15-10-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"संगमयुग की जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए सब बोझ वा बंधन बाप को देकर डबल लाइट बनो"
आज विश्व रचता बापदादा अपनी पहली रचना अति लवली और लक्की बच्चों से मिलन मेला मना रहा है। कई बच्चे सम्मुख हैं, नयनों से देख रहे हैं और चारों ओर के कई बच्चे दिल में समाये हुए हैं। बापदादा हर बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के तीन सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक भाग्य है - बापदादा की श्रेष्ठ पालना का, दूसरा है शिक्षक द्वारा पढ़ाई का, तीसरा है सतगुरू द्वारा सर्व वरदानों का चमकता हुआ सितारा। तो आप सब भी अपने मस्तक पर चमकते हुए सितारे अनुभव कर रहे हो ना! सर्व सम्बन्ध बापदादा से है फिर भी जीवन में यह तीन सम्बन्ध आवश्यक हैं और आप सभी सिकीलधे लाडले बच्चों को सहज ही प्राप्त हैं। प्राप्त हैं ना! नशा है ना! दिल में गीत गाते रहते हैं ना - वाह! बाबा वाह! वाह! शिक्षक वाह! वाह! सतगुरू वाह! दुनिया वाले तो लौकिक गुरू जिसको महान आत्मा कहते हैं, उस द्वारा भी एक वरदान पाने के लिए कितना प्रयत्न करते हैं और आपको बाप ने जन्मते ही सहज वरदानों से सम्पन्न कर दिया। इतना श्रेष्ठ भाग्य क्या स्वप्न में भी सोचा था कि भगवान बाप इतना हमारे ऊपर बलिहार जायेगा! भक्त लोग भगवान के गीत गाते हैं और भगवान बाप किसके गीत गाते? आप लक्की बच्चों का।
अभी भी आप सभी भिन्न-भिन्न देशों से किस विमान में आये हो? स्थूल विमानों में कि परमात्म प्यार के विमान में सब तरफ से पहुंच गये हैं! परमात्म विमान कितना सहज ले आता है, कोई तकलीफ नहीं। तो सभी परमात्म प्यार के विमान में पहुंच गये हो इसकी मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बापदादा एक एक बच्चे को देख चाहे पहले बार आये हैं, चाहे बहुतकाल से आ रहे हैं। लेकिन बापदादा एक-एक बच्चे की विशेषता को जानते हैं। बापदादा का कोई भी बच्चा चाहे छोटा है, चाहे बड़ा है, चाहे महावीर है, चाहे पुरूषार्थी है, लेकिन हर एक बच्चा सिकीलधा है, क्यों? आपने तो बाप को ढूंढा मिला नहीं, लेकिन बापदादा ने आप हर बच्चे को बहुत प्यार, सिक, स्नेह से कोने-कोने से ढूंढा है। तो प्यारे हैं तब तो ढूंढा। क्योंकि बाप जानते हैं मेरा कोई एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जिसमें कोई भी विशेषता नहीं हो। कोई विशेषता ने ही लाया है। कम से कम गुप्त रूप में आये हुए बाप को पहचान तो लिया। मेरा बाबा कहा, सब कहते हो ना मेरा बाबा! कोई है जो कहता है नहीं तेरा बाबा, कोई है? सब कहते हैं मेरा बाबा। तो विशेष है ना। इतने बड़े बड़े साइन्सदान, बड़े बड़े वी.आई.पी. पहचान नहीं सके, लेकिन आप सबने तो पहचान लिया ना। अपना बना लिया ना। तो बाप ने भी अपना बना लिया। इसी खुशी में पलते हुए उड़ रहे हो ना! उड़ रहे हो, चल नहीं रहे हो, उड़ रहे हो क्योंकि चलने वाले बाप के साथ अपने घर में जा नहीं सकेंगे। क्योंकि बाप तो उड़ने वाले हैं, तो चलने वाले कैसे साथ पहुंचेंगे! इसलिए बाप सभी बच्चों को क्या वरदान देते हैं? फरिश्ता स्वरूप भव। फरिश्ता उड़ता है, चलता नहीं है, उड़ता है। तो आप सभी भी उड़ती कला वाले हो ना! हो? हाथ उठाओ जो उड़ती कला वाले हैं, कि कभी चलती कला, कभी उड़ती कला? नहीं? सदा उड़ने वाले, डबल लाइट हो ना! क्यों? सोचो, बाप ने आप सभी से गैरन्टी ली है कि जो भी किसी भी प्रकार का बोझ अगर मन में, बुद्धि में है तो बाप को दे दो, बाप लेने ही आये हैं। तो बाप को बोझ दिया है या थोड़ा-थोड़ा सम्भाल के रखा है? जब लेने वाला ले रहा है, तो बोझ देने में भी सोचने की बात है क्या? कि 63 जन्म की आदत है बोझ सम्भालने की, तो कई बच्चे कभी कभी कहते हैं चाहते नहीं हैं, लेकिन आदत से मजबूर हैं। अभी तो मजबूर नहीं हो ना! मजबूर हो कि मजबूत हो? मजबूर कभी नहीं बनना। मजबूत हैं। शक्तियां मजबूत हो या मजबूर? मजबूत हैं ना? आगे बैठी हुई क्या हैं? मजबूत हैं ना! बोझ रखना अच्छा लगता है क्या? दिल लग गई है, बोझ से दिल लग गई है? छोड़ो, छोड़ो तो छूटो। छोड़ते नहीं हैं तो छूटते नहीं हैं। छोड़ने का साधन है - दृढ़ संकल्प। कई बच्चे कहते हैं दृढ़ संकल्प तो करते हैं, लेकिन, लेकिन.... कारण क्या है? दृढ़ संकल्प करते हो लेकिन किये हुए दृढ़ संकल्प को रिवाइज नहीं करते हो। बार-बार मन से रिवाइज करो और रियलाइज करो, बोझ क्या और डबल लाइट का अनुभव क्या! रियलाइजेशन का कोर्स अभी थोड़ा और अण्डरलाइन करो। कहना और सोचना यह करते हो, लेकिन दिल से रियलाइज करो - बोझ क्या है और डबल लाइट क्या होता है? अन्तर सामने रखो क्योंकि बापदादा अभी समय की समीपता प्रमाण हर एक बच्चे में क्या देखने चाहते हैं? जो कहते हैं वह करके दिखाना है। जो सोचते हो वह स्वरूप में लाना है क्योंकि बाप का वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है मुक्ति और जीवनमुक्ति। सभी को निमन्त्रण भी यही देते हो ना तो आकर मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो। तो अपने से पूछो क्या मुक्तिधाम में मुक्ति का अनुभव करना है वा सतयुग में जीवनमुक्ति का अनुभव करना है वा अब संगमयुग में मुक्ति, जीवनमुक्ति का संस्कार बनाना है? क्योंकि आप कहते हो कि हम अभी अपने ईश्वरीय संस्कार से दैवी संसार बनाने वाले हैं। अपने संस्कार से नया संसार बना रहे हैं। तो अब संगम पर ही मुक्ति जीवनमुक्ति के संस्कार इमर्ज चाहिए ना! तो चेक करो सर्व बंधनों से मन और बुद्धि मुक्त हुए हैं? क्योंकि ब्राह्मण जीवन में कई बातों से जो पास्ट लाइफ के बन्धन हैं, उससे मुक्त हुए हो। लेकिन सर्व बन्धनों से मुक्त हैं या कोई कोई बंधन अभी भी अपने बन्धन में बांधता है? इस ब्राह्मण जीवन में मुक्ति जीवनमुक्ति का अनुभव करना ही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठता है क्योंकि सतयुग में जीवनमुक्त, जीवनबंध दोनों का ज्ञान ही नहीं होगा। अभी अनुभव कर सकते हो, जीवनबंध क्या है, जीवनमुक्त क्या है, क्योंकि आप सबका वायदा है, सबका वायदा है, अनेक बार वायदा किया है, क्या करते हो वायदा, याद है? किसी से भी पूछते हैं आपके इस ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या जवाब देते हो? बाप समान बनना है। पक्का है ना? बाप समान बनना है ना? कि थोड़ा थोड़ा बनना है? समान बनना है ना! बनना है समान? कि थोड़ा भी बन गये तो चलेगा! चलेगा? उसको समान तो नहीं कहेंगे ना। तो बाप मुक्त है, या बंधन है? अगर किसी भी प्रकार का चाहे देह का, चाहे कोई देह के सम्बन्ध, माता पिता बंधु सखा नहीं, देह के साथ जो कर्मेन्द्रियों का सम्बन्ध है, उस कोई भी कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध का बंधन है, आदत का बंधन है, स्वभाव का बंधन है, पुराने संस्कार का बंधन है, तो बाप समान कैसे हुए? और रोज वायदा करते हो बाप समान बनना ही है। हाथ उठवाते हैं तो सभी क्या कहते हैं? लक्ष्मी नारायण बनना है। बापदादा को खुशी होती है, वायदा बहुत अच्छे अच्छे करते हैं लेकिन वायदे का फायदा नहीं उठाते हैं। वायदा और फायदा का बैलेन्स नहीं जानते। वायदों का फाइल बापदादा के पास बहुत बहुत बहुत बड़ा है, सभी का फाइल है। ऐसे ही फायदे का भी फाइल हो, बैलेन्स हो, तो कितना अच्छा लगेगा। यह सेन्टर्स की टीचर्स बैठी है ना। यह भी सेन्टर निवासी बैठे हैं ना? तो समान बनने वाले हुए ना। सेन्टर निवासी निमित्त बने हुए बच्चे तो समान चाहिए ना! हैं? हैं भी लेकिन कभी-कभी थोड़ा नटखट हो जाते हैं?
बापदादा तो सभी बच्चों का सारे दिन का हाल और चाल दोनों देखते रहते हैं। आपकी दादी भी वतन में थी ना, तो दादी भी देखती थी तो क्या कहती थी? पता है, कहती थी बाबा ऐसा भी है क्या? ऐसा होता है, ऐसे करते हैं, आप देखते रहते हैं? सुना, आपकी दादी ने क्या देखा। अभी बापदादा यही देखने चाहते हैं कि एक-एक बच्चा मुक्ति जीवनमुक्ति के वर्से का अधिकारी बने, क्योंकि वर्सा अभी मिलता है। सतयुग में तो नेचरल लाइफ होगी, अभी के अभ्यास की नेचुरल लाइफ, लेकिन वर्से का अधिकार अभी संगम पर है। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक स्वयं चेक करे अगर कोई भी बंधन खींचता है, तो कारण सोचो। कारण सोचो और कारण के साथ निवारण भी सोचो। निवारण बापदादा ने अनेक बार भिन्न-भिन्न रूप से दे दिये हैं। सर्वशक्तियों का वरदान दिया है, सर्वगुणों का खज़ाना दिया है, खज़ाने को यूज करने से खज़ाना बढ़ता है। खज़ाना है, सबके पास है, बापदादा ने देखा है। हर एक के स्टॉक को भी देखता है। बुद्धि है स्टॉक रूम। तो बापदादा ने सबका देखा है। है, स्टॉक में है लेकिन खज़ाने को समय पर यूज नहीं करते हैं। सिर्फ प्वाइंट के रूप से सोचते हैं, हाँ यह नहीं करना है, यह करना है, प्वाइंट के रूप से यूज करते हैं, सोचते हैं लेकिन प्वाइंट बनके प्वाइंट को यूज नहीं करते हैं। इसीलिए प्वाइंट रह जाती है, प्वाइंट बनके यूज करो तो निवारण हो जाए। बोलते भी हैं, यह नहीं करना है, फिर भूलते भी हो। बोलने के साथ भूलते भी हो। इतना सहज विधि सुनाई है, सिर्फ है ही संगमयुग में बिन्दी की कमाल, बस बिन्दी यूज करो और कोई मात्रा की आवश्यकता नहीं। तीन बिन्दी को यूज करो। आत्मा बिन्दी, बाप बिन्दी और ड्रामा बिन्दी है। तीन बिन्दी यूज करते रहो तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं। लगाने चाहते हो बिन्दी लेकिन लगाने के समय हाथ हिल जाता, तो क्वेश्चन मार्क हो जाता या आश्चर्य की रेखा बन जाती है। वहाँ हाथ हिलता, यहाँ बुद्धि हिलती है। नहीं तो तीन बिन्दी को स्मृति में रखना क्या मुश्किल है? है मुश्किल है?
बापदादा ने तो दूसरी भी सहज युक्ति बताई है, वह क्या? दुआ दो और दुआ लो। अच्छा, योग शक्तिशाली नहीं लगता, धारणायें थोड़ी कम होती हैं, भाषण करने की हिम्मत नहीं होती है, लेकिन दुआ दो और दुआ लो, एक ही बात करो और सब छोड़ो, एक बात करो, दुआ लेनी है दुआ देनी है। कुछ भी हो जाए, कोई कुछ भी दे लेकिन मुझे दुआ देनी है, लेनी है। एक बात तो पक्की करो, इसमें सब आ जायेगा। अगर दुआ देंगे और दुआ लेंगे तो क्या इसमें शक्तियां और गुण नहीं आयेंगे? आटोमेटिकली आ जायेंगे ना! एक ही लक्ष्य रखो, करके देखो, एक दिन अभ्यास करके देखो, फिर सात दिन करके देखो, चलो और बातें बुद्धि में नहीं आती, एक तो आयेगी। कुछ भी हो जाए लेकिन दुआ देनी और लेनी है। यह तो कर सकते हैं या नहीं? कर सकते हैं? अच्छा, तो जब भी जाओ ना तो यह ट्रायल करना। इसमें सब योगयुक्त आपेही हो जायेंगे। क्योंकि वेस्ट कर्म करेंगे नहीं तो योगयुक्त हो ही गये ना। लेकिन लक्ष्य रखो दुआ देना है, दुआ लेनी है। कोई कुछ भी देवे, बददुआ भी मिलेगी, क्रोध की बातें भी आयेंगी क्योंकि वायदा करेंगे ना, तो माया भी सुन रही हैं, कि यह वायदा करेंगे, वह भी अपना काम तो करेगी ना। मायाजीत बन जायेंगे फिर नहीं करेंगी, अभी तो मायाजीत बन रहे हैं ना, तो वह अपना काम करेगी लेकिन मुझे दुआ देनी है और दुआ लेनी है। हो सकता है? हो सकता है? हाथ उठाओ जो कहते हैं हो सकता है। अच्छा, शक्तियां हाथ उठाओ। हाँ, हो सकता है! तो सब तरफ की टीचर्स आई हैं ना। सब तरफ की टीचर्स आई है ना। तो जब आप अपने देश में जाओ तो पहले पहले सभी को एक सप्ताह यह होमवर्क करना है और रिजल्ट भेजनी है, कितने जने क्लास के मेम्बर कितने हैं, कितने ओ.के. हैं और कितने थोड़े कच्चे और कितने पक्के हैं, तो ओ.के. के बीच में लाइन लगाना बस ऐसे समाचार देना। इतने जने ओ.के., इतने जनों में ओ.के. में लकीर लगी है। इसमें देखो डबल फारेनर्स आये हैं तो डबल काम करेंगे ना। एक सप्ताह की रिजल्ट भेजना फिर बापदादा देखेंगे, सहज है ना, मुश्किल तो नहीं है। माया आयेगी, आप कहेंगे बाबा मेरे को पहले तो कभी नहीं आता था, अभी आ गया, यह होगा, लेकिन दृढ़ निश्चय वाले की निश्चित विजय है। दृढ़ता का फल है सफलता। सफलता न होने का कारण है दृढ़ता की कमी। तो दृढ़ता की सफलता प्राप्त करनी ही है।
डबल फारेनर्स नम्बर वन हो जाना। डबल है ना, डबल फारेनर्स हैं ना, तो कमाल दिखाना। विदेश के कितने आये हैं? (90 देशों से 300 सेन्टर्स के आये हैं) तो 90 कमाल करेंगे ना? 90 देश के डबल फारेनर्स हैं, और 10इन्डिया के एड हो जायेंगे तो 100 हो जायेंगे। तो करेंगे? जो भी आये हैं, कुछ भी हो, करके ही दिखाना है। है इतने दृढ़ कि सोचते हैं देखेंगे, कोशिश करेंगे.... कोई है ऐसा, जो समझते हैं कोशिश करेंगे, कोशिश वाले हाथ उठाओ। कोई नहीं। तो मुबारक हो, ताली बजाओ। दादियां कहाँ हैं? पक्का है। अच्छा है। क्योंकि डबल फारेनर्स का वैसे नेचर, संस्कार भी गाये हुए हैं कि जो सोचते हैं करना है, वह करके ही छोड़ते हैं, यह डबल फारेनर्स की नेचर गाई हुई है, अभी इस नेचर को इस कार्य में लगाना। ठीक है ना! करके ही दिखाना है, कुछ भी हो जाए। सहनशक्ति का वरदान विशेष लेके जाना। लेकिन बापदादा ने समय प्रति समय बच्चों की एक सीन देखी है, बच्चों की सीन बाप देखता रहता है ना तो क्या देखा! कि बच्चों ने सहन बहुत अच्छा किया, बापदादा वाह! वाह! कर रहे थे बहुत अच्छा बहुत अच्छा देख रहे थे ना, लेकिन बाद में क्या किया, सहन कर लिया, पास हो गये लेकिन पीछे समाने की शक्ति कम होने के कारण, समा नहीं सके ना, तो जहाँ तहाँ वर्णन करते रहे, समाने की शक्ति नहीं थी, सहन करने की शक्ति थी, पार्ट अच्छा बजाया लेकिन समाने की शक्ति कम होने के कारण फिर वर्णन करने लगे ऐसा हुआ, ऐसा हुआ तो गंवा दिया ना। तो ऐसे नहीं करना। बापदादा बहुत दृश्य देखते हैं बच्चों के, पहले ताली बजाते हैं फिर चुप हो जाते हैं, तो ऐसे नहीं करना। सहनशक्ति, समाने की शक्ति, सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है, इसीलिए बाप को सर्वशक्तिवान कहा है, शक्तिवान नहीं कहा है, आपका भी टाइटल मास्टर सर्वशक्तिवान है, शक्तिवान है क्या? सर्वशक्तिवान है ना? तो सर्वशक्तियों का एक दो से कनेक्शन है इसीलिए यह अटेन्शन रखना। अच्छा।
बापदादा खुश है, डबल फारेनर्स ने अपने अपने स्थानों में वृद्धि की है। प्रैक्टिकल में रहमदिल मर्सीफुल का पार्ट अच्छा बजा रहे हैं। बापदादा के पास समाचार तो आते रहते हैं। बापदादा ने अभी भी सुना अफ़्रीका और रशिया दोनों ही तरफ जो भी रहे हुए स्थान हैं, उसमें सन्देश अच्छा दे रहे हैं और भारत में हर एक वर्ग वाले अच्छे हिम्मत और उमंग से अपने अपने वर्ग के तरफ से मर्सीफुल बन आत्माओं को सन्देश देने का, परिचय देने का और सम्बन्ध जोड़ने का कार्य अच्छे उमंग उत्साह से कर रहे हैं। इसकी भी बापदादा मुबारक दे रहे हैं। हाँ ताली बजाओ भले।
जैसे इसकी ताली बजाई ना अभी 6 मास बापदादा देते हैं क्योंकि अभी सीजन तो शुरू होनी ही है, तो 6 मास, ज्यादा टाइम दे रहे हैं। जैसे सेवा उमंग-उत्साह से कर रहे हैं ऐसे स्वयं को भी स्व के प्रति सेवा, स्व सेवा और विश्व सेवा, स्व सेवा अर्थात् चेक करना और अपने को बाप समान बनाना। कोई भी कमी, कमज़ोरी बाप को दे दो ना, क्यों रखी है, बाप को अच्छा नहीं लगता है। क्यों कमज़ोरी रखते हो? दे दो। देने के टाइम छोटे बच्चे बन जाओ। जैसे छोटा बच्चा कोई भी चीज़ सम्भाल नहीं सकता, कोई भी चीज़ पसन्द नहीं आती है तो क्या करता है? मम्मी पापा यह आप ले लो। ऐसे ही कोई भी प्रकार का बोझ, बंधन जो अच्छा नहीं लगता, क्योंकि बापदादा देखता है, एक तरफ यह सोच रहे हैं है तो अच्छा नहीं, ठीक तो नहीं है लेकिन क्या करूं, कैसे करूं, तो यह तो अच्छा नहीं है। एक तरफ अच्छा नहीं है कह रहे हैं, दूसरे तरफ सम्भाल के रख रहे हैं, तो इसको क्या कहें! अच्छा कहें? अच्छा तो नहीं है ना। तो आपको क्या बनना है? अच्छे ते अच्छा ना। अच्छा भी नहीं, अच्छे ते अच्छा। तो जो भी कोई ऐसी बात हो, बाबा हाजिरा हजूर है, उसको दे दो, और अगर वापस आवे तो अमानत समझके फिर दे दो। अमानत में ख्यानत नहीं की जाती है। क्योंकि आपने तो दे दी, तो बाप की चीज़ हो गई, बाप की चीज़ या दूसरे की चीज़ आपके पास गलती से आ जाए, आप अलमारी में रख देंगे? रख देंगे? निकालेंगे ना। कैसे भी करके, निकालेंगे, रखेंगे नहीं। सम्भालेंगे तो नहीं ना। तो दे दो। बाप लेने के लिए आया है। और तो कुछ आपके पास है नहीं जो दो। लेकिन यह तो दे सकते हो ना। अक के फूल हैं, वह दे दो। सम्भालना अच्छा लगता है क्या? तो 6 मास जैसे अभी उमंग से कर रहे हैं सेवा, रशिया का भी समाचार सुना, और अफ़्रीका का भी समाचार सुना, औरों का भी समाचार सुनते रहते हैं, कर रहे हैं।
अभी स्व सेवा के प्रति खास समय दे रहे हैं। अभी देख तो लिया, बापदादा ने कितने समय से दो शब्द बार-बार रिवाइज कराये हैं, वह दो शब्द कौन से हैं? अचानक और एवररेडी। याद है ना! याद है? आपकी बहुत अच्छी दादी चन्द्रमणि, अचानक गई थी, याद है? तभी से, कितना टाइम हो गया, (10 साल) और उसके बाद कितने अचानक के हुए हैं? आपकी दादी कैसे गई? अचानक गई ना। अच्छा दादी से प्यार है, तो यह अचानक का पाठ दादी को याद करके याद करो। जैसे दादी अपने लक्ष्य को पूरा करके गई, ऐसे नहीं गई। उसको सर्टीफिकेट मिला, कर्मातीत, कर्मेन्द्रियों ने भी अपनी आकर्षण में नहीं बांधा, साक्षी होके कर्मेन्द्रियां शीतल होती रही, होती रही। आकर्षण ने नहीं खींचा, न कर्मेन्द्रियों ने खींचा, न किसी आत्मा के मोह ने खींचा, निर्मोही, नष्टोमोहा, नहीं तो कई लोग जाते जाते याद में बोल पड़ते हैं, फलाना, फलाना, फलाना... लेकिन दादी नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप में गई, कर्मेन्द्रियां जीत बनके गई। कोई कर्मेन्द्रिय ने अपने तरफ दु:ख की लहर में नहीं खींचा। तो दादी कहते हो, याद आती है ना, आनी ही चाहिए क्योंकि नम्बरवन थी ना। तो वन नम्बर ने विन तो किया ना। लेकिन जब भी दादी की याद आवे तो सिर्फ चित्र नहीं देखना लेकिन यह याद करो कि मैं भी एवररेडी हूँ। मुझे भी अचानक का पाठ याद है? अभी-अभी मैं भी अचानक चली जाऊं, तो नष्टोमोहा, प्रकृतिजीत हूँ? यही दादी की सौगात सब अपने पास रखो। समझा।
अच्छा - चारों ओर के आये हुए पत्र सन्देश ईमेल सब बापदादा के पास पहुंच गये हैं। सबने अपने प्यार की निशानी, खुद नहीं आ सके तो पत्र द्वारा ईमेल द्वारा भेज दी है। बापदादा ने एक-एक दिल के प्यार के पत्र सन्देश सौगात स्वीकार की और हर एक को बापदादा अपने नयनों में इमर्ज कर, प्यार का रेसपान्ड यादप्यार के रूप में दे रहे है। अच्छा है यह परमात्म प्यार बहुत पुरूषार्थ में सहयोग देता है। तो हर एक बच्चा प्यारा है, प्यारे रहेंगे और प्यार के झूले में झूलते हुए बापदादा के साथ अपने घर चलेंगे। वह भी टाइम आ जायेगा। जो सब साथ चलेंगे, साथ चलने वाले हो ना। पीछे पीछे नहीं आना, मजा नहीं आयेगा। मजा है हाथ में हाथ, साथ में साथ, हाथ है श्रीमत, श्रीमत बुद्धि में होगी, आत्मा परमात्मा का साथ होगा और घर चलेंगे। चलने वाले हो ना सभी, रह नहीं जाना। अभी भी साथ है, चाहे किसी भी कोने में हो, लेकिन बाप साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और फिर ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करेंगे। पक्का वायदा है ना। बीच में नहीं रह जाना। कोई कस्टम की चीज़ होगी तो रूक जायेगी। रावण की चीज़ हुई ना कस्टम। कोई भी रावण का संस्कार, स्वभाव वह धर्मराज पुरी कस्टम में फंसा देगी। और बाप के साथ चले जायेंगे, और कोई अगर होगा तो कस्टम में रूकना पड़ेगा, अच्छा लगेगा। नहीं लगेगा ना? बाप को भी अच्छा नहीं लगेगा। जब वायदा है साथ का, तो सदा साथ रहना। पीछे वाले वायदा है ना पक्का, पीछे वाले हाथ उठाओ, पक्का वायदा है! अच्छा, ठीक है। जो भी आये हैं, जहाँ से भी आये हैं, एक तो साथ नहीं छोड़ना, हर समय बाप और आप, कितना मजा आयेगा। बाप और आप, मजा है ना। टीचर्स मजा है ना इसमें। कि कभी कभी अलग-अलग भी हो जाएं, अच्छा है, बाबा का साथ छोड़ देंगे! नहीं छोड़ना, पक्का? एक सेकेण्ड भी नहीं। इसी को ही सच्चा प्यार कहा जाता है। ठीक है ना? पक्का, पक्का, पक्का है! यह फोटो निकल रहा है आपका, वतन में निकल रहा है। इस कैमरा में तो आयेगा नहीं, वतन में निकल रहा है, बहुत अच्छा।
अच्छा, चारों ओर के सभी बापदादा के दिल पसन्द बच्चे, दिलाराम है ना, तो दिलाराम के दिल पसन्द बच्चे, प्यार के अनुभवों में सदा लहराने वाले बच्चे, एक बाप दूसरा न कोई, स्वप्न में भी दूसरा न कोई, ऐसे बापदादा के अति प्यारे और अति देहभान से न्यारे, सिकीलधे, पदमगुणा भाग्यशाली बच्चों को दिल का यादप्यार और पदम-पदमगुणा दुआयें हों, साथ में बालक सो मालिक बच्चों को बापदादा का नमस्ते।
अफ्रीका के 28 देशों से जो पहली बार आये हैं वह खड़े हुए:- बहुत अच्छा, भले पधारे। अफ्रीका के निमित्त बने हुए कहाँ है! देखो, आप कितने भाग्यवान हैं, स्वयं बाप ने आप बच्चों को याद किया और कोई न कोई द्वारा सन्देश भिजवाया। तो अपने भाग्य को देख करके खुश हो रहे हो ना! सभी आपको देखके खुश हो रहे हो, क्योंकि ब्राह्मण परिवार में वृद्धि हो गई ना। परिवार में कोई भी बढ़ता है तो खुशी होती है ना। तो सब देखो खुश हो रहे हैं आप सबको देख करके। दूसरे देशों से जो पहली बार आये हैं वह उठो:- मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
दादियों से:- सिकीलधी दादियां हैं ना। दादियां हैं या साथी हैं, लेकिन सिकीलधी हैं। (दादी जानकी से) बैठो। अभी तो सीट पर सेट हो ना। बापदादा ने निमित्त बनाया है। इस बच्ची को (गुल्जार दादी को) भी निमित्त बनाया है, दोनों तीनों मिलकर बहुत अच्छी रीति से स्व पुरूषार्थ और विश्व सेवा में और विधि से सिद्धि प्राप्त कराने के निमित्त बनेंगी। वह तो रिद्धि सिधि वाले हैं अल्पकाल के, आपकी है विधि से सिद्धि। विधि से सिद्धि के बजाए उन्होंने रिधि सिद्धि कर दी है। बापदादा ने दादी जानकी के सिर पर हाथ रखा) ठीक है ना। सभी मिलकर करेंगे, सभी मिल करके संगठन को उमंग-उत्साह में लायेंगे। यह तो निमित्त पहला नम्बर, दूसरा नम्बर, तीसरा नम्बर दे देते हैं लेकिन हैं सभी सेवा के साथी। एक दो को उमंग दिलाते आगे बढ़ेंगे और जो दादी का संकल्प रहा है, बाप को प्रत्यक्ष करने का, दादी ने भी बटन तो हाथ में लिया है लेकिन दबायेंगे तो आप ना। आप ही दबायेंगे ना। तो सभी मिलके, जो भी निमित्त बने हुए हैं, सभी मिलके एक दो में राय करके, क्योंकि संगठन की शक्ति बहुत जल्दी सहज कार्य कर लेती है। हाँ जी, हाँ जी करते विश्व को अपने चरणों में हाँ जी कराना है। तो संगठन तो अच्छा है। हर एक की विशेषता है, और विशेषता को आप लोग आपस में वर्णन भी करते हो। क्लास करते हो ना विशेषताओं का। बस विशेष हैं, विशेषतायें देखनी हैं, विशेषतायें देनी हैं। विशेष कार्य करने के लिए विशेषता देखो, विशेषता का एक दो में सहयोग दो। अच्छा है (दादी जानकी से) भारी तो नहीं हो ना। भारी तो नहीं होती ना! (भारी रहने का अक्ल ही नहीं है) अक्ल नहीं है, यही अच्छा है। यह बच्ची (गुल्जार दादी) भी आपको साथ देती है, यह सब साथी हैं। (परदादी भी खुशी में नाचती रहती है) अच्छा खुश रहती है, नाचती रहती है। (अच्छे गीत गाती है) दादी भी गीत गाती थी ना। बचपन के साथी हैं ना। (मनोहर दादी से) ठीक है ना। इसकी विशेषता यह है जो साकार बाप के समय सब तरफ चक्र लगाने में नम्बरवन थी। बापदादा कहता था चक्कर लगाओ, चक्कर लगाओ तो पहला नम्बर आप तैयार होती थी। अभी भी पहला नम्बर क्लास कराने में पहला नम्बर, संगठन में पहुंचने में, हर कार्य में पहला नम्बर। (अभी शांत ज्यादा रहती है) अभी बचपन को याद करो, बीमारी को नहीं, बचपन याद करो। (किडनी में स्टोन हो गया है) आजकल यह बीमारियां तो कामन है, बैठे बैठे भी हो जाता है। सोते, बैठते हो जाता है। न सोना है न बैठना है चक्कर लगाना है।
विदेश की मुख्य बड़ी बहिनों से:- अच्छा फॉरेन ग्रुप आया है। बापदादा को खुशी होती है कि निमित्त फॉरेन में भी इन्डिया की बहनें ही बनी हैं। इन्डिया ने फारेन में रौनक लाई है। लेकिन इन्डिया की समझके नहीं रहती हो, विश्व की समझके रहती हो तभी सेवा हो सकी है अगर इन्डिया का भान हो ना तो सेवा नहीं हो सके, लेकिन यह अच्छा किया है कि फॉरेन में जाते विश्व सेवा का लक्ष्य रखा है। बेहद में गई, हद में नहीं। इसीलिए बापदादा खुश है। और उन्हों को भी साथ लेकर चलते हो ना तो वह भी अपने को आगे से आगे समझते हैं। तो संगठन भी अच्छा एक दो में लेन देन भी अच्छी करते हो, ठीक है बापदादा को पसन्द है। सर्टीफिकेट अच्छा है। सारी विश्व कितना याद करती है। और यह भी अच्छा है लक्ष्य जो रखा है एक दो के तरफ चक्कर लगाने का, यह बहुत अच्छा किया है। जैसे एक देश की दूसरे देश में, बीच बीच में चक्कर लगाते हो यह रिफ्रेशमेंट बहुत जरूरी है। चाहे छोटी बहन हो लेकिन वह दूर से आके क्लास करायेगी चेंज होता है ना तो सबको अच्छा लगता है। बड़ी होते भी छोटी क्लास कभी कभी कराती है तो रौनक आती है। इसलिए यह सिस्टम अच्छी रखी है चक्कर लगाने की। तो अच्छा चल रहा है ना। अच्छा है। (इस बारी और कोई नवीनता आवे) (जर्मनी में बुक फेयर बहुत अच्छा रहा) दिन प्रतिदिन अनुभवी भी होते जाते हो ना, अनुभव भी काम करता है। तो अच्छा है। अच्छा चला रहे हैं।
20-10-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सन्तुष्टमणि बन विश्व में सन्तुष्टता की लाइट फैलाओ, सन्तुष्ट रहो और सबको सन्तुष्ट करो’’
आज बापदादा अपने सदा सन्तुष्ट रहने वाले सन्तुष्ट मणियों को देख रहे हैं। एक-एक सन्तुष्टमणि की चमक से चारों ओर कितनी सुन्दर चमक चमक रही है। हर एक सन्तुष्टमणि कितनी बाप की प्यारी हर एक की प्यारी अपनी भी प्यारी है। सन्तुष्टता सर्व को प्यारी है। सन्तुष्टता सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न है क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। सन्तुष्ट आत्मा में सन्तुष्टता का नेचरल नेचर है। सन्तुष्टता की शक्ति स्वत: और सहज चारों ओर वायुमण्डल फैलाती है। उनका चेहरा उनके नयन वायुमण्डल में भी सन्तुष्टता की लहर फैलाते हैं। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ और विशेषतायें स्वत: ही आ जाती हैं। सन्तुष्टता संगम पर विशेष बाप की देन है। सन्तुष्टता की स्थिति परस्थिति के ऊपर सदा विजयी है। परस्थिति बदलती रहती है लेकिन सन्तुष्टता की शक्ति सदा प्रगति को प्राप्त करती रहती है। कितनी भी परिस्थिति सामने आये लेकिन सन्तुष्टमणि के आगे हर समय प्रकृति एक पपेटशो माफिक दिखाई देती है माया और प्रकृति का पपेट शो। इसलिए सन्तुष्ट आत्मा कभी परेशान नहीं होती। परिस्थिति का शो मनोरंजन अनुभव होता है। यह मनोरंजन अनुभव करने के लिए अपने स्थिति की सीट सदा साक्षीदृष्टा में स्थित रहने वाली यह मनोरंजन अनुभव करती है। दृष्य कितना भी बदलता लेकिन साक्षी दृष्टा की सीट पर स्थित रहने वाली सन्तुष्ट आत्मा साक्षी हो हर परिस्थिति को स्व स्थिति से बदल देती है। तो हर एक अपने को चेक करे कि मैं सदा सन्तुष्ट हूँ? सदा? सदा हैं वा कभी कभी हैं?
