र पर। टीचर्स भी खुश हैं ना! अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनें:- डबल विदेशी जब सुनते हैं तो दिल में सबके बहुत प्यार होता है। ब्राह्मण परिवार में भी प्यार की लहर घूम जाती है। कितना भी दूर हो लेकिन दूर को दिल के स्नेह से नजदीक बनाना यह डबल विदेशियों की विशेषता है। सेवा भी फैला रहे हैं। यह भी समाचार बापदादा सुनते रहते हैं। अभी-अभी कोई भी संख्या रह नहीं जाए उल्हना नहीं दे हमको तो सन्देश मिला नहीं। तो बापदादा ने देखा कि अभी फॉरेन वाले इन्डिया वालों से मिलके चारों ओर सन्देश देने में अच्छे प्रैक्टिकल ला रहे हैं। कोई भी धर्म रहना नहीं चाहिए। सन्देश देना चाहिए और फॉरेन की सेवा शुरू से वायुमण्डल में फैलने का साधन यह है जो शुरू में ही सब एक स्टेज पर एक समय में इकठ्ठे बैठते थे क्रिश्चियन भी मुस्लिम भी है जो भी सभी हैं भिन्न-भिन्न वह सब एक समय स्टेज पर इकठ्ठे बैठते थे तो यह सर्व का पिता है इसका प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाई देता है तो कोई भी ऐसे रहना नहीं चाहिए। ऐसे ही भारत में भी विदेश में भी। कोई भी चाहे शाखायें हैं लेकिन सन्देश जरूर पहुंचना चाहिए क्योंकि अभी समय भी सबका दिमाग थोड़ा बदल रहा है। दु:ख अशान्ति की लहर विदेश में भी फैल रही है। भारत में तो है ही। इसलिए अभी सुनने की इच्छा बढ़ रही है। अभी देखो निमन्त्रण देते हैं तो आपका हॉल तो भर जाता है लेकिन और भी रह जाते हैं। तो लोगों की चाहना भी बढ़ रही है इसलिए खूब सेवा फैलाओ। चांस भी मिल रहे हैं तो विदेश वालों को सेवा का उमंग उत्साह है यह दिनप्रतिदिन देखने में आता है। लेकिन बाप चाहे गांव से कोई आये हैं चाहे विदेश से चाहे कहाँ से भी आये हो सभी को बापदादा यही कहता है कि सेवा खूब करो। कभी भी समय बदल सकता है। जो चाहो सेवा करने लेकिन कर भी नहीं पाओ ऐसा समय भी आने वाला है। इसलिए जो करना है वह अब करो। कब नहीं अब। बापदादा हमेशा कहते हैं कि कल पर नहीं छोड़ो। आज पर भी नहीं अब। क्योंकि समय पांचों तत्व बाप के पास आते हैं हमको बताओ कब तक दु:ख चलेगा! खुद दु:खी हो रहे हैं तो क्या करेंगे? मनुष्यात्माओं को भी दु:खी करेंगे ना। इसलिए जो भी आये हैं उसको संकल्प करना है कि जैसे ब्राह्मण जीवन आवश्यक है वैसे अभी के समय अनुसार हर एक को सेवा भी जरूरी है। करो या कराओ। तो डबल फॉरेनर्स को देख सारा परिवार भी खुश और स्वयं भी खुश और बापदादा भी खुश। बाकी जो बापदादा ने होमवर्क दिया मनजीत जगतजीत बनना ही है। आपका ही गायन है उसको रिपीट करना है। अच्छा।
कलकत्ता के भाई बहिनों ने फूलों का श्रृंगार किया है:- अच्छा है मेहनत बहुत करनी पड़ती है लेकिन यह मेहनत आपकी दिल का स्नेह फूलों में दिखाई देता है। चाहे हाथ से मेहनत करो चाहे उत्साह दिलाने की मेहनत करो लेकिन मेहनत का बल और मेहनत का फल मिलता जरूर है। तो बहुत-बहुत स्नेह बापदादा खास कलकत्ते वालों को दे रहे हैं क्योंकि ब्रह्मा बाप में प्रवेशता भी कलकत्ता में ही हुई है। इसलिए कलकत्ता वाले ही निमित्त बने हैं स्नेह का रेसपान्ड देने के लिए। अच्छे प्यार से करते हैं इसकी मुबारक हो मुबारक हो मुबारक हो। आप सबको भी पसन्द आता है ना! परिवर्तन तो चाहिए ना। तो यह अपना स्नेह प्रत्यक्ष रूप में करते हैं। अच्छा।
अभी जो बच्चे सम्मुख है या दूर बैठे भी देख रहे हैं बापदादा ने सुना कि अभी तो चारों ओर यह कोशिश की है कि हर एक देश में सेन्टर पर भी जाके देखते हैं सुनते हैं चाहे रात का कितना भी बजता है तो भी देखते हैं यह भी साइंस का साधन आपके लिए ही निकले हैं और आपको ही लाभ हो रहा है। अगर साइंस द्वारा विनाश होगा तो भी आपके राज्य के लिए कर रहे हैं। तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को विशेष ब्रह्मा बाप का यादप्यार दिल का दुलार दिल का प्यार स्वीकार हो।
दादियों से:- भाग्य सेवा के बिना रहने नहीं देता। जिसका जितना भाग्य है वह भाग्य उसको ले ही जाता है। भाग्य है ना। अच्छा है अभी समय जो भी भाग्यवान हैं उन्हों को ला रहा है। बाप ने कह दिया है ना तो समय अचानक होना है तो समय कोई न कोई आत्माओं को जगाता ही रहेगा। बहुत अच्छा।