बापदादा हमेशा हर शक्ति के लिए खुशी के लिए डबल लाइट बन उड़ने के लिए यही बच्चों को कहते कि सदा शब्द सदा याद रहे। कभी-कभी शब्द ब्राह्मण जीवन के डिक्शनरी में है ही नहीं क्योंकि सन्तुष्टता का अर्थ ही है सर्व प्राप्ति। जहाँ सर्व प्राप्ति है वहाँ कभी-कभी शब्द है ही नहीं। तो सदा अनुभूति करने वाले हो वा पुरूषार्थ कर रहे हो? हर एक ने अपने आपसे पूछा चेक किया? क्योंकि आप सभी विशेष बाप के स्नेही सहयोगी लाडले मीठे मीठे स्व-परिवर्तक बच्चे हो। ऐसे हो ना? है ऐसे? जैसे बाप देख रहे हैं ऐसे ही अपने को अनुभव करते हो? हाथ उठाओ जो सदा कभी-कभी नहीं सदा सन्तुष्ट रहते हैं। सदा शब्द याद है ना। थोड़ा धीरे धीरे उठा रहे हैं। अच्छा। बहुत अच्छा। थोड़े थोड़े उठा रहे हैं और सोच-सोच के उठा रहे हैं। लेकिन बापदादा ने बार-बार अटेन्शन खिंचवाया है कि अब समय और स्वयं दोनों को देखो। समय की रफ्तार और स्वयं की रफ्तार दोनों को चेक करो। पास विद आनर तो होना ही है ना। हर एक सोचो कि मैं बाप की राजदुलारी या राजदुलारा हूँ। अपने को राजदुलारा समझते हो ना! रोज़ बापदादा आपको क्या याद प्यार देते हैं? लाडले। तो लाडला कौन होता है? लाडला वही होता है जो फॉलो फादर करता है और फॉलो करना बहुत बहुत बहुत सहज है कोई मुश्किल नहीं है। एक ही बात को फॉलो किया तो सहज सर्व बातों में फॉलो हो ही जायेगा। एक ही लाइन है जो बाप हर रोज़ याद दिलाते हैं। वह याद है ना? अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। एक ही लाइन है ना और याद करने वाली आत्मा जिसको बाप का खज़ाना मिल गया वह सेवा के बिना रह ही नहीं सकता क्योंकि अथाह प्राप्ति है अखुट खज़ाने हैं। दाता के बच्चे हैं वह देने के बिना रह नहीं सकते और मैजॉरिटी आप सबको टाइटिल क्या मिला है? डबल फारेनर्स। तो टाइटिल ही डबल है। बापदादा को भी आप सबको देख खुशी होती है और सदा ऑटोमेटिक गीत गाते रहते कि वाह मेरे बच्चे वाह! अच्छा है भिन्न-भिन्न देश से कौन से विमान में आये हो? स्थूल में तो किसी भी विमान में आये हो लेकिन बापदादा कौन सा विमान देख रहे हैं? अति स्नेह के विमान में अपने प्यारे-प्यारे घर में पहुंच गये हो। बापदादा हर बच्चे को आज विशेष यही वरदान दे रहे हैं कि हे लाडले प्यारे बच्चे सदा सन्तुष्टमणि बन विश्व में सन्तुष्टता की लाइट फैलाओ। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। कई बच्चे कहते हैं सन्तुष्ट रहना तो सहज है लेकिन सन्तुष्ट करना यह थोड़ा मुश्किल लगता है। बापदादा जानते हैं अगर हर एक आत्मा को सन्तुष्ट करना है तो उसकी विधि बहुत सहज साधन है अगर कोई आपसे असन्तुष्ट होता है या असन्तुष्ट रहता है तो वह भी असन्तुष्ट लेकिन आपको भी उसकी असन्तुष्टता का प्रभाव कुछ तो पड़ता है ना। व्यर्थ संकल्प तो चलता है ना। जो बापदादा ने शुभ भावना शुभ कामना का मन्त्र दिया है अगर अपने आपको इस मन्त्र में स्मृति स्वरूप रखो तो आपके व्यर्थ संकल्प नहीं चलेंगे। अपने को जानते हुए भी कि यह ऐसा है यह वैसा है लेकिन अपने को सदा न्यारा उसके वायब्रेशन से न्यारा और बाप का प्यारा अनुभव करो। तो आपके न्यारे और बाप के प्यारे पन की श्रेष्ठ स्थिति के वायब्रेशन अगर उस आत्मा को नहीं भी पहुंचे तो वायुमण्डल में फैलेगा जरूर। अगर कोई परिवर्तन नहीं होता और आपके अन्दर भी उसी आत्मा का प्रभाव पड़ता रहता व्यर्थ संकल्प के रूप में तो वायुमण्डल में सबके संकल्प फैलते हैं। इसलिए आप न्यारा बन बाप का प्यारा बन उस आत्मा के भी कल्याण के प्रति शुभ भावना शुभ कामना रखो। कई बार बच्चे कहते हैं कि उसने गलती की ना तो हमको भी फोर्स से कहना पड़ता है थोड़ा अपना स्वभाव भी मुख भी फोर्स वाला हो जाता है। तो उसने गलती की लेकिन आपने जो फोर्स दिखाया क्या वह गलती नहीं है? उसने और गलती की आपने अपने मुख से जो फोर्स से बोला जिसको क्रोध का अंश कहेंगे तो वह राइट है? क्या गलत गलत को ठीक कर सकता है? आजकल के समय अनुसार अपने बोल को फोर्सफुल बनाना यह भी विशेष अटेन्शन रखो क्योंकि जोर से बोलना या तंग होके बोलना वह तो बदलता नहीं लेकिन यह भी दूसरे नम्बर के विकार का अंश है। कहा जाता है - मुख से बोल ऐसे निकले जैसे फूलों की वर्षा हो रही है। मीठा बोल मुस्कराहट चेहरा मीठी वृत्ति मीठी दृष्टि मीठा सम्बन्ध-सम्पर्क यह भी सर्विस का साधन है। इसलिए रिजल्ट देखो अगर मानो कोई ने गलती की गलत है और आपने समझाने के लक्ष्य से और कोई लक्ष्य नहीं है लक्ष्य आपका बहुत अच्छा है कि इसको शिक्षा दे रहे हैं समझा रहे हैं लेकिन रिजल्ट में क्या देखा गया है? वह बदलता है? और ही आगे के लिए आगे आने से डरता है। तो जो लक्ष्य आपने रखा वह तो होता नहीं है इसलिए अपने मन्सा संकल्प और वाणी अर्थात् बोल और सम्बन्ध-सम्पर्क सदा मीठा मधुरता अर्थात् महान बनाओ क्योंकि वर्तमान समय लोग प्रैक्टिकल लाइफ देखने चाहते हैं अगर वाणी से सेवा करते हो तो वाणी की सेवा से प्रभावित हो नज़दीक तो आते हैं यह तो फायदा है लेकिन प्रैक्टिकल मधुरता महानता श्रेष्ठ भावना चलन और चेहरे को देख स्वयं भी परिवर्तन के लिए प्रेरणा ले लेते हैं और जैसे जैसे आगे समय की हालातें परिवर्तन होनी हैं तो ऐसे समय पर आप सबको चेहरे और चलन से ज्यादा सेवा करनी पड़ेगी। इसलिए अपने आपको चेक करो - आत्माओं के प्रति शुभ भावना शुभ कामना की वृत्ति और दृष्टि के संस्कार नेचर और नेचरल हैं?
बापदादा हर एक बच्चे को माला का मणका विजयी माला का मणका देखने चाहते हैं। तो आप सभी भी अपने को समझते हो कि हम माला के मणके बनने ही वाले हैं। कई बच्चे सोचते हैं कि 108 की माला में तो जो निमित्त बने हुए बच्चे हैं वही आयेंगे लेकिन बापदादा ने पहले भी कहा है यह तो 108 का गायन भक्ति की माला का है लेकिन अगर आप हर एक विजयी दाना बनेंगे तो बापदादा माला के अन्दर बहुत लड़ी लगा देगा। बाप के दिल की माला में आप हर एक विजयी बच्चों को स्थान है यह बाप की गैरन्टी है। सिर्फ स्वयं को मन्सा-वाचा-कर्मणा और चलन चेहरे में विजयी बनाओ। है पसन्द है, बनेंगे? बापदादा की गैरन्टी है विजय माला का मणका बनायेंगे। कौन बनेंगे? अच्छा तो बापदादा माला के अन्दर माला बनाने शुरू कर देंगे। डबल फारेनर्स को पसन्द है ना! विजयी माला में लाना बाप का काम है लेकिन आपका काम है विजयी बनना। सहज है ना! कि मुश्किल है? मुश्किल लगता है? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। लगता है? थोड़े-थोड़े कोई-कोई हैं। बापदादा कहता है - जब बापदादा कहते हो तो बाबा कहने से क्या बाप का वर्सा नहीं मिलेगा! जब सभी वर्से के अधिकारी हो और कितना सहज बाप ने वर्सा दिया सेकण्ड की बात है आपने माना जाना मेरा बाबा और बाप ने क्या कहा? मेरा बच्चा। तो बच्चा तो स्वत: ही वर्से के अधिकारी है। बाबा कहते हो ना सभी एक ही शब्द बोलते हो मेरा बाबा। है ऐसे? मेरा बाबा है? इसमें हाथ उठाओ। मेरा बाबा है तो मेरा वर्सा नहीं है? जब मेरा बाबा है तो मेरा वर्सा भी बंधा हुआ है और वर्सा क्या है? बाप समान बनना। विजयी बनना। बापदादा ने देखा कि डबल फारेनर्स में मैजारिटी हाथ में हाथ लेके चलेंगे। हाथ में हाथ देना चलना यह फैशन है। तो अभी भी बाप कहते हैं बाप शिवबाबा का हाथ क्या है? यह हाथ तो है नहीं तो शिवबाबा का हाथ पकड़ा तो हाथ कौन सा है? श्रीमत बाप का हाथ है। तो जैसे स्थूल में हाथ में हाथ देकर चलना पसन्द आता है तो श्रीमत के हाथ में हाथ देके चलना यह क्या मुश्किल है! ब्रह्मा बाप को देखा प्रैक्टिकल सबूत देखा कि हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने से सम्पूर्ण फरिश्तेपन की मंज़िल में पहुंच गया ना! अव्यक्त फरिश्ता बन गया ना। तो फॉलो फादर हर एक श्रीमत उठने से लेकर रात तक हर कदम की श्रीमत बापदादा ने बता दी है। उठो कैसे चलो कैसे कर्म कैसे करो मन में संकल्प क्या-क्या करो और समय को कैसे श्रेष्ठ बिताओ। रात को सोने तक श्रीमत मिली हुई है। सोचने की भी जरूरत नहीं यह करूं या नहीं करूं फॉलो ब्रह्मा बाप। तो बापदादा का जिगरी प्यार है बापदादा एक बच्चे को भी विजयी नहीं बनें राजा नहीं बनें यह नहीं देखने चाहते। हर एक बच्चा राजा बच्चा है। स्वराज्य अधिकारी है। इसलिए अपना स्वराज्य भूल नहीं जाना। समझा।
बापदादा ने कई बार इशारा दिया है कि समय अचानक और नाज़ुक आ रहा है इसलिए एवररेडी अशरीरीपन का अनुभव आवश्यक है। कितना भी बिजी हो लेकिन बिजी होते हुए भी एक सेकण्ड अशरीरी बनने का अभ्यास अभी से करके देखो। आप कहेंगे हम बहुत बिजी रहते हैं अगर मानो कितने भी बिजी हो आपको प्यास लगती है क्या करेंगे? पानी पि्ायेंगे ना! क्योंकि समझते हो प्यास लगी है तो पानी पीना जरूरी है। ऐसे बीच-बीच में अशरीरी आत्मिक स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास भी जरूरी है क्योंकि आने वाले समय में चारों ओर की हलचल में अचल स्थिति की आवश्यकता है। तो अभी से बहुतकाल का अभ्यास नहीं करेंगे तो अति हलचल समय अचल कैसे रहेंगे! सारे दिन में एक-दो मिनट निकालके भी चेक करो कि समय प्रमाण आत्मिक स्थिति द्वारा अशरीरी बन सकते हैं? चेक करो और चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना चेंज भी करो। तो बार-बार इस अभ्यास को चेक करने से रिवाइज़ करने से नेचरल स्थिति बन जायेगी। बापदादा से स्नेह है इसमें तो सभी हाथ उठाते हैं। हैं ना स्नेह! फुल स्नेह है फुल कि अधूरा? अधूरा तो नहीं है ना। तो स्नेह है तो वायदा क्या है? क्या वायदा किया है? साथ चलेंगे? अशरीरी बन साथ चलेंगे कि पीछे-पीछे आयेंगे? साथ चलेंगे? और थोड़ा टाइम साथ रहेंगे भी वतन में थोड़ा। और फिर ब्रह्मा बाप के साथ फर्स्ट जन्म में आयेंगे। है यह वायदा? है ना? हाथ नहीं उठवाते हैं ऐसे सिर हिलाओ। हाथ उठाते थक जायेंगे ना। जब साथ चलना ही है पीछे नहीं रहना है तो बाप भी साथ किसको लेके जायेंगे? बाप समान को साथ लेके जायेंगे। बाप को भी अकेला जाना पसन्द नहीं है बच्चों के साथ जाना है। तो साथ चलने के लिए तैयार है ना! कांध हिलाओ। हैं? सभी चलेंगे? अच्छा सभी चलने के लिए तैयार हैं? जब बाप जायेंगे तब जायेंगे ना। अभी नहीं जायेंगे अभी तो फॉरेन में जाना है ना लौट के। बाप आर्डर करेगा नष्टोमोहा स्मृति लब्धा का बेल बजायेगा और साथ चल पड़ेंगे। तो तैयारी है ना! स्नेह की निशानी है साथ चलना। अच्छा।
बापदादा हर एक बच्चे को दूर से भी नजदीक अनुभव कर रहा है। जब साइंस के साधन दूर को नजदीक कर सकता है देख सकता है बोल सकता है तो बापदादा भी दूर बैठे हुए बच्चों को सबसे नजदीक देख रहे हैं। दूर नहीं हो दिल में समाये हुए हो। तो बापदादा विशेष टर्न के अनुसार आये हुए बच्चों को अपने दिल में नयनों में समाते हुए एक-एक को साथ चलने वाले साथ रहने वाले साथ राज्य करने वाले देख रहे हैं। तो आज से सारे दिन में बार-बार कौन सी ड्रिल करेंगे? अभी अभी एक सेकण्ड में आत्म-अभिमानी अपने शरीर को भी देखते हुए अशरीरी स्थिति में न्यारा और बाप का प्यारा अनुभव कर सकते हो ना! तो अभी एक सेकण्ड में अशरीरी भव! अच्छा। (ड्रिल) ऐसे ही बीच-बीच में सारे दिन में कैसे भी एक मिनट निकाल इस अभ्यास को पक्का करते चलो।
बाकी बच्चों ने चाहे विदेश वालों ने चाहे देश वालों ने दोनों ने मिलकर जो भी प्लैन प्रोग्राम बनाये तो बापदादा ने देखा भी सुना भी। बापदादा ने बीच-बीच में आपके प्रोग्रामस के बीच में चक्कर लगाकर देखा भी। तो बापदादा खुश है कि सभी ने मिलकर जो भविष्य तीव्र पुरूषार्थ परिवर्तन का प्लैन बनाया है वह बापदादा को पसन्द है। लेकिन जो प्लैन बनाये हैं वह दूसरे साल में उसको प्रैक्टिकल में लाने वालों को बापदादा विशेष एक गुप्त सौगात देंगे। तो आगे बढ़ो इस बारी के दोनों के संगठन में पर-उपकार सहयोगी बनने का उमंग अच्छा देखा गया। डबल विदेशियों को बापदादा ने पहले भी कहा है कि अभी डबल विदेशी के बजाए डबल तीव्र पुरूषार्थी कहो। बापदादा आप सब बच्चों को इस विश्व की स्टेज पर हीरो पार्ट बजाने वाला विश्व के आगे हीरो दिखाने चाहते हैं। सभी उमंग- उत्साह से आये भी हैं और पत्र भी बहुत आये हैं हर एक ग्रुप ने भी अपना याद निशानियां भेजी है। बापदादा ने देखा है जिन्होंने भी यादप्यार या ईमेल या पत्र भेजे हैं उन सबको बापदादा नाम सहित सम्मुख देख पदमगुणा यादप्यार दे रहे हैं। चाहे दूर हैं लेकिन दिल में समाये हुए हैं। और सभी ब्राह्मण परिवार को खुशी होती है कि एक ही समय 100 देशों के इकट्ठे हुए हैं। यह संगठन कितना अच्छा लगता है। कहाँ-कहाँ से आये और अपने घर और परिवार बापदादा से भी मिलन मनाया। इसलिए बापदादा डबल फॉरेनर्स का टर्न है विशेष देखो डबल फॉरेनर्स का अलग टर्न बनाया है तो विशेष उड़ना पड़ेगा। चलना नहीं उड़ना। और डबल तीव्र पुरूषार्थी नाम ही आपका यह है डबल तीव्र पुरूषार्थी ग्रुप। वैसे भी वैरायटी चीजे अच्छी लगती हैं तो यह भी वैरायटी देशों से एक स्थान में संगठन का दृश्य भी बहुत अच्छा लग रहा है। अभी आप तो देख नहीं सकते बाप तो देख रहे हैं ना। अच्छा टी.वी. में देख रहे हैं। साइंस आप लोगों की सेवा के लिए पुरूषार्थ के लिए निकली है और आप सम्पन्न हो जायेंगे तो साइंस समाप्त हो जायेगी। रिफाइन होके फिर हमारे राज्य में आयेगी। साइंस के साधन आप सबकी सेवा करेंगे लेकिन निर्विघ्न। जिन्होंने भी निमित्त बनके प्लैन बनाया प्रैक्टिकल लाये वह निमित्त टीचर्स उठके खड़े हो यहाँ ही। जो सेवा में फॉरेनर्स टीचर्स निमित्त बनें वह उठो। तो बापदादा निमित्त बने हुए सर्विसएबुल ग्रुप को विशेष यादप्यार दे रहे हैं। जी हाजिर किया उसके लिए बहुत-बहुत मुबारक है। अच्छा।
अभी जो भी डबल पुरूषार्थी फॉरेनर्स पाण्डव आये हैं पाण्डव सेना उठो। डबल फॉरेनर्स पाण्डव सेना। देखो पाण्डवों की विशेषता क्या गाई हुई है? पाण्डवों की विशेषता यही गाई हुई है कि वह विजयी तब बनें जब बाप का साथ लिया। पाण्डवपति का साथ लेने से विजयी बन गये। तो पाण्डव यही याद रखना कि हम पाण्डवपति के साथी हैं साथ भी हैं साथी भी हैं। तो आपका टाइटल क्या है? साधारण पाण्डव नहीं विजयी पाण्डव। कभी भी पाण्डवों का नाम लेंगे ना तो यही प्रसिद्ध है विजयी पाण्डव। तो वही हो ना। कितने बार विजय प्राप्त की है? अनेक बार विजयी बने हो और अनेक बार बनते रहेंगे। संगठन अच्छा है।
अभी सभी चाहे देश की चाहे विदेश की सभी शिव शक्तियां उठो। देखो शिव शक्तियों का झुण्ड बड़ा है और आपकी विशेषता क्या है? शिव शक्तियों की विशेषता क्या है? देखो आप लोगों का इतना बाप से सम्बन्ध है जो यादगार में भी शिव शक्ति कहते हैं। बाप से नाता सारा आधाकल्प भी शिव शक्ति के नाम से गाया जाता है और अब भी शिव बाप के साथ हो और साथी भी हो। बापदादा जब भी सर्विसएबुल बच्चों को या बच्चियों को देखते हैं तो फखुर आता है वाह! मेरे विश्व परिवर्तक साथी वाह! तो सबसे मिले ना। यह तो समय पर कुछ तो बदली होता ही है।
बापदादा को तन को भी चलाना तो पड़ेगा ना। देखना तो पड़ेगा। फिर भी बापदादा दोनों को समाने का पार्ट बच्ची ने भी अच्छा बजाया है। 40 वर्ष पार्ट बजाने को हो रहा है अभी 39 वर्ष हुए हैं कमाल है अव्यक्त पार्ट की। बापदादा इन दोनों को (आओ नीलू और हंसा) और साथी भी हैं लेकिन इन दोनों ने शरीरों की नब्ज को जानकर अच्छा शरीर को चलवाना सिखाया। और साथी भी हैं साथी भी हाथ उठाओ। शरीर के नब्ज को जानकर योगयुक्त होकर चलाने का बहुत अच्छा पार्ट बजाया और बजाते रहना। अच्छा। अभी भारत की जो विशेष निमन्त्रण पर आई वह उठो पाण्डव भी आये हैं जो पाण्डव विशेष निमन्त्रण पर आये वह भी उठो। अच्छा। भारत वाले तो अपने को भी और बाप भी समझते हैं कि इन आत्माओं का भी विशेष पार्ट है जो पालना ली भी है और पालना दे भी रहे हैं और जो भी पालना के निमित्त बनते हैं उन्हों को एकस्ट्रा भाग्य भी मिलता है चाहे पाण्डव हैं चाहे शक्तियां हैं लेकिन विशेष पार्ट बजाने वालों के विशेष भाग्य की लकीर मस्तक में चमकती है। बापदादा अब भारत की सीजन में होमवर्क पूछेगा कौन सा ज़ोन नम्बरवन हुआ? ज़ोन सेन्टर नहीं। कौन सा ज़ोन? चाहे मधुबन मधुबन भी इस रेस में है। नम्बरवन कौन है? यह होमवर्क जो दिया उसकी रिजल्ट पूछेंगे। चाहे अभी थोड़ा समय है लेकिन परिवर्तन आने में लाने में कोई देरी नहीं लगती। सिर्फ दृढ़ संकल्प हो मधुबन वालों को भी चांस है नम्बर लेने का। बाकी अच्छा है बापदादा खुश है डबल लॉटरी मिल गई। संगठन भी और इतने कहाँ कहाँ से 100 देशों से आये हुए हैं तो एक ही समय इतने परिवार से मिलना और बाप से भी मिलना प्रोग्रामस भी बनाना तो लकी हो। अच्छा। तो सबसे मिले ना। कहेंगे नहीं मिले? सबसे मिल लिया ना।
आप सबकी शुभ भावना और शुभ दुआओं से यह रथ भी चल रहा है। आप सबके स्नेह की जो खुराक है वह पार्ट को चला रही है। बच्ची चलते फिरते कहती है कि कहावत है - रास्ते चलते ब्राह्मण फंस गया। तो मैं भी फंस नहीं गई लेकिन निमित्त बन गई। लेकिन थोड़ा सा देखना भी पड़ता है। आप लोग तो सन्तुष्ट है ना। सन्तुष्ट हैं? सिर्फ ग्रुप-ग्रुप से नहीं मिल सकते। बापदादा भी इस पार्ट को देखके मुस्कराते रहते हैं दादी ने हिम्मत से निमित्त बनाया।
अच्छा। ड्रिल तो याद है ना। भूल तो नहीं गये हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं आगे का समय अति हाहाकार का होगा। आप सबको सकाश देनी पड़ेगी और सकाश देने में ही आपका अपना तीव्र पुरूषार्थ हो जायेगा। थोड़े समय में सकाश द्वारा सर्व शक्तियां देनी पड़ेंगी और जो ऐसे नाजुक समय में सकाश देंगे जितनों को देंगे चाहे बहुतों को चाहे थोड़ों को उतने ही द्वापर और कलियुग के भक्त उनके बनेंगे। तो संगम पर हर एक भक्त भी बना रहे हैं क्योंकि दिया हुआ सुख और शान्ति उनके दिल में समा जायेगा और भक्ति के रूप में आपको रिटर्न करेंगे। अच्छा।
चारों ओर के बापदादा के नयनों के नूर विश्व के आधार और उद्धार करने वाली आत्मायें मास्टर दु:ख हर्ता सुख कर्ता विश्व परिवर्तक बच्चों को बहुत-बहुत दिल का स्नेह दिल का यादप्यार और पदम-पदम वरदान स्वीकार हो। अच्छा।
दादियों से:- सब खुश हुए ना। अच्छा। अभी करना क्या है?
अच्छा - साक्षी होके हिसाब किताब चुक्तू कर रही है।
परदादी से:- देखो सबकी प्यारी और न्यारी आत्मा हो। सभी आप लोगों को चाहे बेड पर भी हो तो भी आप सबके साथ दिल का स्नेह बहुत है। बेड पर नहीं हो सभी के दिल में हो। अच्छा।
विदेश की बड़ी बहिनों से:- (एक बुक बापदादा को दी) मेहनत अच्छी की है। अच्छा रॉयल बनाया है किसको भी देने के लिए अच्छी गिफ्ट बन गई। अच्छी मेहनत भी की है मुहब्बत भी दिखाई है। डबल विदेशियों को पालना दे रहे हो यह भी बहुत अच्छी हिम्मत रख करके आगे बढ़ रहे हो और बढ़ते रहेंगे। अच्छा संगठन भी आपस में अच्छा किया है। बापदादा खुश है। उमंग-उत्साह भरने का एक साधन है नवीनता चाहिए ना सबको। अच्छा है सिर्फ इसको पीठ करते रहना। जिससे सबमें उमंग आवे हम भी पार्ट लें हम भी करके दिखाये। हो जायेगा।
(सुदेश बहन ने लण्डन का समाचार सुनाया) बापदादा की मुबारक है, मुबारक है।
मनमोहिनी काम्पलेक्स विभाग के कन्ट्रक्शन के निमित्त भाई:- आप ब्राह्मणों के लिए बापदादा की तरफ से आप बच्चों की तरफ से परिवार के लिए मनमोहिनी वन में भवन बन रहे हैं बापदादा को खुशी है कि सबके सहयोग से ब्राह्मण आत्माओं को आराम से रहने अपने को रिफ्रेश करने के लिए सभी प्यार से बना भी रहे हैं और सहयोग भी दे रहे हैं तो कुछ बन गया है और कुछ बन रहा है तो सबके सहयोग से ब्राह्मणों के लिए जितना बनाओ उतना कम होता जाता है क्योंकि ब्राह्मण बढ़ते रहते हैं और बढ़ते ही रहने हैं। इसलिए आप सबके बूंद-बूंद से यह कम्पलीट हो रहा है। खुशी होती है ना हमारे भाई बहिन आयेंगे आराम से रहेंगे और सफलता को प्राप्त करेंगे। आप सबको खुशी है वाह हमारा घर बढ़ता जा रहा है। तो अपना घर देख करके कितनी खुशी होती है। अभी तो हद का वैराग्य होने दो फिर देखो आपके पास कितनी आत्मायें दुआयें लेने सुख शान्ति लेने के लिए आती हैं। तो आप सुख दाता उन्हों को शरीर के आराम का सुख भी देंगे ना तो यह तो बढ़ता रहेगा और आप बढ़ाते रहेंगे। वर्तमान समय यह है फिर और भी बढ़ेगा बनेगा कि बहुत हो गया? आप तो आवाहन कर रहे हो ना जो भी आवे अंचली तो ले ले। दुआयें कितनी निकलेंगी। खुशी है हमारा घर बन रहा है कि मधुबन का घर बन रहा है? आपका बन रहा है ना। बहुत अच्छा। मेहनत करने वाले भी अच्छी मेहनत प्यार से कर रहे हैं। अच्छा।
मनोहर दादी की याद दी:- आप सबको अपनी प्यारी दादी मनोहर इन्द्रा याद है ना। सदा अपना पार्ट अच्छे ते अच्छा बजाया है तो अभी भी सबके स्नेह और शुभ संकल्प से अपना पार्ट बजा रही है और बजाती रहेगी। हर एक का फिक्स पार्ट है। वह तो वतन में मौज मना रही है इस शरीर में नहीं है लेकिन वतन में मौज मना रही है। उसके दिल की आश पूरी हो रही है। अच्छा।
30-11-11 ओम शान्तिअव्यक्त बापदादामधुबन
‘‘अमृतवेले विशेष सर्व शक्तियों के अनुभवी स्वरूप बन योग की सकाश वायुमण्डल में फैलाओ, मन को सदा बिजी रखो, समय की पुकार है - तीव्र पुरूषार्थी भव’’
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के मस्तक में भाग्य के चमकते हुए सितारे देख रहे हैं। एक जन्म का, दूसरा संबंध का और तीसरा प्राप्तियों का। तीनों भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। जन्म का भाग्य तो आप जानते हो कि आप सबको यह दिव्य जन्म, ब्राह्मण जन्म देने वाला स्वयं भाग्य विधाता है। तो सोचो, कितना बड़ा भाग्य है! साथ-साथ सम्बन्ध, इसकी विशेषता जानते हो कि तीनों सम्बन्ध बाप, शिक्षक, सतगुरू तीनों सम्बन्ध एक बाप से हैं। एक में ही तीन सम्बन्ध हैं। प्राप्तियों को भी जानते हो, जहाँ बाप है वहाँ प्राप्तियां तो सर्व और बेहद की है। एक में तीनों सम्बन्ध हैं। वैसे भी जीवन में यह तीन सम्बन्ध आवश्यक हैं लेकिन दुनिया वालों के हरेक सम्बन्ध अलग- अलग हैं और आपके तीनों सम्बन्ध एक में हैं। एक में तीनों सम्बन्ध होने के कारण याद भी अनुभव भी सहज होता है। सब तीनों सम्बन्ध के अनुभवी हैं ना! बाप द्वारा क्या मिलता है? वर्सा। वर्सा भी कितना ऊंचा मिलता है और यह वर्सा कितना समय चलता है क्योंकि परमात्म बाप द्वारा प्राप्त होता है। दूसरा सम्बन्ध है शिक्षक का, शिक्षा को कहा जाता है सोर्स आफ इनकम। तो आप सबको शिक्षक द्वारा कितना ऊंच प्राप्ति हुई है, जानते हो ना! ऐसी ऊंची प्राप्ति सिवाए परमात्मा पिता के और किससे हो नहीं सकती। शिक्षा से पद की प्राप्ति होती है और आप सबको श्रेष्ठ प्राप्ति है, दुनिया में भी श्रेष्ठ प्राप्ति राज्यपद को कहा जाता है। तो आपको भी शिक्षक द्वारा राज्यपद की प्राप्ति हुई है। अभी भी स्वराज्य के राजा हो क्यों? आत्मा राजयोगी होने के कारण स्वराज्य अधिकारी बनती है। स्व पर राज्य करती है। कर्मेन्द्रियों के वशीभूत नहीं होती, आत्मा मालिक होके इन कर्मेन्द्रियों की राजा बन जाती है। तो अभी का स्वराज्य और भविष्य में भी राज्य भाग्य प्राप्त होता है। तो डबल राज्य अभी भी और भविष्य में भी पद की प्राप्ति होती है। और तीसरा सम्बन्ध है सतगुरू का। तीनों सम्बन्ध प्राप्त हैं ना! है? बाप का, शिक्षक का और तीसरा है सतगुरू का। सतगुरू द्वारा गुरू की श्रीमत मिलती है। कितनी श्रेष्ठ मत मिली है? तो अपने को चेक करो कि सदा श्रीमत पर चलते हैं वा कभी मनमत परमत की तरफ तो नहीं बुद्धि जाती? चेक किया? जो समझते हैं सतगुरू द्वारा सदा ही श्रीमत श्रेष्ठ मत पर चलने वाले हैं, मनमत परमत पर कभी भी स्वप्न में भी नहीं जाते, वह हाथ उठाओ, जो सदा श्रीमत पर ही चलते हैं, परमत मनमत नहीं? हाथ उठाओ।
देखो, माताओं ने उठाया। थोड़े थोड़े उठा रहे हैं। कभी कभी चली जाती हैं और परमत मनमत धोखा दे देती है। और विशेष श्रीमत क्या है? अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। तो सहज है या मुश्किल है? कभी कभी मुश्किल हो जाती है! लेकिन बाप यही चाहते हैं कि सदा इन तीन सम्बन्धों से हर बच्चा आगे आगे उड़ता चले। तो बापदादा पूछते हैं कि जिन्होंने हाथ नहीं उठाया वह अब से मनमत, परमत का त्याग कर सकते हैं? कर सकते हैं? वह हाथ उठाओ। अच्छा! क्योंकि बापदादा ने समय का इशारा दे दिया है। अभी संगम का समय अति वैल्युबुल है और बापदादा ने यह भी इशारा दे दिया है कि वर्तमान समय के प्रमाण सब अचानक होना है इसलिए सदा एवररेडी बनना है ना! साथ चलेंगे ना सब कि पीछे पीछे आयेंगे? बापदादा के साथ अपने घर चलना है ना! रेडी हो ना! साथ चलने के लिए रेडी हो? एवरेडी। रेडी भी नहीं, एवररेडी। तो बापदादा समय का इशारा दे रहे हैं। इस एक जन्म में 21 जन्मों की प्रालब्ध बनानी है। तो सोचो कितना अटेन्शन देना है। बाप का हर बच्चे के साथ प्यार है, बाप यही चाहते हैं कि हर बच्चा बाप के साथ-साथ चले और साथ-साथ राज्य अधिकारी बनें।
तो आप साथ चलने के लिए बाप समान सम्पूर्ण और सम्पन्न बनेंगे तब तो साथ चलेंगे ना! इस समय इस छोटे से जन्म में 21 जन्म की प्राप्ति निश्चित है। तो सोचो संगम का छोटा सा जन्म एक एक मिनट कितना महान है! हिसाब लगाओ, इस जन्म में 21 जन्म का राज्य भाग्य लेना है तो संगम का एक मिनट भी कितना वैल्युबुल है। तो इस वैल्यु को जान क्या करना पड़ेगा?