परदादी से:- (बेटी बाप से मिल रही है) अभी तो बाप समान बनने वाली है। अभी सेवा शुरू करेंगी। इसको सेवा कराओ बिजी रखो। इतने सब आते हैं उनमें से कोई न कोई को अनुभव सुनाती रहे सेवा करती रहे। बहुत अच्छा।
निर्मला दीदी से:- (तबियत नीचे ऊपर रहती है) समझ गई हो क्यों होती है क्यों का कारण समझ लो तो उस कारण को आने नहीं दो। जानती तो हो ज्ञानी तू आत्मा हो। जान जाओ और उससे किनारा करो आने नहीं दो।
तीनों भाईयों से:- पाण्डवों से मिलते रहते हैं यह बहुत अच्छा है और आप तीनों को सेवा का ध्यान नये नये प्लैन और क्या साधन हो जिससे जल्दी से जल्दी सबको कोई भी तरफ रह नहीं जाये यह प्लैन बनाओ। भले जो हैं सेन्टर जोन भी बनाते हैं लेकिन आप लोगों की भी बुद्धि चलनी चाहिए क्या नवीनता सेवा में करें और साथ-साथ सारे यज्ञ जो चल रहे हैं उनका बीच-बीच में चक्कर लगाओ। सब स्थान में सर्विस का उमंग-उत्साह दिलाओ। कई जोन तो सेवा में करते रहते हैं कई स्थान ऐसे हैं जो कभी भी बड़े प्रोग्राम नहीं करते हैं उन्हों को उमंग दिलाके निमित्त बनाओ क्योंकि आपस में जब मिलते हो तो यहाँ ही प्लैन पहले बना लो। फिर कहाँ-कहाँ है हर एक अपने नजदीक जो भी हैं उसमे चक्कर लगाके करो। मतलब समझो सेवा की जिम्मेवारी आप लोगों को कराना है। कराने के साथ करना भी पड़ता है। तो ठीक है। प्लैन आपका सुना था ठीक है।
जैसे निमित्त बने हो और तो कोई नहीं आते हैं आप ही आते हो ना। तो निमित्त हो तो निमित्त में धारणा भी सिखाओ और प्यार भी दो। प्यार कोई ऐसा प्यार नहीं जो आवश्यकता किसकी हो उसको दिलाना या देना यह भी प्यार है। ऐसे निमित्त बनो। ठीक है ना। (रमेश भाई से) तबियत ठीक हो जायेगी। ज्यादा सोचो नहीं। जो हो रहा है उसका एक सेकण्ड में प्लैन सोचो बस। यह हो यह हो नहीं। एक सेकण्ड में प्लैन बनाओ। अभी कहा ना तो टाइम जो है वह हर चीज में कम दो थोड़े में फाइनल करो। क्योंकि आजकल टाइम की वैल्यु है एक-एक ब्राह्मण की वैल्यु है।
अफ्रीका में रिट्रीट सेन्टर बन रहा है नक्शा बापदादा को दिखाया:- सभी जो भी निमित्त बच्चे बने हैं उनका उमंग यहाँ तक पहुंच रहा है। बापदादा खुश है जितने सेन्टर बढ़ेंगे उतने बिछुड़े हुए बच्चे अपना भाग्य बनायेंगे। तो आप उद्घाटन नहीं कर रहे हो लेकिन अनेकों के भाग्य खुलने के निमित्त बने हो।
हंसा बहन से:- समाचार जो लिखा वह मिला अभी जो आज काम कहा है ना कितना सोचो क्या सोचो यह काम करना इसमें नम्बरवन जाना।
हैदराबाद शान्ति सरोवर के कोर कमेटी मेम्बर्स प्रति अव्यक्त बापदादा के महावाक्य-
आप सभी सेवा के प्रति निमित्त बने हो। यह सेवा विश्व सेवा है। सिर्फ हैदराबाद की नहीं है लेकिन विश्व की सेवा है। तो विश्व की सेवा करने से आत्मा में खुशी होती है क्योंकि पुण्य का काम कर रहे हो ना। तो जहाँ पुण्य होता है वहाँ दुआयें मिलती हैं। वह दुआयें अपनी जीवन के लिए बहुत ऊंचा उड़ाती हैं। तो बापदादा को समाचार मिला कि यह सब सेवा के निमित्त हैं। तो बहुत अच्छा करते चलो और दुआयें लेते चलो क्योंकि दुआयें मिलना इस कार्य के लिए बहुत बड़ी प्राप्ति सूक्ष्म में होती है। इसलिए जो भी जहाँ सेवा करते हैं वह सेवा नहीं समझो लेकिन अपना पुण्य जमा कर रहे हैं और पुण्य जमा होने से आटोमेटिकली आपको सेवाभाव का फल मिलता है बल मिलता है। तो खुशी-खुशी से आ»ान करते चलो और उन आत्माओं के प्रति भी शुभ भावना करते चलो जो भी आवे वो मालामाल होके जाये। ऐसी शुभ भावना शुभ कामना से सेवा में आगे बढ़ते जाओ। बढ़ते जाओ बढ़ाते जाओ तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार मिलेगा। लेकिन शुभ भावना और शुभ कामना सेवा की रखेंगे तो सेवा से बल मिलता है। आपको भी खुशी होगी और जिस कार्य के प्रति करते हो उस कार्य में आने वाली आत्माओं को भी खुशी की प्राप्ति होगी। तो बहुत अच्छा जो भी सेवा करते हो बापदादा के यज्ञ की सेवा करते हो। यज्ञ की सेवा करने में बहुत पुण्य है। बहुत अच्छे हैं। आगे बढ़ते चलो और औरों को भी बढ़ाते चलो। अच्छा अच्छा है सभी जहाँ भी हैं अच्छे हैं आगे बढ़ते चलो बढ़ाते चलो।
विदाई के समय - गीत गाया - अभी छोड़कर नहीं जाओ दिल अभी भरा नहीं...