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि दो बातों का विशेष अटेन्शन दो। दो बातें कौन सी? याद हैं ना! एक समय और दूसरा संकल्प। संकल्प व्यर्थ न जाये, समय व्यर्थ न जाये। एक एक सेकण्ड सफल हो। तो बोलो इतना अटेन्शन देना पड़ेगा ना! बापदादा का तो सभी बच्चों से प्यार है। बापदादा यही चाहते कि एक बच्चा भी साथ से रह नहीं जाए। साथ है, साथ चलेंगे, साथ राज्य अधिकारी बन सदा जीवन में सुख शान्ति का अनुभव करेंगे। तो बोलो, साथ चलेंगे ना! चलेंगे? रह तो नहीं जायेंगे? देखो, तीन भाग्य तो हर एक के मस्तक में चमक रहे हैं। अपने मस्तक में यह तीनों ही भाग्य दिखाई देते हैं ना! संगमयुग ही भाग्यवान युग है। जो जितना भाग्य बनाने चाहे उतना बना सकते हैं। लेकिन बहुत समय का अटेन्शन चाहिए। तो सभी बच्चे अपने अपने पुरूषार्थ में अभी तीव्रता लाओ। पुरूषार्थी हैं, बापदादा देखते हैं पुरूषार्थ करते हैं लेकिन सभी का तीव्रता का पुरूषार्थ अभी होना चाहिए। बापदादा हर बच्चे को बालक सो मालिक देखने चाहते हैं। किसका मालिक? सर्व खज़ानों का मालिक। कभी कभी कोई बच्चे बापदादा को कहते हैं कि बाबा आपने तो सर्वशक्तियां दी हैं और हम भी अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान मानते हैं लेकिन कई बच्चे उल्हना देते हैं कि कभी कभी जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता होती है, वह समय पर नहीं आती है। लेकिन इसका कारण क्या? बाप ने हर एक को सर्व शक्तियां दी हैं। दी हैं कि किसको कम दी हैं किसको ज्यादा? सर्वशक्तियां मिली हैं, हाथ उठाओ। सभी को मिली हैं लेकिन समय पर क्यों नहीं काम पर आती हैं? इसका कारण? कारण को जानते भी हो लेकिन उस समय भूल जाते हो। सर्वशक्तियों का खज़ाना हर बच्चे को वर्से में मिला है। बाप ने सभी को सर्वशक्तियों का वर्सा दिया है, कोई को कम कोई को ज्यादा नहीं दिया है। सर्वशक्तियां दी हैं लेकिन समय पर क्यों नहीं आती हैं, आप सोचो कोई भी अगर अपने स्वमान के सीट पर नहीं होता तो उसका आर्डर कोई मानता है? तो जिस समय शक्ति नहीं आती हैं, उसका कारण है कि आप अपने मास्टर सर्वशक्तिवान की सीट पर सेट नहीं होते इसीलिए बिना सीट के आर्डर कोई नहीं मानता। तो सदा अपनी सीट पर सेट रहो। कभी वेस्ट थॉटस चलते हैं वा कभी टेन्शन आता है तो उससे ही स्वमान की सीट छूट जाती है। बापदादा ने हर एक को कितने स्वमान दिये हैं। कितनी बड़ी स्वमान की सीट है! गिनती करो, कितने स्वमान बाप ने दिये हैं? स्वमान में सेट नहीं होते हैं तो जहाँ स्वमान नहीं वहाँ क्या होता है? जानते हो ना! देह अभिमान आता है। या तो स्वमान है या तो देहभान है। तो देहभान की सीट पर आर्डर करेंगे तो शक्ति नहीं मानती हैं। नहीं तो मास्टर सर्वशक्तिवान की शक्ति नहीं मानें यह हो नहीं सकता। सीट पर सेट होना इसका अभ्यास सदा करो। चेक करो चाहे कर्मयोग में हो, चाहे सेवा में हो, चाहे अपने मनन मंथन में हो लेकिन सीट पर सेट हैं तो सर्वशक्तियां हाज़र होती हैं।
आज बापदादा ने देखा, अमृतवेले चक्कर लगाया। चारों ओर का चक्कर लगाया, चाहे विदेश चाहे देश। बापदादा को चक्कर लगाने में समय नहीं लगता। तो क्या देखा? बतायें। सभी मैजॉरिटी बैठे तो थे, उठकर अपने अपने स्थानों पर बैठे थे, पुरूषार्थ भी कर रहे थे कि सारा समय अपने सर्व अनुभवीमूर्त हो करके बैठें लेकिन क्या देखा? अनुभवी मूर्त कोई कोई थे, क्योंकि सबसे बड़ी शक्ति अनुभव की है। अनुभवी स्वरूप, सर्वशक्तियों के अनुभवी स्वरूप, मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर सर्वशक्ति स्वरूप, तो अनुभवी स्वरूप बनने में कुछ कमी दिखाई दी। पुरूषार्थ करते हैं, बापदादा ने फिर भी मुबारक दी जो पुरूषार्थ करके मैजारिटी आते हैं। बैठते मैजारिटी हैं लेकिन बापदादा यही चाहते हैं कि लाइट माइट स्वरूप के अनुभवी मूर्त बन बैठें क्योंकि यह अमृतवेले के योग की सकाश सारे वायुमण्डल में फैलती है। इस अनुभव को और आगे बढ़ाओ। जैसे ब्रह्मा बाबा को देखा, कितनी पावरफुल फरिश्ते स्वरूप की स्थिति रही। ऐसे ही इस अमृतवेले को अभी अपने अपने रूप से अटेन्शन और अथक होकर दो। बापदादा ने देखा कई बच्चे लाइट माइट रूप में भी बैठते हैं, ना नहीं है, हाँ भी है लेकिन इस समय के पुरूषार्थ को और भी अटेन्शन देना होगा और बापदादा ने पहले भी इशारा दिया कि अपने मन को सदा बिजी रखो। चाहे मन्सा सेवा से, चाहे वाचा से, चाहे मनन शक्ति में बिजी रखो। मनन करो। मनन शक्ति मन को एकाग्र बना देती है। कोई कोई बच्चे मनन अच्छा करते भी हैं लेकिन मनन शक्ति को भी सारे दिन में बढ़ाओ क्योंकि बापदादा को लास्ट बच्चे से भी प्यार है। लास्ट बच्चे को भी बापदादा यही चाहते कि साथ चले। रह नहीं जाये। पीछे पीछे नहीं रह जाए। तो क्या करेंगे? अटेन्शन।
आज बापदादा सभा को देख जानते हैं कि बच्चों की वृद्धि होनी ही है। 75 वर्ष की जुबिली मनाई। उसकी तो बापदादा बच्चों को मुबारक दे रहे हैं। बापदादा ने सेवा की लगन भी देखी, हर एक स्थान वालों को उमंग है और सेवा का फल और सेवा का बल वह भी दिखाई दे रहा है। विशेष बापदादा ने देखा कि जहाँ भी बच्चों ने सेवा की है वहाँ इस वारी गवर्मेन्ट के निमित्त बनी हुई आत्मायें ज्यादा आई हैं और रिजल्ट में मानते भी हैं कि अभी के समय अनुसार जबकि दु:ख और अशान्ति बढ़ रही है तो यह जो टॉपिक रखी है वह आवश्यक है क्योंकि जितना ही शान्ति चाहते हैं उतनी अशान्ति बढ़ रही है। कोई न कोई बात अशान्ति की आ ही जाती है। इसके लिए चारों ओर टेन्शन बढ़ रहा है और गवर्मेन्ट भी चाहती है कि भारत टेन्शन फ्री हो जाए। तो सभी ने, जिन बच्चों ने सेवा की है उन सभी बच्चों को बापदादा मुबारक दे रहे हैं और जो करने वाले हैं उन्हों को भी एडवांस में मुबारक दे रहे हैं।
बापदादा अभी यही चाहते हैं कि एक एक बच्चा फॉलो फादर करते हुए बाप समान सम्पन्न जरूर बनें। बापदादा ने देखा कि पुरूषार्थ भी सब बच्चे करते हैं। पुरूषार्थ की लगन भी है, अपने से ही प्रॉमिस भी बहुत करते हैं, अब नहीं करेंगे, अब नहीं करेंगे... लेकिन कारण क्या होता है? कारण है पुरूषार्थ में दृढ़ता कम है। बीच बीच में अलबेलापन आ जाता है। हो जायेंगे, बन जायेंगे... यह अलबेलापन पुरूषार्थ को ढीला कर देता है। तो अब क्या करेंगे? अभी यही विशेष अटेन्शन दो, अपने आप अपना प्रोग्राम बनाओ, जिसमें सारा दिन मन को बिजी रखो। अपना प्रोग्राम आप बनाओ। टाइमटेबुल अपना आप बनाओ, मन को बिजी रखने का। चाहे मनन करो, चाहे सेवा करो, चाहे एक दो को अटेन्शन खिंचवाओ लेकिन बिजी रखो। मन से बिजी, शरीर से बिजी तो होते हो लेकिन मन से बिजी रहो। मन के बिजी रहने में बिजनेसमैन नम्बरवन बनो। यह कर सकते हो? करेंगे? करेंगे? क्योंकि आप जानते हो ब्रह्मा बाप भी आपका इन्तजार कर रहे हैं और आपकी एडवांस पार्टी भी आपका इन्तजार कर रही है, कब समय को समीप लाते हैं क्योंकि समय को समीप लाने के जिम्मेवार आप हो। अपने को सम्पन्न बनाना अर्थात् समय को समीप लाना।
तो बापदादा विशेष एक मास दे चुका है। इस एक मास में हर एक को तीव्र पुरूषार्थी बन, पुरूषार्थी नहीं तीव्र पुरूषार्थी बनना ही है। मंजूर है? है मंजूर? हाथ उठाओ। अच्छा, मुबारक हो। अभी हर एक को दृढ़ संकल्प कर रोज़ बापदादा को अपनी रिजल्ट सारे दिन की कैसी देनी है? तीव्र पुरूषार्थ की। पुरूषार्थ नहीं तीव्र पुरूषार्थ। इसके लिए तैयार हैं? हैं तैयार? दो हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। अभी बापदादा अचानक ही बीच में रिजल्ट मंगायेगा। डेट नहीं बताते हैं। अचानक ही एक मास के अन्दर कोई भी डेट पर रिजल्ट मंगायेंगे। करना ही है। यह प्रॉमिस अपने आप करो। बापदादा करायेगा वह तो कराते ही हैं लेकिन अपने आप से यह संकल्प करो और प्रैक्टिकल करके दिखाओ। करना ही है। करेंगे, गे-गे नहीं.. अभी गे-गे अच्छी नहीं है। समय आगे बढ़ रहा है, अति में जा रहा है, तो समय का परिवर्तन करने वाले क्या आप पूर्वजों को अपने दु:खी परिवार पर रहम नहीं आता? रहमदिल बनो। दु:खियों को सुख का रास्ता बताओ, चाहे मन्सा से, चाहे वाचा से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से। अपना परिवार है ना! तो परिवार का दु:ख मिटाना है। रहमदिल बनो। अच्छा।
सेवा का टर्न कर्नाटक ज़ोन का है:- अच्छा। अभी कर्नाटक वाले क्या विशेषता करेंगे? तीव्र पुरूषार्थ करने का, पुरूषार्थ करेंगे और करायेंगे। करायेंगे भी और करेंगे भी, इसमें हाथ उठाओ।
बापदादा सिर्फ यहाँ नहीं देख रहे हैं लेकिन जहाँ भी सब बच्चे बैठे हैं, चाहे पार्क में बैठे हैं, चाहे भिन्न भिन्न हाल में बैठे हैं सभी को बहुत-बहुत याद प्यार दे रहे हैं। दूर बैठे हैं लेकिन दिल से नजदीक हैं। चारों ओर देखने वालों को भी बापदादा दिल का यादप्यार दे रहे हैं। देश विदेश के हर बच्चे को बापदादा देख रहे हैं। चाहे दूर हैं, चाहे नजदीक हैं लेकिन बापदादा के दिल में समाने वाले हैं क्योंकि हर बच्चे का प्रॉमिस है कि हमारे दिल में बाप है और हम हर एक बाप के दिल में हैं इसलिए बाप का टाइटल दिलाराम है।
अच्छा कनार्टक वाले तो बहुत आये हैं और सेवा का पार्ट भी अच्छा बजाया है। मधुबन वालों को भी बापदादा खास नीचे-ऊपर सब मधुबन निवासियों को पदमगुणा प्यार और याद दे रहे हैं क्योंकि कितने भी बढ़ गये हैं लेकिन सेवा अच्छी की है, रिजल्ट अच्छी है, इसलिए बापदादा ने देखा कि अथक बन प्यार से सबको समा लिया है। चाहे रहाने वाले, चाहे खिलाने वाले, चाहे कोई भी सेवा करने वाले, सेवा की रिजल्ट अच्छी है इसलिए आने वालों को, सेवा करने वालों को, सहयोग देने वालों को, एक एक को बाप मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।
चार विंग्स - आर्ट एण्ड कलचर, साइंटिस्ट एण्ड इंजीनियर, एज्यूकेशन और पोलीटिशियन विंग सें:- अच्छा, हर एक विंग ने अपनी अपनी निशानी रखी है। बापदादा सभी का उमंग उत्साह देख बहुत बहुत खुश है और रिजल्ट में भी देख रहे हैं कि हर एक विंग अभी प्रोग्राम्स कर भी रहे हैं और बना भी रहे हैं। हर एक विंग के आगे करने के प्रोग्राम्स बापदादा के पास पहुंच गये हैं। तो जैसे प्रोग्राम्स बनाये हैं वह बहुत अच्छे बनाये हैं। उमंग से बनाये हैं, उसको प्रैक्टिकल में करके बापदादा के सामने रिजल्ट के साथ कोई सैम्पुल भी हर एक विंग लायेगा। चारों ही विंग के बहुत हैं। हाथ उठाओ। बापदादा सबको नजदीक देख रहे हैं। अच्छा है। अभी हर एक विंग रिजल्ट निकाले कि जब से विंग की सेवा की है तब से लेकर अब तव कितने माइक बनाये हैं और कितने वारिस बनाये हैं और कितने स्टूडेन्ट बनाये हैं! हर एक विंग उमंग से कर तो रहे हैं लेकिन बापदादा यह रिजल्ट देखने चाहते हैं। और मुबारक भी दे रहे हैं बापदादा क्योंकि हर एक विंग एक दो से आगे जा भी रहा है और सेवा में नये नये प्लैन भी बना रहे हैं इसलिए जो आज चार विंग आये हैं उन्हों को बापदादा अभी खास मुबारक दे रहे हैं। अच्छा। ड्रेस भी पहनके आये हैं, एज्युकेशन विंग के। (साइंटिस्ट इंजीनियर विंग की सिल्वर जुबिली है) अच्छा है, सिल्वर जुबिली की विशेष बापदादा खास एक एक बच्चे को नाम सहित देख भी रहे हैं और मुबारक भी दे रहे हैं। संस्था की तो 75 वर्ष की जुबिली है और इन्हों की सिल्वर जुबिली है। लेकिन बापदादा खुश है करते चलो, उड़ते चलो, आखिर वह दिन आयेगा, समीप आ रहा है जो सब कहेंगे हमारा बाबा आ गया। अभी जो भी विंग हैं उसमें ऐसी आत्मायें निकालो जो दिल से कहें मेरा बाबा आ गया। ऐसे नाम बापदादा के पास भेजना, जितनी भी सेवा की है, जितने भी निकले हैं उनमें से कितने कहते हैं मेरा बाबा आ गया! फिर बापदादा इनाम देगा। अभी यही सेवा धूमधाम से करो, ऐसे पुरूषार्थी निकलने चाहिए। प्रत्यक्षता करनी है ना। दु:खियों को सुखी बनाना है ना! इसी भारत को स्वर्ग बनाना ही है। तो कब बनायेंगे? विंग वाले सुनाओ कितना टाइम चाहिए? कितना टाइम चाहिए? बोलो। आप बोलो कितना समय चाहिए? चार ही विंग के निमित्त जो हैं वह आगे आओ। (सबको स्टेज पर बुलाया) देखो, (इस बार अन्नामलाई युनिवार्सिटी के तरफ से कन्वकेशन में एम.एस.सी. डिग्री देंगे) बापदादा ने अभी जो कहा अब ऐसे वारिस निकालो। यह भले टोपी पहनी है, वह नहीं, वारिस निकालो। हर एक को वारिस निकालने की जिम्मेवारी है। कहाँ कहाँ माइक निकाले हैं लेकिन वारिस निकालो। इसमें नम्बर लो। कौन सी डिपार्टमेंट वारिस निकालने में नम्बरवन हैं। अभी वारिस निकालने की सीजन है। और बढ़ाते चलो, अभी वारिस बनाओ। सहयोगी तो बहुत बनते हैं लेकिन वारिस निकालो। ऐसा एक्जैम्पुल बनें जो सुनके औरों को भी उमंग आवे। समय तो आ रहा है, अभी तो समय भी आपको मदद देगा क्योंकि दु:ख बढ़ रहा है। फैंसला करते हैं तो फैंसला कहाँ होता है। (अभी सब अच्छा सहयोग देते हैं) सहयोग तो देते हैं लेकिन खुद आगे आवें। हो जायेगा। अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनें:- डबल विदेशी का अर्थ है डबल उड़ान उड़ने वाले। डबल उड़ान अर्थात् सेकण्ड में जो चाहे वह स्थिति में स्थित हो जाएं। तो ऐसा अभ्यास है? जिस समय जो स्थिति चाहो उससे उड़ती कला स्थिति के अनुभव में आ जाओ। यही अभ्यास समय पर काम में आयेगा। जिस समय चाहे उस समय वही स्थिति प्रैक्टिकल में हो जाए। डबल विदेशी हैं ना! तो पुरूषार्थ भी डबल करेंगे ना! कर भी रहे हैं, बापदादा के पास समाचार अच्छे अच्छे आते हैं। सेवा का समाचार भी आता है, सेवा भी बढ़ रही है, आत्मायें भी अच्छे अच्छे निमित्त बनने वाली निकल रही हैं इसलिए बापदादा डबल विदेशियों को डबल मुबारक दे रहे हैं। अच्छा है, हर ग्रुप में डबल विदेशी कोई न कोई होता ही है। यह अच्छा अपना प्रोग्राम बना लिया है। तो डबल विदेशी अभी वारिसों की लिस्ट निकालना। हर एक सेन्टर पर कितने नये वारिस निकले? आप तो हो ही। अभी बापदादा वारिसों की लिस्ट चाहते हैं। अच्छा।
अभी जहाँ भी जो बैठे हैं उन सबको चाहे टी.वी. में देख रहे हैं, चाहे यहाँ भिन्न-भिन्न स्थान पर बैठे हैं वह भी टी.वी. में देख रहे हैं, एक एक बच्चे को बापदादा आज तीव्र पुरूषार्थी का टाइटल दे रहा है। अभी इसी टाइटल को सदा याद रखना। कोई पूछे आप कौन हैं? तो यही कहना तीव्र पुरूषार्थी। ठीक है सभी को मंजूर है। मंजूर है? अभी ढीला पुरूषार्थ नहीं चलेगा, समय आगे भाग रहा है इसीलिए अभी तीव्र पुरूषार्थी बनना ही है, समय की पुकार है - तीव्र पुरूषार्थी भव। तो सभी बच्चों को बापदादा की बहुत-बहुत यादप्यार और तीव्र पुरूषार्थ की सौगात दे रहे हैं।
पहली बार आने वालों से:- अच्छा, पहली बार आने वाले बच्चों को बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। बापदादा आप बच्चों को देख खुश हो रहे हैं, क्यों खुश हो रहे हैं? क्योंकि आप सभी लास्ट समय के पहले पहुंच गये हो इसलिए मुबारक दे रहे हैं। अपना हक लेने के अधिकारी बन गये इसलिए आप सभी जो आज बापदादा बार-बार कह रहे हैं तीव्र पुरूषार्थी बनना। तीव्र पुरूषार्थी बन आगे से आगे बढ़ सकते हो। यह वरदान अभी प्राप्त हो सकता है। सभी जो भी आये हैं उन सबको यह अटेन्शन देना है कि सदा एक तो मुरली की स्टडी कायदेप्रमाण करते रहना और साथ-साथ मन्सा सेवा या वाचा सेवा करने का गोल्डन चांस लेते रहना। तो मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
दादी जानकी से:- (बाबा आप कितनी अच्छे हो) आप भी कितनी अच्छी हो। सब अच्छे से अच्छे बनेंगे। निर्विघ्न यज्ञ चल रहा है, सब अच्छे चल रहे हैं।
(साउथ अफ्रीका में पर्यावरण से सम्बन्धित कोन्फेरेंस में 50 हजार लोग पहुंचे हैं, वहाँ जयन्ती बहन और उनके साथी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं) सभी बच्चों का समाचार सुना और बापदादा दिल से खास जो निमित्त बनी हुई बच्चियां हैं, भाई हैं उनको बहुत-बहुत प्यार दे रहे हैं। हिम्मत अच्छी रखी है। आखिर वह दिन भी आयेगा, आप लायेंगे जो सब कहेंगे वाह बाबा वाह!
मॉरीशियस का समाचार सुनाया, 2012 के प्रति बापदादा की प्रेरणायें पूछ रहे हैं:- बापदादा की तो उम्मींद हर बच्चे के लिए श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ है कि हर बच्चा बाप का बन औरों को भी बाप का बनायेंगे। अभी तीव्र पुरूषार्थ सेवा में भी, धारणा में भी दोनों में तीव्र पुरूषार्थ।
(आंध्र प्रदेश में बहुत अच्छी सेवायें हुई हैं) बापदादा ने सुनाया ना, जहाँ भी प्रोग्राम किये हैं, बहुत अच्छे किये हैं। चारों ओर अच्छे किये हैं।
रूकमणि दादी से:- अभी दवाई ठीक करती रहो, ठीक हो जायेंगी। कुछ तो करना पड़ता है। और कोई बात सोचो नहीं, औरों को भी सोच में नहीं दो, खुद भी सोचो नहीं।
महामहिम बहन उार्मिलासिंह, राज्यपाल हिमाचल प्रदेश:- बहुत अच्छा किया है, माताओं का स्वमान रखा। मातायें आगे जितना बढ़ेंगी उतना भारत का कल्याण होगा। तो आप निमित्त बनीं। अभी सभी को टेन्शन फ्री बनाओ। अपने शहर में टेन्शन फ्री बनाओ। बहुत टेन्शन है। तो मेडीटेशन कोर्स टेन्शन फ्री बनाने वाला है, जहाँ तक हो सके, कोई प्रोग्राम ऐसे बनाओ जिसमें आपके कनेक्शन वाले मेडीटेशन से टेन्शन फ्री हो जाएं। तभी तो देश का कल्याण होगा ना। टेन्शन में सफलता नहीं होती, बिना टेन्शन होंगे तो जो भी प्लैन बनायेंगे उसकी ताकत आयेगी। तो निमित्त बनो टेन्शन फ्री बनाने के।
कर्नाटक की एक्टर जयन्ती बहन से:- देखो जैसे मन देखने को किया ना वैसे अभी मन में टेन्शन फ्री बनो। उसके लिए यहाँ मेडीटेशन कोर्स कराया जाता है वह करेंगी, अपने साथियों को भी टेन्शन फ्री कोर्स कराओ तो क्या होगा? टेन्शन फ्री होने से और लोंगों में भी शान्ति फैलायेंगे नहीं तो टेन्शन में शान्ति गुम हो रही है। तो आप साथियों को ऐसे बनाओ। आप यहाँ आये हैं ना तो यहाँ थोड़ा सीखकर जाना और उन्हों को आप समान बनाओ फिर ग्रुप ले आना। साथी बनना।
24-10-10 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘समय की रफ्तार प्रमाण अभी विशेष स्वभाव-संस्कार परिवर्तन करने में तीव्रता लाओ मन्सा द्वारा आत्माओं को भिन्न-भिन्न किरणें दो’’
आज चारों ओर के परमात्म तख्तनशीन भ्रकुटी तख्तनशीन और विश्व के तख्तनशीन बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। यह परमात्म दिलतख्त सिर्फ आप ब्राह्मणों के लिए ही है। भ्रकुटी का तख्त तो सबके पास है लेकिन परमात्म तख्त सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं के ही भाग्य में है। यह परमात्म तख्त विश्व का तख्त दिलाता है। तो तीनों तख्त के अधिकारी आत्मायें आप ब्राह्मण ही हो। यह परमात्म तख्त कितना श्रेष्ठ है और कोई युग में परमात्म तख्त प्राप्त नहीं होता। यह परमात्म तख्त गाया भी जाता है परमात्म तख्त के अधिकारी भक्ति मार्ग में भी माला के मणकों के रूप में गाये और पूजे जाते हैं। कोटों में कोई के रूप में गाये जाते हैं। बड़ी भावना से एक-एक मणके को कितनी ऊंची दृष्टि से देखते रहते हैं। तो आप सबको फखुर है ना! है फखुर? कि हमारे सिवाए कोई भी इस तख्त का अनुभव नहीं कर सकते हैं। लेकिन आप सबका ब्राह्मणों का जन्म सिद्ध अधिकार है। आपके लिए यह तख्त गले का हार है। तो इतना नशा भगवान के दिलतख्त के अधिकारी यह नशा और खुशी सबको सदा स्मृति में रहती है? हम कौन हैं! इसका निश्चय और नशा रहता है?