दिल तो भरने वाला है ही नहीं। सदा साथ हैं साथ रहेंगे साथ चलेंगे। (84 जन्म ही बाबा के साथ रहेंगे) रहना। अच्छा ही है। ब्रह्मा बाप की तरफ से सभी को बहुत-बहुत प्यार। (बाबा आपको जाने का मन करता है) ड्रामा में है। अच्छा।
03-04-12 ओम शान्तिअव्यक्त बापदादामधुबन
‘‘मेरे को तेरे में परिवर्तन कर बेफिक्र बादशाह बनो, बाप की मोहब्बत और सेवा में मन को इतना बिजी कर दो जो व्यर्थ आने की मार्जिन न रहे’’
आज बापदादा चारों ओर के अपने बेफिक्र बादशाहों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा सवेरे से उठ बेफिक्र स्थिति में स्थित हो हर कर्म करता है। हर एक बच्चे को अनुभव है कि यह बेफिक्र बादशाह की जीवन बादशाही भी और बेफिक्र भी, कितनी प्यारी लगती है क्योंकि आप सभी ने बाप को फिक्र देकरके फखुर ले लिया है। फखुर भी अविनाशी फखुर ले लिया है। हर एक अनुभव करते हैं कि यह बेफिक्र जीवन कितनी प्यारी है। दिनरात कोई भी बात का फिक्र नहीं लेकिन फखुर है। जानते हो कि यह बेफिक्र रहने की जीवन बाप ने इस एक जन्म के लिए नहीं लेकिन अनेक जन्मों के लिए बेफिक्र बादशाह बना दिया। अभी अनुभव करते हो बेफिक्र जीवन अगर है तो सदा मस्तक में दिव्य ज्योति चमकती रहती है। और अगर फिकर है तो माथे पर अनेक प्रकार के दु:खों का टोकरा भरा हुआ होता है। यह बेफिक्र जीवन की विधि बहुत सहज है। जो भी हद का मेरा-मेरा है उसको तेरा कर दिया। मेरा और तेरा में एक मात्रा का ही फर्क है। मे और ते। लेकिन मेरे को तेरा करने से जीवन कितनी खुशनुमा बन जाती है। बन गई है ना! कांध हिलाओ, बन गई। बेफिक्र जीवन बन गई।
अभी बापदादा यही हर बच्चे से चाहता है कि फिकर वाली जीवन का आधार है व्यर्थ संकल्प, तो हर बच्चे के अन्दर व्यर्थ संकल्प का निशान भी नहीं रहे क्योंकि जब मेरे को तेरे में बदल दिया तो आप क्या हो गये? आप हो गये बेफिक्र बादशाह और यह बेफिक्र बादशाह की जीवन कितनी प्यारी है। हर कर्म करते बेफिक्र बादशाह। कोई फिक्र नहीं क्यों, क्या, कैसे, कब तक... यह सब समाप्त हो गये। बापदादा आज इस सीजन के लास्ट दिन यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा व्यर्थ को मेरे के बदले तेरा कर दे। बाप आपेही भस्म कर देंगे। आप सिर्फ एक मात्रा का अन्तर करो, मंजूर है! हो सकता है? अगर हो सकता है तो हाथ उठाओ। बहुत अच्छा क्योंकि यह 5-6 मास आप सभी को विश्व के आगे दु:खी आत्माओं को पावरफुल वृत्ति द्वारा सुख शान्ति की किरणें देनी हैं। इसी में ही अपना मन बिजी रखना है। व्यर्थ संकल्प भी किसमें आते हैं? मन में आते हैं ना! तो बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक बेफिक्र बादशाह बच्चा अपने मन को अर्थात् वृत्ति को इतना बिजी रखे जो व्यर्थ को आने की मार्जिन ही नहीं रहे। मेहनत नहीं करनी पड़े लेकिन बाप के मोहब्बत में इतना बिजी रहो, वृत्ति की सेवा में इतना मन को बिजी रखो जो युद्ध भी नहीं करनी पड़े। कई बच्चे कहते हैं चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाते हैं। इसको क्या कहेंगे? कि मन को बाप के प्यार और सेवा में बिजी नहीं रखा। सभी से पूछते हैं कि आपका प्यार बाप से कितना है? तो क्या कहते? बेहद है। तो जिससे प्यार होता है उसका कहना मानना कोई मुश्किल नहीं होता। तो आप सभी का बाप से अटूट प्यार है ना! कि कभी-कभी है? सदा है या कभी-कभी है? जो कहते हैं सदा प्यार है वह हाथ उठाओ। सदा प्यार है, देखो सोचो, सदा प्यार है तो बाप का कहना और बच्चे का करना। यह तो जानते हो ना!
तो अभी इस सीजन में बापदादा बच्चों को यही दृढ़ संकल्प कराने चाहते हैं, तैयार हो ना! कांध हिलाओ। तैयार हो दृढ़ संकल्प करने के लिए? पीछे वाले तैयार हैं? मातायें भी तैयार हैं? पाण्डव भी तैयार हैं? अच्छा हाथ उठाओ। इसमें दो-दो हाथ उठाओ। हाथ उठाते हो तो बापदादा को खुश तो कर देते हो। अभी जैसे यह हाथ उठाया ऐसे मन का हाथ उठाओ। कभी भी व्यर्थ संकल्प को आने नहीं देंगे। उनका काम है आना, आपका काम क्या है? समाप्त कर देना। तो इस सीजन में बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का ध्यान रखना है एक तो संकल्प, दूसरा समय। जानते हो आप, इस संगम का समय एक-एक मिनट का कनेक्शन 21 जन्म के साथ है। और इस समय बापदादा का बच्चों से, बच्चों का बाप से प्यार है। तो संगम समय का एक सेकण्ड, सेकण्ड नहीं है क्योंकि 21 जन्मों का कनेक्शन है। अगर अब नहीं समय को बचाया तो 21 जन्म जो बाप से प्यार है और हर एक चाहता है कि बाप के साथ अब भी रहें, साथ भी चलें। अपने घर लौटना है ना अभी। तो घर में भी साथ में चलें और फिर राज्य में भी बापदादा के साथ विशेष ब्रह्मा बाबा के साथ राजधानी में नजदीक साथ में आयें इसलिए ब्रह्मा बाप तो फरिश्ता रूप में है और आपको साथ में चलना है तो क्या करना पड़े? फरिश्ता बनना पड़े ना! फरिश्ता बनेंगे, बनना ही है ना!
बाप ब्रह्मा के हाथ में हाथ देके साथ चलना है, तो हाथ क्या है? फरिश्ते को स्थूल हाथ तो हैं नहीं। ब्रह्मा बाप का हाथ क्या है? श्रीमत। तो बापदादा की यही श्रीमत है कि अब बेफिक्र बादशाह बन सदा जैसे आपकी जगदम्बा ने पुरूषार्थ किया, बाप का कहना और जगत अम्बा का करना। ऐसे जगत अम्बा को फॉलो करो। समय और संकल्प को सफल करना ही है। व्यर्थ नहीं जाये। सुनाया ना एक-एक संकल्प का 21 जन्म का कनेक्शन है। तो बापदादा यही चाहते हैं कि सदा मन को बिजी रखो। चाहे मुरली के मनन में, चाहे सेवा में, हर समय बिजी रहो। अपना चार्ट बनाओ हर समय बीच-बीच में जो बापदादा ने ड्रिल सुनाई है भिन्न-भिन्न, जानते हो ना ड्रिल अशरीरी बनने की। अपने तीन स्वरूप स्मृति की ड्रिल। जानते हो ना! जैसे बाप के तीन रूप हैं ऐसे आपके भी तीन रूप हैं। ब्राह्मण, फरिश्ता और देवता, इन तीनों रूपों में ड्रिल द्वारा अपने मन को बिजी रखो इसलिए महामन्त्र क्या है? मनमनाभव।
बाकी बापदादा का हर बच्चे से बहुत-बहुत प्यार है इसलिए बापदादा यही चाहते हैं कि हर बच्चा विजयी भव के वरदानी बनें। सुनाया था ना कि कई बच्चे सोचते हैं हम विजयी तो बनें लेकिन माला तो 108 की है, तो विजयी बनके माला में तो आ नहीं सकेंगे लेकिन बापदादा का इतना प्यार है कि आप विजयी बनो तो बापदादा माला में भी लड़े लगा देगा। आप सिर्फ विजयी बनो। तो क्या संकल्प है? विजयी बनना ही है ना! कि सिर्फ 108 विजयी बनेंगे? नहीं। बाप का हर बच्चा विजयी है। बापदादा हर बच्चे के मस्तक में क्या देख रहे हैं? विजय का तिलक क्योंकि साधारण रूप में बाप को पहचान लिया है ना! चाहे लास्ट बच्चा है, पुरूषार्थ में ढीला है लेकिन उसमें यह विशेषता है कि साधारण रूप में आये हुए बाप को पहचान मेरा बाबा तो कहता इसलिए हर एक बच्चे को हिम्मत रख विजय प्राप्त करनी ही है। सिर्फ क्या करना है? कोई मेहनत की बात नहीं है, प्यार की बात है। बापदादा से प्यार है, परिवार से प्यार है तो प्यार वाले से अलग नहीं रहा जाता है। तो ब्रह्मा बाबा से कितना प्यार है? जो समझते हैं कि ब्रह्मा बाप से शिव बाप से हमारा अटूट प्यार है वह हाथ उठाओ। अटूट, अटूट? बहुत अच्छा। तो दूसरी सीजन में बापदादा क्या देखने चाहता है? जानते तो हो। 5 मास 6 मास मिलना है आपको, व्यर्थ से समर्थ संकल्प करने में।
तो बोलो, मधुबन वाले उठो, चाहे नीचे चाहे ऊपर। बहुत हैं। तो मधुबन वाले बापदादा को प्यारे हैं। ऐसे नहीं दूसरे प्यारे नहीं हैं। वह प्यारे हैं लेकिन मधुबन वालों से एक बात का विशेष प्यार है, वह क्या? मन्सा में याद तो सब करते हैं। योगी तू आत्मायें तो सभी हैं, ज्ञानी आत्मायें भी सभी हैं लेकिन मधुबन वालों को अपना भविष्य सहज बनाने की एक लिफ्ट है। वह लिफ्ट क्या है? जो भी मधुबन में आते हैं, उनकी सेवा के निमित्त हैं। जैसे खाना बनाने वाले जो भी कोई ड्युटी करने वाले हैं। बापदादा तो कहते हैं कोई झाडू लगाने वाला भी है ना, वह भी भाग्यवान है क्यों? जो भी आते हैं वह यह वायुमण्डल देख आपके दिल के प्यार की शक्ति देख खुश हो जाते हैं। चाहे खाना बनाने वाला, चाहे कोई भी ड्युटी वाला है लेकिन मधुबन वालों को चांस है। मधुबन का प्यार और शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने का, इसलिए बापदादा मधुबन वालों को बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं कि यह सीजन समाप्त की और आगे के लिए भी अपने मन में आत्माओं को सन्तुष्ट करने में और शक्तिशाली अनुभव कराने में निमित्त बनते रहेंगे इसलिए सब ताली बजाओ मधुबन वालों के लिए। अच्छा।