बापदादा तो ऐसे तीन तख्त के अधिकारी बच्चों को देख खुश होते हैं वाह मेरे श्रेष्ठ अधिकारी बच्चे वाह! बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह! स्वयं बाप भी ऐसे बच्चों की महिमा गाते हैं। तो नशा है हम कौन हैं? जितना निश्चय होगा उतना ही नशा होगा। और निश्चय का नशा आपके चेहरे और चलन से दिखाई दे रहा है। जिसको निश्चय है उसको नशा जरूर होता है। बापदादा भी अभी हर बच्चे द्वारा चेहरे और चलन से आत्माओं को अनुभव कराने चाहते वाणी द्वारा तो अनुभव करने लगे हैं अभी अनुभव करने का कार्य शुरू हो गया है। पहले सुनते थे सोचते थे अभी आप ब्राह्मण आत्माओं की स्थिति का प्रभाव अनुभव करने लगे हैं। तो अपने आपको चेक करो कि मैं सारे दिन में कितना समय परमात्म दिलतख्त पर रहता हूँ? क्योंकि यह दिलतख्त विश्व का राज्य प्राप्त कराने का आधार है। क्योंकि इस दिलतख्त के आधार से जितना समय आप दिलतख्त के अधिकारी रहते हो उतना ज्यादा समय भविष्य में राज्य घराने में अधिकारी बनते हो। तो चेक करना जबसे मैं ब्राह्मण बना कितना समय दिलतख्तनशीन बना इसके आधार से तख्त पर तो नम्बरवार बैठेंगे लेकिन सदा राज्य फैमिली में घराने में अधिकारी बनेंगे। चेक किया है कभी? दिलतख्त से उतर तो नहीं जाते हो? अपना हिसाब निकालना क्योंकि इसके आधार से आप सदा राज्य घराने में आयेंगे। चेक करना कि तख्त को छोड़ कभी मिट्टी में पांव तो नहीं रखते! 63 जन्म का संस्कार देहभान रूपी मिट्टी में पांव रखा। एक है देहभान और दूसरा है देह-अभिमान। देह-अभिमान की मिट्टी गहरी है लेकिन देहभान यह भी मिट्टी है। लोग भी कहते हैं जब मनुष्य चला जाता है और जलाते हैं तो यही कहते हैं मिट्टी मिट्टी में मिल गई। तो चेक करो मिट्टी में पांव तो नहीं जाता! देहभान में आना अर्थात् मिट्टी में पांव रखना।
बापदादा ने आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए तीन तख्त दिये हैं क्योंकि लाडले हो ना। सिकीलधे भी हो लाडले भी हो। तो जो लाडला बच्चा होता है उसको झूले में या गोदी में रखते हैं। मिट्टी में पांव रखने नहीं देते। तो बापदादा ने जो तीन तख्त के अधिकारी हैं उन्हों के लिए कितने भिन्न-भिन्न झूले दिये हैं। कभी शान्ति के झूले में झूलो कभी सुख के झूले में झूलो कभी प्रेम के झूले में झूलो। तख्त और झूले इसी में ही पांव रखना है। कई बच्चे पूछते हैं हम भविष्य में कहाँ आयेंगे? क्या बनेंगे? तो बाप कहते हैं जितता समय से आये हो उतने समय में चेक करो कि मेरा पांव जितना समय हुआ है उतना ही समय झूलों में या तख्त पर रहा है? उतना ही भविष्य में रॉयल घराने में रहेंगे। रॉयल प्रजा में भी नहीं आयेंगे रॉयल घराने में ही आयेंगे। तो यह हिसाब हर एक अपने आप अपना निकालो। दूसरे को नहीं देखना अपना हिसाब निकालना। हर एक चाहता क्या है? रॉयल घराने राज्य घराने में ही रहें। तो अब भी जितना समय मिलता है क्योंकि समाप्ति तो अचानक होनी है। तो जब तक समाप्ति हो तब तक अब भी चेक करेंगे तो जितना समय ज्यादा बाप की गोदी में तख्त पर झूले में रहेंगे उतना समय रॉयल फैमिली में रॉयल घराने में भाग्य प्राप्त करेंगे।
बापदादा तो हर बच्चे को सारा समय 21 जन्म ही रॉयल घराने में चाहे सूर्यवंशी चाहे चन्द्रवंशी दोनों युग में रॉयल फैमिली में रहने का अधिकार दे रहा है। लेकिन अधिकार लेना यह हर बच्चे के ऊपर अधिकार है। ब्रह्मा बाप से प्यार है तो ब्रह्मा बाप का भी आप बच्चों से प्यार है। ब्रह्मा बाप आप बच्चों को साथ-साथ रॉयल घराने में देखने चाहता है। आप क्या समझते हो - ब्रह्मा बाप के आसपास रॉयल घरानों में रहने वाले हो या थोड़ा समय रहेंगे? फिर दूर तो नहीं जाने चाहते ना! सुनाया आधार है संगमयुग का। बापदादा का बच्चों से इतना प्यार है जो जैसे अभी कहते हो साथ रहेंगे साथ चलेंगे अभी ब्रह्मा बाप और ब्राह्मण साथ हैं चाहे अव्यक्त रूप में हैं लेकिन साथ हैं।
अभी बापदादा ने देखा कि बच्चों को माया भी अब तक छोड़ती नहीं है उनका भी प्यार है। और आजकल दो रूपों में विशेष माया भी चांस लेती है। दो रूप में आती है - एक व्यर्थ संकल्प और दूसरा कहीं-कहीं कभीव भी यह भी लहर है जो मैंने किया वा सोचा मैं ही राइट हूँ मैं कम नहीं हूँ। यह लहर फैली हुई है - मैं ही राइट हूँ लेकिन जो कनेक्शन में आते हैं या निमित्त बने हुए हैं वह भी आपके विचार को साथ देते हैं! दूसरों की भी वेरीफिकेशन मिलनी चाहिए। यह व्यर्थ संकल्प टाइम वेस्ट करते हैं। इसलिए बापदादा रोज की मुरली मनन करने के लिए सेवा करने के लिए होमवर्क में रोज देते हैं। अगर मनन करो या मनन करते-करते मगन हो जाओ तो यह रोज का होमवर्क मन को बिजी करने का साधन है। सुनना और मनन करना या मगन हो जाना यह बापदादा रोज का होमवर्क इसीलिए देता है। जैसे बच्चों को होमवर्क इतना ज्यादा दे देते हैं जो उनकी बुद्धि करने में बिजी रहे। ऐसे रोज की मुरली उसमें चार ही सबजेक्ट का होमवर्क है। मन्सा का भी है वाणी का भी है कर्म का भी अटेन्शन और दिव्यता का इशारा होमवर्क है। तो होमवर्क में बिजी रहेंगे तो व्यर्थ संकल्प के आने की मार्जिन नहीं रहेगी। इस विधि को अपनाते रहेंगे तो व्यर्थ संकल्प स्वत: ही आपसे विदाई ले जायेंगे क्योंकि बापदादा ने देखा याद की यात्रा पर सभी का नम्बरवार अटेन्शन है वाचा सेवा में भी अटेन्शन है। लेकिन अभी अपने संस्कार या दूसरों के संस्कार को परिवर्तन करना यह स्वभाव संस्कार जिसको रॉयल रूप में आप कहते हो नेचर मेरी नेचर है भाव नहीं है नेचर है यह धारणा की सबजेक्ट अभी भी रॉयल रूप में आती रहती है। तो बापदादा आजकल यही इशारा देते हैं कि जो भी धारणाओं में कमी होती है उसको अभी विशेष अटेन्शन दो।
बापदादा ने पहले भी कहा है कि अभी धारणा में यह मुख्य धारणा का अटेन्शन दो कोई भी बात हो गई तो चेक करो सेकण्ड में फुलस्टॉप दे सकते हो! कि चाहते फुलस्टॉप हैं लेकिन हो जाता है क्वेश्चनमार्क? फुलस्टॉप नहीं आधा फुलस्टॉप लगता है और मात्रा बन जाता है। आगे चलकर ऐसे सरकमस्टांश आयेंगे जो आपको सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाना पड़ेगा। उस समय क्वेश्चन मार्क आश्चर्य मार्क को ठीक करने लगो इतना समय नहीं मिलेगा। सेकण्ड में फुलस्टॉप की आवश्यकता होगी इसका अभ्यास काफी समय पहले का चाहिए तब समय पर विजयी बन सकेंगे। तो हलचल के समय जब संस्कार स्वभाव का पेपर हो उसके लिए अभी से ऐसे समय में अभ्यास करो तो बहुत समय का अभ्यास आगे चल आपका बहुत सहयोगी बनेगा।
तो बापदादा अमृतवेले चक्कर लगाते हैं तो हर एक के पुरूषार्थ को चेक करते हैं। क्या चार ही सबजेक्ट में पुरूषार्थ तीव्र है वा साधारण है? तो क्या देखा? समय की रफ्तार प्रमाण अभी पुरूषार्थ में सदा तीव्र पुरूषार्थ की आवश्यकता है। तो बापदादा इशारा दे रहा है समय तीव्रगति से समीपता के नजदीक आ रहा है। उस हिसाब से अभी विशेष स्वभाव और संस्कार के परिवर्तन में तीव्रगति चाहिए।
अभी बापदादा सभी बच्चों को समान बनाने चाहते हैं। आपका लक्ष्य भी है बाप समान बनना ही है। इसके लिए सबसे सहज साधन है ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। टैली करो जो भी कर्म करो पहले टैली करो मिलान करो। ब्रह्मा बाप का यह कर्म या बोल या संकल्प है? कहा भी जाता है पहले सोचो फिर करो। बोलने के पहले तोलो फिर बोलो। तो सुना बापदादा अभी क्या चाहते हैं? आप भी चाहते तो हो जब रूहरिहान करते हो ना तो बापदादा बहुत मीठीमीठी बातें सुनते हैं। उमंग की बातें भी बहुत अच्छी करते हो यह करके दिखायेंगे यह करना ही है यह होना ही है! संकल्प बहुत उमंग के होते हैं लेकिन कर्म तक आने में कुछ बदल जाते हैं कुछ होते हैं। बाकी बापदादा भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा के प्लैन जो बनाते हो वह सब पसन्द करते हैं। प्रोग्रामस भी जहाँ तहाँ अच्छे चल रहे हैं लेकिन अभी जितना वाचा द्वारा या भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा कर रहे हो सफलता भी है बापदादा खुश भी है सिर्फ अभी मन्सा द्वारा अनेक आत्माओं को सुख की किरण शान्ति की किरण खुशी की किरण प्रेम की किरण पहुंचाना यह सेवा भी साथ-साथ करो। अपने ही संस्कार परिवर्तन या दूसरों के संस्कार को सहयोग देना इसमें टाइम कईयों का ज्यादा जाता है। तो मन्सा सेवा द्वारा भिन्न-भिन्न किरणें आत्माओं को देना इसका अटेन्शन आगे चलके बहुत आवश्यकता पड़ेगी उसके ऊपर भी ध्यान देते रहो। जो बच्चे समझते हैं कि यह सेवा मैं करता रहता हूँ वह हाथ उठाओ। अच्छा। कर रहे हैं उन्हों को मुबारक है और जो नहीं कर रहे हैं उनको करना चाहिए क्योंकि आगे चलके सरकमस्टांश ऐसे बनेंगे जो सुनने और सुनाने वाले दोनों का मेल मुश्किल हो जायेगा इसलिए दोनों सेवा अभी से जितना हो सके उतनी आदत डालो। मन बिजी भी रहेगा तो मनमनाभव होना सहज हो जायेगा। मन बिजी होने से संस्कार स्वभाव को सहज परिवर्तन करने में मदद मिलेगी।
आज खास डबल फारेनर्स के मिलन का दिन है बापदादा को खुशी है वाह डबल फारेनर्स वाह! बापदादा को खुशी है कि विश्व के कोने- कोने में जो बाप के कल्प पहले वाले बच्चे छिपे हुए हैं तो विश्व की सेवा में डबल फारेनर्स निमित्त बने हैं और बापदादा ने सुना कि हर एक अपनी-अपनी एरिया में गांव-गांव या शहरों में जो रहे हुए हैं उसमें पहुंचने का प्लैन बनाते रहते हैं। इसकी मुबारक हो मुबारक हो। नहीं तो जब समाप्ति होनी होगी हालतें बदलेंगी तो आप सबको चाहे भारत चाहे विदेश बहुत-बहुत-बहुत उल्हनें मिलेंगे कि हमारा बाप आया और आपने हमें बताया भी नहीं। सन्देश तो देते बहुत उल्हनें मिलेंगे। इसलिए अभी कर रहे हैं और ज्यादा कोई कोना रह नहीं जाये इसका प्रयत्न करना। बाकी बापदादा डबल फारेनर्स या देश वाले दोनों बच्चे जो चारों ओर अपना पुरूषार्थ कर रहे हैं उन्हों को देख खुश है बहुत बहुत खुश है। क्यों? क्यों खुश है? अभी देश में विदेश में यह प्लैन बना रहे हैं बापदादा को पसन्द है किसी भी साधन से सन्देश पहुंचना चाहिए। यह साइंस वास्तव में आप लोगों के लिए बहुत समय पर मददगार है। साधन दिनप्रतिदिन नये नये निकलते रहते हैं उसको कार्य में निर्विघ्न बन लगाते जाओ। बापदादा जहाँ भी मीटिंग करते हो सर्विस बढ़ाने की वह सुनते हैं और खुश होते हैं कि बच्चों की बुद्धि अभी आलराउण्ड जा रही है साधनों को सेवा में लगाने के लिए। इसीलिए जो भी आप प्लैन बनाते हो वह बापदादा सुनते हैं चक्कर लगाते हैं ना! आप कहाँ भी मीटिंग करो चाहे दिल्ली में करो देश में किसी भी शहर में करो चाहे विदेश में कहाँ भी करो बापदादा सब सुनते रहते हैं। बापदादा के पास भी साधन है। इसके लिए बापदादा फारेन के एक-एक देश से जो भी आये हैं हर एक को क्या देते हैं? बहुत-बहुत प्यार दे रहे हैं। सिर्फ अभी थोड़ी तीव्रता लाओ। प्लैन को प्रैक्टिकल में नई नई बातें लाते रहो। यह सब देखो आपका यह यज्ञ आरम्भ होने के थोड़े वर्ष पहले यह सब इन्वेन्शन शुरू हुई हैं। साइन्स भी आपकी सेवा की मददगार है। खूब लाभ उठाओ आपके लिए ही निकली है। दिनप्रतिदिन देखो कितनी नई-नई बातें अभी अभी निकल रही हैं। यह ड्रामा आपको सहयोग दे रहा है। साधन आपको सहयोग दे रहा है।
अच्छा। सभी सदा खुश तो हो ना! सदा खुश हैं? जो सदा खुश रहता है वह हाथ उठाओ सदा खुश। कोई बात हो जाए तो भी खुश? बातें आती हैं ना तो भी खुश रहते हो? रहते हो? बड़ा हाथ उठाओ। वेलकम करते हो ना! घबराते नहीं हो वेलकम करते हो। अनुभवी बनाते हैं। यह विघ्न अनुभव की अथॉरिटी को बढ़ाते हैं। माया आ गई माया आ गई यह नहीं कहो यह पेपर है माया-माया कहते माया को आगे बढ़ाते हो। पेपर है। माया को तो आप जान गये हो कितने वर्षों से जान गये हो। माया क्या है? इसलिए माया से घबराओ नहीं पेपर समझके खुशी-खुशी से पेपर दो और अनुभव की क्लास में आगे बढ़ो। यह क्लास बढ़ाना है मूंझना नहीं है क्या करूं कैसे करूं क्या क्यों यह ब्राह्मणों का सोचने का काम नहीं है। त्रिकालदर्शी हो क्या क्यों कैसे यह उठ ही नहीं सकता। पेपर आया अनुभव की क्लास में आगे बढ़े। खुश हो। अभी तो अनुभवी बन गये हो और बनते रहेंगे। अच्छा।
फॉरेन की टीचर्स हाथ उठाओ। सभी को जो भी निमित्त बने हैं सभी को बापदादा टीचर्स माना बाप समान क्योंकि बाप जैसे रोज मुरली चलाते हैं ऐसे आप भी मुरली चलाने के तख्तनशीन हो। तो बाप के साथी हो। तो साथी के स्वरूप में बापदादा आप सभी टीचर्स को चाहे इण्डिया की हो चाहे फारेन की हो लेकिन सभी टीचर्स को खास क्या दे रहे हैं? शाबास बच्चे शाबास! अच्छा। अभी जो भी आज यहाँ हाल में बैठे हैं कहाँ के भी हो लेकिन दुबारा जब मधुबन में आयेंगे बाप से मिलेंगे तो बापदादा क्या देखने चाहता है? कहें? कोई न कोई जो कुछ पुरूषार्थ में खुद समझो कि यह नहीं होना चाहिए समझते तो सभी हैं कि यह नहीं होना चाहिए वह परिवर्तन करके आयेंगे! करेंगे? यह अपने आपको देखना क्योंकि दूसरा कोई देख नहीं सकता। तो यह करने के लिए कौन तैयार हैं? दोदो हाथ उठाओ। बिन्दी लगा दिया ना। फिर बापदादा उन्हों को चाहे छोटी चाहे मोटी गिफ्ट देंगे। परिवर्तन सेरीमनी मनायेंगे। पसन्द है ना! पसन्द है? अपने-अपने क्लासेज वालों को भी कहना जितने भी परिवर्तन करें उतना अच्छा है। समय को समीप लायेंगे। अच्छा।
80 देशों से 2200 डबल विदेशी आये हैं:- तो बापदादा हर एक बच्चे को दिल के प्यार की गिफ्ट दे रहे हैं। जो फर्स्ट टाइम आये हैं वह उठो। आप सबको अपने आध्यात्मिक जन्म दिन की मुबारक हो मुबारक हो क्योंकि आप हर एक परिवार की शोभा हो श्रृंगार हो। इसीलिए बापदादा यही चाहते कि भले लेट आये हो लेकिन टूलेट के पहले आये हो इसकी विशेष परिवार को आपके आने की खुशी है। आ गये हमारे बिछुड़े हुए परिवार के साथी आ गये। अभी समय अनुसार आपको तीव्र पुरूषार्थ करना पड़ेगा। स्लो पुरूषार्थ ढीला पुरूषार्थ नहीं करना तीव्र पुरूषार्थ करेंगे तो लास्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट आ सकते हैं। करेंगे ना! करेंगे? अच्छा है। बहुत बहुत परिवार की तरफ से बापदादा की तरफ से बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार लेते रहना और बढ़ते रहना। अच्छा।
मीडिया से कनेक्टेड:- अच्छा है मीडिया एक साधन है साधनों को सेवा में लगाना यह आपका काम है। बाकी बापदादा ने सुना अच्छी मीटिंग्स की हैं और बापदादा भी चाहता है कि मीडिया द्वारा कोने-कोने में सन्देश पहुंचे। उल्हना नहीं मिले। अच्छा किया अच्छा करते रहेंगे और चारों ओर आत्माओं को अपने पिता का पैगाम मिलता रहेगा। बापदादा ने देखा जो भी प्रोग्राम चला रहे हो यह भी चला रहे हैं ना प्रोग्राम। (निजार भाई से) यह भी अच्छा है और जो आजकल जगह-जगह पर भविष्य का सन्देश देने के प्रोग्राम बना रहे हो वह भी अच्छे चल रहे हैं रिजल्ट कुछ न कुछ निकल रही है। मुबारक हो। अच्छा।
जो भी पत्र फोन जिन्हों के भी याद प्यार या सन्देश बापदादा के प्रति आये हैं उन सभी बच्चों को बापदादा अपने नयनों में समाते हुए यादप्यार या सर्विस समाचार या मन का पुरूषार्थ का समाचार दिया है उन सबको बापदादा मन्सा द्वारा इमर्ज कर सुख की शान्ति की खुशी की किरणें दे रहे हैं। चाहे कोई ने यहाँ नहीं भेजा है लेकिन दिल में भी संकल्प किया वह संकल्प भी बाप के पास पहुंच गया है। चारों ओर के हिम्मते बच्चे मददे बाप मीठे-मीठे बच्चों को बापदादा यादप्यार दे रहे हैं। और इस वर्ष अपने प्रति या सेवाकेन्द्र प्रति या विश्व की आत्माओं प्रति कोई न कोई ऐसा प्लैन बनाना जो सेवा का बल और फल सर्व आत्माओं को प्राप्त हो जाए। चारों ओर के बच्चों को बापदादा का विशेष दिल का याद और प्यार स्वीकार हो। ओम् शान्ति।
मुन्नी बहन से:- अच्छा है यह जन्म दिन सेवा के लिए मनाया। तो सेवा के लिए मनाया है सेवा का रिटर्न सभी तरफ से आपको सेवा का बल और सेवा का फल मिलता रहेगा। अभी फिनिस करो। बस हो गया। अच्छा मनाया।
दादी जानकी से:- बाप नचा रहे हैं आप नाच रही हो। टाइम पर तो उठाता है ना।
मोहिनी बहन से:- हर एक अच्छे से अच्छा है। (बाबा शरीर का हिसाब कब तक?)जल्दी जल्दी चुक्तू हो रहा है चुक्तू हो जायेगा। थोड़ा टाइम लगता है पिछला हिसाब है ना। अभी का तो है नहीं पिछला है। पिछले को पीछे करते जायेंगे।
दादियों से:- सभी महारथी हैं। अच्छे हैं और अच्छे रहेंगे। रूकमणि दादी से:- (दादी है) हाँ शुरू की है निमित्त है।
परदादी से:- अच्छा है सबके आगे एक हिसाब किताब हंसी खुशी से चुक्तू करने का सैम्पुल हो। बीमार नहीं हो सैम्पुल हो। सब आपको देखकर हिम्मत में आ जाते हैं आप सैम्पुल हो।
रमेश भाई से:- अपनी तबियत की अभी सम्भाल करना। ऐसे नहीं चलाओ थोड़ा ध्यान देके टाइम निकालके भी तबियत को थोड़ा ठीक कर दो। जो भागदौड़ की है ना थोड़ा आराम से तबियत को ठीक कर दो। काम में आगे चलना है। आगे जिम्मेवारी उठानी है यज्ञ को चलाना है। तो शरीर को ठीक करो विशेष ध्यान रखो। शरीर तो पुराने हैं। (निर्वैर भाई) यह भी ध्यान तो रखता है। रखना चाहिए लेकिन सेवा में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए। प्रोग्राम ऐसे बनाने चाहिए। ठीक है। (बृजमोहन भाई) तीनों निमित्त हो। तीनों ही निमित्त हैं। अपने को जिम्मेवार समझते हो ना। (रमेश भाई) पेपर को फेस किया इसकी मुबारक हो। बहुत अच्छा पार किया।
डबल विदेशी भाई बहिनों ने बापदादा को गुलदस्ता और माला भेंट की):- यहाँ के थे यहाँ पहुंच गये। बहुत अच्छा। अच्छा पार्ट बजा रहे हो। सभी अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं। अच्छा। विदेश की बड़ी मुख्य बहिनों से:- यह भी ग्रुप अच्छा है। निमित्त बनके एक दो को सहयोग देते आगे बढ़ रहे हैं। भारत के पक्के हैं ना अनुभवी हैं इसीलिए निमित्त बने। निर्विघ्न चल रहा है ना। कोई मुश्किल तो नहीं? सेट हो गये हैं। कायदे कानून में भी सेट हो गये हैं। (चक्रधारी बहन से) इसका चल रहा है। बहुत अच्छा। चाहे भारत के हैं लेकिन जहाँ भी गये हो वहाँ मिक्स हो गये हो। भारत और विदेश का फर्क नहीं है यह अच्छा है और भारत के अनुभवी होने के कारण हैन्डालिंग भी अच्छी मिलती है। बापदादा खुश है। (भारत में भी सेवा के चांस मिलते हैं) चांस मिलते हैं एक ही बात है कहाँ भी सेवा करो। बापदादा खुश है आगे बढ़ रहे हैं गांव-गांव में जो बढ़ रहे हो बहुत अच्छा है। जहाँ सेन्टर नहीं है वहाँ सेन्टर या किसी भी रीति से सन्देश पहुंचाओ।
15-12-10 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘मेरे को तेरे में परिवर्तन कर बेफिकर बादशाह बनो सेकण्ड में व्यर्थ को बिन्दी लगाने के अभ्यासी बन हर संकल्प और समय को सफल करो’’
आज चारों ओर के अपने बेफिक्र बादशाह बच्चों को देख रहे हैं। ऐसी बेफिक्र बादशाहों की सभा अभी ही दिखाई देती है क्योंकि अभी ही बाप फिक्र लेके बेफिक्र बादशाह बनाते हैं इसलिए यह सभा इस समय ही आपकी दिखाई देती है। अब सभी सवेरे से उठते तो बेफिक्र स्थिति में स्थित होते हैं खाते पीते कर्म करते कोई फिक्र नहीं। सोते हैं तो भी बेफिक्र ऐसे बादशाह और बेफिक्र उठो सोओ ऐसे अनुभव करते हो? क्योंकि आप सबने बाप को फिकर देके फखुर ले लिया इसलिए बेफिक्र बादशाह बन गये। अगर चलते हुए कोई फिकर आ जाता है तो फिकर क्या बना देता है? फखुर है तो आपके मस्तक में लाइट की चमक चमकती है। अगर फिकर आ जाता है तो बोझ की टोकरी आ जाती है। बताओ आपको लाइट की चमक अच्छी लगती है वा बोझ की टोकरी? बेफिकर बादशाह स्वयं को भी प्रिय लगते और जो ऐसी स्थिति में उड़ते तो उनकी चमकती हुई लाइट देख दूसरों को कितना प्यार आता है। इसलिए बापदादा सदा बच्चों को बेफिक्र बादशाह स्थिति में रहना यह स्मृति स्वरूप में टिकाते रहते हैं इसलिए आप लोगों का चित्र भी भक्त लोग डबल ताजधारी दिखाते हैं। एक लाइट का ताज और दूसरा विकारों को जीतने का बादशाहपन का ताज डबल ताज दिखाते हैं इसलिए बापदादा यही सदा हर बच्चों को शिक्षा देते हैं सदा मौज में रहना बहुत सहज है। क्या सहज है? सिर्फ हद का मेरापन बाप को दे दो। मेरे से तेरा किया तो बेफिकर बादशाह बन गये। एक ही शब्द का अन्तर है तेरा मेरा। ते और मे इस शब्द के अन्तर में बेफिकर बादशाह बन जाते। सहज है ना! बने हो ना बेफिकर बादशाह? कि अभी फिकर रहता है? अगर कभी भी फखुर के बजाए फिकर आता है तो अन्तर सिर्फ तेरे के बजाए मेरा मानने से फिकर आता है। तो सभी का लक्ष्य क्या प्रैक्टिकल है कि फिकर दे दिया या बीच-बीच में फखुर छोड़के फिकर में आ जाते! फिकर आता है कि बेफिकर ही रहते हो? जो सदा बेफिकर बादशाह रहता है वह हाथ उठाओ। बेफिकर बादशाह पक्का कि कभी-कभी! बेफिकर बादशाह हाथ ऊंचा उठाओ। कभी-कभी वाले भी हैं। सेवा का फिकर वह अलग बात है। लेकिन वह फिकर औरों को भी बेफिकर बनाने का साधन है। अपने संस्कार से अगर फिकर आता है तो उसको उस समय ही मेरे के बजाए तेरे में चेंज कर दो। बाप को फिकर दे दो और फखुर ले लो क्योंकि बाप आया ही है बच्चों का फिकर लेके फखुर देने। तो चेक करो मेरे में कभी-कभी बहुत समय का संस्कार इमर्ज तो नहीं होता? क्योंकि बापदादा कुछ समय से बच्चों को यह बता रहे हैं कि वर्तमान समय के प्रमाण कभी भी कुछ भी हो सकता है और कभी भी हो सकता है इसलिए हर एक बच्चे को अपने को यह अटेन्शन देना है कि एक सेकण्ड में बिन्दी लगाने चाहो तो लगा सकते हो? मानो कोई भी व्यर्थ संकल्प आ जाता तो बिन्दी द्वारा एक सेकण्ड में व्यर्थ को समाप्त कर सकते हो? इतना अभ्यास है? कि उस समय समय के सरकमस्टांश प्रमाण पुरूषार्थ करके व्यर्थ को मिटाने की आवश्यकता पड़ेगी! लगाओ बिन्दी और लग जाए क्वेश्चन मार्क क्यों क्या कैसे... उस समय यह सोचते रहे तो आने वाले समय में जो लक्ष्य है बाप के साथ चलेंगे बाप तो सेकण्ड में बिन्दू है और सेकण्ड भी बिन्दू है और फुलस्टाप भी बिन्दु ही है। इतना अभ्यास है? इसके लिए अब से इस अभ्यास के अभ्यासी होंगे तो बाप समान श्रीमत का हाथ में हाथ देते हुए अपने घर पहुंच जायेंगे। इसलिए बापदादा ने पहले भी सुनाया तो बातों का अटेन्शन अण्डरलाइन करो। दो बातें कौन सी? एक संकल्प का खज़ाना और दूसरा समय का खज़ाना खज़ाने तो बहुत मिले हैं ज्ञान का खज़ाना शक्तियों का खज़ाना योग द्वारा जो भी मुख्य सम्पन्न बनने की युक्तियां हैं सब प्राप्त कराई है। क्योंकि यह संगम का समय सारे कल्प में अमूल्य विशेष समय है इस समय ही जितनी प्राप्ति करने चाहो उतनी कर सकते हो क्योंकि यह एक जन्म महान जन्म है। एक जन्म में अनेक जन्मों का प्रालब्ध बनाने का है। संगमयुग का समय एक सेकण्ड भी गंवाना नहीं है। एक सेकेण्ड का कनेक्शन अनेक जन्मों के साथ है। जमा करने का एक वर्ष अनेक वर्षों की प्राप्ति का है इसलिए इस समय की वैल्यु सेकण्ड या मिनट नहीं एक घण्टा भी महान है। एक सेकण्ड भी महान है। और संकल्प इस संगम के जन्म का विशेष आधार है। देखो जो योग लगाते हो तो मनमनाभव कहते हो और यह आधार है फाउण्डेशन का। मन का काम ही है संकल्प करना संकल्प द्वारा ही याद के यात्रा की अनुभूति करते हो। एक दो में भी खास भिन्न-भिन्न संकल्प देके अभ्यास कराते हो ना! तो सब चेक करो - समय की रफ्तार सारे दिन में चलते फिरते कर्म करते सम्बन्ध में आते अमूल्य रूप से रहा? क्योंकि समय अमूल्य है। संकल्प सर्वशक्तिवान बनाता है।
तो बापदादा बार-बार कहते हैं हे बापदादा के लाडले दिल में बसने वाले बच्चे अब व्यर्थ खाते को समाप्त करो। सफल करो। सफल करना ही सफलता है। एक सेकण्ड गया यह नहीं सोचो। हर सेकण्ड हर संकल्प सफल हुआ इतना अटेन्शन अपने ऊपर रखना ही है। इतना फुलस्टॉप लगाने की चेकिंग करो। अलबेले नहीं बनना। बापदादा ने कहा था लेकिन हमने समझा नहीं समय को सोचा नहीं इतना समय फास्ट जा रहा है जायेगा। अभी अलबेलापन बापदादा हर एक से लेने चाहते हैं। यह नहीं सुनने चाहते कि मैंने समझा नहीं सोचा नहीं। अभी वर्ष भी नया आने वाला है तो इस नये वर्ष में शुरू होने के पहले ब्राह्मण संसार से अलबेलापन साथ में आलस्य आलस्य भी भिन्न-भिन्न प्रकार का है इसका अभी जो समय पड़ा है वर्ष में इसमें अभ्यास शुरू करो और जब नया वर्ष शुरू होगा तो बापदादा को हिम्मत रख संकल्प करना और इसको विदाई देना। वर्ष के साथ इसको भी विदाई दे देना। दे सकते हो! दे सकते हो? जो दे सकता है वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) वाह! बच्चे वाह! हाथ उठाने में तो बापदादा को खुश बहुत करते हो। बापदादा ने देखा है कि बहुत बच्चों को हाथ उठाने का रिटर्न करना याद रहता है। और कोई याद रखने में भी अलबेले हो जाते हैं। बापदादा से रूहरिहान बहुत अच्छी करते हैं। हो जायेगा बाबा आप देखना अभी होगा अभी होगा...। बापदादा भी ऐसे अलबेले बच्चों का सुनके मुस्करा देता है और क्या करे! अच्छा है सोचते हैं करना है करना है करना है.. यह बहुत सोचते हैं लेकिन कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं उसमें चेकिंग में फिर क्या कहेंगे! अलबेले हो जाते हैं।
तो आज चारों ओर के बच्चों को बापदादा ने सुना तो जो अपने देश में अपने स्थानों में देखते रहते हैं वह भी अच्छा दिखाई देता है सुनाई भी देता है। तो बापदादा सम्मुख आने वाले बच्चों को और अपने स्थानों पर सुनने वाले देखने वाले बच्चों को यही कहते अभी पुरूषार्थ को संकल्प को और संगम के समय को अण्डरलाइन लगाओ। सभी बच्चे प्यार में तो मैजारिटी पास हैं। प्यार के आधार पर अपने को अच्छा प्रोग्रेस कर रहे हैं। प्यार के कारण बाप के प्यार का रेसपान्ड मिलने के कारण आगे बढ़ भी रहे हैं लेकिन बाप समझते हैं जैसे प्यार में अनुभवी बन आगे बढ़ रहे हो ऐसे ही याद की सबजेक्ट में अनेक जन्मों के विकर्म विनाश करने में और अटेन्शन दो। क्यों? विकर्म विनाश होंगे तो साथ-साथ चलेंगे नहीं तो पीछे-पीछे आयेंगे और बाप समझता है कि प्यार का रेसपान्ड यह है जो प्यार वाली आत्मा कहे वह करना ही है। बाप चाहता है जब बच्चों का प्यार बाप से है तो साथ रहें। राजधानी में भी ब्रह्मा बाबा के साथ राजधानी में आयें। राजधानी में आना अर्थात् रॉयल फैमली में आये। तख्त पर नहीं बैठे लेकिन रॉयल फैमिली के साथी तो बनें। बापदादा ने पहले भी कहा है इसकी परख कैसे करो! जबसे आप आये हो जितनी आयु आपकी है ज्ञान की उतने समय में अगर आप बापदादा के दिलतख्तनशीन रहे हैं तो जो ज्यादा समय दिलतख्त पर रहे हैं मिट्टी में पांव नहीं रखा है वह उस अनुसार रॉयल फैमिली में नजदीक सम्बन्ध में रहेंगे। रॉयल फैमिली वाले रहेंगे। तो प्यार है तो प्यार वाले साथ में निभाने में पीछे नहीं रहते। जो दिलतख्तनशीन हैं वह द्वापर कलियुग के भी संबंध में रहेंगे। नजदीक रहेंगे। इसलिए प्यार निभाने वाले सदा दिलतख्तनशीन रहो और जन्म-जन्म का हक लो इसलिए बापदादा हर बच्चे को प्यार करते हैं। बाबा ने सर्टीफिकेट दिया कि प्यार की सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। अब सब सबजेक्ट में पास होना ही है। पास होना है पास रहना है। अच्छा।
पहले बारी जो बच्चे आये हैं वह उठो। पहले बारी आये! आधा क्लास तो नया है। आये हैं बापदादा आने वालों का स्वागत कर रहे हैं। फिर भी मुबारक हो। पहले बार आने की मुबारक हो। भले लेट आये हो लेकिन फिर भी टूलेट के पहले आये हो। अभी यह अटेन्शन रखना कि थोड़े समय में तीव्र पुरूषार्थी बन अपना भविष्य जितना बढ़ाने चाहो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा आगे बढ़ सकते हो क्योंकि फिर भी अभी भी पुरूषार्थ करने की मार्जिन है। जितना आगे बढ़ने चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो। बापदादा और यह दैवी परिवार आपको साथ-साथ आगे बढ़ने का वायब्रेशन देंगे इसलिए आगे बढ़ो हिम्मत रखो। हिम्मत आपकी और मदद बापदादा और परिवार की आगे बढ़ो। ठीक है ना! हाँ करो आगे बढ़ो। अच्छा।
सेवा का टर्न गुजरात जोन का है:- गुजरात उठो। हाथ हिलाओ। गुजरात की संख्या ही इस हॉल में आधे हॉल से भी ज्यादा है। अच्छा है। जो गुजरात से पहले बारी आये हैं वह खड़े रहो। अच्छा जो पहले बारी आये हैं उसमें भी गुजरात ज्यादा है। अच्छा - मुबारक हो।
अभी गुजरात के रेग्युलर आने वाले और टीचर्स उठो। अच्छा। गुजरात सर्विस में तो आगे बढ़ रहे हैं। अभी किसमें नम्बर लेना है? संख्या में तो नम्बर ले लिया अभी निर्विघ्न जो बापदादा कहते हैं अभी किसी जोन का रिजल्ट में नाम नहीं आया है। सबका लक्ष्य है लेकिन अभी तक इस बात में नम्बर नहीं लिया है। बापदादा ने देखा कि यह नम्बर लेना लक्ष्य रखते हैं लेकिन प्रैक्टिकल में अभी प्लैन ही बना रहे हैं। और अभी हर एक समझे कि हमें नम्बर लेना है। लेना है? लेना है तो मुख्य इतने लोग जो उठे हैं वह अपने-अपने सेन्टर को एक-एक अपने एरिया को अटेन्शन देकर नई दुनिया में जाने की तैयारी कर सकते हो ना! वहाँ तो राजा प्रजा सब्ा एक होंगे निर्विघ्न होंगे। लेकिन संस्कार वहाँ तो नहीं भरेंगे यहाँ ही भरना है। तो बापदादा सभी को छोटा जोन है या बड़ा जोन है यह रिजल्ट देखने चाहते हैं। बोलो निमित्त बनी हुई दादियां या दादे यह पहला इनाम कौन लेगा? गुजरात लेगा? कब तक? 6 मास चाहिए? 6 मास... जल्दी करेंगे मुबारक हो। दादियां बोलो पहला नम्बर कब दिखाई देगा? दिखाई देगा ना!