आज बापदादा को अमृतवेले मधुबन के सेवाधारी सामने आये। हर एक से बापदादा वतन में भी मिले और खास आपको पहले भी बताया है वि्ा चार बजे के समय आपकी एडवांस में गई हुई विशेष दादियां जरूर आती हैं। तो आज भी विशेष दादियाँ और विशेष भाई पहुंचे थे। उन्होंने खास मधुबन वालों को इमर्ज करने के लिए कहा। विशेष दीदी और दादी दोनों ने और विशेष भाईयों ने भी मधुबन वालों को याद किया। और दादी ने विशेष याद दी और साथ में वतन का आम, जानते हो ना वतन का फल कितना बढ़िया होता है, लाठी नहीं लगानी होती है, जो फल चाहिए वह आप हाथ से ही ले सकते हो। तो दादी ने कहा आज मधुबन वालों से आम की पिकनिक करते हैं। दूसरी दादियां तो साथ में थी और विशेष भाई भी थे। तो बापदादा ने कहा उन्हों से पूछो तो मधुबन के लिए आपको मन में क्या आता है? तो दादी क्या बोली? पता है, जानते तो हो, दादी को तो जानते हैं ना! दादी कहती थी मेरी यह अभी तक भी दिल है कि हर एक मधुबन वाला चाहे पुरूषार्थ में कोई भी कमी अभी रह गई है उसका तो पुरूषार्थ करना है लेकिन मैं एक बात चाहती हूँ, मधुबन वालों से। वह क्या चाहती हूँ? एक-एक मधुबनवासी बाप समान बन जाये। वैसे तो सभी को बनना है लेकिन मधुबन विशेष है, मधुबन वालों को दादी से प्यार था, यह दादी कहती थी मुझे पता है। तो प्यार के रिटर्न में मैं यही चाहती हूँ कि जैसे मम्मा ने लक्ष्य रखा बाबा ने कहा मम्मा ने किया, यह तो मधुबन वाले जानते ही हैं। ऐसे ही अमृतवेले से लेके रात तक हर एक मधुबन वाले अगर बाबा के साथ मेरे से भी प्यार है, दादियों से भी प्यार है, तो जैसे मम्मा ने बाप की हर राय जीवन में लाई, ऐसे हमने भी लाई। तो अगर दादियों से प्यार है, तो यही करके दिखायें, सवेरे से रात तक ऐसा कोई संकल्प बोल कर्म नहीं लावें जो दादियों को या बाप को या किसी को भी पसन्द नहीं हो। यह हमारा सन्देश खास मधुबन वालों को देना। तो हमने (गुल्जार दादी ने) दादी को कहा, दादी आप मधुबन में कभी चक्र लगाती हो? अभी मैं (गुल्जार बहन) वतन का समाचार मधुबन वालों को सुना रही हूँ। तो मैंने गुल्जार बहन ने, उनको कहा दादी मधुबन वालों को तो आप जो कहेंगे वह करेंगे। तो मैंने ठीक कहा, करेंगे? हाथ उठाओ। दो-दो हाथ उठाओ। करेंगे? बहुत अच्छा।
तो आज इस सीजन का लास्ट है ना, तो और भी वतन में रौनक थी। दूसरे आप मधुबन वाले तो मिलके मर्ज हो गये, लेकिन दादियों ने डबल विदेशियों को भी इमर्ज किया। डबल विदेशी उठो। तो विशेष दादियों के बदले, दादी कह रही थी तो दादी ने कहा कि मुझे डबल विदेशियों की यह बात बहुत अच्छी लगती है क्योंकि जब हम वहाँ थे और इन्हों की सीजन शुरू हुई तो मैंने देखा इन्हों को मधुबन में आने के लिए टिकेट के लिए कितनी युक्ति से इकठ्ठा करते थे टिकेट का पैसा और जब हम सुनती थी तो ऐसे-ऐसे इकठ्ठा करके आये हैं तो मुझे बहुत प्यार आता था और डबल विदेशियों का मैंने देखा उमंग उत्साह भी बहुत अच्छा था। आने से ही मेरा बाबा कहके इतने खुश होते थे जो मेरा कहने में ही मेरा हो जाते थे, उनकी शक्ल, उनका उमंग बहुत अच्छा दिखाई देता था, इसलिए डबल विदेशियों को हम और बापदादा कहते थे कि डबल विदेशी मधुबन का श्रृंगार हैं। तो अभी भी डबल विदेशी जो कार्य भी मधुबन का होता है वह बहुत रूचि से करते हैं इसलिए हमारी भी डबल विदेशियों को बहुत बहुत बहुत बहुत यादप्यार देना और कहना सदा बाप के दिल में आप हो और आपके दिल में बाप है, यही वरदान हमारे तरफ से देना। तो यह था आज अमृतवेले वतन का समाचार।
बाकी सभी चारों ओर के जो दूर बैठे हैं या सम्मुख बैठे हैं सभी को बापदादा क्या देख रहे हैं? बापदादा देख रहे हैं हर एक के मस्तक में चमकती हुई ज्योति चमक रही है। सभी के मन में संकल्प यही है कि हमारे को कैसा बनना है? जैसे बाप वैसे हम। यह उमंग उत्साह भी सभी के मन में है।