मधुबन वाले उठो मधुबन वाले अच्छा। हाथ हिलाओ। मधुबन वाले हाथ उठाओ। शान्तिवन या ऊपर पाण्डव भवन है जो तीन स्थान हैं ऊपर के और एक है नीचे शान्तिवन और पांचवा हॉस्पिटल भी है तो 5 पाण्डव हो गये। तो पहले मधुबन वाले करेंगे? हाथ उठाओ जो करेंगे। मिलाना जानते हो ना! मधुबन वाले तो लकी हैं थोड़ा बहुत संगठन को पक्का करके साथी बनाओ। और कोई में साथी नहीं बनाना इसमें एक दो को साथी बनाके पहला नम्बर मधुबन लेना चाहिए। लेंगे! अभी ऐसे हाथ करो। बीती सो बीती जो भी हुआ सबने देखा सुना और मधुबन वालों को तो बहुत गोल्डन चांस है। मधुबन में सब आ गये। तो मधुबन वाले अगर मिलके यह नहीं पाण्डव भवन अलग है या कोई और स्थान अलग है नहीं मधुबन माना सब एक है। तो मधुबन वाले समझते हैं करेंगे! हाथ उठाओ जो करेंगे। सभी ने उठाया जो समझते हैं करना क्या बड़ी बात है बापदादा है दादियां हैं तो बड़ी बात तो है नहीं। दादियां क्या समझती हैं! मधुबन वाले तो नम्बरवन। अच्छा है बाबा ने सबको यह करके दिखाने का सबको कहा हुआ है लेकिन मधुबन मधुबन तो मधुबन है। गुजरात ने कहा है करके दिखायेंगे। अच्छा है। सब वायब्रेशन देना हो जायेगा कोई बड़ी बात नहीं है। विघ्न का नाम निशान नहीं। चलो बात हुई कोई लेनदेन किया खत्म। कुछ समय पहले जब दादी थी तो एक बारी सभी ने पाठ पक्का किया था हाँ जी का। ना शब्द नहीं हाँ जी बहुत अच्छा। मधुबन जायेगा पहला नम्बर। बापदादा को मधुबन का फखुर है ना! हर एक जोन का फखुर है अभी मधुबन सामने आया है लेकिन बापदादा सभी जोन को कहते हैं हाँ जी मीठी आत्मा यह सबका पाठ पक्का है। पक्का है ना? इनाम तो मधुबन को लेना चाहिए। एक सेकण्ड में बीती को बीती कर सकते हो! चलो पुरूषार्थी हैं हो भी गया लेकिन बीती को बीती कर उड़ो। उड़ने वाले पीछे को छोड़ देते हैं तभी उड़ते हैं। तो बहुत अच्छा।
अभी गुजरात कोई नवीनता करे। बापदादा ने दिल्ली वालों को भी कहा नवीनता करो अभी। बापदादा को समाचार मिला तो अभी यूथ ने विदेश और देश मिलके जो आरम्भ किया है उसमें अच्छी रिजल्ट हो सकती है। अभी तो इन्वेन्शन शुरू की है लेकिन भारत या विदेश दोनों ही मिलकर और भी कमाल कर सकते हैं। अभी तो आरम्भ किया है लेकिन दिल्ली वालों ने हिम्मत अच्छी रखी। शुरू किया है अभी विश्व में यह फैल जाए तो विदेश और देश मिलकर एक ब्राह्मण परिवार बना है और विश्व के आगे विश्व को भी एक बनायेंगे। शुरू तो हो गया है अभी मुस्लिम लोग भी आगे तो बढ़ रहे हैं। लेकिन अब ऐसा बड़ा प्रोग्राम बनाओ जिसमें मुख्य देशों से आयें और विश्व में यह प्रसिद्ध हो तो सब एक पिता के बच्चे आपस में भाई बहन हैं ब्रदरहुड सिस्टरहुड यह आवाज फैलता रहे। एक ही स्टेज पर सब तरफ के लोगों का विशेष अनुभव हो। प्लैन तो बना रहे हैं सभी। अभी बेहद में जा ही रहे हैं। सबको मालूम हो तो यह एक गॉड फैमिली है यह प्रसिद्ध हो। बाकी तो सभी जो भी आते हो सेवा भी कर रहे हो स्व पुरूषार्थ भी कर रहे हो और गॉडली कार्य है यह भी दुनिया के लिए प्रसिद्ध हो जायेगा। एक फैमिली है। अच्छा।
गुजरात वालों ने संकल्प तो किया है बहुत अच्छा है अभी कुछ नवीनता भी करो। हर जोन कुछ नया-नया प्लैन बनाये। सिर्फ मधुबन या बड़े शहर बनावें सबके प्लैन में कोई न कोई विशेषता होती है वह सब विशेषतायें मिलाके एक ऐसा प्लैन बनाओ जो सब समझें हमारा प्रोग्राम है। एडीशन जो भी करने चाहे वह अपना विचार दे सकते हैं। सिर्फ आवाज अभी जल्दी फैलाओ। उन्हों को भी टाइम तो मिले जो रहे हुए हैं कुछ तो वर्सा पाये ना। अन्त में आयेंगे तो क्या पायेंगे! इसलिए सोचो जल्दी-जल्दी कुछ न कुछ वर्सा पा लें। नहीं तो आपको उल्हना देंगे हमको लास्ट में क्यों बताया कुछ वर्सा तो लेने देते। मुक्ति का वर्सा तो मिलेगा ही सभी को लेकिन जीवनमुक्ति का वर्सा। अच्छा।
गुजरात की 50 कन्यायें समार्पित हुई हैं:- अच्छा शक्ति मिली! समार्पित होना अर्थात् जो बापदादा ने कहा वह किया। तो संकल्प किया बापदादा का कहना और हमारा करना यह संकल्प किया? हाँ हाथ उठाओ। आगे चलकर समर्पण समारोह तो किया लेकिन अभी आगे कौन सी ट्रेनिंग करेंगी या समर्पण करेंगी। कोई भी विघ्न को निर्विघ्न बनाने के निमित्त बनेंगी! यह ताकत आई ना? समर्पण में यह भी तो हुआ ना। तो समर्पण किया इसमें भी नम्बर लेना। निर्विघ्न रहेंगे और निर्विघ्न स्थान को बनायेंगे। नम्बर लेंगे। अच्छा है। एक कदम तो उठाया है अभी आगे कदम बढ़ाते ही रहना। अच्छा है। आगे-आगे बढ़ते रहेंगे और बढ़ाते रहेंगे। अच्छा। अभी आप मुख खोलो और गुलाबजामुन खाओ बापदादा भी समर्पण की टोली खिलाते हैं।
डबल विदेशी:- डबल विदेशी अर्थात् डबल पुरूषार्थी डबल तीव्र पुरूषार्थी। बापदादा ने देखा उमंग उत्साह बहुत है। कैसे भी हो लेकिन मैजारिटी मधुबन में हर साल में पहुंच जाते हैं। परिवार और बापदादा से सम्मुख मिलन का उमंग बहुत है। चाहे कैसे भी जमा करें लेकिन बापदादा ने देखा है कि इन्हों की टिकेट जमा करने के भिन्न-भिन्न तरीके बहुत अच्छे हैं। कैसे भी करके हर साल मैजारिटी पहुंच जाते हैं। विदेश को भी इन्डिया बना दिया है। प्यार है मधुबन के वायुमण्डल से और बापदादा का भी यह उमंग उत्साह और इन्हों के भिन्न-भिन्न जमा करने का तरीका देखकर बहुत दिल में प्यार आता है वाह विदेशी वाह! पहले बड़ी बात लगती थी लेकिन अभी ऐसे ही आते हैं हर ग्रुप में जैसे और ग्रुप आता है इन्डिया का ऐसे कोई ग्रुप का नहीं जिसमें विदेशी नहीं आयें। तो यह है मधुबन के या सारे विश्व के परिवार से प्यार। बापदादा से तो प्यार है ही। बापदादा को भी जैसे दिल से सब कहते मेरा बाबा क्योंकि बापदादा अमृतवेले भी विदेश में चक्र लगाता है। बापदादा को आने जाने में कितना समय लगता? वहाँ भी चक्र लगाते हैं बापदादा देखते हैं कैसे हैं? लगन है मगन बनने में पुरूषार्थ अच्छा है। अभी एक लगन मैजारिटी विदेश वालों की देखा है जैसे इन्डिया में रहे हुए स्थान रह नहीं जाए ऐसे विदेश में भी अभी बढ़ता जाता है जितना हो सकता है उतना चक्र लगाते भी सेवा करते रहते हैं। अभी कितने देश हैं! अभी विदेश के कितने देशों में सेन्टर हैं? (137 देशों में सेवा चल रही है) कितने सालों में इतने बनें! (लण्डन वाले 2011 में 40 साल मनायेंगे) अच्छा है ताली बजाओ। (स्पेन मैक्सिकों आदि कई जगह में 30 वर्ष का मना रहे हैं) अच्छा है आप सबको भी सुनकर खुशी होती है ना। क्यों? कोई भी देश चाहे इन्डिया का चाहे विदेश का कम से कम बाप आया है यह सन्देश भी पहुंच जाए ऐसा नहीं कहे कि मेरा बाप आया मेरे को सन्देश भी नहीं दिया। चाहे इन्डिया में चाहे विदेश में चलो काफी समय नहीं आवें लेकिन सन्देश तो सबको मिले भगवान आ गया। भगवान आया और वर्सा देके चला गया इसमें रह नहीं जायें। सन्देश देना आपका काम है चलना उनका काम है। लेकिन सन्देश पहुंचाना यह आपका काम है जो जहाँ रहते हैं। अभी जैसे साइंस के साधन बढ़ते जाते हैं बहुत जल्दी से जल्दी कोई भी बात फैल जाती है ऐसे प्लैन बनाओ जो सब तक सन्देश तो पहुंच जाए। हो सकता है! हो सकता है? मुश्किल है? नहीं। तो अभी लिस्ट निकालो भारत में कितने तक सन्देश पहुंचा है विदेश में कहाँ तक पहुंचा है! कोई साधन निकालो चाहे साइंस के साधन चाहे वैसे भी सम्बन्ध रखने का साधन लेकिन उल्हना न मिले। अभी तो कई देश निकलेंगे जहाँ सन्देश नहीं पहुंचा है। बहुत अच्छे साधन निकल रहे हैं लेकिन उनको यूज कैसे करें वह प्लैन बनाना पड़े। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों को बापदादा अभी मुबारक दे रहे हैं। हर दिन हर घण्टे आगे बढ़ने की मुबारक हो। समय आपका इन्तजार कर रहा है आप समय का इन्तजार नहीं करना। आप समय को जितना समीप लाने चाहो समाप्ति को उतना समाप्ति को समीप ला सकते हो। समय आने पर तैयार होना यह आप ब्राह्मणों का संकल्प नहीं हो आप समय को समीप लाओ। समय बाप को कहता अभी ब्राह्मण आत्मायें मुझ समय को समीप लायें। प्रकृति भी बाप को कहती अभी समाप्ति को समीप लावे। तो बापदादा क्या जवाब दे? क्या जवाब दे? समय आया कि आया यह कहें! आपकी तरफ से यह जवाब दें? क्या जवाब दें? बोलो। क्या जवाब दें? अभी समाप्ति को समीप लाना अर्थात् स्वयं को सम्पन्न सम्पूर्ण बनाना क्योंकि बापदादा अकेले नहीं जायेगा बच्चों सहित जायेगा। तो डेट फिक्स करना। कब तक? काम तो दिया है अब आपस में राय करना। बापदादा जवाब क्या दे प्रकृति को! प्रकृति बहुत परेशान है। दु:खी आत्मायें बहुत मन में चिल्ला रही हैं। मन्सा सेवा अभी ज्यादा बढ़ाओ। करते हैं मन्सा सेवा लेकिन लगातार बढ़ती रहे वह और बढ़ाओ क्योंकि प्रकृति और दु:खी आत्मायें बाप के पास आती हैं चिल्लाती हैं। तो आप उन्हों को कुछ शान्ति या सुख की अनुभूति कराओ। वह एक सेकण्ड की शान्ति भी चाहते हैं थोड़ी शान्ति दे दो। जैसे भूखा होता है तो समझता है कि कुछ भी मिल जाए थोड़ा भी मिल जाए तो अभी मन्सा सेवा को भी बढ़ाओ। वाचा की तो चल रही है बापदादा खुश है। अच्छा बापदादा ने जो होमवर्क दिया वह याद रखना और रखवाना। अच्छा।
बापदादा के दिलतख्तनशीन बच्चों को विश्व कल्याण के कर्तव्य में सदा आगे बढ़ने वालों को बापदादा दृष्टि देते हुए दिल का प्यार और मुबारक मुबारक हो.. दे रहे हैं। हर एक बच्चा दूर बैठे भी सम्मुख अनुभव कर रहे हैं और बापदादा सभी बच्चों को दिल में समाते हुए सभी बच्चों से नमस्ते नमस्ते कर रहे हैं।
दादियों से:- (बाबा का फोर्स सभी को प्रेर रहा है जल्दी सबको सन्देश मिल जायेगा) पहुंच रहा है लेकिन यह जो संस्कार हैं ना सुनते हुए फोर्स आता है लेकिन संस्कार बीच में पर्दा लगा देता है। बाप तो कर रहा है लेकिन सभी संगठन में यह वायदा करें कि हम सब मिलकरके करके दिखायेंगे और रोज अपना एक दो को जो साथ में रहते हैं सब मिल करके लेन-देन करके सोयें तो हमारा आज का दिन सम्पन्न हुआ।
मोहनी बहन से:- हो जायेगा। यह तो बीच में थोड़ी ही गलती की इसलिए बढ़ गया। थोड़ा सा खाने पीने का ध्यान रखो जो डायरेक्शन मिले उस अनुसार करो हो जायेगा। (बाबा शरीरों को जवान बना दो ना) यह ड्रामा के हाथ में है बाबा के हाथ मे नहीं। (बापदादा के हाथ में ही है) वह टैम्प्रेरी काम चलाने के लिए।
परदादी से:- देखो यह खुश रहती है।
रमेश भाई से:- जो आपने प्लैन बनाया है वह ठीक है। कर सकते हो! बैठकर अपना प्लैन बनाकर शुरू कर सकते हो। और नई-नई इन्वेन्शन जो निकल रही है ना वह क्या-क्या निकल रही है हम लोगों को उससे क्या फायदा हो सकता है। जो चल रहा है वह तो चल रहा है नवीनता निकालो।
शान्ति बहन से:- बीमारी में स्वयं को चलाना यह अच्छा आ गया है। कोई बैठ जावे मैं तो बीमार हूँ मैं तो बीमार हूँ नहीं आपको चलाना आ गया है। (बाबा आपको थैंक्स) आपको भी थैंक्स जो शरीर को चलाना आ गया है।
गोलो भाई शान्तिवन में सोलार लगवा रहे हैं:- अभी डर निकल गया है ना आगे क्या होगा कैसे होगा वह डर नहीं है ना। क्योंकि सभी का संकल्प है सबका उमंग है तो होना चाहिए इसलिए सभी का संकल्प ला रहा है।
31-12-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“इस नये वर्ष में सर्व खज़ाने सफल कर सफलतामूर्त बनने की विशेषता दिखाओ”
आज नव युग रचता, नव जीवन दाता बापदादा नव वर्ष मनाने आये हैं। आप सभी भी नव वर्ष मनाने आये हो वा नव युग मनाने के लिए आये हो? नव वर्ष तो सभी मनाते हैं लेकिन आप सभी नव जीवन, नव युग और नव वर्ष तीनों ही मना रहे हो। बापदादा भी त्रिमूर्ति मुबारक दे रहे हैं। नव वर्ष की एक दो को मुबारक देते हैं और साथ में कोई न कोई गिफ्ट भी देते हैं। गिफ्ट देते हो ना! लेकिन बापदादा ने आप सबको कौन सी गिफ्ट दी है? गोल्डन दुनिया की गिफ्ट दी है। सभी को गोल्डन दुनिया की गिफ्ट मिल गई है ना! जिस गोल्डन दुनिया में, नव युग में सर्व प्राप्तियां हैं। याद है अपना राज्य? कोई अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं है। ऐसी गिफ्ट सिवाए बापदादा के और कोई दे नहीं सकता। सारे विश्व में अगर कोई बड़े ते बड़ी सौगात देंगे भी तो क्या देंगे? बड़े ते बड़ा ताज वा तख्त दे देंगे। जब स्थापना हुई थी, (आगे-आगे बैठे हैं स्थापना वाले) तब आदि में ही ब्रह्मा बाप बच्चों से पूछते थे कि अगर आपको आजकल की कोई भी रानी ताज और तख्त देवे तो आप जायेंगे? याद है ना! तो बच्चे कहते थे इस ताज और तख्त को क्या करेंगे, जब बाप मिल गया तो यह क्या! तो इस गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट के आगे कोई भी गिफ्ट बड़ी नहीं हो सकती। कई बच्चे पूछते हैं वहाँ क्या-क्या प्राप्ति होगी? तो बापदादा कहते हैं प्राप्तियों की लिस्ट तो लम्बी है लेकिन सार रूप में क्या कहेंगे! अप्राप्त कोई नहीं वस्तु, जो जीवन में चाहिए वह सब प्राप्त होंगे। तो ऐसी गोल्डन गिफ्ट की अधिकारी आत्मायें हो। अधिकारी हैं ना! डबल विदेशी अधिकारी हैं? (हाथ हिलाते हैं) सभी राजा बनेंगे? राजा बनेंगे, अच्छा। इतने तख्त तैयार करने पड़ेंगे। बापदादा कहते हैं वह तख्त तो तख्त है, सर्व प्राप्ति हैं लेकिन इस संगमयुग का स्वराज्य उससे कम नहीं है। अभी भी राजा हो ना! प्रजा हो या रॉयल फैमिली हो? क्या हो? एक ही बाप है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा राजा बच्चा है। राजा हो ना! राजयोगी हो कि प्रजा योगी हो? इस समय सब दिलतख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा हो। इतना रूहानी नशा रहता है ना? क्योंकि इस समय के स्वराज्य से ही भविष्य राज्य प्राप्त होता है। यह संगमयुग बहुतबहुत- बहुत अमूल्य श्रेष्ठ है। संगमयुग को बापदादा और सभी बच्चे जानते हैं, खुशी-खुशी में संगमयुग को नाम क्या देते हैं? मौजों का युग। क्यों? यहाँ संगम जैसी मौज सारे कल्प में नहीं है। कारण? परमात्म मिलन की मौज सारे कल्प में अब मिलती है। संगमयुग का एक एक दिन क्या है? मौज ही मौज है। मौज है ना? मौज है, मूंझते तो नहीं हो ना! हर दिन उत्सव है क्योंकि उत्साह है। उमंग है, उत्साह है कि अपने सर्व भाई बहनों को परमात्मा पिता का बनायें। सेवा का उमंग-उत्साह रहता है ना! यह करें, यह करें, यह करें... प्लैन बनाते हो ना! क्योंकि जो श्रेष्ठ प्राप्ति होती है तो दूसरे को सुनाने के बिना रह नहीं सकते हैं। इसी संगमयुग की प्राप्ति गोल्डन वर्ल्ड में भी होगी। अभी के पुरूषार्थ की प्रालब्ध भविष्य गोल्डन वर्ल्ड है। तो संगमयुग अच्छा लगता है या सतयुग अच्छा लगता है? क्या अच्छा लगता है? संगम अच्छा है ना? सिर्फ बीच-बीच में माया आती है। थोड़ा-थोड़ा कभी-कभी मूंझ जाते हैं। कई बच्चे सहज योग को मुश्किल योग बना देते हैं, है नहीं लेकिन बना देते हैं। वास्तव में है बहुत सहज, मुश्किल लगता है? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। सदा नहीं, कभी कभी मुश्किल है? या सहज है? जो मुश्किल योगी हैं वह हाथ उठाओ। मुश्किल वाले हाथ उठाओ। मातायें मुश्किल योगी हो या सहज होगी? कोई मुश्किल योगी है? हाथ नहीं उठायेंगे, सारी सभा में कैसे उठायेंगे!
सभी बच्चे फलक से कहते हैं मेरा बाबा। कहते हैं, मेरा बाबा? मेरा बाबा है कि दादियों का बाबा है? मेरा बाबा है ना! हर एक कहेगा पहले मेरा। ऐसे है? यह सिन्धी लोग सभी बैठे हैं ना! मेरा बाबा है या दादी जानकी का है? दादी प्रकाशमणि का है? किसका है? मेरा है? मेरा है? सारा दिन क्या याद रहता है? मेरा ना! बाप कहते हैं बहुत सहज युक्ति है जितने बार मेरा- मेरा कहते हैं, सारे दिन में कितने बार मेरा शब्द कहते हो? अगर गिनती करो तो बहुत बार मेरा शब्द बोलते हो। जब मेरा शब्द बोलते हो तो बस मेरा कौन? मेरा बाबा। मुश्किल है? कभी-कभी भूल तो जाते हो? बापदादा कोई नया शब्द नहीं देता है, जो सदैव कार्य में लाते हो मैं और मेरा, तो मैं कौन और मेरा कौन! कई बच्चे मुश्किल पुरूषार्थ क्यों करते? सिर्फ सोचते हैं बिन्दू सामने आ जाए, बिन्दु-बिन्दु-बिन्दु.... और बिन्दु खिसक जाती है। बिन्दु तो है लेकिन कौन-सी बिन्दु? मैं कौन हूँ, यह अपने स्वमान स्मृति में लाओ तो रमणीक पुरूषार्थ हो जायेगा सिर्फ ज्योति बिन्दु कहते हो ना तो मुश्किल हो जाता है। सहज पुरूषार्थ, मौज का पुरूषार्थ करो।
इस नये वर्ष में पुरूषार्थ भी श्रेष्ठ हो लेकिन श्रेष्ठ के साथ पहले सहज हो। सहज भी हो और श्रेष्ठ भी हो यह हो सकता है? दोनों साथ हो सकता है? डबल फारेनर्स बोलो, हो सकता है? तो बापदादा देखेंगे। बापदादा तो चेक करते रहते हैं ना! तो मुश्किल योगी कौन-कौन बनता है! सहज योगी का यह मतलब नहीं है कि अलबेलेपन का पुरूषार्थ हो। श्रेष्ठ भी हो और सहज भी हो। तो पाण्डव सहज योगी हैं? सहजयोगी जो हैं वह हाथ उठाओ। देखना टी.वी. में आ रहा है। मुबारक हो। तो यह वर्ष कोई के आगे कोई मुश्किलात नहीं आयेगी क्योंकि सहज योगी हो। अलबेले नहीं बनना। समय प्रमाण इस नये वर्ष में सभी को विशेष यह लक्ष्य रखना है कि जो भी खज़ाने प्राप्त हैं - समय है, संकल्प हैं, गुण हैं, ज्ञान है, शक्तियां हैं... सबसे बड़ा खज़ाना संकल्प है - श्रेष्ठ संकल्प, शुद्ध संकल्प। इन सभी खज़ानों को हर रोज सफल करना है। खूब बांटो। दाता के बच्चे मास्टर दाता बनो। खूब बांटों। क्यों? सफल करना अर्थात् सफलता को प्राप्त करना। तो यही इस वर्ष की विशेषता सदा कायम रखना। सफल करना है और सफलता है ही है। सभी कहते भी हो ना कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। है अधिकार? तो सफल करो और सफलता प्राप्त करो। कोई भी कार्य करो, कोई न कोई खज़ाना सफल करते जाओ और सफलता का अनुभव करते चलो। सोचो - सफलता का अधिकार आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और किसका अधिकार हो सकता है! क्यों? क्योंकि बाप ने आपको सफलता भव का वरदान दिया है। बापदादा सदा कहते हैं कि एक-एक ब्राह्मण आत्मा सफलता का सितारा है। सफलता स्वरूप है। सफलता कि सितारे हो ना या मेहनत के सितारे हो? बापदादा सभी बच्चों को सफलता का सितारा इसी स्वरूप में देखते हैं। याद है ब्रह्मा बाप ने आदि में कितने समय में सब सफल किया? अन्त तक अपना समय सफल किया, चाहे कर्मातीत भी बन गये फिर भी कितने पत्र लिखे! समय सफल किया ना! लास्ट दिन भी मुख से महावाक्य उच्चारण किये। लास्ट दिन तक सब सफल किया इसीलिए सफलता को प्राप्त हो गये। तो फालो फादर। वास्तव में संगमयुग का एक-एक संकल्प, एक-एक सेकण्ड सफल करना ही सफलता मूर्त बनना है। सभी निश्चय से कहते हैं ना कि ब्रह्मा बाप से तो हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी है जो बाप को प्रिय था वह बच्चों को प्रिय हो। समय, संकल्प और सर्व खज़ाने सफल हो। व्यर्थ नहीं हो। प्यार की निशानी फालो फादर। ब्रह्मा बाप ने विशेषता क्या दिखाई? जो सोचा वह सेकण्ड में किया। सिर्फ सोचा नहीं, सिर्फ प्लैन नहीं बनाया, प्रैक्टिकल में करके दिखाया। तो ऐसे है? फालो करने वाले हैं ना? अच्छा है।
आज बहुत ही आ गये हैं न्यु ईयर मनाने के लिए। अच्छा है। अगर हाल छोटा पड़ गया तो दिल तो बड़ी है। देखो दिल बड़ी है तो समा गये है ना? (आज सभा में 18-19 हजार भाई बहनें बैठे हैं) सभी बाहर बैठे हुए भी सुन रहे हैं ना? बाहर बैठने वाले सुन रहे हैं, वह तो दिखाई नहीं देंगे। बापदादा ने सुना कि फारेन में सबसे ज्यादा आस्ट्रेलिया वाले 12 बजे बैठते हैं। रात के 12 बजे बैठते हैं और 4 बजे अमृतवेला करके उठते हैं। तो बापदादा ने भी आज आस्ट्रेलिया को याद किया। सुन रहे हैं। यहाँ आस्ट्रेलिया वाले हैं हाथ उठाओ। त्रिमूर्ति मुबारक पहले आस्ट्रेलिया को फिर सभी को।
इस वर्ष का लक्ष्य तो बताया - सफल करो, सफलता है ही। यह सभी ने पक्का किया? सफल करना है। व्यर्थ नहीं। संगमयुग समर्थ युग है, सफलता का युग है, व्यर्थ का नहीं है। व्यर्थ के 63 जन्म समाप्त हुए। अब यह छोटा सा युग सफल करने का युग है। अगर समय सफल करेंगे तो भविष्य में भी आधाकल्प का पूरा समय राज्य अधिकारी बनेंगे। अगर कभी-कभी सफल करेंगे तो राज्य अधिकारी भी कभी-कभी बनेंगे। समय सफल की प्रालब्ध यह है। श्वांस सफल कर रहे हो तो 21 जन्म ही स्वस्थ रहेंगे। चलते-चलते हार्टफेल नहीं होगी। किसकी हार्ट रूक जाती, किसकी नलियां बन्द हो जाती, वह नहीं होगी।
ज्ञान के खज़ाने को भी सफल करो तो ज्ञान का अर्थ है समझ, वहाँ इतने समझदार बन जायेंगे जो कोई मन्त्रियों की जरूरत नहीं है। आजकल तो देखो शपथ लेते ही पहले मन्त्रीमण्डल बनाते हैं। वहाँ साथी होंगे लेकिन मन्त्री नहीं होगे। रायल फैमिली हर एक दरबार में बैठने वाले ताजधारी होंगे। रॉयल फैमिली कम नहीं होगी, चाहे तख्त पर नहीं भी बैठे लेकिन मर्तबा एक ही जैसा होगा। इसलिए यह नहीं सोचो कि तख्तनशीन बहुत थोड़े बनेंगे लेकिन आप लोग भी राज दरबार में राज्य अधिकारी के रूप में होंगे। आपके सिर पर भी ताज होगा और आपका पूरा अधिकार होगा। तो क्या बनेंगे? नम्बरवन या नम्बरवार? क्या बनेंगे? नम्बरवार बनेंगे या नम्बरवन बनेंगे? क्या बनेंगे? नम्बरवन या नम्बरवार? तो क्या करना पड़ेगा, पता है? हिम्मत दिखाई, यह बहुत अच्छा है। लेकिन वन नम्बर बनने के लिए पहले विन करना पड़ेगा। कर रहे हैं ना! करेंगे नहीं कहना, कर रहे हैं। दूसरे भी सुन रहे हैं। आज सुना कि पुराने सिन्ध के ब्रह्मा के साथी बहुत आये हैं। हाथ उठाओ। हिन्दी नहीं सिन्धी। बच्चे उठो, परिवार के परिवार आये हैं। अच्छा। कोई कमाल दिखायेंगे ना! क्या दिखायेंगे? (मैसेज देंगे) वह तो कर ही रहे हो। अच्छा 38 आये हैं, तो क्या कमाल करेंगे? चलो ज्यादा नहीं कहते हैं, छोटी-सी बात कहते हैं, करने के लिए तैयार हो? बच्चे भी कमाल करेंगे ना? (38 लाख बनायेंगे) पद्मगुणा मुबारक हो। आपने तो बड़ी बात बता दी लेकिन बापदादा छोटी बात कहते हैं वह एक एक, एक को लाओ। लाना है? एक, एक को लाओ। बच्चे हैं तो बच्चों को लाओ। मातायें हैं तो भाई को लायें या बहन को लायें, लेकिन एक-एक को एक लाना है। यह ग्रुप देख लो, आप इसको गाइड करना, अगले साल लेकर ही आना, डबल ग्रुप लेकर आना। बापदादा यही चाहते हैं कि जहाँ से आदि हुई, वहाँ ही प्रत्यक्षता होनी है। रहम आता है ना! ब्रह्मा बाप के देश के वासी हो तो देश वासियों से प्यार होता है।
आपके पास खज़ाने बहुत हैं, गुणों का खज़ाना कितना बड़ा है, शक्तियों का खज़ाना कितना बड़ा है। तो गुण दान, शक्तियों का दान करने वाले मास्टर दाता बनो। जो भी आये चाहे सम्बन्ध में आये, चाहे सम्पर्क में आये लेकिन उनको कोई न कोई गुण या शक्ति की गिफ्ट दे देना। कोइर् खाली हाथ नहीं जाये। और कुछ नहीं तो बाप के सन्देश के मीठे बोल, वह मीठे बोल भी गिफ्ट देना। दुनिया वाले तो कोई भी उत्सव होता है ना तो एक दो को मुख मीठा कराते हैं। लेकिन बापदादा कहते हैं मुख मीठा तो कराना ही है लेकिन अपना मीठा मुखड़ा भी दिखाना है। सिर्फ मुख मीठा नहीं, मुखड़ा भी मीठा। इतनी मधुरता जमा है ना! जो बांटो तो भी भरपूर रहो और इस खज़ाने को तो जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा, कम नहीं होगा। तो इस वर्ष नोट करना, जो भी आत्मा आई उसको कुछ दिया? अगर सुनने वाला नहीं है तो मीठी शक्तिशाली दृष्टि देना। लेकिन देना जरूर। खाली नहीं जाये। यह तो सहज है ना! कि मुश्किल है? यूथ ग्रुप सहज है? हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हैं। यूथ ग्रुप भी अच्छा आया है।
डबल विदेशी यूथ रिट्रीट ग्रुप - सबसे श्रेष्ठ शक्ति यूथ के लिए है - परिवर्तन शक्ति। सोचा और किया। यूथ ने वायदे बहुत किये हैं ना! बापदादा ने समाचार सुना है। सभी यूथ कौन बन गये? (सभी यूथ हाथ हिला रहे हैं) सब तिलकधारी बनकर आये हैं, जिन्होंने विशेष रिफ्रेशमेंट की है वह तिलकधारी खड़े रहो। (तिलक लगाकर बैठे हैं) अच्छी निशानी लगाई है। आत्मा चमक गई है ना? जो समझते हैं कि हमारी इस ट्रेनिंग से गोल्डन हार्ट बन गई, वह हाथ उठाओ। गोल्डन हार्ट बन गई। यह तो सबसे आगे चले गये। गोल्डन स्टार नहीं, गोल्डन हार्ट। फिर तो सफलता मूर्त हो गये। अभी गोल्डन हार्ट प्लेन में थोड़ा नीचे तो नहीं आ जायेगी, अच्छा अपने देश में जाके थोड़ा गोल्डन सिल्वर बनेंगी? नहीं बनेगी? अच्छा है। ऐसे तैयार हो जाओ जो भारत की आत्माओं को जगाओ। है हिम्मत? भारत को जगायेंगे? बहुत टेढ़े-बांके क्वेश्चन करेंगे भारत वाले। उत्तर देंगे? आप सबका फोटो टी.वी. में आ रहा है। तो आप सबको निमन्त्रण आयेगा भारत को जगाने के लिए। तो एवररेडी रहना। अगर टिकेट नहीं होगी तो मिल जायेगी। बापदादा को पता है कि डबल फारेनर्स की विशेषता है, एक साल होकर जाते हैं, दूसरे साल की तैयारी सारे वर्ष में करते जाते हैं। अच्छा है। कितने देशों के यूथ हैं? (21 देशों के) बापदादा जानते हैं कि यह गोल्डन हार्ट कमाल करेंगे। अटेन्शन अच्छा रखा है। स्व-पुरूषार्थ का अटेन्शन ज्यादा इस बारी अन्डरलाइन किया है। बापदादा खुश है। अच्छा है ग्रुप-ग्रुप बनने से अटेन्शन जाता है। सारे संगठन के बजाए ग्रुप अच्छा होता है लेकिन पॉजिटिव हो।
अच्छा-(बापदादा ग्रुप-ग्रुप उठा रहे हैं) (अन्तर्मुखी ग्रुप) अच्छा पुरूषार्थ किया है। बापदादा देखते है कि हर ग्रुप यही चाहता है कि हम आगे से आगे जायें। रीस नहीं करते, रेस करते हैं। अच्छा है, अन्तर्मुखी सदा सुखी। (शक्ति ग्रुप) - बापदादा शक्ति ग्रुप से पूछते हैं कि प्रत्यक्षता का झण्डा कब लहरायेंगे? बोलो, शक्तियां तो झण्डा लहराने वाली हैं ना! तो प्रत्यक्षता का झण्डा शक्तियां लहरायेंगी ना! अच्छा है। अभी आपस में रूहरूहान कर डेट को फिक्स करना। जैसे और डेट फिक्स करते हो वैसे यह भी डेट फिक्स करना कि प्रत्यक्षता का झण्डा कब लहरेगा? लहरायेंगे ना! (महावीर ग्रुप) महावीर ग्रुप क्या करेगा? साल के साथ-साथ सदा के लिए माया को भी विदाई देना। हो सकता है? माया को विदाई देंगे? कि आवे कोई हर्जा नहीं? महावीर का अर्थ ही है जैसे ब्रह्मा बाप ने जो कहा वह किया है, जो सोचा वह तुरत दान महापुण्य समान किया। ऐसे ही महावीर ग्रुप का यह लक्ष्य है ना! करेंगे? अच्छा है। हिम्मत तो आती है। (विदेश के छोटे बच्चों का ग्रुप) सभी ने अपनी निशानी लगाई है। (यूथ ने तिलक लगाया है, इन्होंने बैनर बनाया है, झण्डी हाथ में है।) एंजिल से देवता बन गये, कितना अच्छा है। तो देवता माना दिव्य गुण वाले। तो दिव्य गुण को कभी नहीं छोड़ना। अच्छा है। बच्चों का उमंग-उत्साह बढ़ता है। इण्डिया के बच्चे भी उठो - (भारत से 1000 बच्चे आये हैं) अच्छा है भारत और विदेश के सब देशों के मिलकरके दिल्ली को घेराव करो। दिल्ली को अपनी राजधानी बनाना है ना? तो पहले राजधानी तैयार करेंगे, तब तो राज्य करेंगे ना! ऐसा दिल्ली के चारों ओर घेराव करो जो सारे भारत के वी.आई.पी. जग जावें। भारत के बच्चे भी करेंगे ना! अच्छे हैं, भारत भी कम नहीं है। बच्चे अच्छे-अच्छे आये हैं। अच्छा।
अभी इस वर्ष नवीता क्या करेंगे? अभी बापदादा ने जो काम दिया है, वह किया नहीं है। माइक और वारिस का ग्रुप कहाँ लाया है। बापदादा यही कहते हैं वेट एण्ड सी। प्रत्यक्षता का झण्डा यह माइक लहराने में होशियार होते हैं। हैं अलग-अलग देशों में कोई-कोई माइक हैं लेकिन संगठित रूप में सामने नहीं आये हैं, अभी उन्हों को इकट्ठा करो। इकट्ठा करने से क्या होता है? एक दो को देखकरके उन्हों को उमंग आता है, उत्साह आता है। भारत में भी माइक चाहिए, तो विदेश में भी चाहिए। तैयार हो रहे हैं ना? लेकिन अभी छिपे हुए हैं, पर्दे के अन्दर हैं, अभी बाहर लाओ। बाहर लाना है ना! बहुत अच्छा।
माताओं का झुण्ड तो बहुत बड़ा है। अगर उठायेंगे तो सारा हाल छिप जायेगा। माताओं को देखकर बापदादा खुश होते हैं। क्यों खुश होते हैं? क्योंकि संगम में माताओं को ही बापदादा के द्वारा चांस मिलता है। द्वापर, कलियुग में नहीं मिला, अभी मिल रहा है। चाहे महात्माओं में भी अभी दिन प्रतिदिन ज्यादा चांस मिल रहा है। गवर्मेन्ट में भी अभी माताओं को सेवा करने का चांस मिल रहा है। बापदादा सदा कहते हैं कि यह मातायें जिस भी सेन्टर पर होंगी ना वह सेन्टर सदा फलीभूत होगा। चाहे कमायें नहीं लेकिन दिल बड़ी होती है, भावना बड़ी होती है। तो बाप भी भावना और सच्ची दिल को पसन्द करते हैं। हर ग्रुप में देखा है मातायें ज्यादा ही होती हैं। तो मातायें अभी हमजिन्स को और जगाओ। आप लाओ हाल आपेही बड़ा हो जायेगा। यह नहीं सोचो हाल अभी भर गया, कहाँ बैठेंगे, लाओ तो सब कुछ हो जायेगा। हो जायेगा ना? दादी यह तो नहीं सोचती कि क्या करेंगे? कम से कम 9 लाख बैठ सकें, इतनी प्रजा तो तैयार करेंगे या नहीं? कब करेंगे? कब करेंगे, वह डेट फिक्स करेंगे। 9 लाख लायेंगे पहले, पाण्डव लायेंगे। बापदादा हाल तैयार कर लेंगे लेकिन 9 लाख लाओ। (एक एक लाख हर वर्ष लायेंगे) ऐसा नहीं। वह तो आवें, उसकी तो मना है ही नहीं। लेकिन आखिर स्टेज पर 9 लाख तो लायेंगे या नहीं? नहीं तो राज्य किस पर करेंगे? आपके पहले जन्म में 9 लाख भी प्रजा या रॉयल फैमिली नहीं होगी तो किस पर राज्य करेंगे? मधुबन वाले क्या सोचते हैं? 9 लाख चाहिए या नहीं? 9 लाख चाहिए, मुख्य पाण्डव क्या कहते हैं? चाहिए, नहीं चाहिए? हो जायेगा। जब 9 लाख आयेंगे तो साधन स्वत: जुट जायेगा। घबराओ नहीं, हाल बनाना पड़ेगा। देखो, भविष्य बहुत-बहुत उज्जवल है। सब साधन मिल जायेंगे। बने बनाये हाल आपको मिलेंगे। बनाने नहीं पड़ेंगे। सिर्फ जो इस वर्ष का स्लोगन दिया है ना - सफल करो, सफलता है ही। अच्छा। पाण्डव हाथ हिलाओ।
टीचर्स - टीचर्स अभी स्वयं भी सफल करो और सफल कराओ। सेवा में वृद्धि होना अर्थात् खज़ानों को सफल किया और कराया। तो इस वर्ष इस स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाना तो स्वत: ही वृद्धि होती जायेगी। हिम्मत दिलाओ। बापदादा ने देखा है, कोई-कोई स्थान में हिम्मत कम दिलाने की शक्ति है। हिम्मत दिलाओ, हर कार्य में मन्सा में भी, वाचा में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, कर्म में भी हिम्मत दिलाओ। टीचर्स की सीट ही है -हिम्मत में रहना और हिम्मत दिलाना। क्यों? क्योंकि टीचर्स को जो बाप की मुरली सुनाने का चांस मिला है और तख्त मिला है, यह एकस्ट्रा मदद है। तो हिम्मत और उल्हास दिलाओ। सारा क्लास रूहानी खिला हुआ गुलाब दिखाई दे। सुना टीचर्स ने। उल्हास में लाओ क्लास को।
सेवा का टर्न इन्दौर जोन का है - अच्छा इन्दौर का ग्रुप उठो। अच्छा है - सेवा के लिए डायमण्ड चांस मिला है। एक कर्मणा और दूसरा स्व-उन्नति का भी डायमण्ड चांस। अच्छा - सभी ने हिम्मत अच्छी रखी है। सेवा का उमंग भी अच्छा रहा है। सबसे बड़े ग्रुप को सम्भाला है। तो हिम्मत के रिटर्न में बापदादा का पदम-पद्मगुणा मुबारक है। सदा ही डायमण्ड बन सेवा में डायमण्ड चांस लेते रहना। अच्छा है। बहुत अच्छा। ज्युरिस्ट विंग के भाई बहनों की मीटिंग हो रही है - इन्टरनेशनल है ना। अगर इतने वकील या जज हो गये, फिर तो गीता का भगवान सिद्ध हो जायेगा। अच्छा है। बहुत अच्छा। ऐसा प्लैन बनाओ जो कोई ने नहीं किया हो, वर्ग तो बहुत बने हुए है ना! तो आपका वर्ग सबसे नम्बरवन ले लेवे। अच्छा है। ग्रुप अच्छा है। लेकिन ऐसे प्लैन बनाओ जो सांप मरे और लाठी भी नहीं टूटे। प्रत्यक्षता हो, धमाल नहीं हो, कमाल हो। अच्छा है और भी संगठन इकट्ठा करो। (प्लान बनाया है) मुबारक हो। अच्छा।
कल्चरल ग्रुप - नाचना गाना तो सभी को आता है, बाप के गुणों का गीत गाना भी आता है और खुशी में नाचना भी आता है। अच्छा है। कल्चर द्वारा भारत का कैरेक्टर प्रसिद्ध करो। हो कल्चर लेकिन कैरेक्टर सिद्ध हो जाए कि श्रेष्ठ कैरेक्टर क्या है! अच्छा है वर्ग जबसे बने हैं, अलग-अलग सेवा तो कर रहे हैं। कमाल करके दिखाना। सब कमाल करने वाले हैं ना? कमाल करना है ना! हर वर्ग को अभी नया-नया प्लैन बनाना चाहिए। यह वर्ग बनके कितना साल हो गये हैं? (20 साल) बापदादा ने सभी वर्ग वालों को कहा था, याद है कि अपने-अपने वर्ग का विशेष सेवा में माइक बने, या वारिस बनें, ऐसा संगठन तैयार करो। तो आपके कल्चरल में कौन तैयार हुआ है? लाया है? तो बाप का सन्देश देने के लिए आपकी तरफ (बाम्बे के प्रसिद्ध एक्टर परिक्षित सहानी परिवार बापदादा के सामने खड़ा है) सब अंगुली कर रहे हैं। अच्छा है। प्लैन बनायेगा। हिम्मत आपकी, मदद बाप की है ही है।
अच्छा - एक सेकण्ड में मन की ड्रिल याद है? हर एक सारे दिन में कितने बार यह ड्रिल करते हो? यह नोट करो। यह मन की ड्रिल जितना बार करेंगे उतना ही सहज योगी, सरल योगी बनेंगे। एक तरफ मन्सा सेवा दूसरे तरफ मन्सा एक्सरसाइज। अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। ब्रह्मा बाप आप फरिश्तों का आह्वाहन कर रहे हैं। फरिश्ता बनके ब्रह्मा बाप के साथ अपने घर निराकार रूप में चलना। फिर देवता बन जाना। अच्छा -
चारों तरफ से बहुत-बहुत यादप्यार चाहे कार्ड के रूप में, चाहे पत्रों के रूप में बापदादा के पास पहुंच गये हैं। बापदादा जानते हैं कि हर बच्चा यही समझते हैं मेरी याद बाबा को देना, लेकिन मिल गई है। यादप्यार देने वाले बहुत लाडले बच्चे बापदादा के सामने हैं। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर एक बच्चा अपने-अपने नाम से मुबारक अौर दिल की दुआयें स्वीकार करे।
आप सभी को भी नव जीवन, नव युग और नये वर्ष की बहुत-बहुत पदम-पदम-पदम-पद्मगुणा मुबारक और दिल की दुआयें हैं, यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी, दादी जानकी जी से - आप दोनों एक मत होकरके सारे परिवार को चलाने के निमित्त बनी हो। यह सभी आपके साथी हैं। सुनाया ना - अगर सफल करते जायेंगे तो मायाजीत बन ही जायेंगे। दादियां कहती हैं कि इस साल में सभी एकमत हो जाएं। जिसको भी देखो एक हैं। जैसे दादियों के लिए कहते हो एक हैं, ऐसे आप दीदियां, दादे सब एकमत। इसका स्लोगन है अभी-अभी बालक बनो, अभी-अभी मालिक बनो। बालक के समय मालिक नहीं बनो, मालिक के समय बालक नहीं बनो। तो दादियों को यह संकल्प उठा है, वो पूरा कौन करेगा? आप सभी करेंगे ना? अगर विचारों में फर्क हो जाये तो क्या करेंगे? अच्छा। सभी को देख बापदादा खुश हो रहे हैं। एक दिन आयेगा, बहुत जल्दी आयेगा जो सब कहेंगे कि हम सभी स्व-परिवर्तन करने वाले शक्ति पाण्डव सेना हैं। स्व-परिवर्तन। पुराने साल को विदाई देने के साथ-साथ माया को भी विदाई दे दो। वह भी थक गई है। विदाई और बधाई दोनों साथ-साथ।
नया वर्ष 2003 का शुभारम्भ - 31 दिसम्बर 2002, रात्रि 12 बजे के बाद बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष की बधाई दी।
चारों ओर के बहुत मीठे, बहुत प्यारे बच्चों को पदम-पदम गुणा न्यु ईयर की मुबारक हो। यह जो घड़ी बीत गई, यह है विदाई और बधाई की घड़ी। एक तरफ विदाई देनी है, जो अपने में सम्पन्न बनने में कमी अनुभव करते हो, उसको विदाई, सदा के लिए विदाई देना और आगे उड़ने के लिए बधाई। बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। अच्छा
ओम् शान्ति।
18-01-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“वर्ल्ड अथॉरिटी के डायरेक्ट बच्चे हैं - इस स्मृति को इमर्ज रख सर्व शक्तियों को ऑर्डर से चलाओ''
आज चारों ओर स्नेह की लहरों में सभी बच्चे समाये हुए हैं। सभी के दिल में विशेष ब्रह्मा बाप की स्मृति इमर्ज है। अमृतवेले से लेके साकार पालना वाले रत्न और साथ में अलौकिक पालना वाले रत्न दोनों के दिल के यादों की मालायें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। सभी के दिल में बापदादा के स्मृति की तस्वीर दिखाई दे रही है। और बाप के दिल में सर्व बच्चों की स्नेह भरी दिल समाई हुई है। सभी के दिल से एक ही स्नेह भरा गीत बज रहा है - ``मेरा बाबा'' और बाप की दिल से यही गीत बज रहा है -``मेरे मीठे-मीठे बच्चे''। यह आटोमेटिक गीत, अनहद गीत कितना प्यारा है। बापदादा चारों ओर के बच्चों को स्नेह भरी स्मृति के रिटर्न में दिल के स्नेह भरी दुआयें पदमगुणा दे रहे हैं।
बापदादा देख रहे हैं अभी भी देश वा विदेश में बच्चे स्नेह के सागर में लवलीन हैं। यह स्मृति दिवस विशेष सभी बच्चों के प्रति समर्थ बनाने का दिवस है। आज का दिन ब्रह्मा बाप द्वारा बच्चों की ताजपोशी का दिन है। ब्रह्मा बाप ने निमित्त बच्चों को विश्व सेवा की जिम्मेवारी का ताज पहनाया। स्वयं अननोन बनें और बच्चों को साकार स्वरूप में निमित्त बनाने का, स्मृति का तिलक दिया। स्वयं समान अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप का, प्रकाश का ताज पहनाया। स्वयं करावनहार बन करनहार बच्चों को बनाया। इसलिए इस दिवस को स्मृति दिवस सो समर्थी दिवस कहा जाता है। सिर्फ स्मृति नहीं, स्मृति के साथ-साथ सर्व समार्थियाँ बच्चों को वरदान में प्राप्त हैं। बापदादा सभी बच्चों को सर्व स्मृतियों स्वरूप देख रहे हैं। मास्टर सर्व शक्तिवान स्वरूप में देख रहे हैं। शक्तिवान नहीं, सर्व-शक्तिवान। यह सर्व शक्तियां बाप द्वारा हर एक बच्चे को वरदान में मिली हुई हैं। दिव्य जन्म लेते ही बापदादा ने वरदान दिया - सर्वशक्तिवान भव! यह हर जन्म दिवस का वरदान है। इन शक्तियों को प्राप्त वरदान के रूप से कार्य में लगाओ। हर एक बच्चे को मिली हैं लेकिन कार्य में लगाने में नम्बरवार हो जाते हैं। हर शक्ति के वरदान को समय प्रमाण आर्डर कर सकते हो। अगर वरदाता के वरदान के स्मृति स्वरूप बन समय अनुसार किसी भी शक्ति को आर्डर करेंगे तो हर शक्ति हाजर होनी ही है। वरदान की प्राप्ति के, मालिकपन के स्मृति स्वरूप में हो आप आर्डर करो और शक्ति समय पर कार्य में नहीं आये, हो नहीं सकता। लेकिन मालिक, मास्टर सर्वशक्तिवान के स्मृति की सीट पर सेट हो, बिना सीट पर सेट के कोई आर्डर नहीं माना जाता है। जब बच्चे कहते हैं कि बाबा हम आपको याद करते तो आप हाजर हो जाते हो, हजूर हाजर हो जाता है। जब हजूर हाजर हो सकता तो शक्ति क्यों नहीं हाजर होगी! सिर्फ विधि पूर्वक मालिकपन के अथॉरिटी से आर्डर करो। यह सर्व शक्तियां संगमयुग की विशेष परमात्म प्रॉपर्टी है। प्रॉपर्टी किसके लिए होती है? बच्चों के लिए प्रॉपर्टी होती है। तो अधिकार से स्मृति स्वरूप की सीट से आर्डर करो, मेह-नत क्यों करो, आर्डर करो। वर्ल्ड अथॉरिटी के डायरेक्ट बच्चे हो, यह स्मृति का नशा सदा इमर्ज रहे।
अपने आपको चेक करो - वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी की अधिकारी आत्मा हूँ, यह स्मृति स्वत: ही रहती है? रहती है या कभी-कभी रहती है? आजकल के समय में तो अधिकार लेने के ही झगड़े हैं और आप सबको परमात्म अधिकार, परमात्म अथॉरिटी जन्म से ही प्राप्त है। तो अपने अधिकार की समर्थी में रहो। स्वयं भी समर्थ रहो और सर्व आत्माओं को भी समर्थी दिलाओ। सर्व आत्मायें इस समय समर्थी अर्थात् शक्तियों की भिखारी हैं, आपके जड़ चित्रों के आगे मांगते रहते हैं। तो बाप कहते हैं ``हे समर्थ आत्मायें सर्व आत्माओं को शक्ति दो, समर्थी दो।'' इसके लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन हर बच्चे को रखना आवश्यक है - जो बापदादा ने इशारा भी दिया, बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि मैजारिटी बच्चों का संकल्प और समय व्यर्थ जाता है। जैसे बिजली का कनेक्शन अगर थोड़ा भी लूज हो वा लीक हो जाए तो लाइट ठीक नहीं आ सकती। तो यह व्यर्थ की लीकेज समर्थ स्थिति को सदाकाल की स्मृति बनाने नहीं देती, इसलिए वेस्ट को बेस्ट में चेन्ज करो। बचत की स्कीम बनाओ। परसेन्टेज निकालो - सारे दिन में वेस्ट कितना हुआ, बेस्ट कितना हुआ? अगर मानो 40 परसेन्ट वेस्ट है, 20 परसेन्ट वेस्ट है तो उसको बचाओ। ऐसे नहीं समझो थोड़ा सा ही तो वेस्ट जाता है, बाकी तो सारा दिन ठीक रहता है। लेकिन यह वेस्ट की आदत बहुत समय की आदत होने के कारण लास्ट घड़ी में धोखा दे सकती है। नम्बरवार बना देगी, नम्बरवन नहीं बनने देगी। जैसे ब्रह्मा बाप ने आदि में अपनी चेकिंग के कारण रोज रात को दरबार लगाई। किसकी दरबार? बच्चों की नहीं, अपनी ही कर्मेन्द्रियों की दरबार लगाई। आर्डर चलाया - हे मन मुख्य मंत्री यह तुम्हारी चलन अच्छी नहीं, आर्डर में चलो। हे संस्कार आर्डर में चलो। क्यों नीचे ऊपर हुआ, कारण बताओ, निवारण करो। हर रोज आफीशल दरबार लगाई। ऐसे रोज अपनी स्वराज्य दरबार लगाओ। कई बच्चे बापदादा से मीठी-मीठी रूहरिहान करते हैं। पर्सनल रूहरिहान करते हैं, बतायें। कहते हैं हमको अपने भविष्य का चित्र बताओ, हम क्या बनेंगे? जैसे आदि रत्नों को याद होगा कि जगत अम्बा माँ से सभी बच्चे अपना चित्र मांगते थे, मम्मा आप हमको चित्र दो हम कैसे हैं। तो बापदादा से भी रूहरिहान करते अपना चित्र मांगते हैं। आप सबकी भी दिल तो होती होगी कि हमको भी चित्र मिल जाए तो अच्छा है। लेकिन बापदादा कहते हैं - बापदादा ने हर एक बच्चे को एक विचित्र दर्पण दिया है, वह दर्पण कौन सा है? वर्तमान समय आप स्वराज्य अधिकारी हो ना! हो? स्वराज्य अधिकारी हो? हो तो हाथ उठाओ। स्व-राज्य, अधिकारी हो? अच्छा। कोई-कोई नहीं उठा रहे हैं। थोड़ा-थोड़ा हैं क्या? अच्छा। सभी स्वराज्य अधिकारी हो, मुबारक हो। तो स्वराज्य अधिकार का चार्ट आपके लिए भविष्य पद की शक्ल दिखाने का दर्पण है। यह दर्पण सबको मिला हुआ है ना? क्लीयर है ना? कोई ऐसे काले दाग तो नहीं लगे हुए हैं ना! अच्छा, काले दाग तो नहीं होंगे, लेकिन कभी-कभी जैसे गर्म पानी होता है ना, वह कोहरे के मुआफिक आइने पर आ जाता है। जैसे फागी होती है ना, तो आइने पर ऐसा हो जाता है जो आइना क्लीयर नहीं दिखाता है। नहाने के समय तो सबको अनुभव होगा। तो ऐसा अगर कोई एक भी कर्मेन्द्रिय अभी तक भी आपके पूरे कन्ट्रोल में नहीं है, है कन्ट्रोल में लेकिन कभी-कभी नहीं भी है। अगर मानों कोई भी कर्मेन्द्रिय, चाहे ऑख हो, चाहे मुख हो, चाहे कान हो, चाहे पाँव हो, पाँव भी कभी-कभी बुरे संग के तरफ चला जाता है। तो पाँव भी कन्ट्रोल में नहीं हुआ ना। संगठन में बैठ जायेंगे, रामायण और भागवत की उल्टी कथायें सुनेंगे, सुल्टी नहीं। तो कोई भी कर्मेन्द्रिय संकल्प, समय सहित अगर कन्ट्रोल में नहीं है तो इससे ही चेक करो जब स्वराज्य में कन्ट्रोलिंग पावर नहीं है तो विश्व के राज्य में कन्ट्रोल क्या करेंगे! तो राजा कैसे बनेंगे? वहाँ तो सब एक्यूरेट है। कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर सब स्वत: ही संग-मयुग के पुरूषार्थ की प्रालब्ध के रूप में है। तो संगमयुग अर्थात् वर्तमान समय अगर कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर कम है, तो पुरू-षार्थ कम तो प्रालब्ध क्या होगी? हिसाब करने में तो होशियार हो ना! तो इस आइने में अपना फेस देखो, अपनी शक्ल देखो। राजा की आती है, रॉयल फैमिली की आती है, रॉयल प्रजा की आती है, साधारण प्रजा की आती है, कौन सी शक्ल आती है? तो मिला चित्र? इस चित्र से चेक करना। हर रोज चेक करना क्योंकि बहुतकाल के पुरूषार्थ से, बहुतकाल के राज्य भाग्य की प्राप्ति है। अगर आप सोचो कि अन्त के समय बेहद का वैराग्य तो आ ही जायेगा, लेकिन अन्त समय आयेगा तो बहुतकाल हुआ या थोड़ा काल हुआ? बहुतकाल तो नहीं कहेंगे ना! तो 21 जन्म पूरा ही राज्य अधिकारी बनें, तख्त पर भले नहीं बैठें, लेकिन राज्य अधि-कारी हों। यह बहुतकाल (पुरूषार्थ का), बहुतकाल की प्रालब्ध का कनेक्शन है। इसीलिए अलबेले नहीं बनना, अभी तो विनाश की डेट फिक्स ही नहीं है, पता ही नहीं। 8 वर्ष होगा, 10 वर्ष होगा, पता तो है ही नहीं। तो आने वाले समय में हो जायेंगे, नहीं। विश्व के अन्तकाल सोचने के पहले अपने जन्म का अन्तकाल सोचो, आपके पास डेट फिक्स है, किसके पास पता है कि इस डेट पर मेरा मृत्यु होना है? है किसके पास? नहीं है ना! विश्व का अन्त तो होना ही है, समय पर होगा ही लेकिन पहले अपनी अन्तकाल सोचो और जगदम्बा का स्लोगन याद करो - क्या स्लोगन था? हर घड़ी अपनी अन्तिम घड़ी समझो। अचानक होना है। डेट नहीं बताई जायेगी। ना विश्व की, ना आपके अन्तिम घड़ी की। सब अचानक का खेल है। इसलिए दरबार लगाओ, हे राजे, स्वराज्य अधिकारी राजे अपनी दरबार लगाओ। आर्डर में चलाओ क्योंकि भविष्य का गायन है, लॉ एण्ड आर्डर होगा। स्वत: ही होगा। लव और लॉ दोनों का ही बैलेन्स होगा। नेचरल होगा। राजा कोई लॉ पास नहीं करेगा कि यह लॉ है। जैसे आजकल लॉ बनाते रहते हैं। आजकल तो पुलिस वाला भी लॉ उठा लेता है। लेकिन वहाँ नेचरल लव और लॉ का बैलेन्स होगा।
तो अभी आलमाइटी अथॉरिटी की सीट पर सेट रहो। तो यह कर्मेन्द्रियां, शक्तियां, गुण सब आपके जी हजूर, जी हजूर करेंगे। धोखा नहीं देंगे। जी हाजिर। तो अभी क्या करेंगे? दूसरे स्मृति दिवस पर कौन सा समारोह मनायेंगे? यह हर एक जोन तो समारोह मनाते हैं ना। सम्मान समारोह भी बहुत मना लिये। अब सदा हर संकल्प और समय के सफलता की सेरीमनी मनाओ। यह समारोह मनाओ। वेस्ट खत्म क्योंकि आपके सफलतामूर्त बनने से आत्माओं को तृप्ति की सफलता प्राप्त होगी। निराशा से चारों ओर शुभ आशाओं के दीप जगेंगे। कोई भी सफलता होती है तो दीपक तो जगाते हैं ना! अब विश्व में आशाओं के दीप जगाओ। हर आत्मा के अन्दर कोई न कोई निराशा है ही, निराशाओं के कारण परेशान हैं, टेन्शन में हैं। तो हे अविनाशी दीपकों अब आशाओं के दीपकों की दीवाली मनाओ। पहले स्व फिर सर्व। सुना!