बाकी तो इस सीजन में बापदादा टीचर्स को विशेष उठाने चाहते हैं। सब टीचर्स उठो। देखो। कितनी टीचर्स हैं। चौथा हाल तो टीचर्स हैं। तो टीचर्स को देख बापदादा भी खुश होते हैं क्योंकि बाप समान सीट का भाग्य मिला है। बाप की मुरली सुनाने की सीट मिली है। बाप हमेशा टीचर्स को साथी कहते हैं। अभी टीचर्स के लिए बापदादा एक बात चाहते हैं। सुनायें क्या? बापदादा चाहते हैं कि हर एक टीचर चेहरे से ब्रह्मा बाप समान ऐसे खुशनुमा नज़र आये। नज़र आवे अन्दर पुरूषार्थ होगा भी लेकिन आपकी सूरत से बाप प्रत्यक्ष हो। कोई को भी देखे तो आपमें बाप की चमक दिखाई दे। ऐसे चेहरे से सेवा करने वाली बाप को प्रत्यक्ष कर ही लेंगी। अब समय आ गया है, बाप को अपने चेहरे से प्रत्यक्ष करने का। तो टीचर्स को सदा मेरा बाबा तो स्वत: ही याद है। अभी बाप को चेहरे से प्रत्यक्ष करना है। कर सकते हैं ना! कर सकते हैं तो करो। देखो अभी तक की रिजल्ट में क्या सभी कहते हैं। ब्रह्माकुमारियां बहुत अच्छा काम कर रही हैं, बाप प्रत्यक्ष नहीं है। वह अभी भी गुप्त है। तो अभी समय समीप आ रहा है तो आप द्वारा चाहे निमित्त टीचर्स हैं या कोई भी बच्चा है, अभी बाप को प्रत्यक्ष करो। ब्रह्माकुमारियां अच्छा कार्य कर रही हैं, यह तो हो गया। यहाँ तक पहुंच गये हो। लेकिन अभी यह प्रत्यक्ष करो कि स्वयं परमात्मा ब्रह्मा तन में प्रत्यक्ष हो ब्रह्माकुमारियों को ऐसे योग्य बना रहे हैं। अभी यह प्वाइंट रही हुई है। गीत तो गाते हैं मेरा बाबा आ गया, लेकिन अभी अन्य आत्माओं के अन्दर यह प्रत्यक्ष हो कि भगवान स्वयं प्रत्यक्ष हो यह कार्य बहिनों द्वारा या भाईयों द्वारा करा रहे हैं। यह प्रत्यक्षता करनी है ना! कब करेंगे? अब। क्या कहेंगे? अब ना! (अभी शुरू करेंगे, अगली सीजन तक हो जायेगा) आप सभी साथ में हो, अगली सीजन तक हो जायेगा? हाथ उठाओ जो समझते हैं! थोड़े हाथ उठा रहे हैं। जो हाथ नहीं उठा रहे हैं वह देखेंगे, और आप करेंगे। टीचर्स ने तो संकल्प किया है ना! क्योंकि देख रहे हो बापदादा तो कहते ही हैं कि सब अचानक होना है। कोई बच्चे समझते हैं अचानक, अचानक भी बहुत समय हो गया है। अभी होना चाहिए। लेकिन अचानक तब हो जब बच्चे भी बाप समान बन जायें। आपकी सूरत मूरत एक-एक बोल बाप को प्रत्यक्ष करे। हो जाना तो है ही। होना ही है अभी सिर्फ निमित्त बनना है। अभी अगली सीजन में क्या करेंगे? एक तो अपने को बाप समान बनायेंगे। जो भी कमी रह गई है, उसको सम्पन्न करेंगे। और बापदादा को खुशी है किस बात की? तो बच्चों ने जैसे अभी छोटे मोटे सेन्टर ने वाणी द्वारा प्रसिद्ध किया कि हम क्या कार्य कर रहे हैं। वायुमण्डल को चेंज किया है। इसकी बापदादा मुबारक दे रहे हैं। जिन्होंने जहाँ भी प्रोग्राम्स किये हैं, अच्छे किये हैं, और सभी के अटेन्शन में भी आया है कि ब्रह्माकुमारियां सचमुच गुप्त रूप में अपने कार्य का समय 75 वर्ष पूरा किया है। अभी यह कहें कि ब्रह्माकुमारियों का भगवान बाबा आ गया है। लक्ष्य है ना! तो अगले सीजन तक यह कार्य आरम्भ हो जाना चाहिए। इसका प्रत्यक्ष प्रोग्राम बनाना। प्रोग्राम बनाते हैं ना, मीटिंग करते हैं ना! तो मीटिंग में यह प्रोग्राम बनाओ कि अभी सब बच्चों को पता तो पड़े कि वर्सा देने वाला बाप आ गया। वंचित नहीं रह जाएं। बाप को तो बच्चों के दु:ख को देख बहुत तरस पड़ता है। जब दु:ख में चिल्लाते हैं, बाप को तरस पड़ता है। आप देव और देवियों को भी बहुत पुकारते हैं। तो अगली सीजन में एक तो व्यर्थ का नामनिशान नहीं, मंजूर है? मंजूर है! दिल का हाथ उठाओ। दिल का हाथ उठाना। व्यर्थ होता क्या है, यह मालूम ही गुम हो जाए। जैसे स्वर्ग की शहजादियां आती हैं ना तो उनको दु:ख और अशान्ति का पता ही नहीं है, कहते हैं क्या कहते हैं, यह क्या होता है। ऐसे ही ब्राह्मण परिवार में व्यर्थ का पता ही न हो, व्यर्थ होता क्या है। स्वचिंतन, स्वचिंतक। अच्छा।
सेवा का टर्न दिल्ली और आगरा:- अच्छा है, सभी टी.वी. में रौनक देखो (मेरा बाबा की पट्टी सब हिला रहे हैं) बहुत अच्छा। अभी झण्डे नीचे करो। अच्छा। दिल्ली वालों को तो अपनी दिल बड़ी करनी पड़ेगी। क्यों? जो भी ब्राह्मण हैं वह देवता बनके कहाँ आयेंगे? दिल्ली में ही आयेंगे ना! तो दिल्ली वालों को बहुत बड़ी दिल बनानी पड़ेगी। देखो अगर ब्रह्मा बाप भी कृष्ण बनके आयेंगे, तो भी कहाँ आयेंगे! दिल्ली में ही आयेंगे। तो दिल्ली वालों को अभी भी दिल्ली के ब्राह्मण संख्या दिल खोलके बढ़ानी पड़ेगी। सब ज़ोन से ज्यादा संख्या दिल्ली में होनी चाहिए। झण्डा लहराया है ना यहाँ, ऐसे एक-एक दु:खी आत्माओं के दिल में बाप का झण्डा लहराओ। तो झण्डे यह व्यर्थ नहीं जायें, यही झण्डे सत्य रूप से दु:खियों के दिल में लहराओ। बाकी सेवा तो हो रही है। सेवा तो करते हैं लेकिन बापदादा ने देखा कि इस वर्ष कोई भी ज़ोन सेवा में पीछे नहीं गया है। सभी ने दिल बड़ी करके खुशी-खुशी से जो भी प्रोग्राम किये हैं, बहुत सुन्दर रूप से और लोगों में यह स्पष्ट किया है कि आप आत्मा हो, शरीर नहीं हो। यह बात मैजारिटी ने माना है। अब आत्मा जैसे प्रत्यक्ष की है, ऐसे परमात्मा की प्रत्यक्षता का पक्का करो। इसमें बापदादा देखेंगे कि नम्बरवन कौन लेता है? आत्मा का पाठ तो कईयों ने पक्का किया है अभी परमात्मा वर्सा दे रहा है, कुछ तो वर्सा ले लेवें। आपका परिवार है ना! वंचित नहीं रह जायें। तो क्या करना है? वह भी बता दिया। बाकी दिल्ली फाउण्डेशन है। वह भी दिन आयेगा जो यह सारी मिनिस्ट्री सोचेगी कि यह जो कह रहे हैं वह मानना ही पड़ेगा। यह कमाल करके दिखाओ। नम्बरवन दिल्ली करे या कोई भी करे, उसको बापदादा इनाम देंगे। अभी जो रही हुई बात है उसको पूरा करो। उमंग है ना! उमंग है? दिल्ली वालों को तो है ना! अच्छा।
डबल विदेशी:- बापदादा चाहते हैं कि जैसे आपको टाइटिल मिला है डबल विदेशी, ऐसे आपका टाइटिल हो डबल पुरूषार्थी। तीव्र पुरूषार्थी। तीव्र पुरूषार्थी डबल विदेशी आये हैं। हो सकता है? जैसे डबल विदेशी हो वैसे तीव्र पुरूषार्थी। कोई भी साधारण पुरूषार्थी नहीं। बापदादा खुश होते हैं, हिम्मत रख करके पहुंच जाते हैं। कोई भी टर्न इस सीजन में नहीं देखा है जिसमें विदेशी नहीं आये हों। तो जैसे यह हिम्मत रख करके कर रहे हो। ऐसे ही अभी यह एक्जैम्पुल दिखाओ कि डबल विदेशी अर्थात् तीव्र पुरूषार्थी। हो सकता है? हाथ उठाओ। तो अगले ग्रुप में जो भी आयेंगे वह तीव्र पुरूषार्थी ग्रुप। जो आगे बढ़े, ऐसे अगले सीजन में बापदादा सभी को उठवायेंगे, जो भी तीव्र पुरूषार्थी बने हैं, बीच में रूकावट नहीं हुई है, उसको उठायेंगे। तो डबल विदेश तो उठेंगे ही। और भी तीव्र पुरूषार्थ करना और ऐसा तीव्र पुरूषार्थ करना जो बापदादा के आगे हाथ उठा सको। ठीक है मंजूर है? पहली लाइन मंजूर है! मधुबन वालों को पसन्द है ना! यह सब मधुबन वाले बैठे हैं। पसन्द है? मधुबन वाले फिर उठो। अच्छा। यह टी.वी में आ रहे हैं। अगर बापदादा कहे कि यह कौन-कौन थे, वह टी. वी. से निकाल सकते हैं। अच्छा। तो जो भी आये हैं, वैसे तो सुन सभी रहे हैं लेकिन मधुबन वाले तीव्र पुरूषार्थियों में हाथ उठायेंगे। उठायेंगे? अभी हाथ उठाओ। अच्छा। आपको तो पदमगुणा मुबारक है। बहुत अच्छा। बापदादा नोट करेंगे, हर एक ज़ोन से कितने तीव्र पुरूषार्थी हैं। आप लिस्ट देना। हर एक ज़ोन वाले, जो नहीं भी आवे तो लिस्ट जरूर ले आवे जो तीव्र पुरूषार्थ करते हैं उन्हों का नाम लिस्ट लावें। ठीक है। पीछे वाले, ठीक लगता है? आपको ठीक लगता है? बहुत अच्छा। बापदादा को तीव्र पुरूषार्थी बहुत पसन्द हैं। कब तक साधारण पुरूषार्थ करेंगे। चलना है ना अभी तो घर जाना है ना! तो तीव्र पुरूषार्थी बनके जाना है ना! बापदादा को, सुनाया भी हर एक बच्चा विजयी हो, यह अच्छा लगता है। यह हुआ, यह हुआ... यह समाचार सुनना अच्छा नहीं लगता है। तो कम से कम जो भी ज़ोन हैं, वह इन 6 मास में, सभी ने तीव्र पुरूषार्थ किया, यह रिजल्ट तो दे सकते हो। अगर 6 मास तीव्र पुरूषार्थ करेंगे तब तो आदत पड़ जायेगी। पड़ जायेगी ना आदत! तो रिजल्ट लेंगे तीव्र पुरूषार्थी 6 मास में कितने बनें? और बापदादा इनाम भी देंगे। जिस ज़ोन में ज्यादा से ज्यादा तीव्र पुरूषार्थी होंगे उनको इनाम भी देंगे। मंजूर है! मंजूर है मधुबन वाले? अच्छा।