बाकी बापदादा बच्चों के स्नेह को देख खुश हैं। स्नेह की सबजेक्ट में परसेन्टेज अच्छी है। आप इतनी मेहनत करके यहाँ क्यों पहुंचे हो, आपको कौन लाया? ट्रेन लाई, प्लेन लाया या स्नेह लाया? स्नेह के प्लेन से पहुंच गये हो। तो स्नेह में तो पास हो। अभी आल-माइटी अथॉरिटी में मास्टर हैं, इसमें पास होना, तो यह प्रकृति, यह माया, यह संस्कार, सब आपके दासी बन जायेंगे। हर घड़ी इन्त-जार करेंगे मालिक क्या आर्डर है! ब्रह्मा बाप ने भी मालिक बन अन्दर ही अन्दर ऐसा सूक्ष्म पुरूषार्थ किया जो आपको पता पड़ा, सम्पन्न कैसे बन गया? पंछी उड़ गया। पिंजड़ा खुल गया। साकार दुनिया के हिसाब-किताब का, साकार के तन का पिंजड़ा खुल गया, पंछी उड़ गया। अभी ब्रह्मा बाप भी बहुत सिक व प्रेम से बच्चों का जल्दी आओ, जल्दी आओ, अभी आओ, अभी आओ, यह आह्वान कर रहे हैं। तो पंख तो मिल गये हैं ना! बस सभी एक सेकण्ड में अपने दिल में यह ड्रिल करो, अभी-अभी करो। सब संकल्प समाप्त करो, यही ड्रिल करो ``ओ बाबा मीठे बाबा, प्यारे बाबा हम आपके समान अव्यक्त रूपधारी बनें कि बनें।'' (बापदादा ने ड्रिल कराई)
अच्छा - चारों ओर के स्नेही सो समर्थ बच्चों को, चारों ओर के स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी बच्चों को, चारों ओर के मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी के सीट पर सेट रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को, सदा मालिक बन प्रकृति को, संस्कार को, शक्तियों को, गुणों को आर्डर करने वाले विश्व राज्य अधिकारी बच्चों को, बाप समान सम्पूर्णता को, सम्पन्नता को समीप लाने वाले देश विदेश के हर स्थान के कोने-कोने के बच्चों को समर्थ दिवस का, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अभी-अभी बापदादा को विशेष कौन याद आ रहा है? जनक बच्ची। खास सन्देश भेजा था कि मैं सभा में हाजिर अवश्य हूंगी। तो चाहे लण्डन, चाहे अमेरिका, चाहे आस्ट्रेलिया, चाहे अफ्रीका, चाहे एशिया और सर्व भारत के हर देश के बच्चों को एक-एक को नाम और विशेषता सहित यादप्यार। आपको तो सम्मुख यादप्यार मिल रहा है ना! अच्छा।
सेवा का टर्न महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश का है:- (5000 आये हैं) अच्छा - महाराष्ट्र अर्थात् सर्व से महान। जैसे देश महान है वैसे आत्मायें भी महान हैं। बापदादा हर बच्चे को महान रूप में ही देखते हैं। सेवा का फल भी मिला, पुण्य जमा हुआ और बल भी मिला। इतने ब्राह्मण आत्माओं का साथ मिला। एक दो को देख-देख हर्षित हुए। एक दो के स्नेह का बल कम नहीं है। तो फल भी मिला, बल भी मिला। अच्छा पार्ट बजाया। बापदादा तो सदा अच्छा, अच्छा, अच्छा कहते आगे उड़ाते ही रहते हैं। तो सेवा का चांस अच्छा लगा ना। बहुत अच्छा लगा। समीप आने का चांस है। सेवा का प्रत्यक्ष मेवा मिलता है। अच्छा है। अभी कोई महान कर्तव्य भी करके दिखायेंगे ना! महाराष्ट्र है तो महान कर्तव्य के निमित्त भी बनेंगे। सेवा बहुत अच्छी करो लेकिन सेवा और स्व दोनों कम्बा-इन्ड हों। जैसे बापदादा कम्बाइण्ड है ना। आत्मा और शरीर कम्बाइण्ड है ना! ऐसे स्व स्थिति और सेवा दोनों कम्बाइण्ड। परसेन्टेज में कोई कमी नहीं हो। कभी सेवा की परसेन्टेज ज्यादा, कभी स्व की परसेन्टेज ज्यादा, नहीं, सदा बैलेन्स। तो आपके बैलेन्स द्वारा विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग मिलती रहेगी। तो अभी विश्व की आत्माओं को ब्लैसिंग चाहिए। मेहनत नहीं चाहिए, ब्लैसिंग चाहिए। तो आपका बैलेन्स स्वत: ही ब्लैसिंग दिलायेगी। अच्छा।
आज मधुबन वालों को भी याद किया। यह आगे-आगे बैठते हैं ना। हाथ उठाओ मधुबन वाले। मधुबन की सभी भुजायें। मधुबन वालों को विशेष त्याग का भाग्य सूक्ष्म में तो प्राप्त होता है क्योंकि रहते पाण्डव भवन में, मधुबन में, शान्तिवन में हैं लेकिन मिलने वालों को चांस मिलता है, मधुबन साक्षी होके देखता रहता है। लेकिन दिल पर सदा मधुबन वाले याद हैं। आज आपका ग्रुप (गोलक भाई को) टोली लेने आना। मेहनत करते हैं ना! सभी मधुबन वाले सभी भुजाओं सहित मेहनत बहुत अच्छी करते हैं। मेह-नत में मार्क्स बहुत अच्छी हैं। अभी नम्बरवन बनने में मार्क्स लेंगे। मधुबन के रहने वालों में एक-एक नम्बरवन महान हैं, यह नारा लगायें। मधुबन से वेस्ट का नाम-निशान समाप्त हो। सेवा में, स्थिति में सबमें महान। ठीक है ना! मधुबन वालों को भूलते नहीं हैं लेकिन मधुबन को त्याग का चांस देते हैं। ऐसे तो सभी, सब जोन वाले बहुत सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। सबने प्रोग्राम किये बहुत अच्छे किये, भोपाल ने भी अच्छा किया। हर एक स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। देखो भोपाल वालों को प्रकृति ने कितना सहयोग दिया। एक दिन बारिश, हवा, ठण्डी रूकी रही, आपका कार्य सम्पन्न हुआ और शुरू हो गया। तो प्रकृति ने सहयोग दिया। ऐसे ही प्रकृतिजीत बनना ही है, मायाजीत बनना ही है। आप नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा। तो बनना ही है। अच्छा।
दादी जी से:- बहुत मेहनत करती हैं, थक जाती हैं। अच्छा, बहुत अच्छा। आदि रत्नों से श्रंगार है। आदि रत्नों को देख बापदादा को खुशी होती है। अच्छा।
दादा नारायण से:- सब ठीक है। याद और मन्सा सेवा करते चलो, इसी कार्य में बिजी रहो। बाबा भूल नहीं सकता। खुश रहना। खुशी कभी नहीं गंवाना।
एकाउन्ट ग्रुप से:- सभी जो भी सेवायें कर रहे हो, वह अपनी समझकर बहुत अच्छी कर रहे हो। इसकी मुबारक हो। सिर्फ सेवा करते डबल लाइट रहना। कोई भी बोझ अपने ऊपर नहीं रखना। जैसे ब्रह्मा बाप के पास कितनी जिम्मेवारियां थी, फिर भी डबल लाइट रहा, ऐसे फालो फादर। कोई भी बोझ हो, बाप को देकर हल्के हो जाना, बाप आये ही हैं बोझ लेने के लिए, तो बोझ देना आता है ना। तो बोझ देकर डबल लाइट बन उड़ते रहना। अच्छा।
ओम् शान्ति।
28-03-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
"विश्व की आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने के लिए मन्सा सेवा को बढ़ाओ, सम्पन्न और सम्पूर्ण बनो"
आज सर्व खज़ानों के मालिक बापदादा अपने चारों ओर के सर्व खज़ाने सम्पन्न बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे को सर्व खज़ाने का मालिक बनाया है। एक ही देने वाला और सर्व को एक जैसे सर्व खज़ाने दिये हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं दिये हैं। क्यों? बाप अखुट खज़ाने के मालिक हैं। बेहद का खज़ाना है इसलिए हर एक बच्चा अखुट खज़ाने का मालिक है। बापदादा ने सर्व बच्चों को एक जितना एक जैसा दिया है। लेकिन धारण करने वाले कोई सर्व खज़ाने धारण करने वाले हैं और कोई यथा शक्ति धारण करने वाले हैं। कोई नम्बरवन हैं और कोई नम्बरवार हैं। जिन्होंने जितना भी धारण किया है उन्हों के चेहरे से, नयनों से खज़ानों का नशा स्पष्ट दिखाई देता है। खज़ाने से भरपूर आत्मा चेहरे से, नयनों से भरपूर दिखाई देती है। जैसे स्थूल खज़ाना प्राप्त करने वाली आत्मा के चलन से, चेहरे से मालूम पड़ जाता है, तो यह अविनाशी खज़ानों का नशा, खुशी स्पष्ट दिखाई देती है। सम्पन्नता का फखुर बेफिकर बादशाह बना देती है। जहाँ ईश्वरीय फखुर है वहाँ फिकर हो नहीं सकता, बेफिकर बादशाह, बेगमपुर के बादशाह बन जाते हैं। तो आप सभी ईश्वरीय सम्पन्नता के खज़ाने वाले बेफिकर बादशाह हो ना ! बेगमपुर के बादशाह हो। कोई फिकर है क्या? कोई गम है? क्या होगा, कैसा होगा इसका भी फिकर नहीं। त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहने वाले जानते हो जो हो रहा है वह सब अच्छा, जो होने वाला है वह और अच्छा। क्यों? सर्वशक्तिवान बाप के साथी हो, साथ रहने वाले हो। हर एक को नशा है, फखुर है कि बापदादा सदा हमारे दिल में रहते हैं और हम सदा बाप के दिलतख्त पर रहते हैं। तो ऐसा नशा है ना! जो दिलतख्त नशीन हैं उसके संकल्प तो क्या स्वप्न में भी दु:ख की लहर, लैस भी नहीं आ सकती उसमें। क्यों? सर्व खज़ानों से भरपूर हो, जो भरपूर चीज़ होती है उसमें हलचल नहीं होगी।
तो चारों ओर के बच्चों की सम्पन्नता देख रहे थे, हर एक का बापदादा ने जमा का खाता चेक किया। खज़ाना तो अखुट मिला है लेकिन जो मिला है उस खज़ाने को कार्य में लगाते खत्म किया है वा मिले हुए खज़ाने को कार्य में भी लगाया है लेकिन और ही बढ़ाया है? कितनी परसेन्ट में हर एक के खाते में जमा है? क्योंकि यह खज़ाना सिर्फ अब इस समय के लिए नहीं है, यह खज़ाना भविष्य में भी साथ में चलना है। जमा हुआ ही साथ जायेगा। तो परसेन्टेज देख रहे थे। क्या देखा? सेवा तो सभी बच्चे यथा योग वा यथा शक्ति कर रहे हैं लेकिन सेवा का फल जमा होना उसमें अन्तर हो जाता है। कई बच्चों का जमा खाता देखा, सेवा बहुत करते लेकिन सेवा करने का फल जमा हुआ या नहीं, उसकी निशानी है - अगर सेवा करने वाली आत्मा चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा तीनों में 100 परसेन्ट मार्क होती हैं। तीनों में 100 हैं। सेवा तो की लेकिन अगर सेवा करने के समय वा सेवा के बाद स्वयं अपने मन में, अपने से सन्तुष्ट हैं और साथ में जिनकी सेवा की, जो सेवा में साथी बनते हैं वा सेवा करने वाले को देखते हैं, सुनते हैं वह भी सन्तुष्ट हैं तो समझो जमा हुआ। स्व की सन्तुष्टता, सर्व की सन्तुष्टता नहीं है तो परसेन्टेज जमा का कम हो जाता है। यथार्थ सेवा की विधि पहले भी बताई है तीन बातें विधि पूर्वक हैं तो जमा है, वह सुनाया है - एक निमित्तभाव, दूसरा निमार्कण भावना, तीसरा निर्मल स्वभाव, निर्मल वाणी। भाव, भावना और स्वभाव, बोल अगर यह तीन बातों से एक बात भी कम है, एक है दो नहीं है, दो हैं एक नहीं है तो वह कमज़ोरी जमा की परसेन्टेज कम कर देती है। तो चार ही सबजेक्ट में अपने आप चेक करो - क्या चार ही सबजेक्ट में हमारा खाता जमा हुआ है? क्यों? बापदादा ने देखा कि कईयों की चार बातें जो सुनाई, भाव, भावना.... उस प्रमाण कई बच्चों का सेवा समाचार बहुत है लेकिन जमा का खाता कम है। हर खज़ाने को चेक करो - ज्ञान का खज़ाना अर्थात् जो भी संकल्प, कर्म किया वह नॉलेजफुल हो करके किया? साधारण तो नहीं हुआ? योग अर्थात् सर्व शक्ति का खज़ाना भरपूर हो। तो चेक करो हर दिन की दिनचर्या में समय प्रमाण जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसी समय वह शक्ति आर्डर में रही? मास्टर सर्वशक्तिवान का अर्थ ही है मालिक। ऐसे तो नहीं समय बीतने के बाद शक्ति का सोचते ही रह जायें। अगर समय पर आर्डर पर शक्ति इमर्ज नहीं होती, जब एक शक्ति को आर्डर में नहीं चला सकते तो निर्विघ्न राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे? तो शक्तियों का खज़ाना कितना जमा है? जो समय पर कार्य में लगाते हैं, वह जमा होता है। चेक करते जा रहे हो? मेरा खाता क्या है? क्योंकि बापदादा को सभी बच्चों से अति प्यार है, बापदादा यही चाहते हैं कि सभी बच्चों का जमा का खाता भरपूर हो। धारणा में भी, धारणा की निशानी है हर कर्म, गुण सम्पन्न होगा। जिस समय जिस गुण की आवश्यक्ता है वह गुण चेहरे, चलन में इमर्ज दिखाई दे। अगर कोई भी गुण की कमी है, मानों सरलता के गुण की कर्म के समय आवश्यकता है, मधुरता की आवश्यकता है, चाहे बोल में, चाहे कर्म में अगर सरलता, मधुरता के बजाए थोड़ा भी आवेशता या थकावट के कारण मधुर नहीं है, बोल मधुर नहीं है, चेहरा मधुर नहीं है, सीरियस है तो गुण सम्पन्न तो नहीं कहेंगे ना। कैसे भी सरकामस्टॉन्स हो लेकिन मेरा जो गुण है, वह मेरा गुण इमर्ज होना चाहिए। अभी शार्ट में सुना रहे हैं।
ऐसे ही सेवा - सेवा में सबसे अच्छी निशानी सेवाधारी की है - स्वयं भी सदा हल्का, लाइट और खुशनुमा दिखाई दे। सेवा का फल है खुशी। अगर सेवा करते खुशी गायब हो जाती है तो सेवा का खाता जमा नहीं होता। सेवा की, समय लगाया, मेहनत की तो थोड़ी परसेन्टेज में वह जमा होगा, फालतू नहीं जायेगा। लेकिन जितनी परसेन्टेज में जमा होना चाहिए उतना नहीं होता। ऐसे ही सम्बन्ध-सम्पर्क की निशानी - दुआओं की प्रप्ति हो। जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उनके मन से आपके प्रति दुआयें निकलें - बहुत अच्छा। बाहर से नहीं, दिल से, दिल से दुआयें निकले और दुआयें अगर प्राप्त हैं, तो दुआयें मिलना यह बहुत सहज पुरूषार्थ का साधन है। भाषण नहीं करो। चलो मन्सा सेवा भी इतनी पावरफुल नहीं है। कोई नये-नये प्लैन नहीं बनाने आते हैं, कोई हर्जा नहीं। सबसे सहज पुरूषार्थ का साधन है दुआयें लो, दुआयें दो। ऐसे कई बच्चों के बापदादा मन के संकल्प रीड करते हैं। कई बच्चे समय अनुसार, सरकामस्टॉन्स अनुसार कहते हैं कि अगर कोई खराब काम करता है तो उसको दुआयें कैसे दें? उस पर तो क्रोध आता है ना, दुआयें कैसे देंगे? चलो क्रोध के बाल-बच्चे भी तो बहुत हैं। लेकिन उसने खराब काम किया, वह खराब है आपने ठीक समझा कि यह खराब है। यह अच्छा है निर्णय तो अच्छा किया, समझा अच्छा लेकिन एक होता है समझना, दूसरा होता है उनके खराब काम, खराब बातों को अपने दिल में समाना। समझना और समाना फर्क है। अगर आप समझदार हो, क्या समझदार कोई खराब चीज़ अपने पास रखेगा ! लेकिन वह खराब है, आपने दिल में समाया अर्थात् आपने खराब चीज़ अपने पास रखी, सम्भाली। समझना अलग चीज़ है, समाना अलग चीज़ है। समझदार बनना तो ठीक है, बनो लेकिन समाओ नहीं। यह तो है ही ऐसा, यह समा लिया। ऐसे समझ करके व्यवहार में आना, यह समझदारी नहीं है।
तो बापदादा ने चेक किया, अभी समय समीप आना नहीं है, आपको लाना है। कई पूछते हैं थोड़ा सा इशारा तो दे दो ना - 10 साल लगेंगे, 20 साल लगेंगे, कितना समय लगेगा ! तो बाप बच्चों से प्रश्न करता है, बाप से तो प्रश्न बहुत करते हैं ना, तो आज बाप बच्चों से प्रश्न करता है – समय को समीप लाने वाले कौन? ड्रामा है लेकिन निमित्त कौन? आपका एक गीत भी है, किसके रोके रूका है सवेरा। है ना गीत? तो सवेरा लाने वाला कौन? विनाशकारी तो तड़प रहे हैं कि विनाश करें, विनाश करें... लेकिन नवनिमार्कण करने वाले इतना रेडी हैं? क्या पुराना खत्म हो जाए, नया निमार्कण हो नहीं तो क्या होगा? इसलिए बापदादा ने अभी बाप के बजाए टीचर का रूप धारण किया है। होमवर्क दिया है ना? कौन होमवर्क देता है? टीचर। लास्ट में है सतगुरू का पार्ट। तो अपने आपसे पूछो सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज कहाँ तक बनी है? क्या आवाज से परे वा आवाज में आना, दोनों ही समान हैं? जैसे आवाज में आना जब चाहो सहज है, ऐसे ही आवाज से परे हो जाना जब चाहे, जैसे चाहे वैसे है? सेकण्ड में आवाज में आ सकते हैं, सेकण्ड में आवाज से परे इतनी प्रैक्टिस है? जैसे शरीर द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो ना। ऐसे मन बुद्धि द्वारा जब चाहो जहाँ चाहो वहाँ आ-जा सकते हो? क्योंकि अन्त में पास मार्क्स उसको मिलेगी जो सेकण्ड में जो चाहे जैसा चाहे, जो आर्डर करना चाहे उसमें सफल हो जाए। साइन्स वाले भी यही प्रयत्न कर रहे हैं, सहज भी हो और समय भी कम में हो। तो ऐसी स्थिति है? क्या मिनटों तक आये हैं, सेकण्ड तक आये हैं, कहाँ तक पहुंचे हैं? जैसे लाइट हाउस माइट हाउस सेकण्ड में ऑन करो और अपनी लाइट फैलाते हैं, ऐसे आप सेकण्ड में लाइट हाउस बन चारों ओर लाइट फैला सकते हो? यह स्थूल ऑख एक स्थान पर बैठे दूर तक देख सकती है ना! फैला सकती है ना अपनी दृष्टि! ऐसे आप तीसरे नेत्र द्वारा एक स्थान पर बैठे चारों ओर वरदाता, विधाता बन नजर से निहाल कर सकते हो? चेक कर रहे हो अपने को सब बातों में? इतना तीसरा नेत्र क्लीन और क्लीयर है? अगर थोड़ी भी कमज़ोरी है, सभी बातों में तो कारण पहले ही सुनाया है। यह हद का लगाव ‘‘मैं और मेरा’’, जैसे मैं के लिए स्पष्ट किया था - होमवर्क भी दिया था। दो मैं को समाप्त कर एक मैं रखनी है। सभी ने यह होमवर्क किया? जो सफल हुए, इस होमवर्क में, वह हाथ उठाओ। सफल हुए, बापदादा ने सबको देखा है। हिम्मत रखो ऐसी, डरो नहीं। अच्छा है मुबारक मिलेगी। बहुत थोड़े हैं। किया है तो हाथ उठाओ। यह टी.वी. में हाथ दिखाओ। पीछे भी दिखाओ। बहुत थोड़े ने हाथ उठाया है। अभी क्या करें? सभी को अपने ऊपर हँसी भी आ रही है।
अच्छा - दूसरा होमवर्क था, क्रोध को छोड़ना है, यह तो सहज है ना! तो क्रोध को किसने छोड़ा, क्रोध नहीं किया इतने दिनों में? (इसमें बहुतों ने हाथ उठाया) इसमें थोड़े ज्यादा हैं। जिन्होंने क्रोध नहीं किया, आपके आस पास रहने वालों से भी पूछेंगे। बहुत हैं। क्रोध नहीं किया है? संकल्प में, मन में क्रोध आया? चलो, फिर भी मुबारक हो, अगर मन में आया मुख से नहीं किया तो भी मुबारक है। बहुत अच्छा। तो आप ही देखो रिजल्ट के हिसाब से क्या स्थापना का कार्य, स्व को सम्पन्न बनाना और सर्व आत्माओं को मुक्ति का वर्सा दिलाना, यह सम्पन्न हुआ है? स्वयं को जीवनमुक्ति स्वरूप बनाना और सर्व आत्माओं को मुक्ति का वर्सा दिलाना - यह है स्थापना कर्ता आत्माओं का श्रेष्ठ कर्म। तो बापदादा इसीलिए पूछता है कि सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवनमुक्त की स्टेज पर संगम पर ही पहुंचना है वा सतयुग में पहुंचना है? संगमयुग में सम्पन्न होना है या वहाँ भी राजयोग करके सीखना है? सम्पन्न तो यहाँ बनना है ना? सम्पूर्ण भी यहाँ ही बनना है। संगमयुग के समय का भी सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना है। तो किसके रोके रूका है सवेरा? बताओ। तो बापदादा क्या चाहते हैं? क्योंकि बाप की आशाओं का दीपक बच्चे ही हैं। तो अपना खाता चेक करो अच्छीतरह से। कई बच्चों को तो देखा कई बच्चे तो मौजीराम हैं, मौज में चल रहे हैं। जो हुआ सो अच्छा। अभी तो मौज मना लो। सतयुग में कौन देखता, कौन जानता। तो जमा के खाते में ऐसे मौजीलाल कहो, मौजीराम कहो, ऐसे भी बच्चे देखे। मौज कर लो। दूसरों को भी कहते अरे क्या करना है, मौज करो। खाओ, पिओ मौज करो। कर लो मौज, बाप भी कहते कर लो। अगर थोड़े में राजी रहने वाले हो तो थोड़े में राजी हो जाओ। विनाशी साधनों की मौज अल्पकाल की होती है। सदाकाल की मौज को छोड़ अगर अल्पकाल के साधन की मौज में रहना चाहते हैं तो बापदादा क्या कहेगा? इशारा देगा और क्या करेगा? कोई हीरों की खान पर जाये और दो हीरे लेकर खुश हो जाए उसको क्या कहेंगे? तो ऐसे नहीं बनना। अतीन्द्रिय सुख के मौज के झूले में झूलो। अविनाशी प्राप्तियों के झूले की मौज में झूलो। ड्रामा में देखो, माया का पार्ट भी विचित्र है। इसी समय ऐसे ऐसे साधन निकले हैं, जो पहले थे ही नहीं। लेकिन बिना साधन के भी जिन्होंने साधना की, सेवा की वह भी तो एक्जैम्पुल सामने हैं ना! क्या यह साधन थे? लेकिन सेवा कितनी हुई? क्वालिटी तो निकली ना! आदि रत्न तो तैयार हो गये ना! यह साधनों की आकर्षण है। साधनों को यूज करना रांग नहीं कहते हैं लेकिन साधना को भूल साधन में लग जाना, इसको बापदादा रांग कहते हैं। साधन जीवन के उड़ती कला का साधन नहीं है, आधार नहीं है। साधना आधार है। अगर साधना के बजाए साधनों को आधार बनाया तो रिजल्ट क्या होगी? साधन विनाशी हैं, रिजल्ट क्या? साधना अविनाशी है, उसकी रिजल्ट क्या होगी? तो बापदादा बच्चों से प्रश्न पूछता है - कब तक हर एक स्वयं को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनायेंगे? दूसरे को नहीं देखो, यह अलबेलापन आ जाता है। दूसरे भी करते हैं, मैंने किया तो क्या हुआ! यह अलबेलापन है। मुझे स्व को सम्पन्न बनाना है। अब इसके लिए कितना टाइम चाहिए? इसका भी हिसाब रखें या नहीं? संगठन है, बाप जानते हैं, संगठन में बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है, देखना भी पड़ता है, बहुत कुछ चलने में भी सामने बातें आती हैं, लेकिन यह तो आयेंगी। बातें खत्म हों तो सम्पन्न बनें, वह होना नहीं है। जितना आगे बढ़ेंगे, रूप जरूर चेंज होगा लेकिन बातें तो आयेंगी। लास्ट पेपर में ही देखो कितनी बातें हैं। बातें दिखाई न दें, बाबा दिखाई दे। बाबा ने क्या कहा, बातें क्या करती हैं, बातें क्या कहती हैं, नहीं। बाबा ने क्या कहा। बाबा को फॉलो करना है। फॉलो बातें करना है, या फॉलो फादर करना है? और बापदादा अभी यह देखने चाहते हैं, अगर वतन में स्विच ऑन करें तो सब बच्चे चाहे देश में, चाहे विदेश में, चाहे गांवों में, चाहे बड़े शहरों में सब बच्चे सम्पन्न रूप में राजा बच्चे दिखाई दें। अभी बाप की हर एक बच्चे में यही श्रेष्ठ आशा है। तो आप सभी बाप के आशा के दीपक बनेंगे? बनेंगे? हाथ उठाओ। ऐसे नहीं हाथ उठाओ। फाइल में पत्र डाल दें हाँ का, नहीं फाइनल। सभी पूरी करेंगे। अच्छा मुबारक हो। जिसने नहीं उठाया वह उठाओ। कोई है? अच्छा इन्हों को टाइम चाहिए? एक साल चाहिए? तीव्र पुरूषार्थ करो। करना ही है, होना ही है। मैजारिटी ने तो उठाया है। बापदादा को यह खुशी है और दिल की दुआयें दे रहे हैं, अब प्रैक्टिकल करके दिखाना। फिर बापदादा आयेगा। अभी टीचर बनेगा। ऐसे नहीं आयेगा। अभी तो बीच में समय है। जब पहला टर्न बापदादा आवे, पहला टर्न फॉरेन वालों को मिलता है, तो पहले फॉरेन वालों को तैयार होना पड़ेगा। रेडी। फॉरेन वाले तैयार हो जायेंगे? अगर फॉरेन तैयार नहीं होगा तो पहला टर्न इन्डिया को देंगे। पहले मधुबन वालों को तैयार होना पड़ेगा क्योंकि बापदादा को मधुबन में ही आना है ना और तो कहाँ भी जाते नहीं। बापदादा को फॉरेन वालों पर फेथ है, ऐसे नहीं इन्डिया वालों पर नहीं है। लेकिन फॉरेन का पहला टर्न होता है तो फॉरेन वाले बनकर ही दिखायेंगे। ठीक है ना! आप बोलो, फॉरेन के लिए (दादी जानकी से) साकार में तो निमित्त आपको बनना पड़ेगा।
अभी तो टाइम है, 5-6 मास है। नहीं तो फिर ऐसा करेंगे, राय बताओ कि जो सच्ची दिल से लिखते हैं, बापदादा तो देखता है ना, बापदादा के पास भी दिखाई देता है, कि थोड़ा मिक्स है। तो जो लिखेंगे एवररेडी, उन्हों से बापदादा मिलेंगे, औरों से नहीं। चाहे मधुबन में हो चाहे कहाँ भी हो। ठीक है? मधुबन वाले ठीक है? डबल फॉरेनर्स तो एवररेडी होंगे ना! बापदादा सबका सम्पन्न स्वरूप देखेगा। एवररेडी होंगे? ठीक है? मैजारटी ने तो हाथ उठाया है। मुबारक हो। सभी को मुबारक एडवांस में दे रहे हैं। फिर सभी एक दो को मुबारक देंगे, वाह! सम्पूर्ण वाह! वाह! सम्पन्न वाह! क्योंकि बहुत दु:ख बढ़ रहा है, आप आवाज नहीं सुनते हो ना, बापदादा सुनता है। बिल्कुल हिम्मतहीन, दिलशिकस्त हो गये हैं। मन्सा सेवा से, जैसे साइन्स वाले अपने जगह पर रहते हुए जहाँ अपना यन्त्र भेजने चाहें वहाँ भेज सकते हैं, ऐसे आप मन्सा सेवा को बढ़ाओ। वाचा तो करनी है लेकिन सारी विश्व की आत्माओं को वर्सा दिलाना, दु:ख से छुड़ाना, उसके लिए आपको सम्पन्न बनना पड़ेगा। और मन्सा सेवा चारों ओर फैलाओ तब विश्व का कल्याण होगा। मन्सा सेवा कर सकते हो? जिन्हों को मन्सा सेवा का अभ्यास है, चाहे थोड़ा है चाहे बहुत है लेकिन अभ्यास है, कर सकते हैं, वह हाथ उठाओ। इसमें तो सब पास हैं। इतनी आत्मायें अगर मन्सा सेवा से वायुमण्डल फैला सकते हो तो क्या बड़ी बात है! जितना मन्सा सेवा में बिजी रहेंगे उतना समस्याओं से मुक्त हो जायेंगे क्योंकि आपका मन बुद्धि बिजी रहेगी। फ्री नहीं होगी तो माया आयेगी कहाँ, वापस चली जायेगी। समस्या हिम्मत नहीं रख सकती। तो मन्सा सेवा को बढ़ाओ। समझा।
अच्छा। अभी एक मिनट के लिए सभी लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति द्वारा विश्व में अपनी लाइट माइट फैलाओ। अच्छा - ऐसा अभ्यास समय प्रति समय कार्य में होते हुए भी करते रहो। बापदादा ने सुना लण्डन के प्रोग्राम के लिए टॉपिक बहुत अच्छी रखी है। सुनाओ सभी को (जस्ट ए मिनट- एक मिनट में साइलेन्स का अनुभव, अपने परिवर्तन का अनुभव, विश्व के लिए) अच्छी टॉपिक रखी है और ऐसा अभ्यास उस समय सब इन्डिया में वा फॉरेन में ब्राह्मण भी करेंगे ना! (यह विचार है सब जगह विश्वव्यापी यह प्रोग्राम हो) अच्छा है, यह अभ्यास जरूरी है। एक मिनट भी अगर यह चारों ओर वायुमण्डल बन जाए तो यह भी सभी को मालूम पड़ जायेगा कि ब्रह्माकुमारियां क्या चाहती हैं, क्या करती हैं। यह भी फैलेगा अच्छा। अगर चारों ओर यह साथ साथ हो जाए तो सेवा का साधन अच्छा है। अच्छा। आज टर्न किसका है?