पहली बार बहुत आये हैं:- बहुत अच्छा। जो भी पहले बारी आये हैं उन्हों को बापदादा बहुत-बहुत मुबारकें दे रहे हैं। क्यों? क्योंकि इस दु:ख के वायुमण्डल को पार करते हुए सुख चैन के तरफ पहुंच तो गये हैं। हर एक आने वाला अपने जीवन द्वारा और आत्माओं को भी परिचय तो दे सकेंगे। और आने वालों को यह भी मालूम हो कि लास्ट सो फास्ट जाकरके आप भी पुरूषार्थी बन ऊंच बन सकते हो क्योंकि बाप को मान लिया ना! तो बाप द्वारा वर्से के अधिकारी बन गये। बापदादा को खुशी है कि समय समाप्त होने के पहले अपने घर में तो पहुंच गये। बाप को भी खुशी है कि बच्चे अपने परिवार में पहुंच गये हैं। अपने घर में पहुंच गये हैं। वह है कार्य करने का स्थान लेकिन घर परमात्मा का घर सो आपका घर इसलिए बाप पदमगुणा खुश है कि बिछुड़े हुए बच्चे अपने परिवार में, अपने घर में पहुंच गये हैं। अभी लास्ट सो फास्ट बन सकते हो। मार्जिन है। अगर तीव्र पुरूषार्थ करेंगे तो जितना आगे बढ़ने चाहो उतना बढ़ सकते हो। सिर्फ अटेन्शन देना पड़ेगा बस। और बापदादा को तो खुशी होगी कि वाह बच्चे वाह! तो भले आये, और आते हुए अपने आपको आगे बढ़ाते रहना। तीव्र पुरूषार्थ करते रहना, ओम् शान्ति। अच्छा।
सभी चारों ओर के बच्चों को बापदादा का दिल का यादप्यार और साथ-साथ बाप हर एक बच्चे को अपने स्वमान के नशे में निश्चय में देख हर्षित होते हैं, कभी भी स्वमान को नहीं छोड़ना। स्वमानधारी अर्थात् सदा सर्व प्राप्तिवान, स्वमान की लिस्ट बड़ी लम्बी है, रोज़ एक-एक स्वमान स्मृति में रख स्वरूप में लाते तीव्र पुरूषार्थी बन आगे बढ़ते चलो। बापदादा को दिल में बिठाके और अपने को बापदादा के दिल में बिठाके निर्भय होके मास्टर सर्वशक्तिवान बन चलते रहो, उड़ते रहो और उड़ाते रहो। ओम् शान्ति।
मोहिनी बहन से:- चलना आ गया है ना। चलते जाना। साथ हैं, हाथ है और क्या चाहिए। (दादी जानकी जी आज तबियत के कारण स्टेज पर नहीं आई हैं) बापदादा तो सामने देख रहा है, बच्ची कहाँ भी है लेकिन बाप के दिल में बैठी है। बापदादा बच्ची को सर्व शक्तियों की किरणें दे रहे हैं। सेवा के निमित्त बनी हुई आत्मा हो इसलिए सभी आत्मायें भी परिवार भी आपको यादप्यार दे रहा है। निमित्त हो, निमित्त बनना ही है। बाकी यह थोड़ा बहुत हिसाब किताब, यह भी चुक्तू हो ही जायेगा। बापदादा और परिवार की शुभ आशायें आपके साथ हैं और सदा रहेंगी। अच्छा।
परदादी से:- ठीक है, हर्षितमुख। बहुत अच्छा है। कितनी भी कुछ तकलीफ हो लेकिन शक्ल से नहीं लगता। साक्षी होके चल रही हो। साक्षी होके चलने में होशियार हो। नम्बर ले लेंगी।
तीनों भाइयों से:- यह मिलने की विधि बहुत अच्छी है। अभी विशेष यही है कि वायुमण्डल को और पावरफुल बनाओ। जो दरवाजे से कोई आवे तो अनुभव करे कि कौन से स्थान पर आ रहे हैं। शान्ति तो अनुभव करते हैं लेकिन शक्ति की अनुभूति हो कि यहाँ से जो चाहे वह मिल सकता है। ऐसा वायुमण्डल कहाँ नहीं देखा है, विचित्र स्थान है यह। यह अनुभव करें। और आपस में मिलकर जो भी डिपार्टमेंट वाले हैं उन्हों को सप्ताह में एक या दो बारी आपस में कोई विषय पर टाइम निकालके हालचाल पूछके कोई प्रबन्ध चाहिए, सैलवेशन चाहिए, वह भी पूछे और साथ-साथ कोई न कोई प्वाइंट का होमवर्क देवे जो फिर दूसरी बारी पूछे। तो हर एक डिपार्टमेंट में यह होना चाहिए। नहीं तो सिर्फ कामकाज करते हैं ना बिजी हो जाते हैं। आपस में कुछ रूहरिहान भी करें। जैसे तीव्र पुरूषार्थी ग्रुप करता है ना। तो यह इतना नहीं कर सकते। हफ्ते दो में यह प्रोग्राम अपने डिपार्टमेंट में रखें तो पता पड़ेगा क्या है क्या नहीं। कुछ चाहिए सैलवेशन तो बतावे, फिर सोच समझके देवें। मतलब कुछ ज्ञान का भी डिपार्टमेंट में हो सिर्फ काम काम नहीं। यह हो सकता है ना। हो सकता है? तो यह करो। सेन्टर वाले आपस में रात में बैठते हैं और बैठना चाहिए। चाहे हफ्ते में बैठें चाहे 15 दिन में बैठें। पॉजिटिव करेंगे तो निगेटिव दबता जायेगा। सब राय करके यह मीटिंग होगी ना उसमें राय करो।
(हू एम आई फिल्म को एज्युकेशनल फिल्म के रूप में गवर्मेन्ट ने पास किया है) सभी को यह खबर पहुंचाओ। कुछ न कुछ आवाज फैलाते जाओ। अभी क्या है, वायुमण्डल ठीक है। अभी जो भी करेंगे ना उसका प्रभाव पड़ेगा।
(अभी 6 म