सेवा का टर्न महाराष्ट्र, बम्बई और आंध्र प्रदेश :- जिसका टर्न होता है, आधा क्लास उन्हों का ही होता है। अच्छा - महाराष्ट्र सदा महान स्थिति में रहने वाले और विश्व में जीवन की महानता प्रत्यक्ष करने वाले, अच्छा है, संख्या भी काफी है। लेकिन अभी तक 9 लाख नहीं पूरे हुए हैं ना। 9 लाख पूरे हुए हैं? नहीं हुए हैं? तो महाराष्ट्र को जब संख्या भी इतनी है तो जब दूसरी सीजन में बापदादा आवे तो जितने भी आये हैं, कितनी संख्या है आने वालों की (महाराष्ट्र 5500 आये हैं), तो महाराष्ट्र सामने बैठे हो तो काम भी तो करेंगे ना। तो जितने आये हो दूसरी सीजन में एक-एक को एक तैयार करके लाना है। अच्छा तैयार करना, क्योंकि 6 मास है, आपका नियम एक वर्ष का है। तो 6 मास में इतना तैयार करो जो एक वर्ष जितना हो। 9 लाख तो पूरा करना चाहिए, कितने हैं। टोटल संख्या कितनी है? (8 लाख 12 हजार,) तो बाकी थोड़े ही चाहिए, तो ऐसे करो। अभी मीटिंग है ना। हर जोन को अपने-अपने जोन के हिसाब से संख्या बांटना और बापदादा आवे तो यहाँ रूबरू भले नहीं आवें लेकिन तैयार करके आवे, वह लिस्ट लेके आवे। तो यह होमवर्क ठीक है? जोन वाले? करेंगे जोन वाले। अच्छा, 9 लाख तो पूरा करो। क्या बड़ी बात है। डबल फॉरेनर्स चाहे इन्डिया 9 लाख इस बारी पूरी करना ही है। होना चाहिए ना कि अभी पीछे होना चाहिए? मधुबन वाले भी करेंगे, आस पास सेवा तो करते हो ना, तैयार करके आना सब जोन। यहाँ नहीं हैं तो भी सुनेंगे तो सही। और मीटिंग में फाइनल करना, फिर अच्छा है, बापदादा को इतनी संख्या देख करके भी खुशी होती है। (9 लाख ब्राह्मण होंगे ना। करोड़ों को सन्देश देना है ना) वह प्रोग्राम तो करते हो ना! वह तो करना ही है। लेकिन पहले स्व को सम्पन्न बनाना है साथ में यह सेवा करनी है। वह तो हाथ उठाया है ना। तैयार करेंगे ना! अभी धीरे-धीरे चलने का समय गया, अभी उड़ो, जब चाहो जहाँ चाहो सेवा में हाजिर हो जाओ। अच्छा। आप सभी भी तैयार करके आयेंगे ना, और ज्यादा नहीं एक-एक। अगर ज्यादा करेंगे तो मुबारक हो। अच्छा है महाराष्ट्र ने गोल्डन चांस लिया है, स्वयं को सम्पूर्ण बनाने का, क्योंकि यहाँ का वायुमण्डल सहज ही अशरीरी बनने में मदद करता है। तो जो भी जोन चांस लेता है, उसको यह गोल्डन प्राप्ति होती है। कर्मणा का भी फल और वायुमण्डल में स्थिति का भी फल मिलता है। डबल फल की प्राप्ति हो जाती है। अच्छा है। बापदादा को हर बच्चा एक दो से प्यारा लगता है। कैसा भी बच्चा हो लेकिन परमात्म प्यार के पात्र तो बनता ही है। और यह परमात्म प्यार सिर्फ अभी मिलता है। प्यार तो सभी का बापदादा से 100 परसेन्ट है, या कम है? जो समझते हैं प्यार में 100 परसेन्ट है, वह हाथ उठाओ। 100 परसेन्ट प्यार है? तो प्यार में तो थोड़ा बहुत है वह कुर्बान करना सहज है। मुबारक हो। प्यार का प्रमाण है कुर्बान होना। तो सपूत बच्चे हो ना, तो सपूत बच्चा वही है जो प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाता है। बापदादा को बच्चों का प्यार तो पहुँचता है लेकिन शक्तिशाली स्थिति कम पहुंचती है। प्यार में बापदादा भी अच्छी परसेन्ट देखते हैं लेकिन अभी शक्ति स्वरूप सम्पन्न स्वरूप में सबसे ज्यादा मार्क्स लेनी हैं। तो महाराष्ट्र नम्बरवन जायेगा? जायेगा? अच्छा है। जो ओटे वह अर्जुन। अर्जुन नम्बरवन। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के पुरूषार्थ और प्यार के समाचार पत्र बापदादा को मिले हैं, बापदादा बच्चों का उमंग-उत्साह देख यह करेंगे, यह करेंगे, यह समाचार सुन खुश होते हैं। अभी सिर्फ जो हिम्मत रखी है, उमंग-उत्साह रखा है, इसको बार-बार अटेन्शन दे प्रैक्टिकल में लाना। यही सभी बच्चों के प्रति बापदादा के दिल की दुआयें हैं और सभी चारों ओर के संकल्प, बोल और कर्म में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पन्न बनने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्वदर्शन करने वाले, स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों को, सदा दृढ़संकल्प द्वारा मायाजीत बन बाप के आगे स्वयं को प्रत्यक्ष करने वाले और विश्व के आगे बाप को प्रत्यक्ष करने वाले सर्विसएबुल, नॉलेजफुल, सक्सेसफुल बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दिल से पदमपदमगुणा दुआयें हो, नमस्ते हो। नमस्ते।
दादियों से:- आपका भी लक्ष्य यही है ना कि जल्दी से जल्दी प्रत्यक्षता हो। इसीलिए बापदादा होमवर्क देता है। सतगुरू का पार्ट चलेगा तो समाप्ति हो जायेगी। इसके लिए सबको तैयार कर रहे हैं। (हमारे सामने तीनों हैं) बापदादा को स्वरूप आफीशल धारण करना पड़ता है। है तो सदा ही तीन रूप में। अभी बापदादा यही चाहते हैं कि सभी कहें विजयी हो गये। होना है, हो रहे हैं, नहीं। हो गये। सबके मस्तक में चमकता हुआ सितारा स्पष्ट अनुभव हो। यह अनुभव की आंख अभी दूसरों को अनुभव करायेगी। अभी अनुभव चाहते हैं। स्वयं भी हर शक्ति, हर गुण के अनुभवी बनें, तभी अनुभव करा सकेंगे। तो अपने अनुभव को बढ़ाओ तो औरों को अनुभव हो ही जायेगा। अच्छा है। आप सभी की दिल की आशायें पूर्ण होनी ही हैं। ठीक है ना! ठीक है? कितना अच्छा है। अच्छा है, ब्राह्मण कुल की शोभा हो। सभी दादियों को देखकर खुश होते हैं ना! देखो इन्हों की कमाल यह है, कि बिना साधनों के सफलता प्राप्त की। (कितना पैदल चले होंगे, न मोटर न गाड़ी..) इसी तपस्या ने इतना विस्तार पैदा किया। अभी थोड़े साधन प्राप्त हुए हैं ना, तो थोड़ी आकर्षण होती है। अच्छा।
07-03-05 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत रखना और मैं-पन को समर्पित करना ही शिव जयन्ती मनाना है
आज विशेष शिव बाप अपने सालिग्राम बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप बच्चे बाप का जन्म दिन मनाने आये हो और बापदादा बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं क्योंकि बाप का बच्चों से बहुत प्यार है। बाप अवतरित होते ही यज्ञ रचते हैं और यज्ञ में ब्राह्मणों के बिना यज्ञ सम्पन्न नहीँ होता है। इसलिए यह बर्थ डे अलौकिक है, न्यारा और प्यारा है। ऐसा बर्थ डे जो बाप और बच्चों का इकठ्ठा हो यह सारे कल्प में न हुआ है, न कभी हो सकता है। बाप है निराकार, एक तरफ निराकार है दूसरे तरफ जन्म मनाते हैं। एक ही शिव बाप है जिसको अपना शरीर नहीँ होता इसलिए ब्रह्मा बाप के तन में अवतरित होते हैं, यह अवतरित होना ही जयन्ती के रूप में मनाते है। तो आप सभी बाप का जन्म दिन मनाने आये हो वा अपना मनाने आये हो? मुबारक देने आये हो वा मुबारक लेने आये हो? यह साथ-साथ का वायदा बच्चों से बाप का है। अभी भी संगम पर कम्बाइण्ड साथ है, अवतरण भी साथ है, परिवर्तन करने का कार्य भी साथ है और घर परमधाम में चलने में भी साथ-साथ है। यह है बाप और बच्चों के प्यार का स्वरूप।
शिव जयन्ती भगत भी मनाते है लेकिन वह सिर्फ पुकारते हैं, गीत गाते हैं। आप पुकारते नहीं, आपका मनाना अर्थात् समान बनना। मनाना अर्थात् सदा उमंग-उत्साह से उडते रहना। इसीलिए इसको उत्सव कहते है। उत्सव का अर्थ ही है उत्साह में रहना। तो सदा उत्सव अर्थात् उत्साह में रहने वाले हो ना! सदा है या कभी-कभी है? वैसे देखा जाए तो ब्राह्मण जीवन का श्वास ही है - उमंग-उत्साह। जैसे श्वास के बिना रह नहीँ सकते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्माये उमंग-उत्साह के बिना ब्राह्मण जीवन में रह नहीँ सकते हैं। ऐसे अनुभव करते हो ना? देखो विशेष जयन्ती मनाने के लिए कहाँ-कहाँ से, दूर-दूर से भाग करके आये हैं। बापदादा को अपने जन्म दिन की इतनी खुशी नहीँ है जितनी बच्चों के जन्म दिन की है। इसलिए बापदादा एक-एक बच्चे को पदमगुणा खुशी की थालियां भर- भर के मुबारक दे रहे है। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
बापदादा को आज के दिन सच्चे भगत भी बहुत याद आ रहे हैं। वह व्रत रखते हैं एक दिन का और आपने व्रत रखा है सारे जीवन में सम्पूर्ण पवित्र बनने का। वह खाने का व्रत रखते हैं. आपने भी मन के भोजन व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प, अपवित्र संकल्पो का व्रत रखा है। पक्का व्रत रखा है ना? यह डबल फोरेनेर्स आगे आगे बैठे हैं। यह कुमार बोलो, कुमारों ने व्रत रखा है, पक्का? कच्चा नहीँ। माया सुन रही है। सब झण्डिया हिला रहे है ना तो माया देख रही है, झण्डियां हिला रहे हैं। जब व्रत रखते हैं - पवित्र बनना ही है, तो व्रत रखना अर्थात् श्रेष्ठ वृत्ति बनाना। तो जैसी वृत्ति होती है वैसे ही दृष्टि, कृति स्वत: ही बन जाती है। तो ऐसा व्रत रखा है ना? पवित्र शुभ वृत्ति, पवित्र शुभ दृष्टि, जब एक दो को देखते हो तो क्या देखते हो? फेस को देखते हो या भृकुटी के बीच चमकती हुई आत्मा को देखते हो? कोई बच्चे ने पूछा कि जब बात करना होता है, काम करना होता है तो फेस को देख करके ही बात करनी पड़ती है, आंखो के तरफ ही नज़र जाती है, तो कभी-कभी फेस को देख करके थोडा वृत्ति बदल जाती है। बापदादा कहते है आंखो के साथ-साथ भृकुटी भी है, तो भृकुटी के बीच आत्मा को देख बात नहीं कर सकते हैं! अभी बापदादा सामने बैठे बच्चों के आंखो में देख रहे है या भृकुटी में देख रहे है, मालूम पडता है? साथ-साथ ही तो है। तो फेस में देखो लेकिन फेस में भृकुटी में चमकता हुआ सितारा देखो। तो यह व्रत लो, लिया है लेकिन और अटेन्शन दौ। आत्मा को देख बात करना है, आत्मा से आत्मा बात कर रहा है। आत्मा देख रहा है। तो वृत्ति सदा ही शुभ रहेगी और साथ-साथ दूसरा फायदा है जैसी वृत्ति वैसा वायुमण्डल बनता है। वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने से स्वयं के पुरुषार्थ के साथ-साथ सेवा भी हो जाती है। तो डबल फायदा है ना! ऐसी अपनी श्रेष्ठ वृत्ति बनाओ जो कैसा भी विकारी, पतित आपके वृत्ति के वायुमण्डल से परिवर्तन हो जाए। ऐसा व्रत सदा स्मृति में रहे. स्वरूप में रहे।
आजकल बापदादा ने बच्चों का चार्ट देखा, अपने वृत्ति से वायुमण्डल बनाने के बजाए कहाँ-कहाँ, कभी-कभी दूसरों के वायुमण्डल का प्रभाव पड़ जाता है। कारण क्या होता? बच्चे रूहरिहान में बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं, कहते हैं इसकी विशेषता अच्छी लगती है, इनका सहयोग बहुत अच्छा मिलता है, लेकिन विशेषता प्रभु की देन है। ब्राह्मण जीवन में जो भी प्राप्ति है, जो भी विशेषता है, सब प्रभु प्रसाद है, प्रभु देन है। तो दाता को भूल जाए, लेवता को याद करे! प्रसाद कभी किसका पर्सनल गाया नहीँ जाता, प्रभु प्रसाद कहा जाता है। फलाने का प्रसाद नहीँ कहा जाता है। सहयोग मिलता है, अच्छी बात है लेकिन सहयोग दिलाने वाला दाता तो नहीँ भूले ना! तो पक्का-पक्का बर्थ डे का व्रत रखा है? वृत्ति बदल गई है? सम्पन्न पवित्रता, यह सच्चा-सच्चा व्रत लेना वा प्रतिज्ञा करना। चेक करो - बड़े-बड़े विकार का व्रत तो रखा है लेकिन छोटे-छोटे उनके बाल-बच्चों से मुक्त हैं? वैसे भी देखो जीवन में प्रवृत्ति वालों का बच्चों से ज्यादा पोत्रे- धोत्रे से प्यार होता है। माताओं का प्यार होता है ना। तो बड़े बड़े रूप से तो जीत लिया लेकिन छोटे-छोटे सूक्ष्म स्वरूप में वार तो नहीं करते? जैसे कई कहते हैं - आसक्ति नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। यह चीज ज्यादा अच्छी लगती है लेकिन आसक्ति नहीं है। विशेष अच्छा क्यों लगता? तो चेक करो छोटे-छोटे रूप में भी अपवित्रता का अंश तो नहीँ रह गया हैं? क्योंकि अंश से कभी वंश पैदा हो सकता है। कोई भी विकार चाहे छोटे रूप में, चाहे बड़े रूप में आने का निमित्त एक शब्द का भाव है, वह एक शब्द है - “मैं”। बॉडीकानसेस का मैं। इस एक मैं शब्द से अभिमान भी आता है और अभिमान अगर पूरा नहीँ होता तो क्रोध भी आता है क्योंकि अभिमान की निशानी है - वह एक शब्द भी अपने अपमान का सहन नहीँ कर सकता, इसलिए क्रोध आ जाता। तो भगत तो बलि चढाते हैं लेकिन आप आज के दिन जो भी हद का मैं पन हो, उसको बाप को देकर समर्पित करो। यह नहीँ सोचो करना तो है, बनना तो है... तो तो नहीँ करना। समर्थ हो और समर्थ बन समाप्ति करो। कोई नई बात नहीँ हैं, कितने कल्प, कितने बार सम्पूर्ण बने हो, याद है? कोई नई बात नहीँ हैं। कल्प- कल्प बने हो, बनी हुई बन रही है, सिर्फ रिपीट करना है। बनी को बनाना है, इसलिए कहा जाता है बना बनाया ड़ामा। बना हुआ है सिर्फ अभी रिपीट करना अर्थात् बनाना है। मुश्किल है कि सहज है? बापदादा समझते है संगमयुग का वरदान है - सहज पुरुषार्थ। इस जन्म में सहज पुरुषार्थ के वरदान से 21 जन्म सहज जीवन स्वत: ही प्राप्त होगी। बापदादा हर बच्चे को मेहनत से मुक्त करने आये हैं। 63 जन्म मेहनत की, एक जन्म परमात्म प्यार, मुहब्बत से मेहनत से मुक्त हो जाओ। जहाँ मुहब्बत है वहाँ मेहनत नहीँ, जहाँ मेहनत है वहाँ मुहब्बत नहीँ। तो बापदादा सहज पुरुषार्थी भव का वरदान दे रहा है और मुक्त होने का साधन है - मुहब्बत, बाप से दिल का प्यार। प्यार में लवलीन और महामन्त्र है - मनमना भव का मन्त्र। तो यन्त्र को काम में लगाओ। काम में लगाना तो आता है ना। बापदादा ने देखा संगमयुग में परमात्म प्यार द्वारा, बापदादा द्वारा कितनी शक्तियां मिली हैं, गुण मिले हैं, ज्ञान मिला है, खुशी मिली है, इन सब प्रभु देन को, खज़ानों को समय पर कार्य में लगाओ।
तो बापदादा क्या चाहते हैं, सुना? हर एक बच्चा सहज पुरुषार्थी, सहज भी, तीव्र भी। द्रढ़ता को यूज करो। बनना ही है, हम नहीँ बनेंगे तो कौन बनेगा। हम ही थे, हम ही हैं और हर कल्प हम ही होंगे। इतना दृढ निच्च्य स्वयं में धारण करना ही है। करेंगे नहीँ कहना, करना ही हैं। होना ही है। हुआ पड़ा है।
बापदादा देश विदेश के बच्चों को देख खुश है। लेकिन सिर्फ आप सामने सम्मुख वालों को नहीँ देख रहे हैं, चारों ओर के देश और विदेश के बच्चों को देख रहे हैं। मैजारिटी जहाँ-तहॉ से बर्थ डे की मुबारक आई हैं, कार्ड भी मिले हैं, ई-मेल भी मिलै हैं, दिल का संकल्प भी मिला है। बाप भी बच्चों के गीत गाते हैं, आप लोग गीत गाते हो ना - बाबा आपने कर दी कमाल, तो बाप भी गीत गाते हैं मीठे बच्चों ने कर दी कमाल। बापदादा सदा कहते हैं कि आप तो सन्मुख बैठे हो लेकिन दूर वाले भी बापदादा के दिल पर बैठे हैं। आज चारो ओर बच्चों के संकल्प में है - मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बापदादा के कानो में आवाज पहुंच रहा है और मन में संकल्प पहुंच रहे हैं । यह निमित्त कार्ड हैं, पत्र हैं लेकिन बहुत बडे हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान गिफ्ट हैं। सभी सुन रहे हैं, हर्षित हो रहे हैं। तो सभी ने अपना बर्थ डे मना लिया। चाहे दो साल का हो, चाहे एक साल का हो, चाहे एक सप्ताह का हो, लेकिन यज्ञ की स्थापना का बर्थ डे है। तो सभी ब्राह्मण यज्ञ निवासी तो हैं ही। इसलिए सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का यादप्यार भी है, दुआयें भी हैं, सदा दुआओं में ही पलते रहो, उड़ते रहो। दुआयें देना और लेना सहज है ना! सहज है? जो समझते है सहज है, वह हाथ उठाओ। झण्डियां हिलाओ। तो दुआयें छोडते तो नहीं? सबसे सहज पुरुषार्थ ही है - दुआयें देना, दुआयें लेना। इसमें योग भी आ जाता, ज्ञान भी आ जाता, धारणा भी आ जाती, सेवा भी आ जाती। चारों ही सबजैक्ट आ जाती है दुआयें देने और लेने में ।
तो डबल फारेनर्स दुआयें देना और लेना सहज है ना! सहज है? 2० साल वाले जो आये है वह हाथ उठाओ। आपको तो 2० साल हुए हैं लेकिन बापदादा आप सबको पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं । कितने देशों के आये है? (69 देशों के) मुबारक हो 69 वाँ बर्थ डे मनाने के लिए 69 देशों से आये हैं । कितना अच्छा है। आने में तकलीफ तो नहीँ हुई ना। सहज आ गये ना! जहाँ मुहब्बत है वहाँ कुछ मेहनत नहीँ। तो आज का विशेष वरदान क्या याद रखेगें? सहज पुरुषार्थी। सहज कार्य जल्दी-जल्दी किया ही जाता है। मेहनत का काम मुश्किल होता है ना तो टाइम लगता है। तो सभी कौन हो? सहज पुरुषार्थी। बोलो, याद रखना। अपने देश में जाके मेहनत में नहीँ लग जाना। अगर कोई मेहनत का काम आवे भीं तो दिल से कहना, बाबा, मेंरा बाबा, तो मेहनत खत्म हो जायेगी। अच्छा। मना लिया ना! बाप ने भी मना लिया. आपने भी मना लिया। अच्छा।
डबल विदेशी 6 ग्रुप में अलग अलग भट्टियाँ कर रहे हैं
कुमारियोंसे - एक-एक कुमारी 1०० ब्राह्मणों से उत्तम है। तो चेक करना जो गायन है हर एक कुमारी को कम से कम 1०० ब्राह्मण जरूर बनाने पड़ेगे। बनायेंगे? बनाना है। हाँ तो हाथ हिलाओ। कितने समय में बनायेंगे? समय नजदीक है ना, तो आप बताओ कितना समय चाहिए? रिजल्ट भेजनी पडेगी। (एक साल में) एक साल! आपको एक साल कलियुगी दुनिया में रहना है! चलो, आपके मुख में गुलाबजामुन। तो 6 मास में 5० बनाना, एक साल में 1००, तो 6 मास में 5०, 6 मास के बाद रिपोर्ट भेजना, पसन्द है? क्या नहीँ कर सकते हो, जो चाहो वह कर सकते हो। अच्छा है कुमारियोँ का ग्रुप अच्छा है। बापदादा कुमारियोँ को देख विशेष खुश होता है क्योंकि कुमारियां सेवा में सहयोगी नम्बरवन बन सकती हैं। अच्छा। बहुत अच्छा किया है।
कुमार ग्रुप - (गीत गाया - मै बाबा का, बाबा मेरा) अच्छा है, कुमार, डबल कुमार हो गये हो। एक दुनिया के हिसाब से भी कुमार हो और इस ब्राह्मण जीवन में भी ब्रह्माकुमार हो। तो डबल कुमार हो। तो डबल काम करना पडेगा। करेंगे? हुआ ही पड़ा है। दृढ़ संकल्प किया और सफलता हुई पडी है। अच्छा। सभी ने बहुत अच्छे बैनर बनाये हैं। (हर ग्रुप अपना- अपना बैनर बापदादा को दिखा रहा है)
माताओं से - बहुत अच्छा। बापदादा देख रहे हैं माताओं में बहुत अच्छा उमंग-उत्साह है। इसलिए बापदादा ने माताओं को ही निमित्त बनाया है। बहुत अच्छा बापदादा को पसन्द है।
अधर कुमार - अधर कुमार भी कमाल करेंगे। हर एक अधरकुमार अपना परिवर्तन का अनुभव सुनाकर सभी को बाप के समीप का बना सकते हैं क्योंकि दुनिया वाले समझते हैं कि अधरकुमार जीवन बहुत मुश्किल है लेकिन आप सभी नं मुश्किल को सहज बनाया है। बस सिर्फ अपना अनुभव सुनाते जाओ, ऐसे मुश्किल को मिटा सकते हो। एक शब्द का अन्तर करने से, गृहस्थी से ट्रस्टी बनने से मुश्किल से सहज हो जाता है। तो ऐसे अधरकुमार सेवा में सफलता प्राप्त है और होती रहेगी। अच्छा।
युगलों से - (बैनर दिखा रहे है) लक्ष्मी-नारायण का सिम्बल अच्छा बनाया है। आप तो विजयी रत्नो में हैं। साथ रहते न्यारे और प्यारे। युगलों को बापदादा कहते हैं यह कमल पुथ समान न्यारे और प्यारे हैं । रहते भी साकार में आपस में परिवार में रहते लेकिन मन से सदा बाप के साथ रहते हैं । बहुत अच्छा। सभी डबल फारेनर्स ने रिफ्रेशमेंट अच्छी ली है, अभी ली हुई रिफ्रेशमेंट औरो को देनी है। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
सेन्टर वासी - (बैनर - प्रेम और दया की ज्योति जगा कर रखेंगे) बहुत अच्छा संकल्प लिया है। अपने पर भी दया दृष्टि, साथियोँ के ऊपर भी दया दृष्टि और सर्व के ऊपर भी दया दृष्टि। ईश्वरीय लव चुम्बक है, तो आपके पास ईश्वरीय लव का चुम्बक है। किसी भी आत्मा को ईश्वरीय लव के चुम्बक से बाप का बना सकते हो। बापदादा सेन्टर पर रहने वालों को विशेष दिल की दुआयें देते हैं, जो आप सभी ने विश्व में नाम बाला किया है। कोने-कोने में ब्रह्माकुमारीज का नाम तो फैलाया है ना! और बापदादा को बहुत अच्छी बात लगती है कि जैसे डबल विदेशी हो, वैसे डबल जॉब करने वाले हो। मैजारिटी लौकिक जॉब भी करते हैं तो अलौकिक जॉब भी करते हैं और बापदादा देखते हैं, बापदादा की टीवी. बहुत बडी है, ऐसी बड़ी टी.वी. यहाँ नहीँ है। तो बापदादा देखते हैं कैसे फटाफट क्लास करते, नाश्ता खड़े-खड़े करते, जॉब में टाइम पर पहुंचते, कमाल करते हैं। बापदादा देखते-देखते दिल का प्यार देते रहते हैं। बहुत अच्छा, सेवा के निमित्त बने हो और निमित्त बनने की गिफ्ट बाप सदा विशेष दृष्टि देते रहते है। बहुत अच्छा लक्ष्य रखा हैं, अच्छे हो, अच्छे रहेंगे, अच्छे बनायेंगे।
आई. टी. ग्रुप
सेवा का कोई नया प्लैन बनाया है? (व्रह्माकुमारीज वेबसाइट को और अच्छा बवनाना है, जो विश्व में वापदादा को प्रत्यक्ष करने की सेवा में यूज किया जा सके) जो बनाया है, वह प्रैक्टिकल करके रिजल्ट लिखना। जैसे अफ्रीका वालो ने रिजल्ट लिखी ना, ऐसे आप लोग भी रिजल्ट भेजना। मुबारक हो बनाया, उमंग है, उत्साह है। जहाँ उमंग-उत्साह है, वहाँ सफलता है ही है। बहुत अच्छा किया।
सेवा का टर्न – राजस्थान और यु. पी. जोन
अच्छा है, रूहानी लश्कर है। बहुत अच्छा, सेवा दिल से की भी है और सभी को सन्तुष्ट भी किया है। तो जो सन्तुष्ट करता है उसको दिल से जो सन्तुष्टता की लहरे पहुचती हैं, उससे बहुत खुशी होती है। तो बहुत खुशी मिली है ना। आपने स्थूल सेवा की और सभी भाई बहिनों ने आपको खुशी की सौगात दी है। सन्तुष्टता सबसे बडी खुशी की खुराक है। सारा ग्रुप सन्तुष्टमणियोँ का हो गया। सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्टमणि। सन्तुष्टमणियोँ को बापदादा और सारे परिवार की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
अच्छा - भारत की मातायें देख रही है, हमारा नाम नहीँ लिया बाबा ने। बापदादा कहते है कि जहाँ भी मातायें होती है ना, तो माताओं की विशेषता है कि उस स्थान का भण्डारा और भण्डारी भरपूर होती है। माताओं को वरदान है, फुरी- फुरी (बूंद-बूंद) तलाब भरने का। तो मातायें बहुत भाग्यवान है, बाप की भण्डारी भर देती है। भण्डारा भी भर जाता है। इसलिए माताओं को बहुत-बहुत मुबारक है। अच्छा - भाई भी कम नहीं है। देखो जहाँ भाई हैं ना, वहाँ सेवा को चार चाँद लग जाते हैं। भाइयोँ द्वारा आलराउण्ड सेवा होती है। भण्डारा भरपूर तो करते ही है, लेकिन सेवा बढाने के निमित्त विशेष भाई निमित्त बनते हैं। तो सेवा की रौनक बढाने वाले भाई हैं। इसलिए बापदादा सभी माताओं को, सभी भाइयोँ को बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं। भले पधारे अपने घर में। देखो हाल की रौनक कौन बढाता है ' आप बच्चे जब आते हैं तो डायमण्ड हाल, डायमण्ड बन जाता है। अच्छा दृश्य लगता है। अच्छा है दादी को डायमण्ड हाल बहुत पसन्द आ गया है। अच्छा, नचाती अच्छा है। खुश हो जाते हो ना, जब दादी आके नचाती है तो खुश हो जाते हैं। बहुत अच्छा। अभी एक सेकण्ड में ड्रिल कर सकते हो? कर सकते हो ना। अच्छा।
चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले श्रेष्ठ बच्चों को, सदा सहज पुरुषार्थी संगमयुग के सर्व बरदानी बच्चों को, सदा बाप और मैं आत्मा इसी स्मृति से मैं बोलने वाले, मैं आत्मा, सदा सर्व आत्माओं को अपने वृत्ति से वायुमण्डल का सहयोग देने वाले ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दुआयें, मुबारक और नमस्ते।
दादियोंसे:-
आप सबसे मधुबन की रौनक है। विशेष आज बाप के साथ उसी समय अवतरण तो आपका भी है। विशेष आप सबका है, आदि रत्नो का आदि समय में अवतरण है। तो आप लोगों को विशेष मुबारक है। हैपी बर्थ डे है। एक गीत है ना - आप मधुबन की रौनक हैं। आदि से कुछ तो चल गये, लेकिन आप अमर हो। (बाबा की दुआयें है, सबकी दुआयें है) यह अच्छा है, ऊपर ही हाथ जाता है नीचे नहीं जाता है। अच्छा है। दादियोँ को देखकर सभी खुश होते हो ना!
निर्वेर भाई, रमेश भाई से:-
अच्छा है, पाण्डवों के बिना भी गति नहीँ है। चाहे पाण्डव चाहे शक्तियां सबका संगठन, संगठन बना रहा है।
डबल विदेशी बडी बहेनोंसे:-
सभी ने मेहनत अच्छी की है। ग्रुप-ग्रुप बनाया है ना तो मेहनत अच्छी की है। और यहाँ वायुमण्डल भी अच्छा है, संगठन की भी शक्ति है, तो सबको रिफ्रेशमेंट अच्छी मिल जाती है और आप निमित्त बन जाते हो। अच्छा है। दूर-दूर रहते हैं ना, तो संगठन की जो शक्ति होती है वह भी बहुत अच्छी है। इतना सारा परिवार इकट्ठा होता है तो हर एक की विशेषता का प्रभाव तो पडता है। अच्छा प्लैन बनाया है। बापदादा खुश है। सबकी खुशबू आप ले लेते हो। वह खुश होते हैं आपको दुआयें मिलती हैं । अच्छा है, यह जो सभी इकट्ठे हो जाते हो यह बहुत अच्छा है, आपस में लेन देन भी हो जाती है और रिफ्रेशमेंट भी हो जाती है। एक दो की विशेषता जो अच्छी पसन्द आती है, उसको यूज करते है, इससे सगठन अच्छा हो जाता है। यह ठीक है।
जयन्ती बहन से:-
अभी थोडा-थोड़ा सेवा में पार्ट लिया क्योंकि खुशी मिलेगी। सबकी दुआयें, वह भी दवा का काम करेगी। बहुत अच्छा।
डा. निर्मला बहन श्री लंका जा रही हैं, वहाँ रिट्रीट है अच्छा है उन्हों को रिफ्रेशमेंट चाहिए।
काठमांडू नेपाल की किरन बहन से:-
प्रकृतिजीत हो, शिव शक्ति हो, यह थोडा बहुत हिसाब-किताब है, सब चला जायेगा। मजबूत रहना और सभी नेपाल निवासियो को याद देना, घबराना नहीँ।
बापदादा ने अपने हस्तों से शिव ध्वज फहराया और उऐर 69वीं शिव जयन्ती की बधाइयां दी
आप सबके दिल में तो बाप की याद का झण्डा लहरा ही रहा है। अभी सारे विध में जो कोने-कोने में सेवा कर रहे हो, उसकी सफलता निकलनी है जो चारों ओर से यही आवाज आयेगा “मेरा बाबा” आ गया। यही है, यही है, यही है। वह दिन भी दूर नहीँ है, आना ही है, होना ही है, हुआ ही पडा है। ऐसे ऐसे माइक तैयार हो रहे हैं। आप माइट देगे और वह माइक बापदादा को प्रत्यक्ष करेंगे। करना है ना। (बापदादा कोई वी.आई.पी. माइक को सभा में देखकर बोले) यह माइक बैठी है ना। बढिया माइक है। ऐसें माइक निकालेंगे जो आपको सिर्फ दृष्टि देनी पडेगी। वही दिन आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है 1 अच्छा। ओम शान्ति।
02-02-04 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“पूर्वज और पूज्य के स्वमान में रह विश्व की हर आत्मा की पालना करो, दुआयें दो, दुआयें लो”
आज चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा पूर्वज भी है और पूज्य भी है। इसलिए इस कल्पवृक्ष के आप सभी जड़ हैं, तना भी हैं। तना का कनेक्शन सारे वृक्ष के टाल टालियों से, पत्तों से स्वत: ही होता है। तो सभी अपने को ऐसी श्रेष्ठ आत्मा सारे वृक्ष के पूर्वज समझते हो? जैसे ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर कहा जाता है, उनके साथी आप भी मास्टर ग्रेट ग्रैण्ड फादर हो। पूर्वज आत्माओं का कितना स्वमान है! उस नशे में रहते हो? सारे विश्व की आत्माओं से चाहे किसी भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन सर्व आत्माओं के आप तना के रूप में आधारमूर्त पूर्वज हो। इसीलिए पूर्वज होने के कारण पूज्य भी हो। पूर्वज द्वारा हर आत्मा को सकाश स्वत: ही मिलती रहती है। झाड़ को देखो, तना द्वारा, जड़ द्वारा लास्ट पत्ते को भी सकाश मिलती रहती है। पूर्वज का कार्य क्या होता है? पूर्वजों का कार्य है सर्व की पालना करना। लौकिक में भी देखो पूर्वजों द्वारा ही चाहे शारीरिक शक्ति की पालना, स्थूल भोजन द्वारा वा पढ़ाई द्वारा शक्ति भरने की पालना होती है। तो आप पूर्वज आत्माओं की पालना, बापद्वारा मिली हुई शक्तियों से सर्व आत्माओं की पालना करना है।
आज के समय अनुसार सर्व आत्माओं को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। जानते हो आजकल आत्माओं में अशान्ति और दु:ख की लहर छाई हुई है। तो आप पूर्वज और पूज्य आत्माओं को अपने वंशावली के ऊपर रहम आता है? जैसे जब कोई विशेष अशान्ति का वायुमण्डल होता है तो विशेष रूप से मिलेट्री या पुलिस अलर्ट हो जाती है। ऐसे ही आजकल के वातावरण में आप पूर्वज भी विशेष सेवा के अर्थ स्वयं को निमित्त समझते हो! सारे विश्व की आत्माओं के निमित्त हैं, यह स्मृति रहती है? सारे विश्व की आत्माओं को आज आपके सकाश की आवश्यकता है। ऐसे बेहद के विश्व की पूर्वज आत्मा अपने को अनुभव करते हो? विश्व की सेवा याद आती है वा अपने सेन्टर्स की सेवा याद आती है? आज आत्मायें आप पूर्वज देव आत्माओं को पुकार रही हैं। हर एक अपने-अपने भिन्न-भिन्न देवियां वा देवताओं को पुकार रहे हैं - आओ, क्षमा करो, कृपा करो। तो भक्तों का आवाज सुनने आता है? आता है सुनने या नहीं? कोई भी धर्म की आत्मायें हैं, जब उनसे मिलते हो तो अपने को सर्व आत्माओं के पूर्वज समझकर मिलते हो? ऐसे अनुभव होता है कि यह भी हम पूर्वज की ही टाल-टालियां हैं! इन्हों को भी सकाश देने वाले आप पूर्वज हो। अपने कल्प वृक्ष का चित्र सामने लाओ, अपने को देखो आपका स्थान कहाँ है! जड़ में भी आप हो, तना भी आप हो। साथ में परमधाम में भी देखो आप पूर्वज आत्माओं का स्थान बाप के साथ समीप का है। जानते हो ना! इसी नशे से कोई भी आत्मा से मिलते हो तो हर धर्म की आत्मा आपको यह हमारे हैं, अपने हैं, उस दृष्टि से देखते हैं। अगर उस पूर्वज के नशे से, स्मृति से, वृत्ति से, दृष्टि से मिलते हो, तो उन्हों को भी अपनेपन का आभास होता है क्योंकि आप सर्व के पूर्वज हो, सबके हो। ऐसी स्मृति से सेवा करने से हर आत्मा अनुभव करेगी कि यह हमारे ही पूर्वज वा ईष्ट फिर से हमें मिल गये। फिर पूज्य भी देखो कितनी बड़ी पूजा है, कोई भी धर्मात्मा, महात्मा की ऐसी आप देवी-देवताओं के समान विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। पूज्य बनते हैं लेकिन तुम्हारे जैसी विधि-पूर्वक पूजा नहीं होती। गायन भी देखो कितना विधि-पूर्वक कीर्तन करते हैं, आरती करते हैं। ऐसे पूज्य आप पूर्वज ही बनते हो। तो अपने को ऐसे समझते हो? ऐसा नशा है? है नशा? जो समझते हैं हम पूर्वज आत्मायें हैं, यह नशा रहता है, यह स्मृति रहती है वह हाथ उठाओ। रहती है? अच्छा। रहती है वह तो हाथ उठाया? बहुत अच्छा। अभी दूसरा क्वेश्चन कौन सा होता है? सदा रहता है?
बापदादा सभी बच्चों को हर प्राप्ति में अविनाशी देखने चाहते हैं। कभी-कभी नहीं। क्यों? जवाब बहुत चतुराई से देते हैं, क्या कहते हैं? रहते तो हैं..., अच्छा रहते हैं। फिर धीरे से कहते हैं थोड़ा कभी-कभी हो जाता है। देखो बाप भी अविनाशी, आप आत्मायें भी अविनाशी हो ना! प्राप्तियां भी अविनाशी, ज्ञान अविनाशी द्वारा अविनाशी ज्ञान है। तो धारणा भी क्या होनी चाहिए? अविनाशी होनी चाहिए या कभी-कभी?
बापदादा अभी सभी बच्चों को समय के सरकमस्टांश अनुसार बेहद की सेवा में सदा बिजी देखने चाहते हैं क्योंकि सेवा में बिजी रहने के कारण अनेक प्रकार की हलचल से बच जाते हैं। लेकिन जब भी सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो और प्लैन अनुसार प्रैक्टि-कल में भी आते हो, सफलता भी प्राप्त करते हो। लेकिन बापदादा चाहते हैं कि एक समय पर तीनों सेवा इकट्ठी हो, सिर्फ वाचा नहीं हो, मन्सा भी हो, वाचा भी हो और कर्मणा अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हुए भी सेवा हो। सेवा का भाव, सेवा की भावना हो। इस समय वाचा के सेवा की परसेन्टेज ज्यादा है, मन्सा है लेकिन वाचा की परसेन्टेज ज्यादा है। एक ही समय पर तीनों सेवा साथ-साथ होने से सेवा में सफलता और ज्यादा होगी।
बापदादा ने समाचार सुना है कि इस ग्रुप में भी भिन्न-भिन्न वर्ग वाले आये हुए हैं और सेवा के प्लैन अच्छे बना रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं, लेकिन तीनों सेवा इकट्ठी होने से सेवा की स्पीड और वृद्धि को प्राप्त होगी। सभी चारों ओर से बच्चे पहुंच गये हैं, यह देख बापदादा को भी खुशी होती है। नये-नये बच्चे उमंग-उत्साह से पहुंच जाते हैं।
अभी बापदादा सभी बच्चों को सदा निर्विघ्न स्वरूप में देखने चाहते हैं, क्यों? जब आप निमित्त बने हुए निर्विघ्न स्थिति में स्थित रहो तब विश्व की आत्माओं को सर्व समस्याओं से निर्विघ्न बना सको। इसके लिए विशेष दो बातों पर अण्डरलाइन करो। करते भी हो लेकिन और अण्डरलाइन करो। एक तो हर एक आत्मा को अपने आत्मिक दृष्टि से देखो। आत्मा के ओरीज्नल संस्कार के स्वरूप में देखो। चाहे कैसे भी संस्कार वाली आत्मा है लेकिन आपकी हर आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना, परिवर्तन की श्रेष्ठ भावना, उनके संस्कार को थोड़े समय के लिए परिवर्तन कर सकती है। आत्मिक भाव इमर्ज करो। जैसे शुरू-शुरू में देखा तो संगठन में रहते आत्मिक दृष्टि, आत्मिक वृत्ति, आत्मा-आत्मा से मिल रही है, बात कर रही है, इस दृष्टि से फाउण्डेशन कितना पक्का हो गया। अभी सेवा के विस्तार में, सेवा के विस्तार के सम्बन्ध में आत्मिक भाव से चलना, बोलना, सम्पर्क में आना मर्ज हो गया है। खत्म नहीं हुआ है लेकिन मर्ज हो गया है। आत्मिक स्वमान, आत्मा को सहज सफलता दिलाता है क्योंकि आप सभी कौन आकर इकट्ठे हुए हो? वही कल्प पहले वाले देव आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें इकट्ठे हुए हो। ब्र